विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/म-ह
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
मकरः —पुं॰—-—मं विषं किरति+कृ+अच्—मगरमच्छ
मकरः —पुं॰—-—मं विषं किरति+कृ+अच्—मकरराशि
मकरः —पुं॰—-—मं विषं किरति+कृ+अच्—मकर की आकृति का कुण्डल
मकरासनम् —नपुं॰—मकर-आसनम्—-—एक प्रकार के योग का आसन
मकरवाहनः —पुं॰—मकर-वाहनः—-—वरुण
मकरन्दः —पुं॰—-—मकर+दो+क, मुमादेशः—पुष्परस, मधु
मकरन्दः —पुं॰—-—मकर+दो+क, मुमादेशः—चमेली का फूल
मकरन्दः —पुं॰—-—मकर+दो+क, मुमादेशः—कोयल
मकरन्दः —पुं॰—-—मकर+दो+क, मुमादेशः—सुगन्धयुक्त आम का वृक्ष
मकरन्दः —पुं॰—-—मकर+दो+क, मुमादेशः—एक प्रकार का माप
मकरन्दिका —स्त्री॰—-—-—एक छन्द का नाम
मकूलकः —पुं॰—-—-—दन्ती नाम का वृक्ष
मखमृगव्याधः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
मगन्दः —पुं॰—-—-—कुसीदक, सूदखोर
मगधदेशः —पुं॰—-—-—मगध नाम का देश
मङ्कुकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
मङ्गल —वि॰—-—मङ्ग+अलच्—शुभ, सौभाग्यशाली
मङ्गल —वि॰—-—मङ्ग+अलच्—समृद्ध
मङ्गल —वि॰—-—मङ्ग+अलच्—वीर
मङ्गलम् —नपुं॰—-—मङ्ग+अलच्—माङ्गलिकता, प्रसन्नता, कल्याण
मङ्गलम् —नपुं॰—-—मङ्ग+अलच्—शुभ शकुन
मङ्गलम् —नपुं॰—-—मङ्ग+अलच्—आशीर्वाद
मङ्गलम् —नपुं॰—-—मङ्ग+अलच्—माङ्गलिक संस्कार
मङ्गलम् —नपुं॰—-—मङ्ग+अलच्—हल्दी
मङ्गलः —पुं॰—-—मङ्ग+अलच्—मङ्गलग्रह
मङ्गलः —पुं॰—-—मङ्ग+अलच्—अग्नि
मङ्गलावह —वि॰—मङ्गल-आवह—-—शुभ
मङ्गलध्वनिः —पुं॰—मङ्गल-ध्वनिः—-—माङ्गलिक स्वर
मङ्गलभेरी —स्त्री॰—मङ्गल-भेरी—-—माङ्गलिक अवसरों पर बजाया जाने वाला ढोल
मज्जनः —पुं॰—-—मस्ज्+ल्युट्—आठ वर्ष का हाथी
मञ्चनृत्यम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नाच
मञ्जुनादः —पुं॰—-—-—मधुरध्वनि
मञ्जुभद्रः —पुं॰—-—-—एक जिन का नाम
मञ्जुश्रीः —स्त्री॰—-—-—एक बोधिसत्त्व का नाम
मठाधिपतिः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—विविध आध्यात्मिक श्रेणियों से सम्बद्ध कोई रचना
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—रत्न, जवाहर
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—आभूषण
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—सर्वोत्तम पदार्थ
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—चुम्बक
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—अयस्कान्त मणि
मणिः —पुं॰—-—मण्+इन्—स्फटिक
मणिकाञ्चनयोगः —पुं॰—मणि-काञ्चनयोगः—-—उपयुक्त वस्तुओं का विरल मेल
मणितुलाकोटिः —पुं॰—मणि-तुलाकोटिः—-—जड़ाऊ पायजेब
मणिप्रभा —स्त्री॰—मणि-प्रभा—-—एक छन्द का नाम
मणिविग्रह —वि॰—मणि-विग्रह—-—रत्नजटित
मण्डजातम् —नपुं॰—-—-—जमा हुआ दूध, दही
मण्डपीठिका —स्त्री॰—-—-—परकार के दो चतुर्थांश
मण्डनकालः —पुं॰—-—-—श्रृंगार समय
मण्डनप्रियः —वि॰—-—-—अलंकारप्रिय, आभूषणों का शौकीन
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—गोलाकार वस्तु, पहिया, अंगूठी, परिधि
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—सूर्य परिवेश, चन्द्र परिवेश
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—स्मुदाय, संग्रह, सेना
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—समाज
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—वर्तुलाकार गति
मण्डलम् —नपुं॰—-—मण्ड+कलच्—द्यूतपट्ट
मण्डलासन —वि॰—मण्डलम्-आसन—-—वृत्त में बैठा हुआ
मण्डलकविः —पुं॰—मण्डलम्-कविः—-—कठ कवि, तुक्कड़ कवि
मण्डलनाभिः —पुं॰—मण्डलम्-नाभिः—-—वृत्त का केन्द्र
मण्डलमाडः —पुं॰—मण्डलम्-माडः—-—मडवा, प्रशाला
मण्डलवाटः —पुं॰—मण्डलम्-वाटः—-—उद्यान
मण्डलकम् —नपुं॰—-—मण्डल+कन्—वाण विद्या में वर्णित एक विशेष मुद्रा
मण्डलकम् —नपुं॰—-—मण्डल+कन्—जादू की शक्तियों से युक्त एक वृत्त
मण्डुकम् —नपुं॰—-—-—ढाल की मूठ
मण्डूकपर्णा —स्त्री॰—-—-—ब्राह्मी की जाति का एक पौधा
मण्डूकपर्णिका —स्त्री॰—-—-—ब्राह्मी की जाति का एक पौधा
मण्डूकपर्णी —स्त्री॰—-—-—ब्राह्मी की जाति का एक पौधा
मतभेदः —पुं॰,स॰त॰—-—-—मतों में अन्तर, सम्मतियों की भिन्नता
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—वृद्धि, समझ, ज्ञान, निर्णयशक्ति
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—मन, हृदय
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—विचार, विश्वास, सम्मति, दृष्टिकोण
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—इरादा, प्रयोजन
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—प्रस्ताव, संकल्प
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—आदर, सम्मान
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—इच्छा
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—उपदेश
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—स्मृति
मतिः —स्त्री॰—-—मन्+क्तिन्—भक्ति, प्रार्थना
मतिकर्मन् —पुं॰—मति-कर्मन्—-—बौद्धिक कार्य
मतिगतिः —स्त्री॰—मति-गतिः—-—चिन्तन क्रम
मतिदर्शनम् —नपुं॰—मति-दर्शनम्—-—विचारों का अध्ययन
मत्ताक्रीडा —स्त्री॰—-—-—एक छन्द का नाम
मत्तवारणः —पुं॰—-—-—किसी भवन की चहारदिवारी
मत्तवारणः —पुं॰—-—-—खूटी या ब्रैकेट
मत्तवारणः —पुं॰—-—-—चारपाई, पलंग
मत्स्यः —पुं॰—-—मद्+स्यन्—मछली
मत्स्यः —पुं॰—-—मद्+स्यन्—मत्स्य देश का राजा
मत्स्योद्वर्तनम् —नपुं॰—मत्स्य-उद्वर्तनम्—-—एक प्रकार का नाच
मत्स्याजीवः —पुं॰—मत्स्य-आजीवः—-—मचियारा, मछली का व्यापार करने वाला
मत्स्यसन्तानिकः —पुं॰—मत्स्य-सन्तानिकः—-—पकी हुई मछली चटनी के साथ
मथ्य —वि॰—-—मथ्+ण्यत्—मन्थन क्रिया के द्वारा प्राप्य, मथकर निकाला जाने वाला
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्— सौन्दर्य
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्—जन्मकुण्डली में सातवाँ घर
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्—अभिमान
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्— पागलपन
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्—अत्यन्त आवेश
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्—हाथी के मस्तक से चूने वाला रस
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्—प्रेम, मस्ती
मदः —पुं॰—-—मद्+अच्— सुरा, शराब
मदभङ्गः —पुं॰—मद-भङ्गः—-—घमंड का टूट जाना
मदमत्ता —स्त्री॰—मद-मत्ता—-—एक छन्द का नाम
मदनम् —नपुं॰—-—मद्+ल्युट्—नशा करना
मदनम् —नपुं॰—-—मद्+ल्युट्—उल्लास, हर्षातिरेक
मदनः —नपुं॰—-—मद्+ल्युट्—जन्मकुण्डली में सातवाँ घर
मदनः —नपुं॰—-—मद्+ल्युट्—एक प्रकार की संगीतमाप
मदनात्ययः —पुं॰—मदन-अत्ययः—-—नशे का आधिक्य, मदातिरेक
मदिरामदान्ध —वि॰—-—-—शराब पीकर धुत्त, अत्यन्त नशे में
मद्यकुम्भः —पुं॰—-—-—शराब की सुराही, सुरा पात्र
मद्यबीजम् —नपुं॰—-—-—खमीर उठाने के लिए औषधि
मद्रदेशः —पुं॰—-—-—मद्रों का देश
मद्रनाभः —पुं॰—-—-—एक संकर जाति
मधु —नपुं॰—-—मन्+उ, नस्य धः—शहद
मधु —नपुं॰—-—मन्+उ, नस्य धः—फूलों का रस
मधु —नपुं॰—-—मन्+उ, नस्य धः—मधुमक्खियों का छत्ता
मधु —नपुं॰—-—मन्+उ, नस्य धः—मोम
मधुपाका —स्त्री॰—मधु-पाका—-—तरबूज
मधुपात्रम् —नपुं॰—मधु-पात्रम्—-— सुरापात्र
मधुमांसम् —नपुं॰—मधु-मांसम्—-—शराब और मांस
मधुवल्ली —स्त्री॰—मधु-वल्ली—-—एक प्रकार का अंगूर
मधुवल्ली —स्त्री॰—मधु-वल्ली—-—मीठा नींबू
मधुकाश्रयम् —नपुं॰—-—-—मोम
मधुमती —स्त्री॰—-—मधु+मतुप्+ङीप्—एक नदी का नाम
मधुमती —स्त्री॰—-—मधु+मतुप्+ङीप्—एक बेल का नाम
मधुमती —स्त्री॰—-—मधु+मतुप्+ङीप्—‘मधु वाता ऋतायते’ से आरम्भ होने वाली तीन ऋचाएँ
मधुरस्वनः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—शंख
मधुराङ्गकः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—कषाय स्वाद, तीखा स्वाद
मध्यमणिन्यायः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—एक नियम जिसके आधार पर मुख्य वस्तु दोनों पार्श्वों के बीच में रहे जैसे कि हार में मणि
मध्यकम् —नपुं॰—-—-— सामान्य सम्पत्ति
मध्यम —वि॰—-—मध्ये भवः म—बीच का, केन्द्रिय
मध्यम —वि॰—-—मध्ये भवः म—अन्तर्वर्ती
मध्यम —वि॰—-—मध्ये भवः म—मध्यवर्ती
मध्यमः —पुं॰—-—मध्ये भवः म—नितान्त बीच का पुत्र
मध्यमः —पुं॰—-—मध्ये भवः म—राज्यपाल
मध्यमः —पुं॰—-—मध्ये भवः म—भीम का विशेषण
मध्यमम् —नपुं॰—-—मध्ये भवः म—जो अति प्रशसंनीय न हो
मध्यमम् —नपुं॰—-—मध्ये भवः म—ग्रहण का मध्यवर्ती बिन्दु
मध्यमगतिः —स्त्री॰—मध्यम-गतिः—-—किसी ग्रह की औसत चाल
मध्यमग्रामः —पुं॰—मध्यम-ग्रामः—-—मध्यवर्ती लय
मध्यमव्यायोगः —पुं॰—मध्यम-व्यायोगः—-—भासकृत एक नाटक
मध्यमीय —वि॰—-—मध्यम+छ—बीच का, केन्द्रिय
मध्योदात्त —वि॰—-—-—ऐसा शब्द जिसके मध्यवर्ती अक्षर पर उदात्त स्वर हो
मन् —दिवा॰तना॰आ॰—-—-—स्वीकार करना, सहमत होना
मनस् —नपुं॰—-—मन्+असुन्—मन, हृदय, समझ, बुद्धि
मनस् —नपुं॰—-—मन्+असुन्—संज्ञान व प्रदान का एक अन्तर्वर्ती अंग, वह उपकरण जिसके द्वारा ज्ञानेन्द्रियों के विषय आत्मा को प्रभावित करते हैं
मनस् —नपुं॰—-—मन्+असुन्—अन्तःकरण
मनस् —नपुं॰—-—मन्+असुन्—अभिकल्प
मनस् —नपुं॰—-—मन्+असुन्—संकल्प
मनोग्राह्य —वि॰—मनस्-ग्राह्य—-—मन से ग्रहण किये जाने के योग्य
मनोग्लानिः —पुं॰—मनस्-ग्लानिः—-—मन का अवसाद
मनोधारणम् —नपुं॰—मनस्-धारणम्—-—अनुग्रह की संराधना करना
मनस्पर्यायः —पुं॰—मनस्-पर्यायः—-—सत्य के प्रत्यक्षीकरण में अन्तिम के पूर्व की स्थिति
मनोरागः —पुं॰—मनस्-रागः—-—हृदयानुराग, प्रेम
मनःसमृद्धिः —स्त्री॰—मनस्-समृद्धिः—-—मन का सन्तोष
मनःसमृद्धिः —पुं॰—मनस्-संवरः—-—मन का दमन
मनुः —पुं॰—-—मन्+उ —मानसिक शक्तियाँ देहोऽसवोऽक्षा मनवो भुतमात्रा @ भाग॰ ६/४/२५
मनुस्मृति —स्त्री॰—-—-—मनुसंहिता, मनु द्वारा प्रणीत धर्मशास्त्र
मनुष्ययानम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—पालकी, शिविका
मनुष्यसंकल्पः —पुं॰—-—-—मानव की इच्छा
मनोन्मनी —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का एक रूप
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—विष्णु का नाम, शिव का नाम
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—जन्मकुण्डली में सातवाँ घर
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—वैदिक सूक्त
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—वेद का वह अंश जिसमें संहिता सम्मिलित हैं
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—प्रार्थना
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—गुप्त योजना
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र+अच्—नय, नीति
मन्त्रकर्कश —वि॰—मन्त्र-कर्कश—-—दृढ़नीति का समर्थक
मन्त्रजागरः —पुं॰—मन्त्र-जागरः—-—रात के जागरण के अवसर पर मन्त्रों का सस्वर पाठ
मन्त्ररक्षा —स्त्री॰—मन्त्र-रक्षा—-—किसी नीति, विचार या रहस्य को गुप्त रखना
मन्त्रसंवरणम् —नपुं॰—मन्त्र-संवरणम्—-—किसी रहस्य, मन्त्रणा या नीति को गुप्त रखना
मन्त्रस्नानम् —नपुं॰—मन्त्र-स्नानम्—-—स्नान करने के स्थान पर ‘अधमर्षण’ मन्त्रों का सस्वर पाठ करना
मन्थ् —भ्वा॰क्र्या॰पर॰—-—-—मिश्रित करना, मिला देना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—मथना, बिलोना, हिलाना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—मार डालना, नाश करना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्— मिश्रित पेय
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—रई, बिलोने का उपकरण, मन्थनदण्ड
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—सूर्य
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—आँखों के रोंहे
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ्+घञ्—पेय तैयार करने के लिए आयुर्वेद का एक योग
मन्थविष्कम्भः —पुं॰—मन्थ-विष्कम्भः—-—मन्थनदण्ड
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—ढीला, शिथिल, निष्क्रियात्मक, अलस
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—शीतल, उदासीन
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—मूढ, दुर्बद्धि, मूर्ख
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—नीचा, गहरा, खोखला
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—मृदु, सुकुमार
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—छोटा
मन्द —वि॰—-—मन्द्+अच्—दुर्बल
मन्दः —पुं॰—-—मन्द्+अच्—शनिग्रह
मन्दः —पुं॰—-—मन्द्+अच्—यम का विशेषण
मन्दास्यम् —नपुं॰—मन्द-आस्यम्—-—संकोच, झिझक
मन्दकर्मन् —वि॰—मन्द-कर्मन्—-—कार्य करने में शिथिल
मन्दजरस् —वि॰—मन्द-जरस्—-—शनैः शनैः बूढ़ा होने वाला
मन्दपुण्य —वि॰—मन्द-पुण्य—-—दुर्भाग्यग्रस्त, बदकिस्मत
मन्दामणिः —पुं॰—-—-—पानी भरने का बड़ा घड़ा
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—भवन
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—आवास
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—नगर
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—शिविर
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—देवालय
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्+किरच्—काया, शरीर
मन्दुरा —स्त्री॰—-—मन्द्+उरच्—अश्वशाला, अस्तबल, तबेला
मन्दुरा —स्त्री॰—-—मन्द्+उरच्—शय्या, चटाई
मन्दुरापतिः —पुं॰—मन्दुरा-पतिः—-—अश्वशाला का प्रबन्धकर्ता
मन्दुरापालः —पुं॰—मन्दुरा-पालः—-—अश्वशाला का प्रबन्धकर्ता
मन्दुराभूषणम् —नपुं॰—मन्दुरा-भूषणम्—-—बन्दरों की एक जाति
मन्युसूक्तम् —नपुं॰—-—-—मन्यु नामक सूक्त जो ऋग्वेद के दसवें मण्डल के ८३ व ८४ वें सूक्त हैं
ममतायुक्त —वि॰—-—-—अहंमन्य
ममताशून्य —वि॰—-—-—अहंशून्य
ममताशून्य —वि॰—-—-—अनासक्त
मयिवसु —वि॰—-—-—मेरे प्रति शुभ
मयूखमालिन् —पुं॰—-—-—सूर्य, सूरज
मयूरः —पुं॰—-—मी ऊरन्—एक प्रकार का फूल
मयूरः —पुं॰—-—मी ऊरन्—एक कवि का नाम
मयूरनृत्यम् —नपुं॰—मयूर-नृत्यम्—-—मोर का नाच
मयूरपिच्छम् —नपुं॰—मयूर-पिच्छम्—-—मोर का चंदा
मयूरिका —स्त्री॰—-—-—नथ,नाक का छल्ला
मयूरिका —स्त्री॰—-—-—एक जहरीला जंतु
मरकतश्याम —वि॰—-—-—पन्ने जैसा काला,ऐसा काला जैसा कि मरकतमणि-माता मरकतश्यामा मातङ्गी मदशालिनी
मरणम् —नपुं॰—-—मृ+ल्युट्—मरना मृत्यु
मरणम् —नपुं॰—-—मृ+ल्युट्—एक प्रकार का विष
मरणम् —नपुं॰—-—मृ+ल्युट्—अवसान
मरणम् —नपुं॰—-—मृ+ल्युट्—जन्मकुंडली में आठवाँ घर
मरणम् —नपुं॰—-—मृ+ल्युट्—शरण,शरणालय
मरणदशा —स्त्री॰—मरणम्-दशा—-—मृत्यु का समय
मरणशील —वि॰—मरणम्-शील—-—मर्त्य,मरणधर्मा
मरीचिः —पुं॰—-—मृ+ईचि—प्रकाश की किरण
मरीचिः —पुं॰—-—मृ+ईचि—प्रकाशकण
मरीचिः —पुं॰—-—मृ+ईचि—प्रकाश
मरीचिः —पुं॰—-—मृ+ईचि—मृगतृष्णा
मरीचिः —पुं॰—-—मृ+ईचि—आग की चिगारी
मरीचिपाः —पुं॰—मरीचिः-पाः—-—ऋषिवर्ग जो सूर्य की किरणें पीकर जीवित रहते हैं
मरुः —पुं॰—-—मृ+उ—रेगिस्तान,निर्जल प्रदेश
मरुः —पुं॰—-—मृ+उ—पहाड़,चट्टान
मरुः —पुं॰—-—मृ+उ—कुरबक नाम का पौधा
मरुः —पुं॰—-—मृ+उ—मद्यपान का त्याग
मरुप्रपतनम् —नपुं॰—मरुः-प्रपतनम्—-—पहाड़ से छलांग लगाना
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—वायु,हवा,समीर
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—प्राण,वायु
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—वायु का देवता
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—देवता
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—मरुबक नाम का पौधा
मरुत् —पुं॰—-—मृ+उति—सौन्दर्य
मरुद्वृद्धा —स्त्री॰—मरुत्-वृद्धा—-—कावेरी नदी
मरुद्वृधा —स्त्री॰—मरुत्- वृधा—-—कावेरी नदी
मर्जू —स्त्री॰—-—मृज्+ऊ—पीठमर्द,सफाई,पवित्रता
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—शरीर का महत्वपूर्ण भाग
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—त्रुटि,विफलता
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—ह्रदय
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—गुप्त अर्थ
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—रहस्य
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ+मनिन्—सत्यता
मर्मघातः —पुं॰—मर्मन्-घातः—-—मर्मस्थान पर आघात करना
मर्मजम् —नपुं॰—मर्मन्-जम्—-—रुधिर
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—सीमा
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—अन्त
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—किनारा,तट
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—चिन्ह
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—नैतिकता की सीमा प्रचलित नियम्,प्रचलन
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—औचित्य का सिद्धान्त
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्या+दा+क—करार
मर्यादाबन्धः —पुं॰—मर्यादा-बन्धः—-—सीमा के अन्दर रहना
मर्यादावचनम् —नपुं॰—मर्यादा-वचनम्—-—सीमा विषयक वक्तव्य
मर्यादाव्यतिक्रमः —पुं॰—मर्यादा-व्यतिक्रमः—-—सीमा का उल्लंघन
मल —वि॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—मैला,गन्दा
मल —वि॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—लालची
मल —वि॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—दुष्ट
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—मैल,गन्दगी,धूल अपवित्रता
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—विष्ठा,बीट
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—धातुओं का मोर्चा
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—शरीर के मल
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—कपूर
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—कमाया हुआ चमड़ा
मलः —पुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—वात,पित तथा कफ नामक दोष
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—मैल,गन्दगी,धूल अपवित्रता
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—विष्ठा,बीट
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—धातुओं का मोर्चा
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—शरीर के मल
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—कपूर
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—कमाया हुआ चमड़ा
मलम् —नपुं॰—-—मृज्+कल,टिलोपः—वात,पित तथा कफ नामक दोष
मलापहा —स्त्री॰—मल-अपहा—-—एक नदी का नाम
मलपङ्किन् —वि॰—मल-पङ्किन्—-—धूल या गन्दगी से भरा हुआ
मल्लनालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की माप
महत् —वि॰—-—मह्+अति—बड़ा,विशाल,विस्तृत
महत् —वि॰—-—मह्+अति—पुष्कल,असंख्य
महत् —वि॰—-—मह्+अति—दीर्घ,विस्तृत
महत् —वि॰—-—मह्+अति—प्रबल,बलशाली
महत् —वि॰—-—मह्+अति—महत्वपूर्ण,आवश्यक
महत् —वि॰—-—मह्+अति—ऊँचा,प्रमुख,पूज्य
महायुधम् —नपुं॰—महत्-आयुधम्—-—महान् शस्त्र,बड़ा भारी हथियार
महौषधिः —स्त्री॰—महत्-औषधिः—-—एक आश्चर्य जनक बूटी
महाकुलम् —नपुं॰—महत्-कुलम्—-—उतम घराना
महाद्वन्द्वः —पुं॰—महत्-द्वन्द्वः—-—सैनिक,जत्था
महाफलः —पुं॰—महत्-फलः—-—बेल का वृक्ष
महाव्यतिक्रमः —पुं॰—महत्-व्यतिक्रमः—-—भारी अतिक्रम
महाव्यतिक्रमः —पुं॰—महत्-व्यतिक्रमः—-—महान् पुरुष का अनादर
महानिलः —पुं॰—महा-अनिलः—-—बवंडर
महारम्भः —पुं॰—महा-आरम्भः—-—महान् कार्य,विशाल पैमाने पर कार्य का आरंभ करना
महालयः —पुं॰—महा-आलयः—-—देवालय,मन्दिर,तीर्थ स्थान
महालयामावस्या —स्त्री॰—महा-आलयामावस्या—-—वह अमावस्या जिससे महालयपक्षः आरंभ होता है
महालयपक्षः —पुं॰—महा-आलयपक्षः—-—माघ और पौष मास का पुनीत पितृपक्ष
महालयश्राद्धः —पुं॰—महा-आलयश्राद्धः—-—महालय पक्ष में श्राद्ध करना,ऊर्मिन् समुद्र
महौघ —वि॰—महा-ओघ—-—प्रबल धाराओं से युक्त
महाकल्पः —पुं॰—महा-कल्पः—-—ब्रह्मा के सौ वर्ष
महाचक्रम् —नपुं॰—महा-चक्रम्—-—शक्ति की पूजा में रहस्यमय चक्र
महाजङ्घः —पुं॰—महा-जङ्घः—-—ऊँट
महाजवः —पुं॰—महा-जवः—-—बारहसिंगा हरिण
महादंष्ट्रः —पुं॰—महा-दंष्ट्रः—-—बड़े व्याघ्र की एक जाति
महादुर्गम् —नपुं॰—महा-दुर्गम्—-—महान् संकट
महापराकः —पुं॰—महा-पराकः—-—एक प्रकार की तपस्या
महापुराणम् —नपुं॰—महा-पुराणम्—-—अठारह पुराणों में एक पुराण
महाप्रश्नः —पुं॰—महा-प्रश्नः—-—एक जटिल सवाल
महाबिसी —स्त्री॰—महा-बिसी—-—एक प्रकार का चमड़ा
महाभाण्डम् —नपुं॰—महा-भाण्डम्—-—मुख्य कोष
महामृत्युञ्जयः —पुं॰—महा-मृत्युञ्जयः—-—मृत्यु के विजेता शिव की प्रसन्न करने का मन्त्र
महामृत्युञ्जयः —पुं॰—महा-मृत्युञ्जयः—-—एक औषधि का नाम
महायानम् —नपुं॰—महा-यानम्—-—एक बड़ी सवारी
महारवः —पुं॰—महा-रवः—-—मेंढ़क
महारुजः —वि॰—महा-रुजः—-—अत्यन्त पीड़ाकर
महालयः —पुं॰—महा-लयः—-—महा प्रलय
महालयः —पुं॰—महा-लयः—-—परमपुरुष जिसमें सब महाभूत लीन हो जाते है
महाविपुला —स्त्री॰—महा-विपुला—-—एक प्रकार का छन्द
महाशिवरात्रिः —पुं॰—महा-शिवरात्रिः—-—फाल्गुन मांस के कृष्णपक्ष का चौदहवाँ दिन,शिवपूजा का माङ्गलिक दिवस
महाश्लक्ष्णा —स्त्री॰—महा-श्लक्ष्णा—-—रेत,बालू
महासन्निः —पुं॰—महा-सन्निः—-—एक प्रकार का संगीत माप
महासुधा —स्त्री॰—महा-सुधा—-—चाँदी
महिनम् —नपुं॰—-—-—प्रभुसत्ता,उपनिवेश
महिमन् —पुं॰—-—महत्+इमनिच्—आठ सिद्धियों में से एक
महिषमर्दिनी —स्त्री॰—-—-—दुर्गादेवी
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—पृथ्वी,धरती,भूमि
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—भूसंपत्ति,जायदाद
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—देश,राजधानी
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—खम्बात की खाड़ी में गिरने वाली एक नदी
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—किसी आकृति की आधाररेखा
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—विशाल सेना
मही —स्त्री॰—-—मह्+अच्+ङीष्—गाय
महीजीवा —स्त्री॰—मही-जीवा—-—क्षितिज
महीपृष्ठम् —नपुं॰—मही-पृष्ठम्—-—धरतीतल,भूमि की सतह
महीकरोति ——मही-करोति—-—बड़ा बनाता है,प्रोन्नत करता है
मांसम् —नपुं॰—-—मन्+स,दीर्घश्च—गोश्त
मांसम् —नपुं॰—-—मन्+स,दीर्घश्च—मछली का मांस
मांसम् —नपुं॰—-—मन्+स,दीर्घश्च—फल का मांसल भाग
मांसः —पुं॰—-—मन्+स,दीर्घश्च—कीड़ा
मांसः —पुं॰—-—मन्+स,दीर्घश्च—संकर जाति,जो मांस बेचती है
मांसकामः —पुं॰—मांसम्-कामः—-—मांस का शौकीन
मांसकीलः —पुं॰—मांसम्-कीलः—-—रसौली
मांसचक्षुः —नपुं॰—मांसम्-चक्षुः—-—नंगी आँख
मांसपरिवर्जनम् —नपुं॰—मांसम्-परिवर्जनम्—-—मांस-भक्षण का त्याग
मांसीयते —ना॰धा॰—-—-—मांस के लिए लालायित रहना
माक्षिकधातुः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का खनिज धातु
मागधः —पुं॰—-—मगध+अण्—मगध देश का राजा
मागधः —पुं॰—-—मगध+अण्—साहित्य क्षेत्र में काव्यशैली का एक प्रकार
मातङ्गलीला —स्त्री॰—-—-—हस्तिविज्ञान पर एक कृति
मातुलाहिः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
मातृ —स्त्री॰—-—मान्+तृच्,नलोपः—माता,जननी
मातृ —स्त्री॰—-—मान्+तृच्,नलोपः—स्त्रियों के प्रति आदर या सम्मान सूचक संबोधन
मातृ —स्त्री॰—-—मान्+तृच्,नलोपः—गाय
मातृ —स्त्री॰—-—मान्+तृच्,नलोपः—लक्ष्मी या दुर्गा का विशेषण
मातृ —स्त्री॰—-—मान्+तृच्,नलोपः—धरती माता
मातृदोषः —पुं॰—मातृ-दोषः—-—माता का दोष
मातृभक्तिः —स्त्री॰—मातृ-भक्तिः—-—माता के प्रति आदर सम्मान
मातृशासितः —पुं॰—मातृ-शासितः—-—मूर्खव्यक्ति,सीधा सादा,भोंदू
मातृका —स्त्री॰—-—-—ग्रीवा की ८ नाड़ियाँ,शिराएँ
मातृतः —अ॰—-—-—मातृपरक पक्ष की ओर
मात्र —वि॰—-—मा+त्रन्—आरम्भिक विषय
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—परिणाम
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—क्षण
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—अणु
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—अंश
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—वृत्त,विचार
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—धन
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—तत्व
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—भौतिक संसार
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—नागरी अक्षरों में स्वरों का चिह्न
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—कान की बाली
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—आभूषण
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—इन्द्रियों का कार्य
मात्रा —स्त्री॰—-—मात्र+टाप्—विकार
मात्राङ्गुलम् —नपुं॰—मात्रा-अङ्गुलम्—-—लगभग एक इंच की माप
मात्स्यन्यायः —पुं॰—-—-—एक सिद्धान्त जिसमें बड़ा छोटे को दबाता है,हर बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है
माधवनिदानम् —नपुं॰—-—-—आयुर्वेद की एक कृति
माधवी —स्त्री॰—-—-—पशुओं की बहुतायत
मानः —पुं॰—-—मन्+घञ्—आदर,सम्मान
मानः —पुं॰—-—मन्+घञ्—घमंड,अभिमान,अहंकार
मानः —पुं॰—-—मन्+घञ्—आत्माभिमान,आत्मगौरव
मानम् —नपुं॰—-—मन्+घञ्—माप
मानम् —नपुं॰—-—मन्+घञ्—निष्ठित मापदण्ड
मानम् —नपुं॰—-—मन्+घञ्—आयाम
मानान्ध —वि॰—मानः-अन्ध—-—घमंड के कारण अंधा
मानार्ह —वि॰—मानः-अर्ह—-—सम्मान के योग्य,आदर का अधिकारी
मानावभङ्गः —पुं॰—मानः-अवभङ्गः—-—प्रतिष्ठा भङ्ग होना,क्रोध का नाश
मानविषमः —पुं॰—मानः-विषमः—-—खोटे बाँटों से तोलकर या मिथ्या मापकर गबन करना,ठगना
मानसारः —पुं॰—मानः-सारः—-—अभिमान की बड़ी मात्रा
मानसपूजा —स्त्री॰—-—-—मानसिक पूजा
मानुषम् —नपुं॰—-—मनोरयम्+अण् सुक् च—मानवता,मनुष्यत्व
मानुषम् —नपुं॰—-—-—मनुष्य की परिपक्वावस्था,पूर्ण पुरुषत्व
मानुषाधमः —पुं॰—मानुषम्-अधमः—-—नीच पुरुष,ओछा मनुष्य
मन्द्यव्याजः —पुं॰,ष॰+त॰—-—-—रोग का बहाना
माया —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का नाम
माया —स्त्री॰—-—-—दक्षता,कला
यकृत् —नपुं॰—-—यं संयमं करोति कृ+क्विप् तुक् च—जिगर
यकृद्वैरिन् —पुं॰—यकृत्-वैरिन्—-—औषध का एक पौधा,रक्तरोहड़ा
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—देवयोनि विशेष,जो कुबेर के सेवक है
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—भूतप्रेत
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—इन्द्र का महल
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—कुबेर
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—पूजा
यक्षः —पुं॰—-—यक्ष्+घञ्—कुता
यक्षधूपः —पुं॰—यक्षः-धूपः—-—गूगल,लोबान
यज्ञः —पुं॰—-—यज्+न—यज्ञ,यज्ञीय संस्कार
यज्ञः —पुं॰—-—यज्+न—पूजा की प्रक्रिया
यज्ञः —पुं॰—-—यज्+न—विष्णु
यज्ञायुधम् —नपुं॰—यज्ञः-आयुधम्—-—यज्ञ में प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण
यज्ञगुह्यः —पुं॰—यज्ञः-गुह्यः—-—कृष्ण
यज्ञपत्नी —स्त्री॰—यज्ञः-पत्नी—-—यजमान की पत्नी
यज्ञशिष्टम् —नपुं॰—यज्ञः-शिष्टम्—-—यज्ञ का अवशिष्ट अंश
यज्ञसंस्तरः —पुं॰—यज्ञः-संस्तरः—-—यज्ञ की वेदी की स्थापना तथा इष्टकाचयन
यज्ञायज्ञीयम् —नपुं॰—-—-—सामसूक्त
यज्ञायज्ञीयम् —नपुं॰—-—-—गरुड़ के दोनों पंखों का प्रतीकात्मक नाम
यत्नवत् —वि॰—-—-—क्रियाशील,परिश्रमी,प्रयत्न करने वाला
यतगिर —वि॰,ब॰स॰—-—-—चुप रहने वाला,जिसने अपनी वाणी को नियन्त्रित रक्खा हैं
यतमैथुन —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसने मैथुन त्याग दिया है
यतिचान्द्रायणम् —नपुं॰—-—-—विशेष प्रकार का तपश्चरण
यत्रकामम् —अ॰—-—-—जहाँ किसी का मन चाहे,इच्छानुसार
यत्रकामावसायः —पुं॰—-—-—योग की एक शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य अपने आपको जहाँ चाहे ले जा सकता है
यत्रसायंगृह —वि॰—-—-—जहाँ सन्ध्या हो जाय या सूर्यास्त हो जाय वहीं ठहर जाने वाला व्यक्ति
यथा —अ॰—-—यद् प्रकारे थाल्—जिस ढंग,जिस रीति से,जैसे,जिस प्रकार
यथानुक्तम् —अ॰—यथा-अनुक्तम्—-—जैसा कि बतालाया है,या निर्देश किया गया है
यथाश्रयम् —अ॰—यथा-आश्रयम्—-—आधार के अनुसार
यथोद्गत —वि॰—यथा-उद्गत—-—ज्ञानशुन्य,मूर्ख
यथोद्गमनम् —अ॰—यथा-उद्गमनम्—-—आरोह अनुपात के अनुसार
यथोपचारम् —अ॰—यथा-उपचारम्—-—औचित्य के अनुरुप,शिष्टाचार-सापेक्ष
यथोपदिष्ट —वि॰—यथा-उपदिष्ट—-—जैसा निर्देश दिया गया हो,या जैसा परामर्श दिया गया हो
यथाकारम् —अ॰—यथा-कारम्—-—जिस किसी रीति से
यथाक्लृप्ति —अ॰—यथा-क्लृप्ति—-—समुचित रीति से
यथाक्षिप्रम् —अ॰—यथा-क्षिप्रम्—-—जितनी जल्दी हो सके
यथाचित्तम् —अ॰—यथा-चित्तम्—-—अपनी इच्छा के अनुसार
यथातथ्यम् —अ॰—यथा-तथ्यम्—-—सचमुच,वास्तव में
यथान्यासम् —अ॰—यथा-न्यासम्—-—जैसा कि विधान है,जैसा किमूल पाठ में है
यथान्युप्त —वि॰—यथा-न्युप्त—-—जैसा कि धरती में डाला गया है
यथापण्यम् —अ॰—यथा-पण्यम्—-—विक्रेय वस्तु के मूल्य के अनुसार
यथाप्रत्यर्हम् —अ॰—यथा-प्रत्यर्हम्—-—योग्यता के अनुसार
यथाप्रदिष्टम् —अ॰—यथा-प्रदिष्टम्—-—जैसा अनुकूल हो,जैसा कि उपयुक्त हो
यथाप्रस्तावम् —अ॰—यथा-प्रस्तावम्—-—सबसे पहले उपयुक्त अवसर पर
यथाप्रस्तुतम् —अ॰—यथा-प्रस्तुतम्—-—अन्त में
यथाप्रस्तुतम् —अ॰—यथा-प्रस्तुतम्—-—प्रस्तुत विषय के अनुरुप
यथाभूयस् —अ॰—यथा-भूयस्—-—वरीयता के अनुकूल
यथामूल्यम् —अ॰—यथा-मूल्यम्—-—मूल्य के अनुसार
यथारसम् —अ॰—यथा-रसम्—-—रस या स्वाद के अनुकूल
यथालब्ध —वि॰—यथा-लब्ध—-—जैसा कि वस्तुतः प्राप्त हो चुका है
यथाविनियोगम् —अ॰—यथा-विनियोगम्—-—निर्दिष्ट प्राथमिकता के अनुसार
यथाव्युत्पति —अ॰—यथा-व्युत्पति—-—ज्ञान की गहराई के अनुकूल
यथाशब्दार्थम् —अ॰—यथा-शब्दार्थम्—-—शब्द के अर्थों के अनुसार
यथासंस्थम् —अ॰—यथा-संस्थम्—-—परिस्थिति के अनुकूल
यथासवनम् —अ॰—यथा-सवनम्—-—ऋतु के अनुकूल
यथासारम् —अ॰—यथा-सारम्—-—गुण के अनुसार
यथास्थूलम् —अ॰—यथा-स्थूलम्—-—जैसा कि अतिरिक्त रीति से कहा गया है
यथास्व —वि॰—यथा-स्व—-—अपने अपने आवास या स्थान के अनुसार
यदात्मक —वि॰—-—-—जिस सत्ता परक
यद्वद —वि॰—-—-—इच्छानुसार बोलने वाला
यदीय —वि॰—-—यद्+छ—जिसका,जिससे संबद्ध
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—जो रोकता,या बांधता है
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—सहारा,थूनी
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—बेड़ी,हथकड़ी
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—शल्य क्रिया का उपकरण
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—मशीन,संयत्र
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—कुंडी,ताला,चाबी
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—प्रतिबन्ध,शक्ति
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—ताबीज
यन्त्रम् —नपुं॰—-—यन्त्र+अच्—छिद्र करने की मशीन
यन्त्रारुढ —वि॰—यन्त्रम्-आरुढ—-—घूमने वाली मशीन पर चढ़ा हुआ
यन्त्रकोविदः —पुं॰—यन्त्रम्-कोविदः—-—यन्त्रकार,मशीन पर कार्य करने वाला
यन्त्रगृहम् —नपुं॰—यन्त्रम्-गृहम्—-—यन्त्रागार,जहाँ किसी को यन्त्रणा दी जाती है
यन्त्रधारागृहम् —नपुं॰—यन्त्रम्-धारागृहम्—-—वह स्थान जहाँ फौवारा लगा हुआ हो
यन्त्रसूत्रम् —नपुं॰—यन्त्रम्-सूत्रम्—-—गुड़िया या पुतलिका को रंगमंच पर हिलाने वाली डोरी
यन्त्रकम् —नपुं॰—-—यन्त्र+कन्—हाथ से चलायी जाने वाली मशीन,खैराद
यन्त्रकम् —नपुं॰—-—यन्त्र+कन्—सामान का बंडल
यन्त्रिका —स्त्री॰—-—यन्त्र्+ण्वुल्—छोटी साली,पत्नी की छोटी बहन
यन्त्रित —वि॰—-—यन्त्र्+क्त्—भड़काया हुआ
यन्त्रित —वि॰—-—यन्त्र्+क्त्—नियमों से नियन्त्रित या प्रतिबद्ध
यन्त्रित —वि॰—-—यन्त्र्+क्त्—तनाव को बढ़ाने के लिये निकाला हुआ
यन्त्रित —वि॰—-—यन्त्र्+क्त्—आकृष्ट अथवा
यम —वि॰—-—यम्+घञ्—यमल,जोडुआ
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—प्रतिबन्ध,नियन्त्रण,दमन
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—आत्मसंयम
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—कोई नैतिक कर्तव्य
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—योग के आठ अङ्गों में से एक
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—मृत्यु का देवता
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—‘दो’ की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
यमः —पुं॰—-—यम्+घञ्—चालक,रथवान
यमम् —नपुं॰—-—यम्+घञ्—जोड़ा
यमम् —नपुं॰—-—यम्+घञ्—संयुक्त व्यंजन
यमी —स्त्री॰—-—यम्+घञ्—यमुना नदी
यमौ —पुं॰द्वि॰बहु॰—-—-—युगल,जोडुआ
यमौ —पुं॰द्वि॰बहु॰—-—-—अश्विनीकुमार
यमानुजा —स्त्री॰—यम-अनुजा—-—यमुना नदी
यमघण्टः —पुं॰—यम-घण्टः—-—ज्योतिष का एक अशुभ योग
यमद्रुमः —पुं॰—यम-द्रुमः—-—सप्तपर्ण वृक्ष
यमपटः —पुं॰—यम-पटः—-—कपड़े की एक पट्टी जिस पर यम,यम के अनुचर तथा नारकीय यातनाओं का चित्रण अङ्कित रहता है
यमपट्टिका —स्त्री॰—यम-पट्टिका—-—कपड़े की एक पट्टी जिस पर यम,यम के अनुचर तथा नारकीय यातनाओं का चित्रण अङ्कित रहता है
यमव्रतम् —नपुं॰—यम-व्रतम्—-—यम को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखना
यमव्रतम् —नपुं॰—यम-व्रतम्—-—निष्पक्ष दण्ड विधान
यमशासनः —पुं॰—यम-शासनः—-—शिव
यमश्रायम् —नपुं॰—यम-श्रायम्—-—यम का वासस्थान
यमककाव्यम् —नपुं॰—-—-—यमक-प्रधान कविता,वह काव्य जिसमें यमक अलंकार की बहुतायत हो
यमलार्जुनौ —पुं॰—-—-—दो अर्जुन के वृक्ष
यमिका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की सूखी खाँसी
यमेरुका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का घण्टा जिस पर आघात करके समय की सूचना दी जाती है
यवः —पुं॰—-—यु+अच्—महीने का पहला पक्ष
यवः —पुं॰—-—यु+अच्—गति,चाल
यवः —पुं॰—-—यु+अच्—ज्योतिष का एक योग
यवः —पुं॰—-—यु+अच्—दुगुना उन्नतोदर शीशा
यवः —पुं॰—-—यु+अच्—एक टापू का नाम
यवद्वीपः —पुं॰—यवः-द्वीपः—-—वर्तमान जावा टापू
यवनालः —पुं॰—यवः-नालः—-—एक प्रकार का खाद्य पौधा
यवनाचार्यः —पुं॰—-—-—ज्योतिष के ‘ताजिक’ नाम की कृति का विख्यात प्रणेता
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—कीर्ति ख्याति,प्रसिद्ध
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—पूज्य व्यक्ति
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—प्रसाद
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—धन
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—आहार
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—जल
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—विरल गुणों का एकत्र संग्रह
यशस् —नपुं॰—-—अश् स्तुतौ असुन् धातोः ल्युट् च्—परोक्ष कीर्ति
यशोधा —पुं॰—यशस्-धा—-—कीर्ति प्रदान करने वाला
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—लकड़ी
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—गदा
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—स्तम्भ
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—सहारा,टेक
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—ध्वजदंड
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—डोरी,धागा
यष्टिः —स्त्री॰—-—यज्+क्तिन् नि॰ न संप्रसारणम्—हार,लड़ी
यष्ट्याघातः —पुं॰—यष्टिः-आघातः—-—डंडे की मार
यष्ट्युत्थानम् —नपुं॰—यष्टिः-उत्थानम्—-—लकड़ी की सहायता से उठना
यष्टियन्त्रम् —नपुं॰—यष्टिः-यन्त्रम्—-—समय को मापने के लिए ज्योतिष का एक साधन
यस्मात् —अ॰—-—-—जिससे,जब से,जिस बात से
यस्मात् —अ॰—-—-—ताकि जिससे कि
यागः —पुं॰—-—यज्+घञ्,कुत्वम्—यज्ञ,आहुति
यागः —पुं॰—-—यज्+घञ्,कुत्वम्—उपस्थान उपहार,प्रदान
यागकण्टक —वि॰—यागः-कण्टक—-—बुरा यजमान
यागकण्टक —वि॰—यागः-कण्टक—-—जो यज्ञ् को बिगाड़ता है
यागसम्प्रसाणम् —नपुं॰—यागः-सम्प्रसाणम्—-—यज्ञीय पदार्थ को लेने वाला
यागसूत्रम् —नपुं॰—यागः-सूत्रम्—-—यज्ञीय यज्ञोपवीत,जनेऊ
याच्ञा —स्त्री॰—-—याच्+नञ्+टाप्—माँगना
याच्ञा —स्त्री॰—-—याच्+नञ्+टाप्—साधूता
याच्ञा —स्त्री॰—-—याच्+नञ्+टाप्—प्रार्थना
याच्ञाजीविका —स्त्री॰—याच्ञा-जीविका—-—भिक्षावृति पर जीने वाला
याच्ञाजीवनम् —नपुं॰—याच्ञा-जीवनम्—-—भिक्षावृति पर जीने वाला
याच्ञाभङ्गः —पुं॰—याच्ञा-भङ्गः—-—प्रार्थना को ठुकरा देना
याजुकः —पुं॰—-—-—यजमान,यज्ञ करने वाला
याज्ञसेनः —पुं॰—-—-—शिखण्डी का पैतृक नाम
याज्ञसेनिः —पुं॰—-—-—शिखण्डी का पैतृक नाम
याज्या —स्त्री॰—-—यज्+णिच्+यत्+टाप्—आहुति देते समय प्रयुक्त किया जाने वाला यज्ञीय नियम
यातिकः —पुं॰—-—यात+ठक्—यात्री
यातुनारी —स्त्री॰—-—-—राक्षसी,पिशाचिनी
यात्यः —पुं॰—-—-—नरक में रहने वाला
यात्राकर —वि॰—-—-—जीवन का सहारा देने वाला
यात्रादानम् —नपुं॰—-—-—यात्रा पर जाते समय दिया गया उपहार
याथात्म्यम् —नपुं॰—-—यथात्मा+ष्यञ्—वास्तविक स्वभाव या प्रयोजन
यानम् —नपुं॰—-—या+ल्युट्—जलयान,पोत
यानम् —नपुं॰—-—-—जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का उपाय
यानम् —नपुं॰—-—-—वायवी रथ,हवाई गाड़ी
यानास्तरणम् —नपुं॰—यानम्-आस्तरणम्—-—गाड़ी की गद्दी,बैठने का आसन
यानस्वामिन् —पुं॰—यानम्-स्वामिन्—-—गाड़ी का मालिक
याम —वि॰—-—यम+अण्—यम से संबन्ध रखने वाला
यामी —स्त्री॰—-—यम+अण्+ ङीप्—यम से संबन्ध रखने वाला
यामः —पुं॰—-—यम+अण्—देवों का समुदाय
यामनादिन् —पुं॰—यामः-नादिन्—-—मुर्गा
यामपालः —पुं॰—यामः-पालः—-—समय पालक
यामभद्रः —पुं॰—यामः-भद्रः—-—मंच
यामिकाचरः —पुं॰—-—-—राक्षस
यामिनीचरः —पुं॰—-—-—राक्षस
यामलम् —नपुं॰—-—-—तन्त्रग्रन्थ
यामिः —पुं॰—-—या+मि—दक्षिणी दिशा
यामिः —पुं॰—-—या+मि—भरणी नामक नक्षत्र
यामी —स्त्री॰—-—या+मि,ङीप्—दक्षिणी दिशा
यामी —स्त्री॰—-—या+मि,ङीप्—भरणी नामक नक्षत्र
यावकः —पुं॰—-—यव+अण्+,स्वार्थे कन्—एक ब्रत जिस में जौ खाकर रहना पड़ता है
यावकम् —नपुं॰—-—यव+अण्+,स्वार्थे कन्—एक ब्रत जिस में जौ खाकर रहना पड़ता
यावदध्ययनम् —अ॰—-—-—पढ़ने के समय,विद्यार्थी अवस्था में
यावत्संपातम् —अ॰—-—-—जहाँ तक संभव हो
यावतिथ —वि॰—-—-—जहाँ तक,जिस बिन्दु तक,जिस अंश तक
यावनीप्रिया —स्त्री॰—-—-—पान की बेल
यावसिकः —पुं॰—-—यवस+ठक्—घसियारा,घास काटने वाला
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—जुड़ा हुआ,मिला हुआ,बाँधा हुआ
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—जुए में जोड़ा हुआ
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—व्यवस्थित
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—समवेत
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—संपन्न,भरा हुआ
