विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/इ-उ
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मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
इ —अव्य॰—-—-—आश्चर्य की भावना को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय
इ —अदा॰ पर॰ <एति, <इतः>—-—-—जाना, की ओर जाना, निकट आना
इ —अदा॰ पर॰ <एति, <इतः>—-—-—पहुँचना, पाना, प्राप्त करना, चले जाना
इ —अदा॰ पर॰ <एति, <इतः>—-—-—नष्ट हो जाता है, बर्बाद होता है
इ —भ्वा॰ उभ॰—-—-—जाना, की ओर जाना
इ —दिवा॰आ॰—-—-—आना,आ धमकना
इ —दिवा॰आ॰—-—-—भागना, घूमना
इ —दिवा॰आ॰—-—-—शीघ्र जाना, बार बार जाना
अती —अदा॰ पर॰—अति-इ—-—परे चले जाना, पार करना, ऊपर से चले जाना
अती —अदा॰ पर॰—अति-इ—-—आगे बढ़ जाना, पीछे छोड़ देना, पछाड़ देना
अती —अदा॰ पर॰—अति-इ—-—पास से निकल जाना, पीछे छोड़ देना, भूल जाना, उपेक्षा करना
अती —अदा॰ पर॰—अति-इ—-—बिताना, बीतना (समय का)
अधी —अदा॰ पर॰—अधि-इ—-—याद रखना, चिन्तन करना खेद पूर्वक याद करना
अधी —अदा॰ पर॰—अधि-इ—-—शिक्षा प्राप्त करना, अध्ययन करना, पढ़ाना
अन्वि —अदा॰ पर॰—अनु-इ—-—अनुसरण करना, पीछे चलना
अन्वि —अदा॰ पर॰—अनु-इ—-—सफल होना
अन्वि —अदा॰ पर॰—अनु-इ—-—अनुगमन
अन्वि —अदा॰ पर॰—अनु-इ—-—आज्ञा मानना, अनुरूप होना, अनुकरण करना
अन्वे —अदा॰ पर॰—अन्वा-इ—-—पीछे जाना, अनुसरण करना
अन्तःइ —अदा॰ पर॰—अन्तर्-इ—-—बीच में जाना, हस्तक्षेप करना
अन्तःइ —अदा॰ पर॰—अन्तर्-इ—-—रोकना, बाधा डालना
अन्तःइ —अदा॰ पर॰—अन्तर्-इ—-—छिपाना, गुप्त रखना, परदा डालना
अपे —अदा॰ पर॰—अप-इ—-—चले जाना, विदा होना, पीछे हटना, लौट पड़ना
अपेही —अदा॰ पर॰—अपेहि-इ—-—दूर हो जाओ, दूर हटो
अपेही —अदा॰ पर॰—अपेहि-इ—-—वंचित होना, मुक्त होना
अपेही —अदा॰ पर॰—अपेहि-इ—-—मरना, नष्ट होना
अभी —अदा॰ पर॰—अभि-इ—-—जाना, पहुँचना, निकट जाना
अभी —अदा॰ पर॰—अभि-इ—-—अनुसरण करना, सेवा करना
अभी —अदा॰ पर॰—अभि-इ—-—प्राप्त करना, मिलना, भुगतना, (अच्छी बुरी बातें) भोगना
अभिप्रे —अदा॰ पर॰—अभिप्र-इ—-—की ओर जाना, इरादा करना, अर्थ रखना, उद्देश्य बनाकर
अभ्ये —अदा॰ पर॰—अभ्या-इ—-—पहुँचना
अभ्युदि —अदा॰ पर॰—अभ्युद्-इ—-—उठना, ऊपर जाना
अभ्युदि —अदा॰ पर॰—अभ्युद्-इ—-—फलना-फूलना, समृद्ध होना
अभ्युपे —अदा॰ पर॰—अभ्युप-इ—-—निकट जाना, पहुंचना आपहुंचना
अभ्युपे —अदा॰ पर॰—अभ्युप-इ—-—विशिष्ट दशा को पहुँच जाना, प्राप्त करना
अभ्युपे —अदा॰ पर॰—अभ्युप-इ—-—जिम्मेवारी लेना, सहमत होना, स्वीकार करना, प्रतिज्ञा करना
अभ्युपे —अदा॰ पर॰—अभ्युप-इ—-—मानलेना, अपना लेना, स्वीकार करना
अभ्युपे —अदा॰ पर॰—अभ्युप-इ—-—आज्ञा मानना, अधीनता स्वीकार करना
अवे —अदा॰ पर॰—अव-इ—-—जानना, ज्ञान प्राप्त करना, जानकार होना
ए —अदा॰ पर॰—आ-इ—-—आना, निकट खिसकना
उदि —अदा॰ पर॰—उद्-इ—-—(तारे आदि का) उदय होना, आना, ऊपर उठना
उदि —अदा॰ पर॰—उद्-इ—-—उठना, उछलना, पैदा किया जाना
उदि —अदा॰ पर॰—उद्-इ—-—फलना-फूलना, समृद्ध होना
उपे —अदा॰ पर॰—उप-इ—-—पहुँचना, निकट खिसकना, पास जाना
उपे —अदा॰ पर॰—उप-इ—-—निकट जाना, में से निकलना, प्राप्त करना, (किसी दशा को) पहुंच जाना
उपे —अदा॰ पर॰—उप-इ—-—आ पड़ना
निरि —अदा॰ पर॰—निर्-इ—-—विदा होना, प्रस्थान करना
परे —अदा॰ पर॰—परा- इ—-—चले जाना, दौड़ जाना, भाग जाना, वापिस मुड़ना
परे —अदा॰ पर॰—परा- इ—-—पहुँचना, प्राप्त करना
परे —अदा॰ पर॰—परा- इ—-—इस संसार से कूच करना, मरना
परी —अदा॰ पर॰—परि-इ—-—परिक्रमा करना, प्रदक्षिणा करना
परी —अदा॰ पर॰—परि-इ—-—घेरना, चारों ओर चक्कर लगाना
परी —अदा॰ पर॰—परि-इ—-—पास जाना, (चीजों का) चिन्तन करना
परी —अदा॰ पर॰—परि-इ—-—बदलना, रूपान्तरित होना
प्रे —अदा॰ पर॰—प्र-इ—-—निकल जाना, बिदा होना
प्रे —अदा॰ पर॰—प्र-इ—-—(अतः) जीवन से बिदा लेना, मरना
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—वापिस जाना, लौट जाना,
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—विश्वास करना, भरोसा करना
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—ज्ञान प्राप्त करना, समझना, जानना
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—विख्यात होना, प्रसिद्ध होना
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—प्रसन्न होना, संतुष्ट होना
प्रती —अदा॰ पर॰—प्रति-इ—-—विश्वास दिलाना, भरोसा पैदा करना
प्रत्युदि —अदा॰ पर॰—प्रत्युद्-इ—-—स्वागत या सत्कार करने केलिए उठकर अगवानी करना
वी —अदा॰ पर॰—वि-इ—-—चले जाना, विदा होना
वी —अदा॰ पर॰—वि-इ—-—परिवर्तित होना
वी —अदा॰ पर॰—वि-इ—-—खर्च करना
विपरी —अदा॰ पर॰—विपरि-इ—-—बदलना
व्यती —अदा॰ पर॰—व्यति-इ—-—बाहर जाना, पथविचलित होना, अतिक्रमण करना
व्यती —अदा॰ पर॰—व्यति-इ—-—समय का गुजरना, व्यतीत होना
व्यती —अदा॰ पर॰—व्यति-इ—-—परे चले जाना, पीछे छोड़ना
व्यपे —अदा॰ पर॰—व्यप-इ—-—विदा होना, विचलित होना, मुक्त होना
व्यपे —अदा॰ पर॰—व्यप-इ—-—चले जाना, जुदा होना, अलग अलग होना
समि —अदा॰ पर॰—सम्-इ—-—इकट्ठे आना, इकट्ठे मिलना
समन्वि —अदा॰ पर॰—समनु-इ—-—साथ चलना, अनुसरण करना
समवे —अदा॰ पर॰—समव-इ—-—एकत्र होना, इकट्ठे आना
समवे —अदा॰ पर॰—समव-इ—-—संबद्ध होना, संयुक्त होना
समे —अदा॰ पर॰—समा-इ—-—इकट्ठे आना या मिलना
समुदि —अदा॰ पर॰—समुद्-इ—-—एकत्र होना, संचित होना
समुपे —अदा॰ पर॰—समुप-इ—-—उपलब्ध करना, प्राप्त करना
संप्रती —अदा॰ पर॰—संप्रति-इ—-—निर्णय करना, निश्चत करना, निर्धारित करना, अनुमान लगाना
इक्षवः —पुं॰—-—-—गन्ना, ईख, ऊख
इक्षुः —पुं॰—-—इष्यतेऽसौ माधुर्यात्, इष्-क्सु—गन्ना, ईख
इक्षुकाण्डः —पुं॰—इक्षुः-काण्डः—-—गन्ने की दो जातियाँ- काश और मुञ्जतृण
इक्षुकाण्डम् —नपुं॰—इक्षुः-काण्डम्—-—गन्ने की दो जातियाँ- काश और मुञ्जतृण
इक्षुकुट्टकः —पुं॰—इक्षुः-कुट्टकः—-—गन्ने इकट्ठे करने वाला
इक्षुदा —स्त्री॰—इक्षुः-दा—-—एक नदी का नाम
इक्षुपाकः —पुं॰—इक्षुः-पाकः—-—गुड़, शीरा, राब
इक्षुभक्षिका —स्त्री॰—इक्षुः-भक्षिका—-—गुड़ और शक्कर से बना भोज्य पदार्थ
इक्षुमती —स्त्री॰—इक्षुः-मती—-—एक नदी का नाम
इक्षुमालिनी —स्त्री॰—इक्षुः-मालिनी—-—एक नदी का नाम
इक्षुमालवी —स्त्री॰—इक्षुः-मालवी—-—एक नदी का नाम
इक्षुमेहः —पुं॰—इक्षुः-मेहः—-—मधुमेह
इक्षुयन्त्रम् —नपुं॰—इक्षुः-यन्त्रम्—-—गन्ना पेलने का कोल्हू
इक्षुरसः —पुं॰—इक्षुः-रसः—-—गन्ने का रस
इक्षुरसः —पुं॰—इक्षुः-रसः—-—गुड़, राब या शक्कर
इक्षुवणम् —नपुं॰—इक्षुः-वणम्—-—गन्ने का खेत, गन्ने का जंगल
इक्षुवाटिका —स्त्री॰—इक्षुः-वाटिका—-—गन्नों का उद्यान
इक्षुवाटी —स्त्री॰—इक्षुः-वाटी—-—गन्नों का उद्यान
इक्षुविकारः —पुं॰—इक्षुः-विकारः—-—शक्कर, गुड़ या राब
इक्षुसारः —पुं॰—इक्षुः-सारः—-—गुड़ या राब
इक्षुकः —पुं॰—-—स्वार्थे कन्—गन्ना, ईख
इक्षुकीया —स्त्री॰—-—इक्षुक-छ स्त्रियां टाप्—गन्नों की क्यारी
इक्षुरः —पुं॰—-—इक्षुम् राति इति, रा-क—गन्ना, ईख
इक्ष्वाकुः —पुं॰—-—इक्षुम् इच्छाम् आकरोति इति, इक्षु-आ-कृ-डु—अयोध्या में राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं का पूर्व पुरुष, यह वैवस्वत मनु का पुत्र था और सूर्यवंशी राजाओं में सब से प्रथम पुरुष था
इक्ष्वाकुः —पुं॰—-—-—इक्ष्वाकु की सन्तान
इख् —भ्वा॰ पर॰<एखति>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
इङ्ख् —भ्वा॰ पर॰<इङ्खति>—-—-—जाना, हिलना-डुलना,
इङ्ग् —भ्वा॰ उभ॰<इङ्गति>,<इङ्गते>,<इङ्गित>—-—-—हिलना, काँपना, क्षुब्ध होना
इङ्ग् —भ्वा॰ उभ॰<इङ्गति>,<इङ्गते>,<इङ्गित>—-—-—जाना, हिलना-डुलना
इङ्ग —वि॰—-—इङ्ग्-क—हिलने डुलने योग्य
इङ्ग —वि॰—-—इङ्ग्-क—आश्चर्य जनक, विस्मयकारी
इङ्गः —पुं॰—-—इङ्ग्-क—इशारा या संकेत
इङ्गः —पुं॰—-—इङ्ग्-क—इंगित द्वारा मनोभाव का संकेत देना
इङ्गनम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- ल्युट—हिलना-डुलना, काँपना
इङ्गनम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- ल्युट—ज्ञान
इङ्गितम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- क्त—धड़कना, हिलना
इङ्गितम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- क्त—आन्तरिक विचार, इरादा, प्रयोजन
इङ्गितम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- क्त—इशारा, संकेत,अंगविक्षेप
इङ्गितम् —नपुं॰—-—इङ्ग्- क्त—विशेषतःशरीर के विभिन्न अंगों की चेष्टा जो आन्तरिक इरादों का आभास दे देती है, अंगविशेष आन्तरिक भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ है
इङ्गितकोविद —वि॰—इङ्गितम्-कोविद—-—बाहरी अंगचेष्टाओं के द्वारा आन्तरिक मनोभावों की व्याख्या करने में कुशल, संकेतों को जानने वाला
इङ्गितज्ञ —वि॰—इङ्गितम्-ज्ञ—-—बाहरी अंगचेष्टाओं के द्वारा आन्तरिक मनोभावों की व्याख्या करने में कुशल, संकेतों को जानने वाला
इङ्गुदः —पुं॰—-—इङ्ग्-उ=इङ्गुः तं द्यति खण्डयति इति, दो-क—एक औषधि का वृक्ष, हिंगोट का वृक्ष, मालकंगनी
इङ्गुदी —स्त्री॰—-—इङ्ग्-उ=इङ्गुः तं द्यति खण्डयति इति, दो-क—एक औषधि का वृक्ष, हिंगोट का वृक्ष, मालकंगनी
इङ्गुदम् —नपुं॰—-—इङ्ग्-उ=इङ्गुः तं द्यति खण्डयति इति, दो-क—इंगुदी का फल
इच्छा —स्त्री॰—-—इष्-श-टाप्—कामना, अभिलाष, रुचि
इच्छया —स्त्री॰—-—-—रुचि के अनुसार
इच्छा —स्त्री॰—-—इष्-श-टाप्—प्रश्न या समस्या
इच्छा —स्त्री॰—-—इष्-श-टाप्—सन्नन्त का रूप
इच्छादानम् —नपुं॰—इच्छा-दानम्—-—अभिलाषा का पूर्ण होना
इच्छानिवृत्तिः —स्त्री॰—इच्छा-निवृत्तिः—-—कामनाओं की शान्ति, सांसारिक इच्छाओं के प्रति उदासीनता
इच्छाफलम् —नपुं॰—इच्छा-फलम्—-—किसी प्रश्न या समस्या का समाधान
इच्छारतम् —नपुं॰—इच्छा-रतम्—-—अभिलषित खेल
इच्छावसुः —पुं॰—इच्छा-वसुः—-—कुबेर
इच्छासम्पद् —स्त्री॰—इच्छा-सम्पद्—-—किसी की कामनाओं का पूर्ण होना
इज्यः —पुं॰—-—यज्-क्यप्—अध्यापक
इज्यः —पुं॰—-—यज्-क्यप्—देवों के अध्यापक बृहस्पति की उपाधि
इज्या —स्त्री॰—-—इज्य-टाप्—यज्ञ
इज्या —स्त्री॰—-—इज्य-टाप्—उपहार, दान
इज्या —स्त्री॰—-—इज्य-टाप्—प्रतमा
इज्या —स्त्री॰—-—इज्य-टाप्—कुट्टिनी, दूतिका, गाय
इज्याशीलः —पुं॰—इज्या-शीलः—-—सदा यज्ञ करने वाला
इट्चरः —पुं॰—-—इषा कामेन चरति, इष्-क्विप्=इट्-चर्-अच्—बैल या बछड़ा जो स्वच्छन्दता पूर्वक घूमने के लिए छोड़ दिया जाय
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—पृथ्वी
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—भाषण
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—आहार
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—गाय
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—एक देवी का नाम, मनु की पुत्री
इडा —स्त्री॰—-—इल्-अच्, लस्य डत्वम्,टाप्—बुध की पत्नी तथा पुरूरवा की माता
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —पृथ्वी
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —भाषण
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —आहार
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —गाय
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —एक देवी का नाम, मनु की पुत्री
इला —स्त्री॰—-—इल्-अच्,टाप् —बुध की पत्नी तथा पुरूरवा की माता
इडिका —स्त्री॰—-—इडा-क, इत्वम्—पृथ्वी
इतर —सा॰वि॰—-—इना कामेन तरः इति, तृ-अप्—अन्य दूसरा, दो में से अवशिष्ट
इतर —सा॰वि॰—-—इना कामेन तरः इति, तृ-अप्—शेष या दूसरे
इतर —सा॰वि॰—-—इना कामेन तरः इति, तृ-अप्—दूसरा, से भिन्न
इतर —सा॰वि॰—-—इना कामेन तरः इति, तृ-अप्—विरोधी, या तो अकेला स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त होता है अथवा विशेषण के साथ, या समास के अन्त में
दक्षिणेतर —सा॰वि॰—दक्षिण-इतर—-—वायां
वामेतर —सा॰वि॰—वाम-इतर—-—दायां
इतर —सा॰वि॰—-—-—नीच, अधम, गंवार, सामान्य
इतरेतर —सा॰वि॰—इतर-इतर—-—पारस्परिक, स्व-स्व, अन्योन्य
इतराश्रयः —पुं॰—इतर-आश्रयः—-—पारस्परिक निर्भरता, अन्योन्य संबन्ध
इतरयोगः —पुं॰—इतर-योगः—-—पारस्परिक संबन्ध या मेल
इतरयोगः —पुं॰—इतर-योगः—-—द्वन्द्व समास का एक प्रकार, जहाँ कि प्रत्येक अंग पृथक् रूप से देखा जाता है
इतरतः —अव्य॰—-—इतर-तसिल्—अन्यथा, उससे भिन्न, अन्यत्र
इतरत्र —अव्य॰—-—इतर-त्रल्—अन्यथा, उससे भिन्न, अन्यत्र
इतरतथा —अव्य॰—-—इतर-थाल्—अन्य रीति से, और ढंग से
इतरतथा —अव्य॰—-—इतर-थाल्—प्रतिकूल रीति से
इतरतथा —अव्य॰—-—इतर-थाल्—दूसरी ओर
इतरेद्युः —अव्य॰—-—इतर-एद्युस्—अन्य दिन, दूसरे दिन
इतस् —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—अतः, यहाँ से, इधर से
इतस् —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—इस व्यक्ति से, मुझ से
इतस् —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—इस दिशा में, मेरी ओर, यहाँ
इतस् —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—इस लोक से
इतस् —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—इस समय से
इतःइतः —अव्य॰—-—इदम्-तसिल्—एक ओर, दूसरी ओर या एक स्थान में, दूसरे स्थान पर, यहाँ-वहाँ
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—यह अव्यय प्रायः किसी के द्वारा बोले गये,या बोले समझे गये शब्दों को वैसा का वैसा ही रख देने के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसको कि हम अंग्रेजी में अवतरणांश चिन्हों द्वारा प्रकट करते है, इस प्रकार कही गई बात हो सकती है
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—एक अकेला शब्द के स्वरूप में दर्शाने के लिए प्रयुक्त किया गया हो (शब्दस्वरूपद्योतक)
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—कोई प्रातिपदिक जो कि अपने अर्थों को संकेतित करने केलिए कर्तृकारक में प्रयुक्त होता है (प्रातिपादिकार्थद्योतक)
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—पूरा वाक्य जब कि 'इति' शब्द वाक्य के केवल अन्त में ही प्रयुक्त किया जाता है(वाक्यार्थद्योतक)
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—क्योंकि', 'यतः' कारण यह कि आदि शब्दों से व्यक्तीकरण
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—अभिप्राय या प्रयोजन
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—उपसंहार द्योतक
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—अतः,इस प्रकार, इस रीति से
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—इस स्वभाव या विवरण वाला
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—जैसा कि नीचे है, नीचे लिखे परिणामानुसार
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—जहाँ तक…., की हैसियत से, के विषय में
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—निदर्शन
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—मानी हुई सम्मति या उद्धरण
इति —अव्य॰—-—इ-क्तिन्—स्पष्टीकरण
इत्यर्थः —पुं॰—इति-अर्थः—-—भावार्थ, सार
इत्यर्थम् —अव्य॰—इति-अर्थम्—-—इस प्रयोजन के लिए, अतः
इतिकथा —स्त्री॰—इति-कथा—-—अर्थहीन या निरर्थक बात
इतिकर्तव्य —वि॰—इति-कर्तव्य—-—नियमतः उचित या आवश्यक
इतिकरणीय —वि॰—इति-करणीय—-—नियमतः उचित या आवश्यक
इतिकर्तव्यम् —नपुं॰—इति-कर्तव्यम्—-—कर्तव्य, दायित्व
इतिकरणीयम् —नपुं॰—इति-करणीयम्—-—कर्तव्य, दायित्व
इतिकर्तव्यता —स्त्री॰—इति-कर्तव्यता—-—कोई भी उचित या आवश्यक कार्य
इतिकार्यता —स्त्री॰—इति-कार्यता—-—कोई भी उचित या आवश्यक कार्य
इतिकृत्यता —स्त्री॰—इति-कृत्यता—-—कोई भी उचित या आवश्यक कार्य
इतिकर्तव्यतामूढः —पुं॰—इति-कर्तव्यतामूढः—-—किं कर्तव्य विमूढ, असमंजस में पड़ा हुआ, व्याकुल, हतबुद्धि
इतिमात्र —वि॰—इति-मात्र—-—इतने विस्तार वाला, या ऐसे गुण का
इतिवृत्तम् —नपुं॰—इति-वृत्तम्—-—घटना,बात
इतिवृत्तम् —नपुं॰—इति-वृत्तम्—-—कथा, कहानी
इतिह —अव्य॰—-—इति एवं ह किल, द्व०स० —ठीक इस प्रकार, बिल्कुल परंपरा के अनुरूप
इतिहासः —पुं॰—-—इति- ह-आस, अस् धातु, लिट् लकार, अन्य पु०ए०व०—इतिहास
इतिहासः —पुं॰—-—इति- ह-आस, अस् धातु, लिट् लकार, अन्य पु०ए०व१—वीर गाथा
इतिहासः —पुं॰—-—इति- ह-आस, अस् धातु, लिट् लकार, अन्य पु०ए०व२—ऐतिहासिक साक्ष्य, परंपरा
इतिहासनिबन्धनम् —नपुं॰—इतिहासः-निबन्धनम्—-—उपाख्यानयुक्त या वर्णनात्मक रचना
इत्थम् —अव्य॰—-—इदम्-थमु—इस लिए, अतः, इस रीति से
इत्थङ्कारम् —अव्य॰—इत्थम्-कारम्—-—इस प्रकार
इत्थम्भूत —वि॰—इत्थम्-भूत—-—इस प्रकार परिस्थितियों में फंसा हुआ, ऐसी दशा में ग्रस्त
इत्थम्भूत —वि॰—इत्थम्-भूत—-—सच्चा, यथातथ्य, सही
इत्थविध —वि॰—इत्थम्-विध—-—इस प्रकार का
इत्थविध —वि॰—इत्थम्-विध—-—इस प्रकार के गुणों से युक्त
इत्य —वि॰—-—इण्-क्यप्,तुक्—जिसके पास जाया जाय, जहाँ पहुँचना उपयुक्त हो
इत्या —वि॰—-—इण्-क्यप्,तुक्—जाना, मार्ग
इत्या —वि॰—-—इण्-क्यप्,तुक्—डोली, पालकी
इत्वर —वि॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—जाने वाला, यात्रा करने वाला, यात्री
इत्वर —वि॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—क्रूर, कठोर
इत्वर —वि॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—नीच, अधम
इत्वर —वि॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—घृणित, निन्द्य
इत्वर —वि॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—निर्धन
इत्वरः —पुं॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—हिजड़ा
इत्वरी —स्त्री॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—व्यभिचारिणी, कुलटा
इत्वरी —स्त्री॰—-—इण्-क्वरप्, तुक्—अभिसारिका
इदम् —सर्व॰वि॰—-—इन्द्-कमिन्—यह, जो यहाँ है
इदम् —सर्व॰वि॰—-—इन्द्-कमिन्—उपस्थित, वर्तमान
इदम् —सर्व॰वि॰—-—इन्द्-कमिन्—यह शब्द तुरन्त ही बाद में आने वाली वस्तु की ओर संकेत करता है जब कि 'एतद्' शब्द पूर्ववर्ती वस्तु की ओर
इदम् —सर्व॰वि॰—-—इन्द्-कमिन्—किसी वस्तु को अधिक स्पष्टतया या बलपूर्वक बतलाने या कई बार शब्दाधिक्य प्रकट करने के लिए यह शब्द यत्, तत्, एतद्, अदस्, किम्, अथवा किसी पुरुष वाचक सर्वनाम के साथ जुड़कर प्रयुक्त होता है
इदानीम् —अव्य॰—-—इदम्-दानीम्, इश् च—अब,इस समय, इस विषय में, अभी, अब भी
इदानीमपि —अव्य॰—-—-—अब भी, इस विषय में भी
इदानीन्तन —वि॰—-—-—वर्तमान, क्षणिक, वर्तमान कालिक
इद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—इन्ध-क्त—जला हुआ, प्रकाशित
इद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—इन्ध-क्त—धूप, गर्मी
इद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—इन्ध-क्त—दीप्ति चमक
इद्धम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—इन्ध-क्त—आश्चर्य
इध्मः —पुं॰—-—इध्यतेऽग्निरनेन, इन्ध-मक्—इंधन, विशेषकर वह् जो यज्ञाग्नि में काम आता है
इध्मम् —नपुं॰—-—इध्यतेऽग्निरनेन, इन्ध-मक्—इंधन, विशेषकर वह् जो यज्ञाग्नि में काम आता है
इध्मजिह्वः —पुं॰—इध्मः-जिह्वः—-—अग्नि
इध्मप्रवश्चनः —पुं॰—इध्मः-प्रवश्चनः—-—कुल्हाड़ी, कुठार (परशु)
इध्या —स्त्री॰—-—इन्ध्- क्यप्-टाप्—प्रज्वलन, प्रकाशन
इन —वि॰—-—इण्-नक्—योग्य, शक्ति शाली, बलवान्
इनः —पुं॰—-—इण्-नक्—स्वामी
इन्दिन्दिरः —पुं॰—-—इन्द्-किरच् नि०—बड़ी मधु-मक्खी
इन्दिरा —स्त्री॰—-—इन्द्-किरच् —लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी
इन्दिरालयम् —नपुं॰—इन्दिरा-आलयम्—-—इन्दिरा का आवास, नील कमल
इन्दिरामन्दिरः —पुं॰—इन्दिरा-मन्दिरः—-—विष्णु का विशेषण
इन्दिरामन्दिरम् —नपुं॰—इन्दिरा-मन्दिम्—-—नील कमल
इन्दीवरिणी —स्त्री॰—-—इन्दीवर-इनि-ङीप्—नील कमलों का समूह
इन्दीवारः —पुं॰—-—इन्द्याः वारो वरणम् अत्र, ब०स०—नील कमल
इन्दुः —पुं॰—-—उनत्ति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्, उन्द्-उ आदेरिच्च—चंन्द्रमा
इन्दुः —पुं॰—-—उनत्ति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्, उन्द्-उ आदेरिच्च—(गणित में) 'एक' की संख्या
इन्दुः —पुं॰—-—उनत्ति क्लेदयति चन्द्रिकया भुवनम्, उन्द्-उ आदेरिच्च—कपूर
इन्दुकमलम् —नपुं॰—इन्दुः-कमलम्—-—सफेद कमल
इन्दुकला —स्त्री॰—इन्दुः-कला—-—चन्द्रमा की कला या अंश
इन्दुकलिका —स्त्री॰—इन्दुः-कलिका—-—केतकी का पौधा
इन्दुकलिका —स्त्री॰—इन्दुः-कलिका—-—चन्द्रमा की एक कला
इन्दुकान्तः —पुं॰—इन्दुः-कान्तः—-—चन्द्रकान्तमणि
इन्दुकान्ता —स्त्री॰—इन्दुः-कान्ता—-—रात
इन्दुक्षयः —पुं॰—इन्दुः-क्षयः—-—चन्द्रमा का प्रतिदिन घटना
इन्दुक्षयः —पुं॰—इन्दुः-क्षयः—-—नूतन चन्द्र दिवस, प्रतिपदा
इन्दुजः —पुं॰—इन्दुः-जः—-—बुधग्रह
इन्दुपुत्रः —पुं॰—इन्दुः-पुत्रः—-—बुधग्रह
इन्दुजा —स्त्री॰—इन्दुः-जा—-—रेवा या नर्मदा नदी
इन्दुजनकः —पुं॰—इन्दुः-जनकः—-—समुद्र
इन्दुदलः —पुं॰—इन्दुः-दलः—-—चन्द्रमा की कला, अर्धचन्द्र
इन्दुभा —स्त्री॰—इन्दुः-भा—-—कुमुदिनी
इन्दुभृत् —पुं॰—इन्दुः-भृत्—-—मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाला देवता, शिव
इन्दुशेखरः —पुं॰—इन्दुः-शेखरः—-—मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाला देवता, शिव
इन्दुमौलिः —पुं॰—इन्दुः-मौलिः—-—मस्तक पर चन्द्र को धारण करने वाला देवता, शिव
इन्दुमणिः —पुं॰—इन्दुः-मणिः—-—चन्द्रकान्तमणि
इन्दुमण्डलम् —नपुं॰—इन्दुः-मण्डलम्—-—चन्द्रमा का परिवेश, चन्द्र मण्डल
इन्दुरत्नम् —नपुं॰—इन्दुः-रत्नम्—-—मोती
इन्दुलेखा —स्त्री॰—इन्दुः-लेखा—-—चन्द्रमा की कला
इन्दुरेखा —स्त्री॰—इन्दुः-रेखा—-—चन्द्रमा की कला
इन्दुलोहकम् —नपुं॰—इन्दुः-लोहकम्—-—चाँदी
इन्दुलौहम् —नपुं॰—इन्दुः-लौहम्—-—चाँदी
इन्दुवदना —स्त्री॰—इन्दुः-वदना—-—छन्द का नाम
इन्दुवासरः —पुं॰—इन्दुः-वासरः—-—सोमवार
इन्दुमती —स्त्री॰—-—इन्दु-मतुप्-ङीप्—पूर्णिमा
इन्दुमती —स्त्री॰—-—इन्दु-मतुप्-ङीप्—अज' की पत्नी, 'भोज' की बहन
इन्दूरः —पुं॰—-—इन्दु-र पृषो॰ ऊत्वम्—चूहा, मूसा
इन्द्रः —पुं॰—-—इन्द्-रन्, इन्दतीति इन्द्रः, इति ऐश्वर्ये @ मल्लि॰—देवों का स्वामी
इन्द्रः —पुं॰—-—-—वर्षा का देवता, वृष्टि
इन्द्रः —पुं॰—-—-—स्वामी या शासक (मनुष्यादिक का), प्रथम, श्रेष्ठ (पदार्थों के किसी वर्ग में)
इन्द्रा —स्त्री॰—-—-—इन्द्र की पत्नी, इन्द्राणी
इन्द्रानुजः —पुं॰—इन्द्रः-अनुजः—-—विष्णु और नारायण की उपाधि
इन्द्रावरजः —पुं॰—इन्द्रः-अवरजः—-—विष्णु और नारायण की उपाधि
इन्द्रारिः —पुं॰—इन्द्रः-अरिः—-—एक राक्षस
इन्द्रायुधम् —नपुं॰—इन्द्रः-आयुधम्—-—इन्द्र का शस्त्र, इन्द्रधनुष
इन्द्रकीलः —पुं॰—इन्द्रः-कीलः—-—मंदर' पर्वत का नाम
इन्द्रकीलः —पुं॰—इन्द्रः-कीलः—-—चट्टान
इन्द्रकीलम् —नपुं॰—इन्द्रः-कीलम्—-—इन्द्र की ध्वजा
इन्द्रकुञ्जरः —पुं॰—इन्द्रः-कुञ्जरः—-—इन्द्र का हाथी ऐरावत
इन्द्रकूटः —पुं॰—इन्द्रः-कूटः—-—एक पर्वत का नाम
इन्द्रकोशः —पुं॰—इन्द्रः-कोशः—-—कोच, सोफा
इन्द्रकोशः —पुं॰—इन्द्रः-कोशः—-—प्लैटफार्म या समतल बना चबूतरा
इन्द्रकोशः —पुं॰—इन्द्रः-कोशः—-—खूँटी या ब्रैकेट जो दीवार के साथ लगा हो
इन्द्रकोषः —पुं॰—इन्द्रः-कोषः—-—कोच, सोफा
इन्द्रकोषः —पुं॰—इन्द्रः-कोषः—-—प्लैटफार्म या समतल बना चबूतरा
