विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/शाक-ष
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
शाकः —पुं॰—-—शक्यते भोक्तुम् - शक् + घञ्—शाक, साग -भाजी, खाद्यपत्ते, फल या कन्द जो शाक की भांति उपयोग में लाये जायं
शाकम् —नपुं॰—-—शक्यते भोक्तुम् - शक् + घञ्—शाक, साग -भाजी, खाद्यपत्ते, फल या कन्द जो शाक की भांति उपयोग में लाये जायं
शाकः —पुं॰—-—-—शक्ति, सामर्थ्य, ऊर्जा
शाकः —पुं॰—-—-—सागौन का वृक्ष
शाकः —पुं॰—-—-—शिरीष का वृक्ष
शाकः —पुं॰—-—-—एक जाति का नाम
शाकः —पुं॰—-—-—वर्ष, विशेषतः शालिवाहन संवत्सर
शाकाङ्गम् —नपुं॰—शाकः-अङ्गम्—-—मिर्च
शाकाम्लम् —नपुं॰—शाकः- अम्लम्—-—महादा, इमली
शाकाख्यः —पुं॰—शाकः- आख्यः—-—सागौन का वृक्ष
शाकाख्यम् —नपुं॰—शाकः- आख्यम्—-—शाकभाजी
शाकाहारः —पुं॰—शाकः- आहारः—-—शाकभाजी खाने वाला (वनस्पति खाकर जीवित रहने वाला)
शाकचुक्रिका —स्त्री॰—शाकः-चुक्रिका—-—इमली
शाकतरुः —पुं॰—शाकः-तरुः—-—सागौन का वृक्ष
शाकपणः —पुं॰—शाकः-पणः—-—मुट्ठीभर भार के बराबर तोल
शाकपणः —पुं॰—शाकः-पणः—-—मुट्ठीभर शाकभाजी
शाकपार्थिवः —पुं॰—शाकः-पार्थिवः—-—अपने नाम से वर्ष चलाने का शौकीन
शाकप्रति —अव्य॰—शाकः-प्रति—-—थोड़ी सी वनस्पति
शाकयोग्यः —पुं॰—शाकः-योग्यः—-—धनिया
शाकवृक्षः —पुं॰—शाकः-वृक्षः—-—सागौन का पेड़
शाकशाकटम् —नपुं॰—शाक-शाकटम्—-—साग भाजी का खेत, रसोई के योग्य सब्जियों का उद्यान
शाकशाकिनम् —नपुं॰—शाक-शाकिनम्—-—साग भाजी का खेत, रसोई के योग्य सब्जियों का उद्यान
शाकट —वि॰—-—शकट + अण्—गाड़ी सम्बन्धी
शाकट —वि॰—-—शकट + अण्—गाड़ी में बैठकर जाने वाला
शाकटः —पुं॰—-—-—गाड़ी खींचने वाला बैल
शाकटः —पुं॰—-—-—श्लेष्मान्तक वृक्ष
शाकटायनः —पुं॰—-—शकटस्यापत्यम्-शकट + फक्—भाषाविज्ञान और व्याकरण का पंडित जिसका पाणिनि और यास्क ने कई बार उल्लेख किया है
शाकटिक —वि॰—-—शकट + ठक्—गाड़ी सम्बन्धी
शाकटिक —वि॰—-—शकट + ठक्—गाड़ी में बैठकर जाने वाला
शाकटीनः —पुं॰—-—शकट + खञ्—गाड़ी में समाने योग्य बोझ, बीस तुला के समान बोझ की तोल
शाकल —वि॰—-—शकल + अण्—टुकड़े से सम्बन्ध रखने वाला
शाकलः —पुं॰ब॰ व॰—-—-—ॠग्वेद की एक शाखा, इस शाखा के अनुयायी
शाकलप्रातिशाख्यम् —नपुं॰—शाकल-प्रातिशाख्यम्—-—ऋग्वेद का प्रातिशाख्य
शाकलशाखा —स्त्री॰—शाकल-शाखा—-—ऋग्वेद का परम्परागत पाठ जो शाकल शाखा में प्रचलित है
शाकल्यः —पुं॰—-—शकलस्यापत्यम् - यञ्—एक प्राचीन वैयाकरण जिसका उल्लेख पाणिनि ने किया है
शाकारी —स्त्री॰—-—-—प्राकृत का एक निम्नतम रूप, शकार द्वारा बोली गई बोली
शाकिनम् —नपुं॰—-—शाक + इनच्—खेत
शाकिनी —स्त्री॰—-—शाकिन् + ङीप्—साग-भाजी का खेत
शाकिनी —स्त्री॰—-—-—दुर्गादेवी की सेविका ( जो एक पिशाचिनी या परी समझी जाती है )
शाकुन —वि॰—-—शकुन + अण्—पक्षियों से सम्बन्ध रखने वाला
शाकुन —वि॰—-—शकुन + अण्—सगुन सम्बन्धी
शाकुन —वि॰—-—शकुन + अण्—शकुनसम्बन्धी
शाकुनिकः —पुं॰—-—शकुनेन पक्षिवधादिना जीवति ठञ्—बहेलिया, चिड़ीमार
शाकुनिकम् —नपुं॰—-—-—शकुनों की व्याख्या
शाकुनेयः —पुं॰—-—शकुनि + ढक्—छोटा उल्लू
शाकुन्तलः —पुं॰—-—शकु्न्तला + अण्—भरत का मातृपरक नाम (शकुन्तला का पुत्र)
शाकुन्तलम् —नपुं॰—-—-—कालिदास का अभिज्ञान शाकुन्तल नामक नाटक
शाकुलिकः —पुं॰—-—शकुल + ठक्—मछुआ, मछली मारने वाला
शाक्करः —पुं॰—-—शक्कर + अण्—बैल
शक्ति —वि॰—-—शक्ति + अण्—शक्ति सम्बन्धी
शक्ति —वि॰—-—शक्ति + अण्—दिव्यशक्ति की स्त्री प्रतिमा से सम्बन्ध रखने वाला
शाक्तिकः —पुं॰—-—शक्ति + ठक्—शक्ति का पूजक
शाक्तिकः —पुं॰—-—शक्ति + ठक्—बर्छीधारी, भाला रखने वाला
शाक्तीकः —पुं॰—-—शक्ति + ईकक्—बर्छी रखने वाला, भालाधारी
शाक्तेयः —पुं॰—-—शक्ति + ढक्—शक्ति का उपासक
शाक्यः —पुं॰—-—शक् + घञ् तत्र साधुः यत्— बुद्ध के कुटुम्ब का नाम
शाक्यः —पुं॰—-—शक् + घञ् तत्र साधुः यत्—बुद्ध
शाक्यभिक्षुकः —पुं॰—शाक्य-भिक्षुकः—-—बौद्धभिक्षु
शाक्यमुनिः —पुं॰—शाक्य-मुनिः—-—बुद्ध के विशेषण
शाक्यसिंहः —पुं॰—शाक्य-सिंहः—-—बुद्ध के विशेषण
शाक्री —स्त्री॰—-—शक्र + अण् + ङीप्—इन्द्र की पत्नी शची
शाक्री —स्त्री॰—-—शक्र + अण् + ङीप्—दुर्गादेवी
शाक्वरः —स्त्री॰—-—शक्वर + अण्—बैल
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—(वृक्ष आदि की) डाली, शाख
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—भुजा
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—दल, अनुभाग, गुट
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—किसी कार्य का भाग या उपभाग
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—सम्प्रदाय, शाखा, पन्थ
शाखा —स्त्री॰—-—शाखति गगनं व्याप्नोति -शाख् + अच् + टाप्—परम्परा प्राप्त वेद का पाठ, किसी सम्प्रदाय द्वारा मान्यताप्राप्त परम्परागत पाठ यथा शाकल शाखा, आश्वलायन शाखा, बाष्कल शाखा आदि
शाखाचन्द्रन्यायः —पुं॰—शाखा-चन्द्रन्यायः—-—
शाखानगरम् —नपुं॰—शाखा-नगरम्—-—नगराञ्चल, नगर परिसर
शाखापुरम् —नपुं॰—शाखा-पुरम् —-—नगराञ्चल, नगर परिसर
शाखापित्तः —पुं॰—शाखा-पित्तः—-—शरीर के हाथ, कन्धा आदि छोंरों में सूजन
शाखाभृत् —पुं॰—शाखा-भृत्—-—वृक्ष
शाखाभेद —वि॰—शाखा-भेद—-—(वेद की) शाखाओं का अन्तर
शाखामृगः —पुं॰—शाखा-मृगः—-—बन्दर, लंगूर
शाखामृगः —पुं॰—शाखा-मृगः—-—गिलहरी
शाखारण्डः —पुं॰—शाखा-रण्डः—-—अपनी शाखा के प्रति द्रोह करने वाला, वह ब्राह्मण जिसने अपनी वैदिक शाखा को बदल दिया है
शाखारथ्या —स्त्री॰—शाखा-रथ्या—-—गली, वीथिका
शाखालः —पुं॰—-—शाखा + ला + क—एक प्रकार का बेंत, वानीर
शाखिन् —वि॰—-—शाखा + इनि—शाखाधारी
शाखिन् —वि॰—-—शाखा + इनि—शाखाओं से युक्त, शाखामय
शाखिन् —वि॰—-—शाखा + इनि—(वेद के) किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्ध रखने वाला
शाखिन् —पुं॰—-—-—वेद की किसी भी शाखा का अनुयायी
शाखोटः —पुं॰—-—शाख् + ओटन —एक वृक्ष, पेड़
शाखोटकः —पुं॰—-—शाखोट + कन्—एक वृक्ष, पेड़
शाङ्करः —पुं॰—-—शङ्कर + अण्—बैल
शाङ्करिः —पुं॰—-—शङ्कर + इञ्—कार्तिकेय
शाङ्करिः —पुं॰—-—शङ्कर + इञ्—गणेश
शाङ्करिः —पुं॰—-—शङ्कर + इञ्—अग्नि
शाङ्खिकः —पुं॰—-—शङ्ख + ठक्—शङ्खकार, शङ्ख को काटकर उसकी चीजें बनाने वाला
शाङ्खिकः —पुं॰—-—शङ्ख + ठक्—एक वर्णसङ्कर जाति
शाङ्खिकः —पुं॰—-—शङ्ख + ठक्—शङ्ख बजाने वाला
शाटः —पुं॰—-—शट् + घञ्—वस्त्र, कपड़ा
शाटः —पुं॰—-—शट् + घञ्—अधोवस्त्र, साड़ी
शाटी —स्त्री॰—-—शाट + ङीष्—वस्त्र, कपड़ा
शाटी —स्त्री॰—-—शाट + ङीष्—अधोवस्त्र, साड़ी
शाटकः —पुं॰—-—शाट + कन्—वस्त्र, कपड़ा, अधोवस्त्र, साड़ी
शाटकम् —नपुं॰—-—शाट + कन्—
शाठ्यम् —नपुं॰—-—शठ + ष्यञ्—बेईमानी, छल, कपट, चालाकी, जालसाज़ी, दुष्कर्म
शाण —वि॰—-—शणेन निर्वृत्तम् -अण्—सन का बना हुआ, पटसन का बना हुआ
शाणः —पुं॰—-—-—सान रखने वाला पत्थर
शाणः —पुं॰—-—-—चार माशे की तोल
शाणम् —नपुं॰—-—-—मोटा कपड़ा, बोरे या थैले आदि बनाने का कपड़ा
शाणम् —नपुं॰—-—-—सन का बना वस्त्र
शाणाजीवः —पुं॰—शाण-आजीवः—-—शस्त्रनिर्माता, सिकलीगर
शाणिः —पुं॰—-—शण् + इण्—(एक पौधा जिसके रेशों से वस्त्र बनता है) पटुआ
शाणित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शण् + णिच् + क्त—सान पर रक्खा हुआ, पीसा हुआ, (शाण पर रखकर) पैनाया हुआ
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—कसौटी
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—सान
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—आरा
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—सन का बना वस्त्र
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—फटा कपड़ा, चिथड़ा
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—छोटा पर्दा या तंबू
शाणी —स्त्री॰—-—शण् + ङीप्—अंगविक्षेप, हाथ या आँख आदि से संकेत करना
शाणीरम् —नपुं॰—-—शण् + ईरण्—शोण नदी का तट, शोण नदी का भूभाग
शाण्डिल्यः —पुं॰—-—शण्डिल + यञ्—एक ऋषि जिसने विधिशास्त्र पर ग्रन्थ लिखा
शाण्डिल्यः —पुं॰—-—शण्डिल + यञ्—बिल्ववृक्ष, बेल का पेड़
शाण्डिल्यः —पुं॰—-—शण्डिल + यञ्—अग्नि का रूप
शाण्डिल्यगोत्रम् —नपुं॰—शाण्डिल्य-गोत्रम्—-—शांडिल्य का परिवार
शात —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—तीक्ष्ण किया हुआ, पैनाया हुआ
शात —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—पतला, दुबला
शात —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—दुर्बल, कमजोर
शात —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—सुन्दर, मनोहर
शात —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—प्रसन्न, फलता-फूलता
शातः —पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
शातम् —नपुं॰—-—-—आनन्द, प्रसन्नता, खुशी
शातोदरी —स्त्री॰—शात-उदरी—-—कृशोदरी, पतली कमर वाली स्त्री
शातशिख —वि॰—शात-शिख—-—तेज़ नोक वाला, तीक्ष्ण नोकदार
शातकुम्भम् —नपुं॰—-—शतकुंभे पर्वते भवम् - अण्—सोना
शातकुम्भम् —नपुं॰—-—शतकुंभे पर्वते भवम् - अण्—धतूरा
शातकौस्तुभम् —नपुं॰—-—शतकुम्भ + अण्—सुवर्ण, सोना
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—पैनाना, तेज़ करना
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—काटने वाला, विनाशकर्ता
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—गिराना या नष्ट करना
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—कुम्हलाहट पैदा करना
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—पतला या छोटा होना, पतलापन
शातनम् —नपुं॰—-—शो + णिच् + तङ् + ल्युट्—मुर्झाना, कुम्हलाना
शातपत्रकः —पुं॰—-—शतपत्र + अण् + कन्—चाँद का प्रकाश
शातपत्रकी —स्त्री॰—-—-—चाँद का प्रकाश
शातभीरुः —पुं॰—-—शाताः दुर्बलाः पान्थाः भीरवो यस्याः -ब॰ स॰— एक प्रकार की मल्लिका
शातमान —वि॰—-—शतमानेन क्रीतम् - अण्—एक सौ में मोल लिया हुआ
शात्रव —वि॰—-—शत्रु + अण्—शत्रुसंबंधी
शात्रव —वि॰—-—शत्रु + अण्—विरोधी, शत्रुतापूर्ण
शात्रवम् —नपुं॰—-—-—शत्रुओं का समूह
शात्रवम् —नपुं॰—-—-—शत्रुता, दुश्मनी
शात्रवीय —वि॰—-—शत्रु + छ—शत्रुसंबंधी
शात्रवीय —वि॰—-—शत्रु + छ—विरोधी, शत्रुतापूर्ण
शादः —पुं॰—-—शद् + घञ्—छोटी घास
शादः —पुं॰—-—शद् + घञ्—कीचड़
शादहरितः —पुं॰—शाद-हरितः—-—नये घास के कारण हरियाली भूमि, वह भूमि जिस पर हरियाली छा गई है
शादहरितम् —नपुं॰—शाद-हरितम्—-—नये घास के कारण हरियाली भूमि, वह भूमि जिस पर हरियाली छा गई है
शाद्वल —वि॰—-—शादाः सन्त्यत्र वलच्—तृणयुक्त
शाद्वल —वि॰—-—शादाः सन्त्यत्र वलच्—जहाँ नई घास, या हरी हरी घास उग आई हो
शाद्वल —वि॰—-—शादाः सन्त्यत्र वलच्—हरा भरा, सब्ज़, हरियाली से युक्त
शाद्वलः —पुं॰—-—-—घास से युक्त भूमि, हरियाली, चरागाह
शाद्वलम् —नपुं॰—-—-—घास से युक्त भूमि, हरियाली, चरागाह
शान् —भ्वा॰ उभ॰ <शीशांसति>, <शीशांसते>—-—-—तेज़ करना, पैनाना
शानः —पुं॰—-—शान् + अच्—कसौटी
शानः —पुं॰—-—शान् + अच्—सान का पत्थर
शानवादः —पुं॰—शान-वादः—-—चन्दन पीसने का पत्थर
शानवादः —पुं॰—शान-वादः—-—पारियात्र पर्वत
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—प्रसन्न किया हुआ, दमन किया हुआ, धीरज दिलाया हुआ, सन्तुष्ट किया हुआ, प्रशान्त
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—चिकित्सित, सान्त्वना दिया हुआ
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—घटाया हुआ, कम किया हुआ, समाप्त किया हुआ, हटाया हुआ, बुझाया हुआ
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—विरत, ठहराया हुआ
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—मृत, उपरत
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—शान्त किया हुआ, दबाया हुआ
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—सौम्य, चुपचाप, बाधाहीन, निस्तब्ध, मूक, मौन
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—सधाया हुआ, पाला हुआ
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—आवेशरहित, आराम से, सन्तुष्ट
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—छायादार
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—पवित्रीकृत
शान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + क्त—शुभ (शकुन)
शान्तं पापम् —अव्य॰—-—-—`अहो! नहीं, यह कैसे हो सकता है, भगवान् करे ऐसी अशुभ या दुर्भाग्यपूर्ण घटना न घटे’
शान्तः —पुं॰—-—-—वैरागी, संन्यासी
शान्तः —पुं॰—-—-—शान्ति निस्तब्धता, मौनभाव, सांसारिक विषय वासनाओं के प्रति तटस्थता की प्रभावना
शान्तम् —अव्य॰—-—-—बस, और नहीं ऐसा नहीं शर्म की बात है, चुप रहो, भगवान् न करे
शान्तात्मन् —वि॰—शान्त-आत्मन्—-—सौम्य, शान्तमना, धीर, स्वस्थमना
शान्तचेतस् —वि॰—शान्त-चेतस्—-—सौम्य, शान्तमना, धीर, स्वस्थमना
शान्ततोय —वि॰—शान्त-तोय—-—जिसका पानी स्थिर हो
शान्तरसः —पुं॰—शान्त-रसः—-—मौनाभाव
शान्तनवः —पुं॰—-—शन्तनु + अण्—शन्तनु का पुत्र भीष्म
शान्ता —स्त्री॰—-—शान्त + टाप्—दशरथ की पुत्री जिसे लोमपाद ऋषि ने गोद ले लिया था तथा जो ऋष्यशृङ्ग को ब्याही गई थी
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—प्रशमन, निराकरण, सान्तवना, हटाव
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—धैर्य, प्रशान्तता, निःशब्दता, अमन-चैन, विश्राम
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—वैरनिरोध
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—विराम, निवृत्ति
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—आवेश का अभाव, मौनभाव, सभी सांसारिक भोगों के प्रति पूर्ण उदासीनता
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—सान्तवना, ढाढस
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—सामञ्जस्यविधान, विरोधोपशमन
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—भूख की तृप्ति
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—प्रायश्चित अनुष्ठान, पाप को दूर करने के लिए तुष्टिप्रद अनुष्ठान
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—सौभाग्य, बधाई, आशीर्वाद, माङ्गलिकता
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम् + क्तिन्—दोषमार्जन, कलंक से मुक्ति, परिरक्षण
शान्त्युदम् —नपुं॰—शान्ति-उदम्—-—शान्तिकर तथा प्रसादपूर्ण जल
शान्त्युदकम् —नपुं॰—शान्ति-उदकम्—-—शान्तिकर तथा प्रसादपूर्ण जल
शान्तिजलम् —नपुं॰—शान्ति-जलम्—-—शान्तिकर तथा प्रसादपूर्ण जल
शान्तिकर —वि॰—शान्ति-कर—-—सान्त्वक, प्रशामक
शान्तिकारिन् —वि॰—शान्ति-कारिन्—-—सान्त्वक, प्रशामक
शान्तिगृहम् —नपुं॰—शान्ति-गृहम्—-—विश्रामकक्ष
शान्तिहोमः —पुं॰—शान्ति-होमः—-—पाप का निस्तारण करने के लिए यज्ञ करना
शान्तिक —वि॰—-—शान्ति + कन्—प्रायश्चित्तात्मक, सान्त्वनाप्रद, तुष्टिकर
शान्तिकम् —नपुं॰—-—-—संकट को दूर करने के लिए किया गया अनुष्ठान
शापः —पुं॰—-—शप् + घञ्—अभिशाप, अवक्रोश, फटकार
शापः —पुं॰—-—शप् + घञ्—सौगन्ध, शपथोक्ति
शापः —पुं॰—-—शप् + घञ्—दुर्वचन, मिथ्या आरोप
शापान्तः —स्त्री॰—शाप-अन्तः—-—अभिशाप की समाप्ति
शापावसानम् —स्त्री॰—शाप-अवसानम्—-—अभिशाप की समाप्ति
शापनिवृत्तिः —स्त्री॰—शाप-निवृत्तिः—-—अभिशाप की समाप्ति
शापास्त्रः —पुं॰—शाप-अस्त्रः—-—`अभिशाप को ही जिसने अपना आयुध बनाया है’ ऋषि, महात्मा
शापोत्सर्गः —पुं॰—शाप-उत्सर्गः—-—अभिशाप का उच्चारण
शापोद्धारः —पुं॰—शाप-उद्धारः—-—अभिशाप से छुटकारा
शापमुक्तिः —स्त्री॰—शाप-मुक्तिः —-—अभिशाप से छुटकारा
शापमोक्षः —पुं॰—शाप-मोक्षः—-—अभिशाप से छुटकारा
शापग्रस्त —वि॰—शाप-ग्रस्त—-—अभिशाप से दबकर परिश्रम करने वाला
शापमुक्त —वि॰—शाप-मुक्त—-—अभिशाप से जिसने छुटकारा पा लिया है
शापयन्त्रित —वि॰—शाप-यन्त्रित—-—अभिशाप के कारण नियन्त्रणपूर्ण
शापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शप् + णिच् + क्त—सौगन्ध से बंधा हुआ, शपथपूर्वक उक्त
शापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शप् + णिच् + क्त—गृहीशपथ, जिसने शपथ ले ली है
शाफरिकः —पुं॰—-—शफरान् हन्ति-शफर + ठक्—मछुआ, मछली पकड़ने वाला
शाबर —वि॰—-—शबर + अण्—असभ्य, जंगली
शाबर —वि॰—-—शबर + अण्—नीच, कमीना, अधम
शावर —वि॰—-—शवर + अण्—असभ्य, जंगली
शावर —वि॰—-—शवर + अण्—नीच, कमीना, अधम
शाबरः —पुं॰—-—-—अपराध, दोष
शाबरः —पुं॰—-—-—पाप, दुष्टता
शाबरः —पुं॰—-—-—लोध्र नामक वृक्ष
शाबरी —स्त्री॰—-—-—प्राकृत बोली का एक निम्नरूप (पहाड़ी लोगों से बोला जाने वाला)
शाबरभेदाख्यम् —नपुं॰—शाबर-भेदाख्यम्—-—तांबा
शाब्द —वि॰—-—शब्द + अण्—शब्द संबंधी या शब्द से व्युत्पन्न
शाब्द —वि॰—-—शब्द + अण्—ध्वनि पर निर्भर या ध्ननि सम्बन्धी
शाब्द —वि॰—-—शब्द + अण्—शाब्दिक, मौखिक
शाब्द —वि॰—-—शब्द + अण्—ध्वननशील, मुखर
शाब्दबोधः —पुं॰—शाब्द-बोधः—-—शब्दों के अर्थ का अवबोध या प्रत्यक्षीकरण
शाब्दव्यंजना —स्त्री॰—शाब्द-व्यंजना—-—शब्दों पर आधारित व्यग्योक्ति
शाब्दिक —वि॰—-—शब्द + ठक्—ज़बानी, मौखिक
शाब्दिक —वि॰—-—शब्द + ठक्—निनादी
शाब्दिकः —पुं॰—-—-—वैयाकरण
शामनः —पुं॰—-—शमन् + अण्—यम
शामनम् —नपुं॰—-—-—हत्या, वध
शामनम् —नपुं॰—-—-—शान्ति, अमन-चैन
शामनी —स्त्री॰—-—-—दक्षिण दिशा
शामित्रम् —नपुं॰—-—शम् + णिच् + इत्रच्—यज्ञ करना
शामित्रम् —नपुं॰—-—शम् + णिच् + इत्रच्—मेघ, यज्ञ में पशुवध करना
शामित्रम् —नपुं॰—-—शम् + णिच् + इत्रच्—यज्ञ के लिए बलिपशु बांधना
शामित्रम् —नपुं॰—-—शम् + णिच् + इत्रच्—यज्ञीय पात्र
शामिलम् —नपुं॰—-—शमी + ष्लच्—भस्म, राख
शामिली —स्त्री॰—-—शामिल + ङीष्—यज्ञीय स्रुवा, स्रुच्
शाम्बरी —स्त्री॰—-—शम्बर + अण् + ङीप्—बाजीगरी, जादूगरी
शाम्बरी —स्त्री॰—-—शम्बर + अण् + ङीप्—जादूगरनी
शाम्बविकः —पुं॰—-—शम्बु + ठक्—शंखों का व्यापारी
शाम्बुक —वि॰—-—शम्बुक + अण्—द्विकोषीय घोंघा
शाम्बूक —वि॰—-—-—द्विकोषीय घोंघा
शाम्भव —वि॰—-—शम्भु + अण्—शिवसम्बन्धी
शाम्भवः —पुं॰—-—-—शिवोपासक
शाम्भवः —पुं॰—-—-—शिव जी का पुत्र
शाम्भवः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का विष
शाम्भवम् —नपुं॰—-—-—देवदारु वृक्ष
शाम्भवी —स्त्री॰—-—शाम्भव + ङीप्—पार्वती
शाम्भवी —स्त्री॰—-—शाम्भव + ङीप्—एक पौधा, नीलदूर्बा
शायकः —पुं॰—-—शो + ण्वुल्—बाण
शायकः —पुं॰—-—शो + ण्वुल्—तलवार
शार् —चुरा॰ उभ॰ < शारयति>, <शारयते>—-—-—दुर्बल करना
शार् —चुरा॰ उभ॰ < शारयति>, <शारयते>—-—-—कमज़ोर होना
शार —वि॰—-—शार् + अच्, शृ + घञ् वा—चितकबरा, धब्बेदार चित्तीदार, शबल
शारः —पुं॰—-—-—रंगबिरंगा रंग
शारः —पुं॰—-—-—शतरंज का मोहरा, गोट
शारः —पुं॰—-—-—क्षति पहुँचाने वाला, आघात करने वाला
शारङ्गः —पुं॰—-—शारम् अङ्गम् यस्य - ब॰ स॰—चातक पक्षी
शारङ्गः —पुं॰—-—शारम् अङ्गम् यस्य - ब॰ स॰—मोर
शारङ्गः —पुं॰—-—शारम् अङ्गम् यस्य - ब॰ स॰—भौंरा
शारङ्गः —पुं॰—-—शारम् अङ्गम् यस्य - ब॰ स॰—हरिण
शारङ्गः —पुं॰—-—शारम् अङ्गम् यस्य - ब॰ स॰—हाथी
शारङ्गी —स्त्री॰—-—शारङ्ग + ङीष्—एक संगीत वाद्य विशेष जो गज से बजाया जाता है,
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—पतझड़ से संबंध रखने वाला, शरत्कालीन
शारदी —स्त्री॰—-—-—पतझड़ से संबंध रखने वाला, शरत्कालीन
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—वार्षिक
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—नया, नूतन
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—अनुभवहीन, नौसिखिया
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—विनीत, शर्मीला, लज्जालु
शारद —वि॰—-—शरदि भवम्-अण्—शंकालु, साहसहीन
शारदः —पुं॰—-—-—शरत्कालीन बीमारी
शारदः —पुं॰—-—-—शरत्कालीन धूप
शारदः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लोबिया या उड़द
शारदः —पुं॰—-—-—बकुल का वृक्ष, मौलसिरी
शारदी —स्त्री॰—-—-—कार्तिक मास की पूर्णिमा
शारदम् —नपुं॰—-—-—अनाज, धान्य
शारदम् —नपुं॰—-—-—श्वेत कमल
शारदा —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की वीणा या सारंगी
शारदा —स्त्री॰—-—-—सरस्वती
शारदिकः —पुं॰—-—शरद् + ठञ्—शरत्कालीन रोग
शारदिकः —पुं॰—-—शरद् + ठञ्—शरत्कालीन धूप या गर्मी
शारदिकम् —नपुं॰—-—-—शरत्कालीन या वार्षिक श्राद्ध
शारदीय —वि॰—-—शरद् + छ—शरत्कालीन, पतझड़ संबन्धी
शारिः —पुं॰—-—शृ + इञ्—शतरंज का मोहरा, गोट
शारिः —पुं॰—-—शृ + इञ्—छोटी गोल गेंद
शारिः —पुं॰—-—शृ + इञ्—एक प्रकार का पासा
शारि —स्त्री॰—-—-—सारिका पक्षी, मैना
शारि —स्त्री॰—-—-—जालसाज़ी, चाल
शारि —स्त्री॰—-—-—हाथी की झूल
शारिपट्टः —पुं॰—शारिः-पट्टः—-—शतरंज खेलने की बिसात
शारिफलम् —नपुं॰—शारिः-फलम्—-—शतरंज खेलने की बिसात
शारिफलकः —पुं॰—शारिः-फलकः—-—शतरंज खेलने की बिसात
शारिकम् —नपुं॰—शारिः-कम्—-—शतरंज खेलने की बिसात
शारिका —स्त्री॰—-—शारि + कन् + टाप्—एक पक्षी, मैना
शारिका —स्त्री॰—-—शारि + कन् + टाप्—तन्त्रयुक्त वाद्ययत्रों को बजाने वाला गज
शारिका —स्त्री॰—-—शारि + कन् + टाप्—शतरंज खेलना
शारिका —स्त्री॰—-—शारि + कन् + टाप्—शतरंज का मोहरा, गोटी
शारी —स्त्री॰—-—शारि + ङीष्—एक पक्षी, मैना
शारीर —वि॰—-—शरीर + अण्—शरीर से संबद्ध शारीरिक, दैहिक
शारीर —वि॰—-—शरीर + अण्—शरीरधारी, मूर्तिमान्
शारीरः —पुं॰—-—-—शरीरधारी,जीवात्मा, मानवात्मा, वैयक्तिक आत्मा
शारीरः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की औषधि
शारीरक —वि॰—-—शरीर + कन् + अण्—शरीर सम्बन्धी
शारीरकम् —नपुं॰—-—-—मूर्तिमान् जीव, जीव के स्वरूप की पृच्छा (ब्रह्मसूत्रों पर शङ्कराचार्य द्वारा किया गया भाष्य)
शारीरकसूत्रम् —नपुं॰—शारीरक-सूत्रम्—-—वेदान्त दर्शन के सूत्र
शारीरिक —वि॰—-—शरीर + ठक्—दैहिक, शरीर संबन्धी, भौतिक
शारुक —वि॰—-—शृ + उकञ्—अनिष्टकर, चोट पहुँचाने वाला, उपद्रवी
शार्ककः —पुं॰—-—शर्क + अण् + कन्—दानेदार चमकीली खांड़, मिसरी
शार्कर —वि॰—-—शर्करा + अण्—चीनी का बना हुआ, शर्करामिश्रित
शार्कर —वि॰—-—शर्करा + अण्—पथरीला, कंकरीला
शार्करः —पुं॰—-—-—कंकरीला स्थान
शार्करः —पुं॰—-—-—दूध का झाग, पपड़ी
शार्ङ्ग —वि॰—-—शृङ्ग + अण्—सींग का बना हुआ, सींग वाला
शार्ङ्ग —वि॰—-—शृङ्ग + अण्—धनुर्धारी, धनुष से सुसज्जित
शार्ङ्गः —पुं॰—-—-—विष्णु का धनुष
शार्ङ्गम् —नपुं॰—-—-—विष्णु का धनुष
शार्ङ्गधन्वन् —पुं॰—शार्ङ्ग-धन्वन्—-—विष्णु के विशेषण
शार्ङ्गधरः —पुं॰—शार्ङ्ग-धरः—-—विष्णु के विशेषण
शार्ङ्गपाणिः —पुं॰—शार्ङ्ग-पाणिः—-—विष्णु के विशेषण
शार्ङ्गधृत् —पुं॰—शार्ङ्ग-धृत्—-—विष्णु के विशेषण
शार्ङ्गिन् —पुं॰—-—शार्ङ्ग + इनि—तीरंदाज, धनुर्धारी
शार्ङ्गिन् —पुं॰—-—शार्ङ्ग + इनि—विष्णु का विशेषण
शार्दूलः —पुं॰—-—शृ + ऊलल्, दुक् च—व्याघ्र
शार्दूलः —पुं॰—-—शृ + ऊलल्, दुक् च—चीता
शार्दूलः —पुं॰—-—शृ + ऊलल्, दुक् च—राक्षस
शार्दूलः —पुं॰—-—शृ + ऊलल्, दुक् च—एक पक्षी
शार्दूलः —पुं॰—-—शृ + ऊलल्, दुक् च— प्रमुख या पूज्य पुरुष, अग्रणी
शार्दूलचर्मन् —नपुं॰—शार्दूल-चर्मन्—-—व्याघ्र की खाल
शार्दूलविक्रीडितम् —नपुं॰—शार्दूल-विक्रीडितम्—-—चीते की क्रीड़ा
शार्दूलविक्रीडितम् —नपुं॰—शार्दूल-विक्रीडितम्—-—छन्द या वृत्त
शार्वर —वि॰—-—शर्वरी + अण्—रात्रिकालीन
शार्वर —वि॰—-—शर्वरी + अण्—उपद्रवी, प्राणहर
शार्वरम् —नपुं॰—-—-—अंधकार, धुप अंधेरा
शाल् —भ्वा॰ आ॰ <शालते>—-—-—प्रशंसा करना, खुशामद करना
शाल् —भ्वा॰ आ॰ <शालते>—-—-—चमकना
शाल् —भ्वा॰ आ॰ <शालते>—-—-—पूरित होना
शाल् —भ्वा॰ आ॰ <शालते>—-—-—कहना
शालः —पुं॰—-—शल् + घञ्—एक वृक्ष
शालः —पुं॰—-—शल् + घञ्—वृक्ष, पेड़
शालः —पुं॰—-—शल् + घञ्—बाड़ा, बाड़
शालः —पुं॰—-—शल् + घञ्—एक प्रकार की मछली
शालः —पुं॰—-—शल् + घञ्—राजा शालिवाहन
शालग्रामः —पुं॰—शालः-ग्रामः—-—विष्णु भगवान् की आदर्श प्रस्तरमूर्ति
शालगिरि —पुं॰—शालः- गिरि—-—पर्वत का नाम
शालशिला —स्त्री॰—शालः-शिला—-—शालग्राम पत्थर
शालजः —पुं॰—शालः-जः—-—सालवृक्ष का प्रस्त्राव, राव
शालनिर्यासः —पुं॰—शालः-निर्यासः—-—सालवृक्ष का प्रस्त्राव, राव
शालभञ्जिका —स्त्री॰—शालः-भञ्जिका—-—गुड़िया, पुत्तलिका, मूर्ति
शालभञ्जिका —स्त्री॰—शालः-भञ्जिका—-—वेश्या, रंडी
शालभञ्जी —स्त्री॰—शालः-भञ्जी—-—गुड़िया, पुत्तलिका
शालवेष्टः —पुं॰—शालः-वेष्टः—-—साल के पेड़ से निकली राल
शालसारः —पुं॰—शालः-सारः—-—उत्कृष्ट वृक्ष
शालसारः —पुं॰—शालः-सारः—-—हींग
शालवः —पुं॰—-—शाल + वल् + ड—लोध्र वृक्ष
शाला —स्त्री॰—-—शाल् + अच् + टाप्—कक्ष, प्रकोष्ट, बैठक, कमरा
शाला —स्त्री॰—-—शाल् + अच् + टाप्—घर, आवास
शाला —स्त्री॰—-—शाल् + अच् + टाप्—वृक्ष की मुख्य शाखा
शाला —स्त्री॰—-—शाल् + अच् + टाप्—वृक्ष का तना
शालाञ्जिरः —पुं॰—शाला-अञ्जिरः—-—मिट्टी का कसोरा
शालाञ्जिरम् —नपुं॰—शाला-अञ्जिरम्—-—मिट्टी का कसोरा
शालामृगः —पुं॰—शाला-मृगः—-—गीदड़
शालावृकः —पुं॰—शाला-वृकः—-—कुत्ता
शालावृकः —पुं॰—शाला-वृकः—-—भेड़िया हरिण
शालावृकः —पुं॰—शाला-वृकः—-—बिल्ली
शालावृकः —पुं॰—शाला-वृकः—-—गीदड़
शालावृकः —पुं॰—शाला-वृकः—-—बन्दर
शालाकिन् —पुं॰—-—शालाक + इन्—भाला रखने वाला, बर्छीधारी
शालातुरीयः —पुं॰—-—शलातुर + छ—पाणिनि का विशेषण
शालारम् —नपुं॰—-—शाला + ऋ + अण्—ज़ीना, सीढ़ी
शालारम् —नपुं॰—-—शाला + ऋ + अण्—पिंजरा
शालिः —पुं॰—-—शाल् + णिनि—चावल
शालिः —पुं॰—-—शाल् + णिनि—गंधबिलाव
शाल्योदनः —पुं॰—शालि-ओदनः—-—भात (उत्कृष्टतर प्रकार का)
शाल्योदनम् —नपुं॰—शालि-ओदनम्—-—भात (उत्कृष्टतर प्रकार का)
शालिगोपी —स्त्री॰—शालि-गोपी—-—चावल के खेत की रखवाली करने वाली स्त्री
शालिचूर्णः —पुं॰—शालि-चूर्णः—-—चावल का आटा
शालिचूर्णम् —नपुं॰—शालि-चूर्णम्—-—चावल का आटा
शालिपिष्टम् —नपुं॰—शालि-पिष्टम्—-—स्फटिक
शालिभवनम् —नपुं॰—शालि-भवनम्—-—चावल का खेत
शालिवाहनः —पुं॰—शालि-वाहनः—-—भारत का एक विख्यात राजा जिसके नाम से ख्रिस्ताब्द ७८ में एक संवत्सर आरं हुआ
शालिहोत्रः —पुं॰—शालि-होत्रः—-—पशुचिकित्सा पर ग्रन्थप्रणेता
शालिहोत्रः —पुं॰—शालि-होत्रः—-—घोड़ा
शालिहोत्रिन् —पुं॰—शालि-होत्रिन्—-—घोड़ा
शालिकः —पुं॰—-—शालि + कै + क—जुलाहा
शालिकः —पुं॰—-—शालि + कै + क—मार्गकर, शुल्क
शालिन् —वि॰—-—शाला + इनि—सहित, युक्त, सम्पन्न, चमकीला, चमकदार
शालिन् —वि॰—-—शाला + इनि—घरेलू
शालिनी —स्त्री॰—-—शालिन् + ङीप्—घर की स्वामिनी, गृहिणी
शालिनी —स्त्री॰—-—शालिन् + ङीप्—छन्द का नाम
शालीन —वि॰—-—शाला + खञ्—विनीत, लज्जाशील, शर्मीला, लज्जालु
शालीन —वि॰—-—शाला + खञ्—सदृश, समान
शालीनी कृ ——-—-—विनयी बनाना, विनम्र करना
शालुः —पुं॰—-—शाल् + उण्—मेंढक
शालुः —पुं॰—-—शाल् + उण्—एक प्रकार का गन्ध द्रव्य
शालु —नपुं॰—-—-—कुमुदिनी की जड़
शालुकम् —नपुं॰—-—-—कुमुदिनी की जड़
शालूकम् —नपुं॰—-—शल् + ऊकण्—कुमुदिनी की जड़
शालूकम् —नपुं॰—-—शल् + ऊकण्—जायफल
शालूरः —पुं॰—-—शाल् + ऊर्—मेंढक
शालेयम् —नपुं॰—-—शालि + ढक्—चावलों का खेत
शालोत्तरीयः —पुं॰—-—शालोत्तरे ग्रामे भवः - छ—पाणिनि का विशेषण
शाल्मलः —पुं॰—-—शाल् + मलच्—सेमल का पेड़
शाल्मलः —पुं॰—-—शाल् + मलच्—भू-मण्डल के सात बड़े खण्डों में से एक
शाल्मलिः —पुं॰—-—शाल् + मलिच्—सेमल का पेड़
शाल्मलिः —पुं॰—-—शाल् + मलिच्—भू-मण्डल के सात बड़े खण्ड़ों में से एक
शाल्मलिः —पुं॰—-—शाल् + मलिच्—नरक का एक भेद
शाल्मलिस्थः —पुं॰—शाल्मलि-स्थः—-—गरुड़ का विशेषण
शाल्मली —स्त्री॰—-—शाल्मलि + ङीष्—सेमल का पेड़
शाल्मली —स्त्री॰—-—शाल्मलि + ङीष्—पाताल लोक की एक नदी
शाल्मली —स्त्री॰—-—शाल्मलि + ङीष्—नरक का एक भेद
शाल्मलीवेष्टः —पुं॰—शाल्मली-वेष्टः—-—सेमल के पेड़ का गोंद
शाल्मलीवेष्टकः —पुं॰—शाल्मली-वेष्टकः—-—सेमल के पेड़ का गोंद
शाल्वः —पुं॰—-—शाल् + व—एक देश का नाम
शाल्वः —पुं॰—-—शाल् + व—शाल्व देश का राजा
शाव —वि॰—-—शव + अण्—शवसम्बन्धी, (किसी रिस्तेदार की) मृत्यु से उत्पन्न
शाव —वि॰—-—शव + अण्—भूरे रङ्ग का, गहरे पीले रङ्ग का
शावः —पुं॰—-—-—किसी जानवर का छोटा बच्चा, कुरङ्गक, मृगछौना, वन्यपशुशावक
शावकः —पुं॰—-—शाव + कन्—किसी भी वन्य पशु का बच्चा
शाश्वत —वि॰—-—शश्वद् भवः अण्—नित्य, सनातन, चिरस्थायी
शाश्वतम् —अव्य॰—-—-—नित्य, निरन्तर, सदा के लिए
शाश्वतिक —वि॰—-—शाश्वत + ठक्—नित्य, स्थायी, सनातन, सतत
शाश्वती —स्त्री॰—-—शाश्वत + ङीप्—पृथ्वी
शाष्कुल —वि॰—-—शष्कुल + अण्—मांस (या मत्स्य) भक्षी
