विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/वाध-विह्वल
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—तंग करना, उत्पीडित करना, सताना, अत्याचार करना, छेड़ना, कष्ट देना, दुःखी करना, परेशान करना, पीड़ा देना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—मुकाबला करना, विरोध करना, निष्फल करना, रोकना, रूकावट डालना, अवरोध करना, हस्तक्षेप करना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—आक्रमण करना, हमला करना, धावा बोलना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—अनुचित व्यवहार करना, अन्याय करना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—हांक कर दूर करना, पीछे ढकेलना, हटाना
वाध् —भ्वा॰ आ॰ <वाधते>, <वाधित>—-—-—स्थगित करना, एक ओर रखना, रद्द करना, तोड़ना, मिटाना (नियम आदि)
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—पीडा, यातना, कष्ट, सन्ताप
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—रुकावट, छेड़छाड़, परेशानी
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—हानि, क्षति, घाटा, चोट
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—भय, खतरा
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—मुकाबला, विरोध
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—आपत्ति
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—प्रत्याख्यान, निराकरण
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—स्थगन, रद्द करना
वाधः —पुं॰—-—वाध् + घञ्—अनुमान प्रक्रिया में त्रुटि, हेत्वाभास के पाँच रूपों में से
वाधक —वि॰—-—वाध् + ण्वुल्—कष्ट देने वाला, सताने वाला, उत्पीडक
वाधक —वि॰—-—वाध् + ण्वुल्—छेड़छाड़ करने वाला, परेशान करने वाला
वाधक —वि॰—-—वाध् + ण्वुल्—उन्मूलन
वाधक —वि॰—-—वाध् + ण्वुल्—बाधा डालने वाला
वाधनम् —नपुं॰—-—वाध् + ल्युट्—तंग करना, उत्पीडन, परेशान करना, अशान्ति, पीडा
वाधनम् —नपुं॰—-—वाध् + ल्युट्—मिटाना
वाधनम् —नपुं॰—-—वाध् + ल्युट्—हटाना, स्थगन
वाधनम् —नपुं॰—-—वाध् + ल्युट्—निराकरण, प्रत्याख्यान
वाधना —स्त्री॰—-—वाध् + ल्युट्+टाप्—पीडा, कष्ट, चिन्ता, अशान्ति
वाधा —स्त्री॰—-—-—पीडा, यातना, कष्ट, सन्ताप
वाधा —स्त्री॰—-—-—रुकावट, छेड़छाड़, परेशानी
वाधा —स्त्री॰—-—-—हानि, क्षति, घाटा, चोट
वाधा —स्त्री॰—-—-—भय, खतरा
वाधा —स्त्री॰—-—-—मुकाबला, विरोध
वाधा —स्त्री॰—-—-—प्रत्याख्यान, निराकरण
वाधा —स्त्री॰—-—-—स्थगन, रद्द करना
वाधा —स्त्री॰—-—-—अनुमान प्रक्रिया में त्रुटि, हेत्वाभास के पाँच रूपों में से
वाधुक्यम् —नपुं॰—-—वधु + यत्, कुक्—विवाह
वाधूक्यम् —नपुं॰—-—वधू + यत्, कुक्—विवाह
वाध्रीणसः —पुं॰—-—वार्ध्रीणस, पृषो॰—गैंडा
वान —वि॰—-—वन् + अण्—खिला हुआ
वान —वि॰—-—वन् + अण्—(हवा से) सूखा हुआ, शुष्क
वान —वि॰—-—वन् + अण्—जंगली
वानम् —नपुं॰—-—-—(हवा का) चलना
वानम् —नपुं॰—-—-—लुढ़कना, हिलना-जुलना
वानम् —नपुं॰—-—-—गन्ध द्रव्य, खुशबू
वानम् —नपुं॰—-—-—वृक्षों का समूह या झुरमुट
वानम् —नपुं॰—-—-—तिनकों से बनी चटाई
वानम् —नपुं॰—-—-—घर की दीवार में छिद्र
वानप्रस्थः —पुं॰—-—वाने वनसमूहे प्रतिष्ठते-स्था + क—अपने धार्मिक जीवन के तीसरे आश्रम में प्रविष्ट ब्राह्मण
वानप्रस्थः —पुं॰—-—-—वैरागी, साधु
वानप्रस्थः —पुं॰—-—-—मधूक, वृक्ष
वानप्रस्थः —पुं॰—-—-—पलाश वृक्ष, ढाक
वानरः —पुं॰—-—वानं वनसंबंधि फलादिकं राति गृह्णति-रा + क, वा विकल्पेन नरो वा—बन्दर, लंगूर
वानराक्षः —पुं॰—वानरः-अक्षः—-—जंगली बकरा
वानरावातः —पुं॰—वानरः-आवातः—-—लोध्र नामक वृक्ष
वानरेन्द्रः —पुं॰—वानरः-इन्द्रः—-—सुग्रीव या हनुमान
वानरप्रियः —पुं॰—वानरः-प्रियः—-—खिरनी (क्षीरिन्) का पेड़्
वानलः —पुं॰—-—वानं वनभावं निविडतां लाति- ला + क—तुलसी का पौधा (काली तुलसी)
वानस्पत्यः —पुं॰—-—वनस्पति + ष्यञ्—वह वृक्ष जिसका फल उसकी मंजरी से उत्पन्न होता है
वाना —स्त्री॰—-—वान + टाप्—बटेर, लबा
वानायुः —पुं॰—-—वनायुः पृषो॰—भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित देश
वानायुजः —पुं॰—-—-—वनायु घोड़ा अर्थात् वनायु देश में उत्पन्न घोड़ा
वनीरः —पुं॰—-—वन् + ईरन् + अण्—एक प्रकार का बेंत
वानीरकः —पुं॰—-—वानीर + कन्—मूंज नामक घास, एक प्रकार का नड
वानेयम् —नपुं॰—-—वन + ढञ्—एक सुगंधित घास, मोथा
वान्तम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वम् + क्त—क़ै की गई, थूका गया
वान्तम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उगला गया, प्रक्षिप्त, उंडेला हुआ
वान्तादः —पुं॰—वान्तम्-अदः—-—कुत्ता
वान्ति —स्त्री॰—-—वम् + क्तिन्—वमन
वान्ति —स्त्री॰—-—-—प्रक्षेप, उगाल
वान्तिकृत् —वि॰—वान्ति-कृत्—-—वमन कराने वाला
वान्तिद —वि॰—वान्ति-द—-—वमन कराने वाला
वान्या —स्त्री॰—-—वन + यत् + टाष्—उपवनों या जंगलों का समूह
वापः —पुं॰—-—वप् + घञ्—बीज बोना
वापः —पुं॰—-—-—क्षौरकर्म करना, बाल मूंडना
वापदण्डः —पुं॰—वापः-दण्डः—-—जुलाहे का करघा
वापनम् —नपुं॰—-—वप् + णिच् + ल्युट्—बुवाना
वापनम् —नपुं॰—-—-—मुंडन, क्षौर
वापति —भू॰ क॰ कृ॰—-—वप् + णिच् + क्त—बोया हुआ
वापति —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुँडा हुआ
वापिः —स्त्री॰—-—वप् + इञ्—कुआँ, बावड़ी पानी का विस्तृत आयताकार जलाशय
वापी —स्त्री॰—-—वप् + ङीप्—कुआँ, बावड़ी पानी का विस्तृत आयताकार जलाशय
वापिहः —पुं॰—वापिः-हः—-—चातक पक्षी
वाम —वि॰—-—वम् + ण, अथवा वा + मन्—बायाँ
वाम —वि॰—-—-—बाई और स्थित या विद्यमान
वाम —वि॰—-—-—उलटा, विरुद्ध, विरोधी, विपरीत, प्रतिकुल
वाम —वि॰—-—-—विरुद्ध-कार्य करने वाला, विपरीत प्रकृति का @ श॰ ४/१८
वाम —वि॰—-—-—कुटिल, वक्रप्रकृति, दुराग्रहीं, हठी
वाम —वि॰—-—-—दुष्ट, दुर्वृत्त, अधम, नीच, कमीना
वाम —वि॰—-—-—प्रिय, सुन्दर, लावण्यमय
वामः —पुं॰—-—-—सजीव प्राणी, जन्तु
वामः —पुं॰—-—-—प्रेम के देवता, कामदेव
वामः —पुं॰—-—-—औड़ी, ऐन, स्त्री की छाती
वामम् —नपुं॰—-—-—धनदौलत, जायदाद
वामाचारः —पुं॰—वाम-आचारः—-—तांत्रिक मत में प्रतिपादिक अनुष्ठानपद्धति
वामावर्तः —पुं॰—वाम-आवर्तः—-—शंख जिसका घुमाव दाईं ओर से बाईं ओर को गया हो
वामोरु —स्त्री॰—वाम-उरु—-—सुंदर जंघाओं वाली स्त्री
वामोरू —स्त्री॰—वाम-उरू—-—सुंदर जंघाओं वाली स्त्री
वामदृश् —स्त्री॰—वाम-दृश्—-—(मनोहर आँखों से युक्त) स्त्री
वामदेवः —पुं॰—वाम-देवः—-—एक मुनि का नाम
वामदेवः —पुं॰—वाम-देवः—-—शिव का नाम
वामलोचना —स्त्री॰—वाम-लोचना—-—मनोहर आँखोवाली स्त्री
वामशील —वि॰—वाम-शील—-—कुटिल या वक्र प्रकृति का
वामशीलः —पुं॰—वाम-शीलः—-—कामदेव का विशेषण
वामक —वि॰—-—वाम + कन्—बायाँ
वामक —वि॰—-—-—विपरीत, विरुद्ध
वामन —वि॰—-—वम् + णिचु + ल्युट्—क़द में छोटा, ठिंगना, बौना
वामन —वि॰—-—-—(अतः) स्वल्प, ह्रस्व, थोड़ा, लंबाई में कम
वामन —वि॰—-—-—दुष्ट, नीच, ओछा
वामनः —पुं॰—-—-—बौना, ठिंगना
वामनः —पुं॰—-—-—विष्णु का पाँचवां अवतार
वामनः —पुं॰—-—-—दक्षिण दिशा का दिक्पाल हाथी
वामनः —पुं॰—-—-—पाणिनि के सूत्रों पर काशिकावृति नामक भाष्य के प्रणेता
वामनः —पुं॰—-—-—अकोट नामक वृक्ष
वामनाकृति —वि॰—वामन-आकृति—-—ठिंगना
वामनपुराणम् —नपुं॰—वामन-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण
वामनिका —स्त्री॰—-—वामनी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—ठिंगनी स्त्री
वामनी —स्त्री॰—-—वामन + ङीष्—बौनी स्त्री
वामनी —स्त्री॰—-—-—एक स्त्रीविशेष
वामलूरः —पुं॰—-—वाम + लू + रक्—बांवी, दीमकों द्वारा बनाया गया मिट्टी का ढेर
वामा —स्त्री॰—-—वामति सौन्दर्यम्-वम् + अण् + टाप्—स्त्री
वामा —स्त्री॰—-—-—मनोहारिणी स्त्री
वामिल —वि॰—-—वाम + इलच्—सुन्दर, मनोहर
वामिल —वि॰—-—-—घमंडी, अहंकारी
वामिल —वि॰—-—-—चालाक, कपटपूर्ण
वामी —स्त्री॰—-—वाम + ङीष्—घोड़ी
वायः —पुं॰—-—वे + घञ्—वुनना, सीना
वायदण्डः —पुं॰—वायः-दण्डः—-—जुलाहे का करघा
वायकः —पुं॰—-—वे + ण्वुल्—जुलाहा
वायकः —पुं॰—-—-—ढेर, समुच्चय, संग्रह
वायनम् —नपुं॰—-—वे + णिच् + ल्युट्—नैवेद्य, उत्सव के अवसर पर किसी देवता या ब्राह्मण को दिया गया मिष्टान्न, उपवास रखना आदि
वायनकम् —नपुं॰—-—वायन + कन्—नैवेद्य, उत्सव के अवसर पर किसी देवता या ब्राह्मण को दिया गया मिष्टान्न, उपवास रखना आदि
वायव —वि॰—-—वायु + अण्—वायु से संबद्ध या प्राप्त
वायव —वि॰—-—वायु + अण्—हवाई
वायवीय —वि॰—-—वायु + छ—हवा से सम्बन्ध रखने वाला, हवाई
वायव्य —वि॰—-—वायु + यत् —हवा से सम्बन्ध रखने वाला, हवाई
वायवीयपुराणम् —नपुं॰—वायवीय-पुराणम्—-—एक पुराण का नाम
वायसः —पुं॰—-—वयोऽसच् णित्—कौवा
वायसः —पुं॰—-—-—सुगन्धित अगर की लकड़ी, अगुरुकाष्ठ
वायसारातिः —पुं॰—वायसः-अरातिः—-—उल्लू
वायसारिः —पुं॰—वायसः-अरिः—-—उल्लू
वायसाह्वा —स्त्री॰—वायसः-आह्वा—-—एक प्रकार का भक्ष्य शाक
वायसिक्षु —पुं॰—वायसः-इक्षुः—-—एक प्रकार का लम्वा घास
वायुः —पुं॰—-—वा उण् युक् च—हवा, पवन
वायुः —पुं॰—-—-—वायुदेवता, पवनदेवता
वायुः —पुं॰—-—-—जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण पांच प्रकार का वायु गिनाया गया है- प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान
वायुः —पुं॰—-—-—वातप्रकोप, वातरोग में ग्रस्तता
वायास्पदम् —नपुं॰—वायुः-आस्पदम्—-—आकाश, अन्तरिक्ष
वायुकेतुः —पुं॰—वायुः-केतुः—-—धूल
वायुकोणः —पुं॰—वायुः-कोणः—-—पश्चिमोत्तरी कोना
वायुगण्डः —पुं॰—वायुः-गण्डः—-—अफारा (ज़ो अनपच के कारण हुआ हो)
वायुगुल्मः —पुं॰—वायुः-गुल्मः—-—आंधी, तूफान
वायुगुल्मः —पुं॰—वायुः-गुल्मः—-—भंवर
वायुगोचरः —पुं॰—वायुः-गोचरः—-—पवन का परास
वायुग्रस्त —वि॰—वायुः-ग्रस्त—-—वातरोग में ग्रस्त, जिसे अफारा हो गया हो
वायुग्रस्त —वि॰—वायुः-ग्रस्त—-—गठिया रोग से ग्रस्त
वायुजातः —पुं॰—वायुः-जातः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुतनयः —पुं॰—वायुः-तनयः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुनन्दनः —पुं॰—वायुः-नन्दनः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुपुत्रः —पुं॰—वायुः-पुत्रः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुसुतः —पुं॰—वायुः-सुतः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुसूनुः —पुं॰—वायुः-सूनुः—-—हनुमान् या भीम के विशेषण
वायुदारुः —पुं॰—वायुः-दारुः—-—बादल
वायुनिघ्न —वि॰—वायुः-निघ्न—-—वात प्रकोप से पीड़ित सनकी, पागल, उन्मत्त
वायुपुराणम् —नपुं॰—वायुः-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक
वायुफलम् —नपुं॰—वायुः-फलम्—-—ओला
वायुफलम् —नपुं॰—वायुः-फलम्—-—इन्द्रधनुष
वायुभक्षः —पुं॰—वायुः-भक्षः—-—जो केवल वायु पीकर रहे, सन्यासी
वायुभक्षः —पुं॰—वायुः-भक्षः—-—साँप
वायुभक्षणः —पुं॰—वायुः-भक्षणः—-—जो केवल वायु पीकर रहे, सन्यासी
वायुभक्षणः —पुं॰—वायुः-भक्षणः—-—साँप
वायुभुज् —पुं॰—वायुः-भुज्—-—जो केवल वायु पीकर रहे, सन्यासी
वायुभुज् —पुं॰—वायुः-भुज्—-—साँप
वायुरोषा —स्त्री॰—वायुः-रोषा—-—रात्रि
वायुरुग्ण —वि॰—वायुः-रुग्ण—-—वायुप्रकोप के कारण अस्वस्थ
वायुवर्त्मन् —पुं॰—वायुः-वर्त्मन्—-—आकाश, अन्तरिक्ष
वायुवाहः —पुं॰—वायुः-वाहः—-—धूआं
वायुवाहिनी —स्त्री॰—वायुः-वाहिनी—-—शिरा, धमनी, शरीर की नाडी
वायुवेग —व॰—वायुः-वेग—-—पवन की भांति तेज
वायुसखः —पुं॰—वायुः-सखः—-—आग
वायुसखिः —पुं॰—वायुः-सखिः—-—आग
वार् —नपुं॰—-—वृ + णिच् + क्विप्—जल
वाःसनम् —नपुं॰—वार्-आसनम्—-—जलाशय
वाःकिटिः —पुं॰—वार्-किटिः—-—सूंस
वाःचः —पुं॰—वार्-चः—-—हंसिनी या हंस
वाःदः —पुं॰—वार्-दः—-—बादल
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—जल
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—रेशम
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—भाषण
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—आम का बीज
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—घोड़े के गरदन की भौंरी
वाःदरम् —नपुं॰—वार्-दरम्—-—शंख
वाःधिः —पुं॰—वार्-धिः—-—समुद्र
वाःभवम् —नपुं॰—वार्-भवम्—-—एक प्रकार का नमक
वाःपुष्पम् —नपुं॰—वार्-पुष्पम्—-—लौंग
वाःभटः —पुं॰—वार्-भटः—-—मगरमच्छ, घड़ियाल
वाःमुच् —पुं॰—वार्-मुच्—-—बादल
वाःराशिः —पुं॰—वार्-राशिः—-—समुद्र
वाःवटः —पुं॰—वार्-वटः—-—किश्ती, नाव
वाःसदनम् —नपुं॰—वार्-सदनम्—-—जलाशय, टंकी
वाःस्थ —वि॰—वार्-स्थ—-—जल में विद्यमान
वारः —पुं॰—-—वृ + घञ्—आवरण, चादर
वारः —पुं॰—-—-—समुदाय, बड़ी संख्या
वारः —पुं॰—-—-—ढेर, परिमाण
वारः —पुं॰—-—-—रेवड़, लहंडा
वारः —पुं॰—-—-—सप्ताह का एक दिन यथा बुधवार, शनिवार
वारः —पुं॰—-—-—दरवाज़ा, फाटक
वारः —पुं॰—-—-—नदी का सामने का तट
वारम् —नपुं॰—-—-—मदिरा पात्र
वारम् —नपुं॰—-—-—जलौध, जल का ढेर
वाराङ्गना —स्त्री॰—वारः-अङ्गना—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारनारी —स्त्री॰—वारः-नारी—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारयुवति —स्त्री॰—वारः-युवति—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारयोषित् —स्त्री॰—वारः-योषित्—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारवनिता —स्त्री॰—वारः-वनिता—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारविलासिनी —स्त्री॰—वारः-विलासिनी—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारसुन्दरी —स्त्री॰—वारः-सुन्दरी—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारस्त्री —स्त्री॰—वारः-स्त्री—-—गणिका, बाजारु स्त्री, वेश्या, पतुरिया, रण्डी
वारकीरः —पुं॰—वारः-कीरः—-—पत्नी का भाई, साला
वारकीरः —पुं॰—वारः-कीरः—-—वडवाग्नि
वारकीरः —पुं॰—वारः-कीरः—-—कंघी
वारकीरः —पुं॰—वारः-कीरः—-—जूँ
वारकीरः —पुं॰—वारः-कीरः—-—युद्व का घोड़ा
वारबुषा —स्त्री॰—वारः-बुषा—-—केले का वृक्ष
वारबूषा —स्त्री॰—वारः-बूषा—-—केले का वृक्ष
वारमुख्या —स्त्री॰—वारः-मुख्या—-—प्रधान वेश्या
वारबाणः —पुं॰—वारः-बाणः—-—कवच, जिरह बख्तर
वारबाणः —पुं॰—वारः-बाणः—-—कवच, जिरह बख्तर
वारबाणम् —नपुं॰—वारः-बाणम्—-—कवच, जिरह बख्तर
वारबाणम् —नपुं॰—वारः-बाणम्—-—कवच, जिरह बख्तर
वारबाणिः —पुं॰—वारः-बाणिः—-—बांसुरिया, मुरली बजाने वाला
वारबाणिः —पुं॰—वारः-बाणिः—-—वादित्र-कुशल
वारबाणिः —पुं॰—वारः-बाणिः—-—वर्ष
वारबाणिः —पुं॰—वारः-बाणिः—-—न्यायाधीश
वारबाणिः —स्त्री॰—वारः-बाणिः—-—वेश्या
वारबाणी —स्त्री॰—वारः-बाणी—-—वेश्या
वारसेवा —स्त्री॰—वारः-सेवा—-—वेश्यावृत्ति, रंडी का व्यवसाय
वारसेवा —स्त्री॰—वारः-सेवा—-—वेश्याओं का समुदाय
वारक —वि॰—-—वृ + णिच् + ण्वुल्—रुकावट डालने वाला, विरोध करने वाला
वारकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का घोड़ा
वारकः —पुं॰—-—-—सामान्य घोड़ा
वारकः —पुं॰—-—-—घोड़े का कदम
वारकम् —नपुं॰—-—-—पीड़ा होने का स्थान
वारकम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, ह्रीवेर
वारकिन् —पुं॰—-—वारक + इनि—विरोधी, शत्रु
वारकिन् —पुं॰—-—-—शुभ लक्षणों से युक्त एक घोड़ा
वारकिन् —पुं॰—-—-—वह संन्यासी जो केवल पत्ते खाकर रहता है
वारङ्गः —पुं॰—-—वृ + अंगच् णित्—किसी चाकू का दस्ता या तलवार की मूठ
वारटम् —नपुं॰—-—वृ + णिच् + अटच्—खेत
वारटम् —नपुं॰—-—-—खेतों का समूह
वारण —वि॰—-—वृ + णिच् + ल्युट्—हटाने वाला, मुकाबला करने वाला, विरोध करने वाला
वारणम् —नपुं॰—-—-—हटाना, रोकना, अड़चन डालना
वारणम् —नपुं॰—-—-—रुकावट, विघ्न
वारणम् —नपुं॰—-—-—मुकावला, विरोध
वारणम् —नपुं॰—-—-—प्रतिरक्षा, संरक्षा, प्ररक्षा
वारणः —पुं॰—-—-—कवच, जिरहबरुतर
वारणबुषा —स्त्री॰—वारण-बुषा—-—केले का वृक्ष
वारणसा —स्त्री॰—वारण-सा—-—केले का वृक्ष
वारणावल्लभा —स्त्री॰—वारण-वल्लभा—-—केले का वृक्ष
वारणसाह्वयम् —नपुं॰—वारण-साह्वयम्—-—हस्तिनापुर का नाम
वारणसी —स्त्री॰—-—-—बनारस का पावन नगर
वारणावत —पुं॰—-—-—एक नगर का नाम
वारत्रम् —नपुं॰—-—वरत्रा + अण्—चमड़े का तस्मा
वारंवारम् —अव्य॰—-—वृ + णमुल्, दित्वम्—प्रायः, बहुधा, बार बार, फिर फिर
वारला —स्त्री॰—-—वार + ला + क + टाप्—बर्र, भिड़
वाराणसी —स्त्री॰—-—वरणा च असी च तयोः नद्योरदूरे भवा इत्यर्थ अण् + ङीप्, पृषो॰ साधुः—बनारस का पावन नगर
वारान्निधिः —पुं॰—-—वाराँ जलानां निधिः, षष्ठ्यलुक् स॰—समुद्र
वाराह —वि॰—-—वराह + अण्— शूकर से सम्बद्ध
वाराहः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का वृक्ष
वाराहकल्पः —पुं॰—वाराह-कल्पः—-—वर्तमान कल्प (जिसमें हम रह रहे हैं) का नाम
वाराहपुराणम् —नपुं॰—वाराह-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक
वाराही —स्त्री॰—-—वाराह + ङीप्—शूकरी
वाराही —स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
वाराही —स्त्री॰—-—-—‘वराह’ के रूप में विष्णु भगवान की शक्ति
वाराहीकंदः —पुं॰—वाराही-कंदः—-—महाकंद, गेंठी
वारि —नपुं॰—-—-—तरल पदार्थ
वारि —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगंध द्रव्य, ह्रीवेर
वारिः —स्त्री॰—-—-—हाथी को बांधने का तस्मा
वारिः —स्त्री॰—-—-—हाथो को बांधने का रस्सा
वारिः —स्त्री॰—-—-—हाथियों को पकड़ने का गड्ढा या पिंजरा
वारिः —स्त्री॰—-—-—बंदी, क़ैदी
वारिः —स्त्री॰—-—-—जलपात्र
वारिः —स्त्री॰—-—-—सरस्वती का नाम
वारी —स्त्री॰—-—-—हाथी को बांधने का तस्मा
वारी —स्त्री॰—-—-—हाथो को बांधने का रस्सा
वारी —स्त्री॰—-—-—हाथियों को पकड़ने का गड्ढा या पिंजरा
वारी —स्त्री॰—-—-—बंदी, क़ैदी
वारी —स्त्री॰—-—-—सरस्वती का नाम
वारीशः —पुं॰—वारि-ईशः—-—समुद्र
वार्युद्भवम् —नपुं॰—वारि-उद्भवम्—-—कमल
वार्योकः —पुं॰—वारि-ओकः—-—जोक
वारिकर्पूरः —पुं॰—वारि-कर्पूरः—-—एक प्रकार की मछली, इलीश
वारिकुब्जकः —पुं॰—वारि-कुब्जकः—-—सिंघाड़ा, शृंगाटक का पौधा
वारिक्रिमीः —पुं॰—वारि-क्रिमीः—-—जोंक
वारिचत्वरः —पुं॰—वारि-चत्वरः—-—जलाशय
वारिचर —वि॰—वारि-चर—-—जलचर
वारिचरः —पुं॰—वारि-चरः—-—मछली
वारिचरः —पुं॰—वारि-चरः—-—कोई जलजन्तु
वारिज —वि॰—वारि-ज—-—जल में उत्पन्न
वारिजः —पुं॰—वारि-जः—-—कमल
वारिजः —पुं॰—वारि-जः—-—कोई भी द्विकोषीय
वारिजम् —नपुं॰—वारि-जम्—-—कमल
वारिजम् —नपुं॰—वारि-जम्—-—एक प्रकार का नमक
वारिजम् —नपुं॰—वारि-जम्—-—एक प्रकार का पौधा, गौरसुवर्ण
वारिजम् —नपुं॰—वारि-जम्—-—लौंग
वारितस्करः —पुं॰—वारि-तस्करः—-—बादल
वारित्रा —स्त्री॰—वारि-त्रा—-—छतरी
वारिदः —पुं॰—वारि-दः—-—बादल
वारिदम् —नपुं॰—वारि-दम्—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
वारिद्रः —पुं॰—वारि-द्रः—-—चातक पक्षी
वारिधरः —पुं॰—वारि-धरः—-—बादल
वारिधारा —स्त्री॰—वारि-धारा—-—बृष्टि की बौछार
वारिधिः —पुं॰—वारि-धिः—-—समुद्र
वारिनाथः —पुं॰—वारि-नाथः—-—समुद्र
वारिनाथः —पुं॰—वारि-नाथः—-—वरुण का विशेषण
वारिनाथः —पुं॰—वारि-नाथः—-—बादल
वारिनिधिः —पुं॰—वारि-निधिः—-—समुद्र
वारिपयः —पुं॰—वारि-पयः—-—‘समुद्र यात्रा’ जलयात्रा
वारिपम् —नपुं॰—वारि-पयम्—-—‘समुद्र यात्रा’ जलयात्रा
वारिप्रवाहः —पुं॰—वारि-प्रवाहः—-—झरना, जलप्रपात
वारिमसिः —पुं॰—वारि-मसिः—-—बादल
वारिमुच् —पुं॰—वारि-मुच्—-—बादल
वारिरः —पुं॰—वारि-रः—-—बादल
वारियन्त्रम् —नपुं॰—वारि-यन्त्रम्—-—जलघटिका, रहट
वारिरथः —पुं॰—वारि-रथः—-—डोंगी, नाव, घड़नई
वारिराशिः —पुं॰—वारि-राशिः—-—समुद्र, सरोवर
वारिरुहम् —नपुं॰—वारि-रुहम्—-—कमल
वारिवासः —पुं॰—वारि-वासः—-—कलाल, शराब बेचने वाला
वारिवाहः —पुं॰—वारि-वाहः—-—बादल
वारिवाहनः —पुं॰—वारि-वाहनः—-—बादल
वारिशः —पुं॰—वारि-शः—-—विष्णु का नाम
वारिसम्भवः —पुं॰—वारि-सम्भवः—-—लौंग
वारिसम्भवः —पुं॰—वारि-सम्भवः—-—अंजनविशेष
वारिसम्भवः —पुं॰—वारि-सम्भवः—-—खस की सुगन्धित जड़, उशीर
वारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वृ + णिच् + क्त—हटाया हुआ, मना किया हुआ, रोका हुआ
वारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रतिरक्षित, प्ररक्षित
वारीटः —पुं॰—-—वारी + इट् + क—हाथी
वारुः —पुं॰—-—वारयति रिपून् वृ + णिच् + उण्—विजयकुंजर, जंगी हाथी
वारुण —वि॰—-—वरुण्स्येदम्-अण्—वरुण संबंधी
वारुण —वि॰—-—-—वरुण को दिया हुआ
वारुणः —पुं॰—-—-—भारतवर्ष के नौ प्रभागों या खण्डों में से एक
वारुणिः —पुं॰—-—वरुण + इञ्—अगस्त्य मुनि
वारुणी —स्त्री॰—-—यारुण + ङीप्—पश्चिम दिशा
वारुणी —स्त्री॰—-—-—कोई मद्रिरा
वारुणी —स्त्री॰—-—-—शतभिषज् नामक नक्षत्र
वारुणी —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का घास, दूब
वारुणीवल्लभः —पुं॰—वारुणी-वल्लभः—-—वरुण का विशेषण
वारुण्डः —पुं॰—-—वृ + णिच् + उँड—नाग जाति का प्रधान
वारुण्डम् —नपुं॰—-—-—आँख का मैल या ढीड
वारुण्डम् —नपुं॰—-—-—कान का मैल
वारुण्डम् —नपुं॰—-—-—नाव में से पानी उलीच कर बाहर निकालने का बर्तन
वारेन्द्री —स्त्री॰—-—-—बंगाल के एक भाग का नाम, वर्तमान राजशाही
वार्क्ष —वि॰—-—वृक्ष + अण्—वृक्षों से युक्त
वार्णिकः —पुं॰—-—वर्ण + ठञ्—लिपिकार, लेखक
वार्ताकः —पुं॰—-—वृत् + काकु अत्वं वृद्धिश्च—बैंगन का पौधा
वार्ताकिः —स्त्री॰—-—वार्ताक + इञ् इनि वा—बैंगन का पौधा
वार्ताकिन् —पुं॰—-—-—बैंगन का पौधा
वार्ताकी —स्त्री॰—-—वृत् + काकु ईत्वं वृद्धिश्च—बैंगन का पौधा
वार्ताकुः —पुं॰—-—वृत् + काकु, वृद्धिः—बैंगन का पौधा
वार्तिका —स्त्री॰—-—-—बेटर, लवा
वार्त्त —वि॰—-—वृत्ति + अण्—स्वस्थ, नीरोग, तन्दुरुस्त
वार्त्त —वि॰—-—-—हलका, कमज़ोर, सारहीन
वार्त्तम् —नपुं॰—-—-—कल्याण, अच्छा स्वस्थ्य
वार्त्तम् —नपुं॰—-—-—कुशलता, दक्षता
वार्त्तम् —नपुं॰—-—-—भूसी, बूरा
वार्त्ता —स्त्री॰—-—वार्त्त + टाप्—ठहरना, डटे रहना
वार्त्ता —स्त्री॰—-—-—समाचार खबर, गुप्त बात
वार्त्ता —स्त्री॰—-—-—आजीविका, वृत्ति
वार्त्ता —स्त्री॰—-—-—खेती, वैश्य का व्यवसाय
वार्त्ता —स्त्री॰—-—-—बैंगन का पौधा
वार्तारम्भः —पुं॰—वार्ता-आरम्भः—-—व्यापारिक उपक्रम या व्यवसाय
वार्तावहः —पुं॰—वार्ता-वहः—-—दूत
वार्तावहः —पुं॰—वार्ता-वहः—-—अंगराग, मोमबत्ती आदि पदार्थ बेचने वाला
वार्ताहरः —पुं॰—वार्ता-हरः—-—दूत
वार्ताहरः —पुं॰—वार्ता-हरः—-—अंगराग, मोमबत्ती आदि पदार्थ बेचने वाला
वार्तावृत्तिः —पुं॰—वार्ता-वृत्तिः—-—जो खेती के व्यवसाय से निर्वाह करे
वार्ताव्यतिकरः —पुं॰—वार्ता-व्यतिकरः—-—सामान्य विवरण
वात्तयिनः —पुं॰—-—वार्त्तानामयनमनेन—समाचारवाहक, दूत, भेदिया, जासूस
वार्तिक —वि॰—-—वृत्ति + ठक्—समाचार संबन्धी
वार्तिक —वि॰—-—-—समाचार लाने वाला
वार्तिक —वि॰—-—-—व्याख्य़ात्मक, कोष सम्बन्धी
वार्तिकः —पुं॰—-—-—दूत, भेदिया
वार्तिकम् —नपुं॰—-—-—एक व्याख्यापरक अतिरिक्त नियम जो उक्त, अनुक्त या किसी अधूरी बात की व्याख्या करता है अथवा किसी छूटी हुई बात को जोड़ देता है
वार्त्रघ्नः —पुं॰—-—वृत्रहन् + अण्—अर्जुन का नाम
वार्द्धकम् —नपुं॰—-—वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा वुञ्—बूढ़ापा
वार्द्धकम् —नपुं॰—-—वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा वुञ्—बुढ़ापे की दुर्बलता
वार्द्धकम् —नपुं॰—-—वृद्धानां समूहः तस्य भावः कर्म वा वुञ्—बुढ़ों का समुदाय
वार्द्धक्यम् —नपुं॰—-—वार्द्धक + ष्यञ्—बुढ़ापा
वार्द्धक्यम् —नपुं॰—-—वार्द्धक + ष्यञ्—बुढ़ापे की दुर्बलता
वार्द्धुषिः —पुं॰—-—वार्द्धुषिक पृषो॰ कलोपः,—सूदखोर, ब्याज पर रुपया देने वाला
वार्द्धुषिकः —पुं॰—-—वार्द्धुषिक पृषो॰—सूदखोर, ब्याज पर रुपया देने वाला
वार्द्धुषिन् —पुं॰—-—वृघुषि आदेशः, वार्द्धुष + इनि—सूदखोर, ब्याज पर रुपया देने वाला
वार्द्धुष्यम् —नपुं॰—-—वार्द्धुषि + ष्यञ्— सूद, अत्यन्त ऊँचा सूद, हद से ज्यादह ब्याज
वार्ध्रम् —नपुं॰—-—वार्ध् + अण्—चमड़े का तस्मा
वाध्री —स्त्री॰—-—वार्ध् + ङीप् —चमड़े का तस्मा
वार्ध्रोणसः —पुं॰—-—वार्ध्रीव नासिका अस्य ब॰ स॰ , नासिकाया नसा देशः, णत्वम्—गैंडा
वार्मणम् —नपुं॰—-—वर्मन् + अण्—कवच से सुसज्जित पुरुषों का समूह
वार्यम् —नपुं॰—-—वृ + ण्यत्—आशीर्वाद
वार्यम् —नपुं॰—-—-—सम्पति, जायदाद
वार्वणा —स्त्री॰—-—वर्वण्आ + अण् + टाप्—नीले रंग की मक्खी
वार्ष —वि॰—-—वर्ष + अण्—वर्षा से संबंध रखने वाला
वार्षिक —वि॰—-—वर्ष + ठक्—वर्षा संबंधी
वार्षिक —वि॰—-—-—सालाना, प्रतिवर्ष घटित होने वाला
वार्षिक —वि॰—-—-—एक वर्ष तक रहने वाला
वार्षिकम् —नपुं॰—-—-—जड़ी बूटी
वार्षिला —स्त्री॰—-—वार्जाता शिला, पृषो॰ शस्य षः—ओला
वार्ष्णेयः —पुं॰—-—वृष्णि + ढक्—वृष्णि की सन्तान
वार्ष्णेयः —पुं॰—-—-—विशेष रूप से कृष्ण
वार्ष्णेयः —पुं॰—-—-—नल के सारथि का नाम
वार्ह —वि॰—-—वर्ह् + अण्—मोर की पूँछ के चंदवों से बना हुआ
वार्हद्रथ —वि॰—-—वृहद्रथ + अण्—राजा जरासंध का पितृपरक नाम
वार्हद्रथिः —पुं॰—-—बृहद्रथ + इञ्—राजा जरासंध का पितृपरक नाम
वार्हस्पत —वि॰—-—बृहस्पति + अण्—बृहस्पति से संबद्ध, बृहस्पति की सन्तान या बृहस्पति को प्रिय
वार्हस्पत्य —वि॰—-—वृहस्पति + यक्—बृहस्पति से संबद्ध रखने वाला
वार्हस्पत्यः —पुं॰—-—वृहस्पति + यक्—बृहस्पति का शिष्य
वार्हस्पत्यः —पुं॰—-—वृहस्पति + यक्—भौतिकबाद के उग्ररूप के शिक्षक बृहस्पति का अनुयायी, भौतिकवादी
वार्हस्पत्यम् —नपुं॰—-—वृहस्पति + यक्—पुण्यनक्षत्र
वार्हिण —वि॰—-—वर्हिन् + अण्—मोर से संबद्ध या उत्पन्न
वाल —वि॰—-—वल् + ण या वाल + अच्—बच्चा, शिशुवत्, अवयस्क, न्याना
वाल —वि॰—-—वल् + ण या वाल + अच्—नया उगा हुआ वाल (रवि या अर्क)
वाल —वि॰—-—वल् + ण या वाल + अच्—नूतन, वर्धमान (चन्द्रमा)
वाल —वि॰—-—वल् + ण या वाल + अच्—बालिश
वाल —वि॰—-—वल् + ण या वाल + अच्—अनजान, अबोध
वालः —पुं॰—-—-—बालक, युवा, तरुण
वालः —पुं॰—-—-—अवयस्क (१६ वर्ष से कम आयु का)
वालः —पुं॰—-—-—बछेरा, अश्वक
वालः —पुं॰—-—-—मूर्ख, भोंदू
वालः —पुं॰—-—-—पाँच वर्ष का हाथी
वालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
वालक —वि॰—-—वाल + कन्—बच्चों जैसा, नन्हा, अवयस्क
वालक —वि॰—-—वाल + कन्—अनजान
वालकः —पुं॰—-—वाल + कन्—अँगूठी
वालकः —पुं॰—-—वाल + कन्—मूर्ख या बुद्धू
वालकः —पुं॰—-—वाल + कन्—कड़ा, कंकण
वालकः —पुं॰—-—वाल + कन्—हाथी या घोड़े की पूँछ
वालकम् —नपुं॰—-—वाल + कन्—अँगूठी
वालखिल्य —पुं॰—-—-—ब्रह्मा के रोम से उत्पन्न, अंगूठे के समान आकारवली दिव्य मूर्तियाँ (जो गिनती में साठ हजार समझी जाती हैं )
वालिः —पुं॰—-—वाले केशे जाते वाल + इञ्—प्रसिद्ध वानरराज वालि जो उसके छोटे भाई सुग्रीव की इच्छानुसार राम के द्वारा मारा गया
वालुका —स्त्री॰—-—वल् + उण् + कन् + टाप्—रेत, बजरी
वालुकात्मिका —स्त्री॰—वालुका-आत्मिका—-—शर्करा
वालुकी —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की ककड़ी
वालुक्यात्मिका —स्त्री॰—वालुकी-आत्मिका—-—शर्करा
वालेय —वि॰—-—वलि + ढञ्—बलि देने के लिए उपयुक्त
वालेय —वि॰—-—-—मृदु, मुलायम
वालेय —वि॰—-—-—बलि देने के लिए उपयुक्त
वाल्क —वि॰—-—वल्क + अण्—वृक्षों की छाल से बना हुआ
वाल्कल —वि॰—-—वल्कल + अण्—वृक्षों की छाल से बना हुआ
वाल्कलम् —नपुं॰—-—-—बक्कल की पोशाक
वाल्कली —स्त्री॰—-—-—मदिरा, शराब
वाल्मीकः —पुं॰—-—वल्मीके भवः अण् —एक विख्यात मुनि तथा रामायण के प्रणेता का नाम
वाल्मीकिः —पुं॰—-—वल्मीके भवः अण् इञ्—एक विख्यात मुनि तथा रामायण के प्रणेता का नाम
वाल्लभ्यम् —नपुं॰—-—वल्लभ + ष्यञ्—प्रिय होने का भाव, वल्लभता
वावदूक —वि॰—-—पुनः पुनरतिशयेन वा वदति-वद् + यङ्, लुक्,द्वित्वम्=वावद् + ऊकञ्—बातूनी, मुखर
वावयः —पुं॰—-—वय् + यङ्, लुक्, दित्वम्, अच्—एक प्रकार की तुलसी
वावुटः —पुं॰—-—-—नाव, डोंगी
वावृत् —दिवा॰ आ॰ <वावृत्यते>—-—-—छांटना, पसन्द करना, चुनना, प्रेम करना
वावृत् —दिवा॰ आ॰ <वावृत्यते>—-—-—सेवा करना
वावृत्त —वि॰—-—वावृत् + क्त—छांटा गया, चुना गया, पसंद किया गया
वाश् —दिवा॰ आ॰ <वाश्यते>,<वाशित>—-—-—दहाड़ना, क्रदंन करना, चीत्कार करना, चिल्लाना, हू हू करना, (पक्षियों का) गुनगुनाना, ध्वनि करना
वाश् —दिवा॰ आ॰ <वाश्यते>,<वाशित>—-—-—बुलाना
वाशक —वि॰—-—वाश् + ण्वुल्—दहाड़ने वाला, मुखर, निनादी
वाशकम् —नपुं॰—-—वाश् + ल्युट्—दहाड़ना, चिघाड़ना, गुर्राना, आक्रोश करना
वाशकम् —नपुं॰—-—-—पक्षियों का चहचहना, कूकना, (मक्खियों का) भिनभिनाना
वाशिः —पुं॰—-—वाश् + इञ्—अग्नि देवता, आग
वाशितम् —नपुं॰—-—वाश् + क्त—पक्षियों का कलरव
वाशिता —स्त्री॰—-—वाशित + टाप्—हथिनी
वाशिता —स्त्री॰—-—-—स्त्री
वासिता —स्त्री॰—-—वस् + णिच् + क्त + टाप्—हथिनी
वासिता —स्त्री॰—-—-—स्त्री
वाश्रः —पुं॰—-—वाश् + रक्—दिन
वाश्रम् —नपुं॰—-—-—आवास स्थान, घर
वाष्पः —पुं॰—-—-—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
वाष्पम् —नपुं॰—-—-—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
वास् —चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—-—-—सुगंधित करना, सुवासित करना, धूप देना, धूनी देना, खूशबूदार, करना
वास् —चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—-—-—सिक्त करना, भिगोना
वास् —चुरा॰ उभ॰ <वासयति>,<वासयते>—-—-—मसाला डालना, मसालेदार बनाना
वास् —दिवा॰ आ॰—-—-—दहाड़ना, क्रदंन करना, चीत्कार करना, चिल्लाना, हू हू करना, (पक्षियों का) गुनगुनाना, ध्वनि करना
वासः —पुं॰—-—वास् + घञ्—सुगंध
वासः —पुं॰—-—-—निवास, आवास
वासः —पुं॰—-—-—आवास, रहना, घर
वासः —पुं॰—-—-—कपड़े, पोशाक
वासागारः —पुं॰—वासः-अगारः—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासागारम् —नपुं॰—वासः-अगारम्—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासागारः —पुं॰—वासः-आगारः—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासागारम् —नपुं॰—वासः-आगारम्—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासगृहम् —नपुं॰—वासः-गृहम्—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासवेश्मन् —नपुं॰—वासः-वेश्मन्—-—घर का आन्तरिक कक्ष, विशेषतः शयनागार
वासकर्णो —पुं॰—वासः-कर्णो—-—वह कमरा जहाँ सार्वजनिक प्रदर्शन (नाच, कुश्ती, तथा अन्य प्रतियोगिताएँ) होते हैं
वासताम्बूलम् —नपुं॰—वासः-ताम्बूलम्—-—अन्य सुगन्धित मसालों से युक्त पान
वासभवनम् —नपुं॰—वासः-भवनम्—-—निवासस्थान, घर
वासमन्दिरम् —नपुं॰—वासः-मन्दिरम्—-—निवासस्थान, घर
वाससदनम् —नपुं॰—वासः-सदनम्—-—निवासस्थान, घर
वासयष्टिः —स्त्री॰—वासः-यष्टिः—-—पक्षियों के बैंठने का डंडा, छतरी, अड्डा
वासयोगः —पुं॰—वासः-योगः—-—एक प्रकार का सुगन्धित चूर्ण
वाससज्जा —स्त्री॰—वासः-सज्जा—-—वह स्त्री जो अपने प्रेमी का स्वागत, सत्कार करने के लिए अपने आपको वस्त्रालंकार से भूषित करती तथा घर को साफ़ सुथरा रखती है, विशेषतः उस समय जब कि प्रेमी का मिलन नियत किया हुआ हो; भावी नायिका
वासक —वि॰—-—वास् + णिच् + ण्वुल्—सुगन्धित करने वाला, सुवासित करने वाला, धुपाने वाला, धूप देने वाला
वासक —वि॰—-—-—बसाने वाला, आवाद करने वाला
वासकम् —नपुं॰—-—-—वस्त्र, कपड़े
वासकसज्जा —स्त्री॰—वासक-सज्जा—-—वह स्त्री जो अपने प्रेमी का स्वागत, सत्कार करने के लिए अपने आपको वस्त्रालंकार से भूषित करती तथा घर को साफ़ सुथरा रखती है, विशेषतः उस समय जब कि प्रेमी का मिलन नियत किया हुआ हो; भावी नायिका
वासकसज्जिका —स्त्री॰—वासक-सज्जिका—-—वह स्त्री जो अपने प्रेमी का स्वागत, सत्कार करने के लिए अपने आपको वस्त्रालंकार से भूषित करती तथा घर को साफ़ सुथरा रखती है, विशेषतः उस समय जब कि प्रेमी का मिलन नियत किया हुआ हो; भावी नायिका
वासतः —पुं॰—-—वास् + अतच्—गधा
वासतेय —वि॰—-—वसतये हितं साधुवा ढञ्—निवास करने के योग्य
वासनन् —नपुं॰—-—वास् + ल्युट्—सुगन्धित करना, सुवासित करना
वासनन् —नपुं॰—-—-—निवास करना, टिकना
वासनन् —नपुं॰—-—-—टोकरी, सन्दूक, बर्तन आदि
वासनन् —नपुं॰—-—-—वस्त्र, परिधान
वासनन् —नपुं॰—-—-—गिलाफ़, लिफ़ाफा
वासना —स्त्री॰—-—वास् + णिच् + युच् + टाप्—स्मृति में प्राप्त ज्ञान
वासना —स्त्री॰—-—-—विशेषतः अपने पहले शुभाशुभ कर्मों का अनजाने में मन पर पड़ा हुआ संस्कार जिससे सुख या दुःख की उत्पत्ति होती है
वासना —स्त्री॰—-—-—उत्प्रेक्षा, कल्पना, विचार
वासना —स्त्री॰—-—-—मिथ्या विचार, अज्ञान
वासना —स्त्री॰—-—-—अभिलाषा, इच्छा, रुचि
वासना —स्त्री॰—-—-—आदर, रुचि, सादर मान्यता
वासन्त —वि॰—-—वसन्त + अण्—बसन्त कालीन, माधवी, बहार के लायक, बसतर्तु में उत्पन्न
वासन्त —वि॰—-—-—जीवन का बसन्त, जवान
वासन्त —वि॰—-—-—परिश्रमी, सावधान
वासन्तः —पुं॰—-—-—जवान हाथी
वासन्तः —पुं॰—-—-—कोई भी जवान जन्तु
वासन्तः —पुं॰—-—-—दक्षिणी पवन, मलय पहाड़ से चलने वाली हवा
वासन्तः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लोबिया
वासन्तः —पुं॰—-—-—लंपट, दुराचारीं
वासन्ती —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की चमेली (सुगंधित फूलों से लदी हुई)
वासन्ती —स्त्री॰—-—-—बड़ी पीपल
वासन्ती —स्त्री॰—-—-—जूही का फूल
वासन्ती —स्त्री॰—-—-—कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला उत्सव
वासन्तिक —वि॰—-—वसन्त + ठक्—बसन्त ऋतु से संबद्ध
वासन्तिकः —पुं॰—-—-—नाटक का विदूषक या हंसोकड़ा
वासन्तिकः —पुं॰—-—-—अभिनेता
वासरः —पुं॰—-—सुखं वासयति जनान् वास् + अर—सप्ताह का एक दिन
वासरम् —नपुं॰—-—सुखं वासयति जनान् वास् + अर—सप्ताह का एक दिन
वासरसङ्गः —पुं॰—वासरः-सङ्गः—-—प्रातःकाल
वासव —वि॰—-—वसुरेव स्वार्थे अण्, वसूनि सन्त्यस्य अण् —इन्द्र सम्बन्धी
वासवः —पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
वासवदत्ता —स्त्री॰—वासव-दत्ता—-—सुबन्धु की एक रचना
वासवदत्ता —स्त्री॰—वासव-दत्ता—-—कई कहानियों में वर्णित नायिका
वासवी —स्त्री॰—-—वासव + ङीप्—व्यास की माता का नाम
वासस् —नपुं॰—-—वस् आच्छादने असि णिच्व—वस्त्र, परिधान, कपड़े
वासिः —पुं॰—-—वस् + इञ्—बसूला, छोटी कुल्हाड़ी, छेनी
वासिः —पुं॰—-—-—निवास, आवास
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वास् + क्त—सुवासित, या सुगन्धित
