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टंकार - (स्त्री.) (तत्.) - धनुष की चढ़ी हुई डोरी को खींचकर छोड़ने से उत्पन्न हुई ध्वनि। ला.अर्थ चुनौती।
टकराना अ.क्रि. - (देश.) - 1. वेग गति से आती हुई दो वस्तुओं का ज़ोर से भिड़ना, टक्कर खाना। जैसे: गाडि़यों का टकराना। collide, collision 2. मेल न खाना। जैसे: हितों का टकराना। एक वस्तु को दूसरी वस्तु से भिड़ाना। टक्कर मारना।
टकराव - (पुं.) (देश.) - टकराने की स्थिति, टक्कर खाने का भाव। दे. टकराना।
टकराहट - (स्त्री.) (देश.) - शा.अर्थ टकराने से उत्पन्न होने वाली आवाज़। एकाधिक व्यक्तियों के बीच शारीरिक टक्कर अथवा वैचारिक मतभेद का सूचक शब्द।
टटोलना स.क्रि. - ([तद्.<त्वक् + तोलन]) - 1. अँधेरे में या अंधा होने की स्थिति में किसी चीज़ को जानने-पहचानने के लिए उसे अंगुलियों से छूना या दबाना। 2. ढूँढने के लिए इधर-उधर हाथ फैलाना। 3. किसी के मन की बात जानने के लिए प्रयत्न करना।
टपकना - - अ.क्रि. [अनु. टप टप.] 1. किसी भी द्रव पदार्थ का बूँद-बूँद कर गिरना। जैसे: कपड़ों से/बालों से पानी टपकना। 2. पकने की सहजता से टूट कर गिरना। जैसे: आम टपकना। मुहा. टपक पड़ना – किसी का अकस्मात् आ जाना।
टरबाइन/टर्बाइन - (स्त्री.) - (अं.) पारि.अर्थ मशीन या यंत्र जिसमें पहिया पानी, भाप, गैस आदि की शक्ति से घूमने लगता है।
टर्मिनल - (पुं.) - (अं.) 1. वह स्थान जहाँ बसों और रेलगाडि़यों का इकतरफा फेरा समाप्त हो जाता है। नियत समय के बाद वहीं से उलटा फेरा फिर शुरू होता है। (बस/रेल) terminal 2. हवाई अड्डे का वह भवन जहाँ इकट् ठा होकर यात्री हवाई जहाज़ में चढ़ने के लिए सुरक्षा जाँच के बाद हवाई पट्टी पर पहुँचते हैं और आने वाले जहाज़ से उतरकर अपना सामान जुटाते हैं। air terminal
टलना अ.क्रि. - (देश.) - किसी काम के लिए निर्धारित समय का आगे बढ़ा दिया जाना। जैसे: परीक्षा एक सप्ताह के लिए टल गई है। पर्या. स्थगित होना।
टस - (स्त्री.) - (अनु.) किसी भारी चीज को खिसकाने पर सुनाई पड़ने वाला शब्द। मुहा. टस से मस नहीं होना = अपने स्थान से थोड़ा-सा भी न हिलना; अपनी बात पर अड़े रहना।
टहनी - (स्त्री.) (देश.) - पादप (पेड़ और झाड़ दोनों) की मुख्य शाखा (डाल) से विकसित पतले आकार का अपेक्षाकृत मुलायम और लचीला प्ररोह (जिस पर पत्तियाँ निकलती हैं।) twig
टहलना अ.क्रि. - (देश.) - प्रात:काल वायु सेवन अथवा शाम को भोजन पचाने के निमित्त खुले स्थान में धीरे-धीरे चलना। strall
टहलुआ/वा - (पुं.) (देश.) - मालिक की सेवा-टहल करने वाला व्यक्ति। पर्या. चाकर, सेवक, दास।
टाँकना स.क्रि. - ([तद्.]) - 1. सुई-डोरे द्वारा सिलाई करके किसी छोटी चीज को बड़ी चीज के साथ जोड़ना या लगाना। जैसे: में बटन टाँकना। 2. सिल और चक्की के पाट में टाँकी से छोटे-छोटे गड्ढे करके उन्हें खुरदुरा करना। 3. कोई बात याद रखने के लिए लिख लेना; जमा-खर्च आदि में चढ़ाना।
टाइपराइटर - (पुं.) - (अं.) किसी विषय वस्तु, लेख, पत्र, प्रारूप आदि को हिंदी, अंग्रेजी आदि भाषा में टाइप करने की मशीन, टंकण यंत्र, टंकित्र। जैसे: पहले प्रत्येक कार्यालय में ‘टाइपराइटर’ की आवश्यकता होती थी, अब उनका स्थान कंप्यूटरों ने ले लिया है। typewriter
टाइफाइड - (पुं.) - (अं.) जीवाणु साल्मोनेला टाइफोसा के संक्रमण से होने वाला रोग। पुराने जमाने में यह घात रोग था। अब एन्टिबायोटिक (प्रतिजीवी) दवाओं से इसका उपचार संभव है। इसके लक्षण है: ज्वर, सिरदर्द, खाँसी तथा कई अन्य विकार। पर्या. आंत्र ज्वर, मोती झरा।
टाट - (पुं.) ([तद्.< तंतु]) - 1. सन का बना हुआ मोटा कपड़ा जिसकी बोरियाँ आदि बनती हैं। 2. महाजन की गद्दी जिस पर टाट बिछा रहता है। मुहा. टाट उलटना-यह घोषित करना कि अब हमारे पास कुछ नहीं है; अपने-आप को दिवालिया घोषित करना।
टायर - (पुं.) - (अं.) मोटर गाड़ी, मोटर साइकिल, स्कूटर, साइकिल आदि वाहनों के पहिए की फ्रेम पर लगा रबड़ का बना बाहरी आवरण जिसके अंदर रखे ट्यूब में हवा भरे जाने के बाद वह सडक़ में मृदु संस्पर्श कर वाहन को सुविधापूर्वक आगे धकेलने में मदद पहुँचाता है।
टालना स.क्रि. - (देश.) - 1. बताए गए काम को पूरा करने के बजाय कोई-न-कोई बहाना कर उससे बचने का प्रयत्न करना। उदा. 1. तुमने मेरी बात को टाल कर अच्छा नहीं किया। 2. काम को स्थगित करना। उदा. कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से परीक्षा एक सप्ताह के लिए टाल दी गई। पर्या. स्थगित करना।
टाल-मटोल - (स्त्री.) (तत्. यल + अनु.) - 1. किसी काम को न करने के लिए टालते रहने की क्रिया/भाव। 2. बहाना, बहाने बाजी। जैसे: कार्यालय का कर्मचारी किसी काम को करने के लिए कई दिन से टाल-मटोल कर रहा है।
टिकट - (पुं.) (पुं.) - (अं.) 1. रेल, बस, थियेटर आदि में प्रवेश पाने के लिए महसूल या कर के रूप में दी गई धनराशि और उसके बदले में प्राप्त प्रवेश-पत्र। जैसे: रेल का टिकट, बस-टिकट, सिनेमा का टिकट आदि। 2. डाक भेजने या धनराशि की प्राप्ति-रसीद के लिए चिपकाई जाने वाली मूल्य सूचक पर्ची। जैसे: डाक टिकट, राजस्व टिकट।
टिकट घर - (पुं.) (अं.+तद्.) - वह अधिकृत स्थान जहाँ बिक्री के लिए टिकट उपलब्ध हो। पर्या. टिकट खिडक़ी booking office
टिकना अ.क्रि. - (तद्.<स्थितकति) - 1. किसी स्थान पर कुछ समय के लिए रुकना या ठहरना। 2. स्थायी रूप से स्थित रहना, 3. युद्ध में डटे रहना। 3. अपनी बात पर दृढ़ रहना।
टिकाऊ - (वि.) ([देश.]) - सामान्य से अधिक दिनों लंबे समय तक टिकने वाला। जैसे: टिकाऊ कपड़ा।
टिकाऊपन - (पुं.) (देश.) - किसी वस्तु की लंबे समय तक उपयोग में आने की स्थिति का सूचक भाव।
टिकाना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी को कुछ समय के लिए टिकने या वास करने के लिए स्थान देना। उदा. चिंता मत करो। तुम्हारे मित्र को मैं अपने यहाँ टिका लूँगा। पर्या. ठहरना। 2. सहारा देना। उदा. सीढ़ी को दीवार के साथ टिका दो।
टिकिया - (स्त्री.) (तद्.) - छोटे आकार वाली कोई भी गोल या चपटी वस्तु। जैसे : की टिकिया; दवा की गोली।
टिटनिस - (स्त्री.) - (अं.) शरीर के घाव में विषाणुओं के प्रवेश से होने वाला रोग। यह प्राय: जंग लगे लोहे द्वारा रक्त को स्पर्श के कारण होता है। इसमें चेहरे और गर्दन की माँसपेशियाँ कठोर होकर ऐंठ जाती हैं और अंत में पीठ धनुष के समान टेढ़ी हो जाती है। पर्या. धनुर्वात, धनुस्तम्य। उदा. इस रोग में टिटनेस का टीका लगवाना आवश्यक है।
टिफिन - (पुं.) - (अं.) 1. दोपहर में खाने के लिए घर से ले जाया गया भोजन, 2. जलपान, नाश्ता। उदा. कर्मचारी या श्रमिक अपना टिफिन ले जाते हैं। तुल. lunch breakfast
टिप्पण - (पुं.) (तत्.) - दे. टिप्पणी।
टिप्पणी - (स्त्री.) (तत्.) - 1. विचाराधीन विषय, घटना आदि के बारे में अपने विचार के साथ लिखा गया सटीक संक्षिप्त विवरण। 2. किसी कहानी, उपन्यास, पुस्तक आदि के बारे में लिखा गया समीक्षात्मक संक्षिप्त विवरण। comments 3. किसी व्यक्ति के कार्य आदि के संदर्भ में संक्षिप्त अभिमत। remark 4. किसी विषय पर दी गई अतिरिक्त जानकारी या संदर्भ। (जो पृष्ठ के नीचे या लेख के अंत में दिए जाते हैं)। footnote टि. बुनकरों के पास धन का अभाव होने के कारण खरीददारों से संपर्क न होने के कारण वे व्यापारियों से मजबूरी में कच्चा माल लेते हैं और सस्ते में बुना हुआ कपड़ा व्यापारी को देते हैं।
टिप्पस - (स्त्री.) (देश.) - किसी से अपना काम बनाने या कराने की विशेष युक्ति। तरकीब, जुगत, जुगाड़। उदा. वह टिप्पस से अपना काम करवा लेता है। मुहा. टिप्पस भिड़ाना/लगाना – अपना कार्य सिद्ध करवाने की युक्ति निकालना या उचित अवसर खोजना।
टिमटिमाना अ.क्रि - ([तद्.]) - शा.अर्थ धीरे-धीरे प्रकाश देना। 1. दीपक का क्षीण प्रकाश के साथ जलना अर्थात् थोड़ा प्रकाश देना। 2. दीपक की लौ या तारों का कभी थोड़ा तेज़ और कभी बिल्कुल मंद हो जाना। उदा. अँधेरी रात में तारे टिमटिमाते हुए बड़े सुंदर लगते हैं।
टिमटिमाहट [टिमटिम+आहट] - (पुं.) (देश.) - दीपक के टिमटिम जलने का अथवा तारों के जलते-बुझते से दिखाई देने का भाव। दे. टिमटिमाना।
टीका - (पुं.) (तत्.) - 1. माथे पर रोली, चंदन, केसर आदि का बनाया गया चिह्न। 2. विवाह पूर्व की एक रस्म जिसमें कन्या पक्ष वाले वर के मस्तक पर तिलक लगाकर विवाह स्थिर करते हैं। 3. महिलाओं की माँग में पहना जाने वाला गहना जो देखने में तिलक जैसा लगता है। 4. सूत्र रचित कथन अथवा पद्य रचना की विस्तार में की गई गद्यात्मक व्याख्या। 5. आयुं. रोग की रोकथाम हेतु प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सुई लगाकर पहुँचाई गई दवा। inoculation
टीकाकरण - (पुं.) (देश.+तत्.) - 1. प्रतिरक्षा या रोग क्षमता immunity उत्पन्न करने के लिए शरीर में रोगाणु अथवा वैक्सीन के अंश को प्रवेश करने/कराने यानी टीका लगाने/लगवाने की क्रिया। Vaccination, insulation 2. (बोलचाल में) इंजेक्शन लगाने/सुई लगवाने की क्रिया; injection
टुंड्रा - (पुं.) - (लैपभाषा) यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के उत्तर में फैला हुआ विशाल, लगभग सपाट और पादप विहिन आर्कटिक वृत्तवाला क्षेत्र जिसकी धरती सदा से जमी बरफ से ढकी रहती है।
टुकड़ी - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी चीज़ का वह छोटा-सा हिस्सा जो मूल वस्तु से कट कर अलग हो गया हो या कर दिया गया हो। 2. सैवि. किसी कार्य विशेष की पूर्ति के लिए अपने मुख्यालय से हटाकर अन्यत्र भेजा गया सैनिकों का एक समूह या इकाई। detachment
टुकुर-टुकुर क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - जैसे: टुकुर-टुकुर देखना – ललचाई हुई/हसरत भरी नज़र से देखना। टकटकी लगाकर देखना।
टूरिंग थियेटर - (पुं.) - (अं.) चलता-फिरता-सिनेमा। चलती-फिरती नाटकमंडली।
टेक - (स्त्री.) (देश.) - 1. व्यक्ति या वस्तु गिर न पड़े, इसके लिए दिया गया सहारा। जैसे: छप्पर के लिए यूनी की टेक। 2. गति की पहली पंक्ति जो बार-बार गाई जाती है। 3. प्रतिज्ञा, दृढ़ संकल्प, जिसका निर्वाह किया जाता है। मुहा. टेक निभाना – संकल्प पूरा करना। माथा टेकना – इष्ट देव के चरणों में या मंदिर की चौखट पर मस्तक छूना। घुटने टेकना – हार मान लेना।
टेक्सटाइल - (पुं.) - (अं.) बुना हुआ कपड़ा, वस्त्र। जैसे: टेक्सटाइल इंडस्ट्री – वस्त्रोद् योग।
टेढ़ी-मेढ़ी - (वि.) (देश.) - जो सीधी रेखा में न हो, थोड़ा बहुत घुमावदार या तिरछापन लिए। मेढा अनुकरण मूलक युग्म शब्द। ऐसी वस्तु जिसमें घुमाव हो, मोड़ हो। जैसे: टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता; पुरानी दिल्ली की टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ।
टेफ़्लॉन - (पुं.) - (अं.) एक रसायन जिसका लेप खाना पकाने के बर्तनों पर करने से ऊपर चिकनाई नहीं जमती।
टेरीलीन - (पुं.) - (अं.) कृत्रिम, रेशे से बना वस्त्र।
टेलीफिल्म - (स्त्री.) - (अं.) लगभग 6 मिनट की समस्या मूलक-फिल्म।
टेलीफ़ोन - (पुं.) - (अं.) विद्युत् प्रणाली से संचालित वह उपकरण जिसमें उचित क्रमांक स्थापित कर व्यक्ति किसी भी स्थान पर बैठे व्यक्ति से (जिसके पास भी टेलीफोन उपकरण हो) बातें कर सकता है तथा संदेश दे और प्राप्त कर सकता है। पर्या. दूरभाष, दूरवाणी। (Telephone)
टेलीविज़न - (पुं.) - (अं.) 1. दूर की वस्तु को देखने का यंत्र। 2. वह यंत्र जिस पर सुदूरवर्ती एवं दूर घटित होने वाले दृश्यों को देखा जा सकता है। ‘दूरदर्शन’।
टेवा - (पुं.) (तद्.<टिप्पण) - जन्म के बाद बालक/बालिका की ज्योतिषी द्वारा बनायी जाने वाली काम चलाऊ जन्मपत्री। टि. ज्योतिषी प्राय: प्रारंम्भिक जन्मकुंडली बनाते हैं जिसमें मुख्य रूप से गंडमूल, मंगली होना इत्यादि बातों पर विचार किया जाता है। विवाह के समय विचार की दृष्टि से इसे बताया जाता है। उसे ही टेवा कहते हैं।
टैंकर - (पुं.) - (अं.<टैंक) समुद्र, वायु या भूमि पर चलने वाला वाहन जो तरल पदार्थों (जैसे जल, दूध, तेल आदि।) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है। उदा. हमारी कॉलोनी में पानी टैंकरों से पहुँचाया जाता है।
टैक्नोलोजी - (स्त्री.) (दे.) - प्रौद् योगिकी
टैडपोल - (पुं.) - (अं.) उभयचर जीवों, विशेषकर मेंढक, भेक (टोड) के जलीय जीवन काल के डिंमक। पर्या. बेंगची, छुछमाछी, छुछमछली।
टोकन - (पुं.) - (अं.) सा.अर्थ. चिह्न, प्रतीक, संकेत, प्रमाण आदि। वाणि. धातु या प्लास्टिक निर्मित वह चौकोर या गोल टुकड़ा जिसे चैक भुनाते समय रोकड़िए को सौंपकर नकद राशि प्राप्त की जाती है।
टोकना स.क्रि. - (तद्.<स्तोकन=कम करना) - 1. किसी के कुछ करने या कहने को बीच में रोकने का प्रयास करना। 2. बोलते या कुछ करते समय बीच में रोककर पूछताछ करना। उदा. जब कोई बड़ा आदमी बोल रहा हो तो उसे बीच-बीच में टोकना अच्छा नहीं माना जाता। रोक-टोक = रोकना और टोकना।
टोप - (पुं.) (तद्.<स्तूप)। - 1. अंग्रेज़ी पहनावे वाली हैट 2. शिरस्त्राण helmet
टोपा - (पुं.) (तद्.<स्तूपक) - बड़े आकार की टोपी, विशेष रूप से ‘कनटोप’।
टोपी - (स्त्री.) (तद्.< स्तूपिका) - 1. सिर ढकने के लिए पहना जाने वाला किश्तनुमा या गोलाकार सिला हुआ पहनावा। जैसे: गाँधी टोपी। 2. किसी बोतल आदि का ढक्कन camp ला.अर्थ इज्जत, मान, सम्मान। उदा. किसी की टोपी उछालना ठीक नहीं है। तुंल. टोपा – बड़ी टोपी, हेलमेट – कठोर टोपी जो सिर को आघात से बचाती है। मुहा. टोपी उछालना – इज्जत जाना, टोपी उछालना, इज्जत उतारना। टोपी सलामत रहना – इज्जत बनी रहना, टोपी पहनना – किसी को मूर्ख बनाना।
टोला - (पुं.) (देश.) - शा.अर्थ समूह। सा.अर्थ किसी गाँव या कस्बे की वह बस्ती विशेष या इकाई जहाँ एक ही समुदाय के लोग अधिक संख्या में रहते हों। जैसे: टोला अहीरन (अहीरों की बस्ती)। पर्या. पाड़ा, मोहल्ला।
टोली - (स्त्री.) (देश.) - एक जैसे लोगों/व्यक्तियों का विशेष समूह, दल, झुंड। जैसे: भक्तों की टोली, संतों की टोली, छात्रों की टोली आदि।
टोह - (स्त्री.) (देश.) - खोज, ढूँढ। दे. टोहना।
टोहना स.क्रि. - (देश.) - टोहने टटोलने की क्रिया। अंधेरे में छिपी वसतु का पता लगाना। छिपी हुई बात का पता लगाने की जानकारी पाना-मिलना।
ट्रक - (पुं.) - (अं.) 1. भारी माल ढोने की चार, छह या आठ पहियों की पेट्रोल, डीजल आदि से चलने वाली बड़ी गाड़ी। 2. भारवाहक ठेला। उदा. ट्रकों से दूर दूर तक के प्रदेशों में माल पहुँचाया जाता है।
ट्राफ़ी - (स्त्री.) - (अं.) 1. किसी विशेष प्रतियोगिता में विषय प्राप्त करने या किसी प्रकार का कौशल प्रदर्शन करने पर दिया जाने स्मृति चिह् न सहित विजय पुरस्कार। जैसे: रणजी ट्राफी। 2. विजय की निशानी। Trophy
ट्रैकिंग - (पुं.) - (अं.) अभियान के रूप में की जाने वाली प्राय: सामूहिक दुर्गम यात्रा।
ट्रैकिया - (स्त्री.) (दे.) - (अं.) श्वास नली।
ट्रैक्टर - (पुं.) - (अं.) खेतों को जोतने, फसल काटने, ढोने आदि खेती के काम आने वाला एक विशेष प्रकार का इंजन युक्त। मशीनरी वाला वाहन या गाड़ी। tractor
ठ - -
ठंड - (स्त्री.) (देश.) - शरीर के तापक्रम से बाहरी वातावरण के तापक्रम के कम होने की स्थिति। पर्या. शीत, सरदी, जाड़ा। उदा. ठंड के दिनों में हम गरम कपड़े पहनते हैं। विलो. गरमी।
ठंडक - (स्त्री.) (देश.) - हलकी ठंड। उदा. वर्षा के बाद आज मौसम में ठंडक है। ला.अर्थ संतोष, तृप्ति। मुहा. कलेजे में ठंडक पड़ना = शांति प्राप्त होना। विलोम जलन, ताप, गरमी।
ठंडा - (वि.) (देश.) - 1. जिसमें ठंड हो, जिसकी गरमी समाप्त हो गई है। पर्या. शीतल जैसे: ठंडा पानी, चाय ठंडी हो गई। 2. जिसके स्वभाव में क्रोध, आवेश आदि न हो। पर्या. धीर, शांत। जैसे: क्रोध में न आओ। ठंडे मन से विचार करो। विलो. गरम। मुहा. ठंडी साँस लेना, भरना – (साँस के माध्यम से) दु:ख का भाव प्रकट करना। ठंडा करना – क्रोध शांत करना, तसल्ली देना। ठंडा होना – मर जाना। ठंडे बस्ते में डालना = लंबे समय के लिए टालना।
ठकुरसुहाती - (वि./स्त्री.) (देश.) - व्यु.अर्थ (बात) जो ठाकुर (मालिक) को सुहाए (अच्छी लगे) सा. अर्थ मालिक के आगे-पीछे रहना हमेशा उनके मनोनुकूल बातें बोलते रहना। पर्या. खुशामद, लल्लो-चप्पो, हाँ-में-हाँ मिलाना।
ठग - (पुं.) (तद्.<स्थग) - लोगों को ठगने वाला, किसी का लूट लेने वाला। पर्या. वंचक।
ठगना स.क्रि. - (तद्.) - धोखे से दूसरे व्यक्ति को लूट लेना।
ठगी - (स्त्री.) - ठगने की क्रिया; ठगने का दुष्कृत्य, धोखा देकर पैसा लेना।
ठट्ठा - (पुं.) (तद्.< अट्टाहास) - 1. किसी का मज़ाक उड़ाना। पर्या. परिहास, ठिठोली। 2. हँसी-मज़ाक की बातें करना। पर्या. दिल्लगी, मज़ाक, हँसी। उदा. कुछ लोग बैठे आपस में ठट्ठा कर रहे थे।
ठठरी - (स्त्री.) (देश.) - 1. हडि्डयों का ढाँचा sketton उदा. लंबी बीमारी के बाद उसका शरीर ठठरी भर रह गया है। 2. शव ले जाने के लिए बाँस का बना सीढ़ीनुमा ढाँचा। पर्या. अरथी। 3. किसी खुले स्थान को ढँकने के लिए बाँस के ढाँचे पर फूस आदि बिछाकर बनाया गया छाजन। पर्या. छान।
ठठेरा - (पुं.) (देश.) - धातु के बरतन गढ़ने वाला। पर्या. कसेरा। स्त्री. ठठेरिन।
ठप्प/ठप - (वि.) (पुं.) - (अनु.) चलते-चलते किसी कार्य का कुछ समय के लिए रूक जाना। उदा. हड़ताल के कारण आज काम ठप रहा है। बिजली चले जाने से मशीनें ठप हो गई।
ठप्पा - (पुं.) - (अनु.) 1. धातु, लकड़ी, रबड़ आदि का वह टुकड़ा, जिस पर कुछ अक्षर, बेलबूटे आदि खुदे हों, और जिसे किसी कागज़, कपड़े आदि पर रखकर दबाने से आकृति दिखने लगे। पर्या. छापा, रूपदा ब्लॉक। 2. मुहर, मुद्रा।
ठसाठस क्रि.वि. - (वि.)
(तद्.) - 1. हँस-हँस कर भरा हुआ, कसकर भरा हुआ। पर्या. खचाखच। 2. (ऐसी भीड़) जिसे देखकर लगे जैसे किसी ने ठूँस कर भर दिया हो। छुट्टी का दिन होने के कारण आज बस ठसाठस भरी हुई थी।
ठहरना अक्रि. -
(तद्.) - 1. चलते-चलते स्थिर हो जाना, रूक जाना। उदा. 1. इस स्टेशन पर डाकगाड़ी ठहरती है या नहीं? 2. कहीं डेरा डालना, टिकना। उदा. मैं धर्मशाला में ठहरा हूँ। 3. रुकावट के कारण पानी या किसी द्रव पदार्थ का स्थिर हो जाना। उदा. नाली का पानी ठहर गया है। 4. पक्का हो जाना। उदा. रिश्ता ठहरना। engagement (प्रेरणा.क्रि ठहराना)
ठहराव पुं -
(तद्.) - 1. ठहरने का भाव। पर्या. स्थिरता। 2. समझौता agreement
ठहाकेदार [ठहाका + दार] - (वि.) - ठहाकों से युक्त।
ठहाकेदार - (वि.) - [ठहाका + दार] तेज़ आवाज़ वाली; तेज़ आवाज़ वाली हँसी की तरह।
ठाँव - (पुं.) (तद्.>स्थान) - 1. स्थान, जगह। 2. निवास स्थान, घर। 3. ठहरने/टिकने का निश्चित स्थान, ठिकाना।
ठाँव-ठाँव क्रि.वि. - (वि.) - (अनु.) स्थान-स्थान पर।
ठाकुर द्वारा - (पुं.) (तद्.<ठक्कुर द्वार) - मू.अर्थ भगवान के पास पहुँचने का माध्यम (दरवाज़ा)। सा.अर्थ मंदिर, देवस्थान, मठ।
ठाकुर - (पुं.) (तद्.<ठक्कुर) - 1. देवता, देवमूर्ति, ईश्वर, स्वामी। जैसे: ठाकुर जी की पूजा। 2. क्षत्रियों की उपाधि, जमींदार, मालिक। जैसे: ठाकुर तेज पाल सिंह। 3. नाइयों की उपाधि। जैसे: कर्पूरी ठाकुर। 4. बंगाल प्रदेश की एक जमींदार जाति जैसे: रवींद्र नाथ ठाकुर। स्त्री. ठकुराइन।
ठाठ - (पुं.) (तद्.<स्थातृ) - व्यु.अर्थ स्थित होने का भाव। 1. वैभव, श्रृंगार, सजावट। 2. मौज उदा. बड़े ठाठ के दिख रहे हो। क्या बात है?
ठाठ-बाट - (पुं.) (देश.) - 1. सजावट, सज-धज। 2. दिखावा, आडंबर, तडक़-भडक़। उदा. राजसी ठाठ-बाट।
ठाढ़े ठाड़ा - (वि.) (तद्.) - 1. खड़ा हुआ, 2. असरदार, 3. नामज़द, 4. पूर्ण, पूरा या भरा पूरा।
ठानना स.क्रि. - (तद्.) (तत्<अनुष्ठान) - 1. किसी कार्य को परता से करने का दृढ़ निश्चय करना। जैसे: उसने तो पढ़ने की ठान ली है। 2. आरंभ करना। 3. निश्चित या पक्का करना। आर-पार का निर्णय लेना। जैसे: अब ठान ही लिया है तो संघर्ष करेंगे।
ठिंगना - (वि.) (स्त्री.) - स्त्री. ठिंगनी) छोटे कद वाला, नाटा।
ठिकाना - (पुं.) (देश.) - 1. टिकने/ठहरने स्थान या जगह। 2. (मध्यकाल में) राजा की ओर से सरदारों को मिली जागीर। मुहा. 1. ठिकाने आना। जैसे: अब दिमाग ठिकाने आ गया जो बेसमझी की बातें करता था वह अब समझदारी से काम करने लगा। 2. ठिकाने लगाना उसने खाने-पीने की सारी चीज़ें ठिकाने लगा दीं खा-पीकर समाप्त कर दीं; उसने पिताजी की सारी कमाई ठिकाने लगा दी = बेकार कर दी; अपव्यय में समाप्त कर दी। ठिकाना न होना मुहा. 1. अत्यधिक होने की स्थिति। जैसे: मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। 2. अस्थिर होने की भावना, ठीक करने की भावना। जैसे: मेरा मन ठिकाने नहीं है। उनका दिमाग ठिकाने लगा दो।
ठिठकना अ.क्रि. - (तद्.< स्थिरीकरण) - कोई काम करते-करते या चलते-चलते अचानक स्थिर हो जाना, अवाक् रह जाना, स्तंभित हो जाना।
ठिठियाना अ.क्रि. - (तद्.) - चलते-चलते अचानक रूक जाना।
ठिठोली - (स्त्री.) (देश.) - हँसी-मज़ाक, दिल्लगी, ठट्ठा।
ठीक - (वि.) (तद्.< ठिक्क < ठियक्क < स्थितक) - जैसा उचित हो, पर्या. प्रामाणिक, यथार्थ, उपयुक्त। उदा. 1. आपकी बात ठीक निकली। 2. आपकी जवाब ठीक निकला।
ठीक-ठाक - (वि.) (तद्.+अनु.) - 1. सही, उचित। उदा. सब ठीक-ठाक है। 2. भला-चंगा उदा. ठीक-ठाक हूँ।
ठुकराना - - स.क्रि. (नामधातु < ठोकर) 1. पैर के पंजे से आघात करना; ठोकर मारना। 2. तुच्छ समझकर त्याग देना। उदा. ऐसी नौकरी को ठुकरा देना ही ठीक है। 3. स्पष्ट नकार देना। उदा. उसने मेरी अर्जी ठुकरा दी।
ठूँठ - (पुं.) (तद्.< स्थूणा = खंभा) - निर्जीव खंभे की तरह खड़ा सूखा वृक्ष जिसका तना मात्र शेष रह गया हो।
ठूँसना स.क्रि. - (देश.) - 1. धारिता से जितना समा सके उससे अधिक बलपूर्वक भरना/घुसेड़ना। उदा. (ii) अलमारी में कपड़ें ठूँसकर भरे हुए हैं (ii) वह खा नहीं रहा, ठूँस रहा है।
ठेका - (पुं.) (तद्.<स्थितक) - 1. ऐसा समझौता जिसके अनुसार निश्चित मात्रा में धन लेकर उसके एवज़ में कोई निश्चित कार्य नियमानुसार संपन्न करना होता है। contract 2. संगीत में एक निश्चित कालावधि के बाद दी जाने वाली ताल। 3. देशी शराब की बिक्री किए जाने वाली दुकान के लिए प्रयुक्त बोलचाल का शब्द। जैसे: शराब का ठेका।
ठेकेदार [ठेका + दार] - (वि.) (देश.) - (व्यक्ति या संस्था) जो किसी कार्य को पूरा करने का ठेका स्वीकार करे। दे. ठेका।
ठेला - (पुं.) (देश.) - वह छोटी गाड़ी जिसमें भरा समान एक स्थान से दूसरे स्थान तक ठेलकर पहुँचाया जाता है। (ट्रॉली) troly, cart
ठोंकना/ठोकना स.क्रि. - (देश.-अनु. < ठक-ठक) - 1. पत्थर, हथौड़ी आदि से चोट मार-मारकर किसी नुकीली वस्तु को ज़मीन, दीवार आदि में घुसेड़ना। जैसे: दीवार में कील ठोंकना। 2. (ग्राम्य प्रयोग) मार-पिटाई करना। मुहा. ठोंकना-बजाना – अच्छी तरह जाँचना-परखना। पीठ ठोंकना – शाबाशी देना।
ठोकर - (स्त्री.) (देश.) - 1. आघात जो चलते समय किसी उभरी वस्तु (पत्थर आदि) से लगता है। 2. वह पत्थर या कंकड़ आदि जिससे आघात लग जाए। 3. पैर या जूते की नोक आदि से लगाई गई चोट। 4. किसी विपत्ति आदि के कारण लगने वाला धक्का। मुहा. ठोकरें खाना – दर-दर भटकना, दु:ख सहना, धोखे में आना। ठोकर मारना- 1. धोखे में आना। चोट पहुँचाना। 2. उपलब्ध सुविधा का उपयोग करने से इनकार कर देना। नामधातु/ठुकराना
ठोढ़ी - (स्त्री.) (तद्.<स्थपुटी) - मनुष्य के चेहरे पर निचले ओठ के नीचे का, बाहर की ओर निकला भाग। पर्या. ठुड्डी, चिबुक।
ठोस - (वि.) (देश.) - 1. जो अंदर से खोखला या पोला न हो। 2. भौ. पदार्थ के solid (ठोस, द्रव, गैस) तीन रूपों में से एक।
ठौर - (पुं.) (तद्.< स्थावर) - 1. स्थान, जगह, ठाँव।
ठौर-ठौर क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - 1. ‘जगह-जगह’, ‘स्थान-स्थान पर’। उदा. ठौर-ठौर घूमने से क्या मिलेगा, अपने विद् यालय में ही मन लगाकर पढ़ाई करो।
ड - -
डंक - (पुं.) (तद्.) - कीटपतं आदि के शरीर का वह काँटेनुमा भाग जिसमें एक प्रकार का विष या विषैला पदार्थ होता है और जिसका प्रयोग वे आत्मरक्षा के लिए या आक्रमण के लिए करते हैं तथा जिससे शत्रु के शरीर में विष प्रवेश कर जाता है। जैसे: बिच्छु, मधुमक्खी आदि का डंक। Sting
डंगर - (पुं.) (देश.) - पालतू पशु, चौपाया। ला.अर्थ. वि. मूर्ख, गंवार।
डंठल - (पुं.) (तत्.) - 1. शाकीय पादप का मुख्य तना। 2. पेड़ की डाली का वह हिस्सा जिस पर पत्तियाँ आती हैं और फूल खिलते हैं। stalk
डंडा - (पुं.) (तद्.>दंड) - 1. लकड़ी या बांस का लंबा टुकड़ा जो सीधा हो। 2. सहारे के योग्य सीधी छड़ी। पर्या सोंटा, लाठी, पतला छोटा डंडा।
डंडी - (स्त्री.) (तद्.) - 1. लकड़ी का छोटा टुकड़ा जो गिल्ली-डंडा खेल में प्रयुक्त होता है।
डँसना स.क्रि. - (तद्.) - दंश (किसी विषैले जंतु द्वारा दांतों से काटकर या डंक चुभाकर विष प्रविष्ट करना; काटना) ।
डकार - (स्त्री.) - स्त्री (.देश) . 1. पेट की वायु का मुख द्वार से होकर विशेष आवाज़ के साथ बाहर निकलने का कार्य-व्यापार जो तृप्ति का सूचक होता है। 2. ‘ड’ वर्ण या उसका उच्चरित रूप।
डकारना अ.क्रि - (देश.) (दे.) - 1. डकार लेना। डकार। 2. ला. .अर्थ का माल-मत्ता या रूपया पैसा हड़प जाना /हजम कर जाना और उसे हर हालत में न लौटाना।
डकैत - (पुं.) (दे.) - ‘डाकू’।
डकैत - (वि.) (देश.) - डाका डालने वाला। पर्या. श. दे. ‘डाका’।
डकैती [डकैत+ई] - (स्त्री.) (देश.) - डाका डालने का कार्य-व्यापार, क्रिया। दे. डाका।
डग - (पुं.) (तद्.) - चलते समय दोनों पैरों के बीच की दूरी; पैर को एक स्थान से उठाकर अगले स्थान पर रखने के बीच की दूरी। step
डगमगाना अ.क्रि - (देश.) - कभी इस ओर और कभी उस ओर झुकते हुए चलना यानी स्थिर गति से चलने का अभाव दिखाई पड़ना, लड़खड़ाना, विचलित होना।
डगमाहट (डगमग+आहट) - (स्त्री.) (दे.) - डगमगाकर चलने की क्रिया या भाव। डगमगाना।
डगर - (स्त्री.) - शाडग अर्थ भरने /रखने का स्थान। सा.अर्थ पंथ, चलने का रास्ता।
डटना अ. - (देश.) - 1. किसी स्थान पर स्थित होकर जम जाना। उदा. -तुम हफ्ते भर से यहाँ डटे हुए हो, जाने का नाम ही नहीं लेते। 2. किसी कार्य में पूरे मनोयोग से अविचलित रहते हुए लग जाना। उदा. डटकर पढ़ाई करो, सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी।
डपटना स.क्रि. - (तद्.<दर्प) - कठोर स्वर में बोलना; छोटों से गलती हो जाने पर बड़ों द्वारा उन्हें डांट देना या झिडक़ना। पर्या डाँटना, घुडक़ना।
डफ/डफली - (स्त्री.) (तद्.) - चमड़ा मढ़ा हुआ एक छोटा ताल वाद्य जिसे हाथ से थाप मारकर बजाया जाता है। पर्या ढपली लो. -अपनीढपली डफली अपना राग=हर व्यक्ति का अपना अलग मत होना।
डबडबाना - - अ.क्रि. (अनु.) अश्रुपूर्ण होना, आँखों का आँसुओं से इतना भर जाना कि लगे अब बहने लगेंगी। उदा. -आँखें डबडबा आई।
डमरू - (पुं.) (तत्.) - बीच में पतला और दोनों सिरों पर अपेक्षाकृत मोटाई वाला एक बाजा जिसके दोनों सिरों पर चमड़ा मढ़ा होता है और बीच में दो गाँठ दार रस्सियाँ लटकी होती है। इस बाजे को हाथ से हिलाने पर चमड़े पर रस्सियों की गांठ से आघात होने पर डम-डम की ध्वनि निकलती है।
डर - (पुं.) (तद्.) - 1. मन की बेचैनी का वह भाव जिसमें अनिष्ट या हानि की आशंका होती है। मनो.भावी; संकट की आशंका से उत्पन्न अप्रिय संवेग। 2. अनिष्ट की कल्पना करके सहम जाने की स्थिति। पर्या. भीति।
डरना अ.क्रि. - (तद्.<दरण) - किसी भावी अनिष्ट या हानि की आशंका से प्रकट होने वाली मन की बेचैनी।
डरपोक - (वि.) (देश.) - डरने के स्वभाव वाला। पर्या. भीरू, कायर। विलो. निडर निर्भय।
डरावना - (वि.) (देश.) - डर उत्पन्न करने वाला, जिसे देखकर या सुनकर डर लगे। पर्या. भयावह भयानक।
डला - (पुं.) (स्त्री.डली) - 1. किसी ठोस पदार्थ का छोटा टुकड़ा या भाग। उदा. मिट्टी का डला, 2. गुड़ की डली।
डलिया [डला+इया] - (स्त्री.) (देश.) - बाँस की पतली खपच्चियों (और अब प्लास्टिक की बनी पट्टियों से बुनी छोटे आकार की तश्तरीनुमा टोकरी।
डाँगर - (दे.) - डंगर।
डाँट - (स्त्री.) (तद्.<दांति-संयमित करना) - छोटों से कोई त्रुटि या भूल हो जाने पर बड़ों द्वारा गुस्सें में कही गई कठोर बातें या शब्द। पर्या. डपट डांट-डपट, फटकार। डाँट खाना ऐसे कठोर शब्द सुन लेना।
डाँटना स.क्रि. - (तद्.) (दे.) - डाँट लगाना, कठोर शब्द कहना, डराना। पर्या. फटकारना डाँट।
डाँवाडोल - (वि.) (तद्.) - 1. स्थिर, स्थिति में न रहकर इधर-उधर हिलते-डुलते रहने वाला। उदा. -ऊँची ऊँची लहरों के कारण जहाज़ डांवाडोल होने लगा। 2. अस्थिर चित्त वाला व्यक्ति जो किसी निर्णय पर न पहुँच सके; असंतुलन स्थिति से ग्रस्त।
डाक - (स्त्री.) (देश.) - पुकारने की ध्वनि। सा.अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा (उचित शुल्क देकर भेजी गई वह सामग्री (चिट्ठी, पार्सल, मनी आर्डर, तार आदि( सरकारी विभाग द्वारा पाने वाले के घर के पते पर पहुँचाई जाती है। उदा. आज की डाक आ गई क्या?
