विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/भि-मल्ल
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
भिक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <भिक्षते>, <भिक्षित>—-—-—पूछना, प्रार्थना करना, मांगना (द्विकर्मक)
भिक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <भिक्षते>, <भिक्षित>—-—-—याचना करना (भिक्षा की)
भिक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <भिक्षते>, <भिक्षित>—-—-—बिना प्राप्त हुए पूछना
भिक्ष् —भ्वा॰ आ॰ <भिक्षते>, <भिक्षित>—-—-—क्लांत या दुखी होना
भिक्षणम् —नपुं॰—-—भिक्ष्+ल्युट्—मांगना, भिक्षा मांगना, भिक्षावृत्ति, भिखारीपन
भिक्षा —स्त्री॰—-—भिक्ष्+अ+टाप्—मांगना, याचना करना, प्रार्थना करना
भिक्षा —स्त्री॰—-—भिक्ष्+अ+टाप्—दान के रुप में जो चीज दी जाय, भीख
भिक्षा —स्त्री॰—-—भिक्ष्+अ+टाप्—मजदूरी, भाड़ा
भिक्षा —स्त्री॰—-—भिक्ष्+अ+टाप्—सेवा
भिक्षाटनम् —नपुं॰—भिक्षा+अटनम्—-—भीख मांगते हुए घूमना
भिक्षाटनः —नपुं॰—भिक्षा+अटनः—-—भिखारी, साधु
भिक्षान्नम् —नपुं॰—भिक्षा+अन्नम्—-—मांग कर प्राप्त किया गया अन्न, भीख
भिक्षायनम् —नपुं॰—भिक्षा+अयनम्—-—भिक्षाटन
भिक्षायणम् —नपुं॰—भिक्षा+यणम्—-—भिक्षाटन
भिक्षार्थिन् —वि॰—भिक्षा+अर्थिन्—-—भीख मांगने वाला
भिक्षार्थिन् — पुं॰—भिक्षा+अर्थिन्—-—भिखारी
भिक्षार्ह —वि॰—भिक्षा+अर्ह—-—भिक्षा के योग्य, दान के लिए उपयुक्त पदार्थ
भिक्षाशिन् —वि॰—भिक्षा+आशिन्—-—भिक्षा पर निर्वाह करने वाला
भिक्षाशिन् —वि॰—भिक्षा+आशिन्—-—बेईमान
भिक्षोजीविन् —वि॰—भिक्षा+उजीविन्—-—भिक्षा पर जीने वाला, भिखारी
भिक्षाकरणम् —नपुं॰—भिक्षा+करणम्—-—भिक्षा लेना, भीख मांगना
भिक्षाचरणम् —नपुं॰—भिक्षा+चरणम्—-—भीख मांगते हुए घूमना
भिक्षाचर्यम् —नपुं॰—भिक्षा+चर्यम्—-—भीख मांगते हुए घूमना
भिक्षाचर्या —स्त्री॰—भिक्षा+चर्या—-—भीख मांगते हुए घूमना
भिक्षापात्रम् —नपुं॰—भिक्षा+पात्रम्—-—भिक्षा ग्रहण करने का बर्तन, भीख के लिए कटोरा
भिक्षामाणवः —पुं॰—भिक्षा+माणवः—-—भिखारी बच्चा
भिक्षावृत्तिः —स्त्री॰—भिक्षा+वृत्तिः—-—भीख माँगकर जीना, साधु या भिक्षुक का जीवन
भिक्षाकः —पुं॰—-—भिक्ष्+षाकन्—भिखारी, साधु, भिक्षुक
भिक्षित —भू॰क॰कृ॰—-—भिक्ष्+क्त—याचना की गई, माँगा गया
भिक्षुः —पुं॰—-—भिक्ष्+उन्—भिखारी, साधु
भिक्षुः —पुं॰—-—भिक्ष्+उन्—साधु, चौथे आश्रम में पहुँचा हुआ ब्राह्मण, सन्यासी
भिक्षुः —पुं॰—-—भिक्ष्+उन्—ब्राह्मण का चौथा आश्रम, संन्यास
भिक्षुः —पुं॰—-—भिक्ष्+उन्—बौद्ध भिक्षुक
भिक्षुचर्या —स्त्री॰—भिक्षु+चर्या—-—भिक्षा माँगना, साधु का जीवन
भिक्षुसङ्घः —पुं॰—भिक्षु+सङ्घः—-—बौद्ध भिक्षुओं का समाज
भिक्षुसङ्घाती —स्त्री॰—भिक्षु+सङ्घाती—-—फटे पुराने कपड़े, चीवर
भिक्षुकः —पुं॰—-—भिक्ष्+उक्—भिखारी, साधु
भित्तम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त—भाग, अंश
भित्तम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त—खण्ड, टुकड़ा
भित्तम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त—दीवार, विभाजक दीवार
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—तोड़ना, खण्ड-खण्ड करना, बाँटना
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—दीवार, विभाजक दीवार, समया सौधभित्तिम
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—कोई स्थान, जगह या भूमि जिसपर कुछ किया जा सके, आधार, आश्रय
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—खण्ड, लव, टुकड़ा, अंश
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—कोई भी टूटी हुई वस्तु
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—दरार, तरेड
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—चटाई
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—कमी, खोट
भित्तिः —स्त्री॰—-—भिद्+क्तिन्—अवसर
भित्तिखातनः —पुं॰—भित्ति+खातनः—-—चूहा
भित्तिचोरः —पुं॰—भित्ति+चोरः—-—सेंघ लगाकर घर में घूसने वाला चोर
भित्तिपातनः —पुं॰—भित्ति+पातनः—-—एक प्रकार का चूहा
भित्तिपातनः —पुं॰—भित्ति+पातनः—-—चूहा
भित्तिका —स्त्री॰—-—भिद्+तिकन्+टाप्—दीवार, विभाजक, दीवार
भित्तिका —स्त्री॰—-—भिद्+तिकन्+टाप्—घर की छोटी छिपकली
भिद् —भ्वा॰ पर॰<भिन्दति>—-—-— बाँटना, टुकड़े-टुकड़े कर के बाँटने वाला
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—तोड़ना,फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना, काटकर अलग-अलग करना, फट जाना, छिद्र करना, बीच में से तोड़ना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—खोदना, उखेड़ना, खुदाई करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-— बीच में से निकल जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-— बाँटना, पृथक्-पृथक् करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, तोड़ना, भंग करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—हटाना, दूर करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—विघ्न डालना, रुकावट डालना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—बदलना, परिवर्तन करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—खिलाना, फुलाना, फैलाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—तितरबितर करना, बखेरना, उड़ा देना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—जोड़ खोलना, वियुक्त करना, पृथक्-पृथक् करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—ढीला करना, विश्राम करना, घोलना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—भेद खोलना, भण्डाफोड़ करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—भटकाना, उचाट करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰ भिनत्ति>, <भित्ते>, <भिन्न>—-—-—भेद करना, विविक्त करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—टुकड़े-टुकड़े होना, फटना, थरथराना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—बाँटा जाना, वियुक्त किया जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—फैलाना, खिलाना, खिलना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—शिथिल या विश्रान्त किये जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—पृथक होना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—नष्ट किया जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—भंडाफोड़ किया जाना, धोखा दिया जाना, दूर चले जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, कर्मवाच्य॰<भिद्यते>—-—-—तंग, पीडित, या व्यथित किया जाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, पुं॰—-—-—खण्ड-खण्ड करना, फाड़ना, बाँटना फाड़ना आदि
भिद् —रुधा॰ उभ॰, पुं॰—-—-—नष्ट करना, विघटित करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, पुं॰—-—-—जोड़ खोलना, पृथक्-पृथक् करना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, पुं॰—-—-—भटकना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, पुं॰—-—-—स्तीत्व या सत्पथ से डिगाना
भिद् —रुधा॰ उभ॰, इच्छा॰<विभित्सति>,<विभीत्सते>—-—-—तोड़ने की अभिलाष करना
अनुभिद् —रुधा॰ उभ॰—अनु+भिद्—-—बाँटना, तोड़ डालना
उद्भिद् —रुधा॰ उभ॰—उद्+भिद्—-—फूटना, जमना, पैदा होना
निर्भिद् —रुधा॰ उभ॰—निस्+भिद्—-—फाड़ना, फटकर अलग-अलग होना, टूटना
निर्भिद् —रुधा॰ उभ॰—निस्+भिद्—-—खोलना, धोखा देना
प्रभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्र+भिद्—-—तोड़ना, फाड़ना, फाड़कर पृथक-पृथक करना
प्रभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्र+भिद्—-—चूना
प्रतिभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्रति+भिद्—-—पाड़ लगाना, भेदना, घुसना
प्रतिभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्रति+भिद्—-—भेद खोलना, घोखा देना
प्रतिभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्रति+भिद्—-—झिड़कना, गाली देना, निन्दा करना
प्रतिभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्रति+भिद्—-—अस्वीकार करना, मुकरना
प्रतिभिद् —रुधा॰ उभ॰—प्रति+भिद्—-—छूना, सम्पर्क करना
विभिद् —रुधा॰ उभ॰—वि+भिद्—-—तोड़ना, फाड़ना
विभिद् —रुधा॰ उभ॰—वि+भिद्—-—छेद करना, घुसना
विभिद् —रुधा॰ उभ॰—वि+भिद्—-— बांटना, अलग-अलग करना
विभिद् —रुधा॰ उभ॰—वि+भिद्—-—हस्तक्षेप करना
विभिद् —रुधा॰ उभ॰—वि+भिद्—-—बखेरना, तितर-बितर करना
सम्भिद् —रुधा॰ उभ॰—सम्+भिद्—-—तोड़ना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना, टुकड़े-टुकड़े होना
सम्भिद् —रुधा॰ उभ॰—सम्+भिद्—-—मिल जाना, संगठित होना, सम्बद्ध होना, मिश्रित होना, मिलाना, एक जगह रखना
भिदकः —पुं॰—-—भिद्+क्वुन्—तलवार
भिदकम् —नपुं॰—-—भिद्+क्वुन्—हीरा
भिदकम् —नपुं॰—-—भिद्+क्वुन्—इन्द्र का वज्र
भिदा —स्त्री॰—-—भिद्+अङ्+टाप्—तोड़ना, फटना, फाड़ना, चीरना
भिदा —स्त्री॰—-—भिद्+अङ्+टाप्—वियोग
भिदा —स्त्री॰—-—भिद्+अङ्+टाप्—अन्तर
भिदा —स्त्री॰—-—भिद्+अङ्+टाप्—प्रकार, जाति, किस्म
भिदिः —पुं॰—-—भिद्+इ—इन्द्र का वज्र
भिदिरम् —नपुं॰—-—भिद्+इ, किरच् कु वा—इन्द्र का वज्र
भिदुः —पुं॰—-—भिद्+इ, किरच् कु वा—इन्द्र का वज्र
भिदुर —वि॰—-—भिद्+कुरच्—तोड़ने वाला, फाड़ने वाला, टुकड़े-टुकड़े करने वाला
भिदुर —वि॰—-—भिद्+कुरच्—भुरभुरा, शीघ्र टूटनेवाला
भिदुर —वि॰—-—भिद्+कुरच्—सम्मिश्रित, चितकबरा, मिला हुआ
भिदुरः —पुं॰—-—भिद्+कुरच्—प्लक्ष वॄक्ष
भिदुरम् —नपुं॰—-—भिद्+कुरच्—वज्र
भिद्यः —पुं॰—-—भिद्+क्यप्—वेग से बहने वाला दरिया
भिद्यः —पुं॰—-—भिद्+क्यप्—एक विशेष नद का नाम
भिद्रम् —नपुं॰—-—भिद्+रक्—वज्र
भिन्दपालः —पुं॰—-—भिन्द्+इन्=भिन्दिं पालयति-पाल्+अण्—हाथ से फेका जाने वाला छोटा भाला
भिन्दपालः —पुं॰—-—भिन्द्+इन्=भिन्दिं पालयति-पाल्+अण्—गोफिया
भिन्दिपालः —पुं॰—-—भिन्द्+इन्=भिन्दिं पालयति-पाल्+अण्—हाथ से फेका जाने वाला छोटा भाला
भिन्दिपालः —पुं॰—-—भिन्द्+इन्=भिन्दिं पालयति-पाल्+अण्—गोफिया
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—टूटा हुआ, फटा हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ, फाड़ा हुआ
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—विभक्त, वियुक्त
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—पृथक्कृत, विच्छिन्न, अलगाया हुआ
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—फैलाया हुआ, फुलाया हुआ, खुला हुआ
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—अलग, इतर
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—नानारुप विविध
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—ढीला किया हुआ
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—संश्लिष्ट. मिलाया हुआ, मिश्रित
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—विचलित
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—परिवर्तित
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—प्रचण्ड, मदोन्मत्त
भिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—रहित, हीन, वंचित
भिन्नः —पुं॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—किसी रत्न में दोष या खोट
भिन्नम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—लव, खण्ड, टुकड़ा
भिन्नम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—मंजरी
भिन्नम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—घाव, आघात
भिन्नम् —नपुं॰—-—भिद्+क्त, तस्य नः—भिन्न राशि
भिन्नाञ्जनम् —नपुं॰—भिन्न+अञ्जनम्—-—बहुत सी औषधियों को पीसकर तैयार किया गया सुर्मा
भिन्नार्थः —पुं॰—भिन्न+अर्थः—-—स्पष्ट, विशद, सुबोध
भिन्नोदरः —पुं॰—भिन्न+उदरः—-—‘दूसरी माता से उत्पन्न’ सौतेला भाई
भिन्नकरटः —पुं॰—भिन्न+करटः—-—मदोन्मत्त हाथी
भिन्नकूट —वि॰—भिन्न+कूट—-—नेत्रहीन
भिन्नक्रम —वि॰—भिन्न+क्रम—-—क्रमहीन, क्रमरहित
भिन्नगति —वि॰—भिन्न+गति—-—पग छोड़कर चलने वाला
भिन्नगति —वि॰—भिन्न+गति—-—तेज चाल चलने वाला
भिन्नगर्भ —वि॰—भिन्न+गर्भ—-—टूटा हुआ, अव्यवस्थित
भिन्नगुणनम् —नपुं॰—भिन्न+गुणनम्—-—भिन्न राशियों की गुणा
भिन्नघनः —पुं॰—भिन्न+घनः—-—भिन्न राशि का त्रिघात
भिन्नदर्शिन् —वि॰—भिन्न+दर्शिन्—-—अन्तर देखने वाला, आंशिक
भिन्नप्रकार —वि॰—भिन्न+प्रकार—-—अलग प्रकार या किस्म का
भिन्नभाजनम् —नपुं॰—भिन्न+भाजनम्—-—टूटा बर्तन, ठीकरा
भिन्नमर्मन् —वि॰—भिन्न+मर्मन्—-—मर्मस्थल में घाव खाया हुआ, प्राणघातक चोट से आहत
भिन्नमर्याद —वि॰—भिन्न+मर्याद—-—जिसने उचित सीमाओं का उल्लंघन कर दिया है, निरादरयुक्त
भिन्नमर्याद —वि॰—भिन्न+मर्याद—-—असंयत, अनियंत्रित
भिन्नरुचि —वि॰—भिन्न+रुचि—-—अलग रुचि रखने वाला
भिन्नलिङ्गम् —नपुं॰—भिन्न+लिङ्गम्—-—रचना में लिंग और वचन की असंगति
भिन्नवचनम् —नपुं॰—भिन्न+वचनम्—-—रचना में लिंग और वचन की असंगति
भिन्नवर्चस् —वि॰—भिन्न+वर्चस्—-—मलोत्सर्ग करने वाला
भिन्नवर्चस्क —वि॰—भिन्न+वर्चस्क—-—मलोत्सर्ग करने वाला
भिन्नवृत्त —वि॰—भिन्न+वृत्त—-—बुरा जीवन बिताने वाला, परित्यक्त
भिन्नवृत्ति —वि॰—भिन्न+वृत्ति—-—बुरा जीवन बिताने वाला, कुमार्ग का अनुसरण करने वाला
भिन्नवृत्ति —वि॰—भिन्न+वृत्ति—-—अलग प्रकार की भावनाएँ, रुचि या संवेग रखने वाला
भिन्नवृत्ति —वि॰—भिन्न+वृत्ति—-—नाना प्रकार का व्यवसाय करने वाला
भिन्नसंहति —वि॰—भिन्न+संहति—-—न जुड़ा हुआ, विघटित
भिन्नस्वर —वि॰—भिन्न+स्वर—-—बदली हुई आवाज वाला, हकलाने वाला
भिन्नस्वर —वि॰—भिन्न+स्वर—-—बेसुरा
भिन्नहृदय —वि॰—भिन्न+हृदय—-—जिसका हृदय बींध दिया गया हो
भिरिण्टिका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पौधा, श्वेतगुंजा, सफेद घुघुंची
भिल्लः —पुं॰—-—भिल्+लक्—एक जंगलि जाति
भिल्लगवी —स्त्री॰—भिल्ल+गवी—-—नील गाय
भिल्लतरुः —पुं॰—भिल्ल+तरुः—-—लोध्रवृक्ष
भिल्लभूषणम् —नपुं॰—भिल्ल+भूषणम्—-—घुंघची का पौधा
भिल्लोटः —पुं॰—-—भिल्लप्रियम् उटं पत्रं यस्य ब॰स॰—लोघ्रवृक्ष
भिल्लोटकः —पुं॰—-—भिल्लोट+कन्—लोघ्रवृक्ष
भिषज् — पुं॰—-—बिभेत्यस्मात् रोगः भी+पुक्, हृस्वश्च—वैध, चिकित्सक
भिषज् — पुं॰—-—बिभेत्यस्मात् रोगः भी+पुक्, हृस्वश्च—विष्णु का नाम
भिषज्जितम् —नपुं॰—भिषज्+जितम्—-—औषघि या दवा
भिषज्पाशः —पुं॰—भिषज्+पाशः—-—कठवैद्य
भिषज्वरः —पुं॰—भिषज्+वरः—-—श्रेष्ठ वैद्य
भिष्मा —स्त्री॰—-—-—भुना हुआ या तला हुआ
भिष्मिका —स्त्री॰—-—-—भुना हुआ या तला हुआ
भिस्सटा —स्त्री॰—-—-—भुना हुआ या तला हुआ
भिस्सिटा —स्त्री॰—-—-—भुना हुआ या तला हुआ
भिस्सा —स्त्री॰—-—भस्+स, टाप्, इत्वम्—उबाले हुए चावल
भी —जुहो॰ पर॰<बिभेति>, <भीत>—-—-—डरना, भय खाना, भयभीत होना
भी —जुहो॰ पर॰<बिभेति>, <भीत>—-—-—आतुर या उत्कंठित होना
भी —जुहो॰ प्रेर॰<भाययति>—-—-—डराना
भी —जुहो॰ आ॰ <भापयते>,<भीषयते>—-—-—डराना, त्रास देना, संत्रस्त करना
भी —स्त्री॰—-—भी+क्विप्—भय, डर, आंतक, संत्रास, त्रास
भीत —भू॰क॰कृ॰—-—भी+क्त—संत्रस्त, डराया हुआ, आतंकित, त्रस्त
भीत —भू॰क॰कृ॰—-—भी+क्त—खतरे में डाला हुआ, आपद्ग्रस्त
भीत —वि॰—-—भी+क्त—अत्यन्त डरा हुआ
भीतङ्कार —वि॰—-—भीतं+कृ+अण्—डराने वाला
भीतङ्कारम् —अव्य॰—-—भीतं+कृ+घञ्— किसी को कायर के नाम से पुकारना
भीतिः —स्त्री॰—-—भी+क्तिन्—डर, आशंका, भय, त्रस
भीतिः —स्त्री॰—-—-—कंपकंपी, थरथराहट
भीतिनाटितकम् —नपुं॰—भीति+नाटितकम्—-—भयभीत होने का नाट्य करना या हावभाव दिखलाना
भीम —वि॰—-—बिभेत्यस्मात्,भी अपादाने मक्—भयानक, त्रास देने वाला, भयावह, डरावन, भीषण
भीमः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
भीमः —पुं॰—-—-—द्वितीय पाण्डव राजकुमार
भीमोदरी —स्त्री॰—भीम+उदरी—-—उमा का विशेषण
भीमकर्मन् —वि॰—भीम+कर्मन्—-—भयंकर पराक्रम वाला
भीमदर्शन —वि॰—भीम+दर्शन—-—डरावनी शक्ल का, विकराल
भीमनाद —वि॰—भीम+नाद—-—डरावना शब्द करने वाला
भीमनादः —पुं॰—भीम+नादः—-—भयानक या उँची आवाज
भीमनादः —पुं॰—भीम+नादः—-—सिंह
भीमनादः —पुं॰—भीम+नादः—-—उन सात बादलों में से एक सृष्टि के समय प्रकट होंगे
भीमपराक्रम —वि॰—भीम+पराक्रम—-—भयानक पराक्रम वाला
भीमरथी —पुं॰—भीम+रथी—-—मनुष्य के सतत्तरवें वर्ष में सातवें महीने की सातवीं रात
भीमरूप —वि॰—भीम+रूप—-—भयानक रूप का
भीमविक्रम —वि॰—भीम+विक्रम—-—भायानक विक्रमशील
भीमविक्रान्तः —पुं॰—भीम+विक्रान्तः—-—सिंह
भीमविग्रह —वि॰—भीम+विग्रह—-—विशालकाय, डरावनी सूरत का
भीमशासनः —पुं॰—भीम+शासनः—-—यम का विशेषण
भीमसेनः —पुं॰—भीम+सेनः—-—द्वितीय पांडव राजकुमार
भीमसेनः —पुं॰—भीम+सेनः—-—एक प्रकार का कपूर
भीमरम् —नपुं॰—-—-—युद्ध, लड़ाई
भीमा —स्त्री॰—-—भीम+टाप्—दुर्गा का विशेषण
भीमा —स्त्री॰—-—भीम+टाप्—एक प्रकार का गंधद्रव्य, रोचना
भीमा —स्त्री॰—-—भीम+टाप्—हंटर
भीरु —वि॰—-—भी+ क्रु—डरपोक, कायर, भयपुक्त
भीरुः —पुं॰—-—भी+ क्रु—गीदड़, व्याघ्र
भीरू —स्त्री॰—-—-—डरपोक स्त्री
भीरू —स्त्री॰—-—-—कानखजूरा
भीरूचेतस् —पुं॰—भीरू+चेतस्—-—हरिण
भीरूरन्ध्रः —पुं॰—भीरू+रन्ध्रः—-—चूल्हा, भट्टी
भीरूसत्त्व —वि॰—भीरू+सत्त्व—-—कायर, डरा हुआ
भीरूहृदयः —पुं॰—भीरू+हृदयः—-—हरिण
भीरुक —वि॰—-—भी+क्रु+कन्—डरपोक, कायर, बुजदिल, साहसहीन
भीलुक —वि॰—-—भी+क्रु+कन्, क्लुकन् वा—डरपोक, कायर, बुजदिल, साहसहीन
भीरू —स्त्री॰—-—भीरु+ऊड़—डरपोक स्त्री
भीलू —स्त्री॰—-—भीरु+ऊड़, पक्षे रलयोरभेदः—डरपोक स्त्री
भीलुकः —पुं॰—-—भी+क्लुकन्—रीछ, भालू
भीलूकः —पुं॰—-—भी+क्लुकन्—रीछ, भालू
भीषण —वि॰—-—भी+णिच्+ल्युट्, षुकागमः—त्रासजनक, विकराल, डरावना, घोर, दारुण
भीषणः —पुं॰—-—-— शिव का नाम
भीषणः —पुं॰—-—-—कबूतर, कपोत
भीषणम् —नपुं॰—-—-—भय कोउत्तेजित करने वाली कोई भी वस्तु
भीषा —स्त्री॰—-—भी+णिच्+अङ्+टाप्, षुकागमः—त्रास देने या डराने की क्रिया, धमकाना
भीषा —स्त्री॰—-—-—डराना, त्रास देना
भीषित —वि॰—-—भी+णिच्+क्त, षुकागमः—डराया हुआ, संत्रस्त
भीष्म —वि॰—-—भी+णिच्+मक्, षुकागमः—भयानक, डरावना, भीषण, कराल
भीष्मः —पुं॰—-—-—राक्षस, पिशाच, दानव, भूत-प्रेत
भीष्मः —पुं॰—-—-— शिव का विशेषण
भीष्मः —पुं॰—-—-—शन्तनु का गंगा से उत्पन्न पुत्र
भीष्मजननी —स्त्री॰—भीष्म+जननी—-—गंगा का विशेषण
भीष्मपञ्चकम् —नपुं॰—भीष्म+पञ्चकम्—-—कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक के पाँच दिन
भीष्मसूः —स्त्री॰—भीष्म+सूः—-—गंगा नदी का विशेषण
भीष्मकः —पुं॰—-—भीष्म+कन्—शन्तनु का गंगा से उत्पन्न पुत्र
भीष्मकः —पुं॰—-—-—विदर्भ के राजा का नाम, जिसकी पुत्री रुक्मिणी को कृष्ण उठा लाया था
भुक्त —भू॰क॰कृ॰—-—भुज्+क्त—खाया हुआ
भुक्त —भू॰क॰कृ॰—-—-—उपभुक्त, प्रयुक्त
भुक्त —भू॰क॰कृ॰—-—-—भोगा, अनुभव किया
भुक्त —भू॰क॰कृ॰—-—-—अधिकृत किया, अधिकार में लिया
भुक्तम् —नपुं॰—-—-—उपभोग करने या खाने की क्रिया
भुक्तम् —नपुं॰—-—-—जो खाया जाय, आहार
भुक्तम् —नपुं॰—-—-—वह स्थान जहाँ किसी ने खाया हैं
भुक्तोच्छिष्टम् —नपुं॰—भुक्त+उच्छिष्टम्—-—किये हुए भोजन का अवशिष्ट, जूठन, उच्छिष्ट अंश
भुक्तशेषः —पुं॰—भुक्त+शेषः—-—किये हुए भोजन का अवशिष्ट, जूठन, उच्छिष्ट अंश
भुक्तसमुज्झितम् —नपुं॰—भुक्त+समुज्झितम्—-—किये हुए भोजन का अवशिष्ट, जूठन, उच्छिष्ट अंश
भुक्तभोग —वि॰—भुक्त+भोग—-—जिसने कुछ भोगा हैं या आनन्द उठाया हैं, उपभोक्ता
भुक्तभोग —वि॰—भुक्त+भोग—-—जो प्रयुक्त किया गया हैं, उपभुक्त, नियुक्त
भुक्तसुप्त —वि॰—भुक्त+सुप्त—-—भोजन करके सोया हुआ
भुक्ति —स्त्री॰—-—भुज्+क्तिन्—खाना उपभोग करना
भुक्ति —स्त्री॰—-—-—अधिकृत सामग्री, सुखोपभोग
भुक्ति —स्त्री॰—-—-—ग्रह की दैनिक गति
भुक्तिप्रदः —पुं॰—भुक्ति+प्रदः—-—एक प्रकार का पौधा, मूंग
भुक्तिवर्जित —वि॰—भुक्ति+वर्जित—-—जिसके उपभोग करने की अनुमति नहीं हैं
भुग्न —भू॰क॰कृ॰—-—भुज्+क्त, तस्य नः—झुका हुआ, विनत, प्रवण-वायुभुग्न, रुजाभुग्न आदि
भुग्न —भू॰क॰कृ॰—-—-—टेढ़ा, वक्र
भुग्न —भू॰क॰कृ॰—-—-—टूटा हुआ
भुज् —तुदा॰ पर॰<भुजति>,<भुग्न>—-—-—झुकाना
भुज् —तुदा॰ पर॰<भुजति>,<भुग्न>—-—-—मोड़ना, टेढ़ा करना
भुज् —रुधा॰उभ॰<भुनक्ति>,<भुंक्ते>—-—-—खाना, निगलना, खा पी जाना
भुज् —रुधा॰उभ॰<भुनक्ति>,<भुंक्ते>—-—-—उपभोग करना, प्रयोग करना, अधिकार में करना
भुज् —रुधा॰, आ॰—-—-—शारीरिक उपभोग करना
भुज् —रुधा॰पर॰—-—-—हुकूमत करना, शासन करना, प्ररक्षा करना, रखवाली करना
भुज् —रुधा॰उभ॰<भुनक्ति>,<भुंक्ते>—-—-—भोगना, सहन करना, अनुभव करना
भुज् —रुधा॰उभ॰<भुनक्ति>,<भुंक्ते>—-—-—बिताना, (समय) यापन करना
भुज् —रुधा॰उभ॰प्रेर॰—-—-—खिलाना, भोजन करना
भुज् —रुधा॰उभ॰, इच्छा॰<बुभुक्षति>, <बुभुक्षते>—-—-—खाने की इच्छा करना आदि
अनुभुज् —रुधा॰उभ॰—अनु+भुज्—-—उपभोग करना, (बुरे या भले का) अनुभव करना, (बुरे फल)भुगतना
अनुभुज् —रुधा॰उभ॰—अनु+भुज्—-—उपभोग करना, (बुरे या भले का) अनुभव करना, (बुरे फल)भुगतना
अनुभुज् —रुधा॰उभ॰—अनु+भुज्—-—उपभोग करना, (बुरे या भले का) अनुभव करना, (बुरे फल)भुगतना
उपभुज् —रुधा॰उभ॰—उप+भुज्—-—मजा लेना, चखना
उपभुज् —रुधा॰उभ॰—उप+भुज्—-— शारीरिक रूप से मजा लेना
उपभुज् —रुधा॰उभ॰—उप+भुज्—-—खाना या पीना
उपभुज् —रुधा॰उभ॰—उप+भुज्—-—भोगना, सहन करना, झेलना
उपभुज् —रुधा॰उभ॰—उप+भुज्—-—अधिकार में करना, रखना
परिभुज् —रुधा॰उभ॰—परि+भुज्—-—खाना
परिभुज् —रुधा॰उभ॰—परि+भुज्—-—उपयोग करना, आनन्द लेना
सम्भुज् —रुधा॰उभ॰—सम्+भुज्—-—खाना
सम्भुज् —रुधा॰उभ॰—सम्+भुज्—-—उपभोग करना
सम्भुज् —रुधा॰उभ॰—सम्+भुज्—-— शारीरिक रूप से मजा लेना
भुज् —वि॰—-—भुज्+क्विप्—खाने वाले, मजे लेने वाला, भोगने वाला, राज्य करने वाला, शासन करने वाला, स्वधाभुज्, हुतभुज्
भुज् —स्त्री॰—-—भुज्+क्विप्—उपभोग, लाभ, हित
भुजः —पुं॰—-—भुज्+क—हाथ का सूँड
भुजः —पुं॰—-—भुज्+क—झुकाव, वक्र, मोड़
भुजः —पुं॰—-—भुज्+क—गणितविषयक आकृति का एक पार्श्व, यथा त्रिभुज त्रिकोण
भुजः —पुं॰—-—भुज्+क—त्रिकोण आधार
भुजान्तरम् —नपुं॰—भुज+अन्तरम्—-—हृदय, छाती
भुजान्तराल —वि॰—भुज+अन्तराल—-—हृदय, छाती
भुजापीडः —पुं॰—भुज+आपीडः—-—भुजपाश में जकड़ना, बाहों में लिपटना
भुजकोटरः —पुं॰—भुज+कोटरः—-—बगल
भुजज्या —स्त्री॰—भुज+ज्या—-—आधार की लम्ब रेखा
भुजदण्डः —पुं॰—भुज+दण्डः—-—बाहुदण्ड
भुजदलः —पुं॰—भुज+दलः—-—हाथ
भुजदलम् —नपुं॰—भुज+दलम्—-—हाथ
भुजबन्धनम् —नपुं॰—भुज+बन्धनम्—-—लिपटना, आलिंगन करना
भुजबलम् —नपुं॰—भुज+बलम्—-—भुजा की सामर्थ्य, पुट्ठों की ताकत
भुजवीर्यम् —नपुं॰—भुज+वीर्यम्—-—भुजा की सामर्थ्य, पुट्ठों की ताकत
भुजमध्यम् —नपुं॰—भुज+मध्यम्—-—छाती
भुजमूलम् —नपुं॰—भुज+मूलम्—-—कंधा
भुजशिखरम् —नपुं॰—भुज+शिखरम्—-—कंधा
भुजशिरस् —नपुं॰—भुज+शिरस्—-—कंधा
भुजसूत्रम् —नपुं॰—भुज+सूत्रम्—-—आधार लंबरेखा
भुजगः —पुं॰—-—भुज भक्षणे क, भुजः कुटिलीभवन् सन् गच्छति गम्+ड—साँप, सर्प
भुजगान्तकः —पुं॰—भुजग+अन्तकः—-—गरुड़
भुजगान्तकः —पुं॰—भुजग+अन्तकः—-—मोर
भुजगान्तकः —पुं॰—भुजग+अन्तकः—-—नेवले का विशेषण
भुजगाशनः —पुं॰—भुजग+अशनः—-—गरुड़
भुजगाशनः —पुं॰—भुजग+अशनः—-—मोर
भुजगाशनः —पुं॰—भुजग+अशनः—-—नेवले का विशेषण
भुजगायोजिन् —पुं॰—भुजग+आयोजिन्—-—गरुड़
भुजगायोजिन् —पुं॰—भुजग+आयोजिन्—-—मोर
भुजगायोजिन् —पुं॰—भुजग+आयोजिन्—-—नेवले का विशेषण
भुजगदारणः —पुं॰—भुजग+दारणः—-—गरुड़
भुजगदारणः —पुं॰—भुजग+दारणः—-—मोर
भुजगदारणः —पुं॰—भुजग+दारणः—-—नेवले का विशेषण
भुजगभोजिन् —पुं॰—भुजग+भोजिन्—-—गरुड़
भुजगभोजिन् —पुं॰—भुजग+भोजिन्—-—मोर
भुजगभोजिन् —पुं॰—भुजग+भोजिन्—-—नेवले का विशेषण
भुजगेश्वरः —पुं॰—भुजग+ईश्वरः—-—शेष का विशेषण
भुजगराजः —पुं॰—भुजग+राजः—-—शेष का विशेषण
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—साँप, सर्प
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—उपपति, रसिया या सौन्दर्यप्रेमी
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—पति, प्रभु
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—लौंडा, इल्लती
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—राजा का लम्पट मित्र
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—आश्लेषा नक्षत्र
भुजङ्गः —पुं॰—-—भुजः सन् गच्छति गम्+खच्, मुम् डिच्च—आठ की संख्या
भुजङ्गेन्द्रः —पुं॰—भुजङ्ग+इन्द्रः—-—नागराज, शेषनाग का विशेषण
भुजङ्गेशः —पुं॰—भुजङ्ग+ईशः—-—वासुकि का विशेषण
भुजङ्गेशः —पुं॰—भुजङ्ग+ईशः—-—शेषनाग का विशेषण
भुजङ्गेशः —पुं॰—भुजङ्ग+ईशः—-—पतञ्जलि का विशेषण
भुजङ्गेशः —पुं॰—भुजङ्ग+ईशः—-—पिंगल मुनि का विशेषण
भुजङ्गकन्या —स्त्री॰—भुजङ्ग+कन्या—-—साँप की तरुणी कन्या
भुजङ्गभम् —नपुं॰—भुजङ्ग+भम्—-—अश्लेष नक्षत्र
भुजङ्गभुज् —पुं॰—भुजङ्ग+भुज्—-—गरुड का विशेषण
भुजङ्गभुज् —पुं॰—भुजङ्ग+भुज्—-—मोर
भुजङ्गलता —स्त्री॰—भुजङ्ग+लता—-—पान की बेल
भुजङ्गलता —स्त्री॰—भुजङ्ग+लता—-—तांबूली
भुजङ्गहन् —पुं॰—भुजङ्ग+हन्—-—गरुड का विशेषण
भुजङ्गमः —पुं॰—-—भुजं +गम् +खच्, मुम्—साँप
भुजङ्गमः —पुं॰—-—भुजं +गम् +खच्, मुम्—राहु का विशेषण
भुजङ्गमः —पुं॰—-—भुजं +गम् +खच्, मुम्—आठ की संख्या
भुजा —स्त्री॰—-—भुज+टाप्—बाहु, हाथ
भुजा —स्त्री॰—-—भुज+टाप्—हाथ की कुंडली
भुजा —स्त्री॰—-—भुज+टाप्—चक्कर, घेरा
भुजाकण्टः —पुं॰—भुजा+कण्टः—-—अंगुली का नाखून
भुजादलः —पुं॰—भुजा+दलः—-—हाथ
भुजामध्यः —पुं॰—भुजा+मध्यः—-—कोहनी
भुजामध्यः —पुं॰—भुजा+मध्यः—-—छाती
भुजामूलम् —नपुं॰—भुजा+मूलम्—-—कन्धा
भुजिष्य —वि॰—-—भुज्+किष्यन्—दास, नौकर
भुजिष्य —वि॰—-—भुज्+किष्यन्—साथी
भुजिष्य —वि॰—-—भुज्+किष्यन्—पोहंची, सूत्र जो कलाई पर पहना जाय
भुजिष्य —वि॰—-—भुज्+किष्यन्—रोग
भुजिष्या —स्त्री॰—-—भुज्+किष्यन्+ टाप्—परिचारिका, सेविका, दासी
भुजिष्या —स्त्री॰—-—भुज्+किष्यन्+ टाप्—वारांगना, वेश्या
भुण्ड् —भ्वा॰ आ॰<भुण्डते>—-—-—सहारा देना, स्थापित रखना
भुण्ड् —भ्वा॰ आ॰<भुण्डते>—-—-—चुनना, छांटना
भुर्भुरिका —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मिठाई
भुर्भुरी —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार की मिठाई
भुवनम् —नपुं॰—-—भवत्यत्र, भू-आधारादौ-क्युन्—लोक
भुवनम् —नपुं॰—-—-—प्राणी, जीवधारी जन्तु
भुवनम् —नपुं॰—-—-—मनुष्य, मानव
भुवनम् —नपुं॰—-—-—चौदह की संख्या
भुवनेशः —पुं॰—भुवनम्+ईशः—-—पृथ्वी का स्वामी, राजा
भुवनेश्वरः —पुं॰—भुवनम्+ईश्वरः—-—राजा
भुवनेश्वरः —पुं॰—भुवनम्+ईश्वरः—-—शिव का नाम
भुवनौकस् —पुं॰—भुवनम्+ओकस्—-—देवता
भुवनत्रयम् —नपुं॰—भुवनम्+त्रयम्—-—त्रिलोकी
भुवनपावनी —स्त्री॰—भुवनम्+पावनी—-—गंगा का विशेषण
भुवनशासिन् —पुं॰—भुवनम्+शासिन्—-—राजा, शासक
भुवन्यु —पुं॰—-—भू+कन्युच्—स्वामी, प्रभु
भुवन्यु —पुं॰—-—भू+कन्युच्—सूर्य
भुवन्यु —पुं॰—-—भू+कन्युच्—अग्नि
भुवन्यु —पुं॰—-—भू+कन्युच्—चन्द्रमा
भुवर् —अव्य॰—-—भू॰+असुन्—अन्तरिक्ष, आकाश
भुवर् —अव्य॰—-—भू॰+असुन्—रहस्यमय शब्द, तीन व्याहृतियों में से एक
भुवस् —अव्य॰—-—भू॰+असुन्—रहस्यमय शब्द, तीन व्याहृतियों में से एक
भुविस् —पुं॰—-—भू+इसिन्, कित्— समुद्र
भूशुण्डिः —स्त्री॰—-—-—एकप्रकार का शस्त्र या अस्त्र
भुशुण्डी —स्त्री॰—-—-—एकप्रकार का शस्त्र या अस्त्र
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—होना, घटित होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—उत्पन्न होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—फूटना, निकालना, उदय होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—घटित होना, होना, उपस्थित होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—जीवित रहना, विद्यमान रहना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—जीवित रहना, जिंदा रहना, साँस लेना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—किसी भी दशा या अवस्था में रहना, अच्छी या बुरी तरह बीतना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—ठहरना, डटे रहना, रहना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—सेवा करना, काम आना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—संभव होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—नेतृत्व करना, संचालन करना, प्रकाशित करना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—साथ देना, सहायता करना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—सम्बन्ध रखना, पास रखना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—व्यस्त होना, व्यापृत होना
भू —भ्वा॰ पर॰ आ॰ विरल <भवति>, <भूत>—-—-—वह होना जो पहले नहीं था’ या केवल मात्र होना’
श्वेतीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—सफेद होना
कृष्णीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—काला होना
पयोधरीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—स्तन का काम देना
क्षपणीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—साधु होना
प्रणिधीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—गुप्तचर का काम करना
आर्द्रीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—पिघलना
भस्मीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—राख बन जाना
विषयीभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—विषय बनाना
आग्रेभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—आगे रहना, नेतृत्व करना
अन्तर्भु —भ्वा॰ पर॰ —-—-—लीन होना, सम्मिलित होना
अन्याथभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—और तरह होना, बदलना
आविर्भू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—प्रकट होना, उदय होना, स्पष्ट होना
तिरोभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—ओझल होना
दोषाभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—संध्या होना, सायंकाल होना
पुनर्भू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—फिर विवाह करना
पुरोभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—अग्रसर होना, आगे खड़े होना
प्रादुर्भु —भ्वा॰ पर॰ —-—-—उदय होना, दिखाई देना, प्रकट होना
मिथ्याभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—झूठ निकलना
वृथाभू —भ्वा॰ पर॰ —-—-—व्यर्थ होना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—उत्पन्न करना, अस्तित्व में लाना, सत्ता बनाना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—कारण बनना, पैदा करना, जन्म देना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—प्रकट करना, निदर्शन करना, प्रदर्शन करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—पालना, परवरिश करना, सहारा देना, संधारण करना, जान डालना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-— सोचना, विमर्श करना, विचारना, खयाल करना, कल्पना करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—देखना, समझना, मानना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-— सिद्ध करना, साबित करना, पक्का करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—पवित्र करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—हासिल करना, प्राप्त करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—मिलाना, मिश्रण तैयार करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—परिवर्तन करना, रूपान्तरित करना
भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—-—-—डुबोना, सराबोर करना
भू —भ्वा॰ पर॰ , इच्छा॰<बुभूषति>—-—-—होने की या बनने की इच्छा करना
अतिभू —भ्वा॰ पर॰ —अति+भू—-—अतिरिक्त होना, आगे बढ़ जाना, अधिक हो जाना
अनुभू —भ्वा॰ पर॰ —अनु+भू—-—मजे लेना, अनुभव करना, महसूस करना, भोगना
अनुभू —भ्वा॰ पर॰ —अनु+भू—-—प्रत्यक्ष करना, बोध होना, समझना
अनुभू —भ्वा॰ पर॰ —अनु+भू—-—जांच करना, परीक्षण करना
अनुभू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—अनु+भू—-—आनन्द मनवाना, अनुभव या महसूस करवाना
अभिभू —भ्वा॰ पर॰ —अभि+भू—-—विजय प्राप्त करना, दमन करना, परास्त करना, आगे बढ़ जाना, उत्तम होना
अभिभू —भ्वा॰ पर॰ —अभि+भू—-—आक्रमण करना, हमला करना
अभिभू —भ्वा॰ पर॰ —अभि+भू—-—नीचा दिखाना, अपमान करना
अभिभू —भ्वा॰ पर॰ —अभि+भू—-—प्रभुत्व रखना, प्रभाव रखना, व्याप्त होना