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भिगोया, तर किया हुआ
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मसालेदार, मसाला डाला गया
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कपड़े पहने हुए, वस्त्रों से सज्जित
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जनसंकुल, आबाद
वासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विख्यात, प्रसिद्ध
वासितम् —नपुं॰—-—-—पक्षियों का कलरव या कूजना
वासिता —स्त्री॰—-—वास् + क्त + टाप्—
वासिष्ठ —वि॰—-—वसि + शिष्ठ + अण्—वशिष्ठ संबंधी, वशिष्ठ द्वारा रचित (बल्कि दृष्ट)
वाशिष्ठ —वि॰—-—-—वशिष्ठ संबंधी, वशिष्ठ द्वारा रचित (बल्कि दृष्ट)
वासिष्ठः —पुं॰—-—-—वशिष्ठ की सन्तान
वासुः —पुं॰—-—सर्वोऽत्र वसति-वस् + उण्—आत्मा
वासुः —पुं॰—-—-—विश्वात्मा, परमात्मा
वासुकिः —पुं॰—-—वसुक + इञ्—एक विख्यात नाग का नाम, नागराज
वासुकेयः —पुं॰—-—वसुक + ढञ्—एक विख्यात नाग का नाम, नागराज
वासुदेवः —पुं॰—-—वसुदेवस्यापत्यम् अण्—वसुदेव की संतान
वासुदेवः —पुं॰—-—-—विशेष रूप से कृष्ण
वासुरा —स्त्री॰—-—वस् + उरण् +टाप् —पृथ्वी
वासुरा —स्त्री॰—-—-—स्त्री
वासूः —स्त्री॰—-—वास् + ऊ—तरुणी कन्या, कुमारी
वास्त —वि॰—-—वस्त + अण्—बकरे से उत्पन्न या प्राप्त
वास्तव —वि॰—-—वस्तु + अण्—असली, सच्चा, सारयुक्त
वास्तव —वि॰—-—-—निर्धारित, निश्चित
वास्तवम् —नपुं॰—-—-—कोई भी निश्चित या निर्धारित बात
वास्तवा —स्त्री॰—-—वास्तव + टाप्—प्रभात, उषा
वास्तविक —वि॰—-—वस्तुतो निर्वृत्तं ठक्—सच्चा, असली, सारगर्भित, यथार्थ विशुद्ध
वास्तिकम् —नपुं॰—-—वस्त + ठक्—बकरों का समूह
वास्तव्य —वि॰—-—वस् + तव्यत्, णित्—निवासी, वासी, रहने वाला
वास्तव्य —वि॰—-—-—रहने के योग्य, वास करने के योग्य
वास्तव्यः —पुं॰—-—-—आवासी, रहने वाला, निवासी
वास्तव्यम् —नपुं॰—-—-—रहने के योग्य स्थान, घर
वास्तव्यम् —नपुं॰—-—-—वसति, निवासस्थान
वास्तु —पुं॰—-—वस् + तुण्—घर बनाने की जगह, भवनभूखण्ड, जगह
वास्तु —पुं॰—-—-—घर, आवास, निवास भूमि
वास्तुयागः —पुं॰—वास्तु-यागः—-—घर की आधारशिला रखते समय किया जाने वाला यज्ञानुष्ठान
वास्तेय —वि॰—-—वस्ति + ढञ्—रहने के योग्य, निवास करने के योग्य
वास्तेय —वि॰—-—-—पेडू संबंधी
वास्तोष्पतिः —पुं॰—-—वास्तोः पतिः, नि॰ षष्ठ्या अलुक्, षत्वम्—एक वैदिक देवता (घर की आधारशिला की अधिष्ठात्री देवता मानी जाती है)
वास्तोष्पतिः —पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
वास्त्र —वि॰—-—वस्त्र + अण्—वस्त्र से निर्मित
वास्त्रः —पुं॰—-—-—कपड़े से ढकी हुई गाड़ी
वाष्पः —पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—आँसू
वाष्पः —पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
वाष्पः —पुं॰—-—बाध् - पृषो॰ सत्वं पत्वं वा—लोहा
वाष्पम् —नपुं॰—-—-—भाप, प्रवाष्प, कुहरा
वास्पेयः —पुं॰—-—वास्पाय हितं वाष्प + ढक्—`नागकेशर' नाम का वृक्ष
वाह् —भ्वा॰ आ॰ <वाहते>—-—-—प्रयत्न करना, चेष्टा करना, उद्योग करना
वाह —वि॰—-—वह् + घञ्—धारण करने वाला, ले जाने वाला
वाहः —पुं॰—-—-—ले जाना, धारण करना
वाहः —पुं॰—-—-—खींचने वाला जानवर, वोझा ढोने वाला जानवर
वाहः —पुं॰—-—-—एक मापविशेष जो दस कुंभ या चार भार के तुल्य होती हैं
वाहद्विषत् —पुं॰—वाहः-द्विषत्—-—भैंसा
वाहश्रेष्ठः —पुं॰—वाहः-श्रेष्ठः—-—घोड़ा
वाहकः —पुं॰—-—वह् + ण्वुल्—कुली
वाहकः —पुं॰—-—-—गड़वाला, गाड़ीवान् चालक
वाहनम् —नपुं॰—-—वाहयति- वह् + णिच् + ल्युट्—धारण करना, ले जाना, ढोना
वाहनम् —नपुं॰—-—-—(घोड़े आदि को) हाँकना
वाहनम् —नपुं॰—-—-—गाड़ी, किसी प्रकार की सवारी
वाहनम् —नपुं॰—-—-—खींचने वाला या सवारी का जानवर
वाहसः —पुं॰—-—न वहति नगच्छति, वह् + असच्—पतनाला, जलमार्ग
वाहसः —पुं॰—-—-—बड़ा नाग, अजगर
वाहिकः —पुं॰—-—वाह + ठक्—बड़ा ढोल
वाहिकः —पुं॰—-—-—बोझ ढोने वाला
वाहितम् —नपुं॰—-—वह् + णिच् + क्त—भारी बोझ
वाहितम् —नपुं॰—-—वाहिन् + स्था + क—हाथी के मस्तक का ललाट से नीचे का भाग
वाहिनी —स्त्री॰—-—वाहो अस्त्यस्याः इनि ङीप्—सेना
वाहिनी —स्त्री॰—-—-—अक्षौहिणी सेना
वाहिनीनिवेशः —पुं॰—वाहिनी-निवेशः—-—सेना का पड़ाव, शिविर
वाहिनीपतिः —पुं॰—वाहिनी-पतिः—-—सेनापति, सेनाध्यक्ष
वाहिनीपतिः —पुं॰—वाहिनी-पतिः—-—(नदियों का स्वामी) समुद्र
वाहुकः —पुं॰—-—वाहु + कै + क—बन्दर
वाहुकः —पुं॰—-—वाहु + कै + क—कर्कोटक के द्वारा बौना बना दिये जाने पर नल का बदला हुआ नाम
वाह्य —वि॰ —-—वहिर्भवः-ष्यञ्, टिलोपः—बाहर का, बाहर की ओर का, बाहरी, बहिर्देश, बाहर स्थित
वाह्य —वि॰—-—-—विदेशी, अपरिचित
वाह्य —वि॰—-—-—बहिष्कृत, कटघरे से बाहर
वाह्य —वि॰—-—-—समाज से बहिष्कृत, जातिबहिष्कृत
वाह्यम् —अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
वाह्येन —अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
वाह्ये —अव्य॰—-—-—बाहर, बाहर की ओर, बाहरी ढंस से
वाह्लिः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम, (आधुनिक बलख़)
वाह्लिजः —पुं॰—वाह्लिः-जः—-—बलख देश का घोड़ा
वाह्लिकः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम, (आधुनिक बलख़)
वाह्लिकः —पुं॰—-—-—बलख देश का घोड़ा, बलख देश में पला घोड़ा
वाह्लीकः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम, (आधुनिक बलख़)
वाह्लीकः —पुं॰—-—-—बलख देश का घोड़ा, बलख देश में पला घोड़ा
वाह्लिकम् —नपुं॰—-—-—जाफरान, केसर
वि —अव्य॰—-—वा + इण्, स च डित्—पृथक्करण, वियोजन (एक ओर, अलग-अलग, दूर, परे आदि)
वि —अव्य॰—-—-—किसी कर्म का उलट
विस्मृ ——वि-स्मृ—-—भूल जाना
वि —अव्य॰—-—-—प्रभाग यथा विभज्, विभाग
वि —अव्य॰—-—-—क्रम, व्यवस्था यथा विधा, विरच्
वि —अव्य॰—-—-—विरोध यथा विरुध्, विरोध; अभाव यथा विनी, विनयन
वि —अव्य॰—-—-—विचार, यथा विचर्, विचार
वि —अव्य॰—-—-—तीब्रता-विध्वंस
वि —अव्य॰—-—-—निषेध या अभाव
वि —अव्य॰—-—-—तीब्रता, महत्ता
वि —अव्य॰—-—-—वैपरीत्य, विरोध
विः —पुं॰—-—वा + इण्, स च डित्—पक्षी
विंश —वि॰—-—विंशति + डट्, तेः लोपः—बीसवाँ
विंशक —वि॰—-—विंशति + ण्वुन्, तिलोपः—बीस
विंशतिः —स्त्री॰—-—द्वे दश परिमाणमस्य नि॰ सिद्धिः—बीस, एक कोड़ी
विंशतीशः —पुं॰—विंशतिः-ईशः—-—बीस गाँवों का शासक
विंशतीशिन् —पुं॰—विंशतिः-ईशिन्—-—बीस गाँवों का शासक
विक्रम् —नपुं॰—-—विगतं कं जलं सुखं वा यत्र—ताज़ी ब्यायी गाय का दूध
विकण्टकः —पुं॰—-—वि + कंक् + अटन्—एक वृक्ष विशेष (जिसकी लकड़ी से श्रुवा बनते हैं)
विकण्टतः —पुं॰—-—वि + कंक् + अतच् —एक वृक्ष विशेष (जिसकी लकड़ी से श्रुवा बनते हैं)
विकच —वि॰ —-—विकक् + अच्—खिला हुआ, फूला हुआ, खुला हुआ
विकच —वि॰ —-—-—फैलाया हुआ, बखेरा हुआ
विकच —वि॰ —-—-—बालों से शून्य
विकट —वि॰—-—वि + कटच्—विकराल, कुरूप
विकट —वि॰—-—-—दुर्धर्ष, भयानक, भीषण डरावना
विकट —वि॰—-—-—दारुण, खूंखार, बर्बर
विकट —वि॰—-—-—बड़ा, विस्तृत, विशाल, प्रशस्त, व्यापक
विकट —वि॰—-—-—घमंडी, अभिमानी
विकट —वि॰—-—-—त्योरी चढ़ाये हुए
विकट —वि॰—-—-—शक्ल बदले हुए
विकटम् —नपुं॰—-—-—फोड़ा, अर्बुद या रसौली
विकत्थन —वि॰—-—वि + कत्थ् + ल्युट्—शेखी बधारने वाला, डींग मारने वाला, आत्मश्लाघा करने वाला, अपनी प्रशंसा करने वाला
विकत्थन —वि॰—-—-—व्यंग्योक्ति पूर्वक प्रशंसा करने वाला
विकत्थनम् —नपुं॰—-—-—दर्पोक्ति, धौंस जमाना
विकत्थनम् —नपुं॰—-—-—व्याजोक्ति, मिथ्या प्रशंसा
विकत्था —स्त्री॰—-—वि + कत्थ् + अच् + टाप्—शेखी बधारना, डींग, आत्मश्लाघा, दर्पोक्ति
विकत्था —स्त्री॰—-—-—प्रशंसा
विकत्था —स्त्री॰—-—-—मिथ्या प्रशंसा, व्यंग्योक्ति
विकम्प —वि॰—-—विशेषेण कम्पो यस्य-प्रा॰ ब॰—दीर्घ निःश्वास लेने वाला
विकम्प —वि॰—-—-—अस्थिर, चंचल
विकरः —पुं॰—-—विकीर्यते हस्तपादादिकमनेन-वि + कृ + अप्—बीमारी, रोग
विकरणः —पुं॰—-—वि + कृ + ल्युट्—क्रियारूपरचनापरक निविष्ट ज्प्ड़ (अनुषंगी), क्रिया के रूपों की रचना के समय धातु और लकार के प्रत्ययों के बीच में रक्खा जाने वाला गणद्योतक चिह्न
विकराल —वि॰—-—विशेषेण करालः प्रा॰ स॰—अत्यंत डरावना या भयानक, भयपूर्ण
विकर्णः —पुं॰—-—विशिष्टौ कर्णौ यस्य प्रा॰ ब॰—एक कुरुवंशी राजकुमार का नाम
विकर्तनः —पुं॰—-—विशेषण कर्तनं यस्य प्रा॰ ब॰ —सूर्य
विकर्तनः —पुं॰—-—-—मदार का पौधा
विकर्तनः —पुं॰—-—-—वह पुत्र जिसने अपने पिता का राज्य छीन लिया हो
विकर्मन् —वि॰—-—विरुद्धं कर्म यस्य प्रा॰ ब॰—अनुचित रीति से कार्य करने वाला
विकर्मन् —नपुं॰—-—-—अवैध या प्रतिनिषिद्ध कार्य, पापकर्म
विकर्मक्रिया —स्त्री॰—विकर्मन्-क्रिया—-—अवैध कार्य, अधार्मिक आचरण
विकर्मस्थ —वि॰—विकर्मन्-स्थ—-—प्रतिषिद्ध कार्यों को करने वाला, दुर्व्यसनों में ग्रस्त
विकर्षः —पुं॰—-—वि + कृष् + घञ्—अलग-अलग रेखांकन करना, स्वतंत्र रूप से ख़ीचना
विकर्षः —पुं॰—-—-—तीर, बाण
विकर्षणः —पुं॰—-—वि + कृष् + ल्युट्—कामदेव के पाँच बाणों में से एक
विकर्षणम् —नपुं॰—-—-—रेखांकन,खींचना, अलग-अलग खींचना
विकर्षणम् —नपुं॰—-—-—तिरछा फेंकना
विकल —वि॰—-—विगतः कलो यत्र प्रा॰ ब॰—किसी भाग या अंग से वञ्चित, सदोष, अधूरा, अपाहज, विकलांग
विकल —वि॰—-—-—डरा हुआ, त्रस्त
विकल —वि॰—-—-—शून्य, विरहित
विकल —वि॰—-—-—विक्षुब्ध, कमज़ोर, उत्साह शून्य, हतोत्साह, म्लान, अवसन्न, स्फूर्तिहीन
विकल —वि॰—-—-—मुर्झाया हुआ, क्षीण
विकलाङ्ग —वि॰—विकल-अङ्ग—-—अधिक या कम अंगो वाला
विकलेन्द्रिय —वि॰—विकल-इन्द्रिय—-—जिसकी ज्ञानेन्द्रियाँ दूषित या विकृत हैं
विकलपाणिकः —पुं॰—विकल-पाणिकः—-—लूला-लंगड़ा
विकला —स्त्री॰—-—विगतः कलो यस्याः- प्रा॰ ब॰—कला का साठवाँ भाग
विकल्पः —पुं॰—-—वि + त्कृप् + घञ्—सन्देह, अनिश्चय, अनिर्णय, संकोच
विकल्पः —पुं॰—-—-—कूटयुक्ति, कला
विकल्पः —पुं॰—-—-—वरणस्वतंत्रता, वैकल्पिक
विकल्पः —पुं॰—-—-—प्रकार, भेद
विकल्पः —पुं॰—-—-—अशुद्धि, भूल, अज्ञान
विकल्पोपहारः —पुं॰—विकल्पः-उपहारः—-—वैकल्पिक पुरस्कार
विकल्पजालम् —नपुं॰—विकल्पः-जालम्—-—जाल की तरह का अनिर्णय, दुविधा
विकल्पनम् —नपुं॰—-—वि + क्लृप् + ल्युट्—सन्देह में पड़ना
विकल्पनम् —नपुं॰—-—-—इच्छा की छूट
विकल्पनम् —नपुं॰—-—-—अनिर्णय
विकल्मष —वि॰—-—विगतः कल्मषो यस्य प्रा॰ ब॰—निष्पाप, कंलकरहित, निर्दोष
विकषा —स्त्री॰—-—वि + कष् + अच् + टाप्—बंगाली मजीठ
विकसा —स्त्री॰—-—वि + कस् + अच् + टाप्—बंगाली मजीठ
विकसः —पुं॰—-—वि + कस् + अच्—चन्द्रमा
विकसित —वि॰—-—वि + कस् + क्त—खिला हुआ,पूरा खुला हुआ या फूला हुआ
विकस्वर —वि॰—-—विकस् + वरच्—खुला हुआ, फूला हुआ
विकस्वर —वि॰—-—विकस् + वरच्—ऊँचे स्वर वाला, (ध्वनि आदि) जो स्पष्ट सुनाई दे
विकश्वर —वि॰—-—-—खुला हुआ, फूला हुआ
विकश्वर —वि॰—-—-—ऊँचे स्वर वाला, (ध्वनि आदि) जो स्पष्ट सुनाई दे
विकारः —पुं॰—-—वि + कृ + घञ्—रूप या प्रकृति का परिवर्तन, रूपान्तरण, प्राकृतिक अवस्था से व्यत्यय
विकारः —पुं॰—-—-—परिवर्तन, अदल-बदल, सुधार
विकारः —पुं॰—-—-—बीमारी, रोग, व्याधि
विकारः —पुं॰—-—-—मन या अभिप्राय का बदलना
विकारः —पुं॰—-—-—भावना, संवेग
विकारः —पुं॰—-—-—विक्षोभ, उत्तेजना, उद्वेग
विकारः —पुं॰—-—-—विकृत रूप, आकुंचन
विकारः —पुं॰—-—-—जो पूर्वस्रोत या प्रकृति से विकसित हो
विकारहेतुः —पुं॰—विकारः-हेतुः—-—प्रलोभन, फुसलाना, उद्वेग का कारण
विकारित —वि॰—-—वि + कृ + णिच् + क्त—परिवर्तित, पथभ्रष्ट, भ्रष्टाचारग्रस्त
विकारिन् —वि॰—-—वि + कृ + णिनि—परिवर्तनशील, संवेग तथा अन्य संस्कारों को ग्रहण करने वाला
विकालः —पुं॰—-—विरुद्धः कालः यस्य प्रा॰ स॰—संध्या, संध्याकालीन झुटपुटा, दिन की समाप्ति
विकालकः —पुं॰—-—विरुद्धः कालः यस्य प्रा॰ स॰—संध्या, संध्याकालीन झुटपुटा, दिन की समाप्ति
विकालिका —स्त्री॰—-—विज्ञातः कालो यया-प्रा॰ ब॰ —पानी में रक्खा हुआ छिद्रयुक्त ताम्रकलश जो क्रमशः पानी भरने के द्वारा समय का अंकन करता है
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—प्रकटीकरण, प्रदर्शन, दिखलावा
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—खिलना, फूलना
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—खुला सीधा मार्ग
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—टेढ़ा मार्ग
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—हर्ष, आनन्द
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—उत्सुकता, प्रबल उत्कंठा
विकाशः —पुं॰—-—वि + कश् + घञ्—एकान्तवास, एकाकीपन, सूनापन
विकाशक —वि॰—-—वि + काश् + ण्वुल्—प्रदर्शन करने वाला
विकाशक —वि॰—-—-—खोलने वाला
विकाशनम् —नपुं॰—-—वि + काश् + ल्युट्—प्रकटीकरण, प्रदर्शन, दिखावा
विकाशनम् —नपुं॰—-—-—खिलना, (फूलों का) फूलना
विकाशिन् —वि॰—-—वि + काश् + णिनि—दिखाई देने वाला, चमकने वाला
विकाशिन् —वि॰—-—वि + काश् + णिनि—फूलने वाला, खुलने वाला, खिलने वाला
विकासिन् —वि॰—-—वि + कास् + णिनि—दिखाई देने वाला, चमकने वाला
विकासिन् —वि॰—-—वि + कास् + णिनि—फूलने वाला, खुलने वाला, खिलने वाला
विकासः —पुं॰—-—वि + कस् + घञ्—खिलना, फूलना
विकासनम् —नपुं॰—-—वि + कस् + ल्युट्—फूलना, खुलना, खिलना
विकिरः —पुं॰—-—वि + कृ + अप्—बिखरा हुआ भाग या गिरा हुआ नन्हा टुकड़ा
विकिरः —पुं॰—-—-—जो फाड़ता या बखेरता है पक्षी
विकिरणम् —नपुं॰—-—वि + कृ + ल्युट्—बखेरना, इधर उधर फेंकना छितराना
विकिरणम् —नपुं॰—-—-—दूर-दूर तक फैलाना
विकिरणम् —नपुं॰—-—-—फाड़ डालना
विकिरणम् —नपुं॰—-—-—हिंसा करना
विकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + कृ + क्त—बखेरा हुआ छितराया हुआ
विकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रसृत
विकीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विख्यात
विकीर्णकेश —वि॰—विकीर्ण-केश—-—बालों को नोचने वाला, बालों को विखेरन या उलझ-पुलझ करने वाला
विकीर्णमूर्धज —वि॰—विकीर्ण-मूर्धज—-—बालों को नोचने वाला, बालों को विखेरन या उलझ-पुलझ करने वाला
विकीर्णज्ञम् —नपुं॰—विकीर्ण-ज्ञम्—-—एक प्रकार की सुंगन्ध
विकुण्ठः —पुं॰—-—विगता कुंठा यस्य प्रा॰ ब॰—विष्णु का स्वर्ग
विकुर्बाण —वि॰—-—वि + कृ + शानच्—परिवर्तित होने वाला, या परिवर्तन करने वाला
विकुर्बाण —वि॰—-—-—प्रसन्न, खुश, हृष्ट
विकुस्रः —पुं॰—-—वि + कस् + रक्, उत्वम्—चन्द्रमा
विकूजनम् —नपुं॰—-—वि + कूज् + ल्युट्—गुटुरगूं करना, कलरव करना
विकूजनम् —नपुं॰—-—-—(अंतडियों या नलों में) गुड़गुड़ाहट
विकूणिका —स्त्री॰—-—वि + कुण् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—नाक
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परिवर्तित, बदला हुआ, सुधारा हुआ
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रोगी, बीमार
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्षतविक्षत, विरूपित, जिसकी सूरत बिगड़ गई हो
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अपूर्ण अधूरा
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आवेशग्रस्त
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पराङ्मुख, ऊबा हुआ
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बीभत्स
विकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनोखा, असाधारण
विकृतम् —नपुं॰—-—-—परिवर्तन, सुधार
विकृतम् —नपुं॰—-—-—और भी बिगड़ जाना, बीमारी
विकृतम् —नपुं॰—-—-—अरुचि, जुगुप्सा
विकृतिः —स्त्री॰—-—वि + कृ + क्तिन्—(अभिप्राय, मन, रूप आदि का) बदलना
विकृतिः —स्त्री॰—-—-—अस्वाभाविक, अचानक घटित होने वाली परिस्थिति, दुर्घटना
विकृतिः —स्त्री॰—-—-—बीमारी
विकृतिः —स्त्री॰—-—-—उत्तेजना, उद्वेग, क्रोध, रोष
विकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + कृष् + क्त—अलग-अलग घसीटा हुआ, इधर-उधर खींचा हुआ
विकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आकृष्ट, खींचा हुआ, किसी की ओर आकृष्ट
विकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तारित, फैलाया हुआ
विकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—शब्दायमान
विकेश —वि॰ —-—विकीर्णाः केशायस्य - प्रा॰ व॰—बिखरे वालों वाला
विकेश —वि॰ —-—-—बिना बालों का गंजा (सिर)
विकेशी —स्त्री॰—-—-—ढीले बालों वाली स्त्री
विकेशी —स्त्री॰—-—-—बालों के शून्य (गंजी) स्त्री
विकेशी —स्त्री॰—-—-—मींढी, या बालों की छोटी छोटी लटों को मिला कर बनाई हुई चोटी, वेणी
विकोश —वि॰ —-—विगतः कोशो यस्य-प्रा॰ ब॰—बिना भूसी का
विकोश —वि॰ —-—विगतः कोशो यस्य-प्रा॰ ब॰—बिना म्यान का, बिना ढका हुआ
विकोष —वि॰ —-—-—बिना भूसी का
विकोष —वि॰ —-—-—बिना म्यान का, बिना ढका हुआ
विक्कः —पुं॰—-—विक् + कै + क—तरुण हाथी
विक्रमः —पुं॰—-—वि + क्रम् + घञ्, अच् वा—कदम, डग, पग
विक्रमः —पुं॰—-—-—कदम रखना, चलना
विक्रमः —पुं॰—-—-—पकड़ लेना, प्रभाव डाल लेना
विक्रमः —पुं॰—-—-—वीरता, शौर्य, नायक की बहादुरी
विक्रमः —पुं॰—-—-—उज्जयिनी के एक प्रसिद्ध राजा का नाम
विक्रमः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
विक्रमार्कः —पुं॰—विक्रमः-अर्कः—-—उज्जयिनी के एक प्रसिद्ध राजा का नाम
विक्रमादित्यः —पुं॰—विक्रमः-आदित्यः—-—उज्जयिनी के एक प्रसिद्ध राजा का नाम
विक्रमकर्मन् —नपुं॰—विक्रमः-कर्मन्—-—शूरवीरता का कार्य, पराक्रम के करतब
विक्रमणम् —नपुं॰—-—वि + क्रम् + ल्युट्—(विष्णु का) एक डग
विक्रमिन् —वि॰—-—वि + क्रम् + णिनि—पराक्रमी, शूरवीर
विक्रमिन् —पुं॰—-—वि + क्रम् + णिनि—सिंह
विक्रमिन् —पुं॰—-—वि + क्रम् + णिनि—नायक
विक्रमिन् —पुं॰—-—वि + क्रम् + णिनि—विष्णु का विशेषण
विक्रयः —पुं॰—-—वि + क्री + अच्—विक्री, बेचना
विक्रयानुशयः —पुं॰—विक्रयः-अनुशयः—-—बिक्री का खण्डर करना
विक्रयपत्रम् —नपुं॰—विक्रयः-पत्रम्—-—बिक्री का पत्र, बैनामा
विक्रयिकः —पुं॰—-—विक्री + इकन्—व्यापारी, विक्रेता, बेचने वाला
विक्रयिन् —पुं॰—-—विक्री + णिनि —व्यापारी, विक्रेता, बेचने वाला
विक्रस्रः —पुं॰—-—वि + कस् + रक्, अत्वं, रेफादेशः—चाँद
विक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्रम् + क्त—परे तक गया हुआ, डग रक्खे हुए
विक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्रम् + क्त—शक्तिशाली, शूरवीर, बहादुर, पराक्रमी
विक्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्रम् + क्त—विजयी, (अपने शत्रुओं को) परास्त करने वाला
विक्रान्तः —पुं॰—-—-—शूरवीर, योद्धा
विक्रान्तम् —नपुं॰—-—-—पद, डग
विक्रान्तम् —नपुं॰—-—-—घोड़े की सरपट चाल
विक्रान्तम् —नपुं॰—-—-—शूरवीरता, बहादुरी, पराक्रम
विक्रान्तिः —स्त्री॰—-—वि + क्रम् + क्तिन्—कदम रखना, डग भरना
विक्रान्तिः —स्त्री॰—-—-—घोड़े की सरपट चाल
विक्रान्तिः —स्त्री॰—-—-—शूरवीरता, बहादुरी, पराक्रम
विक्रान्तृ —वि॰—-—वि + क्रम् + तृच्—बहादुर, विजयी
विक्रिया —स्त्री॰—-—वि + कृ + श + टाप्—परिवर्तन, सुधार, बदलना
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—विक्षोभ, उत्तेजना, उद्वेग, जोश आना
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—क्रोध, गुस्सा, अप्रसन्नता
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—उलट, अनिष्ट
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—(मोजे इत्यादि) बुनना, आकुंचन वा (भौंहों की) सिकुड़न
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—आकस्मिक आन्दोलन
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—अकस्मात् रोगग्रस्तता, बीमारी
विक्रिया —स्त्री॰—-—-—उल्लंघन, (उचित कर्तव्य का) बिगाड़ देना
विक्रियोपमा —स्त्री॰—विक्रिया-उपमा—-—दण्डी द्वारा वर्णित उपमा का एक भेद
विक्रुष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्रुश् + क्त—चीत्कार किया, चिल्याया
विक्रुष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कठोर, क्रूर, निर्दय
विक्रुष्टम् —नपुं॰—-—-—सहायता प्राप्त करने के लिए क्रंदन करना, दुहाई देना
विक्रुष्टम् —नपुं॰—-—-—गाली
विकेय —वि॰—-—वि + क्री + यत्—बेचने के योग्य, (कोई वस्तु) विक्री कर दी जाने के योग्य
विक्रीशनम् —नपुं॰—-—वि + क्रुश् + ल्युट्—चिल्लाना, चीत्कार करना
विक्रीशनम् —नपुं॰—-—-—गाली देना
बिक्लव —वि॰—-—वि + क्लु +अच्—भयभीत, भड़का हुआ, चौंका हुआ, त्रस्त
बिक्लव —वि॰—-—-—रोगग्रस्त, परास्त
बिक्लव —वि॰—-—-—बिक्षुब्ध, उत्तेजित, घबराया हुआ, विह्वल
बिक्लव —वि॰—-—-—दुःखी, कष्टग्रस्त, संतप्त
बिक्लव —वि॰—-—-—ऊबा हुआ, अरुचिवान्
बिक्लव —वि॰—-—-—हकलानेवाला, लड़खड़ानेवाला
विक्लिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्लिद् + क्त—अत्यंत गीला, पूरी तरह भीगा हुआ
विक्लिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुर्झाया हुआ, सूखा हुआ
विक्लिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पुराना
विक्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्लिश् + क्त—अत्यंत कष्टग्रस्त, दुःखी
विक्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घायल, नष्ट किया हुआ
विक्लिष्टम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उच्चारण दोष
विक्षत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + क्षण् + क्त—फाड़ कर अलग अलग किया हुआ, घायल, चोट पहुंचाया हुआ, आघातग्रस्त
विक्षावः —पुं॰—-—वि + क्षु + घञ्—खांसी, छींक आना
विक्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + छिप् + क्त—बिखेरा हुआ, इधर उधर फेंका हुआ, छितराया हुआ, डाला हुआ
विक्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अलग करना, पदच्युत करना
विक्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भेजा गया, प्रेषित
विक्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भ्रान्त, व्याकुल, विक्षुब्ध
विक्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराकृत
विक्षीणकः —पुं॰—-—-—शिव के सेवकगण का मुखिया
विक्षीणकः —पुं॰—-—-—देवसभा
विक्षीरः —पुं॰—-—विशिष्टं विगतं वा क्षीरं यस्य प्रा॰ ब॰ —मदार का पौधा
विक्षेपः —पुं॰—-—वि + छिप् + घञ्—इधर उधर फेंकना, वखेरना
विक्षेपः —पुं॰—-—-—डालना, फेंकना
विक्षेपः —पुं॰—-—-—कर्तव्य निर्वाह करना
विक्षेपः —पुं॰—-—-—भेजना, प्रेषण
विक्षेपः —पुं॰—-—-—ध्यान हटाना, हड़बड़ी, व्यकुलता
विक्षेपः —पुं॰—-—-—खटका, भय
विक्षेपः —पुं॰—-—-—तर्क का निराकरण
विक्षेपः —पुं॰—-—-—ध्रुवीय अक्षरेखा
विक्षेपणम् —नपुं॰—-—वि + क्षिप् + ल्युट्—फेंकना, डालना, निकाल बाहर करना
विक्षेपणम् —नपुं॰—-—-—प्रेषण, भेजना
विक्षेपणम् —नपुं॰—-—-—बखेरना, छितराना
विक्षेपणम् —नपुं॰—-—-—हड़बड़ी, व्याकुलता
विक्षोभः —पुं॰—-—-—हिलाना, हलचल, आन्दोलन
विक्षोभः —पुं॰—-—-—मन की हलचल, ध्यान हटाना, खलबली
विक्षोभः —पुं॰—-—-—द्वन्द्व, संघर्ष
विख —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः ख आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विखु —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः खु आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विख्य —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः ख्य आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विख्र —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः ख्र आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विख्रु —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः ख्रु आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विग्र —वि॰—-—विगता नासिका यस्य-व॰ स॰ नासिकायाः ग्र आदेशः—नासिका से रहित, बिना नाक
विखण्डित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + खण्ड् + क्त—टुटा हुआ, विभक्त किया हुआ
विखण्डित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-— दो खण्डों में किया हुआ
विखानसः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साधु
विखुरः —पुं॰—-—-—राखस, पिशाच
विख्यात —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + ख्या +क्त—प्रख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध, मशहूर
विख्यात —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नामवर, नामधारी
विख्यात —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वीकृत, माना हुआ
विख्यातिः —स्त्री॰—-—वि + ख्या + क्तिन्—प्रसिद्धि, कीर्ति, यश, नाम
विगणनम् —नपुं॰—-—वि + गण् + ल्युट्—गिनना, संगणन, हिसाव लगाना
विगणनम् —नपुं॰—-—-—विचारना, विचारविनिमय करना
विगणनम् —नपुं॰—-—-—ऋण का परिशोध करना
विगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + गम् + क्त—जिसने प्रयाण कर लिया है, जो चला गया है, लुप्त
विगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जो अलग किया गया है, वियुक्त
विगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विरहित, शुन्य, मुक्त
विगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोया हुआ
विगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—धुंधला, अस्पष्ट
विगतार्तवा —स्त्री॰—विगत-आर्तवा—-—वह स्त्री जिसे बच्चा होना (या रजोधर्म होना) बन्द हो चुका हो
विगतकल्मष —वि॰—विगत-कल्मष—-—निष्पाप, पवित्र
विगतभी —वि॰—विगत-भी—-—निर्भय, निडर
विगतलक्षण —वि॰—विगत-लक्षण—-—भाग्यहीन, अशुभ
विगन्धकः —पुं॰—-—विरुद्धः गंधो यस्य ब॰ स॰—इंगुदी नाम का पेड़
विगमः —पुं॰—-—वि + गम् + अप्—प्रस्थान करना, अन्तर्धान, समाप्ति, अन्त
विगरः —पुं॰—-—-—नग्न रहने वाला सन्यासी
विगरः —पुं॰—-—-—वह पुरुष जिसने भोजन करना त्याग दिया हो
विगर्हणम् —नपुं॰—-—वि + गर्ह् + ल्युट्—निन्दा, कंलक, भर्त्सना, अपशब्द
विगर्हणा —स्त्री॰—-—वि + गर्ह् + स्त्रियां टाप्—निन्दा, कंलक, भर्त्सना, अपशब्द
विगर्हित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + गर्ह् + क्त—निन्दित, फटकारा हुआ, गाली दिया हुआ
विगर्हित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तिरस्कृत
विगर्हित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दोषी ठहराया गया, बुरा भला कहा गया, प्रतिषिद्ध
विगर्हित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नीच, दुष्ट
विगर्हित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बुरा, बदमाश
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + गल् + क्त—बूंद बूंद चूआ हुआ, मन्द मन्द निःसृत
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अन्तर्हित, गया हुआ
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अधःपतित
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पिघला हुआ, घुला हुआ
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तितरबितर हुआ
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढीला किया हुआ, खोला हुआ
विगलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खुला हुआ, बिखरा हुआ, अस्तव्यस्त (बाल आदि)
विगानम् —नपुं॰—-—विरुद्धः गानं प्र॰ स॰—निन्दा, भर्त्सना, मानहानि, बदनामी
विगानम् —नपुं॰—-—-—परस्पर विरोधी उक्ति, विरोध, अंसगति (शांकरभाष्य में पौनःपुन्येन प्रयोग)
विगाहः —पुं॰—-—वि + गाह् + घञ्—डुवकी लगाना, स्नान, गोता
विगीत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + गै + क्त—निन्दित, बुराभला कहा गया, डांटा फटकारा गया
विगीत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—विरोधी, असंगत
विगीतिः —स्त्री॰—-—वि + गै + क्तिन्—निन्दा, बुराभला कहना, सिड़कना
विगीतिः —स्त्री॰—-—-—परस्पर विरोधी उक्ति, विरोध
विगुण —वि॰ —-—विगतः विपरीतो वा गुणो यस्य ब॰ स॰—गुणों से शून्य, निकम्मा, बुरा
विगुण —वि॰ —-—-—गुणों से हीन
विगुण —वि॰ —-—-—बिना रस्सी का
विगूढ —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + गूह् + क्त—भेद, गुप्त, छिपा हुआ
विगूढ —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—निर्भत्सित, निन्दित
विगृहीत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + ग्रह् + क्त—विभक्त, भग्न किया हुआ, विश्लिष्ट किया हुआ (समास के रूप में) विघटित, विग्रह किया हुआ
विगृहीत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—पकड़ा हुआ
विगृहीत —वि॰—-—-—मुक़वला किया गया, विरोध किया गया
विग्रहः —पुं॰—-—वि + ग्रह् + अप्—फैलाव, विस्तार, प्रसार
विग्रहः —पुं॰—-—-—रूप, आकृति, शक्ल
विग्रहः —पुं॰—-—-—पृथककरण, विघटन, विश्लेषण, वियोजन
विग्रहः —पुं॰—-—-—कलह, झगड़ा,
विग्रहः —पुं॰—-—-—संग्राम,शत्रुता, लड़ाई, युद्ध, नीति के छः गुणों में से एक
विग्रहः —पुं॰—-—-—अननुग्रह
विग्रहः —पुं॰—-—-—भाग, अंशम् प्रभाग
विघटनम् —नपुं॰—-—वि + घट् + ल्युट्—अलग-अलग करना, बर्बादी, विनाश
विघटिका —स्त्री॰—-—विभक्ता घटिका यया-ब॰ स॰—समय की माप, एक घड़ी का साठवां भाग, पल (या लगभग चौबीस सेकेण्ड के बराबर समय)
विघटित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + घट् + क्त—वियुक्त, अलग-अलग किया हुआ
विघटित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—विभक्त
विघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + घट्ट् + ल्युट्—प्रहार करना, टक्कर मारना
विघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + घट्ट् + ल्युट्—घिसना, रगड़ना
विघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + घट्ट् + ल्युट्—वियोज्न, विगाड़ना, खोलना
विघट्टनम् —नपुं॰—-—वि + घट्ट् + ल्युट्—ठेस पहुँचाना, चोट पहुँचाना
विघट्ट्ना —स्त्री॰—-—-—प्रहार करना, टक्कर मारना
विघट्ट्ना —स्त्री॰—-—-—घिसना, रगड़ना
विघट्ट्ना —स्त्री॰—-—-—वियोज्न, विगाड़ना, खोलना
विघट्ट्ना —स्त्री॰—-—-—ठेस पहुँचाना, चोट पहुँचाना
विघट्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + घट्ट् + क्त—विभक्त किया हुआ, वियुक्त किया हुआ, अलग -अलग किया हुआ, तितर-बितर किया हुआ
विघट्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + घट्ट् + क्त—खोला हुआ, ढीला किया हुआ, विवृत किया हुआ
विघट्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + घट्ट् + क्त—रगड़ा हुआ, स्पर्श किया हुआ
विघट्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + घट्ट् + क्त—हिलाया हुआ, बिलोया हुआ
विघट्टित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + घट्ट् + क्त—चोट पहुँचाया हुआ, आघात किया हुआ
विघनः —पुं॰—-—वि + हन् + अप्, घसादेशः—मोगरी, हथौड़ा
विघसः —पुं॰—-—वि + अद् + अप् घसादेशः—आधा चर्वण किया हुआ, ग्रास, भोज्य पदार्थ का अवशेष या जूठन
विघसाशः —पुं॰—विघसः-आशः—-—भुक्तशेष या चढ़ावे के जूठन को खाने वाला
विघसाशिन् —पुं॰—विघसः-आशिन्—-—भुक्तशेष या चढ़ावे के जूठन को खाने वाला
विघातः —पुं॰—-—वि + हन् + घञ्—विनाश, हटाना, दूर करना
विघातः —पुं॰—-—-—हत्या, वध
विघातः —पुं॰—-—-—बाधा, रुकावट, विघ्न
विघातः —पुं॰—-—-—थप्पड़, प्रहार
विघातः —पुं॰—-—-—परित्याग करना, छोड़ना
विघातसिद्धि —स्त्री॰ —विघातः-सिद्धि—-—बाधाओं का दूर करना
विघूर्णित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + घूर्ण् + क्त—लुढ़काया हुआ, दोलायित, (आखें आदि) चारो ओर घुमाई हुई
विघृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + घृष् + क्त—अत्यंत रगड़ा हुआ, घिसा हुआ
विघृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—पीडित
विघ्नः —पुं॰—-—वि + हन् + क—वाधा, हस्तक्षेप, रुकावट, अड़चन
विघ्नः —पुं॰—-—-—कठिनाई, कष्ट
विघ्नीशः —पुं॰—विघ्नः-ईशः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नीसानः —पुं॰—विघ्नः-ईसानः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नीश्वरः —पुं॰—विघ्नः-ईश्वरः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नवाहनम् —पुं॰—विघ्नः-वाहनम्—-—चुहा
विघ्नकर —वि॰—विघ्नः-कर—-—विरोध करने वाला, अवरोध करने वाला
विघ्नकर्तृ —वि॰—विघ्नः-कर्तृ—-—विरोध करने वाला, अवरोध करने वाला
विघ्नकारिन् —वि॰—विघ्नः-कारिन्—-—विरोध करने वाला, अवरोध करने वाला
विघ्नध्वंसः —पुं॰—विघ्नः-ध्वंसः—-—बाधाओं को दूर करना
विघ्नविघातः —पुं॰—विघ्नः-विघातः—-—बाधाओं को दूर करना
विघ्ननायकः —पुं॰—विघ्नः-नायकः—-—गणेश का विशेषण
विघ्ननाशकः —पुं॰—विघ्नः-नाशकः—-—गणेश का विशेषण
विघ्ननाशनः —पुं॰—विघ्नः-नाशनः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नप्रतिक्रिया —स्त्री॰—विघ्नः-प्रतिक्रिया—-—बाधाओं को दूर करना
विघ्नराजः —पुं॰—विघ्नः-राजः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नविनायकः —पुं॰—विघ्नः-विनायकः—-—गणेश का विशेषण
विघ्नहारिन् —पुं॰—विघ्नः-हारिन्—-—गणेश का विशेषण
विघ्नसिद्धिः —स्त्री॰ —विघ्नः-सिद्धिः—-—बाधाओं को दूर करना
विघ्नित —वि॰ —-—विघ्न + इतच्—बाधायुक्त, अड़चनों से भरा हुआ, अवरुद्ध, रुकावसहित
विङ्खः —पुं॰—-—-—घोड़े का खुर
विच् —जुहो॰ रुधा॰ उभ॰ <वेविक्ति>,<वेविक्ते>,<विनक्ति>,<विंक्ते>,<विक्त>—-—-—वियुक्त करना, विभक्त करना, अलग-अलग करना
विच् —जुहो॰ रुधा॰ उभ॰ <वेविक्ति>,<वेविक्ते>,<विनक्ति>,<विंक्ते>,<विक्त>—-—-—विवेचन करना, विभेद करना, अन्तर पहचानना
विच् —जुहो॰ रुधा॰ उभ॰ <वेविक्ति>,<वेविक्ते>,<विनक्ति>,<विंक्ते>,<विक्त>—-—-—वञ्चित करना, हटाना
विच् —जुहो॰ रुधा॰ उभ॰ <वेविक्ति>,<वेविक्ते>,<विनक्ति>,<विंक्ते>,<विक्त>—-—-—वर्णन करना, बर्ताव करना
विच् —जुहो॰ रुधा॰ उभ॰ <वेविक्ति>,<वेविक्ते>,<विनक्ति>,<विंक्ते>,<विक्त>—-—-—फाड़ देना
विचकिलः —पुं॰—-—विच् + क, किल् + क, क॰ स॰ —एक प्रकार का चमेली, मदन नामक वृक्ष
विचक्षण —वि॰ —-—वि + चक्ष् + ल्युट्—स्पष्टदर्शी, दीर्घदर्शी, सावधान
विचक्षण —वि॰ —-—-—बुद्धिमान्, चतुर, विद्धान्
विचक्षण —वि॰ —-—-—विशेषज्ञ, कुशल, योग्य
विचक्षणः —पुं॰—-—-—विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान् आदमी
विचक्षुस् —वि॰—-—विगतं विनष्टं वा चक्षुर्यस्य—अंधा, दृष्टिहीन