इन्द्रकोषः —पुं॰—इन्द्रः-कोषः—-—खूँटी या ब्रैकेट जो दीवार के साथ लगा हो
इन्द्रकोषकः —पुं॰—इन्द्रः-कोषकः—-—कोच, सोफा
इन्द्रकोषकः —पुं॰—इन्द्रः-कोषकः—-—प्लैटफार्म या समतल बना चबूतरा
इन्द्रकोषकः —पुं॰—इन्द्रः-कोषकः—-—खूँटी या ब्रैकेट जो दीवार के साथ लगा हो
इन्द्रगिरिः —पुं॰—इन्द्रः-गिरिः—-—महेन्द्र पर्वत
इन्द्रगुरुः —पुं॰—इन्द्रः-गुरुः—-—इन्द्र का अध्यापक, अर्थात् बृहस्पति
इन्द्राचार्यः —पुं॰—इन्द्रः-आचार्यः—-—इन्द्र का अध्यापक, अर्थात् बृहस्पति
इन्द्रगोपः —पुं॰—इन्द्रः-गोपः—-—एक प्रकार का कीड़ा जो सफेद या लाल रंग का होता है
इन्द्रगोपकः —पुं॰—इन्द्रः-गोपकः—-—एक प्रकार का कीड़ा जो सफेद या लाल रंग का होता है
इन्द्रचापम् —नपुं॰—इन्द्रः-चापम्—-—इन्द्रधनुष
इन्द्रचापम् —नपुं॰—इन्द्रः-चापम्—-—इन्द्र की कमान
इन्द्रधनुस् —नपुं॰—इन्द्रः-धनुस्—-—इन्द्रधनुष
इन्द्रधनुस् —नपुं॰—इन्द्रः-धनुस्—-—इन्द्र की कमान
इन्द्रजालम् —नपुं॰—इन्द्रः-जालम्—-—एक शस्त्र जिसे अर्जुन ने प्रयुक्त किया था, युद्ध का दाँव-पेंच
इन्द्रजालम् —नपुं॰—इन्द्रः-जालम्—-—जादूगरी, बाजीगरी
ऐन्द्रजालिक —वि॰—इन्द्रः-जालिक—-—छद्मपूर्ण, अवास्तविक, भ्रमात्मक
ऐन्द्रजालिकः —पुं॰—इन्द्रः-जालिकः—-—जादूगर, बाजीगर
इन्द्रजित् —पुं॰—इन्द्रः-जित्—-—इन्द्र को जीतने वाला
इन्द्रजित् —पुं॰—इन्द्रः-जित्—-—रावण का पुत्र जो लक्ष्मण के द्वारा मारा गया
इन्द्रजित्हन्तृ —पुं॰—इन्द्रः-जित्हन्तृ—-—लक्ष्मण
इन्द्रजित्विजयिन् —पुं॰—इन्द्रः-जित्विजयिन्—-—लक्ष्मण
इन्द्रतूलम् —नपुं॰—इन्द्रः-तूलम्—-—रूई का गद्दा
इन्द्रतूलकम् —नपुं॰—इन्द्रः-तूलकम्—-—रूई का गद्दा
इन्द्रदारुः —पुं॰—इन्द्रः-दारुः—-—देवदारु का वृक्ष
इन्द्रनीलः —पुं॰—इन्द्रः-नीलः—-—नीलकान्तमणि
इन्द्रनीलकः —पुं॰—इन्द्रः-नीलकः—-—पन्ना
इन्द्रपत्नी —स्त्री॰—इन्द्रः-पत्नी—-—इन्द्र की पत्नी शची
इन्द्रपुरोहितः —पुं॰—इन्द्रः-पुरोहितः—-—बृहस्पति
इन्द्रप्रस्थम् —नपुं॰—इन्द्रः-प्रस्थम्—-—यमुना के किनारे स्थित एक नगर जहाँ पांडव रहते थे
इन्द्रप्रहरणम् —नपुं॰—इन्द्रः-प्रहरणम्—-—इन्द्र का शस्त्र, वज्र
इन्द्रभेषजम् —नपुं॰—इन्द्रः-भेषजम्—-—सोंठ
इन्द्रमहः —पुं॰—इन्द्रः-महः—-—इन्द्र के सम्मान में किया जाने वाला उत्सव
इन्द्रमहः —पुं॰—इन्द्रः-महः—-—बरसात
इन्द्रलोकः —पुं॰—इन्द्रः-लोकः—-—इन्द्र का संसार, स्वर्गलोक
इन्द्रवंशा —स्त्री॰—इन्द्रः-वंशा—-—छन्द का नाम
इन्द्रवज्रा —स्त्री॰—इन्द्रः-वज्रा—-—छन्द का नाम
इन्द्रशत्रुः —पुं॰—इन्द्रः-शत्रुः—-—इन्द्र का शत्रु या इन्द्र को मारने वाला, प्रह्लाद की उपाधि
इन्द्रशत्रुः —पुं॰—इन्द्रः-शत्रुः—-—इन्द्र जिसका शत्रु है, वृत्र का विशेषण
इन्द्रशलभः —पुं॰—इन्द्रः-शलभः—-—एक प्रकार का कीड़ा, वीरवहूटी
इन्द्रसुतः —पुं॰—इन्द्रः-सुतः—-—जयन्त का नाम
इन्द्रसुतः —पुं॰—इन्द्रः-सुतः—-—अर्जुन का नाम
इन्द्रसुतः —पुं॰—इन्द्रः-सुतः—-—वानरराज वालि का नाम
इन्द्रसूनुः —पुं॰—इन्द्रः-सूनुः—-—जयन्त का नाम
इन्द्रसूनुः —पुं॰—इन्द्रः-सूनुः—-—अर्जुन का नाम
इन्द्रसूनुः —पुं॰—इन्द्रः-सूनुः—-—वानरराज वालि का नाम
इन्द्रसेनानीः —पुं॰—इन्द्रः-सेनानीः—-—इन्द्र की सेनाओं का नेता, कार्तिकेय की उपाधि
इन्द्रकम् —नपुं॰—-—इन्द्रस्य राज्ञः कं सुखं यत्र - तारा०—सभा भवन, बड़ा कमरा
इन्द्राणी —स्त्री॰—-—इन्द्रस्य पत्नी आनुक्- ङीष्—इन्द्र की पत्नी, शची
इन्द्रियम् —नपुं॰—-—इन्द्र-घ-इय—बल, शक्ति
इन्द्रियम् —नपुं॰—-—इन्द्र-घ-इय—शरीर के वह अवयव जिनके द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है
इन्द्रियम् —नपुं॰—-—इन्द्र-घ-इय—शारीरिक या पुरुषोचित शक्ति, ज्ञानशक्ति
इन्द्रियम् —नपुं॰—-—इन्द्र-घ-इय—वीर्य
इन्द्रियम् —नपुं॰—-—इन्द्र-घ-इय—पांच की संख्या के लिए प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति
इन्द्रियागोचर —वि॰—इन्द्रियम्-अगोचर—-—जो दिखलाई न दे सके
इन्द्रियार्थः —पुं॰—इन्द्रियम्-अर्थः—-—इन्द्रियों के विषय
इन्द्रियायतनम् —नपुं॰—इन्द्रियम्-आयतनम्—-—इन्द्रियों का आवास अर्थात् शरीर
इन्द्रियगोचर —वि॰—इन्द्रियम्-गोचर—-—जो इन्द्रियों द्वारा देखा या जाना जा सके
इन्द्रियगोचरः —पुं॰—इन्द्रियम्-गोचरः—-—ज्ञान का विषय
इन्द्रियग्रामः —पुं॰—इन्द्रियम्-ग्रामः—-—इन्द्रियों का समूह, समष्टि रूप से ग्रहण की गई पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ
इन्द्रियवर्गः —पुं॰—इन्द्रियम्-वर्गः—-—इन्द्रियों का समूह, समष्टि रूप से ग्रहण की गई पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ
इन्द्रियज्ञानम् —नपुं॰—इन्द्रियम्-ज्ञानम्—-—चेतना, प्रत्यक्ष करने की शक्ति
इन्द्रियनिग्रहः —पुं॰—इन्द्रियम्-निग्रहः—-—ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण
इन्द्रियवधः —पुं॰—इन्द्रियम्-वधः—-—अज्ञेयता
इन्द्रियविप्रतिपत्तिः —स्त्री॰—इन्द्रियम्-विप्रतिपत्तिः—-—इन्द्रियों का उन्मार्गगमन
इन्द्रियसन्निकर्षः —पुं॰—इन्द्रियम्-सन्निकर्षः—-—ज्ञानेन्द्रिय का संपर्क
इन्द्रियस्वापः —पुं॰—इन्द्रियम्-स्वापः—-—अज्ञेयता, अचेतना, जड़िमा
इन्ध् —रु॰ आ॰ <इन्द्धे>, <इन्धे>, <इद्ध>—-—-—प्रज्वलित करना, जलाना, आग लगाना
इन्ध् —कर्मवा॰<इध्यते>—-—-—जलाया जाना, प्रदीप्त होना, लपटें उठना
समिन्ध् —रु॰ आ॰—सम्-इन्ध्—-—प्रज्वलित करना
इन्धः —पुं॰—-—इन्ध्-घञ्—इंधन
इन्धनम् —नपुं॰—-—इन्ध्-ल्युट्—प्रज्वलित करना, जलाना
इभः —पुं॰—-—इ-भन्, किच्च—हाथी
इभारिः —पुं॰—इभः-अरिः—-—सिंह
इभाननः —पुं॰—इभः-आननः—-—गणेश
इभनिमीलिका —स्त्री॰—इभः-निमीलिका—-—चतुराई, बुद्धिमत्ता, सतर्कता
इभपालकः —पुं॰—इभः-पालकः—-—महावत
इभपोटा —स्त्री॰—इभः-पोटा—-—अल्पवयस्का हथिनी
इभपोतः —पुं॰—इभः-पोतः—-—अल्पवयस्क हाथी, हाथी का बच्चा
इभयुवतिः —स्त्री॰—इभः-युवतिः—-—हथिनी
इभ्य —वि॰—-—इभं गजमर्हति- यत्—धनाढ्य, धनवान्
इभ्यक —वि॰—-—स्वार्थे कन्—धनाढ्य, धनी
इयत् —वि॰—-—इदम्-वतुप्—इतना अधिक, इतना बड़ा, इतने विस्तार का
इयत्ता —स्त्री॰—-—इयत्-तल्-टाप्—इतना, निश्चित माप या परिमाण
इयत्ता —स्त्री॰—-—इयत्-तल्-टाप्—सीमित संख्या, सीमा
इयत्ता —स्त्री॰—-—इयत्-तल्-टाप्—सीमा, मानक
इयत्वम् —नपुं॰—-—इयत्-त्वल्—इतना, निश्चित माप या परिमाण
इयत्वम् —नपुं॰—-—इयत्-त्वल्—सीमित संख्या, सीमा
इयत्वम् —नपुं॰—-—इयत्-त्वल्—सीमा, मानक
इरणम् —नपुं॰—-—ॠ-अण् पृषो॰—मरुस्थल
इरणम् —नपुं॰—-—-—रिहाली या लुनई भूमि, बंजर भूमि
इरम्मदः —पुं॰—-—इरया जलेन माद्यति वर्धते इति, इरा-मद्-खश्, ह्रस्वः मुम्—बिजली की कौंध, बिजली के गिरने से पैदा हुई आग
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा०—पृथ्वी
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा१—वक्तृता
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा२—वाणी के देवता सरस्वती
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा३—जल
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा४—आहार
इरा —स्त्री॰—-—इ-रन्, इं कामं राति, रा-क वा तारा५—मदिरा
इरेशः —पुं॰—इरा-ईशः—-—वरुण, विष्णु, गणेश
इराचरम् —नपुं॰—इरा-चरम्—-—ओला
इरावत् —पुं॰—-—इरा-मतुप्—समुद्र
इरिणम् —नपुं॰—-—ॠ-इनच्, किदिच्च—लुनई, भूमि, रिहाली जमीन
इर्वारु —वि॰—-—उर्व-आरु, पृषो०—नाशक, हिंसक
इर्वालु —वि॰—-—-—नाशक, हिंसक
इल् —तु॰ पर॰<इलति>,<इलित>—-—-—जाना, चलना-फिरना
इल् —तु॰ पर॰<इलति>,<इलित>—-—-—सोना
इल् —तु॰ पर॰<इलति>,<इलित>—-—-—फेंकना, भेजना, डालना
इल् —चु॰ उभ॰—-—-—जाना, चलना-फिरना
इल् —चु॰ उभ॰—-—-—फेंकना, भेजना, डालना
इला —स्त्री॰—-—इल्-क-टाप्—पृथ्वी
इला —स्त्री॰—-—इल्-क-टाप्—गाय
इला —स्त्री॰—-—इल्-क-टाप्—वक्तृता
इलागोलः —पुं॰—इला-गोलः—-—पृथ्वी, धरती, भूमंडल
इलागोलम् —नपुं॰—इला-गोलम्—-—पृथ्वी, धरती, भूमंडल
इलाधरः —पुं॰—इला-धरः—-—पहाड़
इलिका —स्त्री॰—-—इल्-कन्-इत्वम्—पृथ्वी, धरती
इल्वकाः —पुं॰—-—इल्-वल्, इल्-क्विप्-वलच् वा—मृगशिरा नक्षत्र के ऊपर स्थित पाँच तारे
इल्वलाः —पुं॰—-—-—मृगशिरा नक्षत्र के ऊपर स्थित पाँच तारे
इव —अव्य॰—-—इ-क्वन् वा०—की तरह, जैसा कि
इव —अव्य॰—-—इ-क्वन् वा१—मानों
इव —अव्य॰—-—इ-क्वन् वा२—कुछ, थोड़ा सा
इव —अव्य॰—-—इ-क्वन् वा३—संभवतः' 'बतलाइये तो' निस्सन्देह'
कइव —अव्य॰—-—-—किसी प्रकार का, किस भांति का
मुहुर्तमिव —अव्य॰—-—-—केवल क्षण भर के लिए
किञ्चिदिव —अव्य॰—-—-—जरा सा, थोड़ा सा
इशीका —स्त्री॰—-—-—सरकंडा, नरकुल
इष् —तु॰ पर॰<इच्छति>,<इष्ट>—-—-—कामना करना चाहना, प्रबल इच्छा होना
इष् —तु॰ पर॰<इच्छति>,<इष्ट>—-—-—छाँटना
इष् —तु॰ पर॰<इच्छति>,<इष्ट>—-—-—प्राप्त करने का प्रयत्न करना, तलाश करना, ढ़ूंढ़ना
इष् —तु॰ पर॰<इच्छति>,<इष्ट>—-—-—अनुकूल होना
इष् —तु॰ पर॰<इच्छति>,<इष्ट>—-—-—हाँ करना, स्वीकृति देना
इष् —भा॰वा॰—-—-—नियत किया जाना
अन्विष् —तु॰ पर॰—अनु-इष्—-—ढूंढना, कोशिश करना, प्रयत्न करना
अभीष् —तु॰ पर॰—अभि-इष्—-—जी करना, चाहना
परीष् —तु॰ पर॰—परि-इष्—-—ढूंढना
प्रतीष् —तु॰ पर॰—प्रति-इष्—-—प्राप्त करना, स्वीकार करना
इष् —दि॰पर॰<इष्यति>, <इषित>—-—-—जाना,चलना-फिरना
इष् —दि॰पर॰<इष्यति>, <इषित>—-—-—फैलाना
इष् —दि॰पर॰<इष्यति>, <इषित>—-—-—डालना, फेंकना
अन्विष् —दि॰पर॰—अनु-इष्—-—ढूँढना, ढूँढने के लिए जाना
प्रेष् —पुं॰—प्र-इष्—-—भेज देना, डाल देना, फेंक देना
प्रेष् —पुं॰—प्र-इष्—-—भेजना, प्रेषण करना
इष् —भ्वा॰ उभ॰<एषित>—-—-—जाना,चलना-फिरना
अन्विष् —भ्वा॰ उभ॰—अनु-इष्—-—अनुसरण करना
इषः —पुं॰—-—इष्-अच्—बलशाली, शक्ति सम्पन्न
इषः —पुं॰—-—इष्-अच्—आश्विन मास
इषिका —स्त्री॰—-—इष् गत्यादौ क्वुन् अत इत्वम्—सरकंडा, नरकुल
इषिका —स्त्री॰—-—इष् गत्यादौ क्वुन् अत इत्वम्—बाण
इषीका —स्त्री॰—-—इष् गत्यादौ क्वुन् अत इत्वम्—सरकंडा, नरकुल
इषीका —स्त्री॰—-—इष् गत्यादौ क्वुन् अत इत्वम्—बाण
इषिरः —पुं॰—-—इष्-किरच्—अग्नि
इषुः —पुं॰—-—इष्-उ—पाँच की संख्या
इष्वग्रम् —नपुं॰—इषुः-अग्रम्—-—बाण की नोक
इष्वनीकम् —नपुं॰—इषुः-अनीकम्—-—बाण की नोक
इष्वसनम् —नपुं॰—इषुः-असनम्—-—धनुष
इष्वस्त्रम् —नपुं॰—इषुः-अस्त्रम्—-—धनुष
इष्वासः —पुं॰—इषुः-आसः—-—धनुष
इष्वासः —पुं॰—इषुः-आसः—-—धनुर्धर, योद्धा
इषुकारः —पुं॰—इषुः-कारः—-—बाण बनाने वाला
इषुकृत् —पुं॰—इषुः-कृत्—-—बाण बनाने वाला
इषुधरः —पुं॰—इषुः-धरः—-—धनुर्धर
इषुभृत् —पुं॰—इषुः-भृत्—-—धनुर्धर
इषुपथः —पुं॰—इषुः-पथः—-—तीर जाने का स्थान, बाण का परास
इषुविक्षेपः —पुं॰—इषुः-विक्षेपः—-—तीर जाने का स्थान, बाण का परास
इषुप्रयोगः —पुं॰—इषुः-प्रयोगः—-—बाण छोड़ना, तीर चलाना
इषुधिः —पुं॰—-—इषु-धा-कि—तरकस
इष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—इष्-क्त—कामना किया गया, चाहा गया, जी से चाहा हुआ, अभिलषित
इष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—इष्-क्त—प्रिय, पसंद किया गया, अनुकूल, प्यारा
इष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—इष्-क्त—पूज्य, आदरणीय
इष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—इष्-क्त—प्रतिष्ठित, सम्मानित
इष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—इष्-क्त—उत्सृष्ट, यज्ञों से पूजा गया
इष्टः —पुं॰—-—इष्-क्त—प्रेमी, पति
इष्टम् —नपुं॰—-—इष्-क्त—चाह, इच्छा
इष्टम् —नपुं॰—-—इष्-क्त—संस्कार
इष्टम् —नपुं॰—-—इष्-क्त—यज्ञ
इष्टम् —अव्य॰—-—-—स्वेच्छापूर्वक
इष्टार्थः —पुं॰—इष्ट-अर्थः—-—अभीष्ट पदार्थ
इष्टापत्तिः —स्त्री॰—इष्ट-आपत्तिः—-—चाही हुई बात का होना, वादी का वक्तव्य जो प्रतिवादी के भी अनुकूल हो
इष्टगन्ध —वि॰—इष्ट-गन्ध—-—सुगन्ध युक्त
इष्टगन्धः —पुं॰—इष्ट-गन्धः—-—सुगन्धित पदार्थ
इष्टगन्धम् —नपुं॰—इष्ट-गन्धम्—-—रेत
इष्टदेवः —पुं॰—इष्ट-देवः—-—अनुकूल देव, अभिभावक देव
इष्टदेवता —स्त्री॰—इष्ट-देवता—-—अनुकूल देव, अभिभावक देव
इष्टका —स्त्री॰—-—इष्-तकन्—ईंट
इष्टकागृहम् —नपुं॰—इष्टका-गृहम्—-—ईंटों का घर
इष्टकाचित —वि॰—इष्टका-चित—-—ईंटों से बना
इष्टकान्यासः —पुं॰—इष्टका-न्यासः—-—घर की नींव रखना
इष्टकापथः —पुं॰—इष्टका-पथः—-—ईंटों से बना मार्ग
इष्टापूर्तम् —समाहार द्व॰ स॰ पूर्वपददीर्घः—-—-—याज्ञिक पुण्य कार्यों का अनुष्ठान, कूएँ खोदना तथा दूसरे धर्मकार्यों का सम्पादन
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—कामना, प्रार्थना, इच्छा
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—इच्छुक होना या कोशिश करना
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—अभीष्ट पदार्थ
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—अभीष्ट नियम या आवश्यकता की पूर्ति
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—आवेग, शीघ्रता
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—आमंत्रण, आदेश
इष्टिः —स्त्री॰—-—इष्-क्तिन्—यज्ञ
इष्टिपचः —पुं॰—इष्टिः-पचः—-—कंजूस
इष्टिपशुः —पुं॰—इष्टिः-पशुः—-—यज्ञ में बलि दिया जाने वाला जानवर
इष्टिका —स्त्री॰—-—इष्ट-तिकन्-टाप्—ईंट आदि
इष्मः —पुं॰—-—इष्-मक्—कामदेव
इष्मः —पुं॰—-—इष्-मक्—वसन्त ऋतु
इष्यः —पुं॰—-—इष्-क्यप्—वसन्त ऋतु
इष्यम् —नपुं॰—-—इष्-क्यप्—वसन्त ऋतु
इस् —अव्य॰—-—इ कामं स्यति, सो-क्विप् नि० ओलोपः—क्रोध, पीड़ा और शोक की भावना को अभिव्यक्त करने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय
इह —अव्य॰—-—इदम्-ह इशादेशः—यहाँ(काल, स्थान या दिशा की ओर संकेत करते हुए), इस स्थान पर, इस दशा में
इह —अव्य॰—-—इदम्-ह इशादेशः—इस लोक में
इहामुत्र —अव्य॰—इह-अमुत्र—-—इस लोक में और परलोक में, यहाँ और वहाँ
इहलोकः —पुं॰—इह-लोकः—-—यह संसार या जीवन
इहस्थ —वि॰—इह-स्थ—-—यहाँ विद्यमान
इहत्य —वि॰—-—इह-त्यप्—यहाँ रहने वाला, इस स्थान का, इस लोक का
ई —अव्य॰—-—-—प्रत्यक्षज्ञान या चेतना
ई —अव्य॰—-—-—तथा संबोधन की भावना को अभिव्यक्त करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय
ई —दिवा॰ आ॰<ईयते>—-—-—जाना
ई —अदा॰ पर॰—-—-—व्याप्त होना
ई —अदा॰ पर॰—-—-—चाहना, कामना करना
ई —अदा॰ पर॰—-—-—प्रार्थना करना
ई —अदा॰ आ॰—-—-—गर्भवती होना
ईक्ष् —भ्वा॰आ॰<ईक्षते>,<ईक्षित>—-—-—देखना, ताकना, आलोचना करना, अवलोकन करना, टकटकी लगा कर देखना या घूरना
ईक्ष् —भ्वा॰आ॰<ईक्षते>,<ईक्षित>—-—-—खयाल रखना, विचारना, समझना
ईक्ष् —भ्वा॰आ॰<ईक्षते>,<ईक्षित>—-—-—हिसाब में लगाना, परवाह करना
ईक्ष् —भ्वा॰आ॰<ईक्षते>,<ईक्षित>—-—-—सोचना, विचार करना
ईक्ष् —भ्वा॰आ॰<ईक्षते>,<ईक्षित>—-—-—सावधान रहना या किसी के भले बुरे का ध्यान करना
अधीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अधि-ईक्ष्—-—आशंका करना
अन्वीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अनु-ईक्ष्—-—ध्यान में रखना, खोज करना, ढूँढना, पूछ-ताछ करना
अपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अप-ईक्ष्—-—प्रतीक्षा करना, इंतजार करना
अपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अप-ईक्ष्—-—आवश्यकता होना, जरूरत होना, कमी होना
अपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अप-ईक्ष्—-—सावधान रहना, खयाल रखना, ध्यान रखना
अपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अप-ईक्ष्—-—हिसाब में लगाना, सोचना, विचार करना, आदर करना
अभिवीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अभिवि-ईक्ष्—-—की ओर देखना
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—दृष्टि डालना, प्रेक्षण करना, अवलोकन करना
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—निशाना लगाना, ध्यान में रखना
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—सम्मान करना
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—मेरे सम्मान की खातिर
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—रखवाली करना, रक्षा करना
अवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—अव-ईक्ष्—-—सोचना, विचारना
उदीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उद्-ईक्ष्—-—ढूँढना, खोजना, देखना
उदीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उद्-ईक्ष्—-—प्रतीक्षा करना
उत्प्रेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उत्प्र-ईक्ष्—-—आशा करना, भविष्य में देखना
उत्प्रेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उत्प्र-ईक्ष्—-—अनुमान लगाना, अंदाज करना
उत्प्रेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उत्प्र-ईक्ष्—-—विश्वास करना, सोचना
उद्वीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उद्वि-ईक्ष्—-—मुँह ताकना
उपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उप-ईक्ष्—-—अवहेलना करना, नजर अंदाज करना परवाह न करना
उपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उप-ईक्ष्—-—भाग जाने देना, जाने देना, टालमटोल करना
उपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—उप-ईक्ष्—-—ध्यान से देखना, विचारना
निरीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—निर्-ईक्ष्—-—टकटकी लगाकर देखना, पूरी तरह से देखना
निरीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—निर्-ईक्ष्—-—ढूँढना, खोजना
परीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—परि-ईक्ष्—-—जांच करना, ध्यानपूर्वक जांच पड़ताल करना
परीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—परि-ईक्ष्—-—परीक्षण करना, जाँच करना, परीक्षा लेना
प्रेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—प्र-ईक्ष्—-—देखना, ताकना, प्रत्यक्ष करना
प्रतीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—प्रति-ईक्ष्—-—इन्तजार करना
प्रतिवीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—प्रतिवि-ईक्ष्—-—प्रत्यवलोकन करना
वीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—वि-ईक्ष्—-—देखना, ताकना
व्यपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—व्यप-ईक्ष्—-—ध्यान करना, खयाल रखना, सम्मान करना
समीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—सम्-ईक्ष्—-—देखना, ताकना
समीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—सम्-ईक्ष्—-—चिन्तन करना, विचार करना, हिसाब में लगाना
समीक्ष् —भ्वा॰ आ॰—सम्-ईक्ष्—-—ध्यानपूर्वक जांचना
समवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—समव-ईक्ष्—-—देखना, निरीक्षण करना
समवेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—समव-ईक्ष्—-—सोचना
समुपेक्ष् —भ्वा॰ आ॰—समुप-ईक्ष्—-—अवहेलना करना,निरादर करना
ईक्षकः —पुं॰—-—ईक्ष्-ण्वुल्—दर्शक
ईक्षणम् —नपुं॰—-—ईक्ष्-ल्युट्—देखना, ताकना
ईक्षणम् —नपुं॰—-—ईक्ष्-ल्युट्—दृष्टि, दृश्य
ईक्षणम् —नपुं॰—-—ईक्ष्-ल्युट्—आँख
ईक्षणिकः —पुं॰—-—ईक्षण-ठन्—ज्योतिषी, भविष्यवक्ता
ईक्षतिः —पुं॰—-—ईक्ष्-शतिप्—देखना, दृष्टि
ईक्षा —स्त्री॰—-—ईक्ष्-अ-टाप्—दृश्य
ईक्षा —स्त्री॰—-—ईक्ष्-अ-टाप्—नजर डालना, विचार करना
ईक्षिका —स्त्री॰—-—ईक्ष् - ण्वुल्, ईक्षा - कन् - टाप् वा इत्वम्—आँख
ईक्षिका —स्त्री॰—-—ईक्ष् - ण्वुल्, ईक्षा - कन् - टाप् वा इत्वम्—झाँकना, झलक
ईक्षित —भू॰ क॰ कृ॰—-—ईक्ष् - क्त—देखा हुआ, ताका हुआ, खयाल किया हुआ
ईक्षितम् —नपुं॰—-—ईक्ष् - क्त—दृष्टि, दृश्य
ईक्षितम् —नपुं॰—-—ईक्ष् - क्त—आँख
ईख् —भ्वा॰पर॰<ईखति,ईंखति>,<ईखित,ईंखित>—-—-—जाना, हिलना-डुलना, डाँवाडोल होना
ईख् —भ्वा॰पर॰<ईखति,ईंखति>,<ईखित,ईंखित>—-—-—हिलना
ईख् —भ्वा॰पर॰प्रेर॰ —-—-—झुलना, घूमना
ईङ्ख् —भ्वा॰पर॰<ईखति,ईंखति>,<ईखित,ईंखित>—-—-—जाना, हिलना-डुलना, डाँवाडोल होना
ईङ्ख् —भ्वा॰पर॰<ईखति,ईंखति>,<ईखित,ईंखित>—-—-—हिलना
ईङ्ख् —भ्वा॰पर॰प्रेर॰ —-—-—झुलना, घूमना
प्रेङ्ख् —भ्वा॰पर॰—प्र-ईख्—-—हिलाना, डगमगाना
ईज् —भ्वा॰आ॰—-—-—निन्दा करना, कलंक लगाना
इञ्ज —भ्वा॰आ॰—-—-—निन्दा करना, कलंक लगाना
ईड् —अदा॰आ॰<ईडे>,<ईडित>—-—-—स्तुति करना
ईडा —स्त्री॰—-—ईड्-अ-टाप्—स्तुति, प्रशंसा
ईड्य —सं॰ कृ॰—-—ईड्-ण्यत्—प्रशंसनीय
ईतिः —स्त्री॰—-—ई-क्तिच्—महामारी, दुःख, मौसम, संकट
ईतिः —स्त्री॰—-—ई-क्तिच्—संक्रामक रोग
ईतिः —स्त्री॰—-—ई-क्तिच्—विदेश में घूमना, विदेश यात्रा
ईतिः —स्त्री॰—-—ई-क्तिच्—दंगा
ईदृक्ता —स्त्री॰—-—ईदृश्-तल्-टाप्—गुण
ईदृक्ष —वि॰—-—-—ऐसा, इस प्रकार का, इस पहलू का, ऐसे गुणों से युक्त
ईदृश —वि॰—-—-—ऐसा, इस प्रकार का, इस पहलू का, ऐसे गुणों से युक्त
ईप्सा —स्त्री॰—-—आप्तुमिच्छा, आप्-सन्-अ—प्राप्त करने की इच्छा
ईप्सा —स्त्री॰—-—आप्तुमिच्छा, आप्-सन्-अ—कामना, इच्छा
ईप्सित —वि॰—-—आप्-सन्-क्त—इच्छित, अभिलषित, प्रिय
ईप्सितम् —नपुं॰—-—आप्-सन्-क्त—इच्छा, कामना
ईप्सु —वि॰—-—आप्-सन्-उ—प्राप्त करने का प्रयत्न करने वाला, ग्रहण करने की कामना या इच्छा करने वाला
ईर् —अदा॰आ॰<ईर्ते>,<ईर्ण>—-—-—जाना, हिलना-डुलना, हिलाना
ईर् —अदा॰आ॰<ईर्ते>,<ईर्ण>—-—-—उठना, निकलना, उगना
ईर् —भ्वा॰पर॰<ईरित>—-—-—जाना, हिलना-डुलना, हिलाना
ईर् —भ्वा॰पर॰<ईरित>—-—-—उठना, निकलना, उगना
ईर् —चुरा॰उभ॰ <ईरयति>, <ईरित>—-—-—फेंकना, छोड़ना, तीर चलाना, डालना
ईर् —चुरा॰उभ॰ <ईरयति>, <ईरित>—-—-—कहना, उच्चारण करना, दोहराना
ईर् —चुरा॰उभ॰ <ईरयति>, <ईरित>—-—-—चलाना, हिलना-डुलना, हिलाना
ईर् —चुरा॰उभ॰ <ईरयति>, <ईरित>—-—-—नियुक्त करना, काम लेना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—उठना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—कहना, उच्चारण करना, कथन करना, बोलना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—आगे प्रस्तुत करना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—फेंकना,लुढकाना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—उठना
उदीर् —अदा॰आ॰—उद्-ईर्—-—प्रदर्शन करना, प्रकाशित करना
प्रेर् —अदा॰आ॰—प्र-ईर्—-—डालना, फेंकना
प्रेर् —अदा॰आ॰—प्र-ईर्—-—प्रेरित करना, धकेलना
प्रेर् —अदा॰आ॰—प्र-ईर्—-—उकसाना, भड़काना, चलाना
समीर् —अदा॰आ॰—सम्-ईर्—-—कहना
समीर् —अदा॰आ॰—सम्-ईर्—-—हिलाना, हिलना-डुलना
समुदीर् —अदा॰आ॰—समुद्-ईर्—-—कहना, बोलना
ईरणः —पुं॰—-—ईर्-ल्युट्—वायु
ईरणम् —नपुं॰—-—ईर्-ल्युट्—क्षुब्ध करने वाला, हिलाने वाला, चलाने वाला
ईरणम् —नपुं॰—-—ईर्-ल्युट्—जाने वाला
ईरणम् —नपुं॰—-—ईर्-ल्युट्—मरुस्थल
ईरणम् —नपुं॰—-—ईर्-ल्युट्—रिहाली या लुनई भूमि, बंजर भूमि
ईरिण —वि॰—-—ईर्-इनन्—मरुस्थल, बंजर
ईरिणम् —नपुं॰—-—ईर्-इनन्—ऊसर, बंजर भूमि
ईर्क्ष्य् ——-—-—डाह करना, ईर्ष्यालू होना, दूसरों की सफलता को देखकर असहिष्णु होना
ईर्मम् —नपुं॰—-—ईर्-मक्—घाव
ईर्या —स्त्री॰—-—ईर्-ण्यत्-टाप्—इधर उधर घूमना
ईर्वारुः —पुं॰—-—ईरु ऋ-उण् बा०—ककड़ी
ईर्षा —स्त्री॰—-—ईर्ष्य् - घञ्, यलोपः—डाह, जलन, दूसरों की सफलता को देखकर जलन पैदा होना
ईर्ष्य् —भ्वा॰पर॰ <ईर्ष्यति>, <ईर्ष्यित>—-—-—डाह करना, ईर्ष्यालू होना, दूसरों की सफलता को देखकर असहिष्णु होना
ईर्ष्य —वि॰—-—ईर्ष्य् - अच्—डाह करने वाला, ईर्ष्यालु
ईर्ष्यु —वि॰—-—ईर्ष्य् - उण्—डाह करने वाला, ईर्ष्यालु
