प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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विमर्श संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी तथ्य का अनुसंधान । किसी बात का विवेचन या विचार ।

२. आलोचना । समीक्षा ।

३. पर- खने की क्रिया । परीक्षा ।

४. परामर्श । सलाह ।

५. असंतोष । अधीरता ।

६. संकोच । संदेह (को॰) ।

७. ज्ञान (को॰) ।

८. विपरीत निर्णय (को॰) ।

९. पिछले शुभाशुभ कर्मों की मन के ऊपर बनी हुई भावना या वासना (को॰) ।

१०. शिव (को॰) ।

११. नाटक की पाँच प्रकार की संधियों में से एक । अवमर्श संधि (को॰) ।

विमर्श संधि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ विमर्श सन्धि] नाट्यशास्त्र के अनुसार पाँच प्रकार की संधियों में से एक । दे॰ 'अवमर्श संधि' ।