डाकखर्च - (पुं.) (देश.) - 1. वह शुल्क जो किसी वस्तु को डाक द्वारा भेजने/मंगाने पर लगे। 2. किसी पत्र, पार्सल आदि पर चिपकाए टिकटों का समग्र मूल्य। पर्या. काव्यय डाक महसूल। postage
डाकखाना/डाकघर - (पुं.) (देश.+ तद्.) - डाक इकट्ठी करके यथास्थान भेजने की व्यवस्था करने वाला सरकारी कार्यालय। post office टि. आजकल डाकघरों में अन्य अनेक क्रियाकलाप भी प्रारंभ हो गए हैं, जिनमें धन जमा करने संबंधी योजनाएँ विशेष रूप से सम्मिलित हैं।
डाकगाड़ी - (स्त्री.) (देश.) - (सवारियों के अलावा( डाक ले जाने वाली तथा तेज़ गतिवाली रेलगाड़ी जो छोटे स्टेशनों पर नहीं रूकती। mail train
डाकना स.क्रि. - (देश.) - ( कूद कर पार करना, लांघना, फांदना।
डाक बंगला [डाक-देश.+बंगला-अग्रे.] - (पुं.) - सरकार द्वारा बनवाया हआ वह भव्य आवास स्थल जिसमें प्राय: सरकारी दौरे पर जाने वाले अधिकारी ठहरते हैं।
डाका - (पुं.) (देश.) - मूल अर्थ डाक लगाकर (आवाज देकर या सूचना भेजकर माल असबाब या धन लूटने की क्रिया डाका डालना।
डाक सेवा - (स्त्री.) (तत्.) - (डाक-देश.+सेवा तत्.) डाकघर संबंधी सेवाएँ। postel services
डाकाजनी - (स्त्री.) (देश.) - डाका डालने का कुकृत्य।
डाकिया - (पुं.) (देश.) - डाक पत्र आदि बांटने वाला डाकघर का कर्मचारी। पर्या. डाकिया चिट्ठीरसा। postman
डाकू - (पुं.) (वि.) - डाक, डाका डालने वाला। पर्या. डकैत। दे. डाका।
डॉक्टर - (पुं.) - (अं.) वह व्यक्ति जो एलोपैथिक, होम्योपैथिक आदि विदेशी पद् धतियों से चिकित्सा क्षेत्र में विधिवत् योग्यता प्राप्त तथा बीमार लोगों की चिकित्सा करता हो। चिकित्सक 2. विश्वविद् यालय की एक विशेष उच्च उपाधि जो किसी विशिष्ट विषय पर शोधकार्य संपन्न करने पर या किसी विशिष्ट व्यक्ति को सम्मानार्थ दी जाती है। पर्या. विद् या वारिधि, विद्या वाचस्पति, पी.एच.डी. आदि। 3. किसी विषय का बहुत बड़ा विद्वान या पंडित। टि. इसे संक्षिप्त रूप में Dr. या डॉ. लिखा जाता है। नाम के आगे इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे: डॉ. राधाकृष्ण
ड्रिप तंत्र - (पुं.) - (अं.) फलदार पौधों, बगीचों एवं वृक्षों को पानी देने का एक प्रमुख आधुनिक एवं सर्वोत्तम तरीका। बूँद-बूँद कर पौधों की जड़ों में पानी का गिरना, जल का बिल्कुल व्यर्थ न जाना इस विधि की विशेषता है। Drip-System तु. छिडक़ाव तंत्र।
डामर - (पुं.) - (मलय भाषा.) मूल अर्थ-एक वृक्ष -विशेष का गोंद जो वस्तुओं पर चिकना चमकदार लेप चढ़ाने के काम आता है। सा -पेट्रोलियम से प्राप्त हाइड्रोकार्बन से युक्त एक रासायनिक पदार्थ जिसकी परत सडक़ों पर बिछाई जाती है ताकि वाहन सुविधापूर्वक एवं तीव्र गति से चल सके। पर्या. कोलतार अलकतरा।
डायनोसौर - (पुं.) - (अं.) सा.अर्थ छिपकली की जाति का एक विलुप्त विशालकाय कशेरूकी प्राणी सरीसृप जो मध्यजीवी महाकल्प आज से लगभग 24 करोड़ 8 लाख वर्ष से 6 करोड़ 5 लाख वर्ष पूर्व) में विद्यमान था। अज्ञात प्राकृतिक कारणों से यह पूरी प्रजाति नष्ट यानी विलुप्त हो गई। आज भी कहीं-कहीं उनके अस्थि -अवशेष मिल जाते हैं। इनकी एक प्रजाति विशिष्ट शारीरिक संरचना के कारण उड़ भी सकती थी।
डाल/डाली - (स्त्री.) (देश.) - पेड़ के तने से फूटने वाली शाखा जिस पर पत्ते एवं अन्य कल्ले फूटते हैं, शाखा, डाली।
डॉलफिन - (स्त्री.) - (अं.) एक जलवासी स्तनी प्राणी जो मछली की आकृति का होता है और इसका मुख (थूथन) पक्षियों की चोंच जैसा होता है। टि. नदियों में पाई जाने वाली डॉलफिन और महासागरोंकी डॉलफिन में कुछ भिन्नता होती है। डॉल्फिन मनुष्यों के निकट भी आ जाती है।
डाली - (स्त्री.) (देश.) - 1. वृक्ष के तने से निकला अंग विशेष (शाखा) जिसकी पतली टहनियों पर पत्तियाँ, फूल और फल लगते हैं। (ब्रांच(, डलिया, चंगेरी। 2. फल फूल और मेवे जो डलिया में सजाकर किसी को भेंट स्वरूप भेजे जाते हैं।
डिंब - (पुं.) (तत्.) - अंडाणु जीव-जंतुओं में स्त्री जाति का वह जीवाणु जो पुरूष जाति के बीच के संभोग से नए जीव का रूप धारण करता है। अंडा-कीड़े का बच्चा।
डिंबवाहिनी - (स्त्री.) (तत्.) - डिंब को वहन करने वाली नलिका दे. डिंब।
डिंबाशय (डिब+आशय) - (पुं.) (दे.) - अंडाशय।
डिंभ (क) - (पुं.) (तत्.) - प्राणिनिषेचित अंड के परिवर्धन में आरंभ की स्वतंत्र जीवनयापन करने में समर्थ भ्रुणावस्था (जो वयस्क से भिन्न स्वभाव वाली होती है। उदा. तितली की इल्ली, अथवा मेंढक का टेडपोल। तु. कोशित। Larva
डिज़ाइन - (स्त्री.) - (अं.) 1. रेखाओं और रंगों से बनी कोई कल्पित आकृति जिसके अनुसार वास्तविक आकृति तैयार की जाती है। 2. किसी भी नई वस्तु को बनाने से पहले उसकी रूपरेखा।
डिबिया - (पुं.) (देश.) - छोटा डिब्बा। दे. डिब्बा।
डिब्बा - (पुं.) (फा.) - एक ढक्कनदार पात्र जो प्राय: गोल आकार का और टिन, प्लास्टिक आदि का बना होता है।
डिब्बाबंद - (वि.) (फा.) - जो (सामग्री डिब्बे में बंद हो; जो बंद डिब्बे में उपलब्ध हो। उदा. डिब्बाबंद बंगाली रसगुल्ले।
डींग स्त्री - (तद्.) - खूब बढ़ा-चढ़ा कर कही हुई बात़; अपनी प्रशंसा में बढ़ा-बढ़ा कर सुनाई जाने वाली कहानियाँ। पर्या. शेखी मुहा. -डींग हांकना शेखी मारना/ बघारना।
डीजल - (पुं.) - (अं.) पेट्रोलियम का वह भारी अंश तेल जो विशेषतया डीजल इंजन वाले ट्रक, ट्रेक्टर, बसें या रेलगाड़ी आदि चलाने के काम आता है। इसका नामकरण जर्मन इंजीनियर रूडोल्फ डीज़ल के नाम पर किया गया है। Diesel
डील-डौल - (पुं.) (देश.) - शरीर का आकार प्रकार, देह का गठन।
डीलर - (पुं.) - (अं.) 1. खुदरा व्यापारी के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द। जैसे: कार-डील। 2. दो पक्षों के बीच सौदा पटाने वाला मध्यस्थ। जैसे: -प्रोपर्टी डीलर।
डुगडुगी - (स्त्री.) (देश.अनु.) - चमड़ा मंढ़ा हुआ ढपलीनुमा एक वाद्य जिसे हाथ हिलाकर डोरी बँधे लकड़ी के टुकड़े से बजाया जाता है। पुराने जमाने में किसी राजकीय घोषणा को सुनाने से पहले जन-साधारण का ध्यान आकर्षित करने के लिए इसको बजाया जाता था। पर्या. डौंडी
डुबकी - (स्त्री.) (देश.) - पानी के अंदर शरीर को पूरी तरह डुबाकर फिर बाहर निकलने की क्रिया। पर्या. गोता उदा. मैंने नर्मदा में तीन डुबकियाँ लगाई।
डूबना - - अ.क्रि. (अनु.) 1. पानी या किसी तरल पदार्थ में समा जाना़; डुबकी लगाना। 2. किसी विषय साहित्य, संगीत, कला आदि में लीन हो जाना। 3. सूर्य, चंद्र, तारों का अस्त होना या न दिखाई देना। 4. नष्ट हो जाना। जैसे: मेरा सब कुछ डूब गया। मुहा. (i) चुल्लू भर पानी में डूब जाना अत्यंत लज्जित होना। (ii) जी डूबना-हृदय-गति बंद होने जैसा आभास। (iii) नाम डूबना प्रतिष्ठा खोना।
डेंगू - (पुं.) - (अं.) विषाणु जन्य एक रोग जो इंसानों के महामारी की तरह फैलता है। इसका वाहक है-एडीज़ जाति का मच्छर। यह पेशियों तथा जोड़ों में दर्द पैदा करता है। Dengue
डेढ़ - (वि.) (तद्.) - एक और आधा। मुहा. -डेढ़चावल की खिचड़ी अलग पकाना-सबसे अलग रहते हुए अपना कार्य करना।
डेल्टा - (पुं.) - (अं.<यु.) नदी के मुहाने पर कई धाराओं में बंटा जलोढ़ भूमि का त्रिभुजवत् दिखाई पड़ते वाला भूभाग। टि. 'यूनानी' (ग्रीक( भाषा की वर्णमाला में चौथे अक्षर डेल्टा (L) के समान आकार का होने के कारण यूनानी लोगों ने इस प्रकार के भूभाग का नाम डेल्टा रख दिया।
डैक्सट्रोस - (पुं.) (दे.) - (अं.) ग्लूकोस।
डैना - (पुं.) (तद्.) - पक्षी के उड़ने में सहायक मुख्य साधन। पर्या. पंख पक्ष।
डोंगा - (पुं.) - (तद.<द्रोण.) 1. बड़ी नाव जिसमें अधिक लोग यात्रा कर सकें। 2. बड़ा कटोरानुमा पात्र (प्राय: ढक्कन से युक्त(
डोर - (स्त्री.) - (प्रा.) पतला धागा। पर्या. डोरा धागा, तागा। जैसे: पतंग-उड़ाने की डोर।
डोरी - (स्त्री.) - (प्रा.) कुछ मोटा धागा या पतली रस्सी जिससे कुछ बाँधा जा सके। पर्या रस्सी, रज्जु।
डोली - (स्त्री.) (देश.) - 1. एक प्रकार का वाहन जिसमें बैठे व्यक्ति को कहार (मजदूरों की एक विशेष जाति( कंधे पर ढोकर ले जाते हैं। पर्या. पालकी 2. वह पालकी जिसमें बैठकर नई दुल्हन ससुराल जाती है। 3. नववधू की विदाई की रस्म।
ड्यूटी - (स्त्री.) - (अं.) 1. जिस कार्य के लिए नियुक्त किया गया हो, उस कार्य में प्रवृत्त नौकरी। जैसे: -वह प्रात: आठ बजे अपनी ड्यूटी में जाता है। 2. कर्त्तव्य, फर्ज। जैसे: दुखी इंसान की मदद करना सबकी ड्यूटी है। 3. सेवाकार्य, यह नर्स इस समय ड्यूटी में नहीं है। 4. शुल्क, चुंगी। जैसे: सरकार कई चीजों के उपयोग क्रय करने में ड्यूटी लगाती है। Duty
ड्योढ़ी - (स्त्री.) (तद्.>देहलि, देहली) - विस्तृत अर्थ, प्राचीन संदर्भ में हवेली और गढ़ी। आधुनिक संदर्भ में कोठी और सामूहिक आवासन समितियों group housing societies के प्रवेश द्वार (फाटक( और उस पर बने ड्योढ़ीदार (चौकीदार) स्वागतकक्ष की कोठरी और ढकी पौढ़ी का वाचक नाम। (वॉचमैन का कमरा/स्वागतकक्ष संकुचित अर्थ. देहली दहलीज, पौढ़ी (पौरी)
ड्यौढ़ीदार - (पुं.) - (ड्यौढ़ी (प्रवेशद्वार( पर नियुक्त रक्षक, रखवाला। watch man
ड्रग - (स्त्री.) - (अं.) 1. कोई भी औषधीय पदार्थ, 2. कोई भी तीव्र नशीला पदार्थ जो बीड़ी सिगरेट के रूप में पीकर, सुई लगाकर या अन्य तरीकों से शरीर में पहुँचकर चेतना को विभ्रमिक और /याउदीप्त कर देता है। जैसे: हैरोइन, ब्राउनशूगर आदि। drug
ड्राइवर - (पुं.) - (अग्रे.) 1. रेल, बस, ट्रक, कार आदि वाहनों को चलाने वाला चालक, परिचालक, वाहक। जैसे: रेल का ड्राइवर, बस ड्राइवर, ट्रक ड्राइवर। 2. पेंच इत्यादि को घुमाने वाला उपकरण। जैसे: स्क्रू ड्राइवर। 3. कंम्प्यूटर में सूचना इत्यादि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाला उपकरण पैन ड्राइवर।
ढ - -
ढँकना स.क्रि. - (देश.) (पुं.) - किसी वस्तु को आवरण डालकर ओट में कर देना या छिपाना। पर्या. ढाँकना। खुले पात्र को ढाक देने वाला हिस्सा जो उस पात्र का ही एक भाग होता है। पर्या. ढक्कन।
ढँकना/ढकना ढाँकना/ढांपना स.क्रि. - (देश.) - ऊपर कोई वस्तु रखना। उदा. 1. दूध की पतीली को ढक कर रख दो। 2. मुंह ढक कर सोने से ताज़ी हवा नहीं मिलती।
ढँढोरा/ढिंढोरा - (पुं.) - (अनु.) 1. घोषणा करते समय बजाया जाने वाला ढोल। 2. ढोल बजाकर की जाने वाली घोषणा। मुहा. ढंढोरा पीटना-न कहने योग्य बात को सब जगह कहते फिरना। (व्यंग्य)। उदा. हर बात का ढंढोरा पीटना ठीक नहीं।
ढकेलना - - स.क्रि. (हिं.<धक्का) धक्का देकर आगे बढ़ाया या गिराना़। पर्या. ठेलना।
ढकोसला - (पुं.) ([तद्.<ढक्का कौशल]) - 1. आडंबर, झूठा प्रदर्शन। 2. वास्तविकता से दूर, बनावटी रूप, झूठा व्यवहार। उदा. धर्म के नाम पर आजकल ढकोसला अधिक किया जाता है।
ढपोर शंख - (वि./पुं.) (तद्.) - डींग मारने वाला व्यक्ति जो कहे बहुत, पर करे कुछ भी नहीं।
ढरकना/ढलकना - (पुं.) (देश.) - 1. किसी द्रव पदार्थ का नीचे की ओर बह जाना। जैसे: आँसू ढरकना। 2. लुढक़ना। 3. ढीला पड़ जाना। जैसे: कपड़ा ढरक गया है। (प्रेरणा. ढरकाना/ढलकाना)
ढरकाना/ढलकाना स.क्रि. - (देश.) - ढलकने/ढरकने में प्रवृत्त करना। ढलकाना, लुढक़ाना; किसी द्रव पदार्थ को बहाना, किसी गोल पदार्थ को नीचे की ओर लुढक़ाना।
ढर्रा - (पुं.) (देश.) - काम करने की बँधी-बँधाई शैली। उदा. दुनिया बदल गई किंतु तुम्हारी काम करने का वही पुराना ढर्रा है।
ढलना अ.क्रि. - (देश.) - 1. किसी द्रव पदार्थ का नीचे की ओर आना, बहना। 2. बीत जाना, उतार पर होना। उदा. जवानी ढल गई, दिन ढल गया। 3. आकर बदलना। उदा. गरम लोहा साँचे में ढलकर चादर बन गया; चाशनी में पका खोया बरफी में ढल गया। 4. किसी के अनुरूप व्यवहार करना। उदाहरण-बहू जल्दी ही अपने ससुराल के आचार-व्यवहार के अनुरूप ढल जाती है।
ढलवाँ - (वि.) (देश.) - 1. ऐसा स्थान जिसमें ढाल या नीचे की ओर उतार हो। उदा. ढलवाँ सडक़ पर साइकिल ने बिना पैडल मारे ही रफ्तार पकड़ ली। 2. जो साँचे में ढालकर बनाया गया हो। उदा. कुतुब मीनार के पास ढलवाँ लोहे से बने लौह स्तंभ पर कभी जंग नहीं लगती।
ढलान - (स्त्री.) (देश.) - 1. ऐसा स्थान जहाँ ऊपर से नीचे की ओर उतार हो। उदा. आगे गहरी ढलान है, गाड़ी सावधानी से चलाना। 2. उतार पर होना। जैसे: उम्र की ढलान।
ढहना अ.क्रि. - (तद्.ध्वसंन) - गिर पड़ना, ध्वस्त हो जाना, नष्ट हो जाना। उदा. अधिक वर्षा होने से पुराना मकान ढह गया।
ढहाना स.क्रि. - (देश.) - उदा. नगर निगम के दस्ते ने अवैध दुकानों को ढहा दिया।
ढाँचा - (पुं.) (देश.) - किसी भी रचना या बनावट का आधारभूत रूप। उदा. मकान का इंटों वाला ढाँचा खड़ा करने में तो समय नहीं लगता पर उसे संवारने/सज़ाने में काफी समय और पैसा खर्च होता है। गठन, बनावट।
ढाँढ़स - (पुं.) (देश.) - किसी शोकग्रस्त व्यक्ति को हिम्मत न हारने की शिक्षा देने के लिए उसके हितैषी द्वारा कहा गया शब्द या वाक्य। पर्या. सांत्वना, साहस, हिम्मत, आश्वासन। मुहा. ढांढ़स बँधाना=सांत्वना देना।
ढाँणी - (स्त्री.) (देश.) - गाँव से कुछ दूरी पर बनी हुई कच्चे मकानों की बस्ती; अस्थायी आवास। जयपुर में ‘चोखी ढाँणी’ बहुत प्रसिद् ध जगह है।
ढाबा - (पुं.) (देश.) - 1. नगर के बाहर या सडक़ के किनारे बने साधारण और अस्थाई भोजनालय। उदा. बस जहाँ रूकी वहाँ हमने पंजाबी ढाबे में खाना खा लिया।
ढालना/ऊँडेलना स.क्रि. - (देश.) - 1. इच्छित रूप देने के लिए साँचे में पिघले पदार्थ को डालना। 2. बिछाना, सजाना। जैसे: चारपाई ढालना। 3. गरम लोहे को ढालकर रेल की पटरियाँ और पहिए बनाए जाते हैं। 4. ला.प्रयोग शराब ढालना-शराब पीना।
ढिठाई - (स्त्री.) (तद्.) - समझाने-बुझाने पर भी अपने अनुचित व्यवहार में परिवर्तन न करने की मानसिकता। पर्या. धृष्टता दे. ढीठ।
ढिलाई - (स्त्री.) (देश.) - ढीला होने का भाव; शिथिलता या सुस्ती का भाव। उदा. अनुशासन में ढिलाई बरतना अच्छी बात नहीं।
ढीठ - (वि.) (तद्.) - (व्यक्ति) जो अपने अनुचित व्यवहार पर अड़ा रहे यानी समझाने-बुझाने पर भी अपने को न बदले। पर्या. धृष्ट। उदा. उसे समझाने-बुझाने का कोई फायदा नहीं है, वह बहुत ढीठ है, आपकी बात नहीं मानेगा।
ढील - (स्त्री.) - (हिं.ढीलना) तना हुआ न होने की स्थिति; किसी प्रकार की छूट। जैसे: उपस्थिति में ढील नहीं दी जानी चाहिए, इससे अनुशासन भंग होता है।
ढूँढना स.क्रि. - (देश.) - किसी छिपी हुई या खोई हुई वस्तु का पता लगाना। पर्या. खोजना, तलाश करना। उदा. तुमने पुस्तक खो दी है, उसे ढूँढ कर लाओ।
ढेंकली, ढेंकी - (स्त्री.) (देश.) - सिँचाई के लिए कुएँ से पानी निकालने का उपकरण।
ढेर - (पुं.) (तत्.) - किसी निर्जीव वस्तु का (गणतीय या अगणतीय) समूह। पर्या. राशि। जैसे: पुस्तकों का ढेर; रेत का ढेर। (लोगों का ढेर नहीं) मुहा. (i) ढेर का ढेर=बहुत सारा। (ii) ढेर हो जाना=मर जाना।
ढेला - (पुं.) (तद्..) - 1. मिट्टी की नमी से ठोस हुई डली। 2. ईंट, पत्थर का छोटा टुकड़ा। उदा. बच्चे आम/जामुन के पेड़ पर ढेले फेंक कर आम/जामुन तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
ढोटा - (पुं.) (देश.) - पुत्र, बेटा, लडक़ा, बालक। जैसे: नंद का ढोटा।
ढोना स.क्रि. - (तद्.) - 1. सिर, कंधे या पीठ पर बोझ लादकर ले जाना। उदा. 1. टट् टू बोझा ढोले वाला पशु है। 2. कुली सिर पर बोझा ढोता है। ला. प्रयोग कष्ट के दिनों को बिताना। उदा. वह सारी जिंदगी कष्ट का जीवन ढोता रहा।
ढोर - (पुं.) (देश.) - 1. चौपाया। जैसे: गाय, भैंस, बकरी, बैल आदि पशु। 2. पालतू पशु जिन्हें जंगल में चरने के लिए छोड़ा जाता है।
त - -
तंग - (वि.) (फा.) - जिसकी चौड़ाई या खुलापन अपेक्षाकृत कम हो। पर्या. संकुचित, संकरा। जैसे: 1. तंग मोहरी वाला पाजामा। 2. मेरा हाथ तंग है। विलो. खुला। 2. परेशान, दु:खी। उदा. मैं अपने लडक़े से तंग हूँ। 3. पुं. घोड़ों की जीन कसने का तस्मा। 4. जिसमें उदारता का अभाव हो। जैसे: तंग दिल वाला आदमी।
तंगी - (स्त्री.) (फा.) - 1. आर्थिक कमी या संकट की स्थिति। जैसे: तंगी की हालत। 2. कमी, आवश्यकता से कम वाली स्थिति। उदा. गरमियों में बिजली की तंगी बनी रहती है।
तंडुल - (पुं.) - (तंड्=पीटना, प्रहार करना) कूटने, छड़ने और पिछोडने के बाद प्राप्त अन्न (विशेषत: चावल), छिलके से रहित। (निस्तुष: तंडुल: प्रोक्त:) चावल।
तंतु - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ ताँत, बारीक तार, रेशा, धागा। 1. कात कर निकाला गया धागा जो वस्त्र उद्योग में काम आता है। यार्न 2. (भौ.) बिजली के बल्ब और रेडियो के वाल्व में लगा कार्बन, टंगस्टन या किसी अन्य धातु का बारीक तार जो विद्युत धारा के गुजरने से ताप दीप्त हो जाता है। filament
तंत्र - (पुं.) (तत्.) - 1. अंगों, अवयवों, ग्रंथियों आदि का समूह जो किसी विशेष जैव क्रिया के संपादन के लिए तालमेल से कार्य करता है। सिस्टम जैसे: पाचन तंत्र। 2. प्राचीन काल में विज्ञान सूचक शब्द, जैसे: शल्य तंत्र। साइंस 3. शासन की प्रणाली विशेष। जैसे: प्रजातंत्र, लोकतंत्र। 4. दर्श. गृहयाचार वाली उपासना पद्धति, जादू-टोना। occulet science
तंत्रिका तंत्र - (पुं.) (तत्.) - तंत्रिकाओं का जाल जो मस्तिष्क से प्रवाहित समस्त आवेगों-संवेगों को शरीर के संबंधित भागों में पहुँचाकर समस्त जैव क्रियाओं का नियंत्रण करता है। nervous system
तंत्रीवाद्य/तंतु वाद्य [तंत्री= तार+वाद्य=बाजा] - (पुं.) (तत्.) - ऐसे वाद्य यंत्र जो उसमें लगे हुए तारों को छेड़ने से स्वर उत्पन्न करते हैं। जैसे: सितार, इकतारा, तानपूरा, गिटार, वायलिन इत्यादि।
तंदरूस्त [तद+दुरूस्त] - (वि.) (फा.) - जिसका शरीर ठीक हो, स्वस्थ शरीर वाला। पर्या. स्वस्थ, निरोग।
तंदुल - (पुं.) (तद्>तंडुल) - दे. तंडुल। चावल।
तंदूर - (पुं.) - (फा. तनूर) उत्तर-पश्चिम भारत में प्रचलित एक तरह का ऊँचा और गोलाकार चूल्हा या भट्ठी जिसमें कोयलों की आग जलाकर उसके अंदर रोटियाँ सेंकी या पकाई जाती हैं। उदा. विवाह आदि के शुभ अवसर पर लोगों के द्वारा तंदूर में पकी रोटियाँ अधिक पसंद की जाती हैं।
तंदूरी - (वि.) - तंदूर से पका हुआ। जैसे: तंदूरी रोटी का स्वाद ही कुछ अलग होता है।
तंद्रा - (स्त्री.) (तत्.) - नींद आने के प्रारंभ की स्थिति। पर्या. ऊँघ। तु. निद्रा।
तंद्रालस - (पुं.) (तत्.) - [तंद्रा+आलस्य] तंद्रा के कारण होने वाला आलस्य, वह शिथिलता जो हलकी नींद के कारण आती है।
तंबू - (पुं.) (देश.) - मोटे कपड़े, मोमजामे को बाँसों, रस्सियों आदि की सहायता से तानकर खड़ा किया गया अस्थायी आश्रय स्थल, जिसे आवश्यकतापूर्ति के बाद उखाड़ कर अन्यत्र ले जाया जा सकता है। पर्या. शामियाना, डेरा, खेमा। tent
तकनीक - (स्त्री.) - अंग्रेजी शब्द ‘टेक्नीक’ का अनुकूलित रूप। किसी कार्य के करने की वैज्ञानिक पद् धति या प्रक्रिया। technique
तकनीकी - (वि.) (पुं.) - [तकनीक+ई प्रत्यय] तकनीक से संबंधित। व्यावहारिक उपयोग के लिए किसी विषय-विशेष से संबंधित संचित ज्ञान का अनुप्रयोग सिखाने वाला विज्ञान। पर्या. प्रौद्योगिकी। technology
तकनीकीविद् - (पुं.) (दे.) - तकनीशियन
तकनीशियन - (वि.) - (अंग्रेजी का अनुकूलित रूप) कर्मी जो किसी विशिष्ट (प्राय: मशीनों से संबंधित कार्य करने के लिए प्रशिक्षित हो)। टेक्नीशियन पर्या. तकनीकीविद्।
तकरार - (स्त्री.) (अर.<तक्रार) - किसी बात को लेकर दो पक्षों के बीच गरमागरम बहस जो हाथापाई में बदलने की संभावना रखता हो। पर्या. शाब्दिक झगड़ा, हुज्जत, विवाद।
तक़रीबन क्रि.वि. - (वि.) (अर.) - करीब-करीब, प्राय:, लगभग। उदा. वहाँ तकरीबन हज़ार लोग जमा हुए।
तकला - (पुं.) (तद्.<तुर्क) - जनसामान्य द्वारा प्रयोग किया जा सकने वाला, सूत कातने का छोटा उपकरण।
तकली - (स्त्री.) (तद्.<तर्कु) - बुनकरों का सूत कातने का यंत्र। spindle
तकलीफ़ - (स्त्री.) (अर.) - 1. (औपचारिक रूप से प्रकट) कथन जो किसी को कुछ करने के लिए कहा जाए। उदा. कुछ समय के लिए बाहर जा रहा हूँ, मेरे घर का ध्यान रखिए। तकलीफ़ के लिए माफ़ी चाहता हूँ। trouble 2. रोग, मुसीबत। जैसे: घुटने की तकलीफ़। 3. आर्थिक कठिनाई, तंगी। उदा. आजकल वह तकलीफ़ की जिंदगी बसर कर रहा है। 4. कमी। उदा. हमारी बस्ती/कालोनी में पानी की तकलीफ है। dearth
तकाज़ा - (पुं.) (अर.<तकाज़ी) - 1. उधार दिए धन को लौटाने के लिए या सौंपे हुए कार्य को पूरा करने के लिए बार-बार कहना या याद दिलाना। 2. आवश्यकता, जरूरत। उदा. इन्सानियत/दोस्ती वक्त का तकाज़ा है कि…….।
तक्षण - (पुं.) (तत्.) - 1. लकड़ी को काट-छाँटकर उपयोगी बनाने का काम। 2. बढ़ईगिरी, कारीगरी। 3. पत्थर से मूर्तियाँ, नक्काशी आदि का काम।
तक्षणी [तक्षण+ई] - (स्त्री.) (तत्.) - बढ़ईयों द्वारा प्रयुक्त ‘रंदा’ नाम का औज़ार; छेनी।
तक्षशिला/तक्षिला - (स्त्री.) - (नाम) एक प्राचीन स्थान का नाम जो अब पाकिस्तान में है। यह एक प्राचीन विश्वविद् यालय के कारण प्रसिद् ध है। संस्कृत-व्याकरण के प्रसदि्ध विद् वान महर्षि पाणिनी और नीति शास्त्र के प्रणेता चाणक्य इसी विश्वविद् यालय के आचार्य थे।
तख्त - (पुं.) (फा.) - 1. कुर्सीनुमा चौकी जिस पर बादशाह या राजा बैठते थे। पर्या. सिंहासन, राजपीठ, न्यायपीठ। 2. तख्तों से बनी बड़ी चौकी। मुहा. तख्ता (तख्त) पलटना-राजगद् दी से बेदखल करना, सत्तापीठ से एक को हटाकर दूसरे को बिठाना।
तख्ता - (पुं.) (फा.) - लकड़ी के फट् टों से बनी अधिक लंबी तथा कम चौड़ी मजबूत चौकी। तु. तख्त।
तख्ती - (स्त्री.) (फा.<तख़्त) - 1. छोटा तख्ता। 2. लकड़ी की छोटी पटिया जिस पर छोटे बच्चों को लिखना सिखाते हैं।
तख्ते-ताऊस (तख्त+ए+ताऊस=मोर) - (पुं.) (पुं.) - (फार.) शा.अर्थ मोर का सिंहासन। अर्थ मुगल सल्तनत के काल में शाहजहाँ द्वारा बनवाया हुआ वह प्रसिद् ध रत्नजटित सिंहासन जिस पर मोर की आकृति बनी थी।
तजना स.क्रि. - (तद्.<त्यजन) - 1. छोड़ देना, 2. त्यागना।
तट - (पुं.) (तत्.) - 1. नदी, तालाब, झील, समुद्र आदि का किनारा। पर्या. तीर। 2. समुद्र के किनारे के आसपास की भूमि। coast
तटबंध - (पुं.) (तत्.) - नदी का पानी किनारे को तोडक़र खेतों-गांवों में न घुस जाए, इस उद् देश्य से बनाया गया बाँध या पक्की दीवार; किनारे पर बनाया गया बाँध।
तटवर्ती - (वि.) (तत्.) - तट पर स्थित, नदी किनारे स्थित। जैसे: तटवर्ती वृक्ष, तटवर्ती गांव आदि।
तटस्थ - (वि.) (तत्.) - [तट+स्थ] शा.अर्थ तट पर स्थित या तट पर बैठा हुआ। सा.अर्थ दो पक्षों के विवाद में किसी भी पक्ष का समर्थन या विरोध न करने वाला; परस्पर विरोधी पक्षों में हस्तक्षेप न कर उनके बीच शांति का इच्छुक तीसरा पक्ष। पर्या. निरपेक्ष; उदासीन। neutral
तटीय [तट+ईय] - (वि.) (तत्.) - तट से संबंधित; तट के आसपास की। कोस्टल
तड़पना अ.क्रि. - (देश.) - 1. कष्ट के कारण मानसिक और/या शारीरिक दोनों तरह से छटपटाना। उदा. गर्मी में वह प्यास के मारे तड़पता रहा किंतु उसे कहीं पानी नहीं दिखाई दिया। 2. किसी के विरह में दुखी होना। ‘मन तरपत हरि दर्शन को आज’।
तड़ित - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ बादलों के टकराने के कारण दिखाई पड़ने वाला प्रकाश, बिजली। भौ. बादलों में एकत्रित उच्च वोल्टता के कारण बादलों के बीच या बादल से पृथ्वी तक मीलों लंबा और क्षणिक दमक के रूप में दिखाई पड़ने वाला अपार विद् युत-विसर्जन जो भंयकर ध्वनि और तीव्र प्रकाश उत्पन्न करता है। पर्या. बिजली lighting
तड़ित चालक - (पुं.) (तत्.) - भवनों को हानि न पहुँचे इस उद् देश्य से धातु की नोकदार पट् टिका वाली युक्ति जो बिजली को ग्रहण कर भूमि में विसर्जित कर देती है। इसका एक सिरा भवन के ऊपर और दूसरा ज़मीन के अंदर होता है। पर्या. तड़ित रक्षक। lighting conductor
तड़ित विद्युत - (स्त्री.) (तत्.) - बादलों की टकराहट से पैदा हुआ प्रकाश। दे. तडि़त (भौ.)
ततैया - (स्त्री.) (देश./तद्. <तिक्तिका) - एक बड़े आकार का पीली और काली धारियों वाला कीट जिसका बीच का (कमर का) भाग बहुत पतला होता है, और जो जगह-जगह छत्ते बना लेता है। इसकी पूँछ वाले भाग में डंक होता है जिसमें हल्का विष होता है। पर्या. बर्र wasp
तत्काल क्रि.वि. - (तत्.) - उसी समय, फौरन, तुरंत।
तत्कालीन - (वि.) (तत्.) - उस समय का; उन दिनों का।
तत्त्व/तत्व - (पुं.) (तत्.) - [तत्+त्व] 1. रासा पदार्थ जिसे रासायनिक या भौतिक विधियों द्वारा सूक्ष्मतर अवयवों में विभाजित नहीं किया जा सकता। जैसे: ऑक्सीजन। तु. यौगिक, मिश्रण। एैलीमेन्ट 2. भौ. पृथ्वी, तेज़, जल, वायु और आकाश-ये पाँचों भूत। ऐलिमेन्ट 3. दर्श. जगत् का मूल कारण। सांख्य में 25 तत्व माने गए हैं। मेटर 4. मुख्य और महत्वपूर्ण बात, गुण या अंश; सार वस्तु या भाग। substance
तत्पर - (वि.) (तत्.) - जो किसी काम को करने के लिए तैयार हो, तैयार, उद् युत। उदा. यह काम मुझे सौंप दीजिए, मैं इसे करने को तत्पर हूँ।
तत्परता - (स्त्री.) (तत्.) - तत्पर(तैयार) होने का गुण। पर्या. मुस्तैदी।
तत्वज्ञान [तत्+त्व+ज्ञान] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ तत्=(वह=ब्रह्म) के अस्तित्व का ज्ञान। सा.अर्थ 1. किसी बात का शास्त्रीय ज्ञान, 2. दर्शनशास्त्र। philosophy
तथाकथित - (वि.) (तत्.) - जैसा कहा गया है, जैसा कहा जा रहा है (यानी जो अभी तक सिद्ध या प्रमाणित नहीं हुआ है या होना बाकी है)। so-called
तथ्य - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी घटना के क्रमवार मूल बिंदु; 2. किसी घटना की वास्तविकता। पर्या. यथार्थता, वास्तविकता, सच्चाई। fact substance ट्रुथ। उदा. 1. तथ्य यह है कि…… 2. इनकी बात में कोई तथ्य नहीं है।
तथ्यत: क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - तथ्य के रूप में, वास्तव में (यानी जो मात्र काल्पनिक रूप में नहीं है) पर्या. वस्तुत:।
तदनंतर क्रि.वि. - (वि.) (तत्.) - तत् +अनंतर] इसके/उसके बाद, यानी पूर्वकथित घटना के घटित होने के बाद अगले क्रम में घटने वाला। पर्या. तत् पश्चात। उदा. वह एक घंटे तक दौडता रहा। तदंतर वह थककर बैठ गया।
तदर्थ - (तत्.) (अव्य.) - शा.अर्थ उसके लिए।सा. अर्थ किसी विशेष प्रयोजन अथवा अवधि के लिए। जैसे: तदर्थ समिति,तदर्थ नियुक्ति। adhoc
तदनुसार क्रि.वि. - (वि.) ([तत्.+अनुसार]) - (तत्.) इसके/उसके अनुसार। उदा. प्रधानाध्यापक ने उसे आगे बोलने से रोका, तदनुसार वह चुप हो गया।
तनख्वाह - (स्त्री.) - (फार.) किसी संस्था में नियुक्त कर्मचारी को उसके काम के एवज में मिलने वाला सामान्यत: मासिक नियत पारिश्रमिक। पर्या. वेतन, pay, salary
तनना अ.क्रि. - (तत्.<तनन) - किसी वस्तु का पूर्व स्थिति की तुलना में खिंचकर फैलना/फैल जाना। जैसे: भौंहे तुनना, भौहों का तुनना; तंबू तनना आदि।
तनाव - (पुं.) (तद्.) - सा.अर्थ खिंचे रहने (यानी ढीला न होने) का भाव या स्थिति। जैसे: रस्सी या पेशी का तनाव। पर्या. खिंचाव। 1. भौ. वह बल जो तार, डोरी या छड़ में भार लटकाने से उसके प्रत्येक बिंदु पर लगता है। टैंशन 2. मनो. मन की उथल-पुथल वाली दशा। 3. समा. जब किसी कारण से चिंतन और व्यवहार दोनों में सहजता दिखाई नहीं पड़ती। दो वर्गों के सामाजिक व्यवहार में विश्वास की कमी के फलस्वरूप असहजता की स्थिति जिसकी वजह से लड़ाई-झगड़ा पनपता है।
तनिक - (वि.) (तत्.) - छोटा सा, थोड़ा। उदा. मुझे यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि तुम मेरा यह तनिक-सा काम नहीं कर सकते। क्रि. वि. चाँदनी-चौक से तनिक आगे बढ़ोगे तो तुम्हें पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन दिखाई पड़ जाएगा।
तन्मय - (तत्.+मय] (तत्.) - किसी कार्य या किसी विचार में इस प्रकार लीन हो जाना कि आसपास की किसी बात पर ध्यान न जाए। पर्या. तल्लीन, दत्तचित्त। उदा. तन्मय होकर पढ़ो तो कविता जल्दी याद हो जाएगी।
तन्मयता [तन्मय+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - भाव-प्रत्यय तन्मय होने की स्थिति, तल्लीन/मग्न होने की दशा।
तन्य - (वि.) (तत्.) - जो ताना या खींचा जा सके। उदा. सोना तन्य धातु है, उसे पीटकर/खींचकर तार में बदला जा सकता है।
तन्यता [तन्य+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - भाव-प्रत्यय। शा.अर्थ तन्य होने का भाव। 2. रसा. (स्वर्ण, रजत, ताम्र आदि कुछ धातुओं का) वह गुणधर्म जिसके फलस्वरूप बिना टूटे उनके महीन से महीन तार खींचे जा सकते हैं।
तन्वी [तनु+ई] - (वि.) (तत्.) - 1. पतले और कोमल अंगों वाली। 2. कोमल अंगों वाली स्त्री। जैसे: तन्वी शकुंतला को देखकर दुष्यंत मोहित हो गया।
तपना अ.क्रि. - (देश.) - 1. अधिक गर्मी के कारण खूब गरम हो जाना। उदा. सोना तप कर कुंदन बन जाता है। 2. धूप में अधिक तपने से शरीर काला पड़ जाता है।
तपस्या - (स्त्री.) (तत्.) - अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण पाने के लिए या किसी देवता इत्यादि को प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला वह धार्मिक कृत्य जिसमें शरीर को अनेक प्रकार से कष्ट दिया जाता है। उदा. शिवजी को पति रूप में पाने के लिए पार्वती ने घोर तपस्या की। पर्या. तप। ला.अर्थ घोर परिश्रम, लंबी कठिन साधना। उदा. स्वतंत्रता सेनानियों की वर्षों की तपस्या काम आई और हमारा देश आज़ाद हुआ।
तपस्वी - (वि./पुं.) (तत्.) - तपस्या करने वाला। स्त्री. तपस्विनी।)
तपाक से क्रि. - (वि.) (फा.) - तुरत, ……..छूटते ही। 1. पहले प्रश्न सुनो और उस पर विचार करो। तपाक से उत्तर देना ठीक नहीं। 2. अध्यापक के मुख से प्रश्न निकला नहीं कि उसने तपाक से उत्तर दे दिया।
तपेदिक - (पुं.) (फा.) - एक संक्रामक रोग जिसमें खाँसी और बुखार बहुत दिनों तक बना रहता है और परिणामस्वरूप फेफड़े सड़ जाते हैं। पर्या. क्षय रोग।
तफ़तीश/तफ़्तीश - (स्त्री.) (अर.) - 1. किसी विवाद के तथ्यों या कारणों का पता लगाने के लिए पुलिस या अन्य अधिकृत कर्मचारी द्वारा की जाने वाली जाँच पड़ताल, छान बीन। 2. खोज, तलाश। उदा. पुलिस वहाँ होने वाली चोरी की तफ़्तीश कर रही है।
तबका - (पुं.) (अर.) - किसी वर्ग के लोगों का समूह। जैसे: गरीब तबका, अमीर तबका; मेहनतकश तबका आदि।
तबलची - (पुं.) (अर.) - (हीनता सूचक शब्द) तबला बजाने वाला। जैसे: ए तबलची यह ढपढप बंद कर। पर्या. तबलावादक। (आदर सूचक शब्द)
तबला - (पुं.) (अर.) - एक अवनद्ध (मंढ़ा हुआ) वाद्य; ताल देकर बजाया जाने वाला चमढ़ा मंढ़ा वाद्य यंत्र (बाजा)
तबलावादक - (पुं.) (अर.+ तत्.) - तबला बजाने वाला, कलाकार।
तबाह - (वि.) (फा.) - पूरी तरह से नष्ट। पर्या. बरबाद, नष्ट। उदा. सुनामी ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कई हिस्सों को तबाह कर दिया।
तबाही - (स्त्री.) (दे.) - (पह./फा.<तबाही) तबाह होने/पूरी तरह से नष्ट होने का भाव। पर्या. बरबादी, नाश। दे. तबाह। उदा. पिछले दिनों भूकंप ने जापान में तबाही मचा दी।
तबीयत - (स्त्री.) (अर.तबीअत) - 1. चित्त, मानसिक स्वास्थ्य। मूड 2. मन की मौज, रूचि। 3. शारीरिक स्वास्थ्य की स्थिति। condition मुहा. तबीयत आना=मन आना। तबीयत फडक़ना =अत्यंत प्रसन्न होना।
तमतमाना अ.क्रि. - (तत्.) - (<ताम्रन) शा.अर्थ तांबे की तरह लाल होना। सा.अर्थ क्रोधवश या धूप में खड़े होने के कारण मुंह/चेहरे का लाल हो जाना, बुखार।
तमतमाहट - (स्त्री.) (तत्.) - तमतमाने की स्थिति का सूचक भाव; क्रोधावेश आदि में दिखाई पड़ने वाली लाली।
तमन्ना - (स्त्री.) (अर.) - इच्छा, आकांक्षा, लालसा, कामना। उदा. मेरी दिली तमन्ना है कि………..