ईर्ष्यक —वि॰—-—ईर्ष्य् - ण्वुल्—डाह करने वाला, ईर्ष्यालु
ईर्ष्या —स्त्री॰—-—ईर्ष्य् - अप्—डाह, जलन, दूसरों की सफलता को देखकर जलन पैदा होना
ईर्ष्यालु —वि॰—-—ईर्ष्य्-आलुच्—डाह करने वाला, असहिष्णु
ईर्षालु —वि॰—-—ईर्ष्य्-आलुच्, यलोपः—डाह करने वाला, असहिष्णु
ईर्ष्यु —वि॰—-—ईर्ष्य्- उ—डाह करने वाला, असहिष्णु
ईर्षु —वि॰—-—ईर्ष्य्- उ, यलोपः—डाह करने वाला, असहिष्णु
ईलिः —स्त्री॰—-—ईड्- कि डस्य लः—एक हथियार, डंडा, छोटी तलवार
ईली —स्त्री॰—-—-—एक हथियार, डंडा, छोटी तलवार
ईश् —अदा॰ आ॰ <ईष्टे>, <ईशित>—-—-—राज्य करना, स्वामी होना, शासन करना, आदेश देना
ईश् —अदा॰ आ॰ <ईष्टे>, <ईशित>—-—-—योग्य होना, शक्ति रखना
ईश् —अदा॰ आ॰ <ईष्टे>, <ईशित>—-—-—स्वामी होना, अधिकार में करना
ईश —वि॰—-—ईश्-क—अपनाने वाला, स्वामी, मालिक
ईशः —पुं॰—-—-—मालिक, स्वामी
ईशा —स्त्री॰—-—-—ऐश्वर्यशालिनी स्त्री, धनाढ्य महिला
ईशकोणः —पुं॰—ईश-कोणः—-—उत्तर पूर्व दिशा
ईशपुरी —स्त्री॰—ईश-पुरी—-—बनारस, वाराणसी
ईशनगरी —स्त्री॰—ईश-नगरी—-—बनारस, वाराणसी
ईशसखः —पुं॰—ईश-सखः—-—कुबेर का विशेषण
ईशानः —पुं॰—-—ईश् - ताच्छील्ये चानच्—शासक, स्वामी, मालिक
ईशिता —स्त्री॰—-—ईशिनो भावः, ईशिन्-तल्-टाप्—सर्वोपरिता, महत्त्व, शिव की आठ सिद्धियों में एक
ईशित्वम् —नपुं॰—-—ईशिनो भावः, ईशिन्-त्वल्—सर्वोपरिता, महत्त्व, शिव की आठ सिद्धियों में एक
ईश्वर —वि॰—-—-—शक्तिसम्पन्न, योग्य, समर्थ
ईश्वर —वि॰—-—-—धनाढ्य, दौलतमंद
ईश्वरः —पुं॰—-—-—मालिक, स्वामी
ईश्वरः —पुं॰—-—-—राजा, राजकुमार, शासक
ईश्वरः —पुं॰—-—-—धनाढ्य या बड़ा आदमी
ईश्वरा —स्त्री॰—-—-—दुर्गा
ईश्वरी —स्त्री॰—-—-—दुर्गा
ईश्वरनिषेधः —पुं॰—ईश्वरः-निषेधः—-—परमात्मा के अस्तित्व को न मानना, नास्तिकता
ईश्वरपूजक —वि॰—ईश्वरः-पूजक—-—पुण्यात्मा, भक्त
ईश्वरसद्मन् —नपुं॰—ईश्वरः-सद्मन्—-—मन्दिर
ईश्वरसभम् —नपुं॰—ईश्वरः-सभम्—-—राजकीय दरबार या सभा
ईष् —भ्वा॰उभ॰ <ईषति>, <ईषते>,<ईषित>—-—-—उड़ जाना
ईष् —भ्वा॰उभ॰ <ईषति>, <ईषते>,<ईषित>—-—-—देखना, नजर डालना
ईष् —भ्वा॰उभ॰ <ईषति>, <ईषते>,<ईषित>—-—-—देना
ईष् —भ्वा॰उभ॰ <ईषति>, <ईषते>,<ईषित>—-—-—मार डालना
ईषः —पुं॰—-—ईष्-क—आश्विन मास
ईषत् —अव्य॰—-—ईष्-अति—जरा, कुछ सीमा तक, थोंड़ा सा
ईषदुष्ण —वि॰—ईषत्-उष्ण—-—गुनगुना
ईषत्कर —वि॰—ईषत्-कर—-—थोड़ा करने वाला, अनायास पूरा हो जाने वाला
ईषज्जलम् —नपुं॰—ईषत्-जलम्—-—उथला पानी
ईषत्पाण्डु —वि॰—ईषत्-पाण्डु—-—हल्का पीला, कुछ सफेद
ईषत्पुरुषः —पुं॰—ईषत्-पुरुषः—-—अधम और घृणित व्यक्ति
ईषत्रक्त —वि॰—ईषत्-रक्त—-—पीला लाल, हल्का लाल
ईषल्लभ —वि॰—ईषत्-लभ—-—थोड़े से में सुलभ
ईषत्प्रलम्भ —वि॰—ईषत्-प्रलम्भ—-—थोड़े से में सुलभ
ईषद्हासः —पुं॰—ईषत्-हासः—-—थोड़ी हंसी, मुस्कराहट
ईषा —स्त्री॰—-—ईष्-क-टाप्—गाड़ी की फड़
ईषा —स्त्री॰—-—ईष्-क-टाप्—हलस
ईषिका —स्त्री॰—-—ईषा-कन्, इत्वम्—हाथी की आँख की पुतली
ईषिका —स्त्री॰—-—ईषा-कन्, इत्वम्—रंगसाज की कूँची
ईषिका —स्त्री॰—-—ईषा-कन्, इत्वम्—हथियार, तीर, बाण
ईषिरः —पुं॰—-—ईष्-किरच्—अग्नि, आग
ईषीका —स्त्री॰—-—ईष्-क्वुन्, इत्वम्, दीर्घश्च—रंगसाज की कूँची
ईषीका —स्त्री॰—-—ईष्-क्वुन्, इत्वम्, दीर्घश्च—ईंट
ईषीका —स्त्री॰—-—ईष्-क्वुन्, इत्वम्, दीर्घश्च—इषीका
ईष्मः —पुं॰—-—इष्-मक्—कामदेव
ईष्मः —पुं॰—-—इष्-मक्—वसन्त ऋतु
ईह् —भ्वा॰ आ॰ <ईहते>, <ईहित>—-—-—कामना करना, चाहना, सोचना
ईह् —भ्वा॰ आ॰ <ईहते>, <ईहित>—-—-—प्राप्त करने का प्रयत्न करना
ईह् —भ्वा॰ आ॰ <ईहते>, <ईहित>—-—-—लक्ष्य बनाना, प्रयत्न करना, प्रयास करना, कोशिश करना
समीह् —भ्वा॰ आ॰—सम्-ईह्—-—कामना करना, इच्छा करना
समीह् —भ्वा॰ आ॰—सम्-ईह्—-—करने का प्रयत्न करना, कोशिश करना
ईहा —स्त्री॰—-—ईह्-अ—कामना, इ़च्छा
ईहा —स्त्री॰—-—-—प्रयत्न, प्रयास, चेष्टा
ईहामृगः —पुं॰—-—ईहा-मृगः—भेड़िया
ईहामृगः —पुं॰—-—ईहा-मृगः—नाटक का एक खंड जिसमें ४ अंक होते हैं,
ईहावृकः —पुं॰—-—ईहा-वृकः—भेड़िया
ईहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—ईह्-क्त—चाहा हुआ, खोजा हुआ, प्रयत्न किया हुआ
ईहितम् —नपुं॰—-—ईह्-क्त—कामना, इ़च्छा
ईहितम् —नपुं॰—-—ईह्-क्त—प्रयत्न प्रयास
ईहितम् —नपुं॰—-—ईह्-क्त—अध्यवसाय, कार्य, कृत्य
उः —पुं॰—-—अत्+डु—शिव का नाम, ओम् के तीन अक्षरों में से दूसरा
उः —अव्य॰—-—-—पूरक के रूप में काम आने वाला अव्यय
उः —अव्य॰—-—-—निम्न अर्थों को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय
उः —अव्य॰—-—-—प्रश्नवाचकता या केवल
उक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वच्+क्त—कहा हुआ, बोला हुआ
उक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वच्+क्त—कथित, बताया हुआ
उक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वच्+क्त—बोला हुआ, संबोधित
उक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—वच्+क्त—वर्णन किया गया, बयान किया हुआ
उक्तम् —नपुं॰—-—-—भाषण, शब्दसमुच्चय, वाक्य
उक्तानुक्त —वि॰—उक्त-अनुक्त—-—कहा और बिना कहा हुआ
उक्तोपसंहारः —पुं॰—उक्त-उपसंहारः—-—संक्षिप्त वर्णन, सारांश, इतिश्री
उक्तनिर्वाहः —पुं॰—उक्त-निर्वाहः—-—कही बात का निर्वाह करना
उक्तपुंस्कः —पुं॰—उक्त-पुंस्कः—-—ऐसा शब्द जो पुं॰ भी हो, और जिसका पुं॰ से भिन्न अर्थ लिङ्ग की भावना से ही प्रकट होता है
उक्तप्रत्युक्त —वि॰—उक्त-प्रत्युक्त—-—भाषण और उत्तर, व्याख्यान
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—भाषण, अभिव्यक्ति, वक्तव्य
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—वाक्य
उक्तिः —स्त्री॰—-—वच्+क्तिन्—अभिव्यक्त करने की शक्ति, शब्द की अभिव्यञ्जनाशक्ति
उक्थम् —नपुं॰—-—वच्+थक्—कथन, वाक्य,स्तोत्र
उक्थम् —नपुं॰—-—वच्+थक्—अतुति, प्रशंसा
उक्थम् —नपुं॰—-—वच्+थक्—सामवेद
उक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—-—-—छिड़कना, गीला करना, तर करना, बरसाना
उक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—-—-—निकालना, विकीर्ण करना
अभ्युक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—अभि-उक्ष्—-—पवित्र तथा अभिमंत्रित जल छिड़कना
पर्युक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—परि-उक्ष्—-—इधर-उधर छिड़कना
प्रोक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—प्र-उक्ष्—-—पवित्र जल के छींटे देकर अभिमंत्रित करना
संप्रोक्ष् —भ्वा॰ उभ॰—संप्र-उक्ष्—-—जल के छींटों से अभिमंत्रित करना
उक्षणम् —नपुं॰—-—उक्ष्+ल्युट्—छिड़काव
उक्षणम् —नपुं॰—-—उक्ष्+ल्युट्—छींटे देकर अभिमंत्रित करना
उक्षन् —पुं॰—-—उक्ष्+कनिन्—बैल या साँड़
उक्षन्तरः —पुं॰—उक्षन्-तरः—-—छोटा बैल
उख् —भ्वा॰ पर॰—-—-—जाना, हिलना-डुलना
उङ्ख् —भ्वा॰ पर॰—-—-—जाना, हिलना-डुलना
उखा —स्त्री॰—-—उख्+क+टाप्—पतीली, डेगची
उख्य —वि॰—-—उखायां संस्कृतम् यत्—पतीली में उबाला हुआ
उग्र —वि॰—-—उच्+रन् गश्चान्तादेशः—भीषण, क्रूर, हिंस्र जंगली
उग्र —वि॰—-—उच्+रन् गश्चान्तादेशः—प्रबल, डरावना, भयानक, भयंकर
उग्र —वि॰—-—उच्+रन् गश्चान्तादेशः—शक्तिशाली, मजबूत, दारुण, तीव्र, अत्यन्त गर्म
उग्र —वि॰—-—उच्+रन् गश्चान्तादेशः—तीक्ष्ण, प्रचण्ड, गर्म
उग्र —वि॰—-—उच्+रन् गश्चान्तादेशः—ऊँचा, भद्र
उग्रः —पुं॰—-—-—शिव या रुद्र
उग्रः —पुं॰—-—-—वर्णसंकर जाति
उग्रगन्ध —वि॰—उग्र-गन्ध—-—तीक्ष्ण गंध वाला
उग्रगन्धः —पुं॰—उग्र-गन्धः—-—चम्पक वृक्ष, लहसुन
उग्रचारिणी —स्त्री॰—उग्र-चारिणी—-—दुर्गा देवी
उग्रचण्डा —स्त्री॰—उग्र-चण्डा—-—दुर्गा देवी
उग्रजाति —वि॰—उग्र-जाति—-—नीच वंश में उत्पन्न, जारज
उग्रदर्शनरूप —वि॰—उग्र-दर्शनरूप—-—घोर दर्शन वाला, भयानक दृष्टि वाला
उग्रधन्वन् —वि॰—उग्र-धन्वन्—-—मजबत धनुष को धारण करने वाला
उग्रधन्वन् —पुं॰—उग्र-धन्वन्—-—शिव, इन्द्र
उग्रशेखरा —स्त्री॰—उग्र-शेखरा—-—शिव की चोटी, गंगा
उग्रसेनः —पुं॰—उग्र-सेनः—-—मथुरा का राजा और कंस का पिता
उग्रम्पश्य —वि॰—-—उग्र+दृश्+खश्, मुमागमः—भीषण दृष्टि वाला, डरावना, विकराल
उच् —दिवा॰ पर॰—-—-—संचय करना, एकत्र करना
उच् —दिवा॰ पर॰—-—-—शौकीन होना, प्रसन्नता अनुभव करना
उच् —दिवा॰ पर॰—-—-—उचित या योग्य होना, अभ्यस्त होना
उचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उच्+क्त—योग्य, ठीक, सही, उपयुक्त
उचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उच्+क्त—प्रचलित, प्रथानुरूप
उचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उच्+क्त—अभ्यस्त, प्रचलित
उचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उच्+क्त—प्रशंसनीय
उच्च —वि॰—-—उद्+चित्+ड—ऊँचा, लम्बा, उन्नत, उत्कृष्ट
उच्च —वि॰—-—उद्+चित्+ड—ऊँचा, ऊँची आवाज वाला
उच्च —वि॰—-—उद्+चित्+ड—तीव्र, दारुण, घोर
उच्चतरुः —पुं॰—उच्च-तरुः—-—नारियल का पेड़
उच्चतालः —पुं॰—उच्च-तालः—-—ऊंचा संगीत, नृत्य आदि
उच्चनीच —वि॰—उच्च-नीच—-—ऊँचा नीचा, विविध
उच्चललाटा —स्त्री॰—उच्च-ललाटा—-—ऊँचे मस्तक वाली स्त्री
उच्चटिका —स्त्री॰—उच्च-टिका—-—ऊँचे मस्तक वाली स्त्री
उच्चसंश्रय —वि॰—उच्च-संश्रय—-—ऊँचा पद ग्रहण करने वाला
उच्चकैः —अव्य॰—-—उच्चैस्+अकच्—ऊँचा, ऊँचाई पर, उत्तुंग
उच्चकैः —अव्य॰—-—उच्चैस्+अकच्—ऊँचे स्वर वाला
उच्चक्षुस् —वि॰, ब॰ स॰—-—-—ऊपर को आँखें किए हुए, ऊपर की ओर देखते हुए
उच्चक्षुस् —वि॰, ब॰ स॰—-—-—जिसकी आँखें निकाल दी गई हों, अंधा
उच्चण्ड —वि॰, पुं॰—-—-—भीषण, भयानक, उग्र
उच्चण्ड —वि॰, पुं॰—-—-—फुर्तीला
उच्चण्ड —वि॰, पुं॰—-—-—ऊँची आवाज वाला
उच्चण्ड —वि॰, पुं॰—-—-—क्रोधी, चिड़चिड़ा
उच्चन्द्रः —पुं॰—-—उच्छिष्टः चंद्रो यत्र —रात का अन्तिम पहर
उच्चयः —पुं॰—-—उद्+चि+अच्—संग्रह, राशि, समुदाय
उच्चयः —पुं॰—-—उद्+चि+अच्—एकत्र करना, संचय करना
उच्चयः —पुं॰—-—उद्+चि+अच्—स्त्री के ओढ़ने की गाँठ
उच्चयः —पुं॰—-—उद्+चि+अच्—समृद्धि, अभ्युदय
उच्चरणम् —नपुं॰—-—उद्+चर्+ल्युट्—ऊपर या बाहर जाना
उच्चरणम् —नपुं॰—-—उद्+चर्+ल्युट्—उच्चारण करना
उच्चल —वि॰—-—उद्+चल्+अच्—हिलने डुलने वाला
उच्चलम् —नपुं॰—-—उद्+चल्+अच्—मन
उच्चलनम् —नपुं॰—-—उद्+चल्+ल्युट्—चले जाना, कूच करना
उच्चलित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+चल्+क्त—चलने के लिए तत्पर, प्रस्थान करने वाला
उच्चाटनम् —नपुं॰—-—उद्+चट्+णिच्+ल्युट्—हाँक कर बाहर करना
उच्चाटनम् —नपुं॰—-—उद्+चट्+णिच्+ल्युट्—वियोग
उच्चाटनम् —नपुं॰—-—उद्+चट्+णिच्+ल्युट्—दूर हटाना, उन्मुलन
उच्चाटनम् —नपुं॰—-—उद्+चट्+णिच्+ल्युट्—एक प्रकार का जादू-टोना
उच्चाटनम् —नपुं॰—-—उद्+चट्+णिच्+ल्युट्—जादूमंत्र चलाना, शत्रु का नाश करना
उच्चारः —पुं॰—-—उद्+चर्+णिच्+घञ्—कथन, उच्चारण, उद्घोषणा
उच्चारः —पुं॰—-—उद्+चर्+णिच्+घञ्—विष्ठा, गोबर
उच्चारः —पुं॰—-—उद्+चर्+णिच्+घञ्—छोड़ना
उच्चारणम् —नपुं॰—-—उद्+चर्+णिच्+ल्युट्—बोलना, कथन करना
उच्चारणम् —नपुं॰—-—उद्+चर्+णिच्+ल्युट्—उद्घोषणा, उदीरणा
उच्चावच —वि॰—-—मयूरव्यंसकादिगण - उदक् च अवाक् च—ऊँचा, नीचा, अनियमित
उच्चावच —वि॰—-—मयूरव्यंसकादिगण - उदक् च अवाक् च—विविध, विभिन्न
उच्चूडः —पुं॰—-—उद्गता चूड़ा यस्य —ध्वजा पर फहराने वाला झण्डा, ध्वज
उच्चैः —अव्य॰—-—उद्+चि+डैस्—उत्तुंग, ऊँचा, ऊँचाई पर, ऊपर
उच्चैः —अव्य॰—-—उद्+चि+डैस्—ऊँची आवाज से, कोलाहलपूर्वक
उच्चैः —अव्य॰—-—उद्+चि+डैस्—प्रबलता से, अत्यन्त, अत्यधिक
उच्चैः —अव्य॰—-—उद्+चि+डैस्—उन्नत, कुलीन
उच्चैः —अव्य॰—-—उद्+चि+डैस्—पूज्य, प्रमुख, प्रसिद्ध
उच्चैर्घुष्टम् —नपुं॰—उच्चैः-घुष्टम्—-—हंगामा, हल्लागुल्ला, गुलगपाड़ा
उच्चैर्घुष्टम् —नपुं॰—उच्चैः-घुष्टम्—-—ऊँची आवाज में की गई घोषणा
उच्चैर्वादः —पुं॰—उच्चैः-वादः—-—बड़ी प्रशंसा
उच्चैश्शिरस् —वि॰—उच्चैः-शिरस्—-—उदाराशय, महानुभाव
उच्चैश्श्रवस् —वि॰—उच्चैः-श्रवस्—-—बड़े कानों वाला
उच्चैश्श्रवस् —वि॰—उच्चैः-श्रवस्—-—बहरा
उच्चैश्श्रवस् —पुं॰—उच्चैः-श्रवस्—-—इन्द्र का घोड़ा
उच्चैश्श्रवस —वि॰—उच्चैः-श्रवस—-—बड़े कानों वाला
उच्चैश्श्रवस —वि॰—उच्चैः-श्रवस—-—बहरा
उच्चैश्श्रवस —पुं॰—उच्चैः-श्रवस—-—इन्द्र का घोड़ा
उच्चैस्तमाम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तमप्+आम्—अत्यन्त ऊँचा
उच्चैस्तमाम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तमप्+आम्—बहुत ऊँचे स्वर से
उच्चैस्तरम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तरप्+आम् च—ऊँचे स्वर से
उच्चैस्तरम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तरप्+आम् च—अत्यन्त ऊँचा
उच्चैस्तराम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तरप्+आम् च—ऊँचे स्वर से
उच्चैस्तराम् —अव्य॰—-—उच्चैस्+तरप्+आम् च—अत्यन्त ऊँचा
उच्छ् —तुदा॰ पर॰—-—-—बांधना
उच्छ् —तुदा॰ पर॰—-—-—पूरा करना
उच्छ् —तुदा॰ पर॰—-—-—छोड़ देना, त्याग देना
उच्छन्न —वि॰—-—उद्+छ्द्+क्त—नष्ट किया हुआ, उखाड़ा हुआ
उच्छन्न —वि॰—-—उद्+छ्द्+क्त—लुप्त
उच्छलत् —शत्रन्त - वि॰—-—उद्+शल्+शतृ—चमकता हुआ, इधर-उधर हुलता-डुलता हुआ
उच्छलत् —शत्रन्त - वि॰—-—उद्+शल्+शतृ—हिलता-डुलता, चलता-फिरता
उच्छलत् —शत्रन्त - वि॰—-—उद्+शल्+शतृ—ऊपर को उड़ता हुआ, ऊपर ऊँचाई पर जाता हुआ
उच्छ्लनम् —नपुं॰—-—उद्+शल्+ल्युट्—ऊपर को जाना, सरकना या उड़ना
उच्छादनम् —नपुं॰—-—उद्+शल्+णिच्+ल्युट्—चादर, ढकना
उच्छादनम् —नपुं॰—-—उद्+शल्+णिच्+ल्युट्—तेल मलना, लेप या उबटन से शरीर पोतना
उच्छासन —वि॰—-—उत्क्रान्तः शासनम्—नियंत्रण में न रहने वाला, निरंकुश, उद्दंड
उच्छास्त्र —वि॰—-—उद्गतः शास्त्रात् - ग॰ स॰—शास्त्र के विरुद्ध आचरण करने वाला
उच्छास्त्र —वि॰—-—उद्गतः शास्त्रात् - ग॰ स॰—विधि-ग्रंथों का उल्लंघन करने वाला
उच्छास्त्रवर्तिन् —वि॰—-—उद्गतः शास्त्रात् - ग॰ स॰—शास्त्र के विरुद्ध आचरण करने वाला
उच्छास्त्रवर्तिन् —वि॰—-—उद्गतः शास्त्रात् - ग॰ स॰—विधि-ग्रंथों का उल्लंघन करने वाला
उच्छिख —वि॰—-—उद्गता शिखा यस्य—शिखा युक्त
उच्छिख —वि॰—-—उद्गता शिखा यस्य—चमकीला, जिसकी ज्वाला ऊपर की ओर जा रही हो
उच्छित्तिः —स्त्री॰—-—उद्+छिद्+क्तिन्—मूलोच्छेदन, विनाश
उच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+छिद्+क्त—मूलोच्छिन्न, विनष्ट, उखाड़ा हुआ
उच्छिन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+छिद्+क्त—नीच, अधम
उच्छिरस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नतं शिरोऽस्य —ऊँची गर्दन वाला
उच्छिरस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नतं शिरोऽस्य —उन्नत
उच्छिरस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नतं शिरोऽस्य —कुलीन, श्रेष्ठ, महानुभाव
उच्छिलीन्ध्र —वि॰, ब॰ स॰—-—-—कुकुरमुत्ता से भरा स्थान
उच्छिलीन्ध्रम् —नपुं॰—-—-—कुकुरमुत्ता, साँप की छतरी
उच्छिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उत्+शिष्+क्त—शेष, बचा हुआ
उच्छिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उत्+शिष्+क्त—अस्वीकृत, त्यक्त
उच्छिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उत्+शिष्+क्त—बासी, उच्छिष्ट कल्पना, पुराने विचार या आविष्कार
उच्छिष्टम् —नपुं॰—-—उत्+शिष्+क्त—जूठन, खंड, अवशिष्ट
उच्छिष्टान्नम् —नपुं॰—उच्छिष्ट-अन्नम्—-—जूठन, भुक्तावशेष
उच्छिष्टमोदनम् —नपुं॰—उच्छिष्ट-मोदनम्—-—मोम
उच्छीर्षकम् —नपुं॰—-—उत्थापितं शीर्षं यस्मिन्—तकिया
उच्छीर्षकम् —नपुं॰—-—उत्थापितं शीर्षं यस्मिन्—सिर
उच्छुष्क —वि॰—-—उद्+शुष्+क्त तस्य कः—सूखा, मुर्झाया हुआ
उच्छुन —वि॰—-—उद्+शिव+क्त—सूजा हुआ
उच्छुन —वि॰—-—उद्+शिव+क्त—मोटा
उच्छुन —वि॰—-—उद्+शिव+क्त—ऊँचा, उत्तुंग
उच्छृङ्खल —वि॰—-—उद्गतः श्रृङ्खलातः - ब॰ स॰—बेलगाम, अनियंत्रित, निरंकुश
उच्छृङ्खल —वि॰—-—उद्गतः श्रृङ्खलातः - ब॰ स॰—स्वेच्छाचारी
उच्छृङ्खल —वि॰—-—उद्गतः श्रृङ्खलातः - ब॰ स॰—अनियमित, क्रमहीन
उच्छेदः —पुं॰—-—उद्+छिद्+घञ्—काट कर फेंक देना
उच्छेदः —पुं॰—-—उद्+छिद्+घञ्—मूलोच्छेदन, उखाड़ देना, काम तमाम कर देना
उच्छेदः —पुं॰—-—उद्+छिद्+घञ्—अपच्छेदन
उच्छेदनम् —नपुं॰—-—उद्+छिद्+ल्युट् —काट कर फेंक देना
उच्छेदनम् —नपुं॰—-—उद्+छिद्+ल्युट् —मूलोच्छेदन, उखाड़ देना, काम तमाम कर देना
उच्छेदनम् —नपुं॰—-—उद्+छिद्+ल्युट् —अपच्छेदन
उच्छेषः —पुं॰—-—उद्+शिष्+घञ्—अवशेष
उच्छेषणम् —नपुं॰—-—उद्+शिष्+ल्युट्—अवशेष
उच्छोषण —वि॰—-—उद्+शुष्+णिच्+ल्युट्—सुखाने वाला, मुर्झा देने वाला
उच्छोषण —वि॰—-—उद्+शुष्+णिच्+ल्युट्—जलना
उच्छोषणम् —नपुं॰—-—उद्+शुष्+णिच्+ल्युट्—सुखा देना, कुम्हलाना, मुर्झाना
उच्छ्र्यः —पुं॰—-—उद्+श्रि+अच्—उदय होना
उच्छ्र्यः —पुं॰—-—उद्+श्रि+अच्—उठाना, उत्थापन
उच्छ्र्यः —पुं॰—-—उद्+श्रि+अच्—ऊँचाई, उत्सेध
उच्छ्र्यः —पुं॰—-—उद्+श्रि+अच्—विकास, वृद्धि, गहनता
उच्छ्र्यः —पुं॰—-—उद्+श्रि+अच्—घमंड
उच्छ्रायः —पुं॰—-—उद्+श्रि+घञ् —उदय होना
उच्छ्रायः —पुं॰—-—उद्+श्रि+घञ् —उठाना, उत्थापन
उच्छ्रायः —पुं॰—-—उद्+श्रि+घञ् —ऊँचाई, उत्सेध
उच्छ्रायः —पुं॰—-—उद्+श्रि+घञ् —विकास, वृद्धि, गहनता
उच्छ्रायः —पुं॰—-—उद्+श्रि+घञ् —घमंड
उच्छ्र्यणम् —नपुं॰—-—उद्+श्रि+ल्युट्—उन्नयन, उत्थापन
उच्छ्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्रि+क्त—उठाया हुआ, उत्थापित
उच्छ्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्रि+क्त—ऊपर गया हुआ, उद्गत्
उच्छ्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्रि+क्त—ऊँचा, लम्बा,उत्तुंग उन्नत, पैदा किया हुआ, जात
उच्छ्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्रि+क्त—वर्धमान, समृद्ध बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप
उच्छ्रित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्रि+क्त—अभिमानी
उच्छ्रितिः —स्त्री॰—-—-—उच्छ्र्यः
उच्छवसनम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+ल्युट्—सांस लेना, आह भरना
उच्छवसनम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+ल्युट्—गहरी साँस लेना
उच्छ्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्वस्+क्त—गहरी साँस लेना, सांस लेना
उच्छ्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्वस्+क्त—मुंह से भाप बाहर निकलना
उच्छ्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्वस्+क्त—पूरा खिला हुआ, विवृत
उच्छ्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्वस्+क्त—तरोताजा
उच्छ्वसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+श्वस्+क्त—आश्वसित
उच्छ्वसितम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+क्त—सांस, प्राण
उच्छ्वसितम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+क्त—प्रफुल्ल, फुँक मारना
उच्छ्वसितम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+क्त—साँस बाहर निकालना
उच्छ्वसितम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+क्त—गहरी सांस लेना, उभार, धड़कन
उच्छ्वसितम् —नपुं॰—-—उद्+श्वस्+क्त—शरीर में रहने वाले पाँच प्राण
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—सांस, सांस अन्दर खींचना, सांस बाहर निकालना
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—प्राणों का आश्रय
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—आह भरना
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—आश्वासन, प्रोत्साहन
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—फूंकनी
उच्छ्वासः —पुं॰—-—उद्+श्वस्+घञ्—पुस्तक का खंड या भाग
उच्छ्वासिन् —वि॰—-—उच्छ्वास+इनि—सांस लेने वाला
उच्छ्वासिन् —वि॰—-—उच्छ्वास+इनि—गहरी सांस लेने वाला, आह भरने वाला
उच्छ्वासिन् —वि॰—-—उच्छ्वास+इनि—मिटने वाला, मुर्झाने वाला
उज्जयनी —स्त्री॰—-—-—एक नगर का नाम, मालवा प्रदेश में वर्तमान उज्जैन, हिन्दुओं की सात पुण्य नगरियों में से एक
उज्जयिनी —स्त्री॰—-—-—एक नगर का नाम, मालवा प्रदेश में वर्तमान उज्जैन, हिन्दुओं की सात पुण्य नगरियों में से एक
उज्जासनम् —नपुं॰—-—उद्+जस्+णिच्+ल्युट्—मारना, हत्या करना
उज्जिहान —वि॰—-—उद्+हा+शानच्—ऊपर जाता हुआ, उदय होता हुआ
उज्जिहान —वि॰—-—उद्+हा+शानच्—बिदा होता हुआ, बाहर जाता हुआ
उज्जृम्भ —वि॰, ब॰ स॰—-—-—फूँक भरा हुआ, फुलाया हुआ
उज्जृम्भ —वि॰, ब॰ स॰—-—-—दरारदार, खुला हुआ
उज्जृम्भः —पुं॰—-—-—विवर, फुलाव, फूँक मारना
उज्जृम्भः —पुं॰—-—-—तोड़ कर टुकड़े करना, जुदा-जुदा करना
उज्जृम्भा —स्त्री॰—-—उद्+जृम्भ्+अ+ टाप्—जम्हाई लेना
उज्जृम्भा —स्त्री॰—-—उद्+जृम्भ्+अ+ टाप्—मुंह बाना
उज्जृम्भा —स्त्री॰—-—उद्+जृम्भ्+अ+ टाप्—फैलाना, वृद्धि
उज्जृम्भणम् —नपुं॰—-—उद्+जृम्भ्+ल्युट् —जम्हाई लेना
उज्जृम्भणम् —नपुं॰—-—उद्+जृम्भ्+ल्युट् —मुंह बाना
उज्जृम्भणम् —नपुं॰—-—उद्+जृम्भ्+ल्युट् —फैलाना, वृद्धि
उज्जय् —वि॰—-—उद्गता ज्या यस्य - ब॰ स॰—वह धनुर्धर जिसके धनुष की डोरी खुली हुई हो
उज्ज्वल —वि॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—उजला, चमकीला, कांतियुक्त
उज्ज्वल —वि॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—प्रिय, सुन्दर
उज्ज्वल —वि॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—फूँक भरा हुआ, फुलाया हुआ
उज्ज्वल —वि॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—अनियंत्रित
उज्ज्वलः —पुं॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—प्रेम, राग
उज्ज्वलम् —नपुं॰—-—उद्+ज्वल्+अच्—सोना
उज्ज्वलनम् —नपुं॰—-—उद्+ज्वल्+ल्युट्—जलना, चमकना
उज्ज्वलनम् —नपुं॰—-—उद्+ज्वल्+ल्युट्—कान्ति, दीप्ति
उज्झ् —तुदा॰ पर॰—-—-—त्यागना, छोड़ना, तिलांजलि देना
उज्झ् —तुदा॰ पर॰—-—-—टालना, बचना
उज्झ् —तुदा॰ पर॰—-—-—उत्सर्जन करना, बाहर निकालना
उज्झकः —पुं॰—-—उज्झ्+ण्वुल—बादल
उज्झकः —पुं॰—-—उज्झ्+ण्वुल—भक्त
उज्झनम् —नपुं॰—-—उज्झ्+ल्युट्—त्यागना, दूर करना, छोड़ना
उञ्छ् —तुदा॰ पर॰—-—-—बालें इकट्ठी करना, बीनना
उञ्छः —पुं॰—-—उञ्छ्+घञ्—बालें इकट्ठी करना या अनाज के दाने बीनना
उञ्छम् —नपुं॰—-—उञ्छ्+घञ्—बालें इकट्ठी करना
उञ्छवृत्ति —वि॰—उञ्छः-वृत्ति—-—जो शिलोंछन से अपनी जीविका चलाता है, खेत में बचे अनाज के कणों को चुन कर पेट भरने वाला
उञ्छशील —वि॰—उञ्छः-शील—-—जो शिलोंछन से अपनी जीविका चलाता है, खेत में बचे अनाज के कणों को चुन कर पेट भरने वाला
उञ्छनम् —नपुं॰—-—उञ्छ्+ल्युट्—खेत मं पड़े अनाज के दानों को एकत्र करना
उटजः —पुं॰—उटम्-जः—उटेभ्यो जायते—झोपड़ी, कुटिया, आश्रम
उटजम् —नपुं॰—उटम्-जम्—उटेभ्यो जायते—झोपड़ी, कुटिया, आश्रम
उडुः —स्त्री॰—-—ऊड्+कु बा—नक्षत्र, तारा
उडु —नपुं॰—-—ऊड्+कु बा—नक्षत्र, तारा
उडुचक्रम् —नपुं॰—उडुः-चक्रम्—-—राशि-चक्र
उडुपः —पुं॰—उडुः-पः—-—लट्ठों का बना बेड़ा
उडुपम् —नपुं॰—उडुः-पम्—-—लट्ठों का बना बेड़ा
उडुपः —पुं॰—उडुः-पः—-—चन्द्रमा
उडुपतिः —पुं॰—उडुः-पतिः—-—चन्द्रमा
उडुराज् —पुं॰—उडुः-राज्—-—चन्द्रमा
उडुपथः —पुं॰—उडुः-पथः—-—आकाश, अन्तरिक्ष