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—स्थिर किया हुआ,जमाया हुआ
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—संबद्ध
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—सिद्ध,अनुमित
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—सक्रिय,परिश्रमी
युक्त —वि॰—-—युज्+क्त—संयुक्त,मिला हुआ
युक्तचेष्ट —वि॰—युक्त-चेष्ट—-—उचित कार्य में संलग्न
युक्तपादिन् —वि॰—युक्त-पादिन्—-—उपयुक्त बात कहने वाला
युक्तकम् —नपुं॰—-—युक्त्+कन्—जोड़ा
युगम् —नपुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वं,न गुणः—जूआ
युगम् —नपुं॰—-—-—चन्द्रमा की सापेक्ष स्थिति
युगन्धुर् —स्त्री॰—युगम्-धुर्—-—जूए की कील
युगमात्रम् —नपुं॰—युगम्-मात्रम्—-—जूए की लंबाई के बराबर माप अर्थात् चार हाथ की लम्बाई
युगवरत्रम् —नपुं॰—युगम्-वरत्रम्—-—जूए का फीता या तस्मा
युगन्धरः —पुं॰—-—-—गाड़ी की वह लकड़ी जिसमें जूआ लगा रहता है
युगन्धरम् —नपुं॰—-—-—गाड़ी की वह लकड़ी जिसमें जूआ लगा रहता है
युगन्धरा —स्त्री॰—-—-—एक देवी योगिनी योगदा योग्या योगानन्दा युगन्धरा
युग्म —वि॰—-—युज्+मक्—सम,दो से भाग होने वाली संख्या
युग्मम् —नपुं॰—-—युज्+मक्—जोड़ा
युग्मम् —नपुं॰—-—युज्+मक्—संघ,जंकशन
युग्मम् —नपुं॰—-—युज्+मक्—संगम
युग्मम् —नपुं॰—-—युज्+मक्—युगल
युग्मम् —नपुं॰—-—युज्+मक्—मिथुन राशि
युग्मचारिन् —वि॰—युग्म-चारिन्—-—जोड़े के रुप में घुमने वाला
युग्मविपुला —स्त्री॰—युग्म-विपुला—-—एक छंद का नाम
युग्मशुक्तम् —नपुं॰—युग्म-शुक्तम्—-—आँखों मे दो सफेदी के बिन्दु
युङ्ग् —भ्वा॰पर॰—-—-—छोड़े देना,त्याग देना
युञ्ज् —भ्वा॰पर॰—-—-—छोड़े देना,त्याग देना
युङ्गिन् —पुं॰—-—युङ्ग्+इनि—एक संकर जाति
युछ् —भ्वा॰पर॰—-—-—भूल करना,भटक जाना
युछ् —भ्वा॰पर॰—-—-—बिदा होना,चले जाना
युञ्छ् —भ्वा॰पर॰—-—-—भूल करना,भटक जाना
युञ्छ् —भ्वा॰पर॰—-—-—बिदा होना,चले जाना
युद्धम् —नपुं॰—-—युद्ध+क्त—लड़ाई,संग्राम.झड़प,संघर्ष,समर
युद्धम् —नपुं॰—-—युद्ध+क्त—ग्रहों का विरोध या संघर्ष
युद्धापहारिकम् —नपुं॰—युद्धम्-अपहारिकम्—-—युद्ध में जीतने पर प्राप्त सामग्री,संपत्ति,गान्ध
युद्धर्वम् —नपुं॰—युद्धम्-र्वम्—-—रणभेरी,युद्ध का गीत
युद्धतन्त्रम् —नपुं॰—युद्धम्-तन्त्रम्—-—युद्ध विज्ञान,सैनिक शिक्षा
युद्धध्वानः —पुं॰—युद्धम्-ध्वानः—-—युद्ध का आक्रन्द
युद्धयोजक —वि॰—युद्धम्-योजक—-—युद्ध भड़काने वाला
युद्धव्यतिक्रमः —पुं॰—युद्धम्-व्यतिक्रमः—-—युद्ध कला के नियमों का उल्लघंन
युद्धकम् —नपुं॰—-—युद्ध+कन्—संग्राम,रण,समर,लड़ाई
युधिक —वि॰—-—युध्+ठन्—लंड़ाकू,योद्धा,लड़ने वाला
योदधु —पुं॰—-—युध्+तृच्—योद्धा,सिपाही
युयुक्खुरः —पुं॰—-—-—चीता या भेड़िये की जाति का जन्तु,क्षुद्र व्याघ्र, बिज्जू
युवन् —वि॰—-—यु+कनिन्—जवान
युवन् —वि॰—-—यु+कनिन्—ह्रष्ट-पुष्ट
युवन् —वि॰—-—यु+कनिन्—उत्तम,श्रेष्ठ
युवन् —वि॰—-—यु+कनिन्—साठ वर्ष का हाथी
युवन् —वि॰—-—यु+कनिन्—एक संवत्सर
युवजानिः —पुं॰—युवन्-जानिः—-—वह पुरुष जिसकी पत्नी जवान है
युवपलित —वि॰—युवन्-पलित—-—समय से पूर्व जिसके बाल पक गये है
युवहन् —पुं॰—युवन्-हन्—-—शिशु हत्या
युवकः —पुं॰—-—युवन्+कन्,नलोपः—जवान,तरुण
युवानक् —वि॰—-—युवन्+आनक न लोपः—तरुण,जवान
युवतिः —स्त्री॰—-—युवन्+ति—जवान स्त्री, तरुणी
युवतीष्टा —स्त्री॰—युवतीः-इष्टा—-—पीले रंग की चमेली
युवतीजनः —पुं॰—युवतीः-जनः—-—तरुणी स्त्रियाँ
युष्मदर्थम् —अ॰—-—-—आपके लिए,आपकी खातिर
युष्मदायत —वि॰—-—-—जो कुछ आपके अधीन है,आपके नियन्त्रण में है
युष्मद्वाच्यम् —नपुं॰—-—-—मध्यम पुरुष
युष्मद्विध —वि॰—-—-—आप जैसा,आपकी तरह का
युष्मत्क —वि॰—-—-—आपका,आपसे संबंध रखने वाला
यूकालिक्षम् —नपुं॰—-—-—जूं और उसका अंडा
यूकालिक्षम् —नपुं॰—-—-—ल्हीक
यूथम् —नपुं॰—-—यु+थक्, पृषो॰दीर्घः—रेवड़,लहंडा,समूह,समुदाय
यूथचारिन् —वि॰—यूथम्-चारिन्—-—जो सामूहिक रुप से घूमता है,किसी रेवड़ में या लहंडे में
यूथपरिभ्रष्ट —वि॰—यूथम्-परिभ्रष्ट—-—अपने समूह से भटका हुआ
यूथबन्धः —पुं॰—यूथम्-बन्धः—-—रेवड़,लहंडा
यूथशः —अ॰—-—यूथ+शस्—रेवड़ में,लहंडे में, पंक्ति में
यूपः —पुं॰—-—यु+पक्,पृषो॰दीर्घः—यज्ञीय स्थूणा जिससे यज्ञीय पशु बाँध दिया जाता है
यूपः —पुं॰—-—यु+पक्,पृषो॰दीर्घः—विजयस्तम्भ
यूपकर्मन्यायः —पुं॰—यूपः-कर्मन्यायः—-—वह नियम जिसके अनुसार विक्रुति से संबद्ध किसी विवरण का उत्कर्ष या अपकर्ष केवल उसी विवरण तक लागू रहेगा जिससे कि तदादितदन्त न्याय का उपयोग न हो सके
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—आक्रमण
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—सतत संसक्ति,लगातार मिलाना
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—समता,साम्य
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—दुःख के ‘जों’ से छुटकारा
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—मिलाना,जोड़ना
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—संपर्क
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—उपयोग
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—परिणाम
योगः —पुं॰—-—युज्+घञ्,कुत्वम्—जूआ
योगाभ्यासिन् —वि॰—योगः-अभ्यासिन्—-—जो योग का अभ्यास करता है
योगाख्या —स्त्री॰—योगः-आख्या—-—केवल आकस्मिक संपर्क के कारण व्युत्पन्न नाम
योगापत्तिः —स्त्री॰—योगः-आपत्तिः—-—प्रचलन में परिवर्तन
योगक्षेमः —पुं॰—योगः-क्षेमः—-—समृद्धि,सुरक्षा
योगक्षेमः —पुं॰—योगः-क्षेमः—-—कल्याण,भलाई
योगक्षेमः —पुं॰—योगः-क्षेमः—-—धार्मिक कार्यो के निमित्त कल्पित संपत्ति
योगदण्डः —पुं॰—योगः-दण्डः—-—योग की शक्ति से युक्त छड़ी,जादू की छड़ी
योगनाविकः —पुं॰—योगः-नाविकः—-—नाविक,एक प्रकार की मछली
योगपदम् —नपुं॰—योगः-पदम्—-—स्वसंकेन्द्रण की स्थिति
योगपानम् —नपुं॰—योगः-पानम्—-—मूर्छा लाने वाले पदार्थ से युक्तशराब,पीनक
योगपीठम् —नपुं॰—योगः-पीठम्—-—योग का अभ्यास करते समय बैठने की विशेष मुद्रा
योगपुरुषः —पुं॰—योगः-पुरुषः—-—गुप्तचर
योगभ्रष्ट —वि॰—योगः-भ्रष्ट—-—जो योग के मार्ग से पतित हो गया है
योगयात्रा —स्त्री॰—योगः-यात्रा—-—परमेश्वर से सायुज्य प्राप्त करने का मार्ग
योगयुक्त —वि॰—योगः-युक्त—-—योगमार्ग में संल्गन
योगवामनम् —नपुं॰—योगः-वामनम्—-—गुप्त उपाय,कूटयुक्ति,कपटयोजना
योगवाहक —वि॰—योगः-वाहक—-—विघटनकारी
योगविद्या —स्त्री॰—योगः-विद्या—-—योगशास्त्र
योगसंसिद्धिः —स्त्री॰—योगः-संसिद्धिः—-—योगाभ्यास में पूर्णसाफल्य प्राप्त करना
योगसिद्धिन्यायः —पुं॰—योगः-सिद्धिन्यायः—-—एक न्याय जिसके अनुसार नाना प्रकार के फलों को देने वाली एक विशिष्ट प्रक्रिया एक समय में केवल एक ही फल दे सकती है दूसरा फल प्राप्त करने के लिए उस प्रक्रिया का पृथक रुप् से दूसरा प्रयोग करना पडेगा
यौगिक —वि॰—-—योग+ठक्—अभ्यास के लिए अयुक्त
योग्य —वि॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—उपयुक्त,समुचित
योग्य —वि॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—पात्र
योग्य —वि॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—उपयोगी,कामचलाऊ
योग्यः —पुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—पुष्प,नक्षत्र
योग्यः —पुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—भारवाही पशु
योग्यम् —नपुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—सवारी,गाड़ी
योग्यम् —नपुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—चन्द्न
योग्यम् —नपुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—रोटी
योग्यम् —नपुं॰—-—युज्+ण्यत्,योग+यत् वा—दूध
योग्या —स्त्री॰—-—योग्य+टाप्—एक देवी का नाम
योग्या —स्त्री॰—-—योग्य+टाप्—पृथ्वी
योग्या —स्त्री॰—-—योग्य+टाप्—सूर्य की पत्नी का नाम
योजनम् —नपुं॰—-—युज्+ल्युट्—जोड़ना,मिलाना
योजनम् —नपुं॰—-—युज्+ल्युट्—तत्परता व्यवस्था
योजनम् —नपुं॰—-—युज्+ल्युट्—परमात्मा
योजनम् —नपुं॰—-—युज्+ल्युट्—अंगुली
योजनम् —नपुं॰—-—युज्+ल्युट्—चार कोस की दूरी
योजित —वि॰—-—युज्+ णिच्+क्त—जूए में जोता हुआ
योजित —वि॰—-—युज्+ णिच्+क्त—प्रयुक्त,काम में लिया गया
योजित —वि॰—-—युज्+ णिच्+क्त—मिला,संयुक्त
योजित —वि॰—-—युज्+ णिच्+क्त—संपन्न
योधेयः —पुं॰—-—योधा+ढक्—योद्धा,एक वंश का नाम
योन —वि॰—-—योनि+अण्—वंश या कुल से संबद्ध रखने वाला
योनिः —पुं॰/स्त्री॰—-—यु+नि—ऋग्वेद की वह आधारभूत ऋचा जिस पर ‘साम’ का निर्माण हुआ
योनिः —पुं॰/स्त्री॰—-—यु+नि—तांबा
योनिः —पुं॰/स्त्री॰—-—यु+नि—मूल कारण
योनिः —पुं॰/स्त्री॰—-—यु+नि—समक्ष का स्रोत
योनिः —पुं॰/स्त्री॰—-—यु+नि—इच्छा
योनिगुणः —पुं॰—योनिः-गुणः—-—गर्भाशय या मूलस्थान से व्युत्पन्न गुण
योनिदोषः —पुं॰—योनिः-दोषः—-—योनिसंबन्धी विकार
योनिदोषः —पुं॰—योनिः-दोषः—-—स्त्री की जननेन्द्रिय में कोई दोष
योनिमुक्त —वि॰—योनिः-मुक्त—-—जन्म मरण के चक्र से छुटकारा पाये हुए
योनिमुद्रा —स्त्री॰—योनिः-मुद्रा—-—अंगुलियों द्वारा ऐसी विशिष्ट आकृति बनाना जो स्त्री की योनि से मिलती जुलती हो
योनिसंवरणम् —नपुं॰—योनिः-संवरणम्—-—योनि या भग को सिकोड़ना
योनिसंवृतिः —स्त्री॰—योनिः-संवृतिः—-—योनि या भग को सिकोड़ना
योनिसंकटम् —नपुं॰—योनिः-संकटम्—-—पुनर्जन्म
योषाग्राहः —पुं॰—-—-—विधवा स्त्री से विवाह करने वाला,मृतक
योषिद्ग्राहः —पुं॰—-—-—व्यक्ति की पत्नी को ग्रहण करने वाला
यौगपदम् —नपुं॰—-—-—समकालिकता, समसामयिकता
यौगपद्यम् —नपुं॰—-—युगपद्+य—भिन्न भिन्न स्थानों से एक ही साथ एक वस्तु को देखना
यौन —वि॰—-—योनि+अण्—मूल स्थान,उद्गमस्थान
यौन —वि॰—-—योनि+अण्—गर्भाधानसंस्कार
यौनानुबन्धः —पुं॰—यौन-अनुबन्धः—-—रक्तसम्बन्ध
यौनसम्बन्धः —पुं॰—यौन-सम्बन्धः—-—रक्तसम्बन्ध
यौनिकः —पुं॰—-—योनि+ठक्—मध्यम वायु,सुहावनी हवा
यौवनम् —नपुं॰—-—युवन्+अण्—जवानी,वयस्कता
यौवनारुढ —वि॰—यौवनम्-आरुढ—-—किशोर,वयस्क
यौवनोद्भेदः —पुं॰—यौवनम्-उद्भेदः—-—जवानी के आवेश का मादक उत्साह
यौवनोद्भेदः —पुं॰—यौवनम्-उद्भेदः—-—यौन प्रेम,काम वासना
यौवनोद्भेदः —पुं॰—यौवनम्-उद्भेदः—-—जवानी की कली का खिलना
यौवनोद्भेदः —पुं॰—यौवनम्-उद्भेदः—-—वयस्कता प्राप्त करना
यौवनकण्टकः —पुं॰—यौवनम्-कण्टकः—-—यौवनारम्भ का सकेत करने वाली चेहरे पर छोटी-छोटी फिंसिया
यौवनकण्टकम् —नपुं॰—यौवनम्-कण्टकम्—-—यौवनारम्भ का सकेत करने वाली चेहरे पर छोटी-छोटी फिंसिया
यौवनपिडिका —स्त्री॰—यौवनम्-पिडिका—-—यौवनारम्भ का सकेत करने वाली चेहरे पर छोटी-छोटी फिंसिया
यौवनप्रान्तः —पुं॰—यौवनम्-प्रान्तः—-—जवानी के किनारे पर
यौवनश्रीः —स्त्री॰—यौवनम्-श्रीः—-—जवानी का सौन्दर्य
य्वागुली —स्त्री॰—-—-—चावलों का मांड,यवांगू
रकसा —स्त्री॰—-—-—कोढ़ का एक भेद
रक्त —वि॰—-—रञ्ज्+क्त—रङ्गा हुआ,रंगीन
रक्त —वि॰—-—रञ्ज्+क्त—प्रिय,प्यारा
रक्त —वि॰—-—रञ्ज्+क्त—सुन्दर,सुहावना
रक्त —वि॰—-—रञ्ज्+क्त—अनुस्वार युक्त
रक्तः —पुं॰—-—रञ्ज्+क्त—लाल रंग
रक्तः —पुं॰—-—रञ्ज्+क्त—मंगल ग्रह
रक्तः —पुं॰—-—रञ्ज्+क्त—शिव
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—रुधिर खुन
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—ताँबा
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—जाफरान
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—सिन्दूर
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—आँखों का एक रोग
रक्तम् —नपुं॰—-—रञ्ज्+क्त—लाल चन्दन
रक्ता —स्त्री॰—-—रञ्ज्+क्त+ टाप्—लाख
रक्ता —स्त्री॰—-—रञ्ज्+क्त+ टाप्—गुञ्जा
रक्ता —स्त्री॰—-—रञ्ज्+क्त+ टाप्—आग की सात लपटों में से एक
रक्तकुमुदम् —नपुं॰—रक्त-कुमुदम्—-—लाल कमलिनी
रक्तच्छद —वि॰—रक्त-च्छद—-—लाल पत्तों वाला
रक्तपद्यम् —नपुं॰—रक्त-पद्यम्—-—लाल कमल
रक्तबीजः —पुं॰—रक्त-बीजः—-—एक राक्षस जिसको दुर्गा देवी ने मारा था
रक्तबीजः —पुं॰—रक्त-बीजः—-—अनार का वृक्ष
रक्तविकारः —पुं॰—रक्त-विकारः—-—रुधिर का ह्रास
रक्तष्ठीवी —पुं॰—रक्त-ष्ठीवी—-—रुधिर थूकने वाला
रक्तस्रावः —पुं॰—रक्त-स्रावः—-—शरीर के अन्दर नस फट जाने से रक्त बहना
रक्ष् —भ्वा॰पर॰—-—-—सावधान होना,जागरुक होना
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—बचाना,रखना
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—सावधानी,सुरक्षा
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—चौकीदारी
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—रक्षा ताबीज
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—भस्म
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—रक्षाबन्धन,पहुँची
रक्षा —स्त्री॰—-—रक्ष्+अ+टाप्—लाख
रक्षाप्रतिसरः —पुं॰—रक्षा-प्रतिसरः—-—कलाई पर ताबीज की भाँति बाँधी जाने वाली पहुँची,रक्षाबन्धन
रक्षामहौषधिः —पुं॰—रक्षा-महौषधिः—-—रक्षा करने की श्रेष्ठतम औषधि
रक्षितकम् —नपुं॰—-—रक्ष्+क्त,स्वार्थे कन्—सुरक्षा
रघुः —पुं॰—-—-—सूर्यवंश का एक प्रतापी राजा,दिलीप का पुत्र और अज का पिता
रघूद्वहः —पुं॰—रघुः-उद्वहः—-—रघुवंश में सर्वोत्तम,राम
रघुकारः —पुं॰—रघुः-कारः—-—‘रघुवंश’ नामक काव्य का प्रणेता कालिदास
रङ्गः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—रंग,वर्ण
रङ्गः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—मंच,क्रीडागार,आमोद का सार्वजनिक स्थान
रङ्गः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—श्रोतृवर्ग
रङ्गः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—रणक्षेत्र
रङ्गः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—नाचना,गाना,अभिनय करना
रङ्गक्षारः —पुं॰—रङ्गः-क्षारः—-—सुहागा
रङ्गतालः —पुं॰—रङ्गः-तालः—-—एक प्रकार का सङ्गीत का माप
रङ्गदः —पुं॰—रङ्ग-दः—-—सुहागा
रङ्गनाथः —पुं॰—रङ्ग-नाथः—-—विष्णु के विशेषण
रङ्गराजः —पुं॰—रङ्ग-राजः—-—विष्णु के विशेषण
रङ्गधामन् —पुं॰—रङ्ग-धामन्—-—विष्णु के विशेषण
रङ्गशायिन् —पुं॰—रङ्ग-शायिन्—-—विष्णु के विशेषण
रङ्गप्रवेशः —पुं॰—रङ्ग-प्रवेशः—-—रङ्गमञ्च पर पधारना,वेदी पर उपस्थित होना
रङ्गमङ्गलम् —नपुं॰—रङ्ग-मङ्गलम्—-—वेदी पर ‘आवाहन’ उत्सव मनाना
रचनम् —नपुं॰—-—रच्+ल्युट्—योजना,उपाय
रचनम् —नपुं॰—-—रच्+ल्युट्—बाण में पंख जमाना
रचित —वि॰—-—रच्+क्त—अविष्कृत,निर्मित
रचितपूर्व —वि॰—रचित-पूर्व—-—जो पहले ही बन चूका है
रजयित्री —स्त्री॰—-—रञ्ज्+तृच्+ङीप्—स्त्री चित्रकार
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—धूल,गर्दा
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—पुष्प की धूल,पराग
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—अन्धेरा
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—आवेश,नैतिक अन्धकार
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—तीनों गुणों में दूसरा
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—भाप
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—बादल या वर्षा का पानी
रजस् —नपुं॰—-—रञ्ज्+असुन्,नलोपः—पाप
रजोजुष् —वि॰—रजस्-जुष्—-—रजोगुण से युक्त
रजोमेघः —पुं॰—रजस्-मेघः—-—धूल का बादल
रजविधूम्र —वि॰—रजस्-विधूम्र—-—धूल से भूरे रङ्ग का हुआ
रणः —पुं॰—-—रण्+अप्—युद्ध,लड़ाई
रणः —पुं॰—-—रण्+अप्—युद्ध क्षेत्र
रणम् —नपुं॰—-—रण्+अप्—युद्ध,लड़ाई
रणम् —नपुं॰—-—रण्+अप्—युद्ध क्षेत्र
रणातिथिः —पुं॰—रणः-अतिथिः—-—युद्ध चाहने वाला अतिथि
रणमार्गः —पुं॰—रणः-मार्गः—-—युद्धक्षेत्र में लड़्ने की रीति
रणरणायित —वि॰—रणः-रणायित—-—‘रण-रण’ शब्द करता हुआ
रणरसिक —वि॰—रणः-रसिक—-—लड़ाई का इच्छुक
रणशूरः —पुं॰—रणः-शूरः—-—युद्ध कला में प्रवीण
रणशौण्डः —पुं॰—रणः-शौण्डः—-—युद्ध कला में प्रवीण
रण्डाश्रमिन् —वि॰—-—-—जो पैतालीस वर्ष की आयु के पश्चात् विधुर हो जाता है
रतोत्सवः —पुं॰—-—-—कामकेलि श्रृंगार परक क्रीडा
रतवैपरीत्यम् —नपुं॰—-—-—सम्भोग या मैथुन की प्रक्रिया जिसमें स्त्री पुरुष की भाँति आचरण करती है
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—हर्ष,आह्लाद
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—आसक्ति,अनुराग
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—यौनसुख
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—संभोग,मैथुन
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—कामदेव की पत्नी
रतिः —स्त्री॰—-—रम्+क्तिन्—चन्द्रमा की छठी कला
रतिखेदः —पुं॰—रतिः-खेदः—-—मैथुन करने से उत्पन्न थकावट
रतिपाशः —पुं॰—रतिः-पाशः—-—मैथुन करने की विशिष्ट रीति
रतिबन्धः —पुं॰—रतिः-बन्धः—-—मैथुन करने की विशिष्ट रीति
रतिरहस्यम् —नपुं॰—रतिः-रहस्यम्—-—कोक्कोक पंडित द्वारा प्रणीत ‘कामशास्त्र’
रतिसुन्दरः —पुं॰—रतिः-सुन्दरः—-—एक प्रकार का रतिबंध
रतूः —स्त्री॰—-—-—दिव्यनदी,स्वर्गगा
रतूः —स्त्री॰—-—-—सत्य से युक्त शब्द या भाषण
रत्नम् —नपुं॰—-—रम्+न,तान्तादेशः—रत्न,जवाहर,मूल्यवान पत्थर
रत्नम् —नपुं॰—-—रम्+न,तान्तादेशः—कोई भी अमूल्य पदार्थ
रत्नम् —नपुं॰—-—रम्+न,तान्तादेशः—कोई भी उतम या श्रेष्ठ वस्तु
रत्नम् —नपुं॰—-—रम्+न,तान्तादेशः—जल
रत्नम् —नपुं॰—-—रम्+न,तान्तादेशः—चुम्बक
रत्नाङ्गः —पुं॰—रत्नम्-अङ्गः—-—मूंगा
रत्नाचलः —पुं॰—रत्नम्-अचलः—-—आख्यानों मे वर्णित लंका में स्थित एक पहाड़
रत्नकुम्भः —पुं॰—रत्नम्-कुम्भः—-—रत्नों से भरा हुआ घड़ा
रत्नकूटः —पुं॰—रत्नम्-कूटः—-—एक पहाड़ का नाम
रत्नगर्भः —पुं॰—रत्नम्-गर्भः—-—कुबेर
रत्नगर्भः —पुं॰—रत्नम्-गर्भः—-—समुद्र
रत्नगर्भगणपतिः —पुं॰—रत्नम्-गर्भगणपतिः—-—गणपति की एक विशेष मूर्ति
रत्नच्छाया —स्त्री॰—रत्नम्-च्छाया—-—रत्नों की कान्ति
रत्नधेनुः —स्त्री॰—रत्नम्-धेनुः—-—रत्नों के ढेर में दी जाने वाली प्रतीकात्मक गाय
रत्नपञ्चकम् —नपुं॰—रत्नम्-पञ्चकम्—-—पाँच रत्न-सोना,चाँदी,मोती,हीरा और मूंगा
रत्नवरम् —नपुं॰—रत्नम्-वरम्—-—सोना
रथः —पुं॰—-—रम्+कथन्—गाड़ी,बहली
रथः —पुं॰—-—रम्+कथन्—अंग,भाग
रथः —पुं॰—-—रम्+कथन्—हर्ष,आह्लाद
रथारोहः —पुं॰—रथः-आरोहः—-—जो रथ पर बैठ के युद्ध करता है
रथोडुपः —पुं॰—रथः-उडुपः—-—रथ का ढांचा
रथोडुपम् —नपुं॰—रथः-उडुपम्—-—रथ का ढांचा
रथघोषः —पुं॰—रथः-घोषः—-—रथ के चलने का‘घरघर’ शब्द
रथवारकः —पुं॰—रथः-वारकः—-—शुद्र द्वारा सैरन्ध्री में उत्पन्न पुत्र,
रथविज्ञानम् —नपुं॰—रथः-विज्ञानम्—-—रथ हाँकने की कला
रथविद्या —स्त्री॰—रथः-विद्या—-—रथ हाँकने की कला
रथन्तरम् —नपुं॰—-—-—एक साम का नाम
रथिन् —वि॰—-—रथ+इनि—रथ में सवार
रथिन् —वि॰—-—रथ+इनि—रथ का स्वामी
रथिन् —पुं॰—-—रथ+इनि—क्षत्रिय जाति का पुरुष
रथिन् —पुं॰—-—रथ+इनि—रथ पर बैठ कर युद्ध करने वाला योद्धा
रथ्या —स्त्री॰—-—रथ+यत्+टाप्—सड़क
रथ्या —स्त्री॰—-—रथ+यत्+टाप्—सड़्कों का संगम स्थान
रथ्या —स्त्री॰—-—रथ+यत्+टाप्—बहुत से रथ या गाड़ियाँ
रथ्यामुखम् —नपुं॰—रथ्या-मुखम्—-—किसी सड़क पर प्रविष्ट होने का द्वार
रथ्यामृगः —पुं॰—रथ्या-मृगः—-—गली का कुता
रदनः —पुं॰—-—रद्+ल्युट्—दाँत
रदनम् —नपुं॰—-—रद्+ल्युट्—फाड़ना,कुतरना,खुरचना
रन्ध्रम् —नपुं॰—-— रध्+रक्,नुमागमः—छिद्र
रन्ध्रम् —नपुं॰—-— रध्+रक्,नुमागमः—जन्मकुंडली में लग्न से आठवाँ घर
रन्ध्रगुप्तिः —स्त्री॰—रन्ध्रम्-गुप्तिः—-—दोषों या त्रुटियों का छिपाना
रभसः —पुं॰—-—रभ्+असच्—विष,जहर
रमणकः —पुं॰—-—रम्+ल्युट्+कन्—एक द्वीप का नाम
रम्या —स्त्री॰—-—रम्+यत्+टाप्—श्रुति का एक भेद
रवणः —पुं॰—-—रु+युच्—कोयला
रवणः —पुं॰—-—रु+युच्—मधुमक्खी
रवणः —पुं॰—-—रु+युच्—ध्वनि
रवणः —पुं॰—-—रु+युच्—एक बड़ा खीरा
रविः —पुं॰—-—रु+अच्(इ)—सूर्य
रविः —पुं॰—-—रु+अच्(इ)—पर्वत
रविः —पुं॰—-—रु+अच्(इ)—मदार का पौधा
रविः —पुं॰—-—रु+अच्(इ)—बारह की संख्या
रवीष्टः —पुं॰—रविः-इष्टः—-—नारंगी,संतरा
रविध्वजः —पुं॰—रविः-ध्वजः—-—दिन
रविबिम्बः —पुं॰—रविः-बिम्बः—-—सूर्यमंडल
रविसारथिः —पुं॰—रविः-सारथिः—-—अरुण
रविसारथिः —पुं॰—रविः-सारथिः—-—उषःकाल
रशना —स्त्री॰—-—अश्+युच्,रशादेशः—रस्सी
रशना —स्त्री॰—-—अश्+युच्,रशादेशः—लगाम
रशना —स्त्री॰—-—अश्+युच्,रशादेशः—तगड़ी
रशनापदम् —नपुं॰—रशना-पदम्—-—कूल्हा
रशनाग्राहः —पुं॰—रशना-ग्राहः—-—रथवान
रशनामालिन् —पुं॰—रशना-मालिन्—-—सूर्य
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—तरल पदार्थ
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—सुरा,पेय
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—घूंट,मात्रा
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—स्वाद,रस
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—प्रेम,अनुराग
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—हर्ष,आमोद
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—सत,अर्क
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—गन्ने का रस
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—पिघला हुआ मक्खन
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—हरा प्याज
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—छः की संख्या का प्रतीक
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—रसग्रहण करने का अंग जिह्वा
रसः —पुं॰—-—रस्+अच्—पिघली हुई धातु
रसेक्षुः —पुं॰—रसः-इक्षुः—-—गन्ना
रसोत्पत्तिः —स्त्री॰—रसः-उत्पत्तिः—-—रस की निष्पति
रसोत्पत्तिः —स्त्री॰—रसः-उत्पत्तिः—-—संजीवन रस की उपज
रसघन —वि॰—रसः-घन—-—रस से भरा हुआ
रसज्ञानम् —नपुं॰—रसः-ज्ञानम्—-—भैषज्यविज्ञान
रसतन्मात्रम् —नपुं॰—रसः-तन्मात्रम्—-—रस या स्वाद का सूक्ष्म तत्व
रसनिवृत्तिः —स्त्री॰—रसः-निवृत्तिः—-—स्वाद का न होना,रसहीनता
रसभेदः —पुं॰—रसः-भेदः—-—पारे का निर्माण
रसना —स्त्री॰—-—रस्+युच्—जिह्वा
रसनाग्रम् —नपुं॰—रसना-अग्रम्—-—जिह्वा का अग्रभाग
रसनामूलम् —नपुं॰—रसना-मूलम्—-—जिह्वा की जड़
रसवता —स्त्री॰—-—रस+मतुप्+तल्+टाप्—कला की परख-सा रसवत्ता विहता
रसातलम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—सात लोकों में से एक,पृथ्वी के नीचे का लोक,पाताल
रसातलम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—लग्न से चौथा घर
रस्या —स्त्री॰—-—रस्+यत्+टाप्—एक देवी का नाम
रहस्यत्रयम् —नपुं॰—-—-—विशिष्ट द्वैत, शाखा के तीन मुख्य सिद्धान्त
रहितात्मन् —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसके आत्मा न हो
राक्षसः —पुं॰—-—रक्षस्+अण्—भूत,प्रेत,पिशाच
राक्षसः —पुं॰—-—रक्षस्+अण्—हिन्दुओं में आठ प्रकार के विवाहों में से एक
राक्षसः —पुं॰—-—रक्षस्+अण्—एक संवत्सर का नाम
रागः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—प्रज्वलन
रागः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—मिर्चमसाला
रागः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—प्रेम,आवेश,यौनभावना
रागः —पुं॰—-—रञ्ज्+घञ्—लालिमा
रागवर्धनः —पुं॰—रागः-वर्धनः—-—एक प्रकार का माप
राघवायणम् —नपुं॰—-—-—रामायण
राघवीयम् —नपुं॰—-—-—राघव की एक रचना,कृति
राजन् —पुं॰—-—राज्+कनिन्—सोम का पौधा
राजोपसेवा —स्त्री॰—राजन्-उपसेवा—-—राजा की सेवा करना
राजगुह्यम् —नपुं॰—राजन्-गुह्यम्—-—ऊँचे दर्जे का रहस्य
राजदेयम् —नपुं॰—राजन्-देयम्—-—राजकीय दावा
राजपट्टिका —स्त्री॰—राजन्-पट्टिका—-—चातकपक्षी
राजपिण्डः —पुं॰—राजन्-पिण्डः—-—राजन से आजीविका
राजप्रसादः —पुं॰—राजन्-प्रसादः—-—राजा का अनुग्रह
राजमहिषी —स्त्री॰—राजन्-महिषी—-—पटरानी
राजमार्तण्डः —पुं॰—राजन्-मार्तण्डः—-—एक प्रकार की माप
राजमार्तण्डः —पुं॰—राजन्-मार्तण्डः—-—इस नाम का एक ग्रन्थ
राजराज्यम् —नपुं॰—राजन्-राज्यम्—-—कुबेर का राज्य
राजलिङ्गम् —नपुं॰—राजन्-लिङ्गम्—-—एक राज्यचिन्ह
राजवर्चस् —नपुं॰—राजन्-वर्चस्—-—शाही मर्यादा
राजवल्लभः —पुं॰—राजन्-वल्लभः—-—राजा का प्रिय व्यक्ति
राजवृतम् —नपुं॰—राजन्-वृतम्—-—राजा का आचरण
राजस्थानीयः —पुं॰—राजन्-स्थानीयः—-—राजा का प्रतिनिधि,वाइसराय
राजन्य —वि॰—-—राजन्+यत्—राजकीय,शाही,न्यः क्षत्रिय जाति का पुरुष
राजन्यबन्धुः —पुं॰—राजन्य-बन्धुः—-—क्षत्रिय
राज्यम् —नपुं॰—-—राजन्+यत्,नलोपः—राजकीय अधिकार,प्रभुसत्ता
राज्यम् —नपुं॰—-—राजन्+यत्,नलोपः—राजधानी,देश,साम्राज्य
राज्यम् —नपुं॰—-—राजन्+यत्,नलोपः—प्रशासन
राज्यम् —नपुं॰—-—राजन्+यत्,नलोपः—सरकार
राज्याधिदेवता —स्त्री॰—राज्यम्-अधिदेवता—-—राज्य की प्रधानता करने वाली देवता,अभिभावकदेव
राज्यपरिक्रिया —स्त्री॰—राज्यम्-परिक्रिया—-—प्रशासन
राज्यलक्ष्मीः —स्त्री॰—राज्यम्-लक्ष्मीः—-—प्रभुसत्ता की कीर्ति
राज्यश्रीः —स्त्री॰—राज्यम्-श्रीः—-—प्रभुसत्ता की कीर्ति
राज्यस्थितिः —स्त्री॰—राज्यम्-स्थितिः—-—सरकार
राजिः —स्त्री॰—-—राज्+इन्—पंक्ति
राजिः —स्त्री॰—-—राज्+इन्—काली सरसों
राजिः —स्त्री॰—-—राज्+इन्—धारीदार साँप
राजिः —स्त्री॰—-—राज्+इन्—खेत
राजिः —स्त्री॰—-—राज्+इन्—ताल जिह्वा,काकल
राजी —स्त्री॰—-—राज्+इन्,ङीप् —पंक्ति
राजी —स्त्री॰—-—राज्+इन्,ङीप् —काली सरसों
राजी —स्त्री॰—-—राज्+इन्,ङीप् —धारीदार साँप
राजी —स्त्री॰—-—राज्+इन्,ङीप् —खेत
राजी —स्त्री॰—-—राज्+इन्,ङीप् —ताल जिह्वा,काकल
राजिफला —स्त्री॰—राजिः-फला—-—एक प्रकार की ककड़ी
राजीफला —स्त्री॰—राजी-फला—-—एक प्रकार की ककड़ी
राणायनीयः —पुं॰—-—-—एक आचार्य का नाम
राणायनीयः —पुं॰—-—-—वैदिक शाखा का प्रवर्तक
रात —वि॰—-—-—प्रदत्त,अनुदत्त
रात्रिः —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्—रात
रात्रिः —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्—रात का अंधकार
रात्रिः —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्—हल्दी
रात्रिः —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्—ब्रह्मा के चार रुपों में से एक
रात्रिः —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्—दिन रात
रात्री —स्त्री॰—-—रा+त्रिप्,ङीप् —रात
रात्री —स्त्री॰—-—-—रात का अंधकार
रात्री —स्त्री॰—-—-—ब्रह्मा के चार रुपों में से एक
रात्री —स्त्री॰—-—-—दिन रात
रात्र्यागमः —पुं॰—रात्रिः-आगमः—-—रात का आना
रात्रिद्विषः —पुं॰—रात्रिः-द्विषः—-—सूर्य
रात्रिनाथः —पुं॰—रात्रिः-नाथः—-—चन्द्रमा
रात्रिभुजङ्गः —पुं॰—रात्रिः-भुजङ्गः—-—चन्द्रमा
रात्रिमणिः —पुं॰—रात्रिः-मणिः—-—चन्द्रमा
रात्रिसत्रन्यायः —पुं॰—रात्रिः-सत्रन्यायः—-—मीमांसा का एक सिद्धान्त जिसके अनुसार अर्थवाद में वर्णित फल ही ग्रहण किया जाता है जब कि विधि में कर्मफल का वर्णन न किया गया हो
रात्र्यागमः —पुं॰—रात्री-आगमः—-—रात का आना
रात्रीद्विषः —पुं॰—रात्री-द्विषः—-—सूर्य
रात्रीनाथः —पुं॰—रात्री-नाथः—-—चन्द्रमा
रात्रीभुजङ्गः —पुं॰—रात्री-भुजङ्गः—-—चन्द्रमा
रात्रीमणिः —पुं॰—रात्री-मणिः—-—चन्द्रमा
रात्रीसत्रन्यायः —पुं॰—रात्री-सत्रन्यायः—-—मीमांसा का एक सिद्धान्त जिसके अनुसार अर्थवाद में वर्णित फल ही ग्रहण किया जाता है जब कि विधि में कर्मफल का वर्णन न किया गया हो
राधा —स्त्री॰—-—राध्+अच्+टाप्—वैशाख महीने की पूर्णिमा
राधा —स्त्री॰—-—राध्+अच्+टाप्—भक्तिमता
राम —वि॰—-—रम्+घञ् ण वा—आह्लादमय,सुखद,सुहावना
राम —वि॰—-—रम्+घञ् ण वा—सुन्दर,लावण्यमय
राम —वि॰—-—रम्+घञ् ण वा—श्वेत
रामः —पुं॰—-—-—तीन ख्याति प्राप्त व्यक्ति(क)जमदग्नि का पुत्र परशुराम(ख) वसुदेव का पुत्र बलराम जिसका भाई कृष्ण था (ग)दशरथ और कौशल्या का पुत्र रामचन्द्र,सीताराम
रामकाण्डः —पुं॰—राम-काण्डः—-—गन्ने का एक भेद
रामतापन —पुं॰—राम-तापन—-—एक उपनिषद का नाम
रामतापनी —स्त्री॰—राम-तापनी —-—एक उपनिषद का नाम
रामतापनीय —पुं॰—राम-तापनीय—-—एक उपनिषद का नाम
रामोपनिषद् —स्त्री॰—राम-उपनिषद्—-—एक उपनिषद का नाम
रामलीला —स्त्री॰—राम-लीला—-—उतरभारत में नवरात्र के दिनों में‘रामायण’का नाटक के रुप में प्रस्तुतीकरण
रमणीयता —स्त्री॰—-—रम्+अनीय+तल्—सौन्दर्य,चारुता
रामण्यकम् —नपुं॰—-—-—सौन्दर्य,मनोज्ञता
रामा —स्त्री॰—-—-—एक छन्द का नाम
रावितम् —नपुं॰—-—रु+णिच्+क्त—ध्वनि,स्वन
राशिः —पुं॰—-—अश्+इञ् धातोरुडागमश्च—ढेर,संग्रह.समुच्चय
राशिः —पुं॰—-—अश्+इञ् धातोरुडागमश्च—संख्या
राशिः —पुं॰—-—अश्+इञ् धातोरुडागमश्च—ज्योतिष का घर जिसमें २.१/४ नक्षत्र समिमलित होते है
राशिगत —वि॰—राशिः-गत—-—बीजगणित विषयक
राशिपः —पुं॰—राशिः-पः—-—ज्योतिष के एक घर का स्वामी
राष्ट्रकः —पुं॰—-—राष्ट्र+कन्—किसी देश का निवासी
राष्ट्रकः —पुं॰—-—राष्ट्र+कन्—राज्य का शासक
राष्ट्रकः —पुं॰—-—राष्ट्र+कन्—राज्यपाल
राष्ट्रिकः —पुं॰—-—राष्ट्र+ठक्—किसी देश का निवासी
राष्ट्रिकः —पुं॰—-—राष्ट्र+ठक्—राज्य का शासक
राष्ट्रिकः —पुं॰—-—राष्ट्र+ठक्—राज्यपाल
रासः —पुं॰—-—रास्+घञ्—कोलाहल
रासः —पुं॰—-—रास्+घञ्—वक्ता
रासः —पुं॰—-—रास्+घञ्—एक प्रकार का नृत्य
रासः —पुं॰—-—रास्+घञ्—शृंखला
रासः —पुं॰—-—रास्+घञ्—खेल,नाटक
रासकेलिः —स्त्री॰—रासः-केलिः—-—वर्तुलाकार नाच जिसमें कृष्ण और गोपिकाएँ सम्मिलित होती है
रासायन —वि॰—-—रसायन+अण्—रसायनसंबंधी
रासायनिक —वि॰—-—रसायन+ठक्—रसायन संबंधी
रिक्तीकृ —तना॰पर॰—-—-—रिक्त करना,खाली करना
रिक्तीकृ —तना॰पर॰—-—-—ले जाना,चुरा लेना
रिक्तीकृ —तना॰पर॰—-—-—चले जाना
रिक्थजातम् —नपुं॰—-—-—समस्त संपत्ति संपूर्ण आस्ति
रिष्टः —पुं॰—-—रिष्+क्त—तलवार,कृपाण
रीतिः —स्त्री॰—-—री+क्तिन्—नैसर्गिक संपति,स्वाभाविक गुण
रुक्म —वि॰—-—रुच्+मन्,नि॰ कुत्वम्—उज्जवल,चमकदार
रुक्मः —पुं॰—-—-—स्वर्णाभूषण
रुक्माभ —वि॰—रुक्म-आभ—-—सोने की भाँति चमकीला
रुक्मपात्री —स्त्री॰—रुक्म-पात्री—-—सुनहरी तश्तरी
रुक्मपुङ्ख —वि॰—रुक्म-पुङ्ख—-—स्वर्णशर से युक्त सुनहरी बाण वाला
रुक्मपुङ्ख —वि॰—रुक्म-पुङ्ख—-—सुनहरी मूठ वाला
रुचिप्रद —वि॰—-—-—स्वादिष्ट, भूख लगाने वाला
रुचिर —वि॰—-—रुच्+किरच्—सुहावना,सुखद
रुचिराङ्गदः —पुं॰—रुचिर-अङ्गदः—-—विष्णु का नाम
रुचिष्य —वि॰—-—रुच्+किष्यन्—भूखवर्धक,भूख लगाने वाला
रुण्डः —पुं॰—-—रुण्ड्+अच्—घोड़ी और खच्चर के मेल से उत्पन्न
रुद्र —वि॰—-—रुद्+रक्—भयानक,भंयकर
रुद्र —वि॰—-—रुद्+रक्—विशाल
रुद्रः —पुं॰—-—रुद्+रक्—ग्यारह देवगण,जो शिव का ही अपकृष्ट रुप है,शिव उनमें मुख्य है
रुद्रः —पुं॰—-—रुद्+रक्—अग्नि
रुद्रः —पुं॰—-—रुद्+रक्—ग्यारह की संख्या
रुद्रः —पुं॰—-—रुद्+रक्—यजुर्वेद का सूक्त जिसमें रुद्र को संबोधित किया गया है
रुद्रप्रयागः —पुं॰—रुद्र-प्रयागः—रुद्+रक्—एक तीर्थकेन्द्र का नाम
रुद्रयामलम् —नपुं॰—रुद्र-यामलम्—-—एक तन्त्र ग्रन्थ का नाम
रुद्रवीणा —स्त्री॰—रुद्र-वीणा—-—एक प्रकार की वीणा
रुद्रटः —पुं॰—-—-—अलंकार शास्त्र के एक लेखक का नाम
रुद्धा —स्त्री॰—-—रुध्+क्त+टाप्—घेरा डालना
रुद्धमूत्र —वि॰,ब॰स॰—-—-—मूत्रावरोध से रुग्ण व्यक्ति
रुधिरः —पुं॰—-—रुध्+ किरच्—लाल रंग
रुधिरः —पुं॰—-—रुध्+ किरच्—मंगल ग्रह
रुधिरः —पुं॰—-—रुध्+ किरच्—खुन,रक्त
रुधिरः —पुं॰—-—रुध्+ किरच्—जाफरान
रुधिरम् —नपुं॰—-—रुध्+ किरच्—लाल रंग
रुधिरम् —नपुं॰—-—रुध्+ किरच्—मंगल ग्रह
रुधिरम् —नपुं॰—-—रुध्+ किरच्—खुन,रक्त
रुधिरम् —नपुं॰—-—रुध्+ किरच्—जाफरान
रुधिरप्लावित —वि॰—रुधिरः-प्लावित—-—खुन में भींगा हुआ
रुधिरप्लावित —वि॰—रुधिरम्-प्लावित—-—खुन में भींगा हुआ
रुरुत्सा —स्त्री॰—-—रुध्+सन्+टाप्,धातोद्वित्वम्—अवरोध करने की इच्छा
रुवथः —पुं॰—-—रु+अथः,कित्—कुत्ता
रुढ —वि॰—-—रुह्+क्त्—चढ़ा हुआ,सवार,लदा हुआ
रुढ —वि॰—-—रुह्+क्त्—दूर-दूर तक विख्यात
रुढपंश —वि॰—रुढ-पंश—-—उच्च कुल का
रुढव्रण —वि॰—रुढ-व्रण—-—जिसके घाव भर गये हों
रुढिः —स्त्री॰—-—रुह्+क्तिन्—वृद्धि,विकास
रुढिः —स्त्री॰—-—रुह्+क्तिन्—जन्म
रुढिः —स्त्री॰—-—रुह्+क्तिन्—निर्णय
रुढिः —स्त्री॰—-—रुह्+क्तिन्—प्रथा,रिवाज
रुढिः —स्त्री॰—-—रुह्+क्तिन्—प्रचलित अर्थ
रुक्ष —वि॰—-—रुक्ष्+अच्—कठोर,रुखा
रुक्ष —वि॰—-—रुक्ष्+अच्—तीखा,चटपटा
रुक्ष —वि॰—-—रुक्ष्+अच्—चिकनाई से रहित
रुक्षः —वि॰—-—रुक्ष्+अच्—वृक्ष
रुक्षः —वि॰—-—रुक्ष्+अच्—कठोरता,रुखापन
रुक्षम् —नपुं॰—-—रुक्ष्+अच्—दही की मोटी तह
रुक्षम् —नपुं॰—-—रुक्ष्+अच्—काली मिर्च
रुक्षभावः —पुं॰—रुक्ष-भावः—-—रुखा भाव,अमित्रत्व का रुझान
रुक्षबालुकम् —नपुं॰—रुक्ष-बालुकम्—-—मधु मक्खियों से प्राप्त शहद
रुक्षित —वि॰—-—रुक्ष्+क्त—कोपाविष्ट,कुद्ध
रुप् —चुरा॰उभ॰—-—-—वर्णन करना
रुपम् —नपुं॰—-—रुप्+क,अच् वा—सूरत,आकृति
रुपम् —नपुं॰—-—रुप्+क,अच् वा—रंग का भेद
रुपम् —नपुं॰—-—रुप्+क,अच् वा—कोई भी दृश्य पदार्थ
रुपम् —नपुं॰—-—रुप्+क,अच् वा—नैसर्गिक स्थिति,प्राकृतिक दशा
रुपम् —नपुं॰—-—रुप्+क,अच् वा—सिक्का
रुपोपजीवनम् —नपुं॰—रुपम्-उपजीवनम्—-—सुन्दर या मोहक रुप के द्वारा जीविका लाभ करना
रुपध्येयम् —नपुं॰—रुपम्-ध्येयम्—-—सौन्दर्य,खूब सूरती
रुपपरिकल्पना —स्त्री॰—रुपम्-परिकल्पना—-—रुप मरना,रुप धारण करना
रुपभागापवादः —पुं॰—रुपम्-भागापवादः—-—किसी इकाई को भिन्नों में परिवर्तित करना
रुपविभागः —पुं॰—रुपम्-विभागः—-—किसी पूर्णांक को भिन्न राशियों में विभक्त करना
रुपनृत्यम् —नपुं॰—रुपम्-नृत्यम्—-—एक प्रकार का नाच
रुप्यम् —नपुं॰—-—रुप्+यत्—चाँदी
रुप्यम् —नपुं॰—-—रुप्+यत्—मुद्राङ्कित सिक्का
रुप्यम् —नपुं॰—-—रुप्+यत्—नेत्रांजन
रुप्यधौतम् —नपुं॰—रुप्यम्-धौतम्—-—चाँदी
रेखामात्रम् —अ॰—-—-—पंक्ति से भी,रेखा द्वारा भी
रेणुः —पुं॰स्त्री॰—-—रीयतेःणुः—धूल,धूल कण,रेत
रेणुः —पुं॰स्त्री॰—-—रीयतेःणुः—फूलों की रज
रेणुः —पुं॰स्त्री॰—-—रीयतेःणुः—एक विशेष माप-तोल
रेणूत्पातः —पुं॰—रेणुः-उत्पातः—-—धूल का उठना
रेणुगर्भः —पुं॰—रेणुः-गर्भः—-—एक घंटे तक चलने वाली बालू की घड़ी
रेणुकातनयः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—परशुराम का विशेषण
रेणुकासुतः —पुं॰—-—-—परशुराम का विशेषण
रेतस् —नपुं॰—-—री+असुन्,तुट् च—वीर्य,बीज
रेतस् —नपुं॰—-—री+असुन्,तुट् च—धारा,प्रवाह
रेतस् —नपुं॰—-—री+असुन्,तुट् च—प्रजा,सन्तान
रेतस् —नपुं॰—-—री+असुन्,तुट् च—पारा
रेतस् —नपुं॰—-—री+असुन्,तुट् च—पाप
रेतस्सेकः —पुं॰—रेतस्-सेकः—-—मैथुन,संभोग
रेतस्खलनम् —नपुं॰—रेतस्-स्खलनम्—-—वीर्य का गिर जाना
रेफविपुला —स्त्री॰—रेफः-विपुला—-—एक छन्द का नाम
रेफसन्धिः —पुं॰—रेफः-सन्धिः—-—‘र्’ का श्रुतिमधुर मेल
रैवतः —पुं॰—-—रेवती+अण्—बादल
रैवतः —पुं॰—-—रेवती+अण्—पाँचवें मनु का नाम
रोक्यम् —नपुं॰—-—रोक+यत्—रुधिर,खुन
रोगः —पुं॰—-—रुज्+घञ्—बीमारी,कष्ट
रोगः —पुं॰—-—रुज्+घञ्—रुग्ण स्थान
रोगोल्वणता —स्त्री॰—रोगः-उल्वणता—-—रोगों का फूटना
रोगज्ञः —पुं॰—रोगः-ज्ञः—-—डाक्टर,रोगियों का चिकित्सक
रोगज्ञानम् —नपुं॰—रोगः-ज्ञानम्—-—रोग का निदान
रोगप्रेष्ठः —पुं॰—रोगः-प्रेष्ठः—-—बुखार
रोगशमः —पुं॰—रोगः-शमः—-—रोग का दूर हो जाना
रोचकः —पुं॰—-—रुच्+ण्वुल्—शीशे का काम करने वाला या कृत्रिम आभूषणों का निर्माता
रोधस् —नपुं॰—-—रुध्+असुन्—तट,किनारा
रोधस् —नपुं॰—-—रुध्+असुन्—पहाड़ का ढलान
रोपः —पुं॰—-—रुह्+णिच्,हस्य पः,कर्मणि अच्—रोपण करना,पौधा लगाना
रोपः —पुं॰—-—-—स्थापित करना
रोपशिखी —पुं॰—रोपः-शिखी—-—बाणों से उत्पन्न अग्नि
रोपित —वि॰—-—रुह्+णिच्+क्त्—पौध लगाई हुई
रोपित —वि॰—-—रुह्+णिच्+क्त्—जड़ा हुआ रत्न
रोपित —वि॰—-—रुह्+णिच्+क्त्—निशाना बांधा हुआ
रोमन् —नपुं॰—-—रु+मनिन्—शरीर के बाल
रोमन् —नपुं॰—-—रु+मनिन्—पक्षियों के पंख
रोमन् —नपुं॰—-—रु+मनिन्—मछलियों की त्वचा
रोमसूची —स्त्री॰—रोमन्-सूची—-—बालों मे लगाने की सूई
रोमश —वि॰—-—रोम+श—बालों वाला,ऊनी
रोमश —वि॰—-—रोम+श—स्वरों के अशुद्ध उच्चारण से युक्त
रोमशी —स्त्री॰—-—रोमश+ङीप्—गिलहरी
रोषणता —स्त्री॰—-—रोषण+तल्—क्रोध,गुस्सा
रोहः —पुं॰—-—रुह्+अच्—ऊँचाई
रोहः —पुं॰—-—रुह्+अच्—वृद्धि,विकास
रोहः —पुं॰—-—रुह्+अच्—कली,अंकुर
रोहः —पुं॰—-—रुह्+अच्—जननात्मक कारण
रोहिणी —स्त्री॰—-—रोह+इनि+ङीप्—लाल रंग की गाय
रोहिणी —स्त्री॰—-—रोह+इनि+ङीप्—पाँच तारों का पुंज-रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी —स्त्री॰—-—रोह+इनि+ङीप्—वसुदेव की पत्नी और बलराम की माँ
रोहिणी —स्त्री॰—-—रोह+इनि+ङीप्—बिजली
रोहिणी —स्त्री॰—-—रोह+इनि+ङीप्—एक प्रकार का इस्पात
रोहिणीतनयः —पुं॰—रोहिणी-तनयः—-—बलराम
रोहिणीयोगः —पुं॰—रोहिणी-योगः—-—रोहिणी का चन्द्रमा के साथ संयोग
रौद्र —वि॰—-—रुद्र+अण्—रुद्र की भाँति प्रचण्ड
रौद्र —वि॰—-—रुद्र+अण्—भीषण भयंकर
रौद्र —वि॰—-—रुद्र+अण्—रुद्र विषयक,रुद्र संबंधी
लक्षम् —नपुं॰—-—लक्ष्+अच्—एक लाख
लक्षम् —नपुं॰—-—लक्ष्+अच्—चिन्ह निशान
लक्षम् —नपुं॰—-—लक्ष्+अच्—दिखावा,बहाना,धोखा
लक्षार्चनम् —नपुं॰—लक्षम्-अर्चनम्—-—एक लाख फूलों के उपहार से पूजा करना
लक्षदीपः —पुं॰—लक्षम्-दीपः—-—मन्दिर में एक लाख दीपक एक साथ जलाना
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—चिह्न,संकेतक,टोकन
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—परिभाषा
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—शरीर पर सौभाग्यशाली चिह्न
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—नाम
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—उद्देश्य
लक्षणम् —नपुं॰—-—लक्ष्+ल्युट्—मैथुनेन्द्रिय
लक्षणकर्मन् —नपुं॰—लक्षणम्-कर्मन्—-—परिभाषा
लक्षणा —स्त्री॰—-—-—दुर्योधन की पुत्री का नाम
लक्षणा —स्त्री॰—-—-—तीन शब्दशक्तियों में से एक
लक्षितलक्षणा —स्त्री॰—-—-—संकेत द्योतक इंगित,गौण संकेत,एक ऐसा संकेत जिससे कोई अन्य संकेत मिले
लक्ष्मन् —नपुं॰—-—लक्ष+मनिन्—चिह्न
लक्ष्मन् —नपुं॰—-—लक्ष+मनिन्—धब्बा
लक्ष्मन् —नपुं॰—-—लक्ष+मनिन्—परिभाषा
लक्ष्मन् —नपुं॰—-—लक्ष+मनिन्—मुख्य,प्रधान
लक्ष्मन् —नपुं॰—-—लक्ष+मनिन्—मोती
लक्ष्मी —स्त्री॰—-—लक्ष्+ई,मुट् च्—दौलत,समृद्धि,धन
लक्ष्मी —स्त्री॰—-—लक्ष्+ई,मुट् च्—सौभाग्य,खुशकिस्मती
लक्ष्मी —स्त्री॰—-—लक्ष्+ई,मुट् च्—सौन्दर्य,आभा,कान्ति
लक्ष्मी —स्त्री॰—-—लक्ष्+ई,मुट् च्—धन की देवता
लक्ष्मीकटाक्षः —पुं॰—लक्ष्मी-कटाक्षः—-—धन की देवता का आशीर्वाद,अनुग्रह
लक्ष्मीनारायणः —पुं॰—लक्ष्मी-नारायणः—-—विष्णु का विशेषण
लक्ष्मीविवर्तः —पुं॰—लक्ष्मी-विवर्तः—-—भाग्य का फेर
लक्ष्मीसनाथ —वि॰—लक्ष्मी-सनाथ—-—सौन्दर्य से युक्त,सौभाग्यशाली
लक्ष्यम् —नपुं॰—-—लक्ष्+यत्—ध्येय,उद्देश्य
लक्ष्यम् —नपुं॰—-—लक्ष्+यत्—चिन्ह,टोकन
लक्ष्यम् —नपुं॰—-—लक्ष्+यत्—वह वस्तु जिसकी परिभाषा की गई है
लक्ष्यम् —नपुं॰—-—लक्ष्+यत्—गौण अर्थ,अप्रत्यक्ष अर्थ
लक्ष्याभिहरणम् —नपुं॰—लक्ष्यम्-अभिहरणम्—लक्ष्+यत्—पारितोषिक,ले उड़ना
लक्ष्यग्रहः —पुं॰—लक्ष्यम्-ग्रहः—-—निशाना बाँधना
लक्ष्यसिद्धिः —स्त्री॰—लक्ष्यम्-सिद्धिः—-—अपने उद्देश्य में सफलता