विचक्षुस् —वि॰—-—-—व्याकुल, उदास
विचयः —पुं॰—-—वि + चि + अप्—खोज, ढूँढ़, तलाश
विचयः —पुं॰—-—-—छानबीन, तहक़ीकात
विचयनम् —नपुं॰—-—वि + चि + ल्युट्—खोजना, छानबीन करना
विचर्चिका —स्त्री॰—-—विशेषेण चर्व्यते पाणिपादस्य त्वक् विदार्यतेऽनया वि + चर्च् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—खुजली, विसर्पिका, खाज
विचर्चित —वि॰—-—वि + चर्च् + क्त—लेप किया हुआ, मला हुआ, मालिश किया हुआ
विचल —वि॰—-—वि + चल् + अच्—इधर उधर घूमने वाला, हिलने वाला, थरथराने वाला, लड़खड़ाने वाला, चंचल
विचल —वि॰—-—-—अभिमानी, घमंडी
विचलनम् —नपुं॰—-—वि + चल् + ल्युट्—स्पन्दन
विचलनम् —नपुं॰—-—-—व्यतिक्तम
विचलनम् —नपुं॰—-—-—अस्थिरता, चंचलता
विचारः —पुं॰—-—वि + चर् + घञ्—विमर्श, विनिमय, चिंतन, सोच
विचारः —पुं॰—-—-—परीक्षा, विचारविमर्श, गवेषणा, तत्त्वार्थविचार
विचारः —पुं॰—-—-—(किसी बात की) जाँच-पड़ताल
विचारः —पुं॰—-—-—निर्णय, विवेचन, विवेक, तर्कना
विचारः —पुं॰—-—-—निश्चय, निर्धारण
विचारः —पुं॰—-—-—संदेह, संकोच
विचारः —पुं॰—-—-—दूरदर्शिता, सतर्कता
विचारज्ञ —वि॰—विचारः-ज्ञ—-—निश्चय करने के योग्य, निर्णायक
विचारभूः —स्त्री॰—विचारः-भूः—-—न्यायाधिकरण, न्यायासन
विचारभूः —स्त्री॰—विचारः-भूः—-—विशेष कर यम की न्यायासन
विचारशील —वि॰—विचारः-शील—-—विचारपूर्ण, सचेत, दूरदर्शी
विचारस्थलम् —नपुं॰—विचारः-स्थलम्—-—न्यायाधिकरण
विचारस्थलम् —नपुं॰—विचारः-स्थलम्—-—तर्कसंगत चर्चा
विचारकः —पुं॰—-—वि + चर् + ण्वुल्—छानबीन या तहक़ीकात करने वाला, न्यायाधीश
विचारणम् —नपुं॰—-—वि + चर् + णिच् + ल्युट्—चर्चा, चिन्तन, परीक्षा, पर्यालोचन, अन्वेषण
विचारणम् —नपुं॰—-—-—संदेह, संकोच
विचारणा —स्त्री॰—-—वि + चर् + णिच् + युच् + टाप्—परीक्षण, विचारविमर्श, गवेषणा
विचारणा —स्त्री॰—-—-—पुनरिचार, सोच-विचार, चिन्तन
विचारणा —स्त्री॰—-—-—संदेह
विचारणा —स्त्री॰—-—-—दर्शनशास्त्र की मीमांसापद्धति
विचारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + चर् + णिच् + क्त—सोचा गया, पूछताछ की गई, परीक्षा की गई, विचारविमर्श, किया गया
विचारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निश्चित, निर्धारित
विचिः —पुं॰—-—विच् + इन् स च कित्—लहर, तरंग
विचीः —स्त्री॰—-—विचि + ङीष्—लहर, तरंग
विचिकित्सा —स्त्री॰—-—वि + कित् + सन् + अ + टाप्—सन्देह, शक
विचिकित्सा —स्त्री॰—-—-—भूल, चूक
विचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + चि + क्त—खोजा, तलाशी ली गई
विचितिः —स्त्री॰ —-—वि + चि + क्तिन्—ढूढँना, खोज, तलाश करना
विचित्र —वि॰—-—विशेषेण चित्रम्, प्रा॰ स॰ —रंग-विरंगा, चित्तीदार, धब्बेदार
विचित्र —वि॰—-—-—नानाविध, बहुविध
विचित्र —वि॰—-—-—सुन्दर, मनोहर
विचित्र —वि॰—-—-—आश्चर्ययुक्त, अचंभे वाला, अजीब
विचित्रम् —नपुं॰—-—-—बहुरङ्गी रङ्ग
विचित्रम् —नपुं॰—-—-—आश्वर्य
विचित्राङ्ग —वि॰—विचित्र-अङ्ग—-—जितकबरे शरीर वाला
विचित्राङ्गः —पुं॰—विचित्र-अङ्गः—-—मोर
विचित्राङ्गः —पुं॰—विचित्र-अङ्गः—-—व्याघ्र
विचित्रदेह —वि॰—विचित्र-देह—-—मनोहर शरीर वाला
विचित्रदेहः —पुं॰—विचित्र-देहः—-—बादल
विचित्ररूप —वि॰—विचित्र-रूप—-—विविध प्रकार का
विचित्रवीर्यः —पुं॰—विचित्र-वीर्यः—-—एक चन्द्रवंशी राजा का नाम
विचित्रकः —पुं॰—-—विचित्र + कप्—भोजपत्र का पेड़
विचित्रकम् —नपुं॰—-—-—आश्चर्य, ताज्जुब, अचम्भा
विचिन्वत्कः —पुं॰—-—वि + चि + शतृ + कन्—खोज
विचिन्वत्कः —पुं॰—-—-—गवेषणा
विचिन्वत्कः —पुं॰—-—-—शूरवीर
विचीर्ण —वि॰—-—वि + चृ + क्त—अधिकृत, व्याप्त
विचेतन —वि॰—-—विगता चेतना यस्य-प्रा॰ ब॰—संज्ञाहीन, मूढ, अज्ञानी
विचेतन —वि॰—-—-—व्याकुल, घबड़ाया हुआ, उदास
विचेष्टा —स्त्री॰—-—विशिष्टा चेष्टा प्रा॰ स॰—प्रयत्न, उद्यम, कोशिश
विचेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + चेष्ट् + क्त—उद्योग किया गया, कोशिश की गई, संघर्ष किया गया
विचेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—परीक्षण किया गया, गवेषणा की गई
विचेष्टित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—दुष्कृत, मूर्खतापूर्वक किया गया
विचेष्टितम् —नपुं॰—-—-—कर्म, कार्य
विचेष्टितम् —नपुं॰—-—-—प्रयत्न, आन्दोलन, उद्योग, साहसिक कार्य
विचेष्टितम् —नपुं॰—-—-—भावभंगी
विचेष्टितम् —नपुं॰—-—-—कार्यकरण, संवेदना, खेल
विचेष्टितम् —नपुं॰—-—-—कूट प्रबन्ध, षड्यन्त्र
विच्छ् —तुदा॰ पर॰ <विच्छति>,<विच्छयति>,<विच्छयते> भी—-—-—जाना, हिलना-जुलना
विच्छ् —चुरा॰ उभ॰ <विच्छयति>,<विच्छयते>—-—-—चमकाना
विच्छ् —चुरा॰ उभ॰ <विच्छयति>,<विच्छयते>—-—-—बोलना
विच्छन्दः —पुं॰—-—विशिष्टः छन्दोऽभिप्रायो यस्मिन्-ब॰ स॰—महल, विशालभवन जिसमें कई खण्ड या मञ्जिल हों
विच्छन्दकः —पुं॰—-—विशिष्टः छन्दोऽभिप्रायो यस्मिन्-ब॰ स॰, पक्षे कन् च—महल, विशालभवन जिसमें कई खण्ड या मञ्जिल हों
विच्छर्दकः —पुं॰—-—वि + छृद् + ण्वुल्—महल, प्रासाद
विच्छर्दनम् —नपुं॰—-—वि + छृद् +ल्युट्—कै करना, उलटी करना, उगलना
विच्छर्दित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + छृद् + क्त—कै किया हुआ, उगला हुआ
विच्छर्दित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—जिसकी अवज्ञा की गई हो, जिसकी उपेक्षा की गई हो
विच्छर्दित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—टूटा-फूटा, न्यूनीकृत
विच्छाय —वि॰—-—विगता छाया यस्य-प्रा॰ ब॰—निष्प्रभ, धुन्धला
विच्छायः —पुं॰—-—-—मणि, रत्न
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—वि + छिद् + क्तिन्—काट डालना, फाड़ देना
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—बांटना, अलग-अलग करना
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—अन्तर्धान, अनुपस्थित, लोप
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—विराम
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—शरीर को उबटन या रङ्गलेप से रङ्ना, रङ्गचित्रण, महावर
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—सीता (घर आदि की) हद
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—कविता में विराम, यति
विच्छित्तिः —स्त्री॰—-—-—विशेष प्रकार की शृङ्गारप्रिय भावना भावभंगिमा, जिसमें वेशभूषा के प्रति उपेक्षा भी सम्मिलित हो (अपने व्यक्तिगत सौन्दर्य के अभिमान के कारण)
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + छिद् + क्त—फाड़ा हुआ, काटा हुआ
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—तोड़ा हुआ, पृथक् किया हुआ, विभक्त, वियुक्त
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—हस्तक्षेप किया गया, रोका गया
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अन्त किया गया, बन्द किया गया, समाप्त किया गया
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—चितकबरा
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—गुप्त
विच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—उबटन आदि रंगलेप से पोता गया
विच्छुरित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विच्छुर् + क्त—ढका गया, ऊपर ले फैलाया गया, पोता गया
विच्छुरित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—जड़ा गया
विच्छुरित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—लीपा गया, पोता गया
विच्छेदः —पुं॰—-—वि + छिद् + घञ्—काट डालना, काटना, विभक्त करना, वियोग
विच्छेदः —पुं॰—-—-—रोक, हस्तक्षेप, विराम, बन्द कर देना
विच्छेदः —पुं॰—-—-—हटाना, प्रतिषेध
विच्छेदः —पुं॰—-—-—फूट अनबन
विच्छेदः —पुं॰—-—-—पुस्तक का अनुभाग या परिच्छेद
विच्छेदः —पुं॰—-—-—अन्तराल, अवकाश
विच्युत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + च्यु + क्त—अधःपतित, नीचे गिरा हुआ
विच्युत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—विस्थापित, पातित
विच्युत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—व्यतिक्रांत, पथविचलित
विच्युतिः —स्त्री॰—-—वि + च्यु + क्तिन्—अधःपतन, पृथक् होना, वियोग
विच्युतिः —स्त्री॰—-—-—ह्रास, क्षय, पतन
विच्युतिः —स्त्री॰—-—-—विचलन
विच्युतिः —स्त्री॰—-—-—गर्भस्राव, असफलता
विज् —जुहो॰ उभ॰ <वेवेक्ति>,<वेविक्ते>,<विक्त>—-—-—वियुक्त करना, विभक्त करना
विज् —जुहो॰ उभ॰ <वेवेक्ति>,<वेविक्ते>,<विक्त>—-—-—भेद करना, अन्तर पहचानना, विवेचन करना
विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰ <विजते>,<विनक्ति>,<विग्न>—-—-—हिलना, कांपना
विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰ <विजते>,<विनक्ति>,<विग्न>—-—-—बिक्षुब्ध होना, भय से कांपना
विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰ <विजते>,<विनक्ति>,<विग्न>—-—-—डरना, भयभीत होना
विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰ <विजते>,<विनक्ति>,<विग्न>—-—-—दुखी होना, कष्टग्रस्त होना
विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰, प्रेर॰ <वेजयति>,<वेजयते>—-—-—त्रास देना, डराना,
आविज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰—आ-विज्—-—डरना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰—उद्-विज्—-—भयभीत होना, डरना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰—उद्-विज्—-—खिन्न या कष्टग्रस्त होना, दुःखी होना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰—उद्-विज्—-—ऊबना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰—उद्-विज्—-—डराना, कष्ट देना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰, प्रेर॰—उद्-विज्—-—कष्ट देना, तंग करना
उद्विज् —तुदा॰ आ॰, रुधा॰ पर॰, प्रेर॰—उद्-विज्—-—डराना
विजन —वि॰—-—विगतो जनो यस्मात्-ब॰ स॰—अकेला, सेवानिवृत्त, एकाकी
विजनम् —नपुं॰—-—-—एकान्त स्थान, सुनसान स्थान
विजननम् —नपुं॰—-—वि + जन् + ल्युट्—जन्म, प्रसृष्टि, प्रसव
विजन्मन् —वि॰ —-—विरुद्धं जन्म यस्य - प्रा॰ ब॰—हरामी, जौ अवैधरूप से उत्पन्न हुआ है
विजन्मन् —पुं॰—-—विरुद्धं जन्म यस्य - प्रा॰ ब॰—हरामी, जौ अवैधरूप से उत्पन्न हुआ है
विजपिलम् —नपुं॰—-—विज् + क, पिल् + क, कर्म॰ स—गारा, कीचड़
विजयः —पुं॰—-—वि + जि + घञ्—जीतना, हराना, परास्त करना
विजयः —पुं॰—-—-—जीत, फतह, जय यात्रा
विजयः —पुं॰—-—-—देवताओं का रथ, दिव्य रथ
विजयः —पुं॰—-—-—अर्जुन का नाम
विजयः —पुं॰—-—-—यम का विशेषण
विजयः —पुं॰—-—-—बृहस्पति की दशा का प्रथम वर्ष
विजयः —पुं॰—-—-—विष्णु के सेवक का नाम
विजयाभ्युपायः —पुं॰—विजयः-अभ्युपायः—-—विजय का साधन या उपाय
विजयकुञ्जरः —पुं॰—विजयः-कुञ्जरः—-—लड़ाई का हाथी
विजयछन्दः —पुं॰—विजयः-छन्दः—-—पाँचसौ लड़ी का हार
विजयडिण्डिमः —पुं॰—विजयः-डिण्डिमः—-—सेना का विशाल ढोल
विजयनगरम् —नपुं॰—विजयः-नगरम्—-—एक नगर का नाम
विजयमर्दलः —पुं॰—विजयः-मर्दलः—-—एक विशाल सैनिक ढोल
विजयसिद्धिः —स्त्री॰—विजयः-सिद्धिः—-—सफलता, जीत, फतह
विजयन्तः —पुं॰—-—-—इन्द्र का नाम
विजया —स्त्री॰—-—विजय + टाप्—दुर्गा का नाम
विजया —स्त्री॰—-—-—उसकी सेविकाओं में से एक
विजया —स्त्री॰—-—-—एक विशेष विद्या जो विश्वामित्र ने राम को सिखाई थी
विजया —स्त्री॰—-—-—एक उत्सव का नाम
विजयोत्सवः —पुं॰—विजया-उत्सवः—-—दुर्गादेवी के सम्मान में उत्सव जो आश्विन शुक्ला दशमी के दिन मनाया जाता है
विजयादशमी —स्त्री॰—विजया-दशमी—-—आश्विनशुक्ला दशमी
विजयिन् —पुं॰—-—वि + जि + इनि—विजेता, जीतने वाला
विजरम् —नपुं॰—-—विगता जरा स्मात् - प्रा॰ ब॰—वृक्ष का तना
विजल्पः —पुं॰—-—वि + जल्प + घञ्—बाल कलरव, ऊटपटांग या मूर्खतापूर्ण बात
विजल्पः —पुं॰—-—-—सामान्य वार्ता
विजल्पः —पुं॰—-—-—दुर्भावनापूर्ण या विद्वेषपूर्ण भाषण
विजल्पित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + जल्प + क्त—कहा गया, जिससे बातें की गई
विजल्पित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भोली भाली बात, बाल सुलभ तुतलाहट
विजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—विरुद्धं जातं जन्म यस्य - प्रा॰ ब॰—नीच कुलोत्पन्न, वर्णसंकर
विजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उत्पन्न, जन्मा हुआ
विजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रूपान्तरित
विजाता —स्त्री॰—-—-—माता, मातृका वह स्त्री जिसके अभी सन्तान हुई हो
विजातिः —स्त्री॰—-—विभिन्ना जातिः प्रा॰ स॰—भिन्न मूल या जाति
विजातिः —स्त्री॰—-—-—भिन्न प्रकार, जाति, या कुटुम्ब
विजातीय —वि॰—-— विजाति + छ—भिन्न प्रकार या जाति का, असमान, विषम
विजातीय —वि॰—-—-—भिन्न वर्ण या जाति का
विजातीय —वि॰—-—-—मिली जुली जाति का
विजिगीषा —स्त्री॰—-—बि + जि + सन् + अ + टाप्—जीतने की या विजय प्राप्त करने की इच्छा
विजिगीषा —स्त्री॰—-—-—आगे बढ़ने की इच्छा, प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, महत्त्वाकांक्षी
विजिगीषु —वि॰—-—वि + जि + सन् + उ—जीत का इच्छुक, विजय करने की इच्छा वाला
विजिगीषु —वि॰—-—-—प्रतिस्पर्धी, महत्वाकांक्षी
विजिगीषुः —पुं॰—-—-—योद्धा, शूरवीर
विजिगीषुः —पुं॰—-—-—प्रतिद्वन्दी, झगड़ालू, प्रतिपक्षी
विजिज्ञासा —स्त्री॰—-—वि + ज्ञा + सन् + आ—स्पष्ट जानने की इच्छा
विजित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + जि + क्त—परास्त किया हुआ, जीता हुआ, जिसके ऊपर विजय प्राप्त की गई हो, हराया हुआ
विजितात्मन् —वि॰—विजित-आत्मन्—-—जिसने अपनी वासनाओं का दमन कर दिया है, जितेन्द्रिय
विजितेन्द्रिय —वि॰—विजित-इन्द्रिय—-—जिसने इन्द्रियों का दमन कर दिया है, या नियन्त्रण कर लिया है
विजितः —स्त्री॰ —-—वि + जि + क्तिन्—जीत, फतह, विजय
विजिनः —पुं॰—-—विज् + इनच्—चटनी (कांजी मिश्रित)
विजिनम् —नपुं॰—-—विज् + इलच् —चटनी (कांजी मिश्रित)
विजिह्म —वि॰—-—विशेषेण जिह्मः- प्रा॰ स॰—कुटिल झुका हुआ, मुड़ा हुआ
विजुलः —पुं॰—-—विज् + उलच्—शाल्मलि या सेमल का पेड़
विजृम्भणम् —नपुं॰—-—वि + जृम्भ् + ल्युट्—मुँह फाड़ना, जम्भाई लेना
विजृम्भणम् —नपुं॰—-—-—बौर आना, कली आना, खिलना, उन्मुक्त होना
विजृम्भणम् —नपुं॰—-—-—दिखलाना, प्रदर्शन करना, खोलना
विजृम्भणम् —नपुं॰—-—-—फैलाना
विजृम्भणम् —नपुं॰—-—-—मनोरंजन, आमोद-प्रमोद, रंगरेलियाँ
विजृम्भित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + जृम्भ् + क्त—मुंह फाड़ा, जम्भाई ली
विजृम्भित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उद्घाटित, विकसित, फैलाया हुआ
विजृम्भित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रदर्शित, दिखाया गया, प्रकट किया गया
विजृम्भित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दर्शन दिये गये
विजृम्भित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खेला गया
विजृम्भितम् —नपुं॰—-—-—क्रीड़ा, मनोरंजन
विजृम्भितम् —नपुं॰—-—-—अभिलाषा, इच्छा
विजृम्भितम् —नपुं॰—-—-—प्रदर्शन, प्रदर्शनी
विजृम्भितम् —नपुं॰—-—-—कृत्य, कर्म, आचरण
विज्जनम् —नपुं॰—-—विध् + जन् + अच्—एक प्रकार की चटनी
विज्जनम् —नपुं॰—-—विध् + जन् + अच्—तीर, बाण
विज्जलम् —नपुं॰—-—विध् + जड् - डलयोरभेदः + अच्—एक प्रकार की चटनी
विज्जलम् —नपुं॰—-—-—तीर, बाण
विज्जुलम् —नपुं॰—-—-—दारचीनी
विज्ञ —वि॰—-—वि + ज्ञा + क—जानने वाला, प्रतिभावान्, बुद्धिमान्, विद्वान्
विज्ञ —वि॰—-—-—चतुर, कुशल, प्रवीण
विज्ञः —पुं॰—-—-—बु्द्धिमान् या विद्धान् पुरुष
विज्ञप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + ज्ञप् + क्त—सादर कहा गया, प्रार्थित
विज्ञप्तिः —स्त्री॰—-—वि + ज्ञप् + क्तिन्— सादर उक्ति या समाचार, प्रार्थना, अनुरोध
विज्ञप्तिः —स्त्री॰—-—-—घोषणा
विज्ञात —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + ज्ञा + क्त—विदित, जाना हुआ, प्रत्यक्ष ज्ञान किया हुआ
विज्ञात —भू॰ क॰ कृ॰—-—-— विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध
विज्ञानम् —नपुं॰—-—वि + ज्ञा + ल्युट्—ज्ञान, बुद्धिमत्ता, प्रज्ञा, समझ
विज्ञानम् —नपुं॰—-—-—विवेचन, अन्तर पहचानना
विज्ञानम् —नपुं॰—-—-—कुशलता, प्रवीणता
विज्ञानम् —नपुं॰—-—-—सांसारिक या लौकिक ज्ञान, सांसारिक अनुभच से प्राप्त ज्ञान
विज्ञानम् —नपुं॰—-—-—व्यवसाय, नियोजन
विज्ञानम् —नपुं॰—-—-—संगीत
विज्ञानीश्वरः —पुं॰—विज्ञानम्-ईश्वरः—-—याज्ञवल्क्य, स्मृति की मिताक्षरा नामक टीका का प्रणेता
विज्ञानपादः —पुं॰—विज्ञानम्-पादः—-—व्यास का नाम
विज्ञानमातृकः —पुं॰—विज्ञानम्-मातृकः—-—बुद्ध का विशेषण
विज्ञानवादः —पुं॰—विज्ञानम्-वादः—-—ज्ञान का सिद्धान्त, बुद्ध द्वारा सिखाया गया सिद्धान्त
विज्ञानिक —वि॰—-—विज्ञान + ठन्—बुद्धिमान्, विद्धान्
विज्ञापकः —पुं॰—-—वि + ज्ञा + णिच् + ण्वुल्, पुकागमः—सूचना देने वाला
विज्ञापकः —पुं॰—-—-—अध्यापक, शिक्षक
विज्ञापनम् —नपुं॰—-—वि + ज्ञा + णिच् +ल्युट्, पुकागमः—शिष्ट उक्ति या संवाद, प्रार्थना, अनुरोध
विज्ञापनम् —नपुं॰—-—वि + ज्ञा + णिच् +ल्युट्, पुकागमः—सूचना, वर्णंन
विज्ञापनम् —नपुं॰—-—वि + ज्ञा + णिच् +ल्युट्, पुकागमः—शिक्षण
विज्ञापना —स्त्री॰—-—-—शिष्ट उक्ति या संवाद, प्रार्थना, अनुरोध
विज्ञापना —स्त्री॰—-—-—सूचना, वर्णंन
विज्ञापना —स्त्री॰—-—-—शिक्षण
विज्ञापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + ज्ञा + णिच् + क्त, पुकागमः—शिष्टतापूर्वक कहा हुआ या संवाद दिया हुआ
विज्ञापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रार्थित
विज्ञापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संसूचित
विज्ञापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—शिक्षित
विज्ञाप्तिः —स्त्री॰—-—वि + ज्ञा + णिच् + क्तिन्, पुकागमः—
विज्ञाप्यम् —नपुं॰—-—वि + ज्ञा + णिच् + यत्, पुकागमः—प्रार्थना
विज्वर —वि॰—-—विगतो ज्वरो यस्य- ब॰ स॰—ज्वर से मुक्त, चिन्ता या दुःख से मुक्त
विञ्जामरम् —नपुं॰—-—-—आँखों की सफेदी, नेत्रों का श्वेत भाग
विञ्जोलिः —स्त्री॰—-—विज् + उल, पृषो॰ साधुः—रेखा, पंक्ति
विञ्जोली —स्त्री॰—-—विज् + उल, पृषो॰ साधुः—रेखा, पंक्ति
विट् —भ्वा॰ पर॰ <वेटति>—-—-—ध्वनि करना
विट् —भ्वा॰ पर॰ <वेटति>—-—-—अभिशाप देना, दुर्वचन कहना
विटः —पुं॰—-—विट् + क—जार, यार, उपपति
विटः —पुं॰—-—-—लंपट, कामुक
विटः —पुं॰—-—-—(नाटकों में) किसी राजा या दुश्चरित्र युवक का साथी
विटः —पुं॰—-—-—गांडू, इल्लती
विटः —पुं॰—-—-—खैर या खदिर का पेड़
विटः —पुं॰—-—-—नारंगी का पेड़
विटः —पुं॰—-—-—पल्लवयुक्त शाखा
विटमाक्षिकम् —नपुं॰—विटः-माक्षिकम्—-—एक प्रकार का खनिजपदार्थ, सोनामाखी
विटलवणम् —नपुं॰—विटः-लवणम्—-—रोगनाशक नमक
विटङ्कः —पुं॰—-—विशेषेण टङ्क्यते बध्यते इति-वि + टङ्क़् + घञ्—चिड़िया-घर, कबूतर का दरबा
विटङ्कः —पुं॰—-—विशेषेण टङ्क्यते बध्यते इति-वि + टङ्क़् + घञ्—सबसे ऊंचा सिरा, कलश या कंगूरा, ऊंचाई
विटङ्ककः —पुं॰—-—विटङ्क + कन्—चिड़िया-घर, कबूतर का दरबा
विटङ्ककः —पुं॰—-—विटङ्क + कन्—सबसे ऊंचा सिरा, कलश या कंगूरा, ऊंचाई
विटङ्कित —वि॰—-—वि + टङ्क् + क्त—चिह्णित, मुद्रांकित
विटपः —पुं॰—-—विटम् विस्तारम् वा पाति पिबति-पा + क—शाखा, (लता या वृक्ष की)टहनी
विटपः —पुं॰—-—-—नया अंकुर या किसलय
विटपः —पुं॰—-—-—गुल्म, झुण्ड, झुरमुट
विटपः —पुं॰—-—-—अंडकोष पटल
विटपिन् —पुं॰—-—विटप + इनि—वृक्ष
विटपिन् —पुं॰—-—-—वटवृक्ष, गूलर
विटपिमृगः —पुं॰—विटपिन्-मृगः—-—बन्दर, लंगूर
विट्टलः —पुं॰—-—-—विष्णु या कृष्ण का रूप
विठ्ठलः —पुं॰—-—-—विष्णु या कृष्ण का रूप
विठङ्क —वि॰—-—-—बुरा, दुष्ट, अधम, नीच
विठरः —पुं॰—-—-—बृहस्पति का नाम
विड् —भ्वा॰ पर॰ <वेडति>—-—-—अभिशाप देना, दुर्वचन कहना, बुरा भला कहना
विड् —भ्वा॰ पर॰ <वेडति>—-—-—जोर से चिल्लाना
विडम् —नपुं॰—-—विड् + क—एक प्रकार का कृत्रिम नमक
विडङ्गः —पुं॰—-—विड् + अङ्गच्—एक प्रकार का शाक, बायबिडंग (कृमिनाशक औषधि के रूप में बहुधा प्रयुक्त)
विडङ्गम् —नपुं॰—-—विड् + अङ्गच्—एक प्रकार का शाक, बायबिडंग (कृमिनाशक औषधि के रूप में बहुधा प्रयुक्त)
विडम्बः —पुं॰—-—विडम्ब् + अप्—नकल
विडम्बः —पुं॰—-—विडम्ब् + अप्—दुःखी करना, तंग करना, कष्ट देना
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—नकल
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—छद्मवेश, छलमुद्रा
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—धोखेबाजी, जालसाजी
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—क्लेश, संताप
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—पीडित करना, दुःख देना
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—निराश करना
विडम्बनम् —नपुं॰—-—विडंब् + ल्युट्—मजाक, उपहास, परिहासविषय
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—छद्मवेश, छलमुद्रा
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—धोखेबाजी, जालसाजी
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—क्लेश, संताप
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—पीडित करना, दुःख देना
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—निराश करना
विडम्बना —स्त्री॰—-—-—मजाक, उपहास, परिहासविषय
विडम्बित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विडम्ब् + क्त—अनुकरण किया गया, नकल किया गया, परिहास किया गया, मजाक बनाया गया
विडम्बित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विडम्ब् + क्त—ठगा गया
विडम्बित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विडम्ब् + क्त—क्लेश पहुंचाया गया, संतप्त किया गया
विडम्बित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विडम्ब् + क्त—हताश गिया गया
विडम्बित —भू॰ क॰ कृ॰ —-—विडम्ब् + क्त—नीच, कमीना, दीन
विडारकः —पुं॰—-—विडाल + कन्, लस्य रः—विलाव
विडालः —पुं॰—-—विड् + कालन्—बिस्ता, बिलाब
विडालः —पुं॰—-—विड् + कालन्—आँख का डेला
विडालकः —पुं॰—-—विडाल + कन्—बिलाव
विडालकः —पुं॰—-—विडाल + कन्—आँख के बाहरी भाग पर मल्हम लगाना
विडीनम् —नपुं॰—-—वि + डी + क्त—पक्षियों की एक उड़ानविशेष
विडुलः —पुं॰—-—विड् + कुलन्—एक प्रकार की बेत
विडूरजम् —नपुं॰—-—विजर् + जन् + ड—वैदूर्य, नीलम
विडोजस् —पुं॰—-—विट् व्यापकम् ओजो यस्य-ब॰ स॰—इन्द्र का नाम
विडौजस् —पुं॰—-—विट् व्यापकम् ओजो यस्य-ब॰ स॰—इन्द्र का नाम
वितंसः —पुं॰—-—वि + तंस् + घञ्—पक्षियों का पिंजरा
वितंसः —पुं॰—-—वि + तंस् + घञ्—रस्सी, शृंखला, जाल या ज़ंजीर आदि जिनसे बनैले पशु-पक्षी क़ैद किये जाय
वितण्डः —पुं॰—-—वि + तंड् +अच्—हाथी
वितण्डः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का ताला या चटख़नी
वितण्डा —स्त्री॰—-—वितंड + टाप्—सदोष आक्षेप, निराधार छिद्रान्वेषण, ओछा तर्क, निरर्थक तर्कवितर्क
वितण्डा —स्त्री॰—-—-—तूतू-मैंमैं, दोषपूर्ण आलोचना
वितण्डा —स्त्री॰—-—-—चम्मच, स्रुवा
वितण्डा —स्त्री॰—-—-—गुग्गुल, धूप
वितत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + तन् + क्त—फैलाया हुआ, विस्तृत किया हुआ, बिछाया हुआ
वितत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आयत, विशाल, विस्तीर्ण
वितत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सम्पन्न, निष्पन्न, कार्यान्वित
वितत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढका हुआ
वितत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रसृत
विततम् —नपुं॰—-—-—कोई भी ऐसा उपकरण जिसमें तार लगे हों
विततधन्वन् —वि॰—वितत-धन्वन्—-—जिसने अपने धनुष को पूरी तरह तान लिया है
विततिः —स्त्री॰—-—वि + तन् + क्तिन्—विस्तार, प्रसार
विततिः —स्त्री॰—-—-—परिमाण, संग्रह, गुल्म, झुण्ड
विततिः —स्त्री॰—-—-—रेखा, पंक्ति
वितथ —वि॰—-—वि + तन् + क्थन्—झूठ, मिथ्या
वितथ —वि॰—-—-—व्यर्थ, निरर्थक
वितथ्य —वि॰—-—वितथ + यत्—मिथ्या
वितद्रुः —स्त्री॰—-—वि + तन् + रु, दुट्—पंजाब की एक नदी का नाम, वितस्ता या झेलम नदी
वितन्तुः —पुं॰—-—-—अच्छा घोड़ा
वितन्तुः —स्त्री॰—-—-—विधवा
वितरणम् —नपुं॰—-—वि + तृ + ल्युट्—पार जाना
वितरणम् —नपुं॰—-—-—उपहार, दान
वितरणम् —नपुं॰—-—-—छोड़ देना, त्याग करना, तिलांजलि देना
वितर्कः —पुं॰—-—वि + तर्क् + अच्—युक्ति, दलील, अनुमान
वितर्कः —पुं॰—-—-—अन्दाज़ अटकल, कल्पना, विश्चास
वितर्कः —पुं॰—-—-—उद्भावन, चिन्तन
वितर्कः —पुं॰—-—-—विचारविनिमय, विचारविमर्श
वितर्कणम् —नपुं॰—-—वि + तर्क् + ल्युट्—तर्क करना
वितर्कणम् —नपुं॰—-—-—अटकल करना, अन्दाज लगाना
वितर्कणम् —नपुं॰—-—-—सन्देह
वितर्कणम् —नपुं॰—-—-—तर्क वितर्क
वितर्दिः —स्त्री॰—-—वि + तर्द् + इन्—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्दिः —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितर्दी —स्त्री॰—-—वितर्दि + ङीष्—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्दी —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितर्दिका —स्त्री॰—-—वितर्दि + कन् + टाप्—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्दिका —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितर्द्धिः —स्त्री॰—-—-—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्द्धिः —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितर्द्धी —स्त्री॰—-—-—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्द्धी —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितर्द्धिका —स्त्री॰—-—-—आंगन में बना हुआ चौकोर चबूतरा
वितर्द्धिका —स्त्री॰—-—-—छज्जा, बरामदा
वितलम् —नपुं॰—-—विशेषेण तलम्-प्रा॰ स॰ —पृथ्वी के नीचे स्थित सात तलों में से दूसरा
वितस्ता —स्त्री॰—-—-—पंजाब की एक नदी जिसको यूनानी Hydaspes कहते हैं तथा जो आजकल `झेलम्' या `वितस्ता' के नाम से विख्यात है
वितस्तिः —स्त्री॰—-—वि + तस् + ति—बारह अंगुल की लम्बाई की माप
वितान —वि॰—-—वि + तन् + घ्—ख़ाली, रीता
वितान —वि॰—-—-—हतोत्साह, उदास
वितान —वि॰—-—-—दुष्ट, परित्यक्त
वितानः —पुं॰—-—-—फैलाना, प्रसार करना, विस्तार करना
वितानः —पुं॰—-—-—शामियाना, चंदोवा
वितानः —पुं॰—-—-—संग्रह, परिमाण, समवाय
वितानः —पुं॰—-—-—यज्ञ, आहुति
वितानः —पुं॰—-—-—यज्ञ की वेदी
वितानः —पुं॰—-—-—ऋतु, मौसम
वितानम् —नपुं॰—-—-—अवकाश, विश्राम
वितानकः —पुं॰—-—वितान + कन्—प्रसार
वितानकः —पुं॰—-—वितान + कन्—ढेर, परिणाम, संग्रह राशि
वितानकः —पुं॰—-—वितान + कन्—शामियाना, चंदोवा
वितानकः —पुं॰—-—वितान + कन्—माड नामक वृक्ष
वितानकम् —नपुं॰—-—-—प्रसार
वितानकम् —नपुं॰—-—-—ढेर, परिणाम, संग्रह राशि
वितानकम् —नपुं॰—-—-—शामियाना, चंदोवा
वितानकम् —नपुं॰—-—-—माड नामक वृक्ष
वितीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + तृ + क्त—पार किया हुआ, पास से गुजरा हुआ
वितीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—दिया हुआ, अर्पित, प्रदत्त
वितीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—नीचे गया हुआ, अवतारित
वितीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—ढोया गया
वितीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—दमन किया गया, जीत लिया गया
वितुन्नम् —नपुं॰—-—वि + तुद् + क्त—`सुनिषण्णक' नामक शाक, सुसना
वितुन्नम् —नपुं॰—-—-—शैवाल नाम का पौधा, सेवार
वितुन्नकम् —नपुं॰—-—वितुन्न + कन्—धनिया
वितुन्नकम् —नपुं॰—-—-—तूतिया
वितुन्नकः —पुं॰—-—-—तामलकी नामक पौधा
वितुष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + तुष् + क्त—असन्तुष्ट, अप्रसन्न, सन्तोष से शून्य
वितृष्ण —वि॰—-—विगता तृष्णा यस्य प्रा॰ ब॰—इच्छा से मुक्त, सन्तुष्ट
वित्त् —चुरा॰ उभ॰ <वित्तयति>,<वित्तयते>—-—-—पुरस्कार देना, दान देना
वित्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—विद् लाभे + क्त—पाया, खोजा
वित्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लब्ध, अवाप्त
वित्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परीक्षित, अनुसंहित
वित्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विख्यात, प्रसिद्ध
वित्तम् —नपुं॰—-—-—धन दौलत जायदाद, संपत्ति, द्रव्य
वित्तागमः —पुं॰—वित्त-आगमः—-—धन का अधिग्रहण
वित्तोपार्जनम् —नपुं॰—वित्त-उपार्जनम्—-—धन का अधिग्रहण
वित्तीशः —पुं॰—वित्त-ईशः—-—कुबेर का विशेषण
वित्तदः —पुं॰—वित्त-दः—-—दानी, दाता
वित्तमात्रा —स्त्री॰—वित्त-मात्रा—-—संपत्ति
वित्तवत् —वि॰—-—वित्त + मतुप्—धनवान्, दौलतमंद
वित्ति —स्त्री॰—-—विद् + क्तिन्—ज्ञान
वित्ति —स्त्री॰—-—-—निर्णय, विवेचन, चिन्तन
वित्ति —स्त्री॰—-—-—लाभ, अधिग्रहण
वित्ति —स्त्री॰—-—-—संभावना
वित्रासः —पुं॰—-—वि + त्रस् + घञ्—भय, खटका, त्रास या डर
वित्सनः —पुं॰—-—क्दि + क्विय्, सन् + अच्—बैल, साँड
विथ् —भ्वा॰ आ॰ <वेथते>—-—-—प्रार्थना करना, निवेदन करना
विथुरः —पुं॰—-—व्यथ् + उरच्, संप्रसारणं च—राक्षस
विद् —अदा॰ पर॰ <वेत्ति>,<वेद>,<विदित>, इच्छा॰ <विविदिषति>—-—-—जानना, समझना, सीखना, मालूम करना, निश्चय करना, खोजना
विद् —अदा॰ पर॰ <वेत्ति>,<वेद>,<विदित>, इच्छा॰ <विविदिषति>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना
विद् —अदा॰ पर॰ <वेत्ति>,<वेद>,<विदित>, इच्छा॰ <विविदिषति>—-—-—मुंह ताकना, सम्मान करना, मानना, जाना, समझना
विद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ <वेदयति>,<वेदयते>—-—-—जतलाना, सूचना देना, सूचित करना, अवगत कराना बाताना
विद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ <वेदयति>,<वेदयते>—-—-—अध्यापन करना, व्याख्या करना
विद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ <वेदयति>,<वेदयते>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना
आविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —आ-विद्—-—घोषणा करना, कहना, प्रकथन करना
आविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —आ-विद्—-—प्रदर्शन करना, दिखाना इंगित करना
आविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —आ-विद्—-—प्रस्तुत करना, देना
निविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —नि-विद्—-—बताना, समाचार देना, सूचित करना
निविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —नि-विद्—-—अपनी उपस्थिति की घोषणा करना
निविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —नि-विद्—-—इंगित करना, दिखलाना
निविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —नि-विद्—-—प्रस्तुत करना, उपस्थित होना, भेंट चढ़ाना
निविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —नि-विद्—-—देख रेख में सौंपना, दे देना
प्रतिविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰ —प्रति-विद्—-—समाचार देना सूचित करना
संविद् —अदा॰ आ॰—सम्-विद्—-—जानना, सावधान होना
संविद् —अदा॰ आ॰—सम्-विद्—-—पहचानना
संविद् —अदा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-विद्—-—जतलाना, प्रत्यक्ष ज्ञान कराना
विद् —दिवा॰ आ॰ <विद्यते>,<वित्त>—-—-—होना, विद्यमान होना
विद् —तुदा॰ उभ॰ <विंदति>,<विंदते>,<वित्त>—-—-—हासिल करना, प्राप्त करना, अवाप्त करना, उपलब्ध करना
विद् —तुदा॰ उभ॰ <विंदति>,<विंदते>,<वित्त>—-—-—मालूम करना, खोजना, पहचानना
विद् —तुदा॰ उभ॰ <विंदति>,<विंदते>,<वित्त>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना
विद् —तुदा॰ उभ॰ <विंदति>,<विंदते>,<वित्त>—-—-—विवाह करना
अनुविद् —तुदा॰ उभ॰—अनु-विद्—-—हासिल करना, प्राप्त करना
अनुविद् —तुदा॰ उभ॰—अनु-विद्—-—भुगतना, अनुभव करना, महसूस करना
विद् —रुधा॰ आ॰ <विंत्त>,<वित्त>,<विन्न>—-—-—जानना, समझना
विद् —रुधा॰ आ॰ <विंत्त>,<वित्त>,<विन्न>—-—-—मानना, लिहाज करना, समझना
विद् —रुधा॰ आ॰ <विंत्त>,<वित्त>,<विन्न>—-—-—मालूम करना, भेंट होना
विद् —रुधा॰ आ॰ <विंत्त>,<वित्त>,<विन्न>—-—-—तर्क करना, विमर्श करना
विद् —रुधा॰ आ॰ <विंत्त>,<वित्त>,<विन्न>—-—-—परीक्षण करना, पूछताछ करना
विद् —चुरा॰ आ॰ <वेदयते>—-—-—कहना, प्रकथन करना, घोषणा करना, समाचार देना
विद् —चुरा॰ आ॰ <वेदयते>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना
विद् —चुरा॰ आ॰ <वेदयते>—-—-—रहना
विद् —वि॰—-— विद् + क्विप्—जानने वाला, जानकार, वेदविद् आदि
विद् —पुं॰—-—-—विद्वान् पुरुष, बुद्धिमान मनुष्य
विद् —स्त्री॰—-—-—समझ, बुद्धि
विदः —पुं॰—-—विद् + क—विद्वान पुरुष, बुद्धिमान मनुष्य, पंडितजन
विदा —स्त्री॰—-—-—ज्ञान, अधिगम
विदंशः —पुं॰—-—वि + दंश् + घञ्—चटपटा भोजन जिसके खाने से प्यास अधिक लगे
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + दह् + क—जला हुआ, आग से भस्म हुआ
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पका हुआ
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पचा हुआ
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नष्ट किया हुआ, गला-सड़ा
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चतुर, कुशाग्रबुद्धि, निपुण, सूक्ष्मदर्शी
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—धूर्त, कलाभिज्ञ, षड्यंत्रकारी
विदग्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनजला या अनपचा
विदग्धः —पुं॰—-—-—बुद्धिमान या विद्वान् पुरुष, विद्याव्यसनी
विदग्धः —पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी
विदग्धा —स्त्री॰—-—-—चालाक, चतुर स्त्री, कलाविद् स्त्री
विदथः —पुं॰—-—विद् + कथच्—विद्वान् पुरुष, विद्याव्यसनी
विदथः —पुं॰—-—-—संन्यासी, मुनि
विदरः —पुं॰—-— वि + दृ + अप्—तोड़ना, फटना, विदीर्ण होना
विदरम् —नपुं॰—-—-—कांटदारी नाशपाती, कंकारी वृक्ष
विदर्भाः —पुं॰—-—विगता दर्भाः कुशा यतः—एक जिले का नाम, आधुनिक बरार
विदर्भाः —पुं॰—-—-—विदर्भ के निवासी