उडुम्बरः —पुं॰—-—उं शम्भुं वृणोति - उ+वृ+खच्, मुम् उत्कृष्टः उम्बरः - प्रा॰ स॰ दस्य डत्वम्—गूलर का वृक्ष
उडुम्बरः —पुं॰—-—उं शम्भुं वृणोति - उ+वृ+खच्, मुम् उत्कृष्टः उम्बरः - प्रा॰ स॰ दस्य डत्वम्—घर की देहली या ड्यौढ़ी
उडुम्बरः —पुं॰—-—उं शम्भुं वृणोति - उ+वृ+खच्, मुम् उत्कृष्टः उम्बरः - प्रा॰ स॰ दस्य डत्वम्—हिजड़ा
उडुम्बरः —पुं॰—-—उं शम्भुं वृणोति - उ+वृ+खच्, मुम् उत्कृष्टः उम्बरः - प्रा॰ स॰ दस्य डत्वम्—एक प्रकार का कोढ़
उडुम्बरम् —नपुं॰—-—-—गूलर का फल
उडुम्बरम् —नपुं॰—-—-—तांबा
उड्डयनम् —नपुं॰—-—उद्+डी+ल्युट्—ऊपर उड़ना, उड़ान लेना
उड्डामरः —वि॰—-—-—रुचिकर, श्रेष्ठ
उड्डामरः —वि॰—-—-—प्रबल, भयावह
उड्डीन —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+डी+क्त—उड़ा हुआ, ऊपर उड़ता हुआ
उड्डीनम् —नपुं॰—-—उद्+डी+क्त—ऊपर उड़्ना, उड़ान लेना
उड्डीनम् —नपुं॰—-—उद्+डी+क्त—पक्षियों की एक विशेष उड़ान
उड्डीयनम् —नपुं॰—-—उड्डः स इव आचरति - क्यङ्, उड्डीय+ल्युट्—उड़ान
उड्डीशः —पुं॰—-—उद्+डी+क्विप् - उड्डी तस्य ईशः—शिव
उड्रः —पुं॰—-—उड्+रक्—देश का नाम, वर्तमान उड़ीसा
उण्डेरकः —पुं॰—-—-—आटे का लड्डू, गोला, रोटी
उत् —अव्य॰—-—उ+क्विप्—सन्देह
उत् —अव्य॰—-—उ+क्विप्—प्रश्न वाचकता
उत् —अव्य॰—-—उ+क्विप्—सोचविचार
उत् —अव्य॰—-—उ+क्विप्—तीव्रता
उत —अव्य॰—-—उ+क्त—सन्देह, अनिश्तता, अनुमान, विकल्प, साहचर्य, संयोग, प्रश्नवाचकता
प्रत्युत —अव्य॰—प्रति-उत—-—इसके विपरीत, दूसरी ओर, बल्कि
किमुत —अव्य॰—किम्-उत—-—कितना अधक, कितना कम
उतथ्यः —पुं॰—-—-—अंगिरा का पुत्र, तथा बृहस्पति का बड़ा भाई
उतथ्यानुजः —पुं॰—उतथ्य-अनुजः—-—बृहस्पति, देवताओं का गुरु
उतथ्यानुजन्मन् —पुं॰—उतथ्य-अनुजन्मन्—-—बृहस्पति, देवताओं का गुरु
उत्क —वि॰—-—उद्-स्वार्थे कन्—इच्छुक, लालायित, उत्कंठित
उत्क —वि॰—-—उद्-स्वार्थे कन्—खिद्यमान, दुःखी, शोकान्वित
उत्क —वि॰—-—उद्-स्वार्थे कन्—उन्मना
उत्कञ्चुक —वि॰, ब॰ स॰—-—-—बिना अंगिया पहने या बिना कवच धारण किए हुए
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—बड़ा, प्रशस्त
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—शक्तिशाली, ताकतवर, भीषण
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—अत्यधिक, ज्यादह
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—भरपूर, समृद्ध
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—मदिरासेवी, मदमत्त, उन्मत्त, मदोत्कट
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—श्रेष्ठ, उत्तम
उत्कट —वि॰—-—उद्+कटच्—विषम
उत्कटः —पुं॰—-—उद्+कटच्—हाथी के मस्तक से बहने वाला मद
उत्कटः —पुं॰—-—उद्+कटच्—मदयुक्त हाथी
उत्कण्ठ —वि॰—-—उन्नतः कण्ठो यस्य—गर्दन ऊपर को उठाये हुए, तत्पर, तैयार करने के लिए उत्सुक
उत्कण्ठ —वि॰—-—उन्नतः कण्ठो यस्य—चिन्तातुर, उत्सुक
उत्कण्ठः —पुं॰—-—उन्नतः कण्ठो यस्य—संभोग करने की एक रीति
उत्कण्ठा —स्त्री॰—-—उन्नतः कण्ठो यस्य—संभोग करने की एक रीति
उत्कण्ठा —स्त्री॰—-—उद्+कण्ठ्+अ+टाप्—चिन्तातुरता, बेचैनी
उत्कण्ठा —स्त्री॰—-—उद्+कण्ठ्+अ+टाप्—प्रिय वस्तु या प्रियतम पाने की लालसा
उत्कण्ठा —स्त्री॰—-—उद्+कण्ठ्+अ+टाप्—खेद, शोक, किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का लुप्त हो जाना
उत्कण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+कण्ठ्+क्त—चिन्तातुर, व्यथित होनेवाला, शोकान्वित
उत्कण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+कण्ठ्+क्त—किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति के लिए लालायित
उत्कण्ठिता —स्त्री॰—-—उद्+कण्ठ्+क्त—अपने अनुपस्थित प्रेमी या पति से मिलने की प्रबल लालसा रखने वाली नायिका, आठ नायिकाओं में से एक
उत्कन्धर —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नतः कन्धरोऽस्य —गर्दन ऊपर उठाये हुए, उद्ग्रीव
उत्कम्प —वि॰, ब॰ स॰—-—-—कांपता हुआ
उत्कम्पः —पुं॰—-—-—कांपना, कंपकंपी, क्षोभ
उत्कम्पनम् —नपुं॰—-—-—कांपना, कंपकंपी, क्षोभ
उत्करः —पुं॰—-—उद्+कृ+अप्—ढेर, समुच्चय
उत्करः —पुं॰—-—उद्+कृ+अप्—अम्बर, चट्टा
उत्करः —पुं॰—-—उद्+कृ+अप्—मलबा
उत्कर्करः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का वाद्य-उपकरण, बाजा
उत्कर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+कृत्+ल्युट्—काट दे्ना, फाड़ देना
उत्कर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+कृत्+ल्युट्—उखाड़ देना, मूलोच्छेदन
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—ऊपर को खींचना
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—उन्नति, प्रमुखता, उदय, समृद्धि
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—वृद्धि, बहुतायत, अधिकता
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—उत्कृष्टता, सर्वोपरि गुण, यश
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—अहंमन्यता, शेखी
उत्कर्षः —पुं॰—-—उद्+कृष्+घञ्—प्रसन्नता
उत्कर्षणम् —नपुं॰—-—उद्+कृष्+ल्युट्—ऊपर खींचना, ऊपर लेना, ऊपर करना
उत्कलः —पुं॰—-—उद्+कल्+अच्—एक देश का नाम, वर्तमान उड़ीसा या उस देश के निवासी
उत्कलः —पुं॰—-—उद्+कल्+अच्—बहेलिया, चिड़ीमार
उत्कलः —पुं॰—-—उद्+कल्+अच्—कुली
उत्कलाप् —वि॰, ब॰ स॰—-—-—पूंछ फैलाये हुए और सीधी उठाये हुए
उत्कलिका —स्त्री॰—-—उद्+कल्+वुन्—चिन्तातुरता, बेचैनी
उत्कलिका —स्त्री॰—-—उद्+कल्+वुन्—लालसा करना, खेद प्रकाश करना, किसी वस्तु या व्यक्ति का लुप्त हो जाना
उत्कलिका —स्त्री॰—-—उद्+कल्+वुन्—काम क्रीड़ा, हेला
उत्कलिका —स्त्री॰—-—उद्+कल्+वुन्—कली
उत्कलिका —स्त्री॰—-—उद्+कल्+वुन्—तरंग
उत्कलिकाप्रायम् —नपुं॰—उत्कलिका-प्रायम्—-—गद्यरचना का एक प्रकार जिसमें समास बहुत हों तथा कठोर वर्ण हों
उत्कष्णम् —नपुं॰—-—उद्+कष्+ल्युट्—फाड़ना, ऊपर को खींचना
उत्कष्णम् —नपुं॰—-—उद्+कष्+ल्युट्—जोतना, खींचकर ले जाना
उत्कष्णम् —नपुं॰—-—उद्+कष्+ल्युट्—रगड़ना
उत्कारः —पुं॰—-—उद्+कृ+घञ्—अनाज फटकना
उत्कारः —पुं॰—-—उद्+कृ+घञ्—अनाज की ढेरी लगाना
उत्कारः —पुं॰—-—उद्+कृ+घञ्—अनाज बोने वाला
उत्कासः —पुं॰—-—उत्क्+अस्+अण्, ल्युट्, ण्वुल् वा—खखारना, गले को साफ करना
उत्कासनम् —नपुं॰—-—उत्क्+अस्+अण्, ल्युट्, ण्वुल् वा—खखारना, गले को साफ करना
उत्कासिका —स्त्री॰—-—उत्क्+अस्+अण्, ल्युट्, ण्वुल् वा—खखारना, गले को साफ करना
उत्किर —वि॰—-—उद्+कृ+श—हवा में उड़ता हुआ, ऊपर को बिखरता हुआ, धारण करता हुआ
उत्कीर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+कृ+ल्युट्—प्रशंसा करना, कीर्तिगान करना
उत्कीर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+कृ+ल्युट्—घोषणा करना
उत्कुटम् —नपुं॰—-—उन्नतः कुटो यत्र —ऊपर की ओर मुँह करके लेटना या सोना, चित लेटना
उत्कुणः —पुं॰—-—उत्+कुण्+क—खटमल
उत्कुणः —पुं॰—-—उत्+कुण्+क—जूँ
उत्कुल —वि॰—-—उत्क्रान्तः कुलात् - अत्या॰ स॰—पतित, कुल को अपमानित करने वाला
उत्कूटः —पुं॰—-—उन्नतं कूटमस्य —छाता, छतरी
उत्कूर्दनम् —नपुं॰—-—उद्+कूर्द+ल्युट्—कूदना, ऊपर को उछालना
उत्कूल —वि॰—-—उत्क्रान्तः कूलात्—किनारे से बाहर निकल कर बहने वाला
उत्कूलित —वि॰—-—उद्+कूल्+क्त—किनारे तक पहूँचने वाला
उत्कृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+कृष+क्त—उखाड़ा हुआ, उठाया हुआ, उन्नत
उत्कृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+कृष+क्त—श्रेष्ठ, प्रमुख, उत्तम, सर्वोच्च
बलोत्कृष्ट —वि॰—बल-उत्कृष्ट—-—बलवत्तर
उत्कोचः —पुं॰—-—उत्कुच्+घञ्—रिश्वत
उत्कोचकः —पुं॰—-—उत्कोच्+कन्—घूस, रिश्वत
उत्कोचकः —वि॰—-—उद्+कुच्+ण्वुल्—रिश्वतखोर, घूस लेने वाला
उत्क्रमः —पुं॰—-—उद्+क्रम्+घञ्—ऊपर जाना, बाहर निकलना, प्रस्थान
उत्क्रमः —पुं॰—-—उद्+क्रम्+घञ्—क्रमोन्नति
उत्क्रमः —पुं॰—-—उद्+क्रम्+घञ्—विचलन, अतिक्रमण, उल्लंघन
उत्क्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+क्रम्+ल्युट्—ऊपर जाना, बाहर निकलना, प्रस्थान
उत्क्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+क्रम्+ल्युट्—चढ़ाई
उत्क्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+क्रम्+ल्युट्—पीछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना
उत्क्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+क्रम्+ल्युट्—आत्मा का पलायन अर्थात् मृत्यु
उत्क्रान्तिः —स्त्री॰—-—उद्+क्रम्+क्तिन्—बाहर निकलना, ऊपर जाना, कूच करना
उत्क्रान्तिः —स्त्री॰—-—उद्+क्रम्+क्तिन्—आगे बढ़ जाना
उत्क्रान्तिः —स्त्री॰—-—उद्+क्रम्+क्तिन्—उल्लंघन, अतिक्रमण
उत्क्रामः —पुं॰—-—उत्+क्रम्+घञ्—ऊपर या बाहर जाना, प्रस्थान करना
उत्क्रामः —पुं॰—-—उत्+क्रम्+घञ्—आगे बढ़ जाना
उत्क्रामः —पुं॰—-—उत्+क्रम्+घञ्—उल्लंघन, अतिक्रमण
उत्क्रोशः —पुं॰—-—उद+क्रूश्+अच्—हल्ला-गुल्ला, गुलपाड़ा
उत्क्रोशः —पुं॰—-—उद+क्रूश्+अच्—घोषणा
उत्क्रोशः —पुं॰—-—उद+क्रूश्+अच्—कुररी
उत्क्लेदः —पुं॰—-—उद्+क्लिद्+घञ्—आर्द्र या तर होना
उत्क्लेशः —पुं॰—-—उद्+क्लिश्+घञ्—उत्तेजना, अशान्ति
उत्क्लेशः —पुं॰—-—उद्+क्लिश्+घञ्—शरीर का ठीक हालत में न रहना
उत्क्लेशः —पुं॰—-—उद्+क्लिश्+घञ्—रोग, विशेषकर सामुद्रिक रोग
उत्क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+क्षिप्+क्त—ऊपर को फेंका हुआ, उछाला हुआ, उठाया हुआ
उत्क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+क्षिप्+क्त—पकड़ा हुआ, सहारा दिया हुआ
उत्क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+क्षिप्+क्त—ग्रस्त, अभिभूत, आहत
उत्क्षिप्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+क्षिप्+क्त—गिराया हुआ, ध्वस्त
उत्क्षिप्तः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+क्त—धतूरा, धतूरे का पौधा
उत्क्षिप्तिका —स्त्री॰—-—उत्क्षिप्त+कन्+टाप् इत्वम्—चन्द्रकला के आकार का कान का अभूषण
उत्क्षेपः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+घञ्—फेंकना, उछालना,
उत्क्षेपः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+घञ्—जो ऊपर फेंका या उछाला जाय
उत्क्षेपः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+घञ्—भेजना, प्रेषित करना
उत्क्षेपः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+घञ्—वमन करना
उत्क्षपक —वि॰—-—उद्+क्षिप्+ण्वुल्—ऊपर फेंकने या उछालने वाला, उन्नत करने वाला या ऊपर उठाने वाला
उत्क्षपकः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+ण्वुल्—कपड़े आदि चुराने वला
उत्क्षपकः —पुं॰—-—उद्+क्षिप्+ण्वुल्—भेजने वाला या आदेश देने वाला
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—ऊपर फेंकना, उठाना या उछालना
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—वैशेषिकों के मतानुसार पाँच कर्मों में से एक कर्म 'उत्क्षेपण'
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—वमन करना
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—भेजना, प्रेषित करना
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—छाज
उत्क्षेपणम् —नपुं॰—-—उद्+क्षिप्+ल्युट्—पंखा
उत्खचित —वि॰—-—उद्+खच्+क्त—मिलाकर गुंथा हुआ, बुना हुआ या जड़ा हुआ
उत्खला —स्त्री॰—-—उद्+खल्+अच्+टाप्—एक प्रकार का सुगन्ध
उत्खात —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+खन्+क्त—खोदा हुआ, खोदकर निकला हुआ
उत्खात —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+खन्+क्त—उद्धृत, बाहर निकाला हुआ
उत्खात —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+खन्+क्त—जड़ से उखाड़ा हुआ, जड़ समेत तोड़ा हुआ
उत्खात —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+खन्+क्त—उन्मुलित, बिल्कुल नष्ट किया हुआ, ध्वस्त
उत्खात —वि॰—-—उद्+खन्+क्त—पदच्युत, अधिकार या शक्ति से वंचित किया हुआ
उत्खातम् —नपुं॰—-—उद्+खन्+क्त—एक गर्त, रन्ध्र, ऊबड़-खाबड़ भूमि
उत्खातकेलिः —स्त्री॰—उत्खात-केलिः—-—खेल-खेल में सींग या दाँत से धरती खोदना
उत्खातिन् —वि॰—-—उत्खात+इनि—विषम, ऊँची-नीची,
उत्त —वि॰—-—उद्+क्त—आद्र, गीला
उत्तंसः —पुं॰—-—उद्+तंस+अच्—शिखा, मोर का चूड़ा, मुकुट के ऊपर धारण किया जाने वाला आभूषण
उत्तंसः —पुं॰—-—उद्+तंस+अच्—कान का आभूषण
उत्तंसित —वि॰—-—उत्तंस+इतच्—कानों में आभूषण पहने हुए
उत्तंसित —वि॰—-—उत्तंस+इतच्—शिखा में धारण किया हुआ
उत्तट —वि॰—-—उत्क्रान्तः तटम् - अत्या॰ स॰—किनरे के बाहर निकल कर बहने वाला
उत्तप्तः —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+तप्+क्त—जलाया हुआ, गरम किया हुआ, झुलसाया हुआ
उत्तप्तम् —नपुं॰—-—उद्+तप्+क्त—सूखा माँस
उत्तम —वि॰—-—उद्+तमप्—सर्वोत्तम, श्रेष्ठ
उत्तम —वि॰—-—उद्+तमप्—प्रमुख, सर्वोच्च, उच्चतम
उत्तम —वि॰—-—उद्+तमप्—उन्नतम, मुख्य, प्रधान
उत्तम —वि॰—-—उद्+तमप्—सबसे बड़ा, प्रथम
उत्तमः —पुं॰—-—उद्+तमप्—विष्णु
उत्तमः —पुं॰—-—उद्+तमप्—अन्तिम पुरुष
उत्तमा —स्त्री॰—-—उद्+तमप्—श्रेष्ठ महिला
उत्तमाङ्गम् —नपुं॰—उत्तम-अङ्गम्—-—श्रीर का श्रेष्ठ अंग, सिर
उत्तमाधम —वि॰—उत्तम-अधम—-—ऊँचा-नीचा
उत्तमार्धः —पुं॰—उत्तम-अर्धः—-—बढ़िया आधा
उत्तमार्धः —पुं॰—उत्तम-अर्धः—-—अन्तिम आधा
उत्तमाहः —पुं॰—उत्तम-अहः—-—अंतिम या बाद का दिन, अच्छा दिन, भाग्यशाली दिन
उत्तमर्णः —पुं॰—उत्तम-ऋणः—-—उधार देने वाला साहूकार
उत्तमर्णिकः —पुं॰—उत्तम-ऋणिकः—-—उधार देने वाला साहूकार
उत्तमपदम् —नपुं॰—उत्तम-पदम्—-—ऊँचा पद
उत्तमपुरुषः —पुं॰—उत्तम-पुरुषः—-—क्रिया के रूपों में अन्तिम पुरुष
उत्तमपुरुषः —पुं॰—उत्तम-पुरुषः—-—परमात्मा
उत्तमपुरुषः —पुं॰—उत्तम-पुरुषः—-—श्रेष्ठ पुरुष
उत्तमपूरुषः —पुं॰—उत्तम-पूरुषः—-—क्रिया के रूपों में अन्तिम पुरुष
उत्तमपूरुषः —पुं॰—उत्तम-पूरुषः—-—परमात्मा
उत्तमपूरुषः —पुं॰—उत्तम-पूरुषः—-—श्रेष्ठ पुरुष
उत्तमश्लोक —वि॰—उत्तम-श्लोक—-—उत्तम ख्याति का, श्रीमान, यशस्वी, सुविख्यात
उत्तमसङ्ग्रहः —पुं॰—उत्तम-सङ्ग्रहः—-—पर-स्त्री के साथ सांठ-गांठ अर्थात् प्रेम संबंधी बातें करना
उत्तमसाहसः —पुं॰—उत्तम-साहसः—-—उच्चतम आर्थिक दण्ड, १००० पण का दण्ड
उत्तमसाहसम् —नपुं॰—उत्तम-साहसम्—-—उच्चतम आर्थिक दण्ड, १००० पण का दण्ड
उत्तमीय —वि॰—-—उत्तम+छ—सर्वोच्च, उच्चतम, सर्वश्रेष्ठ, प्रधान
उत्तम्भः —पुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+घञ्—संभालना, थामे रखना, सहारा देना
उत्तम्भः —पुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+घञ्—थूनी, टेक, सहारा
उत्तम्भः —पुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+घञ्—रोकना, गिरफ्तार करना
उत्तम्भनम् —नपुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+ल्युट् —संभालना, थामे रखना, सहारा देना
उत्तम्भनम् —नपुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+ल्युट् —थूनी, टेक, सहारा
उत्तम्भनम् —नपुं॰—-—उद्+स्तम्भ्+ल्युट् —रोकना, गिरफ्तार करना
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—उत्तर दिशा में पैदा होने वाला, उत्तरीय
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—उच्चतर, अपेक्षाकृत ऊँचा
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—बाद का, दूसरा, अनुवर्ती, उत्तरवर्ती
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—आगामी, उपसंहारत्मक
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—बायां
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—बढ़िया, मुख्य, श्रेष्ठ
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—अपेक्षाकृत अधिक, से अधिक
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—से युक्त या सहित, पूर्ण, मुख्यतया….से युक्त, से अनुगत
उत्तर —वि॰—-—उद्+तरप्—पार किया जाना
उत्तरः —पुं॰—-—उद्+तरप्—आगामी समय, भविष्यत्काल
उत्तरः —पुं॰—-—उद्+तरप्—विष्णु
उत्तरः —पुं॰—-—उद्+तरप्—शिव
उत्तरः —पुं॰—-—उद्+तरप्—विराट राजा का पुत्र
उत्तरा —स्त्री॰—-—उद्+तरप्—उत्तर दिशा
उत्तरा —स्त्री॰—-—उद्+तरप्—एक नक्षत्र
उत्तरा —स्त्री॰—-—उद्+तरप्—विराट राजा की पुत्री और अभ्यिमन्यु की पत्नी
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—जवाब
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—प्रतिवाद, प्रत्युक्ति
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—समास का अन्तिम पद
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—अधिकरण का चौथा अंग-उत्तर
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—उपसंहार
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—अवशेष, अवशिष्ट
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—अधिकता, आवश्यकता से ऊपर
उत्तरम् —नपुं॰—-—उद्+तरप्—अवशेष, अन्तर
उत्तरम् —अव्य॰—-—-—ऊपर, बाद में
उत्तराधर —वि॰—उत्तर-अधर—-—उच्चतर और निम्नतर
उत्तराधिकारः —पुं॰—उत्तर-अधिकारः—-—सम्पत्ति में अधिकार, वरासत, बपौती
उत्तराधिकारिता —स्त्री॰—उत्तर-अधिकारिता—-—सम्पत्ति में अधिकार, वरासत, बपौती
उत्तराधिकारत्वम् —नपुं॰—उत्तर-अधिकारत्वम्—-—सम्पत्ति में अधिकार, वरासत, बपौती
उत्तराधिकारिन् —पुं॰—उत्तर-अधिकारिन्—-—किसी के बाद उसकी सम्पत्ति पाने का हकदार
उत्तरायनम् —नपुं॰—उत्तर-अयनम्—-—सूर्य की उत्तर की ओर गति
उत्तरायनम् —नपुं॰—उत्तर-अयनम्—-—मकर से कर्क संक्रान्ति तक का काल
उत्तरार्धम् —नपुं॰—उत्तर-अर्धम्—-—शरीर का ऊपरी भाग
उत्तरार्धम् —नपुं॰—उत्तर-अर्धम्—-—उत्तरी भाग
उत्तरार्धम् —नपुं॰—उत्तर-अर्धम्—-—दूसरा आधा - उत्तर्राध
उत्तराहः —पुं॰—उत्तर-अहः—-—आगामी दिन
उत्तराभासः —पुं॰—उत्तर-आभासः—-—मिथ्या उत्तर
उत्तराशा —स्त्री॰—उत्तर-आशा—-—उत्तर दिशा
उत्तराधिपतिः —पुं॰—उत्तर-अधिपतिः—-—कुबेर का विशेषण
उत्तरपतिः —पुं॰—उत्तर-पतिः—-—कुबेर का विशेषण
उत्तराषाढा —स्त्री॰—उत्तर-आषाढा—-—२१ वाँ नक्षत्र जिसमें तीन तारों का पुंज है
उत्तरासङ्गः —पुं॰—उत्तर-आसङ्गः—-—ऊपर पहनने का वस्त्र
उत्तरेतर —वि॰—उत्तर-इतर—-—उत्तर से भन्न अर्थात् दक्षिणी
उत्तरेतरा —स्त्री॰—उत्तर-इतरा—-—दक्षिण दिशा
उत्तरोत्तर —वि॰—उत्तर-उत्तर—-—अधिक और अधिक, उच्चतर और उच्चतर
उत्तरोत्तर —वि॰—उत्तर-उत्तर—-—क्रमागत, लगातार वर्धनशील
उत्तरोत्तरम् —नपुं॰—उत्तर-उत्तरम्—-—प्रत्युत्तर, उत्तर का उत्तर
उत्तरौष्ठः —पुं॰—उत्तर-ओष्ठः—-—ऊपर का होठ
उत्तरकाण्डम् —नपुं॰—उत्तर-काण्डम्—-—रामायण का सातवाँ काण्ड
उत्तरकायः —पुं॰—उत्तर-कायः—-—शरीर का ऊपरी भाग
उत्तरकालः —पुं॰—उत्तर-कालः—-—भविष्यत्काल
उत्तरकुरु —पुं॰—उत्तर-कुरु—-—उत्तरी कोशल देश
उत्तरक्रिया —स्त्री॰—उत्तर-क्रिया—-—अन्त्येष्टि संस्कार, और्ध्वदैहिक श्राद्धादिक कर्म
उत्तरछदः —पुं॰—उत्तर-छदः—-—बिस्तर की चादर, बिछावन
उत्तरज —वि॰—उत्तर-ज—-—बाद में पैदा होने वाला
उत्तरज्योतिषाः —पुं॰—उत्तर-ज्योतिषाः—-—उत्तरी ज्यतिष प्रदेश
उत्तरदायक —वि॰—उत्तर-दायक—-—जो आज्ञाकारी न हो, जबाब देने वाला, धृष्ट
उत्तरदिश् —स्त्री॰—उत्तर-दिश्—-—उत्तर दिशा
उत्तरेशः —पुं॰—उत्तर-ईशः—-—उत्तर दिशा का पालक या स्वामी कुबेर
उत्तरपालः —पुं॰—उत्तर-पालः—-—उत्तर दिशा का पालक या स्वामी कुबेर
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—उत्तरी कक्ष
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—चांद्रमास का कृष्ण पक्ष
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—किसी विषय का द्वितीय पक्ष अर्थात् उत्तर, उत्तर में प्रस्तुत तर्क बहस का जवाब, सिद्धान्त पक्ष
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—प्रदर्शन की गई सचाई या उपसंहार
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—अनुमान की प्रक्रिया में गौण उक्ति
उत्तरपक्षः —पुं॰—उत्तर-पक्षः—-—अधिकरण का पाँचवाँ अंग
उत्तरपटः —पुं॰—उत्तर-पटः—-—ऊपर पहनने का वस्त्र
उत्तरपटः —पुं॰—उत्तर-पटः—-—बिछावन या उत्तरच्छद
उत्तरपथः —पुं॰—उत्तर-पथः—-—उत्तरी मार्ग, उत्तर दिशा को ले जाने वाला मार्ग
उत्तरपदम् —नपुं॰—उत्तर-पदम्—-—समास का अन्तिम पद
उत्तरपदम् —नपुं॰—उत्तर-पदम्—-—समास में दूसरे शब्द के साथ जोड़ा जाने वाला शब्द
उत्तरपश्चिमा —स्त्री॰—उत्तर-पश्चिमा—-—उत्तर-पश्चिम दिशा
उत्तरपादः —पुं॰—उत्तर-पादः—-—कानूनी अभियोग का दूसरा भाग, दावे का जवाब
उत्तरपुरुषः —पुं॰—उत्तर-पुरुषः—-—उत्तम परुषः
उत्तरपूर्वा —स्त्री॰—उत्तर-पूर्वा—-—उत्तर-पूर्व दिशा
उत्तरप्रच्छदः —पुं॰—उत्तर-प्रच्छदः—-—रजाई का खोल या उच्छाल, रजाई
उत्तरप्रयुत्तरम् —नपुं॰—उत्तर-प्रयुत्तरम्—-—तर्क-वितर्क, वाद-विवाद, प्रत्यारोप
उत्तरप्रयुत्तरम् —नपुं॰—उत्तर-प्रयुत्तरम्—-—कानूनी मुकदमे में पक्ष समर्थन
उत्तरफल्गुनी —स्त्री॰—उत्तर-फल्गुनी—-—१२ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारों का पुंज होता है
उत्तरफाल्गुनी —स्त्री॰—उत्तर-फाल्गुनी—-—१२ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारों का पुंज होता है
उत्तरभाद्रपद् —स्त्री॰—उत्तर-भाद्रपद्—-—२६ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे रहते हैं
उत्तरभाद्रपदा —स्त्री॰—उत्तर-भाद्रपदा—-—२६ वाँ नक्षत्र जिसमें दो तारे रहते हैं
उत्तरमीमांसा —स्त्री॰—उत्तर-मीमांसा—-—बाद में प्रणीत मीमांसा - वेदान्त दर्शन
उत्तरलक्षणम् —नपुं॰—उत्तर-लक्षणम्—-—वास्तविक उत्तर का संकेत
उत्तरवयसम् —नपुं॰—उत्तर-वयसम्—-—वृद्धावस्था, जीवन का ह्रासमान काल
उत्तरवयस् —नपुं॰—उत्तर-वयस्—-—वृद्धावस्था, जीवन का ह्रासमान काल
उत्तरवस्त्रम् —नपुं॰—उत्तर-वस्त्रम्—-—ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र, दुपट्टा, चोगा या अंगरखा
उत्तरवासस् —नपुं॰—उत्तर-वासस्—-—ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र, दुपट्टा, चोगा या अंगरखा
उत्तरवादिन् —पुं॰—उत्तर-वादिन्—-—प्रतिवादी, मुद्दालह
उत्तरसाधक —वि॰—उत्तर-साधक—-—सहायक, मददगार
उत्तरङ्ग —वि॰, ब॰ स॰—-—-—तरंगित, जलप्लावित, क्षुब्ध
उत्तरङ्ग —वि॰—-—-—उछलती हुई लहरों वाला
उत्तरतः —अव्य॰—-—उत्तर+तस्—उत्तर से, उत्तर दिशा तक
उत्तरतः —अव्य॰—-—उत्तर+तस्—बाईं ओर को
उत्तरतः —अव्य॰—-—उत्तर+तस्—पीछे
उत्तरतः —अव्य॰—-—उत्तर+तस्—बाद में
उत्तरात् —अव्य॰—-—उत्तर+अति—उत्तर से, उत्तर दिशा तक
उत्तरात् —अव्य॰—-—उत्तर+अति—बाईं ओर को
उत्तरात् —अव्य॰—-—उत्तर+अति—पीछे
उत्तरात् —अव्य॰—-—उत्तर+अति—बाद में
उत्तरत्र —अव्य॰—-—उत्तर+त्रल्—पश्चात्, बाद में, फिर, नीचे, अन्तिम रूप में
उत्तराहि —अव्य॰—-—उत्तर+त्राहि—उत्तर दिशा की ओर, के उत्तर में
उत्तरीयम् —नपुं॰—-—उत्तर+छ, वा कप्—ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र
उत्तरीयकम् —नपुं॰—-—उत्तर+छ, वा कप्—ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र
उत्तरेण —अव्य॰—-—उत्तर+एनप्—उत्तर की ओर, …के उत्तर दिशा की ओर
उत्तरेद्युः —अव्य॰—-—उत्तर+एद्युस्—अगले दिन, आगामी दिन, कल
उत्तर्जनम् —नपुं॰—-—उद्+तर्ज्+ल्युट्—जबरदस्त झिड़की