उद्भू —भ्वा॰ पर॰ —उद्+भू—-—उदय होना, उगना
उद्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—उद्+भू—-—पैदा करना, सृजन करना, जन्म देना
पराभू —भ्वा॰ पर॰ —परा+भू—-—हराना, परास्त करना, जीत लेना
पराभू —भ्वा॰ पर॰ —परा+भू—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, सताना
परिभू —भ्वा॰ पर॰ —परि+भू—-—हराना, दमन करना, जीतना, हावी होना (अतः) आगे बढ़ जाना, पछाड़ देना
परिभू —भ्वा॰ पर॰ —परि+भू—-—तुच्छ समझना, उपेक्षा करना, घृणा करना, अनादर करना, अपमान करना
परिभू —भ्वा॰ पर॰ —परि+भू—-—क्षति पहुँचाना, नष्ट करना, बर्बाद करना
परिभू —भ्वा॰ पर॰ —परि+भू—-—कष्ट पहुँचाना, दुःख देना
परिभू —भ्वा॰ पर॰ —परि+भू—-—नीचा दिखाना, लज्जित करना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—उदय होना, निकलना, फूटना, जन्म लेना, उपजना, पैदा होना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—प्रकट होना, दिखाई देना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—गुणा करना, बढ़ाना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—मजबूत होना, शक्तिशालि होना, छा जाना, प्रभुत्व होना, बल दिखाना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—योग्य होना, समान होना, शक्ति रखना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—नियंत्रण रखना, प्रभाव रखना, छा जाना, स्वामी होना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—जोड़ा का होना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—पर्याप्त होना, यथेष्ट होना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—रक्खा जाना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—उपयोगी होना
प्रभू —भ्वा॰ पर॰ —प्र+भू—-—याचना करना, अनुनय-विनय करना
विभू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—वि+भू—-— सोचना, विमर्श करना, विचारना
विभू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—वि+भू—-—जानकार होना, जानना, प्रत्यक्ष करना, देखना
विभू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—वि+भू—-—फैसला करना, निश्चय करना, स्पष्ट करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—उदय होना, पैदा होना, उपजना, फूटना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—होना, बनना, विद्यमान होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—घटित होना, घटना होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—संभव होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—यथेष्ट होना, सक्षम होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—मिलना, एक होना, सम्मिलित होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—संगत होना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰ —सम्+भू—-—पकड़ने के योग्य
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—पैदा करना, उत्पन्न करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—कल्पना करना, सोचना, उद्भावना करना, चिन्तन करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—अनुमान लगाना, अटकल लगाना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-— सोचना, ख्याल करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—सम्मान करना, आदर करना, आदर प्रदर्शित करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—सम्मान करना, उपहार करना, बर्ताव करना
सम्भू —भ्वा॰ पर॰प्रेर॰—सम्+भू—-—मढ़ना, थोपना
सम्भू —भ्वा॰उभ॰ <भवति>, <भवते>—सम्+भू—-—हासिल करना, प्राप्त करना
सम्भू —चुरा॰ आ॰<भावयते>—सम्+भू—-—प्राप्त करना, उपलब्ध करना
सम्भू —चुरा॰ उभ॰ <भावयति>, <भावयते>—सम्+भू—-— सोचना, विमर्श करना
सम्भू —चुरा॰ उभ॰ <भावयति>, <भावयते>—सम्+भू—-—मिलाना, मिश्रित करना
सम्भू —चुरा॰ उभ॰ <भावयति>, <भावयते>—सम्+भू—-—पवित्र होना
भू —वि॰—-—भू+क्विप्—होने वाला, विद्यमान, बनने वाला, फूटने वाला, उगने वाला, उपजने वाला
भू —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
भूः —स्त्री॰—-—भू+क्विप्—पृथ्वी
भूः —स्त्री॰—-—-—विश्व, भूमण्डल
भूः —स्त्री॰—-—-—भूमि, फर्श
भूः —स्त्री॰—-—-—भूमि, भूसंपत्ति
भूः —स्त्री॰—-—-—जगह, स्थान, क्षेत्र, भूखण्ड
भूः —स्त्री॰—-—-—सामग्री, विषयवस्तु
भूः —स्त्री॰—-—-—‘एक ’ की संख्या की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
भूः —स्त्री॰—-—-—ज्यामिति की आकृति की आधाररेखा
भूः —स्त्री॰—-—-—सबसे पहली व्याहृति या रहस्यमूलक अक्षर ‘ॐ’ जिसका उच्चारण प्रतिदिन संध्या के समय मंत्रपाठ करते हुए किया जाता हैं
भूत्तमम् —नपुं॰—भू+उत्तमम्—-—सोना
भूकदम्बः —पुं॰—भू+कदम्बः—-—वृक्ष का भेद
भूकम्पः —पुं॰—भू+कम्पः—-—भूचाल
भूकर्णः —पुं॰—भू+कर्णः—-—धरती का व्यास
भूकश्यपः —पुं॰—भू+कश्यपः—-—कृष्ण के पिता वासुदेव का विशेषण
भूकाकः —पुं॰—भू+काकः—-—एक प्रकार का बगुला
भूकाकः —पुं॰—भू+काकः—-—पनमुर्गी
भूकाकः —पुं॰—भू+काकः—-—एक प्रकार का कबूतर
भूकेशः —पुं॰—भू+केशः—-—बट-वृक्ष
भूकेशा —स्त्री॰—भू+केशा—-—राक्षसी-पिशाचनी
भूक्षित् —पुं॰—भू+क्षित्—-—सूअर
भूगरम् —नपुं॰—भू+गरम्—-—विशेषप्रकार का जहर
भूगर्भः —पुं॰—भू+गर्भः—-—भवभूति का विशेषण
भूगृहम् —नपुं॰—भू+गृहम्—-—भूमि के नीचे का गोदाम, तहखाना
भूगेहम् —नपुं॰—भू+गेहम्—-—भूमि के नीचे का गोदाम, तहखाना
भूगोलः —पुं॰—भू+गोलः—-—भूमिगोल, भूमंडल
भूविद्या —स्त्री॰—भू+विद्या—-—भूगोल
भूघनः —पुं॰—भू+घनः—-—काया, शरीर
भूचक्रम् —नपुं॰—भू+चक्रम्—-—विषुवद्ररेखा, भूमध्यरेखा
भूचर —वि॰—भू+चर—-—भूमि पर घूमने वाला या रहने वाला
भूचरः —पुं॰—भू+चरः—-—शिव का विशेषण
भूछाया —स्त्री॰—भू+छाया—-—भू छाया
भूछाया —स्त्री॰—भू+छाया—-—अंधकार
भूजन्तुः —पुं॰—भू+जन्तुः—-—एक जमीन का कीड़ा
भूजन्तुः —पुं॰—भू+जन्तुः—-—हाथी
भूजम्बुः —पुं॰—भू+जम्बुः—-—गेहूँ
भूतलम् —नपुं॰—भू+तलम्—-—धरातल, पृथ्वीतल
भूतृण —वि॰—भू+तृण—-—एक प्रकार का सुगन्धयुक्त घास
भूदारः —पुं॰—भू+दारः—-—सूअर
भूदेवः —पुं॰—भू+देवः—-—ब्राह्मण
भूसुरः —पुं॰—भू+सुरः—-—ब्राह्मण
भूधरः —पुं॰—भू+धरः—-—पहाड़
भूधरः —पुं॰—भू+धरः—-—शिव का विशेषण
भूधरः —पुं॰—भू+धरः—-—कृष्ण का विशेषण
भूधरः —पुं॰—भू+धरः—-—‘सात’ की संख्या
भूवेश्वरः —पुं॰—भू+ईश्वरः—-—हिमालय पहाड़ का विशेषण
भूराजः —पुं॰—भू+राजः—-—हिमालय पहाड़ का विशेषण
भूनागः —पुं॰—भू+नागः—-—एक प्रकार का धरती का कीड़ा, केंचुवा
भूनेतृ —पुं॰—भू+नेतृ—-—प्रभु, शासक, राजा
भूपः —पुं॰—भू+पः—-—प्रभु, शासक, राजा
भूपतिः —पुं॰—भू+पतिः—-—राजा
भूपतिः —पुं॰—भू+पतिः—-—शिव का विशेषण
भूपतिः —पुं॰—भू+पतिः—-—इन्द्र का विशेषण
भूपदः —पुं॰—भू+पदः—-—वृक्ष
भूपदी —पुं॰—भू+पदी—-—एक विशिष्ट प्रकार की चमेली
भूपरिधिः —पुं॰—भू+परिधिः—-—पृथ्वी का घेरा
भूपालः —पुं॰—भू+पालः—-—राजा, प्रभु
भूपालनम् —नपुं॰—भू+पालनम्—-—प्रभुता, आधिपत्य
भूपुत्रः —पुं॰—भू+पुत्रः—-—मंगलग्रह
भूसुतः —पुं॰—भू+सुतः—-—मंगलग्रह
भूपुत्री —स्त्री॰—भू+पुत्री—-—‘धरती की बेटी’ सीता का विशेषण
भूसुता —स्त्री॰—भू+सुता—-—‘धरती की बेटी’ सीता का विशेषण
भूप्रकंप —वि॰—भू+प्रकंप—-—भूचाल
भूप्रदानम् —नपुं॰—भू+प्रदानम्—-—भूदान
भूबिम्बः —पुं॰—भू+बिम्बः—-—भूलोक, भूमण्डल
भूबम् —नपुं॰—भू+बम्—-—भूलोक, भूमण्डल
भूभर्तृ —पुं॰—भू+भर्तृ—-—राजा, प्रभु
भूभागः —पुं॰—भू+भागः—-—क्षेत्र, स्थान, जगह
भूभुज् —पुं॰—भू+भुज्—-—राजा
भूभृत् —पुं॰—भू+भृत्—-—पहाड़
भूभृत् —पुं॰—भू+भृत्—-—राजा, प्रभु
भूभृत् —पुं॰—भू+भृत्—-—विष्णु का विशेषण
भूमण्डलम् —नपुं॰—भू+मण्डलम्—-—पृथ्वी, भूमण्डल, धरती
भूरुह् —पुं॰—भू+रुह्—-—वृक्ष
भूरुहः —पुं॰—भू+रुहः—-—वृक्ष
भूलोकः —पुं॰—भू+लोकः—-—भूमण्डल
भूवलयम् —नपुं॰—भू+वलयम्—-—भूमण्डल
भूवल्लभः —पुं॰—भू+वल्लभः—-—राजा, प्रभु
भूवृत्तम् —नपुं॰—भू+वृत्तम्—-—भूमध्यरेखा
भूशक्रः —पुं॰—भू+शक्रः—-—‘धरती पर इन्द्र, राजा, प्रभु
भूशयः —पुं॰—भू+शयः—-—विष्णु का विशेषण
भूश्रवस् —पुं॰—भू+श्रवस्—-—बमी, दीमक का मिट्टी का टीला
भूसुरः —पुं॰—भू+सुरः—-—ब्राह्मण
भूसुरः —पुं॰—भू+सुरः—-—मनुष्य
भूसुरः —पुं॰—भू+सुरः—-—मानव जाति
भूसुरः —पुं॰—भू+सुरः—-—वैश्य
भूस्वर्गः —पुं॰—भू+स्वर्गः—-—मेरु पहाड़ का विशेषण
भूस्वामिन् —पुं॰—भू+स्वामिन्—-—भूमिधर, भूमि का स्वामी
भूकः —पुं॰—-—भू+कक्—विवर, रन्ध्र, गर्त
भूकम् —नपुं॰—-—भू+कक्—विवर, रन्ध्र, गर्त
भूकम् —नपुं॰—-—भू+कक्—झरना
भूकलः —पुं॰—-—भुवि कलयति-कल्+अच्—अड़ियल घोड़ा
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—जो हो चुका हो, होने वाला, वर्तमान
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—उत्पन्न, निर्मित
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—वस्तुतः होने वाला, जो वस्तुतः घट चुका हो, यथार्थ
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—ठीक, उचित, सही
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—अतीत, गया हुआ
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—उपलब्ध
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—मिश्रित या मिलाया हुआ
भूत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—सदृश, समान
भूतः —पुं॰—-—भू+क्त—पुत्र, बच्चा
भूतः —पुं॰—-—भू+क्त—शिव का विशेषण
भूतः —पुं॰—-—भू+क्त—चन्द्रमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दिन
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—प्राणी
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त— जीवित प्राणी, जन्तु, जीवधारी
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—प्रेत, भूत, पिशाच, दानव
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—तत्त्व
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—वास्तविक घटना, तथ्य, वास्तविकता
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—अतीत, भूतकाल
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—संसार
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—कुशल-क्षेम, कल्याण
भूतम् —नपुं॰—-—भू+क्त—पाँच की संख्या के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
भूतानुकम्पा —स्त्री॰—भूत+अनुकम्पा—-—सब प्राणियों के लिए अनुकम्पा
भूतान्तकः —पुं॰—भूत+अन्तकः—-—मृत्यु का देवता यम
भूतार्थः —पुं॰—भूत+अर्थः—-—तथ्य, वास्तविक तथ्य, यथार्थ स्थिति, सचाई, वास्तविकता
भूतकथनम् —नपुं॰—भूत+कथनम्—-—तथ्यवर्णन
भूतव्याहृतिः —स्त्री॰—भूत+व्याहृतिः—-—तथ्यवर्णन
भूतात्मक —वि॰—भूत+आत्मक—-—तत्त्वों से युक्त या तत्त्वों से बना हुआ
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—जीवात्मा, आत्मा
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—ब्रह्मा का विशेषण
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—शिव का विशेषण
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—मूलतत्त्व
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—शरीर
भूतात्मन् —पुं॰—भूत+आत्मन्—-—युद्ध, संघर्ष
भूतादिः —पुं॰—भूत+आदिः—-—परमात्मा
भूतादिः —पुं॰—भूत+आदिः—-—अहंकार का विशेषण
भूतार्त —वि॰—भूत+आर्त—-—प्रेताविष्ट
भूतावासः —पुं॰—भूत+आवासः—-—शरीर
भूतावासः —पुं॰—भूत+आवासः—-—शिव का विशेषण
भूतावासः —पुं॰—भूत+आवासः—-—विष्णु का विशेषण
भूताविष्ट —वि॰—भूत+आविष्ट—-—भूत प्रेतादि से प्रभावित
भूतावेशः —पुं॰—भूत+आवेशः—-—भूत या प्रेत का किसी पर सवार होना
भूतेज्यम् —नपुं॰—भूत+इज्यम्—-—भूतों को आहुति देना
भूतेज्या —स्त्री॰—भूत+इज्या—-—भूतों को आहुति देना
भूतेष्टा —स्त्री॰—भूत+इष्टा—-—कृष्णपक्ष की चतुर्दशी
भूतेशः —पुं॰—भूत+ईशः—-—ब्रह्मा का विशेषण
भूतेशः —पुं॰—भूत+ईशः—-—विष्णु का विशेषण
भूतेशः —पुं॰—भूत+ईशः—-—शिव का विशेषण
भूतेश्वरः —पुं॰—भूत+ईश्वरः—-—शिव का विशेषण
भूतोन्मादः —पुं॰—भूत+उन्मादः—-—भूतादि के चढ़ने से उत्पन्न पागलपन
भूतोपसृष्ट —वि॰—भूत+उपसृष्ट—-—पिशाच से पीडित
भूतोपहत —वि॰—भूत+उपहत—-—पिशाच से पीडित
भूतौदनः —पुं॰—भूत+ओदनः—-—चावलों की थाली
भूतकर्तृ —पुं॰—भूत+कर्तृ—-—ब्रह्मा का विशेषण
भूतकर्तृ —पुं॰—भूत+कृत्—-—ब्रह्मा का विशेषण
भूतकालः —पुं॰—भूत+कालः—-—बीता हुआ समय, अतीत या भूतकाल
भूतकेशी —स्त्री॰—भूत+केशी—-—तुलसी
भूतकान्ति —स्त्री॰—भूत+कान्ति—-—भूत-प्रेत की सवारी
भूतगणः —पुं॰—भूत+गणः—-—उत्पन्न प्राणियों का समुदाय
भूतगणः —पुं॰—भूत+गणः—-—भूत-प्रेत या पिशाचों का समूह
भूतग्रस्त —वि॰—भूत+ग्रस्त—-—जिसपर भूत-प्रेत सवार हो गया हो
भूतग्रामः —पुं॰—भूत+ग्रामः—-—जीवित प्राणियों का समूह, समस्त जीव, सृष्टि
भूतग्रामः —पुं॰—भूत+ग्रामः—-—भूतप्रेतों का समूह
भूतग्रामः —पुं॰—भूत+ग्रामः—-—शरीर
भूतघ्नः —पुं॰—भूत+घ्नः—-—ऊँट
भूतघ्नः —पुं॰—भूत+घ्नः—-—लहसुन
भूतघ्नी —स्त्री॰—भूत+घ्नी—-—तुलसी
भूतचतुर्दशी —स्त्री॰—भूत+चतुर्दशी—-—कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी
भूतचारिन् —पुं॰—भूत+चारिन्—-—शिव का विशेषण
भूतजयः —पुं॰—भूत+जयः—-—तत्त्वों के उपर विजय
भूतदया —स्त्री॰—भूत+दया—-—सब प्राणियों के प्रति करुणा, प्राणिमात्र पर दया
भूतधरा —स्त्री॰—भूत+धरा—-—पृथ्वी
भूतधात्री —स्त्री॰—भूत+धात्री—-—पृथ्वी
भूतधारिणो —स्त्री॰—भूत+धारिणो—-—पृथ्वी
भूतनाथः —पुं॰—भूत+नाथः—-—शिव का विशेषण
भूतनायिका —स्त्री॰—भूत+नायिका—-—दुर्गा का विशेषण
भूतनाशनः —पुं॰—भूत+नाशनः—-—भिलावें का पौधा
भूतनाशनः —पुं॰—भूत+नाशनः—-—सरसों
भूतनाशनः —पुं॰—भूत+नाशनः—-—कालीमिर्च
भूतनिचयः —पुं॰—भूत+निचयः—-—शरीर
भूतपतिः —पुं॰—भूत+पतिः—-—शिव का विशेषण
भूतपतिः —पुं॰—भूत+पतिः—-—अग्नि का विशेषण
भूतपतिः —पुं॰—भूत+पतिः—-—कालीतुलसी
भूतपूर्णिमा —स्त्री॰—भूत+पूर्णिमा—-—अश्विन मास का पूर्णमासी
भूतपूर्व —वि॰—भूत+पूर्व—-—पहले से विद्यमान, पहला
भूतपूर्वम् —अव्य॰—भूत+पूर्वम्—-—पहले
भूतप्रकृतिः —स्त्री॰—भूत+प्रकृतिः—-—सब प्राणियों का मूल
भूतबलिः —पुं॰—भूत+बलिः—-—सब प्राणियों की बलि या आहुति देना, दैनिक पाँच यज्ञों में से एक बलिवैश्वदेव
भूतब्रह्मन् —पुं॰—भूत+ब्रह्मन्—-—अधम ब्राह्मण जो अपना निर्वाह मूर्त्ति पर चढ़ावे से करता हैं
भूतभर्तृ —पुं॰—भूत+भर्तृ—-—शिव का विशेषण
भूतभावनः —पुं॰—भूत+भावनः—-—ब्रह्मा का विशेषण
भूतभावनः —पुं॰—भूत+भावनः—-—विष्णु का विशेषण
भूतभाषा —स्त्री॰—भूत+भाषा—-—पिशाचों की भाषा
भूतभाषित —वि॰—भूत+भाषित—-—पिशाचों की भाषा
भूतमहेश्वरः —पुं॰—भूत+महेश्वरः—-—शिव का विशेषण
भूतयज्ञः —पुं॰—भूत+यज्ञः—-—सब प्राणियों की बलि या आहुति देना, दैनिक पाँच यज्ञों में से एक बलिवैश्वदेव
भूतयोनिः —पुं॰—भूत+योनिः—-—उत्पन्न प्राणियों का मूलस्रोत
भूतराजः —पुं॰—भूत+राजः—-—शिव का विशेषण
भूतवर्गः —पुं॰—भूत+वर्गः—-—भूत-प्रेतों का समुदाय
भूत वासः —पुं॰—भूत+ वासः—-—बहेड़े का वृक्ष
भूतवाहनः —पुं॰—भूत+ वाहनः—-—शिव का विशेषण
भूतविक्रिया —स्त्री॰—भूत+विक्रिया—-—अपस्मार, मिरगी
भूतविक्रिया —स्त्री॰—भूत+विक्रिया—-—भूत या पिशाच की सवारी
भूतविज्ञानम् —नपुं॰—भूत+ विज्ञानम्—-—पिशाच विज्ञान
भूतविद्या —स्त्री॰—भूत+ विद्या—-—पिशाच विज्ञान
भूतवृक्षः —पुं॰—भूत+ वृक्षः—-—विभीतक वृक्ष, बहेड़े का पेड़
भूतसंसार —वि॰—भूत+संसार—-—मर्त्यलोक
भूतसञ्चार —वि॰—भूत+सञ्चार—-—भूतपिशाच का आवेश
भूतसम्प्लवः —पुं॰—भूत+सम्प्लवः—-—विश्व का जलप्रलय, या विनाश
भूतसर्गः —पुं॰—भूत+सर्गः—-—संसार की सृष्टि, उत्पन्न प्राणियों का समुदाय
भूतसूक्ष्मम् —नपुं॰—भूत+सूक्ष्मम्—-—सूक्ष्म तत्व
भूतस्थानम् —नपुं॰—भूत+स्थानम्—-—जीवधारी प्राणियों का आवास
भूतस्थानम् —नपुं॰—भूत+स्थानम्—-—पिशाचों का वासस्थान
भूतहत्या —स्त्री॰—भूत+हत्या—-—जीवधारी प्राणियों की हत्या
भूतमय —वि॰—-—भूत+मयट्—सब प्राणियों समेत
भूतमय —वि॰—-—भूत+मयट्—उत्पन्न प्राणियों या मूलत्त्वों से निर्मित्त
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—होना, अस्तित्व
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—जन्म, उत्पत्ति
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—कुशल-क्षेम, कल्याण, आनन्द, समृद्धि
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—सफलता, अच्छा भाग्य
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—धन-दौलत, सौभाग्य
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—गौरव, महिमा, विभूति
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—राख
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—रंगीन धारियोंसे हाथी का श्रृंगार करना
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—तपस्या या अभिचार के अनुष्ठान से प्राप्य अतिमानवशक्ति
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—तला हुआ मांस
भूतिः —स्त्री॰—-—भू+क्तिन्—हाथियों का मद
भूतिः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
भूतिः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
भूतिः —पुं॰—-—-—पितृगण का विशेषण
भूतिकर्मन् —नपुं॰—भूति+कर्मन्—-—कोई भी शुभकृत्य या उत्सव
भूतिकाम —वि॰—भूति+काम—-—समृद्धि या इच्छुक
भूतिकामः —पुं॰—भूति+कामः—-—राज्यमन्त्री
भूतिकामः —पुं॰—भूति+कामः—-—बृहस्पति का विशेषण
भूतिकालः —पुं॰—भूति+कालः—-—शुभ या सुखद समय
भूतिकीलः —पुं॰—भूति+कीलः—-—छिद्र, गर्त
भूतिकीलः —पुं॰—भूति+कीलः—-—खाई
भूतिकीलः —पुं॰—भूति+कीलः—-—भूगर्भगृह, तहखाना
भूतिकृत् —पुं॰—भूति+कृत्—-—शिव का विशेषण
भूतिगर्भः —पुं॰—भूति+गर्भः—-—भवभूति का विशेषण
भूतिदः —पुं॰—भूति+दः—-—शिव का विशेषण
भूतिनिधानम् —पुं॰—भूति+निधानम्—-—धनिष्ठा नक्षत्र
भूतिभूषणः —पुं॰—भूति+भूषणः—-—शिव का विशेषण
भूतिवाहनः —पुं॰—भूति+वाहनः—-—शिव का विशेषण
भूतिकम् —नपुं॰—-—भूति+कन्—कपूर
भूतिकम् —नपुं॰—-—-—चन्दन की लकड़ी
भूतिकम् —नपुं॰—-—-—औषधि का पौधा, कायफल
भूमत् —वि॰—-—भू+मतुप्—भुमिधर
भूमत् —पुं॰—-—-—राजा, प्रभु
भूमन् —पुं॰—-—बहीर्भावः बहु+इमनिच् इलोपे भ्वादेशः—भारी परिमाण, प्राचुर्य, यथेष्टता, बड़ी संख्या
भूमन् —नपुं॰—-—-—प्रदेश, जिला भूखण्ड, प्राणी, जन्तु
भूमय —वि॰—-—भू+मयट्—मिट्टी का, मिट्टी का बना या मुट्टी से उत्पन्न
भूमिः —स्त्री॰—-—भवन्त्यस्मिन् भूतानि -भू+मि किच्च वा ङीप्— पृथ्वी
भूमिः —स्त्री॰—-—-—मिट्टी, भूमि
भूमिः —स्त्री॰—-—-—प्रदेश, जिला, देश, भू
भूमिः —स्त्री॰—-—-—स्थान, जगह, जमीन, भूखण्ड
भूमिः —स्त्री॰—-—-—स्थल, स्थिति
भूमिः —स्त्री॰—-—-—जमीन, भूसंपत्ति
भूमिः —स्त्री॰—-—-—कहानी, घर का फर्श
भूमिः —स्त्री॰—-—-—अभिरुचि, हावभाव
भूमिः —स्त्री॰—-—-—किसी पात्र का चरित्र या अभिनय
भूमिः —स्त्री॰—-—-—विषय, पदार्थ, आधार विश्वासभूमि, स्नेहभूमि आदि
भूमिः —स्त्री॰—-—-—दर्जा, विस्तार, सीमा
भूमिः —स्त्री॰—-—-—जिह्वा, जवान
भूम्यन्तरः —पुं॰—भूमि+अन्तरः—-—पड़ोसी राज्य का राजा
भूमिकदंबः —पुं॰—भूमि+कदंबः—-—कदम्ब का एक भेद
भूमिगुहा —स्त्री॰—भूमि+गुहा—-—भूमि में विवर या गुफा
भूमिगृहम् —नपुं॰—भूमि+गृहम्—-—भूगर्भगृह, भौंरा, तहखाना
भूमिचलः —पुं॰—भूमि+चलः—-—भूचाल
भूमिचलनम् —नपुं॰—भूमि+चलनम्—-—भूचाल
भूमिजः —पुं॰—भूमि+जः—-—मंगलग्रह
भूमिजः —पुं॰—भूमि+जः—-—नरकासुर का विशेषण
भूमिजः —पुं॰—भूमि+जः—-—मनुष्य
भूमिजः —पुं॰—भूमि+जः—-—भूनिंव नाम का पौधा
भूमिजा —स्त्री॰—भूमि+जा—-—सीता का विशेषण
भूमिजीविन् —पुं॰—भूमि+जीविन्—-—वैश्य
भूमितलम् —नपुं॰—भूमि+तलम्—-—भूतल, पृथ्वी की सतह
भूमिदानम् —नपुं॰—भूमि+दानम्—-—भूदान
भूमिदेवः —पुं॰—भूमि+देवः—-—ब्राह्मण
भूमिधरः —पुं॰—भूमि+धरः—-—पहाड़
भूमिधरः —पुं॰—भूमि+धरः—-—राजा
भूमिधरः —पुं॰—भूमि+धरः—-—सात की संख्या
भूमिनाथः —पुं॰—भूमि+नाथः—-—राजा, प्रभु
भूमिपः —पुं॰—भूमि+पः—-—राजा, प्रभु
भूमिपतिः —पुं॰—भूमि+पतिः—-—राजा, प्रभु
भूमिपालः —पुं॰—भूमि+पालः—-—राजा, प्रभु
भूमिभुज् —पुं॰—भूमि+भुज्—-—राजा, प्रभु
भूमिपक्षः —पुं॰—भूमि+पक्षः—-—तेज घोड़ा
भूमिपिशाचम् —नपुं॰—भूमि+पिशाचम्—-—ताड का वृक्ष
भूमिपुत्रः —पुं॰—भूमि+पुत्रः—-—मंगलग्रह
भूमिपुरंदरः —पुं॰—भूमि+पुरंदरः—-—राजा
भूमिपुरंदरः —पुं॰—भूमि+पुरंदरः—-—दिलीप का नाम
भूमिभृत् —पुं॰—भूमि+भृत्—-—पहाड़
भूमिभृत् —पुं॰—भूमि+भृत्—-—राजा
भूमिमण्डा —स्त्री॰—भूमि+मण्डा—-—एक प्रकार की चमेली
भूमिरक्षकः —पुं॰—भूमि+रक्षकः—-—तेज घोड़ा
भूमिलाभः —पुं॰—भूमि+लाभः—-—मृत्यु
भूमिलेपनम् —नपुं॰—भूमि+लेपनम्—-—गोबर
भूमिवर्धनः —पुं॰—भूमि+वर्धनः—-—मृतक शरीर, शव
भूमिवर्धनम् —नपुं॰—भूमि+वर्धनम्—-—मृतक शरीर, शव
भूमिशय —वि॰—भूमि+शय—-—भूमि पर सोने वाला
भूमिशयः —पुं॰—भूमि+शयः—-—जंगली कबूतर
भूमिशयनम् —नपुं॰—भूमि+शयनम्—-—भूमि पर सोना
भूमिशय्या —स्त्री॰—भूमि+शय्या—-—भूमि पर सोना
भूमिसम्भवः —पुं॰—भूमि+सम्भवः—-—मंगलग्रह
भूमिसम्भवः —पुं॰—भूमि+सम्भवः—-—नरकासुर का विशेषण
भूमिसुतः —पुं॰—भूमि+सुतः—-—मंगलग्रह
भूमिसुतः —पुं॰—भूमि+सुतः—-—नरकासुर का विशेषण
भूमिसम्भवा —स्त्री॰—भूमि+सम्भवा—-—सीता का विशेषण
भूमिसुता —स्त्री॰—भूमि+सुता—-—सीता का विशेषण
भूमिसन्निवेशः —पुं॰—भूमि+सन्निवेशः—-—देश का सामान्य दर्शन्
भूमिस्पृश् —पुं॰—भूमि+स्पृश्—-—मनुष्य
भूमिस्पृश् —पुं॰—भूमि+स्पृश्—-—मानवजाति
भूमिस्पृश् —पुं॰—भूमि+स्पृश्—-—वैश्य
भूमिस्पृश् —पुं॰—भूमि+स्पृश्—-—चोर
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—पृथ्वी, जमीन, मिट्टी
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—स्थान, प्रदेश, स्थल
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—कहानी, सभास्थल
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—पग, दर्जा
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—लिखने के लिए तख्ता
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—नाटक में किसी पात्र का चरित्र या अभिनय
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—नाटक के पात्र की अभिनय सम्बन्धी पोशाक
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—सजावट
भूमिका —स्त्री॰—-—भूमि+कै+क+टाप्—किसी पुस्तक की प्रस्तावना या परिचय
भूमी —स्त्री॰—-—भूमि+ङीष्—पृथ्वी
भूमीकदम्ब —वि॰—भूमी+कदम्ब—-—भूमिकदम्ब
भूमीप्रतिः —पुं॰—भूमी+प्रतिः—-—राजा
भूमीभुज् —पुं॰—भूमी+भुज्—-—राजा
भूमीरुह् —पुं॰—भूमी+रुह्—-—वृक्ष
भूमीरुहः —पुं॰—भूमी+रुहः—-—वृक्ष
भूयम् —नपुं॰—-—-—होने की स्थिति
भूयशस् —अव्य॰—-—भूय+शस्—अधिकतर, बहुधा, सामान्यतः, साधारण नियम के रूप में
भूयशस् —अव्य॰—-—-—अत्यधिक, बड़े परिमाण में
भूयशस् —अव्य॰—-—-—फिर, और आगे
भूयस् —वि॰—-—बहु+ईयसुन्, ईलोपे भ्वादेशः—अधिकतर, अपेक्षाकृत संख्या में अधिक या बहुत
भूयस् —वि॰—-—बहु+ईयसुन्, ईलोपे भ्वादेशः—अधिक बड़ा, अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत
भूयस् —वि॰—-—बहु+ईयसुन्, ईलोपे भ्वादेशः—अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण
भूयस् —वि॰—-—बहु+ईयसुन्, ईलोपे भ्वादेशः—बहुत बड़ा या विस्तृत, अधिक, बहुत, संख्या
भूयस् —वि॰—-—बहु+ईयसुन्, ईलोपे भ्वादेशः—सम्पन्न, बहुल
भूयस् —अव्य॰—-—-—अधिक, अत्यधिक, अत्यन्त, अधिकतर, बहुत करके
भूयस् —अव्य॰—-—-—और अधिक, फिर आगे, और फिर, इसके अतिरिक्त
भूयस् —अव्य॰—-—-—अत्यधिक, बहुत अधिक, अत्यन्त, अपरिमित, अधिकांश में
भूयस् —अव्य॰—-—-—बहुधा, साधारणतः
भूयोदर्शनम् —नपुं॰—भूयस्+दर्शनम्—-—बारबार देखना
भूयोदर्शनम् —नपुं॰—भूयस्+दर्शनम्—-—बारबार व्यापक दर्शन पर आधारित अनुमान
भूयोभूयस् —अव्य॰—भूयस्+भूयस्—-—पुनःपुनः, बारबार
भूयोविद्य —वि॰—भूयस्+विद्य—-—अपेक्षाकृत विद्वान
भूयोविद्य —वि॰—भूयस्+विद्य—-—अत्यन्त विद्वान
भूयस्त्वम् —नपुं॰—-—भूयस्+त्व—बहुतायत, बहुलता
भूयस्त्वम् —नपुं॰—-—भूयस्+त्व—बहुसंख्यकता, प्रबलता
भूयिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन बहु+ इष्ठन् भ्वादेशे युक् च—अत्यन्त, अत्यन्त असंख्य, या प्रचुर
भूयिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन बहु+ इष्ठन् भ्वादेशे युक् च—अत्यन्त महत्वपूर्ण, प्रधान, मुख्य
भूयिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन बहु+ इष्ठन् भ्वादेशे युक् च—बहुत बड़ा या विस्तृत, अत्यधिक, बहुत, बहुतसे , असंख्य
भूयिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन बहु+ इष्ठन् भ्वादेशे युक् च—मुख्य रूप से, अत्यन्त स्वस्थचित्त, अत्यन्त संचरित, या मुक्त, मुख्यतः भरा हुआ या चरित्र से युक्त
भूयिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन बहु+ इष्ठन् भ्वादेशे युक् च—प्रायः, अधिकतर, लगभग सब
भूयिष्ठम् —अव्य॰—-—-—अधिकांशतः, अत्यन्त
भूयिष्ठम् —अव्य॰—-—-—अत्यधिक, बहुत ज्यादा, अधिक से अधिक
भूर् —अव्य॰—-—भू+रूक्—तीन व्याहृतियों में से एक
भूरि —वि॰—-—भू+क्रिन्—बहुत, प्रचार, असंख्य, यथेष्ट
भूरि —वि॰—-—भू+क्रिन्—बड़ा, विस्तृत
भूरि —पुं॰—-—भू+क्रिन्—विष्णु का विशेषण
भूरि —पुं॰—-—भू+क्रिन्—ब्रह्मा का विशेषण
भूरि —पुं॰—-—भू+क्रिन्—शिव का विशेषण
भूरि —पुं॰—-—भू+क्रिन्—इन्द्र का विशेषण
भूरि —नपुं॰—-—भू+क्रिन्—सोना
भूरि —अव्य॰—-—-—बहुत अधिक, अत्यधिक
भूरि —अव्य॰—-—-—बार-बार, प्रायः
भूरिगमः —पुं॰—भूरि+गमः—-—गधा
भूरितेजस् —वि॰—भूरि+तेजस्—-—अतिकान्तियुक्त
भूरितेजस् —पुं॰—भूरि+तेजस्—-—अग्नि
भूरिदक्षिण —वि॰—भूरि+दक्षिण—-—मूल्यवान उपहार या पुरस्कारों से युक्त
भूरिदक्षिण —वि॰—भूरि+दक्षिण—-—पुरस्कार देने में उदार , दानशील
भूरिदानम् —नपुं॰—भूरि+दानम्—-—उदारता
भूरिधन —वि॰—भूरि+धन—-—दौलतमन्द, धनाढ़य
भूरिधामन् —वि॰—भूरि+धामन्—-—आतिकांति से युक्त
भूरिप्रयोग —वि॰—भूरि+प्रयोग—-—जिसका बहुत उपयोग हुआ हो, सामान्य व्यवहार में आने वाला
भूरिप्रेमन् —पुं॰—भूरि+प्रेमन्—-—चकवा
भूरिभागः —वि॰—भूरि+भागः—-—बड़ा बहादुर, बड़ा योद्धा
भूरिवृष्टिः —स्त्री॰—भूरि+वृष्टिः—-—बहुत वारिश
भूरिश्रवस् —पुं॰—भूरि+श्रवस्—-— कौरवों के पक्ष से लड़नेवाला एक योद्धा का नाम जिसे सात्यंकि ने यमपुर भेजा था
भूरिज् —स्त्री॰—भूरिज्—भृ+इजि, पृषो॰ साधुः—पृथ्वी
भूर्जः —पुं॰—भूर्जः—भू+ऊर्ज्+अच्—भोजपत्र का पेड़
भूर्जकण्टकः —पुं॰—भूर्ज+कण्टकः—-—वर्णसंकर जाति का पुरूष, जाति से बहिष्कृत ब्राह्मण की उसी वर्ण की स्त्री से उत्पन्न सन्तान
भूर्जपत्रः —पुं॰—भूर्ज+पत्रः—-—भोजपत्र का वृक्ष
भूर्णिः —स्त्री॰—-—भृ+नि, नि॰ ईत्वम्— पृथ्वी
भूष् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <भूषति>, <भूषयति>,<भूषयते> , <भूषित>—-—-—अलंकृत करना, सजाना, श्रृंगार करना
भूष् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <भूषति>, <भूषयति>,<भूषयते> , <भूषित>—-—-—अपने आप को सजाना
भूष् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ <भूषति>, <भूषयति>,<भूषयते> , <भूषित>—-—-—फैलाना, बखेरना, बिछाना
अभिभूष् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ —अभि+भूष्—-—अलंकृत करना, भूषित करना, सौन्दर्य देना
विभूष् —भ्वा॰ पर॰, चुरा॰ उभ॰ —वि+भूष्—-—अलंकृत करना, सजाना
भूषणम् —नपुं॰—-—भूप्+ल्युट्—अलंकरण, सजावट
भूषणम् —नपुं॰—-—भूप्+ल्युट्—अलंकार, श्रृंगार, सजावट का समान
भूषा —स्त्री॰—-—भूष्+क+टाप्—सजाना, भूषित करना
भूषा —स्त्री॰—-—भूष्+क+टाप्—आभूषण, सजावट जैसा कि ‘कर्णभूषा’
भूषा —स्त्री॰—-—भूष्+क+टाप्—रत्न
भूषित —भू॰क॰कृ॰—-—भूष्+क्त—सजाया हुआ, सुभूषित
भूष्णु —वि॰—-—भू+ष्णु—होने वाला, बनने वाला
भूष्णु —वि॰—-—भू+ष्णु—धन या समृद्धि की इच्छा करने वाला
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—भरना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—भरना, व्याप्त होना, पूर्ण होना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—रखना, सहारा देना, संभालना, पोषण करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—संधारण करना, दूध पिलाना, लालन-पालन करना, प्ररक्षण करना, संभाल रखना, परवरिश करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—धारण करना, रखना, अधिकार में लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—पहनना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना, भोगना, सहन करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—समर्पण करना, प्रदान करना, देना, पैदा करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—भाड़े पर लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ <भरति>, <भरते>, <विभर्ति>, <विभृते>, <भृत>—-—-—लाना या ले जाना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—भरना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—भरना, व्याप्त होना, पूर्ण होना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—रखना, सहारा देना, संभालना, पोषण करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—संधारण करना, दूध पिलाना, लालन-पालन करना, प्ररक्षण करना, संभाल रखना, परवरिश करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—धारण करना, रखना, अधिकार में लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—पहनना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना, भोगना, सहन करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—समर्पण करना, प्रदान करना, देना, पैदा करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—भाड़े पर लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , कर्मवा॰ <भ्रियते>—-—-—लाना या ले जाना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—भरना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—भरना, व्याप्त होना, पूर्ण होना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—रखना, सहारा देना, संभालना, पोषण करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—संधारण करना, दूध पिलाना, लालन-पालन करना, प्ररक्षण करना, संभाल रखना, परवरिश करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—धारण करना, रखना, अधिकार में लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—पहनना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—महसूस करना, अनुभव करना, भोगना, सहन करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—समर्पण करना, प्रदान करना, देना, पैदा करना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—भाड़े पर लेना
भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰ , इच्छा॰ <बिभरिषति> या <बुभूर्षते>—-—-—लाना या ले जाना
उद्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—उद्+भृ—-—धारण करना, सहारा देना, संभालना
सम्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—सम्+भृ—-—एकत्र करना, जोड़ना, इकट्ठा रखना
सम्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—सम्+भृ—-—उत्पन्न करना, पैदा करना, प्रकाशित करना, सम्पन्न करना
सम्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—सम्+भृ—-—संधारण करना, पालन-पोषण करना, दूध पिलाना
सम्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—सम्+भृ—-—तैयार करना, सज्जित करना
सम्भृ —भ्वा॰ जुहो॰ उभ॰—सम्+भृ—-—देना, अर्पित करना, प्रस्तुत करना
भृकुंशः —पुं॰—-—भ्रुवा कुंशः (कुंश्+अच्) भावप्रकोश इंगितज्ञापनं यस्य, नि॰ संप्रसारण —स्त्री का वेष धारण करने वाला नट
भृकुंसः —पुं॰—-—भ्रुवा कुंशः (कुंस्+अच्) भावप्रकोश इंगितज्ञापनं यस्य, नि॰ संप्रसारण —स्त्री का वेष धारण करने वाला नट
भृकुटि —स्त्री॰—-—भ्रुवः कुटिः (कुट्+इन्) कौटिल्यं, नि॰ संप्र॰—भौंह
भृग् —अव्य॰—-—-—अग्नि की चटपट आवाज को अभिव्यक्ति करने वाला अनुकरणात्मक (शब्द)
भृगुः —पुं॰—-—भ्रस्ज्+कु, संप्र, कुत्वम्—एक ऋषि जो भृगुवंश का पूर्वपुरुष माना जाता हैं,इस वंश का वर्णन मनु॰ १.३५ में मिलता हैं, मनु से उत्पन्न दश मूलपुरुषों में से एक
भृगुः —पुं॰—-—-—जमदग्नि ऋषि का नाम
भृगुः —पुं॰—-—-—शुक्र का विशेषण
भृगुः —पुं॰—-—-—शुक्र ग्रह
भृगुः —पुं॰—-—-—उत्प्रपात, ढलवां चट्टान
भृगुः —पुं॰—-—-—समतल भूमि, पहाड़ की समतल चोटी
भृगुः —पुं॰—-—-—कृष्ण का नाम