शाष्कुलिकम् —नपुं॰—-—शष्कुली + ठक्—पूरियों का ढेर
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—अध्यापन करना, शिक्षण प्रदान करना, प्रशिक्षित
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—राज्य करना, शासन करना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—आज्ञा देना, समादिष्ट करना, निदेश देना, हुक्म देना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—कहना, सम्वाद देना, सूचित करना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—उपदेश देना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—आदेश देना, राजाज्ञा लागू करना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—दण्ड देना, सज़ा देना, निर्दोष बनाना
शास् —अदा॰ पर॰ <शास्ति>,<शिष्ट>—-—-—सधाना, वशीभूत करना
अनुशास् —अदा॰ पर॰—अनु-शास्—-—उपदेश देना, प्रेरित करना
अनुशास् —अदा॰ पर॰—अनु-शास्—-—अध्यापन करना, शिक्षण प्रदान करना, आज्ञा देना, आदेश करना
अनुशास् —अदा॰ पर॰—अनु-शास्—-—राज्य करना, शासन करना
अनुशास् —अदा॰ पर॰—अनु-शास्—-—सज़ा देना, दण्ड देना
अनुशास् —अदा॰ पर॰—अनु-शास्—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना
आशास् —अदा॰ पर॰—आ-शास्—-—आशीर्वाद देना, आशीर्वाद उच्चारण करना
आशास् —अदा॰ पर॰—आ-शास्—-—आज्ञा देना, आदेश देना, निदेश देना (इस अर्थ में पर॰)
आशास् —अदा॰ पर॰—आ-शास्—-—इच्छा करना, खोजना, आशा करना, प्रत्याशा करना
आशास् —अदा॰ पर॰—आ-शास्—-—प्रशंसा करना
प्रशास —अदा॰ पर॰—प्र-शास—-—अध्यापन करना, शिक्षण देना, उपदेश करना
प्रशास —अदा॰ पर॰—प्र-शास—-—आदेश देना, समादिष्ट करना
प्रशास —अदा॰ पर॰—प्र-शास—-—राज्य करना, शासन करना, प्रभु बनना
प्रशास —अदा॰ पर॰—प्र-शास—-—दण्ड देना, सज़ा देना
प्रशास —अदा॰ पर॰—प्र-शास—-—प्रार्थना करना, याचना करना, तलाश करना
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—शिक्षण, अध्यापन, अनुशासन
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—राज्य, प्रभुत्व, सरकार
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—आज्ञा, आदेश, निदेश
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—राजविज्ञप्ति, अधिनियम, राजाज्ञा
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—विधि, नियम
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—अग्रहार, राज़ा द्वारा दान की हुई भूमि, अधिकार-पत्र
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—पट्टा, दस्तावेज़, लिखित समझौता
शासनम् —नपुं॰—-—शास् + ल्युट्—आवेशों का नियन्त्रण
शासनपत्रम् —नपुं॰—शासनम्-पत्रम्—-—वह ताम्रपत्र जिस पर भूदान की राजाज्ञा खोदी गई हो
शासनपत्रम् —नपुं॰—शासनम्-पत्रम्—-—वह कागज जिस पर कोई राजाज्ञा अंकित हो
शासनहारिन् —पुं॰—शासनम्-हारिन्—-—राजदूत, संदेशवाहक
शासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शास् + क्त—राज्य किया गया, शासन किया गया
शासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शास् + क्त—दण्डित
शासितृ —पुं॰—-—शास् + तृच्—राज्य करने वाला, शासक
शासितृ —पुं॰—-—शास् + तृच्—दण्ड देने वाला
शास्तृ —पुं॰—-—शास् + तृच्, इडभावः —अध्यापक, शिक्षक
शास्तृ —पुं॰—-—शास् + तृच्, इडभावः —शासक, राजा, प्रभु
शास्तृ —पुं॰—-—शास् + तृच्, इडभावः —पिता
शास्तृ —पुं॰—-—शास् + तृच्, इडभावः —बुद्ध या जैन धर्म का गुरु, आचार्य
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—आज्ञा, समादेश, नियम, विधि
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—वेदविधि, धर्मशास्त्र की आज्ञा
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—धार्मिक ग्रन्थ, वेद, धर्मशास्त्र
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—विद्याविभाग, विज्ञान
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—पुस्तक, ग्रन्थ
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शिष्यतेऽनेने- शास् + ष्ट्रन्—सिद्धान्त
शास्त्रातिक्रमः —पुं॰—शास्त्रम्-अतिक्रमः—-—वैदिक विधियों का उल्लंघन, धार्मिक प्रामाणिकता की अवहेलना
शास्त्राननुष्ठानम् —नपुं॰—शास्त्रम्-अननुष्ठानम्—-—वैदिक विधियों का उल्लंघन, धार्मिक प्रामाणिकता की अवहेलना
शास्त्रानुष्ठानम् —नपुं॰—शास्त्रम्-अनुष्ठानम्—-—वेदविधि का पालन या तदनुरूपता
शास्त्राभिज्ञ —वि॰—शास्त्रम्-अभिज्ञ—-—शास्त्रों में निष्णात
शास्त्रार्थः —पुं॰—शास्त्रम्-अर्थः—-—वेदविधि का अर्थ
शास्त्रार्थः —पुं॰—शास्त्रम्-अर्थः—-—वैदिक विधि या शास्त्रीय वक्तव्य
शास्त्राचरणम् —नपुं॰—शास्त्रम्-आचरणम्—-—वेदविधि का पालन
शास्त्रोक्त —वि॰—शास्त्रम्-उक्त—-—शास्त्रविधि से विहित, शास्त्रों की आज्ञा, वैध, क़ानूनी
शास्त्रकारः —पुं॰—शास्त्रम्-कारः—-—किसी धर्मशास्त्र का रचयिता
शास्त्रकारः —पुं॰—शास्त्रम्-कारः—-—ग्रन्थ प्रणेता
शास्त्रकृत् —पुं॰—शास्त्रम्-कृत्—-—किसी धर्मशास्त्र का रचयिता
शास्त्रकृत् —पुं॰—शास्त्रम्-कृत्—-—ग्रन्थ प्रणेता
शास्त्रकोविद —वि॰—शास्त्रम्-कोविद—-—शास्त्रों में निष्णात
शास्त्रगण्डः —नपुं॰—शास्त्रम्-गण्डः—-—दिखाऊ पाठक, हलका अध्ययन करने वाला विद्यार्थी, पल्लवग्राही
शास्त्रचक्षुस् —नपुं॰—शास्त्रम्-चक्षुस्—-—व्याकरण
शास्त्रज्ञ —वि॰—शास्त्रम्-ज्ञ—-—शास्त्रों का जानकार
शास्त्रविद् —वि॰—शास्त्रम्-विद्—-—शास्त्रों का जानकार
शास्त्रज्ञानम् —नपुं॰—शास्त्रम्-ज्ञानम्—-—धर्मशास्त्र का ज्ञान, वेद की जानकारी
शास्त्रतत्त्वम् —नपुं॰—शास्त्रम्-तत्त्वम्—-—शास्त्रों में वर्णित सचाई, वैदिक तत्त्व
शास्त्रदर्शिन् —वि॰—शास्त्रम्-दर्शिन्—-—धर्मशास्त्रों का ज्ञाता
शास्त्रदृष्ट —वि॰—शास्त्रम्-दृष्ट—-—धर्मशास्त्रों में विहित या उक्त
शास्त्रदृष्टिः —स्त्री॰—शास्त्रम्-दृष्टिः—-—शास्त्रीय दृष्टिकोण
शास्त्रयोनिः —पुं॰स्त्री॰—शास्त्रम्-योनिः—-—शास्त्रों का स्रोत या उद्गमस्थान
शास्त्रविधानम् —नपुं॰—शास्त्रम्-विधानम्—-—शास्त्रीय विधि, वेदाज्ञा
शास्त्रविधिः —पुं॰—शास्त्रम्-विधिः—-—शास्त्रीय विधि, वेदाज्ञा
शास्त्रविप्रतिषेधः —पुं॰—शास्त्रम्-विप्रतिषेधः—-—शास्त्रीय विधियों का पारस्परिक विरोध, विधि-विधान की असंगति
शास्त्रविप्रतिषेधः —पुं॰—शास्त्रम्-विप्रतिषेधः—-—वेद विधि के विरुद्ध आचरण
शास्त्रविरोधः —पुं॰—शास्त्रम्-विरोधः—-—शास्त्रीय विधियों का पारस्परिक विरोध, विधि-विधान की असंगति
शास्त्रविरोधः —पुं॰—शास्त्रम्-विरोधः—-—वेद विधि के विरुद्ध आचरण
शास्त्रविमुख —वि॰—शास्त्रम्-विमुख—-—अध्ययन से पराङ्मुख
शास्त्रविरुद्ध —वि॰—शास्त्रम्-विरुद्ध—-—शास्त्रों के विपरीत, अवैध, गैरक़ानूनी
शास्त्रव्युत्पत्तिः —स्त्री॰ —शास्त्रम्-व्युत्पत्तिः—-—धर्मशास्त्रों का अन्तरंग ज्ञान, शास्त्रों में प्रवीणता
शास्त्रशिल्पिन् —पुं॰—शास्त्रम्-शिल्पिन्—-—काश्मीरदेश
शास्त्रसिद्ध —वि॰—शास्त्रम्-सिद्ध—-—धर्मशास्त्रों के प्रमाणानुसार स्थापित
शास्त्रिन् —वि॰—-—शास्त्र + इनि—शास्त्रों में अभिज्ञ, कुशल
शास्त्रिन् —पुं॰—-—शास्त्र + इनि—शास्त्रों में पारंगत, विद्वान् पुरुष, महान् पंडित
शास्त्रीय —वि॰—-—शास्त्रेण विहितः छ—वेदविहित, शास्त्रानुमोदित
शास्त्रीय —वि॰—-—शास्त्रेण विहितः छ—वैज्ञानिक
शास्य —वि॰—-—शास् + ण्यत्—सिखलाये जाने योग्य, उपदेश दिये जाने योग्य
शास्य —वि॰—-—शास् + ण्यत्—विनियमित या शासित किये जाने के योग्य
शास्य —वि॰—-—शास् + ण्यत्—दण्डनीय, दण्डाई
शि —स्वा॰ उभ॰ <शिनोति>, <शिनुते>—-—-—तेज़ करना, पैनाना
शि —स्वा॰ उभ॰ <शिनोति>, <शिनुते>—-—-—कृश करना, पतला करना
शि —स्वा॰ उभ॰ <शिनोति>, <शिनुते>—-—-—उत्तेजित करना
शि —स्वा॰ उभ॰ <शिनोति>, <शिनुते>—-—-—सावधान होना
शि —स्वा॰ उभ॰ <शिनोति>, <शिनुते>—-—-—तीक्ष्ण होना
शिः —पुं॰—-—शि + क्विप्—माङ्गलिकता, स्वरसाम्यता
शिः —पुं॰—-—शि + क्विप्—स्वस्थता, सौम्यता, शान्ति, अमन-चैन
शिः —पुं॰—-—शि + क्विप्—शिव का विशेषण
शिंशपा —पुं॰—-—शिवं पाति-शिव + पा + क, पृषो॰ साधुः—शीशम का पेड़
शिंशपा —पुं॰—-—शिवं पाति-शिव + पा + क, पृषो॰ साधुः—अशोक वृक्ष
शिक्कु —वि॰—-—सिच् + कु, पृषो॰—सुस्त, आलसी, अकर्मण्य
शिक्थम् —नपुं॰—-—सिच् + थक्, पृषो॰—मोम
शिक्यम् —नपुं॰—-—स्रंस् + यत्, कुगागमः, शि आदेशः —(रस्सी से बुना हुआ) छीका, झोला
शिक्यम् —नपुं॰—-—स्रंस् + यत्, कुगागमः, शि आदेशः —बहंगी पर लटका कर ले जाये जाने वाला बोझ
शिक्या —स्त्री॰—-—स्रंस् + यत्, कुगागमः, शि आदेशः-शिक्य + टाप्—(रस्सी से बुना हुआ) छींका, झोला
शिक्या —स्त्री॰—-—स्रंस् + यत्, कुगागमः, शि आदेशः-शिक्य + टाप्—बहंगी पर लटका कर ले जाये जाने वाला बोझ
शिक्यित —वि॰—-—शिक्य + णिच् + क्त—छींके में लटकाया हुआ
शिक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <शिक्षते>, <शिक्षित>—-—-—सीखना, अध्ययन करना, ज्ञानार्जन करना
शिक्षकः —पुं॰—-—शिक्ष् + णिच् + ण्वुल्—सीखने वाला
शिक्षकः —पुं॰—-—शिक्ष् + णिच् + ण्वुल्—अध्यापक, सिखाने वाला
शिक्षणम् —नपुं॰—-—शिक्ष् + ल्युट्—सीखना, अधिगम, ज्ञानार्जन
शिक्षणम् —नपुं॰—-—शिक्ष् + ल्युट्—अध्यापन, सिखाना
शिक्षमाणः —पुं॰—-—शिक्ष् + शानच्—शिष्य, विद्यार्थी, विद्याभ्यासी
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष् भाव अ + टाप्—अधिगम, अध्ययन, ज्ञानाभिग्रहण
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष् भाव अ + टाप्—किसी कार्य को करने के योग्य होने की इच्छा, निष्णात होने की इच्छा
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष् भाव अ + टाप्—अध्यापन, शिक्षण, प्रशिक्षण
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष् भाव अ + टाप्—छः वेदांगों में से एक जिसके द्वारा शब्दों का सही उच्चारण तथा सन्धि के नियम सिखाये जाते है
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष् भाव अ + टाप्—विनय, विनम्रता
शिक्षाकरः —पुं॰—शिक्षा-करः—-—अद्धापक, शिक्षक
शिक्षाकरः —पुं॰—शिक्षा-करः—-—व्यास
शिक्षानरः —पुं॰—शिक्षा-नरः—-—इन्द्र का विशेषण
शिक्षाशक्तिः —स्त्री॰—शिक्षा-शक्तिः—-—कुशलता
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—अधिगत, अधीत
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—अध्यापित, सिखाया गया
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—प्रशिक्षित, अनुशासित
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—सधाया हुआ, विनयशील
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—कुशल, चतुर
शिक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिक्ष् + क्त, शिक्षा जाताऽस्य -तार॰ इतच्—विनीत, लज्जाशील
शिक्षिताक्षरः —पुं॰—शिक्षित-अक्षरः—-—शिष्य
शिक्षितायुध —वि॰—शिक्षित-आयुध—-—हथियारों के संचालन में अभिज्ञ
शिखण्डः —पुं॰—-—शिखाममति-अम् + ड, शक॰ पररूपम्—मुंडन-संस्कार के अवसर पर रखी गई शिखा, चोटी, या दोनों पार्श्व में छोड़े गये बाल, काकपक्ष
शिखण्डः —पुं॰—-—शिखाममति-अम् + ड, शक॰ पररूपम्—मोर की पूँछ
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड इव + कन्—चूडाकर्म संस्कार के अवसर पर सिर पर रक्खी गई चोटी
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड इव + कन्—सिर के पार्श्वभागों में छोड़े गये बाल
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड इव + कन्—कलंगी, बालों का गुच्छा, चूडा या शेखर
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड इव + कन्—मयूर पुच्छ
शिखण्डिकः —पुं॰—-—शिखण्डिन् + कै + कः—मुर्गा
शिखण्डिका —स्त्री॰—-—-—मुंडन-संस्कार के अवसर पर रखी गई शिखा, चोटी, या दोनों पार्श्व में छोड़े गये बाल, काकपक्ष
शिखण्डिन् —वि॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—कलगीदार, शिखाधारी
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—मोर
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—मुर्गा
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—बाण
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—मोर की पूँछ
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—एक प्रकार की चमेली
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—विष्णु
शिखण्डिन् —पुं॰—-—शिखण्डोऽस्त्यस्य इनि—द्रुपद के एक पुत्र का नाम
शिखण्डिनी —स्त्री॰—-—शिखण्डिण् + ङीप्—मोरनी
शिखण्डिनी —स्त्री॰—-—शिखण्डिण् + ङीप्—एक प्रकार की चमेली
शिखण्डिनी —स्त्री॰—-—शिखण्डिण् + ङीप्—द्रुपद की पुत्री
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—चोटी, पहाड़ का सिरा या शृंग
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—वृक्ष का सिर या चोटी
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—कलगी, चूडा
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—तलवार की नोक या धार
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—चोटी, शृंग, शीर्षबिन्दु
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—कांख, बगल
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—बालों का कड़ा होना
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—अरवी चमेली की कली
शिखरः —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—एक लाल की भांति मणि
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—चोटी, पहाड़ का सिरा या शृंग
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—वृक्ष का सिर या चोटी
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—कलगी, चूडा
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—तलवार की नोक या धार
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—चोटी, शृंग, शीर्षबिन्दु
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—कांख, बगल
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—बालों का कड़ा होना
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—अरवी चमेली की कली
शिखरम् —नपुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य-अरच् आलोपः—एक लाल की भांति मणि
शिखरवासिनी —स्त्री॰—शिखरः-वासिनी—-—दुर्गा का विशेषण
शिखरिणी —स्त्री॰—-—शिखरिन् + ङीप्—नारीरत्न
शिखरिणी —स्त्री॰—-—शिखरिन् + ङीप्—चीनी मिश्रित दही जिसमें मसाले पड़े हों, श्रीखंड
शिखरिणी —स्त्री॰—-—शिखरिन् + ङीप्—रोमावली जो वक्षःस्थल से चलकर नाभि को पार कर जाती है
शिखरिणी —स्त्री॰—-—शिखरिन् + ङीप्—एक छन्द का नाम
शिखरिन् —वि॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—चोटी वाला, शिखाधारी
शिखरिन् —वि॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—नुकीला, शिखरयुक्त
शिखरिन् —पुं॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—पहाड़ी दुर्ग
शिखरिन् —पुं॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—वृक्ष
शिखरिन् —पुं॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—टिटिहरी
शिखरिन् —पुं॰—-—शिखरमस्त्यस्य इनि—अपामार्ग का पौधा
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—सिर को चोटी पर बालों का गुच्छा
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—चोटी, शिखाग्रन्थि
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—चूड़ा, कलगी
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—चोटी, शिखर, शीर्षबिन्दु
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—तेज़ सिरा, धार, नोक या सिरा
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—वस्त्र का छोर
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—अग्नि ज्वाला
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—प्रकाश की किरण
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—मोर की कलगी
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—जटायुक्त जड़
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—शाखा (विशेष रूप से जड़ पकड़ती हुई)
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—प्रधान या मुखिया
शिखा —स्त्री॰—-—शि + खक् तस्य नेत्वम्, पृषो॰—कामज्वर
शिखातरुः —पुं॰—शिखा-तरुः—-—दीपाधार, दीपट
शिखाधरः —पुं॰—शिखा-धरः—-—मोर
शिखाजम् —नपुं॰—शिखा-जम्—-—मोर का पंख
शिखाधारः —पुं॰—शिखा-धारः—-—मोर
शिखामणिः —पुं॰—शिखा-मणिः—-—चूड़ामणि
शिखामूलम् —नपुं॰—शिखा-मूलम्—-—गाजर
शिखामूलम् —नपुं॰—शिखा-मूलम्—-—मूली
शिखावरः —पुं॰—शिखा-वरः—-—कटहल का पेड़
शिखावल —वि॰—शिखा-वल—-—नुकीला, कलगीदार
शिखावलः —पुं॰—शिखा-वलः—-—मोर
शिखावृक्षः —पुं॰—शिखा-वृक्षः—-—दीपाधार, दीपट
शिखावृद्धिः —स्त्री॰—शिखा-वृद्धिः—-—प्रतिदिन बढ़ने वाला ब्याज
शिखालुः —पुं॰—-—शिखा + अलुच्—मोर का कलँगी
शिखावत् —वि॰—-—शिखा + मतुप्—कलगीदार
शिखावत् —वि॰—-—शिखा + मतुप्—ज्वालामय
शिखावत् —पुं॰—-—शिखा + मतुप्—दीपक
शिखावत् —पुं॰—-—शिखा + मतुप्—आग
शिखिन् —वि॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—नुकीला
शिखिन् —वि॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—कलंगीदार, शिखाधारी
शिखिन् —वि॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—घमंडी
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—मोर
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—अग्नि
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—मुर्गा
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—बाण
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—वृक्ष
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—दीपक
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—साँड़
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—घोड़ा
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—पहाड़
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—ब्राह्मण
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—साधु
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—केतु
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—तीन की संख्या
शिखिन् —पुं॰—-—शिखा अस्त्यस्य इनि—चित्रक वृक्ष
शिखिकण्ठम् —नपुं॰—शिखिन्-कण्ठम्—-—तूतिया, नीला थोथा
शिखिग्रीवम् —नपुं॰—शिखिन्-ग्रीवम्—-—तूतिया, नीला थोथा
शिखिध्वजः —पुं॰—शिखिन्-ध्वजः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शिखिध्वजः —पुं॰—शिखिन्-ध्वजः—-—धूआँ
शिखिपिच्छम् —नपुं॰—शिखिन्-पिच्छम्—-—मोर की पूँछ, दुम
शिखिपुच्छम् —नपुं॰—शिखिन्-पुच्छम्—-—मोर की पूँछ, दुम
शिखियूपः —पुं॰—शिखिन्-यूपः—-—बारहसिंगा
शिखिवर्धकः —पुं॰—शिखिन्-वर्धकः—-—गोल लौकी
शिखिवाहनः —पुं॰—शिखिन्-वाहनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शिखिशिखा —स्त्री॰—शिखिन्-शिखा—-—ज्वाला
शिखिशिखा —स्त्री॰—शिखिन्-शिखा—-—मोर की कलंगी
शिग्रुः —पुं॰—-—शि + रुक् गुक् च—सागभाजी
शिग्रुः —पुं॰—-—शि + रुक् गुक् च—सहिजन का पेड़
शिङ्ख् —भ्वा॰ पर॰ <शिङ्खति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शिङ्घ् —भ्वा॰ पर॰ <शिङ्खति>—-—-—सूंघना
शिङ्घाणः —पुं॰—-—शिङ्घ् + आणक, पृषो॰ कलोपः—पपड़ी, झाग
शिङ्घाणः —पुं॰—-—शिङ्घ् + आणक, पृषो॰ कलोपः—बलगम, कफ
शिङ्घाणम् —नपुं॰—-—-—नाक की मैल, सिणक
शिङ्घाणम् —नपुं॰—-—-—लोहे का जंग
शिङ्घाणम् —नपुं॰—-—-—शीशे का बर्तन
शिङ्घाणकः —पुं॰—-—शिङ्घ् + अणक—नासिकामल, सिणक
शिङ्घाणकम् —नपुं॰—-—शिङ्घ् + अणक—नासिकामल, सिणक
शिङ्घाणकः —पुं॰—-—-—कफ, बलगम
शिञ्ज् —भ्वा॰ अदा॰ आ॰<शिञ्जते>, <शिङ्क्ते>, <शिञ्जयति>,<शिञ्जयते>, चुरा॰ उभ॰ <शिञ्जित>—-—-—टनटनाना, झनझनाना, खड़खड़ाना
शिञ्जः —पुं॰—-—शिञ्ज् + घञ्—टंकार, झनझनाहट, टनटन या झनझन की ध्वनि, विशेषकर झांवर आदि गहनों की झंकार
शिञ्जञ्जिका —स्त्री॰—-—-—कटिबंध, करधनी
शिञ्जा —स्त्री॰—-—शिञ्ज् + अ + टाप्—टंकार, झंकार आदि
शिञ्जा —स्त्री॰—-—शिञ्ज् + अ + टाप्—धनुष की डोरी
शिञ्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शिञ्ज् + क्त—टंकृत, झंकृत
शिञ्जितम् —नपुं॰—-—-—टंकार, (झाँवर आदि गहनों की) झंकार
शिञ्जिनी —स्त्री॰—-—शिञ्ज् + णिनि + ङीप्—धनुष की डोरी
शिञ्जिनी —स्त्री॰—-—शिञ्ज् + णिनि + ङीप्—झांवर नूपुर (पैरों में पहना जाने वाला गहना)
शिट् —भ्वा॰ पर॰<शेटति>—-—-—तुच्छ समझना, घृणा करना, तिरस्कार करना
शित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—तेज किया हुआ, पैनाया हुआ
शित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—पतला, कृश
शित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शो + क्त—छीजा हुआ-क्षीण दुर्बल, बलहीन
शिताग्रः —पुं॰—शित-अग्रः—-—काँटा
शितधारा —वि॰—शित-धारा—-—तेज धार वाला
शितशूकः —पुं॰—शित-शूकः—-—जौ
शितशूकः —पुं॰—शित-शूकः—-—गेहूँ
शितद्रुः —स्त्री॰—-—-—सतलुज नाम की नदी
शिति —वि॰—-—शि + क्तिच्—श्वेत
शिति —वि॰—-—शि + क्तिच्—काला
शितिः —पुं॰—-—-—भूर्जवृक्ष
शितिकण्ठः —पुं॰—शिति-कण्ठः—-—शिव का विशेषण
शितिकण्ठः —पुं॰—शिति-कण्ठः—-—मोर
शितिकण्ठः —पुं॰—शिति-कण्ठः—-—जलकुक्कुट
शितिच्छदः —पुं॰—शिति-छदः—-—हंस
शितिपक्षः —पुं॰—शिति-पक्षः—-—हंस
शितिरत्नम् —नपुं॰—शिति-रत्नम्—-—नीलम
शितिवासस् —पुं॰—शिति-वासस्—-—बलराम का विशेषण
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—ढीला, धीमा, सुस्त, विश्रान्त
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—विनबंधा, खुला हुआ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—वियुक्त, डाल से टूटा हुआ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—निढाल, निश्शक्त, असमर्थ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—दुर्बल, कमजोर
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—पिलपिला, ढीलाढाला
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—धुला हुआ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—मुर्झाया हुआ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—निष्क्रिय, निरर्थक, व्यर्थ
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—असावधान
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—ढीलेढाले ढंग से किया हुआ, पूरी पावन्दी के साथ जिसको सम्पन्न न किया गया हो
शिथिल —वि॰—-—श्लथ् + किलच्, पृषो॰—फेंका हुआ, परित्यक्त
शिथिलम् —नपुं॰—-—-—ढीलापन, शिथिलता
शिथिली कृ ——-—-—ढीला करना, खोलना, खुला छोड़ना
शिथिली कृ ——-—-—छूट देना, ढील डालना
शिथिली कृ ——-—-—दुर्बल करना, निर्बल करना, कमजोर बनाना
शिथिली कृ ——-—-—छोड़ देना, परित्यक्त करना
शिथिली भू ——-—-—ढीला होना, सुस्त होना
शिथिलयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—विश्राम करना, धीमा करना, ढीला करना
शिथिलयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—छोड़ देना, परित्यक्त करना
शिथिलयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—कम करना, शान्त होने देना
शिथिलित —वि॰—-—शिथिल + इतच्—ढीला किया हुआ
शिथिलित —वि॰—-—शिथिल + इतच्—विश्रान्त, खोला हुआ
शिथिलित —वि॰—-—शिथिल + इतच्—धुला हुआ, प्रविलीन
शिनिः —पुं॰—-—शी + निः ह्रस्वश्च—यादवों के पक्ष का एक योद्धा
शिनिः —पुं॰—-—शी + निः ह्रस्वश्च—सात्यकि
शिपिः —पुं॰—-—शी + क्विप्, शी + पा + क, पृषो॰ ह्रस्तः इत्वं च—प्रकाश की एक किरण
शिपिः —स्त्री॰—-—-—त्वचा, चमड़ा
शिपिविष्ट —वि॰—शिपिः-विष्ट—-—किरणों से व्याप्त
शिपिविष्ट —वि॰—शिपिः-विष्ट—-—गंजा, गंजेसिर वाला
शिपिविष्ट —वि॰—शिपिः-विष्ट—-—कोढ़ी
शिपिविष्टः —पुं॰—शिपिः-विष्टः—-—विष्णु
शिपिविष्टः —पुं॰—शिपिः-विष्टः—-—शिव
शिपिविष्टः —पुं॰—शिपिः-विष्टः—-—गंजी खोपड़ी वाला
शिपिविष्टः —पुं॰—शिपिः-विष्टः—-—शिश्नाग्रच्छदविहीन
शिपिविष्टः —पुं॰—शिपिः-विष्टः—-—कोढ़ी
शिप्रः —पुं॰—-—शि + रक् , पुक्—हिमालय पर्वत पर स्थित एक सरोवर
शिप्रा —स्त्री॰—-—शिप्र + टाप्— शिप्र सरोवर से निकली एक नदी का नाम जिसके तट पर उज्जयिनी नगर बसा हुआ है
शिफः —पुं॰—-—-—रेशेदार जड़
शिफः —पुं॰—-—-—कोड़े की मार
शिफा —स्त्री॰—-—-—रेशेदार जड़
शिफा —स्त्री॰—-—-—कमल की जड़
शिफा —स्त्री॰—-—-—कोड़े की मार
शिफाधरः —पुं॰—शिफा-धरः—-—शाखा
शिफारुहः —पुं॰—शिफा-रुहः—-—वटवृक्ष
शिफाकः —पुं॰—-—शिफा + कन्—कमल की जड़
शिबिः —पुं॰—-—-—शिकारी जानवर
शिबिः —पुं॰—-—-—भूर्जवृक्ष
शिबिः —पुं॰ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम
शिबिः —पुं॰—-—-—एक राजा का नाम
शिविः —पुं॰—-—शि + वि—शिकारी जानवर
शिविः —पुं॰—-—शि + वि—भूर्जवृक्ष
शिविः —पुं॰ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम
शिविः —पुं॰—-—-—एक राजा का नाम
शिबिका —स्त्री॰—-— शिवं करोति-शिव + णिच् + ण्वुल्—पालकी, डोली
शिबिका —स्त्री॰—-— शिवं करोति-शिव + णिच् + ण्वुल्—अरथी
शिविका —स्त्री॰—-— शिवं करोति-शिव + णिच् + ण्वुल्—पालकी, डोली
शिविका —स्त्री॰—-— शिवं करोति-शिव + णिच् + ण्वुल्—अरथी
शिबिरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्—तंबू
शिबिरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्—राजकीय तंबू, या ख़ेमा
शिबिरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्—सेना की रक्षा के लिए अकाट्य निवेश
शिबिरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्—एक प्रकार का अन्न
शिविरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्, बुकागमः, ह्रस्वः—तंबू
शिविरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्, बुकागमः, ह्रस्वः—राजकीय तंबू, या ख़ेमा
शिविरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्, बुकागमः, ह्रस्वः—सेना की रक्षा के लिए अकाट्य निवेश
शिविरम् —नपुं॰—-—शेरते राजबलानि अत्र - शी + किरच्, बुकागमः, ह्रस्वः—एक प्रकार का अन्न
शिबिरथः —पुं॰—-—शिवेः भूर्जवृक्षस्य ईः शोभा यत्र तादृशो रथः—पालकी, डोली
शिविरथः —पुं॰—-—-—पालकी, डोली
शिम्बा —स्त्री॰—-—शम् + इम्बच्, पृषो॰—फली, छीमी, सेम
शिम्बिका —स्त्री॰—-—शिम्बा + कन् + टाप् , इत्वम्—फली, सेम
शिम्बिका —स्त्री॰—-—शिम्बा + कन् + टाप् , इत्वम्—एक प्रकार के काले उड़द
शिम्बी —स्त्री॰—-—-—फली, सेम
शिम्बी —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पौधा
शिरम् —नपुं॰—-—शृ + क—पिप्परामूल
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—सिर
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—खोपड़ी
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—शृङ्ग, चोटी, शिखर (पहाड़ आदि का)
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—वृक्ष की चोटी
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—किसी चीज़ का सिर या शिरोबिन्दु
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—कंगूरा, कलश, उच्चतम बिन्दु
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—अग्रभाग, अगला भाग, सेना का अगला भाग
शिरस् —नपुं॰—-—शृ + असुन्, निपातः—मुख्य, प्रधान, मुखिया
शिरोऽस्थि —नपुं॰—शिरस्-अस्थि—-—खोपड़ी
शिरःकपालिन् —पुं॰—शिरस्-कपालिन्—-—मनुष्य-खोपड़ी रखने वाला संन्यासी
शिरोगृहम् —नपुं॰—शिरस्-गृहम्—-—सबसे ऊपर का घर, चन्द्रशाला, अट्टालिका
शिरोग्रहः —पुं॰—शिरस्-ग्रहः—-—सिर पीड़ा, सिर दर्द
शिरोच्छेदः —पुं॰—शिरस्-छेदः—-—सिर काट देना, सिर कलम कर देना
शिरोच्छेदनम् —नपुं॰—शिरस्-छेदनम्—-—सिर काट देना, सिर कलम कर देना
शिरोतापिन् —पुं॰—शिरस्-तापिन्—-—हाथी
शिरस्त्रम् —नपुं॰—शिरस्-त्रम्—-—लोहे को टोप
शिरस्त्रम् —नपुं॰—शिरस्-त्रम्—-—सिर की टोपी, पागड़ी
शिरस्त्राणम् —नपुं॰—शिरस्-त्राणम्—-—लोहे को टोप
शिरस्त्राणम् —नपुं॰—शिरस्-त्राणम्—-—सिर की टोपी, पागड़ी
शिरोधरा —स्त्री॰—शिरस्-धरा—-—ग्रीवा, गरदन
शिरोधिः —पुं॰—शिरस्-धिः—-—ग्रीवा, गरदन
शिरोपीड़ा —स्त्री॰—शिरस्-पीड़ा—-—सिर दर्द
शिरोफलः —पुं॰—शिरस्-फलः—-—नारियल का पेड़
शिरोभूषणम् —नपुं॰—शिरस्-भूषणम्—-—सिर पर पहनने का आभूषण
शिरोमणि —पुं॰—शिरस्-मणि—-—मस्तक पर धारण करने का रत्न
शिरोमणि —पुं॰—शिरस्-मणि—-—चूड़ामणि
शिरोमणि —पुं॰—शिरस्-मणि—-—विद्वान् पुरुषों के लिए सम्मानद्योतक उपाधि
शिरोमर्मन् —पुं॰—शिरस्-मर्मन्—-—सूअर
शिरोमालिन् —पुं॰—शिरस्-मालिन्—-—शिव का विशेषण
शिरोरत्नम् —नपुं॰—शिरस्-रत्नम्—-—शिरोमणि