तमाम - (वि.) (अर.) - 1. समस्त, सारा, पूरा, सब-के-सब। जैसे: तमामलोग, तमाम बातें, तमाम मुल्क, तमाम रिश्तेदार आदि। 2. तमाम होना/तमाम करना=समाप्त, ख़त्म, नष्ट होना/करना। जैसे: काम तमाम हो गया=पूरा हो गया, मर गया। काम तमाम कर दिया=मार डाला।
तय - (वि.) (अर.) - 1. जिसका फैसला या निपटारा हो चुका हो। पर्या. निर्णीत। उदा. मामला तय हो चुका है। 2. जो पूरा हो चुका हो। उदा. रास्ता तय करना। 3. ठहराया या पक्का किया हुआ। पर्या. निश्चित। उदा. किराया तय करना।
तरंग - (स्त्री.) (तत्.) - 1. पानी में उठने वाली लहर, हिलोर। 2. गाते समय वाणी में होने वाला उतार चढ़ाव। जैसे: तान की तरंग। 3. मन की मौज; मन में उठने वाली उमंग। जैसे: मन में तरंग उठना।
तरंगिता - (वि.) (तत्.) - जिसमें तरंग या लहर उठ रही हो।
तर - (वि.) (.फा.) - भीगा हुआ, नम, आर्द्र, गीला। जैसे: पानी में तर कपड़े़, पसीने में तर शरीर, तर (नम) हवा; तर माल आदि।
तरकश - (पुं.) - [फ़ा<तर्कश<तीर+कोश] कंधे और पीठ पर बाँधा जाने वाला वह चोंगा जिसमें बाण रखे जाते हैं। पर्या. तूणीर, भाथा। quiver
तरकारी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. पत्तियाँ, डंठल, फूल, फल आदि जिन्हें पकाकर रोटी-चावल आदि के साथ खाते हैं। पर्या. सब्ज़ी, भाजी। 2. पकी हुई रसेदार सब्जी।
तरकीब - (स्त्री.) (अर.) - किसी कार्य को करने की सुविचारित योजना या ढंग। पर्या. उपाय, युक्ति; ढंग, तरीका। उदा. कोई तरकीब बताओ कि मेरा काम बन जाए।
तरक्की - (स्त्री.) (अर.) - 1. उन्नति, उत्थान, प्रगति। उदा. हमारे देश ने बहुत तरक्की की है, हमारे देश में बहुत तरक्की हुई है। progress 2. पद में उन्नति। उदा. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर लेने पर ही मेरे भाई को तरक्की मिली। promotion
तरबतर - (वि.) (.फा.) - पूरी तरह गीला, बिल्कुल भीगा हुआ। जैसे: रास्ते में इतनी बारिश हुई की मैं तरबतर होकर स्कूल पहुँचा।
तरस - (पुं.) (तद्.) - किसी को कष्ट में देखकर मन में पैदा होने वाली करुणा और सहायता करने की भावना। पर्या. दया, रहम। उदा. उसकी कंगाली की हालत में बच्चों को तड़पता देख किसी को भी उन पर तरस आ जाएगा। मुहा. (पर) तरस आना-मन में दया उत्पन्न होना। (पर) तरस खाना-सहायता की भावना उत्पन्न होना।
तराशना स.क्रि. - (फा.) - फल, पत्थर, लकड़ी आदि कठोर वस्तुओं को चाकू, छूरी, छेनी आदि से छील/काट कर मनचाहा रूप देना। जैसे: 1. फल तराशना। 2. शिल्पी ने पत्थर के टुकड़े को तराश-तराश कर सुंदर मूर्ति तैयार कर दी।
तरीका - (पुं.) (अर.) - 1. किसी कार्य व्यवहार आदि को करने का सही ढंग। पर्या. विधि, पद् धति, रीति। उदा. काम करते समय आप यदि ठीक तरीके से बैठेंगे तो पीठ में दर्द नहीं होगा। 2. किसी समस्या को सुलझाने का उपाय। पर्या. उपाय, तदबीर। उदा. इस समस्या को सुलझाने का कोई सरल तरीका सुझाइए।
तरुण - (वि./पुं.) (तत्.) - युवा, जवान। पुं. युवक।
तरुणाई स्त्री - (तत्.) - यौवन, जवानी।
तरुणावस्था [तरूण+अवस्था] - (पुं.) (तत्.) - बाल्यावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था।
तरुणी - (स्त्री.) (तत्.) - युवती, जवान स्त्री।
तरुवर - (पुं.) (तत्.) - बड़ा पेड़, हरा-भरा पेड़, श्रेष्ठ पेड़, वृक्ष।
तरोताज़ा [तर+ओ (और)+ताज़ा] - (वि.) (फा.) - 1. हरा-भरा, बिल्कुल ताज़ा। उदा. बाज़ार से तरोताजा सब्जी खरीद कर लाना। 2. थकान से रहित। उदा. भाग-दौड़ करने के बाद थोड़ी देर विश्राम कर लिया तो शरीर के साथ मन भी तरोताज़ा हो गया।
तर्क - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कथन या पक्ष के समर्थन अथवा विरोध के लिए दिया गया कारण। पर्या. दलील। argument जैसे: धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, तर्क से सिद्ध कीजिए। 2. सोचने-विचारने और तदनुसार निष्कर्ष पर पहुँचने की शक्ति। पर्या. तर्कशक्ति। उदा. उसने अपनी तर्कशक्ति से सबको प्रभावित किया। reasoning
तर्क-वितर्क - (पुं.) (तत्.) - अपने कथन को सिद् ध करने के लिए दिए गए कारण, साथ ही दूसरे के कथन के खंडन के लिए प्रस्तुत अपने जवाबी कारण।
तर्कसंगत - (वि.) (तत्.) - जो तर्क के आधार पर उचित लगे, युक्ति-युक्त। logical
तर्क-सिद्ध - (वि.) (तत्.) - तर्क द्वारा सिद्ध, तर्कपूर्ण, तर्कयुक्त।
तर्जनी - (स्त्री.) (तद्.) - अँगूठे के बगल वाली हाथ की उंगली। index finger
तल - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी नदी, तालाब इत्यादि का नीचे का स्थलीय भाग। पर्या. पेंदा। 2. समुद्र का ऊपरी जल स्तर, जिसे आधार मानकर भूमि या पर्वतों की ऊँचाई नापी जाती है। लेवल 3. किसी वस्तु का ऊपर या नीचे का भाग। जैसे: करतल, पदतल।
तलवा - (पुं.) (तद्.) - पैर का नीचे का भाग जो चलते समय भूमि को छूता है। तुल. हथेली। मुहा. तलवे चाटना=खुशामद करना।
तलहटी - (स्त्री.) (देश.) - किसी पहाड़ के नीचे का समतल भाग। पर्या. तराई, उपत्यका।
तलाक़ - (पुं.) (अर.) - पति-पत्नी के विवाह संबंध की कानून या सामाजिक रीति से परिसमाप्ति, विवाह-विच्छेद। लाक्ष. किसी वस्तु को सदा के लिए छोड़ देना। जैसे: उसने सुरापान को तलाक दे दिया।
तलाश - (स्त्री.) - (तुर्की) 1. खोई हुई वस्तु, व्यक्ति आदि का पता लगाने का प्रयत्न। उदा. मेरी पुस्तक रास्ते में खो गई, बहुत तलाश करने पर भी नहीं मिली। 2. जीवनयापन या आवश्यकतापूर्ति के लिए साधन खोजना। जैसे: नौकरी की तलाश।
तलाशना - - स.क्रि. (तुर्की) अब तक अज्ञात या खोई हुई वस्तु अथवा छिपाई गई वस्तु को ढूँढना। पर्या. खोजना, ढूँढना।
तलाशी - (स्त्री.) - (तुर्की) गुम हुई या छिपाई गई चीज़ को खोजने की कार्यवाही। उदा. पुलिस ने चोर के घर की तलाशी ली।
तल्ख़ - (वि.) (फा.) - कड़वा, कटु, कठोर (स्वभाव में), रुखा। विलो. मृदु, मधुर। उदा. उसकी तल्ख़भरी बातें सुनकर मैं भौचक्का रह गया।
तल्ख़ी - (स्त्री.) - (फार.) तल्ख होने का भाव। पर्या. कटुता, कड़वापन, कठोरता।
तवा - (पुं.) (तद्.<तापक) - <तापक) लोहे का गोलाकार पात्र जिस पर रोटी सेंकी जाती है।
तवायफ़ - (स्त्री.) (अर.) - लोगों का मनोरंजन करने के लिए गाने-नाचने वाली वेश्या, वारांगना। टि. मूलत: यह शब्द बहुवचन है।
तवारीख़ - (स्त्री.) (अर.) - इतिहास। उदा. तवारीख़ के पन्नों में गाँधीजी का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।
तशरीफ़ - (स्त्री.) (अर.) - आदरार्थक प्रयोग मुहा. तशरीफ़ रखिए-बैठिए, बिराजिए, लाना, ले जाना। तशरीफ़ लाइए-आइए, पधारिए।
तसला - (पुं.) (देश.) - चौड़े कटोरे के आकार का एक बड़ा बर्तन जिसकी तली भी थोड़ी उठी हुई होती है यानी समतल नहीं होती। टि. प्राय: राजमिस्त्री (मकान बनाने वाले) मसाला रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।
तसल्ली - (स्त्री.) (अर.) - 1. शांति, धैर्य, धीरज। उदा. तसल्ली से काम करो, हड़बड़ाहट की जरूरत नहीं है। 2. सांत्वना, ढांढ़स, दिलासा। उदा. दु:ख की घड़ी में हमने उसे तसल्ली दी, तब जाकर उसने रोना बंद किया।
तसवीर - (स्त्री.) (अर.) - चित्र, प्रतिकृति। 1. कलाकार की कूंची (कलम) से तैयार किया चित्र। painting 2. कैमरे से खींचा गया चित्र। photo
तसव्वुर - (पुं.) (अर.) - ध्यान। 1. किसी के रूप, गुण, स्मृति आदि को ध्यान में प्रत्यक्ष करने की क्रिया। 2. कल्पना, चिंतन। जैसे: तुम्हारा तसव्वुर होते ही उसे आनंद की अनुभूति होती है।
तस्कर - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ चोर। तक.अर्थ निषिद् ध वस्तुओं को चोरी-छिपे देश में लाने अथवा यहाँ से बाहर (विदेश) भेजने के अवैध धंधे में लगा व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह। smulggler
तस्करी - (स्त्री.) (तद्.) - सा.अर्थ चोरी का काम। तक.अर्थ-निषिद् ध वस्तुओं को चोरी-छिपे देश में लाने या यहाँ से बाहर (विदेश) भेजने का अवैध धंधा। smulggling
तह - (स्त्री.) (फा.) - किसी फैली हुई वस्तु को कई बार समान भागों में मोड़कर एक-दूसरे पर करीने से सजाना या समेटना। पर्या. परत लगाना। उदा. चादर को तह करके या लगाकर एक तरफ रख दो। 2. नीचे का विस्तार, तली, पैंदा। bottom मुहा. तह तक पहुँचना-मूल तक पहुँचना यानी असली कारण जानना रहस्य खोलना, गहराई में पैठना।
तहत - (पुं.) (अर.) - अधीनता, अधिकार, इख्तियार। के तहत-अधिकार में। under
तहस-नहस - (तहस+नहस=दुर्भाग्य) (देश.) - (अर.) पूरी तरह से नष्ट। पर्या. बरबाद, तबाह, नष्ट। टि. ‘तह से नष्ट कर देना’ भी इसका व्युत्पत्तिपरक अर्थ मानना अनुचित नहीं होगा।
ताँगा - (पुं.) (देश.) - बड़े-बड़े पहियों वाली एक सवारीगाड़ी जिसे घोड़ा खींचता है। इसमें बीच में एक फट्टा लगा होता है। पर्या. घोड़ागाड़ी। जिसके आगे-पीछे (दोनों ओर) सवारियाँ बैठती हैं, इसका प्रचलन प्राय: कस्बों में है/था। तु. इक्का, टमटम।
तांत्रिक - (पुं.) (तत्.) - तंत्रविद् या का जानकार; तंत्र के प्रयोग करने वाला। वि. तत्. तंत्रविद् या से संबंधित। जैसे: तांत्रिक साधना।
ताउम्र क्रि. - (वि.) (फा.) - जब तक जीवित रहे तब तक, उम्र भर, जीवनपर्यंत।
ताक - (स्त्री.) (देश.) - 1. ताकने (देखने) का भाव। 2. अवसर की प्रतीक्षा। जैसे: चोर इसी ताक में था कि कब आपकी आँख लगे और वह आपका सामान लेकर रफूचक्कर हो जाए। मुहा. ताक में रहना-अवसर की प्रतीक्षा करना। ताक लगाना-मौका देखना। ताक-झांक करना-छिप-छिप कर देखना।
ताकना अ.क्रि. - (देश.) - 1. अवसर की प्रतीक्षा करना। 2. अंदर से बाहर की ओर झांकना। उदा. वह खिड़की से मुझे ताकता रहा।
ताकीद - (स्त्री.) (अर.) - ज़ोर देकर कही हुई बात जिसमें चेतावनी या धमकी का पुट भी हो। पर्या. चेतावनी, आदेश।
ताज - (पुं.) (अर.) - 1. राजा को पहनाया जाने वाला मुकुट, पगड़ी या टोपी जो राजा होने की पहचान है। 2. ताजमहल नामक प्रसिद् ध इमारत का संक्षित नाम।
ताज़गी - (स्त्री.) (फा.) - ताज़ा होने का भाव़; नयापन; स्फूर्ति। विलो. बासीपन, थकावट, शिथिलता, ढीलापन।
ताजपोशी - (स्त्री.) (अर.+फा.) - ताप पहनाने की रस्म अदायगी, सिंहासनारूढ़ होने का उत्सव। पर्या. राज्याभिषेक, राजतिलक।
ताज़ा - (वि.) (फा.) - हरा-भरा, पौधे से तुंरत तोड़ा हुआ (फूल), तुरंत बना हुआ (खाना, मक्खन आदि), स्फूर्ति-युक्त। विलो. बासी, थका हुआ, शिथिल।
ताज्जुब - (पुं.) - [अ.<तअज्जुब] आश्चर्य, अचंभा।
ताड़पत्र - (पुं.) (तद्.<तालपत्र) - ताड़वृक्ष का पत्ता। टि. ताड़ के पत्ते की लगभग ढाई-तीन इंच चौड़ी पट्टियाँ जिन पर लोहे की कलम से खुरचकर ग्रंथ का लेखन किया जाता था। ये पत्ते समय के प्रभाव से बहुत कम प्रभावित होते थे अत: ग्रंथ अधिक समय तक बने रहते थे। (आज भी राष्ट्रीय संग्रहालय से ताड़पत्र के ग्रंथ देखे जा सकते हैं।)
तात्कालिक [तत्काल+इक] - (तत्) (वि.) - तत्काल से संबंधित, केवल उसी समय काम आने वाला। उदा. यह योजना तात्कालिक लाभ तो देती है पर आगे चलकर हानिकारक भी हो सकती है।
तात्पर्य - (पुं.) (तत्.) - मुख्य अर्थ, आशय, अभिप्राय, मंशा। उदा. मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि……….।
तादात्म्य - (पुं.) (तत्.) - एक वस्तु का दूसरी वस्तु में पूरी तरह मिल जाना। पर्या. एकरूपता। उदा. दोनों के विचारों में पूर्ण तादात्म्य होना चाहिए तभी अच्छी मित्रता निभती है।
तान - (पुं.) (तत्.) - तानने की क्रिया का भाव। स्त्री. (भाव) संगीत में स्वर का विस्तार, किसी राग या रागिनी को स्पष्ट करने के लिए स्वरों को लंबा करके गाना। उदा. ज्यों ही गायक ने तान छेड़ी कि श्रोतावर्ग मुग्ध होकर सुनने लगे। 2. कवि कुछ ऐसी तान सुनाओं जिससे उथल-पुथल मच जाए।
ताना-बाना - (पुं.) (तद्.) - ताना और बाना। सा.अर्थ वस्त्र बुनते समय लंबे सूत को ताना और चौड़ाई में बुने जाने वाले सूत को बाना कहते हैं। ला.अर्थ किसी कार्य की मूलभूत प्रक्रिया, किसी घटना के कारणभूत मूल तत् व। उदा. मुंबई आक्रमण का ताना-बाना पाकिस्तान में बुना गया था-ऐसा विश्वास किया जा रहा है।
तानाशाह - (पुं.) (तद्. फा.) - 1. अधिकारों का मनमाने ढंग से प्रयोग करने वाला शासक। 2. वह शासक जिसने समस्त राज्यसत्ता को अपने हाथों में केंद्रित कर लिया हो तथा अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी न रहे। dictator
तानाशाही - (स्त्री.) (तद्.+फा.) - ऐसी शासन-प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता एक ही व्यक्ति (अथवा एक छोटे वर्ग) के हाथों में केंद्रित हो जाए तथा शासक अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी न रहे। dictatorship
ताप - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. उष्णता, गरमी। (जिसका अनुभव जलन के रूप में होता है। 2. ज्वर, बुखार। ला.अर्थ दु:ख, मानसिक व्यथा (मनस्ताप), कष्ट, बैचेनी। भौ. वस्तु के गरम या ठंडे होने का गुणधर्म। इसके मापन का सामान्य मात्रक सेल्सियस (C) है।
तापक्रम - (पुं.) (तत्.) - शरीर, धातु या वायुमंडल की उष्णता का कम या अधिक होना। इसकी माप फारेनहीट या सेल्सियस (C) होती है। पर्या. तापमान। temperatoure
तापमान - (पुं.) (तत्.) - थरमामीटर द्वारा नापी गई उष्णता की मात्रा। टि. निश्चित तापमान इस प्रकार है- पानी का जमने का तापमान=0 डि.से.। पानी उबलने का तापमान=100 डि.से.। मानव शरीर का सामान्य तापमान=98.4 डि.से.। दे. तापक्रम। temperature
तापमापी - (वि./पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ ताप की मात्रा का मापन करने वाला। भौ. ताप मापने का एक विशेष उपकरण जो अशांकित कांच की नली का बना होता है। इस नली में पारद (पारा) या ऐल्कोहॉल भरा रहता है जो गर्म होने पर फैलता है और ताप की मात्रा बताता है। thermometer
तापीय ऊर्जा - (स्त्री.) (तत्.) - उष्णता या गर्मी से प्राप्त होने वाली ऊर्जा।
ताबड़तोड़ क्रि.वि. - (वि.) (देश.-अनु.) - लगातार, निरंतर, बिना रूके, एक-के बाद एक। उदा. ज्यों ही उसने ताबड़-तोड़ मुक्के बरसाने शुरू किए त्यों ही वह धराशायी हो गया और फिर उठ नहीं पाया।
ताम्रपाषण-युग - (पुं.) (तत्.) - इतिहास का वह प्रारंभिक काल जब आदिम मानव ने ताँबे और पत्थर के औज़ारों का उपयोग शुरू किया।
तार - (पुं.) (देश.) - 1. धागे की तरह की पतली, लंबी वस्तु जो तपाई हुई धातु को पीटकर या खींचकर बनाई जाती है। wire 2. तंतु के माध्यम से विद् युत की सहायता लेकर शीघ्र समाचार भेजने की व्यवस्था। telegraph 3. विद्युत अथवा रेडियो संकेतों द्वारा भेजा गया संदेश जो ग्रहीता कार्यालय से लिखित रूप में प्राप्तकर्ता को घर पर अथवा उसके कार्यालय में सौंपा जाता है; तार की विधि से भेजी गई खबर। telegrame 4. ऊँचे स्वर से गाए जाने वाले सप्तक। (सरगम) 5. ताँता, निरंतरता का भाव। जैसे: लगातार वषा। 6. संपर्क। जैसे: आतंकवाद के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं। मुहा. तार-तार करना-इस तरह से नष्ट कर देना कि फिर जोड़ा न जा सके धज्जियाँ उड़ाना, तार-तार होना=(कपड़ा) बुरी तरह फटना।
तारक - (वि.) (तत्.) - तारने वाला, तारणहार। (ईश्वर, नाव आदि) पुं. 1. तारा, नक्षत्र, 2. आँख की पुतली। 3. मुद्र. छपाई में लगाया जाने वाला तारे जैसा चिह् न (*)। उदा. कामिल बुल्के के कोश में स्त्रीलिंग सूचक संज्ञाओं पर तारक चिह् न * लगाए गए हैं।
तारा - (पुं.) (तत्.) - 1. आकाश में चमकने वाला ज्योर्तिपिंड, नक्षत्र। 2. आँख की पुतली। मुहा. तारे गिरना-नींद न आना, तारे तोड़ना-कोई असंभव काम करना, दिन में तारे दीखना-परेशान हो जाना। तारों की छाँह में-बड़ी सुबह, तडक़े।
तारामंडल - (पुं.) (तत्.) - 1. आकाश में एक निश्चित आकार में दिखाई पड़ने वाला तारों का समूह, तारा-पुंज। जैसे: वृश्चिक, सिंह, कन्या, तुला आदि। constellation 2. विशेष रूप से निर्मित वह गुबंदनुमा भवन जिसमें कृत्रिम प्रकाश की सहायता से उसकी अंदरूनी छत पर तारों और ग्रहों की गति का आभास करवाकर सामान्य जनता के खगोलीय ज्ञान में वृद् धि की जाती है। planetarium
तारीख - (स्त्री.) (फा.) - 1. महीने का कोई दिन। जैसे: जनवरी की पहली तारीख। पर्या. दिनांक। 2. स्मरण रखने योग्य भूतकाल या भविष्य का कोई दिन। जैसे: मुकद्दमे की तारीख, परीक्षा की तारीख।
तार्किक [तर्क=तर्कशास्त्र+इक (प्रत्यय] - (पुं.) (तत्.) - 1. तर्कशास्त्र या न्याय वैशेषिक दर्शनों का विद्वाऩ; दर्शनशास्त्र में पारंगत, विशेषज्ञ। पर्या. नैयायिक। 2. उचित तर्क करने वाला (व्यक्ति) लॉजीशियन वि. तर्क की दृष्टि से उचित। जैसे: आपका कथन तार्किक महत्व रखता है। लॉजिकल
तालपत्र - - ताड़ के वृक्ष का पत्ता। टि. ताड़ के पत्ते में कई पटि्टयाँ होती हैं तथा यह पत्ता कुछ कठोर तथा टिकाऊ भी होता है। इसलिए प्राचीन काल में इसकी पट्टियों का उपयोग लिखने के लिए किया जाता था। लोहे की नुकीली कलम से खुरचकर उसमें स्याही भर दी जाती थी। इस प्रकार पांडुलिपियाँ तैयार होती थीं। इस प्रकार की पुस्तकें संग्रहालयों में देखी जा सकती हैं।
तालमेल - (पुं.) - व्यु.अर्थ संगीत में ताल के अनुसार स्वर मिलाना। harmony ला.अर्थ सामंजस्य यानी परिस्थिति के अनुसार काम करने का भाव; उपयुक्त या ठीक मेल। उदा. पति-पत्नी में तालमेल हो तो गृहस्थी की गाड़ी अच्छी चलती है।
तालिका - (स्त्री.) (तत्.) - 1. ताली, चाबी, कुंजी। key 2. ताली (हाथ से बजाई जाने वाली) clap 3. वस्तुओं आदि की ब्यौरेबार सूची, नामावली, फेहरिस्त। table, inventory
ताल्लुक - (पुं.) (अर.<तअल्लुक) - (ताल्लुकात बहु.) संबंध, लगाव। उदा. बस! आज से तुम्हारे हमारे ताल्लुकात समाप्त।
ताल्लुका - (पुं.) (अर.<तअल्लुक) - प्रशासनिक दृष्टि से गठित कुछ गाँवों/कस्बों की सामूहिक इकाई। पर्या. उपजिला, तहसील। sub district
ताव - (पुं.) (तद्.<ताप) - 1. किसी वस्तु को गरम करने के लिए दिया जाने वाला ताप। 2. बुखार के लिए प्रयुक्त बोलीगत प्रयोग। पर्या. ज्वर। 3. अधिकार मिश्रित क्रोध का आवेश। 4. शेखी या ऐंठ का भाव। 5. उतावलापन। मुहा. ताव खाना=गरम हो जाना, क्रोधित होना। मूँछों पर ताव देना=शेखी दिखाना। ताव दिलाना=क्रोध दिलाना।
तिकोना - (वि.) (तद्.) - तीन कोनों वाला, त्रिभुजाकार (त्रिकोणाकार), त्रिभुज।
तितर-बितर - (वि.) - (अनु.) अ.क्रि. तितर-बितर होना। स.क्रि. तितर-बितर होना।; बिखरी जाना; बिखेर देना। 1. ज्योंही पुलिस पहुँची त्योंही भीड़ बिखर गई। 2. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया।
तिनका - (पुं.) (तद्.<तृण) - सूखी घास का टुकड़ा, तृण। मुहा. तिनके का सहारा=नाम मात्र का सहारा। दाँतों में (मुंह में) तिनका दबाना=दीनता दिखलाना। तिनके को पहाड़ की ओट=छोटी चीज़ को बड़ा महत्व देना।
तिरछा - (वि.) (तद्.<तिरश्चीन) - 1. जो सीधा न होकर कुछ कोण बनाकर हो। 2. टेढ़ा, वक्र।
तिरछापन - (पुं.) - टेढ़ा होने (सीधा या सपाट न होने की स्थिति)।
तिरना - - (अ.क्रि.<तरण) 1. तरल पदार्थ की सतह पर किसी वस्तु को आगे की ओर बढ़ने की क्रिया। उदा. दूध के कटोरे में चींटी तिर रही है, उसे निकाल दो। 2. पार होना, 3. भव-बंधन से पार होना, सांसारिक आवागमन से मुक्त होना। उदा. ईश्वर-स्मरण से न जाने कितने पापी तिर गए।
तिरपाल - (पुं.) - (अं.<टरपोलिन का अनुकूलित रूप) रासायनिक लेप से युक्त मोटा कपड़ा जो धूप, वर्षा आदि से बचाने के लिए और छाया करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
तिरस्कार - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी को दूर रखने का भाव। सा.अर्थ अनादर, निरादर, अपमान, अवहेलना। उदा. दीन-दुखियों का तिरस्कार मत करो, उनकी सहायता करो।
तिरस्कृत - (वि.) (तत्.) - जिसका अनादर या अपमान किया गया हो, जिसकी अवहेलना की गई हो। पर्या. अनाह्त, अपमानित। उदा. तिरस्कृत व्यक्ति कहीं सम्मान नहीं पाता।
तिरिया - (स्त्री.) (तद्.<त्रिया) - 1. स्त्री, नारी, औरत, 2. पत्नी।
तिरिया-चरित्र - (पुं.) (तद्.) - स्त्रियों का कभी-कभी होने वाला रहस्यमन आचरण। जैसे: तिरिया-चरित्र को कोई नही जान सकता।
तिर्याकबद्ध [तिर्यक=तिरछा+बद्ध] - (वि.) (तत्.) - तिरछा बनाया हुआ, तिरछा बाँधा हुआ, चौडाई में बनाया हुआ। (तिर्यक=तिरछा, आड़ा)
तिलमिलाना अ.क्रि. - (देश.<तलमलाना अनुदया.) - 1. क्रोध में आपा खो देना। उदा. अपने गुरूजनों की अकारण आलोचना सुनकर मैं तिलमिला उठा। 2. अचानक कष्ट या पीड़ा से अत्यधिक विकल होना। उदा. पलंग से टकरा जाने पर चोट लगते ही मैं तिलमिला गया।
तिलमिलाहट - (स्त्री.) (दे.) - तिलमिला जाने की स्थिति। दे. तिलमिलाना।
तिलहन - (पुं.) (देश.) - फसल जिसके दानों को पेर कर तेल निकाला जा सके। जैसे: तिल, सरसों, मूँगफल आदि। 2. इन फसलों के दाने। तुल. दलहन-दानों वाली फसल या बीज।
तीक्ष्ण - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. तेज़ नोक या तीखी धार वाला। ला.अर्थ 2. तीखा (स्वाद या गंध में), कुशाग्र (बुद्धि)
तीक्ष्णता - (स्त्री.) (तत्.) - तीक्ष्ण होने का गुण, तेज़ नोक या धार वाला अथवा स्वाद और गंध में तीखा होने की स्थिति।
तीन-चौथाई - (वि.) (तद्.) - किसी वस्तु के चार समान भागों में से तीन भाग। तीन बटा चार, 3/4। three-fourth
तीर्थ - (पुं.) (तत्.) - 1. पवित्र स्थान, जिसकी यात्रा विभिन्न धर्मावलंबी अपने-अपने मत के अनुसार करते हैं। जैसे: काशी, प्रयाग, अमृतसर, मक्का आदि; स्नान करने का पवित्र घाट।
तीर्थयात्रा - (स्त्री.) (तत्.) - पवित्र माने जाने वाले धार्मिक स्थानों पर मतानुयायियों का आना-जाना। पर्या. तीर्थटिक।
तीर्थयात्री [तीर्थ+यात्री] - (पुं.) (तत्.) - तीर्थ-स्थानों की यात्रा करने वाले आस्थावान लोग।
तीर्थाटन [तीर्थ+अटन=घूमना/यात्रा] - (पुं.) (तत्.) - दे. तीर्थयात्रा।
तीली - (स्त्री.) (तद्.<तीरिका) - 1. लकड़ी या धातु का सींक या तिनके की आकृति का सीधा टुकड़ा। जैसे: माचिस की तीली; पहिए की तीली। 2. बुनने की सलाई या क्रोशिया।
तीव्र - (वि.) (तत्.) - तेज़, तीक्ष्ण। जैसे: तीक्ष्ण वेदना; वेगयुक्त। जैसे: तीव्र गति; ऊँचा (स्वर)। जैसे: तीव्र स्वर। विलो. हल्का, मंद।
तीव्रता - (स्त्री.) (तत्.) - तीव्र होने का भाव, स्थिति या गुण। दे. तीव्र।
तुंगता (तुंग=ऊँचा+ता) - (स्त्री.) (तत्.) - निश्चित बिंदु से किसी वस्तु की ऊँचाई।
तुंगतामापी - (पुं.) (तत्.) - निश्चित बिंदु (समुद्रतल या भूस्तर) से किसी वस्तु जैसे: पर्वत शिखर या वायुयान) की ऊँचाई नापने वाला यंत्र। altimeter
तुनकमिज़ाज - (वि.) (फा.) - जो छोटी-छोटी या साधारण बातों पर जल्दी झल्ला उठे, चिड़चिड़ा।
तुनकमिज़ाजी - (स्त्री.) - छोटी-छोटी और साधारण बातों पर जल्दी झल्ला उठने का स्वभाव।
तुमुल - (वि.) (तत्.) - अत्यंत कोलाहल से युक्त। पर्या. घोर।
तुमुलध्वनि - (स्त्री.) (तत्.) - बड़े ज़ोर की आवाज़, चीख-पुकार और शस्त्रास्त्र चलने या युद् ध-वाद् यों की आवाज़। टि. प्राय: युद्ध के संदर्भ में प्रयोग होता है।
तुमुलनाद - (पुं.) (तत्.) - 1 दे. तुमुल ध्वनि। 2. जोर से की गई भयंकर आवाज़।
तुरतबुद्धि - (वि.) ([तद्.< त्वरित + तत्]) - शा.अर्थ (व्यक्ति) जिसकी बुद् धि तीव्र गति से काम करती हों सा.अर्थ किसी की भी बात पर अपनी ओर से चटपट और अनोखी टिप्पणी करने वाला (व्यक्ति) पर्या. प्रत्युत्पन्नमति, हाजि़रजवाब।
तुरूष्क - (पुं.) (तत्.) - 1. तुर्क जाति के लोग; तुर्किस्तान का निवासी, तुर्किस्तान। 2. धूप में डाला जाने वाला, एक गंधद्रव्य, लोबान (इसका धुँआ गंधयुक्त होता है।)
तुर्रा - (पुं.) (अर.तुर्र:) - 1. मुर्गे, मोर आदि की कलंगी। टोपी/पगड़ी पर लगाया हुआ सुनहले या रूपहले तारों का गुच्छा या झालर, फूलों का गुच्छा, मोतियों की लड़ियाँ या पक्षी का पर आदि। तुर्रा यह कि……(i) इस पर भी। (ii) इतना होने पर भी। (iii) यह भी है कि…, विचार करने वाली बात।
तुलना - (स्त्री.) (तत्.) - 1. दो या अधिक वस्तुओं की गुणवत्ता आदि की मात्रा कम-अधिक होने का विचार। पर्या. मिलान। 2. गुणों आदि की दृष्टि से समानता। पर्या. सादृश्य, उपमा। अ.क्रि. तत् <तुलन) 1. तराजू पर तौला जाना। 2. संतुलन बना कर रखना। 3. किसी कार्य को हठपूर्वक करने के लिए उद्यत होना। उदा. वह तो पैसे वापिस लेने के लिए तुल गया था।
तुलनात्मक [तुलना+आत्मक] - (वि.) (तत्.) - तुलना से युक्त (वह लेख, स्वरूप आदि) जिसमें तुलना की गई हो। जैसे: सूर और तुलसी का तुलनात्मक अध्ययन।
तूणीर - (पुं.) (तत्.) - तीर रखने का पात्र। दे. तरकश।
तूफ़ान - (पुं.) (अर.) - 1. समुद्र तल पर चलने वाली तेज़ और भयानक आँधी। 2. वह तेज़ आँधी जिसमें धूल उड़ने के बाद पानी भी बरसें 3. विपत्ति, आफ़त। ला.अर्थ हल्ला-गुल्ला, लड़ाई-झगड़ा।
तूफ़ान-मेल - (स्त्री.) (अर.) - तूफ़ान +मेल (अं.) शा.अर्थ तूफ़ान की गति से चलने वाली गाड़ी। ला.अर्थ बहुते तेज़ गति से कार्य करने वाला (व्यक्ति, मशीन आदि।)
तृतीय/तृतीयक - (वि.) (तत्.) - तीसरा या तीसरी, तीसरे क्रम का/की।
तृप्ति - (स्त्री.) (तत्.) - तृप्त या संतुष्ट होने का भाव; भोजन या अन्य किसी भी पदार्थ से जी मर जाने तथा तब और अधिक न लेने का भाव।
तेज - (पुं.) (तत्.<तेजस्) - 1. दीप्ति, चमक, प्रकाश, कांति। 2. पराक्रम, वीरता। 3. प्रखरता। 4. प्रभाव, रौब, प्रताप।
तेज़ - (वि.) (फा.) - 1. तीखी धार से युक्त। जैसे: तेज़ चाकू। 2. गति वाला। जैसे: दौड़ने में तेज़। 3. स्वाद में तीखा। जैसे: तेज़ मिर्च। 4. बुद्धिमान। 5. उच्च स्वर में। जैसे: तेज़ आवाज़।
तेजड़िया - (पुं.) (फा.) - (वाणि.) वह सट्टेबाज जो विभिन्न वस्तुओं या शेयरों की खरीद इस आशा से करता है कि भाव चढ़ जायें। विलो. मन्दडि़या।
तेजस्विता - (स्त्री.) (तत्.) - तेजस्वी होने का भाव।
तेजस्वी - (वि.) (तत्.) - तेज से युक्त। पर्या. प्रतापी, प्रखर, चमकदार।
