विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/वी-शस्य
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—पहुँचना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—व्याप्त होना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—लाना, पहुँचाना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—फेंक देना, डालना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—खाना, उपभोग करना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—प्राप्त करना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—गर्भधारण करना, उत्पन्न करना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—पैदा होना, जन्म लेना
वी —अदा॰ पर॰< वेति>—-—-—चमकना, सुन्दर होना
वीकः —पुं॰—-—अज् + कन्, वी आदेशः—वायु
वीकाशः —पुं॰—-—-—प्रकटीकरण, प्रदर्शन, दिखलावा
वीकाशः —पुं॰—-—-—खिलना, फूलना
वीकाशः —पुं॰—-—-—खुला सीधा मार्ग
वीकाशः —पुं॰—-—-—टेढ़ा मार्ग
वीकाशः —पुं॰—-—-—हर्ष, आनन्द
वीकाशः —पुं॰—-—-—उत्सुकता, प्रबल उत्कंठा
वीकाशः —पुं॰—-—-—एकान्तवास, एकाकीपन, सूनापन
वीक्षम् —नपुं॰—-—वि + ईक्ष् + अच्—दृश्य पदार्थ
वीक्षम् —नपुं॰—-—-—अचम्भा, आश्चर्य
वीक्षः —पुं॰—-—-—देखना, ताकना
वीक्षा —स्त्री॰—-—-—देखना, ताकना
वीक्षणम् —नपुं॰—-—वि + ईक्ष् + ल्युट्—देखना, निहारना, दृष्टि डालना
वीक्षणा —स्त्री॰—-—-—देखना, निहारना, दृष्टि डालना
वीक्षितम् —नपुं॰—-—वि + ईक्ष् + क्त—दृष्टि, झलक
वीक्ष्य —वि॰—-—वि + ईक्ष् + ण्यत्—देखे जाने के योग्य
वीक्ष्य —वि॰—-—-—दृश्य, दृष्टिगोचर
वीक्ष्यः —पुं॰—-—-—नर्तक, नट, अभिनेता, पात्र
वीक्ष्यम् —नपुं॰—-—-—देखे जाने के योग्य कोई भी वस्तु, दृश्यमान पदार्थ
वीक्ष्यम् —नपुं॰—-—-—आश्चर्य, अचंभा
वीङ्खा —स्त्री॰—-—वि + इङ्ख् + अ + टाप्—जाना, हिलना-जुलना, प्रगति
वीङ्खा —स्त्री॰—-—-—घोड़े का कदम
वीङ्खा —स्त्री॰—-—-—संगम, मिलन
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—वे + इचि, डिच्च—लहर
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—-—असंगति, विचारशून्यता
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—-—आनन्द, प्रसन्नता
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—-—विश्राम, अवकाश
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—-—प्रकाश की किरण
वीचिः —पुं॰,स्त्री॰—-—-—स्वल्पता
वीची —स्त्री॰—-—-—असंगति, विचारशून्यता
वीची —स्त्री॰—-—-—आनन्द, प्रसन्नता
वीची —स्त्री॰—-—-—विश्राम, अवकाश
वीची —स्त्री॰—-—-—प्रकाश की किरण
वीची —स्त्री॰—-—-—स्वल्पता
वीचिमालिन् —पुं॰—वीचिः-मालिन्—-—समुद्र
वीज् —भ्वा॰ आ॰ <वीजते>—-—-—जाना
वीज् —चुरा॰ उभ॰ <वीजयति>,<वीजयते>—-—-—पंखा करना, पंखा करके ठंडा करना
अभिवीज् —चुरा॰ उभ॰—अभि-वीज्—-—पंखा करना
उपवीज् —चुरा॰ उभ॰—उप-वीज्—-—पंखा करना
परिवीज् —चुरा॰ उभ॰—परि-वीज्—-—पंखा करना
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीज, बीज का दाना, अनाज
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—जीवाणु, तत्त्व
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—मूल, स्रोत, कारण
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—वीर्य, शुक्र
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—किसी नाटक की कथावस्तु का बीज, कहानी आदि
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—गूदा
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीजगणित
वीजम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ड उपसर्गस्य दीर्घः बवयोरभेदः—बीजमंत्र
वीजः —पुं॰—-—-—नींबू का पेड़
वीजकः —पुं॰—-—वीज + कन्—सामान्य नींबू
वीजकः —पुं॰—-—वीज + कन्—नींबू या चकोतरा
वीजकः —पुं॰—-—वीज + कन्—जन्म के समय बच्चे को भुजाओं की स्थिति
वीजल —वि॰—-—वीज + लच्—बीजों से युक्त, बीजों वाला
वीजिक —वि॰—-—बीज + ठन्—बीजों से भरा हुआ, जिसमें बहुत बीज हों
वीजिन् —वि॰—-—बीज + इनि—बीजों से युक्त, बीज रखने वाला
वीजिन् —पुं॰—-—-—वास्तविक पिता या प्रजनक (बीज का बोने वाला)
वीज्य —वि॰—-—वीज + यत्—बीज से उत्पन्न
वीज्य —वि॰—-—वीज + यत्—सम्मानित कुल का , सत्कुलोद्भव
वीजनः —पुं॰—-—वीज् + ल्युट्—चक्रवाक
वीजनः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का चकोर
वीजनम् —नपुं॰—-—-—पंखा करना
वीटा —स्त्री॰—-—वि + इट् + क + टाप्—लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा, गुल्ली (लगभग एक बालिश्त) जिसको लड़के डंडा मार कर खेलते हैं, गुल्ली डंडा
वीटिः —स्त्री॰—-—वि + इट् + इन्, स च कित्—पान की बेल
वीटिः —स्त्री॰—-—-—पान लगाना
वीटिः —स्त्री॰—-—-—बंधन, गाँठ, ग्रंथि (पहने जाने बाले वस्त्र की)
वीटिः —स्त्री॰—-—-—चोली की तनी
वीटिका —स्त्री॰—-—वीटि + कन् + टाप्—पान की बेल
वीटिका —स्त्री॰—-—-—पान लगाना
वीटिका —स्त्री॰—-—-—बंधन, गाँठ, ग्रंथि (पहने जाने बाले वस्त्र की)
वीटिका —स्त्री॰—-—-—चोली की तनी
वीटी —स्त्री॰—-—वीटि + ङीष् —पान की बेल
वीटी —स्त्री॰—-—-—पान लगाना
वीटी —स्त्री॰—-—-—बंधन, गाँठ, ग्रंथि (पहने जाने बाले वस्त्र की)
वीटी —स्त्री॰—-—-—चोली की तनी
वीणा —स्त्री॰—-—वेति वृद्धिमात्रमपगच्छति-वी + न, नि॰ णत्वम्—सारंगी, बीणा
वीणास्यः —पुं॰—वीणा-आस्यः—-—नारद का विशेषण
वीणादण्डः —पुं॰—वीणा-दण्डः—-—वीणा की गर्दंन
वीणावादः —पुं॰—वीणा-वादः—-—वीणा बजाने वाला
वीणावादकः —पुं॰—वीणा-वादकः—-—वीणा बजाने वाला
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + इ + क्त—गया हुआ, अंतर्हित
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जो चला गया, बिदा हो गया
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जिसको जाने दिया गया, ढीला उन्मुक्त
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अलगाया हुआ, विमुक्त किया हुआ
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनुमोदित, पसंद किया गया
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—युद्ध के अयोग्य
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पालतू, शान्त
वीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुक्त, शून्य
वीतः —पुं॰—-—-—हाथी या घोड़ा जो युद्ध के अयोग्य हो या सधाया न गया हो
वीतम् —नपुं॰—-—-—(हाथी को) अंकुश से गोदना तथा पैरों से प्रहार करना
वीतदम्भ —वि॰—वीत-दम्भ—-—विनम्र, विनीत
वीतभय —वि॰—वीत-भय—-—निर्भय, निडर
वीतयः —पुं॰—वीत-यः—-—विष्णु का विशेषण
वीतमल —वि॰—वीत-मल—-—पवित्र, निर्मल
वीतराग —वि॰—वीत-राग—-—इच्छारहित
वीतराग —वि॰—वीत-राग—-—निरावेश, सौम्य, शान्त
वीतराग —वि॰—वीत-राग—-—विवर्ण, बिना रंग का
वीतगः —पुं॰—वीत-गः—-—एक ऋषि जिसनें अपने रागों का दमन कर लिया था
वीतशोकः —पुं॰—वीत-शोकः—-—अशोक वृक्ष
वीतंसः —पुं॰—-—विशेषेण बहिरेव तस्यते भूष्यते-वि + तंस् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—पींजरा या जाल जिसमें पक्षी या अन्य वन्य पशु फंसाये जाते हैं
वीतंसः —पुं॰—-—-—चिड़ियाघर, शिकार के पशुओं को पालने का स्थान
वीतनौ —पुं॰—-—विशिष्टं तनोति-वि + तन् + अच्, पृषो॰ दीर्घः—गले के अगल बगल के पार्श्व
वीतिः —पुं॰—-—वी + क्तिन्—घोड़ा
वीतिः —स्त्री॰—-—-—गति, चाल
वीतिः —स्त्री॰—-—-—पैदावार, उपज
वीतिः —स्त्री॰—-—-—सुखोपभोग
वीतिः —स्त्री॰—-—-—भोजन करना
वीतिः —स्त्री॰—-—-—प्रकाश, कान्ति
वीतिहोत्रः —पुं॰—वीतिः-होत्रः—-—अग्नि
वीतिहोत्रः —पुं॰—वीतिः-होत्रः—-—सूर्य
वीथिः —स्त्री॰—-—विथ + इन्—सड़क, मार्ग
वीथिः —स्त्री॰—-—-—पंक्ति, कतार
वीथिः —स्त्री॰—-—-—हाट, आपणिका, मंडी में दुकान
वीथिः —स्त्री॰—-—-—नाटक का एक भेद
वीथी —स्त्री॰—-—विथ + ङीप्, पृषो॰—सड़क, मार्ग
वीथी —स्त्री॰—-—-—पंक्ति, कतार
वीथी —स्त्री॰—-—-—हाट, आपणिका, मंडी में दुकान
वीथी —स्त्री॰—-—-—नाटक का एक भेद
वीथिका —स्त्री॰—-—वीथि + कन् + टाप्—सड़क आदि
वीथिका —स्त्री॰—-—-—चित्रशाला, चित्रसारी (जिस पर चित्र चित्रित किये जाते हैं) चित्रागार, चित्रावली
वीध्र —वि॰—-—विशेषेण इन्धते- वि + इन्ध् + क्रन्, उपसर्गस्य दीर्घः—निर्मल, स्वच्छ
वीध्रम् —नपुं॰—-—-—वायु, हवा
वीनाहः —पुं॰—-—वि + नह् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—कुएँ का ढक्कन या मणि
वीपा —स्त्री॰ —-—-—विद्युत्, बिजली
वीप्सा —स्त्री॰—-—वि + आप् + सन् + अ + टाप्, ईत्वम्—परिव्याप्ति
वीप्सा —स्त्री॰—-—-—(नैरंतर्य प्रकट करने के लिए) शब्द द्विरुक्ति
वीप्सा —स्त्री॰—-—-—सामान्य पुनरुक्ति
वीभ् —भ्वा॰ आ॰ <वीभते>—-—-—शेखी मारना, डींग मारना
वीर —वि॰—-—अजेः रक् वीभावश्च—शूर, वीर
वीर —वि॰—-—-—ताकतवर, शक्तिशाली
वीरः —पुं॰—-—-—शूरवीर, योद्धा, प्रजेता
वीरः —पुं॰—-—-—वीरभावना, वीररस, इसके चार भेद (दानवीर, धर्मवीर, दयावीर और युद्धवीर) किये गये हैं
वीरः —पुं॰—-—-—यज्ञ की अग्नि
वीरः —पुं॰—-—-—अर्जुन वृक्ष
वीरः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
वीरम् —नपुं॰—-—-—चावल का माड़
वीरम् —नपुं॰—-—-—उशीर का जड़, खस
वीराशंसनम् —नपुं॰—वीर-आशंसनम्—-—निगरानी रखना
वीराशंसनम् —नपुं॰—वीर-आशंसनम्—-—युद्ध में जोखिम से भरा पद
वीराशंसनम् —नपुं॰—वीर-आशंसनम्—-—छोड़ी हुई आशा
वीरासनम् —नपुं॰—वीर-आसनम्—-—योगाभ्यास करते समय एक विशेष मुद्रा
वीरासनम् —नपुं॰—वीर-आसनम्—-—एक घुटना मोड़ कर बैठना
वीरासनम् —नपुं॰—वीर-आसनम्—-—संतरी की चौकी
वीरीशः —पुं॰—वीर-ईशः—-—शिव के विशेषण
वीरीशः —पुं॰—वीर-ईशः—-—महान् वीर
वीरेश्वरः —पुं॰—वीर-ईश्वरः—-—शिव के विशेषण
वीरेश्वरः —पुं॰—वीर-ईश्वरः—-—महान् वीर
वीरुज्झः —पुं॰—वीर-उज्झः—-—वह ब्राह्मण जो यज्ञाग्नि में आहुति नहीं डालता, अग्निहोत्र न करने वाला ब्राह्मण
वीरकीटः —पुं॰—वीर-कीटः—-—तुच्छ सैनिक
वीरजयन्तिका —स्त्री॰—वीर-जयन्तिका—-—रणनृत्य
वीरजयन्तिका —स्त्री॰—वीर-जयन्तिका—-—संग्राम, युद्ध
वीरतरुः —पुं॰—वीर-तरुः—-—अर्जुन वृक्ष
वीरधन्वन् —पुं॰—वीर-धन्वन्—-—कामदेव
वीरपानम् —नपुं॰—वीर-पानम्—-—एक उत्तेजक या श्रमापहारक तेज जो सैनिक लोग युद्ध के आरम्भ या अवसान पर पीते हैं
वीरपाणम् —नपुं॰—वीर-पाणम्—-—एक उत्तेजक या श्रमापहारक तेज जो सैनिक लोग युद्ध के आरम्भ या अवसान पर पीते हैं
वीरभद्रः —पुं॰—वीर-भद्रः—-—एक शक्तिशाली शूरवीर जिसे शिव ने अपनी जटाओं से निकाला था
वीरभद्रः —पुं॰—वीर-भद्रः—-—माना हुआ योद्धा
वीरभद्रः —पुं॰—वीर-भद्रः—-—अश्वमेध यज्ञ के उपयुक्त घोड़ा
वीरभद्रः —पुं॰—वीर-भद्रः—-—एक प्रकार का सुगन्धित घास
वीरमुद्रिका —स्त्री॰—वीर-मुद्रिका—-—पैर की मध्यमा अंगुली में पहना जाने वाला छल्ला
वीररजस् —नपुं॰—वीर-रजस्—-—सिन्दूर
वीररस —वि॰—वीर-रस—-—वीरता का भाव
वीररस —वि॰—वीर-रस—-—सामरिक भावना
वीररेणुः —पुं॰—वीर-रेणुः—-—भीमसेन का नाम
वीरविप्लावकः —पुं॰—वीर-विप्लावकः—-—शूद्र से धन लेकर हवन करने वाला
वीरवृक्षः —पुं॰—वीर-वृक्षः—-—अर्जुन वृक्ष
वीरवृक्षः —पुं॰—वीर-वृक्षः—-—भिलावें का वृक्ष
वीरसूः —स्त्री॰ —वीर-सूः—-—शूरवीर पुरुष की माता
वीरप्रसवा —स्त्री॰ —वीर-प्रसवा—-—शूरवीर पुरुष की माता
वीरप्रसूः —स्त्री॰ —वीर-प्रसूः—-—शूरवीर पुरुष की माता
वीर-प्रसविनी —स्त्री॰ —वीर-प्रसविनी—-—शूरवीर पुरुष की माता
वीरसैन्यम् —नपुं॰—वीर-सैन्यम्—-—लहसुन
वीरस्कन्धः —पुं॰—वीर-स्कन्धः—-—भैंसा
वीरहन् —पुं॰—वीर-हन्—-—वह ब्राह्मण जिसने दैनिक अग्निहोत्र करना छोड़ दिया है
वीरहन् —पुं॰—वीर-हन्—-—विष्णु
वीरणम् —नपुं॰—-—वि + ईर् + ल्युट्—एक सुगन्धित घास, उशीर
वीरणी —स्त्री॰ —-—वीरण + ङीष्—तिरछी चितवन, कटाक्ष
वीरणी —स्त्री॰ —-—-—गहरा स्थान
वीरतरः —पुं॰—-—वीर + तरप्—महान् वीर
वीरतरम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्धित घास, उशीर
वीरन्धरः —पुं॰—-—वीर + धृ + खच्, मुम्—मोर
वीरन्धरः —पुं॰—-—-—वन्य पशुओं के साथ लड़ाई
वीरन्धरः —पुं॰—-—-—चमड़े की जाकेट
वीरवत् —वि॰—-—वीर + मतुप्—शूरवीरों से भरा हुआ
वीरवती —स्त्री॰ —-—-—वह स्त्री जिसका पति और पुत्र जीवित हों
वीरा —स्त्री॰ —-—वीर + टाप्—शूरवीर पुरुष की स्त्री
वीरा —स्त्री॰ —-—-—माता, गृहिणी
वीरा —स्त्री॰ —-—-—मुरा नामक एक गन्धद्रव्य
वीरा —स्त्री॰ —-—-—अगर की लकड़ी
वीरा —स्त्री॰ —-—-—केले का पेड़
वीरिणम् —नपुं॰—-—-—मरुस्थल, बंजर
वीरिणम् —नपुं॰—-—-—ऊसर, बंजर भूमि
वीरुध् —पुं॰—-—विशेषेण रुणद्धि अन्यान् वृक्षान्-वि + रुध् + क्विप् पक्षे टाप्, उपसर्गस्य दीर्घः—लहलहाने वाली लता
वीरुध् —पुं॰—-—-—शाखा, अङ्कुर
वीरुध् —पुं॰—-—-—काटने पर ही बढ़ने वाला पौधा
वीरुध् —पुं॰—-—-—बेल, लता, झाड़ी
वीर्यम् —नपुं॰—-—वीर् + यत्—शूरवीरता, पराक्रम, बहादुरी
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—बल, सामर्थ्य
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—पुंस्त्व
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—ऊर्जा, दृढ़ता, साहस
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—शक्ति, क्षमता
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—(औषधियों की) अचूकता, अतिवीर्यवतीव भेषजे बहुरल्पीयसि दृश्यते गुणः @ कि॰ २/२४, @ कु॰ २/४८
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—शुक्र, वीर्य
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—आभा, कान्ति
वीर्यम् —नपुं॰—-—-—गौरव, महिमा
वीर्यजः —पुं॰—वीर्यम्-जः—-—पुत्र
वीर्यप्रपातः —पुं॰—वीर्यम्-प्रपातः—-—वीर्य का क्षरण या स्खलन
वीर्यवत् —वि॰—-—वीर्य + मतुप्—मजबूत, हृष्टपुष्ट, बलवान्
वीर्यवत् —वि॰—-—-—अचूक, अमोघ
वीवधः —पुं॰—-—वि + वध् + घञ्, वृद्ध्यभावो दीर्घश्च—बोझा ढोने के लिए जूआ, बहंगी
वीवधः —पुं॰—-—-—अनाज का भंडार भरना
वीवधः —पुं॰—-—-—मार्ग, सड़क
वीवधिकः —पुं॰—-—वीवध + ठन्—बहंगी ढोने वाला
वीहारः —पुं॰—-—वि + हृ + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—जैन विहार या बौद्धमठ
वुङ्ग् —भ्वा॰ पर॰ <वुङ्गति>—-—-—छोड़ना, परित्याग करना
वुण्ट् —चुरा॰ उभ॰ <वुण्टयति>, <वुण्टयते>—-—-—चोट पहुँचाना वध करना
वुण्ट् —चुरा॰ उभ॰ <वुण्टयति>, <वुण्टयते>—-—-—नष्ट करना
वुवूर्षु —वि॰—-—वृ + सन् + उ—पसन्द करने का इच्छुक
वुस् —दिवा॰पर॰—-—-—छोड़ना, उगलना, उडलना
वूर्ण —वि॰—-—वृ + क्त—छांटा हुआ, चुना हुआ
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—छांटना, चुनना, पसन्द करना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—अपने लिए चुनना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—विवाह के लिए वरण करना, प्रणय-प्रार्थना करना, प्रणययाचना करना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—प्रार्थना करना, निवेदन करना, याचना करना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—ढकना, छिपाना गुप्त रखना, परदा डालना, लपेटना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—घेरना, लपेटना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—परे हटना, दूर करना, नियंत्रण करना, रोकना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ <वरति>, <वरते>, <वृणोति>, <वृणुते>, <वृणाति>, <वृणीते>, <वृत>, कर्मवा॰ <व्रियते>—-—-—विघ्न डालनाम् विरोध करना, अड़चन डालना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ <वारयति>, <वारयते>—-—-—ढकना, छिपाना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ <वारयति>, <वारयते>—-—-—(किसी वस्तु से) आँख फेर लेना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ <वारयति>, <वारयते>—-—-—रोकना, हटाना, नियंत्रण करना, दबाना, जांच पड़ताल करना, विघ्न डालना
वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, इच्छा॰ <वुवूर्षति>, <वुवूर्षते>, <विविरिषति>, <विविरिषते>, <विवरिषति>, <विवरिषते>—-—-—चुनने की इच्छा करना
अपवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —अप-वृ—-—खोलना
अपवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ —अप-वृ—-—ढकना, छिपाना
अपावृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —अपा-वृ—-—खोलना
आवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —आ-वृ—-—ढकना, छिपाना, गुप्त रखना
आवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —आ-वृ—-—चुनना, इच्छा करना
आवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —आ-वृ—-—निवेदन करना, प्रार्थना करना
आवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —आ-वृ—-—घेरना, नाके बंदी करना, रोकना
आवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —आ-वृ—-—दूर रखना
निवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —नि-वृ—-—घेरा डालना, घेरना
निवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ —नि-वृ—-—परे हटना, दूर करना, आँखें फेरना
निर्वृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —निस्-वृ—-—(बहुधा क्तांत रूप) प्रसन्न होना, संतुष्ट या संतृप्त होना
परिवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —परि-वृ—-—घेरना
प्रवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —प्र-वृ—-—ढाकना, लपेटना
प्रवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —प्र-वृ—-—पहनना, धारण करना
प्रवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —प्र-वृ—-—चुनना, छाटना
प्रावृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —प्रा-वृ—-—पहनना, धारण करना
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—ढक देना, ठहरना
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—खोलना
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—तह खोलना, भंडाफोड़ करना, भेद खोलना, प्रकट करना, प्रदर्शन
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—सिखाना, व्याख्या करना, स्पष्ट करना
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—फैलाना
विवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —वि-वृ—-—चुनना
विनिवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰, प्रेर॰ —विनि-वृ—-—रोकना, दूर हटाना, दबाना
संवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —सम्-वृ—-—छिपाना, ढकना, प्रच्छन्न करना
संवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —सम्-वृ—-—दबाना, नियंत्रित करना, विरोध करना
संवृ —भ्वा॰, स्वा॰ , क्र्या॰ उभ॰ —सम्-वृ—-—बन्द करना
वृ —चुरा॰ उभ॰ <वरयति>, <वरयते>—-—-—वरण करना, चुनना
वृ —चुरा॰ उभ॰ <वरयति>, <वरयते>—-—-—विवाह के लिए पसंद करना
वृ —चुरा॰ उभ॰ <वरयति>, <वरयते>—-—-—याचन करना, प्रार्थना करना, निवेदन करना
वृंह् —भ्वा॰तुदा॰पर॰—-—-—बढ़ना, उगना
वृंह् —भ्वा॰तुदा॰पर॰—-—-—दहाड़ना
वृंह् —भ्वा॰तुदा॰पर॰—-—-—पालन-पोषण करना
वृंहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—बृंह् + क्त—उगा हुआ, बढ़ा हुआ
वृंहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—बृंह् + क्त—चिंघाड़ा हुआ
वृंहितम् —नपुं॰—-—-—हाथी की चिंघाड़
वृक् —भ्वा॰ आ॰ <वर्कंते>—-—-—पकड़ना, लेना, ग्रहण करना
वृकः —पुं॰—-—वृ + कक् —भेड़िया
वृकः —पुं॰—-—-—गन्धद्रव्यों का मिश्रण
वृकः —पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम
वृकः —पुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम, बकवृक्ष
वृकारातिः —पुं॰—वृकः-अरातिः—-—कुत्ता
वृकारिः —पुं॰—वृकः-अरिः—-—कुत्ता
वृकोदरः —पुं॰—वृकः-उदरः—-—ब्रह्मा का विशेषण
वृकोदरः —पुं॰—वृकः-उदरः—-—द्वितीय पांडव राजकुमार भीम का विशेषण
वृकदंशः —पुं॰—वृकः-दंशः—-—कुत्ता
वृकधूपः —पुं॰—वृकः-धूपः—-—तारपीन
वृकधूपः —पुं॰—वृकः-धूपः—-—मिश्रगंध
वृकधूर्तः —पुं॰—वृकः-धूर्तः—-—गीदड़
वृक्कः —द्वि॰ व॰ —-—-—गुर्दा
वृक्का —द्वि॰ व॰ —-—-—गुर्दा
वृक्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्रश्च् + क्त—कटा हुआ, बांटा हुआ
वृक्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फाड़ा हुआ
वृक्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तोड़ा हुआ
वृक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वृज् + क्त—स्वच्छ किया गया, साफ़ किया गया, निर्मल किया गया
वृक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <वृक्षते>—-—-—स्वीकार करना, चुनना
वृक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <वृक्षते>—-—-—ढकना
वृक्षः —पुं॰—-—व्रश्च् + क्स्—पेड़
वृक्षादनः —पुं॰—वृक्षः-अदनः—-—बढ़ई की चौरसी
वृक्षादनः —पुं॰—वृक्षः-अदनः—-—कुल्हाड़ी
वृक्षादनः —पुं॰—वृक्षः-अदनः—-—बड़ का पेड़
वृक्षादनः —पुं॰—वृक्षः-अदनः—-—पियाल वृक्ष
वृक्षाम्लः —पुं॰—वृक्षः-अम्लः—-—आमड़ा
वृक्षालयः —पुं॰—वृक्षः-आलयः—-—एक पक्षी
वृक्षावासः —पुं॰—वृक्षः-आवासः—-—एक पक्षी
वृक्षावासः —पुं॰—वृक्षः-आवासः—-—संन्यासी
वृक्षाश्रयिन् —पुं॰—वृक्षः-आश्रयिन्—-—एक प्रकार का छोटा उल्लू
वृक्षकुक्कटः —पुं॰—वृक्षः-कुक्कुटः—-—जंगली मुर्गा
वृक्षखंड —पुं॰—वृक्षः-खंड—-—निकुंज, वृक्षों का समूह
वृक्षचरः —पुं॰—वृक्षः-चरः—-—बन्दर
वृक्षछाया —स्त्री॰—वृक्षः-छाया—-—वृक्ष की छाया
वृक्षछायम् —नपुं॰—वृक्षः-छायम्—-—सघन छाया, बहुत से वृक्षों की (गाढ़ी) छाया
वृक्षधूपः —पुं॰—वृक्षः-धूपः—-—तारपीन
वृक्षनाथः —पुं॰—वृक्षः-नाथः—-—बड़ का पेड़
वृक्षनिर्यासः —पुं॰—वृक्षः-निर्यासः—-—गोंद, राल
वृक्षपाकः —पुं॰—वृक्षः-पाकः—-—बड़ का पेड़
वृक्षभिद् —स्त्री॰—वृक्षः-भिद्—-—कुल्हाड़ी
वृक्षमर्कटिका —स्त्री॰—वृक्षः-मर्कटिका—-—गिलहरी
वृक्षवाटिका —स्त्री॰—वृक्षः-वाटिका—-—उद्यान, उपवन
वृक्षवाटी —स्त्री॰—वृक्षः-वाटी—-—उद्यान, उपवन
वृक्षशः —पुं॰—वृक्षः-शः—-—छिपकली
वृक्षशायिका —स्त्री॰—वृक्षः-शायिका—-—गिलहरी
वृक्षकः —पुं॰—-—वृक्ष + कन्—छोटा पेड़
वृच् —रुधा॰ पर॰ <वृणक्ति>—-—-—छांटना, चुनना
वृज् —अदा॰ पर॰ <वृक्ते>—-—-—टाल जाना, कतराना, परित्याग करना
वृज् —रुधा॰ पर॰ <वृणक्ति>—-—-—टाल जाना, कतराना, छोड़ देना, परित्याग करना
वृज् —रुधा॰ पर॰ <वृणक्ति>—-—-—चुनना
वृज् —रुधा॰ पर॰ <वृणक्ति>—-—-—प्रायश्चित करना, पोंछ डालना, निर्मल करना
वृज् —रुधा॰ पर॰ <वृणक्ति>—-—-—मुड़ना, आँख फेरना
वृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वर्जति>, <वर्जयति>, <वर्जयते>, <वर्जित>—-—-—कतराना, टाल जाना
वृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वर्जति>, <वर्जयति>, <वर्जयते>, <वर्जित>—-—-—छोड़ना, परित्याग करना
वृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वर्जति>, <वर्जयति>, <वर्जयते>, <वर्जित>—-—-—निकाल देना, एक ओर रख देना
वृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वर्जति>, <वर्जयति>, <वर्जयते>, <वर्जित>—-—-—अलग रहना
वृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <वर्जति>, <वर्जयति>, <वर्जयते>, <वर्जित>—-—-—टुकड़े टुकड़े कर देना
अपवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—अप-वृज्—-—नष्ट करना
अपवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—अप-वृज्—-—समाप्त करना
अपवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—अप-वृज्—-—छोड़ना, त्याग देना
अपवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—अप-वृज्—-—उडेलना, फेंकना
आवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—आ-वृज्—-—झुकना, मुड़ना
आवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—आ-वृज्—-—प्रस्तुत करना, देना
आवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—आ-वृज्—-—परास्त करना, जीतना
परिवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—परि-वृज्—-—टाल जाना, कतराना
विवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—वि-वृज्—-—कतराना, टाल जाना
विवृज् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰—वि-वृज्—-—विरहित करना, वञ्चित करना
वृजनः —पुं॰—-—वृ्जेः क्युः—बाल
वृजनः —पुं॰—-—-—घुंघराले बाल
वृजनम् —नपुं॰—-—-—घेर, बाड़ा, विशेषतः एक गोचरभूमि
वृजिन —वि॰—-—वृ्जेः इनज् कित् च—कुटिल, झुका हुआ, वक्र
वृजिन —वि॰—-—-—दुष्ट, पापी
वृजिनः —पुं॰—-—-—बाल, घुंघराले बाल
वृजिनः —पुं॰—-—-—दुष्ट पुरुष
वृजिनम् —नपुं॰—-—-—पीडा, दुःख
वृजिनम् —पुं॰—-—-—पीडा, दुःख
वृण् —तना॰ उभ॰ <वृणोति>, <वृणुते>—-—-—खाना, उपभोग करना
वृत् —दिवा॰ आ॰ <वृत्यते>—-—-—चुनना, पसंद करना
वृत् —दिवा॰ आ॰ <वृत्यते>—-—-—वितरण करना, बाँटना
वृत् —चुरा॰ उभ॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—चमकना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—होना, विद्यमान होनाम् डटे रहना, मौजूद होना, जीते रहना, टिके रहना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—किसी विशेष दशा या परिस्थिति में होना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—होना, घटित होना, आ पड़ना, सामने आना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—चलते रहना, प्रगतिशील रहना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—संधारित या संपोषित
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—मुड़ना, लुढकते रहना, चक्कर खाना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—अपने आप को कार्य में लगाना, काम में लगना, आरम्भ करना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—कर्तव्य निभाना, व्यवहार करना, आचरण करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास करना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—कार्य करना, विशेष प्रकार का आचरण करना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—अर्थ रखना, अभिप्राय बतलाना, अर्थ में प्रयुक्त होना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—प्रवृत्त करना, प्रेरित करना
वृत् —भ्वा॰ आ॰ <वर्तते>—-—-—सहारा लेना, आश्रित होना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—प्रवृत्त कराना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—घुमाना, चक्कर दिलाना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—(अस्त्र-शस्त्र) घुमाना, पैंतरे बदलना, घुमा कर फेंकना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—कार्य करना, अभ्यास करना, प्रदर्शित करना @ मा॰ ९/३३
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—सम्पन्न करना, निबटाना, ध्यान देना, नज़र डालना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—बिताना, (समय आदि) गुज़ारना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—जीवन निर्वाह करना जीते रहना @ कि॰ २/१८, @ रघु॰ १२/२०
वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <वर्तयति>, <वर्तयते>—-—-—वर्णन करना, बयान करना
वृत् —भ्वा॰उभ॰, इच्छा॰ <विवृत्सति>, <विवृत्सते>—-—-—वर्णन करना, बयान करना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—परे जाना, आगे बढ़ जाना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—आगे निकल जाना, सर्वोत्कृष्ट होना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—उल्लंघन करना, बाहर कदम रखना, अतिक्रमण करना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—उपेक्षा करना, अवहेलना करना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना, नाराज करना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—पराजित करना, वशीभूत करना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—(समय का) बिताना
अतिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अति-वृत्—-—विलंब करना, देरी करना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—अनुसरण करना, अनुरूप होना, अनुकूल कार्य करना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—अनुरंजन करना, दूसरे की इच्छा के अनुसार अपने आपको बनाना, दूसरे के द्वारा पथप्रदर्शन प्राप्त किया जाना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—आज्ञा मानना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—मिलना-जुलना, नकल करना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—प्रसन्न करना, खुश करना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰—अनु-वृत्—-—किसी पूर्ववर्ती सूत्र से आवृत्ति प्राप्त करना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—अनु-वृत्—-—मुड़ना
अनुवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—अनु-वृत्—-—अनुगमन करना, आज्ञा मानना
अपवृत् —भ्वा॰उभ॰—अप-वृत्—-—मुड़ जाना, पीठ मोड़ना
अपवृत् —भ्वा॰उभ॰—अप-वृत्—-—व्यत्यस्त या व्युत्क्रान्त होना, उलटा हो जाना
अपवृत् —भ्वा॰उभ॰—अप-वृत्—-—मुँह नीचे कर लेना
अपवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—अप-वृत्—-—एक ओर हो जाना, झुकना
अभिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अभि-वृत्—-—पहुँचाना, जाना, निकट होना, समीप होना, मुड़ना
अभिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अभि-वृत्—-—आक्रमण करना, धावा बोलना, टूट पड़ना @ कि॰ १३/३
अभिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अभि-वृत्—-—आरम्भ करना, (दिन), निकलना
अभिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अभि-वृत्—-—सर्वोपरि होना, सबसे ऊपर होना
अभिवृत् —भ्वा॰उभ॰—अभि-वृत्—-—होना, मौजूद होना, घटित होना
आवृत् —भ्वा॰उभ॰—आ-वृत्—-—चक्कर खाना
आवृत् —भ्वा॰उभ॰—आ-वृत्—-—वापिस आना
आवृत् —भ्वा॰उभ॰—आ-वृत्—-—पास जाना
आवृत् —भ्वा॰उभ॰—आ-वृत्—-—बेचैन होना, चक्कर खाना
उद्वृत् —भ्वा॰उभ॰—उद्-वृत्—-—चढ़ना
उद्वृत् —भ्वा॰उभ॰—उद्-वृत्—-—उदित होना, बढ़ना
उद्वृत् —भ्वा॰उभ॰—उद्-वृत्—-—घमंडी या अभिमानी होना
उद्वृत् —भ्वा॰उभ॰—उद्-वृत्—-—उमड़ना, बह निकलना
उपवृत् —भ्वा॰उभ॰—उप-वृत्—-—पहुँचना
उपवृत् —भ्वा॰उभ॰—उप-वृत्—-—लौटना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—वापिस आना, लौटना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—भाग जाना, पलायन करना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—मुड़ जाना, आंखें फेर लेना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—अलग रहना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—मुक्त होना, बच निकलना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—बोलना बन्द कर देना, रुक जाना, ठहर जाना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—हट जाना, अन्त होना, बन्द हो जाना, अन्तर्धान होना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰—नि-वृत्—-—रुकवाना, निकलवाना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—नि-वृत्—-—लौटना, वापिस भेजना
निवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—नि-वृत्—-—वापिस लेना, दूर रहना, मुड़ जाना, मन फेर लेना
निर्वृत् —भ्वा॰उभ॰—निस्-वृत्—-—समाप्त होना, अन्त होना
निर्वृत् —भ्वा॰उभ॰—निस्-वृत्—-—संपन्न होना
निर्वृत् —भ्वा॰उभ॰—निस्-वृत्—-—रुक जाना, न होना
निर्वृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—निस्-वृत्—-—सम्पन्न करना, निष्पन्न करना, समाप्त करना, पूरा करना
परावृत् —भ्वा॰उभ॰—परा-वृत्—-—लौटना, वापिस आना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—घूमना, चक्कर खाना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—इधर-उधर भ्रमण करना, इधर-उधर आना जाना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—बदलना, विनिमय करना, अदला-बदली करना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—पीठ मोड़ना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—होना, आ पड़ना
परिवृत् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृत्—-—क्षीण होना, नष्ट होना, लुप्त होना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—आगे चलना, चलते जाना, प्रगति करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—उदित होना, उत्पन्न होना, फूट निकलना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—होना, घटित होना, आ पड़ना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—आरंभ करना, शुरू करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—प्रयत्न करना, जोर लगाना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—अमल करना, अनुसरण करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—कार्य में लगना, व्यस्त होना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—करना, कार्य में लगना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—व्यवहार करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—व्याप्त होना, विद्यमान होना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—ठीक उतरना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृत्—-—बिना रुकावट के प्रगति करना, फलना-फूलना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—प्र-वृत्—-—प्रगति करना, जारी करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—प्र-वृत्—-—सूत्रपात करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—प्र-वृत्—-—जारी करना, स्थापित करना, बुनियाद रखना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—प्र-वृत्—-—हांकना, प्रेरित करना, उकसाना, उद्दीप्त करना
प्रवृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—प्र-वृत्—-—उन्नति करना, प्रगति करना
प्रतिनिवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्रतिनि-वृत्—-—पीठ मोड़ना, लौटना
प्रतिनिवृत् —भ्वा॰उभ॰—प्रतिनि-वृत्—-—चक्कर काटना
विवृत् —भ्वा॰उभ॰—वि-वृत्—-—मुड़ना, लूढ़कना, चक्कर काटना, घूमना
विवृत् —भ्वा॰उभ॰—वि-वृत्—-—एक ओर हो जाना, झुकना