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—पसारा हुआ, फैलाया हुआ, विस्तार किया हुआ, प्रसृत किया हुआ
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—चित लेटा हुआ
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—सीधा,खड़ा
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—खुला
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—स्पष्ट, निष्कपट, खरा, स्पष्टवक्ता
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—नतोदर
उत्तान —वि॰—-—उद्गतस्तानो विस्तारो यस्मात् - ब॰ स॰—छिछला
उत्तानपादः —पुं॰—उत्तान-पादः—-—एक राजा, ध्रुव का पिता
उत्तानजः —पुं॰—उत्तान-जः—-—ध्रुव, ध्रुव तारा
उत्तानशय —वि॰—उत्तान-शय—-—पीठ के बल सोता हुआ, चित लेटा हुआ
उत्तानयः —पुं॰—उत्तान-यः—-—छोटा बच्चा, दूध-पीता य दुधमुँहा बच्चा, शिशु
उत्तानया —स्त्री॰—उत्तान-या—-—छोटा बच्चा, दूध-पीता य दुधमुँहा बच्चा, शिशु
उत्तापः —पुं॰—-—उद्+तप्+घञ्—भारी गर्मी, जलन
उत्तापः —पुं॰—-—उद्+तप्+घञ्—कष्ट, पीड़ा
उत्तापः —पुं॰—-—उद्+तप्+घञ्—उत्तेजना, जोश
उत्तारः —पुं॰—-—उद्+तृ+घञ्—परिवहन, वहन
उत्तारः —पुं॰—-—उद्+तृ+घञ्—घाट उतारना
उत्तारः —पुं॰—-—उद्+तृ+घञ्—तट पर लगना, तट पर उतारना
उत्तारः —पुं॰—-—उद्+तृ+घञ्—मुक्ति पाना
उत्तारः —पुं॰—-—उद्+तृ+घञ्—वमन करना
उत्तारकः —पुं॰—-—उद्+तृ+णिच्+ण्वुल्—उद्धारक, बचाने वाला
उत्तारकः —पुं॰—-—उद्+तृ+णिच्+ण्वुल्—शिव
उत्तारणम् —नपुं॰—-—उद्+तृ+णिच्+ल्युट्—उतारना, उद्धार करना, बचाना
उत्तारणः —पुं॰—-—उद्+तृ+णिच्+ल्युट्—विष्णु
उत्ताल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—बड़ा, मजबूत
उत्ताल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—प्रबल, घोर
उत्ताल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—दुर्धर्ष, भयानक, भीषण
उत्ताल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—दुष्कर, कठिन
उत्ताल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—उन्नत, उत्तुंग, ऊँचा
उत्तुङ्ग —वि॰, पुं॰—-—-—उच्च, ऊँचा, लंबा
उत्तुषः —पुं॰—-—उद्गतः तुषोऽस्मात्—भूसी से पृथक किया हुआ या भुना हुआ अन्न
उत्तेजकः —वि॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ण्वुल्—भड़काने वाला, उकसाने वाला, उद्दीपक - क्षुध-उत्तेजक, काम-उत्तेजक आदि
उत्तेजनम् —नपुं॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—जोश दिलाना, भड़काना, उकसाना
उत्तेजनम् —नपुं॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—ढकेलना, हाँकना
उत्तेजनम् —नपुं॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—भेजना, प्रेषित करना
उत्तेजनम् —नपुं॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—तेज करना, धार लगाना, चमकाना
उत्तेजनम् —नपुं॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—बढ़ावा देना, प्रोत्साहन देना
उत्तेजना —स्त्री॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—जोश दिलाना, भड़काना, उकसाना
उत्तेजना —स्त्री॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—ढकेलना, हाँकना
उत्तेजना —स्त्री॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—भेजना, प्रेषित करना
उत्तेजना —स्त्री॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—तेज करना, धार लगाना, चमकाना
उत्तेजना —स्त्री॰—-—उद्+तिज्+णिच्+ल्युट्, युज् वा—बढ़ावा देना, प्रोत्साहन देना
उत्तोरण —वि॰, ब॰ स॰—-—-—उठी हुई या खड़ी मेहराबों आदि से सजा हुआ
उत्तोलनम् —नपुं॰—-—उद्+तुल्+णिच्+ल्युट्—ऊपर उठाना, उभारना
उत्त्यागः —पुं॰—-—उद्+त्यज्+घञ्—तिलांजलि देना, छोड़ देना
उत्त्यागः —पुं॰—-—उद्+त्यज्+घञ्—फेंकना, उछालना
उत्त्यागः —पुं॰—-—उद्+त्यज्+घञ्—सांसारिक वासनाओं से सन्यास
उत्त्रासः —पुं॰—-—उद्+त्रस्+घञ्—अत्यन्त भय, आतंक
उत्थ —वि॰—-—उद्+स्था+क—से पैदा या उत्पन्न, उदय होने वाला, जन्म लेने वाला
उत्थ —वि॰—-—उद्+स्था+क—ऊपर उठता हुआ, ऊपर आता हुआ
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—उदय होने पर ऊपर उठने की क्रिया, उठना
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—उदय होना
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—उद्गम, उत्पत्ति
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—मृत्तोत्थान
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—प्रयत्न, प्रयास, चेष्टा, सम्पति-अभिग्रहण
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—पौरुष
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—हर्ष, प्रसन्नता
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—युद्ध, लड़ाई
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—सेना
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—आँगन, यज्ञमंडप
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—अवधि, सीमा, हद
उत्थानम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+ल्युट्—जागना
उत्थानैकादशी —स्त्री॰—उत्थानम्-एकादशी—-—देव-उठनी कार्तिक-सुदी एकादशी, विष्णुप्रबोधिनी
उत्थापनम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+णिच्+ल्युट्, पुक्—उठाना, खड़ा करना, जगाना
उत्थापनम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+णिच्+ल्युट्, पुक्—उभारना, उन्नत करना
उत्थापनम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+णिच्+ल्युट्, पुक्—उत्तेजित करना, भड़काना
उत्थापनम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+णिच्+ल्युट्, पुक्—जगाना, प्रबुद्ध करना
उत्थापनम् —नपुं॰—-—उद्+स्था+णिच्+ल्युट्, पुक्—वमन करना
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—उदित या उठा हुआ
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—उठाया हुआ, ऊपर गया हुआ
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—जात, उत्पन्न, उद्गत, फूट पड़ा
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—बढ़ता हुआ, वर्धनशील, प्रगति करता हुआ
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—सीमा-बद्ध
उत्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+स्था+क्त—विस्तृत, प्रसृत
उत्थिताङ्गुलिः —स्त्री॰—उत्थित-अङ्गुलिः—-—फैलायी हुई हथेली
उत्थितिः —स्त्री॰—-—उद्+स्था+क्तिन्—उन्नति, ऊपर उठना
उत्पक्ष्मन् —वि॰, ब॰ स॰—-—-—उलटी पलकों वाला
उत्पतः —पुं॰—-—उद्+पत्+अच्—पक्षी
उत्पतनम् —नपुं॰—-—उद्+पत्+ल्युट्—ऊपर उड़ना, उछलना
उत्पतनम् —नपुं॰—-—उद्+पत्+ल्युट्—ऊपर उठना या जाना, चढ़ना
उत्पताक —वि॰, ब॰ स॰—-—उत्तोलिता पताका यत्र —झंडा ऊपर उठाए हुए, जहाँ झंडे फहरा रहे हों
उतपतिष्णु —वि॰—-—उद्+पत्+इष्णुच्—उड़ता हुआ, ऊपर जाता हुआ
उत्पत्तिः —स्त्री॰—-—उद्+पद्+क्तिन्—जन्म
उत्पत्तिः —स्त्री॰—-—उद्+पद्+क्तिन्—उत्पादन
उत्पत्तिः —स्त्री॰—-—उद्+पद्+क्तिन्—स्रोत, मूल
उत्पत्तिः —स्त्री॰—-—उद्+पद्+क्तिन्—उठना, ऊपर जाना, दिखाई देना
उत्पत्तिः —स्त्री॰—-—उद्+पद्+क्तिन्—लाभ, उपजाऊपन पैदावार
उत्पत्तिव्यञ्जकः —पुं॰—उत्पत्तिः-व्यञ्जकः—-—जन्म का एक प्रकार
उत्पथः —पुं॰—-—उत्क्रान्तः पन्थानम् - प्रा॰ स॰—कुमार्ग
उत्पथम् —अव्य॰—-—-—कुमार्ग पर, पथभ्रष्ट
उत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+पद्+क्त—जात,पैदा हुआ, उदित
उत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+पद्+क्त—उठा हुआ, ऊपर गया हुआ
उत्पन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+पद्+क्त—अवाप्त
उत्पल —वि॰—-—उत्क्रान्तः पलं मांसम् - उद्+पल्+अच्—मांसहीन, क्षीण, दुबला-पतला
उत्पलम् —नपुं॰—-—उत्क्रान्तः पलं मांसम् - उद्+पल्+अच्—नीलकमल, कमल, कुमुद
उत्पलम् —नपुं॰—-—उत्क्रान्तः पलं मांसम् - उद्+पल्+अच्—सामान्यतः पौधा
उत्पलाक्षः —वि॰—उत्पलम्-अक्षः—-—कमल जैसी आँखों वाला
उत्पलचक्षुस् —वि॰—उत्पलम्-चक्षुस्—-—कमल जैसी आँखों वाला
उत्पलपत्रम् —नपुं॰—उत्पलम्-पत्रम्—-—कमल का पत्ता
उत्पलपत्रम् —नपुं॰—उत्पलम्-पत्रम्—-—किसी स्त्री के नाखून से की गई खरोंच, नखक्षत
उत्पलिन् —वि॰—-—उत्पल+इनि—कमलों से भरपूर
उत्पलिनी —स्त्री॰—-—उत्पल+इनि—कमलों का समूह
उत्पलिनी —स्त्री॰—-—उत्पल+इनि—कमल का पौधा जिसमें कमल लगे हों
उत्पवनम् —नपुं॰—-—उद्+पू+ल्युट्—मार्जन करना, शोधन करना
उत्पाटः —पुं॰—-—उद्+पट्+णिच्+घञ्—मूलोच्छेदन, उन्मूलन
उत्पाटः —पुं॰—-—उद्+पट्+णिच्+घञ्—बाह्य कान में शोथ
उत्पाटनम् —नपुं॰—-—उद्+पट्+णिच्+ल्युट्—उखाड़ना, मूलोच्छेदन, उन्मूलन
उत्पाटिका —स्त्री॰—-—उद्+पट्+णिच्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—वृक्ष की छाल
उत्पाटिन् —वि॰—-—उद्+पट्+णिच्+णिनि—मूलोच्छेदन करने वाला, फाड़ने वाला
उत्पातः —पुं॰—-—उद्+पत्+घञ्—उड़ान, छ्लांग, कूदना
उत्पातः —पुं॰—-—उद्+पत्+घञ्—उलट कर आना, ऊपर उठना
उत्पातः —पुं॰—-—उद्+पत्+घञ्—अनहोनी, संकटसूचक अशुभ या आकस्मिक घटना
उत्पातः —पुं॰—-—उद्+पत्+घञ्—कोई सार्वजनिक संकट
उत्पातपवनः —पुं॰—उत्पातः-पवनः—-—अनिष्टसूचक या प्रचण्ड वायु, बवंडर या आंधी
उत्पातवातः —पुं॰—उत्पातः-वातः—-—अनिष्टसूचक या प्रचण्ड वायु, बवंडर या आंधी
उत्पातवातालिः —पुं॰—उत्पातः-वातालिः—-—अनिष्टसूचक या प्रचण्ड वायु, बवंडर या आंधी
उत्पाद —वि॰, ब॰ स॰—-—-—जिसके पैर ऊपर उठे हों
उत्पादः —पुं॰—-—-—जन्म, उत्पत्ति, प्रादुर्भाव
उत्पादशयः —पुं॰—उत्पाद-शयः—-—बच्चा
उत्पादशयः —पुं॰—उत्पाद-शयः—-—एक प्रकार का तीतर
उत्पादयनः —पुं॰—उत्पाद-यनः—-—बच्चा
उत्पादयनः —पुं॰—उत्पाद-यनः—-—एक प्रकार का तीतर
उत्पादक —वि॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्—उपजाऊ, फलोत्पादक, पैदा करने वाला
उत्पादकः —पुं॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्—पैदा करने वाला, जनक पिता
उत्पादकम् —नपुं॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्—उद्गम, कारण
उत्पादनम् —नपुं॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्—जन्म देना, पैदा करना, जनन
उत्पादिका —स्त्री॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—एक प्रकार का कीड़ा, दीमक
उत्पादिका —स्त्री॰—-—उद्+पद्+णिच्+ण्वुल्+टाप्, इत्वम्—माता
उत्पादिन् —वि॰—-—उद्+पद्+णिच्+णिनि—पैदा हुआ, जात
उत्पाली —स्त्री॰—-—उद्+पल्+घञ्+ङीप्—स्वास्थ्य
उत्पिञ्जर —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—मुक्त, जो पिंजड़े में बन्द न हो
उत्पिञ्जर —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—क्रमहीन, अव्यवहित
उत्पिञ्जल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—मुक्त, जो पिंजड़े में बन्द न हो
उत्पिञ्जल —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—क्रमहीन, अव्यवहित
उत्पीडः —पुं॰—-—उद्+पीड्+घञ्—दबाव
उत्पीडः —पुं॰—-—उद्+पीड्+घञ्—धाराप्रवाह, धाराप्रवाही बहाव
उत्पीडः —पुं॰—-—उद्+पीड्+घञ्—उत्प्रवाह, आधिक्य
उत्पीडः —पुं॰—-—उद्+पीड्+घञ्—झाग, फेन
उत्पीडनम् —नपुं॰—-—उद्+पीड्+णिच्+ल्युट्—दबाना, निचोड़ना
उत्पीडनम् —नपुं॰—-—उद्+पीड्+णिच्+ल्युट्—पेलना, आघात करना
उत्पुच्छ —वि॰, ब॰ स॰—-—-—जिसकी पूंछ ऊपर उठी हो
उत्पुलक —वि॰, ब॰ स॰—-—-—रोमांचित, जिसके रोंगटे खड़े हो गये हों
उत्पुलक —वि॰, ब॰ स॰—-—-—हर्षोत्फुल्ल, प्रसन्न
उत्प्रभ —वि॰, ब॰ स॰—-—-—प्रकाश बिखेरने वाला, प्रभापूर्ण
उत्प्रभः —पुं॰—-—-—दहकती हुई आग
उत्प्रसवः —पुं॰—-—उद्+प्र+सू+अच्—गर्भपात
उत्प्रासः —पुं॰—-—उद्+प्र+अस्+घञ्—फेंकना, पटकना
उत्प्रासः —पुं॰—-—उद्+प्र+अस्+घञ्—मजाक, मखौल
उत्प्रासः —पुं॰—-—उद्+प्र+अस्+घञ्—अट्ट्हास
उत्प्रासः —पुं॰—-—उद्+प्र+अस्+घञ्—खिल्ली उड़ाना, उपहास करना, व्यंग्योक्ति
उत्प्रासनम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+अस्+ल्युट्—फेंकना, पटकना
उत्प्रासनम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+अस्+ल्युट्—मजाक, मखौल
उत्प्रासनम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+अस्+ल्युट्—अट्ट्हास
उत्प्रासनम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+अस्+ल्युट्—खिल्ली उड़ाना, उपहास करना, व्यंग्योक्ति
उत्प्रेक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+ल्युट्—दृषटिपात करना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना
उत्प्रेक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+ल्युट्—ऊपर की ओर देखना
उत्प्रेक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+ल्युट्—अनुमान, अटकल
उत्प्रेक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+ल्युट्—तुलना करना
उत्प्रेक्षा —स्त्री॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+अ—अटकल, अनुमान
उत्प्रेक्षा —स्त्री॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+अ—उपेक्षा, उदासीनता
उत्प्रेक्षा —स्त्री॰—-—उद्+प्र+ईक्ष्+अ—एक अलंकार जिसमें उपमान और उपमेय को कई बातों में समान समझने की कल्पना की जाती है, और उस समानता के आधार पर उनके एकत्व की संभावना की ओर स्पष्ट रूप से या किसी तात्पर्यार्थ के द्वारा संकेत किया जाता है
उत्प्लवः —पुं॰—-—उद्+प्लु+अप्—उछल-कूद, छलांग
उत्प्लवा —स्त्री॰—-—उद्+प्लु+अप्+ टाप्—किश्ती
उत्प्लवनम् —नपुं॰—-—उद्+प्लु+ल्युट्—कूदना, उछलना, ऊपर से छलाँग लगाना
उत्फलम् —नपुं॰—-—-—उत्तम फल
उत्फालः —पुं॰—-—उद्+फल्+घञ्—कूद, छ्लाँग, द्रुतगति
उत्फालः —पुं॰—-—उद्+फल्+घञ्—कूदने की स्थिति
उत्फुल्ल —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+फुल्+क्त—खुला हुआ, खिला हुआ
उत्फुल्ल —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+फुल्+क्त—खूब खुला हुआ, प्रसारित, विस्फारित
उत्फुल्ल —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+फुल्+क्त—सूजा हुआ, शरीर में फूला हुआ
उत्फुल्ल —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+फुल्+क्त—पीठ के बल सोया हुआ, उत्तान
उत्फुल्लम् —नपुं॰—-—उद्+फुल्+क्त—योनि, भग
उत्सः —पुं॰—-—उनत्ति जलेन, उन्द्+स किच्च नलोपः—झरना,फौवारा
उत्सः —पुं॰—-—उनत्ति जलेन, उन्द्+स किच्च नलोपः—जल का स्थान
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—गोद
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—आलिंगन, संपर्क, संयोग
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—भीतर, पड़ौस
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—सतह, पार्श्व, ढाल
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—नितंब के ऊपर का भाग या कूल्हा
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—ऊपरी भाग, शिखर
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—पहाड़ की चढ़ाई
उत्सङ्गः —पुं॰—-—उद्+सञ्ज्+घञ्—घर की छत
उत्सङ्गितः —वि॰—-—उत्सङ्ग+इतच्—संयुक्त सम्मिलित, संपर्क में लाया हुआ
उत्सङ्गितः —वि॰—-—उत्सङ्ग+इतच्—गोद में लिया हुआ
उत्सञ्जनम् —नपुं॰—-—उद्+सञ्ज्+ल्युट्—ऊपर को फेंकना, ऊपर उठाना
उत्सन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सद्+क्त—सड़ा हुआ
उत्सन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सद्+क्त—नष्ट, बर्बाद, उखाड़ा हुआ, उजाड़ा हुआ
उत्सन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सद्+क्त—अभिशप्त, आफत का मारा
उत्सन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सद्+क्त—व्यवहार में न आनेवाला, विलुप्त
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—एक ओर रख देना, छोड़ देना, तिलांजलि देना, स्थगन
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—उडेलना, गिरा देना, निकालना
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—उपहार, दान, प्रदान
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—व्यय करना
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—ढीला करना, खुला छोड़ देना
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—आहुति, तर्पण
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—विष्ठा, मल आदि
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—पूर्ति
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—सामान्य नियम या विधि
उत्सर्गः —पुं॰—-—उद्+सृज्+घञ्—गुदा
उत्सर्जनम् —नपुं॰—-—उद्+सृज्+ल्युट्—त्याग, तिलांजलि देना, ढीला करना, मुक्त करना आदि
उत्सर्जनम् —नपुं॰—-—उद्+सृज्+ल्युट्—उपहार, दान
उत्सर्जनम् —नपुं॰—-—उद्+सृज्+ल्युट्—वेदाध्ययन का स्थगन
उत्सर्जनम् —नपुं॰—-—उद्+सृज्+ल्युट्—इस स्थगन से संबंद्ध एक षाण्मासिक संस्कार
उत्सर्पः —पुं॰—-—उद्+सृप्+घञ्, ल्युट् वा—ऊपर को जाना या सरकना
उत्सर्पः —पुं॰—-—उद्+सृप्+घञ्, ल्युट् वा—फूलना, हाँपना
उत्सर्पणम् —नपुं॰—-—उद्+सृप्+घञ्, ल्युट् वा—ऊपर को जाना या सरकना
उत्सर्पणम् —नपुं॰—-—उद्+सृप्+घञ्, ल्युट् वा—फूलना, हाँपना
उत्सर्पिन् —वि॰—-—उद्+सृप्+णिनि—ऊपर को जाने या सरकने वाला, उठने वाला
उत्सर्पिन् —वि॰—-—उद्+सृप्+णिनि—उड़ने वाला, प्रोन्नत
उत्सवः —पुं॰—-—उद्+सू+अप्—पर्व, हर्ष या आनन्द का अवसर, जयन्ती
उत्सवः —पुं॰—-—उद्+सू+अप्—हर्ष, प्रमोद, आमोद
उत्सवः —पुं॰—-—उद्+सू+अप्—ऊँचाई, उन्नति
उत्सवः —पुं॰—-—उद्+सू+अप्—रोष
उत्सवः —पुं॰—-—उद्+सू+अप्—कामना, इच्छा
उत्सवसङ्केता —पुं॰—उत्सवः-सङ्केता—-—एक जाति, हिमालय स्थित एक जंगली जाति
उत्सादः —पुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+घञ्—नाश, अपक्षय, बर्बादी, हानि
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—नाश करना, उथल देना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—स्थगित करना, बाधा डालना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—शरीर पर सुगन्धित पदार्थ मलना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—घाव भरना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—ऊपर जाना, चढ़ना, उठना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—उन्नत होना, उठाना
उत्सादनम् —नपुं॰—-—उद्+सद्+णिच्+ल्युट्—खेत को भली-भाँति जोतना
उत्सारकः —पुं॰—-—उद्+सृ+णिच्+ण्वुल्—आरक्षी
उत्सारकः —पुं॰—-—उद्+सृ+णिच्+ण्वुल्—पहरेदार
उत्सारकः —पुं॰—-—उद्+सृ+णिच्+ण्वुल्—कुली, ड्योढ़ीवान
उत्सारणम् —नपुं॰—-—उद्+सृ+णिच्+ल्यूट्—हटाना, दूर रखना, मार्ग में से हटा देना
उत्सारणम् —नपुं॰—-—उद्+सृ+णिच्+ल्यूट्—अतिथि का स्वागत करना
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—प्रयत्न, प्रयास
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—शक्ति, उमंग, इच्छा
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—धैर्य, ऊर्जा या तेज, राजा की तीन शक्तियों में से एक
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—दृढ़ संकल्प, दृढ़ निश्चय
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—सामर्थ्य, योग्यता
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—दृढ़ता, सहन-शक्ति, बल
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—दृढ़ता, और सहन शक्ति वह भावना मानी जाती हैं जिससे वीर रस का उदय होता है
उत्साहः —पुं॰—-—उद्+सह्+घञ्—प्रसन्नता
उत्साहवर्धनः —पुं॰—उत्साहः-वर्धनः—-—वीररस
उत्साहवर्धनम् —नपुं॰—उत्साहः-वर्धनम्—-—ऊर्जा या तेज की वृद्धि, शौर्य
उत्साहशक्तिः —स्त्री॰—उत्साहः-शक्तिः—-—दृढ़ता, तेज
उत्साहहेतुकः —वि॰—उत्साहः-हेतुकः—-—कार्य करने की दिशा में प्रोत्साहन देनेवाला या उत्तेजित करने वाला
उत्साहनम् —नपुं॰—-—उद्+सह्+णिच्+ल्युट्—प्रयत्न, अध्यवसाय
उत्साहनम् —नपुं॰—-—उद्+सह्+णिच्+ल्युट्—उत्साह बढ़ाना, उत्तेजना देना
उत्सिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सिच्+क्त—छिड़का हुआ
उत्सिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सिच्+क्त—घमण्डी, अहंकारी, उद्धत
उत्सिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सिच्+क्त—बाढ़ग्रस्त, उमड़ता हुआ, अत्यधिक
उत्सिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+सिच्+क्त—चंचल, अशान्त
उत्सुक —वि॰—-—उद्+सू+क्विप्+कन् ह्रस्वः—अत्यन्त इच्छुक, उत्कण्ठित, प्रयत्नशील
उत्सुक —वि॰—-—उद्+सू+क्विप्+कन् ह्रस्वः—बेचैन, उद्विग्न, आतुर
उत्सुक —वि॰—-—उद्+सू+क्विप्+कन् ह्रस्वः—बहुत चाहने वाला, आसक्त
उत्सुक —वि॰—-—उद्+सू+क्विप्+कन् ह्रस्वः—खिद्यमान, कुड़बुड़ाने वाला, शोकान्वित
उत्सूत्र —वि॰, अत्या॰ स॰ —-—उत्क्रान्तः सूत्रम् —डोरी से न बंधा हुआ, ढीला, बंधन से मुक्त
उत्सूत्र —वि॰, अत्या॰ स॰ —-—उत्क्रान्तः सूत्रम् —अनियमित
उत्सूत्र —वि॰, अत्या॰ स॰ —-—उत्क्रान्तः सूत्रम् —विपरीत
उत्सूरः —पुं॰—-—उत्क्रान्तः सूत्रम् —सायंकाल, संध्या
उत्सेकः —पुं॰—-—उद्=सिच्+घञ्—छिड़काव, उड़ेलना
उत्सेकः —पुं॰—-—उद्=सिच्+घञ्—फुहार छोड़ना, बौछार करना
उत्सेकः —पुं॰—-—उद्=सिच्+घञ्—उमड़ना, वृद्धि आधिक्य
उत्सेकः —पुं॰—-—उद्=सिच्+घञ्—घमंड, अहंकार, धृष्टता
उत्सेकिन् —वि॰—-—उत्सेक+इनि—उमड़ने वाला, अत्यधिक
उत्सेकिन् —वि॰—-—उत्सेक+इनि—घमण्डी, अहंकारी, उद्धत
उत्सेचनम् —नपुं॰—-—उद्+सिच्+ल्युट्—फुहार छोड़ना या बौछार करना
उत्सेधः —पुं॰—-—उद्+सिध्+घञ्—ऊँचाई, उन्नतता, ऊँची या इभरी हुई छाती
उत्सेधः —पुं॰—-—उद्+सिध्+घञ्—मोटाई, मोटापा
उत्सेधः —पुं॰—-—उद्+सिध्+घञ्—शरीर
उत्सेधम् —नपुं॰—-—उद्+सिध्+घञ्—मारना, वध करना
उत्स्मयः —पुं॰—-—उद्+स्मि+अच्—मुस्कुराहट
उत्स्वन —वि॰, ब॰ स॰—-—-—ऊँची आवाज करने वाला
उत्स्वनः —पुं॰—-—-—ऊँची आवाज
उत्स्वप्नायते —ना॰ धा॰ आ॰—-—उद्+स्वप्न+क्यङ्—सुप्तावस्था में बोलना, बड़बड़ाना, उद्विग्नता के कारण स्वप्न आना
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—स्थान, पद, या शक्ति की दृष्टि से श्रेष्ठता, उच्च, उद्गत, ऊपर, पर, अतिशय, ऊँचाई पर
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—पार्थक्य, वियोजन, बाहर, से बाहर, से, अलग अलग आदि
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—ऊपर उठना
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—अभिग्रहण, उपलब्धि
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—प्रकाशन
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—आश्चर्य, चिन्ता
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—मुक्ति
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—अनुपस्थिति
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—फूंक मारना, फुलाना, खोलना
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—प्रमुखता
उद् —उप॰—-—उ+क्विप्, तुक्—शक्ति
उदक् —अव्य॰—-—उद्+अञ्च्+क्विन्—उत्तर की ओर, के उत्तर में, ऊपर
उदकम् —नपुं॰—-—उद्+ण्वुल् नि॰ नलोपः—पानी
उदकान्तः —पुं॰—उदकम्-अन्तः—-—पानी का किनारा, तट, तीर
उदकार्थिन् —वि॰—उदकम्-अर्थिन्—-—प्यासा
उदकाधारः —पुं॰—उदकम्-आधारः—-—जलाशय, हौज, कुआँ
उदकोन्दजनः —पुं॰—उदकम्-उन्दजनः—-—जलोदर
उदककर्मन् —पुं॰—उदकम्-कर्मन्—-—मृत् पूर्वजों या पितरों का जल से तर्पण करना
उदककार्यम् —नपुं॰—उदकम्-कार्यम्—-—मृत् पूर्वजों या पितरों का जल से तर्पण करना
उदकक्रिया —स्त्री॰—उदकम्-क्रिया—-—मृत् पूर्वजों या पितरों का जल से तर्पण करना
उदकदानम् —नपुं॰—उदकम्-दानम्—-—मृत् पूर्वजों या पितरों का जल से तर्पण करना
उदककुम्भः —पुं॰—उदकम्-कुम्भः—-—पानी का घड़ा
उदकगाहः —पुं॰—उदकम्-गाहः—-—पानी में घुसना, स्नान करना
उदकग्रहणम् —नपुं॰—उदकम्-ग्रहणम्—-—पानी पीना
उदकदातृ —वि॰—उदकम्-दातृ—-—जल देने वाला
उदकदायिन् —वि॰—उदकम्-दायिन्—-—जल देने वाला
उदकदानिक —वि॰—उदकम्-दानिक—-—जल देने वाला
उदकदः —पुं॰—उदकम्-दः—-—पितरों को जल दान करने वाला
उदकदः —पुं॰—उदकम्-दः—-—उत्तराधिकारी, बन्धु-बान्धव
उदकदानम् —नपुं॰—उदकम्-दानम्—-—उदकम् कर्मन्
उदकधरः —पुं॰—उदकम्-धरः—-—बादल
उदकभारः —पुं॰—उदकम्-भारः—-—पानी ढोने की बहंगी
उदकवीवधः —पुं॰—उदकम्-वीवधः—-—पानी ढोने की बहंगी
उदकवज्रः —पुं॰—उदकम्-वज्रः—-—गरज के साथ बौछार
उदकशाकम् —नपुं॰—उदकम्-शाकम्—-—कोई भी वनस्पति जो जल में पैदा होती है
उदकशान्तिः —स्त्री॰—उदकम्-शान्तिः—-—ज्वर दूर करने के लिए रोगी के ऊपर अभिमंत्रित जल छिड़कना
उदकस्पर्शः —पुं॰—उदकम्-स्पर्शः—-—शरीर के विभिन्न अंगों पर जल के छींटे देना
उदकहारः —पुं॰—उदकम्-हारः—-—पानी ढोने वाला कहार
उदकल —वि॰—-—उदक+लच्, इलच् वा—पनीला, रसेदार, जलमय
उदकेचरः —पुं॰—-—-—जलचर, जल में रहने वाला जन्तु
उदक्त —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्त—उठाया हुआ, ऊपर को उभारा हुआ
उदक्य —वि॰—-—उदकमर्हति - दण्डा - उदक+यत्—जल की अपेक्षा करने वाला
उदक्या —स्त्री॰—-—-—ऋतुमती स्त्री, रजस्वला स्त्री
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —उन्नत शिखर वाला, उभरा हुआ, ऊपर की ओर संकेत करता हुआ
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —लंबा, उत्तुंग, ऊँचा, उउन्नत, उच्छ्रित, ऊँची छलांगे
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —विपुल, विशाल, विस्तृत बड़ा
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —वयोवृद्ध
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —उत्कृष्ट, पूज्य, श्रेष्ठ, अभिवृद्ध, वर्धित
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —प्रखर, असह्य
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —भीषण, भयावह
उदग्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतमग्रं यस्य —उत्तेजित, प्रचण्ड, उल्लसित
उदङ्कः —पुं॰—-—उद्+अञ्च्+घञ्—चमड़े का बर्तन, कुप्पा
उदच् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—ऊपर की ओर मुड़ा हुआ, या जाता हुआ
उदच् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—ऊपर का, उच्चतर
उदच् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—उत्तरी, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ
उदच् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—बाद का
उदञ्च् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—ऊपर की ओर मुड़ा हुआ, या जाता हुआ
उदञ्च् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—ऊपर का, उच्चतर
उदञ्च् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—उत्तरी, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ
उदञ्च् —वि॰—-—उद्+अञ्च्+क्विप्—बाद का
उदकाद्रिः —पुं॰—उदच्-अद्रिः—-—उत्तरी पहाड़, हिमालय
उदङ्काद्रिः —पुं॰—उदञ्च्-अद्रिः—-—उत्तरी पहाड़, हिमालय
उदकायनम् —नपुं॰—उदच्-अयनम्—-—भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सूर्य की प्रगति
उदङ्कायनम् —नपुं॰—उदञ्च्-अयनम्—-—भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सूर्य की प्रगति
उदकावृत्तिः —स्त्री॰—उदच्-आवृत्तिः—-—उत्तर दिशा से लौटना
उदङ्कावृतिः —स्त्री॰—उदञ्च्-आवृत्तिः—-—उत्तर दिशा से लौटना
उदक्पथः —पुं॰—उदच्-पथः—-—उत्तरी देश
उदङ्कपथः —पुं॰—उदञ्च्-पथः—-—उत्तरी देश
उदक्प्रवण —वि॰—उदञ्च्-प्रवण—-—उत्तरोन्मुख, उत्तर की ओर झुका हुआ
उदङ्कप्रवण —वि॰—उदञ्च्-प्रवण—-—उत्तरोन्मुख, उत्तर की ओर झुका हुआ
उदङ्मुख —वि॰—उदच्-मुख—-—उत्तराभिमुख, उत्तर की ओर मुंह किये हुए
उदङ्ङ्मुख —वि॰—उदञ्च्-मुख—-—उत्तराभिमुख, उत्तर की ओर मुंह किये हुए
उदञ्चनम् —नपुं॰—-—उद्+अञ्च्+ल्युट्—बोका, डोल
उदञ्चनम् —नपुं॰—-—उद्+अञ्च्+ल्युट्—उद्य होता हुआ, चढ़ता हुआ
उदञ्चनम् —नपुं॰—-—उद्+अञ्च्+ल्युट्—ढकना, ढक्कन
उदञ्जलि —वि॰, ब॰ स॰—-—-—दोनों हथेलियों को मिलाकर संपुट बनाये हुए
उदण्डपालः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
उदन् —नपुं॰—-—उन्द्+कनिन् = उदक इत्यस्य उदन् आदेशः—जल
उदकुम्भः —पुं॰—उदन्-कुम्भः—-—जल का घड़ा
उदज —वि॰—उदन्-ज—-—जलीय, पनीला
उदधानः —पुं॰—उदन्-धानः—-—पानी का बर्तन
उदधानः —पुं॰—उदन्-धानः—-—बादल
उदधिः —पुं॰—उदन्-धिः—-—पानी का आशय, समुद्र
उदधिः —पुं॰—उदन्-धिः—-—बादल
उदधिः —पुं॰—उदन्-धिः—-—झील, सरोवर
उदधिः —पुं॰—उदन्-धिः—-—पानी का घड़ा
उदकन्या —स्त्री॰—उदन्-कन्या—-—समुद्र की पुत्री लक्ष्मी
उदतनया —स्त्री॰—उदन्-तनया—-—समुद्र की पुत्री लक्ष्मी
उदसुता —स्त्री॰—उदन्-सुता—-—समुद्र की पुत्री लक्ष्मी
उदमेखला —स्त्री॰—उदन्-मेखला—-—पृथ्वी
उदराजः —पुं॰—उदन्-राजः—-—जलों का राजा अर्थात् महासागर
उदसुता —स्त्री॰—उदन्-सुता—-—लक्ष्मी, द्वारका
उदपात्रम् —नपुं॰—उदन्-पात्रम्—-—पानी का घड़ा, बर्तन
उदपात्री —स्त्री॰—उदन्-पात्री—-—पानी का घड़ा, बर्तन
उदपानः —पुं॰—उदन्-पानः—-—कूएँ के निकट का जोहड़ या कुआँ
उदपानम् —नपुं॰—उदन्-पानम्—-—कूएँ के निकट का जोहड़ या कुआँ
उदमण्डूकः —पुं॰—उदन्-मण्डूकः—-—कुएँ का मेढक, अनुभवहीन, जो अपने आस-पास की वस्तुओं का ही सीमित ज्ञान रखता है
उदपेषम् —नपुं॰—उदन्-पेषम्—-—लेप, लेई, पेस्ट
उदविन्दुः —पुं॰—उदन्-विन्दुः—-—जल की बूँद
उदभारः —पुं॰—उदन्-भारः—-—जल धारण करने वाला अर्थात् बादल
उदमन्थः —पुं॰—उदन्-मन्थः—-—जौ का पानी
उदमानः —पुं॰—उदन्-मानः—-—आढक का पचासवाँ भाग
उदमानम् —नपुं॰—उदन्-मानम्—-—आढक का पचासवाँ भाग
उदमेघः —पुं॰—उदन्-मेघः—-—पानी बरसाने वाला बादल
उदलावणिक —वि॰—उदन्-लावणिक—-—नमकीन या खारी
उदवज्रः —पुं॰—उदन्-वज्रः—-—बादल की गरज के साथ बौछार, पानी की फुहार
उदवासः —पुं॰—उदन्-वासः—-—जल में रहना या बसति
उदवाह —वि॰—उदन्-वाह—-—पानी लाने वाला
उदवाहः —पुं॰—उदन्-वाहः—-—बादल
उदवाहनम् —नपुं॰—उदन्-वाहनम्—-—पानी का बर्तन
उदशरावः —पुं॰—उदन्-शरावः—-—पानी से भरा कसोरा
उदश्वित् —पुं॰—उदन्-श्वित्—उदकेन जलेन श्वयति—छाछ, मट्ठा
उदहरणः —पुं॰—उदन्-हरणः—-—पानी निकालने का बर्तन
उदन्तः —पुं॰—-—उद्गन्तो यस्य—समाचार, गुप्तवार्ता, पूरा विवरण, वर्णन, इतिवृत्त
उदन्तः —पुं॰—-—उद्गन्तो यस्य—पवित्रात्मा, साधु
उदन्तकः —पुं॰—-—-—समाचार, गुप्त बातें
उदन्तिका —स्त्री॰—-—उद्+अन्त्+णिच्+ण्वुल्+टाप् इत्वम्—संतोष, संतृप्ति
उदन्य —वि॰—-—उदक+क्यच् नि॰ उदन् आदेशः+क्विप्—प्यासा
उदन्वत् —पुं॰—-—उदक+मतुप्, उदन् आदेशः, मस्य वः—समुद्र
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—निकलना, उगना, ऊपर जाना
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—आविर्भाव, उत्पादन
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—सृष्टि
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—पूर्वादि
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—प्रगति, समृद्धि, उदय
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—उन्नयन, उत्कर्ष, उदय, वृद्धि
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—फल, परिणाम
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—निष्पन्न्ता, पूर्णता
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—लाभ, नफा
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—आय, राजस्व
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—ब्याज
उदयः —पुं॰—-—उद्+इ+अच्—प्रकाश, चमक
उदयाचलः —पुं॰—उदयः-अचलः—-—पूर्व दिशा में होने वाला उदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना माना जाता है
उदयार्द्रिः —पुं॰—उदयः-अर्द्रिः—-—पूर्व दिशा में होने वाला उदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना माना जाता है
उदयगिरिः —पुं॰—उदयः-गिरिः—-—पूर्व दिशा में होने वाला उदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना माना जाता है
उदयपर्वतः —पुं॰—उदयः-पर्वतः—-—पूर्व दिशा में होने वाला उदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना माना जाता है
उदयशैलः —पुं॰—उदयः-शैलः—-—पूर्व दिशा में होने वाला उदयाचल, जहाँ से सूर्य और चन्द्रमा का उदय होना माना जाता है
उदयप्रस्थः —पुं॰—उदयः-प्रस्थः—-—उदयाचल का पठार जिसके पीछे से सूर्य का उदय होना समझा जाता है
उदयनम् —नपुं॰—-—उद्+इ+ल्युट्—उगना, चढ़ना, ऊपर जाना
उदयनम् —नपुं॰—-—उद्+इ+ल्युट्—परिणाम
उदयनः —पुं॰—-—उद्+इ+ल्युट्—अगस्त्य मुनि
उदयनः —पुं॰—-—उद्+इ+ल्युट्—वत्स देश का राजा
उदरम् —नपुं॰—-—उद्+ऋ+अप्—पेट
उदरम् —नपुं॰—-—उद्+ऋ+अप्—किसी वस्तु का भीतरी भाग, गह्वर,
उदरम् —नपुं॰—-—उद्+ऋ+अप्—जलोदर, रोग के कारण पेट का फूल जाना
उदरम् —नपुं॰—-—उद्+ऋ+अप्—वध करना
उदराध्यमानः —पुं॰—उदरम्-आध्यमानः—-—पेट का फूलना
उदरामयः —पुं॰—उदरम्-आमयः—-—पेचिश, अतिसार
उदरावर्तः —पुं॰—उदरम्-आवर्तः—-—नाभि
उदरावेष्टः —पुं॰—उदरम्-आवेष्टः—-—केचुआ, फीताकृमि
उदरत्राणम् —नपुं॰—उदरम्-त्राणम्—-—वक्षस्त्राण या अँगिया, कवच या जिरहवख्तर जो केवल छाती पर पहना जाय
उदरत्राणम् —नपुं॰—उदरम्-त्राणम्—-—पेट को कसने वाली पट्टी
उदरपिशाचः —वि॰—उदरम्-पिशाचः—-—पेटू, खाऊ
उदरचः —पुं॰—उदरम्-चः—-—भोजनभट्ट
उदरपूरम् —अव्य॰—उदरम्-पूरम्—-—जब तक पूरा पेट न भर जाय, पेट भर कर खाता है
उदरपोषणम् —नपुं॰—उदरम्-पोषणम्—-—पेट भरना, पालन पोषण करना
उदरभरणम् —नपुं॰—उदरम्-भरणम्—-—पेट भरना, पालन पोषण करना
उदरशय —वि॰—उदरम्-शय—-—पेट के बल लेट कर सोने वाला
उदरयः —पुं॰—उदरम्-यः—-—भ्रूण
उदरसर्वस्वः —पुं॰—उदरम्-सर्वस्वः—-—पेटू, बहुभोजी, स्वादलोलुप
उदरथिः —पुं॰—-—उद्+ऋ+घतिन्—समुद्र
उदरथिः —पुं॰—-—उद्+ऋ+घतिन्—सूर्य
उदरंभरि —वि॰—-—उदर+भृ+इन्, मुमागमः—केवल अपना पेट भरने वाला, स्वार्थी
उदरम्भरि —वि॰—-—उदर+भृ+इन्, मुमागमः—पेटू, बहुभोजी
उदरवत् —वि॰—-—उदर+मतुप् मस्य वः—बड़ी तोंद वाला, स्थूलकाय, मोटा
उदरिक —वि॰—-—उदर+ठन्, इलच् वा—बड़ी तोंद वाला, स्थूलकाय, मोटा
उदरिन् —वि॰—-—उदर+इनि—बड़ी तोंद वाला, स्थूलकाय, मोटा
उदरिणी —स्त्री॰—-—उदर+इनि+ ङीप्—गर्भवती स्त्री
उदर्कः —पुं॰—-—उद्+अर्क्(अर्च्)+घञ् - इद्+ऋच्+यङ्+घञ्—अन्त, उपसंहार
उदर्कः —पुं॰—-—उद्+अर्क्(अर्च्)+घञ् - इद्+ऋच्+यङ्+घञ्—फल, परिणाम, किसी क्रिया का भावी फल
उदर्कः —पुं॰—-—उद्+अर्क्(अर्च्)+घञ् - इद्+ऋच्+यङ्+घञ्—भविष्यत्काल, उत्तरकाल
उदर्चिस् —वि॰, ब॰ स॰ —-—ऊर्ध्वमर्चिः शिखाऽस्य —चमकने वाला, ऊपर की ओर ज्वाला विकीर्ण करने वाला, ज्योतिर्मय, उज्ज्वल
उदर्चिस् —पुं॰—-—ऊर्ध्वमर्चिः शिखाऽस्य —अग्नि
उदर्चिस् —पुं॰—-—ऊर्ध्वमर्चिः शिखाऽस्य —कामदेव
उदर्चिस् —पुं॰—-—ऊर्ध्वमर्चिः शिखाऽस्य —शिव
उदवसितम् —नपुं॰—-—उद्+अव+सो+क्त—घर, आवास
उदश्रु —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतान्यश्रूणि यस्य —फूट-फूट कर रोने वाला, जिसके अविरल आँसू बह रहे हों, रोने वाला
उदसनम् —नपुं॰—-—उद्+अस्+ल्युट्—फेंकना, उठाना, सीधा खड़ा करना
उदसनम् —नपुं॰—-—उद्+अस्+ल्युट्—बाहर निकाल देना
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—उच्च, उन्न्त
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—भद्र, प्रतिष्ठित
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—उदार, वदान्य
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—प्रसिद्ध, विख्यात, महान
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—प्रिय, प्रियतम
उदात्त —वि॰—-—उद्+आ+दा+क्त—उच्च स्वराघात
उदात्तः —पुं॰—-—-—उच्च स्वर में उच्चरित
उदात्तः —पुं॰—-—-—उपहार, दान
उदात्तः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का वाद्य-उपकरण, बड़ा ढोल
उदात्तम् —नपुं॰—-—-—एक अलंकार
उदानः —पुं॰—-—उद्+अन्+घञ्—ऊपर को सांस लेना
उदानः —पुं॰—-—उद्+अन्+घञ्—साँस लेना, श्वास
उदानः —पुं॰—-—उद्+अन्+घञ्—पांच प्राणों मे से एक जो कण्ठ से आविर्भूत होकर सिर में प्रविष्ट होता है
उदानः —पुं॰—-—उद्+अन्+घञ्—नाभि
उदायुध —वि॰, ब॰ स॰—-—-—जिसने शस्त्र उठा लिया है, शस्त्र ऊपर उठाये हुए
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—दानशील, मुक्त-हृदय, दानी
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—भद्र, श्रेष्ठ
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—उच्च, विख्यात, पूज्य
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—ईमानदार, निष्कपट, खरा
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—अच्छा, बढ़िया, उमदा
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—वाग्मी
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—बड़ा, विस्तृत, विशाल, शानदार
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—मूल्यवान वस्त्र पहने हुए
उदार —वि॰—-—उद्+आ+रा+क—सुन्दर, मनोहर, प्यारा
उदारात्मन् —वि॰—उदार-आत्मन्—-—विशाल हृदय, महामना
उदारचेतस् —वि॰—उदार-चेतस्—-—विशाल हृदय, महामना
उदारचरित —वि॰—उदार-चरित—-—विशाल हृदय, महामना
उदारमनस् —वि॰—उदार-मनस्—-—विशाल हृदय, महामना
उदारतत्त्व —वि॰—उदार-तत्त्व—-—विशाल हृदय, महामना
उदारधी —वि॰—उदार-धी—-—उदात्त, प्रतिभाशील, अत्यन्त बुद्धिमान
उदारदर्शन —वि॰—उदार-दर्शन—-—जो देखने में सुन्दर है, बड़ी आंखों वाला
उदारता —स्त्री॰—-—उदार+तल्+टाप्—मुक्तहस्तता
उदारता —स्त्री॰—-—उदार+तल्+टाप्—समृद्धि
उदास —वि॰—-—उद्+अस्+घञ्—तटस्थ, वीतराग, बेलाग
उदासः —पुं॰—-—उद्+अस्+घञ्—निःस्पृह, दार्शनिक
उदासः —पुं॰—-—उद्+अस्+घञ्—तटस्थता, अनासक्ति
उदासिन् —वि॰—-—उद्+आस्+णिनि—निःस्पृह
उदासिन् —वि॰—-—उद्+आस्+णिनि—तत्त्ववेत्ता
उदासीन —वि॰—-—उद्+आस्+शानच्—तटस्थ, बेलाग, निष्क्रिय
उदासीन —वि॰—-—उद्+आस्+शानच्—अभियोग से असंबंद्ध व्यक्ति
उदासीन —वि॰—-—उद्+आस्+शानच्—निष्पक्ष
उदासीनः —पुं॰—-—उद्+आस्+शानच्—अजनवी
उदासीनः —पुं॰—-—उद्+आस्+शानच्—तटस्थ
उदासीनः —पुं॰—-—उद्+आस्+शानच्—सामान्य परिचय
उदास्थितः —पुं॰—-—उद्+आ+स्था+क्त—अधीक्षक
उदास्थितः —पुं॰—-—उद्+आ+स्था+क्त—द्वारपाल
उदास्थितः —पुं॰—-—उद्+आ+स्था+क्त—भेदिया, गुप्तचर
उदास्थितः —पुं॰—-—उद्+आ+स्था+क्त—तपस्वी जिसका व्रत भङ्ग हो गया है
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—वर्णन, प्रकथन, कहना
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—वर्णन करना, पाठ करना, समालाप आरंभ करना
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—प्रकथनात्मक गीत या कविता, एक प्रकार का स्तुतिगान जो 'जयति' जैसे शब्द से आरंभ हो तथा अनुप्रास से युक्त हो
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—निदर्शन, मिसाल, दृष्टांत
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—अनुमानप्रक्रिया के पांच अंगों में से तीसरा
उदाहरणम् —नपुं॰—-—उद्+आ+हृ+ल्युट्—दृष्टांत' जो कुछ अलंकारशास्त्रियों द्वारा अलंकार माना जाता है - यह अर्थान्तरन्यास से मिलता जुलता है
उदाहारः —पुं॰—-—उद्+आ+हृ+घञ्—मिसाल या दृष्टांत
उदाहारः —पुं॰—-—उद्+आ+हृ+घञ्—किसी भाषण का आरम्भ
उदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+इ+क्त—उगा हुआ, चढ़ा हुआ
उदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+इ+क्त—ऊँचा, लंबा, उत्तुंग
उदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+इ+क्त—बढ़ा हुआ, आवर्धित
उदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+इ+क्त—उत्पन्न, पैदा हुआ
उदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+इ+क्त—कथित, उच्चरित
उदितोदित —वि—उदित-उदित—-—शास्त्रों में पूर्ण-शिक्षित
उदीक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+इक्ष्+ल्युट्—ऊपर की ओर देखना
उदीक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+इक्ष्+ल्युट्—देखना, दृष्टिपात करना
उदीची —स्त्री॰—-—उद्+अञ्च्+क्विन्+ङीप्—उत्तर दिशा
उदीचीन —वि॰—-—उदीची+ख—उत्तर दिशा की ओर मुड़ा हुआ
उदीचीन —वि॰—-—उदीची+ख—उत्तर दिशा से संबंध रखने वाला
उदीच्य —वि॰—-—उदीची+यत्—उत्तर दिशा मे होने या रहने वाला
उदीच्यः —पुं॰—-—उदीची+यत्—सरस्वती नदी के पश्चिमोत्तर में स्थित एक देश
उदीच्यः —पुं॰—-—उदीची+यत्—इस देश के निवासी
उदीच्यम् —नपुं॰—-—उदीची+यत्—एक प्रकार की सुगन्ध
उदीपः —पुं॰—-—उद्गता आपो यत्र - उद्+अप्(ईप्) —बहुत पानी, जलप्लावन बाढ़
उदीरणम् —नपुं॰—-—उद्+ईर्+ल्युट्—बोलना, उच्चारण
उदीरणम् —नपुं॰—-—उद्+ईर्+ल्युट्—बोलना, कहना
उदीरणम् —नपुं॰—-—उद्+ईर्+ल्युट्—फेंकना, चलाना
उदीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ईर्+क्त—बढ़ा हुआ, उगा हुआ, उत्पन्न
उदीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ईर्+क्त—फूला हुआ, उन्नत
उदीर्ण —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ईर्+क्त—वर्धित, गहन
उदुम्बरः —पुं॰—-—-—गूलर का वृक्ष
उदुम्बरः —पुं॰—-—-—घर की देहली या ड्यौढ़ी
उदुम्बरः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का कोढ़
उढूढा —स्त्री॰—-—उद्+वह्+क्त - टाप्—विवाहित स्त्री
उदेजय —वि॰—-—उद्+एज्_णिच्+खश्—हिलाने वाला, कंपाने वाला, भयंकर
उद्गतिः —स्त्री॰—-—उद्+गम्+क्तिन्—ऊपर जाना, उठना, चढ़ना
उद्गतिः —स्त्री॰—-—उद्+गम्+क्तिन्—आविर्भाव, उदय, जन्मस्थन
उद्गतिः —स्त्री॰—-—उद्+गम्+क्तिन्—वमन करना
उद्गन्धि —वि॰—-—उद्गतो गन्धोऽस्य - ब॰ स॰ इत्वम्—सुगंधयुक्त, खुश्बूदार
उद्गन्धि —वि॰—-—उद्गतो गन्धोऽस्य - ब॰ स॰ इत्वम्—तीव्र गंध वाला
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—ऊपर जाना, उगना, चढ़ना
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—सीधे खड़े होना
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—बाहर जाना, बिदा
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—जन्म, उत्पत्ति, रचना
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—उभार, उन्नयन
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—अंकुरण
उद्गमः —पुं॰—-—उद्+गम्+घञ्—वमन करना, उगलना
उद्गमनम् —नपुं॰—-—उद्+गम्+ल्युट्—उगना,दिखाई देना
उद्गमनीय —स॰ कृ॰—-—उद्+गम्+अनीयर्—ऊपर जाने या चढ़ने योग्य
उद्गमनीयम् —नपुं॰—-—उद्+गम्+अनीयर्—धुले कपड़ों का जोड़ा
उद्गाढ —वि॰—-—उद्+गाह्+क्त—गहरा, गहन, अत्यधिक, अत्यंत
उद्गाढम् —नपुं॰—-—उद्+गाह्+क्त—आधिक्य
उद्गाढम् —अव्य॰—-—-—अत्यधिक, अत्यन्त
उद्गातृ —पुं॰—-—उद्+गै+तृच्—यज्ञ के मुख्य चार ऋत्विजों में से एक जो सामवेद के मंत्रों का गान करता है
उद्गारः —पुं॰—-—उद्+गॄ+घञ्—निष्कासन, थूकना, वमन करना, कह डालना, उत्सर्जन
उद्गारः —पुं॰—-—उद्+गॄ+घञ्—क्षरण, प्रवाह, दिल में भरी हुई बात का बाहर निकालना
उद्गारः —पुं॰—-—उद्+गॄ+घञ्—बार बार कहना, वर्णन
उद्गारः —पुं॰—-—उद्+गॄ+घञ्—थूक, लार
उद्गारः —पुं॰—-—उद्+गॄ+घञ्—डकार, कंठगर्जन
उद्गारिन् —वि॰—-—उद्+गॄ+णिनि—ऊपर जाने वाला, उगने वाला
उद्गारिन् —वि॰—-—उद्+गॄ+णिनि—वमन करने वाला, बाहर भेजने वाला
उद्गिरणम् —नपुं॰—-—उद्+गॄ+ल्युट्—वमन करना
उद्गिरणम् —नपुं॰—-—उद्+गॄ+ल्युट्—थूक या लार गिराना
उद्गिरणम् —नपुं॰—-—उद्+गॄ+ल्युट्—डकारना
उद्गिरणम् —नपुं॰—-—उद्+गॄ+ल्युट्—उन्मूलन
उद्गीतिः —स्त्री॰—-—उद्+गै+क्तिन्—ऊँचे स्वर से गान करना
उद्गीतिः —स्त्री॰—-—उद्+गै+क्तिन्—सामवेद के मन्त्रों का गान
उद्गीतिः —स्त्री॰—-—उद्+गै+क्तिन्—आर्या छन्द का एक भेद
उद्गीथः —पुं॰—-—उद्+गै+थक्—सामवेद के मन्त्रों का गायन
उद्गीथः —पुं॰—-—उद्+गै+थक्—सामवेद का उत्तर्राध
उद्गीथः —पुं॰—-—उद्+गै+थक्—ओम्' जो परमात्मा का तीन अक्षरों का नाम है
उद्गीण —वि॰—-—उद्+गृ+क्त—वमन किया हुआ
उद्गीण —वि॰—-—उद्+गृ+क्त—उगला हुआ, बाहर उडेला हुआ
उद्गूर्ण —वि॰—-—उद्+गूर्+क्त—ऊँचा किया हुआ, ऊपर उठाया हुआ
उद्ग्रन्थः —पुं॰—-—उद्+ग्रन्थ्+घञ्—अनुभाग, अध्याय
उद्ग्रन्थि —वि॰, ब॰ स॰—-—-—बन्धनमुक्त
उद्ग्रहः —पुं॰—-—उद्+ग्रह्+अच्—लेना, उठाना
उद्ग्रहः —पुं॰—-—उद्+ग्रह्+अच्—ऐसा कार्य जो धार्मिक अनुष्ठान अथवा अन्य कृत्यों से सम्पन्न हो सकता है
उद्ग्रहः —पुं॰—-—उद्+ग्रह्+अच्—डकार
उद्ग्रहणम् —नपुं॰—-—उद्+ग्रह्+ल्युट् —लेना, उठाना
उद्ग्रहणम् —नपुं॰—-—उद्+ग्रह्+ल्युट् —ऐसा कार्य जो धार्मिक अनुष्ठान अथवा अन्य कृत्यों से सम्पन्न हो सकता है
उद्ग्रहणम् —नपुं॰—-—उद्+ग्रह्+ल्युट् —डकार
उद्ग्राहः —पुं॰—-—उद्+ग्रह्+घञ्—उठाना या लेना
उद्ग्राहः —पुं॰—-—उद्+ग्रह्+घञ्—बाद का उत्तर देना, प्रतिवाद
उद्ग्राहणिका —स्त्री॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+युच्+टाप्+क, इत्वम्—वाद का उत्तर देना
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—ऊपर उठाया हुआ या लिया हुआ
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—हटाया हुआ
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—श्रेष्ठ, उन्नत
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—न्यस्त, मुक्त किया गया
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—बद्ध, नद्ध
उद्ग्राहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+ग्रह्+णिच्+क्त—प्रत्यास्मृत, याद किया गया
उद्ग्रीव —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नता ग्रीवा यस्य—गर्दन ऊपर उठाये हुए
उद्ग्रीविन् —वि, पुं॰—-—उन्नता ग्रीवा उद्ग्रीवा+इनि—गर्दन ऊपर उठाये हुए
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—श्रेष्ठता, प्रमुखता
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—प्रसन्नता
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—अंजलि
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—अग्नि
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—नमूना
उद्धः —पुं॰—-—उद्+हन्+ड—शरीरस्थित आंगिक वायु
उद्घनः —पुं॰—-—उद्+हन्+अप्—लकड़ी का तख्ता जिस पर बढ़ई लकड़ी रख कर घड़ता है
उद्घट्टनम् —नपुं॰—-—उद्+घट्ट+ल्युट्, युच् वा—रगड़ से टकराना
उद्घट्टना —स्त्री॰—-—उद्+घट्ट+ल्युट्, युच् वा—रगड़ से टकराना
उद्घर्षणम् —नपुं॰—-—उद्+घृष्+ल्युट्—रगड़ना, घोटना
उद्घर्षणम् —नपुं॰—-—उद्+घृष्+ल्युट्—सोटा
उद्घाटः —पुं॰—-—उद्+घट्+घञ्—चौकीदार या चौकी
उद्घाटकः —पुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ण्वुल्—कुँजी
उद्घाटकः —पुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ण्वुल्—कुएँ की रस्सी और ढोल, कुएँ की चर्खी