भृगूद्वहः —पुं॰—भृगु+उद्वहः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुजः —पुं॰—भृगु+जः—-—शुक्र का विशेषण
भृगुतनयः —पुं॰—भृगु+तनयः—-—शुक्र का विशेषण
भृगुनन्दनः —पुं॰—भृगु+नन्दनः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुनन्दनः —पुं॰—भृगु+नन्दनः—-—शुक्र
भृगुपतिः —पुं॰—भृगु+पतिः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुवंशः —पुं॰—भृगु+वंशः—-—परशुराम से प्रवर्तित वंश
भृगुवारः —पुं॰—भृगु+वारः—-—शुक्रवार, जुमा
भृगुबासरः —पुं॰—भृगु+बासरः—-—शुक्रवार, जुमा
भृगुशार्दूलः —पुं॰—भृगु+शार्दूलः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुश्रेष्ठः —पुं॰—भृगु+श्रेष्ठः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुसत्तमः —पुं॰—भृगु+सत्तमः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुसुतः —पुं॰—भृगु+सुतः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुसुतः —पुं॰—भृगु+सुतः—-—शुक्र का विशेषण
भृगुसुनुः —पुं॰—भृगु+सुनुः—-—परशुराम का विशेषण
भृगुसुनुः —पुं॰—भृगु+सुनुः—-—शुक्र का विशेषण
भृङ्गः —पुं॰—-—भृ+गन् कित्, नुट् च —भौंरा
भृङ्गः —पुं॰—-—भृ+गन् कित्, नुट् च —एक प्रकार कि भिर्र, ततैया
भृङ्गः —पुं॰—-—भृ+गन् कित्, नुट् च —एक प्रकार का पक्षी, भीम राज
भृङ्गः —पुं॰—-—भृ+गन् कित्, नुट् च —लम्पट, कामुक, व्यभिचारी
भृङ्गम् —नपुं॰—-—भृ+गन् कित्, नुट् च —अभ्रक
भृङ्गाभीष्टः —पुं॰—भृङ्ग+अभीष्टः—-—आम का पेड़
भृङ्गानन्दा —स्त्री॰—भृङ्ग+आनन्दा—-—यूथिका बेल
भृङ्गावली —स्त्री॰—भृङ्ग+आवली—-—भौंरो की पांत, मक्खियों का झुण्ड
भृङ्गजम् —नपुं॰—भृङ्ग+जम्—-—अगर
भृङ्गजम् —नपुं॰—भृङ्ग+जम्—-—अभ्रक
भृङ्गजा —स्त्री॰—भृङ्ग+जा—-—भांग का पौधा
भृङ्गपर्णिका —स्त्री॰—भृङ्ग+पर्णिका—-—छोटी इलायची
भृङ्गराज् —पुं॰—भृङ्ग+राज्—-—एक प्रकार की बड़ी मक्खी
भृङ्गराज् —पुं॰—भृङ्ग+राज्—-—भंगरा नाम का पौधा
भृङ्गरिटिः —पुं॰—भृङ्ग+रिटिः—-—शिव का एक गण
भृङ्गरीटिः —पुं॰—भृङ्ग+रीटिः—-—शिव का एक गण
भृङ्गरोलः —पुं॰—भृङ्ग+रोलः—-—एक प्रकार कि भिर्र
भृङ्गवल्ल्भः —पुं॰—भृङ्ग+वल्ल्भः—-—कदंब वृक्ष का एक भेद
भृङ्गारः —पुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्— सोने या कलश का घट
भृङ्गारः —पुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—विशेष आकार का कलश, झारी, शिशिर सुरभि-सलिल पूर्णोऽयं भृङ्गारः @ वेणी६
भृङ्गारः —पुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—राज्याभिषेक के अवसर पर प्रयुक्त किया जाने वाला घड़ा
भृङ्गारम् —नपुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्— सोने या कलश का घट
भृङ्गारम् —नपुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—विशेष आकार का कलश, झारी, शिशिर
भृङ्गारम् —नपुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—राज्याभिषेक के अवसर पर प्रयुक्त किया जाने वाला घड़ा
भृङ्गागम् —नपुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—स्वर्ण
भृङ्गागम् —नपुं॰—-—भृङ्ग+ऋ+अण्—लौंग
भृङ्गारिका —स्त्री॰—-—भृङ्गार+कन्+टाप्, इत्वम्—झींगुर
भृङ्गारी —स्त्री॰—-—भृङ्गार+कन्+टाप्, इत्वम्—झींगुर
भृङ्गिन् —पुं॰—-—भृङ्ग+इनि—वट वृक्ष
भृङ्गिन् —पुं॰—-—भृङ्ग+इनि—शिव के एक गण का नाम
भृङ्गिरिटिः —पुं॰—भृङ्ग+रिटिः—भृङ्ग+रट्+इन्, पृषो॰ साधुः—शिव का एक गण
भृङ्गिरिटिः —पुं॰—भृङ्ग+रीटिः—भृङ्ग+रट्+इन्, पृषो॰ साधुः—शिव का एक गण
भृङ्गरीटिः —पुं॰—भृङ्ग+रिटिः—भृङ्ग+रट्+इन्, पृषो॰ साधुः—शिव का एक गण
भृङ्गरीटिः —पुं॰—भृङ्ग+रीटिः—भृङ्ग+रट्+इन्, पृषो॰ साधुः—शिव का एक गण
भृङ्गिरिटि —पुं॰—-—भृङ्गे+रिट्+इ, अलुक् स॰—शिव के एक गण का नाम
भृज् —भ्वा॰ आ॰ <भर्जते>—-—-—भूनना, तलना
भृटिका —स्त्री॰—-—भिरिण्टिका, पृषो॰ साधुः—एक प्रकार का धुंधची का पौधा
भृत —भू॰क॰कृ॰—-—भू+क्त—धारण किया हुआ
भृत —भू॰क॰कृ॰—-—-—सहारा दिया हुआ, संधारित, पालन पोषण किया गया, दूध पिलाकर पाला गया
भृत —भू॰क॰कृ॰—-—-—अधिकृत, सहित, सज्जित
भृत —भू॰क॰कृ॰—-—-—परिपूर्ण, भरा हुआ
भृत —भू॰क॰कृ॰—-—-—भाड़े पर लिया गया, वैतनिक
भृतः —पुं॰—-—-—भाड़े का नौकर , भाड़े का टट्टू
भृतक —वि॰—-—भृतं भरणं वेतनमुपजीवति कन्—मजदूरी पर रखा हुआ, वैतनिक
भृतकः —पुं॰—-—-—भाड़े का नौकर
भृतकाध्यापकः —पुं॰—भृतक+अध्यापकः—-—भाड़े का अध्यापक
भृतकाध्यापित —वि॰—भृतक+अध्यापित—-—भाड़े के अध्यापक द्वारा शिक्षित
भृतकाध्यापितः —पुं॰—भृतक+अध्यापितः—-—वह विद्यार्थी जो अपने अध्यापक को फीस देकर पढ़ा हैं
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—धारण करना, संभालना, सहारा देना
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—संपालन, संधारण
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—नेतृत्व करना, मार्ग-प्रदर्शन
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—परवरिश, सहायता, संपोषण
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—आहार
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—मजदूरी, भाड़ा
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—भाड़े के बदले सेवा
भृतिः —स्त्री॰—-—भृ+क्तिन्—पूंजी, मूलधन
भृत्यध्यापनम् —नपुं॰—भृति+अध्यापनम्—-—वेतन लेकर पढ़ाना
भृतिभुज् —पुं॰—भृति+भुज्—-—वेतनभोगी नौकर, भाड़े का टट्टू
भृतिरूपम् —नपुं॰—भृति+रूपम्—-—किसी विशेष काम के लिए पारिश्रमिक के बदले दिया जाने वाला पुरस्कार
भृत्य —वि॰—-—भृ+क्यप् तक् च—जिसकी परवरिश की जानी चाहिए, पालन-पोषण किये जाने के योग्य
भृत्यः —पुं॰—-—भृ+क्यप् तक् च—कोई भी सहायता चाहने वाला व्यक्ति
भृत्यः —पुं॰—-—भृ+क्यप् तक् च—नौकर, आश्रयी, दास
भृत्यः —पुं॰—-—भृ+क्यप् तक् च—राजा का नौकर, राज्यमन्त्री
भृत्या —स्त्री॰—-—भृ+क्यप् तक् च+टाप्—पालन-पोषण करना, दूध पिलाना, परवरिश करना, देखभाल करना
भृत्या —स्त्री॰—-—भृ+क्यप् तक् च+टाप्—संधारण, संपोषण
भृत्या —स्त्री॰—-—भृ+क्यप् तक् च+टाप्—जीवित रहने का साधन, आहार
भृत्या —स्त्री॰—-—भृ+क्यप् तक् च+टाप्—मजदूरी
भृत्या —स्त्री॰—-—भृ+क्यप् तक् च+टाप्—सेवा
भृत्यजनः —पुं॰—भृत्य+जनः—-—सेवक, पराश्रित
भृत्यजनः —पुं॰—भृत्य+जनः—-—सेवकजन
भृत्यभर्तृ —पुं॰—भृत्य+भर्तृ—-—कुल का स्वामी
भृत्यवर्गः —पुं॰—भृत्य+वर्गः—-—सेवकों का समूह
भृत्यवात्सल्यम् —नपुं॰—भृत्य+वात्सल्यम्—-—नौकरों के प्रति कृपा
भृत्यवृत्तिः —स्त्री॰—भृत्य+वृत्तिः—-—नौकरों का भरण-पोषण
भृत्रिम् —वि॰—-—भृ+त्रिमप्—पाला पोसा गया, परवरिश किया गया
भृमिः —पुं॰—-—भ्रम+इ, संप्र॰—भंवर, जलावर्त
भृश —वि॰—-—भृश्+क—मजबूत, शक्तिशाली, ताकतवर, गहन, अत्यधिक, बहुत ज्यादह
भृशम् —अव्य॰—-—-—ज्यादह, बहुत ज्यादह, अत्यन्त, गहराई के साथ, प्रचण्डता के साथ,अत्यधिक, बहुत ही अधिक, बहुत करके
भृशम् —अव्य॰—-—-—प्रायः बार-बार
भृशम् —अव्य॰—-—-—अपेक्षाकृत अच्छी रीति से
भृशकोपन —वि॰—भृशम्+कोपन—-—अत्यन्त क्रोधी
भृशदुःखित —वि॰—भृशम्+दुःखित—-—अत्यन्त कष्टग्रस्त
भृशपीडित —वि॰—भृशम्+पीडित—-—अत्यन्त कष्टग्रस्त
भृशसंहृष्ट —वि॰—भृशम्+संहृष्ट—-—अत्यन्त प्रसन्न
भृष्ट —भु॰क॰कृ॰—-—भृश्+क्त—तला हुआ, भुना हुआ, सूखा हुआ
भृष्टान्नम् —नपुं॰—भृष्ट+अन्नम्—-—उबाला हुआ या तला हुआ धान्य, अन्न
भृष्टयवः —पुं॰—भृष्ट+यवः—-—भुने हुए जौ
भृष्टिः —स्त्री॰—-—भ्रस्ज्+क्तिन्—तलना, भूनना, सेंकना
भृष्टिः —स्त्री॰—-—-—उजड़ा हुआ बाग या उपवन
भृ —क्र्या॰ पर॰ <भृणाति>—-—-—धारण करना, परवरिश करना, सहारा देना, पालन-पोषण करना
भृ —क्र्या॰ पर॰ <भृणाति>—-—-—तलना
भृ —क्र्या॰ पर॰ <भृणाति>—-—-—कलंकित करना, निन्दा करना
भेकभुज् —पुं॰—भेक+भुज्—-—साँप
भेकरवः —पुं॰—भेक+रवः—-—मेंढको का टर्राना
भेकशब्दः —पुं॰—भेक+शब्दः—-—मेंढको का टर्राना
भेडः —पुं॰—-— भी+ड—मेंढा, भेड़
भेडः —पुं॰—-—-—बेड़ा, घन्नई
भेड्रः —पुं॰—-— = भेडः, पृषो॰ साधु॰—मेंढा
भेदः —पुं॰—-— भिद्+घञ्—टूटना, टुकड़े-टुकड़े होना, फाड़ना, आघात करना
भेदः —पुं॰—-—-—चीरना, फाड़ना
भेदः —पुं॰—-—-—विभक्त करना, विमुक्त करना
भेदः —पुं॰—-—-—बींधना, छिद्रण
भेदः —पुं॰—-—-—भंग, विदारण
भेदः —पुं॰—-—-—बाधा, विघ्न
भेदः —पुं॰—-—-—विभाजन, वियोजन
भेदः —पुं॰—-—-—छिद्र, गर्त, विवर, दरार
भेदः —पुं॰—-—-—चोट, क्षति, घाव
भेदः —पुं॰—-—-—भिन्नता, अन्तर
भेदः —पुं॰—-—-—परिवर्तन, विकार
भेदः —पुं॰—-—-—फूट, असहमति
भेदः —पुं॰—-—-—विवृति, भेद खोलना
भेदः —पुं॰—-—-—विश्वासघात, देशद्रोह
भेदः —पुं॰—-—-—किस्मप्रकार
भेदः —पुं॰—-—-—द्वैतवाद, शत्रुपक्ष में फूट डालकर उसकी जीत पर किसी की ओर करना, शत्रु के विरुद्ध सफलता प्राप्त करने के चार उपायों में से एक
भेदः —पुं॰—-—-—रेचन विधि , अन्तःकोष्ठ साफ करना
भेदाभेदौ —पुं॰—भेद+अभेदौ—-—फूट और मेल, असहमति और सहमति
भेदाभेदौ —पुं॰—भेद+अभेदौ—-—भिन्नता और एकरूपता
भेदोन्मुख —वि॰—भेद+उन्मुख—-—फूटने वाला, खिलने वाला
भेदकर —वि॰—भेद+कर—-—फूट के बीज बोने वाला
भेदकृत् —वि॰—भेद+कृत्—-—फूट के बीज बोने वाला
भेददर्शिन् —वि॰—भेद+दर्शिन्—-—विश्व को परमात्मा से भिन्न समझने वाला
भेददृष्टि —वि॰—भेद+दृष्टि—-—विश्व को परमात्मा से भिन्न समझने वाला
भेदबुद्धि —वि॰—भेद+बुद्धि—-—विश्व को परमात्मा से भिन्न समझने वाला
भेदप्रत्ययः —पुं॰—भेद+प्रत्ययः—-—द्वैतवाद मेंविश्वास
भेदवादिन् —पुं॰—भेद+वादिन्—-—जो द्वैत सिद्धांत को मानता हो
भेदसह —वि॰—भेद+सह—-—जो विभक्त या वियुक्त हो सके
भेदसह —वि॰—भेद+सह—-—कलुषित होने योग्य, दूषणीय, प्रलोभन द्वारा जो फंसाया जा सके
भेदक —वि॰—-—भिद्+ण्वुल्—तोड़नेवाला, खण्ड-खण्ड करने वाला, विभक्त करने वाला, अलग-अलग करने वाला
भेदक —वि॰—-—-—बींघने वाला, छिद्र करने वाला
भेदक —वि॰—-—-—नष्ट करने वाला, विनाशक
भेदक —वि॰—-—-—भेद करने वाला, अन्तर करने वाला
भेदक —वि॰—-—-—परिभाषा देने वाला
भेदकः —पुं॰—-—-—विशेषण या विभेदकारी विशेषता
भेदनम् —नपुं॰—-—भिद्+णिच्+ल्युट्—टुकड़े-टुकड़े करना, तोड़ना, फाड़ना
भेदनम् —नपुं॰—-—-—बाँटना, अलग-अलग करना
भेदनम् —नपुं॰—-—-—भेद करना, फूट के बीज बोना, मनमुटाव पैदा करना
भेदनम् —नपुं॰—-—-—भंगकर शिथिल करना, उघाड़ना, खोलना
भेदिन् —वि॰—-— भिद्+णिनि—तोड़ने वाला, विभक्त करने वाला, भेद करने वाला आदि
भेदिरम् —नपुं॰—-— भिद्+किरच्—वज्र
भेदुरम् —नपुं॰—-— भिद्+किरच्, कुरच् वा पृषो॰ गुणः—वज्र
भेद्यम् —नपुं॰—-— भिद्+ण्यत्—विशेष्य, संज्ञा
भेद्यलिङ्ग —वि॰—भेद्यम्+लिङ्ग—-—लिंग द्वारा जो पहचाना जा सके
भेरः —पुं॰—-—विभेत्यस्मात्-भी+रन्—धौसा, ताशा
भेरिः —स्त्री॰—-— भी+क्रिन्, बा॰ गुणः—धौसा, ताशा
भेरी —स्त्री॰—-—भेरि+ङीष्—धौसा, ताशा
भेरुण्ड —वि॰—-—-—भयानक, भयपर्ण, डरावना और भयंकर
भेरुण्डः —पुं॰—-—-—पक्षियों का एक भेद
भेरुण्डम् —नपुं॰—-—-—गर्भाधान, गर्भस्थिति
भेरुण्डकः —पुं॰—-— भेरुण्ड+कन्—गीदड़, श्रृगाल
भेल —वि॰—-— भी+रन्, रस्य लः—डरपोक, भीरु
भेल —वि॰—-—-—फुर्तीला, चुस्त
भेलः —नपुं॰—-—-—नाव, बेड़ा, घिन्नई
भेलकः —नपुं॰—-— भेल+कन्—नाव, बेड़ा
भेलकम् —नपुं॰—-— भेल+कन्—नाव, बेड़ा
भेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भेषति>, <भेषते>—-—-—डरना, त्रस्त होना, भयभीत होना
भेषजम् —नपुं॰—-— भेषं रोगमयं जयति-जि+ड तारा॰—औषधि, भैषज्य या दवा
भेषजम् —नपुं॰—-—-—चिकित्सा या इलाज
भेषजम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सोया
भेषजागारः —पुं॰—भेषजम्+अगारः—-—अत्तार (औषधविक्रेता) की दुकान
भेषजागारः —पुं॰—भेषजम्+आगारः—-—अत्तार (औषधविक्रेता) की दुकान
भेषजागारम् —नपुं॰—भेषजम्+आगारम्—-—अत्तार (औषधविक्रेता) की दुकान
भेषजाङ्गम् —नपुं॰—भेषजम्+अङ्गम्—-—कोई चीज जो दवा खाने के बाद ली जाय
भैक्ष —वि॰—-— भिक्षैव तत्समूहो वा-अण्—भिक्षा पर जीवन निर्वाह करने वाला
भैक्षम् —नपुं॰—-—-—मांगना, भीख
भैक्षम् —नपुं॰—-—-—जो कुछ भिक्षा में प्राप्त हो, भीख, दान
भैक्षान्नम् —नपुं॰—भैक्ष+अन्नम्—-—भिक्षा में प्राप्त आहार, भिक्षा का अन्न
भैक्षाशिन् —वि॰—भैक्ष+आशिन्—-—भिक्षा में प्राप्त अन्न को खाने वाला
भैक्षाशिन् —पुं॰—भैक्ष+आशिन्—-—भिखारी, साधु
भैक्षाहारः —पुं॰—भैक्ष+आहारः—-—भिखारी
भैक्षकालः —पुं॰—भैक्ष+कालः—-—भीख मांगने का समय
भैक्षचरणम् —नपुं॰—भैक्ष+चरणम्—-—भीख मांगने के लिए इधर-उधर फिरना, भीख मांगना, भिक्षा एकत्र करना
भैक्षजीविका —स्त्री॰—भैक्ष+जीविका—-—भिखारीपन
भैक्षवृत्तिः —स्त्री॰—भैक्ष+वृत्तिः—-—भिखारीपन
भैक्षभुज् —पुं॰—भैक्ष+भुज्—-—भिखारी, भिखमंगा
भैक्षवम् —नपुं॰—-— भिक्षूणां समूहः-अण्—भिखारियों का समूह
भैक्षुकम् —नपुं॰—-— भिक्षूणां समूहः-अण्—भिखारियों का समूह
भैक्ष्यम् —नपुं॰—-— भिक्षा+ष्यञ्—मांग कर प्राप्त किया हुआ अन्न, भिक्षा, भीख, दान
भैम —वि॰—-— भीम+अण्—भीमविषयक
भैमी —स्त्री॰—-—-—भीम की पुत्री, नल की पत्नी दमयन्ती का पितृपरक नाम
भैमी —स्त्री॰—-—-—माघशुक्ला एकादशी, या उस दिन किया जाने वाला उत्सव
भैमसेनिः —पुं॰—-— भीमसेन+इञ्, ञ्य वा— भीमसेन का पुत्र
भैमसेन्यः —पुं॰—-— भीमसेन+इञ्, ञ्य वा— भीमसेन का पुत्र
भैरव —वि॰—-— भीरु+अण्—भयानक, डरावना, भीषण, भयावह
भैरवः —पुं॰—-—-—शिव का एक रूप
भैरवी —स्त्री॰—-—-—दुर्गादेवी का एक रूप
भैरवी —स्त्री॰—-—-—हिन्दू-संगीत पद्धति में एक विशेष रागिनी का नाम
भैरवी —स्त्री॰—-—-—बारह वर्ष की कन्या या किशोरी जो दुर्गा पूजा के उत्सव पर दुर्गा का प्रतिनिधित्व करे
भैरवम् —नपुं॰—-—-—त्रास, भीषणता
भैरवेशः —पुं॰—भैरव+ईशः—-—विष्णु का विशेषण, शिव का विशेषण
भैरवतर्जकः —पुं॰—भैरव+तर्जकः—-—काशी में जाकर शरीर त्यागने वाले व्यक्तियों की आत्मा को परमात्मा में लीन होने के योग्य बनाने के लिए भैरव द्वारा उनकी विशुद्धि के लिए उनको दी जाने वाली यातना
भैरवयातना —स्त्री॰—भैरव+यातना—-—काशी में जाकर शरीर त्यागने वाले व्यक्तियों की आत्मा को परमात्मा में लीन होने के योग्य बनाने के लिए भैरव द्वारा उनकी विशुद्धि के लिए उनको दी जाने वाली यातना
भैषजम् —नपुं॰—-— भेषज+अण्—औषधि, दवा
भैषजः —पुं॰—-—-—लवा पक्षी, लावक
भैषज्यम् —नपुं॰—-— भिषजः कर्म भेषज+स्वार्थे वा ष्यञ्—औषधियां देना, चिकित्सा करना
भैषज्यम् —नपुं॰—-—-—दवादारू, औषधि, दवाई
भैषज्यम् —नपुं॰—-—-—आरोग्यशक्ति, नीरोगकारिता
भैष्मकी —स्त्री॰—-— भीष्मक+अण्+ङीष्—विदर्भराज भीष्मक की पुत्री, रूक्मिंई का पितृपरक नाम
भोक्तृ —वि॰—-— भुज्+तृच्—उपभोक्ता
भोक्तृ —वि॰—-—-—कब्जा करने वाला
भोक्तृ —वि॰—-—-—उपभोग में लाने वाला, प्रयोक्ता
भोक्तृ —वि॰—-—-—महसूस करने वाला, अनुभव करने वाला, भोगने वाला
भोक्तृ —पुं॰—-—-—काविज, उपभोक्ता, उपयोक्ता
भोक्तृ —पुं॰—-—-—राजा, शासक
भोगः —पुं॰—-— भुज्+घञ्—खाना, खा पी जाना
भोगः —पुं॰—-—-—सुखोपयोग, आस्वाद
भोगः —पुं॰—-—-—उपयोगिता, उपादेयता
भोगः —पुं॰—-—-—हुकूमत करना, शासन, सरकार
भोगः —पुं॰—-—-—प्रयोग, व्यवहार
भोगः —पुं॰—-—-—भोगना, झेलना, अनुभव करना
भोगः —पुं॰—-—-—प्रतीति, प्रत्यक्षज्ञान
भोगः —पुं॰—-—-—स्त्री संभोग, मैथुन, विषयसुख
भोगः —पुं॰—-—-—उपभोग, उपभोग की वस्तु
भोगः —पुं॰—-—-—भोजन, दावत, भोज
भोगः —पुं॰—-—-—वेश्या को दी गई मजदूरी
भोगः —पुं॰—-—-—वक्र, घुमाव, चक्र
भोगः —पुं॰—-—-— साँप का फैलाया हुआ फण
भोगार्ह —वि॰—भोग+अर्ह—-—उपभोज्य
भोगार्हम् —नपुं॰—भोग+अर्हम्—-—संपत्ति, दौलत
भोगार्ह्यम् —नपुं॰—भोग+अर्ह्यम्—-—अनाज, अन्न
भोगाधिः —पुं॰—भोग+आधिः—-—बन्धक में रखी हुई वस्तु जिसका उपभोग तबतक किया जाय जबतक कि वह छुड़ाई न जाय
भोगावली —स्त्री॰—भोग+आवली—-— किसी व्यवसायिक प्रशस्तिवाचक द्वारा स्तुतिगान
भोगावासः —पुं॰—भोग+आवासः—-—जनानखाना, अन्तःपुर
भोगकर —वि॰—भोग+कर—-—सुखद या उपभोगप्रद
भोगगुच्छम् —नपुं॰—भोग+गुच्छम्—-—वेश्याओं को दी गई मजदूरी
भोगगृहम् —नपुं॰—भोग+गृहम्—-—महिलाकक्षा, अन्तःपुर, जनानखाना
भोगतृष्णा —स्त्री॰—भोग+तृष्णा—-—सांसारिक उपभोग की इच्छा
भोगदेहः —पुं॰—भोग+देहः—-—‘भोग शरीर’ सूक्ष्मशरीर या कारणशरीर जिसके द्वारा व्यक्ति परलोक में अपने पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मो का सुखदुःख भोगता हैं
भोगधरः —पुं॰—भोग+धरः—-— साँप
भोगपतिः —पुं॰—भोग+पतिः—-—राज्यपाल या विषयाधिपति
भोगपालः —पुं॰—भोग+पालः—-—साईस
भोगपिशाचिका —स्त्री॰—भोग+पिशाचिका—-—भूख
भोगभृतकः —पुं॰—भोग+भृतकः—-—जो केवल जीविका के लिए नौकरी करता हैं
भोगसद्यन् —नपुं॰—भोग+सद्यन्—-—भोगावास
भोगस्थानम् —नपुं॰—भोग+स्थानम्—-—उपभोग का आसन या शरीर
भोगस्थानम् —नपुं॰—भोग+स्थानम्—-—अन्तःपुर
भोगवत् —वि॰—-—भोग+मतुप्—सुखद,प्रसन्नता देने वाला, खुशी देने वाला
भोगवत् —वि॰—-—-—प्रसन्न, समृद्ध
भोगवत् —वि॰—-—-—वक्रवाला,मडंलाकार, कुण्डलाकार
भोगवत् —पुं॰—-—-—नृत्य, अभिनय, गायन
भोगवती —स्त्री॰—-—-—पताल गंगा का विशेषण
भोगवती —स्त्री॰—-—-—सर्पपिशाचिका
भोगवती —स्त्री॰—-—-—पताल लोक में नाग - पिशाचिकाओं का नगर
भोगवती —स्त्री॰—-—-—चन्द्रमास का द्वितीया तिथि की रात
भोगीकः —पुं॰—-—भोग+ ठन्—साईस, घोडे़ का रखवाला
भोगिन् —वि॰—-—भोग+इनि—खाने वाला
भोगिन् —वि॰—-—-—भोगनेवाला,अनुभव करने वाला, सहन करने वाला
भोगिन् —वि॰—-—-—उपभोक्ता,स्वामी-इन उपयुक्त् चार अर्थो में
भोगिन् —वि॰—-—-—उपभोग में मग्न, विषयवासनाओं में लिप्त
भोगिन् —वि॰—-—-—धनाढ्य, सम्पत्तिशाली
भोगिन् —पुं॰—-—-—गाँव का मुखिया
भोगिन् —पुं॰—-—-—आश्लेषा नक्षत्र
भोगिनी —स्त्री॰—-—-—राजा के अन्तःपुर की स्त्री जो रानी के रूप में अभिषिक्त न हो, रखैल, उपपत्नी
भोगीन्द्रः —पुं॰—भोगिन्+इन्द्रः—-—शेष या वासुकि
भोगीशः —पुं॰—भोगिन्+ईशः—-—शेष या वासुकि
भोगिकान्तः —पुं॰—भोगिन्+कान्तः—-—वायु, हवा
भोगिभुज् —पुं॰—भोगिन्+भुज्—-—नेवला
भोगिभुज् —पुं॰—भोगिन्+भुज्—-—मोर
भोगिवल्लभम् —नपुं॰—भोगिन्+वल्लभम्—-—चंदन
भोग्य —वि॰—-—भुज्+ण्यत्, कुत्वम्—उपभोग के योग्य या काम में लाने के योग्य
भोग्य —वि॰—-—-—भोगने योग्य या सहन करने लायक
भोग्यम् —नपुं॰—-—-—उपभोग का कोई पदार्थ
भोग्यम् —नपुं॰—-—-—दौलत, सम्पत्ति, जायदाद
भोग्यम् —नपुं॰—-—-—अनाज, अन्न
भोग्या —स्त्री॰—-—-—वेश्या, वारांगना
भोजः —वि॰—-—भुज्+अच्—मालवाका प्रसिद्ध राजा
भोजः —वि॰—-—-—एक देश का नाम
भोजः —वि॰—-—-—विदर्भ के राजा का नाम
भोजाः —पुं॰—-—-—एक जाति का नाम
भोजाधिपः —पुं॰—भोज+अधिपः—-—कंस का विशेषण
भोजेन्द्रः —पुं॰—भोज+इन्द्रः—-—भोजों का राजा
भोजकटम् —नपुं॰—भोज+कटम्—-—रुक्मी द्वारा स्थापित एक नगर का नाम
भोजदेवः —पुं॰—भोज+देवः—-—राजा भोज
भोजराजः —पुं॰—भोज+राजः—-—राजा भोज
भोजपतिः —पुं॰—भोज+पतिः—-—राजा भोज
भोजपतिः —पुं॰—भोज+पतिः—-—कंस का एक विशेषण
भोजनम् —नपुं॰—-—भुज्+ल्युट्—खाना, भोजन करना
भोजनम् —नपुं॰—-—-—भोजन, देना, खिलाना
भोजनम् —नपुं॰—-—-—उपयोग करना
भोजनम् —नपुं॰—-—-—उपभोग करना
भोजनम् —नपुं॰—-—-—उपभोग की सामग्री
भोजनम् —नपुं॰—-—-—जिसका उपभोग किया जाय
भोजनम् —नपुं॰—-—-—संपत्ति, दौलत, जायदाद
भोजनः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
भोजनाधिकारः —पुं॰—भोजनम्+अधिकारः—-—चारे का कार्यभार, खाद्यसामग्री का अधीक्षण, कार्याध्यक्ष का पद
भोजनाच्छादनम् —नपुं॰—भोजनम्+आच्छादनम्—-—खाना-कपड़ा
भोजनकालः —पुं॰—भोजनम्+कालः—-—भोजन करने का समय, खाने का समय
भोजनवेला —स्त्री॰—भोजनम्+वेला—-—भोजन करने का समय, खाने का समय
भोजनसमयः —पुं॰—भोजनम्+समयः—-—भोजन करने का समय, खाने का समय
भोजनत्यागः —पुं॰—भोजनम्+त्यागः—-—आहार का त्याग
भोजनभूमिः —स्त्री॰—भोजनम्+भूमिः—-—भोजनकक्ष, खाने का कमरा
भोजनविशेषः —पुं॰—भोजनम्+विशेषः—-—स्वादिष्ट भोजन, विशिष्ट भोजन
भोजनवृत्तिः —स्त्री॰—भोजनम्+वृत्तिः—-—भोजन, आहार
भोजनव्यग्र —वि॰—भोजनम्+व्यग्र—-—खाने में व्यस्त
भोजनव्ययः —पुं॰—भोजनम्+व्ययः—-—खाने-पीने का खर्च
भोजनीय —वि॰—-—भुज्+अनीयर्—भक्षणीय, खाने योग्य
भोजयितृ —वि॰—-—भुज्+णिच्+तृच्—जो दूसरों को भोजन कराये, खिलाने वाला
भोज्य —वि॰—-—भुज्+ण्यत् —जो खाया जा सके
भोज्य —वि॰—-—-—उपभोग के योग्य, अधिकार में करने योग्य
भोज्य —वि॰—-—-—भोगने के योग्य, अनुभव करने लायक
भोज्य —वि॰—-—-—संभोग-सुख के योग्य
भोज्यम् —नपुं॰—-—-—आहार-खाना
भोज्यम् —नपुं॰—-—-—खाद्य सामग्री का भंडार, खाद्य पदार्थ
भोज्यम् —नपुं॰—-—-—स्वादिष्ट भोजन
भोज्यकालः —पुं॰—भोज्य+कालः—-—भोजन करने का समय
भोज्यसम्भवः —पुं॰—भोज्य+सम्भवः—-—आमरस, शरीर का प्राथमिक रस
भोज्या —स्त्री॰—-—भोज्य+टाप्—भोज की एक रानी
भोटः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम
भोटाङ्गः —पुं॰—भोट+अङ्गः—-—‘भूटान’ कहलाने वाला प्रदेश
भोटीय —वि॰—-—भोट+छ—तिब्बतवासी
भोमीरा —स्त्री॰—-—-—मूंगा, विद्रुभ
भोस् —अव्य॰—-—भा+डोस्—संबोधन सूचक अव्यय जिसका अनुवाद होता हैं ‘अरे,ओ,अहो,ओह,आह
भौजङ्ग —वि॰—-—भुजङ्ग+अण्—सर्पिल, साँप जैसा
भौजङ्गम् —नपुं॰—-—-—‘आश्लेषा’ नामक नक्षत्र
भौटः —पुं॰—-—भोट+अण्, पृषो॰—तिब्बती, तिब्बतवासी
भौत —वि॰—-—भूतानि प्राणिनोऽधिकृत्य प्रवृत्तः ताति देवता वा अस्य अण्—जीवित प्राणियों से संबंध रखने वाला
भौत —वि॰—-—-—मूलभूत, भौतिक
भौत —वि॰—-—-—पागल, विक्षिप्त
भौतः —पुं॰—-—-—भूत-प्रेत और पिशाचों की पूजा करने वाला, देवल, पुजारी
भौतम् —नपुं॰—-—-—भूत-प्रेतों का समूह
भौतिक —वि॰—-—भूत+ठक्—जीवित प्राणियों से संबंध रखने वाला
भौतिक —वि॰—-—-—स्थूल तत्त्वों से निर्मित, मौलिक, भौतिक
भौतिक —वि॰—-—-—भूत-प्रेतों से संबंध रखने वाला
भौतिकः —पुं॰—-—-—शिव का नाम
भौतिकमठः —पुं॰—भौतिक+मठः—-—विहार
भौतिकविद्या —स्त्री॰—भौतिक+विद्या—-—जादूगरी, अभिचार
भौम —वि॰;स्त्री॰—-—भूमि+अण्—पार्थिव
भौम —वि॰;स्त्री॰—-—-— पृथ्वी पर होनेवाला, मिट्टी बना हुआ, लौकिक
भौम —वि॰;स्त्री॰—-—-—मिट्टी का, मिट्टी से निर्मित
भौम —वि॰;स्त्री॰—-—-—मंगल से संबंद्ध
भौमः —पुं॰—-—-—नरकासुर का विशेषण
भौमदिनम् —नपुं॰—भौम+दिनम्—-—मंगलवार
भौमधारः —पुं॰—भौम+धारः—-—मंगलवार
भौमवासरः —पुं॰—भौम+वासरः—-—मंगलवार
भौमरत्नम् —नपुं॰—भौम+रत्नम्—-—मूँगा
भौमनः —पुं॰—-—भूमन्+अण्—देवों के शिल्पी विश्वकर्मा का नाम
भौमिक —वि॰—-—भुमि+ठक् यत् वा—पार्थिव, लौकिक, पृथ्वी पर रहने वाला या विद्यमान
भौम्य —वि॰—-—भुमि+ठक् यत् वा—पार्थिव, लौकिक, पृथ्वी पर रहने वाला या विद्यमान
भौरिकः —पुं॰—-—भूरि सुवर्णमधिकरोति-ठक्—राजकीय कोश में सुवर्णाध्यक्ष, कोपाध्यक्ष्
भौवनः —पुं॰—-—-—देवों के शिल्पी विश्वकर्मा का नाम
भौवादिक —वि॰—-—भ्वादि+ठक्—भ्वादि अर्थात् भू से आरम्भ होने वाली धातुओं से सम्बन्ध रखे वाला
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—गिरना, टपकना, उलट जाना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—गिरना, विचलित होना, अलग टूट जाना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—वञ्चित होना, खो देना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—बच निकलना, भाग जाना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—क्षीण होना, मुर्झाना, घटना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रंशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—ओझल होना, नष्ट होना, अलग होना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रंशयति>,<भ्रंशयते>—-—-—गिराना, पछाड़ देना
भ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रंशयति>,<भ्रंशयते>—-—-—वञ्चित करना
परिभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंश्—-—गिरना, टपकना, उलटना, फिसलना
परिभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंश्—-—बहकना, भटकना
परिभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंश्—-—अलग हो जाना, पथभ्रष्ट होना, विचलित होना
परिभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंश्—-—खोना वञ्चित होना
प्रभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रंश्—-—गिरना, टपकना,फिसलना
प्रभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रंश्—-—खोदना, वञ्चित होना
प्रभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰.प्रेर॰—प्र+भ्रंश्—-—पछाड़ना, नीचे डालना, नीचे गिराना
विभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंश्—-—गिरना, टपकना
विभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंश्—-—बर्बाद होना, क्षीण होना
विभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंश्—-—गिरना, भटकना, पथभ्रष्ट होना
विभ्रंश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंश्—-—खो देना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—गिर पड़ना, टपक पड़ना, गिरना, फिसलना नीचे गिरना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—क्षीण होना,ह्रास होना, घटना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—पतन नाश, बर्बादी, विध्वंस
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—भाग जाना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—ओझल हो जाना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—खो जाना, हानि, वञ्चना
भ्रंशः —पुं॰—-—भ्रंश् भावे घञ्—भटकने वाला, भ्रष्ट हो जाने वाला, विचलित
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—गिर पड़ना, टपक पड़ना, गिरना, फिसलना नीचे गिरना
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—क्षीण होना,ह्रास होना, घटना
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—पतन नाश, बर्बादी, विध्वंस
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—भाग जाना
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—ओझल हो जाना
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—खो जाना, हानि, वञ्चना
भ्रंसः —पुं॰—-—भ्रंस् भावे घञ्—भटकने वाला, भ्रष्ट हो जाने वाला, विचलित
भ्रंशथुः —पुं॰—-—भ्रंश्+अथुच्—नाक का एक रोग, पीनस
भ्रंशन —वि॰—-—भ्रंश्+ल्युट्—नीचे फेंक देने वाला
भ्रंसन —वि॰—-—भ्रंस्+ल्युट्—नीचे फेंक देने वाला
भ्रंशनम् —नपुं॰—-—भ्रंस्+ल्युट्—गिर पड़ने की क्रिया
भ्रंशनम् —नपुं॰—-—भ्रंस्+ल्युट्—गिरना, वञ्चित होना, खो देना
भ्रंसनम् —नपुं॰—-—भ्रंस्+ल्युट्—गिर पड़ने की क्रिया
भ्रंसनम् —नपुं॰—-—भ्रंस्+ल्युट्—गिरना, वञ्चित होना, खो देना
भ्रंशिन् —वि॰—-—भ्रंश्+णिनि—नीचे गिरने वाला, पतनशील
भ्रंशिन् —वि॰—-—भ्रंश्+णिनि—जीर्ण होने वाला
भ्रंशिन् —वि॰—-—भ्रंश्+णिनि—भटकने वाला
भ्रंशिन् —वि॰—-—भ्रंश्+णिनि—बर्बाद होने वाला, नष्ट होने वाला
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—गिरना, टपकना, उलट जाना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—गिरना, विचलित होना, अलग टूट जाना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—वञ्चित होना, खो देना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—बच निकलना, भाग जाना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—क्षीण होना, मुर्झाना, घटना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—ओझल होना, नष्ट होना, अलग होना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—गिराना, पछाड़ देना
भ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—-—-—वञ्चित करना
परिभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंस्—-—गिरना, टपकना, उलटना, फिसलना
परिभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंस्—-—बहकना, भटकना
परिभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंस्—-—अलग हो जाना, पथभ्रष्ट होना, विचलित होना
परिभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रंस्—-—खोना वञ्चित होना
प्रभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रंस्—-—गिरना, टपकना,फिसलना
प्रभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रंस्—-—खोदना, वञ्चित होना
प्रभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰.प्रेर॰—प्र+भ्रंस्—-—पछाड़ना, नीचे डालना, नीचे गिराना
विभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंस्—-—गिरना, टपकना
विभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंस्—-—बर्बाद होना, क्षीण होना
विभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंस्—-—गिरना, भटकना, पथभ्रष्ट होना
विभ्रंस् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रंस्—-—खो देना
भ्रंकुशः —पुं॰—-—भ्रुवा क्रुंशो भाषणं यस्य ब॰स॰ अकारादेशः—स्त्री की भेशभूषा में नट
भ्रक्ष —भ्वा॰ उभ॰ <भ्रक्षति>, <भ्रक्षते>—-—-—खाना, निगलना
भ्रज्जनम् —नपुं॰—-—भ्रस्ज्+ल्युट्—तलने की क्रिया, भूनना, सेकना
भ्रण् —भ्वा॰पर॰ <भ्रणति>—-—-—शब्द करना
भ्रभङ्गः —पुं॰—-—-—भौंहो की सिकुड़न वा कुटिलता
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—इधर-उधर घूमना, हिलना-जुलना, मारा-मारा फिरना, टहलना
भिक्षांभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —-—-—इधर-उधर मांगते फिरना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—मुड़ना, चक्कर काटना, घूमना, वर्तुलाकार गति होना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—भटक जाना, भटकना, इधर-उधर होना, विचलित होना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—डगमगाना, लड़खड़ाना, डांवाडोल होना, संदेह की अवस्था में होना, झिझकना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—भूल करना, भूल में ग्रस्त होना, गलती पर होना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—फुरफुराना, फड़फड़ाना, कांपना, चंचल होना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ <भ्रमति>, <भ्रम्यति>, <भ्राम्यति>, <भ्रान्त>—-—-—घेरना
भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰प्रेर॰<भ्रमयति>,<भ्रमयते>,<भ्रामयति>,<भ्रामयते>—-—-—टहलना, फिराना, घुमाना, चक्कर दिलाना, आवर्तित करना
भ्रम् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रशयति>,<भ्रशयते>—-—-—भुलाना, भ्रम में डालना, गुमराह करना, उलझाना, उद्विग्न करना, झंझट में डालना, चकरा देना, डांवाडोल करना
भ्रम् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रशयति>,<भ्रशयते>—-—-—लहराना, तलवार घुमाना, दोलायमान करना
उद्भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —उद्+भ्रम्—-—भ्रमण करना, इधर-उधर घूमना, गड़बड़ा जाना
उद्भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —उद्+भ्रम्—-— भूलना, भूल में पड़ना
उद्भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —उद्+भ्रम्—-—विक्षुब्ध होना, व्याकुल होना
परिभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —परि+भ्रम्—-—टहलना, घूमना, भ्रमण करना, इधर-उधर हिलना-जुलना
परिभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —परि+भ्रम्—-—मंडराना, चक्कर लगाना
परिभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —परि+भ्रम्—-—घूमता, परिक्रमा करना, मुड़ना
परिभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —परि+भ्रम्—-—घूमना, मारा-मारा फिरना
परिभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —परि+भ्रम्—-—मोड़ना, प्रदक्षिणा करना
विभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —वि+भ्रम्—-—घूमना, इधर-उधर चक्कर काटना
विभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —वि+भ्रम्—-—मंडराना, आवर्तित होना, चक्कर खाना
विभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —वि+भ्रम्—-—उड़ा देना, तितर-बितर करना, इधर-उधर बिखेरना
विभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰ —वि+भ्रम्—-—गड़बड़ा जाना, अव्यवस्थित होना, व्याकुल होना, विस्मित होमा
विभ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰प्रेर॰—वि+भ्रम्—-—घबरा देना, उद्विग्न करना
सम्भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—सम्+भ्रम्—-—घूमना, टहलना
सम्भ्रम् —भ्वा॰ दिवा॰ पर॰—सम्+भ्रम्—-—गलती पर होना, व्याकुल होना, उद्विग्न होना, घबड़ा जाना
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—घूमना, टहलना, चहलकदमी करना
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—चक्कर खाना, आवर्तित होना, घूम जाना
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—चक्राकार गति, परिक्रमा