विदर्भः —पुं॰—-—-—विदर्भ देश का राजा
विदर्भः —पुं॰—-—-—सूखी या मरुभूमि
विदर्भाजा —स्त्री॰—विदर्भाः-जा—-—विदर्भ-राज की पुत्री दमयन्ती के विशेषण
विदर्भातनया —स्त्री॰—विदर्भाः-तनया—-—विदर्भ-राज की पुत्री दमयन्ती के विशेषण
विदर्भाराजतनया —स्त्री॰—विदर्भाः-राजतनया—-—विदर्भ-राज की पुत्री दमयन्ती के विशेषण
विदर्भासुभ्रः —स्त्री॰—विदर्भाः-सुभ्रः—-—विदर्भ-राज की पुत्री दमयन्ती के विशेषण
विदल —वि॰—-— विघट्टितानि दलानि यस्य - वि + दल् + क—टुकड़े टुकड़े हुए, आरपार चीरा हुआ
विदल —वि॰—-—-—खुला हुआ, (फूल आदि) खिला हुआ
विदलः —पुं॰—-—-—विभक्त करना, अलग अलग करना
विदलः —पुं॰—-—-—फाड़ना, टुकड़े टुकड़े करना
विदलः —पुं॰—-—-—पहाड़ी आबनूस
विदलम् —नपुं॰—-—-—बाँस की खपचियों की बनी टोकरी, या लचीली डालियों की बनी बस्तुएँ
विदलम् —नपुं॰—-—-—अनार की छाल
विदलम् —नपुं॰—-—-—किसी द्रव्य की फाँक
विदलम् —नपुं॰—-—वि + दल् + ल्युट्—खण्ड खण्ड करना, फाड़ कर अलग अलग करना, काटना, विभक्त करन
विदारः —पुं॰—-— वि + दॄ + घञ्—फाड़ना, चीरना, खण खण्ड करना
विदारः —पुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध
विदारः —पुं॰—-—-—(किसी नदी याड तालाब का) ऊपर से बहना, जलप्लावन
विदारकः —पुं॰—-—वि + डृ + ण्वुल्—फाड़ने वाला, बाँटने वाला
विदारकः —पुं॰—-—-—नदी की धार के मध्य में स्थित वृक्ष या चट्टान (जो नदी के मार्ग को विभक्त कर दे)
विदारकः —पुं॰—-—-—किसी शुष्क नदी के पाट में पानी के लिए बनाया गया छिद्र
विदारणः —पुं॰—-—वि + दृ + णिच् + ल्युट्—नदी के मध्य में स्थित चट्टान या वृक्ष (जिससे नाव बाँध दी जाय)
विदारणः —पुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध
विदारणः —पुं॰—-—-—कर्णिकार या कनियर का वृक्ष
विदारणा —स्त्री॰—-—-—संग्राम, युद्ध
विदारणम् —नपुं॰—-—-—फाड़ना, खण्ड खण्ड करना, चीरना, छिन्न करना, तोड़ना
विदारणम् —नपुं॰—-—-—कष्ट देना, सन्ताप देना
विदारणम् —नपुं॰—-—-—वध, हत्या
विदारुः —पुं॰—-—वि + दृ + णिच् + उ—छिपकली
विदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—विद् + क्त—ज्ञात, समझा हुआ, सीखा हुआ
विदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सूचित
विदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विश्रुत, विख्यात, प्रसिद्ध
विदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रतिज्ञात, इकरार किया हुआ
विदितः —पुं॰—-—-—विद्वान पुरुष, विद्याव्यसनी
विदितम् —नपुं॰—-—-—ज्ञान, सूचना
विदिश् —स्त्री॰—-—दिग्भ्यो विगता—दो दिशाओं का मध्यवर्ती बिन्दु
विदिशा —स्त्री॰—-—-—दशार्ण नामक प्रदेश की राजधानी (वर्तमान भेलसा नगर)
विदिशा —स्त्री॰—-—-—मालवा प्रदेश की एक नदी का नाम
विदिशा —स्त्री॰—-—-—दो दिशाओं का मध्यवर्ती बिन्दु
विदीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + दृ + क्त—फाड़ा हुआ, खण्ड खण्ड किया हुआ, विदारण किया हुआ, फाड़ कर खोला हुआ
विदीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोला हुआ, फैलाया हुआ
विदुः —पुं॰—-—विद् + कु—हाथी के गंडस्थल का मध्य भाग, हाथी का ललाट
विदुर —वि॰—-—विद् + कुरच्—बुद्धिमान्, मनीषी
विदुरः —पुं॰—-—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष्
विदुरः —पुं॰—-—-—धूर्त आदमी, षड्यन्त्रकारी
विदुरः —पुं॰—-—-—पाण्डु के छोटे भाई का नाम
विदुलः —पुं॰—-—वि + दुल् + क—एक प्रकार का कान्ना, बेंत
विदुलः —पुं॰—-—-—लोबान की तरह का एक सुगंधित गंधरस
विदून —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + दू + क्त—कष्टग्रस्त, संतप्त, दुःखी
विदूर —वि॰—-—विशेषण दूरः प्रा॰ स॰—जो बहुत दूर हो, दूरस्थित
विदूरः —पुं॰—-—-—पहाड़ का नाम जहाँ से वैदूर्यमणि निकलती है
विदूरग —वि॰—विदूर-ग—-—दूर दूर तक फैला हुआ
विदूरजम् —नपुं॰—विदूर-जम्—-—वैदूर्य मणि
विदूषक —वि॰—-—विदूषयति स्वं परं वा-वि + दूष् + णिच् + ण्वुल्—दूषित करने वाला, मलिन करने वाला, छूत फैलाने वाला, भ्रष्ट करने वाला
विदूषक —वि॰—-—-—बदनाम करने वाला, गाली-गलौज बकने वाला
विदूषक —वि॰—-—-—रसिक, मसखरा, ठिठोलिया
विदूषकः —पुं॰—-—-—हंसोड़, भांड, परिहासक
विदूषकः —पुं॰—-—-—विशेषतः नाटक में नायक का दिल्लगीबाज साथी और अन्तरंग मित्र जो अपनी अनोखी वेशभूषा, बातचीत, हावभाव, मुखमुद्रा आदि से तथा अपने आपको परिहास का पात्र बना कर उल्लास में वृद्धि कसता है
विदूषकः —पुं॰—-—-—स्वेच्छाचारी, लंपट
विदूषणम् —नपुं॰—-—वि + दूष् + ल्युट्—मलिनीकरण, भ्रष्टाचार
विदूषणम् —नपुं॰—-—-—दुर्वचन, झिड़की, परिवाद
विदृतिः —पुं॰—-—वि + दृ + क्तिन्—सीवन, सन्धि
विदेशः —पुं॰—-—विप्रकृष्टो देशः प्रा॰ स॰ —दूसरा देश, परदेश
विदेशज —वि॰—विदेशः-ज—-—विदेशी, परदेशी
विदेशीय —वि॰—-—विदेश + छ—परदेशी, विदेशी
विदेहाः —पुं॰—-— विगतो देहो देहसंबंधो यस्य प्रा॰ ब॰—एक देश का नाम, प्राचीन मिथिला
विदेहाः —पुं॰—-—-—इस देश के निवासी
विदेहः —पुं॰—-—-—विदेह का ज़िला
विदेहा —स्त्री॰—-—-—विदेह
विद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—व्यध् + क्त—बींधा हुआ, चुभा हुआ, घायल, छुरा भोंका हुआ
विद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पीटा हुआ, कशाहत, बेत्राहत
विद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फेंका गया, निदेशित, प्रेषित
विद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विरोध किया गया
विद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिलता जुलता
विद्धकर्ण —वि॰—विद्धम्-कर्ण—-—जिसके कान छिदे हों
विद्या —स्त्री॰—-—विद् + क्यप् + टाप्—ज्ञान, अवगम, शिक्षा, विज्ञान
विद्या —स्त्री॰—-—-—यर्थाथ ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान
विद्या —स्त्री॰—-—-—जादू, मन्त्र
विद्या —स्त्री॰—-—-—दुर्गादेवी
विद्या —स्त्री॰—-—-—ऐन्द्रजालिक, कुशलता
विद्यानुपालिन् —वि॰—विद्या-अनुपालिन्—-—ज्ञानोपार्जन करने वाला
विद्यानुसेविन् —वि॰—विद्या-अनुसेविन्—-—ज्ञानोपार्जन करने वाला
विद्यागमः —पुं॰—विद्या-आगमः—-—ज्ञान प्राप्त करना, शिक्षा ग्रहण करना, अध्ययन
विद्यार्जसम् —नपुं॰—विद्या-अर्जसम्—-—ज्ञान प्राप्त करना, शिक्षा ग्रहण करना, अध्ययन
विद्याभ्यासः —पुं॰—विद्या-अभ्यासः—-—ज्ञान प्राप्त करना, शिक्षा ग्रहण करना, अध्ययन
विद्यार्थः —पुं॰—विद्या-अर्थः—-—ज्ञान की खोज
विद्यार्थिन् —वि॰—विद्या-अर्थिन्—-—छात्र, विद्याव्यसनी, शिष्य
विद्यालयः —पुं॰—विद्या-आलयः—-—विद्यालय, महाविद्यालय, विद्यामन्दिर
विद्योपार्जनम् —नपुं॰—विद्या-उपार्जनम्—-—विद्यार्जनम्
विद्याकरः —पुं॰—विद्या-करः—-—विद्वान् पुरुष
विद्याचण —वि॰—विद्या-चण—-—अपने ज्ञान एवं शिक्षा के लिए प्रसिद्ध
विद्याचञ्चु —वि॰—विद्या-चञ्चु—-—अपने ज्ञान एवं शिक्षा के लिए प्रसिद्ध
विद्यादेवी —स्त्री॰—विद्या-देवी—-—सरस्वती देवी
विद्याधनम् —नपुं॰—विद्या-धनम्—-—विद्यारूपी दौलत
विद्याधरः —पुं॰—विद्या-धरः—-—एक देवयोनि विशेष, अर्धदेवता
विद्याधरी —स्त्री॰—विद्या-धरी—-—एक देवयोनि विशेष, अर्धदेवता
विद्याप्राप्तिः —स्त्री॰—विद्या-प्राप्तिः—-—विद्यार्जन
विद्यालाभः —पुं॰—विद्या-लाभः—-—ज्ञान की प्राप्ति
विद्यालाभः —पुं॰—विद्या-लाभः—-—ज्ञान के द्वारा प्राप्त किया गया धन आदि
विद्याविहीन —वि॰—विद्या-विहीन—-—निरक्षर, अज्ञानी
विद्यावृद्ध —वि॰—विद्या-वृद्ध—-—ज्ञान में बढ़ा हुआ, शिक्षा में प्रगतिशील
विद्याव्यसनम् —नपुं॰—विद्या-व्यसनम्—-—ज्ञान की खोज
विद्याव्यवसायः —पुं॰—विद्या-व्यवसायः—-—ज्ञान की खोज
विद्युत् —स्त्री॰—-—विशेषेण द्योतते-वि + द्युत् + क्विप्—बिजली
विद्युत् —स्त्री॰—-—-—वज्र
विद्युदुन्मेषः —पुं॰—विद्युत्-उन्मेषः—-—बिजली की कौंध
विद्युज्जिह्वः —पुं॰—विद्युत्-जिह्वः—-—एक प्रकार का राक्षस
विद्युज्ज्वाला —स्त्री॰—विद्युत्-ज्वाला—-—बिजली की कौंध या कांति
विद्युद्द्योतः —पुं॰—विद्युत्-द्योतः—-—बिजली की कौंध या कांति
विद्युद्दामन् —नपुं॰—विद्युत्-दामन्—-—वक्र गति से युक्त बिजली की कौंध या चमक
विद्युत्पातः —पुं॰—विद्युत्-पातः—-—बिजली का गिरना या प्रहार
विद्युत्प्रियम् —नपुं॰—विद्युत्-प्रियम्—-—कांसा
विद्युल्लता —स्त्री॰—विद्युत्-लता—-—बिजली की कौंध या लहर
विद्युल्लता —स्त्री॰—विद्युत्-लता—-—वक्रगतिशील या कुटिल विजली
विद्युल्लेखा —स्त्री॰—विद्युत्-लेखा—-—बिजली की कौंध या लहर
विद्युल्लेखा —स्त्री॰—विद्युत्-लेखा—-—वक्रगतिशील या कुटिल विजली
विद्युत्वत् —वि॰—-—विद्युत् + मतुप्—बिजली से युक्त
विद्युत्वत् —पुं॰—-—-—बादल
विद्योतन —वि॰—-—वि + द्युत् + णिच् + ल्युट्—प्रकाश करने वाला, चमकाने वाला
विद्योतन —वि॰—-—-—सोदाहरण निरूपन करने वाला, व्याख्या करने वाला
विद्रः —पुं॰—-—व्यध् + रक्, दान्तादेशः, सम्प्रसारणम्—फाड़ना, खण्ड खण्ड करना, छेद करना
विद्रः —पुं॰—-—-—दरार, छिद्र, विवर
विद्रधिः —पुं॰—-—विद् + रुध् + कि, पृषो॰—पीपदार फोड़ा
विद्रवः —पुं॰—-—वि + द्रु + अप्—भाग जाना, उड़ान, प्रत्यावर्तन
विद्रवः —पुं॰—-—-—पिघलना, गलना
विद्राण —वि॰—-—वि + द्रा + क्त—नींद से जागा हुआ, उद्वुद्ध
विद्रावणम् —नपुं॰—-—वि + द्रु + णिव् + ल्युट्—भगाना, खदेड़ना, हाँक कर दूर करना, परास्त करना
विद्रावणम् —नपुं॰—-—-—गलाना, पिघालना
विद्रुमः —पुं॰—-—विशिष्टो द्रुमः—मूँगे का वृक्ष (लाल रंग के मूल्यवान मूँगों (मणियों) को पैदा करने वाला)
विद्रुमः —पुं॰—-—-—मूँगा प्रवाल
विद्रुमः —पुं॰—-—-—कोंपल या किसलय
विद्रुमलता —स्त्री॰—विद्रुमः-लता—-—मूँगे की शाखा
विद्रुमलता —स्त्री॰—विद्रुमः-लता—-—एक प्रकार का गंधद्रव्य
विद्रुमलतिका —स्त्री॰—विद्रुमः-लतिका—-—`नलिका' नामक एक गंध द्रव्य
विद्वस् —वि॰—-—विद् + क्वसु—जानने वाला
विद्वस् —वि॰—-—-—बुद्धिमान्, विद्धान्
विद्वस् —पुं॰—-—-—विद्वान् मनुष्य या बुद्धिमान्, व्यक्ति, विद्याव्यसनी
विद्धत्कल्प —वि॰—विद्वस्-कल्प—-—भोड़ा पढ़ा लिखा, कम विद्वान्
विद्वद्देशीय —वि॰—विद्वस्-देशीय—-—भोड़ा पढ़ा लिखा, कम विद्वान्
विद्वद्देश्य —वि॰—विद्वस्-देश्य—-—भोड़ा पढ़ा लिखा, कम विद्वान्
विद्वज्जनः —पुं॰—विद्वस्-जनः—-—विद्वान् या बुद्धिमान् पुरुष, मुनि
विद्विष् —पुं॰—-—वि + द्विष् + क्विप् —शत्रु, दुश्मन
विद्विषः —पुं॰—-—वि + द्विष् + क—शत्रु, दुश्मन
विद्विष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + द्विष् + क्त—घृणित, अनीप्सित, कुत्सित
विद्वेषः —पुं॰—-—वि + द्विष् + घञ्—शत्रुता, घृणा, कुत्सा
विद्वेषः —पुं॰—-—-—तिरस्करणीय घमण्ड, गर्हा (मानहानि)
विद्वेषणः —पुं॰—-—वि + द्विष् + ल्युट्—घृणा करने वाला, शत्रु
विद्वेषणी —स्त्री॰—-—-—रोषपूर्ण स्वभाव की स्त्री
विद्वेषणम् —नपुं॰—-—-—घृणा और शत्रुता पैदा करना
विद्वेषणम् —नपुं॰—-—-—शत्रुता, घृणा
विद्वेषिन् —वि॰—-—विद्विष् + णिनि—घृणा करने वाला, शत्रुतापूर्ण
विद्वेष्ट्ट —वि॰—-—विद्विष् + तृच्—घृणा करने वाला, शत्रुतापूर्ण
विद्वेषिन् —पुं॰—-—-—घृणक, शत्रु
विध् —तुदा॰ पर॰ <विधति>—-—-—चुभोना, काटना
विध् —तुदा॰ पर॰ <विधति>—-—-—सम्मान करना, पूजा करना
विध् —तुदा॰ पर॰ <विधति>—-—-—राज्य करना, शासन करना, प्रशासन
विधः —पुं॰—-—विध् + क—प्रकार, किस्म यथा बहुविध, नानाविध में
विधः —पुं॰—-—-—ढंग, रीति, रूप
विधः —पुं॰—-—-—तह (समास के अन्त में, विशेष कर अंको के पश्चात्) त्रिविध, अष्टाविध आदि
विधः —पुं॰—-—-—हाथियों का आहार
विधवनम् —नपुं॰—-—वि + धू + ल्युट्—हिलना, विक्षुब्ध करना
विधवनम् —नपुं॰—-—-—थरथराहट, कंपकंपी
विधवा —स्त्री॰—-—विगतो धवो यस्याः सा—रांड, बेवा
विधवावेदनम् —नपुं॰—विधवा-आवेदनम्—-—बेवा स्त्री से विवाह करना
विधवागामिन् —नपुं॰—विधवा-गामिन्—-—जो विधवा स्त्री से सहवास करता है
विधव्यम् —नपुं॰—-—वि + धू + ण्यत्—थरथराहट, विक्षोभ
विधस् —पुं॰—-—-—सर्व सृष्टि का उत्पादक ब्रह्मा
विधा —स्त्री॰—-—वि + धा + क्विप्—ढंग, रीति, रूप
विधा —स्त्री॰—-—-—प्रकार, किस्म
विधा —स्त्री॰—-—-—समृद्धि, सम्पन्नता
विधा —स्त्री॰—-—-—हाथी घोड़ों का चारा, खाद्य पदार्थ
विधा —स्त्री॰—-—-—छेद करना
विधा —स्त्री॰—-—-—किराया, मजदूरी
विधातृ —पुं॰—-—वि + धा + तृच्—निर्माता, स्रष्टा
विधातृ —पुं॰—-—-—स्रष्टा, ब्रह्मा-विधाता
विधातृ —पुं॰—-—-—अनुदाता, दाता, प्रदाता
विधातृ —पुं॰—-—-—भाग्य, दैव
विधातृ —पुं॰—-—-—विश्वकर्मा
विधात्रायुस् —पुं॰—विधातृ-आयुस्—-—सूर्य की चमक, धूप
विधात्रायुस् —पुं॰—विधातृ-आयुस्—-—सूरजमुखी फूल
विधातृभूः —पुं॰—विधातृ-भूः—-—नारद का विशेषण
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—क्रम से रखना, व्यवस्था करना
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—अनुष्ठान, निर्माण, करण
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—सृष्टि, रचना
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—नियोजन, उपयोग, प्रयोग
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—नियत करना, विहित करना, आदेश देना
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—नियम, उपदेश, अध्यादेश, धार्मिक नियम या विधि, निषेध
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—ढंग, रीति
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—साधन या तरकीब
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—हाथियों का आहार (जो उन्हें मदोन्मत्त करने के लिए दिया जाता है)
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—धन दौलत
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—पीड़ा, वेदना, सन्ताप, दुःख
विधानम् —नपुं॰—-—वि + धा + ल्युट्—शत्रुता का कार्य
विधानगः —पुं॰—विधानम्-गः—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष
विधानज्ञः —पुं॰—विधानम्-ज्ञः—-—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष
विधानयुक्त —वि॰—विधानम्-युक्त—-—वेदविधि के अनुरूप, या अनुकूल
विधानकम् —नपुं॰—-—विधान + कन्—दुःख, कष्ट, पीड़ा
विधायक —वि॰—-—वि + धा + ण्वुल्—क्रमबद्ध करने वाला, व्यवस्थित करने वाला
विधायक —वि॰—-—-—बनाने वाला, निर्माण करने वाला, सम्पन्न करने वाला, कार्यान्वित करने वाला
विधायक —वि॰—-—-—रचना करने वाला
विधायक —वि॰—-—-—व्यवस्थित करने वाला, विहित करने वाला, निर्धारित करने वाला
विधायक —वि॰—-—-—अर्पण करने वाला, सौंपने वाला, (किसी की देख रेख में) हवाले करने वाला
विधिः —पुं॰—-—वि + धा + कि—करना, अनुष्ठान, अभ्यास कृत्य, कर्म
विधिः —पुं॰—-—-—प्रणाली, रीति, पद्धति, साधन, ढंग
विधिः —पुं॰—-—-—नियम, समादेश, कोई विधि जो सबसे किसी बात को लागू करती है
विधिः —पुं॰—-—-—वेद विधि या नियम, अध्यादेश, निषेध, कानून, वेदाज्ञा, धार्मिक समादेश
विधिः —पुं॰—-—-—कोई धार्मिक कृत्य या संस्कार, धार्मिक रस्म, संस्कार
विधिः —पुं॰—-—-—व्यवहार, आचरण
विधिः —पुं॰—-—-—रचना, बनावट
विधिः —पुं॰—-—-—भाग्य, दैव, किस्मत
विधिः —पुं॰—-—-—हाथियों का खाद्य पदार्थ
विधिः —पुं॰—-—-—डाक्टर, वैद्य
विधिज्ञ —वि॰—विधिः-ज्ञ—-—कर्मकाण्ड का ज्ञाता
विधिज्ञः —पुं॰—विधिः-ज्ञः—-—कर्मकाण्ड में निष्णात ब्राह्मण, कर्मकाण्डी
विधिदृष्ट —वि॰—विधिः-दृष्ट—-—नियत, विहित
विधिविहित —वि॰—विधिः-विहित—-—नियत, विहित
विधिद्वैयम् —नपुं॰—विधिः-द्वैयम्—-—निययों की विविधता, विधि या समादेश की विभिन्नता
विधिपूर्वकम् —अव्य॰—विधिः-पूर्वकम्—-—नियमानुकूल
विधिप्रोयगः —पुं॰—विधिः-प्रोयगः—-—नियम का व्यवहार
विधियोगः —पुं॰—विधिः-योगः—-—भाग्य का बल या प्रभाव
विधिवधूः —स्त्री॰—विधिः-वधूः—-—सरस्वती का विशेषण
विधिहीन —वि॰—विधिः-हीन—-—नियम शून्य, अनधिकृत, अनियमित
विधित्सा —स्त्री॰—-—वि + धा + सन् +अ + टाप्—सम्पन्न करने की इच्छा
विधित्सा —स्त्री॰—-—-—आयोजन, प्रयोजन, इच्छा
विधित्सत —वि॰ —-—वि + धा + सन् + क्त—किये जाने के लिये अभिप्रेत
विधित्सतम् —नपुं॰—-—-—इराद, अभिप्राय, आयोजन
विधुः —पुं॰—-—व्यध् + कु—चन्द्रमा
विधुः —पुं॰—-—-—पिशाच, दानव
विधुः —पुं॰—-—-—प्रायश्चित्तपरक आहुति
विधुः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
विधुक्षयः —पुं॰—विधुः-क्षयः—-—चन्द्रमा की कलाओं का ह्रास, कृष्ण पक्ष का समय
विधुपञ्जरः —पुं॰—विधुः-पञ्जरः—-—खङ्ग, कटार
विधुप्रिया —स्त्री॰—विधुः-प्रिया—-—रोहिणी नक्षत्र
विधुतिः —स्त्री॰—-—वि + धु + क्तिन्—हिलना, संक्षोभ, थरथराहट
विधुननम् —नपुं॰—-—वि + धू + णिच् + ल्युट्, नुट्, पृषो॰ ह्रस्वः—हिलना, झूमना, विक्षुब्ध होना
विधुननम् —नपुं॰—-—-—कंपकंपी, थरथराहट
विधुन्तुदः —पुं॰—-—विधुं तुदति पीडयति-विधु + तुद् + खश्, मुम्—राहु
विधुर —वि॰—-—विगता धूः कार्यभारो यस्मात् -प्रा॰ ब॰—दुःखी, विपद्ग्रस्त, कष्टग्रस्त, शोकाकुल, दयनीय
विधुर —वि॰—-—-—जिससे प्रेम करने वाला कोई न रहा हो, शोकग्रस्त, पत्नी या पति की विरहव्यथा से व्याकुल
विधुर —वि॰—-—-—शून्य, वञ्चित, विरहित, मुक्त
विधुर —वि॰—-—-—विरोधी, वैरी, शत्रु
विधुरम् —नपुं॰—-—-—खटका, भय, चिन्ता
विधुरम् —नपुं॰—-—-—पति या पत्नो से वियोग, प्रेमी या प्रेमिका द्वारा शोकाकुलता
विधुरा —स्त्री॰—-—बिधुर + टाप्—दही जिसमें चीनी व मसाले डाले हुए हों
विधुवनम् —नपुं॰—-—वि + धु + ल्युट्, कुटादित्वात् साधुः—हिलना, थरथरी, कंपकंपी
विधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + धू + क्त—हिला हुआ, उथलपुथल हुआ, तरंगित
विधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—थरथराता हुआ
विधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उखड़ा हुआ, मिटाया हुआ, हटाया हुआ
विधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अस्थिर
विधूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परित्यक्त
विधूतम् —नपुं॰—-—-—विरक्ति, अरुचि
विधूतिः —स्त्री॰—-—वि + धू + क्तिन्—हिलना, थरथरी, कंपकंपी,विक्षोभ
विधूननम् —नपुं॰—-—वि + धू + णिच् + ल्युट्, नुक्—हिलना, थरथरी, कंपकंपी,विक्षोभ
विधृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + धृ + क्त—पकड़ा हुआ, थामा हुआ, ग्रहण किया हुआ
विधृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वियुक्त, अलग-अलग रक्खा गया
विधृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—धारण किया गया, कब्जे में किया गया
विधृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रोका गया, नियन्त्रित किया गया
विधृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहारा दिया गया, प्ररक्षित, समर्थित
विधृतम् —नपुं॰—-—-—आदेश की अवहेलना
विधृतम् —नपुं॰—-—-—असन्तोष
विधेय —सं॰ कृ॰—-—वि + धा + यत्—किये जाने के योग्य, अनुष्ठेय
विधेय —सं॰ कृ॰—-—-—विहित या नियत किये जाने योग्य
विधेय —सं॰ कृ॰—-—-—आश्रित, निर्भर
विधेय —सं॰ कृ॰—-—-—अधीन, प्रभावित, नियन्त्रित, दमन किया गया, परास्त किया गया
विधेय —सं॰ कृ॰—-—-—आज्ञाकारी, शासनीय, अनुवर्ती, वश्य
विधेय —वि॰—-—-—विधेय (कर्ता के संबंध में कही गई बात) होने के योग्य
विधेयम् —नपुं॰—-—-—जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य
विधेयम् —नपुं॰—-—-—प्रतिज्ञा या प्रस्थापना की उक्ति
विधेयः —पुं॰—-—-—सेवक, भृत्य
विधेयाविमर्शः —पुं॰—विधेय-अविमर्शः—-—रचनासंबंधी दोष जिससे विधेय आश्रित स्थिति का हो जाय या उसका अधूरा कथन किया जाय
विधेयात्मन् —पुं॰—विधेय-आत्मन्—-—विष्णु
विधेयज्ञ —वि॰—विधेय-ज्ञ—-—जो अपना कर्तव्य जानता है
विधेयपदम् —नपुं॰—विधेय-पदम्—-—सम्पन्न किया जाने वाला उद्देश्य
विधेयपदम् —नपुं॰—विधेय-पदम्—-—कर्ता के संबंध में कहीं गई उक्ति-विधेय
विध्वंसः —पुं॰—-—वि + ध्वंस् + घञ्—बरबादी, विनाश
विध्वंसः —पुं॰—-—-—शत्रुता, अरुचि, नापसन्दगी
विध्वंसः —पुं॰—-—-—अपमान, अपराध
विध्वंसिन् —वि॰—-—वि + ध्वंस् + णिनि—बरबाद होने वाला, टुकड़े टुकड़े हो जाने वाला
विध्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + ध्वस् + क्त—बरबाद हुआ, विनष्ट
विध्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—इधर उधर बिखेरा हुआ, छितराया हुआ
विध्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अस्पष्ट, धुंधला
विध्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ग्रहणग्रस्त
विनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नम् + क्त—झुका हुआ, नंवा हुआ
विनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवनत हुआ, लटकता हुआ, मुड़ा हुआ
विनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—डूबा हुआ, अवसन्न
विनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुका हुआ, कुटिल, वक्र
विनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विनीत, शिष्ट
विनता —स्त्री॰—-—विनत + टाप्—अरुण और गरुड़ की माता जो कश्यप की एक पत्नी थी
विनता —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की टोकरी
विनतानन्दनः —पुं॰—विनता-नन्दनः—-—गरुड़ या अरुण के विशेषण
विनतासुतः —पुं॰—विनता-सुतः—-—गरुड़ या अरुण के विशेषण
विनतासूनुः —पुं॰—विनता-सूनुः—-—गरुड़ या अरुण के विशेषण
विनतिः —स्त्री॰—-—वि + नम् + क्तिन्—नमना, झुकना, नीचे को होना
विनतिः —स्त्री॰—-—-—विनय, विनम्रता
विनतिः —स्त्री॰—-—-—प्रार्थना
विनदः —पुं॰—-—वि + नद् + अच्—ध्वनि, कोलाहल
विनदः —पुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम
विनमनम् —नपुं॰—-—वि + नम् + ल्युट्—झुकना, नमना, सिर और कंधे झुका कर चलना
विनम्र —वि॰—-—वि + नम् + र—झुका हुआ, झुक कर चलता हुआ
विनम्र —वि॰—-—-—अवसन्न, डूबा हुआ
विनम्र —वि॰—-—-—विनयशील, विनीत
विनम्रकम् —नपुं॰—-—विनम्र + कन्—`तगर' वृक्ष का फूल
विनय —वि॰—-—वि + नी + अक्—डाला हुआ, फेंका हुआ
विनयः —पुं॰—-—-—निर्देश, अनुशासन, अनुदेश (अपने कर्तव्यक्षेत्र में) नैतिक प्रशिक्षण
विनयः —पुं॰—-—-—औचित्य, शिष्टाचार, सुशीलता
विनयः —पुं॰—-—-—शिष्ट आचरण, सज्जनोचित व्यवहार, सच्चरित्र, अच्छा चलन
विनयः —पुं॰—-—-—शालीनता, विनम्रता
विनयः —पुं॰—-—-—श्रद्धा, शिष्टता, सौजन्य
विनयः —पुं॰—-—-—खींच लेना, दूर करना, हटाना
विनयः —पुं॰—-—-—जितेन्द्रिय (जिसने अपनीं इन्द्रियो को वश में कर लिया है)
विनयः —पुं॰—-—-—व्यापारी, सौदागर
विनयावनत —वि॰—विनय-अवनत—-—झुका हुआ, विनम्र
विनयग्राहिन् —वि॰—विनय-ग्राहिन्—-—शासनीय, आज्ञाकारी अनुवर्ती
विनयवाच् —वि॰—विनय-वाच्—-—मृदुभाषी, मिलनसार
विनयस्थ —वि॰—विनय-स्थ—-—विनयस्थ
विनयनम् —नपुं॰—-—वि + नी + ल्युट्—हटना, दूर करना
विनयनम् —नपुं॰—-—-—शिक्षा, शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुशासन
विनशनम् —नपुं॰—-—वि + नश् + ल्युट्—नाश, हानि, विनाश, लोप
विनशनः —पुं॰—-—-—उस स्थान का नाम जहाँ सरस्वती नदी रेत में लुप्त हो गई है
विनष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नश् + क्त—ध्वस्त, उच्छिन्न, बर्बाद
विनष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ओझल, गुप्त
विनष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बिगड़ा हुआ, भ्रष्ट
विनस —वि॰—-—विगता नासिका यस्य, नासिकाशब्दस्य नसादेशः—विना नाक का, नाकरहित
विना —अव्य॰ —-—वि + ना— बगैर, सिवाय
विना कृ ——-—-—छोड़ना, परित्याग करना, विरहित करना, वञ्चित करना
विनोक्तिः —स्त्री॰—विना-उक्तिः—-—एक अलंकार जिसमें `विना' काव्य की दृष्टि से सुन्दर ढंग से प्रयुक्त होता है
विनाडिः —स्त्री॰—-—विगता नाडिः—समय की एक माप जो घड़ी के साठवें भाग के बराबर होती है, एक पल या चौबीस सैकंड
विनाडिका —स्त्री॰—-—विगता नाडिका यया—समय की एक माप जो घड़ी के साठवें भाग के बराबर होती है, एक पल या चौबीस सैकंड
विनायकः —पुं॰—-—विशिष्टो नायकः प्रा॰ स॰ —(बाधाओं के) हटाने वाला
विनायकः —पुं॰—-—-—बुद्ध धर्म का देवरूप अध्यापक
विनायकः —पुं॰—-—-—रुकावट, अड़चन
विनाशः —पुं॰—-—वि + नश् + घञ्—ध्वंस, बर्बादी, भारी हानि, क्षय
विनाशोन्मुख —वि॰—विनाशः-उन्मुख—-—नष्ट होने वाला, मरने के लिए तैयार
विनाशधर्मन् —वि॰—विनाशः-धर्मन्—-—क्षीण होने वाला, नष्ट होने वाला, क्षणभंगुर
विनाशधर्मिन् —वि॰—विनाशः-धर्मिन्—-—क्षीण होने वाला, नष्ट होने वाला, क्षणभंगुर
विनाशनम् —नपुं॰—-—वि + नश् + णिच् + ल्युट्—विनाश, बर्बादी, उन्मूलन
विनाशनः —पुं॰—-—-—विनाशक, विनाशकर्ता
विनाहः —पुं॰—-—वि + नह् + घञ्—कुएँ के मुंह का ढकना
विनिक्षेपः —पुं॰—-—वि + नि + क्षिप् + घञ्—फेंक देना, भेज देना
विनिग्रहः —पुं॰—-—वि + नि + ग्रह् + अप्—नियंत्रण करना, दमन करना, वश में करना
विनिग्रहः —पुं॰—-—-—पारस्परिक विरोध या अर्थान्तरन्यास
विनिद्र —वि॰—-—विगता निद्रा यस्य-प्रा॰ ब॰ —निद्रारहित, जागा हुआ
विनिद्र —वि॰—-—-—मुकुलित, खुला हुआ, खिला हुआ, फूला हुआ
विनिपातः —पुं॰—-—वि + नि + पत् + घञ्—अधः पतन, गिराव
विनिपातः —पुं॰—-—-—भारी अवपात, संकट, बुराई, हानि, बर्बादी, विनाश
विनिपातः —पुं॰—-—-—क्षय, मृत्यु
विनिपातः —पुं॰—-—-—नरक, नारकीय यन्त्रणा
विनिपातः —पुं॰—-—-—घटना, घटित होना
विनिपातः —पुं॰—-—-—पीड़ा, दुःख
विनिमयः —पुं॰—-—वि + नि + मी + अप्—अदला-बदली, वस्तु के बदले वस्तु का लेन देन
विनिमेषः —पुं॰—-—वि + नि + मिष् + घञ्—(आँखों का) झपकना
विनियत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नि + यम् + क्त—नियंत्रित, रोका गया, प्रतिबद्ध, विनियमित यथा विनियताहार तथा विनियतवाच् आदि म
विनियमः —पुं॰—-—वि + नि + यम् + अच्—नियन्त्रण, प्रतिबन्ध, रोक
विनियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + नि + युज् + क्त—अलग किया हुआ, ढीला, विच्छिन्न
विनियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अनषक्त, नियुक्त
विनियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—व्यवहृत
विनियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—समादिष्ट, विहित
विनियोगः —पुं॰—-—वि + नि + युज् + घञ्—अलग होना, जुदा होना, विच्छिन्न होन
विनियोगः —पुं॰—-—-—छोड़ना, त्यागना, तिलाञ्जिलि देना
विनियोगः —पुं॰—-—-—काम में लगाना, उपयोग, प्रयोग, नियंत्रण
विनियोगः —पुं॰—-—-—किसी कर्तव्य पर लगाना, कार्याधिकार, कार्यभार
विनियोगः —पुं॰—-—-—रुकावट, अड़चन
विनिर्जयः —पुं॰—-—वि + निर् + जि + अच्—पूर्ण विजय
विनिर्णयः —पुं॰—-—वि + निर् + नी + अच्—पूर्ण रूप से निबटारा या निर्णय, पूरा फैसला
विनिर्णयः —पुं॰—-—-—निश्चय
विनिर्णयः —पुं॰—-—-—निश्चित नियम
विनिर्बंधः —पुं॰—-—वि + नि + र् + बंध् + घञ्—आग्रह, दृढ़ता
विनिर्मित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + निर् + मा + क्त—बनाया हुआ, निर्माण किया हुआ
विनिर्मित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बना हुआ, रचा हुआ
विनिवृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नि + वृत् + क्त—लौटा हुआ, वापिस आया हुआ
विनिवृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ठहरा हुआ, थमा हुआ, रुका हुआ
विनिवृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—(सेवा) मुक्त, फा़रिग
विनिवृत्तिः —स्त्री॰—-—वि + नि + वृत् + क्तिने—विश्रान्ति, रोकना, हटाना
विनिवृत्तिः —स्त्री॰—-—-—अन्त, अवसान, समाप्ति
विनिश्चयः —पुं॰—-—वि + निस् + चि + अच्—स्थिर करना, तय करना, निश्चय करना
विनिश्चयः —पुं॰—-—-—फैसला, पक्का निश्चय
विनिश्वासः —पुं॰—-—वि + निस् + श्वस् + घञ्—कठिनाई से सांस लेना, आह भरना, आह (गहरी साँस)
विनिष्पेषः —पुं॰—-—वि + निस् + पिष् + घञ्—चूर चूर करना, कुचलना, पीस डालना
विनिहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नि + हन् + क्त—आहत, घायल
विनिहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मार डाला हुआ
विनिहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पूरी तरह परास्त किया हुआ
विनिहतः —पुं॰—-—-—कोई बड़ा या अनिवार्य संकट
विनिहतः —पुं॰—-—-—अपशकुन, धूमकेतु
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नी + क्त—दूर ले जाया गया, हटाया गया
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुप्रशिक्षित, अनुशासित
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संस्कृत, आचरणशील
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सूशील, विनम्र, विनीत, सौम्य
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—शिष्ट, शालीन, सौजन्यपूर्ण
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रेषित, विसर्जित
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पालतू, सधाया गया
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सीधा, सरल (वेशभूषा आदि)
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आत्म संयमी, जितेन्द्रिय
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सज़ा प्राप्त, दंडित
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-— शासनीय, शासन किये जाने के योग्य
विनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रिय, मनोहर
विनीतः —पुं॰—-—-—सधाया हुआ घोड़ा
विनीतकम् —नपुं॰—-—विनीत + कन्—गाड़ी, सवारी (डोली आदि)
विनीतकम् —नपुं॰—-—-—ले जाने वाला, वाहक
विनेतृ —पुं॰—-—वि + नी + तृच्—नेता, पथ प्रदर्शक
विनेतृ —पुं॰—-—-—अध्यापक, शिक्षक
विनेतृ —पुं॰—-—-—राजा, शासक
विनेतृ —पुं॰—-—-—सज़ा देने वाला. दण्ड देने वाला
विनोदः —पुं॰—-—वि + नुद् + घञ्—हटाना, दूर करना
विनोदः —पुं॰—-—-—मनोरंजन, दिल बहलाव, कोई भी रोचक या रंजनकारी व्यवसाय
विनोदः —पुं॰—-—-—खेल, क्रीडा, आमोद-प्रमोद
विनोदनम् —नपुं॰—-—वि + नुद् + ल्युट्—हटाना
विनोदनम् —नपुं॰—-—-—मनोरंजन आदि
विन्दु —वि॰ —-—विद् + उ, नुमागमः—मनीषी, बुद्धिमान्
विन्दुः —पुं॰—-—विन्द् + उ—बूंद, बिंदी
विन्दुः —पुं॰—-—विन्द् + उ—बिंदु, बिंदी
विन्दुः —पुं॰—-—विन्द् + उ—हाथी के शरीर पर रंगीन बिंद या चिह्न
विन्दुः —पुं॰—-—विन्द् + उ—शून्य, सिफर
विन्ध्यः —पुं॰—-—विदधाति करोति भयम्—एक पर्वत श्रेणी जो उत्तर भारत को दक्षिण से पृथक् करती है, यह सात कुल पर्वतों में से एक है, यह मध्यदेश की दक्षिणी सीमा है
विन्ध्याटवी —स्त्री॰—विन्ध्यः-अटवी—-—विन्ध्य महावन
विन्ध्यकूटः —पुं॰—विन्ध्यः-कूटः—-—अगस्त्य ऋषि के विशेषण
विन्ध्यकूटनम् —नपुं॰—विन्ध्यः-कूटनम्—-—अगस्त्य ऋषि के विशेषण
विन्ध्यवासिन् —पुं॰—विन्ध्यः-वासिन्—-—वैयाकरण व्याडि का विशेषण
विन्ध्यवासिनी —स्त्री॰—विन्ध्यः-वासिनी—-—दुर्गा का विशेषण
विन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—विद् + क्त—ज्ञात
विन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—हासिल, प्राप्त
विन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विचार विमर्श किया हुआ, अनुसंहित
विन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रक्खा हुआ, स्थिर किया हुआ
विन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विवाहित
विन्नकः —पुं॰—-—विन्न + कन्—अगस्त्य का नाम
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + नि + अस् + क्त—रक्खा हुआ, डाला हुआ
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जड़ा हुआ, फर्श जमाया हुआ या खड़ंजा लगाया हुआ
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्थिर
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रमबद्ध
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—समर्पित
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उपस्थित किया गया, प्रस्तुत
विन्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जमा किया हुआ, निक्षिप्त
विन्यासः —पुं॰—-—वि + न्यस् + घञ्—सौंपना, जमा करना
विन्यासः —पुं॰—-—वि + न्यस् + घञ्—धरोहर
विन्यासः —पुं॰—-—वि + न्यस् + घञ्—क्रमपूर्वक रखना, समंजन, निपटारा
अक्षरविन्यासः —पुं॰—अक्षर-विन्यासः—-—अक्षर उत्कीर्ण करना
विन्यासः —पुं॰—-—-—संग्रह समवाय
विन्यासः —पुं॰—-—-—स्थान, आधार
विपक्त्रिम —वि॰—-—वि + प्अच् + क्त्रि + मप्—पूर्ण रूप से पका हुआ, परिपक्व
विपक्त्रिम —वि॰—-—-—विकसित, (पूर्वकृत्यों के परिणाम स्वरूप) पूर्णता को प्राप्त
विपक्व —वि॰—-—वि + पच् + क्त—पूर्णरूप से पका हुआ, परिपक्व
विपक्व —वि॰—-—-—विकसित, पूर्ण अवस्था को प्राप्त
विपक्ष —वि॰—-—विरुद्धः पक्षो यस्य-प्रा॰ ब॰—वैरी, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल, विरुद्ध
विपक्षः —पुं॰—-—-—शत्रु, विरोधी, प्रतिरोधी
विपक्षः —पुं॰—-—-—वह पत्नी जिसकी दूसरी के साथ प्रतिद्वन्द्विता चल रही हो
विपक्षः —पुं॰—-—-—(तर्क में) नकारात्मक दृष्टान्त, विपक्षियों की ओर से दिया गया दृष्टान्त (अर्थात् वह पक्ष जिसमें साध्य का अभाव हो)
विपंचिका —स्त्री॰—-—विपंची + कन् + टाप्—वीणा
विपंचिका —स्त्री॰—-—विपंची + कन् + टाप्—खेल, क्रीडा, मनोरंजन
विपंची —स्त्री॰—-—-—खेल, क्रीडा, मनोरंजन
विपणः —पुं॰—-—वि + पण् + घञ्—विक्री
विपणः —पुं॰—-—-—छोटा व्यापार
विपणनम् —नपुं॰—-—वि + पण् + ल्युट् वा—विक्री
विपणनम् —नपुं॰—-—-—छोटा व्यापार
विपणिः —पुं॰—-—विपण् + इन्—बाजार, मण्डी, हाट
विपणिः —पुं॰—-—-—बिक्री के लिए रक्खा हुआ माल, सामान
विपणिः —पुं॰—-—-—बाणिज्य,व्यापार
विपणी —स्त्री॰—-—विपणि + ङीष्—बाजार, मण्डी, हाट
विपणी —स्त्री॰—-—विपणि + ङीष्—बिक्री के लिए रक्खा हुआ माल, सामान
विपणी —स्त्री॰—-—विपणि + ङीष्—बाणिज्य,व्यापार
विपणिन् —पुं॰—-—विपण + इनि—व्यापारी, सौदागर, दुकानदार
विपत्तिः —स्त्री॰—-—वि + पद् + क्तिन्—संकट, दुर्भाग्य, अनर्थ, अनिष्टपात, आफ़त
विपत्तिः —स्त्री॰—-—-—मृत्यु, बिनाश
विपत्तिः —स्त्री॰—-—-—वेदना, यातना
विपत्तिः —स्त्री॰—-—-—श्रेष्ठ पदाति, पैदल-सिपाही
विपथः —पुं॰—-—विरुद्धः पन्था-प्रा॰स॰—बुरी सड़क, कुमार्ग
विपद् —स्त्री॰—-—वि + पद् + क्विप्—संकट, दुर्भाग्य, आपदा, दुःख
विपदुद्धरणम् —नपुं॰—विपद्-उद्धरणम्—-—मुसीबत से राहत, विपत्ति से मुक्ति
विपदुद्धारः —पुं॰—विपद्-उद्धारः—-—मुसीबत से राहत, विपत्ति से मुक्ति
विपत्कालः —पुं॰—विपद्-कालः—-—आवश्यकता का समय, संकट-काल, मुसीबत