शिरोरुजा —स्त्री॰—शिरस्-रुजा—-—सिरदर्द
शिरोरुह् —पुं॰—शिरस्-रुह्—-—सिर के बाल
शिरोरुहः —पुं॰—शिरस्-रुहः—-—सिर के बाल
शिरोवर्तिन् —वि॰—शिरस्-वर्तिन्—-—मुखिया
शिरोवर्तिन् —पुं॰—शिरस्-वर्तिन्—-—मुख्य, प्रधान के रूप में रहने वाला
शिरोवृत्तम् —नपुं॰—शिरस्-वृत्तम्—-—मिरच
शिरोवेष्टः —पुं॰—शिरस्-वेष्टः—-—सिर पर पहनने का वस्त्र, पागड़ी
शिरोवेष्टनम् —नपुं॰—शिरस्-वेष्टनम्—-—सिर पर पहनने का वस्त्र, पागड़ी
शिरःशूलम् —नपुं॰—शिरस्-शूलम्—-—सिरदर्द
शिरोहारिन् —पुं॰—शिरस्-हारिन्—-—शिव का विशेषण
शिरसिजः —पुं॰—-—शिरसि जन् + ड सप्तम्या अलुक्—सिर के बाल
शिरस्कम् —नपुं॰—-—शिरस् + कन्—लोहे का टोप
शिरस्कम् —नपुं॰—-—शिरस् + कन्—पगड़ी, टोपी
शिरस्का —स्त्री॰—-—शिरस्क + टाप्—पालकी
शिरस्तस् —अव्य॰—-—शिरस् + तस्—सिर से
शिरस्य —वि॰—-—शिरसि भव यत्—सिर संबंधी या सिर पर स्थित
शिरस्यः —पुं॰—-—-—स्वच्छ केश
शिरा —स्त्री॰—-—शॄ + क + टाप्—नलिका के आकार की शरीर की वाहिका, नाड़ी, खून की नाड़ी, रक्तवाहिनी नाड़ी
शिरापत्रः —पुं॰—शिरा-पत्रः—-—कपित्थ, कैथवृक्ष
शिरावृत्तम् —नपुं॰—शिरा-वृत्तम्—-—सीसा
शिराल —वि॰ —-—शिरा + लच्—स्नायवी, शिरायुक्त, शिराबहुल
शिरिः —पुं॰—-—शॄ + कि—तलवार
शिरिः —पुं॰—-—शॄ + कि—वध करने वाला, क़तल करने वाला
शिरिः —पुं॰—-—शॄ + कि—टिड्डी
शिरीषः —पुं॰—-—शृ + ईषन्, किच्च—सिरस का पेड़
शिरीषम् —नपुं॰—-—-—सिरस का फूल
शिल् —तुदा॰ पर॰ <शिलति>—-—-—शिलोंछन, सिला चुगना, बालें इकट्ठा करना
शिलः —पुं॰—-—शिल् + क—शिलोंछन, बालें चुनना
शिलम् —पुं॰—-—शिल् + क—शिलोंछन, बालें चुनना
शिलोञ्छः —पुं॰—शिलः-उञ्छः—-—शिलावृत्ति
शिलोञ्छः —पुं॰—शिलः-उञ्छः—-—अनियमित वृत्ति
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—पत्थर चट्टान
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—चक्की
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—चौखट की नीचे की लकड़ी
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—खंबे की चोटी
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—कंडरा, रक्तवाहिका
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—मनः शिला, मैनसिल
शिला —स्त्री॰—-—शिल + टाप्—कपूर
शिलाष्टकः —पुं॰—शिला-अष्टकः—-—छिद्र
शिलाष्टकः —पुं॰—शिला-अष्टकः—-—बाड़, बाड़ा
शिलाष्टकः —पुं॰—शिला-अष्टकः—-—चौबारा, अटारी
शिलात्मजम् —नपुं॰—शिला-आत्मजम्—-—लोहा
शिलात्मिका —स्त्री॰—शिला-आत्मिका—-—कुठाली, घरिया
शिलारम्भा —स्त्री॰—शिला-आरम्भा—-—काष्ठकदली, जंगली केला
शिलासनम् —नपुं॰—शिला-आसनम्—-—पत्थर का आसन, चौकी आदि
शिलासनम् —नपुं॰—शिला-आसनम्—-—शैलेय गन्धद्रव्य, गुग्गल
शिलाह्वम् —नपुं॰—शिला-आह्वम्—-—शिलाजतु
शिलोच्चयः —पुं॰—शिला-उच्चयः—-—पहाड़, विशाल चट्टान
शिलोत्थम् —नपुं॰—शिला-उत्थम्—-—शैलेयगन्धद्रव्य, गुग्गुल
शिलोद्भवम् —नपुं॰—शिला-उद्भवम्—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शिलोद्भवम् —नपुं॰—शिला-उद्भवम्—-—बढ़िया क़िस्म की चन्दन की लकड़ी
शिलौकस् —पुं॰—शिला-ओकस्—-—गरुड़ का विशेषण
शिलाकुट्टकः —पुं॰—शिला-कुट्टकः—-—पत्थर तोड़ने की छेनी, टाँकी
शिलापुष्पम् —नपुं॰—शिला-पुष्पम्—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शिलाज —वि॰—शिला-ज—-—शिलाजीत, खनिजद्रव्य
शिलाजम् —नपुं॰—शिला-जम्—-—शिलाजीत
शिलाजम् —नपुं॰—शिला-जम्—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शिलाजम् —नपुं॰—शिला-जम्—-—पेट्रोल
शिलाजम् —नपुं॰—शिला-जम्—-—लोहा
शिलाजम् —नपुं॰—शिला-जम्—-—कोई भी शिलीभूत पदार्थ
शिलाजतु —नपुं॰—शिला-जतु—-—शिलाजीत
शिलाजतु —नपुं॰—शिला-जतु—-—गेरु
शिलाजित् —स्त्री॰—शिला-जित्—-—शिलाजीत
शिलाददुः —पुं॰—शिला-ददुः—-—शिलाजीत
शिलाधातुः —पुं॰—शिला-धातुः—-—खड़िया मिट्टी
शिलाधातुः —पुं॰—शिला-धातुः—-—गेरु
शिलाधातुः —पुं॰—शिला-धातुः—-—सफेद शिलीभूत पदार्थ
शिलापट्टः —पुं॰—शिला-पट्टः—-—पत्थर की शिला जिस पर बैठा जाय, शिलासन
शिलापुत्रः —पुं॰—शिला-पुत्रः—-—मशाला पीसने की छोटी शिला, सिल
शिलापुत्रकः —पुं॰—शिला-पुत्रकः—-—मशाला पीसने की छोटी शिला, सिल
शिलाप्रतिकृतिः —स्त्री॰—शिला-प्रतिकृतिः—-—प्रस्तर मूर्ति
शिकाफलकम् —नपुं॰—शिला-फलकम्—-—पत्थर की सिल
शिलाभवम् —नपुं॰—शिला-भवम्—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शिलाभेदः —पुं॰—शिला-भेदः—-—संगतराश की छेनी, टांकी
शिलारसः —पुं॰—शिला-रसः—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शिलारसः —पुं॰—शिला-रसः—-—धूप
शिलावल्कलम् —नपुं॰—शिला-वल्कलम्—-—एक प्रकार की काई जो पत्थर पर जम जाती है
शिलावृष्टिः —स्त्री॰—शिला-वृष्टिः—-—पत्थरों की वर्षा
शिलावृष्टिः —स्त्री॰—शिला-वृष्टिः—-—ओलों की बारिश
शिलावेश्मन् —नपुं॰—शिला-वेश्मन्—-—गुफा, पत्थर की दरार
शिलाव्याधिः —पुं॰—शिला-व्याधिः—-—शिलाजीत
शिलिः —पुं॰—-—शिल् + कि—भूर्जवृक्ष
शिलिः —स्त्री॰—-—-—चौखट की नीचे की लकड़ी
शिलिन्दः —पुं॰—-—शिलि + दा + क, पृषो॰ मुम्—एक प्रकार की मछली
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—दरवाज़े की चौखट की नीचे की लकड़ी
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—एक प्रकार का भूकीट, केंचुआ
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—खंभे की चोटी
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—भाला
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—बाण
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—गण्डूपद
शिली —स्त्री॰—-—शिलि + ङीष्—मेंढकी
शिलीमुखः —पुं॰—शिली-मुखः—-—भौंरा
शिलीमुखः —पुं॰—शिली-मुखः—-—बाण
शिलीमुखः —पुं॰—शिली-मुखः—-—मूर्ख
शिलीन्ध्रः —पुं॰—-—शिलीं धरति - धृ + क पृषो॰ मुम्—एक प्रकार की मछली
शिलीन्ध्रः —पुं॰—-—शिलीं धरति - धृ + क पृषो॰ मुम्—एक वृक्ष
शिलीन्ध्रम् —नपुं॰—-—-—कुकुरमुत्ता साँप की छतरी
शिलीन्ध्रम् —नपुं॰—-—-—केले के वृक्ष का फूल
शिलीन्ध्रम् —नपुं॰—-—-—ओला
शिलीन्ध्रकम् —नपुं॰—-—शिलीन्ध्र + कन—कुकुरमुत्ता, खुंब, साँप की छतरी
शिलीन्ध्री —स्त्री॰—-—शिलीन्ध्र + ङीष्—मृत्तिका, मिट्टी
शिलीन्ध्री —स्त्री॰—-—शिलीन्ध्र + ङीष्—केंचुआ
शिल्पम् —नपुं॰—-—शिल् + पक्—कला, ललितकला, यान्त्रिक कला
शिल्पम् —नपुं॰—-—-—(किसी भी कला में) कुशलता, कारीगरी
शिल्पम् —नपुं॰—-—-—विदग्धता, पटुता
शिल्पम् —नपुं॰—-—-—कार्य, शारीरिक श्रम या कार्य
शिल्पम् —नपुं॰—-—-—कृत्य, अनुष्ठान
शिल्पम् —नपुं॰—-—-—यज्ञीय चमचा, स्रुवा
शिल्पकर्मन् —नपुं॰—शिल्पम्-कर्मन्—-—कोई भी शारीरिक श्रम, दस्तकारी
शिल्पक्रिया —स्त्री॰—शिल्पम्-क्रिया—-—कोई भी शारीरिक श्रम, दस्तकारी
शिल्पकारः —पुं॰—शिल्पम्-कारः—-—दस्तकार, कारीगर
शिल्पकारकः —पुं॰—शिल्पम्-कारकः—-—दस्तकार, कारीगर
शिल्पकारिन् —पुं॰—शिल्पम्-कारिन्—-—दस्तकार, कारीगर
शिल्पशालम् —नपुं॰—शिल्पम्-शालम्—-—कारखाना, निर्माणी, शिल्पविद्यालय, शिल्पगृह
शिल्पशाला —स्त्री॰—शिल्पम्-शाला—-—कारखाना, निर्माणी, शिल्पविद्यालय, शिल्पगृह
शिल्पशास्त्रम् —नपुं॰—शिल्पम्-शास्त्रम्—-—कला विषय पर (चाहे ललित हो या यान्त्रिक) लिखा गया ग्रंथ
शिल्पशास्त्रम् —नपुं॰—शिल्पम्-शास्त्रम्—-—शिल्पविज्ञान
शिल्पिन् —वि॰—-—शिल्प + इनि—ललित या यांत्रिककला संबंधी
शिल्पिन् —वि॰—-—शिल्प + इनि—यांत्रिक, यंत्रवत्
शिल्पिन् —पुं॰—-—-—दस्तकर, कलाकार, कारिगर
शिल्पिन् —पुं॰—-—-—जो किसी भी कला में प्रवीण हो
शिव —वि॰—-—श्यति पापम् -शो + वन्, पृषो॰—शुभ, मांगलिक, सौभाग्यशाली
शिव —वि॰—-—श्यति पापम् -शो + वन्, पृषो॰—स्वस्थ, प्रसन्न, समृद्ध , सौभाग्यशाली
शिवः —पुं॰—-—-—हिन्दुओं के तीन प्रधान देवताओं (त्रिमूर्ति) में से तीसरा देव जिसका कार्य सृष्टि का संहार करना है
शिवः —पुं॰—-—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, शिश्न
शिवः —पुं॰—-—-—शुभ ग्रहों का योग
शिवः —पुं॰—-—-—पशुओं का बाँधने का खूँटा
शिवौ —पुं॰, द्वि व॰—-—-—शिव और पार्वती
शिवम् —नपुं॰—-—-—समृद्धि , कल्याण, मंगल, आनन्द
शिवम् —नपुं॰—-—-—परमानन्द, मांगलिकता
शिवम् —नपुं॰—-—-—समुद्री नमक
शिवम् —नपुं॰—-—-—सेंधा नमक
शिवम् —नपुं॰—-—-—शुद्ध सोहागा
शिवाक्षम् —नपुं॰—शिव-अक्षम्—-—एक प्रकार का वृक्ष
शिवात्मकम् —नपुं॰—शिव-आत्मकम्—-—सेंधा नमक
शिवादेशकः —पुं॰—शिव-आदेशकः—-—शुभ समाचार लाने वाला
शिवादेशकः —पुं॰—शिव-आदेशकः—-—भविष्यवक्ता
शिवालयः —पुं॰—शिव-आलयः—-—शिव का आवास
शिवालयः —पुं॰—शिव-आलयः—-—लाल तुलसी
शिवालयम् —नपुं॰—शिव-आलयम्—-—शिव मन्दिर
शिवालयम् —नपुं॰—शिव-आलयम्—-—श्मशान
शिवेतर —वि॰—शिव-इतर—-—अशुभ, दुर्भाग्यपूर्ण
शिवकर —वि॰—शिव-कर—-—आनन्दप्रदायक, मंगलप्रद
शिवकीर्तनः —पुं॰—शिव-कीर्तनः—-—भृंगी का नाम
शिवगति —वि॰—शिव-गति—-—समृद्ध, आनन्दित
शिवधर्मजः —पुं॰—शिव-धर्मजः—-—मंगलग्रह
शिवताति —वि॰—शिव-ताति—-—जिसका अन्त कल्याणकारी हो, आनन्ददायक, मंगलप्रद
शिवताति —वि॰—शिव-ताति—-—मृदु, जो राक्षसी न हो
शिवतातिः —पुं॰—शिव-तातिः—-—मांगलिकता, आनन्द
शिवदत्तम् —नपुं॰—शिव-दत्तम्—-—विष्णु का चक्र
शिवदारु —नपुं॰—शिव-दारु—-—देवदारु का पेड़
शिवद्रुमः —पुं॰—शिव-द्रुमः—-—बल का पेड़
शिवद्विष्टा —स्त्री॰—शिव-द्विष्टा—-—केतकी का पेड़
शिवधातुः —पुं॰—शिव-धातुः—-—पारा
शिवपुरम् —नपुं॰—शिव-पुरम्—-—बनारस, वाराणसी
शिवपुरी —स्त्री॰—शिव-पुरी—-—बनारस, वाराणसी
शिवपुराणम् —नपुं॰—शिव-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक
शिवप्रियः —पुं॰—शिव-प्रियः—-—स्फटिक
शिवप्रियः —पुं॰—शिव-प्रियः—-—बक नाम का पेड़
शिवप्रियः —पुं॰—शिव-प्रियः—-—धतूरा
शिवमल्लकः —पुं॰—शिव-मल्लकः—-—अर्जुनवृक्ष
शिवराजधानी —स्त्री॰—शिव-राजधानी—-—वाराणसी
शिवरात्रिः —स्त्री॰—शिव-रात्रिः—-—फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी
शिवलिङ्गम् —नपुं॰—शिव-लिङ्गम्—-—शिव जिसकी पिंडी या लिंग के रूप में पूजा होती है
शिवलोकः —पुं॰—शिव-लोकः—-—शिव का संसार
शिववल्लभः —पुं॰—शिव-वल्लभः—-—आम का वृक्ष
शिववल्लभा —स्त्री॰—शिव-वल्लभा—-—पार्वती
शिववाहनः —पुं॰—शिव-वाहनः—-—साँड़
शिववीजम् —नपुं॰—शिव-वीजम्—-—पारा
शिवशेखरः —पुं॰—शिव-शेखरः—-—चाँद
शिवशेखरः —पुं॰—शिव-शेखरः—-—धतूरा
शिवसुन्दरी —स्त्री॰—शिव-सुन्दरी—-—दुर्गा का विशेषण
शिवकः —पुं॰—-—शिव + कन्—वह खूँटा जिसके साथ प्रायः गौ आदि पशु बाधे जाते हैं
शिवकः —पुं॰—-—शिव + कन्—वह खंबा जिससे पशु अपना शरीर रगड़ता है, पशुओं के शरीर को खुजलाने के लिए खूँटा
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—पार्वती
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—गीदड़ी
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—मोक्ष
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—शमी (जैंडी) का वृक्ष
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—आंवला
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—दुर्वाघास, दूब
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—पीला रंग
शिवा —स्त्री॰—-—शिव + टाप्—हल्दी
शिवारातिः —पुं॰—शिवा-अरातिः—-—कुत्ता
शिवाप्रियः —पुं॰—शिवा-प्रियः—-—बकरा
शिवाफला —स्त्री॰—शिवा-फला—-—शमी (जैंडी) का वृक्ष
शिवारुतम् —नपुं॰—शिवा-रुतम्—-—गीदड़ का रोना
शिवानी —स्त्री॰—-—शिव + ङीप्, आनुक्—शिव की पत्नी पार्वती
शिवालुः —पुं॰—-—शिव + आलुच्—गीदड़
शिशिर —वि॰—-—शश् + किरच् -नि—ठंडा, शीतल, सर्द जमा हुआ
शिशिरः —पुं॰—-—-—ओस, तुषार या पाला
शिशिरः —पुं॰—-—-—जाड़े का मौसम, (माघ और फाल्गुन की) सर्दी
शिशिरः —पुं॰—-—-—ठंडक, शीतलता
शिशिरांशुः —पुं॰—शिशिर-अंशुः—-—चन्द्रमा
शिशिरकरः —पुं॰—शिशिर-करः—-—चन्द्रमा
शिशिरकिरणः —पुं॰—शिशिर-किरणः—-—चन्द्रमा
शिशिरदीधितिः —पुं॰—शिशिर-दीधितिः—-—चन्द्रमा
शिशिराश्मिः —पुं॰—शिशिर-रश्मिः—-—चन्द्रमा
शिशिरात्ययः —पुं॰—शिशिर-अत्ययः—-—जाड़े का अन्त, वसन्त ऋतु
शिशिरापगमः —पुं॰—शिशिर-अपगमः—-—जाड़े का अन्त, वसन्त ऋतु
शिशिरकालः —पुं॰—शिशिर-कालः—-—जाड़े की ऋतु
शिशिरसमयः —पुं॰—शिशिर-समयः—-—जाड़े की ऋतु
शिशिरघ्नः —पुं॰—शिशिर-घ्नः—-—अग्नि का विशेषण
शिशुः —पुं॰—-—शो + कु, सन्वद्भावः, द्वित्वम्—बालक, बच्चा
शिशुः —पुं॰—-—शो + कु, सन्वद्भावः, द्वित्वम्—किसी भी जानवर का बच्चा (बछड़ा, पिल्ला, छौना आदि)
शिशुः —पुं॰—-—शो + कु, सन्वद्भावः, द्वित्वम्—आठ या सोलह वर्ष से कम आयु का बालक
शिशुक्रन्दः —पुं॰—शिशुः-क्रन्दः—-—बच्चे का रोना
शिशुक्रन्दनम् —नपुं॰—शिशुः-क्रन्दनम्—-—बच्चे का रोना
शिशुगन्धा —स्त्री॰—शिशुः-गन्धा—-—एक प्रकार की मल्लिका
शिशुपालः —पुं॰—शिशुः-पालः—-—दमघोष का पुत्र तथा चेदि देश का राजा
शिशुहन् —पुं॰—शिशुः-हन्—-—कृष्ण का विशेषण
शिशुमारः —पुं॰—शिशुः-मारः—-—सूँस नाम का जलजन्तु
शिशुवाहकः —पुं॰—शिशुः-वाहकः—-—जंगली बकरा
शिशुवाह्यकः —पुं॰—शिशुः-वाह्यकः—-—जंगली बकरा
शिशुकः —पुं॰—-—शिशु + कन्—बालक, बच्चा
शिशुकः —पुं॰—-—शिशु + कन्—किसी भी जानवर का बच्चा
शिशुकः —पुं॰—-—शिशु + कन्—वृक्ष
शिशुकः —पुं॰—-—शिशु + कन्—सूँस
शिश्नम् —नपुं॰—-—शश् + नक् इत्वम्—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिङ्ग
शिस्नम् —नपुं॰—-—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिङ्ग
शिश्विदान —वि॰—-—श्वित् + सन् + आनच्, सनो लुक्, द्वित्वम्, रकारस्य दकारः—पवित्र आचरण वाला, सद्गुणी, पुण्यात्मा
शिश्विदान —वि॰—-—श्वित् + सन् + आनच्, सनो लुक्, द्वित्वम्, रकारस्य दकारः—दुष्ट, पापी
शिष् —भ्वा॰ पर॰ <शेषति>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
शिष् —भ्वा॰ पर॰ <शेषति>, चुरा॰ उभ॰ <शेषयति>, <शेषयते>—-—-—अवशिष्ट छोड़ देना, बचा देना
शिष् —रुधा॰ पर॰<शिनष्टि>, <शिष्ट>—-—-—बाक़ी छोड़ना, बचा रखना, अवशिष्ट छोड़ना
शिष् —रुधा॰ पर॰<शिनष्टि>, <शिष्ट>—-—-—दूसरों से भिन्नता करना
शिष् —रुधा॰ उभ॰, प्रेर॰ <शेषयति>, <शेषयते>—-—-—छोड़ना
अवशिष् —रुधा॰ पर॰—अव-शिष्—-—बाकी छोड़ना, पीछे छोड़ना
उच्छिष् —रुधा॰ पर॰—उद्-शिष्—-—बाक़ी छोड़ना
परिशिष् —रुधा॰ उभ॰, प्रेर॰—परि-शिष्—-—अवशिष्ट छोड़ना
विशिष् —रुधा॰ पर॰—वि-शिष्—-—विशिष्ट करना, विशेषता देना, विशेष रूप से कहना, परिभाषा करना
विशिष् —रुधा॰ पर॰—वि-शिष्—-—भेद करना, विवेचन करना
विशिष् —रुधा॰ पर॰—वि-शिष्—-—बढ़ाना, ऊँचा करना, वृद्धि करना, गहरा करना
विशिष् —रुधा॰ कर्मवा॰—वि-शिष्—-—भिन्न होना
विशिष् —रुधा॰ कर्मवा॰—वि-शिष्—-—अपेक्षाकृत अच्छा या ऊँचे दर्जे का होना, आगे बढ़ जाना, श्रेष्ठ होना,
विशिष् —रुधा॰ अपा॰—वि-शिष्—-—अपेक्षाकृत बढ़िया और दूसरों से अच्छा होना
विशिष् —रुधा॰ उभ॰, प्रेर॰—वि-शिष्—-—आगे बढ़ जाना श्रेष्ठ होना
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—छोड़ा हुआ, बचा हुआ, अवशिष्ट, बाक़ी
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—आदिष्ट, समादिष्ट
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—प्रशिक्षित, शिक्षित, अनुशिष्ट
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—सधाया हुआ, पालतू, वश्य
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—बुद्धिमान्, विद्वान्
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—सद्गुणसंपन्न, माननीय
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—शिष्ट, नम्र
शिष्ट —भू॰ क॰कृ॰—-—शास् + क्त, शिष् + क्त वा—मुख्य, प्रधान, श्रेष्ठ, उत्तम, पूज्य, प्रमुख
शिष्टः —पुं॰—-—-—प्रमुख या पूज्य व्यक्ति
शिष्टः —पुं॰—-—-—बुद्धिमान् पुरुष
शिष्टः —पुं॰—-—-—परामर्शदाता
शिष्टाचारः —पुं॰—शिष्टः-आचारः—-—बुद्धिमान् मनुष्यों का आचरण शिष्टाचरण, सच्चरित्र
शिष्टसभा —स्त्री॰—शिष्टः-सभा—-—विद्वान् या श्रेष्ठ पुरुषों की सभा, राज्यसभा
शिष्टिः —स्त्री॰—-—शास् + क्तिन्—राज्य, शासन
शिष्टिः —स्त्री॰—-—शास् + क्तिन्—आज्ञा, आदेश
शिष्टिः —स्त्री॰—-—शास् + क्तिन्—सजा, दण्ड
शिष्यः —पुं॰—-—शास् + क्यप्—छात्र, चेला, विद्यार्थी
शिष्यः —पुं॰—-—शास् + क्यप्—क्रोध, आवेश
शिष्यपरम्परा —स्त्री॰—शिष्यः-परम्परा—-—चेलों का अनुक्रम, किसी गुरु-संप्रदाय की परंपरित शिष्यमंडली
शिष्टिः —स्त्री॰—-—-—छात्र का शोधन, भर्त्सना
शिह्लः —पुं॰—-—सिह् + लक्—शैलेय गन्धद्रव्य
शिह्लकः —पुं॰—-—सिह् + लक्, नि॰ सस्य शः—शैलेय गन्धद्रव्य
शी —अदा॰ आ॰ <शेते>, <शायित>,कर्मवा॰ <शय्यते>, इच्छा॰ <शिशयिषते>—-—-—लेटना, लेट जाना, विश्राम करना, आराम करना
शी —अदा॰ आ॰ <शेते>, <शायित>,कर्मवा॰ <शय्यते>, इच्छा॰ <शिशयिषते>—-—-—सोना
शी —अदा॰ उभ॰, प्रेर॰<शाययति>, <शाययते>—-—-—सुलाना, लिटाना
अतिशी —अदा॰ आ॰—अति-शी—-—सोने में पहल करना
अतिशी —अदा॰ आ॰—अति-शी—-—बाद में सोना-अपेक्षाकृत देर तक सोना
अधिशी —अदा॰ आ॰—अधि-शी—-—लेटना, सोना, आराम करना
अधिशी —अदा॰ आ॰—अधि-शी—-—वसना, रहना
उपशी —अदा॰ आ॰—उप-शी—-—सोना, निकट लेटना
संशी —अदा॰ आ॰—सम-शी—-—संदेह में होना
शी —स्त्री॰—-—शी + क्विप्—निद्रा, विश्राम
शी —स्त्री॰—-—शी + क्विप्—शान्ति
शीक् —भ्वा॰ आ॰ <शीकते>—-—-—तर करना, छिड़कना
शीक् —भ्वा॰ आ॰ <शीकते>—-—-—शनैः शनैः जाना, हिलना-जुलना
शीक् —भ्वा॰ पर॰ <शीकते>,चुरा॰ उभ॰<शीकयति>, <शीकयते>—-—-—क्रोध करना
शीक् —भ्वा॰ पर॰ <शीकते>,चुरा॰ उभ॰<शीकयति>, <शीकयते>—-—-—आर्द्र करना, गीला करना
शीकरः —पुं॰—-—शीक् + अरन्—वायुप्रेरित छींटे, सूक्ष्मवृष्टि, बौछार, तुषार
शीकरः —पुं॰—-—शीक् + अरन्—जलकण, वृष्टिकण
शीकरम् —नपुं॰—-—-—सरलवृक्ष
शीकरम् —नपुं॰—-—-—सरलवृक्ष की राल
शीघ्र —वि॰—-—शिङ्घ् + रक्, नि॰—फुर्तीला, त्वरित, सत्वर
शीघ्रम् —अव्य॰—-—-—फुर्ती से, तेज़ी से, जल्दी से
शीघ्रोच्चः —पुं॰—शीघ्र-उच्चः—-—ग्रहयोग
शीघ्रकारिन् —वि॰—शीघ्र-कारिन्—-—फुर्तीला, चुस्त
शीघ्रकोपिन् —वि॰—शीघ्र-कोपिन्—-—चिड़चिड़ा, क्रोधी
शीघ्रचेतनः —पुं॰—शीघ्र-चेतनः—-—कुत्ता
शीघ्रबुद्धि —वि॰—शीघ्र-बुद्धि—-—तीक्ष्णबुद्धि वाला, तेज़ बुद्धिवाला
शीघ्रलङ्घन —वि॰—शीघ्र-लङ्घन—-—तेज़ जाने वाला, पैर फुर्ती से रखने वाला
शीघ्रवेधिन् —पुं॰—शीघ्र-वेधिन्—-—तेज़ धनुर्धर
शीघ्रिन् —वि॰—-—शीघ्र + इनि—सत्वर, फुर्तीला
शीघ्रिय —वि॰—-—शीघ्र + घ—चुस्त
शीघ्रियः —पुं॰—-—-—बिल्लियों की लड़ाई
शीघ्र्यम् —नपुं॰—-—शीघ्र + घ—चुस्ती, शीघ्रता
शीत् —अव्य॰—-—-—आकस्मिक पीड़ा या आनन्द को अभिव्यक्त करने वाली ध्वनि
शीत्कारः —पुं॰—शीत्-कारः—-—उपर्युक्तध्वनि, सिसकारी
शीत्कृत् —पुं॰—शीत्-कृत्—-—उपर्युक्तध्वनि, सिसकारी
शीत —वि॰—-—श्यै + क्त—ठण्डा, शीतल, जमा हुआ
शीत —वि॰—-—श्यै + क्त—मन्द, सुस्त, उदासीन, आलसी
शीत —वि॰—-—श्यै + क्त—अलस, सुस्त, जड़
शीतः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का नरकुल
शीतः —पुं॰—-—-—नील का वृक्ष
शीतः —नपुं॰—-—-—जाड़े की ऋतु
शीतम् —नपुं॰—-—-—ठण्डक, शीतलता, सर्दी
शीतांशुः —पुं॰—शीत-अंशुः—-—चाँद
शीतांशुः —पुं॰—शीत-अंशुः—-—कपूर
शीतादः —पुं॰—शीत-अदः—-—मसूड़ों के पकजाने या उनमें ब्रण हो जाने का रोग,पायरिया
शीताद्रिः —पुं॰—शीत-अद्रिः—-—हिमालय पहाड़
शीतश्मन् —पुं॰—शीत-अश्मन्—-—चन्द्रकान्तमणि
शीतार्त —वि॰—शीत-आर्त—-—ठंड से व्याकुल, जाड़े से ठिठुरा हुआ
शीतोत्तमम् —नपुं॰—शीत-उत्तमम्—-—पानी
शीतकालः —पुं॰—शीत-कालः—-—जाड़े का ऋतु, सर्दी का मौसम
शीतकालीन —वि॰—शीत-कालीन—-—जाड़े में होने वाला
शीतकृच्छ्रः —पुं॰—शीत-कृच्छ्रः—-—एक प्रकार की धार्मिक साधना
शीतगन्धम् —नपुं॰—शीत-गन्धम्—-—सफेद चन्दन
शीतगुः —पुं॰—शीत-गुः—-—चाँद
शीतगुः —पुं॰—शीत-गुः—-—कपूर
शीतचम्पकः —पुं॰—शीत-चम्पकः—-—दीपक
शीतचम्पकः —पुं॰—शीत-चम्पकः—-—दर्पण
शीतदीधितिः —पुं॰—शीत-दीधितिः—-—चाँद
शीतपुष्पः —पुं॰—शीत-पुष्पः—-—शिरीष का वृक्ष, शिरस का पेड़
शीतपुष्पकम् —नपुं॰—शीत-पुष्पकम्—-—शैलेय गन्धद्रव्य
शीतप्रभः —पुं॰—शीत-प्रभः—-—कपूर
शीतभानुः —पुं॰—शीत-भानुः—-—चाँद
शीतभीरुः —पुं॰—शीत-भीरुः—-—एक प्रकार की मल्लिका
शीतमयूखः —पुं॰—शीत-मयूखः—-—चाँद
शीतमयूखः —पुं॰—शीत-मयूखः—-—कपूर
शीतमरीचिः —पुं॰—शीत-मरीचिः—-—चाँद
शीतमरीचिः —पुं॰—शीत-मरीचिः—-—कपूर
शीररश्मिः —पुं॰—शीत-रश्मिः—-—चाँद
शीररश्मिः —पुं॰—शीत-रश्मिः—-—कपूर
शीतरम्यः —पुं॰—शीत-रम्यः—-—दीपक
शीतरुच् —पुं॰—शीत-रुच्—-—चाँद
शीतवल्कः —पुं॰—शीत-वल्कः—-—गूलर का पेड़
शीतवीर्यकः —पुं॰—शीत-वीर्यकः—-—बड़ का पेड़
शीतशिव —पुं॰—शीत-शिवः—-—शमीवृक्ष, जैंडी का पेड़
शीतशिवम् —नपुं॰—शीत-शिवम्—-—सेंधा नमक
शीतशिवम् —नपुं॰—शीत-शिवम्—-—सुहागा
शीतशूकः —पुं॰—शीत-शूकः—-—जौ
शीतस्पर्श —वि॰—शीत-स्पर्श—-—ठंडक पहुँचाने वाला
शीतक —वि॰—-—शीत + कन्—ठण्डा
शीतकः —पुं॰—-—-—कोई ठण्डी वस्तु
शीतकः —पुं॰—-—-—जाड़े का ऋतु, सर्दी का मौसम
शीतकः —पुं॰—-—-—मन्थर, दीर्घसूत्री
शीतकः —पुं॰—-—-—आनन्दित, निश्चिन्त
शीतल —वि॰—-—शीतं लाति-ला + क, शीतमस्त्यस्य लच् वा—ठण्डा, शीतलगुण युक्त, सर्द, (ठण्ड के कारण) जमा हुआ
शीतलः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का कर्पूर
शीतलः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान
शीतलम् —नपुं॰—-—-—ठण्डक, ठण्डापन
शीतलम् —नपुं॰—-—-—जाड़े की ऋतु
शीतलम् —नपुं॰—-—-—शैलेयगन्धद्रव्य
शीतलम् —नपुं॰—-—-—सफेद चन्दन, या चन्दन
शीतलम् —नपुं॰—-—-—वीरण नामक मूल
शीतलच्छदः —पुं॰—शीतल-छदः—-—चम्पक वृक्ष
शीतलजलम् —नपुं॰—शीतल-जलम्—-—कमल
शीतलप्रदः —पुं॰—शीतल-प्रदः—-—चन्दन
शीतलप्रदम् —नपुं॰—शीतल-प्रदम्—-—चन्दन
शीतलषष्ठी —स्त्री॰—शीतल-षष्ठी—-—माघ शुक्ला छठ
शीतलकन् —नपुं॰—-—शीतल + कन्—सफेद कमल
शीतला —स्त्री॰—-—शीतल + टाप्—चेचक
शीतला —स्त्री॰—-—-—चेचक (शीतला) की अधिष्ठात्री देवता
शीतलापूजा —स्त्री॰—शीतला-पूजा—-—शीतला देवी की पूजा
शीतली —स्त्री॰—-—शीतल + ङीष्—चेचक
शीता —स्त्री॰—-—-—हल के चलाने से खेत में बनी हुई रेखा, खूड, हल की फाल से खुदी हुई रेखा
शीता —स्त्री॰—-—-—जुती हुई या खूडवाली भूमी, हल से जोती हुई भूमि
शीता —स्त्री॰—-—-—कृषि, खेंती
शीता —स्त्री॰—-—-—एक देवी का नाम, इन्द्र की पत्नी
शीता —स्त्री॰—-—-—उमा का नाम
शीता —स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी का नाम
शीता —स्त्री॰—-—-—गंगा की चार धाराओं में से एक
शीतालु —वि॰—-—शीतं न सहते- शीत + आलुच्—सर्दी से ठिठुरता हुआ, जिसे सर्दी लग गई है, जाड़े के कारण कष्ट पाता हुआ
शीत्य —नपुं॰—-—-—चावल, धान्य, अन्न
शीधु —पुं॰—-—शी + धुक्—कोई भी प्रासुत मदिरा, अंगूरी शराब
शीधु —पुं॰—-—शी + धुक्—शराब
शीधु —नपुं॰—-—शी + धुक्—कोई भी प्रासुत मदिरा, अंगूरी शराब
शीधु —नपुं॰—-—शी + धुक्—शराब
शीधुगन्धः —पुं॰—शीधु-गन्धः—-—बकुल वृक्ष, मौलसिरी का पेड़
शीधुपः —पुं॰—शीधु-पः—-—शराबी
शीन —वि॰—-—श्यै + क्त—जमा हुआ, घनीभूत
शीनः —पुं॰—-—-—जड़, बुद्धू
शीभ् —भ्वा॰ आ॰ <शीभते>—-—-—शेख़ी बघारना
शीभ् —भ्वा॰ आ॰ <शीभते>—-—-—बतलाना, कहना, बोलना
शीभ्यः —पुं॰—-—शीभ् + ण्यत्—साँड
शीभ्यः —पुं॰—-—शीभ् + ण्यत्—शिव
शीरः —पुं॰—-—शीङ् + रक्—अजगर
शीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—शृ + क्त—कुम्हलाया हुआ, मुर्झाया हुआ, सड़ा हुआ
शीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—शृ + क्त—सूखा, शुष्क
शीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—शृ + क्त—टूटा फूटा, चूर चूर हुआ
शीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—शृ + क्त—दुबला-पतला, कृश
शीर्णम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का गन्ध द्रव्य
शीर्णाङिघ्रः —पुं॰—शीर्ण-अङ्घ्रिः—-—यम का विशेषण
शीर्णाङिघ्रः —पुं॰—शीर्ण-अङ्घ्रिः—-—शनिग्रह का विशेषण
शीर्णपादः —पुं॰—शीर्ण-पादः—-—यम का विशेषण
शीर्णपादः —पुं॰—शीर्ण-पादः—-—शनिग्रह का विशेषण
शीर्णपर्णम् —नपुं॰—शीर्ण-पर्णम्—-—कुम्हलाया हुआ पत्ता
शीर्णपर्णः —पुं॰—शीर्ण-पर्णः—-—नीम का पेड़
शीर्णवृन्तम् —नपुं॰—शीर्ण-वृन्तम्—-—तरबूज़
शीर्वि —वि॰—-—शृ + क्विन्—विनाशकारी, आघातयुक्त, अनिष्टकर, क्षतिकर
शीर्षम् —नपुं॰—-—शिरस् पृषो॰ शीर्षादेशः, शृ + क सुक् च वा—सिर
शीर्षम् —नपुं॰—-—शिरस् पृषो॰ शीर्षादेशः, शृ + क सुक् च वा—काला अगर
शीर्षावशेषः —पुं॰—शीर्षम्-अवशेषः—-—केवल सिर ही बचा हुआ
शीर्षामयः —पुं॰—शीर्षम्-आमयः—-—सिर का कोई भी रोग
शीर्षच्छेदः —पुं॰—शीर्षम्-छेदः—-—सिर काट डालना
शीर्षच्छेद्यः —वि॰—शीर्षम्-छेद्य—-—जिसका सिर काट डालना चाहिए, सिर काट कर मारे जाने के योग्य
शीर्षरक्षकम् —नपुं॰—शीर्षम्-रक्षकम्—-—लोहे का टोप
शीर्षकः —पुं॰—-—शीर्ष + कन्—राहु का विशेषण
शीर्षकम् —नपुं॰—-—-—खोपड़ी
शीर्षकम् —नपुं॰—-—-—लोहे का टोप
शीर्षकम् —नपुं॰—-—-—सिर का वस्त्र, (टोपी, टोप आदि)
शीर्षण्यः —पुं॰—-—शीर्षन् + यत्—साफ़ तथा सुलझे हुए सिर के बाल
शीर्षण्यम् —नपुं॰—-—-—लोहे का टोप
शीर्षण्यम् —नपुं॰—-—-—टोप, टोपी
शीर्षन् —नपुं॰—-—शिरस् शब्दस्य पृषो॰ शीर्षन् आदेशः—सिर
शील् —भ्वा॰ पर॰ <शीलति>—-—-—मध्यस्थता करना, भली भांति सोचना
शील् —भ्वा॰ पर॰ <शीलति>—-—-—सेवा करना, सम्मान करना, पूजा करना
शील् —भ्वा॰ पर॰ <शीलति>—-—-—सम्पन्न करना, अभ्यास करना
शील् —चुरा॰ उभ॰ <शीलयति>, <शीलयते>—-—-—सम्मान करना, पूजा करना
शील् —चुरा॰ उभ॰ <शीलयति>, <शीलयते>—-—-—बार बार अभ्यास करना, प्रयोग करना, अध्ययन करना, चिन्तन करना, ध्यान करना
शील् —चुरा॰ उभ॰ <शीलयति>, <शीलयते>—-—-—धारण करना, पहनना
शील् —चुरा॰ उभ॰ <शीलयति>, <शीलयते>—-—-—जाना, दर्शन करना, बार बार जाना
अनुशील् —चुरा॰ उभ॰—अनु-शील्—-—बार बार अभ्यास करना, सुधारना, चिन्तन करना
परिशील् —चुरा॰ उभ॰—परि-शील्—-—बार बार अभ्यास करना, सुधारना, चिन्तन करना
शीलः —पुं॰—-—शील् + अच्—अजगर
शीलम् —नपुं॰—-—-—स्वभाव, प्रकृति, चरित्र, प्रवृत्ति, रुचि, आदत
कलहशील —वि॰—-—-—कलह करने के स्वभाव वाला , झगड़ालू
भावनाशील —वि॰—-—-—चिन्तनशील
शीलम् —नपुं॰—-—-—आचरण, व्यवहार
शीलम् —नपुं॰—-—-—अच्छा स्वभाव, अच्छी प्रकृति
शीलम् —नपुं॰—-—-—सद्गुण, नैतिकता, सदाचरण, सज्जीवन, शुचिता, ईमानदारी
शीलम् —नपुं॰—-—-—सौन्दर्य, सुन्दर रूप
शीलखण्डनम् —नपुं॰—शीलम्-खण्डनम्—-—शुचिता या नैतिकता का उल्लंघन @ पंच॰ १
शीलधारिन् —पुं॰—शीलम्-धारिन्—-—शिव का विशेषण
शीलवंचना —स्त्री॰—शीलम्-वंचना—-—शुचिता का उल्लंघन
शीलनम् —नपुं॰—-—शील् + ल्युट्—बार बार अभ्यास, प्रयोग, अध्ययन, संवर्धन
शीलनम् —नपुं॰—-—शील् + ल्युट्—निरन्तर प्रयोग
शीलनम् —नपुं॰—-—शील् + ल्युट्—सम्मान करना, सेवा करना
शीलनम् —नपुं॰—-—शील् + ल्युट्—वस्त्र पहनना
शीलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शील् + क्त—अभ्यस्त, प्रयुक्त
शीलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शील् + क्त—धारण किया हुआ
शीलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शील् + क्त—बार-बार किया हुआ, देखा हुआ
शीलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शील् + क्त—कुशल
शीलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शील् + क्त—युक्त, सहित, सम्पन्न
शीवन् —पुं॰—-—शीङ् + क्वनिप्—अजगर
शुंशुमारः —पुं॰—-—शिशुमार का भ्रष्ट रूप—सूँस नामक जल जन्तु
शुक् —भ्वा॰ पर॰ <शोकति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शुकः —पुं॰—-—शुक् + क—तोता
शुकः —पुं॰—-—शुक् + क—सिरस का पेड़
शुकः —पुं॰—-—शुक् + क—व्यास का एक पुत्र
शुकम् —नपुं॰—-—-—कपड़ा, वस्त्र
शुकम् —नपुं॰—-—-—लोहे का टोप
शुकम् —नपुं॰—-—-—वस्त्र की किनारी या मगजी
शुकादनः —पुं॰—शुकः-अदनः—-—अनार का पेड़
शुकद्रुमः —पुं॰—शुकः-द्रुमः—-—सिरस का पेड़
शुकनास —वि॰—शुकः-नास—-—तोते जैसी नाक वाला
शुकनासिका —स्त्री॰—शुकः-नासिका—-—तोते की नाक जैसी नाक
शुकपुच्छः —पुं॰—शुकः-पुच्छः—-—गन्धक
शुकपुष्पः —पुं॰—शुकः-पुष्पः—-—सिरस का पेड़
शुकप्रियः —पुं॰—शुकः-प्रियः—-—सिरस का पेड़
शुकपुष्पा —स्त्री॰—शुकः-पुष्पा—-—जामुन का पेड़
शुकवल्लभः —पुं॰—शुकः-वल्लभः—-—अनार का पेड़
शुकवाहः —पुं॰—शुकः-वाहः—-—कामदेव का विशेषण
शुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुच् + क्त—उज्ज्वल, विशुद्ध, स्वच्छ
शुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुच् + क्त—अम्ल, खट्टा
शुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुच् + क्त—कर्कश, खरखरा, कड़ा, कठोर
शुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुच् + क्त—संयुक्त, जुड़ा हुआ
शुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुच् + क्त—परित्यक्त, एकाकी
शुक्तम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का खट्टा तरल पदार्थ, (सिरका आदि)
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—सीप का खोल, मोती की सीप
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—शंख
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—छोटी सीप, पुट्ठा
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—खोंपड़ी का एक भाग
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—घोड़े की छाती (या गर्दंन पर) पर बालों का घूंघर
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—एक प्रकार का गंधद्रव्य
शक्तिः —स्त्री॰—-—शुच् + क्तिन्—दो कर्ष के समान विशेष तोल
शक्त्युद्भवम् —नपुं॰—शक्तिः-उद्भवम्—-—मोती
शक्तिजम् —नपुं॰—शक्तिः-जम्—-—मोती
शक्तिपुटम् —नपुं॰—शक्तिः-पुटम्—-—मोती की सीप का खोल
शक्तिपेशी —स्त्री॰—शक्तिः-पेशी—-—मोती की सीप का खोल
शक्तिवधूः —स्त्री॰—शक्तिः-वधूः—-—मोती का सीप
शक्तिवीजम् —नपुं॰—शक्तिः-वीजम्—-—मोती
शुक्तिका —स्त्री॰—-—शुक्ति + कन् + टाप्—मोती का सीप, सीपी
शुक्रः —पुं॰—-—शुच् + रक्, नि॰ कुत्वम्—शुक्रग्रह
शुक्रः —पुं॰—-—शुच् + रक्, नि॰ कुत्वम्—राक्षसों के गुरु जिसने अपने जादू के मंत्रों से युद्ध में मरे हुए राक्षसों को पुनर्जीवित कर दिया था
शुक्रः —पुं॰—-—शुच् + रक्, नि॰ कुत्वम्—ज्येष्ठमास
शुक्रः —पुं॰—-—शुच् + रक्, नि॰ कुत्वम्—अग्नि
शुक्रम् —नपुं॰—-—-—किसी भी वस्तु का सत्
शुक्राङ्गः —पुं॰—शुक्रः-अङ्गः—-—मोर
शुक्रकर —वि॰—शुक्रः-कर—-—शुक्र या वीर्य सम्बन्धी
शुक्रकरः —पुं॰—शुक्रः-करः—-—हड्डियों में रहने वाली मज्जा
शुक्रवारः —पुं॰—शुक्रः-वारः—-—भृगुवार, जुमा
शुक्रवासरः —पुं॰—शुक्रः-वासरः—-—भृगुवार, जुमा
शुक्रशिष्यः —पुं॰—शुक्रः-शिष्यः—-—राक्षस
शुक्रल —वि॰—-—शुक्र + ला + क—वीर्यसम्बन्धी
शुक्रल —वि॰—-—शुक्र + ला + क—शुक्र या वीर्य को बढ़ाने वाला
शुक्रिय —वि॰—-—शुक्र + घ—वीर्यसम्बन्धी
शुक्रिय —वि॰—-—शुक्र + घ—शुक्र या वीर्य को बढ़ाने वाला
शुक्ल —वि॰—-—शुच् + लुक्, कुत्वम्—सफेद, विशुद्ध, उज्ज्वल
शुक्लः —पुं॰—-—-—चांद्रमास का उज्ज्वल या सुदी पक्ष
शुक्लम् —नपुं॰—-—-—आँखों की सफेदी में होने वाला रोग विशेष
शुक्लम् —नपुं॰—-—-—ताजा मक्खन
शुक्लम् —नपुं॰—-—-—(खट्टी) कांजी
शुक्लाङ्गः —पुं॰—शुक्ल-अङ्गः—-—मोर (आँखो के श्वेत कोण होने के कारण)
शुक्लापाङ्गः —पुं॰—शुक्ल-अपाङ्गः—-—मोर (आँखो के श्वेत कोण होने के कारण)
शुक्लाम्लम् —नपुं॰—शुक्ल-अम्लम्—-—एक प्रकार का खट्टा साग, चूक
शुक्लोपला —स्त्री॰—शुक्ल-उपला—-—रवेदार चीनी
शुक्लकण्ठकः —पुं॰—शुक्ल-कण्ठकः—-—एक प्रकार का जल कुक्कुट
शुक्लकर्मन् —वि॰—शुक्ल-कर्मन्—-—शुद्धाचारी, सद्गुणी
शुक्लकुण्ठम् —नपुं॰—शुक्ल-कुण्ठम्—-—सफ़ेद कोढ़
शुक्लधातुः —पुं॰—शुक्ल-धातुः—-—खड़िया मिट्टी
शुक्लपक्षः —पुं॰—शुक्ल-पक्षः—-—मास का सुदी पक्ष
शुक्लवस्त्र —वि॰—शुक्ल-वस्त्र—-—श्वेत वस्त्रधारी
शुक्लवायसः —पुं॰—शुक्ल-वायसः—-—सारस
शुक्लक —वि॰—-—शुक्ल + कन्—सफ़ेद
शुक्लकः —पुं॰—-—-—चान्द्र मास का सुदी पक्ष
शुक्लल —वि॰—-—शुक्ल + ला + क—सफ़ेद
शुक्ला —स्त्री॰—-—शुक्ल + टाप्—सरस्वती
शुक्ला —स्त्री॰—-—शुक्ल + टाप्—रवेदार चीनी
शुक्ला —स्त्री॰—-—शुक्ल + टाप्—श्वेतवर्ण वाली स्त्री
शुक्ला —स्त्री॰—-—शुक्ल + टाप्—काकोली नाम का पौधा
शुक्लिमन् —पुं॰—-—शुक्ल + इमनिच्—श्वेतता, सफेदी
शुक्षिः —पुं॰—-—शुस् + क्सिः—वायु, हवा
शुक्षिः —पुं॰—-—शुस् + क्सिः—प्रकाश, कान्ति
शुक्षिः —पुं॰—-—शुस् + क्सिः—अग्नि
शुङ्गः —पुं॰—-—शुम् + ग, नि॰ साधुः—बड़ का पेड़
शुङ्गः —पुं॰—-—शुम् + ग, नि॰ साधुः—पेंवदी बेर का पेड़
शुङ्गः —पुं॰—-—शुम् + ग, नि॰ साधुः—अनाज का टूँड़, किंशारु
शुङ्गा —स्त्री॰—-—शुङ्ग + टाप्—नूतन कली का कोष
शुङ्गा —स्त्री॰—-—-—जौ या अनाज की बाल, किंशारु
शुङ्गिन् —पुं॰—-—शुङ्गा + इनि—बड़ का पेड़, वटवृक्ष
शुच् —भ्वा॰ पर॰ <शोचति>—-—-—खिन्न होना, दुःखी होना, शोक करना, विलाप करना
शुच् —भ्वा॰ पर॰—-—-—खेद प्रकट करना, पछताना
अनुशुच् —भ्वा॰ पर॰—अनु-शुच्—-—शोक मनाना, विलाप करना, खेद प्रकट करना
परिशुच् —भ्वा॰ पर॰—परि-शुच्—-—विलाप करना, शोक मनाना
शुच् —दिवा॰ उभ॰ <शुच्यति>, <शुच्यते>—-—-—खिन्न होना, दुःखी होना
शुच् —दिवा॰ उभ॰ <शुच्यति>, <शुच्यते>—-—-—आर्द्र होना
शुच् —दिवा॰ उभ॰ <शुच्यति>, <शुच्यते>—-—-—चमकना
शुच् —दिवा॰ उभ॰ <शुच्यति>, <शुच्यते>—-—-—स्वच्छ या निर्मल होना
शुच् —दिवा॰ उभ॰ <शुच्यति>, <शुच्यते>—-—-—कुम्हलाना, मुर्झाना
शुच् —स्त्री॰—-—शुच् + क्विप्—रंज, शोक, कष्ट, दुःख
शुचा —स्त्री॰—-—शुच् + टाप्—रंज, शोक, कष्ट, दुःख
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—विमल, विशुद्ध, स्वच्छ
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—श्वेत
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—उज्ज्वल, चमकदार
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—सद्गुणी, पवित्रात्मा, पुण्यात्मा, निष्पाप, निष्कलंक
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—पवित्रीकृत, निर्मल किया हुआ, पुनीत बनाया हुआ
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—ईमानदार, खरा, निष्ठावान्, सच्चा, निश्छल
शुचि —वि॰—-—शुच् + कि—सही यथार्थ
शुचिः —पुं॰—-—-—श्वेत वर्ण
शुचिः —पुं॰—-—-—पवित्रता, पवित्रीकरण
शुचिः —पुं॰—-—-—भोलापन, सद्गुण, भद्रता, खरापन
शुचिः —पुं॰—-—-—शुद्धता, यथार्थता
शुचिः —पुं॰—-—-—ब्रह्मचारी की दशा
शुचिः —पुं॰—-—-—पवित्रात्मा
शुचिः —पुं॰—-—-—ग्रीष्म ऋतु
शुचिः —पुं॰—-—-—ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने
शुचिः —पुं॰—-—-—निष्ठावान् या सच्चा मित्र
शुचिः —पुं॰—-—-—चित्रक वृक्ष
शुचिद्रुमः —पुं॰—शुचि-द्रुमः—-—पवित्र वटचमेली, नवमल्लिका
शुचिरोचिस् —पुं॰—शुचि-रोचिस्—-—चन्द्रमा
शुचिव्रत —वि॰—शुचि-व्रत—-—पुण्यात्मा, सद्गुणी
शुचिस्मित —वि॰—शुचि-स्मित—-—मधुर मुस्कान वाला
शुचिस् —नपुं॰—-—शुच् + इसुन्—प्रकाश, कान्ति
शुच्य् —भ्वा॰ पर॰ <शुच्यति>—-—-—स्नान करना, नहानाधोना
शुच्य् —भ्वा॰ पर॰ <शुच्यति>—-—-—निचोड़ना, (रस) निकालना
शुच्य् —भ्वा॰ पर॰ <शुच्यति>—-—-—अर्क खींचना
शुच्य् —भ्वा॰ पर॰ <शुच्यति>—-—-—बिलोना
शुटीरः —पुं॰—-—शौटीरः, पृषो॰—वीर, नायक
शुठ् —भ्वा॰ पर॰<शोठति>—-—-—बाधा डाला जाना, रुकावट डाली जानी
शुठ् —भ्वा॰ पर॰<शोठति>—-—-—लड़खड़ाना, लंगड़ा होना
शुठ् —भ्वा॰ पर॰<शोठति>—-—-—मुक़ाबला करना
शुठ् —चुरा॰ उभ॰ <शोठयति>, <शोठयते>—-—-—सुस्त होना, आलसी होना, मन्द होना
शुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <शुण्ठति>, चुरा॰ उभ॰ <शुण्ठति>, <शुण्ठते>—-—-—पवित्र करना
शुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <शुण्ठति>, चुरा॰ उभ॰ <शुण्ठति>, <शुण्ठते>—-—-—सूखना
शुण्ठिः —स्त्री॰—-—शुण्ठ् + इन्—सोंठ, सूखा अदरक
शुण्ठी —स्त्री॰—-—शुंठि + ङीष्—सोंठ, सूखा अदरक
शुण्ठयम् —नपुं॰—-—शुण्ठ् +यत्—सोंठ, सूखा अदरक
शुण्डः —पुं॰—-—शुण्ड्+ अच्—मदमाते हाथी के गण्डस्थल से निकलने वाला रस
शुण्डः —पुं॰—-—शुण्ड्+ अच्—हाथी की सूँड़
शुण्डकः —पुं॰—-—शुण्ड्+ कन्—शराब खींचने वाला, कलाल
शुण्डकः —पुं॰—-—शुण्ड्+ कन्—एक प्रकार का सैनिक संगीत या वाद्ययन्त्र
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—हाथी की सूँड़
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—खींची हुई शराब
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—मद्यपानगृह, मधुशाला
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—कमल डण्डी
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—वेश्या, रंडी
शुण्डा —स्त्री॰—-—शुण्ड + टाप्—कुटनी, दूती
शुण्डापानम् —नपुं॰—शुण्डा-पानम्—-—मदिरालय, शराबखाना
शुण्डारः —पुं॰—-—शुण्ड + ऋ + अण्—शराब खींचने वाला
शुण्डारः —पुं॰—-—शुण्ड + ऋ + अण्—हाथी की सूँड़ या नासावृद्धि
शुण्डालः —पुं॰—-—शुण्डारः, रलयोरभेदः—हाथी
शुण्डिका —स्त्री॰—-—शुण्डा + कन् + टाप्, इत्वम्—
शुण्डिन् —पुं॰—-—शुण्ड + णिनि—शराब खींचने वाला, कलाल
शुण्डिन् —पुं॰—-—शुण्ड + णिनि—हाथी
शुण्डिभूषिका —स्त्री॰—शुण्डिन्-भूषिका—-—छंछून्दर
शुतुद्रिः —स्त्री॰—-—-—सतलुज नदी
शुतुद्रुः —स्त्री॰—-—-—सतलुज नदी
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—विशुद्ध, विमल, पवित्रीकृत
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—पुनीत, अकलुषित, शुचि, निर्दोष
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—श्वेत, उज्ज्वल
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—निष्कलंक, वेदाग
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—भोला-भाला, सीधा-सादा, निर्दोष
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—ईमानदार, खरा
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—सही, अशुद्धिरहित, यथार्थ
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—ऋण चुकाया गया, क़र्ज़ अदा किया गया
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—केवल, मात्र
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—सरल, विशुद्ध, अनमिश्रित
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—अद्वितीय
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—अधिकृत
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—पैनाया हुआ, तेज़ किया हुआ
शुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + क्त—अननुनासिक
शुद्धः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
शुद्धम् —नपुं॰—-—-—कोई भी विशुद्ध वस्तु
शुद्धम् —नपुं॰—-—-—विशुद्ध वस्तु
शुद्धम् —नपुं॰—-—-—विशुद्ध सुरा
शुद्धम् —नपुं॰—-—-—सेंधा नमक
शुद्धम् —नपुं॰—-—-—काली मिर्च
शुद्धान्तः —पुं॰—शुद्ध-अन्तः—-—राजा का अन्तःपुर, रनवास, अन्दर महल
शुद्धचारिन् —पुं॰—शुद्ध-चारिन्—-—अन्तःपुर का सेवक, कंचुकी
शुद्धपालकः —पुं॰—शुद्ध-पालकः—-—अन्तःपुर का रखवाला
शुद्धरक्षक —पुं॰—शुद्ध-रक्षक—-—अन्तःपुर का रखवाला
शुद्धात्मन् —वि॰—शुद्ध-आत्मन्—-—शुद्धात्मा, ईमानदार
शुद्धोदनः —पुं॰—शुद्ध-ओदनः—-—विख्यात बुद्ध का पिता
शुद्धसुतः —पुं॰—शुद्ध-सुतः—-—बुद्ध
शुद्धचैतन्यम् —नपुं॰—शुद्ध-चैतन्यम्—-—विशुद्ध, प्रतिभा, प्रज्ञा
शुद्धजंघः —पुं॰—शुद्ध-जंघः—-—गधा
शुद्धधी —वि॰—शुद्ध-धी—-—विशुद्धमना, निर्दोष, ईमानदार
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—विशुद्धता, स्वच्छता
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—चमक, कान्ति
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—पवित्रता, पुण्यशीलता
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—पवित्रीकरण, प्रायश्चित्त, परिशोधन, प्रायश्चित परक कृत्य
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—पवित्रीकरणमूलक या प्रायश्चित्त परक संस्कार
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—(ऋण) परिशोध
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—प्रतिहिंसा, प्रतिशोध
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—छुटकारा, (जांच द्वारा सिद्ध) निर्दोषता
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—सचाई, यथार्थता, याथातथ्यता
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—समाधान, संशोधन
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—व्यवकलन
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध् + क्तिन्—दुर्गा
शुद्धिपत्रम् —नपुं॰—शुद्धिः-पत्रम्—-—ऐसी सूची जिसमें अशुद्ध शब्द शुद्ध रूपों सहित लिखे गये हों
शुद्धिपत्रम् —नपुं॰—शुद्धिः-पत्रम्—-—प्रायश्चित्त के द्वारा हुई शुद्धि का प्रमाणपत्र
शुध् —दिवा॰ पर॰ <शुध्यति>, <शुद्ध>—-—-—शुद्ध या पवित्र होना,
शुध् —दिवा॰ पर॰ <शुध्यति>, <शुद्ध>—-—-—शुभ होना, अनुकूल होना, पात्र होना
शुध् —दिवा॰ पर॰ <शुध्यति>, <शुद्ध>—-—-—स्पष्ट किया जाना, संदेह दूर करना
शुध् —दिवा॰ पर॰ <शुध्यति>, <शुद्ध>—-—-—व्यय किया जाना, (खर्च) चुकाया जाना
शुध् —दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰<शोधयति>, <शोधयते>—-—-—पवित्र करना, निर्मल करना धो डालना
शुध् —दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰<शोधयति>, <शोधयते>—-—-—(ऋण) परिशोध करना, चुकाना
परिशुध् —दिवा॰ पर॰—परि-शुध्—-—पवित्र किया जाना
विशुध् —दिवा॰ पर॰—वि-शुध्—-—पवित्र किया जाना
संशुध् —दिवा॰ पर॰—सम्-शुध्—-—पवित्र किया जाना
शुन् —तुदा॰ पर॰ <शुनति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शुनःशेपः —पुं॰—-—-—एक वैदिक ऋषि, अजीगर्तं का पुत्र
शुनःशेफः —पुं॰—-—शुन इव शेफः यस्य-अलुक् स॰—एक वैदिक ऋषि, अजीगर्तं का पुत्र
शुनकः —पुं॰—-—शुन् + क=शुन् + कन्—भृगुवंश में उत्पन्न एक ऋषि का नाम
शुनकः —पुं॰—-—शुन् + क=शुन् + कन्—कुत्ता
शुनाशीरः —पुं॰—-—शुनाशीरौ वायुसूर्ये अस्य स्तः इति अच्—इन्द्र का विशेषण
शुनाशीरः —पुं॰—-—शुनाशीरौ वायुसूर्ये अस्य स्तः इति अच्—उल्लू
शुनासीरः —पुं॰—-—-—इन्द्र का विशेषण
शुनिः —पुं॰—-—शुन् + इन्—कुत्ता
शुनी —स्त्री॰—-—श्वन् + ङीष्—कुतिया, कुक्कुरी
शुनीरः —पुं॰—-—शुनी + र—कुतियों का समूह
शुन्ध् —भ्वा॰ <शुन्धति>, <शुन्धते>, चुरा॰ उभ॰ <शुन्धयति>, <शुन्धयते>—-—-—पवित्र या विमल होना
शुन्ध् —भ्वा॰ <शुन्धति>, <शुन्धते>, चुरा॰ उभ॰ <शुन्धयति>, <शुन्धयते>—-—-—निर्मल करना, पवित्र करना
शुन्ध्युः —पुं॰—-—शुन्ध् + युः—हवा, वायु
शुभ् —भ्वा॰ आ॰ <शोभते>—-—-—चमकना, शानदार होना, सुन्दर या मनोहर दिखाई देना
शुभ् —भ्वा॰ आ॰ <शोभते>—-—-—लाभकर प्रतीत होना
शुभ् —भ्वा॰ आ॰ <शोभते>—-—-—उपयुक्त होना, शोभा देना, योग्य होना
शुभ् —भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <शोभयति>, <शोभयते>—-—-—सजाना, संवारना, अलंकृत करना
परिशुभ् —भ्वा॰ आ॰—परि-शुभ्—-—चमकना, शानदार दिखाई देना
विशुभ् —भ्वा॰ आ॰—वि-शुभ्—-—चमकना, शानदार दिखाई देना
शुभ —वि॰—-—शुभ् + क—चमकीला, उज्ज्वल
शुभ —वि॰—-—शुभ् + क—सुन्दर, मनोहर
शुभ —वि॰—-—शुभ् + क—मांगलिक, सौभाग्यशाली, प्रसन्न, समृद्धि शाली
शुभ —वि॰—-—शुभ् + क—प्रमुख, भद्र, सद्गुणी
शुभम् —नपुं॰—-—-—मांगलिकता, कल्याण, अच्छा भाग्य, प्रसन्नता, समृद्धि
शुभम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार की सुगंधित लकड़ी
शुभाक्षः —पुं॰—शुभ-अक्षः—-—शिव का विशेषण
शुभाङ्ग —वि॰—शुभ-अङ्ग—-—सुन्दर
शुभाङ्गी —स्त्री॰—शुभ-अङ्गी—-—सुन्दर स्त्री
शुभाङ्गी —स्त्री॰—शुभ-अङ्गी—-—कामदेव की पत्नी रति
शुभापाङ्गा —स्त्री॰—शुभ-अपाङ्गा—-—सुन्दर स्त्री
शुभाशुभम् —नपुं॰—शुभ-अशुभम्—-—सुख-दुःख, भला-बुरा
शुभाचार —वि॰—शुभ-आचार—-—पवित्र आचरण वाला, सदाचारी
शुभानना —स्त्री॰—शुभ-आनना—-—मनोरम स्त्री
शुभेतर —वि॰—शुभ-इतर—-—बुरा, खराब
शुभेतर —वि॰—शुभ-इतर—-—अशुभ, आमांगलिक
शुभोदर्क —वि॰—शुभ-उदर्क—-—जिसका अन्त आनन्ददायक हो
शुभकर —वि॰—शुभ-कर—-—कल्याणकर, मंगलप्रद
शुभकर्मन् —नपुं॰—शुभ-कर्मन्—-—पुण्यकार्य
शुभगन्धकम् —नपुं॰—शुभ-गन्धकम्—-—एक गन्धद्रव्य, बोल
शुभग्रहः —पुं॰—शुभ-ग्रहः—-—अनुकूल ग्रह
शुभदः —पुं॰—शुभ-दः—-—बटवृक्ष
शुभदन्ती —स्त्री॰—शुभ-दन्ती—-—सुन्दर दाँतों वाली
शुभलग्नः —पुं॰—शुभ-लग्नः—-—शुभ मुहूर्त, मंगल घड़ी
शुभवार्ता —स्त्री॰—शुभ-वार्ता—-—शुभ समाचार
शुभवासनः —पुं॰—शुभ-वासनः—-—मुंह को सुभाषित करने वाला गंधद्रव्य
शुभशंसिन् —वि॰—शुभ-शंसिन्—-—शुभसूचक, मंगल की सूचना देने वाला
शुभस्थली —स्त्री॰—शुभ-स्थली—-—वह भवन जहाँ यज्ञों का अनुष्ठान होता हो, यज्ञभूमि
शुभस्थली —स्त्री॰—शुभ-स्थली—-—मंगलभूमि
शुभंयु —वि॰—-—शुभमस्यास्ति-युस्—मंगलमय, सौभाग्यसूचक, भाग्यशाली, मंगलन्वित
शुभम्भावुक —वि॰—-—शुभम् + भू + णिच् + उकञ्—सजाया हुआ, सूभूषित, अलंकृत, उज्ज्वल
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—कान्ति, प्रकाश
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—सौन्दर्य
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—इच्छा
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—पीलारंग, गोरोचना
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—शमी वृक्ष
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—देवसभा
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—दूब
शुभा —स्त्री॰—-—शुभ + टाप्—प्रियगुं लता
शुभ्र —वि॰—-—शुभ् + रक्—चमकीला, उज्ज्वल, देदीप्यमान
शुभ्र —वि॰—-—शुभ् + रक्—श्वेत
शुभ्रः —पुं॰—-—-—श्वेत रंग
शुभ्रम् —नपुं॰—-—-—सेंधा नमक
शुभ्रांशुः —पुं॰—शुभ्र-अंशुः—-—चन्द्रमा
शुभ्रांशुः —पुं॰—शुभ्र-अंशुः—-—कपूर
शुभ्रकरः —पुं॰—शुभ्र-करः—-—चन्द्रमा
शुभ्रकरः —पुं॰—शुभ्र-करः—-—कपूर
शुभ्ररश्मिः —पुं॰—शुभ्र-रश्मिः—-—चन्द्रमा
शुभ्रा —स्त्री॰—-—शुभ्र + टाप्—गंगा
शुभ्रा —स्त्री॰—-—शुभ्र + टाप्—स्फटिक
शुभ्रा —स्त्री॰—-—शुभ्र + टाप्—वंशलोचन
शुभ्रिः —पुं॰—-—शुभ् + क्रिन्—ब्रह्मा का विशेषण
शुम्भ् —भ्वा॰ पर॰ <शुम्भति>—-—-—चमकना
शुम्भ् —भ्वा॰ पर॰ <शुम्भति>—-—-—बोलना
शुम्भ् —भ्वा॰ पर॰ <शुम्भति>—-—-—आघात पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
शुम्भ —पुं॰—-—शुम्भ् + अच्—एक राक्षस का नाम जिसे दुर्गा ने मार डाला था
शुम्भघातिनी —स्त्री॰—शुम्भ-घातिनी—-—दुर्गा का विशेषण
शुम्भमर्दिनी —स्त्री॰—शुम्भ-मर्दिनी—-—दुर्गा का विशेषण
शुर् ——-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
शुर् ——-—-—दृढ़ करना, स्थिर करना, ठहराना
शूर् —दिवा॰ आ॰ <शूर्यते>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
शूर् —दिवा॰ आ॰ <शूर्यते>—-—-—दृढ़ करना, स्थिर करना, ठहराना
शुल्क् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्कयति>, <शुल्कयते>—-—-—लाभ उठाना
शुल्क् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्कयति>, <शुल्कयते>—-—-—अदा करना, देना
शुल्क् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्कयति>, <शुल्कयते>—-—-—रचना करना
शुल्क् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्कयति>, <शुल्कयते>—-—-—कहना, वर्णन करना
शुल्क् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्कयति>, <शुल्कयते>—-—-—छोड़ना, त्यागना, परित्यक्त करना
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—चुंगी, कर, महसूल, सीमाशुल्क, विशेषतः वह कर जो राज्य द्वारा घाट या मार्ग आदि पर लिया जाता है
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—किसी सौदे को पक्का करने के लिये दिया गया अगाऊ धन
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—(कन्या का) विक्रय मूल्य, कन्या के पिता को कन्या के बदले दिया गया धन
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—विवाहोपहार
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—विवाह निश्चित करने के लिए दिया गया धन, दहेज
शुल्कः —पुं॰—-—शुल्क् + घञ्—वर पक्ष की ओर से दुलहिन को दिया गया उपहार
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—चुंगी, कर, महसूल, सीमाशुल्क, विशेषतः वह कर जो राज्य द्वारा घाट या मार्ग आदि पर लिया जाता है
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—किसी सौदे को पक्का करने के लिये दिया गया अगाऊ धन
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—(कन्या का) विक्रय मूल्य, कन्या के पिता को कन्या के बदले दिया गया धन
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—विवाहोपहार
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—विवाह निश्चित करने के लिए दिया गया धन, दहेज
शुल्कम् —नपुं॰—-—शुल्क् + घञ्—वर पक्ष की ओर से दुलहिन को दिया गया उपहार
शुल्कग्राहक —वि॰—शुल्कः-ग्राहक—-—शुल्कसंग्रहकर्ता
शुल्कग्राहिन् —वि॰—शुल्कः-ग्राहिन्—-—शुल्कसंग्रहकर्ता
शुल्कदः —पुं॰—शुल्कः-दः—-—विवाहोपहार देने वाला
शुल्कदः —पुं॰—शुल्कः-दः—-—वाग्दत्त विवाहार्थी
शुल्कशाला —स्त्री॰—शुल्कः-शाला—-—शुल्क जमा करने की जगह, चुंगीघर
शुल्कस्थानम् —नपुं॰—शुल्कः-स्थानम्—-—शुल्क जमा करने की जगह, चुंगीघर
शुल्लम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्, पृषो॰—सुतली, रस्सी, डोरी
शुल्व् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्वयति>, <शुल्वयते>—-—-—देना, प्रदान करना
शुल्व् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्वयति>, <शुल्वयते>—-—-—भेजना, तितर बितर करना
शुल्व् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्वयति>, <शुल्वयते>—-—-—मापना
शुल्ब् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्बयति>, <शुल्बयते>—-—-—देना, प्रदान करना
शुल्ब् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्बयति>, <शुल्बयते>—-—-—भेजना, तितर बितर करना
शुल्ब् —चुरा॰ उभ॰ <शुल्बयति>, <शुल्बयते>—-—-—मापना
शुल्वम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्—रस्सी, डोरी
शुल्वम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्—तांबा
शुल्वम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्—यज्ञीय कर्म
शुल्वम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्—जल का सामीप्य, जल का निकटवर्ती स्थान
शुल्वम् —नपुं॰—-—शुल्व् + अच्—नियम, क़ानून, विधिसार
शुल्बम् —नपुं॰—-—-—रस्सी, डोरी
शुल्बम् —नपुं॰—-—-—यज्ञीय कर्म
शुल्बम् —नपुं॰—-—-—जल का सामीप्य, जल का निकटवर्ती स्थान
शुल्बम् —नपुं॰—-—-—नियम, क़ानून, विधिसार
शुश्रू —स्त्री॰—-—श्रु + यङ् लुक्, द्वित्वादि + क्विप्—माता
शुश्रूषक —वि॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + ण्वुल्—सावधान, आज्ञाकारी
शुश्रूषकः —पुं॰—-—-—सेवक, टहलुआ
शश्रूषणम् —नपुं॰—-—श्रु + सन् + इत्वादि + ल्युट्—सुनने की इच्छा
शश्रूषणम् —नपुं॰—-—श्रु + सन् + इत्वादि + ल्युट्—सेवा, टहल
शश्रूषणम् —नपुं॰—-—श्रु + सन् + इत्वादि + ल्युट्—आज्ञाकारिता, कर्त्तव्यपरायणता
शश्रूषणा —स्त्री॰—-—-—सुनने की इच्छा
शश्रूषणा —स्त्री॰—-—-—सेवा, टहल
शश्रूषणा —स्त्री॰—-—-—आज्ञाकारिता, कर्त्तव्यपरायणता
शुश्रूषा —स्त्री॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + अ + टाप्—सुनने की इच्छा
शुश्रूषा —स्त्री॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + अ + टाप्—सेवा, टहल
शुश्रूषा —स्त्री॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + अ + टाप्—कर्तव्यपरायणता, आज्ञाकारिता
शुश्रूषा —स्त्री॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + अ + टाप्—सम्मान
शुश्रूषा —स्त्री॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + अ + टाप्—बोलना, कहना
शुश्रूषु —वि॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + उ—सुनने का इच्छुक
शुश्रूषु —वि॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + उ—सेवा या टहल करने की इच्छा वाला
शुश्रूषु —वि॰—-—श्रु + सन्, द्वित्वादि + उ—आज्ञाकारी, सावधान
शुष् —दिवा॰ पर॰ <शुष्यति>, <शुष्क>—-—-—सूखना, शुष्क होना, खुश्क होना
शुष् —दिवा॰ पर॰ <शुष्यति>, <शुष्क>—-—-—मुर्झा जाना
शुष् —दिवा॰ उभ॰, प्रेर॰ <शोषयति>, <शोषयते>—-—-—सुखाना, मुर्झाना, खुश्क होना
शुष् —प्रेर॰ <शोषयति>, <शोषयते>—-—-—कृश करना
उच्छुष् —दिवा॰ पर॰—उद्-शुष्—-—सुखाया जाना, सुखाना
उच्छुष् —दिवा॰ पर॰—उद्-शुष्—-—म्लान होना, कुम्हलाना, मुर्झाना
परिशुष् —दिवा॰ पर॰—परि-शुष्—-—सुखाया जाना, सुखाना
परिशुष् —दिवा॰ पर॰—परि-शुष्—-—म्लान होना, कुम्हलाना, मुर्झाना
विशुष् —दिवा॰ पर॰—वि-शुष्—-—सुखाया जाना
संशुष् —दिवा॰ पर॰—सम्-शुष्—-—सुखाया जाना
शुषः —पुं॰—-—शुष् + क—सूखना, सुखाना
शुषः —पुं॰—-—शुष् + क—बिल, भूरन्ध्र
शुषी —स्त्री॰—-—शुष् + ङीष्—सूखना, सुखाना
शुषी —स्त्री॰—-—शुष् + ङीष्—बिल, भूरन्ध्र
शुषिः —पुं॰—-—शुष् + कि—सुखाना
शुषिः —पुं॰—-—शुष् + कि—रन्ध्र, छिद्र
शुषिः —पुं॰—-—शुष् + कि—साँप के विषैले दांत का पोला भाग
शुषिर —वि॰—-—शुष् + किरच्—छिद्रयुक्त, रन्ध्रमय
शुषिरम् —नपुं॰—-—-—अन्तरिक्ष
शुषिरम् —नपुं॰—-—-—हवा या फूँक से बजने वाला बाजा
शुषिरा —स्त्री॰—-—शुषिर + टाप्—नदी
शुषिरा —स्त्री॰—-—शुषिर + टाप्—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
शुषिलः —पुं॰—-—शुष् + इलच्, स च कित्—हवा, वायु
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुष् + क्त—सूखा, सुखाया हुआ
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भुना हुआ, म्लान
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुर्रीदार, सिकुड़न वाला, कृश
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झूठ मूठ, व्याजमुक्त, नक़ली
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रिक्त, व्यर्थ, अनुपयोगी, अनुत्पादक
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराधार, निष्कारण
शुष्क —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बुरा लगने वाला, कठोर
शुष्काङ्ग —वि॰—शुष्क-अङ्ग—-—कृशकाय
शुष्काङ्गी —स्त्री॰—शुष्क-अङ्गी—-—छिपकली
शुष्कान्नम् —नपुं॰—शुष्क-अन्नम्—-—वह अनाज जिसमें से भूसा अलग नहीं किया गया
शुष्ककलहः —पुं॰—शुष्क-कलहः—-—व्यर्थ या निराधार झगड़ा
शुष्ककलहः —पुं॰—शुष्क-कलहः—-—बनावटी झगड़ा
शुष्कवैरम् —नपुं॰—शुष्क-वैरम्—-—निराधार वैर
शुष्कव्रण —पुं॰/नपुं॰—शुष्क-व्रण—-—वह घाव जो अच्छा हो गया है, घाव का चिह्न
शुष्कलः —पुं॰—-—शुष्क + ला + क—सूखा मांस
शुष्कलः —पुं॰—-—शुष्क + ला + क—मांस
शुष्कलम् —नपुं॰—-—शुष्क + ला + क—सूखा मांस
शुष्कलम् —नपुं॰—-—शुष्क + ला + क—मांस
शुष्मः —पुं॰—-—शुष् + मन्, किच्च—सूर्य
शुष्मः —पुं॰—-—शुष् + मन्, किच्च—आग
शुष्मः —पुं॰—-—शुष् + मन्, किच्च—वायु, हवा
शुष्मः —पुं॰—-—शुष् + मन्, किच्च—पक्षी
शुष्मम् —नपुं॰—-—-—पराक्रम, सामर्थ्य
शुष्मम् —नपुं॰—-—-—प्रकाश, कान्ति
शुष्मन् —पुं॰—-—शुष् + ङ्, मनिप्—अग्नि
शुष्मन् —नपुं॰—-—-—सामर्थ्य, पराक्रम
शुष्मन् —नपुं॰—-—-—प्रकाश, कान्ति
शूकः —पुं॰—-—श्वि + कक्—जौ की बाल, दाढ़ी
शूकः —पुं॰—-—श्वि + कक्—पौधों के कड़े रोएँ
शूकः —पुं॰—-—श्वि + कक्—नोक, सिरा, तेज़ किनारा
शूकः —पुं॰—-—श्वि + कक्—सुकोमलता, करुणा
शूकः —पुं॰—-—श्वि + कक्—एक प्रकार का विषैला कीड़ा
शूकम् —नपुं॰—-—-—जौ की बाल, दाढ़ी
शूकम् —नपुं॰—-—-—पौधों के कड़े रोएँ
शूकम् —नपुं॰—-—-—नोक, सिरा, तेज़ किनारा
शूकम् —नपुं॰—-—-—सुकोमलता, करुणा
शूकम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का विषैला कीड़ा
शूककीटः —पुं॰—शूकः-कीटः—-—एक प्रकार का कीड़ा जिसके शरीर पर रोएँ खड़े हों
शूककीटकः —पुं॰—शूकः-कीटकः—-—एक प्रकार का कीड़ा जिसके शरीर पर रोएँ खड़े हों
शूकधान्यम् —नपुं॰—शूकः-धान्यम्—-—कोई भी ऐसा अन्न जो बालों टूंड़ो में से निकलता है (जौ आदि)
शूकपिण्डिः —पुं॰—शूकः-पिण्डिः—-—केवाँच, कपिकच्छु
शूकडी —स्त्री॰—शूकः-डी—-—केवाँच, कपिकच्छु
शूकशिम्बा —स्त्री॰—शूकः-शिम्बा—-—केवाँच, कपिकच्छु
शूकशिम्बिका —स्त्री॰—शूकः-शिम्बिका—-—केवाँच, कपिकच्छु
शूकशिम्बि —स्त्री॰—शूकः-शिम्बि —-—केवाँच, कपिकच्छु
शूककः —पुं॰—-—शूक + कन्—एकार का अन्न
शूककः —पुं॰—-—-—सुकोमलता, करुणा
शूकरः —पुं॰—-—शू इत्यव्यक्तं शब्दं करोति -शू + कृ + अच्—सूअर
शूकरेष्ट —पुं॰—शूकरः-इष्ट—-—एक प्रकार का घास, मोथा
शूकलः —पुं॰—-—शूकवत् क्लेशं ददाति-शूक + ला + क—अड़ियल घोड़ा
शूद्रः —पुं॰—-—शुच् + रक्, पृषो॰ चस्य दः, दीर्घः—चौथे वर्ण का पुरुष, हिन्दुओं के चार मुख्य वर्णों में से अन्तिम वर्ण का पुरुष
शूद्राह्निकम् —नपुं॰—शूद्रः-अह्निकम्—-—शूद्र का दैनिक अनुष्ठान
शूद्रोदकम् —नपुं॰—शूद्रः-उदकम्—-—शूद्र के स्पर्श से दूषित जल
शूद्रकृत्यम् —नपुं॰—शूद्रः-कृत्यम्—-—शूद्र का कर्तव्य
शूद्रधर्मः —पुं॰—शूद्रः-धर्मः—-—शूद्र का कर्तव्य
शूद्रप्रियः —पुं॰—शूद्रः-प्रियः—-—प्याज
शूद्रप्रेष्यः —पुं॰—शूद्रः-प्रेष्यः—-—तीनों उच्चवर्णों में से किसी एक वर्ण का पुरुष जो शूद्र का सेवक हो