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—भटकना, विचलित होना
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्— भूल, गलती, अशुद्धि, गलतफहमी, भ्रान्ति
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—गड़बड़ी, व्याकुलता, उलझन
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—भंवर, जलावर्त
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—कुम्हार का चक्र
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—चक्की का पाट
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—खराद
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—घूर्णि
भ्रमः —पुं॰—-—भ्रम्+घञ्—फौवारा, जल प्रवाह
भ्रमाकुल —वि॰—भ्रम+आकुल—-—घबराया हुआ
भ्रमासक्त —वि॰—भ्रम+आसक्त—-— सिकलीगर, शस्त्रमार्जक
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—इधर-उधर घूमना, टहलना
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—मुड़ना, क्रान्ति
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—विचलन, पथभ्रंशन
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—कांपना, डगमगाना, चंचलता, लड़खड़ाना
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—गलती करना
भ्रमणम् —नपुं॰—-—भ्रम्+ल्युट्—घूर्णन, घुमेरी
भ्रमणी —स्त्री॰—-—भ्रम्+ल्युट्+ङीप्—एक प्रकार का खेल
भ्रमणी —स्त्री॰—-—भ्रम्+ल्युट्+ङीप्—जोक
भ्रमत् —वि॰—-—भ्रम्+शतृ—घूमना, टहलना आदि
भ्रमकुटी —स्त्री॰—भ्रमत्+कुटी—-—एक प्रकार का छाता
भ्रमरः —पुं॰—-—भ्रम्+करन्—मधुमक्खी, भौंरा
भ्रमरः —पुं॰—-—-—प्रेमी, सौन्दर्यप्रेमी, लम्पट
भ्रमरः —पुं॰—-—-—कुम्हार का चाक
भ्रमरम् —नपुं॰—-—-—घूर्णन, घुमेरी
भ्रमरातिथिः —पुं॰—भ्रमर+अतिथिः—-—चम्पा का पौधा
भ्रमराबिलीन —वि॰—भ्रमर+अबिलीन—-—मक्खियों से लिपटा हुआ
भ्रमरालकः —पुं॰—भ्रमर+अलकः—-—मस्तक पर की लट
भ्रमरेष्टः —पुं॰—भ्रमर+इष्टः—-—श्योनाक का वृक्ष
भ्रमरोत्सवा —स्त्री॰—भ्रमर+उत्सवा—-—माधवी लता
भ्रमरकरण्डकः —पुं॰—भ्रमर+करण्डकः—-—मक्खियों से भरी हुई पेटी
भ्रमरकीटः —पुं॰—भ्रमर+कीटः—-—भिर्रों की जाति
भ्रमरप्रियः —पुं॰—भ्रमर+प्रियः—-—कदम्ब वृक्ष का एक भेद
भ्रमरबाधा —स्त्री॰—भ्रमर+बाधा—-—भौंरे द्वारा सताया जाना
भ्रमरमण्डलम् —नपुं॰—भ्रमर+मण्डलम्—-—मक्खियों (भौंरों) का झुंड
भ्रमरक —वि॰—-—भ्रमर+कन्—भौंरा
भ्रमरक —वि॰—-—-—जलावर्त, भंवर
भ्रमरकः —पुं॰—-—-—मस्तक पर लटकने वाली बालों की लट
भ्रमरकः —पुं॰—-—-—खेलने के लिए गेंद
भ्रमरकम् —नपुं॰—-—-—मस्तक पर लटकने वाली बालों की लट
भ्रमरकम् —नपुं॰—-—-—खेलने के लिए गेंद
भ्रमरिका —स्त्री॰—-—भ्रमरक+टाप् इत्वम्— सब दिशाओं में घूमने वाली
भ्रमिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+इ—आवर्तन, मोड़, चक्राकार गति, इधर-उधर घुमना, क्रान्ति
भ्रमिः —स्त्री॰—-—-—कुम्हार का चाक
भ्रमिः —स्त्री॰—-—-—खैरादी की खराद
भ्रमिः —स्त्री॰—-—-—गोलाकार सैनिक
भ्रमिः —स्त्री॰—-—-—भूल, गलती
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—गिरना, टपकना, उलट जाना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—गिरना, विचलित होना, अलग टूट जाना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—वञ्चित होना, खो देना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—बच निकलना, भाग जाना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—क्षीण होना, मुर्झाना, घटना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰ <भ्रशते>, <भ्रश्यति>, <भ्रष्टः>—-—-—ओझल होना, नष्ट होना, अलग होना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रंशयति>,<भ्रंशयते>—-—-—गिराना, पछाड़ देना
भ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰, प्रेर॰<भ्रंशयति>,<भ्रंशयते>—-—-—वञ्चित करना
परिभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रश्—-—गिरना, टपकना, उलटना, फिसलना
परिभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रश्—-—बहकना, भटकना
परिभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रश्—-—अलग हो जाना, पथभ्रष्ट होना, विचलित होना
परिभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—परि+भ्रश्—-—खोना वञ्चित होना
प्रभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रश्—-—गिरना, टपकना,फिसलना
प्रभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—प्र+भ्रश्—-—खोदना, वञ्चित होना
प्रभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰.प्रेर॰—प्र+भ्रश्—-—पछाड़ना, नीचे डालना, नीचे गिराना
विभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रश्—-—गिरना, टपकना
विभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रश्—-—बर्बाद होना, क्षीण होना
विभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रश्—-—गिरना, भटकना, पथभ्रष्ट होना
विभ्रश् —भ्वा॰आ॰, दिवा॰ पर॰—वि+भ्रश्—-—खो देना
भ्रशिमन् —पुं॰—-—भृशस्य भावः इयनिच्, ऋतो रः—प्रचंडता, अत्यधिकता, उग्रता, उत्कटता
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—पतित, नीचे पड़ा हुआ
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—गिरा हुआ
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—भटका हुआ, विचलित
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—वियुक्त, वञ्चित, निश्ःकाषित, निकाला हुआ
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—मुर्झाया हुआ, क्षीण, बर्बाद
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—ओझल, खोया हुआ
भ्रष्ट —वि॰—-—भ्रंश्+क्त—दुश्चरित्र, दूषितचरित्र
भ्रष्टाधिकार —वि॰—भ्रष्ट+अधिकार—-—अपनी शक्ति या पद से वञ्चित, पदच्युत
भ्रष्टक्रिय —वि॰—भ्रष्ट+क्रिय—-—विहित कर्मों को जिसने नहीं किया
भ्रष्टगुद —वि॰—भ्रष्ट+गुद—-—एक प्रकार के गुदारोग से ग्रस्त
भ्रष्टयोगः —पुं॰—भ्रष्ट+योगः—-—जो धर्मच्युत हो गया हो
भ्रस्ज —तुदा॰ उभ॰<भृज्जति>, <भृष्ट>—-—-—तलना, भूनना, सेकना, कील पर मांस भूनना
भ्रस्ज —तुदा॰ उभ॰प्रेर॰<भर्जयति>,<भर्जयते>,<भ्रज्जयति>,<भ्रज्जयते>—-—-—तलना, भूनना, सेकना, कील पर मांस भूनना
भ्रस्ज —तुदा॰ उभ॰इच्छा॰<बिभर्क्षति>, <बिभर्जिषति>, <बिभ्रज्जिषति>—-—-—तलना, भूनना, सेकना, कील पर मांस भूनना
भ्राज् —भ्वा॰ आ॰ <भ्राजते>—-—-—चमकना, दमकना,चमचमाना, जगमगाना
विभ्राज् —भ्वा॰ आ॰ —वि+भ्राज्—-—जगमग करना, देदीप्यमान होना
भ्राजः —पुं॰—-—भ्राज्+क—सात सूर्यों में से एक
भ्राजम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का साम
भ्राजक —वि॰—-—भ्राज्+ण्वुल्—चमकाने वाला, देदीप्यमान
भ्राजकम् —नपुं॰—-—-— पित्त, त्वचा में व्याप्त पित्त
भ्राजथुः —पुं॰—-—भ्राज्+अथुच्—आभा, कान्ति, उज्जवलता, सौन्दर्य
भ्राजिन् —वि॰—-—भ्राज्+ णिनि—चमकने वाला, जगमगाने वाला
भ्राजिष्णु —वि॰—-—भ्राज्+इष्णुच्—चमकने वाला, देदीप्यमान, उज्जवल, दीप्तिकेन्द्र
भ्राजिष्णुः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
भ्राजिष्णुः —पुं॰—-—-—विष्णु का विशेषण
भ्रातृ —पुं॰—-—भ्राज्+तृच् पृषो॰—भाई, सहोदर
भ्रातृ —पुं॰—-—-—घनिष्ठ मित्र या संबंधी
भ्रातृ —पुं॰—-—-—निकटवर्ती, रिश्तेदार
भ्रातृ —पुं॰—-—-—मित्रवत् संबोधन का चिह्न
भ्रातृगन्धि —वि॰—भ्रातृ+गन्धि—-—जिसका भाई केवल नाम के लिए हो, नाम मात्र का भाई
भ्रातृगन्धिक —पुं॰—भ्रातृ+गन्धिक—-—जिसका भाई केवल नाम के लिए हो, नाम मात्र का भाई
भ्रातृजः —पुं॰—भ्रातृ+जः—-—भतीजा
भ्रातृजा —स्त्री॰—भ्रातृ+जा—-—भतीजी
भ्रातृजाया —स्त्री॰—भ्रातृ+जाया—-—भाई की पत्नी, भाभी
भ्रातृदत्तम् —नपुं॰—भ्रातृ+दत्तम्—-—बहन के विवाह पर भाई द्वारा बहन को दी गई संपत्ति
भ्रातृद्वितीया —स्त्री॰—भ्रातृ+द्वितीया—-—कार्तिक शुक्ल पक्ष का द्वितीया
भ्रातृपुत्रः —पुं॰—भ्रातृ+पुत्रः—-—भतीजा
भ्रातृबधुः —पुं॰—भ्रातृ+बधुः—-—भाई की पत्नी
भ्रातृश्वसुरः —पुं॰—भ्रातृ+श्वसुरः—-—पति का बड़ा भाई, जेठ
भ्रातृहत्या —स्त्री॰—भ्रातृ+हत्या—-—भाई की हत्या
भ्रातृक —वि॰—-—भ्रातृ+कन्—भाई से संबंध रखने वाला
भ्रातृव्यः —पुं॰—-—भ्रातुः पुत्रः व्यत्—भाई का बेटा, भतीजा
भ्रातृव्यः —पुं॰—-—-—शत्रु, विरोधी
भ्रातृबल —वि॰—-—भ्रातृ+वलच्—जिसके एक या अधिक भाई हो
भ्रात्रीयः —पुं॰—-—भ्रातृ+छ—भाई का पुत्र, भतीजा
भ्रात्रेयः —पुं॰—-—भ्रातृ+छ—भाई का पुत्र, भतीजा
भ्रात्र्यम् —नपुं॰—-—भ्रातृ+ष्यञ्—भाईचारा, भ्रातृभाव
भ्रान्त —वि॰—-—भ्रम+क्त—इधर-उधर घूमा फिरा हुआ
भ्रान्त —वि॰—-—-—मुड़ा हुआ चक्कर खाया हुआ, घुमाया हुआ
भ्रान्त —वि॰—-—-—भूला हुआ, कुपथगामी, भटका हुआ
भ्रान्त —वि॰—-—-—घबड़ाया हुआ, गड़बड़ाया हुआ, इधर-उधर घूमने फिरने वाला, इधर से उधर और उधर से इधर घूमने फिरने वाला, चक्कर काटने वाला
भ्रान्तम् —नपुं॰—-—-—घूमना, इधर उधर फिरना
भ्रान्तम् —नपुं॰—-—-—गलती, भूल
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—इधर उधर फिरना, घूमना
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—घूमकर मुड़ना, मटरगस्त करना
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—क्रान्ति, गोलाकार या चक्राकार घूमना
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—भूल, गलती, भ्रम, व्यामोह, मिथ्याभाव
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—घबराहट, उद्विग्नता
भ्रान्तिः —स्त्री॰—-—भ्रम्+क्तिन्—संदेह, अनिश्चय, शेंका
भ्रान्तिकर —वि॰—भ्रान्ति+कर—-—विह्वल करने वाला, भ्रम में डालने वाला
भ्रान्तिनाशनः —पुं॰—भ्रान्ति+नाशनः—-—शिव का विशेषण
भ्रान्तिहर —वि॰—भ्रान्ति+हर—-—संदेह या भूल को दूर करने वाला
भ्रान्तिमत् —वि॰—-—भ्रान्ति+मतुप्—घूमने वाला, मुड़ने वाला
भ्रान्तिमत् —वि॰—-—-—भूल करने वाला, गलती करने वाला, भ्रमयुक्त
भ्रान्तिमत् —पुं॰—-—-—एक अलंकार जिसमें दो वस्तुओं की पारस्परिक समानता के कारण एक वस्तु को भूल से अन्य वस्तु समझ लिया जाता हैं
भ्रामः —पुं॰—-—भ्रम्+अण्—इधर उधर घूमना
भ्रामः —पुं॰—-—-—मोह, भूल, गलती
भ्रामक —वि॰—-—भ्रम+णिच्+ण्वुल्—घुमाने वाला
भ्रामक —वि॰—-—-—आवर्तित करने वाला
भ्रामक —वि॰—-—-—उलझाने वाला, धोखा देने वाला
भ्रामकः —पुं॰—-—-—सुरजमुखी का फूल
भ्रामकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का चुंबक पत्थर
भ्रामकः —पुं॰—-—-—धोखेबाज, बदमाश, ठग
भ्रामर —वि॰—-—भ्रमरेण सभृतं भ्रमरस्येदं वा अण्—भ्रमर संबंधी
भ्रामरः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का चुंबक पत्थर
भ्रामरम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का चुंबक पत्थर
भ्रामरम् —नपुं॰—-—-—चक्कर काटना
भ्रामरम् —नपुं॰—-—-—आघूर्णन
भ्रामरम् —नपुं॰—-—-—अपस्मार, मिरगी
भ्रामरम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का रतिबन्ध, संभोग का आसन विशेष
भ्रामरी —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का विशेषण
भ्रामरी —स्त्री॰—-—-—चारों ओर घूमना, प्रदक्षिणा करना
भ्राश् —भ्वा॰ दिवा॰ आ॰ <भ्राशते>, <भ्राश्यन्ते>—-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
भ्लाश् —भ्वा॰ दिवा॰ आ॰ <भ्लाशते>, <भ्लाश्यते>—-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
भ्राष्ट्रः —पुं॰—-—भ्रस्ज्+ष्ट्रन्—कड़ाही
भ्राष्ट्रम् —नपुं॰—-—भ्रष्ट्र+अण् वा—कड़ाही
भ्राष्ट्रः —पुं॰—-—-—प्रकाश
भ्राष्ट्रः —पुं॰—-—-—अन्तरिक्ष
भ्राष्ट्रमिन्ध —वि॰—-—भ्राष्ट्र+इन्ध्+अण्, मुम्—तलने वाला या भूनने वाला, भड़भूजा
भ्रास् ——-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
भ्लास् ——-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
भ्रुकुंशः —पुं॰—-—भ्रुवा कुंशो भाषणं यस्य व॰ स॰ ह्रस्वो वैकल्पिकः—स्त्री की वेशभूषा में नाटक का पुरुषपात्र
भ्रुकुंसः —पुं॰—-—भ्रुवा कुंसो भाषणं यस्य व॰ स॰ ह्रस्वो वैकल्पिकः—स्त्री की वेशभूषा में नाटक का पुरुषपात्र
भ्रूकुंशः —पुं॰—-—भ्रूवा कुंशो भाषणं यस्य व॰ स॰ ह्रस्वो वैकल्पिकः—स्त्री की वेशभूषा में नाटक का पुरुषपात्र
भ्रूकुंसः —पुं॰—-—भ्रूवा कुंसो भाषणं यस्य व॰ स॰ ह्रस्वो वैकल्पिकः—स्त्री की वेशभूषा में नाटक का पुरुषपात्र
भ्रुकुटिः —स्त्री॰—-—भ्रुवः कुटिः कौटिल्यम् -ष॰त॰—भौंहो कि सिकुडन या कुटिलता, त्यौरी चढ़ाना
भ्रुकुटी —स्त्री॰—-—भ्रुवः कुटिः कौटिल्यम् -ष॰त॰—भौंहो कि सिकुडन या कुटिलता, त्यौरी चढ़ाना
भ्रुड् —तुदा॰ पर॰ <भ्रुडति>—-—-—संचय करना, एकत्रित करना
भ्रुड् —तुदा॰ पर॰ <भ्रुडति>—-—-—ढकना
भ्रू —स्त्री॰—-—भ्रम्+डू—भौंह, आँख की भौंह
भ्रूकुटिः —स्त्री॰—भ्रू+कुटिः—-—भौंहो कि सिकुडन या कुटिलता, त्यौरी चढ़ाना
भ्रूकुटी —स्त्री॰—भ्रू+कुटी—-—भौंहो की सिकुड़न या कुटिलता, त्यौरी चढ़ाना
भ्रूबन्ध —वि॰—-—-—भ्रूभंग या भ्रूभंगिमा
भ्रूरचना —स्त्री॰—-—-—भ्रूभंग या भ्रूभंगिमा
भ्रूकुटिं बन्ध् —वि॰—-—-—भौंहें सिकुडना, त्यौरी चढ़ाना
भ्रूकुटिं रच् —वि॰—-—-—भौंहें सिकुडना, त्यौरी चढ़ाना
भ्रूक्षेपः —पुं॰—भ्रू+क्षेपः—-—भौंहों को सिकुड़ना
भ्रूजाहम् —नपुं॰—भ्रू+जाहम्—-—भौंह का मूल
भ्रूभङ्गः —पुं॰—भ्रू+भङ्गः—-—भौंहो की सिकुड़न वा कुटिलता
भ्रूभेदः —पुं॰—भ्रू+भेदः—-—भौंहो की सिकुड़न वा कुटिलता
सभ्रूभङ्गम् —नपुं॰—-—-—त्यौरी चढ़ाकर
भ्रूभेदिन् —वि॰—भ्रू+भेदिन्—-—त्यौरी चढ़ाये हुए
भ्रूमध्यम् —नपुं॰—भ्रू+मध्यम्—-—भौंहो के बीच का स्थान
भ्रूलता —स्त्री॰—भ्रू+लता—-—बेल की भांति भौंह, महराबदार या कुटिल भौंह
भ्रूविकारः —पुं॰—भ्रू+विकारः—-—भौंहो की सिकुड़न
भ्रूविक्रिया —स्त्री॰—भ्रू+विक्रिया—-—भौंहो की सिकुड़न
भ्रूविक्षेपः —पुं॰—भ्रू+विक्षेपः—-—भौंहो की सिकुड़न
भ्रूविचेष्टितम् —नपुं॰—भ्रू+विचेष्टितम्—-—भौंहो का मोहक संचालन, भौंहों की कामकेलि
भ्रूविभ्रमः —पुं॰—भ्रू+विभ्रमः—-—भौंहो का मोहक संचालन, भौंहों की कामकेलि
भ्रूविलासः —पुं॰—भ्रू+विलासः—-—भौंहो का मोहक संचालन, भौंहों की कामकेलि
भ्रूणः —पुं॰—-—भ्रूण्+घञ्—गर्भ, कलल
भ्रूणः —पुं॰—-—-—बच्चा, बालक
भ्रूणघ्न —वि॰—भ्रूण+घ्न—-—भ्रूण हत्या करने वाला
भ्रूणहन् —वि॰—भ्रूण+हन्—-—भ्रूण हत्या करने वाला
भ्रूणहतिः —स्त्री॰—भ्रूण+हतिः—-—भ्रूण का गिराना, गर्भपात कराना
भ्रूणहत्या —स्त्री॰—भ्रूण+हत्या—-—भ्रूण का गिराना, गर्भपात कराना
भ्रेज् —भ्वा॰ आ॰ <भ्रेजते>—-—-—चमकना
भ्रेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्रेषति>, <भ्रेषते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
भ्रेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्रेषति>, <भ्रेषते>—-—-—गिरना लड़खड़ाना, डगमगाना, फिसलना
भ्रेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्रेषति>, <भ्रेषते>—-—-—डरना
भ्रेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्रेषति>, <भ्रेषते>—-—-—क्रोध करना
भ्लेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्लेषति>, <भ्लेषते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
भ्लेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्लेषति>, <भ्लेषते>—-—-—गिरना लड़खड़ाना, डगमगाना, फिसलना
भ्लेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्लेषति>, <भ्लेषते>—-—-—डरना
भ्लेष् —भ्वा॰ उभ॰ <भ्लेषति>, <भ्लेषते>—-—-—क्रोध करना
भ्रेषः —पुं॰—-—भ्रेष्+घञ्—हिलना-जुलना, गति
भ्रेषः —पुं॰—-—-—लड़खड़ाना, डगमगाना, फिसलना
भ्रेषः —पुं॰—-—-—विचलित होना, भटकना, पथभ्रंश
भ्रेषः —पुं॰—-—-—सत्य से विचलन, अतिक्रमण, पाप
भ्रेषः —पुं॰—-—-—हानि, वंचना
भ्रौणहत्यम् —नपुं॰—-—भ्रूणहत्या+अण्—गर्भस्थ शिशु की हत्या
भ्लक्ष् ——-—-—खाना, निगलना
भ्लाश् ——-—-—चमकना, दमकना, जगमगाना
मम् —नपुं॰—-—-—प्रसन्नता, कल्याण
मकरः —पुं॰—-—मं + विषं किरति - कॄ + अच् @ तारा॰—एक प्रकार का समुद्री-जन्तु,घडियाल, मगरमच्छ
मकरः —पुं॰—-—-—मकरव्यूह, सेना को मकराकार स्थिति में क्रमबद्ध करना
मकरः —पुं॰—-—-—मकर के आकार का कुंडल
मकरः —पुं॰—-—-—मकर के रूप में हाथों को बाँधना
मकरः —पुं॰—-—-—कुबेर की नौ निधियों में से एक
मकराङ्कः —पुं॰—मकर-अङ्कः—-—कामदेव का विशेषण
मकराङ्कः —पुं॰—मकर-अङ्कः—-—समुद्र का विशेषण
मकराश्वः —पुं॰—मकर-अश्वः—-—वरुण का विशेषण
मकराकरः —पुं॰—मकर-आकरः—-—समुद्र, सागर
मकरालयः —पुं॰—मकर-आलयः—-—समुद्र, सागर
मकरावासः —पुं॰—मकर-आवासः—-—समुद्र, सागर
मकरकुण्डलम् —नपुं॰—मकर-कुण्डलम्—-—मकर की आकृति का कुंडल
मकरकेतनः —पुं॰—मकर-केतनः—-—कामदेव का विशेषण
मकरकेतुः —पुं॰—मकर-केतुः—-—कामदेव का विशेषण
मकरकेतुमत् —पुं॰—मकर-केतुमत्—-—कामदेव का विशेषण
मकरध्वजः —पुं॰—मकर-ध्वजः—-—कामदेव का विशेषण
मकरध्वजः —पुं॰—मकर-ध्वजः—-—सेना की विशेष क्रम-व्यवस्था
मकरराशिः —स्त्री॰—मकर-राशिः—-—मकर राशि
मकरसङ्क्रमणम् —नपुं॰—मकर-सङ्क्रमणम्—-—सूर्य की मकरराशि में गति
मकरसप्तमी —स्त्री॰—मकर-सप्तमी—-—माघशुक्ला सप्तमी
मकरन्दः —पुं॰—-—मकरमपि द्यति कामजनकत्वात् दो-अवखण्डने क पृषो॰ मुम् @ तारा॰—फूलों से प्राप्त शहद, मधु, फूलों का रस
मकरन्दः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की चमेली
मकरन्दः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्धित आम्रवृक्ष
मकरन्दम् —नपुं॰—-—-—फूलों का केसर
मकरन्दवत् —वि॰—-—मकरन्द + मतुप् —मधु से पूर्ण
मकरन्दवती —स्त्री॰—-—-—पाटल की बेल या पाटल का फूल
मकरिन् —पुं॰—-—मकर + इनि—समुद्र का विशेषण
मकरी —स्त्री॰—-—मकर + ङीप्—मादा घडियाल
मकरीपत्रम् —नपुं॰—मकरी-पत्रम्—-—लक्ष्मी के मुखपर ‘मकरी’ का चिन्ह
मकरीलेखा —स्त्री॰—मकरी-लेखा—-—लक्ष्मी के मुखपर ‘मकरी’ का चिन्ह
मकरीप्रस्थः —पुं॰—मकरी-प्रस्थः—-—एक नगर का नाम
मकुटम् —नपुं॰—-—मङ्क् + उट, अनुनासिकलोपः—ताज
मकुतिः —पुं॰—-—मङ्क + उति पृषो॰—शूद्रशासन, राजा की ओर से शूद्रों के लिए आदेश
मकुरः —पुं॰—-—मक् + उरच्, पृषो॰—शीशा, दर्पण
मकुरः —पुं॰—-—-—बकुल का वृक्ष
मकुरः —पुं॰—-—-—अरब की चमेली
मकुरः —पुं॰—-—-—कुम्हार के चाक का डंडा
मकुलः —पुं॰—-—मङ्क् + उलच्, घृषो॰—बकुल का वृक्ष
मकुष्टः —पुं॰—-—मङ्क् + उ पृषो॰ नलोपः, मकुं भूषां स्तकति प्रतिहन्ति - मकु + स्तक + अच्—एक प्रकार की लोबिया
मकुष्टकः —पुं॰—-—मङ्क् + उ पृषो॰ नलोपः, मकुं भूषां स्तकति प्रतिहन्ति - मकु + स्तक + अच्—एक प्रकार की लोबिया
मकुष्ठः —पुं॰—-—मकु + स्था + क—मोठ, (लोबिया का एक प्रकार)
मकूलकः —पुं॰—-—मङ्क् + ऊलक् + कन् पृषो॰ नलोपः—कली
मकूलकः —पुं॰—-—-—दंती नामक वृक्ष
मक्क् —भ्वा॰ आ॰ <मक्कते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मक्कुलः —पुं॰—-—मक्क् + उलक्—धूप, गुग्गुल, गेरू
मक्कोलः —पुं॰—-—मक्क् + ओलच्—खड़िया मिट्टी
मक्ष् —भ्वा॰ पर॰ <मक्षति>—-—-—इकट्ठा होना, ढेर लगना, सञ्चय करना
मक्ष् —भ्वा॰ पर॰ <मक्षति>—-—-—क्रुद्ध होना
मक्षः —पुं॰—-—मक्ष् + घञ्—क्रोध
मक्षः —पुं॰—-—-—समुच्चय, संग्रह
मक्षवीर्यः —पुं॰—मक्ष-वीर्यः—-—पियाल वृक्ष
मक्षिका —स्त्री॰—-—मक्ष् + ण्वुल + टाप् इत्व—मक्खी,मधुमक्खी
मक्षीका —स्त्री॰—-—मक्ष् + ण्वुल + टाप् इत्व—मक्खी,मधुमक्खी
मक्षिकामलम् —नपुं॰—मक्षिका-मलम्—-—मोम
मख् —भ्वा॰ पर॰ <मखति>—-—-—जाना,चलना, सरकना
मङ्ख —भ्वा॰ पर॰<मङ्खति>—-—-—जाना,चलना, सरकना
मखः —पुं॰—-—मख् संज्ञायां घ—यज्ञ, यज्ञविषयक कृत्य
मखाग्निः —पुं॰—मख-अग्निः—-—यज्ञाग्नि
मखानलः —पुं॰—मख-अनलः —-—यज्ञाग्नि
मखासुहृद् —पुं॰—मख-असुहृद्— —शिव का विशेषण
मखक्रिया —स्त्री॰—मख-क्रिया—-—यज्ञ् विषयक कोई कृत्य
मखभ्रातृ —पुं॰—मख-भ्रातृ—-—राम का विशेषण
मखद्विष् —पुं॰—मख-द्विष्—-—पिशाच, राक्षस
मखद्वेषिन् —पुं॰—मख-द्वेषिन्—-—शिवका विशेषण
मखहन् —नपुं॰—मख-हन्—-—इन्द्र का विशेषण
मखहन् —नपुं॰—मख-हन्—-—शिव का विशेषण
मगधः —पुं॰—-—मगध् + अच्, मगं दोषं द्धति वा मग + धा + क—एक देश का नाम, बिहार का दक्षिणी भाग
मगधः —पुं॰—-—-—भाट, बन्दी, चारण
मगधाः —पुं॰—-—-—मगध देश के अधिवासी, मागध
मगधोद्भवा —स्त्री॰—मगध-उद्भवा—-—बड़ी पीपल
मगधपुरी —स्त्री॰—मगध-पुरी—-—मगध की नगरी
मगधलिपिः —स्त्री॰—मगध-लिपिः—-—मागधी लिपि या लिखावट
मग्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—मस्ज् + क्त—गोता लगा हुआ, डुबकी लगाई हुई
मग्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सराबोर, डूबा हुआ
मग्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—लीन, लिप्त
मघः —पुं॰—-—मङ्घ् + अच्, पृषो॰—विश्व के एक द्विप या प्रभाग का नाम
मघः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम
मघः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की औषधि
मघः —पुं॰—-—-—मघा नाम का दशवां नक्षत्र
मघम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का फूल
मघव —पुं॰—-—मघवन् + तृ अन्तादेशः, ॠकारस्य इत्संज्ञा—इन्द्र का नाम
मघवत् —पुं॰—-—मघवन् + तृ अन्तादेशः, ॠकारस्य इत्संज्ञा—इन्द्र का नाम
मघवन् —पुं॰—-—मह् पूजायां कनिन्, नि॰ हस्य घः, वुगागमस्च—इन्द्र का नाम
मघवन् —पुं॰—-—-—उल्लू, पेचक
मघवन् —पुं॰—-—-—व्यास का नाम
मघा —स्त्री॰—-—मह् + घ, हस्य घत्वम्, टाप्—दसवां नक्षत्र, जो पांच तारों का समूह हैं।
मघात्रयोदशी —स्त्री॰—मघा-त्रयोदशी—-—भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी
मघाभवः —पुं॰—मघा-भवः—-—शुक्रग्रह
मघाभूः —पुं॰—मघा-भूः—-—शुक्रग्रह
मङ्क् —भ्वा॰ आ॰ < मङ्कते> —-—-—जाना, हिलना- जुलना
मङ्क् —भ्वा॰ आ॰ < मङ्कते> —-—-—सजाना, अलंकृत करना
मङ्किलः —पुं॰—-—मङ्क् + इलच्—दावानल,जंगल की आग
मङ्कुरः —पुं॰—-—मङ्क् + उरच्—दर्पण, शीशा
मङ्क्षणम् —नपुं॰—-—मङ्ख् + ल्युट्, पृषो॰ खस्य क्षत्वम्—टांगो की रक्षा के लिए कवच, पिंडलियों की रक्षार्थ कवच
मङ्क्षु —अव्य॰—-—मङ्ख् + उन्, पृषो॰ खस्य क्षत्वम्—तुरन्त, जल्दी से, शीघ्र
मङ्क्षु —अव्य॰—-—-—अत्यन्त, बहुत अधिक
मङ्खः —पुं॰—-—मंङ्ख + अच्—राजा का चरण
मङ्खः —पुं॰—-—-—एक विशेष प्रकार की औषधि
मङ्ग् —भ्वा॰ उभ॰ <मङ्गति> <मङ्गते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मङ्ग —वि॰—-—मङ्ग् + अच्—नाव का अगला भाग
मङ्ग —वि॰—-—-—नाव का एक पार्श्व
मङ्गल —वि॰—-—मङ्ग् + अलच्—शुभ, भाग्यशाली, कल्याणकारी, हितकाम-यथा मङ्गलदिवसः, मङ्गलवृषभः में
मङ्गल —वि॰—-—-—समृद्ध, कल्याणप्रद
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—शुभत्व, कल्याणकारिता
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—प्रसन्नता, सौभाग्य, अच्छी किस्मत्, आनन्द उल्लास
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—कुशल, क्षेम, कल्याण, मंगल
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—शुभ शकुन, कोई भी शुभ घटना
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—आशीर्वाद, नांदी, शुभकामना
मङ्गलम् —नपुं॰—-— —शुभ या मंगलकारी पदार्थ
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—शुभावसर, उत्सव
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—(विवाह आदि) शुभ संस्कार
मङ्गलम् —नपुं॰—-—-—कोई पुरानी प्रथा
मङ्गला —स्त्री॰—-—-—पतिव्रता स्त्री
मङ्गलाक्षताः —पुं॰—मङ्गल-अक्षताः—-—आशीर्वाद देते समय ब्राह्मणों के द्वारा लोगों पर फेंके जाने वाले चावल
मङ्गलागुरु —नपुं॰—मङ्गल-अगुरु—-—चन्दन का एक भेद
मङ्गलायनम् —नपुं॰—मङ्गल-अयनम्—-—आनन्द या समृद्धि का मार्ग
मङ्गलाङ्कृत् —वि॰—मङ्गल-अलङ्कृत्— —शुभ अलंकारों से अलंकृत
मङ्गलाष्टकम् —नपुं॰—मङ्गल-अष्टकम्—-—विवाह के अवसर पर वरवधू की मंगल कामना के लिए पढे जाने वाले आशीर्वादात्मक श्लोक्
मङ्गलाचरणम् —नपुं॰—मङ्गल-आचरणम्— —(सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से) किसी भी ग्रन्थ के आरम्भ में पढ़ी जाने वाली प्रार्थना के रुप में मंगल-प्रस्तावना
मङ्गलाचारः —पुं॰—मङ्गल-आचारः—-—शुभ, पवित्र प्रथा
मङ्गलाचारः —पुं॰—मङ्गल-आचारः—-—आशीर्वादोच्चारण, नान्दी
मङ्गलातोद्यम् —नपुं॰—मङ्गल-आतोद्यम्—-—उत्सव के अवसर पर बजाया जाने वाला ढोल
मङ्गलादेशवृत्तिः —पुं॰—मङ्गल- आदेशवृत्तिः— —भाग्य में लिखे को बताने वाला ज्योतिषी
मङ्गलारम्भः —पुं॰—मङ्गल-आरम्भः—-—गणेश का विशेषण
मङ्गलालम्भनम् —नपुं॰—मङ्गल- आलम्भनम्—-—किसी शुभ वस्तु को स्पर्श करना
मङ्गलालयः —पुं॰—मङ्गल- आलयः—-—देवालय, मन्दिर
मङ्गलावासः —पुं॰—मङ्गल-आवासः—-—देवालय, मन्दिर
मङ्गलाह्निकम् —नपुं॰—मङ्गल-आह्निकम्—-—मंगल कामना के लिए नित्य अनुष्ठेय धार्मिक कृत्य
मङ्गलेच्छु —वि॰—मङ्गल- इच्छु—-—आनन्द या समृद्धि का इच्छुक
मङ्गलकरणम् —नपुं॰—मङ्गल-करणम्—-—किसी (वि॰) भी कार्य की सफलता के लिए पढ़ी जाने वाली प्रार्थना
मङ्गलकारक —वि॰—मङ्गल-कारक—-—शुभ, मंगलकारी
मङ्गलकारिन् —वि॰—मङ्गल-कारिन्—-—शुभ, मंगलकारी
मङ्गलकार्यम् —नपुं॰—मङ्गल-कार्यम्—-—उत्सव का अवसर, कोई भी मांगलिक कृत्य
मङ्गलक्षौमम् —नपुं॰—मङ्गल-क्षौमम्—-—उत्सव के अवसर पर पहना जाने वाला रेशमी वस्त्र
मङ्गलग्रहः —पुं॰—मङ्गल-ग्रहः—-—शुभग्रह
मङ्गलघटः —पुं॰—मङ्गल-घटः—-—उत्सव के अवसर पर पानी से भरा कलश जो देवों को अर्पित किया जाय,
मङ्गलपात्रम् —नपुं॰—मङ्गल- पात्रम्—-—उत्सव के अवसर पर पानी से भरा कलश जो देवों को अर्पित किया जाय,
मङ्गलछ्रायः —पुं॰—मङ्गल-छ्रायः— —प्लक्ष का वृक्ष, पाकुड का पेड
मङ्गलतूर्यम् —नपुं॰—मङ्गल-तूर्यम्—-—एक वाद्य यंत्र विगुल, या ढोल आदि- जो उत्सवादिक के शुभ अवसरों पर बजाया जाय
मङ्गलवाद्यम् —नपुं॰—मङ्गल- वाद्यम्—-—एक वाद्य यंत्र विगुल, या ढोल आदि- जो उत्सवादिक के शुभ अवसरों पर बजाया जाय
मङ्गलदेवता —स्त्री॰—मङ्गल-देवता—-—शुभ या रक्षक देवता
मङ्गलपाठकः —पुं॰—मङ्गल-पाठकः—-—भाट, चारण, बन्दीजन,
मङ्गलपुष्पम् —नपुं॰—मङ्गल-पुष्पम्—-—शुभ फूल
मङ्गलप्रतिसरः —पुं॰—मङ्गल-प्रतिसरः—-—शुभ डोरी, शुभ डोरा जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने गले में तबतक पहनती है जबतक उनका पति जीवित हैं
मङ्गलसूत्रम् —नपुं॰—मङ्गल-सूत्रम्—-—शुभ डोरी, शुभ डोरा जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने गले में तबतक पहनती है जबतक उनका पति जीवित हैं
मङ्गलसूत्रम् —नपुं॰—मङ्गल-सूत्रम्—-—ताबीज का डोरा
मङ्गलप्रद —वि॰—मङ्गल-प्रद—-—शुभ
मङ्गलप्रदा —वि॰—मङ्गल-प्रदा—-—हल्दी
मङ्गलप्रस्थः —पुं॰—मङ्गल-प्रस्थः—-—एक पहाड का नाम
मङ्गलमात्रभूषण —वि॰—मङ्गल-मात्रभूषण—-—शुभ अलंकार अर्थात् जनेऊ या कस्तूरी तिलक आदि से सुभूषित
मङ्गलवचस् —पुं॰—मङ्गल-वचस्—-—मंगलात्मक अभिव्यक्ति आशीर्वचन,मंगलाचरण
मङ्गलवादः —पुं॰—मङ्गल-वादः—-—मंगलात्मक अभिव्यक्ति आशीर्वचन,मंगलाचरण
मङ्गलवाद्यम् —नपुं॰—मङ्गल-वाद्यम्—-—एक वाद्य यंत्र विगुल, या ढोल आदि- जो उत्सवादिक के शुभ अवसरों पर बजाया जाय
मङ्गलवारः —पुं॰—मङ्गल-वारः—-—मंगलवार
मङ्गलवासरः —पुं॰—मङ्गल-वासरः—-—मंगलवार
मङ्गलविधिः —पुं॰—मङ्गल-विधिः—-—उत्सव या कोई शुभकृत्य
मङ्गलशब्दः —पुं॰—मङ्गल-शब्दः—-—अभिनन्दन,आशीर्वादात्मक अभिव्यक्ति
मङ्गलसूत्रम् —नपुं॰—मङ्गल-सूत्रम्—-—शुभ डोरी, शुभ डोरा जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने गले में तबतक पहनती है जबतक उनका पति जीवित हैं
मङ्गलस्नानम् —नपुं॰—मङ्गल-स्नानम्—-—मंगल कामना के लिए किसी शुभ अवसर पर किया जाने वाला स्नान
मङ्गलीय —वि॰—-—मङ्गल + छ—शुभ,सौभाग्यसूचक
मङ्गल्य —वि॰—-—मङ्गल + यत्—शुभ सौभाग्यशाली,सानद,किस्मतवाला,समृद्ध
मङ्गल्य —वि॰—-—-—सुखद,रुचिकर,सुन्दर
मङ्गल्य —वि॰—-—-—पवित्र,विशुद्ध,पावन
मङ्गल्यः —पुं॰—-—-—बट-वृक्ष
मङ्गल्यः —पुं॰—-—-—नारियल का पेड
मङ्गल्यः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की दाल,मसूर की दाल
मङ्गल्या —स्त्री॰—-—-—सुगन्धित चन्दन का भेद
मङ्गल्या —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का नाम
मङ्गल्या —स्त्री॰—-—-—अगर की लकडी
मङ्गल्या —स्त्री॰—-— —एक विशेष सुगंध द्रव्य
मङ्गल्या —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का पीला रंग
मङ्गल्यम् —नपुं॰—-—-—(अनेक तीर्थ स्थानों से लाया गया) राजा के राज्याभिषेक के लिए शुभ तीर्थजल
मङ्गल्यम् —नपुं॰—-—-—चन्दन की लकडी
मङ्गल्यम् —नपुं॰—-—-—सिन्दूर
मङ्गल्यम् —नपुं॰—-—-—खट्टा दही
मङ्गल्यकः —पुं॰—-—मङ्गल्य + कन्—एक प्रकार की दाल,मसूर की दाल
मङ्घ् —भ्वा॰ पर॰ <मङ्घति>—-—-—अलंकृत करना,सजाना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—ठगना,धोखा देना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—आरम्भ करना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—कलंकित करना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—निन्दा करना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—जाना, जल्दी से जाना
मङ्घ् —भ्वा॰ आ॰ <मङ्घते>—-—-—आरम्भ करना,प्रस्थान करना
मच् —भ्वा॰ आ॰ <मंचते>—-—-—दुष्ट होना
मच् —भ्वा॰ आ॰ <मंचते>—-—-—ठगना, धोखा देना
मच् —भ्वा॰ आ॰ <मंचते>—-—-—शेखी बघारना
मच् —भ्वा॰ आ॰ <मंचते>—-—-—घमण्डी या अहंकारी होना
मचर्चिका —स्त्री॰—-—मशम्भुं चर्चित-म+चर्च+ण्वुल+टाप्,इत्वम्—‘श्रेष्ठता या सर्वोत्तमता’ को प्रकट करने लिए संज्ञा के अन्त में लाया जाने वाला शब्द यथा गोमचर्चिका-‘एक बढिया गाय या बैल’ तु॰ उद्धः
मच्छः —पुं॰—-—मद् + क्विप् - शी + ड—मत्स्य का भ्रष्ट रुप मछली
मज्जन् —पुं॰—-—मस्ज् + कनिन्—मांस और हड्डियों में रहने वाली मज्जा,पौधे का रस
मज्जकृत् —नपुं॰—मज्जन्-कृत्—-—हड्डी
मज्जसमुद्भवः —पुं॰—मज्जन्-समुद्भवः— —वीर्य, शुक्र
मज्जनम् —नपुं॰—-—मस्ज् भावे ल्युट्—डुबकी लगाना,गोता लगाना,पानी में डुबकी,सराबोर होना
मज्जनम् —नपुं॰—-—मस्ज् भावे ल्युट्—स्नान करना,नहाना
मज्जनम् —नपुं॰—-—मस्ज् भावे ल्युट्—डूबना
मज्जनम् —नपुं॰—-—मस्ज् भावे ल्युट्—मांस और हड्डियों के बीच की मज्जा
मज्जा —स्त्री॰—-—मस्ज् + अच् + टाप्—मांस और हड्डियों के बीच का रस या वसा
मज्जा —स्त्री॰—-—मस्ज् + अच् + टाप्—पौधों का रस
मज्जारजस् —नपुं॰—मज्जा-रजस्—-—एक विशेष नरक
मज्जारजस् —नपुं॰—मज्जा-रजस्—-—गुग्गुल
मज्जारसः —पुं॰—मज्जा-रसः—-—वीर्य, शुक्र
मज्जासारः —पुं॰—मज्जा-सारः—-—जायफल
मञ्जुषा —स्त्री॰—-—मञ्ज् + उषन् + टाप्—संदूक, डब्बा, पेटी, आधार
मञ्जुषा —स्त्री॰—-—मञ्ज् + उषन् + टाप्—बड़ी टोकरी, पिटारा
मञ्जुषा —स्त्री॰—-—मञ्ज् + उषन् + टाप्—मजीठ
मञ्जुषा —स्त्री॰—-—मञ्ज् + उषन् + टाप्—पत्थर
मञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <मञ्चते>—-— —थामना
मञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <मञ्चते>—-—-—ऊँचा या लम्बा होना
मञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <मञ्चते>—-—-—जाना, चलना-फिरना
मञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <मञ्चते>—-—-—चमकना
मञ्च् —भ्वा॰ आ॰ <मञ्चते>—-—-—अलंकृत करना
मञ्चः —पुं॰—-—मञ्च् + घञ्—शय्या, चारपाई, पलंग, बिस्तरा
मञ्चः —पुं॰—-—मञ्च् + घञ्—उभरा हुआ आसन, वेदी, सम्मान का आसन, राज्यासन, सिंहासन
मञ्चः —पुं॰—-—मञ्च् + घञ्—मकान, टांड (खेत के रखवालो के लिए)
मञ्चः —पुं॰—-—मञ्च् + घञ्—व्यासपीठ, ऊँचा आसन
मञ्चकम् —नपुं॰—-—मञ्च् + कन्—शय्या, बिस्तरा, पलंग,
मञ्चकम् —नपुं॰—-—मञ्च् + कन्—उभरा हुआ आसन या वेदी
मञ्चकम् —नपुं॰—-—मञ्च् + कन्—आँख सुरक्षित रखने का हारा
मञ्चकाश्रयः —पुं॰—मञ्चकम्-आश्रयः—-—खटमल, खाट में रहनेवाला कीडा
मञ्चिका —स्त्री॰—-—मञ्चक + टाप्, इत्वम्—कुर्सी
मञ्चिका —स्त्री॰—-—मञ्चक + टाप्, इत्वम्—कठौती, थाली
मञ्चिका —स्त्री॰—-—मञ्चक + टाप्, इत्वम्—माची (चार पायों से बनाया हुआ स्टैण्ड जिसपर बुगचों में भरा सामान लदा रहता हैं)
मञ्जरम् —नपुं॰—-—मञ्च + अर—फूलों का गुच्छा
मञ्जरम् —नपुं॰—-—मञ्च + अर—मोती
मञ्जरम् —नपुं॰—-—मञ्च + अर—तिलक नाम का पौधा
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—कोंपल, अंकुर, बौर
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—फूलों का गुच्छा
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—फूल कली
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—फूल का वृन्त
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—समानान्तर रेखा
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—मोती
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—लता
