विक्षनरी:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/क-कि
कष्ठम
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—ब्रह्मा
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—विष्णु
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—कामदेव
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—अग्नि
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—वायु
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—यम
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—सूर्य
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—आत्मा
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—राजा या राजकुमार
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—गाँठ या जोड़
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—मोर
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—पक्षियों का राजा
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—पक्षी
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—मन
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—शरीर
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—समय
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—बादल
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—शब्द, ध्वनि
- कः—पुं॰—-—कच्-ड—बाल
- कम्—नपुं॰—-—कच्-ड—प्रसन्नता, हर्ष, आनन्द
- कम्—नपुं॰—-—कच्-ड—पानी
- कम्—नपुं॰—-—कच्-ड—सिर
- कंसः—पुं॰—-—कंस्-अ—जल पीने का पात्र, प्याला, कटोरा
- कंसः—पुं॰—-—कंस्-अ—काँसा , सफेद ताँबा
- कंसः—पुं॰—-—कंस्-अ—‘आढक’ नाम की एक विशेष माप
- कंसम्—नपुं॰—-—कंस्-अ—जल पीने का पात्र, प्याला, कटोरा
- कंसम्—नपुं॰—-—कंस्-अ—काँसा , सफेद तांबा
- कंसम्—नपुं॰—-—कंस्-अ—‘आढक’ नाम की एक विशेष माप
- कंसः—पुं॰—-—कंस्-अ—मथुरा का राजा, उग्रसेन का पुत्र, कृष्ण का शत्रु
- कंसारिः—पुं॰—कंस - अरिः—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसारातिः—पुं॰—कंस - अरातिः—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसजित्—पुं॰—कंस - जित्—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसकृष्—पुं॰—कंस - कृष्—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसद्विष्—पुं॰—कंस - द्विष्—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसहन्—पुं॰—कंस - हन्—-—कंस को मारने वाला अर्थात् कृष्ण
- कंसास्थि—नपुं॰—कंस - अस्थि—-—काँसा
- कंसकारः—पुं॰—कंस - कारः—-—एक वर्णसंकर जाति, कसेरा
- कंसकारः—पुं॰—कंस - कारः—-—जस्ता या सफेद पीतल के बर्तन बनाने वाला, काँसे की ढलाई का काम करने वाला
- कंसकम्—नपुं॰—-—कंस-कन्—काँसा, कसीस या फूल
- कक्—भ्वा॰ आ॰- <ककते>, <ककित>—-—-—कामना करना
- कक्—भ्वा॰ आ॰- <ककते>, <ककित>—-—-—अभिमान करना
- कक्—भ्वा॰ आ॰- <ककते>, <ककित>—-—-—अस्थिर हो जाना
- ककुञ्जलः—पुं॰—-—कं जलं कूजयति याचते-क-कूज्-अलच् पृषो॰नुम् ह्रस्वश्च—चातक, पपीहा
- ककुद्—स्त्री॰—-—कं सुखं कौति सूचयति--क-कु-क्विप्,तुकागमः,तस्य दः—चोटी, शिखर
- ककुद्—स्त्री॰—-—कं सुखं कौति सूचयति--क-कु-क्विप्,तुकागमः,तस्य दः—मुख्य, प्रधान
- ककुद्—स्त्री॰—-—कं सुखं कौति सूचयति--क-कु-क्विप्,तुकागमः,तस्य दः—भारतीय बैल या साँड़ के कंधे के ऊपर का कूबड़ या उभार
- ककुद्—स्त्री॰—-—कं सुखं कौति सूचयति--क-कु-क्विप्,तुकागमः,तस्य दः—सींग
- ककुद्—स्त्री॰—-—कं सुखं कौति सूचयति--क-कु-क्विप्,तुकागमः,तस्य दः—राजचिह्न
- ककुत्स्थः—पुं॰—ककुद् - स्थः—-—इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजा शशाद का पुत्र पुरंजय
- ककुदः—पुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—पहाड़ का शिखर या चोटी
- ककुदः—पुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—कूबड़ या डिल्ला
- ककुदः—पुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख
- ककुदः—पुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—राजचिह्न
- ककुदम्—नपुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—पहाड़ का शिखर या चोटी
- ककुदम्—नपुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—कूबड़ या डिल्ला
- ककुदम्—नपुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख
- ककुदम्—नपुं॰—-—कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति-दा-क—राजचिह्न
- ककुद्मत्—वि॰—-—ककुद्-मतुप्—कूबड़ या डिल्ले से युक्त, कूबड़ वाला बैल
- ककुद्मत्—पुं॰—-—ककुद्-मतुप्—पहाड़
- ककुद्मत्—वि॰—-—ककुद्-मतुप्—भैंसा
- ककुद्मती—स्त्री॰—-—ककुद्-मतुप्-ङीप्—कूल्हा और नितम्ब
- ककुद्मिन्—वि॰—-—ककुद्-मिनि—शिखरधारी, कूबड़युक्त
- ककुद्मिन्—पुं॰—-—ककुद्-मिनि—कूबड़धारी बैल
- ककुद्मिन्—पुं॰—-—ककुद्-मिनि—पहाड़
- ककुद्मिन्—पुं॰—-—ककुद्-मिनि—राजा रैवतक का नाम
- ककुद्मिकन्या—स्त्री॰—ककुद्मिन् - कन्या—-—बलराम की पत्नी रेवती
- ककुद्मिसुता—स्त्री॰—ककुद्मिन् - सुता—-—बलराम की पत्नी रेवती
- ककुद्वत्—पुं॰—-—ककुद्-मतुप्-वत्वम्—कूबड़धारी भैंसा
- ककुन्दरम्—नपुं॰—-—कस्य शरीरस्य कुम् अवयवं दृणाति-ककु-दृ-खच्,मुम्—नितम्बों का गडढा, जघनकूप
- ककुभ्—स्त्री॰—-—क-स्कुभ्-क्विप्—दिशा, भूपरिधि का चतुर्थ भाग
- ककुभ्—स्त्री॰—-—क-स्कुभ्-क्विप्—आभा, सौन्दर्य
- ककुभ्—स्त्री॰—-—क-स्कुभ्-क्विप्—चम्पक पुष्पों की माला
- ककुभ्—स्त्री॰—-—क-स्कुभ्-क्विप्—शास्त्र
- ककुभ्—स्त्री॰—-—क-स्कुभ्-क्विप्—शिखर, चोटी
- ककुभः—पुं॰—-—कस्य वायोः कुः स्थानं भाति अस्मात्-ककु-भा-क पृषो॰ वा कं वातं स्कुभ्नाति विस्तारयति क-स्कुभ्-क—वीणा के सिरे पर मुड़ी हुई लकड़ी
- ककुभः—पुं॰—-—कस्य वायोः कुः स्थानं भाति अस्मात्-ककु-भा-क पृषो॰ वा कं वातं स्कुभ्नाति विस्तारयति क-स्कुभ्-क—अर्जुनवृक्ष
- ककुभम्—नपुं॰—-—कस्य वायोः कुः स्थानं भाति अस्मात्-ककु-भा-क पृषो॰ वा कं वातं स्कुभ्नाति विस्तारयति क-स्कुभ्-क—कुटज वृक्ष का फूल
- कक्कुलः—पुं॰—-—कक्क्-उलच्—बकुल वृक्ष
- कक्कोलः—पुं॰—-—कक्-क्विप्,कुल्-ण,कक् च कोलश्चेति, कर्म॰ स॰—फलदार वृक्ष
- कक्कोली—स्त्री॰—-—कक्-क्विप्,कुल्-ण, कक् च कोलश्चेति, कर्म॰ स॰, स्त्रियां डीष्—फलदार वृक्ष
- कक्कोलम्—नपुं॰—-—कक्-क्विप्,कुल्-ण—कक्कोल का फल
- कक्कोलम्—नपुं॰—-—कक्-क्विप्,कुल्-ण—कक्कोल के फलों से तैयार किया गया गन्धद्रव्य
- कक्कोलकम्—नपुं॰—-—-—कक्कोल का फल
- कक्कोलकम्—नपुं॰—-—-—कक्कोल के फलों से तैयार किया गया गन्धद्रव्य
- कक्खट—वि॰—-—कक्ख्-अटन्—कठोर, ठोस
- कक्खट—वि॰—-—कक्ख्-अटन्—हँसने वाला
- कक्खटी—स्त्री॰—-—कक्खट-ङीप्—खड़िया
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—छिपने का स्थान
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—नीचे पहने जाने वाले वस्त्र का सिरा, कच्छे का सिरा
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—बेल, लता
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—घास, सूखी घास
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—सूखे वृक्षों का जंगल, सूखी लकड़ी
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—काँख
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—राजा का अन्तःपुर
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—जंगल का भीतरी भाग
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—पार्श्व
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—भैंसा
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—द्वार
- कक्षः—पुं॰—-—कष्-स—दलदली भूमि
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—ककराली या काँख का फोड़ा, जिसमें पीड़ा होती है
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—हाथों को बाँधने की रस्सी, हाथी का तंग
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—स्त्री की तगड़ी, कटिबन्ध, करधनी, कटिसूत्र
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—चहारदीवारी की दीवार
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—कमर, मध्यभाग
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—आँगन, सहन
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—बाड़ा
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—भीतर का कमरा, निजी कमरा, सामान्य कमरा
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—रनिवास
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—समानता
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—उत्तरीय वस्त्र
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—आपत्ति, सतर्क उत्तर
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वन्द्विता
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—लाँग
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—लाँग बाँधना
- कक्षा—स्त्री॰—-—कष्-स-टाप्—कलाई
- कक्षम्—नपुं॰—-—कष्-स—तारा, पाप
- कक्षाग्निः—पुं॰—कक्षः - अग्निः—-—जंगली आग, दावाग्नि
- कक्षान्तरम्—नपुं॰—कक्षः - अन्तरम्—-—भीतर का या निजी कमरा
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—अन्तःपुर का अधीक्षक
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—राजोद्यानपाल
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—द्वारपाल
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—कवि
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—लम्पट
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—खिलाड़ी, चित्रकार
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—अभिनेता
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—प्रेमी
- कक्षावेक्षकः—पुं॰—कक्षः - अवेक्षकः—-—रस या भावना की शक्ति
- कक्षधरम्—नपुं॰—कक्ष - धरम्—-—कन्धों का जोड़
- कक्षपः—पुं॰—कक्ष - पः—-—कछुआ
- कक्षपटः—पुं॰—कक्ष - पटः—-—लंगोट
- कक्षपुटः—पुं॰—कक्ष - पुटः—-—काँख
- कक्षशायः—पुं॰—कक्ष - शायः—-—कुत्ता
- कक्षशायुः—पुं॰—कक्ष - शायुः—-—कुत्ता
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—घोड़े या हाथी का तंग
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—स्त्री की तगड़ी या करधनी
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—उत्तरीय वस्त्र
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—वस्त्र की किनारी
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—महल का भीतरी कमरा
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—दीवार घेर या बाड़ा
- कक्ष्या—स्त्री॰—-—कक्ष-यत्-टाप्—समानता
- कख्या—स्त्री॰—-—कख्-यत्-टाप्—घेर या बाड़ा, विशाल भवन का प्रभाग या खण्ड
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—बगला
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—आम का एक प्रकार
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—यम
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—क्षत्रिय
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—बनावटी ब्राह्मण
- कङ्कः—पुं॰—-—कङ्क-अच्—विराट के महल में युधिष्ठिर द्वारा रखा गया अपना नाम
- कङ्कपत्र—वि॰—कङ्क - पत्र—-—बगुले के परों से सुसज्जित
- कङ्कत्रः—पुं॰—कङ्क - त्रः—-—बगुले के पखों से युक्त बाण
- कङ्कपत्रिन्—पुं॰—कङ्क - पत्रिन्—-—कंकपत्र
- कङ्कमुखः—पुं॰—कङ्क - मुखः—-—चिमटा
- कङ्कशाय—पुं॰—कङ्क - शाय—-—कुत्ता
- कङ्कटः—पुं॰—-—कङ्क्-अटन्—कवच, रक्षात्मक जिरह बख्तर, सैनिक साज-सामान
- कङ्कटः—पुं॰—-—कङ्क्-अटन्—अंकुश
- कङ्कटकः—पुं॰—-—कङ्क्-अटन्,कन्—कवच, रक्षात्मक जिरह बख्तर, सैनिक साज-सामान
- कङ्कटकः—पुं॰—-—कङ्क्-अटन्,कन्—अंकुश
- कङ्कणः—पुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—कड़ा
- कङ्कणः—पुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—विवाहसूत्र, कँगना
- कङ्कणः—पुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—सामान्य आभूषण
- कङ्कणः—पुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—कलगी
- कङ्कणम्—नपुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—कड़ा
- कङ्कणम्—नपुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—विवाहसूत्र, कँगना
- कङ्कणम्—नपुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—सामान्य आभूषण
- कङ्कणः—पुं॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्—पानी की फुहार
- कङ्कणी—स्त्री॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्-ङीप्—घुँघरू
- कङ्कणी—स्त्री॰—-—कम् इति कणति,कम्-कण्-अच्-ङीप्—घुँघरू जड़ा आभूषण
- कङ्कणिका—स्त्री॰—-—-—घुँघरू
- कङ्कणिका—स्त्री॰—-—-—घुँघरू जड़ा आभूषण
- कङ्कतः—पुं॰—-—कङ्क-अतच्—कंघी, बाल बाहने की कंघी
- कङ्कतम्—स्त्री॰—-—कङ्क-अतच्—कंघी, बाल बाहने की कंघी
- कङ्कती—स्त्री॰—-—कङ्क-अतच्—कंघी, बाल बाहने की कंघी
- कङ्कतिका—स्त्री॰—-—कङ्क-अतच्—कंघी, बाल बाहने की कंघी
- कङ्करम्—नपुं॰—-—कं सुखं किरति क्षिपति-कॄ-अच्—मट्ठा
- कङ्कालः—पुं॰—-—कं शिरः कालयति क्षिपति-कम्-कल्-णिच्-अच्—अस्थिपंजर
- कङ्कालम्—नपुं॰—-—कं शिरः कालयति क्षिपति-कम्-कल्-णिच्-अच्—अस्थिपंजर
- कङ्कालपालिन्—पुं॰—कङ्कालः - पालिन्—-—शिव
- कङ्कालशेष—वि॰—कङ्कालः - शेष—-—कमजोर होकर जो हड्डियों का ढाँचा रह गया हो
- कङ्कालयः—पुं॰—-—कङ्काल-या-क—शरीर
- कङ्केल्लः—पुं॰—-—कङ्क्-एल्लः—अशोक वृक्ष
- कङ्केल्लिः—पुं॰—-—कङ्क्-एल्लिः—अशोक वृक्ष
- कङ्कोली—स्त्री॰—-—कंक्-ओलच्-ङीष्—फलदार वृक्ष
- कङ्गुलः—पुं॰—-—कंगु-ला-क—हाथ
- कच्—भ्वा॰ पर॰ <कचति>,<कचित>—-—-—चिल्लाना, रोना
- कच्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—बाँधना, जकड़ना
- कच्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—चमकना
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—बाल
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—सूखा या भरा हुआ घाव, क्षतचिह्न या किण
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—बंधन पट्टी
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—कपड़े की गोट
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—बादल
- कचः—पुं॰—-—कच्-अच्—बृहस्पति का एक पुत्र
- कचा—स्त्री॰—-—कच्-अच्-टाप्—हथिनी
- कचाग्रम्—नपुं॰—कच - अग्रम्—-—घूँघट, अलकें
- कचाचित—वि॰—कच - आचित—-—बिखरे बालों वाला
- कचग्रहः—पुं॰—कच - ग्रहः—-—बाल पकड़ना, बालों से पकड़ने वाला
- कचपक्षः—पुं॰—कच - पक्षः—-—घिचपिच या अलंकृत बाल,
- कचपाशः—पुं॰—कच - पाशः—-—घिचपिच या अलंकृत बाल
- कचहस्तः—पुं॰—कच - हस्तः—-—घिचपिच या अलंकृत बाल
- कचमालः—पुं॰—कच - मालः—-—धूआँ
- कचङ्गनम्—नपुं॰—-—कचस्य जनरवस्य अङ्गनम्-,शक॰ पररूपम्—वह मण्डी जहाँ सामान पर किसी प्रकार का कोई शुल्क न देना पड़े
- कचङ्गलः—पुं॰—-—कच्यते रुध्यते वेलया-कच्-अङ्लच्—समुद्र
- कचाकचि—अव्य॰—-—कचेषु कचेषु गृहीत्वेदं युद्धं प्रवृत्तम् ब॰ स॰ इच्,पूर्वपददीर्घः—’बाल के बदले’ एक दूसरे के बाल पकड़कर युद्ध करना
- कचाटुरः—पुं॰—-—कचवत् मेघ इव शून्ये अटन्ति-कच्-अट्-उरच्—जलकुक्कुट
- कच्चर—वि॰—-—कुत्सितं चरति कु-चर्-अच्—बुरा, मलिन
- कच्चर—वि॰—-—कुत्सितं चरति कु-चर्-अच्—दुष्ट, नीच, अधम
- कच्चित्—अव्य॰—-—किम्-विच्,चि-क्विप् पृषो॰ मस्य दत्वम्-कच्च चिच्च द्वयोः समाहारः-द्व॰ स॰—प्रश्नवाचकता
- कच्चित्—अव्य॰—-—किम्-विच्,चि-क्विप् पृषो॰ मस्य दत्वम्-कच्च चिच्च द्वयोः समाहारः-द्व॰ स॰—हर्ष
- कच्चित्—अव्य॰—-—किम्-विच्,चि-क्विप् पृषो॰ मस्य दत्वम्-कच्च चिच्च द्वयोः समाहारः-द्व॰ स॰—माङ्गलिकता-सूचक अव्यय
- कच्छः—पुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—तट, किनारा, गोट, सीमावर्ती प्रदेश
- कच्छः—पुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—दलदल, कीचड़, पंकभूमि
- कच्छः—पुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—अधोवस्त्र की गोट या झालर जो लाँग का काम दे
- कच्छः—पुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—किश्ती का एक भाग
- कच्छः—पुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—कछुवे का अंग विशेष
- कच्छम्—नपुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—तट, किनारा, गोट, सीमावर्ती प्रदेश
- कच्छम्—नपुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—दलदल, कीचड़, पंकभूमि
- कच्छम्—नपुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—अधोवस्त्र की गोट या झालर जो लाँग का काम दे
- कच्छम्—नपुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—किश्ती का एक भाग
- कच्छम्—नपुं॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क—कछुवे का अंग विशेष
- कच्छा—स्त्री॰—-—केन जलेन छृणाति दीप्यते छाद्यते वा-क-छो-क-टाप्—झींगुर
- कच्छान्तः—पुं॰—कच्छ - अन्तः—-—झील या नदी का किनारा
- कच्छपः—पुं॰—-—-—कछुवा
- कच्छपः—पुं॰—-—-—मल्लयुद्ध में एक स्थिति
- कच्छपः—पुं॰—-—-—कुबेर की नौ निधियों में से एक
- कच्छपी—पुं॰—-—-—कछुवी
- कच्छपी—पुं॰—-—-—एक प्रकार की वीणा, सरस्वती की वीणा
- कच्छभूः—स्त्री॰—-—-—दलदली भूमि, पङ्कभूमि
- कच्छटिका—स्त्री॰—-—कच्छ-अट्-अच्-कन्,इत्वम्,शक॰ पररूपम्,टाप्—धोती का छोर
- कच्छाटिका—स्त्री॰—-—कच्छ-अट्-अच्-कन्,इत्वम्,टाप्—धोती का छोर
- कच्छाटी—स्त्री॰—-—कच्छ-अट्-ङीष् —धोती का छोर
- कच्छुः—स्त्री॰—-—कष्-ऊ,छ आदेशः, ह्रस्वश्च—खुजली, खाज
- कच्छू—स्त्री॰—-—कष्-ऊ,छ आदेशः—खुजली, खाज
- कच्छुर—वि॰—-—कच्छू-र ह्रस्वश्च—खाज वाला, खुजली की बीमारी वाला
- कच्छुर—वि॰—-—कच्छू-र ह्रस्वश्च—कामुक, लम्पट
- कज्जलम्—नपुं॰—-—कुत्सितं जलमस्मात्प्रभवति-कोः कदादेशः—काजल
- कज्जलम्—नपुं॰—-—कुत्सितं जलमस्मात्प्रभवति-कोः कदादेशः—सुरमा
- कज्जलम्—नपुं॰—-—कुत्सितं जलमस्मात्प्रभवति-कोः कदादेशः—स्याही, मसि
- कज्जलध्वजः—पुं॰—कज्जलम् - ध्वजः—-—दीपक, लैम्प
- कज्जलरोचकः—पुं॰—कज्जलम् - रोचकः—-—दीवट
- कज्जलकम्—नपुं॰—-—-—दीवट
- कञ्च्—भ्वा॰ आ॰—-—-—बान्धना
- कञ्च्—भ्वा॰ आ॰—-—-—चमकना
- कञ्चारः—पुं॰—-—कम्-चर्-णिच्-अच्—सूर्य
- कञ्चारः—पुं॰—-—कम्-चर्-णिच्-अच्—मदार का पौधा
- कञ्चुकः—पुं॰—-—कञ्च्-उकन्—बख्तर, कवच
- कञ्चुकः—पुं॰—-—कञ्च्-उकन्—साँप की त्वचा, केंचुली
- कञ्चुकः—पुं॰—-—कञ्च्-उकन्—पोशाक, वस्त्र, कपड़ा
- कञ्चुकः—पुं॰—-—कञ्च्-उकन्—अँगरखा, चोगा
- कञ्चुकः—पुं॰—-—कञ्च्-उकन्—चोली, अँगिया
- कञ्चुकालुः—वि॰—-—कञ्चुक-आलुच्—साँप
- कञ्चुकित—वि॰—-—कञ्चुक-इतच्—बख्तर से सुसज्जित, कवच धारण किए हुए
- कञ्चुकित—वि॰—-—कञ्चुक-इतच्—पोशाक पहने हुए
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—कवच या जिरहबख्तर से सुसज्जित
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—अन्तःपुर का सेवक, जनानी ड्योढ़ी का द्वारपाल
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—लम्पट
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—व्यभिचारी
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—साँप
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—द्वारपाल
- कञ्चुकिन्—पुं॰—-—कञ्चुक-इनि—जौ
- कञ्चुलिका—स्त्री॰—-—कञ्च्-उलच्-ङीष्-कन्,ह्रस्वः—चोली
- कञ्चुली—स्त्री॰—-—कञ्च्-उलच्-ङीष्—चोली
- कञ्जः—पुं॰—-—कम्-जन्-ड—बाल
- कञ्जः—पुं॰—-—कम्-जन्-ड—ब्रह्मा
- कञ्जम्—नपुं॰—-—कम्-जन्-ड—कमल, अमृत, सुधा
- कञ्जजः—पुं॰—कञ्जः-जः—-—ब्रह्मा
- कञ्जनाभः—पुं॰—कञ्ज - नाभः—-—विष्णु
- कञ्जकः—पुं॰—-—कञ्जः केश इव कायति-कञ्ज-कै-क—एक प्रकार का पक्षी
- कञ्जकी—पुं॰—-—कञ्जः केश इव कायति-कञ्ज-कै-क—एक प्रकार का पक्षी
- कञ्जनः—पुं॰—-—कम्-जन्-अच्—कामदेव
- कञ्जनः—पुं॰—-—कम्-जन्-अच्—एक प्रकार का पक्षी
- कञ्जरः—पुं॰—-—कम्-जृ-अक्,—सूर्य
- कञ्जरः—पुं॰—-—कम्-जृ-अक्,—हाथी
- कञ्जरः—पुं॰—-—कम्-जृ-अक्,—पेट
- कञ्जरः—पुं॰—-—कम्-जृ-अक्,—ब्रह्मा की उपाधि
- कञ्जारः—पुं॰—-—कम्-जृ-अण् —सूर्य
- कञ्जारः—पुं॰—-—कम्-जृ-अण् —हाथी
- कञ्जारः—पुं॰—-—कम्-जृ-अण् —पेट
- कञ्जारः—पुं॰—-—कम्-जृ-अण् —ब्रह्मा की उपाधि
- कञ्जलः—पुं॰—-—कञ्ज्-कलच्—एक प्रकार का पक्षी
- कट्—भ्वा॰ पर॰-<कटति>,<कटित>—-—-—जाना
- कट्—भ्वा॰ पर॰-<कटति>,<कटित>—-—-—ढकना
- प्रकट्—भ्वा॰ पर॰—प्र - कट्—-—प्रकट होना
- प्रकट्—भ्वा॰ पर॰—प्र - कट्—-—चमकना
- कट्—भ्वा॰ पर॰प्रेर॰<कटयति>—-—-—प्रकट करना, प्रदर्शित करना, दिखलाना, स्पष्ट करना
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—चटाई
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—कूल्हा
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—कूल्हा और कटिदेश, कूल्हे के ऊपर का गर्त
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—हाथी का गंडस्थल
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—एक प्रकार का घास
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—शव
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—शववाहन, अरथी
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—पासे का विशेष प्रकार से फेंकना
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—आधिक्य
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—बाण
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—प्रथा
- कटः—पुं॰—-—कट्-अच्—श्मशानभूमि, कबरिस्तान
- कटाक्षः —पुं॰—कटः - अक्षः —-—नजर, तिरछी निगाह, विक्षेप
- कटोदकम्—नपुं॰—कटः - उदकम्—-—तर्पण के लिए जल
- कटोदकम्—नपुं॰—कटः - उदकम्—-—मद
- कटकारः—पुं॰—कटः - कारः—-—संकर जाति
- कटकारः—पुं॰—कटः - कारः—-—चटाई बुनने वाला
- कटकोलः—पुं॰—कटः - कोलः—-—पीकदान
- कटखादक—पुं॰—कटः - खादक—-—गीदड़
- कटखादक—पुं॰—कटः - खादक—-—कौवा
- कटखादक—पुं॰—कटः - खादक—-—शीशे का बर्तन
- कटघोषः—पुं॰—कटः - घोषः—-—गोपालपुरी
- कटपूतनः—पुं॰—कटः - पूतनः—-—एक प्रकार के प्रेतात्मा
- कटपूतना—स्त्री॰—कटः - पूतना—-—एक प्रकार के प्रेतात्मा
- कटप्रूः—पुं॰—कटः - प्रूः—-—शिव
- कटप्रूः—पुं॰—कटः - प्रूः—-—भूत या पिशाच
- कटप्रूः—पुं॰—कटः - प्रूः—-—क्रीड़ा
- कटप्रोथः—पुं॰—कटः - प्रोथः—-—नितम्ब
- कटप्रोथम्—नपुं॰—कटः - प्रोथम्—-—नितम्ब
- कटभङ्गः—पुं॰—कटः - भङ्गः—-—हाथों से दाने एकत्र करना
- कटभङ्गः—पुं॰—कटः - भङ्गः—-—राजसंकट
- कटमालिनी—स्त्री॰—कटः - मालिनी—-—शराब
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—कूड़ा
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—मेखला, करधनी
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—रस्सी
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—शृंखला की एक कड़ी
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—चटाई
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—खारी नमक
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—पर्वत पार्श्व
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—अधित्यका
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—सेना, शिविर
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—घर या आवास
- कटकः—पुं॰—-—कट्-वुन्—वृत्त, पहिया
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—कूड़ा
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—मेखला, करधनी
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—रस्सी
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—शृंखला की एक कड़ी
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—चटाई
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—खारी नमक
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—पर्वत पार्श्व
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—अधित्यका
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—सेना, शिविर
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—घर या आवास
- कटकम्—नपुं॰—-—कट्-वुन्—वृत्त, पहिया
- कटकिन्—पुं॰—-—कटक-इनि—पहाड़
- कटङ्कटः—पुं॰—-—कट-कट्-खच् बा॰,मुम्—आग
- कटङ्कटः—पुं॰—-—कट-कट्-खच् बा॰,मुम्—सोना
- कटङ्कटः—पुं॰—-—कट-कट्-खच् बा॰,मुम्—गणेश
- कटनम्—नपुं॰—-—कट्-ल्युट्—घर की छत या छप्पर
- कटाहः—पुं॰—-—कट-आ-हन्-ड—कड़ाही
- कटाहः—पुं॰—-—कट-आ-हन्-ड—कछुए की कड़ी खाल
- कटाहः—पुं॰—-—कट-आ-हन्-ड—कुँआ
- कटाहः—पुं॰—-—कट-आ-हन्-ड—पहाड़ी मिट्टी का टीला
- कटाहः—स्त्री॰—-—कट-आ-हन्-ड—टूटे बर्तन का खण्ड
- कटिः—पुं॰—-—कट-इन—कमर
- कटिः—पुं॰—-—कट-इन—नितम्ब
- कटिः—पुं॰—-—कट-इन—हाथी का गंडस्थल
- कटी—स्त्री॰—-—कटि-ङीप् —कमर
- कटी—स्त्री॰—-—कटि-ङीप् —निम्ब
- कटी—स्त्री॰—-—कटि-ङीप् —हाथी का गंडस्थल
- कटितटम्—नपुं॰—कटिः - तटम्—-—कूल्हा
- कटित्रम्—नपुं॰—कटिः - त्रम्—-—धोती
- कटित्रम्—नपुं॰—कटिः - त्रम्—-—मेखला, करधनी
- कटिप्रोथः—पुं॰—कटिः - प्रोथः—-—नितम्ब
- कटिमालिका—स्त्री॰—कटिः - मालिका—-—स्त्री की तगड़ी या करधनी
- कटिरोहकः—पुं॰—कटिः - रोहकः—-—महावत, पीलवान
- कटिशीर्षकः—पुं॰—कटिः - शीर्षकः—-—कूल्हा
- कटिशृङ्खला—स्त्री॰—कटिः - शृङ्खला—-—घुँघुरू जड़ी करधनी
- कटिसूत्रम्—नपुं॰—कटिः - सूत्रम्—-—करधनी या मेखला
- कटिका—स्त्री॰—-—कटि-कन्-टाप्—कूल्हा, कमर
- कटीरः—पुं॰—-—कट्-ईरन्—गुफा, खोखर
- कटीरः—पुं॰—-—कट्-ईरन्—कूल्हों का गर्त
- कटीरम्—नपुं॰—-—कट्-ईरन्—गुफा, खोखर
- कटीरम्—नपुं॰—-—कट्-ईरन्—कूल्हों का गर्त
- कटीरम्—नपुं॰—-—कट्-ईरन्—कूल्हा
- कटीरकम्—नपुं॰—-—कटीर-कन्—नितम्ब, चूतड़
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—तिक्त, कड़ुवा, चरपरा
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—गन्धयुक्त, तीक्ष्णगन्ध वाला
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—दुर्गन्धयुक्त, बदबू वाला
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—कटु, व्यंग्यात्मक
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—अरुचिकर, अप्रिय
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—ईर्ष्यालु
- कटु—वि॰—-—कट्-उ—गरम, प्रचण्ड
- कटुः—पुं॰—-—कट्-उ—तीखापन, तिक्तता, कड़ुवापन
- कटु—नपुं॰—-—कट्-उ—अनुचित कार्य
- कटु—नपुं॰—-—कट्-उ—लोकापवाद, दुर्वचन, निन्दा
- कटुकीटः—पुं॰—कटु - कीटः—-—डाँस, मच्छर
- कटुकीटकः—पुं॰—कटु - कीटकः—-—डाँस, मच्छर
- कटुक्वाणः—नपुं॰—कटु - क्वाणः—-—टिटहरी
- कटुग्रन्थि—वि॰—कटु - ग्रन्थि—-—सोंठ,
- कटुग्रन्थिभङ्गः—पुं॰—कटु-ग्रन्थि-भङ्गः—-—सोंठ या अदरक
- कटुग्रन्थिभद्रम्—नपुं॰—कटु-ग्रन्थि-भद्रम्—-—सोंठ या अदरक
- कटुनिष्प्लावः—पुं॰—कटु - निष्प्लावः—-—अनाज जो जल की बाढ़ में न आया हो
- कटुमोदम्—नपुं॰—कटु - मोदम्—-—एक सुगन्धित द्रव्य
- कटुरवः—वि॰—कटु - रवः—-—मेंढक
- कटुक—वि॰—-—कटु-कन्—तीक्ष्ण, चरपरा
- कटुक—वि॰—-—कटु-कन्—प्रचण्ड, गरम
- कटुक—वि॰—-—कटु-कन्—अप्रिय, अरुचिकर
- कटुकः—पुं॰—-—कटु-कन्—तीखापन, खटास
- कटुकता—स्त्री॰—-—कटुक-ता—अशिष्ट व्यवहार, अक्खड़पना
- कटुरम्—नपुं॰—-—कट-उरन्—पानी मिला हुआ मट्ठा
- कटोरम्—नपुं॰—-—कट्-ओलच् रलयोरभेदः—मिट्टी का कसोरा
- कटोलः—पुं॰—-—कट्-ओलच्—चरपरा स्वाद
- कटोलः—पुं॰—-—कट्-ओलच्—नीच जाति का पुरुष, जैसा कि चाण्डाल
- कठ्—भ्वा॰ पर॰—-—-—कठिनाई से रहना
- कठः—पुं॰—-—कठ्-अच्—एक मुनि का नाम, वैशम्पायन का शिष्य, यजुर्वेद की कठ शाखा का प्रवर्तक
- कठ—पुं॰—-—कठ्-अच्—कठ मुनि के अनुयायी
- कठाः—पुं॰—-—कठ्-अच्—कठ मुनि के अनुयायी
- कठधूर्तः—पुं॰—कठ - धूर्तः—-—यजुर्वेद की कठ शाखा में निष्णात ब्राह्मण
- कठश्रोत्रियः—पुं॰—कठ - श्रोत्रियः—-—यजुर्वेद की कठ शाखा में पारंगत ब्राह्मण
- कठमर्दः—पुं॰—-—कठ-मृद्-अण्—शिव
- कठर—वि॰—-—कठ्-अरन्—कड़ा, सख्त
- कठिका—स्त्री॰—-—कठ्-वुन् बा॰—खड़िया
- कठिन—वि॰—-—कठ्-इनच्—कड़ा, सख्त कठिन
- कठिन—वि॰—-—कठ्-इनच्—कठोर-हृदय, क्रूर, निर्दय
- कठिन—वि॰—-—कठ्-इनच्—कठोर, अनम्य
- कठिन—वि॰—-—कठ्-इनच्—तीक्ष्ण, प्रचण्ड, उग्र
- कठिन—वि॰—-—कठ्-इनच्—पीड़ा देने वाला
- कठिनः—पुं॰—-—कठ्-इनच्—झुरमुट
- कठिना—स्त्री॰—-—कठ्-इनच्-टाप्—साफ की हुई शक्कर से बनी मिठाई
- कठिना—स्त्री॰—-—कठ्-इनच्-टाप्—खाना बनाने के लिए मिट्टी की हाँड़ी
- कठिनिका—स्त्री॰—-—कठिन-ङीष्,कन्,टाप्,इत्वम्—खड़िया
- कठिनिका—स्त्री॰—-—कठिन-ङीष्,कन्,टाप्,इत्वम्—कन्नो अँगुली
- कठिनी—स्त्री॰—-—कठिन-ङीष्—खड़िया
- कठिनी—स्त्री॰—-—कठिन-ङीष्—कन्नो अँगुली
- कठोर—वि॰—-—कठ्-ओरन्—कड़ा, ठोस
- कठोर—वि॰—-—कठ्-ओरन्—क्रूर, निर्दय
- कठोर—वि॰—-—कठ्-ओरन्—तीक्ष्ण, चुभने वाला,
- कठोर—वि॰—-—कठ्-ओरन्—पूर्ण विकसित, पूर्ण पूरा उगा हुआ
- कठोर—वि॰—-—कठ्-ओरन्—परिपक्व, परिष्कृत
- कड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना
- कड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—घमण्डी होना
- कड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—कूटकर भूसी अलग करना
- कड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—गाहना, दाने अलग करना
- कड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—रक्षा करना, बचाना
- कड—वि॰—-—कड्-अच्—गूँगा
- कड—वि॰—-—कड्-अच्—कर्कश
- कड—वि॰—-—कड्-अच्—अनजान, मूर्ख
- कडङ्गरः—पुं॰—-—कड-गृ-खच्,मुम्—तिनका
- कडङ्करः—पुं॰—-—कड-कृ-खच्,मुम्—तिनका
- कडङ्गरीय—वि॰—-—कडङ्गर-छ—जिसको तिनका खिलाया जाय
- कडङ्करीय—वि॰—-—कडङ्कर-छ—जिसको तिनका खिलाया जाय
- कडङ्गरीयः—पुं॰—-—कडङ्कर-छ—घास खाने वाला पशु
- कडङ्करीयः—पुं॰—-—कडङ्कर-छ—घास खाने वाला पशु
- कडत्रम्—नपुं॰—-—गड्यते सिच्यते जलादिकम् अत्र- गड्-अत्रन्,गकारस्य ककारः—एक प्रकार का बर्तन
- कडन्दिका—स्त्री॰—-—-—विज्ञान, शास्त्र
- कडम्वः—पुं॰—-—कड्-अम्बच्—डंठल
- कलम्वः—पुं॰—-—कड्-अम्बच्,डस्य लः—डंठल
- कडार—वि॰—-—गड्-आरन् कडादेश—भूरे रंग का
- कडार—वि॰—-—गड्-आरन् कडादेश—घमण्डी, अभिमानी, ढीठ
- कडारः—पुं॰—-—गड्-आरन् कडादेश—भूरा रंग
- कडारः—पुं॰—-—गड्-आरन् कडादेश—सेवक
- कडितुलः—पुं॰—-—कट्यां तोलनं ग्रहणं यस्य, पृषो॰ टस्य ड—तलवार, खड्ग