शूद्रभूयिष्ठ —वि॰—शूद्रः-भूयिष्ठ—-—जहाँ अधिकांश शूद्र रहते हों
शूद्रयाजकः —पुं॰—शूद्रः-याजकः—-—जो शूद्र के लिए यज्ञ का संचालन करता है
शूद्रवर्गः —पुं॰—शूद्रः-वर्गः—-—शूद्रश्रेणी या सेवकवर्ग
शूद्रसेवनम् —नपुं॰—शूद्रः-सेवनम्—-—शूद्र की सेवा करना, शूद्र का सेवक वनना
शूद्रकः —पुं॰—-—शूद्र + कन्—एक राजा , मृच्छकटिक का प्रख्यात प्रणेता
शूद्रा —स्त्री॰—-—शूद्र + टाप्—शूद्र वर्ण की स्त्री
शूद्रभार्यः —पुं॰—शूद्रा-भार्यः—-—जिसकी पत्नी शूद्रवर्ण की हो
शूद्रावेदनम् —नपुं॰—शूद्रा-वेदनम्—-—शूद्रस्त्री से विवाह करना
शूद्रसुतः —पुं॰—शूद्रा-सुतः—-—(किसी भी जाति के पिता द्वारा) शूद्र माता का पुत्र
शूद्राणी —स्त्री॰—-—शूद्र + ङीप् पक्षे आनुक्—शूद्र की पत्नी
शूद्री —स्त्री॰—-—शूद्र + ङीप् पक्षे आनुक्—शूद्र की पत्नी
शून —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्वि + क्त—सूजा हुआ
शून —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्वि + क्त—वर्धित उगा हुआ, समृद्ध
शूना —स्त्री॰—-—श्वि अधिकरणे क्त, संप्र॰ दीर्घश्च— मृदु तालु, घंटी, उपजिह्विका
शूना —स्त्री॰—-—श्वि अधिकरणे क्त, संप्र॰ दीर्घश्च—बूचड़खाना
शूना —स्त्री॰—-—श्वि अधिकरणे क्त, संप्र॰ दीर्घश्च—कोई भी वस्तु (जैसे कि घर गृहस्थी का कुछ सामान) जिससे जीवहिंसा होती हो
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—रिक्त, खाली
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—सूना (हृदय, तथा चितवन आदि के लिए भी प्रयुक्त)
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—अविद्यमान
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—एकान्त, निर्जन, विविक्त, वीरान
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—खिन्न, उदास, उत्साहहीन
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—नितान्त रहित, वञ्चित, विहीन, अभावयुक्त
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—तटस्थ
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—निर्दोष
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—अर्थहीन, निरर्थक
शून्य —वि॰—-—शूनायै प्राणिवधाय हितं रहस्यस्थानत्वात् यत्—विवस्त्र, नंगा
शून्यम् —नपुं॰—-—-—निर्वातता, रिक्त, खोखलापन
शून्यम् —नपुं॰—-—-—आकाश, अन्तरिक्ष
शून्यम् —नपुं॰—-—-—सिफर, बिन्दु
शून्यम् —नपुं॰—-—-—अस्तित्वहीनता (पूर्ण, असीम)
शून्यमध्यः —पुं॰—शून्य-मध्यः—-—खोखला नरकुल
शून्यमनस् —वि॰—शून्य-मनस्—-—अन्यमनस्क, भग्नचेता
शून्यमनस्क —वि॰—शून्य-मनस्क—-—अन्यमनस्क, भग्नचेता
शून्यमुख —वि॰—शून्य-मुख—-—हक्का-बक्का, उदास, किंकर्तव्य विमूढ़
शून्यवदन —वि॰—शून्य-वदन—-—हक्का-बक्का, उदास, किंकर्तव्य विमूढ़
शून्यवादः —पुं॰—शून्य-वादः—-—वह दार्शनिक सिद्धांत ज़ो (जीव ईश्वर आदि) किसी भी पदार्थ की सत्ता स्वीकार नहीं करता, बौद्ध दर्शन
शून्यवादिन् —पुं॰—शून्य-वादिन्—-—नास्तिक
शून्यवादिन् —पुं॰—शून्य-वादिन्—-—बौद्ध
शून्यहृदय —वि॰—शून्य-हृदय—-—अन्यमनस्क
शून्यहृदय —वि॰—शून्य-हृदय—-—खुले दिल वाला, जो दूसरों पर किसी प्रकार का संदेह न करें
शून्या —स्त्री॰—-—शून्य + टाप्—खोखला नरकुल
शून्या —स्त्री॰—-—शून्य + टाप्—बांझ स्त्री
शूर —चुरा॰ उभ॰ <शूरयति>, <शूरयते>—-—-—शौर्य के कार्य करना, शक्तिशाली होना
शूर —चुरा॰ उभ॰ <शूरयति>, <शूरयते>—-—-—प्रबल उद्योग करना
शूर —वि॰—-—शूर् + अच्—बहादुर, वीर, पराक्रमी, ताकतवर
शूरः —पुं॰—-—-—सूरमा, योद्या, पराक्रमी
शूरः —पुं॰—-—-—साल का पेड़
शूरः —पुं॰—-—-—कृष्ण का दादा, एक यादव
शूरकीटः —पुं॰—शूर-कीटः—-—तिरस्करणीय योद्धा
शूरमानम् —नपुं॰—शूर-मानम्—-—अभिमान, अहंकार
शूरसेन —पुं॰ ब॰ व॰—शूर-सेन—-—मथुरा के एक देश या उस देश के अधिवासी
शूरणः —पुं॰—-—शूर् + ल्युट्—सूरन नामक एक खाद्यमूल, कंद
शूरंमन्य —वि॰—-—आत्मानं शूरं मन्यते-शूर + मन् + खश्, मुम्—जो व्यक्ति अपने आपको पराक्रमी समझता है
शूर्पः —पुं॰—-—शृ + पः ऊरच् नित्—छाज
शूर्पम् —नपुं॰—-—शृ + पः ऊरच् नित्—छाज
शूर्पः —पुं॰—-—-—दो द्रोण का तोल
शूर्पकर्णः —पुं॰—शूर्पः-कर्णः—-—हाथी
शूर्पणखा —स्त्री॰—शूर्पः-णखा—-—जिसके नख छाज जैसे लंबे चौड़े हों, रावण की बहन का नाम
शूर्पणखी —स्त्री॰—शूर्पः-णखी—-—जिसके नख छाज जैसे लंबे चौड़े हों, रावण की बहन का नाम
शूर्पवातः —पुं॰—शूर्पः-वातः—-—छाज को हिलाने से उत्पन्न हवा
शूर्पश्रुतिः —पुं॰—शूर्पः-श्रुतिः—-—हाथी
शूर्पो —पुं॰—-—शूर्प + ङीष्—छोटा छाज या पङ्खा
शूर्पो —पुं॰—-—शूर्प + ङीष्—शूर्पणखा
शूर्मः —पुं॰—-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्याः, पक्षे अच्—लोहे की बनी प्रतिमा
शूर्मः —पुं॰—-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्याः, पक्षे अच्—घन, निहाई
शूर्मिः —पुं॰ —-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्य—लोहे की बनी प्रतिमा
शूर्मिः —पुं॰—-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्य—घन, निहाई
शूर्मिः —स्त्री॰—-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्याः—लोहे की बनी प्रतिमा
शूर्मिः —स्त्री॰—-—सुष्ठु ऊर्मिः अस्ति अस्याः—घन, निहाई
शूर्मिका —स्त्री॰—-—शूर्मि + कन् + टाप्—लोहे की बनी प्रतिमा
शूर्मिका —स्त्री॰—-—शूर्मि + कन् + टाप्—घन, निहाई
शूर्मी —स्त्री॰—-—शूर्मि + ङीष्—लोहे की बनी प्रतिमा
शूर्मी —स्त्री॰—-—शूर्मि + ङीष्—घन, निहाई
शूल् —भ्वा॰ पर॰ <शूलति>—-—-—बीमार होना
शूल् —भ्वा॰ पर॰ <शूलति>—-—-—कोलाहल करना
शूल् —भ्वा॰ पर॰ <शूलति>—-—-—गड़बड़ करना, विगाड़ना
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—पैना या नोकदार हथियार, नुकीला काँटा, नेज़ा, बर्छी, भाला
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—शिव का त्रिशूल
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—लोहे की सलाख़ (जिस पर मांस भूना जाता है)
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—एक स्थूण जिसके सहारे अपराधियों को सूली दी जाती थी (बिभ्रत्)
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—तीव्र पीड़ा
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—उदरशूल
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—गठिया, जोड़ों में दर्द
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—मृत्यु
शूलः —पुं॰—-—शूल् + क—झण्डा, ध्वज
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—पैना या नोकदार हथियार, नुकीला काँटा, नेज़ा, बर्छी, भाला
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—शिव का त्रिशूल
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—लोहे की सलाख़ (जिस पर मांस भूना जाता है)
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—एक स्थूण जिसके सहारे अपराधियों को सूली दी जाती थी (बिभ्रत्)
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—तीव्र पीड़ा
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—उदरशूल
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—गठिया, जोड़ों में दर्द
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—मृत्यु
शूलम् —नपुं॰—-—शूल् + क—झण्डा, ध्वज
शूलाकृ ——-—-—लोहे की सलाख़ पर रख कर भूनना
शूलाग्रम् —नपुं॰—शूलः-अग्रम्—-—सलाख़ की नोक
शूलग्रन्थिः —स्त्री॰ —शूलः-ग्रन्थिः—-—एक प्रकार का घास, दूब
शूलघातनम् —नपुं॰—शूलः-घातनम्—-—लोहे का बुरादा, लोहे का चूरा जो लोहे को रेतने से निकलता है
शूलघ्न —वि॰—शूलः-घ्न—-—शामक औषधि, वेदनाहर
शूलधन्वन् —पुं॰—शूलः-धन्वन्—-—शिव के विशेषण
शूलधर —पुं॰—शूलः-धर—-—शिव के विशेषण
शूलधारिन् —पुं॰—शूलः-धारिन्—-—शिव के विशेषण
शूलधृक् —पुं॰—शूलः-धृक्—-—शिव के विशेषण
शूलपाणि —पुं॰—शूलः-पाणि—-—शिव के विशेषण
शूलभृत् —पुं॰—शूलः-भृत्—-—शिव के विशेषण
शूलशत्रुः —पुं॰—शूलः-शत्रुः—-—एरण्ड का पौधा
शूलस्थ —वि॰—शूलः-स्थ—-—सूली पर चढ़ाया गया
शूलहन्त्री —स्त्री॰—शूलः-हन्त्री—-—एक प्रकार का जौ
शूलहस्तः —पुं॰—शूलः-हस्तः—-—भालाधारी
शूलकः —पुं॰—-—शूल + कन्—अड़ियाल घोड़ा
शूला —स्त्री॰—-—शूल + टाप्—अपराधियों को सूली देने की स्थूणा
शूला —स्त्री॰—-—शूल + टाप्—वेश्या
शूलाकृतम् —नपुं॰—-—शूल + डाच् + कृ + क्त—भुना हुआ मांस
शूलिक —वि॰—-—शूल + ठन्—शूलधारी
शूलिक —वि॰—-—शूल + ठन्—सलाख़ पर भूना हुआ
शूलिकम् —नपुं॰—-—-—भुना हुआ मांस
शूलिन् —वि॰—-—शूलमस्त्यस्य इनि—बर्छीधारी
शूलिन् —वि॰—-—शूलमस्त्यस्य इनि—उदरशूल से पीड़ित
शूलिन् —पुं॰—-—-—बर्छीधारी
शूलिनः —पुं॰—-—शूल + इनन्—बरगद का पेड़
शूल्य —वि॰—-—शूल + यत्—सलाख़ पर भूना हुआ
शूल्य —वि॰—-—-—सूली पाने के योग्य
शूल्यम् —नपुं॰—-—-—भुना हुआ मांस
शूष् —भ्वा॰ पर॰ <शूषति>—-—-—पैदा करना, उत्पन्न करना
शूष् —भ्वा॰ पर॰ <शूषति>—-—-—जन्म देना
शृगालः —पुं॰—-—असृजं लाति-ला + क, पृषो॰—गीदड़
शृगालः —पुं॰—-—असृजं लाति-ला + क, पृषो॰—ठग, धूर्त, उचक्का
शृगालः —पुं॰—-—असृजं लाति-ला + क, पृषो॰—भीरु
शृगालः —पुं॰—-—असृजं लाति-ला + क, पृषो॰—दुष्ट प्रकृति, कटुभाषी
शृगालः —पुं॰—-—असृजं लाति-ला + क, पृषो॰—कृष्ण
शृगालकेलिः —पुं॰—शृगालः-केलिः—-—एक प्रकार का बेर
शृगालजम्बुः —स्त्री॰—शृगालः-जम्बुः—-—एक प्रकार की ककड़ी, खीरा
शृगालजम्बूः —स्त्री॰—शृगालः-जम्बूः—-—एक प्रकार की ककड़ी, खीरा
शृगालयोनिः —पुं॰/स्त्री॰—शृगालः-योनिः—-—गीदड़ की योनि में जन्म लेना
शृगालरूपः —पुं॰—शृगालः-रूपः—-—शिव का विशेषण
शृगालिका —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्—गीदड़ी
शृगालिका —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्—लोमड़ी
शृगालिका —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्—पलायन, प्रत्यावर्तन
शृगाली —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्, पक्षे कन् + टाप् ह्रस्वः—गीदड़ी
शृगाली —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्, पक्षे कन् + टाप् ह्रस्वः—लोमड़ी
शृगाली —स्त्री॰—-—शृगाल + ङीष्, पक्षे कन् + टाप् ह्रस्वः—पलायन, प्रत्यावर्तन
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—लोहे की जञ्जीर, बेड़ी
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, हथकड़ी
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—हाथी के पैरों को बाँधने की ज़ञ्जीर
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—कमर की पेटी, करधनी
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—नापने की ज़ञ्जीर
शृङ्खलः —पुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, श्रेणी, परम्परा
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—लोहे की जञ्जीर, बेड़ी
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, हथकड़ी
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—हाथी के पैरों को बाँधने की ज़ञ्जीर
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—कमर की पेटी, करधनी
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—नापने की ज़ञ्जीर
शृङ्खला —स्त्री॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, श्रेणी, परम्परा
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—लोहे की जञ्जीर, बेड़ी
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, हथकड़ी
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—हाथी के पैरों को बाँधने की ज़ञ्जीर
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—कमर की पेटी, करधनी
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—नापने की ज़ञ्जीर
शृङ्खलम् —नपुं॰—-—शृङ्गात् प्राधान्यात् स्खल्यते अनेन, पृषो॰—ज़ञ्जीर, श्रेणी, परम्परा
शृङ्खलयमकम् —नपुं॰—शृङ्खलः-यमकम्—-—यमक अलङ्कार का एक भेद
शृङ्खलकः —पुं॰—-—शृङ्खल + कन्—ज़ञ्जीर
शृङ्खलकः —पुं॰—-—शृङ्खल + कन्—ऊँट
शृङ्खलित —वि॰—-—शृङ्खला + इतच्—ज़ञ्जीर में जकड़ा हुआ, बेड़ी पड़ा हुआ, बँधा हुआ
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ + गन्, पृषो॰ मुम् ह्रस्वश्च—सींग
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—पहाड़ की चोटी
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—भवन की चोटी, बुर्जी
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—उत्तुंगता, ऊँचाई
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—प्रभुता, स्वामित्व, सर्वोपरिता, प्रमुखता
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—चन्द्रचूड़ा, चाँद की नोक
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—चोटी, नोक, अग्रभाग
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—(भैंस आदि का)) सींग जो फूंक मार कर बजाया जाता है
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—पिचकारी
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—कामोद्रेक, अभिलाषोदय
शृङ्गम् —नपुं॰—-—-—निशान, चिह्न
शृङ्गान्तरम् —नपुं॰—शृङ्गम्-अन्तरम्—-—(गौ आदि पशुओं के)सींगों का मध्यवर्ती स्थान
शृङ्गुच्चयः —पुं॰—शृङ्गम्-उच्चयः—-—ऊँची चोटी
शृङ्गजः —पुं॰—शृङ्गम्-जः—-—बाण
शृङ्गजम् —नपुं॰—शृङ्गम्-जम्—-—अगर की लकड़ी
शृङ्गप्रहारिन् —वि॰—शृङ्गम्-प्रहारिन्—-—सींग से मारने वाला
शृङ्गप्रियः —पुं॰—शृङ्गम्-प्रियः—-—शिव का विशेषण
शृङ्गमोहिन् —पुं॰—शृङ्गम्-मोहिन्—-—चम्पक वृक्ष
शृङ्गवेरम् —नपुं॰—शृङ्गम्-वेरम्—-—वर्तमान मिर्जापुर के निकट गंगा के किनारे बसा हुआ एक नगर
शृङ्गवेरम् —नपुं॰—शृङ्गम्-वेरम्—-—अदरक
शृङ्गकः —पुं॰—-—शृङ्ग + कन्—सींग
शृङ्गकः —पुं॰—-—शृङ्ग + कन्—चन्द्रमा की नोक, चन्द्रचूड़ा
शृङ्गकः —पुं॰—-—शृङ्ग + कन्—कोई भी नोकीली वस्तु
शृङ्गकः —पुं॰—-—शृङ्ग + कन्—पिचकारी
शृङ्गकम् —नपुं॰—-—शृङ्ग + कन्—सींग
शृङ्गकम् —नपुं॰—-—शृङ्ग + कन्—चन्द्रमा की नोक, चन्द्रचूड़ा
शृङ्गकम् —नपुं॰—-—शृङ्ग + कन्—कोई भी नोकीली वस्तु
शृङ्गकम् —नपुं॰—-—शृङ्ग + कन्—पिचकारी
शृङ्गवत् —वि॰—-—शृङ्ग + मतुप्—चोटीवाला
शृङ्गाटः —पुं॰—-—शृङ्गं प्रधान्यम् अटति-शृङ्ग + अट् + अण्—एक पहाड़
शृङ्गाटः —पुं॰—-—शृङ्गं प्रधान्यम् अटति-शृङ्ग + अट् + अण्—एक पौधा
शृङ्गाटम् —नपुं॰—-—-—चौराहा
शृङ्गाटकः —पुं॰—-—-—एक पहाड़
शृङ्गाटकः —पुं॰—-—-—एक पौधा
शृङ्गाटकम् —नपुं॰—-—-—चौराहा
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—प्रणयरस, कामोन्माद, रतिरस
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—प्रेम, प्रणयोन्माद संभोगेच्छा
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—शृङ्गारिक समालापों के उपयुक्त वेश, ललित वेशभूषा
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—मैथुन, संभोग
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—हाथी के शरीर पर बनाये गए सिंदूर के निशान
शृङ्गारः —पुं॰—-—शृङ्गं कामोद्रेकमृच्छत्यनेन ऋ + अण्—चिह्न
शृङ्गारम् —नपुं॰—-—-—सिंदूर
शृङ्गारम् —नपुं॰—-—-—शरीर या वस्त्रों के लिए सुगन्धित चूर्ण
शृङ्गारम् —नपुं॰—-—-—काला अगर
शृङ्गारचेष्टा —स्त्री॰—शृङ्गारः-चेष्टा—-—कामानुरक्ति का संकेत
शृङ्गारभाषितम् —नपुं॰—शृङ्गारः-भाषितम्—-—प्रेमालाप, प्रणयकथा
शृङ्गारभूषणम् —नपुं॰—शृङ्गारः-भूषणम्—-—सिंदूर
शृङ्गारयोनिः —पुं॰स्त्री॰—शृङ्गारः-योनिः—-—कामदेव का विशेषण
शृङ्गाररसः —पुं॰—शृङ्गारः-रसः—-—साहित्यशास्त्र में वर्णित शृंगाररस, प्रणयरस
शृङ्गारविधिः —पुं॰—शृङ्गारः-विधिः—-—प्रेमालापों के उपयुक्त वेशभूषा (जिसे पहन कर प्रेमी अपने प्रिय से मिलता है)
शृङ्गारसहायः —पुं॰—शृङ्गारः-सहायः—-—प्रेमाव्यापार में सहायक व्यक्ति, नर्मसचिव
शृङ्गारकः —पुं॰—-—शृङ्गार + कन्—प्रेम
शृङ्गारकम् —नपुं॰—-—-—सिंदूर
शृङ्गारित —वि॰—-—शृङ्गार + इतच्—प्रेमाविष्ट, प्रणयोन्मत्त
शृङ्गारित —वि॰—-—शृङ्गार + इतच्—सिंदूर से लाल
शृङ्गारित —वि॰—-—शृङ्गार + इतच्—अलंकृत, सजा हुआ
शृङ्गारिन् —वि॰—-—शृङ्गार + इनि—शृङ्गारप्रिय, प्रेमासक्त, प्रणयोन्मत्त
शृङ्गारिन् —पुं॰—-—-—प्रणयोन्मत्त, प्रेमी
शृङ्गारिन् —पुं॰—-—-—वेशभूषा, सजावट
शृङ्गारिन् —पुं॰—-—-—सुपारी का पेड़
शृङ्गारिन् —पुं॰—-—-—पान का बीड़ा
शृङ्गिः —पुं॰—-—-—आभूषणों के लिए सोना
शृङ्गिः —स्त्री॰—-—-—सिंगी मछली
शृङ्गिकम् —नपुं॰—-—शृङ्ग + ठन्—एक प्रकार का विष
शृङ्गिका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का भूर्जवृक्ष
शृङ्गिणः —पुं॰—-—शृङ्ग + इनन्—भेड़ा, मेंढ़ा
शृङ्गिणी —स्त्री॰—-—शृङ्गिन् + ङीष्—गाय
शृङ्गिणी —स्त्री॰—-—शृङ्गिन् + ङीष्—एक प्रकार की मल्लिका, मोतिया
शृङ्गिन् —वि॰—-—शृङ्ग + इनि—सींगों वाला
शृङ्गिन् —वि॰—-—शृङ्ग + इनि—शिखाधारी, चोटी वाला
शृङ्गिन् —पुं॰—-—-—शिव के एक गण का नाम
शृङ्गी —स्त्री॰—-—शृङ्ग + ङीष्—आभूषणों के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला सोना
शृङ्गी —स्त्री॰—-—शृङ्ग + ङीष्—एक औषधि-मूल, काकड़ासिंगी, अतीस
शृङ्गी —स्त्री॰—-—शृङ्ग + ङीष्—एक प्रकार का विष
शृङ्गी —स्त्री॰—-—शृङ्ग + ङीष्—सिंगी मछली
शृङ्गीकनकम् —नपुं॰—शृङ्गी-कनकम्—-—गहना बनाने के लिए सोना
शृणिः —स्त्री॰—-—शृ + क्तिन्, पृषो॰ तस्य नः, हुस्वश्च—अंकुश, प्रतोद
शृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—शृ+ क्त—पकाया हुआ
शृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—शृ+ क्त—उबाला हुआ (पानी, दूध आदि)
शृध् —भ्वा॰ आ॰ <शर्धते>—-—-—अपान वायु छोड़ना, पाद मारना
शृध् —भ्वा॰ उभ॰ <शर्धति>, <शर्धते>—-—-—आर्द्र करना, गीला करना
शृध् —भ्वा॰ उभ॰ <शर्धति>, <शर्धते>—-—-—काट डालना
शृध् —चुरा॰ उभ॰ <शर्धयति>, <शर्धयते>—-—-—प्रयत्न करना
शृध् —चुरा॰ उभ॰ <शर्धयति>, <शर्धयते>—-—-—लेना, ग्रहण करना
शृध् —चुरा॰ उभ॰ <शर्धयति>, <शर्धयते>—-—-—अपमान करना (पाद मार कर) नकल करना, मजाक उड़ाना
शृधुः —पुं॰—-—शृध् + कु—बुद्धि
शृधुः —पुं॰—-—शृध् + कु—गुदा
शृ —क्र्या॰ पर॰ <शृणाति>, <शीर्ण>—-—-—फाड़ डालना, टुकड़े टुकड़े कर डालना
शृ —क्र्या॰ पर॰ <शृणाति>, <शीर्ण>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति ग्रस्त करना
शृ —क्र्या॰ पर॰ <शृणाति>, <शीर्ण>—-—-—मार डालना, नष्ट करना
शृ —क्र्या॰, कर्मवा॰ <शीर्यते>—-—-—चिथड़े-चिथड़े होना, कुम्हलाना, मुरझाना, बर्बाद होना
अवशृ —क्र्या॰ पर॰—अव-शृ—-—जबरन लें भागना
अवशृ —क्र्या॰, कर्मवा॰—अव-शृ—-—मुर्झाना, कुम्हलाना
शेखरः —पुं॰—-—शिख् + अरन्, पृषो॰—चूड़ा, कलगीं, फूलों का गजरा, सिर पर लपेटी हुई माला
शेखरः —पुं॰—-—शिख् + अरन्, पृषो॰—किरीट, मुकुट
शेखरः —पुं॰—-—शिख् + अरन्, पृषो॰—चोटी, शृंग
शेखरः —पुं॰—-—शिख् + अरन्, पृषो॰—किसी भी श्रेणी का सर्वोत्तम या प्रमुखतम
शेखरः —पुं॰—-—शिख् + अरन्, पृषो॰—गीत का ध्रुव विशेष
शेपः —पुं॰—-—शी + पन्—लिंग, पुरुषकी जननेन्द्रिय
शेपः —पुं॰—-—शी + पन्—अंडकोष
शेपः —पुं॰—-—शी + पन्—पूँछ
शेपस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, पुट्—लिंग, पुरुषकी जननेन्द्रिय
शेपस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, पुट्—अंडकोष
शेपस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, पुट्—पूँछ
शेफः —पुं॰—-—शी + फन्—लिंग, पुरुषकी जननेन्द्रिय
शेफः —पुं॰—-—शी + फन्—अंडकोष
शेफः —पुं॰—-—शी + फन्—पूँछ
शेफम् —नपुं॰—-—शी + असुन् —लिंग, पुरुषकी जननेन्द्रिय
शेफम् —नपुं॰—-—शी + असुन् —अंडकोष
शेफम् —नपुं॰—-—शी + असुन् —पूँछ
शेफस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, फुक्—लिंग, पुरुषकी जननेन्द्रिय
शेफस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, फुक्—अंडकोष
शेफस् —नपुं॰—-—शी + असुन्, फुक्—पूँछ
शेफालिः —स्त्री॰—-—शेफाः शयनशालिनः अलयो यत्र-ब॰ स॰—एक प्रकार का पौधा, निर्गुण्डी, नीलिका, नील सिधुवार का पौधा
शेफाली —स्त्री॰—-—शेफालि + ङीष्—एक प्रकार का पौधा, निर्गुण्डी, नीलिका, नील सिधुवार का पौधा
शेफालिका —स्त्री॰—-—शेफालि + कन् + टाप्—एक प्रकार का पौधा, निर्गुण्डी, नीलिका, नील सिधुवार का पौधा
शेमुषी —स्त्री॰—-—शी + क्वि=शेः मोहः तं मुष्णाति-शे + मुष् + क + ङीष्—बुद्धि, समझ
शेल् —भ्वा॰ पर॰ <शेलति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शेल् —भ्वा॰ पर॰ <शेलति>—-—-—कांपना
शेवः —पुं॰—-—शुक्रपाते सति शेते-शी + वन्—साँप
शेवः —पुं॰—-—शुक्रपाते सति शेते-शी + वन्—लिंग
शेवः —पुं॰—-—शुक्रपाते सति शेते-शी + वन्—ऊचाई, उत्तुंगता
शेवः —पुं॰—-—शुक्रपाते सति शेते-शी + वन्—आनन्द
शेवः —पुं॰—-—शुक्रपाते सति शेते-शी + वन्—दौलत, खजाना
शेवधिः —पुं॰—शेवः-धिः—-—मूल्यवान् कोष
शेवधिः —पुं॰—शेवः-धिः—-—कुबेर के नौ कोषों में से एक
शेवलम् —नपुं॰—-—शी + विच् तथा भूतः सन् वलते वल् + अच्—मोथे की भांति हरे रंग का पदार्थ जो पानी के ऊपर उग आता है, काई
शेवलम् —नपुं॰—-—शी + विच् तथा भूतः सन् वलते वल् + अच्—एक प्रकार का पौधा
शेवलिनी —स्त्री॰—-—शेवल + इनि + ङीप्—नदी
शेवालः —पुं॰—-—शी + विच् तथा भूतः सन् वलते वल् + अच्—मोथे की भांति हरे रंग का पदार्थ जो पानी के ऊपर उग आता है, काई
शेवालः —पुं॰—-—शी + विच् तथा भूतः सन् वलते वल् + अच्—एक प्रकार का पौधा
शेष —वि॰—-—शिष् + अच्—बचा हुआ, बाकी, अन्य सब
शेषः —पुं॰—-—-—बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट
शेषः —पुं॰—-—-—छोड़ी हुई कोई बात, या भूली हुई बात
शेषः —पुं॰—-—-—बचाव, मुक्ति, श्रान्ति
शेषम् —नपुं॰—-—-—बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट
शेषम् —नपुं॰—-—-—छोड़ी हुई कोई बात, या भूली हुई बात
शेषम् —नपुं॰—-—-—बचाव, मुक्ति, श्रान्ति
शेषः —पुं॰—-—-—परिणाम, प्रभाव
शेषः —पुं॰—-—-—अन्त, समाप्ति, उपसंहार
शेषः —पुं॰—-—-—मृत्यु, विनाश
शेषः —पुं॰—-—-—एक विख्यात नाग का नाम
शेषः —पुं॰—-—-—बलराम (जो शेष का अवतार माना जाता है)
शेषा —स्त्री॰—-—-—फ़ूल तथा अन्य चढ़ावा जो मूर्ति के सामने प्रस्तुत किया जाता है और उसके पुण्य अवशेष के रूप में पूजा करने वालों में बाँट दिया जाता है
शेषम् —नपुं॰—-—-—उच्छिष्ट अन्न, चढ़ावे का अवशेष
शेषान्नम् —नपुं॰—शेष-अन्नम्—-—जूठन्
शेषावस्था —स्त्री॰—शेष-अवस्था—-—बुढ़ापा
शेषभागः —पुं॰—शेष-भागः—-—शेष, बाक़ी
शेषभोजनम् —नपुं॰—शेष-भोजनम्—-—जूठनखाना
शेषरात्रिः —स्त्री॰—शेष-रात्रिः—-—रात का चौथा पहर
शेषशयनः —पुं॰—शेष-शयनः—-—विष्णु के विशेषण
शैक्षः —पुं॰—-—शिक्षां वेत्त्यधीते अण् वा—शिक्षा अर्थात् उच्चारण शास्त्र को पढ़ने वाला विद्यार्थी, जिसने वेदाध्ययन अभी अभी आरम्भ किया है
शैक्षः —पुं॰—-—शिक्षां वेत्त्यधीते अण् वा—नौसिखिया, नवशिष्य
शैक्षिकः —पुं॰—-—शिक्षा + ठक्—शिक्षाशास्त्र में निष्णात
शैक्ष्यम् —नपुं॰—-—शिक्षा + यत्—अधिगम, प्रवीणता
शैघ्र्यम् —नपुं॰—-—शीघ्र + ष्यञ्—फुर्ती, सत्वरता
शैत्यम् —नपुं॰—-—शीत + ष्यञ्—ठंडक, शीतलता, जमाव
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल + ष्यञ्—ढीलापन, नरसी
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल + ष्यञ्—मन्थरता
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल + ष्यञ्—दीर्घसूत्रता, अनवधानता
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल + ष्यञ्—कमज़ोरी, भीरुता
शैनेयः —पुं॰—-—शिनि + ढक्—सात्यकि का नाम
शैन्याः —पुं॰, ब॰ व॰—-—शिनि + यञ्—शिनि की सन्तान, शिनि के वंशज
शैब्य —पुं॰—-—शिबि + ञ्य—कृष्ण के चार घोड़ों में से एक
शैब्य —पुं॰—-—शिबि + ञ्य—पांडव सेना का एक योद्धा, एक राजा का नाम
शैब्य —पुं॰—-—शिबि + ञ्य—घोड़ा
शैलः —पुं॰—-—शिला + अण्—पर्वत, पहाड़
शैलः —पुं॰—-—शिला + अण्—चट्टान, बड़ा भारी पत्थर
शैलम् —नपुं॰—-—-—सुहागा, धूप, गुग्गुल
शैलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का अंजन
शैलांशः —पुं॰—शैलः-अंशः—-—एक देश का नाम
शैलाग्रम् —नपुं॰—शैलः-अग्रम्—-—पहाड़ की चोटी
शैलाटः —पुं॰—शैलः-अटः—-—पहाड़ी, असभ्य
शैलाटः —पुं॰—शैलः-अटः—-—किसी देवमूर्ति का पुजारी
शैलाटः —पुं॰—शैलः-अटः—-—सिंह
शैलाटः —पुं॰—शैलः-अटः—-—स्फटिक
शैलाधिपः —पुं॰—शैलः-अधिपः—-—हिमालय पर्वत के विशेषण
शैलाधिराजः —पुं॰—शैलः-अधिराजः—-—हिमालय पर्वत के विशेषण
शैलेन्द्रः —पुं॰—शैलः-इन्द्रः—-—हिमालय पर्वत के विशेषण
शैलपतिः —पुं॰—शैलः-पतिः—-—हिमालय पर्वत के विशेषण
शैलराजः —पुं॰—शैलः-राजः—-—हिमालय पर्वत के विशेषण
शैलाख्यम् —नपुं॰—शैलः-आख्यम्—-—शैलेयगन्ध द्रव्य, धूप
शैलकटकः —पुं॰—शैलः-कटकः—-—पहाड़ की ढलान
शैलगन्धम् —नपुं॰—शैलः-गन्धम्—-—एक प्रकार का चन्दन
शैलजम् —नपुं॰—शैलः-जम्—-—शैलेय गन्ध द्रव्य, धूप
शैलजम् —नपुं॰—शैलः-जम्—-—शिलाजीत
शैलजा —स्त्री॰—शैलः-जा—-—पार्वती के विशेषण
शैलधन्वन् —पुं॰—शैलः-धन्वन्—-—शिव का विशेषण
शैलधरः —पुं॰—शैलः-धरः—-—कृष्ण का विशेषण
शैलनिर्यासः —पुं॰—शैलः-निर्यासः—-—शैलेयगन्धद्रव्य, धूप
शैलपत्रः —पुं॰—शैलः-पत्रः—-—बेल का पेड़
शैलभित्तिः —स्त्री॰—शैलः-भित्तिः—-—पत्थर काटने का उपकरण, टांकी
शैलरन्ध्रम् —नपुं॰—शैलः-रन्ध्रम्—-—गुफा, कन्दरा
शैलशिविरम् —नपुं॰—शैलः-शिविरम्—-—समुद्र
शैलसार —वि॰—शैलः-सार—-—पत्थर की तरह सबल, चट्टान की तरह दृढ़
शैलकम् —नपुं॰—-—शैल + कन्—शैलेयगन्ध द्रव्य, धूप
शैलकम् —नपुं॰—-—शैल + कन्—शीलाजीत
शैलादिः —पुं॰—-—शिलादस्यापत्यम्-शिलाद + इञ्—शिव का गण, नन्दी
शैलालिन् —पुं॰—-—शिलालिना मुनिना प्रोक्तं नटसूत्रमधीयते-शिलालि + णिनि—अभिनेता,नर्तक
शैलिक्यः —पुं॰—-—गर्हितं शीलमस्त्य-ठन्, शीलिक + ष्यञ्—पाखण्डी, दम्भी, ठग
शैली —स्त्री॰—-—शीलमेव स्वार्थे ष्यञ् ङीपि यलोपः—व्याकरण सूत्र की संक्षिप्त वृत्ति
शैली —स्त्री॰—-—शीलमेव स्वार्थे ष्यञ् ङीपि यलोपः—अभिव्यक्ति या अर्थकरण का एक प्रकार
शैली —स्त्री॰—-—शीलमेव स्वार्थे ष्यञ् ङीपि यलोपः—व्यवाहार, काम करने का ढंग, आचरण, क्रम
शैलूषः —पुं॰—-—शिलूषस्यापत्यम्-शिलूष + अण्—अभिनेता, नर्तक
शैलूषः —पुं॰—-—शिलूषस्यापत्यम्-शिलूष + अण्—वादित्र-कुशल
शैलूषः —पुं॰—-—शिलूषस्यापत्यम्-शिलूष + अण्—संगीत सभा में तालधारक
शैलूषः —पुं॰—-—शिलूषस्यापत्यम्-शिलूष + अण्—धूर्त
शैलूषः —पुं॰—-—शिलूषस्यापत्यम्-शिलूष + अण्—बेल का पेड़
शैलूषिकः —पुं॰—-—शैलूषं तद्वृत्तिम् अन्वेष्टा-ठक्—जो अभिनेता का व्यवसाय करता हो
शैलेय —वि॰—-—शिलायां भवः, शिला + ढक्—पहाड़ी
शैलेय —वि॰—-—शिलायां भवः, शिला + ढक्—चट्टानों से उत्पन्न
शैलेय —वि॰—-—शिलायां भवः, शिला + ढक्—पत्थर की तरह कड़ा, पथरीला
शैलेयम् —नपुं॰—-—-—पर्वत गंधद्रव्य, धूप
शैलेयम् —नपुं॰—-—-—सुगंधित राल
शैलेयम् —नपुं॰—-—-—सेंधा नमक
शैल्य —वि॰—-—शिला + ष्यञ्—पथरीला
शैल्यम् —नपुं॰—-—-—चट्टान जैसी कठोरता, कड़ापन
शैव —वि॰—-—शिवो देवताऽस्य-अण्—शिवसंबधी
शैवः —पुं॰—-—-—हिन्दुओं के तीन मुख्य संप्रदायों में से एक
शैवः —पुं॰—-—-—शैव संप्रदाय का पुरुष
शैवम् —नपुं॰—-—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण का नाम
शैवलः —पुं॰—-—शी + वलच्—एक प्रकार का जलीय पौधा, पद्मकाष्ठ, सेवार, काई, मोथा
शैवलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार की सुगंधित लकड़ी
शैवलिनी —स्त्री॰—-—शैवल + इनि + ङीष्—नदी
शैवाल —वि॰—-—-—एक प्रकार की सुगंधित लकड़ी
शैव्यः —पुं॰—-—शिवि + ञ्य—कृष्ण के चार घोड़ों में से एक
शैव्यः —पुं॰—-—शिवि + ञ्य—पांडव सेना का एक योद्धा, एक राजा का नाम
शैव्यः —पुं॰—-—शिवि + ञ्य—घोड़ा
शैशवम् —नपुं॰—-—शिशोभविः अण्—बचपन, बाल्यावस्था (सोलह वर्ष से नीचे का समय)
शैशिर —वि॰—-—शिशिर + अण्—जाड़े के मौसम से संबन्ध रखने वाला
शैशिरः —पुं॰—-—-—काले रंग का चातकपक्षी
शैष्योपाध्यायिका —स्त्री॰—-—शिष्योपाध्याय + वुञ्—किशोरावस्था के छात्रों को पढ़ाना
शो —दिवा॰ पर॰ <श्यति>, <शात>, <शित> कर्मवा॰ <शायते>, प्रेर॰<शाययति>, इच्छा॰ <शिशासति>—-—-—पैनाना, तेज़ करना
शो —दिवा॰ पर॰ <श्यति>, <शात>, <शित> कर्मवा॰ <शायते>, प्रेर॰<शाययति>, इच्छा॰ <शिशासति>—-—-—पतला करना, कृश करना
निशो —दिवा॰ पर॰—नि-शो—-—तेज़ करना
शोकः —पुं॰—-—शुच् + घञ्—अफसोस, रंज, दुःख, कष्ट, विलाप, रुदन, वेदना
शोकाग्निः —पुं॰—शोकः-अग्निः—-—शोक रूपी आग
शोकानलः —पुं॰—शोकः-अनलः—-—शोक रूपी आग
शोकापनोदः —पुं॰—शोकः-अपनोदः—-—रंज को दूर करना
शोकाभिभूत —वि॰—शोकः-अभिभूत—-—कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त