तेज़ी - (स्त्री.) (फा.) - 1. तेज़ होने का भाव धार, तीव्रता 2. महंगाई। विलो. मंदी। 3. चालाकी, होशियारी। जैसे: ज़्यादा तेज़ी मत दिखाओ। 4. जोश, उत्साह, हिम्मत। जैसे: वह तुरंत तेज़ी से उठा। 5. शीघ्रता। जैसे: तेज़ी से जाना। 6. बेचैनी, आतुरता। जैसे: कृपया जाने दें, मुझे बहुत तेज़ी है।
तेल - (पुं.) (तद्.<तैल) - मूलअर् तिलों से निकलने वाला स्निग्ध रस। विक.अर्थ 1. किसी भी वानस्पतिक पदार्थ से निकाला जाने वाला स्निग्ध रस। जैसे: मूँगफली, सरसों का तेल। 2. ज़मीन से निकलने वाला पदार्थ, मिट् टी का तेल। मुहा. तेल निकालना=शोषण करना। भौ. जल में अविलेय, अमिश्रणीय, ज्वलनशील द्रव पदार्थ जिसके मुख्य घटक कार्बन और हाइड्रोजन होते हैं। ये सामान्य बीजों, फलों, जंतुओं, खनिजों आदि से निकाले जाते हैं और चिकने होते हैं।
तेलीय - (वि.) (तद्.<तैलीय) - तेल से युक्त, वह (पदार्थ) जिसमें तेल पाया जाता है।
तेवर - (पुं.) - (देश) 1. भौंह/भौंहे। पर्या. भृकुटि। 2. क्रोध को सूचित करने वाली भौंहों की मुद्रा, क्रोध भरी दृष्टि, तिरछी नज़र। पर्या. भृकुटि भंग, भृकुटि भंगिमा। मुहा. तेवर चढ़ना=क्रोध से भौंहे तन जाना। तेवर चढ़ाना=क्रोध करना। तेवर बदलना=व्यवहार में क्रोध या उदासीनता दिखलाना।
तैनात - (वि.) (अर.<तअय्युनात) - किसी काम पर लगाया हुआ या मुकर्रर, नियुक्ति किया हुआ।
तैनाती - (स्त्री.) (अर.) - तैनात करने की क्रिया; नियुक्ति।
तैरना - - अ.क्रि. (<तरण) पानी की सतह पर आगे बढ़ना। उदा. कल मैं तरणताल में दो घंटे तक तैरता रहा।
तैराक - (पुं.) - पानी पर तैरने वाला व्यक्ति।
तैराकी [तैराक+ई] - (स्त्री.) (देश.) - तैरने की कला।
तोंद - (स्त्री.) ([तद्.<तुंद] ) - आगे की ओर निकला या उभरा हुआ पेट।
तो क्रि. - (वि.) (तर.<तद्) - उस दशा में, तब। जैसे: जब वह खेत जाएगा तो तुम्हें भी जाना होगा।
तो, निपात - (तद्<तु.) - शब्द-विशेष पर बल देने के लिए प्रयोग। जैसे: मैं पढ़ने के लिए विद् यालय अवश्य जाऊँगा। मैं तो पढ़ने के लिए विद् यालय अवश्य जाऊँगा। मैं पढ़ने के लिए तो विद् यालय अवश्य जाऊँगा। मैं पढ़ने के लिए विद् यालय तो अवश्य जाऊँगा।
तोप - (स्त्री.) - (तुर्की) पहिएदार गाड़ी पर चढ़ा एक प्रसिद् ध आयुध जो आकार में काफी बड़ा होता है। इसमें गोला भरकर शत्रुओं पर दागा जाता है। आजकल कई कि.मी. दूर तक भार करने वाली तोपें बनने लगी हैं। cannon, gun
तोपखाना [तुर्की+फा.] - (पुं.) - युद् ध के दौरान स्थल सेना द्वारा प्रयुक्त पहिएदार तोपों का बेड़ा। artilary
तोहफ़ा - (पुं.) (अर.) - भेंट, सौगात।
तौर - (पुं.) (अर.) - 1. प्रकार, तरह। जैसे: आम तौर से/पर……। 2. विधि, तरीका। जैसे: अचार खास तौर से बनाया गया है।
तौर-तरीका - (पुं.) (अर.) - व्यवहार का ढंग, बोलने-पहनने का ढंग, परंपरागत व्यवहार, चाल-ढाल, चाल-चलन। उदा. हर समाज के तौर-तरीके प्राय: एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।
त्यौहार - (पुं.) ([तद्.<तिथि+वार]) - सामाजिक, धार्मिक अथवा अन्य प्रकार का कोई भी उत्सव मनाने का दिन। पर्या. पर्व। festival
त्वचा - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ चमड़ा, चर्म, छिलका, छाल। दर्श. पाँच ज्ञानेद्रिंयों में से एक जो स्पर्श से ज्ञान का अनुभव कराती है। गरम-ठंडा, मुलायम-कठोर, खुरदरा-नुकीला आदि का ज्ञान इससे होता है। आयु. (प्राणियों के) शरीर का वह प्राकृतिक रक्षा कवच यानी आवरण जो भीतरी तथा बाहरी सभी अंगों की रक्षा करता है।
त्र - -
त्रस्त - (वि.) (तत्.) - 1. डरा हुआ, भयभीत। 2. पीडि़त, परेशान।
त्रास - (पुं.) (तत्.) - सुरक्षा की चिंता का भाव, भय; भय के कारण होने वाला मनस्ताप, कष्ट।
त्रासद - (वि.) (तत्.) - कष्ट देने वाला। पर्या. कष्टप्रद, करूण, दुखद।
त्रासदी - (स्त्री.) - (अंग्रेजी के tragedy शब्द का अनुकूलित हिंदी रूपातंरण) ऐसी कथा जिसका अंत दुखद हो। पर्या. शोकांतिका।
त्रिकोण - (पुं.) (तत्.) - ज्या. तीन भुजाओं और तीन कोणों वाली बंद आकृति। पर्या. त्रिभुज।
त्रिपक्षीय - (वि.) (तत्.) - 1. जिसके तीन पक्ष हों। 2. तीन पक्षों (देशों, दलों आदि) के बीच होने वाली (वार्ता, संधि, समझौता आदि)
त्रिभुवन - (पुं.) (तत्.) - तीन लोकों (स्वर्ग, नरक और पृथ्वी) का समूह।
त्रिवेदी - (पुं.) (तत्.) - 1. ऋक्, यजुस् और साम इन तीन वेदों का ज्ञाता। 2. ब्राह् मणों के एक कुल का नाम जिसे उससे संबंधित ब्राह् मण अपने नाम के अंत में प्रयोग करते हैं। जैसे: तिवारी, त्रिपाठी, देव त्रिवेदी।
त्रुटि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कार्य में होने वाली गलती या रह गई कमी। जैसे: एक त्रुटि रह गई है। 2. भूल, चूक।
थ - -
थकना अ.क्रि. - (तद्.<स्थगन) - 1. काम करते-करते इतना शिथिल हो जाना कि आगे काम न किया जा सके। पर्या. श्लथ होना, क्लांत होना। 2. आयु बढ़ने के कारण शारीरिक शक्ति का स्वत: ही शिथिल हो जाना।
थकान - (स्त्री.) (तद्<स्थगन) - थक जाने की स्थिति का सूचक भाव; काम करते-करते रूकने की इच्छा। पर्या. थकावट।
थका-मांदा - (तद्.) ([तद्.+मांदा- फा.]) - (थका+मांदा) थका और माँदा=अस्वस्थ, बीमार; इतना थका हुआ कि अब काम न कर सके; थकने के कारण अस्वस्थ जैसा, शिथिल। पर्या. क्लांत।
थन - (पुं.) (तद्.<स्तन) - पशुओं का दूध देने वाला लटका हुआ मांसल अंग।
थपेड़ा - (पुं.) (देश.<थप-थप ध्वनि) - थप्पड़; धक्का, आघात। जैसे: लहरों के थपेड़े, लू के थपेड़े, वर्षा के थपेड़े आदि।
थमना अ.क्रि. - (तद्.<स्तब्ध) - बहती/चलती स्थिति से स्थिर स्थिति में आना; रूकना। उदा. हवा थम गई है।, ब्रेक लगाते ही गाड़ी थम जाती है। टि. रूकने के लिए ‘थमना’ को प्राय: ग्राम्य प्रयोग माना जाता है।
थमाना - - स.क्रि. किसी के हाथ में कोई चीज़ देना या पकड़ाना। जैसे: पुस्तक थमाना।
थरथर क्रि. - (वि.) - (अनुरण.) काँपने की स्थिति या भाव के साथ क्रोध या भय की अवस्था में अथवा अत्यधिक ठंड में शरीर के काँपने की स्थिति के साथ। टि. इस शब्द का प्रयोग काँपना क्रिया के साथ ही होता है।
थाना - (पुं.) (तद्.<स्थानक) - शा.अर्थ बैठने का स्थान। सा.अर्थ पुलिस अधिकारी के बैठने का स्थान। police station
थामना स.क्रि. - (तद्<स्तंभन) - 1. चलती या गिरती हुई वस्तु को रोकना या पकड़ना। 2. सहारा देना। 3. कोई कार्य अपने जिम्मे लेना। मुहा. बागडोर थामना=नेतृत्व स्वीकार करना।
थार - (पुं.) - (व्यक्तिवाचक नाम) पश्चिमोत्तर भारत और पाकिस्तान के दक्षिण-पूर्व भाग में लगभग एक लाख वर्गमील (लगभग ढाई लाख वर्ग कि.मी.) के क्षेत्र में फैला विशाल रेगिस्तान।
थिगली - (स्त्री.) (देश.<टिकली) - कपड़े या चमड़े में हुए छिद्र को ढकने के लिए ऊपर से लगाया गया। (चिपकाकर या सिलकर) कोई टुकड़ा। पर्या. पैबंद, चकती। मुहा. आसमान/बादल में थिगली लगाना=कठिन कार्य करना या व्यर्थ परिश्रम करना।
थियेटर/थिएटर - (पुं.) - (अं.) 1. वह स्थान या भवन जहाँ फिल्में, नाटक आदि दिखाए जाएँ। पर्या. रंगशाला, नाट्यगृह, सिनेमा हॉल। 2. नाटकों का लेखन और उनका प्रदर्शन/प्रस्तुतीकरण। 3. वह बड़ा कक्ष जहाँ कोई विशिष्ट कार्य संपन्न किया जाए। जैसे: operation theatre (O.T)
थिरकना अ.क्रि. - (देश.) - 1. स्थिर गति से (लगातार) अंगों को चलाना। 2. नृत्य करते समय बार-बार अंग हिलाना। 3. एक ही स्थान पर खड़े-खड़े या बैठे हुए बार-बार अंग हिलाना। (टि. इस क्रिया में मन का उत्साहित होना आवश्यक है।)
थुलथुला - (वि.) (देश.) - वह (शरीर या कोई अंग विशेषकर पेट) जिसकी मांसपेशियाँ कसी हुई न हों या भार के कारण हिलती हुई सी हों।
थैला - (पुं.) (देश.) - कपड़े, टाट, कागज़ या पोलिथीन इत्यादि का तीन ओर से चिपकाकर या सीकर और एक ओर का भाग खुला रखकर बनाया गया पात्र जिसमें रखकर वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाई/ले जाई जाती हैं। पर्या. झोला।
थोक खरीद - ([तद्.+फा.] ) (स्त्री.) - किसी वस्तु की इकट्ठी (अधिक संख्या में) खरीद। bulk purchage
थोक - (पुं.) (तद्.<स्तोमक=समूह) - जिसकी मात्रा या संख्या अधिक हो। वि. तद्. ऐसा (व्यापार) जो वस्तुओं की अधिक मात्रा के अनुसार होता हो। पर्या. खुदरा। विलो. फुटकर whole sale
थोक विक्रेता - (पुं.) ([तद्.+ तत्.] ) - किसी वस्तु को (फुटकर मात्रा में न बेचकर) एक साथ अधिक मात्रा में बेचने वाला व्यापारी। whole saler
थोथा - (वि.) (देश.) - सारहीन, रसहीन, खोखला। लो. थोथा चना बाजै घना=कम जानकारी वाला ज्यादा बोलता है। तुल. अधजल गगरी छलकत जाय।
थोपना सक. - (तद्.) - <स्थापना) 1. बलपूर्वक किसी को कोई उत्तरदायित्व देना या उस पर भार लादना। जैसे : जिम्मेदारी थोपना।
थोरियम - (तत्) (तत्) - एक रेडियो सक्रिय धात्विक व जिसका प्रतीक TR है। टि. स्कैंडिनेविया के विद् युत-देवता थोर के नाम से इस व का नामकरण किया गया है।
थ्रेशिंग - (अ.) (दे.) - गाहना। Threshing
द - -
दंग - (वि.) - [फार.] 1. किसी आकस्मिक या अद् भुत को देखकर या बात सुनकर स्तब्ध रह जाता (दंग रह जाना)। 2. आश्चर्यचकित, विस्मित। 2. गणेशजी की मूर्ति को दूध पीता देखकर हम दंग रह गए।
दंगई - (वि.) ([.फा.दंगा]) - 1. दंगा करने वाला, उपद्रवी, झगड़ालू। 2. प्रचंड, उग्र। 3. हिंसक प्रवृत्ति वाला वह व्यक्ति जो सामूहिक हिंसा के लिए प्रोत्साहित करता हो। उदा. पुलिस ने आज एक दंगई को हिरासत में ले लिया।
दंगाई/दंगई - (वि.) (पु.) - दंगा करने वालों का झुंड।
दंगल पुं - (.फा.) - 1. पहलवानों की कुश्ती-प्रतियोगिता। 2. अखाड़ा, मल्लयुद् ध का स्थान। उदा. कल होने वाले दंगल में भारत के कई नामी पहलवानों की कुश्तियाँ होंगी।
दंगा - (पुं.) (.फा.दंगल) - 1. बहुत से लोगों द्वारा किसी विवादित विषय को लेकर मचाया गया उत्पाद या तोडफ़ोड़, मारपीट, हिंसा, आदि में बदल जाए। निकटतम पर्या. उपद्रव करना।
दंडनीति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. अपराधियों, राष्ट्रद्रोहियों या शत्रुओं को दंड विधान के द्वारा नियंत्रित करने की शासकीय नीति व्यवस्था। 2. प्राचीन भारत में शासन, न्याय व्यवस्था व राजनीति विषयक विद्या। इसका अंतर्भाव अर्थशास्त्र के अंतर्गत होता था। उदा. राजा द्वारा दंडनीति के पालन से ही राज्य में शांति व स्थिरता रहती है। 3. राजधर्म के चार साधनों में से एक साम, दाम, दंड और भेद ये चार साधन माने गए हैं।
दंडनीय - (वि.) (तत्.) - 1. (वह व्यक्ति या अपराधी) जो दंड देने के योग्य हो। 2. (वह कार्य) जो शासन की दृष्टि से अनुचित हो और उसे करने पर दंड मिले। जैसे: दहेज-उत्पीड़न एक दंडनीय अपराध है।
दंड - (पु.) (तत्.) - 1. लकड़ी बाँस आदि का छोटा या बड़ा डंडा, लाठी, सोंटा। जैसे: बूढ़े का डंडा, धवज दड, संन्यासी का दंड आदि। 2. किसी अनुचित कार्य का अपराध के बदले में दी जानेवाली सजा (पिटाई, शारीरिक दंड, जुर्माना, आर्थिक दंड)।
दंड बैठक - (पुं.) (तत्.) - (दंड बैठक तद् > विष्टत्.) हाथ-पैरों का एक प्रकार का शारीरिक व्यायाम जिसमें व्यक्ति एक निश्चित संख्या में बार-बार बैठता और खड़ा होता है। जैसे: वह व्यक्ति प्रतिदिन सुबह सौ दंडबैठक लगाता है।
दंडवत [दंड+वत्] - (पुं.) (तत्.) - 1. दंड (डंडे) की तरह सीधे जमीन पर लेटकर प्रणाम करने की मुद्रा। साष्टांग प्रणाम। तद् > दंडौत)। 2. प्रणाम।
दंड विधान - (पुं.) (तत्.) - दंड की व्यवस्था, अपराध और दंड के विषय में बनाया गया कानून, दंड विधि। law
दंड विधि - (स्त्री.) (तत्.) - न्यायशास्त्र की वह शाखा जो सिविल विधि के अंतर्गत आने वाले अपराधों से संबंधित है।
दंडसंहिता - (स्त्री.) (तत्.) - विभिन्न प्रकार के अपराधों की परिभाषा देने वाली उन अपराधों के लिए देय दंडों का विवरण देने वाली नियमों की प्रकाशित पुस्तक। (जैसे : भारतीय दंड संहिता penal code
दंडित - (वि.) (तत्.) - (व्यक्ति) जिसे दंड दिया गया हो।
दंतकथा - (स्त्री.) (तत्.) - सा.अर्थ. दाँतों (मुख से) कहीं गई कथा। परंपरा से सुनी गई कथा (जिसका प्रामाणिक स्रोत भी हो सकता है और नहीं भी) पर्या. किवदंती legend
दंत सूत्र - (पुं.) (तत्.) - स्तनधारी प्राणियों में ऊपरी और निचले जबड़ों के दाँतों की संख्या बताने की विधि की दृष्टि से बांटे गए दाँतों की कुल संख्या का पता चल सके। कृंतक, रद्नक, अग्रचर्वणक और चर्बणक दाँतों को इसी क्रम में रखते हुए मानव में दोनों जबड़ों के एक तरफ के दाँतों का विन्यास इस प्रकार लिखा जाता है: dental formula
दंतुरित तटरेखा - (स्त्री.) (तत्.) - दाँत की आकृति के समान टेढ़ी-मेढ़ी लंबी तट रेखा।
दंपती - (पुं.) - (सं.<दंपति) पति-पत्नी का जोड़ा। उदा. नवदंपत्ति को भावी जीवन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। टि. संस्कृत व्याकरण के अनुसार (द् विवचन होने के कारण 'दंपती' शब्द रूप सही है, न कि 'दंपति' या 'दंपत्ति'।
दंभ - (पुं.) (तत्.) - 1. मानव के (अनुचित माने जाने वाले कार्य या उद् गार) जिनसे उसका मिथ्या अभिमान प्रकट होता हो; घमंड। उदा. कई लोग अपने कुल की बातें दंभपूर्वक करते हैं।
दंभी - (वि.) - घमंड़ी। घमंड करने वाला मिथ्या अभिमान प्रकट करने वाला।
दकियानूसी - (वि.) - 1. वह व्यक्ति जो अब झूठे पड़ गए परंपरागत विचारों या आचरण पर ही डटा रहे, उनमें परिवर्तन करना स्वीकार न करें। 2. नवीनता का विरोधी तथा घोर रूढ़िवादी। उदा. आधुनिक युग में घूघँट की प्रथा दकियानूसी विचारों से चिपटे रहना ही माना जाएगा।
दक्ष - (वि.) (तत्.) - (वह व्यक्ति कम-से-कम समय में योग्यतापूर्वक काम करने का गुण हो।
दक्षता [दक्ष+ता] - (स्त्री.) (तत्.) - कम-से-कम समय में और प्रयत्न सहित योग्यतापूर्वक सौंपा गया काम करने का गुण। efficiancy
दक्षिण अयनांत - (पुं.) (तत्.) - खगो. सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की वह स्थिति जब सूर्य की किरणें दक्षिण पर सीधी पड़े। सामान्यत: 22 दिंसबर को यह स्थिति होती है। मकर संक्रांति winter salistic
दक्षिण गोलार्ध - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के गोले का निचला आधा भाग यानी विषुवत रेखा से दो भागों में विभाजित पृथ्वी का दक्षिणी भाग। तु. उत्तरी गोलार्ध।
दक्षिण ध्रुव/दक्षिणी ध्रुव - (पुं.) (तत्.) - पृथ्वी के अक्ष axis का सबसे दक्षिणी सिरा या छोर या बिंदु। तु. उत्तर/उत्तरी ध्रुव।
दक्षिणा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान के अंत में, भोजन कराने आदि के बाद या कोई दान देते समय यजमान द्वारा आचार्य, पुरोहितों या ब्राह्मणों आदि को श्रद्धानुसार सम्मानपूर्वक दिया जाने वाला धन। टि. प्राचीन काल में राजा द्वारा गायें, स्वर्ण मुहरें आदि भी दक्षिणा के रूप में दिये जाते थे। 3. दक्षिण दिशा।
दक्षिणा-पक्ष - (पुं.) (तत्.) - भारत के दक्षिण दिशा की ओर के भाग का प्राचीन नाम (प्राय: मध्यप्रदेश से दक्षिण की ओर का भाग)
दक्षिणायन [दक्षिण+अयन] - (पुं.) (तत्.) - अर्थ दक्षिण दिशा की ओर जाना। सा.अर्थ अर्थ-खगो. महीनों का वह काल जब सूर्य क्रमश: दक्षिण की ओर जाता हुआ दीखता है अर्थात् सूर्योदय तथा सूर्यास्त का स्थान प्रतिदिन दक्षिण की ओर खिसकता हुआ दीखता है। (प्राय: 21 जून से 22 दिसंबर के बीच का कल) तुल. उत्तरायण-वर्ष के शेष छह महीने का काल।
दक्षिणावर्त [दक्षिण+आवर्त] - (वि.) (तत्.) - 1. जो घूमते समय बाएँ से दाएँ जाए हो। 2. घड़ी की सुइयों के समान बाएँ से दाएँ की ओर बढ़ने वाला। विलो. वामावर्त।
दखलंदाज़ - (वि.) - दूसरे के काम में अनुचित हस्तक्षेप करने वाला। कुछ लोग इतने दखलंदाज होते हैं कि हर वक्त दूसरे के काम में दखलंदाजी करने में इन्हें मज़ा आता है।
दखलंदाजी - (स्त्री.) (अर.) - अनुचित हस्तक्षेप करने का कार्य। उदा. किसी दूसरे के काम में दखलंदाजी अच्छी नहीं मानी जाती।
दखल - (पुं.) (अर.) - 1. स्थयी या अस्थायी रूप से (कब्जा) उदा. ध्यान न देने पर पड़ोस वाले दूसरे खेत की जमीन पर दखल कर लेते हैं। 2. (अनुचित) हस्तक्षेप उदा. जब कोई बोल रहा हो तो उसकी बात में बार-बार दखल देना अच्छा नहीं माना जाता। 3. अच्छी जानकारी। उदा. विज्ञान के विषयों में मेरा दखल नहीं है।
दग़ा - (स्त्री.) - 1. ऐसा व्यवहार या आचरण जिसमें दूसरे पक्ष के साथ कपट या घात करके अपना स्वार्थ सिद्ध किया जाए विश्वासघात उदा. तुमने मेरे साथ दग़ा करके अच्छा नहीं किया।
दग़ाबाज - (वि./पु.) - दग़ा करने वाला (व्यक्ति); दग़ा करने का शौकीन। उदा. वह तो बहुत दग़ाबाज है, विश्वास मत करना।
दग़ाबाजी - (स्त्री.) (दे.) - दग़ा
दग्ध - (वि.) (तत्.) - जला हुआ, जलाया हुआ।
दड़बा - (पुं.) - पक्षियों को (विशेष रूप से मुर्गियों और कबूतरों को) समूह में रखने के लिए बनाया गया खानेदार पिंजरा। तु. घोंसला। सा.अर्थ कोई भी अपेक्षाकृत छोटा और अव्यवस्थित कमरा जिसमें सभी निवासी अपनी संख्या के अनुपात में सुविधापूर्वक न समा सके; ठसाठस भरा हुआ घर। उदा. तुम्हारा यह कमरा है या दड़बा?
दत्तक - (वि.) (तत्.) - वह (लडक़ा या लडक़ी) अपनी औरस संतान न होने पर भी अपने उत्तराधिाकारी के रूप में शास्त्र विधि के अनुसार गोद लिया गया हो; गोद लिया हुआ लडक़ा, गोद ली हुई लडक़ी। उदा. आजकल कई निस्संतान दंपती अनाथालय से भी किसी बच्चे को लाकर विधिवत् अपना दत्तक पुत्र/पुत्री बनाते हैं।
दत्तचित्त विं. - (तत्.) - सा.अर्थ मन (चित्त) देकर; दत्तवित्त होकर = मन लगाकर कार्य विशेष में पूरा मन लगाए हो; मनोयोग पूर्वक। उदा. दत्तचित्त होकर पढ़ाई करो। सफलता अवश्य मिलेगी।
दनदनाना - - अ.क्रि. (अनु.) 1. दनदन शब्द करना। 2. फटाफट कोई कार्य करना। (दनदनाती ‘दन’ = गतिसूचक) उदा. राजधानी एक्सप्रेस छोटे स्टेशनों से दनदनाती हुई निकल जाती है।
दनादन क्रि.वि. - (वि.) - (अनु.) (दन-दन की आवाज के साथ) एक के बाद एक कई निरंतर। उदा. 1. पुलिस भीड़ पर दनादन गोलियाँ बरसाती रहीं। 2. वह बिना रुके दनादन काम करता रहा।
दफन - (पुं.) (अर.>दफ़्न) - भूमि में गाड़ा हुआ शव आदि। जैसे: शाहजहाँ ताजमहल में ही दफ़न है। दफ़न न करना स.क्रि. जमीन में गाड़ना।
दफ़नाना स. क्रि. - (अर.) - सा.अर्थ दफन करना, ज़मीन में गाड़ना (विशेषकर शव को)। (लड़ाई-झगड़े की बात) समझना यानी मन या स्मृति से निकाल देना।
दफ़ा - (स्त्री.) (.फा.) - 1. कानून की धारा (नियम) जिसके अंतर्गत किसी अपराध के संबंध में अभियोग चलाया जाता है और दंड को निश्चित किया जाता है। section 2. बार, मर्तबा उदा. तुम्हें कई दफ़ा कहा है, वहाँ मत जाओ।
दफ़ा होना - - अ.क्रि. तिरस्कार की भावना के साथ सामने से किसी स्थान से हट जाने को कहना। उदा. यहाँ से फौरन दफ़ा हो जाओ।
दबंग - (वि.) - (<दबाना) (व्यक्ति) जो किसी से दबता नहीं (उलटे दबाता है), डरता नहीं (उलटे डराता है), हार मानता नहीं, हौसला खोता नहीं और बाधाओं के बावजूद लक्ष्य की प्राप्ति की आशा (उम्मीद) छोड़ता नहीं।
दबदबा - (पुं.) (अर.< दबदब:) - 1. भयमिश्रित अति आदर की भावना। पर्या. रोब 2. अपने अधीन कार्यरत व्यक्तियों पर भयमिश्रित नियंत्रण या प्रभाव की स्थिति।
दबाना - (तद्.<दमन) - 1. किसी वस्तु को बलपूर्वक नीचे की ओर धकेलना। 2. किसी वस्तु पर इतना भार रखना कि वह हिल-डुल न सके। 3. किसी आंदोलन या विद्रोह आदि का दमन करना। 4. किसी वस्तु को ज़मीन में गाड़ना। 5. किसी वस्तु को अन्य वस्तुओं के नीचे रखकर छिपाना। 6. किसी मामले झगड़ या घटना आदि को शांत करना। (आगे बढ़ने व देना)।
दबाव - (पुं.) - (<दबाना) दबाने का भाव। उदा. उस पर इतना दबाव डाला गया कि उसने अन्ततोगत्वा चोरी करने का अपराध स्वीकार कर लिया।
दबैल - (वि.<दबना) - 1. जो किसी के प्रभाव से, उपकारों से या आतंक आदि के दबा हुआ हो। उदा. इतना दबैल नहीं हूँ कि तुम्हारी हर बात मानता रहूँ। 2. दबने या डरने के स्वभाव वाला। उदा. मैं वह दबैल किस्म का आदमी हूँ। जैसा कहो, कर देगा।
दबोचना स.क्रि. - (देश.) - 1. अचानक झपटकर किसी को पकड़ लेना, धर दबाना। जैसे: पुलिस ने भागते हुए चोर को धर-दबोचा।
दम - (पुं.) (फा.) - 1. साँस, श्वास। 2. जान, जीवन शक्ति, दे. दमदार। 2. झाँसा, छल कपट, धोखा। जैसे: दम देना = धोखा देना; बहकाना।
दमक - (स्त्री.) - चमक, दीप्ति, कांति
दमकना (अ.क्रि.) - (देश.) - किसी वस्तु पदार्थ आदि का अपनी आभा को चमकाना। उदा. हार में जड़े नग दमक रहे हैं।
दमकल - (स्त्री.) (देश.) - 1. वह गाड़ी और यंत्र जिससे जल की बौछार फेंक कर भवन कारखाने आदि में लगी आग को बुझाया जाता है। अग्निशमन यंत्र। उदा. हमारे नगर में आग बुझाने के कई दमकल केन्द्र है।
दमकल केंद्र - (पुं.) - वह आगार जहाँ आग बुझाने वाली गाडि़याँ और कर्मी रहते हैं तथा कहीं से आग लगने की सूचना मिलते ही उसे बुझाने के लिए रवाना कर दिए जाते हैं। fire station
दमकल दल - (पुं.) (तत्.) - आग बुझाने वाली गाडि़यों के साथ आने वाला प्रशिक्षित व्यक्तियों का समूह/दस्ता fire brigade
दमघोंटू - (वि.) - [हिं. दम + घोंटना] दम घोंटने वाला श्वास क्रिया को रोकने वाला। जैसे: दम घोंटू वातावरण।
दमड़ी - (दे.) - [द्रम्म + हि. प्रत्यय] 1. पुराने जमाने का सबसे छोटा सिक्का जो एक पैसे का आठवाँ भाग होता था। (एक रुपये में 64 पैसे तथा एक पैसे में 8 दमडि़याँ) लो. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए = ऐसा सामान जिसे लोग पैसे के पीछे जान देने को तैयार हैं।
दमदार - (वि.) (.फा.) - जिसमें इतना दम हो कि वह किसी कार्य को बड़े उत्साह व प्रसन्नता से सहज रूप में कर सके। पुं. जानदार। उदा. वह बहुत दमदार व्यक्ति है जिसने अकले डाकुओं का सामना किया।
दमन - (पुं.) (तत्.) - बलपूर्वक दबा देने का कृत्य।
दमनकारी - (वि.) (तत्.) - 1. दमन करने वाला/वाली; विरोधा, उपद्रव, दंगा आदि को बलपूर्वक/दबाव डालकर समाप्त कर देने वाला/वाली। जैसे: दमनकारी शक्तियाँ। 2. तानाशाह शासक, जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए शांति की स्थिति में भी विरोध न हो इस उद्देश्य से बल-प्रयोग करता है।
दमा - (पुं.) (.फा.) - रोग जिसमें सांस लेने में बहुत कठिनाई होती है। परिणामस्वरूप सांस फूलने लगती है। पर्या. श्वास रोग। अस्थमा
दयनीय विं. - (तत्< दया) - दया करने दिखाने योग्य। जैसे: दयनीय स्थिति, दयनीय परिस्थितियाँ।
दया - (स्त्री.) (तत्.) - किसी पीड़ित (व्यक्ति, पशु-पक्षी आदि) की दशा देखकर उसके प्रति जगी सहानुभूति और समवेदना की भावना। पर्या. करुणा, अनुकंपा, रहम।
दया-दृष्टि - (स्त्री.) (तत्.) - दया बनाए रखने की दृष्टि यानी अभिवृत्ति। उदा. आपकी सदा मुझ पर दया-दृष्टि बनी रहे, यही कामना है।
दयापात्र [दया + पात्र (योग्य] - (तत्.) - 1. वह व्यक्ति जो किसी विषम परिस्थिति में फंसा हुआ हो और दया करने के योग्य हो। 2. सहानुभूतिपूर्वक सहायता के योग्य। उदा. तुम्हारी सज्जनता व विपन्नता देखते हुए वास्तव में सबके दयापात्र हो। जैसे: मैं वहाँ किसी का दयापात्र बनकर नहीं जीना चाहता।
दयार्द्र [दया + आर्द्र] - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ दया से भीगा हुआ। सा.अर्थ कोमल हृदय। जिसका मन दया से जल्दी पिघल जाता हो।
दयालु [दया + आलु] - (वि.) (तत्.) - 1. दया करने वाला। 2. जिसके हृदय में दया का भाव हो। दे. दया
दर1 - (तद्.) - देरी) गुफा, कंदरा, गड्ढा, चीरने फाड़ने की क्रिया
दर2 - (पुं.) (.फा.) - दरवाजा, दवार, फाटक उदा. तेरे दर पे आया हूँ। मुहा. दर-दर की ठोकरें खाना। उदा. सौ रुपए की दर से। प्रत्यय (अ.) में, पर उदा. दर-असल = असल में, वास्तव में, हकीकत में, दर किनार = किनारे पर, अलग (बात) उदा. इनात तो किनार, उसे शाबासी तक नहीं मिली।
दर3 - (स्त्री.) (देश.) - किसी वस्तु को खरीदने/बेचने का भाव। जैसे: प्रति चार घंटे के लिए यहाँ पाँच सौ रुपये की दर से देने होंगे।
दरकिनार कि. - (वि.) (.फा.) - जिसे छोड़ दिया गया हो, बिल्कुल अलग, एक किनारे, दूर। उदा. मदद करना तो दरकिनार, वह मुझ से सीधे मुँह बात भी नहीं करता।
दरखास्त/दरख्वास्त - (स्त्री.) - (फा. < दरख्वास्त) प्रार्थना (पत्र), आवेदन (पत्र), निवेदन अर्ज़, अर्ज़ी। 1. आपसे दरख्वास्त है कि मेरे घर पधारे। (प्रार्थना, निवेदन, अर्ज़)। 2. मैंने दो दिन की छुट्टी की दरख्वास्त भेज दी है। (प्रार्थना-पत्र, आवेदन, अर्ज़ी)
दरख्त - (पुं.) (फा.) - दे. वृक्ष, पेड़।
दरगाह - (स्त्री.) (फा.) - 1. किसी सिद् धपुरुष का समाधि-स्थान (मकबरा)/मजार जहाँ भक्तगण जियारत/दर्शन करने जाएँ। उदा. दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया सूफी संत की दरगाह है।
दर-ब-दर क्रि. - (वि.) (फा.) - 1. एक दरवाजे से दूसरे दरवाज़े, 2. घर-घर, 3. गली-गली। जैसे: वह बेरोजगार होने के कारण दर-ब-दर भटक रहा है।
दरब़ान - (पुं.) (फा.) - 1. बाहरी दरवाज़े (गेट) पर खड़े होकर घर, महल, कारखाने, कार्यालय आदि की रक्षा करने वाला कर्मचारी; द्वारपाल। gate keeper
दरबार - (पुं.) (फा.) - (प्राचीन संदर्भ में) 1. सभाभवन जहाँ राजा या बादशाह अपने सरदारों, मंत्रियों आदि के साथ बैठते और राजकार्य निबटाते थे। पर्या. राजसभा। 2. बादशाह की कचहरी/न्यायशाला। रॉयल कोर्ट 3. भारत की प्राचीन रियासतों के राजाओं/शासकों के लिए प्रयुक्त नाम। हिज़ हाइनेस आधु. संदर्भ में-जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों/सत्ताधारियों की ओर से अपने चुनाव क्षेत्र की समस्याओं को सुनने के लिए निर्धारित दिन और समय पर आयोजित जनसभा। पर्या. जनता दरबार।
दरमियान/दरम्यान - (पुं.) (फा.) - बीच, मध्य उदा. दोस्तों के दरमियान कोई बात छिपाई न जाए तो अच्छा।
दरमियाना/दरमियानी - (वि.) (फा.) - बीच का, न बड़ा और न छोटा; मॅझला। उदा. मुझे दर मियानी किस्म का टीवी चाहिए। अव्य. उल्लिखित दो तारीखों/कार्यों आदि के बीच में, (इस) अवधि में मई से जुलाई के दरमियान आपने कहाँ-कहाँ की सैर की?