लग्न —वि॰—-—लग्+क्त—शुभ,मांगलिक
लग्नम् —वि॰—-—लग्+क्त—वह बिन्दु जहाँ ग्रहपथ मिलते हैं
लग्नम् —वि॰—-—लग्+क्त—क्रान्तिवृत का बिन्दु जो किसी दत्त काल में क्षितिज या याम्योंतर रेखा पर होता है
लग्नपत्रिका —स्त्री॰—लग्न-पत्रिका—-—जन्म समय या विवाह संस्कार के मुहूर्तादिक विवरण से युक्त एक मांगलिक पत्रिका,जन्मपत्रिका,या विवाह पत्रिका
लगणः —पुं॰—-—-—पलकों का एक विशेष रोग
लगुडहस्तः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—दण्डधारी
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—हल्का
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—छोटा
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—थोड़ा,संक्षिप्त
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—मामूली
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—ओछा,अधम
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—दुर्बल
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—चुस्त,फुर्तीला
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—द्रुत
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—आसान
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—मृदु
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—सुखद
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—प्रिय,सुन्दर
लघु —वि॰—-—लङ्घ्+कु,नलोपः—सब प्रकार के भारों से मुक्त
लघुकोष्ठ —वि॰—लघु-कोष्ठ—-—हल्के पेट वाला
लघुकौमुदी —स्त्री॰—लघु-कौमुदी—-—व्याकरण की एक पुस्तक
लघुतालः —पुं॰—लघु-तालः—-—संगीत की माप का एक भेद
लघुनालिका —स्त्री॰—लघु-नालिका—-—छोंटी नली
लघुपाक —वि॰—लघु-पाक—-—आसानी से पचन योग्य
लघुप्रमाण —वि॰—लघु-प्रमाण—-—आकार प्रकार में छोटा सा
लघुयोगवासिष्ठम् —नपुं॰—लघु-योगवासिष्ठम्—-—योग-वासिष्ठ का सारसंग्रह
लघुशेखर —पुं॰—लघु-शेखर—-—संगीत की एक माप
लघूकृ —तना॰उभ॰—-—-—हल्का करना, बोझ घटाना
लघूकृ —तना॰उभ॰—-—-—छोटा करना,घटाना
लघ्वी —स्त्री॰—-—लघु+ङीप्—छोटी,थोड़ी,कम
लङ्गनी —स्त्री॰—-—लङ्गन+ङीप्—लकड़ी या रस्सी जिस पर कपड़े सुखाने के लिए लटका दिये जाँय
लङ्गिमन् —पुं॰—-—लङ्ग्+इमनिच्—सौन्दर्य से युक्त,सौभाग्यशाली
लङ्गिमन् —पुं॰—-—लङ्ग्+इमनिच्—संघ,एकता
लङ्घनम् —नपुं॰—-—लङ् घ्+ल्युट्—अतिक्रमण
लङ्घनम् —नपुं॰—-—लङ् घ्+ल्युट्—उपवास करना
लङ्घनम् —नपुं॰—-—लङ् घ्+ल्युट्—मैथुन,गर्भाधान
लज्जाकृतिः —स्त्री॰—-—-—लज्जा का झूठ-मूठ प्रदर्शन
लब्ध —वि॰—-—लभ्+क्त—प्राप्त,अवाप्त
लब्ध —वि॰—-—लभ्+क्त—प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त,समझा गया
लब्ध —वि॰—-—लभ्+क्त—प्राप्त,उपलब्ध
लब्धानुज्ञ —वि॰—लब्ध-अनुज्ञ—-—जिसने अनुमति प्राप्त कर ली है
लब्धतीर्थ —वि॰—लब्ध-तीर्थ—-—जिसने अवसर से लाभ उठा लिया है
लब्धप्रतिष्ठ —वि॰—लब्ध-प्रतिष्ठ—-—जिसने कीर्ति प्राप्त कर ली है,जिसने अपनी साख जमा ली है,सम्मानित
लब्धप्रसर —वि॰—लब्ध-प्रसर—-—स्वतंत्रतापूर्वक इधर-उधर घूमने वाला
लब्धप्रसाद —वि॰—लब्ध-प्रसाद—-—अनुग्रह-प्राप्त,प्रिय
लब्धश्रुत —वि॰—लब्ध-श्रुत—-—विद्वान
लब्धसंज्ञ —वि॰—लब्ध-संज्ञ—-—जिसने सुधबुध प्राप्त कर ली है,जो होश में आ गया है
लम्बदन्ता —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मिर्च
लम्बरा —स्त्री॰—-—-—कम्बल का एक भेद
लम्भा —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का बाड़ा,घेर
लयशुद्ध —वि॰—-—-—वह गाना जिसकी लय और ताल सही हो,जिसमें सामंजस्य हो
ललन्तिका —स्त्री॰—-—-—मस्तक के ऊपर पहना जाने वाला एक आभूषण झूमर,श्रृंगारपट्टी
ललामन् —पुं॰—-—लल्+इमनिच्—आभूषण,अलंकार
ललामन् —पुं॰—-—लल्+इमनिच्—एक छन्द का नाम
ललित —वि॰—-—लल्+क्त—मनोरम,सुन्दर
ललित —वि॰—-—लल्+क्त—सुखद‘सुहावना
ललितप्रियः —पुं॰—ललित-प्रियः—-—एक गान की लय या माप
ललितवनिता —स्त्री॰—ललित-वनिता—-—सुन्दर स्त्री
ललितविस्तरः —पुं॰—ललित-विस्तरः—-—बुद्ध के जीवन पर लिखा गया एक ग्रन्थ
ललितविस्तारः —पुं॰—ललित-विस्तारः—-—एक छन्द का नाम
ललिता —स्त्री॰—-—-—संगीत की लय
ललिताम्बिका —स्त्री॰—-—-—ललिता देवी
ललितादेवी —स्त्री॰—-—-—ललिता देवी
ललितासहस्रनामन् —पुं॰—-—-—ललिता के हजार नाम
लवः —पुं॰—-—लू+अप्—तोड़ना,काटना
लवः —पुं॰—-—लू+अप्—खेती काटना,लावनी करना
लवेप्सू —वि॰—लवः-इप्सू—-—खेती काटने का इच्छुक
लवङ्गः —पुं॰—-—लू+अङ्गच्—लौंग का पौधा
लवङ्गकालिका —स्त्री॰—लवङ्गः-कालिका—-—लौंग
लवणः —पुं॰—-—लू+ल्यूट्,पृषो॰णत्वम्—नमकींन स्वाद
लवणः —पुं॰—-—लू+ल्यूट्,पृषो॰णत्वम्—एक राक्षस का नाम
लवणः —पुं॰—-—लू+ल्यूट्,पृषो॰णत्वम्—एक नरक का नाम
लवणम् —नपुं॰—-—-—कृत्रिम नमक
लवणपाटलिका —स्त्री॰—लवणः-पाटलिका—-—नमक की थैली
लवणशाकम् —नपुं॰—लवणः-शाकम्—-—नमकीन सब्जी
लवणित —वि॰—-—लवण्+इतच्—नमकीन,लवणयुक्त
लसदंशु —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसकी किरणें चमकती है
लाक्षारसः —पुं॰—-—-—महावर या अलक्त का रस
लाङ्गलम् —नपुं॰—-—लङ्ग्+कलच् पृषो॰ वृद्धिः—हल
लाङ्गलम् —नपुं॰—-—लङ्ग्+कलच् पृषो॰ वृद्धिः—हलकी शक्ल का शहतीर
लाङ्गलम् —नपुं॰—-—लङ्ग्+कलच् पृषो॰ वृद्धिः—ताड़ का वृक्ष
लाङ्गलम् —नपुं॰—-—लङ्ग्+कलच् पृषो॰ वृद्धिः—वृक्ष से फल एकत्र करने का बाँस
लाङ्गलम् —नपुं॰—-—लङ्ग्+कलच् पृषो॰ वृद्धिः—एक फूल का नाम
लाङ्गला —स्त्री॰—-—-—नारियल का पेड़
लाङ्गली —स्त्री॰—-—-—केवाच का वृक्ष,गजपीपल
लाङ्गूलचालनम् —नपुं॰—-—-—पूंछ हिलाना
लाङ्गूलविक्षेपः —पुं॰—-—-—पूंछ हिलाना
लाजपेयाः —पुं॰—-—-—चावल का मांड
लाभः —पुं॰—-—लभ्+घञ्—गड़ा हुआ धन
लाभः —पुं॰—-—लभ्+घञ्—फायदा,आय
लाभविद् —वि॰—लाभः-विद्—-—जो यह समझता है कि लाभ क्या चीज है
लालाधः —पुं॰—-—-—अपस्मार,मिर्गी
लावः —पुं॰—-—-—लवा नामक पक्षी,बटेर
लावाणकः —पुं॰—-—-—एक द्वीप का नाम
लासनम् —नपुं॰—-—-—पकड़्ना,ग्रहण करना
लासिक —वि॰—-—लस+ठक्—नाचने वाला
लिखितृ —पुं॰—-—लिख्+तृच्—चित्रकार
लिगुः —पुं॰—-—लिग्+कुः—हरिण
लिगुः —पुं॰—-—लिग्+कुः—मूर्ख,बुदधू
लिगुः —पुं॰—-—लिग्+कुः—ऋषि मुनि
लिङ्गम् —नपुं॰—-—लिङ्ग+अच्—चिन्ह निशान
लिङ्गम् —नपुं॰—-—लिङ्ग+अच्—प्रतीक,विशिष्टता
लिङ्गम् —नपुं॰—-—लिङ्ग+अच्—रोग का लक्षण
लिङ्गम् —नपुं॰—-—लिङ्ग+अच्—शारीरिक सत्ता
लिङ्गायताः —पुं॰—लिङ्गम्-आयताः—-—वीर शैवों का संप्रदाय
लिङ्गपीठम् —नपुं॰—लिङ्गम्-पीठम्—-—‘शिवलिङ्ग’ मूर्ति जिस पर विराजमान है वह चौकी
लिङ्गशास्त्रम् —नपुं॰—लिङ्गम्-शास्त्रम्—-—लिङ्ग ज्ञान पर व्याकरण का एक ग्रन्थ
लिङ्गालिका —स्त्री॰—-—-—चुहिया,छोटी मूसी
लिपिः —स्त्री॰—-—लिप्+इक्—लेप
लिपिः —स्त्री॰—-—लिप्+इक्—लेख
लिपिः —स्त्री॰—-—लिप्+इक्—अक्षर,वर्णमाला
लिपिः —स्त्री॰—-—-—बाहरी सूरत
लिपिकर्मन् —नपुं॰—लिपिः-कर्मन्—-—आलेख,चित्रण
लिपिसंनाहः —पुं॰—लिपिः-संनाहः—-—कलाई पर पहनी जाने वाली पहुँची,रक्षाबन्धन
लिप्तम् —नपुं॰—-—लिप्+क्त्—लिपा हुआ,सना हुआ
लिप्तम् —नपुं॰—-—लिप्+क्त्—खाया हुआ
लिप्तम् —नपुं॰—-—लिप्+क्त्—बलगम,कफ
लिप्तवासित —वि॰—लिप्तम्-वासित—-—लिपि हुई सुगन्ध से सुगन्धित
लिप्तहस्त —वि॰—लिप्तम्-हस्त—-—सने हुए हाथों वाला
लुञ्चितकेशः —पुं॰—-—-—जिसने अपने बाल छंटवा कर छोटे करा लिए हैं
लुञ्ज् —चुरा॰उभ॰—-—-—बोलना,चमकना
लुण्ठनम् —नपुं॰—-—लुण्ठ्+ल्युट्—लूटना
लुण्ठनम् —नपुं॰—-—लुण्ठ्+ल्युट्—विरोध करना,बाधा डालना
लुप् ——-—-—लुप्त होना,मिटना,भूलचूक होना
लुम्बिनी —स्त्री॰—-—-—बुद्ध का जन्म स्थान
लुस्तम् —नपुं॰—-—-—धनुष का किनारा
लूतातः —पुं॰—-—-—चींटा,मकौड़ा
लून —वि॰—-—लू+क्त—तोड़ा हुआ
लून —वि॰—-—लू+क्त—एकत्र किये हुए
लूनपापः —पुं॰—लून-पापः—-—जिसका पापों से छुटकारा हो चुका है
लूनदुष्कृतः —पुं॰—लून-दुष्कृतः—-—जिसका पापों से छुटकारा हो चुका है
लूनविष —वि॰—लून-विष—-—जिसकी पूंछ में विष लगा हो
लेखः —पुं॰—-—लिख्+घञ्—लेख,लिखित दस्तावेज
लेखः —पुं॰—-—लिख्+घञ्—परमात्मा,देवता
लेखः —पुं॰—-—लिख्+घञ्—खरोंच
लेखानुजीविन् —पुं॰—लेखः-अनुजीविन्—-—भगवान का सेवक
लेखप्रभुः —पुं॰—लेखः-प्रभुः—-—इन्द्र
लेखस्खलितम् —नपुं॰—लेखः-स्खलितम्—-—लिपिकार से की गई अशुद्धि
लेखिका —स्त्री॰—-—-—थोड़ा आघात,सहलाना
लेखित —वि॰—-—लिख्+णिच्+क्त्—लिखाया गया
लेला —स्त्री॰—-—-—कांपना,हिलाना
लैङ्ग —वि॰—-—लिङ्ग+अण्—शब्द के लिङ्ग से संबंध रखने वाला
लैङ्गम् —नपुं॰—-—-—अठारह पुराणों में से एक पुराण का नाम
लैङ्गधूमः —पुं॰—लैङ्ग-धूमः—-—अज्ञानी पुरोहित
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—संसार,विश्व का एक भाग
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—पृथ्वी,भूलोक
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—मनुष्य जाति
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—प्रजा
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—समूह
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—क्षेत्र
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—दृष्टि
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—वास्तविक स्थिति,प्रकाश
लोकः —पुं॰—-—लोक्+घञ्—विषय,भोग्यवस्तु
लोकानुग्रहः —पुं॰—लोकः-अनुग्रहः—-—मनुष्य जाति की समृद्धि
लोकानुवृत्तम् —नपुं॰—लोकः-अनुवृत्तम्—-—लोकगत के अनुसार,जनसाधारण की आज्ञाकारिता
लोकाभिलक्षित —वि॰—लोकः-अभिलक्षित—-—जिसे जनता चाहे,जनप्रिय
लोकोपक्रोशनम् —नपुं॰—लोकः-उपक्रोशनम्—-—लोगों में बुरी अफ़वाहें फैलाना
लोकदम्भक —वि॰—लोकः-दम्भक—-—समाज को धोखा देने वाला,सामाजिक ठग
लोकधर्मः —पुं॰—लोकः-धर्मः—-—सांसारिक कर्तव्य
लोकनाथः —पुं॰—लोकः-नाथः—-—सूर्य
लोकपरोक्ष —वि॰—लोकः-परोक्ष—-—संसार से छिपा हुआ
लोकप्रत्ययः —पुं॰—लोकः-प्रत्ययः—-—सबका विश्वास,विश्व का प्राबल्य
लोकभर्तृ —वि॰—लोकः-भर्तृ—-—जनसाधारण का पालक पोषण
लोकयज्ञः —पुं॰—लोकः-यज्ञः—-—संसार के प्रति भला रहने की इच्छा
लोकरावणः —वि॰—लोकः-रावणः—-—संसार को कष्ट देने वाला
लोकवर्तनम् —नपुं॰—लोकः-वर्तनम्—-—लोकव्यहार जिससे संसार की स्थिति बनी रहे
लोकविरुद्ध —वि॰—लोकः-विरुद्ध—-—लोकमत के विपरीत
लोकविसर्गः —पुं॰—लोकः-विसर्गः—-—संसार का अन्त
लोकविसर्गः —पुं॰—लोकः-विसर्गः—-—गौण सृष्टि
लोकसम्बाधः —पुं॰—लोकः-सम्बाधः—-—जनसमुदाय
लोकसुन्दर —वि॰—लोकः-सुन्दर—-—जिसके सौन्दर्य की सब लोग प्रशंसा करें
लोकसात् —अ॰—-—-—लोगों की भलाई के लिए
लोचनम् —नपुं॰—-—लोच्+ल्युट्—दर्शन,दृष्टि,ईक्षण
लोचनम् —नपुं॰—-—लोच्+ल्युट्—आँख
लोचनाञ्चलः —पुं॰—लोचनम्-अञ्चलः—-—आँख की कोर
लोचनापातः —पुं॰—लोचनम्-आपातः—-—झाँकी
लोचनावरणम् —नपुं॰—लोचनम्-आवरणम्—-—पलक
लोचनपरुष —वि॰—लोचनम्-परुष—-—देखने में विकराल
लोभः —पुं॰—-—लुभ्+घञ्—लालच,लालसा
लोभः —पुं॰—-—लुभ्+घञ्—इच्छा,प्रबल चाह
लोभः —पुं॰—-—लुभ्+घञ्—विस्मय,घबराहट,उलझन
लोभाभिपातिन् —वि॰—लोभः-अभिपातिन्—-—जो लालसा के कारण भागता है
लोभमोहित —वि॰—लोभः-मोहित—-—लालच से अन्धा
लोमविष —वि॰,ब॰भ॰—-—-—जिसके बालों में जहर भरा हो
लोमशकर्णः —पुं॰—-—-—बिल में रहने वाले जन्तुओम् की एक जाति
लोलकर्ण —वि॰—-—-—प्रत्येक की सुनने वाला
लोलम्बः —पुं॰—-—-—भौंरा,भ्रमर
लोष्टगुटिका —स्त्री॰—-—-—मिट्टी की गोली
लोष्टायते —ना॰धा॰आ॰—-—-—ढेले के समान समझना
लोहः —पुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+ह—लोहा
लोहः —पुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+ह—इस्पात
लोहः —पुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+ह—ताँबा
लोहः —पुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+ह—सोना
लोहः —पुं॰—-—लूयतेऽनेन+लू+ह—अगर की लकड़ी
लोहाग्रम् —नपुं॰—लोहः-अग्रम्—-—लोहे की नोक
लोहोच्छिष्टम् —नपुं॰—लोहः-उच्छिष्टम्—-—लोहे का जंग
लोहोत्थम् —नपुं॰—लोहः-उत्थम्—-—लोहे का जंग
लोहकिट्टम् —नपुं॰—लोहः-किट्टम्—-—लोहे का जंग
लोहमलम् —नपुं॰—लोहः-मलम्—-—लोहे का जंग
लोहकुम्भी —स्त्री॰—लोहः-कुम्भी—-—लोहे की घड़िया
लोहचर्मवत् —पुं॰—लोहः-चर्मवत्—-—धातु की तश्तरी से ढका हुआ
लोहमात्रः —पुं॰—लोहः-मात्रः—-—बर्छी
लोहित —वि॰—-—रुह्+इतन्,रस्य लः—आँख की पलकों का एक रोग
लोहित —वि॰—-—रुह्+इतन्,रस्य लः—एक प्रकार का मूल्यवान् पत्थर,रत्न
लौकिक —वि॰—-—लोक+ठक्—सांसारिक
लौकिक —वि॰—-—लोक+ठक्—सामान्य
लौकिक —वि॰—-—लोक+ठक्—दैनिक जीवन संबंधी
लौकिकाग्निः —पुं॰—लौकिक-अग्निः—-—सामान्य आग जो यज्ञ कार्यों में प्रयुक्त न होती हो
लौकिकन्यायः —पुं॰—लौकिक-न्यायः—-—सामान्यतः माना हुआ न्याय
लौहशास्त्रम् —नपुं॰—-—-—धातुविज्ञान,धातुशोधन विद्या
वंशः —पुं॰—-—वम्+श—संगीत का एक विशेष स्वर
वंशः —पुं॰—-—वम्+श—अहंकार,अभिमान
वंशकर्मन् —पुं॰—वंश-कर्मन्—-—बाँस की दस्तकारी
वंशकृत्यम् —नपुं॰—वंश-कृत्यम्—-—बंसरी बजाना
वंशधरः —पुं॰—वंश-धरः—-—किसी कुल में उत्पन्न
वंशपत्रपतितम् —नपुं॰—वंश-पत्रपतितम्—-—सत्रह मात्राओं का एक छन्द
वंशपात्रम् —नपुं॰—वंश-पात्रम्—-—बाँस की बनी टोकरी
वंशबाह्यः —पुं॰—वंश-बाह्यः—-—कुल से निष्कासित
वंशब्राह्मणम् —नपुं॰—वंश-ब्राह्मणम्—-—सामवेद ब्राह्नण का मूल पाठ
वंशलून —वि॰—वंश-लून—-—संसार में अकेला
वंशवनम् —नपुं॰—वंश-वनम्—-—बाँसों का जंगल
वंशवर्धनः —पुं॰—वंश-वर्धनः—-—पुत्र
वंशविस्तरः —पुं॰—वंश-विस्तरः—-—वंशावली
वंशस्थविलम् —नपुं॰—वंश-स्थविलम्—-—एक छन्द का नाम
वंश्यः —पुं॰—-—-—बन्धुः,संबंन्धी, अपने कूल का
वक्तुकाम —वि॰—-—-—बोलने की इच्छा वाला
वक्तुमनस् —वि॰—-—-—बोलने की इच्छुक
वक्तृप्रयोक्तृ —वि॰—-—-—सिद्धान्तिक और प्रायोगिक
वक्र —वि॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—टढा,मुड़ा हुआ
वक्र —वि॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—गोलमोल,अप्रत्यक्ष
वक्र —वि॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—घुंघराले
वक्र —वि॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—बेईमान,कपटी,जालसाज
वक्रः —पुं॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—मंगलग्रह
वक्रः —पुं॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—शनिग्रह
वक्रम् —नपुं॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—टेढ़ी चाल
वक्रम् —नपुं॰—-—वङ्क्+रन् पृषो॰नलोपः—नदी का मोड़
वक्राख्याम् —नपुं॰—वक्र-आख्याम्—-—टीन,जस्त
वक्रेतर —वि॰—वक्र-इतर—-—सीधा
वक्रकीलः —पुं॰—वक्र- कीलः—-—अङ्कुश
वक्रगुल्फः —पुं॰—वक्र-गुल्फः—-—ऊँट
वक्रतालम् —नपुं॰—वक्र-तालम्—-—एक विशेष वातोपकरण
वक्ररेखा —स्त्री॰—वक्र-रेखा—-—टेढ़ी लाइन
वङ्गेरिका —स्त्री॰—-—-—चंगेरी,बाँस आदि की बनी टोकरी
वङ्गेरी —स्त्री॰—-—-—चंगेरी,बाँस आदि की बनी टोकरी
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—बोलने की क्रिया
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—वक्तृता
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—पाठ करना
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—उपदेश,धार्मिक पुस्तक का अंश
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—आज्ञा,आदेश
वचनम् —नपुं॰—-—वच्+ल्युट्—परामर्श,अनुदेश
वचनावक्षेपः —पुं॰—वचनम्-अवक्षेपः—-—अपशब्दों से युक्त बात
वचनोपन्यासः —पुं॰—वचनम्-उपन्यासः—-—सुझावात्मक वक्तृता
वचनक्रिया —स्त्री॰—वचनम्-क्रिया—-—आज्ञाकारिता
वचनगोचर —वि॰—वचनम्-गोचर—-—बातचीत का विषय बनाने वाला
वचनगौरवम् —नपुं॰—वचनम्-गौरवम्—-—शब्दों का आदर करना
बचोहरः —पुं॰—-—-—दूत,रालची
वचस्विन् —वि॰—-—-—वाकपटु,बोलने में चतुर
उक्तवर्जम् —अ॰—-—-—सिवाय उसके जो कह दिया है
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—न्याय,कहावत
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—वाक्य
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—वक्तृता,वक्तव्य,अभिव्यक्ति
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—शब्द की वाक्य शक्ति
वज्रः —पुं॰—-—वज्+रन्—बिजली,इन्द्र का शस्त्र
वज्रः —पुं॰—-—वज्+रन्—रत्न की सूई
वज्रः —पुं॰—-—वज्+रन्—रत्न,जवाहर
वज्रः —पुं॰—-—वज्+रन्—एक प्रकार का कुश ग्रास
वज्रः —पुं॰—-—वज्+रन्—एक प्रकार का सैन्य व्यूह
वज्राङ्शुकम् —नपुं॰—वज्रः-अङ्शुकम्—-—धारी दार कपड़ा
वज्राङ्कित —वि॰—वज्रः-अङ्कित—-—‘वज्रायुध के चिह्न से मुद्रित
वज्राकार —वि॰—वज्रः-आकार—-—वज्र की शक्ल वाला
वज्राकृति —वि॰—वज्रः-आकृति—-—वज्र की शक्ल वाला
वज्रकीटः —पुं॰—वज्रः-कीटः—-—एक प्रकार का कीड़ा
वज्रपञ्जरः —पुं॰—वज्रः-पञ्जरः—-—सुरक्षित आश्रयगृह
वज्रमुखः —पुं॰—वज्रः-मुखः—-—एक प्रकार का कीड़ा
वज्रमुखः —पुं॰—वज्रः-मुखः—-—एक प्रकार की समाधि
वज्रकम् —नपुं॰—-—वज्+कन्—हीरा,जवाहर
वटः —पुं॰—-—वट्+अच्—बड़ का पेड़
वटः —पुं॰—-—वट्+अच्—शतरंज की गोट
वटदलः —पुं॰—वटः-दलः—-—पत्रम
वटपुटम् —नपुं॰—वटः-पुटम्—-—बड़ का पत्ता
वडवा —स्त्री॰—-—बल+वा+क+टाप—घोड़ी
वडवा —स्त्री॰—-—-—एक नक्षत्रपुंज जिसे‘घोड़ी के सिर’ के प्रतीक से व्यक्त किया जाता है
वणिज् —पुं॰—-—पण्+इजि,पस्य वः—व्यापारी सौदागर
वणिज् —पुं॰—-—पण्+इजि,पस्य वः—तुला राशि
वणिक्कटकः —पुं॰—वणिज्-कटकः—-—काफला
वणिग्वहः —पुं॰—वणिज्-वहः—-—ऊँट
वणिग्वीथी —स्त्री॰—वणिज्-वीथी—-—बाजार
वत् —नपुं॰—-—मतुप्—अधिकरण अर्थ में तथा ‘योग्य’अर्थ में लगने वाला मत्वर्थीय प्रत्यय
वतु —अ॰—-—-—विस्मयादि द्योतक अव्यय।‘सुनो’ ‘बस’ ‘चुप’ अर्थ को प्रकट करता है
वत्सः —पुं॰—-—वद्+सः—बछड़ा
वत्सः —पुं॰—-—वद्+सः—लड़का,पुत्र
वत्सः —पुं॰—-—वद्+सः—सन्तान,बच्चा
वत्सः —पुं॰—-—वद्+सः—एक देश का नाम
वत्सानुसारिणी —स्त्री॰—वत्सः-अनुसारिणी—-—लघु और दीर्घ मात्रा का मध्यवर्ती क्रम भंग या अन्तर
वत्सपदम् —नपुं॰—वत्सः-पदम्—-—तीर्थ,घाट,उतार
वत्सायितः —पुं॰—-—वत्स+क्यच्+णिच्+क्त्—बछड़े के रुप में संवर्तित
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—चेहरा
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—मुख
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—सूरत
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—समाने का पक्ष
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—पहेली राशि
वदनम् —नपुं॰—-—वद्+ल्युट्—त्रिकोण का शिखर
वदनामोदमदिरा —स्त्री॰—वदनम्-आमोदमदिरा—-—मुख में मधुरगंध से युक्त सुरा
वदनोदरम् —नपुं॰—वदनम्-उदरम्—-—जबड़ा
वदनपङ्कजम् —नपुं॰—वदनम्-पङ्कजम्—-—मुखारविन्द,कमल जैसा मुख
वदनपवनः —पुं॰—वदनम्-पवनः—-—श्वास,साँस
वधः —पुं॰—-—हन्+अप्,वधादेशः—भग्नाशा
वधः —पुं॰—-—हन्+अप्,वधादेशः—गुणनफल
वधः —पुं॰—-—हन्+अप्,वधादेशः—हत्या,कतल
वधराशिः —पुं॰—वधः-राशिः—-—जन्माङ्ग में छठा घर
वधिकः —पुं॰—-—-—कस्तूरी,मुश्क
वधिकम् —नपुं॰—-—-—कस्तूरी,मुश्क
वधूकालः —पुं॰—-—-—वह समय जब कन्या दुलहिन बनती है
वधूवरम् —नपुं॰—-—-—नवविवाहित दम्पति
वध्यवासस् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—लालरंग के वस्त्र जो प्राणदण्ड प्राप्त पुरुष को फांसी देने के समय पहिनाये जाते है
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—जंगल
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—वृक्षों का झुंड
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—फब्बारा
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—लकड़ी का पात्र
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—प्रकाश की किरण
वनम् —नपुं॰—-—वन्+अच्—पर्वत
वनाश —वि॰—वनम्-आश—-—केवल जल पीकर जीने वाला
वनोपलः —पुं॰—वनम्-उपलः—-—गोबर के उपल,गोहे
वनमौषधिः —पुं॰—वनम्-औषधिः—-—जगली जड़ी बूटी
वनभूषणी —स्त्री॰—वनम्-भूषणी—-—कोयल
वनहासः —पुं॰—वनम्-हासः—-—काश नाम का घास
वन्दनकम् —नपुं॰—-—-—सम्मानपूर्ण अभिवादन
वन्य —वि॰—-—वन्+यत्—लकड़ी का बना हुआ
वन्यवृत्ति —वि॰—वन्य-वृत्ति—-—जंगली उपज पर रहने वाला
वपनम् —नपुं॰—-—वप्+ल्युट्—बीज बोना
वपनम् —नपुं॰—-—वप्+ल्युट्—हजामत करना
वपनम् —नपुं॰—-—वप्+ल्युट्—वीर्य
वपनम् —नपुं॰—-—वप्+ल्युट्—क्षुर,उस्तरा
वपनम् —नपुं॰—-—वप्+ल्युट्—करीने से रखना,व्यवस्थित करना
वपा —स्त्री॰—-—वप्+अच्+टाप्—चर्बी
वपा —स्त्री॰—-—वप्+अच्+टाप्—बिल,विवर
वपा —स्त्री॰—-—वप्+अच्+टाप्—दीमकों द्वारा बनी नमी
वपा —स्त्री॰—-—वप्+अच्+टाप्—उभरी हुई मांसल नाभि
वपुष्मत् —वि॰—-—वपुस्+मत्—शरीर धारी
वपुष्मत् —वि॰—-—वपुस्+मत्—ह्रष्टपुष्ट
वपुष्मत् —वि॰—-—वपुस्+मत्—क्षतविक्षत,खण्डित
वप्रः —पुं॰—-—वप्+रन्—फसील,परिवार,परकोटा
वप्रः —पुं॰—-—वप्+रन्—ढलान
वप्रः —पुं॰—-—वप्+रन्—समुच्चय
वप्रः —पुं॰—-—वप्+रन्—भवन की नींव
वप्रम् —नपुं॰—-—वप्+रन्—फसील,परिवार,परकोटा
वप्रम् —नपुं॰—-—वप्+रन्—ढलान
वप्रम् —नपुं॰—-—वप्+रन्—समुच्चय
वप्रम् —नपुं॰—-—वप्+रन्—भवन की नींव
वप्रा —स्त्री॰—-—-—वाटिका की क्यारी
वमथुः —पुं॰—-—वम्+अथुच्—खाँसी
वमनः —पुं॰—-—वम्+ल्युट्—रुई का छीजन
वमनः —पुं॰—-—वम्+ल्युट्—सन,सुतली,पटुआ
वयोबाल —वि॰—-—-—अवयस्क बालक,थोड़ी आयु का बालक
वयुनम् —नपुं॰—-—वय्+वनन्—कर्म,कार्य
वर —वि॰—-—वृ+अप्—उतम,श्रेष्ठ,बढिया,अनमोल
वरः —पुं॰—-—वृ+अप्—उपहार,पारितोषिका
वरः —पुं॰—-—वृ+अप्—प्रार्थना
वरारणिः —स्त्री॰—वर-अरणिः—-—माता
वरारुहः —पुं॰—वर-आरुहः—-—बैल
वरेन्द्री —स्त्री॰—वर-इन्द्री—-—पुराना गौड देश
वरप्रेषणम् —नपुं॰—वर-प्रेषणम्—-—विवाह संस्कार का एक भाग जिसके अनुसार दुल्हे के मित्र किसी विशेष परिवार में दुलहन की खोज के लिए जाते है
वरपुरुषाः —पुं॰—वर- पुरुषाः—-—श्रेष्ठजन
वरलक्षणम् —नपुं॰—वर-लक्षणम्—-—विवाह में संस्कार की बाते
वरासिः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—खड्गधारी,तलवार रखने वाला
वराहपुराणम् —नपुं॰—-—-—अठारह पुराणों में से एक
वरिवसितृ —वि॰—-—वृ+असुन्=वरिवस्+तृच्—पूजा करने वाला
वरिवस्यति —ना॰धा॰पर॰—-—-—अनुग्रह करना,कृपा करना
वरुणात्मजः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—जमदग्नि ऋषि का नाम
वरेण्यः —पुं॰—-—-—गणेशमाहात्म्य में वर्णित एक राजा का नाम
वर्गाष्टकम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—व्यंजनों के आठ समूह
वर्गोत्तमम् —नपुं॰—-—-—अनुनासिक वर्ण
वर्गोत्तमम् —नपुं॰—-—-—ज्योतिष में किसी ग्रह विशेष की उच्चता को प्रकट करने वाला शब्द
वर्गीकृत —वि॰—-—वर्ग+च्वि+कृ+क्त—श्रेणियों में विभक्त जिसके समुदाय बने हुए हों
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—रंग
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—सूरत,शक्ल
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—मनुष्यों की जाति
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—अक्षर,ध्वनि
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—शब्द,मात्रा
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—प्रशंसा
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—चोंगा
वर्णः —पुं॰—-—वर्ण+अच्—गीतक्रम
वर्णानुप्रासः —पुं॰—वर्णः-अनुप्रासः—-—अक्षरों का अनुप्रास अलंकार
वर्णान्तरम् —नपुं॰—वर्णः-अन्तरम्—-—भिन्न जाति
वर्णान्तरम् —नपुं॰—वर्णः-अन्तरम्—-—स्थानापन्न अक्षर
वर्णावकृष्टः —पुं॰—वर्णः-अवकृष्टः—-—शूद्र
वर्णावर —वि॰—वर्णः-अवर—-—जाति की दृष्टि से अधम ओछा
वर्णतर्णकम् —नपुं॰—वर्णः-तर्णकम्—-—ऊनी कालीन
वर्णपरिचयः —पुं॰—वर्णः-परिचयः—-—संगीत में दक्षता
वर्णभेदिनी —स्त्री॰—वर्णः-भेदिनी—-—मोटा अनाज
वर्णविक्रिया —स्त्री॰—वर्णः-विक्रिया—-—अक्षरों में परिवर्तन
वर्णविक्रिया —स्त्री॰—वर्णः-विक्रिया—-—जाति में परिवर्तन
वर्णकः —पुं॰—-—वर्ण+ण्वुल्—वक्ता,वर्णन करने वाला
वर्णकः —पुं॰—-—वर्ण+ण्वुल्—आदर्श,नमूना
वर्णिः —पुं॰—-—वर्ण्+इन्—सोना
वर्णिः —पुं॰—-—वर्ण्+इन्—सुगन्ध
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—होना,रहना
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—ठहरना,बसना
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—कर्म,गति
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—जीविका
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—जीवित रहने का साधन
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—आचरण,व्यवहार
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—मजदूरी,वेतन
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—तकवा
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—जिससे रंगा जाय
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—बार-बार दोहराया गया शब्द
वर्तनम् —नपुं॰—-—वृत्+ल्युट्—काढ़ा बनाना
वर्तनविनियोगः —पुं॰—वर्तनम्-विनियोगः—-—मजदूरी बाँटना
वर्तमानम् —नपुं॰—-—वृत्+शानच्—विद्यमान् काल,मौजूदा समय
वर्तमानाक्षेपः —पुं॰—वर्तमानम्-आक्षेपः—-—वर्तमान का विरोध
वर्तमानकालः —पुं॰—वर्तमानम्-कालः—-—मौजूदा समय
वर्तिः —पुं॰—-—वृत्+इन्—अस्थिभङ्ग के कारण सूजन
वर्तिका —स्त्री॰—-—वृत्+तिकन्—यष्टिका लाठी
वर्तित —वि॰—-—वृत्+क्त—मुड़ा हुआ,लुढ़का हुआ
वर्तित —वि॰—-—वृत्+क्त—उत्पादित निष्पन्न
वर्तित —वि॰—-—वृत्+क्त—खर्च किया हुआ,बीता हुआ
वर्तिन् —वि॰—-—वृत्+णिनि—आज्ञा मानने वाला
वर्त्मन् —नपुं॰—-—वृत्+मनिन्—पथ, मार्ग,रास्ता
वर्त्मन् —नपुं॰—-—वृत्+मनिन्—कमरा,कक्ष
वर्त्मन् —नपुं॰—-—वृत्+मनिन्—पलक
वर्त्मन् —नपुं॰—-—वृत्+मनिन्—किनारा
वर्त्मनायासः —पुं॰—वर्त्मन्-आयासः—-—यात्रा के परिणामस्वरुप थकान
वर्त्मपातनम् —नपुं॰—वर्त्मन्-पातनम्—-—ताक में रहना,ताड़ में रखना
वर्त्स्यत् —वि॰—-—वृत्+स्य+शतृ—होने वाला,प्रगति करने के लिए तत्पर
वर्धम् —नपुं॰—-—वर्ध+अच्—चमड़े का तस्मा फीता
वर्धकी —स्त्री॰—-—-—वेश्या,व्यभिचारिणी स्त्री
वर्धनक —वि॰—-—वृध+णिच्+ल्युट्,स्वार्थे कन्—आह्लादकर,हर्षप्रद,आनन्ददायक
वर्धमानः —पुं॰—-—वृध+शानच्—जैनियों का २४ वाँ तीर्थंकर
वर्धमानः —पुं॰—-—वृध+शानच्—पूर्व दिशा का दिकपाल हाथी
वर्धमानगृहम् —नपुं॰—वर्धमानः-गृहम्—-—आमोद घर
वर्धमानकः —पुं॰—-—वर्धमान+कन्— हाथों में दीपक लेकर नाचने वालों की मण्डली
वर्धापनिकम् —नपुं॰—-—-—बधाई के चिह्नस्वरुप उपहार
वर्धापिका —स्त्री॰—-—-— परिचारिका,नर्स
वर्ध्मः —पुं॰—-—-—हर्णिया रोग
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—वर्षा होना
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—छिड़काव
वर्षम् —नपुं॰—-—वृष्+घञ्—वर्ष
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—माहाद्वीप
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—बादल
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—दिन
वर्षः —पुं॰—-—वृष्+घञ्—वासस्थान
वर्षकालः —पुं॰—वर्षः-कालः—-—बरसात की ऋतु
वर्षगणः —पुं॰—वर्षः-गणः—-—वर्षों की लम्बी शृंखला
वर्षपदम् —नपुं॰—वर्षः-पदम्—-—पत्रा,कलेण्डर
वर्षरात्रः —पुं॰—वर्षः-रात्रः—-—बरसा का मौसम
वर्षा —स्त्री॰—-—वर्ष्+अच्+टाप्—बरसात,वर्षा ऋतु
वर्षाघोषः —पुं॰—वर्षा-अघोषः—-—बड़ा मेढक
वर्षाभू —पुं॰—वर्षा-भू—-—मेंढक
वर्षाभू —पुं॰—वर्षा-भू—-—इन्द्रवधू नामक कीड़ा वीरबहूटी
वर्षामदः —पुं॰—वर्षा-मदः—-—मोर
वर्षीयस —वि॰—-—वृद्ध+ईयसन्,वर्षादेशः—बहुत बूढ़ा या पुराना
वर्षीयस् —वि॰—-—वृष्+ईयसुन्—बौछार करने वाला
वर्ष्मवीर्यम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—शरीर का बल
वलना —स्त्री॰—-—वल्+युच्—घुमाव,फिराव
वलितम् —नपुं॰—-—वल्+क्त—काली मिर्च
वलजः —पुं॰—-—-—अन्न का संग्रह
वलम्बः —पुं॰—-—अव+लम्ब्+अच्,भागुरिमते अकारलोपः—लम्ब रेखा
वलभिनिवेशः —पुं॰,स॰त॰—-—-—ऊपर का कमरा
वलयम् —नपुं॰—-—वल्+अयन्—समुदाय
वलिः —पुं॰—-—वल्+इन्—तह,झुर्री
वलिः —पुं॰—-—वल्+इन्—पेट के ऊपर के भाग में तह
वलिः —पुं॰—-—वल्+इन्—चौरी की मठ
वलिपलितम् —नपुं॰—वलिः-पलितम्—-—झुर्रियाँ और सफ़ेद बाल
वलिशानः —पुं॰—वलिः-शानः—-—बादल
वल्कः —पुं॰—-—वल्+क—वृक्ष की छाल,वक्कल
वल्कः —पुं॰—-—वल्+क—मछली की खाली
वल्कः —पुं॰—-—वल्+क—वस्त्र
वल्कफलः —पुं॰—वल्कः-फलः—-—अनार का पेड़
वल्कवासस् —नपुं॰—वल्कः-वासस्—-—वक्कल की बनी हुई पोशाक
वल्कलिन् —वि॰—-—वल्कल+णिनि—वल्कल देने वाला
वल्कलिन् —वि॰—-—वल्कल+णिनि—वल्कल से आच्छादित
वल्गकः —पुं॰—-—वल्ग्+अच्,स्वार्थे कन्—कूदने वाला,नाचने वाला
वल्मीकः —पुं॰—-—वल्+ईक्,मुट् च—बमी,दीमकों से बनाया गया मिट्टी का ढेर
वल्मीकः —पुं॰—-—-—शरीर के कुछ भागों में सूजन
वल्मीकः —पुं॰—-—-—वाल्मीकि महाकवि
वल्मीकजः —पुं॰—वल्मीकः-जः—-—ऋषि वाल्मीकि का विशेषण
वल्मीकजन्मा —पुं॰—वल्मीकः-जन्मा—-—ऋषि वाल्मीकि का विशेषण
वल्मीकभौमम् —नपुं॰—वल्मीकः-भौमम्—-—बमी
वाल्मीकराशिः —पुं॰—वाल्मीकः-राशिः—-—बमी
वल्लभगणिः —पुं॰—-—-—कौशकार
बल्लभजनः —पुं॰—-—-—स्वामिनी,प्रिया
वशालोभः —पुं॰—-—-—पालतू हथिनी को उपयोग में लाकर जंगली हाथी को पकड़ने की रीति
वशीकृत —वि॰—-—वश+च्वि+कृ+क्त—अभिभूत
वशीकृत —वि॰—-—वश+च्वि+कृ+क्त—वश में किया हुआ
वशीभूत —वि॰—-—वश+च्वि+भू+क्त—आज्ञाकारी,वश में हुआ
वश्यम् —नपुं॰—-—वश्+यत्—जो वश में किया जा सके
वश्यम् —नपुं॰—-—वश्+यत्—लौंग
वशना —स्त्री॰—-—वश्+युच्+टाप्—एक प्रकार का कंठाभूषण,हार
वषट्कृत —वि॰—-—-—अग्नि में उपह्रत
वसनम् —नपुं॰—-—वस्+ल्युट्—घेरा
वसनम् —नपुं॰—-—वस्+ल्युट्—दालचीनी के वृक्ष का पता
वसनम् —नपुं॰—-—वस्+ल्युट्—तगड़ी
वसनम् —नपुं॰—-—वस्+ल्युट्—रहना,निवास करना
वसनसद्मन् —पुं॰—वसनम्-सद्यन्—-—तम्बू,टैंट
वसन्तदूती —स्त्री॰—-—-—कोयल
वसामेहः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—एक प्रकार का मधुमेह
वसुः —पुं॰—-—वस्+उन्—घी,घृत
वसुः —पुं॰—-—वस्+उन्—धन,दौलत,रत्न,जवाहर
वसूतमः —पुं॰—वसुः-उतमः—वस्+उन्—भीष्मः
वसुधारिणी —स्त्री॰—वसुः-धारिणी—-—धरा,पृथ्वी
वसुपालः —पुं॰—वसुः-पालः—-—राजा
वसुभम् —नपुं॰—वसुः-भम्—-—धनिष्ठा नक्षत्र
वसुरोचिस् —पुं॰—वसुः-रोचिस्—-—अग्नि
वसोर्धारा —स्त्री॰—-—-—रुद्र के निमित्त किए जाने वाले यज्ञ के अन्त में उपह्रत हवि की अनवरत धारा
वस्तिः —पुं॰स्त्री॰—-—वस्+तिः—वसना,रहना
वस्तिः —पुं॰स्त्री॰—-—वस्+तिः—मूत्राशय
वस्तिः —पुं॰स्त्री॰—-—वस्+तिः—श्रोणि,पेडू
वस्तिकर्मन् —नपुं॰—वस्तिः-कर्मन्—-—अनीमा करना
वस्तिकोशः —पुं॰—वस्तिः-कोशः—-—मूत्राशय
वस्तिबिलम् —नपुं॰—वस्तिः-बिलम्—-—मूत्राशय का विवर,छिद्र,रन्ध्र
वस्तु —नपुं॰—-—वस्+तुन्—वास्तविकता
वस्तु —नपुं॰—-—वस्+तुन्—चीज
वस्तु —नपुं॰—-—वस्+तुन्—धन-धान्य
वस्तु —नपुं॰—-—वस्+तुन्—सामग्री
वस्तु —नपुं॰—-—वस्+तुन्—अभिकल्पना,योजना
वस्तुक्षणात् —अ॰—वस्तु-क्षणात्—-—ठीक समय पर,तन्त्र,वस्तुनिष्ठ,विषयपरक
वस्तुनिर्देशः —पुं॰—वस्तु-निर्देशः—-—विषय सूची
वस्तुनिर्देशः —पुं॰—वस्तु-निर्देशः—-—एक प्रकार की नान्दी
वस्तुपुरुषः —पुं॰—वस्तु-पुरुषः—-—नायक
वस्तुभावः —पुं॰—वस्तु-भावः—-—वास्तविकता
वस्तुभूत —वि॰—वस्तु-भूत—-—सारयुक्त,तथ्यपूर्ण,यथार्थ
वस्तुविनिमयः —पुं॰—वस्तु-विनिमयः—-—अदल-बदल का व्यापार
वस्तुशक्तिस् —अ॰—वस्तु-शक्तिस्—-—परिस्थितियों के कारण
वस्तुशुन्य —वि॰—वस्तु-शुन्य—-—अवास्तविक
वस्तुस्थिति —स्त्री॰—वस्तु-स्थिति—-—वास्तविकता
वस्यस् —वि॰—-—-—अत्युत्तम्
वस्यस् —वि॰—-—-—अपेक्षाकृत धनवान
वस्यस् —वि॰—-—-—श्रेयान्,अधिक समृद्ध
वहा —स्त्री॰—-—वह्+अच्+टाप्—नदी दरिया
वहनभङ्गः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—जहाज का टूट जाना
वहित्रम् —नपुं॰—-—वह्+इत्र—किश्ती,पोत
वहित्रम् —नपुं॰—-—वह्+इत्र—चौकोर रथ,वर्गीकार या चतुष्कोण रथ
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—अग्नि
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—जठराग्नि
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—पाचक अग्नि
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—सवारी
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—यजमान
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—भारवाही जन्तु
वह्निः —पुं॰—-—वह्+नि—तीन की संख्या
वह्न्युत्पातः —पुं॰—वह्निः-उत्पातः—-—अग्निमय उल्का
वह्निकोणः —पुं॰—वह्निः-कोणः—-—दक्षिणपूर्वी दिशा
वह्निकोपः —पुं॰—वह्निः-कोपः—-—दावाग्नि
वह्निपतनम् —नपुं॰—वह्निः-पतनम्—-—स्वयं अग्नि की चिता में बैठ कर आत्माहुति करना
वह्निधीजम् —नपुं॰—वह्निः-धीजम्—-—सोना
वह्निमारकम् —नपुं॰—वह्निः-मारकम्—-—पानी,जल
वह्निशेखरम् —नपुं॰—वह्निः-शेखरम्—-—केसर,कुंकुम,जफरान
वह्निसंस्कारः —पुं॰—वह्निः-संस्कारः—-—दाहसंस्कार,अन्त्येष्टि किया
वह्निसाक्षिकम् —नपुं॰—वह्निः-साक्षिकम्—-—अग्नि का साक्षी करके
वह्निसातकृ ——-—-—आग लगा देना,अग्नि में जला देना
वा —भ्वा॰अदा॰पर॰—-—-—सूँघना
वाकोपवाकम् —नपुं॰—-—-—दो व्यक्तियों की बातचीत,वक्तृता और उतर
वाकोवाक्यम् —नपुं॰—-—-—तर्क शास्त्र,न्यायशास्त्र
वाक्यम् —नपुं॰—-—वच्+ण्यत्,चस्य कः—वक्तव्य
वाक्यम् —नपुं॰—-—वच्+ण्यत्,चस्य कः—उक्ति
वाक्यम् —नपुं॰—-—वच्+ण्यत्,चस्य कः—आदेश
वाक्यम् —नपुं॰—-—वच्+ण्यत्,चस्य कः—सगाई
वाक्याडम्बरः —पुं॰—वाक्यम्-आडम्बरः—-—बड़े-बड़े शब्दों से युक्त भाषा
वाक्यग्रहः —पुं॰—वाक्यम्-ग्रहः—-—जिह्वा में लकवे का होना
वाक्यपरिसमाप्तिः —स्त्री॰—वाक्यम्-परिसमाप्तिः—-—वक्तव्य की संपूर्ति
वाक्यविलेखः —पुं॰—वाक्यम्-विलेखः—-—लेखाधिकारी,हिसाब-किताब रखने वाला अधिकारी
वाक्यसारथिः —पुं॰—वाक्यम्-सारथिः—-—अधिवक्ता,किसी की ओर से बोलने वाला
वाग्मिन् —वि॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—वाकपटु
वाग्मिन् —पुं॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—शब्दों से पूर्ण
वाग्मिन् —पुं॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—वक्ता,बोलने वाला
वाग्मिन् —पुं॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—वृहस्पति
वाग्मिन् —पुं॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—विष्णु
वाग्मिन् —पुं॰—-—वाच्+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः—तोता
वाच् —स्त्री॰—-—वच्+क्विप्,दीर्घः—वाणी की देवता सरस्वती
वागपेत —वि॰—वाच्-अपेत—-—गूँगा
वागाम्भ्रणी —स्त्री॰—वाच्-आम्भ्रणी—-—सरस्वती के प्रसाद को प्राप्त कराने वाले ऋग् मन्त्रों का समूह
वागाम्भ्रणी —स्त्री॰—वाच्-आम्भ्रणी—-—एक वैदिक ऋषि का नाम
वागुत्तरम् —नपुं॰—वाच्-उत्तरम्—-—वक्तव्य की समाप्ति या उपसंहार
वाक्केलि —स्त्री॰—वाच्-केलि—-—बुद्धि की चतुराई के युक्त वार्तालाप
वाक्केली —स्त्री॰—वाच्-केली—-—बुद्धि की चतुराई के युक्त वार्तालाप
वाग्गुम्फः —पुं॰—वाच्-गुम्फः—-—कोरी बातचीत
वाग्जीवनः —पुं॰—वाच्-जीवनः—-—विदूषक,ठिठोलिया
वाङ्निमित्तम् —नपुं॰—वाच्-निमित्तम्—-—किसी उक्ति से प्रबोधन या चेतावनी
वाक्पथः —पुं॰—वाच्-पथः—-—वाणी का परास
वाक्पाटवम् —नपुं॰—वाच्-पाटवम्—-—वाणी की चतुराई
वाक्पारीणः —पुं॰—वाच्-पारीणः—-—अभिव्यक्ति के परास को पार कर जाने वाला व्यक्ति,वाणी में पाराङ्गत
वाग्भटः —पुं॰—वाच्-भटः—-—आयुर्वेद विषय का प्रसिद्ध लेखक
वाग्भटः —पुं॰—वाच्-भटः—-—अलंकार शास्त्र का एक प्रणेता
वाग्विद् —वि॰—वाच्-विद्—-—तर्क और युक्तियाँ देने में प्रवीण
वाग्विनिःसृत —वि॰—वाच्-विनिःसृत—-—उक्तियों के द्वारा प्रस्तुत
वाग्विस्तरः —पुं॰—वाच्-विस्तरः—-—वाग्विस्तार,वाकप्रपंच,बहुभाषिता
वाक्सन्तक्षणम् —नपुं॰—वाच्-सन्तक्षणम्—-—सोपालंभ उक्ति,व्यंग्यवाक्य
वाक्सङ्गः —पुं॰—वाच्-सङ्गः—-—शतरंजी वक्तृता,बहुविध भाषण
वाक्स्तब्ध —वि॰—वाच्-स्तब्ध—-—जिसकी बाणी रुक गई है,जो बोल नहीं सकता
वाचयितृ —वि॰—-—वच्+ णिच्+तृच्—जो सस्वर पाठ की व्यवस्था करता है
वाचस्पतिः —पुं॰—-—षष्ठी अलुक् समास—वाणी का स्वामी
वाचस्पतिः —पुं॰—-—षष्ठी अलुक् समास—वेद
वाचस्पतिः —पुं॰—-—षष्ठी अलुक् समास—एक कोशकार का नाम
वाचस्पतिमिश्रः —पुं॰—-—-—तन्त्रवार्तिक के प्रणेता का नाम
वाच्य —वि॰—-—वच्+ण्यत्—कहे जाने योग्य
वाच्य —वि॰—-—वच्+ण्यत्—अभिधा द्वारा प्रकट अर्थ
वाच्य —वि॰—-—वच्+ण्यत्—निन्दनीय
वाच्यलिङ्ग —वि॰—वाच्य-लिङ्ग—-—विशेषणपरक
वाच्यवर्जितम् —नपुं॰—वाच्य-वर्जितम्—-—कूटोक्ति,अभिधा शक्ति के द्वारा दुर्बोध उक्ति
वाच्यवाचकभावः —पुं॰—वाच्य-वाचकभावः—-—शब्द और अर्थ की स्थिति
वाजित —वि॰—-—वाज+इतच्—पंखयुक्त
वाजिन् —वि॰—-—वाज+इनि—पक्षी
वाजिन् —वि॰—-—वाज+इनि—सात की संख्या
वाजिगन्धः —पुं॰—वाजिन्-गन्धः—-—एक वृक्ष का नाम
वाजिविष्ठा —स्त्री॰—वाजिन्-विष्ठा—-—बड़ का वृक्ष,गूलर
वाट —वि॰—-—वट्+अण्—बड़ का वृक्ष
वाटशृङ्खला —स्त्री॰—वाट-शृङ्खला—-—बाड़
वाडवहरणम् —नपुं॰—-—-—साँड़ घोड़े को दिया जाने वाला चारा
वाडवाहरकः —पुं॰—-—-—समुद्री दानव
वाणः —पुं॰—-—वण्+घञ्—ध्वनन
वाणशब्दः —पुं॰—वाणः-शब्दः—-—वंसरी की आवाज
वात —वि॰—-—वा+क्त—हवा से उड़ाया हुआ
वात —वि॰—-—वा+क्त—इच्छित,अभिलाषित
वातः —पुं॰—-—वा+क्त—वायु की अधिष्ठात्री देवता
वातः —पुं॰—-—वा+क्त—शरीर के तीन दोषों में से एक
वातः —पुं॰—-—वा+क्त—जोड़ों की सूजन
वातः —पुं॰—-—वा+क्त—वायु सरना,शरीर से वायु का निकलना
वातादः —पुं॰—वात-अदः—-—बादाम का पेड़
वाताशनः —पुं॰—वात-अशनः—-—साँप
वाताख्यम् —नपुं॰—वात-आख्यम्—-—ऐसा भवन जिसमें दो कमरे हों एक का मुँह दक्षिण की ओर दूसरे का पूर्व की ओर
वाताहार —वि॰—वात-आहार—-—जो वायु के ही सहारे जीवित रहता है
वातक्षोभः —पुं॰—वात-क्षोभः—-—शरीर में वायुप्रकोप के कारण हुआ रोग
वातचक्रम् —नपुं॰—वात-चक्रम्—-—परकार से गोलाकार चिह्न लगाना
वातपटः —पुं॰—वात-पटः—-—जहाज का पाल
वातपुरीशः —पुं॰—वात-पुरीशः—-—केरल में गुरुवयूर नामक स्थान पर देवता
वातरथः —पुं॰—वात-रथः—-—बादल
वातसञ्चारः —पुं॰—वात-सञ्चारः—-—सूखी खांसी
वातन्धम —वि॰—-—द्वितीया अलुक्—फूंक मारने वाला
वातासह —वि॰—-—-—गठिया रोग से ग्रस्त
वातिक —वि॰—-—वात+ठक्—मोटापा या वादी से ग्रस्त
वातिक —वि॰—-—वात+ठक्—खुशागदी
वातिक —वि॰—-—वात+ठक्—बाजीगर
वातिक —वि॰—-—वात+ठक्—चातक पक्षी
वादनक्षत्रमाला —स्त्री॰—-—-—मीमांसकों के आक्रमण का उत्तर देने वाला वेदान्त का ग्रन्थ
वादित्रम् —नपुं॰—-—वद्+णित्रन्—वाद्ययन्त्र,संगीत का उपकरण
वादित्रलगुडः —पुं॰—वादित्रम्-लगुडः—-—ढोलक बजाने की लकड़ी
वाद्यकम् —नपुं॰—-—वाद्य+कन्—संगीत का उपकरण
वाधूलम् —नपुं॰—-—-—तैतिरीय शाखा का श्रौतसूत्र
वानचित्रम् —नपुं॰—-—-—विविध रंग का कम्बल
वानदण्डः —पुं॰—-—-—जुलाहे की खड्डी
वान्त —वि॰—-—वम्+क्त—उगला हुआ,थूका हुआ
वान्त —वि॰—-—वम्+क्त—उद्वमन किया हुआ
वान्त —वि॰—-—वम्+क्त—गिराया हुआ
वान्तप्रदः —पुं॰—वान्त-प्रदः—-—कुत्ता
वान्ताशिन् —पुं॰—वान्त-आशिन्—-—राक्षस जो विष्ठा पर निर्वाह करता है
वान्ताशिन् —पुं॰—वान्त-आशिन्—-—वह व्यक्ति जो भोजन के लिए अपना गोत्र या वंशावली का उद्धरण देता है