शोकाकुल —वि॰—शोकः-आकुल—-—कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त
शोकाविष्ट —वि॰—शोकः-आविष्ट—-—कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त
शोकोपहत —वि॰—शोकः-उपहत—-—कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त
शोकविह्वल —वि॰—शोकः-विह्वल—-—कष्टग्रस्त, वेदनाग्रस्त
शोकचर्चा —स्त्री॰—शोकः-चर्चा—-—शोक में लीन
शोकनाशः —पुं॰—शोकः-नाशः—-—अशोकवृक्ष
शोकपरायण —वि॰—शोकः-परायण—-—शोक से ग्रस्त, पीडाभिभूत
शोकलासक —वि॰—शोकः-लासक—-—शोक से ग्रस्त, पीडाभिभूत
शोकविकल —वि॰—शोकः-विकल—-—शोकाकुल
शोकस्थानम् —नपुं॰—शोकः-स्थानम्—-—शोक का कारण
शोचनम् —नपुं॰—-—शुच् + ल्युट्—रंज, अफसोस, विलाप
शोचनीय —वि॰—-—शुच् + अनीयर्—विलाप करने योग्य, चिन्त्य, शोच्य, दुःखद
शोच्य —वि॰—-—शुच् + ण्यत्—शोचनीय, विलाप करने योग्य, चिन्तनीय, दयनीय
शोच्य —वि॰—-—शुच् + ण्यत्—कमीना, दुश्चरित्र
शोचिस् —नपुं॰—-—शुच् + इसि—प्रकाश, क्रान्ति, चमक
शोचिस् —नपुं॰—-—शुच् + इसि—ज्वाला
शोचिष्केशः —पुं॰—शोचिस्-केशः—-—अग्नि का विशेषण
शोटीर्यम् —नपुं॰—-—शुटीर + ष्यञ्, शौटीर्यम् इति साधुः —पराक्रम, शौर्य, शूरवीरता
शोठ —वि॰—-—शुठ् + अच्—मूर्ख
शोठ —वि॰—-—शुठ् + अच्—कमीना, अधम
शोठ —वि॰—-—शुठ् + अच्—आलसी, सुस्त
शोठः —पुं॰—-—-—निकम्मा, आलसी
शोठः —पुं॰—-—-—अधम या कमीना पुरुष
शोण् —भ्वा॰ पर॰ <शोणति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शोण —वि॰—-—शोण् + अच्—लाल, गहरा लाल रंग, हल लालका रंग
शोण —वि॰—-—शोण् + अच्—लाख के रंग का, लालिमायुक्त भूरा
शोणः —पुं॰—-—-—लोहित वर्ण, लाल रंग
शोणः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लाल रंग का गन्ना, ईख
शोणः —पुं॰—-—-—कुम्मैत घोड़ा
शोणः —पुं॰—-—-—एक दरिया का नाम जो गोंडवाना से निकलकर पटना के निकट गंगा में गिरती है
शोणाम्बुः —पुं॰—शोण-अम्बुः—-—एक प्रकार का बादल जो प्रलय के समय उठता है
शोणाश्मन् —पुं॰—शोण-अश्मन्—-—लाल पत्थर
शोणाश्मन् —पुं॰—शोण-अश्मन्—-—लाल, एक माणिक्य
शोणोपलः —पुं॰—शोण-उपलः—-—लाल पत्थर
शोणोपलः —पुं॰—शोण-उपलः—-—लाल, एक माणिक्य
शोणपद्मम् —नपुं॰—शोण-पद्मम्—-—लाल रंग का कमल
शोणरत्नम् —नपुं॰—शोण-रत्नम्—-—लाल नामक माणिक्य, पद्मरागमणि
शोणित —वि॰—-—शोण + इतच्—लाल, लोहित, रक्त वर्ण का
शोणितम् —नपुं॰—-—-—केसर, जाफ़रान
शोणिताह्वयम् —नपुं॰—शोणित-आह्वयम्—-—केसर, जाफ़रान
शोणितोक्षित —वि॰—शोणित-उक्षित—-—रक्तरंजित
शोणितोपलः —पुं॰—शोणित-उपलः—-—पद्मरागमणि
शोणितचन्दनम् —नपुं॰—शोणित-चन्दनम्—-—लाल चंदन
शोणितप —वि॰—शोणित-प—-—रुधिर पीने वाला
शोणितपुरम् —नपुं॰—शोणित-पुरम्—-—बाणासुर का नगर
शोणिमन् —पुं॰—-—शोण + इमनीच्—लालिमा, लाली
शोथः —पुं॰—-—शु + थन्—सूजन, स्फीति
शोथघ्न —वि॰—शोथः-घ्न—-—सूजन को दूर करने वाला, सूजन या स्फीति को हटाने वाली औषधि
शोथजिह्माः —पुं॰—शोथः-जिह्माः—-—पुनर्नवा
शोथरोगः —पुं॰—शोथः-रोगः—-—हाथ पाँव आदि में सूजन होने का रोग, जलोदर
शोथहृत् —वि॰—शोथः-हृत्—-—सूजन हटाने वाली दवा
शोथहृत् —पुं॰—शोथः-हृत्—-—भिलावाँ
शोधः —पुं॰—-—शुध् + घञ्—शुद्धिसंस्कार
शोधः —पुं॰—-—शुध् + घञ्—संशोधन, समाधान
शोधः —पुं॰—-—शुध् + घञ्—ऋणभुगतान, (ऋण) परिशोध
शोधः —पुं॰—-—शुध् + घञ्—प्रतिहिंसा, प्रतिदान, बदला
शोधक —वि॰—-—शुध् + णिच् + ण्वुल्—शुद्ध करने वाला
शोधक —वि॰—-—शुध् + णिच् + ण्वुल्—रेचक
शोधक —वि॰—-—शुध् + णिच् + ण्वुल्—संशोधन करने वाला
शोधन —वि॰—-—शुध् + णिच् + ल्युट्—शुद्ध करने वाला, स्वच्छ करने वाला
शोधनम् —नपुं॰—-—-—शुद्ध करना, स्वच्छ करना
शोधनम् —नपुं॰—-—-—संशोधन, (ऋण) परिशोधन करना
शोधनम् —नपुं॰—-—-—यथार्थ निर्धारण
शोधनम् —नपुं॰—-—-—अदायगी, बेबाकी, ऋण चुकाना
शोधनम् —नपुं॰—-—-—प्रायश्चित, परिशोधन
शोधनम् —नपुं॰—-—-—धातुओं को साफ़ करना
शोधनम् —नपुं॰—-—-—प्रतिहिंसा, प्रतिदान, दण्ड
शोधनम् —नपुं॰—-—-—मल, विष्ठा
शोधनकः —पुं॰—-—शोधन + कन्—दंड-न्यायालय का एक अधिकारी
शोधनकः —पुं॰—-—-—फ़ौजदारी अदालत का अफ़सर
शोधनी —स्त्री॰—-—शोधन + ङीष्—झाड़ू, बुहारी
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुध् + णिच् + क्त—शुद्ध किया हुआ, स्वच्छ किया हुआ
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संस्कृत
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छाना हुआ
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संशोधित, समाहित
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ऋण परिशोध किया हुआ, चुकाया हुआ
शोधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बदला लिया हुआ, प्रतिहिंसा की हुई
शोध्य —वि॰—-—शुध् + णिच् + यत्—शुध्द किये जाने के योग्य, संस्कृत किये जाने के योग्य ऋण परिशोध किये जाने के योग्य
शोध्यः —पुं॰—-—-—अभियुक्तव्यक्ति, वह पुरुष जिसने लगाये हुए आरोप से अपने आप को मुक्त करना है
शोफः —पुं॰—-—शु + फन्—सूजन, अर्बुद, रसौली, शोथ
शोफजित् —पुं॰—शोफः-जित्—-—भिलावे का पौधा
शोफहृत् —पुं॰—शोफः-हृत्—-—भिलावे का पौधा
शोभन —वि॰—-—शोभते-शुभ + ल्युट्—चमकीला, शानदार
शोभन —वि॰—-—शोभते-शुभ + ल्युट्—मनोहर, सुन्दर, लावण्यमय
शोभन —वि॰—-—शोभते-शुभ + ल्युट्—भद्र, शुभ, सौभाग्य शाली
शोभन —वि॰—-—शोभते-शुभ + ल्युट्—खूब सजाया हुआ
शोभन —वि॰—-—शोभते-शुभ + ल्युट्—सदाचारी, पुण्यात्मा
शोभनः —पुं॰—-—-—अच्छे परिणामों की प्राप्ति के लिए यज्ञाग्नि में दी गई आहुति
शोभना —स्त्री॰—-—-—सुन्दर या सती स्त्री
शोभना —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पीला रंग, गोरोचना
शोभनम् —नपुं॰—-—-—सौन्दर्य, कान्ति, दीप्ति
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—प्रकाश, क्रान्ति, दीप्ति, चमक
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—वैभव, सौन्दर्य, लालित्य, चारुता, लावण्य
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—नैसर्गिक सौन्दर्य, (पर्वत आदि की) गरिमा
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—अलंकार, ललित अभिव्यक्ति
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—हल्दी
शोभा —स्त्री॰—-—शुभ् + अ + टाप्—एक प्रकार का रंग, गोरोचना
शोभाञ्जनः —पुं॰—शोभा-अञ्जनः—-—एक अत्यंत उपयोगी वृक्ष, सौहंजना
शोभित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुभ् + णिच् + क्त—अलंकृत, चारु, सजाया हुआ
शोभित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुभ् + णिच् + क्त—सुन्दर, प्रिय
शोषः —पुं॰—-—शुष् + घञ्—सूखना, सूखापन
शोषः —पुं॰—-—शुष् + घञ्—कृशता, कुम्हलान
शोषः —पुं॰—-—शुष् + घञ्—फुप्फुसीय क्षय, या क्षयरोग
शोषसम्भवम् —नपुं॰—शोषः-सम्भवम्—-—पिप्पलामूल
शोषण —वि॰—-—शुष् + ल्युट्, स्त्रियां ङीप् च—सूखना, शुष्क करना
शोषण —वि॰—-—शुष् + ल्युट्, स्त्रियां ङीप् च—सूखाना, कृश करना,
शोषणः —पुं॰—-—-—कामदेव का एक बाण
शोषणम् —नपुं॰—-—-—सूखना, शुष्क होना
शोषणम् —नपुं॰—-—-—चूसना, रसाकर्षण, अवशोषण
शोषणम् —नपुं॰—-—-—निःशेषण, क्लान्ति
शोषणम् —नपुं॰—-—-—कृशता, कुम्हलाहट
शोषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुष् + णिच् + क्त—सुखाया गया
शोषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुष् + णिच् + क्त—कृश हुआ, कुम्हलाया हुआ
शोषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शुष् + णिच् + क्त—परिश्रान्त
शोषिन् —वि॰—-—शुष् + णिच् + णिनि—सुखाने वाला, कुम्हलाता हुआ, क्षीण होने वाला
शौकम् —नपुं॰—-—शुक + अण्—तोतों की लार, तोतों का झुण्ड
शौक्त —वि॰—-—शुक्ति + ठक्—मोती से सम्बन्ध रखने वाला
शौक्त —वि॰—-—शुक्ति + ठक्—खट्टा, सिरके का, तेज़ाबी
शौक्तिकेयम् —नपुं॰—-—शुक्तिका + ढक्—मोती
शौक्तेयम् —नपुं॰—-—शुक्ति + ढक्—मोती
शौक्तिकेयः —पुं॰—-—शुक्तिका + ढक्—एक प्रकार का विष
शौक्ल्यम् —नपुं॰—-—शुक्ल + ष्यञ्—श्वेतता, सफ़ेदी, स्वच्छता
शौचम् —नपुं॰—-—शुचेर्भावः अण्—पवित्रता, स्वच्छता
शौचम् —नपुं॰—-—शुचेर्भावः अण्—मलत्याग के कारण दूषित व्यक्तित्व का शुद्धीकरण, विशेषतः किसी निकट सम्बन्धीं की मृत्यु होने पर(लोक-व्यवहार के अनुसार निश्चित समय पर क्षौरकर्म आदि करा कर) शुद्ध होना
शौचम् —नपुं॰—-—शुचेर्भावः अण्—स्वच्छ होना, निर्मल होना
शौचम् —नपुं॰—-—शुचेर्भावः अण्—मलत्याग करना
शौचम् —नपुं॰—-—शुचेर्भावः अण्—खरापन, ईमानदारी
शौचाचारः —नपुं॰—शौचम्-आचारः—-—शुद्धि विषयक संस्कार
शौचकर्मन् —नपुं॰—शौचम्-कर्मन्—-—शुद्धि विषयक संस्कार
शौचकल्पः —पुं॰—शौचम्-कल्पः—-—शुद्धि विषयक संस्कार
शौचकूपः —पुं॰—शौचम्-कूपः—-—सण्डास, शौचालय
शौचेयः —पुं॰—-—शुचि + ढक्—धोबी
शौट् —भ्वा॰ पर॰ <शौटति>—-—-—घमण्डी या अहंकारी होना
शौटीर —वि॰—-—शौटेः ईरन्—घमण्डी, अहंकारी
शौटीरः —पुं॰—-—-—शूरवीर, मल्ल, योधा
शौटीरः —पुं॰—-—-—घमण्डी मनुष्य
शौटीर्यम् —नपुं॰—-—शौटीर + ष्यञ्—घमण्ड, अभिमान, दर्प
शौण्डीर्यम् —नपुं॰—-—शौण्डीर + ष्यञ्—घमण्ड, अभिमान, दर्प
शौडति —भ्वा॰ पर॰ <शौडति>—-—-—घमण्डी या अहंकारी होना
शौण्ड —वि॰—-—शुण्डायां सुरायामभिरतः अण्—शराबी, शराब पीने का शौक़ीन, मद्यप
शौण्ड —वि॰—-—शुण्डायां सुरायामभिरतः अण्—उत्तेजित, मतवाला, नशे में चूर
शौण्ड —वि॰—-—शुण्डायां सुरायामभिरतः अण्—अभिमान में चूर, घमण्डी
शौण्ड —वि॰—-—शुण्डायां सुरायामभिरतः अण्—कुशल, दक्ष
शौण्डिक —पुं॰—-—शुण्डा सुरा पण्यमस्य ठक्—शराब खींचने वाला, कलाल , शराब विक्रेता, सुराजीवी
शौण्डिन् —पुं॰—-—शुण्डा सुरा पण्यमस्य इनि —शराब खींचने वाला, कलाल , शराब विक्रेता, सुराजीवी
शौण्डिकी —स्त्री॰—-—-—कलाली, शराब विक्रेत्री
शौण्डिनी —स्त्री॰—-—-—कलाली, शराब विक्रेत्री
शौण्डिकेयः —पुं॰—-—शुण्डिका + ढक्—राक्षस
शौण्डी —स्त्री॰—-—शुण्डा करिकरः तदाकारः अस्ति अस्याः - शुण्डा + अण् + ङीप्—गजपिप्पली, बड़ी पीपल
शौण्डीर —वि॰—-—शुण्डा गर्वोऽस्ति अस्य-शुण्डा + ईरन् + अण्—घमण्डी, अभिमानी
शौण्डीर —वि॰—-—शुण्डा गर्वोऽस्ति अस्य-शुण्डा + ईरन् + अण्—उत्तुङ्ग, उन्नत
शौद्धोदनिः —पुं॰—-—शुद्धोदन + इञ्—बुद्ध का विशेषण, शुद्धोदन का पुत्र
शौद्र —वि॰—-—शूद्र + अण्—शूद्र सम्बन्धी
शौद्रः —पुं॰—-—-—शूद्रा स्त्री का पुत्र जिसका पिता (तीन वर्णो में से ) किसी भी वर्ण का हो
शौनम् —नपुं॰—-—शूना + अण्—क़साईखाने में रक्खा हुआ मांस
शौनकः —पुं॰—-—शुनक + अण्—एक महर्षि, ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा अन्य अनेक वैदिक रचनाओं के प्रणेता
शौनिकः —पुं॰—-—शूना प्राणिवधस्थानं प्रयोजनमस्य ठक्—क़साई
शौनिकः —पुं॰—-—शूना प्राणिवधस्थानं प्रयोजनमस्य ठक्—बहेलिया, चिड़ीमार
शौनिकः —पुं॰—-—शूना प्राणिवधस्थानं प्रयोजनमस्य ठक्—शिकार, आखेट
शौभः —पुं॰—-—शोभायै हितम्-शोभा + अण्—देवता, दिव्यता
शौभः —पुं॰—-—शोभायै हितम्-शोभा + अण्—सुपारी का पेड़
शौभाञ्जनः —पुं॰—-—शोभाञ्जन + अण्—एक वृक्ष का नाम
शौभिकः —पुं॰—-—शौभं व्योमपुरं शिल्पमस्य-शौभ + ठक्—मदारी, बाजीगर
शौभिकः —पुं॰—-—शौभं व्योमपुरं शिल्पमस्य-शौभ + ठक्—शिकारी, बहेलिया
शौरसेनी —स्त्री॰—-—शूरसेन + अण् + ङीप्—एक प्रकार की प्राकृत बोली का नाम
शौरिः —पुं॰—-—शूर + इञ्—कृष्ण या विष्णु
शौरिः —पुं॰—-—शूर + इञ्—बलराम
शौरिः —पुं॰—-—शूर + इञ्—शनिग्रह
शौर्यम् —नपुं॰—-—शूरस्य भावः ष्यञ्—पराक्रम, शूरता, वीरता
शौर्यम् —नपुं॰—-—शूरस्य भावः ष्यञ्—सामर्थ्य, शक्ति, ताक़त
शौर्यम् —नपुं॰—-—शूरस्य भावः ष्यञ्—युद्ध और अतिप्राकृतिक घटनाओं का रंगमंच पर अभिनय करना
शौल्कः —पुं॰—-—शुल्के तदादानेऽधिकृतः अण्—चुंगी का अधीक्षक, शुल्काधिकारी
शौल्किकः —पुं॰—-—शुल्के तदादानेऽधिकृतः ठक्—चुंगी का अधीक्षक, शुल्काधिकारी
शौल्विकः —पुं॰—-—शुल्व + ठक्—तांबें के बर्तन बनाने वाला, कसेरा
शौल्बिकः —पुं॰—-—-—तांबें के बर्तन बनाने वाला, कसेरा
शौव —वि॰—-—श्वन् + अण्, टिलोपः—कुत्तों से संबन्ध रखने वाला, कुक्कुरसंबंधी
शौवम् —नपुं॰—-—-—कुत्तों का झुंड
शौवम् —नपुं॰—-—-—कुत्तों का स्वभाव
शौव —वि॰—-—-—आगामी कल संबन्धी
शौवन —वि॰—-—श्वन् + अण् —कुक्कुर संबन्धी
शौवन —वि॰—-—श्वन् + अण् —कुत्ते के गुणों से युक्त
शौवनम् —नपुं॰—-—-—कुत्ते का स्वभाव
शौवनम् —नपुं॰—-—-—कुत्ते की संतति
शौवस्तिक —वि॰—-—श्वस् + ठक्, तुट् च—आगामी कल संबन्धी या आगामी कल तक ठहरने वाला, एकदिवसीय, अल्पजीवी
शौष्कलः —पुं॰—-—शुष्कल् + अण्—मांस विक्रेता
शौष्कलः —पुं॰—-—शुष्कल् + अण्—मांसभक्षी
शौष्कलम् —नपुं॰—-—-—शुष्क मांस का मूल्य
श्चुत् —भ्वा॰ पर॰—-—-—टपकना, रिसना, बहना, चूना
श्चुत् —भ्वा॰ पर॰—-—-—ढालना, उडेलना, फैलाना, बखेरना
श्च्युत् —भ्वा॰ पर॰ <श्च्योतति>—-—-—टपकना, रिसना, बहना, चूना
श्च्युत् —भ्वा॰ पर॰ <श्च्योतति>—-—-—ढालना, उडेलना, फैलाना, बखेरना
निश्च्युत् —भ्वा॰ पर॰—नि-श्च्युत्—-—बहना, रिसना, टपकना
श्च्योतः —पुं॰—-—श्च्युत् + घञ्—रिसना, बहना, स्रवित होना, चूना
श्चोतः —पुं॰—-—श्चुत् + घञ्—रिसना, बहना, स्रवित होना, चूना
श्च्योतम् —नपुं॰—-—श्च्युत् + ल्युट्—रिसना, बहना, स्रवित होना, चूना
श्चुतम् —नपुं॰—-—श्चुत् + ल्युट्—रिसना, बहना, स्रवित होना, चूना
श्मशानम् —नपुं॰—-—श्मानः शयाः शेरतेऽत्र-शी + आनच्, डिच्च अथवा श्मन् शब्देन शवः प्रोक्त तस्य शानं शयनम्—शवस्थान, क़ब्रिस्तान, शवदाह स्थान, मरघट
श्मशानाग्निः —पुं॰—श्मशानम्-अग्निः—-—मरघट की आग
श्मशानालयः —पुं॰—श्मशानम्-आलयः—-—क़ब्रिस्तान
श्मशानगोचर —वि॰—श्मशानम्-गोचर—-—मसान में घूमने वाला
श्मशाननिवासिन् —पुं॰—श्मशानम्-निवासिन्—-—भूत
श्मशानवर्तिन् —पुं॰—श्मशानम्-वर्तिन्—-—भूत
श्मशानभाज् —पुं॰—श्मशानम्-भाज्—-—शिव के विशेषण
श्मशानवासिन् —पुं॰—श्मशानम्-वासिन्—-—शिव के विशेषण
श्मशानवेश्मन् —पुं॰—श्मशानम्-वेश्मन्—-—शिव के विशेषण
श्मशानवेश्मन् —पुं॰—श्मशानम्-वेश्मन्—-—भूत-प्रेत
श्मशानवैराग्यम् —नपुं॰—श्मशानम्-वैराग्यम्—-—क्षणिक विरक्ति, श्मशान भूमि के दर्शन से उत्पन्न अस्थायी संसार त्याग की भावना
श्मशानशूलः —पुं॰—श्मशानम्-शूलः—-—श्मशान भूमि में स्थित लोहे या लकड़ी की सूली
श्मशानसाधनम् —नपुं॰—श्मशानम्-साधनम्—-—भूत-प्रेतों को वश में करने के लिए श्मशान में तांत्रिक मन्त्रों की साधना करना
श्मश्रु —नपुं॰—-—श्म पुं॰ मुखं श्रूयते लक्ष्यतेऽनेन-श्रु + डु—दाढ़ी-मूँछ
श्मश्रुप्रवृद्धिः —पुं॰—श्मश्रु-प्रवृद्धिः—-—दाढ़ी का बढ़ना
श्मश्रुमुखी —स्त्री॰—श्मश्रु-मुखी—-—दाढ़ीमूँछ वाली स्त्री
श्मश्रुवर्धकः —पुं॰—श्मश्रु-वर्धकः—-—नाई
श्मश्रुल —वि॰—-—श्मश्रु + लच्—दाढ़ी मूंछ वाला, श्मश्रुधारी
श्मील् —भ्वा॰ पर॰ <श्मीलति>—-—-—आँख झपकना, पलक मारना, आँखे मटकना
श्मीलनम् —नपुं॰—-—श्मील् + ल्युट्—आँख मीचना, पलक झपकना
श्यान —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्यै + क्त—गया हुआ
श्यान —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्यै + क्त—जमा हुआ, पिंडीभूत
श्यान —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्यै + क्त—घनीभूत, चिपकना, सांद्र
श्यान —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्यै + क्त—सिकुड़ा हुआ, सूखा
श्याम —वि॰—-—श्यै + मक्—काला, गहरा नीला, काले रंग का
श्याम —वि॰—-—श्यै + मक्—भूरा
श्याम —वि॰—-—श्यै + मक्—गहरा-हरा
श्यामः —पुं॰—-—-—प्रयाग में यमुना के किनारे स्थित बरगद का पेड़
श्यामम् —नपुं॰—-—-—समुद्री नमक
श्यामम् —नपुं॰—-—-—काली मिर्च
श्यामाङ्ग —वि॰—श्याम्-अङ्ग—-—काला
श्यामाङ्गः —पुं॰—श्याम्-अङ्गः—-—बुध ग्रह
श्यामकण्ठः —पुं॰—श्याम्-कण्ठः—-—शिव (नीलकंठ) का विशेषण
श्यामकण्ठः —पुं॰—श्याम्-कण्ठः—-—मोर
श्यामकर्णः —पुं॰—श्याम्-कर्णः—-—अश्वमेध यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा
श्यामपत्रः —पुं॰—श्याम्-पत्रः—-—तमाल वृक्ष
श्यामभास् —वि॰—श्याम्-भास्—-—चमकीला काला
श्यामरुचि —वि॰—श्याम्-रुचि—-—चमकीला काला
श्यामसुन्दरः —पुं॰—श्याम्-सुन्दरः—-—कृष्ण का विशेषण
श्यामल —वि॰—-—श्याम + लच्, ला + क वा—काला, गहरीनीला, साँवला
श्यामलः —पुं॰—-—-—काला रंग
श्यामलः —पुं॰—-—-—काली मिर्च
श्यामलिका —स्त्री॰—-—श्यामल + कन् + टाप्, इत्वम्—नील का पौधा
श्यामलिमन् —पुं॰—-—श्यामल + इमनिच्—कालिमा, कालापन
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—रात, विशेषतः काली रात
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—स्त्री विशेष
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—निस्सन्तान स्त्री
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—गाय
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—हल्दी
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—मादा कोयल
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—प्रियंगुलता
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—नील का पौधा
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—तुलसी का पौधा
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—कमल का बीज
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—युमना नदी
श्यामा —स्त्री॰—-—श्याम + टाप्—कई पौधों का नाम
श्यामाकः —पुं॰—-—श्याम + अक् + अण्—एक प्रकार का अन्न, धान्य, सावां चावल
श्यामिका —स्त्री॰—-—श्याम + ठन् भावे—कालिमा, श्यामता
श्यामिका —स्त्री॰—-—श्याम + ठन् भावे—मलिनता, ख़ोटापन (धातु आदिकों का)
श्यामित —वि॰—-—श्याम + इतच्—काला किया हुआ, कृष्ण रंग का किया हुआ, कलूटा
श्यालः —पुं॰—-—श्यै + कालन्—पत्नी का भाई, साला
श्यालकः —पुं॰—-—श्याल + कन्—पत्नी का भाई
श्यालकः —पुं॰—-—श्याल + कन्—साला
श्यालकी —स्त्री॰—-—श्यालक + ङीप् + टाप्—पत्नी की बहन, साली
श्यालिका —स्त्री॰—-—श्यालक + ङीप् + टाप् इत्वं —पत्नी की बहन, साली
श्याली —स्त्री॰—-—श्याल + ङीष्—पत्नी की बहन, साली
श्याव —वि॰—-—शयै + वन्—कपिश, गहरा भूरे रंग का, काला, धूसर, धुमैला
श्याव —वि॰—-—शयै + वन्—लाख के रंग का, भूरा
श्यावतैलः —पुं॰—श्याव-तैलः—-—आम का वृक्ष
श्येत —वि॰—-—श्यै + इतच्—सफेद
श्येतः —पुं॰—-—-—श्वेत रंग
श्येनः —पुं॰—-—श्यै + इनन्—सफेद रंग
श्येनः —पुं॰—-—श्यै + इनन्—सफेदी
श्येनः —पुं॰—-—श्यै + इनन्—बाज़, शिकरा
श्येनः —पुं॰—-—श्यै + इनन्—हिंसा, प्रचण्डता
श्येनकरणम् —नपुं॰—श्येनः-करणम्—-—अलग चिता पर दाह करना
श्येनकरणम् —नपुं॰—श्येनः-करणम्—-—बाज़ की भांति झपट कर शीघ्रता से किसी काम में लगना
श्येनकरणिका —स्त्री॰—श्येनः-करणिका—-—अलग चिता पर दाह करना
श्येनकरणिका —स्त्री॰—श्येनः-करणिका—-—बाज़ की भांति झपट कर शीघ्रता से किसी काम में लगना
श्येनचित् —पुं॰—श्येनः-चित्—-—बाज़ को पकड़ कर तथा उसे बेच कर ज़ीवन निर्वाह करने वाला
श्येनजीविन् —पुं॰—श्येनः-जीविन्—-—बाज़ को पकड़ कर तथा उसे बेच कर ज़ीवन निर्वाह करने वाला
श्यै —भ्वा॰ आ॰ <श्यायते>, <श्यान>, <शीत>, <शीन>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्यै —भ्वा॰ आ॰ <श्यायते>, <श्यान>, <शीत>, <शीन>—-—-—जम जाना
श्यै —भ्वा॰ आ॰ <श्यायते>, <श्यान>, <शीत>, <शीन>—-—-—सूख जाना, कुम्हलाना
आश्यै —भ्वा॰ आ॰—आ-श्यै—-—सूख जाना
श्यैनम्पाता —स्त्री॰—-—श्येनस्य पातोऽत्र अण्, मुम् च—बाज़ की भांति झपटना, शिकार, आखेट
श्योणाकः —पुं॰—-—श्यै + ओणाक—एक वृक्ष का नाम, सोना पाड़ा
श्योनाकः —पुं॰—-—श्यै + ओनाक—एक वृक्ष का नाम, सोना पाड़ा
श्रङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <श्रङ्कते>—-—-—जाना, रेंगना
श्रङ्ग —भ्वा॰ पर॰ <श्रङ्गति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना, रेंगना
श्रण् —भ्वा॰ आ॰ <श्रणति>, चुरा॰ उभ॰ <श्राणयति>, <श्राणयते>—-—-—देना, प्रदान करना, अर्पण करना
श्रत् —अव्य॰—-—श्री + डति—एक प्रकार का उपसर्ग जो ‘धा’ धातु के पूर्व में लगता है
अथ् —भ्वा॰ पर॰ <श्रथति>, क्र्या॰ पर॰ <श्रथ्नाति>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, मार डालना
अथ् —भ्वा॰ पर॰ <श्रथति>, चुरा॰ उभ॰ <श्राथयति>, <श्राथयते>—-—-—चोट पहुँचाना, मार डालना
अथ् —भ्वा॰ पर॰ <श्रथति>, चुरा॰ उभ॰ <श्राथयति>, <श्राथयते>—-—-—खोलना, ढीला करना, स्वतन्त्र करना, मुक्त करना
अथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्रथयति>, <श्रथयते>—-—-—प्रयत्न करना, व्यस्त रहना
अथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्रथयति>, <श्रथयते>—-—-—निर्बल होना, कमजोर होना
अथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्रथयति>, <श्रथयते>—-—-—प्रसन्न होना
श्रथनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—मारना, विनाश करना
श्रथनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—खोलना, ढीला करना, मुक्त करना
श्रथनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—प्रयत्न, चेष्टा
श्रथनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—बांधना, बन्धन में डालना
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—आस्था, निष्ठा, विश्वास, भरोसा
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—दैवीसन्देशों में विश्वास, धार्मिक निष्ठा
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—शान्ति, मन की स्वस्थता
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—घनिष्ठता, परिचय
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—आदर, सम्मान
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—प्रबल या उत्कट इच्छा
श्रद्धा —स्त्री॰—-—श्रत् + धा + अङ् + टाप्—दोहद, गर्भवती स्त्री की इच्छा
श्रद्धालु —वि॰—-—श्रद्धा + आलुच्—विश्वास करने वाला, निष्ठावान्
श्रद्धालु —वि॰—-—श्रद्धा + आलुच्—इच्छुक, (किसी वस्तु का) अभिलाषी
श्रद्धालुः —स्त्री॰—-—-—दोहदवती, गर्भवती स्त्री जो किसी वस्तु की कामना करे
श्रन्थ् —भ्वा॰ आ॰ <श्रन्थते>—-—-—दुर्बल होना
श्रन्थ् —भ्वा॰ आ॰ <श्रन्थते>—-—-—निढाल या विश्रान्त होना
श्रन्थ् —भ्वा॰ आ॰ <श्रन्थते>—-—-—ढीला करना, विश्राम करना
श्रन्थ् —क्र्या॰ पर॰ <श्रथ्नाति>—-—-—ढीला करना, स्वतन्त्र करना मुक्त करना
श्रन्थ् —क्र्या॰ पर॰ <श्रथ्नाति>—-—-—खूब प्रसन्न होना
श्रन्थः —पुं॰—-—श्रन्थ् + घञ्—ढीला करना, स्वतन्त्र करना
श्रन्थः —पुं॰—-—श्रन्थ् + घञ्—ढीलापन
श्रन्थः —पुं॰—-—श्रन्थ् + घञ्—विष्णु
श्रन्थनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—ढीला करना, खोलना
श्रन्थनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—चोट पहुँचाना, मार डालना, विनाश करना
श्रन्थनम् —नपुं॰—-—श्रथ् + ल्युट्—बाँधना, बन्धन में डालना
श्रपणम् —नपुं॰—-—श्रा + णिच् + ल्युट्—उबलवाना, गरम करना
श्रपित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रा + णिच् + क्त—गरम किया गया या उबलाया गया
श्रपिता —स्त्री॰—-—-—माँड, कांजी
श्रम् —दिवा॰ पर॰ <श्राम्यति>, <श्रान्त>—-—-—चेष्टा करना, उद्योग करना, मेहनत करना, परिश्रम करना
श्रम् —दिवा॰ पर॰ <श्राम्यति>, <श्रान्त>—-—-—तपश्चर्या करना, (तपस्या के द्वारा) इन्द्रियदमन करना
श्रम् —दिवा॰ पर॰ <श्राम्यति>, <श्रान्त>—-—-—श्रान्त होना, थकना, परिश्रान्त होना
श्रम् —दिवा॰ पर॰ <श्राम्यति>, <श्रान्त>—-—-—कष्टग्रस्त होना, दुःखी होना
श्रम् —दिवा॰, प्रेर॰ <श्रमयति>, <श्रमयते>, <श्रामयति>, <श्रामयते>—-—-—थकाना
परिश्रम् —दिवा॰ पर॰—परि-श्रम्—-—अत्यन्त थक जाना
विश्रम् —दिवा॰ पर॰—वि-श्रम्—-—विश्राम करना, आराम करना, ठहराना
विश्रम् —दिवा॰ पर॰—वि-श्रम्—-—थमना, अन्त होना
विश्रम् —दिवा॰ पर॰—वि-श्रम्—-—उतरवाना, बसाना
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—मेहनत, परिश्रम, चेष्टा, प्रयत्न
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—थकावट, थकान, परिश्रान्ति
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—कष्ट, दुःख
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—तपस्या, साधना, इन्द्रियदमन
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—व्यायाम, विशेषतः सैनिक व्यायाम, क़वायद
श्रमः —पुं॰—-—श्रम् + घञ्, न वृद्धिः—घोर अध्ययन
श्रमाम्बु —नपुं॰—श्रमः-अम्बु—-—पसीना
श्रमजलम् —नपुं॰—श्रमः-जलम्—-—पसीना
श्रमकर्षित —वि॰—श्रमः-कर्षित—-—थका-मांदा
श्रमसाध्य —वि॰—श्रमः-साध्य—-—परिश्रम द्वारा सम्पन्न होने योग्य, कष्टसाध्य
श्रमण —वि॰—-—श्रम् + युच्—परिश्रमी, मेहनती
श्रमण —पुं॰—-—श्रम् + युच्—बौद्धभिक्षु, जैन यति
श्रमणा —स्त्री॰—-—-—भक्तिनी, भिक्षुणी
श्रमणा —स्त्री॰—-—-—लावण्यमयी स्त्री
श्रमणा —स्त्री॰—-—-—नीच जाति की स्त्री
श्रमणा —स्त्री॰—-—-—बंगाली मजीठ
श्रमणा —स्त्री॰—-—-—जटामांसी, बालछड़
श्रमणी —स्त्री॰—-—-—भक्तिनी, भिक्षुणी
श्रमणी —स्त्री॰—-—-—लावण्यमयी स्त्री
श्रमणी —स्त्री॰—-—-—नीच जाति की स्त्री
श्रमणी —स्त्री॰—-—-—बंगाली मजीठ
श्रमणी —स्त्री॰—-—-—जटामांसी, बालछड़
श्रम्भ् —भ्वा॰ आ॰ <श्रम्भते>, <श्रब्ध>—-—-—उपेक्षक होना, असावधान होना, लापरवाह होना
श्रम्भ् —भ्वा॰ आ॰ <श्रम्भते>, <श्रब्ध>—-—-—गलती करना
विश्रम्भ् —भ्वा॰ आ॰—वि-श्रम्भ्—-—विश्वास करना, भरोसा करना
श्रयः —पुं॰—-—श्रि + अच्—शरण, पनाह, बचाव, आश्रय
श्रयणम् —नपुं॰—-—श्रि + ल्युट्—शरण, पनाह, बचाव, आश्रय
श्रवः —पुं॰—-—श्रु + अप्—सुनना
श्रवः —पुं॰—-—श्रु + अप्—कान
श्रवः —पुं॰—-—श्रु + अप्—किसी त्रिकोण का कर्ण
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु + ल्युट्—कान
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु + ल्युट्—किसी त्रिकोण का कर्ण
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु + ल्युट्—श्रवण नाम का नक्षत्र (जिसमें तीन तारे सम्मिलित है)
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु + ल्युट्—कान
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु + ल्युट्—किसी त्रिकोण का कर्ण
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु + ल्युट्—श्रवण नाम का नक्षत्र (जिसमें तीन तारे सम्मिलित है)
श्रवणा —नपुं॰—-—-—श्रवण नाम का नक्षत्र (जिसमें तीन तारे सम्मिलित है)
श्रवणम् —नपुं॰—-—-—सुनने की क्रिया
श्रवणम् —नपुं॰—-—-—ख्याति, कीर्ति
श्रवणम् —नपुं॰—-—-—जो सुना गया या प्रकट हुआ
श्रवणेन्द्रियम् —नपुं॰—श्रवणः-इन्द्रियम्—-—श्रोवेंन्द्रिय, कान
श्रवणोदरम् —नपुं॰—श्रवणः-उदरम्—-—कान का बाह्यविवर
श्रवणगोचर —वि॰—श्रवणः-गोचर—-—श्रवणपरास के अन्तर्गत
श्रवणगोचरः —पुं॰—श्रवणः-गोचरः—-—सुनाई देने की सीमा तक
श्रवणविषयः —पुं॰—श्रवणः-विषयः—-—कान की पहुँच, श्रवण परास
श्रवणपालिः —स्त्री॰—श्रवणः-पालिः—-—कान का सिरा
श्रवणपाली —स्त्री॰—श्रवणः-पाली—-—कान का सिरा
श्रवणसुभग —वि॰—श्रवणः-सुभग—-—कर्णसुखद
श्रवस् —नपुं॰—-—श्रु + असि—कान
श्रवस् —नपुं॰—-—श्रु + असि—ख्याति कीर्ति
श्रवस् —नपुं॰—-—श्रु + असि—दौलत
श्रवस् —नपुं॰—-—श्रु + असि—सूक्त
श्रवस्यम् —नपुं॰—-—श्रवस् + यत्—ख्याति, कीर्ति, विश्रुति
श्रवाप्यः —पुं॰—-—-—यज्ञ में बलि दिये जाने के योग्य पशु
श्रवाय्यः —पुं॰—-—श्रु + आय्य—यज्ञ में बलि दिये जाने के योग्य पशु
श्रविष्ठा —स्त्री॰—-—श्रवः ख्यातिः अस्ति अस्याः श्रव + मतुप्, इष्ठनि मतुबो लुक्—घनिष्ठा नाम का नक्षत्र
श्रविष्ठा —स्त्री॰—-—श्रवः ख्यातिः अस्ति अस्याः श्रव + मतुप्, इष्ठनि मतुबो लुक्—श्रवणा नाम का नक्षत्र
श्रविष्ठाजः —पुं॰—श्रविष्ठा-जः—-—बुधग्रह
श्रा —अदा॰ पर॰ <श्राति>, <श्राण>, <शृत> प्रेर॰ <श्रपयति>, <श्रपयते>—-—-—पकाना, उबालना, भोजन बनाना, परिपक्व करना, पकना
श्राण —वि॰—-—श्रा + क्त—पकाया हुआ, भोजन बनाया हुआ, उबाला हुआ
श्राण —वि॰—-—श्रा + क्त—आर्द्र, गीला, तर
श्राणा —स्त्री॰—-—श्राण + टाप्—कांजी, यवागू
श्राद्ध —वि॰—-—श्रद्धा हेतुत्वेनास्त्यस्य अण्—निष्ठावान्, विश्वास करने वाला
श्राद्धम् —नपुं॰—-—-—मृतक सम्बन्धियों की दिवङ्गत आत्माओं के सम्मान में अनुष्ठेय संस्कार, अन्त्येष्टि संस्कार
श्राद्धम् —नपुं॰—-—-—और्ध्वदैहिक आहुति, श्राद्ध के अवसर पर उपहार या भेंट
श्राद्धकर्मन् —नपुं॰—श्राद्ध-कर्मन्—-—अन्त्येष्टि संस्कार
श्राद्धक्रिया —नपुं॰—श्राद्ध-क्रिया—-—अन्त्येष्टि संस्कार
श्राद्धकृत् —पुं॰—श्राद्ध-कृत्—-—अन्त्येष्टि संस्कार करने वाला
श्राद्धदः —पुं॰—श्राद्ध-दः—-—अन्त्येष्टि संस्कार आहुति या श्राद्ध भेंट करने वाला
श्राद्धदिनः —पुं॰—श्राद्ध-दिनः—-—उस स्वर्गीय सम्बन्धी की बरसी जिसके सम्मान में श्राद्ध किया जाय