विपत्युक्त —वि॰—विपद्-युक्त—-—अभागा, दुःखी
विपदा —स्त्री॰—-—वि + पद् + क्विप्+टाप्—संकट, दुर्भाग्य, आपदा, दुःख
विपदा —स्त्री॰—-—वि + पद् + क्विप्+टाप्—मृत्यु
विपन्न —भू॰क॰कृ—-—विपद् + क्त—मरा हुआ
विपन्न —भू॰क॰कृ—-—-—लुप्त, नष्ट
विपन्न —भू॰क॰कृ—-—-—अभागा, कष्टग्रस्त, दुःखी, मुसीबतज़दा
विपन्न —भू॰क॰कृ—-—-—अयोग्य, अशक्त
विपरिणमनम् —नपुं॰—-—वि + परि + नम् + ल्युट्—परिवर्तन, बदलना
विपरिणमनम् —नपुं॰—-—-—रूपपरिवर्तन, रूपान्तरण
विपरिणामः —पुं॰—-—वि + परि + नम् + घञ् —परिवर्तन, बदलना
विपरिणामः —पुं॰—-—-—रूपपरिवर्तन, रूपान्तरण
विपरिवर्तनम् —नपुं॰—-—वि + परि + वृत् + ल्युट्—इधर उधर मुड़ना, लुढ़कना
विपरीत —वि॰—-—वि + परि + इ + क्त—प्रतिवर्तित, विपर्यस्त
विपरीत —वि॰—-—-—प्रतिकूल विरोधी, प्रतिवर्ती, औंधा
विपरीत —वि॰—-—-—अशुद्ध, नियमविरुद्ध
विपरीत —वि॰—-—-—मिथ्या, असत्य
विपरीत —वि॰—-—-—अननुकूल, उलटा
विपरीत —वि॰—-—-—व्यत्यस्त, उलटे ढंग से अभिनय करने वाला
विपरीत —वि॰—-—-—अरुचिकर, अशुभ
विपरीतः —पुं॰—-—-—एक रतिबंध
विपरीता —स्त्री॰—-—-—दुश्चरित्रा, असती पत्नी
विपरीता —स्त्री॰—-—-—पुंश्चली स्त्री
विपरीतकर —वि॰—विपरीत-कर—-—कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने वाला
विपरीतकारक —वि॰—विपरीत-कारक—-—कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने वाला
विपरीतकारिन् —वि॰—विपरीत-कारिन्—-—कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने वाला
विपरीतकृत् —वि॰—विपरीत-कृत्—-—कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने वाला
विपरीतचेतस् —वि॰—विपरीत-चेतस्—-—जिसका दिमाग फिर गया हो
विपरीतमति —वि॰—विपरीत-मति—-—जिसका दिमाग फिर गया हो
विपरीतरतम् —नपुं॰—विपरीत-रतम्—-—रतिक्रिया का उलटा आसन
विपर्णकः —पुं॰—-—विशिष्टानि पर्णानि यस्य-प्रा॰ ब॰—पलाश का वृक्ष, ढाक का पेड़
विपर्ययः —पुं॰—-—वि + परि + इ + अच्—वैपरीत्य, व्यतिक्रम, औंधापन
विपर्ययः —पुं॰—-—-—(अभिप्राय, वेश आदि बदलना
विपर्ययः —पुं॰—-—-—अभाव, अनस्तित्व
विपर्ययः —पुं॰—-—-—लोप, हानि
विपर्ययः —पुं॰—-—-—पूर्ण विनाश, ध्वंस
विपर्ययः —पुं॰—-—-—विनिमय, अदल बदल
विपर्ययः —पुं॰—-—-—त्रुटि, उल्लंघन, भूल, कुछ का कुछ समझना
विपर्ययः —पुं॰—-—-—संकट, दुर्भ्याग्य, उलटा भाग्य
विपर्ययः —पुं॰—-—-—शत्रुता, दुश्मनी
विपर्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + परि + अस् + क्त—परिवर्तित, व्युत्क्रान्त, उलटा हुआ
विपर्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विरोधी, प्रतिकूल
विपर्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भूल से वास्तविक समझा हुआ
विपर्यायः —पुं॰—-—वि + परि + इ + घञ्—उलटापन, वैपरीत्य
विपर्यासः —पुं॰—-—वि + परि + अस् + घञ्—परिवर्तन, वैपरीत्य, व्यतिक्रम
विपर्यासः —पुं॰—-—-—विपरीतता, अननुकूलता
विपर्यासः —पुं॰—-—-—अन्तःपरिवर्तन, अदलबदल
विपर्यासः —पुं॰—-—-—त्रुटि, भूल
विपलम् —नपुं॰—-—विभक्तं पलं येन-प्रा॰ ब॰—क्षण, समय का अत्यंत छोटा प्रभाग (जो पल का साठवां या छठा भाग समझा जाता है)
विपलायनम् —नपुं॰—-—विशेषेण पलायनम्-प्रा॰ स॰ —दौड जाना, विभिन्न दिशाओं को भाग जाना
विपश्चित् —वि॰ —-—विप्रकृष्टं चिनोति चेतति चिन्तयति वा-वि + प्र + चित् + क्विप्, पृषो॰—विद्वान्, बुद्धिमान्
विपश्चित् —पुं॰—-—-—एक विद्वान् या बुद्धिमान् पुरुष, मुनि
विपाकः —पुं॰—-—वि + पच् + घञ्—खाना, भोजन बनाना
विपाकः —पुं॰—-—-—पाचनशक्ति
विपाकः —पुं॰—-—-—पकना, पक्वता, परिक्वता, विकास
विपाकः —पुं॰—-—-—परिणाम, फल, नतीजा, पूर्वजन्म अथवा इस जन्म के कर्मो का फल
विपाकः —पुं॰—-—-—अवस्थापरिवर्तन
विपाकः —पुं॰—-—-—असंभावित बात या घटनाव्यतिक्रम, भाग्य का पलटा खाना, दुःख, संकट
विपाकः —पुं॰—-—-—कठिनाई, उलझन
विपाकः —पुं॰—-—-—रसास्वाद, स्वाद
विपाटनम् —नपुं॰—-—वि + पट् + णिच् + ल्युट्—खण्ड खण्ड करना, फाड़ कर खोलना
विपाटनम् —नपुं॰—-—-—उखाड़ना
विपाठः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लंबा तीर
विपाण्डु —वि॰—-—विशेषेण पाण्डुः-प्रा॰ स॰ —विवर्ण, पीला
विपाण्डुर —वि॰—-—विशेषेण पाण्डुरः-प्रा॰ स॰ —विवर्ण, पीला
विपादिका —स्त्री॰—-—-—पैर का एक रोग, बिवाई
विपादिका —स्त्री॰—-—-—प्रहेलिका, पहेली
विपाश् —स्त्री॰—-—पाशं विमोचयति-वि + पश् + णिच् + क्विप्—पंजाब की एक नदी, वर्तमान व्यास नदी
विपाशा —स्त्री॰—-—पाशं विमोचयति-वि + पश् + णिच् + अच् + टाप्—पंजाब की एक नदी, वर्तमान व्यास नदी
विपिनम् —नपुं॰—-—वेपन्ते जनाः अत्र-वेप् + इनन्, ह्रस्व—जंगल, वन, वाटिका, झुरमुट
विपुल —वि॰—-—विशेषेण पोलति-वि + पुल् + क—विशाल, विस्तृत, आयत, विस्तीर्ण, चौड़ा, प्रशस्त
विपुल —वि॰—-—-—बहुत, पुष्कल, पर्याप्त
विपुलः —पुं॰—-—-—मेरु पर्वत
विपुलः —पुं॰—-—-—हिमालय पर्वत
विपुलः —पुं॰—-—-—संमाननीय पुरुष
विपुलछाय —वि॰—विपुल-छाय—-—छायादार, छायामय
विपुलजघना —स्त्री॰—विपुल-जघना—-—विशाल कूल्हों वाली स्त्री
विपुलमति —वि॰—विपुल-मति—-—मनीषी, प्रज्ञावान्
विपुलरसः —पुं॰—विपुल-रसः—-—गन्ना, ईख
विपुला —स्त्री॰—-—विपुल + टाप्—पृथ्वी
विपूयः —पुं॰—-—वि + पू + क्यप्—`मूंज' नामक घास
विप्रः —पुं॰—-—वप् + रन् पृषो॰ अत इत्वम्—ब्राह्मण, उद्धरण
विप्रः —पुं॰—-—-—मुनि, बुद्धिमान् पुरुष
विप्रः —पुं॰—-—-—पीपल का पेड़
विप्रर्षिः —पुं॰—विप्र-ऋषिः—-—ब्राह्मण ऋषि
विप्रकाष्ठम् —नपुं॰—विप्र-काष्ठम्—-—रूई का पौधा
विप्रप्रियः —पुं॰—विप्र-प्रियः—-—पलाश का वृक्ष, ढाक
विप्रसमागम् —नपुं॰—विप्र-समागम्—-—ब्राह्मणों का जमाव या धर्मपरिषद्
विप्रस्वम् —नपुं॰—विप्र-स्वम्—-—ब्राह्मणों की संपत्ति
विप्रकर्षः —पुं॰—-—वि + प्र + कृष् + घञ्—दूरी, फासला
विप्रकारः —पुं॰—-—वि + प्र + कृ + घञ्—अपमान, कटु व्यवहार, दुर्वचन, तिरस्कारयुक्त व्यवहार
विप्रकारः —पुं॰—-—-—क्षति, अपराध
विप्रकारः —पुं॰—-—-—दु्ष्टता
विप्रकारः —पुं॰—-—-—विरोध, प्रतिक्रिया
विप्रकारः —पुं॰—-—-—प्रतिहिंसा
विप्रकीर्ण —वि॰—-—वि + प्र + कृ + क्त—इधर उधर फैलाया हुआ, तितर बितर किया हुआ, बिखेरा हुआ
विप्रकीर्ण —वि॰—-—-—ढीला, (बाल आदि) बिखरे हुए
विप्रकीर्ण —वि॰—-—-—प्रसारित, बिछाया हुआ
विप्रकीर्ण —वि॰—-—-—चौड़ा, विस्तृत
विप्रकृत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + प्र + कृ + क्त—आहत, जिसे ठेस पहुंचाई गई हैं, घायल
विप्रकृत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अपमानित, जिसे गाली दी गई है, जिसके साथ कटुव्यवहार किया गया है
विप्रकृत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—जिससे विरोध किया गया है
विप्रकृत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—प्रतिहिंसित, जिससे बदला ले लिया गया है
विप्रकृतिः —स्त्री॰—-—-—क्षति, आघात
विप्रकृतिः —स्त्री॰—-—-—अपमान, अपशब्द, कटुव्यवहार
विप्रकृतिः —स्त्री॰—-—-—प्रतिहिंसा, बदला
विप्रकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + प्र + कृष् + क्त—खींच दिया गया, हटाया हुआ
विप्रकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—फासले पर, दूर का, दूरवर्ती
विप्रकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—सुदीर्घ, लम्बा किया गया, विस्तारित
विप्रकृष्टक —वि॰—-—विप्रकृष्ट + कन्—दूरवर्ती, फासले पर
विप्रतिकारः —पुं॰—-—वि + प्रति + कृ + घञ्—प्रतिक्रिया, विरोध, वचनविरोध
विप्रतिकारः —पुं॰—-—-—प्रतिहिंसा
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—वि + प्रति + पद् + क्तिन्—पारस्परिक असंगति, प्रतियोगिता, संघर्ष, झगड़ा, विरोध (मतों का या हितों का)
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—-—असहमति, आपत्ति
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—-—हैरानी, घबड़ाहट
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—-—पारस्परिक सम्बन्ध परिचय, जानपहचान
विप्रतिपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्रति + पद् + क्त—परस्परविरुद्ध, विरोधी, असहमत
विप्रतिपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घबड़ाया हुआ, व्याकुल, हैरान
विप्रतिपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुक़ाबले का, विवादग्रस्त
विप्रतिपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परस्परसंयुक्त या सम्बद्ध
विप्रतिषेधः —पुं॰—-—वि + प्रति + सिध् + घञ्—नियन्त्रण में रखना, वश में रखना
विप्रतिषेधः —पुं॰—-—-—समान रूप से महत्त्वपूर्ण दो बातों का विरोध, दो समान हितों का संघर्ष
विप्रतिषेधः —पुं॰—-—-—(व्या॰ में) दो नियमों का (जिनसे दो भिन्न नियमों के अनुसार व्याकरण की दो भिन्न प्रक्रियाएं सम्भव हों) संघर्ष, समानरूप से महत्वपूर्ण दो नियमों की टक्कर
विप्रतिषेधः —पुं॰—-—-—रोक, वर्जन
विप्रतिसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्—पछतावा
विप्रतिसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्—क्रोध, रोष, गुस्सा
विप्रतिसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्—दु्ष्टता, अनिष्ट
विप्रतीसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्, पक्षे दीर्घः—पछतावा
विप्रतीसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्, पक्षे दीर्घः—क्रोध, रोष, गुस्सा
विप्रतीसारः —पुं॰—-—वि + प्रति + सृ + घञ्, पक्षे दीर्घः—दु्ष्टता, अनिष्ट
विप्रदुष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + दुष् + क्त—दूषित, विकृत, मलिन
विप्रदुष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भ्रष्ट
विप्रनष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + नश् + क्त—खोया हुआ, लुप्त
विप्रनष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—व्यर्थ, निरर्थक
विप्रमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + मुच् + क्त—स्वतन्त्र छोड़ा हुआ, आजाद किया हुआ, खुला छोड़ा हुआ
विप्रमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गोली का निशाना बनाया गया, बन्दूक से दागा गया
विप्रमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छुटकारा पाया हुआ
विप्रयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + युज् + क्त—पृथक् किया हुआ, वियुक्त, विच्छिन्न
विप्रयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अलग हुआ, अनुपस्थित
विप्रयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुक्त किया हुआ, रिहा किया हुआ
विप्रयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वञ्चित, विरहित, बिना
विप्रयोगः —पुं॰—-—वि + प्र + युज् + घञ्—अनैक्य, पार्थक्य, वियोग, अलगाव,
विप्रयोगः —पुं॰—-—-—विशेषकर प्रेमियों का बिछोह
विप्रयोगः —पुं॰—-—-—कलह, असहमति
विप्रलब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + लभ् + क्त—धोखा दिया गया, ठगा गया
विप्रलब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराश किया गया
विप्रलब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चोट पहुंचाया गया, क्षतिग्रस्त
विप्रलब्धा —स्त्री॰—-—-—वह स्त्री जो अपने प्रियतम को नियत स्थान पर न पाकर निराश हो गई हो (काव्यग्रन्थों में वर्णित एक नायिका)
विप्रलम्भः —पुं॰—-—वि + प्र + लम्भ् + घञ्—धोखा, छल, चालाकी
विप्रलम्भः —पुं॰—-—-—विशेषकर मिथ्या उक्तियों या झूठी प्रतिज्ञाओं से छलना
विप्रलम्भः —पुं॰—-—-—कलह, असहमति
विप्रलम्भः —पुं॰—-—-—अनैक्य, पार्थक्य, वियोग, अलगाव,
विप्रलम्भः —पुं॰—-—-—प्रेमियों का बिछोह
विप्रलम्भः —पुं॰—-—-—विप्रलम्भ शृंगार (इसमें नायक नायिका के विरहजन्य सन्ताप आदि का वर्णन किया जाता है) शृंगार के दो मुख्य भेदों में से एक
विप्रलापः —पुं॰—-—वि + प्र + लप् + घञ्—व्यर्थ या निरर्थक बात, बकवास, अनाप-शनाप, निस्सार
विप्रलापः —पुं॰—-—-—पारस्परिक वचनविरोध, विरोधी उक्तियाँ
विप्रलापः —पुं॰—-—-—झगड़ा, तू तू मैं-मैं
विप्रलापः —पुं॰—-—-—अपनी प्रतिज्ञा तोड़ना, वचन पूरा न करना
विप्रलयः —पुं॰—-—विशेषेण प्रलयः-प्रा॰ स॰—पूर्ण विनाश या विघटन, सर्वनाश
विप्रलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + लुप् + क्त—अपहृत, छीना हुआ
विप्रलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बाधायुक्त, हस्तक्षेप किया गया
विप्रलोभिन् —पुं॰—-—वि + लुभ् + णिच् + णिनि—दो वृक्षों के नाम, अशोक और किंकिरात
विप्रवासः —पुं॰—-—वि + प्र + वस् + घञ्—परदेश में रहना, विदेश में निवास करना (अपनी जन्मभूमि से दूर रहना)
विप्रश्निका —स्त्री॰—-—विशेषेण प्रश्नो यस्याः वि + प्रश्न + कप् + टाप्, इत्वम्—स्त्री ज्योतिषी, जो भाग्य की बातें बतलाये
विप्रहीण —वि॰—-—वि + प्र + हा + क—वञ्चित, विरहित
विप्रिय —वि॰—-—वि + प्री + क, इयङ्—अरुचिकर, जो पसन्द न हो, जो सुखद न हो, जो स्वादिष्ट न हो
विप्रियम् —नपुं॰—-—-—अपराध, अनिष्ट, अरुचिकर कार्य
विप्रुष् —स्त्री॰—-—वि + प्रुष् + क्विप्—(पानी या किसी अन्य द्रव की) बूंद
विप्रुष् —स्त्री॰—-—-—चिह्न, बिन्दु, धब्बा
विप्रोषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्र + वस् + क्त—परदेश में रहना, जन्मभूमि से दूर होना, अनुपस्थित
विप्रोषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निर्वासित, देशनिकालाप्राप्त
विप्रोषितभर्तृका —स्त्री॰—विप्रोषित-भर्तृका—-—वह स्त्री जिसका पति परदेश गया हुआ है
विप्लवः —पुं॰—-—वि + प्लु + अप्—बहना, इधर-उधर टहलना, विभिन्न दिशाओं में बहना
विप्लवः —पुं॰—-—-—विरोध, वैपरीत्य
विप्लवः —पुं॰—-—-—हैरानी, व्याकुलता
विप्लवः —पुं॰—-—-—हुल्लड़, हंगामा, हल्ला-गुल्ला
विप्लवः —पुं॰—-—-—निर्जनीकरण, वह संग्राम जिसमें लूटपाट खूब हो, शत्रु से भय
विप्लवः —पुं॰—-—-—बलात् लूटपाट
विप्लवः —पुं॰—-—-—हानि, विनाश
विप्लवः —पुं॰—-—-—आपदा, आपत्काल
विप्लवः —पुं॰—-—-—दर्पण पर जमी हुई धूल या जंग
विप्लवः —पुं॰—-—-—अतिक्रमण, उल्लंघन
विप्लवः —पुं॰—-—-—अनिष्ट, संकट
विप्लवः —पुं॰—-—-—पाप दुष्टता, पापमयता
विप्लावः —पुं॰—-—वि + प्लु + घञ्—जलप्लावन, बाढ़
विप्लावः —पुं॰—-—-—घोड़े की सरपट दौड़
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + प्लु + क्त—जो इधर उधर वह गया हो
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—डूबा हुआ, निमग्न, बाढ़ग्रस्त, किनारों से बाहर होकर बहा हुआ
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—हैरान, परेशान
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विध्वस्त, उजाड़ा हुआ
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लुप्त, ओझल
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अपमानित, अनादृत
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बर्वाद
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तिरोहित, विरूपित
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दुश्चरित्र, लम्पट, दुराचारी,लुच्चा
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विपरीत, उलटा
विप्लुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिथ्या, झूठा
विप्लुष् —स्त्री॰—-—-—(पानी या किसी अन्य द्रव की) बूंद
विप्लुष् —स्त्री॰—-—-—चिह्न, बिन्दु, धब्बा
विफल —वि॰—-—विगतं फलं यस्य-प्रा॰ ब॰—फलरहित, अनुपयोगी, व्यर्थ, प्रभावशून्य, अलाभकर
विफल —वि॰—-—-—बेकार, निरर्थक
विबन्धः —पुं॰—-—वि + बन्ध् + घञ्—कोष्ठ बद्धता
विबाधा —स्त्री॰—-—विशिष्टा बाधा-प्रा॰ स॰—पीडा, वेदना, संताप, मानसिक कष्ट
विबुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + बुध् + क्त—उठाया हुआ, जगाया हुआ, जागरुक
विबुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—फुलाया हुआ, मंजरीयुक्त, पूरा खिला हुआ
विबुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चतुर, कुशल
विबुधः —पुं॰—-—विशेषेण बुध्यते-बुध् + क—बुद्धिमान् या विद्वान् पुरुष, ऋषि, मुनि
विबुधिपतिः —पुं॰—विबुधः-अधिपतिः—-—इन्द्र का विशेषण
विबुधेन्द्रः —पुं॰—विबुधः-इन्द्रः—-—इन्द्र का विशेषण
विबु्धीश्वरः —पुं॰—विबुधः-ईश्वरः—-—इन्द्र का विशेषण
विबुधद्विष् —पुं॰—विबुधः-द्विष्—-—राक्षस
विबुधशत्रुः —पुं॰—विबुधः-शत्रुः—-—राक्षस
विबुधानः —पुं॰—-—वि + बुध् + शानच्—विद्वान् पुरुष
विबुधानः —पुं॰—-—-—अध्यापक
विबोधः —पुं॰—-—विबुध् + घञ्—जागरण, जागते रहना
विबोधः —पुं॰—-—-—प्रत्यक्षज्ञान, खोजना
विबोधः —पुं॰—-—-—बुद्धि, प्रतिभा
विबोधः —पुं॰—-—-—जाग जाना, सचेत होना
विब्बोकः —पुं॰—-—-—अभिमान के कारण अपने प्रियतम पदार्थ की ओर उदासीनता का प्रदर्शन
विब्बोकः —पुं॰—-—-—घमंड के कारण उदासीनता
विब्बोकः —पुं॰—-—-—केलिपरक या प्रीतिविषयक संकेत
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भज् + क्त—बांटा हुआ, विभाजित की हुई (संपत्ति आदि)
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बंटा हुआ, स्वार्थ की दृष्टि से अलग अलग किया हुआ
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जुदा किया हुआ, अलग किया हुआ, भिन्न किया हुआ
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विभिन्न, विविध
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सेवानिवृत्त, एकान्तवासी
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नियमित, सममित
विभक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विभूषित
विभक्तः —पुं॰—-—-—कार्तिकेय
विभक्तिः —स्त्री॰—-—वि + भज् + क्तिन्—बांटना, प्रभाग, विभाजन, बंटवारा
विभक्तिः —स्त्री॰—-—-—पार्थक्य, स्वार्थ में अलगाव
विभक्तिः —स्त्री॰—-—-—हिस्सा, दायभाग
विभक्तिः —स्त्री॰—-—-—(व्या॰ में) संज्ञा शब्दों के साथ लगा कारक या कारक चिह्न
विभङ्गः —पुं॰—-—वि + भंज् + घञ्—टूटना, अस्थिभंग
विभङ्गः —पुं॰—-—-—ठहराना, अवरोध, पड़ाव
विभङ्गः —पुं॰—-—-—झुकना, (भौंहों आदि का) सिकोड़ना
विभङ्गः —पुं॰—-—-—शिकन, झुर्री
विभङ्गः —पुं॰—-—-—पग, सीढ़ी
विभङ्गः —पुं॰—-—-—फूट पड़ना, प्रकटीकरण
विभवः —पुं॰—-—वि + भू + अच्—दौलत, धन, सम्पत्ति
विभवः —पुं॰—-—-—ताक़त, शक्ति, पराक्रम, बड़प्पन
विभवः —पुं॰—-—-—उन्नत अवस्था, पद, प्रतिष्ठा
विभवः —पुं॰—-—-—मोक्ष, मुक्ति
विभा —स्त्री॰—-—वि + भा + क्विप्—प्रकाश, आभा
विभा —स्त्री॰—-—-—प्रकाश, किरण
विभा —स्त्री॰—-—-—सौन्दर्य
विभाकरः —पुं॰—विभा-करः—-—सूर्य
विभाकरः —पुं॰—विभा-करः—-—मदार का पौधा
विभाकरः —पुं॰—विभा-करः—-—चन्द्रमा
विभावसुः —पुं॰—विभा-वसुः—-—सूर्य
विभावसुः —पुं॰—विभा-वसुः—-—अग्नि
विभावसुः —पुं॰—विभा-वसुः—-—चन्द्रमा
विभावसुः —पुं॰—विभा-वसुः—-—एक प्रकार का हार
विभागः —पुं॰—-—वि + भज् + घञ्—प्रभाग, विभाजन, अंश (दायभाग आदि का)
विभागः —पुं॰—-—-— भाग या हिस्सा
विभागः —पुं॰—-—-—बांटना, अलग-अलग करना, पार्थक्य
विभागकल्पना —स्त्री॰—विभागः-कल्पना—-—हिस्सों का नियत करना
विभागधर्मः —पुं॰—विभागः-धर्मः—-—दायभाग की विधि, बंटवारे का कानून
विभागपत्रिका —स्त्री॰—विभागः-पत्रिका—-—विभाजन की दस्तावेज़
विभागभाज् —पुं॰—विभागः-भाज्—-—पहले से बंटी हुई सम्पत्ति का हिस्सेदार
विभाजनम् —नपुं॰—-—वि + भज् + णिच् + ल्युट्—बंटवारा, वितरण करना
विभाज्य —वि॰—-—वि + भज् + ण्यत्—अंशों में विभक्त किये जाने के योग्य, बांटे जाने के योग्य
विभातम् —नपुं॰—-—र्वि + भा + क्त—प्रभात, पौ फटना
विभावः —पुं॰—-—वि + भू + घञ्—मन या शरीर को किसी विशेष स्थिति में विकसित करने वाली दशा, रसभाव की उद्बोधक स्थिति, तीन मुख्य भावों में से एक (दूसरे दो हैं- अनुभाव तथा व्यभिचारीभाव)
विभावः —पुं॰—-—-—मित्र, परिचित
विभावनम् —नपुं॰—-—वि + भू + णिच् + ल्युट्—स्पष्ट प्रत्यक्षज्ञान, या निश्चय, विवेक, निर्णय
विभावनम् —नपुं॰—-—वि + भू + णिच् + ल्युट्—विचार विमर्श, गवेषणा, परीक्षा
विभावनम् —नपुं॰—-—वि + भू + णिच् + ल्युट्—प्रत्यय, कल्पना
विभावना —स्त्री॰—-—-—स्पष्ट प्रत्यक्षज्ञान, या निश्चय, विवेक, निर्णय
विभावना —स्त्री॰—-—-—विचार विमर्श, गवेषणा, परीक्षा
विभावना —स्त्री॰—-—-—प्रत्यय, कल्पना
विभावना —स्त्री॰—-—-—एक अलंकार जिसमें बिना कारण के कार्यों का होना वर्णित होता है
विभावरी —स्त्री॰—-—वि + भा + वनिप् + ङीप्, र आदेशः—रात
विभावरी —स्त्री॰—-—-—हल्दी
विभावरी —स्त्री॰—-—-—कुटनी
विभावरी —स्त्री॰—-—-—वेश्या
विभावरी —स्त्री॰—-—-—वामाचारिणी स्त्री
विभावरी —स्त्री॰—-—-—मुखरा स्त्री, बातूनी
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भू + णिच् + क्त—प्रकटीकृत, स्पष्ट रूप से दर्शनीय किया हुआ
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ज्ञात, जाना हुआ, निश्चित किया हुआ
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—देखा हुआ, सोचा हुआ
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निर्णीत, विवेचन किया हुआ
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनुमित, संकेतित
विभावित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सिद्ध, सर्वसम्मत
विभावितेकदेश —वि॰—विभावित-एकदेश—-—जिसके साथ एक भाग का पता लगाया गया अर्थात् जो (विवादास्पद विषय के) एक भाग के संबंध में अपराधी पाया गया
विभाषा —स्त्री॰—-—वि + भाष् + अ + टाप्—ईप्सित वस्तु, विकल्प
विभाषा —स्त्री॰—-—-—नियम की वैकल्पिकता
विभासा —स्त्री॰—-—वि + भास् + अ + टाप्—प्रकाश, कान्ति, आभा
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भिद् + क्त—तोड़ा हुआ, विभक्त किया हुआ, खण्ड खण्ड किया हुआ बीधां हुआ, घायल
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दूर हटाया हुआ, भगाया हुआ, तितर बितर किया
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—हैरान, परेशान, व्याकुल
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—इधर उधर डोला हुआ
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निराश किया हुआ
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विविध, नानाप्रकार के
विभिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मिश्रित, मिलाया हुआ, चितकबरा, रंगबिरंगा
विभिन्नजः —पुं॰—विभिन्न-जः—-—शिव का नाम
विभीतः —पुं॰—-—विशेषेण भीतः—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीतम् —नपुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीतकः —पुं॰—-—विभीत + कन्—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीतकम् —नपुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीतकी —स्त्री॰—-—विभीतक + ङीप्—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीता —स्त्री॰—-—विभीत + टाप्—एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, (त्रिफला में से एक) बहेड़े का पेड़
विभीषक —वि॰—-—विशेषेण भीषयते-वि + भी + णिच् + ण्वुल् षुक् आगमः—डरावना, त्रास या भय देने वाला
विभीषिका —स्त्री॰—-—वि + भी + णिच् + ण्वुल् + टाप्, षुकागमः, इत्वं च—त्रास
विभीषिका —स्त्री॰—-—-—डराने के साधन, हौवा (चिड़ियों का डराने के लिए फूंस का पुतला, जु जू)
विभु —वि॰—-—वि + भू + डु—ताक़तवर, शक्तिशाली
विभु —वि॰—-—-—प्रमुख, सर्वोपरि
विभु —वि॰—-—-—योग्य, समर्थ (तुमुन्नंत के साथ)
विभु —वि॰—-—-—आत्मसंयमी, धीर, जितेन्द्रिय
विभु —वि॰—-—-—(न्या॰ में) नित्य॰ , सर्वव्यापक, सर्वगत
विभुः —पुं॰—-—-—स्वामी, शासक, प्रभु, राजा
विभुः —पुं॰—-—-—सर्वोपरि शासक
विभुग्न —वि॰—-—वि + भुज् + क्त—वक्र, झुका हुआ, टेढ़ा, कुटिल
विभूतिः —स्त्री॰—-—वि + भू + क्तिन्—ताकत, शक्ति, बड़प्पन
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—समृद्धि, कल्याण
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—प्रतिष्ठा, उच्च पद
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—धन, प्राचुर्य, महिमा, कान्ति
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—दौलत, धन
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—अतिमानव शक्ति
विभूतिः —स्त्री॰—-—-—कंडो की राख
विभूषणम् —नपुं॰—-—वि + भूष् + ल्युट्—अलंकार, सजावट
विभूषा —स्त्री॰—-—वि + भूष् + अ + टाप्—अलंकार, सजावट
विभूषा —स्त्री॰—-—-—प्रकाश, कान्ति
विभूषा —स्त्री॰—-—-—सौंन्दर्य, आभा
विभूषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भूष् + णिच् + क्त—अलंकृत, सुशोभित, सुभूषित
विभृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भृ + क्त—संभाला गया, सहारा दिया गया, संधारित या संपोषित
विभ्रंशः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भ्रंश् + घञ्—गिरना, टूट पड़ना
विभ्रंशः —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ह्रास, क्षय, बर्वादी
विभ्रंशः —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चट्टान
विभ्रंशित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भ्रंश् + क्त—बहकाया गया, फुसलाया गया
विभ्रंशित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वंचित, विरहित
विभ्रमः —पुं॰—-—वि + भ्रम् + घञ्—इधर उधर टहलना, घूमना
विभ्रमः —पुं॰—-—-—भ्रमण, फेरा, इधर उधर लुढ़कना
विभ्रमः —पुं॰—-—-—त्रुटि, भू्ल, गलती
विभ्रमः —पुं॰—-—-—उतावली, अव्यवस्था, हड़बड़ी, गड़बड़ी
विभ्रमः —पुं॰—-—-—(अतः) हड़बड़ी के कारण अलंकारादिक का उलटासीधा पहनना
विभ्रमः —पुं॰—-—-—रंगरेलियाँ, कामकेलि, आमोद-प्रमोद
विभ्रमः —पुं॰—-—-—सौन्दर्य, लालित्य, लावण्य
विभ्रमः —पुं॰—-—-—सन्देहम् आशंका
विभ्रमः —पुं॰—-—-—सनक, वहम
विभ्रमा —स्त्री॰—-—वि + भ्रम् + अच् + टाप्—बुढ़ापा
विभ्रष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भ्रंश् + क्त—गिरा हुआ, पड़ा हुआ, अलग किया हुआ
विभ्रष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्षीण, लुप्त, पतित, बर्बाद
विभ्रष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ओझल, अन्तर्हित
विभ्राज् —वि॰—-—वि + भ्राज् + क्विप्—चमकीला, दीप्तिमान्, प्रकाशमान
विभ्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + भ्रम् + क्त—चक्कर खाया हुआ
विभ्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विक्षुब्ध, व्याकुल, अव्यवस्थित, हड़बड़ाया हुआ
विभ्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भ्रम में पड़ा हुआ, भूल करने वाला
विभ्रान्तनयन —वि॰—विभ्रान्त-नयन—-—विलोलदृष्टि, चंचल आँखों वाला
विभ्रान्तशील —वि॰—विभ्रान्त-शील—-—जिसका चित्त अव्यवस्थित हो
विभ्रान्तशील —वि॰—विभ्रान्त-शील—-—नशे में चूर, मतवाला
विभ्रान्तशीलः —पुं॰—विभ्रान्त-शीलः—-—बन्दर
विभ्रान्तशीलः —पुं॰—विभ्रान्त-शीलः—-—सूर्यमंडल या चन्द्रमंडल
विभ्रान्तिः —स्त्री॰—-—वि + भ्रम् + क्तिन्—चक्कर, फेरा
विभ्रान्तिः —स्त्री॰—-—-—हड़बड़ी, त्रुटि, गड़बड़ी
विभ्रान्तिः —स्त्री॰—-—-—उतावली, जल्दबाजी
विमत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + मन् + क्त—असहमत, असम्मत, भिन्न मत रखने वाला
विमत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विषम, असंगत
विमत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनादृत, अपमानित, उपेक्षित
विमति —वि॰—-—विरुद्धा विगता वा मतिर्यस्य-प्रा॰ ब॰ —मूर्ख, प्रज्ञाशून्य, मूढ
विमतिः —स्त्री॰—-—-—असम्मति, असहमति, मतविभिन्नता
विमत्सरम् —वि॰—-—विगतः मत्सरो यस्य-प्रा॰ ब॰—ईर्ष्या से मुक्त, ईर्ष्यारहित
विमद —वि॰—-—-—नशे से मुक्त
विमद —वि॰—-—-—हर्षशून्य, ईर्ष्यालु
विमनस् —वि॰—-—विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, प्रा॰ ब॰—उदास, विषण्ण, अवसन्न, खिन्न, म्लान
विमनस् —वि॰—-—विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, प्रा॰ ब॰—अनमना
विमनस् —वि॰—-—विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, प्रा॰ ब॰—हैरान, परेशान
विमनस् —वि॰—-—विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, प्रा॰ ब॰—अप्रसन्न
विमनस् —वि॰—-—विरुद्धं मनो यस्य, पक्षे कप्, प्रा॰ ब॰—जिसका मन या भावना बदली हुई हो
विमनस्क —वि॰—-—-—उदास, विषण्ण, अवसन्न, खिन्न, म्लान
विमनस्क —वि॰—-—-—हैरान, परेशान
विमनस्क —वि॰—-—-—जिसका मन या भावना बदली हुई हो
विमन्यु —वि॰—-—विगतः मन्युर्यस्य -प्रा॰ ब॰—क्रोध से मुक्त
विमन्यु —वि॰—-—-—शोक से मुक्त
विमयः —पुं॰—-—वि + भी + अच्—विनिमय, अदला-बदली
विमर्दः —पुं॰—-—वि + मृद् + घञ्—चूरा करना, कुचलना, चकना चूर करना
विमर्दः —पुं॰—-—-—मसलना, रगड़ना
विमर्दः —पुं॰—-—-—उबटन आदि शरीर पर मलना
विमर्दः —पुं॰—-—-—संग्राम, युद्ध, लड़ाई, भिड़न्त
विमर्दः —पुं॰—-—-—विनाश, उजाड़
विमर्दः —पुं॰—-—-—सूर्य और चन्द्रमा का मेल
विमर्दकः —पुं॰—-—वि + मृद् + ण्वुल्—पीसने वाला, चूरा करने वाला, चकनाचूर करने वाला
विमर्दकः —पुं॰—-—-—गन्ध द्रव्यों की पिसाई
विमर्दकः —पुं॰—-—-—सूर्य और चन्द्र का मेल
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि + मृद् + ल्युट्—चूरा करना, कुचलना, रौंदना
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि + मृद् + ल्युट्—आपस में मसलना, रगड़ना
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि + मृद् + ल्युट्— विनाश, हत्या
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि + मृद् + ल्युट्—गंध द्रव्यों की पिसाई
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि + मृद् + ल्युट्—ग्रहण
विमर्दना —स्त्री॰—-—-—चूरा करना, कुचलना, रौंदना
विमर्दना —स्त्री॰—-—-—आपस में मसलना, रगड़ना
विमर्दना —स्त्री॰—-—-— विनाश, हत्या
विमर्दना —स्त्री॰—-—-—गंध द्रव्यों की पिसाई
विमर्दना —स्त्री॰—-—-—ग्रहण
विमर्शः —पुं॰—-—वि + मृश् + घञ्—विचार विनिमय, सोच विचार, परीक्षण, चर्चा
विमर्शः —पुं॰—-—-—विपरीत निर्णय
विमर्शः —पुं॰—-—-—संकोच, संदेह
विमर्शः —पुं॰—-—-—पिछले शुभाशुभ कर्मों की मन के ऊपर बनी छाप
विमर्षः —पुं॰—-—वि + मृ्ष् + घञ्—विचार, विचारविनिमय
विमर्षः —पुं॰—-—-—अधीरता, असहिष्णुता
विमर्षः —पुं॰—-—-—असन्तोष, अप्रसन्नता
विमर्षः —पुं॰—-—-— (नाटकों में) नाटकीय कथा वस्तु की सफल प्रगति में परिवर्तन, किसी प्रेमाख्यान के सफल प्रक्रम में किसी अदृष्ट दुर्घटना के कारण परिवर्तन
विमल —वि॰—-—विगतो मलो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—पवित्र, निर्मल, मलरहित, स्वच्छ
विमल —वि॰—-—-—साफ़, शुभ्र, स्फटिक जैसा, पारदर्शी (जैसे जल)
विमल —वि॰—-—-—श्वेत, उज्ज्वल
विमलम् —नपुं॰—-—-—चांदी की कलई
विमलम् —नपुं॰—-—-—तालक, सेलखड़ी
विमलदानन् —नपुं॰—विमल-दानन्—-—देवता के लिए चढ़ावा
विमलमणिः —पुं॰—विमल-मणिः—-—स्फटिक
विमांसः —पुं॰—-—विरुद्धं मांसम्-प्रा॰ स॰—अस्वच्छ मांस (जैसे कुत्तों का)
विमांसम् —नपुं॰—-—-—अस्वच्छ मांस (जैसे कुत्तों का)
विमातृ —स्त्री॰—-—विरुद्धा माता-प्रा॰ स॰—सौतेली माँ
विमातृजः —पुं॰—विमातृ-जः—-—सौतेली माँ का बेटा
विमानः —पुं॰—-—वि + मन् + घञ्—अनादर, अपमान
विमानः —पुं॰—-—-—गुब्बारा, व्योमयान (आकाश में घूमने वाला)
विमानः —पुं॰—-—-—यान, सवारी
विमानः —पुं॰—-—-—कमरा, शानदार कमरा या सभाभवन @ रघु॰ १७/९
विमानः —पुं॰—-—-—(सात मंजिलों का) महल
विमानम् —नपुं॰—-—वि + मा + ल्युट् वा—अनादर, अपमान
विमानम् —नपुं॰—-—-—गुब्बारा, व्योमयान (आकाश में घूमने वाला)
विमानम् —नपुं॰—-—-—यान, सवारी
विमानम् —नपुं॰—-—-—कमरा, शानदार कमरा या सभाभवन @ रघु॰ १७/९
विमानम् —नपुं॰—-—-—(सात मंजिलों का) महल
विमानचारिन् —वि॰—विमानः-चारिन्—-—गुब्बारे में बैंठ कर घूमने वाला
विमानयान —वि॰—विमानः-यान—-—गुब्बारे में बैंठ कर घूमने वाला
विमानराजः —पुं॰—विमानः-राजः—-—श्रेष्ठ व्योमयान
विमानराजः —पुं॰—विमानः-राजः—-—व्योमयान का संचालक
विमानना —स्त्री॰—-—वि + मन् + णिच् + युच् + टाप्—अनादर, निरादर, अपमान, प्रतिष्ठा भंग
विमानित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + मन् + णिच् + क्त—अनादृत, निरादृत
विमार्गः —पुं॰—-—विरुद्धो मार्गः-प्रा॰ स॰—खराब सड़क
विमार्गः —पुं॰—-—-—कुपथ, दुराचरण, अनैतिकता
विमार्गगा —स्त्री॰—विमार्गः-गा—-—असती स्त्री
विमार्गगामिन् —वि॰—विमार्गः-गामिन्—-—असदाचारी
विमार्गप्रस्थित —वि॰—विमार्गः-प्रस्थित—-—असदाचारी
विमार्गणम् —नपुं॰—-—वि + मार्ग् + ल्युट्—ढूंढना, खोजना, तलाश करना
विमिश्र —वि॰—-—वि + मिश्र् + क्त —मिला हुआ, सम्पृक्त, गड्डमड्ड किया हुआ
विमिश्रित —वि॰—-—वि + मिश्र् + अच्, क्त वा—मिला हुआ, सम्पृक्त, गड्डमड्ड किया हुआ
विमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + मुच् + क्त—आजाद किया हुआ, रिहा किया हुआ, स्वतन्त्र किया हुआ
विमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परित्यक्त, छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ, पीछे रहा हुआ
विमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्वतंत्र
विमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जोर से फेंका गया, (बन्दूक से) दागा गया
विमुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभिव्यक्त
विमुक्तकण्ठ —वि॰—विमुक्त-कण्ठ—-—क्रन्दन करने वाला, फूट फूट कर रोने वाला
विमुक्तिः —स्त्री॰—-—वि + मुच् + क्तिन्—रिहाई, छुटकारा
विमुक्तिः —स्त्री॰—-—-—वियोग
विमुक्तिः —स्त्री॰—-—-—मोक्ष, उद्धार
विमुख —वि॰—-—विरुद्धमननुकूलं मुखं यस्य प्रा॰ ब॰—मुंह मोड़े हुए
विमुख —वि॰—-—-—पराङ्मुख्, अनिच्छुक, विरुद्ध
विमुख —वि॰—-—-—रहित, शून्य (समास में)
विमुग्घ —वि॰—-—वि + मुह् + क्त—अव्यवस्थित, घबराया हुआ, व्याकुल
विमुद्र —वि॰—-—बिगता मुद्रा यस्य-प्रा॰ ब॰—बिना मोहर लगा
विमुद्र —वि॰—-—-—खुला हुआ, मुकुलित, खिला हुआ
विमूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + मुह् + क्त—घबराया हुआ, व्याकुल
विमूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बहकाया हुआ, लुभाया हुआ, फुसलाया हुआ
विमृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + मृज् + क्त—मला हुआ, पोंछा गया, साफ किया गया
विमृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सोचा हुआ, विचार किया हुआ, चिन्तन किया हुआ
विमोक्षः —पुं॰—-—वि + मोक्ष् + घञ्—रिहाई, मुक्ति, छुटकारा
विमोक्षः —पुं॰—-—-—गोली दागना, निशाना लगाना
विमोक्षणम् —नपुं॰—-—वि + मोक्ष् + ल्युट्—छुटकारा, रिहाई मुक्त करना
विमोक्षणम् —नपुं॰—-—वि + मोक्ष् + ल्युट्—गोली दागना
विमोक्षणम् —नपुं॰—-—वि + मोक्ष् + ल्युट्—त्यागना, छोड़ना, परित्यक्त करना
विमोक्षणम् —नपुं॰—-—वि + मोक्ष् + ल्युट्—(अण्डे) देना
विमोक्षणा —स्त्री॰—-—-—छुटकारा, रिहाई मुक्त करना
विमोक्षणा —स्त्री॰—-—-—गोली दागना
विमोक्षणा —स्त्री॰—-—-—त्यागना, छोड़ना, परित्यक्त करना
विमोक्षणा —स्त्री॰—-—-—(अण्डे) देना
विमोचनम् —नपुं॰—-—वि + मुच् + ल्युट्—खोल देना, जूआ हटा लेना
विमोचनम् —नपुं॰—-—-—रिहाई, स्वतन्त्रता
विमोचनम् —नपुं॰—-—-—छुटकारा, मोक्ष
विमोहन —वि॰—-—वि + मुह् + णिच् + ल्युट्—रिझाना, प्रलोभन देना, आकृष्ट करना
विमोहनः —पुं॰—-—-—नरक का एक प्रभाग
विमोहनम् —नपुं॰—-—-—नरक का एक प्रभाग
विमोहनम् —नपुं॰—-—-—फुसलाना, लुभाना, आकृष्ट करना
विम्बः —पुं॰—-—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमंडल
विम्बम् —नपुं॰—-—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमंडल
विम्बः —पुं॰—-—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमण्डल
विम्बः —पुं॰—-—-—कोई गोल या मंडलाकार सतह, मंडल या गोला
विम्बः —पुं॰—-—-—प्रतिमा, छाया, प्रतिविंब
विम्बः —पुं॰—-—-—शीशा, दर्पण
विम्बः —पुं॰—-—-—उपमित पदार्थ
विम्बम् —नपुं॰—-—-—सूर्यमण्डल या चन्द्रमण्डल
विम्बम् —नपुं॰—-—-—कोई गोल या मंडलाकार सतह, मंडल या गोला
विम्बम् —नपुं॰—-—-—प्रतिमा, छाया, प्रतिविंब
विम्बम् —नपुं॰—-—-—शीशा, दर्पण
विम्बम् —नपुं॰—-—-—उपमित पदार्थ
विम्बम् —नपुं॰—-—-—एक वृक्ष का फल
विम्बकः —पुं॰—-—विम्ब + कन्—सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
विम्बकः —पुं॰—-—विम्ब + कन्—बिंबफल
विम्बटः —पुं॰—-—बिंब् + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—राई का पौधा
विम्बिका —स्त्री॰—-—विम्ब + कन्, इत्वम्+टाप्—सूर्यमंडल या चन्द्रमण्डल
विम्बिका —स्त्री॰—-—विम्ब + कन्, इत्वम्+टाप्—बिंब का पौधा
बिम्बा —स्त्री॰—-—बिंब् + अच् + टाप्—एक बेल का नाम
बिम्बी —स्त्री॰—-—बिंब् + अच् + ङीष् वा—एक बेल का नाम
विम्बित —वि॰—-—विम्ब + इतच्—प्रतिबिंबित, प्रति छाया पड़ी हुई
विम्बित —वि॰—-—विम्ब + इतच्—चित्रित
विम्बुः —पुं॰—-—-—सुपारी का पेड़
वियत् —नपुं॰—-—वियच्छति न विरमति-वि + यम् + क्विप्, म लोपः, तुकागमः—आकाश, अन्तरिक्ष
वियद्गङ्गा —स्त्री॰—वियत्-गङ्गा—-—स्वर्गीय गंगा
वियद्गङ्गा —स्त्री॰—वियत्-गङ्गा—-—आकाशगंगा
वियच्चारिन् —पुं॰—वियत्-चारिन्—-—चील
वियद्भूतिः —स्त्री॰—वियत्-भूतिः—-—अंधकार
वियन्मणिः —पुं॰—वियत्-मणिः—-—सूर्य
वियमः —पुं॰—-—वि + यम् + अप्—प्रतिबंध, रोक, नियन्त्रण
वियमः —पुं॰—-—-—दुःख, पीड़ा, कष्ट,
वियमः —पुं॰—-—-—विराम, पड़ाव
वियात —वि॰—-—विरुद्धं निंदां यातः-प्रा॰ स॰—धृष्ट
वियात —वि॰—-—-—साहसी, निर्लज्ज, ढीठ
वियामः —पुं॰—-—-—प्रतिबंध, रोक, नियन्त्रण
वियामः —पुं॰—-—-—दुःख, पीड़ा, कष्ट,
वियामः —पुं॰—-—-—विराम, पड़ाव
वियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + युज् + क्त—विच्छिन्न, पृथक्कृत, अलग किया हुआ
वियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जुदा किया हुआ, परित्यक्त
वियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुक्त, वंचित
वियुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + यु + क्त—वियुक्त, विरहित, वञ्चित
वियोगः —पुं॰—-—वि + युज् + घञ्—जुदाई, विच्छेद
वियोगः —पुं॰—-—-—अभाव, हानि
वियोगिन् —वि॰—-—वियोगअ + इनि—वियुक्त
वियोगिन् —पुं॰—-—-—चक्रवाक
वियोगिनी —स्त्री॰—-—वियोगिन् + ङीष्—अपने पति या प्रेमी से वियुक्त स्त्री
वियोगिनी —स्त्री॰—-—-—एक छन्द या वृत्त का नाम
वियोजित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + युज् + णिच् + क्त—अलगाया हुआ
वियोजित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जुदा किया हुआ, वञ्चित
वियोनिः —पुं॰—-—विविधा विरुद्धा वा योनिः प्रा॰ स॰—नाना जन्म
वियोनिः —पुं॰—-—विविधा विरुद्धा वा योनिः प्रा॰ स॰—पशुओं का गर्भाशय
वियोनिः —पुं॰—-—विविधा विरुद्धा वा योनिः प्रा॰ स॰—हीन या कलंकपूर्ण जन्म
वियोनी —पुं॰—-—-—नाना जन्म
वियोनी —पुं॰—-—-—पशुओं का गर्भाशय
वियोनी —पुं॰—-—-—हीन या कलंकपूर्ण जन्म
विरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रंज + क्त—बहुत लाल, लालिमा से युक्त
विरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बदरंग
विरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनुरागहीन, स्नेहशून्य, अप्रसन्न
विरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सांसारिक राग या लालसा से मुक्त, उदासीन
विरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आवेश पूर्ण
विरक्तिः —स्त्री॰—-—वि + रञ्ज् + क्तिन्—चित्तवृति में परिवर्तन, असन्तोष, असंतृप्ति, स्नेहशून्यता
विरक्तिः —स्त्री॰—-—-—अलगाव
विरक्तिः —स्त्री॰—-—-—उदासीनता, इच्छा का अभाव, सांसारिक लालसा या आसक्तियों से मुक्त
विरचनम् —नपुं॰—-—वि + रच् + ल्युट्—क्रम व्यवस्थापन
विरचनम् —नपुं॰—-—-—रचना करना, संरचन
विरचनम् —नपुं॰—-—-—निर्माण करना, सृजन
विरचनम् —नपुं॰—-—-—साहित्य-रचना करना, संकलन करना
विरचना —स्त्री॰—-—वि + रच् + ल्युट्—क्रम व्यवस्थापन
विरचना —स्त्री॰—-—-—रचना करना, संरचन
विरचना —स्त्री॰—-—-—निर्माण करना, सृजन
विरचना —स्त्री॰—-—-—साहित्य-रचना करना, संकलन करना
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रच् + क्त—क्रम से रक्खा गया, बनाया गया, निर्मित, तैयार किया गया
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घटित किया हुआ, संरचना किया हुआ
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लिखा हुआ, साहित्य-सृजन किया हुआ
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—काट-छांट किया गया, संवारा गया, परिष्कृत किया गया, बनाव-सिंगार किया गया
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—धारण किया गया, पहनाया गया
विरचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जड़ा गया, बैठाय गया
विरज —वि॰—-—विगतं रजो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—जिस पर धूल या गर्द न हो, जिसमें राग न हो
विरजः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
विरजस् —वि॰—-—विगतं रजः यस्मात् यस्य वा प्रा॰ ब॰—जिस पर धूल न पड़ी हो, राग रहित
विरजस् —वि॰—-—-—जिसका रजोधर्म आना बंद हो गया हो
विरजस्क —वि॰—-—-—जिस पर धूल न पड़ी हो, राग रहित
विरजस्क —वि॰—-—-—जिसका रजोधर्म आना बंद हो गया हो
विरजस्का —स्त्री॰—-—विरजस् + कप् + टाप्—वह स्त्री जिसको रजोधर्म आना बन्द हो गया हो
विरञ्चः —पुं॰—-—वि + रच् + अच्—ब्रह्मा
विरञ्चिः —पुं॰—-—वि + रच् + अच्, इन् वा, मुम्—ब्रह्मा
विरटः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का काला अगुरु, अगर का वृक्ष
विरणम् —नपुं॰—-—विशिष्टो रणो मूलं यस्य-प्रा॰ ब॰ —एक प्रकार का सुगन्धित घास
विरत —वि॰—-—वि + रम् + क्त—बन्द किया हुआ, रुका हुआ
विरत —वि॰—-—-—विश्रान्त, थका हुआ, ठहरा हुआ
विरत —वि॰—-—-—समाप्त, उपसंहृत, समाप्ति पर
विरतिः —स्त्री॰—-—वि + रम् + क्तिन्—बन्द करना, ठहरना, रोकना
विरतिः —स्त्री॰—-—-—विश्राम, अवसांन, यति
विरतिः —स्त्री॰—-—-—सांसारिक वासनाओं के प्रति उदासीनता
विरमः —पुं॰—-—वि + रम् + अप्—रोक, थाम
विरमः —पुं॰—-—-—सूर्य का छिपना
विरल —वि॰—-—वि + रा + कलन्—छिद्रों से युक्त, जिसके बीच में अन्तराल हों, पतला, जो सघन न हो, सटा हुआ न हो
विरल —वि॰—-—-—ढीला, विस्तृत
विरल —वि॰—-—-—निराला, दुर्लभ, अनूठा
विरल —वि॰—-—-—कम, थोड़ा (संख्या या परिमाण संबंधी)
विरल —वि॰—-—-—दूरवर्ती, दूरस्थ, लम्बा (समय या दूरी आदि)
विरलम् —अव्य॰—-—-—कठिनाई से, कभी कभी, जो बहुतायत से न हो, नहीं के बराबर
विरलजानुक —वि॰—विरल-जानुक—-—धनुः
विरलपदी —स्त्री॰—विरल-पदी—-—जिसके घुटनों में अधिक दूरी हो
विरलद्रवा —स्त्री॰—विरल-द्रवा—-—एक प्रकार की लपसी
विरस —वि॰—-—विगतः रसो यस्य प्रा॰ ब॰—स्वादरहित, फीका, नीरस
विरस —वि॰—-—-—अप्रिय, अरुचिकर, पीडाकर
विरस —वि॰—-—-—क्रूर, निर्दय
विरहः —पुं॰—-—वि + रह् + अच्—बिछोह, वियोग
विरहः —पुं॰—-—-—विशेषतः प्रेमियों की जुदाई
विरहः —पुं॰—-—-—अनुपस्थिति
विरहः —पुं॰—-—-—उजड़ना, परित्याग, छोड़ देना
विरहानलः —पुं॰—विरहः-अनलः—-—वियोगाग्नि
विरहावस्था —स्त्री॰—विरहः-अवस्था—-—वियोगदशा
विरहार्त —वि॰—विरहः-आर्त—-—वियोग का कष्ट भोगने वाला, बिछोह के कारण दुःखी
विरहोत्कण्ठ —वि॰—विरहः-उत्कण्ठ—-—वियोग का कष्ट भोगने वाला, बिछोह के कारण दुःखी
विरहोत्सुक —वि॰—विरहः-उत्सुक—-—वियोग का कष्ट भोगने वाला, बिछोह के कारण दुःखी
विरहोत्कण्ठिता —स्त्री॰—विरहः-उत्कण्ठिता—-—वह स्त्री जो अपने पति या प्रेमी के वियोग से दुःखी है, काव्यग्रंथों में वर्णित एक नायिका
विरहज्वरः —पुं॰—विरहः-ज्वरः—-—वियोग की वेदना या ज्वर
विरहिणी —स्त्री॰—-—विरहन् + ङीष्—अपने पति या प्रेमी से वियुक्त स्त्री
विरहिणी —स्त्री॰—-—-—मज़दूरी, भाड़ा
विरहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रह् + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त, त्यागा हुआ
विरहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वियुक्त
विरहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अकेला, एकाकी
विरहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—हीन, शून्य, मुक्त
विरहिन् —वि॰—-—विरह + इनि—अनुपस्थित, अपनी प्रेयसी या प्रेमी से वियुक्त होने वाला
विरागः —पुं॰—-—वि + रञ्ज् + घञ्—रंग का बदलना
विरागः —पुं॰—-—-—वृत्तिपरिवर्तन, स्नेहाभाव, असन्तृप्ति, असन्तोष
विरागः —पुं॰—-—-—अरुचि, इच्छा न होना
विरागः —पुं॰—-—-—सांसरिक वासनाओं के प्रति उदासीनता, राग से मुक्ति
विराज् —पुं॰—-—वि + राज् + क्विप्—सौन्दर्य, आभा
विराज् —पुं॰—-—-—क्षत्रिय जाति का पुरुष
विराज् —पुं॰—-—-—ब्रह्मा की प्रथम सन्तान
विराज् —स्त्री॰—-—-—एक बैदिक वृत्त या छन्द का नाम
विराज —पुं॰—-—-—सौन्दर्य, आभा
विराज —पुं॰—-—-—क्षत्रिय जाति का पुरुष
विराज —पुं॰—-—-—ब्रह्मा की प्रथम सन्तान
विराज —स्त्री॰—-—-—एक बैदिक वृत्त या छन्द का नाम
विराजित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + राज् + क्त—देदीप्यमान, प्रकाशित
विराजित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रदर्शित, प्रदर्शित, प्रकटीकृत
विराटः —पुं॰—-—विशेषो राटो यत्र—भारतवर्ष के एक जिले का नाम
विराटः —पुं॰—-—-—मत्स्य देश के एक राजा का नाम
विराटजः —पुं॰—विराटः-जः—-—एक प्रकार का घटिया हीरा
विराटपर्वन् —नपुं॰—विराटः-पर्वन्—-—महाभारत का चौथा पर्व
विराटकः —पुं॰—-—विराट + कन्—घटिया प्रकार का हीरा, हीरे की घटिया प्रकार
विराणिन् —पुं॰—-—वि + रण् + णिनि—हाथी
विराद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + राध् + क्त—विरुद्ध, प्रतिकृत
विराद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कुपित, क्षतिग्रस्त, घृणापूर्वक व्यवहृत
विराधः —पुं॰—-—वि + राध् + घञ्—विरोध
विराधः —पुं॰—-—-—सताना, सन्तप्त करना, छेड़छाड़
विराधः —पुं॰—-—-—राम के द्वारा मारा गया एक बलवान् राक्षस
विराधनम् —नपुं॰—-—वि + राध् + ल्युट्—विरोध करना
विराधनम् —नपुं॰—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, प्रकुपित करना
विराधनम् —नपुं॰—-—-—पीड़ा, वेदना
विरामः —पुं॰—-—वि + रम् + घञ्—रोकना, बन्द करना
विरामः —पुं॰—-—-—अन्त, समाप्ति, उपसंहार
विरामः —पुं॰—-—-—यति, ठहरना
विरामः —पुं॰—-—-—आवाज़ का रुकना या थमना
विरामः —पुं॰—-—-—एक छोटी तिरछी लकीर जो व्यंजन के नीचे लगाई जाती है, प्रायः वाक्य के अन्त में, हल्चिह्न
विरामः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
विराल —पुं॰—-—-—बिस्ता, बिलाब
विराल —पुं॰—-—-—आँख का डेला
विरावः —पुं॰—-—वि + रु + घञ्—कोलाहल, शोर, ध्वनि
विराविन् —वि॰—-—विराव + इनि—रोने वाला, चिल्लाने वाला, शोर मचाने वाला
विराविन् —वि॰—-—-—विलाप करने वाला
विराविणी —स्त्री॰—-—-—रोने या चिल्लाने वाली
विराविणी —स्त्री॰—-—-—झाड़ू
विरिञ्चः —पुं॰—-—वि + रिच् + अच्—ब्रह्मा
विरिञ्चनः —पुं॰—-—वि + रिच् + ल्युट् वा, मुम्—ब्रह्मा
विरिञ्चिः —पुं॰—-—वि + रिच् + इन्, मुम्—ब्रह्मा
विरिञ्चिः —पुं॰—-—-—विष्णु
विरुग्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रुज् + क्त—टुकड़े टुकड़े हुआ
विरुग्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विनष्ट
विरुग्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—झुका हुआ
विरुग्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ठूंठा
विरुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रु + क्त—चीखा हुआ, चिल्लाया हुआ
विरुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गुंजायमान, चीत्कारपूर्ण
विरुतम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चिल्लाना, चीखना, दहाड़ना आदि
विरुतम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चिल्लाहट, ध्वनि, शोर, कोलाहल, घोष
विरुतम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गाना, भिनभिनाना, कूजना, गुंजारना
विरुदः —पुं॰—-—-—घोषणा करना
विरुदः —पुं॰—-—-—जोर से चिल्लाना
विरुदः —पुं॰—-—-—स्तुतिपरक कविता
विरुदम् —नपुं॰—-—-—घोषणा करना
विरुदम् —नपुं॰—-—-—जोर से चिल्लाना
विरुदम् —नपुं॰—-—-—स्तुतिपरक कविता
विरुदितम् —नपुं॰—-—विरुद + इतच्—जोरजौर से रोना धोना, विलाप करना
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रुध् + क्त—बाधित, रोका गया, विरोध किया गया, रुकावट डाली गई
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घेरा हुआ, कैद में बन्द गिया हुआ
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विपरीत, घेरा डाला हुआ, ताकेबन्दी की गई
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विपरीत, असंगत, वेमेल, असम्बद्ध
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रतिकूल, विरोधी, गुणों में विपरीत
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परस्पर विरोधी, वैपरीत्य को सिद्ध करने वाला
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विरोधी, उलटा, शत्रुतापूर्ण
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अननुकूल, अनुपयुक्त
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रतिषिद्ध, वर्जित (भोजन आदि)
विरुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अशुद्ध, अनुचित
विरुद्धम् —नपुं॰—-—-—विरोध, वैपरीत्य, शत्रुता
विरुद्धम् —नपुं॰—-—-—वैमत्य, असहमति
विरूक्षणम् —नपुं॰—-—वि + रूक्ष + ल्युट्—रूखा करना
विरूक्षणम् —नपुं॰—-—-—रक्तस्राव को रोकने का कार्य करने वाली (औषधि)
विरूक्षणम् —नपुं॰—-—-—कलंक, निन्दा
विरूक्षणम् —नपुं॰—-—-—अभिशाप, कोसना
विरू —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + रूह् + क्त—उगाया हुआ, अंकुरित, फूटा हुआ
विरू —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उत्पादित, उपजाया हुआ, उत्पन्न किया हुआ
विरू —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उगा हुआ, अभिवर्धित
विरू —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुकुलित, खिला हुआ
विरू —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चढ़ा हुआ, सवारी की हुई
विरूप —वि॰—-—विकृतं रूपं यस्य-प्रा॰ ब॰—विरूपित, कुरूप, बदशकल, बदसूरत
विरूप —वि॰—-—-—अप्राकृतिक, विकटाकार
विरूपम् —नपुं॰—-—-—कुत्सित रूप, कुरूपता
विरूपम् —नपुं॰—-—-—रूप, स्वभाव या चरित्र की विभिन्नता
विरूपाक्ष —वि॰—विरूप-अक्ष—-—भद्दी आँखों वाला
विरूपाक्षः —पुं॰—विरूप-अक्षः—-—शिव (विषम संख्या की आँखें होने के कारण)
विरूपकरणम् —नपुं॰—विरूप-करणम्—-—बदसूरत बनाना
विरूपकरणम् —नपुं॰—विरूप-करणम्—-—क्षति पहुँचाना
विरूपचक्षुस् —पुं॰—विरूप-चक्षुस्—-—शिव का विशेषण
विरूपरूप —वि॰—विरूप-रूप—-—भद्दा, बेडौल
विरूपिन् —वि॰—-—विरुद्धं रूपमस्ति अस्य-विरूप + इनि—भद्दा, कुरूप, बदसूरत
विरेकः —पुं॰—-—वि + रिच् + धञ्—मलाशय को रिक्त करना, साफ करना
विरेकः —पुं॰—-—-—विरेचक, जुलाब की दवा
विरेचनम् —नपुं॰—-—-—मलाशय को रिक्त करना, साफ करना
विरेचनम् —नपुं॰—-—-—विरेचक, जुलाब की दवा
विरेचित —वि॰—-—वि + रिच् + णिच् + क्त—पेट साफ किया गया, पेट निर्मल और रिक्त किया गया
विरेफः —पुं॰—-—विशिष्टो रेफो यस्य-वि + रिफ् + अच्—नदी, सरिता
विरेफः —पुं॰—-—-—`र' अक्षर का अभाव
विरोकः —पुं॰—-—वि + रुच् + घञ्—छिद्र, सूराख, दरार
विरोकम् —नपुं॰—-—वि + रुच् + अच् वा—छिद्र, सूराख, दरार
विरोकः —पुं॰—-—-—प्रकाश की किरण
विरोचनः —पुं॰—-—विशेषण रोचते- वि + रुच् + ल्युट्—सूर्य
विरोचनः —पुं॰—-—-—चन्द्रमा
विरोचनः —पुं॰—-—-—प्रह्लाद के पुत्र और बालि के पिता का नाम
विरोचनसुतः —पुं॰—विरोचनः-सुतः—-—बालि का विशेषण
विरोधः —पुं॰—-—वि + रुध् + घञ्—प्रतिरोध, रुकावट, विघ्न
विरोधः —पुं॰—-—-—नाकेबंदी, घेरा, आबरण
विरोधः —पुं॰—-—-—प्रतिबन्ध, रोक
विरोधः —पुं॰—-—-—असंगति, असंबद्धता, परस्परविरोध
विरोधः —पुं॰—-—-—अर्थ विरोध वैषम्य
विरोधः —पुं॰—-—-—शत्रुता, दुश्मनी
विरोधः —पुं॰—-—-—कलह, असहमति
विरोधः —पुं॰—-—-—संकट, दु्र्भाग्य
विरोधः —पुं॰—-—-—(अलं में) प्रतीयमान असंगति जो केवल शाब्दिक हो
विरोधोक्तिः —स्त्री॰—विरोधः-उक्तिः—-—परस्परविरोध, विरोध
विरोधवचनम् —नपुं॰—विरोधः-वचनम्—-—परस्परविरोध, विरोध
विरोधकारिन् —वि॰—विरोधः-कारिन्—-—झगड़ा करने वाला
विरोधकृत् —वि॰—विरोधः-कृत्—-—विरोधी
विरोधकृत् —पुं॰—विरोधः-कृत्—-—शत्रु
विरोधनम् —नपुं॰—-—वि + रुध् + ल्युट्—बाधा डालना, विध्न डालना, रुकावट डालना
विरोधनम् —नपुं॰—-—-—घेरा डालना, नाकेबंदी करना
विरोधनम् —नपुं॰—-—-—प्रतिरोध करना, मुकाबला करना
विरोधनम् —नपुं॰—-—-—परस्परविरोध, असंगति
विरोधिन् —वि॰—-—वि + रुध् + णिनि—मुकाबला, करने वाला, प्रतिरोध करने वाला, अवरोध करनें वाला
विरोधिन् —वि॰—-—-—घेरा डालने वाला
विरोधिन् —वि॰—-—-—परस्पर विरोधी, प्रतिद्वन्द्वि, असंगत,
विरोधिन् —वि॰—-—-—विद्वेषी, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल
विरोपणम् —नपुं॰—-—वि + रुह् + ल्युट्—(घाव आदि का) भरना
विरोहणम् —नपुं॰—-—वि + रुह् + ल्युट्—(घाव आदि का) भरना
विल् —तुदा॰ पर॰ <विलति>—-—-—ढकना, छिपाना
विल् —तुदा॰ पर॰ <विलति>—-—-—तोड़ना, बाँटना
विल् —चुरा॰ उभ॰ <वेलयति>,<वेलयते>—-—-—फेंकना, धकेलना
विलम् —नपुं॰—-—विल् + क—छिद्र, विवर, खूड (हल चलाने से बनी गहरी सीधी रेखा)
विलम् —नपुं॰—-—विल् + क—रिक्तस्थान, गर्त, छिद्र
विलम् —नपुं॰—-—विल् + क—द्वारक, छिद्र, सूराख
विलम् —नपुं॰—-—विल् + क—कंदरा, कोटरा
विलक्ष —वि॰—-—विलक्ष् + अच्—जिसके कोई विशेष लक्षण या चिह्न न हो
विलक्ष —वि॰—-—-—व्याकुल, विह्वल
विलक्ष —वि॰—-—-—आश्वर्यान्वित, अचंभे में पड़ा हुआ
विलक्ष —वि॰—-—-—लज्जित, शर्मिदा
विलक्षण —वि॰—-—विगतं लक्षणं यस्य-प्रा॰ ब॰ —जिसके कोई विशेष लक्षण या चिह्न न हो
विलक्षण —वि॰—-—-—भिन्न, इतर
विलक्षण —वि॰—-—-—अनोखा, असाधारण, अनूठा
विलक्षण —वि॰—-—-—अशुभ लक्षणो से युक्त
विलक्षणम् —नपुं॰—-—-—व्यर्थ या निरर्थक स्थिति
विलक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लक्ष् + क्त—विश्रुत, प्रत्यक्षीकृत, दृष्ट, आविष्कृत
विलक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विवेचनीय
विलक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उद्विग्न, घबराया हुआ, विह्वल, व्याकुल
विलक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रकुपित, नाराज
विलग्न —वि॰—-—वि + लस्ज् + क्त—चिपटा हुआ, चिपका हुआ, अवलंबित, बंधा हुआ
विलग्न —वि॰—-—-—ढाला हुआ, स्थिर किया हुआ, निर्दिष्ट
विलग्न —वि॰—-—-—विगत, बीता हा (समय आदि)
विलग्न —वि॰—-—-—पतला, छरहरा, सुकुमार
विलग्नम् —नपुं॰—-—-—कुल्हा
विलग्नम् —नपुं॰—-—-—तारामण्डल का उदित होना
विलङ्घनम् —नपुं॰—-—वि + लंघ्+ क्त—पार या परे गया हुआ, दुहराया हुआ
विलङ्घनम् —नपुं॰—-—-—अतिक्रांत
विलङ्घनम् —नपुं॰—-—-—आगे गया हुआ, आगे बढ़ा हुआ
विलङ्घनम् —नपुं॰—-—-—परास्त, पराजित
विलज्ज —वि॰—-—विगता लज्जा यस्य प्रा॰ ब॰—निर्लज्ज, बेशर्म
विलपनम् —नपुं॰—-—वि + लप् + ल्युट्—बातें करना
विलपनम् —नपुं॰—-—-—निकम्मी बातें करना, चहचहाना, चहकना
विलपनम् —नपुं॰—-—-—विलाप करना, रोना-धोंना
विलपनम् —नपुं॰—-—-—चीकट, तलछट
विलपितम् —नपुं॰—-—वि + लप् + क्त—विलाप करना, क्रन्दन
विलम्बः —पुं॰—-—वि + लम्ब् + ल्युट्—लटकना, निर्भरता
विलम्बः —पुं॰—-—-—देरी, टालमटोल
विलम्बिका —स्त्री॰—-—वि + लम्ब् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—कब्ज़ी, कोष्ठबद्धता
विलम्बित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लम्ब् + क्त—लटकना, निर्भरता
विलम्बित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लम्बमान, लटकाने वाला
विलम्बित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आश्रित, सुसम्बद्ध
विलम्बित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मन्द, दीर्घसूत्री, आलसी
विलम्बित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मन्थर, धीमा (संगीत में काल आदि)
विलम्बितम् —नपुं॰—-—-—देरी
विलम्बिन् —वि॰—-—विलम्ब + णिनि—नीचे लटकता हुआ, निर्भर, लटकन
विलम्बिन् —वि॰—-—-—देर करने वाला, टालमटोल करने वाला, मन्द रहने वाला, भवति विलम्बिनि विगलितलज्जा विलपति रोदिति वासकसज्जा @ गीत॰ ६
विलम्भः —पुं॰—-—वि + लभ् + घञ्, मुम्—उदारता
विलम्भः —पुं॰—-—-—भेंट, दान
विलयः —पुं॰—-—वि + ली + अच्—विघटन, पिघलना
विलयः —पुं॰—-—-—विनाश, मृत्यु, अन्त
विलयः —पुं॰—-—-—संसार का विघटन या विनाश
विलयङ्गम् —नपुं॰—-—-—घुल जाना, अन्त हो जाना, समाप्त हो जाना
विलयनम् —नपुं॰—-—वि + ली + ल्युट्—घुल जाना, पिघल जाना, घोल या विघटन
विलयनम् —नपुं॰—-—-—जंग लग जाना, मुर्चां खा जाना
विलयनम् —नपुं॰—-—-—हटाना, दूर करना
विलयनम् —नपुं॰—-—-—पतला करने वाली औषधि
विलसत् —शत्रन्त वि॰—-—वि + लस् + शतृ—चमकने वाला, प्रकाशमान, उज्ज्वल
विलसत् —शत्रन्त वि॰—-—-—चमचमाने वाला, सहसा कौंधने वाला
विलसत् —शत्रन्त वि॰—-—-—लहराने वाला
विलसत् —शत्रन्त वि॰—-—-—क्रीडाप्रिय, विनोदप्रिय
विलसनम् —नपुं॰—-—वि + लस् + ल्युट्—दमकना, चमचमाना चमकना, जगमगाना
विलसनम् —नपुं॰—-—-—क्रीडा करना, इठलाना, चोचले करना
विलसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लस् + क्त—दमकता हुआ, चमकता हुआ, जगमगाता हुआ
विलसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रकट हुआ, प्रकटीकृत
विलसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रीडाप्रिय, स्वेछाचारी
विलसितम् —नपुं॰—-—-—दमकना, जगमगाना
विलसितम् —नपुं॰—-—-—चमक, दमक
विलसितम् —नपुं॰—-—-—दर्शन, प्रकटीकरण
विलसितम् —नपुं॰—-—-—क्रीडा, खेल, रंगरेली, सानुराग हावभाव
विलापः —पुं॰—-—वि + लप् + घञ्—क्रन्दन, शोक करना, रोदन, कराहना
विलालः —पुं॰—-—वि + लल् + घञ्—बिलाव
विलालः —पुं॰—-—-—उपकरण, यन्त्र
विलासः —पुं॰—-—वि + लस् + घञ्—क्रीड़ा, खेल, मनोरंजन
विलासः —पुं॰—-—-—केलिपरक मनोविनोद, दिलबहलावा, प्रसन्नता
विलासः —पुं॰—-—-—ललित अभिनय, रंगरेली, अनुराग, कामुकता, सुन्दर चाल, रतिद्योतक कोई भी स्त्रियोचित हावभाव
विलासः —पुं॰—-—-—लालित्य सौन्दर्य, चारुता, लावण्य
विलासनम् —नपुं॰—-—विलस् + णिच् + ल्युट्—क्रीडा, खेल, मनोरंजन
विलासनम् —नपुं॰—-—-—कामुकता, रंगरेली
विलासवती —स्त्री॰—-—विलास + मतुप् + ङीप्, मस्य वः—स्वेच्छाचारिणी या कामुक स्त्री
विलासिका —स्त्री॰—-—वि + लस् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—प्रेमलीला से पूर्णं एकाङ्की नाटक
विलासिन् —वि॰—-—विलास + इनि—क्रीडा युक्त, लीलापर, रंगरेली में व्यस्त, कामुक, चोचले करने वाला
विलासिन् —पुं॰—-—-—विषयी, भोगासक्त, रसिकजन
विलासिन् —पुं॰—-—-—चन्द्रमा
विलासिन् —पुं॰—-—-—कृष्ण या विष्णु का विशेषण
विलासिन् —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
विलासिन् —पुं॰—-—-—कामदेव का विशेषण
विलासिनी —स्त्री॰—-—विलासिन् + ङीप्—रमणी
विलासिनी —स्त्री॰—-—-—हावभाव करने वाली स्त्री
विलासिनी —स्त्री॰—-—-—स्वेच्छाचारिणी, वेश्या
विलिखनम् —नपुं॰—-—वि + लिख् + ल्युट्—खुरचना, कुरेदना, लिखना
विलिप्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + लिप् + क्त—लीपा हुआ, पोता हुआ, चुपड़ा हुआ
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + ली + क्त—चिपकने वाला, चिपटा हुआ, अनुषक्त
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अड्डे पर बैठा हुआ, बसा हुआ उतरा हुआ
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—संसक्त, संस्पर्शी
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—पिघला हुआ, धुला हुआ, गलाया हुआ
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अन्तर्हित, ओझल
विलीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—मृत, नष्ट
विलुञ्चनम् —नपुं॰—-—वि + लुंच् + ल्युट्—फाड़ डालना, छीलना
विलुण्ठनम् —नपुं॰—-—वि + लुंठ् + ल्युट्—लूटना, डाका डालना
विलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लुप् + क्त—तोड़ा हुआ, फाड़ा हुआ
विलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पकड़ा हुआ, छीना हुआ, अपहरण किया हुआ
विलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लूटा हुआ, डाका डाला हुआ
विलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विनष्ट, बर्बाद
विलुप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बिगाड़ा हुआ, तोड़ा-फोड़ा हुआ
विलुम्पकः —पुं॰—-—वि + लुप् + ण्वुल्, मुम्—चोर, लुटेरा, अपहर्ता
विलुलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लुल् + क्त—इधर उधर घूमने वाला, अस्थिर, हिला हुआ, लुढ़का हुआ, थरथराता हुआ
विलुलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रमरहित, क्रमशून्य
विलून —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लू + क्त—कटा हुआ, काट डाला हुआ, चीरा हुआ, काट कर टुकड़े टुकड़े किया हुआ
विलेखनम् —नपुं॰—-—वि + लिख् + णिच् + ल्युट्—खुरचना, कुरेदना, गूडना
विलेखनम् —नपुं॰—-—-—उखाड़ना
विलेपः —पुं॰—-—वि + लिप् + घञ्—उबटन, मल्हम
विलेपः —पुं॰—-—-—लिपाई-पुताई
विलेपनम् —नपुं॰—-—वि + लिप् + ल्युट्—लीपना, पोतना
विलेपनम् —नपुं॰—-—-—मल्हम, उबटन, कोई भी शरीर पर लेप करने के योग्य सुगन्धित पदार्थ (केसर व चन्दन आदि)
विलेपनी —स्त्री॰—-—विलेपन + ङीप्—सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित स्त्री
विलेपनी —स्त्री॰—-—-—सुवेशा
विलेपनी —स्त्री॰—-—-—चावल का मांड
विलेपिका —स्त्री॰—-—विलेपी + कन् + टाप्, ह्रस्वः—चावल का मांड
विलेपी —स्त्री॰—-—विलेप + ङीष्—चावल का मांड
विलेप्यः —पुं॰—-—वि + लिप् + ण्यत्—चावल का मांड
विलोकनम् —नपुं॰—-—वि + लोक् + ल्युट्—देखना, निहारना, दृष्टि डालना
विलोकनम् —नपुं॰—-—-—दृष्टि, निरीक्षण
विलोकित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लोक् + क्त—देखा गया, निरीक्षण किया गया, समीक्षित, निहारा गया
विलोकित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परीक्षित, चिन्तन किया गया
विलोकितम् —नपुं॰—-—-—दृष्टि, नज़र
विलोचनम् —नपुं॰—-—वि + लोच् + ल्युट्—आँख
विलोचनाम्बु —नपुं॰—विलोचनम्-अम्बु—-—आँसू
विलोडनम् —नपुं॰—-—वि + लोड् + ल्युट्—विक्षुब्ध होना, दोलायमान होना, हिल-जुल, मन्थन करना
विलोडित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + लोड् + क्त—डुलाया हुआ, बिलोया हुआ, हिलाया हुआ, विक्षुब्ध
विलोडितम् —नपुं॰—-—-—बिलोया हुआ दूध
विलोपः —पुं॰—-—वि + लुप् + घञ्—ले जाना, अपहरण करना, पकड़ना, लूटना
विलोपः —पुं॰—-—-—लोप, हानि, नाश, अदर्शंन
विलोपम् —नपुं॰—-—वि + लुप् + ल्युट्—काट डालना
विलोपम् —नपुं॰—-—-—नष्ट करना, विनाश
विलोभः —पुं॰—-—वि + लुभ् + घञ्—आकर्षण, फुसलाहट, प्रलोभन
विलोभनम् —नपुं॰—-—वि + लुभ् + णिच् + ल्युट्—मोह लेना, ललचाना
विलोभनम् —नपुं॰—-—-—रिझाना, प्रलोभन, फुसलाना
विलोभनम् —नपुं॰—-—-—प्रशंसा खुशामद
विलोम —वि॰—-—विगतं लोम यत्र-प्रा॰ ब॰—व्युत्क्रान्त, प्रतिकूल, प्रतिलोम, विपरीत, विरुद्ध
विलोम —वि॰—-—-—प्रतिकुल क्रम में उत्पन्न
विलोमः —पुं॰—-—-—विपरीत क्रम, प्रतिलोम
विलोमम् —नपुं॰—-—-—रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र
विलोमोत्पन्न —वि॰—विलोम-उत्पन्न—-—प्रतिकुल क्रम में उत्पन्न अर्थात् ऐसी माता से जन्म लेना जो पिता की अपेक्षा उच्च वर्ण की हो
विलोमज —वि॰—विलोम-ज—-—प्रतिकुल क्रम में उत्पन्न अर्थात् ऐसी माता से जन्म लेना जो पिता की अपेक्षा उच्च वर्ण की हो
विलोमजात —वि॰—विलोम-जात—-—प्रतिकुल क्रम में उत्पन्न अर्थात् ऐसी माता से जन्म लेना जो पिता की अपेक्षा उच्च वर्ण की हो
विलोमवर्ण —वि॰—विलोम-वर्ण—-—प्रतिकुल क्रम में उत्पन्न अर्थात् ऐसी माता से जन्म लेना जो पिता की अपेक्षा उच्च वर्ण की हो
विलोमक्रिया —स्त्री॰—विलोम-क्रिया—-—प्रतिकूल कर्म
विलोमक्रिया —स्त्री॰—विलोम-क्रिया—-—प्रतिलोम नियम
विलोमविधिः —पुं॰—विलोम-विधिः—-—प्रतिकूल कर्म
विलोमविधिः —पुं॰—विलोम-विधिः—-—प्रतिलोम नियम
विलोमचिह्व —पुं॰—विलोम-चिह्वः—-—हाथी
विलोकी —स्त्री॰—-—विलोम + ङीष्—आँवला
विलोल —वि॰—-—विशेषेण लोलः-प्रा॰स॰—दोलायमान, कांपता हुआ, थरथर करने वाला, अस्थिर, डोलने वाला, चंचल, इधर उधर लुढ़कने वाला
विलोल —वि॰—-—-—ढीला, विपर्यस्त, बिखरे हुए (बाल आदि)
विलोहितः —पुं॰—-—विशेषेण लोहितः -प्रा॰स॰—रुद्र का नाम
विल्लः —पुं॰—-—बिल + ला + क, नि॰ अकार लोपः—गर्त
विल्लः —पुं॰—-—-—विशेषतः थाँवला, आलवाल
विल्लसूः —स्त्री॰—बिल्लः-सूः—-—दस बच्चों की माँ
विल्यः —पुं॰—-—-—बेल नामक वृक्ष
विल्यम् —नपुं॰—-—-—बेल का फल
विल्यम् —नपुं॰—-—-—एक विशेष तोल, पल भर
विवक्षा —स्त्री॰—-—वच् + सन् + अ + टाप्—बोलने की इच्छा
विवक्षा —स्त्री॰—-—-—अभिलाषा, इच्छा
विवक्षा —स्त्री॰—-—-—अर्थ, आशय
विवक्षा —स्त्री॰—-—-—इरादा, प्रयोजन
विवक्षित —वि॰—-—विवक्षा + इतच्—कहे जाने या बोली जाने के लिए अभिप्रेत
विवक्षित —वि॰—-—-—अर्थयुक्त, अभिप्रेत, उद्दिष्ट
विवक्षित —वि॰—-—-—अभिलषित इच्छित
विवक्षितम् —नपुं॰—-—-—प्रयोजन, अभिप्राय
विवक्षितम् —नपुं॰—-—-—आशय, अर्थ
विवक्षु —वि॰—-—वच् + सन् + उ—बोलने की इच्छा वाला
विवत्सा —स्त्री॰—-—विगतः वत्सो यस्याः प्रा॰ ब॰ —बिना वछड़े की गाय
विवधः —पुं॰—-—विवधो विगतो वा वधः हननं गतिर्वा यत्र प्रा॰ ब॰—बोझा ढोने के लिए जूआ
विवधः —पुं॰—-—-—मार्ग, सड़क
विवधः —पुं॰—-—-—अनाज का संग्रह
विवधिकः —पुं॰—-—विवध + ठन्—बोझा ढोने वाला, कुली
विवधिकः —पुं॰—-—-—फेरी वाला, आवाज़ लगा कर बेचने वाला
विवरम् —नपुं॰—-—वि + वृ + अच्—दरार, छिद्र, रन्ध्र, खोखलापन, रिक्तता
विवरम् —नपुं॰—-—-—अन्तःस्थान, अन्तराल,बीच की जगह
विवरम् —नपुं॰—-—-—एकान्त स्थान
विवरम् —नपुं॰—-—-—दोष, त्रुटि, ऐब, कमी
विवरम् —नपुं॰—-—-—विच्छेद, घाव
विवरम् —नपुं॰—-—-—`नौ' की संख्या
विवरनालिका —स्त्री॰—विवरम्-नालिका—-—बंसरी, बंसा, मुरली
विवरणम् —नपुं॰—-—वि + वृ + ल्युट्—प्रदर्शन, अभिव्यंजन, उद्घाटन, खोलना
विवरणम् —नपुं॰—-—-—अनावृत करना, खुला छोड़ना
विवरणम् —नपुं॰—-—-—विवृति, व्याख्या, वृत्ति, टीका, भाष्य
विवर्जित —भु॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृज् + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त
विवर्जित —भु॰ क॰ कृ॰—-—-—परिहृत
विवर्जित —भु॰ क॰ कृ॰—-—-—वञ्चित, विरहित, के विना
विवर्जित —भु॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रदत्त, वितरित
विवर्ण —वि॰—-—विगतः वर्णो यस्य-प्रा॰ व॰—बिनारंग का, निष्प्रभ, पाण्डु, फीका
विवर्ण —वि॰—-—-—जिस पर कोई रंग न चढ़ा हो, निर्जल
विवर्ण —वि॰—-—-—नीच, दुष्ट
विवर्ण —वि॰—-—-—अज्ञानी, मूढ, निरक्षर
विवर्णः —पुं॰—-—-—जातिबहिष्कृत, नीच जाति से संबंध रखने वाला
विर्वतः —पुं॰—-—वि + वृत् + घञ्—गोल चक्कर खाना, चारों ओर घूमना, भंवर
विर्वतः —पुं॰—-—-—आगे को लुढ़कना
विर्वतः —पुं॰—-—-—पीछे को लूढ़कना, लौटना
विर्वतः —पुं॰—-—-—बदलना, सुधारना, रूप में परिवर्तन, बदली हुई दशा या अवस्था
विर्वतः —पुं॰—-—-—(वेदान्त॰ में) एक प्रतीयमान भ्रान्तिजनक रूप, अविद्या या मानव की भ्रांति से उत्पन्न मिथ्या रूप
विर्वतः —पुं॰—-—-—ढेर, समुच्चय, संग्रह, समवाय
विर्वतवादः —पुं॰—विर्वतः-वादः—-—वेदान्तियों का सिद्धांत कि यह दृश्यमान संसार माया है केवल ब्रह्मा ही एक वास्तविकता है
विवर्तनम् —नपुं॰—-—वि + वृत् + ल्युट्—चक्कर खाना, क्रान्ति, भंवर
विवर्तनम् —नपुं॰—-—-—इधर उधर लुढ़कना, उत्तरना
विवर्तनम् —नपुं॰—-—-—विद्यमान रहना, दृढ़ रहना
विवर्तनम् —नपुं॰—-—-—ससम्मान अभिवादन
विवर्तनम् —नपुं॰—-—-—नाना प्रकार की सत्ताओं व स्थितियों में से गुज़रना
विवर्तनम् —नपुं॰—-—-—परिवर्तित दशा
विवर्धनम् —नपुं॰—-—वि + वृध् + ल्युट्—बढ़ना
विवर्धनम् —नपुं॰—-—-—वृद्धि, वर्धन, बढ़ती
विवर्धनम् —नपुं॰—-—-—विस्तार, अभ्युदय
विवर्धित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृध् + क्त—बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त
विवर्धित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रगत, प्रोन्नत, आगे बढ़ाया हुआ