दऱर्जी/दर्जी - (पुं.) (.फा.) - व्यवसाय के तौर पर कपड़े सीने वाला।
दरवेश - (पुं.) (.फा.) - 1. अपना घरबार त्याग कर साधुवेश या भिक्षुक वेश में भिक्षा याचना कर जीवन निर्गह करते हुए ईश्वर की अराधना में संलग्न व्यक्ति साधु, फकीर, भिक्षुक। 2. मुसलमान त्यागी भिक्षुओं का एक संप्रदाय।
दराँती - (स्त्री.) (तद्. < दृणाति) - हँसिया और आरी के मिले-जुले आकार का एक उपकरण जो घास, वनस्पति, फसल, सब्ज़ी आदि काटने के काम आता है।
दराज़ - (वि.) (.फा.) - लंबा, विस्तृत जैसे: दूर-दराज़ का क्षेत्र। स्त्री. मेज़ के दोनों तरफ़ या एक तरफ़ लगा वह खाना या बक्स जिसमें कागज़, पैंसिल आदि रखा जाता है।
दरार - (स्त्री.) - (<दर) लकीर जैसा लंबा छिद्र जो ज़मीन, दीवार, लकड़ी आदि फटने के कारण बन जाता है। पर्या. दरज
दरिद्र - (वि.) (तत्.) - पर्या. कंगाल, अति निर्धन, जिसके पास जीवन यापन के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति संबंधी सामग्री बहुत ही कम यानी नगण्य हो।
दरियाई - (वि.) (.फा.) - 1. नदी संबंधी 2. पानी में रहने वाला। जैसे: दरियाई थोड़ा/दरियाई हाथी।
दरियाई घोड़ा - (पुं.) (देश.) - अफ्रीका में पाया जाने वाला, चौड़े जबड़ों वाला (गैंडे जैसा) भारी-भरकम जानवर जो जलाशयों में और आसपास की भूमि में विचरण करता है। पर्या. दरियाई हाथी hippopotamous उदा. दिल्ली के चिड़ियाघर में हमने दरियाई घोड़ा देखा।
दरियादिल - (वि./पुं.) (.फा.) - सा.अर्थ/शा.अर्थ दरिया (नदी, सागर) जैसे: दिलवाला। (वह व्यक्ति) जिसका दिल विशाल हो, खुले दिल वाला, उदार हृदय।
दरियादिली - (स्त्री.) (.फा.) - उदारता से खर्च करने या दान देने की भावना और सामर्थ्य। उदा. उसकी दरियादिली चारों और फैली हुई है।
दरी - (स्त्री.) (देश.) - 1. मोटे सूत का बुना हुआ एक आयताकार बिछौना जिसे चारपाई या फर्श पर बैठने या सोने के लिए बिछाते हैं। उदा. गर्मी में हम फर्श पर दरी बिछाकर सोते हैं। 2. स्त्री. तद्. कंदरा, गुफ़ा।
दर्ज - (वि.) (अर.) - रजिस्टर, सूची आदि में लिखा हुआ/चढ़ाया हुआ। पर्या. प्रविष्ट entered, recorded
दर्ज करना - - स.क्रि. रजिस्टर, सूची आदि में लिखना/चढ़ाना।
दर्जन - (वि.) - (अं. <डजन) गिनती में बारह का समूह। जैसे: एक दर्जन केले, एक दर्जन कापियाँ।
दर्जा - (पुं.) (अर.दरज:) - 1. छोटे-बड़े या विशिष्टता क्रम से नियत स्थान, श्रेणी, वर्ग। जैसे: 1. वातानुकूलित पहला दर्जा (प्रथम श्रेणी), दूसरा दर्जा (द्वितीय श्रेणी) आदि। 2. स्तर जैसे: 1. यहाँ ऊँचे दर्जे के लोग रहते हैं। 2. आप अव्वल दर्जे के इंसान है। 3. पद, ओहदा जैसे: उनका दर्जा बढ़ा दिया गया है। अब वह कमिश्नर हो गए हैं।
दर्द - (पुं.) (फा.) - शारीरिक या मानसिक कष्ट या पीड़ा जिसका अनुभव हो या किया जाए। पर्या. पीड़ा, कष्ट, तकलीफ़।
दर्दनाम [दर्द + नाक अरबी प्रत्यय] - (वि.) - शा.अर्थ दर्द (पीड़ा) से नाक (भरा हुआ)। सा.अर्थ जिसमें बहुत दर्द हो; जो दर्द पैदा करने वाला हो; जिसे देख, सुन या पढक़र मन को कष्ट हो।
दर्प - (पुं.) (तत्.) - दूसरों की तुलना में अपनी बाह् य भौतिक वस्तुओं (जमीन-जायदाद आदि) की विशेषता को लेकर अभिव्यक्त घमंड। तु. अहंकार।
दर्पण - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ आकृति देखने का शीशा, आईना। भौ. (i) प्रकाश का परावर्तन करने वाली सतह; (ii) विलोपित शीशा जो सामने वाली किसी भी वस्तु के रूप को प्रतिबिंबित करे। तु. शीशा।
दर्रा - (पुं.) (फा.) - दो ऊँची पर्वतमालाओं के बीच होकर आर-पार जाने वाला तंग रास्ता जैसे: खैबर दर्रा।
दर्शक - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. देखने वाला जैसे: नाटक के दर्शक। 2. दिखाने वाला जैसे: मार्गदर्शक।
दर्शकदीर्घा - (स्त्री.) (तत्.) - नियमित सदस्यों के लिए निर्धारित स्थानों को छोडक़र सदन में निर्दिष्ट वह स्थान जहाँ बैठकर गैर सदस्य, अतिथि आदि सदन की कार्यवाही देख सकें। पर्या. दर्शकदीर्घा। visiters gallery उदा. हमने संसद की कार्यवाही अध्यापकों के साथ दर्शकदीर्घा में बैठकर देखी।
दर्शक वीथी - (स्त्री.) (तत्.) - दे. दर्शक दीर्घा।
दर्शन - (पुं.) (तत्.) - 1. प्रत्यक्ष देखने का भाव। जैसे: दर्शन करना, दर्शन देना, दर्शन सुलभ/दुर्लभ होना आदि। 2. वह शास्त्र जिसमें इस संसार की उत्पत्ति, लय आदि का कारण जानने की इच्छा से तरह-तरह के विचार प्रकट किए जाते हैं।
दर्शन (शास्त्र) - (पुं.) (तत्.) - वह दया या शास्त्र जिसमें आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष आदि philosphy तत् वों का तर्कंसंगत विवेचन या निरूपण होता है। जैसे: भारतीय दर्शन (शास्त्र), वेदांतदर्शन (शास्त्र, जैनदर्शन (शास्त्र) आदि।
दर्शनार्थी [दर्शन + अर्थी] वि/पु. - (पु.) (तत्.) - शा.अर्थ दर्शन के लिए, दर्शन के प्रयोजन से (आए हुए) श्रद् धालु लोगों का वह समूह जो किसी देव/देवी आदि के दर्शनों के लिए इक्ट्ठे होते हैं। उदा. काशी विश्वनाथ के दर्शन हेतु प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं।
दर्शनीय - (वि.) (तत्.) - देखने योग्य। जैसे: दर्शनीय स्थल; सुंदर, मनोहर।
दर्शाना - - (स.क्रि.<दर्शन) व्यु.अर्थ दिखाना, ला.अर्थ कोई बात समझा देना (उदाहरण सहित)
दल - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ समूह, झूड़, गिरोह। 1. राज. राजनीतिक उद् देश्य की पूर्ति के लिए समान विचारधारा के लोगों/सदस्यों का संगठन जो चुनाव लड़ता है। 2. सैन्य-सिपाहियों की टुकड़ी। 3. जीव-पुष्प की रंगीन पत्तियाँ जो बाह्य पत्तियों के भीतर होती है। petal जैसे: तुलसी दल, कमल दल। पर्या. पंखुड़ी।
दलबंदी - ([तत्+देश.]) (देश.) - समान हित या स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए लोगों द्वारा अपने-अपने समूह बना लेने की स्थिति।
दलबदल - (तत्) (देश.) - पुं. स्वार्थवश एक दल को छोडक़र दूसरे दल में मिल जाने वाली उसकी सदस्यता स्वीकार कर लेने का कृत्य।
दलबदलू - (वि./पुं.) ([तत्+ देश.]) - स्वार्थवश एक दल को छोडक़र दूसरे दल में मिल जाने वाला (व्यक्ति)
दल-बल - (पुं.) (तत्.) - अर्थ-समूह और शक्ति। 1. समर्थक जनसमूह, लाव-लश्कर। 2. सगे संबंधी, नौकर आदि। उदा. वह दल-बल सहित विरोधियों पर टूट पड़ा।
दलहन - (पुं.) (तद्. (दालिधान्य) - वह अन्न जिसे दलकर (यानी दाल बनाकर) उपयोग में लाया जाता है। जैसे: अरहर, मूँग, उड़द, मसूर, चना आदि।
दलाल - (पुं.) (अर.< दल्लास) - 1. वह अधिकृत व्यक्ति जो लोगों को सौदा खरीदने या बेचने में सहायता करता है और इसके बदले में दोनों पक्षों से या किसी एक पक्ष से पारिश्रमिक स्वरूप दलाली प्राप्त करता है। agent, broker, middleman पर्या. आदत। वह अनधिकृत व्यक्ति जो सार्वजनिक सेवाओं के लिए ग्राहकों से अनुचित रूप से पैसा लेकर चोर रास्ते से जल्दी काम करवाने को उकसाता है।
दलाली - (स्त्री.) (दे.) - आदत का काम, दलाल का काम। दे. दलाल
दलित - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ दला हुआ; रौदा गया; कुचला गया, दबाया हुआ। समाज. (भारतीय संदर्भ में) सदियों से उपेक्षित, शोषित और अधिकार वंचित जाति-आदि से व्यवस्था का शिकार (व्यक्ति, वर्ग या समाज) जिसके उद् धार के लिए अब कई उपाए किए जा रहे हैं।
दलिया - (पुं.) - (<दलना) दलकर बनाया हुआ। गेहूँ, बाजरा आदि का (i) मोटा दला हुआ रूप तथा (ii) उसका पकाया हुआ भोज्य पदार्थ।
दलील - (स्त्री.) (अर.) - अपने कथन को पुष्ट करने के लिए दिया गया सोदाहरण तर्क। arguement
दवा/दवाई - (स्त्री.) (अर.) - 1. रोग भगाने की या रोग दूर करने की औषधि। 2. रोग या तकलीफ को दूर करने का नुस्खा या इलाज। 3. ला.अर्थ किसी संकट या विपत्ति को दूर करने का उपाय, तरीका, ढंग आदि। जैसे: यह ज्वर की दवा है। जैसे: तुम्हारी मुसीबत दूर करने की मेरे पास कोई दवा नहीं है।
दवाखाना [दवा + खाना] - ([फा.दवाखाना] ) (पुं.) - वह स्थान या भवन जहाँ दवाई देकर रोगी का उपचार किया जाता है। औषधालय, चिकित्सालय। जैसे: यूनानी दवाखाना।
दवा-दारू [अरबी दवा + फा. दारू] - (स्त्री.) - रोगी का रोग दूर करने के लिए उपयुक्त औषधि द्वारा उपचार, चिकित्सा। जैसे: डाक्टर व़द्धजनों को भी दवादारू करके ठीक कर देते हैं।
दशक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दस का समाहार (एकत्रित रूप)। सा.अर्थ दस वर्षों का काल, दशाब्दी decade
दशम - (वि.) (तत्.) - 1. गिनती में क्रम से दस के स्थान पर होने वाला, दसवाँ। उदा. गीता के दशम अध्याय में विभूतियों का वर्णन है।
दशमी - (वि./स्त्री.) - आज दशमी तिथि है।
दशावतार [दश + अवतार] - (पुं.) (तत्.) - पुराणों में वर्णित भगवान विष्णु के दस अवतार जो हो चुके-मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद् ध और (भावी दसवाँ) कल्कि।
दस्त - (पुं.) (.फा.) - 1. हाथ दे. दस्तकार 2. एक हाथ की माप 3. पतला शौच (एक बीमारी)
दस्तक - (स्त्री.) (.फा.) - (हाथ से) खटखटाने की क्रिया का भाव। विशेष ‘दस्तक’ के साथ ‘देना’ क्रिया लगाई जाती है। उदा. किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी है। जाकर देखो।
दस्तकार - (पुं.) (.फा.) - हाथ से काम करने वाला यानी आधुनिक मशीनों का न्यूनतम उपयोग कर मुख्यत: हाथ से ही कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करने वाला कारीगर। पर्या. हस्तशिल्पी।
दस्तकारी [दस्तकार + ई] - (स्त्री.) (.फा.) - दस्तकार द्वारा निर्मित कला; हाथ की कारीगरी, शिल्प। handicraft, artisanship
दस्तख़त [दस्त = हाथ + खत = अक्षर] - (पुं.) (.फा.) - शा.अर्थ हाथ के (लिखे) अक्षर। सा.अर्थ किसी लिखित सामग्री के नीचे लेखक द्वारा अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत नाम। जो अभ्यासवश सर्वत्र समरूप रहते हैं और जिसकी कोई अन्य व्यक्ति प्राय: नकल नहीं कर सकता। पर्या. हस्ताक्षर। टि. ‘दस्तख़त’ और ‘हस्ताक्षर’ दोनों का बहुवचन में प्रयोग होता है। जैसे: मेरे दस्तखत (न कि मेरा दस्तखत), पिताजी के हस्ताक्षर (न कि पिताजी का हस्ताक्षर)
दस्ता - (पुं.) (फा.) - 1. किसी वस्तु, औज़ार, हथियार आदि का वह हिस्सा जो हाथ में पकड़ा जाता है। जैसे: चाकू, छुरी आदि की मूठ, बेंत। 2. सैनिकों या सिपाहियों आदि का छोटा दल। उदा. सैनिकों का एक दस्ता उपद्रव क्षेत्र में तैनात है। 3. 24 पन्नों का एक समूह, या गड्डी। उदा. मुझे एक दस्ता कागज़ दीजिए।
दस्ताना (बहु. दस्ताने) - (पुं.) (फा.) - हाथ की अंगुलियों और हथेली में पहनने का कपड़े, चमड़े, रबर आदि का बना आवरण।
दस्तावेज़ - (पुं.) (फा.) - 1. वे कागज़ पत्र जो भविष्य में काम आने की दृष्टि से लिखे जाते हैं। जैसे: ऐतिहासिक दस्तावेज़; लेनदेन संबंधी दस्तावेज़। document, deed 2. वे कागज़ात जो मूलत: सामान्य व्यवहार के रूप में लिखे गए पर बाद में वे बहुमूल्य समझे गए। जैसे: महापुरुषों के पत्र इत्यादि। document
दस्ती - (स्त्री.) (फा.) - छोटा दस्ता, छोटी मूठ। 1. हाथ में रहने वाला जैसे: रूमाल, हाथों-हाथ पहुँचाया जाने वाली दस्ती चिट्ठी।
दस्तूर - (पुं.) (फा.) - 1. रिवाज़, प्रथा, रस्म। उदा. हमारे यहाँ दस्तूर है कि अतिथि को भूखा नहीं जाने देते। 2. नियम, कायदा, विधि, विधान। उदा. विद्यालय का दस्तूर है कि सभी छात्र यूनिफॉर्म में आएँ। (बदस्तूर = प्रथा के अनुसार, कायदे के अनुसार।)
दस्यु - (पुं.) (तत्.) - हिंसात्मक उपायों अथवा लूटपाट द्वारा अपनी जीविका चलाने वाला व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह। उदा. वाल्मीकि अपने प्रारंभिक जीवन में दस्यु थे।
दहकना अ.क्रि. - (तत्.<दहन) - इस प्रकार जलना कि आँच में तेज़ी दिखाई पड़े।
दहन - (पुं.) (तत्.) - जलने की क्रिया या भाव, दाह। जैसे: लंका-दहन। रसा. किसी पदार्थ का ऑक्सीजन के संयोग से जलना जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश और ऊष्मा उत्पन्न हों। combustion
दहलन - (पुं.) (तद्.< दलधान्य) - अनाज का वह प्रकार जिसे ढलने पर उकी दो समान परत अलग हो जाती है। जैसे: चना, मूँग, मसूर आदि।
दहलना अ.क्रि. - (तद्.) - डर के कारण काँप उठना, भयभीत होना। उदा. अँधेरे में शेर की आवाज़ सुन कर उसका दिल दहल गया।
दहलीज़ - (स्त्री.) (.फा.) - दरवाज़े की चौखट में लगी नीचे वाली लकड़ी या पत्थर की पट् टी जो ज़मीन के साथ सटी होती है और जिसे लाँघ कर घर के अंदर या बाहर जाते हैं। पर्या. देहली।
दहशत - (स्त्री.) (.फा.) - किसी भावी संकट की संभावना से उत्पन्न डर; किसी भयंकर परिणाम की आशंका का भय/आतंक। उदा. कॉलोनी में बम फटा और आतंकी हमलावरों की दहशत फैल गई।
दहाड़ - (स्त्री.) (देश.) - शेर (के गरजने) की आवाज।
दहाड़ना अ.क्रि. - (देश.) - शेर का गरजना। ला.अर्थ बहुत जोर से चिल्लाकर, बोलना या रोना।
दहेज - (पुं.) - (<अर. जहेज) वह विशेष धन जो आभूषण, वस्त्र, संपत्ति उपहार आदि के अलावा कन्यापक्ष की ओर से विवाह में वधू को या कहे प्रकारांतर से वर पक्ष की माँग पूरी करने के लिए दिया जाता है। dowry उदा. अब दहेज प्रथा ने शान और लालच का रूप धारण कर लिया है।
दांपत्य - (पुं.) (तत्.) - दंपती यानि पति-पत्नी का विवाह से जुड़ा संबंध, वैवाहिक जीवन। जैसे: दांपत्य जीवन।
दाँत - (पुं.) (तद्.) - 1. जीवों के मुख के अंदर की ओर ऊपर और नीचे के मसूढ़ों के ऊपर किनारे-किनारे निकली हुई कठोर व श्वेत लघु आकार की वे हड्डियाँ जिनसे वे किसी वस्तु को खाते या काटते, चबाते हैं। पर्या. दशन, रद, दंत। मुहा. 1. दाँत काटी रोटी होना=अत्यंत घनिष्ठ मित्रता होना। 2. दाँत खट्टे करना=लड़ाई में दुश्मन को करारी मात देना। 3. दाँत पीसना=मन ही मन बहुत क्रोध करना। 4. दाँतों तले ऊँगली दबाना=बहुत चकित होना, दंग रह जाना। 2. किसी तेज औजार में कंधी इत्यादि में दाँतों की तरह का भाग। जैसे: आरी के दाँत, कंधी के दाँत। दांपत्य जीवन = वैवाहिक जीवन।
दाँव - (पुं.) (तद्.(द्रव्य) - 1. वह द्रव्य या धन जो खिलाड़ी द्वारा जुएँ में लगाया जाता है। उदा. युधिष्ठिर ने तो जुएँ में अंतत: द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया था। 2. कोई कार्य करने या खेल खेलने का वह अग्रसर या पारी जो क्रम से सभी को मिलती है।
दाँव-पेच - (पुं.) (देश.) - 1. खेलकूद, कश्ती आदि की प्रतियोगिताओं में दूसरे पक्षर को हराने के लिए अपनाई जाने वाली युक्तियाँ। 2. कपटपूर्ण युक्ति। उदा. कुश्ती में प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए ताकत ही नहीं अवसरोचित दाँव-पेंच भी जरूरी होते हैं।
दाई - (स्त्री.) (तद्. धानी) - 1. प्रसूति कर्म में सहायक अथवा प्रसूता स्त्री की देख-रेख करने के लिए प्रशिक्षित महिला जिसने इस कार्य को व्यवसाय के रूप में अपना रखा हो। midwife 2. दूसरे के बच्चे को अपना दूध पिलाने या उसकी देख-रेख करने वाली स्त्री। पर्या. धाय, धात्री। जैसे: इतिहास प्रसिद्ध पन्ना धाय (दाई)
दाऊ - (पुं.) (देश.) - 1. बड़ा भाई। 2. कृष्ण के बड़े भाई बलराम (बलदाऊ) उदा. मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ। (सूरसागर)
दाख - (स्त्री.) (तद्. द्राक्षा) - सूखे, अंगूर का मेवा। पर्या. किशमिश।
दाखिला - (पुं.) (फा.) - किसी शिक्षा संस्थान, अस्पताल के अंतरंग कक्ष आदि में प्रवेश। पर्या. प्रवेश। एडमिशन तुल. नामांकन, पंजीयन।
दाग1 - (पुं.) (तद्. दाह दहन) - बोलीगत प्रयोग-शव को अग्नि देने का काम।
दाग2 - (पुं.) (फा.) - 1. धब्बा, चित्ती उदा. फलों में दाग लगे हैं। 2. निशान, चिह्न उदा. उसके हाथ पर जन्म से ही विशेष दाग है। 3. ऐव, दोष उदा. मेरे लडक़े में कोई दाग नहीं है।
दागदार [दाग+दार] - (वि.) - (फा. दागदार) 1. जिस पर दाग या धब्बा लगा हो, जैसे: ये सेब दागदार हैं। 2. कलंकित, दोषयुक्त। 2. राजनीति में कई नेता दागदार भी होते हैं। जैसे: यह व्यक्ति चरित्र की दृष्टि से दागदार है। 2. जिसे दाग दिया गया हो, जलने के निशान से युक्त। यह पशु दागदार है।
दागना - - [दाग+ना] स.क्रि. (दाग दाह) 1. शरीर के किसी अंग या किसी वस्तु के तल को गर्म लोहे से छूकर चिह् नित करना। 2. गोली/गोला/तोप चलाना। जैसे: राष्ट्रपति के सम्मान में 21 तोपें दागकर सलामी दी गई।
दाढ़ - (स्त्री.) (तद्.<दंष्ट्र) - 1. मुख के अंदर ऊपर और नीचे दोनों ओर मोटे और चोड़े आठ दाँत जो भोजन चबाने का काम करते हैं। 2. इन दाँतों के नीचे का मसूढ़ का भाग। जैसे: मेरी दाढ़ में हल्का-सा दर्द है।
दाता - (वि.) (तत्.) - 1. दान करने वाला (व्यक्ति)। पर्या. दानी, दानकर्ता। उदा. समाज में दाता तो कोई ही होता है। विलो. कृपण। 2. देने वाला। जैसे: विद्यादाता, ऋण दाता।
दातुन/दातौन - (स्त्री.) - 1. नीम, बबूल आदि की पतली, छोटी, नरम टहनी जिसके एक सिरे को दाढ़ों से कुचलकर और ब्रुश-सा बनाकर दाँत साफ़ करते हैं। 2. दाँत साफ़ करने/माँजने की क्रिया। ग्राम्य प्रयोग-दातुन/दातौन।
दाद1 - (पुं.) (तद्.<दद्रु) - फफूँद के संक्रमण से उत्पन्न चर्मरोग जिसमें गाढ़े छल्लेदार चकत्ते उभर आते हैं और खुजली महसूस होती है। उदा. दाद एक भयानक चर्मरोग है। ring worm
दाद2 - (स्त्री.) (.फा.) - किसी के कथन, कार्य, रचना आदि की निष्पक्ष खुली तारीफ। उदा. जब अपने शेर पढ़े तो श्रोताओं की ओर से उसे बहुत सारी दाद मिली। 2. तुमने अपनी जान पर खेलकर डूबते बच्चे को बचाया। हम तुम्हारे साहस की दाद देते हैं।
दादन व्यवस्था - (स्त्री.) (तत्.) - कपड़ा बेचने वाले व्यापारियों द्वारा बुनकरों को कच्चा माल (सूत, रेशम) देने और बुनकरों से तैयार माल लेकर बाजार में बेचने की व्यवस्था।
दादा - (पुं.) (तद्.<तात) - 1. पिताजी के पिताजी, पर्या. पितामह। 2. (क्षेत्र विशेष में) बड़े भाई (दादा भाई) 3. आदरसूचक शब्द (बंगाल में)। 4. (क्षेत्र विशेष में) लोगों पर अपना रोब जताने वाला व्यक्ति।
दादागिरी [दादा+गिरी फा. प्रत्यय] - (फा.) (स्त्री.) - (तद् >तात+फा.) ला.अर्थ किसी बदमाश या गुंडे द्वारा समाज में लोगों को डराधमकाकर या मारपीटकर अपनी बात मनमाने का भाव गुंडागर्दी। जैसे: कुछ लोग दादागिरी करके दुकानदारों से पैसे ऐंठते हैं। gungstrism
दान1 - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ देने की क्रिया या भाव। सा.अर्थ वह धर्मार्थ कृत्य जिसमें परोपकार के लिए और श्रद्धापूर्वक किसी व्यक्ति या संस्था को धन आदि दिया जाता है। पर्या. खैरात। उदा. उसमें विद् यालय निर्माण के लिए अपनी जमीन दान कर दी।
दान2 - (फा.) - फारसी का एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के साथ जुडक़र 1. आधान या पात्र का अथवा 2. जानने वाले का अर्थ सूचित करता है। जैसे: 1. नमकदान, पानदान, (-का पात्र) 2. कद्रदान (-को जानने वाला)
दान-पात्र [दान+पात्र] - (पुं.) (तत्.) - एक ताला लगा/सीलबंद पात्र जिसमें एक लंबा छिद्र बना होता है तथा लोग बाग दान देने योग्य राशि उसमें डालते हैं।
दान-पुण्य [दान+पुण्य] - (पुं.) (तत्.) - 1. दान आदि ऐसे अच्छे कार्य करना जिनसे करने वाले का पुण्य मिले। जैसे: अन्नदान, वस्त्रदान, रक्तदान आदि। 2. परहित के कार्य उदा. मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य करना चाहिए।
दानवीर - (वि.) (तत्.) - बहुत बड़ा दानी, दान देने में उदारता दिखाने वाला। उदा. कुंती पुत्र कर्ण शूरवीर ही नहीं दानवीर भी थे।
दाना - (पुं.) (फा.) - 1. अनाज का बीज या कण। मुहा. दाने-दाने को तरसना=दरिद्र होना। दाना-पानी उठ जाना=आजीविका समाप्त हो जाना। 2. फल या छोटा बीज जैसे: पोस्ते का दाना। 3. कोई छोटी गोल वस्तु जैसे: घुँघरू, मोती या अनार के दाने। 4. शरीर पर निकले उभार जैसे: चेहरे के दाने (मुँहासे या चेचक के दाने।) 5. संख्या का भाव देने वाला शब्द जैसे: माला के कुछ दाने खरीदने हैं। चार दाने तौल दो (आम के)।
दाब - (पुं.) - (दबना) सा.अर्थ. दबने का प्रभाव। भौ. किसी प्रति इकाई पृष्ठ क्षेत्र पर लंबवत् लगने वाला बल। इसका मात्रक पास्कल है। pressure
दाम - (पुं.) (फा.) - विभिन्न उत्पादों का खुदरा मूल्य; कीमत। जैसे: इस टी.वी. का दाम क्या है? 2. पुं. तत्. 1. रस्सी, डोरी। जैसे: दामोदर (दाम+उदर) 2. चार नीतियों (साम, दाम, दंड, भेद) में से एक जिसमें शत्रु को धन आदि देकर वश में किया जाता है।
दामन - (पुं.) (फा.) - सा.अर्थ वस्त्र का किनारा। मुहा. दामन छुड़ाना=पीछा छुड़ाना, मुक्त होना 2. दामन फैलाना = सहायता के लिए याचना करना; भीख माँगना।
दामाद - (पुं.) (तद्.(जमाता/जामात्; .फा.) - बेटी का पति। पर्या. जवाँई, जमाई।
दामिनी - (स्त्री.) (तत्.) - आकाश में चमकने वाली, विद्युत बिजली। उदा. ‘दामिनि दमक रहन घन माँही।’
दायर करना स.क्रि. - ([अर.+हिंदी] ) - उदा. अदालत में सुनवाई के लिए प्रस्तुत/पेश करना। उदा. पुलिस ने यातायात के नियम तोड़ने वाले के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर कर दिया हैं
दायरा - ([अर.+दादूर:]) (पुं.) - एक निश्चित सीमा वाला क्षेत्र। पर्या. घेरा, मंडल, क्षेत्र।
दायाँ - (वि.) (देश.) - (शरीर का) दाहिना (भाग या अंग)। जैसे: दायाँ हाथ, दायाँ कान। अव्यय के रूप में प्रयोग किसी क्षेत्र या स्थान की स्थिति का परिचयात्मक संकेत। जैसे: यहाँ से दायें विद्यालय और बाएँ बाग है। विलो. बायाँ। स्त्री-दायीं (दायीं आँख)
दायित्व - (पुं.) (तत्.) - 1. सौंपे गए काम को ठीक तरह से पूरा करने की जिम्मेदारी। obligation 2. किसी अन्य के प्रति देनदारी। liability
दायित्व बोध - (पुं.) (तत्.) - दायित्व या जिम्मेदारी समझने का सूचक भाव।
दारु - (स्त्री.) (फा.) - 1. औषध, दवा (मद्य निर्मित पेय का दवा के रूप में उपयोग-विशेष रूप से आसव के रूप में। जैसे: दक्षासव। 2. मदिरा, शराब। उदा. दारु पीना स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।
दारुण - (वि.) (तत्.) - जो अत्यंत भयं का या पीड़ा कारक हो, जैसे: दारुण दृश्य; दारुण व्यथा। उदा. जाको विधि दारुण दु:ख दीन्हा। ताकी मति पहले हरि लीन्हा।।
दार्शनिक [दर्शन+इक] - (पुं.वि.) (वि.) - (तत्.) पुं. दर्शनशास्त्र का ज्ञाता या विद् वान। उदा. दार्शनिक का चिंतन बहुत ही गूढ़ या तात्विक होता है। वि. दर्शनशास्त्र से संबंधित दार्शनिकों की तरह। उदा. 1. यह दार्शनिक ग्रंथ है। 2. भाषण दार्शनिक विचारों से भरा था। कुछ समझ में नहीं आया।
दार्शनिक [सं. दर्शन+इक] - (पुं.) (तत्.) - दर्शन शास्त्र का जानकार, दर्शनशास्त्र का ज्ञाता। वि. दर्शनशास्त्र संबंधी।
दाल - (स्त्री.) (तद्.) - अरहर, मूँग, उदड़, चना आदि को दलने पर हुए उसके दो भागों का समूह जिसे पकाकर चावल या रोटी के साथ खाते हैं। मुहा. दाल-रोटी चलना=निर्वाह होना। दाल गलना=योजना सफल होना। दाल न गलना=योजना सफल न होना। दाल में काला=कोई-न-कोई रहस्य या दोष।
दाला - (पुं.) (.फा.) - कमरे के बाहर का गलियारेनुमा खुला भाग जिसके ऊपर छत होती है। पर्या. बरामदा।
दाव - (पुं.) (तत्.) - 1. वन, उपवन। जैसे: मृगदाव=वह उपवन जहाँ मृग पाले गए हों। 2. आग विशेषकर जंगलों में लगने वाली)।
दावत - (स्त्री.) (अर. (दअवत) - किसी विशेष अवसर पर भोजन (खाने-पीने) का प्रबंध भी। पर्या. भोज। उदा. पुत्रोत्सव के उपलक्ष्य में हमारे यहाँ दावत है। आप अवश्य पधारिए।
दावा - (पुं.) (अर.) - किसी वस्तु पर जताया गया अपना अधिकार/हक। उदा. तालाब के पास की जमीन पर हमारा दावा बनता है। क्लेम 2. न्यायालय में प्रस्तुत अभियोग। सूट 3. दृढ़तापूर्वक कुछ कहना। उदा. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यह काम होकर रहेगा।
दावानल [दाव+अनल] - (पुं.) (तत्.) - वन में लगी भयंकर आग को बाँसों आदि की रगड़ के कारण पैदा होती है और फैल जाती है। पर्या. दावाग्नि। टि. अग्नियाँ तीन प्रकार की बतलाई गई हैं-दावानल (जंगल की आग), बड़वानल (समुद्र में लगने वाली आग), जठरानल (पेट की आग) जो भोजन पकाती है, पाचनशक्ति।
दावेदार - ([अर.दावा+फा.दार]) (वि./पुं.) - 1. किसी वस्तु, संपत्ति आदि पर अपना दावा करने वाला। अपना अधिकार/हक जताने वाला। 2. विधि न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने वाला, मुद्दई।
दास - (पुं.) (तत्.) - 1. खरीदा हुआ नौकर पर्या. गुलाम स्लेव एक उपाधि। 2. वह जो किसी की सेवा में अपने आपको समर्पित कर दे। नौकर भृत्य।
दासता [दास+ता प्रत्यय] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. दास होने की अवस्था/भाव। 2. दासत्व, गुलामी। उदा. भारतवर्ष सैकड़ों वर्षों की दासता के बाद स्वतंत्र हुआ।
दास-प्रथा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. प्राचीनकाल में प्रचलित वह प्रथा जिसमें अमीर लोग श्रमजीवी लोगों को दास बनाकर रखते थे; अथवा गुलामों को खरीदते और बेचते थे। उदा. आधुनिक युग में दास-प्रथा का प्रचलन समाप्त हो गया है।
दाह - (पुं.) (तत्.) - 1. जलाने की क्रिया या भाव। 2. शव का अत्येष्टि संस्कार। उदा. उनका दाह संस्कार विधिवत् संपन्न हो गया। 3. ताप, जलन। 4. ईर्ष्या के कारण मन में होने वाली जलन। पर्या. डाह।
दाहक - (वि.) (तत्.) - जलाने वाला। उदा. सिल्वर नाइट्रेट दाहक पदार्थ है।
दाहिना - (वि.) (तत्.<दक्षिण) - पर्व की ओर मुँह करके खड़े होने पर दक्षिण दिशा की ओर का शारीरिक अंग, दक्षिण। विलो. बायाँ।
दाह्य - (वि.) (तत्.) - जलाने योग्य, जलने वाला।
दिक् - (स्त्री.) (तत्.) - दिशा। जैसे: दिक्सूचक यंत्र।
दिक्कत - (स्त्री.) (अर.) - दिक् (परेशानी) का भाव; जिसके कारण आसानी न बनी रहे। पर्या. मुश्किल, तकलीफ, कठिनाई।
दिक्सूचक यंत्र - (पुं.) (तत्.) - दिशा का ज्ञान कराने वाला उपकरण जिसमें एक चुंबक होता है और सुई की नोक उत्तर दिशा की ओर संकेत करती है। पर्या. कुतुबनुमा compass
दिखावट [दिख+आवट] - (स्त्री.) (देश.) - दिखने/दिखाने का भाव; तडक़-भडक़, आडंबर।
दिखावटी - (वि.) (देश.) - शा.अर्थ मात्र दिखाने के लिए; देखने में। सा.अर्थ जो केवल रूप रंग-आकार, आदि की दृष्टि से देखने में अच्छा लगे या दिखाने के लिए हो, परन्तु वास्तविकता से दूर हो। पर्या. बनावटी, नकली। उदा. ये फूल दिखावटी अर्थात् कागज के हैं, असली नहीं।
दिग्गज [दिक्+गज] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दिशाओं के हाथी, पुराण। धरती को सँभालने के लिए दिशा विशेष में स्थित हाथी या गज। टि. धरती की आठ दिशाओं के लिए आठ दिग्गजों की स्थिति मानी गई है। ला.अर्थ अपने विषय का सर्वोच्य या पारंगत व्यक्ति। जैसे: दिग्गज पंडित, दिग्गज नेता।
दिग्दर्शन - (पुं.) (तत्.) - [दिक्(दिशा)+दर्शन] 1. दिशा दिखाने का भाव। मार्गदर्शन, दिशा-निर्देश। 2. किसी होने वाले कार्य के बारे में यह बताना कि ‘कहाँ क्या हो रहा है?’। 3. वह जो किसी विषय में उदाहरणस्वरूप उपस्थित किया जाए। नमूना। जैसे: हमें आपके दिग्दर्शन की आवश्यकता है।
दिग्भ्रम [दिक्+भ्रम] - (पुं.) (तत्.) - दिशा संबंधी भ्रम, दिशा भूल जाना। उदा. मार्ग में चलते-चलते दिग्भ्रम होने से मैं समय से पहुँच न सका। ला. वास्तविक लक्ष्य से भटकाव। जैसे: जीवन पथ अनेक हैं-दिग्भ्रम होना स्वाभाविक है।
दिन - (पुं.) (तत्.) - सीमित अर्थ 1. सूर्य निकलने से सूरज के अस्त होने तक का काल या समय। विलो. रात। 2. विस्तृत अर्थ. चौबीस घंटों का समय। उदा. जनवरी 31 दिनों का महीना है।
दिनकर - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ. दिन को बनाने वाला, सूर्य। दे. सूर्य।
दिनचर्या [दिन + चर्या] - (स्त्री.) (तत्.) - सुनिश्चित क्रम से किए जाने वाले प्रतिदिन के कार्यों का विवरण। daily, routine
दिन-दहाड़े क्रि.वि. - (वि.) (देश.) - 1. दिन के समय, उजाले में। 2. सबके सामने, खुले में। उदा. आज डाकुओं ने दिन-दहाड़े बैंक में लूटपाट की।
दिन-ब-दिन क्रि.वि. - (वि.) (तत्.+.फा.+तत्.) - क्रमश: प्रतिदिन (उन्नति या अवनति के क्रम में) उदा. हमारा देश दिन-ब-दिन विकास कर रहा है।
दिमाग़ - (पुं.) (अर.) - 1. खोपड़ी में सुरक्षित वह अंग जो तंत्रिका का केंद्र है और समस्त शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का नियंत्रक है। पर्या. मस्तिष्क, भेजा। brain 2. मानसिक शक्ति, बुद्धि। उदा. कठिन परिस्थिति में हमें दिमाग़ से काम लेना चाहिए। मुहा. 1. दिमाग़ का (सातवें) आसमान पर चढ़ना=बहुत अभिमान होना। 2. दिमाग़ खाना या चाटना=व्यर्थ ही बहुत अधिक बोलकर किसी को परेशान करना। 3. दिमाग़ में भूसा भरा होना=मूर्ख होना। 4. दिमाग़ लड़ाना=आवश्यकता से अधिक सोचना-विचारना।
दिया सलाई - (स्त्री.) (देश.) - 1. चीड़ आदि वृक्षों की कोमल लकड़ी से बनायी गई तीलियाँ। इनके एक सिरे पर रासायनिक पदार्थ फासफोरस लगा होता है जिसे किसी विशिष्ट तल पर रगडक़र अग्नि उत्पन्न की जाती है। 2. उक्त तीलियाँ रखने की डिब्बी। पर्या. माचिस। मुहा. दियासलाई लगाना=आग लगाना।
दिया/दीया - (पुं.) (तत्.) - दीप) मिट्टी या धातु का बना छोटा दीपक जिसमें तेल-बाती डालकर रोशनी के लिए उसे जलाया जाता है। पर्या. दीया बुझना=जीवन का अंत हो जाना, किसी के शासन का अंत हो जाना।
दिल - (पुं.) (.फा.) - 1. शरीर का वह अंश जो पूरे शरीर को शुद्ध रक्त की आपूर्ति करता है। 2. मन, चित्त। उदा. मुझे क्या पता तुम्हारे दिल में क्या है। 3. साहस, हिम्मत। जैसे: दिल वाला आदमी=हिम्मत वाला आदमी। मुहा. दिल कड़ा करना=हिम्मत जुटाना। दिल गवाही देना=भावनात्मक सहमति। दिल मिल जाना=विचार एवं भावनाएँ एक जैसी होना। दिल में फरक आना=विचार बदल जाना। दिल का दौरा=ह्रदय की बीमारी।
दिलचस्प - (वि.) (.फा.) - शा.अर्थ दिल से चिपकने वाला। मन (दिल) को अच्छा लगने वाला। पर्या. मनोरंजक, मनोरम। उदा. आपने जो कहानी सुनाई वह बड़ी दिलचस्प है।
दिलचस्पी [दिलचस्प+ई] - (स्त्री.) (.फा.) - मन (दिलों को अच्छा लगने की स्थिति)। दे. दिलचस्प। उदा. मैं आपकी कहानी को पूरे समय बड़ी दिलचस्पी से सुनता रहा।
दिल-जला [फा. दिल+हि.जलना] - (वि.) - शा.अर्थ दिल का जला हुआ। सा.अर्थ 1. जिसे बहुत ही मानसिक कष्ट पहुँचा हो; अतिदु:खी। उदा. दिलजला वह बेचारा क्या करे।
दिलासा - (पुं.) (.फा.) - 1. किसी विषम परिस्थिति के कारण दु:खी या परेशान इंसान को सांत्वना देना या ढाढ़स बँधाना। पर्या. ढाढ़स, तसल्ली, आश्वासन। उदा. हमें दु:खी व्यक्तियों को दिलासा देना चाहिए।
दिलेर - (वि.) (.फा.) - 1. जिसमें वीरता एवं साहसपूर्ण कार्य करने की क्षमता हो। पर्या. बहादुर, निडर, निर्भीक, साहसी। उदा. वह इतना दिलेर है कि उसने अकेले ही डाकुओं का सामना किया।
दिलेरी - (स्त्री.) - बहादुरी, निर्भयता, साहस, दानशीलता।