उद्घाटकम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ण्वुल्—कुँजी
उद्घाटकम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ण्वुल्—कुएँ की रस्सी और ढोल, कुएँ की चर्खी
उद्घाटन —वि॰—-—उद्+घट्+णिच्+ल्युट्—खोलना, ताला खोलना
उद्घाटनम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ल्युट्—प्रकट करना
उद्घाटनम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ल्युट्—उन्नत करना, ऊपर उठाना
उद्घाटनम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ल्युट्—कुंजी
उद्घाटनम् —नपुं॰—-—उद्+घट्+णिच्+ल्युट्—कुएँ पर की रस्सी और ढोल, पानी निकालने की चर्खी
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—आरंभ, उपक्रम
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—संकेत, उल्लेख
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—प्रहार करन, घायल करना
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—प्रहार, थप्पड़, आघात
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—हचकोला, झकझोरना, धचका
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—उठना, उन्नत होना
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—मुद्गर
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—शस्त्र
उद्घातः —पुं॰—-—उद्+हन्+घञ्—पुस्तक भाग, अध्याय, अनुभाग, परिच्छेद
उद्घघोषः —पुं॰—-—उद्+घुष्+घञ्—ऊँची आवाज में कहना, ढिंढोरा पीटना
उद्घघोषः —पुं॰—-—उद्+घुष्+घञ्—सर्वजन प्रिय बात, सामान्य विवरण
उद्दंशः —पुं॰—-—उद्+दंश्+अच्—खटमल
उद्दंशः —पुं॰—-—उद्+दंश्+अच्—जूँ
उद्दंशः —पुं॰—-—उद्+दंश्+अच्—मच्छर
उद्दण्ड —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—जिसका तना, डंठल या ध्वज उठा हुआ हो
उद्दण्ड —वि॰—-—-—मजबूत, भयानक
उद्दण्डपालः —पुं॰—उद्दण्ड-पालः—-—दंड देने वाला
उद्दण्डपालः —पुं॰—उद्दण्ड-पालः—-—एक प्रकार की मछली
उद्दण्डपालः —पुं॰—उद्दण्ड-पालः—-—एक प्रकार का साँप
उद्दन्तुर —वि॰—-—-—जिसके दाँत लंबे, या बाहर निकले हुए हों
उद्दन्तुर —वि॰—-—-—ऊँचा, लंबा
उद्दन्तुर —वि॰—-—-—भयानक, मजबूत
उद्दानम् —नपुं॰—-—उद्+दो+ल्युट्—बंधन, कैद
उद्दानम् —नपुं॰—-—उद्+दो+ल्युट्—पालतू बनाना, वश में करना
उद्दानम् —नपुं॰—-—उद्+दो+ल्युट्—मध्य भाग, कटि
उद्दानम् —नपुं॰—-—उद्+दो+ल्युट्—चूल्हा, अंगीठी
उद्दानम् —नपुं॰—-—उद्+दो+ल्युट्—वडवानल
उद्दान्त —वि॰—-—उद्+दम्+क्त—ऊर्जस्वी
उद्दान्त —वि॰—-—उद्+दम्+क्त—विनीत
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—निर्बंध, अनियंत्रित, निरंकुश, मुक्त
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—सबल, सशक्त
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—भीषण, नशे में चूर
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—भयावह
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—स्वेच्छाचारी
उद्दाम —वि॰, ग॰ स॰—-—-—अतिबहुल, विशाल, बड़ा, अत्यधिक
उद्दामम् —अव्य॰—-—-—प्रचण्डता के साथ, भीषणतापूर्वक, बलपूर्वक
उद्दालकम् —नपुं॰—-—उद्+दल्+णिच्+अच्+कन्—एक प्रकार का शहद, लसोड़े का फल
उद्दित —वि॰—-—उद्+दो+क्त—बंधा हुआ, बद्ध
उदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+क्त—बताया हुआ, विशिष्ट, विशेष रूप से कहा गया
उदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+क्त—इच्छित
उदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+क्त—चाहा हुआ
उदिष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+क्त—समझाया गया, सिखाया गया
उद्दीपः —पुं॰—-—उद्+दीप्+घञ्—प्रज्वलित करने वाला, जलाने वाला
उद्दीपः —पुं॰—-—उद्+दीप्+घञ्—प्रज्वालक
उद्दीपक —वि॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ण्वुल्—उत्तेजक
उद्दीपक —वि॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ण्वुल्—प्रकाशक, प्रज्वालक
उद्दीपनम् —नपुं॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ल्युट्—जलाने वाला, उत्तेजना देने वाला
उद्दीपनम् —नपुं॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ल्युट्—जो रस को उत्तेजित करे
उद्दीपनम् —नपुं॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ल्युट्—प्रकाश करना, जलाना
उद्दीपनम् —नपुं॰—-—उद्+दीप्+णिच्+ल्युट्—शरीर को भस्म करना
उद्दीप्र —वि॰—-—उद्+दीप्+रन्—चमकता हुआ, दहकता हुआ
उद्दीप्रः —पुं॰—-—उद्+दीप्+रन्—गुग्गुल
उद्दीप्रम् —नपुं॰—-—उद्+दीप्+रन्—गुग्गुल
उद्दृप्तः —पुं॰—-—उद्+दृप्+क्त—घमंडी, अभिमानी
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—संकेत करने वाला, निदेश करने वाला
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—वर्णन, विशिष्ट वर्णन
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—निदर्शन, व्याख्यान, दृष्टान्त
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—निश्चयन, पृच्छा, समन्वेषण, खोज
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—संक्षिप्त वक्तव्य या वर्णन
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—दत्त-कार्य
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—अनुबन्ध
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—अभिप्राय, प्रयोजन
उद्देशः —पुं॰—-—उद्+दिश्+घञ्—स्थान, प्रदेश, जगह
उद्देशकः —पुं॰—-—उद्+दिश्+ण्वुल्—निदर्शन, दृष्टान्त
उद्देशकः —पुं॰—-—उद्+दिश्+ण्वुल्—प्रश्न, समस्या
उद्देश्य —सं॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+ण्यत्—उदाहरण देकर स्पष्ट करने या समझाने जाने योग्य
उद्देश्य —सं॰ कृ॰—-—उद्+दिश्+ण्यत्—अभिप्रेत, लक्ष्य
उद्देश्यम् —नपुं॰—-—उद्+दिश्+ण्यत्—लक्ष्यार्थ, प्रोत्साहक
उद्देश्यम् —नपुं॰—-—उद्+दिश्+ण्यत्—किसी उक्ति का कर्त्ता
उद्द्योतः —पुं॰—-—उद्+द्युत्+घञ्—प्रकाश, प्रभा, अलंकृत करते हुए
उद्द्योतः —पुं॰—-—उद्+द्युत्+घञ्—किसी पुस्तक के प्रभाग, अध्याय, अनुभाग या परिच्छेद
उद्द्रावः —पुं॰—-—उद्+द्रु+घञ्—भागना, पीछे हटना
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—ऊँचा किया हुआ, उन्नत, ऊपर उठाया हुआ
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—अतिशय, अत्यन्त, अत्यधिक
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—अभिमानी, निरर्थक, व्यर्थ फूला हुआ
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—कठोर
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—उत्तेजित, भड़काया हुआ, प्रचंड
उद्धत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हन्+क्त—शानदार, राजसी, अक्खड़, अशिष्टा
उद्धतमनस् —वि॰—उद्धत-मनस्—-—दम्भी, अहंकारी, घमंडी
उद्धतमनस्क —वि॰—उद्धत-मनस्क—-—दम्भी, अहंकारी, घमंडी
उद्धमः —पुं॰—-—उद्+ध्मा+श - धमादेशः—आवाज निकालना, बजाना
उद्धमः —पुं॰—-—उद्+ध्मा+श - धमादेशः—घोर सांस लेना, हाँफना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—निकालना, बाहर करना, उतारना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—निचोड़ना, निस्सारण, उखाड़ लेना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—उद्धार करना, मुक्त करना, अभय करना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—उन्मूलन, ध्वंस, पदच्युति
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—उठाना, ऊपर करना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—वमन करना
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—मोक्ष
उद्धरणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ+ल्युट्—ऋणपरिशोध
उद्धर्तृ —वि॰—-—उद्+(हृ)धृ+तृच्—ऊपर उठाने वाला
उद्धर्तृ —वि॰—-—उद्+(हृ)धृ+तृच्—साझीदार, संपत्ति का हिस्सेदार
उद्धारक —वि॰—-—उद्+(हृ)धृ+ण्वुल् —ऊपर उठाने वाला
उद्धारक —वि॰—-—उद्+(हृ)धृ+ण्वुल् —साझीदार, संपत्ति का हिस्सेदार
उद्धर्ष —वि॰—-—उद्+हृष्+घञ्—खुश, प्रसन्न
उद्धर्षः —वि॰—-—उद्+हृष्+घञ्—बहुत प्रसन्न्ता
उद्धर्षः —वि॰—-—उद्+हृष्+घञ्—किसी कार्य को संपन्न करने के लिए उत्तरदायित्व लेने का साहस
उद्धर्षः —वि॰—-—उद्+हृष्+घञ्—उत्सव
उद्धर्षणम् —नपुं॰—-—उद्+हृष्+ल्युट्—प्राण फूंकना
उद्धर्षणम् —नपुं॰—-—उद्+हृष्+ल्युट्—रोमांच होना, पुलक
उद्धवः —पुं॰—-—उद्+हु+अच्—यज्ञाग्नि
उद्धवः —पुं॰—-—उद्+हु+अच्—उत्सव, पर्व
उद्धवः —पुं॰—-—उद्+हु+अच्—इस नाम का यादव जो कृष्ण का चाचा तथा मित्र था
उद्धस्त —वि॰, ब॰ स॰—-—-—हाथ आगे पसारे हुए या उठाये हुए
उद्धानम् —नपुं॰—-—उद्+धा+ल्युट्—चूल्हा, अंगीठी, यज्ञ्कुण्ड
उद्धानम् —नपुं॰—-—उद्+धा+ल्युट्—उगल देना, वमन करना
उद्धान्त —वि॰—-—उद्+हा+झ बा॰—उगला हुआ, वमन किया हुआ
उद्धान्तः —पुं॰—-—उद्+हा+झ बा॰—हाथी जिसके मस्तक से मद चूना बन्द हो गया हो
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—खींचकर बाहर निकालना, निस्सारण
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—मुक्ति, त्राण, बचाव, अपमोचन, छुटकारा
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—उठाना, ऊपर करना
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—पैतृक सम्पत्ति में से पृथक किया गया वह भाग जिसका लाभ केवल ज्येष्ठ पुत्र ही उठा सके, छोटे भाइयों को दिया जाने वाले भाग के अतिरिक्त वह अंश जो कानूनन बड़े भाई को ही मिले
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—युद्ध की लूट का छठा भाग जिसका स्वामी राजा होता है
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—ऋण
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—सम्पत्ति का फिर से प्राप्त हो जाना
उद्धारः —पुं॰—-—उद्+हृ+घञ्—मोक्ष
उद्धारणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ(धृ)+णिच्+ल्युट्—उठाना, ऊँचा करना
उद्धारणम् —नपुं॰—-—उद्+हृ(धृ)+णिच्+ल्युट्—बचाना, भय से निकाल लेना, छुटकारा, मुक्ति
उद्धुरः —वि॰—-—उद्+धुर्+क—अनियन्त्रित, निरंकुश, मुक्त
उद्धुरः —वि॰—-—उद्+धुर्+क—दृढ़, निश्शंक
उद्धुरः —वि॰—-—उद्+धुर्+क—भारी, भरपूर
उद्धुरः —वि॰—-—उद्+धुर्+क—मोटा, फूला हुआ, स्थूल
उद्धुरः —वि॰—-—उद्+धुर्+क—योग्य, सक्षम
उद्धूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+धू+क्त—हिलाया हुआ, गिरा हुआ, उठाया हुआ, ऊपर फेंका हुआ
उद्धूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+धू+क्त—उन्नत, ऊँचा
उद्धूननम् —नपुं॰—-—उद्+धू+ल्युट्, नुनागमः—ऊपर फेंकना, उठाना
उद्धूननम् —नपुं॰—-—उद्+धू+ल्युट्, नुनागमः—हिलाना
उद्धूपनम् —नपुं॰—-—उद्+धूप+ल्युट्—धूनी देना, धुपाना
उद्धूलनम् —नपुं॰—-—उद्+धूल्+णिच्+ल्युट्—चूरा करना, पीसना, धूल या चूरा बुरकना
उद्धषणम् —नपुं॰—-—उद्+धू्ष्+ल्युट्—रोंगटे खड़े होना, पुलकना, रोमांचित होना
उद्धृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्त—बाहर खींचा हुआ, निकाला हुआ, निचोड़ कर निकाला हुआ
उद्धृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्त—उठाया हुआ, उन्नत, ऊँचा किया हुआ
उद्धृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्त—उखाड़ा हुआ, उन्मुलित
उद्धृतिः —स्त्री॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्तिन्—खींचकर बाहर निकालना, निचोड़ना
उद्धृतिः —स्त्री॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्तिन्—निचोड़, चुना हुआ संदर्भ
उद्धृतिः —स्त्री॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्तिन्—मुक्त करना, बचाना
उद्धृतिः —स्त्री॰—-—उद्+हृ(धृ)+क्तिन्—विशेषतः पाप से मुक्ति दिलाना, पवित्र करना, मोक्ष
उद्ध्मानम् —नपुं॰—-—उद्+ध्मा+ल्युट्—अंगीठी, चूल्हा, स्टोव
उद्धयः —पुं॰—-—उज्झत्युदकमिति मल्लि॰ - उद्+उज्झ्+क्यप्, नि॰ उज्झेर्धत्वम्—एक दरिया का नाम
उद्बन्ध —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—ढीला किया गया
उद्बन्धः —पुं॰—-—-—बँधना, लटकना
उद्बन्धः —पुं॰—-—-—स्वयं फांसी लगा लेना
उद्बन्धनम् —नपुं॰—-—-—बँधना, लटकना
उद्बन्धनम् —नपुं॰—-—-—स्वयं फांसी लगा लेना
उद्बन्धकः —पुं॰—-—उद्+बन्ध्+ण्वुल्—वर्णसंकर जाति जो धोबी का काम करती है
उद्बलः —वि॰, ब॰ स॰—-—-—सबल, सशक्त
उद्बाष्पः —वि॰, ब॰ स॰—-—-—अश्रुपरिपूर्ण, अश्रुपरिप्लावित
उद्बाहु —वि॰, ब॰ स॰—-—-—भुजाएँ ऊपर उठाये हुए, भुजाओं को फैलाये हुए
उद्बुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+बुध्+क्त—जागा हुाअ, जगाया हुआ, उत्तेजित
उद्बुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+बुध्+क्त—खिला हुआ, फैला हुआ, पूर्ण विकसित
उद्बुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+बुध्+क्त—याद दिलाया गया
उद्बुद्ध —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+बुध्+क्त—प्रत्यास्मृत
उद्बोधः —पुं॰—-—उद्+बुध्+णिच्+घञ्—जगाना, ध्यान दिलाना
उद्बोधः —पुं॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ल्युट् —प्रत्यास्मरण करना, उठाना
उद्बोधनम् —नपुं॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ल्युट्—जगाना, ध्यान दिलाना
उद्बोधनम् —नपुं॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ल्युट्—प्रत्यास्मरण करना, उठाना
उद्बोधक —वि॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ण्वुल्—ध्यान दिलाने वाला
उद्बोधक —वि॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ण्वुल्—उत्तेजना देने वाला
उद्बोधकः —पुं॰—-—उद्+बुध्+णिच्+ण्वुल्—सूर्य
उद्भट —वि॰—-—उद्+भट्+अप्—श्रेष्ठ, प्रमुख
उद्भट —वि॰—-—उद्+भट्+अप्—उत्कृष्ट, महानुभाव
उद्भटः —पुं॰—-—उद्+भट्+अप्—अनाज फटकने के लिए छाज
उद्भटः —पुं॰—-—उद्+भट्+अप्—कछुवा
उद्भवः —पुं॰—-—उब्+भू+अप्—उत्पत्ति, रचना, जन्म, प्रसव
उद्भवः —पुं॰—-—उब्+भू+अप्—स्रोत, उद्गमस्थान
उद्भवः —पुं॰—-—उब्+भू+अप्—विष्णु
उद्भावः —पुं॰—-—उद्+भू+घञ्—उत्पत्ति, सन्तति
उद्भावः —पुं॰—-—उद्+भू+घञ्—औदार्य
उद्भावनम् —नपुं॰—-—उद्+भू+णिच्+ल्युट्—चिन्तन, कल्पना
उद्भावनम् —नपुं॰—-—उद्+भू+णिच्+ल्युट्—उत्पत्ति, उत्पादन, सृष्टि
उद्भावनम् —नपुं॰—-—उद्+भू+णिच्+ल्युट्—अनवधान, उपेक्षा, अवहेलना
उद्भावयितृ —वि॰—-—उद्+भू+णिच्+तृच्—ऊपर उठाने वाला, उत्कृष्ट बनाने वाला
उद्भासः —पुं॰—-—उद्+भास्+घञ्—चमक, प्रभा
उद्भासिन् —वि॰—-—उद्भास्+इनि, घुरच् वा—देदीप्यमान, चमकीला, उज्ज्वल
उद्भासुर —वि॰—-—उद्भास्+इनि, घुरच् वा—देदीप्यमान, चमकीला, उज्ज्वल
उद्भिद् —वि॰—-—उद्+भिद्+क्विप्—उगने वाला, अंकुर फूटने वाला
उद्भिद् —पुं॰—-—उद्+भिद्+क्विप्—पौधे का अंकुर
उद्भिद् —पुं॰—-—उद्+भिद्+क्विप्—पौधा
उद्भिद् —पुं॰—-—उद्+भिद्+क्विप्—झरना, फौवारा
उद्भिज्ज —वि॰—उद्भिद्-ज—-—फूटने वाला, उगने वाला
उद्भिज्जः —पुं॰—उद्भिद्-ज्जः—-—पौधा
उद्भिविद्या —स्त्री॰—उद्भिद्-विद्या—-—वनस्पति विज्ञान
उद्भिद —वि॰—-—उद्भिद्+क—फूटने वाला, उगने वाला
उद्भूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+भू+क्त—जात, उत्पन्न, प्रसूत
उद्भूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+भू+क्त—उत्तुंग
उद्भूत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+भू+क्त—गोचर जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सके
उद्भूतिः —स्त्री॰—-—उद्+भू+क्तिन्—प्रजनन, उत्पादन
उद्भूतिः —स्त्री॰—-—उद्+भू+क्तिन्—उन्नयन, उत्कर्षण, समृद्धि
उद्भेदः —पुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—फूट पड़ना, बेधना, दिखाई देना, आविर्भाव, प्रकट होना, उगना
उद्भेदः —पुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—निर्झर, फौवारा
उद्भेदः —पुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—रोमांच
उद्भेदनम् —नपुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—फूट पड़ना, बेधना, दिखाई देना, आविर्भाव, प्रकट होना, उगना
उद्भेदनम् —नपुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—निर्झर, फौवारा
उद्भेदनम् —नपुं॰—-—उद्+भिद्+घञ्, ल्युट् वा—रोमांच
उद्भ्रमः —पुं॰—-—उद्+भ्रम्+घञ्—आघूर्णन, चक्कर देना, घुमाना
उद्भ्रमः —पुं॰—-—उद्+भ्रम्+घञ्—घूमना
उद्भ्रमः —पुं॰—-—उद्+भ्रम्+घञ्—खेद
उद्भ्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+भ्रम्+ल्युट्—इधर-उधर - हिलना-जुलना, घूमना
उद्भ्रमणम् —नपुं॰—-—उद्+भ्रम्+ल्युट्—उगना, उठना
उद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+यम्+क्त—उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ
उद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+यम्+क्त—सँभाल कर रखने वाला, परिश्रमी, चुस्त
उद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+यम्+क्त—तुला हुआ, तना हुआ
उद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+यम्+क्त—आमादा, तैयार, तत्पर, उत्सुक, तुला हुआ, लगा हुआ, व्यस्त
उद्यमः —पुं॰—-—उद्+यम्+घञ्—उठाना, उन्नयन
उद्यमः —पुं॰—-—उद्+यम्+घञ्—सतत प्रयत्न, चेष्टा, परिश्रम, धैर्य, दृढ़ संकल्प
उद्यमः —पुं॰—-—उद्+यम्+घञ्—तैयारी, तत्परता
उद्यमभृत् —वि॰—उद्यमः-भृत्—-—घोर परिश्रम करने वाला
उद्यमनम् —नपुं॰—-—उद्+यम्+ल्युट्—उठाना, उन्नयन
उद्यमिन् —वि॰—-—उद्+यम्+णिनि—परिश्रमी, सतत प्रयत्नशील
उद्यानम् —नपुं॰—-—उद्+या+ल्युट्—भ्रमण करना, टहलना
उद्यानम् —नपुं॰—-—उद्+या+ल्युट्—बाग, बगीचा, प्रमोदवन
उद्यानम् —नपुं॰—-—उद्+या+ल्युट्—अभिप्राय, प्रयोजन
उद्यानपालः —पुं॰—उद्यानम्-पालः—-—माली, बाग का रखवाला
उद्यानपालकः —पुं॰—उद्यानम्-पालकः—-—माली, बाग का रखवाला
उद्यानरक्षकः —पुं॰—उद्यानम्-रक्षकः—-—माली, बाग का रखवाला
उद्यानकम् —नपुं॰—-—उद्+या+ल्युट्+कन्—बाग, बगीचा
उद्यापनम् —नपुं॰—-—उद्+या+णिच्+ल्युट्, पुकागमः—व्रतादिक का पारण, समाप्ति
उद्योगः —पुं॰—-—उद्+युज्+घञ्—प्रयत्न, चेष्टा, काम-धंधा
उद्योगः —पुं॰—-—उद्+युज्+घञ्—कार्य, कर्तव्य, पद, धैर्य, परिश्रम
उद्योगिन् —वि॰—-—उद्+युज्+धिनुण्—चुस्त, उद्यमी, उद्योगशील
उद्रः —पुं॰—-—उन्द्+रक्—एक प्रकार का जल जन्तु
उद्रथः —पुं॰—-—उद्गतो रथो यस्मात् - ग॰ स॰—रथ के धूरे की कील, सकेल
उद्रथः —पुं॰—-—उद्गतो रथो यस्मात् - ग॰ स॰—मुर्गा
उद्रावः —पुं॰—-—उद्+रु+घञ्—शोरगुल, कोलाहल
उद्रिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+रिच्+क्त—बढ़ा हुआ, अत्यधिक, अतिशय
उद्रिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+रिच्+क्त—विशद, स्पष्ट
उद्रुज —वि॰—-—उद्+रुज्+क—नष्ट करने वाला, जड़ खोदने वाला
उद्रेकः —पुं॰—-—उद्+रिच्+घञ्—वृद्धि, आधिक्य, प्राबल्य, प्राचुर्य
उद्वत्सरः —पुं॰—-—उद्+वस्+सरन्—वर्ष
उद्वपनम् —नपुं॰—-—उद्+वप्+ल्युट्—उपहार, दान
उद्वपनम् —नपुं॰—-—उद्+वप्+ल्युट्—उडेलना, उखाड़ना
उद्वमनम् —स्त्री॰—-—उद्+वम्+ल्युट्—वमन करना, उगलना
उद्वान्तिः —स्त्री॰—-—उद्+वम्+ क्तिन् —वमन करना, उगलना
उद्वर्तः —पुं॰—-—उद्+वृत्+घञ्—अवशेष, आतिशय्य
उद्वर्तः —पुं॰—-—उद्+वृत्+घञ्—आधिक्य, बाहुल्य
उद्वर्तः —पुं॰—-—उद्+वृत्+घञ्—सुगंधित पदार्थों की मालिश
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—ऊपर जाना, उठना
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—उगना, बाढ़
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—समृद्धि, उन्नयन
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—करवट बदलना, उछाल लेना
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—पीसना, चूरा करना
उद्वर्तनम् —नपुं॰—-—उद्+वृत्+ल्युट्—सुगंधित उबटन आदि पदार्थों का शरीर पर लेप करना, या पीडा आदि को दूर करने के लिए सुगंधित लेप
उद्वर्धनम् —नपुं॰—-—उद्+वृध्+ल्युट्—वृद्धि
उद्वर्धनम् —नपुं॰—-—उद्+वृध्+ल्युट्—दबाई हुई हँसी
उद्वह —वि॰—-—उद्+वह्+अच्—ले जाने वाला, आगे बढ़ने वाला
उद्वह —वि॰—-—उद्+वह्+अच्—जारी रहने वाला, निरन्तर रहने वाला
उद्वहः —पुं॰—-—-—वायु के सात स्तरों में से चौथा स्तर
उद्वहा —स्त्री॰—-—-—पुत्री
उद्वहनम् —नपुं॰—-—उद्+वह्+ल्युट्—विवाह करना
उद्वहनम् —नपुं॰—-—उद्+वह्+ल्युट्—सहारा देना, संभाले रखना, उठाये रखना
उद्वहनम् —नपुं॰—-—उद्+वह्+ल्युट्—ले जाया जाना, सवारी करना
उद्वान —वि॰—-—उद्+वन्+घञ्—वमन किया हुआ, उगला हुआ
उद्वानम् —नपुं॰—-—उद्+वन्+घञ्—उगलना, वमन करना
उद्वानम् —नपुं॰—-—उद्+वन्+घञ्—अंगीठी, स्टोव
उद्वान्त —वि॰—-—उद्+वम्+क्त—वमन किया हुआ
उद्वान्त —वि॰—-—उद्+वम्+क्त—मद रहित
उद्वापः —पुं॰—-—उद्+वप्+घञ्—उगलना, बहर फेंकना
उद्वापः —पुं॰—-—उद्+वप्+घञ्—हजामत करना
उद्वापः —पुं॰—-—उद्+वप्+घञ्—पूर्व पद के अभाव में पश्चवर्ती उत्तरांग के अस्तित्व का अभाव
उद्वासः —पुं॰—-—उद्+वस्+घञ्—निर्वासन
उद्वासः —पुं॰—-—उद्+वस्+घञ्—तिलांजलि देना
उद्वासः —पुं॰—-—उद्+वस्+घञ्—वध करना
उद्वासनम् —नपुं॰—-—उद्+वस्+णिच्+ल्युट्—बाहर निकालना, निर्वासित कर देना
उद्वासनम् —नपुं॰—-—उद्+वस्+णिच्+ल्युट्—तिलांजलि देना
उद्वासनम् —नपुं॰—-—उद्+वस्+णिच्+ल्युट्—निकालकर दूर करना
उद्वासनम् —नपुं॰—-—उद्+वस्+णिच्+ल्युट्—वध करना
उद्वाहः —पुं॰—-—उद्+वह्+घञ्—संभालना, सहारा देना
उद्वाहः —पुं॰—-—उद्+वह्+घञ्—विवाह, पाणिग्रहण
उद्वाहनम् —नपुं॰—-—उद्+वह्+णिच्+ल्युट्—उठाना
उद्वाहनम् —नपुं॰—-—उद्+वह्+णिच्+ल्युट्—विवाह
उद्वाहनी —स्त्री॰—-—उद्+वह्+णिच्+ल्युट्+ ङीप्—बंधनी, रस्सी
उद्वाहनी —स्त्री॰—-—उद्+वह्+णिच्+ल्युट्+ ङीप्—कौड़ी, वराटिका
उद्वाहिक —वि॰—-—उद्वाह+ठन्—विवाह से संबंध रखने वाला, विवाह विषयक
उद्वाहिन् —वि॰—-—उद्+वह्+णिनि—उठाने वाला, खींचने वाला
उद्वाहिन् —वि॰—-—उद्+वह्+णिनि—विवाह करने वाला
उद्वाहिनी —स्त्री॰—-—उद्+वह्+णिनि+ ङीप्—रस्सी, डोरी
उद्विग्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+विज्+क्त—संतप्त, पीडित, शोकग्रस्त, चिंतित
उद्वीक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+वि+ईक्ष्+ल्युट्—ऊपर की ओर देखना
उद्वीक्षणम् —नपुं॰—-—उद्+वि+ईक्ष्+ल्युट्—दृष्टि, आँख, देखना, नजर डालना
उद्वीजनम् —नपुं॰—-—उद्+विज्+ल्युट्—पंखा झलना
उद्वृंहणम् —नपुं॰—-—उद्+वृह्+ल्युट्—वर्धन, वृद्धि
उद्वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+वृत्+क्त—उठाया हुआ, ऊँचा किया हुआ
उद्वृत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+वृत्+क्त—उमड़कर बहता हुआ, उमड़ा हुआ
उद्वेगः —पुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—कांपना, हिलना, लहराना
उद्वेगः —पुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—क्षोभ, उत्तेजना
उद्वेगः —पुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—आतंक, भय
उद्वेगः —पुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—चिन्ता, खेद, शोक
उद्वेगः —पुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—विस्मय, आश्चर्य
उद्वेगम् —नपुं॰—-—उद्+विज्+घञ्—सुपारी
उद्वेजनम् —नपुं॰—-—उद्+विज्+ल्युट्—क्षोभ, चिन्ता
उद्वेजनम् —नपुं॰—-—उद्+विज्+ल्युट्—पीडा पहुँचाना, कष्ट देना
उद्वेजनम् —नपुं॰—-—उद्+विज्+ल्युट्—खेद