श्राद्धदिनम् —नपुं॰—श्राद्ध-दिनम्—-—उस स्वर्गीय सम्बन्धी की बरसी जिसके सम्मान में श्राद्ध किया जाय
श्राद्धदेवः —पुं॰—श्राद्ध-देवः—-—अन्त्येष्टि संस्कार की अधिष्ठात्री देवता
श्राद्धदेवः —पुं॰—श्राद्ध-देवः—-—यम का विशेषण
श्राद्धदेवः —पुं॰—श्राद्ध-देवः—-—विश्वदेव
श्राद्धदेवः —पुं॰—श्राद्ध-देवः—-—पिता, प्रजनक
श्राद्धदेवता —स्त्री॰—श्राद्ध-देवता—-—अन्त्येष्टि संस्कार की अधिष्ठात्री देवता
श्राद्धदेवता —स्त्री॰—श्राद्ध-देवता—-—यम का विशेषण
श्राद्धदेवता —स्त्री॰—श्राद्ध-देवता—-—विश्वदेव
श्राद्धदेवता —स्त्री॰—श्राद्ध-देवता—-—पिता, प्रजनक
श्राद्धभुज् —पुं॰—श्राद्ध-भुज्—-—दिवङ्गत, पूर्व पुरुष
श्राद्धभोक्तृ —पुं॰—श्राद्ध-भोक्तृ—-—दिवङ्गत, पूर्व पुरुष
श्राद्धिक —वि॰—-—श्राद्धेयं, श्राद्धं तद्द्रव्यं भक्ष्यत्वेनास्त्यस्य वा ठन्—श्राद्ध सम्बन्धी और्ध्व दैहिक भेंट को स्वीकार करने वाला
श्राद्धिकम् —नपुं॰—-—-—श्राद्ध के अवसर पर दिया गया उपहार
श्राद्धीय —वि॰—-—श्राद्ध + छ—श्राद्ध सम्बन्धी
श्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रम् + क्त—थका हुआ, थकामांदा, क्लान्त, परिश्रांत
श्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रम् + क्त—शान्त, सौम्य
श्रान्तः —पुं॰—-—-—संन्यासी
श्रान्तिः —स्त्री॰—-—श्रम् + क्तिन्—क्लान्ति, परिश्रान्ति, थकावट
श्रामः —पुं॰—-—श्राम् + अच्—मास
श्रामः —पुं॰—-—श्राम् + अच्—समय
श्रामः —पुं॰—-—श्राम् + अच्—अस्थायी छाजन
श्रायः —पुं॰—-—श्रि + घञ्—आश्रय, बचाव, शरण, सहारा
श्रावः —पुं॰—-—श्रु + घञ्—सुनना, कान देना
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—श्रोता
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—छात्र, शिष्य
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—बौद्धभिक्षु, बौद्ध सन्त, महात्मा
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—बौद्ध भक्त
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—पाखण्डी
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु + ण्वुल्—कौवा
श्रावण —वि॰—-—श्रवण + अण्—कान सम्बन्धी
श्रावण —वि॰—-—श्रवण + अण्—श्रवण नक्षत्र में उत्पन्न
श्रावणः —पुं॰—-—-—सावन का महीना, (जूलाई-अगस्त में आने वाला)
श्रावणः —पुं॰—-—-—छद्मवेशी
श्रावणः —पुं॰—-—-—एक वैश्य संन्यासी
श्रावणिक —वि॰—-—श्रावण + ठक्—श्रावण मास सम्बन्धी
श्रावणिकः —पुं॰—-—-—सावन का महीना
श्रावणी —स्त्री॰—-—श्रावणेन नक्षत्रेण युक्ता पौर्णमासी-श्रवण + अण् + ङीप्—श्रावण मास की पूर्णिमा
श्रावणी —स्त्री॰—-—श्रावणेन नक्षत्रेण युक्ता पौर्णमासी-श्रवण + अण् + ङीप्—एक वार्षिक पर्व जिस दिन यज्ञोपवीत वदले जायँ, सलोनों , रक्षाबन्धन
श्रावस्तिः —स्त्री॰ —-—-—गंगा नदी के उत्तर में राजा श्रावस्त द्वारा स्थापित एक नगर
श्रावस्ती —स्त्री॰ —-—-—गंगा नदी के उत्तर में राजा श्रावस्त द्वारा स्थापित एक नगर
श्रावित —वि॰—-—श्रु + णिच् + क्त—कहा हुआ, सुनाया गया, वर्णन किया गया
श्राव्य —वि॰—-—श्रु + णिच् + यत्—सुने जाने के योग्य
श्राव्य —वि॰—-—श्रु + णिच् + यत्—जो सुना जा सके, स्पष्ट
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—जाना, पहुँचाना, सहारा लेना, दौड़ होना, बचाव के लिए पहुँच होना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—जाना, पहुँचाना, भुगतना, (अवस्था)धारण करना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—चिपकना, झुकना, आश्रित होना, निर्भर रहना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—निवास करना, बसना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—सम्मान करना, सेवा करना, पूजा करना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—सेवन करना काम पर लगाना
श्रि —भ्वा॰ उभ॰ <श्रयति>, <श्रयते>, <श्रितः>,प्रेर॰ <श्राययति>, <श्राययते> इच्छा॰ <शिश्रीषति>, <शिश्रीषते>, <शिश्रयिषति>, <शिश्रयिषते>—-—-—संलग्न करना, अनुषक्त होना
अभिश्रि —भ्वा॰ उभ॰—अभि-श्रि—-—निवास करना
अभिश्रि —भ्वा॰ उभ॰—अभि-श्रि—-—सवारी करना, चढ़ना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—सहारा लेना, आश्रय लेना, अवलम्ब होना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—अनुगमन करना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—शरण लेना, निवास करना, बसना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—आश्रित होना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—पार जाना, अनुभव प्राप्त करना, भुगतना, धारण करना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—जमे रहना, डटे रहना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—चुनना, छांटना, पसन्द करना
आश्रि —भ्वा॰ उभ॰—आ-श्रि—-—सहायता करना, मदद करना
उच्छ्रि —भ्वा॰ उभ॰—उद्-श्रि—-—ऊपर उठाना, उन्नत करना, ऊँचा करना
उपाश्रि —भ्वा॰ उभ॰—उपा-श्रि—-—पहुँच या अवलम्ब होना
संश्रि —भ्वा॰ उभ॰—सम्-श्रि—-—पहुँच होना, सहारा होना, शरण में जाना, सहायता के लिए पहुँचना
संश्रि —भ्वा॰ उभ॰—सम्-श्रि—-—अवलम्बित होना, आश्रित होना
संश्रि —भ्वा॰ उभ॰—सम्-श्रि—-—हासिल करना, प्राप्त करना
संश्रि —भ्वा॰ उभ॰—सम्-श्रि—-—अभिगमन करना, संभोग के लिए पहुँचना
संश्रि —भ्वा॰ उभ॰—सम्-श्रि—-—सेवा करना
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—गया हुआ, पहुँचा हुआ, शरण में पहुँचा हुआ
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—चिपका हुआ, सहारा लिया हुआ, बैठा हुआ
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—संयुक्त, सम्मिलित, संबद्ध
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—बचाया हुआ
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—सम्मानित, सेवित
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—अनुसेवी, सहकारी
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—आच्छादित, बिछाया हुआ
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—युक्त, पूंरित
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—समवेत, एकत्रित
श्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रि + क्त—सहित, संपन्न
श्रितिः —स्त्री॰—-—श्रि + क्तिन्—अवलम्व, सहारा, पहुँच
श्रियम्मन्य —वि॰—-—-—अपने आप को योग्य मानने वाला
श्रियम्मन्य —वि॰—-—-—घमंडी
श्रियापतिः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
श्रिष् —भ्वा॰ पर॰ <श्रषति>—-—-—जलाना
श्री —क्र्या॰ उभ॰ <श्रीणाति>, <श्रीणीते>—-—-—पकाना, भोजन बनाना, उबालना, तैयार करना
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—धन, दौलत, प्राचुर्य, समृद्धि, पुष्कलता
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—राजसत्ता, ऐश्वर्य, राजकीय धनदौलत
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—गौरव महिमा, प्रतिष्ठा
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—सौन्दर्य, चारुता, लालित्य
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—रंग, रूप
श्री —स्त्री॰—-—श्रि + क्विप्, नि॰—विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जो धन की देवी है
श्री —स्त्री॰—-—-—गुण, श्रेष्ठता
श्री —स्त्री॰—-—-—बुद्धि, समझ
श्री —स्त्री॰—-—-—अतिमानव शक्ति
श्री —स्त्री॰—-—-—मानवजीवन के तीन उद्देश्यों की समष्टि (धर्म, अर्थ और काम)
श्री —स्त्री॰—-—-—सरल वृक्ष
श्री —स्त्री॰—-—-—बेल का पेड़
श्रीह्वाम् —नपुं॰—श्री-आह्वम्—-—कमल
श्रीशः —पुं॰—श्री-ईशः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीकण्ठः —पुं॰—श्री-कण्ठः—-—शिव का विशेषण
श्रीकण्ठः —पुं॰—श्री-कण्ठः—-—भवभूति कवि का विशेषण
श्रीसखः —पुं॰—श्री-सखः—-—कुबेर का विशेषण
श्रीकरः —पुं॰—श्री-करः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीकरम् —नपुं॰—श्री-करम्—-—लाल कमल
श्रीकरणम् —नपुं॰—श्री-करणम्—-—लेखनी
श्रीकान्तः —पुं॰—श्री-कान्तः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीकारिन् —पुं॰—श्री-कारिन्—-—एक प्रकार का बारहसिंगा
श्रीखण्डः —पुं॰—श्री-खण्डः—-—चन्दन की लकड़ी
श्रीगदितम् —नपुं॰—श्री-गदितम्—-—एक प्रकार का छोटा नाटक
श्रीगर्भः —पुं॰—श्री-गर्भः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीगर्भः —पुं॰—श्री-गर्भः—-—तलवार
श्रीग्रहः —पुं॰—श्री-ग्रहः—-—पक्षियों को पानी पिलाने की कुण्डी
श्रीधनम् —नपुं॰—श्री-धनम्—-—खट्टी दही
श्रीधनः —पुं॰—श्री-धनः—-—बौद्ध महात्मा
श्रीचक्रम् —नपुं॰—श्री-चक्रम्—-—भूवृत्त, भूमण्डल
श्रीचक्रम् —नपुं॰—श्री-चक्रम्—-—इन्द्र के रथ का पहिया
श्रीजः —पुं॰—श्री-जः—-—काम का विशेषण
श्रीदः —पुं॰—श्री-दः—-—कुबेर का विशेषण
श्रीदयितः —पुं॰—श्री-दयितः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीधरः —पुं॰—श्री-धरः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीनगरम् —नपुं॰—श्री-नगरम्—-—एक नगर का नाम
श्रीनन्दनः —पुं॰—श्री-नन्दनः—-—राम का विशेषण
श्रीनिकेतन —पुं॰—श्री-निकेतनः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीनिवासः —पुं॰—श्री-निवासः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीपतिः —पुं॰—श्री-पतिः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीपतिः —पुं॰—श्री-पतिः—-—राजा, प्रभु
श्रीपथः —पुं॰—श्री-पथः—-—मुख्य सड़क, राजमार्ग
श्रीपर्णम् —नपुं॰—श्री-पर्णम्—-—कमल
श्रीपर्वतः —पुं॰—श्री-पर्वतः—-—एक पहाड़ का नाम
श्रीपिष्टः —पुं॰—श्री-पिष्टः—-—तारपीन
श्रीपुष्पम् —नपुं॰—श्री-पुष्पम्—-—लौंग
श्रीफलः —पुं॰—श्री-फलः—-—बेल का पेड़
श्रीफलम् —नपुं॰—श्री-फलम्—-—बेल का फल
श्रीफला —स्त्री॰—श्री-फला—-—नील का पौधा
श्रीफला —स्त्री॰—श्री-फला—-—आमलकी, आँवला
श्रीभ्रातृ —पुं॰—श्री-भ्रातृ—-—चाँद
श्रीभ्रातृ —पुं॰—श्री-भ्रातृ—-—घोड़ा
श्रीमस्तकः —पुं॰—श्री-मस्तकः—-—लहसुन
श्रीमुद्रा —स्त्री॰—श्री-मुद्रा—-—वैष्णवों का विशेष तिलक जो मस्तक पर लगाया जाता है
श्रीमूर्तिः —स्त्री॰—श्री-मूर्तिः—-—विष्णु या लक्ष्मी की प्रतिमा
श्रीमूर्तिः —स्त्री॰—श्री-मूर्तिः—-—कोई भी प्रतिमा
श्रीयुक्त —वि॰—श्री-युक्त—-—सौभाग्यशाली, प्रसन्न
श्रीयुक्त —वि॰—श्री-युक्त—-—धनवान्, समृद्धिशाली
श्रीयुत —वि॰—श्री-युत—-—सौभाग्यशाली, प्रसन्न
श्रीयुत —वि॰—श्री-युत—-—धनवान्, समृद्धिशाली
श्रीरङ्गः —पुं॰—श्री-रङ्गः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीरसः —पुं॰—श्री-रसः—-—तारपीन
श्रीरसः —पुं॰—श्री-रसः—-—राल
श्रीवत्सः —पुं॰—श्री-वत्सः—-—विष्णु का विशेषण, विष्णु की छाती पर बालों का घूंघर या चिह्नविशेष
श्रीङ्कः —पुं॰—श्री-अङ्कः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीधारिन् —पुं॰—श्री-धारिन्—-—विष्णु के विशेषण
श्रीभृत् —पुं॰—श्री-भृत्—-—विष्णु के विशेषण
श्रीलक्ष्मन् —पुं॰—श्री-लक्ष्मन्—-—विष्णु के विशेषण
श्रीलाञ्छन —पुं॰—श्री-लाञ्छन—-—विष्णु के विशेषण
श्रीवत्सकिन् —पुं॰—श्री-वत्सकिन्—-—एक घोड़ा जिसकी छाती पर बालों का घूंघर होता है
श्रीवरः —पुं॰—श्री-वरः—-—विष्णु के विशेषण
श्रीवल्लभः —पुं॰—श्री-वल्लभः—-—लक्ष्मी का प्रिय, सौभाग्यशाली या सुखी व्यक्ति
श्रीवासः —पुं॰—श्री-वासः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीवासः —पुं॰—श्री-वासः—-—शिव का विशेषण
श्रीवासः —पुं॰—श्री-वासः—-—कमल
श्रीवासः —पुं॰—श्री-वासः—-—तारपीन
श्रीवासस् —पुं॰—श्री-वासस्—-—तारपीन
श्रीवृक्षः —पुं॰—श्री-वृक्षः—-—बेल का पेड़
श्रीवृक्षः —पुं॰—श्री-वृक्षः—-—अश्वत्थवृक्ष
श्रीवृक्षः —पुं॰—श्री-वृक्षः—-—घोड़े के मस्तक औरछाती पर बालों का घूंघर
श्रीवेष्टः —पुं॰—श्री-वेष्टः—-—तारपीन
श्रीवेष्टः —पुं॰—श्री-वेष्टः—-—राल
श्रीसंज्ञम् —नपुं॰—श्री-संज्ञम्—-—लौंग
श्रीसहोदरः —पुं॰—श्री-सहोदरः—-—चन्द्रमा
श्रीसूक्तम् —नपुं॰—श्री-सूक्तम्—-—एक वैदिक सूक्त का नाम
श्रीहरिः —पुं॰—श्री-हरिः—-—विष्णु का विशेषण
श्रीहस्तिनी —स्त्री॰—श्री-हस्तिनी—-—सूर्यमुखी फूल का पौधा
श्रीमत् —वि॰—-—श्री + मतुप्—दौलतमन्द, धनवान्
श्रीमत् —वि॰—-—श्री + मतुप्—सुखी, सौभाग्यशाली, समृद्धिशाली, फलता-फूलता
श्रीमत् —वि॰—-—श्री + मतुप्—सुन्दर, सुहावना, सुखद
श्रीमत् —वि॰—-—श्री + मतुप्—विख्यात, प्रसिद्ध, कीर्तिशाली, प्रतिष्ठित
श्रीमत् —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
श्रीमत् —पुं॰—-—-—कुबेर का विशेषण
श्रीमत् —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
श्रीमत् —पुं॰—-—-—तिलक वृक्ष
श्रीमत् —पुं॰—-—-—अश्वत्थ वृक्ष
श्रील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य लच्—धनवान्, दौलतमन्द
श्रील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य लच्—सौभाग्यशाली, समृद्धिशाली
श्रील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य लच्—सुन्दर
श्रील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य लच्—विख्यात, प्रसिद्ध
श्रु —भ्वा॰ पर॰ <श्रवति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्रु —स्वा॰ पर॰ <शृणोति>, <श्रुत>—-—-—सुनना, (ध्यानपूर्वक) श्रवण करना, कान देना
श्रु —स्वा॰ पर॰ <शृणोति>, <श्रुत>—-—-—अधिगम करना, अध्ययन करना
श्रु —स्वा॰ पर॰ <शृणोति>, <श्रुत>—-—-—सावधान होना, आज्ञामानना
श्रु —स्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <श्रावयति>, <श्रावयते>—-—-—सुनवाना, समाचार देना, कहना बयान करना
श्रु —स्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <शुश्रूषते>—-—-—सुनने की इच्छा करना
श्रु —स्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <शुश्रूषते>—-—-—सावधान होना, आज्ञाकारी होना, हुक्म मानना
श्रु —स्वा॰ आ॰, इच्छा॰ <शुश्रूषते>—-—-—सेवा करना, सेवा में उपस्थित रहना
अनुश्रु —स्वा॰ पर॰—अनु-श्रु—-—सुनना
अनुश्रु —स्वा॰ पर॰—अनु-श्रु—-—गुरुपरम्परा से प्राप्त
अभिश्रु —स्वा॰ पर॰—अभि-श्रु—-—सुनना
अभिश्रु —स्वा॰ पर॰—अभि-श्रु—-—ध्यान देकर सुनना
आश्रु —स्वा॰ पर॰—आ-श्रु—-—सुनना
आश्रु —स्वा॰ पर॰—आ-श्रु—-—प्रतिज्ञा करना
उपश्रु —स्वा॰ पर॰—उप-श्रु—-—सुनना
उपश्रु —स्वा॰ पर॰—उप-श्रु—-—जाना, निश्चय करना
परिश्रु —स्वा॰ पर॰—परि-श्रु—-—सुनना
परिश्रु —स्वा॰ पर॰—परि-श्रु—-—प्रतिज्ञा करना
विश्रु —स्वा॰ पर॰—वि-श्रु—-—सुनना
संश्रु —स्वा॰ पर॰—सम्-श्रु—-—सुनना, ध्यान लगा कर सुनना
श्रुघ्निका —स्त्री॰—-—-—शोरा, सज्जी, खार
श्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रु + क्त—सुना हुआ, ध्यान लगा कर श्रवण किया हुआ
श्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रु + क्त—वर्णित, कर्णगोचर
श्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रु + क्त—अधिगत, निर्धारित, समझा गया
श्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रु + क्त—सुज्ञात, प्रसिद्ध, विख्यात, विश्रुत
श्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्रु + क्त—नामक, पुकारा हुआ
श्रुतम् —नपुं॰—-—-—सुनने का विषय
श्रुतम् —नपुं॰—-—-—जो दैवी संदेश से सुना गया, अर्थात् वेद, पवित्र अधिगम, पुनीत ज्ञान
श्रुतम् —नपुं॰—-—-—सामान्य अधिगम, विद्या
श्रुताध्ययनम् —नपुं॰—श्रुतम्-अध्ययनम्—-—वेदों का पढ़ना
श्रुतान्वित —वि॰—श्रुतम्-अन्वित—-—वेदों का ज्ञाता
श्रुतार्थः —पुं॰—श्रुतम्-अर्थः—-—मौख़िक रूप से या ज़बानी कहा गया तथ्य
श्रुतकीर्ति —वि॰—श्रुतम्-कीर्ति—-—प्रसिद्ध, विश्रुत
श्रुतकीर्ति —पुं॰—श्रुतम्-कीर्ति—-—उदार व्यक्ति
श्रुतकीर्ति —पुं॰—श्रुतम्-कीर्ति—-—दिव्य ऋषि
श्रुतकीर्ति —स्त्री॰—श्रुतम्-कीर्ति—-—शत्रुघ्न की पत्नी
श्रुतदेवी —स्त्री॰—श्रुतम्-देवी—-—सरस्वती
श्रुतधर —वि॰—श्रुतम्-धर—-—सुनी हुई बात को याद रखने वाला, मेधावी
श्रुतवत् —वि॰—-—श्रुत + मतुप्—वेदज्ञाता, वेदवेत्ता, वेदज्ञ
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—सुनना
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—कान
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—विवरण, अफ़वाह, समाचार, मौखिक संवाद
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—ध्वनि
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—वेद
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—वैदिकपाठ वेदमंत्र
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—वेदज्ञान, पुनीतज्ञान, पुण्य अधिगम
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—(संगीत में) सप्तक का प्रभाव, स्वर का चतुर्थाश या अन्तराल
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु + क्तिन्—श्रवण नक्षत्र
श्रुत्यनुप्रासः —पुं॰—श्रुतिः-अनुप्रासः—-—अनुप्रास का एक भेद
श्रुत्युक्त —वि॰—श्रुतिः-उक्त—-—वेदविहित
श्रुत्युदित —वि॰—श्रुतिः-उदित—-—वेदविहित
श्रुतिकटः —पुं॰—श्रुतिः-कटः—-—साँप
श्रुतिकटः —पुं॰—श्रुतिः-कटः—-—तपश्यर्या, प्रायश्चित्त साधना
श्रुतिकटु —वि॰—श्रुतिः-कटु—-—सुनने में कड़वा
श्रुतिकटुः —पुं॰—श्रुतिः-कटुः—-—कर्णकटु, अमधुर ध्वनि (यह रचना का एक दोष माना जाता है)
श्रुतिचोदनम् —नपुं॰—श्रुतिः-चोदनम्—-—शास्त्रीय विधि, वेदविधि
श्रुतिचोदना —स्त्री॰—श्रुतिः-चोदना—-—शास्त्रीय विधि, वेदविधि
श्रुतिजीविका —स्त्री॰—श्रुतिः-जीविका—-—धर्मशास्त्र, विधिसंहिता
श्रुतिद्वैधम् —नपुं॰—श्रुतिः-द्वैधम्—-—वेदविधियों का परस्पर विरोध या निष्क्रमता
श्रुतिधर —वि॰—श्रुतिः-धर—-—सुननेवाला
श्रुतिनिदर्शनम् —नपुं॰—श्रुतिः-निदर्शनम्—-—वेदों का साक्ष्य
श्रुतिपथः —पुं॰—श्रुतिः-पथः—-—कर्ण-परास
श्रुतिप्रसादन —वि॰—श्रुतिः-प्रसादन—-—कर्णप्रिय
श्रुतिप्रामाण्यम् —नपुं॰—श्रुतिः-प्रामाण्यम्—-—वेदों की प्रामाणिकता या स्वीकृत
श्रुतिमण्डलम् —नपुं॰—श्रुतिः-मण्डलम्—-—कान का बाहरी भाग
श्रुतिमूलम् —नपुं॰—श्रुतिः-मूलम्—-—कान की जड़
श्रुतिमूलम् —नपुं॰—श्रुतिः-मूलम्—-—वेद का संहितापाठ
श्रुतिमूलक —वि॰—श्रुतिः-मूलक—-—वेद पर आधारित
श्रुतिविषयः —पुं॰—श्रुतिः-विषयः—-—सुनने का विषय, अर्थात् ध्वनि
श्रुतिविषयः —पुं॰—श्रुतिः-विषयः—-—कर्ण परास
श्रुतिविषयः —पुं॰—श्रुतिः-विषयः—-—वेद का विषय
श्रुतिविषयः —पुं॰—श्रुतिः-विषयः—-—धार्मिक अध्यादेश
श्रुतिवेधः —पुं॰—श्रुतिः-वेधः—-—कान बींधना
श्रुतिस्मृति —स्त्री॰ द्वि॰ व॰—श्रुतिः-स्मृति—-—वेद और धर्मशास्त्र
श्रुवः —पुं॰—-—श्रु + क—यज्ञ
श्रुवः —पुं॰—-—श्रु + क—यज्ञीय स्रुवा
श्रुवा —पुं॰—-—श्रुव + टाप्—यज्ञीय चमष
श्रुवावृक्षः —पुं॰—श्रुवा-वृक्षः—-—विकंटक वृक्ष
श्रेढी —स्त्री॰—-—श्रेण्यै राशीकरणाय ढौकते-श्रेणी + ढौक् + ड, पृषो॰— भिन्न जातीय द्रव्यों को मिलाने के लिए गणनांग भेद
श्रेढीफल —वि॰—श्रेढी-फल—-—श्रेढ़ी क योग जोड़
श्रेणि —पुं॰, स्त्री॰—-—श्रि + णि—रेखा, शृंखला, पंक्ति
श्रेणि —पुं॰, स्त्री॰—-—श्रि + णि—दल, संचय, समह
श्रेणि —पुं॰, स्त्री॰—-—श्रि + णि—व्यापारियों का संघ, शिल्पियों का संघटन, निगम
श्रेणि —पुं॰, स्त्री॰—-—श्रि + णि—बोक्का, वालटी
श्रेणी —स्त्री॰—-—श्रि + णि + ङीप्—रेखा, शृंखला, पंक्ति
श्रेणी —स्त्री॰—-—श्रि + णि + ङीप्—दल, संचय, समह
श्रेणी —स्त्री॰—-—श्रि + णि + ङीप्—व्यापारियों का संघ, शिल्पियों का संघटन, निगम
श्रेणी —स्त्री॰—-—श्रि + णि + ङीप्—बोक्का, वालटी
श्रेणिधर्माः —पुं॰, ब॰ व॰—श्रेणि-धर्माः—-—व्यापारिवर्ग या शिल्पकार-संघों के नियम, रीतियाँ आदि
श्रेणिका —स्त्री॰—-—श्रेणि + कन् + टाप्—तम्बू, खेमा
श्रेयस् —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यम्-ईयसुन्, श्रादेशः—अपेक्षाकृत अच्छा, वरीयम्, श्रीष्ठतर
श्रेयस् —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यम्-ईयसुन्, श्रादेशः—सर्वोत्तम, श्रेष्ठतम
श्रेयस् —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यम्-ईयसुन्, श्रादेशः—अधिक सुखी या सौभाग्यशाली
श्रेयस् —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यम्-ईयसुन्, श्रादेशः—अधिक आनन्ददायक, प्रियतर
श्रेयस् —पुं॰—-—-—सद्गुण, पुण्यकर्म, नैतिक गुण, धार्मिक गुण
श्रेयस् —पुं॰—-—-—आनन्द, सौभाग्य, मंगल, शुभ, कल्याण, आशीर्वाद, शुभ परिणाम
श्रेयस् —पुं॰—-—-—शुभ अवसर
श्रेयस् —पुं॰—-—-—मोक्ष, मुक्ति
श्रेयोऽर्थिन् —वि॰—श्रेयस्-अर्थिन्—-—आनन्द का अन्वेषक, आनन्द का इच्छुक
श्रेयोऽर्थिन् —वि॰—श्रेयस्-अर्थिन्—-—हितैषी
श्रेयस्कर —वि॰—श्रेयस्-कर—-—आनन्दप्रद, अनुकूल
श्रेयस्कर —वि॰—श्रेयस्-कर—-—मंगलमय, शुभ
श्रेयःपरिश्रमः —पुं॰—श्रेयस्-परिश्रमः—-—मुक्ति प्राप्त करने की चेष्टा
श्रेष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः—सर्वोत्तम, अत्यन्त श्रेष्ठ, प्रमुखतम
श्रेष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः—अत्यन्त प्रसन्न या समृद्ध
श्रेष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः—प्रियतम, अत्यन्त प्रिय
श्रेष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन प्रशस्यः, इष्ठन्, श्रादेशः—सबसे अधिक पुराना, वृद्धतम
श्रेष्ठः —पुं॰—-—-—ब्राह्मण
श्रेष्ठः —पुं॰—-—-—कुबेर का नाम
श्रेष्ठः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
श्रेष्ठम् —नपुं॰—-—-—गाय का दूध
श्रेष्ठाश्रमः —पुं॰—श्रेष्ठ-आश्रमः—-—मनुष्य के धार्मिक जीवन का सर्वोत्तम आश्रम अर्थात् गृहस्थाश्रम
श्रेष्ठाश्रमः —पुं॰—श्रेष्ठ-आश्रमः—-—गृहस्थ
श्रेष्ठवाच् —वि॰—श्रेष्ठ-वाच्—-—वाग्मी
श्रेष्ठिन् —वि॰—-—श्रेष्ठं धनादिकमस्त्यस्य इनि—किसी व्यापारसंघ या शिल्पिसंस्थान का प्रधान या अध्यक्ष
श्रै —भ्वा॰ पर॰ <श्रायति>—-—-—स्वेद आना, पसीना निकलना
श्रै —भ्वा॰ पर॰ <श्रायति>—-—-—पकाना, उबालना
श्रोण् —भ्वा॰ पर॰ <श्रोणति>—-—-—एकत्र करना, ढेर लगाना
श्रोण् —भ्वा॰ पर॰ <श्रोणति>—-—-—एकत्र होना, संचित होना
श्रोण —वि॰—-—श्रोण् + अच्—विकलांग, लंगड़ा
श्रोणः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का रोग
श्रोणा —स्त्री॰—-—श्रोण + टाप्—कांजी
श्रोणा —स्त्री॰—-—श्रोण + टाप्—श्रवण नक्षत्र
श्रोणिः —स्त्री॰—-—श्रोण् + इन्—कूल्हा, नितम्ब, चूतड़
श्रोणिः —स्त्री॰—-—श्रोण् + इन्—सड़क, मार्ग
श्रोणी —स्त्री॰—-—श्रोण् + ङीप्—कूल्हा, नितम्ब, चूतड़
श्रोणी —स्त्री॰—-—श्रोण् + ङीप्—सड़क, मार्ग
श्रोणितटः —पुं॰—श्रोणिः-तटः—-—कूल्हों की ढलान
श्रोणिफलकम् —नपुं॰—श्रोणिः-फलकम्—-—विशाल कूल्हे
श्रोणिफलकम् —नपुं॰—श्रोणिः-फलकम्—-—नितम्ब
श्रोणिबिम्बम् —नपुं॰—श्रोणिः-बिम्बम्—-—गोल कूल्हे
श्रोणिबिम्बम् —नपुं॰—श्रोणिः-बिम्बम्—-—कमर-पट्टा
श्रोणिसूत्रम् —नपुं॰—श्रोणिः-सूत्रम्—-—मेखला
श्रोणिसूत्रम् —नपुं॰—श्रोणिः-सूत्रम्—-—कमर से लटकती हुई तलवार का वन्धन
श्रोतस् —नपुं॰—-—श्रु + असुन् तुट् च—कान
श्रोतस् —नपुं॰—-—श्रु + असुन् तुट् च—हाथी की सूँड
श्रोतस् —नपुं॰—-—श्रु + असुन् तुट् च—ज्ञानेन्द्रिय
श्रोतस् —नपुं॰—-—श्रु + असुन् तुट् च—सरिता, प्रवाह
श्रोतोरन्ध्रम् —नपुं॰—श्रोतस्-रन्ध्रम्—-—सूँड जा विवर, नथुना
श्रोतृ —पुं॰—-—श्रु + तृच्—सुनने वाला
श्रोतृ —पुं॰—-—श्रु + तृच्—छात्र
श्रोत्रम् —नपुं॰—-—श्रूयतेऽनेन-श्रु करणे + ष्ट्रन्—कान
श्रोत्रम् —नपुं॰—-—श्रूयतेऽनेन-श्रु करणे + ष्ट्रन्—वेदों में प्रवीणता
श्रोत्रम् —नपुं॰—-—श्रूयतेऽनेन-श्रु करणे + ष्ट्रन्—वेद
श्रोत्रपेय —वि॰—श्रोत्रम्-पेय—-—कान से ग्रहण करने के योग्य, ध्यानपूर्वक सुनने के योग्य
श्रोत्रमूलम् —नपुं॰—श्रोत्रम्-मूलम्—-—कान की जड़
श्रोत्रिय —वि॰—-—छन्दो वेदमधीते वेत्ति वा-छन्दस् + घ, श्रोत्रादेशः—वेद में प्रवीण या अभिज्ञ
श्रोत्रिय —वि॰—-—छन्दो वेदमधीते वेत्ति वा-छन्दस् + घ, श्रोत्रादेशः—शिष्य, अनुशासित होने के योग्य
श्रोत्रियः —पुं॰—-—-—विद्वान् ब्राह्मण, धर्मज्ञान में सुविज्ञ
श्रोत्रियस्वम् —नपुं॰—श्रोत्रियः-स्वम्—-—विद्वान् ब्राह्मण की संपत्ति
श्रौत —वि॰—-—श्रुतौ विहितम् अण्—कान से संबंध रखने वाला
श्रौत —वि॰—-—श्रुतौ विहितम् अण्—वेदसंबंधी, वेद पर आधारित, वेदविहित
श्रौतम् —नपुं॰—-—-—वेदविहित कोई भी कर्म या अनुष्ठान
श्रौतम् —नपुं॰—-—-—वेदप्रतिपादित कर्मकाण्ड
श्रौतम् —नपुं॰—-—-—यज्ञाग्नि को संधारण करना
श्रौतम् —नपुं॰—-—-—तीनों यज्ञाग्नियों की समष्टि (अर्थात् गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिण)
श्रौतकर्मन् —नपुं॰—श्रौत-कर्मन्—-—वैदिक कृत्य
श्रौतसूत्रम् —नपुं॰—श्रौत-सूत्रम्—-—वेद पर आधारित सूत्रग्रन्थों का संग्रह (आश्वलायन, सांख्यायन और कात्यायन आदि के नाम से अभिहित)
श्रौतम् —नपुं॰—-—श्रौत्र + (स्वार्थे) अण्—कान
श्रौतम् —नपुं॰—-—श्रौत्र + (स्वार्थे) अण्—वेदों में प्रवीणता
श्रौषट् —अव्य॰—-—श्रु + डौषट्—दिवंगत आत्मा या देवों की उद्देश्य करके यज्ञाग्नि में आहुति देते समय उच्चारित होने (बोला जाने) वाला अव्यय
श्लक्ष्ण —वि॰—-—श्लिष् + क्स्न, नि॰—कोमल, मृदु, सौम्य, स्निग्ध (शब्द आदि)
श्लक्ष्ण —वि॰—-—श्लिष् + क्स्न, नि॰—चिकना, चमकदार
श्लक्ष्ण —वि॰—-—-—स्वल्प, सूक्ष्म, पतला, सुकुमार
श्लक्ष्ण —वि॰—-—-—सुन्दर, लावण्यमय
श्लक्ष्ण —वि॰—-—-—निश्छल, ईमानदार, खरा
श्लक्ष्णकम् —नपुं॰—-—श्लक्ष्ण + कन्—सुपारी, पूगीफल
श्लङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <श्लङ्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्लङ्ग् —भ्वा॰ आ॰ <श्लङ्गते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्लथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्लथयति>, <श्लथयते>—-—-—शिथिल या ढीलाढाला होना
श्लथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्लथयति>, <श्लथयते>—-—-—दुर्बल या बलहीन होना
श्लथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्लथयति>, <श्लथयते>—-—-—शिथिल होना, ढीला होना, विश्राम करना
श्लथ् —चुरा॰ उभ॰ <श्लथयति>, <श्लथयते>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
श्लथ —वि॰—-—श्लथ् + अच्—बिना बँधा, बिना जकड़ा
श्लथ —वि॰—-—श्लथ् + अच्—शिथिल, विश्रांत, खुला हुआ, फिसला हुआ
श्लथ —वि॰—-—श्लथ् + अच्—बिखरे हुए (जैसे बाल)
श्लथोद्यम —वि॰—श्लथ-उद्यम—-—जिसने अपने प्रयत्न ढीले कर दिये हों
श्लथलम्विन् —वि॰—श्लथ-लम्विन्—-—ढीला-ढाला, नीचे लटकता हुआ
श्लाख् —भ्वा॰ पर॰ <श्लाखति>—-—-—व्याप्त होना, प्रविष्ट होना
श्लाघ् —भ्वा॰ आ॰ <श्लाघते>—-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना, सराहना, गुणगान करना
श्लाघ् —भ्वा॰ आ॰ <श्लाघते>—-—-—शेखी बघारना, घमंड करना
श्लाघ् —भ्वा॰ आ॰ <श्लाघते>—-—-—खुशामद करना, फुसलाकर काम निकालना
श्लाघनम् —नपुं॰—-—श्लाघ् + ल्युट्—प्रशंसा करना, स्तुति करना
श्लाघनम् —नपुं॰—-—श्लाघ् + ल्युट्—खुशामद करना
श्लाघा —स्त्री॰—-—श्लाघ् + अ + टाप्—प्रशंसा, स्तुति, सराहना
श्लाघा —स्त्री॰—-—श्लाघ् + अ + टाप्—आत्मप्रशंसा, शेखी बघारना
श्लाघा —स्त्री॰—-—श्लाघ् + अ + टाप्—खुशामद
श्लाघा —स्त्री॰—-—श्लाघ् + अ + टाप्—सेवा
श्लाघा —स्त्री॰—-—श्लाघ् + अ + टाप्—कामना, इच्छा
श्लाघाविपर्ययः —पुं॰—श्लाघा-विपर्ययः—-—डींग मारने का अभाव
श्लाघित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्लाघ् + क्त—प्रशंसा किया गया, स्तुति किया गया, सराहा गया
श्लाघ्य —वि॰—-—श्लाघ् + ण्यत्—प्रशंसनीय, योग्य
श्लाघ्य —वि॰—-—श्लाघ् + ण्यत्—आदरणीय, श्रद्धेय
श्लिकुः —पुं॰—-—श्लिष् + कु, पृषो॰—कामुक, लंपट
श्लिकुः —पुं॰—-—श्लिष् + कु, पृषो॰—दास, आश्रित
श्लिकुः —नपुं॰—-—-—नक्षत्र विद्या, फलित ज्योतिष
श्लिक्युः —पुं॰—-—श्लिष् + क्यु, पृषो॰—लंपट
श्लिक्युः —पुं॰—-—श्लिष् + क्यु, पृषो॰—सेवक
श्लिष् —भ्वा॰ पर॰ <श्लेषति>—-—-—जलना
श्लिष् —दिवा॰ पर॰ <शिलष्यति>, <श्लिष्ट>—-—-—आलिंगन करना
श्लिष् —दिवा॰ पर॰ <शिलष्यति>, <श्लिष्ट>—-—-—जमे रहना, चिपके रहना, डटे रहना
श्लिष् —दिवा॰ पर॰ <शिलष्यति>, <श्लिष्ट>—-—-—संयुक्त होना, सम्मिलित होना
श्लिष् —दिवा॰ पर॰ <शिलष्यति>, <श्लिष्ट>—-—-—ग्रहण करना, लेना, समझना
आश्लिष् —दिवा॰ पर॰—आ-श्लिष्—-—आलिंगन करना, परिरंभण करना
उपश्लिष् —दिवा॰ पर॰—उप-श्लिष्—-—आलिंगन करना, परिरंभण करना
विश्लिष् —दिवा॰ पर॰—वि-श्लिष्—-—वियुक्त होना, दूर होना
विश्लिष् —दिवा॰ पर॰—वि-श्लिष्—-—फट जाना, फट कर उड़ जाना
विश्लिष् —दिवा॰ पर॰, प्रेर॰—वि-श्लिष्—-—अलग अलग करना