दिलोजान [दिल+ओ+जान] - (स्त्री.) (.फा.) - शा.अर्थ दिल और जान यानी मन और प्राण (काव्यात्मक शब्दावली)। उदा. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूँ।
दिवंगत - (वि.) (तत्.) - जो स्वर्ग चला गया हो यानी स्वर्गीय, मृत। उदा. शोकसभा में दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया।
दिवा - (पुं.) (तत्.) - दिन, दिवस। क्रि. वि. दिन में /दिन के समय। उदा. उनका यहाँ दिवा कार्यक्रम है। विलो. रात्रि।
दिवाकर - (पुं.) (तत्.) - अँधेरा मिटाकर दिन का उदय करने वाला अर्थात् सूरत। पर्या. सूर्य।
दिवाला - (पुं.) (देश.=जलाना) - किसी व्यक्ति या संस्था की वह दयनीय आर्थिक स्थती जिसके कारण वह यथा समय ऋण चुकाने की यानि देनदार की क्षमता खो चुका हो। मुहा. दिवाला निकलना = बहुत घाटा होना; किसी चीज़ या गुण का बिलकुल न रह जाना। जैसे: बुदिद्ध का दिवाला निकलना ।
दिवालिया [हि. दिवाला+इया-प्रत्य.] - (वि.) (देश.) - जिसका दिवाला निकल चुका हो; जिसके पास ऋण वापस करने के लिए कुछ भी न बचा हो।
दिव्य - (वि.) (तत्.) - 1. स्वर्ग या आकाश से संबंधित। यर्था. दिव्य लोक से आई हुई अप्सरा। 2. दैवी, अलौकिक। यर्था. दैवी गुण, दैवी शक्ति, दिव्य सौंदर्य।
दिव्य दृष्टि [दिव्य+दृष्टि] - (स्त्री.) (तत्.) - वह अलौकिक दृष्टि जिससे भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् कालिक सभी घटनाओं को देखा या जाना सके। पर्या. ज्ञान-दृष्टि। जैसे: संजय ने दिव्यदृष्टि के सहारे ही धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का सारा हाल सुनाया था।
दिव्यास्त्र [दिव्य+अस्त्र] - (पुं.) (तत्.) - देवताओं द्वारा प्रदत्त अस्त्र; दिव्य (मंत्र की) शक्ति से चलाया जाने वाला अस्त्र। उदा. महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन दिव्यास्त्रों की खोज में निकला।
दिशानिर्देश [दिशा+निर्देश] - (पुं.) (तत्.) - दिशा वाली कार्य करने की पद् धति बतलाने का भाव; कठिनाइयों में रास्ता दिखलाने का भाव। पर्या. मार्गदर्शन।
दिसि - (स्त्री.) (तद्.) - दिशा में या दिशाओं में (कविता में प्रयोग)। जैसे: चहुँ दिसि=चारों दिशाओं में। पूरब दिसि=पूर्व दिशा में।
दिहाड़ी - (स्त्री.) (देश.) - 1. दिन, दिवस। 2. दिनभर का कार्य। 3. दिनभर के कार्य की मज़दूरी।
दीक्षा - (स्त्री.) (तत्.) - किसी धार्मिक गुरू का शिष्य बनते समय या किसी संप्रदाय में दीक्षित होते समय कान में (गोपनीय ढंग से) फूँका जाने वाला मंत्र और उसकी शिक्षा; धर्म गुरू द्वारा मंत्र का उपदेश।
दीदा - (पुं.) (फा.) - देखने की इँद्रिय। 2. दृष्टि, नजर। 3. आँख, नेत्र। मुहा. 1. दीदा लगना=दिल लगना (किसी कर्म में)। 2. दीदा फाड़कर देखना=एकटक देखना। 3. दीदे मटकाना=हावभाव से आँखें मटकाना।
दीदी - (स्त्री.) (देश.) - 1. बड़ी बहन। 2. उम्र में थोड़ी बड़ी महिलाओं के लिए आदरपूर्ण संबोधन। उदा. मेरी दीदी का विवाहोत्सव आज संपन्न होगा। पुं. दादा (बड़ा भाई)।
दीन - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. गरीब, निर्धन; दु:खी, दुर्दशा को प्राप्त, करूण; विनम्र, विनीत। उदा. देखि सुदामा की दीन दसा, करूणा करके करूणानिधि रोये। पर्या. अर. धर्म, मजहब, मत, संप्रदाय। मुहा. दीन दुनिया=परलोक और इहलोक।
दीन-ए-इलाही - (पुं.) (अर.) - [दीन (धर्म)+इलाही (ईश्वर)] ईश्वरीय धर्म, जो मुगल सम्राट अशोक द्वारा धार्मिक समन्वय के रूप में प्रवर्तित किया गया था और जो बाद में चल न सका।
दीनदयाल [दीन+गरीब+दयाल=दया करने वाला] - (वि.) (तत्.) - पुं. गरीबों पर दया करने वाला, दीनों का सहायक। जो दीनों (गरीबों) पर दया करता हो यानि ईश्वर, परमेश्वर।
दीन-दसा - (स्त्री.) (तद्.) - (दीन-दशा) 1. दीनतापूर्ण अर्थात् गरीबी की अवस्था या स्थिति, गरीबी की हालत; विपन्नावस्था, दारिद्रय, दरिद्रता; दुर्दशा।
दीन-दुनिया [अरबी-दीन+हि.दुनिया] - (स्त्री.) - 1. लोक और परलोक (वस्तुत: परलोक और लोक)। 2. धर्म और संसार। 3. संसार के सारे काम, चिंताएँ आदि। उदा. तुम दीन-दुनिया की बातें छोड़ अपनी बात करो। मुहा. दीन-दुनिया दोनों से जाना=लोक-परलोक दोनों बिगड़ना।
दीन-हीन - (वि.) (तत्.) - जो बहुत ही दयनीय दशा में हो; बहुत ही गरीब, दरिद्र।
दीपशिखा - (स्त्री.) (तत्.) - जलते हुए दीपक की ऊपर उठती हुई लौ। उदा. मेरी कामना है कि तुम सदा दीपशिखा सी दीप्तिमान रहो।
दीपावली [दीप+अवली=पंक्ति] - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ दीपकों की पंक्ति या माला। एक प्रमुख भारतीय पर्व जिसमें लोग कार्तिक मास की अमावस्या को सायंकाल घर में दीपकों को एक पंक्ति में रखकर जलाते हैं तथा रात को लक्ष्मी पूजन कर मिष्ठान वितरण करते हैं। पर्या. दीवाली, दीपमालिका, दीपोत्सव। उदा. दीपावली हर्षोल्लास का प्रिय पर्व है।
दीप्ति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. चमक, कांति, प्रकाश, उजाला। 2. शोभा।
दीमक - (स्त्री.) (फा.) - चींटी की तरह के सफेद कीड़ों का समूह जो दीवार, लकड़ी, कागज आदि को नुकसान पहुँचाता है।
दीर्घ - (वि.) (तत्.) - 1. बड़ा, विशाल। जैसे: दीर्घ वृत्त, दीर्घ जीवन। 2. लंबा, 3. विस्तृत, 4. गुरु, 5. ऊँचा, उच्च। 6. गहरा। जैसे: दीर्घ श्वास। मुहा. दीर्घ मात्रा-‘आ’, ‘ई’, उ आदि। विलो. ‘ह्रस्व’। टि. ‘अ’ ह्रस्व है तो ‘आ’ दीर्घ। ह्रस्व स्वर-‘अ’, ‘इ’, उ। दीर्घ स्वर-‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’।
दीर्घजीवी - (वि.) (तत्.) - लंबे समय तक जीवित रहने वाला। पर्या. चिरायु, चिरंजीवी। जैसे: दीर्घजीना भव (आशीर्वाद)
दीर्घवृत्ताकार [दीर्घ+वृत्त+आकार] - (वि.) (तत्.) - फैले वृत्त के आकार वाला, अंडाकृति वाला। उदा. पृथ्वी दीर्घवृत्ताकार मार्ग से सूर्य की परिक्रमा करती है।
दीर्घायु [दीर्घ+आयु (आयुस्] - (वि.) (तत्.) - 1. लंबी आयु पाने वाला जो बहुत दिनों तक जीवित रहे, चिरंजीवी। उदा. वत्स! तुम दीर्घायु हो।
दीवान - (पुं.) (.फा.) - 1. वह स्थान जहाँ बादशाह का दरबार लगता हो, राजसभा। जैसे: मुगल काल में, दीवान-आम-आम जनता के लिए लगने वाला दरबार। दीवान-ए-खास-खास लोगों के लिए लगने वाला दरबार। 2. राजा का मंत्री, वजीर। 3. एक प्रकार का तख्त जिसमें सामान रखने के साथ-साथ बैठा-लेटा भी जा सकता है। 4. (उर्दू के) कवि की कविताओं का संग्रह; स्वनाओं का संग्रह। जैसे: दीवाने गालिब।
दीवानगी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. वृद्धि की विक्षिप्तावस्था, पागलपन, दीवानापन, उन्मत्ता। 2. किसी कार्य या विचार में अत्यधिक तन्यमता की स्थिति। जैसे: उसकी व्यापार के प्रति दीवानगी देखने लायक है।
दीवाना - (पुं.) (.फा. दीवान:) - 1. किसी कार्य के प्रति अत्यधिक आतुरता वाला व्यक्ति। जैसे: देशभक्ति के दीवाने। 2. पागल। 3. प्रेमी, आशिक।
दीवानी - (स्त्री.) - मीरा श्रीकृष्ण की दीवानी थी।
दीवानी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. वह न्यायालय जिसमें रुपए-पैसे के लेन-देन तथा संपत्ति के मुकद् मों की सुनवाई हो। जैसे: दीवानी अदालत (सिविल कोर्ट) तु. फौजदारी अदालत criminal court 2. दीवान का पद। वि. प्रेम में पागल। जैसे: प्रेमदीवानी मीरा।
दीवाली - (स्त्री.) (तद्. (दीपावली) - व्यु.अर्थ दीपों की पंक्ति। प्रचलित अर्थ-कार्तिक मास की अमावस्या को पड़ने वाला त्योहार जिसमें दीए जलाए जाते हैं, पटाखे, लक्ष्मी-पूजन किया जाता है आदि-आदि। टि. इसी दिन व्यापारी बही खाते का पूजन करके उसकी शुरुआत करते हैं।
दीशांत समारोह - (पुं.) (तत्.) - 1. विश्वविद्यालयों में आयोजित वह समारोह जिसमें सफल परीक्षार्थियों (स्नातक, स्नातकोत्तर, एमफिल, पीएचडी, डीफिल आदि) को कुलपति/उपकुलपति द्वारा उपाधि, प्रमाण पत्र प्रदान किए जाते हैं।
दुआ - (स्त्री.) (अर.) - ईश्वर से किसी अच्छे काम के लिए की गई याचना कोई चीज माँगना। उदा. आपकी दुआ से मैं इंजीनियर बन गया।
दुआ-सलाम - (पुं.) (अर.) - लोगों के मिलने पर परस्पर एक-दूसरे के प्रति ईश्वर से शुभकामना या प्रार्थना करते हुए प्रणाम या बंदगी करना। उदा. उन्होंने दुआ-सलाम के पश्चात् अपनी कार्ययोजना पर बात की।
दुकेला - (वि.) (देश.) - जिसके साथ कोई और हो यानि दो। ‘अकेला’ के अनुकरण पर बना शब्द प्रयोग। उदा. उस रास्ते से अकेले-दुकेले नहीं जाना चाहिए।
दु:ख/दुख - (पुं.) (तत्.) - व्यु-अर्थ दु:=बुरा+ख, आकाश/वातावरण=बुरा यानी न भाने वाला परिवेश/वातावरण। शरीर और इंद्रियों की प्रतिकूलता की स्थिति में न में होने वाली हलचल; मन को न सुहाने वाली प्रतिकूल परिस्थिति। विलो. सुख। तद्. (दु:ख) 1. मन का वह भाव जो अत्यंत अप्रिय व कष्टदायक घटना के अनुभव से उत्पन्न होता है। 2. संकट, आपत्ति। 3. पीड़ा, दर्द, खेद, रंज। मुहा. दुख बाँटना=दूसरें के दुख में सहभागी होना। विलो. सुख।
दुखद/दु:खद [दुख/दु:ख+द=देने वाला] - (वि.) (तत्.) - दुख देने वाला, जिससे दुख या कष्ट मिले। पर्या. दु:खदायी।
दुखदायी/दुखदायक/दुखकर - (वि.) (तत्.) - दे. दुखद/दु:खद।
दुखना अ.क्रि. नामधातु - (तत्.) - शरीर के किसी अंग में दर्द होना या पीड़ा होना। जैसे: उनका सिर दुख रहा है। लाक्ष. दु:ख होना। जैसे: उसके विश्वासघात से मेरा मन दुख रहा है।
दु:खड़ा - (पुं.) (देश.) [दु:ख+ड़ा] - 1. किसी के आपबीती अथवा दु:ख या कष्ट का वर्णन। 2. दु:खभरी कहानी। जैसे: उसका दु:खड़ा सुनकर हमने उसे सांत्वना दी।
दु:खद/दुखद - (वि.) (दे.) - दु:ख देने वाला। पर्या. दु:खदायी, दे. दु:ख।
दु:सह - (वि.) (तत्.) - जिसे सहना बहुत कठिन हो, जो सहनशक्ति के बाहर हो। पर्या. असह्य।
दुग्ध - (पुं.) (तत्.) - 1. दूध (किसी पशु का) 2. वनस्पतियों से निकलने वाला दूधनुमा तरल/गाढ़ा पदार्थ।
दुतकारना स.क्रि. - (देश.) - 1. ‘दुत’, ‘दुत’ कहते हुए किसी को घृणा पूर्वक या उपेक्षा, तिरस्कार आदि के भाव से अपने पास से दूर हटाना, भगाना। पर्या. तिरस्कार करना, अपमानित करना। उदा. उसने भीख माँगने वाले को दुतकारते हुए भगा दिया।
दुतरफा - (वि.) (.फा. दुतर्फ) - जो दोनों तरफ हो, दोनों तरफ का। वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों की ओर का/से। 2. जो दोनों दिशाओं में स्थित हो। जैसे: 1. इस विवाद का दुतरफा समाधान हो गया। 2. इस गाँव के दुतरफा जलाशय है।
दुधमुँहा/दूधमुँहा [दूध+मुँह] - (वि.) - शा.अर्थ दूध के मुँह वाला यानी जो अभी तक (माँ का) दूध पीता हो। जिसके दूध के दाँत (जन्म वाले) न टूटे हों; जो माता के दूध पर निर्भर रहता हो; बहुत छोटा बच्चा शिशु।
दुधार - (वि.) (तद्.<दोग्धृ/दुग्धवती) - दे. दुधार। 2. द्विधार दो धार वाला (स्त्री दुधारी) जैसे: दुधारी तलवार।
द् विधार दो धार वाला - (स्त्री.) - दुधारी) जैसे : दुधारी तलवार।
दुधारु - (वि.) (स्त्री.) - 1. दूध देने वाली। 2. जो (गाय, भैंस आदि) अधिक दूध देती हो। उदा. उनकी गाय बहुत दुधारु है।
दुनियाँ/दुनिया - (स्त्री.) - (अनु.) पर्या. हमारी पृथ्वी और उस पर पाया जाने वाला समस्त प्राणी जगत् संसार, आलम; मृत्यलोक।
दुनिया - (स्त्री.) (.अर.) - 1. पृथ्वी पर बसने वाले सारे प्राणी विशेषकर मानव जाति। 2. सभी देशों के लिए प्रयुक्त सामूहिक नाम। पर्या. संसार। सा. अर्थ संसार में रहने वाले, सभी लोग। उदा. क्या करें! अब सारी दुनिया ही बदल गई है। कोई किसी का नहीं।
दुनियादार - (वि.) (अर.+फा.) - 1. सांसारिक प्रपंच मे फँसा हुआ व्यक्ति। 2. व्यवहार कुशल
दुनियादारी - (स्त्री.) (.फा.) - 1. सांसरिक प्रपंच में लिप्त होने की अवस्था/स्थिति; गृहस्थी का जंजाल। 2. अपना काम निकालने में व्यवहार कुशलता। उदा. 1. कई लोग वृदधावस्था में दुनियादारी छोडक़र ईश्वर का भजन करने में ही अपना समय बिताने लगते हैं। 2. जो व्यक्ति दुनियादारी में बहुत कुशल होता है, उसकी सफलता सुनिश्चित है।
दुपट्टा - (पुं.) (तद्.<द् विपट्टा)) - बिना सिला हुआ वस्त्र जो महिलाओं द्वारा सिर पर ओढ़ा जाता है या दो या अधिक तह करके कंधों पर आगे से पीठ की ओर डाला जाता है। तु. अंगवस्त्र।
दुबकना/दबकना अ.क्रि. - (देश.) - भय, संकोच या लज्जा के कारण अंग सिकोड़ कर छिप जाना ताकि ढूँढ़ने वाले को सुविधापूर्वक दिखाई न पड़े। उदा. कुत्ते को देखते ही बिल्ली दुबक गई; माँ के हाथ में डंडा देखकर बच्चा खंभे के पीछे दुबक गया।
दुभाषिया - (पुं.) (तद्.<द्विभाषिन) - शा.अर्थ दो भाषाओं का जानकर व्यक्ति; दो भाषाएँ बोलने वाला व्यक्ति। 2. दो अलग-अलग भाषा-भाषी के बीच मध्यस्थ का काम करने वाला वह व्यक्ति जो एक-दूसरे का भाषा का मौखिक अनुवाद कर सके। inter preter
दुम - (स्त्री.) - (फ़ा) 1. पशु-पक्षियों का पीछे की ओर निकला लंबा सिरा। पर्या. पूँछ, पुच्छ। मुहा. दुम दबाना-डर जाना, दुम हिलाना-खुशामद करना। लोको. कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी=अपना स्वभाव न छोड़ने वाला; कभी न सुधरने वाला। 2. ला.अर्थ दुम की तरह पीछे लगा रहने वाला, पिछलग्गू। उदा. वह साहब की दुम बना फिरता है। कहा. हाथी निकल गया, दुम रह गई=थोड़ा ही काम शेष बचा है।
दुमट मृदा/दोमट मृदा - (स्त्री.) ([देश.+ तत्.]) - 1. दो प्रकार की मिट् टियों से मिश्रित मिट् टी। 2. कृषि. चिकनापन लिए ऐसी मिट् टी जिसमें मृत्तिका गाद तथा बालू का मिश्रण क्रमश: बढ़ता गया हो। (लोम सॉयल) टि. चिकनेपन और उपयुक्त मिश्रण के कारण ऐसी मिट्टी खेती के लिए अधिक उर्वर होती है।
दुरभिसंधि [दुर्+अभि+संधि] - (स्त्री.) (तत्.) - बुरे उद्देश्य को लेकर दो या अधिक व्यक्तियों के बीच हुआ गुप्त करार या समझौता। पर्या. दुस्संधि।
दुरवस्था (दुर्=बुरी+अवस्था) - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ बुरा हाल। सा.अर्थ किन्हीं कारणों से व्यक्ति, गृह, परिवार, संस्था आदि की होने वाली बुरी हालत, दुर्दशा; दु:ख, कष्ट आदि की असहनीय स्थिति, दशा। उदा. 1. उनकी पारिवारिक दुरवस्था देख मन खिन्न हो जाता है। 2. इस संस्था की आर्थिक दुरवस्था देखी नही जाती।
दुराग्रह [दुर्+आग्रह] - (पुं.) (तत्.) - किसी की गई (अनुचित) बात को पूरी करने-कराने के लिए बार-बार हठ/जिद। उदा. काम में सुधार किए बिना तुम अधिक पारिश्रमिक पाने का दुराग्रह क्यों कर रहे हो?
दुराग्रही - (वि.) (दे.) - दुराग्रह करने वाला, जिद्दी। दे. दुराग्रह।
दुराचरण [दुर्+आचरण] - (पुं.) (तत्.) - 1. ऐसा आचारण जो मर्यादित एवं अशिष्ट हो; निदंनीय आचरण; अनैतिक बुरा चाल-चलन। उदा. दुराचरण से संसार में कोई भी प्रतिष्ठित नहीं होता। विलो. सदाचरण।
दुरात्मा [दुर्+आत्मा] - (वि.) (तत्.) - दुष्ट आत्मा वाला जिसकी आत्मा अशुद् ध न हो यानी नीच प्रकृति का।
दुराव - (पुं.) (देश.) - 1. दूर रहने या रखने का भाव। उदा. हमसे कैसा दुराव? यहाँ बैठो। 2. किसी से कोई बात छिपाने का भाव (दुराव-छिपाव)।
दुरुपयोग [दुर्+उपयोग] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बुरा उपयोग। सा.अर्थ किसी वस्तु व्यक्ति या संगठन आदि का अनुचित ढंग से किया जाने वाला उपयोग। उदा. आप अपने धन का दुरुपयोग कर स्वयं को नष्ट कर रहे हो। विलो. सदुपयोग।
दुरुस्त - (वि.) (.फा.) - 1. ठीक स्थिति में जिसमें कोई खराबी न हो। जैसे: तंदुरुस्त (तन+दुरुस्त)। उदा. 1. साइकिल खराब पड़ी है। इसे दुरुस्त करवा लो। 2. उचित आपने जो कहा दुरुस्त कहा।
दुर्गंध [दुर्+गंध] - (स्त्री.) (तत्.) - बुरी गंध, बदबू। विलो. सुगंध।
दुर्ग - (पुं.) (तत्.) - किसी पहाड़ या पहाड़ी अथवा अन्य सुरक्षित स्थान पर बनवाया गया विशाल और मजबूत आवासीय स्थल जिसमें राजा व उसके सैनिक आदि रहते थे। पर्या. गढ़, कोट, किला। उदा. भारत में अनेक ऐतिहासिक दुर्ग हैं।
दुर्गति [दुर्+गति] - (स्त्री.) (तत्.) - बुरी गति, बरा हाल, दुर्दशा। उदा. उसकी दुर्गति मुझसे देखी नही जाती। विलो. सद्गति।
दुर्गम [दुर्+गम] - (वि.) (तत्.) - 1. जहाँ जाना या पहुँचना कठिन हो। 2. जिसे समझना कठिन हो। पर्या. दुर्बोध। जैसे: नैषधीय चरित एक दुर्गम काव्य है। विलो. सुगम।
दुर्बोध [दुर्+बोध] - (वि.) - ऐसी बात या तथ्य जो जल्दी समझ में न आए। 2. गूढ़ उदा. प्रकृति का रहस्य दुर्गेधा है। विलो. सुबोध।
दुर्घटना [दु:+घटना] - (स्त्री.) (तत्.) - ऐसी कोई अकस्मात घटी घटना जिसमें दु:ख या शोक उत्पन्न हो; अशुभ घटना। पर्या. वारदात accident
दुर्घटनाग्रस्त - (वि.) (तत्.) - दुर्घटना में फँसा हुआ! घायल। (क्षेत्र, वाहन आदि)। जैसे: कल एक विमान दुर्घटनाग्रस्त होकर बस्ती के बीचोंबीच गिर पड़ा।
दुर्जेय [दुर्+जेय] - (वि.) (तत्.) - जिसको जीतना कठिन हो; जो कठिनाई से जीता जा सके।
दुर्दशा [दुर्+दशा] - (स्त्री.) (तत्.) - बुरी परिस्थिति, ऐसी दशा जो सुखद न हो। उदा. दुर्घटनाग्रस्त रेलयात्रियों की दुर्दशा मुझसे देखी नहीं जा जाती।
दुर्दिन [दुर्+दिन] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ बुरा/दिन, दु:ख और कष्ट के दिन। ऐसा दिन जिसमें घने काले बादलों से व्याप्त आकाश हो, तथा तेज मूसलाधार वर्षा हो रही हो, जिससे उस स्थान से बाहर निकलना संभव न हो। अच्छे समय में दुर्दिन की बातें कभी नहीं भूलनी चाहिए।
दुर्बल [दु:+बल] - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. जिसमें बल या शक्ति कम हो। पर्या. कमजोर, बलहीन। 2. पतले और कृश शरीर वाला। पर्या. क्षीणकाय विलो. सबल, ताकवर; बलिष्ठ।
दुर्बलता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. कमजोरी, बलहीनता, कृशता का सूचक भाव। 2. चारित्रिक दोष। ला. अर्थ जिसे छोड़ पाना कठिन हो। जैसे: चाय शर्मा जी की दुर्बलता है।
दुर्भाग्य [दुर्+भाज्य] - (पुं.) (तत्.) - 1. भाग्यवशात् होने वाली अशुभ या बुरी घटनाएँ। 2. बुरा भाग्य, खोटी किस्मत। पर्या. मंदभाग्य, दुर्देव। उदा. एक के बाद दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं। उदा. लगता है दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा।
दुर्भाग्यवश क्रि. - (वि.) (तत्.) - दुर्भाग्य से, किस्मत खराब होने के कारण; ऐसा नहीं होना चाहिए था परंतु उदा. मैंने बहुत परिश्रम किया था। दुर्भाग्यवश मैं फेल हो गया।
दुर्लभ [दु:+लभ] - (वि.) (तत्.) - 1. जिसे आसानी से प्राप्त न किया जा सके। जैसे: आजकल आपके दर्शन दुर्लभ हो गए है। 2. जो कहीं-कहीं एवं कभी-कभी मिलता या प्राप्त होता है। उदा. प्लेटिनम बहुत दुर्लभ वस्तु है।
दुर्वचन [दुर्+वचन] - (पुं.) (तत्.) - सुनने में बुरा लगने वाला वचन कटु वचन। अपशब्द, गाली। जैसे: शिशुपाल के दुर्वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर अलग कर दिया। विलो. सदवचन, आर्शीवाद।
दुर्व्यवहार - (पुं.) (तत्.) - 1. बुरा लगने वाला व्यवहार, बुरा सलूक। 2. अनुचित आचरण, दुराचार। जैसे: उसका अपने साथी के साथ दुर्व्यवहार देखकर मन खिन्न हो गया। विलो. सद्व्यवहार।
दुलार - (पुं.) (देश.) - 1. छोटे बच्चों को प्रसन्न करने के लिए माँ का अन्य स्वजन के द् वारा की जाने वाली प्रेमपूर्ण चेष्टाएँ। 2. लाड़-प्यार। उदा. माँ अपने बच्चे को बड़े दुलार से पालती है।
दुल्हन - (स्त्री.) (तत्.) - अभी-अभी ब्याह कर आई या लाई गई स्त्री। पर्या. नववधु।
दुविधा - (स्त्री.) (तद्.दुविविधा) - सम्मुख आई दो बातों में से किसे चुना जाए या किस पर मन स्थिर किया जाए। यह निश्चित कर पाने की स्थिति या भाव। पर्या. अनिश्चय, संशय असमंजस dilema uncertainity, fix
दुविधाग्रस्त विं. - (तत्.) (दे.) - दुविधा में फँसा हुआ। दे. दुविधा।
दुश्चरित्र [दुस दु: + चरित्र] - (वि.) - जिसका चरित्र अच्छा न हो (बुरे आचरण/बुरे चाल-चलन वाला/बदचलन वि. सच्चरित्र उदा. दुश्चरित्र व्यक्ति की संगति से दूर रहें।
दुश्मन - (पुं.) (.फा.) - 1. वह व्यक्ति जो आपके प्रति शत्रुता की भावना पाले रखता है ओर अवसर पाते ही चोट करता है। 2. वह व्यक्ति या देश जो आपसे लड़ रहा हो। पर्या. शत्रु-वैरी विलो. दोस्त।
दुश्मनी - (स्त्री.) - (< दुश्मन) 1. दुश्मन होने या बने रहने की स्थिति। पर्या. शत्रुता, वैर। विलो. दोस्ती।
दुष्कर [दु:+कर] - (वि.) (तत्.) - जिसे पूरा करना कठिन हो। विलो. सुकर।
दुष्कर्म - (पुं.) (तत्.) - [दुस् + कर्म] 1. वह कर्म जो अनैतिक व अनुचित हो; 2. बुरा काम, पापकर्म। उदा. निर्बल को सताना, चोरी व्यभिचार, विश्वासघात आदि दुष्कर्म हैं। वि. सुकर्म।
दुष्चक्र [दु: + चक्र] - (पुं.) (तत्.) - ऐसी विषम स्थिति जिसमें कारण और कार्य परस्पर अपनी भूमिका बदलते रहते हैं और यह क्रम चलता ही रहता है। जैसे : दुर्बलता और बीमारी का दुष्चक्र। दुर्बलता बीमारी को जन्म देती है और बीमारी मनुष्य को दुर्बल बना देती है। vicious circle
दुष्परिणाम [दुस/दु: + परिणाम] - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ 1. किसी गलत आदत या अनुचित लोभादि प्रवृत्ति के कारण बाद में जिसका प्रतिफल खराब परिणाम के रूप में प्राप्त हो। 1. शा.अर्थ बुरा परिणाम, बुरा फल उदा. उसे नौकरी से हटाया गया उसको रिश्वत लेने का ही दुष्परिणाम था।
दुस्साहस/दु:साहस - (पुं.) (तत्:) - 1. असंभव काम करने के लिए किया गया साहस। 2. ऐसा साहस जिसका फल कुछ न निकलता हो; अनुचित साहस वि. दुस्साहसी/दु:साहसी दुस्साहस करने वाला। दे. दुस्साहस।
दुहना स.क्रि. - (तद्. दोहन) - व्यु.अर्थ दूध निकालना। सा.अर्थ आवश्यकता से अधिक दूध निकालना यानी अधिक धन वसूलना अथवा अनुचित लाभ उठाना। पर्या. लाभ उठाना।
दुहराना/दोहराना स.क्रि. - (तत्.) - अर्थ-किसी काम को बार-बार कहना। पर्या. पुनरावृत्ति करना।
दुहाई I. - (स्त्री.) (तद्< द् वि + आह् वान) - 1. चिल्ला-चिल्लाकर दी जाने वाली सूचना। पर्या. मुनादी, घोषणा। 2. अपनी रक्षा या सहायता के लिए सामर्थ्यवान से करुण स्वर में की गई करुण पुकार। पर्या. गुहार शपथ, कसम, सौंगध मुहा. दुहाई देना = किसी की कसम खाकर शरण माँगना। ‘दुहाई हो’ = मुझे शरण मिले। 2. [दुह् + आई] स्त्री. (दुहना) 1. गाय-भैस आदि के दुहने की क्रिया। 2. दुहने की मजदूरी।
दूजा विं. - (तद्.< द्वितीय) - 1. क्रम संख्या के अनुसार पहले के बाद वाला, दूसरा। 2. उल्लिख्ति से भिन्न, उदा. कारी कामरी चढ़ै न दूजौ रंग। मुहा. एक दूजे के लिए = पहला दूसरे के लिए और दूसरा पहले के लिए।
दूध - (पुं.) ([तद्.+ दुग्ध]) - 1. सफेद रंग का तरल पदार्थ जो मताएँ (मादा पशु और स्त्रीयाँ दोनों) अपने शिशुओ को पोषण हेतु पिलाती है। पर्या. स्नत्य।2. पेड़ो से रिसने। पर्या. 3. सफ़ेदी के लिए प्रसिद्ध उपमान ।
दूधिया - - जैसे: दूध जैसी चादर = सफ़ेद चादर। मुहा. दूध का दूध पानी का पानी होना =
दूधिया - (वि.) - [दूध + इया-प्रत्य.] 1. दूध के रंग का सफ़ेद। 2. दूध बेचने वाला ग्वाला।
दूभर - (वि.) (तद्.<दुर्भर) - सामान्य सुखदायी जीवन को दु:खदायी बना देने की स्थिति। पर्या. कठिन, दुष्कर; असह्य; भारी, बोझिल उदा. आजकल की महँगाई ने हमारा जीवन दुभर कर दिया है।
दूर क्रि. - (क्रि.वि.) (तत्.) - स्थान, काल, संबंध इत्यादि की दृष्टि से बहुत अंतर पर विलो. पास, निकट मुहा. दूर करना = अपने पास से हटाना, दूर रहना/भागना = बचना, दूर की बात = समझदारी वाली बात, दूर की कौड़ी = प्राय: दुर्लभ लगने वाली बात, दूर-दूर = बहुत दूर।
दूरदराज [दूर + दराज़ = लंबा, विस्तृत] - (वि.) - 1. बहुत दूर का दूर वाला। 2. जो क्षेत्र यातायात की दृष्टि से सहज सुलभ न हों। उदा. सरकार दूरदराज़ के क्षेत्रों में भी नल और विदुयत की सुविधाएं देने की कोशिश कर रही है। विलो. नज़दीक।
दूरदर्शक यंत्र - (पुं.) (तत्.) - खगो. एक प्रकाशिक उपकरण जिससे दूर स्थित वस्तु नज़दीक तथा बड़े आकार में दिखाई देती है। Telescope दूरदर्शी
दूरबीन - (स्त्री.) (.फा.) - उपकरण जिसमें लगे दो आवर्धक लैन्सों की सहायता से दूर की वस्तु भी नज़दीक और स्पष्ट दिखाई देती है। binocular, telescipe
दूरमुद्रक - (पुं.) (तत्.) - उपकरण जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक टंकित सूचना तीव्र गति से भेजने के काम आता है। teleprinter
दूरसंचार - (पुं.) (तत्.) - इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता से दूरस्थ स्थानों के बीच संकेतों और संदेशों का आदान-प्रदान करने की प्रौद्योगिकी। जैसे: टेलीफोन, रेडियो, दूरदर्शन आदि। telcommunication
दूषण - (पुं.) - 1. गंदा करने, बिगाड़ने, दूषित करने आदि की क्रिया का भाव। 2. पर्या. दोष, अवगुण, ऐब, दुर्गुण, बुराई। उदा. प्रदूषण से हमें बचना चाहिए। विलो. भूषण
दूषित - (वि.) (तत्.) - दोषयुक्त, जिसमें दोष हो; बुरा, खराब। उदा. जहाँ तक संभव हो दूषित वातावरण से बचें।
दूषित - (वि.) - 1. गंदा किया हुआ, बिगड़ा हुआ; मिलावट किया हुआ। जैसे: दूषित जल; दूषित चरित्र
दूहो - (पुं. बहु.) (< दोहा) - राजस्थानी और गुजराती भाषाओं में ‘दोहा’ का पर्याय। जैसे: ढोला मारू का दूहा। दे. दोहा
दृढ़ - (वि.) (तत्.) - 1. जो विचलित न हो, जो डिगे नहीं। जैसे: दृढ़ स्नेह, दृढ़ निश्चय। 2. जो अच्छी तरह बँधा या नित्य हुआ। जैसे : दृढ़ प्रतिज्ञा, दृढ़ प्रमाण।
दृढ़व्रती - (पुं.) (तत्.) - दृढ़ निश्चय या संकल्प वाला। 1. किसी काम को करने, न करने के बारे में मन में ठान लिया गया पक्का विचार। उदा. मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया है कि सूर्योदय से पहले उठा करूँगा।
दृश्य - (वि.) (तत्.) - अर्थ दिखने योग्य। सा.अर्थ देखने योग्य, दर्शनीय। जो मानव आँखों से देखा जा सके। जैसे: दृश्य काव्य, दृश्य-श्रव्य साधन। 1. वह = घटना या वस्तु जो दिखलाई पड़ती है। (व्यू) 2. कोई भी देखने योग्य प्राकृतिक नज़ारा सीनरी। 3. नाटक का एक उपभाग जो मंच पर हो रहे अभिनय के एक ही स्थान पर घटित होने का सूचक हो। scene
दृष्टांत - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी कथन, तथ्य नियम, कानून आदि को समझने/ स्पष्ट करने/पुष्टि करने आदि के लिए दिया गया उदाहरण। 2. एक सादृश्यमूलक अर्थालंकार। जैसे: स्वामी विवेकानन्द के रोचक शिक्षाप्रद दृष्टान्त है।
दृष्टि - (स्त्री.) (तत्.) - 1. वह शक्ति देखने की शक्ति जिससे मनुष्य या अन्य प्राणी देखते हैं। sight 2. आँख की सीध में किसी वस्तु की स्थिति, नज़र, विवाह। 3. विचार की पद् धति जैसे: गाँधीजी की दृष्टि में अंहिसा सबसे बड़ा शस्त्र है। 4. उद् देश्य/अभिप्राय जैसे: आशाभरी दृष्टि, दृष्टिपात। उदा. कृपादृष्टि, आशाभरी दृष्टि, दृष्टिपात।
दृष्टिकोण - (पुं.) (तत्.) - 1. देखने या विचार करने का पहलू (ऐंगल आफ विजन) उदा. इस बात का विचार भारत के दृष्टिकोण से भी करें। 2. एक विशिष्ट विचार से स्थापित मत view point उदा. मेरे दृष्टिकोण से की नियुक्ति बिल्कुल अनुचित है।
दृष्टिपटल - (पुं.) (तत्.) - अक्षिगोलक (आँख के गोले का पिछला परदानुमा भाग जिस पर देखी जाने वाली आकृति का प्रतिबिंब बनता है। ratina
दृष्टिभ्रम - (पुं.) (तत्.) - देखने वाले की आँख में भ्रम उत्पन्न कर देने वाला दृश्य। जैसे: मृगतृष्णा optical illusion पससनेपवद
दृष्टिहीन - (वि.) (तत्.) - दोनों आँखों को देखने की शक्ति चली गई हो। पर्या. अंधा।
देखभाल [देख + भाल] - (स्त्री.) - [<देखना + भालना] सौंपे गए काम के बारे में इस बात को रखा गया ध्यान कि वह ठीक तरह से हो, इसमें कोई खराबी न आए आदि-आदि। उदा. पति-पत्नी दोनों काम पर जाते हैं इसलिए उन्होंने बच्चें की देखभाल के लिए आया रख ली है। पर्या. देखरेख, निगरानी।
देखादेखी क्रि. - (क्रि.वि.) (देश.) - 1. एक दूसरे को देख-देखकर। 2. दूसरों को कुछ करते हुए देखकर स्वयं भी उसी का अनुकरण करते हुए कोई कार्य करना। जैसे: खाना-पीना, वेशभूषा, बोलचाल, व्यवहार, सेवाकार्य आदि। उदा. सबकी देखादेखी उसने भी अपना जन्मदिन वैसे ही मनाया। दे. दृश्य निश्चय। देवव्रत दृढ़व्रती थे तभी तो उन्होंने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा को आजीवन निर्वाह किया।
देन - (स्त्री.) - देने का कृत्य। जैसे: भगवान की देन, लेन-देन। किसी की दी हुई या किसी से प्राप्त वस्तु। उदा. आजादी महात्मा गांधी की देन है।
देनदार - (वि.) (पुं.) - [हि.+का प्रत्यय] वह व्यक्ति जिसके जिम्मे कुछ देय शेष हो। जो व्यक्ति का कर्जदार हो। पर्या. ऋणी, कर्ज़दार। उदा. वह आपके 500 रुपये का देनदार है।
देनदारी - (स्त्री.) - देनदार होने की अवस्था। पर्या. देयता।
देव - (पुं.) (तत्.) - अग्नि, वायु, वरुण एवं इन्द्र आदि देवताओं में से कोई भी। पर्या. देवता।
देवता - (पुं.) (तत्.) - स्वर्ग में रहने वाला अमर प्राणी। पर्या. सुर।
देवदूत - (पुं.) - ईश्वर का दूत है; ईश्वर का संदेश लेकर संसार में फैलाने वाला विशिष्ट दूत, पर्या. पैगम्बर प्रोफेट फरिश्ता।
देवर - (पुं.) - पति का छोटा भाई। उदा. लक्ष्मण सीता के देवर थे।
देवरानी - (स्त्री.) - देवर की स्त्री। उदा. उर्मिला सीता की देवरानी थी।
देवर्षि [देव+ऋषि] - (पुं.) (तत्.) - 1. ऋषियों में देवताओं के समान। 2. देवलोक में भी विचरण करने वाले ऋषि। जैसे: देवर्षि नारद।
देश - (पुं.) - एक शासन पद्धति के अधीन अनेक प्रांतों तथा नगरों वाला निश्चित भू-भाग। पर्या. 1. क्षेत्र, स्थान, जगह। 2. राष्ट्र, मुल्क।
देशज [देश+ज पैदा हुआ] - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ देश में पैदा हुआ। वो शब्द जो तत् सम, तद् भव अथवा विदेशी न होकर अपने स्थानीय परिवेश में पैदा हुआ तो; जिसकी व्युत्पत्ति अज्ञात हो। तु. तत् सम, तद् भव, विदेशी।
देशत्याग - (पुं.) (तत्.) - अपने देश को छोड़ देना।
देशद्रोह - (पुं.) (तत्.) - अपने देश के प्रति अपरिहार्य निष्ठा न रखते हुए शत्रु पक्ष से मिलकर राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचाने का अपराध।
देशद्रोही - (वि./पु.) (तत्.) - देशद्रोह का अपराधी; अपने देश के प्रति अपरिहार्य निष्ठा न रखते हुए शत्रुपक्ष से मिलकर राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचाने में सक्रिय अपराधी (व्यक्ति)
देशभक्त - (वि.) (पुं.) - अपने देश के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखने वाला (व्यक्ति)।
देशभक्ति - (स्त्री.) (तत्.) - अपने देश के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना। patriatism
देशी/देसी विं. - (तद्< देशीय) - 1. स्थनीय (लोकल) जैसे: देशी घी। 2. अपने देश का, स्वेदशी नेशनल
देह - (स्त्री.) (तत्.) - मनुष्य या पशु की बाह् य भौतिक संरचना। पर्या. शरीर, तन, बदन।
देहांत [देह+अंत] - (पुं.) (तत्.) - पांच भैतिक शरीर का अंत; जीवन का अंत यानी मृत्यु। पर्या. देहावसान।