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—तुलसी
मञ्जरिः —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्—तिलक का पौधा
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—कोंपल, अंकुर, बौर
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—फूलों का गुच्छा
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—फूल कली
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—फूल का वृन्त
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—समानान्तर रेखा
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—मोती
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—लता
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—तुलसी
मञ्जरी —स्त्री॰—-—मञ्जु + ऋ + इन् शक॰ पररुपम्, पक्षे ङीप्—तिलक का पौधा
मञ्जरीचामरम् —नपुं॰—मञ्जरी-चामरम्— —मंजरी की शक्ल का चंवर, पंखे जैसी मञ्जरी
मञ्जरीनम्रः —पुं॰—मञ्जरी-नम्रः—-—‘वेतस’ का पौधा
मञ्जरित —वि॰—-—मञ्जर + इतच—फूलों या बौरों के गुच्छों से युक्त
मञ्जरित —वि॰—-—मञ्जर + इतच—वृंत पर लगी हुई कली आदि
मञ्जा —स्त्री॰—-—मञ्ज + अच् + टाप्—बकरी
मञ्जा —स्त्री॰—-—मञ्ज + अच् + टाप्—बौरों (फूलों) का गुच्छा
मञ्जा —स्त्री॰—-—मञ्ज + अच् + टाप्—लता
मञ्जिः —स्त्री॰—-—मञ्ज् + इन्—फूलों (या बौरों) का गुच्छा
मञ्जिः —स्त्री॰—-—मञ्ज् + इन्—लता
मञ्जी —स्त्री॰—-—मञ्ज् + ङीष्—फूलों (या बौरों) का गुच्छा
मञ्जी —स्त्री॰—-—मञ्ज् + ङीष्—लता
मञ्जिफला —स्त्री॰—मञ्जि-फला—-—केले का पौधा
मञ्जिका —स्त्री॰—-—मञ्ज् + ण्वुल + टाप् + इत्वम्,— वेश्या, बारांगना, बाजारु स्त्री, रंडी
मञ्जिमन् —पुं॰—-—मञ्जु + इमनिच्—सौंदर्य, मनोहरता,
मञ्जिष्ठा —स्त्री॰—-—अतिशयेन मञ्जिमती इष्ठन् मतुपो लोपः @ तारा॰— मजीठ
मञ्जिष्ठाप्रमेहः —पुं॰—मञ्जिष्ठा-प्रमेहः—-—एक प्रकार का मूत्र रोग
मञ्जिष्ठारागः —पुं॰—मञ्जिष्ठा-रागः—-—मजीठ का रंग
मञ्जिष्ठारागः —पुं॰—मञ्जिष्ठा-रागः—-—मजीठ के रंग जैसा आकर्षक और टिकाऊ अर्थात् स्थायी अनुराग
मञ्जीरः —पुं॰—-—मञ्ज + ईरन्—नूपुर, पैर का आभूषण
मञ्जीरम् —नपुं॰—-—मञ्ज + ईरन्—नूपुर, पैर का आभूषण
मञ्जीरम् —नपुं॰—-—-—वह स्थूणा जिसमें रई की रस्सी लपेटी जाती हैं
मञ्जीलः —पुं॰—-—-—वह गाँव जिसमें धोबियों का निवास हो
मञ्जु् —वि॰—-—मञ्ज् + उन्—प्रिय, सुन्दर, मनोहर मधुर, सुखद, रुचिकर, आकर्षक
मञ्जु्केशिन् —पुं॰—मञ्जु्-केशिन्— —कृष्ण का विशेषण
मञ्जु्गमन —वि॰ —मञ्जु्-गमन—-—सुन्दर गति वाला,
मञ्जुगमना —स्त्री॰—मञ्जु-गमना—-—हंसिनी
मञ्जुगमना —स्त्री॰—मञ्जु-गमना—-—राजहंस
मञ्जु्गर्तः —पुं॰—मञ्जु्-गर्तः—-—नेपाल देश का नाम
मञ्जु्गिर् —वि॰—मञ्जु्-गिर्—-—मधुर स्वर वाला
मञ्जु्गुञ्जः —पुं॰—मञ्जु्-गुञ्जः—-—प्यारि गूंज
मञ्जु्घोष —वि॰—मञ्जु्-घोष— —मधुर स्वर बोलने वाला
मञ्जु्नाशी —स्त्री॰—मञ्जु्-नाशी—-—सुन्दर स्त्री
मञ्जु्नाशी —स्त्री॰—मञ्जु्-नाशी—-—दुर्गा का विशेषण
मञ्जु्नाशी —स्त्री॰—मञ्जु्-नाशी—-—इन्द्र की पत्नी शची का विशेषण
मञ्जु्पाठकः —पुं॰—मञ्जु्-पाठकः—-—तोता
मञ्जु्प्राणः —पुं॰—मञ्जु्-प्राणः—-—ब्रह्मा का विशेषण
मञ्जु्भाषिन् —वि॰ —मञ्जु्-भाषिन्—-—मधुर बोलने वाला
मञ्जु्वाच् —वि॰—मञ्जु्-वाच्—-—मधुर बोलने वाला
मञ्जु्वक्तृ —वि॰—मञ्जु्-वक्त्—-—सुन्दर मुख वाला, मनोहर
मञ्जु्स्वन —वि॰ —मञ्जु्-स्वन—-—मीठे स्वर वाला
मञ्जु्स्वर —वि॰—मञ्जु्-स्वर—-—मीठे स्वर वाला
मञ्जु्ल —वि॰—-—मञ्ज् + उ + लच् वा—प्रिय, सुन्दर, मनोहर मधुर, सुरीली (आवाज)
मञ्जु्लम् —नपुं॰—-—-—लतामण्डप, कुंज, लतागृह
मञ्जु्लम् —नपुं॰—-— —निर्झर, कूआँ
मञ्जु्लः —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का जलकुक्कुट
मञ्जूषा —स्त्री॰—-—मञ्ज् + ऊषन् + टाप्—संदूक, डब्बा, पेटी, आधार
मञ्जूषा —स्त्री॰—-—-—बड़ी टोकरी, पिटारा
मञ्जूषा —स्त्री॰—-—-—पत्थर
मटकी —स्त्री॰—-—मट् + अप् = मट + चि+ डि+ ङीष्—ओला
मटती —स्त्री॰—-—मट् + शत् + ङीष—ओला
मटस्फटिः —पुं॰—-—मट + स्फट् + इ—घमंड का आरम्भ, आरब्ध, अभिमान
मटकम् —नपुं॰—-—-—छत की मुंडेर
मठ् —भ्वा॰ पर॰ <मठति>—-— —रसना, वसना
मठ् —भ्वा॰ पर॰ <मठति>—-—-—जाना
मठ् —भ्वा॰ पर॰ <मठति>—-—-—पीसना
मठः —पुं॰—-—मठत्यत्र मठ् घञर्थे क —संन्यासी की कोठरी, साधक की कुटिया
मठः —पुं॰—-—-—विहार, शिक्षालय
मठः —पुं॰—-—-—विद्यामंदिर, महाविद्यालय, ज्ञानपीठ
मठः —पुं॰—-—-—देवालय, मंदिर
मठम् —नपुं॰—-—मठत्यत्र मठ् घञर्थे क —संन्यासी की कोठरी, साधक की कुटिया
मठम् —नपुं॰—-—-—विहार, शिक्षालय
मठम् —नपुं॰—-—-—विद्यामंदिर, महाविद्यालय, ज्ञानपीठ
मठम् —नपुं॰—-—-—देवालय, मंदिर
मठी —स्त्री॰—-—-—मढ़ी, बिहार
मठायतनम् —नपुं॰—मठ-आयतनम्—-—विद्यामंदिर, महाविद्यालय
मठर —वि॰—-—मन् + अर्, ठ अन्तादेशः—नशे में चूर, मद्य पीकर मतवाला
मठिका —स्त्री॰—-—मठ + कन् + टाप्, इत्वम्—छोटी कोठरी, कुटी, कुटीर
मड्डुः —पुं॰—-—मस्ज् + डु,—एक प्रकार का ढोल
मड्डुकः —पुं॰—-—मड्डु + कन्—एक प्रकार का ढोल
मण् —भ्वा॰ पर॰ < मणति>—-—-—बजाना, गुनगुनाना
मणिः —पुं॰—-—मण् + इन्, स्त्रीत्वपक्षे वा ङीप्—रत्नजडित आभूषण, रत्न, मूल्यवान् जवाहर
मणिः —पुं॰—-— —कोई भी उत्तम वस्तु
मणिः —पुं॰—-—-—चुम्बक, लोहमणि
मणिः —पुं॰—-—-—चिङ्कु, भगांकुर
मणिः —पुं॰—-—-—लिंग का अगला भाग (इन अर्थों में ‘मणी’ भी लिखा जाता हैं’)
मणीन्द्रः —पुं॰—मणि-इन्द्रः— —हीरा
मणिराजः —पुं॰—मणि-राजः—-—हीरा
मणिकण्ठः —पुं॰—मणि-कण्ठः—-—नीलकण्ठ पक्षी
मणिकण्ठकः —पुं॰—मणि-कण्ठकः—-—मुर्गा
मणिकर्णिका —स्त्री॰—मणि-कर्णिका—-—वाराणसी में विद्यमान एक पवित्र कुण्ड
मणिकर्णी —स्त्री॰—मणि-कर्णी—-—वाराणसी में विद्यमान एक पवित्र कुण्ड
मणिकाचः —पुं॰—मणि-काचः—-—बाण का वह भाग जहां पंख लगा रहता हैं
मणिकाननम् —नपुं॰—मणि-काननम्—-—ग्रीवा
मणिकारः —पुं॰—मणि-कारः—-—रत्नाजीव, जौहरी
मणितारकः —पुं॰—मणि-तारकः—-—सारस पक्षी
मणिदर्पणः —पुं॰—मणि-दर्पणः—-—रत्नजटित शीशा
मणिद्वीपः —पुं॰—मणि-द्वीपः— —अनन्त नाग का फण
मणिद्वीपः —पुं॰—मणि-द्वीपः—-—अमृत सागर में विद्यमान एक काल्पनिक टापू
मणिधनुः —नपुं॰—मणि-धनुः—-—इन्द्रधनुष
मणिधनुस् —नपुं॰—मणि-धनुस्— —इन्द्रधनुष
मणिपाली —स्त्री॰—मणि-पाली—-—जौहरिन, रत्न आभूषणों की देखभाल करनेवाली स्त्री
मणिपुष्पकः —पुं॰—मणि-पुष्पकः—-—सहदेव के शंख का नाम
मणिपूरः —पुं॰—मणि-पूरः—-—नाभि
मणिपूरः —पुं॰—मणि-पूरः—-—रत्नजटित चोली
मणिपूरम् —नपुं॰—मणि-पूरम्—-—कलिंग देश में विद्यमान एक नगर
मणिबन्धः —पुं॰—मणि-बन्धः—-—कलाई
मणिबन्धः —पुं॰—मणि-बन्धः—-—रत्नों का बांधना
मणिबन्धनम् —नपुं॰—मणि-बन्धनम्—-—रत्नों का (कलाई में) बांधना, मोतियों की लड़ी
मणिबन्धनम् —नपुं॰—मणि-बन्धनम्— —कंकण या अंगूठी का वह भाग जहाँ उसमें नग जड़े जाते हों
मणिबन्धनम् —नपुं॰—मणि-बन्धनम्—-—कलाई
मणिबीजः —पुं॰—मणि-बीजः—-—अनाज का पेड़
मणिवीजः —पुं॰—मणि-वीजः—-—अनाज का पेड़
मणिभित्तिः —स्त्री॰—मणि-भित्तिः—-—शेषनाग का महल
मणिभूः —स्त्री॰—मणि-भूः—-—रत्नजटित फर्श
मणिभूमिः —स्त्री॰—मणि-भूमिः—-—रत्नों की खान
मणिभूमिः —स्त्री॰—मणि-भूमिः—-—रत्नजटित फर्श, वह फर्श जिसमें रत्न जड़े हों
मणिमन्थम् —नपुं॰—मणि-मन्थम्—-—सेंधा नमक
मणिमाला —स्त्री॰—मणि-माला—-—रत्नों का हार
मणिमाला —स्त्री॰—मणि-माला—-—कान्ति, आभा, सौन्दर्य
मणिमाला —स्त्री॰—मणि-माला—-—(कामकेलि में) दांत से काटे का गोल निशान
मणिमाला —स्त्री॰—मणि-माला—-—लक्ष्मी
मणिमाला —स्त्री॰—मणि-माला—-—एक छन्द का नाम
मणियष्टिः —पुं॰—मणि-यष्टिः—-—रत्नजटित लकड़ी या रत्नों की लड़ी
मणिरत्नम् —नपुं॰—मणि-रत्नम्—-—आभूषण, जड़ाऊ गहना, रत्न, जवाहर
मणिरागः —पुं॰—मणि-रागः—-—रत्नों का रंग
मणिरागम् —नपुं॰—मणि-रागम्—-—सिन्दूर
मणिशिला —स्त्री॰—मणि-शिला—-—रत्नजटित शिला
मणिसरः —पुं॰—मणि-सरः—-—रत्नों का हार
मणिसूत्रम् —नपुं॰—मणि-सूत्रम्—-—मोतियों की लड़ी
मणिसोपानम् —नपुं॰—मणि-सोपानम्—-—रत्नजटित पौड़ी जीना
मणिस्तम्भः —पुं॰—मणि-स्तम्भः—-—रत्नों से जड़ा हुआ खंभा
मणिहर्म्यम् —नपुं॰—मणि-हर्म्यम्—-—रत्नजटित या स्फटिक का महल
मणिकः —पुं॰—-—मणि+कन्—जलकलश
मणिकम् —नपुं॰—-—मणि+कन्—जलकलश
मणिकः —पुं॰—-—-—रत्न, जवाहर
मणितम् —नपुं॰—-—मण् + क्त—एक अस्पष्ट सी सीत्कार जो स्त्री- सम्भोग के समय उच्चरित होती हैं
मणिमत् —वि॰—-—मणि + मतुप्—रत्नजटित
मणिमत् —पुं॰—-—-—एक पर्वत का नाम
मणिमत् —पुं॰—-—-—एक तीर्थस्थान का नाम
मणीचकः —पुं॰—-—मणी + चक् + अच्—रामचिरैया
मणीचकम् —नपुं॰—-—-—चन्द्रकान्तमणि
मणीवकम् —नपुं॰—-—मणीव कायति- मणी+कै+क—फूल, पुष्प
मण्ठ् —भ्वा॰ आ॰ < मण्ठते >—-—-—प्रबल अभिलाष करना
मण्ठ् —भ्वा॰ आ॰ < मण्ठते >—-— —सखेद स्मरण करना, शोक के साथ चिन्तन करना
मण्ठः —पुं॰—-—मण्ट् + अच्—एक प्रकार का पका हुआ मिष्ठान्न
मण्ड् —भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ < मण्डति>,< मण्डयति>,<-ते मण्डित>—-—-—अलंकृत करना, सजाना
मण्ड् —भ्वा॰ पर॰ चुरा॰ उभ॰ < मण्डति>,< मण्डयति>,<-ते मण्डित>—-—-—हर्ष मनाना
मण्ड् —भ्वा॰ आ॰<मण्डते>—-—-—वस्त्र धारण करना, कपडे पहनना
मण्ड् —भ्वा॰ आ॰<मण्डते>—-—-—घेरना, घेरा डालना
मण्ड् —भ्वा॰ आ॰<मण्डते>—-—-—विभक्त करना, बाँटना
मण्डः —पुं॰—-—मण्ड + अच्, मन्+ड तस्य नेत्वम् वा— गाढ़ा चिकना पदार्थ जो किसी तरल पदार्थ के उपर जम जाता हैं
मण्डः —पुं॰—-—-—उबाले हुए चावलों का माँड
मण्डः —पुं॰—-—-—दूध की मलाई
मण्डः —पुं॰—-—-—झाग, फेनक, फफूंदन
मण्डः —पुं॰—-—-—भात का मांड़
मण्डम् —नपुं॰—-—मण्ड + अच्, मन्+ड तस्य नेत्वम् वा— गाढ़ा चिकना पदार्थ जो किसी तरल पदार्थ के उपर जम जाता हैं
मण्डम् —नपुं॰—-—-—उबाले हुए चावलों का माँड
मण्डम् —नपुं॰—-—-—दूध की मलाई
मण्डम् —नपुं॰—-—-—झाग, फेनक, फफूंदन
मण्डम् —नपुं॰—-—-—भात का मांड़
मण्डः —पुं॰—-—-—आभूषण, श्रृंगार
मण्डः —पुं॰—-—-—एरंड का वृक्ष
मण्डा —स्त्री॰—-—-—खींची हुई शराब
मण्डा —स्त्री॰—-—-—आंवले का वृक्ष
मण्डोदकम् —नपुं॰—मण्ड-उदकम्—-—खमीर
मण्डोदकम् —नपुं॰—मण्ड-उदकम्—-—उत्सवादिक के अवसर पर फर्श वा दीवरों को सजाना
मण्डोदकम् —नपुं॰—मण्ड-उदकम्—-—मानसिक क्षोभ या उत्तेजना
मण्डप —वि॰—मण्ड-प—-—माँड़ पीने वाला, मलाई खाने वाला
मण्डहारकः —पुं॰—मण्ड-हारकः—-—शराब खींचने वाला
मण्डकः —पुं॰—-—मण्ड + कन्—कसार, एक प्रकार का पकाया हुआ मैदा
मण्डकः —पुं॰—-—-—फुलका, पतली रोटी
मण्डनम् —नपुं॰—-—मण्ड + ल्युट्—सजाने या सुभूषित करने की क्रिया अलंकृत करना
मण्डनम् —नपुं॰—-—-—आभूषण, श्रृंगार, सजावट
मण्डनः —पुं॰—-—-—(मण्डनमिश्रः) दर्शन शास्त्र के एक विद्वान् पंडित जो शास्त्रार्थ में शंकराचार्य से हार गये थे
मण्डपः —पुं॰—-—मण्डं भूषां पाति-पा+क, मण्ड्+कपन् वा—विवाहादि संस्कारों के अवसर पर बनाया गया अस्थायी मण्डप, खुला कमरा, विवाह मंडप
मण्डपः —पुं॰—-—-—तंबू, मंडवा
मण्डपः —पुं॰—-—-—लता कुंज, लतागृह, लतामंडप
मण्डपः —पुं॰—-—-—किसी देवता को अर्पित किया गया भवन
मण्डपप्रतिष्ठा —स्त्री॰—मण्डप-प्रतिष्ठा—-—देवालय की प्रतिष्ठा
मण्डयन्तः —पुं॰—-—मण्ड् + णिच + झच्—आभूषण, श्रृंगार
मण्डयन्तः —पुं॰—-—-—अभिनेता
मण्डयन्तः —पुं॰—-—-—स्त्री सभा
मण्डयन्ती —स्त्री॰—-—-—स्त्री
मण्डरी —स्त्री॰—-—मण्ड + अरन् + ङीष्—झिल्ली, झींगुर विशेष
मण्डल —वि॰—-—मण्ड + कलच्— गोल, वृत्ताकार
मण्डलः —पुं॰—-—-—सैनिकों का गोलाकार क्रमव्यवस्थापन
मण्डलः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—गोलाकार पिण्ड, गोलक, चक्र, गोलाकार वस्तु, परिधि, कोई भी गोल वस्तु
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—(जादूगर द्वारा खींची हुई) गोलाकार रेखा
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—बिंब, विशेषतः चन्द्र या सूर्य का बिंब
मण्डलम् —नपुं॰—-— —परिवेश, सूर्य-चन्द्र के इर्द गिर्द पड़ने वाला घेरा
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—ग्रहपथ या ग्रहकक्ष
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—समुदाय, समूह, संग्रह, संघात, टोली, वृन्द
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—समाज, सम्मेलन
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—बड़ा वृत्त
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—दृश्य क्षितिज
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—जिला या प्रान्त
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—पड़ौस का जिला या प्रदेश
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—(राजनीति में) किसी राजा के निकट और दूरवर्ती पड़ौसियों का गुट्ट
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—बन्दूक का निशाना लगाते समय विशेष पैंतरा
मण्डलम् —नपुं॰—-— —दिव्य विभूतियों का आवाहन करने के लिए एक प्रकार का गुप्त रेखाचित्र या तंत्र
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—ॠग्वेद का एक खण्ड (समस्त ॠग्वेद दस मण्डलों या आठ अष्टकों में विभक्त हैं)
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का कोढ़ जिसमें चकत्ते पड़ जाते हैं
मण्डलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
मण्डली —स्त्री॰—-—-—वृत्त, समूह, संघात
मण्डलीकृ ——-—-—कुंडलाकार या वृत्ताकार बनाना, लपेटना
मण्डलीभू ——-—-—वृत्त बनाना
मण्डलाग्रः —पुं॰—मण्डल-अग्रः—-—झुकी हुई या टेढ़ी तलवार, खड्ग
मण्डलाधिपः —पुं॰—मण्डल-अधिपः—-—किसी जिले या प्रांत का राज्यपाल या शासक
मण्डलाधिपः —पुं॰—मण्डल-अधिपः—-—राजा, प्रभु
मण्डलाधीशः —पुं॰—मण्डल-अधीशः—-—किसी जिले या प्रांत का राज्यपाल या शासक
मण्डलाधीशः —पुं॰—मण्डल-अधीशः—-—राजा, प्रभु
मण्डलेशः —पुं॰—मण्डल-ईशः—-—किसी जिले या प्रांत का राज्यपाल या शासक
मण्डलेशः —पुं॰—मण्डल-ईशः—-—राजा, प्रभु
मण्डलेश्वरः —पुं॰—मण्डल-ईश्वरः—-—किसी जिले या प्रांत का राज्यपाल या शासक
मण्डलेश्वरः —पुं॰—मण्डल-ईश्वरः—-—राजा, प्रभु
मण्डलावृत्तिः —स्त्री॰—मण्डल-आवृत्तिः—-—गोलाकार गति
मण्डलकार्मुक —वि॰—मण्डल-कार्मुक—-—गोलाकार धनुष को धारण करने वाला
मण्डलनृत्यम् —नपुं॰—मण्डल-नृत्यम्—-—मंडलाकार घूमते हुए नाचना, गोलाकार नाचना
मण्डलन्यासः —पुं॰—मण्डल-न्यासः—-—वृत्त का वर्णन करना
मण्डलपृच्छकः —पुं॰—मण्डल-पृच्छकः—-—एक प्रकार का कीड़ा
मण्डलवटः —पुं॰—मण्डल-वटः—-—गोलाकार रुप में बड़ का वृक्ष
मण्डलवर्तिन् —पुं॰—मण्डल-वर्तिन्—-—एक छोटे प्रांत का शासक
मण्डलवर्षः —पुं॰—मण्डल-वर्षः—-—राजा के समस्त प्रदेश में बारिश का होना, देशव्यापी वर्षा
मण्डलकम् —नपुं॰—-—मण्डल + कन्—वृत्त
मण्डलकम् —नपुं॰—-—-—जिला, प्रांत
मण्डलकम् —नपुं॰—-—-—समूह, संग्रह
मण्डलकम् —नपुं॰—-—-—सैनिको की चक्राकार-व्यूहरचना
मण्डलकम् —नपुं॰—-—-—सफेद कोढ़ जिसमें गोल चकत्ते होतें हैं
मण्डलयति —ना॰ धा॰ पर॰ <मण्डलयति>—-—-—गोल या वृत्ताकार बनाना
मण्डलायित —वि॰—-—मण्डलवत् आचरितम्-मण्डल+क्यङ्, दीर्घः, मण्डलाय+क्त—गोल, वर्तुल
मण्डलायितम् —नपुं॰—-—-—गेंद, गोलक
मण्डलित —वि॰—-—मण्डलं कृतं- मण्डल+क्विप्=मण्डल्+क्त—गोल बना हुआ, वर्तुल या गोल बनाया हुआ
मण्डलिन् —वि॰—-—मण्डल + इनि—वृत्त बनाने वाला, कुण्डलाकृत
मण्डलिन् —वि॰—-—-—देश का शासन करने वाला
मण्डलिन् —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
मण्डलिन् —पुं॰—-—-—सामान्य सर्प
मण्डलिन् —पुं॰—-—-—ऊदबिलाव
मण्डलिन् —पुं॰—-— —बटवृक्ष
मण्डलिन् —पुं॰—-—-—किसी प्रान्त का शासक
मण्डित —वि॰—-—मण्ड् + क्त—अलंकृत, भूषित
मण्डूकः —पुं॰—-—मण्डयति वर्षासमयं-मण्ड्+ऊकण्—मेंढक
मण्डूकम् —नपुं॰—-—-—स्त्री संभोग का एक प्रकार, रतिबन्धविशेष
मण्डूकी —स्त्री॰—-—-—मेंढकी
मण्डूकी —स्त्री॰—-—-—व्यभिचारिणी स्त्री
मण्डूकी —स्त्री॰—-—-—कुछ पौधों के नाम
मण्डूकानुवृत्तिः —स्त्री॰—मण्डूक-अनुवृत्तिः—-—‘मेंढकों की उछल कूद’ बीच बीच में छोड़ देना, बीच में छोड़कर आगे फलांग जाना (व्याकरण में यह शब्द कुछ सूत्र छोड़ कर उनके पूर्ववर्ती सूत्र से आपूर्ति करने के निमित्त प्रयुक्त होता हैं)
मण्डूकप्लुतिः —स्त्री॰—मण्डूक-प्लुतिः—-—‘मेंढकों की उछल कूद’ बीच बीच में छोड़ देना, बीच में छोड़कर आगे फलांग जाना (व्याकरण में यह शब्द कुछ सूत्र छोड़ कर उनके पूर्ववर्ती सूत्र से आपूर्ति करने के निमित्त प्रयुक्त होता हैं)
मण्डूककुलम् —पुं॰—मण्डूक-कुलम्—-—मेंढकों का समूह
मण्डूकयोगः —पुं॰—मण्डूक-योगः—-—भाव-समाधि का एक प्रकार जिसमें साधक मेंढक की भांति निश्चल होकर समाधिस्थ होता हैं
मण्डूकसरस् —नपुं॰—मण्डूक-सरस्—-—मेंढकों से भरा हुआ सरोवर
मण्डूरम् —नपुं॰—-—मण्ड् + उरच—लोहे का जंग, लोहे का मैल (यह पौष्टिक औषधि के रुप में प्रयुक्त होता हैं)।
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—मन् + क्त—चिंतित, विश्वसित, कल्पित
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सोचा हुआ, माना हुआ, खयाल किया हुआ, समझा हुआ
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मूल्यमान माना हुआ, सम्मानित, प्रतिष्ठित
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रशंसित, मूल्यवान
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अटकल लगाया हुआ
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मनन किया हुआ, चिन्तन किया हुआ, प्रत्यक्ष किया गया, पहचाना गया
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सोचा गया
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अभिप्रेत उद्दिष्ट
मत —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—अनुमोदित, स्वीकृत
मतम् —नपुं॰—-—-—चिन्तन, विचार, सम्मति, विश्वास, पर्यवेक्षण
मतम् —नपुं॰—-—-—सिद्धांत, उसूल, पन्थ, धर्ममत, विश्वास
मतम् —नपुं॰—-—-—उपदेश, अनुदेश, सलाह
मतम् —नपुं॰—-—-—उद्देश्य, योजना, अभिप्राय, प्रयोजन
मतम् —नपुं॰—-—-—समनुमोदन, स्वीकृति प्रशंसा
मताक्ष —व॰—मत-अक्ष—-—पासे के खेल में प्रवीण
मतान्तरम् —नपुं॰—मत-अन्तरम्—-—भिन्न दृष्टि
मतान्तरम् —नपुं॰—मत-अन्तरम्—-—भिन्न पन्थ
मतावलम्बनम् —नपुं॰—मत-अवलम्बनम्—-—विशेष प्रकार की सम्मति रखना
मतङ्गः —पुं॰—-—माद्यति अनेन-मद्+अङ्गच् दस्यतः-तारा॰—हाथी
मतङ्गः —पुं॰—-—-—एक ऋषि का नाम
मतङ्गजः —पुं॰—-—मतङ्ग + जन् + ड—हाथी
मतल्लिका —स्त्री॰—-—मतं मतिम् अलति भूषयति-मत+अल्+ण्वल पृषो॰ साधु—सर्वोत्तमा
मतल्ली —स्त्री॰—-—मतं मतिम् अलति भूषयति-मत+अल्+ण्वल पृषो॰ साधु—सर्वोत्तमा
मतिः —स्त्री॰—-—मन् + क्तिन्—बुद्धि, समझदारी, भाव, ज्ञान, संकल्प
मतिः —स्त्री॰—-—-—मन, हृदय
मतिः —स्त्री॰—-—-—सोचना, विचार, विश्वास, सम्मति, भाव, कल्पना, संस्कार पर्यवेक्षण
मतिः —स्त्री॰—-—-—अभिप्राय, योजना, प्रयोजन
मतिः —स्त्री॰—-—-—प्रस्ताव निर्धारण
मतिः —स्त्री॰—-—-—सम्मान, प्रतिष्ठा, आदर
मतिः —स्त्री॰—-—-—अभिलाष, इच्छा, कामना
मतिः —स्त्री॰—-—-—सलाह, परामर्श
मतिः —स्त्री॰—-—-—याद, प्रत्यास्मरण
मतिं कृ ——-—-—मन लगाना, निश्चय करना, सोचना
मतिं धा ——-—-—मन लगाना, निश्चय करना, सोचना
मतिमाधा ——-—-—मन लगाना, निश्चय करना, सोचना
मत्या —क्रि॰ वि॰—-—-—जानबूझकर, साभिप्राय, स्वेच्छा से
मत्या —स्त्री॰—-—-—इस विचार से कि
मतीश्वरः —पुं॰—मति-ईश्वरः—-—विश्वकर्मा का विशेषण
मतिगर्भ —वि॰—मति-गर्भ—-—प्रज्ञावान, बुद्धिमान्, चतुर
मतिद्वैधम् —नपुं॰—मति-द्वैधम्—-—मतभिन्नता
मतिनिश्चयः —पुं॰—मति-निश्चयः—-—निश्चित विश्वास, दृढ़ विश्वास
मतिपूर्व —वि॰—मति-पूर्व—-—साभिप्राय, स्वेच्छाचारी, यथेच्छ
मतिपूर्वम् —अव्यय—मति-पूर्वम्—-—सप्रयोजन, साभिप्राय, स्वेच्छा से, खुशी से
मतिपूर्वकम् —अव्यय—मति-पूर्वकम्—-—सप्रयोजन, साभिप्राय, स्वेच्छा से, खुशी से
मतिप्रकर्षः —पुं॰—मति-प्रकर्षः—-—बुद्धि की श्रेष्ठता, चतुराई
मतिभेदः —पुं॰—मति-भेदः—-—विचारभिन्नता
मतिभ्रमः —पुं॰—मति-भ्रमः—-—व्यामोह, मानसिक भ्रम, मन की भ्रान्ति
मतिभ्रमः —पुं॰—मति-भ्रमः—-—त्रुटि, गलती, भूल, गलतफहमी
मतिविपर्यासः —पुं॰—मति-विपर्यासः—-—व्यामोह, मानसिक भ्रम, मन की भ्रान्ति
मतिविपर्यासः —पुं॰—मति-विपर्यासः—-—त्रुटि, गलती, भूल, गलतफहमी
मतिविभ्रमः —पुं॰—मति-विभ्रमः—-—मन की अव्यवस्था या दीवानापन, पागलपन, उन्माद
मतिविभ्रंशः —पुं॰—मति-विभ्रंशः—-—मन की अव्यवस्था या दीवानापन, पागलपन, उन्माद
मतिशालिन —वि॰—मति-शालिन—-—बु्द्धिमान, चतुर
मतिहीन —वि॰—मति-हीन—-—मूर्ख, अज्ञानी, मूढ़
मत्क —वि॰—-—अस्मद् + कन्, मदादेशः—मेरा
मत्कुणः —पुं॰—-—मद् + क्विप्, कुण + क, ततः कर्म॰ स॰—खटमल
मत्कुणः —पुं॰—-—-—बिना दाँत का हाथी
मत्कुणः —पुं॰—-—-—छोटा हाथी
मत्कुणः —पुं॰—-—-—बिना दाढ़ी का मनुष्य
मत्कुणः —पुं॰—-—-—नारियल का पेड़
मत्कुणम् —नपुं॰—-—-—टांगो या जंघाओं के लिए कवच
मत्कुणारिः —पुं॰—मत्कुण-अरिः—-—पटसन का पौधा
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—मद् + क्त—नशे में चूर, मतवाला, मदोन्मत (आलं॰ से भी)
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-— —पागल, विक्षिप्त
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मदवाला, भीषण (हाथी)
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घमंडी, अहंकारी
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खुश, अतिहृष्ट, हर्षोद्दीप्त
मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—प्रीतिविषयक, केलिपरायण, स्वैरी
मत्तः —पुं॰—-—-—पागल मनुष्य
मत्तः —पुं॰—-—-—मदवाला हाथी
मत्तः —पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
मत्तालम्बः —पुं॰—मत्त-आलम्बः—-—(किसी धनी पुरुष के) विशाल भवन की बाड़
मत्तेभः —पुं॰—मत्त-इभः—-—मदवाला हाथी
मत्तगमना —स्त्री॰—मत्त-गमना—-—मस्त हाथी के सदृश चालवाली स्त्री अर्थात् अलसगति
मत्तकाशिनी —स्त्री॰—मत्त-काशिनी—-—एक सुन्दर लावण्य स्त्री
मत्तकासिनी —स्त्री॰—मत्त-कासिनी—-—एक सुन्दर लावण्य स्त्री
मत्तदन्तिन् —पुं॰—मत्त-दन्तिन्—-—मदवाला हाथी
मत्तनागः —पुं॰—मत्त-नागः—-—मदवाला हाथी
मत्तवारणः —पुं॰—मत्त-वारणः—-—मदवाला हाथी
मत्तवारणः —पुं॰—मत्त-वारणः—-—विशाल-भवन के चारों ओर बाड़
मत्तवारणः —पुं॰—मत्त-वारणः—-—किसी विशालभवन के ऊपर बनी अटारी
मत्तवारणः —पुं॰—मत्त-वारणः—-—वरांडा, अलिंद
मत्तवारणः —पुं॰—मत्त-वारणः—-—भवन का सुसज्जित बहिर्भाग
मत्तवारणम् —नपुं॰—मत्त-वारणम्—-—विशाल-भवन के चारों ओर बाड़
मत्तवारणम् —नपुं॰—मत्त-वारणम्—-—किसी विशालभवन के ऊपर बनी अटारी
मत्तवारणम् —नपुं॰—मत्त-वारणम्—-—वरांडा, अलिंद
मत्तवारणम् —नपुं॰—मत्त-वारणम्—-—भवन का सुसज्जित बहिर्भाग
मत्तवारणम् —नपुं॰—मत्त-वारणम्—-—कटी हुई सुपारी
मत्यम् —नपुं॰—-—मत + यत्—हल द्वारा बनाया खूड
मत्यम् —नपुं॰—-—-—ज्ञान प्राप्त करने का साधन
मत्यम् —नपुं॰—-—-—ज्ञान का अभ्यास
मत्सः —पुं॰—-—मद् + सन्—मछली
मत्सः —पुं॰—-—-—मत्स्य देश का स्वामी
मत्सरः —पुं॰—-—मद् + सरन्—ईर्ष्यालु, डाह करनेवाला
मत्सरः —पुं॰—-—-—अतृप्त लालची, लोभी
मत्सरः —पुं॰—-—-—ईर्ष्या, डाह
मत्सरः —पुं॰—-—-—विरोधिता, शत्रुता
मत्सरः —पुं॰—-—-—लोभ, लालच
मत्सरः —पुं॰—-—-—क्रोध, कोपावेश
मत्सरः —पुं॰—-—-—डांस या मच्छर
मत्सरिन् —वि॰—-—मत्सर + इनि—ईर्ष्यालु, डाह करनेवाला
मत्सरिन् —वि॰—-—-—विरोधी शत्रुतापूर्ण
मत्सरिन् —वि॰—-—-—लालायित, स्वार्थरत (अधि॰ के साथ)
मत्स्यः —पुं॰—-—मद् + स्यन्—मछली
मत्स्यः —पुं॰—-—-—मछलियों की विशेष जाति
मत्स्यः —पुं॰—-—-—मत्स्य देश का राजा
मत्स्यौ —पुं॰—-—-—मीन राशि
मत्स्याः —पुं॰—-—-—एक देश तथा उसके अधिवासियों का नाम
मत्स्याक्षका —स्त्री॰—मत्स्य-अक्षका—-—एक विशेष प्रकार की सोमलता
मत्स्याक्षी —स्त्री॰—मत्स्य-अक्षी—-—एक विशेष प्रकार की सोमलता
मत्स्याद् —वि॰—मत्स्य-अद्—-—मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी
मत्स्यादत —वि॰—मत्स्य-अदतः—-—मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी
मत्स्याद् ——मत्स्य-आद्—-—मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी
मत्स्यादतः ——मत्स्य-आदतः—-—मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी
मत्स्याद —वि॰—मत्स्य-आद—-—मछलियाँ खाकर पलने वाला, मत्स्यभक्षी
मत्स्यावतारः —पुं॰—मत्स्य-अवतारः—-—विष्णु के दस अवतारों में सबसे पहला अवतार
मत्स्याशनः —पुं॰—मत्स्य-अशनः—-—रामचिरैया (एक शिकारी पक्षी)
मत्स्याशनः —पुं॰—मत्स्य-अशनः—-—मत्स्यभक्षी
मत्स्यासुरः —पुं॰—मत्स्य-असुरः—-—एक राक्षस का नाम
मत्स्याजीवः —पुं॰—मत्स्य-आजीवः—-—मछुवा
मत्स्याधानी —स्त्री॰—मत्स्य-आधानी—-—मछलियाँ रखने की टोकरी (जिसे मछुवे प्रयुक्त करते हैं)
मत्स्यधानी —स्त्री॰—मत्स्य-धानी—-—मछलियाँ रखने की टोकरी (जिसे मछुवे प्रयुक्त करते हैं)
मत्स्योदरिन् —पुं॰—मत्स्य-उदरिन्—-—विराट का विशेषण
मत्स्योदरी —स्त्री॰—मत्स्य-उदरी—-—सत्यवती का विशेषण
मत्स्योदरीयः —पुं॰—मत्स्य-उदरीयः—-—व्यास का विशेषण
मत्स्योपजीविन् —पुं॰—मत्स्य-उपजीविन्—-—मछुवा
मत्स्यकरण्डिका —स्त्री॰—मत्स्य-करण्डिका—-—मछलियाँ रखने की टोकरी
मत्स्यगन्ध —वि॰—मत्स्य-गन्ध—-—मछली की गंध रखने वाला
मत्स्यगन्धा —स्त्री॰—मत्स्य-गन्धा—-—सरस्वती का नाम
मत्स्यघण्टः —पुं॰—मत्स्य-घण्टः—-—एक प्रकार की मछली की चटनी
मत्स्यघातिन् —वि॰—मत्स्य-घातिन्—-—मछुवा
मत्स्यजीवत् —वि॰—मत्स्य-जीवत्—-—मछुवा
मत्स्यजीविन् —पुं॰—मत्स्य-जीविन्—-—मछुवा
मत्स्यजालम् —नपुं॰—मत्स्य-जालम्—-—मछलियाँ पकड़ने का जाल
मत्स्यदेशः —पुं॰—मत्स्य-देशः—-—मत्स्यवासियों का देश
मत्स्यनारी —स्त्री॰—मत्स्य-नारी—-—सत्यवती का विशेषण
मत्स्यनाशकः —पुं॰—मत्स्य-नाशकः—-—मत्स्यभक्षी उकाव, कुररपक्षी
मत्स्यनाशनः —पुं॰—मत्स्य-नाशनः—-—मत्स्यभक्षी उकाव, कुररपक्षी
मत्स्यपुराणम् —नपुं॰—मत्स्य-पुराणम्— —अठारह पुराणों में से एक
मत्स्यबन्धः —पुं॰—मत्स्य-बन्धः—-—मछुवा
मत्स्यबन्धिन् —पुं॰—मत्स्य-बन्धिन्—-—मछुवा
मत्स्यबन्धनम् —नपुं॰—मत्स्य-बन्धनम्—-—मछली पकड़ने का कांटा, बंसी
मत्स्यबन्धनी —स्त्री॰—मत्स्य-बन्धनी—-—मछलियाँ रखने की टोकरी
मत्स्यबन्धिनी —स्त्री॰—मत्स्य-बन्धिनी—-—मछलियाँ रखने की टोकरी
मत्स्यरङ्कः —पुं॰—मत्स्य-रङ्कः—-—रामचिरैया (मछली खाने वाला एक शिकारी पक्षी)
मत्स्यरङ्गः —पुं॰—मत्स्य-रङ्गः—-—रामचिरैया (मछली खाने वाला एक शिकारी पक्षी)
मत्स्यरङ्गकः —पुं॰—मत्स्य-रङ्गकः—-—रामचिरैया (मछली खाने वाला एक शिकारी पक्षी)
मत्स्यवेधनम् —नपुं॰—मत्स्य-वेधनम्—-—मछली पकड़ने की बंसी
मत्स्यवेधनी —स्त्री॰—मत्स्य-वेधनी—-—मछली पकड़ने की बंसी
मत्स्यसङ्घातः —पुं॰—मत्स्य-सङ्घातः—-—मछलियों का झुंड
मत्स्याण्डिका —स्त्री॰—-—-—मोटी या बिना साफ की हुई चीनी
मत्स्यण्डी —स्त्री॰—-—-—मोटी या बिना साफ की हुई चीनी
मथन —वि॰—-—मथ् + ल्युट्—बिलोने वाला, मंथन करने वाला
मथन —वि॰—-—-—चोट पहुँचाने वाला, क्षति देने वाला
मथन —वि॰—-—-—मारने वाला, नष्ट करने वाला, नाशक
मथनी —स्त्री॰—-—मथ् + ल्युट्—बिलोने वाला, मंथन करने वाला
मथनी —स्त्री॰—-—-—चोट पहुँचाने वाला, क्षति देने वाला
मथनी —स्त्री॰—-—-—मारने वाला, नष्ट करने वाला, नाशक
मथनः —पुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम
मथनम् —नपुं॰—-—-—मंथन करना, बिलोना, विक्षुब्ध करना
मथनम् —नपुं॰—-—-—घिसना, रगड़ना
मथनम् —नपुं॰—-—-—क्षति, चोट, नाश
मथनाचलः —पुं॰—मथन-अचलः—-—मन्दराचल पहाड़ जिसको रई का डंडा बनाया गया था
मथनपर्वतः —पुं॰—मथन-पर्वतः—-—मन्दराचल पहाड़ जिसको रई का डंडा बनाया गया था
मथिः —पुं॰—-—मथ् + इ—रई का डंडा
मथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—मथ् + क्त—मथा गया, बिलोया गया, विक्षुब्ध किया गया, खूब हिलाया गया
मथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कुचला गया, पीसा गया, चुटकी काटी गई
मथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कष्टग्रस्त, दुःखी, अत्याचार पीड़ित
मथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वध किया हुआ, नाश किया हुआ
मथित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—स्थानभ्रष्ट
मथितम् —नपुं॰—-—-—(बिना पानी डाले) मथा हुआ विशुद्ध मट्ठा
मथिन् —पुं॰—-—मथ् + इनि—रई का डंडा
मथिन् —पुं॰—-—-—पुरुष का लिंग
मथुरा —स्त्री॰—-—मथ् + उ रच् + टाप्—यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा हुआ एक प्राचीन नगर, कृष्ण की जन्मभूमि तथा उसके कारनामों का स्थल, यह भारत की सात पुण्यनगरियों में से एक है, (दे॰ अवन्ति ) और आज भी हजारों की संख्या में भक्त लोग दर्शनार्थ यहाँ जाते हैं। कहा जाता है कि इस नगर को शत्रुघ्न ने बसाया था
मथूरा —स्त्री॰—-—मथ् + उ रच् + टाप्—यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा हुआ एक प्राचीन नगर, कृष्ण की जन्मभूमि तथा उसके कारनामों का स्थल, यह भारत की सात पुण्यनगरियों में से एक है, (दे॰ अवन्ति ) और आज भी हजारों की संख्या में भक्त लोग दर्शनार्थ यहाँ जाते हैं। कहा जाता है कि इस नगर को शत्रुघ्न ने बसाया था
मथुरेशः —पुं॰—मथुरा-ईशः—-—कृष्ण का विशेषण
मथुरानाथः —पुं॰—मथुरा-नाथः—-—कृष्ण का विशेषण
मद् —दिवा॰ पर॰ <माद्यति>,< मत्त>—-—-—उत्तमपुरुष सर्वनाम के एक वचन का रुप जो प्रायः समस्त शब्दों के आरम्भ में प्रयुक्त होता है-मदर्थे, ‘मेरे लिए’ ‘मेरे खातिर ‘मच्चित्त’ ‘मेरे विषय में सोचकर’ मद्वचनम्, मत्सन्देशः, मत्प्रियम् आदि
मद् —दिवा॰ पर॰ <माद्यति>,< मत्त>—-—-—मस्त होना, नशे में चूर होना
मद् —दिवा॰ पर॰ <माद्यति>,< मत्त>—-—-—पागल होना
मद् —दिवा॰ पर॰ <माद्यति>,< मत्त>—-—-—आनन्द मनाना, खुशी मनाना
मद् —दिवा॰ पर॰ <माद्यति>,< मत्त>—-—-—प्रसन्न या हृष्ट होना
मद् —दिवा॰ पर॰प्रेर॰<मादयति>—-—-—नशे में चूर करना, मदोन्मत्त करना, पागल बना देना
मद् —दिवा॰ पर॰प्रेर॰<मदयति>—-—-—उल्लसित करना, प्रसन्न करना, खुश करना
मद् —दिवा॰ पर॰प्रेर॰<मदयति>—-—-—प्रणयोन्माद को उत्तेजित करना
उन्मद् —दिवा॰ पर॰—उद्-मद्—-—मस्त या नशे में चूर होना (आलं॰ से भी)
उन्मद् —दिवा॰ पर॰—उद्-मद्—-—पागल होना
उन्मद् —दिवा॰ पर॰प्रेर॰—उद्-मद्—-—नशे में चूर करना, मदोन्मत्त करना
प्रमद् —दिवा॰ पर॰—प्र-मद्—-—नशे में चूर होना, मस्त होना
प्रमद् —दिवा॰ पर॰—प्र-मद्—-—उपेक्षक होना, लापरवाह या अवधान रहित होना (अधि॰ के साथ)
प्रमद् —दिवा॰ पर॰—प्र-मद्—-—भूलचूक होना, भटक जाना, विचलित होना
प्रमद् —दिवा॰ पर॰—प्र-मद्—-—गलती करना, भूल करना राह भूल जाना
सम्मद् —दिवा॰ पर॰—सम्-मद्—-—नशे में चूर चूर होना
सम्मद् —दिवा॰ पर॰—सम्-मद्—-—हर्षयुक्त होना, प्रसन्न होना
मद् —चुरा॰ आ॰ <मादयते>—-—-—प्रसन्न करना, खुश करना
मदः —पुं॰—-—मद् + अच्—मादकता, मस्ती, मदोन्मत्तता
मदः —पुं॰—-—-—पागलपन, विक्षिप्तता
मदः —पुं॰—-—-—उग्र प्रणयोन्माद, लालसापूर्ण उत्कण्ठा, गाढाभिलाषा, कामुकता, मैथुनेच्छा
मदः —पुं॰—-—-—मदमत्त हाथी के मस्तक से चूने वाला मद
मदः —पुं॰—-—-—प्रेम, इच्छा, उत्कंठा
मदः —पुं॰—-—-—घमण्ड, अहंकार, अभिमान
मदः —पुं॰—-— —उल्लास, आनन्दातिरेक
मदः —पुं॰—-—-—खींची हुई शराब
मदः —पुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र
मदात्ययः —पुं॰—मद-अत्ययः—-—सुरापान के परिणामस्वरुप होनेवाला विकार (सिरदर्द आदि)
मदातङ्कः —पुं॰—मद-आतङ्कः—-—सुरापान के परिणामस्वरुप होनेवाला विकार (सिरदर्द आदि)
मदान्ध —वि॰—मद-अन्ध—-—मद से अन्धा, पीकर बेहोश, तीव्र उत्कण्ठा से पीते हुए
मदान्ध —वि॰—मद-अन्ध—-—अभिमान से अंधा, घमण्डी
मदापनयनम् —नपुं॰—मद-अपनयनम्—-—नशा दूर करना
मदाम्बरः —पुं॰—मद-अम्बरः—-—मदवाला हाथी
मदाम्बरः —पुं॰—मद-अम्बरः—-—चन्द्र का हाथी ऐरावत
मदालस —वि॰—मद-अलस—-—नशे या जोश से निढाल
मदावस्था —स्त्री॰—मद-अवस्था—-— पीकर मदहोशी की हालत
मदावस्था —स्त्री॰—मद-अवस्था—-—स्वेच्छाचारिता, कामासक्ति
मदावस्था —स्त्री॰—मद-अवस्था— —मद चूने की स्थिति
मदाकुल —वि॰—मद-आकुल—-—मदोन्मत्त
मदाढ्य —वि॰—मद-आढ्य—-— पीकर मस्त नशे में चूर
मदाढ्यः —पुं॰—मद-आढ्यः—-—ताड़ का पेड
मदाम्नातः —पुं॰—मद-आम्नातः—-—हाथी की पीठ पर बजाया जाने वाला ढोल या नगाड़ा
मदालापिन् —पुं॰—मद-आलापिन्—-—कोयल
मदाह्वः —पुं॰—मद-आह्वः—-—कस्तूरी
मदवः —पुं॰—मद-वः—-—कस्तूरी
मदोत्कट —वि॰—मद-उत्कट—-—नशे में चूर, मद्यपान से उत्तेजित
मदोत्कट —वि॰—मद-उत्कट—-—तीव्र प्रणयोन्मत्त, कामुक
मदोत्कट —वि॰—मद-उत्कट—-—अभिमानी, घमंडी, दर्पयुक्त