विवृत् —भ्वा॰उभ॰—वि-वृत्—-—होना, घटित होना
विनिवृत् —भ्वा॰उभ॰—विनि-वृत्—-—लौटना
विनिवृत् —भ्वा॰उभ॰—विनि-वृत्—-—रुक जाना, अन्त होना
विनिवृत् —भ्वा॰उभ॰—विनि-वृत्—-—हाथ खींचना, मुड़ जाना, अलग रहना
विपरिवृत् —भ्वा॰उभ॰—विपरि-वृत्—-—चक्कर काटना
व्यपवृत् —भ्वा॰उभ॰—व्यप-वृत्—-—लौटना, वापिस मुड़ना
व्यपवृत् —भ्वा॰उभ॰—व्यप-वृत्—-—हाथ खींचना, छोड़ देना
व्यावृत् —भ्वा॰उभ॰—व्या-वृत्—-—वापिस होना, मुड़ना
व्यावृत् —भ्वा॰उभ॰—व्या-वृत्—-—मुड़ना, हटना, उलट होना
व्यावृत् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰—व्या-वृत्—-—प्रतिबन्ध लगाना, सीमित करना, निकाल देना, गिरफ्तार करना
संवृत् —भ्वा॰उभ॰—सम्-वृत्—-—होना, घटित होना
संवृत् —भ्वा॰उभ॰—सम्-वृत्—-—पैदा होना, उदय होना, फूटना, निकलना
संवृत् —भ्वा॰उभ॰—सम्-वृत्—-—घटित होना, आ पड़ना
संवृत् —भ्वा॰उभ॰—सम्-वृत्—-—सम्पन्न होना
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वृ + क्त—छांटा गया, चुना गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढका गया, पर्दा डाला गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छिपाया गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घेरा गया, लपेटा गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहमत या सम्मत
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—किराये पर लिया गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बिगाड़ा गया, विषाक्त किया गया
वृत् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सेवित, सेवा किया गया
वृत्तिः —स्त्री॰—-—वृ + क्तिन्—छांटना, चुनना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—छिपाना, ढकना,गुप्त रखना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—याचना करना, निवेदन करना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—अनुरोध, प्रार्थना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—घेरना, लपेटना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—झाड़बंदी, बाड़, बाड़ा
वृतिंकर —वि॰—-—वृति + कृ + ट, मुम्—घेरने वाला, लपेटने वाला
वृतिंकर —वि॰—-—-—विकंकत नाम का पेड़
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वृत + क्त—जीवित, विद्यमान
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घटित, संभूत
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्पूरित, समाप्त
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनुष्ठित, कृत, किया गया
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गुजरा हुआ, बीता हुआ
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गोल, वर्तुलाकार
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मृत, स्वर्गगत
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दृढ़, स्थिर
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पठित, अधीत
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—व्युत्पन्न
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रसिद्ध
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—बात, घटना
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—इतिहास, वर्णन
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—समाचार, खबर
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—प्रवर्तन, पेशा, जीवनवृत्ति, व्यवसाय
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—आचरण, व्यवहार, रीति, कर्म, कृत्य
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—साधु या सत्य आचरण
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—माना हुआ नियम या प्रचलन का पालन करना, कर्तव्य
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—गोल घेरा, वृत्त की परिधि
वृत्तम् —नपुं॰—-—-—छन्द, विशेषकर मात्राओं की गणना के आधार पर विनियमित
वृत्तानुपूर्व —वि॰—वृत्त-अनुपूर्व—-—गोल शुंडाकार
वृत्तानुसारः —पुं॰—वृत्त-अनुसारः—-—विहित नियमों की अनुरूपता
वृत्तानुसारः —पुं॰—वृत्त-अनुसारः—-—छन्द की अनुरूपता
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—अवसर, घटना, बात
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—समाचार, ख़बर, गुप्तवार्ता
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—वर्णन, इतिहास, कथा, आख्यान, कहानी
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—बिषय, प्रकरण
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—प्रकार, क़िस्म
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—ढंग, रीति
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—अवस्था, दशा
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—कुलयोग, समष्टि
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—विश्राम, अवकाश
वृत्तान्तः —पुं॰—वृत्त-अन्तः—-—गुण, प्रकृति
वृत्तिर्वारुः —पुं॰—वृत्त-इर्वारुः—-—तरवूज़, सरदा
वृत्तकर्कटी —स्त्री॰—वृत्त-कर्कटी—-—तरवूज़, सरदा
वृत्तगन्धि —नपुं॰—वृत्त-गन्धि—-—एक प्रकार का गद्य जो पढ़ने में पद्य जैसा आनन्द दे
वृत्तचूड —वि॰—वृत्त-चूड—-—मुंडित, जिसका मुंडन संस्कार हो चुका हो
वृत्तचौल —वि॰—वृत्त-चौल—-—मुंडित, जिसका मुंडन संस्कार हो चुका हो
वृत्तपुष्पः —पुं॰—वृत्त-पुष्पः—-—बेत, बानीर
वृत्तपुष्पः —पुं॰—वृत्त-पुष्पः—-—सिरस का पेड़
वृत्तपुष्पः —पुं॰—वृत्त-पुष्पः—-—कदम्ब का पेड़
वृत्तफलः —पुं॰—वृत्त-फलः—-—बेर, उन्नाव का पेड़
वृत्तफलः —पुं॰—वृत्त-फलः—-—अनार का पेड़
वृत्तशस्त्र —वि॰—वृत्त-शस्त्र—-—जिसने शस्त्र विज्ञान में पांडित्य प्राप्त कर लिया है
वृत्तिः —स्त्री॰—-—वृत् + क्तिन्—अस्तित्व, सत्ता
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—टिकना, रहना, रुख, किसी विशेष स्थिति में होना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—अवस्था, दशा
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—कार्य, गति, कृत्य, कार्यवाही
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—क्रम, प्रणाली
वृत्तिः —स्त्री॰—`—-—आचरण, व्यवहार, रीति, चालचलन, कार्यपद्धति
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—पेशा, व्यवसाय, काम-धंधा, रोज़गार, जीवनचर्या
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—जीविका, संपोषण, जीविका के उपाय
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—मज़दूरी, भाड़ा
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—क्रियाशीलता का कारण
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—सम्मानपूर्ण बर्ताव
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—भाष्य, टीका, विवृति
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—चक्कर काटना, मुड़ना
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—किसी वृत्त या पहिये की परिधि
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—जटिल रचना जिसकी व्याख्या करने की आवश्यकता पड़े
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—शब्द की वह शक्ति जिसके द्वारा किसी अर्थ का अभिधान, संकेत अथवा व्यंजना की जाय
वृत्तिः —स्त्री॰—-—-—रचना की शैली
वृत्तानुप्रासः —पुं॰—वृत्तिः-अनुप्रासः—-—एक प्रकार का अनुप्रास
वृत्तोपायः —पुं॰—वृत्तिः-उपायः—-—जीविका का उपाय
वृत्तिकर्षित —वि॰—वृत्तिः-कर्षित—-—जीविका के अभाव में अत्यन्त दुःखी
वृत्तिचक्रम् —नपुं॰—वृत्तिः-चक्रम्—-—राज चक्र
वृ्त्तिछेदः —पुं॰—वृत्तिः-छेदः—-—जीविका के साधनों से वञ्चित
वृत्तिभगः —पुं॰—वृत्तिः-भगः—-—जीविका का अभाव
वृत्तिवैकल्यम् —नपुं॰—वृत्तिः-वैकल्यम्—-—जीविका का अभाव
वृत्तिस्थ —वि॰—वृत्तिः-स्थ—-—किसी भी स्थिति या नियुक्ति में रहने वाला
वृत्तिस्थ —वि॰—वृत्तिः-स्थ—-—सदाचारी, अच्छा बर्ताव करने वाला
वृत्तिस्थः —पुं॰—वृत्तिः-स्थः—-—छिपकली, गिरगिट
वृत्रः —पुं॰—-—वृत् + रक्—एक राक्षस का नाम जिसे इन्द्र ने मार गिराया था
वृत्रारिः —पुं॰—वृत्रः-अरिः—-—इन्द्र के विशेषण
वृत्रद्विष् —पुं॰—वृत्रः-द्विष्—-—इन्द्र के विशेषण
वृत्रशत्रुः —पुं॰—वृत्रः-शत्रुः—-—इन्द्र के विशेषण
वृत्रहन् —पुं॰—वृत्रः-हन्—-—इन्द्र के विशेषण
वृथा —अव्य॰—-—वृ + थाल् किच्च—बिना किसी अभिप्राय के, व्यर्थ, निरर्थक, बिना किसी लाभ के
वृथा —अव्य॰—-—-—अनावश्यक रूप से
वृथा —अव्य॰—-—-—मूर्खता से, आलस्य पूर्वक, बलगाम
वृथा —अव्य॰—-—-—गलत तरीके से, अनुचित रूप से
वृथाट्या —स्त्री॰—वृथा-अट्या—-—अलसत के साथ टहलना, सामोद भ्रमण करना
वृथाकारः —पुं॰—वृथा-आकारः—-—मिथ्या रूप, खाली तमाशा
वृथाकथा —स्त्री॰—वृथा-कथा—-—बेहूदी बात
वृथाजन्मन् —नपुं॰—वृथा-जन्मन्—-—अलाभकर या व्यर्थ जन्म
वृथादानम् —नपुं॰—वृथा-दानम्—-—वह उपहार जो प्रतिज्ञात होने पर भी न दिया गया हो
वृथामति —वि॰—वृथा-मति—-—दुर्बृद्धि, मूर्ख
वृथामांसम् —नपुं॰—वृथा-मांसम्—-—वह मांस जो देवताओं या पितरों के लिए अभिप्रेत न हो
वृथावादिन् —वि॰—वृथा-वादिन्—-—मिथ्या भाषी
वृथाश्रमः —पुं॰—वृथा-श्रमः—-—व्यर्थ चेष्टा या कष्ट उठाना
वृद्ध —वि॰—-—वृध् + क्त—बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त
वृद्ध —वि॰—-—-—पूर्णविकसित, बड़ी उम्र का
वृद्ध —वि॰—-—-—बूढ़ा, वयोवृद्ध, बहुत वर्षों का
वृद्ध —वि॰—-—-—प्रगत या विकसित
वृद्ध —वि॰—-—-—बड़ा, विशाल
वृद्ध —वि॰—-—-—एकत्रित, संचित
वृद्ध —वि॰—-—-—बुद्धिमान्, विद्वान्
वृद्धः —पुं॰—-—-—बूढ़ा व्यक्ति
वृद्धः —पुं॰—-—-—योग्य या आदरणीय पुरुष
वृद्धः —पुं॰—-—-—मुनि, सन्त
वृद्धम् —नपुं॰—-—-—गुग्गुल
वृद्धाङ्गुलिः —स्त्री॰—वृद्ध-अङ्गुलिः—-—पैर का अंगूठा
वृद्धावस्था —स्त्री॰—वृद्ध-अवस्था—-—बुढ़ापा
वृद्धाचारः —पुं॰—वृद्ध-आचारः—-—प्राचीन प्रथा
वृद्धुक्षः —पुं॰—वृद्ध-उक्षः—-—बूढ़ा बैल
वृद्धकाकः —पुं॰—वृद्ध-काकः—-—पहाड़ी कौवा
वृद्धनाभि —वि॰—वृद्ध-नाभि—-—स्थूलकाय, मोटे पेट वाला
वृद्धभावः —पुं॰—वृद्ध-भावः—-—बुढ़ापा
वृद्धमतः —पुं॰—वृद्ध-मतः—-—प्राचीन ऋषियों का उपदेश
वृद्धवाहनः —पुं॰—वृद्ध-वाहनः—-—आम का पेड़
वृद्धश्रवस् —पुं॰—वृद्ध-श्रवस्—-—इन्द्र का विशेषण
वृद्धसंघः —पुं॰—वृद्ध-संघः—-—वृद्धजनों की सभा
वृद्धसूत्रकम् —नपुं॰—वृद्ध-सूत्रकम्—-—रूई का गल्हा, कपास का गाला, इन्द्रतूल
वृद्धा —स्त्री॰—-—वृद्ध + टाप्—बूढ़ी स्त्री
वृद्धा —स्त्री॰—-—-—वंशजा (स्त्री)
वृद्धिः —स्त्री॰—-—वृध् + क्तिन्—विकास, वढ़ोत्तरी, वर्धन, सम्बर्धन
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—(चन्द्रमा का) वर्धित होना, चन्द्रमा की कलाओं का बढ़ना
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—धन की वृद्धि, समृद्धि, धनाढ्यता
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—सफलता, बढ़ावत, उन्नति, प्रगति
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—दौलत, जायदाद
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—ढेर, परिमाण, समुच्चय
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—सूद, व्याज,
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—सूदखोरी
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—लाभ फायदा
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—अंडकोष की वृद्धि
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—शक्ति या राजस्व का विस्तार
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—स्वरों का लंबा करना या वृद्धि
वृद्धिः —स्त्री॰—-—-—परिवार में, (प्रसव के कारण) उत्पन्न अशौच, जननाशौच
वृद्ध्याजीवः —पुं॰—वृद्धिः-आजीवः—-—सूदखोर, साहुकार, व्याज पर रुपया उधार देनेवाला
वृद्ध्याजीविन् —पुं॰—वृद्धिः-आजीविन्—-—सूदखोर, साहुकार, व्याज पर रुपया उधार देनेवाला
वृद्धिजीवनम् —नपुं॰—वृद्धिः-जीवनम्—-—सूदखोरी, साहूकारी
वृद्धिजीविका —स्त्री॰—वृद्धिः-जीविका—-—सूदखोरी, साहूकारी
वृद्धिद —वि॰—वृद्धिः-द—-—समृ्द्धि को उन्नत करने वाला
वृद्धिपत्रम् —नपुं॰—वृद्धिः-पत्रम्—-—एक प्रकार का उस्तरा
वृद्धिश्राद्धम् —नपुं॰—वृद्धिः-श्राद्धम्—-—पुत्रजन्मादि के उत्सवों पर पितरों का श्राद्ध, नान्दीमुख श्राद्ध
वृध् —भ्वा॰ आ॰ —-—-—विकसित होना, बढ़ना, विस्तृत होना, मजबूत या बलवान् होना, फलना, समृद्ध होना
वृध् —भ्वा॰ आ॰ —-—-—जारी रखना, टिकाऊ रहना
वृध् —भ्वा॰ आ॰ —-—-—उठना, चढ़ना
वृध् —भ्वा॰ आ॰ —-—-—बधाई का कारण होना
वृध् —भ्वा॰उभ॰प्रेर॰ <वर्धयति>, <वर्धयते>—-—-—विकसित कराना, बढ़ाना, वृद्धियुक्त करना, ऊँचा उठाना, ऊँचा करना, उन्नत करना
वृध् —भ्वा॰उभ॰प्रेर॰ <वर्धयति>, <वर्धयते>—-—-—समृद्ध कराना, यशस्वी बनाना, विस्तीर्ण करना, बड़ाई करना
वृध् —भ्वा॰उभ॰प्रेर॰ <वर्धयति>, <वर्धयते>—-—-—बधाई देना, अभिनन्दन करना
वृध् —भ्वा॰उभ॰प्रेर॰ <वर्धयति>, <वर्धयते>—-—-—विकसित होना, बढ़ना
परिवृध् —भ्वा॰उभ॰—परि-वृध्—-—विकसित होना, बढ़ना, समृद्ध होना
प्रवृध् —भ्वा॰उभ॰—प्र-वृध्—-—विकसित होना, बढ़ना, समृद्ध होना
विवृध् —भ्वा॰उभ॰—वि-वृध्—-—विकसित होना, बढ़ना, समृद्ध होना
संवृध् —भ्वा॰उभ॰—सम्-वृध्—-—बढ़ना
वृध् —चुरा॰ उभ॰ <वर्धयति>,<वर्धयते>—-—-—बोलना, चमकना
वृधसानः —पुं॰—-—वृधेः छन्दसि असानच्, कित्—मनुष्य
वृधसानुः —पुं॰—-—वृध् + असानुच्—मनुष्य
वृधसानुः —पुं॰—-—-—कर्म, कार्य
वृन्तम् —नपुं॰—-—वृ + क्त, नि॰ मुम्—किसी फल या पत्ते का डंठल, डंडी
वृन्तम् —नपुं॰—-—-—घड़ौंची
वृन्तम् —नपुं॰—-—-—स्तन का बौंडा या अग्रभाग
वृन्ताकः —पुं॰—-—वृन्त + अक् + अण्—बैंगन का पौधा
वृन्ताकी —स्त्री॰—-—वृन्त + अक् + अण्—बैंगन का पौधा
वृन्तिका —स्त्री॰—-—वृन्त + कन् + टाप्, इत्वम्—छोटा डंठल
वृन्दम् —नपुं॰—-—वृ + दन्, नुम्, गुणाभावः—समुच्चय, समूह बड़ी संख्या, दल
वृन्दम् —नपुं॰—-—-—ढेर, परिमाण
वृन्दा —स्त्री॰—-—वृन्द + टाप्—पवित्र तुलसी
वृन्दा —स्त्री॰—-—-—गोकुल के निकट एक वन
वृन्दारण्यम् —नपुं॰—वृन्दा-अरण्यम्—-—गोकुल के निकट एक जंगल
वृन्दावनी —स्त्री॰—वृन्दा-वनी—-—तुलसी का पौधा
वृन्दार —वि॰—-—वृन्द + ऋ + अण्—अधिक, बड़ा, विशाल
वृन्दार —वि॰—-—-—प्रमुख, उत्तम, श्रेष्ठ
वृन्दार —वि॰—-—-—सुहावना, आकर्षक, सुन्दर
वृन्दारक —वि॰—-—वृन्द + आरकन्, पक्षे टाप्, इत्वम् च—अधिक, बड़ा, बहुत
वृन्दारक —वि॰—-—-—प्रमुख, उत्तम, श्रेष्ठ
वृन्दारक —वि॰—-—-—सुहावना, आकर्षक, सुन्दर, मनोहर
वृन्दारक —वि॰—-—-—आदरणीय, सम्माननीय
वृन्दारकः —पुं॰—-—-—देव, सुर
वृन्दारकः —पुं॰—-—-—किसी भी चीज़ का मुख्य
वृन्दिष्ठ —वि॰ —-—अयमेषामतिशयेन वृन्दारकः-इष्ठन्, वृन्दादेशः—अत्यंत बड़ा या विशालतम
वृन्दिष्ठ —वि॰ —-—-—अत्यंत मनोहर, सुन्दरतम
वृन्दीयस् —वि॰ —-—`वृन्दारक' की म॰ अ॰ अयमनयोरतिशयेन वृन्दारकः + ईयसुन्, वृन्दादेशः—अपेक्षाकृत बड़ा, विशालतर
वृन्दीयस् —वि॰ —-—-—अपेक्षाकृत मनोहर, सुन्दरतर
वृश् —दिवा॰ पर॰ <वृश्यति>—-—-—छाँटना, चुनना
वृशः —पुं॰—-—वृश् + क—चूहा
वृशा —स्त्री॰—-—-—एक औषधि, अडूसा
वृश्चिकः —पुं॰—-—व्रश्च् + किकन्—बिच्छू
वृश्चिकः —पुं॰—-—-—वृंश्चिक राशि
वृश्चिकः —पुं॰—-—-—केंकड़ा
वृश्चिकः —पुं॰—-—-—कानखजूरा
वृश्चिकः —पुं॰—-—-—बसूंडवा, गोबर का कीड़ा
वृश्चिकः —पुं॰—-—-—एक रोएंदार कीड़ा
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—बरसना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—वारिश करना, उडेलना, बौछार करना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—बरसाना ढलकाना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—अनुदान देना, अर्पण करना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—तर करना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—पैदा करना, उत्पन्न करना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—सर्वोपरि शवित रखना
वृष् —भ्वा॰ पर॰ <वर्षति>, <वृष्ट>—-—-—प्रहार करना, चोट मारना
अभिवृष् —भ्वा॰ पर॰—अभि-वृष्—-—बौछार करना, बरसाना, उडेलना, छिड़कना
अभिवृष् —भ्वा॰ पर॰—अभि-वृष्—-—प्रदान करना, अर्पण करना
प्रवृष् —भ्वा॰ पर॰—प्र-वृष्—-—बरसाना, बौछार करना
वृष् —चुरा॰ आ॰ <वर्षयते>—-—-—शक्तिशाली या प्रमुख होना
वृष् —चुरा॰ आ॰ <वर्षयते>—-—-—उत्पन्न करने की शक्ति रखना
वृषः —पुं॰—-—वृष् + क—साँड
वृषः —पुं॰—-—-—किसी वर्ग का मुख्य या उत्तम, अपने दल का सर्वश्रेष्ठ
वृषः —पुं॰—-—-—मज़बूत या व्यायाम शील व्यक्ति
वृषः —पुं॰—-—-—कामातुर, रतिग्रंथों में वर्णित चार प्रकार के पुरुषों में से एक
वृषः —पुं॰—-—-—शत्रु, विपक्षी
वृषः —पुं॰—-—-—शिव का नंदी बैल
वृषः —पुं॰—-—-—नैतिकता, न्याय
वृषः —पुं॰—-—-—गुण, सत्कर्म या पुण्यकार्य
वृषः —पुं॰—-—-—कर्ण का नामान्तर
वृषः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
वृषः —पुं॰—-—-—एक विशेष औषधि का नाम
वृषम् —नपुं॰—-—-—मोर का पंख
वृषाङ्कः —पुं॰—वृषः-अङ्कः—-—शिव का विशेषण
वृषाङ्कः —पुं॰—वृषः-अङ्कः—-—पुण्यात्मा, सद्गुणी
वृषाङ्कः —पुं॰—वृषः-अङ्कः—-—भिलावाँ
वृषाङ्कः —पुं॰—वृषः-अङ्कः—-—षंढ
वृषजः —पुं॰—वृषः-जः—-—छोटा ढोल
वृषाञ्चनः —पुं॰—वृषः-अञ्चनः—-—शिव का विशेषण
वृषान्तकः —पुं॰—वृषः-अन्तकः—-—विष्णु का विशेषण
वृषाहारः —पुं॰—वृषः-आहारः—-—बिलाव
वृषोत्सर्गः —पुं॰—वृषः-उत्सर्गः—-—मृत पुरुष के नाम पर दाग कर साँड़ छोड़ना
वृषदंशः —पुं॰—वृषः-दंशः—-—बिलाव
वृषदंशकः —पुं॰—वृषः-दंशकः—-—बिलाव
वृषध्वजः —पुं॰—वृषः-ध्वजः—-—शिव का विशेषण
वृषध्वजः —पुं॰—वृषः-ध्वजः—-—गणेश का विशेषण
वृषध्वजः —पुं॰—वृषः-ध्वजः—-—सद्गुणी, पुण्यात्मा
वृषपतिः —पुं॰—वृषः-पतिः—-—शिव का विशेषण
वृषपर्वन् —पुं॰—वृषः-पर्वन्—-—शिव का विशेषण
वृषपर्वन् —पुं॰—वृषः-पर्वन्—-—एक राक्षस का नाम
वृषपर्वन् —पुं॰—वृषः-पर्वन्—-—वर्र, भिरड़
वृषभासा —स्त्री॰—वृषः-भासा—-—इन्द्र और देवताओं का आवास
वृषलोचनः —पुं॰—वृषः-लोचनः—-—बिलाव
वृषवाहनः —पुं॰—वृषः-वाहनः—-—शिव का विशेषण
वृषणः —पुं॰—-—वृष् + क्यु—अंडकोष, अंड या फोते
वृषन् —पुं॰—-—वृष् + कनिन्—साँड
वृषन् —पुं॰—-—-—किसी वर्ग का मु्खिया
वृषन् —पुं॰—-—-—बीजाश्व, साँड, घोड़ा
वृषन् —पुं॰—-—-—पीड़ा, शोक
वृषन् —पुं॰—-—-—पीड़ा के प्रति असंवेद्यता
वृषन् —पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
वृषन् —पुं॰—-—-—कर्ण का नाम
वृषन् —पुं॰—-—-—अग्नि का नाम
वृषभः —पुं॰—-—वृष् + अभच् किच्च—साँड
वृषभः —पुं॰—-—-—कोई भी नर जानवर
वृषभः —पुं॰—-—-—अपने वर्ग का मुखिया
वृषभः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की औषधि
वृषभः —पुं॰—-—-—हाथी का कान
वृषभः —पुं॰—-—-—कान का विवर
वृषभगतिः —पुं॰—वृषभः-गतिः—-—शिव के विशेषण
वृषभध्वजः —पुं॰—वृषभः-ध्वजः—-—शिव के विशेषण
वृषभी —स्त्री॰—-— वृषभ + ङीष्—विधवा
वृषलः —पुं॰—-—वृष् + कलच्—शूद्र
वृषलः —पुं॰—-—-—पापी, दुष्ट, अधर्मी
वृषलः —पुं॰—-—-—जाति से बहिष्कृत
वृषलः —पुं॰—-—-—चन्द्रगुप्त का नाम
वृषलकः —पुं॰—-—वृषल + कन्—तिरस्करणीय शूद्र
वृषली —स्त्री॰—-—वृषल + ङीष्—बारह वर्ष की अविवाहित कन्या, रजस्वला होने पर भी विवाह न होने के कारण पिता के घर रहने वाली कन्या
वृषली —स्त्री॰—-—-—रजस्वला
वृषली —स्त्री॰—-—-—बांझ स्त्री
वृषली —स्त्री॰—-—-—सद्योजात बच्चे की माता
वृषली —स्त्री॰—-—-—शूद्र की पत्नी या शूद्रा स्त्री
वृषलीपतिः —पुं॰—वृषली-पतिः—-—शूद्र स्त्री का पति
वृषलीसेवनम् —नपुं॰—वृषली-सेवनम्—-—शूद्रा स्त्री के साथ संभोग
वृषसृक्की —स्त्री॰ —-—-—बर्र, भिरड़
वृषस्यत्नी —स्त्री॰—-—वृष + क्यच्, सुक्, शतृ + ङीप्, नुम्—संभोग करने की इच्छा वाली स्त्री
वृषस्यत्नी —स्त्री॰—-—-—कामासक्ता या कामातुरा स्त्री
वृषस्यत्नी —स्त्री॰—-—-—गर्भायी हुई गाय
वृषाकपायी —स्त्री॰—-—वृषाकपेः पत्नी-वृषाकपि + ङीष्, ऐ आदेशः—लक्ष्मी का विशेषण
वृषाकपायी —स्त्री॰—-—-—गौरी का विशेषण
वृषाकपायी —स्त्री॰—-—-—शची का विशेषण
वृषाकपायी —स्त्री॰—-—-—अग्नि की पत्नी स्वाहा का विशेषण
वृषाकपायी —स्त्री॰—-—-—सूर्य की पत्नी ऊषा का विशेषण
वृषाकपिः —पुं॰—-—वृषः कपिः अस्य- ब॰ स॰, पूर्वपददीर्घः—सूर्य का विशेषण
वृषाकपिः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
वृषाकपिः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
वृषाकपिः —पुं॰—-—-—इन्द्र का विशेषण
वृषाकपिः —पुं॰—-—-—अग्नि का विशेषण
वृषायणः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
वृषायणः —पुं॰—-—-—गोरैया चिड़िया
वृषिन् —पुं॰—-—वृष् + इनि—मोर
वृषी —स्त्री॰—-—-—संन्यासी या ब्रह्मचारी का आसन
वृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वृष् + क्त—बरसा हुआ
वृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बरसता हुआ
वृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बौछार करता हुआ, उडेलता हुआ
वृष्टिः —स्त्री॰—-—वृष् + क्तिन्—बारिश, बारिश की बौछार
वृष्टिः —स्त्री॰—-—-—(किसी भी वस्तु की) बौछार
वृष्टिकालः —पुं॰—वृष्टिः-कालः—-—बरसात का समय
वृष्टिजीवन —वि॰—वृष्टिः-जीवन—-—बारिश द्वारा सिंचित (प्रदेश)
वृष्टिभूः —पुं॰—वृष्टिः-भूः—-—मेंढक
वृष्टिमत् —वि॰—-—वृष्टि + मतुप्—बरसने वाला, बरसाती
वृष्णि —वि॰—-—वृषेः निः किच्च—धर्मभ्रष्ट, पाखंडी
वृष्णि —वि॰—-—-—क्रुद्ध, कोपाविष्ट
वृष्णि —पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
वृष्णि —पुं॰—-—-—कृष्ण के किसी पूर्वज का नाम
वृष्णि —पुं॰—-—-—कृष्ण का नाम
वृष्णिगर्भः —पुं॰—वृष्णि-गर्भः—-—कृष्ण का विशेषण
वृष्य —वि॰—-—वृष् + क्यप्—जिसके ऊपर बरस सके, बौछार की जा सके
वृष्य —वि॰—-—-—कामोद्दीपक, वाजीकर, पुंस्त्व बढ़ाने वाला
वृष्यः —पुं॰—-—-—माष, उड़द
वृह् —भ्वा॰तुदा॰पर॰—-—-—उगना, बढ़ना, फैलाना
वृह् —भ्वा॰तुदा॰पर॰—-—-—दहाड़ना
उद्वृह् —भ्वा॰ पर॰—उद्-वृह्—-—उठाना, ऊपर को करना
निवृह् —भ्वा॰ पर॰—नि-वृह्—-—नष्ट करना, हटाना
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—विस्तृत, विशाल, बड़ा, स्थूल
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—चौड़ा, प्रशस्त, विस्तृत, दूर तक फैला हुआ
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—विस्तृत, यथेष्ट, प्रचुर
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—मजबूत, शक्तिशाली
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—लम्बा, ऊँचा
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—पूर्णविकसित
वृहत् —वि॰—-—वृह् + अति—सटा हुआ, सघन
वृहत् —नपुं॰—-—-—सामवेद का मंत्र (साम)
वृहतिका —स्त्री॰—-—वृहत् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा, चोगा, चादर
वृहती —स्त्री॰—-—वृह् + अति + ङीष्—नारद की वीणा
वृहती —स्त्री॰—-—-—छत्तीस की संख्य़ा
वृहती —स्त्री॰—-—-—दुपट्टा, चोगा, आवरण
वृहती —स्त्री॰—-—-—भाषण आशय
वृहतीपतिः —पुं॰—वृहती-पतिः—-—बृहस्पति का विशेषण
वृहस्पतिः —पुं॰—-—वृहतः वाचः पतिः-पारस्करादि॰—देवों के गुरु
वृहस्पतिः —पुं॰—-—-—बृहस्पति ग्रह
वृहस्पतिः —पुं॰—-—-—एक स्मृतिकार का नाम
वृ —क्र्या॰ उभ॰ <वृणति>, <वृणोते>, <वूर्ण>, कर्मवा॰ <वूर्यते>, इच्छा॰ <वुवूर्षति>, <वुवूर्षते>, <विवरिषति>, <विवरिषते>—-—-—छांटना, चुनना
वे —भ्वा॰ उभ॰ <वयति>, <वयते>, <उत>, प्रेर॰ <वाययति>, <वाययते>—-—-—बुनना
वे —भ्वा॰ उभ॰ <वयति>, <वयते>, <उत>, प्रेर॰ <वाययति>, <वाययते>—-—-—बाल गूंथना, पौधे लगाना
वे —भ्वा॰ उभ॰ <वयति>, <वयते>, <उत>, प्रेर॰ <वाययति>, <वाययते>—-—-—सीना
वे —भ्वा॰ उभ॰ <वयति>, <वयते>, <उत>, प्रेर॰ <वाययति>, <वाययते>—-—-—बनाना, रचना, नत्थी करना
प्रवे —भ्वा॰ उभ॰—प्र-वे—-—बुनना
प्रवे —भ्वा॰ उभ॰—प्र-वे—-—बांधना, कसना
प्रवे —भ्वा॰ उभ॰—प्र-वे—-—जमाना, स्थिर करना
प्रवे —भ्वा॰ उभ॰—प्र-वे—-—परस्पर बुनना, संग्रथित करना
वेकटः —पुं॰—-—-—युवा पुरुष
वेगः —पुं॰—-—विज् + घञ्—आवेग, संवेग
वेगः —पुं॰—-—-—गति, प्रवेग, शीघ्रता
वेगः —पुं॰—-—-—अतिवेगशीलता, प्रचण्डता, बल
वेगः —पुं॰—-—-—प्रवाह, धारा
वेगः —पुं॰—-—-—तेज, क्रियाशीलता, संकल्प
वेगः —पुं॰—-—-—शक्ति, सामर्थ्य
वेगः —पुं॰—-—-—संचार, क्रिया (विष-आदि का) प्रभाव
वेगः —पुं॰—-—-—शीघ्रता, जल्दबाजी, आकस्मिक आवेग
वेगः —पुं॰—-—-—प्रेम, प्रणयोन्माद
वेगः —पुं॰—-—-—आन्तरिक भाव का बाहर प्रकट होना
वेगः —पुं॰—-—-—आनन्द, प्रसन्नता
वेगः —पुं॰—-—-—शुक्र, वीर्य
वेगानिलः —पुं॰—वेगः-अनिलः—-—आंधी का झोंका
वेगानिलः —पुं॰—वेगः-अनिलः—-—प्रचण्ड वायु
वेगाघातः —पुं॰—वेगः-आघातः—-—अकस्मात् वेग का अवरोध, गति को रोकना
वेगाघातः —पुं॰—वेगः-आघातः—-—मलावरोध, कोष्ठबद्धता
वेगनाशनः —पुं॰—वेगः-नाशनः—-—श्लेष्मा, कफ
वेगवाहिन् —वि॰—वेगः-वाहिन्—-—स्फूर्त, तेज
वेगविधारणम् —नपुं॰—वेगः-विधारणम्—-—गति का रोकना
वेगसरः —पुं॰—वेगः-सरः—-—खच्चर
वेगिन् —वि॰—-—वेग + इनि—तेज, चुस्त, द्रुतगामी, प्रचण्ड, फुर्तीला
वेङ्कटः —पुं॰—-—-—एक पहाड़ का नाम, वेंकटाचल
वेचा —स्त्री॰—-—विच् + अच् + टाप्—भाड़ा, मजदूरी
वेडम् —नपुं॰—-—विड् + अच्—एक प्रकार का चन्दन
वेडा —स्त्री॰—-—वेड + टाप्—किश्ती, नाव
वेण् —भ्वा॰ उभ॰ <वेणति>, <वेणते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वेण् —भ्वा॰ उभ॰ <वेणति>, <वेणते>—-—-—जानना, पहचानना, प्रत्यक्ष करना
वेण् —भ्वा॰ उभ॰ <वेणति>, <वेणते>—-—-—विचारविमर्श करना, सोचना
वेण् —भ्वा॰ उभ॰ <वेणति>, <वेणते>—-—-—लेना
वेण् —भ्वा॰ उभ॰ <वेणति>, <वेणते>—-—-—बाजा वजाना
वेन् —भ्वा॰ उभ॰ <वेनति>, <वेनते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वेन् —भ्वा॰ उभ॰ <वेनति>, <वेनते>—-—-—जानना, पहचानना, प्रत्यक्ष करना
वेन् —भ्वा॰ उभ॰ <वेनति>, <वेनते>—-—-—विचारविमर्श करना, सोचना
वेन् —भ्वा॰ उभ॰ <वेनति>, <वेनते>—-—-—लेना
वेन् —भ्वा॰ उभ॰ <वेनति>, <वेनते>—-—-—बाजा वजाना
वेणः —पुं॰—-—वेण् + अच्—गायक जाति का पुरुष
वेणः —पुं॰—-—-—एक राजा का नाम, अङ्ग का पुत्र और स्वायंभुव मनु का वंशज
वेणा —स्त्री॰—-—वेण + टाप्—एक नदी का नाम (जो कृष्णा नदी में जाकर मिलती है)
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—गुंथे हुए बाल, बालो की मींढी
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—बालों की एक अनलंकृत चोटी जो पीठ पर लटकती रहती हैं
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—अनवच्छिन्न प्रवाह, धारा, सरिता
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—दो या अधिक नदिर्यों का संगम
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम
वेणिः —स्त्री॰—-—वेण् + इन्—एक नदी का नाम
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—गुंथे हुए बाल, बालो की मींढी
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—बालों की एक अनलंकृत चोटी जो पीठ पर लटकती रहती हैं
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—अनवच्छिन्न प्रवाह, धारा, सरिता
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—दो या अधिक नदिर्यों का संगम
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम
वेणी —स्त्री॰—-—वेण् + इन्+ ङीष्—एक नदी का नाम
वेणीबन्धः —पुं॰—वेणी-बन्धः—-—गुथे हुए बाल, मींढी
वेणीवेधनी —स्त्री॰—वेणी-वेधनी—-—जोक
वेणीवेधिनी —स्त्री॰—वेणी-वेधिनी—-—कंघी
वेणीसंहारः —पुं॰—वेणी-संहारः—-—बालों को गूंथ कर मींढी बनाना
वेणीसंहारः —पुं॰—वेणी-संहारः—-—भट्टनारायणकृत एक नाटक का नाम
वेणुः —पुं॰—-—वेण् + उण्—बाँस
वेणुः —पुं॰—-—-—बंसरी, मुरली
वेणुजः —पुं॰—वेणुः-जः—-—बाँस का बीज
वेणुध्मः —पुं॰—वेणुः-ध्मः—-—बाँसुरी बजाने वाला, मुरलीवाला
वेणुनिस्रुतिः —पुं॰—वेणुः-निस्रुतिः—-—ईख
वेणुयष्टिः —पुं॰—वेणुः-यष्टिः—-—बाँस की लकड़ी
वेणुवादः —पुं॰—वेणुः-वादः—-—मुरली वाला, बाँसुरी बजाने वाला
वेणुवादकः —पुं॰—वेणुः-वादकः—-—मुरली वाला, बाँसुरी बजाने वाला
वेणुबीजम् —नपुं॰—वेणुः-बीजम्—-—बाँस का बीज
वेणुकम् —नपुं॰—-—वेणु + कन्—बाँस की मूठ वाला अंकुश
वेणुनम् —नपुं॰—-—वेण् + उनन्—काली मिर्च
वेतनम् —नपुं॰—-—अज् + तनन् वीभावः—किराया, मज़दूरी, भृति, तनख्वाह, वृत्ति @ रघु॰ १७/६६
वेतनम् —नपुं॰—-—-—आजीविका, जीवननिर्वाह का साधन
वेतनादनम् —नपुं॰—वेतनम्-अदानम्—-—पारिश्रमिक या मजदूरी न देना
वेतनादनम् —नपुं॰—वेतनम्-अदानम्—-—मजदूरी न मिलने के कारण किया गया प्रयत्न
वेतनानपाकर्मन् —नपुं॰—वेतनम्-अनपकर्मन्—-—पारिश्रमिक या मजदूरी न देना
वेतनानपाकर्मन् —नपुं॰—वेतनम्-अनपकर्मन्—-—मजदूरी न मिलने के कारण किया गया प्रयत्न
वेतनानपक्रिया —स्त्री॰—वेतनम्-अनपक्रिया—-—पारिश्रमिक या मजदूरी न देना
वेतनानपक्रिया —स्त्री॰—वेतनम्-अनपक्रिया—-—मजदूरी न मिलने के कारण किया गया प्रयत्न
वेतनजीविन् —पुं॰—वेतनम्-जीविन्—-—वृत्ति पाने वाला, वैतनिक
वेतसः —पुं॰—-—अज् + असुन् तुक् च, वीभावः—नरसल, नरकुल, बेत
वेतसः —पुं॰—-—-—नींबू, बिजौरा
वेतसी —स्त्री॰—-—वेतस् + ङीष्—नरसल
वेतस्वत् —वि॰—-—वेतस् + ड मतुप्, मस्य वः—जहाँ नरकुल बहुतायत से पाये जायँ
वेतालः —पुं॰—-—अज् + विच्, वी आदेशः, तल् + घञ् कर्म॰ स॰—एक प्रकार की भूतयोनि, विशाच, प्रेत, विशेषकर शव पर अधिकार रखने वाला भूत @ मा॰ ५/२३, @ शि॰ २०/६०
वेत्तृ —पुं॰—-—विद् + तृच्—ज्ञाता
वेत्तृ —पुं॰—-—-—ऋषि, मुनि
वेत्तृ —पुं॰—-—-—पति, पाणिग्रहीता
वेत्रः —पुं॰—-—अज् + त्रल्, वी भावः—वेत, नरसल
वेत्रः —पुं॰—-—-—लाठी, छड़ी, विशेष कर द्वारपाल की छड़ी
वेत्रासनम् —नपुं॰—वेत्रः-आसनम्—-—बेंत की बनी गद्दी
वेत्रधरः —पुं॰—वेत्रः-धरः—-—द्वारपाल
वेत्रधरः —पुं॰—वेत्रः-धरः—-—आसाधारी, छड़ीबरदार
वेत्रधारकः —पुं॰—वेत्रः-धारकः—-—द्वारपाल
वेत्रधारकः —पुं॰—वेत्रः-धारकः—-—आसाधारी, छड़ीबरदार
वेत्रकीय —वि॰—-—वेत्र + छ, कुक्—वेत्रबहुल, जहाँ नरकुल बहुत पाये जायँ
वेत्रवती —स्त्री॰—-—वेत्र + मतुप् + ङीष्—स्त्री द्बारपाल
वेत्रवती —स्त्री॰—-—-—एक नदी का नाम
वेथ् —भ्वा॰ आ॰ <वेथन्ते>—-—-—प्रार्थना, निवेदन करना, कहना
वेदः —पुं॰—-—विद् + घञ्, अच् वा—ज्ञान
वेदः —पुं॰—-—-—आध्यात्मिक या धार्मिक ज्ञान, हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ
वेदः —पुं॰—-—-—कुशा घास का गुच्छा
वेदः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
वेदाङ्गम् —नपुं॰—वेदः-अङ्गम्—-—`वेद का अंग' एक प्रकार के ग्रन्थ जो वेदाध्ययन में सहायक हैं
वेदाधिगमः —पुं॰—वेदः-अधिगमः—-—धार्मिक अध्ययन, वेदाध्ययन
वेदाध्ययनम् —नपुं॰—वेदः-अध्ययनम्—-—धार्मिक अध्ययन, वेदाध्ययन
वेदाध्यापकः —पुं॰—वेदः-अध्यापकः—-—वेद का पढ़ाने वाला, धर्मगुरु
वेदान्तः —पुं॰—वेदः-अन्तः—-—`वेद का अन्त' (वेद के अन्त में आने वालीं) उपनिषद्
वेदान्तः —पुं॰—वेदः-अन्तः—-—हिन्दुओं के छः मुख्य दर्शनों में अन्तिम दर्शन
वेदगः —पुं॰—वेदः-गः—-—वेदान्त दर्शन का अनुयायी
वेदज्ञः —पुं॰—वेदः-ज्ञः—-—वेदान्त दर्शन का अनुयायी
वेदान्तिन् —पुं॰—वेदः-अन्तिन्—-—वेदान्त दर्शन का अनुयायी
वेदार्थः —पुं॰—वेदः-अर्थः—-—वेदों का अर्थ
वेदावतारः —पुं॰—वेदः-अवतारः—-—वेदों का प्रकटीकरण, अर्थात् ईश्वरीय संदेश
वेदादि —नपुं॰—वेदः-आदि—-—`ओम् की पुनीत ध्वनि
वेदादिवर्णः —पुं॰—वेदः-आदिवर्णः—-—`ओम् की पुनीत ध्वनि
वेदादिबीजम् —नपुं॰—वेदः-आदिबीजम्—-—`ओम् की पुनीत ध्वनि
वेदोक्त —वि॰—वेदः-उक्त—-—शास्त्रसम्मत, वेदविहित
वेदकौलेयकः —पुं॰—वेदः-कौलेयकः—-—शिव का विशेषण
वेदगर्भः —पुं॰—वेदः-गर्भः—-—ब्रह्म का विशेषण
वेदगर्भः —पुं॰—वेदः-गर्भः—-—वेदों का ज्ञाता ब्राह्मण
वेदज्ञः —पुं॰—वेदः-ज्ञः—-—वेदों को जानने वाला ब्राह्मण
वेदत्रयम् —नपुं॰—वेदः-त्रयम्—-—सामूहिक रूप से तीनों वेद
वेदत्रयी —स्त्री॰—वेदः-त्रयी—-—सामूहिक रूप से तीनों वेद
वेदनिन्दकः —पुं॰—वेदः-निन्दकः—-—नास्तिक, पाखण्डी, श्रद्धाहीन
वेदनिन्दा —स्त्री॰—वेदः-निन्दा—-—अविश्वास, पाखण्ड
वेदपारगः —पुं॰—वेदः-पारगः—-—वेदों में पारंगत ब्राह्मण
वेदमातृ —स्त्री॰—वेदः-मातृ—-—वैदिक पुनीत मंत्र, गायत्रीमंत्र
वेदवचनम् —नपुं॰—वेदः-वचनम्—-—वेद का मूलपाठ
वेदवाक्यम् —नपुं॰—वेदः-वाक्यम्—-—वेद का मूलपाठ
वेदवदनम् —नपुं॰—वेदः-वदनम्—-—व्याकरण
वेदवासः —पुं॰—वेदः-वासः—-—ब्राह्मण
वेदबाह्य —वि॰—वेदः-बाह्य—-—वेद के विरुद्ध, जो वेद में उपलब्ध न हो
वेदविद् —पुं॰—वेदः-विद्—-—वेदविशारद ब्राह्मण
वेदव्यासः —पुं॰—वेदः-व्यासः—-—व्यास का विशेषण जिसने वेदों वर्तामान रूप दिया है
वेदसंन्यासः —पुं॰—वेदः-संन्यासः—-—वेदों के कर्मकाण्ड का त्याग
वेदनम् —नपुं॰—-—विद् + ल्युट्—ज्ञान, प्रत्यक्षज्ञान
वेदनम् —नपुं॰—-—-—भावना, संवेदन
वेदनम् —नपुं॰—-—-—पीडा, संताप, क्लेश, आधि
वेदनम् —नपुं॰—-—-—अधिग्रहण, दौलत, जायदाद
वेदना —स्त्री॰—-—विद् + ल्युट्—ज्ञान, प्रत्यक्षज्ञान
वेदना —स्त्री॰—-—-—भावना, संवेदन
वेदना —स्त्री॰—-—-—पीडा, संताप, क्लेश, आधि
वेदना —स्त्री॰—-—-—अधिग्रहण, दौलत, जायदाद
वेदारः —पुं॰—-—वेद + ऋ + अण्—गिरगिट
वेदिः —पुं॰—-—विद् + इन्—विद्वान् पुरुष, ऋषि, पंडित
वेदिः —स्त्री॰—-—-—यज्ञकार्य के लिए तैयार की हुई भूमि, वेदी
वेदिः —स्त्री॰—-—-—वेदी विशेष जिसके मध्यवर्ती किनारे परस्पर मिले हुए हों
वेदिः —स्त्री॰—-—-—किसी मन्दिर या महल का चौकोर सहन
वेदिः —स्त्री॰—-—-—मुद्रा-अंगूठी
वेदिः —स्त्री॰—-—-—सरस्वती
वेदिः —स्त्री॰—-—-—भूखण्ड, प्रदेश
वेदी —स्त्री॰—-—-—यज्ञकार्य के लिए तैयार की हुई भूमि, वेदी
वेदी —स्त्री॰—-—-—वेदी विशेष जिसके मध्यवर्ती किनारे परस्पर मिले हुए हों
वेदी —स्त्री॰—-—-—किसी मन्दिर या महल का चौकोर सहन
वेदी —स्त्री॰—-—-—मुद्रा-अंगूठी
वेदी —स्त्री॰—-—-—भूखण्ड, प्रदेश
वेदीजा —स्त्री॰—वेदी-जा—-—द्रौपदी का विशेषण, क्योंकि वह राजा द्रुपद की यज्ञवेदी के मध्य से उत्पन्न हुई थी
वेदिका —स्त्री॰—-—वेदी + कन् + टाप्, ह्रस्व—यज्ञभूमि या वेदी
वेदिका —स्त्री॰—-—-—चबूतरा, उच्चसमतलभूमि