देहात - (पुं.) (तत्.) - (देह = गावं का बहुवचन) खेतिहरों की छोटी-छोटी बस्तियों वाला क्षेत्र; ग्रामीण क्षेत्र।
देहाती - (वि.) (.फा.) - 1. गाँव से संबंध रखने वाला; गाँव का। पुं. गाँव में रहने वाला व्यक्ति, ग्रामीण, ग्रामवासी।
देहात्मवाद [देह + आत्म + वाद] - (पुं.) (तत्.) - जीवन दर्शन का वह सिद्धांत जिसमें देह या शरीर कोटी आत्मा माना जाता है। इसमें भौतिक बातों की ही प्रधानता होती है, आध्यात्मिक मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं होता। जैसे: चार्वाक सिद्धांत।
देहावसान [देह + अवसान = समाप्ति] - (पुं.) - देह (शरीर) की समाप्ति; पांच भौतिक शरीर का अंत यानी मृत्यु। पर्या. देहांत।
दैत्य - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ दिति की संतान (यानी कश्यप ऋषि और दिति के पुत्र जो पुराणों के अनुसार लंबे-चौड़े आकार वाले और बहुत ही शक्तिशाली थे। उदा. दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे।
दैनंदिन - (वि.) (तत्.) - प्रतिदिन होने वाला, नित्य का। उदा. अपने दैनंदिन कार्यों का संक्षेप में परिचय दीजिए।
दैनंदिनी - (स्त्री.) (तत्.) - वर्ष, तिथि, दिन, वार आदि से युक्त वह छोटी पुस्तिका जिसमें प्रतिदिन के कार्यों, घटनाओं तथा विचारों आदि का ब्यौरा लिखा जाता है। पर्या. दैनिकी। डायरी; रोजनामचा। उदा. कई लोग नियमित रूप से दैनंदिनी लिखते हैं और कई नहीं लिखते।
दैनिक [दिन + इक] - (वि.) (तत्.) - 1. दिन संबंधी। 2. प्रतिदिन होने वाला या किया जाने वाला, दिनभर का। उदा. अपने दैनिक जीवन का संक्षिप्त विवरण लिखिए। 3. प्रतिदिन प्रकाशित होने वाला। जैसे: दैनिक समाचार-पत्र/अखबार।
दैनिकी - (स्त्री.) (तत्.) - प्रतिदिन के कार्यों का लेखा जोखा रखने वाली पुस्तिका, डायरी; पर्या. दैनंदिनी।
दैन्य - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दीनता का भाव, दीनता। 1. निर्धनता, गरीबी उदा. सुदामा की दैन्य स्थिति देखकर कृष्ण विचलित हो गए। 2. नम्रता उदा. ‘सेवक ने दैन्यभाव से स्वामी से कहा’।
दैविक [देव + इक] - (वि.) (तत्.) - 1. देवताओं से संबंधित। 2. प्राकृतिक कारणों से संबंधित। जैसे: आँधी, बाढ़, भूंकप आदि। 3. दैव (भाग्य) से संबंधित।
दैवी [दैव+ई] - - 1. देवता-संबंधी। 2. (i) देवता-कृत; (ii) भाग्यवशात्। जैसे: दैवी आपदा।
दैहिक [देह + इक] - (वि.) (तत्.) - 1. देवता-संबंधी। 2. (i) देवता-कृत; (ii) भाग्यवशात्। जैसे: दैवी आपदा।
दो-आब - (पुं.) (तत्.) - भूमि का वह भाग जो दो नदियों के बीच में फैला हो, अर्थात् दोनों नदियों के पानी में सींचा जाता हो। उदा. गंगा-यमुना के बीच का भू-भाग दो-आब के नाम से प्रसिद्ध है।
दोना - (पुं.) ([तद्.< द्रोण.] ) - ढाक महुए आदि वृक्षों के पक्षों को सीकों से जोड़कर बनाया गया कटोरे जैसा पात्र। उदा. जन्माष्टमी के अवसर पर दोनों में भर-भर कर प्रसाद वितरित किया गया।
दोपहर - (पुं.) (तत्.< दवि्-पहर) - प्रात: काल से दो पहर (अर्थात् तीन-तीन घंटों के दो पहर) यानी छह घंटों की अवधि। बीत जाने के आसपास का समय; सूरज के आकाश के मध्य में यानि सिर पर पहुँचने का समय (12 बजे) पर्या. दुपहर, मध्याह्न।
दोयम - (वि.) (.फा.) - 1. जो क्रम की दृष्टि से दूसरा हो। द्वितीय 2. जो महल की दृष्टि से द् वितीय श्रेणी का हो। जैसे: नगर में यह दोयम दर्जे का विद्यालय है।
दोलन - (पुं.) (तत्.) - झूलना या झुलाना। सा.अर्थ झूलते रहने की अवस्था का भाव, स्थिर न रहने का भाव। भौ. गति का आवर्ती परिवर्तन यानी एक स्थिति में आंरभ होकर पुन: उसी स्थिति में पहुँचने के बीच की समस्त स्थितियों का अनुक्रम।
दोष - (पुं.) (तत्.) - 1. खराबी उदा. मशीन में दोष आ गया है। fault, defact 2. कमी, अशुद् धि, त्रुटि उदा. तुम्हारे लेखन में कई व्याकरणिक दोष है। 3. अपराध, कसूर उदा. मेरा दोष यही है कि मैंने घटना देखी है। 4. लांछन, कलंक उदा. यह दोष मुझ पर क्यों लगाया गया? 5. शरीर के वात, पित्त, कफ में अपना दोष स्वीकार करता है guilt माने गए हैं।
दोषारोपण [दोष + आरोपण] - (पुं.) (तत्.) - दोष लगाना/मँढना; किसी के विषय में यह कहना कि उसने अमुक अपराध किया है।
दोषी1 - (वि.पुं.) (तत्.) - 1. जिसने कोई अनुचित कार्य किया हो। 2. जिस पर कोई दोषारोपण किया गया हो। जैसे: तुम अपना कार्य समय पर पूरा न करने के दोषी हो। विलो. निर्दोष
दोषी2 - (वि.) (तत्.) - अपराध का कसूर करने वाला, कसूरवार
दोस्ती - (स्त्री.) (.फा.) - दोस्त होने का भाव, मित्रता। उदा. तुम्हारे साथ दोस्ती से मेरे पिता जी अत्यंत प्रसन्न हैं। मुहा. दोस्ती गाँठना = किसी से मित्रतापूर्ण गहरे संबंध बनाना।
दोहन - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ गाय-भैंस आदि को दुहने (दूध निकालने) की क्रिया का भाव। सा.अर्थ 1. धरती के गर्भ से खनिज आदि निकालना। 2. उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग करना और उनसे लाभ उठाना। 3. (बुरे अर्थ में) अपने स्वार्थ सिद् धि के लिए किसी का अनुचित उपयोग करते हुए लाभ उठाना, शोषण करना।
दोहरा [हि. दो + हरा – प्रत्यय] - (वि.) (तत्.) - स्त्री. दोहरी) 1. दो परतों या तहों वाला। 2. जो दो-दो बार किया जाता हो। जैसे: दोहरी सिलाई। 3. दुगुना जैसे: दोहरा काम। 4. मोटा, स्थूल, जैसे: दोहरा शरीर।
दोहरा बोझ - (पुं.) - दो गुना वज़न, दो गुना भार। टि. यह शब्द प्राय: कामकाजी महिलाओं के लिए प्रयुक्त होता है। महिलाओं को एक साथ घर और बाहर (खेत, ऑफिस आदि) का काम करना पड़ता है। इस प्रकार उन्हें दोहरा बोझ उठाना पड़ता है।
दोहा - (पुं.) (तद्.< दोधक) - (संस्कृत का वार्षिक छंद) शा.अर्थ 1. दोहना अर्थात् दोष या ऐब निकालना। 2. (पाठक के चित्त का दोहन करने वाला। दो पंक्तियों में निबदध चार चरणों वाला मात्रिक छंद जिसके पहले और तीसरे चरण (दोनों विषम चरण) में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ (कुल 48 मात्राएँ) होती हैं एवं दूसरा और चौथा चरण तुकांत वाला होता है। उदा. करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान।। टि. दोहे के चारों चरणों को पलट कर लिखने से ‘सोरठा’ बन जाता है।
दौड़-धूप - (स्त्री.) ([देश.]) - शा.अर्थ दौड़ना और धूप खाना यानी धूप की परवाह न करते हुए दौड़ते रहना। अर्थ. सिद्धि के लिए लगातार भाग-दौड़ करते रहने का प्रयत्न (चाहे उसमें सफलता मिले या न मिले) पर्या. दौड़ भाग। उदा. मुझे अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश कराने के लिए बहुत दौड़ धूप करनी पड़ी।
दौड़ना अ.क्रि. - (तद्.<धोरण) - 1. तेजी से और कुछ उछलते हुए से (जिसें उत्साह का भाव अधिक हो) चलना। 2. उतावलेपन में इधर-उधर आना-जाना। जैसे: दौड़-भाग करना। 3. फैलना, व्याप्त होना। उदा. शरीर में बिजली।
दौर - (पुं.) - (अ.) 1. चक्कर, फेरा। जैसे: आतंकवाद विषय पर भारत और पाकिस्तान के बीच बैठक के कई दौर हो चुके हैं। 2. बारी-पारी। जैसे: अगले दौर में।
दौरा - (पुं.) - (अर्.) चक्कर, भ्रमण; गश्त। शिक्षा उपनिदेशक ने अपने इलाके के स्कूलों का दौरा किया। tour 2. समय-समय पर प्रकट होने वाला रोग का आक्रमण। पर्या. आवर्तन। उसे मिर्गी का दौरा पड़ता है। fit
दौर-दौरा - (पुं.) (.फा.) - 1 प्रचलित संदर्भ में किसी विशेष धारा का अत्यधिक प्रभाव का प्रभुत्व। जैसे: आजकल संगीत में पाश्चात्य संगीत का दौर-दौरा चल रहा है। 2. अधिक प्रचलन।
दौरान - (फा.) - (के दौरान) (किसी क्रिया के) चलते हुए ही, इस बीच। उदा. यात्रा के दौरान अपने कौन-कौन से स्थान देखे उनका संक्षेप में विवरण लिखिए।
दौलत - (स्त्री.) - 1. धन-सम्पत्ति, मूल्यवान वस्तु। जैसे: विद्या हमारी सबसे बड़ी दौलत है।
दौलतखाना - (पुं.) ([अर.फा.]) - 1. धन रखने का स्थान। ला.अर्थ. 2. किसी के निवास स्थान के लिए सम्मानसूचक शब्द। टि. पराए का ‘दौलतखाना’ और अपना ‘गरीबखाना’ कही शिष्ट प्रयोग है। उदा. आपका दौलतखाना देखकर मन खुश हुआ। कभी हमारे गरीबखाने पर भी पधारिए।
दौलतमंद - (वि.) - 1. धन सम्पन्नता से युक्त, धनी। पर्या. धनवान, अमीर, रईस। उदा. जब दौलतमंद लोग केवल अपने वैभव का प्रदर्शन करते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता। उन्हें चाहिए कि वे गरीबों की भी मदद करें।
द्युति - (स्त्री.) (तत्.) - आँखों को अच्छी लगने वाली प्रकाश की चमक। पर्या. चमक, दीप्ति, दमक, आभा, कांति, छवि, शोभा।
द्योतक - (वि.) - (तत.) 1. जो प्रकाश करने वाला हो प्रकाशक। चन्द्रमा रात्रि का द्योतक है। 2. व्यक्ति या प्रकट करने वाला-सूचक। जैसे: कार रखना धनी होने का द्योतक है।
द्रव - (वि.) - बहने वाला; रसा. ठोस और गैस के बीच की पदार्थ की अवस्था। टि. द्रव का अपना कोई निश्चित आकार नहीं होता। वह जिस पात्र में रखा जाता है, उसी का आकार ग्रहण कर लेता है किंतु उसके आयतन में अंतर नहीं आया। जैसे: जल, तेल, दूध आदि। liquid
द्रवचलित - (वि.) (तत्.) - द्रव से चालित यानी द्रव के दान से चलने वाला/वाली (मशीन, प्रेस, चौक आदि) hydrolic
द्रवित मैग्मा - ([तत्.+अं.]) - 1. पृथ्वी की पर्पटी के नीचे स्थित ज्वलनशील और तरल पदार्थ जो लावे के रूप में बाहर निकलता है। 2. ज्वालामुखी का बहता हुआ लावा।
द्रव्य - (पुं.) (तत्.) - 1. भौ. भौतिक विश्व का (न कि ‘या ‘आत्मा’ का) घटक पदार्थ। matter 2. धन-दौलत (का पर्याय)। money, wealth
द्रव्यमान - (पुं.) (तत्.) - 1. वस्तु के जड़त्व का भौतिक माप। 2. किसी वस्तु में द्रव्य की मात्रा जो उसके जड़त्व की समानुपाती होती है। मास
द्रष्टा - (पुं.) (तत्.) - 1. भौतिक विश्व का (न कि ‘मन’ या ‘आत्मा’ का) घटक पदार्थ matter। 2. धन दौलत (का पर्याय) मनी, वेल्थ
द्राक्षाकृषि - (स्त्री.) (तत्.) - वाणिज्यिक स्वर पर अंगूरों की खेती। दे. कृषि।
द्रुत विं. - (तत्.) - 1. तेज, शीघ्रगामी। जैसे: द्रुत गति विलो. मंद्। 2. संगीत में ताल के अनुसार लय का एक प्रकार।
द्रुपद - (पुं.) (तत्.) - महाभारत की एक पात्र द्रौपदी के पिता जो पांचाल नरेश थे।
द्रोणिका - (स्त्री.) (तत्.) - दो पहाड़ियों या दो ऊँची लहरों के बीच का गर्तनुमा संकरा स्थान। पर्या. द्रोणी (द्रैव)
द्रोणिका भ्रंश - (पुं.) (तत्.) - भूपृष्ठ का वह अंश जिसके दोनों तरफ भ्रंश हों और जो समीपवर्ती स्थलों के नीचे स्थित हो। दे. अंश।
द्रोह - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी अधिकारी, सत्ता, संस्था आदि के विरुद्ध किया जाने वाला हानिप्रद कर्ण या प्रतिहिंसात्मक आंदोलन/उपद्रव आदि। जैसे: राजद्रोह, राष्ट्रद्रोह। उदा. राष्ट्रद्रोह ऐसा अपराध जिसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है।
द्रौपदी - (स्त्री.) (तत्.) - द्रुपद की पुत्री, दुप्रद तनया।
द्वंद्व - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ दो का समूह, जोड़ा, युगल। 2. दो के बीच होने वाला युद्ध। 3. मन की वह अवस्था जब निर्णय लेना कठिन हो। जैसे: जाऊंगा नहीं जाऊँ, खाऊँगा नहीं खाऊँ-मन की इस स्थिति को द्वंदव कहते हैं। 4. समास का एक भेद जिसमें ‘और’ का लोप करके समाप्त किया जाता है। जैसे: भेड़-बकरी।
द्वारपाल - (पुं.) (तत्.) - द्वार का रक्षक; कोई अनधिकृत व्यक्ति प्रवेश न कर ले। इसका धयान रखने के लिए नियुक्त सिपाही, पहरेदार आदि।
द्वार - (पुं.) (तत्.) - 1. चारों ओर से घिरे हुए स्थान या मकान में अंदर जाने और बाहर निकलने का रास्ता। पर्या. दरवाज़ा।
द्वारा - (पु.) (तद्.<तत्.) - किसी भवन या कक्ष आदि में प्रवेश-निर्गम के लिए लगा द्वार या दरवाजा। जैसे: गुरुद्वारा, ठाकुर द्वारा आदि।
द्विज - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ दो बार जन्म लेने वाला, दुजन्मा। 1. हिंदुओं की प्राचीन चतुर्वर्णी व्यवस्था के अनुसार पहले वाले तीन वर्णों (ब्राह् मण, क्षत्रिय, वैश्य) में से कोई भी टि. पहला जन्म माता के गर्भ से और दूसराजन्य यज्ञोपवीत संस्कार के बाद माना जाता था। इसलिए इन्हें द्वि कह गया है। 2. सामान्यत: ब्राह्मण।
द्वितीयक - (वि.) (तत्.) - जिसका स्थान पहले वाले के पश्चात् हो; दूसरे स्थान का; जो एक के बाद होता हो। secondary जैसे : द्वितीयक साक्ष्य; द्वितीयक सैल। विलो. प्राथमिक
द्वित्व - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ दो होने का भाव,दोहरा पल। व्या. शब्दोच्चारण करते समय या लेखन में किसी व्यंजन का एक ही परिवेश में दो बार आना। जैसे: पक्का में ‘क्क’ चित्त में ‘त्त’, चुन्नी में ‘न्न’ आदि।
द्विभाषी - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. दो भाषाएँ जानने वाला और बोलने वाला। जैसे: मेरा मित्र द्विभाषी है। पर्या. दुभाषिया उदा. विदेश मंत्रियों की बात द् विभाषी के माध्यम से हो रही है। 2. दो भाषाओं से संबंधित। जैसे: द्विभाषी कोश (अंग्रेजी-हिंदी कोश)। 3. दो भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाली (व्यक्ति या समाज) bilingual
द्विशाख/द्विशाखा - (वि.) (तत्.) - दो शाखाओं वाला।
द्वीपय - (पुं.) (तत्.) - वह स्थलीय भाग जो चारों ओर से पानी से घिरा हो। जैसे: श्रीलंका, द् वीप। तुल. प्रायद्वीप, महाद्वीप।
द्वेष - (पु.) (तत्.) - 1. विरोध या वैर की वह मानसिक वृत्ति जिसमें किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने का अपमानित करने का भाव हो। 2. शत्रुता, घृणा। उदा. किसी की उन्नति देख उससे द् वेष करना अच्छा नहीं माना जाता।
ध - -
धंधा - (पुं.) (देश.) - 1. जीविका उपार्जन के लिए किया जाने वाला कार्य। (काम-धंधा, रोजगार, पेशा) 2. व्यवसाय या कारोबार (उद् योग-धंधा)
धँसना अ.कि. - (तद्.) - (i) अपने लिए जगह बनाते हुए अंदर घुसना। उदा. रेत में पैर धँसना। (ii) दबाव पड़ने पर नुकीला होने के कारण अंदर घुसना। उदा. काँटा धँसना। (iii) नींव के आस पास की जमीन पोली हो जाने के कारण किसी भवन का ज़मीन में घुसते जाना। उदा. हवेली धँसती जा रही है।
धँसान [धँस+आन] - (स्त्री.) (देश.) - 1. धँसने की क्रिया, भाव या ढंग। 2. वह जगह जिस पर कोई चीज धँसे। 3. ऊपर से नीचे की ओर जाने वाला मार्ग अर्थात ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर जाने का रास्ता। उदा. पथिक! सावधान, आगे धँसान है। पर्या. ढलान। विलो. चढ़ान।
धक - (स्त्री.) - (अनु.) भय, अप्रिय घटना आदि के कारण हृदय के सामान्य गति से अधिक तेजी से धडक़ने की स्पष्ट सुनाई पड़ने वाली ध्वनि। मुहा. 1. धक-धक करना=मित्र की आकस्मिक मृत्यु का समाचार सुन मेरा दिल धक-धक करने लगा। 2. धक से रह जाना=दिल के धडक़ने की ध्वनि का स्तब्ध-सा हो जाना। उदा. मित्र की दुर्घटना में मृत्यु का समाचार सुन मेरा दिल धक से रह गया।
धकधकी - (स्त्री.) - (अनुर.) हृदय के धकधक करने की क्रिया। उदा. मुझे धकधकी लगी है कि मेरा बेटा साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करेगा या नहीं।
धकापेल - (स्त्री.) - (<धक्का+पेलना) शा.अर्थ धक्का देकर आगे बढ़ाना, धकेलना।, भीड़ में आदमियों का एक-दूसरे को धकेलने की स्थिति, धक्कमधक्का। जैसे: श्रीनाथजी के दर्शन के लिए भक्तगणों में धकापेल मचती है।
धकियाना स.क्रि. - (देश.) (दे.) - दे. धकेलना।
धकेलना स.क्रि. - (देश.) - (धका-धक्का-धकेलना) 1. बलपूर्वक दबाव देकर किसी व्यक्ति या वस्तु को आगे की ओर सरकाना, खिसकाना या बढ़ाना। पर्या. ढकेलना।
धक्का - (पुं.) (देश.) - <अनु.धम) 1. एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ वेग से टकराना, टक्कर। 2. धकेलने की क्रिया या भाव। 3. ला.अर्थ अकस्मात, उपस्थिति विपत्ति, हानि इत्यादि से मन पर पहुँची चोट।
धक्का-मुक्की - (स्त्री.) (देश.) - भीड़ में एक दूसरे को धक्के देने और मुक्के मारने की स तत् क्रिया। उदा. मेलों में या उत्सवों में लोग प्राय: धक्का-मुक्की करते हुए आगे बढ़ते हैं।
धज्जी - (स्त्री.) (देश.) - धातु, लकड़ी, कपड़े, कागज़ आदि में से काटकर निकली हुई पतली लंबी पट् टी। चिथड़ा। मुहा. धज्जियाँ उड़ाना=1. चिथड़े-चिथड़े करना। 2. उग्र खंडन करना। 3. अपमानित करना। उदा. आज के भाषण में वक्ता ने प्रतिपक्षी के तर्कों की धज्जियाँ उड़ा दीं।
धड़1 - (पुं.) (देश.) - 1. शरीर का सिर से नीचे का भाग। उदा. उसने एक ही झटके में सिर को धड़ से अलग कर दिया।
धड़2 - (क्रि.वि.) (तत्.) - जोर से गिरने का शब्द। उदा. धड़की आवाज़ सुनकर हमें लगा कि छत पर कोई गिर पड़ा है। मुहा. धड़ से= काल, तुंरत, झटपट। गिरते ही वह धड़ से उठ बैठा।
धड़कन (धडक़ना-धडक़न) - (स्त्री.) (देश.) - दुर्बलता या किसी आशंका के कारण हृदय की गति का सामान्यस से अधिक तेज हो जाने की क्रिया या तेजी से दिल का स्पन्दन। उदा. बुरी खबर सुनते ही उसका दिल धडक़ने लग गया।
धड़कना अ.क्रि. - (देश.) (दे.) - हृदय का धकधक करना। दे. धक।
धड़ल्ला - (पुं.) (देश./अनुर.) - धड़ों की आवाज़, धमाका। क्रि. वि. धड़ल्ले से-बिना डरे या झिझके और तेज़ी से; बेधडक़। उदा. 1. उसने साक्षात्कार में सभी प्रश्नों के उत्तर धड़ल्ले से दिए। 2. पुस्तक धडल्ले से बिक रही है; फिल्म धड़ल्ले से चल रही है।
धड़ाका - (पुं.) (देश.) - किसी चीज़ के ज़ोर से पटकने, गिरने या टूटने आदि से होने वाली ‘धड़’ की आवाज़। कोई ऐसा कार्य जिससे अचानक हलचल हो जाए, धमाका।
धड़ाधड़ - (क्रि.वि.) - (अनु.) 1. लगातार ‘धड़धड़’ की ध्वनि करते हुए। 2. जल्दी-जल्दी और लगातार। उदा. 1. वह सभा में धड़ाधड़ संस्कृत बोल रहा था। 2. पुलिस ने धड़ाधड़ चोर को कई थप्पड़ जड़ दिए।
धड़ाम - (पुं.) (देश.) - 1. किसी के तेज़ी से ऊपर से नीचे गिरने की शब्द। 2. धमाका। उदा. बालक छत से धड़ाम से नीचे गिर पड़ा।
धत्/धत - - विस्मयादि.(अव्यय) (अनु.) 1. तिरस्कार या उपेक्षापूर्वक हटाने अथवा दुतकारने के भाव का द् योतक/सूचक शब्द। जैसे: (परिहास में किसी छोटे बालक से) तू लडक़ी है ना? बालक-धत्। 2. किसी को तुच्छ या बुरा सूचित करने का शब्द। जैसे: धत् तेरे की।
धधकना - - (अ.क्रि.) (<हि.धधक) लगी आग का ऊँची लपटों के साथ जलना। उदा. कल दुकान में लगी आग से सारा सामान धधक-धधक कर जल गया।
धन - (तत्.) (पुं.) - 1. सुख-साधन के लिए काम आने वाला रूपया-पैसा, जमीन-जायदाद रूपी चल और अचल संपत्ति जिसे बेचा-खरीदा जा सके। पर्या. दौलत (मनी, वैल्थ) ला.अर्थ जिसे व्यक्ति का मन मूल्यवान स्वीकार करे। जैसे : विद्याधन, मानधन, पुत्रधन आदि। 2. गणि. जोड़ का चिह्न (+) plus। पर्या. ऋण(-) minus
धन-धान्य (धन=संपत्ति और धान्य=अन्न) - (पुं.) (तत्.) - पर्याप्त मात्रा में धन-संपत्ति और अन्नराशि जो संपन्नता का सूचक है।
धनाढ्य - (वि./पुं.) (तत्.) - (धन+आढ़य=विपुल) जो धन-धान्य से बहुत ज्यादा संपन्न हो। पर्या. धनवान, अमीर। उदा. वि. इस बस्ती में धनाढ्य लोगों की भरमार है। पुं. धनाढ्यों को निर्धनों से उदारता का व्यवहार करना चाहिए।
धनावेश [धन+आवेश] - (पुं.) (तत्.) - विद् युत या इलैक्ट्रान का धनात्मक (+) आवेश positive charge विलो. ऋणावेश।
धनी [धन+ई] - (वि./पुं.) (तत्.) - 1. धनवान; स्वामी। उदा. धनी व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपने धन का उपयोग समाज के हित में भी करें। 2. कुशल, सिद् धहस्त। जैसे : कलम का धनी, विद्या का धनी। 3. दृढ़, पक्का। जैसे-बात का धनी (बात का पक्का)
धनुर्धर (धनु:>धनुर्+धर) - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ धनुष को धारण करने वाला। सा.अर्थ धनुषविद्या में निपुण या धनुष चलाने में कुशल व्यक्ति। जैसे: राम, परशुराम, अर्जुन, एकलव्य आदि।
धनुर्विद्या - (स्त्री.) (तत्.) - [धनुस्+विद्या] धनुष का उपयोग करने की कला, बाण या तीर चलाने की विद्या। पर्या. बाण-विद्या, तीरंदाजी। उदा. अर्जुन धनुर्विद्या में अत्यंत कुशल थे।
धन्नासेठ - (पुं.) - [धन्ना+सेठ] 1. धन्ना नाम का एक बहुत बड़ा धनी व्यक्ति। 2. धनवान, बहुत संपत्तिशाली। 3. परिहास व व्यंग्य में प्रयोग किये जाने वाला, मुहा. धन्ना सेठ। उदा. (i) तुम्हारे जैसे धन्नासेठ मैंने बहुत देखे हैं। (ii) वह अपने आपको ‘धन्नासेठ’ मानता है पर दान कुछ नहीं करता।
धन्य - (वि.) (तत्.) - साधुवाद, प्रशंसा, स्तुति या पुरस्कार (आर्थिक सहायता) के योग्य; भाग्यशाली। उदा. धन्य है वे लोग जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। विलो. धिक्कार।
धन्यवाद - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ ‘धन्य-धन्य’ कहना। सा.अर्थ किसी के अनुकूल कार्य के प्रति शब्दों में या लिखित रूप में कृतज्ञता प्रकट करना, साधुवाद देना और प्रशंसा करना। thnaks giving
धन्वंतरि - (पुं.) (तत्.) - (सं. 1. आयुर्वेद के सबसे बड़े ज्ञाता आचार्य, 2. देवताओं के वैद् य, वैद् यों में श्रेष्ठ। टि. प्रसिद्ध है कि धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय अमृतकुंभ हाथ में लिए समुद्र से निकले थे। अत: आयुर्वेद विद्या का इन्हें आदि आचार्य माना जाता है।
धप्प से - (अव्य.) (देश.-अनु.) - धप् आवाज़ के साथ।
धब्बा - (पुं.) (देश.) - 1. किसी वस्तु पर बना/लगा भद्दा चिह्न, निशान, दाग। 2. कलंक या लांछन, दोष, जो यश या कीर्ति को नष्ट कर देता है। मुहा. नाम में धब्बा लगाना=किसी वस्तु पर लगा दाग तो छूट सकता है पर जीवन पर लगा भ्रष्टाचार का धब्बा कभी नहीं मिटता।
धमकना - - अ.क्रि. (देश) धमक>धमकना। 1. धम जैसी आवाज़ करते हुए गिरना। 2. धमाका करना। मुहा. आ धमकना=बिना बुलाए, बिना किसी सूचना के अचानक आ पहुँचना। जैसे: मित्र के जन्मदिन में वह बिना बुलाए आ धमका।
धमकाना स.क्रि. - (देश.-अनु.) - किसी को अपने कहे अनुसार काम करने को बाध्य करने के लिए भयभीत करना या डराना।
धमकी - (स्त्री.) (देश.) - 1. मनोनुकूल कार्य होता न देख प्रतिपक्षी को दंड देने या हानि पहुँचाने का डर दिखाने के उद् देश्य से कहे गए या लिखे गए शब्द। जैसे: धमकी देना=किसी कार्य को करवाने के लिए अनुचित भय दिखाना। उदा. कुछ लोग धमकी देकर अपना कार्य करवाना चाहते हैं।
धमनी - (स्त्री.) (तद्.) - हृदय से शुद्ध (ऑक्सीजनयुक्त) रक्त को पूरे शरीर में पहुँचाने वाला नलिकाकार अवयव। artery तु. शिरा (वेन)
धमाका - (पुं.) - (अनु.<धम्, धम) सा.अर्थ 1. भारी वस्तु के गिरने की आवाज़; 2. बम, तोप आदि के छूटने की विस्फोटक आवाज़। उदा. आतंकवादियों ने बाज़ार में बल का धमाका किया। ला.प्रयोग-बहुत ही रहस्यात्मक तथ्य का सहसा प्रकाशन। उदा. विकिलीक्स प्रतिदिन कई धमाके करता जा रहा है।
धमाल/धमार - (स्त्री.) (देश.) - प्रसन्नता व मस्ती के साथ होने वाली बच्चों की उछल-कूद। धमाचौकड़ी। उदा. बच्चों ने तो यहाँ बहुत ही धमाल मचा रखी है। 2. पुं. लोकगीत जो फागुन मास में होली के दौरान गाया जाता है।
धरणी - (स्त्री.) (तत्.) - व्यु.अर्थ सभी चर+अचर को धारण करने वाली। सा.अर्थ पृथ्वी, धरती, धरा। जैसे: धरणीपति (राजा), धरणीधर (शेषनाग, पर्वत), धरणीपुत्र (मंगल)।
धरना - (तद्.) (पुं.) - स.क्रि. 1. कोई वस्तु किसी आधार पर रखना। जैसे: पुस्तक मेज़ पर धर दो। 2. ला.अर्थ पकड़ लेना, पकडक़र बंद करना। जैसे: पुलिस ने चोरों को जल्दी ही धर लिया। (धर पकड़)। अपनी माँगें पूरी कराने के उद् देश्य से इस तरह जमकर बैठ जाना कि उठाए न उठे, धरना देना। strike
धर-पकड़ - (स्त्री.) (तद्.पकड़ना) - 1. (असामाजिक तत् वों को) धरने या पकड़ने की क्रिया या भाव। 2. बंदी बनाना, गिरफ्तारी करना। मुहा. धर-पकड़ होना=शांति भंग की संभावना होने पर या कोई विशेष अपराधिक घटना होने पर अपराधियों/असामाजिक तत्वों की गिरफ्तारी या खोज होना।
धरातल - (पुं.) (तत्.) - (धरा=पृथ्वी) पृथ्वी का तल, पृथ्वी की सतह।
धराशायी - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ पृथ्वी पर सोने वाला या सोया हुआ। 1. ज़मीदोज़, पृथ्वी पर गिरा हुआ। उदा. भूकंप के प्रभाव से कई भवन धराशायी हो गए। 2. ला.अर्थ पराजित हुआ। जैसे: पिछले चुनाव में अच्छे-अच्छे नेता धराशायी हो गए।
धरोहर - (स्त्री.) (तद्<धृतावहार) - 1. किसी व्यक्ति के पास रखी हुई वह संपत्ति, जिसकी रक्षा का भार देने वाले ने उसे सौंप रखा हो। पर्या. अमानत। (प्लेज) 2. पूर्वजों द्वारा प्राप्त वह संपत्ति जिसे बेचा न जा सकता हो तथा जिसे उसी रूप में अगली पीढ़ी को सौंपना हो। पर्या. थाती, विरासत। heritage
धर्म - (पुं.) (तत्.) - 1. सा.अर्थ किसी भी व्यक्ति या सामाजिक वर्ग की उपासना-पद् धति। जैसे: हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, ईसाई धर्म आदि। religion विशेष अर्थ-1. समाज के मान्य नैतिक कर्त्तव्यों में से कोई भी। जैसे: माता-पिता की सेवा करना संतान का धर्म है। 2. प्राकृतिक शक्तियों का स्वभाव या सहज गुण। जैसे: अग्नि का धर्म जलाना, सूर्य का धर्म प्रकाश फैलाना और जल का धर्म शीतलता प्रदान करना है।
धर्म-कर्म - (पुं.) (तत्.) - धर्मग्रंथों में बताए गए मनुष्यों के लिए धार्मिक आचरण व कर्तव्य। उदा. मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह धर्म-कर्म से कभी विमुख न हो।
धर्मग्रंथ [धर्म+ग्रंथ] - (पुं.) (तत्.) - 1. वह ग्रंथ या पुस्तक जिसमें धर्म विशेष विषयक शिक्षाएँ तथा आचार-विचार के नियम लिखे हों। 2. वह ग्रंथ जिसे किसी धर्मविशेष का आधारग्रंथ मानते हुए किसी भी प्रकार की तत् संबंधी शंका के निवारण के लिए प्रामाणिक माना जाता है।
धर्मनिरपेक्ष - (वि.) (तत्.) - 1. जो किसी भी धर्म के नियमों या सिद् धांतों से बँधा न हो। 2. जो सभी धार्मिक रीति-नियमों के प्रति समानभाव रखता हो। सेक्यूलर। टि. ‘सेक्यूलर’ के लिए सही पारिभाषिक पर्याय ‘पंथ निरपेक्ष’ है, जबकि धर्मनिरपेक्ष व्यापक रूप से प्रचलन में है।
धर्मनिरपेक्षता [धर्म+निरपेक्षता] - (स्त्री.) (तत्.) - मूल अर्थ-राज्य संचालन में धर्म का हस्तक्षेप न हो। दे. धर्म। (सेक्यूलर) आधु.अर्थ उपासना-पद्धति का विचार न करते हुए सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करने का भाव। पर्या. सर्वधर्मसमभाव। विशेष-(1) यहाँ धर्म का अर्थ उपासना-पद्धति religion ही माना गया है। (2) इसके लिए संविधान सम्मत पर्याय ‘पंथनिरपेक्षता’ है क्योंकि भारतीय संदर्भ में ‘धर्म’ तो सर्वोत्कृष्ट आचरण का आधार माना जाता रहा है जो वस्तुत: रिलिजन का पर्याय नहीं है।
धर्मपरायण - (वि.) (तत्.) - (भाव. धर्मपरायणता) 1. सदा धर्म के अनुसार आचरण करने वाला (व्यक्ति) 2. धर्मकार्य में दृढ़ता के साथ लगा हुआ।
धर्मपरायण - (वि.) (तत्.) - अपने धर्म में आस्था रखने वाला और उसी के अनुरूप आचरण करने वाला। विलो. धर्म भ्रष्ट, धर्मविमुख।
धर्मभीरू [धर्म+भीरू=डरने वाला] - (वि.) (तत्.) - धर्म (के दंड) से डरने वाला; बुरे कामों से बचने वाला (यह सोचकर कि इससे पाप लगेगा और उसका दंड भोगना पड़ेगा।)
धर्म-भ्रष्ट [धर्म+भ्रष्ट] - (वि.) (तत्.) - 1. जो अपने धर्म या कर्त्तव्य से गिर गया हो; धर्मच्युत। 2. जिसने अपना धर्म या संप्रदाय छोड़ दिया हो। उदा. धर्मभ्रष्ट का जीवन ही व्यर्थ है। विलो. धर्मपरायण।
धर्मयुद्ध - (पुं.) (तत्.) - 1. वह युद्ध जो धर्म के नियमों के अनुसार हो यानी जिसमें किसी अधर्म या अन्याय का सहारा न लिया जाए। (जस्टवार) 2. धर्म की रक्षा के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध। crusade
धर्मसंकट - (पुं.) (तत्.) - दो विकल्पों में से किसी एक को स्वीकारने या चुनने की दुविधा वाली स्थिति। पर्या. पशोपेश। उदा. मेरा चयन दो पदों के लिए हो गया है अब मैं धर्मसंकट में हूँ कि रेलवे की नौकरी स्वीकार करूँ या बैक की।
धर्मांध [धर्म+अंध] (भाव. धर्मांधता) - (वि.) (तत्.) - सा.अर्थ-जो धार्मिक कट्टरता की वजह से अंधा जैसा होकर उचित-अनुचित का विचार न करे; 2. धर्म के प्रति संकुचित दृष्टिकोण वाला। fanatic
धर्मात्मा [धर्म+आत्मा] - (वि.) (तत्.) - धर्म के अनुसार आचरण करने वाला, धर्मशील प्रकृति वाला (व्यक्ति) उदा. युधिष्ठिर धर्मात्मा नरेश थे। विलो. पापात्मा।
धर्मोपदेश [धर्म+उपदेश] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ धर्म का उपदेश। 1. धार्मिक दृष्टि से क्या-क्या करना चाहिए और क्या-क्या नहीं, इसका उपदेश। 2. धर्मोचार्यों द्वरा दिए जाने वाले उपदेश। पर्या. प्रवचन।
धवल - (वि.) (तत्.) - 1. श्वेत, उज़ला। जैसे: धवल हिमशिखर। 2. निर्मल, स्वच्छ। जैसे: धवल वस्त्र।
धाँधली - (स्त्री.) (देश.) - 1. किसी कार्य में मनमर्जी के अनुसार बरती गई अनियमितता; स्वेच्छाचारिता। उदा. यहाँ सारा काम नियमानुसार होता है। तुम्हारी धाँधली नहीं चलेगी।
धाँय - (स्त्री.) - (अनु.) तोप, बंदूक चलने की भयंकर आवाज़। बल आदि के धमाके की आवाज़। जैसे: सहसा धाँय सुनाई दी।
धाँय-धाँय - (क्रि.वि.) - आवाज़ के साथ और ऊँची लपटों के साथ। जैसे: पूरा गांव धाँय-धाँय जल रहा था।
धाक - (स्त्री.) - (सं.) किसी व्यक्ति का ऐसा प्रभाव जो दूसरे व्यक्तियेां को उसके विचारों के अनुकूल कार्य करने को बाध्य कर दे। पर्या. रोब, दबदबा। मुहा. धाक जमना/जमाना=रोब या दबदबा होना/दिखाना।
धागा - (पुं.) (देश.) - 1. कपास, ऊन अथवा किसी भी रेशेदार पदार्थ का महीन तार, तागा। threrad 2. रेशा fibre
धातु - (स्त्री.) (तत्.) - 1. भौ. सोना-चाँदी, लोहा, तांबा आदि अपारदर्शक खनिज पदार्थ जिससे आभूषण, बर्तन, हथियार आदि बनाए जाते हैं। (मेटल) 2. आयु. वे सात धातु जिनसे शरीर बना हुआ माना जाता है। 3. पुं. (तत्.) व्या.क्रिया का मूल रूप। जैसे-‘कर’>करना, किया, करेगा, जा जाना, गया, जाएगा आदि।
धातु-मंजूषा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. धातु (सोने-चांदी-तांबा आदि) से बनी पेटिका या डिब्बा। 2. सोने-चांदी आदि खनिज धातुओं की खदान। 3. खनिज धातुओं का संग्रह/कोष।
धात्विक - (पुं.) - (तत..) विलो. अधात्विक। 1. धातु से संबंधित। 2. धातु का विश्लेषण।
धात्विकी - (स्त्री.) (तत्.) - विज्ञान की वह शाखा जिसमें धातुओं के रासायनिक वों का अध्ययन किया जाता है।
धानी - (स्त्री.) (तत्.) - शा.अर्थ स्थान; पात्र। जैसे: राजधानी। प्राणि. कई जीवधारियों में कोशिकाद्रव्य के अंदर झिल्ली से घिरा अवकाश अथवा अंगक जिसमें तरल या भोजन आदि के कण हो सकते हैं। vascicule आयोग, रसधानी। टि. प्रोटोजोआ प्राणियों में यह विशेष रूप से देखने में आती है। उदा. खाद्य धानी,संकुचनशील धानी आदि। अधिकृत पर्या. रसधानी।
धान्य - (पुं.) (तत्.) - खेतों में बोया जाने वाला अन्न, अनाज। जैसे: धान, गेहूँ, मटर, जौ, उड़द आदि।
