विभु

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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विभु ^१ वि॰ [सं॰]

१. जो सर्वत्र वर्तमान हो । जो सब मूर्त पदार्थों में रम रहा हो । जिससे कोई स्थान खाली न हो । सर्वगत । सर्वव्यापक । जैसे,—दिक्, काल और आत्मा । विशेष—जीव की जाग्रत आदि चारो अवस्थाओं के चार विभु माने गए हैं । जाग्रत् का विभु 'विश्व', स्वप्न का 'तेजस्' सुषुप्ति का 'प्राज्ञ' और तुरीय का 'ब्रह्म' कहा गया है ।

२. जो सब जगह जा सकता हो । सर्वत्र गमनशील । जैसे, मन ।

३. अत्यंत विस्तृत । बहुत बड़ा । महान् ।

४. सब काल में रहनेवाला । सर्वकालव्यापी । नित्य ।

५. दृढ़ । अचल । अचल । चिर स्थायी ।

६. शक्तिमान् । ऐश्वर्ययुक्त ।

७. योग्य । समर्थ । क्षम (को॰) ।

८. आत्मसंयमी । जितेंद्रिय (को॰) ।

विभु ^२ संज्ञा पुं॰

१. ब्रह्मा ।

२. आत्मा । जीवात्मा ।

३. प्रभु । स्वामी ।

४. ईश्वर । उ॰—विभु की बाट जोहते हैं सब ले लेकर अपने उपहार ।—साकेत, पृ॰ ३७५ ।

५. शंकर । शिव ।

६. विष्णु ।

७. भृत्य ।

८. सूर्य (को॰) ।

९. चंद्र (को॰) ।

१०. कुबेर (को॰) ।

११. एक देव वर्ग (को॰) ।

१२. बुद्ध का एक नाम (को॰) ।

१३. आकाश (को॰) ।

१४. अवकाश । अवसर (को॰) ।

१५. काल (को॰) ।