वेदिका —स्त्री॰—-—-—वेदी, ढेप, टीला
वेदिका —स्त्री॰—-—-—आंगन में बीच में बना चौकर चबूतरा
वेदिका —स्त्री॰—-—-—लतामंडप, निंकुज
वेदिन् —वि॰—-—विद् + णिनि—ज्ञाता
वेदिन् —वि॰—-—-—विवाह करने वाला
वेदिन —पुं॰—-—-—विद्वान् पुरुष
वेदिन —पुं॰—-—-—ब्राह्मण का विशेषण
वेद्य —वि॰—-—विद् + ण्यत्—ज्ञात होने के योग्य
वेद्य —वि॰—-—-—व्याख्येय या शिक्षणीय
वेद्य —वि॰—-—-—विवाहित होने के योग्य
वेधः —पुं॰—-—विध् + घञ्—छेद करना, बींधना, छिद्र युक्त करना
वेधः —पुं॰—-—-—घायल करना, घाव
वेधः —पुं॰—-—-—छिद्र, खुदाई या गर्त
वेधः —पुं॰—-—-—(खुदाई की) गहराई
वेधकः —पुं॰—-—विध् + ण्वुल्—नरक के एक प्रभाग का नाम
वेधकम् —नपुं॰—-—-—बाल में विद्यमान चावल
वेधनम् —नपुं॰—-—विध् + ल्युट्—छेदने या बींधने की क्रिया
वेधनम् —नपुं॰—-—-—प्रवेशन, छेदन
वेधनम् —नपुं॰—-—-—शून्यीकरण, वेधन
वेधनम् —नपुं॰—-—-—चुभोना, घायल करना
वेधनम् —नपुं॰—-—-—(खुदाई की) गहराई
वेधनिका —स्त्री॰—-—वेधनी + कन् + टाप्, ह्रस्व—हाथी का कान बींधने वाला उपकरण
वेधनिका —स्त्री॰—-—-—एक तेज नोक वाला उपकरण जिससे मणि या सीप व मणि आदि को बींधने वाला उपकरण, बर्मा
वेधस् —पुं॰—-—विधा + असुन्, गुणः—स्रष्टा
वेधस् —पुं॰—-—-—ब्रह्मा, विधाता
वेधस् —पुं॰—-—-—गौण सृष्टिकर्ता
वेधस् —पुं॰—-—-—मदार का पौधा
वेधस् —पुं॰—-—-—विद्वान् पुरुष्
वेधसम् —नपुं॰—-—वेधस् + अच्—अंगूठे की जड़ के नीचे का हथेली का भाग
वेधित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वेध + इतच्—बींधा हुआ, छिद्रित
वेन्ना —स्त्री॰—-—-—एक नदी का नाम (जो कृष्णा नदी में जाकर मिलती है)
वेप् —भ्वा॰ आ॰ <वेपते>, <वेपित>—-—-—कांपना, हिलना, थरथराना, लरजना
प्रवेप् —भ्वा॰ आ॰—प्र-वेप्—-—थरथराना, धड़कना, कांपना
वेपथुः —पुं॰—-—वेप् + अथुच्—थरथरी, कंपकपी, (स्तनों का) हिलना
वेपनम् —नपुं॰—-—वेप् + ल्युट्—थरथरी, कंपकपी
वेमः —पुं॰—-—वे + मन्—करघा, खंड्डी
वेमन् —नपुं॰—-—वे + मनिन्—करघा, खंड्डी
वेरः —पुं॰—-—अज् + रन्, वीभावः—शरीर
वेरः —पुं॰—-—अज् + रन्, वीभावः—केसर ज़ाफरान
वेरः —पुं॰—-—अज् + रन्, वीभावः—बैगन
वेरम् —नपुं॰—-—-—केसर ज़ाफरान
वेरटः —पुं॰—-—-—नीच पुरुष, छोटी जाति का पुरुष
वेरटम् —नपुं॰—-—-—बेर का फल
वेल् —भ्वा॰ पर॰ <वेलति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वेल् —भ्वा॰ पर॰ <वेलति>—-—-—हिलना, इधर उधर घूमना, काँपना
वेल् —चुरा॰ उभ॰ <वेलयति>, <वेलयते>—-—-—समय की गणना करना
वेलम् —नपुं॰—-—वेल् + अच्—उद्यान, वाटिका
वेला —स्त्री॰—-—वेल + टाप्—समय
वेला —स्त्री॰—-—-—ऋतु, अवसर
वेला —स्त्री॰—-—-—विश्राम का अन्तराल, अवकाश
वेला —स्त्री॰—-—-—लहर, प्रवाह, धारा
वेला —स्त्री॰—-—-—समुद्र तट, समुद्री किनारा
वेला —स्त्री॰—-—-—सीमा, हदबन्दी
वेला —स्त्री॰—-—-—सहज मृत्यु
वेलाकुलम् —नपुं॰—वेला-कुलम्—-—ताम्रलिप्त नामक जिला
वेलामूलम् —नपुं॰—वेला-मूलम्—-—समुद्र-तट
वेलावनम् —नपुं॰—वेला-वनम्—-—समुद्रीकिनारे का जंगल
वेल्ल् —भ्वा॰ पर॰ <वेल्लति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वेल्ल् —भ्वा॰ पर॰ <वेल्लति>—-—-—हिलाना, कांपना, इधर-उधर फिरना
वेल्लः —पुं॰—-—वेल्ल् + घञ्—हिलना, गतिशील होना
वेल्लः —पुं॰—-—-—(भूमि पर) लोटना
वेल्लनम् —नपुं॰—-—-—हिलना, गतिशील होना
वेल्लनम् —नपुं॰—-—-—(भूमि पर) लोटना
वेल्लहलः —पुं॰—-—वेल्ल + हवल् + अच्, पृषो॰—लम्पट, दुराचारी
वेल्लिः —स्त्री॰—-—वेल्ल् + इन्—लता, वेल
वेल्लित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वेल्ल् + क्त—कंपायमान, थरथराने वाला, हिलाया हुआ
वेल्लित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—टेढ़ा-मेढ़ा
वेल्लितम् —नपुं॰—-—-—जाना, चलना-फिरना
वेल्लितम् —नपुं॰—-—-—हिलना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—जाना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—प्राप्त करना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—गर्भधारण करना, गर्भवति होना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—व्याप्त करना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—डाल देना, फेंकना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—खाना
वेवी —अदा॰ आ॰ <वेवीते>—-—-—कामना करना, चाहना
वेशः —पुं॰—-—विश् + घञ्—प्रवेशद्वार
वेशः —पुं॰—-—-—अन्तः प्रवेश, पैठना
वेशः —पुं॰—-—-—घर, आवासस्थल
वेशः —पुं॰—-—-—वेश्याओं का घर, चकला
वेशः —पुं॰—-—-—पोशाक, वस्त्र, कपड़े
वेशदानम् —नपुं॰—वेशः-दानम्—-—सूरजमुखी फूल
वेशधारिन् —वि॰—वेशः-धारिन्—-—छद्मवेशी, कपटरूपधारी
वेशनारी —स्त्री॰—वेशः-नारी—-—वेश्या
वेशवनिता —स्त्री॰—वेशः-वनिता—-—वेश्या
वेशवासः —स्त्री॰—वेशः-वासः—-—वेश्याओं का घर, चकला
वेशकः —पुं॰—-—वेश + कन्—घर
वेशनम् —नपुं॰—-—विश् + ल्युट्—प्रवेश करना, प्रवेशद्वार
वेशन्तः —पुं॰—-—विश् + झच्—छोटा तालाब, पोखर
वेशरः —पुं॰—-—वेश + रा + क—खच्चर
वेश्मन् —नपुं॰—-—विश् + मनिन्—घर, निवासस्थान, आवास, भवन, महल
वेश्मकर्मन् —नपुं॰—वेश्मन्-कर्मन्—-—घर बनाना
वेश्मकलिङ्गः —पुं॰—वेश्मन्-कलिङ्गः—-—एक प्रकार की चिड़िया
वेश्मनकुलः —पुं॰—वेश्मन्-नकुलः—-—छछून्दर
वेश्मभूः —स्त्री॰—वेश्मन्-भूः—-—वह स्थान जहाँ घर बनाना है, भवननिर्माण के लिए भूखण्ड
वेश्यम् —नपुं॰—-—विश् + ण्यत्, वेशाय हितं वा यत्—वेश्याओं का घर, चकला
वेश्या —स्त्री॰—-—वेशेन पण्ययोगेन जीवति-वेश् + यत् + टाप्—बाजारू स्त्री, रंडी, गणिका, रखैल
वेश्याचार्यः —पुं॰—वेश्या-आचार्यः—-—वह पुरुष जो वेश्याओं का स्वामी हो, उन्हें रखता हो
वेश्याचार्यः —पुं॰—वेश्या-आचार्यः—-—भड़वा
वेश्याचार्यः —पुं॰—वेश्या-आचार्यः—-—लौंडा, गाँडू
वेश्याश्रयः —पुं॰—वेश्या-आश्रयः—-—वेश्याओं का वासस्थल, चकला
वेश्यागमनम् —नपुं॰—वेश्या-गमनम्—-—व्यभिचार, रंडीबाजी
वेश्यागृहम् —नपुं॰—वेश्या-गृहम्—-—चकला
वेश्याजनः —पुं॰—वेश्या-जनः—-—रंडी
वेश्यापणः —पुं॰—वेश्या-पणः—-—भोग के लिए रंडी को दी जाने वाली मजदूरी
वेष —पुं॰—-—-—अन्तः प्रवेश, पैठना
वेष —पुं॰—-—-—घर, आवासस्थल
वेष —पुं॰—-—-—वेश्याओं का घर, चकला
वेष —पुं॰—-—-—पोशाक, वस्त्र, कपड़े
वेषणम् —नपुं॰—-—विष् + ल्युट्—अधिकृत वस्तु, स्वामित्व, कब्जा
वेष्ट् —भ्वा॰ आ॰ <वेष्टते>—-—-—घेरना, अहाता बनाना, घेरा डालना, लपेटना
वेष्ट् —भ्वा॰ आ॰ <वेष्टते>—-—-—चाबी देना, मरोड़ना
वेष्ट् —भ्वा॰ आ॰ <वेष्टते>—-—-—वस्त्र पहनना
वेष्ट् —भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वेष्टयति>, <वेष्टयते>—-—-—घेरना
वेष्ट् —भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <वेष्टयति>, <वेष्टयते>—-—-—घेराबन्दी डालना
आवेष्ट् —भ्वा॰ आ॰—आ-वेष्ट्—-—तह करना
परिवेष्ट् —भ्वा॰ आ॰—परि-वेष्ट्—-—परस्पर तह करना, लपेटना, मरोड़ना, उमेठना
संवेष्ट —भ्वा॰ आ॰—सम्-वेष्ट्—-—परस्पर तह करना, लपेटना, मरोड़ना, उमेठना
वेष्टः —पुं॰—-—वेष्ठ् + घञ्—घेरा, घिराव
वेष्टः —पुं॰—-—-—बाड़ा, बाड़
वेष्टः —पुं॰—-—-—गोंद, राल, रस
वेष्टवंशः —पुं॰—वेष्टः-वंशः—-—एक प्रकार का बाँस
वेष्टसारः —पुं॰—वेष्टः-सारः—-—तारपीन
वेष्टकः —पुं॰—-—वेष्ट् + ण्वुल्—बाड़ा, बाढ़
वेष्टकम् —नपुं॰—-—-—चादर, लबादा
वेष्टकम् —नपुं॰—-—-—गोंद, रस
वेष्टकम् —नपुं॰—-—-—तारपीन
वेष्टनम् —नपुं॰—-—वेष्ट् + ल्युट्—लपेटना, चारों ओर से घेरना, घेराबन्दी करना
अङ्गुलिवेष्टनम् —नपुं॰—अङ्गुलि-वेष्टनम्—-—अंगूठी
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—कुंडलित होना, गोल मरोड़ी लेना
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—लिफा़फ़ा, लेपटन
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—ओढ़नी, ढकना, संदूक
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—पगड़ी, त्रिमुकुट
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—बाड़ा, घेर
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—तगड़ी, कमरबन्द
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—बाहरी कान
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—गुग्गुल
वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—नृत्य की विशेष मुद्रा
वेष्टनकः —पुं॰—-—वेष्टन + कन्—संभोग के अवसर की विशेष अंगस्थिति
वेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वेष्ट् + क्स—घिरा हुआ, घेरा हुआ, चारों ओर से लपेटा हुआ, बन्द किया हुआ
वेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लिपटा हुआ, वस्त्रों से सुसज्जित किया हुआ
वेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ठहराया हुआ, रोका हुआ, विघ्न डाला हुआ
वेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घेराबन्दी किया हुआ
वेष्पः —पुं॰—-—विषेः पः—जल, पानी
वेष्यः —पुं॰—-—विषेः पः—जल, पानी
वेष्या —स्त्री॰—-—-—बाजारू स्त्री, रंडी, गणिका, रखैल
वेसरः —पुं॰—-—वेस् + अरन्—खच्चर
वेसवारः —पुं॰—-—वेस् + वृ + अण्—गर्म मसाला
वेशवारः —पुं॰—-—-—गर्म मसाला
वेह् —भ्वा॰ आ॰ <वेहते>—-—-—उद्योग करना, चेष्टा करना, प्रयत्न करना
वेहत् —स्त्री॰—-—विशेषेण हन्ति गर्भम्-वि + हन् + अति—बांझ गौ
वेहारः —पुं॰—-—विहारः, पृषो॰—एक देश का नाम, बिहार
वेह्ल् —भ्वा॰ पर॰ <वेह्लते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
वै —भ्वा॰ पर॰ <वायति>—-—-—सूखना, शुष्क होना
वै —भ्वा॰ पर॰ <वायति>—-—-—म्लान, निढाल, अवसन्न
वै —अव्य॰—-—वा + डै—स्वीकृति या निश्चयवाचक अव्यय (निःसन्देह, सचमुच, वस्तुतः)
वैशतिक —वि॰—-—विंशतिक + अण्—बीस मे मोल लिया हुआ
वैकक्षम् —नपुं॰—-—विशेषेण कक्षति व्याप्नोति-अण्—एक माला जो यज्ञोपवीत की भांति एक कंधे के ऊपर से तथा दूसरे कंधे के नीचे से धारण की जाती है
वैकक्षम् —नपुं॰—-—-—उत्तरीय वस्त्र, चोगा, ओढ़नी
वैकक्षकम् —नपुं॰—-—वैकक्ष + कन्—यज्ञोपवीत की भांति बायें कन्धे के ऊपर तथा दायें कन्धे के नीचे से पहनी जाने वाली माला
वैकक्षिकम् —नपुं॰—-—वैकक्ष + ठन्—यज्ञोपवीत की भांति बायें कन्धे के ऊपर तथा दायें कन्धे के नीचे से पहनी जाने वाली माला
वैकर्तनः —पुं॰—-—विकर्तनस्यापत्यम्-अण्—कर्ण का नाम
वैकल्पम् —नपुं॰—-—विकल्प + अण्—ऐच्छिकता
वैकल्पम् —नपुं॰—-—विकल्प + अण्—संशय, संदिग्धता
वैकल्पम् —नपुं॰—-—विकल्प + अण्—अनिश्चय, असमंजस
वैकल्पिक —वि॰—-—विकल्प + ठक्—ऐच्छिक
वैकल्पिक —वि॰—-—विकल्प + ठक्—संदिग्ध, ससंशय, अनिश्चित, अनिर्णीत
वैकल्यम् —नपुं॰—-—विकल + ष्यञ्—त्रुटि, कमी, अधूरापन्
वैकल्यम् —नपुं॰—-—विकल + ष्यञ्—अङ्गभङ्ग, विकलाङ्ग या पंगु होना
वैकल्यम् —नपुं॰—-—विकल + ष्यञ्—अक्षमता
वैकल्यम् —नपुं॰—-—विकल + ष्यञ्—विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्तेजना
वैकल्यम् —नपुं॰—-—विकल + ष्यञ्—अनस्तित्व
वैकारिक —वि॰—-—विकार + ठक्—विकारविषयक
वैकारिक —वि॰—-—विकार + ठक्—विकारशील
वैकारिक —वि॰—-—विकार + ठक्—विकृत
वैकालः —पुं॰—-—विकाल + अण्— तीसरा पहर, मध्याह्नोत्तर काल, सांयकाल
वैकालिक —वि॰—-—विकाल + ठक्—सायंकालसम्बन्धी या सायंकाल के समय घटित होने वाला
वैकालीन —वि॰—-—विकाल + ख—सायंकालसम्बन्धी या सायंकाल के समय घटित होने वाला
वैकुण्ठः —पुं॰—-—विकुण्ठायां मायायां भवः-अण्—विष्णु का विशेषण
वैकुण्ठः —पुं॰—-—विकुण्ठायां मायायां भवः-अण्—इन्द्र का विशेषण
वैकुण्ठः —पुं॰—-—विकुण्ठायां मायायां भवः-अण्—तुलसी का पौधा
वैकुण्ठम् —नपुं॰—-—-—विष्णु का स्वर्ग
वैकुण्ठम् —नपुं॰—-—-—अभ्रक
वैकुण्ठचतुर्दशी —स्त्री॰—वैकुण्ठः-चतुर्दशी—-—कार्तिकशुक्ला चौदस
वैकुण्ठलोकः —पुं॰—वैकुण्ठः-लोकः—-—विष्णु की दुनिया
वैकृत —वि॰—-—विकृत + अण्—परिवर्तित
वैकृत —वि॰—-—विकृत + अण्—बदला हुआ
वैकृतम् —नपुं॰—-—-—परिवर्तन, अदल-बदल, हेर-फेर
वैकृतम् —नपुं॰—-—-—अरुचि, जुगुप्सा, घिनौनापन
वैकृतम् —नपुं॰—-—-—अवस्था या सूरत शक्ल में परिवर्तन, विरूपता आदि
वैकृतम् —नपुं॰—-—-—अपशकुन, कोई भी अनिष्टसूचक घटना
वैकृतविवर्तः —पुं॰—वैकृत-विवर्तः—-—दुर्दशा, दयनीय दशा, कष्टग्रस्त
वैकृतिक —वि॰—-—विकृति + ठक्—परिवर्तित, संशोधित
वैकृतिक —वि॰—-—विकृति + ठक्—विकृति सम्बन्धी
वैकृत्यम् —नपुं॰—-—विकृत + ष्यञ्—परिवर्तन, अदल-बदल
वैकृत्यम् —नपुं॰—-—विकृत + ष्यञ्—दुःखद स्थिति, दयनीय दशा
वैकृत्यम् —नपुं॰—-—विकृत + ष्यञ्—जुगुप्सा
वैक्रान्तम् —नपुं॰—-—विक्रान्त्या दीव्यति- विक्रान्ति + अण्—एक प्रकार का रत्न
वैक्लवम् —नपुं॰—-—विक्लव + अण्—गड़बड़ी, विक्षोभ, घबराहट
वैक्लवम् —नपुं॰—-—विक्लव + अण्—हुल्लड़, हलचल
वैक्लवम् —नपुं॰—-—विक्लव + अण्—कष्ट, दुःख, शोक, रंज
वैक्लव्यम् —नपुं॰—-—विक्लव + ष्यञ्—गड़बड़ी, विक्षोभ, घबराहट
वैक्लव्यम् —नपुं॰—-—विक्लव + ष्यञ्—हुल्लड़, हलचल
वैक्लव्यम् —नपुं॰—-—विक्लव + ष्यञ्—कष्ट, दुःख, शोक, रंज
वैखरी —स्त्री॰—-—विशेषेण खं राति- रा + क + अण् + ङीप्—स्पष्ट-उच्चारण, ध्वनि-उत्पादन
वैखरी —स्त्री॰—-—विशेषेण खं राति- रा + क + अण् + ङीप्—वाक्शक्ति
वैखरी —स्त्री॰—-—विशेषेण खं राति- रा + क + अण् + ङीप्—वाणी, भाषण
वैखानस —वि॰—-—वैखानसस्य इदम्-अण्—किसी वानप्रस्थ, सन्यासी, या भिक्षु आदि से सम्बद्ध
वैखानसः —पुं॰—-—-—वैरागी, वानप्रस्थ, तीसरे आश्रम में वास करने वाला व्राह्मण
वैगुण्यम् —नपुं॰—-—विगुण + ष्यञ्—गुण या विशेषण का अभाव
वैगुण्यम् —नपुं॰—-—विगुण + ष्यञ्—सद्गुणों का अभाव, त्रुटि, दोष, कमी
वैगुण्यम् —नपुं॰—-—विगुण + ष्यञ्—गुणों की भिन्नता, विविधता, विरोधिता
वैगुण्यम् —नपुं॰—-—विगुण + ष्यञ्—घटियापन, तुच्छता
वैगुण्यम् —नपुं॰—-—विगुण + ष्यञ्—अकुशलता
वैचक्षण्यम् —नपुं॰—-—विचक्षण + ष्यञ्—कौशल, निपुणता, प्रवीणता
वैचित्यम् —नपुं॰—-—विचित + ष्यञ्—शोक, मानसिक विकलता, अफसोस
वैचित्र्यम् —नपुं॰—-—विचित्र + ष्यञ्—विविधता, विभिन्नता
वैचित्र्यम् —नपुं॰—-—विचित्र + ष्यञ्—बहुविधता
वैचित्र्यम् —नपुं॰—-—विचित्र + ष्यञ्—अचरज
वैचित्र्यम् —नपुं॰—-—विचित्र + ष्यञ्—विस्मयोत्पादकता
वैचित्र्यम् —नपुं॰—-—विचित्र + ष्यञ्—आश्चर्य
वैजननम् —नपुं॰—-—विजनन + अण्—गर्भ का अन्तिम मास
वैजयन्तः —पुं॰—-—वैजयन्ती + अण्—इन्द्र का महल
वैजयन्तः —पुं॰—-—वैजयन्ती + अण्—इन्द्र का झण्डा
वैजयन्तः —पुं॰—-—वैजयन्ती + अण्—ध्वज, पताका
वैजयन्तः —पुं॰—-—वैजयन्ती + अण्—घर
वैजयन्तिकः —पुं॰—-—वैजयन्ती + ठक्—झण्डा उठाने वाला
वैजयन्तिका —स्त्री॰—-—वैजयन्ती + कन् + टाप्, ह्रस्व—झण्डा, पताका
वैजयन्तिका —स्त्री॰—-—वैजयन्ती + कन् + टाप्, ह्रस्व—एक प्रकार का मोतियों की माला
वैजयन्ती —स्त्री॰—-—वि + जि + झच् = विजयन्त + अण् + ङीप्—झंडा, पताका
वैजयन्ती —स्त्री॰—-—वि + जि + झच् = विजयन्त + अण् + ङीप्—चिह्न
वैजयन्ती —स्त्री॰—-—वि + जि + झच् = विजयन्त + अण् + ङीप्—माला, हार
वैजयन्ती —स्त्री॰—-—वि + जि + झच् = विजयन्त + अण् + ङीप्—विष्णु का हार
वैजयन्ती —स्त्री॰—-—वि + जि + झच् = विजयन्त + अण् + ङीप्—एक शब्दकोश का नाम
वैजात्यम् —नपुं॰—-—विजात + ष्यञ्—जाति या प्रकार की भिन्नता
वैजात्यम् —नपुं॰—-—विजात + ष्यञ्—जाति या वर्ण की भिन्नता
वैजात्यम् —नपुं॰—-—विजात + ष्यञ्—अचरज
वैजात्यम् —नपुं॰—-—विजात + ष्यञ्—जातिबहिष्कार
वैजात्यम् —नपुं॰—-—विजात + ष्यञ्—बदचलनी, स्वेच्छाचारिता
वैजिक —वि॰—-—वीज + ठक्—वीर्यसंबंधी
वैजिक —वि॰—-—वीज + ठक्—मौलिक
वैजिक —वि॰—-—वीज + ठक्—गर्भविषयक
वैजिक —वि॰—-—वीज + ठक्—मैथुनसंबंधी
वैजिकः —पुं॰—-—वीज + ठक्—अंखुवा, नया अंकुर
वैजिकम् —नपुं॰—-—वीज + ठक्—कारण, स्रोत, मूल
वैज्ञानिक —वि॰—-—विज्ञान + ठक्—चतुर, कुशल, प्रवीण
वैडाल —वि॰—-—विडाल + अण्—बिलाव से संबंध रखने वाला
वैडाल —वि॰—-—विडाल + अण्—बिलाव की विशिष्टता को रखने वाला
वैणः —पुं॰—-—वेणु + अण्, उकारस्य लोपः—बाँस का कार्य करने वाला
वैणव —वि॰—-—वेणु + अण्—बाँस से उत्पन्न या बाँस का बना हुआ
वैणवः —पुं॰—-—-—बाँस की छड़ी
वैणवः —पुं॰—-—-—बाँस का कार्य करने वाला, बँसोड़
वैणवी —स्त्री॰—-—-—वंसलोचन
वैणवम् —नपुं॰—-—-—बाँस का फल या बीज
वैणविकः —पुं॰—-—वैणव + ठक्—मुरली बजाने वाला, बाँसुरी बजाने वाला
वैणविन् —पुं॰—-—वैणव + इनि—शिव की उपाधि
वैणिकः —पुं॰—-—वीणा + ठक्—वीणा बजाने वाला
वैणुकः —पुं॰—-—वैणुक + अण्—मुरली बजाने वाला, बाँसुरी बजाने वाला
वैतंसिकः —पुं॰—-—वितंस + ठक्—मांस विक्रेता
वैतण्डिकः —पुं॰—-—वितण्डा + ठक्—वितंडावादी, व्यर्थ विवाद करने वाला, छिद्रान्वेषी
वैतनिक —वि॰—-—वेतन + ठक्—वेतन से निर्वाह करने वाला
वैतनिकः —पुं॰—-—-—वेतन लेकर काम करने वाला, श्रमिक
वैतनिकः —पुं॰—-—-—वेतन भोगी (कर्मचारी)
वैतरणिः —स्त्री॰—-—वितरेणन दानेन लंघ्यते, पक्षे पृषो॰ ह्रस्वः—नरक की नदी का नाम
वैतरणिः —स्त्री॰—-—वितरेणन दानेन लंघ्यते, पक्षे पृषो॰ ह्रस्वः—कलिङ्ग देश की नदी का नाम
वैतरणी —स्त्री॰—-—वितरेणन दानेन लंघ्यते-वितरण + अण् + ङीप्—नरक की नदी का नाम
वैतरणी —स्त्री॰—-—वितरेणन दानेन लंघ्यते-वितरण + अण् + ङीप्—कलिङ्ग देश की नदी का नाम
वैतस —वि॰—-—वेतस + अण्—बेंत से संबन्ध रखने वाला
वैतस —वि॰—-—-—नरकुल जैसा अर्थात् अपने से अधिकशक्तिशाली शत्रु के सामने घुटने टेक देने वाला
वैतान —वि॰—-—वितान + अण्—यज्ञीय, पवित्र
वैतानम् —नपुं॰—-—-—यज्ञीय कृत्य
वैतानम् —नपुं॰—-—-—यज्ञीय आहुति
वैतानिक —वि॰—-—वितान + ठक्—यज्ञीय, पवित्र
वैतालिकः —पुं॰—-—विविधस्तालस्तेन व्यवहरति-ठक्—भाट, चारण
वैतालिकः —पुं॰—-—विविधस्तालस्तेन व्यवहरति-ठक्—जादूगर, बाजीगर, विशेषकर वह जो वेताल का भक्त हो
वैत्रक —वि॰—-—वेत्र + वुञ्—बेंत से युक्त, नरकुल का
वैदः —पुं॰—-—वेद + अण्—बुद्धिमान् मनुष्य, विद्वान् पुरुष
वैदग्धम् —नपुं॰—-—विदग्ध + अण्—कौशल, दक्षता, प्रवीणता, निपुणता
वैदग्धम् —नपुं॰—-—विदग्ध + अण्—क्रमस्थापन में कौशल, सौन्दर्य
वैदग्धम् —नपुं॰—-—विदग्ध + अण्—बुद्धिमत्ता, स्फूर्ति, चतुराई @ रत्न॰ २
वैदग्धम् —नपुं॰—-—विदग्ध + अण्—बुद्धि
वैदग्धी —स्त्री॰—-—वैदग्ध + ङीप्—कौशल, दक्षता, प्रवीणता, निपुणता
वैदग्धी —स्त्री॰—-—वैदग्ध + ङीप्—क्रमस्थापन में कौशल, सौन्दर्य
वैदग्धी —स्त्री॰—-—वैदग्ध + ङीप्—बुद्धिमत्ता, स्फूर्ति, चतुराई @ रत्न॰ २
वैदग्धी —स्त्री॰—-—वैदग्ध + ङीप्—बुद्धि
वैदग्ध्यम् —नपुं॰—-—विदग्ध + ष्यञ्—कौशल, दक्षता, प्रवीणता, निपुणता
वैदग्ध्यम् —नपुं॰—-—विदग्ध + ष्यञ्—क्रमस्थापन में कौशल, सौन्दर्य
वैदग्ध्यम् —नपुं॰—-—विदग्ध + ष्यञ्—बुद्धिमत्ता, स्फूर्ति, चतुराई @ रत्न॰ २
वैदग्ध्यम् —नपुं॰—-—विदग्ध + ष्यञ्—बुद्धि
वैदर्भः —पुं॰—-—विदर्भ + अण्—विदर्भ देश का राजा
वैदर्भी —स्त्री॰—-—-—दमयन्ती
वैदर्भी —स्त्री॰—-—-—रुक्मिणी
वैदर्भी —स्त्री॰—-—-—रचना की विशेष शैली
वैदल —वि॰—-—विदलस्य विकारः विदल + अण्—बेंत या टहनियों से बनाया हुआ
वैदलः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की रोटी
वैदलः —पुं॰—-—-—कोई भी दाल का अनाज
वैदलम् —नपुं॰—-—-—भिक्षुओं का कामगहरा भिक्षापात्र
वैदलम् —नपुं॰—-—-—बाँस या टहनियों की बनी डलिया, या आसन
वैदिक —वि॰—-—वेदं वेत्त्यधीते वा ठञ् वेदेषु विहितः वेद + ठक्—वेदों से व्युत्पन्न या वेदों के समनुरूप, वेदविषयक
वैदिक —वि॰—-—वेदं वेत्त्यधीते वा ठञ् वेदेषु विहितः वेद + ठक्—पवित्र, वेदविहित, धर्मात्मा
वैदिकः —पुं॰—-—-—वेदों में निष्णात ब्राह्मण
वैदिकपाशः —पुं॰—वैदिकः-पाशः—-—वेद का अल्पज्ञान रखने वाला, कठज्ञानी, जिसे वेद का अधूरा ज्ञान हो
वैदुषी —स्त्री॰—-—विद्वस् + अण् + ङीप्—ज्ञान, अधिगम, बुद्धिमत्ता
वैदुष्यम् —नपुं॰—-—विद्वस् + ष्यञ्—ज्ञान, अधिगम, बुद्धिमत्ता
वैदूर्य —वि॰—-—विदूर + ष्यञ्—विदूर से उत्पन्न या लाया गया
वैदूर्यम् —नपुं॰—-—-—वैदूर्य मणि, नीलम
वैदशिक —वि॰—-—विदेश + ठञ्—दूसरे देश से संबंध रखने वाला, अन्य देश का, और देशों से लाया हुआ
वैदशिकः —पुं॰—-—-—अन्य देश का व्यक्ति, विदेशी
वैदेश्यम् —नपुं॰—-—विदेश + ष्यञ्—विदेशीपन, विदेशी होना
वैदेहः —पुं॰—-—विदेह् + अण्—विदेह देश का राजा
वैदेहः —पुं॰—-—विदेह् + अण्—विदेह का रहने वाला
वैदेहः —पुं॰—-—विदेह् + अण्—व्यापारी वैश्य
वैदेहः —पुं॰—-—विदेह् + अण्—ब्राह्मण स्त्री में वैश्य पुरुष से उत्पन्न सन्तान
वैदहकः —पुं॰—-—वैदेह + कन्—व्यापारी
वैदहकः —पुं॰—-—वैदेह + कन्—ब्राह्मण स्त्री में वैश्य पुरुष से उत्पन्न सन्तान
वैदेहिकः —पुं॰—-—विदेह + ठक्—सौदागर
वैद्य —वि॰ —-—वेद + यत्—वेद सम्बन्धी, आध्यात्मिक
वैद्य —वि॰ —-—वेद + यत्—आयुर्वेद सम्बन्धी, आयुर्वेद विषयक
वैद्यः —पुं॰—-—विद्या अस्ति अस्य-विद्या + अण्—विद्वान् पुरुष, विद्यावान्, पण्डित
वैद्यः —पुं॰—-—विद्या अस्ति अस्य-विद्या + अण्—आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक
वैद्यः —पुं॰—-—विद्या अस्ति अस्य-विद्या + अण्—वैद्य जाति का पुरुष, जो वर्णसङ्कर समझा जाता है
वैद्यक्रिया —स्त्री॰—वैद्यः-क्रिया—-—वैद्य का व्यवसाय, चिकित्सक के रूप में अभ्यास
वैद्यनाथः —पुं॰—वैद्यः - नाथः—-—धन्वन्तरि
वैद्यनाथः —पुं॰—वैद्यः - नाथः—-—शिव
वैद्यकः —पुं॰—-—वैद्य + कन्—वैद्य, चिकित्सक
वैद्यकम् —नपुं॰—-—-—चिकित्साविज्ञान
वैद्युत —वि॰—-—विद्युत + अण्—बिजली से सम्बद्ध या उत्पन्न, बिजली
बैद्युताग्निः —पुं॰—बैद्युत-अग्निः—-—बिजली की आग
बैद्युतानलः —पुं॰—बैद्युत-अनलः—-—बिजली की आग
बैद्युतवह्निः —पुं॰—बैद्युत-वह्निः—-—बिजली की आग
वैध —वि॰—-—विधि + अण्—नियम के अनुरूप, व्यवस्थित, निश्चित, कर्मकाण्डविषयक
वैध —वि॰—-—विधि + अण्—क़ानूनी, विधि या क़ानून सम्मत
वैधिक —वि॰—-—विधि + ठक्—नियम के अनुरूप, व्यवस्थित, निश्चित, कर्मकाण्डविषयक
वैधिक —वि॰—-—विधि + ठक्—क़ानूनी, विधि या क़ानून सम्मत
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—असमानता, भिन्नता
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—लक्षण गुणों का अन्तर
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—कर्तव्य या आभार का अन्तर
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—वैपरीत्य
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—अवैधता, अनौचित्य, अन्याय
वैधर्म्यम् —नपुं॰—-—विधर्म + ष्यञ्—पाखण्ड
वैधवेयः —पुं॰—-—विधवा + ढक्—विधवा का पुत्र
वैधव्यम् —नपुं॰—-—विधवा + ष्यञ्—विधवापन
वैधुर्यम् —नपुं॰—-—विधुर + ष्यञ्—शोकावस्था
वैधुर्यम् —नपुं॰—-—विधुर + ष्यञ्—विक्षोभ थरथरी, सिहरन
वैधेय —वि॰—-—विधि + ढक्—नियमानुकूल, विहित
वैधेय —वि॰—-—विधि + ढक्—मूर्ख, बुद्धू, जड
वैधेयः —पुं॰—-—-—मूढ, जडमति
वैनतेयः —पुं॰—-—विनता + ढक्—गरुड
वैनतेयः —पुं॰—-—विनता + ढक्—अरुण
वैनयिक —वि॰—-—विनय + ठक्—शिष्टता, सौजन्य, सदाचरण या अनुशासनसम्बन्धी
वैनयिक —वि॰—-—विनय + ठक्—शिष्टाचार का व्यवहार करने वाला
वैनयिकः —पुं॰—-—-—सामरिक रथ
वैनायक —वि॰—-—विनायक + अण्—गणेशसम्बन्धी
वैनायिकः —पुं॰—-—विनायं खण्डनमधिकृत्य कृतो ग्रन्थः - विनाय + ठक्—बौद्ध संप्रदाय के दर्शन-सिद्धान्त
वैनायिकः —पुं॰—-—विनायं खण्डनमधिकृत्य कृतो ग्रन्थः - विनाय + ठक्—उस सम्प्रदाय का अनुयायी
वैनाशिकः —पुं॰—-—विनाश + ठक्—दास
वैनाशिकः —पुं॰—-—विनाश + ठक्—मकड़ी
वैनाशिकः —पुं॰—-—विनाश + ठक्—ज्योतिषी
वैनाशिकः —पुं॰—-—विनाश + ठक्—बौद्धों के सिद्धान्त
वैनाशिकः —पुं॰—-—विनाश + ठक्—उन सिद्धान्तों का अनुयायी
वैनीतक —नपुं॰—-—-—गाड़ी, सवारी (डोली आदि)
वैनीतक —नपुं॰—-—-—ले जाने वाला, वाहक
वैपरीत्यम् —नपुं॰—-—विपरीत + ष्यञ्—विरोधिता, विरोध
वैपरीत्यम् —नपुं॰—-—विपरीत + ष्यञ्—असंगति
वैपुल्यम् —नपुं॰—-—विपुल + ष्यञ्—विस्तार, विशालता
वैपुल्यम् —नपुं॰—-—विपुल + ष्यञ्—पुष्कलता, बहुतायत
वैफल्यम् —नपुं॰—-—विफल + ष्यञ्—निरर्थकता, विफलता
वैबोधिकः —पुं॰—-—विबोध + ठक्—चौकीदार
वैबोधिकः —पुं॰—-—विबोध + ठक्—विशेषकर वह जो रात में सोने वालों को, पहरा देते समय, समय की घोषणा करके जगाता रहता है
वैभवम् —नपुं॰—-—विभु + अण्—बड़प्पन, यश, महिमा, चमक-दमक, ठाठ-बाट, दौलत
वैभवम् —नपुं॰—-—विभु + अण्—शक्ति, ताकत
वैभाषिक —वि॰—-—विभाषा + ठक्—ऐच्छिक, वैकल्पिक
वैभ्रम् —नपुं॰—-—-—विष्णु का वैकुण्ड
वैमत्यम् —नपुं॰—-—विमत + ष्यञ्—मतभेद, अनबन
वैमत्यम् —नपुं॰—-—विमत + ष्यञ्—नापसंदगी, अरुचि
वैमनस्यम् —नपुं॰—-—विमनस् + ष्यञ्—मन का उचटना, मानसिक अवसाद, शोक, उदासी
वैमनस्यम् —नपुं॰—-—विमनस् + ष्यञ्—रोग
वैमात्रः —पुं॰—-—विमातृ + अण्—सौतेली माँ का बेटा
वैमात्रेयी —स्त्री॰—-—विमातृ + ढक्—सौतेली माँ का बेटा
वैमात्रा —स्त्री॰—-—वैमात्र + टाप्—सौतेली माँ का बेटी
वैमात्री —स्त्री॰—-—वैमात्र + ङीप्—सौतेली माँ का बेटी
वैमात्रेयी —स्त्री॰—-—वैमात्रेय + ङीप्—सौतेली माँ का बेटी
वैमानिक —वि॰ —-—विमान + ठक्—देवयान में आसीन
वैमानिकः —पुं॰—-—-—गगनविहारी
वैमुख्यम् —नपुं॰—-—विमुख + ष्यञ्—मुँह मोड़ना, पलायन, प्रत्यावर्तन
वैमुख्यम् —नपुं॰—-—विमुख + ष्यञ्—अरुचि, जुगुप्सा
वैमेयः —पुं॰—-—विमेय + अण्—बदला, विनिमय
वैयग्रम् —नपुं॰—-—व्यग्र + अण्—व्यग्रता, बेचैनी, घबराहट
वैयग्रम् —नपुं॰—-—व्यग्र + अण्—अनन्य भक्ति, तल्लीनता
वैयग्र्यम् —नपुं॰—-—व्यग्र + ष्यञ्—व्यग्रता, बेचैनी, घबराहट
वैयग्र्यम् —नपुं॰—-—व्यग्र + ष्यञ्—अनन्य भक्ति, तल्लीनता
वैयर्थ्यम् —नपुं॰—-—व्यर्थ + ष्यञ्—व्यर्थता, अनुत्पादकता
वैयधिकरण्यम् —नपुं॰—-—व्यधिकरण + ष्यञ्—भिन्न स्थानों में होने का भाव
वैयाकरण —वि॰—-—व्याकरणमधीते वेत्ति वा -अण्—व्याकरणविषयक, व्याकरणसंबन्धी
वैयाकरणः —पुं॰—-—-—व्याकरण जानने वाला
वैयाकरणपाशः —पुं॰—वैयाकरणः-पाशः—-—जिसे व्याकरण का अच्छा ज्ञान न हो
वैयाकरणभार्यः —पुं॰—वैयाकरणः-भार्यः—-—जिसकी पत्नी व्याकरण को जानने वाली हो
वैयाघ्र —वि॰—-—व्याघ्र + अञ्—चीते की तरह का
वैयाघ्र —वि॰—-—व्याघ्र + अञ्—चीते की खाल से ढका हुआ
वैयाघ्रः —पुं॰—-—व्याघ्र + अञ्—चीते की खाल से ढकी हुई गाड़ी
वैयात्यम् —नपुं॰—-—वियात + ष्यञ्—साहस, अविनय, निर्लज्जता
वैयात्यम् —नपुं॰—-—वियात + ष्यञ्—उजड्डपन, अक्खड़पन
वैयासिकः —पुं॰—-—व्यासस्य अपत्यम्, व्यास + इञ्, अकङ् आदेशः, यकारात् पूर्व ऐच्—व्यास का पुत्र
वैरम् —नपुं॰—-—वीरस्य भावः-अण्—विरोध, शत्रुता, दुश्मनी वैमनस्य, द्रोह, प्रतिपक्ष, कलह
वैरम् —नपुं॰—-—वीरस्य भावः-अण्—घृणा, प्रतिहिंसा
वैरम् —नपुं॰—-—वीरस्य भावः-अण्—शूरवीरता, पराक्रम
वैरानुबन्धः —पुं॰—वैरम्-अनुबन्धः—-—शत्रुता का आरंभ
वैरानुबन्धिन् —वि॰—वैरम्-अनुबन्धिन्—-—शत्रुता की ओर ले जाने वाला
वैरातङ्कः —पुं॰—वैरम्-आतङ्कः—-—अर्जुनवृक्ष
वैरानृण्यम् —स्त्री॰—वैरम्-आनृण्यम्—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरोद्धारः —स्त्री॰—वैरम्-उद्धारः—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरनिर्यातनम् —स्त्री॰—वैरम्-निर्यातनम्—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरप्रतिक्रिया —स्त्री॰—वैरम्-प्रतिक्रिया—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरप्रतीकारः —स्त्री॰—वैरम्-प्रतीकारः—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरयातना —स्त्री॰—वैरम्-यातना—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरशुद्धिः —स्त्री॰—वैरम्-शुद्धिः—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरसाधनम् —नपुं॰—वैरम्-साधनम्—-—शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा
वैरकरः —पुं॰—वैरम्-करः—-—शत्रु
वैरकारः —पुं॰—वैरम्-कारः—-—शत्रु
वैरकृत् —पुं॰—वैरम्-कृत्—-—शत्रु
वैरभावः —पुं॰—वैरम्-भावः—-—शत्रुतापूर्ण रवैया
वैररिक्षिन् —वि॰—वैरम्-रक्षिन्—-—शत्रुता का निवारण करने वाला
वैरक्तम् —नपुं॰—-—विरक्त + अण्—सांसारिक आसक्तियों के प्रति उदासीनता, इच्छा का अभाव
वैरक्तम् —नपुं॰—-—विरक्त + अण्—अप्रसन्नता, नापसन्दगी, अरुचि
वैरक्त्यम् —नपुं॰—-—विरक्त + ष्यञ्—सांसारिक आसक्तियों के प्रति उदासीनता, इच्छा का अभाव
वैरक्त्यम् —नपुं॰—-—विरक्त + ष्यञ्—अप्रसन्नता, नापसन्दगी, अरुचि
वैरङ्गिकः —पुं॰—-—विरङ्गं विरागं नित्यमर्हति ठक्—जिसने अपनी सब इच्छाओं एवं वासनाओं का दमन कर दिया है, संन्यासी, वैरागी
वैरल्यम् —नपुं॰—-—विरल + ष्यञ्—न्यूनता, विरलता
वैरल्यम् —नपुं॰—-—विरल + ष्यञ्—ढीलापन
वैरल्यम् —नपुं॰—-—विरल + ष्यञ्—मृदुता
वैरागम् —नपुं॰—-—-—सांसारिक वासनाओं व इच्छाओं का अभाव, सांसारिक बंधनों से उदासीनता, विरक्ति
वैरागम् —नपुं॰—-—-—असंतृप्ति, अप्रसन्नता, असंतोष
वैरागम् —नपुं॰—-—-—अरुचि, नापसन्दगी
वैरागम् —नपुं॰—-—-—रंज, शोक, अफ़सोस
वैरागिकः —पुं॰—-—विराग + ठक् —वह संन्यासी जिसने अपनी सब इच्छाओं और वासनाओं का दमन कर लिया है
वैरागिन् —पुं॰—-—विराग + अण् + इनि—वह संन्यासी जिसने अपनी सब इच्छाओं और वासनाओं का दमन कर लिया है
वैराग्यम् —नपुं॰—-—विरागस्य भावः-ष्यञ्—सांसारिक वासनाओं व इच्छाओं का अभाव, सांसारिक बंधनों से उदासीनता, विरक्ति
वैराग्यम् —नपुं॰—-—विरागस्य भावः-ष्यञ्—असंतृप्ति, अप्रसन्नता, असंतोष
वैराग्यम् —नपुं॰—-—विरागस्य भावः-ष्यञ्—अरुचि, नापसन्दगी
वैराग्यम् —नपुं॰—-—विरागस्य भावः-ष्यञ्—रंज, शोक, अफ़सोस
वैराज —वि॰—-—विराज् + अण्—ब्रह्मासंबंधी
वैराट —वि॰—-—विराट + अण्—विराट संबंधी
वैराटः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का मिट्टी का कीड़ा, इन्द्रगोप
वैरिन् —वि॰—-—वैर + इनि—विरोधी, शत्रुतापूर्ण
वैरूप्यम् —नपुं॰—-—विरूप + ष्यञ्—विरूपता, कुरूपता
वैरोचनः —पुं॰—-—विरोचनस्यापत्यम् अण्—विरोचन के पुत्र बलि राक्षस के विशेषण
वैरोचनिः —पुं॰—-—विरोचनस्यापत्यम् इञ्—विरोचन के पुत्र बलि राक्षस के विशेषण
वैरोचिः —पुं॰—-—विरोच + घञ्—विरोचन के पुत्र बलि राक्षस के विशेषण
वैलक्षण्यम् —नपुं॰—-—विलक्षणस्य भावः-ष्यञ्—आश्चर्य
वैलक्षण्यम् —नपुं॰—-—विलक्षणस्य भावः-ष्यञ्—वैपरीत्य, विरोध
वैलक्षण्यम् —नपुं॰—-—विलक्षणस्य भावः-ष्यञ्—अन्तर, भेद
वैलक्ष्यम् —नपुं॰—-—विलक्ष + ष्यञ्—उलझन, गड़बड़ी
वैलक्ष्यम् —नपुं॰—-—विलक्ष + ष्यञ्—अस्वाभाविकता, कृत्रिमता
वैलक्ष्यम् —नपुं॰—-—विलक्ष + ष्यञ्—लज्जा
वैलक्ष्यम् —नपुं॰—-—विलक्ष + ष्यञ्—वैपरीत्य, व्यत्क्रम्
वैलोम्यम् —नपुं॰—-—विलोम + ष्यञ्—विरोध, व्युत्क्रम्, वैपरीत्य
वैल्व —वि॰—-—विल्व + अण्—बेल के वृक्ष या लकड़ी से संबद्ध या निर्मित
वैल्व —वि॰—-—विल्व + अण्—बेल के पेड़ों से ढका हुआ
वैल्वम् —नपुं॰—-—विल्व + अण्—बेल के पेड़ का फल
वैवधिकः —पुं॰—-—विवध + ठक्—फेरी वाला, आवाज लगा कर बेचने वाला
वैवधिकः —पुं॰—-—विवध + ठक्—(बहँगो में रख कर) भार ढोने वाला
वैवर्ण्यम् —नपुं॰—-—विवर्णस्यः भावः-ष्यञ्—रंग या चेहरे की आभा का परिवर्तन, फीकापन, निष्प्रभता
वैवर्ण्यम् —नपुं॰—-—विवर्णस्यः भावः-ष्यञ्—विभिन्नता, विविधता
वैवर्ण्यम् —नपुं॰—-—विवर्णस्यः भावः-ष्यञ्—जाति से विचलना
वैवस्वतः —पुं॰—-—विवस्वतोऽपत्यम् अण्—सातवाँ
वैवस्वतः —पुं॰—-—विवस्वतोऽपत्यम् अण्—यम
वैवस्वतः —पुं॰—-—विवस्वतोऽपत्यम् अण्—शनिग्रह
वैवस्वतम् —नपुं॰—-—-—विवस्वान् के पुत्र सातवें मनु, द्वारा अधिष्ठित वर्तमान युग या मन्वन्तर
वैवस्वती —स्त्री॰—-—वैवस्वत + ङीप्—दक्षिण दिशा
वैवस्वती —स्त्री॰—-—-—यमुना नदी
वैवहिक —वि॰—-—विवाह + ठञ्—विवाहसंबंधी, विवाहविषयक, विवाह के कारण होने वाला
वैवहिकः —पुं॰—-—-—विवाह, शादी
वैवहिकम् —नपुं॰—-—-—विवाह, शादी
वैवहिकः —पुं॰—-—-—पुत्र वधू का श्वसुर, या दामाद का श्वसुर
वैशद्यम् —नपुं॰—-—विशद + ष्यञ्—स्वच्छता, निर्मलता
वैशद्यम् —नपुं॰—-—विशद + ष्यञ्—स्पष्टता
वैशद्यम् —नपुं॰—-—विशद + ष्यञ्—सफेदी
वैशद्यम् —नपुं॰—-—विशद + ष्यञ्—शान्ति (मन की) स्वस्थता
वैशसम् —नपुं॰—-—विशस + अण्—विनाश, हत्या, वध
वैशसम् —नपुं॰—-—विशस + अण्—दुःख, सन्ताप, पीड़ा, कष्ट, कठिनाई
वैशस्त्रम् —नपुं॰—-—विशस्त्र + अण्—असुरक्षा
वैशस्त्रम् —नपुं॰—-—विशस्त्र + अण्—राजकीय शासन
वैशाखः —पुं॰—-—विशाख + अण्—चान्द्रवर्ष का दूसरा महीना (अप्रैल-मई)
वैशाखः —पुं॰—-—विशाख + अण्—रई का डण्डा
वैशाखम् —नपुं॰—-—-—बाण चलते समय की एक मुद्रा
वैशाखी —स्त्री॰—-—-—वैशाख मास की पूर्णिमा
वैशिक —वि॰ —-—वेशेन जीवति-वेश + ठक्—वेश्याओं द्वारा अभ्यस्त
वैशिकः —पुं॰—-—-—जो वेश्याओं के साहचर्य में रहता है, शृङ्गार-साहित्य में पाया जाने वाला एक नायक
वैशिकम् —नपुं॰—-—-—वेश्यावृत्ति, वेश्याओं की कलाएँ
वैशिष्ट्यम् —नपुं॰—-—विशिष्ट + ष्यञ्—भेद, अन्तर
वैशिष्ट्यम् —नपुं॰—-—विशिष्ट + ष्यञ्—विशिष्टता, विशेषता, अनूठापन
वैशिष्ट्यम् —नपुं॰—-—विशिष्ट + ष्यञ्—श्रेष्ठता
वैशिष्ट्यम् —नपुं॰—-—विशिष्ट + ष्यञ्—विशिष्टलक्षणसम्पन्नता
वैशेषिक —वि॰—-—विशेषं पदार्थभेदमधिकृत्य कृतो ग्रन्थः-विशेष + ठक्— विशेषता युक्त
वैशेषिक —वि॰—-—विशेषं पदार्थभेदमधिकृत्य कृतो ग्रन्थः-विशेष + ठक्—वैशेषिक दर्शन के सिद्धान्तों से संबंध रखने वाला
वैशेषिकम् —नपुं॰—-—-—छः हिन्दूदर्शनशास्त्रों में से एक दर्शन जिसके प्रणेता कणाद थे
वैशेष्यम् —नपुं॰—-—विशेष + ष्यञ्—श्रेष्ठता, प्रमुखता, सर्वोंत्तमता
वैश्यः —पुं॰—-—विश + ष्यञ्—तृतीय वर्ण का पुरुष, इसका व्यवसाय व्यापार और कृषि है
वैश्यकर्मन् —नपुं॰—वैश्यः-कर्मन्—-—वैश्य का व्यवसाय या पेशा, व्यापार, खेती आदि
वैश्यवृत्तिः —स्त्री॰—वैश्यः-वृत्तिः—-—वैश्य का व्यवसाय या पेशा, व्यापार, खेती आदि
वैश्रवणः —पुं॰—-—विश्रवणस्यापत्यम्-अण्—धन का स्वामी कुबेर
वैश्रवणः —पुं॰—-—विश्रवणस्यापत्यम्-अण्—रावण का नाम
वैश्रवणालयः —पुं॰—वैश्रवणः-आलयः—-—कुबेर का आवासस्थल
वैश्रवणालयः —पुं॰—वैश्रवणः-आलयः—-—बड़ का वृक्ष
वैश्रवणावासः —पुं॰—वैश्रवणः-आवासः—-—कुबेर का आवासस्थल
वैश्रवणावासः —पुं॰—वैश्रवणः-आवासः—-—बड़ का वृक्ष
वैश्रवणोदयः —पुं॰—वैश्रवणः-उदयः—-—बड़ का पेड़
वैश्वदेव —वि॰—-—विश्वदेव + अण्—विश्वेदेवों से सम्बन्ध रखने वाला
वैश्वदेवम् —नपुं॰—-—-—विश्वेदेवों को प्रस्तुत किया गया उपहार
वैश्वदेवम् —नपुं॰—-—-—सभी देवताओं को भेंट (भोजन करने से पूर्व विश्वदेव यज्ञ में आहुति देकर)
वैश्वानरः —पुं॰—-—विश्वानर + अण्—अग्नि का विशेषण
वैश्वानरः —पुं॰—-—विश्वानर + अण्—जठराग्नि
वैश्वानरः —पुं॰—-—विश्वानर + अण्—परमात्मा
वैश्वासिक —वि॰—-—विश्वास + ठक्—विश्वसनीय, गोपनीय
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—असमता
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—खुददरापना, कठोरता
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—असमानता
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—अन्याय
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—कठिनाई, विपत्ति, संकट
वैषम्यम् —नपुं॰—-—विषम + ष्यञ्—एकाकीपन
वैषयिक —वि॰—-—विषय + ठक्—किसी पदार्थ - सम्बन्धी
वैषयिक —वि॰—-—विषय + ठक्—विषयों से सम्बन्ध रखने वाला, वासनात्मक, शारीरिक
वैषयिकः —पुं॰—-—-—कामी, लम्पट
वैष्टुतम् —नपुं॰—-—विष्टुत्या निर्वृत्तम्-विष्टुति + अण्—भस्मीकृत आहुतियों की राख
वैष्ट्रः —पुं॰—-—विश + ष्ट्रन्, वृद्धि—अन्तरिक्ष, आकाश
वैष्ट्रः —पुं॰—-—विश + ष्ट्रन्, वृद्धि—हवा, वायु
वैष्ट्रः —पुं॰—-—विश + ष्ट्रन्, वृद्धि—लोक, विश्व का एक प्रभाग
वैष्णव —वि॰—-—विष्णु + अण्—विष्णु सम्बन्धी
वैष्णव —वि॰—-—विष्णु + अण्—विष्णु की पूजा करने वाला
वैष्णवः —पुं॰—-—-—तीन महत्त्वपूर्ण आधुनिक हिन्दू-संप्रदायों में से एक, दूसरे दो हैं शैव और शाक्त
वैष्णवम् —नपुं॰—-—-—भस्मीकृत आहुतियों की राख
वैष्णावपुराणम् —नपुं॰—वैष्णवम्-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण
वैसारिणः —पुं॰—-—विशेषेण सरति विसारी मत्स्यः स एवं -विसा + रिन् + अण्—मछली
वैहायस —वि॰—-—विहायस् + अण्—हवा में विद्यमान, हवाई
वैहार्य —वि॰—-—विशेषेण ह्नियते-वि + हृ + ण्यत् + अण्—जिससे हंसी दिल्लगी की जाय, जिसे उपहास का विषय बनाया जाय
वैहासिकः —पुं॰—-—विहासं करोति-विहास + ठक्—हंसोकड़ा, विदूषक
वोड्रः —पुं॰—-—वा + उड्र—एक प्रकार का साँप
वोड्रः —पुं॰—-—वा + उड्र—एक तरह की मछली
वोड्री —स्त्री॰—-—वोड + ङीष्—पण का चौथा भाग
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—ढोने वाला, कुली
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—नेता
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—पति
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—साँड़
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—रथवान्
वोदृ —पुं॰—-—वह् + तृच्—खींचने वाला घोड़ा
वोंटः —पुं॰—-—-—डंठल, वृन्त
वोद —वि॰—-—अवसिक्तमुदकं यत्र - प्रा॰ ब॰, उदकस्य उदादेशः, भागुरिमते अकार लोपः—तर, गीला, आर्द्र
वोदालः —पुं॰—-—वोदः आर्द्रः सन् अलति-वोद + अल् + अच्—जर्मन-मछली
वोरकः —पुं॰—-—अवनतं लेखन काले उरो यस्य-प्रा॰ ब॰, कप्, अवस्य अकारलोपः, पृषो॰ सलोपः—लिपिकार, लेखक
वोलकः —पुं॰—-—अवनतं लेखन काले उरो यस्य-प्रा॰ ब॰, कप्, अवस्य अकारलोपः, पृषो॰ सलोपः, पक्षे रलयोरभेदः—लिपिकार, लेखक
वोरटः —पुं॰—-—वो इति रटन्ति भृङ्गा यत्र- वो + रट् + क—कुंद का एक भेद
वोलः —पुं॰—-—वुल् + अच्—गुग्गुल, रसगंध
वोल्लाहः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का घोड़ा
वौषट् —अव्य॰—-—उद्यतेऽनेन हविः-वह् + डौषट्—पितरों या देवों को आहुति देते समय प्रयुक्त किया जाने वाला उद्गार या सांकेतिक शब्द
व्यंशकः —पुं॰—-—विशिष्टः अंशो यस्य-प्रा॰ ब॰, कप्—पहाड़
व्यंशुकः —वि॰—-—विगतम् अंशुकं यस्य -प्रा॰ ब॰—वस्त्रहीन, विवस्त्र, नंगा
व्यंसकः —पुं॰—-—वि + अंस् + ण्वुल्—धूर्त, ठग
व्यंसनम् —नपुं॰—-—वि + अंस् + ल्युट्—ठगना, धोखा देना
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—प्रकटीकृत, प्रदर्शित
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—विकसित, रचित
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—स्पष्ट, प्रकट, साफ, सरल, भिन्न, विशद रूप से विद्यमान
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—विशिष्ट, विदित, विख्यात
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—अकेला मनुष्य
व्यक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज + क्त—बुद्धिमान्, विद्वान्
व्यक्तम् —अव्य॰—-—-—स्पष्ट, स्पष्ट रूप से, साफ़तौर पर, निश्चित रूप से
व्यक्तगणितम् —नपुं॰—व्यक्त-गणितम्—-—अंकगणित
व्यक्तदृष्टार्थः —पुं॰—व्यक्त-दृष्टार्थः—-—वह साथी जिसने घटना अपनी आँखों से देखी है, गवाह
व्यक्तराशिः —पुं॰—व्यक्त-राशिः—-—ज्ञात अंक
व्यक्तरूपः —पुं॰—व्यक्त-रूपः—-—विष्णु का विशेषण
व्यक्तविक्रम —वि॰—व्यक्त-विक्रम—-—शक्ति प्रदर्शित करने वाला
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—प्रकटीकरण, दृश्यमानता, विशद प्रत्यक्षज्ञान
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—दृश्यमान सूरत, स्पष्टता, विशदता
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—भेद, विवेचन
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—वास्तविक रूप या प्रकृति, सच्चरित्र
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—वैयक्तिकता
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—अकेला मनुष्य, पुरुष
व्यक्तिः —स्त्री॰—-—वि + अञ्ज् + क्तिन्—लिंग
व्यग्र —वि॰—-—विरुद्धम् अगति-वि + अग् + रक्—व्याकुल, विस्मित, उचाट
व्यग्र —वि॰—-—विरुद्धम् अगति-वि + अग् + रक्—आतङ्कित, भयभीत
व्यग्र —वि॰—-—विरुद्धम् अगति-वि + अग् + रक्—किसी कार्य में साभिप्राय व्यस्त
व्यङ्ग —वि॰—-—विगतं वा अङ्ग यस्य -प्रा॰ ब॰—देहहीन
व्यङ्ग —वि॰—-—विगतं वा अङ्ग यस्य -प्रा॰ ब॰—अङ्गहीन, विरूप, विकलाङ्ग, अपाहज, लुञ्जा
व्यङ्गः —पुं॰—-—-—गाल पर पड़े काले धब्बे
व्यङ्गुलम् —नपुं॰—-—-—लम्बाई का अत्यन्त छोटा माप, अंगुल का ६० वां अंश
व्यङ्य —वि॰—-—वि + अञ्ज् + ण्यत्—व्यञ्जना शक्ति द्वारा ध्वनित, परोक्षसंकेत द्वारा सूचित
व्यङ्य —वि॰—-—वि + अञ्ज् + ण्यत्—ध्वनित (अर्थ)
व्यङ्ग्यम् —नपुं॰—-—-—उपलक्षित अर्थ, व्यङ्ग्योक्ति, परोक्ष संकेत
व्यच् —तुदा॰ पर॰ <विचति>, कर्मवा॰ <विच्यते>—-—-—ठगना, धोखा देना, चाल चलना
व्यजः —पुं॰—-—वि + अज् + घञ्—पंखा
व्यजनम् —नपुं॰—-—वि + अज् + ल्युट्—पंखा
व्यञ्जक —वि॰—-—वि + अञ्ज् + ण्वुल्—स्पष्ट करने वाला, सङ्केतक, बतलाने वाला, प्रकट करने वाला
व्यञ्जक —पुं॰—-—वि + अञ्ज् + ण्वुल्—अर्थ को उपलक्षित या ध्वनित करने वाला (शब्द)
व्यञ्जकः —पुं॰—-—-—नाटकीय हावभाव, आन्तरिक भावों को उपयुक्त हावभाव द्वारा प्रकट करने वाला बाह्य सङ्केत
व्यञ्जकः —पुं॰—-—-—सङ्केत, प्रतीक
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—स्पष्ट करना, सङ्केत करना, प्रकट करना
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—चिह्न, निशान, सङ्केत
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—स्मारक
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—छद्मवेश, परिधान
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—व्यञ्जन अक्षर
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—लिङ्गद्योतक चिह्न अर्थात स्त्री या पुरुष का परिचायक अङ्ग
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—अधिकार-चिह्न, बिल्ला
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—वयस्कता का चिह्न
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—दाढ़ी
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—अङ्ग, सदस्य
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—मिर्च मसाला, चटनी, सिझाई हुई वस्तु
व्यञ्जनम् —नपुं॰—-—वि + अञ्ज् + ल्युट्—तीनों शब्दशक्तियों में अन्तिम जिससे अर्थ उपलक्षित या ध्वनित होता है
व्यञ्जनोदय —वि॰—व्यञ्जनम्-उदय—-—वह जिसके पश्चात् व्यञ्जन अक्षर आता हो
व्यञ्जनसन्धिः —पुं॰—व्यञ्जनम्-सन्धिः—-—व्यञ्जन वर्णों का संयोग या संश्लेष
व्यञ्जना —स्त्री॰—-—-—तीनों शब्दशक्तियों में अन्तिम जिससे अर्थ उपलक्षित या ध्वनित होता है
व्यञ्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अञ्ज् + क्त—साफ किया गया, प्रकट किया गया, सङ्केत किया गया
व्यञ्जित —वि॰—-—वि + अञ्ज् + क्त—चिह्नित, भिन्न, चित्रित
व्यञ्जित —वि॰—-—वि + अञ्ज् + क्त—सुझाव दिया गया, ध्वनित
व्यडम्बकः —पुं॰—-—डम्ब् + ण्वुल्—अरण्ड का पेड़
व्यडम्बनः —पुं॰—-—डम्ब् + ल्युट्, विशेषेण न डम्बकः—अरण्ड का पेड़
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—मिश्रण, अन्तःमिश्रण, इकट्ठा मिला देना
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—सम्पर्क, मिलाप, सम्मिलन
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—रगड़ना
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—घटना, सम्भूति, वृत्तान्त, वस्तु, मामला
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—अवसर
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—मुसीबत, संकट
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—पारस्परिक सम्बन्ध, पारस्परिकता
व्यतिकरः —पुं॰—-—वि + अति + कृ + अप्—विनिमय, अदलाबदली
व्यतिकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + कृ + क्त—मिला हुआ, मिश्रित
व्यतिकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संयुक्त
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—अतिक्रमण, विचलन, भटकना
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—उल्लंघन, भंग, अननुष्ठान
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—अवहेलना, उपेक्षा, भूल
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—वैपरीत्य, उलट, व्यत्यास
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—पाप, दुर्व्यसन, जुर्म
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि + अति + क्रम् + घञ्—आपत्काल, दुर्भाग्य
व्यतुक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + क्रम् + क्त—पार किया गया, अतिक्रमण किया गया, उल्लंघन किया गया, उपेक्षित
व्यतुक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + क्रम् + क्त—औंधा, विपर्यस्त
व्यतुक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + क्रम् + क्त—बीता हुआ, गुज़रा हुआ (समय)
व्यतिरिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + रिच् + क्त—वियुक्त, भिन्न
व्यतिरिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + रिच् + क्त—आगे बढ़ने वाला, सर्वोत्कृष्ट होने वाला, आगे निकल जाने वाला
व्यतिरिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + रिच् + क्त—प्रत्याहृत, रोका हुआ
व्यतिरिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + रिच् + क्त—अलगाया हुआ
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—भेद, अन्तर
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—वियोग
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—निष्कासन, अपर्वजन
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—श्रेष्ठता, आगे बढ़ जाना, आगे निकल जाना
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—वैशषम्य, असमानता
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—(तर्क में) अनन्वय
व्यतिरेकः —पुं॰—-—वि + अति + रिच् + घञ्—एक अर्थालंकार जिसमें किन्हीं विशेष दशाओं में उपमान की अपेक्षा उपमेय को श्रेष्ठतर बताया जाता है
व्यतिरेकिन् —वि॰—-—व्यतिरेक + इनि—भिन्न
व्यतिरेकिन् —वि॰—-—व्यतिरेक + इनि—आगे बढ़ जाने वाला, आगे निकल जाने वाला
व्यतिरेकिन् —वि॰—-—व्यतिरेक + इनि—बाहर निकालने वाला, अपवर्जन करने वाला
व्यतिरेकिन् —वि॰—-—व्यतिरेक + इनि—अभाव या अनस्तित्व दर्शाने वाला
व्यतिषक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + शञ्ज् + क्त—आपस में मिला हुआ, पारस्परिक संबंधयुक्त, शृंखलाबद्ध या एकत्र जुड़ा हुआ
व्यतिषक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + शञ्ज् + क्त—अन्तः मिश्रित
व्यतिषक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + शञ्ज् + क्त—अन्तर्जातीय विवाह करने वाला
व्यतिषङ्गः —पुं॰—-—वि + अति + सञ्ज् + घञ्—पारस्परिक संबन्ध, अन्योन्यसम्बन्ध
व्यतिषङ्गः —पुं॰—-—वि + अति + सञ्ज् + घञ्—अन्तःमिश्रण
व्यतिषङ्गः —पुं॰—-—वि + अति + सञ्ज् + घञ्—संयोग, या मिलाप
व्यतिहारः —पुं॰—-—वि + अति + हृ + घञ्—अदल-बदल, विनिमय
व्यतिहारः —पुं॰—-—वि + अति + हृ + घञ्—पारस्परिकता, अन्तःपरिवर्तन
व्यतीहारः —पुं॰—-—वि + अति + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य इकारस्य दीर्घः—अदल-बदल, विनिमय
व्यतीहारः —पुं॰—-—वि + अति + हृ + घञ्, पक्षे उपसर्गस्य इकारस्य दीर्घः—पारस्परिकता, अन्तःपरिवर्तन
व्यतीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + इ + क्त—गुजरा हुआ, गया हुआ, बीता हुआ, पार किया हुआ
व्यतीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + इ + क्त—मृत
व्यतीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + इ + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त, विसर्जित
व्यतीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + इ + क्त—अवज्ञात
व्यतीपातः —पुं॰—-—वि + अति + पत् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—समूचा प्रयाण, सम्पूर्णविचलन
व्यतीपातः —पुं॰—-—वि + अति + पत् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—भारी उत्पात, भारी संकट को सूचित करने वाला अपशकुन
व्यतीपातः —पुं॰—-—वि + अति + पत् + घञ्, उपसर्गस्य दीर्घः—अनादर, तिरस्कार
व्यत्ययः —पुं॰—-—वि + अति + इ + अच्—पार करना
व्यत्ययः —पुं॰—-—वि + अति + इ + अच्—विरोध, वैपरीत्य
व्यत्ययः —पुं॰—-—वि + अति + इ + अच्—व्यत्यस्त क्रम, व्युत्क्रान्ति
व्यत्ययः —पुं॰—-—वि + अति + इ + अच्—अन्तःपरिवर्तन, रूपान्तरण
व्यत्ययः —पुं॰—-—वि + अति + इ + अच्—अवरोध्, अड़चन
व्यत्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + अस् + क्त—व्युत्क्रांत, विपर्यस्त
व्यत्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + अस् + क्त—विपरीत, विरोधी
व्यत्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + अस् + क्त—असंगत व्यत्यस्तं लपति
व्यत्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अति + अस् + क्त—विरेखित, इस प्रकार रक्खी हुई (दो वस्तुएँ) जिसमें एक दूसरी को काटती हो
व्यत्यासः —पुं॰—-—वि + अति + अस् + घञ्—व्युत्क्रांत स्थिति या क्रम
व्यत्यासः —पुं॰—-—-—विरोध, वैपरीत्य
व्यथ् —भ्वा॰ आ॰ <व्यथते>, <व्यथित>—-—-—शोकान्वित होना, पीडित होना, कष्टग्रस्त होना, विक्षुब्ध या अशांत होना
व्यथ् —भ्वा॰ आ॰ <व्यथते>, <व्यथित>—-—-—आन्दोलित होना, दोलायमान होना
व्यथ् —भ्वा॰ आ॰ <व्यथते>, <व्यथित>—-—-—कांपना
व्यथ् —भ्वा॰ आ॰ <व्यथते>, <व्यथित>—-—-—भयभीत होना
व्यथ् —भ्वा॰ आ॰ <व्यथते>, <व्यथित>—-—-—सूखना, शुष्क होना
व्यथ् —भ्वा॰ उभ॰, प्रेर॰ <व्यथयति>, <व्यथयते>—-—-—पीडा देना, कष्ट देना, नाराज करना, दुःखी करना
प्रव्यथ् —भ्वा॰ आ॰—प्र-व्यथ्—-—अत्यन्त क्रुद्ध होना
व्यथक —वि॰—-—व्यथ् + णिच् + ण्वुल्—पीडाजनक, दुःखद, कष्टकर
व्यथनम् —नपुं॰—-—व्यथ् + ल्युट्—पीडा देना, सताना
व्यथा —स्त्री॰—-—व्यथ् + अङ् + टाप्—पीडा, वेदना, आधि
व्यथा —स्त्री॰—-—व्यथ् + अङ् + टाप्—भय, आतंक, चिन्ता
व्यथा —स्त्री॰—-—व्यथ् + अङ् + टाप्—विक्षोभ, अशान्ति
व्यथा —स्त्री॰—-—व्यथ् + अङ् + टाप्—रोग
व्यथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यथ् + क्त—कष्टग्रस्त, दुःखी, पीडित
व्यथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यथ् + क्त—आतङ्कित
व्यथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यथ् + क्त—विक्षुब्ध, अशान्त, बेचैन
व्यध् —दिवा॰ पर॰ <विध्यति>, <विद्ध>—-—-—बींधना, चोट पहुँचाना, प्रहार करना, छुरा भौंकना, मार डालना
व्यध् —दिवा॰ पर॰ <विध्यति>, <विद्ध>—-—-—सूराख़ करना, छिद्र करना, आरपार बींधना
व्यध् —दिवा॰ पर॰ <विध्यति>, <विद्ध>—-—-—खोदना, गड्ढा करना
अनुव्यध् —दिवा॰ पर॰—अनु-व्यध्—-—बींधना, चोट पहुँचाना, घायल करना
अनुव्यध् —दिवा॰ पर॰—अनु-व्यध्—-—गूंथना, घेरना
अनुव्यध् —दिवा॰ पर॰—अनु-व्यध्—-—जड़ना, जटित करना
अपव्यध् —दिवा॰ पर॰—अप-व्यध्—-—फेंकना, डालना, उछालना
अपव्यध् —दिवा॰ पर॰—अप-व्यध्—-—बींधना
अपव्यध् —दिवा॰ पर॰—अप-व्यध्—-—त्यागना, परित्यक्त करना
आव्यध् —दिवा॰ पर॰—आ-व्यध्—-—बींधना
आव्यध् —दिवा॰ पर॰—आ-व्यध्—-—फेंकना, डालना
परिव्यध् —दिवा॰ पर॰—परि-व्यध्—-—बींधना, घायल करना
संव्यध् —दिवा॰ पर॰—सम्-व्यध्—-—बींधना, घायल करना
व्यधः —पुं॰—-—व्यध् + अच्—बींधनअ, टुकड़े टुकड़े करना, प्रहार करना
व्यधः —पुं॰—-—व्यध् + अच्—आघात करना, घायल करना, प्रहार
व्यधः —पुं॰—-—व्यध् + अच्—छिद्र करना
व्यधिकरणम् —नपुं॰—-—वि + अधि + कृ + ल्युट्—भिन्न आधार या स्तर पर जीवित रहना
व्यध्यः —पुं॰—-—व्यध् + ण्यत्—चाँदमारी के पीछे का टीला, निशाना, लक्ष्य
व्यध्वः —पुं॰—-—विरुद्धः अध्वा- प्रा॰ स॰—कुमार्ग, बुरी सड़क
व्यनुनादः —पुं॰—-—विशिष्टः अनुनादः प्रा॰ स॰—प्रतिध्वनि, ऊँची गूँज
व्यन्तरः —पुं॰—-—विशिष्टः अन्तरो यस्य-प्रा॰ ब॰—पिशाच, यक्ष आदि एक प्रकार का अतिप्राकृतिक प्राणी
व्यप् —चुरा॰ उभ॰ <व्यपयति>, <व्यपयते>—-—-—फेंकना
व्यप् —चुरा॰ उभ॰ <व्यपयति>, <व्यपयते>—-—-—घटाना, बरबाद करना, कम करना
व्यपकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + कृष् + क्त—एक ओर खींचा हुआ, दूर किया हुआ, हटाया हुआ
व्यपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + गम् + क्त—गया हुआ, विसर्जित, अन्तर्हित
व्यपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + गम् + क्त—हटाया हुआ
व्यपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + गम् + क्त—गिराया हुआ
व्यपगमः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + गम् + अप्—विसर्जन, अन्तर्धान
व्यपत्रप —वि॰—-—विगता अपत्रपा यस्य-प्रा॰ ब॰ —निर्लज्ज, ढीठ
व्यपदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + दिश् + क्त—नामाङ्कित
व्यपदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + दिश् + क्त—बतलाया गया, प्रस्तुत किया गया, द्योतित
व्यपदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + दिश् + क्त—बहाने या छल के रूप में प्रतिपादित किया गया
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्— निरूपण, सन्देश, सूचना
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्—नामकरण, नाम रखना
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्—नाम, अभिधान, उपाधि
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्—कीर्ति, यश, प्रसिद्धि
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्—चाल, बहाना, दाँव, उपाय
व्यपदेशः —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + घञ्—जालसाजी, चालाकी
व्यपदेष्टृ —पुं॰—-—वि + अप + दिश् + तृ़च्—छलिया, धोखेबाज़
व्यपरोपणम् —नपुं॰—-—वि + अप + रुह् + णिच् + ल्युट्, हस्य पः —उन्मूलन, उखाड़ना
व्यपरोपणम् —नपुं॰—-—वि + अप + रुह् + णिच् + ल्युट्, हस्य पः —भगाना, हटाना, दूर करना
व्यपरोपणम् —नपुं॰—-—वि + अप + रुह् + णिच् + ल्युट्, हस्य पः —काट डालना, फाड़ डालना, तोड़ लेना
व्पपाकृतिः —स्त्री॰—-—वि + अप + आ + कृ + क्तिन्—निष्कासन, दूरीकरण, निकाल देना
व्पपाकृतिः —स्त्री॰—-—वि + अप + आ + कृ + क्तिन्—मुकरना
व्यपायः —पुं॰—-—वि + अप + इ + घञ्—अन्त, लोप, समाप्ति
व्यपाश्रयः —पुं॰—-—वि + अप + आ + श्रि + अप्—उत्तराधिकारिता
व्यपाश्रयः —पुं॰—-—वि + अप + आ + श्रि + अप्—शरण लेना, सहारा लेना, भरोसा करना
व्यपाश्रयः —पुं॰—-—वि + अप + आ + श्रि + अप्—निर्भर होना
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—प्रत्याशा, आशा
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—लिहाज़, विचार
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—पारस्परिक सम्बन्ध, अन्योन्याश्रय
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—पारस्परिक लिहाज़
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—व्यवहार
व्यपेक्षा —स्त्री॰—-—वि + अप + ईक्ष् + अङ् + टाप्—दो नियमों का पारस्परिक प्रयोग
व्यपेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + इ + क्त—वियुक्त अलगाया हुआ
व्यपेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + इ + क्त—गया हुआ, विसर्जित
व्यपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + वह् + क्त—निकाला गया, हटाया गया
व्यपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + वह् + क्त—विपरीत, विरोधी
व्यपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अप + वह् + क्त—प्रकटीकृत, प्रदर्शित, बतलाया गया
व्यपोहः —पुं॰—-—वि + अप + ऊह् + घञ्—निकालना, दूर करना, अलग रखना
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—दूर चले जाना, विचलन, सन्मार्ग छोड़ देना, कुमार्ग का अनुसरण करना
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्— अतिक्रमण, उल्लंघन
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—अशुद्धि, जुर्म, पाप
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—विच्छेद्यता, अलग होने की सामर्थ्य
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—अभक्ति, अनास्था, पति-पत्नि में अविश्वास, पतिव्रत या पत्नीव्रत का अभाव
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—असंगति, अनियमितता, अपवाद
व्यभिचारः —पुं॰—-—वि + अभि + चर् + घञ्—(तर्क में) आभासी हेतु, हेत्वाभास, साध्य के न होने पर भी हेतु की विद्यमानता
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—दूर चले जाना, विचलन, सन्मार्ग छोड़ देना, कुमार्ग का अनुसरण करना
व्यभीचारः —पुं॰—-—-— अतिक्रमण, उल्लंघन
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—अशुद्धि, जुर्म, पाप
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—विच्छेद्यता, अलग होने की सामर्थ्य
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—अभक्ति, अनास्था, पति-पत्नि में अविश्वास, पतिव्रत या पत्नीव्रत का अभाव
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—असंगति, अनियमितता, अपवाद
व्यभीचारः —पुं॰—-—-—(तर्क में) आभासी हेतु, हेत्वाभास, साध्य के न होने पर भी हेतु की विद्यमानता
व्यभिचारिणी —स्त्री॰—-—व्यभिचारिन् + ङीप्—असती स्त्री, परपुरुषगामिनी स्त्री
व्यभिचारिन् —वि॰—-—व्यभिचार + इनि—भटका हुआ, भूला हुआ, पथभ्रष्ट, भ्रान्त, नियम भंग करने वाला
व्यभिचारिन् —वि॰—-—व्यभिचार + इनि—अनियमित, असंगत
व्यभिचारिन् —वि॰—-—व्यभिचार + इनि—असत्य, मिथ्या
व्यभिचारिन् —वि॰—-—व्यभिचार + इनि—श्रद्धाहीन, जो ब्रह्मचारी न हो, परस्त्रीगामी
व्यभिचारिन् —पुं॰—-—-—संचारिभाव, सहकारी भाव
व्यभिचारिभावः —पुं॰—-—-—संचारिभाव, सहकारी भाव
व्यय् —चुरा॰ उभ॰ <व्यययति>, <व्यययते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
व्यय् —चुरा॰ उभ॰ <व्यययति>, <व्यययते>—-—-—व्यय करना, प्रदान करना, अर्पण करना
व्यय् —भ्वा॰ उभ॰ <व्ययति>, <व्ययते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
व्यय् —चुरा॰ उभ॰ <व्याययति>, <व्याययते>—-—-—फेंकना, डालना
व्यय् —चुरा॰ उभ॰ <व्याययति>, <व्याययते>—-—-—हाँकना
व्यय —वि॰—-—वि + इ + अच्—परिवर्तनीय, परिणामशील, विकारवान्
व्ययः —पुं॰—-—-—हानि, लोप, विनाश
व्ययः —पुं॰—-—-—लागत लगाना, त्याग
व्ययः —पुं॰—-—-—रुकावट, अड़चन
व्ययः —पुं॰—-—-—क्षय, ह्रास, पराजय, अधःपतन
व्ययः —पुं॰—-—-—खर्च, भूल्य, परिव्यय, विनियोग, प्रयोग
व्ययः —पुं॰—-—-—अपव्यय, फिजू़लखर्ची
व्ययपरः —वि॰—व्यय-पर—-—मुक्तहस्त से ख़र्च करने वाला
व्ययपराङ्मुख —वि॰—व्यय-पराङ्मुख—-—कृपण, कंजू़स, मक्खीचूस
व्ययशील —वि॰—व्यय-शील—-—अतिव्ययी, फिजू़लख़र्च
व्ययशुद्धिः —स्त्री॰—व्यय-शुद्धिः—-—हिसाब चुकाना
व्ययनम् —नपुं॰—-—व्यय् + ल्युट्—ख़र्च करना
व्ययनम् —नपुं॰—-—व्यय् + ल्युट्—बर्बाद करना, विनष्ट करना
व्ययित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यय् + क्तु—व्यय किया गया, खर्च किया गया
व्ययित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यय् + क्तु—बर्बाद किया गया, क्षयग्रस्त
व्यर्थ —वि॰—-—विगतोऽर्थो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—अनुप्अयोगी, निरर्थक, विफल, अलाभकर
व्यर्थ —वि॰—-—विगतोऽर्थो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—अर्थहीन, निरर्थक, बेकारी
व्यलीक —वि॰—-—विशेषेण अलति -वि + अल् + कीकन्—मिथ्या, झूठा
व्यलीक —वि॰—-—विशेषेण अलति -वि + अल् + कीकन्—कुत्सित, अनभिमत, असुखद
व्यलीक —वि॰—-—विशेषेण अलति -वि + अल् + कीकन्—ज़ो मिथ्या न हो
व्यलीकः —पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी
व्यलीकः —पुं॰—-—-—गांडू, लौण्डा
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—कोई भी अप्रिय या असुखद वस्तु, अप्रियता
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—बेचैनी का कारण, पीड़ा, शोक या रंज का कारण
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—दोष, अपराध, अतिक्रमण, अनुचित कार्य
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—जालसाज़ी, चाल, धोखा
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—मिथ्यापन
व्यलीकम् —नपुं॰—-—-—व्युत्क्रम, वैपरीत्य
व्यवकलनम् —नपुं॰—-—वि + अव + कल् + ल्युट्—वियोग
व्यवकलनम् —नपुं॰—-—वि + अव + कल् + ल्युट्—(गणि॰ में ) घटाना, एक राशि में से दूसरी राशि कम करना
व्यवक्रोशनम् —नपुं॰—-—वि + अव + क्रुश् + ल्युट्—तू तू मैं मैं, आपस में गाली-गलौज
व्यवछिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + छिद् + क्त—काट डाला गया, चीरा गया, फाड़ा गया
व्यवछिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + छिद् + क्त—वियुक्त, विभक्त
व्यवछिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + छिद् + क्त—विशिष्ट किया गया, विशिष्ट
व्यवछिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + छिद् + क्त—अंकित, विलक्षण
व्यवछिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + छिद् + क्त—अवरुद्ध, बाधित
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—काट डालना, फाड़ देना
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—विभाजन, वियोजन
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—चीर-फाड़ करना
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—विशिष्टीकरण
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—विभेदक, विशिष्ट
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—वैषम्य, वैशिष्ट्य
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—निर्धारण
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—बन्दूक दागना, तीर छोड़ना
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि + अव + छिद् + घञ्—किसी पुस्तक का अध्याय या अनुभाग
व्यवधा —स्त्री॰—-—वि + अव + धा + अङ् + टाप्—व्यवधायक
व्यवधा —स्त्री॰—-—वि + अव + धा + अङ् + टाप्—आड़, पर्दा, व्यंशन
व्यवधा —स्त्री॰—-—वि + अव + धा + अङ् + टाप्—छिपाव, दुराव
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—हस्तक्षेप, अन्तःक्षेप, वियोग
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—अवरोध, दृष्टि से गुप्त रखना
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—छिपाना, अन्तर्धान
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—पर्दा, व्यंशन
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—ढकना, आवरण
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—अन्तराल, अवकाश
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि + अव + धा + ल्युट्—किसी अक्षर या मात्रा का बीच में आ पड़ना
व्यवधायक —वि॰—-—वि + अव + धा + ण्वुल्—बीच में आ पड़ने वाला, आवरण, ढकने वाला
व्यवधायक —वि॰—-—वि + अव + धा + ण्वुल्—अवरोध करने वाला, छिपाने वाला
व्यवधायक —वि॰—-—वि + अव + धा + ण्वुल्—मध्यवर्ती
व्यवधिः —पुं॰—-—वि + अव + धा + कि—आवरण, हस्तक्षेप आदि
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—प्रयत्न, चेष्टा, ऊर्जा, उद्योग, धैर्य
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—संकल्प, प्रस्ताव, निर्धारण
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—कृत्य, कर्म, क्रिया
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—व्यापार, नौकरी, वाणिज्य
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—आचरण, व्यवहार
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—उपाय, कूटयुक्ति, जुगत
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—शेखी़ बधारना
व्यवसायः —पुं॰—-—वि + अव + सो + घञ्—विष्णु
व्यवसायिन् —वि॰—-—व्यवसाय + इनि—ऊर्जस्वी, उद्योगी, परिश्रमी
व्यवसायिन् —वि॰—-—व्यवसाय + इनि—दृढ़ संकल्पी, धैर्यवान्
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—प्रयास किया गया, कोशिश की गई
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—जिम्मेवारी ली गई
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—संकल्प किया गया, निर्धारित, निश्चित
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—प्रकल्पित, आयोजित
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—प्रयत्नशील, दृढ़ निश्चयी
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—धयवान्, ऊर्जस्वी
व्यवसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + सो + क्त—ठगा गया, छला गया
व्यवसितम् —नपुं॰—-—-—निश्चयन, निर्धारण
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—समंजन, क्रमस्थापन, निपटारा
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—स्थिरता, निश्चितता
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—दृढ़ता, दृढ़ आधार
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—संबद्ध स्थिति
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—निश्चित नियम, क़ानून, सविधि आदेश, निर्णय, क़ानूनी सलाह, क़ानून की लिखित घोषणा
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—सहमति, संविदा
व्यवस्था —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + अङ् + टाप्—अवस्था, दशा
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + ल्युट्—क्रमबन्धन, समाधान, निर्धारण, फै़सला
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + ल्युट्—नियम, विधान, निश्चय
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + ल्युट्—स्थिरता, अचलता
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + ल्युट्—दृढ़ता, धैर्य
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + ल्युट्—वियोग
व्यवस्थितिः —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + क्तिन्—क्रमबन्धन, समाधान, निर्धारण, फै़सला
व्यवस्थितिः —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + क्तिन्—नियम, विधान, निश्चय
व्यवस्थितिः —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + क्तिन्—स्थिरता, अचलता
व्यवस्थितिः —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + क्तिन्—दृढ़ता, धैर्य
व्यवस्थितिः —स्त्री॰—-—वि + अव + स्था + क्तिन्—वियोग
व्यवस्थापक —वि॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + ण्वुल्, पुक्—क्रमस्थापन करने वाला, उपयुक्त क्रम में रखने वाला, समंजन करने वाला, स्थिर करने वाला, व्यवस्था करने वाला, फै़सला करने वाला
व्यवस्थापक —वि॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + ण्वुल्, पुक्—वह जो कानूनी सलाह देता है
व्यवस्थापक —वि॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + ण्वुल्, पुक्—प्रबन्धक (वर्तमान प्रयोग)
व्यवस्थापनम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + ल्युट्, पुक्—क्रमस्थापन, उपयुक्त समंजन
व्यवस्थापनम् —नपुं॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + ल्युट्, पुक्—स्थिर करना, निर्धारण, निश्वय करना, फै़सला करना
व्यवस्थापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + णिच् + क्त, पुक्—क्रमबद्ध, निश्चित
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—क्रम में रक्खा हुआ, समंजित, क्रमविन्यस्त
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—निश्चित, स्थिर
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—फै़सला किया गया, निर्धारित, क़ानून द्वारा घोषित
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—एक ओर रक्खा हुआ, वियुक्त
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—निकाला हुआ (रस आदि)
व्यवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + स्था + क्त—आधारित, अवलम्बित
व्यवस्थितविभाषा —स्त्री॰—व्यवस्थित-विभाषा—-—निश्चित इच्छा
व्यवहर्तृ —पुं॰—-—वि + अव + हृ + तृच्—किसी व्यवसाय का प्रबंधकर्ता
व्यवहर्तृ —पुं॰—-—वि + अव + हृ + तृच्—नालिश करने वाला, अभियोक्ता, वादी या मुद्दई
व्यवहर्तृ —पुं॰—-—वि + अव + हृ + तृच्—न्यायाधीश
व्यवहर्तृ —पुं॰—-—वि + अव + हृ + तृच्—साथी, संगी
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—आचरण, बर्ताव, कर्म
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—मामला, व्यवसाय, काम
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—पेशा, धंधा
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—लेनदेन, काम-काज
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—वाणिज्य, तिजारत, सौदागरी
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—रुपये पैसे का लेनदेन, सूदख़ोरी
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—प्रचलन, प्रथा, दस्तूर, रिवाज
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—संबन्ध, मेलजोल
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—न्यायालयी या अदालती कार्यविधि, किसी अभियोग या मामले की छान-बीन, न्याय प्रशासन
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—क़ानूनी झगड़ा, अभियोग, नालिश, क़ानूनी मुक़दमा, मुकदमेबाजी़
व्यवहारः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + घञ्—क़ानूनी कार्यविधि का शीर्षक, मुक़दमेबाजी का अवसर
व्यवहाराङ्गम् —नपुं॰—व्यवहारः-अङ्गम्—-—दीवानी और फ़ौजदारी क़ानूनों का समूह
व्यवहाराभिशस्त —वि॰—व्यवहारः-अभिशस्त—-—अभियोजित, दोषारोपित
व्यवहारासनम् —नपुं॰—व्यवहारः-आसनम्—-—न्यायाधिकरण, न्यायासन
व्यवहारज्ञः —पुं॰—व्यवहारः-ज्ञः—-—जो व्यवसाय को समझता है
व्यवहारज्ञः —पुं॰—व्यवहारः-ज्ञः—-—वयस्क युवा, बालिग़
व्यवहारज्ञः —पुं॰—व्यवहारः-ज्ञः—-—जो न्यायालयीय कार्यविधि से परिचित हो
व्यवहारतन्त्रम् —नपुं॰—व्यवहारः-तन्त्रम्—-—आचरणक्रम
व्यवहारदर्शनम् —नपुं॰—व्यवहारः-दर्शनम्—-—जांच, न्यायिक जांच-पड़ताल
व्यवहारपदम् —नपुं॰—व्यवहारः-पदम्—-—व्यवहार विषय
व्यवहारपादः —पुं॰—व्यवहारः-पादः—-—क़ानूनी कार्यवाही कीचार अवस्थाओं में से कोई सी एक
व्यवहारपादः —पुं॰—व्यवहारः-पादः—-—चौथी अवस्था अर्थात् निर्णयपाद जिसमें व्यवस्था या फ़ैसला बतलाया गया है
व्यवहारमातृका —स्त्री॰—व्यवहारः-मातृका—-—क़ानूनी प्रक्रिया
व्यवहारमातृका —स्त्री॰—व्यवहारः-मातृका—-—न्यायप्रशासन या न्यायालयों के निर्माण से सम्बन्ध रखने वाला कोई भी कर्म या विषय
व्यवहारविधिः —पुं॰—व्यवहारः-विधिः—-—क़ानून का नियम, विधिसंहिता
व्यवहारविषयः —पुं॰—व्यवहारः-विषयः—-—क़ानूनी कार्यविधि का शीर्षक या विषय, ऐसी बात जिसमें क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए, वादयोग्य विषय
व्यवहारपदम् —नपुं॰—व्यवहारः-पदम्—-—क़ानूनी कार्यविधि का शीर्षक या विषय, ऐसी बात जिसमें क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए, वादयोग्य विषय
व्यवहारमार्गः —पुं॰—व्यवहारः-मार्गः—-—क़ानूनी कार्यविधि का शीर्षक या विषय, ऐसी बात जिसमें क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए, वादयोग्य विषय
व्यवहारस्थानम् —नपुं॰—व्यवहारः-स्थानम्—-—क़ानूनी कार्यविधि का शीर्षक या विषय, ऐसी बात जिसमें क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए, वादयोग्य विषय
व्यवहारकः —पुं॰—-—वि + अव + हृ + ण्वुल्—विक्रेता, व्यापारी, सौदागर
व्यवहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठन्—व्यवसाय सम्बन्धी
व्यवहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठन्—व्यवसाय में लगा हुआ, अभ्यासप्राप्त
व्यवहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठन्—न्यायालयसंबंधी, क़ानूनी
व्यवहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठन्—मुक़दमेबाज़
व्यवहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठन्—प्रचलित, रूढ़ या प्रथानुसार
व्यवहारिका —स्त्री॰—-—वि + अव + हृ + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—रिवाज, प्रथा
व्यवहारिका —स्त्री॰—-—वि + अव + हृ + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—झाडू
व्यवहारिका —स्त्री॰—-—वि + अव + हृ + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—इंगुदी का वृक्ष
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—अलग अलग रक्खा हुआ
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—किसी अन्तःक्षिप्त वस्तु के कारण वियुक्त किया गया
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—बाधित, रोका गया, अवरुद्ध, अड़चन से युक्त
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—दृष्टि से ओझल, छिपाया हुआ, गुप्त
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—जिसका निरन्तर सम्बन्ध न हो
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—किया गया, सम्पन्न
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—भूला हुआ, छोड़ा हुआ
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—आगे बढ़ा हुआ, आगे निकला हुआ
व्यवहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + धा + क्त—विपक्षी, विरोधी
व्यवहृतिः —स्त्री॰ —-—वि + अव + हृ + क्तिन्—अभ्यास, प्रक्रिया
व्यवहृतिः —स्त्री॰ —-—वि + अव + हृ + क्तिन्—कर्म, सम्पादन
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—वियोजन, विश्लेषण (अवयवों का) पृथक्करण
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—विघटन
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—आवरण, छिपाव
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—हस्तक्षेप, अन्तराल
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—अड़चन, रुकावट
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—मैथुन, सम्भोग
व्यवायः —पुं॰—-—वि + अव + अय् + अच्—पवित्रता
व्यवायम् —नपुं॰—-—-—दीप्ति, आभा
व्यवायिन् —पुं॰—-—व्यवाय + इनि—विलासी, स्वेच्छाचारी
व्यवायिन् —पुं॰—-—व्यवाय + इनि—कामोद्दीपक, वाजीकरण
व्यवेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + इ + क्त—वियोजित, विश्लिष्ट
व्यवेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अव + इ + क्त—भिन्न
व्यष्टि —स्त्री॰—-—वि + अश् + क्तिन्—वैयक्तिकता, एकाकीपन
व्यष्टि —स्त्री॰—-—वि + अश् + क्तिन्—वितरणशील फैलाव
व्यष्टि —स्त्री॰—-—वि + अश् + क्तिन्—(वेदान्त॰ में ) समष्टि को उसके पृथक्-पृथक अवयवों के रूप में देखना, एक अंश
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—फ़ेक देना, दूर कर देना
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—वियोजन, विभाजन
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—उल्लंघन, व्यतिक्रमण
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—हानि विनाश, पराजय, पतन, दोष, दुर्बलपक्ष
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—विपत्ति, दुर्भाग्य, दुःख, अनिष्ट, संकट, अभाग्य
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—आपत्काल, आवश्यकता
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—(सूर्य आदि का) अस्त होना
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—दुर्व्यसन, बुरीलत, बुरी आदत
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—संलग्नता, जुट जाना, परिश्रमपूर्वक आसक्ति
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—बहुत ज्यादा आदी होना
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—जुर्म, पाप
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—दण्ड
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—अयोग्यता, अक्षमता
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—निष्फल प्रयत्न
व्यसनम् —नपुं॰—-—वि + अस् + ल्युट्—हवा, वायु
व्यसनातिभारः —पुं॰—व्यसनम्-अतिभारः—-—भारी अनर्थ या संकट
व्यसनान्वित —वि॰—व्यसनम्-अन्वित—-—संकटग्रस्त, दुःख में फंसा हुआ
व्यसनार्त —वि॰—व्यसनम्-आर्त—-—संकटग्रस्त, दुःख में फंसा हुआ
व्यसनपीडित —वि॰—व्यसनम्-पीडित—-—संकटग्रस्त दुःख में फंसा हुआ
व्यसनिन् —वि॰—-—व्यसन + इनि—किसी दुर्व्यसन में ग्रस्त, दुश्वरित्र
व्यसनिन् —वि॰—-—व्यसन + इनि—अभागा, भाग्यहीन
व्यसनिन् —वि॰—-—व्यसन + इनि—किसी कार्य में अत्यन्त संलग्न
व्यसु —वि॰—-—विगताः असवः प्राणाः यस्य -प्रा॰ ब॰—निर्जीव, मृतक
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—डाला हुआ, फेंका हुआ, उछाला हुआ
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—तितर-बितर किया हुआ, बिखेरा हुआ
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—हटाया हुआ, दूर फेंका हुआ
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—वियुक्त, विभक्त अलगाया हुआ
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—पृथक् रूप से विचारित, एक एक करके ग्रहण
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—सरल, समासरहित (शब्द आदि)
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—वहुविध
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—हटाया गया, निकाला गया
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—विक्षुब्ध, कष्टमय, अव्यवस्थित
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—क्रमरहित, भग्नक्रम, विशृंखलित
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—उलटाया हुआ, उलट-पुलट किया हुआ
व्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + अस् + क्त—विपर्यास (अनुपात आदि)
व्यस्तारः —पुं॰—-—-—हाथी के गंडस्थलों से मद का निकलना
व्याकरणम् —नपुं॰—-—व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते शब्दाः येन - वि + आ + कृ + ल्युट्—विग्रह, विश्लेषण
व्याकरणम् —नपुं॰—-—व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते शब्दाः येन - वि+ आ + कृ + ल्युट्—व्याकरण सम्बन्धी शब्द-पृथक्करण-प्रक्रिया, छः वेदांगों में से एक, व्याकरण
व्याकारः —पुं॰—-—वि + आ + कृ + घञ्—रूपान्तरण, रूपपरिवर्तन
व्याकारः —पुं॰—-—वि + आ + कृ + घञ्—विरूपता
व्याकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + कृ + क्त—बिखेरा हुआ, इधर उधर फेंका हुआ
व्याकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अस्तव्यस्त किया हुआ
व्याकुल —वि॰—-—विशेषेण आकुलः-प्रा॰ स॰ —विक्षुब्ध, विस्मित, घबराया हुआ, किंकर्तव्य विमूढ़, शोकव्याकुल
व्याकुल —वि॰—-—-—आतंकित, उद्विग्न, भयभीत
व्याकुल —वि॰—-—-—भरापूरा, घिरा हुआ
व्याकुल —वि॰—-—-—संलग्न, व्यस्त
व्याकुल —वि॰—-—-—दमकने वाला, इधर उधर हिलजुल करने वाला
व्याकुलित —वि॰—-—वि + आ + कुल् + क्त—विश्लिष्ट, वियुक्त
व्याकुलित —वि॰—-—वि + आ + कुल् + क्त—व्याख्यात, स्पष्ट किया गया
व्याकुलित —वि॰—-—वि + आ + कुल् + क्त—विकृत, व्याकृष्ट, बिगाड़ा हुआ, विरूपित
व्याकूतिः —स्त्री॰—-—विशिष्टा आकूतिः -प्रा॰ स॰—जालसाजी, छद्मवेश, धोखा
व्याकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + कृ + क्त— विश्लिष्ट, वियुक्त
व्याकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + कृ + क्त—व्याख्यात, स्पष्ट किया गया
व्याकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + कृ + क्त—विकृत, व्याकृष्ट, बिगाड़ा हुआ, विरूपित
व्याकृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + कृ + क्तिन्—विग्रह
व्याकृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + कृ + क्तिन्—विश्लेषण, व्याख्या
व्याकृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + कृ + क्तिन्—रूप परिवर्तन, विकास
व्याकृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + कृ + क्तिन्—व्याकरण
व्याक्रोश —वि॰—-—वि + आ + क्रुश् + अच्—फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, पुष्पित, मुकुलित
व्याक्रोश —वि॰—-—वि + आ + क्रुश् + अच्—विकसित
व्याक्रोष —वि॰—-—वि + आ + क्रुष् + अच्—फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, पुष्पित, मुकुलित
व्याक्रोष —वि॰—-—वि + आ + क्रुष् + अच्—विकसित
व्याक्षेपः —पुं॰—-—वि + आ + क्षिप् + घञ्—इधर उधर उछालना
व्याक्षेपः —पुं॰—-—वि + आ + क्षिप् + घञ्—अवरोध, रुकावट
व्याक्षेपः —पुं॰—-—वि + आ + क्षिप् + घञ्—विलम्ब
व्याक्षेपः —पुं॰—-—वि + आ + क्षिप् + घञ्—उलझन
व्याख्या —स्त्री॰—-—वि + आ + ख्या + अङ् + टाप्—वृत्तान्त, वर्णन
व्याख्या —स्त्री॰—-—वि + आ + ख्या + अङ् + टाप्—स्पष्टीकरण, विवृति, टीका, भाष्य
व्याख्यात —वि॰—-—वि + आ + ख्या + क्त—कथित, वर्णित
व्याख्यात —वि॰—-—वि + आ + ख्या + क्त—स्पटीकृत, विवृत, टीकायुक्त
व्याख्यातृ —पुं॰—-—वि + आ + ख्या + तृच्—व्याख्याकार, भाष्यकार
व्याख्यानम् —नपुं॰—-—वि + आ + ख्या + ल्युट्—संसूचन, वर्णन
व्याख्यानम् —नपुं॰—-—वि + आ + ख्या + ल्युट्—भाषण, वक्तृता
व्याख्यानम् —नपुं॰—-—वि + आ + ख्या + ल्युट्—स्पष्टीकरण, विवृति, अर्थकरण, टीका
व्याघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + आ + घट् + ल्युट्—बिलोना, मथना
व्याघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + आ + घट् + ल्युट्—रगड़ना, घर्षण
व्याघातः —पुं॰—-—वि + आ + हन् + क्त—रहड़ना
व्याघातः —पुं॰—-—वि + आ + हन् + क्त—थप्पड़, प्रहार
व्याघातः —पुं॰—-—वि + आ + हन् + क्त—विघ्न, रुकावट
व्याघातः —पुं॰—-—वि + आ + हन् + क्त—वचन विरोध
व्याघातः —पुं॰—-—वि + आ + हन् + क्त—एक अलंकार जिसमें परस्पर विरोधी फल एक ही कारण से उत्पन्न दिखाये जाते हैं
व्याघ्रः —पुं॰—-—व्याजिघ्रति-वि + आ + घ्रा + क—बाघ, चीता
व्याघ्रः —पुं॰—-—व्याजिघ्रति-वि + आ + घ्रा + क—सर्वोंत्तम, प्रमुख, मुख्य
व्याघ्रः —पुं॰—-—व्याजिघ्रति-वि + आ + घ्रा + क—लालरंग का एरंड का पौधा
व्याघ्री —स्त्री॰—-—-—मादा चीता
व्याघ्रटः —पुं॰—व्याघ्रः-अटः—-—चातक पक्षी
व्याघ्रास्यः —पुं॰—व्याघ्रः-आस्यः—-—बिलाव
व्याघ्रनखः —पुं॰—व्याघ्रः-नखः—-—बाघ का पंजा
व्याघ्रनखः —पुं॰—व्याघ्रः-नखः—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
व्याघ्रनखः —पुं॰—व्याघ्रः-नखः—-—खरौंच, नखक्षत
व्याघ्रनखम् —नपुं॰—व्याघ्रः-नखम्—-—बाघ का पंजा
व्याघ्रनखम् —नपुं॰—व्याघ्रः-नखम्—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
व्याघ्रनखम् —नपुं॰—व्याघ्रः-नखम्—-—खरौंच, नखक्षत
व्याघ्रनायकः —पुं॰—व्याघ्रः-नायकः—-—गीदड़
व्याजः —पुं॰—-—व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि + अज् + घञ्—धोखा, चाल, छल, जालसाजी
व्याजः —पुं॰—-—व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि + अज् + घञ्—कला कौशल
व्याजः —पुं॰—-—व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि + अज् + घञ्—बहाना, व्यपदेश, आभास
व्याजः —पुं॰—-—व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि + अज् + घञ्—युक्ति, चाल, कूटयुक्ति
व्याजोक्तिः —स्त्री॰—व्याजः-उक्तिः—-—एक अलङ्कार जिसमें किसी कारण के स्पष्ट फल का जानबूझ कर कोई दूसरा कारण बताया जाता है, जहाँ वास्तविक भावना को कोई दूसरा कारण बताकर छिपा लिया जाता है
व्याजोक्तिः —स्त्री॰—व्याजः-उक्तिः—-—परोक्ष सङ्केत, व्यंग्योक्ति
व्याजनिन्दा —स्त्री॰—व्याजः-निन्दा—-—छल या कपट से की गई निन्दा
व्याजसुप्त —वि॰—व्याजः-सुप्त—-—झूठमूठ् सोया हुआ
व्याजस्तुतिः —स्त्री॰—व्याजः-स्तुतिः—-—अंग्रेजी के `आइरनी' से मिलता जुलता एक अलङ्कार
व्याडः —पुं॰—-—वि + आ + अड् + अच्—मांस भक्षी जानवर
व्याडः —पुं॰—-—वि + आ + अड् + अच्—बदमाश, गुण्डा
व्याडः —पुं॰—-—वि + आ + अड् + अच्—साँप
व्याडः —पुं॰—-—वि + आ + अड् + अच्—इन्द्र
व्याडिः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध वैयाकरण
व्यात्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + दा + क—विवृत, फैलाया गया, फुलाया गया
व्यात्युक्षी —स्त्री॰—-—वि + आ + अति + उक्ष् + णिच् + अञ् + ङीष्—जलविहार, जलक्रीडा
व्यादानम् —नपुं॰—-—वि + आ + दा + ल्युट्—खोलना, उद्घाटन
व्यादिशः —पुं॰—-—विशेषेण आदिशति स्वे स्वे कर्मणि नियोजयति -वि + आ + दिश् + क—विष्णु का विशेषन
व्याधः —पुं॰—-—व्यध् + ण—शिकारी, बहेलिया (जाति से या पेशे के कारण)
व्याधः —पुं॰—-—व्यध् + ण—दुष्ट मनुष्य, अधम पुरुष
व्याधभीतः —पुं॰—व्याधः-भीतः—-—हरिण
व्याधामः —पुं॰—-—व्याध + अम् + णिच् + अच्—इन्द्र का वज्र
व्याधावः —पुं॰—-—-—इन्द्र का वज्र
व्याधिः —पुं॰—-—वि + आ + धा + कि—बीमारी, रोग, रुजा, अस्वस्थता
व्याधिः —पुं॰—-—वि + आ + धा + कि—कोढ़
व्याधिकर —वि॰—व्याधिः-कर—-—अस्वास्थ्यकर
व्याधिग्रस्त —वि॰—व्याधिः-ग्रस्त—-—रोगाक्रान्त, बीमार
व्याधित —वि॰—-—व्याधिः सञ्जातोऽस्य इतच्—रोगाक्रान्त, बीमार
व्याधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + धू + क्त—झंझोड़ा हुआ, काँपता हुआ, थरथराता हुआ
व्यानः —पुं॰—-—व्यानिति सर्वशरीरं व्याप्नोति- वि + आ + अन् + अच्—शरीरस्थ पाँच प्राणों में से एक जो समस्त शरीर मे व्याप्त है
व्यानतम् —नपुं॰—-—वि + आ + नम् + क्त—मैथुन का एक विशेष प्रकार, रतिबन्ध
व्यापक —वि॰ —-—विशेषेण आप्नोति-वि + आप + ण्वुल्—फैला हुआ, बहुग्राही, प्रसारी, विस्तृत रूप से फैलने वाला, सर्वतोमुखी
व्यापक —वि॰ —-—विशेषेण आप्नोति-वि + आप + ण्वुल्—नितान्त सहवर्ती
व्यापकः —पुं॰—-—-—नितान्त सहवर्ती या अन्तर्हित विशेषण
व्यापकम् —नपुं॰—-—-—नितान्त सहवर्ती या अन्तर्हित गुण
व्यापत्तिः —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्तिन्—बर्बादी, संकट, दुर्भाग्य
व्यापत्तिः —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्तिन्—स्थानापन्नता
व्यापत्तिः —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्तिन्—मृत्यु
व्यापद् —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्विप्—सङ्कट, दुर्भाग्य
व्यापद् —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्विप्—रोग
व्यापद् —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्विप्—विशृङ्खलता, चित्तविक्षेप
व्यापद् —स्त्री॰—-—वि + आ + पद् + क्विप्—मृत्यु, निधन
व्यापनम् —नपुं॰—-—वि + आप् + ल्युट्—फैलना, पैठना, सर्वत्र फैल जाना
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—दुर्भाग्यग्रस्त, बर्बाद
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—विफल, उलट गया (गर्भस्राव हो गया)
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—चोट लगा हुआ, घायल
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—मृत, उपरत, मरा हुआ
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—विक्षिप्त, विकृत
व्यापन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + क्त—स्थानापन्न, परिवर्तित
व्यापादः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + घञ्—हत्या, वध
व्यापादः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + घञ्—बर्बादी, विनाश
व्यापादः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + घञ्—दुर्भावना, द्वेष
व्यापादनम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + ल्युट्—हत्या, वध
व्यापादनम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + ल्युट्—बर्बादी, विनाश
व्यापादनम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + ल्युट्—दुर्भावना, द्वेष
व्यापादित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + क्त—वध किया हुआ, क़तल किया हुआ, विनष्ट किया हुआ
व्यापादित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पद् + णिच् + क्त—बर्बाद, घायल, चोटिल
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—नियोजन, संलग्नता, व्यावसाय, धन्धा
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—प्रयोग, काम
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—पेशा, वाणिज्य, व्यवसाय, कार्य
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—कर्म, क्रिया, निष्पादन
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—कार्यपद्धति, प्रक्रिया, कृत्य, प्रभाव
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—ऊपर रक्खा जाने वाला
व्यापारः —पुं॰—-—वि + आ + पृ + घञ्—उद्योग, प्रयत्न
व्यापारं कृ ——-—-—भाग लेना
व्यापारं कृ ——-—-—प्रभाव डालना
व्यापारं कृ ——-—-—हाथ डालना
व्यापारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पृ + णिच् + क्त—काम पर लगाया हुआ, स्थापित, नियोजित, नियुक्त
व्यापारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + पृ + णिच् + क्त—रक्खा हुआ, निश्चित, जमाया हुआ
व्यापारिन् —पुं॰—-—व्यापार + इनि—विक्रेता, व्यापार करने वाला
व्यापारिन् —पुं॰—-—व्यापार + इनि—व्यवसायी
व्यापिन् —वि॰—-—वि + आप् + णिनि—व्याप्त होने वाला, अपूर्ण करने वाला, अधिकार करने वाला
व्यापिन् —वि॰—-—वि + आप् + णिनि—सर्वव्यापक, सहविस्तृत, नितान्त सहवर्ती
व्यापिन् —वि॰—-—वि + आप् + णिनि—आवरक
व्यापिन् —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषन
व्यापृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आपृ + क्त—काम में लगा हुआ, व्यस्त, नियोजित
व्यापृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आपृ + क्त—स्थापित, स्थिर किया हुआ
व्यापृत —पुं॰—-—-—कर्मचारी, मन्त्री
व्यापृतिः —स्त्री॰—-—व्यापृ + क्तिन्—काम में लगाना, व्यस्त करना, व्यावसाय
व्यापृतिः —स्त्री॰—-—व्यापृ + क्तिन्—प्रकार्य, कर्म
व्यापृतिः —स्त्री॰—-—व्यापृ + क्तिन्—चेष्टा
व्यापृतिः —स्त्री॰—-—व्यापृ + क्तिन्—पेशा, व्यावसाय
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—चारों ओर फैला हुआ, पैठा हुआ, व्यापक, विस्तार किया हुआ, आच्छादित, ढका हुआ
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—व्यापक, सर्वत्र फैला हुआ
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—भरा हुआ, पूर्ण
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—चारों ओर से लपेटा हुआ, घिरा हुआ
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—स्थापित, जमाया हुआ
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—प्राप्त किया हुआ, अधिकृत
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—समझा हुआ, सम्मिलित
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—नितांत ससक्त
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—प्रसिद्ध, विख्यात
व्याप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आप् + क्त—फुलाया हुआ, बिछाया हुआ
व्याप्तिः —स्त्री॰—-—वि + आप् + क्तिन्—प्रसार, फैलाव
व्याप्तिः —स्त्री॰—-—वि + आप् + क्तिन्—विश्वतः फैलाव, नितांत सहवर्तिता, किसी एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का पूर्ण रूप से मिला होना
व्याप्तिः —स्त्री॰—-—वि + आप् + क्तिन्—सार्वजनिक नियम, विश्वव्यापकता
व्याप्तिः —स्त्री॰—-—वि + आप् + क्तिन्—पूर्णता
व्याप्तिः —स्त्री॰—-—वि + आप् + क्तिन्—प्राप्ति
व्याप्तिग्रहः —पुं॰—व्याप्तिः-ग्रहः—-—सार्वजनिक सहवर्तिता का बोध
व्याप्तिज्ञानम् —नपुं॰—व्याप्तिः-ज्ञानम्—-—सार्वजनिक सहवर्तिता की जानकारी
व्याप्य —वि॰—-—वि + आप् + ण्यत्—व्यापकता के योग्य भरे जाने के योग्य
व्याप्यम् —नपुं॰—-—-—अनुमान प्रक्रिया का चिह्न (हेतु, साधन)
व्याप्यत्वम् —नपुं॰—-—व्याप्य + त्व—नित्यता
व्याप्यत्वासिद्धिः —स्त्री॰—व्याप्यत्वम्-असिद्धिः—-—अधूरी अटकल, अपूर्ण अनुमान
व्याभ्युक्षी —स्त्री॰—-—-—जलविहार, जलक्रीडा
व्यामः —पुं॰—-—वि + आ + अम् + घञ्—एक माप विशेष, जब दोनों हाथ पूर्ण रूप से दोनों ओर फैलाये हों तो हाथों की अंगुलियों के कोरों के वीच की दूरी
व्यामनम् —नपुं॰—-—वि + आ + अम् + ल्युट्—एक माप विशेष, जब दोनों हाथ पूर्ण रूप से दोनों ओर फैलाये हों तो हाथों की अंगुलियों के कोरों के वीच की दूरी
व्यामिश्र —वि॰ —-—वि + आ + मिश्र + अच्—मिला हुआ मिश्रित, गड्ड-मड्ड किया हुआ
व्यामोहः —पुं॰—-—वि + आ + मुह् + घञ्—प्रणयोन्माद
व्यामोहः —पुं॰—-—वि + आ + मुह् + घञ्—व्याकुलता, परेशानी, बेचैनी
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—लम्बा, विस्तृत
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—फुलाया हुआ, खुला हुआ
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—जिसने व्यायाम किया है, अनुशिष्ट
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—व्यस्त, काम में लगा हुआ, अधिकृत
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—कठोर, दृढ़
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—मजबूत, गहन, अत्यधिक
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—ताकवर, शक्तिशाली
व्यायत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + यम् + क्त—गहरा
व्यायतत्वम् —नपुं॰—-—व्यायत + त्व—पुट्ठों का विकास
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—विस्तार करना, फैलाना
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—कसरत, शारीरिक, व्यायाभों का अभ्यास
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—थकान, श्रम
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—प्रयत्न, चेष्टा
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—वाग्युद्ध, संघर्ष
व्यायामः —पुं॰—-—वि + आ + यम् + घञ्—दूरी की माप विशेष
व्यायामिक —वि॰—-—व्यायाम + ठक्—मल्लविद्या-विषयक, शारीरिक कसरत संबंधी
व्यायोगः —पुं॰—-—वि + आ + युज् + घञ्—नाठ्यसाहित्य में एक प्रकार का एकांकी नाटक
व्याल —वि॰—-—वि + आ + अल् + अच्—दुष्ट, दुर्व्यसनी
व्याल —वि॰—-—वि + आ + अल् + अच्—बुरा, पापिष्ठ
व्याल —वि॰—-—वि + आ + अल् + अच्—क्रूर, भीषण, बर्बर
व्यालः —पुं॰—-—-—खूनी हाथी
व्यालः —पुं॰—-—-—शिकार का जानवर
व्यालः —पुं॰—-—-—ठग, वदमाश
व्यालखङ्गः —पुं॰—व्याल-खङ्गः—-—एक प्रकार की बूटी
व्यालनखः —पुं॰—व्याल-नखः—-—एक प्रकार की बूटी
व्यालग्राहः —पुं॰—व्याल-ग्राहः—-—सपेरा
व्यालग्राहिन् —पुं॰—व्याल-ग्राहिन्—-—सपेरा
व्यालमृगः —पुं॰—व्याल-मृगः—-—जंगली जानवर
व्यालमृगः —पुं॰—व्याल-मृगः—-—शिकारी चीता
व्यालरूपः —पुं॰—व्याल-रूपः—-—शिव का विशेषण
व्यालकः —पुं॰—-—व्याल + कन्—दुष्ट या खूनी हाथी
व्यालम्बः —पुं॰—-—विशेषेण आलम्बते वि + आ + लम्ब् + अच्—एक प्रकार का एरंड का पौधा
व्यालोल —वि॰ —-—वि + आ + लोड् + अच्, डस्यलः—कांपने वाला, थरथराने वाला
व्यालोल —वि॰ —-—वि + आ + लोड् + अच्, डस्यलः—अव्यवस्थित, अस्तव्यस्त
व्यावकलनम् —नपुं॰—-—वि + आ + अव + कल् + ल्युट्—घटाना
व्यावक्रोशी —स्त्री॰—-—वि + आ + अव + क्रुश् + णिच् + अञ् + ङीप्—परस्पर दुर्वचन कहना, आपस की गालीगलौज
व्यावभाषी —स्त्री॰—-—वि + आ + अव + भाष् + णिच् + अञ् + ङीप्—परस्पर दुर्वचन कहना, आपस की गालीगलौज
व्यावर्तः —पुं॰—-—वि + आ + वृत् + घञ्—घेरना, लपेटना
व्यावर्तः —पुं॰—-—वि + आ + वृत् + घञ्—क्रान्ति, भ्रमण, चक्कर खाना
व्यावर्तः —पुं॰—-—वि + आ + वृत् + घञ्—फटी हुई अर्थात् आगे को निकली हुई नाभि
व्यावर्तक —वि॰—-—वि + आ + वृत् + णिच् + ण्वुल्—लपेटने वाला, घेरा डालने वाला
व्यावर्तक —वि॰—-—वि + आ + वृत् + णिच् + ण्वुल्—निकालने वाला, अपवर्जन करने वाला, वियुक्त करने वाला
व्यावर्तक —वि॰—-—वि + आ + वृत् + णिच् + ण्वुल्—मुड़ने वाला
व्यावर्तक —वि॰—-—वि + आ + वृत् + णिच् + ण्वुल्—मोड़ खाने वाला
व्यावर्तनम् —नपुं॰—-—वि + आ + वृत् + ल्युट्—घेरना, लपेटना
व्यावर्तनम् —नपुं॰—-—वि + आ + वृत् + ल्युट्—घूमना, मुड़ना चक्करखाना
व्यावर्तनम् —नपुं॰—-—वि + आ + वृत् + ल्युट्—रस्सी आदि का गोल लपेट, पट्टी
व्यावल्गित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वल्ग् + क्त—पसीजा हुआ, द्रवित, विक्षुब्ध
व्यावहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठक्—व्यवसाय संबंधी, प्रयोगात्मक
व्यावहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठक्—कानूनी, वैध
व्यावहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठक्—प्रथागत, प्रचलित
व्यावहारिक —वि॰—-—व्यवहार + ठक्—भ्रमात्मक
व्यावहारिकः —पुं॰—-—-—परामर्शदाता, मंत्री
व्यावहारी —स्त्री॰—-—वि + आ + अव + हृ + णिच् + अञ् + ङीप्—पारस्परिक बंधन, लेन देन
व्यावहासी —स्त्री॰—-—वि + आ + अव + हस् + णिच् + अञ् + ङीप्—पारस्परिक अवज्ञा, एक दूसरे की हंसी उड़ाना
व्यावृत्तिः —स्त्री॰—-—वि + आ + वृत् + क्तिन्—आवरण, परदा डालना
व्यावृत्तिः —स्त्री॰—-—वि + आ + वृत् + क्तिन्—निकाल देना, निष्कासन
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—हटाया हुआ, वापिस लिया हुआ
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—वियुक्त किया गया, अलग हटाया हुआ
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—निकाला हुआ, एक ओर रक्खा हुआ
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—चक्कर खाया हुआ, मुड़ा हुआ
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—लपेटा हुआ, घिरा हुआ
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—रुका हुआ, उपरत
व्यावृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + वृत् + क्त—फाड़कर टुकड़े टुकड़े किया हुआ
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—वितरण, विभाजन
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—समास का विग्रह या विश्लेषण
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—अलगाव, पृथक्ता
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—प्रसार, फैलाव
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—अर्ज, चौड़ाई
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—वृत्त का व्यास
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—उच्चारणदोष
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—व्यवस्था, संकलन
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—व्यवस्थापक, संकलयिता
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम
व्यासः —पुं॰—-—वि + अस् + घञ्—वह ब्राह्मण जो सार्वजनिक रूप से पुराणों की कथा करता है
व्यासक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सञ्ज् + क्त—जो दृढ़ता पूर्वक डटा रहे
व्यासक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सञ्ज् + क्त—जुड़ा हुआ, लगा हुआ, तुला हुआ व्यस्त
व्यासक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सञ्ज् + क्त—नियुक्त, पृथक् किया हुआ, अलग किया हुआ
व्यासक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सञ्ज् + क्त—परेशान, व्याकुल, घबड़ाया हुआ
व्यासङ्गः —पुं॰—-—वि + आ + सञ्ज् + घञ्—सटा होना, डटे रहना, तुला रहना
व्यासङ्गः —पुं॰—-—वि + आ + सञ्ज् + घञ्—एकनिष्ठता, भक्ति
व्यासङ्गः —पुं॰—-—वि + आ + सञ्ज् + घञ्—सपरिश्रम अध्ययन
व्यासङ्गः —पुं॰—-—वि + आ + सञ्ज् + घञ्—ध्यान
व्यासङ्गः —पुं॰—-—वि + आ + सञ्ज् + घञ्—पृथक्ता, संयोग
व्यासिद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सिध् + क्त—प्रतिषिद्ध, वर्जित
व्यासिद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + सिध् + क्त—निषिद्धपण्य, चोरी का माल
व्याहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + हन् + क्त—अवरुद्ध, रोका हुआ
व्याहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + हन् + क्त—हटाया हुआ, पीछे ढकेला हुआ
व्याहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + हन् + क्त—विफल किया हुआ, निराश
व्याहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + हन् + क्त—व्याकुल, घवड़ाया हुआ, आतंकित
व्याहतार्थता —स्त्री॰—व्याहत-अर्थता—-—रचना का एक दोष
व्याहरणम् —नपुं॰—-—वि + आ + हृ + ल्युट्—बोलना, उच्चारण करना
व्याहरणम् —नपुं॰—-—वि + आ + हृ + ल्युट्—भाषण, वर्णन
व्याहारः —पुं॰—-—वि + आ + हृ + घञ्— भाषण, बोलना, वचन
व्याहारः —पुं॰—-—वि + आ + हृ + घञ्—आवाज़, स्वर, ध्वनि
व्याहृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + आ + हृ + क्त —कहा हुआ, बोला हुआ, उच्चारण किया हुआ
व्याहृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + हृ + क्तिन्—उच्चारण, भाषण, वचन
व्याहृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + हृ + क्तिन्—वक्तव्य, अभिव्यक्ति
व्याहृतिः —स्त्री॰—-—वि + आ + हृ + क्तिन्—सन्ध्या करते समय प्रतिदिन प्रत्येक ब्राह्मण द्वारा उच्चारित ईश्वर परक शब्द विशेष
व्युच्छित्तिः —स्त्री॰—-—वि + उत् + छिद् + क्तिन्—काट डालना, उन्मूलन, पूर्ण विनाश
व्युच्छेदः —पुं॰—-—वि + उत् + छिद् + घञ्—काट डालना, उन्मूलन, पूर्ण विनाश
व्युत्क्रमः —पुं॰—-—वि + उत् + क्रम् + घञ्—अतिक्रमण, विचलन
व्युत्क्रमः —पुं॰—-—वि + उत् + क्रम् + घञ्—उलटा क्रम, वैपरीत्य
व्युत्क्रमः —पुं॰—-—वि + उत् + क्रम् + घञ्—अव्यवस्था, गड़बड़ी
व्युत्क्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उ + क्रम् + क्त—अतिक्रान्त, उल्लंघन किया गया
व्युत्क्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उ + क्रम् + क्त—जो बिदा हो गया हो, छोड़कर चला गया हो, बीत गया हो
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—महान् क्रियाकलाप
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—किसी के विरुद्ध खड़े होना, विरोध, रुकावट
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—स्वतन्त्र कर्म, मनोऽनुकूल कार्य
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—धार्मिक मनोयोग की पूर्ति या भावात्मक मनन
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—एक प्रकार का नृत्य
व्युत्थानम् —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + ल्युट्—(हाथी को) उठाना
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—महान् क्रियाकलाप
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—किसी के विरुद्ध खड़े होना, विरोध, रुकावट
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—स्वतन्त्र कर्म, मनोऽनुकूल कार्य
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—धार्मिक मनोयोग की पूर्ति या भावात्मक मनन
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—एक प्रकार का नृत्य
व्युत्थितिः —स्त्री॰—-—वि + उ + स्था + क्तिन्—(हाथी को) उठाना