मदोत्कट —वि॰—मद-उत्कट—-—मदवाला, मदमस्त
मदोत्कटः —पुं॰—मद-उत्कटः—-—मदवाला हाथी
मदोत्कटः —पुं॰—मद-उत्कटः—-—पेंडुकी
मदोत्कटा —स्त्री॰—मद-उत्कटा—-—खींची हुई शराब
मदोदग्र —वि॰—मद-उदग्र—-—पीकर मस्त नशे में चूर
मदोदग्र —वि॰—मद-उदग्र—-—भयंकर, जोश से भरा हुआ
मदोदग्र —वि॰—मद-उदग्र—-—अभिमानी, घमंडी, अहंकारी
मदोन्मत्त —वि॰—मद-उन्मत्त—-—पीकर मस्त नशे में चूर
मदोन्मत्त —वि॰—मद-उन्मत्त—-—भयंकर, जोश से भरा हुआ
मदोन्मत्त —वि॰—मद-उन्मत्त—-—अभिमानी, घमंडी, अहंकारी
मदोद्धत —वि॰—मद-उद्धत—-—जोश से भरा हुआ
मदोद्धत —वि॰—मद-उद्धत—-—घमण्ड से फूला हुआ
मदोल्लापिन् —पुं॰—मद-उल्लापिन्—-—कोयल
मदकर —वि॰—मद-कर —-—मादक, नशे में चूर करने वाला
मदकारिन् —पुं॰—मद-कारिन—-—मदवाला हाथी
मदकल —वि॰—मद-कल—-—मृदुभाषी, अव्यक्तभाषी, अस्पष्टभाषी
मदकल —वि॰—मद-कल—-—प्रेम मंदध्वनि उच्चारण करनेवाला
मदकल —वि॰—मद-कल—-—जोश से भरा हुआ
मदकल —वि॰—मद-कल—-—अस्पष्ट परन्तु मधुर
मदकल —वि॰—मद-कल— —मदवाला, प्रचण्ड, मदोन्मत्त
मदकलः —पुं॰—मद-कलः—-—मदवाला हाथी
मदकोहलः —पुं॰—मद-कोहलः—-—(स्वेच्छा से भ्रमण करने के लिए) मुक्त साँड
मदखेल —वि॰—मद-खेल—-—प्रणयोन्माद के कारण केलिप्रिय
मदगन्धा —स्त्री॰—मद-गन्धा—-—मादकपेय
मदगन्धा —स्त्री॰—मद-गन्धा—-—पटसन
मदगमनः —पुं॰—मद-गमनः—-—भैसा
मदच्युत् —वि॰—मद-च्युत्—-—(हाथी की भाँति) मद चुवाने वाला
मदच्युत् —वि॰—मद-च्युत्—-—कामुक, स्वेच्छाचारी, पीकर धुत्त
मदच्युत् —वि॰—मद-च्युत्—-—आनन्ददायक, उल्लासमय
मदच्युत् —पुं॰—मद-च्युत्—-—इन्द्र का विशेषण
मदजालम् —नपुं॰—मद-जालम्—-—मदरस, मदवाले हाथी के गण्डस्थल से चूनेवाला मद
मदवारि —नपुं॰—मद-वारि—-—मदरस, मदवाले हाथी के गण्डस्थल से चूनेवाला मद
मदज्वरः —पुं॰—मद-ज्वरः—-—घमण्ड या जोश का बुखार
मदद्विपः —पुं॰—मद-द्विपः—-—उन्मत्त हाथी, मदमस्त हाथी
मदप्रयोगः —पुं॰—मद-प्रयोगः—-—हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना
मदप्रसेकः —पुं॰—मद-प्रसेकः—-—हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना
मदप्रस्रवणम् —नपुं॰—मद-प्रस्रवणम्—-—हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना
मदस्रावः —पुं॰—मद-स्रावः—-—हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना
मदस्रुतिः —स्त्री॰—मद-स्रुतिः—-—हाथी के गण्डस्थल से मद का चूना
मदमुच् —वि॰—मद-मुच्—-—‘मद टपकानेवाला’ मदोन्मत्त, नशे में चूर
मदरक्त —वि॰—मद-रक्त—-—जोशीला
मदरागः —पुं॰—मद-रागः—-—कामदेव
मदरागः —पुं॰—मद-रागः—-—मुर्गा
मदरागः —पुं॰—मद-रागः—-—पीकर धुत्त
मदविक्षिप्त —वि॰—मद-विक्षिप्त—-—मदमस्त, मदोन्मत्त
मदविक्षिप्त —वि॰—मद-विक्षिप्त—-—कामलालसा से विक्षुब्ध
मदविह्वल —वि॰—मद-विह्वल—-—घमण्ड या काम लालसा से पागल
मदविह्वल —वि॰—मद-विह्वल—-—नशे के कारण निश्चेष्ट
मदवृन्दः —पुं॰—मद-वृन्दः—-—एक हाथी
मदशौण्डकम् —नपुं॰—मद-शौण्डकम्—-—जायफल
मदसारः —पुं॰—मद-सारः—-—बाड़ी
मदस्थलम् —नपुं॰—मद-स्थलम्—-—मदिरालय, शराबघर, मधुशाला
मदस्थानम् —नपुं॰—मद-स्थानम्—-—मदिरालय, शराबघर, मधुशाला
मदन —वि॰—-—माद्यति अनेन + मद् करणे ल्युट्—मादक, पागलपन लाने वाला
मदन —वि॰—-—-—आनन्ददायक, उल्लासमय
मदनी —स्त्री॰—-—माद्यति अनेन + मद् करणे ल्युट्—मादक, पागलपन लाने वाला
मदनी —स्त्री॰—-—-—आनन्ददायक, उल्लासमय
मदनः —पुं॰—-—-—प्रेम, प्रणयोन्माद, उत्कण्ठा, कामुकता
मदनः —पुं॰—-—-—मधुमक्खी, भौंरा,
मदनः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का आलिंगन
मदनः —पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
मदनः —पुं॰—-—-—बकुल का वृक्ष, खैर
मदना —स्त्री॰—-—-—खींची हुई शराब
मदना —स्त्री॰—-—-—अतिमुक्त लता
मदनी —स्त्री॰—-—-—खींची हुई शराब
मदनम् —नपुं॰—-—-—प्रसन्न करने वाला
मदनाग्रकः —पुं॰—मदन-अग्रकः—-—एक धान्यविशेष, कोदों
मदनाङ्कुशः —पुं॰—मदन-अङ्कुशः—-—पुरुष का लिंग
मदनाङ्कुशः —पुं॰—मदन-अङ्कुशः—-—नाखून या नखक्षत (सम्भोग के समय हुआ)
मदनान्तकः —पुं॰—मदन-अन्तकः—-—शिव के विशेषण
मदनारिः —पुं॰—मदन-अरिः—-—शिव के विशेषण
मदनदमनः —पुं॰—मदन-दमनः—-—शिव के विशेषण
मदनदहनः —पुं॰—मदन-दहनः—-—शिव के विशेषण
मदननाशनः —पुं॰—मदन-नाशनः—-—शिव के विशेषण
मदनरिपुः —पुं॰—मदन-रिपुः—-—शिव के विशेषण
मदनावस्थ —वि॰—मदन-अवस्थ—-—प्रेमासक्त, सानुराग
मदनातुर —वि॰—मदन-आतुर—-—कामार्त, प्रेमविह्वल, कामरोगी
मदनार्त —वि॰—मदन-आर्त—-—कामार्त, प्रेमविह्वल, कामरोगी
मदनक्लिष्ट —वि॰—मदन-क्लिष्ट—-—कामार्त, प्रेमविह्वल, कामरोगी
मदनपीडित —वि॰—मदन-पीडित—-—कामार्त, प्रेमविह्वल, कामरोगी
मदनायुधम् —नपुं॰—मदन-आयुधम्—-—स्त्री की भग या योनि
मदनायुधम् —नपुं॰—मदन-आयुधम्—-—‘कामदेव का अस्त्र’ अर्थात लावण्यमयी स्त्री
मदनालयः —पुं॰—मदन-आलयः—-—स्त्री की योनि
मदनालयः —पुं॰—मदन-आलयः—-—कमल
मदनालयः —पुं॰—मदन-आलयः—-—राजा
मदनालयम् —नपुं॰—मदन-आलयम्—-—स्त्री की योनि
मदनालयम् —नपुं॰—मदन-आलयम्—-—कमल
मदनालयम् —नपुं॰—मदन-आलयम्—-—राजा
मदनेच्छाफलम् —नपुं॰—मदन-इच्छाफलम्—-—आमों का राजा
मदनोत्सवः —पुं॰—मदन-उत्सवः—-—कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला बसन्तकालीन उत्सव
मदनोत्सवा —स्त्री॰—मदन-उत्सवा—-—अप्सरा
मदनोत्सुक —वि॰—मदन-उत्सुक—-—प्रेम के कारण उत्कंठित या निढ़ाल
मदनोद्यानम् —नपुं॰—मदन-उद्यानम्—-—‘प्रमोद वन’ एक उद्यान का नाम
मदनकण्टकः —पुं॰—मदन-कण्टकः—-—प्रेम भावना से उत्पन्न रोमांच
मदनकण्टकः —पुं॰—मदन-कण्टकः—-—वृक्ष का नाम
मदनकलहः —पुं॰—मदन-कलहः—-—प्रेमकलह, मैथुन
मदनकाकुरवः —पुं॰—मदन-काकुरवः—-—पेंडुकी या कबूतर
मदनगोपालः —पुं॰—मदन-गोपालः—-—कृष्ण का विशेषण
मदनचतुर्दशी —स्त्री॰—मदन-चतुर्दशी—-—चैत्रशुक्ला चतुर्दशी, इसी दिन कामदेव के सम्मानार्थ मनाया जाने वाला उत्सव
मदनत्रयोदशी —स्त्री॰—मदन-त्रयोदशी—-—चैत्रशुक्ला त्रयोदशी या काम के सम्माना में उस दिन मनाया जाने वाला उत्सव
मदननालिका —स्त्री॰—मदन-नालिका—-—अतीस, स्त्री
मदनपक्षिन् —पुं॰—मदन-पक्षिन्—-—खंजन पक्षी
मदनपाठकः —पुं॰—मदन-पाठकः—-—कोयल
मदनपीडा —स्त्री॰—मदन-पीडा—-—प्रेमवेदना, प्रेम की टीस
मदनबाधा —स्त्री॰—मदन-बाधा—-—प्रेमवेदना, प्रेम की टीस
मदनमहोत्सवः —पुं॰—मदन-महोत्सवः —-—कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला महोत्सव
मदनमोहनः —पुं॰—मदन-मोहनः—-—कृष्ण का विशेषण
मदनललितम् —नपुं॰—मदन-ललितम्—-—प्रेमकेलि, रंगरेली, कामक्रीडा
मदनलेखः —पुं॰—मदन-लेखः—-—प्रेम-पत्र
मदनवश —वि॰—मदन-वश—-—प्रेममुग्ध, मोहित
मदनशलाका —स्त्री॰—मदन-शलाका—-—कोयल (मादा)
मदनशलाका —स्त्री॰—मदन-शलाका—-—कामोद्दीपक
मदनकः —पुं॰—-—मदन + कन्—एक पौधे का नाम, दमनक
मदयन्तिका —स्त्री॰—-—मदयन्ती + कन् + टाप् ह्रस्व—एक प्रकार की चमेली (अरब की)
मदयन्ती —स्त्री॰—-—मद् + णिच् + झच् + ङीष्—एक प्रकार की चमेली (अरब की)
मदयित्नु —वि॰—-—मद् + णिच् + इत्नुच्—मादक, पागल बनाने वाला
मदयित्नु —वि॰—-—-—आनन्द देने वाला
मदयित्नुः —पुं॰—-—-—कामदेव
मदयित्नुः —पुं॰—-—-—पीकर धुत्त हुआ
मदयित्नुः —नपुं॰—-—-—खींची हुई शराब,
मदारः —पुं॰—-—मद् + आरन्—मदवाला हाथी
मदारः —पुं॰—-—-—प्रेमी, कामुक
मदारः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगंध द्रव्य
मदारः —पुं॰—-—-—ठग या बदमाश
मदिः —स्त्री॰—-—मद् + इन्—पटेला, मैड़ा
मदिर —वि॰—-—माद्यति अनेन मद् करणे किरच्—मादक, दीवाना करने वाला
मदिर —वि॰—-—-—आनन्ददायक, आकर्षक, (आंखों को) हर्ष कर
मदिरः —पुं॰—-—-—(लाल फूलों का) खैर का वृक्ष
मदिराक्षी —स्त्री॰—मदिर-अक्षी—-—मनोहर और आकर्षक आँखों वाली स्त्री
मदिरेक्षण —स्त्री॰—मदिर-ईक्षण—-—मनोहर और आकर्षक आँखों वाली स्त्री
मदिरनयना —स्त्री॰—मदिर-नयना—-—मनोहर और आकर्षक आँखों वाली स्त्री
मदिरलोचना —स्त्री॰—मदिर-लोचना—-—मनोहर और आकर्षक आँखों वाली स्त्री
मदिरायतनयन —वि॰—मदिर-आयतनयन—-—बड़ी और मनोहर आंखों वाला
मदिरासवः —पुं॰—मदिर-आसवः—-—मादक पेय
मदिरा —स्त्री॰—-—मदिर + टाप्—खींची हुई शराब
मदिरा —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का खंजन पक्षी
मदिरा —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का नामान्तर
मदिरोत्कट —वि॰—मदिरा-उत्कट—-—शराब के नशे में चूर
मदिरोन्मत्त —वि॰—मदिरा-उन्मत्त—-—शराब के नशे में चूर
मदिरागृहम् —नपुं॰—मदिरा-गृहम्—-—मदिरालय, शराबखाना, मधुशाला
मदिराशाला —स्त्री॰—मदिरा-शाला—-—मदिरालय, शराबखाना, मधुशाला
मदिरासखः —पुं॰—मदिरा-सखः—-—आम का पेड़
मदिष्ठा —स्त्री॰—-—अतिशयेन मदिनी-इष्ठत्, इनो लोपः टाप्—खींची हुई शराब
मदीय —वि॰—-—अस्मद् + छ, मदादेशः—मेरा, मुझसे संबद्ध
मद्गुः —पुं॰—-—मस्ज + उ न्यङ्क्वा०—एक प्रकार का जलचर, जलकाक, पनडुब्बी पक्षी
मद्गुः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
मद्गुः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का जंगली जानवर
मद्गुः —पुं॰—-—-—विशाल नौका या युद्धपोत
मद्गुः —पुं॰—-—-—एक पतित वर्णसंकर जाति, भाट जाति की स्त्री में ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न संतान
मद्गुः —पुं॰—-—-—जातिबहिष्कृत
मद्गुरः —पुं॰—-—मद + गुक् + उरच्, न्यङ्क्वा॰—गोताखोर, मोती निकालने वाला
मद्गुरः —पुं॰—-—-—जर्मनमछली
मद्गुरः —पुं॰—-—-—एक पतित वर्णसंकर जाति-दे॰ मद्गु (5)
मद्य —वि॰—-—माद्यत्यनेन करणे यत्—मादक
मद्य —वि॰—-—-—आनन्ददायक, उल्लासमय
मद्यम् —नपुं॰—-—-—खींची हुई शराब, मदिरा, मादकपेय
मद्यामोदः —पुं॰—मद्य-आमोदः—-—मौलसीरि का पेड़
मद्यकीटः —पुं॰—मद्य-कीटः—-—एक प्रकार का कीड़ा
मद्यद्रुमः —पुं॰—मद्य-द्रुमः—-—एक प्रकार का वृक्ष, माडवृक्ष
मद्यपः —पुं॰—मद्य-पः—-—पियक्कड़, शराबी, नशेबाज
मद्यपानम् —नपुं॰—मद्य-पानम्—-—मादक मदिरा पीना
मद्यपानम् —नपुं॰—मद्य-पानम्—-—कोई भी मादक पेय
मद्यपीत —वि॰—मद्य-पीत—-—पीकर नशे में चूर
मद्यपुष्पा —स्त्री॰—मद्य-पुष्पा—-—धातकी नामक पौधा, धौ
मद्यबीजम् —नपुं॰—मद्य-बीजम्—-—खमीर उठाने वाली ओषध, खमीर पैदा करने वाली लेई
मद्यवीजम् —नपुं॰—मद्य-वीजम्—-—खमीर उठाने वाली ओषध, खमीर पैदा करने वाली लेई
मद्यभाजनम् —नपुं॰—मद्य-भाजनम्—-—शराब का गिलास, इसीप्रकार मद्यभाण्डम्
मद्यमण्डः —पुं॰—मद्य-मण्डः—-—शराब का झाग, मद्यफेन
मद्यवासिनी —स्त्री॰—मद्य-वासिनी—-—धातकी नामक पौधा
मद्यसन्धानम् —नपुं॰—मद्य-सन्धानम्—-—मदिरा खींचना
मद्रः —पुं॰—-—मद् + रक्—देश का नाम
मद्रः —पुं॰—-—-—उस देश का शासक
मद्राः —पुं॰,ब॰ व॰—-—-—मद्र देश के अधिवासी
मद्रम् —नपुं॰—-—-—हर्ष प्रसन्नता
मद्राकृ ——-—-—बाल काटना, कैंची से कुतरना, मूँड़ना
भद्राकृ ——-—-—बाल काटना, कैंची से कुतरना, मूँड़ना
मद्रकार —वि॰—-—-—हर्षोत्पादक
मद्रकः —पुं॰—-—मद्र + कन्—मद्र देश का शासक या अधिवासी
मद्रका —पुं॰,ब॰ व॰—-—-—दक्षिण देश की एक पतित जति
मधव्यः —पुं॰—-—मधु + यत्—वैशाख का महीना
मधु —वि॰—-—मन्यत इति मधु, मन्+उ नस्य धः—मधुर, सुखद, रुचिकर, आनन्दयुक्त
मधु —नपुं॰—-—-—पुष्प रस या फूलों का रस
मधु —नपुं॰—-—-—मीठा मादक, पेय, शराब, खींची हुई शराब
मधुः —पुं॰—-—-—चैत्र का महीना
मधुः —पुं॰—-—-—एक राक्षस का नाम जिसे विष्णु ने मारा था
मधुः —पुं॰—-—-—एक और राक्षस जिसके पिता का नाम लवण था तथा जिसे शत्रुघ्न ने मारा था
मधुः —पुं॰—-—-—कार्त वीर्य राजा का नाम
मध्वष्ठीला —स्त्री॰—मधु-अष्ठीला—-—शहद का लौंदा, जमा हुआ शहद
मध्वाधारः —पुं॰—मधु-आधारः—-—मोम
मध्वापात —वि॰—मधु-आपात—-—पहली बार शहद चखने वाला
मध्वाम्रः —पुं॰—मधु-आम्रः—-—एक प्रकार का आम वृक्ष
मध्वासवः —पुं॰—मधु-आसवः—-—(शहद से) खींची हुई मीठी शराब
मध्वास्वाद —वि॰—मधु-आस्वाद—-—शहद का स्वाद चखने वाला
मध्वाहुतिः —स्त्री॰—मधु-आहुतिः—-—यज्ञ में मिष्ठान्न की आहुति देना
मधूच्छिष्ठम् —नपुं॰—मधु-उच्छिष्टम्—-—मधुमक्खियों का मोम
मधूत्थम् —नपुं॰—मधु-उत्थम्—-—मधुमक्खियों का मोम
मधूत्थितम् —नपुं॰—मधु-उत्थितम्—-—मधुमक्खियों का मोम
मधूत्सवः —पुं॰—मधु-उत्सवः—-—वसन्तोत्सव
मधूदकम् —नपुं॰—मधु-उदकम्—-—‘मधुजल’ शहद मिला हुआ पानी, जलमधु
मधूद्यानम् —नपुं॰—मधु-उद्यानम्—-—वसन्तोद्यान
मधूपघ्नम् —नपुं॰—मधु-उपघ्नम्—-—‘मधु का आवास’ मथुरा का नामान्तर
मधुकण्ठः —पुं॰—मधु-कण्ठः—-—कोयल
मधुकरः —पुं॰—मधु-करः—-—भौंरा
मधुकरः —पुं॰—मधु-करः—-—प्रेमी, कामुक
मधुकरगणः —पुं॰—मधु-कर-गणः—-—मक्खियों का झुंड
मधुकरश्रेणिः —स्त्री॰—मधु-कर-श्रेणिः—-—मक्खियों का झुंड
मधुकर्कटी —स्त्री॰—मधु-कर्कटी—-—मीठा नीबू, चकोतरा
मधुकर्कटी —स्त्री॰—मधु-कर्कटी—-—एक प्रकार का छुहारा
मधुकाननम् —नपुं॰—मधु-काननम्—-—मधुराक्षस का वन
मधुवनम् —नपुं॰—मधु-वनम्—-—मधुराक्षस का वन
मधुकारः —पुं॰—मधु-कारः—-—मधुमक्खी
मधुकारिन् —पुं॰—मधु-कारिन्—-—मधुमक्खी
मधुकुक्कुटिका —स्त्री॰—मधु-कुक्कुटिका—-—एक प्रकार का नींबू का पेड़
मधुकुक्कुटी —स्त्री॰—मधु-कुक्कुटी—-—एक प्रकार का नींबू का पेड़
मधुकुल्या —स्त्री॰—मधु-कुल्या—-—मधु की नदी
मधुकृत् —पुं॰—मधु-कृत्—-—मधुमक्खी
मधुकेशटः —पुं॰—मधु-केशटः—-—मधुमक्खी
मधुकोशः —पुं॰—मधु-कोशः —-—मधुमक्खियों का छत्ता
मधुकोषः —पुं॰—मधु-कोषः—-—मधुमक्खियों का छत्ता
मधुक्रमः —पुं॰—मधु-क्रमः—-—शहद की मक्खियों का छ्त्ता
मधुक्रमाः —पुं॰—मधु-क्रमाः—-—मदिरा पीने का होड़, आपानक
मधुक्षीरः —पुं॰—मधु-क्षीरः—-—खजूर का पेड़
मधुक्षीरकः —पुं॰—मधु-क्षीरकः—-—खजूर का पेड़
मधुगायनः —पुं॰—मधु-गायनः—-—कोयल
मधुग्रहः —पुं॰—मधु-ग्रहः—-—मधु का तर्पण
मधुघोषः —पुं॰—मधु-घोषः—-—कोयल
मधुजम् —नपुं॰—मधु-जम्—-—मोम
मधुजा —स्त्री॰—मधु-जा—-—मिसरी
मधुजा —स्त्री॰—मधु-जा—-—पृथ्वी
मधुजम्बीरः —पुं॰—मधु-जम्बीरः—-—एक प्रकार का नींबू
मधुजित् —पुं॰—मधु-जित्—-—विष्णु के विशेषण
मधुद्विष —पुं॰—मधु-द्विष—-—विष्णु के विशेषण
मधुनिषूदन —पुं॰—मधु-निषूदन—-—विष्णु के विशेषण
मधुनिहन्तृ —पुं॰—मधु-निहन्तृ—-—विष्णु के विशेषण
मधुमथः —पुं॰—मधु-मथः—-—विष्णु के विशेषण
मधुमथनः —पुं॰—मधु-मथनः—-—विष्णु के विशेषण
मधुरिपुः —पुं॰—मधु-रिपुः—-—विष्णु के विशेषण
मधुशत्रुः —पुं॰—मधु-शत्रुः—-—विष्णु के विशेषण
मधुसूदनः —पुं॰—मधु-सूदनः—-—विष्णु के विशेषण
मधुतृणः —पुं॰—मधु-तृणः—-—गन्ना, ईख
मधुतृणम् —नपुं॰—मधु-तृणम्—-—गन्ना, ईख
मधुत्रयम् —नपुं॰—मधु-त्रयम्—-—तीन मीठे पदार्थ अर्थात् शक्कर, शहद और घी
मधुदीपः —पुं॰—मधु-दीपः—-—कामदेव
मधुदूतः —पुं॰—मधु-दूतः—-—आम का पेड़
मधुदोहः —पुं॰—मधु-दोहः—-—मधु या मिठास खींचना
मधुद्रः —पुं॰—मधु-द्रः—-—भौंरा
मधुद्रः —पुं॰—मधु-द्रः—-—कामुक
मधुद्रवः —पुं॰—मधु-द्रवः—-—लाल फूलों का वृक्ष
मधुद्रुमः —पुं॰—मधु-द्रुमः—-—आम का पेड़
मधुधातुः —पुं॰—मधु-धातुः—-—एक प्रकार का पीला माक्षिक
मधुधारा —स्त्री॰—मधु-धारा—-—शहद की धार
मधुधूलिः —स्त्री॰—मधु-धूलिः—-—राब, गुड़
मधुनालिकेरकः —पुं॰—मधु-नालिकेरकः—-—एक प्रकार का नारियल
मधुनेतृ —पुं॰—मधु-नेतृ—-—भौंरा
मधुपः —पुं॰—मधु-पः—-—मधुकर या पियक्कड़
मधुपटलम् —नपुं॰—मधु-पटलम्—-—शहद की मक्खियों का छ्त्ता
मधुपतिः —पुं॰—मधु-पतिः—-—कृष्ण का विशेषण
मधुपर्कः —पुं॰—मधु-पर्कः—-—‘शहद का मिश्रण’ एक सम्मानयुक्त उपहार जो किसी अतिथि को या कन्या के द्वार पर आ जाने पर दूल्हे को अर्पित किया जाता हैं, इसमें निम्नांकित पाँच पदार्थ डाले जाते हैं-
मधुपर्क्य —वि॰—मधु-पर्क्य—-—मधुपर्क का अधिकारी
मधुपर्णिका —स्त्री॰—मधु-पर्णिका—-—नील का पौधा
मधुपर्णी —स्त्री॰—मधु-पर्णी—-—नील का पौधा
मधुपाथिन् —पुं॰—मधु-पाथिन्—-—भौंरा
मधुपुरम् —नपुं॰—मधु-पुरम्—-—मथुरा का विशेषण
मधुपुरी —स्त्री॰—मधु-पुरी—-—मथुरा का विशेषण
मधुपुष्पः —पुं॰—मधु-पुष्पः—-—अशोक वृक्ष
मधुपुष्पः —पुं॰—मधु-पुष्पः—-—मौलसिरी का वृक्ष
मधुपुष्पः —पुं॰—मधु-पुष्पः—-—दन्ती वृक्ष
मधुपुष्पः —पुं॰—मधु-पुष्पः—-—सिरस का पेड़
मधुप्रणयः —पुं॰—मधु-प्रणयः—-—शराब की लत
मधुप्रमेहः —पुं॰—मधु-प्रमेहः—-—मधुमेह, शर्करायुक्त मूत्र
मधुप्राशनम् —नपुं॰—मधु-प्राशनम्—-—शुद्धीकरण के सोलह संस्कारों में से एक जिसमें नवजात शिशु को मधु चटाया जाता हैं
मधुप्रियः —पुं॰—मधु-प्रियः—-—बलराम का विशेषण
मधुफलः —पुं॰—मधु-फलः—-—एक प्रकार का नारियल
मधुफलिका —स्त्री॰—मधु-फलिका—-—एक प्रकार का छुहारा
मधुबहुला —स्त्री॰—मधु-बहुला—-—माधवी लता
मधुबीजः —पुं॰—मधु-बीजः—-—अनार का वृक्ष
मधुवीजः —पुं॰—मधु-वीजः—-—अनार का वृक्ष
मधुबीजपुरः —पुं॰—मधु-बीजपुरः—-—एक प्रकार की नींबू, चकोतरा
मधुवीजपुरः —पुं॰—मधु-वीजपुरः—-—एक प्रकार की नींबू, चकोतरा
मधुमक्षः —पुं॰—मधु-मक्षः—-—मधुमक्खी
मधुमक्षा —स्त्री॰—मधु-मक्षा—-—मधुमक्खी
मधुमक्षिका —स्त्री॰—मधु-मक्षिका—-—मधुमक्खी
मधुमज्जनः —पुं॰—मधु-मज्जनः—-—अखरोट का पेड़
मधुमदः —पुं॰—मधु-मदः—-—शराब का नशा
मधुमल्लिः —पुं॰—मधु-मल्लिः—-—मालती लता
मधुमल्ली —स्त्री॰—मधु-मल्ली— —मालती लता
मधुमाधवी —स्त्री॰—मधु-माधवी—-—एक प्रकार का मादक पेय
मधुमाधवी —स्त्री॰—मधु-माधवी—-—कोई भी वसंत ॠतु का फूल
मधुमाध्वीकम् —नपुं॰—मधु-माध्वीकम्—-—एक प्रकार की मादक मदिरा
मधुमारकः —पुं॰—मधु-मारकः—-—भौंरा
मधुमेहः —पुं॰—मधु-मेहः—-—मधुमेह, शर्करायुक्त मूत्र
मधुयष्टिः —स्त्री॰—मधु-यष्टिः—-—गन्ना, ईख, मुलेठी
मधुरसः —पुं॰—मधु-रसः—-—ताड़ का वृक्ष (जिससे ताडी बनती हैं)
मधुरसः —पुं॰—मधु-रसः—-—गन्ना, ईख
मधुरसः —पुं॰—मधु-रसः—-—मिठास
मधुरसा —स्त्री॰—मधु-रसा—-—अंगुरों का गुच्छा
मधुरसा —स्त्री॰—मधु-रसा—-—अंगुरों की बेल
मधुलग्नः —पुं॰—मधु-लग्नः—-—एक वृक्ष का नाम
मधुलिह् —पुं॰—मधु-लिह्—-—भौंरा
मधुलेह् —पुं॰—मधु-लेह्—-—भौंरा
मधुलेहिन् —पुं॰—मधु-लेहिन्—-—भौंरा
मधुलोलुपः —पुं॰—मधु-लोलुपः—-—भौंरा
मधुवनम् —नपुं॰—मधु-वनम्—-—वह जंगल जहाँ मधु नामक राक्षस रहा करता था जिसको मारकर शत्रुघ्न ने मथुरा नगरी बसाई थी
मधुवनः —पुं॰—मधु-वनः—-—कोयल
मधुवाराः —पुं॰—मधु-वाराः—-—बार-बार पीने वाले, शराब के जाम पर जाम चढ़ाने वाले, डटकर शराब पीने वाले
मधुव्रतः —पुं॰—मधु-व्रतः—-—भौंरा
मधुशर्करा —स्त्री॰—मधु-शर्करा—-—शहद से तैयार की हुई शक्कर
मधुशाखः —पुं॰—मधु-शाखः—-—एक प्रकार का (महुए का) पेड़
मधुशिष्टम् —नपुं॰—मधु-शिष्टम्—-—मोम
मधुशेषम् —नपुं॰—मधु-शेषम्—-—मोम
मधुसखः —पुं॰—मधु-सखः—-—कामदेव
मधुसहायः —पुं॰—मधु-सहायः—-—कामदेव
मधुसारथिः —पुं॰—मधु-सारथिः—-—कामदेव
मधुसुहृद् —पुं॰—मधु-सुहृद्—-—कामदेव
मधुसिक्थकः —पुं॰—मधु-सिक्थकः—-—एक प्रकार का विष
मधुसूदनः —पुं॰—मधु-सूदनः—-—भौंरा
मधस्थानम् —नपुं॰—मधु-स्थानम्—-—मधुमक्खियों का छत्ता
मधुस्वरः —पुं॰—मधु-स्वरः—-—कोयल
मधुहन् —पुं॰—मधु-हन्—-—शहद को नष्ट करने वाला या एकत्र करने वाला
मधुहन् —पुं॰—मधु-हन्—-—एक प्रकार का शिकारी पक्षी
मधुहन् —पुं॰—मधु-हन्—-—ज्योतिषी, भविष्यकता
मधुहन् —पुं॰—मधु-हन्—-—विष्णु का नामान्तर
मधुकः —पुं॰—-—मधु+कन्, कै+क वा—एक वृक्ष का नाम (मधूक, महुआ) का नाम
मधुकः —पुं॰—-—-—अशोक वृक्ष
मधुकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का पक्षी
मधुर —वि॰—-—मधु माधुर्यं राति रा+क मधु अस्त्यर्थेर वा—मीठा
मधुर —वि॰—-—-—शहदयुक्त, मधुमय
मधुर —वि॰—-—-—सुखद, मनोहर, आकर्षक, रुचिकर
मधुर —वि॰—-—-—सुरीला (स्वर)
मधुरः —पुं॰—-—-—लाल रंग का गन्ना, ईख
मधुरः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का आम
मधुरम् —नपुं॰—-—-—मधुरपेय, शर्बत
मधुरम् —अव्य॰—-—-—मिठास के साथ सुहावने ढंग से, रोचकता के साथ
मधुराक्षर —वि॰—मधुर-अक्षर—-—मधुर ध्वनि वाला, मिष्टभाषी, रसीला
मधुरालाप —वि॰—मधुर-आलाप—-—मधुर शब्दों का उच्चारण करने वाला
मधुरालापः —पुं॰—मधुर-आलापः—-—मधुर या सुरीले स्वर
मधुरालापा —स्त्री॰—मधुर-आलापा—-—मैना, मदनसारिका
मधुरकण्टकः —पुं॰—मधुर-कण्टकः—-—एक प्रकार की मछली
मधुरजम्बीरम् —नपुं॰—मधुर-जम्बीरम्—-—नींबू की एक जाति
मधुरत्रयम् —नपुं॰—मधुर-त्रयम्—-—तीन मीठे पदार्थ अर्थात् शक्कर, शहद और घी
मधुरफलः —पुं॰—मधुर-फलः—-—एक प्रकार का पेंवदी बेर
मधुरभाषिन् —वि॰—मधुर-भाषिन्—-—मधुरभाषी
मधुरवाच् —वि॰—मधुर-वाच्—-—मधुरभाषी
मधुरस्रवा —स्त्री॰—मधुर-स्रवा—-—एक प्रकार का छुहारे का पेड़
मधुरस्वर —वि॰—मधुर-स्वर—-—मधुर स्वर से अलापने वाला, मधुरस्वर वाला
मधुरस्वन —वि॰—मधुर-स्वन—-—मधुर स्वर से अलापने वाला, मधुरस्वर वाला
मधुरता —स्त्री॰—-—मधुर + तल् + टाप्—माधुर्य, सुहावनापन, रोचकता
मधुरत्वम् —नपुं॰—-—त्व वा—माधुर्य, सुहावनापन, रोचकता
मधुरिमन् —पुं॰—-—मधुर + इमनिच्—माधुर्य, रोचकता
मधुलिका —स्त्री॰—-—मधुल + कन् + टाप्, इत्वम्—काली सरसो, राई
मधूकः —पुं॰—-—मह् + ऊक नि॰ हस्य धः—भौंरा
मधूकः —पुं॰—-—-—एक वृक्ष का नाम-महुआ
मधूकम् —नपुं॰—-—-—मधुक (महुए) वृक्ष का फूल
मधूलः —पुं॰—-—मधु + लाति ला + क पृषो॰—एक प्रकार का वृक्ष
मधूली —स्त्री॰—-—-—आम का पेड़
मधूलिका —स्त्री॰—-—मधूल + कन् + टाप् इत्वम्—एक प्रकार का वृक्ष
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—बीच का, केन्द्रीय मध्यवर्ती, केन्द्रवर्ती
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—अन्तर्वर्ती, मध्यवर्ती
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—बीच के दर्जे का, मध्यक, दर्मियाने कदका, बीच का
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—तटस्थ, निष्पक्ष
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—न्याय, यथार्थ
मध्य —स्त्री॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—(ज्यो॰ में) मध्यभाग
मध्यः —पुं॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—मध्य, केन्द्र, मध्य या केन्द्रीय भाग
मध्यम् —नपुं॰—-—मन् + यत्, नस्य धः, तारा॰—मध्य, केन्द्र, मध्य या केन्द्रीय भाग
अह्नःमध्यम् —नपुं॰—-—-—दोपहर, दिन का मध्य
मध्यम् —नपुं॰—-— —शरीर का मध्य भाग, कमर
मध्यम् —नपुं॰—-—-—पेट, उदर
मध्यम् —नपुं॰—-—-—किसी वस्तु का भीतरी भाग
मध्यम् —नपुं॰—-—-—बीच की स्थिति या दशा
मध्यम् —नपुं॰—-—-—घोड़े की कोख
मध्यम् —नपुं॰—-—-—संगीत में मध्यवर्ती सप्तक
मध्यम् —नपुं॰—-—-—किसी श्रेणी की मध्यवर्ती राशि
मध्या —स्त्री॰—-—-—बीच की अंगुली
मध्यम् —नपुं॰—-—-—दस अरब की संख्या
मध्यम् —क्रि॰ वि॰—-—-—में, के बीच में
मध्येन —क्रि॰ वि॰—-—-—में से, बीच से
मध्यात् —क्रि॰ वि॰—-—-—में से, के बीच (संब॰ के साथ) से
मध्ये —क्रि॰ वि॰—-—-—बीच में, में, मध्य में
मध्ये —क्रि॰ वि॰—-—-—में, के अन्दर, के भीतर, बहुधा (
मध्येगङ्गम् —अव्य० स०—-—-—‘गंगा में
मध्येजठरम् —अव्य० स०—-—-—पेट में
मध्येनगरम् —अव्य० स०—-—-—नगर के भीतर
मध्येनदि —अव्य० स०—-—-—नदी के बीच में
मध्येपृष्ठम् —अव्य० स०—-—-—पीठ पर
मध्येभक्तम् —अव्य० स०—-—-—भोजन करने के पश्चात् फिर दोबारा भोजन करने से पूर्व बीच में ली जानेवाली औषधि
मध्येरणम् —अव्य० स०—-—-—युद्ध में
मध्येसभा —अव्य० स०—-—-—सभा में या सभा के सामने
मध्येसमुद्रम् —अव्य० स०—-—-—समुद्र के बीच में
मध्याङ्गुलिः —स्त्री॰—मध्य-अङ्गुलिः—-—बीच की अंगुली
मध्याङ्गुली —स्त्री॰—मध्य-अङ्गुली—-—बीच की अंगुली
मध्याह्नः —पुं॰—मध्य-अह्नः—-—(अह्न के स्थान में) मध्याह्न, दोपहर
मध्याह्नकृत्यम् —नपुं॰—मध्य-अह्नः-कृत्यम्—-—दोपहर के समय की जाने वाली क्रिया
मध्याह्नक्रिया —स्त्री॰—मध्य-अह्नः-क्रिया—-—दोपहर के समय की जाने वाली क्रिया
मध्याह्नकालः —पुं॰—मध्य-अह्नः-कालः—-—दोपहर का समय
मध्याह्नवेला —स्त्री॰—मध्य-अह्नः-वेला—-—दोपहर का समय
मध्याह्नसमयः —पुं॰—मध्य-अह्नः-समयः—-—दोपहर का समय
मध्याह्नस्नानम् —नपुं॰—मध्य-अह्नः-स्नानम्—-—दोपहर का नहाना
मध्यकर्णः —पुं॰—मध्य-कर्णः—-—अर्धव्यास
मध्यग —वि॰—मध्य-ग—-—बीच में जाने वाला
मध्यगत —वि॰—मध्य-गत—-—केन्द्रीय, मध्यवर्ती, बीच में होने वाला
मध्यगन्धः —पुं॰—मध्य-गन्धः—-—आम का वृक्ष
मध्यग्रहणम् —नपुं॰—मध्य-ग्रहणम्—-—ग्रहण का मध्य
मध्यदिनम् —नपुं॰—मध्य-दिनम्—-—मध्य दिन, दोपहर
मध्यदिनम् —नपुं॰—मध्य-दिनम्—-—दोपहर का उपहार
मध्यदीपकम् —नपुं॰—मध्य-दीपकम्—-—दीपक अलंकार का एक भेद, इसमें सामान्य विशेषण जो समस्त चित्रण पर प्रकाश डालता है बीच में स्थापित किया जाता हैं,
मध्यदेशः —पुं॰—मध्य-देशः—-—मध्यवर्ती स्थान या प्रदेश, किसी चीज का मध्यवर्ती भाग
मध्यदेशः —पुं॰—मध्य-देशः—-—कमर
मध्यदेशः —पुं॰—मध्य-देशः—-—पेट
मध्यदेशः —पुं॰—मध्य-देशः—-—याम्योत्तर रेखा
मध्यदेशः —पुं॰—मध्य-देशः—-—केन्द्रीय प्रदेश, हिमालय तथा विंध्य पर्वत के बीच का भाग
मध्यदेहः —पुं॰—मध्य-देहः—-—शरीर का प्रमुख भाग, पेट
मध्यपदम् —नपुं॰—मध्य-पदम्—-—मध्यवर्ती पद
मध्यलोपिन् —पुं॰—मध्य-लोपिन्—-—तत्पुरुष समास का एक अवान्तर भेद जिसमें कि रचना के बीच का शब्द लुप्त कर दिया जाता हैं इसका सामान्य उदाहरण ‘शाकपार्थिवः’ है, इसका विग्रह हैं-शाकप्रियः पार्थिवः, यहाँ बीच के शब्द ‘प्रिय’ का लोप कर दिया गया हैं इसी प्रकार छायातरुः व गुडधानाः आदि शब्द हैं
मध्यपातः —पुं॰—मध्य-पातः—-—सहधर्मचारिता, समागम
मध्यभागः —पुं॰—मध्य-भागः—-—मध्य भाग
मध्यभागः —पुं॰—मध्य-भागः—-—कमर
मध्यभावः —पुं॰—मध्य-भावः—-—बीच की स्थिति, सामान्य स्थिति
मध्ययवः —पुं॰—मध्य-यवः—-—पीली सरसो के छः दानों के बराबर का एक तोल
मध्यरात्रः —पुं॰—मध्य-रात्रः—-—आधी रात, रात का बीच
मध्यरात्रिः —स्त्री॰—मध्य-रात्रिः—-—आधी रात, रात का बीच
मध्यरेखा —स्त्री॰—मध्य-रेखा—-—केन्द्रीय या प्रथमयाम्योत्तर रेखा
मध्यलोकः —पुं॰—मध्य-लोकः—-—तीनों लोक के बीच का लोक अर्थात मर्त्यलोक या संसार
मध्येशः —पुं॰—मध्य-ईशः—-—राजा
मध्येश्वरः —पुं॰—मध्य-ईश्वरः—-—राजा
मध्यवयस् —नपुं॰—मध्य-वयस्—-—अधेड़ उम्रवाला
मध्यवर्तन् —वि॰—मध्य-वर्तिन्—-—बीच में स्थित, केन्द्रवर्ती
मध्यवर्तन् —पुं॰—मध्य-वर्तन्—-—विवाचक, मध्यस्थ
मध्यवृत्तम् —नपुं॰—मध्य-वृत्तम्—-—नाभि
मध्यसूत्रम् —नपुं॰—मध्य-सूत्रम्—-—केन्द्रीय या प्रथमयाम्योत्तर रेखा
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—बीच में स्थित या विद्यमान, केन्द्रीय
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—बीच का
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—बीच-बचाव करने वाला, दो दलों के बीच मध्यस्थता करने वाला
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—निष्पक्ष, तटस्थ
मध्यस्थ —वि॰—मध्य-स्थ—-—उदासीन, लगावरहित
मध्यस्थः —पुं॰—मध्य-स्थः—-—निर्णायक, विवाचक, मध्यस्थ
मध्यस्थः —पुं॰—मध्य-स्थः—-—शिव का विशेषण
मध्यस्थलम् —नपुं॰—मध्य-स्थलम्—-—मध्य या केन्द्र
मध्यस्थलम् —नपुं॰—मध्य-स्थलम्—-—मध्य स्थान या प्रदेश
मध्यस्थलम् —नपुं॰—मध्य-स्थलम्—-—कमर
मध्यस्थानम् —नपुं॰—मध्य-स्थानम्—-—बीच का पड़ाव
मध्यस्थानम् —नपुं॰—मध्य-स्थानम्—-—बीच का स्थान अर्थात वायु
मध्यस्थानम् —नपुं॰—मध्य-स्थानम्—-—तटस्थ, प्रदेश
मध्यस्थित —वि॰—मध्य-स्थित—-—केन्द्रीय, अन्तर्वर्ती
मध्यतः —अव्यय—-—मध्य + तसिल्—बीच से, मध्य से, में से
मध्यम —वि॰—-—मध्ये भवः - मध्य + म—बीच में स्थित या वर्तमान, बीच का, केन्द्रीय
मध्यम —वि॰—-—-—मध्यवर्ती, अन्तर्वर्ती
मध्यम —वि॰—-—-—बीच का, बीच की स्थिति या विशेषता का, बीच के दर्जे का यथा ‘उत्तमाधममध्यम’ में
मध्यम —वि॰—-—-—बीच का, औसत दर्जे का
मध्यम —वि॰—-—-—बीच के कद का
मध्यम —वि॰—-—-—न सबसे छोटा न सबसे बड़ा, (भाई) बीच में उत्पन्न
मध्यम —वि॰—-—-—निष्पक्ष, तटस्थ
मध्यमः —पुं॰—-—-—संगीत में पंचम स्वर
मध्यमः —पुं॰—-—-—विशेष संगीत पद्धति
मध्यमः —पुं॰—-—-—मध्यवर्ती देश
मध्यमः —पुं॰—-—-—(व्या॰ में) मध्यम पुरुष
मध्यमः —पुं॰—-—-—तटस्थ प्रभु
मध्यमः —पुं॰—-—-—प्रान्त का राज्यपाल
मध्यमा —स्त्री॰—-—-—बीच की अंगुली
मध्यमा —स्त्री॰—-—-—विवाह योग्य कन्या, व्यस्क कन्या
मध्यमा —स्त्री॰—-—-—कमल का बीजकोष
मध्यमा —स्त्री॰—-—-—काव्यशास्त्रों में वर्णित एक नायिका, अपनी जवानी की उम्र के बीच पहुँची हुई स्त्री, तु॰ सा॰ द॰ १००
मध्यमाङ्गुलिः —स्त्री॰—मध्यम-अङ्गुलिः—-—बीच की अंगुली
मध्यमाहरणम् —नपुं॰—मध्यम-आहरणम्—-—समीकरण में बीच की राशि का निरसन
मध्यमकक्षा —स्त्री॰—मध्यम-कक्षा—-—बीच का आंगन
मध्यमजात —वि॰—मध्यम-जात—-—दो के बीच में उत्पन्न, मझला
मध्यमपदम् —नपुं॰—मध्यम-पदम्—-—बीच का पद
मध्यमपदलोपिन् —पुं॰—मध्यम-पदम्-लोपिन्—-—तत्पुरुष समास का एक अवान्तर भेद जिसमें कि रचना के बीच का शब्द लुप्त कर दिया जाता हैं इसका सामान्य उदाहरण ‘शाकपार्थिवः’ है, इसका विग्रह हैं-शाकप्रियः पार्थिवः, यहाँ बीच के शब्द ‘प्रिय’ का लोप कर दिया गया हैं इसी प्रकार छायातरुः व गुडधानाः आदि शब्द हैं
मध्यमपाण्डवः —पुं॰—मध्यम-पाण्डवः—-—अर्जुन का विशेषण
मध्यमपुरुषः —पुं॰—मध्यम-पुरुषः—-—मध्यमपुरुष- वह पुरुष जिसको सम्बोधित किया जाए
मध्यमभृतकः —पुं॰—मध्यम-भृतकः—-—किसान, खेतिहार (जो अपने लिए और अपने स्वामी के लिए खेती का काम करता हैं)
मध्यमरात्रः —पुं॰—मध्यम-रात्रः—-—आधी रात
मध्यमलोकः —पुं॰—मध्यम-लोकः—-—बीच का संसार, भूलोक
मध्यमलोकपालः —पुं॰—मध्यम-लोकः-पालः—-—राजा
मध्यमवयस् —नपुं॰—मध्यम-वयस्—-—प्रौढ़ावस्था, बीच की उम्र का
मध्यमवयस्क —वि॰—मध्यम-वयस्क—-—प्रौढ़, बीच की उम्र का
मध्यमसंग्रहः —पुं॰—मध्यम-संग्रहः—-—बीच के दर्जे का गुप्त प्रेम, जैसे कि गहने कपड़े, पुष्प आदि उपहार भेजकर परस्त्री को फुसलाना, व्यास ने इसकी निम्नांकित परिभाषा की हैं
मध्यमसाहसः —पुं॰—मध्यम-साहसः—-—तीन प्रकार के दण्डभेदों में द्वितीय प्रकार
मध्यमसाहसः —पुं॰—मध्यम-साहसः—-—मध्यवर्ग के प्रति अपराध या अत्याचार
मध्यमसाहसम् —नपुं॰—मध्यम-साहसम्—-—मध्यवर्ग के प्रति अपराध या अत्याचार
मध्यमस्थ —वि॰—मध्यम-स्थ—-—बीच में होने वाला
मध्यमक —वि॰—-—मध्यम + कन्—बीच का, बिलकुल बीचोंबीच का
मध्यमिका —स्त्री॰—-—मध्यम + कन्—बीच का, बिलकुल बीचोंबीच का
मध्यमिका —स्त्री॰—-—मध्यमक + टाप्, इत्वम्—व्यस्क कन्या, जो विवाह योग्य उम्र की हो गई हो
मध्वः —पुं॰—-—-—एक प्रसिद्ध आचार्य तथा शास्त्रंप्रणेता, वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक तथा वेदान्त सूत्रों के भाष्यकर्ता
मध्वकः —पुं॰—-—मधु + अक् + अच्—भौंरा
मध्विजा —स्त्री॰—-—मधु ईजते प्राप्नोति-मधु + ईज् + क + टाप्, पृषो॰ हृस्वः—कोई भी मादक पेय, खींची हुई शराब
मन् —भ्वा॰ पर॰ <मनति>—-—-—घमण्ड करना
मन् —भ्वा॰ पर॰ <मनति>—-—-—पूजा करन
मन् —चुरा॰ आ॰ <मानयते>—-—-—घमण्डी होना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—सोचना, विश्वास करना, कल्पना करना, चिन्तन करना, उत्प्रेक्षा करना, विचारना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—ख्याल करना,आदर करना, मानना, देखना, समझना, मान लेना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—सम्मान करना, आदर करना, मान करना, मूल्यवान् समझना, बड़ा मानना,वरेण्य समझना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—जानना, समझना, प्रत्यक्ष करना, पर्यवेक्षण करना, लिहाज करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—स्वीकृति देना, हामी भरना, अमल करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—सोचना, विचार विमर्श करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-—-—इरादा करना, कामना करना, आशा करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰ मन्यते, मनुते, मत—-— —मन लगाना, ‘मन्’ धातु के अर्थ उस शब्द के अनुसार जिसके साथ इसका प्रयोग होता हैं, विविध प्रकार से बदलते रहते हैं उदा॰ बहुत मानना, बड़ा समझना, बहुत मूल्य आंकना, वरेण्य समझना, पूज्य मानना ‘बहु’ के अन्तर्गत भी दे॰;
बहु मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—बहुत मानना, बड़ा समझना, बहुत मूल्य आंकना, वरेण्य समझना, पूज्य मानना
लघु मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—तुच्छ समझना, घृणा करना, अपमान करना
अन्यथा मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—और तरह सोचना, संदेह करना
साधु मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—भला सोचना, अनुमोदन करना, संतोषजनक समझना
असाधु मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—नापसंद करना
तृणाय मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—तिनके जैसा समझना, हल्का मूल्य लगाना, तुच्छ समझना
तृणवत् मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—तिनके जैसा समझना, हल्का मूल्य लगाना, तुच्छ समझना
न मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—-—-—अवज्ञा करना, अवहेलना करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰प्रेर॰<मानयति>,<मानयते>—-—-—सम्मान करना, श्रद्धा दिखाना, आदर करना,अभिवादन करना, मूल्यवान् समझना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰, इच्छा॰ <मीमांसते>—-—-—विचार विमर्श करना, परीक्षण करना, अन्वेषण करना, पूछताछ करना
मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰, इच्छा॰ <मीमांसते>—-—-—संदेह करना, पूछताछ के लिए बुलाना
अनुमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—अनु-मन्—-—स्वीकृति देना, हामी भरना,अनुमोदन करना, स्वीकार करना, अनुमति देना, अनुज्ञा देना, मंजूरी देना
अनुमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰प्रेर॰—अनु-मन्—-—छुट्टी मांगना, अनुमति मांगना, स्वीकृति मांगना
अभिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—अभि-मन्—-—कामना करना, इच्छा करना, लालायित होना
अभिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—अभि-मन्—-—अनुमोदन करना, हामी भरना
अभिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—अभि-मन्—-—सोचना, उत्प्रेक्षा करना, कल्पना करना, मानना
अवमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—अव-मन्—-—घृणा करना, हेय समझना, अवज्ञा करना, नीच समझना, तुच्छ समझना
प्रतिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—प्रति-मन्—-—सोचना, विचारना
प्रतिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰प्रेर॰—प्रति-मन्—-—सम्मान करना, सम्मानित समझना, आदर करना
प्रतिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—प्रति-मन्—-—अनुमोदन करना, प्रशंसा करना
प्रतिमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—प्रति-मन्—-—अनुज्ञा देना, अनुमति देना
विमन् —दिवा॰ तना॰ आ॰प्रेर॰—वि-मन्—-—अनादर करना, तुच्छ समझना, अवज्ञा करना, नीच समझना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—सहमत होना, एकमत होना, एक मन का होना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—हामी भरना, स्वीकृति देना, अनुमोदन करना, पसंद करना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—सोचना, ख्याल करना, मानना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—स्वीकृति देना, अधिकार देना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—मान करना सम्मान करना, मह्त्वपूर्ण समझना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰—सम्-मन्—-—अनुज्ञा देना, अनुमति देना
सम्मन् —दिवा॰ तना॰ आ॰प्रेर॰—सम्-मन्—-—सम्मान करना, आदर करन, प्रतिष्टा करना
मननम् —नपुं॰—-—मम् + ल्युट्—सोचना, विचार विमर्श करना, गहनचिन्तन करना, अवधारणा करना
मननम् —नपुं॰—-—-—प्रज्ञा, समझ
मननम् —नपुं॰—-—-—तर्कसंगत अनुमान
मननम् —नपुं॰—-—-—अटकल, अंदाजा
मनस् —नपुं॰—-—मन्यतेऽनेन मन् करणे असुन्—मन, हृदय, समझ, प्रत्यक्षज्ञान,प्रज्ञा, जैसा कि सुमनस, दुर्मनस आदि में
मनस् —नपुं॰—-—-—(दर्शन॰ में) संज्ञान और प्रत्यक्षज्ञान का आन्तरिक अंग या मन, वह उपकरण जिसके द्वारा ज्ञेय पदार्थ आत्मा को प्रभावित करते हैं (न्या॰ द॰ में मन एक द्रव्य या पदार्थ माना गया है जो आत्मा से सर्वथा भिन्न है)
मनस् —नपुं॰—-—-—चेतना, निर्णय या विवेचन की शक्ति
मनस् —नपुं॰—-—-—सोच, विचार, उत्प्रेक्षा, कल्पना, प्रत्यय
मनस् —नपुं॰—-—-—योजना, प्रयोजन, अभिप्राय
मनस् —नपुं॰—-—-—संकल्प, कामना, इच्छा, रुचि; इस अर्थ में ‘मनस’ शब्द का प्रयोग बहुधा धातु के तुमुन्नंत रुप के साथ (तुम् के अन्तिम ‘म्’ का लोप करके) होता हैं और विशेषण शब्द बनते हैं
मनस् —नपुं॰—-—-—विचारविमर्श
मनस् —नपुं॰—-—-—स्वभाव, प्रकृति, मिजाज
मनस् —नपुं॰—-—-—तेज, ओज, सत्त्व
मनस् —नपुं॰—-—-—मानस नामक सरोवर
मनसा गम् ——-—-—सोचना, चिन्तन करना, याद करना
मनः कृ ——-—-—मन को स्थिर करना, विचारों को निर्दिष्ट करना,
मनः बन्ध् ——-—-— मन लगाना, स्नेह हो जाना
मनः समाधा —स्त्री॰—-—-— अपने आप को स्वस्थ करना
मनसि उद्भू ——-—-—मन को पार करना
मनसि कृ ——-—-—सोचना, ध्यान रखना, दृढ़ संकल्प करना, निर्धारण करना, मन में रखना
मनोऽधिनाथः —पुं॰—मनस्-अधिनाथः—-—प्रेमी, पति
मनोऽनवस्थानम् —नपुं॰—मनस्-अनवस्थानम्—-—अनवधानता
मनोऽनुग —वि॰—मनस्-अनुग—-—मनोनुकूल, रुचिकर
मनोपहारिन् —वि॰—मनस्-उपहारिन्—-—हृदयहारी
मनोऽभिनिवेशः —वि॰—मनस्-अभिनिवेशः—-—खूब मन लगाना, प्रयोजन की दृढ़ता
मनोऽभिराम —वि॰—मनस्-अभिराम—-—मन के लिए सुखद, हृदय को तृप्त करने वाला
मनोऽभिलाषः —पुं॰—मनस्-अभिलाषः—-—मन की लालसा या इच्छा
मनआप —वि॰—मनस्-आप—-—हृदयहारी, आकर्षक, सुहावना
मनस्कान्त —वि॰—मनस्-कान्त—-—मन का प्रिय, सुहावना, रुचिकर
मनस्कारः —पुं॰—मनस्-कारः—-—पूर्ण प्रत्यक्ष ज्ञान(सुख या दुःख का) पूरी चेतना
मनःक्षेपः —पुं॰—मनस्-क्षेपः—-—मन की उचाट, मानसिक अव्यवस्था
मनोगत —वि॰—मनस्-गत—-—मन में विद्यमान, हृदय में छिपा हुआ,आन्तरिक, अन्दरुनी, गुप्त
मनोगत —वि॰—मनस्-गत—-—मन पर प्रभाव डालने वाला, वांछित
मनोगतम् —नपुं॰—मनस्-गतम्—-—कामना, चाह
मनोगतम् —नपुं॰—मनस्-गतम्—-—विचार, चिन्तन, भाव, सम्मति
मनोगतिः —स्त्री॰—मनस्-गतिः—-—हृदय की इच्छा
मनोगवी —स्त्री॰—मनस्-गवी—-—कामना, चाह
मनोगुप्ता —स्त्री॰—मनस्-गुप्ता—-—मैनसिल
मनोग्रहणम् —नपुं॰—मनस्-ग्रहणम्—-—मन को हराना
मनोग्राहिन् —वि॰—मनस्-ग्राहिन्—-—मन को हराने वाला या आकृष्ट करने वाला
मनोज —पुं॰—मनस्-ज—-—कामदेव
मनोजन्मन् —वि॰—मनस्-जन्मन्—-—मनोजात
मनोजन्मन् —पुं॰—मनस्-जन्मन्—-—कामदेव
मनोजव —वि॰—मनस्-जव—-—विचार की भांति, फुर्तीला, आशुगामी
मनोजव —वि॰—मनस्-जव—-—चिन्तन और विचारण में तेज
मनोजव —वि॰—मनस्-जव—-—पैतृक, पितृ तुल्य संबन्ध रखने वाला
मनोजवस् —वि॰—मनस्-जवस्—-—पिता के समान, पितृतुल्य
मनोजात —वि॰—मनस्-जात—-—मन में उत्पन्न, मन में उदित या पैदा हुआ
मनोजिघ्र —वि॰—मनस्-जिघ्र—-—मन से सूंघने वाला अर्थात्, दूसरों के मन के विचार भांपने वाला
मनोज्ञ —वि॰—मनस्-ज्ञ—-—सुहावना प्रिय, रुचिकर, सुन्दर, लावण्यमय
मनोज्ञः —पुं॰—मनस्-ज्ञः—-—एक गन्धर्व का नाम
मनोज्ञा —स्त्री॰—मनस्-ज्ञा—-—मैनशिल
मनोज्ञा —स्त्री॰—मनस्-ज्ञा—-—मादक पेय
मनोज्ञा —स्त्री॰—मनस्-ज्ञा—-—राजकुमारी
मनस्तापः —पुं॰—मनस्-तापः—-—मानसिक पीडा या वेदना व्यथा
मनस्तापः —पुं॰—मनस्-तापः—-—पश्चाताप, पछतावा
मनःपीडा —स्त्री॰—मनस्-पीडा—-—मानसिक पीडा या वेदना व्यथा
मनःपीडा —स्त्री॰—मनस्-पीडा—-—मानसिक पीडा या वेदना व्यथा
मनस्तुष्टिः —स्त्री॰—मनस्-तुष्टिः—-—मन का संतोष
मनस्तोका —स्त्री॰—मनस्-तोका—-—दुर्गा का विशेषण
मनोदण्डः —पुं॰—मनस्-दण्डः—-—मन या विचारों पर पूर्ण नियन्त्रण
मनोदत्त —वि॰—मनस्-दत्त—-—दत्तचित्त, जिसका मन किसी वस्तु में पूरी तरह लग रहा हो, मन से दिया हुआ
मनोदाहः —पुं॰—मनस्-दाहः—-—मन का क्लेश, पीडा, मनस्ताप
मनोदुःखम् —नपुं॰—मनस्-दुःखम्—-—मन का क्लेश, पीडा, मनस्ताप
मनोनाशः —पुं॰—मनस्-नाशः—-—बुद्धि का नाश, विक्षिप्तता, पागलपन
मनोनीत —वि॰—मनस्-नीत—-—पसंद किया हुआ, चुना हुआ,
मनस्पतिः —पुं॰—मनस्-पतिः—-—विष्णु् का विशेषण
मनःपूत —वि॰—मनस्-पूत—-—मन जिसे पवित्र मानता हो, अन्तरात्मा द्वारा अनुमोदित
मनःपूत —वि॰—मनस्-पूत—-—शुद्धात्मा, सचेत
मनःप्रणीत —वि॰—मनस्-प्रणीत—-—मन को रुचिकर या सुखद
मनःप्रसादः —पुं॰—मनस्-प्रसादः—-—चित्त की स्वस्थता, मानसिक शान्ति
मनःप्रीतिः —स्त्री॰—मनस्-प्रीतिः—-—मानसिक सन्तोष, हर्ष, खुशी
मनोभवः —पुं॰—मनस्-भवः—-—कामदेव, मनोज
मनोभवः —पुं॰—मनस्-भवः—-—प्रेम, प्रणयोन्माद, कामुकता
मनोभूः —पुं॰—मनस्-भूः—-—कामदेव, मनोज
मनोभूः —पुं॰—मनस्-भूः—-—प्रेम, प्रणयोन्माद, कामुकता
मनोमथनः —पुं॰—मनस्-मथनः—-—कामदेव
मनोमय —वि॰—मनस्-मय—-—पृथक् देखिये
मनोयायिन् —वि॰—मनस्-यायिन्—-—इच्छानुसार गमन करनेवाला
मनोयायिन् —वि॰—मनस्-यायिन्—-—तेज फुर्तीला
मनोयोगः —पुं॰—मनस्-योगः—-— दत्त चित्तता, खूब ध्यान देना
मनोयोनिः —पुं॰—मनस्-योनिः—-—कामदेव
मनोरञ्जनम् —नपुं॰—मनस्-रञ्जनम्—-—मन को प्रसन्न करना
मनोरञ्जनम् —नपुं॰—मनस्-रञ्जनम्—-—सुहावनापन
मनोरथः —पुं॰—मनस्-रथः—-—मन की गाड़ी, कामना, चाह
मनोरथः —पुं॰—मनस्-रथः—-—अभीष्ट पदार्थ
मनोरथः —पुं॰—मनस्-रथः—-—(नाटक में) संकेत, परोक्ष रुप से या गुप्त से प्रकट की गई कामना
मनोरथदायक —वि॰—मनस्-रथः-दायक—-—किसी एक व्यक्ति की आशाओं को पूरा करने वाला
मनोरथदायकः —पुं॰—मनस्-रथः-दायकः—-—कल्प तरु का नाम
मनोरथसिद्धिः —स्त्री॰—मनस्-रथः-सिद्धिः—-—कल्पना की सृष्टि, हवाई किले बनाना
मनोरम —वि॰—मनस्-रम—-—आकर्षक, सुखद, रुचिकर, प्रिय सुन्दर
मनोरमा —स्त्री॰—मनस्-रमा—-—कमनीय स्त्री
मनोरमा —स्त्री॰—मनस्-रमा—-—एक प्रकार का रंग
मनोराज्यम् —नपुं॰—मनस्-राज्यम्—-—‘कल्पना का राज्य’ हवाई किला
मनोलयः —पुं॰—मनस्-लयः—-—चेतना का नाश
मनोलौल्यम् —नपुं॰—मनस्-लौल्यम्—-—मन की चंचलता, मन की लहर या मौज
मनोवाञ्छा —स्त्री॰—मनस्-वाञ्छा—-—हृदय की अभिलाष, इच्छा
मनोवाञ्छितम् —नपुं॰—मनस्-वाञ्छितम्—-—हृदय की अभिलाष, इच्छा
मनोविकारः —स्त्री॰—मनस्-विकारः—-—मन का संवेग
मनोविकृति —स्त्री॰—मनस्-विकृति—-—मन का संवेग
मनोवृत्तिः —स्त्री॰—मनस्-वृत्तिः—-—मन की क्रियाशीलता, इच्छाशक्ति
मनोवृत्तिः —स्त्री॰—मनस्-वृत्तिः—-—स्वभाव, चित्तवृत्ति
मनोवेगः —पुं॰—मनस्-वेगः—-—विचारों की तेजी
मनोव्यथा —स्त्री॰—मनस्-व्यथा —-—मानसिक पीडा या वेदना
मनःशीलः —पुं॰—मनस्-शीलः—-—मैनसिल
मनःशीला —स्त्री॰—मनस्-शीला—-—मैनसिल
मनःशीघ्र —वि॰—मनस्-शीघ्र—-—मन की भांति तेज
मनःसङ्गः —पुं॰—मनस्-सङ्गः—-—मन की (किसी वस्तु में) आसक्ति
मनःसन्तापः —पुं॰—मनस्-सन्तापः—-—मन की व्यथा
मनःस्थ —वि॰—मनस्-स्थ—-—हृदय में स्थित, मानसिक
मनःस्थैर्यम् —नपुं॰—मनस्-स्थैर्यम्—-—मन की दृढ़ता
मनोहत —वि॰—मनस्-हत—-—निराश
मनोहर —वि॰—मनस्-हर—-—सुखद, लावण्यमय, आकर्षक, कमनीय, प्रिय
मनोहरः —पुं॰—मनस्-हरः—-—एक प्रकार की चमेली
मनोहरम् —नपुं॰—मनस्-हरम्—-—सोना
मनोहर्तृ —वि॰—मनस्-हर्तृ—-—हृदय को हरण करने वाला, मनोहर, रुचिकर, सुखद
मनोहारिन् —वि॰—मनस्-हारिन्—-—हृदय को हरण करने वाला, मनोहर, रुचिकर, सुखद
मनोहारी —स्त्री॰—मनस्-हारी—-—असती या व्याभिचारिणी स्त्री
मनोह्लादः —पुं॰—मनस्-ह्लादः—-—हृदय का उल्लास,
मनोह्वा —स्त्री॰—मनस्-ह्वा—-—मैनसिल
मनसा —स्त्री॰—-—मनस् + अच + टाप्—कश्यप की एक पुत्री का नाम, नागराज अनन्त की बहन तथा जरत्कारु मुनि की पत्नी,इसीप्रकार मनसादेवी
मनसिजः —पुं॰—-—मनसि जायते-जन् + ड, अलुक् स॰—कामदेव
मनसिजः —पुं॰—-—-—प्रेम, प्रणयोन्माद
मनसिशयः —पुं॰—-—मनसि शेते-शी + अच् सप्तम्या अलुक्—कामदेव
मनस्तः —अव्य॰—-—मनस् + तस्—मन से, हृदय से
मनस्विन् —वि॰—-—मनस् + विनि—बुद्धिमान, प्रज्ञावान, चतुर, ऊँचे मन वाला, उच्चात्मा
मनस्विन् —वि॰—-—-—स्थिरमना, दृढ़निश्चय, दृढ़ संकल्प वाला
मनस्विनी —स्त्री॰—-—-—उदार मन की या अभिमानी स्त्री
मनस्विनी —स्त्री॰—-—-—बुद्धीमति या सती स्त्री
मनस्विनी —स्त्री॰—-—-—दुर्गा का नाम
मनाक् —अव्यय—-—मन + आक्—जरा, थोड़ा सा, अल्पमात्रा में, ’
न मनाक् —अव्यय—-—-—‘बिल्कुल नहीं
न मनाक् —अव्यय—-—-—शनैः शनैः, विलंब से
मनाक्कर —वि॰—मनाक्-कर—-—थोड़ा करने वाला
मनाक्करम् —नपुं॰—मनाक्-करम्—-—एक प्रकार की गंधयुक्त अगर की लकड़ी
मनाका —स्त्री॰—-—मन + आक् + टाप्—हथिनी
मनित —वि॰—-—मन् + क्त—ज्ञात, प्रत्यक्षज्ञान, समझा हुआ
मनीकम् —नपुं॰—-—मन् + कीकन्—सुर्मा, अंजन
मनीषा —स्त्री॰—-—मनसः ईषा ष॰ त॰ शक॰—चाह, कामना
मनीषा —स्त्री॰—-—-—प्रज्ञा, समझ
मनीषा —स्त्री॰—-—-—सोच, विचार
मनीषिका —स्त्री॰—-—मनीषा + कन्+टाप्, इत्वम्—समझ, प्रज्ञा
मनीषित —वि॰—-—मनीषा + इतच्—अभिलषित, वांछित, पसन्द किया गया, प्यारा, प्रिय
मनीषितम् —नपुं॰—-—-—कामना, इच्छा, अभीष्ट पदार्थ
मनीषिन् —वि॰—-—मनीषा + इनि—बुद्धिमान्, विद्वान्, प्रज्ञावान्, चतुर, विचारशील, समझदार @ रघु॰ १।१५
मनीषिन् —पुं॰—-—-—बुद्धिमान् या विद्वान पुरुष, मुनि, पंडित
मनुः —पुं॰—-—मन् + उ—एक प्रसिद्ध व्यक्ति जो मानव का प्रतिनिधि और मानवजाति का हित माना जाता हैं (कभी कभी यह दिव्य व्यक्ति समझे जाते है)
मनुः —पुं॰—-—-—विशेषतः चौदह क्रमागत प्रजापति या भूलोक प्रभु
मनुः —पुं॰—-—-—चौदह की संख्या के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
मनुः —स्त्री॰—-—-—मनु की पत्नी
मन्वन्तरम् —नपुं॰—मनु-अन्तरम्—-—एक मनु का काल (मनु॰ १।७९ के अनुसार यह काल मनुष्यों के ४३२०००० वर्षों का होता हैं, इसी को ब्रह्मा का १।१४ दिन मानते हैं, क्योंकि इसप्रकार के १४ कालों का योग ब्रह्मा का एक पूरा दिन होता है। इन चौदह कालों में से प्रत्येक का अधिष्ठातृ मनु पृथक २ हैं, इसप्रकार के छः काल बित चुके हैं इस समय हम सातवें मन्वन्तर में रह रहें हैं, और सात और मन्वंतर अभी आने हैं)
मनुजः —पुं॰—मनु-जः—-—मानवजाति
मन्वधिपः —पुं॰—मनु-अधिपः—-—राजा, प्रभु
मन्वधिपतिः —पुं॰—मनु-अधिपतिः—-—राजा, प्रभु
मन्वीश्वरः —पुं॰—मनु-ईश्वरः—-—राजा, प्रभु
मनुपतिः —पुं॰—मनु-पतिः—-—राजा, प्रभु
मनुराजः —पुं॰—मनु-राजः—-—राजा, प्रभु
मनुलोकः —पुं॰—मनु-लोकः—-—मानवों की सृष्टि अर्थात भूलोक
मनुजातः —पुं॰—मनु-जातः—-—मनुष्य
मनुज्येष्ठः —पुं॰—मनु-ज्येष्ठः—-—तलवार
मनुप्रणीत —वि॰—मनु-प्रणीत—-—मनु द्वारा शिक्षित या व्याख्यात
मनुभूः —पुं॰—मनु-भूः—-—मनुष्य, मानव, जाति
मनुराज् —पुं॰—मनु-राज्—-—कुबेर का विशेषण
मनुश्रेष्ठः —पुं॰—मनु-श्रेष्ठः—-—विष्णु का विशेषण
मनुसंहिता —स्त्री॰—मनु-संहिता—-—धर्मसंहिता जो प्रथम मनु द्वारा रचित मानी जाती है, मनु द्वारा प्रणीत विधिविधान
मनुष्यः —पुं॰—-—मनोरपत्यं यक् सुक् च—आदमी, मानव, मर्त्यं
मनुष्येन्द्रः —पुं॰—मनुष्य-इन्द्रः—-—राजा, प्रभु
मनुष्येश्वरः —पुं॰—मनुष्य-ईश्वरः—-—राजा, प्रभु
मनुष्यजातिः —पुं॰—मनुष्य-जातिः—-—मानव जाति, इंसान
मनुष्यदेवः —पुं॰—मनुष्य-देवः—-—राजा
मनुष्यदेवः —पुं॰—मनुष्य-देवः—-—मनुष्यों में देव, ब्राह्मण
मनुष्यधर्मः —पुं॰—मनुष्य-धर्मः—-—मनुष्य का कर्तव्य
मनुष्यधर्मः —पुं॰—मनुष्य-धर्मः—-—मानव चरित्र, इंसान की विशेषता
मनुष्यधर्मन् —पुं॰—मनुष्य-धर्मन्—-—कुबेर का विशेषण
मनुष्यमारणम् —नपुं॰—मनुष्य-मारणम्—-—मानवहत्या
मनुष्ययज्ञः —पुं॰—मनुष्य-यज्ञः—-—आतिथ्य, अतिथियों का सत्कार, गृहस्थ के पाँच दैनिक कृत्यों में से एक
मनुष्यलोकः —पुं॰—मनुष्य-लोकः—-—मरणशील (मर्त्यों) मनुष्यों का संसार, भूलोक
मनुष्यविश —वि॰—मनुष्य-विश—-—इंसान, मानवजाति
मनुष्यविशा —स्त्री॰—मनुष्य-विशा—-—इंसान, मानवजाति
मनुष्यविशम् —नपुं॰—मनुष्य-विशम्—-—इंसान, मानवजाति
मनुष्यशोणितम् —नपुं॰—मनुष्य-शोणितम्—-—मानवरक्त
मनुष्यसभा —स्त्री॰—मनुष्य-सभा—-—मनुष्यों की सभा
मनुष्यसभा —स्त्री॰—मनुष्य-सभा—-—भीड़, जमाव
मनोमय —वि॰—-—मनस् + मयट्—मानसिक, आत्मिक
मनोमयकोशः —पुं॰—मनोमय-कोशः—-—आत्मा को आवृत करने वाले पाँच कोषों में से दूसरा कोष
मनोमयकोषः —पुं॰—मनोमय-कोषः—-—आत्मा को आवृत करने वाले पाँच कोषों में से दूसरा कोष
मन्तुः —पुं॰—-—मन् + तुन्—दोष, अपराध
मन्तुः —पुं॰—-—-—मनुष्य, मानवजाति
मन्तृ —पुं॰—-—मन् + तृच्—ऋषि, मुनि, बुद्धिमान्, मनुष्य, परामर्शदाता, सलाहकार
मन्त्र् —चुरा॰ आ॰ <मंत्रयते>, कभी कभी <‘मन्त्रयति’> भी <मन्त्रित>—-—-—सलाह लेना, विचार करना, सोच विचार करना, मन्त्रणा करना, परामर्श लेना
मन्त्र् —चुरा॰ आ॰ <मंत्रयते>, कभी कभी <‘मन्त्रयति’> भी <मन्त्रित>—-—-—उपदेश देना, सलाह देना, परामर्श देना
मन्त्र् —चुरा॰ आ॰ <मंत्रयते>, कभी कभी <‘मन्त्रयति’> भी <मन्त्रित>—-—-—वेदपाठ को अभिमंत्रित करना, जादू से मुग्ध करना
मन्त्र् —चुरा॰ आ॰ <मंत्रयते>, कभी कभी <‘मन्त्रयति’> भी <मन्त्रित>—-—-—कहना, बोलना, बातें करना, गुनगुनाना
अनुमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—अनु-मन्त्र्—-—अभिमंत्रित करना, जादू करना
अनुमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—अनु-मन्त्र्—-—आशीर्वाद देकर विदा करना
अभिमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—अभि-मन्त्र्—-—वेदमंत्रों द्वारा अभिमंत्रित करना
अभिमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—अभि-मन्त्र्—-—मुग्ध करना, मोहना
आमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—आ-मन्त्र्—-—विदा करना, विसर्जन करना
आमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—आ-मन्त्र्—-—बोलना, बुलाना,कहना, संबोधित करना, वार्तालाप करना
आमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—आ-मन्त्र्—-—कहना, बोलना
आमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—आ-मन्त्र्—-—बुलाना, निमंत्रित करना
उपमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—उप-मन्त्र्—-—उपदेश देना, उकसाना, फुसलाना
निमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—नि-मन्त्र्—-—न्यौता देना, बुलाना, बुला भेजना
निमन्त्र् —चुरा॰ आ॰—नि-मन्त्र्—-—जादू से अभिमंत्रित करना
सम्मन्त्र् —चुरा॰ आ॰—सम्-मन्त्र्—-—सलाह करना, परामर्श या सलाह लेना
मन्त्रः —पुं॰—-—मन्त्र् + अच्—(किसी भी देवता को संबोधित) वैदिक सूक्त या प्रार्थनापरक वेद मंत्र (वेद का पाठ तीन प्रकार का है- यदि छन्दोबद्ध और उच्चस्वर से बोला जाने वाला है तो ॠक् है, यदि गद्यमय और मन्दस्वर से बोला जाने वाला है तो यजुस् है, और यदि छन्दोबद्धता के साथ गेयता है तो सामन् है)
मन्त्रः —पुं॰—-—-—वेद का संहिता पाठ (ब्राह्मण भाग को छोड़कर)
मन्त्रः —पुं॰—-—-—मोहन, वशीकरण तथा आवाहन के मंत्र
मन्त्रः —पुं॰—-—-—(प्रार्थना परक) यजुस् जो किसी देवता को उद्दिष्ट करके बोला गया हो
मन्त्रः —पुं॰—-—-—गुप्तवार्ता, मंत्रणा, परामर्श, उपदेश, संकल्प, योजना
मन्त्रः —पुं॰—-—-—गुप्त योजना या मंत्रणा, रहस्य
मन्त्राराधनम् —नपुं॰—मन्त्र-आराधनम्—-—मोहन परक या आवाहन के मंत्रों से सिद्धि की चेष्टा
मन्त्रोदकम् —नपुं॰—मन्त्र-उदकम्—-—मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित जल, मन्त्र पढ़कर पवित्र किया हुआ पानी
मन्त्रजलम् —नपुं॰—मन्त्र-जलम्—-—मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित जल, मन्त्र पढ़कर पवित्र किया हुआ पानी
मन्त्रतोयम् —नपुं॰—मन्त्र-तोयम्—-—मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित जल, मन्त्र पढ़कर पवित्र किया हुआ पानी
मन्त्रवारि —नपुं॰—मन्त्र-वारि—-—मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित जल, मन्त्र पढ़कर पवित्र किया हुआ पानी
मन्त्रोपष्टम्भः —पुं॰—मन्त्र-उपष्टम्भः—-—परामर्श द्वारा समर्थन करा
मन्त्रकरणम् —नपुं॰—मन्त्र-करणम्—-—वेदपाठ
मन्त्रकरणम् —नपुं॰—मन्त्र-करणम्—-—सस्वर वेदपाठ करना
मन्त्रकारः —पुं॰—मन्त्र-कारः—-—वैदिक सूक्तों का कर्ता
मन्त्रकालः —पुं॰—मन्त्र-कालः—-—मंत्रणा या परामर्श का समय
मन्त्रकुशल —वि॰—मन्त्र-कुशल—-—परामर्श देने में चतुर
मन्त्रकृत् —पुं॰—मन्त्र-कृत्—-—वैदिक सूक्तों का प्रणेता या रचयिता
मन्त्रकृत् —पुं॰—मन्त्र-कृत्—-—वेद पाठी
मन्त्रकृत् —पुं॰—मन्त्र-कृत्—-—सलाहकार, परामर्शदाता
मन्त्रकृत् —पुं॰—मन्त्र-कृत्—-—राजदूत
मन्त्रगण्डकः —पुं॰—मन्त्र-गण्डकः—-—ज्ञान, विशान
मन्त्रगुप्तिः —स्त्री॰—मन्त्र-गुप्तिः—-—गुप्त सलाह
मन्त्रगूढः —पुं॰—मन्त्र-गूढः—-—गुप्तचर, गुप्तदूत या अभिकर्ता
मन्त्रजिह्वाः —पुं॰—मन्त्र-जिह्वाः—-—अग्निः
मन्त्रज्ञः —पुं॰—मन्त्र-ज्ञः—-—सलाहकार, परामर्शदाता
मन्त्रज्ञः —पुं॰—मन्त्र-ज्ञः—-—विद्वान, ब्राह्मण
मन्त्रज्ञः —पुं॰—मन्त्र-ज्ञः—-—गुप्तचर
मन्त्रदः —पुं॰—मन्त्र-दः—-—आध्यात्मिक गुरु या आचार्य
मन्त्रदातृ —पुं॰—मन्त्र-दातृ—-—आध्यात्मिक गुरु या आचार्य
मन्त्रदर्शिन् —पुं॰—मन्त्र-दर्शिन्—-—वैदिक सूक्तों का द्रष्टा
मन्त्रदर्शिन् —पुं॰—मन्त्र-दर्शिन्—-—वेदों में निष्णात ब्राह्मण
मन्त्रदीधितिः —पुं॰—मन्त्र-दीधितिः—-—अग्निः
मन्त्रदृश् —पुं॰—मन्त्र-दृश्—-—वैदिक सूक्तों का द्रष्टा, ऋषि
मन्त्रदृश् —पुं॰—मन्त्र-दृश्—-—परामर्शदाता, सलाहकार
मन्त्रदेवता —स्त्री॰—मन्त्र-देवता—-—मन्त्र द्वारा आहूत देवता
मन्त्रधरः —पुं॰—मन्त्र-धरः—-—सलाहकार
मन्त्रनिर्णयः —पुं॰—मन्त्र-निर्णयः—-—मंत्रणा के पश्चात् अन्तिम निर्णय
मन्त्रपूत —वि॰—मन्त्र-पूत —-—मंत्रों द्वारा पवित्र किया हुआ
मन्त्रप्रयोगः —पुं॰—मन्त्र-प्रयोगः—-—मन्त्रों का प्रयोग
मन्त्रबीजम् —नपुं॰—मन्त्र-बीजम्—-—मन्त्र का प्रथमाक्षर
मन्त्रवीजम् —नपुं॰—मन्त्र-वीजम्—-—मन्त्र का प्रथमाक्षर
मन्त्रभेदः —पुं॰—मन्त्र-भेदः—-—गुप्त परामर्श का प्रकट कर देना, भेद खोल देना
मन्त्रमूर्तिः —पुं॰—मन्त्र-मूर्तिः—-—शिव का विशेषण
मन्त्रमूलम् —नपुं॰—मन्त्र-मूलम्—-—जादू
मन्त्रयन्त्रम् —नपुं॰—मन्त्र-यन्त्रम्—-—जादू के संकेत से युक्त एक रहस्यमूलक रेखाचित्र, ताबीज
मन्त्रयोगः —पुं॰—मन्त्र-योगः—-—मंत्रों का प्रयोग
मन्त्रयोगः —पुं॰—मन्त्र-योगः—-—जादू
मन्त्रवर्जम् —अव्य॰—मन्त्र-वर्जम्—-—बिना मंत्र बोले
मन्त्रविद् —पुं॰—मन्त्र-विद्—-—‘मंत्रज्ञ’
मन्त्रविद्या —स्त्री॰—मन्त्र-विद्या—-—मंत्रविज्ञान, जादू
मन्त्रसंस्कारः —पुं॰—मन्त्र-संस्कारः—-—वेदपाठ से युक्त कोई संस्कार या अनुष्ठान
मन्त्रसंहिता —स्त्री॰—मन्त्र-संहिता—-—वेद के समस्तसूक्तों का संग्रह
मन्त्रसाधकः —पुं॰—मन्त्र-साधकः—-—जादूगर, बाजीगर
मन्त्रसाधनम् —नपुं॰—मन्त्र-साधनम्—-—जादू द्वारा वश में करना, या कार्य सिद्धि
मन्त्रसाधनम् —नपुं॰—मन्त्र-साधनम्—-—मोहनमंत्र, आवाहनमंत्र
मन्त्रसाध्य —वि॰—मन्त्र-साध्य—-—जादू के मंत्रों से वशीकरण या कार्यसिद्धि के योग्य
मन्त्रसाध्य —वि॰—मन्त्र-साध्य—-—मंत्रणा द्वारा प्राप्य
मन्त्रसिद्धिः —स्त्री॰—मन्त्र-सिद्धिः—-—किसी मंत्र कि क्रियाशीलता, या सम्पन्नता
मन्त्रसिद्धिः —स्त्री॰—मन्त्र-सिद्धिः—-—मंत्रज्ञान से प्राप्त होने वाली शक्ति
मन्त्रशक्ति —स्त्री॰—मन्त्र-शक्ति—-—मन्त्रों द्वारा किसी सिद्धि को प्राप्त करने वाला
मन्त्रस्पृश् —वि॰—मन्त्र-स्पृश्—-—मन्त्रों द्वारा किसी सिद्धि को प्राप्त करने वाला
मन्त्रहीन —वि॰—मन्त्र-हीन—-—वेदमंत्रों से रहित अथवा विरुद्ध
मन्त्रणम् —नपुं॰—-—मन्त्र् + ल्युट्—विचार, परामर्श
मन्त्रणा —स्त्री॰—-—मन्त्र् + ल्युट्+टाप्—विचार, परामर्श
मन्त्रवत् —वि॰—-—मन्त्र + मतुप्—मंत्रों से युक्त
मन्त्रिः —पुं॰—-—-—मन्त्री, सलाहकार, राजा का मन्त्री
मन्त्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—मन्त्र् + क्त—जिसका परामर्श लिया जा चुका है
मन्त्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—जिस पर सलाह ली गई, परामर्श लिया गया हैं
मन्त्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—कहा हुआ, बोला हुआ
मन्त्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—मंत्र पढ़ा हुआ, अभिमंत्रित
मन्त्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निश्चित, निर्धारित
मन्त्रिन् —पुं॰—-—मन्त्र् + णिनि—मन्त्री, सलाहकार, राजा का मन्त्री
मन्त्रिधुर —वि॰—मन्त्रिन्-धुर—-—मंत्रालय के भार को संभालने में समर्थ
मन्त्रिपतिः —पुं॰—मन्त्रिन्-पतिः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिप्रधानः —पुं॰—मन्त्रिन्-प्रधानः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिप्रमुखः —पुं॰—मन्त्रिन्-प्रमुखः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिमुख्यः —पुं॰—मन्त्रिन्-मुख्यः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिवरः —पुं॰—मन्त्रिन्-वरः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिश्रेष्ठः —पुं॰—मन्त्रिन्-श्रेष्ठः—-—प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री
मन्त्रिप्रकाण्ड —पुं॰—मन्त्रिन्-प्रकाण्ड—-—श्रेष्ठ या मुख्य मन्त्री
मन्त्रिश्रोत्रियः —पुं॰—मन्त्रिन्-श्रोत्रियः—-—वेदों में निष्णात मन्त्री
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—बिलोना, मथना (प्रायः द्विकर्मक)
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—क्षुब्ध करना, हिलाना, घुमाना, ऊपर नीचे करना
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—पीस डालना, अत्याचार करना, सताना, कष्ट देना, दुःखी करना
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—नष्ट करना, मार डालना, संहार करना, कुचल डालना
मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मन्थति>—-—-—फाड़ डालना, विस्थापित करना
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—बिलोना, मथना (प्रायः द्विकर्मक)
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—क्षुब्ध करना, हिलाना, घुमाना, ऊपर नीचे करना
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—पीस डालना, अत्याचार करना, सताना, कष्ट देना, दुःखी करना
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—नष्ट करना, मार डालना, संहार करना, कुचल डालना
मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰ <मथति>, <मथ्नाति>, <मथित>, कर्म वा मथ्यते—-—-—फाड़ डालना, विस्थापित करना
उन्मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—उद्-मन्थ्—-—प्रहार करना, मारना, नष्ट करना
उन्मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—उद्-मन्थ्—-—हिलाना, अशान्त करना
उन्मथ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—उद्-मन्थ्—-—फाड़ना, काटना या छीलना
निर्मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—निस्-मन्थ्—-—बिलोना, हिलाना, घुमाना
निर्मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—निस्-मन्थ्—-—रगड़ से आग पैदा करना
निर्मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—निस्-मन्थ्—-—खरोंचना,पीटना
निर्मन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—निस्-मन्थ्—-—पूर्णतः नष्ट करना, कुचल डालना
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—बिलोना (समुद्रः)
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—तंग करना, अत्यन्त कष्ट देना, दुःखी करना, सताना
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—प्रहार करना, खरोंचना, आघात करना
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—फाड़ डालना, काट देना
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—उजाड़ देना
प्रमन्थ् —भ्वा॰ क्रया॰ पर॰—प्र-मन्थ्—-—मार डालना, नष्ट करना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—बिलोना, इधर उधर हिलाना, आलोडित करना, क्षुब्ध करना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—संहार करना, नष्ट करना
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—मिश्रित पेय
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—रई का डंडा (‘मंथा’ भी)
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—सूर्य
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—सूर्य की किरण
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—आँख की मैल, ढीढ, मोतियाबिंद
मन्थः —पुं॰—-—मन्थ् करणे घञ—घर्षण से अग्नि सुलगाने का उपकरण
मन्थाचलः —पुं॰—मन्थ-अचलः—-—मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के रुप में प्रयुक्त हुआ )
मन्थाद्रिः —पुं॰—मन्थ-अद्रिः—-—मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के रुप में प्रयुक्त हुआ )
मन्थगिरिः —पुं॰—मन्थ-गिरिः—-—मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के रुप में प्रयुक्त हुआ )
मन्थपर्वतः —पुं॰—मन्थ-पर्वतः—-—मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के रुप में प्रयुक्त हुआ )
मन्थशलः —पुं॰—मन्थ-शलः—-—मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के रुप में प्रयुक्त हुआ )
मन्थोदकः —पुं॰—मन्थ-उदकः—-—क्षीर सागर
मन्थोदधिः —पुं॰—मन्थ-उदधिः—-—क्षीर सागर
मन्थगुणः —पुं॰—मन्थ-गुणः—-—बिलोने के रस्सी, नेता
मन्थजम् —नपुं॰—मन्थ-जम्—-—मक्खन
मन्थदण्डः —पुं॰—मन्थ-दण्डः—-—रई का डंडा
मन्थदण्डकः —पुं॰—मन्थ-दण्डकः—-—रई का डंडा
मन्थनः —पुं॰—-—मन्थ् + ल्युट्—रई का डंडा
मन्थनम् —नपुं॰—-—मन्थ् + ल्युट्—बिलोना, क्षुब्ध करना, बिलोडित करना, इधर उधर हिलाना
मन्थनम् —नपुं॰—-—मन्थ् + ल्युट्—घर्षण द्वारा आग सुलगाना
मन्थनी —स्त्री॰—-—मन्थ् + ल्युट्+ङीप्—मथनी, बिलौनी
मन्थनघटी —स्त्री॰—मन्थन-घटी—-—बिलौनी, मथनी
मन्थर —वि॰—-—मन्थ् + अरच्—शिथिल, मन्द, बिलंबकारो, सुस्त, अकर्मण्य
मन्थर —वि॰—-—मन्थ् + अरच्—जड़, मूढ़, मूर्ख
मन्थर —वि॰—-—मन्थ् + अरच्—नीच, गहरा, खोखला, मंदस्वर
मन्थर —वि॰—-—मन्थ् + अरच्—विस्तृत, विशाल, चौड़ा, बड़ा
मन्थर —वि॰—-—मन्थ् + अरच्—झुका हुआ, टेढ़ा, वक्र
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—भंडार, कोष
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—सिर के बाल
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—क्रोध, गुस्सा
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—ताजा मक्खन
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—रई का डंडा
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—रुकावट, बाधा
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—गढ़
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—फल
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—गुप्तचर, सूचक
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—वैशाख मास
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—मन्दर पर्वत
मन्थरः —पुं॰—-—मन्थ् + अरच्—हरिण, बारहसिंघा
मन्थरा —स्त्री॰—-—मन्थ् + अरच्+टाप्—कैकेयी की कुब्जादासी जिसने अपनी स्वामिनी को, राम के राज्याभिषेक के अवसर पर, अपने दो पूर्वदत्त वरदान (एक से राम का चौदह वर्ष के लिए निर्वासन, दूसरे से भरत का राज्यारोहण) राजा से मांगने के लिए उकसाया
मन्थरम् —नपुं॰—-—मन्थ् + अरच्—कुसुम्भ
मन्थरविवेक —वि॰—मन्थर-विवेक—-—निर्णय करने में मन्द, विवेक शक्ति से शून्य
मन्थरुः —पुं॰—-—मन्थ् + अरु—चंवर डुलाने से उत्पन्न हवा
मन्थानः —पुं॰—-—मन्थ् + आनच्—रई का डंडा, मथानी
मन्थानः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
मन्थानकः —पुं॰—-—मन्थान + कन्—एक प्रकार का घास
मन्थिन् —वि॰—-—मन्थ् + णिनि—विलोने वाला, मंथन करने वाला
मन्थिन् —वि॰—-—-—कष्ट देने वाला, तंग करने वाला
मन्थिन् —पुं॰—-—-—वीर्य, शुक्र
मन्थिनी —स्त्री॰—-—-—बिलौनी, मथनी
मण्द् —भ्वा॰ आ॰ मन्दते- बहुधा वैदिक पुं॰—-—-—पीकर धुत्त होना
मण्द् —भ्वा॰ आ॰ मन्दते- बहुधा वैदिक पुं॰—-—-—प्रसन्न होना, हर्षयुक्त होना
मण्द् —भ्वा॰ आ॰ मन्दते- बहुधा वैदिक पुं॰—-—-—ढीला-ढाला होना, शिथिल होना
मण्द् —भ्वा॰ आ॰ मन्दते- बहुधा वैदिक पुं॰—-—-—चमकना
मण्द् —भ्वा॰ आ॰ मन्दते- बहुधा वैदिक पुं॰—-—-—शनैः-शनैः चलना, टहलना, घूमना
मन्द —वि॰—-—मन्द् + अच्—धीमा, विलंबकारी, अकर्मण्य, सुस्त, मंद, मटरगश्ती करने वाला
मन्द —वि॰—-—-—निरुत्साही, तटस्थ-उदासीन
मन्द —वि॰—-—-—जड, मंदबुद्धि, मूढ़, अज्ञानी, निर्बल-मस्तिष्क
मन्द —वि॰—-—-—धीमा, गहरा, खोखला, (ध्वनि आदि)
मन्द —वि॰—-—-—कोमल, धुंधला, मृदु यथा ‘मंदस्मितम्’ में
मन्द —वि॰—-—-—थोड़ा, अल्प, जरा सा, मन्दोदरी दे॰ ‘अमन्द’ भी
मन्द —वि॰—-—-—दुर्बल, बलहीन, कमजोर यथा ‘मन्दाग्नि’ में
मन्द —वि॰—-—-—दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा
मन्द —वि॰—-—-—मुर्झाया हुआ
मन्द —वि॰—-—-—दुष्ट, दुश्चरित्र
मन्द —पुं॰—-—-—शराब की लतवाला
मन्दः —पुं॰—-—-—यम का विशेषण
मन्दः —पुं॰—-—-—सृष्टि का विघटन
मन्दः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का हाथी
मन्दम् —अव्य॰—-—-—घीमे से, क्रमशः, धीरे-धीरे
मन्दम् —अव्य॰—-—-—धीरे-धीरे, हल्के-हल्के, शान्ति से
मन्दम् —अव्य॰—-—-—धीमे-धीमे, मन्द गति से, मंद स्वर से, हल्केपन से
मन्दम् —अव्य॰—-—-—मद्धमस्वर में, गहराई के साथ
मन्दी कृ ——-—-—ढीला-ढाला करना
मन्दी भू ——-—-—ढीला होना, कम ताकतवर होना
मन्दाक्ष —वि॰—मन्द-अक्ष—-—कमजोर आँखों वाला