वान्तवृष्टि —वि॰—वान्त-वृष्टि—-—वह बादल जो पानी बरसा चुका है
वापी —स्त्री॰—-—वप्+इञ्,ङीप्—बावड़ी,बड़ा कुआँ
वापीजलम् —नपुं॰—वापी-जलम्—-—सरोवर का पानी
वाम —वि॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—बाँवा
वाम —वि॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—उल्टा,विपरीत,विरोधी
वाम —वि॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—क्रूर,कठोर
वाम —वि॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—दुष्ट
वाम —वि॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—मनोरम
वामः —पुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—कामदेव
वामः —पुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—साँप
वामः —पुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—छाती,ऐन,औड़ी
वामः —पुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—निषिद्ध कार्य
वामम् —नपुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—संपत्ति,दौलत
वामम् —नपुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—दुर्भाग्य,विपत्ति
वामम् —नपुं॰—-—वाम्+ण अथवा वा+मन्—कमनीय वस्तु
वामाङ्गी —स्त्री॰—वाम-अङ्गी—-—सुन्दर स्त्री,कामिनी
वामेतर —वि॰—वाम-इतर—-—दायाँ
वामकुक्षिः —पुं॰—वाम-कुक्षिः—-—बाईं कोख
वामनयना —स्त्री॰—वाम-नयना—-—मनोहर आँखों वाली स्त्री
वामस्वभाव —वि॰—वाम-स्वभाव—-—उत्तम चरित्रयुक्त व्यक्ति
वामहस्तः —पुं॰—वाम-हस्तः—-—बकरी के गले का निरर्थक स्तन
वामदेव्यम् —नपुं॰—-—-—साममंत्र समूह जिसका नाम उसके प्रवर्तक ऋषि वामदेव के नाम पर पड़ गया
वामनीकृत —वि॰—-—वामन+च्वि+कृ+क्त—बौना बना हुआ,कद में छोटा बनाया हुआ
वायसविद्या —स्त्री॰—-—-—शकुन की विद्या जो कौवों के निरीक्षण से जानी जाती है
वायुकुम्भः —पुं॰—-—-—हाथी के चेहरे का एक भाग
वायुभक्षः —पुं॰—-—-—जो वायु खाकर जीवित रहता है
वायुस्कन्धः —पुं॰—-—-—वायुप्रदेश
वार्घटीयन्त्रम् —नपुं॰—-—-—रहट,पानी निकालने का यन्त्र
वार्धनी —स्त्री॰—-—-—पानी की सुराही
वारण —वि॰—-—वृ+णिच्+ल्युट्—हटाने वाली
वारणम् —नपुं॰—-—वृ+णिच्+ल्युट्—हटाना,रोकना
वारणम् —नपुं॰—-—वृ+णिच्+ल्युट्—विघ्न,बाधा
वारणम् —नपुं॰—-—वृ+णिच्+ल्युट्—दरवाजा,किवाड़
वारणः —पुं॰—-—-—हाथी की सूँड
वारणकृच्छः —पुं॰—वारण-कृच्छः—-—एक व्रत का नाम
वारणपुष्पः —पुं॰—वारण-पुष्पः—-—पौधे की एक जाति
वाराशिः —पुं॰—-—वार्+राशिः—समुद्र
वारि —नपुं॰—-—वृ+इञ्—तरल या पिघला हुआ या बहने वाला पदार्थ
वारिकूटः —पुं॰—वारि-कूटः—-—गाँव के चरों ओर की खाई,परिखा
वारिपिण्डः —पुं॰—वारि-पिण्डः—-—चट्टान का मेंढक
वारिभवः —पुं॰—वारि-भवः—-—शंख
वारिसाम्यम् —नपुं॰—वारि-साम्यम्—-—दूध
वारुणी —स्त्री॰—-—वरुण+अण्—शराब का विशेष प्रकार
वारुढः —पुं॰—-—-—समुद्रतट,समुद्रवेला
वारुढः —पुं॰—-—-—किवाड़् का दल
वार्तानुकर्षकः —पुं॰—-—-—चर
वार्तानुकर्षकः —पुं॰—-—-—दूत
वार्तानुकर्षकः —पुं॰—-—-—वृतवाहक
वार्तायनः —पुं॰—-—-—वृतवाहक
वार्ताकर्मन् —नपुं॰—-—-—खेती और मुर्गी पालन का व्यवसाय
वार्तापतिः —पुं॰—-—-—नियोजक,काम देने वाला,स्वामी
वार्त्रघ्नीन्यायः —पुं॰—-—-—मीमांसा का एक नियम जिसके अनुसार विवरण यदि मुख्य सामग्री के साथ उपयुक्त न लगे तो उसे सहायक सामग्री के साथ जोड़ दिया जाए
वार्दरम् —नपुं॰—-—-—दक्षिणावर्त शंख
वार्दलम् —नपुं॰—-—-—बरसात का दिन
वार्धेयम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
वार्ध्राणस् —पुं॰—-—-—एक पक्षी
वार्ध्राणस् —पुं॰—-—-—बुढ़ी बकरी
वालुकायन्त्रम् —नपुं॰—-—-—रेत से स्नान करना,शरीर पर रेत मलना
वावात —वि॰—-—-—प्रिय,प्रीतिभाजन,स्नेहभाजन
वासः —पुं॰—-—बस्+घञ्—सुगन्ध
वासः —पुं॰—-—बस्+घञ्—एक दिन की यात्रा
वासः —पुं॰—-—बस्+घञ्—वासना
वासः —पुं॰—-—बस्+घञ्—स्वरुप,आकृति
वासपर्ययः —पुं॰—वासः-पर्ययः—-—आवासस्थान का परिवर्तन
वासप्रासादः —पुं॰—वासः-प्रासादः—-—महल
वासना —स्त्री॰—-—वास्+युच्+टाप्—प्रमाण,प्रदर्शन
वासनामय —वि॰—-—-—भाव तथा भावनाओं से युक्त
वासित —वि॰—-—वास्+क्त—पवित्रीकृत,शिक्षित,उन्नीत,सुधारा गया
वासरम् —नपुं॰—-—वास्+अर—दिन
वासरः —पुं॰—-—वास्+अर—समय,बारी
वासरः —पुं॰—-—वास्+अर—एक नाम का नाम
वासरकन्यका —स्त्री॰—वासरः-कन्यका—-—रात
वासरकृत् —पुं॰—वासरः-कृत्—-—रात
वासरमणिः —पुं॰—वासरः-मणिः—-—सूर्य
वासविः —पुं॰—-—-—इन्द्र का पुत्र जयन्त
वासवेयः —पुं॰—-—वासवी+ढक्—व्यास का नाम
वासस् —नपुं॰—-—वस्+णिच्+अस्—वस्त्र
वासस् —नपुं॰—-—वस्+णिच्+अस्—कफन
वासस् —नपुं॰—-—वस्+णिच्+अस्—पर्दा
वासोदकम् —नपुं॰—वासस्-उदकम्—-—वस्त्र की निचोड़ने पर उससे निकला हुआ पानी जो प्रेतात्माओं को उपह्रत किया जाता है
वासवृक्षः —पुं॰—वासस्-वृक्षः—-—आश्रयपादप,शरण प्रदान करने वाला पेड़
वासिष्ठम् —नपुं॰—-—-—रक्त,रुधिर,खून
वासिष्ठरामायणम् —नपुं॰—-—-—एक ग्रन्थ का नाम
वास्तु —पुं॰नपुं॰—-—वस्+तुण्—भवन बनाने के निमित्त नियत भूमिखण्ड
वास्तु —पुं॰नपुं॰—-—वस्+तुण्—आवास
वास्तु —पुं॰नपुं॰—-—वस्+तुण्—सभाभवन
वास्तुकर्मन् —नपुं॰—वास्तु-कर्मन्—-—भवन निर्माण करना,भवन का प्रारुप
वास्तुज्ञानम् —नपुं॰—वास्तु-ज्ञानम्—-—वास्तु कला,भवन निर्माण का प्रारुप या अभिकल्प
वास्तुदेवता —स्त्री॰—वास्तु-देवता—-—भवन की अधिष्ठात्री देवता
वास्तुविद्या —स्त्री॰—वास्तु-विद्या—-—स्थापत्य कला,भवन निर्माण विज्ञान
वास्तुनिधानम् —नपुं॰—वास्तु-निधानम्—-—भवन संरचना
वास्तुक —वि॰—-—-—यज्ञ भूमि पर अवशिष्ट रही सामग्री
वाहः —पुं॰—-—वह्+घञ्—ले जाने वाला
वाहः —पुं॰—-—वह्+घञ्—भारवाहक
वाहः —पुं॰—-—वह्+घञ्—घोड़ा
वाहः —पुं॰—-—वह्+घञ्—सवारी
वाहवारः —पुं॰—वाहः-वारः—-—घुड़सवार
वाहरिपुः —पुं॰—वाहः-रिपुः—-—भैसा
वाहवाहः —पुं॰—वाहः-वाहः—-—रथवान,रथ को हाँकने वाला
वाहवाहनम् —पुं॰—वाहः-वाहनम्—-—चप्पू,वाहम् अग्नि
विराज् —पुं॰—-—-—पक्षियों का राजा,बाज पक्षी
विक —वि॰,ब॰स॰—-—-—अप्रसन्न
विकच —वि॰—-—विकच्+अच्—खिला हुआ,खुला हुआ
विकच —वि॰—-—विकच्+अच्—फैला हुआ,बखेरा हुआ
विकच —वि॰—-—विकच्+अच्—केशशून्य
विकच —वि॰—-—विकच्+अच्—चमकीला,देदीप्यमान
विकचश्री —वि॰—विकच-श्री—-—उज्जवल सौ से युक्त,अनिन्द्य लावण्य से सम्पन्न
विकचित —वि॰—-—विकच+इतच्—खुला हुआ,खिला हुआ
विकटम् —नपुं॰—-—-—सफेद संखिया
विकथा —स्त्री॰—-—-—असंगत बातें
विकर्तु —वि॰—-—वि+कृ+तृच्—बाधा डालने वाला
विकवच —वि॰,ब॰स॰—-—-—कवचहीन,जिसके पास जिरह बख्तर न हो
विकाङ्क्षा —स्त्री॰—-—वि+काङ्क्ष+अङ्+टाप्—मिथ्या उक्ति
विकाङ्क्षा —स्त्री॰—-—वि+काङ्क्ष+अङ्+टाप्—इच्छा न होना
विकाङ्क्षा —स्त्री॰—-—वि+काङ्क्ष+अङ्+टाप्—संकोच
विकार्यः —पुं॰—-—वि+कृ+ण्यत्—अहं,अहंकार,अभिमान
विकाशः —पुं॰—-—वि+काश्+अच्—उज्ज्वलता
विकुक्षि —वि॰—-—-—बड़े पेट वाला,उभरी हुई तोंद वाला
विकूबर —वि॰—-—-—जिसमें कोई लम्बी लकड़ी न लगी हो
विकृ —तना॰उभ॰—-—-—बदनाम करना,कलङ्क लगाना
विकृत —वि॰—-—वि+कृ+क्त—परिवर्तित,बदला हुआ
विकृत —वि॰—-—वि+कृ+क्त—अपूर्ण,अधूरा
विकृत —वि॰—-—वि+कृ+क्त—अप्राकृतिक
विकृत —वि॰—-—वि+कृ+क्त—आश्चर्यजनक
विकृत —वि॰—-—वि+कृ+क्त—विरक्त
विकृतम् —नपुं॰—-—वि+कृ+क्त—परिवर्तन
विकृतम् —नपुं॰—-—वि+कृ+क्त—रोग
विकृतम् —नपुं॰—-—वि+कृ+क्त—अरुचि
विकृतम् —नपुं॰—-—वि+कृ+क्त—गर्भस्राव
विकृतम् —नपुं॰—-—वि+कृ+क्त—दुष्कृत्य
विकटनितम्बा —स्त्री॰—-—-—एक कवियित्री का नाम
विकटनितम्बा —स्त्री॰—-—-—डा० राघवन रचित‘एकांकी’
विकृतिः —स्त्री॰—-—वि+कृ+क्तिन्—शत्रुता
विकृतिः —स्त्री॰—-—वि+कृ+क्तिन्—आभास
विकृतिः —स्त्री॰—-—वि+कृ+क्तिन्—गर्भस्राव
विकृतिः —स्त्री॰—-—वि+कृ+क्तिन्—व्युत्पन्न
विकर्षणम् —नपुं॰—-—वि+कष्+ल्युट्—भोजन से विरक्ति
विकर्षणम् —नपुं॰—-—-—अन्वेषण
विकृष्टसीमन्त —वि॰—-—-—जिसकी सीमाएँ वर्धित की गई हैं
विकृ —तुदा॰पर॰—-—-—आह भरना
विकिरः —पुं॰—-—वि+कृ+अच्—कुछ गौण पितरों को प्रसन्न करने के लिए बखेरा गया चावल
विक्लृप् —भ्वा॰आ॰—-—-—दुविधा का वर्णन करना
विक्लृप् —भ्वा॰आ॰—-—-—विचार करना
विकल्पः —पुं॰—-—विक्लृप्+घञ्—उत्पति
विकल्पः —पुं॰—-—-—मान लेना,उक्ति
विकल्पः —पुं॰—-—-—उत्प्रेक्षा,कल्पका
विकल्पित —वि॰—-—विक्लृप्+क्त—तत्पर,व्यवस्थित
विकल्पित —वि॰—-—विक्लृप्+क्त—संदिग्ध,कल्पित
विकल्पित —वि॰—-—विक्लृप्+क्त—विभक्त
विकेशतारका —स्त्री॰—-—-—धूमकेतु,पुच्छलतारा
विक्रम् —भ्वा॰आ॰—-—-—पराक्रम दिखाना
विक्रमः —पुं॰—-—विक्रम+घञ्—गुरु स्वर,उदात्त स्वराघात
विक्रमः —पुं॰—-—विक्रम+घञ्—जन्म कुण्डली में लग्न से तीसरा घर
विक्रमितम् —नपुं॰—-—विक्रम्+णिच्+क्त—पराक्रम,शौर्य
विक्रिया —स्त्री॰—-—विकृ+श+टाप्—चोट,आघात,हानि
विक्रिया —स्त्री॰—-—विकृ+श+टाप्—लोप
विक्रयः —पुं॰—-—वि+की+अच्—बिक्री
विक्रयः —पुं॰—-—वि+की+अच्—विक्रयमूल्य
विक्रयः —पुं॰—-—वि+की+अच्—मण्डी
विक्रयपत्रम् —नपुं॰—विक्रयः-पत्रम्—-—बिक्री का दस्तावेज
विक्रयवीथीः —स्त्री॰—विक्रयः-वीथीः—-—बाजार
विक्रीडः —पुं॰—-—वि+क्रीड्+अच्—खेल का मैदान
विक्रीडः —पुं॰—-—वि+क्रीड्+अच्—खिलौना
विक्रोष्टट् —पुं॰—-—विकुश्+तृच्—जो सहायता की पुकार करता है
विक्लवम् —नपुं॰—-—वि+क्लु+अच्—क्षोभ
विक्लवता —स्त्री॰—-—विक्लव+तल्+टाप्—भीरुता,कायरता
विक्षिप् —तुदा॰पर॰—-—-—दबाना
विक्षिप् —तुदा॰पर॰—-—-—उछालना
विक्षिप् —तुदा॰पर॰—-—-—झुकना
विक्षिप्त —वि॰—-—विक्षिप्+क्त—विस्तारित,प्रसारित फैलाया गया
विक्षेपः —वि॰—-—विक्षिप्+घञ्—अवहेलना
विक्षेपः —वि॰—-—विक्षिप्+घञ्—विस्तार
विगतक्लम —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसकी थकान दूर हो गई है
विगतासु —वि॰,ब॰स॰—-—-—निष्प्राण,मृतक
विगद —वि॰,ब॰स॰—-—-—रोग से मुक्त
विगर्हिताचार —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसका आचरण निद्य है,घृणित आचरण से युक्त
विग्रहग्रहणम् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—रुप धारण करना,शरीर या मूर्ति धारण करना
विग्रहेच्छुः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—लड़ाई का इच्छुक
विग्रहिन् —पुं॰—-—विग्रह+इनि—युद्ध मंत्री
विघसम् —नपुं॰—-—वि+अद्+अप्,घसादेशः—मोम
विघसम् —नपुं॰—-—वि+अद्+अप्,घसादेशः—अधचबा कौर
विघसाशः —पुं॰—विघसम्-आशः—-—जो खाने से बचे हुए उच्छिष्ट भोजन को करता है,कौवा
विघ्नोपशान्तिः —स्त्री॰—-—-—बाधाओं को हटाना
विचक्ष —अदा॰आ॰—-—-—कहना,घोषणा करना
विचक्ष —अदा॰आ॰—-—-—प्रकट करना
विचक्ष —अदा॰आ॰—-—-—सोचना,अटकल लगाना
विचटनम् —नपुं॰—-—विचट्+ल्युट्—तोड़ना
विचन्द्र —वि॰,ब॰स॰—-—-—चन्द्रहीन,चन्द्रमा से रहित
विचर् —भ्वा॰पर॰—-—-—चरना,घास खाना
विचर् —भ्वा॰पर॰—-—-—भूल हो जाना,गलती करना
विचर —वि॰—-—विचर्+अच्—भान्त,विचलित
विचारमूढ —वि॰—-—-—निर्णय करने में अज्ञानी
विचर्मन् —वि॰—-—-—कवचहीन,जिसके पास जिरह बख्तर न हो
विचलित —वि॰—-—विचल्+क्त—पथभ्रष्ट,सहीमार्ग से भटका हुआ
विचलित —वि॰—-—विचल्+क्त—अवलुप्त,अन्धा किया हुआ
विचालिन् —वि॰—-—विचाल+इनि—अस्थिर,परिवर्त्य,अस्फुट
विचिकित्सित —वि॰—-—-—संदिग्ध,संदेह पूर्ण
विचित्रित —वि॰—-—बिचित्र+इतच्—रंगा हुआ,सजाया हुआ,रंगविरंगा
विचिन्तनम् —नपुं॰—-—विचिन्त्+ल्युट्—विचार,चिन्तनम्
विचिन्तनम् —नपुं॰—-—विचिन्त्+ल्युट्—देख-भाल,चिन्ता,फिकर
विचिन्ता —स्त्री॰—-—विचिन्त्+अच्+टाप्—विचार,चिन्तनम्
विचिन्ता —स्त्री॰—-—विचिन्त्+अच्+टाप्—देख-भाल,चिन्ता,फिकर
विचेयम् —नपुं॰—-—विचि+ण्यत्—गवेषणीय
विचेष्टनम् —नपुं॰—-—विचेष्ट+ल्युट्—हाथ पैर हिलाना,प्रयास करना
विचेष्टा —स्त्री॰—-—विचेस्ट्+अङ्+टाप्—प्रयत्न
विचेष्टा —स्त्री॰—-—विचेस्ट्+अङ्+टाप्—गति
विचेष्टा —स्त्री॰—-—विचेस्ट्+अङ्+टाप्—संचरण
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—चीरा हुआ,फाड़ा हुआ
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—तोड़ा हुआ,बांटा हुआ
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—चितकबरा
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—समाप्त किया हुआ
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—गुप्त
विच्छिन्न —वि॰—-—विच्छिद्+क्त—उबटन आदि लेप किया हुआ
विच्छिन्नाहुतिः —स्त्री॰—विच्छिन्न-आहुतिः—-—आहुति देना
विच्छिन्नभङ्ग —वि॰—विच्छिन्न-भङ्ग—-—करके
विच्छिन्नौपासनम् —नपुं॰—विच्छिन्न-औपासनम्—-—नित्य सन्ध्योपासना करना जिसका नैरन्तर्य भङ्ग हो गया हो-अर्थात् कभी करना कभी न करना
विच्छिन्नप्रसर —वि॰—विच्छिन्न-प्रसर—-—जिसकी प्रगति में बाधा पड़् गई है
विच्छिन्नमद्य —वि॰—विच्छिन्न-मद्य—-—जिसने सुरापान छोड़ दिया है
विच्छेदः —पुं॰—-—विच्छिद्+घञ्—भेद,प्रकार
विच्छुरणम् —नपुं॰—-—विच्छुर्+ल्युट्—बिखेरना,छिटकाना,बुरकना
विजङ्घ —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसके पहिये न हों
विजङ्घचक्र —वि॰—विजङ्घ-चक्र—-—हीन
विजल —वि॰,ब॰स॰—-—-—जलहीन,जहाँ पानी न हो
विजर्जर —वि॰—-—-—जीर्णशीर्ण,टुटा-फूटा
विजर्जर —वि॰—-—-—विध्वस्त,उच्छिन्न
विजयः —पुं॰—-—विजि+अच्—जीत,फतह
विजयः —पुं॰—-—विजि+अच्—एक विशिष्ट मुहूर्त
विजयः —पुं॰—-—विजि+अच्—तीसरा महीना
विजयः —पुं॰—-—विजि+अच्—एक प्रकार का सैन्यव्यूह
विजयोर्जित —वि॰—विजयः-ऊर्जित—-—जीत से प्रोत्साहित
विजयदण्डः —पुं॰—विजयः-दण्डः—-—सेना की एक विशेष टुकड़ी
विजिघित्स —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसकी भूख नष्ट हो गई हो
विजिहीर्षा —स्त्री॰—-—वि+ह्र+सन्+अ+टाप्—इधर-उधर घूमने या खेलने की इच्छा
विजृम्भिका —स्त्री॰—-—-—साँस लेने के लिए मुँह खोलना
विजृम्भिका —स्त्री॰—-—-—जम्हाई लेना
विजृम्भित —वि॰—-—विजृम्भ्+क्त—जो जम्हाई ले चुका है
विजृम्भित —वि॰—-—विजृम्भ्+क्त—जम्हाई लेने वाला
विज्जिका —स्त्री॰—-—-—एक कवयित्री का नाम
विज्ञानम् —नपुं॰—-—विज्ञा+ल्युट्—ज्ञान का अंग या बुद्धि
विज्ञानम् —नपुं॰—-—विज्ञा+ल्युट्—इन्द्रियातीत ज्ञान
विज्ञानभिक्षुः —पुं॰—-—-—एक बौद्ध लेखक का नाम
विज्ञानस्कन्धः —पुं॰—-—-—बौद्ध दर्शन के पाँच स्कन्धों में से एक
विज्ञेय —वि॰—-—वि ज्ञा+ण्यत्—जानने के योग्य संज्ञेय
विज्ञेय —वि॰—-—वि ज्ञा+ण्यत्—जिसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए
विज्ञेय —वि॰—-—वि ज्ञा+ण्यत्—जिसका ध्यान रक्खा जाय
विज्य —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसमें डोरी या ज्या न हो
विटकान्ता —स्त्री॰—-—-—हल्दी,हरिद्रा
विटकान्ता —स्त्री॰—-—-—हल्दी का पौधा
विटङ्कः —वि॰—-—-—उत्तम,सुन्दर,मनोरम
विटपः —पुं॰—-—विट+पा+क—लता,बेल
विडभ्बक —वि॰—-—वि+डम्ब्+ण्वुल्—नकल करने वाला,
विडम्ब्यम् —नपुं॰—-—विडम्ब+यत्—दिल्लगी की चीज,उपहास की वस्तु
वितर्कः —पुं॰—-—वितर्क्+अच्—मिथ्या अनुमान
वितर्कः —पुं॰—-—वितर्क्+अच्—इरादा
वितर्कपदवी —स्त्री॰—वितर्कः-पदवी—-—अनुमान के क्षेत्र के अन्तर्गत
वितानः —पुं॰—-—वितन+घञ्—शामियाना,चंदोआ
वितानः —पुं॰—-—वितन+घञ्—राशि,ढेर
वितानः —पुं॰—-—वितन+घञ्—बहुतायत
वितानः —पुं॰—-—वितन+घञ्—अनुष्ठान
वितानः —पुं॰—-—वितन+घञ्—निष्पति
वितानम् —नपुं॰—-—वितन+घञ्—शामियाना,चंदोआ
वितानम् —नपुं॰—-—वितन+घञ्—राशि,ढेर
वितानम् —नपुं॰—-—वितन+घञ्—बहुतायत
वितानम् —नपुं॰—-—वितन+घञ्—अनुष्ठान
वितानम् —नपुं॰—-—वितन+घञ्—निष्पति
वितानकः —पुं॰—-—वितान+कन्—राशि,ढेर
वितार —वि॰—-—-—जिसमें तारे न हों
वितार —वि॰—-—-—धूमकेतु के शीर्षभाग से रहित
वितृप्त —वि॰—-—वितृप्+क्त—संतुष्ट,संतृप्त
वितविश्राणनम् —नपुं॰—-—-—मूल्यवान उपहारों का वितरण
विदत् —वि॰—-—विद्+शतृ—जानने वाला
विदत् —वि॰—-—विद्+शतृ—समझदार
विदितात्मन् —वि॰—-—-—जो अपने आप को जानता है
विदितात्मन् —वि॰—-—-—प्रसिद्ध
विदुरः —पुं॰—-—विद्+कुरच्—वेत्ता,ज्ञाता
विदुषः —पुं॰—-—-—वेत्ता,ज्ञाता
विदुषी —स्त्री॰—-—-—जानने वाली,समझदार स्त्री
विदग्ध —वि॰—-—विदह्+क्त—परिपक्व
विदग्ध —वि॰—-—विदह्+क्त—दक्ष
विदग्ध —वि॰—-—विदह्+क्त—भूरा,ईषद्रक्त,कुछ-कुछ लाल
विदग्ध —वि॰—-—विदह्+क्त—जला हुआ,भस्मी भूत
विदग्ध —वि॰—-—विदह्+क्त—पचा हुआ
विदग्धपरिषद् —स्त्री॰—विदग्ध-परिषद्—-—चतुर पुरुषों का समाज
विदग्धमुखमण्डनम् —नपुं॰—विदग्ध-मुखमण्डनम्—-—एक ग्रन्थ का नाम
विदग्धवचन —वि॰—विदग्ध-वचन—-—वाग्मी,वाकपटु
विदण्डः —पुं॰—-—-—दरवाजे की कुंजी
विदश —वि॰—-—-—जिसके मगजी या झालर अथवा किनारी न लगी हो
विदायः —पुं॰—-—-—बिदा करना
विदुरनीतिः —स्त्री॰—-—-—महाभारत के पाँचवें पर्व में ३३ से ४० तक अध्याय। यहाँ धृतराष्ट्र ने नीति पर व्याख्यान दिया है
विदुरप्रजागरः —पुं॰—-—-—महाभारत के पाँचवें पर्व में ३३ से ४० तक अध्याय। यहाँ धृतराष्ट्र ने नीति पर व्याख्यान दिया है
विदूर संश्रव —वि॰—-—-—जो दूर से सुनाई दे
विदृतिः —स्त्री॰—-—-—खोपड़ी की सन्धि या सीवन
विदेशज —वि॰—-—-—विदेश में उत्पन्न
विदेहमुक्तिः —स्त्री॰—-—-—मोक्ष के कारण जन्म मरण से अर्थात् शरीर से छुटकारा
विदोहः —पुं॰—-—विदुह्+घञ्—अतिरिक्त लाभ
विद्वसालभञ्जिका —स्त्री॰—-—-—हर्षदेवकृत एक नाटक
विद्या —स्त्री॰—-—विद्+क्यप्+टाप्—दुर्गा देवी
विद्या —स्त्री॰—-—विद्+क्यप्+टाप्—सरस्वती देवी
विद्या —स्त्री॰—-—विद्+क्यप्+टाप्—ज्ञान,शिक्षा
विद्यातुर —वि॰—विद्या-आतुर—-—जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए उतावला हो
विद्येशः —पुं॰—विद्या-ईशः—-—शिव का नाम
विद्याकोशगृहम् —नपुं॰—विद्या-कोशगृहम्—-—पुस्तकालय
विद्याकोशसङ्ग्रह —नपुं॰—विद्या-कोशसङ्ग्रह—-—पुस्तकालय
विद्याकोशसमाश्रयः —पुं॰—विद्या-कोशसमाश्रयः—-—पुस्तकालय
विद्याबलम् —नपुं॰—विद्या-बलम्—-—जादू की शक्ति
विद्याभाज् —वि॰—विद्या-भाज्—-—शिक्षित,पढ़ालिखा
विद्यावङ्शः —पुं॰—विद्या-वङ्शः—-—अध्ययन की किसी विशिष्टशाखा के अध्यापकों की कालक्रमानुसार सूची
विद्युतसम्पातम् —अ॰—-—-—एक क्षण में,बिजली जैसी तेजी से
विद्योत —वि॰—-—विद्युत+घञ्—चकाचौंध करने वाला,चमचमाने वाला
विद्रुतिः —स्त्री॰—-—वि+द्रु+क्तिन्—दौड़ जाना,भाग जाना
विद्राण —वि॰—-—वि+ द्रा+क्त,नस्य णत्वम्—जागरुक,निद्रारहित
विद्राण —वि॰—-—वि+ द्रा+क्त,नस्य णत्वम्—निराश,उदास
विद्वद्गोष्ठी —स्त्री॰—-—-—विद्वान् पुरुषों की सभा विद्वन्मण्डली
विद्वत्सदस् —स्त्री॰—-—-—विद्वान् पुरुषों की सभा विद्वन्मण्डली
विद्वत्सभा —स्त्री॰—-—-—विद्वान् पुरुषों की सभा विद्वन्मण्डली
विधन —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—निर्धन,धनहीन
विधर्म —वि॰—-—-—अधर्मी,अन्यायी
विधर्म —वि॰—-—-—अधर्मकार्य जो अच्छे आशय से किया गया हो
विधर्मिन् —वि॰—-—विधर्म+इनि—भिन्न वर्ग से संबंध रखने वाला
विधर्मिन् —वि॰—-—विधर्म+इनि—अधर्मी
विधा —जुहो॰उभ॰—-—-—लीन करना,उपभोग करना
विधा —स्त्री॰—-—वि+धा+क्विप्—उच्चारण
विधातृ —पुं॰—-—वि+धा+तृच्—माया,भ्रान्ति
विधानम् —नपुं॰—-—विधा+ल्युट्—प्रयत्न,प्रयास
विधानम् —नपुं॰—-—विधा+ल्युट्—उपचार
विधानम् —नपुं॰—-—विधा+ल्युट्—भाग्य,नियति
विधानम् —नपुं॰—-—विधा+ल्युट्—विधि
विधानम् —नपुं॰—-—विधा+ल्युट्—विभिन्न रसों का संघर्ष
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—उपयोग,प्रयोग
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—अनुष्ठान,अभ्यास
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—प्रणाली,रीति,ढंग
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—नियम
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—कानून
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—धर्मकृत्य
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—व्यवहार
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—आचरण
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—सृष्टि
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—निर्माण
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—भाग्य
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—हाथी का आहार
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—वैद्य
विधिः —पुं॰—-—वि+धा+ कि—उपाय,तरकीब
विध्यन्तः —पुं॰—विधिः-अन्तः—-—विधिपरक मूल पाठ का उपसंहारात्मक भाग
विध्यर्थः —पुं॰—विधिः-अर्थः—-—विधि का आशय
विधिकर —वि॰—विधिः-कर—-—विधान को कर्य में परिणत करने वाला
विधियज्ञः —पुं॰—विधिः-यज्ञः—-—विधिविधान के अनुसार अनुष्ठित यज्ञ
विधिलक्षणम् —नपुं॰—विधिः-लक्षणम्—-—विधि का स्वरुप
विधिलोपः —पुं॰—विधिः-लोपः—-—विधान का अतिक्रमण
विधिविपर्ययः —पुं॰—विधिः-विपर्ययः—-—दुर्भाग्य
विधिविपर्यासः —पुं॰—विधिः-विपर्यासः—-—दुर्भाग्य
विधिविभक्तिः —स्त्री॰—विधिः-विभक्तिः—-—विधिलिङ्ग के प्रत्यय
विधिवशात् —अ॰—विधिः-वशात्—-—भाग्य से
विधुः —पुं॰—-—व्यध्+कु—चन्द्रमा
विधुः —पुं॰—-—व्यध्+कु—कपूर
विधुः —पुं॰—-—व्यध्+कु—राक्षस
विधुः —पुं॰—-—व्यध्+कु—प्रायश्चिताहुति
विधुपरिध्वङ्सः —पुं॰—विधुः-परिध्वङ्सः—-—चन्द्रग्रहण
विधुमण्डलम् —नपुं॰—विधुः-मण्डलम्—-—चन्द्रमा का परिवेश
विधुमासः —पुं॰—विधुः-मासः—-—चान्द्र महीना
विधुर —वि॰—-—विगता धूर्यस्य अच् समा॰—विवश,असहाय
विधुर —वि॰—-—विगता धूर्यस्य अच् समा॰—अशक्त,अवसन्न
विधुरित —वि॰—-—विधुर+इतच्—विवर्ण,कान्तिहीन
विधूम —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—धूएँ से रहित
विधारणम् —नपुं॰—-—विधृ+णिच्+ल्युट्—गिरफ्तार करना,रोकना
विध्र —वि॰—-—विन्ध्रि+क्रन्,नलोपश्च—निष्कलंक,कलंकरहित
विनग्न —वि॰—-— वि+नज्+क्त—बिल्कुल नंगा,विवस्त्र
विनर्दिन् —वि॰—-— विनर्द्+णिनि—गरजने वाला
विनयः —पुं॰—-— वि+नी+अप्—दण्ड
विनयः —पुं॰—-— वि+नी+अप्—कार्यालय
विनयकर्मन् —नपुं॰,ष॰त॰—-—-—निर्देश,शिक्षण
विनाशकालः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—विपति का समय
विनाशहेतु —वि॰,ब॰स॰—-—-—जो नाश का कारण हो
विनाकृत —वि॰—-— विना+कृ+क्त—वञ्चित,रहित,मुक्त
विनाकृत —वि॰—-— विना+कृ+क्त—वियुक्त,एकाकी
विनाभावः —पुं॰—-— विना+कृ+क्त—वियोग
विनायकः —पुं॰—-— वि+नी+ण्वुल्—नेता,अग्रणी
विनिकृत —वि॰—-— वि+नि+कृ+क्त—दुर्व्यवहारग्रस्त,आहत,विकलीकृत
विनिगमना —स्त्री॰—-— वि+नि+गम्+युच्+टाप्—संकल्प,निश्चित उपसंहार,कुछ स्वीकार करके शेष को निकाल देना
विनिबर्हण —वि॰—-—नि+नि+बर्ह्+ल्युट्—परास्त करने वाला,हराने वाला
विनियुज —रुधा॰उभ॰—-—-—छोड़ना,मारना
विनियोक्तृ —वि॰—-—वि+नि+युज्+तृच्—काम देने वाला,स्वामी
विनियोगः —पुं॰—-—वि+नि+युज्+तृच्—प्रयोग,उपयोग
विनियोगः —पुं॰—-—वि+नि+युज्+तृच्—सहसम्बन्ध
विनिर्वृत —वि॰—-—वि निः+वृत्+क्त—पैदा हुआ,निकल आया
विनिर्वृत —वि॰—-—वि निः+वृत्+क्त—संपूर्ण हुआ,पूरा हुआ
विनिवेशनम् —नपुं॰—-—विनि+विश्+णिच्+ल्युट्—उठान,निर्माण
विनिहित —वि॰—-—विनि+धा+क्त—रक्खा हुआ,पड़ा हुआ
विनिहित —वि॰—-—विनि+धा+क्त—नियुक्त
विनिहित —वि॰—-—विनि+धा+क्त—जड़ा हुआ
विनिह्नुत —वि॰—-— विनि+ह्नु+क्त—मुकरा हुआ,न अपनाया हुआ
विनिह्नुत —वि॰—-— विनि+ह्नु+क्त—छिपा हुआ,छिपाया हुआ
विनी —भ्वा॰पर॰—-—-—दूर रहना,दूर करना
विनीत —वि॰—-— विनी+क्त—फैलाया हुआ
विनीतवेषः —पुं॰—-—-—सामान्य वेषभूषा
विनेयः —पुं॰—-— वि+नी+ण्यत्—शिष्य,छात्र विनीतविनेय
विनोदपरः —पुं॰—-—-—क्रीडाशील,मनोरंजन में व्यक्त,आमोदप्रिय
विनोदरसिकः —पुं॰—-—-—क्रीडाशील,मनोरंजन में व्यक्त,आमोदप्रिय
विनोदस्थानम् —नपुं॰—-—-—मनोरंजन का स्थान,वन विहार
विन्यसनम् —नपुं॰—-— विनि+अस्+ल्युट्—रखना,धरना
विन्यासः —पुं॰—-—व्नि+अस्+घञ्—धारण करना
विन्यासः —पुं॰—-—व्नि+अस्+घञ्—बीच में घुसेड़ना
विन्यासः —पुं॰—-—व्नि+अस्+घञ्—गति,स्थिति
विपक्षः —पुं॰,प्रा॰ब॰—-—-—निष्पक्षता,तटस्थता
विपक्षः —पुं॰—-—-—वह दिन जब कि चन्द्रमा एक पक्ष से दूसरे पक्ष में संक्रमण करता है
विपाटः —पुं॰—-—विपट्+घञ्—एक प्रकार का बाण,तीर
विपाटित —वि॰—-—विपट्+णिच् क्त—फाड़ा हुआ,टुकडे-टुकडे किया हुआ
विपणः —पुं॰—-—वि+पण्+अच्—कार्यभार ग्रहण,व्यापार,व्यवसाय
विपणिजीविका —स्त्री॰,ष॰त॰—-—-—क्रयविक्रय या व्यापार के द्वारा जीवननिर्वाह करना
विपणिवीथी —स्त्री॰,ष॰त॰—-—-—मण्डी,बाजार
विपण्यु —वि॰—-—-— जिसने व्यवसाय छोड़ दिया है
विपण्यु —वि॰—-—-—तटस्थ,उदासीन
विपत्तिः —स्त्री॰—-—विपद्+क्तिन्—अवसान,समाप्ति
विपत्तिकालः —पुं॰,ष॰त॰—-—-— विपत्ति का समय
विपन्नदीधिति —वि॰,ब॰स॰—-—-—कान्तिहीन,निष्प्रभ
विपरिक्रान्त —वि॰—-—-—साहसी,बलशाली
विपर्ययः —पुं॰—-—वि॰+परि+इ+अच्—मिथ्याबोध,गलतफहमी
विपर्यासः —पुं॰—-—विपरि+अस्+घञ्—ह्रास
विपर्यासः —पुं॰—-—विपरि+अस्+घञ्—मृत्यु
विपर्यासोपमा —स्त्री॰—विपर्यासः-उपमा—-—उल्टी उपमा
विपाकः —पुं॰—-—वि+पच्+घञ्—कुम्हलाना,मुरझाना
विपाकदारुण —वि॰—विपाकः-दारुण—-—परिणाम में भयंकर
विपाकदोषः —पुं॰—विपाकः-दोषः—-—अग्निमांद्य,अजीर्ण
विपिनौकस —पुं॰,ब॰स॰—-—-—लंगूर
विपिनौकस —पुं॰,ब॰स॰—-—-—जंगली जन्तु
विपुंसक —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—पुंस्त्वहीन,जिसमें पौरुष न हो
विपुलग्रीव —वि॰,ब॰स॰—-—-—लम्बी गर्दन वाला
विपुष्ट —वि॰—-—वि+पुष्+क्त—जिसे पूरा आहार न मिला हो,जिसे पूरा पोषण न मिला हो
विपूयकम् —नपुं॰—-—वि+पू+क्यप्,स्वार्थे कन् च्—सड़ांध,दुर्गध
विप्रः —पुं॰—-—वप्+रन्,अत इत्वम्—भाद्रपद का महीना
विप्रकृ —तना॰उभ॰—-—-—नियत करना,स्वीकार करना
विप्रकारः —पुं॰—-—विप्र+कृ+घञ्—विविधरीति
विप्रकारः —पुं॰—-—विप्र+कृ+घञ्—दुष्कृत्य,गलत तरीका
विप्रकृतिः —स्त्री॰—-—वि+प्रकृ+क्तिन्—परिवर्तन
विप्रकर्षः —पुं॰—-—विप्र+कृष्+घञ्—खींचकर दूर करना
विप्रकर्षः —पुं॰—-—विप्र+कृष्+घञ्—से व्यंजनों के बीच में कोई स्वर जो उन् दोनों की भिन्नता दर्शावे
विप्रतिपद —दिवा॰आ॰—-—-—मिथ्या उतर देना
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—वि+प्रति+पद्+क्तिन्—विरोधी भावना
विप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—-—वि+प्रति+पद्+क्तिन्—गलती त्रुटि
विप्रतिपन्न —वि॰—-—विप्रति+पद्+क्त—परस्पर सयुक्त,आपस में मिले हुए
विप्रतिपन्नबुद्धि —वि॰—विप्रतिपन्न-बुद्धि—-—मिथ्या विचार या धारणा रखने वाला
विप्रत्ययः —पुं॰—-—वि+प्रति+इ+अच्—अविश्वास
विप्रतथित —वि॰—-—वि+प्रथ्+क्त—प्रसिद्ध,यशस्वी
विप्रधर्षः —पुं॰—-—वि+ धृष्+घञ्—तंग करना,सताना
विप्रलम्भित —वि॰—-—विप्र+लम्भ्+क्त—अपमानित
विप्रलम्भित —वि॰—-—विप्र+लम्भ्+क्त—अतिक्रान्त
विप्रलीन —वि॰—-—विप्र+ली+क्त—तितर-बितर किया हुआ,छिन्न-भिन्न किया हुआ
विप्रलुम्पक —वि॰—-—विप्र+लुप्+ण्वुल्,मुमागमः—लुटेरा,डाकू
विप्रलोकः —पुं॰—-—विप्र+लोक्+घञ्—बहेलिया,चिड़ीमार
विप्रवादः —पुं॰—-—विप्र+वद्+घञ्—असहमति,मतिभिन्नता
विप्रवसित —वि॰—-—विप्र+वस्+णिच्+क्त—प्रवास के लिए गया हुआ,जो परदेश में चला गया हो
विप्रहत —वि॰—-—विप्र+हन्+क्त—पटक दिया हुआ,गिराया हुआ
विप्रहत —वि॰—-—विप्र+हन्+क्त—कुचला हुआ,रौंदा हुआ
विप्रहीण —वि॰—-—विप्र+हि+क्त—वञ्चित,विरहित
विप्रुष् —स्त्री॰—-—-—बोलते समय मुंह से निकले थूक के कण
विप्लवः —पुं॰—-—वि+प्लु+अप्—पोतभंग,जहाज का विनाश
विप्लुतभाषिन् —वि॰—-—-—असंगत बोलने वाला,हकलाने वाला
विलुप्तिः —स्त्री॰—-—वि+प्लु+क्तिन्—विनाश,ध्वंस
विबन्धु —वि॰,ब॰स॰—-—-—बन्धुहीन,जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो
विबुधः —पुं॰—-—वि+बुध्+क—बुद्धिमान्,विद्वान् पुरुष
विबुधः —पुं॰—-—वि+बुध्+क—देवता
विबुधः —पुं॰—-—वि+बुध्+क—चन्द्रमा
विबुधानुचरः —पुं॰—विबुधः-अनुचरः—-—दिव्य सेवक
विबुधावासः —पुं॰—विबुधः-आवासः—-—देवमन्दिर
विबुधेतरः —पुं॰—विबुधः-इतरः—-—राक्षसः
विबुभूषा —स्त्री॰—-—वि+भू+सन्+अङ्ग+टाप्—अपने आप को प्रकट करने की इच्छा
विभज् —भ्वा॰उभ॰—-—-—अलग कर देना,दूर भगा देना
विभज् —भ्वा॰उभ॰—-—-—बाँटना
विभङ्गः —पुं॰—-—वि+भञ्ज्+घञ्—लहर
विभङ्गुर —वि॰—-—वि+भञ्ज्+उरच्—अस्थिर,चंचल
विभवः —पुं॰—-—वि+भू+अच्—प्ररक्षा,बचाव
विभानुगा —स्त्री॰—-—विभा+अनुगा—छाया
विभागरेखा —स्त्री॰,ष॰त॰—-—-—विभाजन रेखा
विभावर —वि॰—-—विभा+वनिप्,र आदेशः—उज्ज्वल चमकदार,चमकीला
विभिद् —रुधा॰उभ॰—-—-—अतिक्रमण करना,उलङ्घन करना
विभेदः —पुं॰—-—विभिद्+घञ्—सिकुड़न,सिकोड़ना
विभीषणः —पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम,रावण का भाई
विभुता —स्त्री॰—-—-—सर्वोपरि सता,यश.कीर्ति
विभुग्न —वि॰—-—वि+भुज्+क्त—मुड़ा हुआ,झुका हुआ,दमन किया हुआ
विभावनम् —नपुं॰—-—वि+भू+णिच्+ल्युट्—विकास
विभावनम् —नपुं॰—-—वि+भू+णिच्+ल्युट्—प्ररक्षा
विभावनम् —नपुं॰—-—वि+भू+णिच्+ल्युट्—दृष्टि,दमन
विभाव्य —वि॰—-—विभू+णिच्+ण्यत्—चिन्तनीय,विचारणीय
विभूतिः —स्त्री॰—-—वि+भू+क्तिन्—लक्ष्मी
विभूतिः —स्त्री॰—-—वि+भू+क्तिन्—योग्यताएँ
विभ्रंशः —पुं॰—-—वि+भ्रंश्+घञ्—अतिसार,बार-बार दस्त आना
विभ्रंशः —पुं॰—-—वि+भ्रंश्+घञ्—उलटफेर,अस्तव्यस्तता
विमद्य —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—मद्यपान से मुक्त
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि+मृद्+ल्युट्—सुगन्ध,खुशबु
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि+मृद्+ल्युट्—परिघर्षण,चबाना,पीसना
विमर्दनम् —नपुं॰—-—वि+मृद्+ल्युट्—संघर्ष
विमर्षिन् —वि॰—-—विमृष्+णिनि—असहिष्णु,अनिच्छुक,विमनस्क
विमात्रा —वि॰—-—-—मापतोल में बराबर
विमानः —पुं॰—-—वि+मा+ल्युट्—खुली पालकी
विमानः —पुं॰—-—वि+मा+ल्युट्—जहाज में रहने वाली किश्ती
विमानवाहः —पुं॰—विमानः-वाहः—-—पालकी उठाने वाला
विमार्गदृष्टि —वि॰—-—-—बुरी राह पर आँख रहने वाला,बुरे रास्ते को देखने वाला
विमुक्ति —वि॰—-—वि+मुच्+क्त—आवेगरहित,शान्तचित,निरपेक्ष
विमुक्तमौनम् —अ॰—-—-—मौनभंग करके
विमुक्तशाप —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—शाप के प्रभाव से मुक्त
विमूढसंज्ञ —वि॰,ब॰स॰—-—-—घबराया हुआ,बेहोश
विमूढात्मन् —वि॰,ब॰स॰—-—-—घबराया हुआ,बेहोश
विमूर्छित —वि॰—-—वि+मूर्छ+क्त—पूर्ण,सब मिला हुआ
विमूर्छित —वि॰—-—वि+मूर्छ+क्त—जमा हुआ,मूर्छा में ग्रस्त
विमृशः —पुं॰—-—वि+मृश्+अच्—अनुचिन्तन,सोचविचार
विमोघ —वि॰—-—-—बिल्कुल फल रहित,निष्फल
वियत्पताका —स्त्री॰,ष॰त॰—-—-—बिजली
वियत्पथः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—अन्तरिक्ष
वियतम् —अ॰—-—-—अन्तराल पर अवकाश देकर
वियन्तृ —वि॰—-—वि+यम्+तृच्—चालकरहित,जिसमें चालक न हो
वियुज् —रुधा॰आ॰—-—-—भंग करना
विमुज्य —अ॰—-—वियुज्+ल्यप्—वियुक्त होकर,पृथक् एक-एक करके व्यक्तिशः
वियोजनम् —नपुं॰—-—वियुज्+ल्युट्—वियोग
वियोजनम् —नपुं॰—-—वियुज्+ल्युट्—घटाना
वियोनिः —पुं॰—-—-—भिन्न जाति की स्त्री
वियोनि —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—नीच कुल में उत्पन्न
वियोनि —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—भगरहित
वियोनिजः —पुं॰—-—-—पक्षी,परिंदा
विरजा —स्त्री॰—-—-—एक नदी का नाम
विरक्तप्रकृति —वि॰,ब॰स॰—-—-—जिसके प्रजा उदासीन हो,निर्लिप्त हो
विरण्य —वि॰—-—-—विस्तृत,विस्तारयुक्त,दूरतक फैला हुआ
विरथ्या —स्त्री॰—-—-—बुरा मार्ग
विरथ्या —स्त्री॰—-—-—उपमार्ग,छोटी गली
विरतप्रसंगः —पुं॰—-—-—वह बात या विषय जिसकी चर्चा बन्द हो गई हो
विरलभक्ति —वि॰—-—-—नीरस,उकता देने वाला
विराज् —पुं॰—-—विराज्+क्विप्—ब्रह्माण्ड,विश्व
विराटसुतः —पुं॰—विराज्-सुतः—-—स्वर्गीय पितरों की एक श्रेणी
विरात्रः —पुं॰,प्रा॰ब॰—-—-—रात का तीसरा पहर
विरात्रम् —नपुं॰—-—-—रात का तीसरा पहर
विरावण —वि॰—-—वि+रु+णिच्+ल्युट्—शोरगुल कराने वाला,हल्लागुल्ला मचवाने वाला
विरिक्त —वि॰—-—वि+रिच्+क्त—जिसे दस्त करा दिये गये हो,खाली कराया हुआ
विरिक्तिः —स्त्री॰—-—विरिच्+क्तिन्—विरेचन,दस्त करवाना
विरुज् —स्त्री॰—-—वि+रुज्+क्विप्—दारुण पीड़ा
विरुज् —वि॰—-—-—नीरोग,स्वस्थ
विरुद्धरुपकम् —नपुं॰—-—-—एक अलङ्कार जहाँ उपमेय बिल्कुल समान न हो
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—वैपरीत्य,बाधा,विघ्न
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—प्रतिबन्ध
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—शत्रुता
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—कलह
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—असहमति
विरोधः —पुं॰—-—वि+रुध्+घञ्—संकट
विरोधाभासः —पुं॰—विरोधः-आभासः—-—वह अलंकार जहाँ विरोध प्रतीत होता हो,परन्तु वस्तुतः कोई विरोध न हो
विरोधोपमा —स्त्री॰—विरोधः-उपमा—-—वैपरीत्य पर आधारित उपमा
विरोधपरिहारः —पुं॰—विरोधः-परिहारः—-—विरोध का दूर होना,सामंजस्य स्थापित होना
विरोधपरिहारः —पुं॰—विरोधः-परिहारः—-—प्रतीयमान विरोध की व्याख्या
विरुलः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
विरुढ —वि॰—-—वि+रुह्+क्त—भरा हुआ,स्वस्थ
विरुढ —वि॰—-—वि+रुह्+क्त—अंकुरित
विरुढ —वि॰—-—वि+रुह्+क्त—चढ़ा हुआ
विरुढबोध —वि॰—विरुढ-बोध—-—जिसकी बुद्धि परिपक्व हो गई हो
विरोचनम् —नपुं॰—-—वि+रुच्+युच्—प्रकाश,चमक,दीप्ति
विरोचिष्णु —वि॰—-—वि+रुच्+इष्णुच्—चमकीला,उज्ज्वल
विलक्ष —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—जिसका कोई विशेष चिह्न या लक्ष्य न हो
विलक्ष —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—जिसका निशाना चूक गया हो
विलग्न —वि॰—-—विलग्+क्त—लटकता हुआ
विलग्न —वि॰—-—विलग्+क्त—पिंजरबद्ध
विलापनम् —नपुं॰—-—वि+लप्+णिच्+ल्युट्—रुलाने वाला,विलाप का कारण
विलम्ब् —भ्वा॰आ॰—-—-—सहारा लेना,निर्भर करना
विलासः —पुं॰—-—विलस्+घञ्—सजीवता,हावभाव
विलासः —पुं॰—-—विलस्+घञ्—कामुकता,लपटता
विलायः —पुं॰—-—वि+ली+णिच्+घञ्,ल्युट् वा—घोल देना,मिला देना
विलायनम् —नपुं॰—-—वि+ली+णिच्+घञ्,ल्युट् वा—घोल देना,मिला देना
विलिङ्ग —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—भिन्न लिङ्ग का
विलिम्पित —वि॰—-—विलिम्प्+क्त—सना हुआ,लिपा हुआ,लेपा हुआ
विलेपिन् —वि॰—-—-—लसदार,चिपका हुआ
विलीन —वि॰—-—विली+क्त—मन में बैठाया हुआ
विलोप्तृ —पुं॰—-—विलुप्+णिच्+तृच्—डाकू,लुटेरा
विलोभनीय —वि॰—-—वि+लुभ्+अनीय—ललचाने वाला,मुग्ध करने वाला
विलोचनपथः —पुं॰—-—-—दृष्टि क्षेत्र,दृष्टि का परास
विलोमपाठः —पुं॰—-—-—विपरीत क्रम से सस्वर पाठ
विलोमविधिः —पुं॰—-—-—किसी कार्य के विपरीत अनुष्ठान का विधान करने वाला नियम
विवक्षितान्यतरवाच्यम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का व्यङ्ग्यार्थ
विवदनम् —नपुं॰—-—वि+वद्+ल्युट्—कलह,झगड़ा,मुकदमे बाजी
विवधा —स्त्री॰,प्रा॰ब॰—-—-—जूआ
विवधा —स्त्री॰,प्रा॰ब॰—-—-—हथकड़ी,बेड़ी
विवरम् —नपुं॰—-—वि+वृ+अच्—पाताल लोक
विवर्णित —वि॰—-—विवर्ण+इतच्—अननुमोदित,अस्वीकृत
विवल्ग —भ्वा॰पर०—-—-—कूदना,उछलना,फांदना
विवस्वती —स्त्री॰—-—विवस्वत्+ङीप्—सूर्य देव की नगरी
विवाहनेपथ्यम् —नपुं॰—-—-—दुलहिन की वेशभूषा
विविक्त —वि॰—-—विविच्+क्त—जिसने समक्ष लिया,या सही अनुमान लगा लिया
विवित्सा —स्त्री॰—-—विद्+सन्+अङ्+टाप्—जानने की इच्छा
विविताध्यक्षः —पुं॰—-—-—चरभूमि का अधीक्षक
विवृ —स्वा॰क्रया॰उभ॰—-—-—म्यान से तलवार निकालना
विवृ —स्वा॰क्रया॰उभ॰—-—-—कंघे से माँग फाड़ना
विवृतम् —नपुं॰—-—विवृ+क्त—अनाहत,जिसके घाव नहीं हुआ
विवृतपौरुष —वि॰—-—-—अपने पराक्रम का प्रदर्शन करने वाला
विवर्जित —वि॰—-—विवृज्+क्त—वह जिससे कोई वस्तु ले ली जाय,वञ्चित,विरहित
विवृत् —भ्वा॰आ॰—-—-—रुपान्तर करना
विवर्तनम् —नपुं॰—-—विवृत्+ल्युट्—रुपान्तरण
विवृताक्षः —पुं॰,ब॰स॰—-—-—मुर्गा
विवेकमन्थरता —स्त्री॰—-—-—निर्णय करने में अशक्तता
विवेकविरह —वि॰—-—-—अज्ञान,ज्ञान का अभाव
विश् —तुदा॰पर॰—-—-—रंगमंच पर प्रकट होना
विश् —तुदा॰पर॰—-—-—संयुक्त होना
विश् —तुदा॰पर॰—-—-—आ पड़ना
विश् —तुदा॰पर॰—-—-—व्यस्त हो जाना
विश् —पुं॰—-—विश+क्विप्—बस्ती
विश् —पुं॰—-—विश+क्विप्—संपत्ति,दौलत
विशङ्कनीय —वि॰—-—वि+शङ्क्+अनीय—प्रष्टव्य,पूछने के योग्य,शङ्का किये जाने के योग्य,जिस पर शङ्का की जा सके
विशद —वि॰—-—वि+शद्+अच्—सुकुमार,मृदु
विशद —वि॰—-—वि+शद्+अच्—दक्ष
विशल्यकरणी —स्त्री॰—-—-—शास्त्रों के लगाने से उत्पन्न घावों को स्वस्थ करने की विशेष जड़ी-बूटी
विशसनम् —नपुं॰—-—विशस्+ल्युट्—युद्ध
विशसनम् —नपुं॰—-—विशस्+ल्युट्—काटना
विशसनम् —नपुं॰—-—विशस्+ल्युट्—वध करना,हत्या करना
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—प्रवीण
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—बुद्धिमान्
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—प्रसिद्ध
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—साहसी
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—सौन्दर्योपपन्न शरद् ऋतु सम्बन्धी
विशारद —वि॰—-—विशाल+दा+क—वक्तृत्व शक्ति से रहित
विशालकुलम् —नपुं॰—-—-—उतम परिवार,प्रसिद्ध वंश
विशिखा —स्त्री॰—-—विशिख+टाप्—रुग्णालय
विशेषकरणम् —नपुं॰—-—-—उन्नति,सुधार
विशेषधर्मः —पुं॰—-—-—विशेष कर्तव्य,विशिष्ट धर्मकृत्य या यज्ञ-अनुष्ठान
विशेषणासिद्धः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का हेत्वाभास
विशेषणपदम् —नपुं॰—-—-—विशेषता द्योतक शब्द
विशेषणपदम् —नपुं॰—-—-—सम्मान सूचक उपाधि
विशेषतः —अ॰—-—-—अनुपात की दृष्टि से
विशुद्धघी —स्त्री॰—-—-—निर्मल मन या उज्ज्वल बुद्धि वाला
विशुद्धसत्व —वि॰—-—-—सच्चरित्र,सदाचारी
विशुद्धिः —स्त्री॰—-—विशुध+क्तिन्—ऋण परिशोध करना
विशुद्धिः —स्त्री॰—-—विशुध+क्तिन्—प्रायश्चित
विश्रृंखला —स्त्री॰—-—-—‘देवी’ का विशेषण
विशीर्ण —वि॰—-—विशृ+क्त—रगड़ा हुआ
विशीर्ण —वि॰—-—विशृ+क्त—विफलीभूत
विशीर्ण —वि॰—-—विशृ+क्त—गिरा हुआ
विश्रान्तकथ —वि॰,ब॰स॰—-—-—वक्तृत्व शक्तिहीन,मूक
विश्रान्तकथ —वि॰,ब॰स॰—-—-—मृत
विश्रामः —पुं॰—-—वि+श्रम्+घञ्—आराम करने का स्थान
विश्रब्धप्रलापिन् —वि॰—-—-—विश्वस्तु या गुप्त बातें करने वाला
विश्रब्धालापिन् —वि—-—-—विश्वस्तु या गुप्त बातें करने वाला
विश्रब्धसुप्त —वि॰—-—-—शान्तिपूर्वक सोने वाला
विश्रिः —पुं॰—-—विश्+किन्—मृत्यु
विश्वगोचर —वि॰—-—-—सबके लिए सुगम,जहाँ सबकी पहुँच हो
विश्वजीवः —पुं॰—-—-—विश्वात्मा,ईश्वर
विश्वाधारः —पुं॰—-—-—विश्व का सहारा,ईश्वर
विश्वेदेवाः —पुं॰—-—-—पितरों की एक श्रेणी,देववर्ग
विट्कृमिः —पुं॰—-—-—अँतड़ियों में पड़ने वाला कीड़ा
विड्घातः —पुं॰—-—-—मूत्रकृच्छ्रता,मूत्रावरोध
विड्भङ्गः —पुं॰—-—-—अतीसार,दस्तों का लगना
विड्भुज् —वि॰—-—-—मल खाकर रहने वाला,गुबरैला
विषतन्त्रम् —नपुं॰—-—-—विषविज्ञान
विषक्त —वि॰—-—वि+षञ्ज्+क्त—व्यस्त,चिपका हुआ
विषक्त —वि॰—-—वि+षञ्ज्+क्त—अतिविस्तारित
विषादनम् —नपुं॰—-—वि+षट्+णिच्+ल्युट्—कष्ट देना,सताना
विषम —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—जो पूरा न बँट सके
विषम —वि॰,प्रा॰ब॰—-—-—अनुपयुक्त
विषमबाणः —पुं॰—विषम-बाणः—-—कामदेव
विषमनेत्रम् —नपुं॰—विषम-नेत्रम्—-—शिव की तीसरी आँख
विषमनेत्रः —पुं॰—विषम-नेत्रः—-—शिव का एक विशेषण
विषमवृतम् —नपुं॰—विषम-वृतम्—-—छंद जिसके चरण सम न हों
विषयः —पुं॰—-—वि+सि+अच्,षत्वम्—ज्ञानेन्द्रियों द्वारा गृहीत होने वाला पदार्थ
विषयः —पुं॰—-—वि+सि+अच्,षत्वम्—भौतिक पदार्थ
विषयः —पुं॰—-—वि+सि+अच्,षत्वम्—इन्द्रियजन्य आनन्द
विषयनिह्नुतिः —स्त्री॰—विषयः-निह्नुतिः—-—किसी बात को मुकर जाना
विषयपराङमुखः —पुं॰—विषयः-पराङमुखः—-—भौतिक विषय सुखों से विमुख
विषयीकरणम् —नपुं॰—-—विषय+च्वि+कृ+ल्युट्—किसी वस्तु को विषय का चिन्तन बनाना
विषह्य —वि॰—-—वि+सह्+यत्—जीतने के योग्य
विषाणः —पुं॰—-—विष्+कानच्—चोटी
विषाणः —पुं॰—-—विष्+कानच्—चूची
विषाणः —पुं॰—-—विष्+कानच्—अपनी प्रकार का उतमोतम
विषुवसमयः —पुं॰—-—विष्+कानच्—वह समय जब दिन रात का मान बराबर होता है
विष्टम्भ् —स्वा॰क्र्या॰पर॰—-—-—समर्थन करना,प्रबल बनाना
विष्टम्भ् —स्वा॰क्र्या॰पर॰—-—-—व्याप्त होना,छा जाना
विष्टिकरः —पुं॰—-—-—दासों का स्वामी,बेगार में पकड़े मजदूरों का स्वामी
विष्टिकारिन् —पुं॰—-—-—बेगार में पकड़ा गया मजदूर जिसे कोई पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है
विष्ठाशिन् —पुं॰—-—विष्ठा+आशिन्—सूअर,जो मल खाता है
विष्णुः —पुं॰—-—विष्+नुक्—त्रिदेव में दूसरा
विष्णुः —पुं॰—-—-—पावन पुरुष
विष्णुः —पुं॰—-—-—स्मृतिकार
विष्णुः —पुं॰—-—-—श्रवण नक्षत्रपुंज
विष्णुः —पुं॰—-—-—चैत्र का महीना
विष्णुकान्ता —स्त्री॰—विष्णुः-कान्ता—-—विभिन्न पौधों के नाम
विष्णुदत्तः —पुं॰—विष्णुः-दत्तः—-—परीक्षित राजा का नाम
विष्णुधर्मोत्तरपुराणम् —नपुं॰—विष्णुः-धर्मोत्तरपुराणम्—-—एक उपपुराण का नाम
विष्णुप्रिया —स्त्री॰—विष्णुः-प्रिया—-—तुलसी का पौधा
विष्णुप्रिया —स्त्री॰—विष्णुः-प्रिया—-—लक्ष्मी का नाम
विष्णुलिङ्गी —पुं॰—विष्णुः-लिङ्गी—-—बटेर
विष्वग्गति —वि॰—-—विष्वच्+गति—सर्वत्र जाने वाला प्रत्येक विषय में प्रविष्ट होने वाला
विष्वग्लोपः —पुं॰—-—विष्वच्+लोपः—घबराहट,बाधा,विघ्न
विसदृश —वि॰—-—-—असमान,असमरुप
विसंम्मूढ़ —वि॰—-—-—नितांत घबराया हुआ
विसृज् —तुदा॰पर॰><आ॰><प्रेर॰—-—-—प्रकट करना,भेद खोलना,प्रकाशित करना
विसृज्यम् —नपुं॰—-—विसृज्+यत्—जो मुक्त किये जाने के योग्य है,सृष्टि,संसार का रचना
विसर्गः —पुं॰—-—विसृज्+घञ्—विनाश,सृष्टि का लोप
विसृप —भ्वा॰पर॰—-—-—फैलाना,प्रसारित करना
विसर्पिन् —पुं॰—-—विसृप्+णिनि—रेंगने वाला
विसर्पिन —पुं॰—-—विसृप्+णिनि—फूटकर निकलने वाला
विसर्पिन —पुं॰—-—विसृप्+णिनि—सरकने वाला
विसर्पिन —पुं॰—-—विसृप्+णिनि—फैलने वाला
विस्पन्दः —पुं॰—-—विस्पन्द्+घञ्—बूंद,कण
विस्फूर्जः —पुं॰—-—विस्फूर्ज्+घञ्—दहाड़ना,चिंघाड़ना,गरजना
विस्फोटकः —पुं॰—-—विस्फुट्+ण्वुल्—फोड़ा,फुंसी
विस्फोटकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का कोढ
विस्मयपदम् —नपुं॰—-—-—आश्चर्य का विषय
विस्रगन्धः —पुं॰—-—-—कच्चे मांस की गन्ध
विह्रति —स्त्री॰—-—वि+हन्+क्तिन्—प्रतिघात,अपसारण,विफलता,भग्नाशा
विहाव —अ॰—-—वि+हा+ल्यप्—से अधिक,के अतिरिक्त
विहाव —अ॰—-—वि+हा+ल्यप्—होते हुए भी
विहाव —अ॰—-—वि+हा+ल्यप्—सिवाय,छिड़ कर
विहित —वि॰—-—-—जिसका विधान और निषेध दोनों किये गये हों
विहितप्रतिषद्ध —वि॰—-—-—जिसका विधान और निषेध दोनों किये गये हों
विहरणम् —नपुं॰—-—वि+ह्र+ल्युट्—खोंलना,फैलाना
विहारः —पुं॰—-—वि+ह्र+घञ्—अग्नित्रय
विहारभूमिः —स्त्री॰—-—-—गोचरभूमि,चरागाह
विह्वलचेतस् —वि॰,ब॰स॰—-—-—उदास,खिन्नामना जिसका मन बहुत व्याकुल हो
वीचिक्षोभ —पुं॰—-—-—लहरों का उठना,तरंगों से उत्पन्न हलचल
वीणापाणिः —पुं॰—-—-—नारदमुनि
वीतमत्सर —वि॰—-—-—ईर्ष्या द्वेषादि से मुक्त
वीरकाम —वि॰—-—-—पुत्रैषी,पुत्र का इच्छुक
वीरपत्नी —स्त्री॰ष॰त॰—-—-—शूरवीर की पत्नी,नायिका
वीरवादः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—शक्ति क दावा,वीरता जन्य कीर्ति
वीरव्रत —वि॰—-—-—अपनी प्रतिज्ञा पर अटल,दृढ संकल्प वाला
वीरकः —पुं॰—-—वीर+कन्—‘करवीर’ नाम का पौधा
वीरकः —पुं॰—-—वीर+कन्—नायक
वीरकः —पुं॰—-—वीर+कन्—एक शिवगण का नाम
वीर्यम् —नपुं॰—-—वीर+यत्—विष
वीर्यम् —नपुं॰—-—वीर+यत्—सोका
वीर्यम् —नपुं॰—-—वीर+यत्—पुंस्त्व,जननशक्ति
वीर्यम् —नपुं॰—-—वीर+यत्—बीज,धातु
वीर्याधानम् —नपुं॰—वीर्यम्-आधानम्—वीर+यत्—गर्भीधान
वीर्यशुल्क —वि॰—वीर्यम्-शुल्क—-—चुनौती देकर युद्ध,शक्ति के बल पर कीर्ति
वृतिद्रुमः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—सीमावर्ती वृक्ष
वृतिमार्गः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—ऐसी सड़क जिसके दोनों ओर बाड़ लगी हो
वृकः —पुं॰—-—वृ+काक्—भेड़िया
वृकः —पुं॰—-—वृ+काक्—सूर्य
वृकधृर्तकः —पुं॰—-—-—गीदड़
वृक्षामयः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—लाख,रेजन
वृत्तम् —नपुं॰—-—वृत+क्त—रुपान्तरण
वृत्तम् —नपुं॰—-—वृत+क्त—अधिचक्र
वृतबन्धः —पुं॰—-—-—छन्दोबद्ध रचना
वृतयुक्त —वि॰—-—-—गुणों से सम्पन्न
वृत्यर्थम —अ॰—-—-—जीविका के लिए
वृतिमूलकम् —नपुं॰—-—-—जीविका की व्यवस्था,जीविका का आधार
वृथान्नम् —नपुं॰—-—वृथा+अन्नम्—केवल एक व्यक्ति के अपने उपभोग के लिए आहार
वृथार्तवा —स्त्री॰—-—वृथा+आर्तवा—बांझ स्त्री
वृद्धयुवतिः —स्त्री॰—-—-—कुट्ट्नी
वृद्धयुवतिः —स्त्री॰—-—-—दाई,धात्री
वृद्धिः —स्त्री॰—-—वृध+क्तिन्—आघात,चोट
वृद्धिः —स्त्री॰—-—वृध+क्तिन्—भूमि को ऊँचा करना
वृद्धिः —स्त्री॰—-—वृध+क्तिन्—लम्बा करना
वृन्दम् —नपुं॰—-—वृ+दन,नुम्—गुच्छा,झुंड
वृषः —पुं॰—-—वृष+क—भवनिर्माण के लिए भूखंड
वृषः —पुं॰—-—वृष+क—नरजन्तु
वृषलक्षणा —स्त्री॰—वृषः-लक्षणा—-—मरदानी स्त्री
वृषसृक्विन् —पुं॰—वृषः-सृक्वन्—-—भिड़
वृषभयानम् —नपुं॰—-—-—बैल गाड़ी
वृषलः —पुं॰—-—वृष+कलच—नाचने वाला
वृषलीफेनः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—ओष्ठ की आद्रता
वृष्णिपालः —पुं॰—-—-—ग्वाला,गडरिया
वेङ्घरः —पुं॰—-—-—सौन्द्रर्य का अभिमान
वेणिः —पुं॰—-—वेण्+इन्—फिर संयुक्त की गई संपति जो पहले से बंटी हुई थी
वेणिः —पुं॰—-—वेण्+इन्—जल प्रवाह,झरना
वेणुदलम् —नपुं॰—-—-—बाँस का फट्टा
वेणुयवः —पुं॰—-—-—बाँस का चावल,बांसबीज
वेतालपञ्चविंशतिः —स्त्री॰—-—-—पच्चीस कहानियों की एक कृति
वेदः —पुं॰—-—विद+अच,घञ् वा—ज्ञान
वेदः —पुं॰—-—विद+अच,घञ् वा—हिन्दुओं की पुनीत धर्म पुस्तक-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद तथा अथर्ववेद
वेदः —पुं॰—-—विद+अच,घञ् वा—‘कुश’का गुच्छा
वेदः —पुं॰—-—विद+अच,घञ् वा—विष्णु
वेदानध्ययनम् —नपुं॰—वेदः-अनध्ययनम्—-—वह अवकाश का दिन जिस दिन वेद का पढना निषिद्ध हो
वेदबाह्य —वि॰—वेदः-बाह्य—-—वेद के विपरीत
वेदबाह्य —वि॰—वेदः-बाह्य—-—वेदाध्ययन के क्षेत्र से बाहर
वेदवादः —पुं॰—वेदः-वादः—-—वेदों के विषय में होने वाली धर्मान्ध व्यक्तियों की बहस
वेदश्रुतिः —स्त्री॰—वेदः-श्रुतिः—-—ईश्वरीय ज्ञान का दैवी सदेश
वेदिमेखला —स्त्री॰—-—-—वेदी के चारों ओर की सीमा को बाँधने वाली रस्सी
वेधः —पुं॰—-—विधा+असुन्,गुणः—ज्योतिष का पारिभाषिक शब्द जिसका अर्थ है ग्रहों की स्थिति का निर्धारण
वेलातिक्रमः —पुं॰—-—-—सीमा का उल्लंघन
वेलातिग —वि॰,ष॰त॰—-—-—किनारे से बाहर रहने वाला
वेश्यापतिः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—जार,वेश्या का पति
वेश्यापुत्रः —पुं॰,ष॰त॰—-—-—वेश्या का पुत्र,अवैध पुत्र,हरामी
वेष्टनम्‘ —नपुं॰—-—वेष्ट+ल्युट्—वियाम,एक सिरे से दूसरे सिरे तक का सारा फैलाव
वैकारिक —वि॰—-—विकार+ठक्—परिवर्तनीय
वैकारिक —वि॰—-—विकार+ठक्—सत्व से संबद्ध
वैकार्यम् —वि॰—-—विकार+ठक्—विकार,परिवर्तन
वैकृतम् —नपुं॰—-—विकृत+अण्—कपट,धोखा
वैजन्यम् —नपुं॰—-—विजन+ष्यञ्—निर्जनता,एकान्त
वैडूर्यम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का रत्न
वैतानसूतम् —नपुं॰—-—-—यज्ञविषयक कुछ सूत्र
वैदुरिकम् —नपुं॰—-—विदुर+ठक्—विदुर का सिद्धान्त
वैद्यविद्या —स्त्री॰,ष॰त॰—-—-—आयुर्वेद शास्त्र
वैधर्म्यसमः —पुं॰—-—-—असमानता के कोणों पर आधारित तर्कसंगत भ्रान्ति,हेत्वाभास
वेभावर —वि॰—-—विभावर+अण्—रात परक
वैयवहारिक —वि॰—-—व्यवहार+ठक्—व्यवहारसिद्ध,रुढ,प्रचलित
वैयाकरणखसूचिः —पुं॰—-—-—केवल वैयाकरन का विडम्बनाद्योतक शब्द
वैरायितम् —नपुं॰—-—वैर+क्यच+क्त—शत्रुता,द्वेष,विरोध
वैराग्यम् —नपुं॰—-—विराग+ष्यञ्—वर्ण या रंग का लोप
वैराग्यशतम् —नपुं॰—-—-—भर्तृहरिकृत एक काव्यरचना
वैवस्वतमन्वन्तरम् —नपुं॰—-—-—सातवाँ मन्वन्तर,वर्तमान समय
वैशसम् —नपुं॰—-—विशस+अण्—हिंसा
वैश्वस्त्यम् —नपुं॰—-—विश्वस्त+ष्यञ्—विधवापनश
वैष्टिकः —पुं॰—-—-—बेगार करने वाला,जिसे कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़े
वैष्णवस्थानकम् —नपुं॰—-—-—रंगमंच पर लम्बे-लम्बे डग भर कर इधर-उधर टहलना
वोलकः —पुं॰—-—-—आवर्त,भँवर,बवंडर
व्यक्षः —पुं॰—-—-—विषुवद रेखा,भूमध्यरेखा
व्यङ्कुश —वि॰—-—-—अनियंत्रित,निरंकुश
व्यङ्गः —पुं॰,प्रा॰ब॰—-—-—इस्पात
व्यजनक्रिया —स्त्री॰—-—-—पंखा झलना
व्यज्जना —स्त्री॰—-—-—शुद्ध उच्चारण,स्पष्ट उच्चारण
व्यक्तिकरः —पुं॰—-—-—उतेजना,उकसाहट
व्यक्तिकरः —पुं॰—-—-—विनाश
व्यतिक्रमः —पुं॰—-—वि+अति+क्रम्+घञ्—उल्लंघन अतिक्रमण
व्यतिषङ्गः —पुं॰—-—वि+अति+सञ्ज्+घञ्—प्रतियुद्ध,शत्रु से भिड़ंत
व्यतिषङ्गः —पुं॰—-—वि+अति+सञ्ज्+घञ्—विनिमय
व्यथित —वि॰—-—व्यथ्+क्त—कष्टग्रस्त,पीडीत
व्यथित —वि॰—-—व्यथ्+क्त—क्षुब्ध,डरा हुआ
व्यापायनम् —नपुं॰—-—वि+अप+आ+इ+ल्युट्—अपगमन,पलायन,पीछे हटना
व्यपवर्गः —पुं॰—-—वि+अप+वृज्+घञ्—प्रभाग
व्यपवर्गः —पुं॰—-—वि+अप+वृज्+घञ्—समाप्ति
व्यपाश्रयः —पुं॰—-—वि+अप+आ+श्रि+अच—आश्रयस्थान,सहारा
व्यपोह् —भ्वा॰पर॰—-—-—प्रायश्चित करना
व्यपोह् —भ्वा॰पर॰—-—-—स्वस्थ होना
व्यपोह् —भ्वा॰पर॰—-—-—दूर भगाना
व्यभिचारकृत् —वि॰—-—-—अनुचित यौन संबंध करने वाला
व्यभिचारिन् —वि॰—-—वि+अभि+चर्+णिच्+णिनि—कुमार्गगामी,दुश्चरित्र
व्यभिचारिन् —वि॰—-—वि+अभि+चर्+णिच्+णिनि—अस्थायी
व्ययः —पुं॰—-—वि+इ+अच्—रुपान्तर,शब्द या धातु का विभक्ति में प्रत्यय लगा कर रुप बनाना
व्ययशेषः —पुं॰—-—-—खर्च काट कर बची हुई राशि,निवलशेष
व्यवच्छेदः —पुं॰—-—वि+अव+छिद्+घञ्—विनाश
व्यवधानम् —नपुं॰—-—वि+अव+धा+ल्युट्—दुरुह रचना,क्लिष्ट रचना
व्यवहित —वि॰—-—वि+अव+धा+क्त—दूर पार का,दूरवर्ती
व्यवहितकल्पना —स्त्री॰—व्यवहित-कल्पना—-—शब्दों की एक रचना प्रणाली जिसमें एक दूसरे से वियुक्त शब्दों को मिला कर एक वाक्य बनाया जाय
व्यवसर्गः —पुं॰—-—वि+अव+सृज्+घञ्—परित्याग
व्यवसायात्मक —वि॰—-—-—उत्साह से पूर्ण
व्यवसायात्मिका —स्त्री॰—-—-—दृढसंकल्प से युक्त
व्यवस्थानम् —नपुं॰—-—वि+अव+स्था+ल्युट्—निश्चित सीमा
व्यवस्थितविकल्पः —पुं॰—-—-—निश्चित विकल्प
व्यवहारः —पुं॰—-—वि+अव+हृ+घञ्—संविदा
व्यवहारः —पुं॰—-—वि+अव+हृ+घञ्—गणित के घात या बल
व्यवहारः —पुं॰—-—वि+अव+हृ+घञ्—व्यापार
व्यवहारः —पुं॰—-—वि+अव+हृ+घञ्—मुकदमा
व्यवहारः —पुं॰—-—वि+अव+हृ+घञ्—प्रथा,रीतिरिवाज
व्यवहारार्थिन् —वि॰—व्यवहारः-अर्थिन्—-—वादी,मुद्दई
व्यवहारवादिन् —वि॰—व्यवहारः-वादिन्—-—जो प्रचलन के आधार पर तर्क करता है
व्यवहृतम् —नपुं॰—-—वि+अव+हृ+क्त—व्यापारिक लेन -देन
व्यवायः —पुं॰—-—वि+अव+अय्+घञ्—दूरी,पार्थक्य
व्यवायः —पुं॰—-—वि+अव+अय्+घञ्—प्रवेश,घुसाना
व्यसनब्रह्मचारिन् —वि॰—-—-—साथ-साथ दुःख भोगने वाला
व्यसनादापः —पुं॰—-—-—विपत्ति का घर
व्यस्तपुच्छ —वि॰—-—-—फैलाई हुई पूँछ वाला
व्यस्तिका —अ॰—-—-—बाहों को फैलाकर तथा पर्रों को चौड़ा करके
व्याकृ —तना॰उभ॰—-—-—भविष्य़वाणी करना
व्याकरणम् —नपुं॰—-—वि+आ+कृ+ल्युट्—भेद,अन्तर
व्याकरणम् —नपुं॰—-—-—भविष्यवाणी
व्याकोच —वि॰—-—-—खिला हुआ,पूर्ण विकसित
व्याकोपः —पुं॰—-—वि+आ+कृ+घञ्—विरोध ,खंडन
व्याकोशः —पुं॰—-—वि+आ+कृश+घञ्—चिल्ला-चिल्ला कर गालियाँ देना,भर्त्सना करना
व्याघारित —वि॰—-—-—जिस पर घी का छींटा दिया गय हो
व्याघूर्णित —वि॰—-—वि+आ+घूर्ण्+क्त—लुढका हुआ,चक्कर खाया हुआ
व्याघूर्णत् —वि॰—-—वि+आ+घूर्ण्+शत्—लुढकता हुआ,चक्कर खाता हुआ
व्याजनिद्रा —स्त्री॰—-—-—झूठमूठ की नींद,दड़ मार कर सोना
व्याजव्यवहारः —पुं॰—-—-—कौशलपूर्ण व्यवहार
व्याजिह्य —वि॰—-—वि+हा+मन्,द्वित्वादिअ नि॰— कुटिल-तोड़ा-मरोड़ा हुआ,झुका हुआ
व्याधिनिग्रहः —पुं॰—-—-—रोग को नियंत्रित करना
व्याधिस्थानम् —नपुं॰—-—-—शरीर
व्याप्तिवादः —पुं॰—-—-—विश्वव्यापकता का सिद्धान्त
व्यापरक —वि॰—-—वि+आ+पृ+णिच्+ण्वुल्—व्यापारग्रस्त व्यवसाय में लगा हुआ
व्यामिश्र —वि॰—-—वि+आ+मिश्र्+अच्—असंगत
व्यामिश्र —वि॰—-—वि+आ+मिश्र्+अच्—मिला-जुला
व्यामिश्र —वि॰—-—वि+आ+मिश्र्+अच्—संदिग्ध,भ्रामक
व्यामिश्रकम् —नपुं॰—-—वि+आ+मिश्र्+ण्वुल्—नाटकीय समालाप जिसमें विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग हुआ हो
व्यायामः —पुं॰—-—वि+आ+यम्+घञ्—सैनिक अभ्यास,फौज की कवायद
व्यावर्जित —वि॰—-—वि+आ+वृज्+क्त—झुका हुआ
व्यावहारिकसत्ता —स्त्री॰—-—-—भौतिक अस्तित्व
व्यावृत —वि॰—-—वि+आ+वृत्+क्त—परिवर्तित
व्यासपीठम् —नपुं॰—-—-—पुराणों के व्याख्याता का पद या गद्दी
व्यासपूजा —स्त्री॰—-—-—गुरु और व्यास की पूजा जो आषाढ़ी पूर्णिमा को होती है
व्याससमासौ —पुं॰द्वि॰व॰—-—-—वैयक्तिक तथा सामूहिक रुप से
व्युत्क्रान्तजीवित —वि॰—-—-—मृत,निर्जीव
व्युत्था —भ्वा॰आ॰—-—-—जीत लेना
व्युत्था —भ्वा॰आ॰—-—-—दूर करना
व्युपरत् —वि॰—-—वि+उप+रम्+क्त—विश्रान्त,समाप्त,मृत
व्यूहविभागः —पुं॰—-—-—सेना को भिन्न-भिन्न ब्यूहों में बाँटना
व्यक —वि॰—-—-—जिसमें एक कम हो
व्योमरत्नम् —नपुं॰—-—-—सूर्य
व्योमसंभवा —स्त्री॰—-—-—चितकबरी गाय
व्रजभाषा —स्त्री॰—-—-—मथुरा के आस-पास बोली जाने वाली भाषा
व्रतः —पुं॰—-—व्रज्+घ,जस्य तः—मानसिक क्रिया कलाप
व्रतम् —नपुं॰—-—व्रज्+घ,जस्य तः—मानसिक क्रिया कलाप
व्रतधारणम् —नपुं॰—व्रतः-धारणम्—-—एक धार्मिक व्रत का धारण करना
व्रात्यकाण्डः —पुं॰—-—-—अथर्ववेद का एक काण्ड
व्रात्यचर्या —स्त्री॰—-—-—आहिण्डक या अवधूत का जीवन
व्रीडादानम् —नपुं॰—-—-—संकोच एवं नम्रतापूर्वक दिया गया उपहार
व्रीहिवापम् —नपुं॰—-—-—चावल की पौधा लगाना
व्लेष्कः —पुं॰—-—-—पाश,जाल
शंस् —भ्वा॰पर॰—-—-—उन ऋग्मन्त्रों में स्तुति गान करना जो गायन के लिए निर्धारित नहीं किये गये
शंसति —वि॰—-—शंस्+क्त्—ध्यान दिया गया या मान लिया गया-जैसा कि “शंसितव्रतः” में
शंस्य —वि॰—-—शंस्+ण्यत्—प्रशंसा के योग्य
शंस्य —वि॰—-—शंस्+ण्यत्—ऊँचे स्वर से पठित
शकटव्यूहः —पुं॰—-—-—एक विशेष प्रकार का सैनिक व्यूह
शकुलादनी —स्त्री॰—-—-—भूकीट,केंचुआ
शकुलादनी —स्त्री॰—-—-—एक जड़ीबूटी
शक्तिध्वजः —पुं॰—-—-—कार्तिकेय
शक्य —वि॰—-—शक्+ण्यत्—श्रुतिमधुर
शक्रकाष्ठा —स्त्री॰—-—-—पूर्व दिशा
शङ्काभियोगः —पुं॰—-—-—दोषारोपण करना या संदेह करना
शङ्कराचार्यः —पुं॰—-—-—वेदान्तदर्शन का महतम् आचार्य,अद्वैतवाद का प्रवर्तक जिसने ब्राह्मण्य धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए षण्मत की स्थापना की
शङ्कुपुच्छम् —नपुं॰—-—-—कोड़ों का डंक
शङ्कुफला —स्त्री॰—-—-—शंमी वृक्ष,जैंडी का वृक्ष
शङ्खः —पुं॰—-—शम्+ख—शंख का बना कंकण
शङ्खावर्तः —पुं॰—शङ्ख-आवर्तः—-—शंख का झुकाव या गोलाई का मोड़,शंबुकावर्त
शङ्खवलयः —पुं॰—शङ्ख-वलयः—-—शंख से निर्मित कड़ा
शङ्खबेला —स्त्री॰—शङ्ख-बेला—-—शंखध्वनि के द्वारा संकेतित समय
शतम् —नपुं॰—-—-—कोई बड़ी संख्या
शतचन्द्रः —पुं॰—शतम्-चन्द्रः—-—तलवार या ढाल जो सौ चन्द्राङ्कनों से सुसज्जित हो
शतचरणा —स्त्री॰—शतम्-चरणा—-—शतपदी,कनखजूरा
शतपोनः —पुं॰—शतम्-पोनः—-—चलनी
शतमयूखः —पुं॰—शतम्-मयूखः—-—चन्द्रमा
शतलोचनः —पुं॰—शतम्-लोचनः—-—इन्द्र का विशेषण
शत्रुः —पुं॰—-—शद्+त्रुन्—दुश्मन,रिपु
शत्रुः —पुं॰—-—शद्+त्रुन्—विजेता,हराने वाला
शत्रुनिबर्हण —वि॰—शत्रुः-निबर्हण—-—शत्रुओं का नाश करने वाला
शत्रुकुलम् —नपुं॰—शत्रुः-कुलम्—-—रिपु का घर
शत्रुलाव —वि॰—शत्रुः-लाव—-—शत्रुओं को मारने वाला
शनिचक्रम् —नपुं॰—-—-—‘शनि की स्थिति से’शुभाशुभ जानने का एक आलेख,चित्र
शपित —वि॰—-—शप्+क्त—शाप दिया हुआ
शपथकरणम् —नपुं॰—-—-—शपथ उठाना
शपथपूर्वकम् —अ॰—-—-—शपथ उठाकर
शफरुकः —पुं॰—-—-—पेटी,बर्तन
शब्दः —पुं॰—-—शब्द+घञ्—आवाज
शब्दः —पुं॰—-—-—पद,सार्थक शब्द
शब्दः —पुं॰—-—-—पुनीत प्रणव
शब्दाक्षरम् —नपुं॰—शब्दः-अक्षरम्—-—पुनीत प्रणव
शब्देन्द्रियम् —नपुं॰—शब्दः-इन्द्रियम्—-—कान्
शब्दगोचरः —पुं॰—शब्दः-गोचरः—-—वाणी का विषय
शब्दगोचरः —पुं॰—शब्दः-गोचरः—-—श्रव्य
शब्दबैल —नपुं॰—शब्दः-बैलक्षण्यम्—-—शाब्दिक भिन्नता
शब्दसंज्ञा —स्त्री॰—शब्दः-संज्ञा—-—व्याकरण का एक पारिभाषिक शब्द
शब्दस्मृतिः —स्त्री॰—शब्दःस्मृतिः—-—भाषा विज्ञान
शमात्मक —वि॰—-—-—शान्त,स्वभाव से शान्तिप्रिय
शमोपन्यासः —पुं॰—-—-—शान्ति के लिए बोलने वाला,शान्ति की वकालत करने वाला
शमनीय —वि॰—-—शम्+अनीय—शन्ति देने योग्य,मन को शान्ति प्रदान करने योग्य
शमीकुणः —पुं॰—-—-—वह समय जब कि शमी वृक्ष के फल आता है
शम्भुतेजस् —नपुं॰—-—-—शिव की आभा
शम्भुतेजस् —नपुं॰—-—-—स्कन्द का विशेषण
शम्या —स्त्री॰—-—शम्+यत्+टाप्—लकड़ी या चौखट
शम्या —स्त्री॰—-—शम्+यत्+टाप्—जूए की कील
शम्या —स्त्री॰—-—शम्+यत्+टाप्—एक प्रकार की वीणा
शम्या —स्त्री॰—-—शम्+यत्+टाप्—यज्ञपात्र
शम्या —स्त्री॰—-—शम्+यत्+टाप्—एक प्रकार का शल्यचिकित्सापरक उपकरण
शम्याक्षेपः —पुं॰—शम्या-क्षेपः—-—दूरी जहाँ तक कोई लकड़ी फेंकी जा सके
शम्यापातः —पुं॰—शम्या-पातः—-—दूरी जहाँ तक कोई लकड़ी फेंकी जा सके
शयनम् —नपुं॰—-—शी+ल्युट्—सोना,लेटना
शयनम् —नपुं॰—-—शी+ल्युट्—बिस्तरा,खाट
शयनम् —नपुं॰—-—शी+ल्युट्—सहवास,यौनसंबंध
शयनपालिका —स्त्री॰—शयनम्-पालिका—-—सेविका जो राजा की शय्या बिछाती है
शयनभूमिः —स्त्री॰—शयनम्-भूमिः—-—शयन कक्ष,सोने का कमरा
शरक्षेपः —पुं॰—-—-—बाण फेंकने की दूरी का परस
शरणम् —नपुं॰—-—शृ+ल्युट्—प्ररक्षण,सहायता
शरणम् —नपुं॰—-—शृ+ल्युट्—शरणागार,शरणाश्रम
शरणम् —नपुं॰—-—शृ+ल्युट्—आवास,घर
शरणम् —नपुं॰—-—शृ+ल्युट्—विश्रामस्थल
शरणम् —नपुं॰—-—शृ+ल्युट्—आहत करना,हत्या करना
शरणागतिः —स्त्री॰—शरणम्-आगतिः—-—प्ररक्षणार्थ पहुँचना
शरणालयः —पुं॰—शरणम्-आलयः—-—शरणगृह
शरणद —वि॰—शरणम्-द—-—शरण देने वाला
शरणप्रद —वि॰—शरणम्-प्रद—-—शरण देने वाला
शरज्ज्योत्स्ना —स्त्री॰—-—शरद्+ज्योत्सना—शरदृतु की चाँदनी
शरीरचिन्ता —स्त्री॰—-—-—शरीर की देखभाल
शरीरधातुः —पुं॰—-—-—बुद्ध के शरीर की अवशिष्ट भस्म
शरीराकारः —पुं॰—-—-—शारीरिक दर्शन,देह का आकार-प्रकार,सूरत,शक्ल,शरीर का डीलडौल
शरीराकृतिः —स्त्री॰—-—-—शारीरिक दर्शन,देह का आकार-प्रकार,सूरत,शक्ल,शरीर का डीलडौल
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—गन्ने से निर्मित शक्कर
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—कङ्कड़
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—पत्थरों के टुकड़ों से बहुल भूमि
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—रेत
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—ठीकरा
शर्करा —स्त्री॰—-—शृ+करन्,कस्य नेत्वम्—सुनहरी भूमि
शर्कराल —वि॰—-—शर्करा+अलच्—कङ्कड़ के कणों से युक्त
शर्मण्य —वि॰—-—शर्मन्+य—शरण देने वाला,प्ररक्षण देने वाला
शलाका —स्त्री॰—-—शल्+आकः—खूंटी,कील
शलाका —स्त्री॰—-—शल्+आकः—अंगुली
शलाकापरीक्षा —स्त्री॰—शलाका-परीक्षा—-—विधार्थी की परीक्षा लेने की रीति जिसके अनुसार पुस्तक में कहीं भी शलाका से संकेत किया जा सकता है
शलाकापुरुषाः —पुं॰—शलाका-पुरुषाः—-—६३ दिव्य जैन
शलाकायन्त्रम् —नपुं॰—शलाका-यन्त्रम्—-—शल्य चिकित्सा से संबंद्ध एक उपकरण
शलाकाकर्तृ —पुं॰—शलाका-कर्तृ—-—जराहि,शल्यचिकित्सा
शलाकाक्रिया —स्त्री॰—शलाका-क्रिया—-—शरीर में घुसे हुए कांटे आदि किसी पदार्थ को बाहर निकालना
शलाकापर्वन् —पुं॰—शलाका-पर्वन्—-—महाभारत का नवाँ खण्ड
शवशयनम् —नपुं॰—-—-—कबरिस्तान
शवशिविका —स्त्री॰—-—-—अर्थी,शव को ले जाने वाली पालकी
शवशुष्कली —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मछली
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस्+ष्ट्रन्—हथियार
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस्+ष्ट्रन्—लोहा
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस्+ष्ट्रन्—इस्पात
शस्त्रम् —नपुं॰—-—शस्+ष्ट्रन्—स्त्रोत
शस्त्रकर्मन् —पुं॰—शस्त्रम्-कर्मन्—-—शल्यक्रिया
शस्त्रनिपातनम् —नपुं॰—शस्त्रम्-निपातनम्—-—शल्यक्रिया
शस्त्रव्यवहारः —पुं॰—शस्त्रम्-व्यवहारः—-—हथियार चलाने का अभ्यास
शाककलम्बकः —पुं॰—-—-—लशुन,प्याज जैसी एक गांठदार कन्द
शाकपात्रम् —नपुं॰—-—-—सब्जी की तश्तरी
शाखा —स्त्री॰—-—-—परम्परा प्राप्त वेद का पाठ,किसी विशेष शाखा द्वारा अनुसृत वेद पाठ जैसे शाकल शाखा,आश्वलायन शाखा,वाष्कल शाखा आदि
शाखाध्येतृ —पुं॰—शाखा-अध्येतृ—-—वेद की किसी विशेष शाखा के पाठ का पढने वाला विधार्थी
शाखावातः —पुं॰—शाखा-वातः—-—वायु के कारण अंगों में पीड़ा
शङ्करपीठः —पुं॰—-—-—शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित पाँच आध्यात्मिक केन्द्रों में से कोई सा एक
शङ्खायनः —पुं॰—-—-—वेद का एक अध्यापक
शाण्डिल्यस्मृतिः —स्त्री॰—-—-—शाण्डिल्य द्वारा प्रणीत एक धर्मग्रन्थ या विधि की पुस्तक
शातक्रतव —वि॰—-—शतक्रतु+अण्—इन्द्र संबंन्धी
शातनम् —नपुं॰—-—शी+णिच्,तङ्+ल्युट्—पैनाना,तेज करना,चमकाना
शान्त —वि॰—-—शम्+क्त—प्रभावहीन किया हुआ,ठूँठा किया हुआ
शान्तगुण —वि॰—शान्त-गुण—-—उपरत,मृत
शान्तरजस् —वि॰—शान्त-रजस्—-—धूल रहित
शान्तरजस् —नपुं॰—शान्त-रजस्—-—निरावेश
शान्तिः —स्त्री॰—-—शम्+क्तिन्—विनाश,अन्त
शान्तिकर्मन् —पुं॰—शान्तिः-कर्मन्—-—पाप को दूर करने का कोई धार्मिक अनुष्ठान
शान्तिवाचनम् —नपुं॰—शान्तिः-वाचनम्—-—ऐसे वेद मंत्रो का सस्वर पाठ जो पाप को दूर करने वाले समझे जाते है
शापग्रस्त —वि॰—-—-—शाप के दुष्प्रभाव से जकड़ा हुआ
शापाम्बु —नपुं॰—-—-—शाप का उच्चारण करते समय दिये जाने वाले पानी के छींटे
शापोदकम् —नपुं॰—-—-—शाप का उच्चारण करते समय दिये जाने वाले पानी के छींटे
शाबरभाष्यम् —नपुं॰—-—-—मीमांसा सूत्रों पर किया गया भाष्य
शामित्रम् —नपुं॰—-—शम्+णिच्+इत्रच्—पशु बलि देने का स्थान
शाम्बरिकः —पुं॰—-—शम्बर+ठक्—बाजीगर
शारद —वि॰—-—शरद्+अण्—चतुर,निपुण
शारद्वतः —पुं॰—-—-—‘कृप’ का नाम
शारिश्रृङ्खला —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पोसा,शतरंज खेलने की गोट
शार्व —वि॰—-—शर्व+अण्—शिव से सम्बन्ध रखने वाला
शालङ्कायनः —पुं॰—-—-—एक ऋषि का नाम
शालङ्किः —पुं॰—-—-—पाणिनि का नाम
शाश —वि॰—-—शश+अण्—खरगोश से प्राप्त,खरगोश सम्बन्धी
शासनम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—धार्मिक सिद्धान्त
शासनम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—संदेश
शासनदूषक —वि॰—शासनम्-दूषक—-—आदेश का पालन न करने वाला
शासनलङ्घनम् —नपुं॰—शासनम्-लङ्घनम्—-—आज्ञा का उल्लंघन करना
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—आदेश,आज्ञा
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—पावन,शिक्षण,वेद का आदेश
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—ज्ञान का कोई विभाग
शास्त्रम् —नपुं॰—-—शास्+ष्ट्रन्—किसी विषय का सैद्धान्तिक पहलू
शास्त्रान्वित —वि॰—शास्त्रम्-अन्वित—-—शास्त्रीय नियमों को अनुकूल
शास्त्रवक्तृ —पुं॰—शास्त्रम्-वक्तृ—-—शास्त्रीय पुस्तकों का व्याख्याता
शास्त्रवर्जित् —वि॰—शास्त्रम्-वर्जित्—-—सब प्रकार के नियम या विधि से मुक्त्
शास्त्रवादः —पुं॰—शास्त्रम्-वादः—-—शास्त्र के आधार पर दिया गया तर्क
शिक्यपाशः —पुं॰—-—-—छींका लटकाने के लिए रस्सी
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष्+अ+टाप्—दण्ड
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष्+अ+टाप्—गुरु के निकट विद्याभ्यास
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष्+अ+टाप्—उपदेश
शिक्षा —स्त्री॰—-—शिक्ष्+अ+टाप्—सलाह
शिक्षाचार —वि॰—शिक्षा-आचार—-—उपदेशों के अनुसार आचरण करने वाला
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड+कन्—कूल्हे के नीचे शरीर का मांसल भाग
शिखण्डकः —पुं॰—-—शिखण्ड+कन्—शैववाद में मुक्ति की एक विशेष अवस्था
शिखाबन्ध —वि॰—-—-—सिर के बालों का गुच्छा,चोटी बांधना
शिखिन् —वि॰—-—शिखा+इनि—नोकंदार
शिखिन् —वि॰—-—शिखा+इनि—चोटीधारी
शिखिन् —वि॰—-—शिखा+इनि—ज्ञान की चोटी पर पहुँच हुआ
शिखिन् —वि॰—-—शिखा+इनि—अभिमानी
शिखिकणः —पुं॰—शिखिन्-कणः—-—आग की चिनगारी
शिखिभूः —पुं॰—शिखिन्-भूः—-—स्कन्द का नाम
शिखिमृत्युः —पुं॰—शिखिन्-मृत्युः—-—कामदेव
शिलाक्षरम् —नपुं॰—-—-—प्रस्तरमुद्रण,पत्थर के द्वारा छापने की प्रक्रिया
शिलाक्षरम् —नपुं॰—-—-—शिलालेख,पत्थर पर खुदवाया हुआ अनुशासन
शिलानिर्यासः —पुं॰—-—-—शिलाजतु,शीलाजीत
शिलाशित —वि॰—-—-—पत्थर पर बनाया हुआ
शिलीपदः —पुं॰—-—-—पादस्फीति,फील पाँव रोग
शिल्पगेहम् —नपुं॰—-—-—शिल्पकार का कारखाना,कारीगर के काम करने का स्थान
शिल्पजीविन् —वि॰—-—-—कारीगरी का काम करके जीविकोपार्जन करने वाला व्यक्ति,शिल्पी
शिव —वि॰—-—शो+वन् पृषो॰—शुभ,मंगलमय,सौभाग्यसूचक
शिव —वि॰—-—शो+वन् पृषो॰—स्वस्थ,प्रसन्न,भाग्यशाली
शिवः —पुं॰—-—-—हिन्दुओं के त्रिदेव में से तीसरा
शिवः —पुं॰—-—-—सुरा,स्पिरिट
शिवाद्वैतः —पुं॰—शिव-अद्वैतः—-—शैववाद का दर्शनशास्त्र
शिवार्कमणिदीपिका —स्त्री॰—शिव-अर्कमणिदीपिका—-—अप्पयदीक्षित द्वारा रचित शैववाद पर एक ग्रन्थ
शिवकामसुन्दरी —स्त्री॰—शिव-कामसुन्दरी—-—पार्वती का विशेषण
शिवपदम् —नपुं॰—शिव-पदम्—-—मोक्ष,मुक्ति
शिवबीजम् —नपुं॰—शिव-बीजम्—-—पारा
शिशयिषा —स्त्री॰—-—शी+सन्+अङ्+टाप् घातोर्द्वित्वम्—सोने की इच्छा
शिशिरमथित —वि॰—-—-—सर्दी से ठिठुरा हुआ
शिशुः —पुं॰—-—शो+कु,सन्वद्भावह्,द्वित्वम्—वच्चा,बाल
शिशुः —पुं॰—-—शो+कु,सन्वद्भावह्,द्वित्वम्—किसी भी जन्तु का बच्चा
शिशुः —पुं॰—-—शो+कु,सन्वद्भावह्,द्वित्वम्—छठे वर्ष में हाथी
शिशुनामन् —पुं॰—शिशुः-नामन्—-—ऊँट
शिश्नम्भर —वि॰—-—-—विषयी,कामलोलुप
शिशष्टविगर्हणम् —नपुं॰—-—-—बुद्धिमान् व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली निन्दा
शिष्टसम्मत —वि॰—-—-—विद्वान पुरुषों द्वारा माना हुआ
शीघ्रकेन्द्रम् —नपुं॰—-—-—ग्रहसंयोग से दूरी,फासला
शीघ्रपरिधिः —पुं॰—-—-—ग्रहसंयोग का अधिचक्र
शीफर —वि॰—-—-—आनन्दप्रद,सुखमय
शीर्षछेदिक —वि॰—-—-—फांसी पर चढ़ाये जाने के योग्य
शीर्षछेद्य —वि॰—-—-—फांसी पर चढ़ाये जाने के योग्य
शीर्षत्राणम् —नपुं॰—-—-—शिरस्त्राण,टोप
शीर्षपट्टकः —पुं॰—-—-—दुपट्टा,साफा,पगड़ी
शुकसप्ततिः —स्त्री॰—-—-—एक तोते के द्वारा अपनी स्वामिनी को सुनाई गई सत्तर कहानियों का संग्रह
शुक्रम् —नपुं॰—-—शुच्+रक्,नि॰ कुत्वम्—उज्ज्वलता
शुक्रम् —नपुं॰—-—शुच्+रक्,नि॰ कुत्वम्—सोना दौलत
शुक्रम् —नपुं॰—-—शुच्+रक्,नि॰ कुत्वम्—वीर्य
शुक्रम् —नपुं॰—-—शुच्+रक्,नि॰ कुत्वम्—किसी चीज का सत्
शुक्रम् —नपुं॰—-—शुच्+रक्,नि॰ कुत्वम्—पुंस्त्वशक्ति,स्त्रीत्वशक्ति
शुक्रकृच्छ्रम् —नपुं॰—शुक्रम्-कृच्छ्रम्—-—मूत्रकृच्छ् रोग
शुक्रदोषः —पुं॰—शुक्रम्-दोषः—-—वीर्य का दोष
शुक्लम् —नपुं॰—-—शुच्+लुक्,कुत्वम्—उज्ज्वलता
शुक्लम् —नपुं॰—-—शुच्+लुक्,कुत्वम्—श्वेत धब्बा
शुक्लम् —नपुं॰—-—शुच्+लुक्,कुत्वम्—चाँदी
शुक्लम् —नपुं॰—-—शुच्+लुक्,कुत्वम्—आँख की सफेदी का रोग
शुक्लजीवः —पुं॰—शुक्लम्-जीवः—-—एक प्रकार का पौधा
शुक्लदेह —वि॰—शुक्लम्-देह—-—पवित्र शरीर वाला
शुक्लशुचियन्त्रम् —नपुं॰—शुक्लम्-शुचियन्त्रम्—-—एक मशीन जिसके द्वारा आतिशबाजी का प्रदर्शन किया जाता है
शुचिश्रवस् —पुं॰—-—-—विष्णु का नाम
शुचिशषद् —वि॰—-—-—सन्मार्ग पर चलने वाला
शुण्डमूषिका —स्त्री॰—-—-—छछुन्दर
शुण्डादण्डः —पुं॰—-—-—हाथी का सूंड
शुद्ध —वि॰—-—शुध+क्त—जांचा हुआ,आजमाया हुआ,परीक्षित
शुद्ध —वि॰—-—शुध+क्त—पवित्र,निष्कलंक
शुद्ध —वि॰—-—शुध+क्त—ईमानदार,धर्मात्मा
शुद्ध —वि॰—-—शुध+क्त—विशुद्ध,खालिस जिसमे कुछ मिलावट न हो
शुद्धाद्वैतम् —नपुं॰—शुद्ध-अद्वैतम्—-—अद्वैत की वह स्थिति जहाँ कि जीव और ईश्वर का सायुज्य मायारहित माना जाता है
शुद्धबोध —वि॰—शुद्ध-बोध—-—विशुद्ध ज्ञान से युक्त
शुद्धभाव —वि॰—शुद्ध-भाव—-—पवित्र मन वाला
शुद्धविष्कम्भकः —पुं॰—शुद्ध-विष्कम्भकः—-—नाटक का वह भाग जहाँ केवल संस्कृत बोलने वाले पात्र ही दिखाई दें
शुद्धिः —स्त्री॰—-—शुध्+क्तिन्—शेष न छोड़ना
शुभमङ्गलम् —नपुं॰—-—-—सौभाग्य,कल्याण,अभ्युदय
शुल्काध्यक्षः —पुं॰—-—-—चुंगी का अध्यक्ष
शुल्बसूत्रम् —नपुं॰—-—-—सूत्रग्रन्थ जिसमें श्रौत यज्ञकृत्यों की विविध गणनप्रक्रिया समाविष्ट है
शुष्ककासः —पुं॰—-—-—सूखी खाँसी
शुष्करुदितम् —नपुं॰—-—-—ऐसा रोना जिसमें आँसू न आयें
शुकः —पुं॰—-—शिव+कक्,संप्रसारणम्—प्रकिण्व,सुरामण्ड
शुकः —पुं॰—-—शिव+कक्,संप्रसारणम्—खमीर
शूद्रः —पुं॰—-—शुच्+रक्,पृषो॰ चस्य दः दीर्घश्च— हिन्दु समाज में चौथे वर्ण का पुरुष
शूद्रान्नम् —नपुं॰—शूद्रः-अन्नम्—-—शूद्र द्वारा दिया गया या परोसा गाया भोजन
शूद्रघ्न —वि॰—शूद्रः-घ्न—-—शूद्र की हत्या करने वाला
शूद्रवृतिः —स्त्री॰—शूद्रः-वृतिः—-—शूद्र का व्यवसाय
शूद्रसङ्स्पर्शः —पुं॰—शूद्रः-सङ्स्पर्शः—-—शूद्र से छू जाना
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—नायक,योद्धा
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—सूर्य
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—साल का वृक्ष
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—मदार का पौधा
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—चित्रक वृक्ष
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—कुत्ता
शूरः —पुं॰—-—शूर्+अच्—मुर्गा
शूरवादः —पुं॰—शूरः-वादः—-—बौद्धों का अनस्तित्व सिद्धांत
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—विक्रय
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—बेचने योग्य पदार्थ
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—नोकदार हथियार
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—लोहे की सलाख
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—किसी भी प्रकार का दर्द
शूलः —पुं॰—-—शूल्+क—मृत्यु
शूलाङ्कः —पुं॰—शूलः-अङ्कः—-—शिव का विशेषण
शूलावतंसित —वि॰—शूलः-अवतंसित—-—सलाख पर लटकाया हुआ,सूली पर चढ़ाया हुआ
शूलारोपः —पुं॰—शूलः-आरोपः—-—सूली पर चढ़ाना
शूल्यमांसम् —नपुं॰—-—-—भुना हुआ मांस
शूष —वि॰—-—शूष्+अच्—गुंजायमान
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ+गन् मुम्,ह्र स्वश्च—सींग
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ+गन् मुम्,ह्र स्वश्च—पर्वत की चोटी
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ+गन् मुम्,ह्र स्वश्च—ऊँचाई
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ+गन् मुम्,ह्र स्वश्च—स्त्री का स्तन
शृङ्गम् —नपुं॰—-—शृ+गन् मुम्,ह्र स्वश्च—एक विशेष प्रकार का सैनिक व्यूह
शृङ्गग्राहिका —स्त्री॰—शृङ्गम्-ग्राहिका—-—प्रत्यक्ष रीति
शृङ्गग्राहिका —स्त्री॰—शृङ्गम्-ग्राहिका—-—एक पक्ष लेना
शृङ्गिन् —वि॰—-—श्रृङ्ग+इनि—सींगों वाला जानवर
शृङ्गिन् —पुं॰—-—श्रृङ्ग+इनि—बैल
शृतपाक —वि॰—-—-—पूर्णतः पका हुआ
शृतशीत —वि॰—-—-—उबाल कर ठंडा किया हुआ
शेषः —पुं॰—-—शिष्+अच्—अङ्गभूत वस्तु
शेषः —पुं॰—-—शिष्+अच्—प्रसाद,कृपा
शेषाचलः —पुं॰—-—-—तिरुपति की पहाड़ियाँ
शेषाद्रिः —पुं॰—-—-—तिरुपति की पहाड़ियाँ
शैक्यः —पुं॰—-—शिक्य+अण्—एक प्रकार का गोफिया
शैक्यः —पुं॰—-—शिक्य+अण्—लटकाया हुआ बर्तन
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल+ष्यञ्—अस्थिरता
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल+ष्यञ्—शिथिलता,सुस्ती
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल+ष्यञ्—शून्यता
शैथिल्यम् —नपुं॰—-—शिथिल+ष्यञ्—अवहेलना
शैलगुरु —वि॰—-—-—पहाड़ जैसा भारी
शैलबीजम् —नपुं॰—-—-—भिलावाँ
शैलूषी —स्त्री॰—-—शिलूष+अण्+ङीप्—नटी,नर्तकी
शोकनिहित —वि॰—-—-—शोकपीड़ित,गम का मारा
शोकहत —वि॰—-—-—शोकपीड़ित,गम का मारा
शोणितप —वि॰—-—शोणित+पा+क—रुधिर पीने वाला
शोणितपित्तम् —नपुं॰—-—-—रुधिरस्राव
शोधः —पुं॰—-—शुध्+घञ्—शुद्धि,सफाई,विरेचन
शोधनम् —नपुं॰—-—शुध्+णिच्+ल्युट्—मार्जन,परिष्करण
शोधनम् —नपुं॰—-—-—पाप अपराधादि से शुद्ध
शोभनाचरितम् —नपुं॰—-—-—सुन्दर आचरण,सदाचरण
शोली —स्त्री॰—-—-—वनहरिद्रा,पीली हल्दी
शोषयित्नुः —पुं॰—-—शुष्+इत्नुच्—सूर्य
शौङ्गेयः —पुं॰—-—-—बाज,श्येन
शौचम् —नपुं॰—-—शुचि+अण्—जल
शौण्डीर्यम् —नपुं॰—-—शौण्डीर+ष्यञ्—शूरवीरता,पराक्रम
शौण्डीर्यम् —नपुं॰—-—शौण्डीर+ष्यञ्—अभिमान,घमंड
शौर्यकम् —नपुं॰—-—-—शूरवीरता का कार्य
शौव —वि॰—-—श्वन्+अण्,टिलोपः—आगामी कल से संबंध रखने वाला
श्मश्रुकरः —पुं॰—-—-—नाई,हजामत बनाने वाला
श्मश्रुशेखरः —पुं॰—-—-—नारियल का पेड़
श्यामः —पुं॰—-—श्यै+मक्—तमाल का पेड़
श्यामवल्ली —स्त्री॰—-—-—काली मिर्च
श्यामा —स्त्री॰—-—-—दुर्गादेवी का तान्त्रिक रुप
श्येनकपोतीय —वि॰—-—-—आकस्मिक संकट
श्येनपातः —पुं॰—-—-—बाज का झपट्टा
श्रद्धाजाड्यम् —नपुं॰—-—-—अंध विश्वास
श्रद्धेय —वि॰—-—श्रत्+धा+ण्यत्—विश्वासपात्र
श्रम् —प्रेर॰<श्र-श्रामयति>—-—-—थकाना
श्रम् —प्रेर॰<श्र-श्रामयति>—-—-—जीताना,हराना
श्रमविनोदः —पुं॰—-—-—क्लांति दूर करना,विश्राम करना
श्रमार्त —वि॰—-—-—थक कर चूर-चूर,थकान से पीड़ित
श्रवणपत्रम् —नपुं॰—-—-—कान की बाली
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु+ल्युट्—कान
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु+ल्युट्—त्रिकोण की एक रेखा
श्रवणम् —नपुं॰—-—श्रु+ल्युट्—सुनने की क्रिया
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु+ल्युट्—कान
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु+ल्युट्—त्रिकोण की एक रेखा
श्रवणः —पुं॰—-—श्रु+ल्युट्—सुनने की क्रिया
श्रवणपुटकः —पुं॰—श्रवणम्-पुटकः—-—कर्णविवर
श्रवणपूरकः —पुं॰—श्रवणम्-पूरकः—-—कान की बाली,कर्णफूल
श्रवणप्राघुणिकः —पुं॰—श्रवणम्-प्राघुणिकः—-—श्रवण गोचर वस्तु,कानों में आना
श्रवणभृत —वि॰—श्रवणम्-भृत—-—कहा गया
श्राद्धमित्रः —पुं॰—-—-—श्राद्ध के द्वारा बनाया गया मित्र
श्राद्धर्ह —वि॰—-—-—श्राद्ध के लिए उपयुक्त
श्राद्धेय —वि॰—-—-—श्राद्ध के लिए उपयुक्त
श्रावकः —पुं॰—-—श्रु+ण्वुल्—वह ध्वनि जो दूर से सुनी जाय
श्रितक्षम —वि॰—-—-—स्वस्थ,शान्त
श्रितसत्व —वि॰—-—-—जिसने साहस का आश्रय लिया है,साहसी,दिलेर
श्री —स्त्री॰—-—श्रि+क्विप्,नि॰दीर्घः—वेदत्रयी,तीनों वेद
श्रीमुकुटम् —नपुं॰—-—-—सोना,स्वर्ण
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु+क्तिन्—वाणी
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु+क्तिन्—कीर्ति
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु+क्तिन्—उपयोग,लाभ
श्रुतिः —स्त्री॰—-—श्रु+क्तिन्—विद्वता,पांडित्य
श्रुत्यर्थः —पुं॰—श्रुतिः-अर्थः—-—वैदिक अर्थसूचन
श्रुतिजातिः —स्त्री॰—श्रुतिः-जातिः—-—नाना प्रकार के दिक्स्वर
श्रुतिदूषक —वि॰—श्रुतिः-दूषक—-—कानों को कष्ट देने वाला
श्रुतिवेधः —पुं॰—श्रुतिः-वेधः—-—कान बींधना
श्रुतिशिरस् —नपुं॰—श्रुतिः-शिरस्—-—उपनिषदें
श्रेयोभिकांक्षिन् —वि॰—-—-—कल्याण चाहने वाला
श्रेष्ठवेधिका —स्त्री॰—-—-—कस्तूरी
श्रेष्ठान्वयः —वि॰—-—-—उत्तम कूल में उत्पन्न
श्रोणिबिम्बम् —नपुं॰—-—-—गोल नितम्ब
श्रौतस्मार्त —पुं॰,द्वि॰व॰—-—-—वेद और स्मृति से संबंध रखने वाला
श्लथबन्धनम् —नपुं॰—-—-—पुटठों का विश्राम देना
श्लथबन्धनम् —नपुं॰—-—-—ढीली गांठ
श्लाघाविपर्ययः —पुं॰—-—-—शेखी बघारने का अभाव,प्रशंसा या चापलूसी का न होना
श्लिष्टरुपकम् —नपुं॰—-—-—श्लेषयुक्त रुपक अलंकार,जिस रुपक के एक से अधिक अर्थ होते हों
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष्+घञ्—आलिंगन्,मैथुन
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष्+घञ्—व्याकरण विषयक आगम संयोग
श्लेषः —पुं॰—-—श्लिष्+घञ्—एक शब्दालंकार जहाँ एक शब्द के कई अर्थों द्वारा काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है
श्लेषोपमा —स्त्री॰—-—-—उपमा अलंकार जिसके दो अर्थ होते हों
श्लेष्मकटाहः —पुं॰—-—-—थूकदान
श्लोक्य —वि॰—-—श्लोक्+ण्यत्—प्रशंसनीय
श्वजीविका —स्त्री॰—-—-—कुत्ते का जीवन,दासता
श्वदंष्ट्रा —स्त्री॰—-—-—कुत्ते की दाढ़
श्वदंष्ट्रा —स्त्री॰—-—-—गोरुख का पौधा
श्वयीचिः —पुं॰—-—श्वयतेःचित्—चन्द्रमा
श्वसुरगृहम् —नपुं॰—-—-—श्वसुरालय
श्वसनमनोग —वि॰—-—-—वायु और मन की भाँति चंचल
श्वसनरन्ध्रम् —नपुं॰—-—-—श्वास,साँस
श्वासः —पुं॰—-—श्वस्+घञ्—व्यञ्जनों के उच्चारण में महाप्राणता
श्वसप्रभृति —अ॰—-—-—आगामी कल से लेकर
श्वोवसीयस् —वि॰—-—-—प्रसन्न,शुभ,मङ्गलमय
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—सफेद बकरी
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—धूमकेतु,पुच्छलतारा
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—चाँदी का सिक्का
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—जीरे का बीज
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—शंख
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—सफेद रंग
श्वेतः —पुं॰—-—श्वित्+अच्,घञ् वा—शुक्र तारा
श्वेताङ्शुः —पुं॰—श्वेतः-अङ्शुः—-—चन्द्रमा
श्वेताश्वः —पुं॰—श्वेतः-अश्वः—-—अर्जुन
श्वेतकपोतः —पुं॰—श्वेतः-कपोतः—-—एक प्रकार का चूहा
श्वेतकपोतः —पुं॰—श्वेतः-कपोतः—-—एक प्रकार का साँप
श्वेतक्षारः —पुं॰—श्वेतः-क्षारः—-—यवक्षार,शोरा
श्वेतरसः —पुं॰—श्वेतः-रसः—-—छाछ और पानी बराबर-बराबर मिले हुए
श्वेतवाराहः —पुं॰—श्वेतः-वाराहः—-—कल्प का नाम जो आजकल बीत रहा है
षडष्टकम् —नपुं॰—-—-—फलित ज्योतिष का एक योग
षडर्मिः —पुं॰—-—-—अस्तित्व की छः लहरें
षट्पदः —पुं॰—-—-—मधुमक्खी,भौंरा
षट्पदः —पुं॰—-—-—गीति छन्द
षडऋतुः —पुं॰,ब॰,व॰—-—-—छः ऋतुएँ
षडभाववादः —पुं॰—-—-—द्रव्य,गुण,कर्म,सामान्य,विशेष और समवाय’इन छः द्रव्यों की स्वीकृति पर आधारित सिद्धान्त
षाडवः —पुं॰—-—-—रसराग की एक जाति जिसमें केवल छः स्वर जाते है
षाडवः —पुं॰—-—-—मिठाई,हलवाई का कार्य
षोडशाहः —पुं॰—-—-—शाक्तशाखा का एक चक्र
संयत् —स्त्री॰—-—सम्+यत्+क्विप्—युद्ध,लड़ाई,संग्राम
संयत्वाम —वि॰—संयत्-वाम—-—उस सबको एकत्र करने वाला जो सुखद है
संयन्त्रित —वि॰—-—संयन्त्र+इतच्—रोका हुआ,बन्द किया हुआ
संयम् —भ्वा॰पर॰—-—-—रोकना,दमन करना,दबाना
संयम् —भ्वा॰पर॰—-—-—सटाना,भींचना