विवर्धित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—संतृप्त, संतुष्ट
विवश —वि॰—-—वि + वश् + अच्—अनियन्त्रित, जो वश में न किया गया हो
विवश —वि॰—-—-—लाचार, आश्रित, अधीन, दूसरे के नियन्त्रण में, असहाय
विवश —वि॰—-—-—बेहोश, जो अपने आपको काबू में न रख सके
विवश —वि॰—-—-—मृत्युकामी, मृत्यु की आशंका करने वाला
विवसन —वि॰—-—विगतं वसनं यस्य-प्रा॰ ब॰—नंगा, विवस्त्र
विवस्वत् —पुं॰—-—विशेषेण वस्ते आच्छादयति - वि + वस् + क्विप् + मतुप्—सूर्य
विवस्वत् —पुं॰—-—-—अरुण का नाम
विवस्वत् —पुं॰—-—-—वर्तमान मनुका नाम
विवस्वत् —पुं॰—-—-—अर्क का पौधा, मदार
विवहः —पुं॰—-—वि + वह् + अच्—आग की सात जिह्वाओं में से एक
विवाकः —पुं॰—-—विशिष्टो वाको यस्य-प्रा॰ ब॰—न्यायाधीश
विवादः —पुं॰—-—वि + वद् + घञ्—कलह, प्रतियोगिता, संघर्ष
विवादः —पुं॰—-—-—तर्क, तर्कना, चर्चा
विवादः —पुं॰—-—-—वचन विरोध
विवादः —पुं॰—-—-—मुकदमेबाजी, क़ानूनी नालिश, क़ानूनी संघर्ष, सीमाविवादः, विवादपदम् आदि,
विवादः —पुं॰—-—-—उच्चक्रंदन, ध्वनन
विवादः —पुं॰—-—-—आदेश, आज्ञा
विवादार्थिन् —पुं॰—विवादः-अर्थिन्—-—मुकदमेबाज़
विवादार्थिन् —पुं॰—विवादः-अर्थिन्—-—वादी, अभियोक्ता, प्राभियोक्ता
विवादपदम् —नपुं॰—विवादः-पदम्—-—कलह का शीर्षक
विवादवस्तु —नपुं॰—विवादः-वस्तु—-—कलह का विषय, विचारणीय विषय
विवादिन् —वि॰—-—विवाद + इनि—कलह करने वाला, तर्क वितर्क करने वाला, तर्कप्रिय, कलहशील
विवादिन् —वि॰—-—-—(का़नून पहलू पर) विवाद करने वाला
विवादिन् —पुं॰—-—-—मुक़दमेबाज़, क़ानूनी अभियोग में भाग लेने वाला
विवारः —पुं॰—-—वि + वृ + घञ्—मुँह, विस्तार
विवारः —पुं॰—-—-—अक्षरों का उच्चारण करते समय कण्ठ का विस्तार
विवासः —पुं॰—-—वि + वस् + णिच् + घञ्—देश निर्वासन, देशनिकाला, निष्कासन
विवासनम् —नपुं॰—-—वि + वस् + णिच् + ल्युट् वा—देश निर्वासन, देशनिकाला, निष्कासन
विवासित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + व्स् + णिच् + क्त—देश से निर्वासित किया गया, देश निकाला दिया गया, निष्कासित
विवाहः —पुं॰—-—वि + वह् + घञ्—शादी ब्याह
विवाहचतुष्टयम् —नपुं॰—विवाहः-चतुष्टयम्—-—चार पत्नियों से विवाह करना
विवाहदीक्षा —स्त्री॰—विवाहः-दीक्षा—-—विवाह संस्कार या कर्म
विवाहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वह् + णिच् + क्त—ब्याहा हुआ
विवाह्यः —पुं॰—-—वि + वह् + ण्यत्—जामाता
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + विच् + क्त—वियुक्त, पृथक्कृत, अलगाया हुआ, बेसुध
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अकेला, एकाकी, निवृत्त, विलग्न
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—एकल, एकी
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रभिन्न, विवेचन किया हुआ
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विवेकशील
विविक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—पवित्र, निर्दोष
विविक्तम् —नपुं॰—-—-—एकान्त स्थान, निर्जन स्थान
विविक्तम् —नपुं॰—-—-—अकेलापन, निजता, एकान्तस्थान
विविक्ता —स्त्री॰—-—-—भाग्यहीन या अभागी स्त्री, जो अपने पति को प्यारी न हो, दुर्भगा
विविग्न —वि॰—-—विशेषेण विग्नः- वि + विज् + क्त—अत्यंत क्षुब्ध, या डरा हुआ
विविध —वि॰—-—विभिन्ना विधा यस्य- प्रा॰ ब॰— नाना प्रकार का, विभिन्न प्रकार का, बहुरूपी, विश्वरूपी, प्रकीर्ण
विवीतः —पुं॰—-—विशिष्टं वीतं गवादिप्रचारस्थानं यत्र-प्रा॰ ब॰—घिरा हुआ स्थान, बाड़ा
विवृक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृज + क्त—छोड़ा हुआ, परित्यक्त, संपरित्यक्त
विवृक्ता —स्त्री॰—-—विवृक्त + टाप्—वह स्त्री जिसको उसका पति प्यार नहीं करता
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृ + क्त—प्रदर्शित, प्रकटीकृत, अभिव्यक्त
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्पष्ट, सामने खुला हुआ
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खुला हुआ, अनावृत, नंगा पड़ा हुआ
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खोला, प्रकट किया हुआ, नग्न, उद्धाटित
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उद्धोषित
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भाष्य किया गया, व्याख्या की गई, टीका की गई
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तारित, फैलाया गया
विवृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तृत, विशाल, प्रशस्त
विवृताक्ष —वि॰—विवृत-अक्ष—-—बड़ी बड़ी आँखों वाला
विवृताक्षः —पुं॰—विवृत-क्षः—-—मुर्गा
विवृतद्वार —वि॰—विवृत-द्वार—-—खुले दरवाज़ो वाला
विवृतिः —स्त्री॰—-—वि + वृ + क्तिन्—प्रदर्शन, प्रकटीकरण
विवृतिः —स्त्री॰—-—-—विस्तार
विवृतिः —स्त्री॰—-—-—अनावरण, व्यक्तीकरण
विवृतिः —स्त्री॰—-—-—भाष्य, टीका, वृत्ति, वाच्यान्तर
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृत् + क्त—मुड़ कर आया हुआ
वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुड़ना, चक्कर काटना, लुढ़कना, भंवर
विवृत्तिः —स्त्री॰—-—वि + वृत् + क्तिन्—मुड़ना, भंवर, चक्कर
विवृत्तिः —व्या॰—-—-—उच्चारण भंग
विवृद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + वृध् + क्त—विकसित
विवृद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बढ़ा हुआ, आवर्धित, ऊँचा किया हुआ, बढ़ाया हुआ, तीब्र (शोक हर्षादिक)
विवृद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विपुल, विशाल, प्रचुर
विवृद्धिः —स्त्री॰—-—वि + वृध् + क्तिन्—बढ़ना, वर्धन, बढ़ती, विकास
विवृद्धिः —स्त्री॰—-—-—समृद्धि
विवेकः —पुं॰—-—वि + विक् + घञ्—विवेचन, निर्धारण, विचारणा, विज्ञता
विवेकः —पुं॰—-—-—विचार, विचारविमर्श, गवेषणा
विवेकः —पुं॰—-—-—भेद, अन्तर, (दो वस्तुओं में) प्रभेद
विवेकः —पुं॰—-—-—दृश्यमान जगत् तथा अदृश्य आत्मा में भेद करने की शक्ति, माया या केवल बाह्म रूप से वास्तविकत को पृथक करना
विवेकः —पुं॰—-—-—सत्य ज्ञान
विवेकः —पुं॰—-—-—जलाशय, पात्र, जलाधार
विवेकज्ञ —वि॰—विवेकः-ज्ञ—-—विवेकशील, विवेचक
विवेकज्ञानम् —नपुं॰—विवेकः-ज्ञानम्—-—विवेचन करने की शक्ति
विवेकदृश्वन् —पुं॰—विवेकः-दृश्वन्—-—सूक्ष्मदर्शी पुरुष
विवेकपदवी —स्त्री॰—विवेकः-पदवी—-—पुनर्विमर्श, विचार, चिन्तन
विवेकिन् —वि॰—-—विवेक + इनि—विवेचक, विचारवान्, विवेकशील
विवेकिन् —पुं॰—-—-—न्यायकर्ता, गुणदोषविवेचक
विवेकिन् —पुं॰—-—-—दार्शनिक
विवेक्तृ —पुं॰—-—वि + विच् + तृच्—न्यायकारी
विवेक्तृ —पुं॰—-—-—ऋषि, दार्शनिक
विवेचनम् —नपुं॰—-—वि + विच् + ल्युट्—गुणदोषविचारणा
विवेचनम् —नपुं॰—-—वि + विच् + ल्युट्—विचारविमर्श, विचार
विवेचनम् —नपुं॰—-—वि + विच् + ल्युट्—फैसला, निर्णय
विवेचना —स्त्री॰—-—-—गुणदोषविचारणा
विवेचना —स्त्री॰—-—-—विचारविमर्श, विचार
विवेचना —स्त्री॰—-—-—फैसला, निर्णय
विवोढृ —पुं॰—-—वि + वह + तृच्—दुल्हा, पति
विव्वोकः —पुं॰—-—-—अभिमान के कारण अपने प्रियतम पदार्थ की ओर उदासीनता का प्रदर्शन
विव्वोकः —पुं॰—-—-—घमंड के कारण उदासीनता
विव्वोकः —पुं॰—-—-—केलिपरक या प्रीतिविषयक संकेत
विश् —तुदा॰ पर॰ <विशति>,<विष्ट>—-—-—प्रविष्ट होना, जाना, दाखिल होना
विश् —तुदा॰ पर॰ <विशति>,<विष्ट>—-—-—जाना या पहुंचाना, अधिकार में आना किसी के हिस्से में पड़ना
विश् —तुदा॰ पर॰ <विशति>,<विष्ट>—-—-—बैठ जाना, बस जाना
विश् —तुदा॰ पर॰ <विशति>,<विष्ट>—-—-—घुस जाना, व्याप्त हो जाना
विश् —तुदा॰ पर॰ <विशति>,<विष्ट>—-—-—स्वीकार करना, उत्तरदायित्व लेना
विश् —तुदा॰ उभ॰प्रेर॰<वेशयति>,<वेशयते>—-—-—घुसाना, प्रविष्ट कराना
विश् —तुदा॰ पर॰, इच्छा॰ <विविक्षति>—-—-—प्रविष्ट होने की इच्छा करना
अनुविश् —तुदा॰ पर॰—अनु-विश्—-—सम्मिलित होना
अनुविश् —तुदा॰ पर॰—अनु-विश्—-—किसी का अनुगमन करना, बाद में प्रविष्ट होना
अनुप्रविश् —तुदा॰ पर॰—अनुप्र-विश्—-—सम्मिलित होना
अनुप्रविश् —तुदा॰ पर॰—अनुप्र-विश्—-—दूसरे की इच्छानुसार अपने आप को ढालना
अभिनिविश् —तुदा॰ पर॰—अभिनि-विश्—-—सम्मिलित होना, अधिकार करना
अभिनिविश् —तुदा॰ आ॰—अभिनि-विश्—-— सहारा लेना, अधिकार कर लेना
आविश् —तुदा॰ पर॰—आ-विश्—-—प्रविष्ट होना
आविश् —तुदा॰ पर॰—आ-विश्—-—अधिकार करना, कव्जे में ले लेना, काबु कर लेना
आविश् —तुदा॰ पर॰—आ-विश्—-—पहुँचाना
आविश् —तुदा॰ पर॰—आ-विश्—-—किसी विशेष स्थिति पर पहुंचाना
उपविश् —तुदा॰ पर॰—उप-विश्—-—बैठ जाना, आसन ग्रहन करना
उपविश् —तुदा॰ पर॰—उप-विश्—-—डेरा डालना
उपविश् —तुदा॰ पर॰—उप-विश्—-—स्वीकार करना, अभ्यास करना
उपविश् —तुदा॰ पर॰—उप-विश्—-—उपवास करना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—बैठ जाना, आसन ग्रहण करना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—पड़ाव डालना, डेरा लगाना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—प्रविष्ट होना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—स्थिर किया जाना, निर्दिष्ट किया जाना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—व्यस्त होना, अनुषक्त होना, तुल जाना, अभ्यास करना
निविश् —तुदा॰ पर॰, आ॰—नि-विश्—-—विवाह करना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—जमाना, निर्दिष्ट करना, (मन, चित्त) लगाना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—स्थित करना, धरना, रखना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—बिठाना, स्थापित
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—जीवन में स्थित कराना, विवाह कराना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—(सेना आदि का) डेरा डालना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—रेखांकन करना, चित्रित करना, चित्र बनाना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—लिख लेना, उत्कीर्ण करना
निविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—नि-विश्—-—सुपुर्द करना, सौंपना
निर्विश् —तुदा॰ पर॰—निस्-विश्—-—सुखोपभोग करना
निर्विश् —तुदा॰ पर॰—निस्-विश्—-—अलंकृत करना, आभूषित करना
निर्विश् —तुदा॰ पर॰—निस्-विश्—-—विवाह करना
प्रविश् —तुदा॰ पर॰—प्र-विश्—-—प्रविष्ट होना
प्रविश् —तुदा॰ पर॰—प्र-विश्—-—आरम्भ करना, शुरु करना
प्रविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—प्र-विश्—-—प्रस्तुत करना, प्रवेष्टा के रूप में आगे आगे चलना
विनिविश् —तुदा॰ पर॰—विनि-विश्—-—रक्खा जाना, बिठाया जाना
विनिविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—विनि-विश्—-—स्थिर करना, रखना
विनिविश् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—विनि-विश्—-—बसाना, नई बस्ती बसाना
संविश् —तुदा॰ पर॰—सम्-विश्—-—प्रविष्ट होना
संविश् —तुदा॰ पर॰—सम्-विश्—-—सोना, लेटना, आराम करना
संविश् —तुदा॰ पर॰—सम्-विश्—-—सहवास करना, मैथुन करना
संविश् —तुदा॰ पर॰—सम्-विश्—-—सुखोपभोग करना
समाविश् —तुदा॰ पर॰—समा-विश्—-—प्रविष्ट होना
समाविश् —तुदा॰ पर॰—समा-विश्—-—पहुँचाना
समाविश् —तुदा॰ पर॰—समा-विश्—-—लग जाना, तुल जाना
संनिविश् —तुदा॰ पर॰प्रेर॰—संनि-विश्—-—रखना, धरना
संनिविश् —तुदा॰ पर॰प्रेर॰—संनि-विश्—-—स्थापित करना, ऊपर धरना
विश् —पुं॰—-—विश् + क्विप्—तीसरे वर्ण का मनुष्य, वैश्य
विश् —स्त्री॰—-—-—राष्ट्र, प्रजा
विष्पण्यम् —नपुं॰—विश्-पण्यम्—-—सामान, व्यापारिक माल
विष्पतिः —पुं॰—विश्-पतिः—-—राजा, प्रजा का स्वामी
विशम् —नपुं॰—-—विश् + क—कमल की गंडी के तन्तु रेशे
विशाकरः —पुं॰—विशम्-आकरः—-—एक प्रकार का पौधा, भद्रचूड
विशकंठा —स्त्री॰—विशम्-कंठा—-—सारस
विशङ्कट —वि॰—-—वि + शंक् + अटच्—बड़ा, विशाल, बृहत्
विशङ्कट —वि॰—-—-—मजबूत, प्रचंड, शक्तिशाली
विशङ्का —स्त्री॰—-—विशिष्टा विगता वा शङ्का-प्रा॰ स॰—डर, आशङ्का
विशद —वि॰—-—वि + शद् + अच्—स्वच्छ, पवित्र, निर्मल, विमल, विशुद्ध
विशद —वि॰—-—-—सफेद, विशुद्धश्वेत रङ्ग का
विशद —वि॰—-—-—उज्ज्वल, चमकीला, सुन्दर
विशद —वि॰—-—-—साफ, स्पष्ट, प्रकट
विशद —वि॰—-—-—शान्त, निश्चिन्त आराम सहित
विशयः —पुं॰—-—वि + शी + अच्—सन्देह, अनिश्चयता, अधिकरण के पांच अंगों में से दुसरा
विशयः —पुं॰—-—-—शरण, सहारा
विशरः —पुं॰—-—वि + शॄ + अप्—टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़ डालना
विशरः —पुं॰—-—-—वध, हत्या, विनाश
विशल्य —वि॰—-—विगतं शल्यं यस्मात्-प्रा॰ ब॰—कष्ट और चिन्ता से मुक्त, सुरक्षित
विशसनम् —नपुं॰—-—वि + शस् + ल्युट्—वध, हत्या, पशुमेध
विशसनम् —नपुं॰—-—-—बर्वादी
विशसनः —पुं॰—-—-—कटार, टेढ़े फल की तलवार
विशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + शंस् + क्त—काटा हुआ, चीरा हुआ
विशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उजड्ड, अशिष्ट
विशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रशस्त, विख्यात
विशस्तृ —पुं॰—-—वि + शस् + तृच्—हत्या करने वाला या बलि के लिए वध करने वाला व्यक्ति
विशस्त्र —वि॰ —-—विगतं शस्त्रं यस्य —बिना हथियारों के, शस्त्ररहित, जिसके पास बचाव के लिए कुछ न हो
विशाखः —पुं॰—-—विशाखानक्षत्रे भवः -विशाखा + अण्—कार्तिकेय का नाम
विशाखः —पुं॰—-—-—धनुष से तीर छोड़ते समय की स्थिति
विशाखः —पुं॰—-—-—भिक्षुक, आवेदक
विशाखः —पुं॰—-—-—शिव का नाम
विशाखजः —पुं॰—विशाखः-जः—-—नारंगी का पेड़
विशाखल —वि॰—-—-—धनुष से तीर छोड़ते समय की स्थिति
विशाखा —स्त्री॰—-—विशिष्टा शाखा प्रकारो यस्य-प्रा॰ ब॰ —(प्राय द्विवचनान्त) सोलहवाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मिलित होते हैं
विशायः —पुं॰—-—वि + शी + घञ्—बारी-बारी से सोना, शेष पहरेदारों का बारी-बारी से पहरा देना
विशारणम् —नपुं॰—-—वि + शृ + णिच् + ल्युट्—टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़ना
विशारणम् —नपुं॰—-—-—हत्या, वध
विशारद —वि॰—-—विशाल + दा + क, लस्य रः—चतुर, कुशल, प्रवीण, विज्ञ, जानकार
विशारद —वि॰—-—-—विद्वान्, बुद्धिमान्
विशारद —वि॰—-—-—बकुलवृक्ष, मौलसिरी का पेड़
विशाल —वि॰—-—वि + शालच्—विस्तृत, बड़ा, दूर तक फैला हुआ,प्रशस्त, व्यापक, चौड़ा
विशाल —वि॰—-—-—समृद्ध, भरपूरा
विशाल —वि॰—-—-—प्रमुख, श्रीमान् महान्, उत्तम, प्रख्यात
विशालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार हरिण
विशालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का पक्षी
विशाला —स्त्री॰—-—-—उज्जयिनी नगर का नाम
विशाला —स्त्री॰—-—-—एक नदी का नाम
विशालाक्ष —वि॰—विशाल-अक्ष—-—बड़ी-बड़ी आँखों वाला
विशालक्षः —पुं॰—विशाल-क्षः—-—शिव का विशेषण
विशालाक्षी —स्त्री॰—विशाल-क्षी—-—पार्वती का विशेषण
विशिख —वि॰—-—विगता शिखा यस्य-प्रा॰ ब॰—मुकुट रहित, बिना चोटी का, बिना नोक का
विशिखः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का नरकूल
विशिखः —पुं॰—-—-—एक लोहे का कौवा
विशिखा —स्त्री॰—-—विशिख + टाप्—फावड़ा
विशिखा —स्त्री॰—-—-—सुई या पिन
विशिखा —स्त्री॰—-—-—बारीक बाण
विशिखा —स्त्री॰—-—-—राजमार्ग
विशिखा —स्त्री॰—-—-—नाई की पत्नी
विशित —वि॰—-—वि + शो + क्त—तीव्र, तीक्ष्ण
विशिपम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + शिष् + क्त—विलक्षण, स्वतंत्र
विशिपम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विशेष, असामान्य, असाधारण, प्रभेदक
विशिपम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-— विशेषगुणसम्पन्न, लक्षणयुक्त, विशेषतायुक्त, सविशेष
विशिपम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख, उत्कृष्ट, बढ़िया
विशिष्टाद्वैतवादः —पुं॰—विशिष्ट-अद्वैतवादः—-—रामानुज का एक सिद्धान्त, जिसके अनुसार ब्रह्म और प्रकृति समरूप तथा वास्तविक सत्ता मानी जाती हैं अर्थात् मूलतः दोनों एक ही है,
विशिष्टबुद्धिः —स्त्री॰—विशिष्ट-बुद्धिः—-—प्रभेदक ज्ञान, प्रभेदीकरण
विशिष्टवर्ण —वि॰—विशिष्ट-वर्ण—-—प्रमुख या श्रेष्ट रंग का
विशीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + शृ + क्त—छिन्न-भिन्न किया हुआ, तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया हुआ
विशीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मुर्झाया हुआ, कुम्हलाया हुआ
विशीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—गिरा हुआ
विशीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सिकुड़ा हुआ, संकुचित, या झुर्रियाँ जिसमें पड़ गई हों
विशीर्णपर्णः —पुं॰—विशीर्ण-पर्णः—-—नीम का पेड़
विशीर्णमूर्ति —वि॰—विशीर्ण-मूर्ति—-—जिसका शरीर नष्ट हो गया हो, अनंग
विशीर्णमूर्तिः —पुं॰—विशीर्ण-मूर्तिः—-—काम देव का विशेषण
विशुद्ध —वि॰—-—वि + शुध् + क्त— शुद्ध किया हुआ, स्वच्छ
विशुद्ध —वि॰—-—-—पवित्र, निर्व्यसन, निष्पाप
विशुद्ध —वि॰—-—-—बेदाग, निष्कलंक
विशुद्ध —वि॰—-—-—सही, यथार्थ
विशुद्ध —वि॰—-—-—सद्गुणी, पुण्यात्मा, ईमानदार, खरा
विशुद्धि —स्त्री॰—-—वि + शुध् + क्तिन्—पवित्रीकरण, शुद्धिकरण
विशुद्धि —स्त्री॰—-—-—पवित्रता, पूर्णपवित्रता
विशुद्धि —स्त्री॰—-—-—यथातथ्य, यथार्थता
विशुद्धि —स्त्री॰—-—-—परिष्कार, भूलसुधार
विशुद्धि —स्त्री॰—-—-—समानता, समता
विशूल —वि॰—-—विगतं शूलं यस्य-प्रा॰ ब॰— बिनाबर्छी, जिसके पास बर्छी न हो
विशृङ्खल —वि॰—-—विगता शृंखला यस्य-प्रा॰ ब॰—जो शृंखला में न बंधा हो
विशृङ्खल —वि॰—-—-—विशृंखलित, अनियंत्रित, अप्रतिबद्ध, निरंकुश, बेरोक
विशृङ्खल —वि॰—-—-—सब प्रकार के नैतिक बंधनों से मुक्त, लम्पट
विशेष —वि॰—-—विगतः शेषो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—अजीब
विशेष —वि॰—-—-—पुष्कल, प्रचुर
विशेषः —पुं॰—-—-—विवेचन, विभेदीकरण
विशेषः —पुं॰—-—-—प्रभेद, अन्तर
विशेषः —पुं॰—-—-—विशिष्टतायुक्त अन्तर, अनोखा चिह्ण, विशेष गुण, विशेषता, वैशिष्ट्य
विशेषः —पुं॰—-—-—अच्छा मोड़, रोग में मोड़, अर्थात् अपेक्षाकृत अच्छा परिवर्तन
विशेषः —पुं॰—-—-—अवयव, अंग
विशेषः —पुं॰—-—-—जाति, प्रकार, प्रभेद, भेद ढंग
विशेषः —पुं॰—-—-—विविध उद्देश्य, नाना प्रकार, के विवरण
विशेषः —पुं॰—-—-—उत्तमता, श्रेष्ठता, भेद, प्रायः समास के अन्त में , उत्तम, पूज्य, प्रमुख, उत्कृष्ट
विशेषः —पुं॰—-—-—अनोखा विशेषण, नौ द्रव्यों में से प्रत्येक की शाश्वत विभेदक प्रकृति
विशेषः —पुं॰—-—-—(तर्क में) वैयक्तिकता
विशेषः —पुं॰—-—-—प्रवर्ग, वर्ग
विशेषः —पुं॰—-—-—मस्तक पर चन्दन या केसर का तिलक
विशेषः —पुं॰—-—-—वह शब्द जो किसी अन्य शब्द के अर्थ को सीमित कर देता है
विशेषः —पुं॰—-—-—ब्रह्मांड का नाम
विशेषः —पुं॰—-—-—(अलं॰ में) एक अलंकार का नाम जिसके तीन भेद बताये गये हैं
विशेषातिदेशः —पुं॰—विशेष-अतिदेशः—-—विशेष अतिरिक्त नियम, विशेष विस्तारित प्रयोग
विशेषोक्तिः —स्त्री॰—विशेष-उक्तिः—-—एक अलंकार जिसमें कारण के विद्यमान रहते हुए भी कार्य का होना नहीं पाया जाता
विशेषज्ञ —वि॰—विशेष-ज्ञ—-—भेदों को जानने वाला, गुणदोषविवेचक, पारखी
विशेषज्ञ —वि॰—विशेष-ज्ञ—-—विद्वान्, बुद्धिमान्
विशेषविद् —वि॰—विशेष-विद्—-—भेदों को जानने वाला, गुणदोषविवेचक, पारखी
विशेषविद् —वि॰—विशेष-विद्—-—विद्वान्, बुद्धिमान्
विशेषलक्षणम् —नपुं॰—विशेष-लक्षणम्—-—विशेष या लक्षणदर्शी चिह्न
विशेषलिंगम् —नपुं॰—विशेष-लिंगम्—-—विशेष या लक्षणदर्शी चिह्न
विशेषवचनम् —नपुं॰—विशेष-वचनम्—-—वि पाठ या विधि
विशेषविधिः —पुं॰—विशेष-विधिः—-—विशेष नियम
विशेषशास्त्रम् —नपुं॰—विशेष-शास्त्रम्—-—विशेष नियम
विशेषक —वि॰—-—वि + शिष् + ण्वुल्—प्रभेदक
विशेषकः —पुं॰—-—-—एक प्रभेदक विशिष्टता या लक्षण विशेषण
विशेषकः —पुं॰—-—-—चन्दन या केसर का माथे पर लगा तिलक
विशेषकः —पुं॰—-—-—रंगीन उबटन तथा अन्य सुगंधित पदार्थों से मुख या शरीर पर रेखांकन करना
विशेषकम् —नपुं॰—-—-—तीन श्लोकों का समूह जो व्याकरण की दृष्टि से एक ही वाक्य बनता है
विशेषण —वि॰—-—वि + शिष् + ल्युट्—गुणवाचक
विशेषणम् —नपुं॰—-—-—विभेदन, विवेचन
विशेषणम् —नपुं॰—-—-—प्रभेदन, अन्तर
विशेषणम् —नपुं॰—-—-—वह शब्द जो किसी दूसरे शब्द की विशेषता प्रकट करता है, गुणवाचक शब्द, गुण, विशेषता
विशेषणम् —नपुं॰—-—-—प्रभेदक लक्षण या चिह्न
विशेषणम् —नपुं॰—-—-—जाति, प्रकार
विशेषतस् —अव्य॰—-—विशेष + तस्—विशेष रूप से, खास तौर से
विशेषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + शिष् + णिच् + क्त—विलक्षण
विशेषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परिभाषित, जिसके विवरण बता दिये गई हों
विशेषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विशेषण के द्वारा जिसकी भिन्नता दर्शा दी गई हो
विशेषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—श्रेष्ठ, बढ़िया
विशेष्य —वि॰—-—वि + शिष् + ण्यत्—विलक्षण होने के योग्य
विशेष्य —वि॰—-—-—मुख्य, बढ़िया
विशेष्यम् —नपुं॰—-—-—वह शब्द जिसे विशेषण के द्वारा सीमित कर दिया गया हो, वह पदार्थ जो किसी दूसरे शब्द द्वारा परिभाषित, या विशिष्ट कर दिया गया हो, संज्ञाशब्द
विशोक —वि॰—-—विगतः शोको यस्य-प्रा॰ ब॰—शोक से मुक्त, प्रसन्न
विशोकः —पुं॰—-—-—अशोक वृक्ष
विशोका —स्त्री॰—-—-—शोक से छुटकारा
विशोधनम् —नपुं॰—-—वि + शुध् + ल्युट्—शुद्ध करना, स्वच्छ करना
विशोधनम् —नपुं॰—-—-—पवित्रीकरण, निष्पाप या दोषरहित होना
विशोधनम् —नपुं॰—-—-—प्रायश्वित्त, परिशोधन
विशोध्य —वि॰—-—वि + शुध् + ण्युत्—पवित्र किये जाने के योग्य, निर्मल या शुद्ध किये जाने के योग्य
विशोषणम् —नपुं॰—-—वि + शुष् + ल्युट्—सुखाना, शुष्कीकरण
विश्रणनम् —नपुं॰—-—वि + श्रण् + ल्युट्—प्रदान करना, समर्पण करना, अनुदान, उपहार
विश्राणनम् —नपुं॰—-—वि + श्रण् + णिच् + ल्युट्—प्रदान करना, समर्पण करना, अनुदान, उपहार
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्रम्भ + क्त—बन्द किया गया, विश्वास किया गया, सौंपा गया
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्वस्त, निडर, भरोसे करने वाला
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विश्वसनीय, भरोसे का
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निश्चल, सौम्य, शान्त, निश्चिन्त
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दृढ़, स्थिर
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नम्र, विनीत
विश्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अत्यधिक, बहुत ज्यादह
विश्रब्धम् —अव्य॰—-—-—विश्वासपूर्वक, निर्भीकता के साथ, बिना डर व संकोच के
विश्रमः —पुं॰—-—वि + श्रम् + अप्—आराम, विश्रान्ति
विश्रमः —पुं॰—-—-—विराम, विश्राम
विश्रम्भः —पुं॰—-—वि + श्रम्भ् + घञ्—विश्वास, भरोसा, अन्तरंग विश्वास, पूर्ण घनिष्ठता या अन्तरंगता
विश्रम्भः —पुं॰—-—-—गुप्त बात, रहस्य
विश्रम्भः —पुं॰—-—-—आराम,विश्राम
विश्रम्भः —पुं॰—-—-—स्नेहसिक्त परिपृच्छा
विश्रम्भः —पुं॰—-—-—प्रेम-कलह, प्रीतिविषयक झगड़ा
विश्रम्भालापः —पुं॰—विश्रम्भः-आलापः—-—गुप्त वार्तालाप, वार्तालाप
विश्रम्भभाषणम् —नपुं॰—विश्रम्भः-भाषणम्—-—गुप्त वार्तालाप, वार्तालाप
विश्रम्भपात्रम् —नपुं॰—विश्रम्भः-पात्रम्—-—विश्चास करने के योग्य पदार्थ या व्यक्ति, विश्चस्त, विश्चसनीय व्यक्ति
विश्रम्भभूमिः —स्त्री॰—विश्रम्भः-भूमिः—-—विश्चास करने के योग्य पदार्थ या व्यक्ति, विश्चस्त, विश्चसनीय व्यक्ति
विश्रम्भस्थानम् —नपुं॰—विश्रम्भः-स्थानम्—-—विश्चास करने के योग्य पदार्थ या व्यक्ति, विश्चस्त, विश्चसनीय व्यक्ति
विश्रयः —पुं॰—-—वि + श्रि + अच्—शरण, आश्रयस्थल
विश्रवस् —पुं॰—-—-—पुलस्त्य के एक पुत्र का नाम, जो कैकसी से उत्पन्न रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का पिता था, कुबेर के एक पुत्र का नाम जो उसकी पत्नी इडाविडा से उत्पन्न हुआ था
विश्राणित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्रण् + णिच् + क्त—प्रदान किया गया, अर्पित किया गया
विश्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्रम् + क्त—बन्द किया हुआ, रोका गया
विश्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आराम किया हुआ, विश्राम किया हुआ
विश्रान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सौम्य, शान्त, स्वस्थ
विश्रान्तिः —स्त्री॰ —-—वि + श्रम् + क्तिन्—आराम, विश्राम
विश्रान्तिः —स्त्री॰ —-—-—रोक, थाम
विश्रामः —पुं॰—-—वि + श्रम् + घञ्—रोक, थाम
विश्रामः —पुं॰—-—-—आराम, चैन
विश्रामः —पुं॰—-—-—शान्ति, सौम्यता, स्वस्थता
विश्रावः —पुं॰—-—वि + श्रु + घञ्—चूना, टपकना, बहना
विश्रावः —पुं॰—-—-—ख्याति, कीर्ति
विश्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्रु + क्त—प्रख्यात, लब्धप्रतिष्ठ, यशस्वी, प्रसिद्ध
विश्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रसन्न, आनन्दित, खुश
विश्रुत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बहता हुआ
विश्रुतिः —स्त्री॰—-—वि + श्रु + क्तिन्—प्रसिद्धि, ख्याति
विश्लथ —वि॰—-—विशेषण श्लथः -प्रा॰ स॰—ढीला, शिथिल, खुला हुआ
विश्लथ —वि॰—-—-—स्फूर्तिहीन, निस्तेज
विश्लिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्लिष् + क्त—वियुक्त, पृथक्कृत, अलग अलग किया हुआ
विश्लेषः —पुं॰—-—वि + श्लिष् + घञ्—अलगाव, वियोजन
विश्लेषः —पुं॰—-—-—विशेषतः प्रेमियों अथवा पति-पत्नी का बिछोह
विश्लेषः —पुं॰—-—-—अभाव, हानि, शोकावस्था
विश्लेषः —पुं॰—-—-—दरार, छिद्र
विश्लेषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्लिष् + णिच् + क्त—अलग किया हुआ, वियुक्त, जुदा किया हुआ
विश्व —सा॰ वि॰—-—विश् + व—सारे, सारा, समस्त, सार्वलौकिक
विश्व —सा॰ वि॰—-—-—प्रत्येक, हरेक
विश्व —पुं॰—-—-—दस देवों का समूह
विश्वम् —नपुं॰—-—-—सम्पर्ण सृष्टि, समस्त संसार
विश्वम् —नपुं॰—-—-—सूखा अदरक, सोंठ
विश्वात्मन् —पुं॰—विश्व-आत्मन्—-—परमात्मा (विश्व की आत्मा)
विश्वात्मन् —पुं॰—विश्व-आत्मन्—-—ब्रह्मा का विशेषण
विश्वात्मन् —पुं॰—विश्व-आत्मन्—-—शिव का विशेषण
विश्वात्मन् —पुं॰—विश्व-आत्मन्—-—विष्णु का विशेषण
विश्वीशः —पुं॰—विश्व-ईशः—-—परमात्मा, विश्व का स्वामी
विश्वीशः —पुं॰—विश्व-ईशः—-—शिव का विशेषण
विश्वीश्वरः —पुं॰—विश्व-ईश्वरः—-—परमात्मा, विश्व का स्वामी
विश्वीश्वरः —पुं॰—विश्व-ईश्वरः—-—शिव का विशेषण
विश्वकद्रु —वि॰—विश्व-कद्रु—-—दुष्ट, नीच, दुर्वृत्त
विश्वकद्रुः —पुं॰—विश्व-कद्रुः—-—शिकारी कुत्ता, मृगयाकुक्कुर
विश्वकद्रुः —पुं॰—विश्व-कद्रुः—-—स्वस्थ
विश्वकर्मन् —पुं॰—विश्व-कर्मन्—-—देवों का शिल्पी
विश्वकर्मन् —पुं॰—विश्व-कर्मन्—-—सूर्य का विशेषण
विश्वकर्मजा —स्त्री॰—विश्व-कर्मन्-जा—-—सूर्य की पत्नी संज्ञा का विशेषण
विश्वकर्मसुता —स्त्री॰—विश्व-कर्मन्-सुता—-—सूर्य की पत्नी संज्ञा का विशेषण
विश्वकृत् —पुं॰—विश्व-कृत्—-—सब प्राणियों का स्रष्टा
विश्वकृत् —पुं॰—विश्व-कृत्—-—विश्वकर्मा का विशेषण
विश्वकेतुः —पुं॰—विश्व-केतुः—-—अनिरुद्ध का विशेषण
विश्वगंधः —पुं॰—विश्व-गंधः—-—प्याज़
विश्वगंधम् —नपुं॰—विश्व-गंधम्—-—लोबान, गुग्गुल
विश्वगंधा —स्त्री॰—विश्व-गंधा—-—पृथ्वी
विश्वजनम् —नपुं॰—विश्व-जनम्—-—मानवजाति
विश्वजनीन —वि॰—विश्व-जनीन—-—मानवमात्र के लिए हितकर, मनुष्य जाति के उपयुक्त, सब मनुष्यों के लिए लाभकर
विश्वजन्य —वि॰—विश्व-जन्य—-—मानवमात्र के लिए हितकर, मनुष्य जाति के उपयुक्त, सब मनुष्यों के लिए लाभकर
विश्वजित् —पुं॰—विश्व-जित्—-—यज्ञ विशेष का नाम
विश्वजित् —पुं॰—विश्व-जित्—-—वरुण का पाश
विश्वदेव —पुं॰—विश्व-देव—-—दस देवों का समूह
विश्वधारिणी —स्त्री॰—विश्व-धारिणी—-—पृथ्वी
विश्वधारिन् —पुं॰—विश्व-धारिन्—-—देव
विश्वनाथः —पुं॰—विश्व-नाथः—-—विश्व का स्वामी, शिव का विशेषण
विश्वपा —पुं॰—विश्व-पा—-—सब का रक्षक
विश्वपा —पुं॰—विश्व-पा—-—सूर्य
विश्वपा —पुं॰—विश्व-पा—-—चन्द्रमा
विश्वपा —पुं॰—विश्व-पा—-—अग्नि
विश्वपावनी —स्त्री॰—विश्व-पावनी—-—तुलसी का पौधा
विश्वपूजिता —स्त्री॰—विश्व-पूजिता—-—तुलसी का पौधा
विश्वप्सन् —पुं॰—विश्व-प्सन्—-—देव
विश्वप्सन् —पुं॰—विश्व-प्सन्—-—सूर्य
विश्वप्सन् —पुं॰—विश्व-प्सन्—-—चन्द्रमा
विश्वप्सन् —पुं॰—विश्व-प्सन्—-—अग्नि का विशेषण
विश्वभुज् —वि॰—विश्व-भुज्—-—सर्वोपभोक्ता, सब कुछ खाने वाला
विश्वभुज् —पुं॰—विश्व-भुज्—-—इन्द्र का विशेषण
विश्वभेषजम् —नपुं॰—विश्व-भेषजम्—-—सूखा अदरक, सोंठ
विश्वमूर्ति —वि॰—विश्व-मूर्ति—-—सब रूपों में विद्यमान, सर्वव्यापक, विश्चव्यापी
विश्वयोनिः —पुं॰—विश्व-योनिः—-—ब्रह्मा का विशेषण
विश्वयोनिः —पुं॰—विश्व-योनिः—-—विष्णु का विशेषण
विश्वराज् —पुं॰—विश्व-राज्—-—विश्वप्रभु
विश्वराजः —पुं॰—विश्व-राजः—-—विश्वप्रभु
विश्वरूप —वि॰—विश्व-रूप—-—सर्व व्यापक, सर्वत्र विद्यमान
विश्वरूपः —पुं॰—विश्व-रूपः—-—विष्णु का विशेषण
विश्वरूपम् —नपुं॰—विश्व-रूपम्—-—अगर की लकड़ी
विश्वरेतस् —पुं॰—विश्व-रेतस्—-—ब्रह्मा का विशेषण
विश्ववाह —वि॰—विश्व-वाह—-—सब कुछ ढोने वाला, सब का भरण पोषण करने वाला
विश्वसहा —स्त्री॰—विश्व-सहा—-—पृथ्वी
विश्वसृज् —पुं॰—विश्व-सृज्—-—ब्रह्मा का विशेषण
विश्वङ्करः —पुं॰—-—विश्वं सर्वं करोति प्रकाशयति-कृ + ट, द्वितीयाया अलुक्—आँख
विश्वतस् —अव्य॰—-—विश्व + तसील्—सब ओर, सर्वत्र, सब जगह
विश्वतर्मुख —वि॰—विश्वतस्-मुख—-—सब ओर मुख किये हुए
विश्वथा —अव्य॰—-—विश्व + थाल्—सर्वत्र, सब जगह
विश्वंभर —वि॰—-—विश्वं बिभर्ति विश्व + भृ + खच्, मुम्—सब का भरणपोषण करने वाला\
विश्वंभरः —पुं॰—-—-—सर्व व्यापक प्राणी, परमात्मा
विश्वंभरः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
विश्वंभरः —पुं॰—-—-—इन्द्र का विशेषण
विश्वंभरा —स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
विश्वसनीय —सं॰ कृ॰—-—वि + श्वस् + अनीयर— विश्वास् किये जाने के योग्य, विश्वासपात्र, जिस पर भरोसा किया जा सके
विश्वसनीय —सं॰ कृ॰—-—-—विश्वास उत्पन्न करने के योग्य
विश्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + श्वस् + क्त—जिस पर विश्वास किया गया है, निष्ठ, जिस पर भरोसा किया गया है
विश्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विश्वास करने वाला, भरोसा करने वाला
विश्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निडर, विश्रब्ध
विश्वस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विश्वास के योग्य, जिस पर भरोसा किया जा सके
विश्वाधायस् —पुं॰—-—विश्वं दधाति पालयति-विश्व + धा + णिच् + असुन्, पूर्वदीर्घः—देव, सुर
विश्वानरः —स्त्री॰—-—विश्व + नरः, पूर्वपददीर्घः—सविता का विशेषण
विश्वामित्रः —स्त्री॰—-—विश्व + मित्रः, विश्वमेव मित्रं यस्य ब॰ स॰, पूर्वपदस्याकारस्य दीर्घः—एक विख्यात ऋषि का नाम
विश्वावसुः —स्त्री॰—-—विश्व + वसुः, पूर्वपदस्याकारस्य दीर्घः—एक गन्धर्व का नाम
विश्वासः —स्त्री॰—-—वि + श्वस् + घञ्—भरोसा, प्रत्यय, निष्ठा, विश्रम्भ
विश्वासः —स्त्री॰—-—-—भेद, रहस्य, गोपनीय समाचार
विश्वासघातः —स्त्री॰—विश्वासः-घातः—-—विश्वास को तोड़ देना, धोखा देना, द्रोह
विश्वासभङ्गः —स्त्री॰—विश्वासः-भङ्गः—-—विश्वास को तोड़ देना, धोखा देना, द्रोह
विश्वासघातिन् —पुं॰—विश्वासः-घातिन्—-—धोखा देने वाला मनुष्य, द्रोही
विश्वासपात्रम् —नपुं॰—विश्वासः-पात्रम्—-—भरोसे की वस्तु, विश्वसनीय या भरोसे का मनुष्य, विश्वासी पुरुष
विश्वासभूमिः —स्त्री॰—विश्वासः-भूमिः—-—भरोसे की वस्तु, विश्वसनीय या भरोसे का मनुष्य, विश्वासी पुरुष
विश्वासस्थानम् —नपुं॰—विश्वासः-स्थानम्—-—भरोसे की वस्तु, विश्वसनीय या भरोसे का मनुष्य, विश्वासी पुरुष
विष् —जुहो॰ उभ॰ <वेवेष्टि>, <वेविष्टे>,<विष्ट>—-—-—घेरना
विष् —जुहो॰ उभ॰ <वेवेष्टि>, <वेविष्टे>,<विष्ट>—-—-—फैलाना, विस्तार करना, व्यापक होना
विष् —जुहो॰ उभ॰ <वेवेष्टि>, <वेविष्टे>,<विष्ट>—-—-—सामने जाना, मुक़ाबला करना (परिनिष्ठित संस्कृत में इसका प्रयोग बहुधा नहीं होता
विष् —क्र्या॰ पर॰ <विष्णाति>—-—-—वियुक्त करना, अलग अलग करना
विष् —भ्वा॰ पर॰ <वेषति>—-—-—छिड़कना, उडेलना
विष् —स्त्री॰—-—विष् + क्विप्—मल, विष्ठा, लीद
विष् —स्त्री॰—-—-—फैलाना, प्रसारण
विट्कारिका —स्त्री॰—विष्-कारिका—-—एक प्रकार का पक्षी
विड्ग्रहः —पुं॰—विष्-ग्रहः—-—कोष्ठबद्धता, कब्ज
विट्चरः —पुं॰—विष्-चरः—-—पालतू या गाँव का सूअर
विड्वराहः —पुं॰—विष्-वराहः—-—पालतू या गाँव का सूअर
विड्लवणम् —नपुं॰—विष्-लवणम्—-—एक प्रकार का औषधियों में प्रयुक्त होने वाला नमक
विट्सङ्गः —पुं॰—विष्-सङ्गः—-—कोष्ठबद्धता, कब्ज
विट्सारिका —स्त्री॰—विष्-सारिका—-—एक प्रकार का पक्षी, मैना
विषम् —नपुं॰—-—विष् + क—जहर, हलाहल
विषम् —नपुं॰—-—-—कमलडण्डी के तन्तु या रेशे
विषम् —नपुं॰—-—-—लोबान, एक सुगन्धित द्रव्य का गोंद, रसगन्ध
विषाक्त —वि॰—विषम्-अक्त—-—विषैला, जहरीला
विषदिग्ध —वि॰—विषम्-दिग्ध—-—विषैला, जहरीला
विषाङ्कुरः —पुं॰—विषम्-अङ्कुरः—-—बर्छी
विषाङ्कुरः —पुं॰—विषम्-अङ्कुरः—-—विष में वुझा तीर
विषान्तकः —पुं॰—विषम्-अन्तकः—-—शिव का विशेषण
विषापह —वि॰—विषम्-अपह—-—विषनाशक, विषनिवारक औषधि
विषघ्न —वि॰—विषम्-घ्न—-—विषनाशक, विषनिवारक औषधि
विषाननः —पुं॰—विषम्-आननः—-—साँप
विषायुधः —पुं॰—विषम्-आयुधः—-—साँप
विषास्यः —पुं॰—विषम्-आस्यः—-—साँप
विषास्वाद —वि॰—विषम्-आस्वाद—-—जहर चखने वाला
विषकुम्भः —पुं॰—विषम्-कुम्भः—-—जहर से भरा हुआ घड़ा
विषकृमिः —पुं॰—विषम्-कृमिः—-—जहर में पला हुआ कीड़ा
विषकृमिन्याय —पुं॰—विषम्-कृमिः-न्याय—-—
विषज्वरः —पुं॰—विषम्-ज्वरः—-—भैंसा
विषदः —पुं॰—विषम्-दः—-—बादल
विषदम् —नपुं॰—विषम्-दम्—-—तूतिया
विषदन्तकः —पुं॰—विषम्-दन्तकः—-—साँप
विषदर्शन —पुं॰—विषम्-दर्शन—-—एक पक्षी (इसे चकोर कहते हैं)
विषमृत्युकः —पुं॰—विषम्-मृत्युकः—-—एक पक्षी (इसे चकोर कहते हैं)
विषमृ्त्युः —पुं॰—विषम्-मृत्युः—-—एक पक्षी (इसे चकोर कहते हैं)
विषधरः —पुं॰—विषम्-धरः—-—साँप