- कण्—भ्वा॰ पर॰-<कणति>,<कणित> —-—-—शब्द करना, चिल्लाना, कराहना
- कण्—भ्वा॰ पर॰-<कणति>,<कणित> —-—-—छोटा होना
- कण्—भ्वा॰ पर॰-<कणति>,<कणित> —-—-—जाना
- कण्—चुरा॰पर॰ या प्रेर॰—-—-—आँख झपकना,पलक बन्द करना
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—अनाज का दाना
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—अणु या लव
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—बहुत ही थोड़ा परिणाम
- द्रविणकणः—पुं॰—द्रविण - कणः—-—बहुत ही थोड़ा परिणाम
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—धूल का जर्रा, पराग
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—बूँद या फुहार
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—अनाज की बाल
- कणः—पुं॰—-—कण्-अच्—आग की चिंगारी
- कणादः—पुं॰—कणः - अदः—-—वैशेषिक दर्शन के निर्माता का नाम
- कणभक्षः—पुं॰—कणः - भक्षः—-—वैशेषिक दर्शन के निर्माता का नाम
- कणभुज्—पुं॰—कणः - भुज्—-—वैशेषिक दर्शन के निर्माता का नाम
- कणजीरकम्—पुं॰—कणः - जीरकम्—-—सफेद जीरा
- कणभक्षकः—पुं॰—कणः - भक्षकः—-—एक प्रकार का पक्षी
- कणलाभः—पुं॰—कणः - लाभः—-—भँवर, जलावर्त
- कणपः—पुं॰—-—कण्-पा-क—लोहे का भाला या छड़,
- कणशः—अव्य॰—-—कण-शस्—छोटे छोटे अंशों में, दाना-दाना, थोड़ा-थोड़ा, बूँद-बूँद
- कणिकः—पुं॰—-—कण्-कन्,इत्वम्—अनाज का दाना
- कणिकः—पुं॰—-—कण्-कन्,इत्वम्—एक छोटा कण
- कणिकः—पुं॰—-—कण्-कन्,इत्वम्—अनाज की बाल
- कणिकः—पुं॰—-—कण्-कन्,इत्वम्—भुने हुए गेहूँ का भोजन
- कणिका—स्त्री॰—-—कण-ठन्-टाप्—अणु, एक छोटा अथवा सूक्ष्म जर्रा
- कणिका—स्त्री॰—-—कण-ठन्-टाप्—बूँद
- कणिका—स्त्री॰—-—कण-ठन्-टाप्—एक प्रकार का अन्न या चावल
- कणिशः—पुं॰—-—कणिन्-शी-ड—अनाज की बाल
- कणिशम्—नपुं॰—-—कणिन्-शी-ड—अनाज की बाल
- कणीक—वि॰—-—कण्-ईकन्—छोटा, नन्हा
- कणे—अव्य॰—-—कण्-ए—इच्छा-संतृप्ति का अभिधायक अव्यय
- कणेरा—स्त्री॰—-—कणेर-टाप्—हथिनी, वेश्या, रंडी
- कणेरुः—स्त्री॰—-—कण्-एरु—हथिनी, वेश्या, रंडी
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—काँटा
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—फांस, डंक
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—ऐसा दुःखदायी व्यक्ति जो राज्य के लिए काँटा तथा अच्छे प्रशासन एवं शान्ति का शत्रु हो
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—सताने या क्लेश पहुँचाने का मूल कारण, उत्पात
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—रोमांच होना, रोंगटे खड़े होना
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—अंगुली का नाखून
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—कष्ट पहुँचाने वाला भाषण
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—काँटा
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—फांस, डंक
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—ऐसा दुःखदायी व्यक्ति जो राज्य के लिए काँटा तथा अच्छे प्रशासन एवं शान्ति का शत्रु हो
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—सताने या क्लेश पहुँचाने का मूल कारण, उत्पात
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—रोमांच होना, रोंगटे खड़े होना
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—अंगुली का नाखून
- कण्टकम्—नपुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—कष्ट पहुँचाने वाला भाषण
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—बाँस
- कण्टकः—पुं॰—-—कण्ट्-ण्वुल्—कारखाना, निर्माणी
- कण्टकाशनः—पुं॰—कण्टकः - अशनः—-—ऊँट
- कण्टकभक्षकः—पुं॰—कण्टकः - भक्षकः—-—ऊँट
- कण्टकभुज्—पुं॰—कण्टकः - भुज्—-—ऊँट
- कण्टकोद्धरम्—नपुं॰—कण्टकः - उद्धरम्—-—काँटा निकालना, नलाई करना
- कण्टकोद्धरम्—नपुं॰—कण्टकः - उद्धरम्—-—जनसाधारण को सताने वाले तथा चोर आदि उत्पातकारियों को दूर करना
- कण्टकद्रुमः—पुं॰—कण्टकः - द्रुमः—-—काँटा, झाड़ी
- कण्टकद्रुमः—पुं॰—कण्टकः - द्रुमः—-—सेमल का वृक्ष
- कण्टकफलः—पुं॰—कण्टकः - फलः—-—कटहल, गोखरू, रेंड़ या धतूरे का पेड़
- कण्टकमर्दनम्—नपुं॰—कण्टक - मर्दनम्—-—उत्पात शान्त करना
- कण्टकविशोधनम्—नपुं॰—कण्टक - विशोधनम्—-—सब प्रकार क्लेशों के स्रोत का उन्मूलन करना,
- कण्टकित—वि॰—-—कण्टक-इतच्—काँटेदार
- कण्टकित—वि॰—-—कण्टक-इतच्—खड़े हुए रोंगटे वाला, पुलकित, रोमांचित
- कण्टकिन्—स्त्री॰—-—कण्टक-इनि—काँटेदार, कँटीला,
- कण्टकिन्—पुं॰—-—कण्टक-इनि—सताने वाला, कष्टदायक
- कण्टकिफलः—नपुं॰—कण्टकिन् - फलः—-—कटहल
- कण्टकिलः—पुं॰—-—कण्टक-इलच्—काँटेदार बाँस
- कण्ठ्—भ्वा॰ उभ॰, <कण्ठति>- <कण्ठते> चुरा॰ उभ॰,<कण्ठयति> - <कण्ठयते>, <कण्ठित>—-—-—विलाप करना शोक करना
- कण्ठ्—भ्वा॰ उभ॰, <कण्ठति>-<कण्ठते>चुरा॰ उभ॰,<कण्ठयति>-<कण्ठयते>, <कण्ठित>—-—-—चूकना, आतुर होना, लालायित होना, खेद के साथ स्मरण करना
- कण्ठः—पुं॰—-—कण्ठ्-अच्—गला
- कण्ठः—पुं॰—-—कण्ठ्-अच्—गर्दन
- कण्ठः—पुं॰—-—कण्ठ्-अच्—स्वर आवाज
- कण्ठः—पुं॰—-—कण्ठ्-अच्—बर्तन की गर्दन या किनारा
- कण्ठः—पुं॰—-—कण्ठ्-अच्—पड़ोस, अविच्छिन्न सामीप्य
- कण्ठम्—नपुं॰—-—कण्ठ्-अच्—गला
- कण्ठम्—नपुं॰—-—कण्ठ्-अच्—गर्दन
- कण्ठम्—नपुं॰—-—कण्ठ्-अच्—स्वर, आवाज
- कण्ठम्—नपुं॰—-—कण्ठ्-अच्—बर्तन की गर्दन या किनारा
- कण्ठम्—नपुं॰—-—कण्ठ्-अच्—पड़ोस, अविच्छिन्न सामीप्य
- कण्ठाभरणम्—नपुं॰—कण्ठः - आभरणम्—-—गले का आभूषण
- कण्ठकूणिका—स्त्री॰—कण्ठः - कूणिका—-—भारतीय वीणा
- कण्ठगत—वि॰—कण्ठः - गत—-—गले में रहने वाला, गले में आने वाला अर्थात् वियुक्त होने वाला
- कण्ठतटः—पुं॰—कण्ठः - तटः—-—गले का पार्श्व या भाग
- कण्ठतटी—स्त्री॰—कण्ठः - तटी—-—गले का पार्श्व या भाग
- कण्ठतटम्—नपुं॰—कण्ठः - तटम्—-—गले का पार्श्व या भाग
- कण्ठदध्न—वि॰—कण्ठः - दध्न—-—गर्दन तक पहुँचने वाला
- कण्ठनीडकः—पुं॰—कण्ठः - नीडकः—-—चील
- कण्ठनीलकः—पुं॰—कण्ठः - नीलकः—-—बड़ा लैम्प या मशाल
- कण्ठपाशकः—पुं॰—कण्ठः - पाशकः—-—हाथी की ग्रीवा के चारों ओर बँधी हुई रस्सी
- कण्ठपाशकः—पुं॰—कण्ठः - पाशकः—-—रोकने वाला
- कण्ठभूषा—स्त्री॰—कण्ठः - भूषा—-—छोटा हार
- कण्ठमणिः—पुं॰—कण्ठः - मणिः—-—गले में पहनने का मणि
- कण्ठमणिः—पुं॰—कण्ठः - मणिः—-—प्रिय वस्तु
- कण्ठलता—स्त्री॰—कण्ठः - लता—-—पट्टा
- कण्ठलता—स्त्री॰—कण्ठः - लता—-—घोड़े को रोकने वाला
- कण्ठवर्तिन्—पुं॰—कण्ठः - वर्तिन्—-—गले में होने वाला
- कण्ठशोषः—पुं॰—कण्ठः - शोषः—-—गले का सूख जाना, खुश्क हो जाना
- कण्ठशोषः—पुं॰—कण्ठः - शोषः—-—निष्फल प्रतिवाद
- कण्ठसज्जनम्—नपुं॰—कण्ठः - सज्जनम्—-—गर्दन के सहारे लटकना
- कण्ठसूत्रम्—नपुं॰—कण्ठः - सूत्रम्—-—एक प्रकार का आलिंगन
- कण्ठस्थ—वि॰—कण्ठः - स्थ—-—गले में होने वाला
- कण्ठस्थ—वि॰—कण्ठः - स्थ—-—कण्ठस्थानीय
- कण्ठतः—अव्य॰—-—कण्ठ-तसिल्—गले से
- कण्ठतः—अव्य॰—-—कण्ठ-तसिल्—स्पष्ट रुप से, स्फुटरुप से
- कण्ठालः—पुं॰—-—कण्ठ-आलच्—किश्ती
- कण्ठालः—पुं॰—-—कण्ठ-आलच्—फावड़ा, कुदाली
- कण्ठालः—पुं॰—-—कण्ठ-आलच्—युद्ध
- कण्ठालः—पुं॰—-—कण्ठ-आलच्—ऊँट
- कण्ठाला—स्त्री॰ —-—कण्ठ-आलच्—बर्तन जिसमें दूध बिलोया जाय
- कण्ठिका—स्त्री॰ —-—कण्ठ-ठन्-ठाप्,इत्वम्—एक लड़ का हार या माला
- कण्ठी—स्त्री॰ —-—कण्ठ-डीष्—गर्दन, गला
- कण्ठी—स्त्री॰ —-—कण्ठ-डीष्—हार, पट्टी
- कण्ठी—स्त्री॰ —-—कण्ठ-डीष्—घोड़े की गर्दन के चारों ओर बँधी रस्सी
- कण्ठीरवः—पुं॰—कण्ठी - रवः—-—सिंह
- कण्ठीरवः—पुं॰—कण्ठी - रवः—-—मदमाता हाथी
- कण्ठीरवः—पुं॰—कण्ठी - रवः—-—कबूतर
- कण्ठीरवः—पुं॰—कण्ठी - रवः—-—स्पष्ट घोषणा या उल्लेख
- कण्ठीलः—पुं॰—-—कण्ठ्-ईलच्—ऊँट
- कण्ठेकालः—पुं॰—-—कण्ठे कालो विषपानजो नीलिमा यस्य —शिव
- कण्ठ्य—वि॰—-—कण्ठ-यत्—गले से संबन्ध रखने वाला, गले के उपयुक्त, गले में होने वाला
- कण्ठ्य—वि॰—-—कण्ठ-यत्—कण्ठस्थानीय
- कण्ठ्यवर्णः—पुं॰—कण्ठ्य - वर्णः—-—कण्ठस्थानीय अक्षर
- कण्ठ्यस्वरः—पुं॰—कण्ठ्य - स्वरः—-—कण्ठस्थानीय स्वर
- कण्ड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना
- कण्ड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—घमण्डी होना
- कण्ड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—कूटकर भूसी अलग करना
- कण्ड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—गाहना, दाने अलग करना
- कण्ड्—भ्वा॰ उभ॰—-—-—रक्षा करना, बचाना
- कण्डनम्—नपुं॰—-—कण्ड्-ल्युट्—फटकना, दानों से भूसी अलग करना
- कण्डनम्—नपुं॰—-—कण्ड्-ल्युट्—भूसी
- कण्डनी—स्त्री॰—-—कण्ड्-ल्युट्-ङीप्—ओखली
- कण्डनी—स्त्री॰—-—कण्ड्-ल्युट्-ङीप्—मूसल
- कण्डरा—स्त्री॰—-—कण्ड्-अरन्—नस
- कण्डिका—स्त्री॰—-—कण्ड्-ण्वुल्-टाप्—छोटा अनुभाग, छोटे से छोटा अनुच्छेद
- कण्डुः—पुं॰—-—कण्डू-कु—खुरचना
- कण्डुः—पुं॰—-—कण्डू-कु—खुजाना
- कण्डूः—पुं॰—-—कण्डू-यक्-क्विप्, अलोपः यलोपः—खुरचना
- कण्डूः—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-क्विप्, अलोपः यलोपः—खुजाना
- कण्डूतिः—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-क्तिन्—खुरचना
- कण्डूतिः—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-क्तिन्—खुजली, खुजाना
- कण्डूयति—ना॰ धा॰, उभ॰—-—-—खुरचना, शनैः-शनैः मसलना
- कण्डूयित—भू॰ क॰ कृ॰—-—-—खुरचना, शनैः-शनैः मसलना
- कण्डूयनम्—नपुं॰—-—कण्डू-यक्-ल्युट्—खुरचना, मसलना
- कण्डूयनी—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-ल्युट्-ङीप्—मसलने के लिए ब्रुश
- कण्डुयनकः—पुं॰—-—कण्डूयन-कन्—खुजली पैदा करने वाला, गुदगुदी करने वाला
- कण्डूया—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-अ-टाप्—खुरचना
- कण्डूया—स्त्री॰—-—कण्डू-यक्-अ-टाप्—खुजलाना
- कण्डूल—वि॰—-—कण्डू-लच्—जिसे खुजली का विकार हो, जो खुजली अनुभव करता हो, या खुजलाहट पैदा करने वाला
- कण्डोलः—पुं॰—-—कण्ड्-ओलच्—टोकरी जिसमें अनाज रखा जाय
- कण्डोलः—पुं॰—-—कण्ड्-ओलच्—डोली, भण्डारगाह
- कण्डोलः—पुं॰—-—कण्ड्-ओलच्—ऊँट
- कण्डोली—स्त्री॰—-—कण्ड्-ओलच्-ङीप्—चण्डाल की वीणा
- कण्डोषः—पुं॰—-—कण्ड्-ओषन्—झाझा, एक तरह का फुनगा
- कण्वः—पुं॰—-—कण्-क्वन्—एक ऋषि का नाम
- कण्वदुहितृ—स्त्री॰—कण्वः - दुहितृ—-—शकुन्तला, कण्व की पुत्री
- कण्वसुता—स्त्री॰—कण्वः - सुता—-—शकुन्तला, कण्व की पुत्री
- कतः—पुं॰—-—कं जलं शुद्धं तनोति-तन्-ड—निर्मली का पौधा रीठा
- कतकः—पुं॰—-—कं जलं शुद्धं तनोति-तन्-ड—निर्मली का पौधा रीठा
- कतम्—नपुं॰—-—कं जलं शुद्धं तनोति-तन्-ड—इस वृक्ष का फल, रीठा
- कतकम्—नपुं॰—-—कं जलं शुद्धं तनोति-तन्-ड—इस वृक्ष का फल, रीठा
- कतम—सर्व॰ वि॰—-—किम्-डतमच्—कौन या कौन सा
- कतमत्—नपुं॰—-—किम्-डतमच्—कौन या कौन सा
- कतर—सर्व॰ वि॰—-—किम्-डतर—कौन, दो में से कौन सा
- कतरत्—नपुं॰—-—किम्-डतरच्—कौन, दो में से कौन सा
- कतमालः—पुं॰—-—कस्य जलस्य तमाय शोषणाय अलति पर्याप्नोति अल्-अच्—अग्नि
- कति—सर्व॰ वि॰—-—किम् -डति—कितने
- कति—सर्व॰ वि॰—-—किम् -डति—कुछ
- कत्यपि—अव्य॰—कति - अपि—-—थोड़े से
- कतिचिद्—अव्य॰—कति - चिद्—-—कुछ
- कतिचन—अव्य॰—कति - चन—-—कई
- कतिकृत्वः—अव्य॰—-—कति-कृत्वसुच्—कितनी बार
- कतिधा—अव्य॰—-—कति-धा—कई बार
- कतिधा—अव्य॰—-—कति-धा—कितने स्थानों पर, या कितने भागों में
- कतिपय—वि॰—-—कति-अयच्-पुक् च—कुछ, कई, कई एक
- कतिविध—वि॰ ब॰ स॰—-—-—कितने प्रकार का
- कतिशः—अव्य॰—-—कति-शस् —एक बार में कितना
- कत्थ्—भ्वा ॰ आ॰ - <कत्थते>, <कत्थित>—-—-—शेखी बघारना, इतरा कर चलना
- कत्थ्—भ्वा ॰ आ॰ - <कत्थते>, <कत्थित>—-—-—प्रशंसा करना, प्रसिद्ध करना
- कत्थ्—भ्वा ॰ आ॰ - <कत्थते>, <कत्थित>—-—-—गाली देना, दुर्वचन कहना
- विकत्थ्—भ्वा ॰ आ॰ - <कत्थते>, <कत्थित>—वि - कत्थ्—-—शेखी मारना
- विकत्थ्—भ्वा ॰ आ॰ - <कत्थते>, <कत्थित>—वि - कत्थ्—-—दाम घटाना, तुच्छ करना, उपेक्षित करना
- कत्थनम्——-—कत्थ् -ल्युट्, युच् वा—डींग मारना, शेखी बघारना
- कत्थना——-—कत्थ् -ल्युट्, युच् वा—डींग मारना, शेखी बघारना
- कत्सवरम्——-—कत्स-वृ-अप्—कंधा
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—कहना, समाचार देना
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—घोषणा करना, उल्लेख करना
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—वार्तालाप करना, बाते करना, बातचीत करना
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—संकेत करना, निर्देश करना, दिखलाना
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—वर्णन करना, बयान करना
- कथ्—चुरा॰ उभ॰<कथयति>, <कथित> —-—-—सूचना देना, सूचित करना, शिकायत करना
- कथक—वि॰—-—कथ्-ण्वुल्—कहानी कहने वाला, वर्णन करने वाला
- कथकः—पुं॰—-—कथ्-ण्वुल्—मुख्य अभिनेता
- कथकः—पुं॰—-—कथ्-ण्वुल्—झगड़ालू
- कथकः—पुं॰—-—कथ्-ण्वुल्—कहानी सुनाने वाला
- कथनम्—नपुं॰—-—कथ्-ल्युट्—कहानी कहना, वर्णन करना, बयान करना
- कथम्—अव्य॰—-—किम्-प्रकारार्थे थमु कादेशश्च—कैसे किस प्रकार, किस रीति से, कहाँ से
- कथम्—अव्य॰—-—किम्-प्रकारार्थे थमु कादेशश्च—यह बहुधा आश्चर्य प्रकट करता है
- कथम्—अव्य॰—-—किम्-प्रकारार्थे थमु कादेशश्च—क्या, सचमुच, ‘क्या सम्भावना है’ ‘मुझे बतलाइए तो’
- कथम्—अव्य॰—-—किम्-प्रकारार्थे थमु कादेशश्च—हर प्रकार से’ ‘किसी तरह से हो’ ‘किसी न किसी प्रकार’ ‘ बडी़ कठिनाई से’ या ‘ बड़े प्रयत्नों से
- कथङ्कथिकः—पुं॰—कथम् - कथिकः—-—जिज्ञासु, पूछ-ताछ करने वाला
- कथङ्कारम्—अव्य॰—कथम् - कारम्—-—किस रीति से, कैसे
- कथम्प्रमाण—वि॰—कथम् - प्रमाण—-—किस माप तोल का
- कथम्भूत—वि॰—कथम् - भूत—-—किस स्वभाव का, किस प्रकार का
- कथंरुप—वि॰—कथम् - रुप—-—किस शक्ल सूरत का
- कथन्ता—स्त्री॰—-—कथम्-तल्—क्या प्रकार, क्या रीति
- कथा—स्त्री॰—-—कथ्-अङ्-टाप्—कथा, कहानी
- कथा—स्त्री॰—-—कथ्-अङ्-टाप्—कल्पित या मनगढ़ंत कहानी
- कथा—स्त्री॰—-—कथ्-अङ्-टाप्—वृत्तान्त, सन्दर्भ, उल्लेख
- कथा—स्त्री॰—-—कथ्-अङ्-टाप्—बातचीत, वार्तालाप, वक्तृता
- कथा—स्त्री॰—-—कथ्-अङ्-टाप्—गद्यमयी रचना का एक भेद जो आख्यायिका से भिन्न है
- कथानुरागः—पुं॰—कथा - अनुरागः—-—वार्तालाप करने में आनन्द प्राप्त करना
- कथान्तरम्—नपुं॰—कथा - अन्तरम्—-—वार्तालाप के मध्य में
- कथान्तरम्—नपुं॰—कथा - अन्तरम्—-—दूसरी कहानी
- कथारम्भः—पुं॰—कथा - आरम्भः—-—कहानी का आरम्भः कहानी का आरम्भ
- कथोदयः—पुं॰—कथा - उदयः—-—कहानी की शुरुआत
- कथोद्घातः—पुं॰—कथा - उद्घातः—-—प्रस्तावना के पाँच भेदों में से दूसरा प्रकार जब कि चुपके से सुनने के बाद प्रथम पात्र सूत्रधार के शब्दों या भाव को दोहराता हुआ रंगमञ्च पर आता है - दे०सा०द० २६०, उदा० रत्न०, वेणी० या मुद्रा०
- कथोद्घातः—पुं॰—कथा - उद्घातः—-—किसी कहानी का आरम्भ
- कथोपाख्यानम्—नपुं॰—कथा - उपाख्यानम्—-—वर्णन करना, बयान करना
- कथाछलम्—नपुं॰—कथा - छलम्—-—कथा के बहाने
- कथाछलम्—नपुं॰—कथा - छलम्—-—मिथ्या वृत्तान्त बनाते हुए
- कथानायकः—पुं॰—कथा - नायकः—-— कहानी का नायक
- कथापुरुषः—पुं॰—कथा - पुरुषः—-—कहानी का नायक
- कथापीठम्—नपुं॰—कथा - पीठम्—-—कथा या कहानी का परिचयात्मक भाग
- कथाप्रबन्धः—पुं॰—कथा - प्रबन्धः—-—कहानी, बनावटी कहानी, कपोलकल्पित कहानी
- कथाप्रसङ्गः—पुं॰—कथा - प्रसङ्गः—-—वार्तालाप, बातचीत या बातचीत के दौरान
- कथाप्रसङ्गः—पुं॰—कथा - प्रसङ्गः—-—विषचिकित्सक
- कथाप्राणः—पुं॰—कथा - प्राणः—-—अभिनेता
- कथामुखम्—नपुं॰—कथा - मुखम्—-—कहानी का परिचयात्मक भाग
- कथायोगः—पुं॰—कथा - योगः—-—बातचीत के मध्य
- कथाविपर्यासः—पुं॰—कथा - विपर्यासः—-—कहानी का मार्ग बदलना
- कथाशेष—वि॰—कथा - शेष—-—जिसका केवल ‘वृत्तान्त’ ही बाकी रह गया है, ‘मृत’
- कथावशेष—वि॰—कथा - अवशेष—-—जिसका केवल ‘वृत्तान्त’ ही बाकी रह गया है, ‘मृत’
- कथावशेषः—पुं॰—कथा - अवशेषः—-—कहानी का बचा हुआ भाग
- कथानकम्—नपुं॰—-—कथ-आनक बा॰—छोटी कहानी
- कथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कथ्-क्त—कहा हुआ, वर्णित, बयान किया हुआ
- कथित—भू॰ क॰ कृ॰—-—कथ्-क्त—अभिहित, वाच्य
- कथितपदम्—नपुं॰—कथित - पदम्—-—पुनरुक्ति, दोहराना
- कद्—दिवा॰ आ॰ <कद्यते>—-—-—हतबुद्धि हो जाना, घबरा जाना, मन में दुःखी होना
- कद्—भ्वा॰आ॰ <कदते>,भ्वा॰पर॰ <कदति> भी—-—-—चिल्लाना, रोना, आँसू बहाना
- कद्—दिवा॰ आ॰ <कद्यते>—-—-—शोक करना
- कद्—दिवा॰ आ॰ <कद्यते>—-—-—बुलाना
- कद्—दिवा॰ आ॰ <कद्यते>—-—कद्-क्विप्—मारना, प्रहार करना
- कद्—अव्य॰—-—-—बुराई, अल्पता, ह्रास, निरर्थकता, तथा दोष आदि को प्रकट करने वाला अव्यय
- कदक्षरम्—नपुं॰—कद् - अक्षरम्—-—बुरा अक्षर
- कदक्षरम्—नपुं॰—कद् - अक्षरम्—-—बुरी लिखाई
- कदग्निः—पुं॰—कद् - अग्निः—-—थोड़ी आग
- कदध्वन्—नपुं॰—कद् - अध्वन्—-—बुरा मार्ग
- कदन्नम्—नपुं॰—कद् - अन्नम्—-—बुरा भोजन
- कदपत्यम्—नपुं॰—कद् - अपत्यम्—-—बुरा बच्चा
- कदभ्यासः—पुं॰—कद् - अभ्यासः—-—बुरी आदत, बुरी प्रथा
- कदर्थ—वि—कद् - अर्थ—-—निरर्थक, अर्थहीन
- कदर्थनम्—नपुं॰—कद् - अर्थनम्—-—कष्ट देना, दुःखी करना, सताना
- कदर्थना—स्त्री॰—कद् - अर्थना—-—कष्ट देना, दुःखी करना, सताना
- कदर्थय—ना॰ धा॰ पर॰ <कदर्थयति>—कद् - अर्थयति—-—घृणा करना, तिरस्कार करना
- कदर्थय—ना॰ धा॰ पर॰ <कदर्थयति>—कद् - अर्थयति—-—कष्ट देना, सताना
- कदर्थित—वि॰ —कद् - अर्थित—-—घृणित, उपेक्षित, तिरस्कृत
- कदर्थित—वि॰ —कद् - अर्थित—-—सताया गया, पीड़ित किया गया
- कदर्थित—वि॰ —कद् - अर्थित—-—तुच्छ, नीच
- कदर्थित—वि॰ —कद् - अर्थित—-—बुरा, दुष्ट
- कदर्यः—पुं॰—कद् - अर्यः—-—कंजूस
- कदभावः—पुं॰—कद - भावः—-—लोलुपता, सूमपन
- कदश्वः—पुं॰—कद् - अश्वः—-—बुरा घोड़ा
- कदाकार—वि॰—कद् - आकार—-—विकृतररूप, कुरूप
- कदाचार—वि॰—कद् - आचार—-—दुराचारी, दुष्ट, दुश्चरित्र
- कदाचारः—पुं॰—कद् - आचारः—-—दुराचरण
- कदुष्ट्रः—पुं॰—कद् - उष्ट्रः—-—बुरा ऊँट
- कदुष्ण—वि॰—कद् - उष्ण—-—गुनगुना, थोड़ा गरम
- कदुष्णम्—नपुं॰—कद् - उष्णम्—-—गुनगुनापन
- कद्रथः—पुं॰—कद् - रथः—-—बुरा रथ या गाड़ी
- कद्वद—वि॰—कद् - वद—-—दुर्वचन कहने बाला, अययार्थ या अस्पष्ट वक्ता
- कद्वद—वि॰—कद् - वद—-—दुष्ट, घृणायोग्य
- कदकम्—नपुं॰—-—कदः मेघ कायति प्रकाशते - कद-कै-क—शामियाना, चँदोआ
- कदनम्—नपुं॰—-—कद्-ल्युट्—विनाश, हत्या, तबाही
- कदनम्—नपुं॰—-—कद्-ल्युट्—युद्ध
- कदनम्—नपुं॰—-—कद्-ल्युट्—पाप
- कदम्बः—पुं॰—-—कद्-अम्बच्—एक प्रकार का वृक्ष
- कदम्बः—पुं॰—-—कद्-अम्बच्—एक प्रकार का घास
- कदम्बः—पुं॰—-—कद्-अम्बच्—हल्दी
- कदम्बकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का वृक्ष
- कदम्बकः—पुं॰—-—-—एक प्रकार का घास
- कदम्बकः—पुं॰—-—-—हल्दी
- कदम्बकम्—नपुं॰—-—-—समुदाय
- कदम्बकम्—नपुं॰—-—-—कदम्बवृक्ष का फूल
- कदम्बानिलः—पुं॰—कदम्ब - अनिलः—-—सुगन्धित वायु
- कदम्बानिलः—पुं॰—कदम्ब - अनिलः—-—बसंत
- कदम्बवायुः—पुं॰—कदम्ब - वायुः—-—सुगंधित पवन
- कदम्बानिलः—पुं॰—कदम्ब - अनिलः—-—सुगंधित पवन
- कदरः—पुं॰—-—कं जलं दारयति नाशयति - क-दृ-अच्—आरा
- कदरः—पुं॰—-—कं जलं दारयति नाशयति - क-दृ-अच्—अंकुश
- कदरम्—नपुं॰—-—कं जलं दारयति नाशयति - क-दृ-अच्—जमा हुआ दूध
- कदलः—पुं॰—-—कद्-कलच् —केले का पेड़
- कदलकः—पुं॰—-—कद्-कलच्,कन् च—केले का पेड़
- कदली—स्त्री॰—-—कद्-कलच्-ङीप् —केले का वृक्ष
- कदली—स्त्री॰—-—कद्-कलच्-ङीप् —एक प्रकार का मृग
- कदली—स्त्री॰—-—कद्-कलच्-ङीप् —हाथी के द्वारा वहन की जा रही ध्वजा
- कदली—स्त्री॰—-—कद्-कलच्-ङीप् —ध्वजा या झंडा
- कदा—अव्य॰—-—किम्-दा—कब, किस समय
- कदापि—अव्य॰—कदा - अपि—-—कभी-कभी, किसी समय, समय निकाल कर
- कदाचन—अव्य॰—कदा - चन—-—किसी समय, एकदिन, एकबार, एकदफ़ा
- कदाचित्—अव्य॰—कदा - चित्—-—एक बार, एक दफ़ा, किसी समय
- कद्रु—वि॰—-—कद्-रु—भूरे रंग का
- कद्रुः—स्त्री॰—-—कद्-रु—कश्यप की पत्नी तथा नागों की माता
- कद्रू—स्त्री॰—-—कद्-रु—कश्यप की पत्नी तथा नागों की माता
- कद्रूपुत्रः—पुं॰—कद्रू - पुत्रः—-—साँप
- कद्रूसुतः—पुं॰—कद्रू - सुतः—-—साँप
- कनकम्—नपुं॰—-—कन्-वुन्—सोना
- कनकः—पुं॰—-—कन्-वुन्—ढाक का वृक्ष
- कनकः—पुं॰—-—कन्-वुन्—धतूरे का वृक्ष
- कनकः—पुं॰—-—कन्-वुन्—पहाड़ी आबनूस
- कनकाङ्गदम्—नपुं॰—कनक - अङ्गदम्—-—सोने का कड़ा
- कनकाचलः—पुं॰—कनक - अचलः—-—सुमेरु पहाड़ के विशेषण
- कनकाद्रिः—पुं॰—कनक - अद्रिः—-—सुमेरु पहाड़ के विशेषण
- कनकगिरिः—पुं॰—कनक - गिरिः—-—सुमेरु पहाड़ के विशेषण
- कनकशैलः—पुं॰—कनक - शैलः—-—सुमेरु पहाड़ के विशेषण
- कनकालुका—स्त्री॰—कनक - आलुका—-—सोने का कड़ा या फूलदान
- कनकाह्वयः—पुं॰—कनक - आह्वयः—-—धतूरे का पौधा
- कनकटङ्कः—पुं॰—कनक - टङ्कः—-—सोने की कुल्हाड़ी
- कनकदण्डम्—नपुं॰—कनक - दण्डम्—-—राजच्छत्र
- कनकदण्डकम्—नपुं॰—कनक - दण्डकम्—-—राजच्छत्र
- कनकपत्रम्—नपुं॰—कनक - पत्रम्—-—सोने का बना कान का आभूषण
- कनकपरागः—पुं॰—कनक - परागः—-—सुनहरी रज
- कनकरसः—पुं॰—कनक - रसः—-—हड़ताल
- कनकरसः—पुं॰—कनक - रसः—-—पिघला हुआ सोना
- कनकसूत्रम्—नपुं॰—कनक - सूत्रम्—-—सोने का हार
- कनकस्थली—स्त्री॰—कनक - स्थली—-—स्वर्णभूमि, सोने की खान
- कनकमय—वि॰—-—कनक-मयट्—सोने का बना हुआ, सुनहरी
- कनखलम्—पुं॰—-—-—एक तीर्थस्थान का नाम तथा उसके साथ लगी पहाड़ियाँ
- कनन—वि॰—-—कन्-युच्—एक आँख का
- कनयति—ना॰ धा॰ पर॰—-—-—कम करना, घटाना, छोटा करना, न्यून करना
- कनिष्ठ—वि॰—-—अतिशयेन युवा कनिष्ठो वा - कन्-इष्टन्—सबसे छोटा, कम से कम
- कनिष्ठ—वि॰—-—अतिशयेन युवा कनिष्ठो वा - कन्-इष्टन्—आयु में सबसे छोटा
- कनिष्ठिका—स्त्री॰—-—कनिष्ठ-कन्-टाप्—सबसे छोटी अंगुली
- कनीनिका —स्त्री॰—-—कनीन-कन्-टाप्,इत्वम्—छोटी अंगुली, कन्नो
- कनीनिका —स्त्री॰—-—कनीन-कन्-टाप्,इत्वम्—आँख की पुतली
- कनीनी—स्त्री॰—-—कन्-ईन्-ङीष्—छोटी अंगुली, कन्नो
- कनीनी—स्त्री॰—-—कन्-ईन्-ङीष्—आँख की पुतली
- कनीयस्—वि॰—-—अयमनयोरतिशयेन युवा अल्पो वा कनादेशः कन्-इयसुन्—दो में से छोटा, अपेक्षाकृत कम
- कनीयसी—स्त्री॰—-—अयमनयोरतिशयेन युवा अल्पो वा कनादेशः कन्-इयसुन्—आयु में छोटी भगिनी
- कनेरा—स्त्री॰—-—कन्-एरन्-टाप्—वेश्या
- कनेरा—स्त्री॰—-—कन्-एरन्-टाप्—हथिनी
- कन्तुः—पुं॰—-—कन्-तु—कामदेव
- कन्तुः—पुं॰—-—कन्-तु—हृदय
- कन्तुः—पुं॰—-—कन्-तु—अनाज की खत्ती
- कन्था—स्त्री॰—-—कम्-थन्-टाप्—थेगली लगा वस्त्र, गुदड़ी, झोली
- कन्थाधारणम्—नपुं॰—कन्था - धारणम्—-—थेगली लगे कपड़े पहनना जैसा कि कुछ योगी करते हैं
- कन्थाधारी—पुं॰—कन्था - धारिन्—-—धर्म-भिक्षु, योगी
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—गाँठदार जड़
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—गाँठ
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—लहसुन
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—ग्रन्थि
- कन्दम्—नपुं॰—-—कन्द्-अच्—गाँठदार जड़
- कन्दम्—नपुं॰—-—कन्द्-अच्—गाँठ
- कन्दम्—नपुं॰—-—कन्द्-अच्—लहसुन
- कन्दम्—नपुं॰—-—कन्द्-अच्—ग्रन्थि
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—बादल
- कन्दः—पुं॰—-—कन्द्-अच्—कपूर
- कन्दमूलम्—नपुं॰—कन्दः - मूलम्—-—मूली
- कन्दसारम्—नपुं॰—कन्दः - सारम्—-—नन्दन-कानन, इन्द्र का उद्यान
- कन्दट्टम्—नपुं॰—-—कन्द्-अटन्—श्वेत कमल
- कन्दरः—पुं॰—-—कम्-दृ-अच्—गुफा, घाटी
- कन्दरम्—नपुं॰—-—कम्-दृ-अच्—गुफा, घाटी
- कन्दरः—पुं॰—-—कम्-दृ-अच्—अंकुश
- कन्दरा—स्त्री॰—-—कम्-दृ-अच्-टाप्—गुफा, घाटी, खोखलास्थान
- कन्दरी—स्त्री॰—-—कम्-दृ-अच्-ङीप्—गुफा, घाटी, खोखलास्थान
- कन्दराकारः —पुं॰—कन्दरः - आकारः —-—पहाड़
- कन्दर्पः—पुं॰—-—कं कुत्सितो दर्पो यस्मात् —कामदेव
- कन्दर्पः—पुं॰—-—कं कुत्सितो दर्पो यस्मात् —प्रेम
- कन्दर्पकूपः—पुं॰—कन्दर्पः - कूपः—-—योनि
- कन्दर्पज्वरः—पुं॰—कन्दर्पः - ज्वरः—-—काम ज्वर, आवेश, प्रबल इच्छा
- कन्दर्पदहनः—पुं॰—कन्दर्पः - दहनः—-—शिव
- कन्दर्पमुषलः—पुं॰—कन्दर्पः - मुषलः—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग
- कन्दर्पमुसलः—पुं॰—कन्दर्पः - मुसलः—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग
- कन्दर्पशृङ्खलः—पुं॰—कन्दर्पः - शृङ्खलः—-—रतिक्रिया का विशेष प्रकार, रतिबन्ध
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—नया अंकुर या अँखुवा
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—झिड़की, निन्दा
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—गाल, गाल और कनपटी
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—अपशकुन
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—मधुर स्वर
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—नया अंकुर या अँखुवा
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—झिड़की, निन्दा
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—गाल, गाल और कनपटी
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—अपशकुन
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—मधुर स्वर
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—केले का पेड़
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—सोना
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—युद्ध, लड़ाई
- कन्दलः—पुं॰—-—कन्द-अलच्—वाग्युद्ध, वादविवाद
- कन्दलम्—नपुं॰—-—कन्द-अलच्—कन्दल का फूल
- कन्दली—पुं॰—-—कन्दल-ङीष्—केले का पेड़
- कन्दली—पुं॰—-—कन्दल-ङीष्—एक प्रकार का मृग
- कन्दली—पुं॰—-—कन्दल-ङीष्—झंडा
- कन्दली—पुं॰—-—कन्दल-ङीष्—कमलगट्टा या कमल का बीज
- कन्दलीकुसुमम्——कन्दली - कुसुमम्—-—कुकुरमुत्ता
- कन्दुः—पुं॰—-—स्कन्द-उ,सलोपश्च—पतीली, तंदूर
- कन्दुकः—पुं॰—-—कम्-दा-डु-कन्—खेलने के लिए गेंद
- कन्दुकम्—नपुं॰—-—कम्-दा-डु-कन्—खेलने के लिए गेंद
- कन्दुकलीला—स्त्री॰—कन्दुकः - लीला—-—गेंद का खेल
- कन्दोटः—पुं॰—-—कन्द-ओटन्—श्वेत कमल
- कन्दोट्टः—पुं॰—-—कन्द-ओटन्—नील कमल
- कन्धरः—पुं॰—-—कं शिरो जलम् वा धारयति- कम्-धृ-अच्—गर्दन
- कन्धरः—पुं॰—-—कं शिरो जलम् वा धारयति- कम्-धृ-अच्—’जलधर’ बादल
- कन्धरा—स्त्री॰—-—कं शिरो जलम् वा धारयति- कम्-धृ-अच्-टाप्—गर्दन
- कन्धिः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा धीयतेऽत्र, कम्-धा-कि—समुद्र
- कन्धिः—स्त्री॰—-—कं शिरो जलं वा धीयतेऽत्र, कम्-धा-कि—गर्दन
- कन्नम्—नपुं॰—-—कद्-क्त—पाप
- कन्नम्—नपुं॰—-—कद्-क्त—मूर्च्छा, बेहोशी का दौरा
- कन्यका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्,ह्रस्वता—लड़की
- कन्यका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्,ह्रस्वता—अविवाहित लड़की, कुमारी, कुँआरी या (अपरिणीता तरुणी)
- कन्यका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्,ह्रस्वता—दशवर्षीय कन्या
- कन्यका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्,ह्रस्वता—कुमारी कन्या
- कन्यका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्,ह्रस्वता—कन्या राशि
- कन्यकाछलः—पुं॰—कन्यका - छलः—-—फुसलाना
- कन्यकाजनः—पुं॰—कन्यका - जनः—-—कुमारियाँ
- कन्यकाजातः—पुं॰—कन्यका - जातः—-—कुमारी कन्या का पुत्र
- कन्यसः—पुं॰—-—कन्य-सो-क—सबसे छोटा भाई
- कन्यसा—स्त्री॰—-—कन्य-सो-क-टाप्—कानी उँगली
- कन्यसी—स्त्री॰—-—कन्य-सो-क-ङीप्—सब से छोटी बहन
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—अविवाहित लड़की या पुत्री
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—दशवर्षीय कन्या
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—अक्षतयोनि, कुमारी
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—स्त्री
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—छठी राशि अर्थात् कन्या राशि
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—दुर्गा
- कन्या—स्त्री॰—-—कन्-यक्-टाप्—बड़ी इलायची
- कन्यान्तःपुरम्—नपुं॰—कन्या - अन्तःपुरम्—-—रनिवास
- कन्याट—वि॰—कन्या - आट—-—युवती लड़कियों का पीछा करने वाला
- कन्याटः—स्त्री॰—कन्या - टः—-—घर का भीतरी कमरा
- कन्याटः—स्त्री॰—कन्या - टः—-—जो तरुणी कन्याओं के पीछे फिरता रहता है
- कन्याकुब्जः—स्त्री॰—कन्या - कुब्जः—-—एक देश का नाम
- कन्याकुब्जम्—नपुं॰—कन्या - कुब्जम्—-—कन्नौज
- कन्यागतम्—नपुं॰—कन्या - गतम्—-—कन्या राशि में गया हुआ नक्षत्र
- कन्याग्रहणम्—नपुं॰—कन्या - ग्रहणम्—-—विवाह में कन्या को स्वीकार करना
- कन्यादानम्—नपुं॰—कन्या - दानम्—-—कन्या का विवाह करना
- कन्यादूषणम्—नपुं॰—कन्या - दूषणम्—-—कौमार्य भंग करना
- कन्यादोषः—पुं॰—कन्या - दोषः—-—कन्या में दोष का होना, बदनामी
- कन्याधनम्—नपुं॰—कन्या - धनम्—-—दहेज
- कन्यापतिः—पुं॰—कन्या - पतिः—-—पुत्री का पति, दामाद, जामाता
- कन्यापुत्रः—पुं॰—कन्या - पुत्रः—-—कुँआरी कन्या का पुत्र
- कन्यापुरम्—नपुं॰—कन्या - पुरम्—-—जनान-खाना
- कन्याभर्तृ—पुं॰—कन्या - भर्तृ—-—जामाता
- कन्याभर्तृ—पुं॰—कन्या - भर्तृ—-—कार्तिकेय
- कन्यारत्नम्—नपुं॰—कन्या - रत्नम्—-—अत्यन्त सुन्दरी कन्या
- कन्याराशिः—पुं॰—कन्या - राशिः—-—कन्याराशि
- कन्यावेदिन्—पुं॰—कन्या - वेदिन्—-—दामाद
- कन्याशुल्कम्—नपुं॰—कन्या - शुल्कम्—-—कन्या के मूल्य के रुप में कन्या के पिता को दिया गया धन, कन्या का क्रयमूल्य
- कन्यास्वयंवरः—पुं॰—कन्या - स्वयंवरः—-—किसी कुमारी कन्या के द्वारा अपना पति चुनना
- कन्याहरणम्—नपुं॰—कन्या - हरणम्—-—कौमार्यभंग के विचार से किसी तरुणी कन्या को फुसलाना
- कन्याका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्-टाप्—तरुणी लड़की
- कन्याका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्-टाप्—कुमारी
- कन्यिका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्-टाप्,इत्वं —तरुणी लड़की
- कन्यिका—स्त्री॰—-—कन्या-कन्-टाप्,इत्वं —कुमारी
- कन्यामय—वि॰—-—कन्या-मयट्—कन्याओं वाला, कन्यास्वरुप
- कन्यामयम्—नपुं॰—-—कन्या-मयट्—अन्तः पुर
- कपटः—पुं॰—-—के मूर्ध्नि पट इव आच्छादकः—जालसाजी, धोखादेही, चालाकी, प्रवंचना
- कपटम्—नपुं॰—-—के मूर्ध्नि पट इव आच्छादकः—जालसाजी, धोखादेही, चालाकी, प्रवंचना
- कपटतापसः—पुं॰—कपटः - तापसः—-—पाखण्डी संन्यासी, बनावटी साधु
- कपटपटु—वि॰—कपटः - पटु—-—धोखा देने में चतुर, छलपूर्ण
- कपटप्रबन्धः—पुं॰—कपटः - प्रबन्धः—-—छल से भरी हुई चाल
- कपटलेख्यम्—नपुं॰—कपटः - लेख्यम्—-—जाली दस्तावेज
- कपटवचनम्—नपुं॰—कपटः - वचनम्—-—धोखे की बात
- कपटवेश—वि॰—कपटः - वेश—-—बनावटी भेस वाला, नकाबपोश
- कपटवेशः—पुं॰—कपटः - वेशः—-—कपटवेशधारी
- कपटिकः—पुं॰—-—कपट-ठन्—बदमाश, छलिया
- कपदः—पुं॰—-—पर्व-क्विप्,बलोपःपर्,कस्य गंगाजलस्य परा पूरणेन दापयति शुध्यति-क-पर्-दैप् क—कौड़ी
- कपदः—पुं॰—-—पर्व-क्विप्,बलोपःपर्,कस्य गंगाजलस्य परा पूरणेन दापयति शुध्यति-क-पर्-दैप् क—जटा
- कपर्दकः—पुं॰—-—कपर्द्-कन् —कौड़ी
- कपर्दकः—पुं॰—-—कपर्द्-कन् —जटा
- कपर्दिका—स्त्री॰—-—कपर्दक-टाप्,इत्वम्—कौड़ी
- कपर्दिन्—पुं॰—-—कर्पद-इनि—शिव की उपाधि
- कपाटः—पुं॰—-—कं वातं पाटयति तद्गतिं रुणद्धि- तारा॰,क-पट्-णिच्-अण्—किवाड़ का फलक या दिलहा
- कपाटः—पुं॰—-—कं वातं पाटयति तद्गतिं रुणद्धि- तारा॰,क-पट्-णिच्-अण्—दरवाजा
- कपाटम्—नपुं॰—-—कं वातं पाटयति तद्गतिं रुणद्धि- तारा॰,क-पट्-णिच्-अण्—किवाड़ का फलक या दिलहा
- कपाटम्—नपुं॰—-—कं वातं पाटयति तद्गतिं रुणद्धि- तारा॰,क-पट्-णिच्-अण्—दरवाजा
- कपाटोद्घाटनम्—नपुं॰—कपाटः - उद्घाटनम्—-—दरवाजा खोलना
- कपाटघ्नः—पुं॰—कपाटः - घ्नः—-—सेंध लगाने वाला, चोर
- कपाटसन्धिः—पुं॰—कपाटः - सन्धिः—-—किवाड़ों के दिलहों का जोड़
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—खोंपड़ी की हड्डी
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—टूटे बर्तन का खण्ड, ठीकरा
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—समुदाय, संचय
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—भिक्षुक का कटोरा
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—प्याला, बर्तन
- कपालः—पुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—ढक्कन
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—खोपड़ी की हड्डी
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—टूटे बर्तन का खण्ड, ठीकरा
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—समुदाय, संचय
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—भिक्षुक का कटोरा
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—प्याला, बर्तन
- कपालम्—नपुं॰—-—कं शिरो जलं वा पालयति-क-पाल्-अण्—ढक्कन
- कपालपाणिः—पुं॰—कपालः - पाणिः—-—शिव की उपाधि
- कपालभृत्—पुं॰—कपालः - भृत्—-—शिव की उपाधि
- कपालमालिन्—पुं॰—कपालः - मालिन्—-—शिव की उपाधि
- कपालशिरस्—पुं॰—कपालः - शिरस्—-—शिव की उपाधि
- कपालमालिनी—स्त्री॰—कपालः - मालिनी—-—दुर्गादेवी
- कपालिका—स्त्री॰—-—कपाल्=कन्-टाप्,इत्वम्—ठीकरा
- कपालिन्—वि॰—-—कपाल-इनि—खोपड़ी रखने वाला
- कपालिन्—वि॰—-—कपाल-इनि—खोपड़ी पहने हुए
- कपालिन्—पुं॰—-—कपाल-इनि—शिव का विशेषण
- कपालिन्—पुं॰—-—कपाल-इनि—नीच जाति का पुरुष
- कपिः—पुं॰—-—कम्प्-इ,नलोपः—लंगूर, बंदर
- कपिः—पुं॰—-—कम्प्-इ,नलोपः—हाथी
- कप्याख्यः—पुं॰—कपिः - आख्यः—-—धूप, लोबान आदि
- कपीज्यः—पुं॰—कपिः - इज्यः—-—राम का विशेषण
- कपीज्यः—पुं॰—कपिः - इज्यः—-—सुग्रीव का विशेषण
- कपीन्द्रः—पुं॰—कपिः - इन्द्रः—-—बन्दरों का मुखिया
- कपीन्द्रः—पुं॰—कपिः - इन्द्रः—-—हनुमान का विशेषण
- कपीन्द्रः—पुं॰—कपिः - इन्द्रः—-—सुग्रीव का विशेषण
- कपीन्द्रः—पुं॰—कपिः - इन्द्रः—-—जाम्बवान् का विशेषण
- कपिकच्छुः—स्त्री॰—कपिः - कच्छुः—-—एक प्रकार का पौधा, केवाँच
- कपिकेतनः—पुं॰—कपिः - केतनः—-—अर्जुन का नाम
- कपिध्वजः—पुं॰—कपिः - ध्वजः—-—अर्जुन का नाम
- कपिजः—पुं॰—कपिः - जः—-—शिलाजीत, गुग्गुल
- कपितैलम्—नपुं॰—कपिः - तैलम्—-—शिलाजीत, गुग्गुल
- कपिनामन्—पुं॰—कपिः - नामन्—-—शिलाजीत, गुग्गुल
- कपिप्रभुः—पुं॰—कपिः - प्रभुः—-—राम का विशेषण
- कपिलोहम्—नपुं॰—कपिः - लोहम्—-—पीतल
- कपिञ्जलः—पुं॰—-—क-पिंज्-कलच्—पपीहा
- कपिञ्जलः—पुं॰—-—क-पिंज्-कलच्—टिटिहरी
- कपित्थः—पुं॰—-—कपि-स्था-क—कैथ का वृक्ष
- कपित्थम्—नपुं॰—-—कपि-स्था-क—कैथ का फल
- कपित्थास्यः—पुं॰—कपित्थः - आस्यः—-—एक प्रकार का बन्दर
- कपिल—वि॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—भूरे रंग का, आरक्त
- कपिल—वि॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—भूरे बालों का
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—एक ऋषि का नाम
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—कुत्ता
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—लोबान
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—धूप
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—अग्नि का एक रूप
- कपिलः—पुं॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः—भूरा रंग
- कपिला—स्त्री॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः-टाप्—भूरी गाय
- कपिला—स्त्री॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः-टाप्—एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य
- कपिला—स्त्री॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः-टाप्—एक प्रकार का शहतीर
- कपिला—स्त्री॰—-—कम्प्-इलच् पादेशः-टाप्—जोंक
- कपिलाश्वः—पुं॰—कपिल - अश्वः—-—इन्द्र की उपाधि
- कपिलद्युतिः—पुं॰—कपिल - द्युतिः—-—सूर्य
- कपिलधारा—स्त्री॰—कपिल - धारा—-—गंगा की उपाधि
- कपिलस्मृतिः—स्त्री॰—कपिल - स्मृतिः—-—कपिल मुनि का सांख्य-सूत्र
- कपिश—वि॰—-—कपि-श—भूरे रंग का, सुनहरी
- कपिश—वि॰—-—कपि-श—आरक्त (छायाः)
- कपिशः—पुं॰—-—कपि-श—भूरा रंग
- कपिशः—पुं॰—-—कपि-श—शिलाजीत या लोबान
- कपिशा—स्त्री॰—-—कपि-श-टाप्—माधवी लता
- कपिशा—स्त्री॰—-—कपि-श-टाप्—एक नदी का नाम
- कपिशित—वि॰—-—कपिश-इतच्—भूरे रंग का
- कपुच्छलम्—नपुं॰—-—कस्य शिरसः पुच्छमिव लाति -क-पुच्छ-ला-क—मुण्डन संस्कार
- कपुच्छलम्—नपुं॰—-—कस्य शिरसः पुच्छमिव लाति -क-पुच्छ-ला-क—सिर के दोनों ओर रखे हुए केश समूह
- कपुष्टिका—स्त्री॰—-—कस्य शिरसः पुष्ट्यै पोषणाय कायति- क-पुष्टि-कै-क-टाप्—मुण्डन संस्कार
- कपुष्टिका—स्त्री॰—-—कस्य शिरसः पुष्ट्यै पोषणाय कायति- क-पुष्टि-कै-क-टाप्—सिर के दोनों ओर रखे हुए केश समूह
- कपूय—वि॰—-—कुत्सितं पूयते-कु-पूय्-अच्,पृषो॰ उलोपः—अधम, निकम्मा, कमीना, नीच
- कपोतः—पुं॰—-—को वातः पोत इव यस्य—पारावत, कबूतर
- कपोतः—पुं॰—-—को वातः पोत इव यस्य—पक्षी
- कपोताङ्घ्रिः—पुं॰—कपोतः - अङ्घ्रिः—-—एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य
- कपोताञ्जनम्—पुं॰—कपोतः - अञ्जनम्—-—सुरमा
- कपोतारिः—पुं॰—कपोतः - अरिः—-—बाज, शिकरा
- कपोतचरण—पुं॰—कपोतः - चरण—-—एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य
- कपोतपायिका—स्त्री—कपोतः - पायिका—-—चिड़ियाघर, कबूतरों का दड़बा, कबूतरों की छतरी
- कपोतपाली—स्त्री—कपोतः - पाली—-—चिड़ियाघर, कबूतरों का दड़बा, कबूतरों की छतरी
- कपोतराजः—पुं॰—कपोतः - राजः—-—कबूतरों का राजा
- कपोतसारम्—नपुं॰—कपोतः - सारम्—-—सुरमा
- कपोतहस्तः—पुं॰—कपोतः - हस्तः—-—डर या अनुनय -विनय के अवसर पर हाथ जोड़ने का ढंग
- कपोतक—वि॰—-—कपोत-कन्—छोटा कबूतर
- कपोतकम्—नपुं॰—-—कपोत-कन्—सुरमा
- कपोलः—पुं॰—-—कपि-ओलच्—गाल
- कपोलकाषः—पुं॰—कपोलः - काषः—-—जिससे गाल मसले जाँय
- कपोलफलकः—पुं॰—कपोलः - फलकः—-—चौड़े गाल
- कपोलभित्ति—स्त्री॰—कपोलः - भित्ति—-—कनपटी और गाल, चौड़ा गण्डस्थल
- कपोलरागः—पुं॰—कपोलः - रागः—-—गालों की लाली
- कफः—पुं॰—-—केन जलेन फलति-फल्-ड @ तारा॰—बलगम, कफ या श्लेष्मा
- कफः—पुं॰—-—केन जलेन फलति-फल्-ड @ तारा॰—रसीला झाग, फेन
- कफारिः—पुं॰—कफ - अरिः—-—सोंठ
- कफकूर्चिका—स्त्री॰—कफ - कूर्चिका—-—लार, थूक
- कफक्षयः—पुं॰—कफ - क्षयः—-—फेंफड़े का क्षय रोग
- कफघ्न—वि॰—कफ - घ्न—-—कफ को दूर करने वाला, कफनाशक
- कफनाशन—वि॰—कफ - नाशन—-—कफ को दूर करने वाला, कफनाशक
- कफहर—वि॰—कफ - हर—-—कफ को दूर करने वाला, कफनाशक
- कफज्वरः—पुं॰—कफ - ज्वरः—-—बलगम अधिक हो जाने से उत्पन्न बुखार
- कफणिः—पुं॰—-—केन सुखेन फणति स्फुरति-क-फण्-इन्,क-फण्(स्फुर्)-इन् पृषो॰ कफोणि-ङीप्—कोहनी
- कफोणिः—पुं॰—-—केन सुखेन फणति स्फुरति-क-फण्-इन्,क-फण्(स्फुर्)-इन् पृषो॰ कफोणि-ङीप्—कोहनी
- कफल—वि॰—-—कफ-लच्—जिसे बलगम अधिक आता हो, कफप्रकृति
- कफिन्—वि॰—-—कफ-इनि—कफ की अधिकता से पीड़ित, कफग्रस्त
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—सिररहित धड़
- कबन्धम्—नपुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—सिररहित धड़
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—पेट
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—बादल
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—धूमकेतु
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—राहु
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—जल
- कबन्धः—पुं॰—-—कं मुखं बध्नाति-क-बन्ध्-अण्—रामायण में वर्णित बलवान राक्षस
- कबित्थः—पुं॰—-—-—कैथ का वृक्ष
- कम्—चुरा॰ आ॰-<कामयते>,<कामित>,<कान्त>—-—-—प्रेम करना, अनुरक्त होना, प्रेम करने लगना
- कम्—चुरा॰ आ॰-<कामयते>,<कामित>,<कान्त>—-—-—प्रबल लालसा करना, कामना करना, इच्छा करना
- अभिकम्—चुरा॰ आ॰—अभि - कम्—-—प्रेम करना
- अभिकम्—चुरा॰ आ॰—अभि - कम्—-—चाहना
- निकम्—चुरा॰ आ॰—नि - कम्—-—अधिक चाहना, प्रबल इच्छा करना
- प्रकम्—चुरा॰ आ॰—प्र - कम्—-—अधिक चाहना, प्रबल इच्छा करना
- कमठः—पुं॰—-—कम्-अठन्—कछुवा
- कमठः—पुं॰—-—कम्-अठन्—बाँस
- कमठः—पुं॰—-—कम्-अठन्—जल का घड़ा
- कमठी—स्त्री॰—-—कम्-अठन्-ङीप्—कछुवी या छोटा कछुवा
- कमठपतिः—पुं॰—कमठः - पतिः—-—कछुवों का स्वामी
- कमण्डलुः—पुं॰—-—कस्य जलस्य मण्डं लाति क-मण्ड-ला-कु—जलपात्र जो संन्यासी रखते हैं
- कमण्डलु—पुं॰—-—कस्य जलस्य मण्डं लाति क-मण्ड-ला-कु—जलपात्र जो संन्यासी रखते हैं
- कमण्डलुतरुः—पुं॰—कमण्डलुः - तरुः—-—वह वृक्ष जिसके कमण्डलु बनते हैं
- कमण्डलुधरः—पुं॰—कमण्डलुः - धरः—-—शिव का विशेषण
- कमन—वि॰—-—कम्-ल्युट्—विषयी, लम्पट
- कमन—वि॰—-—कम्-ल्युट्—मनोहर सुन्दर
- कमनः—पुं॰—-—कम्-ल्युट्—कामदेव
- कमनः—पुं॰—-—कम्-ल्युट्—अशोक वृक्ष
- कमनः—पुं॰—-—कम्-ल्युट्—ब्रह्मा
- कमनीय—वि॰—-—कम्-अनीयर्—जो चाहा जाय, चाहने के योग्य
- कमनीय—वि॰—-—कम्-अनीयर्—मनोहर, सुहावना, सुन्दर
- कमर—वि॰—-—कम्-अरच्—विषयी, इच्छुक
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—कमल
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—जल
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—ताँबा
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—दवादारु, औषधि
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—सारस पक्षी
- कमलम्—नपुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—मूत्राशय
- कमलः—पुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—सारस पक्षी
- कमलः—पुं॰—-—कं जलमलति भूषयति-कम्-अल्-अच्—एक प्रकार का मृग
- कमलाक्षी—स्त्री॰—कमलम् - अक्षी—-—कमल जैसी आँखों वाली स्त्री
- कमलाकरः—पुं॰—कमलम् - आकरः—-—कमलों का समूह
- कमलाकरः—पुं॰—कमलम् - आकरः—-—कमलों से भरा सरोवर
- कमलालया—स्त्री॰—कमलम् - आलया—-—लक्ष्मी की उपाधि
- कमलासनः—पुं॰—कमलम् - आसनः—-—कमल पर स्थित, ब्रह्मा
- कमलेक्षणा—स्त्री॰—कमलम् - ईक्षणा—-—कमल जैसे नेत्रों वाली स्त्री
- कमलोत्तरम्—नपुं॰—कमलम् - उत्तरम्—-—कुसुंभ का फूल
- कमलखंडम्—नपुं॰—कमलम् - खंडम्—-—कमलों का समूह
- कमलजः—पुं॰—कमलम् - जः—-—ब्रह्मा का विशेषण
- कमलजः—पुं॰—कमलम् - जः—-—रोहिणी नाम का नक्षत्र
- कमलजन्मन्—पुं॰—कमलम् - जन्मन्—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की उपाधि
- कमलभवः—पुं॰—कमलम् - भवः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की उपाधि
- कमलयोनिः—पुं॰—कमलम् - योनिः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की उपाधि
- कमलसंभवः—पुं॰—कमलम् - संभवः—-—कमल से उत्पन्न ब्रह्मा की उपाधि
- कमलकम्—नपुं॰—-—कमल-कन्—छोटा कमल
- कमला—स्त्री॰—-—कमल-अच्-टाप्—लक्ष्मी का विशेषण
- कमला—स्त्री॰—-—कमल-अच्-टाप्—श्रेष्ठ स्त्री
- कमलापतिः—पुं॰—कमला - पतिः—-—विष्णु की उपाधि
- कमलासखः—पुं॰—कमला - सखः—-—विष्णु की उपाधि
- कमलिनी—स्त्री॰—-—कमल-इनि-ङीप्—कमल का पौधा
- कमलिनी—स्त्री॰—-—कमल-इनि-ङीप्—कमलों का समूह
- कमलिनी—स्त्री॰—-—कमल-इनि-ङीप्—कमल-स्थली
- कमा—स्त्री॰—-—कम्-णिङ्-अ-टाप्—सौंदर्य, मनोहरता
- कमितृ—वि॰—-—कम्-तृच्—विषयी, लम्पट
- कम्प्—भ्वा॰ आ॰-<कम्पते>,<कम्पित>—-—-—हिलना-डुलना, काँपना, इधर-उधर आना-जाना
- अनुकम्प्—भ्वा॰ आ॰—अनु - कम्प्—-—तरस खाना, करुणा करना
- आकम्प्—भ्वा॰ आ॰—आ - कम्प्—-—हिलना-डुलना, काँपना
- आकम्प्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—आ - कम्प्—-—हिलाना-डुलना, कँपाना
- प्रकम्प्—भ्वा॰ आ॰—प्र - कम्प्—-—हिलना, काँपना
- प्रकम्प्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—प्र - कम्प्—-—हिलाना, चलाना
- विकम्प्—भ्वा॰ आ॰—वि - कम्प्—-—हिलना, काँपना
- विकम्प्—भ्वा॰ आ॰प्रेर॰—वि - कम्प्—-—हिलाना-डुलना
- समनुकम्प्—भ्वा॰ आ॰—समनु - कम्प्—-—तरस खाना, करुणा करना
- कम्पः—पुं॰—-—कम्प-घञ्—हिल-जुल, थरथराहट
- कम्पः—पुं॰—-—कम्प-घञ्—स्वरित स्वर का रूपान्तर
- कम्पा—स्त्री॰—-—कम्प-घञ्-टाप्—हिलाना, चलायमान करना, थरथारहट
- कम्पान्वित—वि॰—कम्पः - अन्वित—-—कम्पायमान, क्षुब्ध
- कम्पलक्ष्मन्—पुं॰—कम्पः - लक्ष्मन्—-—वायु
- कम्पन—वि॰—-—कम्प्-युच्—कम्पायमान, हिलने वाला
- कम्पनः—नपुं॰—-—कम्प्-युच्—शिशिर ऋतु
- कम्पनम्—नपुं॰—-—कम्प्-युच्—हिलना, कँपकँपी
- कम्पनम्—नपुं॰—-—कम्प्-युच्—लड़खड़ाता उच्चारण
- कम्पाकः—पुं॰—-—कम्पया चलनेन कायति-कम्पा-कै-क—वायु
- कम्पिल्ल—पुं॰—-—कम्पिला नदी विशेषः तस्याः अदूरे भवः - कम्पिला - = काम्पिल् - अरम् नि॰ साधुः, कम्पिला - अण् नि॰ दीर्घः—एक वृक्ष का नाम
- काम्पिल्ल—पुं॰—-—कम्पिला नदी विशेषः तस्याः अदूरे भवः - कम्पिला - = काम्पिल् - अरम् नि॰ साधुः, कम्पिला - अण् नि॰ दीर्घः—एक वृक्ष का नाम
- कम्प्र—वि॰—-—कम्प्-र—हिलने वाला, कम्पायमान, चलायमान, हलचल पैदा करने वाला
- कम्ब्—भ्वा॰ पर॰<कम्बति>,<कम्बित>—-—-—जाना, चलना-फिरना
- कम्बर—वि॰—-—कम्ब्-अरन्—रंगबिरंगा
- कम्बरः—पुं॰—-—कम्ब्-अरन्—चित्र-विचित्र रंग
- कम्बलः—पुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—कंबल
- कम्बलः—पुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—सास्ना, गाय बैल के गले में नीचे लटकने वाली खाल
- कम्बलः—पुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—एक प्रकार का मृग
- कम्बलः—पुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—ऊपर से पहनने का ऊनी वस्त्र
- कम्बलः—पुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—दीवार
- कम्बलम्—नपुं॰—-—कम्-कल्,बुकागमः—जल
- कम्बलवाह्यकम्—नपुं॰—कम्बलः - वाह्यकम्—-—बहली
- कम्बलिका—स्त्री॰—-—-—एक छोटा कंबल
- कम्बलिका—स्त्री॰—-—कम्बल-ई-कन्-ह्रस्वः,टाप्—एक प्रकार की मृगी
- कम्बलिन्—वि॰—-—कम्बल-इनि—कम्बल से ढका हुआ
- कम्बलिन्—पुं॰—-—कम्बल-इनि—बैल, बलीवर्द
- कम्बलिवाह्यकम्—नपुं॰—कम्बलिन् - वाह्यकम्—-—बहली
- कम्बी—स्त्री॰—-—कम्-विन् बा॰ङीप्—कड़छी, चम्मच
- कम्वी—स्त्री॰—-—कम्-विन् बा॰ङीप्—कड़छी, चम्मच
- कम्बु—वि॰—-—-—चितकबरा, रंगबिरंगा
- कम्बुः—पुं॰—-—-—शंख, सीपी
- कम्वुः—पुं॰—-—-—शंख, सीपी
- कम्बुः—पुं॰—-—-—हाथी
- कम्बुः—पुं॰—-—-—गर्दन
- कम्बुः—पुं॰—-—-—चित्रविचित्र रंग
- कम्बुः—पुं॰—-—-—शिरा, शरीर की नस
- कम्बुः—पुं॰—-—-—कड़ा
- कम्बुः—पुं॰—-—-—नलीनुमा हड्डी
- कम्बुकण्ठी—स्त्री॰—कम्बुः - कण्ठी—-—शंख जैसी गर्दन वाली स्त्री
- कम्बुग्रीवा—स्त्री॰—कम्बुः - ग्रीवा—-—शंखनुमा गर्दन
- कम्बुग्रीवा—स्त्री॰—कम्बुः - ग्रीवा—-—स्त्री जिसकी गर्दन शंख जैसी हो
- कम्बोजः—पुं॰—-—कम्ब्-ओज—शंख
- कम्बोजः—पुं॰—-—कम्ब्-ओज—एक प्रकार का हाथी
- कम्बोजः—पुं॰—-—कम्ब्-ओज—एक देश तथा उसके निवासी
- कम्र—वि॰—-—कम्-र—मनोहर, सुन्दर
- कर—वि॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—जो करता है या कराता है
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—हाथ
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—प्रकाश किरण, रश्मिमाला
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—हाथी की सूँड़
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—लगान, शुल्क, भेंट
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—ओला
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—२४ अंगूठे की माप
- करः—पुं॰—-—करोति,कीर्यते अनेन इति,कृ(कॄ-अप्)—हस्त नाम नक्षत्र
- कराग्रम्—नपुं॰—कर - अग्रम्—-—हाथ का अगला भाग
- कराग्रम्—नपुं॰—कर - अग्रम्—-—हाथी के सूँड़ की नोक
- कराघातः—पुं॰—कर - आघातः—-—हाथ से की गई चोट
- करारोटः—पुं॰—कर - आरोटः—-—अँगूठी
- करालम्बः—पुं॰—कर - आलम्बः—-—हाथ से सहारा देना, सहायक बनना
- करास्फोटः—पुं॰—कर - आस्फोटः—-—छाती
- करास्फोटः—पुं॰—कर - आस्फोटः—-—थप्पड़
- करकण्टकः—पुं॰—कर - कण्टकः—-—नाखून
- करकण्टकम्—नपुं॰—कर - कण्टकम्—-—नाखून
- करकमलम्—नपुं॰—कर - कमलम्—-—कमल जैसा हाथ, सुन्दर हाथ
- करपङ्कजम्—नपुं॰—कर - पङ्कजम्—-—कमल जैसा हाथ, सुन्दर हाथ
- करपद्मम्—नपुं॰—कर - पद्मम्—-—कमल जैसा हाथ, सुन्दर हाथ
- करकलशः—पुं॰—कर - कलशः—-—हाथ की अंजलि
- करकलशम्—नपुं॰—कर - कलशम्—-—हाथ की अंजलि
- करकिसलयः—पुं॰—कर - किसलयः—-—कोंपल जैसा हाथ, कोमल हाथ
- करकिसलयम्—नपुं॰—कर - किसलयम्—-—कोंपल जैसा हाथ, कोमल हाथ
- करकिसलयम्—नपुं॰—कर - किसलयम्—-—अंगुलि
- करकोषः—पुं॰—कर - कोषः—-—हथेली का गर्त, हस्ताञ्जलि
- करग्रहः—पुं॰—कर - ग्रहः—-—लगान या शुल्क लेना
- करग्रहः—पुं॰—कर - ग्रहः—-—विवाह में हाथ पकड़ना
- करग्रहः—पुं॰—कर - ग्रहः—-—विवाह
- करग्रहणम्—नपुं॰—कर - ग्रहणम्—-—लगान या शुल्क लेना
- करग्रहणम्—नपुं॰—कर - ग्रहणम्—-—विवाह में हाथ पकड़ना
- करग्रहणम्—नपुं॰—कर - ग्रहणम्—-—विवाह
- करग्राहः—पुं॰—कर - ग्राहः—-—पति
- करग्राहः—पुं॰—कर - ग्राहः—-—शुल्क लेने वाला
- करजः—पुं॰—कर - जः—-—नाखून
- करजम्—नपुं॰—कर - जम्—-—एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य
- करजालम्—नपुं॰—कर - जालम्—-—प्रकाश की धारा
- करतलः—पुं॰—कर - तलः—-—हथेली
- करामलकम्—वि॰—कर - आमलकम्—-—हथेली पर रखा हुआ आँवला
- करस्थ—वि॰—कर - स्थ—-—हथेली पर रखा हुआ
- करतालः—पुं॰—कर - तालः—-—तालियाँ बजाना
- करतालकम्—नपुं॰—कर - तालकम्—-—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र, संभवतः झाँझ
- करतालिका—स्त्री॰—कर - तालिका—-—तालियाँ बजाना
- करतालिका—स्त्री॰—कर - तालिका—-—तालियाँ बजाकर समय बिताना
- करताली—स्त्री॰—कर - ताली—-—तालियाँ बजाना
- करताली—स्त्री॰—कर - ताली—-—तालियाँ बजाकर समय बिताना
- करतोया—स्त्री॰—कर - तोया—-—एक नदी का नाम
- करद—वि॰—कर - द—-—लगान या शुल्क देने वाला
- करद—वि॰—कर - द—-—सहायक
- करपत्रम्—नपुं॰—कर - पत्रम्—-—आरा
- करपत्रिका—स्त्री॰—कर - पत्रिका—-—स्नान या जल-क्रीड़ा करते समय जल उछालना
- करपल्लवः—पुं॰—कर - पल्लवः—-—कोमल हाथ
- करपल्लवः—पुं॰—कर - पल्लवः—-—अंगुलि
- करपालः—पुं॰—कर - पालः—-—तलवार
- करपालः—पुं॰—कर - पालः—-—कुदाली
- करपालिका—स्त्री॰—कर - पालिका—-—तलवार
- करपालिका—स्त्री॰—कर - पालिका—-—कुदाली
- करपीडनम्—नपुं॰—कर - पीडनम्—-—विवाह
- करपुटः—पुं॰—कर - पुटः—-—दोनों हाथ मिलाकर बनाई हुई अंजलि
- करपृष्ठम्—नपुं॰—कर - पृष्ठम्—-—हथेली की पीठ
- करवालः—पुं॰—कर - वालः—-—तलवार
- करवालः—पुं॰—कर - वालः—-—नाखून
- करबाल—वि॰—कर - बाल—-—तलवार
- करबाल—वि॰—कर - बाल—-—नाखून
- करभूषणम्—नपुं॰—कर - भूषणम्—-—कड़ा या कंकण आदि कलाई में पहनने का गहना
- करमालः—पुं॰—कर - मालः—-—धुआँ
- करमुक्तम्—नपुं॰—कर - मुक्तम्—-—बड़ा हथियार
- कररुहः—पुं॰—कर - रुहः—-—नाखून
- कररुहः—पुं॰—कर - रुहः—-—तलवार
- करवीरः—पुं॰—कर - वीरः—-—तलवार या खड्ग
- करवीरः—पुं॰—कर - वीरः—-—कब्रिस्तान
- करवीरः—पुं॰—कर - वीरः—-—चेदि देश का एक नगर
- करवीरः—पुं॰—कर - वीरः—-—कनेर
- करवीरकः—पुं॰—कर - वीरकः—-—तलवार या खड्ग
- करवीरकः—पुं॰—कर - वीरकः—-—कब्रिस्तान
- करवीरकः—पुं॰—कर - वीरकः—-—चेदि देश का एक नगर
- करवीरकः—पुं॰—कर - वीरकः—-—कनेर
- करशाखा—स्त्री॰—कर - शाखा—-—अंगुलि
- करशीकरः—पुं॰—कर - शीकरः—-—हाथी की सूंड़ द्वारा फेंका हुआ पानी
- करशूकः—पुं॰—कर - शूकः—-—नाखून
- करसादः—पुं॰—कर - सादः—-—किरणों का मन्द पड़ जाना
- करसूत्रम्—नपुं॰—कर - सूत्रम्—-—कँगना या विवाहसूत्र जो कलाई में बाँधा जाता है
- करस्थालिन्—पुं॰—कर - स्थालिन्—-—शिव
- करस्वनः—पुं॰—कर - स्वनः—-—तालियाँ बजाना
- करकः—पुं॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्—जलपात्र
- करकम्—नपुं॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्—जलपात्र
- करकः—पुं॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्—अनार का वृक्ष
- करकः—पुं॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्—ओला
- करकम्—नपुं॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्—ओला
- करका—स्त्री॰—-—किरति करोति वा जलमत्र कॄ (कृ)-वुन्-टाप्—ओला
- करकाम्भस्—पुं॰—करक - अम्भस्—-—नारियल का पेड़
- करकासारः—पुं॰—करक - आसारः—-—ओलों की बौछार
- करकजम्—नपुं॰—करक - जम्—-—पानी
- करकपात्रिका—स्त्री॰—करक - पात्रिका—-—सन्यासियों का जलपात्र
- करङ्कः—पुं॰—-—कस्य रङक इव ष॰ त॰—अस्थिपञ्जर
- करङकः—पुं॰—-—कस्य रङक इव ष॰ त॰—खोपड़ी
- करङकः—पुं॰—-—कस्य रङक इव ष॰ त॰—छोटा पात्र, छोटा बक्सा या डिब्बा
- करञ्जः—पुं॰—-—कं शिरोजलं वा रञ्जयति- @ तारा॰—एक वृक्ष का नाम
- करटः—पुं॰—-—किरति मंदम्- कॄ-अटन्—हाथी का गंडस्थल
- करटः—पुं॰—-—किरति मंदम्- कॄ-अटन्—कुसुम्भ का फूल
- करटः—पुं॰—-—किरति मंदम्- कॄ-अटन्—कौवा
- करटः—पुं॰—-—किरति मंदम्- कॄ-अटन्—नास्तिक, ईश्वर और वेद में विश्वास न रखने वाला
- करटः—पुं॰—-—किरति मंदम्- कॄ-अटन्—पतित ब्राह्मण
- करटकः—पुं॰—-—करट-कन्—कौवा
- करटकः—पुं॰—-—करट-कन्—चौर्यकला व विज्ञान का प्रवर्तक कर्णीरथ
- करटकः—पुं॰—-—करट-कन्—हितोपदेश और पंचतन्त्र में गीदड़ का नाम
- करटिन्—पुं॰—-—करट-इनि—हाथी
- करटुः—पुं॰—-—कृ-अटु—एक प्रकार का पक्षी, सारस
- करेटुः—पुं॰—-—के जले वायौ रेटति-क-रेट्-कु—एक प्रकार का पक्षी, सारस
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—करना, अनुष्ठान करना, सम्पन्न करना, कार्यान्वित करना,
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—कृत्य, कार्य
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—धार्मिक कृत्य
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—व्यवसाय, धंधा
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—इन्द्रिय
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—शरीर
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—कार्य का साधन या उपाय
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—साधनविषयक हेतु जिसकी परिभाषा है
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—कारण या प्रयोजन
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—करण कारक द्वारा अभिव्यक्त अर्थ
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—दस्तावेज, तमस्सुक, लिखित प्रमाण
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—लयात्मक विरामविशेष, समय काटने के लिए ताली बजाना
- करणम्—नपुं॰—-—कृ-ल्युट्—दिन का एक भाग
- करणाधिपः—पुं॰—करणम् - अधिपः—-—आत्मा
- करणग्रामः—पुं॰—करणम् - ग्रामः—-—इन्द्रियों का समूह
- करणत्राणम्—नपुं॰—करणम् - त्राणम्—-—सिर
- करण्डः—पुं॰—-—कृ-अण्डन्—छोटी डलिया या टोकरी
- करण्डः—पुं॰—-—कृ-अण्डन्—मधुमक्खियों का छत्ता
- करण्डः—पुं॰—-—कृ-अण्डन्—तलवार
- करण्डः—पुं॰—-—कृ-अण्डन्—एक प्रकार की बत्तख, कारण्डव
- करण्डिका—स्त्री॰—-—कृ-अण्डन्—बाँस का बना छोटा संदूक, बाँस की पिटारी
- करण्डी—स्त्री॰—-—करण्ड-टाप्—बाँस का बना छोटा संदूक, बाँस की पिटारी
- करन्धय—वि॰—-—करण्ड-ङीष्—हाथ चूमने वाला
- करभः—पुं॰—-—कर-धे-खश्,मुम्—हाथ की पीठ, मूलहस्त
- करभः—पुं॰—-—कॄ-अभच्—हाथी की सूँड़
- करभः—पुं॰—-—कॄ-अभच्—हाथी का बच्चा
- करभः—पुं॰—-—कॄ-अभच्—ऊँट का बच्चा
- करभः—पुं॰—-—कॄ-अभच्—ऊँट
- करभः—पुं॰—-—कॄ-अभच्—एक सुगन्धित द्रव्य
- करभोरुः—स्त्री॰—करभः - ऊरुः—कॄ-अभच्—वह स्त्री जिसकी जंघाएँ हाथी की सूँड़ से मिलती जुलती हैं
- करभकः—पुं॰—-—करभ-कन्—ऊँट
- करभिन्—पुं॰—-—करभ-इनि—हाथी
- करम्ब—वि॰—-—कृ-अम्बच्—मिश्रित मिला जुआ, विचित्र, रंग-बिरंगा
- करम्ब—वि॰—-—कृ-अम्बच्—बैठाया हुआ, जड़ा हुआ
- करम्बित—वि॰—-—करम्ब-इतच्—मिश्रित मिला जुआ, विचित्र, रंग-बिरंगा
- करम्बित—वि॰—-—करम्ब-इतच्—बैठाया हुआ, जड़ा हुआ
- करम्भः—पुं॰—-—क-रम्भ्-घञ्—दही मिला आटा या अन्य भोज्यपदार्थ
- करम्भः—पुं॰—-—क-रम्भ्-घञ्—कीचड़
- करम्बः—पुं॰—-—कृ-अम्बच्—दही मिला आटा या अन्य भोज्यपदार्थ
- करम्बः—पुं॰—-—कृ-अम्बच्—कीचड़
- करहाटः—पुं॰—-—कर-हट्-णिच्-अण्—एक देश का नाम
- करहाटः—पुं॰—-—कर-हट्-णिच्-अण्—कमल का डंठल या रेशेदार जड़
- कराल—वि॰—-—कर-आ-ला-क—भयानक, भीषण, डरावना, भयंकर
- कराल—वि॰—-—कर-आ-ला-क—जंभाई लेता हुआ, पूर्णतया खोलता हुआ
- कराल—वि॰—-—कर-आ-ला-क—बड़ा, विस्तृत, ऊँचा, उत्तुंग
- कराल—वि॰—-—कर-आ-ला-क—असम, जिसमें झटका या हिचकोला लगे, नोकदार
- कराला—स्त्री॰—-—कर-आ-ला-क-टाप्—दुर्गा का प्रचण्ड रूप
- करालदंष्ट्र—वि॰—कराल - दंष्ट्र—-—डरावने दाँतों वाला
- करालवदना—स्त्री॰—कराल - वदना—-—दुर्गा की उपाधि
- करालिकः—पुं॰—-—कराणां करसदृशशाखानाम् आलिःश्रेणी यत्र- कप्—वृक्ष
- करालिकः—पुं॰—-—कराणां करसदृशशाखानाम् आलिःश्रेणी यत्र-ब॰ स॰ कप्—तलवार
- करिका—स्त्री॰—-—कर-अच्-ङीष्-कन्-टाप्-ह्रस्वः—खरोंच, नखाघात से हुआ घाव
- करिणी—स्त्री॰—-—कर-इनि-ङीप्—हथिनी
- करिन्—पुं॰—-—कर-इनि—हाथी
- करिन्—पुं॰,गण॰—-—कर-इनि—आठ की संख्या
- करीन्द्रः—पुं॰—करिन् - इन्द्रः—-—बड़ा हाथी, विशालकाय हाथी
- करीश्वरः—पुं॰—करिन् - ईश्वरः—-—बड़ा हाथी, विशालकाय हाथी
- करिवरः—पुं॰—करिन् - वरः—-—बड़ा हाथी, विशालकाय हाथी
- करिकुम्भः—पुं॰—करिन् - कुम्भः—-—हाथी के मस्तक का अग्र भाग
- करिगर्जितम्—नपुं॰—करिन् - गर्जितम्—-—हाथी की चिघाड़
- करिदन्तः—पुं॰—करिन् - दन्तः—-—हाथी दाँत
- करिपः—पुं॰—करिन् - पः—-—महावत
- करिपोतः—पुं॰—करिन् - पोतः—-—हाथी का बच्चा
- करिशावः—पुं॰—करिन् - शावः—-—हाथी का बच्चा
- करिशावकः—पुं॰—करिन् - शावकः—-—हाथी का बच्चा
- करिबन्धः—पुं॰—करिन् - बन्धः—-—स्तम्भ जिससे हाथी बाँधा जाय
- करिमाचलः—पुं॰—करिन् - माचलः—-—सिंह
- करिमुखः—पुं॰—करिन् - मुखः—-—गणेश का विशेषण
- करिवरः—पुं॰—करिन् - वरः—-—झंडा जो हाथी के द्वारा ले जाया जा रहा हो
- करीन्द्रः—पुं॰—करिन् - इन्द्रः—-—झंडा जो हाथी के द्वारा ले जाया जा रहा हो
- करिवैजयन्ती—स्त्री॰—करिन् - वैजयन्ती—-—झंडा जो हाथी के द्वारा ले जाया जा रहा हो
- करिस्कंधः—पुं॰—करिन् - स्कंधः—-—हाथियों का समूह
- करीरः—पुं॰—-—कॄ-ईरन्—बाँस का अंकुर
- करीरः—पुं॰—-—कॄ-ईरन्—अंकुर
- करीरः—पुं॰—-—कॄ-ईरन्—कांटेदार वृक्ष जो मरुस्थल में पैदा होता है तथा जिसे ऊँट खाते हैं
- करीरः—पुं॰—-—कॄ-ईरन्—पानी का घड़ा
- करीषः—पुं॰—-—कॄ-ईषन्—सूखा गोबर
- करीषम्—नपुं॰—-—कॄ-ईषन्—सूखा गोबर
- करीषाग्निः—पुं॰—करीषः - अग्निः—-—सूखे गोबर या कंडों की आग
- करीषङ्कषा—स्त्री॰—-—करीष-कष्-खच्,मुम्—प्रबल वायु या आँधी
- करीषिणी—स्त्री॰—-—करीष-इनि-ङीप्—सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी
- करुण—वि॰—-—करोति मनः आनुकूल्याय,कृ-उनन्- @ तारा॰—कोमल, मार्मिक, दयनीय, करुणाजनक, शोचनीय
- करुणः—पुं॰—-—करोति मनः आनुकूल्याय,कृ-उनन्- @ तारा॰—दया, अनुकम्पा, दयालुता
- करुणः—पुं॰—-—करोति मनः आनुकूल्याय,कृ-उनन्- @ तारा॰—करुण रस, शोक रञ्ज
- करुणमल्ली—स्त्री॰—करुण - मल्ली—-—मल्लिका का पौधा
- करुणविप्रलम्भः—पुं॰—करुण - विप्रलम्भः—-—वियुक्तावस्था में प्रेम-भावना
- करुणा—स्त्री॰—-—करुण-टाप्—अनुकम्पा, दया, दयालुता
- करुणार्द्र—वि॰—करुणा - आर्द्र—-—कोमल हृदय, दया से पसीजा हुआ, संवेदनशील
- करुणानिधिः—पुं॰—करुणा - निधिः—-—दया का भण्डार
- करुणापर—वि॰—करुणा - पर—-—अत्यन्त कृपालु
- करुणामय—वि॰—करुणा - मय—-—अत्यन्त कृपालु
- करुणाविमुख—वि॰—करुणा - विमुख—-—निर्दय, क्रूर
- करेटः—पुं॰—-—करे-अट्-अच्,अलुक् स॰—अँगुली का नाखून
- करेणुः—पुं॰—-—कृ-एणु-अथवा के मस्तके रेणुरस्य @ तारा॰—हाथी
- करेणुः—पुं॰—-—कृ-एणु-अथवा के मस्तके रेणुरस्य @ तारा१—कर्णिकार वृक्ष
- करेणुः—स्त्री॰—-—-—हथिनी
- करेणुः—स्त्री॰—-—-—पालकाप्य की माता
- करेणुभूः—पुं॰—करेणुः - भूः—-—हस्तिविज्ञान का प्रवर्तक पालकाप्य
- करेणुसुतः—पुं॰—करेणुः - सुतः—-—हस्तिविज्ञान का प्रवर्तक पालकाप्य
- करोटम्—स्त्री॰—-—क-रुट्-अच्—खोपड़ी
- करोटम्—स्त्री॰—-—क-रुट्-अच्—कटोरा या पात्र
- करोटिः—पुं॰—-—क-रुट्-इन्—खोपड़ी
- करोटिः—पुं॰—-—क-रुट्-इन्—कटोरा या पात्र
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—केकड़ा
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—कर्क राशि, चतुर्थ राशि
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—आग
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—जलकुम्भ
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—दर्पण
- कर्कः—पुं॰—-—कृ-क—सफेद घोड़ा
- कर्कटः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्—केकड़ा
- कर्कटः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्—कर्कराशि, चतुर्थ राशि
- कर्कटः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्—वृत्त, घेरा
- कर्कटकः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्,स्वार्थे कन् च—केकड़ा
- कर्कटकः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्,स्वार्थे कन् च—कर्कराशि, चतुर्थ राशि
- कर्कटकः—पुं॰—-—कर्क्-अटन्,स्वार्थे कन् च—वृत्त, घेरा
- कर्कटिः—स्त्री॰—-—कर-कट-इन्—एक प्रकार की ककड़ी
- कर्कटी—स्त्री॰—-—कर-कट-इन्,शक॰ पररूपम्;ङीप्—एक प्रकार की ककड़ी
- कर्कन्धुः—पुं॰—-—कर्कं कण्टकं दधाति-धा-कू—उन्नाव का पेड़
- कर्कन्धुः—पुं॰—-—कर्कं कण्टकं दधाति-धा-कू—इस वृक्ष का फल
- कर्कन्धू—पुं॰—-—कर्कं कण्टकं दधाति-धा-कू—उन्नाव का पेड़
- कर्कन्धू—पुं॰—-—कर्कं कण्टकं दधाति-धा-कू—इस वृक्ष का फल
- कर्कर—वि॰—-—कर्क-रा-क—कठोर, ठोस
- कर्कर—वि॰—-—कर्क-रा-क—दृढ़
- कर्करः—पुं॰—-—कर्क-रा-क—हथौड़ा
- कर्करः—पुं॰—-—कर्क-रा-क—दर्पण
- कर्करः—पुं॰—-—कर्क-रा-क—हड्डी भग्न टुकड़ा, खण्ड
- कर्करः—पुं॰—-—कर्क-रा-क—फीता या चमड़े की पेटी
- कर्कराक्षः—पुं॰—कर्कर - अक्षः—-—हिलती पूँछ वाला पक्षी
- कर्करांगः—पुं॰—कर्कर - अंगः—-—खंजन पक्षी
- कर्करांधुकः—पुं॰—कर्कर - अंधुकः—-—अंधा कुँआ
- कर्कराटुः—पुं॰—-—कर्कं हासं रटति प्रकाशयति,कर्क-रट्-कुञ्—तिरछी दृष्टि, कनखी, कटाक्ष
- कर्करालः—पुं॰—-—कर्कर-अल्-अच्—घुँघराले बाल, चूर्णकुन्तल
- कर्करी—स्त्री॰—-—कर्कर-ङीप्—ऐसा जलपात्र जिसकी तली में चलनी की भाँति छिद्र हों
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—कठोर, कड़ा
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—निष्ठुर, क्रूर, निर्दय
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—प्रचण्ड, प्रबल अत्यधिक
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—निराश
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—दुराचारी, दुश्चरित्र, स्वामिभक्ति से हीन
- कर्कश—वि॰—-—कर्क-श—समझ में न आने योग्य, दुर्बोध
- कर्कशः—पुं॰—-—कर्क-श—तलवार
- कर्कशिका—स्त्री॰—-—कर्कश-कन्-टाप्,इत्वम्—जंगली बेर, झड़बेर
- कर्कशी—स्त्री॰—-—कर्कश-ङीष् —जंगली बेर, झड़बेर
- कर्किः—पुं॰—-—कर्क्-इन्—कर्क राशि, चतुर्थ राशि
- कर्कोटः—पुं॰—-—कर्क्-ओट—आठ प्रधान साँपों में से एक
- कर्कोटकः—पुं॰—-—कर्क्-ओट,स्वार्थे कन्—आठ प्रधान साँपों में से एक
- कर्चूरः—पुं॰—-—कर्ज्-ऊर,पृषो॰ च आदेशः—एक प्रकार का सुगन्धित वृक्ष
- कर्चूरः—पुं॰—-—कर्ज्-ऊर,पृषो॰ च आदेशः—सोना
- कर्चूरः—पुं॰—-—कर्ज्-ऊर,पृषो॰ च आदेशः—हरताल
- कर्चूरम्—नपुं॰—-—कर्ज्-ऊर,पृषो॰ च आदेशः—सोना
- कर्चूरम्—नपुं॰—-—कर्ज्-ऊर,पृषो॰ च आदेशः—हरताल
- कर्ण्—चुरा॰ उभ॰ -<कर्णयति>- <कर्णयते>, <कर्णित>—-—-—छेद करना, सूराख करना
- कर्ण्—चुरा॰ उभ॰ -<कर्णयति>- <कर्णयते>, <कर्णित>—-—-—सुनना
- आकर्ण्—चुरा॰ उभ॰ -<कर्णयति>- <कर्णयते>, <कर्णित>—आ - कर्ण्—-—सुनना, ध्यान से सुनना
- समाकर्ण्—चुरा॰ उभ॰ -<कर्णयति>- <कर्णयते>, <कर्णित>—समा - कर्ण्—कर्ण्यते आकर्ण्यते अनेन-कर्ण्-अप्—सुनना, ध्यान से सुनना
- कर्णः—पुं॰—-—-—कान, कर्ण
- कर्णं दा——-—-—ध्यान से सुनना,ज्ञात होना-
- कर्णमागम्—नपुं॰—-—-—कान तक आना
- कर्णे कृ——-—-—कान में डालना
- कर्णे कथ्——-—-—कान में कहता है
- कर्णः—पुं॰—-—-—गंगाल का कड़ा
- कर्णः—पुं॰—-—-—नाव की पतवार
- कर्णः—पुं॰—-—-—त्रिभुज के समकोण के सामने की रेखा
- कर्णः—पुं॰—-—-—महाभारत में वर्णित कौरव पक्ष का एक महारथी
- कर्णाञ्जलिः—पुं॰—कर्णः - अञ्जलिः—-—बाहरी कान का श्रवण-मार्ग
- कर्णानुजः—पुं॰—कर्णः - अनुजः—-—युधिष्ठिर
- कर्णान्तिक—वि॰—कर्णः - अन्तिक—-—कान के निकट
- कर्णान्दुः—स्त्री॰—कर्णः - अन्दुः—-—कान का आभूषण, कान की बाली
- कर्णान्दू—स्त्री॰—कर्णः - अन्दू—-—कान का आभूषण, कान की बाली
- कर्णार्पणम्—नपुं॰—कर्णः - अर्पणम्—-—कान देना, ध्यान से सुनना,
- कर्णास्फालः—पुं॰—कर्णः - आस्फालः—-—हाथी के कानों की फड़फड़ाहट
- कर्णोत्तंस—वि॰—कर्णः - उत्तंस—-—कान का आभूषण
- कर्णोपकर्णिका—स्त्री॰—कर्णः - उपकर्णिका—-—अफवाह
- कर्णक्ष्वेडः—पुं॰—कर्णः - क्ष्वेडः— —कान में लगातार गूँज होना
- कर्णगोचर—वि॰—कर्णः - गोचर—-—जो कानों को सुनाई पड़े
- कर्णग्राहः—पुं॰—कर्णः - ग्राहः—-—कर्णधार
- कर्णजप—वि॰—कर्णः - जप—-—रहस्य की बात बताने वाला, पिशुन, मुखबिर
- कर्णजपः—पुं॰—कर्णः - जपः—-—झूठी निन्दा करना, चुगली करना, कलंक लगाना
- कर्णजापः—पुं॰—कर्णः - जापः—-—झूठी निन्दा करना, चुगली करना, कलंक लगाना
- कर्णजाहः—पुं॰—कर्ण - जाहः—-—कान की जड़
- कर्णजित्—पुं॰—कर्णः - जित्—-—कर्णविजेता, अर्जुन, तृतीय पाण्डव
- कर्णतालः—पुं॰—कर्णः - तालः—-—हाथी के कानों की फड़फड़ाहट, या उससे उत्पन्न आवाज
- कर्णधारः—पुं॰—कर्ण - धारः—-—मल्लाह, चालक
- कर्णधारिणी—स्त्री॰—कर्णः - धारिणी—-—हथिनी
- कर्णपथः—पुं॰—कर्णः - पथः—-—श्रवणपरास
- कर्णपरम्परा—स्त्री॰—कर्णः - परम्परा—-—एक कान से दूसरे कान, अनुश्रुति
- कर्णपालिः—पुं॰—कर्णः - पालिः—-—कान की लौ
- कर्णपाशः—पुं॰—कर्णः - पाशः—-—सुन्दर कान
- कर्णपूरः—पुं॰—कर्णः - पूरः—-—कान का आभूषण, कान की बाली
- कर्णपूरः—पुं॰—कर्णः - पूरः—-—अशोक वृक्ष
- कर्णपूरकः—पुं॰—कर्णः - पूरकः—-—कान की बाली
- कर्णपूरकः—पुं॰—कर्णः - पूरकः—-—कदम्ब वृक्ष
- कर्णपूरकः—पुं॰—कर्णः - पूरकः—-—अशोक वृक्ष
- कर्णपूरकः—पुं॰—कर्णः - पूरकः—-—नीलकमल
- कर्णप्रान्तः—पुं॰—कर्णः - प्रान्तः—-—कान की पाली
- कर्णभूषणम्—नपुं॰—कर्णः - भूषणम्—-—कान का गहना
- कर्णभूषा—स्त्री॰—कर्णः - भूषा—-—कान का गहना
- कर्णमूलम्—नपुं॰—कर्णः - मूलम्—-—कान की जड़
- कर्णपोटी—स्त्री॰—कर्णः - पोटी—-—दुर्गा का एक रूप
- कर्णवंशः—पुं॰—कर्णः - वंशः—-—बाँसों से बना ऊँचा मचान
- कर्णवर्जित—वि॰—कर्णः - वर्जित—-—बिना कानों का
- कर्णतः—पुं॰—कर्णः - तः—-—साँप
- कर्णविवरम्—नपुं॰—कर्णः - विवरम्—-—कान का श्रवण मार्ग
- कर्णविष्—स्त्री॰—कर्णः - विष्—-—घूघ, कान का मैल
- कर्णवेधः—पुं॰—कर्णः - वेधः—-—कानों का बींधना
- कर्णवेष्टः—पुं॰—कर्णः - वेष्टः—-—कान की बाली
- कर्णवेष्टनम्—नपुं॰—कर्णः - वेष्टनम्—-—कान की बाली
- कर्णशष्कुली—स्त्री॰—कर्णः - शष्कुली—-—कान का बाहरी भाग
- कर्णशूलः—पुं॰—कर्णः - शूलः—-—कानों में पीड़ा
- कर्णशूलम्—नपुं॰—कर्णः - शूलम्—-—कानों में पीड़ा
- कर्णश्रव—वि॰—कर्णः - श्रव—-—जो सुनाई दे, ऊँचा (स्वर)
- कर्णश्रावः—पुं॰—कर्णः - श्रावः—-—कानों का बहना, कान से मवाद निकलना
- कर्णसंश्रवः—पुं॰—कर्णः - संश्रवः—-—कानों का बहना, कान से मवाद निकलना
- कर्णसूः—स्त्री॰—कर्णः - सूः—-—कर्ण की माता, कुन्ती
- कर्णहीन—वि॰—कर्णः - हीन—-—कर्णरहित
- कर्णनः—पुं॰—कर्णः - नः—-—साँप
- कर्णाकर्णि—वि॰—-—कर्णे कर्णे गृहीत्वा प्रवृत्तं कथनम्-व्यतिहारे इच्,पूर्वस्य दीर्घश्च—कानों कान, एक कान से दूसरे कान
- कर्णाटः—पुं॰—-—कर्ण-अट्-अच्—भारत प्रायद्वीप के दक्षिण में एक प्रदेश
- कर्णाटी—स्त्रीo—-—कर्ण-अट्-अच्-ङीप्—उपर्युक्त देश की स्त्री
- कर्णिक—वि॰—-—कर्ण-इकन्—कानों वाला
- कर्णिक—वि॰—-—कर्ण-इकन्—पतवारधारी
- कर्णिकः—पुं॰—-—कर्ण-इकन्—केवट
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—कानों की बाली
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—गाँठ, गोल गिल्टी
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—कमल का फल, कँवलगट्टा
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—एक छोटी कूची या कलम
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—मध्यमा अंगुली
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—फल का डंठल
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—हाथी के सूँड़ की नोंक
- कर्णिका—स्त्री॰—-—कर्ण-इकन्-टाप्—खड़िया
- कर्णिकारः—पुं॰—-—कर्णि-कृ-अण्—कनियार का वृक्ष
- कर्णिकारः—पुं॰—-—कर्णि-कृ-अण्—कमल का फल, कँवलगट्टा
- कर्णिकारम्—नपुं॰—-—कर्णि-कृ-अण्—कनियार का फूल, अमलतास का फूल
- कर्णिन्—वि॰—-—कर्ण-इनि—कानों वाला
- कर्णिन्—वि॰—-—कर्ण-इनि—लम्बे कानों वाला
- कर्णिन्—वि॰—-—कर्ण-इनि—फल लगा हुआ
- कर्णिन्—पुं॰—-—कर्ण-इनि—गधा
- कर्णिन्—पुं॰—-—कर्ण-इनि—मल्लाह
- कर्णिन्—पुं॰—-—कर्ण-इनि—गाँठों से सम्पन्न बाण
- कर्णी—स्त्री॰—-—कर्ण-ङीष्—पंखदार या विशेष आकार का बाण
- कर्णी—स्त्री॰—-—कर्ण-ङीष्—चौर्यकला व विज्ञान के पिता मूलदेव की माता
- कर्णीरथः—पुं॰—कर्णी - रथः—-—बन्द डोली, स्त्रियों की सवारी, पालकी
- कर्णीसुतः—पुं॰—कर्णी - सुतः—-—चौर्यकला व विज्ञान के जन्मदाता मूलदेव
- कर्तनम्—नपुं॰—-—कृत्-ल्युट्—काटना, कतरना
- कर्तनम्—नपुं॰—-—कृत्-ल्युट्—रूई कातना
- कर्तनी—स्त्री॰—-—कर्तन्-ङीप्—कैंची
- कर्तरिका—स्त्री॰—-—-—कैंची
- कर्तरिका—स्त्री॰—-—-—चाकू
- कर्तरिका—स्त्री॰—-—-—खड्ग, छोटी तलवार
- कर्तरी—स्त्री॰—-—-—कैंची
- कर्तरी—स्त्री॰—-—-—चाकू
- कर्तरी—स्त्री॰—-—-—खड्ग, छोटी तलवार
- कर्तव्य—सं॰ कृ॰—-—कृ-तव्यत्—जो कुछ उचित हो या होना चाहिए
- कर्तव्य—सं॰ कृ॰—-—कृ-तव्यत्—जो काटना या कतरना चाहिए, नष्ट करने योग्य
- कर्तव्यम्—नपुं॰—-—कृ-तव्यत्—जो होना चाहिए, धर्म, आभार
- कर्तव्यता—स्त्री॰—-—कृ-तव्यत्-टाप्—जो होना चाहिए, धर्म, आभार
- कर्तृ—वि॰—-—कृ-तृच्—करने वाला, कर्ता, निर्माता, सम्पादक
- कर्तृ—वि॰—-—कृ-तृच्—अभिकर्ता
- कर्तृ—वि॰—-—कृ-तृच्—परब्रह्म
- कर्तृ—वि॰—-—कृ-तृच्—ब्रह्मा का विशेषण विष्णु या शिव
- कर्त्री—स्त्री॰—-—कर्तृ-ङीप्—चाकू
- कर्त्री—स्त्री॰—-—कर्तृ-ङीप्—कैंची
- कर्दः—पुं॰—-—कर्द्-अच्—कीचड़
- कर्दटः—पुं॰—-—कर्द-अट्-अच्,पररूपम्—कीचड़
- कर्दमः—पुं॰—-—कर्द्-अम—कीचड़, दलदल, पंक
- कर्दमः—पुं॰—-—कर्द्-अम—कूड़ा, मल
- कर्दमः—पुं॰—-—कर्द्-अम—पाप
- कर्दमम्—नपुं॰—-—कर्द्-अम—मांस
- कर्दमाटकः—पुं॰—कर्दमः - आटकः—-—मलपात्र, मलमार्ग आदि
- कर्पटः—पुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—पुराना, जीर्ण-शीर्ण या थेगली लगा कपड़ा
- कर्पटः—पुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—कपड़े का टुकड़ा, धज्जी
- कर्पटः—पुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—मटियाला या लाल रंग का कपड़ा
- कर्पटम्—नपुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—पुराना, जीर्ण-शीर्ण या थेगली लगा कपड़ा
- कर्पटम्—नपुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—कपड़े का टुकड़ा, धज्जी
- कर्पटम्—नपुं॰—-—कृ-विच्=कर् स च पटश्च कर्म॰ स॰—मटियाला या लाल रंग का कपड़ा
- कर्पटिक—वि॰—-—कर्पट-ठन्—जीर्ण-शीर्ण कपड़ों से ढका हुआ
- कर्पटिन्—वि॰—-—कर्पट-इनि—जीर्ण-शीर्ण कपड़ों से ढका हुआ
- कर्पणः——-—कृप्-ल्युट्—एक प्रकार का हथियार
- कर्परः—पुं॰—-—कृप्-अरन् बा॰—कड़ाह, कड़ाही
- कर्परः—पुं॰—-—कृप्-अरन् बा॰—बर्तन
- कर्परः—पुं॰—-—कृप्-अरन् बा॰—ठीकरा, टूटे बर्तन का टुकड़ा-जैसा कि घटकर्पर में
- कर्परः—पुं॰—-—कृप्-अरन् बा॰—खोपड़ी
- कर्परः—पुं॰—-—कृप्-अरन् बा॰—एक प्रकार का हथियार
- कर्पासः—पुं॰—-—कृ-पास—कपास का वृक्ष
- कर्पासम्—नपुं॰—-—कृ-पास—कपास का वृक्ष
- कर्पासी—स्त्री॰—-—कृ-पास,ङीष्—कपास का वृक्ष
- कर्पूरः—पुं॰—-—कृप्-ऊर—कपूर
- कर्पूरम्—नपुं॰—-—कृप्-ऊर—कपूर
- कर्पूरखण्डः—पुं॰—कर्पूरः - खण्डः—-—कपूर का खेत
- कर्पूरखण्डः—पुं॰—कर्पूरः - खण्डः—-—कपूर का टुकड़ा
- कर्पूरतैलम्—नपुं॰—कर्पूरः - तैलम्—-—कपूर का तेल
- कर्फरः—पुं॰—-—कृ-विच्=कर्,फल-अच्,रस्य लः,कीर्यमाणः फलः प्रतिबिम्बो यत्र —दर्पण
- कर्वु—वि॰—-—कर्व्-उन्—रंगबिरंगा, चित्तीदार
- कर्बु—वि॰—-—कर्ब्-उन्—रंगबिरंगा, चित्तीदार
- कर्बुर—वि॰—-—कर्ब्-उरच्—रंगबिरंगा, चितकबरा
- कर्बुर—वि॰—-—कर्ब्-उरच्—कबूतर के रंग का, सफेद सा, भूरा
- कर्वुर—वि॰—-—कर्व्-उरच्—रंगबिरंगा, चितकबरा
- कर्वुर—वि॰—र्वु—कर्व्-उरच्—कबूतर के रंग का, सफेद सा, भूरा
- कर्बुरः—पुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—विचित्र रंग
- कर्बुरः—पुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—पाप
- कर्बुरः—पुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—भूत, पिशाच
- कर्बुरः—पुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—धतूरे का पौधा
- कर्बुरः—पुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—सोना, जल
- कर्वुरः—पुं॰—-—कर्व्-उरच्—विचित्र रंग
- कर्वुरः—पुं॰—-—कर्व्-उरच्—पाप
- कर्वुरः—पुं॰—-—कर्व्-उरच्—भूत, पिशाच
- कर्वुरः—पुं॰—-—कर्व्-उरच्—धतूरे का पौधा
- कर्वुरः—पुं॰—-—कर्व्-उरच्—सोना, जल
- कर्बुरम्—नपुं॰—-—कर्व्(र्ब्)-उरच्—सोना, जल
- कर्वुरम्—नपुं॰—-—कर्व्-उरच्—सोना, जल
- कर्बुरित—वि॰—-—कर्बुर-इतच्—रंगबिरंगा
- कर्मठ—वि॰—-—कर्मन्-अठच्—कार्यप्रवीण, चतुर
- कर्मठ—वि॰—-—कर्मन्-अठच्—परिश्रमी
- कर्मठ—वि॰—-—कर्मन्-अठच्—केवल धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न
- कर्मठः—पुं॰—-—कर्मन्-अठच्—यज्ञ निदेशक
- कर्मण्य—वि॰—-—कर्मन्-यत्—कुशल, चतुर
- कर्मण्या—स्त्री॰—-—कर्मन्-यत्-टाप्—मजदूरी
- कर्मण्यम्—नपुं॰—-—कर्मन्-यत्—सक्रियता
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—कृत्य, कार्य, कर्म
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—कार्यान्वयन, सम्पादन
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—व्यवसाय, पद, कर्तव्य
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—धार्मिक कृत्य
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—विशिष्ट कृत्य, नैतिक कर्तव्य
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—धार्मिक कृत्यों का अनुष्ठान(कर्मकाण्ड) जो ब्रह्मज्ञान या कल्पनाप्रवण धर्म का विरोधी है
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—फल, परिणाम
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—नैसर्गिक या सक्रिय सम्पत्ति
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—भाग्य, पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों का फल
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—कर्म का उद्देश्य
- कर्मन्—नपुं॰—-—कृ-मनिन्—गति या कर्म जो सात द्रव्यों में एक माना जाता है
- कर्माक्षम—वि॰—कर्मन् - अक्षम—-—कार्य करने में असमर्थ
- कर्माङ्गम्—नपुं॰—कर्मन् - अङ्गम्—-—कार्य का अंश, यज्ञीय कृत्य का भाग
- कर्माधिकार—वि॰—कर्मन् - अधिकार—-—धर्मकृत्यों को सम्पन्न करने का अधिकार
- कर्मानुरूप—वि॰—कर्मन् - अनुरूप—-—किसी विशेष कार्य या पद के अनुसार
- कर्मानुरूप—वि॰—कर्मन् - अनुरूप—-—पूर्वजन्म में किये हुए कर्मों के अनुसार
- कर्मान्तः—पुं॰—कर्मन् - अन्तः—-—किसी कार्य या व्यवसाय की समाप्ति
- कर्मान्तः—पुं॰—कर्मन् - अन्तः—-—कार्य, व्यवसाय, कार्य सम्पादन
- कर्मान्तः—पुं॰—कर्मन् - अन्तः—-—कोष्ठागार, धान्यागार-
- कर्मान्तः—पुं॰—कर्मन् - अन्तः—-—जुती हुई भूमि
- कर्मान्तरम्—नपुं॰—कर्मन् - अन्तरम्—-—कार्य भिन्नता या विरोध
- कर्मान्तरम्—नपुं॰—कर्मन् - अन्तरम्—-—तपस्या, प्रायश्चित
- कर्मान्तरम्—नपुं॰—कर्मन् - अन्तरम्—-—किसी धार्मिक कृत्य का स्थगन
- कर्मान्तिक—वि॰—कर्मन् - अन्तिक—-—अन्तिम
- कर्मकः—पुं॰—कर्मन् - कः—-—सेवक, कार्मिक
- कर्माजीवः—पुं॰—कर्मन् - आजीवः—-—किसी पेशे से अपनी जीविका चलाने वाला
- कर्मात्मन्—वि॰—कर्मन् - आत्मन्—-—कार्य नियमों से युक्त, सक्रिय
- कर्मात्मन्—पुं॰—कर्मन् - आत्मन्—-—आत्मा
- कर्मेन्द्रियम्—नपुं॰—कर्मन् - इन्द्रियम्—-—काम करने वाली इन्द्रियाँ जो ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न हैं
- कर्मोदारम्—नपुं॰—कर्मन् - उदारम्—-—साहसिक या उदार कार्य, उच्चाशयता, शक्ति
- कर्मोद्युक्त—वि॰—कर्मन् - उद्युक्त—-—व्यस्त, संलग्न, सक्रिय, सोत्साह
- कर्मकरः—पुं॰—कर्मन् - करः—-—भाड़े का मजदूर
- कर्मकरः—पुं॰—कर्मन् - करः—-—यम
- कर्मकर्तृ—वि॰—कर्मन् - कर्तृ—-—कर्ता जो साथ ही साथ कर्म भी है
- कर्मकाण्डः—पुं॰—कर्मन् - काण्डः—-—वेद का वह विभाग जो यज्ञीय कृत्यों, संस्कारों तथा उनके उचित अनुष्ठान से उत्पन्न फल से सम्बन्ध रखता है
- कर्मकाण्डम्—नपुं॰—कर्मन् - काण्डम्—-—वेद का वह विभाग जो यज्ञीय कृत्यों, संस्कारों तथा उनके उचित अनुष्ठान से उत्पन्न फल से सम्बन्ध रखता है
- कर्मकारः—पुं॰—कर्मन् - कारः—-—जो किसी व्यवसाय को करता है, कारीगर, शिल्पकार
- कर्मकारः—पुं॰—कर्मन् - कारः—-—कोई भी मजदूर
- कर्मकारः—पुं॰—कर्मन् - कारः—-—लुहार
- कर्मकारः—पुं॰—कर्मन् - कारः—-—साँड़
- कर्मकारिन्—वि॰—कर्मन् - कारिन्—-—मजदूर, कारीगर
- कर्मकार्मुकः—पुं॰—कर्मन् - कार्मुकः—-—एक मजबूत धनुष
- कर्मकार्मुकम्—नपुं॰—कर्मन् - कार्मुकम्—-—एक मजबूत धनुष
- कर्मकीलकः—पुं॰—कर्मन् - कीलकः—-—धोबी
- कर्मक्षम—वि॰—कर्मन् - क्षम—-—कोई कार्य या कर्तव्य सम्पादन करने के योग्य
- कर्मक्षेत्रम्—नपुं॰—कर्मन् - क्षेत्रम्—-—धार्मिक कृत्यों की भूमि अर्थात् भारतवर्ष
- कर्मगृहीत—वि॰—कर्मन् - गृहीत—-—कार्य करते समय पकड़ा हुआ
- कर्मघातः—पुं॰—कर्मन् - घातः—-—कार्य को छोड़ बैठना या स्थगित कर देना
- कर्मचण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चण्डालः—-—काम करने में नीच, नीच या निकृष्ट कर्म करने वाला व्यक्ति, वशिष्ठ उनके प्रकारों का उल्लेख करता है
- कर्मचण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चण्डालः—-—जो अत्याचार पूर्ण कार्य करता है
- कर्मचण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चण्डालः—-—राहु
- कर्मचाण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चाण्डालः—-—काम करने में नीच, नीच या निकृष्ट कर्म करने वाला व्यक्ति, वशिष्ठ उनके प्रकारों का उल्लेख करता है
- कर्मचाण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चाण्डालः—-—जो अत्याचार पूर्ण कार्य करता है
- कर्मचाण्डालः—पुं॰—कर्मन् - चाण्डालः—-—राहु
- कर्मचोदना—स्त्री॰—कर्मन् - चोदना—-—यज्ञानुष्ठान में प्रेरित करने वाला प्रयोजन
- कर्मचोदना—स्त्री॰—कर्मन् - चोदना—-—धार्मिक कृत्य की विधि
- कर्मज्ञः—पुं॰—कर्मन् - ज्ञः—-—धार्मिक अनुष्ठानों से परिचित
- कर्मत्यागः—पुं॰—कर्मन् - त्यागः—-—सांसारिक कर्तव्य और धर्मानुष्ठान को छोड़ देना
- कर्मदुष्ट—वि॰—कर्मन् - दुष्ट—-—कार्य करने में भ्रष्ट, दुष्ट, दुराचारी, अनादरणीय
- कर्मदोषः—पुं॰—कर्मन् - दोषः—-—पाप, दुर्व्यसन
- कर्मदोषः—पुं॰—कर्मन् - दोषः—-—त्रुटि, दोष भारी भूल
- कर्मदोषः—पुं॰—कर्मन् - दोषः—-—मानवी कृत्यों के दुष्परिणाम
- कर्मदोषः—पुं॰—कर्मन् - दोषः—-—निन्द्य आचरण
- कर्मधारयः—पुं॰—कर्मन् - धारयः—-—समास, तत्पुरुष का एक भेद
- कर्मध्वंसः—पुं॰—कर्मन् - ध्वंसः—-—धर्मानुष्ठानों से उत्पन्न फल का नाश
- कर्मध्वंसः—पुं॰—कर्मन् - ध्वंसः—-—निराशा
- कर्मनामन्—स्त्री॰—कर्मन् - नामन्—-—कृदन्त की संज्ञा
- कर्मनाशा—स्त्री॰—कर्मन् - नाशा—-—काशी और बिहार के मध्य बहने वाली एक नदी
- कर्मनिष्ठ—वि॰—कर्मन् - निष्ठ—-—धर्मानुष्ठान के सम्पादन में संलग्न
- कर्मपथः—पुं॰—कर्मन् - पथः—-—कार्य की दिशा या स्रोत
- कर्मपथः—पुं॰—कर्मन् - पथः—-—धर्मानुष्ठान का (कर्म) मार्ग
- कर्मपाकः—पुं॰—कर्मन् - पाकः—-—कार्यों की परिपक्वावस्था, पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का फल
- कर्मप्रवचनीय—वि॰—कर्मन् - प्रवचनीय—-—कुछ उपसर्ग तथा अव्यय जो क्रियायों के साथ सम्बद्ध न होकर केवल संज्ञाओं का शासन करते हैं
- कर्मन्यासः—पुं॰—कर्मन् - न्यासः—-—धर्मानुष्ठानों के फलों का परित्याग
- कर्मफलम्—नपुं॰—कर्मन् - फलम्—-—पूर्वजन्म में किये हुए कर्मों का फल या पारितोषिक
- कर्मबन्धः—पुं॰—कर्मन् - बन्धः—-—जन्म-मरण का बन्धन, धर्मानुष्ठानों के फल चाहे शुभ हों या अशुभ
- कर्मबन्धनम्—नपुं॰—कर्मन् - बन्धनम्—-—जन्म-मरण का बन्धन, धर्मानुष्ठानों के फल चाहे शुभ हों या अशुभ
- कर्मभूः—स्त्री॰—कर्मन् - भूः—-—धर्मानुष्ठान की भूमि-अर्थात् भारतवर्ष
- कर्मभूः—स्त्री॰—कर्मन् - भूः—-—जुती हुई भूमि
- कर्मभूमिः—स्त्री॰—कर्मन् - भूमिः—-—धर्मानुष्ठान की भूमि-अर्थात् भारतवर्ष
- कर्मभूमिः—स्त्री॰—कर्मन् - भूमिः—-—जुती हुई भूमि
- कर्ममीमांसा—स्त्री॰—कर्मन् - मीमांसा—-—संस्कारादिक अनुष्ठानों का विचारविमर्श या मीमांसा
- कर्ममूलम्—नपुं॰—कर्मन् - मूलम्—-—कुश नामक पवित्र घास
- कर्मयुगम्—नपुं॰—कर्मन् - युगम्—-—चौथायुग
- कर्मयोगः—पुं॰—कर्मन् - योगः—-—सांसारिक तथा धार्मिक अनुष्ठानों का सम्पादन
- कर्मयोगः—पुं॰—कर्मन् - योगः—-—सक्रिय चेष्टा, उद्योग
- कर्मवशः—पुं॰—कर्मन् - वशः—-—भाग्य जो पूर्वजन्म में किये गये कार्यों का अनिवार्य परिणाम है
- कर्मविपाकः—पुं॰—कर्मन् - विपाकः—-—कर्मपाक
- कर्मशाला—स्त्री॰—कर्मन् - शाला—-—कारखाना
- कर्मशील—वि॰—कर्मन् - शील—-—कर्मवीर, उद्योगी, परिश्रमी
- कर्मशूर—वि॰—कर्मन् - शूर—-—कर्मवीर, उद्योगी, परिश्रमी
- कर्मसंग—वि॰—कर्मन् - संग—-—सांसारिक कर्तव्य तथा उनके फलों में आसक्ति
- कर्मसचिवः—पुं॰—कर्मन् - सचिवः—-—मंत्री
- कर्मसंन्यासिकः—पुं॰—कर्मन् - संन्यासिकः—-—धर्मात्मा पुरुष जिसने प्रत्येक सांसारिक कार्य से विरक्ति पा ली है
- कर्मसंन्यासिन—पुं॰—कर्मन् - संन्यासिन—-—वह संन्यासी जो कर्मफल का ध्यान न करत हुए धर्मानुष्ठानम् क सम्पादन करता है
- कर्मसाक्षिन्—पुं॰—कर्मन् - साक्षिन्—-—आँखों देखा गवाह, प्रत्यक्षदर्शी साक्षी
- कर्मसाक्षिन्—पुं॰—कर्मन् - साक्षिन्—-—जो मनुष्य के शुभाशुभ कर्मों को प्रत्यक्ष देखता रहता है
- कर्मसिद्धिः—स्त्री॰—कर्मन् - सिद्धिः—-—अभीष्ट कार्य की सिद्धि, सफलता
- कर्मस्थानम्—नपुं॰—कर्मन् - स्थानम्—-—सार्वजनिक कार्यालय, काम करने का स्थान
- कर्मन्दिन्—पुं॰—-—कर्मन्द-इनि—संन्यासी, धार्मिक भिक्षु
- कर्मारः—पुं॰—-—कर्मन्-ऋ-अण्—लुहार
- कर्मिन्—वि॰—-—कर्मन्-इनि—कार्य करने वाला, क्रियाशील, कार्यरत
- कर्मिन्—वि॰—-—कर्मन्-इनि—किसी कार्य या व्यवसाय में व्यापृत
- कर्मिन्—वि॰—-—कर्मन्-इनि—जो फल की इच्छा से धर्मानुष्ठान करता है
- कर्मिन्—पुं॰—-—कर्मन्-इनि—शिल्पकार, कारीगर
- कर्मिष्ठ—वि॰—-—कर्मिन्-इष्ठन्,इनो लुक्—व्यापारकुशल, चतुर, परिश्रमी
- कर्वटः—पुं॰—-—कर्व-अटन्—बाजार, मण्डी या किसी जिले का मुख्य नगर
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—रेखा खींचना, घसीटना, खींचना
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—आकर्षण
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—हल जोतना
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—हल-रेखा, खाई
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—खँरोच
- कर्षः—पुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—चाँदी या सोने का १६ माशे का वजन
- कर्षम्—नपुं॰—-—कृष्-अच्,घञ् वा—चाँदी या सोने का १६ माशे का वजन
- कार्षापण—वि॰—कर्षः - आपण—-—कार्षापण
- कर्षक—वि॰—-—कृष्-ण्वुल्—खींचने वाला
- कर्षकः—पुं॰—-—कृष्-ण्वुल्—किसान, खेतिहर
- कर्षणम्—नपुं॰—-—कृष्-ल्युट्—रेखा खींचना, घसीटना, खींचना, झुकाना,
- कर्षणम्—नपुं॰—-—कृष्-ल्युट्—आकर्षण
- कर्षणम्—नपुं॰—-—कृष्-ल्युट्—हल जोतना, खेती करना
- कर्षणम्—नपुं॰—-—कृष्-ल्युट्—क्षति पहुँचाना, कष्ट देना, पीड़ित करना
- कर्षिणी—स्त्री॰—-—कृष्-णिनि-ङीप्—लगाम का दहाना
- कर्षूः—स्त्री॰—-—कृष्-ऊ—हल-रेखा, कूँड़
- कर्षूः—स्त्री॰—-—कृष्-ऊ—नदी
- कर्षूः—पुं॰—-—कृष्-ऊ—नहर
- कर्षूः—पुं॰—-—कृष्-ऊ—सूखे कंडों की आग
- कर्षूः—पुं॰—-—कृष्-ऊ—कृषि, खेती
- कर्षूः—पुं॰—-—कृष्-ऊ—जीविका
- कर्हिचित्—अव्य॰—-—किम्-र्हिल्,कादेशः-चित्—किसी समय
- कल्—भ्वा॰ आ॰- <कलत>, <कलित>—-—-—गिनना
- कल्—भ्वा॰ आ॰- <कलत>, <कलित>—-—-—शब्द करना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—धारण करना, रखना, ले जाना, संभालना, पहनना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—गिनना, हिसाब लगना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—धारण करना, लेना, रखना, अधिकार में रखना, अधिकार में करना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—जानना समझना, पर्यवेक्षण, ध्यान देना, सोचना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—सोचना, आदर करना, ख्याल करना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—सहन करना, प्रभावित होना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—करना, सम्पादन करना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—जाना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—-—-—आसक्त होना, लेट जाना, सुसज्जित होना
- आकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—आ - कल्—-—पकड़ना, ग्रहण करना
- आकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—आ - कल्—-—ख्याल करना, आदर करना, जानना, ध्यान देना
- आकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—आ - कल्—-—बाँधना, जकड़ना, बन्धनयुक्त होना, रोकना या इकट्ठे पकड़ना
- आकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—आ - कल्—-—प्रसार करना, फेंकना
- आकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—आ - कल्—-—हिलाना
- परिकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—परि - कल्—-—जानना, समझना, खयाल करना, आदर करना
- परिकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—परि - कल्—-—जानकार होना, याद करना
- विकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—वि - कल्—-—अपांग करना, विकलांग करना, विकृत करना
- संकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—सम् - कल्—-—जोड़ना, एकत्र करना
- संकल्—चुरा॰ उभ॰-<कलयति>, <कलयते> ,< कलित>—सम् - कल्—-—खयाल करना, आदर करना
- कल्—चुरा॰ उभ॰-<कालयति> ,<कालयते> ,< कलित>—-—-—प्रोत्साहित करना, हाँकना, प्रेरणा देना
- कल—वि॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—मधुर, और अस्पष्ट
- कल—वि॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—मन्द मधुर (स्वर)
- कल—वि॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—कोलाहल करने वाला, झनझनाता हुआ, टनटन करता हुआ
- कल—वि॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—दुर्बल
- कल—वि॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—अनपका, कच्चा
- कलः—पुं॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—मन्द या मृदु और अस्पष्ट स्वर
- कलम्—नपुं॰—-—कल्(कड्)-घञ्,अवृद्धिः,डलयोरभेदः—वीर्य
- कलाङ्कुरः—पुं॰—कल - अङ्कुरः—-—सारस पक्षी
- कलानुनादिन्—पुं॰—कल - अनुनादिन्—-—चिड़िया
- कलानुनादिन्—पुं॰—कल - अनुनादिन्—-—मधुमक्खी
- कलानुनादिन्—पुं॰—कल - अनुनादिन्—-—चातक पक्षी
- कलाविकलः—पुं॰—कल - अविकलः—-—चिड़ा
- कलालापः—पुं॰—कल - आलापः—-—मधुर गुंजार
- कलालापः—पुं॰—कल - आलापः—-—मधुर और रुचिकर प्रवचन
- कलालापः—पुं॰—कल - आलापः—-—मधुमक्खी
- कलोत्ताल—वि॰—कल - उत्ताल—-—ऊँचा, तीक्ष्ण
- कलकण्ठ—वि॰—कल - कण्ठ—-—मधुर कण्ठ वाला
- कलकण्ठः—पुं॰—कल - कण्ठः—-—कोयल
- कलकण्ठः—पुं॰—कल - कण्ठः—-—हंस, राजहंस
- कलकण्ठः—पुं॰—कल - कण्ठः—-—कबूतर
- कलकलः—पुं॰—कल - कलः—-—भीड़ की मर्मरध्वनि या भनभनाहट
- कलकलः—पुं॰—कल - कलः—-—अस्पष्ट या संक्षुब्ध ध्वनि
- कलकलः—पुं॰—कल - कलः—-—शिव
- कलकूजिकाः—स्त्री—कल - कूजिकाः—-—छिनाल स्त्री
- कलकूणिका—स्त्री—कल - कूणिका—-—छिनाल स्त्री
- कलघोषः—पुं॰—कल - घोषः—-—लम्पट या छिनाल स्त्री
- कलकोयल—वि॰—कल - कोयल—-—लम्पट या छिनाल स्त्री
- कलतूलिका—स्त्री—कल - तूलिका—-—लम्पट या छिनाल स्त्री
- कलधौतम्—नपुं॰—कल - धौतम्—-—चाँदी
- कलधौतम्—नपुं॰—कल - धौतम्—-—सोना
- कललिपिः—स्त्री—कल - लिपिः—-—सुनहरी पाण्डुलिपि की जगमगाहट
- कललिपिः—स्त्री—कल - लिपिः—-—स्वर्णाक्षर
- कलध्वनिः—पुं॰—कल - ध्वनिः—-—मन्द मधुर स्वर
- कलभाषणम्—नपुं॰—कल - भाषणम्—-—तुतलाना, बालकलरव
- कलरवः—पुं॰—कल - रवः—-—मन्द मधुर ध्वनि
- कलरवः—पुं॰—कल - रवः—-—कबूतर
- कलरवः—पुं॰—कल - रवः—-—मोर
- कलरवः—पुं॰—कल - रवः—-—कोयल
- कलनादः—पुं॰—कल - नादः—-—मन्द मधुर ध्वनि
- कलनादः—पुं॰—कल - नादः—-—कबूतरी
- कलनादः—पुं॰—कल - नादः—-—कोयल
- कलहंसः—पुं॰—कल - हंसः—-—हंस, राजहंस
- कलहंसः—पुं॰—कल - हंसः—-—बत्तख, पुंकारण्डव
- कलहंसः—पुं॰—कल - हंसः—-—परमात्मा
- कलङ्कः—कर्म॰ स॰—-—कल्-क्विप्,कल् चासौ अङकश्च —धब्बा, चिह्न, काला धब्बा
- कलङ्कः—कर्म॰ स॰—-—कल्-क्विप्,कल् चासौ अङकश्च —दाग, बट्टा, गर्हा, बदनामी
- कलङ्कः—कर्म॰ स॰—-—कल्-क्विप्,कल् चासौ अङकश्च —अपराध, दोष
- कलङ्कः—कर्म॰ स॰—-—कल्-क्विप्,कल् चासौ अङकश्च —लोहे का जंग, मोर्चा
- कलङ्कषः—पुं॰—-—करेण कषति हिनस्ति-कल-कष्-खच्,मुम्—सिंह, शेर
- कलङ्कितः—वि॰—-—कलङ्क-इतच्—धब्बेदार, लांछित, बदनाम
- कलङ्कुरः—पुं॰—-—कं जलं लङ्कयति भ्रामयति,क-लङ्क-णिच्-उरच्—जलावर्त, भंवर
- कलञ्जः—पुं॰—-—कं लञ्जयति-क-लञ्ज्-अण्—पक्षी
- कलञ्जः—पुं॰—-—कं लञ्जयति-क-लञ्ज्-अण्—विषैले शस्त्र से आहत मृग आदि जन्तु
- कलञ्जः—पुं॰—-—कं लञ्जयति-क-लञ्ज्-अण्—ऐसे जन्तु का मांस
- कलञ्जम्—नपुं॰—-—कं लञ्जयति-क-लञ्ज्-अण्—ऐसे जन्तु का मांस
- कलत्रम्—नपुं॰—-—गड्-अत्रन्,गकारस्य ककारः,डलयोरभेदः—पत्नी
- कलत्रम्—नपुं॰—-—गड्-अत्रन्,गकारस्य ककारः,डलयोरभेदः—कूल्हा या नितम्ब
- कलत्रम्—नपुं॰—-—गड्-अत्रन्,गकारस्य ककारः,डलयोरभेदः—राजकीय दुर्ग
- कलनम्—नपुं॰—-—कल्-ल्युट्—धब्बा, चिह्न
- कलनम्—नपुं॰—-—कल्-ल्युट्—विकार, अपराध, दोष
- कलनम्—नपुं॰—-—कल्-ल्युट्—ग्रहण करना, पकड़ना, थामना
- कलनम्—नपुं॰—-—कल्-ल्युट्—जानना, समझना, बोध पाना
- कलनम्—नपुं॰—-—कल्-ल्युट्—ध्वनि करना
- कलना—स्त्री॰—-—कल्-ल्युट्-टाप्—लेना, पकड़ना, थामना-काल कलना
- कलना—स्त्री॰—-—कल्-ल्युट्-टाप्—करना, क्रियान्वयन
- कलना—स्त्री॰—-—कल्-ल्युट्-टाप्—वश्यता
- कलना—स्त्री॰—-—कल्-ल्युट्-टाप्—समझ, समवबोध
- कलना—स्त्री॰—-—कल्-ल्युट्-टाप्—पहनना, वसन-धारण करना
- कलन्दिका—स्त्री॰—-—कल-दा-क-कन्-टाप्,इत्वम्,पृषो॰ मुम्—बुद्धिमत्ता, प्रज्ञा
- कलभः—पुं॰—-—कल्-अभच्,करेण शुण्डया भाति भा-क रस्य लत्वम्- @ तारा॰—हाथी का बच्चा, वन पशु-शावक
- कलभः—पुं॰—-—कल्-अभच्,करेण शुण्डया भाति भा-क रस्य लत्वम्- @ तारा१—तीस वर्ष का हाथी ऊँट का बच्चा, जन्तुशावक
- कलमः—पुं॰—-—कल्-अम्—चावल
- कलमः—पुं॰—-—कल्-अम्—लेखनी, काने की कलम
- कलमः—पुं॰—-—कल्-अम्—चोर, दुष्ट, बदमाश
- कलम्बः—पुं॰—-—कल्-अम्बच्—तीर
- कलम्बः—पुं॰—-—कल्-अम्बच्—कदम्ब वृक्ष
- कलम्बुटम्—नपुं॰—-—क-लम्ब्-उटन्—मक्खन नवनीत
- कललः—पुं॰—-—कल्-कलच्—भ्रूण, गर्भाशय
- कललम्—नपुं॰—-—कल्-कलच्—भ्रूण, गर्भाशय
- कलविङ्कः—पुं॰—-—कल्-वङ्क्-अच्,पृषो॰इत्वम्—चिड़िया
- कलविङ्कः—पुं॰—-—कल्-वङ्क्-अच्,पृषो॰इत्वम्—धब्बा, दाग या लाञ्छन
- कलविङ्गः—पुं॰—-—कल्-वङ्क्-अच्,पृषो॰इत्वम्—चिड़िया
- कलविङ्गः—पुं॰—-—कल्-वङ्क्-अच्,पृषो॰इत्वम्—धब्बा, दाग या लाञ्छन
- कलशः —पुं॰—-—केन जलेन लशति- @ तारा॰—घड़ा जलपात्र, करवा, तश्तरी
- कलसः—पुं॰—-—केन जलेन लसति- @ तारा॰—घड़ा जलपात्र, करवा, तश्तरी
- कलशम्—नपुं॰—-—केन जलेन लशति- @ तारा॰—घड़ा जलपात्र, करवा, तश्तरी
- कलसम्—नपुं॰—-—केन जलेन लसति- @ तारा॰—घड़ा जलपात्र, करवा, तश्तरी
- कलशजन्मन्—पुं॰—कलश - जन्मन्—-—अगस्त्य मुनि
- कलशोद्भवः—पुं॰—कलश - उद्भवः—-—अगस्त्य मुनि
- कलशी—स्त्री॰—-—कलश-ङीष्—घड़ा, करवा
- कलसी—स्त्री॰—-—कलस-ङीष्—घड़ा, करवा
- कलशीसुतः—पुं॰—कलशी - सुतः—-—अगस्त्य
- कलहः—पुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—झगड़ा, लड़ाई-भिड़ाई
- कलहः—पुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—संग्राम, युद्ध
- कलहः—पुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—दाँव, धोखा, मिथ्यापन
- कलहः—पुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—हिंसा, ठोकर मारना, पीटना आदि
- कलहम्—नपुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—झगड़ा, लड़ाई-भिड़ाई
- कलहम्—नपुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—संग्राम, युद्ध
- कलहम्—नपुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—दाँव, धोखा, मिथ्यापन
- कलहम्—नपुं॰—-—कलं कामं हन्ति-हन्-ड @ तारा॰—हिंसा, ठोकर मारना, पीटना आदि
- कलहान्तरिता—स्त्री॰—कलहः - अन्तरिता—-—अपने प्रेमी से झगड़ा हो जाने के कारण उससे वियुक्त
- कलहापहृत—वि॰—कलहः - अपहृत—-—बलपूर्वक अपहरण किया गया
- कलहप्रिय—वि॰—कलहः - प्रिय—-—जो लड़ाई-झगड़ा कराने में प्रसन्न होता है
- कलहप्रियः—पुं॰—कलहः - प्रियः—-—नारद की उपाधि
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—किसी वस्तु का छोटा खण्ड, टुकड़ा, लवमात्र
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—चन्द्रमा की एक रेखा
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—मूलधन पर ब्याज
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—विविध प्रकार से आकलित समय का प्रभाग
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—राशि के तीसवें भाग का साठवाँ अंश, किसी कोटि का एक अंश
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—प्रयोगात्मक कला
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—कुशलता, मेधाविता
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—जालसाजी, धोखादेही
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—मात्राछन्द
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—किश्ती
- कला—स्त्री॰—-—कल्-कच्-टाप्—रजःस्राव
- कलान्तरम्—नपुं॰—कला - अन्तरम्—-—दूसरी रेखा
- कलान्तरम्—नपुं॰—कला - अन्तरम्—-—ब्याज, लाभ
- कलायनः—पुं॰—कला - अयनः—-—कलाबाज, नट, तलवार की तीक्ष्ण धार पर नाचने वाला
- कलाकुल—वि॰—कला - आकुलम्—-—भंयकर विष
- कलाकेलि—वि॰—कला - केलि—-—छबीला, विलासी
- कलाकेलिः—पुं॰—कला - केलिः—-—काम का विशेषण
- कलाक्षयः—पुं॰—कला - क्षयः—-—क्षीण होना
- कलाधरः—पुं॰—कला - धरः—-—चन्द्रमा
- कलानिधिः—पुं॰—कला - निधिः—-—चन्द्रमा
- कलापूर्णः—पुं॰—कला - पूर्णः—-—चन्द्रमा
- कलाभृत्—पुं॰—कला - भृत्—-—चन्द्रमा
- कलादः—पुं॰—-—कला-आ-दा-क—सुनार
- कलादकः—पुं॰—-—कला-आ-दा-क—सुनार
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—जत्था, गठरी
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—मोतियों का हार
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—वस्तुओं का समूह या सञ्चय
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—मोर की पूँछ
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—स्त्री की मेखला या करनी
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—आभूषण
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—हाथी के गले का रस्सा
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—तरकस
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—बाण
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—चन्द्रमा
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—चलता-पुरजा, बुद्धिमान
- कलापः—पुं॰—-—कला-आप्-अण्,घञ्—एक ही छन्द में लिखी गई कविता
- कलापी—स्त्री॰—-—-—घास का गट्ठर
- कलापकम्—नपुं॰—-—कलाप-कन्—एक ही विषय पर लिखे गये चार श्लोकों का समूह
- कलापकम्—नपुं॰—-—कलाप-कन्—वह ऋण जिसका परिशोध उस समय किया जाय जब मोर अपनी पूँछ फैलावे
- कलापकः—पुं॰—-—कलाप-कन्—एक जत्था या गट्ठर
- कलापकः—पुं॰—-—कलाप-कन्—मोतियों की लड़ी
- कलापकः—पुं॰—-—कलाप-कन्—हाथी की गर्दन के चारों ओर लिपटने वाला रस्सा
- कलापकः—पुं॰—-—कलाप-कन्—मेखला या करधनी
- कलापकः—पुं॰—-—कलाप-कन्—मस्तक पर तिलकविशेष
- कलापिन्—पुं॰—-—कलाप-इनि—मोर
- कलापिन्—पुं॰—-—कलाप-इनि—कोयल
- कलापिन्—पुं॰—-—कलाप-इनि—अंजीर का वृक्ष
- कलापिनी—स्त्री॰—-—कलापिन्-ङीप्—रात
- कलापिनी—स्त्री॰—-—कलापिन्-ङीप्—चाँद
- कलायः—पुं॰—-—कला-अय-अण्—मटर
- कलाविकः—पुं॰—-—कलम् आविकायति विशेषेण रौति-कल-आ-वि-कै-क—मुर्गा
- कलाहकः—पुं॰—-—कलम् आहन्ति-कल-आ-हन्-ड-कन्—एक प्रकार का बाजा
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—झगड़ा, लड़ाई-भिड़ाई, असहमति, मतभेद
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—संग्राम, युद्ध
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—सृष्टि का चौथा युग, कलियुग
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—मूर्त्तरूप कलियुग
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—किसी वर्ग का निकृष्टतम व्यक्ति
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—विभीतक या बहेड़े का वृक्ष
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—पासे का पहलू जिस पर एक का अंक अंकित है
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—नायक
- कलिः—पुं॰—-—कल्-इनि—बाण
- कलिः—स्त्री॰—-—कल्-इनि—बिना खिला फूल
- कलिकारः—पुं॰—कलिः - कारः—-—नारद का विशेषण
- कलिकारकः—पुं॰—कलिः - कारकः—-—नारद का विशेषण
- कलिक्रियः—पुं॰—कलिः - क्रियः—-—नारद का विशेषण
- कलिद्रुमः—पुं॰—कलिः - द्रुमः—-—विभीतक या बहेड़े का वृक्ष
- कलिवृक्षः—पुं॰—कलिः - वृक्षः—-—विभीतक या बहेड़े का वृक्ष
- कलियुगम्—नपुं॰—कलिः - युगम्—-—कलिकाल, लौहयुग
- कलिका—स्त्री॰—-—कलि-कन्-टाप्—अनखिला फूल, कली
- कलिका—स्त्री॰—-—कलि-कन्-टाप्—अंक, रेखा
- कलिः—स्त्री॰—-—कल्-इनि—अनखिला फूल, कली
- कलिः—स्त्री॰—-—कल्-इनि—अंक, रेखा
- कलिङ्गाः—पुं॰ब॰ व॰—-—कलि-गम्-ड—एक देश और उसके निवासियों का नाम
- कलिञ्जः—पुं॰—-—क-लञ्ज्-अण् नि॰ साधु॰—चटाई,परदा
- कलित—वि॰—-—कल्-क्त—थामा हुआ, पकड़ा हुआ, लिया हुआ
- कलिन्दः—पुं॰—-—कलि-दा-खच्,मुम्—वह पर्वत जिससे यमुना नदी निकलती है
- कलिन्दः—पुं॰—-—कलि-दा-खच्,मुम्—सूर्य
- कलिन्दकन्या—स्त्री॰—कलिन्दः - कन्या—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दजा—स्त्री॰—कलिन्दः - जा—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दतनया—स्त्री॰—कलिन्दः - तनया—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दनन्दिनी—स्त्री॰—कलिन्दः - नन्दिनी—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दगिरिः—पुं॰—कलिन्दः - गिरिः—-—कलिन्द नाम का पर्वत
- कलिन्दगिरिजा—स्त्री॰—कलिन्दगिरि-जा—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दगिरितनया—स्त्री॰—कलिन्दगिरि-तनया—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिन्दगिरिनन्दिनी—स्त्री॰—कलिन्दगिरि -नन्दिनी—-—यमुना नदी की उपाधियाँ
- कलिल—वि॰—-—कल्-इलच्—ढका हुआ, भरा हुआ
- कलिल—वि॰—-—कल्-इलच्—मिला, घुला-मिला
- कलिल—वि॰—-—कल्-इलच्—प्रभावित, बशर्ते कि
- कलिल—वि॰—-—कल्-इलच्—अभेद्य, अछेद्य
- कलिलम्—नपुं॰—-—कल्-इलच्—बड़ा ढेर, अव्यवस्थित राशि
- कलिलम्—नपुं॰—-—कल्-इलच्—गड़बड़, अव्यवस्था
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—मलिन, गन्दा, कींचड़ से भरा हुआ, मैला
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—श्वासावरुद्ध, बेसुरा, भर्राया हुआ
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—धुँधला भरा हुआ
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—क्रुद्ध, अप्रसन्न, उत्तेजित
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—दुष्ट, पापी, बुरा
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—क्रूर, निन्दनीय
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—अन्धकार युक्त, अन्धकारमय
- कलुष—वि॰—-—कल्-उषच्—निट्ठला, आलसी
- कलुषः—पुं॰—-—कल्-उषच्—भैंसा
- कलुषम्—नपुं॰—-—कल्-उषच्—गन्दगी, मैल, कींचड़
- कलुषम्—नपुं॰—-—कल्-उषच्—पाप
- कलुषम्—नपुं॰—-—कल्-उषच्—क्रोध
- कलुषयोनिज—वि॰—कलुष - योनिज—-—हरामी, वर्णसंकर
- कलेवरः—पुं॰—-—कले शुक्रे वरं श्रेष्ठम्—शरीर
- कलेवरम्—नपुं॰—-—कले शुक्रे वरं श्रेष्ठम्—शरीर
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—चिपचिपी गाद जो तेल आदि के नीचे जम जाती है, कीट
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—एक प्रकार की लेइ या पेस्ट
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—गंदगी, मैल
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—लीद, विष्ठा
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—नीचता, कपट, दम्भ
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—पाप
- कल्कः—पुं॰—-—कल्-क—घुटा पिसा चूर्ण
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—चिपचिपी गाद जो तेल आदि के नीचे जम जाती है, कीट
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—एक प्रकार की लेई या पेस्ट
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—गंदगी, मैल
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—लीद, विष्ठा
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—नीचता, कपट, दम्भ
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—पाप
- कल्कम्—नपुं॰—-—कल्-क—घुटा पिसा चूर्ण
- कल्कफलः—पुं॰—कल्कः - फलः—-—अनार का पौधा
- कल्कनम्—पुं॰—-—कल्क्-णिच्-ल्युट्—धोखा देना, प्रतारणा, मिथ्यापना
- कल्किः—पुं॰—-—कल्क्-णिच्-इन्—विष्णु का अन्तिम और दसवाँ अवतार
- कल्किन्—पुं॰—-—कल्क-इनि—विष्णु का अन्तिम और दसवाँ अवतार
- कल्प—वि॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—व्यवहार में लाने योग्य, सशक्त संभव
- कल्प—वि॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—उचित, योग्य, सही
- कल्प—वि॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—समर्थ, सक्षम
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—धार्मिक कर्तव्यों का विधि-विधान, नियम, अध्यादेश
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—विहित नियम, विहित विकल्प, ऐच्छिक नियम
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—प्रस्ताव, सुझाव, निश्चय, संकल्प
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—कार्य करने की रीति, कार्य विधि, रूप तरीका, पद्धति((धर्मानुष्ठानों में)
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—सृष्टि का अन्त, प्रलय
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—ब्रह्मा का एक दिन या १००० युग, मनु्ष्यों का ४३२०००००० वर्ष का समय, तथा सृष्टि की अवधि की माप
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—रोगी की चिकित्सा
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—छः वेदाङगों में से एक-नामतः-जिसमें यज्ञ का विधि विधान निहित है तथा जिसमें यज्ञानुष्ठान एवम् धार्मिक संस्कारों के नियम बतलाए गये हैं
- कल्पः—पुं॰—-—कृप्-अच्,घञ् वा—संज्ञा और विेशेषणों के अन्त में जुड़कर निम्नांकित अर्थ बतलाने वाला शब्द
- कल्पान्तः—पुं॰—कल्प - अन्तः—-—सृष्टि की समाप्ति, प्रलय
- कल्पस्थायिन्—वि॰—कल्प - स्थायिन्—-—कल्प के अन्त तक ठहरने वाला
- कल्पादिः—पुं॰—कल्प - आदिः—-—सृष्टि में सभी वस्तुओं का पुनर्नवीकरण
- कल्पकारः—पुं॰—कल्प - कारः—-—कल्पसूत्र का रचयिता
- कल्पक्षयः—पुं॰—कल्प - क्षयः—-—सृष्टि का नाश, प्रलय
- कल्पतरुः—पुं॰—कल्प - तरुः—-—स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग
- कल्पतरुः—पुं॰—कल्प - तरुः—-—इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पनिक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वृक्ष
- कल्पतरुः—पुं॰—कल्प - तरुः—-—अत्यन्त उदार पुरुष
- कल्पद्रुमः—पुं॰—कल्प - द्रुमः—-—स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग
- कल्पद्रुमः—पुं॰—कल्प - द्रुमः—-—इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पनिक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वृक्ष
- कल्पद्रुमः—पुं॰—कल्प - द्रुमः—-—अत्यन्त उदार पुरुष
- कल्पपादपः—पुं॰—कल्प - पादपः—-—स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग
- कल्पपादपः—पुं॰—कल्प - पादपः—-—इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पनिक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वृक्ष
- कल्पपादपः—पुं॰—कल्प - पादपः—-—अत्यन्त उदार पुरुष
- कल्पवृक्षः—पुं॰—कल्प - वृक्षः—-—स्वर्गीय वृक्षों में से एक या इन्द्र का स्वर्ग
- कल्पवृक्षः—पुं॰—कल्प - वृक्षः—-—इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पनिक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वृक्ष
- कल्पवृक्षः—पुं॰—कल्प - वृक्षः—-—अत्यन्त उदार पुरुष
- कल्पपालः—पुं॰—कल्प - पालः—-—शराब बेचने वाला
- कल्पलता—स्त्री॰—कल्प - लता—-—इन्द्र की नन्दनकानन की लता
- कल्पलता—स्त्री॰—कल्प - लता—-—सब प्रकार की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली लता
- कल्पलतिका—स्त्री॰—कल्प - लतिका—-—इन्द्र की नन्दनकानन की लता
- कल्पलतिका—स्त्री॰—कल्प - लतिका—-—सब प्रकार की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली लता
- कल्पसूत्रम्—नपुं॰—कल्प - सूत्रम्—-—सूत्रों के रूप में यज्ञ-पद्धति
- कल्पकः—पुं॰—-—क्लृप्-ण्वुल्—संस्कार
- कल्पकः—पुं॰—-—क्लृप्-ण्वुल्—नाई
- कल्पनम्—नपुं॰—-—क्लृप्-ल्युट्—रूप देना, बनाना, क्रमबद्ध करना
- कल्पनम्—नपुं॰—-—क्लृप्-ल्युट्—सम्पादन करना, कराना, कार्यान्वित करना
- कल्पनम्—नपुं॰—-—क्लृप्-ल्युट्—छंटाई करना, कांटना
- कल्पनम्—नपुं॰—-—क्लृप्-ल्युट्—स्थिर करना
- कल्पनम्—नपुं॰—-—क्लृप्-ल्युट्—सजावट के लिए एक दूसरी पर रक्खी हुई वस्तु
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—जमाना, स्थिर करना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—बनाना, अनुष्ठान करना, करना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—रूप देना, व्यवस्थित करना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—सजाना, विभूषित करना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—संरचन
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—आविष्कार
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—कल्पना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—विचार, उत्प्रेक्षा, प्रतिमा
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—बनावट, मिथ्या रचना
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—जालसाजी
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—कपट योजना, कूटयुक्ति
- कल्पना—स्त्री॰—-—क्लृप्-ल्युट्—अर्थापत्ति
- कल्पनी—स्त्री॰—-—कल्पन-ङीप्—कैंची
- कल्पित—वि॰—-—कृप्-णिच्-क्त—व्यवस्थित, निर्मित, संरचित, बना हुआ
- कल्मष—वि॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—पापी, दुष्ट
- कल्मष—वि॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—मलिन, मैला
- कल्मषः—पुं॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—लाञ्छन, गन्दगी, उच्छिष्ट
- कल्मषः—पुं॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—पाप
- कल्मषम्—नपुं॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—लाञ्छन, गन्दगी, उच्छिष्ट
- कल्मषम्—नपुं॰—-—कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो॰ साधुः—पाप
- कल्माष—वि॰ कर्म० स०—-—कलयति,कल्-क्विप्,तं माषयति अभिभवति माष्-णिच्-अच्,कल् चासौ गाषश्च—रंगबिरंगा, चित्तीदार, काला और सफेद
- कल्माषः—पुं॰—-—कलयति,कल्-क्विप्,तं माषयति अभिभवति माष्-णिच्-अच्,कल् चासौ गाषश्च—चित्र-विचित्र रंग वाले
- कल्माषः—पुं॰—-—कलयति,कल्-क्विप्,तं माषयति अभिभवति माष्-णिच्-अच्,कल् चासौ गाषश्च—काले और सफेद का मिश्रण
- कल्माषः—पुं॰—-—कलयति,कल्-क्विप्,तं माषयति अभिभवति माष्-णिच्-अच्,कल् चासौ गाषश्च—पिशाच, भूत
- कल्माषी—स्त्री॰—-—कलयति,कल्-क्विप्,तं माषयति अभिभवति माष्-णिच्-अच्,कल् चासौ गाषश्च—यमुना नदी
- कल्माषकण्ठः—पुं॰—कल्माष - कण्ठः—-—शिव की उपाधि
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—स्वस्थ, नीरोग, तन्दुरुस्त
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—तत्पर, सुसज्जित
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—चतुर
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—रुचिकर, मङ्गलमय
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—बहरा और गूँगा
- कल्य—वि॰—-—कल्-यत्—शिक्षाप्रद
- कल्यम्—नपुं॰—-—कल्-यत्—प्रभात, पौ फटना
- कल्यम्—नपुं॰—-—कल्-यत्—आने वाला कल
- कल्यम्—नपुं॰—-—कल्-यत्—मादक शराब
- कल्यम्—नपुं॰—-—कल्-यत्—बधाई, मंगल कामना
- कल्यम्—नपुं॰—-—कल्-यत्—शुभ समाचार
- कल्याशः—पुं॰—कल्य - आशः—-—सबेरे का भोजन, कलेवा
- कल्यजग्धिः—स्त्री॰—कल्य - जग्धिः—-—सबेरे का भोजन, कलेवा
- कल्यपालः—पुं॰—कल्यः - पालः—-—कलवार, शराब खींचने वाला
- कल्यपालकः—पुं॰—कल्यः - पालकः—-—कलवार, शराब खींचने वाला
- कल्यवर्तः—पुं॰—कल्यः - वर्तः—-—सबेरे का भोजन, कलेवा
- कल्यवर्तः—पुं॰—कल्यः - वर्तः—-—(अतः) कोई भी हल्की चीज, तुच्छ या महत्त्वहीन, मामूली
- कल्यवर्तम्—नपुं॰—कल्यः - वर्तम्—-—क्षुद्र वस्तु
- कल्या—स्त्री॰—-—कलयति मादयति कल्-णिच्-यक्-टाप्—मादक शराब
- कल्या—स्त्री॰—-—कलयति मादयति कल्-णिच्-यक्-टाप्—बधाई
- कल्यापालः—पुं॰—कल्या - पालः—-—शराब खींचने वाला, कलवार
- कल्यापालकः—पुं॰—कल्या - पालकः—-—शराब खींचने वाला, कलवार
- कल्याण—वि॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—आनन्ददायक, सुखकर, सौभाग्यशाली, भाग्यवान
- कल्याण—वि॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—सुन्दर, रुचिकर, मनोहर
- कल्याण—वि॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—श्रेष्ठ, गौरवयुक्त
- कल्याण—वि॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—शुभ, श्रेयस्कर, मंगलप्रद, भद्र
- कल्याणम्—नपुं॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—अच्छा भाग्य, आनन्द, भलाई, समृद्धि
- कल्याणम्—नपुं॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—गुण
- कल्याणम्—नपुं॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—उत्सव
- कल्याणम्—नपुं॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—सोना
- कल्याणम्—नपुं॰—-—कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते-अण्-घञ्—स्वर्ग
- कल्याणकृत्—वि॰—कल्याण - कृत्—-—सुखकर, लाभदायक, हितकर
- कल्याणकृत्—वि॰—कल्याण - कृत्—-—मंगलप्रद, भाग्यशाली
- कल्याणकृत्—वि॰—कल्याण - कृत्—-—गुणी
- कल्याणधर्मन्—वि॰—कल्याण - धर्मन्—-—गुणसम्पन्न
- कल्याणवचनम्—वि॰—कल्याण - वचनम्—-—मित्रवत् भाषण, शुभ कामना
- कल्याणक—वि॰—-—कल्याण-कन्—शुभ, समृद्धिशाली, आनन्ददायक
- कल्याणिन्—वि॰—-—कल्याण-इनि—प्रसन्न, समृद्धिशाली
- कल्याणिन्—वि॰—-—कल्याण-इनि—सौभाग्यशाली, भाग्यवान्, आनन्ददायक
- कल्याणिन्—वि॰—-—कल्याण-इनि—मंगलप्रद, शुभ
- कल्याणी—स्त्री॰—-—कल्याण-डीष्—गाय
- कल्ल—वि॰—-—कल्ल्-अच्—बहरा
- कल्लोलः—पुं॰—-—कल्ल्-ओलच्—बड़ी लहर, ऊर्मि
- कल्लोलः—पुं॰—-—कल्ल्-ओलच्—शत्रु
- कल्लोलः—पुं॰—-—कल्ल्-ओलच्—हर्ष, प्रसन्नता
- कल्लोलिनी—पुं॰—-—कल्लोल-इनि-ङीष्—नदी
- कव्—भ्वा० आ० <कवते>,<कवित>—-—-—स्तुति करना
- कव्—भ्वा० आ० <कवते>,<कवित>—-—-—वर्णन करना, रचना करना
- कव्—भ्वा० आ० <कवते>,<कवित>—-—-—चित्रण करना, चित्र बनाना
- कवकः—पुं॰—-—कव्-अच्-कन्—मुट्ठीभर
- कवकम्—नपुं॰—-—कव्-अच्-कन्—कुकुरमुत्ता
- कवचः—पुं॰—-—कु-अच्—सन्नाह, जिरह बख्तर, वर्म,
- कवचः—पुं॰—-—कु-अच्—रक्षाकवच, ताबीज, रहस्यपूर्ण अक्षर
- कवचः—पुं॰—-—कु-अच्—धौंसा, ताशा
- कवचम्—नपुं॰—-—कु-अच्—सन्नाह, जिरह बख्तर, वर्म,
- कवचम्—नपुं॰—-—कु-अच्—रक्षाकवच, ताबीज, रहस्यपूर्ण अक्षर
- कवचम्—नपुं॰—-—कु-अच्—धौंसा, ताशा
- कवचपत्रः—पुं॰—कवचः - पत्रः—-—भोजपत्र का पेड़, पाकर का वृक्ष
- कवचसर—वि॰—कवचः - सर—-—कवचधारी
- कवचसर—वि॰—कवचः - सर—-—कवच धारण करने योग्य आयु का
- कवटी—स्त्री॰—-—कु-अटन्-ङीष्—दरवाजे का दिला या पल्ला
- कबर—वि॰—-—कु-अरन्—मिश्रित, अन्तर्मिश्रित
- कबर—वि॰—-—कु-अरन्—जटित, खचित, जड़ा हुआ
- कबर—वि॰—-—कु-अरन्—चित्रविचित्र, रंगबिरंगा
- कवर—वि॰—-—कु-अरन्—मिश्रित, अन्तर्मिश्रित
- कवर—वि॰—-—कु-अरन्—जटित, खचित, जड़ा हुआ
- कवर—वि॰—-—कु-अरन्—चित्रविचित्र, रंगबिरंगा
- कवरः—पुं॰—-—कु-अरन्—नमक, खटास, अम्लता
- कवरम्—नपुं॰—-—कु-अरन्—नमक, खटास, अम्लता
- कवरः—पुं॰—-—कु-अरन्—चोटी, जूड़ा
- कबरी—स्त्री॰—-—कबर-ङीष्—चोटी, जूड़ा
- कवरी—स्त्री॰—-—कवर-ङीष्—चोटी, जूड़ा
- कवरीभरः—पुं॰—कवरी - भरः—-—गुँथी हुई चोटी
- कवरीभारः—पुं॰—कवरी - भारः—-—गुँथी हुई चोटी
- कबरीभरः—पुं॰—कबरी - भरः—-—गुँथी हुई चोटी
- कबरीभारः—पुं॰—कबरी - भारः—-—गुँथी हुई चोटी
- कवलः—पुं॰—-—केन जलेन वलते चलति-वल्-अच् @ तारा॰—मुट्ठीभर
- कवलम्—नपुं॰—-—केन जलेन वलते चलति-वल्-अच् @ तारा१—मुट्ठीभर
- कवलित—वि॰—-—कवल-इतच्—खाया हुआ, निगला हुआ
- कवलित—वि॰—-—कवल-इतच्—चबाया हुआ
- कवलित—वि॰—-—कवल-इतच्—(अतः) लिया हुआ, पकड़ा हुआ
- कवाट—वि॰—-—कलं शब्दम् अटति,कु-अप्,अट्-अच्—
- कवि—वि॰—-—कु-इ—सर्वज्ञ
- कवि—वि॰—-—कु-इ—प्रतिभाशाली, चतुर, बुद्धिमान
- कवि—वि॰—-—कु-इ—विचारवान, विचारशील
- कवि—वि॰—-—कु-इ—प्रशंसनीय
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—बुद्धिमान पुरुष, विचारक ऋषि
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—काव्यकार
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—असुरों के आचार्य शुक्र की उपाधि
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—वाल्मीकि, आदिकवि
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—ब्रह्मा
- कविः—पुं॰—-—कु-इ—सूर्य
- कविः—स्त्री॰—-—-—लगाम का दहाना
- कविज्येष्ठः—पुं॰—कवि - ज्येष्ठः—-—आदिकवि वाल्मीकि की उपाधि
- कविपुत्रः—पुं॰—कवि - पुत्रः—-—शुक्राचार्य की उपाधि
- कविराजः—पुं॰—कवि - राजः—-—महाकवि
- कविराजः—पुं॰—कवि - राजः—-—कवि का नाम, ‘राघवपाण्डवीय’ नामक काव्य का रचयिता
- कविरामायणः—पुं॰—कवि - रामायणः—-—वाल्मीकि की उपाधि
- कविकः—पुं॰—-—कवि-कन्—लगाम का दहाना
- कविका—स्त्री॰—-—कवि-कन्- टाप्—लगाम का दहाना
- कविता—स्त्री॰—-—कवि-तल्-टाप्—काव्य
- कवियम्—नपुं॰—-—कवि-छ—लगाम का दहाना
- कवीयम्—नपुं॰—-—कवि-छ—लगाम का दहाना
- कवोष्ण—वि॰ कर्म॰स॰—-—कुत्सितम् ईषत् उष्णम् ,कोः कवादेशः—कुछ थोड़ा गर्म, गुनगुना
- कव्यम्—नपुं॰—-—कूयते हीयते पितृभ्यः यत् अन्नादिकम्-कु-यत्—मृत पितरों के लिए अन्न की आहुति
- कव्यः—पुं॰—-—कूयते हीयते पितृभ्यः यत् अन्नादिकम्-कु-यत्—पितरों का समूह
- कव्यवाह्—पुं॰—कव्य - वाह्—-—अग्नि
- कव्यवाहः—पुं॰—कव्य - वाहः—-—अग्नि
- कव्यवाहनः—पुं॰—कव्य - वाहनः—-—अग्नि
- कशः—पुं॰—-—कश्-अच्—कोड़ा
- कशा—स्त्री॰—-—कश्-अच्—चाबुक
- कशा—स्त्री॰—-—कश्-अच्—कोड़े लगाना
- कशा—स्त्री॰—-—कश्-अच्—डोरी, रस्सी
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—चटाई
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—तकिया
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—बिस्तरा
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—भोजन
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—वस्त्र
- कशिपु—पुं॰—-—कशति दुःखं कश्यते वा, मृगय्वादित्वात् निपातनात् साधुः—भोजन-वस्त्र
- कशेरु —पुं॰—-—के देहे शीर्यते,कं जलं वा शृणाति,क-शृ-उ,एरडादेः,—रीढ़ की हड्डी
- कशेरु —पुं॰—-—कस्-एरुन् —एक प्रकार का घास
- कसेरु—पुं॰—-—के देहे शीर्यते,कं जलं वा शृणाति,क-शृ-उ,एरडादेः,—रीढ़ की हड्डी
- कसेरु—पुं॰—-—कस्-एरुन् —एक प्रकार का घास
- कश्मल—वि॰—-—कश्-अल्,मुट्—मैला, गंदा, अकीर्तिकर, कलंकी
- कश्मलम्—नपुं॰—-—कश्-अल्,मुट्—मन की खिन्नता, उदासी, अवसाद
- कश्मलम्—नपुं॰—-—कश्-अल्,मुट्—पाप
- कश्मलम्—नपुं॰—-—कश्-अल्,मुट्—मूर्च्छा
- कश्मीर—वि॰ब॰ व॰—-—कश्-ईरन्,मुट्—एक देश का नाम, वर्तमान कश्मीर
- कश्मीरजः—पुं॰—कश्मीर - जः—-—केशर, जाफरान
- कश्मीरजम्—नपुं॰—कश्मीर - जम्—-—केशर, जाफरान
- कश्मीरजन्मन्—नपुं॰—कश्मीर - जन्मन्—-—केशर, जाफरान
- कश्य—वि॰—-—कशामर्हति-कशा-य—कोड़े या चाबुक लगाये जाने के योग्य
- कश्यम्—नपुं॰—-—कशामर्हति-कशा-य—मादक शराब
- कश्यपः—नपुं॰—-—कश्य-पा-क—कछुवा
- कश्यपः—नपुं॰—-—कश्य-पा-क—एक ऋषि, अदिति और दिति के पति
- कष्—भ्वा॰ उभ॰-<कषति>, <कषते>, <कषित>—-—-—मसलना, खुरचना, कसना
- कष्—भ्वा॰ उभ॰-<कषति>, <कषते>, <कषित>—-—-—परीक्षा करना, जाँच करना, कसौटी पर कसना
- कष्—भ्वा॰ उभ॰-<कषति>, <कषते>, <कषित>—-—-—चोट मारना, नष्ट करना
- कष्—भ्वा॰ उभ॰-<कषति>, <कषते>, <कषित>—-—-—खुजाना
- कष—वि॰—-—कष्-अच्—रगड़ने वाला, कसने वाला
- कषः—पुं॰—-—कष्-अच्—रगड़ कसना
- कषः—पुं॰—-—कष्-अच्—कसौटी
- कषणम्—नपुं॰—-—कष्-ल्युट्—रगड़ना, चिह्नित करना, खुरचना
- कषणम्—नपुं॰—-—कष्-ल्युट्—कसौटी पर कस कर सोने को परखना
- कषा—स्त्री॰—-—-—कशा
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—कसैला
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—सुगन्धित
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—लाल, गहरा लाल
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—मधुर-स्वर वाला
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—भूरा
- कषाय—वि॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—अनुपयुक्त, मैला
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—कसैला स्वाद या रस
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—लाल रंग
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—एक भाग औषधि, चार आठ या १६ भाग पानी में मिलाकर बनाया हुआ काढ़ा
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—लेप करना, पोतना, चुपड़ना
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—उबटन लगाकर शरीर को सुवासित करना
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—गोंद, राल, वृक्ष का निःश्रवण
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—मैल, अस्वच्छता
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—मन्दता, जडिया
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—सांसारिक विषयों में आसक्ति
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—कसैला स्वाद या रस
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—लाल रंग
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—एक भाग औषधि, चार आठ या १६ भाग पानी में मिलाकर बनाया हुआ(सब को मिलाकर उबालना जब तक कि एक चौथाई न रह जाय), काढ़ा
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—लेप करना, पोतना, चुपड़ना
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—उबटन लगाकर शरीर को सुवासित करना
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—गोंद, राल, वृक्ष का निःश्रवण
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—मैल, अस्वच्छता
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—मन्दता, जडिया
- कषायम्—नपुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—सांसारिक विषयों में आसक्ति
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—आवेश, संवेग
- कषायः—पुं॰—-—कषति कण्ठम्-कष्-आय—कलियुग
- कषायित—वि॰—-—कषाय-इतच्—हलके रंग वाला, लाल रंग का, रंगीन
- कषायित—वि॰—-—कषाय-इतच्—ग्रस्त
- कषि—वि॰—-—कषति हिनस्ति कष्-इ—हानिकारक, अनिष्टकर, पीड़ाकर
- कषेरुका—स्त्री॰—-—कष् - एरक्, उत्वम्, कन्-टाप्—रीढ़ की हड्डी, मेरुदण्ड
- कसेरुका—स्त्री॰—-—कस् - एरक्, उत्वम्, कन्-टाप्—रीढ़ की हड्डी, मेरुदण्ड
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—बुरा, अनिष्टकर, रोगी, गलत
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—पीड़ामय, संतापकारी
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—चिन्ताओं से भरा हुआ
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—कठिन
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—दुर्धर्ष
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—अनिष्टकर, पीडाकर, हानिकर
- कष्ट—वि॰—-—कष्-क्त—गर्हित
- कष्टम्—नपुं॰—-—कष्-क्त—दुष्कर्म, कठिनाई, संकट, व्यथा,यन्त्रणा, पीडा
- कष्टम्—नपुं॰—-—कष्-क्त—पाप, दुष्टता
- कष्टम्—नपुं॰—-—कष्-क्त—कठिनाई, प्रयास
- कष्टेन—अव्य॰—-—-—किसी न किसी प्रकार
- कष्टम्—अव्य॰—-—-—हाय !
- कष्टागत—वि॰—कष्ट - आगत—-—कठिनाई से आया हुआ, पहुँचा हुआ
- कष्टकर—वि॰—कष्ट - कर—-—पीडा कर, दुःखदायी
- कष्टतपस्—वि॰—कष्ट - तपस्—-—घोर तपस्या करने वाला
- कष्टसाध्य—वि॰—कष्ट - साध्य—-—कठिनाई से पूरा किये जाने के योग्य
- कष्टस्थानम्—नपुं॰—कष्ट - स्थानम्—-—बुरा स्थान, अरुचिकर, कठिन जगह
- कष्टि—स्त्री॰—-—कष् - क्तिन्—परख, जाँच
- कष्टि—स्त्री॰—-—कष् - क्तिन्—पीडा, कष्ट
- कस्—भ्वा॰ पर॰ <कसति>, <कसित>—-—-—हिलना - डुलना, जाना, पहुँचना
- निष्कस्—भ्वा॰ पर॰ —निस् - कस्—-—निकालना, बाहर खींचना
- निष्कस्—भ्वा॰ पर॰ —निस् - कस्—-—मोड़ना, बाहर हाँक देना, निर्वासित करना, निष्कासन करना
- प्रकस्—भ्वा॰ पर॰ —प्र - कस्—-—खोलना, प्रसार करवाना
- विकस्—भ्वा॰ पर॰ —वि - कस्—-—खुलना, प्रसृत होना
- विकस्—भ्वा॰ पर॰ —वि - कस्—-—खोलना, प्रसार करवाना
- कस्—अदा॰ आ॰ <कस्ते>, <कंस्ते>—-—-—जाना
- कस्—अदा॰ आ॰ <कस्ते>, <कंस्ते>—-—-—नष्ट करना
- कस्तुरिका—स्त्री॰—-—कसति गन्धोऽस्याः- कस् - ऊर् - ङीष्, तुद्, कन् - टाप् ह्रस्वः—मुश्क, कश्तूरी
- कस्तूरिका—स्त्री॰—-—कसति गन्धोऽस्याः- कस् - ऊर् - ङीष्, तुद्, कन् - टाप् ह्रस्वः—मुश्क, कश्तूरी
- कस्तूरी—स्त्री॰—-—कसति गन्धोऽस्याः- कस् - ऊर् - ङीष्, तुद्, —मुश्क, कश्तूरी
- कस्तूरीमृगः—पुं॰—कस्तूरी - मृगः—-—कस्तूरी मृग
- कह्लारम्—नपुं॰—-—के जले ह्लादते - क - ह्लाद् - अच् पृषो॰ दस्य रः—श्वेत कमल
- कह्वः—पुं॰—-—के जले ह्वयति शब्दायते स्पर्धते वा - क - ह्वे - क—एक प्रकार का सारस
- कांसीयम्—नपुं॰—-—कंसाय पानपात्राय हितम्, कंस - छ - अण्—जस्ता
- कांस्यः—पुं॰—-—कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः- यञ्, छलोपः—कांसे, जस्ते का बना हुआ
- कांस्यम्—वि॰—-—कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः- यञ्, छलोपः—कांसा, या जस्ता
- कांस्यम्—वि॰—-—कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः- यञ्, छलोपः—कांसे का बना हुआ घड़ियाल
- कांस्यः—पुं॰—-—कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः- यञ्, छलोपः—जल पीने का बर्तन, प्याला
- कांस्यम्—नपुं॰—-—कंसाय पानपात्राय हितं कंसीयं तस्य विकारः- यञ्, छलोपः—जल पीने का बर्तन, प्याला
- कांस्यकारः—पुं॰—कांस्यः - कारः—-—कसेरा, ठठेरा
- कांस्यतालः—पुं॰—कांस्यः - तालः—-—झाँझ, करताल
- कांस्यभाजनम्—नपुं॰—कांस्य - भाजनम्—-—पीतल का बर्तन
- कांस्यमलम्—नपुं॰—कांस्य - मलम्—-—ताम्रमल, तांबे का जंग
- काकः—पुं॰—-—कै - कन्—कौवा
- काकः—पुं॰—-—कै - कन्—घृणित व्यक्ति, नीच और ढीठ पुरुष
- काकः—पुं॰—-—कै - कन्—लंगड़ा आदमी
- काकः—पुं॰—-—कै - कन्—केवल शिर को भिगोकर स्नान करना
- काकी—स्त्री॰—-—कै - कन् - ङीप्—कौवी
- काकम्—नपुं॰—-—कै - कन्—कौवों का समूह
- काकारिः—पुं॰—काकः - अरिः—-—उल्लू
- काकोदरः—पुं॰—काकः - उदरः—-—साँप
- काकोलूकिका—स्त्री॰—काकः - उलूकिका—-—कौवे और उल्लू की नैसर्गिक शत्रुता
- काकोलूकीयम्—नपुं॰—काकः - उलूकीयम्—-—कौवे और उल्लू की नैसर्गिक शत्रुता
- काकचिञ्चा—स्त्री॰—काकः - चिञ्चा—-—गुंजा या घुंघची का पौधा
- काकच्छदः—पुं॰—काकः - छदः—-—खंजन पक्षी
- काकच्छदः—पुं॰—काकः - छदः—-—अलकें
- काकच्छदिः—पुं॰—काकः - छदिः—-—खंजन पक्षी
- काकच्छदिः—पुं॰—काकः - छदिः—-—अलकें
- काकजातः—पुं॰—काकः - जातः—-—कोयल
- काकतालीय—वि॰—काकः - तालीय—-—जो बात अकस्मात् अप्रत्याशित रूप से हो दुर्घटना
- काकतालुकिन्—वि॰—काकः - तालुकिन्—-—घृणित, निन्द्य
- काकदन्तः—पुं॰—काकः - दन्तः—-—कौवे का दाँत
- काकदन्तः—पुं॰—काकः - दन्तः—-—असम्भव बात जिसका अस्तित्व न हो
- काकगवेषणम्—नपुं॰—काक - गवेषणम्—-—असम्भव बातों की खोज करना
- काकनिद्रा—स्त्री॰—काकः - निद्रा—-—हल्की नींद या झपकी जो आसानी से टूट जाय
- काकपक्षः—पुं॰—काकः - पक्षः—-—बालकों और तरुणों की कनपटियों के लंबे बाल या अलकें
- काकपदम्—नपुं॰—काकः - पदम्—-—हस्तलिखित पुस्तक या लेखों में चिह्न (⋀) जो यह प्रकट करता है कि यहाँ कुछ छूट गया है
- काकपदः—पुं॰—काकः - पदः—-—संभोग की एक विशेष रीति
- काकपुच्छः—पुं॰—काकः - पुच्छः—-—कोयल
- काकपुष्टः—पुं॰—काकः - पुष्टः—-—कोयल
- काकपेय—वि॰—काकः - पेय—-—छिछला
- काकभीरुः—पुं॰—काकः - भीरुः—-—उल्लू
- काकमद्गुः—पुं॰—काकः - मद्गुः—-—जलकुक्कुट
- काकयवः—पुं॰—काकः - यवः—-—अन्न का वह पौधा जिसकी बाल में दाने न हो
- काकरुतम्—नपुं॰—काकः - रुतम्—-—कौवे की कर्कश ध्वनि
- काकवन्ध्या—स्त्री॰—काकः - वन्ध्या—-—ऐसी स्त्री जिसके एक पुत्र होने के पश्चात् फिर कोई सन्तान न हो
- काकस्वरः—पुं॰—काकः - स्वरः—-—कर्कश ध्वनि
- काकरुक —वि॰—-—-—डरपोक, कायर
- काकरुक —वि॰—-—-—नंगा
- काकरुक —वि॰—-—-—गरीब, दरिद्र
- काकरूक—वि॰—-—-—डरपोक, कायर
- काकरूक—वि॰—-—-—नंगा
- काकरूक—वि॰—-—-—गरीब, दरिद्र
- काकरुकः—पुं॰—-—-—औरत का गुलाम, पत्नीभक्त
- काकरुकः—पुं॰—-—-—उल्लू
- काकरुकः—पुं॰—-—-—जालसाजी, धोखा, दाँवपेच
- काकरूकः—पुं॰—-—-—औरत का गुलाम, पत्नीभक्त
- काकरूकः—पुं॰—-—-—उल्लू
- काकरूकः—पुं॰—-—-—जालसाजी, धोखा, दाँवपेच
- काकरुकी—स्त्री॰—-—-—उल्लू
- काकरुकी—स्त्री॰—-—-—जालसाजी, धोखा, दाँवपेच
- काकरूकी—स्त्री॰—-—-—उल्लू
- काकरूकी—स्त्री॰—-—-—जालसाजी, धोखा, दाँवपेच
- काकलः —पुं॰—-—का इत्येवं कलो यस्य—पहाड़ी कौवा
- काकालः—पुं॰—-—का इत्येवं कलो यस्य—पहाड़ी कौवा
- काकलम्—नपुं॰—-—का इत्येवं कलो यस्य—कण्ठमणि
- काकालम्—नपुं॰—-—-—कण्ठमणि
- काकलिः—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः—मन्द मधुर स्वर
- काकलिः—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः—एक प्रकार का मन्द स्वर का बाजा
- काकलिः—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः—कैंची
- काकलिः—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः—घुंघची का पौधा
- काकली—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः, स्त्रियां ङीष् च—मन्द मधुर स्वर
- काकली—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः, स्त्रियां ङीष् च—एक प्रकार का मन्द स्वर का बाजा
- काकली—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः, स्त्रियां ङीष् च—कैंची
- काकली—स्त्री॰—-—कल् - इन्= कलिः, कु ईषत् कलिः को आदेशः, स्त्रियां ङीष् च—घुंघची का पौधा
- काकलिरवः—पुं॰—काकलिः - रवः—-—कोयल
- काकलीरवः—पुं॰—काकली - रवः—-—कोयल
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—सिक्के के रूप में प्रयुक्त होने वाली कौड़ी
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—एक सिक्का जो २० कौड़ी या चौथाई पण के बराबर होता है
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—चौथाई माशे के बराबर वजन
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—माप का एक अंश
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—तराजू की डंडी
- काकिणी —स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—हस्त
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—सिक्के के रूप में प्रयुक्त होने वाली कौड़ी
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—एक सिक्का जो २० कौड़ी या चौथाई पण के बराबर होता है
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—चौथाई माशे के बराबर वजन
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—माप का एक अंश
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—तराजू की डंडी
- काकिणिका—स्त्री॰—-—काकिणी - कन् - टाप्, ह्रस्वः—हस्त
- काकिनी—स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—पण का चौथाई
- काकिनी—स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—माप का चौथाई
- काकिनी—स्त्री॰—-—कक् - णिनि - ङीप्—कौड़ी
- काकुः—स्त्री॰—-—कक् - उण्—भय, शोक, क्रोध आदि संवेगों के कारण स्वर में परिवर्तन
- काकुः—स्त्री॰—-—कक् - उण्—निषेधात्मक शब्द जो इस ढंग से प्रयुक्त किया जाय कि विरुद्ध (स्वीकारात्मक) अर्थ को पकट करे
- काकुः—स्त्री॰—-—कक् - उण्—बुड़बुड़ाना, गुनगुनाना
- काकुः—स्त्री॰—-—कक् - उण्—जिह्वा
- काकुत्स्थः—पुं॰—-—ककुत्स्थ - अण्—ककुत्स्थवंशी, सूर्यवंशी राजाओं की उपाधि
- काकुदम्—नपुं॰—-—काकुं ध्वनिभेदं ददाति- काकु - दा- क—तालु
- काकोलः—पुं॰—-—कक् - णिच् - ओल—पहाड़ी कौवा
- काकोलः—पुं॰—-—कक् - णिच् - ओल—साँप
- काकोलः—पुं॰—-—कक् - णिच् - ओल—सूअर
- काकोलः—पुं॰—-—कक् - णिच् - ओल—कुम्हार
- काकोलः—पुं॰—-—कक् - णिच् - ओल—नरक का एक भाग
- काक्षः—पुं॰—-—कुत्सितम् अक्षं यत्र- को कादेशः—तिरछी चितवन, कनखियों से देखना
- काक्षम्—नपुं॰—-—-—त्यौरी चढ़ना, अप्रसन्नता की दृष्टि, द्वेषपूर्ण निगाह
- कागः—पुं॰—-—-—कौवा
- काङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ <काङ्क्षिति>, <काङ्क्षित>—-—-—कामना करना, चाहना, लालायित होना
- काङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ <काङ्क्षिति>, <काङ्क्षित>—-—-—प्रत्याशा करना, प्रतीक्षा करना
- अभिकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —अभि - काङ्क्ष्—-—लालायित होना, कामना करना,
- आकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —आ - काङ्क्ष्—-—चाहना, लालसा करना, कामना करना
- आकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —आ - काङ्क्ष्—-—अपेक्षा करना, आवश्यकता होना
- प्रत्याकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —प्रत्या - काङ्क्ष्—-—घात में रहना, सेवा में उपस्थित रहना
- विकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —वि - काङ्क्ष्—-—कामना करना, चाहना, लालसा करना
- समाकाङ्क्ष्—भ्वा॰ पर॰ —समा - काङ्क्ष—-—कामना करना, चाहना
- काङ्क्षा—स्त्री॰—-—काङ्क्ष् - अ - टाप्—कामना, इच्छा
- काङ्क्षा—स्त्री॰—-—काङ्क्ष् - अ - टाप्—रुचि, या अभिलाषा जैसा कि ‘भक्तकांक्षा' में
- काङ्क्षिन्—वि॰—-—काङ्क्ष् - णिनि—कामना करने वाला, इच्छुक
- काचः—पुं॰—-—कच् - घञ्—शीशा, स्फटिक
- काचः—पुं॰—-—कच् - घञ्—फंदा, लटकता हुआ (अलमारी का) तख्ता, जुए से बंधी हुई रस्सी जो बोझ को सम्हार ले
- काचः—पुं॰—-—कच् - घञ्—आँख का एक रोग, आँख की नाड़ी का रोग जिससे दृष्टि धुंधली हो जाय
- काचघटी—स्त्री॰—काचः - घटी—-—शीशे की झारी या जग
- काचभोजनम्—नपुं॰—काचः - भोजनम्—-—शीशे का पात्र
- काचमणिः—पुं॰—काचः - मणिः—-—स्फटिक, बिलौर
- काचमलम्—नपुं॰—काचः - मलम्—-—काला नमक या सोडा
- काचलवणम्—नपुं॰—काचः - लवणम्—-—काला नमक या सोडा
- काचसम्भवम्—नपुं॰—काचः - सम्भवम्—-—काला नमक या सोडा
- काचनम्—नपुं॰—-—कच् - णिच् - ल्युट्—डोरी या फीता जिससे काग़जों का बण्डल या हस्तलिखित पत्र बाँधे जाते हैं
- काचनकम्—नपुं॰—-—कच् - णिच् - ल्युट्, कन् च—डोरी या फीता जिससे काग़जों का बण्डल या हस्तलिखित पत्र बाँधे जाते हैं
- काचनकिन्—पुं॰—-—काचनक - इनि—हस्तलिखित ग्रन्थ, लेख
- काचूकः—पुं॰—-—कच् - ऊकञ् - बा॰—मुर्गा
- काचूकः—पुं॰—-—कच् - ऊकञ् - बा॰—चकवा
- काजलम्—नपुं॰—-—ईषत् कुत्सितं जलम् को कादेशः—थोड़ा पानी, स्वादहीन पानी
- काञ्चन—वि॰—-—काञ्च् - ल्युट्—सुनहरी, सोने का बना हुआ
- काञ्चनी —स्त्री॰ —-—काञ्च् - ल्युट्, स्त्रियां ङीष्—सुनहरी, सोने का बना हुआ
- काञ्चनम्—नपुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—सोना
- काञ्चनम्—नपुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—प्रभा, दीप्ति
- काञ्चनम्—नपुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—सम्पत्ति, धन-दौलत
- काञ्चनम्—नपुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—कमलतन्तु
- काञ्चनः—पुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—धतूरे का पौधा
- काञ्चनः—पुं॰—-—काञ्च् - ल्युट्—चम्पक का पौधा
- काञ्चनाङ्गी—स्त्री॰—काञ्चन - अङ्गी—-—सुनहरे रंगरूप की स्त्री
- काञ्चनकन्दरः—पुं॰—काञ्चन - कन्दरः—-—सोने की कान
- काञ्चनगिरिः—पुं॰—काञ्चन - गिरिः —-—मेरु नामक पहाड़
- काञ्चनभूः—स्त्री॰—काञ्चन - भूः—-—सुनहरी (पीली) भूमि
- काञ्चनभूः—स्त्री॰—काञ्चन - भूः—-—स्वर्णरज
- काञ्चनसन्धिः—स्त्री॰—काञ्चन - सन्धिः—-—समता के आधार पर दो दलों में हुई सुलह
- काञ्चनारः—पुं॰—-—काञ्चन - ऋ - अण्—कचनार का पेड़
- काञ्चनालः—पुं॰—-—काञ्चन - अल् - अण्—कचनार का पेड़
- काञ्चिः—स्त्री॰—-—काञ्च् - इन् = कांचि —स्त्री की मेखला या करधनी
- काञ्चिः—स्त्री॰—-—काञ्च् - इन् = कांचि —दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर जो हिन्दुओं का एक पावन नगर समझाजाता है
- काञ्ची—स्त्री॰—-—काञ्च् - इन् = कांचि - ङीष्—स्त्री की मेखला या करधनी
- काञ्ची—स्त्री॰—-—काञ्च् - इन् = कांचि - ङीष्—दक्षिण भारत का एक प्राचीन नगर जो हिन्दुओं का एक पावन नगर समझाजाता है
- काञ्चिपुरी—स्त्री॰—काञ्चिः- पुरी—-—काँची (नगर)
- काञ्चिनगरी—स्त्री॰—काञ्चिः - नगरी—-—काँची (नगर)
- काञ्चिपदम्—नपुं॰—काञ्चिः - पदम्—-—कूल्हा, नितम्ब
- काञ्जिकम्—नपुं॰—-—कुत्सिका अञ्जिका प्रकाशो यस्य - कु - अञ्ज् - ण्वुल् - इत्वम् को कादेशः—खटास से युक्त एक प्रकार का पेय, काँजी
- काञ्जिका—स्त्री॰—-—कुत्सिका अञ्जिका प्रकाशो यस्य - कु - अञ्ज् - ण्वुल् - टाप् - इत्वम् को कादेशः—खटास से युक्त एक प्रकार का पेय, काँजी
- काटुकम्—नपुं॰—-—कटुकस्य भावः - अण्—खटास, अम्लता
- काठः—पुं॰—-—कठ् - घञ्—चट्टान, पत्थर
- काठिनम्—नपुं॰—-—कठिन - अण्—कठोरता, कड़ापन
- काठिनम्—नपुं॰—-—कठिन - अण्—निष्ठुरता, निर्दयता, क्रूरता
- काठिन्यम्—नपुं॰—-—कठिन - ष्यञ् —कठोरता, कड़ापन
- काठिन्यम्—नपुं॰—-—कठिन - ष्यञ् —निष्ठुरता, निर्दयता, क्रूरता
- काण—वि॰—-—कण् - घञ्—एक आँख वाला
- काण—वि॰—-—कण् - घञ्—छिद्रवाला, फटा हुआ
- काणेयः—पुं॰—-—काणा - ढक्—कानी स्त्री का पुत्र
- काणेरः—पुं॰—-—काणा -ढ्रक् —कानी स्त्री का पुत्र
- काणेली—स्त्री॰—-—काण - इल् - अच् - ङीष्—असती या व्यभिचारिणी स्त्री
- काणेली—स्त्री॰—-—काण - इल् - अच् - ङीष्—अविवाहिता स्त्री
- काणेलीमातृ—स्त्री॰—काणेली - मातृ—-—अविवाहित माता का पुत्र, हरामी
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अनुभाग, अंश, खंड
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—पौधे का एक गाँठ से दूसरी गाँठ तक का भाग, पोरी
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—डंठल, तना, शाखा
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—ग्रन्थ का भाग
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—एक पृथक् विभाग या विषय
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—झुंड, गट्ठर, समुदाय
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—बाण
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—लम्बी हड्डी, भुजाओं या पैरों की हड्डी
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—बेत, सरकण्डा
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—लकड़ी, लाठी
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—पानी
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अवसर, मौका
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—निजी जगह
- काण्डः—पुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अनिष्टकर, बुरा, पापमय
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अनुभाग, अंश, खंड
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—पौधे का एक गाँठ से दूसरी गाँठ तक का भाग, पोरी
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—डंठल, तना, शाखा
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—ग्रन्थ का भाग
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—एक पृथक् विभाग या विषय
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—झुंड, गट्ठर, समुदाय
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—बाण
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—लम्बी हड्डी, भुजाओं या पैरों की हड्डी
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—बेत, सरकण्डा
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—लकड़ी, लाठी
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—पानी
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अवसर, मौका
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—निजी जगह
- काण्डम्—नपुं॰—-—कण् - ड, दीर्घः—अनिष्टकर, बुरा, पापमय
- काण्डकारः—पुं॰—काण्ड - कारः—-—बाणों का निर्माता
- काण्डगोचरः—पुं॰—काण्ड - गोचरः—-—लोहे का बाण
- काण्डपटः—पुं॰—काण्ड - पटः—-—कनात, परदा
- काण्डपटकः—पुं॰—काण्ड - पटकः—-—कनात, परदा
- काण्डपातः—पुं॰—काण्ड - पातः—-—तीर की मार, बाण का परास
- काण्डपृष्ठः—पुं॰—काण्ड - पृष्ठः—-—शस्त्रजीवी, सैनिक
- काण्डपृष्ठः—पुं॰—काण्ड - पृष्ठः—-—वैश्य स्त्री का पति
- काण्डपृष्ठः—पुं॰—काण्ड - पृष्ठः—-—दत्तक पुत्र, औरस से भिन्न कोई अन्य पुत्र
- काण्डपृष्ठः—पुं॰—काण्ड - पृष्ठः—-—अधम कुल, जाति-धर्म या अपने व्यवसाय को कलंक लगाने वाला, कमीना, नमकहराम,
- काण्डभङ्गः—पुं॰—काण्ड - भङ्गः—-—किसी अंग या हड्डी का टूटना
- काण्डवीणा—स्त्री॰—काण्ड - वीणा—-—चाण्डाल की वीणा
- काण्डसन्धिः—पुं॰—काण्ड - सन्धिः—-—ग्रन्थि, जोड़
- काण्डस्पष्टः—पुं॰—काण्ड - स्पष्टः—-—शस्त्रजीवी, योद्धा, सैनिक
- काण्डवत्—पुं॰—-—काण्ड - मतुप् मस्य वः—धनुर्धारी
- काण्डीरः—पुं॰—-—काण्ड - ईरन्—धनुर्धारी
- काण्डोलः—पुं॰—-—काण्डोल - अण्—नरकुल की बनी टोकरी
- कात्—अव्य॰—-—कुत्सितम् अतति अनेन कु - अत् - क्विप् को कादेशः—तिरस्कार सूचक उद्गार, प्रायः कृ के साथ
- कात्कृ——-—-—अपमानित करना, तिरस्कार करना
- कातर—वि॰—-—ईषत् तरति स्वकार्यसिद्धिं गच्छति- तॄ - अच् कोः कादेशः @ तारा॰—कायर, डरपोक, हतोत्साह
- कातर—वि॰—-—ईषत् तरति स्वकार्यसिद्धिं गच्छति- तॄ - अच् कोः कादेशः @ तारा॰—दुःखी, शोकान्वित, भयभीत
- कातर—वि॰—-—ईषत् तरति स्वकार्यसिद्धिं गच्छति- तॄ - अच् कोः कादेशः @ तारा॰—विक्षुब्ध, विस्मित, उद्विग्न
- कातर—वि॰—-—ईषत् तरति स्वकार्यसिद्धिं गच्छति- तॄ - अच् कोः कादेशः @ तारा॰—भय कए कारण कांपने वाला
- कातर्यम्—नपुं॰—-—कातर - ष्यञ्—कायरता
- कात्यायनः—पुं॰—-—कतस्य गोत्रापत्यम्, कत् - यञ् - फक्—एक प्रसिद्ध वैयाकरण जिसने पाणिनि के सूत्रों पर अनुपूरक वार्तिक लिखे हैं
- कात्यायनः—पुं॰—-—कतस्य गोत्रापत्यम्, कत् - यञ् - फक्—एक ऋषि जिसने श्रौतसूत्र व गृह्य सूत्र की रचना की है
- कात्यायनी—स्त्री॰—-—कात्यायन - ङीष्—एक प्रौढ़ा या अधेड़ विधवा
- कात्यायनी—स्त्री॰—-—कात्यायन - ङीष्—पार्वती
- कात्यायनीपुत्रः—पुं॰—कात्यायनी - पुत्रः—-—कार्तिकेय
- कात्यायनीसुतः—पुं॰—कात्यायनी - सुतः—-—कार्तिकेय
- काथञ्चित्क—वि॰—-—कथञ्चित् - ठक्—किसी न किसी प्रकार (कठिनाइयों के साथ) सम्पन्न
- काथिकः—पुं॰—-—कथा - ठक्—कहानी सुनाने वाला, कहानी लेखक, कहानीकार
- कादम्बः—पुं॰—-—कदम्ब - अण्—कलहंस
- कादम्बः—पुं॰—-—कदम्ब - अण्—बाण
- कादम्बः—पुं॰—-—कदम्ब - अण्—ईख, गन्ना
- कादम्बः—पुं॰—-—कदम्ब - अण्—कदम्ब वृक्ष
- कादम्बम्—नपुं॰—-—कदम्ब - अण्—कदम्ब वृक्ष का फूल
- कादम्बरम्—नपुं॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः—कदम्ब के फूलों से खींची हुई शराब
- कादम्बरी—स्त्री॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः - ङीप्—कदम्ब वृक्ष के फूलों से खींची हुई शराब
- कादम्बरी—स्त्री॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः - ङीप्—शराब
- कादम्बरी—स्त्री॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः - ङीप्—मदमाते हाथी की कनपटियों से बहने वाला मद
- कादम्बरी—स्त्री॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः - ङीप्—सरस्वती की उपाधि, विद्यादेवी
- कादम्बरी—स्त्री॰—-—कादम्ब - ला - क, लस्य रः - ङीप्—मादा कोयल
- कादम्बिनी—स्त्री॰—-—कादम्ब - इनि, ङीप्—बादलों की पंक्ति
- कादाचित्क—वि॰—-—कदाचित् - ठञ्—सांयोगिक, आकस्मिक
- काद्रवेयः—पुं॰—-—कद्रोः अपत्यम्- कद्रु - ढक्—एक प्रकार का सांप
- काननम्—नपुं॰—-—कन् - णिच् - ल्युट्—जङ्गल की भूमि
- काननम्—नपुं॰—-—कन् - णिच् - ल्युट्—घर, मकान
- काननाग्निः—पुं॰—काननम् - अग्निः—-—जंगली आग, दावानल
- काननौकस्—पुं॰—काननम् - ओकस्—-—जंगलवासी
- काननौकस्—पुं॰—काननम् - ओकस्—-—बन्दर
- कानिष्ठिकम्—नपुं॰—-—कनिष्ठिका - अण्—हाथ की सबसे छोटी (कन्नो) अंगुली
- कानिष्ठिनेयः—पुं॰—-—कनिष्ठा - अपत्यार्थे ठक्—सबसे छोटी लड़की की सन्तान
- कानिष्ठिनेयी—स्त्री॰—-—कनिष्ठा - अपत्यार्थे ठक्, इनङ् च—सबसे छोटी लड़की की सन्तान
- कानीनः—पुं॰—-—कन्यायाः जातः - कन्या - अण, कनीन् आदेश—अविवाहिता स्त्री का पुत्र
- कानीनः—पुं॰—-—कन्यायाः जातः - कन्या - अण, कनीन् आदेश—व्यास
- कानीनः—पुं॰—-—कन्यायाः जातः - कन्या - अण, कनीन् आदेश—कर्ण
- कान्त—वि॰—-—कन् (म्) - क्त—इष्ट, प्रिय, अभीष्ट
- कान्त—वि॰—-—कन् (म्) - क्त—सुखकर, रुचिकर
- कान्त—वि॰—-—कन् (म्) - क्त—मनोहर, सुन्दर
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—प्रेमी
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—पति
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—प्रेमपात्र
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—चन्द्रमा
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—बसन्त ऋतु
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—एक प्रकार का लोहा
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—रत्न
- कान्तः—पुं॰—-—कन् (म्) - क्त—कार्तिकेय की उपाधि
- कान्तम्—नपुं॰—-—कन् (म्) - क्त—केसर, जाफरान
- कान्तायसम्—नपुं॰—कान्त - आयसम्—-—चुम्बक, अयस्कान्त
- कान्ता—स्त्री॰—-—कम् - क्त - टाप्—प्रेमिका या लावण्यमयी स्त्री
- कान्ता—स्त्री॰—-—कम् - क्त - टाप्—गृहस्वामिनी, पत्नी
- कान्ता—स्त्री॰—-—कम् - क्त - टाप्—प्रियङ्गु लता
- कान्ता—स्त्री॰—-—कम् - क्त - टाप्—बड़ी इलायची
- कान्ता—स्त्री॰—-—कम् - क्त - टाप्—पृथ्वी
- कान्ताङ्घ्रिदोहदः—पुं॰—कान्ता - अङ्घ्रिदोहदः—-—अशोक वृक्ष
- कान्तारः—पुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—विशाल बियाबान जङ्गल
- कान्तारः—पुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—खराब सड़क
- कान्तारः—पुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—सूराख, छिद्र
- कान्तारम्—नपुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—विशाल बियाबान जङ्गल
- कान्तारम्—नपुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—खराब सड़क
- कान्तारम्—नपुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—सूराख, छिद्र
- कान्तारः—पुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—लाल रंग की जाति गन्ना
- कान्तारः—पुं॰—-—कान्त - ऋ - अण्—पहाड़ी आबनूस
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —मनोहरता, सौन्दर्य
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —चमक, प्रभा, दीप्ति
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —व्यक्तिगत सजावट या शृङ्गार
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —कामना, इच्छा
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —प्रेमोद्दीप्त सौन्दर्य
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —मनोहर, कमनीय स्त्री
- कान्तिः—स्त्री॰—-—कम् - क्तिन् —दुर्गा की उपाधि
- कान्तिकर—वि॰—कान्तिः - कर—-—सौन्दर्य बढ़ाने वाला, शोभा बढ़ाने वाला
- कान्तिदः—वि॰—कान्तिः - दः—-—सौन्दर्य देने वाला, अलंकृत करने वाला
- कान्तिदम्—नपुं॰—कान्तिः - दम्—-—पित्त
- कान्तिदम्—नपुं॰—कान्तिः - दम्—-—घी
- कान्तिद—वि॰—कान्ति - द—-—अलंकृत करने वाला
- कान्तिदायक—वि॰—कान्ति - दायक—-—अलंकृत करने वाला
- कान्तिदायिन्—वि॰—कान्ति - दायिन्—-—अलंकृत करने वाला
- कान्तिभृत्—पुं॰—कान्ति - भृत्—-—चन्द्रमा
- कान्तिमत्—वि॰—-—कान्ति - मतुप्—मनोहर, सुन्दर, भव्य
- कान्तिमत्—पुं॰—-—कान्ति - मतुप्—चन्द्रमा
- कान्दवम्—नपुं॰—-—कन्दु - अण्—लोहे की कढ़ाई या चूल्हे में धुनी हुई कोई वस्तु
- कान्दविक—वि॰—-—कान्दव - ठक्—नानबाई, हलवाई
- कान्दिशीक—वि॰—-—कां दिशां यामीत्येवं वादिनोऽर्थे ठक्, पृषो॰ साधुः—उड़ने वाला, भागने वाला, भगोड़ा
- कान्यकुब्जः—पुं॰—-—कन्या कुब्जा यत्र - कन्याकुब्ज - अण् पृषो॰ साधुः—एक देश का नाम
- कापटिक—वि॰—-—कपट - ठक्—जालसाज, बेईमान
- कापटिक—वि॰—-—कपट - ठक्—दुष्ट, कुटिल
- कापटिकः—पुं॰—-—कपट - ठक्—चापलूस, चाटुकार, पिछलग्गू
- कापट्यम्—नपुं॰—-—कपट् - ष्यञ्—दुष्टता, जालसाजी, धोखादेही
- कापथः—पुं॰—-—कुत्सितः पन्था—खराब सड़क
- कापालः—पुं॰—-—कपाल - अण्—शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत विशिष्ट सम्प्रदाय का अनुयायी
- कापालिकः—पुं॰—-—कपाल - ठक् —शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत विशिष्ट सम्प्रदाय का अनुयायी
- कापालिन्—पुं॰—-—कपाल - अण्, इनि—शिव
- कापिक—वि॰—-—कपि - ठक्—बन्दर जैसी शक्ल सूरत का या बन्दरों की भाँति व्यवहार करने वाला
- कापिल—वि॰—-—कपिल - अण्—कपिल से सम्बन्ध रखने वाला या कपिल का
- कापिल—वि॰—-—कपिल - अण्—कपिल द्वारा शिक्षित या कपिल से व्युत्पन्न
- कापिलः—पुं॰—-—कपिल - अण्—कपिल मुनि द्वारा प्रस्तुत सांख्यदर्शन का अनुयायी
- कापिलः—पुं॰—-—कपिल - अण्—भूरा रंग
- कापुरुषः—पुं॰—-—कुत्सितः पुरुषः - को कदादेशः—नीच घृणित व्यक्ति, कायर, नराधम, पाजी
- कापेयम्—नपुं॰—-—कपि - ठक्—बन्दर की जाति का
- कापेयम्—नपुं॰—-—कपि - ठक्—बन्दर जैसा व्यवहार बन्दर जैसे दांव पेंच
- कापोत—वि॰—-—कपोत - अण्—भूरे रंग का, धूसर रंग का
- कापोतम्—नपुं॰—-—कपोत - अण्—कबूतरों का समूह
- कापोतम्—नपुं॰—-—कपोत - अण्—सुरमा
- कापोतः—पुं॰—-—कपोत - अण्—भूरा रंग
- कापोताञ्जनम्—नपुं॰—कापोत - अञ्जनम्—-—आँखों में आँजने का सुरमा
- काम्—अव्य॰—-—-—आवाज देकर बुलाने के लिए प्रयुक्त होने वाला अव्यय
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—कामना, इच्छा
- गन्तुकामः —पुं॰—-—-—जाने का इच्छुक
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—अभीष्ट पदार्थ
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—स्नेह, अनुराग
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—प्रेम या विषम भोग की इच्छा जो जीवन के चार उद्देश्यों (पुरुषार्थों) में से एक है
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—विषयों से तृप्ति की इच्छा, कामुकता
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—कामदेव
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—प्रद्युम्न
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—बलराम
- कामः—पुं॰—-—कम् - घञ्—एक प्रकार का आप
- कामम्—नपुं॰—-—कम् - घञ्—विषय, इच्छित पदार्थ
- कामम्—नपुं॰—-—कम् - घञ्—वीर्य, धातु
- कामाग्नि—पुं॰—कामः - अग्नि—-—प्रेम की आग, प्रचण्ड प्रेम
- कामाग्नि—पुं॰—कामः - अग्नि—-—उत्कट इच्छा, कामोन्माद
- कामसंदीपनम्—नपुं॰—काम - संदीपन—-—कामाग्नि को प्रज्वलित करना
- कामसंदीपनम्—नपुं॰—काम - संदीपन—-—कोई कामोद्दीपक पदार्थ
- कामाङ्कुशः—पुं॰—कामः - अङ्कुश—-—अंगुली का नाखून
- कामाङ्कुशः—पुं॰—कामः - अङ्कुश—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग
- कामाङ्गः—पुं॰—कामः - अङ्गः—-—आम का वृक्ष
- कामाधिकारः—पुं॰—कामः - अधिकारः—-—प्रेम या इच्छा का प्रभाव
- कामाधिष्ठित—वि॰—कामः - अधिष्ठित—-—प्रेम के वशीभूत
- कामानलः—पुं॰—कामः - अनलः—-—प्रेम की आग, प्रचण्ड प्रेम
- कामानलः—पुं॰—कामः - अनलः—-—उत्कट इच्छा, कामोन्माद
- कामान्ध—वि॰—कामः - अन्ध—-—प्रेम या कामोन्माद के कारण अन्धा
- कामान्धः—पुं॰—कामः - अन्धः—-—कोयल
- कामान्धा—स्त्री॰—कामः - अन्धा—-—कस्तूरी
- कामान्निन्—वि॰—कामः - अन्निन्—-—जब इच्छा हो तभी भोजन पाने वाला
- कामाभिकाम—वि॰—कामः - अभिकाम—-—कामुक, कामासक्त
- कामारण्यम्—नपुं॰—कामः - अरण्यम्—-—प्रमोद वन या सुहावना उद्यान
- कामारि—वि॰—कामः - अरि—-—शिव की उपाधि
- कामार्थिन्—वि॰—कामः - अर्थिन्—-—शृङ्गार प्रिय, विषयी, कामासक्त
- कामावतारः—पुं॰—कामः - अवतारः—-—प्रद्युम्न
- कामासायः—पुं॰—कामः - अवसायः—-—प्रणयोन्माद या काम का दमन, इच्छानुकूल खाना
- कामाशनम्—नपुं॰—कामः - अशनम्—-—जब चाहे तब भोजन करना
- कामाशनम्—नपुं॰—कामः - अशनम्—-—अनियन्त्रित सुखोपभोग
- कामातुर—वि॰—कामः - आतुर—-—प्रेम का रोगी, काम वेग के कारण रुग्ण
- कामात्मजः—पुं॰—कामः - आत्मजः—-—प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध का विशेषण
- कामात्मन्—वि॰—कामः - आत्मन्—-—विषयी, कामुक, आसक्त
- कामायुधम्—नपुं॰—कामः - आयुधम्—-—कामदेव का बाण
- कामायुधम्—नपुं॰—कामः - आयुधम्—-—जननेन्द्रिय
- कामायुधः—पुं॰—कामः - आयुधः—-—आम का वृक्ष
- कामायुः—पुं॰—कामः - आयुः—-—गिद्ध
- कामायुः—पुं॰—कामः - आयुः—-—गरुण
- कामार्त—वि॰—कामः - आर्त—-—प्रेम का रोगी, कामाभिभूत
- कामासक्त—वि॰—कामः - आसक्त—-—प्रेम या इच्छा के वशीभूत, कामोन्मत्त, कामासक्त
- कामेप्सुः—वि॰—कामः - ईप्सुः—-—अभीष्ट पदार्थ प्राप्त करने के लिए सचेष्ट
- कामेश्वरः—पुं॰—कामः - ईश्वरः—-—कुबेर का विशेषण
- कामेश्वरः—पुं॰—कामः - ईश्वरः—-—परमात्मा
- कामोदकम्—पुं॰—कामः - उदकम्—-—जल का ऐच्छिक तर्पण
- कामोदकम्—पुं॰—कामः - उदकम्—-—विधि द्वारा विहित अधिकारियों को छोड़ कर दिवंगत मित्रों का जल से ऐच्छिक तर्पण
- कामोपहत—वि॰—कामः - उपहत—-—कामोन्माद के वशीभूत, या प्रणय रोगी
- कामकला—स्त्री॰—कामः - कला—-—काम की पत्नी रति
- कामकाम—वि॰—कामः - काम—-—प्रेम या कामोन्माद के अधिदेशों का अनुयायी
- कामकामिन्—वि॰—कामः - कामिन्—-—प्रेम या कामोन्माद के अधिदेशों का अनुयायी
- कामकार—वि॰—कामः - कार—-—इच्छानुकूल काम करने वाला, अपनी कामनाओं में तृप्त रहने वाला
- कामकारः—पुं॰—कामः - कारः—-—ऐच्छिक कार्य, स्वतः स्फूर्त कर्म
- कामकारः—पुं॰—कामः - कारः—-—इच्छा, इच्छा का प्रभाव
- कामकूटः—पुं॰—कामः - कूटः—-—वेश्या का प्रेमी
- कामकूटः—पुं॰—कामः - कूटः—-—वेश्यावृत्ति
- कामकत्—वि॰—कामः - कृत्—-—इच्छानुसार समय पर कार्य करने वाला
- कामकत्—पुं॰—कामः - कृत्—-—परमात्मा
- कामकेलि—वि॰—कामः - केलि—-—कामासक्त
- कामकेलिः—पुं॰—कामः - केलिः—-—प्रेमी
- कामकेलिः—पुं॰—कामः - केलिः—-—संभोग
- कामक्रीडा—स्त्री॰—कामः - क्रीडा—-—प्रेम की रंगरेली, शृङ्गारी खेल
- कामक्रीडा—स्त्री॰—कामः - क्रीडा—-—संभोग
- कामग—वि॰—कामः - ग—-—इच्छानुकूल जाने वाला, इच्छानुसार आने जाने या कार्य करने के योग्य
- कामगा—स्त्री॰—कामः - गा—-—असती तथा कामुक स्त्री
- कामगति—वि॰—कामः - गति—-—अभीष्ट स्थान पर जाने के योग्य
- कामगुणः—पुं॰—कामः - गुणः—-—प्रणयोन्माद का गुण
- कामगुणः—पुं॰—कामः - गुणः—-—स्नेह
- कामगुणः—पुं॰—कामः - गुणः—-—संतृप्ति, भरपूर सुखोपभोग
- कामगुणः—पुं॰—कामः - गुणः—-—विषय, इन्द्रियों को आकृष्ट करने वाले पदार्थ
- कामचर—वि॰—कामः - चर—-—विना किसी प्रतिबन्ध के स्वतन्त्र रूप से घूमने वाला, इच्छानुकूल भ्रमण करने वाला
- कामचार—वि॰—कामः - चार—-—विना किसी प्रतिबन्ध के स्वतन्त्र रूप से घूमने वाला, इच्छानुकूल भ्रमण करने वाला
- कामचार—वि॰—कामः - चार—-—अनियन्त्रित, प्रतिबन्धरहित
- कामचारः—पुं॰—कामः - चारः—-—अनिन्त्रितगति
- कामचारः—पुं॰—कामः - चारः—-—स्वतन्त्र या स्वेच्छापूर्वक कार्य, स्वेच्छाचरिता
- कामचारः—पुं॰—कामः - चारः—-—अपनी इच्छा या अभिलाषा, स्वतन्त्र इच्छा
- कामचारः—पुं॰—कामः - चारः—-—विषयासक्ति
- कामचारः—पुं॰—कामः - चारः—-—स्वार्थ
- कामचारिन्—वि॰—कामः - चारिन्—-—बिना किसी प्रतिबन्ध के घूमने वाला
- कामचारिन्—वि॰—कामः - चारिन्—-—कामासक्त, विषयी
- कामचारिन्—वि॰—कामः - चारिन्—-—स्वेच्छाचारी
- कामचारिन्—पुं॰—कामः - चारिन्—-—गरुड़
- कामचारिन्—पुं॰—कामः - चारिन्—-—चिड़िया
- कामज—वि॰—कामः - ज—-—इच्छा या कामोन्माद से उत्पन्न
- कामजित्—वि॰—कामः - जित्—-—कामोन्माद या प्रेम को जीतने वाला
- कामजित्—पुं॰—कामः - जित्—-—स्कन्द की उपाधि
- कामजित्—पुं॰—कामः - जित्—-—शिव
- कामतालः—पुं॰—कामः - तालः—-—कोयल
- कामद—वि॰—कामः - द—-—इच्छा पूरी करने वाला, प्रार्थना स्वीकार करने वाला
- कामदा—स्त्री॰—कामः - दा—-—कामधेनु
- कामदर्शन—वि॰—कामः - दर्शन—-—मनोहर दिखाई देने वाला
- कामदुघ—वि॰—कामः - दुघ—-—अपनी इच्छाओं को दोहने वाला, अभीष्ट पदार्थों को देने वाला
- कामदुघा—स्त्री॰—कामः - दुघा—-—सब इच्छाओं को पूरा करने वाला काल्पनिक गाय
- कामदुह्—स्त्री॰—कामः - दुह्—-—सब इच्छाओं को पूरा करने वाला काल्पनिक गाय
- कामदूती—स्त्री॰—कामः - दूती—-—मादा कोयल
- कामदेवः—पुं॰—कामः - देवः—-—प्रेम का देवता
- कामधेनुः—स्त्री॰—कामः - धेनुः—-—समृद्धि की गौ, सब इच्छाओं को पूरा करने वाली स्वर्गीय गाय
- कामध्वंसिन्—पुं॰—कामः - ध्वंसिन्—-—शिव की उपाधि
- कामपति—स्त्री॰—कामः - पति—-—कामदेव की स्त्री रति
- कामपत्नी—स्त्री॰—कामः - पत्नी—-—कामदेव की स्त्री रति
- कामपालः—पुं॰—कामः - पालः—-—बलराम
- कामप्रवेदनम्—नपुं॰—कामः - प्रवेदनम्—-—अपनी इच्छा, कामना या आशा को अभिव्यक्त करना
- कामप्रश्नः—पुं॰—कामः - प्रश्नः—-—अनियन्त्रित या मुक्तप्रश्न
- कामकलः—पुं॰—कामः - कलः—-—आम के वृक्ष की एक जाति
- कामभोगाः—पुं॰—कामः - भोगाः—-—विषयोपभोग में तृप्ति
- काममहः—पुं॰—कामः - महः—-—चैत्रपूर्णिमा को मनाया जाने वाला कामदेव का पर्व
- काममूढ—वि॰—कामः - मूढ—-—प्रेमप्रभावित या प्रेमाकृष्ट
- काममोहित—वि॰—कामः - मोहित—-—प्रेमप्रभावित या प्रेमाकृष्ट
- कामरूप—वि॰—कामः - रूप—-—इच्छानुकूल रूप धारण करने वाला
- कामरूप—वि॰—कामः - रूप—-—सुन्दर, सुहावना
- कामरूपाः—पुं॰—कामः - रूपाः—-—बंगाल के पूर्व में स्थित एक जिला
- कामरेखा—पुं॰—कामः - रेखा—-—वेश्या, रंडी
- कामलेखा—पुं॰—कामः - लेखा—-—वेश्या, रंडी
- कामलता—पुं॰—कामः - लता—-—पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग
- कामलोल—वि॰—कामः - लोल—-—कामोन्मत्तम्, प्रेम का रोगी
- कामवरः—पुं॰—कामः - वरः—-—इच्छानुकूल चुना हुआ उपहार
- कामवल्लभः—पुं॰—कामः - वल्लभः—-—वसन्त ऋतु
- कामवल्लभः—पुं॰—कामः - वल्लभः—-—आम का वृक्ष
- कामवल्लभा—स्त्री॰—कामः - वल्लभा—-—ज्योत्स्ना, चाँदनी
- कामवश—वि॰—कामः - वश—-—प्रेममुग्ध
- कामवशः—पुं॰—कामः - वशः—-—प्रेम के वशीभूत होना
- कामवश्य—वि॰—कामः - वश्य—-—प्रेमासक्त
- कामवाद—वि॰—कामः - वाद—-—इच्छानुसार कुछ भी कहना, मनमाना कहना
- कामविहंतृ—वि॰—कामः - विहंतृ—-—इच्छाओं का हनन करने वाला
- कामवृत्त—वि॰—कामः - वृत्त—-—विषय वासना में लिप्त, स्वेच्छाचारी, व्यसनासक्त
- कामवृत्ति—वि॰—कामः - वृत्ति—-—इच्छानुसार काम करने वाला, स्वेच्छाचारी, स्वतन्त्र
- कामवृत्तिः—पुं॰—कामः - वृत्तिः—-—मुक्त अनियन्त्रित कार्य
- कामवृत्तिः—पुं॰—कामः - वृत्तिः—-—मन की स्वतन्त्रता
- कामवृद्धिः—पुं॰—कामः - वृद्धिः—-—कामेच्छा में वृद्धि
- कामवृन्तम्—स्त्री॰—कामः - वृन्तम्—-—शृङ्वल्ली का फूल
- कामशरः—कामशरः—कामः - शरः—-—प्रेम का बाण
- कामशरः—कामशरः—कामः - शरः—-—आम का वृक्ष
- कामशास्त्रम्—नपुं॰—कामः - शास्त्रम्—-—प्रेमविज्ञान, रतिशास्त्र
- कामसंयोगः—पुं॰—कामः - संयोगः—-—अभीष्ट पदार्थों की प्राप्ति
- कामसखः—पुं॰—कामः - सखः—-—वसन्त ऋतु
- कामसू—वि॰—कामः - सू—-—इच्छा को पूरा करने वाला
- कामसूत्रम्—नपुं॰—कामः - सूत्रम्—-—वात्सायनमुनिकृत रतिशास्त्र
- कामहैतुक—वि॰—कामः - हैतुक—-—विना वास्तविक कारण के केवल इच्छामात्र से उत्पन्न
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—स्वेच्छा से, इच्छापूर्वक
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—अपनी इच्छा से
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—ज्ञानपूर्वक, इरादतन
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—जानबूझ कर
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—प्रेमावश में, भावनावश, कामुकतावश
- कामतः—अव्य॰—-—काम - तसिल्—इच्छापूर्वक, स्वतन्त्रता से बिना किसी नियन्त्रण के
- कामन—वि॰—-—कम् - णिङ् - युच्—कामासक्त, कामातुर
- कामनम्—नपुं॰—-—कम् - णिङ् - युच्—चाह, कामना
- कामना—स्त्री॰—-—कम् - णिङ् - युच् - टाप्—कामना, इच्छा
- कामनीयम्—नपुं॰—-—कमनीयस्य भावः - अण्—सौन्दर्य, आकर्षकता
- कामन्धमिन्—वि॰—-—कामं यथेष्टं धमति - काम - ध्मा - णिनि, धमादेशः मुम् च नि॰—कसेरा, ठठेरा
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—कामना या रुचि के अनुसार, इच्छानुसार, कामङ्गामी
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—सहमतिपूर्वक चाहना
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—मन भर कर
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—इच्छापूर्वक, प्रसन्नता के साथ
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—अच्छा, बहुत अच्छा
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—मान लिया (कि) यह सच है कि, निस्सन्देह
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—बेशक, सचमुच, वास्तव में
- कामम्—अव्य॰—-—कम् - णिङ् - अम्—अधिक अच्छा, चाहे
- कामयमान—वि॰—-—कम् - णिङ् - शानच्, पक्षे मुक्, तृच् वा—कामासक्त, कामुक
- कामयान—वि॰—-—कम् - णिङ् - शानच्, पक्षे मुक्, तृच् वा—कामासक्त, कामुक
- कामयितृ—वि॰—-—कम् - णिङ् - शानच्, पक्षे मुक्, तृच् वा—कामासक्त, कामुक
- कामल—वि॰—-—कम् - णिङ् - कलच्—कामासक्त, कामुक
- कामलः—पुं॰—-—कम् - णिङ् - कलच्—वसन्त ऋतु
- कामलः—पुं॰—-—कम् - णिङ् - कलच्—मरुस्थल
- कामलिका—स्त्री॰—-—कमल - कन् - टाप्, इत्वम्—मादक शराब
- कामवत्—वि॰—-—काम - मतुप्, मस्य वत्वम्—इच्छुक, चाहने वाला
- कामवत्—वि॰—-—काम - मतुप्, मस्य वत्वम्—कामासक्त
- कामिन्—वि॰—-—कम् - णिनि—कामासक्त
- कामिन्—वि॰—-—कम् - णिनि—इच्छुक
- कामिन्—वि॰—-—कम् - णिनि—प्रेमी, प्रिय
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—प्रेम करने वाला कामुक
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—जोरु का गुलाम
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—चकवा
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—चिड़िया
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—शिव की उपाधि
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—चन्द्रमा
- कामिन्—पुं॰—-—कम् - णिनि—कबूतर
- कामिनी—स्त्री॰—-—कम् - णिनि - ङीप्—प्रेम करने वाली, स्नेहमयी, प्रिय स्त्री
- कामिनी—स्त्री॰—-—कम् - णिनि - ङीप्—मनोहर और सुन्दर स्त्री
- कामिनी—स्त्री॰—-—कम् - णिनि - ङीप्—सामान्य स्त्री
- कामिनी—स्त्री॰—-—कम् - णिनि - ङीप्—भीरु स्त्री
- कामिनी—स्त्री॰—-—कम् - णिनि - ङीप्—मादक शराब
- कामुक—वि॰—-—कम् - उकञ्—कामना करता हुआ, इच्छुक
- कामुक—वि॰—-—कम् - उकञ्—कामासक्त, कामातुर
- कामुकः—पुं॰—-—कम् - उकञ्—प्रेमी, कामातुर
- कामुकः—पुं॰—-—कम् - उकञ्—चिड़िया
- कामुकः—पुं॰—-—कम् - उकञ्—अशोक वृक्ष
- कामुका—स्त्री॰—-—कम् - उकञ् - टाप्—धन की इच्छुक स्त्री
- कामुकी—स्त्री॰—-—कम् - उकञ् - ङीप्—कामातुर या कामासक्त स्त्री
- काम्पिल्लः—पुं॰—-—कम्पिला नदी विशेषः तस्याः अदूरे भवः - कम्पिला - = काम्पिल् - अरम् नि॰ साधुः, कम्पिला - अण् नि॰ दीर्घः—एक वृक्ष का नाम
- काम्पीलः—पुं॰—-—कम्पिला नदी विशेषः तस्याः अदूरे भवः - कम्पिला - = काम्पिल् - अरम् नि॰ साधुः, कम्पिला - अण् नि॰ दीर्घः—एक वृक्ष का नाम
- काम्बलः—पुं॰—-—कम्बलेन आवृतः - कम्बल - अण्—ऊनी कपड़े, कंबल से ढकी हुई गाड़ी
- काम्बविकः—पुं॰—-—कम्बु - ठक्—शंख, सीपी के बने आभूषणों का विक्रेता, शंख, सीपी का व्यापारी
- काम्बोजः—पुं॰—-—कम्बोज - अण्—कम्बोज देश का निवासी
- काम्बोजः—पुं॰—-—कम्बोज - अण्—कम्बोज का राजा
- काम्बोजः—पुं॰—-—कम्बोज - अण्—पुन्नाग वृक्ष
- काम्बोजः—पुं॰—-—कम्बोज - अण्—कंबोज देश के घोड़ो की एक जाति
- काम्य—वि॰—-—कम् - णिङ् - यत्—वांछनीय, इच्छा के उपयुक्त
- काम्य—वि॰—-—कम् - णिङ् - यत्—ऐच्छिक, किसी विशेष उद्देश्य से किया गया
- काम्य—वि॰—-—कम् - णिङ् - यत्—सुन्दर, मनोहर, लावण्यमय, खूबसूरत
- काम्या—स्त्री॰—-—-—कामना, इच्छा, इरादा
- काम्याभिप्रायः—पुं॰—काम्य - अभिप्रायः—-—स्वार्थ निहित प्रयोजन
- काम्यकर्मन्—नपुं॰—काम्य - कर्मन्—-—किसी विशेष उद्देश्य तथा भावी फल की दृष्टि से किया गया धर्मानुष्ठान
- काम्यगिर्—स्त्री॰—काम्य - गिर्—-—रुचि के अनुकूल भाषण
- काम्यदानम्—नपुं॰—काम्य - दानम्—-—स्वीकार करने योग्य उपहार
- काम्यदानम्—नपुं॰—काम्य - दानम्—-—स्वंतन्त्र इच्छा से दिया गया उपहार, ऐच्छिक भेंट
- काम्यमरणम्—नपुं॰—काम्य - मरणम्—-—स्वेच्छापूर्वक मरना, आत्महत्या
- काम्यव्रतम्—नपुं॰—काम्य - व्रतम्—-—ऐच्छिक व्रत
- काम्ल —वि॰—-—कु ईषत् अम्लः - को कादेशः—कुछ थोड़ा, खट्टा, ईषदम्ल
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—शरीर
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—वृक्ष का तना
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—वीणा का शरीर
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—समुदाय, जमघट, संचय
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—मूलधन, पूंजी
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—घर, आवास वसति
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—कुंदा, चिह्न
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—नैसर्गिक स्वभाव
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—वृक्ष का तना
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—वीणा का शरीर
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—समुदाय, जमघट, संचय
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—मूलधन, पूंजी
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—घर, आवास वसति
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—कुंदा, चिह्न
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—नैसर्गिक स्वभाव
- कायम्—नपुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—अंगुलियों से नीचे का हाथ का भाग, विशेषकर कन्नो अंगुली
- कायः—पुं॰—-—चीयतेऽस्मिन् अस्थ्यादिकमिति कायः, चि - घञ्, आदेः ककारः—आठ प्रकार के विवाहों में से एक जिसे ‘प्राजापत्य' कहते हैं
- कायाग्निः—पुं॰—कायः - अग्निः—-—पाचनशक्ति
- कायक्लेशः—पुं॰—कायः - क्लेशः—-—शरीर का कष्ट / पीड़ा
- कायचिकित्सा—स्त्री॰—कायः - चिकित्सा—-—आयुर्वेद के आठ विभागों में से तीसरा, समस्त शरीर में व्याप्त रोगों की चिकित्सा
- कायमानम्—नपुं॰—कायः - मानम्—-—शरीर की माप
- कायबलनम्—नपुं॰—कायः - बलनम्—-—कवच
- कायस्थः—पुं॰—कायः - स्थः—-—लेखक जाति
- कायस्थ—वि॰—-—-—कायस्थ जाति का पुरुष
- कायस्थ—वि॰—-—-—कायस्थ जाति की स्त्री
- कायस्थ—वि॰—-—-—आँवले का वृक्ष
- कायस्थी—स्त्री॰—-—-—कायस्थ की पत्नी
- कायस्थित—वि॰—काय - स्थित—-—शरीरगत, शारीरिक
- कायक—वि॰—-—काय - वुञ्—शरीर संबन्धी, शारीरिक, शरीर विषयक
- कायिका—स्त्री॰—-—काय - वुञ् - टाप्, इत्वम्—शरीर संबन्धी, शारीरिक, शरीर विषयक
- कायिक—वि॰—-—काय - ठक्—शरीर संबन्धी, शारीरिक, शरीर विषयक
- कायिकी—स्त्री॰—-—काय - ठक् - ङीप्—शरीर संबन्धी, शारीरिक, शरीर विषयक
- कायिका—स्त्री॰—-—काय - ठक् - टाप्—ब्याज
- कायकवृद्धिः—स्त्री॰—कायक - वृद्धिः—-—धरोहर रक्खे हुए किसी पशु या वाणिज्य-सामग्री के उपयोग के बदले मुजरा दिया गया ब्याज
- कायकवृद्धिः—स्त्री॰—कायक - वृद्धिः—-—ऐसा ब्याज जिसकी अदायगी से मूलधन पर कोई प्रभाव न पड़े
- कार—वि॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—बनाने वाला, करने वाला,सम्पादन करने वाला, कार्य करने वाला, निर्माता, कर्ता, रचयिता
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—कृत्य, कार्य जैसा कि ‘पुरुषकार' में
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—किसी ऐसी ध्वनि या शब्द को प्रकट करने वाला पद जो विभक्ति चिह्न से युक्त न हो जैसा कि अकार
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—प्रयास, चेष्टा
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—धार्मिक तप
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—पति, स्वामी, मालिक
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—संकल्प
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—शक्ति
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—सामर्थ्य
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—कर या चुंगी
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—हिम का ढर
- कारः—पुं॰—-—कृ - अण् - घञ् वा—हिमालय पर्वत
- कारावरः—पुं॰—कारः - अवरः—-—एक मिश्रित या नीच जाति का पुरुष जो निषाद पिता व वैदेही माता से उत्पन्न हुआ
- कारकर—वि॰—कार - कर—-—कार्य करने वाला, अभिकर्ता
- कारभूः—पुं॰—कार - भूः—-—चुंगीघर
- कारक—वि॰—-—कृ - ण्वुल्—बनाने वाला, अभिनय करने वाला, करने वाला, सम्पादन करने वाला, रचने वाला, कर्ता आदि
- कारक—वि॰—-—कृ - ण्वुल्—अभिकर्ता
- कारकम्—वि॰—-—कृ - ण्वुल्—संज्ञा और क्रिया के मध्य रहने वाला सम्बन्ध
- कारकम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल्—व्याकरण का वह भाग जो इनके व्यवहार को बतलाता है
- कारकदीपकम्—नपुं॰—कारक - दीपकम्—-—एक अलंकार जिसमें एक ही कारक उत्तरोत्तर अनेक क्रियाओं से संयुक्त हो
- कारकहेतुः—पुं॰—कारक - हेतुः—-—क्रियात्मक या क्रिया परक कारण
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—हेतु, तर्क
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—आधार, प्रयोजन, उद्देश्य
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—उपकरण साधन
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—वह कारक जो निश्चित रूप से किसी फल का पूर्ववर्ती कारण हो
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—जननात्मक कारण - सृष्टिकर्ता, पिता
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—तत्त्व, तत्त्व-सामग्री
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—किसी नाटक या काव्य का मूल या कथावस्तु आदि
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—इन्द्रिय
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—शरीर
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—चिह्न
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—दस्तावेज
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—प्रमाण या अधिकार पत्र
- कारणम्—नपुं॰—-—कृ - ण्वुल् - ल्युट्—जिसके ऊपर कोई मत या व्यवस्था निर्भर करती है
- कारणोत्तरम्—नपुं॰—कारणम् - उत्तरम्—-—विशेष तर्क, अभियोग के कारण को मुकरना, आरोप को सामान्यतः मान लेना परन्तु वास्तविक (वैध) तथ्य को अस्वीकृत कर देना
- कारणकारणम्—नपुं॰—कारणम् - कारणम्—-—प्रारम्भिक या प्राथमिक कारण, अणु
- कारणगुणः—पुं॰—कारणम् - गुणः—-—कारण का गुण
- कारणभूत—वि॰—कारणम् - भूत—-—जो कारण बना हो
- कारणभूत—वि॰—कारणम् - भूत—-—कारण बनने वाला
- कारणमाला—स्त्री॰—कारणम् - माला—-—एक अलंकार ‘कारणों की शृंखला'
- कारणवादिन्—पुं॰—कारणम् - वादिन्—-—अभियोक्ता, वादि
- कारणवारि—नपुं॰—कारणम् - वारि—-—सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न मूल जल
- कारणविहीन—वि॰—कारणम् - विहीन—-—बिना कारण के
- कारणशरीरम्—नपुं॰—कारणम् - शरीरम्—-—शरीर का आन्तरिक बीजारोपण, मूलसूत्र, या कारणों की रूपरेखा
- कारणा—स्त्री॰—-—कृ - णिच् - युच् - टाप्—पीड़ा, वेदना
- कारणा—स्त्री॰—-—कृ - णिच् - युच् - टाप्—नरक में डालना
- कारणिक—वि॰—-—कारण - ठक्—परीक्षक, निर्णायक
- कारणिक—वि॰—-—कारण - ठक्—कारणपरक, नैमित्तिक
- कारण्डवः—पुं॰—-—रम् - ड = रण्डः, ईषत् रण्डः = कारण्डः तं वाति - वा - क—एक प्रकार की बत्तख
- कारन्धमिन्—पुं॰—-—कर एव कारः, तं धमति, कार - ध्मा - इनि पृषो॰—कसेरा
- कारन्धमिन्—पुं॰—-—कर एव कारः, तं धमति, कार - ध्मा - इनि पृषो॰—खनिज विद्या को जानने वाला
- कारवः—पुं॰—-—का इति रवो यस्य—कौवा
- कारस्करः—पुं॰—-—कारं करोति - कर - कृ -ट, सुट्—किंपाक वृक्ष
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—कारावास, बन्दीकरण
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—जेलखाना
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—बन्दीगृह
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—वीणा का गर्दन के नीचे का भाग, तूंबी
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—पीड़ा, कष्ट
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—दूती
- कारा—स्त्री॰—-—कीर्यते क्षिप्यते दण्डार्हो यस्याम् - कृ - अङ्, गुणः, दीर्घः, नि॰—सोने का काम करने वाली स्त्री
- कारागारम्—नपुं॰—कारा - अगारम्—-—बन्दीघर, जेलखाना
- कारागृहम्—नपुं॰—कारा - गृहम्—-—बन्दीघर, जेलखाना
- कारावेश्मन्—वि॰—कारा - वेश्मन्—-—बन्दीघर, जेलखाना
- कारागुप्तः—पुं॰—कारा - गुप्तः—-—बन्दी, कैदी
- कारापालः—पुं॰—कारा - पालः—-—बन्दीगृह का रखवाला
- कारापालः—पुं॰—कारा - पालः—-—कारागार का अधीक्षक
- कारिः—स्त्री॰—-—कृ - अञ्—कार्य, कर्म
- कारिः—पुं॰—-—कृ - अञ्—कलाकार, शिल्पकार
- कारिका—स्त्री॰—-—कृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—नर्तकी
- कारिका—स्त्री॰—-—कृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—व्यवसाय, धंधा
- कारिका—स्त्री॰—-—कृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—व्याकरण, दर्शन तथा विज्ञान से संबद्ध काव्य, या पद्य संग्रह
- कारिका—स्त्री॰—-—कृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—यन्त्रणा, यातना
- कारिका—स्त्री॰—-—कृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—ब्याज
- कारीषम्—नपुं॰—-—करीष - अण्—सूखे गोबर की करसियों के ढ़ेर
- कारु—वि॰—-—कृ - अण् —निर्माता, कर्ता, अभिकर्ता, नौकर
- कारु—वि॰—-—कृ - अण् —कारीगर, शिल्पकार, कलाकार
- कारुः—पुं॰—-—कृ - अण् —देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा
- कारुः—पुं॰—-—कृ - अण् —कला, विज्ञान
- कारुचौरः—पुं॰—कारुः - चौरः—-—सेंध मारने वाला, डाकू
- कारुजः—पुं॰—कारुः - जः —-—शिल्प से बनी कोई वस्तु, शिल्पकर्म द्वारा निर्मित वस्तु
- कारुजः—पुं॰—कारुः - जः —-—युवा हाथी या हाथी का बच्चा
- कारुजः—पुं॰—कारुः - जः —-—पहाड़ी, बमी
- कारुजः—पुं॰—कारुः - जः —-—फेन, झाग
- कारुणिक—वि॰—-—करुणा - ठक्—दयालु, कृपालु, सदय
- कारुण्यम्—नपुं॰—-—करुणा - ष्यञ्—दया, कृपा, रहम
- कार्कश्यम्—नपुं॰—-—कर्कश - ष्यञ्—कठोरता, रूखापन
- कार्कश्यम्—नपुं॰—-—कर्कश - ष्यञ्—दृढ़ता
- कार्कश्यम्—नपुं॰—-—कर्कश - ष्यञ्—ठोसपन, कड़ापन
- कार्कश्यम्—नपुं॰—-—कर्कश - ष्यञ्—कठोरहृदयता, सख्ती, क्रूरता
- कार्तवीर्यः—पुं॰—-—कृतवीर्य - अण्—कृतवीर्य का पुत्र, हैहय देश का राजा, जिसकी राजधानी माहिष्मती नगरी थी
- कार्तस्वरम्—नपुं॰—-—कृतस्वर - अण्—सोना
- कार्तान्तिकः—पुं॰—-—कृतान्त - ठक्—ज्योतिषी, भाग्यवक्ता
- कार्तिक—वि॰—-—कृत्तिका - अण्—कार्तिक मास से संबन्ध रखने वाला
- कार्तिकः—पुं॰—-—कृत्तिका - अण्—वह महीना जब कि पूरा चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र के निकट रहता है
- कार्तिकः—पुं॰—-—कृत्तिका - अण्—स्कन्द का विशेषण
- कार्तिकी —स्त्री॰—-—कृत्तिका - अण् - ङीप्—कार्तिक मास की पूर्णिमा
- कार्तिकेयः—पुं॰—-—कृत्तिकानामपत्यं ढक्—स्कन्द
- कार्तिकेयप्रसूः—स्त्री॰—कार्तिकेयः - प्रसूः—-—पार्वती, कार्तिकेय की माता
- कार्त्स्न्यम्—नपुं॰—-—कृत्स्न - ष्यञ्—पूर्णता, समग्रता, समूचापन
- कार्दम—वि॰—-—कर्दम - अण्—कीचड़ से भरा हुआ, मिट्टी से सना हुआ या गारे से लथपथ
- कार्पटः—पुं॰—-—कर्पट - अण्—आवेदक, अभियोक्ता, अभ्यर्थी
- कार्पटः—पुं॰—-—कर्पट - अण्—चिथड़ा
- कार्पटः—पुं॰—-—कर्पट - अण्—लाक्षा
- कार्पटिकः—पुं॰—-—कर्पट - ठक्—तीर्थयात्री
- कार्पटिकः—पुं॰—-—कर्पट - ठक्—तीर्थों के जलों को ढोकर अपनी आजीविका कमाने वाला
- कार्पटिकः—पुं॰—-—कर्पट - ठक्—तीर्थयात्रियों का दल
- कार्पटिकः—पुं॰—-—कर्पट - ठक्—अनुभवी पुरुष
- कार्पटिकः—पुं॰—-—कर्पट - ठक्—पिछलग्गू
- कार्पास—वि॰—-—कर्पास - अण्—रूई का बना हुआ
- कार्पासः—पुं॰—-—कर्पास - अण्—रूई की बनी हुई कोई वस्तु
- कार्पासः—पुं॰—-—कर्पास - अण्—कागज़
- कार्पासम्—नपुं॰—-—कर्पास - अण्—रूई की बनी हुई कोई वस्तु
- कार्पासम्—नपुं॰—-—कर्पास - अण्—कागज़
- कार्पासी—स्त्री॰—-—कर्पास - अण्—रूई का पौधा, बाड़ी
- कार्पासास्थि—नपुं॰—कार्पास - अस्थि—-—कपास का बीज बिनौला
- कार्पासनासिका—स्त्री॰—कार्पास - नासिका—-—तकुआ
- कार्पाससौत्रिक—वि॰—कार्पास - सौत्रिक—-—रूई के सूत से बना हुआ
- कार्पासिक—वि॰—-—कर्पास - ठक्—कपास का या रूई से बना हुआ
- कार्पासिका—स्त्री॰—-—कार्पासी - कन् - टाप्, ह्रस्व—रूई या कपास का पौधा, बाड़ी
- कार्पासी—स्त्री॰—-—कार्पास - ङीष्—रूई या कपास का पौधा, बाड़ी
- कार्मण—वि॰—-—कर्मन् - अण्—काम को पूरा करने वाला
- कार्मण—वि॰—-—कर्मन् - अण्—कार्य को पूर्ण रूप से भलीभाँति करने वाला
- कार्मणम्—नपुं॰—-—कर्मन् - अण्—जादू, अभिचार
- कार्मिक—वि॰—-—कर्मन् - ठक्—हस्तनिर्मित, हाथ से बना हुआ
- कार्मिक—वि॰—-—कर्मन् - ठक्—बेलबूटों से युक्त, रंगीन धागों से अन्तर्मिश्रित
- कार्मिक—वि॰—-—कर्मन् - ठक्—रंगबिरंगा या बेलबूटेदार वस्त्र
- कार्मुक—वि॰—-—कर्मन् - उकञ्—काम करने योग्य, भलीभाँति और पूर्णतः काम करने वाला
- कार्मुकम्—नपुं॰—-—कर्मन् - उकञ्—धनुष
- कार्मुकम्—नपुं॰—-—कर्मन् - उकञ्—बाँस
- कार्य—सं॰ कृ॰—-—कृ - ण्यत्—जो किया जाना चाहिए, बनना चाहिए, सम्पन्न होना चाहिए, कार्यान्वित किया जाना चाहिए आदि
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—काम, मामला, बात
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—कर्तव्य
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—पेशा, जोखिम का काम, आकस्मिक कार्य
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—धार्मिककृत्य या अनुष्ठान
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—प्रयोजन, उद्देश्य, अभिप्राय
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—कमी, आवश्यकता, प्रयोजन, मतलब
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—संचालन, विभाग
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—कानूनी अभियोग, व्यावहारिक मामला, झगड़ा आदि
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—फल, किसी कारण का अनिवार्य परिणाम
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—क्रियाविधि, विभक्तिकार्य - रूपनिर्माण
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—नाटक का उपसंहार
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—स्वास्थ्य
- कार्यम्—नपुं॰—-—कृ - ण्यत्—मूल
- कार्याक्षम—वि॰—कार्य - अक्षम—-—अपना कार्य करने में असमर्थ, अक्षम
- कार्याकार्यविचारः—पुं॰—कार्य - अकार्यविचारः—-—किसी वस्तु के औचित्य से सम्बन्ध रखने वाली चर्चा, किसी कार्यप्रणाली के अनुकूल या प्रतिकूल विचारविमर्श
- कार्याधिपः—पुं॰—कार्य - अधिपः—-—किसी कार्य या विषय का अधीक्षक
- कार्याधिपः—पुं॰—कार्य - अधिपः—-—वह ग्रह या नक्षत्र जो ज्योतिष में किसी प्रश्न का निर्णायक होता है
- कार्यार्थः—पुं॰—कार्य - अर्थः—-—किसी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य का उद्देश्य, प्रयोजन
- कार्यार्थः—पुं॰—कार्य - अर्थः—-—सेवानियुक्ति के लिए आवेदनपत्र
- कार्यार्थः—पुं॰—कार्य - अर्थः—-—उद्देश्य या प्रयोजन
- कार्यार्थिन्—वि॰—कार्य - अर्थिन्—-—प्रार्थना करने वाला
- कार्यार्थिन्—वि॰—कार्य - अर्थिन्—-—अपना उद्देश्य या प्रयोजन सिद्ध करने वाला
- कार्यार्थिन्—वि॰—कार्य - अर्थिन्—-—सेनानियुक्ति की खोज करने वाला
- कार्यार्थिन्—वि॰—कार्य - अर्थिन्—-—न्यायालय में अपने पक्ष का समर्थन करना, न्यायालय में जाने वाला
- कार्यासनम्—नपुं॰—कार्य - आसनम्—-—किसी कार्य को संपन्न करने के लिए बैठने का स्थान, गद्दी
- कार्येक्षणम्—नपुं॰—कार्य - ईक्षणम्—-—सरकारीकार्यों की देखभाल
- कार्योद्धारः—पुं॰—कार्य - उद्धारः—-—कर्तव्य को पूरा करना
- कार्यकर—वि॰—कार्य - कर—-—अचूक, गुणकारी
- कार्यकारणे—नपुं॰, द्वि॰ व॰—कार्य - कारणे—-—कारण और कार्य, उद्देश्य और प्रयोजन
- कार्यकारणभावः—पुं॰—कार्यकारण - भावः—-—कारण और कार्य का सम्बन्ध
- कार्यकालः—पुं॰—कार्य - कालः—-—काम करने का समय, मौसम, उपयुक्त समय या अवसर
- कार्यगौरवम्—नपुं॰—कार्य - गौरवम्—-—किसी कार्य की महत्ता
- कार्यचिंतक—वि॰—कार्य - चिंतक—-—दूरदर्शी, सावधान, सतर्क
- कार्यचिंतकः—पुं॰—कार्य - चिंतकः—-—किसी व्यवसाय प्रबन्धकर्ता, कार्यकारी अधिकारी
- कार्यच्युत—वि॰—कार्य - च्युत—-—कार्यरहित, बेकार, किसी पद से बर्खास्त
- कार्यदर्शनम्—नपुं॰—कार्य - दर्शनम्—-—किसी कार्य का निरीक्षण करना
- कार्यदर्शनम्—नपुं॰—कार्य - दर्शनम्—-—सार्वजनिक मामले की पूछताछ
- कार्यनिर्णयः—पुं॰—कार्य - निर्णयः—-—किसी बात का फैसला
- कार्यपुटः—पुं॰—कार्य - पुटः—-—निरर्थक काम करने वाला आदमी
- कार्यपुटः—पुं॰—कार्य - पुटः—-—पागल, सनकी, विक्षिप्त
- कार्यपुटः—पुं॰—कार्य - पुटः—-—आलसी व्यक्ति
- कार्यप्रद्वेषः—पुं॰—कार्य - प्रद्वेषः—-—काम करने में अरुचि, आलस्य, सुस्ती
- कार्यप्रेष्यः—पुं॰—कार्य - प्रेष्यः—-—अभिकर्ता, दूत
- कार्यवस्तु—न॰—कार्य - वस्तु—-—लक्ष्य और उद्देश्य
- कार्यविपत्तिः—स्त्री॰—कार्य - विपत्तिः—-—असफलता, प्रतिकूलता, दुर्भाग्य
- कार्यशेष—वि॰—कार्य - शेष—-—बचा हुआ कार्य
- कार्यशेष—वि॰—कार्य - शेष—-—कार्य की पूर्ति
- कार्यशेष—वि॰—कार्य - शेष—-—किसी कार्य का अंश
- कार्यसिद्धि—स्त्री॰—कार्य - सिद्धिः—-—सफलता
- कार्यस्थानम्—नपुं॰—कार्य - स्थानम्—-—काम करने की जगह, कार्यालय
- कार्यहन्तृ—वि॰—कार्य - हन्तृ—-—दूसरे के कार्य में बाधा डालने वाला
- कार्यहन्तृ—वि॰—कार्य - हन्तृ—-—दूसरे के हितों का विरोधी
- कार्यकार्यतः—अव्य॰—कार्य - कार्यतः—कार्य - तसिल्—किसी उद्देश्य या प्रयोजन के कारण
- कार्यकार्यतः—अव्य॰—कार्य - कार्यतः—कार्य - तसिल्—फलतः, अनिवार्यतः
- कार्श्यम्—नपुं॰—-—कृश् - ष्यञ्—पतलापन, दुर्बलता, दुबलापन
- कार्श्यम्—नपुं॰—-—कृश् - ष्यञ्—छोटापन, अल्पता, कमी
- कार्षः—पुं॰—-—कृषि - ण—किसान, खेतीहर
- कार्षापणः—पुं॰—-—कर्ष् - अण् = कार्षः, आ - पण् - घञ् =, कार्षस्य आपणः—भिन्न भिन्न मूल्य का सिक्का य बट्टा
- कार्षापणः—पुं॰—-—कर्ष् - अण् = कार्षम्, आ - पण् - घञ् =, कार्षस्य आपणम्—भिन्न भिन्न मूल्य का सिक्का य बट्टा
- कार्षापणकः—पुं॰—-—कर्ष् - अण् = कार्षः, आ - पण् - घञ् =, कार्षस्य आपणः—भिन्न भिन्न मूल्य का सिक्का य बट्टा
- कार्षापणकः—पुं॰—-—कर्ष् - अण् = कार्षम्, आ - पण् - घञ् =, कार्षस्य आपणम्—भिन्न भिन्न मूल्य का सिक्का य बट्टा
- कार्षापणम्—नपुं॰—-—कर्ष् - अण् = कार्षम्, आ - पण् - घञ् =, कार्षस्य आपणम्—धन
- कार्षापणिक—वि॰—-—कार्षापण - ठिठन्—एक कार्षापण के मूल्य का
- कार्षिक—वि॰—-—-—कार्षापण
- कार्ष्ण—वि॰—-—कृष्ण - अण्—कृष्ण या विष्णु से सम्बन्ध रखने वाला
- कार्ष्ण—वि॰—-—कृष्ण - अण्—व्यास से सम्बन्ध रखने वाला
- कार्ष्ण—वि॰—-—कृष्ण - अण्—काले हिरण से सम्बन्ध रखने वाला
- कार्ष्ण—वि॰—-—कृष्ण - अण्—काला
- कार्ष्णायस—वि॰—-—कृष्णायस् - अण्—काले लोहे से बना हुआ
- कार्ष्णायसम्—नपुं॰—-—कृष्णायस् - अण्—लोहा
- कार्ष्णिः—पुं॰—-—कृष्णस्य अपत्यम् - कृष्ण - इञ्—कामदेव की उपाधि
- काल—वि॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—काला, काले या काले नीले रंग का
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—समय
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—उपयुक्त या समुचित समय
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—काल का अंश या अवधि
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—ऋतु
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—वैशेषिकों के द्वारा नौ द्रव्यों में से ‘काल' नामक एक द्रव्य
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—परमात्मा जो कि विश्व का संहारक है, क्योंकि वह संहारक नियम का मूर्त्तरूप है
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—मृत्यु का देवता यम
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—भाग्य, नियति
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—आँख की पुतली का काला भाग
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—कोयल
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—शनिग्रह
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—शिव
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—काल की माप
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—कलाल, शराब खींचने तथा बेचने वाला
- काल—पुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—अनुभाग, खण्ड
- कालम्—नपुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—लोहा
- कालम्—नपुं॰—-—कु ईषत् कृष्णत्वं लाति ला - क, कोः कादेशः—एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य
- कालाक्षरिकः—पुं॰—काल - अक्षरिकः—-—साक्षर, पढ़ा लिखा
- कालागुरुः—पुं॰—काल - अगुरुः—-—एक प्रकार का चन्दन का वृक्ष, काला अगर
- कालागुरु—नपुं॰—काल - अगुरु—-—उस वृक्ष की लकड़ी
- कालाग्निः—पुं॰—काल - अग्निः—-—सृष्टि के अन्त में प्रलयाग्नि
- कालानलः—पुं॰—काल - अनलः—-—सृष्टि के अन्त में प्रलयाग्नि
- कालांग—वि॰—काल - अंग—-—काले नीले शरीर वाला
- कालाजिनम्—नपुं॰—काल - अजिनम्—-—काले हरिण की खाल
- कालाञ्जनम्—नपुं॰—काल - अञ्जनम्—-—एक प्रकार का अञ्जन या सुरमा
- कालाण्डजः—पुं॰—काल- अण्डजः—-—कोयल
- कालातिरेकः—पुं॰—काल - अतिरकः—-—समय की हानि, विलम्ब
- कालात्ययः—पुं॰—काल - अत्ययः—-—विलम्ब
- कालात्ययः—पुं॰—काल - अत्ययः—-—समय का बीतना
- कालात्ययः—पुं॰—काल - अत्ययः—-—काल के बीत जाने के कारण हानि
- कालाध्यक्षः—पुं॰—काल - अध्यक्षः—-—समय का प्रधायक सूर्य की उपाधि
- कालाध्यक्षः—पुं॰—काल - अध्यक्षः—-—परमात्मा
- कालानुनादिन्—पुं॰—काल - अनुनादिन्—-—मधुमक्खी
- कालानुनादिन्—पुं॰—काल - अनुनादिन्—-—चिड़िया
- कालानुनादिन्—पुं॰—काल - अनुनादिन्—-—चातक पक्षी
- कालान्तकः—पुं॰—काल - अन्तकः—-—समय जो मृत्यु का देवता माना जाता है, सर्वसंहारक
- कालान्तरम्—नपुं॰—काल - अन्तरम्—-—अन्तराल
- कालान्तरम्—नपुं॰—काल - अन्तरम्—-—समय की अवधि
- कालान्तरम्—नपुं॰—काल - अन्तरम्—-—दूसरा समय या अवसर
- कालावृत्त—वि॰—काल - आवृत्त—-—काल के गर्भ में छिपा हुआ
- कालक्षम—वि॰—काल - क्षम—-—विलम्ब को सहन करने के योग्य
- कालविषः—पुं॰—काल - विषः—-—चूहे की भाँति केवल क्रोधित किये जाने पर ही जहरीला जन्तु
- कालाभ्रः—पुं॰—काल - अभ्रः—-—काला, जल से भरा हुआ बादल
- कालायसम्—नपुं॰—काल - अयसम्—-—लोहा
- कालावधिः—पुं॰—काल - अवधिः—-—नियत किया हुआ समय
- कालाशुद्धिः—स्त्री॰—काल - अशुद्धिः—-—शोक मनाना, सूतक, पातक या जन्म - मरण से पैदा होने वाला अशौच
- कालायसम्—नपुं॰—काल - आयसम्—-—लोहा
- कालोप्त—वि॰—काल - उप्त—-—ऋतु आने पर बोया हुआ
- कालकञ्जम्—नपुं॰—काल - कञ्जम्—-—नीलकमल
- कालकटम्—नपुं॰—काल - कटम्—-—शिव की उपाधि
- कालकटः—पुं॰—काल - कटः—-—शिव की उपाधि
- कालकण्ठः—पुं॰—काल - कण्ठः—-—मोर
- कालकण्ठः—पुं॰—काल - कण्ठः—-—चिड़िया
- कालकण्ठः—पुं॰—काल - कण्ठः—-—शिव की उपाधि
- कालकरणम्—नपुं॰—काल - करणम्—-—समय का नियत करना
- कालकर्णिका—स्त्री॰—काल - कर्णिका—-—दुर्भाग्य, मुसीबत
- कालकर्णी—स्त्री॰—काल - कर्णी—-—दुर्भाग्य, मुसीबत
- कालकर्मन्—न॰—काल - कर्मन्—-—मृत्यु
- कालकीलः—पुं॰—काल - कीलः—-—कोलाहल
- कालकुण्ठः—पुं॰—काल - कुण्ठः—-—यम
- कालकूटः—पुं॰—काल - कूटः—-—हलाहल विष
- कालकूटम्—नपुं॰—काल - कूटम्—-—समुद्र मन्थन से प्राप्त तथा शिव द्वारा पिया गया
- कालकृत्—पुं॰—काल - कृत्—-—सूर्य
- कालकृत्—पुं॰—काल - कृत्—-—मोर
- कालकृत्—पुं॰—काल - कृत्—-—परमात्मा
- कालक्रमः—पुं॰—काल - क्रमः—-—समय का बीतना, समय का अनुक्रम
- कालक्रिया—स्त्री॰—काल - क्रिया—-—समय नियत करना
- कालक्रिया—स्त्री॰—काल - क्रिया—-—मृत्यु
- कालक्षेपः—पुं॰—काल - क्षेपः—-—विलम्ब, समय की हानि
- कालक्षेपः—पुं॰—काल - क्षेपः—-—समय बिताना
- कालखञ्जनम्—नपुं॰—काल - खञ्जनम्—-—यकृत्, जिगर
- कालखण्डम्—नपुं॰—काल - खण्डम्—-—यकृत्, जिगर
- कालगंगा—स्त्री॰—काल - गंगा—-—यमुना नदी
- कालग्रन्थिः—पुं॰—काल - ग्रन्थिः—-—एक वर्ष
- कालचक्रम्—नपुं॰—काल - चक्रम्—-—समय का चक्र
- कालचक्रम्—नपुं॰—काल - चक्रम्—-—चक्र
- कालचक्रम्—नपुं॰—काल - चक्रम्—-—संपत्ति का चक्र, जीवन की, परिस्थितियाँ
- कालचिह्नम्—नपुं॰—काल - चिह्नम्—-—मृत्यु के निकट आने का समय
- कालचोदित—वि॰—काल - चोदित—-—यमदूतों के द्वारा बुलाया हुआ
- कालज्ञ—वि॰—काल - ज्ञ—-—उचित समय या उचित अवसर को जानने वाला
- कालज्ञः—पुं॰—काल - ज्ञः—-—ज्योतिषी
- कालज्ञः—पुं॰—काल - ज्ञः—-—मुर्गा
- कालत्रयम्—नपुं॰—काल - त्रयम्—-—तीन काल, भूत, भविष्य और वर्तमान
- कालदण्डः—पुं॰—काल - दण्डः—-—मृत्यु
- कालधर्मः—पुं॰—काल - धर्मः—-—किसी विशेष समय के लिए उपयुक्त आचरण रेखा
- कालधर्मन्—पुं॰—काल - धर्मन्—-—किसी विशेष समय के लिए उपयुक्त आचरण रेखा
- कालधर्मन्—पुं॰—काल - धर्मन्—-—निर्दिष्ट काल, मृत्यु
- कालधारणा—स्त्री॰—काल - धारणा—-—समय वृद्धि
- कालनियोगः—पुं॰—काल - नियोगः—-—भाग्य या नियति का समादेश, भाग्यनिर्णय
- कालनिरूपणम्—नपुं॰—काल - निरूपणम्—-—समय का निर्धारण करना, कालविज्ञान
- कालनेमिः—पुं॰—काल - नेमिः—-—समय चक्र का घेरा
- कालनेमिः—पुं॰—काल - नेमिः—-—एक राक्षस जो रावण का चाचा था और जिसे हनुमान को मारने का काम सौंपा गया था
- कालनेमिः—पुं॰—काल - नेमिः—-—सौ हाथों वाला राक्षस जिसे विष्णु ने मारा था
- कालपक्व—वि॰—काल - पक्व—-—अपने समय पर पका हुआ, स्वतः स्फूर्त
- कालपरिवासः—पुं॰—काल - परिवासः—-—थोड़े समय तक पड़े रहने वाला जिससे कि बासी जाय
- कालपाशः—पुं॰—काल - पाशः—-—यम या मृत्यु का जाल
- कालपाशिकः—पुं॰—काल - पाशिकः—-—जल्लाद
- कालपृष्ठम्—नपुं॰—काल - पृष्ठम्—-—काले हरिण की जाति
- कालपृष्ठम्—नपुं॰—काल - पृष्ठम्—-—बगला
- कालपृष्ठकम्—नपुं॰—काल - पृष्ठकम्—-—कर्ण का धनुष
- कालपृष्ठकम्—नपुं॰—काल - पृष्ठकम्—-—सामान्य धनुष
- कालप्रभातम्—नपुं॰—काल - प्रभातम्—-—शरत्काल
- कालमानम्—नपुं॰—काल - मानम्—-—समय का मापना
- कालमुखः—पुं॰—काल - मुखः—-—लंगूरों की एक जाति
- कालमेषी—पुं॰—काल - मेषी—-—मंजिष्ठा पौधा
- कालयवनः—पुं॰—काल - यवनः—-—यवनों का राजा कृष्ण का शत्रु
- कालयापः—पुं॰—काल - यापः—-—टालमटोल करना, देर लगाना, स्थगित करना
- कालयापनम्—नपुं॰—काल - यापनम्—-—टालमटोल करना, देर लगाना, स्थगित करना
- कालयोगः—पुं॰—काल - योगः—-—भाग्य, नियति
- कालयोगिन्—पुं॰—काल - योगिन्—-—शिव की उपाधि
- कालरात्रिः—पुं॰—काल - रात्रिः—-—अन्धेरी रात
- कालरात्रिः—पुं॰—काल - रात्रिः—-—विश्व की समाप्तिसूचक महाप्रलय की रात
- कालरात्री—स्त्री॰—काल - रात्री—-—विश्व की समाप्तिसूचक महाप्रलय की रात
- कालरात्री—स्त्री॰—काल - रात्री—-—विश्व की समाप्तिसूचक महाप्रलय की रात
- काललोहम्—नपुं॰—काल - लोहम्—-—स्टील, इस्पात
- कालविप्रकर्षः—पुं॰—काल - विप्रकर्षः—-—काल की वृद्धि
- कालवृद्धिः—पुं॰—काल - वृद्धिः—-—सामयिक व्याज
- कालवेला —स्त्री॰—काल - वेला —-—शनिकाल, अर्थात् दिन का विशिष्ट समय
- कालसंरोधः—पुं॰—काल - संरोधः—-—बहुत देर तक काम में हाथ न डालना