संयतमैथुन —वि॰—-—-—जिसने मैथुन करना त्याग दिया हो
संयतिः —स्त्री॰—-—सम्+यम्+क्तिन्—तपश्चर्या,निरोध,संयमन
संयमः —पुं॰—-—सम्+यम्+अप्—प्रयत्न,उद्योग
संयोगः —पुं॰—-—सम्+युज्+घञ्—भौतिक संपर्क
संयोगः —पुं॰—-—सम्+युज्+घञ्—शारीरिक संपर्क
संयोगः —पुं॰—-—सम्+युज्+घञ्—योगफल
संयोगविधिः —पुं॰—संयोगः-विधिः—-—सम्मिश्रण की प्रणाली
संयोगविधिः —पुं॰—संयोगः-विधिः—-—जीव और ईश्वर के सायुज्य को दर्शानेवाली वेदान्त की उक्ति
संयुतिः —स्त्री॰—-—सम्+यु+क्तिन्—दो या दो से अधिक संख्याओं का योगफल
संरब्धनेत्र —वि॰—-—-—जिसकी आँखे सूज गई हों
संरब्धमान —वि॰—-—-—जिसके अभिमान को आघात लग चुका है
संरम्भः —पुं॰—-—सम्+रभ्+घञ्,मुम्—घृणा,द्वेष,वेग,आक्रमण की प्रचण्डता
संराद्धिः —स्त्री॰—-—सम्+राध्+क्तिन्—निष्पति,सफलता
संरुद्ध —वि॰—-—सम्+रुध्+क्त—बाधायुक्त
संरुद्ध —वि॰—-—सम्+रुध्+क्त—कारावरुद्ध
संरोधः —पुं॰—-—सम्+रुध्+घञ्—बंधन,कैद
संरुढ —वि॰—-—सम्+रुह्+क्त—जो गहराई तक घुसा हुआ हो
संवत्सरनिरोधः —पुं॰—-—-—एक वर्ष की कैद
संवद् —भ्वा॰पर॰—-—-—परस्पर मिलाना
संवदनम् —नपुं॰—-—संवद्+ल्युट्—संदेश
संवादः —पुं॰—-—सम्+वद्+घञ्—अभियोग,मुकदमा
संवर्गविद्या —स्त्री॰—-—-—अवशोषण या विश्लेपण का शास्त्र
संवासः —पुं॰—-—सम्+वस्+घञ्—सहवास
संवहनम् —नपुं॰—-—सम्+वह्+ल्युट्—मार्गदर्शन करना,नेतृत्व करना
संवहनम् —नपुं॰—-—सम्+वह्+ल्युट्—प्रदर्शन करना,दिखलाना
संविग्न —वि॰—-—सम्+विज्+क्त—क्षुब्ध,उत्तेजित
संविग्न —वि॰—-—सम्+विज्+क्त—भयभीत,डरा हुआ
संविग्न —वि॰—-—सम्+विज्+क्त—इधर-उधर चक्कर लगाता हुआ
संविज्ञानम् —नपुं॰—-—सम्+वि+ज्ञा+ल्युट्—सहमति,अनुमोदन
संविज्ञानम् —नपुं॰—-—सम्+वि+ज्ञा+ल्युट्—सम्यक् ज्ञान
संविज्ञानम् —नपुं॰—-—सम्+वि+ज्ञा+ल्युट्—प्रत्यक्ष ज्ञान
संविद् —पुं॰—-—सम्+विद्+क्विप्—मतैक्य
संविद् —पुं॰—-—सम्+विद्+क्विप्—मित्रता
संविध् —स्त्री॰—-—सम्+वि+धा+क्विप्—व्यवस्था
संविभक्त —वि॰—-—सम्+वि+भज्+क्त—बांटा हुआ,विभाजित,पृथक किया हुआ
संवेशः —पुं॰—-—सम्+विश्+घञ्—कुर्सी
संवेशनम् —नपुं॰—-—सम्+विश्+ल्युट्—सोना,नींद लेना
संवारः —पुं॰—-—सम्+वृ+घञ्—बाधा,विघ्न
संवृतसंवार्य —वि॰—-—-—जो गोपनीय बातों को गुप्त रखता है
संवर्तः —पुं॰—-—सम्+वृत्+घञ्—सिकोड़ना,सिकुड़न
संवर्तित् —वि॰—-—सम्+वृत्+क्त—लिपटा हुआ,लपेटा हुआ
संवर्तित् —वि॰—-—सम्+वृत्+क्त—बराबर आया हुआ
संवृद्धिः —स्त्री॰—-—सम्+वृध्+क्तिन्—पूर्णवृद्धि,अभ्युदय,शक्ति
संव्यस् —दिवा॰॰पर॰—-—-—व्यवस्थित करना,एकत्र करना
संव्यूहः —पुं॰—-—सस्+वि+ऊह्+घञ्—व्यवस्था,क्रमस्थापन
संशित —वि॰—-—सम्+शी+क्त—अपने संकल्प को दृढ़ता पूर्वक निभाने वाला
संशयाक्षेपः —पुं॰—-—-—एक अलंकार जिसमें संदेह का निवारण समाविष्ट होता है
र्सशयोपमा —स्त्री॰—-—-—संदेह के रुप में न्यस्त तुलना
संशुध् —दिवा॰पर॰—-—-—शुद्ध करना,सुरक्षित रखना
संश्रि —भ्वा॰उभ॰—-—-—संभोगसुख के लिए पहुँचना
संश्रयः —पुं॰—-—सम्+श्रि+अच्—आसक्ति
संश्रयः —पुं॰—-—सम्+श्रि+अच्—किसी पदार्थ का कोई अंश
संश्रवस् —नपुं॰—-—सम+श्रु+असुन्—पूरी कीर्ति या ख्याति
संश्लिष्ट —वि॰—-—सम+श्लिष्+क्त—मिश्रित,अव्ययस्थित
संश्लिष्टम् —नपुं॰—-—सम+श्लिष्+क्त—राशि,ढेर
संसक्त —वि॰—-—सम्+सञ्ज्+क्त—विषयासक्त
संसक्त —वि॰—-—सम्+सञ्ज्+क्त—अनुरक्त
संसज्जमान —वि॰—-—सम्+सञ्ज्+शानच्—साथ लगने वाला
संसज्जमान —वि॰—-—सम्+सञ्ज्+शानच्—संकोच करने वाला,झिझकने वाला
संसदनम् —नपुं॰—-—सम्+सद्+ल्युट्—खिन्नता,अवसाद
संसिद्धिः —स्त्री॰—-—सम्+सिध्+क्तिन्—अन्तिम परिणाम
संसिद्धिः —स्त्री॰—-—सम्+सिध्+क्तिन्—अन्तिम शब्द
संसृ —भ्वा॰पर॰—-—-—स्थगित करना,उठा रखना
संसृ —भ्वा॰पर॰—-—-—काम में लगाना
संसारसागरः —पुं॰—-—-—जन्म मरण का समुद्र
संसारब्धिः —पुं॰—-—-—जन्म मरण का समुद्र
संसारार्णवः —पुं॰—-—-—जन्म मरण का समुद्र
संसारपङ्कः —पुं॰—-—-—संसार रुपी कीचड़
संसारवृक्षः —पुं॰—-—-—सांसारिक जीवन रुपी वृक्ष
संसेव् —भ्वा॰आ॰—-—-—सम्मिलन करना
संसेव् —भ्वा॰आ॰—-—-—सेवा करना,सेवा में प्रस्तुत रहना
संसेव् —भ्वा॰आ॰—-—-—व्यसनी होना
संसेवा —स्त्री॰—-—सम्+सेव्+अङ्+टाप्—नित्यप्रति जाना
संसेवा —स्त्री॰—-—सम्+सेव्+अङ्+टाप्—उपयोग,काम में लगाना
संसेवा —स्त्री॰—-—सम्+सेव्+अङ्+टाप्—आदर सत्कार,पूजा अर्चना
संस्कृ —तना॰उभा॰—-—-—संचय करना
संस्कृ —तना॰उभा॰—-—-—यथार्थता पर पहुँचना
संस्कारवती —स्त्री॰—-—-—जिसे चमका कर उज्जवल कर दिया गया है
संस्कारवत्त्वम् —नपुं॰—-—-—प्रमार्जन,परिष्कार
संस्कृतात्मन् —वि॰—-—-—आध्यात्मिक अनुशासन,या धर्मकृत्यों के द्वारा जिसने अपने आपको पवित्र कर लिया है
संस्कृतिः —स्त्री॰—-—सम्+कृ+क्तिन्—परिष्कार
संस्कृतिः —स्त्री॰—-—सम्+कृ+क्तिन्—तैयारी
संस्कृतिः —स्त्री॰—-—सम्+कृ+क्तिन्—पूर्णता
संस्कृतिः —स्त्री॰—-—सम्+कृ+क्तिन्—मनोविकास
संस्तम्भनम् —नपुं॰—-—सम्+स्तम्भ्+ल्युट्—रोकना,बंधन में डालना,पकड़ लेना
संस्तीर्ण —वि॰—-—सम्+स्तृ+क्त—छितराया हुआ,बखेरा हुआ
संस्था —भ्वा॰आ॰-प्रेर॰—-—-—निर्माण करना
संस्था —भ्वा॰आ॰-प्रेर॰—-—-—पुनः स्थापित करना
संस्था —भ्वा॰आ॰-प्रेर॰—-—-—दाह संस्कार करना,अस्थि प्रवाहित करना,या जल समाधि देना
संस्था —स्त्री॰—-—सम्+स्था+अङ्+टाप्—सहमति
संस्था —स्त्री॰—-—सम्+स्था+अङ्+टाप्—दाह संस्कार
संस्था —स्त्री॰—-—सम्+स्था+अङ्+टाप्—सिपाही,गुप्तचर
संस्थावृक्षः —पुं॰—-—-—गमले में लगा पौधा
संस्थानम् —नपुं॰—-—सम्+स्था+ल्युट्—सरकार को संस्थित रखने का कार्य
संस्थानम् —नपुं॰—-—सम्+स्था+ल्युट्—भाग,प्रभाग,खंड
संस्थानम् —नपुं॰—-—सम्+स्था+ल्युट्—सौन्दर्य,कीर्ति
संस्थित —वि॰—-—सम्+स्था+क्त्—सुव्यवस्थित
संस्थितिः —स्त्री॰—-—सम्+स्था+क्तिन्—एक ही अवस्था में पंक्ति बद्ध रहना
संस्थितिः —स्त्री॰—-—सम्+स्था+क्तिन्—महत्व देना
संस्थितिः —स्त्री॰—-—सम्+स्था+क्तिन्—रुप,शक्ल
संस्थितिः —स्त्री॰—-—सम्+स्था+क्तिन्—सातत्य,नैरन्तर्य
संहत —वि॰—-—सम्+हन्+क्त—सुदृढ़ अंगों वाला
संहत —वि॰—-—सम्+हन्+क्त—मारा गया
संहतहस्त —वि॰—-—-—एक दुसरे का हाथ पकड़े हुए
संहतिः —स्त्री॰—-—सम्+हन्+क्तिन्—संधि,सीयन
संहतिः —स्त्री॰—-—सम्+हन्+क्तिन्—मोटा होना,सूजन
संहृ —भ्वा॰पर॰—-—-—विपथगामी करना,भटकाना,भ्रष्ट करना
संहाररुद्रः —पुं॰—-—-—संहार करने वाला रुद्र देवता
सकर —वि॰—-—-—कर युक्त,हाथों वाला
सकर —वि॰—-—-—कर लगाने योग्य
सकर —वि॰—-—-—किरणों से युक्त
सकीलः —पुं॰—-—-—वह पुरुष जो इतना पुंस्त्वहीन है कि स्वयं संभोग करने के पूर्व अपनी स्त्री को परपुरुष के पास भेजता है
सकृत्स्नायिन् —वि॰—-—-—केवल एक बार स्नान करने वाला
सकृदाह्रत —वि॰—-—-—जो राशि एक किश्तों में न चुकाकर एकमुश्त चुकाई गई हो
सकृद्गतिः —स्त्री॰—-—-—संभावनामात्र,केवल एक ही विकल्प है
सकृद्विभात —वि॰—-—-—जो तुरन्त प्रकट हो गया है
सगतिक —वि॰—-—-—संबंधबोधक अव्यय से जुड़ा हुआ
सङ्कटहरचतुर्थी —स्त्री॰—-—-—गणेश की पूजा करने का शुभ दिन माघ कृष्ण या भाद्रकृष्ण चतुर्थी
सङ्कालनम् —नपुं॰—-—सम्+कल्+णिच्+ल्युट्—दाहसंस्कार
सङ्कर्षणः —पुं॰—-—सम्+कृष्+ल्युट्—अहंकार
सङ्करः —पुं॰—-—सम्+कृ+अच्—गोबर
सङ्करज —वि॰—-—-—जिसके माता पिता भिन्न-भिन्न जाति के हों,मिश्र मातापिता की सन्तान
सङ्करजात —वि॰—-—-—जिसके माता पिता भिन्न-भिन्न जाति के हों,मिश्र मातापिता की सन्तान
सङ्करीकरणम् —नपुं॰—-—-—जातियों का मिश्रण
सङ्क्लृप् —भ्वा॰आ॰—-—-—और्ध्वदेहिक कृत्य करना।अन्त्येष्टि करना
सङ्कल्पप्रभव —वि॰—-—-—इच्छा से उत्पन्न,मानस
सङ्कल्पमूल —वि॰—-—-—किसी इच्छा पर आधारित
सङ्क्रन्दः —पुं॰—-—सम्+क्रन्द+घञ्—युद्ध,लड़ाई
सङ्क्रन्दः —पुं॰—-—सम्+क्रन्द+घञ्—विलाप
सङ्क्रमणम् —नपुं॰—-—सम्+क्रम्+ल्युट्—मृत्यु
सङ्कोशः —पुं॰—-—सम्+क्रुश्+घञ्—ऊँचे स्वर से विलाप करना
सङ्क्लिष्ट —वि॰—-—सम्+क्लिश्+क्त—जिस पर खरोंच आ गई हो
सङ्क्लिष्ट —वि॰—-—सम्+क्लिश्+क्त—जिस पर धब्बा आदि पड़ गया हो,धूमिल,मलिन
सङ्क्षयः —पुं॰—-—सम्+क्षि+अच्—शरणागार,घर
सङ्क्षयः —पुं॰—-—सम्+क्षि+अच्—मृत्यु
सङ्क्षेपः —पुं॰—-—सम्+क्षिप्+घञ्—विनाश
सङ्क्षोभणम् —नपुं॰—-—सम्+क्षुभ्+ल्युट्—शोक का प्रबल आघात,धक्का
सङ्ख्या —स्त्री॰—-—सम्+ख्या+अङ्+टाप्—युद्ध,लड़ाई
सङ्ख्या —स्त्री॰—-—सम्+ख्या+अङ्+टाप्—नाम
सङ्ख्या —स्त्री॰—-—सम्+ख्या+अङ्+टाप्—ज्यामितिपरक शंकु
सङ्ख्यापदम् —नपुं॰—-—-—अंक
सङ्गम् —भ्वा॰आ॰प्रेर॰—-—-—दे देना,सौप देना
सङ्गम् —भ्वा॰आ॰प्रेर॰—-—-—हत्या करना
सङ्गतगात्र —वि॰—-—-—जिसके शरीर में झुर्रियाँ पड़ गई हैं,या सिकुड़ गया है
सङ्गतिः —स्त्री॰—-—सम्+गम्+क्तिन्—अधिकरण के पाँच अंगों में से एक
सङ्गुप्तिः —स्त्री॰—-—सम्+गुप्+क्तिन्—प्ररक्षण
सङ्गुप्तिः —स्त्री॰—-—सम्+गुप्+क्तिन्—गोपन,गुप्त रखना
सङ्गोपनम् —नपुं॰—-—सम्+गुप्+ल्युट्—सर्वथा गुप्त रखना
सङ्ग्रहः —पुं॰—-—सम्+ग्रह्+अप्—छोड़े हुए शस्त्रास्त्रों को वापिस ग्रहण करना
सङ्ग्रामकर्मन् —नपुं॰—-—-—युद्ध करना,लड़ाई करना
सङ्ग्राममूर्धन् —पुं॰—-—-—युद्ध का अग्रिम क्षेत्र
सङ्घवृत्तम् —नपुं॰—-—-—निगम आदि संकायों का मिलकर कार्य करने का ढंग
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—बहाव
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—कठोर भाग
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—युद्ध
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—हड्डी
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—गहनता
सङ्घातः —पुं॰—-—सम्+हन्+घञ्—समूह
सङ्घातचारिन् —वि॰—-—-—समूह में मिलकर चलने वाला
सङ्घातमृत्युः —पुं॰—-—-—सबकी एकदम मृत्य
सङ्घातशिला —स्त्री॰—-—-—कड़ा पत्थर जिसपर वस्तुएँ तोड़ी जाती हैं,पत्थर जैसा कठिन पदार्थ
सङ्घर्षः —पुं॰—-—सम्+घृष्+घञ्—शत्रुता
सङ्घर्षः —पुं॰—-—सम्+घृष्+घञ्—कामोत्तेजना
सङ्घर्षा —स्त्री॰—-—सम्+घृष्+घञ्+ टाप्—तरल लाख
सचराचर —वि॰—-—-—चल तथा अचल वस्तुओं समेत
सजागर —वि॰—-—-—जागरुक,सावधान,सतर्क
सज्ज —वि॰—-—सज्ज्+अच्—सूत में पिरोया हुआ
सज्ज —वि॰—-—सज्ज्+अच्—धनुष की डोरी पर तना हुआ
सञ्चकः —पुं॰—-—सम्+चि+ड,स्वार्थेकन्—साँचा
सञ्चारः —पुं॰—-—सम्+चर्+णिच्+घञ्—मुग्ध करना
सञ्चारः —पुं॰—-—सम्+चर्+णिच्+घञ्—पदचिह्न
सञ्चष्कारयिषु —वि॰—-—-—शौचसंबंधी धर्मकृत्यों का अनुष्ठान कराने का इच्छुक
सञ्जनन —वि॰—-—सम्+जन्+ल्युट्—पैदा करने वाला,उत्पादक
सञ्जातनिर्वेद —वि॰—-—-—खिन्न,अवसन्न,उदास
सञ्जातविश्रम्भ —वि॰—-—-—विश्वस्त,भरोसे वाला
सञ्जप् —भ्वा॰पर॰—-—-—प्रतिवेदन देना,वक्तव्य देना
संजिहान —वि॰—-—सम्+हा+शानच् धातोर्द्वित्वम्—त्यागने वाला,छीड़्ने वाला
संज्ञक —वि॰—-—संज्ञ+कन्—नाश करने वाला
संज्ञपित —वि॰—-—सम्+ज्ञा+णिच्+क्त,पुकागमः—बलि दिया गया,नष्ट किया गया
संज्ञा —स्त्री॰—-—सम्+ज्ञा+क—पगडंडी,पदचिन्ह
संज्ञा —स्त्री॰—-—सम्+ज्ञा+क—दिशा
संज्ञा —स्त्री॰—-—सम्+ज्ञा+क—पारिभाषिक शब्द
संज्ञासूत्रम् —नपुं॰—-—-—वह सूत्र जिसके आधार पर किसी पारिभाषिक शब्द काअ निर्माण होता है
सटाक्षेपः —पुं॰—-—-—अयाल का लहराना
सतोद —वि॰—-—-—पीडित,चुभन जैसी पीडा से ग्रस्त
सत्क्रिया —स्त्री॰—-—-—समारोह,अनुष्ठान
सत्तम —वि॰—-—-—उतम,श्रेष्ठ
सत्त्रम् —नपुं॰—-—सद्+ष्ट्रन्—बनावटी रुप,छद्यवेष
सत्त्रिन् —पुं॰—-—सत्त्र+इनि—सहपाठी
सत्त्रिन् —पुं॰—-—सत्त्र+इनि—विदेशस्थ राजदूत
सत्वम् —नपुं॰—-—सत्+त्व—बुद्धि
सत्वम् —नपुं॰—-—सत्+त्व—सूक्ष्म शरीर
सत्वतनुः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
सत्वयोगः —पुं॰—-—-—मर्यादा
सत्वयोगः —पुं॰—-—-—जीवन-प्रकाशन,प्राण प्रदान
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—मोक्ष
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—सचाई
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—निष्कपटता
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—पवित्रता
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—प्रतिज्ञा
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—जल
सत्यम् —नपुं॰—-—सत्+यत्—ईश्वर
सत्याश्रमः —पुं॰—सत्यम्-आश्रमः—-—संन्यास
सत्यक्रिया —स्त्री॰—सत्यम्-क्रिया—-—शपथ ग्रहण करना
सत्यभेदिन् —वि॰—सत्यम्-भेदिन्—-—प्रतिज्ञा भंग करने वाला
सत्यमानम् —नपुं॰—सत्यम्-मानम्—-—बास्तविक माप
सत्यलौकिकम् —नपुं॰—सत्यम्-लौकिकम्—-—आध्यात्मिक और भौतिक विषय
सत्यवादिन् —वि॰—सत्यम्-वादिन्—-—सच बोलने वाला
सत्यसंश्रवः —पुं॰—सत्यम्-संश्रवः—-—सच्ची प्रतिज्ञा
सत्यसङ्कल्पः —वि॰—सत्यम्-सङ्कल्पः—-—जिसका प्रयोजन या धारण सत्य है
सत्रन्यायः —पुं॰—-—-—मीमांसा का एक नियम जिसके आधार पर एक से अधिक स्वामियों द्वारा अनुष्ठान होने पर यज्ञ में एक ही स्वामी को प्रतिनिधित्व दिया जाता है
सत्रिन् —पुं॰—-—सत्र+इनि—सहयोगी,सहपाठी
सदर्थः —पुं॰—-—-—मुख्य विषय या प्रकरण
सद् —पुं॰—-—सद्+क्विप्—सभा
सदोजिरम् —नपुं॰—-—सदस्+अजिरम्—दालान,दहलीज
सदसस्पतिः —पुं॰—-—अलुक् समास—सभापति
सदोत्थायिन —वि॰—-—-—सदैव सक्रिय
सदाभव —वि॰—-—-—सदा रहने वाला,शाश्वत
सदृक्षविनिमय —वि॰—-—-—समान विषयों में भूल करने वाला
सद्धर्मः —पुं॰—-—-—वास्तविक कर्तव्य
सद्यस्कार —वि॰—-—-—तुरन्त ही अनुष्ठित होने वाला
सद्यस्प्रक्षालक —वि॰—-—-—जिसके पास केवल एक ही दिन की भोजन सामग्री विद्यमान है
सनत्सुजातः —पुं॰—-—-—ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक
सनत्सुजीयम् —नपुं॰—-—-—महाभारत का एक अध्याय जिसमें सनतुजात का दार्शनिक व्याख्यात निहित है
सनातनधर्मः —पुं॰—-—-—वेदों में प्रतिपादित अत्यन्त प्राचीन धर्म
सन्तानकः —पुं॰—-—सम्+तनु+घञ्+कन्—स्वर्ग के पाँच वृक्षों में से एक,कल्पतरु या उसका फूल
सन्तानकः —पुं॰—-—सम्+तनु+घञ्+कन्—लोकविशेष
सन्तोषणम् —नपुं॰—-—सम्+तुष्+णिच्+ल्युट्—सुख देना,प्रसन्नता देना,संतुष्ट करना
सन्तृष्ण —वि॰—-—सम्+तृद्+क्त—संयुक्त ,मिलाकर बाँधा हुआ
सन्तारः —पुं॰—-—सम्+तृ+घञ्—पार करना
सन्तारः —पुं॰—-—सम्+तृ+घञ्—तीर्थ,घाट
सन्दंशः —पुं॰—-—सम्+दंश्+अच्—पुस्तक का एक अनुभाग
सन्दंशः —पुं॰—-—सम्+दंश्+अच्—गाँव का एक किनारा
सन्दानम् —नपुं॰—-—सम्+दो+ल्युट्—हाथी के गण्डस्थल का वह भाग जहाँ से दान झरता है
सन्देशपदानि —नपुं॰—-—-—संन्देश के शब्द
सन्दिग्धपुनरुक्तत्वम् —नपुं॰—-—-—अनिश्चयता के कारण दोबारा कहना
सन्देहालङ्कारः —पुं॰—-—-—अलंकार विशेष जिसमें संदेह बना रहता है
सन्देह्य —वि॰—-—सम्+दिह्+ण्यत्—संदिग्ध,संदेह से पूर्ण
सन्दृब्ध —वि॰—-—सम्+दृभ्+क्त—मिलकर धागे में पिरोया हुआ
सन्दर्शः —पुं॰—-—सम्+दृश्+घञ्—प्रतीति,दृष्टि
सन्दर्शनम् —नपुं॰—-—सम्+दृश्+ल्युट्—काम,उपयोग
सन्धिः —पुं॰—-—सम्+धा+कि—भूखंड जो मन्दिर के लिए धर्मार्थ दिया गया हो
सन्धिन् —पुं॰—-—सम्+धा+इनि—संधि इत्यादि का काम करने वाला मन्त्री
सन्ध्यापयोदः —पुं॰—-—-—सन्ध्याकालीन बादल
सन्नजिह्व —वि॰—-—-—जिसकी जिह्वा बंधी हुई है,जो चुप है
सन्नधी —वि॰—-—-—हतोत्साह,उत्साहहीन
सन्नवाच् —वि॰—-—-—मन्द स्वर से बोलने वाला
सन्नादः —पुं॰—-—सम्+नद्+घञ्—शोरगुल,हुल्लड़
सन्नत —वि॰—-—सम्+नम्+क्त—पूर्ण,भरा हुआ
सन्नतगात्री —स्त्री॰—-—-—झुके हुए शरीर वाली महिला
सन्नतभ्रू —वि॰—-—-—भृकुटिविलासयुक्त,त्यौरी चढ़ाए हुए
सन्नद्धयीध —वि॰—-—-—जिसकी सेना लड़्ने के लिए पूरी तरह से तैयार है
सन्निकर्षः —पुं॰—-—सम्+नि+कृष्+घञ्—आधुनिक विषय या विचार
सन्निपत्य —अ॰—-—सम्+नि+पत्+य(क्त्वा)—तुरन्त,प्रत्यक्ष,सीधे
सन्निपत्योपकारिन् —वि॰—-—-—भाग या अङ्ग जो सीधा प्रधान का काम दे
सन्निपातः —पुं॰—-—सम्+नि+पत्+घञ्—मैथुन
सन्निपातः —पुं॰—-—सम्+नि+पत्+घञ्—युद्ध
सन्निपातः —पुं॰—-—सम्+नि+पत्+घञ्—ग्रहों का विशेष संयोग
सन्निपातिन् —वि॰—-—सन्निपात्+इनि—ऐसा अंग जो प्रधान का कार्य करे
सन्निभृत —वि॰—-—सम्+नि+भृ+क्त—गुप्त
सन्निभृत —वि॰—-—सम्+नि+भृ+क्त—चतुर,शिष्ट
सन्निरुद्ध —वि॰—-—सम्+नि+रुध्+क्त—नियन्त्रित,रोका हुआ
सन्निरुद्ध —वि॰—-—सम्+नि+रुध्+क्त—पूर्ण,भरा हुआ
सन्निरोधः —पुं॰—-—सम्+नि+रुध्+घञ्—कैद
सन्निरोधः —पुं॰—-—सम्+नि+रुध्+घञ्—संकीर्णता
सन्निवायः —पुं॰—-—सम्+नि+वे+घञ्—सम्मिश्रण,समुच्चय
सन्निवेशः —पुं॰—-—सम्+नि+विश्+घञ्—डेरा डालना,शिविर स्थापित करना
सन्निसर्गः —पुं॰—-—सम्+नि+सृज्+घञ्—अच्छा स्वभाव,भलमनसाहत,उदाराशयता
सन्नी —भ्वा॰पर॰—-—-— भरना,पूर्ण करना
सन्न्यासः —पुं॰—-—सम्+नि+अस्+घञ्—ठहराव,करार
सपत्राकृत —वि॰—-—-—अत्यन्त घायल
सपरिच्छद् —वि॰—-—-—आवश्यक वस्तुओं से सुसज्जित,दलबल के साथ
सपरिहारम् —अ॰—-—-—आरक्षण सहित
सपर्यापर्यायः —पुं॰—-—-—पूजाकृत्यों की माला
सप्तकोण —वि॰—-—-—सात कोनों वाला
सप्तपातालम् —नपुं॰—-—-—सात पातालों का समूह
सप्तमन्त्रः —पुं॰—-—-—अग्नि,आग
सप्तरुचिः —पुं॰—-—-—अग्नि,आग
सप्तस्वरः —पुं॰—-—-—संगीत के सात स्वर
सप्तास्र —वि॰—-—-—सात कोनों वाला
सप्रतीक्षम् —अ॰—-—-—बहुत प्रतीक्षा के पश्चात्
सप्रमाण —वि॰—-—-—साधिकारिक
सप्रमाण —वि॰—-—-—समान आकार-प्रकार का
सप्रेष्य —वि॰—-—-—अनुचरों द्वारा सेवित
सभक्षः —पुं॰—-—-—एक ही भोजनशाला में भोजन करने वाला,सहभोजी
सभा —स्त्री॰—-—सह+भा+क+टाप्,सहस्य सः—यात्रियों के लिए अतिथिशाला
सभा —स्त्री॰—-—सह+भा+क+टाप्,सहस्य सः—भोजनशाला
सभागृहम् —नपुं॰—-—-—सभा भवन
सभामण्डपः —पुं॰—-—-—सभा भवन
सभायोग्य —वि॰—-—-—सभा के लिए उपयुक्त
सभाजित —वि॰—-—सभाज्+क्त—सम्मानित
सभोद्देशः —पुं॰—-—-—सभाभवन के आसपास का स्थान
सम —वि॰—-—सम्+अच्—नियमित,सामान्य
सम —वि॰—-—सम्+अच्—सरल,सुविधाजनक्
सम —वि॰—-—सम्+अच्—बराबर,वैसा ही
समाङ्घ्रिक —वि॰—सम-अङ्घ्रिक—-—समान रुप से पैरों पर खड़ा हुआ
समार्थिन् —वि॰—सम-अर्थिन्—-—समानता चाहने वाला
समात्मक —वि॰—सम-आत्मक—-—समान से युक्त
समकक्ष —वि॰—सम-कक्ष—-—समान भार वाला,जिनके उत्तरदायित्व एक से हों
समगतिः —स्त्री॰—सम-गतिः—-—वायु,सर्वत्र समान रुप से गति करने वाला
समधर्म —वि॰—सम-धर्म—-—एक से स्वभाव वाला
सममात्र —वि॰—सम-मात्र—-—एक से डीलडौल का,एक सी मापतोल का
समवर्तिन् —वि॰—सम-वर्तिन्—-—निष्पक्ष
समवर्तिन् —पुं॰—सम-वर्तिन्—-—समान दूरी पर होने वाला
समविभक्त —वि॰—सम-विभक्त—-—समान रुप से बँटा हुआ
समविषमम् —नपुं॰—सम-विषमम्—-—ऊबड़खाबड़,कहीं से नीचा तो कहीं से ऊँचा
समश्रुति —वि॰—सम-श्रुति—-—समान अन्तराल से युक्त
समश्रेणिः —स्त्री॰—सम-श्रेणिः—-—सीधी पंक्ति
समाग्रणी — पुं॰—सम-अग्रणी—-—सब से आगे रहने वाला
समातिक्रान्त —वि॰—सम-अतिक्रान्त—-—संपूर्ण में से घूमा हुआ
समातिक्रान्त —वि॰—सम-अतिक्रान्त—-—जो व्यतीत हो गया,गुजरा हुआ
समातिक्रान्त —वि॰—सम-अतिक्रान्त—-—उल्लंघन किया हुआ
समाधिगमः —पुं॰—सम-अधिगमः—-—पूरी समझ
समानुवर्तिन् —वि॰—सम-अनुवर्तिन्—-—आज्ञाकारी
समाभिद्रुत् —वि॰—सम-अभिद्रुत्—-—पिल पड़ने वाला
समाभ्याशः —पुं॰—सम-अभ्याशः—-—निकटता,उपस्थिति
समयच्युतिः —स्त्री॰—-—-—ठीक समय का चूकना
समयज्ञः —पुं॰—-—-—उपयुक्त समय का ज्ञाता
समयज्ञः —स्त्री॰—-—-—जों अपने मूल वचनों को याद रखता है
समयविद्याः —पुं॰—-—-—ज्योतिष ,भविष्यज्ञान
समरागमः —पुं॰—-—-—लड़ाई का फूट पड़ना
समर्थक —वि॰—-—समर्थ्+ण्वुल्—समर्थन करने वाला,प्रमाणित करने वाला
समर्थक —वि॰—-—समर्थ्+ण्वुल्—सक्षम,योग्य
समर्थकम् —नपुं॰—-—-—अगर काष्ठ,चन्दन की लकड़ी
समर्थनम् —नपुं॰—-—समर्थ्+ल्युट्—किसी हानि या अपराध की क्षति पूर्ति करना
समर्यादम् —अ॰—-—-—निश्चय से,यथार्थ रुप से
समवस्कन्दः —पुं॰—-—सम्+अव+स्कन्द+घञ्—दुर्गप्राचीर,परकोटा
समवहारः —पुं॰—-—सम्+अव+ह्र+घञ्—मिश्रण,संग्रह
समवेक्षणम् —नपुं॰—-—सम्+अव+ईक्ष्+ल्युट्—निरीक्षण,मुआयना
समवेतार्थ —वि॰—-—-—सार्थक,शिक्षाप्रद,बोधगम्य
समस्यापूरणम् —नपुं॰—-—-—किसी ऐसे श्लोक की पूर्ति करना जिसका पहला चरण दिया गया हो
समस्यापूर्तिः —स्त्री॰—-—-—किसी ऐसे श्लोक की पूर्ति करना जिसका पहला चरण दिया गया हो
समातीत —वि॰—-—-—एक वर्ष से अधिक आयु का,जो एक वर्ष पूरा कर चुका है
समाक्रान्त —वि॰—-—सम्+आ+क्रम+क्त—रौंदा हुआ,कुचला हुअ
समाक्रान्त —वि॰—-—सम्+आ+क्रम+क्त— जिस पर आक्रमण कर दिया गया हैं
समाक्षिक —वि॰—-—-—शहद मिला हुआ पदार्थ
समाख्या —स्त्री॰—-—सम्+आ+ख्या+अङ्+टाप्—व्याख्या
समाचेष्टितम् —नपुं॰—-—सम्+आ+चेष्ट्+क्त—व्यवहार
समाचेष्टितम् —नपुं॰—-—सम्+आ+चेष्ट्+क्त—प्रक्रिया
समाजः —पुं॰—-—सम्+आ+अज्+घञ्—समागम,समुदाय
समातत —वि॰—-—सम्+आ+तनु+क्त—विस्तारित फैलाया हुआ
समातत —वि॰—-—सम्+आ+तनु+क्त—लगातार
समदिष्ट —वि॰—-—सम्+दिश्+क्त—निर्धारित,अदिष्ट
समाधा —जुहो॰पर॰—-—-—रुप भरना
समाधा —जुहो॰पर॰—-—-—प्रदर्शित करना
समाधा —जुहो॰पर॰—-—-—स्वीकार करना
समाधानम् —नपुं॰—-—सम्+धा+ल्युट्—प्रमाण
समाधानम् —नपुं॰—-—सम्+धा+ल्युट्—समझौता कर लेना,समस्या का हल कर लेना
समाधिभूत् —पुं॰—-—-—ध्यान में लीन,समाधि में स्थित
समाधियोगः —पुं॰—-—-—ध्यान-मन का अभ्यास
समाधूत —वि॰—-—समा+धूञ्+क्त—बखेरा हुआ
समान —वि॰—-—सम+अन्+अण्—सधारण
समान —वि॰—-—सम+अन्+अण्—समस्त
समान —वि॰—-—सम+अन्+अण्—बराबर का,वैसा ही
समानकरण —वि॰—समान-करण—-—उच्चारण की समान इन्द्रिय वाला,एक ही उच्चारण स्थान वाला
समानप्रतिपति —वि॰—-—-—समान अनुराग वाला
समानप्रतिपति —वि॰—-—-—व्यवहार कुशल,बुद्धिमान्
समानमान —वि॰—-—-—समान रुप से सम्मानित
समानरुचि —वि॰—-—-—एक सी रुचि वाला
समापिका —स्त्री॰—-—-—शब्द खण्ड का वह भाग जो वाक्य की पूर्ति करता है
समाप्तिः —स्त्री॰—-—सम्+आप्+क्तिन्—विघटन,मृत्यु
समापतिः —स्त्री॰—-—सम्+आ+पद्+क्तिन्—मूल रुप को धारण करना
समापतिः —स्त्री॰—-—सम्+आ+पद्+क्तिन्—संपूर्ति
समाम्नात —वि॰—-—सम्+आ+म्ना+क्त—दोहराया गया,साथ ही वर्णन किया गया
समाम्नात —वि॰—-—सम्+आ+म्ना+क्त—परम्परा से प्राप्त
समाम्नायः —पुं॰—-—सम्+आ+म्ना+य— सामान्यतःवेदपाठ
समाम्नायः —पुं॰—-—सम्+आ+म्ना+य—परंपरा से प्राप्त शास्त्रीय वचनों का संग्रह
समारम्भः —पुं॰—-—सम्+आ+रभ्+घञ्,मुम्—साहसिक कार्य की भावना,साहसपूर्ण कार्य
समाराधनम् —नपुं॰—-—सम्+आ+राध्+ल्युट्—प्रसन्न करना,आराधना
समारुढ —वि॰—-—सम्+आ+रुह्+क्त—सवार,चढा हुआ
समारोपितकार्मुक —वि॰—-—-—जिसने धनुष तान लिया है
समार्ष —वि॰—-—-—एक ही प्रवर से संबद्ध,समान प्रवर वाला
समालोकनम् —नपुं॰—-—सम्+आ+लोक्+ल्युट्—निरीक्षण
समालोकनम् —नपुं॰—-—सम्+आ+लोक्+ल्युट्—संविचार,मनन
समाविद्ध —वि॰—-—सम्+आ+व्यध्+क्त,संप्रसारणम्—कम्पित,क्षुब्ध
समाविद्ध —वि॰—-—सम्+आ+व्यध्+क्त,संप्रसारणम्—प्रह्र्त,आघात प्राप्त
समाविष्ट —वि॰—-—सम्+आ+ विश्+क्त—भरा हुआ,युक्त
समाश्वस्त —वि॰—-—सम्+आ+श्वस्+क्त—ढाढस बंधाया हुआ,सांत्वना दी हुई
समाश्वस्त —वि॰—-—सम्+आ+श्वस्+क्त—विश्वास करने वाला
समाह्रत —वि॰—-—सम्+जा+ह्र+क्त—खींचा हुआ
समाह्रत्य —अ॰—-—सम्+आ+ह्र+य(क्त्वा)—सब एक दम मिल कर
समाहित —वि॰—-—सम्+आ+घा+क्त—समान,साधारण
समाहित —वि॰—-—सम्+आ+घा+क्त—मिलता जुलता
समाहित —वि॰—-—सम्+आ+घा+क्त—प्रेषित
समितिः —स्त्री॰—-—सम्+इ+क्तिन्—सदाचरण का नियम
समिधाधानम् —नपुं॰—-—-—यज्ञाग्नि पर समिधाएं रखना
समिधाधानम् —नपुं॰—-—-—ब्रह्मचारी के लिए विहित दैनिक अग्निहोत्र
समीक्षा —स्त्री॰—-—सम्+ईक्ष्+अङ्+टाप्—देखने की इच्छा,दिदृक्षा
समीक्षा —स्त्री॰—-—सम्+ईक्ष्+अङ्+टाप्—आध्यात्मिक ज्ञान
समीरणः —पुं॰—-—सम्+ईर्+णिच्+ल्युट्—पाँच की संख्या
समुच्चयालङ्कारः —पुं॰—-—-—एक अलंकार का नाम
समुच्चयोपमा —स्त्री॰—-—-—समुच्चयालंकार से बनी उपमा
समुच्छ्रयः —पुं॰—-—सम्+उत्+श्रि+अच्—संचय
समुच्छ्रयः —पुं॰—-—सम्+उत्+श्रि+अच्—युद्ध,लड़ाई
समुच्छ्रयः —पुं॰—-—सम्+उत्+श्रि+अच्—वृद्धि विकास
समुच्छ्रित —वि॰—-—सम्+उत्+श्रि+क्त्—खूब उठाया हुआ
समुच्छ्रित —वि॰—-—सम्+उत्+श्रि+क्त्—हिलोरे लेता हुआ
समुत्कठ —वि॰—-—-—ऊँचा,समुन्नत
समुत्थानम् —नपुं॰—-—सम्+उत्+स्था+ल्युट्—उद्योग
समुत्थानम् —नपुं॰—-—सम्+उत्+स्था+ल्युट्—लहराना
समुत्थानम् —नपुं॰—-—सम्+उत्+स्था+ल्युट्—सूजन
समुदायवाचक —वि॰—-—-—वस्तुओं की संग्रह को प्रकट करने वाला
समुदायशब्दः —पुं॰—-—-—‘संग्रह’ की अभिव्यक्ति करने वाला शब्द
समुद्धत —वि॰—-—सम्+उत्+हन्+क्त्—गहन,प्रचण्ड
समुद्यत —वि॰—-—सम्+उत्+यम्+क्त—उठाया हुआ,समुन्नत
समुद्यत —वि॰—-—सम्+उत्+यम्+क्त—तैयार,तत्पर
समुद्यत —वि॰—-—सम्+उत्+यम्+क्त—निष्पन्न
समुद्रः —पुं॰—-—-—अत्यन्त ऊँची संख्या
समुद्रदयिता —स्त्री॰—-—-—नदी,दरिया
समुद्र पत्नी —स्त्री॰—-—-—नदी,दरिया
समुद्र योषित् —स्त्री॰—-—-—नदी,दरिया
समुपष्टम्भः —पुं॰—-—सम्+उप्+स्तंभ्+घञ्—सहारा
सम्पातः —पुं॰—-—सम्+पत्+घञ्—संप्रेषण
सम्पद् —स्त्री॰—-—सम्+पद्+क्विप्—अधिग्रहण
सम्पन्नम् —नपुं॰—-—सम्+पद्+क्त्—पर्याप्त
सम्परेत —वि॰—-—सम्+पर+इ+क्त—मृत
सम्पुटः —पुं॰—-—सम्+पुट्+क—गोलार्द्ध
सम्पूर्णकाम —वि॰—-—-—जिसकी कामना पूरी हो गई हो
सम्पूर्णफलभाज् —वि॰—-—-—पूरा फल पाने वाला
सम्पर्कः —पुं॰—-—सम्+पृच्+घञ्—योगफल
सम्पृक्त —वि॰—-—सम्+पृच्+क्त—मित्र बना हुआ
सम्प्रज्ञातः —पुं॰—-—सम्+प्र+ज्ञा+क्त—योग की एक समाधि जिसमें मनन का विषय स्पष्ट रहता है
सम्प्रतिपतिः —पुं॰—-—सम्+प्र+पद्+क्तिन्—प्रत्युत्पन्नमतित्व
सम्प्रदायप्रद्योतकः —पुं॰—-—-—वैदिक परम्परा को दर्शाने वाला
सम्प्रदायविगमः —पुं॰—-—-—परम्परा का लोप
सम्प्रयुक्त —वि॰—-—सम्+प्र+युज्+क्त—प्रेरित,प्रोत्साहित
सम्प्रयोगः —वि॰—-—सम्+प्र+युज्+घञ्—चन्द्रमा और नक्षत्रों का संयोग
सम्प्रसादः —पुं॰—-—सम्+प्र+सद्+घञ्—मानसिक शान्ति
सम्प्राप्त —वि॰—-—सम्+प्र+आप्+क्त—पहुँचा हुआ,प्रकट हुआ,अधिगत
सम्प्लवः —पुं॰—-—सम्+प्लु+अप्—अव्यवस्था
सम्प्लवः —पुं॰—-—सम्+प्लु+अप्—अवनति
सम्प्लवः —पुं॰—-—सम्+प्लु+अप्—तुमुल
सम्प्लवः —पुं॰—-—सम्+प्लु+अप्—अन्त,समाप्ति
सम्भिन्न —वि॰—-—सम्+भिद्+क्त—ठोस,भरा हुआ
सम्भिन्न —वि॰—-—सम्+भिद्+क्त—द्रोही,देशद्रोही
सम्भेदः —पुं॰—-—सम्+भिद्+घञ्—मुट्ठी भींचना,घूसा तानना
सम्भेदः —पुं॰—-—सम्+भिद्+घञ्—विद्रोह
सम्भेदः —पुं॰—-—सम्+भिद्+घञ्—बगावत,देशद्रोह
सम्भोगवेश्मन् —पुं॰—-—-—रखैल का घर
सम्भवः —पुं॰—-—सम्+भू+अप्—शवय बात
सम्भवः —पुं॰—-—सम्+भू+अप्—संपति,धन
सम्भवः —पुं॰—-—सम्+भू+अप्—ज्ञान
सम्भविष्णु —वि॰—-—सम्+भू+इष्णुच्—उत्पादक रचयिता
सम्भावित —वि॰—-—सम्+भू+णिच्+क्त—जिसके घटने की आशा हो
संभावितम् —नपुं॰—-—-—अनुमान
सम्भृत —वि॰—-—सम्+भृ+क्त—सम्मानित
सम्भृत —वि॰—-—सम्+भृ+क्त—ऊँची
सम्भृतश्रुत —वि॰—-—-—ज्ञान से युक्त
सम्भृतसंभार —वि॰—-—-—सर्वथा उद्यत,पूरी तरह तैयार
सम्भृतस्नेह —वि॰—-—-—अनुराग से युक्त,अनुरक्त
सम्भ्रान्तमनस् —वि॰—-—-—घबराये हुए मन वाला
सम्मतिः —स्त्री॰—-—सम्+मन्+क्तिन्—सम्मान देना
सम्मतिपत्रकम् —नपुं॰—-—-—न्यायाधिकरण का निर्णय
सम्मित —वि॰—-—सम्+मा+क्त—समान महत्व का
सम्मित —वि॰—-—सम्+मा+क्त—भाग्यलेख
सम्मुखीन —वि॰—-—सम्मुख+खञ्—योग्य,उपयुक्त
सम्मूर्च्छनम् —नपुं॰—-—सम्+मुर्च्छ्+ल्युट्—मिश्रण
सम्मर्दः —पुं॰—-—समृद्+घञ्—टक्कर
सम्यग्ज्ञानम् —नपुं॰—-—-—सही ज्ञान,सच्ची जानकारी
सम्यग्दृष्टिः —स्त्री॰—-—-—अन्तर्दृष्टि,अन्तरवलोकन
सरः —पुं॰—-—सृ+अच्—ह्रस्व स्वर
सरस —वि॰—-—-—काव्यरस से परिपूर्ण
सर्गः —पुं॰—-—सृज्+घञ्—शस्त्रास्त्रों का उत्पादन
सर्गः —पुं॰—-—सृज्+घञ्—शब्द के अन्त में महाप्राणता
सर्पगतिः —स्त्री॰, ष॰त॰—-—-— साँप की चाल
सर्पबन्धः —पुं॰—-—-—कौशल,विधि,सूक्ष्मयुक्ति
सर्व —सर्व॰वि॰—-—सृतमनेन विश्वम्+सृ+व—सब,प्रत्येक
सर्व —सर्व॰वि॰—-—सृतमनेन विश्वम्+सृ+व—समस्त,सब मिलकर
सर्वाभावः —पुं॰—सर्व-अभावः—-—सब का अनस्तित्व,सब की विफलता
सर्वार्थचिन्तकः —पुं॰—सर्व-अर्थचिन्तकः—-—महाप्रशासक
सर्वाशिन् —वि॰—सर्व-अशिन्—-—सब कुछ खा जाने वाला
सर्वास्तिवादः —पुं॰—सर्व-अस्तिवादः—-—एक सिद्धान्त जिसके आधार पर सभी वस्तुएँ वास्तविक मानी जाती हैं
सर्वकाम्यः —पुं॰—सर्व-काम्यः—-—जिससे सब प्रेम करे
सर्वदृश् —वि॰—सर्व-दृश्—-—सब कुछ देखने वाला
सर्वप्रथमम् —अ॰—सर्व-प्रथमम्—-—सबसे पहले
सर्ववेशिन् —पुं॰—सर्व-वेशिन्—-—नट,नाटक का पात्र
सर्वसङ्स्थ —वि॰—सर्व-सङ्स्थ—-—सर्वव्यापक
सर्वसम्पातः —पुं॰—सर्व-सम्पातः—-—वह सब जो अवशिष्ट बचा है
सर्वस्वारः —पुं॰—सर्व-स्वारः—-—एक वैदिक याग जिसमें असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए आत्मबलिदान का निधान है
सर्वत्रगत —वि॰—-—-—सर्वव्यापक,विश्वव्यापी
सर्वथा —अ॰—-—सर्व+थाल्—सब प्रकार से
सलिलकर्मन् —नपुं॰—-—-—जल से तर्पण
सलिलरयः —पुं॰, ष॰त॰—-—-—जल के प्रवाह की शक्ति
सवम् —नपुं॰—-—सू+सु+अच्—आदेश,आज्ञा
सवनकर्मन् —नपुं॰—-—-—नित्य होने वाला पुनीत वैदिक धर्मकृत्य
सवर्ण —वि॰—-—-—समान ‘हर’ वाली भिन्नराशि
सविकार —वि॰—-—-—अपनी अन्य उपज समेत
सविकार —वि॰—-—-—सड़ने वाला,जो सड़ गल रहा हो
सवितृतनयः —पुं॰, ष॰त॰—-—-—शनिग्रह
सवितृदैवतम् —नपुं॰—-—-—हस्त नक्षत्र
सवितृलक्षणम् —अ॰—-—-—लज्जा के साथ,घबराहट या उलझन के साथ
सव्य —वि॰—-—सु+यत्—अनभिघृत,जिस पर घी न छिड़का गया हो,शुष्क
सव्यापसव्य —वि॰—-—-— बायाँ और दायां
सव्यापसव्य —वि॰—-—-—तान्त्रिक पूजा की स्मार्त तथा कौल रीतियाँ
सशूकः —पुं॰—-—-—ईश्वर की सता में विश्वास रखने वाला
सस्यपालः —पुं॰—-—-—खेत का रखवाला
सस्यमञ्जरी —स्त्री॰—-—-—अनाज की बाल
सस्यवेदः —पुं॰—-—-—कृषिविज्ञान
सस्यशूकम् —नपुं॰—-—-—अनाज (गहूँ जौ आदि) का टूंड, अनाज की बाल
सहः —पुं॰—-—-—मार्गशीर्ष का महीना
सहम —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक के साथ सहित
सहापवाद —वि॰—सह-अपवाद—-—असहमत होने वाला
सहालापः —पुं॰—सह-आलापः—-—समालाप,मिल कर बातचीत करना
सहोत्थायिन् —वि॰—सह-उत्थायिन्—-—विद्रोही,षडयन्त्रकारी
सहकर्तृ —पुं॰—सह-कर्तृ—-—सहकारी
सहखट्वासनम् —नपुं॰—सह-खट्वासनम्—-—एक ही खाट पर मिलकर बैठना
सहभावः —पुं॰—सह-भावः—-—साहचर्य
सहभावः —पुं॰—सह-भावः—-—सहानुवर्तिता
सहसङ्सर्गः —पुं॰—सह-सङ्सर्गः—-—शारीरिक संपर्क
सहसादृष्टः —पुं॰—-—-—गोद लिया हुआ पुत्र
सहस्रम् —नपुं॰—-—समानं हसति+हस्+र—हजार
सहस्रम् —नपुं॰—-—समानं हसति+हस्+र—बड़ी संख्या
सहस्रारः —पुं॰—सहस्रम्-अरः—-—सिर की चोटी में उलटे कमल के समान गर्त जो आत्मा का आसन माना जाता है
सहस्रारम् —नपुं॰—सहस्रम्-अरम्—-—सिर की चोटी में उलटे कमल के समान गर्त जो आत्मा का आसन माना जाता है
सहस्रगुः —पुं॰—सहस्रम्-गुः—-—इन्द्र का विशेषण,सूर्य का विशेषण
सहस्रदलम् —नपुं॰—सहस्रम्-दलम्—-—कमल का फूल
सहस्रभोजनम् —नपुं॰—सहस्रम्-भोजनम्—-—विष्णु के हजार नामों के पाठ करने के समान एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराना
सहस्रभिद् —पुं॰—सहस्रम्-भिद्—-—कस्तूरी
सहस्रवेधिन् —पुं॰—सहस्रम्-वेधिन्—-—कस्तूरी
सहायार्थम् —अ॰—-—-—साथ के लिए,सहायता के लिए
सांवर्तक —वि॰—-—-—प्रलय काल से संबंध रखने वाला
सांसर्गिक —वि॰—-—संसर्ग+ठञ्—संसर्ग से उत्पन्न छूत के
सांस्कारिक —वि॰—-—संस्कार+ठञ्—संस्कारों से संबन्ध रखने वाला
सांस्कारिक —वि॰—-—संस्कार+ठञ्—सांस्कृतिक
साकमेधीयन्यायः —पुं॰—-—-—मीमांसा का एक नियम जब कि विकृति में उसकी अपनी प्रकृति के गुण या धर्म नहीं पाये जाते
साकूतस्मितम् —नपुं॰—-—-—सार्थक मुस्कराहट
साक्षात्क्रिया —स्त्री॰—-—-—अन्तर्ज्ञान परक प्रत्यक्षज्ञान
साक्षिपरीक्षा —स्त्री॰—-—-—साक्षी का परीक्षा
साक्षिवादः —पुं॰—-—-—साक्षिसिद्धान्त
सागरमेखला —स्त्री॰—-—-— पृथ्वी,धरती
सागरसुता —स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी
सागरावर्तः —पुं॰—-—-—समुद्र की खाड़ी
साङ्केत्यम् —नपुं॰—-—संकेत+ष्यञ्—सहमति
साङ्केत्यम् —नपुं॰—-—संकेत+ष्यञ्—दत्तकार्य
साङ्केत्यम् —नपुं॰—-—संकेत+ष्यञ्—चिह्न,या उपनाम
साङ्ख्यकारिका —स्त्री॰—-—-—सांख्यदर्शन पर ईश्वरकृष्ण द्वारा रचित एक ग्रन्थ
साङ्गोपाङ्ग —वि॰—-—-—अपने मुख्य तथा सहायक अंगों सहित
साचिव्याक्षेपः —पुं॰—-—-—स्वीकृति के बहाने एक आक्षेपी
सातिशय —वि॰—-—-—अत्यधिक,श्रेष्ठतम
सात्म्य —वि॰—-—-—स्वास्थ्यकर,प्रकृति के अनुकूल
सात्म्यः —पुं॰—-—-—आदत,स्वभाव
सात्म्यः —पुं॰—-—-—प्रकृति के अनुकूल होने का भाव
सात्म्यम् —नपुं॰—-—-—समता,बराबरी
सात्विकः —पुं॰—-—सत्व+ठञ्—शरद् श्रृतु की रात्रि
सात्वतः —पुं॰—-—सत्व+ठञ्—भक्त
सात्वतः —पुं॰—-—सत्व+ठञ्—पांचरात्र शाखा से संबंध रखने वाला
सात्वतर्षभः —पुं॰—-—-—कृष्ण का विशेषण
साधक —वि॰—-—साध्+ण्वुल्—उपसंहारात्मक,उपसंहार परक
साधनम् —नपुं॰—-—साध्+ल्युट्—उपकरण,अभिकरण
साधनम् —नपुं॰—-—साध्+ल्युट्—तैयारी
साधनम् —नपुं॰—-—साध्+ल्युट्—संगणना
साधनीभू —भ्वा॰पर॰—-—-—साधन होना,उपाय होना
साधनीय —वि॰—-—साध्+अनीय—सिद्ध करने योग्य,कार्य को संपन्न करने के लिए उपयोगी
साधनीय —वि॰—-—साध्+अनीय—प्राप्त करने योग्य
साधितव्यापक —वि॰—-—-—सिद्ध करने योग्य वस्तु में अन्तर्हित तत्व के लिए तर्कशास्त्र का पारिभाषिक शब्द
साधर्म्यसमः —पुं॰—-—-—झूठमूठ का आक्षेप
सधारणः —पुं॰—-—-—न्याय में एक नियम जो मध्यवर्ती हो और सर्वत्र समान रुप से लागू हो
साधारणपक्षः —पुं॰—-—-—समान घटक,मध्यवर्ती तथ्य
साधारणीभू —भ्वा॰पर॰—-—-—समान होना
साधु —वि॰—-—साध्+उन्—अच्छा,उतम्
साधु —वि॰—-—साध्+उन्—योग्य,उचित
साधु —वि॰—-—साध्+उन्—भला,गुणी
साधुकृत —वि॰—साधु-कृत—-—उचित रुप में किया हुआ,देवी सास
साधुमत —वि॰—साधु-मत—-—सुविचारित
साधुशील —वि॰—-—-—धर्मात्मा
साधुसंमत —वि॰—साधु-संमत—-—भले व्यक्तियों को मान्य
सान्तराल —वि॰, ब॰स॰—-—-—अन्तराल या अवकाश सहित
सान्तानिकः —पुं॰—-—सन्तान+ठञ्—सन्तान का इच्छुक
सान्द्रस्पर्श —वि॰—-—-—जो छूने में मृदु हो,चिपचिपा हो
सान्द्रानन्दः —पुं॰—-—-—आध्यात्मिक सुख
सामग्र्यम् —नपुं॰—-—सनमग्र+ष्यञ्—कल्याण,कुशलक्षेम
सामन् —नपुं॰—-—सो+मनिन्—आवाज,शब्द ,ध्वनि
सामकलम् —नपुं॰—सामन्-कलम्—-—मित्र के स्वर में
सामप्रधान —वि॰—सामन्-प्रधान—-—पूर्णतः कृपालु या मित्रसदृश
सामविधानम् —नपुं॰—सामन्-विधानम्—-—एक ब्राह्मण का मूल पाठ
सामविधानम् —नपुं॰—सामन्-विधानम्—-—साम का प्रयोग
सामन्तचक्रम् —नपुं॰—-—-—अधीनस्थ राजाओं का मण्डल
सामन्तवासिन् —वि॰—-—-—पड़ौसी
सामयिकम् —नपुं॰—-—समय+ठन्—समानता
सामयिकम् —नपुं॰—-—समय+ठन्—संपति विषयक लेखपत्र
सामान्यम् —नपुं॰—-—समान+ष्यञ्—सामान्य वक्तव्य
सामान्यम् —नपुं॰—-—समान+ष्यञ्—एक अर्थालंकार
सामान्यम् —नपुं॰—-—समान+ष्यञ्—सार्वजनिक कार्य
सामान्यम् —नपुं॰—-—समान+ष्यञ्—साधारण लक्षण
सामान्यम् —नपुं॰—-—समान+ष्यञ्—पहचान
सामान्यधर्मः —पुं॰—सामान्यम्-धर्मः—-—का समान गुण
सामान्यवाचिन् —वि॰—सामान्यम्-वाचिन्—-—समानता को कहने वाला
सामान्यशासनम् —नपुं॰—सामान्यम्-शासनम्—-—वह आज्ञा जो सब पर लागू हो
सामुदायिक —वि॰—-—समुदाय+ठन्—समूह से संबंध रखने वाला,सामूहिक
साम्परायः —पुं॰—-—-—आवश्यकता
साम्परायिक —वि॰—-—सम्पराय+ठक्—पारलौकिक
साम्परायिक —वि॰—-—सम्पराय+ठक्—दाहकर्म संबंधी
साम्यम् —नपुं॰—-—सम+ष्यञ्—माप,समय
सायः —पुं॰—-—सो+घञ्—समाप्ति,अन्त
सायाशनम् —नपुं॰—सायः-अशनम्—-—सायंकाल का भोजन
सायधूर्तः —पुं॰—सायः-धूर्तः—-—शठ
सायधूर्तः —पुं॰—सायः-धूर्तः—-—चन्द्रमा
सायमण्डनम् —नपुं॰—सायः-मण्डनम्—-—सूर्यास्त
सायम्प्रातः —अ॰—-—-—सवेरे शाम
सायंसवनम् —नपुं॰—-—-—सायंकालीन धर्मानुष्ठान
सारः —पुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—क्रम गति
सारः —पुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—मुख्य अंश
सारः —पुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—गोबर
सारः —पुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—मवाद,पस
सारम् —नपुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—क्रम गति
सारम् —नपुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—मुख्य अंश
सारम् —नपुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—गोबर
सारम् —नपुं॰—-—सृ+घञ् अच् वा—मवाद,पस
सारगात्र —वि॰—सारः-गात्र—-—सवल अंगों वाला
सारगुणः —पुं॰—सारः-गुणः—-—प्रधान गुण या धर्म
सारगुरु —वि॰—सारः-गुरु—-—बोझल,बोझ के कारण भारी
सारफल्गु —वि॰—सारः-फल्गु—-—बढ़िया और घटिया,उपयोगी और व्यर्थ
सारमार्गणम् —नपुं॰—सारः-मार्गणम्—-—गूदे या वसा का ढूंढना
सारङ्गी —स्त्री॰—-—-—संगीत का एक विशेष राग
सारणिकघ्नः —पुं॰—-—-—लुटेरा,डाकू
सारथिः —पुं॰—-—सृ+अथिण्, सह रथेन सरथः(घोटकः तत्र नियुक्तः)इञ् वा—रथवान
सारथिः —नपुं॰—-—सृ+अथिण्, सह रथेन सरथः(घोटकः तत्र नियुक्तः)इञ् वा—पथप्रदर्शक
सारसाक्षम् —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लाल
सारसाक्षी —नपुं॰—-—-—कमल जैसा सुन्दर आँखों वाली महिला,पद्यलोचना
सारसनम् —नपुं॰—-—-—वक्षस्त्राण,कवच
सार्थहीन —वि॰—-—-—समूह से छूटा हुआ,यूथभ्रष्ट
सार्धवार्षिक —वि॰—-—-—डेढ़ वर्ष तक रहने वाला
सार्धवत्सरम् —नपुं॰—-—-—डेढ़ वर्ष
सालङ्कार —वि॰—-—-—सुभूषित,अलंकारों से युक्त
सावधारण —वि॰—-—-—सीमित,नियन्त्रित
सावशेषजीवित —वि॰—-—-—जिसका जीवन अभी शेष है,जिसने अभी,और जीना है
सावष्टम्भवास्तु —नपुं॰—-—-—वह भवन,जिसके दोनों ओर दो खुली पार्श्ववीथियाँ हो
साबित्रीसूत्रम् —नपुं॰—-—-—यज्ञोपवीत
साश्चर्यचर्य —वि॰—-—-—आश्चर्ययुक्त आचरण वाला
सासहि —वि॰—-—सह्+यङ्—सहनशील
सासहि —वि॰—-—सह्+यङ्—जो प्रतिपक्षी का मुकाबला कर सके
सासहि —वि॰—-—सह्+यङ्—जीतने वाला
सास्थि —वि॰—-—-—हड्डियों से युक्त
सास्थिस्वानम् —अ॰—-—-—हड्डियों की चटखने की ध्वनि के साथ
साहसकरणम् —नपुं॰—-—-—प्रचण्ड कार्य,अंधाधुंध काम करना
साहसिक्यम् —नपुं॰—-—-—उतावलापन
साहस्र —वि॰—-—सहस्र+अण्—हजारों,असंख्य,अनगिनत
साहाय्यकर —वि॰—-—-—सहायता करने वाला
साहाय्यदानम् —नपुं॰—-—-—सहायता देना
सिंहः —पुं॰—-—हिंस्+अच्,पृषो॰—एक प्रकार की संगीत ध्वनि
सिंहमलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का पीतल
सिच् —तुदा॰उभ॰—-—-—भिगोना,डुबकी लेना
सिञ्जिनी —स्त्री॰—-—शिञ्जा+इनि,पृषो॰—धनुष की ज्याया डोरी
सिता —स्त्री॰—-—सो+क्त्,स्त्रियां टाप्—चीनी,खाँड
सितासित —वि॰—-—-—श्वेत और काला मिला हुआ
सितकण्ठः —पुं॰—-—-—सफेद गरदन वाला,चातक पक्षी,जलकुक्कुट
सितछदः —पुं॰—-—-—राजहंस,मराल,हंसनी
सितपक्षः —पुं॰—-—-—हंस,मराल,हंसनी
सितवारणः —पुं॰—-—-—सफेदहाथी,सितकुञ्जर
सिताखण्डः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की खांड,मिस्री का डाल
सिद्ध —वि॰—-—सिध्+क्त— निश्चित,अपरिवर्तनीय
सिद्ध —वि॰—-—सिध्+क्त—विशिष्ट,पक्का
सिद्धः —पुं॰—-—सिध्+क्त—जिसे इसी जीवन में सिद्धि प्राप्त हो गई है
सिद्धाञ्जनम् —नपुं॰—सिद्धः-अञ्जनम्—-—एक प्रकार का अंजन
सिद्धार्थकः —पुं॰—सिद्धः-अर्थकः—-—सफेद सरसों
सिद्धादेशः —पुं॰—सिद्धः-आदेशः—-—ऋषि की भविष्य वाणी
सिद्धादेशः —पुं॰—सिद्धः-आदेशः—-—भविष्य वक्ता,ज्योतिषी
सिद्धौषधम् —नपुं॰—सिद्धः-औषधम्—-—विशिष्ट औषधोपचार