विषधरनिलयः —पुं॰—विषम्-धरः-निलयः—-—निम्नतर प्रदेश, साँपो का बिल
विषपुष्पम् —नपुं॰—विषम्- पुष्पम्—-—नील कमल
विषप्रयोगः —पुं॰—विषम्- प्रयोगः—-—जहर का इस्तेमाल, जहर देना
विषभिषज् —नपुं॰—विषम्- भिषज्—-—विषनाशक औषधियों का विक्रेता, साँपों के काटने की चिकित्सा करने वाला
विषवैद्यः —पुं॰—विषम्-वैद्यः—-—विषनाशक औषधियों का विक्रेता, साँपों के काटने की चिकित्सा करने वाला
विषमन्त्रः —पुं॰—विषम्-मन्त्रः—-—साँप के काटे का विष उतारने का मन्त्र
विषमन्त्रः —पुं॰—विषम्-मन्त्रः—-—सपेरा, बाजीगर
विषवृक्षः —पुं॰—विषम्-वृक्षः—-—जहरीला पेड़
विषवृक्षन्याय —पुं॰—विषम्-वृक्षः-न्याय—-—
विषवेगः —पुं॰—विषम्-वेगः—-—जहर का संचार या प्रभाव
विषशूकः —पुं॰—विषम्-शूकः—-—भिड़, बर्र
विषशृङ्गिन् —पुं॰—विषम्-शृङ्गिन्—-—भिड़, बर्र
विषसृक्कन् —पुं॰—विषम्-सृक्कन्—-—भिड़, बर्र
विषहृदय —वि॰—विषम्-हृदय—-—विषाक्त दिलवाला अर्थात् दुष्टहृदय, मलिनात्मा
विषक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सञ्ज् + क्त—दृढ़तापूर्वक जमा हुआ, सटा हुआ
विषक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चिपटा हुआ, चिपका हुआ
विषण्डम् —नपुं॰—-—विशेषेण षंडम्-प्रा॰ स॰—कमलडण्डी के तन्तु या रेशे
विषण्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सद् + क्त—खिन्न, मुंह लटकाये हुए, उदास, दुःखी, निरुत्साह, हताश
विषण्णमुख —वि॰—विषण्ण-मुख—-—उदास दिखाई देने वाला
विषण्णवदन —वि॰—विषण्ण-वदन—-—उदास दिखाई देने वाला
विषण्णरूप —वि॰—विषण्ण-रूप—-—उदासी की अवस्था में पड़ा हुआ
विषम —वि॰—-—विगतोविरुद्धो वा समः-प्रा॰ स॰—जो सम या समान न हो, खुरदरा, ऊबड़-खाबड़
विषम —वि॰—-—-—अनियमित, असमान
विषम —वि॰—-—-—उच्चावच, असम
विषम —वि॰—-—-—कठिन, समझने में दुष्कर, आश्चर्यजनक
विषम —वि॰—-—-—अगम्य, दुर्गम
विषम —वि॰—-—-—पीड़ाकर, कष्टदायक
विषम —वि॰—-—-—बहुत मजबूत, उत्कट
विषम —वि॰—-—-—खतरनाक, भयानक
विषम —वि॰—-—-—बुरा, प्रतिकूल, विपरीत
विषम —वि॰—-—-—अजीब, अनोखा, अनुपम
विषम —वि॰—-—-—बेईमान, कलापूर्ण
विषमम् —नपुं॰—-—-—दुर्गम स्थान, चट्टान्, गड्ढा आदि
विषमम् —नपुं॰—-—-—कठिन या खतरनाक स्थिति, कठिनाई, दुर्भाग्य
विषमम् —नपुं॰—-—-—एक अलंकार का नाम जिसमें कार्य कारण के बीच में कोई अनोखा या अघटनीय संबंध दर्शाया जाता है
विषमः —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
विषमाक्षः —पुं॰—विषम-अक्षः—-—शिव के विशेषण
विषमेक्षणः —पुं॰—विषम-ईक्षणः—-—शिव के विशेषण
विषमनयनः —पुं॰—विषम-नयनः—-—शिव के विशेषण
विषमनेत्रः —पुं॰—विषम-नेत्रः—-—शिव के विशेषण
विषमलोचनः —पुं॰—विषम-लोचनः—-—शिव के विशेषण
विषमान्नम् —पुं॰—विषम-अन्नम्—-—अनोखा या अनियमित आहार
विषमायुधः —पुं॰—विषम-आयुधः—-—कामदेव के विशेषण
विषमेषुः —पुं॰—विषम-इषुः—-—कामदेव के विशेषण
विषमशरः —पुं॰—विषम-शरः—-—कामदेव के विशेषण
विषमकालः —पुं॰—विषम-कालः—-—अननुकूल ऋतु
विषमचतुरस्रः —पुं॰—विषम-चतुरस्रः—-—विषभ कोण वाला चतुष्कोण
विषमचतुर्भुजः —पुं॰—विषम-चतुर्भुजः—-—विषभ कोण वाला चतुष्कोण
विषम छदः —पुं॰—विषम- छदः—-—सप्तपर्ण नाम का पेड़
विषमज्वरः —पुं॰—विषम-ज्वरः—-—कभी कम तथा कभी अधिक होने वाला बुखार
विषमलक्ष्मीः —स्त्री॰—विषम-लक्ष्मीः—-—दुर्भाग्य
विषमविभागः —पुं॰—विषम-विभागः—-—सम्पत्ति का असमान वितरण
विषमस्थ —वि॰—विषम-स्थ—-—दुर्गम स्थिति में होने वाला
विषमस्थ —वि॰—विषम-स्थ—-—कठिनाई में रहने वाला, अभागा
विषमित —वि॰—-—विषम + इतच्—ऊबड़-खाबड़ किया हुआ, असम, कुटिल
विषमित —वि॰—-—-—सिकुड़न वाला, त्योरीदार
विषमित —वि॰—-—-—कठिन या दुर्गम बनाया गया
विषयः —पुं॰—-—विषिण्वन्ति स्वात्मकतया विषयिणं संबध्नन्ति-वि + सि + अच्, षत्वम्—ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त पदार्थ
विषयः —पुं॰—-—-—लौकिक पदार्थ, या वस्तु, मामला, लेन-देन
विषयः —पुं॰—-—-—ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक या मैथुनसंबन्धी उपभोग, वासनात्मक पदार्थ
विषयः —पुं॰—-—-—पदार्थ, वस्तु, मामला, बात
विषयः —पुं॰—-—-—उद्दिष्ट पदार्थ या वस्तु, चिह्न, निशान
विषयः —पुं॰—-—-—कार्यक्षेत्र, परास, पहुँच, परिधि
विषयः —पुं॰—-—-—विभागम् क्षेत्र, प्रान्त, भूमि, तत्त्व
विषयः —पुं॰—-—-—विषयवस्तु, आलोच्य विषय, प्रसंग
विषयः —पुं॰—-—-—व्याख्येय प्रसंग या विषय, शीर्षक, अधिकरण के पाँचों अंगो में से पहला
विषयः —पुं॰—-—-—स्थान, जगह
विषयः —पुं॰—-—-—देश, राष्ट्र, राज्य, प्रदेश, मंडल, साम्राज्य
विषयः —पुं॰—-—-—शरण, आश्रय
विषयः —पुं॰—-—-—ग्रामों का समूह
विषयः —पुं॰—-—-—प्रेमी, पति
विषयः —पुं॰—-—-—वीर्य, शुक्त
विषयः —पुं॰—-—-—धार्मिक अनुष्ठान
विषयाभिरतिः —पुं॰—विषयः-अभिरतिः—-—सांसारिक विषय वासनाओं मे आसक्ति
विषयाभिलाषः —पुं॰—विषयः-अभिलाषः—-—सांसारिक विषय वासनाओं मे आसक्ति
विषयात्मक —वि॰—विषयः-आत्मक—-—सांसारिक पदार्थों से युक्त
विषयासक्त —वि॰—विषयः-आसक्त—-—विषयवासनाओं में लिप्त, विषयी, विलासी, इन्द्रियासक्त
विषयनिरत —वि॰—विषयः-निरत—-—विषयवासनाओं में लिप्त, विषयी, विलासी, इन्द्रियासक्त
विषयासक्ति —स्त्री॰—विषयः-आसक्ति—-—भोगविलास, कामासक्ति
विषयोपसेवा —स्त्री॰—विषयः-उपसेवा—-—भोगविलास, कामासक्ति
विषयनिरतिः —स्त्री॰—विषयः-निरतिः—-—भोगविलास, कामासक्ति
विषयप्रसङ्गः —पुं॰—विषयः-प्रसङ्गः—-—भोगविलास, कामासक्ति
विषयग्रामः —पुं॰—विषयः-ग्रामः—-—उन पदार्थों का समूह जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाने जाते हैं
विषयसुखम् —नपुं॰—विषयः-सुखम्—-—इन्द्रियासक्ति, विषयोपभोग
विषयायिन् —पुं॰—-—विषयान् अयते प्राप्नोति-विषय + अय् + णिनि—इन्द्रियसुखों में लिप्त, भोगविलासी
विषयायिन् —पुं॰—-—-—संसार के कार्यों में लिप्त मनुष्य
विषयायिन् —पुं॰—-—-—कामदेव
विषयायिन् —पुं॰—-—-—ज्ञानेन्द्रिय
विषयायिन् —पुं॰—-—-—भौतिकवादी
विषयिन् —वि॰—-—विषय + इनि—इन्द्रियसुखसंबंधी, शारीरिक
विषयिन् —पुं॰—-—-—सांसारिक पुरुष, विषयी, दुनियादार आदमी
विषयिन् —पुं॰—-—-—भोगविलासी, लंपट
विषयिन् —नपुं॰—-—-—ज्ञानेन्द्रिय
विषलः —पुं॰—-—-—जहर, हलाहल
विषह्य —वि॰—-—वि + सह् + यत्—सहन करने के योग्य, जो बर्दाश्त किया जा सके
विषह्य —वि॰—-—-—जो बसाया जा सके जो निर्धारित किया जा सके
विषह्य —वि॰—-—-—संभव, शक्य
विषा —स्त्री॰—-—विष् + अच् + टाप्—विष्ठा, मल
विषा —स्त्री॰—-—-—प्रतिभा, समझ
विषाणः —पुं॰—-—विष् + कानच्—सींग
विषाणः —पुं॰—-—-—हाथी या सूअर के दांत
विषाणम् —नपुं॰—-—विष् + कानच्—सींग
विषाणम् —नपुं॰—-—-—हाथी या सूअर के दांत
विषाणिन् —वि॰—-—विषाण + इनि—सींगों वाला या दांतो वाला
विषाणिन् —पुं॰—-—-—वह जानवर जिसके सींग हों या दांत बाहर निकले हों
विषादः —पुं॰—-—वि + सद् + घञ्—खिन्नता, उदासी, उत्साहहीनता, रंज, शोक
विषादः —पुं॰—-—-—निराशा, हताशा, नैराश्य
विषादः —पुं॰—-—-—थकान, म्लान अवस्था
विषादः —पुं॰—-—-—मन्दता, जडता, संज्ञाहीनता
विषादिन् —वि॰—-—विषाद + इनि—खिन्न, उद्विग्न
विषादिन् —वि॰—-—-—उदास, विषण्ण
विषारः —पुं॰—-—विष + ऋ + अच्—साँप
विषालु —वि॰—-—विष + आलुच्—विषैला, ज़हरीला
विषु —अव्य॰—-—विष् + कु—दो समान भागों में, समान रूप से
विषु —अव्य॰—-—-—भिन्नतापूर्वक, विविध प्रकार से
विषु —अव्य॰—-—-—समान, सदृश
विषुपम् —नपुं॰—-—विषु + पा + क—दो स्थलबिन्दु जहाँ पर सूर्य विषुवत् रेखा को पार करता है
विषुवम् —नपुं॰—-—विषु + वा + क—मेषराशि या तुलाराशि का प्रथम बिन्दु जिसमें सूर्य शारदीय या वासन्तिक विषुव में प्रविष्ट होता है, विषुवीय बिन्दु
विषुवछाया —स्त्री॰—विषुवम्-छाया—-—मध्याह्नकाल में धूपधड़ी के शंकु की छाया
विषुवदिनम् —नपुं॰—विषुवम्-दिनम्—-—विषुवीय दिन
विषुवरेखा —स्त्री॰—विषुवम्-रेखा—-—विषुवीय मार्ग
विषुवसंक्रान्तिः —स्त्री॰—विषुवम्-संक्रान्तिः—-—सूर्य का विषुवीय मार्ग
विषूचिका —स्त्री॰—-—वि + सूच् + ण्वुल् + टाप्, षत्वम्, इत्वम्—हैज़ा
विष्क् —चुरा॰ उभ॰ <विष्कयति>,<विष्कयते>—-—-—वध करना, चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना
विष्क् —चुरा॰ उभ॰ <विष्कयति>,<विष्कयते>—-—-—देखना, प्रत्यक्ष करना
विष्कन्दः —पुं॰—-—वि + स्कन्द् + अच्, षत्वम्—तितरबितर होना
विष्कन्दः —पुं॰—-—-—जाना, गमन
विष्कम्भः —पुं॰—-—वि + स्कंभ् + अच्—अवरोध, रुकावट, बाधा
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—दरवाजे की सांकल, चटकनी
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—घर में लगा शहतीर
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—थूणी, खंभ
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—(नाटकों में) नाटकों के अंकों के मध्य में मध्यरंग का दृश्य जो दो मध्यम या निम्नदर्जे के पात्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—वृत्त का व्यास
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—योगियों की विशेष मुद्रा
विष्कम्भः —पुं॰—-—-—विस्तार, लम्बाई
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—अवरोध, रुकावट, बाधा
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—दरवाजे की सांकल, चटकनी
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—घर में लगा शहतीर
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—थूणी, खंभ
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—(नाटकों में) नाटकों के अंकों के मध्य में मध्यरंग का दृश्य जो दो मध्यम या निम्नदर्जे के पात्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—वृत्त का व्यास
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—योगियों की विशेष मुद्रा
विष्कम्भक —पुं॰—-—-—विस्तार, लम्बाई
विष्कम्भित —वि॰—-—विष्कम्भ + इतच्—बाधायुक्त, अवरुद्ध
विष्कम्भिन् —पुं॰—-—विष्कभ् + इनि—द्वार की आर्गला, सांकल या चटखनी
विष्किरः —पुं॰—-—वि + कृ + क, सुट्, षत्वम्—इधर उधर बखेरना, फाड़ डालना
विष्किरः —पुं॰—-—-—पक्षी, तीतर की जाति का पक्षी
विष्टपः —पुं॰—-—विष् + कपन्—संसार भुवन
विष्टपम् —नपुं॰—-—विष् + कपन्, तु—संसार भुवन
विष्टपहारिन् —वि॰—विष्टपः-हारिन्—-—जो संसार को प्रसन्न करता है
विष्टब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्तंभ् + क्त—पक्का जमाया हुआ, भली भांति आश्रित
विष्टब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—टेक लगा हुआ, सहारा दिया हुआ
विष्टब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवरुद्ध, सबाध
विष्टब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लकवा के रोग से ग्रस्त, गतिहीन
विष्टम्भः —पुं॰—-—वि + स्तंभ् + घञ्—पक्की तरह से जमाना
विष्टम्भः —पुं॰—-—-—अवरोध, रुकावट, बाधा
विष्टम्भः —पुं॰—-—-—मूत्रावरोध, मलावरोध कोष्ठबद्धता
विष्टम्भः —पुं॰—-—-—ठहरना, टिकाव
विष्टरः —पुं॰—-—वि + स्तृ + अप्, षत्वम्—आसन, (स्टूल, कुर्सी आदि)
विष्टरः —पुं॰—-—-—तह, परत, बिस्तरा (कुश आदि घास का)
विष्टरः —पुं॰—-—-—मुट्ठीभर कुशाघास
विष्टरः —पुं॰—-—-—यज्ञ में ब्रह्मा का आसन
विष्टरभाज् —वि॰—विष्टरः-भाज्—-—आसन पर बैठा हुआ, आसन पर विराजमान
विष्टरश्रवस् —पुं॰—विष्टरः-श्रवस्—-—विष्णु या कृष्ण का विशेषण
विष्ठिः —स्त्री॰—-—विष् + क्तिन्—व्याप्ति
विष्ठिः —स्त्री॰—-—-—कर्म, व्यवसाय
विष्ठिः —स्त्री॰—-—-—भाड़ा, मज़दूरी
विष्ठिः —स्त्री॰—-—-—बेगार
विष्ठिः —स्त्री॰—-—-—प्रेषण
विष्ठिः —स्त्री॰—-—-—नरकवास
विष्ठलम् —नपुं॰—-—विदूरं स्थलम् - प्रा॰ स॰—दूरवर्ती स्थान, फासले पर स्थित
विष्ठा —स्त्री॰—-—वि + स्था + क + टाप्, षत्वम्—मल, लीद, पाख़ाना
विष्णुः —पुं॰—-—विष् + नुक्—देवत्रयी में दूसरा, जिसको संसार का पालनपोषण सौंपा गया है
विष्णुः —पुं॰—-—-—पुण्यात्मा
विष्णुः —पुं॰—-—-—विष्णुस्मृति के प्रणेता
विष्णुकाञ्ची —स्त्री॰—विष्णुः-काञ्ची—-—एक नगर का नाम
विष्णुक्रमः —पुं॰—विष्णुः-क्रमः—-—विष्णु के पग
विष्णुगुप्तः —पुं॰—विष्णुः-गुप्तः—-—चाणक्य का नाम
विष्णुतैलम् —नपुं॰—विष्णुः-तैलम्—-—एक प्रकार औषधियों से बनाया गया तेल
विष्णुदैवत्या —स्त्री॰—विष्णुः-दैवत्या—-—प्रत्येक पक्ष (चान्द्रमास के) की एकादशी और द्वादशी
विष्णुपदम् —नपुं॰—विष्णुः-पदम्—-—आकाश, अन्तरिक्ष
विष्णुपदम् —नपुं॰—विष्णुः-पदम्—-—क्षीरसागर
विष्णुपदम् —नपुं॰—विष्णुः-पदम्—-—कमल
विष्णुपदी —स्त्री॰—विष्णुः-पदी—-—गंगा का विशेषण
विष्णुपुराणम् —नपुं॰—विष्णुः-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण
विष्णुप्रीतिः —स्त्री॰—विष्णुः-प्रीतिः—-—विष्णुपूजा को स्थापित रखने के लिये ब्राह्मणो को अनुदान के रूप में दी गई शुल्क से मुक्त भूमि
विष्णुरथः —पुं॰—विष्णु-रथः—-—गरुड का विशेषण
विष्णुरिङ्गी —स्त्री॰—विष्णु-रिङ्गी—-—बटेर, लवा
विष्णुलोकः —पुं॰—विष्णु-लोकः—-—विष्णु का संसार
विष्णुवल्लभा —स्त्री॰—विष्णु-वल्लभा—-—लक्षी का विशेषण
विष्णुवल्लभा —स्त्री॰—विष्णु-वल्लभा—-—तुलसी का पौधा
विष्णुवाहनः —पुं॰—विष्णु-वाहनः—-—गरुड का विशेषण
विष्णुवाह्यः —पुं॰—विष्णु-वाह्यः—-—गरुड का विशेषण
विष्पन्दः —पुं॰—-—वि + स्पन्द + घञ्—धड़कन, स्पन्दन, धक-धक होना
विष्फारः —पुं॰—-—वि + स्फुर + णिच्, उकारस्य आत्वम्—धनुष की टंकार
विष्फारः —पुं॰—-—-—थरथराहट
विष्य —वि॰—-—विशेण वध्यः-विष + यत्—विष देकर मारे जाने योग्य, जिसको जहर देकर मार दिया जाय
विष्यन्दः —पुं॰—-—वि + स्यन्द् + घञ्—बहना, टपकना
विष्व —वि॰—-—-—पीडाकर, क्षतिकर, उत्पातकारी
विष्वच् —वि॰—-—विषुम् अञ्चति-विपु + अंच् क्लिन्—सर्वत्र जाने वाला, सर्वव्यापक
विष्वच् —वि॰—-—-—भागों नें अलग अलग करने वाला
विष्वञ्च् —वि॰—-—विषुम् अञ्चति-विपु + अंच् क्लिन्—सर्वत्र जाने वाला, सर्वव्यापक
विष्वञ्च् —वि॰—-—-—भागों नें अलग अलग करने वाला
विष्वक् —वि॰—-—-—सर्वत्र, सर्बओर, चारों तरफ
विष्वक्सेनः —पुं॰—विष्वक्-सेनः—-—विष्णु का विशेषण
विष्वक्सेनप्रिया —स्त्री॰—विष्वक्-सेनः-प्रिया—-—लक्ष्मी का नाम
विष्वणनम् —नपुं॰—-—वि + स्वन् + ल्युट्—भोजन करना, खाना
विष्बाणः —पुं॰—-—वि + स्वन् + घञ् वा, षत्वणत्वे—भोजन करना, खाना
विष्वद्र्यच् —वि॰—-—विष्वच् + अञ्च् + व्किन् अद्रि आदेशः—सर्वग, सर्वव्यापक
विष्वद्व्यच् —वि॰—-—विष्वच् + अञ्च् + व्किन् अद्रि आदेशः—सर्वग, सर्वव्यापक
विस् —दिवा॰ पर॰ <विस्यति>—-—-—डालना, फेंकना, भेजना
विस् —भ्वा॰ पर॰ <वेसति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
विस् —भ्वा॰ पर॰ <वेसति>—-—-—उकसाना, प्रेरित करना, भड़काना
विस् —भ्वा॰ पर॰ <वेसति>—-—-—फेंकना, डाल देना
विस् —भ्वा॰ पर॰ <वेसति>—-—-—टुकड़े टुकड़े करना
विसंयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सम् + युज् + क्त—अलग-अलग किया हुआ, पृथक् पृथक् किया हुआ
विसंयोगः —पुं॰—-—वि + सम् + युज् + घञ्—अलग-अलग होना, बिछोह, वियोग
विसंवादः —पुं॰—-—वि + सम् + वद् + घञ्—धोखा, प्रतिज्ञा भंग करना, निराशा
विसंवादः —पुं॰—-—-—असंगति, असंबद्धता. असहमति
विसंवादः —पुं॰—-—-—वचनविरोध
विसंवादिन् —वि॰—-—विसंवाद + इनि—निराश करने वाला, धोखा देने वाला
विसंवादिन् —वि॰—-—-—असंगत, विरोधात्मक
विसंवादिन् —वि॰—-—-—भिन्न मत रखने वाला, असहमत
विसंवादिन् —वि॰—-—-—जालसाज, धूर्तं, मक्कार
विसंष्ठुल —वि॰—-—वि + सम् + स्था + उलच्—अस्थिर, बिक्षुब्ध
विसङ्कट —वि॰—-—विशिष्टः संकटो यस्मात्-प्रा॰ ब॰—भयानक, डरावना
विसङ्कटः —पुं॰—-—-—इंगुदी का वृक्ष
विसङ्गत —वि॰—-—वि + सम् + गम् + क्त—अयोग्य, असम्बद्ध, बेमेल
विसन्धिः —पुं॰—-—विरुद्धः सन्धिः-प्रा॰ स॰—अनभिमत सन्धि या सन्धि का अभाव (यह साहित्यरचना में एक दोष माना जाता है)
विसरः —पुं॰—-—वि + सृ + अप्—जाना
विसरः —पुं॰—-—-—फैलाना, विस्तार करना
विसरः —पुं॰—-—-—भीड़, समुच्चय, रेवढ़, लहण्डा
विसरः —पुं॰—-—-—बड़ी राशि, ढेर
विसर्गः —पुं॰—-—वि + सृज् + घञ्—भेज देना, उद्गार
विसर्गः —पुं॰—-—-—गिराना, उडेलना, बूँद-बूँद करके गिराना
विसर्गः —पुं॰—-—-—डालना, फेंकना
विसर्गः —पुं॰—-—-—प्रदान करना, भेंट, दान
विसर्गः —पुं॰—-—-—भेज देना, विसर्जन
विसर्गः —पुं॰—-—-—परित्याग, छोड़ देना
विसर्गः —पुं॰—-—-—उत्सर्जन, मलत्याग
विसर्गः —पुं॰—-—-—जुदाई, वियोग
विसर्गः —पुं॰—-—-—प्रकाश, ज्योति
विसर्गः —पुं॰—-—-—लिखने में एक प्रतीक, जो स्पष्ट रूप से महाप्राण है तथा दो विन्दु (ः) लगा कर प्रकट किया जाता है
विसर्गः —पुं॰—-—-—सूर्य का दक्षिणायन
विसर्गः —पुं॰—-—-—लिङ्ग, शिश्न
विसर्जनम् —नपुं॰—-—वि + सृज् + ल्युट्—उद्गार, प्रेषण, उडेलना
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—प्रदान करना, भेंट, दान
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—मलत्याग
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—डाल देना, त्याग देना, परित्याग करना
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—भेज देना, बिदा करना
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—(देवता को) बिदा करना
विसर्जनम् —नपुं॰—-—-—किसी विशेष अवसर पर साँड को छोड़ देना
विसर्जनीय —वि॰—-—वि + सृज् + अनीयर्—परित्यक्त किये जाने के योग्य
विसर्जनीयः —पुं॰—-—-—विसर्ग (ः)
विसर्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सृज् + णिच् + क्त—उद्गीर्ण, उगला गया
विसर्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रदत्त
विसर्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—छोड़ा गया, त्याग दिया गया, परित्यक्त
विसर्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भेजा गया, प्रेषित
विसर्जित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बिदा किया गया, तितर-बितर किया गया
विसर्पः —पुं॰—-—वि + सृप् + घञ्—रेंगना, सरकना
विसर्पः —पुं॰—-—-—इधर से उधर आना और जाना
विसर्पः —पुं॰—-—-—फैलाव, संचार
विसर्पः —पुं॰—-—-—किसी कर्म का अप्रत्याशित या अनपेक्षित फल
विसर्पः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का रोग, सूखी खुजली
विसर्पघ्नम् —नपुं॰—विसर्पः-घ्नम्—-—मोम
विसर्पणम् —नपुं॰—-—वि + सृप् + ल्युट्—रेंगना, सरकना, शनैः शनैः चलना
विसर्पणम् —नपुं॰—-—-—प्रसारण, फैलाव, विस्तारण
विसर्पिः —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का रोग, सूखी खुजली
विसर्पिका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का रोग, सूखी खुजली
विसलम् —नपुं॰—-—विस + ला + क —नया अंकुर, अंखुवा, कली
विसारः —पुं॰—-—वि + सृ + घञ्—फैलाना, विछाना, प्रसारण
विसारः —पुं॰—-—-—रेंगना, सरकना
विसारिन् —वि॰—-—वि + सृ + णिनि—फैलाने वाला, प्रसार करने वाला
विसारिन् —वि॰—-—-—रेंगने वाला, सरकने वाला
विसिनी —स्त्री॰—-—विस + इनि—कमलिनी, कमल का पौधा
विसिनी —स्त्री॰—-—विस + इनि—कमल तंतु
विसिनी —स्त्री॰—-—विस + इनि—कमलों का समूह
विसिल —वि॰—-—विस + इलच्—बिस से संबद्ध या प्राप्त
विसूचिका —स्त्री॰—-—वि + सूच् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—हैजा
विसूरणम् —नपुं॰—-—वि + सूर् + ल्युट्—दुःख, शोक
विसूरणा —स्त्री॰—-—वि + सूर् + ल्युट्—दुःख, शोक
विसूरितम् —नपुं॰—-—वि + सूर् + क्त—पश्वात्ताप, दुःख
विसूरिता —स्त्री॰—-—-—बुखार, ज्वर
विसृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सृ + क्त—फैलाया हुआ, विस्तृत किया हुआ, प्रसारित किया हुआ
विसृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तारित, ताना हुआ
विसृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कहा हुआ
विसृत्वर —वि॰ —-—वि + सृ + क्वरप्, तुक्—इधर उधर फैलने वाला, व्याप्त होने वाला
विसृत्वर —वि॰ —-—-—रेंगने, सरकना
विसृमर —वि॰ —-—वि + सृ + क्मरच्—रेंगने वाला, सरकने वाला, शनैः शनैः चलने वाला
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + सृज् + क्त—उद्गीर्ण, उगला हुआ
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उत्पन्न, निःसृत
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—ढलकाया हुआ, टपकाया हुआ
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—भेजा हुआ, प्रेषित
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बिदा किया गया, जाने दिया गया, कार्यभार से मुक्त किया गया
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निकाल बाहर किया गया, फेंका गया
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दिया गया, प्रदत्त
विसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—परित्यक्त, उन्मुक्त, हटाया गया
विस्त —पुं॰—-—विस् + क्त—(८० रत्तियों के बराबर) सोने का तोल
विस्तरः —पुं॰—-—वि + स्तृ + अप्—विस्तार, फैलाव
विस्तरः —पुं॰—-—-—सूक्ष्म विवरण, ब्यौरेवार वर्णन, सूक्ष्म ब्यौरे
विस्तरेण —पुं॰—-—-—ब्यौरेवारम् विस्तारपूर्वक, पूरी तरह से, सूक्ष्म विवरण सहित, पूरी विशेषताओं के साथ
विस्तरतः —पुं॰—-—-—ब्यौरेवारम् विस्तारपूर्वक, पूरी तरह से, सूक्ष्म विवरण सहित, पूरी विशेषताओं के साथ
विस्तरशः —पुं॰—-—-—ब्यौरेवारम् विस्तारपूर्वक, पूरी तरह से, सूक्ष्म विवरण सहित, पूरी विशेषताओं के साथ
विस्तरः —पुं॰—-—-—सुविस्तरना, प्रसार
विस्तरः —पुं॰—-—-—वहुतायत, परिमाण, समुच्चय, संख्या
विस्तरः —पुं॰—-—-—विस्तरा, तह, स्तर
विस्तरः —पुं॰—-—-—आसन, तिपाई
विस्तारः —पुं॰—-—वि + स्तृ + घञ्—फैलाव, विस्तृति, प्रसारण
विस्तारः —पुं॰—-—-—आयाम, चौड़ाई
विस्तारः —पुं॰—-—-—फैलाव, विपुलता, विशालता
विस्तारः —पुं॰—-—-—विवरण, पूरा ब्यौरा
विस्तारः —पुं॰—-—-—वृत्त का व्यास
विस्तारः —पुं॰—-—-—नूतन पल्लवों से युक्त पेड़ की शाखा
विस्तीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्तृ + क्त—बिछाया गया, फैलाया गया, विस्तार किया गया
विस्तीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चौड़ा, विस्तृत
विस्तीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विशाल, बड़ा, विस्तारयुक्त
विस्तीर्णपर्णम् —नपुं॰—विस्तीर्ण-पर्णम्—-—एक प्रकार की जड़, मानक
विस्तृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्तृ + क्त—प्रसारित, फैलाया गया, विस्तारयुक्त
विस्तृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चौड़ा, फैला हुआ
विस्तृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विपुल
विस्तृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुविस्तर, लंबा-चौड़ा
विस्तृतिः —स्त्री॰—-—वि + स्तृ + क्तिन्—विस्तार, फैलाव
विस्तृतिः —स्त्री॰—-—-—चौड़ाई, फ़ासला, विशालता
विस्तृतिः —स्त्री॰—-—-—वृत्त का व्यास
विष्पष्ट —वि॰—-—विशेषेण स्पष्टः-प्रा॰ स॰ —सीधा, साफ़, सुबोध
विष्पष्ट —वि॰—-—-—प्रकट, स्फुट, सुव्यक्त, खुला, प्रत्यक्ष
विस्फारः —पुं॰—-—वि + स्फुर् + घञ्, उकारस्य आकारः—थरथराहट, कम्पन, धड़कन
विस्फारः —पुं॰—-—-—धनुष की टंकार
विस्फारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—विस्फार + इतच्—थरथरी पैदा की गई
विस्फारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कम्पमान, थरथराता हुआ
विस्फारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—टंकारयुक्त
विस्फारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्तृत किया हुआ, फैलाया हुआ
विस्फारित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रकटित प्रदर्शित
विस्फुरितः —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्फुर् + क्त—थरथराने वाला, कांपने वाला
विस्फुरितः —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सूजा हुआ, विस्तारित
विस्फुलिङ्गः —पुं॰—-—वि + स्फुर् + डु= विस्फु तादृशं लिंगमति अस्य—आग की चिनगारी
विस्फुलिङ्गः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का विष
विस्फूर्जथुः —पुं॰—-—वि + स्फूर्ज् + अथुच्—दहाड़ना, गरजना, कड़कना
विस्फूर्जथुः —पुं॰—-—-—बादल की गरज, विजली की कड़क
विस्फूर्जथुः —पुं॰—-—-—विजली जैसी कड़क, अकस्मात् आभास या आधात
विस्फूर्जथुः —पुं॰—-—-—(लहरों का) आन्दोलित होना, लहरों का उठना
विस्फूर्जितम् —नपुं॰—-—वि + स्फूर्ज् + क्त—दहाड़, चीत्कार
विस्फूर्जितम् —नपुं॰—-—-—लुढ़कना
विस्फूर्जितम् —नपुं॰—-—-—फल, परिणाम
विस्फोटः —पुं॰—-—वि + स्फुट् + घञ्—फोड़ा, अर्बुद, रसौली
विस्फोटः —पुं॰—-—-—शीतला, चेचक
विस्फोटा —स्त्री॰—-—-—फोड़ा, अर्बुद, रसौली
विस्फोटा —स्त्री॰—-—-—शीतला, चेचक
विस्मयः —पुं॰—-—वि + स्मि + अच्—आश्चर्य, ताज्जुब, अचम्भा, अचरज
विस्मयः —पुं॰—-—-—आश्चर्य या अचम्भे की भावना, जिससे अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है,
विस्मयः —पुं॰—-—-—घमंड, अभिमान
विस्मयः —पुं॰—-—-—अनिश्चय, सन्देह
विस्मयाकुल —वि॰—विस्मयः-आकुल—-—आश्चर्ययुक्त, अचरज से भरा हुआ
विस्मयाविष्ट —वि॰—विस्मयः-आविष्ट—-—आश्चर्ययुक्त, अचरज से भरा हुआ
विस्मयाङ्गम —वि॰—-—विस्मयं गच्छति-विस्मय + गम् + खश्, मुम्—अचरज से भरा हुआ, आश्चर्यजनक
विस्मरणम् —नपुं॰—-—वि + स्मृ + ल्युट्—भूल जाना, विस्मृति, स्मृति का न रहना, बिसर जाना
विस्मापन —वि॰—-—वि + स्मि + णिच् + ल्युट्, पुकागमः, आत्वम्—आश्चर्यजनक
विस्मापनः —पुं॰—-—-—कामदेव
विस्मापनः —पुं॰—-—-—चाल, धोखा, भ्रम
विस्मापनम् —नपुं॰—-—-—आश्चर्य पैदा करना
विस्मापनम् —नपुं॰—-—-—कोई भी आश्चर्यजनक वस्तु
विस्मापनम् —नपुं॰—-—-—गंधर्वों का नगर
विस्मापनम् —पुं॰—-—-—गंधर्वों का नगर
विस्मित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्मि + क्त—आश्चर्यान्वित, चकित, भौचक्का, हक्काबक्का
विस्मित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—उलटपुलट किया गया
विस्मित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घमंडी
विस्मृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्मृ + क्त—भूला हूआ
विस्मृतिः —स्त्री॰ —-—वि + स्मृ + क्तिन्—भूल जाना, बिसार देना, अस्मरण
विस्मेर —वि॰—-—वि + स्मि + रन्—भौचक्का, आश्चर्यान्वित, चकित
विस्रम् —नपुं॰—-—विस् + रक्—कच्चे मांस की गंध के समान गंध
विस्रगन्धिः —पुं॰—विस्रम्-गन्धिः—-—हरताल
विस्रंसः —पुं॰—-—वि + स्रंस् + घञ्—नीचे गिरना
विस्रंसः —पुं॰—-—-—क्षय, शैथिल्य, कमज़ोरी, निर्बलता
विस्रंसा —स्त्री॰—-—-—नीचे गिरना
विस्रंसा —स्त्री॰—-—-—क्षय, शैथिल्य, कमज़ोरी, निर्बलता
विस्रंसन —वि॰—-—वि + स्रंस् + ल्युट्—पतनशील या बिन्दुपाती
विस्रंसन —वि॰—-—-—खोलने वाला, ढीला करने वाला
विस्रंसनम् —नपुं॰—-—-—अधःपतन
विस्रंसनम् —नपुं॰—-—-—बहना, टपकना
विस्रंसनम् —नपुं॰—-—-—खोलना, ढीला करना
विस्रंसनम् —नपुं॰—-—-—रेचक, दस्तावर
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—बन्द किया गया, विश्वास किया गया, सौंपा गया
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विस्वस्त, निडर, भरोसे करने वाला
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—विश्वसनीय, भरोसे का
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निश्चल, सौम्य, शान्त, निश्चिन्त
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दृढ़, स्थिर
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—नम्र, विनीत
विस्रब्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अत्यधिक, बहुत ज्यादह
विस्रम्भः —पुं॰—-—-—विश्वास, भरोसा, अन्तरंग विश्वास, पूर्ण घनिष्ठता या अन्तरंगता
विस्रम्भः —पुं॰—-—-—गुप्त बात, रहस्य
विस्रम्भः —पुं॰—-—-—आराम,विश्राम
विस्रम्भः —पुं॰—-—-—स्नेहसिक्त परिपृच्छा
विस्रम्भः —पुं॰—-—-—प्रेम-कलह, प्रीतिविषयक झगड़ा
विस्रसा —स्त्री॰—-—वि + स्रंस् + क + टाप्—क्षय, निर्बलता, जर्जरता
विस्रस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + स्रंस् + क्त—ढीला किया हुआ
विस्रस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दुर्बल, बलहीन
विस्रवः —पुं॰—-—वि + स्रु + अप्—बहना, बूँद बूँद टपकना, चूना, रिसना
विस्रावः —पुं॰—-—वि + स्रु + घञ् —बहना, बूँद बूँद टपकना, चूना, रिसना
विस्रावणम् —नपुं॰—-—वि + स्रु + णिच् + ल्युट्—रक्त वहना
विस्रुतिः —स्त्री॰—-—वि + स्रु + क्तिन्—बह जाना, चूना, रिसना
विस्वर —वि॰ —-—विरुद्धः विगतो वा स्वरो यस्य - प्रा॰ ब॰—बेसुरा
विहगः —पुं॰—-—विहायसा गच्छति गम् + ड, नि॰—पक्षी
विहङ्गः —पुं॰—-—विहायसा गच्छति गम् + खच्, मुम्—पक्षी
विहङ्गः —पुं॰—-—-—चन्द्रमा
विहङ्गेन्द्रः —पुं॰—विहङ्गः-इन्द्रः—-—गरुड के विशेषण
विहङ्गेश्वरः —पुं॰—विहङ्गः-इश्वरः—-—गरुड के विशेषण
विहङ्गराजः —पुं॰—विहङ्गः-राजः—-—गरुड के विशेषण
विहङ्गमः —पुं॰—-—विहायसा गच्छति-गम् + खच्, मुम्, विहादेशः—पक्षी
विहङ्गमा —स्त्री॰—-—विहंगम + टाप्—विहंगी, वह बांस जिसके दोनों सिरों पर बोझ बांध कर लटका दिया जाता है
विहङ्गिका —स्त्री॰—-—विहंगम + कन् + टाप्, इत्वम्—विहंगी, वह बांस जिसके दोनों सिरों पर बोझ बांध कर लटका दिया जाता है
विहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + हन् + क्त—पूरी तरह आहत, वध किया गया
विहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—चोट पहुंचाई गई
विहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अवरुद्ध, विरोध किया गया, मुक़ाबला किया गया
विहतिः —पुं॰—-—वि + हन् + क्तिच्—मित्र, साथी
विहतिः —स्त्री॰—-—-—हत्या करना, प्रहार करना
विहतिः —स्त्री॰—-—-—असफलता
विहतिः —स्त्री॰—-—-—पराजय, हार
विहननम् —नपुं॰—-—वि + हन् + ल्युट्—हत्या करना, प्रहार करना
विहननम् —नपुं॰—-—-—चोट, क्षति
विहननम् —नपुं॰—-—-—अवरोध, रुकावट, अड़चन
विहननम् —नपुं॰—-—-—रुई धुनने की धुनकी
विहरः —पुं॰—-—वि + हृ + अप्—अपहरण करना, हटना
विहरः —पुं॰—-—-—वियोग, बिछोह
विहरणम् —नपुं॰—-—वि + ह + ल्युट्—दूर करना, अपहरण करना
विहरणम् —नपुं॰—-—-—सैंर करना, हवाखोरी, इधर उधर टहलना
विहरणम् —नपुं॰—-—-—आमोद-प्रमोद, मनोरञ्जन
विहर्तृ —पुं॰—-—वि + ह + तृच्—भ्रमणशील
विहर्षः —नपुं॰—-—विशिष्टो हर्षः - प्रा॰ स॰—बहुत अधिक प्रसन्नता, उल्लास
विहसनम् —नपुं॰—-—वि + हस् + ल्युट्—मन्द हंसी, मुस्कान
विहसितम् —नपुं॰—-—वि + हस् +क्त—मन्द हंसी, मुस्कान
विहासः —पुं॰—-—वि + हस् +घञ् वा—मन्द हंसी, मुस्कान
विहस्त —वि॰—-—विगतः हस्तो यस्य-प्रा॰ ब॰—हस्तरहित
विहस्त —वि॰—-—-—घबराया हुआ, व्याकुल, पराभूत, शक्तिहीन किया हुआ
विहस्त —वि॰—-—-—अशक्त (उपयुक्त कार्य करने के लिए) अक्षम
विहस्त —वि॰—-—-—विद्वान्, बुद्धिमान्
विहा —अव्य॰—-—वि + हा + आ, नि॰—स्वर्ग, वैकुण्ठ
विहापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + हा + णिच् + क्त, पुकागमः—परित्यक्त कराया गया
विहापित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—तोड़ मरोड़ कर निकाला गया, छुड़ाया गया
विहापितम् —नपुं॰—-—-—भेंट, दान
विहायस् —नपुं॰—-—वि + हय् + असुन्, नि॰ वृद्धि—आकाश, अन्तरिक्ष
विहायस —नपुं॰—-—-—आकाश, अन्तरिक्ष
विहारः —पुं॰—-—वि + हृ + घञ्—हटाना, दूर करना
विहारः —पुं॰—-—-—सैर सपाटा, हवाखोरी, भ्रमण, सैर करना
विहारः —पुं॰—-—-—क्रीडा, खेल, मनोविनोद, मनोरञ्जन, आमोद-प्रमोद, विलास
विहारः —पुं॰—-—-—पग रखना, कदम बढ़ाना
विहारः —पुं॰—-—-—वाटिका, उद्यान, विशेषतः प्रमोदवन
विहारः —पुं॰—-—-—जैनमन्दिर या बौद्धमन्दिर, मठ, आश्रम या संघाराम
विहारः —पुं॰—-—-—वागिन्द्रिय का बृहद् विस्तार
विहारगृहम् —नपुं॰—विहारः-गृहम्—-—प्रमोदभवन
विहारदासी —स्त्री॰—विहारः-दासी—-—संन्यासिनी, भिक्षुणी
विहारिका —स्त्री॰—-—विहार + कन् + टाप्, इत्वम्—बौद्धमठ
विहारिन् —वि॰—-—विहार + इनि—मनोविनोदी या दिलबहलावा करने वाला
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—वि + धा + क्त—किया हुआ, अनुष्ठित, कृत, बनाया हुआ
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्रमबद्ध किया हुआ, स्थिर किया हुआ, सुव्यवस्थित, नियोजित, निर्धारित
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—आदिष्ट, विधान किया हुआ, समादिष्ट
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निर्मित, संरचित
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—रक्खा हुआ, जमा किया हुआ
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सुसज्जित, सम्पन्न
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—किये जाने के योग्य
विहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वितरित, बांटा गया
विहितम् —नपुं॰—-—-—आदेश, आज्ञा
विहितिः —स्त्री॰ —-—वि + धा + क्तिन्—अनुष्ठान, क्रिया, कर्म
विहितिः —स्त्री॰ —-—-—व्यवस्था
विहीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + हा + क्त—छोड़ा गया, परित्यक्त, त्यागा गया
विहीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—शून्य, रहित, वञ्चित
विहीन —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—अधम, नीच, कमीना
जातिविहीन —वि॰—जाति-विहीन—-—नीच घर में उत्पन्न, नीच कुल में पैंदा हुआ
योनिविहीन —वि॰—योनि-विहीन—-—नीच घर में उत्पन्न, नीच कुल में पैंदा हुआ
विहत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—वि + ह + क्त—क्रीडा की, खेला हुआ
विहत —भू॰ क॰ कृ॰ —-—-—फुलाया हुआ
विहतम् —नपुं॰—-—-—स्त्रियों द्वारा प्रेम प्रदर्शित करने की दस रीतियों में से एक
विहृतिः —स्त्री॰ —-—वि + हृ + क्तिन्—हटाना, दूर करना
विहृतिः —स्त्री॰ —-—-—क्रीडा, मनो विनोद, विहार
विहृतिः —स्त्री॰ —-—-—प्रसार
विहेठकः —पुं॰—-—वि + हेठ् + ण्वुल्—क्षति पहुँचाने वाला
विहेठनम् —नपुं॰—-—वि + हेठ् + ल्युट्—क्षति पहुँचाना, घायल करना
विहेठनम् —नपुं॰—-—-—मसलना, पीसना
विहेठनम् —नपुं॰—-—-—कष्ट देना
विहेठनम् —नपुं॰—-—-—पीडा, दुःख, सताना
विह्वल —वि॰—-—वि + ह् वल् + अच्—विक्षुब्ध, अशान्त, व्याकुल, घबराया हुआ
विह्वल —वि॰—-—-—डरा हुआ, संत्रस्त
विह्वल —वि॰—-—-—उन्मत्त, आपे से बाहर
विह्वल —वि॰—-—-—कष्टग्रस्त, दुःखी
विह्वल —वि॰—-—-—विषादपूर्ण
विह्वल —वि॰—-—-—गला हुआ, पिघला हुआ