धाम - (पुं.) (तत्.) - 1. रहने या वास करने का स्थान। पर्या. घर, गृह। 2. वह लोक या जगह जहाँ देवताओं का वास माना जाता है। जैसे: चारधाम की यात्रा, वैद्यनाथ धाम। आदि।
धाय - (स्त्री.) (तद्<धानी) - 1. छोटे बच्चे की देखभाल हेतु रखी गई स्त्री, दाई, धात्री। 2. अस्पतालों में प्रसूतिगृह में नवजात बच्चों की देख-रेख करने वाली दाई nurse
धार - (स्त्री.) (तत्.) - 1. (i) किसी हथियार (जैसे: तलवार) या औज़ार (जैसे: चाकू, पत्ती आदि) के फलक का तीखा किनारा; (ii) तीखापन। 2. वर्षा जल, दूध आदि के बहने/गिरने पर दिखाई पड़ने वाला सतत् प्रवाह।
धारक/धारी - (वि./पुं.) - धारण करने वाला। जैसे: पद धारक/धारी, जीवधारी।
धारण करना - - स.क्रि. 1. पहनना, जैसे: वस्त्र धारण करना। 2. ग्रहण या अंगीकार करना। जैसे: पद धारण करना।
धारणा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. धारण करने की क्रिया या शक्ति। 2. मस्तिष्क में स्थायी रूप से बना हुआ कोई विचार। दृढ़ निश्चय belief 2. योग के आठ अंगों में से एक जो मन को स्थान विशेष में एकाग्र करने से संबंधित है।
धारा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. जल या किसी अन्य द्रव का प्रवाह। stream 2. बिजली (विद्युत) का प्रचाह। current 3. किसी अधिनियम का संख्यांकित उपबंध। section
धाराप्रवाह - (वि.) (तत्.) - तेज धारा की तरह जो बीच में बिना रूके चलता रहे। जैसे: धाराप्रवाह भाषण आदि।
धार्मिक - (वि.) (तत्.) - 1. धर्म के अनुसार कार्य करने वाला। धर्मात्मा। (यहाँ धर्म का अर्थ उपासना- पद् धति ही है।) 2. धर्म-कार्य से संबंधित। जैसे: धार्मिक कार्यक्रम।
धावा - (पुं.) (तद्.<धावन) - जीतने, लूटने आदि के लिए बहुत से लोगों का किसी पर एक साथ हमला/आक्रमण करना।, हमला, आक्रमण। मुहा. धावा बोलना=हमला करना।
धिक्कार - (पुं.) (तत्.) - व्यु.अर्थ ‘धिक्’ (तिरस्कार) सूचक शब्द। 1. किसी को बुरा-भाव कहने या तिरस्कार करने का भाव। 2. घृणापूर्वक किसी को कहे जाने वाले अपशब्द।
धिक्कारना स.क्रि. - (तद्.) - किसी के बुरे कर्मों के कारण या अनुचित व्यवहार के कारण उसे फटकारना, झिडक़ना।
धींगामुश्ती - (स्त्री.) ([तद्.<दृढ़ाग+मुष्टि]) - शा.अर्थ मजबूत कद-काठी के व्यक्ति (दबंग) द्वारा अपने बाहुबल का दुरुपयोग; जोर ज़बरदस्ती। सा.अर्थ उपद्रव, ऊधम।
धीमा - (वि.) (तद्<मध्यम) - 1. धीमी गति वाला, धीरे चलने वाला। जैसे: वह वाहन धीमा चल रहा है। 2. जिसमें तीव्रता न हो, जैसे: धीमा प्रकाश। पर्या. मंद।
धीर - (वि.) (तत्.) - जो विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित न हो, यानी शांत और गंभीर बना रहे, धैर्यशाली।
धीरज - (पुं.) (तद्.<धैर्य) - न घबराने या विचलित न होने का भाव या विचलित न होने का भाव, धीरता, चित्त का स्थिर-भाव, गंभीरता।
धीरता - (स्त्री.) - धीर बने रहने का गुण, अवस्था या भाव। विलो. अधीर।
धुंध - (स्त्री.) (तद्.<धूमांध) - हवा में मिली हुई धूल या वाष्पकणों से होने वाला अंधकार। उदा. सर्दियों में आकाश में धुंध छा जाती है।
धुँधलका - (पुं.) (देश.) - [धुँध+ला+का प्रत्यय] (धुँधला+का) 1. धुँधलापन, 2. कुछ-कुछ अंधकार युक्त वातावरण; हल्के अंधेरे जैसा कालखंड। 3. आँधी में उड़ती धूल के आकाश में छा जाने से व्याप्त अँधेरापन जिससे साफ दिखाई न दे।
धुँधला - (वि.) (तद्.) - धुँध जैसा, धुँध से युक्त; अस्पष्ट। दे. धुँध।
धुँधलापन - (पुं.) (देश.) - 1. कुहासे आदि के कारण खराब मौसम में साफ दिखाई न देने का भाव। 2. आँख की बीमारी के कारण चीजें धुँधली/अस्पष्ट दिखाई देने का भाव। 3. वायुमंडल की निचली परतों में जलकणों का समूह इकट् ठा होने से पारदर्शिता कम होने की स्थिति। जैसे: धुँध के कारण धुँधलापन होने से हमें स्पष्ट दिखाई नहीं देता।
धुँधुआना अ.क्रि. - (देश.) - केवल धुँआ देना, लौ के साथ जलना नहीं। उदा. गली लकड़ियाँ धुँधुवाती अधिक जलती कम हैं।
धुत्त - (वि.) - (अनु.) (शराब आदि के) नशे में डूबा हुआ, नशे से चूर। उदा. कुछ लोग अधिक शराब पीकर नशे में धुत्त हो जाते हैं।
धुन - (स्त्री.) (देश.) - 1. (i) सोच-विचार किए बिना अधिक किसी काम में लगातार लगे रहने की प्रवृत्ति या दशा। पर्या. लगन, एकाग्रता। मुहा. धुन का पक्का=ईमानदारी से एकाग्रचित्त। (ii) मन की मौज, मन की वह स्थिति जब और कुछ नहीं सूझता। 2. स्त्री. तद् <ध्वनि) किसी गीत को गाने का विशिष्ट ढंग। पर्या. तर्ज।
धुन1 - (स्त्री.) (देश.) - (एकचित्त होकर) 1. किसी भी परिस्थिति में निरंतर कार्य करने की प्रवृत्ति या दशा/लगन। 2. मन की तरंग, मौज। मुहा. धुन का पक्का=प्रारम्भ किए गए कार्य को विषम परिस्थिति में भी पूरा करने की लगन रखने वाला।
धुन2 - (स्त्री.) (तद्<ध्वनि) - किसी गीत को विशिष्ट स्वरक्रम से गाये या बजाए जाने का ढंग, किसी गाने की विशेष तर्ज़; लय।
धुनकी - (स्त्री.) (देश.) - रूई धुनने का एक उपकरण जिसमें लगी हुई तांत को लकड़ी के हथौड़े से ठोंक-ठोक कर रूई धुनी जाती है। दे. धुनना।
धुनना स.क्रि. - (तद्<ध्वनन) - 1. रजाई-गद् दे में भरने हेतु धुनकी की सहायता से रूई में से बिनौले अलग करके उसे तार-तार कर देना। 2. ला.अर्थ पिटाई करना।
धुनाई - (स्त्री.) - (धुनना) 1. रूई को रोएँदार बनाने की प्रक्रिया जिसमें उसे कमान जैसे: उपकरण के तार से झटके के साथ या हिलाते हैं ताकि वह तार-तार होकर फूल जाए। उदा. रजाई की भराई से पहले रूई की धुनाई की जाती है। 2. ला.अर्थ खूब पिटाई। उदा. चोर को पकडक़र लोगों ने उसकी खुब धुनाई की।
धुनियाँ - (पुं.) (देश.) - रूई धुननें का व्यवसाय करने वाला। दे. धुनना।
धुरंधर - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ (i) जुआ ढोने वाला; (ii) भार उठाने वाला, भारवाहक। विक.अर्थ किसी विषय का श्रेष्ठ विद्वान। उदा. महामहोपाध्याय गौरी शंकर हीराचंद ओझा इतिहास के धुरंधर विद्वान थे।
धुरा - (पुं.) (तद्<धुर) - लोहदंड जो गाड़ी को आधार प्रदान करता है और पहियों से जुड़ा रहता है। axle
धुरी - (स्त्री.) (तत्.) - वह डंडी जिसके चारों ओर कोई गोल वस्तु घुमती है। दे. धुरा। 2. (i) लोहे की कील जो किसी गोलवस्तु (जैसे: लट्टू) के नीचे गड़ी होती है और उसके घूमने को आधार प्रदान करती है। (ii) पृथ्वी की धूरी, लट् टू की धूरी। 3. पृथ्वी के उ. ध्रुव और द. ध्रुवों को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा। axle
धुलना अ.कि. - (तद्) - 1. पानी आदि के द् वारा स्वच्छ किया जाना (न कि स्वच्छ करना), धोया जाना। 2. पानी से दाग आदि का दूर होना; रंग बह जाना।
धूनी - (स्त्री.) (तद्.धूनक) - 1. गुग्गुल आदि गंधद्रव्य या सरसों, घी, गुड़ आदि के जलाने से निकला हुआ धुँआ। मुहा. धूनी देना=किसी अमंगल, रोग, दृष्टिदोष की शांति के लिए धूनी देना। 2. साधुओं के तापने की आग, हवन कुंड की आग। जैसे: धूनी जगाना या धूनी रमाना।
धूप - (पुं.) (तत्.) - 1. (i) ऐसा गंधद्रव्य जिसके अग्नि में डालने से सुंगन्धित धुँआ निकलता है। (ii) मिश्रित गंधद्रव्यों से बनी वटी जिसके जलाने से सुगन्धित धुआँ निकलता है। (जैसे: धूपबत्ती, अगरबत्ती) 2. सूर्य की किरणों से प्रकट ऊर्जा का दृश्यमान और अनुभूत प्रभाव। पर्या. सूर्याताप, घाम।
धूपछाँह [धूप+छाँह] - (पुं.) - सूर्य के प्रकाश (धूप) की सीधी पहुँच से किसी बीच की बाधा के आ जाने पर कहीं दिखाई पड़ने वाली धूप तो कहीं अवरोध की वजह से छाया दिखाई पड़ने की स्थिति। ला.अर्थ श्वेत-श्याम रंग का कपड़ा।
धूपछाँही [धूप+छाह+ई] - (वि.) (तद्.) - धूप-छाँह (श्वेत-श्याम या कहीं गहरे कहीं हलके) रंगवाला
धूपदान [धूप+दान<धूप+आधान=रखने का पात्र] - (पु.) (तद्.) - वह पात्र जिसमें रखकर धूपबत्ती अथवा अन्य सुगंधित द्रव्य जलाए जाते हैं।
धूम - (पुं.) (तत्.) - 1 दे. धुआँ। 2. स्त्री. (देशज) (i) जनता के बीच फैली उत्साह और उमंग की लहर। (ii) जनता के बीच फैली आक्रोश की लहर। ख्याति, ठाट-बाट, हलचल।
धूमकेतु - (पुं.) (तत्.) - [धूम=धुआँ+केतु=ध्वज पूँछ] शा.अर्थ धूएँ की जैसी पूँछ वाला। आकाशीय पिंड जो लंबवलयाकार (अंडाकार) मार्ग से सूर्य की परिक्रमा करते हैं। एक लंबी और मोटी गैसमय पूँछ इसकी विशेषता है। पर्या. पुच्छल तारा=पूंछ वाला तारा। lodge star
धूमधाम [धूम+धाम] - (स्त्री.) - (दूसरा पद अनु.) किसी कार्यक्रम शानदार ढंग से / ठाठ-बाट के साथ मनाना। उदा. भारत में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, दीपावली आदि पर्व बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।
धूमिल - (वि.) (तत्.) - 1. धुएँ के रंग का; धूँधला। 2. अस्पष्ट, फीका। उदा. चित्र का रंग धूमिल हो गया है।
धूर्त - (वि.) (तत्.) - कपट या चालबाज़ी से काम निकालने वाला; बहुत चालाक; दुष्ट, नीच। उदा. तुम इस धूर्त व्यक्ति से बच कर रहना।
धूर्तता - (स्त्री.) - धूर्त होने की अवस्था, भाव या अवगुण।
धूल - (स्त्री.) (तद्.<धूलि) - मिट्टी का बहुत बारीक चूरा। पर्या. रज़, गर्द। मुहा. धूल डालना=उपेक्षा करना। पैर की धूल होना=किसी की तुलना में अत्यंत तुच्छ होना।
धूल-धूसरित - (वि.) (तत्.) - धूल से सना हुआ होने के कारण फीका पड़ा, मटमैला।
धूसर - (वि.) (तत्.) - 1. भूरे रंग का, मटमैला।
धृष्ट - (वि.) (तत्.) - जो बड़ों के सामने भी नि:संकोच तुच्छ व्यवहार करे। पर्या. ढीठ, निर्लज्ज, अशिष्ट। उदा. अधिक लाड़ प्यार में पलने वाले कुछ बच्चे धृष्ट हो जाते हैं। पर्या. गुस्ताख। विलो. विनीत।
धृष्टता [धृष्ट+ता=भाववाचक प्रत्यय] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. गलत काम करके भी अपराधबोध न होने का भाव। 2. अमर्यादित आचरण, उद्दंडता, उद्दंपन। 3. ढीठपन। उदा. मित्र के साथ विश्वासघात करने की तुमने जो धृष्टता की है, वह क्षम्य नहीं है।
धैर्य - (पुं.) (तत्.) - संकट या कठिनाई के समय भी मन-वचन से निर्विकार रहना/स्थिर रहना; अस्थिर। चित्त न होना, चित्त में किसी प्रकार का उतावलापन न होने का भाव। धीरज, सब्र।
धोखा - (पुं.) (तद्.<धुक्षक) - 1. भ्रम में डालने वाला व्यवहार। पर्या. भ्रम, छल, दगा। 2. विक.अर्थ चिड़ियों को डराने के लिए खेत में बांस की डंडियों पर कपड़ा लपेटकर बनाया गया मानव का पूतला, बिजुखा।
धोखाधड़ी - (स्त्री.) (देश.) - पहले विश्वास पैदा कर बाद में धोखा देने का काम। froud उदा. कुछ लोग धोखाधड़ी कर अपार संपत्ति जोड़ लेते हैं।
धोखेबाज़ - (वि.) (तद्.+फ़ा.) - धोखा देने वाला; भ्रम या भांति मे रखने वाला; विश्वास दिलाकर छल करने वाला। दे. धोखा।
धोती - (स्त्री.) (तद्.<धटी/धौत) - 1. (एक भारतीय परिधान) कमर से घुटने के नीचे तक का भाग ढकने के लिए कमर में लपेटकर पहना जाने वाला बिना सिला कपड़ा। 2. स्त्रियों के पहनने का बिना सिला लंबा कपड़ा जिसे कमर से लपेटकर पूरा शरीर ढका जाता है। पर्या. साड़ी। मुहा. धोती ढीली होना=हिम्मत छूट जाना।
धौंकना सं.क्रि.(सं.>धमन) - (दे.) - आग को सुलगाने के लिए पंखे, धौंकनी/फूंकनी आदि से लगातार हवा का झोंका पहुँचाना। उदा. लुहार धौंकनी से भट्ठी को धौंकता है। दे. धौकनी ।
धौंकनी - (स्त्री.) (देश.<धौंकना -क्रिया) - 1. बांस या लोहे, पीतल आदि धातु की बनी हुई आग सुलगाने की नली। टि. इसका प्रयोग प्राय: सुनार गहने बनाने के लिए करते हैं। 2. ऐसा कोई भी उपकरण जिससे आग या अंगारों को भभकाने/धौंकने का काम किया जाए।
धौंस - (स्त्री.) (तद्.<दंश) - आक्रामक ढंग से अपना रौब दिखाकर अथवा धमकी देकर किसी को प्रभावित करने की कला। उदा. जब देखो तब वह धौंस दिखाकर मुझसे अपना काम करवा लेता है।
ध्यान - (तत्.) - मन को एकाग्रकर किसी का चिंतन करने या किसी में लीन होने की स्थिति। प्रयो. ध्यान करना=मन में चिंतन करना। ध्यान जमाना=एकाग्र चित्त होना। ध्यान जाना। ध्यान दिलाना= याद दिलाना। ध्यान देना=सावधानी बरतना। ध्यान बँटना=चित्त कभी किसी और कभी किसी की ओर आकृष्ट होना। ध्यान रखना=1. स्मरण करना। उदा. ध्यान रहे कि ऐसी गलती फिर कभी न हो। 2. किसी भी देखभाल करना। उदा. माँ-बच्चे का पूरा ध्यान रखती है। ध्यान से उतरना=कुछ समय के लिए भूल जाना।
ध्यानपूर्वक क्रि. - (वि.) (तत्.) - ध्यान देते हुए, पूर्ण तल्लीन होकर, मन लगाकर, चित्तवृत्ति एकाग्र करते हुए। उदा. आज कक्षा में जो कुछ पढ़ाया गया उसे मैंने ध्यानपूर्वक सुना और बाद में उस पर साथियों से चर्चा भी की।
ध्येय क्रि.वि. - (तत्.) (वि.) - मूल अर्थ. ध्यान करने योग्य, जिसका ध्यान किया जा सके। आधु.अर्थ पुं. वह जिसे ध्यान में रखकर कोई काम किया जाए। पर्या. उद् देश्य, लक्ष्य। जैसे: मेरा ध्येय इंजीनियर बनना है।
ध्रुव - (वि.) (तत्.) - 1. सदा एक ही स्थान पर या एक ही अवस्था में रहने वाला; स्थिर, अचल। 2. निश्चित, पक्का, असंदिग्ध। उदा. यह ध्रुव सत्य है कि पृथ्वी गोल है। पुं. 1. पृथ्वी की धुरी के दो विपरीत बिंदुओं में से कोई एक। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव। 2. ध्रुवतारा, 3. पुराण-उत्तानपाद और सुनीति का पुत्र जो भगवान विष्णु का परम भक्त था।
ध्रुवीकृत - (वि.) (तत्.) - 1. पर्याप्त साम्य वाले विभिन्न मतावलंबियों के एकीकृत एवं संक्षिप्त विचार। जैसे: सभी वैज्ञानिकों के किसी विषय पर ध्रुवीकृत विचार। 2. किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समान विचारधारा वाले राजनैतिक दलों के द्वारा निश्चित वैचारिक एकता। 3. स्थिरीकृत, एकीकृत।
ध्वंसावशेष [ध्वंस+अवशेष] - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ किसी भी भवन नगर आदि के ध्वंस हो जाने के बाद शेष बचे अंश जो पुरातात्विक महत्व के माने जाते हैं।
ध्वजारोहण [ध्वज=झंडा+आरोहण=चढ़ाना] - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी विशेष अवसर पर झंडे को दंहु की ऊँचाई तक चढ़ाकर फहराना। उदा. 15 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वजारोहण समारोह में हमने भाग लिया। पर्या. ध्वजोत्तोलन।
ध्वजोत्तोलन [ध्वज+उत्तोलन=ऊपर उठाना] - (पुं.) (तत्.) - ध्वज को ऊपर उठाना या चढ़ाना। दे. ध्वजारोहण।
ध्वनि - (तत्.) (स्त्री.) - सा.अर्थ वह आवाज़ जो कानों में सुनाई पड़े, सुनाई देने वाली आवाज़। भौ. किसी प्रकार की टकराहट या विक्षोम से हवा में उत्पन्न कंपन जो कानों से सुना जा सके। sound भाषा. भाषा का वह भौतिक और मूर्त पक्ष जिसे वक्ता मुख से उच्चरित करना है और श्रोता अपनी ज्ञानेद्रिंय (कान) से सुन और समझ सकता है। speech sound काव्यशास्त्र-किसी कथन के साधारण अर्थ वाच्यार्थ को छोडक़र उसमें निहित गूढार्थ।
ध्वस्त - (वि.) (तत्.) - (i) जिसका ध्वंस हो चुका है; पूरी तरह बरबाद हो चुका। उदा. बादल फटने से लेह में अनेक घर ध्वस्त हो गए।
ध्वानिक - (वि.) (तत्.) - 1. ध्वनि-संबंधी। 2. ध्वानिकी संबंधी।
न - -
निंदक - (वि.) (तत्.<निंदा) - निंदा करने वाला। निंदनीय वि. (तत्.) निंदा करने योग्य।
निंदा - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी के वास्तविक दोषों का किया गया उल्लेख अथवा ईर्ष्यावश की गई बुराई। पर्या. अपकीर्ति, बदनामी censure विलो. प्रशंसा।
नींद - (स्त्री.) (तद्.<निद्रा) - प्राणियों की वह अवस्था जब उनकी आँखें बंद हो जाती है, सामान्य चेतना क्रियाएँ कुछ काल के लिए रुक जाती हैं और शरीर व मस्तिष्क विश्राम करते हैं तथा समाप्ति के बाद ताज़गी का अनुभव होता है। पर्या. निद्रा। मुहा. नींद उचटना/खुलना/टूटना = नींद की समाप्ति। नींद उड़ना/हराम होना = चिंता या अन्य किसी कारण नींद न लगना।
नींव - (स्त्री.) (तद्.<नेमि) - 1. भवन आदि बनाते समय उसका वह मूल भाग जो जमीन खोदकर तथा उसे रोड़ी सीमेंट, ईंट, लोहा आदि से भरकर मजबूत बनाया जाता है जिससे उस पर उठने वाली दीवारें मजबूती से खड़ी रहें। 2. किसी वस्तु या कार्य का मजबूत आधार वाला मूल भाग। मुहा. नींव का पत्थर मजबूत आधार, मूल आधार। उदा. श्री गोपाल कृष्ण तो इस अनाथ संस्था के नींव के पत्थर हैं। foundation stone
नीचता - (स्त्री.) (तत्.) - नीच वि. तत्. जो गुण, कर्म आदि की दृष्टि से निकृष्ट या ऊधम हो। 1. नीच होने की अवस्था या भाव। नीचपन, नीचपना। 2. आचरण की वह स्थिति जो ऊधम या तुच्छ हो। उदा. नीच स्वभाव वाला व्यक्ति अपनी नीचता दिखाए बिना नहीं रहता।
नीति - (स्त्री.) (तत्.) - 1. किसी कार्य को चलाने के आधारभूत सिद् धांत। जैसे: शिक्षा नीति, राजभाषा नीति। 2. संस्था या सरकार की कार्य पद् धति के सिद् धांत। जैसे: राजनीति, सरकार की नीति। 3. आचरण के लिए समाज द्वारा स्वीकृत नियम, नीतिशास्त्र के नियम।
नीतिकुशल - (वि.) (तत्.) - शा.अर्थ नीति का जानकार और उसके अनुसार आचरण करने वाला। विक. अर्थ चतुर, व्यवहार कुशल।
नीतिज्ञ वि/पुं. - (पुं.) (तत्.) - नीति का अच्छा जानकार और उसके अनुसार आचरण करने वाला।
नीति-रीति [नीति + रीति] - (स्त्री.) (तत्.) - आधारभूत सिद् धांत और तदनुसार कार्य/ व्यवहार। जैसे: सरकारी नीति-रीति।
नीयत - (स्त्री.) (अर.) - मन में पैदा हुए तात्कालिक भाव के अनुसार कार्य करने की इच्छा। पर्या. इरादा, मंशा। उदा. 1. वह नीयत का साफ़ है। तुम्हें धोखा नहीं देगा। 2. उसकी नीयत बिगड़ गई लगती है। तभी उसने तुम्हें धोखा दिया। मुहा. नीयत डोलना/बिगड़ना = इरादा बुरा हो जाना। नीयत न भरना = संतुष्ट नहीं होता। नीयत भर जाना = संतुष्ट हो जाता।
नीर - (पुं.) (तत्.) - (पेय) जल, पानी। जैसे: नीर-क्षीर विवेक = दूध का दूध और पानी का पानी; सही और गलत का विवेकपूर्ण हल।
नीर-क्षीर-विवेक - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ मिले हुए पानी और दूध को अलग-अलग करने का ज्ञान/सामर्थ्य। जैसे: हंस का नीर-क्षीर विवेक। ला.अर्थ अच्छाई और बुराई में अंतर करने की क्षमता।
नीरव [निर्+रव] - (वि.) (तत्.) - जिसमें किसी प्रकार की ध्वनि/शब्द न हो, नि:शब्द, मौन, चुप। उदा. नीरव स्थान में पत्ते के खडक़ने की आवाज़ भी सुनाई पड़ जाती है।
नीरवता - (स्त्री.) - नि:शब्दता, सन्नाटा, खामोशी। हिंसक घटना के बाद बस्ती में भय के कारण नीरवता छा गई।
नीरस [निर्+रस] - (वि.) - 1. जिसमें रस न हो, रसहीन, सूखा, शुष्क। जैसे: नीरस फल, नीरस तरु। 2. जिसमें रोचकता न हो। जैसे: नीरस जीवन, नीरस नाटक।
नीरोग [निर्+रोग] - (तत्.) - जिसे कोई रोग या बीमारी न हो; जो बीमारी के बाद अब स्वस्थ हो गया है। स्वस्थ, तन्दुरुस्त। उदा. संतुलित आहार लेने से लोग नीरोग रहते हैं। विलो. रोगी।
नीरोगी - (वि.) (तत्.) - [निर् + रोगी] (तत्.) 1. जिसे किसी प्रकार का रोग न हो। 2. पूर्णतया स्वस्थ। उदा. वही सुखी जिसकी नीरोगी काया।
नील - (पुं.) (तत्.) - वि. नीले रंग का। जैसे: नील कमल। पुं. 1. बैंगनी नीला रंग जो इंडिगोफेरा नामक पौधे से निकाला जाता है। indigo जैसे: (चंपारण में होने वाली) नील की खेती। 2. राम की सेना का एक वानर जिसने अपने भाई नल के साथ समुद्र में पुल बाँधा था। 3. भारतीय गणना पद् धति में वह संख्या जो एक लाख करोड़ (दस बिलियन) के बराबर होती है यानी 1,00,00,00,00,00,000
नीलकंठ - (वि.) (तत्.) - जिसका कंठ नीले रंग का हो, नीले गले वाला। पुं. 1. चिड़िया जिसका कंठ हल्का नीला, पंख फ़िरोजी तथा गहरे नीले और पैर बादामी रंग के होते हैं। उदा. नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। 2. गहरे नीले कंठ वाला मयूर, मोर। 3. शिव, महादेव (विष पीने के कारण शंकर जी का गला नीला पड़ गया था) (पौराणिक आख्यान)।
नीलम - (पुं.) (तत्.) - नीले रंग का एक मूल्यवान पारदर्शी रत्न/पत्थर। नीलमणि (सफ़ीर)। उदा. कुछ लोग नीलम को अँगूठी में जड़वा कर धारण करते हैं।
नीलामी - (स्त्री.) - उदा. सरकार के भूमि-आवास विभाग द्वारा भूखंडों व दुकानों की नीलामी की जाएगी।
नीलाभ [नील + आभ] - (वि.) (तत्.) - नीली आभा वाला, जिसमें कुछ नीलेपन की झलक हो, हल्का नीला।
नीलाम - (पुं.) - (पुर्त.) वस्तुओं के बेचने का वह ढंग जिसमें सबसे अधिक दाम बोलने वाले को माल बेचा जाता है। auction
नीलामी - (स्त्री.) (दे.) - (पुर्त.) नीलाम करने की प्रक्रिया ओर तदनुसार संपन्न कार्य। दे. नीलाम।
नीलिमा - (स्त्री.) (तत्.) - नीलापन। उदा. स्वच्छ आकाश की नीलिमा आँखों को बहुत सुंदर लगती है।
नुकसान - (पुं.) (अर.) - आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकार की हानि। loss उदा. उसे व्यापार में इस साल बहुत नुकसान हुआ।
नुकसानदेह [नुकसान + देह = देने वाला] - (वि.) (अर.) - वि. (अर.+फा.) नुकसान पहुँचाने वाला, नुकसान देने वाला, हानिकारक।
नुक्कड़ - (पुं.) - (हिं. < नोक) गली का रास्ते का मोड़, गली का कोना। जैसे: नुक्कड़ नाटक।
नुक़्ता - (पुं.) (अर.नुक्त.) - 1. बिंदु, बिंदी। 2. अक्षरों पर नीचे लगाई जाने वाली बिंदी। जैसे: क़ ग़, ज़, ड़, ढ़, फ़ में लगे नुक्ते वर्णों के उच्चारण में विशेषता लाते हैं।
नुमाइश - (स्त्री.) - (फार.) 1. कलात्मक और निर्मित वस्तुओं का सार्वजनिक प्रदर्शन जो उनकी बिक्री बढ़ाने में मददगार होता है। उदा. इन दिनों, मोटर गाड़ियों की नुमाइश लगी हुई है। पर्या. प्रदर्शनी। उदा. अपनी कीमती वस्तुओं की नुमाइश करके अपना वैभव प्रदर्शित कर रहे हो, यह ठीक नहीं है। 2. दिखावा, तडक़-भडक़।
नुसखा/नुस्ख़ा - (पुं.) (अर.) - वह पर्ची जिस पर वैद् य, हकीम, डाक्टर रोगी का निदान कर उसके रोग के उपचार हेतु औषधि तथा उसके लेने की विधि लिखते हैं।
नूतनता [नूतन + ता] - (स्त्री.) (तत्.) - 1. नूतन नीचे की अवस्था या भाव। 2. नवीनता, नयापन। उदा. पत्रिका के इस अंक में नूतनता दिखाई देती है।
नूपुर - (पुं.) (तत्.) - टाँग और पैर के टखने के जोड़ पर पहना जाने वाला जे़वर, पैर का आभूषण। पर्या. पाजेब, पैंजनी; घुँघरू।
नृत्य - (पुं.) (तत्.) - संगीत एवं वाद् य की लय पर पदचाप, अंगसंचालन, मुद्रा प्रदर्शन एवं भावभंगिमाएँ प्रस्तुत करने की कलात्मक विधि। पर्या. नाच, नर्तन।
नृत्यांगना [नृत्य + अंगना = स्त्री] - (स्त्री.) (तत्.) - नृत्यकला में निपुण नारी, नृत्य करने वाली (नाचने वाली) महिला। पर्या. नर्तकी।
नृशंस - (वि.) (तत्.) - व्यु.अर्थ मनुष्यों पर अत्याचार करने वाला। सा.अर्थ क्रूर, निर्दय, अत्याचारी।
नेक - (वि.) (फा.) - जो व्यवहार में भला हो। जैसे: नेक व्यक्ति की सभी सराहना करते हैं।
नेकनाम - (वि.) (फा.) - जिसका अच्छा नाम हो; यशस्वी, कीर्तिमान। विलो. बदनाम।
नेकनामी - (स्त्री.) - प्रसिद्धि, कीर्ति, यश। उदा. उनकी नेकनामी से सभी परिचित हैं। विलो. बदनामी।
नेकनियती - (स्त्री.) - ईमानदार उदा. हमें उसकी नेकनियती पर कोई संदेह नहीं है। विलो. बदनीयती।
नेकनीयत - (वि.) - [फा नेक+अर.नीयत] अच्छी नियत वाला, ईमानदार। उदा. वह नेकनीयत इंसान है। विलो. बदनीयत।
नेकी - (स्त्री.) (फा.) - सा.अर्थ भलाई (का काम), सज्जनता। उदा. नेकी कर, कुएँ में डाल। विलो. बदी।
नेटवर्क - (पुं.) - अं. (कंप्यू.) सा.अर्थ तैयार जाली। जाल के स्वरूप में एकत्र जानकारियों का समूह, जिसमें सूचनाएँ, आँकड़े इत्यादि संग्रहीत होते हैं। इनका उपयोग कंप्यूटर के माध्यम से कोई भी कर सकता है। जालक्रम, संजाल।
नेता - (पुं.) (तत्.) - किसी उद्देश्यपूर्ति के लिए जन-समूह का मार्गदर्शन करने वाला व्यक्ति। पर्या. 1. सरदार, अगुवा leader
नेतृत्व - (पुं.) (तत्.) - 1. किसी उद्देश्यपूर्ति के लिए जनसमूह का मार्गदर्शन करने से संबंधित कार्य। 2. नेता का कार्य। दे. ‘नेता’।
नेत्र - (पुं.) (तत्.) - सा.अर्थ आँख, अक्षि, चक्षु। प्राणि. देखने की इंद्रिय। कशेरुकी (रीढ़ वाले) प्राणियों में यह सामान्यत: करोटि के खोखल में स्थित नेत्र गोलक के रूप में होती है।
नेत्रहीन - (वि.) (तत्.) - नेत्रज्योति से हीन; अंधा blind
नेत्रोद - - [नेत्र + उद (क)] शा.अर्थ आँख का पानी यानी तरल पदार्थ। जीव. कशेरुकियों की आँख के अग्र भाग (अग्र-कक्षिका) में लेन्स और श्वेत मंडल cornea के बीच का तरल। aqueous humour
नेफा - (पुं.) (.फा.) - पायजामा, लहँगा आदि को कमर पर कसने के लिए नाड़ा/डोरी डालने हेतु ऊपरी किनारे को दोहराकर बनाया गया सिला हुआ मार्ग।
नेम - (पुं.) (तद्.) - (बोलीगत प्रयोग < नियम) 1. नियम, क़ायदा। उदा. प्रेम में नेम कहाँ हे ऊधो!। 2. नित्य नियम जैसे: शौच, स्नान, संध्यावंदन, पूजापाठ आदि दैनिक कार्य।
नेवला - (पुं.) (तद्.<नकुल) - 1. स्तनपायी व मांसाहारी जंतु जो भूरे रंग का रोयेंदार लंबी पूँछ वाला व लगभग गिलहरी जैसे आकार का होता है तथा जो साँप को मार डालता है। पर्या. नकुल। उदा. नेवला जंगल या वीरान स्थान में बिल में रहने वाला बहुत ही फुर्तीला जंतु है।
नैतिक [नीति+इक] - (वि.) (तत्.) - नीति से संबंधित। दे. नीति।
नैनन - (पुं.) (तत्.<नयन) - 1. मनुष्यों और पशुओं की वह ज्ञानेंद्रिय जो किसी वस्तु को देखते हैं। 2. देखने की शक्ति। पर्या. आँख, नेत्र, चक्षु।
नैप्थेलीन - (पुं.) - (अं.) रसा. कोलतार के आसवन से प्राप्त ठोस, श्वेत, गंधयुक्त एवं ज्वलनशील हाइड्रोकार्बन। इसकी तीखी गंध से कीड़े भाग जाते हैं।
नैराश्य - (पुं.) (तत्.) - [निराशा + य] निराश होने का भाव; आशा का अभाव, नाउम्मीदी। दे. निराशा।
नैसर्गिक [निसर्ग+इक] - (वि.) (तत्.) - 1. प्रकृति संबंधी या प्राकृतिक 2. स्वाभाविक। उदा. कश्मीर की नैसर्गिक शोभा वर्णनातीत है।
नोक - (स्त्री.) (फा.) - किसी लंबी वस्तु के क्रमश: पतला होते हुए भाग का अंतिम सिरा जो बिंदुवत् होता है और चुभ सकता है। जैसे: सुर्ठ की नोक, तलवार की नोक आदि।
नोक-झोंक - (स्त्री.) ([फा.नोक+हि.झोंक] ) - दो या अधिक लोगों के बीच आपस में होने वाली वह कहा-सुनी, शाब्दिक झड़प या लड़ाई जिसमें एक-दूसरे के प्रति व्यंग्य बाण छोड़े जाते हैं और आक्षेप भरी बातें अधिक होती हैं; तू-तू-मैं-मैं। उदा. आज सुबह मेरे दो पड़ोसियों के बीच कूड़ा फेंकने को लेकर बहुत देर तक नोक-झोंक चलती रही।
नोचना स.क्रि. - (देश.) - 1. किसी भी जमी या लगी हुई चीज को झटके से अपनी ओर खींचकर अलग करना। जैसे: फूल नोचना। उदा. गीध, कौए आदि शव के माँस को नोच-नोच कर खाते हैं। उदा. आपसी लड़ाई में बच्चों ने एक-दूसरे का मुँह नोच लिया।
नोट - (पुं.) - (अं.) 1. किसी देश की काग़ज़ी मुद्रा। जैसे: सौ रुपए के ये पाँच नोट हैं। 2. कार्यालयी पत्र व्यवहार में संदर्भगत लिखी गई कोई टिप्पणी। 3. स्मरणार्थ लिखा गया संक्षिप्त विवरण। जैसे: उसने उनके व्याख्यान की प्रमुख- बातें नोट कर ली है। 4. किसी ग्रंथ पर लिखी गई आलोचनात्मक टिप्पणी।
नौकर - (पुं.) (फा.) - वेतन के बदले में काम करने वाला। पर्या. सेवक, खिदमतगार, कर्मचारी। जैसे: सरकारी नौकर, घरेलू नौकर आदि। स्त्री. -नौकरानी) विलो. मालिक।
नौकरी [नौकर + ई] - (स्त्री.) (फा.) - 1. नौकर का कार्य पर्या. सेवा, टहल। 2. वह सेवा कार्य जिसके बदले वेतन मिलता है।
नौका - (स्त्री.) (तत्.) - जलपरिवहन, जलक्रीड़ा आदि के काम आने वाला वह उपकरण जो जहाज़ से छोटा होता है। नाव, किश्ती।
नौपरिवहन - (पुं.) (तत्.) - नदी, समुद्र आदि में यातायात के रूप में प्रयुक्त किए जाने वाले नौका, जहाज़ आदि। navigation उदा. आजकल नौवहन सुविधाओं के बढ़ जाने से समुद्री यातायात सुगम हो गया है।
नौवहन - (पुं.) (तत्.) - दे. नौपरिवहन।
नौबत - (स्त्री.) (अर.) - 1. मंदिरों या राजमहलों में बजने वाले ऐश्वर्य या मंगल सूचक वाद् य विशेष शहनाई। 2. पारी, अवसर। जैसे: उसे राशन मिलने की अभी नौबत नहीं आई है। ला.अर्थ 3. दशा, हालत (बुरे अर्थ में) जैसे: अभी नौबत नहीं आई कि में लाठी लेकर चलूँ। मुहा. 1. नौबत आना – दशा बिगड़ जाना। 2. नौबत बजना – उत्सव मनाया जाना।
नौसिखिया - (पुं.) ([तद्.< नव + सीखना] ) - जिसने हाल ही में कोई काम सीखा हो, सीखना प्रारंभ किया हो या सीख रहा हो, किंतु अभी तक उसमें निपुणता या कुशलता प्राप्त न की हो या नहीं आई हो। पर्या. नवशिक्षित, नवशिक्षु। उदा. तुम अभी नौसिखिया कार चालक हो। सावधानी से कार चलाना।
न्याय - (पुं.) (तत्.) - 1. उचित या अनुचित होने का निर्धारण। fairness 2. पूर्व निर्धारित विधि (कानून के अनुसार) किसी के दोषी/अपराधी होने या निर्दोष/अपराधी न होने संबंधी निर्णय। justice 3. छह भारतीय आस्तिक दर्शनों में से एक जिसमें तर्क और प्रमाणों के आधार पर ज्ञान प्राप्ति पर बल दिया गया है।
न्यायपालिका - (स्त्री.) (तत्.) - विधि. राज्य के तीन अंगों में से एक जिसका कर्तव्य संविधान की रक्षा, नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और न्याय करना है। judiciary तु. विधायिका एवं कार्यपालिका।
न्यायप्रियता - (स्त्री.) (तत्.) - 1. न्याय प्रिय होने का भाव। 2. व्यक्ति का वह स्वभाव जिसमें सदा न्याय करने का गुण रहता है अथवा जिसे अन्याय सहन नहीं होता। दे. न्याय।
न्यायमूर्ति - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ न्याय का साक्षात् शरीरधारी रूप। विधि न्यायाधीशों के लिए संबोधन में प्रयुक्त आदरवाची शब्द।
न्यायसंगत - (वि.) (तत्.) - न्याय की दृष्टि से उचित। पर्या. न्यायोचित।
न्यायाधीश - (पुं.) (तत्.) - मुकदमों पर कानून के अनुसार विचारपूर्वक निर्णय देने वाला, न्यायपालिका का प्राधिकारी। पर्या. जज। तु. न्यायमूर्ति।
न्यायालय [न्याय + आलय] - (पुं.) (तत्.) - न्यायाधीश का कार्यालय जहाँ मुकदमों की सुनवाई और निर्णय होते हैं। पर्या. कचहरी, अदालत, कोर्ट court of justice
न्यायोचित [न्याय + उचित] - (वि.) (तत्.) - न्याय के अनुसार संगत या ठीक। पर्या. न्यायसंगत। उदा. आपकी माँगें न्यायोचित्त हैं। इन पर अगली बैठक में विचार किया जाएगा।
न्यारा - (वि.) (तद्.<निर्निकट) - उद्धति, मेल, गुण आदि में दूसरे से भिन्न, पृथक्, अलग। उदा. तुम्हारा पढ़ाने का तरीका सबसे न्यारा है। 2. सबसे न्यारा हिंदुस्तान।
न्यून - (वि.) (तत्.) - कम, थोड़ा। विलो. अधिक।
न्यूनकोण - (पुं.) (तत्.) - ज्या. 90° (नब्बे अंश) से कम वाला कोण। acute angle
न्यूनतम [न्यून + तम (अतिशय कोटि सूचक प्रत्यय] - (वि.) (तत्.) - कम से कम (मिनिमम) उदा. पहले परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए सौ में से न्यूनतम तैंतीस अंक अपेक्षित थे।
न्यूनतम मज़दूरी - (स्त्री.) (तत्.+ फा.) - कम-से-कम मज़दूरी यानी जिससे कम मज़दूरी देना कानूनन जुर्म माना जाता है। उदा. सरकार ने अकुशल/कुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मज़दूरी की दरें घोषित कर दी है।
न्योता - (पुं.) (देश.) - किसी मांगलिक कार्य या उत्सव में सम्मिलित होने के लिए इष्ट संबंधियों, मित्रों आदि को भेजा गया बुलावा;
न्योतना स.क्रि. - (देश.) - बुलाना, आमंत्रित/ निमंत्रित करना।