सिद्धकाम —वि॰—सिद्धः-काम—-—जिसकी इच्छाएँ पूरी हो गई है
सिद्धपथः —वि॰—सिद्धः-पथः—-—आकाश
सिद्धसिद्ध —वि॰—सिद्धः-सिद्ध—-—पूर्णतः अचूक
सिद्धहेमन् —पुं॰—सिद्धः-हेमन्—-—शुद्ध स्वर्ण खरा सोना
सिद्धिः —स्त्री॰—-—सिध्+क्तिन्— अचूकपना,पर्याप्ति
सिद्धिविनायकः —पुं॰—-—-—गणेश का एक रुप
सिन्दूरगणपतिः —पुं॰—-—-—गणेश की मूर्ति
सिन्धुमन्थजम् —नपुं॰—-—-—सेंधा नमक
सिन्धुसौवीराः —पुं॰—-—-—सिन्धु नदी के आसपास के प्रदेश में रहने वाले
सिरापत्रः —पुं॰—-—-—पीपल का वृक्ष
सिरामूलम् —नपुं॰—-—-— नाभि
सिराल —वि॰—-—सिर+आलच्—अनन्त नसों वाला,नसनाड़ियों के जाल से युक्त
सिष्णासु —वि॰—-—स्ना+सन्+उ,धातोर्द्वित्वम्—स्नान करने की इच्छा वाला
सिसिक्षा —स्त्री॰—-— सिच्+सन्+आ,धातोर्द्वित्वम्—छिड़कने की इच्छा
सीताध्यक्षः —पुं॰—-—-— कृषिका अधीक्षक
सीधुपानम् —नपुं॰—-—-—मद्यपान,शराब पीना
सीमाज्ञानम् —नपुं॰—-—सीमा+अज्ञानम्—सीमा की जानकारी न होना
सीमाकृषाण —वि॰—-—-—सीमाचिह्न के किनारे हल चलाने वाला
सीमासेतुः —पुं॰—-—-—पर्वतशृंखला या बाँध आदि जो सीमा का काम दे
सीरवाहकः —पुं॰—-—-—हलवाहा,कृषक,खेतिहर
सुकल्प —वि॰—-—-—दक्ष,सुयोग्य
सुकल्पित —वि॰—-—-—सुसज्जित,हथियारों से लैस
सुक्रयः —पुं॰—-—-—अच्छा सौदा
सुक्षेत्र —वि॰—-—-—अच्छी कोख से उत्पन्न
सुघोष —वि॰—-—-— मधुरध्वनि से युक्त,मीठी आवाज वाला
सुचर्मन् — पुं॰—-—-—भूर्ज वृक्ष,भोजपत्र
सुतप्त —वि॰—-—-—अत्यन्त पीडित
सुतप्त —वि॰—-—-—कष्टग्रस्त
सुतप्त —वि॰—-—-—अत्यन्त कठोर
सुतान —वि॰—-—-— सुरीला,मधुरस्वर से युक्त
सुतार —वि॰—-—-—अत्यन्त उज्ज्वल
सुतार —वि॰—-—-—बहुत ऊँचे स्वर वाला
सुतार —वि॰—-—-—जिसकी आँखों की पुतलियाँ अत्यन्त सुन्दर है
सुतारा —स्त्री॰—-—-—मौनस्वीकृति के नौ भेदों मे से एक
सुदक्षिण —वि॰—-—-—अत्यंत कुशल
सुदक्षिण —वि॰—-—-—अतिविनम्र
सुदुश्चर —वि॰—-—-—सुदुर्गम,जो बड़ी कठिनाई से किया जा सके
सुदुश्चिकित्स —वि॰—-—-—असाध्य रोग से ग्रस्त,जिसके रोग की प्रायः चिकित्सा न हो सके
सुदेशिकः —पुं॰—-—-—अच्छा पथप्रदर्शक या अध्यापक
सुनन्दम् —नपुं॰—-—-—बलराम की गदा
सुनिर्णिक्त —वि॰—-—-—भली प्रकार चमकाया हुआ
सुपठ —वि॰—-—-—सुवाच्य,जो पढ़ा जा सके
सुपर्णः —पुं॰—-—-—पक्षी,परिंदा
सुपेशस् —वि॰—-—-—सुन्दर,सुकुमार
सुप्रमाण —वि॰—-—-—बहुत बड़े आकार का
सुबभ्रु —वि॰—-—-—गहरा भूरा,धूसर
सुभगा —स्त्री॰—-—-—सुहागिन
सुभगा —स्त्री॰—-—-—कस्तूरी
सुभीरुकम् —नपुं॰—-—-—चाँदी
सुभूतिः —स्त्री॰—-— सु+भू+क्तिन्—मंगल,समृद्धि
सुभूतिः —स्त्री॰—-— सु+भू+क्तिन्—तीतर पक्षी
सुमन्दभाज् —वि॰—-—-—अत्यंत सुर्भाग्यपूर्ण
सुमर्षण —वि॰—-— सु+मृष्+ल्युट्—सहनशील
सुमृत —वि॰—-—-—बिल्कुल ठण्डा,बिल्कुल मुर्दा
संलग्नः —पुं॰—-—-— शुभ मुहूर्त
सुविचक्षण —वि॰—-—-—अत्यन्त चतुर
सुविरुढ —वि॰—-—-—पूर्ण विकसित
सुविविक्त —वि॰—-—-—निर्णीत
सुसंवृतिः —स्त्री॰—-— सु+सम्+वृ+क्तिन्—भली प्रकार छिपाना
सुसङ्ध —वि॰—-—-—अपने वचन का पालन करने वाला
सुसन्नत —वि॰—-—-—ठीक निशाने पर लगा
सुसेव्य —वि॰—-—-—सेवा किए जाने योग्य,जिसका आसानी से अनुसरण किया जा सके
सुखाधिष्ठानम् —नपुं॰—-—-—आनन्द का स्थान
सुखाभियोज्य —वि॰—-—-—जिस पर आसानी से चढ़ाई की जा सके
सुखाराध्य —वि॰—-—-—जिसकी सेवा आसानी से की जा सके,जो आसानी से प्रसन्न किया जा सके
सुखप्रश्नः —पुं॰—-—-—कुशलक्षेम पूछना
सुखबद्ध —वि॰—-—-—मनोरम,प्रिय,प्यारा
सुखवेदनम् —नपुं॰—-—-—आनन्द की अनुभूति
सुधाकारः —पुं॰—-—-—सेफेदी करने वाला
सुधाक्षालित —वि॰—-—-—सफेदी किया हुआ
सुधायोनिः —पुं॰—-—-—चन्द्रमा
सुधाशर्करः —पुं॰—-—-—चूने का पत्थर
सुनफा —पुं॰—-—-—ज्योतिषशास्त्र का एक योग
सुनीथ —वि॰—-— सु+नी+कथन्—विवेकपूर्ण व्यवहार से युक्त,दूरदर्शी,मनीषी
सुन्दरकाण्डम् —नपुं॰—-—-—रामायण का पाँचवाँ काण्ड
सुप्तघ्नः —पुं॰—-—-—सोते हुए को मारने वाला,धोखेबाज,हत्यारा
सुप्तघ्नघातकः —पुं॰—-—-—सोते हुए को मारने वाला,धोखेबाज,हत्यारा
सुराद्रिः —पुं॰—-—-—मेरु पर्वत,सुमेरु पहाड़
सुरपर्वतः —पुं॰—-—-—मेरु पर्वत,सुमेरु पहाड़
सुरेभः —पुं॰—-— सुर+इभ—ऐरावत हाथी
सुरेष्टः —पुं॰—-— सु+इष्ट—साल का वृक्ष
सुरोपम —वि॰—-— सुर+उपम—देवसमान
सुरगण्डः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का फोड़ा,छिद्रार्बुद,जहरबाद
सुरतटिनी —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरतरङ्गिणी —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरधुनी —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरनदी —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरसरित् —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरापगा —स्त्री॰—-—-—गंगानदी
सुरपादपः —स्त्री॰—-—-—कल्पवृक्ष
सुरविलासिनी —स्त्री॰—-—-—अप्सरा
सुरश्वेता —स्त्री॰—-—-—छिपकली
सुरभिगोत्रम् —नपुं॰—-—-—पशु,गौएँ,बैल
सुराजीविन् —वि॰—-—-—शराब बेचने वाला,कलाल
सुवर्णचोरिका —स्त्री॰—-—-—सोने की चोरी
सुवर्णधेनुः —स्त्री॰—-—-—स्वर्ण निर्मित गाय जो उपहार में दी जाय
सुवर्णभाण्डम् —नपुं॰—-—-—रत्नमंजूषा
सुवर्णरोमन् —पुं॰—-—-—सुनहरी रोमों वाला मेष
सुवर्णसानुः —पुं॰—-—-—मेरु पर्वत
सुषिः —स्त्री॰—-—-—छिद्र,सूराख
सुषुप्सा —स्त्री॰—-—स्वप्+सन्+अ+टाप् घातोर्द्वित्वम्—सोने की इच्छा
सूक्ष्मम् —नपुं॰—-—सूच्+मन् सुक्,च नेट्—दाँत का खोखलापन
सूक्ष्मम् —नपुं॰—-—सूच्+मन् सुक्,च नेट्—वसा,चर्बी
सूक्ष्मम् —नपुं॰—-—सूच्+मन् सुक्,च नेट्—कण
सूक्ष्मदलः —पुं॰—सूक्ष्मम्-दलः—-—सरसों
सूक्ष्मभूतम् —नपुं॰—सूक्ष्मम्-भूतम्—-—सूक्ष्म तत्व
सूक्ष्ममति —वि॰—सूक्ष्मम्-मति—-—तीक्ष्णबुद्धिवाला
सूक्ष्मशरीरम् —नपुं॰—सूक्ष्मम्-शरीरम्—-—सूक्ष्म शरीर
सूक्ष्मस्फोटः —पुं॰—सूक्ष्मम्-स्फोटः—-—एक प्रकार का कोढ़
सूचनी —स्त्री॰—-—-—विषयों की तालिका या सूचि
सूची —स्त्री॰—-—सूच्+ङीप्—चटखनी
सूचीकर्मन् —नपुं॰—-—-—सिलाई का कार्य
सूचीशिखा —स्त्री॰—-—-—सूई की नोक
सूचीकर्णः —पुं॰—-—-—सूई का छिद्र
सूचीसूत्रम् —नपुं॰—-—-—सीने के लिए धागा
सूतपौराणिकः —पुं॰—-—-—पुराणों मे वर्णित चारण
सूतिमारुतः —पुं॰—-—-—प्रसव वेदना
सूत्रम् —नपुं॰—-—सूत्र्+अच्—मेखला
सूत्रम् —नपुं॰—-—सूत्र्+अच्—रेखाचित्र,आरेख
सूत्रम् —नपुं॰—-—सूत्र्+अच्—संकेत,आमुख्
सूत्रम् —नपुं॰—-—सूत्र्+अच्—धागा,डोरा
सूत्रम् —नपुं॰—-—सूत्र्+अच्—रेशा
सूत्राध्यक्षः —पुं॰—सूत्रम्-अध्यक्षः—-—वयनाध्यक्ष,बुनाई का अधीक्षक
सूत्रक्रीडा —स्त्री॰—सूत्रम्-क्रीडा—-—रस्सियों का खेल
सूत्रग्रन्थः —पुं॰—सूत्रम्-ग्रन्थः—-—सूत्रों की पुस्तक
सूत्रधृक् —पुं॰—सूत्रम्-धृक्—-—सूत्रधार शिल्पी
सूत्रधृक् —पुं॰—सूत्रम्-धृक्—-—रंगमंच का प्रबंधक
सूत्रपातः —पुं॰—सूत्रम्-पातः—-—माप वाले सूत्र से मापने का कार्य करना
सूत्रपातः —पुं॰—सूत्रम्-पातः—-—कार्य का आरभ
सूत्रस्थानम् —नपुं॰—सूत्रम्-स्थानम्—-—आयुर्वेद के एक ग्रन्थ का प्रथम खण्ड
सूदाध्यक्षः —पुं॰—-—-—प्रधान रसोइया
सूदशास्त्रम् —नपुं॰—-—-—पाक विज्ञान
सूनसायकशूरः —पुं॰—-—-—कामदेव
सूनाध्यक्षः —पुं॰—-— सूना+अध्यक्ष—बूचड़ खाने का अधीक्षक
सूपश्रेष्ठः —पुं॰—-—-—मूंग,मूंग की फली
सूपायः —पुं॰—-—सु+उपायः—अच्छा साधन,तरकीब
सूरिः —पुं॰—-—सू+किन्—वृहस्पति
सूर्यद्वारम् —नपुं॰—-—-—उतरायण मार्ग
सूर्यवारः —पुं॰—-—-—रविवार,आदित्यवार
सूर्याणी —स्त्री॰—-—-—सूर्य की पत्नी
सृ —भ्वा॰ज्यो॰पर॰—-—-—पार करना,आर-पार जाना,प्रेर०प्रकट करना,व्यक्त करना
सृका —स्त्री॰—-— सृ+कक्+टाप्—गीदड़
सृका —स्त्री॰—-— सृ+कक्+टाप्—सारस
सृङ्का —स्त्री॰—-—-—झन-झन करती हुई रत्नों की लड़ी
सृङ्का —स्त्री॰—-—-—मार्ग,पथ
सृतिः —स्त्री॰—-—सृ+क्तिन्—जन्म-मरण का चक्र
सृतिः —स्त्री॰—-—सृ+क्तिन्—सृष्टि
सेकः —पुं॰—-—सिच्+घञ्—नहाने के लिए फ़ौवारा
सेचनम् —नपुं॰—-—सिच्+ल्युट्—निर्गमन,उदगार
सेचनम् —नपुं॰—-—सिच्+ल्युट्—अभिषेक
सेतुः —पुं॰—-—सि+तुन्—जलाशय,सरोवर
सेतुः —पुं॰—-—सि+तुन्—व्याख्यापरक भाष्य
सेतुसामन् —नपुं॰—-—-—सामविशेष
सेनापत्यम् —नपुं॰—-—-—सेना पति का पद
सेनावाहः —पुं॰—-—-—सेनाधीश,सेनाध्यक्ष
सेनास्यः —पुं॰—-—-—सैनिक,सिपाही
सेवती —स्त्री॰—-—-—सीवन,टांका
सेवती —स्त्री॰—-—-—सिर की दो हड्डियों का जोड़
सेविन् —वि॰—-—सेव्+णिनि—व्यसनी,उपासक,आराधक
सेश्वर —वि॰—-—-—ईश्वर की सत्ता मानने वाला
सेश्वरवादः —पुं॰—-—-—ईश्वर की सत्ता के समर्थक में तर्क
सेश्वरसाङ्ख्यम् —नपुं॰—-—-—सांख्य की एक शाखा जो ईश्वर की सत्ता को मानती है
सैकतिनी —स्त्री॰—-—सिकता+इन्+ङीप्—रेत से भरी हुई
सैन्यम् —नपुं॰—-—सेना+ञ्य—शिविर
सैन्यक्षोभः —पुं॰—-—-—सेना का विद्रोह
सोत्प्रेक्षम् —अ॰—-—-—असावधानी से,उदासीनता के साथ
सोत्सेक —वि॰—-—-—अभिमानी,घमंडी
सोदय —वि॰—-—-—उदय से संबंध रखने वाला
सोदय —वि॰—-—-—सूद सहित,ब्याज के साथ
सोपग्रहम् —अ॰—-—-—मैत्रीदूर्ण ढंग से
सोपस्कर —वि॰—-—-—सहायक वस्तुओं से युक्त
सोपादान —वि॰—-—-—सामग्री से युक्त
सोमः —पुं॰—-—सू+मन्—एक पितर
सोमः —पुं॰—-—सू+मन्—सोमवार
सोमप्रयाकः —पुं॰—-—-—सोमयाग के लिए पुरोहितों को नियत करने के अधिकारों से सम्पन्न व्यक्ति
सोमसढ् —पुं॰—-—-—पितरों की एक विशेष शाखा
सोर्णभ्रू —वि॰—-—-—जिसकी दोनों भौहों के बीच में बालों का एक वृत है
सौखरात्रिक —वि॰—-—सुखरात्रि+ठक्— जो दूसरे व्यक्ति को पूछता है कि तुम रात को तो सुखअ से सोये हो
सौत्रिकः —पुं॰—-—सूत्र्+ठन्— जुलाहा
सौत्रिकः —पुं॰—-—सूत्र्+ठन्—बुना हुआ कपड़ा
सौधोत्सङ्गः —पुं॰, ष॰त॰—-—-—महल की उभरी हुई खुली छत
सौभपतिः —पुं॰—-—-—शाल्वों का राजा
सौमङ्गल्यम् —नपुं॰—-—सुमङ्गल+ष्यञ्—सौभाग्य की मंगलमय स्थिति,कल्याण,समृद्धि
सोम्य —वि॰—-—सोम+अण्—उतर दिशा से संबंध रखने वाला
सौम्यः —पुं॰—-—सोम+अण्—ब्राह्मण को संबोधित करने का उपयुक्त विशेषण
सौम्यः —पुं॰—-—सोम+अण्—शुभ ग्रह
सौम्यः —पुं॰—-—सोम+अण्—विनीत छात्र
सौम्यः —पुं॰—-—सोम+अण्—बायाँ हाथ
सौम्यः —पुं॰—-—सोम+अण्—मार्गशीर्ष का महीना
सौरमानम् —नपुं॰,ष॰त—-—-—सूर्य की गति पर आधारित ज्योतिष की संगणना
सौरत —वि॰—-—सुरत+अण्—संभोग संबंधी
सौस्वर्यम् —नपुं॰—-—सुस्वर+ष्यञ्—सुस्वरता,स्वरमाधुर्य,स्वरयोजना
स्कन्दः —पुं॰—-—स्कन्द्+अच्—क्षरण
स्कन्दः —पुं॰—-—स्कन्द्+अच्—ध्वंस
स्कन्दजननी —स्त्री॰—-—-—पार्वती
स्कन्दपुत्रः —पुं॰—-—-—स्कन्द का बेटा
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—कंधा
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—खंड,अंश,भाग
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—पेड़ का तना
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—ग्रन्थ का अध्याय
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—सेना का कोई भाग
स्कन्धः —पुं॰—-— स्कन्ध्+घञ्—पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के विषय
स्कन्धधनः —पुं॰—-—-—संज्ञान
स्खलनम् —नपुं॰—-—स्खल्+ल्युट्—वीर्यपात
स्खलित —वि॰—-—स्खल्+क्त—घायल
स्खलित —वि॰—-—स्खल्+क्त—अपूर्ण अधूरा
स्खलितम् —नपुं॰—-—-—हानि,विनाश
स्तनकुड्मलम् —नपुं॰—-—-—स्त्री के उठते हुए स्तन
स्तनचूचुकम् —नपुं॰—-—-—चूची,ढेपनी
स्तनमध्यः —पुं॰—-—-—चूची,ढेपनी
स्तनमध्यम् —नपुं॰—-—-—दोनों स्तनों के बीच का अन्तराल
स्तनाभुज —वि॰—-—-—अपने स्तनों से दूध पिलाने वाला पशु
स्तनितकुमाराः —पुं॰—-—-—देवताओं की एक श्रेणी
स्तनितसुभगम् —अ॰—-—-—सुखद गर्जन ध्वनि के साथ
स्तन्यप —वि॰—-—-—स्तन पान करने वाला,दुधमुँहा बच्चा
स्तव्यपाद —वि॰—-—-—जिसके पैर गतिहीन हो गये हों,अकड़ गये हो
स्तब्धकर —वि॰—-—-—जिसके हाथ निश्चेष्ट हो गये हों
स्तब्धबाहु —वि॰—-—-—जिसके हाथ निश्चेष्ट हो गये हों
स्तब्धमति —वि॰—-—-—जिसकी बुद्धि कुंठित हो गई हो,मंदबुद्धि
स्तम्भ् —भ्वा॰आ॰—-—-—अधिकार करना,फैलाना,प्रेर०दबाना,रोकना
स्तम्भः —पुं॰—-—स्तम्भ्+घञ्—अकड़ाहट,निश्चेष्टता
स्तम्भः —पुं॰—-—स्तम्भ्+घञ्—भराव,भरती
स्तम्भितवाष्पवृति —वि॰—-—-—जिसने अश्रुपात रोक लिया,आँसू रोकने वाला
स्तम्भितान्तर्जलौधः —पुं॰—-—-—बादल जिसने समस्त पानी को अपने अन्दर रोक लिया है
स्ताम्बेरमः —पुं॰—-—स्तम्बेरम+अण्—हाथी से संबंध रखने वाला
स्तिमितयनयन —वि॰—-—-—टकटकी लगा कर दृष्टि जमाये हुए
स्तिमितप्रवाह —वि॰—-—-—बहुत धीमी गति से बहने वाला
स्तीर्विः —पुं॰—-—स्तृ+क्विन्—भय,डर
स्तेन् —चुरा॰उभ॰—-—-—असत्य भाषण से वाणी को अपवित्र करना
स्तोकतमस् —वि॰—-—-—कुछ काला,जिसमे थोड़ा अंधेरा हो
स्तोकायुस् —वि॰—-—-—थोड़ी आयु वाला
स्तोभः —पुं॰—-—-—‘साम’ के रुप में गाये जाने वाला ऋग् मन्त्रों की साम की अपेक्षा विविक्तध्वनि
स्तोमक्षार —पुं॰—-—-—साबुन
स्त्री —स्त्री॰—-—स्त्यै+ड्रट्+ङीप्—दीमक,सफेद चींटी
स्त्रीकितवः —पुं॰—-—-—स्त्रियों को फुसला कर छलने वाला
स्त्रीविषयः —पुं॰—-—-—मैथुन
स्थपत्यः —पुं॰—-—-—कञ्चुकी
स्थलकमलः —पुं॰—-—-—स्थलपद्य,भूकमल,स्थल पर उगने वाला कमल पुष्प
स्थलीशायिन् —वि॰—-—-—बिना कुछ बिछाये भूमि पर सोने वाला
स्थविरद्युत —वि॰—-—-—बूढ़ों की मर्यादा रखने वाला
स्थाणुः —पुं॰—-—स्था+नु,पृषो॰ णत्वम्—तना,पेड़ का ठूंठ
स्थाणुः —पुं॰—-—स्था+नु,पृषो॰ णत्वम्—बैठने की एक विशेष मुद्रा
स्थाणुभूत —वि॰—-—-—जो पेड़ के ठूंठ की तरह गति हीन हो गया हो
स्थानम् —नपुं॰—-— स्था+ल्युट्—जीवन क्रम
स्थानम् —नपुं॰—-— स्था+ल्युट्—जीवित रहना
स्थानम् —नपुं॰—-— स्था+ल्युट्—युद्ध में आक्रमण की एक रीति
स्थानम् —नपुं॰—-— स्था+ल्युट्—ज्ञानेन्द्रिय
स्थानकुटिकासनम् —नपुं॰—-—-—घर छोड़कर झोपड़ी में रहना
स्थानेपतित —वि॰—-—अलुक्समास—दूसरे के स्थान पर अधिकार करने वाला
स्थापनम् —नपुं॰—-—स्था+णिच्+ल्युट्,पुकागमः— बाँधना
स्थापनम् —नपुं॰—-—स्था+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—दीर्घायु होना
स्थापनम् —नपुं॰—-—स्था+णिच्+ल्युट्,पुकागमः— भण्डार
स्थापना —स्त्री॰—-—स्थापन+टाप्—नाटक की प्रस्तावना या आमुख
स्थापना —स्त्री॰—-—स्थापन+टाप्— भण्डार भरना
स्थाप्य —वि॰—-— स्था+णिच्+ण्यत्— बंद किये जाने या कैद किये जाने योग्य
स्थाप्य —वि॰—-— स्था+णिच्+ण्यत्—डूब जाने योग्य
स्थायिता —स्त्री॰—-—-—नैरन्तर्य
स्थायिता —स्त्री॰—-—-—टिकाऊपन
स्थालीपुरीषम् —नपुं॰—-—-—पाकपात्र की तली में जमी तरौछ या मैल
स्थितलिङ्ग —वि॰—-—-—वह पुरुष जिसका लिङ्ग उतेजनावस्था में है
स्थितसंङ्केत —वि॰—-—-—प्रतिज्ञा का पालन करने वाला
स्थितसंविद —वि॰—-—-—प्रतिज्ञा का पालन करने वाला
स्थितिज्ञ —वि॰—-—-—नैतिकता की सीमा को जानने वाला
स्थितिभिद् —वि॰—-—-—सामाजिक नियमों का उल्लंघन करने वाला
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—दृढ़,जमा हुआ
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—अचल,निश्चेष्ट
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—स्थायी
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—निरावेश
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—कठोर सख्त
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—ठोस
स्थिर —वि॰—-— स्था+किरच्—मजबूत
स्थिरापाय —वि॰—स्थिर-अपाय—-—क्षयशील,जिसका निरंतर ह्रास हो रहा है
स्थिरायति —वि॰—स्थिर-आयति—-—टिकाऊ,देर तक चलने वाला
स्थिरवाच् —वि॰—स्थिर-वाच्—-—जिसकी बात का विश्वास किया जाय
स्थिरविक्रम —वि॰—स्थिर-विक्रम—-—दृढ़ता पूर्वक कदम बढ़ाने वाला
स्थूणाकर्णः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सैन्यव्यूह
स्थूणाकर्णः —पुं॰—-—-—रुद्र का एक रुप
स्थूणाकर्णः —पुं॰—-—-—शिव का एक अनुचर
स्थूरीपृष्ठः —पुं॰—-—-—वह घोड़ा जो अभी सवारी करने के काम न आया हो
स्थूल —वि॰—-— स्थूल+अच्—जो बारीकी या ब्यौरे के साथ न देकर मोटे तौर पर दिया गया हो,भौतिक
स्थूलेच्छ —वि॰—स्थूल-इच्छ—-—जिसकी इच्छाएँ बहुत बढ़ी हुई हों
स्थूलकाष्ठाग्निः —पुं॰—स्थूल-काष्ठाग्निः—-—स्कंधाग्नि,पेड़ के जलते हुए तने की आग
स्थूलप्रपञ्चः —पुं॰—स्थूल-प्रपञ्चः—-— भौतिक संसार
स्थैर्यम् —नपुं॰—-— स्थिर+ष्यञ्—इन्द्रियों का दमन या नियन्त्रण
स्नानकलशः —पुं॰—-—-—नहाने के लिये जल का घड़ा
स्नानकुम्भः —पुं॰—-—-—नहाने के लिये जल का घड़ा
स्नानतीर्थम् —नपुं॰—-—-—नहाने के लिए पुण्यस्थान,घाट
स्नानशारी —स्त्री॰—-—-—नहाने का जांघिया,अधोवस्त्र
स्यायुबन्धः —पुं॰—-—-— धनुष की डोरी,ज्या
स्नायुस्पन्दः —पुं॰—-—-—नाड़ी
स्नेहकुम्भः —पुं॰—-—-—तेल रखने का बर्तन
स्नेहकेसरिन् —पुं॰—-—-—एरंड
स्नेहविमर्दित —वि॰—-—-—जिसके शरीर में तेल मला गया हो
स्पन्द् —भ्वा॰आ॰—-—-—अकास्मात् फिर जान आ जाना,नाड़ी चलने लगना
स्पर्शानुकूल —वि॰—-—-—छूने पर अच्छा लगने वाला
स्पर्शक्लिष्ट —वि॰—-—-—छूने पर रुखा या पीड़ा कर
स्पर्शखर —वि॰—-—-—छूने पर रुखा या पीड़ा कर
स्पर्शगुणः —पुं॰, ष॰त—-—-—छूने का गुण
स्पष्टाक्षर —वि॰—-—-—स्पष्टरुप से बोला गया
स्पृष्टपूर्व —वि॰—-—-—जिसे पहले छू चुके है
स्पृष्टमात्र —वि॰—-—-—जिसे केवल छूआ ही गया हो
स्फीत —वि॰—-—स्फाय्+क्त,स्फीभावः— बढ़ा हुआ,फूला हुआ
स्फीतानन्द —वि॰—-—-—अत्यन्त प्रसन्न,परम आनन्दित
स्फुट् —भ्व॰तुदा॰पर॰—-—-—फूट पड़ना,फटना,टूटना
स्फुट् —भ्व॰तुदा॰पर॰—-—-—खिलना,फूलना
स्फुट् —भ्व॰तुदा॰पर॰—-—-—शान्त होना
स्फुट —वि॰—-—स्फुट्+क्—अदभुत,असाधारण
स्फुरणम् —नपुं॰—-—स्फुर्+ल्युट्—फूलना,बढ़ना,विस्तृत होना
स्फूर्तिः —स्त्री॰—-—स्फुर्+क्तिन् —आत्मश्लाघा करना,डींग मारना,शेखी बघारना
स्मरोद्दीपन —वि॰—-—-—कामोद्दीपक,प्रेम का जमाने वाला
स्मरकथा —स्त्री॰—-—-—प्रणयालाप,प्रेमालाप
स्मरशास्त्रम् —नपुं॰—-—-—कामशास्त्र
स्मार्तविधिः —पुं॰—-—-—स्मृतियों में विहित प्रक्रिया
स्मार्तप्रयोगः —पुं॰—-—-—स्मृतियों में विहित प्रक्रिया
स्मयदानम् —नपुं॰—-—-—दिखावटी दान
स्मयनुतिः —स्त्री॰—-—-—गर्व चूर करना
स्मरमान —वि॰—-—-—जो आश्चर्य करता है
स्मृ —भ्वा॰पर—-—-—शिक्षा देना
स्मृतम् —नपुं॰—-—स्मृ+क्त—स्मरण,याद
स्मृतमात्र —वि॰—-—-—जिसको केवल स्मरण ही किया हो,ज्योंही सोचा त्योंही
स्मृतितन्त्रम् —नपुं॰—-—-—विधिग्रन्थ
स्मृतिविनयः —पुं॰—-—-—अपने कर्तव्य का ध्यान दिलाने के लिए अभिप्रेत डांट फटकार
स्यन्दः —पुं॰—-—स्यन्द्+घञ्—बूंद-बूंद टपकना,पसीना
स्यन्दः —पुं॰—-—स्यन्द्+घञ्—आँख का रोग विशेष
स्यन्दः —पुं॰—-—स्यन्द्+घञ्—चन्द्रमा
स्रंस् —भ्वा॰आ॰—-—-—नष्ट होना ठहरना
स्रस्तहस्त —वि॰—-—-—जिसने पकड़ ढीली कर दी हो
स्रवन्मध्यः —पुं॰—-—-—मूल्यवान रत्न जिसके बीच से पानी झरता दिखाई देता है
स्रुग्जिह्वः —पुं॰—-—-—अग्नि,आग
स्रोतस् —नपुं॰—-—-—शरीर के रंध्र
स्रोतस् —नपुं॰—-—-—वंश परम्परा
स्वार्जित —वि॰—-—-—अपना कमाया हुआ
स्वानन्दः —पुं॰—-—-—अपने,आप में आनन्द
स्वकर्मस्थ —वि॰—-—-—अपने कर्म में लीन,अपने काम में व्यस्त
स्वकृतम् —नपुं॰—-—-—अपना किया हुआ कार्य
स्वगोचर —वि॰—-—-—अपने कार्य तक ही सीमित
स्वमनीषा —स्त्री॰—-—-—अपना मत या विचार
स्वयुतिः —स्त्री॰—-—-—आधाररेखा जो कर्ण तथा लम्ब रेखा के सिरों को मिलाती है
स्वतन्त्रता —स्त्री॰—-—-—स्वातन्त्रय्,स्वाधीनता
स्वतन्त्रता —स्त्री॰—-—-—मौलिकता
स्वप्नान्तिकम् —नपुं॰—-—-—स्वप्नकालिक चेतना
स्वप्नज —वि॰—-—-—नीद में उत्पन्न
स्वयमधिगत —वि॰—-—-—खुद प्राप्त किया हुआ
स्वयमधिगत —वि॰—-—-—स्वयं पढ़ा हुआ
स्वयमीश्वरः —पुं॰—-—-—वह जो अपना पूर्ण प्रभू हो,परमेश्वर
स्वयमुद्यत —वि॰—-—-—स्वेच्छा से तैयार
स्वरतिक्रमः —पुं॰—-—-—स्वर्ग को लांघकर बैकुण्ठ पहुँचना
स्वर्यानम् —नपुं॰—-—-—मृत्यु
स्वर्योषित् —स्त्री॰—-—-—अप्सरा
स्वराङ्कः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की संगीत रचना
स्वरोपधातः —पुं॰—-—-—स्वरभंग
स्वरकम्पः —पुं॰—-—-—स्वर का हिलना
स्वरच्छिद्रम् —नपुं॰—-—-—बाँसुरी का स्वरवाला छेद
स्वरब्रह्मन् —नपुं॰—-—-—नादब्रह्म
स्वरविभक्तिः —स्त्री॰—-—-—स्वरों का पृथक्करण
स्वरशास्त्रम् —नपुं॰—-—-—ध्वनिविज्ञान,स्वरविज्ञान
स्वरित —वि॰—-—स्वर+इतच्—युक्त,मिश्रित
स्वरित —वि॰—-—स्वर+इतच्—उच्चरित,ध्वनित
स्वरित —वि॰—-—स्वर+इतच्—उदात अनुदात के बीच का स्वर,मध्यस्वर
स्वर्गगतिः —स्त्री॰—-—-—मृत्यु,स्वर्ग चले जाना
स्वर्गगमनम् —नपुं॰—-—-—मृत्य्,स्वर्ग चले जाना
स्वर्गमार्गः —पुं॰—-—-—स्वर्ग जाने का मार्ग
स्वर्गमार्गः —पुं॰—-—-—स्वर्गगा
स्वर्णरेतस् —पुं॰—-—-—सूर्य
स्वल्पाङ्गुलिः —स्त्री॰—-—-—कनिष्ठिका,कन्नो अंगुलि
स्वल्पदृश —वि॰—-—-—अदूरदर्शी
स्वल्पस्मृति —वि॰—-—-—जिसे बहुत कम याद रहे
स्वस्तिकर्मन् —नपुं॰—-—-—कल्याण् करना
स्वस्तिकारः —पुं॰—-—-—स्वस्ति का उच्चारण करने वाला बंदी,चारण
स्वस्तिकः —पुं॰—-—-—स्वस्तिपाठ करने वाला,चारण
स्वागतप्रश्नः —पुं॰—-—-—मिलने पर स्वास्थ्यादि के संबंध में पूछना,कुशल क्षेम की पृच्छा
स्वादुपिण्डा —स्त्री॰—-—-—पिंडखजूर
स्वादुलुङ्गी —स्त्री॰—-—-—मीठा नीबू
स्वापव्यसनम् —नपुं॰—-—-—निद्रालुता
स्वामिन् —पुं॰—-—-—यज्ञ का यजमान
स्वामिन् —पुं॰—-—-—मन्दिर में स्थापित देवमूर्ति
स्वाम्यम् —नपुं॰—-—-—स्वस्थ स्थिति
स्वायत्त —वि॰—-—-—जो अपने ही अधीन हो,अपने ही अधिकार में हो
स्विदित —वि॰—-—-—जिसे पसीना निकल आया हो,पसीने से तर
स्विदित —वि॰—-—-—पिघला हुआ पसीजा हुआ
स्विष्ट —वि॰—-—-—वांछित,प्रिय,सुपूजित
स्वेदनयन्त्रम् —नपुं॰—-—-—जिससे बफारा दिया जाय,पसीना लाने वाला यंत्र
स्वैरकथा —स्त्री॰—-—-—अबाधित वार्तालाप
स्वैरविहारिन् —वि॰—-—-—इच्छानुसार भ्रमण करने वाला
स्वैरिणी —स्त्री॰—-—-—चमगादड़
हंसः —पुं॰—-—हस्+अच्,पृषो॰वर्णागमः—घोड़ा
हंसः —पुं॰—-—हस्+अच्,पृषो॰वर्णागमः—उतम,श्रेष्ठ
हंसः —पुं॰—-—हस्+अच्,पृषो॰वर्णागमः—चाँदी
हंसः —पुं॰—-—हस्+अच्,पृषो॰वर्णागमः—बड़ी बड़ी झीलों में रहने वाला एक जलपक्षी
हंसः —पुं॰—-—हस्+अच्,पृषो॰वर्णागमः—आत्मा,जीवात्मा
हंसोदकम् —नपुं॰—हंस-उदकम्—-—एक प्रकार की पुष्टिदायक मदिरा
हंसच्छत्रम् —नपुं॰—हंस-च्छत्रम्—-—सोंठ
हंसद्वारम् —नपुं॰—हंस-द्वारम्—-—मानस झील के पास की एक घटी
हंससन्देशः —पुं॰—हंस-सन्देशः—-—वेदान्तदेशिका द्वारा रचित एक गीतिकाव्य
हक्काहक्कः —पुं॰—-—-—चुनौती,ललकार
हट्टः —पुं॰—-—हट्+ट्,टस्य नेत्वम्—मंडी,बाजार,मेला
हट्टाध्यक्षः —पुं॰—हट्टः-अध्यक्षः—-—मंडी का अधीक्षक
हट्टवाहिनी —स्त्री॰—हट्टः-वाहिनी—-—बाजार में बनी हूई पानी निकलने की नाली
हट्टवेश्माली —स्त्री॰—हट्टः-वेश्माली—-—बाजार की गली
हठपर्णी —स्त्री॰—-—-—शैवाल
हठवादिन् —पुं॰—-—-—जो हिंसा का प्रचार करता है
हन् —अदा॰पर॰—-—-—दूर करना,नष्ट करना
हत —वि॰—-—हन्+क्त—पीड़ित,घायल
हत —वि॰—-—हन्+क्त—बलात्कार किया हुआ,भ्रष्ट किया हुआ
हत —वि॰—-—हन्+क्त—शापग्रस्त,विपदग्रस्त
हतोत्तर —वि॰—हत-उत्तर—-—निरुतर,जो कुछ जवाब न दे सके
हतकिल्विष —वि॰—हत-किल्विष—-—जिसके पाप नष्ट हो गये हों
हतत्रप —वि॰—हत-त्रप—-—निर्लज्ज,बेशर्म
हतविनय —वि॰—हत-विनय—-—जिसमे शिष्टता न हो,वेश्या
हनुभेदः —पुं॰—-—-—जबड़े का खुलना
हनुभेदः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का ग्रहण
हनुस्वनः —पुं॰—-—-—जबड़े से निकलनेवाला स्वर
हनुमज्जयन्ती —स्त्री॰—-—-—चैत्रशुक्ला पूर्णा जो हनुमान जी का माँगलिक दिवस है
हयः —पुं॰—-—हयः+अच्—धनुराशि
हयाङ्गः —पुं॰—हयः-अङ्गः—-—धनुराशि
हयालयः —पुं॰—हयः-आलयः—-—घुड़शाला,अस्तबल अश्वशाला
हयशाला —स्त्री॰—हयः-शाला—-—घुड़शाला,अस्तबल अश्वशाला
हयच्छटा —स्त्री॰—हयः-च्छटा—-—अश्वदल
हयग्रीवः —पुं॰—हयः-ग्रीवः—-—विष्णु का एक रुप
हयग्रीवः —पुं॰—हयः-ग्रीवः—-—एक राक्षस का काम
हयमुखः —पुं॰—हयः-मुखः—-—विष्णु का एक रुप
हयमुखः —पुं॰—हयः-मुखः—-—एक राक्षस का काम
हयवदनः —पुं॰—हयः-वदनः—-—विष्णु का एक रुप
हयवदनः —पुं॰—हयः-वदनः—-—एक राक्षस का काम
हयिः —पुं॰—-—हय्+इन्—कामना,इच्छा,अभिलाषा
हरः —पुं॰—-—ह्र+अच्—पकड़ना,लेना
हराद्रिः —पुं॰—हरः-अद्रिः—-—कैलाश पर्वत
हरवल्लभः —पुं॰—हरः-वल्लभः—-—धतूरे का फल
हरसखः —पुं॰—हरः-सखः—-—कुबेर
हरिः —पुं॰—-—हृ+इन्—विष्णु
हरिः —पुं॰—-—हृ+इन्—इन्द्र
हरिः —पुं॰—-—हृ+इन्—सिंह राशि
हरिचापः —पुं॰—हरिः-चापः—-—इन्द्रधनुष
हरिबीजम् —नपुं॰—हरिः-बीजम्—-—हरताल
हरिमेघः —पुं॰—हरिः-मेघः—-—विष्णु
हरिणलाञ्छ्रनः —पुं॰—-—-—चन्द्रमा
हरित्पतिः —पुं॰—-—-—दिशा का स्वामी
हरितकपिश —वि॰—-—-—पीलापन लिये हुए भूरा
हरितोपलः —पुं॰—-—-—मरकतमणि
हरिद्राङ्गः —पुं॰—-—-—हरिताल पक्षी,एक प्रकार का कबूतर
हर्म्यतलम् —नपु—-—-—चौबारा,मकान की उपर की मंजिल
हर्म्यपृष्ठम् —नपु—-—-—चौबारा,मकान की उपर की मंजिल
हर्म्यवलभी —स्त्री॰—-—-—चौबारा,मकान की उपर की मंजिल
हर्षः —पुं॰—-—ह्रष्+घञ्—जननेन्द्रिय की उत्तेजना
हर्षः —पुं॰—-—-—प्रबल इच्छा
हर्षजम् —नपुं॰—हर्षः-जम्—-—वीर्य
हर्षसंपुटः —पुं॰—हर्षः-संपुटः—-—एक प्रकार का रतिबंध
हर्षस्वनः —पुं॰—हर्षः-स्वनः—-—आनन्द ध्वनि
हलम् —नपुं॰—-—हल्+क—कुरुपता
हलककुद —स्त्री॰—हलम्-ककुद—-—हल का वह भाग जिस निचले भाग में फाली लगी होती है
हलदण्डः —पुं॰—हलम्-दण्डः—-—हलस,हल की लम्बी लकड़ी जिसमें जूआ लगाते है
हलमार्गः —पुं॰—हलम्-मार्गः—-—जुताई से बनी लकीर,खुड
हलमुखम् —नपुं॰—हलम्-मुखम्—-—फाल
हविष्मती —स्त्री॰—-—-—कामधेनु का विशेषण
हसन्ती —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की परी
हस्तः —पुं॰—-—हस्+तन्—हाथी का सूँड
हस्तः —पुं॰—-—हस्+तन्—हस्त नक्षत्र
हस्तः —पुं॰—-—हस्+तन्—भुजा
हस्तभ्रष्टः —वि॰—हस्तः-भ्रष्टः—-—जो बच निकला हों
हस्तरोधम् —अ॰—हस्तः-रोधम्—-—हाथों में
हस्तवाम —वि॰—हस्तः-वाम—-—बाई और स्थित
हस्तविन्यासः —पुं॰—हस्तः-विन्यासः—-—हाथों की स्थिति
हस्तस्वस्तिकः —पुं॰—हस्तः-स्वस्तिकः—-—हाथों को स्वस्तिक की शक्ल में रखना
हस्त्याजीवः —पुं॰—-—-—पीलवान्,हस्तिव्यवसायी
हस्तिनासा —पुं॰—-—-—हाथी की सूँड
हस्तिवक्त्रः —पुं॰—-—-—गणेश
हाकारः —पुं॰—-—-—विस्मयादिद्योतक‘हा’ध्वनि
हात —वि॰—-—हा+क्त—परित्यक्त,छोड़ा हुआ
हानम् —नपुं॰—-—हा+ल्युट्—छोड़ना,त्यागना
हानम् —नपुं॰—-—हा+ल्युट्—हानि,विफलता
हानम् —नपुं॰—-—हा+ल्युट्—अभाव,कमी
हानम् —नपुं॰—-—हा+ल्युट्—पराक्रमल,बल
हानम् —नपुं॰—-—हा+ल्युट्—विश्रान्ति,विराम,अवसान
हाटकहाडिका —स्त्री॰—-—-—मिट्टी का बर्तन
हारित —वि॰—-—हृ+णिच्+क्त्—खोया गया,चुराया हुआ
हारित —वि॰—-—हृ+णिच्+क्त्—मात दिया हुआ,आगे बढ़ा हुआ
हारिद्रः —पुं॰—-—-—एक वानस्पतिक विष
हार्य —वि॰—-—हृ+ण्यत्—हटाये जाने योग्य
हार्य —वि॰—-—हृ+ण्यत्—मनोहर,आकर्षक
हासनिकः —पुं॰—-—-—खेल का साथी,सह क्रीडक
हिंसनीय —वि॰—-—हिस्+अनीय—मार डाले जाने योग्य,हिंसा से पीडित किये जाने योग्य
हिंसास्पदम् —नपुं॰—-—-—प्रहार्य,आक्रमणीय
हिंसाप्राय —वि॰—-—-—वहुधा हानिकारक
हिंस्रः —पुं॰—-—हिंस्+र—दूसरों के उत्पीडन में आनन्द मानने वाला व्यक्ति
हिक्किका —स्त्री॰—-—-—हिचकी का रोग
हिक्कतम् —नपुं॰—-—-—हिचकी का रोग
हिक्का —नपुं॰—-—-—हिचकी का रोग
हिताशंसा —नपुं॰—-—-—भला चाहना
हिताशंसा —नपुं॰—-—-—अभिनन्दन,बधाई
हितप्रवृत —वि॰—-—-—भलाई में लगा हुआ
हितवादः —पुं॰—-—-—मैत्रीपूर्ण परामर्श,सत्परामर्श,भलाई की बात
हिन्दुधर्मः —पुं॰—-—-—हिन्द देश में रहने वालों का धर्म
हिमम् —नपुं॰—-—हि+मक्—पाला,कुहरा
हिमम् —नपुं॰—-—हि+मक्—ताजा मक्खन
हिमम् —नपुं॰—-—हि+मक्—मोती
हिमम् —नपुं॰—-—हि+मक्—चंदन
हिमाभ्रः —पुं॰—हिमम्-अभ्रः—-—कपूर
हिमर्तुः —पुं॰—हिमम्-ऋतुः—-—जाड़े का मौसम
हिमखण्डम् —नपुं॰—हिमम्-खण्डम्—-—ओला
हिमज्योतिस् —नपुं॰—हिमम्-ज्योतिस्—-—चन्द्रमा
हिमझटिः —पुं॰—हिमम्-झटिः—-—धुंध,कोहरा
हिमशर्करा —स्त्री॰—हिमम्-शर्करा—-—एक प्रकार की खाँड
हिरण्यकर्तु —पुं॰—-—-—स्वर्णकार,सुनार
हिरण्यकारः —पुं॰—-—-—स्वर्णकार,सुनार
हिरण्यवर्चस् —वि॰—-—-—सनहरी आभा से युक्त
हीन —वि॰—-—हा+क्त,तस्य नः,ईत्वं च—जो मुकदमा हार गया है
हीन —वि॰—-—हा+क्त,तस्य नः,ईत्वं च—यूथभ्रष्ट
हीन —वि॰—-—हा+क्त,तस्य नः,ईत्वं च—परित्यक्त,मुर्झाया हुआ
हीन —वि॰—-—हा+क्त,तस्य नः,ईत्वं च—क्षीण
हीनपक्ष —वि॰—हीन-पक्ष—-—अरक्षित पुं० दलील की दृष्टि से कमजोर पक्ष
हीनसामन्तः —पुं॰—हीन-सामन्तः—-—गद्दी से उतारा हुआ अधीनस्थ राजा
हीनसन्धिः —पुं॰—हीन-सन्धिः—-—अधम राजाके साथ की गई सन्धि
हुतशेषम् —नपुं॰—-—-—यज्ञशेष,हवन का बचा हुआ अंश
हुण्डः —पुं॰—-—हुण्ड्+इन्—पिंडित ओदन
हुण्डः —स्त्री॰—-—हुण्ड्+इन्—पिंडित ओदन
हृद् —नपुं॰—-—हृत्,पृषो॰तस्य दः—मन,दिल
हृद् —नपुं॰—-—हृत्,पृषो॰तस्य दः—आत्मा
हृद् —नपुं॰—-—हृत्,पृषो॰तस्य दः—किसी भी वस्तु का सत्
हृद् —नपुं॰—-—हृत्,पृषो॰तस्य दः—छाती
हृदामयः —पुं॰—हृद्-आमयः—-—ह्रदय का रोग
हृत्द्योतन —वि॰—हृद्-द्योतन—-—दिल को तोड़ने वाला
हृत्सारः —पुं॰—हृद्-सारः—-—साहस,हिम्मत
हृत्स्तम्भः —पुं॰—हृ्द्-स्तम्भः—-—ह्रदय को लकवा मार जाना
हृत्स्फोटः —पुं॰—हृद्-स्फोटः—-—ह्रदय का विदीर्ण होना
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—मन,दिल,आत्मा
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—छाती
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—प्रेम,अनुराग
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—दिव्य ज्ञान
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—वस्तु का सत्
हृदयम् —नपुं॰—-—हृ+कयन्,दुकागमः—इच्छा प्रयोजन
हृदयोदङ्ककः —पुं॰—हृदयम्-उदङ्ककः—-—आह भरना
हृदयोद्वेष्टनम् —नपुं॰—हृदयम्-उद्वेष्टनम्—-—दिल का सिकुड़ना
हृदयक्षोभः —पुं॰—हृदयम्-क्षोभः—-—दिल की धड़कन
हृदयजः —पुं॰—हृदयम्-जः—-—पुत्र
हृदयज्ञः —पुं॰—हृदयम्-ज्ञः—-—जो दिल की बात जानता है
हृदयदौर्वल्यम् —नपुं॰—हृदयम्-दौर्वल्यम्—-—दिल की कमजोरी
हृदयशैथिल्यम् —नपुं॰—हृदयम्-शैथिल्यम्—-—विषष्णता,अवसाद
हृद्य —वि॰—-—हृद्+यत्—स्वादिष्ट,रुचिकर
हृषित —वि॰—-—हृष्+क्त,बा॰इट्—कुंठित,ठूंठा
हेतिः —पुं॰—-—हन्+क्तिन्,नि॰—नया अंकुर
हेतिः —स्त्री॰—-—हन्+क्तिन्,नि॰—नया अंकुर
हेतुः —पुं॰—-—हि+तुन्—प्रेरणार्थक क्रिया का अभिकर्ता
हेतुः —पुं॰—-—हि+तुन्—प्राथमिक कारण
हेतुः —पुं॰—-—हि+तुन्—बाह्य संसार और उसके विषय
हेतुः —पुं॰—-—हि+तुन्—मूल्य,कीमत
हेतुः —पुं॰—-—हि+तुन्—कारण
हेत्ववधारणम् —नपुं॰—हेतुः-अवधारणम्—-—तर्क करना
हेतूपमा —स्त्री॰—हेतुः-उपमा—-—तर्क युक्त उपमा अलंकार,तर्क संगत तुलना
हेतुदृष्टिः —स्त्री॰—हेतुः-दृष्टिः—-—कारण की परीक्षा
हेतुरुपकम् —नपुं॰—हेतुः-रुपकम्—-—एक प्रकार का रुपकालंकार
हेतुविशेषोक्तिः —स्त्री॰—हेतुः-विशेषोक्तिः—-—एक अलंकार जिसमें दो पदार्थों का अंतर तर्क देकर बतलाया जाता है
हेतुवन्निगदः —पुं॰—-—-—वेद के मूल पाठ का लेखांश जिसके साथ प्रयोजन भी दिया गया हो
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—स्वर्ण,सोना
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—जल
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—बर्फ
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—धतूरा
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—केसर का फूल
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—बुधग्रह
हेमन् —नपुं॰—-—हि+मनिन्—जाड़े की ऋतु
हेमकलशः —पुं॰—हेमन्-कलशः—-—सोने की कलसी,स्वर्ण निर्मित शृंगकलश
हेमगर्भ —वि॰—हेमन्-गर्भ—-—जिसके अंदर सोना हो
हेमघ्नम् —नपुं॰—हेमन्-घ्नम्—-—सीसा
हेमघ्नी —स्त्री॰—हेमन्-घ्नी—-—हल्दी
हेममाक्षिकम् —नपुं॰—हेमन्-माक्षिकम्—-—सोनामाखी
हेमव्याकरणम् —नपुं॰—हेमन्-व्याकरणम्—-—हेमचन्द्र प्रणीत व्याकरण का एक ग्रन्थ
हैडिम्बः —पुं॰—-—हिडिम्बा+अण्—हिर्डिबा का पुत्र,घटोत्कच
हैडिम्बिः —पुं॰—-—हिडिम्बा+अण्,इञ् —हिर्डिबा का पुत्र,घटोत्कच
होतृकर्मन् —पुं॰—-—-—यज्ञ में होता का कार्य
होतृप्रवरः —पुं॰—-—-—होता का वरण करना
होतृस् —पुं॰—-—-—होता का आसन
होतृष् —पुं॰—-—-—होता का आसन
होतृदनम् —नपुं॰—-—-—होता का आसन
होलाकाधिकरणन्यायः —पुं॰—-—-—मीमांसा का एक नियम।इसके अनुसार यदि स्मृति या कल्पसूत्र की कोई उक्ति श्रुति द्वारा समर्थन नहीं प्राप्त कर सकी,तो उसके समर्थन में वेद का कोई अन्य सामान्य मंत्र,अनुमान के आधार पर ढूंढना चाहिए
ह्रस्व —वि॰—-—ह्रस्+वन्—जो महत्वपूर्ण न हो,अनावश्यक,नगण्य
ह्रासः —पुं॰—-—ह्रस्+घञ्—ध्वनि,आवाज
ह्रासः —पुं॰—-—ह्रस्+घञ्—क्षय,क्षीणता.अभाव,कमी
ह्रासः —पुं॰—-—ह्रस्+घञ्—छोटी संख्या
ह्रीका —स्त्री॰—-—ह्री+कक्—लज्जा
ह्रीका —स्त्री॰—-—ह्री+कक्—भय
ह्रीपदम् —नपुं॰—-—-—लज्जा का कारण
आर्यभट्टः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद्,जन्मकाल ४७६ ई०
उद्भटः —पुं॰—-—-—अलंकारशास्त्र का एक प्राचीन लेखक।यह काश्मीर के राजा जयापीड की राज्यसभा का मुख्य पंडित था।इसका काल ७७९ से ८१३ ई० तक है
कय्यटः —पुं॰—-—-—पंतजलिकृत महाभाष्य पर भाष्य प्रदीप नामक टीका का रचयिता।डाक्टर बुह्लर के मतानुसार यह तेंरहवीं शताब्दी से पूर्व नहीं हुआ था
कल्हणः —पुं॰—-—-—राजतरंगिणी नामक राजाओं के इतिहास की प्रसिद्ध पुस्तक का रचयिता।यह काश्मीर के राजा जयसिंह का,जिसने ११२९ से ११५० ई०तक राज्य किया,समकालीन था
कालिदासः —पुं॰—-—-—अभिज्ञान शाकुन्तल,विक्रमोर्वशीय,मालविकाग्निमित्र,रघुवंश,कुमारसंभव,मेघदूत और ऋतुसंहार का रचयिता।इसके अतिरिक्त‘नलोदय’ तथा अन्य कई छोटे-छोटे काव्यों के रचयिता। कालिदास का सबसे पहला अधिकृत उल्लेख हमें ६३४ ई०(तदनुसार ५५६ शाके)के शिलालेख में मिलता है।इसमें कालिदास और भारवि दोनों को प्रसिद्ध कवि बतलाया गया है।श्लोक यह है-येनायोजि न वेश्म,स्थिरमर्थविधौ विवेकना जिनवेश्म।स विजयतां रविकीर्तिः,कविताश्रितकालिदासभारविर्कीर्तिःहर्षचरित के आरंभ में बाण ने कालिदास का उल्लेख किया है।इससे प्रतीत होता है कि कालिदास बाण से पहले अर्थात् सातवीं शताब्दी के पुर्वार्ध से पहले हुआ था।परन्तु सातवीं शताब्दी से कितना पूर्व-इस बात का अभी तक पता नहीं लग सका।मेघदूत के चौदहवें श्लोक की व्यख्या करते हुए मल्लिनाथ ने निचुल और दिङ्नाग को कालिदास का समकालीन बताया है।यदि मल्लिनाथ के इस सुझाव को जिसकी सत्यता में पूरा-पूरा सन्देह है,सही मान लिया जाय तो हमारा कवि कलिदास अवश्य ही छठी शताब्दी के मध्य में रहा होगा।यही काल दिङ्नाग का माना जाता है।एक बात और है,यदि इसका ठीक निर्णय हो जाय तो कवि के जन्मकाल का सही ज्ञान हो जाय।यह बात है कालिदास द्वारा अपने अभिभावक के रुप में विक्रम का उल्लेख।यह कौन सा विक्रम है,इस बात का अभी पूरी तरह निर्णय नहींहो पाया है।प्रचलित परंपरा के अनुसार वह विक्रम संवत् का जो ईसा से ५६ वर्ष पूर्व आरम्भ हुअ,प्रवर्तक था।यदि इअस विचार को सही समझा जाय तो कालिदास निश्चय ही ईसा से पूर्व पहली शताब्दी में हुआ होगा।परन्तु कुछ विद्वान अभी इअस परिणाम पर पहुँचे है कि जिसे हम विक्रम संवत्(ईसा से ५६ वर्ष पूर्व)कहते है वह कोरुर के महायुद्ध के काल के आधार पर बना है।इस युद्ध में विक्रम ने ५४४ ई० में म्लेच्छों को पराजित किया था।और उस समय ६०० वर्ष पीछे ले जाकर(अर्थात् ईसा से ५६ वर्ष पूर्व)इसका नामकरण किया।यदि यह मत यथार्थ मान लिया जाए-विद्वान लोग अभी इस बात पर एकमत दिखाई नहीं देते-तो कालिदास छठी शताब्दी में हुए है।अभी इस प्रश्न का पूरा समाधान नहीं हो सका है।
क्षेमेन्द्रः —पुं॰—-—-—काश्मीर का एक प्रसिद्ध कवि,समयामातृका तथा कई अन्य पुस्तकों का रचयिता।यह ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुआ।
जगद्वरः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध टीकाकार।इसने मालती माधव और वेणीसंहार पर टीकाएँ लिखीं।यह चौदहवीं शताब्दी के बाद हुआ
जगन्नाथपण्डितः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध आधुनिक लेखक। उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ रसगंगाधर है जिसमें‘काव्य’ विषय का विवेचन है।उसकी अन्य कृतियाँ हैं-भामिनीविलास,पाँच लहरियाँ(गंगा,पीयूष,सुधा,अमृत,और करुणा)तथा कुछ अन्य छोटी रचनाएँ।ऐसा माना जाता है कि यह दिल्ली के सम्राट् शाहजहाँ के काल में हुआ।इसने जहांगीर के राज्य के अन्तिम दिन तथा १६५८ ई० में दारा का अस्थायी राज्यसिंहासनारोहण देखा होगा।अतः इसका जन्म-और कुछ नहीं तो कार्य काल तो अवश्य-१६२०तथा १६६० ई० के बीच में रहा होगा।
जयदेवः —पुं॰—-—-—गीतगोविन्द नामक ललित गीतिकाव्य का प्रणेता।यह बंगाल के वीरभूमि जिले के किंदुविल्व नमक गाँव का निवासी था।कहा जाता है कि यह राजा लक्ष्मणसेन के काल में हुआ जिसकी एकात्मता डाक्टर बुह्लर ने बंगाल के वैद्य राजा से की है।इअसका शिलालेख विक्रम संवत् ११७३ अर्थात् १११६ ई० का मिलता है। अतः यह कवि बारहवीं शताब्दी में हुआ होगा।
दण्डिन् —पुं॰—-—-—यह दशकुमारचरित और काव्यादर्श का रचयिता है छठी शताब्दी के उतरार्ध में हुआ।माधवाचर्य के मतानुसार यह बाण का समकालीन था।
पतञ्जलिः —पुं॰—-—-—महाभाष्य का प्रसिद्ध लेखक।कहते है कि यह ईसा से लगभग १५० वर्ष पूर्व हुआ।
नारायणः —पुं॰—-—-—(भट्टनारायण)-वेणीसंहार का रचयिता। यह नवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ होगा,क्योंकि इसकी रचना का उल्लेख आनन्दवर्धन ने अपने ध्वन्यालोक में बहुत बार किया है।यह कवि अवन्तिवर्मा के राज्यकाल ८५५-८८४ ई०(राजतरंगिणी ५/३४) में हुआ है।
बाणः —पुं॰—-—-—हर्षचरित,कादबंरी और चंडिकाशतक का विख्यात प्रणेता।पार्वतीपरिणय और रत्नावली भी इसी की रचना मानी जाती है।इसका काल निर्विवाद रुप से इसके अभिभावक कान्यकुब्ज के राजा श्री हर्षवर्धन द्वारा निश्चित किया गया है।जिस समय ह्यून त्सांग ने समस्त भारत में भ्रमण किया उस समय हर्षवर्धन ने ६२९ से ६४५ ई० तक राज्य किया।इसलिए बाण या तो छठी शताब्दी के उतरार्ध में हुआ या सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में।बाण का काल कई और लेखकों के काल का-न्यूनातिन्यून उनका जिनका कि बाण ने हर्षचरित की प्रस्तावना में उल्लेख किया है-परिचायक है।
बिल्हणः —पुं॰—-—-—महाकाव्य विक्रमांकदेवचरित तथा चौरपंचाशिका का रचयिता।यह ग्यारहवी शताब्दी के उतरार्ध में हुआ।
भट्टिः —पुं॰—-—-—यह श्रीस्वामी के पुत्र था।राजा श्रीधरसेन या उसके पुत्र नरेन्द्र के राज्यकाल में श्रीस्वामी वल्लभी में रहा।लैसन के मतानुसार श्रीधर का राज्यकाल ५३० से ५४५ ई० तक था।
भर्तृहरिः —पुं॰—-—-—शतकत्रय और वाक्यपदीय का रचयिता।तेलंग महाशय के मतानुसार यह ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी के अन्तिम काल में अथवा दूसरी शताब्दी के आरम्भ में हुआ। परंपरा के अनुसार भर्तृहरि,विक्रमराजा का भाई था।और यदि हम इस विक्रम को वही मानें जिसने ५४४ ई० में म्लेच्छों को पराजित किया गया,तो हमें समझ लेना चाहिए कि भर्तृहरि छठी शताब्दी के उतरार्ध में हुआ।