मन्दाक्षम् —नपुं॰—मन्द-अक्षम्—-—लज्जा का भाव, लज्जाशीलता, शर्मीलापन
मन्दाग्नि —वि॰—मन्द-अग्नि—-—दुर्बल पाचनशक्ति वाला
मन्दाग्निः —पुं॰—मन्द-अग्निः—-—अग्निमांद्य, पाचनशक्ति की मंदता
मन्दानिलः —पुं॰—मन्द-अनिलः—-—मृदु पवन
मन्दासु —वि॰—मन्द-असु—-—दुर्बल श्वास वाला
मन्दाक्रान्ता —स्त्री॰—मन्द-आक्रान्ता—-—एक छन्द का नाम
मन्दात्मन् —पुं॰—मन्द-आत्मन्—-—मन्दबुद्धि वाला, मूर्ख, अज्ञानी
मन्दादर —वि॰—मन्द-आदर—-—कम आदर प्रदर्शित करने वाला, अवज्ञा करने वाला, लापरवाह
मन्दादर —वि॰—मन्द-आदर—-—असावधान
मन्दोत्साह —वि॰—मन्द-उत्साह—-—हताश, उत्साहहीन
मन्दोदरी —स्त्री॰—मन्द-उदरी—-—रावण की पत्नी का नाम, पाँच सती स्त्रियों में से एक
मन्दोष्ण —वि॰—मन्द-उष्ण—-—कोष्ण, गुनगुना
मन्दोष्णम् —नपुं॰—मन्द-उष्णम्—-—कोष्णता, गुनगुनापन
मन्दौत्सुक्य —वि॰—मन्द-औत्सुक्य—-—धीमी उत्सुकता वाला, पराङ्मुख, रुचिशून्य
मन्दकर्ण —वि॰—मन्द-कर्ण—-—कुछ बहरा, सूक्ति
मन्दकान्तिः —स्त्री॰—मन्द-कान्तिः—-—चन्द्रमा
मन्दकारिन् —वि॰—मन्द-कारिन्—-—धीमे-धीमे, मन्द गति से, मंद स्वर से, हल्केपन से
मन्दगः —पुं॰—मन्द-गः—-—शनि
मन्दगति —स्त्री॰—मन्द-गति—-—शनैः शनैः चलना, टहलना, घूमना
मन्दगामिन् —वि॰—मन्द-गामिन्—-—शनैः शनैः चलना, टहलना, घूमना
मन्दचेतस् —वि॰—मन्द-चेतस्—-—मन्दबुद्धि, मूर्ख, मूढ
मन्दचेतस् —वि॰—मन्द-चेतस्—-—अन्यमनस्क
मन्दचेतस् —वि॰—मन्द-चेतस्—-—मूर्छालु, अचेत
मन्दच्छाय —वि॰—मन्द-छाय—-—धुंधला, मद्धम, आभाशून्य
मन्दजननी —स्त्री॰—मन्द-जननी—-—शनि की माता
मन्दधी —स्त्री॰—मन्द-धी—-—मंद बुद्धि, मूर्ख, मूढ़
मन्दप्रज्ञ —वि॰—मन्द-प्रज्ञ—-—मंद बुद्धि, मूर्ख, मूढ़
मन्दमति —स्त्री॰—मन्द-मति—-—मंद बुद्धि, मूर्ख, मूढ़
मन्दमेधस् —वि॰—मन्द-मेधस्—-—मंद बुद्धि, मूर्ख, मूढ़
मन्दभागिन् —वि॰—मन्द-भागिन्—-—भाग्यहीन, दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा, दयनीय, बेचारा
मन्दभाग्य —वि॰—मन्द-भाग्य—-—भाग्यहीन, दुर्भाग्यग्रस्त, अभागा, दयनीय, बेचारा
मन्दरश्मि —वि॰—मन्द-रश्मि—-—धुंधला
मन्दवीर्यः —पुं॰—मन्द-वीर्यः—-—दुर्बल
मन्दवृष्टिः —स्त्री॰—मन्द-वृष्टिः—-—हल्की बारिश
मन्दस्मितः —पुं॰—मन्द-स्मितः—-—हल्की हंसी, मंद मुस्कान
मन्दहासः —पुं॰—मन्द-हासः—-—हल्की हंसी, मंद मुस्कान
मन्दहास्यम् —नपुं॰—मन्द-हास्यम्—-—हल्की हंसी, मंद मुस्कान
मन्दटः —पुं॰—-—मन्द + अट् + अच् शक॰ पररुपम्—मूंगे का वृक्ष
मन्दनम् —नपुं॰—-—मन्द् + ल्युट्—प्रशंसा, स्तुति
मन्दयन्ती —स्त्री॰—-—मन्द् + णिच् + शतृ + ड़ीप्—दुर्गा का विशेषण
मन्दर —वि॰—-—मन्द् + अर—धीमा, विलंबकारी, सुस्त
मन्दर —पुं॰—-—-—मोटा, सघन, दृढ़
मन्दर —पुं॰—-—-—विस्तृत, स्थूल
मन्दरः —पुं॰—-—-—एक पहाड़ का नाम (इसको समुद्रमंथन के समय देवासुरों ने मथानी-रई का डंडा-बनाया था, और तब सुधा का मंथन किया था
मन्दरः —पुं॰—-—-—मोतियों (आठ या सोलह लड़ियों का) का हार
मन्दरः —पुं॰—-—-—इन्द्र के नन्दकानन में स्थित पाँच वृक्षों में से एक-मन्दार वृक्ष
मन्दरावासा —स्त्री॰—मन्दर-आवासा—-—दुर्गा का विशेषण
मन्दरवासिनी —स्त्री॰—मन्दर-वासिनी—-—दुर्गा का विशेषण
मन्दसानः —पुं॰—-—मन्द + सानच्—अग्नि
मन्दसानः —पुं॰—-—-—निद्रा (‘मन्दसानु’ भी लिखा जाता है)।
मन्दाकः —पुं॰—-—मन्द + आक—धारा, नदी
मन्दाकिनी —स्त्री॰—-—मन्दमकति-अक्+णिनि+ड़ीष्—गंगा नदी
मन्दाकिनी —स्त्री॰—-—-—स्वर्गंगा, वियद्गंगा (मन्दाकिनी वियद्गंङ्गा
मन्दायते —ना॰ धा॰ आ॰ —-—-—शनैः शनैः चलना, विलम्ब करके चलना, पिछड़ना, मटरगश्त करना, देर लगाना
मन्दायते —ना॰ धा॰ आ॰ —-—-—दुर्बल होना, कृश होना, धुंधला होना
मन्दारः —पुं॰—-—मन्द् + आरक्—मूंगे का पेड़, इन्द्र के नन्दकानन में स्थित पाँच वृक्षों में से एक
मन्दारः —पुं॰—-—-—आक का पौधा, मदार वृक्ष
मन्दारः —पुं॰—-—-—धतूरे का पौधा
मन्दारम् —नपुं॰—-—-—मूंगे के वृक्ष का फूल
मन्दारमाला —स्त्री॰—मन्दार-माला—-—मन्दार के फूलों की माला
मन्दारषष्ठी —स्त्री॰—मन्दार-षष्ठी—-—माघसुदी छठ
मन्दारकः —पुं॰—-—मन्दार + कन्—मूंगे का वृक्ष
मन्दारवः —पुं॰—-—मन्दार + कन्—मूंगे का वृक्ष
मन्दारुः —पुं॰—-—मन्दार + कन्—मूंगे का वृक्ष
मन्दिमन् —पुं॰—-—मन्द + इमनिच्—धीमापन, विलंबकारिता
मन्दिमन् —नपुं॰—-—-—सुस्ती, जड़ता, मूर्खता
मन्दिरम् —नपुं॰—-—मन्द्यतेऽत्र मन्द्+किरच्—रहने का स्थान, आवास, महल, भवन
मन्दिरम् —नपुं॰—-—-—आवास, रहने का घर
मन्दिरम् —नपुं॰—-—-—देवालय
मन्दिरपशुः —पुं॰—मन्दिरम्-पशुः—-—बिल्ली
मन्दिरमणिः —पुं॰—मन्दिरम्-मणिः—-—शिव का विशेषण
मन्दिरा —स्त्री॰—-—मंदिर + टाप्—घुड़साल, अस्तबल
मन्दुरा —स्त्री॰—-—मन्द् + उरच् + टाप्—अश्वशाला, घुड़साल अस्तबल
मन्दुरा —स्त्री॰—-—-—शय्या, चटाई
मन्द्र —वि॰—-—मन्द् + रक्—नीचा, गहरा, गंभीर, खोखला, चरमराना
मन्द्रः —पुं॰—-—-—मन्दध्वनि
मन्द्रः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का ढोल
मन्द्रः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का हाथी
मन्मथः —पुं॰—-—मन् + क्विप्, मथ् + अच्, ष॰ त॰—कामदेव, प्रेम का देवता
मन्मथः —पुं॰—-—-—प्रेम, प्रणयोन्माद
मन्मथानन्दः —पुं॰—मन्मथ-आनन्दः—-—एक प्रकार का आम का पेड़
मन्मथालयः —पुं॰—मन्मथ-आलयः—-—आम का पेड़
मन्मथालयः —पुं॰—मन्मथ-आलयः—-—स्त्री की भग
मन्मथकर —वि॰—मन्मथ-कर—-—प्रेमोत्तेजक
मन्मथयुद्धम् —नपुं॰—मन्मथ-युद्धम्—-—प्रेमकेलि, संभोग, मैथुन
मन्मथलेखः —पुं॰—मन्मथ-लेखः—-—प्रेम-पत्र
मन्मनः —पुं॰—-—-—गुप्तकानाफूंसी (दांपत्योर्जल्पितम् मंदम्)
मन्युः —पुं॰—-—मन् + युच्—क्रोध,रोष, नाराजगी, कोप, गुस्सा
मन्युः —पुं॰—-—-—व्यथा, शोक, कष्ट, दुःख
मन्युः —पुं॰—-—-—विपद्ग्रस्त या दयनीय स्थिति, कमीनापन
मन्युः —पुं॰—-—-—अग्नि का विशेषण
मन्युः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
मभ्र् —भ्वा॰ पर॰ <मभ्रति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मम —अस्मद् शब्द- सर्वनाम उत्तमपु॰ए॰व॰—-—-—मेरा
ममकारः —पुं॰—मम-कारः —-—मेरापन, ममता, स्वार्थ
ममकृत्यम् —नपुं॰—मम-कृत्यम्—-—मेरापन, ममता, स्वार्थ
ममता —पुं॰—-—मम + तल् + टाप्—अपने मन की भावना, स्वार्थ, स्वहित
ममता —पुं॰—-—-—घमंड, अभिमान, आत्मनिर्भरता
ममत्वम् —नपुं॰—-—मम + त्व—मेरापन, अपनापन, स्वामित्व की भावना
ममत्वम् —नपुं॰—-—-—स्नेहयुक्त आदर, अनुराग, मानना
ममत्वम् —नपुं॰—-—-—अहंकार, घमंड
ममापतालः —पुं॰—-—मव्य + आल, यलोपः, मकारादेशः, आप तुडागम्—ज्ञानेन्द्रिय का विषय
मम्ब् —भ्वा॰ पर॰ —-—-—जाना, हिलना-जुलना
मम्मटः —पुं॰—-—-—‘काव्यप्रकाश’ का प्रणेता
मय् —भ्वा॰ आ॰ <मयते>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मय —वि॰—-—-—‘पूर्ण’ ‘से युक्त’ ‘संरचित’ ‘से बना हुआ’ अर्थ को प्रकट करने वाला तद्धित का प्रत्यय, उदा॰ कनकमय,काष्ठमय, तेजोमय और जलमय आदि
मयी —स्त्री॰—-—-—‘पूर्ण’ ‘से युक्त’ ‘संरचित’ ‘से बना हुआ’ अर्थ को प्रकट करने वाला तद्धित का प्रत्यय, उदा॰ कनकमय,काष्ठमय, तेजोमय और जलमय आदि
मयः —पुं॰—-—-—एक दानव, दानवों का शिल्पी (कहते हैं कि इसने पांडवों के लिए एक भब्य भवन का निर्माण किया था
मयटः —पुं॰—-—मय् + अटन्—घासफूंस की झोपड़ी, पर्णशाला
मयुष्टकः —पुं॰—-—-—मयुष्टक
मयुः —पुं॰—-—मय + कु—किन्नर, स्वर्गीय संगीतज्ञ
मयुः —पुं॰—-—-—हरिण, बारहसिंगा
मयुराजः —पुं॰—मयुराजः—-—कुबेर का विशेषण
मयूखः —पुं॰—-—मा + ऊख मयादेशः—प्रकाश की किरण, रश्मि, अंशु, कांति, दीप्ति
मयूखः —पुं॰—-—-—धूपघड़ी की कील
मयूरः —पुं॰—-—मी + ऊरन्—मोर
मयूरः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का फूल
मयूरः —पुं॰—-—-—('सूर्य शतक' का प्रणेता) एक कवि
मयूरारिः —पुं॰—मयूर-अरिः—-—छिपकली
मयूरकेतुः —पुं॰—मयूर-केतुः—-—कार्तिकेय का विशेषण
मयूरग्रीवकम् —नपुं॰—मयूर-ग्रीवकम्—-—तूतिया
मयूरचटकः —पुं॰—मयूर-चटकः—-—गृह कुक्कट
मयूरचूडा —स्त्री॰—मयूर-चूडा—-—मोर की शिखा
मयूरतुत्थम् —नपुं॰—मयूर-तुत्थम्—-—तूतिया
मयूरपत्रिन् —वि॰—मयूर-पत्रिन्—-—पंखयुक्त, मोर के पंखे से युक्त (बाण आदि)
मयूररथः —पुं॰—मयूर-रथः—-—कार्तिकेय का विशेषण
मयूरव्यंसकः —पुं॰—मयूर-व्यंसकः—-—चालाक मोर
मयूरशिखा —स्त्री॰—मयूर-शिखा—-—मोर की शिखा
मयूरकः —पुं॰—-—मयूर + कन्—मोर
मयूरकः —पुं॰—-—-—तूतिया, नीलाथोथा
मयूरकम् —नपुं॰—-—-—तूतिया, नीलाथोथा
मरकः —पुं॰—-—मृ + वुन्—महामारी, पशुओं का एक संक्रामक रोग, प्लेग प्रसारक रोग, संक्रामक रोग
मरकतम् —नपुं॰—-—मरकं तरत्यनेन-तृ+ड—पन्ना
मरकतमणिः —पुं॰—मरकतम्-मणिः—-—पन्ना
मरकतशिला —स्त्री॰—मरकतम्-शिला—-—पन्ने की सिल्ली
मरणम् —नपुं॰—-—मृ + भावे ल्युट्—मरना, मृत्यु
मरणम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का विष
मरणान्त —वि॰—मरणम्-अन्त—-—मृत्यु के साथ समाप्त होने वाला
मरणान्तक —वि॰—मरणम्-अन्तक—-—मृत्यु के साथ समाप्त होने वाला
मरणाभिमुख —वि॰—मरणम्-अभिमुख—-—मृत्यु के निकट, मरणासन्न, म्रियमाण
मरणोन्मुख —वि॰—मरणम्-उन्मुख—-—मृत्यु के निकट, मरणासन्न, म्रियमाण
मरणधर्मन् —वि॰—मरणम्-धर्मन्—-—मर्त्य, मरणशील
मरणनिश्चय —वि॰—मरणम्-निश्चय—-—मरने के लिए दृढ़ निश्चय वाला
मरतः —पुं॰—-—मृ + अतच्—मृत्यु
मरन्दः —पुं॰—-—मरणं द्यति खण्डयति-मर+दो+क, पृषो॰—फूलों का रस
मरन्दकः —पुं॰—-—मरणं द्यति खण्डयति-मर+दो+क, पृषो॰, मरन्द+कन्—फूलों का रस
मरन्दौकस् —नपुं॰—मरन्द-ओकस्—-—फूल
मरारः —पुं॰—-—मरं मरणमलति निवारयति-मर+अल्+अण् लस्य रत्वम्—खत्ती, धान्यागार, अनाज का भंडार
मराल —वि॰—-—मृ + आलच्—मृदु, चिकना, स्निग्ध
मरालः —पुं॰—-—-—हंस, बालक, राजहंस
मरालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का जलचर पक्षी, कारण्डव
मरालः —पुं॰—-—-—अनारों का बाग
मराली —स्त्री॰—-—-—हंस, बालक, राजहंस
मराली —स्त्री॰—-—-—एक प्रकार का जलचर पक्षी, कारण्डव
मराली —स्त्री॰—-—-—अनारों का बाग
मराली —स्त्री॰—-—-—बदमाश, ठग
मरिचः —पुं॰—-—म्रियते नश्यति श्लेष्मादिकमनेन-मृ+इच, इचवा—काली मिर्च की झाड़ी
मरीचः —पुं॰—-—म्रियते नश्यति श्लेष्मादिकमनेन-मृ+इच, इचवा—काली मिर्च की झाड़ी
मरिचम् —नपुं॰—-—-—काली मिर्च
मरीचम् —नपुं॰—-—-—काली मिर्च
मरीचिः —पुं॰—-—मृ + इचि—प्रकाश की किरण
मरीचिः —पुं॰—-—-—प्रकाश का कण
मरीचिः —पुं॰—-—-—मृगतृष्णा
मरीचिः —पुं॰—-—-—प्रजापति, प्रथम मनु से उत्पन्न दस मूल पुरुषों में से एक, या-ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में एक, यह कश्यप का पिता था
मरीचिः —पुं॰—-—-—एक स्मृतिकार
मरीचिः —पुं॰—-—-—कृष्ण का नामान्तर
मरीचितोयम् —नपुं॰—मरीचि-तोयम्—-—मृगतृष्णा
मरीचिमालिन् —वि॰—मरीचि-मालिन्—-—किरणों से घिरी हुई, उज्ज्वल, चमकदार
मरीचिमालिन् —पुं॰—मरीचि-मालिन्—-—सूर्य
मरीचिका —स्त्री॰—-—मरीचि + कन् + टाप्—मृगतृष्णा
मरीचिन् —पुं॰—-—मरीचि + इनि—सूर्य
मरीचिमत् —पुं॰—-—मरीचि + मतुप्—सूर्य
मरीमृज —वि॰—-—मृज (यङन्तत्वात् द्वित्वम्) +अच्—बार-बार मलने वाला
मरुः —पुं॰—-—म्रियतेऽस्मिन्-मृ + उ—रेगिस्तान, रेतीली भूमि, वीराना, जल से हीन प्रदेश
मरुः —पुं॰—-—-—पहाड़ या चट्टान
मरुः —पुं॰,ब॰व॰—-—-—एक देश और उसके अधिवासियों का नाम
मरुद्भवा —स्त्री॰—मरु-उद्भवा—-—कपास का पौधा
मरुद्भवा —स्त्री॰—मरु-उद्भवा—-—ककड़ी
मरुकच्छः —पुं॰—मरु-कच्छः—-—एक जिले का नाम
मरुजः —पुं॰—मरु-जः—-—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
मरुदेशः —पुं॰—मरु-देशः—-—एक जिले का नाम
मरुदेशः —पुं॰—मरु-देशः—-—जलशून्य प्रदेश
मरुद्विपः —पुं॰—मरु-द्विपः—-—ऊंट
मरुप्रियः —पुं॰—मरु-प्रियः—-—ऊंट
मरुधन्वः —पुं॰—मरु-धन्वः—-—वीराना, उजाड़
मरुधन्वन् —पुं॰—मरु-धन्वन्—-—वीराना, उजाड़
मरुपथः —पुं॰—मरु-पथः—-—रेतीली मरुभूमि वीराना
मरुपृष्ठम् —नपुं॰—मरु-पृष्ठम्—-—रेतीली मरुभूमि वीराना
मरुभूः —पुं॰,ब॰ व॰—मरु-भूः—-—मारवाड़ देश
मरुभूमिः —स्त्री॰—मरु-भूमिः—-—मरुस्थल, रेतीला मरुप्रदेश
मरुसम्भवः —पुं॰—मरु-सम्भवः—-—एक प्रकार की मूली
मरुस्थलम् —नपुं॰—मरु-स्थलम्—-—वीराना, उजाड़, बंजर
मरुस्थली —स्त्री॰—मरु-स्थली—-—वीराना, उजाड़, बंजर
मरुकः —पुं॰—-—मरु + कः—मोर
मरुत् —पुं॰—-—मृ + उति—हवा, वायु, पवन
मरुत् —पुं॰—-—-—वायु का देवता
मरुत् —पुं॰—-—-—देवता, देवी
मरुत् —पुं॰—-—-—एक प्रकार का पौधा, मरुवक (नपुं॰) ग्रन्थिपर्ण नाम का पौधा
मरुदादोलः —पुं॰—मरुत्-आदोलः—-—(हरिण या भैंस की खाल से बना) एक प्रकार का पंखा
मरुत्करः —पुं॰—मरुत्-करः—-—एक प्रकार की सेम, लोबिया
मरुत्कर्मन् —पुं॰—मरुत्-कर्मन्—-—उदर,-वायु, अफारा
मरुत्क्रिया —स्त्री॰—मरुत्-क्रिया—-—उदर,-वायु, अफारा
मरुत्कोणः —पुं॰—मरुत्-कोणः—-—पश्चिमोत्तर दिशा
मरुद्गणः —पुं॰—मरुत्-गणः—-—देवसमूह
मरुत्तनयः —पुं॰—मरुत्-तनयः—-—हनुमान के विशेषण
मरुत्तनयः —पुं॰—मरुत्-तनयः—-—भीम के विशेषण
मरुत्पुत्रः —पुं॰—मरुत्-पुत्रः—-—हनुमान के विशेषण
मरुत्पुत्रः —पुं॰—मरुत्-पुत्रः—-—भीम के विशेषण
मरुत्सुतः —पुं॰—मरुत्-सुतः—-—हनुमान के विशेषण
मरुत्सुतः —पुं॰—मरुत्-सुतः—-—भीम के विशेषण
मरुत्सुनूः —पुं॰—मरुत्-सुनूः—-—हनुमान के विशेषण
मरुत्सुनूः —पुं॰—मरुत्-सुनूः—-—भीम के विशेषण
मरुद्ध्वजम् —नपुं॰—मरुत्-ध्वजम्—-—हवा में लहराने वाला झण्डा (सूत का बना कपड़ा)
मरुत्पटः —पुं॰—मरुत्-पटः—-—बादबान
मरुत्पतिः —पुं॰—मरुत्-पतिः—-—इन्द्र का विशेषण
मरुत्पालः —पुं॰—मरुत्-पालः—-—इन्द्र का विशेषण
मरुत्पथः —पुं॰—मरुत्-पथः—-—आकाश, अन्तरिक्ष
मरुत्प्लवः —पुं॰—मरुत्-प्लवः—-—सिंह
मरुत्फलम् —नपुं॰—मरुत्-फलम्—-—ओला
मरुद्बद्धः —पुं॰—मरुत्-बद्धः—-—विष्णु के विशेषण
मरुद्बद्धः —पुं॰—मरुत्-बद्धः—-—एक प्रकार का यज्ञ-पात्र
मरुद्रथः —पुं॰—मरुत्-रथः—-—वह गाड़ी जिसमें देव प्रतिमाएँ रख कर इधर उधर ले जाई जाती हैं
मरुल्लोकः —पुं॰—मरुत्-लोकः—-—वह लोक जिसमें ‘मरुत’ देवता रहते हैं
मरुद्वर्त्मन् —नपुं॰—मरुत्-वर्त्मन्—-—आकाश, अन्तरिक्ष
मरुद्वाहः —पुं॰—मरुत्-वाहः—-—धूआँ
मरुद्वाहः —पुं॰—मरुत्-वाहः—-—अग्नि
मरुत्सखः —पुं॰—मरुत्-सखः—-—अग्नि का विशेषण
मरुत्सखः —पुं॰—मरुत्-सखः—-—इन्द्र का विशेषण
मरुतः —पुं॰—-—मृ + उत्—वायु
मरुत्तः —पुं॰—-—मरुत + तप्—सूर्यवंश का एक राजा, कहते हैं उसने एक यज्ञ किया जिसमें देवताओं ने प्रतीक्षक सेवक का कार्य किया
मरुत्तकः —पुं॰—-—मरुदिव तकति हसति-मरुत+तक्+अच्—मरुबक पौधा
मरुत्वत् —पुं॰—-—मरुत + मतुप्, मस्य वः—बादल
मरुत्वत् —पुं॰—-—-—इन्द्र का नामान्तर
मरुत्वत् —पुं॰—-—-—हनुमान के नामान्तर
मरुलः —पुं॰—-—मृ + उल—एक प्रकार की बत्तख, कारंडव
मरुवः —पुं॰—-—मरु + वा + क, नि॰ दीर्घः—एक पौधे का नाम, मरुआ
मरुवः —पुं॰—-—-—राहु का विशेषण
मरुवकः —पुं॰—-—मरुव + कन्, दवयोरभेदः—एक प्रकार का पौधा, मरुवा
मरुवकः —पुं॰—-—-—चूने का एक भेद
मरुबकः —पुं॰—-—मरुव + कन्, दवयोरभेदः—एक प्रकार का पौधा, मरुवा
मरुबकः —पुं॰—-—-—चूने का एक भेद
मरुकः —पुं॰—-—मृ + उक—बारहसिंगा हरिण
मर्कटः —पुं॰—-—मर्क + अटन्—लंगूर, बन्दर
मर्कटः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का सारस
मर्कटः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का रतिबन्ध, संभोग, मैथुन
मर्कटः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का विष
मर्कटास्य —वि॰—मर्कट-आस्य—-—बन्दर जैसा मुंह वाला
मर्कटस्यम् —नपुं॰—मर्कट-स्यम्—-—तांबा
मर्कटेन्दुः —पुं॰—मर्कट-इन्दुः—-—आबनूस
मर्कटतिन्दूकः —पुं॰—मर्कट-तिन्दूकः—-—एक प्रकार का आबनूस
मर्कटपोतः —पुं॰—मर्कट-पोतः—-—बन्दर का बच्चा
मर्कटवासः —पुं॰—मर्कट-वासः—-—मकड़ी का जाला
मर्कटशीर्षम् —नपुं॰—मर्कट-शीर्षम्—-—सिंदूर
मर्कटकः —पुं॰—-—मर्कट + कन्—लंगूर
मर्कटकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की मछली
मर्कटकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का अनाज, धान्य विशेष
मर्करा —स्त्री॰—-—मर्क् + अर + टाप्—पात्र, बर्तन
मर्करा —स्त्री॰—-—-—अन्तःकक्षीय छिद्रः, सुरंग, विवर, खोह, गुफा
मर्करा —स्त्री॰—-—-—बांझ स्त्री
मर्च् —चुरा॰ उभ॰ <मर्चयति>, <मर्चयते>—-—-—लेना
मर्च् —चुरा॰ उभ॰ <मर्चयति>, <मर्चयते>—-—-—साफ करना
मर्च् —चुरा॰ उभ॰ <मर्चयति>, <मर्चयते>—-—-—शब्द करना
मर्जूः —पुं॰—-—मृज् + ऊ—धोबी
मर्जूः —पुं॰—-—-—इल्लती, लौंडा (स्त्री॰) साफ करना, धोना, पवित्र करना
मर्तः —पुं॰—-—मृ + तन्—मनुष्य, मानव, मर्त्य
मर्तः —पुं॰—-—-—भूलोक, मर्त्यलोक
मर्त्य —वि॰—-—मर्त + यत्—मरणशील
मर्त्यः —पुं॰—-—-—मरणधर्मा, मानव, मनुष्य
मर्त्यः —पुं॰—-—-—मर्त्यलोक, भूलोक
मर्त्यधर्मः —पुं॰—मर्त्य-धर्मः—-—मरणशीलता
मर्त्यधर्मन् —वि॰—मर्त्य-धर्मन्—-—मरणशील आदमी
मर्त्यनिवासिन् —पुं॰—मर्त्य-निवासिन्—-—मनुष्य, मानव
मर्त्यभावः —पुं॰—मर्त्य-भावः—-—मानव-स्वभाव
मर्त्यभुवनम् —नपुं॰—मर्त्य-भुवनम्—-—मर्त्यलोक, भूलोक
मर्त्यसहितः —पुं॰—मर्त्य-सहितः—-—देवता
मर्त्यमुखः —पुं॰—मर्त्य-मुखः—-—किन्नर, इसका मुख मनुष्य के मुख जैसा तथा और शेष शरीर जानवर के शरीर जैसा होता हैं, यह कुबेर का सेवक समझा जाता हैं।
मर्त्यलोकः —पुं॰—मर्त्य-लोकः—-—मनुष्यलोक, भूलोक
मर्द —वि॰—-—मद् + धञ्—कुचलने वाला, चूर चूर कर देने वाला (समास के अन्त में प्रयोग)
मर्दः —पुं॰—-—-—पीसना, चूरा करना
मर्दः —पुं॰—-—-—प्रबल प्रहार
मर्दन —वि॰—-—मृ + ल्यु—कुचलने वाला, पीसने वाला, नष्ट करने वाला, सताने वाला
मर्दनी —स्त्री॰—-—मृ + ल्युट्—कुचलने वाला, पीसने वाला, नष्ट करने वाला, सताने वाला
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—कुचलना, पीसना
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—रगड़ना, मालिश करना
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—लेप करना (उबटन आदि से)
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—दबाना, माडना
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—पीड़ा देना, सताना, कष्ट देना
मर्दनम् —नपुं॰—-—-—नष्ट करना, उजाड़ना
मर्दलः —पुं॰—-—मर्द + ला + क—एक प्रकार का ढोल
मर्ब् —भ्वा॰ पर॰<मर्बति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मर्मन् —नपुं॰—-—मृ + मनिन्—शरीर का सजीव प्राण मूलक भाग, जीवधारक
मर्मन् —नपुं॰—-—-—कोई भी दुर्बल या आलोच्य बिन्दु, दोष, त्रुटि
मर्मन् —नपुं॰—-—-—अन्तल्तल, सजीव
मर्मन् —नपुं॰—-—-—(किसी भी अंग का) सन्धिस्थान
मर्मन् —नपुं॰—-—-—गूढार्थ (किसी बात का) तत्त्व
मर्मन् —नपुं॰—-—-—रहस्य भेद
मर्मातिग —वि॰—मर्मन्-अतिग—-—मर्मवेधी
मर्मान्वेषणम् —नपुं॰—मर्मन्-अन्वेषणम्—-—शलाकापरीक्षण करना
मर्मान्वेषणम् —नपुं॰—मर्मन्-अन्वेषणम्—-—दुर्बल और आलोच्य बातों की जांच पड़ताल करना
मर्मावरणम् —नपुं॰—मर्मन्-आवरणम्—-—कवच, जिरहबख्तर
मर्माविध् —वि॰—मर्मन्-आविध्—-—(हृदय के) मर्म स्थलों को बेधने वाला
मर्मोपधातिन् —वि॰—मर्मन्-उपधातिन्—-—(हृदय के) मर्म स्थलों को बेधने वाला
मर्मकीलः —पुं॰—मर्मन्-कीलः—-—पति
मर्मग —वि॰—मर्मन्-ग—-—मर्मभेदी, तीव्र, घोर
मर्मघ्न —वि॰—मर्मन्-घ्न—-—मूल पर आघात करने वाला, अत्यन्त पीड़ाकर
मर्मचरम् —नपुं॰—मर्मन्-चरम्—-—हृदय
मर्मछिद् —वि॰—मर्मन्-छिद्—-—मर्म स्थानों को भेदने वाला, हृदय पर चोट करने वाला, अत्यन्त कष्टदायक
मर्मछिद् —वि॰—मर्मन्-छिद्—-—प्राणघातक चोट करने वाला, प्राणहार
मर्मभिद् —वि॰—मर्मन्-भिद् —-—मर्म स्थानों को भेदने वाला, हृदय पर चोट करने वाला, अत्यन्त कष्टदायक
मर्मभिद् —वि॰—मर्मन्-भिद् —-—प्राणघातक चोट करने वाला, प्राणहार
मर्मज्ञ —वि॰—मर्मन्-ज्ञ—-—दूसरे के दोष या दुर्बलताओं को जानने वाला
मर्मज्ञ —वि॰—मर्मन्-ज्ञ—-—किसी विषय की अत्यन्त गूढ बातों को समझने वाला
मर्मज्ञ —वि॰—मर्मन्-ज्ञ—-—किसी विषय की गहरी अन्तर्दृष्टि रखने वाला, अत्यन्त निपुण या चतुर
मर्मज्ञः —पुं॰—मर्मन्-ज्ञः—-—कोई भी प्रकांड विद्वान्
मर्मत्रम् —नपुं॰—मर्मन्-त्रम्—-—जिरहबख्तर
मर्मपारग —वि॰—मर्मन्-पारग—-—गहन अन्तर्दृष्टि रखने वाला, पूरा जानकार, दूसरे के रहस्यों को जानने वाला
मर्मभेदः —पुं॰—मर्मन्-भेदः—-—मर्मस्थानों को छेदना
मर्मभेदः —पुं॰—मर्मन्-भेदः—-—दूसरे के रहस्य या दुर्बलताओं को प्रकट करना
मर्मभेदनः —पुं॰—मर्मन्-भेदनः—-—बाण, तीर
मर्मभेदिन् —पुं॰—मर्मन्-भेदिन्—-—बाण, तीर
मर्मविद् —वि॰—मर्मन्-विद्—-—दूसरे के दोष या दुर्बलताओं को जानने वाला
मर्मविद् —वि॰—मर्मन्-विद्—-—किसी विषय की अत्यन्त गूढ बातों को समझने वाला
मर्मविद् —वि॰—मर्मन्-विद्—-—किसी विषय की गहरी अन्तर्दृष्टि रखने वाला, अत्यन्त निपुण या चतुर
मर्मस्थलम् —नपुं॰—मर्मन्-स्थलम्—-—भावप्रवण या सजीव भाग
मर्मस्थलम् —नपुं॰—मर्मन्-स्थलम्—-—कमजोरियाँ, आलोच्य बातें
मर्मस्थानम् —नपुं॰—मर्मन्-स्थानम्—-—भावप्रवण या सजीव भाग
मर्मस्थानम् —नपुं॰—मर्मन्-स्थानम्—-—कमजोरियाँ, आलोच्य बातें
मर्मस्पृश् —नपुं॰—मर्मन्-स्पृश्—-—मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी
मर्मस्पृश् —वि॰—मर्मन्-स्पृश्—-—अतितीब्र, तीक्ष्ण, तेज या कटु (शब्द आदि)
मर्मर —वि॰—-—मृ + अरन्, मुट् च—(पत्तों की) खड़खड़ाहट, (वस्त्रों की) सरसराहट
मर्मरः —पुं॰—-—-—खरखराहट की ध्वनि
मर्मरी —स्त्री॰—-—मर्मर+ ङीष्—देवदारु का एक भेद
मर्मरीकः —पुं॰—-—मृ + ईकन्, मुट्—निर्धन पुरुष, गरीब
मर्मरीकः —पुं॰—-—-—दुष्ट मनुष्य
मर्या —स्त्री॰—-—मृ + यत् + टाप्—सीमा, हद
मर्यादा —स्त्री॰—-—मर्यायां सीमाया दीयते, मर्या+दा+अङ+टाप्—सीमा, हद (आलं से भी) छोर, सीमान्त, सरहद, किनारा
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—अन्त, अवसान, अन्तिम मंजिल, उद्धेश्य
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—तट, किनारा
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—चिन्ह, सीमाचिन्ह
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—नीति का बन्धन, निश्चित प्रथा या व्यवस्थित नियम, नैतिक विधि
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—शिष्टाचार या औचित्य का नियम, औचित्य की सीमा, सदाचरण का औचित्य
मर्यादा —स्त्री॰—-—-—संविदा, अनुबन्ध, करार
मर्यादाचलः —पुं॰—मर्यादा-अचलः—-—सरहद पर स्थित पहाड़
मर्यादागिरिः —पुं॰—मर्यादा-गिरिः—-—सरहद पर स्थित पहाड़
मर्यादापर्वतः —पुं॰—मर्यादा-पर्वतः—-—सरहद पर स्थित पहाड़
मर्यादाभेदकः —पुं॰—मर्यादा-भेदकः—-—सीमाचिह्नों को नष्ट करने वाला
मर्यादिन् —पुं॰—-—मर्यादा + इनि—पड़ोसी, सीमान्त वासी
मव् —भ्वा॰ पर॰ <मर्वति>—-—-—जाना, हिलना-जुलना
मव् —भ्वा॰ पर॰ <मर्वति>—-—-—भरना
मशः —पुं॰—-—मृश् + घञ्—विचारणा
मशः —पुं॰—-—-—परामर्श, संमन्त्रणा
मशः —पुं॰—-—-—नस्य, छींकलाने वाला
मर्शनम् —नपुं॰—-—मृश् + ल्युट्—रगड़ना
मर्शनम् —नपुं॰—-—-—परीक्षण, पूछताछ
मर्शनम् —नपुं॰—-—-—विचारणा, संयन्त्रणा
मर्शनम् —नपुं॰—-—-—उपदेश देना, सलाह देना
मर्शनम् —नपुं॰—-—-—मिटाना, मल देना
मर्षः —नपुं॰—-—मृष + घञ्—सहनशीलता, सहिष्णुता, धैर्य
मर्षणम् —नपुं॰—-—मृष + ल्युट् —सहनशीलता, सहिष्णुता, धैर्य
मर्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—मृष् + क्त—सहन किया हुआ, सबर के साथ हुआ
मर्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—क्षमा किया गया, माफ किया गया
मर्षितम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—सहनशीलता, धैर्य
मर्षिन् —वि॰—-—मृष् + णिनि—सहन करने वाला, धैर्यशील
मल् —भ्वा॰ आ॰ चुरा॰ पर॰ <मलते>, <मलयति>—-—-—थामना, अधिकार में रखना
मलः —पुं॰—-—मृज्यते शोध्यते मृज्+कल् टिलोपः-ताराः—मैल, गंदगी, अपवित्रता, धूल, अशुद्ध सामग्री
मलः —पुं॰—-—-—तलछट, कूड़ाकरकट, गाद, पुरीष, गोबर
मलः —पुं॰—-—-—(धातुओं का) मैल, जंग, खोट
मलः —पुं॰—-—-—नैतिक दोष या अपवित्रता, पाप
मलः —पुं॰—-—-—शरीर का कोई भी अपवित्र स्राव (मनु के अनुसार इस प्रकार के बारह स्राव हैं-वसा शुक्रमसृङ् मज्जा मूत्रविड् घ्राणकर्णविट्, श्लेष्माश्रुदूषिका स्वेदो द्वादशैते नृणां मलाः @ मनु॰ ५।१३५
मलः —पुं॰—-—-—‘मसीक्षेपी’ जलंचरविशेष का प्रमार्जन के काम आने वाल भीतरी कवच
मलः —पुं॰—-—-—कमाया हुआ चमड़ा, चमड़े का वस्त्र
मलम् —नपुं॰—-—मृज्यते शोध्यते मृज्+कल् टिलोपः-ताराः—मैल, गंदगी, अपवित्रता, धूल, अशुद्ध सामग्री
मलम् —नपुं॰—-—-—तलछट, कूड़ाकरकट, गाद, पुरीष, गोबर
मलम् —नपुं॰—-—-—(धातुओं का) मैल, जंग, खोट
मलम् —नपुं॰—-—-—नैतिक दोष या अपवित्रता, पाप
मलम् —नपुं॰—-—-—शरीर का कोई भी अपवित्र स्राव (मनु के अनुसार इस प्रकार के बारह स्राव हैं-वसा शुक्रमसृङ् मज्जा मूत्रविड् घ्राणकर्णविट्, श्लेष्माश्रुदूषिका स्वेदो द्वादशैते नृणां मलाः @ मनु॰ ५।१३५
मलम् —नपुं॰—-—-—‘मसीक्षेपी’ जलंचरविशेष का प्रमार्जन के काम आने वाल भीतरी कवच
मलम् —नपुं॰—-—-—कमाया हुआ चमड़ा, चमड़े का वस्त्र
मलम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार की खोटी धातु
मलापकर्षणम् —नपुं॰—मल-अपकर्षणम्—-—मैल दूर करना, पवित्र करना
मलापकर्षणम् —नपुं॰—मल-अपकर्षणम्—-—पाप दूर करना
मलारिः —पुं॰—मल-अरिः—-—एक प्रकार की सज्जी
मलावरोधः —पुं॰—मल-अवरोधः—-—कोष्ठबद्धता, कब्ज
मलाकर्षिन् —पुं॰—मल-आकर्षिन्—-—झाडू देने वाला, भंगी
मलावह —वि॰—मल-आवह—-—मैल पैदा करने वाला, मैला करने वाला, मलिन करने वाला
मलावह —वि॰—मल-आवह—-—दूषित करने वाला, अपवित्र करने वाला
मलाशयः —पुं॰—मल-आशयः—-—पेट
मलोत्सर्गः —पुं॰—मल-उत्सर्गः—-—टट्टी जाना, पेट से मल निकालना
मलघ्न —वि॰—मल-घ्न—-—परिमार्जक, शोधक
मलचम् —नपुं॰—मल-चम्—-—पीप, मवाद
मलदूषित —वि॰—मल-दूषित—-—मैला, गंदा, मलिन
मलद्रवः —पुं॰—मल-द्रवः—-—रेचन, अतिसार
मलधात्री —स्त्री॰—मल-धात्री—-—दाई जो बच्चे की आवश्यकताओ का ध्यान रखती हैं
मलपृष्ठम् —नपुं॰—मल-पृष्ठम्—-—किसी पुस्तक का पहला पृष्ठ, आवरणपृष्ठ (बाह्य पृष्ठ)
मलभुज् —पुं॰—मल-भुज्—-—कौवा
मलमल्लकः —पुं॰—मल-मल्लकः—-—कौपीन, लंगोट
मलमासः —पुं॰—मल-मासः—-—अन्तरीय या लौंद का महीना (‘मलमास’ इसीलिए कहलाता है कि इस अधिक मास में कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं किया जाता हैं)
मलवासस् —स्त्री॰—मल-वासस्—-—रजस्वाला स्त्री, जो स्त्री कपड़ो से हो
मलविसर्गः —पुं॰—मल-विसर्गः—-—मलत्याग, कोष्ठशुद्धि
मलविसर्जनम् —नपुं॰—मल-विसर्जनम्—-—मलत्याग, कोष्ठशुद्धि
मलशुद्धिः —स्त्री॰—मल-शुद्धिः—-—मलत्याग, कोष्ठशुद्धि
मलहारक —वि॰—मल-हारक—-—मैल या पाप को दूर करने वाला
मलनम् —नपुं॰—-—मल् + ल्युट्—कुचलना, पीसना
मलयः —पुं॰—-—मलते धरति चन्दनादिकम्-मल्+कयन्—भारत के दक्षिण में एक पर्वत शृंखला जहाँ चन्दन के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं (कविसमुदाय प्रायः मलय पर्वत से चलने वाली पवन का उल्लेख किया करते हैं, यह पवन चन्दन तथा अन्य सुगंधित पौधों की सुगंध को इधर उधर फैलाने के साथ-साथ कामार्त व्यक्तियों को विशेष रुप से प्रभावित करती हैं)
मलयः —पुं॰—-—-—मलयशृंखला के पूर्व में स्थित देश, मलावार
मलयः —पुं॰—-—-—इन्द्र का नन्दनकानन
मलयाचलः —पुं॰—मलय-अचलः—-—मलय पहाड़
मलयाद्रिः —पुं॰—मलय-अद्रिः—-—मलय पहाड़
मलयगिरिः —पुं॰—मलय-गिरिः—-—मलय पहाड़
मलयपर्वतः —पुं॰—मलय-पर्वतः—-—मलय पहाड़
मलयानिलः —पुं॰—मलय-अनिलः—-—मलयपहाड़ से चलने वाली पवन, दक्षिणीपवन
मलयवातः —पुं॰—मलय-वातः—-—मलयपहाड़ से चलने वाली पवन, दक्षिणीपवन
मलयसमीरः —पुं॰—मलय-समीरः—-—मलयपहाड़ से चलने वाली पवन, दक्षिणीपवन
मलयोद्भवम् —नपुं॰—मलय-उद्भवम्—-—चन्दन की लकड़ी
मलयजः —पुं॰—मलयजः—-—चन्दन का वृक्ष
मलयजः —पुं॰—-—-—चन्दन की लकड़ी
मलयजम् —नपुं॰—-—-—चन्दन की लकड़ी
मलयजम् —नपुं॰—मलयजम्—-—राहु का विशेषण
मलयरजस् —नपुं॰—मलय-रजस्—-—चन्दन का चूरा
मलयद्रुमः —पुं॰—मलय-द्रुमः—-—चन्दन का पेड़
मलयवासिनी —स्त्री॰—मलय-वासिनी—-—दुर्गा का विशेषण
मलाका —स्त्री॰—-—मलेन मनोमालिन्येन अकति कुटिलं गच्छति-मल+अक्+अच्+टाप्—शृंगारप्रिय या कामुक स्त्री
मलाका —स्त्री॰—-—-—दूती, अन्तरंग सखी
मलिन —वि॰—-—मल् + इनन्—मैला, गन्दा, घिनौना अपवित्र, अशुद्ध, भ्रष्ट, कलंकित, कलुषित (आलं से भी)
मलिन —वि॰—-—-—काला, अन्धकारमय
मलिन —वि॰—-—-—पापी, दुष्ट, दुश्चरित्र
मलिन —वि॰—-—-—नीच, दुष्ट, अधम
मलिन —वि॰—-—-—मेघाच्छन्न, तिरोहित
मलिनम् —नपुं॰—-—-—पाप, दोष, अपराध
मलिना —स्त्री॰—-—-—रजस्वाला स्त्री
मलिनी —स्त्री॰—-—-—रजस्वाला स्त्री
मलिनाम्बु —नपुं॰—मलिन-अम्बु—-—‘काला पानी’ मसी, स्याही
मलिनास्य —वि॰—मलिन-आस्य—-—काले या मैले मुहँ वाला
मलिनास्य —वि॰—मलिन-आस्य—-—नीच, गंवार
मलिनास्य —वि॰—मलिन-आस्य—-—बहशी, क्रूर
मलिनप्रभ —वि॰—मलिन-प्रभ—-—तिरोहित, दूषित, मेघाच्छन्न
मलिनमुख —वि॰—मलिन-मुख—-—काले या मैले मुहँ वाला
मलिनमुख —वि॰—मलिन-मुख—-—नीच, गंवार
मलिनमुख —वि॰—मलिन-मुख—-—बहशी, क्रूर
मलिनमुखः —पुं॰—मलिन-मुखः—-—अग्नि
मलिनमुखः —पुं॰—मलिन-मुखः—-—भूत, प्रेत
मलिनमुखः —पुं॰—मलिन-मुखः—-—एक प्रकार का बन्दर, गोलांगूल
मलिनयति —ना॰ धा॰ पर॰ <मलिनयति>—-—-—मैला करना, मलिन करना, कलंकित करना, दूषित करना, धब्बा लगाना, बिगाड़ना
मलिनयति —ना॰ धा॰ पर॰ <मलिनयति>—-—-—भ्रष्ट करना, बदचलन करना
मलिनिमन् —पुं॰—-—मलिन् + इमनिच्—मैलापन,गंदगी, अपवित्रता
मलिनिमन् —पुं॰—-—-—कालिमा, कालापन
मलिनिमन् —पुं॰—-—-—नैतिक अपवित्रता, पाप
मलिम्लुचः —पुं॰—-—मली सन् म्लोचित-मलिन्+म्लुच्+क—लुटेरा, चोर
मलिम्लुचः —पुं॰—-—-—राक्षस
मलिम्लुचः —पुं॰—-—-—डांस, पिस्सू, खटमल
मलिम्लुचः —पुं॰—-—-—लौंद का महीना
मलिम्लुचः —पुं॰—-—-—वायु, हवा
मलिम्लुचः —पुं॰—-—-—वह ब्राह्मण जो दैनिक पंच महायज्ञों को नहीं करता हैं
मलीमस —वि॰—-—मल + ईमसच्—मैला, गन्दा, अपवित्र, अस्वच्छ, कलंकित, मलिन
मलीमस —वि॰—-—-—कृष्ण, काला, काले रंग का
मलीमस —वि॰—-—-—दुष्ट, पापपूर्ण, सदोष बेईमान
मल्ल् —भ्वा॰ आ॰ <मल्लते>—-—-—थामना, अधिकार में करना
मल्ल —वि॰—-—मल्ल + अच्—हृष्टपुष्ट, व्यायामशील, बलिष्ठ
मल्ल —वि॰—-—-—अच्छा, उत्तम
मल्लः —पुं॰—-—-—बलवान् पुरुष
मल्लः —पुं॰—-—-—कसरती, मुक्केबाज, पहलवान
मल्लः —पुं॰—-—-—पान पात्र, प्याला
मल्लः —पुं॰—-—-—गाल, कपोल, गण्डस्थल
मल्ल्लारिः —पुं॰—-—-—कृष्ण का विशेषण
मल्ल्लारिः —पुं॰—-—-—शिव का विशेषण
मल्लक्रीडा —स्त्री॰—मल्ल-क्रीडा—-—मुक्केबाजी या मल्लयुद्ध
मल्लजम् —नपुं॰—मल्ल-जम्—-—काली मिर्चे
मल्लतूर्यम् —नपुं॰—मल्ल-तूर्यम्—-—एक प्रकार का ढोल
मल्लभूः —पुं॰—मल्ल-भूः—-—अखाड़ा, मल्लयुद्ध का मैदान
मल्लभूः —पुं॰—मल्ल-भूः—-—एक देश का नाम
मल्लभूमिः —स्त्री॰—मल्ल-भूमिः—-—अखाड़ा, मल्लयुद्ध का मैदान
मल्लभूमिः —स्त्री॰—मल्ल-भूमिः—-—एक देश का नाम
मल्लयुद्धम् —नपुं॰—मल्ल-युद्धम्—-—कुश्ती करना या मुक्केबाजी, मुष्टियुद्धीय भिड़न्त या मुठभेड़
मल्लविद्या —स्त्री॰—मल्ल-विद्या—-—मल्लयुद्ध की कला
मल्लशाला —स्त्री॰—मल्ल-शाला—-—व्यायामशाला, अखाड़ा
मल्लकः —पुं॰—-—मल्ल + कन्, मल्ल + ण्वुल वा—दीवट
मल्लकः —पुं॰—-—-—दीवा, तैलपात्र
मल्लकः —पुं॰—-—-—नारियल का बना हुआ प्याला
मल्लकः —पुं॰—-—-—एक प्रकार की चमेली
मल्लिः —स्त्री॰—-—मल्ल् + इन्—एक प्रकार की चमेली
मल्ली —स्त्री॰—-—मल्लि + ङीष—एक प्रकार की चमेली
मल्लिगन्धि —नपुं॰—मल्लि-गन्धि—-—अगर
मल्लिनाथः —पुं॰—मल्लि-नाथः—-—एक प्रसिद्ध भाष्यकार जो चौदहवीं या पन्द्रहवीं शताब्दी में हुआ (उसने ‘रघुवंश’ ‘कुमारसंभव’ ‘किरातार्जुनीय’ ‘नैषधचरित’और शिशुपालवध पर टीकाएँ लिखीं)
मल्लिपत्रम् —नपुं॰—मल्लि-पत्रम्—-—छत्राक, साँप की छतरी
मल्लिकः —पुं॰—-—मल्लि + कन्—एक प्रकार का हंस जिसकी टांगे और चोंच भूरे रंग की होती हैं
मल्लिकः —पुं॰—-—-—माघ का महीना
मल्लिकः —पुं॰—-—-—जुलाहे की ढरकी, फिरकी
मल्लिकाक्षः —पुं॰—मल्लिकः-अक्षः—-—एक प्रकार का हंस जिसकी टांगे और चोंच भूरे रंग की होती हैं
मल्लिकाख्यः —पुं॰—मल्लिकः-आख्यः—-—एक प्रकार का हंस जिसकी टांगे और चोंच भूरे रंग की होती हैं
मल्लिकार्जुनः —पुं॰—मल्लिक-अर्जुनः—-—श्रीशैल नामक पर्वत पर विराजमान शिव का एक लिंग
मल्लिकाख्या —स्त्री॰—मल्लिक-आख्या—-—एक प्रकार की चमेली
मल्लिका —स्त्री॰—-—मल्लिक + टाप्—एक प्रकार की चमेली
मल्लिका —स्त्री॰—-—-—इस चमेली का फूल
मल्लिका —स्त्री॰—-—-—किसी विशेष आकृति का मिट्टी का बर्त्तन
मल्लिकागन्धम् —नपुं॰—मल्लिका-गन्धम्—-—एक प्रकार की अगर
मल्लीकरः —पुं॰—-—अमल्लमपि आत्मानं मल्लमिव करोति-मल्ल+च्वि, ईत्वम्, कृ+अच्—कोर
मल्लुः —पुं॰—-—मल्ल + उ—रीछ, भालू