व्युत्पत्तिः —स्त्री॰—-—वि + उत् + पद + क्तिन्—मूल, उत्पत्ति
व्युत्पत्तिः —स्त्री॰—-—वि + उत् + पद + क्तिन्—व्युत्पादन, निर्वचन
व्युत्पत्तिः —स्त्री॰—-—वि + उत् + पद + क्तिन्—पू्री प्रवीणता, पूरी जानकारी
व्युत्पत्तिः —स्त्री॰—-—वि + उत् + पद + क्तिन्—विद्वत्ता, ज्ञान
व्युत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उत् + पद + क्त—उत्पादित, पैदा किया गया
व्युत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उत् + पद + क्त—निर्वचन द्वारा निर्मित
व्युत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उत् + पद + क्त—व्याकरण द्वारा निष्पन्न, निरुक्त, (शब्द) जिसके निर्वचन का पता लग गया हो (विप॰ अव्युत्पन्न या मूल)
व्युत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उत् + पद + क्त—पूरा किया गया, सम्पन्न किया गया
व्युत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उन्द् + क्त—क्लिन्न, आर्द्र, भिगोया हुआ
व्युदस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उद् + अस् + क्त—एक ओर फेंका हुआ, अस्वीकृत, दूर किया हुआ
व्युदासः —पुं॰—-—वि + उद् + अस् + घञ्—एक ओर फेंकना, अस्वीकृत
व्युदासः —पुं॰—-—वि + उद् + अस् + घञ्—निकाल देना
व्युदासः —पुं॰—-—वि + उद् + अस् + घञ्—प्रतिषेध
व्युदासः —पुं॰—-—वि + उद् + अस् + घञ्—उपेक्षा, उदासीनता
व्युदासः —पुं॰—-—वि + उद् + अस् + घञ्—हत्या, विनाश
व्युपदेशः —पुं॰—-—वि + उप + दिश् + घञ्—व्याज, बहाना
व्युपरमः —पुं॰—-—वि + उप + रम् + अप्—बिराम, यति, समाप्ति
व्युपशमः —पुं॰—-—वि + उप + शम् + अच्—विराम का अभाव
व्युपशमः —पुं॰—-—वि + उप + शम् + अच्—अशान्ति
व्युपशमः —पुं॰—-—वि + उप + शम् + अच्—पूर्ण विराम
व्युष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उष् + क्त—जलाया गया
व्युष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उष् + क्त—पौफटी, प्रभात
व्युष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उष् + क्त—जो उज्ज्वल या स्वच्छ हो
व्युष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + उष् + क्त—बसा हुआ
व्युष्टम् —नपुं॰—-—-—पौ फटना, प्रभात
व्युष्टिः —स्त्री॰—-—वि + वस् + क्तिन्—प्रभात
व्युष्टिः —स्त्री॰—-—वि + वस् + क्तिन्—समृद्धि
व्युष्टिः —स्त्री॰—-—वि + वस् + क्तिन्—प्रशंसा
व्युष्टिः —स्त्री॰—-—वि + वस् + क्तिन्—फल, परिणाम
व्यूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + क्त—फुलाया हुआ, विकसित, विशाल, व्यापक
व्यूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + क्त—दृढ़, सटा हुआ
व्यूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + क्त—क्रमबद्ध, व्यवस्थित, (सेना आदि) सुविन्यस्त
व्यूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + क्त—अव्यवस्थित, क्रमहीन
व्यूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + क्त—विवाहित
व्यूढकङ्कट —वि॰—व्यूढ-कङ्कट—-—कवचित, जिरह वख्तर पहने हुए
व्यूत —वि॰—-—वि + वे + क्त—अन्तर्वलित, सीया गया, गूँथा गया
व्यूतिः —स्त्री॰—-—वि + वे + क्तिन्—बुनाई, सिलाई
व्यूतिः —स्त्री॰—-—वि + वे + क्तिन्—बुनाई की मजदूरी
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—सैनिक विन्यास
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—सेना, दल, टुकड़ी
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—बड़ीमात्रा, समवाय, समुच्चय, संग्रह
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—भाग, अंश, उपशीर्ष
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—शरीर
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—संरचन, निर्माण
व्यूहः —पुं॰—-—वि + ऊह + घञ्—तर्कना, तर्क
व्यूहपार्ष्णिः —स्त्री॰—व्यूहः-पार्ष्णिः—-—सेना का पिछला भाग
व्यूहभङ्गः —पुं॰—व्यूहः-भङ्गः—-—सैनिक व्यूह को तोड़ देना
व्युहभेदः —पुं॰—व्यूहः-भेदः—-—सैनिक व्यूह को तोड़ देना
व्यूहनम् —नपुं॰—-—वि + ऊह् + ल्युट्—सेना को व्यवस्थित करना, सेना को क्रमबद्ध करना
व्यूहनम् —नपुं॰—-—वि + ऊह् + ल्युट्—शरीर के अंगों की संरचना
व्यृद्धिः —स्त्री॰—-—विगता ऋद्धिः-प्रा॰ स॰—समृद्धि का अभाव, बुरी क़िस्मत, दुर्भाग्य
व्ये —भ्वा॰ उभ॰ <व्ययति>, <व्ययते>, <ऊत>, प्रेर॰ <व्यायति>, <व्यायते>, इच्छा॰ <विव्यासति>—-—-—ढकना
व्ये —भ्वा॰ उभ॰ <व्ययति>, <व्ययते>, <ऊत>, प्रेर॰ <व्यायति>, <व्यायते>, इच्छा॰ <विव्यासति>—-—-—सीना
व्योकारः —पुं॰—-—व्यो + कृ + अण्—लुहार
व्योमन् —नपुं॰—-—व्ये + मनिन्, पृषो॰—आकाश, अन्तरिक्ष
व्योमन् —नपुं॰—-—व्ये + मनिन्, पृषो॰—जल
व्योमन् —नपुं॰—-—व्ये + मनिन्, पृषो॰—सूर्य का मन्दिर
व्योमन् —नपुं॰—-—व्ये + मनिन्, पृषो॰—अभ्रक
व्योमोदकम् —नपुं॰—व्योमन्-उदकम्—-—बारिश का पानी, ओस
व्योमकेशः —पुं॰—व्योमन्-केशः—-—शिव का विशेषण
व्योमकेशिन् —पुं॰—व्योमन्-केशिन्—-—शिव का विशेषण
व्योमगंगा —स्त्री॰—व्योमन्-गंगा—-—स्वर्गीय गंगा
व्योमचारिन् —पुं॰—व्योमन्-चारिन्—-—देव
व्योमचारिन् —पुं॰—व्योमन्-चारिन्—-—पक्षी
व्योमचारिन् —पुं॰—व्योमन्-चारिन्—-—सन्त, महात्मा
व्योमचारिन् —पुं॰—व्योमन्-चारिन्—-—ब्राह्मण
व्योमचारिन् —पुं॰—व्योमन्-चारिन्—-—तारा, नक्षत्र
व्योमधूमः —पुं॰—व्योमन्-धूमः—-—बादल
व्योमनाशिका —स्त्री॰—व्योमन्-नाशिका—-—एक प्रकार की बटेर, लवा
व्योममंजरम् —नपुं॰—व्योमन्-मंजरम्—-—झंडा, पताका
व्योममंडलन् —नपुं॰—व्योमन्-मंडलन्—-—झंडा, पताका
व्योममुद्गरः —पुं॰—व्योमन्-मुद्गरः—-—हवा का झोंका
व्योमयानम् —नपुं॰—व्योमन्-यानम्—-—दिव्यसवारी, आकाशयान
व्योमशद् —पुं॰—व्योमन् -शद्—-—देव, सुर
व्योमशद् —पुं॰—व्योमन् -शद्—-—गन्धर्व
व्योमशद् —पुं॰—व्योमन् -शद्—-—भूत-प्रेत
व्योमस्थली —स्त्री॰—व्योमन् -स्थली—-—पृथ्वी
व्योमस्पृश् —वि॰—व्योमन्-स्पृश्—-—गगनचुंबी, अत्यन्त ऊँचा
व्रज् —भ्वा॰ पर॰ <व्रजति>—-—-—जाना, चलना, प्रगति करना
व्रज् —भ्वा॰ पर॰ <व्रजति>—-—-—पधारना, पहुँचना दर्शन करना
व्रज् —भ्वा॰ पर॰ <व्रजति>—-—-—बिदा होना, सेवा से निवृत्त होना, पीछे हटना
व्रज् —भ्वा॰ पर॰ <व्रजति>—-—-—(समय का) बीतना
अनुव्रज् —भ्वा॰ पर॰—अनु-व्रज्—-— बाद में जाना, अनुगमन करना
अनुव्रज् —भ्वा॰ पर॰—अनु-व्रज्—-—अभ्यास करना, सम्पन्न करना
अनुव्रज् —भ्वा॰ पर॰—अनु-व्रज्—-—सहारा लेना
आव्रज् —भ्वा॰ पर॰—आ-व्रज्—-—आना, पहुँचना
परिव्रज् —भ्वा॰ पर॰—परि-व्रज्—-—भिक्षु या साधु के रूप में इधर-उधर घूमना, संन्यासी या परिव्राजक हो जाना
प्रव्रज् —भ्वा॰ पर॰—प्र-व्रज्—-—निर्वासित होना
प्रव्रज् —भ्वा॰ पर॰—प्र-व्रज्—-—सांसारिक वासनाओं को छोड़ देना, चौथे आश्रम में प्रविष्ट होना, अर्थात् संन्यासी हो जाना
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—समुच्चय, संग्रह, रेवड़, समूह
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—ग्वालों के रहने का स्थान
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—गोष्ठ, गौशाला
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—आवास, विश्रामस्थल
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—सड़क, मार्ग
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—बादल
व्रजः —पुं॰—-—व्रज् + क—मथुरा के निकट एक जिला
व्रजाङ्गना —स्त्री॰—व्रजः-अङ्गना—-—व्रज में रहने वाली स्त्री, ग्वालन
व्रजयुवतिः —स्त्री॰—व्रजः-युवतिः—-—व्रज में रहने वाली स्त्री, ग्वालन
व्रजजिरम् —नपुं॰—व्रजः-अजिरम्—-—गोशाला
व्रजकिशोरः —पुं॰—व्रजः-किशोरः—-—कृष्ण के विशेषण
व्रजनाथः —पुं॰—व्रजः-नाथः—-—कृष्ण के विशेषण
व्रजमोहनः —पुं॰—व्रजः-मोहनः—-—कृष्ण के विशेषण
व्रजवरः —पुं॰—व्रजः-वरः—-—कृष्ण के विशेषण
व्रजवल्लभः —पुं॰—व्रजः-वल्लभः—-—कृष्ण के विशेषण
व्रजनम् —नपुं॰—-—व्रज् + ल्युट्—घूमना, फिरना, यात्रा करना
व्रजनम् —नपुं॰—-—व्रज् + ल्युट्—निर्वासन, देश निकाला
व्रज्या —स्त्री॰—-—व्रज् + क्यप् + टाप्—साधु या भिक्षु के रूप में इधर-उधर घूमना
व्रज्या —स्त्री॰—-—व्रज् + क्यप् + टाप्—आक्रमण, हमला, प्रस्थान
व्रज्या —स्त्री॰—-—व्रज् + क्यप् + टाप्—खेड़, समुदाय, जनजाति या क़बीला, संप्रदाय
व्रज्या —स्त्री॰—-—व्रज् + क्यप् + टाप्—रंगभूमि, नाट्यशाला
व्रण् —भ्वा॰ पर॰ <व्रजति>—-—-—ध्वनि करना
व्रण् —चुरा॰ उभ॰ <व्रणयति>, <व्रणयते>—-—-—चोट पहुँचाना, घायल करना
व्रणः —पुं॰—-—व्रण् + अच्—घाव, क्षत,ज़ख्म, चोट
व्रणः —पुं॰—-—व्रण् + अच्—फोड़ा, नासूर
व्रणम् —नपुं॰—-—-—घाव, क्षत,ज़ख्म, चोट
व्रणम् —नपुं॰—-—-—फोड़ा, नासूर
व्रणकृत् —वि॰—व्रणः-कृत्—-—घाव करने वाला
व्रणकृत् —पुं॰—व्रणः-कृत्—-—ब्भिलावे का पेड़
व्रणविरोपण —वि॰—व्रणः-विरोपण—-—घाव भरने वाला
व्रणशोधनम् —नपुं॰—व्रणः-शोधनम्—-—घाव का साफ़ करना तथा पट्टी बाँधना
व्रणहः —पुं॰—व्रणः-हः—-—एरंड का पौधा
व्रणित —वि॰—-—व्रण + इतच्—घायल, जिसके खरोंच आ गई हो
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—भक्ति या साधना का धार्मिक कृत्य, प्रतिज्ञात का पालन, प्रतिज्ञा, पण
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—संकल्प, प्रतिज्ञा, दृढ़ निश्यय
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—भक्ति या आस्था का पदार्थ, भक्ति,
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—संस्कार अनुष्ठान, अभ्यास
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—जीवनचर्या, आचरण, चालचलन
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—अध्यादेश, विधि, नियम
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—यज्ञ
व्रतः —पुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—कर्म, करतब, कार्य
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—भक्ति या साधना का धार्मिक कृत्य, प्रतिज्ञात का पालन, प्रतिज्ञा, पण
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—संकल्प, प्रतिज्ञा, दृढ़ निश्यय
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—भक्ति या आस्था का पदार्थ, भक्ति,
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—संस्कार अनुष्ठान, अभ्यास
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—जीवनचर्या, आचरण, चालचलन
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—अध्यादेश, विधि, नियम
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—यज्ञ
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज् + घ, जस्य तः—कर्म, करतब, कार्य
व्रताचरणम् —नपुं॰—व्रतः-आचरणम्—-—किसी प्रतिज्ञा का पालन करना
व्रतादेशः —पुं॰—व्रतः-आदेशः—-—(किसी द्विज के) बालक का यज्ञोपवीत संस्कार
व्रतोपवासः —पुं॰—व्रतः-उपवासः—-—किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अनशन करना
व्रतग्रहणम् —नपुं॰—व्रतः-ग्रहणम्—-—किसी धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना
व्रतचर्यः —पुं॰—व्रतः- चर्यः—-—ब्रह्मचारी, वेदविद्यार्थी
व्रतचर्या —स्त्री॰—व्रतः-चर्या—-—ब्रह्मचर्य का पालन करना
व्रतपारणम् —नपुं॰—व्रतः-पारणम्—-—उपवास खोलना या प्रतिज्ञा की सफल समाप्ति
व्रतपारणा —स्त्री॰—व्रतः-पारणा—-—उपवास खोलना या प्रतिज्ञा की सफल समाप्ति
व्रतभङ्गः —पुं॰—व्रतः-भङ्गः—-—संकल्प तोड़ना
व्रतभङ्गः —पुं॰—व्रतः-भङ्गः—-—प्रतिज्ञा तोड़ना
व्रतभिक्षा —स्त्री॰—व्रतः-भिक्षा—-—उपनयन संस्कार के अवसर पर भिक्षा मांगना
व्रतलोपनम् —नपुं॰—व्रतः-लोपनम्—-—प्रतिज्ञा को तोड़ना
व्रतवैकल्पम् —नपुं॰—व्रतः-वैकल्पम्—-—किसी धार्मिक संकल्प का अधूरा रह जाना
व्रतसंग्रहः —पुं॰—व्रतः-संग्रहः—-—व्रत की दीक्षा लेना
व्रतस्नातकः —पुं॰—व्रतः-स्नातकः—-—वह ब्राह्मण जिसने ब्रह्मचर्य आश्रम की अवस्था को पूरा कर लिया हैइइ अर्थात् ब्रह्मचर्य नामक प्रथम आश्रम
व्रतति —स्त्री॰—-—प्र + तन् + क्ति च, पृषो॰ पस्य वः—बेल, लता
व्रतति —स्त्री॰—-—-—फैलाव, विस्तार
व्रतती —स्त्री॰—-—-—बेल, लता
व्रतती —स्त्री॰—-—-—फैलाव, विस्तार
व्रतिन् —वि॰—-—व्रत + इनि—प्रतिज्ञा पालन करने वाला, भक्त, पुण्यात्मा
व्रतिन् —पुं॰—-—व्रत + इनि—ब्रह्मचारी
व्रतिन् —पुं॰—-—व्रत + इनि—संन्यासी, भक्त
व्रतिन् —पुं॰—-—व्रत + इनि—जो यज्ञ का उपक्रम करता है
व्रध्नः —पुं॰—-—-—वृक्ष की जड़
व्रध्नः —पुं॰—-—-—मदार का पौधा
व्रध्नः —पुं॰—-—-—शिव या ब्रह्मा का विशेषण
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—परमात्मा जो निराकार और निर्गुण समझा जाता है
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—स्तुतिपरक सूक्त
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—पुनीत पाठ
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—ईश्वरपरक पावन अक्षर,
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—पुरोहितवर्ग या ब्रह्मण समुदाय
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—ब्राह्मण की शक्ति या ऊर्जा
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—धार्मिक साधना या तपस्या
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—ब्रह्मचर्य, सतीत्व
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—मोक्ष या निर्वाण
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—ब्रह्मज्ञान, अध्यात्मविद्या
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—बेदों का ब्राह्मणभाग
व्रह्मन् —नपुं॰—-—-—धनदौलत, संपत्ति
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—परमात्मा, ब्रह्मा, पावन त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में प्रथम जिनको संसार की रचना का कार्य सौंपा गया है
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—ब्राह्मण
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—सोमयाग में नियुक्त चार ऋत्विजों (पुरोहितों) में से एक
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—धर्मज्ञान का ज्ञाता
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—प्रतिभा
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—सता प्रजापतियों (मरीचि, अत्रि, अंगिरस्, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और और वसिष्ठ ) का विशेषण
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—बृहस्पति का विशेषण
व्रह्मन् —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
व्रश्च् —तुदा॰ पर॰ <वृश्चति>, <वृक्ण्>, प्रेर॰ <व्रश्चयति>, <व्रश्चयते>, इच्छा॰ <विव्रश्चिषति>, <विव्रक्षति>—-—-—काटना, काट डालना, फाड़ना, चीरना
व्रश्च् —तुदा॰ पर॰ <वृश्चति>, <वृक्ण्>, प्रेर॰ <व्रश्चयति>, <व्रश्चयते>, इच्छा॰ <विव्रश्चिषति>, <विव्रक्षति>—-—-—घायल करना
व्रश्चनः —पुं॰—-—व्रश्च् + ल्युट्—छोटी आरी
व्रश्चनः —पुं॰—-—व्रश्च् + ल्युट्—बारीक रेती जिसे सुनार काम में लाते हैं
व्रश्चनम् —नपुं॰—-—-—काटना, फाड़ना घायल करना
व्राजिः —स्त्री॰—-—व्रज् + इञ्—हवा का झोंका, तूफानी हवा, झंझावात
व्रातः —पुं॰—-—वृ + अतच्, पृषो॰ साधुः—समुदाय, रेवड़, समुच्चय
व्रातम् —नपुं॰—-—-—शारीरिक श्रम, मजदूरी
व्रातम् —नपुं॰—-—-—दैनिक मजदूरी
व्रातम् —नपुं॰—-—-—यदा-यदा कार्य में नियुक्ति
व्रातीन —वि॰—-—व्रातेन जीवति - व्रात् + ख—दैनिक मजदूरी से जीविका चलाने वाला, किराये का मजदूर, बेलदार, झल्ली वाला
व्रात्यः —पुं॰—-—व्रातात् समूहात् च्यवति-यत्—प्रथम तीन वर्णों में से किसी एक वर्ण का पुरुष जो मुख्य संस्कार या शोधक कृत्यों का अनुष्ठान न करने के कारण पतित हो गया है (जिसका उपनयन संस्कार नहीं हुआ); जातिबहिष्कृत-भवत्या हि व्रात्याघमपतितपाखण्ड परिषत्परित्राणस्नेहः @ गंगा॰ ३७
व्रात्यः —पुं॰—-—-—नीच पुरुष, अधम पुरुष
व्रात्यः —पुं॰—-—-—विशेष नीच जाति (शूद्रपिता और क्षत्रिय माता की सन्तान) का पुरुष
व्रात्यब्रुव —वि॰—व्रात्यः-ब्रुव—-—जो अपने आपको `व्रात्य' कहता है
व्रात्यस्तोमः —पुं॰—व्रात्यः-स्तोमः—-—उपयुक्त संस्कारों का अनुष्ठान न करने के कारण छीने गये अधिकारों को फिर से प्राप्त करने के लिए किया गया यज्ञ
व्री —क्र्या॰ पर॰ <व्रिणाति>, <व्रीणाति>—-—-—छांटना, चुनना
व्री —दिवा॰ आ॰ <व्रीयते>, <व्रीण>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
व्री —दिवा॰ आ॰ <व्रीयते>, <व्रीण>—-—-—चुना जाना
व्रीड् —दिवा॰ पर॰ <व्रीड्यति>—-—-—लज्जित होना, शर्मिन्दा होना
व्रीड् —दिवा॰ पर॰ <व्रीड्यति>—-—-—फेंकना, डालना, भेज देना
व्रीडः —पुं॰—-—व्रीड् + घञ् —लज्जा
व्रीडः —पुं॰—-—व्रीड् + घञ् —विनय, लज्जाशीलता
व्रीडा —स्त्री॰—-—व्रीड् + अ + टाप्—लज्जा
व्रीडा —स्त्री॰—-—व्रीड् + अ + टाप्—विनय, लज्जाशीलता
व्रीडित —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्रीड् + क्त—लज्जित किया गया, शर्मिन्दा, लज्जाशील
व्रीस् —भ्वा॰ पर॰ <व्रीसति>, चुरा॰ उभ॰ <व्रीसयति>, <व्रीसयते>—-—-—क्षति पहुँचाना, हत्या करना
ब्रीहिः —पुं॰—-—व्री + हि, किच्च—चावल
ब्रीहिः —पुं॰—-—व्री + हि, किच्च—चावल का दाना
ब्रीह्यगारम् —नपुं॰—ब्रीहिः-अगारम्—-—धान्यागार, खत्ती
ब्रीहिकाञ्चनम् —नपुं॰—ब्रीहिः-काञ्चनम्—-—मसूर की दाल
ब्रीहिराजिकम् —नपुं॰—ब्रीहिः-राजिकम्—-—चना, कंगू या कांगनी चावल
व्रुड् —तुदा॰ पर॰ <व्रुडति>,—-—-—ढकना
व्रुड् —तुदा॰ पर॰ <व्रुडति>,—-—-—इकट्ठा होना
व्रुड् —तुदा॰ पर॰ <व्रुडति>,—-—-—एकत्र करना, संचय करना
व्रुड् —तुदा॰ पर॰ <व्रुडति>,—-—-—डूबना, नीचे जाना
व्रुस् —भ्वा॰ पर॰ , उभ॰—-—-—क्षति पहुँचाना, हत्या करना
व्रैहेय —वि॰—-—व्रीहि + ढक्—चावलों के योग्य
व्रैहेय —वि॰—-—व्रीहि + ढक्—चावल के साथ बोया हुआ
व्रैहेयम् —नपुं॰—-—-—चावल का खेत, वह खेत जिसमें चावल बोये जाने चाहिए
व्ली —क्र्या॰ पर॰ <व्लिनाति>, प्रेर॰ <व्लेपयति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
व्ली —क्र्या॰ पर॰ <व्लिनाति>, प्रेर॰ <व्लेपयति>—-—-—भरण-पोषण करना, थामे रखना, निर्वाह करना
व्ली —क्र्या॰ पर॰ <व्लिनाति>, प्रेर॰ <व्लेपयति>—-—-—छांटना, चुनना
व्लेक्ष् —चुरा॰ उभ॰ <व्लेक्षयति>, <व्लेक्षयते>—-—-—देखना
शः —पुं॰—-—शो + ड —काटने वाला, विनाशकर्ता
शंयु —वि॰—-—शं शुभम् अस्त्यस्य-शम् + युस —प्रसन्न ,समृद्ध
शंवः —पुं॰—-—शम् + व —प्रसन्न, भाग्यशाली
शंवः —पुं॰—-—शम् + व —ठीक दिशा में हल चलाना
शंवः —पुं॰—-—शम् + व —इन्द्र का वज्र
शंवः —पुं॰—-—शम् + व —मूसल का सिर जो लोहे का बना होता है
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—प्रशंसा करना, स्तुति करना, अनुमोदन करना
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—कहना, बयान करना, अभिव्यक्त करना, प्रकथन करना, संसूचित करना, घोषणा करना, विवरण देना (
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—संकेत करना,कह रखना,जताना
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—आवृत्ति करना,पाठ करना
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—चोट मारना, क्षति पहुँचाना
शंस् —भ्वा॰ पर॰ <शंसति>, <शस्त> कर्मवा॰ <शस्यते> —-—-—बुरा भला कहना, बदनाम करना
अभिशंस् —भ्वा॰ पर॰—अभि-शंस्—-—अभिशाप देना
अभिशंस् —भ्वा॰ पर॰—अभि-शंस्—-—दोषारोपण करना, निन्दा करना, बदनाम करना
अभिशंस् —भ्वा॰ पर॰—अभि-शंस्—-—प्रशंसा करना,
आशंस् —भ्वा॰ पर॰—आ-शंस् —-—आशा करना, प्रत्याशा करना, इच्छा करना,अभिलाषा करना
आशंस् —भ्वा॰ पर॰—आ-शंस् —-—आशीर्वाद देना, सदिच्छा प्रकट करना, मंगलकामना करना
आशंस् —भ्वा॰ पर॰—आ-शंस् —-—कहना, वर्णन करना
आशंस् —भ्वा॰ पर॰—आ-शंस् —-—प्रशंसा करना
आशंस् —भ्वा॰ पर॰—आ-शंस् —-—दोहरना
प्रशंस् —भ्वा॰ पर॰—प्र-शंस्—-—सराहना, स्तुति करना, अनुमोदन करना, गुण-कथन करना, श्लाघा करना
शंसनम् —नपुं॰—-—शंस् + ल्युट्—प्रशंसा करना,
शंसनम् —नपुं॰—-—शंस् + ल्युट्—कहना, वर्णन करना
शंसनम् —नपुं॰—-—शंस् + ल्युट्—पाठ करना
शंसा —स्त्री॰—-—शंस् + अ + टाप्—श्लाघा
शंसा —स्त्री॰—-—शंस् + अ + टाप्—अभिलाषा, इच्छा, आशा
शंसा —स्त्री॰—-—शंस् + अ + टाप्—दोहराना, वर्णन करना
शंसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—जिसकी श्लाघा की गई हो, स्तुति की गई हो
शंसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—बोला गया, कहा गया, उक्त, घोषित
शंसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—अभिलषित, इच्छित
शंसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—निश्चय किया गया, स्थापित, निर्धारित
शंसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—जिस पर मिथ्या दोषारोपण किया गया हो, कलंकित।
शंसिन् —वि॰—-—शंस् + इनि—श्लाघा करने वाला
शंसिन् —वि॰—-—शंस् + इनि—कहने वाला, घोषणा करने वाला, संसूचित करने वाला
शंसिन् —वि॰—-—शंस् + इनि—संकेत करने वाला, पहले से कह रखने वाला
शंसिन् —वि॰—-—शंस् + इनि—शकुन बताने वाला, भविष्य कथन करने वाला
शक् —स्वा॰ पर॰ <शक्नोति>, <शक्त>—-—-—योग्य होना, सक्षम होना, सबल होना, अमल में लाना
शक् —स्वा॰ पर॰ <शक्नोति>, <शक्त>—-—-—सहन करना, बर्दाश्त करना
शक् —स्वा॰ पर॰ <शक्नोति>, <शक्त>—-—-—शक्तिशाली होना,
शक् —कर्मवा॰—-—-—समर्थ होना, सम्भव होना, व्यवहार के योग्य होना
शक् —इच्छा॰ <शिक्षति>—-—-—समर्थ होने की इच्छा करना
शक् —इच्छा॰ <शिक्षति>—-—-—सीखना
शक् —दिवा॰ उभ॰ <शक्यति>, <शक्यते>, <शक्त>—-—-—समर्थ होना, अमल में लाने की शक्ति रखना
शक् —दिवा॰ उभ॰ <शक्यति>, <शक्यते>, <शक्त>—-—-—सहन करना,बर्दाश्त करना
शकः —पुं॰—-—शक् + अच्—एक राजा
शकः —पुं॰—-—शक् + अच्—काल, सम्वत्
शकाः —पुं॰ ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम
शकाः —पुं॰ ब॰ व॰—-—-—एक विशेष जन-जाति या राष्ट्र का नाम
शकान्तकः —पुं॰—शक-अन्तकः—-—राजा विक्रमादित्य के विशेषण जिसने शकों क उन्मूलन किया
शकारिः —पुं॰—शक-अरिः—-—राजा विक्रमादित्य के विशेषण जिसने शकों क उन्मूलन किया
शकाब्दः —पुं॰—शक-अब्दः—-—शकसंवत् का वर्ष,
शककर्तृ —पुं॰—शक-कर्तृ—-—संवत् का प्रवर्तक
शककृत् —पुं॰—शक-कृत्—-—संवत् का प्रवर्तक
शकटः —पुं॰—-—शक् + अटन्—गाडी,छकडा,भार ढोने की गाड़ी
शकटम् —नपुं॰—-—शक् + अटन्—गाडी,छकडा,भार ढोने की गाड़ी
शकटः —पुं॰—-—-—सैनिक व्यूह विशेषण
शकटः —पुं॰—-—-—एक विशेष प्रकार की तोल जो एक गाडी-भर बोझ या २००० पल के बराबर है
शकटः —पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम जिसे कृष्ण ने अपने बचपन में ही मार डाला था
शकटः —पुं॰—-—-—तिनिश नामक पेड़
शकटारिः —पुं॰—शकट-अरिः—-—कृष्ण के विशेषण
शकटहन् —पुं॰—शकट-हन्—-—कृष्ण के विशेषण
शकटाह्वा —स्त्री॰—शकट-आह्वा—-—रोहिणी नामक नक्षत्र (इसका आकार ’शकट’ जैसा होता है)
शकटबिलः —पुं॰—शकट-बिलः—-—जलकुक्कुट
शकटिका —स्त्री॰—-—शकट + ङीष् + कन् + टाप्, ह्र्स्वः—छोटी गाड़ी, खिलौना गाड़ी
शकन् —नपुं॰—-—-—मल, विष्ठा, विशेषकर जानवरों का मल, लीद गोबर आदि
शकलः —पुं॰—-—शक् + कलक्—भाग, अंश, हिस्सा, टुकडा, खण्ड
शकलः —पुं॰—-—शक् + कलक्—बक्कल,छिलका
शकलः —पुं॰—-—शक् + कलक्—(मछली की) खाल,परत
शकलित —वि॰—-—शकल + इतच्—खण्ड-खण्ड किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ
शकलिन् —वि॰—-—शकल + इनि—मछली
शकारः —पुं॰—-—-—राजा की रखैल का भाई, राजा की उस पत्नी का भाई जिससे विधिपूर्वक विवाह ना किया गया हो, अनूढा भ्राता
शकुनः —पुं॰—-—शक् + उनन्—पक्षी
शकुनः —पुं॰—-—शक् + उनन्—पक्षिविशेष, चील, गिद्ध
शकुनम् —नपुं॰—-—-—सगुन, लक्षण, शुभाशुभ बतलाने वाला चिह्न
शकुनम् —नपुं॰—-—-—शंकासूचक सगुन ।
शकुनज्ञ —वि॰—शकुनः-ज्ञ—-—सगुनों को जानने वाला
शकुनज्ञानम् —नपुं॰—शकुनः-ज्ञानम्—-—सगुनों का ज्ञान, भवितव्यता, होनहार
शकुनशास्त्रम् —नपुं॰—शकुनः-शास्त्रम्—-—वह शास्त्र जिसमें सगुनसम्बन्धी विचार किये गये हैं, सगुन शास्त्र ।
शकुनिः —पुं॰—-—शक् + उनि—पक्षी
शकुनिः —पुं॰—-—शक् + उनि—गिद्ध, चील, बाज
शकुनिः —पुं॰—-—शक् + उनि—मुर्गा
शकुनिः —पुं॰—-—शक् + उनि—गांधारराज सुबल का एक पुत्र, धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी का भाई, इस प्रकार यह दुर्योधन का मामा था
शकुनीश्वरः —पुं॰—शकुनि-ईश्वरः—-—गरुड़
शकुनिप्रपा —पुं॰—शकुनि- प्रपा—-—पक्षियों को पानी पिलाने की कूँड
शकुनिवादः —पुं॰—शकुनि-वादः—-—पक्षी की कूजन
शकुनिवादः —पुं॰—शकुनि-वादः—-—मुर्गे की बाँग
शकुनी —स्त्री॰—-—शकुन + ङीष्—चिड़िया, गोरैया
शकुनी —स्त्री॰—-—शकुन + ङीष्—एक पक्षिविशेष
शकुन्तः —पुं॰—-—शक् + उन्त—एक पक्षी
शकुन्तः —पुं॰—-—शक् + उन्त—नीलकण्ठ पक्षी
शकुन्तः —पुं॰—-—शक् + उन्त—पक्षिविशेष
शकुन्तकः —पुं॰—-—शकुन्त + कन्—पक्षी
शकुन्तला —स्त्री॰—-—शकु्न्तैः लायते- ला घञर्थे क + टाप्—विश्वामित्र ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए इन्द्र द्वारा भेजी गई मेनका अप्सरा से उत्पन्न विश्वामित्र की पुत्री
शकुन्तिः —पुं॰—-—शक् + उन्ति—पक्षी
शकुन्तिका —स्त्री॰—-—शकुन्ति + कन् + टाप्—पक्षी
शकुन्तिका —स्त्री॰—-—शकुन्ति + कन् + टाप्—पक्षिविशेष
शकुन्तिका —स्त्री॰—-—शकुन्ति + कन् + टाप्—टिड्डी, झींगुर
शकुलः —पुं॰—-—शक् + उलच्—एक प्रकार की मछली
शकुली —स्त्री॰—-—शक् + उलच्—एक प्रकार की मछली
शकुलादनी —स्त्री॰—शकुल-अदनी—-—एक जडीबूटी, कटकी या कुटकी
शकुलार्भकः —पुं॰—शकुल-अर्भकः—-—एक प्रकार की मछली
शकृत् —नपुं॰—-—शक् + ऋतन्—मल, विष्ठा, विशेषकर जानवरों की लीद,गोबर आदि ।
शकृत्करिः —पुं॰ —शकृत्-करिः—-—बछड़ा
शकृत्करिः —स्त्री॰—शकृत्-करिः—-—बछड़ा
शकृत्करी —स्त्री॰—शकृत्-करी—-—बछड़ा
शकृद्द्वारम् —नपुं॰—शकृत्-द्वारम्—-—गुदा, मलद्वार
शकृत्पिण्डः —पुं॰ —शकृत्-पिण्डः—-—गोबर का गोला
शकृत्पिण्डकः —पुं॰ —शकृत्- पिण्डकः—-—गोबर का गोला
शक्करः —पुं॰ —-—शक् + क्विप् —बैल सांड़
शक्करिः —पुं॰ —-—कृ + अच् कर्म॰ स॰—बैल सांड़
शक्करी —स्त्री॰—-—शक्कर + ङीष्—नदी
शक्करी —स्त्री॰—-—शक्कर + ङीष्—करधनी, मेखला,
शक्करी —स्त्री॰—-—शक्कर + ङीष्—नीच जाति की स्त्री ।
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—योग्य, सक्षम, समर्थ
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—मजबूत, ताक़तवर, शक्तिशाली
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—धनाढय, समृद्धिशाली
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—सार्थक, अभिव्यञ्जक (शब्द)
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—चतुर, प्रज्ञावान्
शक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शक् + क्त—प्रियवादी ।
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—बल, योग्यता, धारिता, सामर्थ्य, ऊर्जा, पराक्रम
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—रचनाशक्ति, काव्य शक्ति या प्रतिभा
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—देव की सक्रिय शक्ति, यह शक्ति देवपत्नी मानी जाती है, देवी, दिव्यता
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—एक प्रकार का अस्त्र
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—बर्छी, नेज़ा, शूल, भाला
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—किसी पदार्थ का उसके बोधक शब्द से सम्बन्ध
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—कारण की अन्तर्निहित शक्ति जिससे कार्य की उत्पत्ति होती है
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—(काव्य॰ में) शब्दशक्ति या शब्द की अर्थशक्ति
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—अभिधाशक्ति, शब्दसङ्केत
शक्तिः —स्त्री॰—-—शक् + क्तिन्—स्त्री की जननेन्द्रिय, भग, शाक्तसंप्रदाय के अनुयाइयों द्वारा पूजित शिवलिङ्ग की मूर्ति ।
शक्त्यर्धः —पुं॰ —शक्तिः-अर्धः—-—उद्योग तथा श्रम के फ़लस्वरूप हांपना तथा शरीर का पसीने से तर होना
शक्त्यपेक्ष —वि॰—शक्तिः- अपेक्ष—-—सामर्थ्य का ध्यान रखने वाला
शक्त्यपेक्षिन् —वि॰—शक्तिः- अपेक्षिन्—-—सामर्थ्य का ध्यान रखने वाला
शक्तिकुण्ठनम् —नपुं॰—शक्तिः-कुण्ठनम्—-—शक्ति को कुण्ठित करना
शक्तिग्रह —वि॰—शक्तिः-ग्रह—-—बल या अर्थ को धारण करने वाला
शक्तिग्रह —वि॰—शक्तिः-ग्रह—-—बर्छीधारी
शक्तिग्रहः —पुं॰ —शक्तिः-ग्रहः—-—बल या अर्थ का बोध अथवा शब्दशक्ति का ज्ञान
शक्तिग्रहः —पुं॰ —शक्तिः-ग्रहः—-—बर्छीधारी, भालाधारी
शक्तिग्रहः —पुं॰ —शक्तिः-ग्रहः—-—शिव का विशेषण
शक्तिग्रहः —पुं॰ —शक्तिः-ग्रहः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शक्तिग्राहक —वि॰—शक्तिः- ग्राहक—-—शब्द के अर्थ की स्थापना या निर्धारण करने वाला
शक्तिग्राहकः —पुं॰ —शक्तिः- ग्राहकः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शक्तित्रयम् —नपुं॰—शक्तिः-त्रयम्—-—राज्यशक्ति के संघटक तीन तत्त्व
शक्तिधर —वि॰—शक्तिः-धर—-—मज़बूत, शक्तिशाली
शक्तिधरः —पुं॰ —शक्तिः-धरः—-—बर्छीधारी
शक्तिधरः —पुं॰ —शक्तिः-धरः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शक्तिपाणिः —पुं॰—शक्तिः-पाणिः—-—बर्छीधारी
शक्तिपाणिः —पुं॰—शक्तिः-पाणिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
शक्तिभृत् —पुं॰—शक्तिः-भृत्—-—बर्छीधारी
शक्तिभृत् —पुं॰—शक्तिः-भृत्—-—कार्तिकेय का विशेषण
शक्तिपातः —पुं॰ —शक्तिः-पातः—-—शक्तिक्षय, पराजय
शक्तिपूजकः —पुं॰ —शक्तिः-पूजकः—-—शाक्त
शक्तिपूजा —स्त्री॰—शक्तिः-पूजा—-—शक्ति की पूजा
शक्तिवैकल्यम् —नपुं॰—शक्तिः-वैकल्यम्—-—शक्तिक्षय, दुर्बलता, अक्षमता
शक्तिहीन —वि॰—शक्तिः-हीन—-—शक्तिहीन, निर्बल, बलरहित,नपुंसक,
शक्तिहेतिकः —पुं॰ —शक्तिः-हेतिकः—-—भालाधारी, बर्छीधारी
शक्तितः —अव्य॰—-—शक्ति + तसिल्—शक्ति के अनुसार, यथायोग्य, यथाशक्ति
शक्न —वि॰—-—शक् + न—मिष्टभाषी, प्रियवादी
शक्ल —वि॰—-—शक् + क्ल —मिष्टभाषी, प्रियवादी
शक्य —सं॰ कृ॰—-—शक् + यत्—संभव, क्रियात्मक, किये जाने के योग्य
शक्य —सं॰ कृ॰—-—शक् + यत्—कार्यान्वयन के योग्य
शक्य —सं॰ कृ॰—-—शक् + यत्—कार्यान्वयन में सरल
शक्य —सं॰ कृ॰—-—शक् + यत्—प्रत्यक्ष कहा गया, अभिहित ( शब्दार्थ आदि)
शक्य —सं॰ कृ॰—-—शक् + यत्—संभाव्य
शक्यार्थः —पुं॰ —शक्य-अर्थः—-—प्रत्यक्ष अभिहितार्थ
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—इन्द्र
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—अर्जुन का वृक्ष
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—कुटज का पेड़
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—उल्लू
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—ज्येष्ठा नक्षत्र
शक्रः —पुं॰ —-—शक् + रक्—चौदह की संख्या
शक्राशनः —पुं॰ —शक्रः-अशनः—-—कुटज का वृक्ष
शक्राख्यः —पुं॰ —शक्रः-आख्यः—-—उल्लू
शक्रात्मजः —पुं॰ —शक्रः-आत्मजः—-—इन्द्र का पुत्र जयन्त
शक्रात्मजः —पुं॰ —शक्रः-आत्मजः—-—अर्जुन
शक्रोत्थानम् —नपुं॰—शक्रः-उत्थानम्—-—भाद्रपदशुक्ला द्वादशी को इन्द्र के सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव, पर्व
शक्रोत्सवः —पुं॰ —शक्रः-उत्सवः—-—भाद्रपदशुक्ला द्वादशी को इन्द्र के सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव, पर्व
शक्रगोपः —पुं॰ —शक्रः-गोपः—-—एक प्रकार का लाल कीडा़
शक्रजः —पुं॰ —शक्रः-जः—-—कौवा
शक्रजातः —पुं॰ —शक्रः-जातः—-—कौवा
शक्रजित् —पुं॰—शक्रः-जित्—-—रावण के पुत्र मेघनाद के विशेषण
शक्रभिद् —पुं॰—शक्रः-भिद्—-—रावण के पुत्र मेघनाद के विशेषण
शक्रद्रुमः —पुं॰ —शक्रः-द्रुमः—-—देवदारु का वृक्ष
शक्रधनुस् —नपुं॰—शक्रः-धनुस्—-—इन्द्रधनुष
शक्रशरासनम् —नपुं॰—शक्रः-शरासनम्—-—इन्द्रधनुष
शक्रध्वजः —पुं॰ —शक्रः-ध्वजः—-—इन्द्र के सम्मान में स्थापित झंडा
शक्रपर्यायः —पुं॰ —शक्रः-पर्यायः—-—कुटज का वृक्ष
शक्रपादपः —पुं॰ —शक्रः-पादपः—-—कुटज का पेड़
शक्रपादपः —पुं॰ —शक्रः-पादपः—-—देवदारु वृक्ष
शक्रप्रस्थ —वि॰—शक्रः-प्रस्थ—-—इन्द्रप्रस्थ
शक्रभवनम् —नपुं॰—शक्रः-भवनम्—-—स्वर्ग, वैकुण्ठ
शक्रभुवनम् —नपुं॰—शक्रः-भुवनम्—-—स्वर्ग, वैकुण्ठ
शक्रवासः —पुं॰ —शक्रः-वासः—-—स्वर्ग, वैकुण्ठ
शक्रमूर्धन् —नपुं॰—शक्रः-मूर्धन्—-—बांबी,वल्मीक
शक्रशिरस् —नपुं॰—शक्रः-शिरस्—-—बांबी,वल्मीक
शक्रलोकः —पुं॰ —शक्रः-लोकः—-—इन्द्र का संसार
शक्रवाहनम् —नपुं॰—शक्रः-वाहनम्—-—बादल
शक्रशाखिन् —पुं॰—शक्रः-शाखिन्—-—कुटज का वृक्ष
शक्रसारथिः —पुं॰—शक्रः-सारथिः—-—इन्द्र का रथवान्, मातलि का विशेषण,
शक्रसुतः —पुं॰—शक्रः-सुतः—-—जयंत का विशेषण
शक्रसुतः —पुं॰—शक्रः-सुतः—-—अर्जुन का विशेशण
शक्रसुतः —पुं॰—शक्रः-सुतः—-—वालि का विशेषण
शक्राणी —स्त्री॰—-—शक्र + ङीष, आनुक्—इन्द्र की पत्नी, शची
शक्रिः —पुं॰—-—शक् + क्रिन्—बादल
शक्रिः —पुं॰—-—शक् + क्रिन्—इन्द्र का वज्र
शक्रिः —पुं॰—-—शक् + क्रिन्—पहाड़
शक्रिः —पुं॰—-—शक् + क्रिन्—हाथी
शक्वरः —पुं॰—-—शक्+वन् , र—साँड, बैल
शङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <शङ्कते>, <शङ्कित>—-—-—संदेह करना, अनिश्चित होना, संकोच करना, संदिग्ध होना
शङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <शङ्कते>, <शङ्कित>—-—-—डरना, भय होना, त्रस्त होना
शङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <शङ्कते>, <शङ्कित>—-—-—शंका करना, अविश्वास करना, भरोसा न करना
शङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <शङ्कते>, <शङ्कित>—-—-—सोचना, विश्वास करना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना, संभव समझना, शंका करना, डरना
शङ्क् —भ्वा॰ आ॰ <शङ्कते>, <शङ्कित>—-—-—आक्षेप करना, अपनी शंका या ऐतराज उठाना
अभिशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—अभि-शङ्क्—-—शंका करना
अभिशङ्क —भ्वा॰ आ॰—अभि-शङ्क्—-—संदिग्ध या अनिश्चयी होना
आशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—आ-शङ्क्—-—शङ्का करना, भरोसा न करना, संदेह रखना
आशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—आ-शङ्क्—-—संदेह करना, विश्वास करना, सोचना
आशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—आ-शङ्क्—-—डरना, आशंका करना
आशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—आ-शङ्क्—-—आक्षेप करना, संदेह करना -
परिशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—परि-शङ्क्—-—शंका करना, विश्वास करना, उत्प्रेक्षा करना
परिशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—परि-शङ्क्—-—संदेह करना, संदेहशील होना
परिशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—परि-शङ्क्—-—डरना, भयभीत होना
विशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—वि-शङ्क्—-—शंका करना, डरना, संदेहशील या शंकालु होना
विशङ्क् —भ्वा॰ आ॰—वि-शङ्क्—-—सत्ता का चिन्तन करना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना
शङ्कः —पुं॰—-—शङ्क + अच्—कर्षक बैल, (गाड़ी) खींचने वाला बैल ।
शङ्कर —वि॰—-—शं सुखं करोति - कृ + अच्—आनन्द या समृद्धि देने वाला, शुभ, मङ्गलमय
शङ्करः —पुं॰—-—-—विख्यात आचार्य और ग्रन्थप्रणेता शंकराचार्य
शङ्करी —स्त्री॰—-—-—शिव की पत्नी पार्वती
शङ्करी —स्त्री॰—-—-—मंजिष्ठा, मजीठ
शङ्करी —स्त्री॰—-—-—शमीवृक्ष
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—संदेह, अनिश्चितता
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—संकल्प-विकल्प, दुविधा
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—आशंका, अविश्वास, अनिष्टशंका, अपायशंका, अरिष्टस्कंका आदि
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—डर, आशंका, त्रास, आतंक
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—आशा, प्रत्याशा
शङ्का —स्त्री॰—-—शङ्क् + अ + टाप्—(भ्रान्त) विश्वास, आश्ंका, (मिथ्या) धारणा
शङ्कित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शङ्क् + क्त—सन्दिग्ध, आशंकायुक्त, त्रस्त
शङ्कित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शङ्क् + क्त—शंकालु, आशंका करने वाला, अविश्वासपूर्ण
शङ्कित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शङ्क् + क्त—अनिश्चित, संदिग्ध
शङ्कित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शङ्क् + क्त—भयपूर्ण, सशंक, आतंकित
शङ्कितचित्त —वि॰—शङ्कित-चित्त—-—भीरु, कातरह्रदय
शङ्कितचित्त —वि॰—शङ्कित-चित्त—-—शंकाकुल, अविश्वासपूर्ण
शङ्कितचित्त —वि॰—शङ्कित-चित्त—-—संदिग्ध ।
शङ्कितमनस् —वि॰—शङ्कित-मनस्—-—भीरु, कातरह्रदय
शङ्कितमनस् —वि॰—शङ्कित-मनस्—-—शंकाकुल, अविश्वासपूर्ण
शङ्कितमनस् —वि॰—शङ्कित-मनस्—-—संदिग्ध
शङ्किन् —वि॰—-—शङ्का + इनि—सन्देह करने वाला, शंका करने वाला, डरने वाला, विश्वास करने वाला
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—नेज़ा, बर्छी, नुकीली कील, शक्ति, कटार
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—खूँटा, खम्बा, स्तम्भ, शूल या नोकदार छ्ड़
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—कील, मेख, खूँटी
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—बाण की तीखी नोक, काँटा या आँकड़ा
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—(कटे हुए वृक्ष का) तना,पेड़ का ठूँठ, मुंडा पेड़
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—घड़ी की सुई
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—बारह अंगुल की माप
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—गज, मापने का डंडा
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—लंबरेखा या ऊँचाई
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—सौ खरब या एक नील की संख्या
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—पत्तों के रेशे
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—वल्मीक, बमी
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—पुरुष की जननेन्द्रिय
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—एक प्रकार की मछली, तनुका
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—राक्षस
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—विष
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—पाप
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—जलचर, विशेषकर कलहंस
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—शिव
शङ्कुः —पुं॰—-—शङ्क् + उण्—साल का पेड़
शङ्कु्कर्ण —वि॰—शङ्कु्ः-कर्ण—-—जिसके कान शंकु के समान लंबे और नुकीले हों
शङ्कुकर्णः —पुं॰—शङ्कु-कर्णः—-—गधा
शङ्कुतरुः —पुं॰—शङ्कु-तरुः—-—साल का एक पेड़
शङ्कुवृक्षः —पुं॰—शङ्कु-वृक्षः—-—साल का एक पेड़
शङ्कुला —स्त्री॰—-—शङ्क् + उलच्—एक प्रकार का चाकू या दो धार वाला नश्तर
शङ्कुला —स्त्री॰—-—शङ्क् + उलच्—सरौता
शङ्कुलाखण्डः —पुं॰—शङ्कुला-खण्डः—-—सरौते से काटा हुआ टुकड़ा
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—शंख, घोंघा
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—मस्तक की हड्डी,
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—कनपटी की हड्डी
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—हाथी के दोनों दाँतों के बीच का भाग
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—दस नील की संख्या
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—सैनिक ढोल या मारूबाजा
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—एक प्रकार का गन्धद्रव्य, नखी
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—कुबेर की नवनिधियों में से एक
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—एक राक्षस जिसको विष्णु ने मार डाला था
शङ्खः —पुं॰—-—शम् + ख—एक स्मृतिकार
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—शंख, घोंघा
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—मस्तक की हड्डी,
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—कनपटी की हड्डी
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—हाथी के दोनों दाँतों के बीच का भाग
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—दस नील की संख्या
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—सैनिक ढोल या मारूबाजा
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य, नखी
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—कुबेर की नवनिधियों में से एक
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—एक राक्षस जिसको विष्णु ने मार डाला था
शङ्खम् —नपुं॰—-—-—एक स्मृतिकार
शङ्खोदकम् —नपुं॰—शङ्खः- उदकम्—-—शंख में डाला हुआ पानी
शङ्खकारः —पुं॰—शङ्खः- कारः—-—शंखकार नाम की एक वर्णसंकर जाति
शङ्खकारकः —पुं॰—शङ्खः- कारकः—-—शंखकार नाम की एक वर्णसंकर जाति
शङ्खचरी —स्त्री॰—शङ्खः- चरी—-—(मस्तक पर लगाया गया) चन्दन का तिलक
शङ्खचर्ची —स्त्री॰—शङ्खः- चर्ची—-—(मस्तक पर लगाया गया) चन्दन का तिलक
शङ्खचूर्णम् —नपुं॰—शङ्खः- चूर्णम्—-—शंख को पीसकर बनाया गया चूरा
शङ्खद्रावः —पुं॰—शङ्खः- द्रावः—-—एक प्रकार का घोल जिसमें शंख भी घुल जाता हैं
शङ्खद्रावकः —पुं॰—शङ्खः- द्रावकः—-—एक प्रकार का घोल जिसमें शंख भी घुल जाता हैं
शङ्खध्मः — पुं॰ —शङ्खः- ध्मः—-—शंख बजाने वाला
शङ्खध्मा — पुं॰ —शङ्खः- ध्मा—-—शंख बजाने वाला
शङ्खध्वनिः —पुं॰—शङ्खः- ध्वनिः—-—शंख की आवाज
शङ्खप्रस्थः —पुं॰—शङ्खः- प्रस्थः—-—चन्द्रमा का कलंक
शङ्खभृत् —पुं॰—शङ्खः- भृत्—-—विष्णु का विशेषण
शङ्खमुखः —पुं॰—शङ्खः- मुखः—-—घड़ियाल, मगर
शङ्खस्वनः —पुं॰—शङ्खः- स्वनः—-—शंखध्वनि
शङ्खकः —पुं॰—-—शंख + कन्—शंख
शङ्खकः —पुं॰—-—शंख + कन्—कनपटी की हड्डी
शङ्खकम् —नपुं॰—-—शंख + कन्—शंख
शङ्खकम् —नपुं॰—-—शंख + कन्—कनपटी की हड्डी
शङ्खकः —पुं॰—-—-—(शङ्ख का बना) कड़ा
शङ्खनकः —पुं॰—-—-—एक छोटा शंख या घोंघा
शङ्खनखः —पुं॰—-—-—एक छोटा शंख या घोंघा
शङ्खिन् —पुं॰—-—शङ्ख + इनि—समुद्र
शङ्खिन् —पुं॰—-—शङ्ख + इनि—विष्णु
शङ्खिन् —पुं॰—-—शङ्ख + इनि—शंख बजाने वाला
शङ्खिनी —स्त्री॰—-—शङ्खिन् + ङीप्—काम शास्त्र के लेखकों के अनुसार स्त्रियों के किये गये चार भेदों में से एक
शङ्खिनी —स्त्री॰—-—शङ्खिन् + ङीप्—प्रेतात्मा, अप्सरा, परी
शच् —भ्वा॰ आ॰ <शचते>—-—-—बोलना, कहना, बतलाना
शचिः —स्त्री॰—-—शच् + इन् —इन्द्र की पत्नी
शची —स्त्री॰—-—शचि + ङीष्—इन्द्र की पत्नी
शचीपतिः —पुं॰—शची-पतिः—-—इन्द्र के विशेषण
शचीभर्तृ —पुं॰—शची-भर्तृ—-—इन्द्र के विशेषण
शञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <शञ्चते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शट् —भ्वा॰ पर॰ <शटति>—-—-—बीमार होना
शट् —भ्वा॰ पर॰ <शटति>—-—-—बांटना, वियुक्त होना
शट —वि॰—-—शट् + अच्—खट्टा, अम्ल, कसैला
शटा —स्त्री॰—-—शट् + टाप्—संन्यासी के उलझे बाल
शटिः —स्त्री॰—-—शट् + इन्—कचूर का पौधा, आमा हल्दी
शठ् —भ्वा॰ पर॰ <शठति>—-—-—धोखा देना,ठगना, जालसाजी करना
शठ् —भ्वा॰ पर॰ <शठति>—-—-—चोट मारना, मार डालना
शठ् —भ्वा॰ पर॰ <शठति>—-—-—कष्ट उठाना
शठ् —चुरा॰ पर॰ <शाठयति>—-—-—समाप्त करना
शठ् —चुरा॰ पर॰ <शाठयति>—-—-—असमाप्त छोड़ देना
शठ् —चुरा॰ पर॰ <शाठयति>—-—-—जाना,हिलना-जुलना
शठ् —चुरा॰ पर॰ <शाठयति>—-—-—आलसी या सुस्त होना
शठ् —चुरा॰ पर॰ <शाठयति>—-—-—धोखा देना, ठगना
शठ —वि॰—-—शठ् + अच्—चालाक, धोखेबाज, जालसाज, बेईमान, कपटी
शठ —वि॰—-—शठ् + अच्—दुष्ट, दुर्वृत्त,
शठः —पुं॰—-—-—बदमाश, ठग, धूर्त, मक्कार
शठः —पुं॰—-—-—झूठा या धोखेबाज प्रेमी
शठः —पुं॰—-—-—मध्यस्त, बिवाचक
शठः —पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
शठः —पुं॰—-—-—आलसी पुरुष, सुस्त व्यक्ति
शठम् —नपुं॰—-—-—केसर, जाफ़रान
शणम् —नपुं॰—-—शण् + अच्—सन, पटसन
शणसूत्रम् —नपुं॰—शणम्-सूत्रम्—-—सन की बनी डोरी या रस्सी
शणसूत्रम् —नपुं॰—शणम्-सूत्रम्—-—सन का बना जाल
शणसूत्रम् —नपुं॰—शणम्-सूत्रम्—-—रस्सियाँ, डोरियाँ
शण्डः —पुं॰—-—शण्ड् + अच्—नपुंसक, हिजड़ा
शण्डः —पुं॰—-—शण्ड् + अच्—साँड़
शण्डः —पुं॰—-—शण्ड् + अच्—छोड़ा हुआ साँड़
शण्डम् —नपुं॰—-—-—संग्रह, समुच्चय
शण्ढः —पुं॰—-—शाम्यति ग्रामधर्मात् -शम् + ढ —हिजड़ा, नपुंसक
शण्ढः —पुं॰—-—शाम्यति ग्रामधर्मात् -शम् + ढ —अन्तःपुर में रहने वाला टहलुआ, पुरुषसेवक
शण्ढः —पुं॰—-—शाम्यति ग्रामधर्मात् -शम् + ढ —साँड़
शण्ढः —पुं॰—-—शाम्यति ग्रामधर्मात् -शम् + ढ —छोड़ा हुआ साँड़
शण्ढः —पुं॰—-—शाम्यति ग्रामधर्मात् -शम् + ढ —पागल आदमी
शतम् —नपुं॰—-—दश दशतः परिमाणमस्य-दशन् + त, श आदेशः नि॰ साधुः—सौ की संख्या
शतम् —नपुं॰—-—दश दशतः परिमाणमस्य-दशन् + त, श आदेशः नि॰ साधुः—कोई भी बड़ी संख्या ।
शताक्षी —स्त्री॰—शतम्-अक्षी—-—रात्रि
शताक्षी —स्त्री॰—शतम्-अक्षी—-—दुर्गादेवी
शताङ्गः —पुं॰—शतम्-अङ्गः—-—गाड़ी, छकड़ा
शतानीकः —पुं॰—शतम्-अनीकः—-—बूढ़ा आदमी
शतारम् —नपुं॰—शतम्-अरम्—-—इन्द्र का वज्र
शतारम् —नपुं॰—शतम्-आरम्—-—इन्द्र का वज्र
शतानकम् —नपुं॰—शतम्-आनकम्—-—श्मशान, क़बरिस्तान,
शतानन्दः —पुं॰—शतम्-आनन्दः—-—ब्रह्मा
शतानन्दः —पुं॰—शतम्-आनन्दः—-—विष्णु, कृष्ण
शतानन्दः —पुं॰—शतम्-आनन्दः—-—विष्णु का वाहन
शतानन्दः —पुं॰—शतम्-आनन्दः—-—गौतम और अहिल्या का पुत्र, जनकराज का कुलपुरोहित
शतायुस् —वि॰—शतम्-आयुस्—-—सौ वर्ष तक जीवित रहने वाला या टिकने वाला
शतावर्तः —पुं॰—शतम्-आवर्तः—-—विष्णु
शतावर्तिन् —पु॰—शतम्-आवर्तिन्—-—विष्णु
शतेशः —पुं॰—शतम्-ईशः—-—सौ के ऊपर शासन करने वाला
शतेशः —पुं॰—शतम्-ईशः—-—सौ गाँव का शासक
शतकुम्भः —पुं॰—शतम्-कुम्भः—-—एक पहाड़ का नाम ( कहते हैं कि यहाँ पर सोना पाया जाता है )
शतभम् —नपुं॰—शतम्-भम्—-—सोना
शतकृत्वः —अव्य॰—शतम्-कृत्वः—-—सौ गुणा
शतकोटि —वि॰—शतम्-कोटि—-—सौ धार वाला
शतकोटिः —पुं॰—शतम्-कोटिः—-—इन्द्र का वज्र
शतकोटिः —स्त्री॰—शतम्-कोटिः—-—एक अरब या सौ करोड़ की संख्या
शतर्तुः —पुं॰—शतम्-ऋतुः—-—इन्द्र का विशेषण
शतखण्डम् —नपुं॰—शतम्-खण्डम्—-—सोना
शतगु —वि॰—शतम्-गु—-—सौ गायों का स्वामी
शतगुण —वि॰—शतम्-गुण—-—सौगुणा बढ़ा हुआ
शतगुणित —वि॰—शतम्-गुणित—-—सौगुणा बढ़ा हुआ
शतग्रन्थिः —स्त्री॰—शतम्-ग्रन्थिः—-—दूर्वा घास
शतघ्नी —स्त्री॰—शतम्-घ्नी—-—एक प्रकार का शस्त्र जो अस्त्र की भांति प्रयुक्त किया जाय
शतघ्नी —स्त्री॰—शतम्-घ्नी—-—बिच्छू की मादा
शतघ्नी —स्त्री॰—शतम्-घ्नी—-—गले का एक रोग
शतजिह्वः —पुं॰—शतम्-जिह्वः—-—शिव का विशेषण
शततारका —स्त्री॰—शतम्-तारका—-—सौ तारिकाओं का पुंज शतभिषा नामक नक्षत्र
शतभिषज् —स्त्री॰—शतम्-भिषज्—-—सौ तारिकाओं का पुंज शतभिषा नामक नक्षत्र
शतभिषा —स्त्री॰—शतम्-भिषा—-—सौ तारिकाओं का पुंज शतभिषा नामक नक्षत्र
शतदला —स्त्री॰—शतम्-दला—-—सफ़ेद गुलाब
शतद्रुः —स्त्री॰—शतम्-द्रुः—-—पंजाब की एक नदी जिसका वर्तमान नाम सतलज है
शतधामन् —पुं॰—शतम्-धामन्—-—विष्णु का विशेषण
शतधार —वि॰—शतम्- धार—-—सौ धारों वाला
शतधारम् —नपुं॰—शतम्- धारम्—-—इन्द्र का वज्र
शतधृतिः —पुं॰—शतम्- धृतिः—-—इन्द्र का विशेषण
शतधृतिः —पुं॰—शतम्- धृतिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
शतधृतिः —पुं॰—शतम्- धृतिः—-—स्वर्ग
शतपत्रः —पुं॰—शतम्-पत्रः—-—मोर
शतपत्रः —पुं॰—शतम्-पत्रः—-—सारस
शतपत्रः —पुं॰—शतम्-पत्रः—-—खुट-बढ़ई पक्षी
शतपत्रः —पुं॰—शतम्-पत्रः—-—तोता या तोते की जाति
शतपत्रा —स्त्री॰—शतम्-पत्रा—-—स्त्री
शतपत्रम् —नपुं॰—शतम्-पत्रम् —-—कमल
शतयोनिः —पुं॰—शतम्-योनिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
शतपत्रकः —पुं॰—शतम्-पत्रकः—-—खुटबढ़ई
शतपद् —वि॰—शतम्-पद्—-—सौ पैरों वाला
शतपाद् —वि॰—शतम्-पाद्—-—सौ पैरों वाला
शतपदी —स्त्री॰—शतम्-पदी—-—कानखजूरा
शतपद्मम् —नपुं॰—शतम्-पद्मम्—-—वह कमल जिसमें सौ पंखड़ियाँ हों
शतपद्मम् —नपुं॰—शतम्-पद्मम्—-—श्वेत कमल
शतपर्वन् —पुं॰—शतम्-पर्वन्—-—बाँस
शतपर्वन् —स्त्री॰—शतम्-पर्वन्—-—आश्विन मास की पूर्णिमा
शतपर्वन् —स्त्री॰—शतम्-पर्वन्—-—दूर्वा घास
शतपर्वन् —स्त्री॰—शतम्-पर्वन्—-—कटुक का पौधा
शतेशः —पुं॰—शतम्-ईशः—-—शुक्र, ग्रह
शतभीरुः —स्त्री॰—शतम्-भीरुः—-—अरबदेश की चमेली
शतमख —पुं॰—शतम्-मख—-—इन्द्र के विशेषण
शतमख —पुं॰—शतम्-मख—-—उल्लू
शतमन्युः —पुं॰—शतम्-मन्युः—-—इन्द्र के विशेषण
शतमन्युः —पुं॰—शतम्-मन्युः—-—उल्लू
शतमुख —वि॰—शतम्-मुख—-—जिसके सौ रास्ते हों
शतमुख —वि॰—शतम्-मुख—-—सौ द्वार या मुँह वाला
शतमुखम् —नपुं॰—शतम्-मुखम्—-—सौ रास्ते या द्वार
शतमुखी —स्त्री॰—शतम्-मुखी—-—बुहारी, झाडू़
शतमूला —स्त्री॰—शतम्-मूला—-—दूर्वा घास, दूबड़ा
शतयज्वम् —पुं॰—शतम्-यज्वम्—-—इन्द्र का विशेषण,
शतयष्टिकः —पुं॰—शतम्-यष्टिकः—-—सौ लड़ियों का हार
शतरूपा —स्त्री॰—शतम्-रूपा—-—ब्रह्मा की एक पुत्री
शतवर्षम् —नपुं॰—शतम्-वर्षम्—-—सौ बरस, शताब्दी
शतवेधिन् —पुं॰—शतम्- वेधिन्—-—एक प्रकार का खटमिठा शाक, चोका
शतसहस्रम् —नपुं॰—शतम्-सहस्रम्—-—सौ हज़ार
शतसहस्रम् —नपुं॰—शतम्-सहस्रम्—-—कई हज़ार अर्थात् एक बड़ी संख्या
शतसाहस्र —वि॰—शतम्-साहस्र—-—सौ हज़ार से युक्त
शतसाहस्र —वि॰—शतम्-साहस्र—-—सौ हज़ार में मोल लिया हुआ
शतह्रदा —स्त्री॰—शतम्-ह्रदा—-—बिजली
शतह्रदा —स्त्री॰—शतम्-ह्रदा—-—इन्द्र का वज्र
शतक —वि॰—-—शत + कन्—सौ से युक्त
शतकम् —नपुं॰—-—-—सौ श्लोकों का संग्रह
नीतिशतकम् —नपुं॰—नीति-शतकम्—-—नीति विषयक सौ श्लोकों का संग्रह
वैराग्यशतकम् —नपुं॰—वैराग्य-शतकम्—-—वैराग्य विषयक सौ श्लोकों का संग्रह
शृङ्गारशतकम् —नपुं॰—शृङ्गार-शतकम्—-—शृङ्गार विषयक सौ श्लोकों का संग्रह
शततम —वि॰—-—शत + तमप्—सौवाँ
शतधा —अव्य॰—-—शत + धाच्—सौ तरह से
शतधा —अव्य॰—-—शत + धाच्—सौ भागों में या टुकड़ों में
शतधा —अव्य॰—-—शत + धाच्—सौगुना
शतशस् —अव्य॰—-—शत + शस्—सौ सौ करके
शतशस् —अव्य॰—-—शत + शस्—सौ बार
शतशस् —अव्य॰—-—शत + शस्—सौ तरह से, विविध प्रकार से, नाना प्रकार से
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ से युक्त
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ से सम्बन्ध रखने वाला
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ से प्रभावित
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ में मोल लिया
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ से बदला किया हुआ
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —प्रतिशत शुल्क या ब्याज देने वाला
शतिक —वि॰—-—शत + ठन् —सौ का सूचक
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ से युक्त
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ से सम्बन्ध रखने वाला
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ से प्रभावित
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ में मोल लिया
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ से बदला किया हुआ
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—प्रतिशत शुल्क या ब्याज देने वाला
शत्य —वि॰—-—शत + यत्—सौ का सूचक
शतिन् —वि॰ —-—शत + इनि—सौगुणा
शतिन् —वि॰ —-—शत + इनि—असंख्य
शतिन् —पुं॰—-—शत + इनि—सौ का स्वामी
शत्रिः —पुं॰—-—शद् + त्रिप्—हाथी ।
शत्रुः —पुं॰—-—शद् + त्रुन्—परास्त करने वाला, विनाशक, विजेता
शत्रुः —पुं॰—-—शद् + त्रुन्—दुश्मन, वैरी, प्रतिपक्षी
शत्रुः —पुं॰—-—शद् + त्रुन्—राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी, पड़ौस का प्रतिद्वन्द्वी राजा
शत्रूपजापः —पुं॰—शत्रु-उपजापः—-—दु्श्मन की गुपचुप कानाफूसी, शत्रु का विश्वासघाती प्रस्ताव
शत्रुकर्षण —वि॰—शत्रु-कर्षण—-—शत्रु का दमन करने वाला, शत्रु को जीतने वाला या शत्रु को नष्ट करने वाला
शत्रुदमन —वि॰—शत्रु-दमन—-—शत्रु का दमन करने वाला, शत्रु को जीतने वाला या शत्रु को नष्ट करने वाला
शत्रुनिबर्हण —वि॰—शत्रु-निबर्हण—-—शत्रु का दमन करने वाला, शत्रु को जीतने वाला या शत्रु को नष्ट करने वाला
शत्रुघ्नः —पुं॰—शत्रु-घ्नः—-—शत्रुओं को नष्ट करने वाला
शत्रुपक्षः —पुं॰—शत्रु-पक्षः—-—शत्रु का पक्ष या दल
शत्रुपक्षः —पुं॰—शत्रु-पक्षः—-—प्रतिपक्षी, विरोधी,
शत्रुविनाशनः —पुं॰—शत्रु-विनाशनः—-—शिव का विशेषण
शत्रुहत्या —स्त्री॰—शत्रु-हत्या—-—शत्रु की हत्या
शत्रुहन् —वि॰—शत्रु-हन्—-—शत्रु का वध करने वाला
शत्रुञ्जयः —पुं॰—-—शत्रु + जि + खच्, मुम्—अपने शत्रु को परास्त करने वाला या नष्ट करने वाला ।
शद् —भ्वा॰ पर॰ <शीयते>, <शन्न>—-—-—पतन होना, नष्ट होना, मुर्झाना, कुम्हलाना
शद् —भ्वा॰ पर॰ <शीयते>, <शन्न>—-—-—जाना
शद् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <शादयति>, <शादयते>—-—-—पहुँचाना, ठेलना
शद् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <शादयति>, <शादयते>—-—-—गिराना, नीचे फेंक देना, काट डालना
शद् —भ्वा॰उभ॰, प्रेर॰ <शादयति>, <शादयते>—-—-—वध करना, नष्ट करना
शद् —भ्वा॰ पर॰ <शदति>—-—-—जाना
शदः —पुं॰—-—शद् + अच्—खाद्य, शाकभाजी ( फल मूल आदि ) ।
शद्रिः —पुं॰—-—शद् + क्रिन्—हाथी
शद्रिः —पुं॰—-—शद् + क्रिन्—बादल
शद्रिः —पुं॰—-—शद् + क्रिन्—अर्जुन
शद्रुः —वि॰—-—शद् + रु—जाने वाला, गतिशील
शद्रुः —वि॰—-—शद् + रु—पतनशील, नश्वर, क्षय होने वाला ।
शनकैः —अव्य॰—-—शनैः + अकच्—शनैः शनैः
शनिः —पुं॰—-—शो + अनि किच्च—शनिग्रह
शनिः —पुं॰—-—शो + अनि किच्च—शनिवार
शनिः —पुं॰—-—शो + अनि किच्च—शिव ।
शनिजम् —नपुं॰—शनि-जम्—-—काली मिर्च
शनिप्रदोषः —पुं॰—शनि-प्रदोषः—-—शिव की ( सांध्यकालीन ) पूजा जो शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को शनिवार आ पड़ने पर की जाता है
शनिप्रियम् —नपुं॰—शनि-प्रियम्—-—नीलमणि
शनिवारः —पुं॰—शनि-वारः—-—शनिवार का दिन
शनिवासरः —पुं॰—शनि-वासरः—-—शनिवार का दिन
शनैस् —अव्य॰—-—शण् + डैस्, पृषो॰ नुक्—आहिस्ता से, धीमे, चुपचाप
शनैस् —अव्य॰—-—शण् + डैस्, पृषो॰ नुक्—यथाक्रम क्रमशः, थोड़ा थोड़ा करके धर्म
शनैस् —अव्य॰—-—शण् + डैस्, पृषो॰ नुक्—उत्तरोत्तर, उपयुक्त क्रम में
शनैस् —अव्य॰—-—शण् + डैस्, पृषो॰ नुक्—मृदुता से, नरमी से
शनैस् —अव्य॰—-—शण् + डैस्, पृषो॰ नुक्—सुस्ती के साथ, आलस्यपूर्वक
शनैः शनैः —अव्य॰—-—-—आहिस्ता से, आहिस्ता आहिस्ता
शनैश्चर —वि॰—शनैस्-चर—-—शनैः शनैः घूमने वाला या चलने वाला
शनैश्चरः —पुं॰—शनैस्-चरः—-—शनिग्रह
शन्तनुः —पुं॰—-—शं मंगलात्मका तनुर्यस्य ब॰ स॰— एक चन्द्रबंशी राजा
शप् —भ्वा॰ <शपति> ,<शपते>, दिवा॰ उभ॰, <शप्यति>, <शप्यते>, <शप्त>—-— —अभिशाप देना, कोसना
शप् —भ्वा॰ <शपति> ,<शपते>, दिवा॰ उभ॰, <शप्यति>, <शप्यते>, <शप्त>—-—-—शपथ लेना, कसम उठाना, शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करना, सौगंध खाना
शप् —भ्वा॰ <शपति> ,<शपते>, दिवा॰ उभ॰, <शप्यति>, <शप्यते>, <शप्त>—-—-—कंलकित करना, धमकाना, बुरा-भला कहना, गाली देना
शप् —भ्वा॰, प्रेर॰ <शापयति>, <शापयते>—-—-—शपथद्वारा बाँध लेना, शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करना
शपः —पुं॰—-—शप् + अच्—अभिशाप, सरापना, कोसना
शपः —पुं॰—-—शप् + अच्—शपथ, सौगन्ध
शपथः —पुं॰—-—शप् + अथन्—कोसना
शपथः —पुं॰—-—शप् + अथन्—अभिशाप, आक्रोश, फटकारा
शपथः —पुं॰—-—शप् + अथन्—सौगन्ध, कसम खाना, शपथ लेना या दिलवाना, शपथोक्ति
शपथः —पुं॰—-—शप् + अथन्—शपथपूर्वक अनुरोध, सौगन्ध से बाँधना
शपनम् —नपुं॰—-—शप् + ल्युट्—कोसना
शपनम् —नपुं॰—-—शप् + ल्युट्—अभिशाप, आक्रोश, फटकारा
शपनम् —नपुं॰—-—शप् + ल्युट्—सौगन्ध, कसम खाना, शपथ लेना या दिलवाना, शपथोक्ति
शपनम् —नपुं॰—-—शप् + ल्युट्—शपथपूर्वक अनुरोध, सौगन्ध से बाँधना
शप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शप् + क्त—अभिशप्त
शप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शप् + क्त—जिसने सौगन्ध खाली है
शप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शप् + क्त—बुरा भला कहा गया, दुर्वचन कहा गया ।
शफः —पुं॰—-—शप् + अच्, पृषो॰ पस्य फः —सुम
शफः —पुं॰—-—शप् + अच्, पृषो॰ पस्य फः —वृक्ष की जड़
शफम् —नपुं॰—-—शप् + अच्, पृषो॰ पस्य फः —सुम
शफम् —नपुं॰—-—शप् + अच्, पृषो॰ पस्य फः —वृक्ष की जड़
शफरः —पुं॰—-—शफ राति- रा + क—एक प्रकार की छोटी चमकीली मछली
शफराधिपः —पुं॰—शफर-अधिपः—-—`इलीश’ नामक मछली ।
शबरः —पुं॰—-—-—पहाड़ी, असभ्य, भील, जंगली
शबरः —पुं॰—-—-—एक शास्त्र विशेष या धार्मिक पुस्तक
शबरः —पुं॰—-—-—मीमांसा के प्रसिद्ध भाष्यकार
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—पहाड़ी, असभ्य, भील, जंगली
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—शिव
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—हाथ
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—जल
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—एक शास्त्र विशेष या धार्मिक पुस्तक
शवरः —पुं॰—-—शव् + अरन्—मीमांसा के प्रसिद्ध भाष्यकार
शबरीः —स्त्री॰—-—-—राम की अनन्य भक्त एक भीलनी
शबरालयः —पुं॰—शबर-आलयः—-—जंगली, पहाड़ियों और भीलों का निवासस्थान
शबरलोध्र —पुं॰—शबर-लोध्र—-—जंगली लोध्र का वृक्ष
शबल —वि॰—-—शप् + अल, बश्च—धब्वेदार, रंग-बिरंगा, चितकबरा
शबल —वि॰—-—शप् + अल, बश्च—नानारूप, अनेक भागों में विभक्त
शवल —वि॰—-—-—धब्वेदार, रंग-बिरंगा, चितकबरा
शवल —वि॰—-—-—नानारूप, अनेक भागों में विभक्त
शबलः —पुं॰—-—-—नानाप्रकार का रंग
शबला —स्त्री॰—-—-—धब्बेदार या चितकबरी गाय
शबली —स्त्री॰—-—-—धब्बेदार या चितकबरी गाय
शब्द —चुरा॰ उभ॰ <शब्दयति>, <शब्दयते> , <शब्दित>—-—-—ध्वनि करना, शोर मचाना
शब्द —चुरा॰ उभ॰ <शब्दयति>, <शब्दयते> , <शब्दित>—-—-—बोलना, बुलाना, आवाज़ देना
शब्द —चुरा॰ उभ॰ <शब्दयति>, <शब्दयते> , <शब्दित>—-—-—नाम लेना, पुकारना
अभिशब्द —चुरा॰ उभ॰—अभि-शब्द—-—नाम रखना
प्रशब्द —चुरा॰ उभ॰—प्र-शब्द—-—व्याख्या करना
संशब्द —चुरा॰ उभ॰—सम्-शब्द—-—बुलाना
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—ध्वनि (श्रोत्रेन्द्रिय का विषय ) आकाशगुण
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—आवाज़, कलरव (पक्षियों का या मनुष्यादिकों का), कोलाहल
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—बाजे की आवाज़
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—वचन, ध्वनि, सार्थक ध्वनि, शब्द
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—विकारीशब्द, संज्ञा, प्रतिपादक
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—उपाधि, विशेषण
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—नाम, केवल नाम
शब्दः —पुं॰—-—शब्द् + घञ्—शाब्दिक प्रामाणिकता
शब्दातीत —वि॰—शब्द-अतीत—-—शब्दों की शक्ति से परे, अनिर्वचनीय
शब्दाधिष्ठानम् —नपुं॰—शब्द-अधिष्ठानम्—-—कान
शब्दाध्याहारः —पुं॰—शब्द-अध्याहारः—-—(शब्दन्यूनता को पूरा करने के लिए) शब्दपूर्ति
शब्दानुशासनम् —नपुं॰—शब्द-अनुशासनम्—-—शब्दों का शास्त्र अर्थात् व्याकरण
शब्दार्थः —पुं॰—शब्द-अर्थः—-—शब्द के अर्थ
शब्दार्थौ —पुं॰द्वि॰ व॰—शब्द-अर्थौ—-—शब्द और उसका अर्थ
शब्दालङ्कारः —पुं॰—शब्द-अलङ्कारः—-—वह अलङ्कार जो अपने शब्द सौन्दर्य पर निर्भर करता है, तथा जब उसी अर्थ को प्रकट करने वाला दूसरा शब्द रख दिया जाता है तो उसका सौन्दर्य लुप्त हो जाता है )
शब्दाख्येय —वि॰—शब्द-आख्येय—-—शब्दों में भेजा जाने वाला समाचार
शब्दाख्येयम् —नपुं॰—शब्द- आख्येयम्—-—मौखिक या शाब्दिक सन्देश
शब्दाडम्बरः —पुं॰—शब्द-आडम्बरः—-—वाग्जाल, वाक्प्रपंच, शब्दाधिक्य, अतिशयोक्तिपूर्ण शब्द
शब्दादि —वि॰—शब्द-आदि—-—`शब्द’ से आरम्भ होने वाले ( ज्ञान के विषय )
शब्दकोशः —पुं॰—शब्द-कोशः—-—अभिधान, शब्दसंग्रह
शब्दगत —वि॰—शब्द-गत—-—शब्द के अन्दर रहने वाला
शब्दग्रहः —पुं॰—शब्द-ग्रहः—-—शब्द पकड़ना
शब्दग्रहः —पुं॰—शब्द-ग्रहः—-—कान
शब्दचातुर्यम् —नपुं॰—शब्द-चातुर्यम्—-—शैली की निपुणता, वाक्पटुता
शब्दचित्रम् —नपुं॰—शब्द-चित्रम्—-—कविता की अन्तिम श्रेणी के दो उपभेदों में से एक (अवर या अधम)
शब्दचोरः —पुं॰—शब्द-चोरः—-—`शब्दचोर’ साहित्यचोर
शब्दतन्मात्रम् —नपुं॰—शब्द-तन्मात्रम्—-—ध्वनि का सूक्ष्म तत्त्व
शब्दपतिः —पुं॰—शब्द-पतिः—-—नाममात्र स्वामी, नाम का प्रभु
शब्दपातिन् —वि॰—शब्द-पातिन्—-—शब्द सुनकर ही अदृश्य निशाना लगाने वाला, शब्दवेधी, निशाना लगाने वाला
शब्दप्रमाणम् —नपुं॰—शब्द-प्रमाणम्—-—शाब्दिक या मौखिक प्रमाण
शब्दबोधः —पुं॰—शब्द-बोधः—-—मौखिक साक्ष्य से प्राप्त ज्ञान
शब्दब्रह्मन् —नपुं॰—शब्द-ब्रह्मन्—-—वेद
शब्दब्रह्मन् —नपुं॰—शब्द-ब्रह्मन्—-—शब्दों में निहित आध्यात्मिक ज्ञान, आत्मा या परमात्मसम्बन्धी ज्ञान
शब्दब्रह्मन् —नपुं॰—शब्द-ब्रह्मन्—-—शब्द का गुण, ’स्फोट’
शब्दभेदिन् —वि॰—शब्द-भेदिन्—-—शब्दवेधी निशान लगाने वाला
शब्दभेदिन् —पुं॰—शब्द-भेदिन्—-—अर्जुन का विशेषण
शब्दभेदिन् —पुं॰—शब्द-भेदिन्—-—गुदा
शब्दभेदिन् —पुं॰—शब्द-भेदिन्—-—एक प्रकार का बाण
शब्दयोनिः —स्त्री॰—शब्द-योनिः—-— धातु, मूल शब्द
शब्दविद्या —स्त्री॰—शब्द-विद्या—-—शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण
शब्दशासनम् —नपुं॰—शब्द-शासनम्—-—शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण
शब्दशास्त्रम —नपुं॰—शब्द-शास्त्रम—-—शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण
शब्दविरोधः —पुं॰—शब्द-विरोधः—-—(शास्त्र में) शब्दों का विरोध
शब्दविशेषः —पुं॰—शब्द-विशेषः—-—ध्वनि का एक भेद
शब्दवृत्तिः —स्त्री॰—शब्द-वृत्तिः—-—साहित्य शास्त्र में शब्द का प्रयोग
शब्दवेधिन् —वि॰—शब्द-वेधिन्—-—ध्वनि सुनकर ही शब्दवेधी निशाना लगाने वाला
शब्दवेधिन् —पुं॰—शब्द-वेधिन्—-—अर्जुन का विशेषण
शब्दवेधिन् —पुं॰—शब्द-वेधिन्—-—एक प्रकार का बाण
शब्दशक्तिः —स्त्री॰—शब्द-शक्तिः—-—शब्द की अभिव्यञ्जक शक्ति, शब्द की सार्थकता
शब्दशुद्धिः —स्त्री॰—शब्द-शुद्धिः—-—शब्दों की पवित्रता
शब्दशुद्धिः —स्त्री॰—शब्द-शुद्धिः—-—शब्दों का शुद्ध प्रयोग
शब्दश्लेषः —पुं॰—शब्द-श्लेषः—-—शब्दों में अनेकार्थता, द्व्यर्थकता
शब्दसंग्रहः —पुं॰—शब्द-संग्रहः—-—शब्दकोश, शब्दावली
शब्दसौष्ठवम् —नपुं॰—शब्द-सौष्ठवम्—-—शब्दों का लालित्य, ललित और प्राञ्जल शैली
शब्दसौकर्यम् —नपुं॰—शब्द-सौकर्यम्—-—अभिव्यक्ति की सरलता
शब्दन —वि॰—-—शब्द + ल्युट—शब्द करने वाला, ध्वननशील
शब्दनम् —नपुं॰—-—-—ध्वनन, कोलाहल करना, शब्द करना
शब्दनम् —नपुं॰—-—-—आवाज, कोलाहल
शब्दनम् —नपुं॰—-—-—पुकारना, बुलाना
शब्दनम् —नपुं॰—-—-—नाम लेना
शब्दायते —नामधातु आ॰—-—-—कोलाहल करना, शोर करना
शब्दायते —नामधातु आ॰—-—-—क्रन्दन करना, दहाड़ना, चिल्लाना, चीं चीं करना
शब्दायते —नामधातु आ॰—-—-—बुलाना, पुकारना
शब्दित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शब्द + क्त—ध्वनित, आवाज निकाली गई ( वाद्ययंत्रादिक) बजाया गया
शब्दित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शब्द + क्त—कहा गया, उच्चारण किया गया
शब्दित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शब्द + क्त—बुलाया गया, पुकारा गया
शब्दित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शब्द + क्त—नाम रक्खा गया, अभिहित
शम् —अव्य॰—-—शम् + क्विप—कल्याण, आनन्द, समृद्धि, स्वास्थ्य को द्योतन करने वाला अव्यय, आशीर्वाद या मंगल कामना प्रकट करने के लिए प्रयुक्त
शन्ताति —वि॰—शम्-ताति—-—आनन्द प्रदान करने वाला, मंगलमय, शुभ
शम्पाकः —पुं॰—शम्-पाकः—-—लाख, महावर, लाल रंग
शम्पाकः —पुं॰—शम्-पाकः—-—पकाना, परिपक्व करना
शम् —दिवा॰ पर॰ <शाम्यन्ति>, < शान्त>—-—-—शान्त होना, चुप होना, संतुष्ट होना, प्रसन्न होना
शम् —दिवा॰ पर॰ <शाम्यन्ति>, < शान्त>—-—-—थमना, ठहरना, समाप्त होना
शम् —दिवा॰ पर॰ <शाम्यन्ति>, < शान्त>—-—-—शांत होना, बुझना
शम् —दिवा॰ पर॰ <शाम्यन्ति>, < शान्त>—-—-—काम तमाम करना, नष्ट करना, मार डालना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—प्रसन्न करना, उपशमन करना, शान्त करना, धीरज देना, सांत्वना देना, ढाढस बंधाना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—अन्त करना, रोकना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—हटाना, परे करना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—दमन करना, पालतू बनाना, हराना, छीनना,परास्त करना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—मार डालना, नष्ट करना, वध करना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—शान्त करना, बुझाना
शम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰ <शमयति>, <शमयते>—-—-—त्याग देना, रुकना, थमना
उपशम् —दिवा॰ पर॰—उप-शम्—-—शान्त करना
उपशम् —दिवा॰ पर॰—उप-शम्—-—थमना, ठहरना, बुझाना
उपशम् —दिवा॰ पर॰—उप-शम्—-—हट जाना, बोलना बन्द होना
उपशम् —दिवा॰ पर॰—उप-शम्—-—परे रहना, बुझ जाना
उपशम् —दिवा॰ पर॰—उप-शम्—-—मुर्झाना, कुम्हलाना
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—सांत्वना देना, प्रसन्न करना, शान्त करना
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—दूर करना, बुझाना, शीतल करना, दबा देना
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—हटाना, अन्त करना
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—जीतना, परास्त करना, वशीभूत करना
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—प्रतिष्ठित होना, समंजन करना, स्वस्थचित
उपशम् —दिवा॰उभ॰, प्रेर॰—उप-शम्—-—होना
संशम् —दिवा॰ पर॰—सम्-शम्—-—शान्त करना
संशम् —दिवा॰ पर॰—सम्-शम्—-—निराकृत होना, बुझना, लुप्त होना
संशम् —दिवा॰ पर॰—सम्-शम्—-—हट जाना
शम् —चुरा॰ उभ॰ <शामयति>, <शामयते>—-—-—देखना, निगाह डालना, निरीक्षण करना
शम् —चुरा॰ उभ॰ <शामयति>, <शामयते>—-—-—बतलाना, प्रदर्शन करना
निशम् —चुरा॰ उभ॰—नि-शम्—-—देखना, अवलोकन करना
निशम् —चुरा॰ उभ॰—नि-शम्—-—सुनना, कान देना
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—मूकता, शान्ति, धैर्य
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—विश्राम, ठहराव, आराम, निवृत्ति
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—वासनाओं पर प्रतिबन्ध या अभाव, मानसिक शान्ति, विरक्ति
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—निराकरण, लघूकरण, उन्नयन, सन्तोषीकरण (शोक, प्यास, भूख आदि का) प्रशमन
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—शान्ति
शमः —पुं॰—-—शम् + घञ्—(संसार की समस्त भ्रान्तियों व आसक्तियों से) मोक्ष
शमान्तकः —पुं॰—शम-अन्तकः—-—कामदेव (मानसिक शान्ति को नष्ट करने वाला)
शमपर —वि॰—शम-पर—-—शान्त, मूक, बिषयविरागी
शमथः —पुं॰—-—शम् + अथच्—शान्ति, स्थिरता, विशेषतः मानसिक शान्ति, आवेशाभाव
शमथः —पुं॰—-—शम् + अथच्—परामर्शदाता, मन्त्री
शमन —वि॰—-—शम् + णिच् + ल्युट्—शमन करने वाला, दमन करने वाला, वशीभूत करने वाला आदि
शमनम् —नपुं॰—-—-—प्रसन्न करना, निराकरण करना, ढाढस बंधाना, जीतना, उन्नयन करना
शमनम् —नपुं॰—-—-—स्थैर्य, शान्ति
शमनम् —नपुं॰—-—-—अन्त, ठहराव, समाप्ति, विनाश
शमनम् —नपुं॰—-—-—चोट पहुँचाना, घायल करना
शमनम् —नपुं॰—-—-—यज्ञ के लिए पशुवध करना, पशुमेध
शमनम् —नपुं॰—-—-—निगल जाना, चबाना
शमनः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का हरिण, बारहसिंगा
शमनः —पुं॰—-—-—मृत्यु का देवता, यम
शमनस्वभू —स्त्री॰—शमन-स्वभू—-—’यमस्वसा’ यमुना नदी का विशेषण
शमनी —स्त्री॰—-—शमन + ङीप्—रात
शमनीसदः —पुं॰—शमनी-सदः—-—राक्षस, पिशाच, भूत-प्रेत
शमनीषदः —पुं॰—शमनी-षदः—-—राक्षस, पिशाच, भूत-प्रेत
शमलम् —नपुं॰—-—शम् + कलच्—मल, लीद, विष्ठा
शमलम् —नपुं॰—-—-—अपवित्रता, गाद, तलौंछ
शमलम् —नपुं॰—-—-—पाप, नैतिक मलिनता
शमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + णिच् + क्त—प्रसन्न किया गया, निराकृत, ढाढस बंधाया गया, शान्त
शमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + णिच् + क्त—धीमा किया गया, चिकित्सा की गई, भारविमुक्त किया गया
शमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + णिच् + क्त—विश्राम दिया गया
शमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शम् + णिच् + क्त—शान्त, सौम्य, परिमित किया गया, मृदु किया गया
शमिन् —वि॰—-—शम् + इनि— सौम्य, शान्त, प्रशान्त
शमिन् —वि॰—-—शम् + इनि—जिसने अपने आवेशों का दमन कर लिया ह
शमी —स्त्री॰—-—शम् + इन्—एक वृक्ष (कहा जाता है कि इसमें आग रहती है)
शमी —स्त्री॰—-—शम् + इन्—फली, छीमी, सेम
शमि —स्त्री॰—-—शम् + ङीप् —एक वृक्ष (कहा जाता है कि इसमें आग रहती है)
शमि —स्त्री॰—-—शम् + ङीप् —फली, छीमी, सेम
शमीगर्भः —पुं॰—शमी-गर्भः—-—अग्नि का विशेषण
शमीगर्भः —पुं॰—शमी-गर्भः—-—ब्राह्मण, अग्निहोत्री ब्राह्मण
शमीधान्यम् —नपुं॰—शमी-धान्यम्—-—फलियों में उत्पन्न या दाल आदि, द्विदलीय अन्न
शम्पा —स्त्री॰—-—शम् + पा + क—बिजली
शम्ब् —भ्वा॰ पर॰ <शम्बति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
शम्ब् —चुरा॰ पर॰ < शम्बयति>—-—-—संचय करना, ढेर लगाना
शम्ब —वि॰—-—शम्ब् + अच्—प्रसन्न, भाग्यशाली
शम्ब —वि॰—-—शम्ब् + अच्—बेचारा, अभागा
शम्व —वि॰—-—शम्ब् + अच्—प्रसन्न, भाग्यशाली
शम्व —वि॰—-—शम्ब् + अच्—बेचारा, अभागा
शम्बः —पुं॰—-—-—इन्द्र का वज्र
शम्बः —पुं॰—-—-—मूसली का लोहे का बना सिर
शम्बः —पुं॰—-—-—लोहे की जञ्जीर जो कमर के चारों ओर पहनी जाय
शम्बः —पुं॰—-—-—नियमित रूप से हल चलाना
शम्बः —पुं॰—-—-—जुते हुए खेत में हल चलाना
शम्बाकृ ——-—-—दोबारा हल चलाना
शम्बरः —पुं॰—-—शम्ब् + अरच्— एक राक्षस का नाम जिसे प्रद्युम्न ने मार गिराया था
शम्बरः —पुं॰—-—शम्ब् + अरच्—पहाड़
शम्बरः —पुं॰—-—शम्ब् + अरच्—एक प्रकार का हरिण
शम्बरः —पुं॰—-—शम्ब् + अरच्—एक प्रकार की मछली
शम्बरः —पुं॰—-—शम्ब् + अरच्—युद्ध
शम्बरम् —नपुं॰—-—-—संस्कार या कोई धार्मिक अनुष्ठान
शम्बरारिः —पुं॰—शम्बर-अरिः—-—प्रद्युम्न या कामदेव के विशेषण
शम्बरसूदनः —पुं॰—शम्बर-सूदनः—-—प्रद्युम्न या कामदेव के विशेषण
शम्बरासुरः —पुं॰—शम्बर-असुरः—-—शंबर नामक राक्षस
शम्बरी —स्त्री॰—-—शम्बर + ङीष्—माया, जादू
शम्बरी —स्त्री॰—-—शम्बर + ङीष्—स्त्री जादूगरनी
शम्बलः —पुं॰—-—शम्ब् + कलच्—तट, किनारा
शम्बलः —पुं॰—-—शम्ब् + कलच्—पाथेय, मार्गव्यय, राहख़र्च
शम्बलः —पुं॰—-—शम्ब् + कलच्—स्पर्धा, ईर्ष्या
शम्बलम् —नपुं॰—-—शम्ब् + कलच्—तट, किनारा
शम्बलम् —नपुं॰—-—शम्ब् + कलच्—पाथेय, मार्गव्यय, राहख़र्च
शम्बलम् —नपुं॰—-—शम्ब् + कलच्—स्पर्धा, ईर्ष्या
शम्बली —स्त्री॰—-—शम्बल + ङीष्—कुटनी
शम्बुः —पुं॰—-—शम्ब् + उण्—द्विकोषीय घोंघा
शम्बुकः —पुं॰—-—शम्बु + कन्—द्विकोषीय घोंघा
शम्बुक्कः —पुं॰—-—शम्बु + कन्—द्विकोषीय घोंघा
शम्बूकः —पुं॰—-—शम्ब् + ऊकः—द्विकोषीय घोंघा
शम्बूकः —पुं॰—-—शम्ब् + ऊकः—शंख
शम्बूकः —पुं॰—-—शम्ब् + ऊकः—घोंघा
शम्बूकः —पुं॰—-—शम्ब् + ऊकः—हाथी की सूंड़ की नोक
शम्बूकः —पुं॰—-—शम्ब् + ऊकः—एक शूद्र (इसे राम ने उसकी जाति के लिए वर्जित साधना का अभ्यास करने के कारण मार डाला था
शम्भः —पुं॰—-—शम् + भ—प्रसन्न मनुष्य
शम्भः —पुं॰—-—शम् + भ—इन्द्र का वज्र
शम्भली —स्त्री॰—-—शम्भल + ङीष्—दूती, कुटनी
शम्भु —वि॰—-—शम् + भू + डु—आनन्द देने वाला, समृद्धि प्रदान करने वाला
शम्भुः —पुं॰—-—-—ऋषि, श्रद्धेय पुरुष
शम्भुः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सिद्ध
शम्भुतनयः —पुं॰—शम्भु-तनयः—-—कार्तिकेय या गणेश के विशेषण
शम्भुनन्दनः —पुं॰—शम्भु-नन्दनः—-—कार्तिकेय या गणेश के विशेषण
शम्भुसुतः —पुं॰—शम्भु-सुतः—-—कार्तिकेय या गणेश के विशेषण
शम्भुप्रिया —स्त्री॰—शम्भु-प्रिया—-—दुर्गा
शम्भुप्रिया —स्त्री॰—शम्भु-प्रिया—-—आमल की
शम्भुवल्लभम् —नपुं॰—शम्भु-वल्लभम्—-—श्वेत कमल
शम्या —स्त्री॰—-—शम् + यत् + टाप्—लकड़ी की छड़ी या थूणी
शम्या —स्त्री॰—-—शम् + यत् + टाप्—डंडा
शम्या —स्त्री॰—-—शम् + यत् + टाप्—जूए की कील, सिलम
शम्या —स्त्री॰—-—शम् + यत् + टाप्—एक प्रकार की झाँझ
शम्या —स्त्री॰—-—शम् + यत् + टाप्—यज्ञीय पात्र
शय —वि॰—-—शी + अच्—लेटने वाला, सोने वाला
शयः —पुं॰—-—-—बिस्तरा, शय्या
शयः —पुं॰—-—-—साँप विशेषतः अजगर
शयः —पुं॰—-—-—दुर्वचन, कोसना, अभिशाप
शयण्ड —वि॰—-—शी + अण्डन्—निद्रालु, सोने वाला
शयथ —वि॰—-—शी + अथच्—निद्रालु, सोया हुआ
शयथः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप, अजगर
शयनम् —नपुं॰—-—शी + ल्युट्—सोना, निद्रा, लेटना
शयनम् —नपुं॰—-—शी + ल्युट्—बिस्तरा, शय्या
शयनम् —नपुं॰—-—शी + ल्युट्—मैथुन, संभोग
शयनागारः —पुं॰—शयनम्-अगारः—-—शयनकक्ष, सोने का कमरा
शयनागारः —पुं॰—शयनम्-आगारः—-—शयनकक्ष, सोने का कमरा
शयनागारम् —नपुं॰—शयनम्-अगारम्—-—शयनकक्ष, सोने का कमरा
शयनागारम् —नपुं॰—शयनम्-आगारम्—-—शयनकक्ष, सोने का कमरा
शयनगृहम् —नपुं॰—शयनम्-गृहम्—-—शयनकक्ष, सोने का कमरा
शयनैकादशी —स्त्री॰—शयनम्-एकादशी—-—आषाढ़ शुक्ला एकादशी (इस दिन विष्णु भगवान् चार मास तक विश्राम के लिए लेट जाते हैं )
शयनसखी —स्त्री॰—शयनम्-सखी—-—एक शय्या पर साथ सोने वाली सहेली
शयनस्थानम् —नपुं॰—शयनम्-स्थानम्—-—सोने का कमरा, शयनकक्ष
शयनीयम् —नपुं॰—-—शी + अनीयर्— बिस्तरा, शय्या
शयनीयकम् —नपुं॰—-—-— बिस्तरा, शय्या
शयानकः —पुं॰—-—शी + शानच् + कन्—गिरगिट
शयानकः —पुं॰—-—शी + शानच् + कन्—एक साँप, अजगर
शयालु —वि॰—-—शी + आलुच्—निद्रालु, तन्द्रालु, आलसी
शयालुः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप, अजगर
शयित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शी कर्तरि क्त—सोने वाला, विश्रान्त, सुप्त
शयित —भू॰ क॰ कृ॰—-—शी कर्तरि क्त—लेटा हुआ
शयुः —पुं॰—-—शी + उ—बड़ा साँप, अजगर
शय्या —स्त्री॰—-—शी आधारे क्यप् + टाप्—बिस्तरा, बिछौना
शय्या —स्त्री॰—-—शी आधारे क्यप् + टाप्—बाँधना, नत्थी करना
शय्याध्यक्षः —पुं॰—शय्या-अध्यक्षः —-—राजा के शयनकक्ष का अधीक्षक
शय्यापाल —वि॰—शय्या-पाल—-—राजा के शयनकक्ष का अधीक्षक
शय्योत्सङ्गः —पुं॰—शय्या-उत्सङ्गः—-—पलंग का एक पार्श्व
शय्यागत —वि॰—शय्या-गत—-—पलंग पर लेटा हुआ
शय्यागत —वि॰—शय्या-गत—-—रोगी
शय्यागृहम् —नपुं॰—शय्या-गृहम्—-—शयन-कक्ष
शरः —पुं॰—-—शृ + अच्— बाण, तीर
शरः —पुं॰—-—शृ + अच्—एक प्रकार का सफेद सरकंडा या घास
शरः —पुं॰—-—शृ + अच्—कुछ जमे हुए दूध की मलाई, मलाई
शरः —पुं॰—-—शृ + अच्—चोट, क्षति, घाव
शरः —पुं॰—-—शृ + अच्—पाँच की संख्या
शराग्र्यः —पुं॰—शर-अग्र्यः—-—बढ़िया तीर
शराभ्यासः —पुं॰—शर-अभ्यासः—-—तीरंदाजी
शरासनम् —नपुं॰—शर-असनम्—-—धनुष, कमान
शरास्यम् —नपुं॰—शर-आस्यम्—-—धनुष, कमान
शराक्षेपः —पुं॰—शर-आक्षेपः—-—तीरों की वर्षा
शरारोप —पुं॰—शर-आरोप—-—धनुष
शरावापः —पुं॰—शर-आवापः—-—धनुष
शराश्रय —वि॰—शर-आश्रय—-—तरकस
शराहत —वि॰—शर-आहत—-—जिसके तीर लगा हो
शरेषिका —स्त्री॰—शर-ईषिका—-—बाण
शरेष्टः —पुं॰—शर-इष्टः—-—आम का वृक्ष
शरौघः —पुं॰—शर-ओघः—-—बाणों का समूह, बाणवर्षा
शरकाण्डः —पुं॰—शर-काण्डः—-—नरकुल की डंडी
शरकाण्डः —पुं॰—शर-काण्डः—-—बाण की लकड़ी
शराघातः —पुं॰—शर-घातः—-—बाण से लक्ष्यवेध करना, तीरंदाजी
शरजम् —नपुं॰—शर-जम्—-—ताजा मक्खन
शरजन्मन् —पुं॰—शर-जन्मन्—-—कार्तिकेय का विशेषण
शरजालम् —नपुं॰—शर-जालम्—-—बाणों का समूह या ढेर
शरपातः —पुं॰—शर-पातः—-—बाण का छोड़ना
शरस्थानम् —नपुं॰—शर-स्थानम्—-—बाण का निशाना
शरपुङ्खः —पुं॰—शर-पुङ्खः —-—बाण का पंखदार किनारा
शरपुङ्खा —स्त्री॰—शर- पुङ्खा—-—बाण का पंखदार किनारा
शरफलम् —नपुं॰—शर-फलम्—-—बाण का फल
शरभङ्गः —पुं॰—शर-भङ्गः—-—एक ऋषि जिसके दर्शन राम ने दण्डकारण्य में किये थे
शरभूः —पुं॰—शर-भूः—-—कार्तिकेय
शरमल्लः —पुं॰—शर-मल्लः—-—धनुर्धर, तीरंदाज़
शरवनम् —नपुं॰—शर-वनम्—-—नरकुलों का झुरमुट
शरवणम् —नपुं॰—शर-वणम्—-—नरकुलों का झुरमुट
शरोद्भवः —पुं॰—शर-उद्भवः—-—कार्तिकेय के विशेषण
शरभवः —पुं॰—शर-भवः—-—कार्तिकेय के विशेषण
शरवर्षः —पुं॰—शर-वर्षः—-—बाणों की वर्षा या बौछार
शरवाणिः —पुं॰—शर-वाणिः—-—बाण का सिरा
शरवाणिः —पुं॰—शर-वाणिः—-—धनुर्धर
शरवाणिः —पुं॰—शर-वाणिः—-—बाणनिर्माता
शरवाणिः —पुं॰—शर-वाणिः—-—पदाति
शरवृष्टिः —स्त्री॰—शर-वृष्टिः—-—बाणों की बौछार
शरव्रातः —पुं॰—शर-व्रातः—-—बाणों का समूह
शरसन्धानम् —वि॰—शर-सन्धानम्—-—बाण का निशाना लगाना
शरसम्बाध —वि॰—शर-सम्बाध—-—बाणों से ढका हुआ
शरस्तम्बः —पुं॰—शर-स्तम्बः—-—नरकुलों का गुच्छा
शरटः —पुं॰—-—शॄ + अटन्—गिरगिट
शरटः —पुं॰—-—शॄ + अटन्—कुसुम्भ
शरणम् —नपुं॰—-—शॄ + ल्युट्—प्ररक्षा, सहायता, साहाय्य, प्रतिरक्षा
शरणम् —नपुं॰—-—शॄ + ल्युट्—आसरा, आश्रयस्थान
शरणम् —नपुं॰—-—शॄ + ल्युट्—ओट, सहारा, विश्रामस्थल (व्यक्तियों के लिए भी प्रयुक्त)
शरणं गम् ——-—-—शरण में जाना, आश्रय लेना, सहारा लेना
शरणम् ई ——-—-—शरण में जाना, आश्रय लेना, सहारा लेना
शरणम् या ——-—-—शरण में जाना, आश्रय लेना, सहारा लेना
शरणम् —नपुं॰—-—-—देवालय, शौचागार, कक्ष
शरणम् —नपुं॰—-—-—आवास, घर, निवासस्थल
शरणम् —नपुं॰—-—-—भट, बिल, माँद
शरणम् —नपुं॰—-—-—क्षति, हत्या
शरणार्थिन् —वि॰—शरणम्-आर्थिन्—-—शरण या रक्षा ढूँढने वाला
शरणैषिन् —वि॰—शरणम्-एषिन्—-—शरण या रक्षा ढूँढने वाला
शरणागत —वि॰—शरणम्-आगत—-—प्ररक्षा या शरण में गया हुआ, आश्रय लेने वाला, आश्रयार्थी
शरणापन्न —वि॰—शरणम्-आपन्न—-—प्ररक्षा या शरण में गया हुआ, आश्रय लेने वाला, आश्रयार्थी
शरणोन्मुख —वि॰—शरणम्-उन्मुख—-—शरण या प्ररक्षा खोजने वाला
शरण्डः —पुं॰—-—शॄ + अंडच्—पक्षी
शरण्डः —पुं॰—-—शॄ + अंडच्—गिरगिट
शरण्डः —पुं॰—-—शॄ + अंडच्—ठग, धूर्त
शरण्डः —पुं॰—-—शॄ + अंडच्—लम्पट, स्वेच्छाचारी
शरण्डः —पुं॰—-—शॄ + अंडच्—एक प्रकार का आभूषण
शरण्य —वि॰—-—शरणे साधुः यत्—रक्षा करने के योग्य, शरण देने वाला, प्ररक्षक, आश्रय
शरण्य —वि॰—-—शरणे साधुः यत्—जिसे रक्षा की आवश्यकता है, दीन, दयनीय,
शरण्यः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
शरण्यम् —नपुं॰—-—-—आश्रयस्थल, शरणगृह
शरण्यः —पुं॰—-—-—प्ररक्षक, जो शरणागत की रक्षा करता है
शरण्यम् —नपुं॰—-—-—प्ररक्षा, प्रतिरक्षा
शरण्यः —पुं॰—-—-—क्षति, चोट
शरण्युः —पुं॰—-—शॄ् + अन्यु—प्ररक्षक
शरण्युः —पुं॰—-—शॄ् + अन्यु—बादल
शरण्युः —पुं॰—-—शॄ् + अन्यु—हवा
शरद् —स्त्री॰—-—शॄ + अदि—पतझड़, शरदृतु (आश्विन तथा कार्तिक मास में होने वाली ऋतु)
शरद् —स्त्री॰—-—शॄ + अदि—वर्ष
शरदन्तः —पुं॰—शरद्-अन्तः—-—शरद् का अन्त, सर्दी का मौसम
शरदम्बुधरः —पुं॰—शरद्- अम्बुधरः—-—शरद ऋतु का बादल
शरदुदाशयः —पुं॰—शरद्- उदाशयः—-—शरत्कालीन सरोवर
शरत्कामिन् —पुं॰—शरद्-कामिन् —-— कुत्ता
शरत्कालः —पुं॰—शरद्-कालः—-—शरत् काल, पतझड़ का मौसम
शरद्घनः —पुं॰—शरद्-घनः—-—शरद ऋतु का बादल
शरन्मेघः —पुं॰—शरद्-मेघः—-—शरद ऋतु का बादल
शरच्चन्द्रः —पुं॰—शरद्-चन्द्रः —-—शरत्कालीन चन्द्रमा
शरत्त्रियामा —स्त्री॰—शरद्-त्रियामा—-—शरत्कालीन रात्रि
शरत्पद्मः —पुं॰—शरद्-पद्मः—-—श्वेत कमल
शरत्पद्मम् —नपु॰—शरद्-पद्मम्—-—श्वेत कमल
शरत्पर्वन् —नपु॰—शरद्-पर्वन्—-—कोजागर नाम का उत्सव
शरन्मुखम् —नपु॰—शरद्-मुखम्—-—शरद ऋतु का आरम्भ
शरदा —स्त्री॰—-—शरद् + टाप्—पतझड़
शरदा —स्त्री॰—-—शरद् + टाप्—वर्ष
शरदिज —वि॰—-—शरदि जायते - जन् + ड, सप्तम्या अलुक्—पतझड़ या शरद ऋतु से सम्बन्ध रखने वाला
शरभः —पुं॰—-—शॄ + अभच्—हाथी का बच्चा
शरभः —पुं॰—-—शॄ + अभच्—आख्यायिकाओं में वर्णित आठ पैर का जन्तु जो सिंह से बलबान् होता है
शरभः —पुं॰—-—शॄ + अभच्—ऊँट
शरभः —पुं॰—-—शॄ + अभच्—टिड्डा
शरभः —पुं॰—-—शॄ + अभच्—टिडडी
शरयुः —स्त्री॰—-—शॄ + अयुः—एक नदी, सरयू
शरयुः —पुं॰—-—शॄ + अयुः—वायु, हवा
शरयुः —स्त्री॰—-—शॄ + अयुः—एक नदी का नाम जिसके तट पर अयोध्यानगरी स्थित है
शरयूः —स्त्री॰—-—शॄ + अयुः, पक्षे ऊङ्—एक नदी का नाम जिसके तट पर अयोध्यानगरी स्थित है
शरयूः —स्त्री॰—-—शॄ + अयुः, पक्षे ऊङ्—एक नदी, सरयू
शरल —वि॰—-—शॄ + अलच्—सीधा, अवक्र
शरल —वि॰—-—शॄ + अलच्—ईमानदार, खरा, निष्कपट, निश्छल
शरल —वि॰—-—शॄ + अलच्—सीधासादा, भोलाभाला, स्वाभाविक
शरलः —पुं॰—-—शॄ + अलच्—चीड़ का वृक्ष
शरलकम् —नपुं॰—-—शरल + कन्—पानी
शरव्यम् —नपुं॰—-—शरवे शरशिक्षायै हितं-शरु + यत्—(तीर मारने का) निशाना, लक्ष्य
शराटिः —पुं॰—-—शर + अट् + इन्—एक प्रकार का पक्षी
शरातिः —पुं॰—-—शर + अत् + इन्—एक प्रकार का पक्षी
शरारु —वि॰—-—शृ + आरुं—अहितकर, अनिष्टकर, क्षतिकारक
शरावः —पुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—कम गहरा बर्तन, थाली, मिट्टी का तौला, कतोरा, तस्तरी
शरावः —पुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—ढकना, ढक्कन
शरावः —पुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—दो कुडव के बराबर नाप
शरावम् —नपुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—कम गहरा बर्तन, थाली, मिट्टी का तौला, कतोरा, तस्तरी
शरावम् —नपुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—ढकना, ढक्कन
शरावम् —नपुं॰—-—शरं दध्यादिसारभवति अव् + अण्—दो कुडव के बराबर नाप
शरावती —स्त्री॰—-—शर + मतुप् + ङीप्, दीर्घ वकारस्य—वह नगर जिसका शासक राम ने लव को बनाया था
शरिमन् —पुं॰—-—शृ्णाति यौवनम् शृ + इमन्—पैदा करना, जन्म देना
शरीरम् —नपुं॰—-—शृ + ईरन्—(जड चेतन पदार्थों की) काया, देह
शरीरम् —नपुं॰—-—शृ + ईरन्—संघटक तत्त्व
शरीरम् —नपुं॰—-—शृ + ईरन्—दैहिक शक्ति
शरीरम् —नपुं॰—-—शृ + ईरन्—मृत शरीर, शव
शरीरान्तरम् —नपुं॰—शरीरम्-अन्तरम्—-—शरीर का आन्तरिक भाग
शरीरान्तरम् —नपुं॰—शरीरम्-अन्तरम्—-—दूसरा शरीर
शरीरावरणम् —नपुं॰—शरीरम्-आवरणम्—-—खाल, चमड़ी
शरीरकर्तृ —पुं॰—शरीरम्-कर्तृ—-—पिता
शरीरकर्षणम् —नपुं॰—शरीरम्-कर्षणम्—-—शरीर की कृशता
शरीरजः —पुं॰—शरीरम्-जः—-—रोग
शरीरजः —पुं॰—शरीरम्-जः—-—काम, प्रणयोन्माद
शरीरजः —पुं॰—शरीरम्-जः—-—कामदेव
शरीरजः —पुं॰—शरीरम्-जः—-—पुत्र, सन्तान
शरीरतुल्य —वि॰—शरीरम्-तुल्य—-—समान अर्थात् उतना प्रिय जितना अपना शरीर
शरीरदण्डः —पुं॰—शरीरम्-दण्डः—-—शारीरिक दंड
शरीरदण्डः —पुं॰—शरीरम्-दण्डः—-—कार्य-साधना
शरीरधृक् —वि॰—शरीरम्-धृक्—-—शरीरधारी
शरीरपतनम् —नपुं॰—शरीरम्-पतनम् पात्—-—मृत्यु, मौत
शरीरपातः —पुं॰—शरीरम्-पातः—-—मृत्यु, मौत
शरीरपाकः —पुं॰—शरीरम्-पाकः—-—(शरीर की) कृशता
शरीरबद्ध —वि॰—शरीरम्-बद्ध—-—शरीर से युक्त, शरीरधारी, शरीरी
शरीरबन्धः —पुं॰—शरीर-बन्धः—-—शारीरिक ढांचा
शरीरबन्धः —पुं॰—शरीर-बन्धः—-—शरीर से युक्त होना अर्थात् शरीरधारी प्राणी का जन्म
शरीरबन्धकः —वि॰—शरीरम्-बन्धकः—-—सशरीर प्रतिभू
शरीरभाज् —वि॰—शरीरम्-भाज्—-—शरीरधारी, शरीरी
शरीरभाज् —पुं॰—शरीरम्-भाज्—-—जन्तु, शरीरधारी प्राणी
शरीरभेदः —पुं॰—शरीरम्-भेदः—-—(आत्मा से) शरीर का वियोग, मृत्यु
शरीरयष्टिः —स्त्री॰—शरीरम्-यष्टिः—-—पतला शरीर, सुकुमार, दुबला-पतला
शरीरयात्रा —स्त्री॰—शरीरम्-यात्रा—-—आजीविका
शरीरविमोक्षणम् —नपुं॰—शरीरम्-विमोक्षणम्—-—आत्मा का शरीर से छुटकारा, मुक्ति
शरीरवृत्तिः —स्त्री॰—शरीरम्-वृत्तिः—-—शरीर का पालन पोषण
शरीरवैकल्यम् —नपुं॰—शरीरम्-वैकल्यम्—-—शारीरिक रोग, बीमारी, व्याधि
शरीरशुश्रूषा —स्त्री॰—शरीरम्-शुश्रूषा—-—व्यक्तिगत सेवा
शरीरसंस्कारः —पुं॰—शरीरम्-संस्कारः—-—व्यक्ति की सजावट
शरीरसंस्कारः —पुं॰—शरीरम्-संस्कारः—-—नाना प्रकार के शुद्धिसंस्कारों के अनुष्ठान द्वारा शरीर को निर्मल करना
शरीरसंपत्तिः —स्त्री॰—शरीरम्-संपत्तिः—-—शरीर की समृद्धि, (अच्छा) स्वास्थ्य
शरीरपादः —पुं॰—शरीरम्-पादः—-—शरीर की दुर्बलता, कृशता
शरीरस्थितिः —स्त्री॰—शरीरम्-स्थितिः—-—शरीर का पालन पोषण
शरीरस्थितिः —स्त्री॰—शरीरम्-स्थितिः—-—भोजन करना, खाना
शरीरकम् —नपुं॰—-—शरीर + कन्—देह
शरीरकम् —नपुं॰—-—शरीर + कन्—छोटा शरीर
शरीरिन् —वि॰—-—शरीर + इनि—शरीरधारी, शरीरयुक्त, शरीर
शरीरिन् —वि॰—-—शरीर + इनि—जीवित
शरीरिन् —पुं॰—-—-—कोई भी शरीरधारी वस्तु (चाहे जड़ हो चाहे चेतन)
शरीरिन् —पुं॰—-—-—सजीव प्राणी
शरीरिन् —पुं॰—-—-—मनुष्य आत्मा (शरीर से युक्त)
शर्करजा —स्त्री॰—-—शृ + करन् + जन् + ड + टाप्—कंदयुक्त चीनी, मिश्री
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—कंदयुक्त चीनी
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—कंकड़ी, रोड़ी, बजरी
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—कंकरीला रूप
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—बालू से युक्त भूमि, रेत
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—टुकड़ा, खण्ड
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—ठींकरा
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—कोई भी कड़ा कण
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ + करन + टाप्—पथरी का रोग
शर्करोदकम् —नपुं॰—शर्करा-उदकम्—-—खांडमिश्रित जल, चीनी डाल कर मीठा किया हुआ पानी
शर्करासप्तमी —स्त्री॰—शर्करा-सप्तमी—-—वैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन मनाया जाने वाला अनुष्ठान
शर्करिक —वि॰—-—शर्करा + ठक्—कंकरीला, बजरीदार, किरकिरा
शर्करिल —वि॰—-—शर्करा + इलच्—कंकरीला, बजरीदार, किरकिरा
शर्करी —स्त्री॰—-—-—करघनी, मेखला
शर्धः —पुं॰—-—शृध् + घञ्—अपानवायु का त्याग, अफारा
शर्धः —पुं॰—-—शृध् + घञ्—दल, समूह
शर्धः —पुं॰—-—शृध् + घञ्—सामर्थ्य, शक्ति
शर्धजह —वि॰—-—शर्ध + हा + खश्, मुम्—अफारा उत्पन्न करने वाला
शर्धजहः —पुं॰—-—शर्ध + हा + खश्, मुम्—उड़द या माष की दाल
शर्धनम् —नपुं॰—-—शृध् + ल्युट्—अपानवायु् को छोडने की क्रिया
शर्ब् —भ्वा॰ पर॰ <शर्बति>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
शर्ब् —भ्वा॰ पर॰ <शर्बति>—-—-—क्षतिग्रस्त करना, मार डालना ।
शर्मन् —पुं॰—-—शृ + मनिन्—ब्राह्मण के नाम के आगे जोड़ी जाने वाली उपाधि यथा विष्णुशर्मन्
शर्मन् —नपुं॰—-—शृ + मनिन्—प्रसन्नता, आनन्द, खुशी
शर्मन् —नपुं॰—-—शृ + मनिन्—आशीर्वाद
शर्मन् —नपुं॰—-—शृ + मनिन्—घर, आधार
शर्मद —वि॰—शर्मन्-द—-—आनन्ददायक
शर्मदः —पुं॰—शर्मन्-दः—-—विष्णु का विशेषण
शर्मरः —पुं॰—-—शर्मन् + रा + क—एक प्रकार का परिधान, वस्त्र
शर्या —स्त्री॰—-—शृ + यत् + टाप्—रात्रि
शर्या —स्त्री॰—-—शृ + यत् + टाप्—अंगुली
शर्व् —भ्वा॰ पर॰ <शर्वति>—-—-—जाना
शर्व् —भ्वा॰ पर॰ <शर्वति>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, मार डालना
शर्वः —पुं॰—-—शृ + व—विष्णु्
शर्वरः —पुं॰—-—शॄ + ष्वरच्— कामदेव
शर्वरम् —नपुं॰—-—-—अन्धकार
शर्वरी —स्त्री॰—-—शॄ + वनिप्, ङीप्, वनोर च—रात
शर्वरी —स्त्री॰—-—शॄ + वनिप्, ङीप्, वनोर च—हल्दी
शर्वरी —स्त्री॰—-—शॄ + वनिप्, ङीप्, वनोर च—स्त्री
शर्वरीशः —पुं॰—शर्वरी-ईशः—-—चन्द्रमा
शर्वाणी —स्त्री॰—-—शर्व + ङीष्, <आनुक्>—शिव की पत्नी पार्वती
शर्शरीक —वि॰—-—शॄ + ईकन्, द्वित्वादि—उपद्रवी, क्रूर
शर्शरीकः —पुं॰—-—-—धूर्त, पाजी, दुर्जन
शल् —भ्वा॰ आ॰< शलते>—-—-—हिलाना, हरकत देना, क्षुब्ध करना
शल् —भ्वा॰ आ॰< शलते>—-—-—काँपना
शल् —भ्वा॰ पर॰ <शलति>—-—-—जाना
शल् —भ्वा॰ पर॰ <शलति>—-—-—तेज़ दौड़ना
शल् —चुरा॰ आ॰ <शालयते>—-—-—प्रशंसा करना
शलः —पुं॰—-—शल् + अच्— साँग, बर्छी
शलः —पुं॰—-—शल् + अच्—भृंगी नाम का शिव का एक गण
शलः —पुं॰—-—शल् + अच्—ब्रह्मा
शलम् —नपुं॰—-—-—साही का कांटा
शलकः —पुं॰—-—शल् + कन्—मक्कड़, मकड़ा
शलङ्गः —पुं॰—-—शल् + अङ्गच्—राजा, प्रभु
शलभः —पुं॰—-—शल् + अभच्—टिड्डा, टिड्डी
शलभः —पुं॰—-—शल् + अभच्—पतंगा
शललम् —नपुं॰—-—शल् + अलच्—साही का काटां
शलली —स्त्री॰—-—-—साही का काटां
शलली —स्त्री॰—-—-—छोटी साही
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—छोटी छड़ी, खूँटी, डण्डा, कील, टुकड़ा, पतला सीखचा
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—पेन्सिल ( आँख में सुर्मा आंजने की) सलाई
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—बाण
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—साँग, ने़जा
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—एक नोकदार शल्योपकरण (घाव की गहराई नापने के लिए )
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—छतरी की तीली
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—(हाथ पैर की अंगुलियों की जड़ की ) हड्डी
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—अंकुर, फुनगी, कोंपल
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—रंग भरने की कूची
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—दाँत साफ करने की कूची, दाँत-कुरेदनी
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—साही
शलाका —स्त्री॰—-—शल् + आकः, टाप्—हाथी दाँत या हड्डी का बना जूआ खेलने का आयताकार (पासा) टुकड़ा
शलाकाधूर्तः —पुं॰—शलाका-धूर्तः—-—उचक्का, ठग
परिशलाकम् —अव्य॰—शलाका-परि—-—जूए में मनहूस पासा पड़ना
शलाटु —वि॰—-—शल् + आटु—अनपका
शलाटुः —पुं॰—-—-—कन्दविशेष
शल्कम् —नपुं॰—-—शल् + कन—मछली का वल्कल या छिलका
शल्कम् —नपुं॰—-—शल् + कन—वल्कल, छाल (वृक्षों की)
शल्कम् —नपुं॰—-—शल् + कन—भाग, अंश, खण्ड
शल्कलम् —नपुं॰—-—शल् + कलच् —मछली का वल्कल या छिलका
शल्कलम् —नपुं॰—-—शल् + कलच् —वल्कल, छाल (वृक्षों की)
शल्कलम् —नपुं॰—-—शल् + कलच् —भाग, अंश, खण्ड
शल्कलिन् —पुं॰—-—शल्कन + इनि—मछली
शल्किन् —पुं॰—-—शल्क + इनि—मछली
शल्भ् —भ्वा॰ आ॰< शल्भते>—-—-—प्रशंसा करना
शल्मलिः —स्त्री॰—-—शल् + मलच् + इन् —रेशमी रूई का वृक्ष, सेमल
शल्मली —स्त्री॰—-—शल् + मलच् + इन् पक्षे ङीप्—रेशमी रूई का वृक्ष, सेमल
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—बर्छी, नेज़ा, सांग
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—बाण, तीर
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—काँटा, खपची
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—मेख, खूंटी, थूणी
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—शरीर में घुसा हुआ कोई पीड़ा कारक काँटा आदि
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—ह्रदयविदारक शोक या किसी तीक्ष्ण पीड़ा का कारण
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—हड्डी
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—कठिनाई, कष्ट
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—पाप, जुर्म
शल्यम् —नपुं॰—-—शल् + यत्—विष
शल्यः —पुं॰—-—-—साही, झाऊ चूहा
शल्यः —पुं॰—-—-—काँटेदार झाड़ी
शल्यः —पुं॰—-—-—शल्यचिकित्सा में खपचियों का उखेड़ना
शल्यः —पुं॰—-—-—बाड़, सीमा
शल्यः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की मछली
शल्यः —पुं॰—-—-—मद्रदेश का राजा, पांडु की द्वितीय पत्नी माद्री का भाई, नकुल और सहदेव का मामा
शल्यारिः —पुं॰—शल्यम्-अरिः—-—युधिष्टिर का विशेषण
शल्याहरणम् —नपुं॰—शल्यम्-आहरणम्—-—कांटा या फांस आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता है
शल्योद्धरणम् —नपुं॰—शल्यम्-उद्धरणम्—-—कांटा या फांस आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता है
शल्योद्धारः —पुं॰—शल्यम्-उद्धारः—-—कांटा या फांस आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता है
शल्यक्रिया —स्त्री॰—शल्यम्-क्रिया—-—कांटा या फांस आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता है
शल्यशास्त्रम् —नपुं॰—शल्यम्-शास्त्रम्—-—कांटा या फांस आदि निकालना, शल्यशास्त्र का वह भाग जो शरीर से असंगत सामग्री को उखाड़ फेंकने से संबंध रखता है
शल्यकण्ठः —पुं॰—शल्यम्-कण्ठः—-—झाऊ चूहा
शल्यलोमन् —नपुं॰—शल्यम-लोमन्—-—साही का काँटा
शल्यहर्तृ —पुं॰—शल्यम्-हर्तृ—-—निरैया, निराने वाला
शल्यकः —पुं॰—-—शल्य + कन्—साँग, नेज़ा, सलाख़
शल्यकः —पुं॰—-—शल्य + कन्—खपची, फांस, कांटा
शल्यकः —पुं॰—-—शल्य + कन्—झाऊ, चूहा, साही
शल्लः —पुं॰—-—शल्ल् + अच्—मेंढक
शल्लम् —पुं॰—-—-—बक्कल, छाल
शल्लकः —पुं॰—-—शल्ल + कन्—वृक्ष, शोण वृक्ष
शल्लकम् —नपुं॰—-—-—बक्कल, छाल
शल्लकी —स्त्री॰—-—शल्लक + ङीष्—साही
शल्लकी —स्त्री॰—-—-—एक वृक्ष विशेष जो हाथि़यों को बहुत प्रिय हैं
शल्लकीद्रवः —पुं॰—शल्लकी-द्रवः—-—धूप, लोबान
शल्वः —पुं॰—-—शल् + वन्—एक देश का नाम
शव् —भ्वा॰ पर॰ <शवति>—-—-—जाना, पहुँचना
शव् —भ्वा॰ पर॰ <शवति>—-—-—बदलना, परिवर्तन करना, रूपान्तर करना
शवः —पुं॰—-—शव् + अच्—लाश, मुर्दा शरीर
शवम् —नपुं॰—-—शव् + अच्—लाश, मुर्दा शरीर
शवाच्छादनम् —नपुं॰—शव-आच्छादनम्—-—मृतक शरीर का आवरण, कफन
शवाश —वि॰—शव- आश—-—मुर्दा खाकर जीने वाला
शवकाम्यः —पुं॰—शव-काम्यः—-—कुत्ता
शवयानम् —नपुं॰—शव-यानम्—-—मुर्दा ढोने की गाड़ी, अरथी, एक प्रकार की पालकी जिसमें मृतक शरीर रख कर श्मशान भूमि में ले जाते हैं
शवरथः —पुं॰—शव-रथः—-—मुर्दा ढोने की गाड़ी, अरथी, एक प्रकार की पालकी जिसमें मृतक शरीर रख कर श्मशान भूमि में ले जाते हैं
शवसानः —पुं॰—-—शव + असानच्—यात्री
शवसानः —पुं॰—-—शव + असानच्—मार्ग, सड़क
शवसानम् —नपुं॰—-—-—क़बरिस्तान, शवाधिस्थान
शशः —पुं॰—-—शश् + अच्—ख़रगोश, खरहा
शशः —पुं॰—-—शश् + अच्—चन्द्रमा का कलंक (जो खरगोश की आकृति का समझा जाता है)
शशः —पुं॰—-—शश् + अच्—कामशास्त्र में वर्णित चार प्रकार के पुरुषों में से एक भेद
शशः —पुं॰—-—शश् + अच्—लोध्र वृक्ष
शशः —पुं॰—-—शश् + अच्—बोल नामक खुशबूदार गोंद
शशाङ्कः —पुं॰—शश-अङ्कः—-—चाँद
शशाङ्कः —पुं॰—शश-अङ्कः—-—कपूर
शशार्धमुख —वि॰—शश-अर्धमुख—-—अर्धचन्द्राकार सिर वाला (बाण आदि)
शशमूर्तिः —पुं॰—शश-मूर्तिः—-—चन्द्रमा का विशेषण
शशलेखा —स्त्री॰—शश-लेखा—-—चाँद की कला, चन्द्रकला
शशादः —पुं॰—शश-अदः—-—बाज़, श्येन
शशादः —पुं॰—शश-अदः—-—पुरंजय के पिता इक्ष्वाकु का एक पुत्र
शशादनः —पुं॰—शश-अदनः—-—बाज़, श्येन
शशोर्णम् —नपुं॰—शश-ऊर्णम्—-—ख़रगोश के बाल, खरहे की त्वचा
शशलोमम् —नपुं॰—शश-लोमम्—-—ख़रगोश के बाल, खरहे की त्वचा
शशधरः —पुं॰—शश-धरः—-—चन्द्रमा
शशमौलिः —पुं॰—शश-मौलिः—-—शिव का विशेषण
शशलुप्तकम् —नपुं॰—शश-लुप्तकम्—-—नखक्षत, नाखून का घाव
शशभृत् —पुं॰—शश-भृत्—-—चाँद
शशभृत् —पुं॰—शश-भृत्—-—शिव का विशेषण
शशलक्ष्मणः —पुं॰—शश-लक्ष्मणः—-—चाँद का विशेषण
शशलाञ्छनः —पुं॰—शश-लाञ्छनः—-—चन्द्रमा
शशलाञ्छनः —पुं॰—शश-लाञ्छनः—-—कपूर
शशबिन्दुः —पुं॰—शश-बिन्दुः—-—चाँद
शशबिन्दुः —पुं॰—शश-बिन्दुः—-—विष्णु का विशेषण
शशविन्दुः —पुं॰—शश-विन्दुः—-—चाँद
शशविन्दुः —पुं॰—शश-विन्दुः—-—विष्णु का विशेषण
शशविषाणम् —नपुं॰—शश-विषाणम्—-—खरगोश का सींग (असंभव बात का संकेत करने के लिए प्रयुक्त, नितान्त असंभावना)
शशशृङ्गम् —नपुं॰—शश-शृङ्गम्—-—खरगोश का सींग (असंभव बात का संकेत करने के लिए प्रयुक्त, नितान्त असंभावना)
शशस्थली —स्त्री॰—शश-स्थली—-—गंगा यमुना के बीच की भूमि, दोआबा
शशकः —पुं॰—-—शश + कन्—खरगोश, खरहा
शशिन् —पुं॰—-—शशोऽस्त्यस्य इनि—चाँद
शशिन् —पुं॰—-—शशोऽस्त्यस्य इनि—कपूर
शशीशः —पुं॰—शशिन्-ईशः—-—शिव का विशेषण
शशिकला —स्त्री॰—शशिन्-कला—-—चन्द्र्ना की एक लेखा
शशिकान्तः —पुं॰—शशिन्-कान्तः—-—चन्द्रकांतमणि
शशिकान्तम् —नपुं॰—शशिन्-कान्तम्—-—कमल
शशिकोटिः —पुं॰—शशिन्-कोटिः—-—चन्द्रशृङ्ग
शशिग्रहः —पुं॰—शशिन्-ग्रहः—-—चन्द्रमा का ग्रहण
शशिजः —पुं॰—शशिन्-जः—-—बुध का विशेषण (चन्द्रमा का पुत्र)
शशिप्रभ —वि॰—शशिन्-प्रभ—-—चन्द्रमा की कांति वाला, चाँद जैसा उज्ज्वल और श्वेत
शशिप्रभम् —नपुं॰—शशिन्-प्रभम्—-—कुमुदिनी
शशिप्रभा —स्त्री॰—शशिन्-प्रभा—-—चाँद का प्रकाश
शशिभूषणः —पुं॰—शशिन्-भूषणः—-—शिव के विशेषण
शशिभृत् —पुं॰—शशिन्-भृत्—-—शिव के विशेषण
शशिमौलिः —पुं॰—शशिन्-मौलिः—-—शिव के विशेषण
शशिशेखरः —पुं॰—शशिन्-शेखरः—-—शिव के विशेषण
शशिलेखा —स्त्री॰—शशिन्-लेखा—-—चन्द्रमा की कला
शश्वत् —अव्य॰—-—शश् + वत्, वा—लगातार, अनादि काल से, सदा के लिए
शश्वत् —अव्य॰—-—शश् + वत्, वा—सतत, बार-बार, सदैव, बहुशः, पुनः पुनः
शश्वत् —अव्य॰—-—शश् + वत्, वा—समास में प्रयुक्त होने पर ’शश्वत्’ का अर्थ है ’टिकाऊ, नित्य’ यथा शश्वच्छान्ति अर्थात् नित्य शान्ति
शष्कुली —स्त्री॰—-—शष् + कुलच् + ङीष्—कान का विवर, श्रवण-मार्ग
शष्कुली —स्त्री॰—-—शष् + कुलच् + ङीष्—एक प्रकार की पकी हुई रोटी
शष्कुली —स्त्री॰—-—शष् + कुलच् + ङीष्—चावल की कांजी
शष्कुली —स्त्री॰—-—शष् + कुलच् + ङीष्—कान का एक रोग
शस्कुली —स्त्री॰—-—शस् + कुलच् + ङीष्—कान का विवर, श्रवण-मार्ग
शस्कुली —स्त्री॰—-—शस् + कुलच् + ङीष्—एक प्रकार की पकी हुई रोटी
शस्कुली —स्त्री॰—-—शस् + कुलच् + ङीष्—चावल की कांजी
शस्कुली —स्त्री॰—-—शस् + कुलच् + ङीष्—कान का एक रोग
शष्पः —पुं॰—-—शष् + पक्—प्रतिभाक्षय, औसान का अभाव
शस्पा —स्त्री॰—-—-—प्रतिभाक्षय, औसान का अभाव
शष्पम् —स्त्री॰—-—-—नया घास
शस् —भ्वा॰ पर॰ <शसति>—-—-—काटना, मार डालना, नष्ट करना
विशस् —भ्वा॰ पर॰—वि-शस्—-—काट डालना, मार डालना
शस् —अदा॰ पर॰ <शस्ति>—-—-—सोना
शसनम् —नपुं॰—-—शस् + ल्युट्—घायल करना, मार डालना
शसनम् —नपुं॰—-—शस् + ल्युट्—बलि, मेध, (यज्ञ में पशु का) ।
शस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—प्रशंसा किया गया, स्तुति किया गया
शस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—शुभ आनन्द प्रद
शस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—यथार्थ, सर्वोत्तम
शस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—क्षतिग्रस्त, घायल
शस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—शंस् + क्त—वध किया हुआ
शस्तम् —नपुं॰—-—-—आनन्द, कल्याण
शस्तम् —नपुं॰—-—-—श्रेष्ठता, मांगलिकता
शस्तम् —नपुं॰—-—-—अंगुलित्राण
शस्तिः —स्त्री॰—-—शंस् + क्तिन्—प्रशंसा, स्तुति
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस् + ष्ट्रन्—हथियार, आयुध
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस् + ष्ट्रन्—उपकरण, औज़ार
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस् + ष्ट्रन्—लोहा
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस् + ष्ट्रन्—इस्पात
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस् + ष्ट्रन्—स्तोत्र
शस्त्राभ्यासः — पुं॰—शस्त्रम्-अभ्यासः—-—शस्त्रास्त्रों के चलाने का अभ्यास, सैनिक व्यायाम
शस्त्रायसम् —नपुं॰—शस्त्रम्-अयसम्—-—इस्पात
शस्त्रायसम् —नपुं॰—शस्त्रम्-अयसम्—-—लोहा
शस्त्रास्त्रम् —नपुं॰—शस्त्रम्-अस्त्रम्—-—प्रहार करने और फेंक कर मारने वाले हथियार, आयुध और अस्त्र
शस्त्रास्त्रम् —नपुं॰—शस्त्रम्-अस्त्रम्—-—आयुध या शस्त्र
शस्त्राजीवः — पुं॰—शस्त्रम्-आजीवः—-—पेशेवर सिपाही
शस्त्रोपजीविन् — पुं॰—शस्त्रम्-उपजीविन्—-—पेशेवर सिपाही
शस्त्रोद्यमः — पुं॰—शस्त्रम्-उद्यमः—-—(प्रहार करने के लिए) शस्त्र उठाना
शस्त्रोपकरणम् —नपुं॰—शस्त्रम्-उपकरणम्—-—युद्ध के उपकरण या शस्त्रास्त्र, सैनिक सामग्री
शस्त्रकारः — पुं॰—शस्त्रम्-कारः—-—शस्त्रनिर्माता
शस्त्रकोषः — पुं॰—शस्त्रम्-कोषः—-—किसी हथियार का म्यान, आवरण
शस्त्रग्राहिन् —वि॰—शस्त्रम्-ग्राहिन्—-—(युद्ध के लिए) शस्त्रास्त्र धारण करने वाला
शस्त्रजीविन् —पुं॰—शस्त्रम्-जीविन्—-—शस्त्र प्रयोग के द्वारा जीवन यापन करने वाला, व्यावसायिक सैनिक
शस्त्रवृत्ति —पुं॰—शस्त्रम्-वृत्ति—-—शस्त्र प्रयोग के द्वारा जीवन यापन करने वाला, व्यावसायिक सैनिक
शस्त्रदेवता —स्त्री॰—शस्त्रम्-देवता—-—आयुधों की अधिष्ठात्री देवता
शस्त्रदेवता —स्त्री॰—शस्त्रम्-देवता—-—देवरूपकृत हथियार
शस्त्रधरः —पुं॰—शस्त्रम्-धरः—-—शस्त्रभृत्
शस्त्रन्यासः —पुं॰—शस्त्रम्-न्यासः—-—हथियार डाल देना
शस्त्रपाणि —वि॰—शस्त्रम्-पाणि—-—शस्त्र धारण करने वाला, शस्त्रों से सुसज्जित
शस्त्रपाणि —पुं॰—शस्त्रम्-पाणि—-—सशस्त्र योद्धा
शस्त्रपूत —वि॰—शस्त्रम्-पूत—-—`शस्त्रों द्वारा पवित्रीकृत’ युद्धक्षेत्र में मारे जाने से मुक्त
शस्त्रप्रहारः —पुं॰—शस्त्रम्-प्रहारः—-—हथियार से किया गया आघात
शस्त्रभृत् —पुं॰—शस्त्रम्-भृत्—-—सैनिक, योद्धा
शस्त्रमार्जः —पुं॰—शस्त्रम्-मार्जः—-—हथियार साफ़ करने वाला, शस्त्रनिर्माता, सिकलीगर
शस्त्रविद्या —स्त्री॰—शस्त्रम्-विद्या—-—शस्त्र विज्ञान
शस्त्रशास्त्रम् —नपुं॰—शस्त्रम्-शास्त्रम्—-—शस्त्र विज्ञान
शस्त्रसंहतिः —स्त्री॰—शस्त्रम्-संहतिः—-—शस्त्रसंग्रह
शस्त्रसंहतिः —पुं॰—शस्त्रम्-संहतिः—-—आयुधागार
शस्त्रसंपातः —पुं॰—शस्त्रम्-संपातः—-—हथियारों का अकस्मात् गिरना
शस्त्रहत —वि॰—शस्त्रम्-हत—-—हथियार से मारा गया
शस्त्रहस्त —वि॰—शस्त्रम्-हस्त—-—शस्त्रधर
शस्त्रहस्तः —पुं॰—शस्त्रम्-हस्तः—-—शस्त्रधारी मनुष्य ।
शस्त्रकम् —नपुं॰—-—शस्त्र् + कन्—इस्पात
शस्त्रकम् —नपुं॰—-—शस्त्र् + कन्—लोहा
शस्त्रिका —स्त्री॰—-—शस्त्रक + टाप्, इत्वम्—चाकू
शस्त्रिन् —वि॰—-—शस्त्र् + इनि—शस्त्रधारी, हथियारबंद, शस्त्रास्त्र से सुसज्जित
शस्त्री —स्त्री॰—-—शस्त्र + ङीष्—चाकू
शस्यम् —नपुं॰—-—शस् + यत्—अन्न, धान्य
शस्यम् —नपुं॰—-—शस् + यत्—किसी वृक्ष या पौधे का फल या उपज
शस्यम् —नपुं॰—-—शस् + यत्—गुण
शस्यक्षेत्रम् —नपुं॰—शस्यम्-क्षेत्रम्—-—अन्न का खेत
शस्यभक्षक —वि॰—शस्यम्-भक्षक—-—अन्नहारी, अनाज खाने वाला
शस्यमञ्जरी —स्त्री॰—शस्यम्-मञ्जरी—-—अनाज की बाल
शस्यमालिन् —वि॰—शस्यम्-मालिन्—-—जिसका खेत हरा भरा खड़ा हो
शस्यशालिन् —वि॰—शस्यम्-शालिन्—-—अन्न या धान्य से परिपूर्ण
शस्यसम्पन्न —वि॰—शस्यम्-सम्पन्न—-—अन्न या धान्य से परिपूर्ण
शस्यशूकम् —नपुं॰—शस्यम्-शूकम्—-—अनाज का सिर्टा
शस्यसम्पद् —स्त्री॰—शस्यम्-सम्पद्—-—अन्न या धान्य से अनाज की बहुतायत
शस्यसम्बरः —पुं॰—शस्यम्-सम्बरः—-—शाल का वृक्ष, साल का पेड़
शस्यसम्वरः —पुं॰—शस्यम्-सम्वरः—-—शाल का वृक्ष, साल का पेड़