संश्लिष् —दिवा॰ पर॰—सम्-श्लिष्—-—डटे रहना, चिपके रहना
संश्लिष् —दिवा॰ पर॰—सम्-श्लिष्—-—सम्मिलित होना, मिलना
श्लिष् —चुरा॰ उभ॰ <श्लेषयति>, <श्लेषयते>—-—-—जोड़ना, सम्मिलित करना, मिलना
श्लिषा —स्त्री॰—-—श्लिष् + अ + टाप्—आलिंगन
श्लिषा —स्त्री॰—-—श्लिष् + अ + टाप्—चिपकना, जुड़ जाना
श्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्लिषृ + क्त—आलिंगित
श्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्लिषृ + क्त—चिपका हुआ, जुड़ा हुआ
श्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्लिषृ + क्त—टिका हुआ, झुका हुआ
श्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्लिषृ + क्त—श्लेष से युक्त, दो अर्थों को संभावना से युक्त
श्लिष्टिः —स्त्री॰—-—श्लिष् + क्तिन्—आलिंगन
श्लिष्टिः —स्त्री॰—-—श्लिष् + क्तिन्—परिरंभण
श्लीपदम् —नपुं॰—-—श्री युक्तं वृत्तियुक्तं पदम् अस्मात्, पृषो॰ —सूजी हुई टांग या फूला हुआ पैर, फीलपावँ
श्लीपदप्रभवः —पुं॰—श्लीपदम्-प्रभवः—-—आम का पेड़
श्लील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य-लच्, पृषो॰—भाग्यशाली, समृद्ध
श्लील —वि॰—-—श्रीः अस्ति अस्य-लच्, पृषो॰—शिष्ट
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष् + घञ्—आलिंगन
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष् + घञ्—चिपकना, जुड़ना
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष् + घञ्—मिलाप, संगम, संपर्क
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष् + घञ्—अनेकार्थ शब्द प्रयोग, एक से अधिक अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों का प्रयोग, द्व्यर्थक, किसी शब्द या वाक्य की दो या दो से अधिक अर्थों की संभाव्यता
श्लेषार्थः —पुं॰—श्लेषः-अर्थः—-—अनेकार्थ शब्द प्रयोग, द्व्यर्थक शब्द प्रयोग
श्लेषभित्तिक —वि॰—श्लेषः-भित्तिकः—-—श्लेष पर टिका हुआ
श्लेष्मकः —पुं॰—-—श्लेष्मन् + कन्—कफ, बलगम
श्लेष्मज —वि॰—-—श्लेष्मन् + जन् + ड—कफ से उत्पन्न, कफमूलक
श्लेष्मन् —पुं॰—-—श्लिष् + मनिन्—कफ, बलगम, कफ की प्रकृति
श्लेष्मातिसारः —पुं॰—श्लेष्मन्-अतिसारः—-—कफविकार से उत्पन्न पेचिश, मरोड़
श्लेष्मोजस् —नपुं॰—श्लेष्मन्-ओजस्—-—कफ की प्रकृति
श्लेष्मघ्ना —स्त्री॰—श्लेष्मन्-घ्ना—-—मल्लिका, एक प्रकार का मोतिया
श्लेष्मघ्ना —स्त्री॰—श्लेष्मन्-घ्ना—-—केतकी, केक्ड़ा
श्लेष्मघ्नी —स्त्री॰—श्लेष्मन्-घ्नी—-—मल्लिका, एक प्रकार का मोतिया
श्लेष्मघ्नी —स्त्री॰—श्लेष्मन्-घ्नी—-—केतकी, केक्ड़ा
श्लेष्मल —वि॰—-—श्लेष्मन् + लच्—कफ प्रकृति का, बलगमी
श्लेष्मातः —पुं॰—-—श्लेष्मन् + अत् + अच्—एक वृक्ष विशेष, लिसोड़े का पेड़
श्लेष्मातकः —पुं॰—-—श्लेष्मन् + अत् + अच् पक्षे कन् च—एक वृक्ष विशेष, लिसोड़े का पेड़
श्लोक् —भ्वा॰ आ॰ <श्लोकते>—-—-—प्रशंसा करना, पद्य रचना करना, छन्दोबद्ध करना
श्लोक् —भ्वा॰ आ॰ <श्लोकते>—-—-—अवाप्त करना
श्लोक् —भ्वा॰ आ॰ <श्लोकते>—-—-—त्यागना, छोड़ना
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—कवितामय प्रशंसन, स्तुतीकरण
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—स्तोत्र
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—ख्याति, प्रसिद्धि, विश्रुति, यश
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—प्रशंसा का विषय
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—किंवदन्ती, कहावत
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—पद्य, कविता
श्लोकः —पुं॰—-—श्लोक् + अच्—अनुष्टुप् छन्द में कोई पद्य या कविता
श्लोण् —भ्वा॰ पर॰ <श्लोणति>—-—-—एकत्र करना, इकठ्ठा करना, बीनना
श्लोणः —पुं॰—-—श्लोण् + अच्—लंगड़ा पुरुष, विकलांग
श्वङ्क् —भ्वा॰ पर॰ <श्वङ्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वच् —भ्वा॰ पर॰ <श्वचते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वच् —भ्वा॰ पर॰ <श्वचते>—-—-—खुला होना, मुँह बाना, फटना, दरार हो जाना
श्वञ्च् —भ्वा॰ पर॰ <श्वञ्चते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वञ्च् —भ्वा॰ पर॰ <श्वञ्चते>—-—-—खुला होना, मुँह बाना, फटना, दरार हो जाना
श्वज् —भ्वा॰ आ॰ <श्वजते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वठ् —चुरा॰ उभ॰ <श्वठयति>, <श्वठयते>—-—-—निन्दा करना
श्वठ् —चुरा॰ उभ॰ <श्वाठयति>, <श्वाठयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वठ् —चुरा॰ उभ॰ <श्वाठयति>, <श्वाठयते>—-—-—अलंकृत करना
श्वठ् —चुरा॰ उभ॰ <श्वाठयति>, <श्वाठयते>—-—-—समाप्त करना, सम्पन्न करना
श्वण्ठ् —चुरा॰ उभ॰ <श्वण्ठयति>, <श्वण्ठयते>—-—-—निन्दा करना
श्वन् —पुं॰—-—श्वि + कनिन्, नि॰ —कुत्ता
श्वक्रीडिन् —पुं॰—श्वन्-क्रीडिन्—-—खिलारी कुत्तों को पालने वाला
श्वगणः —पुं॰—श्वन्-गणः—-—कुत्तों का झुंड
श्वगणिकः —पुं॰—श्वन्-गणिकः—-—शिकारी
श्वगणिकः —पुं॰—श्वन्-गणिकः—-—कुत्तों को खिलाने वाला
श्वधूर्तः —पुं॰—श्वन्-धूर्तः—-—गीदड़
श्वनरः —पुं॰—श्वन्-नरः—-—कमीना आदमी, नीच व्यक्ति
श्वनिशम् —नपुं॰—श्वन्-निशम्—-—वह रात जिसमें कुत्ते भौंकते हों
श्वनिशा —स्त्री॰—श्वन्-निशा—-—वह रात जिसमें कुत्ते भौंकते हों
श्वपच् —पुं॰—श्वन्-पच्—-—अतिनीच और पतित जाति का पुरुष, जातिबहिष्कृत, चांडाल
श्वपच् —पुं॰—श्वन्-पच्—-—कुत्तों को खिलाने वाला
श्वपचः —पुं॰—श्वन्-पचः—-—अतिनीच और पतित जाति का पुरुष, जातिबहिष्कृत, चांडाल
श्वपचः —पुं॰—श्वन्-पचः—-—कुत्तों को खिलाने वाला
श्वपदम् —नपुं॰—श्वन्-पदम्—-—कुत्ते का पैर
श्वपाकः —पुं॰—श्वन्-पाकः—-—जाति से बहिष्कृत, चाण्डाल
श्वफलम् —नपुं॰—श्वन्-फलम्—-—खट्टा नींबू या चकोतरा
श्वफल्कः —पुं॰—श्वन्-फल्कः—-—अक्रुर के पिता का नाम
श्वभीरुः —पुं॰—श्वन्-भीरुः—-—गीदड़
श्वयूथ्यम् —नपुं॰—श्वन्-यूथ्यम्—-—कुत्तों का झुंड
श्ववृत्तिः —स्त्री॰—श्वन्-वृत्तिः—-—कुत्ते का जीवन
श्ववृत्तिः —स्त्री॰—श्वन्-वृत्तिः—-—सेवावृत्ति, सेवा
श्वव्याघ्रः —पुं॰—श्वन्-व्याघ्रः—-—शिकारी जानवर
श्वव्याघ्रः —पुं॰—श्वन्-व्याघ्रः—-—बाघ
श्वव्याघ्रः —पुं॰—श्वन्-व्याघ्रः—-—चीता
श्वहन् —पुं॰—श्वन्-हन्—-—शिकारी
श्वभ्र् —चुरा॰ उभ॰ <श्वभ्रयति>, <श्वभ्रयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
श्वभ्र् —चुरा॰ उभ॰ <श्वभ्रयति>, <श्वभ्रयते>—-—-—बींधना, सूराख करना, छिद्र करना
श्वभ्र् —चुरा॰ उभ॰ <श्वभ्रयति>, <श्वभ्रयते>—-—-—दरिद्रता में रहना
श्वभ्रम् —नपुं॰—-—श्वभ्र् + अच्—रन्ध्र, विवर
श्वयः —पुं॰—-—श्वि + अच्—सूजन, शोथ, वृद्धि
श्वयथुः —पुं॰—-—श्वि + अथुच्—सूजन, शोथ
श्वयीची —स्त्री॰—-—श्वि + ईचि + ङीप्—बीमारी, रोग
श्वल् —भ्वा॰ पर॰ <श्वलति>—-—-—दौड़ना, फुर्ती से जाना
श्वल्क् —चुरा॰ उभ॰ <श्वल्कयति>, <श्वल्कयते>—-—-—कहना, वर्णन करना
श्वल्ल् —भ्वा॰ पर॰ <श्वल्लति>—-—-—दौड़ना
श्वशुरः —पुं॰—-—श आशु अश्नुते आशु + अश् + उरच् पृषो॰ —ससुर, पत्नी या पति का पिता
श्वशुरकः —पुं॰—-—श्वशुर + कन्—ससुर
श्वशुर्यः —पुं॰—-—श्वशुरस्यापत्यम्-श्वशुर + यत् —साला पत्नी या पति का भाई
श्वशुर्यः —पुं॰—-—श्वशुरस्यापत्यम्-श्वशुर + यत् —पति का छोटा भाई, देवर
श्वश्रूः —स्त्री॰—-—श्वशुर + ऊङ्, उकार-अकारलोपः—सास, पत्नी या पति की माँ
श्वश्रूश्वशुर —पुं॰ द्वि॰ व॰—श्वश्रू-श्वशुर—-—सास और ससुर
श्वस् —अदा॰ पर॰ <श्वसिति>, <श्वस्त>,<श्वसित>—-—-—साँस लेना, साँस निकालना, साँस खींचना
श्वस् —अदा॰ पर॰ <श्वसिति>, <श्वस्त>,<श्वसित>—-—-—आह भरना, हाँपना, ऊँचा साँस लेना
श्वस् —अदा॰ पर॰ <श्वसिति>, <श्वस्त>,<श्वसित>—-—-—फूत्कार करना, खुर्रांटे भरना
श्वस् —अदा॰ उभ॰, प्रेर॰ <श्वासयति>, <श्वासयते>—-—-—साँस दिलाना, जीवित रखना
आश्वस् —अदा॰ पर॰ —आ-श्वस्—-—साँस लेना
आश्वस् —अदा॰ पर॰ —आ-श्वस्—-—साँस लेने लगना, साहसी बनना, हिम्मत करना
आश्वस् —अदा॰ पर॰ —आ-श्वस्—-—पुनर्जीवित करना
आश्वस् —अदा॰ उभ॰, प्रेर॰—आ-श्वस्—-—सांत्वना देना आराम देना, प्रसन्न करना
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—साँस देना, जीना
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—उत्साह बढाना, जी उठना, हिम्मत बाँधना
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—खुलना, खिलना (जैसे कमल का)
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—हांपना, गहरा साँस लेना
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—ऊँचा साँस लेना, धड़कना
उच्छ्वस् —अदा॰ पर॰ —उद्-श्वस्—-—उन्मुक्त होना
निःश्वस् —अदा॰ पर॰ —नि-श्वस्—-—आह भरना,ऊँचा साँस लेना
निःश्वस् —अदा॰ पर॰ —निस्-श्वस्—-—आह भरना,ऊँचा साँस लेना
विश्वस् —अदा॰ पर॰ —वि-श्वस्—-—विश्वास करना, भरोसा करना, विश्वास रखना
विश्वस् —अदा॰ पर॰ —वि-श्वस्—-—सुरक्षित रहना, निर्भय या विश्वस्त होना
समाश्वस् —अदा॰ पर॰ —समा-श्वस्—-—साहसी होना, हिम्मत बांधना, ढाढस रखना
समाश्वस् —अदा॰ उभ॰, प्रेर॰—समा-श्वस्—-—सांत्वना देना, प्रोत्साहित करना, उत्साह बढ़ाना
श्वस् —अव्य॰—-—आगामि अहः पृषो॰—आने वाला कल
श्वस् —अव्य॰—-—आगामि अहः पृषो॰—भविष्यत्काल
श्वोभूत —वि॰—श्वस्-भूत—-—कल होने वाला
श्वोवसीय —वि॰—श्वस्-वसीय—-—प्रसन्न, शुभ, भाग्यशाली
श्वोवसीय —नपुं॰—श्वस्-वसीय—-—प्रसन्नता, सौभाग्य
श्वोवसीयस् —वि॰—श्वस्-वसीयस्—-—प्रसन्न, शुभ, भाग्यशाली
श्वोवसीयस् —नपुं॰—श्वस्-वसीयस्—-—प्रसन्नता, सौभाग्य
श्वःश्रेयस् —वि॰—श्वस्-श्रेयस्—-—प्रसन्न, समृद्धि
श्वःश्रेयसम् —नपुं॰—श्वस्-श्रेयसम्—-—प्रसन्नता, समृद्धि
श्वःश्रेयसम् —नपुं॰—श्वस्-श्रेयसम्—-—ब्रह्मा या परमात्मा का विशेषण
श्वसनः —पुं॰—-—श्वसित्यनेन-श्वस् + ल्युट्—हवा, वायु
श्वसनः —पुं॰—-—श्वसित्यनेन-श्वस् + ल्युट्—एक राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने मार गिराया था
श्वसनम् —नपुं॰—-—-—श्वास, साँस लेना, साँस निकालना
श्वसनम् —नपुं॰—-—-—आह भरना
श्वसनाशनः —पुं॰—श्वसनः-अशनः—-—साँप
श्वसनेश्वरः —पुं॰—श्वसनः-ईश्वरः—-—अर्जुन वृक्ष
श्वसनोत्सुकः —पुं॰—श्वसनः-उत्सुकः—-—साँप
श्वसनोर्मिः —स्त्री॰—श्वसनः-ऊर्मिः—-—हवा का झोंका
श्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्वस् + क्त—साँस लिया हुआ, आह भरी हुई
श्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—श्वस् + क्त—साँस लेने वाला
श्वसितम् —नपुं॰—-—-—साँस लेना, साँस निकालना
श्वसितम् —नपुं॰—-—-—ऊँचा साँस लेना
श्वस्तन —वि॰—-—श्वस् +ट्युल्—आगामी कल से संबंध रखने वाला, भावी, आगे आने वाला
श्वस्त्य —वि॰—-—तुट् श्वस् + त्यप्—आगामी कल से संबंध रखने वाला, भावी, आगे आने वाला
श्वाकर्णः —पुं॰—-—शुनः कर्णः ष॰ त॰, अन्येषामपीति दीर्घः—कुत्ते का कान
श्वागणिकः —पुं॰—-—श्वगणेन चरति-श्वगण + ठञ्—कुत्ते रखने वाला, कुत्ते पाल कर अपनी जीविका चलाने वाला
श्वादन्तः —पुं॰—-—शुनो दन्तः ष॰ त॰, अन्येषामपीति दीर्घः—कुत्ते का दाँत
श्वानः —पुं॰—-—श्वैव + अण् न टिलोपः—कुत्ता
श्वाननिद्रा —स्त्री॰—श्वानः-निद्रा—-—कुत्ते की नींद, बहुत हलकी नींद
श्वानवैखरी —स्त्री॰—श्वानः-वैखरी—-—क्रुद्ध कुत्ते का गुर्राना
श्वापद —वि॰—-—शुन इव आपद् अस्मात् ब॰ स, श्वन् + आपद् + अच्—वर्बर, हिंस्र
श्वापदः —पुं॰—-—-—शिकारी जानवर, जंगली जानवर
श्वापुच्छः —पुं॰—-—शुनः पुच्छम्-ष॰ त॰, नि॰ दीर्घ— कुत्ते की पूँछ, दुम
श्वापुच्छम् —नपुं॰—-—शुनः पुच्छम्-ष॰ त॰, नि॰ दीर्घ— कुत्ते की पूँछ, दुम
श्वाविध् —पुं॰—-—शुना आविध्यते-श्वन् + आ + व्यध् + क्विप्—साही, शल्यक
श्वासः —पुं॰—-—श्वस् + घञ्—साँस लेना, साँस, श्वासप्रश्वास क्रिया, ऊँचा साँस
श्वासः —पुं॰—-—श्वस् + घञ्—आह, हाँपना
श्वासः —पुं॰—-—श्वस् + घञ्—हवा, वायु
श्वासः —पुं॰—-—श्वस् + घञ्—दमा
श्वासकासः —पुं॰—श्वासः-कासः—-—दमा
श्वासरोधः —पुं॰—श्वासः-रोधः—-—साँस का रोकना
श्वासहिक्का —स्त्री॰—श्वासः-हिक्का—-—एक प्रकार की हिचकी
श्वासहेतिः —स्त्री॰—श्वासः-हेतिः—-—नींद
श्वासिन् —वि॰—-—श्वास + इनि—साँस लेने वाला
श्वासिन् —पुं॰—-—-—हवा, वायु
श्वासिन् —पुं॰—-—-—श्वास लेने वाला जानवर, जीवित प्राणी
श्वासिन् —पुं॰—-—-—जो फूत्कार की ध्वनि के साथ (वर्ण) उच्चारण करता है
श्वि —भ्वा॰ पर॰ <श्वयति>, <शून>—-—-—विकसित होना, बढ़ना , सूजना (जैसे आँख का)
श्वि —भ्वा॰ पर॰ <श्वयति>, <शून>—-—-—फलना-फूलना, समृद्ध होना
श्वि —भ्वा॰ पर॰ <श्वयति>, <शून>—-—-—जाना, पहुँचना, अभिमुख चलना
उद्-श्वि —भ्वा॰ पर॰—-—-—सूजना, बढ़ना, विकसित होना
उद्-श्वि —भ्वा॰ पर॰—-—-—घमण्डी होना, घमण्ड से फूल जाना
श्वित् —भ्वा॰ पर॰ <श्वेतते>—-—-—श्वेत होना, सफ़ेद होना
श्वित —वि॰—-—श्वित् + क—सफ़ेद
श्वितिः —स्त्री॰—-—श्वित् + यत्—सफ़ेदी
श्वित्रम् —नपुं॰—-—श्वित् + रक्—सफ़ेद कोढ़
श्वित्रम् —नपुं॰—-—श्वित् + रक्—फुलबहरी, कोढ का दाग़ (त्वचा पर)
श्वित्रिन् —वि॰—-—श्वित्र + इनि—कोढ़ के रोग से ग्रस्त
श्वित्रिन् —पुं॰—-—-—कोढ़ी
श्विन्द् —भ्वा॰ आ॰ <श्विन्दते>—-—-—सफ़ेद होना
श्वेत —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—सफ़ेद
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—सफ़ेद रङ्ग
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—शङ्ख
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—कौड़ी
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—रति कूट पौधा
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—शुक्र ग्रह, शुक्र ग्रह की अधिष्ठात्री देवता
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—सफ़ेद बादल
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—जीरा
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—पर्वतश्रेणी
श्वेतः —वि॰—-—श्वित् + घञ्, अच् वा—ब्रह्माण्ड का एक प्रभाग
श्वेताम्बरः —पुं॰—श्वेतः-अम्बरः—-—जैन सन्यासियों का एक सम्प्रदाय
श्वेतवासस् —पुं॰—श्वेतः-वासस्—-—जैन सन्यासियों का एक सम्प्रदाय
श्वेतेक्षुः —पुं॰—श्वेतः-इक्षुः—-—एक प्रकार का ईख, गन्ना
श्वेतोदरः —पुं॰—श्वेतः-उदरः—-—कुबेर का विशेषण
श्वेतकमलम् —नपुं॰—श्वेतः-कमलम्—-—सफ़ेद कमल
श्वेतपद्मम् —नपुं॰—श्वेतः-पद्मम्—-—सफ़ेद कमल
श्वेतकुञ्जरः —पुं॰—श्वेतः-कुञ्जरः—-—इन्द्र के हाथी ऐरावत का विशेषण
श्वेतकुष्ठम् —नपुं॰—श्वेतः-कुष्ठम्—-—सफ़ेद कोढ़
श्वेतकेतुः —पुं॰—श्वेतः-केतुः—-—बौद्ध श्रमण या जैनसाधु
श्वेतकोलः —पुं॰—श्वेतः-कोलः—-—एक प्रकार की मछली, शफर
श्वेतगजः —पुं॰—श्वेतः-गजः—-—सफ़ेद हाथी
श्वेतगजः —पुं॰—श्वेतः-गजः—-—इन्द्र का हाथी
श्वेतद्विपः —पुं॰—श्वेतः-द्विपः—-—सफ़ेद हाथी
श्वेतद्विपः —पुं॰—श्वेतः-द्विपः—-—इन्द्र का हाथी
श्वेतगरुत् —पुं॰—श्वेतः-गरुत्—-—हंस
श्वेतगरुतः —पुं॰—श्वेतः-गरुतः—-—हंस
श्वेतच्छदः —पुं॰—श्वेतः-छदः—-—हंस
श्वेतच्छदः —पुं॰—श्वेतः-छदः—-—एक प्रकार का तुलसी, सफ़ेद तुलसी
श्वेतद्वीपः —पुं॰—श्वेतः-द्वीपः—-—इस महाद्वीप के अठारह लघु प्रभागों में से एक
श्वेतधातुः —पुं॰—श्वेतः-धातुः—-—सफ़ेद खनिज पदार्थ
श्वेतधातुः —पुं॰—श्वेतः-धातुः—-—खड़िया मिट्टी
श्वेतधातुः —पुं॰—श्वेतः-धातुः—-—दूधिया पत्थर
श्वेतधामन् —पुं॰—श्वेतः-धामन्—-—चाँद
श्वेतधामन् —नपुं॰—श्वेतः-धामन्—-—कपूर
श्वेतधामन् —नपुं॰—श्वेतः-धामन्—-—समुद्रफेन
श्वेतनीलः —पुं॰—श्वेतः-नीलः—-—बादल
श्वेतपत्रः —पुं॰—श्वेतः-पत्रः—-—हंस
श्वेतरथः —पुं॰—श्वेतः-रथः—-—ब्रह्मा का विशेषण
श्वेतपाटला —स्त्री॰—श्वेतः-पाटला—-—शृङ्गवल्ली का फूल
श्वेतपिङ्गः —पुं॰—श्वेतः-पिङ्गः—-—सिंह
श्वेतपिङ्गलः —पुं॰—श्वेतः-पिङ्गलः—-—सिंह
श्वेतपिङ्गलः —पुं॰—श्वेतः-पिङ्गलः—-—शिव का विशेषण
श्वेतमरिचम् —नपुं॰—श्वेतः-मरिचम्—-—सफ़ेद मिर्च
श्वेतमालः —पुं॰—श्वेतः-मालः—-—बादल
श्वेतमालः —पुं॰—श्वेतः-मालः—-—धूआँ
श्वेतरक्तः —पुं॰—श्वेतः-रक्तः—-—गुलाबी रङ्ग
श्वेतरञ्जनम् —नपुं॰—श्वेतः-रञ्जनम्—-—सीसा
श्वेतरथः —पुं॰—श्वेतः-रथः—-—शुक्रग्रह
श्वेतरोचिस् —पुं॰—श्वेतः-रोचिस्—-—चन्द्रमा
श्वेतरोहितः —पुं॰—श्वेतः-रोहितः—-—गरुड़ का विशेषण
श्वेतवल्कलः —पुं॰—श्वेतः-वल्कलः—-—गूलर का पेड़
श्वेतवाजिन् —पुं॰—श्वेतः-वाजिन्—-—चन्द्रमा
श्वेतवाजिन् —पुं॰—श्वेतः-वाजिन्—-—अर्जुन का विशेषण
श्वेतवाह् —पुं॰—श्वेतः-वाह्—-—इन्द्र का विशेषण
श्वेतवाहः —पुं॰—श्वेतः-वाहः—-—अर्जुन का विशेषण
श्वेतवाहः —पुं॰—श्वेतः-वाहः—-—इन्द्र का विशेषण
श्वेतवाहनः —पुं॰—श्वेतः-वाहनः—-—अर्जुन का विशेषण
श्वेतवाहनः —पुं॰—श्वेतः-वाहनः—-—चन्द्रमा
श्वेतवाहनः —पुं॰—श्वेतः-वाहनः—-—समुद्री दानव, मगरमच्छ, घड़ियाल
श्वेतवाहिन् —पुं॰—श्वेतः-वाहिन्—-—अर्जुन का विशेषण
श्वेतशुङ्गः —पुं॰—श्वेतः-शुङ्गः—-—जौ
श्वेतशृङ्गः —पुं॰—श्वेतः-शृङ्गः—-—जौ
श्वेतहयः —पुं॰—श्वेतः-हयः—-—इन्द्र का घोड़ा
श्वेतहयः —पुं॰—श्वेतः-हयः—-—अर्जुन का विशेषण
श्वेतहस्तिन् —पुं॰—श्वेतः-हस्तिन्—-—इन्द्र का हाथी ऐरावत
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—कौड़ी
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—पुनर्नवा
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—सफ़ेद दूब
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—स्फटिक
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—रवेदार चीनी
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—बंसलोचन
श्वेतकः —पुं॰—-—श्वेत + कन्—अनेक पौधों के नाम (श्वेत कण्टकारी, श्वेत बृहती आदि)
श्वेतौही —स्त्री॰—-—श्वेतवाह + ङीष्—इन्द्र की पत्नी, शची
श्वेत्रम् —नपुं॰—-—-—सफ़ेद कोढ़
श्वैत्यम् —नपुं॰—-—श्वेत + ष्यञ्—सफ़ेदी
श्वैत्यम् —नपुं॰—-—श्वेत + ष्यञ्—सफ़ेद कोढ़
श्वैत्रम् —नपुं॰—-—श्वित्र + अण्—सफ़ेद कोढ़
श्वैत्र्यम् —नपुं॰—-—श्वित्र + ष्यञ्—सफ़ेद कोढ़
ष —वि॰—-—सो + क, पृषो॰ षत्वम्—सर्वोत्तम, सर्वोत्कृष्ट
षट्क —वि॰—-—षडभिः क्रीतम्-षष् + कन्—छः गुना
षट्कम् —नपुं॰—-—-—छः की समष्टि
षड्धा —स्त्री॰—-—-—छः प्रकार से
षण्डः —पुं॰—-—सन् + ड, पृषो॰ षत्वम्—साँड़
षण्डः —पुं॰—-—सन् + ड, पृषो॰ षत्वम्—नपुंसक
षण्डः —पुं॰—-—सन् + ड, पृषो॰ षत्वम्—समूह, समुच्चय, संग्रह, ढेर, राशि
षण्डः —नपुं॰—-—सन् + ड, पृषो॰ षत्वम्—समूह, समुच्चय, संग्रह, ढेर, राशि
षण्डकः —पुं॰—-—षण्ड + कन्—नपुंसक, हिजड़ा
षण्डाली —स्त्री॰—-—षण्ड + अल् + अच् + ङीष्—तालाब, जोहड़
षण्डाली —स्त्री॰—-—षण्ड + अल् + अच् + ङीष्—व्यभिचारिणी या असती स्त्री
षण्ढः —पुं॰—-—सन् + ढ, पृषो॰ षत्वम्—नपुंसक, हिजड़ा
षण्ढः —पुं॰—-—सन् + ढ, पृषो॰ षत्वम्—नपुंसकलिंग
षण्ढतिलः —पुं॰—षण्ढः-तिलः—-—बंध्य तिल, वह तिल जो उग न सके
षष् —संख्या॰ वि॰—-—सो + क्विप्, पृषो॰—छः
षडक्षीणः —पुं॰—षष्-अक्षीणः—-—मछली
षडङ्गम् —नपुं॰—षष्-अङ्गम्—-—समष्टि रूप से ग्रहण किये गये शरीर के छः भाग
षडङ्गम् —नपुं॰—षष्-अङ्गम्—-—वेद के छः अंग सहायक भाग
षडङ्गम् —नपुं॰—षष्-अङ्गम्—-—छः शुभ वस्तुएँ अर्थात् गोमाता से प्राप्त छः पदार्थ
षडङ्घ्रिः —पुं॰—षष्-अङ्घ्रिः—-—भौंरा
षडाधिक —वि॰—षष्-अधिक—-—वह जिसमें छः अधिक हों
षडभिज्ञः —पुं॰—षष्-अभिज्ञः—-—देवरूप बौद्ध महात्मा
षडशीत —वि॰—षष्-अशीत—-—छ्यासीवाँ
षडशीतिः —स्त्री॰—षष्-अशीतिः—-—छ्यासी
षडहः —पुं॰—षष्-अहः—-—छः दिन का समय या अवधि
षडाननः —पुं॰—षष्-आननः—-—कार्तिकेय के विशेषण
षड्वक्त्रः —पुं॰—षष्-वक्त्रः—-—कार्तिकेय के विशेषण
षड्वदनः —पुं॰—षष्-वदनः—-—कार्तिकेय के विशेषण
षडाम्नायः —पुं॰—षष्-आम्नायः—-—छः तन्त्र
षडूषणम् —नपुं॰—षष्-ऊषणम्—-—समष्टि रूप से ग्रहण किये हुए छः मसाले
षट्कर्ण —वि॰—षष्-कर्ण—-—छः कानों से सुना गया
षट्कर्णः —पुं॰—षष्-कर्णः—-—एक प्रकार की वीणा
षट्कर्मन् —नपुं॰—षष्-कर्मन्—-—ब्राहणों के लिए विहित छः कर्तव्य
षट्कर्मन् —नपुं॰—षष्-कर्मन्—-—छः कर्म जो ब्राह्मण की जीविका के लिए विहित हैं
षट्कर्मन् —नपुं॰—षष्-कर्मन्—-—जादू के छः करतब शान्ति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेष, उच्चाटन तथा मारण
षट्कर्मन् —नपुं॰—षष्-कर्मन्—-—योगाभ्याससंबंधी छः क्रियाएँ
षट्कर्मन् —पुं॰—षष्-कर्मन्—-—ब्राह्मण
षट्कोण —वि॰—षष्-कोण—-—छः कोणों से युक्त
षट्कोणम् —नपुं॰—षष्-कोणम्—-—षड्भुज, छः कोनिया
षट्कोणम् —नपुं॰—षष्-कोणम्—-—इन्द्र का वज्र
षड्गवम् —नपुं॰—षष्-गवम्—-—छः बैलों की जोड़ी
षड्गवम् —नपुं॰—षष्-गवम्—-—वह जुवा जिसमें छः बैल जोते जायं
षड्ढस्ति —पुं॰—षष्-हस्ति—-—छः हाथी
षडश्व —पुं॰—षष्-अश्व—-—छः घोड़े
षड्गुण —वि॰—षष्-गुण—-—छः गुना
षड्गुण —वि॰—षष्-गुण—-—छः विशेषणों से युक्त
षड्गुणम् —नपुं॰—षष्-गुणम्—-—छः गुणों का समुदाय
षड्गुणम् —नपुं॰—षष्-गुणम्—-—किसी राजा की विदेशनीति में प्रयोक्तव्य छः उपाय
षड्ग्रन्थि —स्त्री॰—षष्-ग्रन्थि—-—पिप्परामूल
षड्ग्रन्थिका —स्त्री॰—षष्-ग्रन्थिका—-—शटी, आमाहल्दी
षट्चक्रम् —नपुं॰—षष्-चक्रम्—-—शरीर के छः रहस्यमय चक्र (मूलाधार, अधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा)
षट्चत्वारिंशत् —वि॰—षष्-चत्वारिंशत्—-—छ्यालीस
षट्चरणः —पुं॰—षष्-चरणः—-—मधुमक्खी
षट्चरणः —पुं॰—षष्-चरणः—-—टिड्डी
षट्चरणः —पुं॰—षष्-चरणः—-—जूँ
षड्जः —पुं॰—षष्-जः—-—भारतीय स्वरग्राम के सात प्राथमिक स्वरों में से चौथा स्वर (कुछ के अनुसार पहला) क्योंकि यह स्वर छः अंगों से व्युत्पन्न है
षट्त्रिंशत् —नपुं॰—षष्-त्रिंशत्—-—छत्तीस
षट्त्रिंश —वि॰—षष्-त्रिंश—-—छत्तीसवाँ
षड्दर्शनम् —नपुं॰—षष्-दर्शनम्—-—हिन्दू दर्शन के छः मुख्य शास्त्र-सांख्य, योग, न्याय, वैशैषिक, मीमांसा और वेदान्त
षड्दुर्गम् —नपुं॰—षष्-दुर्गम्—-—छः प्रकार के गढ़ों की समष्टि
षण्णवतिः —स्त्री॰—षष्-नवतिः—-—छ्यानवे
षट्पञ्चाशत् —स्त्री॰—षष्-पञ्चाशत्—-—छप्पन
षट्पदः —पुं॰—षष्-पदः—-—भौंरा
षट्पदः —पुं॰—षष्-पदः—-—जूँ
षट्पदातिथिः —पुं॰—षष्-पदः-अतिथिः—-—आम का वृक्ष
षट्पदानन्दवर्धनः —पुं॰—षष्-पदः-आनन्दवर्धनः—-—अशोक या किंकिरात वृक्ष
षट्पदाज्य —वि॰—षष्-पदः-ज्य—-—जिस की डोरी भौंरों से बनी है
षट्पदप्रियः —पुं॰—षष्-पदः-प्रियः—-—नागकेशर नाम का वृक्ष
षट्पदी —स्त्री॰—षष्-पदी—-—छः पंक्तियों का श्लोक
षट्पदी —स्त्री॰—षष्-पदी—-—भ्रमरी
षट्पदी —स्त्री॰—षष्-पदी—-—जूँ
षट्प्रज्ञः —पुं॰—षष्-प्रज्ञः—-—जो छः विषयों से सुपरिचित है अर्थात् चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) या मानवजीवन के उद्देश्य और लोकप्रकृति, ब्रह्मप्रकृति
षट्प्रज्ञः —पुं॰—षष्-प्रज्ञः—-—विलासी, कामासक्त पुरुष
षड्बिन्दुः —पुं॰—षष्-बिन्दुः—-—विष्णु का विशेषण
षड्भागः —पुं॰—षष्-भागः—-—छठा भाग, १/६ भाग
षड्भुज —वि॰—षष्-भुज—-—छः हैं सहायक जिसके, छः कोनों वाला
षड्भुजः —पुं॰—षष्-भुजः—-—षट्कोण
षड्भुजा —स्त्री॰—षष्-भुजा—-—दुर्गा का विशेषण
षड्भुजा —स्त्री॰—षष्-भुजा—-—तरबूज़
षण्मासः —पुं॰—षष्-मासः—-—छः महीने का समय
षण्मासिक —वि॰—षष्-मासिक—-—छमाही, अर्धवार्षिक
षण्मुखः —पुं॰—षष्-मुखः—-—कार्तिकेय के विशेषण
षण्मुखा —स्त्री॰—षष्-मुखा—-—तरबूज़
षड्रसम् —पुं॰ ब॰ व॰—षष्-रसम्—-—छः रसों की समष्टि
षड्रसाः —पुं॰ ब॰ व॰—षष्-रसाः—-—छः रसों की समष्टि
षड्रात्रम् —नपुं॰—षष्-रात्रम्—-—छः रातों का समय या अवधि
षड्वर्गः —पुं॰—षष्-वर्गः—-—छः वस्तुओं की समष्टि
षड्वर्गः —पुं॰—षष्-वर्गः—-— विशेष रूप से मनुष्य के छः शत्रु
षड्विंशतिः —स्त्री॰—षष्-विंशतिः—-—छब्बीस
षड्विंश —वि॰—षष्-विंश—-—छब्बीसवाँ
षड्विध —वि॰—षष्-विध—-—छः प्रकार का , छः गुना
षट्षष्टिः —स्त्री॰—षष्-षष्टिः—-—छासठ
षट्सप्ततिः —स्त्री॰—षष्-सप्ततिः—-—छिहत्तर
षष्टिः —स्त्री॰—-—षड्गुणिता दशतिः नि॰—साठ
षष्टितम् —नपुं॰—-—-—साठवाँ
षष्टिमत्तः —पुं॰—षष्टिः-मत्तः—-—साठ वर्ष की आयु का हाथी जिसके मस्तक से मद चूता है
षष्टियोजनी —स्त्री॰—षष्टिः-योजनी—-—साठ योजन का विस्तार या यात्रा
षष्टिसंवत्सरः —पुं॰—षष्टिः-संवत्सरः—-—साठ वर्ष की अवधि या समय
षष्टिहायनः —पुं॰—षष्टिः-हायनः—-—(साठवर्ष की आयु का) हाथी
षष्टिहायनः —पुं॰—षष्टिः-हायनः—-—एक प्रकार का चावल
षष्ठ —वि॰—-—षण्णां पूरणः-षष् + डट्, वुक्—छठा, छठा भाग
षष्ठांशः —पुं॰—षष्ठ-अंशः—-—सामान्य छठा भाग
षष्ठांशः —पुं॰—षष्ठ-अंशः—-—विशेष कर उपज का छठा भाग जिसको कि राजा अपनी प्रजा से भूमिकर के रूप में ग्रहण करता है
षष्ठवृत्तिः —पुं॰—षष्ठ-वृत्तिः—-—उपज के छठे भाग का अधिकारी राजा
षष्ठान्नम् —नपुं॰—षष्ठ-अन्नम्—-—छठा भोजन
षष्ठकालः —पुं॰—षष्ठ-कालः—-—तीन दिन में केवल एक बार भोजन करने वाला
षष्ठी —स्त्री॰—-—षष्ठ + ङीप्—चान्द्रमास के किसी पक्ष की छठ
षष्ठी —स्त्री॰—-—षष्ठ + ङीप्—(व्या॰ में ) छठी विभक्ति या सम्बन्ध कारक
षष्ठी —स्त्री॰—-—षष्ठ + ङीप्—कात्यायनी के रूप में दुर्गा का विशेषण, जो सोलह दिव्य मातृकाओं में से एक है
षष्ठीतत्पुरुषः —पुं॰—षष्ठी-तत्पुरुषः—-—छठी विभक्ति के लोप वाला तत्पुरुष सदैव छठी विभक्ति का होता है
षष्ठीपूजनम् —नपुं॰—षष्ठी-पूजनम्—-—बालक उत्पन्न होने के छठे दिन छठी देवी की पूजा करना
षष्ठीपूजा —स्त्री॰—षष्ठी-पूजा—-—बालक उत्पन्न होने के छठे दिन छठी देवी की पूजा करना
षहसानुः —पुं॰—-—सह + आनु, असुक्, पृषो षत्वम्—मोर
षहसानुः —पुं॰—-—सह + आनु, असुक्, पृषो षत्वम्—यज्ञ
षाट् —अव्य॰—-—सह + ण्वि, पृषो॰ षत्वं टत्वम् —सम्बोधक अव्यय
षाट्कौशिक —वि॰—-—षट्कोश + ठक्—छः तहों में लिपटा हुआ
षाडवः —पुं॰—-—षड् + अव् + अच् ततः स्वार्थे अण्—राग, मनोवेग
षाडवः —पुं॰—-—षड् + अव् + अच् ततः स्वार्थे अण्—गाना, संगीत
षाडवः —पुं॰—-—षड् + अव् + अच् ततः स्वार्थे अण्—(संगीत में) एक राग जिस में संगीत के सात स्वरों में से छः स्वर प्रयुक्त होते हैं
षाड्गुण्यम् —नपुं॰—-—षड्गुण + ष्यञ्—छः गुणों की समष्टि
षाड्गुण्यम् —नपुं॰—-—षड्गुण + ष्यञ्—राजा के द्वारा प्रयुक्त छः युक्तियाँ, राजनीति के छः उपाय
षाड्गुण्यम् —नपुं॰—-—षड्गुण + ष्यञ्—छः से किसी संख्या का गुणन
षाड्गुण्यप्रयोगः —पुं॰—षाड्गुण्यम्-प्रयोगः—-—राजनीति के छः उपाय, या छः युक्तियों का प्रयोग
षाण्मातुरः —पुं॰—-—षण्णां मातृणाम् अपत्यम्, षण्मातृ + अण्, उत्व, रपर—छः माताओं वाला, कार्तिकेय का विशेषण
षाण्मासिक —वि॰—-—षण्मास + ठक्—छमाही, अर्धवार्षिक
षाण्मासिक —वि॰—-—षण्मास + ठक्—छः महीने का
षाष्ठ —वि॰—-—षष्ठ + अण् स्वार्थे —छठा
षिड्गः —पुं॰—-—सिट् + गन्, पृषो॰ षत्वम्— विलासी, ऐयाश, कामुक, कामासक्त
षिड्गः —पुं॰—-—सिट् + गन्, पृषो॰ षत्वम्—प्रेमनिपुण, असंगत प्रेमी, विट
षुः —पुं॰—-—सु + डु, पृषो॰ षत्वम्—प्रसूति, प्रजनन
षोडश —वि॰—-—षोडशम् + डट्—सोलहवाँ
षोडशम् —संख्या॰ वि॰, ब॰ व॰—-—-—सोलह
षोडशांशुः —पुं॰—षोडशम्-अंशुः—-—शुक्रग्रह
षोडशाङ्गः —वि॰—षोडशम्-अङ्गः—-—एक प्रकार का गन्धद्रव
षोडशाङ्गुलक —वि॰—षोडशम्-अङ्गुलक—-—छः अंगुल की चौड़ाई का
षोडशाङ्घ्रिः —पुं॰—षोडशम्-अङ्घ्रिः—-—केकड़ा
षोडशार्चिस् —पुं॰—षोडशम्-अर्चिस्—-—शुक्रग्रह
षोडशावर्तः —पुं॰—षोडशम्-आवर्तः—-—शंख
षोडशोपचारः —पुं॰—षोडशम्-उपचारः—-—श्रद्धांजलि अर्पित करने की सोलह रीतियाँ
षोडशकलः —पुं॰—षोडशम्-कलः—-—चन्द्रमा की सोलह कलाएँ
षोडशभुजा —स्त्री॰—षोडशम्-भुजा—-—दुर्गा की एक मूर्ति
षोडशमातृका —स्त्री॰ ब॰ व॰—षोडशम्-मातृका—-—सोलह दिव्य माताएँ
षोडशधा —अव्य॰—-—षोडशन् + धाच्—सोलह प्रकार से
षोडशिक —वि॰—-—षोडशन् + ठक्—सोलह भागों से युक्त
षोडशिन् —पुं॰—-—षोडशन् + इनि—अग्निष्टोम यज्ञ का रूपान्तर
षोढा —अव्य॰—-—षष् + धाच्, षष् उत्वम्, धस्य ष्टुत्वम्—छः प्रकार से
षोढान्यासः —पुं॰—षोढा-न्यासः—-—मंत्र पढ़ते हुए शरीर स्पर्श के छः प्रकार
षोढामुखः —पुं॰—षोढा-मुखः—-—छः मुंह वाला, कार्तिकेय
ष्ठिव् —भ्वा॰ <ष्ठीवति>, दिवा॰ पर॰<ष्ठीव्यति>, <ष्ठ्यूत>—-—-—थूकना, मुँह से खखार निकालना
ष्ठिव् —भ्वा॰ <ष्ठीवति>, दिवा॰ पर॰<ष्ठीव्यति>, <ष्ठ्यूत>—-—-—राल टपकना
निष्ठिव् —भ्वा॰—नि-ष्ठिव्—-—प्रक्षेपण करना, निकालना, धकेलना
निष्ठिव् —भ्वा॰—नि-ष्ठिव्—-—मुँह से खखार निकालना
ष्ठीवनम् —नपुं॰—-—ष्ठीव् + ल्युट्—थूकना
ष्ठीवनम् —नपुं॰—-—ष्ठीव् + ल्युट्—लार, थूक, खखार
ष्ठेवनम् —नपुं॰—-—ष्ठिव् + ल्युट्—थूकना
ष्ठेवनम् —नपुं॰—-—ष्ठिव् + ल्युट्—लार, थूक, खखार
ष्ठ्यूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—ष्ठिव् + क्त, ऊ—थूका हुआ, खखारा हुआ
ष्वक्क् —भ्वा॰ आ॰ <ष्वक्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
ष्वस्क् —भ्वा॰ आ॰ <ष्वस्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना