विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/की-क्
मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
कीकट —वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—गरीब, दरिद्र
कीकट —वि॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—कञ्जूस
कीकटः —पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—घोड़ा
कीकटाः —पुं॰—-—की शनैः द्रुतं वा कटति गच्छति - की - कट् - अच्—एक देश का नाम
कीकस —वि॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—कठोर, दृढ़
कीकसम् —नपुं॰—-—की कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति - की - कस् - अच्—हड्डी
कीचकः —पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—खोखला बाँस
कीचकः —पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—हवा में लड़खड़ाते या साँय साँय करते हुए बाँस
कीचकः —पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—एक जाति का नाम
कीचकः —पुं॰—-—चीकयति शब्दायते - चीक् - वुन्, आद्यन्तविपर्ययः—विराट राज का सेनापति
कीचकजित् —पुं॰—कीचक - जित्—-—द्वितीय पाण्डवराज भीम का विशेषण
कीटः —पुं॰—-—कीट - अच्—कीड़ा, कृमि
कीटः —पुं॰—-—कीट - अच्—तिरस्कार और घृणा को व्यक्त करने वाला शब्द
द्वीपकीटः —पुं॰—-—-—अधम हाथी
कीटघ्नः —पुं॰—कीट-घ्नः—-—गन्धक
कीटजम् —नपुं॰—कीट-जम्—-—रेशम
कीटजा —स्त्री॰—कीट-जा—-—लाख
कीटमणिः —पुं॰—कीट-मणिः—-—जुगनू
कीटकः —पुं॰—-—कीट - कन्—कीड़ा
कीटकः —पुं॰—-—कीट - कन्—मगध जाति का भाट
कीदृक्ष —अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
कीदृश् —अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
कीदृश —अव्य॰—-—किम् - दृश् - क्त, क्नि, कञ् वा, किमः की आदेशः—किस प्रकार का या किस स्वभाव का
कीनाश —वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—भूमिधर
कीनाश —वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—गरीब, दरिद्र
कीनाश —वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—कृपण
कीनाश —वि॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—लघु, तुच्छ
कीनाशः —पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—मृत्यु के देवता यम की उपाधि
कीनाशः —पुं॰—-—क्लिश् कन्, ई उपधाया ईत्वम्, लस्य लोपो नामागमश्च—एक प्रकार का बन्दर
कीरः —पुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—तोता
कीराः —पुं॰,ब॰ व॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—काश्मीर देश तथा उसके निवासी
कीरम् —नपुं॰—-—की इति अव्यक्तशब्दम् ईरयति - की - ईर् - अच्—मांस
कीरेष्टः —पुं॰—कीर-इष्टः—-—आम का वृक्ष
कीरवर्णकम् —नपुं॰—कीर-वर्णकम्—-—सुगन्धों का शिरोमणि
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—छितराया हुआ, फैलाया हुआ, फेंका हुआ, बखेरा हुआ
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—ढका हुआ, भरा हुआ
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—रक्खा हुआ, धरा हुआ
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—क्षत, चोट पहुँचाया गया
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
कीर्ण —वि॰—-—कॄ - क्त—छितराना, ढँकना, भरना
कीर्णिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—बखेरना
कीर्णिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ढकना, छिपाना, गुप्त कर देना
कीर्णिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—घायल करना
कीर्तनम् —नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—कथन, वर्णन
कीर्तनम् —नपुं॰—-—कॄ - ल्युट्—मन्दिर
कीर्तना —स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—कीर्तिवर्णन
कीर्तना —स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—सस्वर पाठ
कीर्तना —स्त्री॰—-—कॄ - ल्युट् -टाप्—यश, कीर्ति
कीर्तय् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
कीर्तय् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
कीर्तय् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
कीर्तय् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—यश, प्रसिद्धि, कीर्ति
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—अनुग्रह, अनुमोदन
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—मैल, कीचड़
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—विस्तृति, विस्तार
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—प्रकाश, प्रभा
कीर्तिः —स्त्री॰—-—कॄ - क्तिन्—ध्वनि
कीर्तिभाज् —वि॰—कीर्ति-भाज्—-—यशस्वी, विख्यात, प्रसिद्ध
कीर्तिभाज् —पुं॰—कीर्ति-भाज्—-—द्रोण का विशेषण
कीर्तिशेषः —पुं॰—कीर्ति-शेषः—-—केवल यश के रुप में जीवित रहना
कील् —भ्वा॰ पर॰—-—-—बाँधना
कील् —भ्वा॰ पर॰—-—-—नत्थी करना
कील् —भ्वा॰ पर॰—-—-—कोल गाड़ना
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—फन्नी, खूँटी
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—भालाः
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—बल्ली, खम्भा
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—हथियार, कोहनी
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—कोहनी का प्रहार
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—ज्वाला
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—परमाणु
कीलः —पुं॰—-—कील - घञ्—शिव का नाम
कीलकः —पुं॰—-—कील - कन्—फन्नी या खूँटी
कीलकः —पुं॰—-—कील - कन्—खम्बा, स्तम्भ
कीलालः —पुं॰—-—कील - अल् - अण्—अमृतोपम स्वर्गीय पेय, देवताओं का पेय
कीलालः —पुं॰—-—कील - अल् - अण्—मधु
कीलालः —पुं॰—-—कील - अल् - अण्—हैवान
कीलालधिः —पुं॰—कीलाल-धिः—-—समुद्र
कीलालपः —पुं॰—कीलाल-पः—-—पिशाच, भूत
कीलिका —स्त्री॰—-—कील - कन् - टाप्, इत्वम्—धुरे की कील
कीलित —वि॰—-—कील - क्त—बँधा हुआ, बद्ध
कीलित —वि॰—-—कील - क्त—स्थिरा कील से गड़ा हुआ, कील ठोककर जड़ा हुआ
कीश —वि॰—-—क - ईश् - क—नंगा
कीशः —पुं॰—-—क - ईश् - क—लंगूर, बन्दर
कीशः —पुं॰—-—क - ईश् - क—सूर्य
कीशः —पुं॰—-—क - ईश् - क—पक्षी
कुः —स्त्री॰—-—कु - डु—पृथ्वी
कुः —स्त्री॰—-—कु - डु—त्रिभुज या सपाट आकृति की आधार-रेखा
कुपुत्रः —पुं॰—कु-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
कु —अव्य॰—-—-—‘खराबी’, ह्रास, अवमूल्यन, पाप, भर्त्सना, ओछापन, अभाव, त्रुटि आदि भावों को संकेत करने वाला उपसर्ग;
कुकर्मन् —नपुं॰—कु-कर्मन्—-—बुरा कार्य, नीचा कर्म
कुग्रहः —पुं॰—कु-ग्रहः—-—अमंगल ग्रह
कुग्रामः —पुं॰—कु-ग्रामः—-—छोटा गाँव या पुरवा
कुचेल —वि॰—कु-चेल—-—फटे पुराने वस्त्र पहने हुए
कुचर्या —स्त्री॰—कु-चर्या—-—दुष्टता, अशिष्टाचरण, अनौचित्य
कुजन्मन् —वि॰—कु-जन्मन्—-—नीच कुल में उत्पन्न
कुतनु —वि॰—कु-तनु—-—विकृतकाय, कुरुप
कुतनुः —पुं॰—कु-तनुः—-—कुबेर का विशेषण
कुतंत्री —स्त्री॰—कु-तंत्री—-—खराब बीणा
कुतर्कः —पुं॰—कु-तर्कः—-—कूटतर्कात्मक, हेत्वाभासरुप
कुतर्कः —पुं॰—कु-तर्कः—-—धर्मविरुद्ध, स्वतन्त्र चिन्तन
कुतर्कपथः —पुं॰—कु-तर्क-पथः—-—तर्क करने की झूठी रीति
कुतीर्यम् —नपुं॰—कु-तीर्यम्—-—खराब अध्यापक
कुदृष्टिः —स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—कमजोर नजर
कुदृष्टिः —स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—पाप दृष्टि, कुटिल आँख
कुदृष्टिः —स्त्री॰—कु-दृष्टिः—-—वेदविरुद्ध सिद्धान्त, धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
कुदेशः —पुं॰—कु-देशः—-—बुरा देश या बुरी जगह
कुदेशः —पुं॰—कु-देशः—-—वह देश जहाँ जीवन की आवश्यक सामग्री उपलब्ध न हो, या जो अत्याचार से पीड़ित हो
कुदेह —वि॰—कु-देह—-—कुरुप विकृतकाय
कुदेहः —पुं॰—कु-देहः—-—कुबेर का विशेषण
कुधी —वि॰—कु-धी—-—मूर्ख, बुद्धू, बेवकूफ
कुनटः —पुं॰—कु-नटः—-—बुरा पात्र
कुनदिका —स्त्री॰—कु-नदिका—-—छोटी नदी, क्षुद्र नदी, लघु स्रोत
कुनाथः —पुं॰—कु-नाथः—-—बुरा स्वामी
कुनामन् —वि॰—कु-नामन्—-—कंजूस
कुरथः —पुं॰—कु-रथः—-—कुमार्ग, बुरा रास्ता
कुरथः —पुं॰—कु-रथः—-—धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
कुपुत्रः —पुं॰—कु-पुत्रः—-—बुरा या दुष्ट पुत्र
कुपुरुषः —पुं॰—कु-पुरुषः—-—नीच या दुष्ट पुरुष
कुपूय —वि॰—कु-पूय—-—नीच दुष्ट, तिरस्करणीय
कुप्रिय —वि॰—कु-प्रिय—-—अरुचिकर, तिरस्करणीय, नीच, अधम
कुप्लवः —पुं॰—कु-प्लवः—-—बुरी किश्ती
कुब्रह्मः —पुं॰—कु-ब्रह्मः—-—पतित ब्राह्मण
कुब्रह्मन् —पुं॰—कु-ब्रह्मन्—-—पतित ब्राह्मण
कुमन्त्रः —पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरा उपदेश
कुमन्त्रः —पुं॰—कु-मन्त्रः—-—बुरे कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त मंत्र
कुयोगः —पुं॰—कु-योगः —-—अशुभ संयोग
कुरस —वि॰—कु-रस —-—बुरे रस या स्वाद वाला
कुरसः —पुं॰—कु-रसः—-—एक प्रकार की मदिरा
कुरुप —वि॰—कु-रुप—-—कुरुप विकृत रुप
कुरुप्यम् —नपुं॰—कु-रुप्यम्—-—टीन, जस्ता
कुवङ्ग —वि॰—कु-वङ्ग—-—सीसा
कुवचस् —वि॰—कु-वचस्—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
कुवाक्य —वि॰—कु-वाक्य—-—गाली देने वाला, अश्लील भाषी, दुर्वचन या कुभाषा बोलने वाला
कुवाक्य —नपुं॰—कु-वाक्य—-—दुर्वचन, दुर्भाषा
कुवर्षः —पुं॰—कु-वर्षः—-—आकस्मिक प्रचण्ड बौछार
कुविवाहः —पुं॰—कु-विवाहः—-—विवाह का भर्ष्ट या अनुचित रुप
कुवृत्तिः —स्त्री॰—कु-वृत्तिः—-—बुरा व्यवहार
कुवैद्यः —पुं॰—कु-वैद्यः—-—खोटा वैद्य, कठवैद्य, नीम हकीम
कुशील —वि॰—कु-शील—-—अक्खड़, दुष्ट अशिष्ट, दुष्ट स्वभाव
कुष्ठलम् —नपुं॰—कु-ष्ठलम्—-—बुरी जगह
कुसरित् —स्त्री॰—कु-सरित्—-—क्षुद्र नदी, छोटा स्रोत
कुसृतिः —स्त्री॰—कु-सृतिः—-—दुराचरण, दुष्टता
कुसृतिः —स्त्री॰—कु-सृतिः—-—जादू दिखाना
कुसृतिः —स्त्री॰—कु-सृतिः—-—धूर्तता
कुस्त्री —स्त्री॰—कु-स्त्री—-—खोटी स्त्री
कु —भ्वा॰ आ॰ <कवते>—-—-—ध्वनि करना
कु —तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—बड़बड़ाना, कराहना
कु —तुदा॰ आ॰ <कुवते>—-—-—चिल्लाना, क्रन्दन करना
कु —अदा॰ पर॰ <कौति>—-—-—भिनभिनाना, कूजना, गुञ्जन करना
कुकभम् —नपुं॰—-—कुकेन अदानेन पानेन भाति - कुक - भा - क—एक प्रकार की तीक्ष्ण मदिरा
कुकीलः —पुं॰—-—कौ पृथिव्यां कीलः इव—पहाड़
कुकुदः —पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकु - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
कुकूदः —पुं॰—-—कूक वा कू इत्यव्ययम् - अलंकृता कन्या तां सत्कृत्य पात्राय ददाति कुकू - दा - क—उपयुक्त श्रृंगारों से सुभूषित कन्या को विधिपूर्वक विवाह में देने वाला
कुकुन्दरः —पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
कुकुन्दुरः —पुं॰—-—स्कंद्यते कामिना अत्र, नि॰ साधुः—जघनकूप, कूल्हे के दो गर्त जो नितम्ब के ऊपरी भाग में होते है
कुकुराः —ब॰ व॰—-—कु - कुर् - क—एक देश का नाम जिसे ‘दुर्शाह’ भी कहते हैं
कुकूलः —पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
कुकूलः —पुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
कुकूलम् —नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—चोकर, भूसी
कुकूलम् —नपुं॰—-—कु - ऊलच्, कुगागमः—भूसी से बनी आग
कुकूलम् —नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—छिद्र खाई
कुकूलम् —नपुं॰—-—को कूलम् ष॰ त॰—कवच, बख्तर
कुक्कुटः —पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—मुर्गा, जंगली मुर्गा
कुक्कुटः —पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—जले हुए भुस का फिसफिसाना, जलती हुई लकड़ी
कुक्कुटः —पुं॰—-—कुक् - क्विप्, तेन् कुटति, कुक् - कुट् - क—आग की चिंगारी
कुकुटिः —स्त्री॰—-—कुक्कुट - इन्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
कुकूटी —स्त्री॰—-—कुक्कुट - ङीप्—दम्भ, पाखण्ड, धार्मिक अनुष्ठानों से स्वार्थसिद्धि
कुक्कुभः —पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—जंगली मुर्गा
कुक्कुभः —पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—मुर्गा
कुक्कुभः —पुं॰—-—कुक्कु शब्दं भाषते - कुक्कु - भाष् - ड बा॰—वार्निश
कुक्कुरः —पुं॰—-—कोकते आदते - कुक् - क्विप्, कुक् किंचिदपि गृह्लन्तं जनं दृष्टवा कुरति शब्दायते - कुक् - कुर् - क—कुत्ता
कुक्कुरवाच् —पुं॰—कुक्कुर-वाच्—-—हरिणों की एक जाति
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—पेट
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—गर्भाशय, पेट का वह भाग जिसमें भ्रूण रहता हैं
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—किसी चीज का भीतरी भाग
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—गर्त
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—गुफा, कन्दरा
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—तलवार का म्यान
कुक्षिः —पुं॰—-—कुष् - स—खाड़ी
कुक्षिशूलः —पुं॰—कुक्षि-शूलः—-—पेट दर्द, उदरशूल
कुक्षिम्भरि —वि॰—-—कुक्षि - भृ - इन्, मुम्—अपना पेट भरने की चिन्ता करने वाला, स्वार्थी, पेटू, बहुभोजी
कुङ्कुमम् —नपुं॰—-—कुक् - उमक्, नि॰ मुम्—केसर, जाफ़रान
कुङ्कुमाद्रिः —पुं॰—कुङ्कुमम्-अद्रिः—-—एक पहाड़ का नाम
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—कर्कश ध्वनि करना
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—जाना, चमकाना
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकोड़ना, झुकाना
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—सिकुड़ना
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—बाधा उपस्थित करना
कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—-—-—लिखना, अंकित करना
सङ्कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—टेढ़ा होना
सङ्कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित करना
सङ्कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—संकुचित होना
सङ्कुच् —तुदा॰ पर॰ <कुचति>, <कुचित>—सम्-कुच्—-—बन्द करना, मुर्झाना
सङ्कुच् —तुदा॰ पर॰, प्रेर॰—सम्-कुच्—-—बन्द करना, सिकोड़ना, घटाना
कुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—कुटिल बनाना, झुकाना या टेढ़ा करना
कुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—टेढ़ी तरह से चलना
कुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—छोटा करना, घटाना
कुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—सिकोड़ना, संकुचित होना
कुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—-—-—की ओर जाना
आकुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
आकुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—आ-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना, झुकाना
विकुच् —भ्वा॰ पर॰ <कोचति>, <कुञ्चति>, <कुञ्चित>—वि-कुच्—-—सिकोड़ना, टेढ़ा करना
कुञ्चनम् —नपुं॰—-—कुञ्च् - ल्युट्—टेढ़ा करना, झुकाना, सिकोड़ना
कुञ्चिः — पुं॰—-—कुच् - इन्—आठ मुट्ठियों या अंजलियों की धारिता का माप
कुञ्चिका —स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—कुंजी, चाभी
कुञ्चिका —स्त्री॰—-—कुच् - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—बाँस का अंकुर
कुञ्चित —वि॰—-—कुञ्च् - क्त—सिकुड़ा हुआ, टेढ़ा किया हुआ, झुकाया हुआ
कुञ्जः —पुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
कुञ्जः —पुं॰—-—-—हाथी का दाँत
कुञ्जम् —नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—लताओं तथा पौधों से आच्छादित स्थान, लतावितान, पर्णशाला
कुञ्जम् —नपुं॰—-—कु - जन् - ड, पृषो॰ साधुः—हाथी का दाँत
कुञ्जकुटीरः —पुं॰—कुञ्ज-कुटीरः—-—लतामण्डप, लताओं तथा पौधों से परिवेष्टित स्थान
कुञ्जरः —पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हाथी
कुञ्जरः —पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—कोई सर्वोत्तम या श्रेष्ठ वस्तु
कुञ्जरः —पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—पीपल का वृक्ष
कुञ्जरः —पुं॰—-—कुञ्जो हस्तिहनुः सोऽस्यास्ति - कुञ्ज - र—हस्त नामक नक्षत्र
कुञ्जरानीकम् —नपुं॰—कुञ्जर-अनीकम्—-—सेना का एक भाग जिसमें हाथी हों, हस्ति-सेना
कुञ्जराशनः —पुं॰—कुञ्जर-अशनः—-—अश्वत्थ वृक्ष
कुञ्जरारातिः —पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शेर
कुञ्जरारातिः —पुं॰—कुञ्जर-अरातिः—-—शरभ
कुञ्जरग्रहः —पुं॰—कुञ्जर-ग्रहः—-—हाथी पकड़ने वाला
कुट् —भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—कुटील या वक्र होना
कुट् —भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—टेढ़ा करना या झुकाना
कुट् —भ्वा॰ पर॰ <कुटति>, <कुटित>—-—-—बेईमानी करना, छल करना, धोखा देना
कुट् —दिवा॰ पर॰ <कुटयति>—-—-—तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़ देना, विभक्त करना, विघटित करना
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
कुटम् —नपुं॰—-—कुट् - कम्—जलपात्र, करवा, कलश
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—किला, दुर्ग
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—हथौड़ा
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—वृक्ष
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—घर
कुटः —पुं॰—-—कुट् - कम्—पहाड़
कुटजः —पुं॰—कुट-जः—-—एक वृक्ष का नाम
कुटजः —पुं॰—कुट-जः—-—अगस्त्य
कुटजः —पुं॰—कुट-जः—-—द्रोण
कुटहारिका —स्त्री॰—कुट-हारिका—-—सेविका, नौकरानी
कुटकम् —नपुं॰—-—कुट - कन्—बिना हलस का हल
कुटङ्कः —पुं॰—-—कु - टङ्क - घञ्—छत, छप्पर
कुटङ्गकः —पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—वृक्ष के उपर फैली हुई लताओं से बना लतामण्डप
कुटङ्गकः —पुं॰—-—कुटस्य अङ्गकः - ष॰ त॰—छोटा घर, झोपड़ी, कुटिया
कुटपः —पुं॰—-—कुट - पा - क—अनाज की माप
कुटपः —पुं॰—-—कुट - पा - क—घर के निकट वाटिका
कुटपः —पुं॰—-—कुट - पा - क—ऋषि, संन्यासी
कुटपम् —नपुं॰—-—कुट - पा - क—कमल
कुटरः —पुं॰—-—कुट् - करन् बा॰ —वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
कुटलम् —नपुं॰—-—कुट् - कलच्—छत, छप्पर
कुटिः —पुं॰—-—कुट् - इन—शरीर
कुटिः —पुं॰—-—कुट् - इन—वृक्ष
कुटिः —पुं॰—-—कुट् - इन—कुटिया, झोपड़ी
कुटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इन—मोड़, झुकाव
कुटिचरः —पुं॰—कुटि-चरः—-—सूँस, शिंशुक
कुटिरम् —नपुं॰—-—कुट् - इरन्—कुटिया, झोपड़ी
कुटिल —वि॰—-—कुट् - इलच्—टेढ़ा, झुका हुआ, मुड़ा हुआ, घूँघरदार
कुटिल —वि॰—-—कुट् - इलच्—घुमावदार, बलखाती हुई
कुटिल —वि॰—-—कुट् - इलच्—कपटी, जालसाज, बेईमान
कुटिलाशय —वि॰—कुटिल-आशय—-—दुरात्मा, दुर्गति
कुटिलपक्ष्मन् —वि॰—कुटिल-पक्ष्मन्—-—मुड़ी हुई पलकों वाला
कुटिलस्वभाव —वि॰—कुटिल-स्वभाव—-—कुटिल प्रकृति, बेईमान, दुर्गति
कुटिलिका —स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—दबे पाँव आना, दुबक कर चलना
कुटिलिका —स्त्री॰—-—कुटिल - कन् - टाप्, इत्वम्—लुहार की भट्टी
कुट्टी —स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—मोड़
कुट्टी —स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुटिया, झोपड़ी
कुट्टी —स्त्री॰—-—कुटि - ङीष्—कुट्टिनि, दूती
कुट्टीचकः —पुं॰—कुट्टी-चकः—-—किसी संघविशेष का संन्यासी
कुट्टीचरः —पुं॰—कुट्टी-चरः—-—एक संन्यासी जो अपने परिवार को अपने पुत्र की देख रेख में छोड़कर अपने आप को पूर्णतया धर्मानुष्ठान एवं तपश्चर्या में लगा देता है
कुटीरः —पुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
कुटीरम् —नपुं॰—-—कुटी - र—कुटिया, झोपड़ी
कुटीरकः —पुं॰—-—कुटीर - कन्—कुटिया, झोपड़ी
कुटुनी —स्त्री॰—-—कुट् - उन् - ङीष्—कुट्टिनी, दूती
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—गृहस्थी, परिवार
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
कुटुम्बकम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—गृहस्थी, परिवार
कुटुम्बकम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब - कन्—परिवार के कर्तव्य और चिन्ताएँ
कुटुम्बः —पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
कुटुम्बः —पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, संतान
कुटुम्बः —पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
कुटुम्बः —पुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बन्धु, वंश या विवाह के फलस्वरूप सम्बन्ध
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—बाल-बच्चे, सन्तान
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—नाम
कुटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्ब् - अच्—वंश
कुटुम्बकलहः —पुं॰—कुटुम्बम्-कलहः—-—घरेलू झगड़े
कुटुम्बकलहम् —नपुं॰—कुटुम्बम्-कलहम्—-—घरेलू झगड़े
कुटुम्बभरः —पुं॰—कुटुम्बम्-भरः—-—परिवार का भार
कुटुम्बव्यापृत —वि॰—कुटुम्बम्-व्यापृत—-—जो पालन पोषण करता है, तथा परिवार की भलाई का ध्यान रखता है
कुटुम्बिकः —पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—गृहस्थ, कुल पिता
कुटुम्बिकः —पुं॰—-—कुटुम्ब - ठन्—परिवार का एक सदस्य
कुटुम्बिन् —पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —गृहस्थ, कुल पिता
कुटुम्बिन् —पुं॰—-—कुटुम्ब - इनि —परिवार का एक सदस्य
कुटुम्बिकनी —स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
कुटुम्बिकनी —स्त्री॰—-—-—स्त्री
कुटुम्बिनी —स्त्री॰—-—-—गृहपत्नी, गृहिणी
कुटुम्बिनी —स्त्री॰—-—-—स्त्री
कुट्ट —चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—काटना, बाँटना
कुट्ट —चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—पीसना, चूर्ण करना
कुट्ट —चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—दोष देना, निन्दा करना
कुट्ट —चुरा॰ उभ॰ <कुट्टयति>, <कुट्टित>—-—-—गुणा करना
कुट्टकः —पुं॰—-—कुट्ट् - ण्वुल्—कूटने वाला, पीसने वाला
कुट्टनम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—काटना
कुट्टनम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—कूटना
कुट्टनम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - ल्युट्—दुर्वचन कहना, निन्दा करना
कुट्टनी —स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्—कुटनी, दूती, दल्ली
कुट्टिनी —स्त्री॰—-—कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम् - कुट्ट् - णिच् - ल्युट् - ङीप्, कुट्ट - इनि वा—कुटनी, दूती, दल्ली
कुट्टमितम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - घञ्, तेन निर्वृत्त इत्यर्थे कुट्ट् - इमप् - इतच्—प्रियतम के प्यार का दिखावटी तिरस्कार
कुट्टाक —वि॰—-—कुट्ट् - षाकन्—जो विभक्त करता है या काटता है
कुट्टारः —पुं॰—-—कुट्ट - आरन्—पहाड़
कुट्टारम् —नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—मैथुन
कुट्टारम् —नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—ऊनी कंबल
कुट्टारम् —नपुं॰—-—कुट्ट - आरन्—एकान्त
कुट्टिमः —पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
कुट्टिमः —पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
कुट्टिमः —पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
कुट्टिमः —पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
कुट्टिमः —पुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
कुट्टिमम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—खड़ंजा, छोटे-छोटे पत्थरों को जमा कर बनाया हुआ फर्श, पक्का फर्श
कुट्टिमम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—भवन बनाने के लिए तैयार की गई भूमि
कुट्टिमम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—रत्नों की खान
कुट्टिमम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—अनार
कुट्टिमम् —नपुं॰—-—कुट्ट् - इमप्—झोपड़ी, कुटिया, छोटा घर
कुट्टिहारिका —स्त्री॰—-—कुट्टिं मत्स्यमांसादिकं हरति इति - कुट्टि - हृ - ण्वुल् - टाप्, इत्वम्—सेविका, दासी
कुठः —पुं॰—-—कुठयते छिद्यते - कुठ् - क—वृक्ष
कुठर —वि॰—-—-—वह थूणी जिसमें मथते समय रई की रस्सी लिपटी रहती है
कुठारः —पुं॰—-—कुठ् - आरन्—कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी
कुठारिकः —पुं॰—-—कुठार - ठन्—लकड़हारा, लकड़ी काटने वाला
कुठारिका —स्त्री॰—-—कुठार - ङीप् - कन् - टाप्, ह्रस्वश्च—छोटा कुल्हाड़ा, फरसा
कुठारुः —पुं॰—-—कुठ् - आरु—वृक्ष
कुठारुः —पुं॰—-—कुठ् - आरु—लंगूर, बन्दर
कुठिः —पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—वृक्ष
कुठिः —पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—पहाड़
कुडङ्गः —पुं॰—-—कुठ् - इन् - कित्—कुञ्ज, लतागृह
कुडवः —पुं॰—-—कुड् - कवन्, कपन् वा—एक चौथाई प्रस्थ के बराबर या बारह मुट्ठी अनाज की तोल
कुड्मल —वि॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलता हुआ, पूरा खिला हुआ, लहराता हुआ
कुड्मलः —पुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—खुलना, कली
कुड्मलम् —नपुं॰—-—कुड् - कल, मुट्—एक प्रकार का नरक
कुड्मलित —वि॰—-—कुड्मल - इतच्—कलीदार, खिला हुआ
कुड्मलित —वि॰—-—कुड्मल - इतच्—प्रसन्न, हंसमुख
कुड्यम् —नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—दीवार
कुड्यम् —नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
कुड्यम् —नपुं॰—-—कु - यक्, डुगागमः—उत्सुकता, जिज्ञासा
कुड्यछेदिन् —पुं॰—कुड्यम्-छेदिन्—-—घर में सेंध लगाने वाला, चोर
कुड्यछेद्यः —पुं॰—कुड्यम्-छेद्यः—-—खोदने वाला
कुड्यछेद्यम् —नपुं॰—कुड्यम्-छेद्यम्—-—खाई, गड्ढा, दरार
कुण् —तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—सहारा देना, सहायता देना
कुण् —तुदा॰ पर॰ <कुणति>, <कुणित>—-—-—शब्द करना
कुणकः —पुं॰—-—कुण् - क - कन्—किसी जानवर का अभी पैदा हुआ बच्चा
कुणप —वि॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दे जैसी दुर्गन्ध देने वाला, बदबूदार
कुणपः —पुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
कुणपम् —नपुं॰—-—कुण् - कपन्—मुर्दा, शव
कुणपः —पुं॰—-—कुण् - कपन्—बर्छी
कुणपः —पुं॰—-—कुण् - कपन्—दुर्गन्ध, बदबू
कुणिः —पुं॰—-—कुण् - इन्—लुंजा
कुण्टक —वि॰—-—कुण्ट् - ण्वुल्—मोटा, स्थूल
कुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—कुण्ठित, ठूण्ठा या मन्द हो जाना
कुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—लँगड़ा और विकलांग होना
कुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—मन्दबुद्धि या मूर्ख होना, सुस्त होना
कुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ <कुण्ठति>, <कुण्ठित>—-—-—ढीला करना
कुण्ठ् —भ्वा॰ पर॰ प्रेर॰—-—-—छिपाना
कुण्ठ —वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—ठूँठा, सुस्त
कुण्ठ —वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—मन्द, मूर्ख, जड़
कुण्ठ —वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—आलसी, सुस्त
कुण्ठ —वि॰—-—कुण्ठ् - अच्—दुर्बल
कुण्ठकः —पुं॰—-—कुण्ठ् - ण्वुल्—मूर्ख
कुण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—ठूंठा, मन्दीकृत
कुण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—जड
कुण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—कुठ् - क्त—विकलांग
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—हौज
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
कुण्डम् —नपुं॰—-—कुण् - ड—प्याले की शक्ल का बर्तन, चिलमची, कटोरा
कुण्डम् —नपुं॰—-—कुण् - ड—हौज
कुण्डम् —नपुं॰—-—कुण् - ड—कूँड़, कुंड
कुण्डम् —नपुं॰—-—कुण् - ड—पोखर या पल्वल
कुण्डम् —नपुं॰—-—कुण् - ड—कमण्डलु या भिक्षापात्र
कुण्डः —पुं॰—-—कुण् - ड—पति के जीवित रहते व्यभिचार के द्वारा किसी दूसरे पुरुष के संयोग से उत्पन्न सन्तान
कुण्डाशिन् —पुं॰—कुण्ड-आशिन्—-—भँड़ुवा, विट
कुण्डोधस् —पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—वह गाय जिसका ऐन या औड़ी भरी हुई हो
कुण्डोधस् —पुं॰—कुण्ड-ऊधस्—-—भरे पूरे स्तनों वाली स्त्री
कुण्डकीटः —पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—रखैल स्त्रियाँ रखने वाला
कुण्डकीटः —पुं॰—कुण्ड-कीटः—-—चार्वाक मतावलम्बी, नास्तिक, जारज ब्राह्मण
कुण्डकीलः —पुं॰—कुण्ड-कीलः—-—नीच या दुश्चरित्र व्यक्ति
कुण्डगोलम् —नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कांजी
कुण्डगोलम् —नपुं॰—कुण्ड-गोलम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
कुण्डगोलकम् —नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कांजी
कुण्डगोलकम् —नपुं॰—कुण्ड-गोलकम्—-—कुण्ड और गोलक का समुदाय
कुण्डलः —पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
कुण्डलः —पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
कुण्डलः —पुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
कुण्डलम् —नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कान की बाली, कान का आभूषण
कुण्डलम् —नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—कड़ा
कुण्डलम् —नपुं॰—-—कुण्ड - मत्वर्थे ल—रस्सी का गोला
कुण्डलना —स्त्री॰—-—कुण्डल् - णिच् - युच् - टाप्—घेरा डालना
कुण्डलिन् —वि॰—-—कुण्डल - इनि—कुण्डलों से विभूषित
कुण्डलिन् —वि॰—-—कुण्डल - इनि—गोलाकार, सर्पिल
कुण्डलिन् —वि॰—-—कुण्डल - इनि—घुमावदार, कुण्डली मारे हुए
कुण्डलिन् —पुं॰—-—कुण्डल - इनि—साँप
कुण्डलिन् —पुं॰—-—कुण्डल - इनि—मोर
कुण्डलिन् —पुं॰—-—कुण्डल - इनि—वरुण की उपाधि
कुण्डिका —स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—घड़ा
कुण्डिका —स्त्री॰—-—कुण्ड - कन् - टाप्, इत्वम्—कमण्डलु
कुण्डिन् —पुं॰—-—कुण्ड् - इनि—शिव की उपाधि
कुण्डिनम् —नपुं॰—-—कुण्ड् - इनच्—एक नगर का नाम, विदर्भ देश की राजधानी
कुण्डिर —वि॰—-—कुण्ड् - इ रन्—बलवान
कुण्डीर —वि॰—-—कुण्ड् - ई रन्—बलवान
कुण्डिरः —पुं॰—-—कुण्ड् - इ रन्—मनुष्य
कुण्डीरः —पुं॰—-—कुण्ड् - ई रन्—मनुष्य
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ से, किधर से
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कहाँ, और कहाँ, और किस स्थान पर आदि
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्यों, किसलिए किस कारण से, किस प्रयोजन से
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—कैसे, किसप्रकार
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—और अधिक, और कम
कुतः —अव्य॰—-—किम् - तसिल्—क्योंकि, कभी कभी
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—ब्राह्मण
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—द्विज
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—सूर्य
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अग्नि
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अतिथि
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—बैल, साँड़
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दोहता
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—भानजा
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—अनाज
कुतपः —पुं॰—-—कु - तप् - अच्—दिन का आठवाँ मुहूर्त
कुतपम् —नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—कुश घास
कुतपम् —नपुं॰—-—कु - तप् - अच्—एक प्रकार का कम्बल
कुतस्त्य —वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कहाँ से आया हुआ
कुतस्त्य —वि॰—-—कुतस् - त्यप्—कैसे हुआ
कुतुकम् —नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—इच्छा, रुचि
कुतुकम् —नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—जिज्ञासा
कुतुकम् —नपुं॰—-—कुत् - उकञ्—उत्सुकता, उत्कण्ठा, उत्कटता
कुतुपः —पुं॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
कुतूः —स्त्री॰—-—कुतू - डुप पृषो॰, कु - तन् - कू टिलोपः बा॰—कुप्पी
कुतूहल —वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—आश्चर्यजनक
कुतूहल —वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—श्रेष्ठ सर्वोत्तम
कुतूहल —वि॰—-—कुतू - हल् - अच्—प्रशंसाप्राप्त, प्रसिद्ध
कुतूहलम् —नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—इच्छा, जिज्ञासा
कुतूहलम् —नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—उत्सुकता
कुतूहलम् —नपुं॰—-—कुतू - हल् - अच्—जिज्ञासा को उत्तेजित करने वाला, सुहावना, मनोरञ्जक, कौतुक या जिज्ञासा
कुत्र —अव्य॰—-—किम् - त्रल्—कहाँ, किस बात में
कुत्र —अव्य॰—-—किम् - त्रल्—किस विषय में
कुत्रत्य —वि॰—-—कुत्र - त्यप्—कहाँ रहने वाला या कहाँ वास करने वाला
कुत्स् —चुरा॰ आ॰ <कुत्सयते>, <कुत्सित>—-—-—गाली देना, बुरा भला कहना, निन्दा करना, कलंक लगाना
कुत्सनम् —नपुं॰—-—कुत्स् - ल्युट्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
कुत्सा —स्त्री॰—-—कुत्स् - ल्युट्, कुत्स् - अ - टाप्—दुर्वचन, घृणा, भर्त्सना, गाली देना
कुत्सित —वि॰—-—कुत्स् - क्त—घृणित, तिरस्करणीय
कुत्सित —वि॰—-—कुत्स् - क्त—नीच, अधम, दुश्चरित्र
कुथः —पुं॰—-—कु - थक्—कुशा नामक घास
कुथः —पुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
कुथम् —नपुं॰—-—कु - थक्—छींट की बनी हाथी की झूल
कुथा —स्त्री॰—-—कु - थक्+टाप्—छींट की बनी हाथी की झूल
कुद्दारः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
कुद्दारः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰—कांचन वृक्ष
कुद्दालः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कुदाली, खुर्पा
कुद्दालः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰—कांचन वृक्ष
कुद्दालकः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कुदाली, खुर्पा
कुद्दालकः —पुं॰—-—कु - दृ - णिच् - अण्, पृषो॰, कु - दल् - णिच् - अण् पृषो॰, कुद्दाल - कन्—कांचन वृक्ष
कुद्यलम् —नपुं॰—-—-—कुड्मलम्
कुद्रङ्कः —पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—चौकी
कुद्रङ्कः —पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः—मचान पर बना मकान
कुद्रङ्गः —पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—चौकी
कुद्रङ्गः —पुं॰—-—कुद्र - कै - क नि॰ साधुः, कु - उत् - रञ्ज् - घञ्—मचान पर बना मकान
कुन्तः —पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—भाला, पंखदार बाण, बर्छी
कुन्तः —पुं॰—-—कु - उन्द् - क्त, बा॰ शाक॰ पररूपम्—छोटा जन्तु, कीड़ा
कुन्तलः —पुं॰—-—कुन्त - ला - क—सिर के बाल, बालों का गुच्छा
कुन्तलः —पुं॰—-—कुन्त - ला - क—कटोरा
कुन्तलः —पुं॰—-—कुन्त - ला - क—हल
कुन्तलाः —पुं॰—-—कुन्त - ला - क—एक देश तथा उसके निवासियों का नाम
कुन्तिः —पुं॰—-—कमु - झिच्—एक राजा का नाम, क्रथ का पुत्र
कुन्तिभोजः —पुं॰—कुन्ति-भोजः—-—एक यादव राजकुमार, कुन्तिदेश का राजा
कुन्ती —स्त्री॰—-—कुन्ति - ङीष्—‘शूर’ नामक यादव की पुत्री पृथा जिसको कुन्तिभोज ने गोद लिया
कुन्थ् —भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—कष्ट सहन करना
कुन्थ् —भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चिपकना
कुन्थ् —भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—आलिंगन करना
कुन्थ् —भ्वा॰ क्र्या॰ पर॰ <कुन्थति>, <कुथ्नाति>, <कुन्थित>—-—-—चोट पहुँचाना
कुन्द —वि॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
कुन्दम् —नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—चमेली का एक भेद, मोतिया
कुन्दम् —नपुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—इस पौधे का फूल
कुन्दः —पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—विष्णु की उपाधि
कुन्दः —पुं॰—-—कु - दै (दो) - क, नि॰ मुम्, या कु - दत्, नुम्—खैराद
कुन्दकरः —पुं॰—कुन्द-करः—कुन्द - मा - क—खैरादी
कुन्दमः —पुं॰—-—कुन्द् - इनि - ङीप्—बिल्ली
कुन्दिनी —स्त्री॰—-—कु - दृ - डु बा॰ नुम्—कमलों का समूह
कुन्दुः —पुं॰—-—-—चूहा, मूसा
कुप् —दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—क्रुद्ध होना
कुप् —दिवा॰ पर॰ <कुप्यति>,<कुपित>—-—-—उत्तेजित होना, सामर्थ्य ग्रहण करना, प्रचण्ड होना
अतिकुप् —दिवा॰ पर॰—अति-कुप्—-—क्रुद्ध होना
परिकुप् —दिवा॰ पर॰—परि-कुप्—-—क्रुद्ध होना
प्रकुप् —दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—क्रुद्ध होना
प्रकुप् —दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उत्तेजित होना, बल प्राप्त करना, बढ़ना
प्रकुप् —दिवा॰ पर॰—प्र-कुप्—-—उभारना, चिढ़ाना, खिझाना
कुपिन्दः —पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—बुनकर
कुपिन्दः —पुं॰—-—कुप् - किन्दच्—जुलाहा जाति का नाम
कुपिनिन् —पुं॰—-—कुपिनी मत्स्यधानी अस्ति अस्य - कुपिनी - इन्—मछुवा
कुपिनी —वि॰—-—कुप् - इनि - ङीप्—छोटी-छोटी मछलियाँ पकड़ने का एक प्रकार का जाल
कुपूय —वि॰—-—कु - पूय् - अच्—घृणित, नीच, अधम, तिरस्करणीय
कुप्यम् —नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—अपधातु
कुप्यम् —नपुं॰—-—गुप् - क्यप्, कुत्वम्—चाँदी और सोने को छोड़कर और कोई धातु
कुबेरः —पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
कुवेरः —पुं॰—-—कुत्सितं बे (वे) रं शरीरं यस्य सः—धन दौलत और कोश का स्वामी, उत्तर दिशा का स्वामी
कुबेराचलः —पुं॰—कुबेर-अचलः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
कुबेराद्रिः —पुं॰—कुबेर-अद्रिः—-—कैलास पर्वत की उपाधि
कुबेरदिश् —स्त्री॰—कुबेर-दिश्—-—उत्तर दिशा
कुब्ज —वि॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कुबड़ा, कुटिल
कुब्जः —पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—मुड़ी हुई तलवार
कुब्जः —पुं॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—पीठ पर निकला हुआ कूब
कुब्जा —स्त्री॰—-—कु ईषत् उब्जमार्जवं यत्र शकं॰ तारा॰—कंस की एक सेविका, कहते है उसका शरीर तीन स्थानों पर विकृत था
कुब्जकः —पुं॰—-—कुब्ज - कन्—एक वृक्ष का नाम
कुब्जिका —स्त्री॰—-—कुब्जक - टाप्, इत्वम्—आठवर्ष की अविवाहित लड़की
कुभृत् —पुं॰—-—कु - भृ - क्विप्, तुकागमः—पहाड़
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पुत्र, बालक, युवा
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—पाँच वर्ष से कम आयु का बालक
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—राजकुमार, युवराज
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—युद्ध के देवता कार्तिकेय
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—अग्नि
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—तोता
कुमारः —पुं॰—-—कम् - आरन्, उपधायाः उत्वम्—सिन्धु नदी
कुमारपालन —वि॰—कुमार-पालन—-—बच्चों की देखरेख रखने वाला
कुमारपालन —वि॰—कुमार-पालन—-—राजा शालिवाहन
कुमारभृत्या —स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख
कुमारभृत्या —स्त्री॰—कुमार-भृत्या—-—गर्भावस्था में स्त्री की देखरेख, प्रसूति विद्या
कुमारवाहिन् —पुं॰—कुमार-वाहिन्—-—मोर
कुमारवाहनः —पुं॰—कुमार-वाहनः—-—मोर
कुमारसू —स्त्री॰—कुमार-सू—-—पार्वती का विशेषण
कुमारसू —स्त्री॰—कुमार-सू—-—गंगा का विशेषण
कुमारकः —पुं॰—-—कुमार - कन्—बच्चा, युवा
कुमारकः —पुं॰—-—कुमार - कन्—आँख का तारा
कुमारय —ना॰ धा॰ पर॰ <कुमारयति>—-—-—खेलना, क्रीडा करना
कुमारिक —वि॰—-—कुमारी - ठन्—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
कुमारिन् —वि॰—-—कुमारी - इनि—जिसकी लड़कियाँ हों, जहाँ लड़कियों की बहुतायत हो
कुमारिका —स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
कुमारिका —स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—अविवाहित तरुणी, कन्या
कुमारिका —स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—लड़की, पुत्री
कुमारिका —स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—दुर्गा
कुमारिका —स्त्री॰—-—कुमारी - ठन् - टाप्—कुछ पौधों के नाम
कुमारी —स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दस से बारह वर्ष के बीच की लड़की
कुमारी —स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—अविवाहित तरुणी, कन्या
कुमारी —स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—लड़की, पुत्री
कुमारी —स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—दुर्गा
कुमारी —स्त्री॰—-—कुमार - ङीष्—कुछ पौधों के नाम
कुमारिकापुत्रः —पुं॰—कुमारिका-पुत्रः—-—अविवाहित स्त्री का पुत्र
कुमारिकाश्वसुरः —पुं॰—कुमारिका-श्वसुरः—-—विवाह से पूर्व भ्रष्ट लड़की का श्वसुर
कुमुद् —वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—कृपाशून्य, अमित्र
कुमुद् —वि॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लोभी
कुमुद् —नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—सफेद कुमुदिनी
कुमुद् —नपुं॰—-—कु - मुद् - क्विप्—लाल कमल
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
कुमुदम् —नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—सफेद कुमुदिनी
कुमुदम् —नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—लाल कमल
कुमुदम् —नपुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—चाँदी
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—विष्णु का विशेषण
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—दक्षिण दिशा के दिग्गज का नाम
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—कपूर
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—बन्दरों की एक जाति
कुमुदः —पुं॰—-—कौ मोदते इति कुमुदम्—एक नाग जिसने अपनी छोटी बहन कुमुद्वती को राम के पुत्र कुश को प्रदान किया
कुमुदाकारः —पुं॰—कुमुद-आकारः—-—चाँदी
कुमुदाकारः —पुं॰—कुमुद-आकारः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
कुमुदावासः —पुं॰—कुमुद-आवासः—-—कमलों से भरा हुआ सरोवर
कुमुदेशः —पुं॰—कुमुद-ईशः—-—चन्द्रमा
कुमुदखण्डम् —नपुं॰—कुमुद-खण्डम्—-—कमलों का समूह
कुमुदनाथः —पुं॰—कुमुद-नाथः—-—चन्द्रमा
कुमुदपतिः —पुं॰—कुमुद-पतिः—-—चन्द्रमा
कुमुदबन्धुः —पुं॰—कुमुद-बन्धुः—-—चन्द्रमा
कुमुदबान्धवः —पुं॰—कुमुद-बान्धवः—-—चन्द्रमा
कुमुदसुहृद् —पुं॰—कुमुद-सुहृद्—-—चन्द्रमा
कुमुदवती —स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप् - ङीष्, वत्वम्—कमल का पौधा
कुमिदिनी —स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
कुमिदिनी —स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलों का समूह
कुमिदिनी —स्त्री॰—-—कुमुद - इनि - ङीष्—कमलस्थली
कुमिदिनीनायकः —पुं॰—कुमिदिनी-नायकः—-—चन्द्रमा
कुमिदिनीपतिः —पुं॰—कुमिदिनी-पतिः—-—चन्द्रमा
कुमुद्वत् —वि॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्—जहाँ कमलों की बहुतायत हो
कुमुद्वती —स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—सफेद फूलों की कुमुदिनी
कुमुद्वती —स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलों का समूह
कुमुद्वती —स्त्री॰—-—कुमुद - मतुप्, वत्वम्, ङीप्—कमलस्थली
कुमुद्वतीशः —पुं॰—कुमुद्वती-ईशः—-—चन्द्रमा
कुमोदकः —पुं॰—-—कु - मुद् - णिच् - ण्वुल्—विष्णु का विशेषण
कुम्बा —स्त्री॰—-—कुम्ब् - अङ् - टाप्—यज्ञभूमि का अहाता
कुम्भः —पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—घड़ा, जलपात्र, करवा
कुम्भः —पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—हाथी के मस्तक का ललाट स्थल
कुम्भः —पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—राशिचक्र में ग्यारहवीं राशि कुम्भ
कुम्भः —पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—२० द्रोण के बराबर अनाज की तौल
कुम्भः —पुं॰—-—कुं भूमि कुत्सितं वा उम्भति पूरयति - उम्भ् - अच् शकं तारा॰—श्वास को स्थगित करने के लिए नाक तथा मुखविवर को बन्द करना
कुम्भकर्णः —पुं॰—कुम्भ-कर्णः—-—‘घड़े के सदृश कान वाला’ एक महाकाय राक्षस जो रावण का भाई था तथा राम के हाथों मारा गया था
कुम्भकारः —पुं॰—कुम्भ-कारः—-—कुम्हार
कुम्भकारः —पुं॰—कुम्भ-कारः—-—वर्ण संकर जाति
कुम्भघोणः —पुं॰—कुम्भ-घोणः—-—एक नगर का नाम
कुम्भजः —पुं॰—कुम्भ-जः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
कुम्भजः —पुं॰—कुम्भ-जः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
कुम्भजः —पुं॰—कुम्भ-जः—-—वशिष्ठ का विशेषण
कुम्भजन्मनः —पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
कुम्भजन्मनः —पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
कुम्भजन्मनः —पुं॰—कुम्भ-जन्मनः—-—वशिष्ठ का विशेषण
कुम्भयोनिः —पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
कुम्भयोनिः —पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
कुम्भयोनिः —पुं॰—कुम्भ-योनिः—-—वशिष्ठ का विशेषण
कुम्भसम्भवः —पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—अगस्त्य मुनि के विशेषण
कुम्भसम्भवः —पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—कौरव और पाण्डवों के सैन्यशिक्षाचार्य गुरु द्रोण का विशेषण
कुम्भसम्भवः —पुं॰—कुम्भ-सम्भवः—-—वशिष्ठ का विशेषण
कुम्भदासी —स्त्री॰—कुम्भ-दासी—-—कुट्टिनी, दूती
कुम्भलग्नम् —शा॰—कुम्भ-लग्नम्—-—दिन का वह समय जब कि राशि चक्र क्षितिज के ऊपर उदय होता है
कुम्भमण्डूकः —पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—घड़े का मेढ़क
कुम्भमण्डूकः —पुं॰—कुम्भ-मण्डूकः—-—अनुभवशून्य मनुष्य
कुम्भसन्धिः —पुं॰—कुम्भ-सन्धिः—-—हाथी के सिर पर ललाटस्थलियों के बीच का गर्त
कुम्भकः —पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—स्तंभ का आधार
कुम्भकः —पुं॰—-—कुम्भ - कन् - कै - क वा—प्राणायाम का एक प्रकार जिसमें दाहिने हाथ की अंगुलियों से दोनों नथुने और मुख बन्द करके सांस रोका जाता हैं
कुम्भा —स्त्री॰—-—कुत्सितम् उम्भति पूरयति इति - उम्भ् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम—वेश्या, वारांगना
कुम्भिका —स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—छोटा बर्तन
कुम्भिका —स्त्री॰—-—कुम्भ - कन् - टाप्, इत्वम्—वेश्या
कुम्भिन् —पुं॰—-—कुम्भ - इनि—हाथी
कुम्भिन् —पुं॰—-—कुम्भ - इनि—मगरमच्छ
कुम्भिनरकः —पुं॰—कुम्भिन्-नरकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक
कुम्भिमदः —पुं॰—कुम्भिन्-मदः—-—हाथी के मस्तक से बहने वाला मद
कुम्भिलः —पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—सेंध लगाकर घर में घूसने वाला चोर
कुम्भिलः —पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—काव्य चोर, लेख चोर
कुम्भिलः —पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—साला, पत्नी का भाई
कुम्भिलः —पुं॰—-—कुम्भ - इलच्—गर्भ पूरा होने से पहले ही उत्पन्न बालक
कुम्भी —स्त्री॰—-—कुम्भ - ङीष्—पानी का छोटा पात्र, घड़िया
कुम्भीनसः —पुं॰,ए॰ व॰ या ब॰ व॰—कुम्भी-नसः—-—एक प्रकार का विषैला साँप
कुम्भीपाकः —पुं॰—कुम्भी-पाकः—-—एक विशेष प्रकार का नरक जिसमें पापी जन कुम्हार के बर्तनों की भाँति पकाये जाते है
कुम्भीकः —पुं॰—-—कुम्भी - कै - क—पुन्नागवृक्ष
कुम्भीकमक्षिका —स्त्री॰—कुम्भीक-मक्षिका—-—एक प्रकार की मक्खी
कुम्भीरः —पुं॰—-—कुम्भिन् - ईर् - अण्—घड़ियाल
कुम्भीरकः —पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
कुम्भीलः —पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
कुम्भीलकः —पुं॰—-—कुम्भीर - कनु, रस्य लः, ततः कन् च—चोर
कुर् —तुदा॰ पर॰ <कुरति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
कुरङ्करः —पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
कुरङ्कुरः —पुं॰—-—कुरम् इति अव्यक्तशब्दं करोति - कुरम् - कृ - ट, कुरम् - कुर् - शच् च—सारस पक्षी
कुरङ्गः —पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण
कुरङ्गः —पुं॰—-—कृ - अङ्गच्—हरिण की एक जाति
कुरङ्गाक्षी —स्त्री॰—कुरङ्ग-अक्षी—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
कुरङ्गनयना —स्त्री॰—कुरङ्ग-नयना—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
कुरङ्गनेत्रा —स्त्री॰—कुरङ्ग-नेत्रा—-—हरिण जैसी आँखों वाली स्त्री
कुरङ्गनाभिः —पुं॰—कुरङ्ग-नाभिः—-—कस्तूरी
कुरङ्गम् —नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण
कुरङ्गम् —नपुं॰—-—कुर - गम् - खच्, मुम्—हरिण की एक जाति
कुरचिल्लः —पुं॰—-—कुर - चिल्ल् - अच्—केकड़ा
कुरटः —पुं॰—-—कुर् - अटन् - कित्—जूता बनाने वाला, मोची
कुरण्टः —पुं॰—-—कुर् - अण्टक्—पीला सदाबहार, कटसरैया
कुरण्टकः —पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्—पीला सदाबहार, कटसरैया
कुरण्टिकाः —पुं॰—-—कुर् - अण्टक्, कुरण्ट - कन्, स्त्रियां टाप् इत्वम्—पीला सदाबहार, कटसरैया
कुरण्डः —पुं॰—-—कुर् - अण्डक्—अण्डकोश की वृद्धि, एक रोग जिसमें पोते बढ़ जाते हैं
कुररः —पुं॰—-—कु - क्रुरच्—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
कुरलः —पुं॰—-—कु - क्रुरच्, रलयोरभेदः—क्रौंच पक्षी, समुद्री उकाब
कुररी —स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—मादा क्रौंच
कुररी —स्त्री॰—-—कुरर - ङीष्—भेड़
कुररीगणः —पुं॰—कुररी-गणः—-—क्रौञ्च पक्षियों का झुण्ड
कुरवः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
कुरबः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
कुरवकः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
कुरबकः —पुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार या कटसरैया की जाति
कुरवम् —नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरव - कन्—सदाबहार का फूल
कुरबम् —नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
कुरवकम् —नपुं॰—-—ईषत् रवो यत्र इति, कुरब - कन्—सदाबहार का फूल
कुरकम् —नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—सदाबहार का फूल
कुरीरम् —नपुं॰—-—कृ - ईरन्, उकारादेशः—स्त्रियों का एक प्रकार का सिर पर ओढ़ने का कपड़ा
कुरुः —पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—वर्तमान दिल्ली के निकट भारत के उत्तर में स्थित एक देश
कुरुः —पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—इस देश के राजा
कुरुः —पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—पुरोहित
कुरुः —पुं॰—-—कृ - कु उकारादेशः—भात
कुरुक्षेत्रम् —नपुं॰—कुरु-क्षेत्रम्—-—दिल्ली के निकट एक विस्तृत क्षेत्र जहाँ कौरव पाण्डवों का महायुद्ध हुआ था
कुरुजाङ्गलम् —नपुं॰—कुरु-जाङ्गलम्—-—कुरुक्षेत्र
कुरुराज —वि॰—कुरु-राज—-—दुर्योधन का विशेषण
कुरुराजः —पुं॰—कुरु-राजः—-—दुर्योधन का विशेषण
कुरुविस्तः —पुं॰—कुरु-विस्तः—-—७०० ट्राय ग्रेन के बराबर सोने का तोल
कुरुवृद्धः —पुं॰—कुरु-वृद्धः—-—भीष्म का विशेषण
कुरुण्टः —पुं॰—-—-—लालरंग का सदाबहार
कुरुण्टी —स्त्री॰—-—-—काठ की गुड़िया पुत्तलिका
कुरुलः —पुं॰—-—-—बालों का गुच्छा, विशेषकर माथे पर बिखरी हुई जुल्फ
कुरुवक —वि॰—-—-—सदाबहार या कटसरैया की जाति
कुरुविन्द —वि॰—-—कुरु - विद् - श—लालमणि
कुरुविन्दम् —नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—लालमणि
कुरुविन्दम् —नपुं॰—-—कुरु - विद् - श, मुम्—काला नमक, दर्पण
कुर्कुटः —पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—मुर्गा
कुर्कुटः —पुं॰—-—कुरु - कुट् - क—कूड़ा-करकट
कुर्कुरः —पुं॰—-—कुर् - कुर् - क—कुत्ता
कुर्चिका —स्त्री॰—-—-—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
कुर्चिका —स्त्री॰—-—-—चाबी
कुर्चिका —स्त्री॰—-—-—कली, फूल
कुर्चिका —स्त्री॰—-—-—जमाया हुआ दूध
कुर्दू —स्त्री॰—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
कुर्दू —स्त्री॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
कुर्दन —वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
कुर्दन —वि॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
कुर्परः —पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
कूर्परः —पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् पक्षे दीर्घः नि॰—घुटना, कोहनी
कुर्पासः —पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
कूर्पासः —पुं॰—-—कुर्पर - अस् - घञ्,पृषो॰—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
कुर्पासकः —पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
कूर्पासकः —पुं॰—-—कूर्पास - कन्—स्त्रियों के पहनने के लिए एक प्रकार की अंगिया या चोली
कुर्वत् —पुं॰—-—कृ - शतृ—करता हुआ
कुर्वत् —पुं॰—-—कृ - शतृ—नौकर
कुर्वत् —पुं॰—-—कृ - शतृ—जूते बनाने वाला
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—वंश, परिवार
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—पारिवारिक आवास, आसन, घर, गृह
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—उत्तमकुल, उच्चवंश, भला घराना
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—रेवड़, दल, झुंड. संग्रह, समूह
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—चट्टा, टोली, दल
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—शरीर
कुलम् —नपुं॰—-—कुल - क—सामने का या अगला भाग
कुलः —पुं॰—-—कुल - क—किसी निगम या संघ का अध्यक्ष
कुलाकुल —वि॰—कुलम्-अकुल—-—मिश्र चरित्र बल का
कुलाकुल —वि॰—कुलम्-अकुल—-—मध्यम श्रेणी का
कुलाकुलतिथिः —पुं॰—कुलम्-अकुल-तिथिः—-—चन्द्रमास के पक्ष की द्वितीया, षष्ठी और दशमी
कुलाकुलवारः —पुं॰—कुलम्-अकुल-वारः—-—बुधवार
कुलाङ्गना —स्त्री॰—कुलम्-अङ्गना—-—आदरणीय तथा उच्च वंश की स्त्री
कुलाङ्गारः —पुं॰—कुलम्-अङ्गारः—-—जो अपने कुल को नष्ट करता है
कुलाचलः —पुं॰—कुलम्-अचलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलाद्रिः —पुं॰—कुलम्-अद्रिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलपर्वतः —पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलशैलः —पुं॰—कुलम्-शैलः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलान्वित —वि॰—कुलम्-अन्वित—-—उच्चकुल में उत्पन्न
कुलाभिमानः —पुं॰—कुलम्-अभिमानः—-—कुल का गौरव
कुलाचारः —पुं॰—कुलम्-आचारः—-—किसी परिवार या जाति का विशेष कर्तव्य या रिवाज
कुलाचार्यः —पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—कुलपुरोहित या कुलगुरु
कुलाचार्यः —पुं॰—कुलम्-आचार्यः—-—वंशावलीप्रणेता
कुलालम्बिन् —वि॰—कुलम्-आलम्बिन्—-—परिवार का पालन पोषण करने वाला
कुलेश्वरः —पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—परिवार का मुखिया
कुलेश्वरः —पुं॰—कुलम्-ईश्वरः—-—शिव का नाम
कुलोत्कट —वि॰—कुलम्-उत्कट—-—उच्चकुलोद्भव
कुलोत्कटः —पुं॰—कुलम्-उत्कटः—-—अच्छी नस्ल का घोड़ा
कुलोत्पन्न —वि॰—कुलम्-उत्पन्न—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
कुलोद्गत —वि॰—कुलम्-उद्गत—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
कुलोद्भव —वि॰—कुलम्-उद्भव—-—भले कुल में उत्पन्न, उच्चकुलोद्भव
कुलोद्वहः —पुं॰—कुलम्-उद्वहः—-—कुटुम्ब का मुखिया या उसे अमर बनाने वाला
कुलोपदेशः —पुं॰—कुलम्-उपदेशः—-—खानदानी नाम
कुलकज्जलः —पुं॰—कुलम्-कज्जलः—-—कुलकलंक
कुलकण्टकः —पुं॰—कुलम्-कण्टकः—-—जो अपने कुटुंब के लिए कांटे की भाँति कष्टदायक हो
कुलकन्यका —स्त्री॰—कुलम्-कन्यका—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
कुलकन्या —स्त्री॰—कुलम्-कन्या—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
कुलकरः —पुं॰—कुलम्-करः—-—कुलप्रवर्तक, कुल का आदिपुरुष
कुलकर्मन् —नपुं॰—कुलम्-कर्मन्—-—अपने कुल की विशेष रीति
कुलकलङ्कः —पुं॰—कुलम्-कलङ्कः—-—जो अपने कुल के लिए अपमान का कारण हो
कुलक्षयः —पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुटम्ब का नाश
कुलक्षयः —पुं॰—कुलम्-क्षयः—-—कुल की परिसमाप्ति
कुलगिरिः —पुं॰—कुलम्-गिरिः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलभूभृत् —पुं॰—कुलम्-भूभृत्—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलपर्वतः —पुं॰—कुलम्-पर्वतः—-—मुख्य पहाड़, जो इस महाद्वीप के प्रत्येक खंड में विद्यमान माने जाते हैं
कुलघ्न —वि॰—कुलम्-घ्न—-—कुल को बर्बाद करने वाला
कुलज —वि॰—कुलम्-ज—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
कुलजात —वि॰—कुलम्-जात—-—अच्छे कुल में उत्पन्न, कुलोद्भव
कुलजात —वि॰—कुलम्-जात—-—कुलक्रमागत, आनुवंशिक
कुलजनः —पुं॰—कुलम्-जनः—-—उच्चकुलोद्भव या सम्मानीय पुरुष
कुलतन्तुः —पुं॰—कुलम्-तन्तुः—-—जो अपने कुल को बनाये रखता है
कुलतिथिः —पुं॰—कुलम्-तिथिः—-—महत्त्वपूर्णतिथि, नामतः चांद्र पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी और चतुर्दशी
कुलतिलकः —पुं॰—कुलम्-तिलकः—-—कुटुंब की कीर्ति, जो अपने कुल को सम्मानित करता है
कुलदीपः —पुं॰—कुलम्-दीपः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
कुलदीपकः —पुं॰—कुलम्-दीपकः—-—जिससे कुल का नाम उजागर हो
कुलदुहितृ —स्त्री॰—कुलम्-दुहितृ—-—उच्चकुल में उत्पन्न लड़की
कुलदेवता —स्त्री॰—कुलम्-देवता—-—अभिभावक देवता, कुल का संरक्षक देवता
कुलधर्मः —पुं॰—कुलम्-धर्मः—-—कुल की रीति, अपने कुल का कर्तव्य या विशेष रीति
कुलधारकः —पुं॰—कुलम्-धारकः—-—पुत्र
कुलधुर्यः —पुं॰—कुलम्-धुर्यः—-—परिवार का भरणपोषण करने में समर्थ, वयस्क पुत्र
कुलनन्दन —वि॰—कुलम्-नन्दन—-—अपने कुल को प्रसन्न तथा सम्मानित करने वाला
कुलनायिका —स्त्री॰—कुलम्-नायिका—-—वाममार्गी शाक्तों की तान्त्रिकपूजा के उत्सव के अवसर पर जिस लड़की की पूजा की जाय
कुलनारी —स्त्री॰—कुलम्-नारी—-—उच्चकुलोद्भव सती साध्वी स्त्री
कुलनाशः —पुं॰—कुलम्-नाशः—-—कुल का नाश या बरबादी
कुलनाशः —पुं॰—कुलम्-नाशः—-—विधर्मी, आचारहीन, बहिष्कृत
कुलनाशः —पुं॰—कुलम्-नाशः—-—ऊँट
कुलपरम्परा —स्त्री॰—कुलम्-परम्परा—-—वंश को बनानेवाली पीढ़ियों की श्रेणी
कुलपतिः —पुं॰—कुलम्-पतिः—-—कुटुम्ब का मुखिया
कुलपतिः —पुं॰—कुलम्-पतिः—-—वह ऋषि जो दस सहस्र विद्यार्थियों का पालन पोषण करता है तथा उन्हें शिक्षित करता है
कुलपांसुका —स्त्री॰—कुलम्-पांसुका—-—कुलटा स्त्री जो अपने कुल को कलंक लगावे, व्यभिचारिणी स्त्री
कुलपालिः —पुं॰—कुलम्-पालिः—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
कुलपालिका —स्त्री॰—कुलम्-पालिका—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
कुलपाली —स्त्री॰—कुलम्-पाली—-—उच्चकुलोद्भूत सती स्त्री
कुलपुत्रः —पुं॰—कुलम्-पुत्रः—-—अच्छे कुल में उत्पन्न बेटा
कुलपुरुषः —पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—सम्मान के योग्य तथा उच्चकुल में उत्पन्न पुरुष
कुलपुरुषः —पुं॰—कुलम्-पुरुषः—-—पूर्वज
कुलपूर्वगः —पुं॰—कुलम्-पूर्वगः—-—पूर्व पुरुष
कुलभार्या —स्त्री॰—कुलम्-भार्या—-—सती साध्वी पत्नी
कुलभृत्या —स्त्री॰—कुलम्-भृत्या—-—गर्भवती स्त्री की परिचर्या
कुलमर्यादा —स्त्री॰—कुलम्-मर्यादा—-—कुल का सम्मान या प्रतिष्ठा
कुलमार्गः —पुं॰—कुलम्-मार्गः—-—कुल की रीति, सर्वोत्तमरीति या ईमानदारी का व्यवहार
कुलयोषित —वि॰—कुलम्-योषित—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
कुलवधू —स्त्री॰—कुलम्-वधू—-—अच्छे कुल की सदाचारिणी स्त्री
कुलवारः —पुं॰—कुलम्-वारः—-—मुख्य दिन
कुलविद्या —स्त्री॰—कुलम्-विद्या—-—कुलक्रमागत प्राप्त ज्ञान, परंपराप्राप्त ज्ञान
कुलविप्रः —पुं॰—कुलम्-विप्रः—-—कुलपुरोहित
कुलवृद्धः —पुं॰—कुलम्-वृद्धः—-—परिवार का बूढ़ा तथा अनुभवी पुरुष
कुलव्रतः —पुं॰—कुलम्-व्रतः—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
कुलव्रतम् —नपुं॰—कुलम्-व्रतम्—-—कुल का व्रत या प्रतिज्ञा
कुलश्रेष्ठिन् —पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—किसी कुटुम्ब या श्रमिक संघ का मुखिया
कुलश्रेष्ठिन् —पुं॰—कुलम्-श्रेष्ठिन्—-—उच्चकुल में उत्पन्न शिल्पकार
कुलसंख्या —स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—कुल की प्रतिष्ठा
कुलसंख्या —स्त्री॰—कुलम्-संख्या—-—सम्मानित परिवारों में गणना
कुलसन्ततिः —स्त्री॰—कुलम्-सन्ततिः—-—संतान, वंशज, वंशपरम्परा
कुलसम्भवः —वि॰—कुलम्-सम्भवः—-—प्रतिष्ठित कुल में उत्पन्न
कुलसेवकः —पुं॰—कुलम्-सेवकः—-—श्रेष्ठ नौकर
कुलस्त्री —स्त्री॰—कुलम्-स्त्री—-—उच्चकुल की स्त्री, कुललक्ष्मी
कुलस्थितिः —स्त्री॰—कुलम्-स्थितिः—-—कुटुम्ब की प्राचीनता या समृद्धि
कुलक —वि॰—-—कुल - कन्—अच्छे कुल का, अच्छे कुल में जन्मा हुआ
कुलकः —पुं॰—-—कुल - कन्—शिल्पियों की श्रेणी का मुखिया
कुलकः —पुं॰—-—कुल - कन्—उच्च कुल में उत्पन्न शिल्पकार
कुलकः —पुं॰—-—कुल - कन्—बाँबी
कुलकम् —पुं॰—-—कुल - कन्—संग्रह, समूह
कुलकम् —नपुं॰—-—कुल - कन्—व्याकरण की दृष्टि से सम्बन्ध श्लोकों का समूह
कुलटा —नपुं॰—-—कुल - अट् - अच् - टाप् शक॰ पररूपम्—व्यभिचारिणी स्त्री
कुलटापतिः —पुं॰—कुलटा-पतिः—-—भ्रष्टा या जारिणी स्त्री का स्वामी
कुलतः —नपुं॰—-—कुल - तसिल्—जन्म से
कुलत्थः —पुं॰—-—कुल - स्था - क पृषो॰ साधुः—कुलथी, एक प्रकार की दाल
कुलन्धर —वि॰—-—कुल - धृ - खच्, मुम्—अपने कुल का सिलसिला चलाने वाला
कुलम्भरः —पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
कुलम्भलः —पुं॰—-—कुल - भृ - खच्, मुम्—चोर
कुलवत् —वि॰—-—कुल - मतुप्, मस्य वत्वम्—कुलीन, अच्छे घराने में उत्पन्न
कुलायः —पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
कुलायः —पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
कुलायः —पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
कुलायः —पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
कुलायः —पुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
कुलायम् —नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—पक्षियों का घोंसला
कुलायम् —नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—शरीर
कुलायम् —नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—स्थान, जगह
कुलायम् —नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बुना हुआ वस्त्र, जाला
कुलायम् —नपुं॰—-—कुलं पक्षिसमूहः अयतेऽअत्र - कुल - अय् - घञ्—बक्स या पात्र
कुलायनिलायः —पुं॰—कुलाय-निलायः—-—घोंसले में बैठना, अंडे सेना, अंडों में से बच्चे निकालने लिए अंडों के ऊपर बैठना
कुलायस्थः —पुं॰—कुलाय-स्थः—-—पक्षी
कुलायिका —स्त्री॰—-—कुलाय - ठन् - टाप्—पक्षियों का पिंजड़ा, चिड़ियाघर, कबूतरखाना, दड़बा
कुलालः —पुं॰—-—कुल् - कालन्—कुम्हार
कुलालः —पुं॰—-—कुल् - कालन्—जंगली मुर्गा
कुलिः —पुं॰—-—कुल् - इन्, कित्—हाथ
कुलिक —वि॰—-—कुल - ठन्—अच्छे कुल का, उत्तम कुल में उत्पन्न
कुलिकः —पुं॰—-—कुल - ठन्—स्वजन
कुलिकः —पुं॰—-—कुल - ठन्—शिल्पीसंघ का मुखिया
कुलिकः —पुं॰—-—कुल - ठन्—उच्चकुलोद्भव कलाकार
कुलिकवेला —स्त्री॰—कुलिक-वेला—-—दिन का वह समय जब कि कोई शुभ कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए
कुलिङ्गः —पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—पक्षी
कुलिङ्गः —पुं॰—-—कु - लिङ्ग - अच्—चिड़िया
कुलिन् —वि॰—-—कुल - इनि—कुलीन, उच्चकुलोद्भव
कुलिन् —पुं॰—-—कुल - इनि—पहाड़
कुलिन्दः —ब॰ व॰—-—कुल् - इन्द—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
कुलिरः —पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
कुलिरः —पुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
कुलिरम् —नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—केकड़ा
कुलिरम् —नपुं॰—-—कुल् - इरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
कुलिशः —पुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
कुलिशः —पुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
कुलीशः —पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
कुलीशः —पुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
कुलिशम् —नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—इन्द्र का वज्र
कुलिशम् —नपुं॰—-—कुलि - शी - ड—वस्तु का सिरा या किनारा
कुलीशम् —नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—इन्द्र का वज्र
कुलीशम् —नपुं॰—-—कुलि - शी - ड, पक्षे पृषो॰ दीर्घः—वस्तु का सिरा या किनारा
कुलिशधरः —पुं॰—कुलिश-धरः—-—इन्द्र का विशेषण
कुलिशपाणिः —पुं॰—कुलिश-पाणिः—-—इन्द्र का विशेषण
कुलिशनायकः —पुं॰—कुलिश-नायकः—-—मैथुन की विशेष रीति, रतिसम्बन्ध
कुली —स्त्री॰—-—कुलि - ङीष्—पत्नी की बड़ी बहन, बड़ी साली
कुलीन —वि॰—-—कुल - ख—ऊँचे वंश का, अच्छे कुल का, उत्तम परिवार में जन्मा हुआ
कुलीनः —पुं॰—-—कुल - ख—अच्छी नस्ल का घोड़ा
कुलीनसम् —नपुं॰—-—कुलीनंभूमिलग्नं द्रव्यं स्यति - कुलीन - सो - क—पानी
कुलीरः —पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—केकड़ा
कुलीरः —पुं॰—-—कुल् - ईरन्, कित्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
कुलीरकः —पुं॰—-—कुलोर - कन्—केकड़ा
कुलीरकः —पुं॰—-—कुलोर - कन्—राशिचक्र में चौथी राशि, कर्कराशि
कुलक्कगुञ्जा —स्त्री॰—-—कौ पृथिव्यां लुक्का, लुक्कायिता गुञ्ज इव—लुकाठी, जलती हुई लकड़ी
कुलूतः —पुं॰—-—-—एक देश तथा उसके शासकों का नाम
कुल्माषम् —नपुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—कांजी
कुल्माषः —पुं॰—-—कुल् - क्विप्, कुल् माषोऽस्मिन् ब॰ स॰—एक प्रकार का अनाज
कुल्माषाभिषुतम् —नपुं॰—कुल्माषम्-अभिषुतम्—-—कांजी
कुल्य —वि॰—-—कुल - यत्—कुटुंब, वंश या निगम से सम्बन्ध रखने वाला
कुल्य —वि॰—-—कुल - यत्—सत्कुलोद्भव
कुल्यः —पुं॰—-—कुल - यत्—प्रतिष्ठित मनुष्य
कुल्यम् —नपुं॰—-—कुल - यत्—कौटुंबिक विषयों में मित्रों की भाँति पूछताछ
कुल्यम् —नपुं॰—-—कुल - यत्—हड्डी
कुल्यम् —नपुं॰—-—कुल - यत्—मांस
कुल्यम् —नपुं॰—-—कुल - यत्—छाज
कुल्या —स्त्री॰—-—कुल - यत्—साध्वी स्त्री
कुल्या —स्त्री॰—-—कुल - यत्—छोटी नदी, नहर, सरिता
कुल्या —स्त्री॰—-—कुल - यत्—परिखा, खाई
कुल्या —स्त्री॰—-—कुल - यत्—आठ द्रोण के बराबर अनाज की तोल
कुवम् —नपुं॰—-—कु - वा - क—फूल
कुवम् —नपुं॰—-—कु - वा - क—कमल
कुवर —वि॰—-—कु+ श्वरच्—कषाय, कसैला
कुवर —वि॰—-—कु+ श्वरच्—बिना दाढ़ी का
कुवलम् —नपुं॰—-—कु - वल - अच्—कुमुद
कुवलम् —नपुं॰—-—कु - वल - अच्—मोती
कुवलम् —नपुं॰—-—कु - वल - अच्—पानी
कुवलयम् —नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—नीला कुमुद
कुवलयम् —नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—कुमुद
कुवलयम् —नपुं॰—-—कोः पृथिव्याः वलयमिव - उप॰ स॰—पृथ्वी
कुवलयिनी —स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—नीली कुमुदिनी का पौधा
कुवलयिनी —स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलों का समूह
कुवलयिनी —स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमलस्थली
कुवलयिनी —स्त्री॰—-—कुवलय - इनि - ङीप्—कमल का पौधा
कुवाद —वि॰—-—कु - वद् - अण्—मान घटाने वाला, साख कम करने वाला, निन्दक
कुवाद —वि॰—-—कु - वद् - अण्—नीच, दुरात्मा, अधम
कुविकः —पुं॰,ब॰ व॰—-—कु - विद् - श, मुम्—एक देश का नाम
कुविन्दः —पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—बुनकर
कुविन्दः —पुं॰—-—कु - विद् - श, मुम्—जुलाहा जाति का नाम
कुवेणी —स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—मछलियाँ रखने की टोकरी
कुवेणी —स्त्री॰—-—कु - वेण् - इन् - ङीप्—बुरी तरह बँधी हुई सिर की चोटी
कुवेलम् —नपुं॰—-—कुवेषु जलज पुष्पेषु ईं शोभां लाति - कुव - ई - ला - क—कमल
कुशः —पुं॰—-—कु - शी - ड—एक प्रकार का घास जो पवित्र माना जाता हैं और बहुत से धर्मानुष्ठानों में जिसका होना आवश्यक समझा जाता हैं
कुशः —पुं॰—-—कु - शी - ड—राम के बड़े पुत्र का नाम
कुशम् —नपुं॰—-—कु - शी - ड—पानी
कुशाग्रम् —नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—कुशघास के पत्ते का तेज किनारा
कुशाग्रम् —नपुं॰—कुश-अग्रम्—-—तीव्रबुद्धि, तेजबुद्धि वाला, तीक्ष्णबुद्धि
कुशाग्रीय —वि॰—कुश-अग्रीय—-—तीव्र, तेज
कुशाङ्गरीयम् —वि॰—कुश-अङ्गरीयम्—-—कुशघास की बनी अंगूठी जो धर्मानुष्ठान के अवसर पर पहनी जाती है
कुशासनम् —नपुं॰—कुश-आसनम्—-—कुश का बना हुआ आसन या चटाई
कुशस्थलम् —नपुं॰—कुश-स्थलम्—-—उत्तर भारत में एक स्थान का नाम
कुशल —वि॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—सही, उचित, मंगल शुभ
कुशलम् —नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—कल्याण, प्रसन्न तथा समृद्ध अवस्था, प्रसन्नता
कुशलम् —नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—गुण
कुशलम् —नपुं॰—-—कुशान् लातीति - कुश - ला - क—चतुराई, योग्यता
कुशलकाम —वि॰—कुशल-काम—-—प्रसन्नता का इच्छुक
कुशलप्रश्नः —पुं॰—कुशल-प्रश्नः—-—किसी से कुशलमंगल पूछना
कुशलबुद्धि —वि॰—कुशल-बुद्धि—-—बुद्धिमान, समझदार, तीव्रबुद्धि, तीक्ष्णबुद्धि
कुशलिन् —वि॰—-—कुशल - इनि—प्रसन्न, राजी खुशी, समृद्ध
कुशा —स्त्री॰—-—कुश - टाप्—रस्सी का गोला
कुशा —स्त्री॰—-—कुश - टाप्—लगाम
कुशावती —स्त्री॰—-—कुश - मतुप्, मस्य वः, दीर्घः—इस नाम की एक नगरी, राम के पुत्र कुश की राजधानी
कुशिक —वि॰—-—कुश - ठन्—भैंगी आँख वाला
कुशिकः —पुं॰—-—कुश - ठन्—विश्वामित्र के दादा का नाम
कुशिकः —पुं॰—-—कुश - ठन्—फाली
कुशिकः —पुं॰—-—कुश - ठन्—तेल की गाद
कुशी —स्त्री॰—-—कुश - ङीष्—हल की फाली
कुशीलवः —पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—भाट, गवैया
कुशीलवः —पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—पात्र, नर्तक
कुशीलवः —पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—समाचार फैलाने वाला
कुशीलवः —पुं॰—-—कुत्सितं शीलमस्य - कुशील - व—वाल्मीकि का विशेषण
कुशुम्भः —पुं॰—-—कु - शुम्भ् - अच्—संन्यासी का जालपात्र, कमण्डलु
कुशूलः —पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—अन्नागार, कोठी, भण्डार
कुशूलः —पुं॰—-—कुस् - ऊलच्, पृषो॰ सस्य शत्वम्—भूसी से बनाई हुई आग
कुशेशयम् —नपुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—कुमुद, कमल
कुशेशयः —पुं॰—-—कुशे - शी - अच्. अलुक् स॰—सारस पक्षी
कुष् —क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—फाड़ना, निचोड़ना, खींचना, निकालना
कुष् —क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—जाँचना, परीक्षा लेना
कुष् —क्रिया॰ पर॰ <कुष्णाति>, <कुषित>—-—-—चमकना
निष्कुष् —क्रिया॰ पर॰—निस्-कुष्—-—निचोड़ना, फाड़ना, निकालना
कुषाकुः —पुं॰—-—कुष् - काकु—सूर्य
कुषाकुः —पुं॰—-—कुष् - काकु—अग्नि
कुषाकुः —पुं॰—-—कुष् - काकु—लंगूर, बंदर
कुष्ठः —पुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
कुष्ठम् —नपुं॰—-—कुष् - कथन—कोढ़
कुष्ठारिः —पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—गन्धक
कुष्ठारिः —पुं॰—कुष्ठ-अरिः—-—कुछ पौधों के नाम
कुष्ठित —वि॰—-—कुष्ठ - इतच्—कोढ़ से पीडित, कोढ़ग्रस्त
कुष्ठिन् —वि॰—-—कुष्ठ - इनि—कोढ़ी
कुष्माण्डः —पुं॰—-—कु ईषत् उष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य ब॰ स॰ शक॰ पररूपम्—एक प्रकार की लौकी, तूमड़ी, कुम्हड़ा
कुस् —दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—आलिंगन करना
कुस् —दिवा॰ पर॰ <कुष्यति>, <कुसित>—-—-—घेरना
कुसितः —पुं॰—-—कुस् - क्त—आवाद देश
कुसितः —पुं॰—-—कुस् - क्त—जो सूद से जीविका चलाता हैं
कुसीदः —पुं॰—-—कुस् - ईद—साहूकार या सूदखोर
कुसिदः —पुं॰—-—-—साहूकार या सूदखोर
कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
कुसीदम् —नपुं॰—-—कुस् - ईद—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
कुसिदम् —नपुं॰—-—-—वह कर्जा या वस्तु जो ब्याज सहित लौटायी जाय
कुसिदम् —नपुं॰—-—-—उधार देना, सूदखोरी, सूदखोरी का व्यवसाय
कुसीदपथः —पुं॰—कुसीद-पथः—-—सूदखोरी, सूदखोर का ब्याज, ५ प्रतिशत से अधिक ब्याज
कुसीदवृद्धिः —स्त्री॰—कुसीद-वृद्धिः—-—धन पर मिलने वाला ब्याज
कुसीदा —स्त्री॰—-—कुसीद - टाप्—सूदखोर स्त्री
कुसीदायी —पुं॰—-—कुसीद - ङीप्, ऐ आदेशः—सूदखोर की पत्नी
कुसीदिकः —पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
कुसीदिन् —पुं॰—-—कुसीद - ष्ठन्, इनि वा—सूदखोर
कुसुमम् —नपुं॰—-—कुष् - उम—फूल
कुसुमम् —नपुं॰—-—कुष् - उम—ऋतु-स्राव
कुसुमम् —नपुं॰—-—कुष् - उम—फल
कुसुमाञ्जनम् —नपुं॰—कुसुमम्-अञ्जनम्—-—पीतल की भस्म जो अंजन की भाँति प्रयुक्त होती है
कुसुमाञ्जलिः —पुं॰—कुसुमम्-अञ्जलिः—-—मुट्ठी भर फूल
कुसुमाधिपः —पुं॰—कुसुमम्-अधिपः—-—चम्पक वृक्ष
कुसुमाधिराजः —पुं॰—कुसुमम्-अधिराजः—-—चम्पक वृक्ष
कुसुमावचायः —पुं॰—कुसुमम्-अवचायः—-—फूलों का चुनना
कुसुमावतंसकम् —पुं॰—कुसुमम्-अवतंसकम्—-—फूलों का गजरा
कुसुमास्त्रः —पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—पुष्पमय बाण
कुसुमास्त्रः —पुं॰—कुसुमम्-अस्त्रः—-—कामदेव
कुसुमायुधः —पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—पुष्पमय बाण
कुसुमायुधः —पुं॰—कुसुमम्-आयुधः—-—कामदेव
कुसुमेषुः —पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—पुष्पमय बाण
कुसुमेषुः —पुं॰—कुसुमम्-इषुः—-—कामदेव
कुसुमबाणः —पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—पुष्पमय बाण
कुसुमबाणः —पुं॰—कुसुमम्-बाणः—-—कामदेव
कुसुमशरः —पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—पुष्पमय बाण
कुसुमशरः —पुं॰—कुसुमम्-शरः—-—कामदेव
कुसुमाकरः —पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—उद्यान
कुसुमाकरः —पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—फूलों का गुच्छा
कुसुमाकरः —पुं॰—कुसुमम्-आकरः—-—वसन्त ऋतु
कुसुमात्मकम् —नपुं॰—कुसुमम्-आत्मकम्—-—केसर, जाफरान
कुसुमासवम् —नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—शहद
कुसुमासवम् —नपुं॰—कुसुमम्-आसवम्—-—एक प्रकार की मादक मदिरा
कुसुमोज्जवल —वि॰—कुसुमम्-उज्जवल—-—फूलों से चमकीला
कुसुमकार्मुकः —पुं॰—कुसुमम्-कार्मुकः—-—कामदेव के विशेषण
कुसुमचापः —पुं॰—कुसुमम्-चापः—-—कामदेव के विशेषण
कुसुमधन्वन् —पुं॰—कुसुमम्-धन्वन्—-—कामदेव के विशेषण
कुसुमचित —वि॰—कुसुमम्-चित—-—पुष्पों का अम्बार हो गया है जहाँ
कुसुमपुरम् —नपुं॰—कुसुमम्-पुरम्—-—पाटलीपुत्र
कुसुमलता —स्त्री॰—कुसुमम्-लता—-—खिली हुई लता
कुसुमशयनम् —नपुं॰—कुसुमम्-शयनम्—-—फूलों की शय्या
कुसुमस्तवकः —पुं॰—कुसुमम्-स्तवकः—-—फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता
कुसुमवती —स्त्री॰—-—कुसुम - मतुप् - ङीप्, मस्य वः —ऋतुमती या रजस्वला स्त्री
कुसुमित —वि॰—-—कुसुम् - इतच्—फूलों से युक्त, पुष्पों से सुसज्जित
कुसुमालः —पुं॰—-—कुसुमवत् लोभनीयानि द्रव्याणि आलयति - इति कुसुम - आ - ला - क—चोर
कुसुम्भः —पुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
कुसुम्भः —पुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
कुसुम्भः —पुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
कुसुम्भम् —नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—कुसुम्भ
कुसुम्भम् —नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—केसर
कुसुम्भम् —नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—संन्यासी का जलपात्र, कमण्डलु
कुसुम्भम् —नपुं॰—-—कुस् - उम्भ—सोना
कुसुम्भः —पुं॰—-—कुस् - उम्भ—बाह्य स्नेह
कुसूलः —पुं॰—-—कुस् - ऊलच् —अन्नागार, भण्डार, गृह
कुसृतिः —स्त्री॰—-—कुत्सिता सृतिः—जालसाजी, धोखादेही, ठगी
कुस्तुभः —पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—विष्णु
कुस्तुभः —पुं॰—-—कु - स्तुभ् - क—समुद्र
कुहः —पुं॰—-—कुह् - णिच् - अच्—कुबेर, धनपति
कुहकः —पुं॰—-—कुह् - क्वुन्—छली, ठग, चालाक
कुहकम् —नपुं॰—-—कुह् - क्वुन्—चालाकी, धोखा
कुहका —स्त्री॰—-—कुह् - क्वुन् - टाप्—चालाकी, धोखा
कुहककार —वि॰—कुहक-कार—-—कपटी, छलिया
कुहकचकित —वि॰—कुहक-चकित—-—दाँवपेंच से डरा हुआ, शक करने वाला, सावधान, सजग
कुहकस्वनः —पुं॰—कुहक-स्वनः—-—मुर्गा
कुहकस्वरः —पुं॰—कुहक-स्वरः—-—मुर्गा
कुहनः —पुं॰—-—कु - हन् - अच्—मूसा
कुहनः —पुं॰—-—कु - हन् - अच्—साँप
कुहनम् —नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—छोटा मिट्टी का बर्तन
कुहनम् —नपुं॰—-—कु - हन् - अच्—शीशे का बर्तन
कुहना —स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
कुहनिका —स्त्री॰—-—कुह् - यु, कुहन - क - टाप्, इत्वम्—स्वार्थ की पूर्ति के लिए धार्मिक कड़ी साधनाओं का अनुष्ठान, दंभ
कुहरम् —नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गुफा, गढ़ा
कुहरम् —नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—कान
कुहरम् —नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—गला
कुहरम् —नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—सामीप्य
कुहरम् —नपुं॰—-—कुह् - क - कुहं राति, रा - क—मैथुन
कुहरितम् —नपुं॰—-—कुहर - इतच्—ध्वनि
कुहरितम् —नपुं॰—-—कुहर - इतच्—कोयल की कुकू
कुहरितम् —नपुं॰—-—कुहर - इतच्—मैथुन के समय सी सी का शब्द
कुहुः —स्त्री॰—-—कुह् - कु—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
कुहुः —स्त्री॰—-—कुह् - कु—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
कुहुः —स्त्री॰—-—कुह् - कु—कोयल की कुक
कुहूः —स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—नया चन्द्र दिवस अर्थात् चान्द्रमास का अन्तिम दिन
कुहूः —स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—इस दिन की अधिष्ठात्री देवी
कुहूः —स्त्री॰—-—कुहु - ऊङ्—कोयल की कुक
कुहुकण्ठः —पुं॰—कुहु-कण्ठः—-—कोयल
कुहुमुखः —पुं॰—कुहु-मुखः—-—कोयल
कुहुरवः —पुं॰—कुहु-रवः—-—कोयल
कुहुशब्दः —पुं॰—कुहु-शब्दः—-—कोयल
कू —भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
कू —भ्वा॰ तुदा, आ॰ <कवते>, <कुवते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
कू —क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—ध्वनि करना, कलरव करना
कू —क्र्या॰ उभ॰ <कुनाति>, <कूनाति>, <कुनीते>, <कूनीते>—-—-—कष्टावस्था में क्रन्दन करना
कः —स्त्री॰—-—कू - क्विप्—पिशाचिनी, चुड़ैल
कचः —पुं॰—-—कू - चट्—स्त्री का स्तन
कचिका —स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
कचिका —स्त्री॰—-—कूच - कन् - टाप्, इत्वम्—ताली
कूची —स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—बालों का बना छोटा ब्रुश, कुंची
कूची —स्त्री॰—-—कूच - ङीष्—ताली
कूज् —भ्वा॰ पर॰ <कूजति>, <कूजित>—-—-—अस्पष्ट ध्वनि करना, गूंजना, कूजना, कूकना
निकूज् —भ्वा॰ पर॰—नि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
परिकूज् —भ्वा॰ पर॰—परि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
विकूज् —भ्वा॰ पर॰—वि-कूज्—-—कूजना, कुकू की अस्पष्ट ध्वनि करना
कूजः —पुं॰—-—कूज् - अच्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
कूजः —पुं॰—-—कूज् - अच्—पहियों की घरघराहट
कूजनम् —नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
कूजनम् —नपुं॰—-—कूज् - ल्युट्—पहियों की घरघराहट
कूजितम् —नपुं॰—-—कूज् - क्त—कूजना, कुकू की ध्वनि करना
कूजितम् —नपुं॰—-—कूज् - क्त—पहियों की घरघराहट
कूट —वि॰—-—कूट - अच्—मिथ्या
कूट —वि॰—-—कूट - अच्—अचल, स्थिर
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—सींग
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
अभ्रकूटम् —नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
अन्नकूटम् —नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—जालसाजी, भ्रम, धोखा
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—दाँव, जालसाजी से भरी हुई योजना
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—जटिल प्रश्न, पेचीदा या उलझनदार स्थल
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—मिथ्यात्व, असत्यता
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—पहाड़ का शिखर या चोटी
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—उभार या उत्तुंगता
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—अपने उभारों समेत माथे की हड्डी, सिर का शिखा
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—सींग
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—सिरा, किनारा
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—प्रधान, मुख्य
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—राशि, ढेर, समूह
अभ्रकूटम् —नपुं॰—अभ्र-कूटम्—-—बादलों का समूह
अन्नकूटम् —नपुं॰—अन्न-कूटम्—-—अनाज का ढेर
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—हथौड़ा, घन
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—हल की फाली, कुशी
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—हरिणों को फसाने का जाल
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—गुप्ती
कूटम् —नपुं॰—-—कूट - अच्—जलकलश
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—घर, आवास
कूटः —पुं॰—-—कूट - अच्—अगस्त्य की उपाधि
कूटाक्षः —पुं॰—कूट-अक्षः—-—झूठा या कपट से भरा पासा
कूटागारम् —नपुं॰—कूट-अगारम्—-—छत पर बनी कोठरी
कूटार्थः —पुं॰—कूट-अर्थः—-—अर्थों की सन्दिग्धता
कूटार्थः —पुं॰—कूट-अर्थः—-—कहानी, उपन्यास
कूटोपायः —पुं॰—कूट-उपायः—-—जालसाजी से भरी योजना, कूटचाल, कूटनीति
कूटकारः —पुं॰—कूट-कारः—-—धोखेबाज, झूठा गवाह
कूटकृत् —वि॰—कूट-कृत्—-—ठगनेवाला, धोखा देने वाला
कूटकृत् —वि॰—कूट-कृत्—-—जाली दस्तावेज बनाने वाला
कूटकृत् —वि॰—कूट-कृत्—-—घूस देने वाला
कूटकृत् —पुं॰—कूट-कृत्—-—कायस्थ
कूटकृत् —पुं॰—कूट-कृत्—-—शिव का विशेषण
कूटकार्षापणः —पुं॰—कूट-कार्षापणः—-—झूठा कार्षापण
कूटखङ्गः —पुं॰—कूट-खङ्गः—-—गुप्ती
कूटछद्मन् —पुं॰—कूट-छद्मन्—-—ठग
कूटतुला —स्त्री॰—कूट-तुला—-—पासंग वाली तराजू
कूटधर्म —वि॰—कूट-धर्म—-—जहाँ झूठ कर्तव्य कर्म समझा जाय
कूटपाकलः —पुं॰—कूट-पाकलः—-—पित्तदोषयुक्त ज्वर जिससे हाथी ग्रस्त होता है, हस्तिवातज्वर
कूटपालकः —पुं॰—कूट-पालकः—-—कुम्हार, कुम्हार का आवा
कूटपाशः —पुं॰—कूट-पाशः—-—जाल, फन्दा
कूटवन्धः —पुं॰—कूट-वन्धः—-—जाल, फन्दा
कूटमानम् —नपुं॰—कूट-मानम्—-—झूठी माप या तोल
कूटमोहनः —पुं॰—कूट-मोहनः—-—स्कन्द का विशेषण
कूटयन्त्रम् —नपुं॰—कूट-यन्त्रम्—-—हरिण एवं पक्षियों को फँसाने का जाल या फंदा
कूटयुद्धम् —नपुं॰—कूट-युद्धम्—-—छल और धोखे की लड़ाई, अधर्मयुद्ध
कूटशाल्मलिः —पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—सेमल वृक्ष की एक जाति
कूटशाल्मलिः —पुं॰—कूट-शाल्मलिः—-—तेज काँटों से युक्त वृक्ष
कूटशासनम् —नपुं॰—कूट-शासनम्—-—जाली आज्ञापत्र या फरमान
कूटसाक्षिन् —पुं॰—कूट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
कूटस्थ —वि॰—कूट-स्थ—-—शिखर पर खड़ा हुआ, सर्वोच्च पद पर अधिष्ठित
कूटस्थः —पुं॰—कूट-स्थः—-—परमात्मा
कूटस्वर्णम् —नपुं॰—कूट-स्वर्णम्—-—खोटा सोना
कूटकम् —नपुं॰—-—कुट - कन्—जालसाजी, धोखादेही, चलाकी
कूटकम् —नपुं॰—-—कुट - कन्—उत्सेध, उत्तुंगता
कूटकम् —नपुं॰—-—कुट - कन्—कुशी, हल की फाली
कूटकाख्यानम् —नपुं॰—कूटकम्-आख्यानम्—-—गढ़ी हुई कहानी
कूटशः —अव्य॰—-—कूट - शस्—ढेरों या समूहों में
कूड्यम् —नपुं॰—-—-—पलस्तर करना, लीपना, पोतना
कूड्यम् —नपुं॰—-—-—उत्सुकता, जिज्ञासा
कूण् —चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—बोलना, बातचीत करना
कूण् —चुरा॰ उभ॰ <कूणयति>, <कूणयते>, <कूणित—-—-—सिकोड़ना, बंद करना
कूणिका —स्त्री॰—-—कूण् - ण्वूल् - टाप्, इत्वम्—किसी पशु का सींग
कूणिका —स्त्री॰—-—-—वीणा की खूँटी
कूणित —वि॰—-—कूण् - क्त—बन्द, मुँदा हुआ
कूद्दालः —पुं॰—-—कु - दल - अण्, पृषो॰—पहाड़ी आबनूस
कूपः —पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—कुआँ
कूपः —पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—छिद्र, रन्ध्र, गढ़ा, गर्त
कूपः —पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—चमड़े की बनी तेल रखने की कुप्पी
कूपः —पुं॰—-—कुवन्ति मण्डूका अस्मिन् - कु - एक् दीर्घश्च—मस्तूल
कूपाङ्कः —पुं॰—कूप-अङ्कः—-—रोमाञ्च
कूपाड़्गः —पुं॰—कूप-अड़्गः—-—रोमाञ्च
कूपकच्छपः —पुं॰—कूप-कच्छपः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
कूपमण्डूकः —पुं॰—कूप-मण्डूकः—-—कुएँ का कछुवा या मेढक, अनुभवशून्य मनुष्य
कूपयन्त्रम् —नपुं॰—कूप-यन्त्रम्—-—रहट, कुएँ से पानी निकालने का यन्त्र
कूपयन्त्रघटिका —स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटिका—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
कूपयन्त्रघटी —स्त्री॰—कूप-यन्त्रघटी—-—रहट में पानी निकालने के लिए लगी डोलचियाँ
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—कुआँ
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—छिद्र, रन्ध्र, गर्त
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—कूल्हों के नीचे का गड्ढा
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—खूँटा जिसके सहारे किस्ती का लंगर बांध दिया जाता हैं
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—मस्तूल
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—चिता
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—चिता के नीचे का छिद्र
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—चमड़े की बनी तेल-कुप्पी
कूपकः —पुं॰—-—कूप - कन—नदी के बीच की चट्टान या वृक्ष
कूपारः —पुं॰—-—कूप - कन—समुद्र, सागर
कूवारः —पुं॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—समुद्र, सागर
कूपी —स्त्री॰—-—कुत्सितः पारः तरणम् अस्मिन् - ब॰ स॰—छोटा कुआँ, कुइया
कूपी —स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—पलिघ, बोतल
कूपी —स्त्री॰—-—कूप - ङीष्—नाभि
कूबर —वि॰—-—कु - ब रच्—सुन्दर, रुचिकर
कूबर —वि॰—-—कु - ब रच्—कुबड़ा
कूवर —वि॰—-—कु - व रच्—सुन्दर, रुचिकर
कूवर —वि॰—-—कु - व रच्—कुबड़ा
कूबरः —पुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
कूबरम् —नपुं॰—-—कु - ब रच्—गाड़ी की वल्ली या स्थूण-भुजा जिसमें जूआ बाँधा जाता है
कूबरी —स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—कम्बल या किसी दूसरे कपड़े के परदे से ढकी हुई गाड़ी
कूबरी —स्त्री॰—-—कु - ब रच्+ङीप्—गाड़ी की वल्ली जिससे जूआ बाँधा जाय
कूरः —पुं॰—-—वे - क्विप् = ऊः कौ भूमौ उवं वयनं लाति - ला - कः, लरयोरभेदः—भोजन, भात
कूरम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भोजन, भात
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—गुच्छा, गठरी
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मुट्ठी भर कुश घास
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—मोरपंख
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दाढ़ी
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—चुटकी
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—नाक का ऊपरी भाग, दोनों भौवों के बीच का भाग
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—कूँची, ब्रुश
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—धोखा, जालसाजी
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—शेखी बघारना, डींग मारना
कूर्चम् —नपुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—दम्भ
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—सिर
कूर्चः —पुं॰—-—कुर् = चट् नि॰ दीर्घः—भण्डार
कूर्चशीर्षः —पुं॰—कूर्च-शीर्षः—-—नारियल का पेड़
कूर्चशेखरः —पुं॰—कूर्च-शेखरः—-—नारियल का पेड़
कूर्चिका —स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चित्रकारी करने की कूँची, ब्रुश या पेंसिल
कूर्चिका —स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—चाबी
कूर्चिका —स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—कली, फूल
कूर्चिका —स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—जमाया हुआ दूध
कूर्चिका —स्त्री॰—-—कूर्चक - टाप् - इत्वम्—सूई
कूर्द् —भ्वा॰ उभ॰ <कूर्दति>, <कूर्दते>, <कूर्दित>—-—-—छलाँग लगाना, कूदना
कूर्द् —भ्वा॰ उभ॰—-—-—खेलना, बालकेलि करना
उत्कूर्द् —भ्वा॰ उभ॰—उद्-कूर्द्—-—कूदना, उछलना
कूर्दनम् —नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—उछलना
कूर्दनम् —नपुं॰—-—कूर्द् - ल्युट्—खेलना, क्रीड़ा करना
कूर्दनी —स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्र की पूर्णिमा को कामदेव के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व
कूर्दनी —स्त्री॰—-—कूर्द् - ल्युट्+ङीप्—चैत्रमास की पूर्णिमा
कूर्पः —पुं॰—-—कुर् - पा - क, दीर्घः—दोनों भौवों के बीच का भाग
कूर्परः —पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—कोहनी
कूर्परः —पुं॰—-—कुर् - क्विप्, कुर् - पृ - अच् दीर्घः नि॰—घुटना
कूर्मः —पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—कछुवा
कूर्मः —पुं॰—-—कौ जले ऊर्मिः वेगोऽस्य पृषो॰ तारा॰—विष्णु का दूसरा अवतार
कूर्मावतारः —पुं॰—कूर्म-अवतारः—-—विष्णु का कूर्मावतार
कूर्मपृष्ठम् —नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—कछुवे की कमर या पीठ
कूर्मपृष्ठम् —नपुं॰—कूर्म-पृष्ठम्—-—तश्तरी का ढकना
कूर्मराजः —पुं॰—कूर्म-राजः—-—द्वितीय अवतार के साथ कछुवे के रूप में विष्णु
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—किनारा, तट
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढलान, उतार
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—छोर, कोर, किनारी, सन्निकटता
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—तालाब
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—सेना का पिछला भाग
कूलम् —नपुं॰—-—कूल् - अच्—ढेर, टीला
कूलचर —वि॰—कूलम्-चर—-—नदी के किनारे चरने वाला या विचरने वाला
कूलभूः —स्त्री॰—कूलम्-भूः—-—तटस्थित भूखण्ड
कूलेंडकः —पुं॰—कूलम्-इंडकः—-—भँवर
कूलहण्डकः —पुं॰—कूलम्-हण्डकः—-—भँवर
कूलङ्कष —वि॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—तट को काटनेवाला, या अन्दर ही अन्दर जड़ खोखली करने वाला
कूलङ्कषः —पुं॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्—नदी की धारा या प्रवाह
कूलङ्कषा —स्त्री॰—-—कूल् - कष् - खच्, मुम्+टाप्—नदी
कूलन्धय —वि॰—-—-—चूमता हुआ अर्थात् नदी के तट को सीमा बनाने वाला
कूलन्धय —वि॰—-—कूल - धे - खश्, मुम्—किनारों को तोड़ने वाला
कूलमुद्वह —वि॰—-—कूल - उद् - रुज् - खश्, मुम्—किनारे को फाड़ डालने वाला तथा बहा कर ले जाने वाला
कूष्माण्डः —पुं॰—-—कूल - उद् - वह् - खश्, मुम्—पेठा, कुम्हड़ा, तूमड़ी
कूहा —स्त्री॰—-—कु ईषत् ऊष्मा अण्डेषु बीजेषु यस्य—कुहरा, धुंध
कृ —स्वादि॰ उभ॰ <कृणोति>, <कृणुते>—-—कु ईषत् उह्यतेऽत्र, कु - उह् - क—प्रहार करना, घायल करना, मार डालना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निर्माण करना, गड़ना, तैयार करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, रचना करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पैदा करना, निमित्तभूत होना, उत्पन्न करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बनाना, क्रमबद्ध करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—लिखना, रचना करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्पन्न करना, व्यस्त होना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कहना, वर्णन करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पालन करना, कार्यान्वित करना, आज्ञा मानना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रकाशित करना, पूरा करना, कार्य में परिणत करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—फेंकना, निकालना, उत्सर्ग करना, छोड़ना
मूत्रं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मूत्रोत्सर्ग करना, पेशाब करना
पुरीषं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—टट्टी फिरना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—धारण करना, पहनना, ग्रहण करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मुँह से निकलना, उच्चारण करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रखना, पहनना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सौंपना, नियत करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पकाना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, आदर करना, ख्याल करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ग्रहण करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्वनि करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—गुजारना, बिताना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—की ओर मुड़ना, ध्यान मोड़ना, दृढ़ निश्चय करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूसरे के लिए कोई काम न करना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उपयोग करना, काम में लगाना, उपयोग में लाना
कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—विभक्त करना, टुकड़े-टुकड़े करना
द्विधा कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दो टुकड़े करना
॰सात् कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन बनाना, पूर्ण रूप से किसी विशेष अवस्था को प्राप्त करना
आत्मसात्कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अधीन करना, अपने में लीन करना
भस्मसात्कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख बना देना
कृष्णीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—उस वस्तु को जो पहले से काली नहीं है काली करना
श्वेतीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सफेद करना
घनीकृत —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ठोस बना देना
विरलीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दूर-दूर कहीं करना
क्रोडीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—छाती से लगाना, आलिङ्गन करना
भस्मीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—राख कर देना
प्रवणीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—रुचि पैदा करना, झुकना
तृणीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तिनके की भाँति तुच्छ एवं हीन समझना
मंदीकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शिथिल करना, चाल धीमी करना
शूलाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नोकदार लोहे की सलाखों के सिरे पर रखकर भूनना
सुखाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—प्रसन्न करना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—समय बिताना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—क्षति पहुँचाना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—निन्दा करना, कलंकित करना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम देना और
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बलात्कार करना, हिंसात्मक कार्य करना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—तैयारी करना, दशा बदलना, मोड़ना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सस्वर पाठ करना
समयाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—काम में लगाना, प्रयोग में लाना
पदं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—कदम रखना
मनसाकृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, मध्यस्थता करना
मनसि कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, दृढ़ निश्चय करना, संकल्प करना
मैत्रीं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मित्रता करना
अस्त्राणि कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—शस्त्रास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास करना
दंड कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—दण्ड देना
हृदये कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—ध्यान देना
कालं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—मरना
मतिं बुद्धिं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सोचना, इरादा करना, अभिप्राय होना
उदकं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—पितरों को जल का तर्पण करना
चिरं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—देर करना
दर्दुरं कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—वीणा बजाना
नखानि कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—नाखून साफ करना
कन्यां कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सतीत्वभ्रष्ट करना, कौमार्य भंग करना
विना कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—अलग करना, छोड़ा जाना
मध्य कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—बीच में रखना, संकेत करना
वशे कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—जीतना, वश में करना, दमन करना
चमत्कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—आश्चर्य पैदा करना, प्रदर्शन करना
सत्कृ —तना॰ उभ॰ <करोति>, <कुरुते>, <कृत>—-—-—सम्मान करना, सत्कार करना
तिर्यक् कृ ——-—-—एक ओर रख देना
कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करवाना, सम्पन्न करवाना, बनवाना, कार्यान्वित करवाना
कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—-—-—करने की इच्छा करना
अङ्गीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—स्वीकार करना, अपनाना
अङ्गीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—मान लेना, स्वीकृति देना, अपनाना
अङ्गीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—करने की प्रतिज्ञा करना, जिम्मेवारी लेना
अङ्गीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अङ्गी-कृ—-—दमन करना, अपना बनाना, अनुग्रह करना
अतिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अति-कृ—-—बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना
अधिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अधिकारी होना, हकदार बनाना, अधिकृत बनना, किसी कर्तव्य के लिए पात्रीकरण
अधिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—लक्ष्य बनाना, उल्लेख करना
अधिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—धारण करना
अधिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—अभिभूत करना, दबा लेना, श्रेष्ठ बनाना
अधिकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अधि-कृ—-—रोकना, रुकना, हाथ खींचना
अनुकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अनु-कृ—-—सूरत शक्ल में मिलना, अनुगमन करना, विशेषतः नकल करना
अपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—खींचकर दूर करना, हटाना, दूर खींचकर अनादर करना
अपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अप-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना, बुरा करना, हानि पहुँचाना, हानि या क्षति पहुँचाना
अपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—दूर करना, त्याग देना, हटाना, मिटाना
अपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अपा-कृ—-—फेंक देना, अस्वीकार करना, एक ओर रख देना, छोड़ देना
अभ्यन्तरीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—दीक्षित करना
अभ्यन्तरीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अभ्यन्तरी-कृ—-—मित्र बनाना
अलङ्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—अलम्-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
आकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—पुकारना, बुलाना, निमंत्रित करना
आकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आ-कृ—-—निकट लाना
आविस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—आविस्-कृ—-—प्रकट करना, दर्शनीय बनना, जाहिर करना, प्रदर्शन करना
उपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—मित्र बनाना, सेवा करना, सहायता करना, अनुग्रह करना, उपकृत करना
उपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—हाजरी में खड़े रहना, सेवा करना
उपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, शोभा बढ़ाना
उपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—प्रयत्न करना
उपकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उप-कृ—-—तैयार करना, विस्तार से कार्य करना, पूरा करना, निर्मल करना
उपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—सौंपना, देना
उपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—प्रारम्भिक संस्कार सम्पन्न करना
उपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—उठा लाना, लाना
उपाकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उपा-कृ—-—आरम्भ करना
उरीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरी-कृ—-—स्वीकार करना
उररीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उररी-कृ—-—स्वीकार करना
उरुरीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—उरुरी-कृ—-—स्वीकार करना
ऊरीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊरी-कृ—-—स्वीकार करना
ऊररीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—ऊररी-कृ—-—स्वीकार करना
तिरस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—अपशब्द कहना, बुरा भला कहना, अनादर करना, घृणा करना
तिरस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—तिरस्-कृ—-—पीछे छोड़ना, आगे बढ़ना, जीतना
त्वम्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—त्वम्-कृ—-—तू, कोई
दक्षिणीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
प्रदक्षिणीकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—प्रदक्षिणी-कृ—-—किसी वस्तु के चारों ओर घूमना
दुस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—दुस्-कृ—-—बुरे ढंग से करना
धिक्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—धिक्-कृ—-—झिड़कना, बुरा भला कहना, अनादर करना
नमस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नमस्-कृ—-—नमस्कार करना, पूजा करना
निकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—नि-कृ—-—क्षति पहुँचाना, बुरा करना
निस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—हटाना, हाँक कर दूर कर देना
निस्कृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निस्-कृ—-—तोड़ देना, निकम्मा कर देना
निराकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निकाल देना, परे कर देना, निकाल बाहर करना
निराकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—निराकरण करना
निराकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—छोड़ना, त्यागना
निराकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—पूर्ण रूप से नष्ट कर देना, ध्वंस करना
निराकृ —तना॰ उभ॰,इच्छा॰ <चिकीर्षति>, <चिकीर्षते>—निरा-कृ—-—बुरा भला कहना, नीच समझना, तुच्छ समझना
न्यक्कृ —तना॰, पर॰—न्यक्-कृ—-—अपमान करना, अनादर करना
पराकृ —तना॰, पर॰—परा-कृ—-—अस्वीकार करना, अवहेलना करना, निरादर करना, ख्याल नहीं करना
परिकृ —तना॰, पर॰—परि-कृ—-—घेरना
परिकृ —तना॰, पर॰—परि-कृ—-—विभूषित करना, सजाना, निर्मल करना, चमकाना, शुद्ध करना
पुरस्कृ —तना॰, पर॰—पुरस्-कृ—-—सम्मुख रखना
प्रकृ —तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—करना, सम्पन्न करना, आरम्भ करना
प्रकृ —तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—बलात्कार करना, अत्याचार करना, अपमान करना
प्रकृ —तना॰, पर॰—प्र-कृ—-—सम्मान करना, पूजा करना
प्रतिकृ —तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—बदला देना, वापिस देना, लौटाना
प्रतिकृ —तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—उपचार करना
प्रतिकृ —तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—वापिस देना, ज्यों का त्यों कर देना, पुनः स्थापित करना
प्रतिकृ —तना॰, पर॰—प्रति-कृ—-—प्रतिशोध करना
प्रमाणीकृ —तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—भरोसा करना, विश्वास करना
प्रमाणीकृ —तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—प्रमाण पुरुष मानना, आज्ञा मानना
प्रमाणीकृ —तना॰, पर॰—प्रमाणी-कृ—-—आँख गड़ाना, वितरण करना, बर्ताव करना या व्यवहार करना
प्रादुष्कृ —तना॰, पर॰—प्रादुस्-कृ—-—प्रकट करना, प्रदर्शन करना, दिखलाना, जाहिर करना
प्रत्युपकृ —तना॰, पर॰—प्रत्युप-कृ—-—प्रतिफल देना, प्रत्यर्पण करना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—बदलना, परिवर्तन करना, प्रभावित करना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—आकृति बिगाड़ना, विरूप करना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उत्पन्न करना, पैदा करना, सम्पन्न करना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विघ्न डालना, हानि पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—उच्चारण करना
विकृ —तना॰, पर॰—वि-कृ—-—विश्वासघातक होना
विनिकृ —तना॰, पर॰—विनि-कृ—-—प्रहार करना, क्षति पहुँचाना
विप्रकृ —तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—सताना, कष्ट देना, तंग करना, हानि पहुँचाना
विप्रकृ —तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—बुरा करना, दुर्व्यवहार करना
विप्रकृ —तना॰, पर॰—विप्र-कृ—-—प्रभावित करना, परिवर्तन लाना
व्याकृ —तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रकट करना, साफ करना
व्याकृ —तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—प्रतिपादन करना, व्याख्या करना
व्याकृ —तना॰, पर॰—व्या-कृ—-—कहना, वर्णन करना
सम्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना
सम्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्माण करना, तैयार करना
संस्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—करना, सम्पन्न करना
संस्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—अलंकृत करना, शोभा बढ़ाना
संस्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—निर्मल करना, चमकना
संस्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदमन्त्रों के उच्चारण से अभिमन्त्रित करना
संस्कृ —तना॰, पर॰—सम्-कृ—-—वेदविहित संस्कारों से पवित्र करना, शुद्ध करने वाले शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करना
साचीकृ —तना॰, पर॰—साची-कृ—-—एक ओर मुड़ना, परोक्ष रूप से मुड़ना
कृकणः —पुं॰—-—कृ - कण् - अच्—एक प्रकार का तीतर
कृकरः —पुं॰—-—कृ - कृ - ट—एक प्रकार का तीतर
कृकलासः <o> कृकुलासः —पुं॰—-—कृक - लस् - अण्—छिपकली, गिरगिट
कृकवाकुः —पुं॰—-—कृक - वच् - ञुण्, क् आदेशः—मुर्गा, मोर, छिपकली
कृकवाकुध्वजः —पुं॰—कृकवाकु-ध्वजः—-—कार्तिकेय का विशेषण
कृकाटिका —स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—ग्रीवा का सीधा उठा हुआ भाग
कृकाटिका —स्त्री॰—-—कृक - अट् - अण् = कृकाट - कन् - टाप्, इत्वम्—गर्दन का पिछला का भाग
कृच्छ्र —वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कष्ट देने वाला, पीड़ाकर
कृच्छ्र —वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बुरा, विपदग्रस्त, अनिष्टकर
कृच्छ्र —वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—दुष्ट, पापी
कृच्छ्र —वि॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—संकटग्रस्त, पीडित
कृच्छ्रः —पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
कृच्छ्रः —पुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
कृच्छ्रम् —नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, संकट, भय
कृच्छ्रम् —नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—शारीरिक तप, तपस्या, प्रायश्चित्त
कृच्छ्रम् —नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
कृच्छ्रेण —नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
कृच्छ्रात् —नपुं॰—-—कृती - रक्, छ आदेशः—बड़ी कठिनाई के साथ, दुःखपूर्वक, बड़े कष्ट के साथ
कृच्छ्रप्राण —वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—जिसका जीवन खतरे में है
कृच्छ्रप्राण —वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कष्टपूर्वक साँस लेने वाला
कृच्छ्रप्राण —वि॰—कृच्छ्र-प्राण—-—कठिनाई से जीवन यापन करने वाला
कृच्छ्रसाध्य —वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कठिनाई से ठीक हो सके
कृच्छ्रसाध्य —वि॰—कृच्छ्र-साध्य—-—कष्टसाध्य
कृत् —तुदा॰ पर॰ <कृन्तति>, <कृत्त>—-—-—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़ना, धज्जियाँ उड़ाना, टुकड़े-टुकड़े करना, नष्ट करना
अवकृत् —तुदा॰ पर॰—अव-कृत्—-—काट फेंकना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
उत्कृत् —तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—काटना या काट फेंकना, फाड़ना
उत्कृत् —तुदा॰ पर॰—उद्-कृत्—-—खण्ड खण्ड करना, टुकड़े काटना
विकृत् —तुदा॰ पर॰—वि-कृत्—-—काटना, फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
विकृत् —रुधा॰ पर॰ <कृणत्ति>, <कृत्त>—वि-कृत्—-—काटना, घेरना
॰कृत् —वि॰—॰कृत्—कृ - क्विप्—निष्पादक, कर्ता, निर्माता, अनुष्ठाता, उत्पादक, रचयिता आदि
कृत् —पुं॰—-—कृ - क्विप्—प्रत्ययों का समूह जिनको धातु के साथ जोड़ने से संज्ञा, विशेषण आदि बनते है
कृत् —पुं॰—-—कृ - क्विप्—इस प्रकार बना हुआ शब्द
कृत —वि॰—-—कृ - क्त—किया हुआ, अनुष्ठित, निर्मित, क्रियान्वित, निष्पन्न, उत्पादित आदि
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—कार्य, कृत्य, कर्म
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—सेवा, लाभ
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—फल, परिणाम
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—लक्ष्य, उद्देश्य
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—पासे का वह पहलू जिस पर चार बिन्दु अंकित हैं
कृतम् —नपुं॰—-—कृ - क्त—संसार के चार युगों में पहला युग जो मनुष्यों के १७२८००० वर्षों के बराबर हैं
कृताकृत —वि॰—कृत-अकृत—-—किया न किया अर्थात् कुछ भाग किया गया, पूरा नहीं किया गया
कृताङ्क —वि॰—कृत-अङ्क—-—चिह्नित, दागी
कृताङ्क —वि॰—कृत-अङ्क—-—संख्यांकित
कृताङ्क —वि॰—कृत-अङ्क—-—पासे का वह भाग जिसपर चार बिन्दु अंकित हों
कृताञ्जलि —वि॰—कृत-अञ्जलि—-—विनम्रता के कारण दोनों हाथ जोड़े हुए
कृतानुकर —वि॰—कृत-अनुकर—-—किये हुए कार्य का अनुकरण करने वाला, अनुसेवी
कृतानुसारः —पुं॰—कृत-अनुसारः—-—प्रथा, परिपाटी
कृतान्त —वि॰—कृत-अन्त—-—समाप्त करने वाला, अवसायी
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—मृत्यु का देवता यम
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—भाग्य, प्रारब्ध
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—प्रदर्शित उपसंहार, रुढ़ि, प्रमाणित सिद्धान्त
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—पापकर्म, अशुभ कर्म
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनि ग्रह का विशेषण
कृतान्तः —पुं॰—कृत-अन्तः—-—शनिवार
कृतान्तजनकः —पुं॰—कृत-अन्त-जनकः—-—सूर्य
कृतान्नम् —नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पकाया हुआ, भोजन
कृतान्नम् —नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—पचा हुआ भोजन
कृतान्नम् —नपुं॰—कृत-अन्नम्—-—मल
कृतापराध —वि॰—कृत-अपराध—-—अपराधी, दोषी, मुजरिम
कृताभय —वि॰—कृत-अभय—-—भय या खतरे से सुरक्षित
कृताभिषेक —वि॰—कृत-अभिषेक—-—राज्याभिषिक्त, यथा विधि पद पर प्रतिष्ठित किया हुआ
कृताभ्यास —वि॰—कृत-अभ्यास—-—अभ्यस्त
कृतार्थ —वि॰—कृत-अर्थ—-—जिसने अपना उद्देश्य सिद्ध कर लिया है, सफल
कृतार्थ —वि॰—कृत-अर्थ—-—सन्तुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त
कृतार्थ —वि॰—कृत-अर्थ—-—चतुर
कृतार्थीकृ ——-—-—सफल बनाना
कृतार्थीकृ ——-—-—भरपाई होना
कृतावधान —वि॰—कृत-अवधान—-—होशियार, सावधान
कृतावधि —वि॰—कृत-अवधि—-—निश्चित, नियत
कृतावधि —वि॰—कृत-अवधि—-—हदबन्दी किया हुआ, सीमित
कृतावस्थ —वि॰—कृत-अवस्थ—-—बुलाया हुआ, प्रस्तुत कराया हुआ
कृतावस्थ —वि॰—कृत-अवस्थ—-—निश्चित, निर्धारित
कृतास्त्र —वि॰—कृत-अस्त्र—-—हथियारबन्द
कृतास्त्र —वि॰—कृत-अस्त्र—-—शस्त्र या अस्त्र विज्ञान में प्रकाशित
कृतागम —वि॰—कृत-आगम—-—प्रगत, प्रवीण
कृतागम —पुं॰—कृत-आगम—-—परमात्मा
कृतागस् —वि॰—कृत-आगस्—-—दोषी, अपराधी, मुजरिम, पापी
कृतात्मन् —वि॰—कृत-आत्मन्—-—संयमी, स्वस्थचित्त, स्थिरात्मा
कृतात्मन् —वि॰—कृत-आत्मन्—-—पवित्र मन वाला
कृतायास —वि॰—कृत-आयास—-—परिश्रम करने वाला, सहन करने वाला
कृताह्वान —वि॰—कृत-आह्वान—-—ललकारा हुआ
कृतोत्साह —वि॰—कृत-उत्साह—-—परिश्रमी, प्रयत्नशील, उद्यमी
कृतोद्वाह —वि॰—कृत-उद्वाह—-—विवाहित
कृतोद्वाह —वि॰—कृत-उद्वाह—-—हाथ उपर उठाकर तपस्या करने वाला
कृतोपकार —वि॰—कृत-उपकार—-—अनुगृहीत, मित्रवत् आचरित, सहायता प्राप्त
कृतोपकार —वि॰—कृत-उपकार—-—मित्रसदृश
कृतोपभोग —वि॰—कृत-उपभोग—-—बरता हुआ, उपभुक्त
कृतकर्मन् —वि॰—कृत-कर्मन्—-—जिसने अपना काम कर लिया है
कृतकर्मन् —वि॰—कृत-कर्मन्—-—दक्ष, चतुर
कृतकर्मन् —पुं॰—कृत-कर्मन्—-—परमात्मा
कृतकर्मन् —पुं॰—कृत-कर्मन्—-—सन्यासी
कृतकाम —वि॰—कृत-काम—-—जिसकी इच्छाएँ पूर्ण हो गई हैं
कृतकाल —वि॰—कृत-काल—-—समय की दृष्टि से जो स्थिर है, निश्चित
कृतकाल —वि॰—कृत-काल—-—जिसने कुछ काल तक प्रतीक्षा की है
कृतकालः —वि॰—कृत-कालः—-—नियत समय
कृतकृत्य —वि॰—कृत-कृत्य—-—कृतार्थ
कृतकृत्य —वि॰—कृत-कृत्य—-—सन्तुष्ट, परितृप्त
कृतकृत्य —वि॰—कृत-कृत्य—-—जिसने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है
कृतक्रयः —पुं॰—कृत-क्रयः—-—खरीदार
कृतक्षण —वि॰—कृत-क्षण—-—निश्चित समय की आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा करने वाला
कृतक्षण —वि॰—कृत-क्षण—-—जिसे कोई अवसर उपलब्ध हो गया है
कृतघ्न —वि॰—कृत-घ्न—-—अकृतज्ञ
कृतघ्न —वि॰—कृत-घ्न—-—जो पहले किये हुए उपकारों को नहीं मानता है
कृतचूडः —पुं॰—कृत-चूडः—-—जिस बालक का मुण्डनसंस्कार हो गया है
कृतज्ञ —वि॰—कृत-ज्ञ—-—उपकार मानने वाला, आभारी
कृतज्ञ —वि॰—कृत-ज्ञ—-—शुद्धाचारी
कृतज्ञः —पुं॰—कृत-ज्ञः—-—कुत्ता
कृततीर्थः —वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसने तीर्थों के दर्शन किये हैं
कृततीर्थः —वि॰—कृत-तीर्थः—-—जो अध्यापक से अध्ययन करता हो
कृततीर्थः —वि॰—कृत-तीर्थः—-—जिसे तरकीबें खूब सूझती हों
कृततीर्थः —वि॰—कृत-तीर्थः—-—पथ प्रदर्शक
कृतदासः —पुं॰—कृत-दासः—-—किसी निश्चित समय के लिए रक्खा हुआ वैतनिक सेवक, वैतनिक सेवक
कृतधीः —पुं॰—कृत-धीः—-—दूरदर्शी, लिहाज रखने वाला
कृतधीः —पुं॰—कृत-धीः—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
कृतनिर्णेजनः —पुं॰—कृत-निर्णेजनः—-—पश्चात्तापी
कृतनिश्चय —वि॰—कृत-निश्चय—-—कृतसंकल्प, दृढ़प्रतिज्ञ
कृतपुङ्ख —वि॰—कृत-पुङ्ख—-—धनुर्विद्या में निपुण
कृतपूर्व —वि॰—कृत-पूर्व—-—पहले किया हुआ
कृतप्रतिकृतम् —नपुं॰—कृत-प्रतिकृतम्—-—आक्रमण और प्रत्याक्रमण, धावा बोलना और प्रतिरोध करना
कृतप्रतिज्ञ —वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने किसी से कोई करार किया हुआ हो
कृतप्रतिज्ञ —वि॰—कृत-प्रतिज्ञ—-—जिसने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कर लिया है
कृतबुद्धि —वि॰—कृत-बुद्धि—-—विद्वान, शिक्षित, बुद्धिमान
कृतमुख —वि॰—कृत-मुख—-—विद्वान, बुद्धिमान
कृतलक्षण —वि॰—कृत-लक्षण—-—मुद्रांकित, चिह्नित
कृतलक्षण —वि॰—कृत-लक्षण—-—दागी
कृतलक्षण —वि॰—कृत-लक्षण—-—श्रेष्ठ, सुशील, परिभाषित, विवेचित
कृतवर्मन् —पुं॰—कृत-वर्मन्—-—कौरवपक्ष का एक योद्धा
कृतविद्य —वि॰—कृत-विद्य—-—विद्वान, शिक्षित
कृतवेतन —वि॰—कृत-वेतन—-—वैतनिक, तनखादार
कृतवेदिन् —वि॰—कृत-वेदिन्—-—आभारी
कृतवेश —वि॰—कृत-वेश—-—सुवेशित, विभूषित
कृतशोभ —वि॰—कृत-शोभ—-—शानदार
कृतशोभ —वि॰—कृत-शोभ—-—सुन्दर
कृतशोभ —वि॰—कृत-शोभ—-—पटु, दक्ष
कृतशौच —वि॰—कृत-शौच—-—पवित्र किया हुआ
कृतश्रमः —पुं॰—कृत-श्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
कृतपरिश्रमः —पुं॰—कृत-परिश्रमः—-—अध्येता, जिसने अध्ययन कर लिया है
कृतसङ्कल्प —वि॰—कृत-सङ्कल्प—-—कृतनिश्चय, दृढ़संकल्प
कृतसङ्केत —वि॰—कृत-सङ्केत—-—नियत करने वाला
कृतसंज्ञ —वि॰—कृत-संज्ञ—-—पुनः चेतना प्राप्त, होश में आया हुआ
कृतसंज्ञ —वि॰—कृत-संज्ञ—-—उद्वोधित
कृतसन्नाह —वि॰—कृत-सन्नाह—-—कवचधारी
कृतसापत्निका —स्त्री॰—कृत-सापत्निका—-—वह स्त्री जिसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया है, एक विवाहित स्त्री जिसकी सपत्नी भी विद्यमान हो
कृतहस्त —वि॰—कृत-हस्त—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
कृतहस्त —वि॰—कृत-हस्त—-—धनुर्विद्या में कुशल
कृतहस्तक —वि॰—कृत-हस्तक—-—दक्ष, चतुर, कुशल, पटु
कृतहस्तक —वि॰—कृत-हस्तक—-—धनुर्विद्या में कुशल
कृतहस्तता —स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—कौशल, दक्षता
कृतहस्तता —स्त्री॰—कृत-हस्तता—-—धनुर्विद्या या शस्त्रविद्या में कुशल
कृतक —वि॰—-—कृत - कन्—किया हुआ, निर्मित, सज्जित
कृतक —वि॰—-—कृत - कन्—कृत्रिम, बनावटी ढंग से किया हुआ
कृतक —वि॰—-—कृत - कन्—झूठा, व्यपदिष्ट या बहाना किया हुआ, मिथ्या, दिखावटी, कल्पित
कृतक —वि॰—-—कृत - कन्—दत्तक
कृतम् —अव्य॰—-—कृत - कम् बा॰—पर्याप्त और अधिक नहीं, बस करो अथवा मत करो
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—करनी, उत्पादन, निर्माण, अनुष्ठान
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—कार्य, कृत्य, कर्म
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—रचना, काम, संरचना
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—जादू, इन्द्रजाल
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—क्षति पहुँचाना, मार डालना
कृतिः —स्त्री॰—-—कृ - क्तिन्—बीस की संख्या
कृतिकरः —पुं॰—कृति-करः—-—रावण का विशेषण
कृतिन् —वि॰—-—कृत - इनि—कृतकार्य, कृतार्थ, संतुष्ट, परितृप्त, प्रसन्न, सफल
कृतिन् —वि॰—-—कृत - इनि—सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मतवाला, भाग्यवान
कृतिन् —वि॰—-—कृत - इनि—चतुर, सक्षम, योग्य, विशेषज्ञ, कुशल, बुद्धिमान, विद्वान
कृतिन् —वि॰—-—कृत - इनि—अच्छा, गुणी, पवित्र, पावन
कृतिन् —वि॰—-—कृत - इनि—अनुवर्ती, आज्ञाकारी, आदेशानुसार करने वाला
कृते —अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
कृतेन —अव्य॰—-—-—के लिए, के निमित्त, के कारण
कृत्तिः —स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—चमड़ा, खाल
कृत्तिः —स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—मृगचर्म जिसपर विद्यार्थी बैठता है
कृत्तिः —स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजपत्र
कृत्तिः —स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—भोजवृक्ष
कृत्तिः —स्त्री॰—-—कृत् - क्तिन्—कृत्तिका नक्षत्र, कृत्तिका मण्डल
कृत्तिवासः —पुं॰—कृत्ति-वासः—-—शिव का विशेषण
कृत्तिवासस् —पुं॰—कृत्ति-वासस्—-—शिव का विशेषण
कृत्तिका —स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—२७ नक्षत्रों में से तीसरा कृत्तिका नक्षत्र
कृत्तिका —स्त्री॰,ब॰ व॰—-—कृत् - तिकन्, कित्, टाप्—छः तारे जो, युद्ध के देवता कार्त्तिकेय की परिचारिका का कार्य करने वाली अप्सराओं के रूप में वर्णित हैं
कृत्तिकातनयः —पुं॰—कृत्तिका-तनयः—-—कार्तिकेय का विशेषण
कृत्तिकापुत्रः —पुं॰—कृत्तिका-पुत्रः—-—कार्तिकेय का विशेषण
कृत्तिकासुतः —पुं॰—कृत्तिका-सुतः—-—कार्तिकेय का विशेषण
कृत्तिकाभवः —पुं॰—कृत्तिका-भवः—-—चाँद
कृत्नु —वि॰—-—कृ - क्तनु—भली भाँति करने वाला, करने के योग्य शक्तिशाली
कृत्नु —वि॰—-—कृ - क्तनु—चतुर, कुशल
कृत्नुः —पुं॰—-—कृ - क्तनु—कारीगर, कलाकार
कृत्य —वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, सही, उचित, उपयुक्त
कृत्य —वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—युक्तियुक्त, व्यवहार्य
कृत्य —वि॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो राजभक्ति से पथभ्रष्ट किया जा सके, विश्वासघाती
कृत्यम् —नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य, कार्य
कृत्यम् —नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कार्य, व्यवसाय, करनी, कार्यभार
कृत्यम् —नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य
कृत्यम् —नपुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—मंशा, कारण
कृत्यः —पुं॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—कर्मवाच्य के कृदन्त के सम्भावनार्थक प्रत्ययों का समूह
कृत्या —स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्+टाप्—कार्य, करनी
कृत्या —स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—जादू
कृत्या —स्त्री॰—-—कृ - क्यप्, तुक्—एक देवी
कृत्रिम —वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—बनावटी, काल्पनिक, जो स्वतः स्फूर्त या मनमाना न हो, अर्जित
कृत्रिम —वि॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—गोद लिया हुआ
कृत्रिमः —पुं॰—-—कृत्या निर्मितम् - कृ - क्ति - मप्—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
कृत्रिमपुत्रः —पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
कृत्रिमम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का नमक
कृत्रिमम् —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
कृत्रिमधूपः —पुं॰—कृत्रिम-धूपः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
कृत्रिमधूपकः —पुं॰—कृत्रिम-धूपकः—-—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप
कृत्रिमपुत्रः —पुं॰—कृत्रिम-पुत्रः—-—नकली या गोद लिया हुआ पुत्र
कृत्रिमपुत्रकः —पुं॰—कृत्रिम-पुत्रकः—-—गुड्डा, पुत्तलिका
कृत्रिमभूमिः —स्त्री॰—कृत्रिम-भूमिः—-—बनाया हुआ फर्श
कृत्रिमवनम् —स्त्री॰—कृत्रिम-वनम्—-—वाटिका, उद्यान
॰कृत्वस् —अव्य॰—-—-—एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के साथ ‘तह’ और ‘गुणा’ अर्थ को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है
कृत्स्न —वि॰—-—कृत् - क्स्न—सारे, सम्पूर्ण, समस्त
कृन्तत्रम् —नपुं॰—-—कृत् - क्तन्, नुमागमः—हल
कृन्तम् —नपुं॰—-—कृत - ल्युट्—काटना, काटकर फेंक देना, विभक्त करना, फाड़कर टुकड़े-टुकड़े करना
कृपः —पुं॰—-—कृप् - अच्—अश्वत्थामा का मामा
कृपण —वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—गरीब, दयनीय, अभागा, असहाय
कृपण —वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—विवेकशून्य, किसी कार्य को करने या विवेचन करने के योग्य अथवा अनिच्छुक
कृपण —वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—नीच, अधम, दुष्ट
कृपण —वि॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम, कंजूस
कृपणम् —नपुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—दुर्दशा
कृपणः —पुं॰—-—कृंप् - क्युन् न स्यणत्वम्—सूम
कृपणधीः —स्त्री॰—कृपण-धीः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
कृपणबुद्धिः —स्त्री॰—कृपण-बुद्धिः—-—छोटे दिल का, नीच मन का
कृपणवत्सल —वि॰—कृपण-वत्सल—-—दीनदयालु
कृपा —स्त्री॰—-—क्रप् - भिदा॰ अङ - टाप्, संप्र॰—रहम, दयालुता, करुणा
सकृपम् —नपुं॰—-—-—कृपा करके
कृपाणः —पुं॰—-—कृपां नुदति - नुद् - ड संज्ञायां णत्वम् - तारा॰—तलवार
कृपाणिका —स्त्री॰—-—कृपाण - कन् - टाप्, इत्वम्—बर्छी, छुरी
कृपाणी —स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—कैंची
कृपाणी —स्त्री॰—-—कृपाण - ङीष्—बर्छी
कृपालु —वि॰—-—कृपां लाति - कृपा - ला आदाने मि॰ डु—दयालु, करुणापूर्ण, सदय
कृपी —स्त्री॰—-—कृप - ङीष्—कृप की बहन तथा द्रोण की पत्नी
कृपीपतिः —पुं॰—कृपी-पतिः—-—द्रोण का विशेषण
कृपीसुतः —पुं॰—कृपी-सुतः—-—अश्वत्थामा का विशेषण
कृपीटम् —नपुं॰—-—कृप - कीटन्—तलझाड़ियाँ, जंगल की लकड़ी
कृपीटम् —नपुं॰—-—कृप - कीटन्—वन, जलाने की लकड़ी
कृपीटम् —नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पानी
कृपीटम् —नपुं॰—-—कृप - कीटन्—पेट
कृपीटपालः —पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—पतवार
कृपीटपालः —पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—समुद्र
कृपीटपालः —पुं॰—कृपीटम्-पालः—-—वायु, हवा
कृपीटयोनि —वि॰—कृपीटम्-योनि—-—अग्नि
कृमि —वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
कृमि —वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—कीड़े
कृमि —वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—गधा
कृमि —वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—मकड़ी
कृमि —वि॰—-—क्रम् - इन्, अत इत्वम् संप्र॰—लाख
कृमिकोशः —पुं॰—कृमि-कोशः—-—रेशम का कोया
कृमिकोषः —पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशम का कोया
कृमिकोषः —पुं॰—कृमि-कोषः—-—रेशमी कपड़ा
कृमिजम् —नपुं॰—कृमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
कृमिजग्धम् —नपुं॰—कृमि-जग्धम्—-—अगर की लकड़ी
कृमिजा —स्त्री॰—कृमि-जा—-—लाख कीड़ों द्वारा उत्पादित लाल रंग
कृमिजलजः —पुं॰—कृमि-जलजः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
कृमिवारिरुहः —पुं॰—कृमि-वारिरुहः—-—घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा
कृमिपर्वतः —पुं॰—कृमि-पर्वतः—-—बाँबी
कृमिशैलः —पुं॰—कृमि-शैलः—-—बाँबी
कृमिफलः —पुं॰—कृमि-फलः—-—गूलर का पेड़
कृमिशङ्खः —पुं॰—कृमि-शङ्खः—-—शंख के भीतर रहने वाली मछली
कृमिशुक्तिः —स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—दोहरी पीठ वाला घोंघा
कृमिशुक्तिः —स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा
कृमिशुक्तिः —स्त्री॰—कृमि-शुक्तिः—-—घोंघा
कृमिण —वि॰—-—कृमि - न, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
कृमिल —वि॰—-—कृमि - न, ल वा, णत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
कृमिला —स्त्री॰—-—कृमि - ला - क - टाप्—बहुत सन्तान पैदा करने वाली स्त्री
कृश् —दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—दुर्बल या क्षीण होना
कृश् —दिवा॰ पर॰ <कृश्यति>, <कृश>—-—-—उत्तरोत्तर ह्रास होना
कृश् —पुं॰—-—-—दुर्बल करना
कृश —वि॰—-— —दुबला पतला, दुर्बल, शक्तिहीन, क्षीण
कृश —वि॰—-—-—छोटा, थोड़ा, सूक्ष्म
कृश —वि॰—-—-—दरिद्र, नगण्य
कृशाक्षः —पुं॰—कृश-अक्षः—-—मकड़ी
कृशाङ्गः —वि॰—कृश-अङ्गः—-—दुबला पतला
कृशाङ्गी —स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—तन्वंगी
कृशाङ्गी —स्त्री॰—कृश-अङ्गी—-—प्रियंगु लता
कृशोदर —वि॰—कृश-उदर—-—पतली कमर वाला
कृशला —स्त्री॰—-—कृश - ला - क - टाप्—बाल
कृशानुः —पुं॰—-—कृश - आनुक्—आग
कृशानुरेतस् —पुं॰—कृशानु-रेतस्—-—शिव की उपाधि
कृशाश्विन् —पुं॰—-—कृशाश्व - इनि—नाटक का पात्र
कृष् —तुदा॰ उभ॰ <कृषति>, <कृषते>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खूड बनाना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—खींचना, घसीटना, चीरना, खींच देना, फाड़ना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी की ओर खींचना, आकृष्ट करना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—नेतृत्व या संचालन करना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—झुकाना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—स्वामी होना, दमन करना, परास्त करना, अभिभूत करना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—हल चलाना, खेती करना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—प्राप्त करना, हासिल करना
कृष् —भ्वा॰ पर॰ <कर्षति>, <कृष्ट>—-—-—किसी से ले लेना, किसी को वंचित करना
अपकृष् —भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—पीछे खींचना, खींच ले जाना, घसीट कर दूर करना, लंबा करना, निचोड़ना
अपकृष् —भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—हटाना
अपकृष् —भ्वा॰ पर॰—अप-कृष्—-—कम करना, घटाना
अवकृष् —भ्वा॰ पर॰—अव-कृष्—-—खींचना, खींच लेना
आकृष् —भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—खींचना, समीप पहुँचाना, धकेलना, खींच लेना, निचोड़ना
आकृष् —भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—झुकाना
आकृष् —भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—निचोड़ना, उधार लेना
आकृष् —भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—छीनना, बलपूर्वक ग्रहण करना
आकृष् —भ्वा॰ पर॰—आ-कृष्—-—किसी दूसरे नियम या वाक्य से शब्द ला देना
उत्कृष् —भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—ऊपर खींचना, उखाड़ना
उत्कृष् —भ्वा॰ पर॰—उद्-कृष्—-—बढ़ाना, वृद्धि करना
निकृष् —भ्वा॰ पर॰—नि-कृष्—-—डुबोना, कम करना, घटाना
निष्कृष् —भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—बाहर खींचना
निष्कृष् —भ्वा॰ पर॰—निस्-कृष्—-—खींचतान कर निकालना, बलपूर्वक निकालना, छीनना या जबरदस्ती लेना
निष्कृष् —भ्वा॰ पर॰—परि-कृष्—-—खींचना, निकालना, घसीटना
प्रकृष् —भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—खींचना, खींच लेना, आकृष्ट करना
प्रकृष् —भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—नेतृत्व करना
प्रकृष् —भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—झुकाना
प्रकृष् —भ्वा॰ पर॰—प्र-कृष्—-—बढ़ाना
विकृष् —भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—खींचना
विकृष् —भ्वा॰ पर॰—वि-कृष्—-—झुकाना
विप्रकृष् —भ्वा॰ पर॰—विप्र-कृष्—-—हटाना
संनिकृष् —भ्वा॰ पर॰—संनि-कृष्—-—निकट लाना
कृषकः —पुं॰—-—कृष् - क्वन्—हलवाहा, किसान, हाली
कृषकः —पुं॰—-—कृष् - क्वन्—फाली
कृषकः —पुं॰—-—कृष् - क्वन्—बैल
कृषाणः —पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
कृषिकः —पुं॰—-—कृष् - आनक्, किकन् वा—हलवाहा, किसान
कृषिः —स्त्री॰—-—कृष् - इक्—हल चलाना
कृषिः —स्त्री॰—-—कृष् - इक्—खेती, काश्तकारी
कृषिकर्मन् —नपुं॰—कृषि-कर्मन्—-—खेती का काम
कृषिजीविन् —वि॰—कृषि-जीविन्—-—खेती से निर्वाह से करने वाला किसान
कृषिफलम् —नपुं॰—कृषि-फलम्—-—खेती से होने वाली उपज, या लाभ
कृषिसेवा —स्त्री॰—कृषि-सेवा—-—खेती करना, किसानी
कृषीवलः —पुं॰—-—कृषि - वलच्, दीर्घः—जो खेती से अपना जीविकार्जन करे, किसान
कृष्करः —पुं॰—-—कृष - कृ = टक् पृषो॰—शिव की उपाधि
कृष्ट —वि॰—-—कृष् - क्त—खींचा हुआ, उखाड़ा हुआ, घसीटा हुआ, आकृष्ट
कृष्ट —वि॰—-—कृष् - क्त—हल चलाया हुआ
कृष्टिः —स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—विद्वान पुरुष
कृष्टिः —स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—खींचना, आकर्षण
कृष्टिः —स्त्री॰—-—कृष् - क्तिन्—हल चलाना, भूमि जोतना
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—काला, श्याम, गहरा, नीला
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—दुष्ट, अनिष्टकर
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—काला रंग
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—काला हरिण
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—कौआ
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—कोयल
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—चान्द्रमास का कृष्णपक्ष
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—कलियुग
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—आठवाँ अवतारधारी विष्णु
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—महाभारत का विख्यात प्रणेता व्यास
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—अर्जुन
कृष्ण —वि॰—-—कृष् - नक्—अगर की लकड़ी
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—कालिमा, कालापन
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—लोहा
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—अंजन
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली पुतली
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—काली मिर्च
कृष्णम् —नपुं॰—-—कृष् - नक्—सीसा
कृष्णागुरु —नपुं॰—कृष्ण-अगुरु—-—एक प्रकार के चन्दन की लकड़ी
कृष्णाचलः —पुं॰—कृष्ण-अचलः—-—रैवतक पर्वत का विशेषण
कृष्णाजिनम् —नपुं॰—कृष्ण-अजिनम्—-—काले हरिण का चर्म
कृष्णायस् —नपुं॰—कृष्ण-अयस्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
कृष्णामिषम् —नपुं॰—कृष्ण-आमिषम्—-—लोहा, कच्चा या काला लोहा
कृष्णाध्वन् —पुं॰—कृष्ण-अध्वन्—-—आग
कृष्णार्चिस् —पुं॰—कृष्ण-अर्चिस्—-—आग
कृष्णाष्टमी —स्त्री॰—कृष्ण-अष्टमी—-—भाद्रपक्ष कृष्णपक्ष का आठवाँ दिन
कृष्णावासः —पुं॰—कृष्ण-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
कृष्णोदरः —पुं॰—कृष्ण-उदरः—-—एक प्रकार का साँप
कृष्णकन्दम् —नपुं॰—कृष्ण-कन्दम्—-—लाल कमल
कृष्णकर्मन् —वि॰—कृष्ण-कर्मन्—-—काली करतूत वाला, मुजरिम, दुष्ट, दुश्चरित्र, दोषी
कृष्णकाकः —पुं॰—कृष्ण-काकः—-—पहाड़ी कौआ
कृष्णकायः —पुं॰—कृष्ण-कायः—-—भैंसा
कृष्णकाष्ठम् —नपुं॰—कृष्ण-काष्ठम्—-—एकप्रकार की चंदन की लकड़ी, काला अगर
कृष्णकोहलः —पुं॰—कृष्ण-कोहलः—-—जुआरी
कृष्णगतिः —पुं॰—कृष्ण-गतिः—-—आग
कृष्णग्रीवः —पुं॰—कृष्ण-ग्रीवः—-—शिव का नाम
कृष्णतारः —पुं॰—कृष्ण-तारः—-—काले हरिणों की एक जाति
कृष्णदेहः —पुं॰—कृष्ण-देहः—-—मधुमक्खी
कृष्णधनम् —नपुं॰—कृष्ण-धनम्—-—बुरे तरीकों से कमाया हुआ धन, पाप की कमाई
कृष्णद्वैपायनः —पुं॰—कृष्ण-द्वैपायनः—-—व्यास का नाम
कृष्णपक्षः —पुं॰—कृष्ण-पक्षः—-—चान्द्रमास का अंधेरा पक्ष
कृष्णमृगः —पुं॰—कृष्ण-मृगः—-—काला हरिण
कृष्णमुखः —पुं॰—कृष्ण-मुखः—-—काले मुँह का बन्दर
कृष्णवक्त्रः —पुं॰—कृष्ण-वक्त्रः—-—काले मुँह का बन्दर
कृष्णवदनः —पुं॰—कृष्ण-वदनः—-—काले मुँह का बन्दर
कृष्णयजुर्वेदः —पुं॰—कृष्ण-यजुर्वेदः—-—तैत्तिरीय या कृष्ण यजुर्वेद
कृष्णलोहः —पुं॰—कृष्ण-लोहः—-—चुम्बक पत्थर
कृष्णवर्णः —पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—काला रंग
कृष्णवर्णः —पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—राहु
कृष्णवर्णः —पुं॰—कृष्ण-वर्णः—-—शूद्र
कृष्णवर्त्मन् —पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—आग
कृष्णवर्त्मन् —पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—राहु का नाम
कृष्णवर्त्मन् —पुं॰—कृष्ण-वर्त्मन्—-—नीच पुरुष, दुराचारी, लुच्चा
कृष्णवेणा —स्त्री॰—कृष्ण-वेणा—-—नदी का नाम
कृष्णशकुनिः —पुं॰—कृष्ण-शकुनिः—-—कौवा
कृष्णसारः —पुं॰—कृष्ण-सारः—-—चितकबरा, काला मृग
कृष्णशारः —पुं॰—कृष्ण-शारः—-—चितकबरा, काला मृग
कृष्णश्रृङ्गः —पुं॰—कृष्ण-श्रृङ्गः—-—भैंसा
कृष्णसखः —पुं॰—कृष्ण-सखः—-—अर्जुन का विशेषण
कृष्णसारथिः —पुं॰—कृष्ण-सारथिः—-—अर्जुन का विशेषण
कृष्णकम् —नपुं॰—-—कृष्ण - कन्—काले मृग का चमड़ा
कृष्णलः —पुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं का पौधा, गुंजा-पौधा
कृष्णलम् —नपुं॰—-—कृष्ण - ला - क—घुँघचीं, चहुँटली
कृष्णा —स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—द्रौपदी का नाम, पाण्डवों की पत्नी
कृष्णा —स्त्री॰—-—कृष्ण - टाप्—दक्षिण भारत की एक नदी जो मुसलीपट्टम् में समुद्र में गिरती है
कृष्णिका —स्त्री॰—-—कृष्ण - ठन् - टाप्—काली सरसों
कृष्णिमन् —पुं॰—-—कृष्ण - इमनिच्—कालिमा, कालापन
कृष्णी —स्त्री॰—-—कृष्ण - ङीष्—अँधेरी रात
कॄ —तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—बिखेरना, इधर-उधर फेंकना, उड़ेलना, डालना, तितर-बितर करना
कॄ —तुदा॰ पर॰ <किरति>, <कीर्ण>—-—-—छितराना, ढँकना, भरना
अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर डालना
अपकॄ —तुदा॰ पर॰—अप-कॄ —-—पैरों से खुरचना, पूरा हर्ष
अपाकॄ —तुदा॰ पर॰—अपा-कॄ —-—उतार फेंकना, अस्वीकार करना, निराकरण करना
अवकॄ —तुदा॰ पर॰—अव-कॄ —-—बखेरना, फेंकना
आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—चारों ओर फैलाना
आकॄ —तुदा॰ पर॰—आ-कॄ —-—खोदना
उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—ऊपर को बिखेरना, ऊपर को फेंकना
उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—खोदना, खोदकर खोखला करना
उद्कॄ —तुदा॰ पर॰—उद्-कॄ —-—उत्कीर्ण करना, खुदाई करना, मूर्ति बनाना
उपकॄ —तुदा॰ पर॰—उप-कॄ —-—काटना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—घेरना
परिकॄ —तुदा॰ पर॰—परि-कॄ —-—सोंपना, देना, बाँटना
प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बिखेरना, फेंकना उड़ेलना
प्रकॄ —तुदा॰ पर॰—प्र-कॄ —-—बोना
प्रतिकॄ —तुदा॰ पर॰—प्रति-कॄ —-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना, फाड़ना
विकॄ —तुदा॰ पर॰—वि-कॄ —-—बखेरना, इधर-उधर फेंकना, छितराना, फैलाना
विनिकॄ —तुदा॰ पर॰—विनि-कॄ—-—फकना, छोड़ना, उतार फेंकना
संकॄ —तुदा॰ पर॰—सम्-कॄ—-—मिलाना, सम्मिश्रण करना, एक स्थान पर गड्डमड्ड करना
समुत्कॄ —तुदा॰ पर॰—समुद्-कॄ—-—छेदना, सुराख करना, बींधना
कॄ —क्र्या॰ उभ॰ <कृणाति>, <कृणीते>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
कॄत् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—उल्लेख करना, दोहराना, उच्चारण करना
कॄत् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—कहना, सस्वर पाठ करना, घोषणा करना, समाचार देना
कॄत् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—नाम लेना, पुकार करना
कॄत् —चुरा॰ उभ॰ <कीर्तयति>, <कीर्तयते>, <कीर्तित>—-—-—स्तुति करना, यशोगान करना, स्मरणार्थ उत्सव मनाना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—योग्य होना, यथेष्ट होना, फलना, प्रकाशित करना, निष्पन्न करना, पैदा करना, ढुलकना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—सुप्रबद्ध तथा विनियमित होना, सफल होना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—होना, घटित होना, घटना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—तैयार होना, सज्जित होना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰ <कल्पते>, <कॢप्त>—-—-—अनुकूल होना, किसी के काम आना, अनुसेवन करना, भाग लेना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰—-—-—तैयार करना, क्रम से रखना, सँवारना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰—-—-—निश्चित करना, स्थिर करना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰—-—-—समान जुटाना, उपस्कृत करना
कॢप् —भ्वा॰ आ॰—-—-—विचार करना
अवकॢप् —भ्वा॰ आ॰—अव-कॢप्—-—फलना, झुकना, सम्पन्न करना
आकॢप् —भ्वा॰ आ॰—आ-कॢप्—-—अलंकृत करना, सजाना
उपकॢप् —भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—फलना, परिणाम निकालना
उपकॢप् —भ्वा॰ आ॰—उप-कॢप्—-—तैयार होना, तत्पर होना
परिकॢप् —भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—फैसला करना, निर्धारण करना, निश्चित करना
परिकॢप् —भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
परिकॢप् —भ्वा॰ आ॰—परि-कॢप्—-—गुणयुक्त करना
प्रकॢप् —भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—होना, घटित होना
प्रकॢप् —भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—सफल होना
प्रकॢप् —भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—आविष्कार करना, उपाय निकालना, बनाना
प्रकॢप् —भ्वा॰ आ॰—प्र-कॢप्—-—तैयार करना, तैयार होना
विकॢप् —भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना, सन्दिग्ध होना
विकॢप् —भ्वा॰ आ॰—वि-कॢप्—-—सन्देह करना
सम्कॢप् —भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—दृढ़ निश्चय करना, दृढ़ संकल्प करना, निश्चित करना
सम्कॢप् —भ्वा॰ आ॰—सम्-कॢप्—-—इरादा करना, प्रस्ताव रखना
समुपकॢप् —भ्वा॰ आ॰—समुप-कॢप्—-—तैयार होना
कॢप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—तैयार किया हुआ, किया हुआ, तैयार हुआ, सुसज्जित, विवाहवेष में सुभूषित
कॢप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—काटा हुआ, छिला हुआ
कॢप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—उत्पन्न किया हुआ, पैदा किया हुआ
कॢप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—कॢप् - क्त—स्थिर किया हुआ, निश्चित, सोचा हुआ, आविष्कृत
कॢप्तकीला —स्त्री॰—कॢप्त-कीला—-—अधिकार पत्र, दस्तावेज
कॢप्तधूपः —पुं॰—कॢप्त-धूपः—-—लोबान
कॢप्तिः —स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—निष्पत्ति, सफलता
कॢप्तिः —स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—आविष्कार, बनावट
कॢप्तिः —स्त्री॰—-—कॢप् - क्तिन्—क्रमबद्ध करना
कॢप्तिक —वि॰—-—कॢप्त - ठन्—खरीदा हुआ, मोल लिया हुआ
केकयः —पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश और उसके निवासी
केकर —वि॰—-—-—भेंगी आँख वाला
केकरम् —नपुं॰—-—-—भेंगी आँख
केकराक्ष —वि॰—केकर-अक्ष—-—वक्रदृष्टि, भेंगी आँख वाला
केका —स्त्री॰—-—के - कै - ड - टाप्—मोर की बोली
केकावलः —पुं॰—-—केका - वलच्—मोर
केकिकः —पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्—मोर
केकिन् —पुं॰—-—केका - वलच्, केका - ठन्, केका - इनि—मोर
केणिका —स्त्री॰—-—के मूर्ध्नि कुत्सितः अणकः - टाप्—तम्बू
केतः —पुं॰—-—कित् - घञ्—घर, आवास
केतः —पुं॰—-—कित् - घञ्—रहना, बस्ती
केतः —पुं॰—-—कित् - घञ्—झण्डा
केतः —पुं॰—-—कित् - घञ्—इच्छा शक्ति, इरादा, चाह
केतकः —पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा
केतकः —पुं॰—-—कित् - ण्वुल्—झण्डा
केतकम् —नपुं॰—-—कित् - ण्वुल्—केवड़े का फूल
केतकी —स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—एक पौधा - केवड़ा
केतकी —स्त्री॰—-—कित् - ण्वुल्—केतकी का फूल
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—घर, आवास
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—निमन्त्रण, बुलावा
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—स्थान, जगह
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—पताका, झण्डा
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—चिह्न, प्रतीक
केतनम् —नपुं॰—-—कित् - ल्युट्—अनिवार्य कर्म
केतित —वि॰—-—केत - इतच्—बुलाया गया, आमन्त्रित
केतित —वि॰—-—केत - इतच्—आबाद, बसा हुआ
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पताका, झण्डा
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—मुख्य, प्रधान, नेता, प्रमुख, विशिष्ट व्यक्ति
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—पुच्छलतारा, धूमकेतु
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—चिह्न, अंक
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—उज्जवलता, स्वच्छता
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—प्रकाश की किरण
केतुः —पुं॰—-—चाय् - तु, की आदेशः—सौरमण्डल का नवाग्रह
केतुग्रहः —पुं॰—केतु-ग्रहः—-—अवरोही शिरोबिन्दु
केतुभः —पुं॰—केतु-भः—-—बादल
केतुयष्टिः —स्त्री॰—केतु-यष्टिः—-—ध्वज का दण्ड
केतुरत्नम् —नपुं॰—केतु-रत्नम्—-—नीलम, वैदूर्य
केतुवसनम् —नपुं॰—केतु-वसनम्—-—ध्वजा, पताका
केदारः —पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पानी भरा हुआ खेत, चरागाह
केदारः —पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—थाँवला, आलवाल
केदारः —पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—पहाड़
केदारः —पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—केदार नामक एक पहाड़ जो हिमालय का एक भाग है
केदारः —पुं॰—-—के शिरसि दारोऽस्य - ब॰ स॰—शिव का नाम
केदारखण्डम् —नपुं॰—केदार-खण्डम्—-—मिट्टी का बना एक छोटा सा बाँध जो पानी को रोक सके
केदारनाथः —पुं॰—केदार-नाथः—-—शिव का विशेष रुप
केनारः —पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—सिर
केनारः —पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—खोपड़ी
केनारः —पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—गाल
केनारः —पुं॰—-—के मूर्ध्नि नारः - अलु॰ स॰—जोड़
केनिपातः —पुं॰—-—के जले निपात्यतेऽसौ - के - नि - पत् - णिच् - अच्—पतवार, डाँड़, चप्पू
केन्द्रम् —नपुं॰—-—-—वृत्त का मध्य बिन्दु
केन्द्रम् —नपुं॰—-—-—वृत्त का प्रमाण
केन्द्रम् —नपुं॰—-—-—जन्मकुण्डली में लग्न से पहला, चौथा, सातवाँ और दसवाँ स्थान
केयूरः —पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
केयूरम् —नपुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—टाड, बिजायठ, बाजूबन्द
केयूरः —पुं॰—-—के बाहौ शिरसि वा याति, या - ऊर किच्च, अलु॰ स॰, तारा॰—एक रतिबन्ध
केरलः —पुं॰—-—-—दक्षिण भारत एक देश और उसके निवासी
केरली —स्त्री॰—-—-—केरल देश की स्त्री
केरली —स्त्री॰—-—-—ज्योतिर्विज्ञान
केल् —भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—हिलाना
केल् —भ्वा॰ पर॰ <केलति>, <केलित>—-—-—खेलना, खिलाड़ी होना, क्रीड़ापरायण या केलिप्रिय होना
केलकः —पुं॰—-—केल् - ण्वुल्—नर्तक, कलाबाजी करने वाला नट
केलासः —पुं॰—-—केला विलासः सीदत्यस्मिन् - केला - सद् - ड़—स्फटिक
केलिः —पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—खेल, क्रीडा
केलिः —पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—आमोद-प्रमोद, मनोविनोद
केलिः —पुं॰/स्त्री॰—-—केल् - इन्—परिहास, मखौल, हँसीदिल्लगी
केलिः —स्त्री॰—-—केल् - इन्—पृथ्वी
केलिकला —स्त्री॰—केलि-कला—-—क्रीड़ाप्रिय कला विलासिता, श्रृंगारप्रिय सम्बोधन
केलिकला —स्त्री॰—केलि-कला—-—सरस्वती की वीणा
केलिकिलः —पुं॰—केलि-किलः—-—नाटक में नायक का विश्वस्त सहचर
केलिकिलावती —स्त्री॰—केलि-किलावती—-—रति, कामदेव की पत्नी
केलिकीर्णः —पुं॰—केलि-कीर्णः—-—ऊँट
केलिकुंचिका —स्त्री॰—केलि-कुंचिका—-—पत्नी की छोटी बहन
केलिकुपित —वि॰—केलि-कुपित—-—खेल में रुष्ट
केलिकोषः —पुं॰—केलि-कोषः—-—नाटक का पात्र, नर्तक, नचैया
केलिगृहम् —नपुं॰—केलि-गृहम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
केलिनिकेतेनम् —नपुं॰—केलि-निकेतेनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
केलिमन्दिरम् —नपुं॰—केलि-मन्दिरम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
केलिसदनम् —नपुं॰—केलि-सदनम्—-—आमोदभवन, निजी कमरा
केलिनागरः —पुं॰—केलि-नागरः—-—कामासक्त
केलिपर —वि॰—केलि-पर—-—क्रीडापर, विलासी, आमोदप्रिय
केलिमुखः —पुं॰—केलि-मुखः—-—परिहास, क्रीड़ा, मनोरञ्जन
केलिवृक्षः —पुं॰—केलि-वृक्षः—-—कदम्बवृक्ष की जाति
केलिशयनम् —नपुं॰—केलि-शयनम्—-—विलासशय्या, सुखशय्या, कोच
केलिशुषिः —स्त्री॰—केलि-शुषिः—-—पृथ्वी
केलिसचिवः —पुं॰—केलि-सचिवः—-—आमोदप्रिय सखा, विश्रब्ध मित्र
केलिकः —पुं॰—-—केलि - कन्—अशोकवृक्ष
केली —स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—खेल, क्रीडा
केली —स्त्री॰—-—केलि - ङीष्—आमोद-क्रीडा
केलीपिकः —पुं॰—केली-पिकः—-—मनोविनोदार्थ रखी हुई कोयल
केलीवनी —स्त्री॰—केली-वनी—-—प्रमोद-वाटिका, केलिकानन, क्रीडोद्यान
केलीशुकः —पुं॰—केली-शुकः—-—मनोरञ्जनार्थ पाला हुआ तोता
केवल —वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—विशिष्ट, एकान्तिक, असाधारण
केवल —वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—अकेला, मात्र, एकल, एकमात्र, इक्का-दुक्का
केवल —वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—पूर्ण, समस्त, परम, पूरा
केवल —वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—नग्न अनावृत
केवल —वि॰—-—केव् सेवने वृषा कल—खालिस, सरल, अभिश्रित, विमल
केवलम् —अव्य॰—-—-—केवल, सिर्फ, एकमात्र, पूर्णरूप से , नितान्त, सर्वथा
केवलात्मन् —वि॰—केवल-आत्मन्—-—परम एकता ही जिसका सार है
केवलनैयायिकः —पुं॰—केवल-नैयायिकः—-—सिर्फ तार्किक
केवलतः —अव्य॰—-—केवल + तसिल्—केवल, निरा, सर्वथा, निपट, सिर्फ
केवलिन् —वि॰—-—केवल + तसिल्—अकेला, एकमात्र
केवलिन् —वि॰—-—केवल + तसिल्—आत्मा की एकता के परम सिद्धान्त का पक्षपाती
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—विकीर्णकेशासु परेतभूमिषु @ कु॰ ५।६८
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—केशेषु गृहीत्वा - या - केशग्राहं युध्यन्ते @ सिद्धा॰ , मुक्तकेशा @ मनु॰ ७।९१, केशव्यपरोपणादिव @ रघु॰ ३।५६, २।८
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—घोड़े या शेर की अयाल
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—प्रकाश की किरण
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—वरूण का विशेषण
केशः —पुं॰—-—क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च—एकप्रकार का सुगन्धद्रव्य
केशान्तः —पुं॰—केश-अन्तः—-—बाल का सिरा
केशान्तः —पुं॰—केश-अन्तः—-—नीचे लटकते हुए लम्बे बाल, बालों का गुच्छा
केशान्तः —पुं॰—केश-अन्तः—-—मुण्डन संस्कार
केशोच्चयः —पुं॰—केश-उच्चयः—-—अधिक या सुन्दर बाल
केशकर्मन् —नपुं॰—केश-कर्मन्—-—बालों को संभालना
केशकलापः —पुं॰—केश-कलापः—-—बालों का ढेर
केशकीटः —पुं॰—केश-कीटः—-—जूँ
केशगर्भः —पुं॰—केश-गर्भः—-—बालों की मींढी
केशगृहीत —वि॰—केश-गृहीत—-—बालों से पकड़ा हुआ
केशग्रहः —पुं॰—केश-ग्रहः—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
केशग्रहणम् —नपुं॰—केश-ग्रहणम्—-—बालों को पकड़ना, बालों से पकड़ना
केशध्नम् —नपुं॰—केश-ध्नम्—-—दूषित गंजापन
केशच्छिद् —पुं॰—केश-च्छिद्—-—नाई, हज्जाम
केशजाहः —पुं॰—केश-जाहः—-—बालों की जड़
केशपक्षः —पुं॰—केश-पक्षः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
केशपाशः —पुं॰—केश-पाशः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
केशहस्तः —पुं॰—केश-हस्तः—-—बहुत अधिक या संवारे हुए बाल
केशबन्ध —पुं॰—केश-बन्ध—-—जूड़ा
केशभूः —पुं॰—केश-भूः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
केशभूमिः —स्त्री॰—केश-भूमिः—-—सिर या शरीर का अन्य भाग जहाँ बाल उगते है
केशप्रसाधनी —स्त्री॰—केश-प्रसाधनी—-—कंघी
केशमार्जकम् —नपुं॰—केश-मार्जकम्—-—कंघी
केशमार्जनम् —नपुं॰—केश-मार्जनम्—-—कंघी
केशरचना —स्त्री॰—केश-रचना—-—बालों को संवारना
केशवेशः —पुं॰—केश-वेशः—-—कबरी-बन्धन
केशटः —पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—बकरा
केशटः —पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—विष्णु का नाम
केशटः —पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—खटमल
केशटः —पुं॰—-—केश + अट् + अच्, शक॰ पररूपम्—भाई
केशव —पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—बहुत या सुन्दर बालों वाला
केशवः —पुं॰—-—केशः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केश + व—विष्णु का विशेषण
केशवायुधः —पुं॰—केशव-आयुधः—-—आम का वृक्ष
केशवायुधम् —नपुं॰—केशव-आयुधम्—-—विष्णु का शस्त्र
केशवालयः —पुं॰—केशव-आलयः—-—अश्वत्थ वृक्ष
केशवावासः —पुं॰—केशव-आवासः—-—अश्वत्थ वृक्ष
केशाकेशि —अव्य॰—-— केशेषु केशेषु गृहीत्वा प्रवृत्तं युद्धम् - पूर्वपदस्य आकारः इत्वम् च—एक दूसरे के बाल खींचकर, नोचकर ली जाने वाली लड़ाई , झोंटा-झोंटी
केशिक —वि॰—-— केश + ठन्—सुन्दर या अलंकृत बालों वाला
केशिन् —पुं॰—-— केश + इनि—सिंह
केशिन् —पुं॰—-— केश + इनि—एक राक्षस जिसको कृष्ण ने मार गिराया था
केशिन् —पुं॰—-— केश + इनि—एक और राक्षस जो देव सेना को उठा कर ले गया और बाद में इन्द्र द्वारा मारा गया
केशिन् —पुं॰—-— केश + इनि—कृष्ण का विशेषण
केशिन् —पुं॰—-— केश + इनि—सुन्दर बालों वाला
केशिनिषूदनः —पुं॰—केशिन्-निषूदनः—-—कृष्ण का विशेषण
केशिमथनः —पुं॰—केशिन्-मथनः—-—कृष्ण का विशेषण
केशिनी —स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—सुन्दर जुड़े वाली स्त्री
केशिनी —स्त्री॰—-— केशिन् + डीप्—विश्रवा की पत्नी, रावण और कुम्भकर्ण की माता
केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
केसरः —पुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
केशरः —पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
केशरः —पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
केशरः —पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
केशरः —पुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
केसरम् —नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
केसरम् —नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
केसरम् —नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
केसरम् —नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
केशरम् —नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—अयाल
केशरम् —नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—फूल का रेशा या तन्तु
केशरम् —नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल का पेड़
केशरम् —नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—रेशा या सूत्र
केसरम् —नपुं॰—-— के + सृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
केशरम् —नपुं॰—-— के + शृ + अच्, अलुक् स॰—बकुल वृक्ष का फूल
केसराचलः —पुं॰—केसर-अचलः—-—मेरू पहाड़ का विशेषण
केसरवरम् —नपुं॰—केसर-वरम्—-—केसर, जाफ़रान
केसरिन् —पुं॰—-—केसर - इनि—घोड़ा
केसरिन् —पुं॰—-—केसर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
केसरिन् —पुं॰—-—केसर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
केसरिन् —पुं॰—-—केसर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
केसरिसुतः —पुं॰—केसरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—सिंह
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, अपने वर्ग का प्रमुख
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—घोड़ा
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—नींबू या गलगल का पेड़
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—पुन्नाग का वृक्ष
केशरिन् —पुं॰—-—केशर - इनि—हनुमान के पिता का नाम
केशरिसुतः —पुं॰—केशरिन्-सुतः—-—हनुमान का विशेषण
कै —भ्वा॰ पर॰ <कायति>—-—-—शब्द करना, ध्वनि करना
कैंशुकम् —नपुं॰—-—किंशुक - अण्—किंशुक वृक्ष का फूल
कैकयः —पुं॰—-—केकय - अण्—केकय देश का राजा
कैकसः —पुं॰—-—कीकस - अण्—राक्षस, पिशाच
कैकेयः —पुं॰—-—केकयानां राजा - अण्—केकय देश का राजा राजकुमार
कैकेयी —स्त्री॰—-—केकय - अण् - ङीप्—केकय देश की राजा की बेटी, राजा दशरथ की सबसे छोटी पत्नी, भरत की माता
कैटभः —पुं॰—-—कीट - भा - ड - अण्—राक्षस का नाम जिसे विष्णु के मार गिराया
कैटभारिः —पुं॰—कैटभ-अरिः—-—विष्णु का विशेषण
कैटभजित् —पुं॰—कैटभ-जित्—-—विष्णु का विशेषण
कैटभरिपुः —पुं॰—कैटभ-रिपुः—-—विष्णु का विशेषण
कैटभहन् —पुं॰—कैटभ-हन्—-—विष्णु का विशेषण
कैतकम् —नपुं॰—-—केतकी - अण्—केवड़े का फूल
कैतवम् —नपुं॰—-—कितव- अण्—जूए में लगाया गया दाँव
कैतवम् —नपुं॰—-—कितव- अण्—जूआ खेलना
कैतवम् —नपुं॰—-—कितव- अण्—झूठ, धोखा, जालसाजी, चालबाजी, चालाकी
कैतवः —पुं॰—-—कितव- अण्—छली, चालबाज
कैतवः —पुं॰—-—कितव- अण्—जुआरी
कैतवः —पुं॰—-—कितव- अण्—धतूरे का पौधा
कैतवप्रयोगः —पुं॰—कैतव-प्रयोगः—-—चालाकी, दाँव
कैतववादः —पुं॰—कैतव-वादः—-—झूठ, चालबाजी
केदारः —पुं॰—-—केदार - अण्—चावल, अनाज
केदारम् —नपुं॰—-—केदार - अण्—खेतों का समूह
कैमुतिकः —पुं॰—-—किमुत - ठक्—न्याय, एक प्रकार का तर्क
कैरवः —पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—जुआरी, धोखा देने वाला, चालबाज
कैरवः —पुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—शत्रु
कैरवम् —नपुं॰—-—के जले रौति - केरवः हंसः तस्य प्रियं - केरव - अण्—श्वेत कुमुद जो चन्द्रोदय के समय खिलता है
कैरवबन्धुः —पुं॰—कैरव-बन्धुः—-—चन्द्रमा का विशेषण
कैरविन् —पुं॰—-—कैरव - इनि—चन्द्रमा
कैरविणी —स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत फूल वाला कुमुद का पौधा
कैरविणी —स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—वह सरोवर जिसमें श्वेत कमल खिले हों
कैरविणी —स्त्री॰—-—कैरविन् - ङीप्—श्वेत कमलों का समूह
कैरवी —स्त्री॰—-—कैरव - ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
कैलासः —पुं॰—-—के जले लासो दीप्तिरस्य - केलास - अण्—पहाड़ का नाम, हिमालय की एक चोटी, शिव और कुबेर का निवास स्थान
कैलासनाथः —पुं॰—कैलास-नाथः—-—शिव का विशेषण
कैलासनाथः —पुं॰—कैलास-नाथः—-—कुबेर का विशेषण
कैवर्तः —पुं॰—-—के जले वर्तते - वृत् - अच्, केवर्तः ततः स्वार्थे अण् तारा॰ —मछुवारा
कैवल्यम् —नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—पूर्ण पृथकता, अकेलापन, एकान्तिकता
कैवल्यम् —नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—व्यक्तित्व
कैवल्यम् —नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—प्रकृति से आत्मा का पार्थक्य, परमात्मा के साथ आत्मा की तद्रूपता
कैवल्यम् —नपुं॰—-—केवल - ष्यञ्—मुक्ति, मोक्ष
कैशिक —वि॰—-—केश - ठक्—बालों के समान, बालों की भाँति सुन्दर
कैशिकः —पुं॰—-—केश - ठक्—श्रृङ्गाररस, विलासिता
कैशिकम् —नपुं॰—-—केश - ठक्—बालों का गुच्छा
कैशिकी —स्त्री॰—-—केश - ठक्+ङीप्—नाट्य शैली का एकप्रकार
कैशोरम् —नपुं॰—-—किशोर - अञ्—किशोरावस्था, बाल्यकाल, कौमार आयु
कैश्यम् —नपुं॰—-—केश - ष्यञ्—सारे बाल, बालों का गुच्छा
कोकः —पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—भेड़िया
कोकः —पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—गुलाबी रंग का हंस
कोकः —पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—कोयल
कोकः —पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—मेंढक
कोकः —पुं॰—-—कुक् आदाने अच् - तारा॰—विष्णु का नाम
कोकदेवः —पुं॰—कोक-देवः—-—कबूतर
कोकदेवः —पुं॰—कोक-देवः—-—सूर्य का विशेषण
कोकनदम् —पुं॰—-—कोकान् चक्रवाकान् नदति नादयति नद् - अच्—लाल कमल
कोकाहः —पुं॰—-—कोक - आ - हन् - ड—सफेद घोड़ा
कोकिलः —पुं॰—-—कुक् - इलच्—कोयल
कोकिलः —पुं॰—-—कुक् - इलच्—जलती हुई लकड़ी
कोकिलावासः —पुं॰—कोकिल-आवासः—-—आम का वृक्ष
कोकिलोत्सवः —पुं॰—कोकिल-उत्सवः—-—आम का वृक्ष
कोङ्कः —पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
कोङ्कणः —पुं॰,ब॰ व॰—-—-—एक देश का नाम, सह्याद्रि और समुद्र का मध्यवर्ती भूखण्ड
कोङ्कणा —स्त्री॰—-—कोङ्कण - टाप्—रेणुका, जमदग्नि की पत्नी
कोङ्कणासुतः —पुं॰—कोङ्कणा-सुतः—-—परशुराम का विशेषण
कोजागरः —पुं॰—-—को जागर्ति इति लक्ष्मया उक्तिरत्र काले पृषो॰ तारा॰ —आश्विन मास की पूर्णिमा की रात में मनाया जाने वाला आमोदपूर्ण उत्सव
कोटः —पुं॰—-—कुट् - घञ्—किला
कोटः —पुं॰—-—कुट् - घञ्—झोपड़ी, छप्पर
कोटः —पुं॰—-—कुट् - घञ्—कुटिलता
कोटः —पुं॰—-—कुट् - घञ्—दाढ़ी
कोटरः —पुं॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—वृक्ष की खोखर
कोटरी —स्त्री॰—-—कोटं कौटिल्यं राति रा - क ता॰—नंगी स्त्री
कोटरी —स्त्री॰—-—कोट - री - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
कोटवी —स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—नंगी स्त्री
कोटवी —स्त्री॰—-—कोट - वी - क्विथ्—दुर्गा देवी का विशेषण
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—चन्द्रमा की कलाएँ
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—एक करोड़ की संख्या
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्—श्रेणी, विभाग, राज्य
कोटिः —स्त्री॰—-—कुट् - इञ्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—धनुष का मुड़ा हुआ सिरा
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चरमसीमा का किनारा, नोक या धार
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—उच्चतम बिन्दु, आधिक्य पराकोटि, पराकाष्ठा, परमोत्कर्ष
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—चन्द्रमा की कलाएँ
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—एक करोड़ की संख्या
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—९० कोटि के चाप की सम्पूरक रेखा
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—समकोण त्रिभुज की एक भुजा
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्—श्रेणी, विभाग, राज्य
कोटी —स्त्री॰—-—कोटि - डीष्— विवादास्पद प्रश्न का एक पहलू, विकल्प
कोटीश्वरः —पुं॰—कोटि-ईश्वरः—-—करोड़पति
कोटिजित् —पुं॰—कोटि-जित्—-—कालिदास का विशेषण
कोटिज्या —स्त्री॰—कोटि-ज्या—-—समकोण त्रिभुज में एक कोण की कोज्या
कोटिद्वयम् —नपुं॰—कोटि-द्वयम्—-—दो विकल्प
कोटिपात्रम् —नपुं॰—कोटि-पात्रम्—-—पतवार
कोटिपालः —पुं॰—कोटि-पालः—-—दुर्ग रक्षक
कोटिवेधिन् —वि॰—कोटि-वेधिन्—-—नियत बिन्दू पर प्रहार करने वाला
कोटिवेधिन् —वि॰—कोटि-वेधिन्—-—अत्यन्त कठिन कार्यों को सम्पन्न करने वाला
कोटिक —वि॰—-—कोटि - कै - क—किसी वस्तु का उच्चतम सिरा
कोटिरः —पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बनी सींग के रुप की बालों की चोटी
कोटिरः —पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—नेवला
कोटिरः —पुं॰—-—कोटिं रातिं रा - क ता॰—इन्द्र का विशेषण
कोटिशः —पुं॰—-—कोटि - शो - क—मैड़ा, पटेला
कोटीशः —पुं॰—-—कोटी - शो - क—मैड़ा, पटेला
कोटिशः —अव्य॰ —-—कोटि - शस्—करोड़ों, असंख्य
कोटीरः —पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—मुकुट, ताज
कोटीरः —पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—शिखा
कोटीरः —पुं॰—-—कोटिमीरयति ईर् - अण्—सन्यासियों द्वारा मस्तक पर बाँधी गई बालों की चोटी जो सींग जैसी दिखाई देती है, जटा
कोट्टः —पुं॰—-—कुट्ट - घञ्—दुर्ग, किला
कोट्टवी —स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —नग्न स्त्री जिसके बाल बिखरे हुए हों
कोट्टवी —स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —दुर्गा देवी
कोट्टवी —स्त्री॰—-—कोट्टं वाति वा - क, गौरा॰ ङीष् तारा॰ —बाण की माता का नाम
कोट्टारः —पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—किले बन्दी वाला नगर, दुर्ग
कोट्टारः —पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—तालाब की सीढ़ियाँ
कोट्टारः —पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—कुआँ, तालाब
कोट्टारः —पुं॰—-—कुट्ट - आरक् पृषो॰—लम्पट, दुराचारी
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—किनारा, कोना
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वृत्त का अन्तर्वर्ती बिन्दु
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—वीणा की कमानी, सारंगी बजाने का गज
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—तलवार या शस्त्र की तेज धार
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—लकड़ी, लाठी, गदा
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—ढोल बजाने की लकड़ी
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—मंगल ग्रह
कोणः —पुं॰—-—कुण् करणे घञ्, कर्तरि अच् वा तारा॰—शनिग्रह
कोणाघातः —पुं॰—कोण-आघातः—-—ढोल, ढपड़े बजाना
कोणकुणः —पुं॰—कोण-कुणः—-—खटमल
कोणपः —पुं॰—-—-—पिशाच, राक्षस
कोणाकोणि —अव्य॰ —-—-—एक कोण से दूसरे कोण तक, एक किनारे से दूसरे किनारे तक, तिरछे, आड़े
कोदण्डः —पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
कोदण्डन् —पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—धनुष
कोदण्डः —पुं॰—-—कु - विच् = कोः शब्दायमानो दण्डो यस्य ब॰ स॰—भौं
कोद्रवः —पुं॰—-—कु - विच् = को, द्रु - अक् = द्रव, कर्म॰ स॰—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
कोपः —पुं॰—-—कुप् - घञ्—क्रोध, गुस्सा, रोष, क्रोध मत करो
कोपः —पुं॰—-—कुप् - घञ्—शारीरिक त्रिदोष विकार
कोपाकुल —वि॰—कोप-आकुल—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
कोपाविष्ट —वि॰—कोप-आविष्ट—-—क्रुद्ध, प्रकुपित
कोपक्रमः —पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोधी या रुष्ट पुरुष
कोपक्रमः —पुं॰—कोप-क्रमः—-—क्रोध का मार्ग
कोपपदम् —नपुं॰—कोप-पदम्—-—क्रोध का कारण
कोपपदम् —नपुं॰—कोप-पदम्—-—बनावटी क्रोध
कोपवशः —पुं॰—कोप-वशः—-—क्रोध की वश्यता
कोपवेगः —पुं॰—कोप-वेगः—-—क्रोध की प्रचण्डता, तीक्ष्णता
कोपन —वि॰—-—कुप् - ल्युट्—रोषशील, चिड़चिड़ा, क्रोधी
कोपन —वि॰—-—कुप् - ल्युट्—क्रोध पैदा करने वाला
कोपन —वि॰—-—कुप् - ल्युट्—प्रकोपी, श्रीर के त्रिदोषों में प्रबल विकार उत्पन्न करने वाला
कोपना —स्त्री॰—-—कुप् - ल्युट्+टाप्—रोषशील या क्रोधी स्त्री
कोपिन् —वि॰—-—कोप - इनि—क्रोधी, चिड़चिड़ा
कोपिन् —वि॰—-—कोप - इनि—क्रोध उत्पन्न करने वाला
कोपिन् —वि॰—-—कोप - इनि—चिड़चिड़ा, शरीर में त्रिदोष विकारों को उत्पन्न करने वाला
कोमल —वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—सुकुमार, मृदु, नाजुक
कोमल —वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मृदु, मन्द
कोमल —वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—रुचिकर, सुहावना, मधुर
कोमल —वि॰—-—कु - कलच्, मुट् च नि॰ गुणः—मनोहर, सुन्दर
कोमलकम् —नपुं॰—-—कोमल - कन्—कमलडण्डी के रेशे
कोयष्टिः —पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
कोयष्टिकः —पुं॰—-—कं जलं यष्टिरिवास्य ब॰ स॰ पृषो॰ अकारस्य उकारः - कोयष्टि - कन्—टिटहिरी, कुररी
कोरक —वि॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
कोरक —वि॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
कोरक —वि॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
कोरक —वि॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
कोरकम् —नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली, अनखिला फूल
कोरकम् —नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कली के समान कोई वस्तु
कोरकम् —नपुं॰—-— कुर् - वुन्—कमलडण्डी के रेशे
कोरकम् —नपुं॰—-— कुर् - वुन्—एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य
कोरदूषः —पुं॰—-—-—कोदो का अनाज जिसे गरीब लोग खाते है
कोरित —वि॰—-—कोर - इतच्—कलीयुक्त, अङ्कुरित
कोरित —वि॰—-—कोर - इतच्—पिसा हुआ, चूरा किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया हुआ
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—सुअर, वराह
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—लट्ठों का बना बेड़ा, नाव
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—स्त्री की छाती
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—नितम्ब प्रदेश, कूल्हा, गोद
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—आलिङ्गन
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—शनिग्रह
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—बहिष्कृत, पतित जाति का व्यक्ति
कोलः —पुं॰—-—कुल् - अच्—जंगली
कोलम् —नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक तोले का भार
कोलम् —नपुं॰—-—कुल् - अच्—काली मिर्च
कोलम् —नपुं॰—-—कुल् - अच्—एक प्रकार का बेर
कोलाञ्चः —पुं॰—कोलम्-अञ्चः—-—कलिंग देश का नाम
कोलपुच्छः —पुं॰—कोलम्-पुच्छः—-—बगला
कोलम्बकः —पुं॰—-—-—वीणा का ढाँचा
कोला —स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बेर का पेड़
कोला —स्त्री॰—-—कुल् - अम्बच् - कन्—बदरिका
कोला —स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बेर का पेड़
कोला —स्त्री॰—-—कुल् - ण - टाप्—बदरिका
कोलीः —स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बेर का पेड़
कोलीः —स्त्री॰—-—कुल् - इन्—बदरिका
कोलाहलः —पुं॰—-—कुल - अच् - ङीष् वा—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
कोलाहलम् —नपुं॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—एक साथ बहुत से लोगों के बोलने का शब्द, हंगामा
कोविद् —वि॰—-—कोल - आ - हल् - अच्—अनुभवी, विद्वान, कुशल, बुद्धिमान, प्रवीण
कोविदारः —पुं॰—-—कु - विच्, तं वेत्ति - विद् - क—एक वृक्ष का नाम, कचनार
कोविदारम् —नपुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—एक वृक्ष का नाम, कचनार
कोशः —पुं॰—-—कु - वि - दृ - अण्—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पात्र
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डा
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
कोशः —पुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—फली
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डा
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
कोषः —पुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पात्र
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—फली
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डा
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—शिश्न
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
कोशम् —नपुं॰—-—कुश् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—तरल पदार्थों को रखने का बर्तन, बाल्टी
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—डोल, कटोरा
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पात्र
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—संदूक, डोली, दराज, ट्रंक
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—म्यान, आवरण
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पेटी, ढकना, ढक्कन
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डार, ढेर
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—भण्डारगृह
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—खजाना, रुपया पैसा रखने का स्थान
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—निधि, रुपया, दौलत
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—सोना, चाँदी
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शब्दकोश, शब्दार्थ संग्रह, शब्दावली
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अनखिला फूल, कली
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—किसी फल की गिरी
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—फली
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—जायफल, कठोरत्वचा
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—रेशम का कोया
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—झिल्ली, गर्भाशय
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डा
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—अण्डकोश, फोते
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—शिश्न
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—गेंद, गोला
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—पाँच कोष जो सब मिलकर शरीर रचना करते हैं - जिसमें आत्मा निवास करती है, अन्नमय, प्राणमय आदि
कोषम् —नपुं॰—-—कुष् - घञ्, अच् वा—एक प्रकार की अपराधियों की अग्निपरीक्षा
कोशाधिपतिः —पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—खजानची, वेतनाध्यक्ष
कोशाधिपतिः —पुं॰—कोश-अधिपतिः—-—कुबेर
कोशागारः —पुं॰—कोश-अगारः—-—खजाना, भण्डारगृह
कोशकारः —पुं॰—कोश-कारः—-—म्यान बनाने वाला
कोशकारः —पुं॰—कोश-कारः—-—शब्दकोश का निर्माता
कोशकारः —पुं॰—कोश-कारः—-—कोये के रुप में रेशम का कीड़ा
कोशकारः —पुं॰—कोश-कारः—-—कोशशायी
कोशकारकः —पुं॰—कोश-कारकः—-—रेशम का कीड़ा
कोशकृत् —पुं॰—कोश-कृत्—-—एक प्रकार का ईख
कोशगृहम् —नपुं॰—कोश-गृहम्—-—खजाना, भाण्डागार
कोशचञ्चुः —पुं॰—कोश-चञ्चुः—-—सारस
कोशनायकः —पुं॰—कोश-नायकः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
कोशपालः —पुं॰—कोश-पालः—-—खजांची, कोशाध्यक्ष
कोशपेटकः —पुं॰—कोश-पेटकः—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
कोशपेटकम् —नपुं॰—कोश-पेटकम्—-—धन रखने का सन्दूक, तिजौरी
कोशवासिन् —पुं॰—कोश-वासिन्—-—सीपी में रहने वाला कीड़ा, कोशशायी
कोशवृद्धिः —पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—धन की वृद्धि
कोशवृद्धिः —पुं॰—कोश-वृद्धिः—-—फोतों का बढ़ जाना
कोशशायिका —स्त्री॰—कोश-शायिका—-—म्यान में रखा हुआ चाकू, बन्द किया हुआ चाकू
कोशस्थ —वि॰—कोश-स्थ—-—पेटी में बन्द, म्यान में बन्द
कोशस्थः —पुं॰—कोश-स्थः—-—कोशकीट, कोशशायी
कोशहीन —वि॰—कोश-हीन—-—धनहीन, निर्धन
कोशलिकम् —नपुं॰—-—कुशल - ठन्—रिश्वत, घूस
कोशातकिन् —पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—वाणिज्य, व्यापार
कोशातकिन् —पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—व्यापारी, सौदागर
कोशातकिन् —पुं॰—-—कोश - अत् - क्वुन् = कोशातक - इनि—बड़वानल
कोशिन् —वि॰—-—कोश - इनि—आम का वृक्ष
कोषिन् —वि॰—-—कोष - इनि—आम का वृक्ष
कोष्ठः —पुं॰—-—कुष् - थन्—हृदय, फेफड़ा आदि शरीर के भीतरी अंग या आशय
कोष्ठः —पुं॰—-—कुष् - थन्—पेट, उदर
कोष्ठः —पुं॰—-—कुष् - थन्—आभ्यन्तर कक्ष
कोष्ठः —पुं॰—-—कुष् - थन्—अन्नभण्डार, अन्न का कोठा
कोष्ठम् —नपुं॰—-—कुष् - थन्—चहारदीवारी
कोष्ठम् —नपुं॰—-—कुष् - थन्—किसी फल का कड़ा छिलका
कोष्ठागारम् —नपुं॰—कोष्ठ-अगारम्—-—भण्डार, भण्डारघर
कोष्ठाग्निः —पुं॰—कोष्ठ-अग्निः—-—पाचनशक्ति, आमाशय का रस
कोष्ठपालः —पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—कोषाध्यक्ष, भण्डारी
कोष्ठपालः —पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—चौकीदार, पहरेदार
कोष्ठपालः —पुं॰—कोष्ठ-पालः—-—सिपाही
कोष्ठशुद्धिः —पुं॰—कोष्ठ-शुद्धिः—-—मलोत्सर्ग
कोष्ठकः —पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—अन्नभण्डार
कोष्ठकः —पुं॰—-—कोष्ठ - कन्—चहारदीवारी
कोष्ठकम् —नपुं॰—-—कोष्ठ - कन्—ईंट चूने से बनाया गया पशुओं के पानी पीने का स्थान
कोष्ण —वि॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—थोड़ा गरम, गुनगुना
कोष्णम् —नपुं॰—-—ईष्दुष्णः - कोः कादेशः—गरमी
कोशलः —पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
कोसलः —पुं॰—-—-—एक देश और उसके निवासियों का नाम
कोहलः —पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार का वाद्ययन्त्र
कोहलः —पुं॰—-—कौ हलति स्पर्धते - अच् पृषो॰ तारा॰—एक प्रकार की मदिरा
कौक्कटिकः —पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—मुर्गे पालने वाला, या मुर्गे का व्यवसाय करने वाला
कौक्कटिकः —पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—वह साधु जो चलते समय अपना ध्यान नीचे जमीन पर रखता है जिससे कि कोई कीड़ा आदि पैरों के नीचे न दब जाय
कौक्कटिकः —पुं॰—-—कुक्कुट - ठक्—दम्भी
कौक्षः —वि॰—-—कुक्षि - अण्—कोख से बन्धा हुआ या कोख पर होने वाला
कौक्षः —वि॰—-—कुक्षि - अण्—पेट से सम्बन्ध होने वाला
कौक्षेय —वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—पेट में होने वाला
कौक्षेय —वि॰—-—कुक्षि - ढञ्—म्यान में स्थित
कौक्षेयकः —पुं॰—-—कुक्षौ बद्धोऽसिः ढकञ्—तलवार, खङ्ग
कौङ्कः —पुं॰—-—कुङ्क - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
कौङ्कणः —पुं॰—-—कोङ्कण - अण्—एक देश तथा उसके निवासी शासकों का नाम
कौट —वि॰—-—कूट + अञ्—अपने निजी घर में रहने वाला, स्वतंत्र, मुक्त
कौट —वि॰—-—कूट + अञ्—पालतु, घरेलू, घर में पला हुआ
कौट —वि॰—-—कूट + अञ्—जालसाज, बेईमान
कौट —वि॰—-—कूट + अञ्—जाल में फँसा हुआ
कौटः —पुं॰—-—कूट + अञ्—जालसाजी, बेईमानी
कौटः —पुं॰—-—कूट + अञ्—झूठी गवाही देने वाला
कौटजः —पुं॰—कौट-जः—-—कुटज वृक्ष
कौटतक्षः —पुं॰—कौट-तक्षः—-—स्वतंत्र बढ़ई जो अपनी इच्छानुसार अपना कार्य करता है, गाँव का कार्य नहीं
कौटसाक्षिन् —पुं॰—कौट-साक्षिन्—-—झूठा गवाह
कौटसाक्ष्यम् —नपुं॰—कौट-साक्ष्यम्—-—झूठी गवाही
कौटकिकः —पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
कौटकिकः —पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
कौटिकः —पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—बहेलिया, जिसका व्यवसाय पक्षियों को पकड़ पिंजरे में बन्द कर बेचना है
कौटिकः —पुं॰—-—कूट + कन्, कूटक + ठञ्, कूट + ठक्—पक्षियों के मांस का विक्रेता, कसाई, शिकारचोर
कौटलिकः —पुं॰—-—कुटिलिकया हरति मृगान् अङ्गारान् वा - कुटिलिका + अण्—शिकारी, लुहार
कौटिल्यम् —नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—कुटिलपना
कौटिल्यम् —नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—दुष्टता
कौटिल्यम् —नपुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—बेईमानी, जालसाजी
कौटिल्यः —पुं॰—-—कुटिल + ष्यञ्—नीतिशास्त्र का प्रख्यात प्रणेता चाण्क्य
कौटुम्ब —वि॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—किसी परिवार या गृहस्थ के लिए आवश्यक
कौटुम्बम् —नपुं॰—-—कुटुम्बं तद्भरणं भोजनमस्य - कुटुम्ब + अण्—पारिवारिक सम्बन्ध
कौटुम्बिक —वि॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—परिवार को बनाने वाला
कौटुम्बिकः —पुं॰—-—कुटुम्बे तद्भरणे प्रसृतः - कुटुम्ब + ठक्—किसी परिवार या पिता का स्वामी
कौणपः —पुं॰—-—कुणप + अण्—पिशाच, राक्षस
कौणपदन्तः —पुं॰—कौणप-दन्तः—-—भीष्म का विशेषण
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—इच्छा, कुतूहल, कामना
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—उत्सुकता, आवेग, आतुरता
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—आश्चर्यजनक वस्तु
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—वैवाहिक कंगना बांधने की प्रथा
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—पर्व, उत्सव
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—विशेषकर विवाह आदि शुभ उत्सव
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खुशी, हर्ष, आनन्द, प्रसन्नता
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—खेल, मनोविनोद
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—गीत, नृत्य, तमाशा
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—हँसी, मजाक
कौतुकम् —नपुं॰—-—कुतुक + अण्—बधाई, अभिवादन
कौतुकागारः —पुं॰—कौतुकम्-आगारः—-—आमोद-भवन
कौतुकागारम् —नपुं॰—कौतुकम्-आगारम्—-—आमोद-भवन
कौतुकगृहम् —नपुं॰—कौतुकम्-गृहम्—-—आमोद-भवन
कौतुकक्रिया —स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—महान् उत्सव
कौतुकक्रिया —स्त्री॰—कौतुकम्-क्रिया—-—विशेषता विवाह-संस्कार
कौतुकमङ्गलम् —नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—महान् उत्सव
कौतुकमङ्गलम् —नपुं॰—कौतुकम्-मङ्गलम्—-—विशेषता विवाह-संस्कार
कौतुकतोरणः —पुं॰—कौतुकम्-तोरणः—-—उत्सव के अवसरों पर बनायें गए मंगलसूचक विजय द्वार
कौतुहलम् —नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—इच्छा, जिज्ञासा, रूचि
कौतुहलम् —नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—उत्सुकता, उत्कण्ठा
कौतुहलम् —नपुं॰—-—कुतुहल + अण्, ष्यञ् वा—कुतूहलवर्धक, आश्चर्यजनक
कौन्तिकः —पुं॰—-—कुन्तः प्रहरणमस्य - ठञ्—भाला चलाने वाला, नेजाबरदार
कौन्तेयः —पुं॰—-—कुन्त्याः अपत्यं ढक्—कुन्ती क पुत्र, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का विशेषण
कौप —वि॰—-—कूप + अण्—कुँए से सम्बन्ध रखने वाला या कुँए से आता हुआ
कौपीनम् —नपुं॰—-—कूप + खञ्—योनि, उपस्थ
कौपीनम् —नपुं॰—-—कूप + खञ्—गुप्ताङ्ग, गुह्येन्द्रिय
कौपीनम् —नपुं॰—-—कूप + खञ्—लंगोटी
कौपीनम् —नपुं॰—-—कूप + खञ्—चिथड़ा
कौपीनम् —नपुं॰—-—कूप + खञ्—पाप, अनुचित कर्म
कौब्ज्यम् —नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—टेढ़ापन, कुटिलता
कौब्ज्यम् —नपुं॰—-—कुब्ज + ष्यञ्—कुबड़ापन
कौमार —वि॰—-—कुमार + अण्—तरूण, युवा, कन्या, कुँवारी
कौमार —वि॰—-—कुमार + अण्—मृदु, कोमल
कौमारम् —नपुं॰—-—कुमार + अण्—बचपन, कुँवारीपना, कुमारीपन
कौमारभृत्यम् —नपुं॰—कौमार-भृत्यम्—-—बच्चों का पालनपोषण व चिकित्सा
कौमारहर —वि॰—कौमार-हर—-—विवाह करने वाला, कन्या को पत्नी रूप में ग्रहण करने वाला
कौमारकम् —नपुं॰—-—कौमार + कन—बचपन, तारूण्य, किशोरावस्था
कौमारिकः —पुं॰—-—कुमारी + ठक्—वह पिता जिसकी सन्तान लड़कियाँ ही हों
कौमारिकेयः —पुं॰—-—कुमारिका + ढक्—अविवाहित स्त्री का पुत्र
कौमुदः —पुं॰—-—कुमुद + अण्—कार्तिक का महीना
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी, ज्योत्सना
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—चाँदनी का काम देने वाली कोई चीज
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—कार्तिक मास की पूर्णिमा
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—अश्विन मास की पुर्णीमा
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—उत्सव
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—विशेषतः वह उत्सव जब घरों में, मन्दिरों में सर्वत्र दीपावली होती है
कौमुदी —स्त्री॰—-—कौमुद + ङीप्—व्याख्या, स्पष्टीकरण, प्रस्तुत विषय पर विकास डालने वाली
कौमुदीपतिः —पुं॰—कौमुदी-पतिः—-—चन्द्रमा
कौमुदीवृक्षः —पुं॰—कौमुदी-वृक्षः—-—दीवट
कौमोदकी —स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
कौमोदी —स्त्री॰—-—कोः पृथिव्याः मोदकः = कुमोदक + अण् + ङीप् कुं पृथिवी मोदयति = कुमोद + अण् + ङीप्—विष्णु की गदा
कौरव —वि॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं से सम्बन्ध रखने वाला
कौरवः —पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरू की सन्तान
कौरवः —पुं॰—-—कुरू + अण्—कुरूओं का राजा
कौरव्यः —पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरू की सन्तान
कौरव्यः —पुं॰—-—कुरू + ण्य—कुरूओं का शासक
कौर्प्यः —पुं॰—-—-—वृश्चिक राशि
कौल —वि॰—-—कुल + अण्—परिवार से सम्बन्ध रखने वाली, पैतृक, आनुवंशिक
कौल —वि॰—-—कुल + अण्—अच्छे घराने का, सुजात
कौलः —पुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी सिद्धान्तों के अनुसार ‘शक्ति’ का पूजा करने वाला
कौलम् —नपुं॰—-—कुल + अण्—वाममार्गी शाक्तों के सिद्धान्त और व्यवहार
कौलकेयः —पुं॰—-—कुल + ढक्, कुक्—व्याभिचारिणी स्त्री का पुत्र, हरामी, वर्णसंकर
कौलटिनेयः —पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—सती भिखारिणी का पुत्र
कौलटिनेयः —पुं॰—-—कुलटा + ढक्, इनङादेशः—वर्णसंकर
कौलिक —वि॰—-—-—किसी वंश से समबन्ध रखने वाला
कौलिक —वि॰—-—-—कुल में प्रचलित, पैतृक, वंशपरंपरागत
कौलिकः —पुं॰—-—-—वाममार्गी, शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
कौलीन —वि॰—-—कुल + खञ्—खदानी, कुलीन
कौलीनः —पुं॰—-—कुल + खञ्—भिखारिणी स्त्री का पुत्र
कौलीनः —पुं॰—-—कुल + खञ्—वाममार्गी शाक्त सिद्धान्तों का अनुयायी
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—लोकापवाद, कुत्सा
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—अनुचित कर्म, दुराचरण
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—पशुओं की लड़ाई
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—मुर्गों की लड़ाई
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—संग्राम, युद्ध
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—उच्च कुल में जन्म
कौलीनम् —नपुं॰—-—कुल + खञ्—गुप्तांग, योनि
कौलीन्यम् —नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—कुलीनता
कौलीन्यम् —नपुं॰—-—कुलीन + ष्यञ्—वंश की कुत्सा
कौलूतः —पुं॰—-—कुलूत + अण्—कुलूतों का राजा
कौलेयकः —पुं॰—-—कूल + ढकञ्—कुत्ता, शिकारी कुत्ता
कौल्य —वि॰—-—कुल + ष्यञ्—उच्च कुल में उत्पन्न, खानदानी
कौबेर —वि॰—-—कु्बेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
कौवेर —वि॰—-—कु्वेर + अण्—कुबेर से सम्बन्ध रखने वाला, कुबेर के पास से आने वाला
कौबेरी —स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
कौवेरी —स्त्री॰—-—कु्बेर + अण्+ङीप्—उत्तरदिशाः
कौश —वि॰—-—कुश् + अण्—रेशमी
कौश —वि॰—-—कुश् + अण्—कुश घास का बना हुआ
कौशलम् —नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलक्षेम, प्रसन्नता, समृद्धि
कौशलम् —नपुं॰—-—कुशल + अण्, ष्यञ् वा—कुशलता, दक्षता, चतुराई
कौशलिकम् —नपुं॰—-—कुशल + ठक्—घूस, रिश्वत
कौशलिका —स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—उपहार, चढ़ावा
कौशलिका —स्त्री॰—-—कौशलिक + टाप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
कौशली —स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—उपहार, चढ़ावा
कौशली —स्त्री॰—-—कुशल + अण् + ङीप्—कुशल प्रश्न पूछना, अभिवादन
कौशलेयः —पुं॰—-—कौशल्या + ढक्, यलोपः—राम का विशेषण, कौशल्या का पुत्र
कौशल्या —स्त्री॰—-—कोशलदेशे भवा - छय—दशरथ की ज्येष्ठ पत्नी तथा राम की माता
कौशल्यायनिः —पुं॰—-—कौशल्या + फिज्—कौशल्या का पुत्र राम
कौशाम्बी —स्त्री॰—-—कुशाम्ब + अण् + ङीप्—गंगा के किनारे स्थित एक प्रचीन नगर
कौशिक —वि॰—-—कुशिक + अण्—डब्बे में बन्द, म्यान में रखा हुआ
कौशिक —वि॰—-—कुशिक + अण्—रेशमी
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—विश्वामित्र का विशेषण
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—उल्लू
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—कोशकार
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—गूदा
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—गुग्गुल
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—नेवला
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—सपेरा
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—शृङ्गाररस
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—जो गुप्त धन को जानता है
कौशिकः —पुं॰—-—कुशिक + अण्—इन्द्र का विशेषण
कौशिका —स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+टाप्—प्याला, पानपात्र
कौशिकी —स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—बिहार प्रदेश में बहने वाली एक नदी का नाम
कौशिकी —स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—दुर्गा देवी का नाम
कौशिकी —स्त्री॰—-—कुशिक + अण्+ङीप्—चार प्रकार की नाट्यशैलियों में एक
कौशिकारातिः —पुं॰—कौशिक-अरातिः—-—कौवा
कौशिकारिः —पुं॰—कौशिक-अरिः—-—कौवा
कौशिकफलः —पुं॰—कौशिक-फलः—-—नारियल का वृक्ष
कौशिकप्रियः —पुं॰—कौशिक-प्रियः—-—राम का विशेषण
कौशेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
कौशेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
कौशेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
कौषेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम
कौषेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशमी कपड़ा
कौषेयम् —नपुं॰—-—कोशस्य विकारः - ढञ्—रेशम का बना स्त्री का पेटीकोट
कौसीद्यम् —नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—ब्याज लेने का व्यवसाय
कौसीद्यम् —नपुं॰—-—कुसीद + ष्यञ्—आलस्य, अकर्मण्यता
कौसृतिकः —पुं॰—-—कुसृति + ठक्—ठग, बदमाश
कौसृतिकः —पुं॰—-—कुसृति + ठक्—बाजीगर
कौस्तुभः —पुं॰—-—कुस्तुभो जलधिस्तत्र भवः - अण्—एक विख्यात रत्न
कौस्तुभलक्षणः —पुं॰—कौस्तुभ-लक्षणः—-—विष्णु के विशेषण
कौस्तुभवक्षः —पुं॰—कौस्तुभ-वक्षस्—-—विष्णु के विशेषण
कौस्तुभहृदयः —पुं॰—कौस्तुभ-हृदयः—-—विष्णु के विशेषण
क्रूय् —भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—चूं चूं शब्द करना
क्रूय् —भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—डूबना
क्रूय् —भ्वा॰ आ॰ - <क्रूयते>—-—-—गीला होना
क्रकचः —पुं॰—-—क्र इति कचति शब्दायते - क्र + कच् + अच्—आरा
क्रकचच्छदः —पुं॰—क्रकच-च्छदः—-—केतक वृक्ष
क्रकचपत्रः —पुं॰—क्रकच-पत्रः—-—सागौन वृक्ष
क्रकचपादः —पुं॰—क्रकच-पादः—-—छिपकली
क्रकरः —पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—एक प्रकार का तीतर
क्रकरः —पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—आरा
क्रकरः —पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—निर्धन व्यक्ति
क्रकरः —पुं॰—-—क्र इति शब्दं कर्तुं शीलमस्य - क्र + कृ + अच्—रोग
क्रतुः —पुं॰—-—कृ + कतु—यज्ञ
क्रतुः —पुं॰—-—कृ + कतु—विष्णु का विशेषण
क्रतुः —पुं॰—-—कृ + कतु—दस प्रजापतियों में एक
क्रतुः —पुं॰—-—कृ + कतु—प्रज्ञा, बुद्धि
क्रतुः —पुं॰—-—कृ + कतु—शक्ति, योग्यता
क्रतूत्तमः —पुं॰—क्रतु- उत्तमः—-—राजसूय यज्ञ
क्रतुद्रुहू —पुं॰—क्रतु- द्रुहू—-—राक्षस, पिशाच
क्रतुद्विष् —पुं॰—क्रतु- द्विष्—-—राक्षस, पिशाच
क्रतुध्वंसिन् —पुं॰—क्रतु- ध्वंसिन्—-—शिव का विशेषण
क्रतुपतिः —पुं॰—क्रतु- पतिः—-—यज्ञ का अनुष्ठाता
क्रतुपशुः —पुं॰—क्रतु- पशुः—-—यज्ञीय घोड़ा
क्रतुपुरूषः —पुं॰—क्रतु- पुरूषः—-—विष्णु का विशेषण
क्रतुभुज् —पुं॰—क्रतु- भुज्—-—देवता, देव
क्रतुराज् —पुं॰—क्रतु- राज्—-—यज्ञों का स्वामी
क्रतुराज् —पुं॰—क्रतु- राज्—-—राजसूय यज्ञ
क्रथ् —भ्वा॰ पर॰ <क्रथति>, <क्रथित>—-—-—क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना, मार डालना
क्रथकैशिकः —पुं॰—-—-—एक देश का नाम
क्रथनम् —नपुं॰—-—क्रथ् + ल्युट्—वध, हत्या
क्रथनकः —पुं॰—-—क्रथन + कन्—ऊँट
क्रन्द् —भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—चिल्लाना, रोना, आंसू बहाना
क्रन्द् —भ्वा॰ पर॰ <क्रन्दति>, <क्रन्दित>—-—-—पुकारना, दया की पुकार करना
क्रन्द् —चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—लगातार, चिल्लाना
क्रन्द् —चुरा॰ पर॰ या प्रेर॰—-—-—रूलाना
आक्रन्द् —चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—चिल्लाना, चीखना, चरमराना, चीत्कार करना
आक्रन्द् —चुरा॰ पर॰ —आ-क्रन्द्—-—पुकार करना
क्रन्दनम् —नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—आर्तनाद, रोना, विलाप करना
क्रन्दनम् —नपुं॰—-—क्रन्द् + ल्युट्, क्त वा—पारस्परिक ललकार, चुनौति
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चलना, पर्दापण करना, जाना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—चले जाना, पहुँचना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—जाना, पार करना, पार जाना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—कूदना, छलांग मारना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—ऊपर जाना, चढ़ना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—अधिकार में रखना, वश में करना, अधिकार में लेना, भरना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—आगे बढ़ना, आगे निकल जाना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—उत्तरदायित्व लेना, संप्रयास करना, योग्य या सक्षम होना, शक्ति दिखलाना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—बढ़ना या विकसित होना, पूरा क्षेत्र मिलना, स्वस्थ होना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—पूरा करना, निष्पन्न करना
क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰ <क्रामति>, <क्रमते>, <क्राम्यति>, <क्रान्त>—-—-—मैथुन करना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—पार करना, पार जाना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—परे जाना, लांघना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—बढ़ जाना, आगे निकल जाना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, आगे कदम रखना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—अवहेलना करना, पृथक करना, उपेक्षा करना
अतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अति-क्रम्—-—गुजारना, बीतना
अधिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अधि-क्रम्—-—चढ़ना
अध्याक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अध्या-क्रम्—-—अधिकार करना, भरना, ग्रहण करना
अनुक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अनुगमन करना
अनुक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—आरम्भ करना
अनुक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अनु-क्रम्—-—अन्तर्वस्तु देना
अन्वाक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अन्वा-क्रम्—-—एक के पश्चात दूसरे का दर्शन करना
अपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अप-क्रम्—-—छोड़ जाना, चले जाना
अभिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—जाना, पहुँचना, प्रविष्ट होना
अभिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—घूमना, भ्रमण करना
अभिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अभि-क्रम्—-—आक्रमण करना
अवक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—अव-क्रम्—-—वापिस हटना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—पहुँचना, की ओर जाना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आक्रमण करना, दमन करना, जीतना, परास्त करना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—भरना, प्रविष्ट होना, अधिकार में करना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—उन्नत होना, उदय होना
आक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—आ-क्रम्—-—चढ़ना, सवारी करना, अधिकार में करना
उत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
उत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
उत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—की ओर जाना, पहुँचना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—धावा बोलना, आक्रमण करना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—बर्ताव करना, उपचार करना, चिकित्सा करना, स्वस्थ करना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—प्रेम करना, प्रेम से जीत लेना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-— अनुष्ठान करना, प्रस्थान करना
उपक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उप-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
निष्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—चले जाना, चल देना, विदा होना
निष्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—निस्-क्रम्—-—निकलना, प्रकाशित होना
पराक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—साहस प्रदर्शित करना, शक्ति या शूरवीरता दिखाना, बहादुरी के साथ करना
पराक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—वापिस मुड़ना
पराक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परा-क्रम्—-—चढ़ाई करना, आक्रमण करना
परिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—इधर उधर घूमना, चक्कर लगाना
परिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—परि-क्रम्—-—पकड़ लेना
प्रक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—आरम्भ करना, शुरू करना
प्रक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—कुचलना, ऊपर पैर रखकर चलना
प्रक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्र-क्रम्—-—जाना, प्रस्थान करना
प्रतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—प्रति-क्रम्—-—वापिस आना
विक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—में से चलना
विक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—छापा मारना, पराजित करना, जीतना
विक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—वि-क्रम्—-—फाड़ना, खोलना
व्यतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—उल्लंघन करना
व्यतिक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—व्यति-क्रम्—-—समय बिताना
व्युत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना
व्युत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
व्युत्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—उद्-क्रम्—-—परे कदम रखना
सङ्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—आना या एकत्र होना
सङ्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार जाना, पार करना, में से जाना
सङ्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पहुँचना, जाना
सङ्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—पार चले जाना, स्थानान्तरित होना
सङ्क्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—सम्-क्रम्—-—दाखिल होना, प्रविष्ट होना
समाक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—अधिकार करना, कब्जे में लेना, भरना
समाक्रम् —भ्वा॰ उभ॰, दिवा॰ पर॰—समा-क्रम्—-—छापा मारना, जीतना, दमन करना
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कदम, पग
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—पैर
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—गति, प्रगमन, मार्ग
क्रमात् —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
क्रमेण —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—दौरान में, क्रमशः
कालक्रमेण —अव्य॰—काल-क्रमेण—-—उत्तरोत्तर, समय पाकर
भाग्यक्रमः —पुं॰—भाग्यक्रमः—क्रम् + घञ्—भाग्य का उलट जाना
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रदर्शन, आरंभ
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—नियमित मार्ग, क्रम, श्रेणी, उत्तराधिकारिता
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—प्रणाली, रीति
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—ग्रसना, पकड़
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—स्थिति
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—तैयारी, तत्परता
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—व्यवसाय, साहसिक कार्य
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—कर्म या कार्य, कार्यविधि
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—वेदमन्त्रों कों सस्वर उच्चारण करने की विशेष रीति
क्रमः —पुं॰—-—क्रम् + घञ्—शक्ति, सामर्थ्य
क्रमम् —नपुं॰—-—क्रम् + घञ्—गारा
क्रमानुसारः —पुं॰—क्रम-अनुसारः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
क्रमान्वयः —पुं॰—क्रम-अन्वयः—-—नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था
क्रमागत —वि॰—क्रम-आगत—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
क्रमायात —वि॰—क्रम-आयात—-—वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक
क्रमज्या —स्त्री॰—क्रम-ज्या—-—ग्रह की लंब रेखा, क्षय
क्रमभङ्ग —वि॰—क्रम-भङ्ग—-—अनियमितता
क्रमक —वि॰—-—क्रम् + वुन्—क्रमबद्ध, प्रणाली के अनुसार
क्रमकः —पुं॰—-—क्रम् + वुन्—वह विद्यार्थी जो किसी नियमित पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है ।
क्रमणः —पुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पैर, घोड़ा
क्रमणम् —नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—कदम
क्रमणम् —नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—पग रखना
क्रमणम् —नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—आगे बढ़ना
क्रमणम् —नपुं॰—-—क्रम् + ल्युट्—उल्लंघन
क्रमतः —अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—क्रमशः, उत्तरोत्तर, सिलसिलेवार
क्रमतः —अव्य॰—-—क्रम् + तसिल्—वंशपरंपरागत, पैतृक, आनुवंशिक
क्रमुः —पुं॰—-—क्रम् + उ—सुपारी का पेड़
क्रमुकः —पुं॰—-—क्रम् + उ, कन् च—सुपारी का पेड़
क्रमेलः —पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्—ऊँट
क्रमेलकः —पुं॰—-—क्रम् + एल् + अच्, कन् च—ऊँट
क्रयः —पुं॰—-—क्री + अच्—खरीदना, मोल लेना
क्रयारोहः —पुं॰—क्रय-आरोहः—-—मंडी, मेला
क्रयक्रीत —वि॰—क्रय-क्रीत—-—मोल लिया हुआ
क्रयलेख्यम् —नपुं॰—क्रय-लेख्यम्—-—बैनामा, विक्रयनामा, दानपत्र
क्रयविक्रयौ —पुं॰—क्रय-विक्रयौ—-—व्यापार, व्यवसाय, खरीद-फरौख्त
क्रयविक्रयिकः —पुं॰—क्रय-विक्रयिकः—-—व्यापारी सौदागार
क्रयणम् —नपुं॰—-—क्री + ल्युट्—खरीदना, मोल लेना
क्रयिकः —पुं॰—-—क्रय + ठन्—व्यापारी, सौदागर
क्रयिकः —पुं॰—-—क्रय + ठन्—क्रेता, मोल लेने वाला
क्रव्य —वि॰—-—क्री + यत्, नि॰ —मंडी में विक्रय के लिए रखी हुई वस्तु, बिकाऊ
क्रव्यम् —नपुं॰—-—क्लव + यत्, रस्य लः—कच्चा मांस, मुरदार
क्रशिमन् —पुं॰—-—कृश + इमनिच्—पतलापन, कृशता, दुबलापतलापन
क्राकचिकः —पुं॰—-—क्रकच + ठक्—आराकश
क्रान्त —वि॰—-—क्रम + क्त—गया हुआ, आरपार गया हुआ
क्रान्तः —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—घोड़ा
क्रान्तः —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्रम + क्त—पैर, पग
क्रान्तदर्शिन् —वि॰—क्रान्त-दर्शिन्—-—सर्वज्ञ
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—गति, प्रगमन
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—कदम, पग
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आगे बढ़ने वाला
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—आक्रमण करने वाला, अभिभूत करने वाला
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—नक्षत्र की कोणीय दूरी
क्रान्तिः —स्त्री॰—-—क्रम् + क्तिन्—क्रांतिवलय, सूर्य का भ्रमण मार्ग
क्रान्तिकक्षः —पुं॰—क्रान्ति-कक्षः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
क्रान्तिमण्डलम् —नपुं॰—क्रान्ति-मण्डलम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
क्रान्तिवृत्तम् —नपुं॰—क्रान्ति-वृत्तम्—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
क्रान्तिपातः —पुं॰—क्रान्ति-पातः—-—वह बिंदु जहाँ क्रांतिवलय विषुवत रेखा से मिलता है
क्रान्तिवलयः —पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—सूर्य का भ्रमण मार्ग
क्रान्तिवलयः —पुं॰—क्रान्ति-वलयः—-—उष्ण कटिबंध
क्रायकः —पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
क्रायकः —पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
क्रायिकः —पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—क्रेता, खरीददार
क्रायिकः —पुं॰—-—क्री + ण्वुल् - क्रय + ठक्—व्यापारी, सौदागर
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ा
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीट
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—कीड़े
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—गधा
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—मकड़ी
क्रिमिः —पुं॰—-—क्रम् + इन्, इत्वम्—लाख
क्रिमिजम् —नपुं॰—क्रिमि-जम्—-—अगर की लकड़ी
क्रिमिशैलः —पुं॰—क्रिमि-शैलः—-—बांबी
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—करना, कार्यान्वित, कार्य-सम्पादन, निष्पादन करना
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—कर्म, कृत्य, व्यवसाय, जिम्मेदारी
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा, शारीरिक चेष्टा, श्रम
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—अध्यापन, शिक्षण
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—किसी कला पर आधिपत्य, ज्ञान
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—आचरण
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साहित्यिक रचना
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—शुद्धि-संस्कार, धार्मिक संस्कार
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रायश्चित्तस्वरूप संस्कार, प्रायश्चित
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—श्राद्ध
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—और्ध्वदेहिक संस्कार
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—पूजन
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—औषधोपचार, चिकित्सा-प्रयोग, इलाज, शीतक्रिया,शीतल उपचार
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—क्रिया के द्वारा अभिहीत कर्म
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—चेष्टा या कर्म
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—विशेषतः वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित सात द्रव्यों में से एक
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—साक्ष्यादिक मानवसाधनों से तथा अन्य परीक्षाओं द्वारा अभियोग की छानबीन करना
क्रिया —स्त्री॰—-—कृ + श, रिङ् आदेशः, इयङ्—प्रमाण-भार
क्रियान्वित —वि॰—क्रिया-अन्वित—-— शास्त्रोक्त सत्कर्मो को करने वाला
क्रियापवर्गः —पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—किसी कार्य की संपूर्ति या इतिश्री, कार्यसम्पादन
क्रियापवर्गः —पुं॰—क्रिया-अपवर्गः—-—कर्मकाण्ड से मुक्ति, छुटकारा
क्रियाभ्युपगमः —पुं॰—क्रिया-अभ्युपगमः—-—विशेष प्रकार का करार या प्रतिज्ञा-पत्र
क्रियावसन्न —वि॰—क्रिया-अवसन्न—-—गवाहों के बयान के कारण मुकदमा हार जाने वाला व्यक्ति
क्रियेन्द्रियम् —नपुं॰—क्रिया-इन्द्रियम्—-—काम करने वाली इन्द्रियाँ जो ज्ञानेन्द्रियों से भिन्न हैं
क्रियाकलापः —पुं॰—क्रिया-कलापः—-—हिन्दू-धर्मशास्त्र द्वारा विहित समस्त कार्य
क्रियाकलापः —पुं॰—क्रिया-कलापः—-—किसी व्यवसाय के समस्त विवरण
क्रियाकारः —पुं॰—क्रिया-कारः—-—अभिकर्ता, कार्यकर्ता
क्रियाकारः —पुं॰—क्रिया-कारः—-—शिक्षारंभ करने वाला, नौसिखिया, नवच्छात्र
क्रियाकारः —पुं॰—क्रिया-कारः—-—इकरारनामा, प्रतिज्ञापत्र
क्रियाद्वेषिन् —पुं॰—क्रिया-द्वेषिन्—-—वह साक्षी जिसका साक्ष्य पक्षपातपूर्ण हो
क्रियानिर्देशः —पुं॰—क्रिया-निर्देशः—-—गवाही, साक्ष्य
क्रियापटु —वि॰—क्रिया-पटु—-—कार्यदक्ष
क्रियापथः —पुं॰—क्रिया-पथः—-—औषधोपचार की रीति
क्रियापदम् —नपुं॰—क्रिया-पदम्—-—क्रियावाचक शब्द
क्रियापर —वि॰—क्रिया-पर—-—अपने कर्त्तव्य-पालन में परिश्रम शील
क्रियापादः —पुं॰—क्रिया-पादः—-—अभियोक्ता या वादी के द्वारा अपने दावे की पुष्टि में दिए गये प्रमाण, दस्तावेज तथा गवाहियाँ आदि जो कानूनी अभियोग का तीसरा अंग है
क्रियायोगः —पुं॰—क्रिया-योगः—-—क्रिया के साथ संबंध
क्रियायोगः —पुं॰—क्रिया-योगः—-—तरकीब और साधनों का प्रयोग
क्रियालोपः —पुं॰—क्रिया-लोपः—-—आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों का परित्याग
क्रियावशः —पुं॰—क्रिया-वशः—-—आवश्यकता, क्रियाओं का अवश्यंभावी प्रभाव
क्रियावाचक —वि॰—क्रिया-वाचक—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
क्रियावाचिन् —वि॰—क्रिया-वाचिन्—-—क्रम को प्रकट करने वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द
क्रियावादिन् —पुं॰—क्रिया-वादिन्—-—वादी, अभियोक्ता
क्रियाविधिः —पुं॰—क्रिया-विधिः—-—कार्य करने का नियम, किसी धर्मकृत्य को सम्पन्न करने की रीति
क्रियाविशेषणम् —नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाला शब्द
क्रियाविशेषणम् —नपुं॰—क्रिया-विशेषणम्—-—विधेय विशेषण
क्रियासङ्क्रान्ति —स्त्री॰—क्रिया-सङ्क्रान्ति—-—दूसरों को ज्ञान देना, अध्यापन
क्रियासमभिहारः —पुं॰—क्रिया-समभिहारः—-—किसी कार्य की आवृत्ति
क्रियावत् —वि॰—-—क्रिया + मतुप्—कर्म में व्यस्त, किसी कार्य के व्यवहार को जानने वाला
क्री —क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—खरीदना, मोल लेना
क्री —क्रया ॰ उभ॰ <क्रीणाति>, <क्रीणीते>, <क्रीत>—-—-—विनिमय, अदलाबदली
आक्री —क्रया ॰ उभ॰—आ-क्री—-—खरीदना
निष्क्री —क्रया ॰ उभ॰—निस्-क्री—-—कुछ देकर पिंड छुड़ाना, दाम देकर फिर से खरीद लेना, निस्तार करना
परिक्री —क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—मोल लेना
परिक्री —क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—किराये पर लेना, कुछ समय के लिए मोल लेना
परिक्री —क्रया ॰ उभ॰—परि-क्री—-—वापिस करना, बदला देना, चुकाना
विक्री —क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—बेचना
विक्री —क्रया ॰ उभ॰—वि-क्री—-—विनिमय, अदलाबदली
क्रीड् —भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—खेलना, मनोरंजन करना
क्रीड् —भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—जूआ खेलना, पासों से खेलना
क्रीड् —भ्वा॰ पर॰ <क्रीडति, <क्रीडित>—-—-—हँसी दिल्ल्गी करना, मजाक करना, खिल्ली उड़ाना
अनुक्रीड् —भ्वा॰ आ॰—अनु-क्रीड्—-—खेलना, किलोल करना, जी बहलाना
आक्रीड् —भ्वा॰ आ॰—आ-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
परिक्रीड् —भ्वा॰ आ॰—परि-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
सङ्क्रीड् —भ्वा॰ आ॰—सम्-क्रीड्—-—खेलना, कौतुक करना
सङ्क्रीड् —भ्वा॰ पर॰—सम्-क्रीड्—-—‘कोलाहल करने ’ के अर्थ को प्रकट करता है
क्रीडः —पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—किलोल, मनबहलाव, खेल, आमोद
क्रीडः —पुं॰—-—क्रीड् + घञ्—हंसी दिल्लगी, मजाक
क्रीडनम् —नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलना, किलोल करना
क्रीडनम् —नपुं॰—-—क्रीड् + ल्युट्—खेलने की चीज, खिलौना
क्रीडनकः —पुं॰—-—क्रीडन + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
क्रीडनकम् —नपुं॰—-—क्रीडन + कन्, क्रीड + अनीयर्—खेलने की चीज, खिलौना
क्रीडनीयम् —नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
क्रीडनीयकम् —नपुं॰—-—क्रीडनीय + कन्—खेलने की चीज, खिलौना
क्रीडा —स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—किलोल, जी बहलाना, खेलना, आमोद
क्रीडा —स्त्री॰—-—क्रीड् + अ + टाप्—हंसी, दिल्लगी
क्रीडागृहम् —नपुं॰—क्रीडा-गृहम्—-—आमोद भवन
क्रीडाशैलः —पुं॰—क्रीडा-शैलः—-—आमोद
क्रीडानारी —स्त्री॰—क्रीडा-नारी—-—वेश्या
क्रीडाकोपः —पुं॰—क्रीडा-कोपः—-—झूठमूठ का क्रोध
क्रीडामयूरः —पुं॰—क्रीडा-मयूरः—-—मनोरंजन के लिए पाला गया मोर
क्रीडारत्नम् —नपुं॰—क्रीडा-रत्नम्—-—कामकेलि, मैथुन
क्रीत —वि॰—-—क्री + क्त—मोल लिया हुआ
क्रीतः —पुं॰—-—क्री + क्त—हिन्दुधर्मशास्त्र में प्रतिपादित १२ प्रकार के पुत्रों में एक, अपने नैसर्गिक माता पिता से मोल लिया हुआ पुत्र
क्रीतानुशयः —पुं॰—क्रीत-अनुशयः—-—किसी वस्तु को मोल लेकर पछताना, किये का निराकरण करना, खरीदी हुई वस्तु को वापिस करना
क्रुञ्च् —पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन्—जलकुक्कुटी, बगला
क्रुञ्चः —पुं॰—-—क्रुञ्च् + क्विन् अच् वा—जलकुक्कुटी, बगला
क्रुध् —दिवा॰ पर॰ <क्रुध्यति>, <क्रुद्ध>—-—-—गुस्से होना
प्रतिक्रुध् —दिवा॰ पर॰ —प्रति-क्रुध्—-—बदले में कुपित होना
सङ्क्रुध् —दिवा॰ पर॰ —सम्-क्रुध्—-—कुपित होना
क्रुध् —स्त्री॰—-—क्रुध् + क्विप्—क्रोध, कोप
क्रुश् —भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चिल्लाना, रोना, विलाप करना, शोक मनाना
क्रुश् —भ्वा॰ पर॰ <क्रोशति>, <क्रुष्ट>—-—-—चीखना, किलकिलाना, कूका देना, चीत्कार करना, पुकारना
अनुक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—अनु-क्रुश्—-—दया करना, करुणा करना
अभिक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—अभि-क्रुश्—-—विलाप करना
आक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—चिल्लाना, जोर से पुकारना
आक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—आ-क्रुश्—-—खरीखोटी सुनाना, गालियाँ देना
परिक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—परि-क्रुश्—-—विलाप करना
प्रत्याक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—प्रत्या-क्रुश्—-—गाली के उत्तर में गाली देना
विक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—चीखना, चिल्लाना
विक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—उच्चारण करना
विक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—पुकारना
विक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—वि-क्रुश्—-—गूंजना
व्याक्रुश् —भ्वा॰ पर॰—व्या-क्रुश्—-—विलाप करना, शोक मनाना
क्रुष्ट —वि॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाया हुआ
क्रुष्ट —वि॰—-—क्रुश् + क्त—पुकारा हुआ
क्रुष्टम् —नपुं॰—-—क्रुश् + क्त—चिल्लाना, चीखना, रोना
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—निर्दय, निष्ठुर, कठोरहृदय, निष्करुण
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कठोर, कड़ा
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—दारूण, भयंकर, भीषण
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—नाशकारी, अनिष्टकर
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घायल, चोट लगा हुआ
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—खूनी
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—कच्चा
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—मजबूत
क्रूर —वि॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—गरम, तेज, अरूचिकर
क्रूरः —पुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—बाज, बगला
क्रूरम् —नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—घाव
क्रूरम् —नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—हत्या, क्रूरता
क्रूरम् —नपुं॰—-—कृत् + रक् घातोः क्रू—भीषण कृत्य
क्रूराकृति —वि॰—क्रूर-आकृति—-—डरावनी सूरत वाला
क्रूराकृतिः —पुं॰—क्रूर-आकृतिः—-—रावण का विशेषण
क्रूराचार —वि॰—क्रूर-आचार—-—क्रूर और बर्बर आचरण करने वाला
क्रूराशय —वि॰—क्रूर-आशय—-—भयानक जीवजन्तुओं से भरा हुआ
क्रूराशय —वि॰—क्रूर-आशय—-—क्रूर स्वभाव का
क्रूरकर्मन् —नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—रक्तरंजित करतूत
क्रूरकर्मन् —नपुं॰—क्रूर-कर्मन्—-—कठोर श्रम्
क्रूरकृत् —वि॰—क्रूर-कृत्—-—भीषण, क्रूर, निर्मम
क्रूरकोष्ठ —वि॰—क्रूर-कोष्ठ—-—कड़े कोठे वाला जिस पर मृदु विरेचन का असर न हो
क्रूरगन्धः —पुं॰—क्रूर-गन्धः—-—गन्धक
क्रूरदृश् —वि॰—क्रूर-दृश्—-—बुरी दृष्टि वाला, कुदृष्टी डालने वाला
क्रूरदृश् —वि॰—क्रूर-दृश्—-—खल, दुष्ट
क्रूरराबिन् —पुं॰—क्रूर-राबिन्—-—पहाड़ी कौवा
क्रूरलोचनः —पुं॰—क्रूर-लोचनः—-—शनिग्रह का विशेषण
क्रेतृ —पुं॰—-—क्री + तृच्—क्रेता, खरीददार
क्रोञ्चः —पुं॰—-—क्रुञ्च् + अच्, बा॰ गुणः—एक पहाड़ का नाम
क्रोडः —पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सूअर, वृक्ष की खोडर, गढ़ा
क्रोडः —पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—सीना, वक्षस्थल, छाती
क्रोडीकृ ——-—-—छाती से लगाना
क्रोडः —पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु मध्य भाग
क्रोडः —पुं॰—-—क्रुड् + घञ्—शनिग्रह का विशेषण
क्रोडम् —नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
क्रोडम् —नपुं॰—-—क्रुड् + घञ्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
क्रोडा —स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—छाती, सीना, कन्धों के बीच का भाग
क्रोडा —स्त्री॰—-—क्रुड् + घञ्+टाप्—किसी वस्तु का मध्यवर्ती भाग, गढ़ा, कोटर
क्रोडाङ्कः —पुं॰—क्रोड-अङ्कः—-—कछुवा
क्रोडाङ्घ्रिः —पुं॰—क्रोड-अङ्घ्रिः—-—कछुवा
क्रोडपादः —पुं॰—क्रोड-पादः—-—कछुवा
क्रोडपत्रम् —नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—प्रान्तवर्ती लेख
क्रोडपत्रम् —नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—पत्र का पश्चलेख
क्रोडपत्रम् —नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—सम्पूरक
क्रोडपत्रम् —नपुं॰—क्रोड-पत्रम्—-—वसीयतनामे का परवर्ती उत्तराधिकार-पत्र
क्रोडीकरणम् —नपुं॰—-—क्रोड् + च्वि + कृ + ल्युट—आलिंगन करना, छाती से लगाना
क्रोडीमुखः —पुं॰—-—क्रोड्याः मुखमिव मुखमस्याः ब॰ स॰—गेंडा
क्रोधः —पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—कोप, गुस्सा
क्रोधः —पुं॰—-—क्रुध् + घञ्—क्रोध एकप्रकार की भावना है जिससे रौद्ररस का उदय होता है
क्रोधोज्झित —वि॰—क्रोध-उज्झित—-—क्रोध से मुक्त, शान्त, स्वस्थ
क्रोधमूर्छित —वि॰—क्रोध-मूर्छित—-—क्रोध से अभिभूत या क्रोधोन्मत्त
क्रोधन —वि॰—-—क्रुध् + ल्युट्—गुस्से से भरा हुआ, क्रोधाविष्ट, क्रुद्ध, चिड़चिड़ा
क्रोधनम् —नपुं॰—-—क्रुध् + ल्युट्—क्रुद्ध होना, कोप
क्रोधालु —वि॰—-—क्रुध् + आलुच्—क्रोधाविष्ट, चिड़चिड़ा, गुस्सैल
क्रोशः —पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चिल्लाना, चीख, चीत्कार, कूका देना, कोलाहल
क्रोशः —पुं॰—-—क्रुश् + घञ्—चौथाई योजना, एक कोस
क्रोशतालः —पुं॰—क्रोश-तालः—-—एक बड़ा ढोल
क्रोशध्वनिः —पुं॰—क्रोश-ध्वनिः—-—एक बड़ा ढोल
क्रोशन —वि॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चिल्लाने वाला
क्रोशनम् —नपुं॰—-—क्रुश् + ल्युट्—चीख चिल्लाहट
क्रोष्टु —पुं॰—-—क्रुश् + तुन्—गीदड़
क्रौञ्चः —नपुं॰—-—क्रुञ्च् + अण्—जलकुक्कुटी, कुररी, बगला
क्रौञ्चः —नपुं॰—-—-—एक पर्वत का नाम
क्रौञ्चादनम् —नपुं॰—क्रौञ्च-अदनम्—-—कमलडंडी के रेशे
क्रौञ्चारातिः —पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
क्रौञ्चारातिः —पुं॰—क्रौञ्च-अरातिः—-—परशुराम का विशेषण
क्रौञ्चारिः —पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—कार्तिकेय का विशेषण
क्रौञ्चारिः —पुं॰—क्रौञ्च-अरिः—-—परशुराम का विशेषण
क्रौञ्चरिपुः —पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—कार्तिकेय का विशेषण
क्रौञ्चरिपुः —पुं॰—क्रौञ्च-रिपुः—-—परशुराम का विशेषण
क्रौञ्चदारणः —पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—कार्तिकेय का विशेषण
क्रौञ्चदारणः —पुं॰—क्रौञ्च-दारणः—-—परशुराम का विशेषण
क्रौञ्चसूदनः —पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—कार्तिकेय का विशेषण
क्रौञ्चसूदनः —पुं॰—क्रौञ्च-सूदनः—-—परशुराम का विशेषण
क्रौर्यम् —नपुं॰—-—क्रूर + ष्यञ्—क्रूरता, कठोरहृदयता
क्लन्द् —भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—पुकारना, चिल्लाना
क्लन्द् —भ्वा॰ पर॰ <क्लन्दति>, <क्लन्दित>—-—-—रोना, विलाप करना
क्लन्द् —भ्वा॰ आ॰ <क्लन्दते>, <क्लदते>—-—-—घबड़ा जाना
क्लम् —भ्वा॰ दिवा॰, पर॰ <क्लामति>, <क्लाम्यति>, <क्लान्त>—-—-—थक जाना, थककर चूर होना, अवसन्न होना
विक्लम् —भ्वा॰ दिवा॰, पर॰—वि-क्लम्—-—थक जाना
क्लमः —पुं॰—-—क्लम् + घञ्—थकावट, कलान्ति अवसाद
क्लमथः —पुं॰—-—क्लम् + घञ्, अथच् वा—थकावट, कलान्ति अवसाद
क्लान्त —वि॰—-—क्लम् + क्त—थका हुआ, थक कर चूर हुआ
क्लान्त —वि॰—-—क्लम् + क्त—मुर्झाया हुआ, म्लान
क्लान्त —वि॰—-—क्लम् + क्त—दुबला-पतला
क्लान्ति —स्त्री॰—-—क्लम् + क्तिन्—थकावट
क्लान्तिछिद —वि॰—क्लान्ति-छिद—-—थकावट दूर करने वाला, बलदायक
क्लिद् —दिवा॰ पर॰ <क्लिद्यति>, <क्लिन्न>—-—-—गीला होना, आर्द्र होना, तर होना
क्लिद् —पुं॰—-—-—तय करना, गीला करना
क्लिन्न —वि॰—-—क्लिद् + क्त—गीला, तर
अक्षक्लिन्न —वि॰—अक्ष-क्लिन्न—-—चौंधियाई आँखों वाला
क्लिश् —दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःखी होना, पीड़ित होना, कष्ट होना
क्लिश् —दिवा॰आ॰ <क्लिश्यते>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना
क्लिश् —क्रया॰ पर॰ <क्लिश्नाति>, <क्लिष्ट>, <क्लिशित>—-—-—दुःख देना, सताना, पीड़ित करना, सताना, कष्ट देना
क्लिशित —वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
क्लिशित —वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
क्लिशित —वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
क्लिशित —वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
क्लिशित —वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
क्लिष्ट —वि॰—-—क्लिश् + क्त—दुःखी, पीड़ित, संकट ग्रस्त, सताया हुआ
क्लिष्ट —वि॰—-—क्लिश् + क्त—मुर्झाया हुआ
क्लिष्ट —वि॰—-—क्लिश् + क्त—असंगत, विरोधी
क्लिष्ट —वि॰—-—क्लिश् + क्त—परिष्कृत, कृत्रिम
क्लिष्ट —वि॰—-—क्लिश् + क्त—लज्जित
क्लिष्टिः —स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—कष्ट वेदना, दुःख, पीडा
क्लिष्टिः —स्त्री॰—-—क्लिश् + क्तिन्—सेवा
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—कायर
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नीच अधम
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—सुस्त
क्लीब —वि॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग का
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—हिजड़ा, नपुंसक, बधिया किया हुआ
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—पुरूषार्थहीन, भिरू, दुर्बल, दुर्बलमना
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—कायर
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—नीच अधम
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—सुस्त
क्लीव —वि॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग का
क्लीबः —पुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
क्लीबः —पुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
क्लीवः —पुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
क्लीवः —पुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
क्लीबम् —नपुं॰—-—क्लीब् + क—नामर्द, हिजड़ा
क्लीबम् —नपुं॰—-—क्लीब् + क—नपुंसक लिंग
क्लीवम् —नपुं॰—-—क्लीव् + क—नामर्द, हिजड़ा
क्लीवम् —नपुं॰—-—क्लीव् + क—नपुंसक लिंग
क्लेदः —पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—गीलापन, आर्द्रता, तरी, नमी
क्लेदः —पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—बहने वाला, घाव से निकलने वाला मवाद
क्लेदः —पुं॰—-—क्लिद् + घञ्—दुःख, कष्ट
क्लेशः —पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—पीड़ा, वेदना, कष्ट, दुःख, तकलीफ
क्लेशः —पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—गुस्सा, क्रोध
क्लेशः —पुं॰—-—क्लिश् + घञ्—सांसारिक कामकाज
क्लेशक्षम —वि॰—क्लेश-क्षम—-—कष्ट सहने में समर्थ
क्लैब्यम् —नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—नामर्दी
क्लैब्यम् —नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
क्लैब्यम् —नपुं॰—-—क्लीब + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
क्लैव्यम् —नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—नामर्दी
क्लैव्यम् —नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—पुरूषार्थहीनता, भीरूता, कायरता
क्लैव्यम् —नपुं॰—-—क्लीव + ष्यञ्—अनुपयुक्तता, नामर्दी, शक्तिहीनता
क्लोमम् —नपुं॰—-—क्लु + मनिन्—फेफड़े
क्व —अव्य॰—-—किम् + अत्, कु आदेशः—किधर, कहाँ
क्वक्व —अव्य॰—क्व-क्व—-—जब किसी सामान्य वाक्य खण्ड में प्रयुक्त होता हैं तो इसका अर्थ है -‘भारी’ ‘अन्तर’ ‘असंगति’
क्वक्व —अव्य॰—क्व-क्व—-—कभी कभी ‘क्व’ का प्रयोग ‘किम्’ शब्द के अधिकार का होता है
क्वापि —अव्य॰—क्व-अपि—-—कहीं, किसी जगह
क्वापि —अव्य॰—क्व-अपि—-—कभीकभी
क्वचित् —अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ स्थानों पर
क्वचित् —अव्य॰—क्व-चित्—-—कुछ बातों में
क्वचित्क्वचित् —अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—एक जगह - दूसरी जगह, यहाँ-वहाँ
क्वचित्क्वचित् —अव्य॰—क्वचित्-क्वचित्—-—कभी-कभी
क्वण् —भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—अस्पष्ट शब्द करना, झनझन शब्द, टनटन शब्द
क्वण् —भ्वा॰ पर॰ <क्वणति>, <क्वणित>—-—-—भिनभिनाना, गुंजन, अस्पष्ट गायन
क्वणः —पुं॰—-—क्वण् + अप्—सामान्य शब्द
क्वणः —पुं॰—-—क्वण् + अप्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
क्वणनम् —नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
क्वणितम् —नपुं॰—-—क्वण् + ल्युट् क्तम्—किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
क्वाणः —पुं॰—-—क्वण् + घञ् —किसी भी वाद्ययन्त्र की ध्वनि
क्वत्य —वि॰—-—क्व + त्यप्—किस स्थान पर सम्बन्ध रखने वाला, कहाँ पर होने वाला
क्वथ् —भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—उबालना, काढ़ा बनाना
क्वथ् —भ्वा॰ पर॰ <क्वथति>, <क्वथित>—-—-—पचाना
क्वथः —पुं॰—-—क्वाथ् + अच्, घञ् वा—काढा, लगातार मन्दी आँच में तैयार किया गया घोल
क्वाचित्क —वि॰—-—-—अकस्मात घटित, विरल, असाधारण
क्षः —पुं॰—-—क्षि + ड—अन्तर्धान, हानि
क्षः —पुं॰—-—क्षि + ड—बिजली
क्षः —पुं॰—-—क्षि + ड—किसान
क्षः —पुं॰—-—क्षि + ड—विष्णु का नरसिंहावतार
क्षः —पुं॰—-—क्षि + ड—राक्षस
क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
क्षण् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
क्षन् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—चोट पहुँचाना, क्षति पहुँचाना
क्षन् —तना॰ उभ॰ <क्षणोति>, <क्षणुते>, <क्षुत्त>—-—-—तोड़ना, टुकड़े-टुकड़े करना
उपक्षण् —तना॰ उभ॰ —उप-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
परिक्षण् —तना॰ उभ॰ —परि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
विक्षण् —तना॰ उभ॰ —वि-क्षण्—-—उसी अर्थ में प्रयोग जो ‘क्षण’ का मूल अर्थ है।
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
क्षणः —पुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—लमहा, निमेष, एक सैकंड से ४।५ भाग के बराबर समय की माप
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—अवकाश
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उपयुक्त क्षण या अवसर
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—उत्सव, हर्ष, खुशी
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—आश्रय, दासता
क्षणम् —नपुं॰—-—क्षण् + अच्—केन्द्र, मध्यभाग
क्षणान्तरे —अव्य॰—क्षण-अन्तरे—-—दूसरे क्षण, कुछ देर के पश्चात
क्षणक्षेपः —पुं॰—क्षण-क्षेपः—-—क्षणिक विलंब
क्षणदः —पुं॰—क्षण-दः—-—ज्योतिषी
क्षणदम् —नपुं॰—क्षण-दम्—-—पानी
क्षणदा —स्त्री॰—क्षण-दा—-—रात
क्षणदा —स्त्री॰—क्षण-दा—-—हल्दी
क्षणदकरः —पुं॰—क्षण-द-करः—-—चाँद
क्षणदपतिः —पुं॰—क्षण-द-पतिः—-—चाँद
क्षणदचरः —पुं॰—क्षण-द-चरः—-—रात में घूमने वाला, राक्षस
क्षणदान्ध्यम् —पुं॰—क्षण-द-आन्ध्यम्—-—रात्रि में अन्धापन, रतौंधी
क्षणद्युतिः —स्त्री॰—क्षण-द्युतिः—-—बिजली
क्षणप्रकाशा —स्त्री॰—क्षण-प्रकाशा—-—बिजली
क्षणप्रभा —स्त्री॰—क्षण-प्रभा—-—बिजली
क्षणनिश्वासः —पुं॰—क्षण-निश्वासः—-—शिंशुक
क्षणभङ्गुर —वि॰—क्षण-भङ्गुर—-—क्षणस्थायी, चंचल, नश्वर
क्षणमात्रम् —अव्य॰—क्षण-मात्रम्—-—क्षणभर के लिए
क्षणरामिन् —पुं॰—क्षण-रामिन्—-—कबूतर
क्षणविध्वंसिन् —वि॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—क्षणभर में नष्ट होने वाला
क्षणविध्वंसिन् —पुं॰—क्षण-विध्वंसिन्—-—नास्तिक दार्शनिकों का सम्प्रदाय जो यह मानता है कि प्रकृति का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होकर नया बनता रहता हैं।
क्षणतुः —पुं॰—-—क्षण् + अतु—घाव, फोड़ा
क्षणनम् —नपुं॰—-—क्षण् + ल्युट्—क्षति पहुँचाना, घायल करना, मार डालना
क्षणिक —वि॰—-—क्षण + ठन्—क्षणस्थायी, अचिरस्थायी
क्षणिका —स्त्री॰—-—क्षण + ठन्—बिजली
क्षणिन् —वि॰—-—क्षण + इनि—अवकाश रखने वाला
क्षणिन् —वि॰—-—क्षण + इनि—क्षणस्थायी
क्षणिनी —स्त्री॰—-—क्षण + इनि—बिजली
क्षत —वि॰—-—क्षण् + क्त—घायल, चोट लगा हुआ, क्षतिग्रस्त, काटा हुआ, फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तोड़ा हुआ
क्षतम् —नपुं॰—-—क्षण् + क्त—खरोच
क्षतम् —नपुं॰—-—क्षण् + क्त—घाव, चोट, क्षति
क्षतम् —नपुं॰—-—क्षण् + क्त—भय, विनाश, खतरा
क्षतअरि —वि॰—क्षत-अरि—-—विजयी
क्षतउदरम् —नपुं॰—क्षत-उदरम्—-—पेचिश
क्षतकासः —पुं॰—क्षत-कासः—-—आघात से उत्पन्न खांसी
क्षतजम् —नपुं॰—क्षत-जम्—-—रूधिर
क्षतजम् —नपुं॰—क्षत-जम्—-—पीप, मवाद
क्षतयोनिः —स्त्री॰—क्षत-योनिः—-—भ्रष्ट स्त्री, वह स्त्री जिसका कौमार्य भंग हो चुका हो
क्षतविक्षत —वि॰—क्षत-विक्षत—-—विक्षतांग, जिसका शरीर बहुत जगह से कट गया हो, तथा घावों से भरा हो
क्षतवृत्तिः —स्त्री॰—क्षत-वृत्तिः—-—दरिद्रता, जीविका के साधनों से वंचित
क्षतव्रतः —पुं॰—क्षत-व्रतः—-—वह विद्यार्थी जिसने अपनी धार्मिक प्रतिज्ञा या व्रत भंग कर दिया हो
क्षतिः —स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—चोट, घाव
क्षतिः —स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—नाश, काट, फाड़
क्षतिः —स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—बर्बादी, हानि, नुकसान
क्षतिः —स्त्री॰—-—क्षण् +क्तिन्—ह्रास, क्षय, न्यूनता
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—जो काटने और रूपरेखा खोदने का काम करता है
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—परिचारक, द्वारपाल
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—कोचवान, सारथि
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—शुद्रपिता तथा क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—दासी का पुत्र
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—ब्रह्मा
क्षत्तृ —पुं॰—-—क्षद् + तृच्—मछली
क्षत्रः —पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
क्षत्रः —पुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
क्षत्रान्तकः —पुं॰—क्षत्र-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
क्षत्रधर्मः —पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
क्षत्रधर्मः —पुं॰—क्षत्र-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
क्षत्रपः —पुं॰—क्षत्र-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
क्षत्रबन्धुः —पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
क्षत्रबन्धुः —पुं॰—क्षत्र-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
क्षत्रम् —नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य
क्षत्रम् —नपुं॰—-—क्षण् + क्विप् = क्षत्, ततः त्रायते - त्रै + क—क्षत्रिय जाति का पुरूष
क्षत्रान्तकः —पुं॰—क्षत्रम्-अन्तकः—-—परशुराम का विशेषण
क्षत्रधर्मः —पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—बहादुरी, सैनिक शूरवीरता
क्षत्रधर्मः —पुं॰—क्षत्रम्-धर्मः—-—क्षत्रिय के कर्तव्य
क्षत्रपः —पुं॰—क्षत्रम्-पः—-—राज्यपाल, उपशासक
क्षत्रबन्धुः —पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय जाति का पुरूष
क्षत्रबन्धुः —पुं॰—क्षत्रम्-बन्धुः—-—क्षत्रिय मात्र, अपक्षत्रिय, घृणित या निकम्मा क्षत्रिय
क्षत्रियः —पुं॰—-—क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा घः तारा॰)—दूसरे वर्ण या सैनिक जाति का पुरूष
क्षत्रियहणः —पुं॰—क्षत्रिय-हणः—-—परशुराम का विशेषण
क्षत्रियका —स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप्, ह्रस्वः —क्षत्रिय जाति का स्त्री
क्षत्रिया —स्त्री॰—-—क्षत्रिय + टाप् —क्षत्रिय जाति का स्त्री
क्षत्रियिका —स्त्री॰—-—क्षत्रिया + कन् + टाप् इत्वम् वा—क्षत्रिय जाति का स्त्री
क्षत्रियाणी —स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय जाति का स्त्री
क्षत्रियाणी —स्त्री॰—-—क्षत्रिया + ङीष्, आनुक्—क्षत्रिय की पत्नी
क्षन्तृ —वि॰—-—क्षम् + तृच्—प्रशान्त, सहिष्णु, विनम्र
क्षप् —भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—उपवास करना, संयमी होना
क्षप् —भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—फेकना, भेजना, डालना
क्षप् —भ्वा॰ <क्षपति>, <क्षपते>, <क्षपित>—-—-—चूक जाना
क्षपणः —पुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—बौद्धभिक्षु
क्षपणम् —नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—अपवित्रता, अशौच
क्षपणम् —नपुं॰—-—क्षप् + ल्युट्—नाश करना, दबाना, निकाल देना
क्षपणकः —पुं॰—-—क्षपण + कन्—बौद्ध या जैन साधु
क्षपणी —स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—चप्पू
क्षपणी —स्त्री॰—-—क्षप् + ल्युट् + ङीष्—जाल
क्षपण्युः —पुं॰—-—क्षप् + अन्यु, णत्वम्—अपराध
क्षपा —स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—रात
क्षपा —स्त्री॰—-—क्षप् + अच् + टाप्—हल्दी
क्षपाटः —पुं॰—क्षपा-अटः—-—रात में घूमने वाला
क्षपाटः —पुं॰—क्षपा-अटः—-—राक्षस, पिशाच
क्षपाकरः —पुं॰—क्षपा-करः—-—चन्द्रमा
क्षपाकरः —पुं॰—क्षपा-करः—-—कपूर
क्षपानाथः —पुं॰—क्षपा-नाथः—-—चन्द्रमा
क्षपानाथः —पुं॰—क्षपा-नाथः—-—कपूर
क्षपाघनः —पुं॰—क्षपा-घनः—-—काला बादल
क्षपाचरः —पुं॰—क्षपा-चरः—-—राक्षस, पिशाच
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—अनुमति देना, इजाजत देना, चलने देना
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—क्षमा करना, माफ करना देना
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—धैर्यवान होना, चुप होना, प्रतीक्षा करना
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सहन करना, गम का जाना, भुगतना
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—विरोध करना, रोकना
क्षम् —भ्वा॰ आ॰ <क्षमते>, <क्षाम्यति>, <क्षान्त> या <क्षमित>—-—-—सक्षम या योग्य होना
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—धैर्यवान
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—सहनशील, विनम्र
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—पर्याप्त, सक्षम, योग्य
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—समुपयुक्त, योग्य, उचित, उपयुक्त
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—योग्य, समर्थ, अनुरूप
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—सहने योग्य, सह्य
क्षम —वि॰—-—क्षम् + अच्—अनुकूल, मित्रवत्
क्षमा —स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—धैर्य, सहिष्णुता, माफी
क्षमा —स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—पृथ्वी
क्षमा —स्त्री॰—-—क्षम् + अङ् + टाप्—दुर्गा का विशेषण
क्षमाजः —पुं॰—क्षमा-जः—-—मंगलग्रह
क्षमाभुज् —पुं॰—क्षमा-भुज्—-—राजा
क्षमाभुजः —पुं॰—क्षमा-भुजः—-—राजा
क्षमितृ —वि॰—-—क्षम् + तृच्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
क्षमिन् —वि॰—-—क्षम् + घिनुण्, स्त्रियाँ ङीप्—धैर्यवान, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव वाला
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—घर, निवास, आवास
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—हानि, ह्रास, छीजन, घटाव, पतन, न्य़ूनता
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—विनाश, अंत, समाप्ति
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—आर्थिक क्षति
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—गिरना
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—हटाना
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—प्रलय
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—तपेदिक
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—रोग
क्षयः —पुं॰—-—क्षि + अच्—निर्गुणता, ऋण
क्षयकर —वि॰—क्षय-कर—-—नाश या तबाही करने वाला, बर्बादी करने वाला
क्षयकालः —पुं॰—क्षय-कालः—-—प्रलयकाल
क्षयकालः —पुं॰—क्षय-कालः—-—अवनति का समय
क्षयकासः —पुं॰—क्षय-कासः—-—तपेदिक की खांसी
क्षयपक्षः —पुं॰—क्षय-पक्षः—-—कृष्णपक्ष, अँधेरापक्ष
क्षययुक्तिः —स्त्री॰—क्षय-युक्तिः—-—नाश करने का अवसर
क्षययोगः —पुं॰—क्षय-योगः—-—नाश करने का अवसर
क्षयरोगः —पुं॰—क्षय-रोगः—-—तपेदिक, राज्यक्षमा
क्षयवायुः —पुं॰—क्षय-वायुः—-—प्रलयकाल की हवा
क्षयसम्पद् —स्त्री॰—क्षय-सम्पद्—-—सर्वनाश, बर्बादी
क्षयथु —नपुं॰—-—क्षि + अथुच्—तपेदिक के रोगी की खांसी, तपेदिक
क्षयिन् —वि॰—-—क्षय + इनि—ह्रासमान, मुर्झाने वाला
क्षयिन् —वि॰—-—क्षय + इनि—क्षयरोगग्रस्त
क्षयिन् —वि॰—-—क्षय + इनि—नश्वर, भंगुर
क्षयिन् —पुं॰—-—क्षय + इनि—चन्द्रमा
क्षयिष्णु —वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—बर्बाद करने वाला, नाश कारी
क्षयिष्णु —वि॰—-—क्षि + इष्णुच्—नश्वर, भंगुर
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बहना, सरकना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—भेज देना, नदी की भाँति बहना, उडेलना, निकालना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—बूँद-बूँद करके गिरना, टपकना, रिसना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—नष्ट होना, घटना, मिटना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—व्यर्थ होना, प्रभाव न होना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰ <क्षरति>, <क्षरित>—-—-—खिसकना, वञ्चित होना
क्षर् —भ्वा॰ पर॰, प्रेर॰—-—-—आरोप लगाना, बदनाम करना
विक्षर् —भ्वा॰ पर॰—वि-क्षर्—-—पिघलना, घुल जाना
क्षर —वि॰—-—क्षर् + अच्—पिघलने वाला
क्षर —वि॰—-—क्षर् + अच्—जंगम
क्षर —वि॰—-—क्षर् + अच्—नश्वर
क्षरः —पुं॰—-—क्षर् + अच्—बादल
क्षरनम् —नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—बहने, टपकने, बूँद-बूँद गिरने और रिसने की क्रिया
क्षरनम् —नपुं॰—-—क्षर् + ल्युट्—पसीना आ जाना
क्षरिन् —पुं॰—-—क्षर + इनि—बरसात का मौसम
क्षल् —चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—धोना, धो देना, पवित्र करना, साफ करना
क्षल् —चुरा॰ उभ॰ <क्षालयति>, <क्षालयते>, <क्षालित>—-—-—मिटा देना
विक्षल् —चुरा॰ उभ॰—वि-क्षल्—-—धोकर साफ करना
क्षवः —पुं॰—-—क्षु + अप्—छींक
क्षवः —पुं॰—-—क्षु + अप्—खांसी
क्षवथुः —पुं॰—-—क्षु + अथुच् —छींक
क्षवथुः —पुं॰—-—क्षु + अथुच् —खांसी
क्षात्र —वि॰—-—क्षत्र + अण्—सैनिक जाति से संबंध रखने वाला
क्षात्रम् —नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय जाति
क्षात्रम् —नपुं॰—-—क्षत्र + अण्—क्षत्रिय के गुण
क्षान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—धैर्यवान्, सहन शील, सहिष्णु
क्षान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षम् + क्त—क्षमा किया गया
क्षान्ता —स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
क्षान्तिः —स्त्री॰—-—-—धैर्य, सहनशीलता, क्षमा
क्षान्तु —वि॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—धैर्यवान, सहनशील
क्षान्तुः —पुं॰—-—क्षम् + तुन् , वृद्धि—पिता
क्षाम —वि॰—-—क्षै + क्त—दग्ध, झुलसा हुआ
क्षाम —वि॰—-—क्षै + क्त—क्षीण, पतला, परिक्षीण, कृश, दुबला-पतला
क्षाम —वि॰—-—क्षै + क्त—क्षुद्र, तुच्छ, अल्प
क्षाम —वि॰—-—क्षै + क्त—दुर्बल, निःशक्त
क्षार —वि॰—-—क्षर् + ण बा॰—संक्षरणशील, क्षारक या दाहक, तिक्त, चरपरा, कटु, खारी
क्षारः —पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—रस, अर्क
क्षारः —पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीरा, राब
क्षारः —पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—कोई क्षारीय या खट्टा पदार्थ
क्षारः —पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—शीशा
क्षारः —पुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—बदमाश, ठग
क्षारम् —नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—काला नमक
क्षारम् —नपुं॰—-—क्षर् + ण बा॰—पानी
क्षाराच्छम् —नपुं॰—क्षार-अच्छम्—-—समुद्री नमक
क्षाराञ्जनम् —नपुं॰—क्षार-अञ्जनम्—-—सज्जी का लेप
क्षाराम्बु —नपुं॰—क्षार-अम्बु—-—खारी रस या खारा पानी
क्षारोदः —पुं॰—क्षार-उदः—-—खारा समुद्र
क्षारोदकः —पुं॰—क्षार-उदकः—-—खारा समुद्र
क्षारोदधिः —पुं॰—क्षार-उदधिः—-—खारा समुद्र
क्षारसमुद्रः —पुं॰—क्षार-समुद्रः—-—खारा समुद्र
क्षारत्रयम् —नपुं॰—क्षार-त्रयम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
क्षारत्रियतम् —नपुं॰—क्षार-त्रियतम्—-—सज्जी, शोरा, सुहागा
क्षारनदी —स्त्री॰—क्षार-नदी—-—नरक में खारे पानी की नदी
क्षारभूमिः —स्त्री॰—क्षार-भूमिः—-—रिहाली भूमि
क्षारमृत्तिका —स्त्री॰—क्षार-मृत्तिका—-—रिहाली भूमि
क्षारमेलकः —पुं॰—क्षार-मेलकः—-—खारा पदार्थ
क्षाररसः —पुं॰—क्षार-रसः—-—खारा रस
क्षारकः —पुं॰—-—क्षार + कन्—खार, रेह
क्षारकः —पुं॰—-—क्षार + कन्—रस, अर्क
क्षारकः —पुं॰—-—क्षार + कन्—पिंजरा, पक्षियों की रहने की टोकरी या जाल
क्षारकः —पुं॰—-—क्षार + कन्—धोबी
क्षारकः —पुं॰—-—क्षार + कन्—मंजरी, कलिका
क्षारणम् —नपुं॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
क्षारणा —स्त्री॰—-—क्षर् + णिच् + ल्युट्, युच् वा—दोषारोपण, विशेषकर व्याभिचार का
क्षारिका —स्त्री॰—-—क्षर् + ण्वुल् + टाप्, इत्वम्—भूख
क्षारित —वि॰—-—-—खारे पानी में से टपकाया हुआ
क्षारित —वि॰—-—-—जिस पर मिथ्या अपवाद लगाया गया हो
क्षालनम् —नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—धोना, साफ करना
क्षालनम् —नपुं॰—-—क्षल् + णिच् + ल्युट्—छिड़कना
क्षालित —वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—धोया हुआ, साफ किया हुआ, पवित्र किया हुआ
क्षालित —वि॰—-—क्षल् + णिच् + क्त—पोंछा हुआ, प्रतिदत्त
क्षि —भ्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षित>, <क्षीण>—-—-—मुर्झाना, छीजना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ क्र्या॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—नष्त करना, ग्रस्त कर लेना, बर्बाद करना, भ्रष्ट करना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—न्यून करना, बर्बाद करना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰ <क्षयति>, <क्षिणोति>, <क्षिणाति>—-—-—मार डालना, क्षति पहुँचाना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰, कर्मवाच्य॰ <क्षीयते>—-—-—बर्बाद होना, घटना, नष्ट होना, न्यून होना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—नष्ट करना, दूर हटा देना, समाप्त कर देना
क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—-—-—समय बिताना
अपक्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—अप-क्षि—-—घटना, क्षीण होना, न्यून होना
परिक्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
परिक्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—परि-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
प्रक्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
प्रक्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—प्र-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
सङ्क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कम होना, क्षीण होना
सङ्क्षि —भ्वा॰ स्वा॰ पर॰—सम्-क्षि—-—कृश होना, दुबला-पतला होना
क्षितिः —स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—पृथ्वी
क्षितिः —स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—निवास, आवास, घर
क्षितिः —स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—हानि, विनाश
क्षितिः —स्त्री॰—-—क्षि + क्तिन्—प्रलय
क्षितीशः —पुं॰—क्षिति-ईशः—-—राजा
क्षितीश्वरः —पुं॰—क्षिति-ईश्वरः—-—राजा
क्षितिकणः —पुं॰—क्षिति-कणः—-—धूल
क्षितिकम्पः —पुं॰—क्षिति-कम्पः—-—भूचाल
क्षितिक्षित् —पुं॰—क्षिति-क्षित्—-—राजा, राजकुमार
क्षितिजः —पुं॰—क्षिति-जः—-—वृक्ष
क्षितिजः —पुं॰—क्षिति-जः—-—गंडोआ, केंचुआ
क्षितिजः —पुं॰—क्षिति-जः—-—मंगल ग्रह
क्षितिजः —पुं॰—क्षिति-जः—-—विष्णु के द्वारा मारा गया नरक नाम का राक्षस
क्षितिजम् —नपुं॰—क्षिति-जम्—-—जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं
क्षितिजा —स्त्री॰—क्षिति-जा—-—सीता का विशेषण
क्षितितलम् —नपुं॰—क्षिति-तलम्—-—पृथ्वी की सतह
क्षितिदेवः —पुं॰—क्षिति-देवः—-—ब्राह्मण
क्षितिधरः —पुं॰—क्षिति-धरः—-—पहाड़
क्षितिनाथः —पुं॰—क्षिति-नाथः—-—राजा, प्रभु
क्षितिपः —पुं॰—क्षिति-पः—-—राजा, प्रभु
क्षितिपतिः —पुं॰—क्षिति-पतिः—-—राजा, प्रभु
क्षितिपालः —पुं॰—क्षिति-पालः—-—राजा, प्रभु
क्षितिभुज् —पुं॰—क्षिति-भुज्—-—राजा, प्रभु
क्षितिरक्षिन् —पुं॰—क्षिति-रक्षिन्—-—राजा, प्रभु
क्षितिपुत्रः —पुं॰—क्षिति-पुत्रः—-—मंगल ग्रह
क्षितिप्रतिष्ठ —वि॰—क्षिति-प्रतिष्ठ—-—पृथ्वी पर रहने वाला
क्षितिभृत् —पुं॰—क्षिति-भृत्—-—पहाड़
क्षितिभृत् —पुं॰—क्षिति-भृत्—-—राजा
क्षितिमण्डलम् —नपुं॰—क्षिति-मण्डलम्—-—भूमण्डल
क्षितिरन्ध्रम् —नपुं॰—क्षिति-रन्ध्रम्—-—खाई, खोडर
क्षितिरुह् —पुं॰—क्षिति-रुह्—-—वृक्ष
क्षितिवर्धनः —पुं॰—क्षिति-वर्धनः—-—शव, मुर्दा शरीर
क्षितिवृत्तिः —स्त्री॰—क्षिति-वृत्तिः—-—पृथ्वी की गति, धैर्ययुक्तव्यवहार
क्षितिव्युदासः —पुं॰—क्षिति-व्युदासः—-—गुफा, बिल
क्षिद्रः —पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—रोग
क्षिद्रः —पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सूर्य
क्षिद्रः —पुं॰—-—क्षिंद् + रक्—सींग
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—आरोपित करना, लगाना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
क्षिप् —तुदा॰ उभ॰ <क्षिपति>, <क्षिपते>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, जाने देना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—रखना, पहनना, लगाना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—आरोपित करना, लगाना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—फेंक देना, डाल देना, उतार देना, मुक्त होना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—दूर करना, नष्ट करना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अस्वीकार करना, घृणा करना
क्षिप् —दिवा॰ पर॰ <क्षिप्यति>, <क्षिप्त>—-—-—अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, धमकाना
अधिक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—निन्दा करना, कलंक लगाना
अधिक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—नाराज करना, अपवाद करना
अधिक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अधि-क्षिप्—-—आगे बढ़ जाना
अवक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—उतार फेंकना, छोड़ना, त्यागना
अवक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—अव-क्षिप्—-—तिरस्कार करना, भर्त्सना करना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—फेंकना, डाल देना, प्रहार करना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—सिकोड़ना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—वापिस लेना, छीनना, खींचना, ले लेना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—परिस्थितियों से अनुमान लगाना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—आक्षेप करना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—अवहेलना करना, उपेक्षा करना
आक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—आ-क्षिप्—-—तिरस्कार करना
उत्क्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उद्-क्षिप्—-—उछालना
उपक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—डालना, फेंकना
उपक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—संकेत करना, इशारा करना, निष्कर्ष निकालना
उपक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—आरम्भ करना, शुरु करना
उपक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—उप-क्षिप्—-—अपमान करना, डाटना-फटकारना
निक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—नीचे रखना, स्थापित करना, धर देना
निक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—सौपना, देख रेख में सुपुर्द करना
निक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—शिविर में रखना
निक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—फेंक देना, अस्वीकार करना
निक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—नि-क्षिप्—-—प्रदान करना
परिक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—घेरना
परिक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—परि-क्षिप्—-—आलिंगन करना
पर्याक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—पर्या-क्षिप्—-—बाँधना, एकत्र करना
प्रक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—रखना, डालना
प्रक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—प्र-क्षिप्—-—बीच में डालना, अन्तर्हित करना
विक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—फेंकना, डालना
विक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—मन मोड़ना
विक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—वि-क्षिप्—-—ध्यान हटाना
संक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—संचय करना, ढेर लगाना
संक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—पीछे हटना, नष्ट करना
संक्षिप् —तुदा॰ उभ॰,दिवा॰ पर॰—सम्-क्षिप्—-—छोटा करना, कमी करना, संक्षिप्त करना
क्षपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—भेजना, फेंकना, डालना
क्षपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + क्युन् बा॰—झिड़कना, दुर्वचन कहना
क्षिपणि —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—चप्पू
क्षिपणि —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—जाल
क्षिपणि —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि—हथियार
क्षिपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—चप्पू
क्षिपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—जाल
क्षिपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—हथियार
क्षिपणिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + अनि, क्षिपणि + ङीष्—प्रहार
क्षिपण्युः —पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—शरीर
क्षिपण्युः —पुं॰—-—क्षिप् + क्न्युच्—वसन्त ऋतु
क्षिपा —स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—भेजना, फेंकना, डालना
क्षिपा —स्त्री॰—-—क्षिप् + अङ् + टाप्—रात्रि
क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—फेंका हुआ, बिखेरा हुआ, उछाला हुआ, डाला हुआ
क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—त्यागा हुआ
क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—अवज्ञात, उपेक्षित, अनादृत
क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—स्थापित
क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षिप् + क्त—ध्यान हटाया हुआ, पागल
क्षिप्तम् —नपुं॰—-—क्षिप् + क्त—गोली लगने से बना घाव
क्षिप्तकुक्कुरः —पुं॰—क्षिप्तम्-कुक्कुरः—-—पागल कुत्ता
क्षिप्तचित्त —वि॰—क्षिप्तम्-चित्त—-—उचाट मन, विमना
क्षिप्तदेह —वि॰—क्षिप्तम्-देह—-—प्रसृत शरीर, लेटा हुआ
क्षिप्तिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—फेंकना, भेज देना
क्षिप्तिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + क्तिन्—कूट अर्थ को प्रकट करना
क्षिप्र —वि॰—-—क्षिप् + रक्—सजीव, आशुगामी
क्षिप्रम् —अव्य॰—-—-—जल्दी, फुर्ती से, तुरन्त
क्षिप्रकारिन् —वि॰—क्षिप्रम्-कारिन्—-—आशुकारी, अविलम्बी
क्षिया —स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—हानि, विनाश, बर्वादी, ह्रास
क्षिया —स्त्री॰—-—क्षि + अङ् + टाप्—अनौचित्य, सर्वसम्मत आचार का उल्लंघन
क्षीजनम् —नपुं॰—-—क्षीज् + ल्युट्—पोले नरकुलों में से निकली हुई सरसराहट की ध्वनि
क्षीण —वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—पतला, कृश, क्षयप्राप्त, निर्बल घटा हुआ, थका हुआ या समाप्त, खर्च कर डाला हुआ
क्षीण —वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—सुकुमार, नाजुक
क्षीण —वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—थोड़ा अल्प
क्षीण —वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—निर्धन, संकटग्रस्त
क्षीण —वि॰—-—क्षि + क्त, दीर्घः—शक्तिहीन, दुर्बल
क्षीणचन्द्रः —पुं॰—क्षीण-चन्द्रः—-—घटता हुआ अर्थात् कृष्णपक्ष का चन्द्रमा
क्षीणधन —वि॰—क्षीण-धन—-—जिसके पास पैसा न रहा हो, निर्धन
क्षीणपाप —वि॰—क्षीण-पाप—-—जो अपने पाप कर्मो का फल भुगत कर निष्पाप हो गया हो
क्षीणपुण्य —वि॰—क्षीण-पुण्य—-—जो अपने सब पुण्य कर्मों का फल भोग चुका हो, तथा अगले जन्म के लिए जिसे और पुण्य कार्य करने चाहिए
क्षीणमध्य —वि॰—क्षीण-मध्य—-—जिसकी कमर पतली हो
क्षीणवासिन् —वि॰—क्षीण-वासिन्—-—खंडहर में रहने वाला
क्षीणविक्रान्त —वि॰—क्षीण-विक्रान्त—-—साहसहीन, पौरुषहीन
क्षीणवृत्ति —वि॰—क्षीण-वृत्ति—-—जीविका के साधनों से वञ्चित, बेरोजगार
क्षीब् —भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
क्षीब् —भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीबति>, <क्षीब्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
क्षीब —वि॰—-—क्षीब् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
क्षीरः —पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
क्षीरः —पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
क्षीरः —पुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
क्षीरम् —नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—दूध
क्षीरम् —नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—वृक्षों का दूधिया रस
क्षीरम् —नपुं॰—-—घस्यते अद्यसे घस् + ईरन्, उपधालोपः, घस्य ककारः षत्वं च—जल
क्षीरादः —पुं॰—क्षीर-अदः—-—शिशु, दूध पीता बच्चा
क्षीराब्धिः —पुं॰—क्षीर-अब्धिः—-—दुग्धसागर
क्षीराब्धिजः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—चन्द्रमा
क्षीराब्धिजः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-जः—-—मोती
क्षीराब्धिजम् —नपुं॰—क्षीर-अब्धि-जम्—-—समुद्री नमक
क्षीराब्धिजा —स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-जा—-—लक्ष्मी का विशेषण
क्षीराब्धितनया —स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
क्षीराब्ध्याह्वः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-आह्वः—-—सनोवर का वृक्ष
क्षीराब्ध्युदः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-उदः—-—दुग्धसागर
क्षीराब्धितनयः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-तनयः—-—चन्द्रमा
क्षीराब्धितनया —स्त्री॰—क्षीर-अब्धि-तनया—-—लक्ष्मी का विशेषण
क्षीराब्धिसुतः —पुं॰—क्षीर-अब्धि-सुतः—-—लक्ष्मी का विशेषण
क्षीरोदधि —पुं॰—क्षीर-उदधि—-—क्षीरोद
क्षीरोर्मिः —पुं॰—क्षीर-ऊर्मिः—-—दुग्ध सागर की लहर
क्षीरौदनः —पुं॰—क्षीर-ओदनः—-—दूध में उबाले हुए चावल
क्षीरकण्ठः —पुं॰—क्षीर-कण्ठः—-—दूध पीता बच्चा
क्षीरजम् —नपुं॰—क्षीर-जम्—-—जमा हुआ दूध
क्षीरद्रुमः —पुं॰—क्षीर-द्रुमः—-—अश्वत्थवृक्ष
क्षीरधात्री —स्त्री॰—क्षीर-धात्री—-—दूध पिलाने वाली नौकरानी, धाय
क्षीरधिः —पुं॰—क्षीर-धिः—-—दुग्धसागर
क्षीरनिधिः —पुं॰—क्षीर-निधिः—-—दुग्धसागर
क्षीरधेनुः —स्त्री॰—क्षीर-धेनुः—-—दूध देने वाली गाय
क्षीरनीरम् —नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—पानी और दूध
क्षीरनीरम् —नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—दूध जैसा पानी
क्षीरनीरम् —नपुं॰—क्षीर-नीरम्—-—गाढ़ालिंगन
क्षीरपः —पुं॰—क्षीर-पः—-—बच्चा
क्षीरवारिः —पुं॰—क्षीर-वारिः—-—दुग्धसागर
क्षीरवारिधिः —पुं॰—क्षीर-वारिधिः—-—दुग्धसागर
क्षीरविकृतिः —पुं॰—क्षीर-विकृतिः—-—जमा हुआ दूध
क्षीरवृक्षः —पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—बड़, गूलर, पीपल और मधूक नाम के वृक्ष
क्षीरवृक्षः —पुं॰—क्षीर-वृक्षः—-—अंजीर
क्षीरशरः —पुं॰—क्षीर-शरः—-—मलाई, दूध की मलाई
क्षीरसमुद्रः —पुं॰—क्षीर-समुद्रः—-—दुग्धसागर
क्षीरसारः —पुं॰—क्षीर-सारः—-—मक्खन
क्षीरहिण्डीरः —पुं॰—क्षीर-हिण्डीरः—-—दूध के झाग या फेन
क्षीरिका —स्त्री॰—-—क्षीर + ठन् + टाप्—दूध से बना भोज्य पदार्थ
क्षीरिन् —वि॰—-—क्षीर + इनि—दूधिया दुधार दूध देने वाला
क्षीव् —भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—मतवाला होना, मदोन्मत्त होना, नशे में होना
क्षीव् —भ्वा॰ - दिवा॰, पर॰ <क्षीवति>, <क्षीव्यति>—-—-—थूकना, मुंह से निकालना
क्षीव —वि॰—-—क्षीव् + क्त नि॰—उत्तेजित, मतवाला, मदोन्मत्त
क्षु —अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—छींकना
क्षु —अदा॰ पर॰ <क्षौति>, <क्षुत>—-—-—खाँसना
क्षुण्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—कूटा हुआ, कुचला हुआ
क्षुण्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—अभ्यस्त, अनुगत
क्षुण्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—क्षुद् + क्त—पीसा हुआ
क्षुण्णमनस् —वि॰—क्षुण्ण-मनस्—-—पश्चात्तापी, पछताने वाला
क्षुत् —स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
क्षुतम् —नपुं॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
क्षुता —स्त्री॰—-—क्षु + क्विप्, तुगागमः; क्षु + क्त, क्षुत + टाप्—छींकने वाली, छींक
क्षुद् —रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—कुचलना, घिसना, कुचल डालना, रगड़ना, पीस देना
क्षुद् —रुधा॰, उभ॰ <क्षुणत्ति>, <क्षुते>, <क्षुण्ण>—-—-—उत्तेजित करना, क्षुब्ध होना
प्रक्षुद् —रुधा॰, उभ॰—प्र-क्षुद्—-—कुचलना, खरोंचना, पीसना
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—सूक्ष्म, अल्प, छोटा सा, तुच्छ, हल्का
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—कमीना, नीच, दुष्ट, अधम्
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—दुष्ट
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—क्रूर
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—गरीब, दरिद्र
क्षुद्र —वि॰—-—क्षुद् + रक्—कृपण, कंजूस
क्षुद्रा —स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—मधुमक्खी
क्षुद्रा —स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—झगड़ालू स्त्री
क्षुद्रा —स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—अपाहिज या विकलांग स्त्री
क्षुद्रा —स्त्री॰—-—क्षुद् + रक्—वेश्या
क्षुद्राञ्जनम् —नपुं॰—क्षुद्र-अञ्जनम्—-—कुछ रोगों में आंखों में लगाया जाने वाला अंजन या लेप
क्षुद्रान्त्रः —पुं॰—क्षुद्र-अन्त्रः—-—हृदय के भीतर का छोटा सा रंध्र
क्षुद्रकम्बुः —पुं॰—क्षुद्र-कम्बुः—-—छोटा शंख
क्षुद्रकुष्ठम् —नपुं॰—क्षुद्र-कुष्ठम्—-—एक प्रकार का हल्का कोढ़
क्षुद्रघण्टिका —स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू
क्षुद्रघण्टिका —स्त्री॰—क्षुद्र-घण्टिका—-—घूँघरू वाली करधनी
क्षुद्रचन्दनम् —नपुं॰—क्षुद्र-चन्दनम्—-—लाल चंदन की लकड़ी
क्षुद्रजन्तुः —पुं॰—क्षुद्र-जन्तुः—-—कोई भी छोटा जीव
क्षुद्रदंशिका —स्त्री॰—क्षुद्र-दंशिका—-—डांस, गोमक्खी
क्षुद्रबुद्धि —वि॰—क्षुद्र-बुद्धि—-—ओछे मन का, कमीना
क्षुद्ररसः —पुं॰—क्षुद्र-रसः—-—शहद
क्षुद्ररोगः —पुं॰—क्षुद्र-रोगः—-—मामूली बीमारी
क्षुद्रशङ्खः —पुं॰—क्षुद्र-शङ्खः—-—छोटा शंख या घोंघा
क्षुद्रसुवर्णम् —नपुं॰—क्षुद्र-सुवर्णम्—-—हल्का या खोटा सोना अर्थात् पीतल
क्षुद्रल —वि॰—-—क्षुद्र + लच्—सूक्ष्म, हल्का
क्षुध् —दिवा॰ पर॰ <क्षुध्यति>, <क्षुधित>—-—-—भूखा होना, भूख लगना
क्षुध् —स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
क्षुधा —स्त्री॰—-—क्षुध् + क्विप्—भूख
क्षुधार्त —वि॰—क्षुध्-आर्त—-—क्षुदधापीडित
क्षुधाविष्ट —वि॰—क्षुध्-आविष्ट—-—क्षुदधापीडित
क्षुत्क्षाम —वि॰—क्षुध्-क्षाम—-—भूखा होने से दुर्बल
क्षुत्पिपासित —वि॰—क्षुध्-पिपासित—-—भूखा प्यासा
क्षुन्निवृत्तिः —स्त्री॰—क्षुध्-निवृत्तिः—-—भूख शान्त होना
क्षुधालु —वि॰—-—क्षुध् + आलुच्—भूखा
क्षुधित —वि॰—-—क्षुध् + क्त—भूखा
क्षुपः —पुं॰—-—क्षुप् + क—छोटी जडों के वृक्ष, झाड़, झाड़ी
क्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—हिलाना, कंपित करना, क्षुब्ध करना, आन्दोलित करना
क्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—अस्थिर होना
क्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰ <क्षोभते>, <क्षुभ्यति>, <क्षुभ्नाति>, <क्षुभित, <क्षुब्ध>—-—-—लड़खड़ाना
प्रक्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—प्र-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
विक्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—वि-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
संक्षुभ् —भ्वा॰ आ॰ , दिवा॰, क्रया॰ पर॰—सम्-क्षुभ्—-—कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना
क्षुभित —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—हिलाया हुआ, आंदोलित आदि
क्षुभित —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
क्षुभित —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—क्रुद्ध
क्षुब्धः —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—आन्दोलित, चंचल, अस्थिर
क्षुब्धः —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डाँवाडोल
क्षुब्धः —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—डरा हुआ
क्षुब्ध —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—मन्थन करने का डंडा
क्षुब्ध —वि॰—-—क्षुभ् + क्त—रति क्रिया का विशेषण आसन, रतिबन्ध
क्षुमा —स्त्री॰—-—क्षु + मक्—अलसी, एक प्रकार का सन
क्षुर् —तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—काटना, खुरचना
क्षुर् —तुदा॰ पर॰ <क्षुरति>, <क्षुरित>—-—-—रेखाएँ खींचना, हल से खेत में खू्ड बनाना
क्षुरः —पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरा
क्षुरः —पुं॰—-—क्षुर् + क—उस्तरे जैसी नोंक जो तीर में लगाई जाय
क्षुरः —पुं॰—-—क्षुर् + क—गाय या घोड़े का सुम
क्षुरः —पुं॰—-—क्षुर् + क—बाण
क्षुरकर्मन् —नपुं॰—क्षुर-कर्मन्—-—हजामत बनाना
क्षुरक्रिया —स्त्री॰—क्षुर-क्रिया—-—हजामत बनाना
क्षुरचतुष्टयम् —नपुं॰—क्षुर-चतुष्टयम्—-—हजामत करने की चार आवश्यक चीजें
क्षुरधानम् —नपुं॰—क्षुर-धानम्—-—उस्तरे का खोल
क्षुरभाण्डम् —नपुं॰—क्षुर-भाण्डम्—-—उस्तरे का खोल
क्षुरधार —वि॰—क्षुर-धार—-—उस्तरे जैसी तेज
क्षुरप्रः —पुं॰—क्षुर-प्रः—-—बाण जिसकी नोंक घोडें की नाल जैसी हो
क्षुरप्रः —पुं॰—क्षुर-प्रः—-—खुर्पी, घास खोदने का खुर्पा
क्षुरमर्दिन् —पुं॰—क्षुर-मर्दिन्—-—नाई
क्षुरमुण्डिन् —पुं॰—क्षुर-मुण्डिन्—-—नाई
क्षुरिका —स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—चाकू, छुरी
क्षुरिका —स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः—छोटा उस्तरा
क्षुरी —स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—चाकू, छुरी
क्षुरी —स्त्री॰—-—क्षुर् + ङीष् + कन् + टाप्, ह्रस्वः, क्षुर + ङीष्—छोटा उस्तरा
क्षुरिणी —स्त्री॰—-—क्षुर + इनि + ङीष्—नाई की पत्नी
क्षुरिन् —पुं॰—-—क्षुर + इनि —नाई
क्षुल्ल —वि॰—-—क्षुदं लाति गृह्नाति - क्षुद् + ला + क—छोटा, स्वल्प
क्षुल्लतातः —वि॰—क्षुल्ल-तातः—-—पिता का छोटा भाई
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—स्वल्प, सूक्ष्म
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नीच, दुष्ट
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—नगण्य
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—निर्धन
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—दुष्ट, द्वेषयुक्त
क्षुल्लक —वि॰—-—क्षुल्ल + कन्—बच्चा
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —खेत, मैदान, भूमि
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —भूसंपत्ति, भूमि
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —स्थान, आवास, भूखण्ड, गोदाम
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पुण्यस्थान, तीर्थस्थान
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —बाड़ा
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —उर्वरा भूमि
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —जन्मस्थान
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —पत्नी
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —कायक्षेत्र शरीर
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —मन
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —घर, नगर
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —सपाट आकृति जैसे कि त्रिभुज
क्षेत्रम् —नपुं॰—-—क्षि + ष्ट्रन् —रेखाचित्र
क्षेत्राधिदेवता —स्त्री॰—क्षेत्रम्-अधिदेवता—-—किसी पुण्य भूस्थल की अधिष्ठात्री देवता
क्षेत्राजीवः —पुं॰—क्षेत्रम्-आजीवः—-—कृषक, खेतिहर
क्षेत्रकरः —पुं॰—क्षेत्रम्-करः—-—कृषक, खेतिहर
क्षेत्रगणितम् —नपुं॰—क्षेत्रम्-गणितम्—-—ज्यामिति, रेखागणित
क्षेत्रगत —वि॰—क्षेत्रम्-गत—-—ज्यामितीय
क्षेत्रगतोपपत्तिः —स्त्री॰—क्षेत्रम्-गत-उपपत्तिः—-—ज्यामितीय प्रमाण
क्षेत्रज —वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—खेत में उत्पन्न
क्षेत्रज —वि॰—क्षेत्रम्-ज—-—शरीर से उत्पन्न
क्षेत्रजः —पुं॰—क्षेत्रम्-जः—-—हिन्दूधर्मशास्त्र के अनुसार १२ प्रकार के पुत्रों में से एक
क्षेत्रजात —वि॰—क्षेत्रम्-जात—-—दूसरे पुरुष की पत्नी में उत्पादित संतान
क्षेत्रज्ञ —वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—स्थानीयता को जानने वाला
क्षेत्रज्ञ —वि॰—क्षेत्रम्-ज्ञ—-—चतुर, दक्ष
क्षेत्रज्ञः —पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—आत्मा
क्षेत्रज्ञः —पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—परमात्मा
क्षेत्रज्ञः —पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—व्यभिचारी
क्षेत्रज्ञः —पुं॰—क्षेत्रम्-ज्ञः—-—किसान
क्षेत्रपतिः —पुं॰—क्षेत्रम्-पतिः—-—भूस्वामी, भूमिधर
क्षेत्रपदम् —नपुं॰—क्षेत्रम्-पदम्—-—देवता के लिए पवित्र स्थान
क्षेत्रपालः —पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—खेत का रखवाला
क्षेत्रपालः —पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—क्षेत्र की रक्षा करने वाला
क्षेत्रपालः —पुं॰—क्षेत्रम्-पालः—-—शिव का विशेषण
क्षेत्रफलम् —नपुं॰—क्षेत्रम्-फलम्—-—आकृति की लम्बाई चौड़ाई का गुणनफल
क्षेत्रभक्तिः —स्त्री॰—क्षेत्रम्-भक्तिः—-—खेत का बँटवारा
क्षेत्रराशिः —पुं॰—क्षेत्रम्-राशिः—-—जुआमितीय आकृतियों द्वारा प्रकट किया गया परिमाण
क्षेत्रविद् —वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—किसान
क्षेत्रविद् —वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
क्षेत्रविद् —वि॰—क्षेत्रम्-विद्—-—आत्मा
क्षेत्रक्षेत्रज्ञ —पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—किसान
क्षेत्रक्षेत्रज्ञ —पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—ऋषि जिसे आध्यात्मिक ज्ञान हो
क्षेत्रक्षेत्रज्ञ —पुं॰—क्षेत्रम्-क्षेत्रज्ञ—-—आत्मा
क्षेत्रस्थ —वि॰—क्षेत्रम्-स्थ—-—पुण्य भुमि में रहने वाला
क्षेत्रिक —वि॰—-—क्षेत्र + ठन्—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
क्षेत्रिकः —पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—एक किसान
क्षेत्रिकः —पुं॰—-—क्षेत्र + ठन्—पति
क्षेत्रिन् —पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—कृषक, कास्तकार, खेतिहार
क्षेत्रिन् —पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—नाम मात्र का पति
क्षेत्रिन् —पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—आत्मा
क्षेत्रिन् —पुं॰—-—क्षेत्र + इनि—परमात्मा
क्षेत्रिय —वि॰—-—क्षेत्र + घ—खेत से सम्बन्ध रखने वाला
क्षेत्रिय —वि॰—-—क्षेत्र + घ—असाध्य रोग जिसका उपचार देहान्तर प्राप्ति परही हो अथवा इ्स जीवन में जिसका उपचार न हो सके
क्षेत्रियम् —नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—आंगिक रोग
क्षेत्रियम् —नपुं॰—-—क्षेत्र + घ—चरागाह, गोचरभूमि
क्षेत्रियः —पुं॰—-—क्षेत्र + घ—व्यभिचारी, परदाररत
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, उछालना, डालना, इधर-उधर हिलाना, गति
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फेंकना, डालना
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—भेजना, प्रेषित करना
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—आघात
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—उल्लंघन
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—समय बिताना, कालक्षेप
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—विलम्ब, देरी
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अपमान, दुर्वचन
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—अनादर, घृणा
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—घमंड, अहंकार
क्षेपः —पुं॰—-—क्षिप् + घञ्—फूलों का गुच्छा, कुसुमस्तवक
क्षेपक —वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—फेंकने वाला, भेजने वाला
क्षेपक —वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—मिलाया हुआ, बीच में घुसाया हुआ
क्षेपक —वि॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—गालियों से युक्त, अनादरपूर्ण
क्षेपकः —पुं॰—-—क्षिप् + ण्वुल्—बनावटी या बीच में मिलाया हुआ
क्षेपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—फेंकना, डालना, भेजना, निदेश आदि देना
क्षेपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—बिताना
क्षेपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—भूलना, गाली देना
क्षेपणम् —नपुं॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन
क्षेपणिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
क्षेपणिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
क्षेपणिः —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
क्षेपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—चप्पू
क्षेपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—मछली फंसाने का जाल
क्षेपणी —स्त्री॰—-—क्षिप् + ल्युट्—गोफन या ऐसा उपकरण जिसमें रखकर कंकड़ फेंके जाय
क्षेम —वि॰—-—क्षि + भन्—प्रसन्नता, सुख और आराम देने वला, शुभ, उदार, राजिसुखी
क्षेम —वि॰—-—क्षि + भन्—समृद्ध, आराम में सुखी
क्षेम —वि॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षित, प्रसन्न
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
क्षेमम् —नपुं॰—-—क्षि + भन्—शान्ति, प्रसन्नता, आराम, कल्याण, कुशलता
क्षेमम् —नपुं॰—-—क्षि + भन्—सुरक्षा, बचाव
क्षेमम् —नपुं॰—-—क्षि + भन्—संरक्षण करने वाला, प्ररक्षा करने वाला
क्षेमम् —नपुं॰—-—क्षि + भन्—अवाप्त को सुरक्षित रखना
क्षेमम् —नपुं॰—-—क्षि + भन्—मुक्ति, शाश्वत, आनन्द
क्षेमः —पुं॰—-—क्षि + भन्—एकप्रकार का सुगन्ध द्रव्य
क्षेमकर —वि॰—क्षेम-कर—-—मंगलप्रद शान्ति औत सुरक्षा करने वाला
क्षेमिन् —वि॰—-—क्षेम + इनि—सुरक्षित, आक्रमण से रक्षित, प्रसन्न
क्षै —भ्वा॰ पर॰ <क्षायति>, <क्षाम>—-—-—क्षीण होना, नष्ट होना, कृश होना, ह्रास होना, मुर्झाना
क्षैण्यम् —नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—विनाश
क्षैण्यम् —नपुं॰—-—क्षीण + ष्यञ्—दुबलापन, सुकुमारता
क्षैत्रम् —नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेतों का समूह
क्षैत्रम् —नपुं॰—-—क्षेत्र + अण्—खेत
क्षैरेय —वि॰—-—क्षीर + ढञ्—दूधिया, दूध जैसा
क्षोडः —पुं॰—-—क्षोड् + घञ्—हाथी बांधने का खंभा
क्षोणिः —स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—पृथ्वी
क्षोणिः —स्त्री॰—-—क्षै + डोनि—एक
क्षोणी —स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—पृथ्वी
क्षोणी —स्त्री॰—-—क्षोणि + ङीष्—एक
क्षोत्तृ —पुं॰—-—क्षुद् + तृच्—मूसली, बट्टा
क्षोदः —पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—चूरा करना, पीसना
क्षोदः —पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—सिल
क्षोदः —पुं॰—-—क्षुद् + घञ्—धूल, कण कोई छोटा या सूक्ष्म कण
क्षोद —वि॰—-—क्षुद् + घञ्—जो जांच पड़ताल या अनुसन्धान में ठहर सके
क्षोदिमन् —पुं॰—-—क्षोद + इमनिच्—सूक्ष्मता
क्षोभः —पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—डोलना, हिलना, लोटपोट होना
क्षोभः —पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—हिचकोले खाना
क्षोभः —पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—आन्दोलन, डाँवाडोल होना, उत्तेजना, संवेग
क्षोभः —पुं॰—-—क्षुभ् + घञ्—उकसाहट, चिढ़
क्षोभणम् —नपुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—क्षुब्ध करना, व्याकुल करना
क्षोभणः —पुं॰—-—क्षुभ् + णिच् + ल्युट्—कामदेव के पांच बाणों में से एक
क्षोमः —पुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
क्षोमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन्—घर की छत पर बना कमरा, चौबारा
क्षौणिः —स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
क्षौणी —स्त्री॰—-—-—पृथ्वी
क्षौणीप्राचीरः —पुं॰—क्षौणी-प्राचीरः—-—समुद्र
क्षौणीभुज् —पुं॰—क्षौणी-भुज्—-—राजा
क्षौणीभृत् —पुं॰—क्षौणी-भृत्—-—पहाड़
क्षौद्रः —पुं॰—-—क्षुद्र + अण्—चम्पक, वृक्ष
क्षौद्रम् —नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—हल्कापन
क्षौद्रम् —नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—कमीनापन, ओछापन
क्षौद्रम् —नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—शहद
क्षौद्रम् —नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—जल
क्षौद्रम् —नपुं॰—-—क्षुद्र + अण्—धूलकण
क्षौद्रजम् —नपुं॰—क्षौद्र-जम्—-—मोम
क्षौद्रेयम् —नपुं॰—-—क्षौद्र + ढञ्—मोम
क्षौमः —पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
क्षौमः —पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
क्षौमः —पुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
क्षौमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा
क्षौमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—चौबारा
क्षौमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—मकान का पिछला भाग
क्षौमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अस्तर
क्षौमम् —नपुं॰—-—क्षु + मन् + अण्—अलसी
क्षौरम् —नपुं॰—-—क्षुर + अण्—हजामत
क्षौरिकः —पुं॰—-—क्षौर + ठन्—नाई
क्ष्णु —अदा॰ पर॰ <क्ष्णोति>, <क्ष्णुत>—-—-—पैना करना, तेज करना
संक्ष्णु —अदा॰ आ॰—सम्-क्ष्णु—-—तेज करना
क्ष्मा —स्त्री॰—-—क्षम् + अच् उपधालोपः—पृथ्वी
क्ष्मा —स्त्री॰—-—-—एक की संख्या
क्ष्माजः —पुं॰—क्ष्मा-जः—-—मंगलग्रह
क्ष्मापः —पुं॰—क्ष्मा-पः—-—मंगलग्रह
क्ष्मापतिः —पुं॰—क्ष्मा-पतिः—-—मंगलग्रह
क्ष्माभुज् —पुं॰—क्ष्मा-भुज्—-—राजा
क्ष्माभृत् —पुं॰—क्ष्मा-भृत्—-—राजा या पहाड़
क्ष्माय् —भ्वा॰ आ॰ <क्ष्मायते>, <क्ष्मायित>—-—-—हिलाना, कांपना
क्ष्विड् —भ्वा॰ उभ॰ <क्ष्वेडति>, <क्ष्वेडते>, <क्ष्वेट्ट>, या <क्ष्वेडित>—-—-—भिनभिनाना, दाहड़ना, चहचहाना, गुर्राना, बुदबुदाना, अस्पष्ट ध्वनि करना
क्ष्विड् —भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
क्ष्विड् —भ्वा॰ आ॰ <क्ष्विद्>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
क्ष्विड् —दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—गीला होना, चिपचिपा होना
क्ष्विड् —दिवा॰ पर॰ <क्ष्विद्यति>, <क्ष्वेदित>, <क्ष्विण्ण>—-—-—रस निकलना, रस छोड़ना, मवाद बहना, पसीजना
क्ष्वेडः —पुं॰—-—क्ष्विड् + घञ्, अच् वा—शब्द, शोर, कोलाहल
क्ष्वेडः —पुं॰—-—-— विष, जहर
क्ष्वेडः —पुं॰—-—-—आर्द्र या तर करना
क्ष्वेडा —स्त्री॰—-—-—शेर की दहाड़
क्ष्वेडा —स्त्री॰—-—-—युद्ध के लिए ललकार, रणगुहार
क्ष्वेडा —स्त्री॰—-—-—बाँस
क्ष्वेडितम् —नपुं॰—-—क्ष्विड् + क्त—सिंह गर्जना
क्ष्वेला —स्त्री॰—-—क्ष्वेल + अ + टाप्—खेल, हंसी, मजाक