भवभूतिः —पुं॰—-—-—महावीरचरित,मालतीमाधव और उतररामचरित का रचयिता।यह विदर्भ का मूल निवासी था,और कान्यकुब्ज के राजा यशोवर्मा के दरबार में रहता था।काश्मीर के राजा ललितादित्य(६९३ से ७२९ ई०) ने इसे परास्त किया था।अतः भवभूति सातवीं शताब्दी के अन्त में हुआ।बाण ने इसके नाम का उल्लेख नहीं किया,अतः यह काल सुसंगत है।कालिदास और भवभूति की समकालीनता के उपाख्यान निरे उपाख्यान होने के कारण स्वीकार्य नही है।
भारविः —पुं॰—-—-—किरातार्जुनीय काव्य का रचयिता।६३४ ई० के एक शिलालेख में इसका उल्लेख कालिदास के साथ किया है। देखो कालिदास।
भासः —पुं॰—-—-—बाण और कालिदास ने इसे अपना पूर्ववर्ती बताया है अतः यह सातवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ।
मम्मटः —पुं॰—-—-—काव्यप्रकाश का रचयिता। यह १२९४ ई० से पूर्व ही हुआ है क्योकि १२९४ ई० में तो जयन्त ने काव्यप्रकाश पर ‘जयन्ती’नामक टीका लिखी है।
मयूरः —पुं॰—-—-—यह बाण का श्वसुर था। इसने अपने कुष्ठ से मुक्ति पाने के लिए सूर्यशतक की रचना की। यह बाण का समकालीन था।
मुरारिः —पुं॰—-—-—अनर्घराघव नाटक का रचयिता।रत्नाकर कवि ने (जो नवीं शताब्दी में हुआ) अपने हरविजय ३८/६७ में उल्लेख किया है।अतः इसे नवीं शताब्दी से पूर्व का ही समझना चाहिए।
रत्नाकरः —पुं॰—-—-—हरविजय नामक महाकाव्य का रचयिता।अवन्तिवर्मा (८५५-८८४ ई० तक) इस कवि के आश्रयदाता थे।
राजशेखरः —पुं॰—-—-—बालरामायण,बालभारत और विद्धशालभंजिका का रचयिता।यह भवभूति के पश्चात् दसवीं शताब्दी के अन्त से पूर्व हुआ,अर्थात् यह सातवीं शताब्दी के अन्त और दसवी शताब्दी के मध्य हुआ।
वराहमिहिरः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद्,बृहत्संहितानामक् पुस्तक का रचयिता।
विशाखदतः —पुं॰—-—-—मुद्राराक्षस का रचयिता।इअस नाटक की रचना का काल तेलंग महाशय के अनुसार सातवीं या आठवीं शताब्दी माना जाता है।
शङ्करः —पुं॰—-—-—वेदान्त दर्शन का प्रसिद्ध आचार्य,तथा शारीरक भाष्य का प्रणेता।इसके अतिरिक्त वेदान्त विषय पर इसकी अनेक रचनाएँ हैं। कहते है कि यह ७८८ ई० में उत्पन्न हुआ और ३२ वर्ष की थोड़ी आयु में ही ८२० ई० में परलोकवासी हुआ।परन्तु कुछ विद्वान लोगों (तैलंग महाशय तथा डाक्टर भंडारकर आदि) ने यह दर्शाने का प्रयत्न किया है कि यह छठी या सातवी शताब्दी में हुआ होगा।मुद्राराक्षस की प्रस्तावना देखिये।
श्रीहर्षः —पुं॰—-—-—यह नैषधचरित का प्रसिद्ध रचयिता है।इसके अतिरिक्त इसकी अन्य आठ दस रचनाएँ भी मिलती है।इसे प्रायः बारहवीं शताब्दी के उतरार्ध में हुआ मानते है।विल्सन कहता है कि १२१३ ई० में अपने पिता कलश के पश्चात् श्रीहर्ष राजगद्दी पर बैठा।अतः रत्नावली नाटिका जो इस राजा द्वारा लिखित मानी जाती है अवश्य अपने राज्य काल के अन्त में १११३ से ११२५ के मध्य लिखी गई होगी।परन्तु ‘रत्नावली’ को इसके पूर्व का ही मानना पड़ेगा क्योंकि दशरुपमें इसके अनेक उद्धरण उपलब्ध है।और दशरुप दशवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में रचा गया।
सुबन्धुः —पुं॰—-—-—वासवदता का रचयिता ।इसका उल्लेख बाण ने किया है।अतः यह सातवीं शताब्दी के बाद का नहीं।इसने धर्मकीर्ति द्वारा लिखित बौद्धसंगति नामक एक रचना का उल्लेख किया है।यह पुस्तक छठी शताब्दी में लिखी गई थी।
हर्षः —पुं॰—-—-—बाण का अभिभावक। ऐसा समझा जाता है कि रत्नावली नाटक बाण ने लिखा और अपने अभिभावक के नाम से प्रकाशित कराया।
अङ्गः —पुं॰—-—-—गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य।इसकी राजधानी चंपा थी,जो अंगपुरी भी कहलाता था।यह नगर शिलाद्वीप के पश्चिम में लगभग २४ मील की दूरी पर विद्यमान था। इसी लिए यह या तो वर्तमान भागलपुर था,अथवा उसके कहीं अत्यंन्त निकट स्थित था।
अन्ध्र —पुं॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम। यह वर्तमान तेलंगण ही माना जाता है। गोदावरी का मुहाना अंध्रों के अधिकार में था।परन्तु इसकी सीमाएँ संभवतः पश्चिम में घाट,उतर में गोदावरी,तथा दक्षिण में कृष्ण नदी थी। कलिंग देश इसकी एक सीमा था(देखो दश० ७ वाँ उल्लास) इसकी राजधानी अंध्रनगर संभवतः प्राचीन वेंगी या वेगी थी।
अवन्ति —स्त्री॰—-—-—नर्मदा नदी के उतर में स्थित एक देश।इसकी राजधानी उज्जयिनी थी जिसे अवंतिपुरी या अवंति और विशाला(मेघ०३०) भी कहते थे।यह शिप्रा नदी के तट पर स्थित थी।मालवा देश का पश्चिमी भाग है।महाभारत काल में यह देश दक्षिण में नर्मदातट तक तथा पश्चिम में मही के तटों तक फैला हुआ था। अवंति के उतर में एक दूसरा राज्य था जिसकी राजधानी चर्मण्वती नदी के तट पर स्थित दसपुर थी,यह ही वर्तमान धौलपुर प्रतीत होता है। यह रन्तिदेव की राजधानी थी।था जिसकी राजधानी चर्मण्वती नदी के तट पर स्थित दसपुर थी,यह ही वर्तमान धौलपुर प्रतीत होता है। यह रन्तिदेव की राजधानी थी।
अम्मकः —पुं॰—-—-—त्रावणकोर का पुराना नाम
आनर्तः —पुं॰—-—-—देखो सौराष्ट
इन्द्रप्रस्थः —पुं॰—-—-—(हरिप्रस्थ या शक्रप्रस्थ भी कहलाता है) इसी नगर की वर्तमान दिल्ली से एकरुपता मानी जाती है।यह नगर यमुना के बाई ओर बसा हुआ था,जब कि वर्तमान दिल्ली दाई ओर स्थित है।
उत्कलः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम। वर्तमान उड़ीसा जो ताम्रलिप्त के दक्षिण में स्थित है और कपिशा नदी तक फैला हुआ है-तु०रघु ४/३८। इस प्रांत के मुख्य नगर कटक और पुरी है जहाँ कि जगन्न का प्रसिद्ध मन्दिर है।
ओड् —पुं॰—-—-—एक देश का नाम। वर्तमान उड़ीसा जो ताम्रलिप्त के दक्षिण में स्थित है और कपिशा नदी तक फैला हुआ है-तु०रघु ४/३८। इस प्रांत के मुख्य नगर कटक और पुरी है जहाँ कि जगन्न का प्रसिद्ध मन्दिर है।
कनखलः —पुं॰—-—-—हरद्वार के निकट एक ग्राम का नाम है।यह शैवालिक पहाड़ी के दक्षिणी भाग पर गंगा के किनारे बसा हुआ है।वहाँ के आसपास का पहाड़ भी कनखल कहलाता है।
कलिंगः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जो उड़ीसा के दक्षिण में स्थित है और गोदावरी के मुहाने तक फैला हुआ है।ब्रिटिशकाल की उतरी सरकार से इसकी एकरुपता स्थापित की जाती है।इसकी राजधानी कलिंग नगर प्राचीन काल में समुद्र तट से( तु०दश० ७ वाँ उल्लास) कुछ दूरी पर संभवतः राजमहेन्द्री में थी। दे० ‘अंध्र’ भी।
कांची —स्त्री॰—-—-—दे० ‘द्रविड़’ के अन्तर्गत।
कामरुपः —पुं॰—-—-—एक महत्वपूर्ण राज्य जो करतोया या सदानीरा के तट से लेकर आसाम की सीमा तक फैला हुआ है।यह उतर में हिमालय पर्वत तक तथा पूर्व में चीन की सीमा तक फैला हुआ होगा,क्योंकि यहाँ के राजा ने किरात और चीन की सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी। इस राज्य की प्राचीन राजधानी लौहित्य या ब्रह्मपुत्र नदी के दूसरी ओर प्राग्ज्योतिष थी। तु० रघु० ४/८१।राजधानी लौहित्य या ब्रह्मपुत्र नदी के दूसरी ओर प्राग्ज्योतिष थी। तु० रघु० ४/८१।
कांबोजः —पुं॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम। यह हिन्दुकुश पहाड़ के उस प्रदेश पर रहते होंगे जहाँ यह बलख से गिलगित को पृथक करता है, तथा तिब्बत और लद्दाख तक फैला हुआ है। यह प्रदेश घोड़ो के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ पर बकरी आदि जानवरों की ऊन से शाल भी बनाये जाते थे। इसके अतिरिक्त यहाँ अखरोट के वृक्ष बहुत पाये जाते हैं। तु० रघु० ४/६९।
कुंतलः —पुं॰—-—-—चोल देश के उतर में स्थित एक देश।ऐसा प्रतीत होता है कि कुरुगदे के दक्षिण में कल्याण या कोलियन दुर्ग इस प्रदेश की राजधानी थी।यह देश हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिमी भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
कुरुक्षेत्रः —पुं॰—-—-—दिल्ली के निकट एक विस्तृत प्रदेश।यहीं कौरव और पांडवों के मध्य महासंग्राम हुआ था। यह थानेश्वर के दक्षिण में इसी नाम के पवित्र सरोवर के निकट एक प्रदेश है जो सरस्वती के दक्षिण से लेकर दृषद्वती के उतर तक फैला हुआ है। कभी कभी इस स्थान को ‘समंतपंचक’ नाम से पुकारते हैं जिसका अर्थ है परशुराम द्वारा वध किये गऐ क्षत्रियों के रक्त के ‘पाँच पोखर’। दिल्ली के निकट एक विस्तृत प्रदेश।यहीं कौरव और पांडवों के मध्य महासंग्राम हुआ था। यह थानेश्वर के दक्षिण में इसी नाम के पवित्र सरोवर के निकट एक प्रदेश है जो सरस्वती के दक्षिण से लेकर दृषद्वती के उतर तक फैला हुआ है। कभी कभी इस स्थान को ‘समंतपंचक’ नाम से पुकारते हैं जिसका अर्थ है परशुराम द्वारा वध किये गऐ क्षत्रियों के रक्त के ‘पाँच पोखर’।
कुलूतः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम-वर्तमान कुल्लू प्रदेश। यह प्रदेश जलंधर दोआब से उतरपूर्व की ओर् शतद्रु (सतलुज) नदी के दाई ओर स्थित है।
कुशावंती <०> कुशस्थली —स्त्री॰—-—-—यह दक्षिणकोशल प्रदेश की राजधानी है और बिंध्यपर्वत की संकीर्ण घाटी में स्थित है।यह नर्मदा के उतर में परन्तु बिंध्यपर्वत के दक्षिण में होगा। संभवतः यह वही स्थान है जिसे बुंदेलखंड में हम रामनगर कहते है। राजशेखर इस कुशस्थली के स्वामी को मध्यदेशनरेन्द्र अर्थात् मध्यभूमि या बुंदेलखंड का राजा कहते हैं।
केकयः —पुं॰—-—-—सिंधुदेश की सीमा बनाने वाला केकय एक देश का नाम है।
केरलः —पुं॰—-—-—कावेरी के उतरी समुद्र तथा पश्चिमी घाट की मध्यवर्ती भूमि की लंबी पट्टी। इस प्रदेश की मुख्य नदियाँ हैं नेत्रवती,सरावती तथा कालीनदी। यह काली नदी ही मुरला नदी समझी जाती है। इसका उल्लेख रघु० ४/५५ तथा उतर० ३ में किया गया है,यही केरल प्रदेश की मुख्य नदी है।केरल प्रदेश वर्तमान कानड़ा प्रदेश है जिसके साथ संभवतः मलाबार भी जुड़ा हुआ है और कावेरी से परे तक फैला हुआ है।
कोशलः —पुं॰—-—-—एक प्रदेश का नाम जो रामायण के अनुसार सरयू नदी के तटों के साथ साथ बसा हुआ है।इसके दो भाग है-उतर कोशल्,और दक्षिण कोशल।उतर कोशल का नाम ‘गन्द’ है और यह अयोध्या के उतरी प्रदेश को प्रकट करता है जिसमें गन्द तथा बहरायच सम्मिलित हैं। अज,तथा दशरथ आदि राजाओं ने इसी प्रान्त पर राज्य किया। राम की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र कुश ने तो बिंध्यपर्वत की संकीर्ण घाटी में स्थित दक्षिणी कोशल की कुशावती राजधानी में राज्य किया,और लव ने उतरी कोशल में स्थित श्रावस्ती में रहकर राज्य किया।
कौशांबी —स्त्री॰—-—-—वत्स देश की राजधानी का नाम। यह नगर इलाहाबाद से लगभग तीस मील की दूरी पर वर्तमान कोसम के निकट स्थित था।
कौशिकी —स्त्री॰—-—-—एक नदी (कुसी) का नाम जो उतरी भागलपुर तथा पश्चिमी पूर्णिया से होती हुई दरभंगा के पूर्व में बहती है। इस नदी के तटों के निकट ऋष्यशृंग ऋषि का आश्रम था।
गौडः —पुं॰—-—-—उतरी बंगाल।(पुंड्र मूलरुप से ‘पुरी’ के वेतस प्रदेश को कहतें है)
पुण्ड्रः —पुं॰—-—-—उतरी बंगाल।(पुंड्र मूलरुप से ‘पुरी’ के वेतस प्रदेश को कहतें है)
चेदिः —पुं॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम। चेदियों को दाहल और त्रैपुर भी कहते हैं।यह लोग नर्मदा के उतरी तट पर बसे हुए थे,यह वही लोग थे जिन्हें हम दशार्ण कहते हैं।एक समय इनकी राजधानी त्रिपुरी थी।कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि यह लोग मध्यभारत के वर्तमान बुन्देल खण्ड में रहते थे,कुछ लोग यह समझते हैं कि इनका देश वर्तमान चन्दसिल था। जबलपुर से नीचे भेरा घर के आस पास बिंध्य और रिक्ष पर्वतों के मध्य में नर्मदा के किनारे पर स्थित माहिष्मती नगरी में हैहय या कलचुरी लोग राज्य करते थे।
चोलः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जो कावेरी के तट पर बसा हुआ है यह मैसूर प्रदेश का दक्षिणी भाग है।यह प्रदेश कावेरी के परे है।पुलकेशिन् द्वितीय ने इस नदी को पार करके इस देश पर आक्रमण किया।यही देश बाद में कर्णाटक कहलाने लगा।
जनस्थानः —पुं॰—-—-—(मानव वसति) यह दण्डक के महावन का एक भाग है। और प्रस्रवण नामक पर्वत के निकट स्थित है।प्रसिद्ध पंचवटी(स्थानीय परम्परा के अनुसार इसी नाम का एक स्थान जो वर्तमान नासिक से लगभग दो मील दूर है) का स्थान इसी प्रदेश में विद्यमान है।
जालन्धरः —पुं॰—-—-—वर्तमान जलन्धर दोआब।शतद्रु और विपाशा(सतलुज और व्यास) से सिंचित प्रदेश।
ताम्रपर्णी —स्त्री॰—-—-—मलय पर्वत से निकलने वाली एक नदी का नाम।यह वही नदी प्रतीत होती है जिसे आजकल तांब्रवारी कहते हैं,जो पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलान से निकलकर तिन्नेवली जिले में से होती हिई मनार की खाड़ी में गिर जाती है,तु०रघु० ४/४९-५०, और बा० रा०१०/५६।
त्रिगर्तः —पुं॰—-—-—प्राचीन काल का एक अत्यन्त जलहीन मरु प्रदेश।यह सतलुज का पूर्ववर्ती मरुस्थल था। सरस्वती और सतलुज का मध्यवर्ती भाग भी इसमें सम्मिलित था।उतर में लुध्याना और पटियाला है तथा मरुस्थल का कुछ भाग दक्षिण में हैं।
त्रिपुरः —पुं॰—-—-—चेदि देश की राजधानी ‘चन्द्रदुहिता अर्थात् नर्मदा की तरंगों से शब्दायमान’ अतएव इस नदी के किनारे स्थित।जबलपुर से ६ मील की दूरी पर स्थित वर्तमान तिवुर को ही त्रिपुर माना जाता है।
त्रिपुरी —स्त्री॰—-—-—चेदि देश की राजधानी ‘चन्द्रदुहिता अर्थात् नर्मदा की तरंगों से शब्दायमान’ अतएव इस नदी के किनारे स्थित।जबलपुर से ६ मील की दूरी पर स्थित वर्तमान तिवुर को ही त्रिपुर माना जाता है।
दशार्णः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जिसमें से दशार्ण(दसन) नाम की नदी बहती है। यह मालवा का पूर्वी भाग था। इसकी राजधानी विदिशा नगरी थी जिसे वर्तमान भिलसा माना जाता है। यह वेत्रवती या बेतवा नदी के तट पर स्थित है,तु०मेघ० २४/२५, और कादंबरी। कालिदास ने भी विदिशा नाम की एक नदी का उल्लेख किया है तथा जो बेतवा में मिल जाती है।
द्रविडः —पुं॰—-—-—कृष्णा और पोलर नदियों के मध्यवर्ती जंगली भाग के दक्षिण में स्थित कोरोमंडल का समस्त समुद्रीतट इसमें सम्मिलित है।परन्तु यदि सीमित रुप से देखें तो यह प्रदेश कावेरी से परे नहीं फैला है। इसकी राजधानी कांची थी जिसे आजकल कांजीवरम कहते है और जो मद्रास के ४२ मील दक्षिण-पश्चिम में वेगवती नदी के किनारे स्थित है।
द्वारका —स्त्री॰—-—-—दे० ‘सौराष्ट्र’ के अन्तर्गत।
निषधः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जहाँ नल का राज्य था।इस की राजधानी अलका थी जो अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा प्रतीत होता है कि उतरी भारत का वर्तमान कुमायूं प्रदेश इसका एक भाग था। यह एक वर्षपर्वत का नाम भी है।
पंचवटी —स्त्री॰—-—-—दे० ‘जनस्थान’ के अन्तर्गत।
पंचालः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध प्रदेश का नाम। राजशेखर के अनुसार (बा०रा०१०/८६) यह प्रदेश गंगा दोआब कहलाता था।द्रुपद के काल में यह प्रदेश चर्मण्वती(चंबल) के तट से लेकर उतर में गंगाद्वार तक फैला हुआ था। भागीरथी का उतरीभाग उतरपंचाल कहलाता था।और इसकी राजधानी अहिच्छत्र थी। इस प्रदेश का दक्षिणीभाग ‘दक्षिणपंचाल’ कहलाता था जो द्रुपद की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर की राजधानी में विलीन हो गया।
पद्यपुरः —पुं॰—-—-—भवभूति कवि की जन्मभूमि।यह नगर नागपुर जिले में चन्द्रपुर( वर्तमान चाँद) के निकट कहीं पर बसा हुआ था।
पद्यावती —स्त्री॰—-—-—मालवाप्रदेश में सिन्धु नदी के तट पर स्थित वर्तमान नरवाड़ से इसकी एकरुपता मानी जाती है। इसके आस-पास और दूसरी नदियाँ पारा या पर्वती,लूण और मधुवर है जिनका भवभूति ने पारा लावणी और मधुमती का नाम से उल्लेख किया है यह नगर के आसपास बहने वाली नदियाँ है। भवभूति के मालतीमाधव का वर्णित दृश्य यह नगर है।
पंपा —स्त्री॰—-—-—एक प्रसिद्ध सरोवर का नाम जो आजकल पेन्नसिर कहलाता है। इसके निकट ही ऋष्यमूक पर्वत विद्यमान है। इस नाम की नदी सरोवर से निकली है; विशेषकर इसका उतरीभाग चन्द्रदुर्ग के मध्यवर्ती शिलासरोवर से निकला है।यही संभवतः मूल पंपा था, और चन्द्रदुर्ग ही ऋष्यमूक पर्वत। बाद में यह नाम इस सरोवर से नदी में परिवर्तित हो गया जो इससे निकली।
पाटलिपुत्रम् —नपुं॰—-—-—गंगा और शोण नदी के संगम पर स्थित उतरी बिहार या मगध में एक महत्वपूर्ण नगर। यह ‘कुसुमपुर’ या ‘पुष्पपुर’ भी कहलाता था।संस्कृत के लौकिक साहित्य में इस नाम का उल्लेख मिलता है। कहते है कि लगभग अठारहवीं शताब्दी के मध्य में यह नगर एक नदी की बाढ़ की चपेट में आकर नष्ट हो गया।
पाण्ड्यः —पुं॰—-—-—भारत के बिल्कुल दक्षिण में स्थित एक देश जो चोलदेश के दक्षिणपश्चिम में विद्यमाम है। मलयपर्वत और ताम्रपर्णी नदी का स्थान निर्विवाद रुप से निश्चित हो चुका है,तु०बा०रा० २/३१। इस प्रदेश की वर्तमान तिन्नेवली से एकरुपता स्थापित की जा सकती है। रामेश्वर का पावनद्वीप इसी राज्य के अन्तर्गत है। कालिदास ने पांड्यदेश की राजधानी का नाम ‘नाग-नगर’ बताया है जो संभवतः मद्रास से १६० मील दक्षिण में वर्तमान ‘नागपतन’ ही है,तु० रघु० ६/५९-६४।
पारसीकः —पुं॰—-—-—पर्शिया देश के रहने वाले लोग। संभवतः यह शब्द उन जातियों के लिए भी व्यवहार में आता था जो भारत की उतरपश्चिमी सीमा में सीमावर्ती जिलों में रहते हैं। इनके देश से ‘वनायुदेश्य’ नाम से घोड़ों के आने का उल्लेख मिलता है।
पारियात्रः —पुं॰—-—-—भारत की एक मुख्य पर्वतश्रृखंला। संभवतः यह वही है जिसे हम शिवालिक पहाड़ कहते है और जो हिमालय के समानान्तर उतर पूर्व में गंगा के दोआब की रक्षा करता है।
प्रतिष्ठानम् —नपुं॰—-—-—पुरुरवस् की राजधानी। पुरुरवा एक प्राचीन काल का चन्द्रवंशी राजा था। यह स्थान प्रयाग या इलाहाबाद के समने स्थित था। हरिवंश पुराण में बताया गया है कि यह स्थान प्रयाग के जिले में गंगा नदी के उतरी तट पर बसा हुआ था। कालिदास ने इसे गंगा यमुना के संगम पर स्थित बतलाया है। तु०विक्रम० २।
मगधः —पुं॰—-—-—दक्षिणी बिहार या मगध का देश। इसकी पुरानी राजधानी गिरिव्रज(या राजगृह) थी। इसमें पाँच पर्वत-विपुलगिरि,रत्नगिरि,उदयगिरि,शोणगिरि और वैभार(व्याहार) गिरि सम्मिलित थे।इसकी दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र थी। परवर्ती साहित्य में मगध का नाम कीकट भी आया है।
मत्स्यः —पुं॰—-—-—धौलपुर के पश्चिम में स्थित देश। कहा जाता है कि पांडव लोग दशार्ण के उतर में शौरसेन तथा रोहितक के भूभाग से होते हुए यमुना के तट इस प्रदेश में आये थे। विराट देश की राजधानी संभवतः वैराट ही थी जो आजकल जयपुर से ४० मील उतर में बैरात के नाम से विख्यात है।
विराटः —पुं॰—-—-—धौलपुर के पश्चिम में स्थित देश। कहा जाता है कि पांडव लोग दशार्ण के उतर में शौरसेन तथा रोहितक के भूभाग से होते हुए यमुना के तट इस प्रदेश में आये थे। विराट देश की राजधानी संभवतः वैराट ही थी जो आजकल जयपुर से ४० मील उतर में बैरात के नाम से विख्यात है।
मलयः —पुं॰—-—-—भारत की सात मुख्य पर्वत शृंखलाओं में से एक।इसकी एकरुपता संभवतः मैसूर के दक्षिण में फैले हुए घाट के दक्षिणी भाग से की जाती है जो ट्रावनकोर की पूर्वी सीमा बनता है। भवभूति के कथनानुसार यह प्रदेश कावेरी से घिरा हुआ है(महावीर०५/३ तथा रघु० ४/४६)। कहते है कि यहाँ इलायची,काली मिर्चे,चंदन और सुपारी के वृक्ष बहुत पाये जाते है।रघु० ४/५१ में कलिदास ने बतलाया है कि मलय और दर्दुर यह दो पर्वत दक्षिणी प्रदेश के दो वक्षःस्थल है। अतः दर्दुर घाट का वह भाग है जो मैसूर की दक्षिणपूर्वी सीमा बनता है।
महेन्द्रः —पुं॰—-—-—भारत की सात मुख्य पर्वतशृंखलाओं में से एक। वर्तमान महेन्द्रमाले से इसकी एकरुपता स्थापित की जाती है जो कि महानदी की घाटी से गंजम को विभक्त करता है। संभवतः इसमें महानदी और गोदावरी का मध्ववर्ती समस्त पुर्वी घाट सम्मिलित था।
महोदयः —पुं॰—-—-—(कान्यकुब्ज या गाधिनगर) यह वही प्रदेश है जो गंगा के किनारे वर्तमान कन्नोज नाम से विख्यात है।सातवीं शताब्दी में यह नगर भारत का अत्यंत प्रसिद्ध स्थान था। तु० बा० रा० १०/८८-८९।
मानसः —पुं॰—-—-—एक सरोवर का नाम है जो हाटक में स्थित था,जिसे आज कल लद्दाख कहते है। हाटक के उतर में उतरी कुरुओं का देश है जिसका नाम हरिवर्ष है। पूर्वकाल में यह सरोवर किन्नरों के आवास के रुप में विख्यात था। कवियों की उक्ति के अनुसार वर्षा ऋतु के आरम्भ में हंस प्रतिवर्ष यहीं आकर शरण लेते थे।
मेकलः —पुं॰—-—-—अमरकण्टक नाम का पर्वत जहाँ से नर्मदा नदी निकलती है।
लाटः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जो नर्मदा के पश्चिम में फैला हुअ था। इसमें संभवतः ब्रोच,बड़ोदा और अहमदाबाद सम्मिलित थे। कुछ के मतानुसार खैर भी इसी में सम्मिलित था।
वंगः —पुं॰—-—-—(समतट) पूर्वी बंगाल का एक नाम(उतरी बंगाल या गौड देश से बिल्कुल भिन्न है) इसमें बंगाल का समुद्रतट भी सम्मिलित है। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय तिप्पड़ा और गैरो पहाड़ भी इसमें सम्मिलित थे।
वलभी —स्त्री॰—-—-—दे०‘सौराष्ट्र’ के अन्तर्गत।
वाह्लीकः —पुं॰—-—-—पंजाब में रहने वाली जातियों का सामान्य नाम। इनका देश वर्तमान बलख है। कहते है कि वे पंजाब के उस भाग में रहते थे जिसे सिन्धु नदी तथा पंजाब की अन्य पाँच नदियाँ सींचती हैं,परन्तु भारत की पुण्य भूमि से यह बाहर था। यह देश घोड़ों और हींग के कारण प्रसिद्ध है।
वाहीकः —पुं॰—-—-—पंजाब में रहने वाली जातियों का सामान्य नाम। इनका देश वर्तमान बलख है। कहते है कि वे पंजाब के उस भाग में रहते थे जिसे सिन्धु नदी तथा पंजाब की अन्य पाँच नदियाँ सींचती हैं,परन्तु भारत की पुण्य भूमि से यह बाहर था। यह देश घोड़ों और हींग के कारण प्रसिद्ध है।
विदर्भः —पुं॰—-—-—वर्तमान वरार देश। प्राचीन काल में कुंतल के उतर स्थित यह एक बड़ा राज्य था जो कृष्णा के तट से लेकर लगभग नर्मदा के तट तक फैला हुआ था। विशालकाय होने के कारण इसका नाम महाराष्ट्र भी था,तु०बा०रा०१०/७४।कुण्डिनपुर जिसे विदर्भ भी कहते हैं इस देश की प्राचीन राजधानी थी।इसीको संभवतः आजकल बीदर कहते हैं।विदर्भ देश को वरदा नदी ने दो भागों में विभक्त कर दिया है,उतरी भाग की राजधानी अमरावती है,तथा दक्षिणी भाग की प्रतिष्ठान।
विदेहः —पुं॰—-—-—मगध के पूर्वोंतर में विद्यमान एक देश। इसकी राजधानी मिथिला थी जो अब मधुबनी के उतर में नैपाल में जनकपुर नाम से विख्यात है। प्राचीनकाल में विदेह के अन्तर्गत,नैपाल के एक भाग के अतिरिक्त वह सब स्थान जो अब सीतामढ़ी सीताकुंड अथवा तिरहुत के पुराने जिले का उतरी भाग और चम्पारन का उतर पश्चिमी भाग कहलाता है,इसमें सम्मिलित थे।
वृन्दावनम् —नपुं॰—-—-—‘राधा का वन’ आज कल मथुरा से कुछ मील उतर में एक नगर के रुप में बसा हुआ स्थान।यह यमुना के बायें किनारे स्थित है।
शकः —पुं॰—-—-—एक जन जाति का नाम जो भारत के उतर-पश्चिमी सीमांत पर बसी हुई थी। संस्कृत के श्रेण्य साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है। सिधियंस से इसकी एकरुपता मानी जाती है।
शुक्तिमत् —पुं॰—-—-—भारत की सात प्रमुख पर्वतशृंखलाओं में से एक। इसकी सही स्थिति का अभी कुछ निर्णय नहीं हो पाया है,परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि नैपाल के दक्षिण में यह हिमालय पर्वत की एक शाखा है।
श्रावस्ती —स्त्री॰—-—-—उतरी कोशल में स्थित एक नगर का नाम जहाँ,कहतें हैं कि लव राज्य किया करता था(रघु०१५/९७ में इसी को ‘शरावती’ का नाम दिया है)।अयोध्या के उतर में वर्तमान साहेत माहेत से इसकी एकरुपता मानी जाती है।यह नगर धर्मपतन या धर्मपुरी भी कहलाता था।
सह्यः —पुं॰—-—-—भारत की सात प्रमुख पर्वत शृंखलाओं में से एक।आजकल इसी का नाम सह्याद्रि है।पश्चिमी घाट जो मलय के उतर में नीलगिरि के संगम तक फैला है,ही सह्याद्रि है।
सिंधुदेशः —पुं॰—-—-—वर्तमान सिंध प्रदेश जो सिंधु नदी का ऊपरी भाग है।
सुह्यः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम जो वंग के पश्चिम में स्थित है।इसकी राजधानी ताम्रलिप्त(जिसे तामलिप्त,दामलिप्त,ताम्रलिप्ति तथा तमालिनी भी कहते है) की एकरुपता वर्तमान तमलूक से की जाती है।तमलूक कोसी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।इस कोसी का नाम ही कालिदास ने‘कपिशा’ लिखा है। प्राचीन काल में यह नगर समुद्र के अधिक निकट बसा हुआ था।यहाँ पर ही अधिकांश समुद्री व्यापार किया जाता था।सुह्य लोगों को ही कभी कभी राढ के नाम से पुकारते थे,(अर्थात् पश्चिमी बंगाल के लोग)।
सौराष्ट्रम् —नपुं॰—-—-—(आनर्त) काठियावाड़ का वर्तमान प्रायद्वीप।द्वारका आनर्तनगरी या अब्धिनगरी कहलाती थी।पुरानी द्वारका वर्तमान द्वारका से दक्षिण पूर्व में ९५ मील स्थित मधुपुर नामक नगर के निकट बसी हुई थी। यह स्थान रैवतक पर्वत के निकट था। ऐसा ज्ञात होता है कि यही वह स्थान है जिसे जूनागढ का निकटवर्ती गिरिनार पर्वत कहते है।इस देश की दूसरी राजधानी वलभी प्रतीत होती है। इस नगर के खंडर भावनगर से उतर पश्चिम में १० मील की दूरी पर बिल्बी नामक स्थान पर पाये गये हैं। प्रभास नामक प्रसिद्ध सरोवर इसी देश में समुद्रतट पर स्थित था।
स्रघ्नः —पुं॰—-—-—पाटलिपुत्र से थोड़ी दूरी पर यह एक नगर तथा जिला था। यमुना के पुराने तल के तट पर स्थित वर्तमान ‘सुंग’ से इसकी एकरुपता मानी जाती है।
हस्तिनापुरम् —नपुं॰—-—-—‘हस्तिन्’ नाम का भरतवंस में एक प्रतापी राजा था। उसने ही इस प्रसिद्ध नगर को बसाया था। वर्तमान दिल्ली के उतरपूर्व में ५६ मील की दूरी पर यह नगर गंगा की एक पुरानी नहर के किनारे बसा हुआ है।
हेमकूटः —पुं॰—-—-—‘स्वर्णशिखर’ पर्वत।यह पर्वत उस पर्वत शृंखला में से एक है जो इस महाद्वीप को सात वर्षो(वर्ष पर्वत)में बांटती है। बहुधा ऐसा माना जाता है कि यह पर्वत हिमालय के उतर में-या हिमालय और मेरु के बीच में स्थित है तथा किन्नरों के प्रदेश(किंपुरुषवर्ष) की सीमा बनाता है। तु०का० १३६। कालिदास इसके विषय में कहता है-“ यह पूर्वी और पश्चिमी समुद्रों में डुबा हुआ है और सुनहरी पानी का स्रोत है” दे०श०७।
अक्रूरः —पुं॰—-—न क्रूरः-न+त—एक यादव का नाम जो कृष्ण का मित्र और चाचा था।(यही वह यादव था जिसने बलराम और कृष्ण को मथुरा में जाकर कंस को मारने की प्रेरणा दी थी। उसने इन दोनों को अपने आने का आशय बतलाया और कहा कि किस प्रकार अधर्मी कंस ने इनके पिता उग्रसेन को अपमानित किया। कृष्ण ने अपने जाने की स्वीकृति दे दी और प्रतिज्ञा की कि मै उस राक्षस को तीन रात के अन्दर मार डालूँगा। कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति में सफल हुआ) दे० ‘सत्राजित्’ भी।
अगस्तिः,अगस्त्यः —पुं॰—-—विन्ध्याख्यम् अगम् अस्यति अस्यति,अस्+क्तिच् शक०,या अगं विन्ध्याचलं स्त्यायति स्तभ्नाति,स्त्यै+क,या अगः कुम्भः तत्र स्त्यानः संहतः इत्यगस्त्यः—एक प्रसिद्ध ऋषि या मुनि का नाम। ऋग्वेद में अगस्त्य और वशिष्ठ मुनि मित्र और वरुण की सन्तान माने जाते है। कहते है कि लावण्यमयी अप्सरा उर्वशी को देखकर इनका वीर्य स्खलित हो गया। उसका कुछ भाग एक घड़े में गिर गया तथा कुछ भाग जल में। घड़े से अगस्त्य का जन्म हुआ इसीलिए इसे कुम्भ्योनि,कुम्भजन्मा,घटोद्भव,कलशयोनि आदि भी कहते हैं। वर्णन मिलता है कि इसने विन्ध्याचल पर्वत् को जो बराबर उठता जा रहा था तथा सूर्यमण्डल पर अधिकार करने ही वाला था,और जिसने इसके रास्ते को रोक दिया था, नीचे हो जाने के लिए कहा। दे०‘ विन्ध्य०( यह आख्यायिका कई विद्वानों के मतानुसार आर्य जाति की दक्षिण देश में विजय और भारत की सभ्यता के प्रति प्रगति का पूर्वाभास देती है) इसके नाम एक अन्य आख्यायिका के अनुसार समुद्र को पी जाने के कारण पीताब्धि और समुद्रचुलुक आदि भी थे,क्योकि समुद्र ने अगस्त्य को रुष्ट कर दिया था,और क्योंकि अगस्त्य युद्ध में इन्द्र और देवों की सहायता करना चाहता था जब कि देवों का युद्ध कालेय नामक राक्षवर्ग से होने लगा था और राक्ष समुद्र में जाकर छिप गये थे और तीनों लोकों को कष्ट देते थे।उसकी पत्नी का नाम लोपामुद्रा था। वह विंध्य के दक्षिण में कुंजर पर्वत पर एक तपोवन में रहता था।उसने दक्षिण में रहने वाले सभी राक्षसों को नियन्त्रण में रक्खा। एक उपाख्यान में वर्णन मिलता है कि किस प्रकार इसने वातापि नामक राक्षस को खा लिया जिसने मेंढे का रुप धारण कर लिया था,और किस प्रकार उसके भाई को जो अपने भाई का बदला लेने आया था, अपनी एक दृष्टि से भस्म कर दिया। अपने वनवास के समय घूमते हुए भगवान् राम,सीता और लक्ष्मण सहित उसके आश्रम में गये। वहाँ अगस्त्य ने इनका बहुत आदर-सत्कार किया और राम का मित्र ,सलाहकार और अभिरक्षक बन गया। उसने राम को विष्णु का धनुष तथा कुछ और वस्तुएँ दीं( दे०रघु० १५/५५) ज्योतिष में इसे तारा भी माना जाता है-तु०रघु० ४/२१ भी।
अग्निः —पुं॰—-—अङ्गति ऊर्ध्व गच्छति अङ्ग्+नि,न लोपश्च—अग्नि का देवता।ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र। इसकी पत्नी का नाम स्वाहा है। उससे इसके तीन सन्तान हुई -पावक,पवमान और शुचि।हरिवंश में इसका वर्णन मिलता है कि इसके वस्त्र काले है,धूआँ ही इसकी टोपी है,तथा शिखाएँ इसका भाला है। इसके रथ में लाल घोड़े जुते हैं।यह मेढे के साथ या कभी मेढे पर सवारी करता हुआ वर्णन किया गया है। महाभारत में वर्णन मिलता है कि अग्नि का शौर्य और विक्रम समाप्त हो गया और वह मन्द हो गया,क्योंकि उसने राजा श्वेतकी द्वारा यज्ञों में दी गई आहुतियाँ खा लीं। परन्तु उसने अर्जुन की सहायता से खांडववन को निगलकर अपनी शक्ति फिर प्राप्त कर ली। इस सेवा के उपलक्ष्य में ही अर्जुन को गाण्डीव धनुष दिया गया।
अघः —पुं॰—-—अध् कर्तरि अच्—एक राक्षस का नाम। यह बक और पूतना का भाई था तथा कंस का सेनापति। एक बार कंस ने इसे कृष्ण और बलराम को मारने के लिए गोकुल भेजा। उसने वहाँ एक विशालकाय अजगर का रुप धारण कर लिया जो चार योजन लंबा था। इस रुप में वह ग्वालों के मार्ग में लेट गया तथा अपना मुंह पूरा खोल लिया। ग्वालों ने इसे एक पहाड़ी गुफा समझा,वे इसमें घुस गये,सब गौएँ भी इसी में चली गई। परन्तु कृष्ण ने इसे समझ लिया। फलतः उसने अन्दर घुसकर अपना शरीर इतना फुलाया कि वह अजगररुपी राक्षस टुकड़े-टुक्ड़े हो गया तब कहीं इस प्रकार कृष्ण ने अपने साथियों की रक्षा की।
अंगदः —पुं॰—-—अङ्गं दायति शोधयति भूषयति,अङ्गं द्यति वा,है या दो+क—तारा नाम की पत्नी से उत्पन्न वालि का एक पुत्र। जब राम ने समस्त सेना के साथ लंका को कूच किया तो अंगद को रावण के पास शान्ति के दूत के रुप में भेजा गया जिससे कि समय रहते रावण अपनी जान बचा सके।परन्तु रावण ने घृणापूर्वक उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया,फलतः काल का ग्रास बना। सुग्रीव के पश्चात् किष्किन्धा का राज्य अंगद को मिला। सामान्य बोलचाल में वह व्यक्ति जो दो पक्षी असफल मध्यस्थता करता है,अंगद नाम से पुकारा जाता है।
अंजना —स्त्री॰—-—-—मारुति या हनुमान की माता का नाम। वह कुंजर नामक बानर की कन्या तथा केसरी की पत्नी थी,एक दिन वह एक पहाड़ की चोटी पर बैठी थी,कि उसका वस्त्र जरा शरीर से हट गया। वायुदेवता उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया,उसने दृश्य शरीर धारण कर अंजना से अपनी इच्छापूर्ति की याचना की। अंजना ने उससे प्रार्थना की कि आप मेरा सतीत्व नष्ट न करें। वायु ने इस बात को स्वीकार कर लिया, परन्तु कहा कि तुम्हारे शक्ति और कान्ति में मेरे जैसा पुत्र उत्पन्न होगा क्योंकि मैने तुम्हारी ओर कामवासना की दृष्टि से देखा है। यह कहकर वायु अन्तर्धान हो गया। यह पुत्र ही मारुति या हनुमान् था।
अत्रिः —पुं॰—-—अद्+त्रिन्=अत्रि—एक महर्षि का नाम। यह ब्रह्मा की आँख से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों या प्रजापतियों मे से एक है। इसकी पत्नी का नाम अनसूया था। उससे तीन पुत्र हुए दत्त,दुर्वासा और सोम। रामायण में वर्णन मिलता है कि राम और सीता, अत्रि तथा अनसूया के आश्रम में गये। वहाँ उन्होंने उनका खुब आदर सत्कार किया(दे० अनसूया)।ऋषि के रुप में वह सप्तऋर्षियों में से एक है,ज्योतिष की दृष्टि से वह सप्तर्षियों में एक तारा है। कहते है कि चन्द्रमा इस की आँख से पैदा हुआ-तु०रघु० २/७५।
अदितिः —स्त्री॰—-—न दीयते खण्डयते बध्यते बृहत्वात्-दो+क्तिच्—दक्ष की एक कन्या का नाम जो कश्यप को ब्याही गईःजिस समय विष्णु ने वामनावतार ग्रहण किया तो उस समय वह विष्णु की माता थी। वह इन्द्र की भी माता थी। इसके कारण वह उन अन्य देवताओं की भी माता कहलाती है जो अदितिनदन कहलाते हैं।
अनिरुद्धः —पुं॰—-—न निरुद्ध इति ब+स—प्रद्युम्न के एक पुत्र का नाम। अनिरुद्ध काम का पुत्र और कृष्ण का पोता था। बाणासुर की पुत्री उषा उससे प्रेम करने लगी थी।उसने जादू की शक्ति से अनिरुद्ध को अपने पिता की नगरी शोणितपुर के अपने भवन में मंगवा लिया।(दे० उषा या चित्रलेखा)। बाण ने कुछ रक्षक उसे पकड़्ने के लिए भेजे परन्तु पराक्रमी अनिरुद्ध ने उन्हें लोहे की गदा से मौत के घाट उतार दिया।अंततः वह जादू की शक्ति के द्वारा पकड़ लिया गया।जब कृष्ण,बलराम और काम को उसका पता लगा तो वे उसे लेने गये। वहाँ भारी युद्ध हुआ। बाण की यद्यपि शिव और स्कन्द सहायता करते थे,तो भी वह पराजित हो गया,परन्तु शिव के बीच में पड़्ने से उसके प्राण वच गये। अनिरुद्ध को उसकी पत्नी उषा सहित द्वारका में अपने घर लाया गया।
अंधकः —पुं॰—-—अन्ध+कन्—एक राक्षस का नाम जो कश्यप और दिति का पुत्र था। इसकी शिव ने हत्या कर दी थी। इसके वर्णन मिलता है कि एक हजार भुजाएँ और सिर थे,२००० आँखें और पैर थे। वह अंधों की भाँति चलता था इस लिए लोग उसे अंधक कहते थे,चाहे वह पूर्णतः ठीक ठीक देख सकता था। जब उसने स्वर्ग से पारिजात वृक्ष उठा कर ले जाने का प्रयत्न किया तो शिव ने उसकी हत्या कर दी।
अभिमन्युः —पुं॰—-—-—अर्जुन के पुत्र का नाम। इसकी माता सुभद्रा थी जो श्रीकृष्ण तथा बलराम की बहन थी। जब द्रोण की सलाह के अनुसार कौरवों ने ‘चक्रव्यूह’ नाम की विशिष्ट सैन्यस्थिति बनाई,और वह भी इस आशा से कि आज अर्जुन दूर है,उसके अतिरिक्त और कोई पांडव इस व्यूह को तोड़ नहीं सकेगा,तो अभिमन्यु अपने चाचा ताउओं को विश्वास दिलाया कि यदि आप लोग मेरी सहायता करें तो मै अवश्य ही इस व्यूह को तोड़ डालूँगा। तदनुसार वह व्यूह में प्रविष्ट हुआ,कौरवपक्ष के अनेक योद्धाओं को उसने मौत के घाट उतारा। एक बार तो उसने ऐसा घोर पराक्रम दिखाया कि द्रोण ,कर्ण दुर्योधन आदि बड़े-बड़े महारथी भी उसका मुकाबला न कर सके। परन्तु वह बहुत देर तक इस भीषण युद्ध का सामना न कर सका,अन्त में परास्त हुआ और मारा गया। वह बहुत सुन्दर था। उसकी दो पत्नियाँ थी-बलराम की पुत्री वत्सला,तथा राजा विराट की पुत्री उतरा। जिस समय वह मारा गया उस समय उतरा गर्भवती थी। उससे परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित ही बाद में हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठा।
अरुणः —पुं॰—-—ऋ+उनन्—विनता में कश्यप से उत्पन्न एक पुत्र गरुड था। गरुड का ज्येष्ठ भ्राता ही अरुण बतलाया जाता है। विनता ने समय से पूर्व ही अंडे से बच्चा निकाला,उसकी अभी जंघाएँ नही बनी थी,इस लिए उसका नाम ‘अनूरु’ (ऊरुरहित) या ‘विपाद’ (पैरों से हीन) पड़ गया। अब अरुण सूर्य का सारथि है। उसकी पत्नी श्येती थ जिससे‘संपाति’ और ‘जटायु’ नामक दो पुत्र पैदा हुए।
अष्टावकः —पुं॰—-—अष्टकृत्वः अष्टसु भागेषु वा वक्रः—कहोड के एक पुत्र का नाम। कहोड ऋषि इतने अधिक अध्ययन शील थे कि उन्होंने अपनी पत्नी की उपेक्षा की। इस अवहेलना से क्षुब्ध होकर उसके अजात पुत्र ने जो अभी गर्भ में ही था,अपने पिता की भर्त्सना की। इस बात से कुद्ध होकर पिता ने शाप दिया कि तुम आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े पैदा होगे। एक बार कहोड ने एक बौद्ध से शर्त लगाई और फिर उसमें हार जाने पर कहोड को नदी में डुबा दिया गया।युवा अष्टावक ने उस बौद्ध को परास्त किया और अपने पिता को मुक्त कराया। इस बात से प्रसन्न होकर पिता ने समंगा नदी में स्नान करने के लिए कहा।ऐसा कर वह बिल्कुल सरल अंगों वाला हो गया।
पण्डावत् —वि॰—-—पण्डा+मतुप्—बुद्धिमान-अश्व०६।
प्रकोपः —पुं॰—-—प्रा+स—क्रोध,उतेजना,आवेश।
प्राकारः —पुं॰—-—-—(१) चहारदीवारी,बाड़ा,बाड़ (२) चारों ओर घेरा डालने वाली दीवार,फसील-शतमेकोऽपि संघते प्राकारस्थो धनुर्धरः-पंच० १/२२९।
बाली —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का कान का आभूषण-अश्व० २४।
युधिष्ठिरः —पुं॰—-—युधि स्थिरः- अलुक् स०,षत्वम्— ‘युद्ध में अडिग’ पांडवों में ज्येष्ठ राजकुमार। इसे ‘धर्म’‘धर्मराज’ और ‘अजातशत्रु’ आदि भी कहते हैं। यह धर्म द्वारा कुन्ती से उत्पन्न हुआ था। सैन्यचातुरी की अपेक्षा यह अपनी सचाई और ईमानदारी के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध था। अठारह दिन के महाभारत के पश्चात इसे हस्तिनापुर की राजगद्दी पर सम्राट के रुप में अभिषिक्त किया गया था।उसके पश्चात इसने बहुत दिनों तक धर्मपूर्वक राज्य किया। इसका अधिक विवरण जानने के लिए दे०‘दुर्योधन’।
वैशम्पायनः —पुं॰—-—-—व्यास के एक प्रसिद्ध शिष्य का नाम। इसने अपने शिष्य याज्ञवल्क्य को कहा कि वह समस्त यजुर्वेद जो तुमने मुझसे पढ़ा है उगल दो।तदनुसार उगल देने पर वैशम्पायन के अन्य शिष्यों ने तीतर बन कर वह समस्त यजुर्वेद चाट लिया। इसी लिए यजुर्वेद की उस शाखा का नाम ‘तैतिरीय’ पड़ गया। पुराणों का पाठ करने में वैशपायन अत्यन्त दक्ष और प्रसिद्ध था। कहते है कि उसने समस्त महाभारत का पाठ जनमेजय राजा को सुनाया।
हिरण्याक्षः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध राक्षस का नाम। हिरण्यकशिपु का जुड़वाँ भाई। ब्रह्मा से वरदान पाकर वह ढीठ और अत्याचारी हो गया,उसने पृथ्वी को समेट लिया और उसे लेकर समुद्र की गहराई में चला गया। अत एव विष्णु ने वराह का अवतार धारण किया,राक्षस को यमलोक पहुँचाया और पृथ्वी का उद्धार किया।
विषकृमिन्यायः —पुं॰—-—-—विष में पले कीड़ों का नीतिवाक्य। यह उस स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो दूसरों के लिए घातक होते हुए भी उनके लिए ऐसी नहीं होती जो इसमें जन्मे और पले है;क्योंकि वह स्थिति तो उनका स्वभाव बन गया है जैसे कि विषकृमि जो विष से ही जन्मा है। विष चाहे दूसरों के लिए घातक हो परन्तु उनके लिए घातक नहीं होता जो उसी विषैली स्थिति में पले हैं।
विषवृक्षन्यायः —पुं॰—-—-—विषवृक्ष का नीतिवाक्य। यह उस स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता जो यद्यपि उत्पातमय या आघातपूर्ण है तो भी उस व्यक्ति के द्वारा जिसने उसे बनाया है,नष्ट किये जाने के योग्य नहीं। जैसे कि एक वृक्ष चाहे वह विष का ही क्यों न हो वह भी लगाने वाले के द्वारा काटा नहीं जाता।
स्थालीपुलाकन्यायः —पुं॰—-—-—पकते हुए बर्तन में से एक चावल देखने का नीतिवाक्य। देगची में पड़े हुए सभी चावलों पर गर्म पानी का समान प्रभाव पड़ता है। जब एक चावल पका हुआ होता है तो यह अनुमान लगा लिया जाता है कि अन्य सब चावल भी पक गए हैं।अतः यह नीतिवाक्य उस दशा में प्रयुक्त होता है जब समस्त श्रेणी का अनुमान उसके एक भाग को देख कर लगाया जाए। मराठी में इसे ही कहते हैं “ शितावरुन भाताचीं परीक्षा”।