- कालसंरोधः—पुं॰—काल - संरोधः—-—किसी लम्बे समय का क्षय होना
- कालसदृश—वि॰—काल - सदृश—-—उपयुक्त, सामयिक
- कालसारः—पुं॰—काल - सारः—-—काला हरिण
- कालसूत्रम्—नपुं॰—काल - सूत्रम्—-—समय या मृत्यु की डोरी
- कालसूत्रम्—नपुं॰—काल - सूत्रम्—-—एक विशेष नरक का नाम
- कालसूत्रकम्—नपुं॰—काल - सूत्रकम्—-—समय या मृत्यु की डोरी
- कालसूत्रकम्—नपुं॰—काल - सूत्रकम्—-—एक विशेष नरक का नाम
- कालस्कन्धः—पुं॰—काल - स्कन्धः—-—तम्बाकू का पेड़
- कालस्वरूप—वि॰—काल - स्वरूप—-—मृत्यु जैसा भयङ्कर
- कालहरः—पुं॰—काल - हरः—-—शिव की उपाधि
- कालहरणम्—नपुं॰—काल - हरणम्—-—समय की हानि, विलम्ब
- कालहानिः—पुं॰—काल - हानिः—-—विलम्ब
- कालकम्—नपुं॰—-—काल - कन्—यकृत्, जिगर
- कालकः—पुं॰—-—काल - कन्—मस्सा, झाई
- कालकः—पुं॰—-—काल - कन्—पनीला साँप
- कालकः—पुं॰—-—काल - कन्—आँख की पुतली काला भाग
- कालञ्जरः—पुं॰—-—कालं जरयति- काल - जृ - णिच् - अच्—एक पहाड़ तथा उसका समीपवर्ती प्रदेश
- कालञ्जरः—पुं॰—-—कालं जरयति- काल - जृ - णिच् - अच्—धार्मिक भिक्षुओं या साधुओं की सभा
- कालञ्जरः—पुं॰—-—कालं जरयति- काल - जृ - णिच् - अच्—शिव की उपाधि
- कालशेयम्—नपुं॰—-—कलशि - ढक्—छाछ, मट्ठा
- काला—स्त्री॰—-—काल - अच् - टाप्—दुर्गा की उपाधि
- कालापः—पुं॰—-—कालो मृत्युः आप्यते यस्मात् - काल - आप् - घञ्—सिर के बाल
- कालापः—पुं॰—-—कालो मृत्युः आप्यते यस्मात् - काल - आप् - घञ्— साँप का फण
- कालापः—पुं॰—-—कालो मृत्युः आप्यते यस्मात् - काल - आप् - घञ्—राक्षस, पिशाच, भूत
- कालापः—पुं॰—-—कालो मृत्युः आप्यते यस्मात् - काल - आप् - घञ्—`कलाप' व्याकरण का विद्यार्थी
- कालापः—पुं॰—-—कालो मृत्युः आप्यते यस्मात् - काल - आप् - घञ्—`कलाप' व्याकरण का वेत्ता
- कालापकः—पुं॰—-—कालाप - वुन्—`कलाप' के विद्यार्थियों का समूह
- कालापकः—पुं॰—-—कालाप - वुन्—`कलाप' की शिक्षा या उसके सिद्धान्त
- कालिक—वि॰—-—काल - ठक्—काल संबन्धी
- कालिक—वि॰—-—काल - ठक्—कालाश्रित
- कालिक—वि॰—-—काल - ठक्—मौसम के अनुकूल, सामयिक
- कालिकः—पुं॰—-—काल - ठक्—सारस
- कालिकः—पुं॰—-—काल - ठक्—बगला
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—कालापन, काला रंग
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—मसी, स्याही, काली मसी
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—कई किस्तों में दिया जाने वाला मूल्य
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—निर्दिष्ट समय पर दिया जाने वाला सामयिक ब्याज
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—बादलों का समूह, घनघोर घटा जिसके बरसने का डर हो
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—सोने में मिलाया जाने वाला खोट
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—यकृत्, जिगर
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—कौवी
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—बिच्छू
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—मदिरा
- कालिका—स्त्री॰—-—काल - ठक् - टाप्—दुर्गा
- कालिकम्—नपुं॰—-—काल - ठक्—काले चन्दन की लकड़ी
- कालिङ्ग—वि॰—-—कलिङ्ग - अण्—कलिंग देश में उत्पन्न या उस देश का
- कालिङ्गः—पुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—कलिंग देश का राजा
- कालिङ्गः—पुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—कलिंग देश का साँप
- कालिङ्गः—पुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—हाथी
- कालिङ्गः—पुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—एक प्रकार की ककड़ी
- कालिङ्गाः—पुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—कलिंग देश
- कालिङ्गम्—नपुं॰—-—कलिङ्ग - अण्—तरबूज
- कालिन्द—वि॰—-—कलिन्द - अण्—कलिन्द पहाड़ या यमुना नदी से प्राप्त या सम्बद्ध
- कालिन्दकर्षणः—पुं॰—कालिन्द - कर्षणः—-—बलराम का विशेषण
- कालिन्दभेदनः—पुं॰—कालिन्द - भेदनः—-—बलराम का विशेषण
- कालिन्दसूः—स्त्री॰—कालिन्द - सूः—-—सूर्य की पत्नी संज्ञा
- कालिन्दसोदरः—पुं॰—कालिन्द - सोदरः—-—मृत्यु का देवता यम
- कालिमन्—पुं॰—-—काल - इमनिच्—कालापन
- कालियः—पुं॰—-—के जले आलीयते - क - आ - ली - क—अत्यन्त विशालकाय सर्प जो कि यमुना नदी की तली में रहता था यह स्थान सौभरि ऋषि के शाप के कारण साँपों के शत्रु गरुड़ के लिए निषिद्ध था कृष्ण ने जब कि अभी वह बालक ही था उस साँप को कुचल दिया
- कालियदमनः—पुं॰—कालिय - दमनः—-—कृष्ण के विशेषण
- कालियमर्दनः—पुं॰—कालिय - मर्दनः—-—कृष्ण के विशेषण
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—कालिमा
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—मसी, काली मसी
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—पार्वती की उपाधि, शिव की पत्नी
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—काले बादलों की पंक्ति
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—काले रंग की स्त्री
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—व्यास की माता सत्यवती
- काली—स्त्री॰—-—काल - ङीष्—रात
- कालीतनयः—पुं॰—काली - तनयः—-—भैंसा
- कालीकः —पुं॰—-—के जले अलति पर्याप्नोति - क - अल् - इकन् पृषो॰ दीर्घः—एक प्रकार का बगला, क्रौञ्च पक्षी
- कालीन—वि॰—-—काल - ख—किसी विशिष्ट समय से सम्बन्ध रखने वाला
- कालीन—वि॰—-—काल - ख—ऋतु के अनुकूल
- कालीयम् —नपुं॰—-—काल - छ—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- कालीयकम्—नपुं॰—-—काल -कन् —एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
- कालुष्यम्—नपुं॰—-—कलुष - ष्यञ्—मलिनता, गन्दगी, गन्दलापन, पंकिलता
- कालुष्यम्—नपुं॰—-—कलुष - ष्यञ्—धुंधलापन
- कालुष्यम्—नपुं॰—-—कलुष - ष्यञ्—असहमति
- कालेय—वि॰—-—कलि - ढक्—कलियुग से सम्बन्ध रखने वाला
- कालेयम्—नपुं॰—-—कलि - ढक्—जिगर
- कालेयम्—नपुं॰—-—कलि - ढक्—काली चन्दन की लकड़ी
- कालेयम्—नपुं॰—-—कलि - ढक्—केसर, जाफ़रान
- कालेयरुः—पुं॰—-—-—कुत्ता
- कालेयरुः—पुं॰—-—-—चन्दन की जाति
- काल्पनिक—वि॰—-—कल्पना - ठक्—केवल विचारों की बनावटी
- काल्पनिक—वि॰—-—कल्पना - ठक्—खोटा, बनावटी
- काल्य—वि॰—-—काल - यत्—समय पर, ऋतु के अनुकूल, रुचिकर, सुहावना, शुभ
- काल्यः—पुं॰—-—काल - यत्—पौ फटना, प्रभातकाल होना
- काल्याणकम्—नपुं॰—-—कल्याण - वुञ्—मांगल्य, शुभ
- कावचिक—वि॰—-—कवच - ठञ्—जिरह बख्तर सम्बन्धी कवचधारी
- कावचिकम्—नपुं॰—-—-—कवचधारी व्यक्तियों का समूह
- कावृकः—पुं॰—-—कुत्सितो वृक इव, वा ईषत् वृक इव, को कादेशः—मुर्गा
- कावृकः—पुं॰—-—कुत्सितो वृक इव, वा ईषत् वृक इव, को कादेशः—चक्रवाक पक्षी
- कावेरम्—नपुं॰—-—कस्य सूर्यस्य इव, वा ईषत् वेरम् अङ्ग यस्य ज्योतिर्मयत्वात्—केसर, जाफ़रान
- कावेरी—स्त्री॰—-—कं जलमेव वेरं शरीरमस्याः- क - वेर - अण् - ङीप्—दक्षिणभारत में बहने वाली एक नदी
- कावेरी—स्त्री॰—-—कुत्सितं वेगं शरीरमस्याः—वेश्या, रंडी
- काव्य—वि॰—-—कवि - ण्यत्—ऋषि या कवि के गुणों से युक्त
- काव्य—वि॰—-—कवि - ण्यत्—मन्त्रद्रष्टाविषयक या पैगम्बरी, प्रेरणाप्राप्त, छन्दोबद्ध
- काव्यः—पुं॰—-—कवि - ण्यत्—राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य
- काव्या—स्त्री॰—-—कवि - ण्यत्—प्रज्ञा
- काव्या—स्त्री॰—-—कवि - ण्यत्—सखी
- काव्यम्—नपुं॰—-—कवि - ण्यत्—कविता, महाकाव्य
- काव्यम्—नपुं॰—-—कवि - ण्यत्—काव्य, कविता, कवितामयी रचना
- काव्यम्—नपुं॰—-—कवि - ण्यत्—प्रसन्नता, कल्याण
- काव्यम्—नपुं॰—-—कवि - ण्यत्—बुद्धिमत्ता, अन्तः प्रेरणा
- काव्यार्थः—पुं॰—काव्य - अर्थः—-—कवितासम्बन्धी चिन्तन या विचार
- काव्यचौरः—पुं॰—काव्य - चौरः—-—दूसरे कवि के विचारों का चोर, काव्यचौर
- काव्यचौरः—पुं॰—काव्य - चौरः—-—दूसरे व्यक्तियों की कविताओं को चुराने वाला
- काव्यमीमांसकः—पुं॰—काव्य - मीमांसकः—-—साहित्यशास्त्री, विवेचक
- काव्यरसिक—वि॰—काव्य - रसिक—-—जो काव्य के सौन्दर्य को सराह सके या काव्यरस रखता हो
- काव्यलिङ्गम्—नपुं॰—काव्य - लिङ्गम्—-—एक अलंकार, इसकी परिभाषा
- काश्—भ्वा॰, दिवा॰, आ॰ - काश - श्य - ते, काशित—-—-—चमकना, उज्ज्वल या सुन्दर दिखाई देना
- काश्—भ्वा॰, दिवा॰, आ॰ - काश - श्य - ते, काशित—-—-—प्रकट होना, दिखाई देना
- काश्—भ्वा॰, दिवा॰, आ॰ - काश - श्य - ते, काशित—-—-—प्रकट होना की भाँति दिखाई देना
- निष्काश्—भ्वा॰, दिवा॰—निस् - काश्—-—निकाल देना, निर्वासित करना, ठेल देना, जलावर्तन करना
- निष्काश्—भ्वा॰, दिवा॰—निस् - काश्—-—खोलना
- निष्काश्—भ्वा॰, दिवा॰—निस् - काश्—-—प्रकाशित करना
- निष्काश्—भ्वा॰, दिवा॰—निस् - काश्—-—दृष्टि के सामने प्रस्तुत करना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—चमकना, उज्ज्वल दिखाई देना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—दिखाई देना, प्रकट होना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—की भाँति दिखाई देना या प्रकट होना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—दिखाना, प्रदर्शित करना, आविष्कार, उद्घाटित करना, व्यक्त करना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—प्रकाश में लाना, प्रकाशित करना, उद्घोषणा करना,
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—मुद्रित करवाना, प्रकाशित करना
- प्रकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्र - काश्—-—रोशनी करना, दीपक जलाना
- प्रतिकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्रति - काश्—-—की तरह प्रकट होना
- प्रतिकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—प्रति - काश्—-—विरोध या विषमतास्वरूप चमकना
- विकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—वि - काश्—-—खिलना, खुलना
- विकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—वि - काश्—-—चमकना
- संकाश्—भ्वा॰, दिवा॰—सम् - काश्—-—की भाँति दिखाई देना
- काशः—पुं॰—-—काश् - अच्—छत में या चटाइयों के बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाला एक प्रकार का घास
- काशम्—नपुं॰—-—काश् - अच्—छत में या चटाइयों के बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाला एक प्रकार का घास
- काशम्—नपुं॰—-—काश् - अच्—काश नामक घास का फूल
- काशि—पुं॰—-—काश् - इक्—एक देश का नाम
- काशिः—स्त्री॰—-—काश् - इन्—गंगा के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध नगरी, वर्तमान वाराणसी, सात पावन नदियों में से एक
- काशी—स्त्री॰—-—काश् - अच् - ङीष्—गंगा के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध नगरी, वर्तमान वाराणसी, सात पावन नदियों में से एक
- काशिपः—पुं॰—काशिः - पः—-—शिव की उपाधि
- काशीपः—पुं॰—काशी - पः—-—शिव की उपाधि
- काशिराजः—पुं॰—काशि - राजः—-—एक राजा का नाम, अंबा, अंबिका और अंबालिका के पिता
- काशीराजः—पुं॰—काशी - राजः—-—एक राजा का नाम, अंबा, अंबिका और अंबालिका के पिता
- काशिन्—वि॰—-—काश् - इन्—दीप्यमान, किसी का रूप धारण किये हुए दिखाई देने वाला या प्रकट होने वाला
- काशिनी —वि॰—-—काश् - इन् स्त्रियां ङीप्—दीप्यमान, किसी का रूप धारण किये हुए दिखाई देने वाला या प्रकट होने वाला
- जितकाशिन्—वि॰—-—-—जो काशी के विजेता की तरह व्यवहार करता है
- काशी—स्त्री॰—-—काश् - अच् - ङीष्—एक देश का नाम
- काशीनाथः—पुं॰—काशी - नाथः—-—शिव की उपाधि
- काशीयात्रा—स्त्री॰—काशी - यात्रा—-—वाराणसी की तीर्थयात्रा
- काश्मरी—पुं॰—-—काश् - वनिप्, र, ङीप्, पृषो॰ मत्वम् —एक पौधा जिसे लोग बहुधा गांधारी के नाम से पुकारते हैं
- काश्मीर—वि॰—-—कश्मीर - अण्—काश्मीर में उत्पन्न, काश्मीर का या देश और उसके निवासियों का नाम
- काश्मीराः—पुं॰—-—कश्मीर - अण्—एक देश और उसके निवासियों का नाम
- काश्मीरम्—नपुं॰—-—कश्मीर - अण्—केसर, जाफ़रान
- काश्मीरम्—नपुं॰—-—कश्मीर - अण्—वृक्ष की जड़
- काश्मीरजम् —नपुं॰—काश्मीर - जम् —-—केसर, जाफ़रान
- काश्मीरजन्मन् —नपुं॰—काश्मीर - जन्मन् —-—केसर, जाफ़रान
- काश्यम्—नपुं॰—-—कुत्सितम् अश्यं यस्मात्—मदिरा
- काश्यपम्—नपुं॰—-—कुत्सितम् अश्यं यस्मात्—मांस
- काश्यपः—पुं॰—-—कश्यप् - अण्—एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम
- काश्यपः—पुं॰—-—कश्यप् - अण्—कणाद
- काश्यपनन्दनः—पुं॰—काश्यपः - नन्दनः—-—गरुड़ की उपाधि
- काश्यपनन्दनः—पुं॰—काश्यपः - नन्दनः—-—अरुण का नाम
- काश्यपिः—पुं॰—-—कश्यप् - इञ्—गरुड़ और अरुण का विशेषण
- काश्यपी—स्त्री॰—-—काश्यप - ङीष्—पृथ्वी
- काषः—पुं॰—-—कष् - घञ्—रगड़ना, खुरचना
- काषः—पुं॰—-—कष् - घञ्—जिससे कोई वस्तु रगड़ी जाय
- काषाय—वि॰—-—कषाय - अण्—लाल, गेरुए रंग में रंगा हुआ
- काषायम्—नपुं॰—-—कषाय - अण्—लाल कपड़ा या वस्त्र
- काष्ठम्—नपुं॰—-—काश् - क्त्थन्—लकड़ी का टुकड़ा, विशेषकर ईंधन की लकड़ी
- काष्ठम्—नपुं॰—-—काश् - क्त्थन्—लकड़ी, शहतीर लकड़ी का लट्ठा या टुकड़ा
- काष्ठम्—नपुं॰—-—काश् - क्त्थन्—लकड़ी
- काष्ठम्—नपुं॰—-—काश् - क्त्थन्—लम्बाई मापने का उपकरण
- काष्ठागारः—पुं॰—काष्ठम्-अगारः—-—लकड़ी का घर या घेरा
- काष्ठागारम्—नपुं॰—काष्ठम्-अगारम्—-—लकड़ी का घर या घेरा
- काष्ठाम्बुवाहिनी—स्त्री॰—काष्ठम्-अम्बुवाहिनी—-—लकड़ी का डोल
- काष्ठकदली—पुं॰—काष्ठम्-कदली—-—जंगली केला
- काष्ठकीटः—पुं॰—काष्ठम्-कीटः—-—घुण
- काष्ठकुट्टः—पुं॰—काष्ठम्-कुट्टः—-—खुटबढ़ई, कठफोड़वा
- काष्ठकुदालः—पुं॰—काष्ठम्-कुदालः—-—लकड़ी की बनी एक कुदाल
- काष्ठतक्ष्—पुं॰—काष्ठम्-तक्ष्—-—बढ़ई
- काष्ठतक्षकः—पुं॰—काष्ठम्-तक्षकः—-—बढ़ई
- काष्ठतन्तुः—पुं॰—काष्ठम्-तन्तुः—-—शहतीर में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा
- काष्ठदारुः—पुं॰—काष्ठम्-दारुः—-—दियार या देवदारु की वृक्ष
- काष्ठद्रुः—पुं॰—काष्ठम्-द्रुः—-—पलाश का वृक्ष, ढाक का वृक्ष
- काष्ठपुत्तलिका—स्त्री॰—काष्ठम्-पुत्तलिका—-—कठपुतली, कारु की बनी प्रतिमा
- काष्ठभारिकः—पुं॰—काष्ठम्-भारिकः—-—लकड़हारा
- काष्ठमठी—स्त्री॰—काष्ठम्-मठी—-—चिता
- काष्ठमल्लः—पुं॰—काष्ठम्-मल्लः—-—अर्थी, लकड़ी का चौखटा
- काष्ठलेखकः—पुं॰—काष्ठम्-लेखकः—-—लकड़ी में पाया जाने वाला छोटा कीड़ा, काष्ठकूट
- काष्ठलोहिन्—पुं॰—काष्ठम्-लोहिन्—-—लोहा जड़ा हुआ सोटा
- काष्ठवाटः—पुं॰—काष्ठम्-वाटः—-—लकड़ी की बनी दीवार
- काष्ठवाटम्—नपुं॰—काष्ठम्-वाटम्—-—लकड़ी की बनी दीवार
- काष्ठकम्—नपुं॰—-—काष्ठ - कन्—अगर की लकड़ी
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—संसार का कोई भाग या प्रदेश दिशा, प्रदेश
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—सीमा, हद
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—अन्तिम सीमा, चरम सीमा, आधिक्य
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—घुड़दौड़ का मैदान, मैदान
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—चिह्न, निर्दिष्ट चिह्न
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—अन्तरिक्ष में बादल और वायु का मार्ग
- काष्ठा—स्त्री॰—-—काश् - क्थन - टाप्—काल की माप
- काष्ठिकः—पुं॰—-—काष्ठ - ठन्—लकड़हारा
- काष्ठिका—स्त्री॰—-—काष्ठिक - टाप्—लकड़ी का छोटा टुकड़ा
- काष्ठीला—स्त्री॰—-—कुत्सिता ईषत् वा अष्ठीलेव, कोः कादेसः—केले का पेड़
- कास्—भ्वा॰ आ॰ <कासते>, <कासित>—-—-—चमकना
- कास्—भ्वा॰ आ॰ <कासते>, <कासित>—-—-—खाँसना, किसी रोग को प्रकट करने वाली रोग का आवाज करना
- कासः—पुं॰—-—कास् - घञ्—खाँसी, जुकाम
- कासः—पुं॰—-—कास् - घञ्—छींक आना
- कासा—स्त्री॰—-—कास् - घञ् - टाप्—खाँसी, जुकाम
- कासा—स्त्री॰—-—कास् - घञ् - टाप्—छींक आना
- कासकुण्ठ—वि॰—कास-कुण्ठ—-—खाँसी से पीडित
- कासघ्न—वि॰—कास-घ्न—-—खाँसी दूर करने वाला, कफ निकालने वाला
- कासहृत्—वि॰—कास-हृत्—-—खाँसी दूर करने वाला, कफ निकालने वाला
- कासरः—पुं॰—-—के जले आसरति - क - आ - सृ - अच्—भैंसा
- कासारः—पुं॰—-—कास् - आरन्, कस्य जलस्य आसारो यत्र ब॰ स॰—जोहड़, तालाब, सरोवर
- कासारम्—नपुं॰—-—कास् - आरन्, कस्य जलस्य आसारो यत्र ब॰ स॰—जोहड़, तालाब, सरोवर
- कासू —स्त्री॰—-—कास् - ऊ—एक प्रकार का भाला
- कासू —स्त्री॰—-—कास् - ऊ—अस्पष्ट भाषण
- कासू —स्त्री॰—-—कास् - ऊ—प्रकाश, प्रभा
- कासू —स्त्री॰—-—कास् - ऊ—रोग
- कासू —स्त्री॰—-—कास् - ऊ—भक्ति
- काशू—स्त्री॰—-—काश् - ऊ—एक प्रकार का भाला
- काशू—स्त्री॰—-—काश् - ऊ—अस्पष्ट भाषण
- काशू—स्त्री॰—-—काश् - ऊ—प्रकाश, प्रभा
- काशू—स्त्री॰—-—काश् - ऊ—रोग
- काशू—स्त्री॰—-—काश् - ऊ—भक्ति
- कासृतिः—स्त्री॰—-—कुत्सिता सरणिः कोः कादेशः—पगडंडी, गुप्त मार्ग
- काहल—वि॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—शुष्क, मुर्झाया हुआ
- काहल—वि॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—शरारती
- काहल—वि॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—अत्यधिक, प्रशस्त विशाल
- काहलः—पुं॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—बिल्ला
- काहलः—पुं॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—मुर्गा
- काहलः—पुं॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—कौवा
- काहलः—पुं॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—सामान्य ध्वनि
- काहलम्—नपुं॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—अस्पष्ट भाषण
- काहला—स्त्री॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—बड़ा ढोल
- काहली—स्त्री॰—-—कुत्सितं हलं वाक्यं यत्र ब॰ स॰—तरुण स्त्री
- किंवत—वि॰—-—किम् - मतुप्, मस्य वः—निर्धन, तुच्छ, नगण्य
- किंशारुः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ञुण्—अनाज की बाल का अग्र भाग, बाल का सूत, सस्यशूक
- किंशारुः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ञुण्—बगुला
- किंशारुः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ञुण्—तीर
- किंशुकः—पुं॰—-—किंचित् शुकः शुकावयवविशेष इव -—ढाक का पेड़ जिसके फूल बड़े सुन्दर परन्तु निर्गन्ध होते है
- किंशुकम्—नपुं॰—-—किंचित् शुकः शुकावयवविशेष इव -—ढाक का फूल, टेसू
- किंशुलुकः—पुं॰—-—किंशुक नि॰ साधु॰—ढाक का वृक्ष
- किङ्किः—पुं॰—-—कक् - इन् पृषो॰ इत्वम्—नारियल का पेड़
- किङ्किः—पुं॰—-—कक् - इन् पृषो॰ इत्वम्—नीलकण्ठ पक्षी
- किङ्किः—पुं॰—-—कक् - इन् पृषो॰ इत्वम्—चातक, पपीहा
- किङ्कणी—स्त्री॰—-—किंचित् कणति कण् - इन् - ङीप्, पृषो॰ साधुः - किंकिणी - कन् - टाप्, ह्रुस्वश्च—घूँघरुदार आभूषण, करधनी
- किङ्किणिका—स्त्री॰—-—किंचित् कणति कण् - इन् - ङीप्, पृषो॰ साधुः - किंकिणी - कन् - टाप्, ह्रुस्वश्च—घूँघरुदार आभूषण, करधनी
- किङ्किणी—स्त्री॰—-—किंचित् कणति कण् - इन् - ङीप्, पृषो॰ साधुः - किंकिणी - कन् - टाप्, ह्रुस्वश्च—घूँघरुदार आभूषण, करधनी
- किङ्किणीका—स्त्री॰—-—किंचित् कणति कण् - इन् - ङीप्, पृषो॰ साधुः - किंकिणी - कन् - टाप्, ह्रुस्वश्च—घूँघरुदार आभूषण, करधनी
- किङिकरः—पुं॰—-—किम् - कृ - क—घोड़ा
- किङिकरः—पुं॰—-—किम् - कृ - क—कोयल
- किङिकरः—पुं॰—-—किम् - कृ - क—मधुमक्खी
- किङिकरः—पुं॰—-—किम् - कृ - क—कामदेव
- किङिकरः—पुं॰—-—किम् - कृ - क—लालरंग
- किङिकरम्—नपुं॰—-—किम् - कृ - क—गजकुंभ
- किङिकरा—स्त्री॰—-—किम् - कृ - क - टाप्—रुधिर
- किङिकरातः—पुं॰—-—किङ्किर - अत् - अण्—तोता
- किङिकरातः—पुं॰—-—किङ्किर - अत् - अण्—कोयल
- किङिकरातः—पुं॰—-—किङ्किर - अत् - अण्—कामदेव
- किङिकरातः—पुं॰—-—किङ्किर - अत् - अण्—अशोक वृक्ष
- किञ्जलः—पुं॰—-—किञ्चित् जलं यत्र ब॰ स॰, किंचित् जलम् अपवारयति - किम् - जल - क—कमल का सूत या फूल या कोई दूसरा पौधा
- किञ्जल्कः—पुं॰—-—किञ्चित् जलं यत्र ब॰ स॰, किंचित् जलम् अपवारयति - किम् - जल - क—कमल का सूत या फूल या कोई दूसरा पौधा
- किटिः—पुं॰—-—किट् - इन् - किच्च—सूअर
- किटिभः—पुं॰—-—किटि - भा - क्—जूँ, लीक
- किटिभः—पुं॰—-—किटि - भा - क्—खटमल
- किट्टम्—नपुं॰—-—किट् - क्त, स्वार्थे कन् च—स्राव या कीट, विष्ठा, गाद, मैल
- किट्टकम्—नपुं॰—-—किट् - क्त, स्वार्थे कन् च—स्राव या कीट, विष्ठा, गाद, मैल
- किट्टालः—पुं॰—-—किट्ट् - अल् - अच्—ताँबे का पात्र
- किट्टालः—पुं॰—-—किट्ट् - अल् - अच्—लोहे का जंग या मुर्चा
- किणः—पुं॰—-—कण् - अच् पृषो॰ इत्वम्—अनाज, घट्ठा, चकत्ता, घाव का चिह्न
- किणः—पुं॰—-—कण् - अच् पृषो॰ इत्वम्—चर्मकील, तिल या मस्सा
- किणः—पुं॰—-—कण् - अच् पृषो॰ इत्वम्—घुण
- किण्वम्—नपुं॰—-—कण् - क्वन्, इत्वम्—पाप
- किण्वः—पुं॰—-—कण् - क्वन्, इत्वम्—मदिरा के निर्माण में खमीर उठाने वाला बीज, या औषधि
- किण्वम्—नपुं॰—-—कण् - क्वन्, इत्वम्—मदिरा के निर्माण में खमीर उठाने वाला बीज, या औषधि
- कित्—भ्वा॰ पर॰ <केतति>—-—-—चाहना
- कित्—भ्वा॰ पर॰ <केतति>—-—-—रहना
- कित्—भ्वा॰ पर॰ <केतति>—-—-—स्वस्थ करना, चिकित्सा करना
- कितवः—पुं॰—-—कि - क्त = कित - वा - क—धूर्त, झूठा, कपटी
- कितवः—पुं॰—-—कि - क्त = कित - वा - क—धतूरे का पौधा
- कितवः—पुं॰—-—कि - क्त = कित - वा - क—एक प्रकार का गन्धद्रव्य
- किन्धिन्—पुं॰—-—किं कुत्सिता धीर्बुद्धिरस्य - किंधी - इनि—घोड़ा
- किन्नर—वि॰—-—-—बुरा या विकृत पुरुष
- किम्—अव्य॰—-—कु - डिमु बा॰—‘बुराई’, ‘ह्रास’, ‘दोष’, ‘कलंक’ और निन्दा
- किन्दासः—पुं॰—किम्-दासः—-—बुरा गुलाम या नौकर
- किन्नरः—पुं॰—किम्-नरः—-—बुरा या विकृत पुरुष
- किन्नरेशः—पुं॰—किम्-नर-ईशः—-—कुबेर का विशेषण
- किन्नरेश्वरः—पुं॰—किम्-नर-ईश्वरः—-—कुबेर का विशेषण
- किन्नरेश्वरी—स्त्री॰—किम्-नर-ईश्वरी—-—किन्नरी
- किन्नरेश्वरी—स्त्री॰—किम्-नर-ईश्वरी—-—एक प्रकार की वीणा
- किम्पुरुषः—पुं॰—किम्-पुरुषः—-—घृणा के योग्य नीच पुरुष, किन्नर
- किम्पुरुषेश्वरः—पुं॰—किम्-पुरुष-ईश्वरः—-—कुबेर का विशेषण
- किम्प्रभुः—पुं॰—किम्-प्रभुः—-—बुरा स्वामी या राजा
- किंराजन्—वि॰—किम्-राजन्—-—बुरे राज वाला
- किंराजन्—पुं॰—किम्-राजन्—-—बुरा राजा
- किंसखिः—पुं॰—किम्-सखिः—-—बुरा मित्र
- किम्—सर्व॰ वि॰—-—-—कौन, क्या, कौन सा
- किम्—नपुं॰—-—-—क्या लाभ है ,अनिश्चय अर्थ को प्रकट करना
- किमपि—अव्य॰—-—-—‘थोड़ा सा’ ‘कुछ’
- किंचित्—अव्य॰—-—-—‘थोड़ा सा’ ‘कुछ’
- किम्—अव्य॰—-—-—प्रश्नवाचक निपात
- किम्—अव्य॰—-—-—‘क्यों’ ‘किसलिए’ अर्थ को प्रकट करने वाला अव्यय
- किम्—अव्य॰—-—-—क्या, प्रश्नवाचक या
- किमपि—अव्य॰—किम्-अपि—-—कुछ अंश तक, कुछ, बहुत अंशो तक
- किमपि—अव्य॰—किम्-अपि—-—वर्णनातीत रुप से, अवर्णनीय रुप से
- किमपि—अव्य॰—किम्-अपि—-—अत्यधिक, कहीं अधिक
- किमर्थ—वि॰—किम्-अर्थ—-—किस उद्देश्य या प्रयोजन वाला
- किमर्थम्—अव्य॰—किम्-अर्थम्—-—क्यों किसलिए
- किमाख्य—वि॰—किम्-आख्य—-—किस नाम वाला
- किमिति—अव्य॰—किम्-इति—-—क्यों निस्सन्देह, किसलिए, निश्चयार्थ, किस प्रयोजन के लिए
- किमु—अव्य॰—किम्-उ—-—क्या, या
- किमु—अव्य॰—किम्-उ—-—क्यों
- किमु—अव्य॰—किम्-उ—-—और कितना अधिक, कितना कम
- किमुत—अव्य॰—किम्-उत—-—क्या, या
- किमुत—अव्य॰—किम्-उत—-—क्यों
- किमुत—अव्य॰—किम्-उत—-—और कितना अधिक, कितना कम
- किङ्करः—पुं॰—किम्-करः—-—नौकर, सेवक, दास
- किङ्करा—स्त्री॰—किम्-करा—-—सेविका, नौकरानी
- किङ्करी—स्त्री॰—किम्-करी—-—सेवक की स्त्री
- किङ्कर्तव्यता—स्त्री॰—किम्-कर्तव्यता—-—वह अवस्था जबकि मनुष्य अपने मन में सोचता है कि अब क्या करना चाहिए
- किङ्कार्यन्ता—स्त्री॰—किम्-कार्यन्ता—-—वह अवस्था जबकि मनुष्य अपने मन में सोचता है कि अब क्या करना चाहिए
- किङ्कारण—वि॰—किम्-कारण—-—क्या करणा या क्या तर्क रखने वाला
- किङ्किल—अव्य॰—किम्-किल—-—कैसी दयनीय अवस्था
- किङ्क्षण—वि॰—किम्-क्षण—-—जो कहता है कि ‘एक मिनट का है ही क्या’, एक आलसी पुरुष जो क्षणों की परवाह नहीं करता है
- किङ्गोत्र—वि॰—किम्-गोत्र—-—किस परिवार से सम्बन्ध रखने वाला
- किञ्च—अव्य॰—किम्-च—-—इसके अतिरिक्त और फिर आगे
- किञ्चन—अव्य॰—किम्-चन—-—कुछ दर्जे तक, कुछ, थोड़ा सा
- किञ्चित्—अव्य॰—किम्-चित्—-—कुछ दर्जे तक, कुछ, थोड़ा सा
- किञ्चिज्ज्ञ—वि॰—किम्-चित्-ज्ञ—-—थोड़ा सा जानने वाला, पल्लवग्राही
- किञ्चित्कर—वि॰—किम्-चित्-कर—-—कुछ करने वाला उपयोगी
- किञ्चित्कालः—पुं॰—किम्-चित्-कालः—-—कुछ समय, थोड़ा सा समय
- किञ्चित्प्राणः—पुं॰—किम्-चित्-प्राणः—-—थोड़ा सा जीवन रखने वाला
- किञ्चिन्मात्र—वि॰—किम्-चित्-मात्र—-—थोड़ा सा
- किञ्छन्दस्—वि॰—किम्-छन्दस्—-—किस वेद से अभिज्ञ
- किन्तर्हि—अव्य॰—किम्-तर्हि—-—तो फिर क्या, परन्तु तथापि
- किन्तु—अव्य॰—किम्-तु—-—परन्तु, तो भी, तथापि, इतना होते हुए भी
- किन्देवत—वि॰—किम्-देवत—-—किस देवता से सम्बद्ध
- किन्नामधेय—वि॰—किम्-नामधेय—-—किस नाम वाला
- किन्नामन्—वि॰—किम्-नामन्—-—किस नाम वाला
- किन्निमित्त—वि॰—किम्-निमित्त—-—किस कारण या हेतु को रखने वाला, किस प्रयोजन वाला
- किन्निमित्तम्—अव्य॰—किम्-निमित्तम्—-—क्यों, किसलिए
- किन्नु—अव्य॰—किम्-नु—-—क्या
- किन्नु—अव्य॰—किम्-नु—-—और भी अधिक, और भी कम
- किन्नु—अव्य॰—किम्-नु—-—क्या, निस्सन्देह, क्यों
- किन्नु खलु—अव्य॰—किम्-नु खलु—-—किस प्रकार से, सम्भवतः, कैसे है कि, क्या निस्सन्देह, क्यों, सचमुच
- किन्नु खलु—अव्य॰—किम्-नु खलु—-—ऐसा न हो कि
- किम्पच—वि॰—किम्-पच—-—कञ्जूस, कृपण
- किम्पचान—वि॰—किम्-पचान—-—कञ्जूस, कृपण
- किम्पराक्रम—वि॰—किम्-पराक्रम—-—किस शक्ति या स्फूर्ति से युक्त
- किम्पुनर्—अव्य॰—किम्-पुनर्—-—कितना और अधिक या कितना और कम
- किम्प्रभाव—वि॰—किम्-प्रभाव—-—किस शक्ति से सम्पन्न
- किम्भूत—वि॰—किम्-भूत—-—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
- किंरुप—वि॰—किम्-रुप—-—किस शक्ल का, किस रुप का
- किंवदन्ति—पुं॰—किम्-वदन्ति—-—जनश्रुति, अफवाह
- किंवदन्ती—स्त्री॰—किम्-वदन्ती—-—जनश्रुति, अफवाह
- किंवराटकः—पुं॰—किम्-वराटकः—-—अमितव्ययी, खर्चीला
- किंवा—अव्य॰—किम्-वा—-—प्रश्नवाचक अव्यय
- किंवा—अव्य॰—किम्-वा—-—या
- किंविद—वि॰—किम्-विद—-—क्या जानने वाला
- किंव्यापार—वि॰—किम्-व्यापार—-—किस कार्य को करने वाला
- किंशील—वि॰—किम्-शील—-—किस आदत का
- किंस्वित्—अव्य॰—किम्-स्वित्—-—क्या, किस तरह
- कियत्—वि॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कितना बड़ा, कितनी दूर, कितना, कितने, कितने विस्तार का, किन गुणों का
- कियत्—वि॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—किस गिनती का अर्थात् किसी अर्थ का नहीं, निकम्मा
- कियत्—वि॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कुछ, थोड़ा सा, थोड़ी संख्या, चन्द
- कियान्—पुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कितना बड़ा, कितनी दूर, कितना, कितने, कितने विस्तार का, किन गुणों का
- कियान्—पुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—किस गिनती का अर्थात् किसी अर्थ का नहीं, निकम्मा
- कियान्—पुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कुछ, थोड़ा सा, थोड़ी संख्या, चन्द
- कियती—स्त्री॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कितना बड़ा, कितनी दूर, कितना, कितने, कितने विस्तार का, किन गुणों का
- कियती—स्त्री॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—किस गिनती का अर्थात् किसी अर्थ का नहीं, निकम्मा
- कियती—स्त्री॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कुछ, थोड़ा सा, थोड़ी संख्या, चन्द
- कियत्—नपुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कितना बड़ा, कितनी दूर, कितना, कितने, कितने विस्तार का, किन गुणों का
- कियत्—नपुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—किस गिनती का अर्थात् किसी अर्थ का नहीं, निकम्मा
- कियत्—नपुं॰,कर्तृ॰ ए॰ व॰—-—किं परिमाणस्य किम् - वतुप्, घः, किमः कि आदेशः—कुछ, थोड़ा सा, थोड़ी संख्या, चन्द
- कियदेतिका—स्त्री॰—कियत्-एतिका—-—प्रयास, शक्तिशालीन, धैर्ययुक्त, चेष्टा
- कियत्कालः—अव्य॰—कियत्-कालः—-—कितनी देर
- कियत्कालः—अव्य॰—कियत्-कालः—-—कुछ, थोड़ा समय
- कियच्चिरम्—अव्य॰—कियत्-चिरम्—-—कितनी देर तक
- कियद्दूरम्—अव्य॰—कियत्-दूरम्—-—कितनी दूर, कितनी दूर पर, कितने फासले पर
- कियद्दूरम्—अव्य॰—कियत्-दूरम्—-—थोड़ी देर के लिए जरा सी दूर
- किरः—पुं॰—-—कॄ - क—सूअर
- किरकः—पुं॰—-—कॄ - ण्वुल्—लिपिक
- किरकः—पुं॰—-—किर - कन्—सूअर
- किरणः—पुं॰—-—कृ - क्यु—प्रकाश की किरण, सूर्य, किरण
- किरणमय—वि॰—-—-—चमकदार, उज्ज्वल
- किरणमय—वि॰—-—-—रजकण
- किरणमालिन्—पुं॰—किरण-मालिन्—-—सूर्य
- किरातः—पुं॰—-—किरं पर्यन्तभूमिम् अतति गच्छतीति किरातः—एक पतित पहाड़ी जाति जो शिकार करके अपनी जीविका चलाती है, पहाड़ी
- किरातः—पुं॰—-—किरं पर्यन्तभूमिम् अतति गच्छतीति किरातः—वहशी, जंगली
- किरातः—पुं॰—-—किरं पर्यन्तभूमिम् अतति गच्छतीति किरातः—बौना
- किरातः—पुं॰—-—किरं पर्यन्तभूमिम् अतति गच्छतीति किरातः—साईस, अश्वपाल
- किरातः—पुं॰—-—किरं पर्यन्तभूमिम् अतति गच्छतीति किरातः—किरातवेशधारी शिव
- किराताः—पुं॰—-—-—एक देश का नाम
- किराताशिन्—पुं॰—किरात-आशिन्—-—गरुड़ की उपाधि
- किराती—स्त्री॰—-—किरात - ङीष्—किरात जाति की स्त्री
- किराती—स्त्री॰—-—किरात - ङीष्—चँवर डुलाने वाली स्त्री
- किराती—स्त्री॰—-—किरात - ङीष्—कुट्टिनी, दूती
- किराती—स्त्री॰—-—किरात - ङीष्—किरात के वेश में पार्वती
- किराती—स्त्री॰—-—किरात - ङीष्—स्वर्गंगा
- किरिः—पुं॰—-—कॄ - इ—सूअर, वराह
- किरिः—पुं॰—-—कॄ - इ—बादल
- किरीटः—पुं॰—-—कॄ - कीटन्—मुकुट, ताज, चूड़ा, शिरोवेष्टन
- किरीटः—पुं॰—-—कॄ - कीटन्—व्यापारी
- किरीटम्—नपुं॰—-—कॄ - कीटन्—मुकुट, ताज, चूड़ा, शिरोवेष्टन
- किरीटम्—नपुं॰—-—कॄ - कीटन्—व्यापारी
- किरीटधारिन्—पुं॰—किरीट-धारिन्—-—राजा
- किरीटमालिन्—पुं॰—किरीट-मालिन्—-—अर्जुन का विशेषण
- किरीटिन्—वि॰—-—किरीट - इनि—ताज या मुकुट पहनने वाला
- किरीटिन्—पुं॰—-—किरीट - इनि—अर्जुन
- किर्मीर—वि॰—-—कॄ - ईरन्, मुट्—चित्रविचित्र रंग का, चितकबरा, चित्तीदार
- किर्मीरः—पुं॰—-—कॄ - ईरन्, मुट्—एक राक्षस जिसको भीम ने मारा था
- किर्मीरः—पुं॰—-—कॄ - ईरन्, मुट्—शवल या बहुरंगी रंग
- किर्मीरजित्—पुं॰—किर्मीर-जित्—-—भीम के विशेषण
- किर्मीरनिषूदनः—पुं॰—किर्मीर-निषूदनः—-—भीम के विशेषण
- किर्मीरसूदनः—पुं॰—किर्मीर-सूदनः—-—भीम के विशेषण
- किलः—पुं॰—-—किल् - क—क्रीडा, तुच्छ, खेलखेल में हो जाने वाला
- किलकिञ्चितम्—पुं॰—किल-किञ्चितम्—-—प्रेमी मिलन के अवसर पर श्रृंगारी उत्तेजन, रुदन, हास, रोष आदि भाव
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—निश्चय ही, बेशक, निस्संदेह, अवश्य
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—जैसा कि लोग कहते हैं, जैसा कि बतलाया जाता हैं
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—झूठमूठ का कार्य
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—आशा, प्रत्याशा, सम्भावना
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—असन्तोष, अरुचि
- किल—अव्य॰—-—किल् - क—कारण, हेतु
- किलकिलः—पुं॰—-—किल् - क, प्रकारे वीप्सायां वा द्वित्वम्—किलकारी, हर्ष और प्रसन्नतासूचक चीख
- किलकिला—स्त्री॰—-—किल् - क, प्रकारे वीप्सायां वा द्वित्वम्, टाप्—किलकारी, हर्ष और प्रसन्नतासूचक चीख
- किलकिलायते—ना॰ धा॰ आ॰—-—-—किलकारी मारना, कोलाहल करना
- किलिञ्जम्—नपुं॰—-—किलि - जन् - ड—चटाई
- किलिञ्जम्—नपुं॰—-—किलि - जन् - ड—हरी लकड़ी का पतला तख्ता, फलक
- किल्विन्—पुं॰—-—किल् - क्विप्, किल् - विनि—घोड़ा
- किल्विषम्—नपुं॰—-—किल् - टिषच्, वुक्—पाप
- किल्विषम्—नपुं॰—-—किल् - टिषच्, वुक्—त्रुटि, अपराध, क्षति, दोष
- किल्विषम्—नपुं॰—-—किल् - टिषच्, वुक्—रोग, बीमारी
- किशलयः—पुं॰—-—किंचित् शलति - किम् - शल् - कयन् बा॰ पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोंपल, अंकुर, अँखुआ
- किशलयम्—नपुं॰—-—किंचित् शलति - किम् - शल् - कयन् बा॰ पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोंपल, अंकुर, अँखुआ
- किशोरः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ओरन्—बछेरा, वन्य पशु-शावक
- किशोरः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ओरन्—तरुण, बालक, अवयस्क, १५ वर्ष से कम आयु का
- किशोरः—पुं॰—-—किम् - शॄ - ओरन्—सूर्य
- किशोरी—स्त्री॰—-—किम् - शॄ - ओरन् - ङीप्—एक नवयुवती, तरुणी
- किष्किन्धः—पुं॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्—एक देश का नाम
- किष्किन्धः—पुं॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्—उत्तर प्रदेश में स्थित एक पहाड़ का नाम
- किष्किन्ध्यः—पुं॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्, - किष्किन्ध - यत्—एक देश का नाम
- किष्किन्ध्यः—पुं॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्, - किष्किन्ध - यत्—उत्तर प्रदेश में स्थित एक पहाड़ का नाम
- किष्किन्धा—स्त्री॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्+टाप्—एक नगरी, किष्किन्धा की राजधानी
- किष्किन्ध्या—स्त्री॰—-—किं किं दधाति - किं - किं - धा - क, पूर्वस्य किमो मलोपः, सुट्, षत्वम्, - किष्किन्ध - यत्, टाप्—एक नगरी, किष्किन्धा की राजधानी
- किष्कु—वि॰—-—कै - कु नि॰ साधुः—दुष्ट, निन्द्य, बुरा
- किष्कुः—पुं॰—-—कै - कु नि॰ साधुः—कोहनी से नीचे भुजा
- किष्कुः—पुं॰—-—कै - कु नि॰ साधुः—एक हस्त परिमाण, हाथ भर की लम्बाई, एक बालिश्त
- किसलः—पुं॰—-—किञ्चित् शलति - किम् - शल् - क (कयन्) बा॰, पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोमल अंकुर या कोंपल
- किसलम्—नपुं॰—-—किञ्चित् शलति - किम् - शल् - क (कयन्) बा॰, पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोमल अंकुर या कोंपल
- किसलयः—पुं॰—-—किञ्चित् शलति - किम् - शल् - क (कयन्) बा॰, पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोमल अंकुर या कोंपल
- किसलयम्—नपुं॰—-—किञ्चित् शलति - किम् - शल् - क (कयन्) बा॰, पृषो॰ साधुः—पल्लव, कोमल अंकुर या कोंपल