उद्वेदि —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नता वेदिर्यत्र—जहाँ आसन या गद्दी ऊँची हो
उद्वेपः —पुं॰—-—-—हिलना, कांपना, अत्यधिक कंपकंपी
उद्वेलः —वि॰—-—उत्क्रान्तो वेलाम् - अत्या॰ स॰—अपने तट से बाहर उमड़ कर बहने वाला
उद्वेलः —वि॰—-—उत्क्रान्तो वेलाम् - अत्या॰ स॰—उचित सीमा का उल्लंघन
उद्वेल्लित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+वेल्ल्+क्त—हिलाया हुआ, उछाला हुआ
उद्वेल्लितम् —नपुं॰—-—उद्+वेल्ल्+क्त—हिलाना, झंझोड़ना
उद्वेष्टन —वि॰, ग॰ स॰—-—-—ढीला किया हुआ
उद्वेष्टन —वि॰, ग॰ स॰—-—-—बन्धनमुक्त, बन्धनरहित
उद्वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—घेरा डालना
उद्वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—बाड़ा, बाड़
उद्वेष्टनम् —नपुं॰—-—-—पीठ या कूल्हों में पीड़ा
उद्वोढृ —पुं॰—-—उद्+वह्+तृच्—पति
उधस् —नपुं॰—-—उन्द्+असुन्—ऐन,औड़ी
उन्द् —रुधा॰ पर॰ <उनत्ति>,<उत्त>,<उन्न>—-—-—आर्द्र करना, तर करना, स्नान करना
उन्दनम् —नपुं॰—-—उन्द्+ल्युट्—तर करना, आर्द्र करना
उन्दरुः —पुं॰—-—उन्द्+उर —मूसा, चूहा
उन्दुरः —पुं॰—-—उन्द्+उर —मूसा, चूहा
उन्दुरुः —पुं॰—-—उन्द्+उरु —मूसा, चूहा
उन्दूरुः —पुं॰—-—-—मूसा, चूहा
उन्नत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+नम्+क्त—उठाया हुआ, उन्नत किया हुआ, ऊपर उठाया हुआ
उन्नत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+नम्+क्त—ऊँचा, लम्बा, उत्तुंग, बड़ा, प्रमुख
उन्नत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+नम्+क्त—मांसल, भरा-पूरा
उन्नतः —पुं॰—-—उद्+नम्+क्त—अजगर
उन्नतम् —नपुं॰—-—उद्+नम्+क्त—उन्नयन
उन्नतम् —नपुं॰—-—उद्+नम्+क्त—उत्थान
उन्नतम् —नपुं॰—-—उद्+नम्+क्त—ऊँचाई
उन्नतानत —वि॰—उन्नत-आनत—-—उन्नत और दलित, विषम
उन्नतचरण —वि॰—उन्नत-चरण—-—दुर्दान्त
उन्नतशिरस् —वि॰—उन्नत-शिरस्—-—अहंमन्य, बड़ा घमंडी
उन्नतिः —स्त्री॰—-—उद्+नम्+क्तिन्—उन्नयन, ऊँचाई
उन्नतिः —स्त्री॰—-—उद्+नम्+क्तिन्—उत्कर्ष, मर्यादा, अभ्युदय, समृद्धि
उन्नतिः —स्त्री॰—-—उद्+नम्+क्तिन्—उठाना
उन्नतीशः —पुं॰—उन्नतिः-ईशः—-—गरुड़
उन्नतिमत् —वि॰—-—उन्नति+मतुप्—उन्नत, उभारता हुआ, फूला हुआ
उन्नमनम् —नपुं॰—-—उद्+नम्+ल्युट्—ऊपर उठाना, ऊँचा करना
उन्नम्र —वि॰—-—उद्+नम्+रन्—खड़ा, सीधा, उत्तुंग, ऊँचा
उन्नयः —पुं॰—-—उद्+नी+अच—उठाना, ऊँचा करना
उन्नयः —पुं॰—-—उद्+नी+अच—ऊँचाई, उन्नयन
उन्नयः —पुं॰—-—उद्+नी+अच—सादृश्य, समता
उन्नयः —पुं॰—-—उद्+नी+अच—अटकल
उन्नायः —पुं॰—-—उद्+नी+घञ् —उठाना, ऊँचा करना
उन्नायः —पुं॰—-—उद्+नी+घञ् —ऊँचाई, उन्नयन
उन्नायः —पुं॰—-—उद्+नी+घञ् —सादृश्य, समता
उन्नायः —पुं॰—-—उद्+नी+घञ् —अटकल
उन्नयनम् —नपुं॰—-—उद्+नी+ल्युट्—उठाना, ऊँचा करना, ऊपर उठाना
उन्नयनम् —नपुं॰—-—उद्+नी+ल्युट्—पानी खींचना
उन्नयनम् —नपुं॰—-—उद्+नी+ल्युट्—पर्यालोचन, विचार-विमर्श
उन्नयनम् —नपुं॰—-—उद्+नी+ल्युट्—अटकल
उन्नस —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नता नासिका यस्य —ऊँची नाक वाला
उन्नादः —पुं॰—-—उद्+नद्+घञ्—चिल्लाहट, दहाड़, गुंजन, चहचहाना
उन्नाभ —वि॰, ब॰ स॰—-—उन्नता नाभिर्यस्य —जिसकी नाभि उभरी हुई हो, तुंदिल, तोंद वाला
उन्नाहः —पुं॰—-—उद्+ नह्+घञ्—उभार, स्फीति
उन्नाहः —पुं॰—-—उद्+ नह्+घञ्—बाँधना, बंधनयुक्त करना
उन्नाहम् —नपुं॰—-—उद्+ नह्+घञ्—चावलों के माँड़ से बनी काँजी
उन्निद्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गता निद्रा यस्य—निद्रा रहित, जागा हुआ
उन्निद्र —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गता निद्रा यस्य—प्रसृत, पूर्णविकसित, मुकुलित
उन्नेतृ —पुं॰—-—उद्+नी+तृच्—उठाने वाला
उन्नेतृ —पुं॰—-—उद्+नी+तृच्—यज्ञ के १६ ऋत्विजों में से एक
उन्मज्जनम् —नपुं॰—-—उद्+मस्ज्+ल्युट्—बाहर निकालना, पानी से बाहर निकालना
उन्मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+मद्+क्त—मद्यप, नशे में चूर
उन्मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+मद्+क्त—विक्षिप्त, उन्मत्त, पागल
उन्मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+मद्+क्त—फूला हुआ, उच्छ्रित, वहशी
उन्मत्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+मद्+क्त—भूत या प्रेत से अवशिष्ट
उन्मत्तकीर्तिः —पुं॰—उन्मत्त-कीर्तिः—-—शिव
उन्मत्तवेशः —पुं॰—उन्मत्त-वेशः—-—शिव
उन्मत्तगङ्गम् —नपुं॰—उन्मत्त-गङ्गम्—-—एक देश का नाम
उन्मत्तदर्शन —वि॰—उन्मत्त-दर्शन—-—देखने में पागल
उन्मत्तरूप —वि॰—उन्मत्त-रूप—-—देखने में पागल
उन्मत्तप्रलपित —वि॰—उन्मत्त-प्रलपित—-—पागल की बहक
उन्मत्तप्रलपितम् —नपुं॰—उन्मत्त-प्रलपितम्—-—पागल के शब्द
उन्मथम् —नपुं॰—-—उद्+मथ्+ल्युट्—झाड़ना, फेंक देना
उन्मथम् —नपुं॰—-—उद्+मथ्+ल्युट्—बध करना
उन्मद —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतो मदो यस्य—नशे में चूर, शराबी
उन्मद —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतो मदो यस्य—पागल, क्रोधोद्दीप्त, उड़ाऊ
उन्मद —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतो मदो यस्य—नशा करने वाला, मादक
उन्मदः —पुं॰—-—-—विक्षिप्ति
उन्मदन —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्गतो मदनोऽस्य —प्रेम-पीडित, प्रेमोद्दीप्त
उन्मदिष्णु —वि॰—-—उद्+मद्+इष्णुच्—पागल
उन्मदिष्णु —वि॰—-—उद्+मद्+इष्णुच्—नशे में चूर, जिसने मदिरा पी हुई हो
उन्मदिष्णु —वि॰—-—उद्+मद्+इष्णुच्—जिसे मद चूता हो
उन्मनस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—उत्तेजित, विक्षुब्ध, संक्षुब्ध, बेचैन
उन्मनस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—खेद प्रकट करना, किसी मित्र के विछोह से उदास
उन्मनस् —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—आतुर, उत्सुक, उतवला
उन्मनस्क —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—उत्तेजित, विक्षुब्ध, संक्षुब्ध, बेचैन
उन्मनस्क —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—खेद प्रकट करना, किसी मित्र के विछोह से उदास
उन्मनस्क —वि॰, ब॰ स॰—-—उद्भ्रान्तं मनो यस्य , कप् च—आतुर, उत्सुक, उतवला
उन्मनायते —ना॰ धा॰, आ॰ - उन्मनीभू—-—-—बेचैन होना, मन में क्षुब्ध होना
उन्मथः —पुं॰—-—उद्+मन्थ्+घञ्—क्षोभ
उन्मथः —पुं॰—-—उद्+मन्थ्+घञ्—वध करना, हत्या करना
उन्मन्थनम् —नपुं॰—-—उद्+मन्थ्+ल्युट्—हिलाना, क्षुब्ध करना
उन्मन्थनम् —नपुं॰—-—उद्+मन्थ्+ल्युट्—वध करना, हत्या करना, मारना
उन्मन्थनम् —नपुं॰—-—उद्+मन्थ्+ल्युट्—पीटना
उन्मयूख —वि॰, ब॰ स॰—-—-—प्रकाशमान, चमकीला
उन्मर्दनम् —नपुं॰—-—उद्+मृद्+ल्युट्—रगड़ना, मलना
उन्मर्दनम् —नपुं॰—-—उद्+मृद्+ल्युट्—मालिश करने के लिए सुगंधित
उन्माथः —पुं॰—-—उद्+मथ्+घञ्—यातना, अतिपीडा
उन्माथः —पुं॰—-—उद्+मथ्+घञ्—हिला देना, क्षुब्ध करना
उन्माथः —पुं॰—-—उद्+मथ्+घञ्—वध करना, हत्या करना
उन्माथः —पुं॰—-—उद्+मथ्+घञ्—जाल, पाश
उन्माद —वि॰—-—उद्+मद्+घञ्—पागल, विक्षिप्त
उन्माद —वि॰—-—उद्+मद्+घञ्—असंतुलित
उन्मादः —पुं॰—-—उद्+मद्+घञ्—पागलपन, विक्षिप्ति
उन्मादः —पुं॰—-—उद्+मद्+घञ्—तीव्र संक्षोभ
उन्मादः —पुं॰—-—उद्+मद्+घञ्—विक्षिप्तता, सनक
उन्मादः —पुं॰—-—उद्+मद्+घञ्—३३ संचारिभावों में से एक
उन्मादः —पुं॰—-—उद्+मद्+घञ्—खिलना
उनमादन —वि॰—-—उद्+मद्+णिच्+ल्युट्—पागल बना देने वाल, मादक
उनमादनः —पुं॰—-—उद्+मद्+णिच्+ल्युट्—कामदेव के पाँच वाणों में से एक
उन्मानम् —नपुं॰—-—उद्+मा+ल्युट्—तोलना, मापना
उन्मानम् —नपुं॰—-—उद्+मा+ल्युट्—माप, तोल
उन्मानम् —नपुं॰—-—उद्+मा+ल्युट्—मूल्य
उन्मार्ग —वि॰, अत्या॰ स॰—-—उत्क्रान्तः मार्गात्—कुमार्गगामी
उन्मार्गः —पुं॰—-—उत्क्रान्तः मार्गात्—कुमार्ग, सुमार्ग से विचलन
उन्मार्गः —पुं॰—-—उत्क्रान्तः मार्गात्—अनुचित आचरण, बुरी चाल
उन्मार्गम् —अव्य॰—-—-—भूला-भटका
उन्मार्जनम् —नपुं॰—-—उद्+मृज्+णिच्+ल्युट्—रगड़नआ, पोंछना, मिटाना
उन्मितिः —स्त्री॰—-—उद्+मा+क्तिन्—नाप, तोल, मूल्य
उन्मिश्र —वि॰, पुं॰—-—-—मिला-जुला, चित्र-विचित्र
उन्मिषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+मिष्+क्त—खुला हुआ, इला हुआ, फुलाया हुआ
उन्मिषितम् —नपुं॰—-—उद्+मिष्+क्त—दृष्टि, झलक
उन्मीलः —पुं॰—-—उद्+मील्+घञ्—खोलना, जागर्ति
उन्मीलः —पुं॰—-—उद्+मील्+घञ्—प्रकाशित करना, खोलना
उन्मीलः —पुं॰—-—उद्+मील्+घञ्—फुलाना, फूंक मारना
उन्मीलनम् —पुं॰—-—उद्+मील्+ल्युट् —खोलना, जागर्ति
उन्मीलनम् —पुं॰—-—उद्+मील्+ल्युट् —प्रकाशित करना, खोलना
उन्मीलनम् —पुं॰—-—उद्+मील्+ल्युट् —फुलाना, फूंक मारना
उन्मुख —वि॰, ब॰ स॰—-—उद् - उर्ध्वं मुखं यस्य —मुंह ऊपर की ओर उठाये हुए, ऊपर देखते हुए
उन्मुख —वि॰, ब॰ स॰—-—उद् - उर्ध्वं मुखं यस्य —तैयार, तुला हुआ, निकटस्थ, उद्यत, बन में चले जाने के लिए तत्पर
उन्मुख —वि॰, ब॰ स॰—-—उद् - उर्ध्वं मुखं यस्य —उत्सुक, प्रतीक्षक, उत्कंठित
उन्मुख —वि॰, ब॰ स॰—-—उद् - उर्ध्वं मुखं यस्य —शब्दायमान, शब्द करता हुआ
उन्मुखर —वि॰, पुं॰—-—-—ऊँचा शब्द करने वाला, कोलाहलमय
उन्मुद्र —वि॰—-—उद्गता मुद्रा यस्मात् - ब॰ स॰—बिना मुहर का
उन्मुद्र —वि॰—-—उद्गता मुद्रा यस्मात् - ब॰ स॰—खुला हुआ, खिला हुआ, फूला हुआ
उन्मूलनम् —नपुं॰—-—उद्+मूल्+ल्युट्—जड़ से फाड़ लेना, उखाड़ना, मूलोच्छेदन करना
उन्मेदा —स्त्री॰, पुं॰—-—-—स्थूलता, मोटापा
उन्मेषः —पुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—खोलना, पलक मारना
उन्मेषः —पुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—खिलना, खुलना, फूलना
उन्मेषः —पुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—प्रकाश, कौंध, दीप्ति
उन्मेषः —पुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—जाग जाना, उठना, दिखलाई देना, प्रकट होना
उन्मेषणम् —नपुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—खोलना, पलक मारना
उन्मेषणम् —नपुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—खिलना, खुलना, फूलना
उन्मेषणम् —नपुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—प्रकाश, कौंध, दीप्ति
उन्मेषणम् —नपुं॰—-—उद्+मिष्+घञ्, ल्युट् वा—जाग जाना, उठना, दिखलाई देना, प्रकट होना
उन्मोचनम् —नपुं॰—-—उद्+मुच्+ल्युट्—खोलना, ढीला करना
उप —उप॰—-—-—यह उपसर्ग क्रिया या संज्ञाओं से पूर्व लग कर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है-(क) निकटता, संसक्ति-उपविशति, उपगच्छति, (ख) शक्ति, योग्यता-उपकरोति (ग) व्याप्ति-उपकीर्ण (घ) परामर्श, शिक्षण उपदिशति, उपदेश (ङ) मृत्यु, उपरति-उपरत (च) दोष, अपराध-उपघात (छ) देना-उपनयति, उपहरति (ज) चेष्टा, प्रयत्न-उपत्वा नेष्य (झ) उपक्रम, आरम्भ-उपक्रमते, उपक्रमः (ञ) अध्ययन-उपाध्यायः (ट) आदर, पूजा-उपस्थानम्, उपचरति पितरं पुत्रः
उप —उप॰—-—-—जिस समय यह उपसर्ग क्रियाओं से संबंद्ध न होकर संज्ञा शब्दों से पूर्व लगता है उस समय-सामीप्य, समता, स्थान, संख्या, काल और अवस्था आदि की संसक्ति, तथा अधीनता की भावना आदि अर्थों को प्रकट करता है।
उपकनिष्ठिका —स्त्री॰—-—-—कनिष्ठिका के पास वाली अंगुली
उपपुराणम् —नपुं॰—-—-—अनुषंगी पुराण,
उपगुरुः —पुं॰—-—-—सहायक अध्यापक
उपाध्यक्षः —पुं॰—-—-—उपप्रधान
उप —उप॰—-—-—संख्यावाचक शब्दों के साथ लग कर संख्याबहुव्रीहि बन जाता है और 'लगभग', 'प्रायः', 'तकरीबन' अर्थ को प्रकट करता है- उपत्रिंशाः-लगभग तीस
उप —उप॰—-—-—पृथक् रहता हुआ भी यह (क) कर्म के साथ हीनता को प्रकट करता है
उप —उप॰—-—-—तथा योग या जोड़ को प्रकट करता है।
उपकण्ठः —पुं॰—-—उपगतः कण्ठम्—सामीप्य, सान्निध्य, पड़ौस
उपकण्ठः —पुं॰—-—उपगतः कण्ठम्—ग्राम या उसकी सीमा के पास का स्थान
उपकण्ठम् —नपुं॰—-—उपगतः कण्ठम्—सामीप्य, सान्निध्य, पड़ौस
उपकण्ठम् —नपुं॰—-—उपगतः कण्ठम्—ग्राम या उसकी सीमा के पास का स्थान
उपकण्ठम् —अव्य॰—-—उपगतः कण्ठम्—गर्दन के ऊपर, गले के निकट
उपकण्ठम् —अव्य॰—-—उपगतः कण्ठम्—के निकट, नजदीक
उपकथा —स्त्री॰, पुं॰—-—-—छोटी, कहानी, किस्सा
उपकनिष्ठिका —स्त्री॰—-—-—कन्नो अंगुली के पास वाली अंगुली
उपकरणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्—सेवा करना, अनुग्रह करना, सहायता करना
उपकरणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्—सामग्री, साधन, औजार, उपाय
उपकरणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्—जीविका का साधन, जीवन को सहारा देने वाली कोई बात
उपकरणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्—राजचिह्न
उपकर्णम् —नपुं॰—-—उप+कर्ण+ल्युट्—सुनना
उपकर्णिका —स्त्री॰—-—उपकर्ण(अव्य॰)+कन्+टाप् इत्वम्—अफवाह, जनश्रुति
उपकर्तृ —वि॰—-—उप+कृ+तृच्—उपकार करने वाला, अनुग्रहकर्ता, उपयोगी, मित्रवत्
उपकल्पनम् —नपुं॰—-—उप+कृप्+णिच्+ल्युट्, युच् वा—तैयारी
उपकल्पनम् —नपुं॰—-—उप+कृप्+णिच्+ल्युट्, युच् वा—कपोलकल्पित, सृजन करना, गढ़ना
उपकल्पना —स्त्री॰—-—उप+कृप्+णिच्+ल्युट्, युच् वा—तैयारी
उपकल्पना —स्त्री॰—-—उप+कृप्+णिच्+ल्युट्, युच् वा—कपोलकल्पित, सृजन करना, गढ़ना
उपकारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्—सेवा, सहायता, मदद, अनुग्रह, आभार
उपकारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्—तैयारी
उपकारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्—आभूषण, सजावट
उपकारी —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्—राजकीय तंबू
उपकारी —पुं॰—-—-—सराय, धर्मशाला
उपकुञ्चिः —स्त्री॰—-—उप+कुञ्च्+कि—छोटी इलायची
उपकुञ्चिका —स्त्री॰—-—उप+कुञ्च्+कि, कन् टाप् च—छोटी इलायची
उपकुम्भ —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—निकटस्थ, संसक्त
उपकुम्भ —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—अकेला, निवृत्त, एकान्त
उपकुर्वाणः —पुं॰—-—उप+कृ+शानच्—ब्राह्मण ब्रह्मचारी जो गृहस्थ बनना चाहता है
उपकुल्या —स्त्री॰—-—उप+कुल+यत्+टाप्—नहर, खाई
उपकूपम् —अव्य॰, अत्या॰ स॰—-—-—कुएँ के निकट
उपकूपे —अव्य॰, अत्या॰ स॰—-—-—कुएँ के निकट
उपकृतिः —स्त्री॰—-—उप+क्उ+क्तिन्, श वा—उपक्रिया, अनुग्रह, आभार
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—आरंभ, शुरू
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—उपागमन
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवसाय, कार्य, जोखिम का काम
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—योजना, उपाय, तरकीब, युक्ति, उपचार
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—परिचर्या, चिकित्सा
उपक्रमः —पुं॰—-—उप+क्रम्+घञ्—ईमानदारी की जांच
उपक्रमणम् —नपुं॰—-—उप+क्रम्+ल्युट्—उपागमन
उपक्रमणम् —नपुं॰—-—उप+क्रम्+ल्युट्—उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवसाय
उपक्रमणम् —नपुं॰—-—उप+क्रम्+ल्युट्—आरम्भ
उपक्रमणम् —नपुं॰—-—उप+क्रम्+ल्युट्—चिकित्सा, उपचार
उपक्रमणिका —स्त्री॰—-—उपक्रमण+ङीप्, कन्, टाप् ह्रस्व—भूमिका, प्रस्तावना
उपक्रीडा —स्त्री॰, अत्या॰ स॰—-—-—खेल का मैदान, खेलने का स्थान
उपक्रोशः —पुं॰—-—उप+क्रुश्+घञ्—निन्दा, झिड़की, अपकर्ष
उपक्रोशनम् —नपुं॰—-—उप+क्रुश्+ल्युट्—निन्दा, झिड़की, अपकर्ष
उपक्रोष्टृ —पुं॰—-—उप+क्रुश्+तृच्—गधा
उपक्वणम् —नपुं॰—-—उप+क्वण्+अप् —वीणा की झंकार
उपक्वाणम् —नपुं॰—-—उप+क्वण्+घञ्—वीणा की झंकार
उपक्षयः —पुं॰—-—उप+क्षि+अच्—रद्द करना, ह्रास, हानि
उपक्षयः —पुं॰—-—उप+क्षि+अच्—व्यय
उपक्षेपः —पुं॰—-—उप+क्षिप्+घञ्—फेंकना, उछालना
उपक्षेपः —पुं॰—-—उप+क्षिप्+घञ्—उल्लेख, इंगित संकेत, सुझाव
उपक्षेपः —पुं॰—-—उप+क्षिप्+घञ्—धमकी, विशेष दोषारोपण
उपक्षेपणम् —नपुं॰—-—उप+क्षिप्+ल्युट्—नीचे फेंकना, डाल देना
उपक्षेपणम् —नपुं॰—-—उप+क्षिप्+ल्युट्—दोषारोपण, दोषी ठहराना
उपग —वि॰—-—उप+गम्+ड—निकट जाने वाला, पीछे चलने वाला, सम्मिलित होने वाला
उपग —वि॰—-—उप+गम्+ड—प्राप्त करने वाला
उपगणः —पुं॰—-—-—अप्रधान श्रेणी
उपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गम्+त—गया हुआ, निकट पहुँचा हुआ
उपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गम्+त—घटित
उपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गम्+त—प्राप्त
उपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गम्+त—अनुभूत
उपगत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गम्+त—प्रतिज्ञात, सहमत
उपगतिः —स्त्री॰—-—उप+गम्+क्तिन्—उपागमन, निकट जाना
उपगतिः —स्त्री॰—-—उप+गम्+क्तिन्—ज्ञान, जानकारी
उपगतिः —स्त्री॰—-—उप+गम्+क्तिन्—स्वीकृति
उपगतिः —स्त्री॰—-—उप+गम्+क्तिन्—उपलब्धि, अवाप्ति
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—जाना, आकृष्ट होना, निकट जाना, तुम्हारा आना
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—ज्ञान, जानकारी
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—उपलब्धि, अवाप्ति
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—संभोग
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—समाज, मण्डली
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—झेलना, भुगतना, अनुभव करना
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—स्वीकृति
उपगमः —पुं॰—-—उप+गम्+अप्—करार, प्रतिज्ञा
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—जाना, आकृष्ट होना, निकट जाना, तुम्हारा आना
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—ज्ञान, जानकारी
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—उपलब्धि, अवाप्ति
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—संभोग
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—समाज, मण्डली
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—झेलना, भुगतना, अनुभव करना
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—स्वीकृति
उपगमनम् —नपुं॰—-—उप+गम्+ल्युट्—करार, प्रतिज्ञा
उपगिरि —अव्य॰ —-—-—पहाड़ के निकट
उपगिरम् —अव्य॰ स॰—-—टच्—पहाड़ के निकट
उपगिरिः —पुं॰—-—-—उत्तर दिशा में पहाड़ के समीप स्थित देश
उपगु —अव्य॰—-—-—गौ के समीप
उपगुरुः —पुं॰—-—-—सहायक अध्यापक
उपगूढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गूह्+क्त—गुप्त, आलिंगित
उपगूढम् —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+गूह्+क्त—अलिंगन
उपगूहनम् —नपुं॰—-—उप+गूह्++ल्युट्—गुप्त रखना, छिपाना
उपगूहनम् —नपुं॰—-—उप+गूह्++ल्युट्—आलिंगन
उपगूहनम् —नपुं॰—-—उप+गूह्++ल्युट्—आश्चर्य, अचम्भा
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—कैद, पकड़
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—हार, भग्नाशा
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—कैदी
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—सम्मिलित होना, जोड़ना
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—अनुग्रह, प्रोत्साहन
उपग्रहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+अप्—लघु ग्रह
उपग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+ग्रह्+ल्युट्—पकड़ना, संभाले रखना
उपग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+ग्रह्+ल्युट्—पकड़, गिरफ्तारी
उपग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+ग्रह्+ल्युट्—सहारा देना, बढ़ावा देना
उपग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+ग्रह्+ल्युट्—वेदाध्ययन
उपग्राहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+घञ्—उपहार देना
उपग्राहः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+घञ्—उपहार
उपग्राह्यः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+ण्यत्—भेंट या उपहार
उपग्राह्यः —पुं॰—-—उप+ग्रह्+ण्यत्—विशेष रूप से वह भेंट जो किसी राजा या प्रतिष्ठित व्यक्ति को दी जाय, नजराना
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—प्रहार, चोट, अधिक्षेप
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—विनाश, बर्बादी
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—स्पर्श, संपर्क
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—संप्रहार, उत्पीडन
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—रोग
उपघातः —पुं॰—-—उप+हन्+घञ्—पाप
उपघोषणम् —नपुं॰—-—उप+घुष्+ल्युट्—ढिंढोरा पीटना, प्रकाशित करना, विज्ञापन देना
उपघ्नः —पुं॰—-—उप+हन्+क—अनवरत सहारा
उपघ्नः —पुं॰—-—उप+हन्+क—शरण, सहारा, संरक्षा
उपचक्रः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का लाल हंस
उपचक्षुस् —नपुं॰—-—-—चक्षुताल, चश्मा
उपचयः —पुं॰—-—उप+चि+अच्—इकट्ठा होना, जोड़, अभिवृद्धि
उपचयः —पुं॰—-—उप+चि+अच्—वृद्धि, बाढ़, आधिक्य
उपचयः —पुं॰—-—उप+चि+अच्—परिमाण, ढेर
उपचयः —पुं॰—-—उप+चि+अच्—समृद्धि उत्थान, अभ्युदय
उपचरः —पुं॰—-—उप+चर्+अच्—इलाज, चिकित्सा
उपचरः —पुं॰—-—उप+चर्+अच्—निकट जाना
उपचरणम् —नपुं॰—-—उप+चर्+ल्युट्—निकट या समीप जाना
उपचाय्यः —पुं॰—-—उप+चि+ण्यत्—एक प्रकार की यज्ञाग्नि
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—सेवा, शुश्रुषा, सम्मान, पूजा, सत्कार
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—शिष्टता, नम्रता, सौजन्य, नम्र व्यवहार, केवल सम्मान सूचक उक्ति, चाटूकारितापूर्ण अभिनन्दन
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—अभिवादन, प्रथानुकुल नमस्कार, श्रद्धंजलि, नमस्कार करते हुए दोनों हाथ जोड़ना
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—संबोधन या अभिवादन की रीति का एक रूप
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—बाह्य प्रदर्शन या रूप, संस्कार
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—चिकित्सा, उपचार, इलाज या चिकित्सा का प्रयोग
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—अभ्यास, अनुष्ठान, संचालन, प्रबंध
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—श्रद्धांजलि अर्पित करने या सम्मान प्रदर्शित करने के साधन
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—अतः कोई भी आवश्यक वस्तु
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—व्यवहार, शील, आचरण
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—काम में आना, उपयोग
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—धर्मानुष्ठान, संस्कार
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—आलंकारिक या लाक्षणिक प्रयोग, गौण प्रयोग
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—रिश्वत
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—बहाना
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—प्रार्थना, याचना
उपचारः —पुं॰—-—उप+चर्+घञ्—विसर्गों के स्थान में स् या ष् का होना
उपचितिः —स्त्री॰—-—उप+चि+क्तिन्—इकट्ठा करना, संचय करना, वर्धन, वृद्धि
उपचूलनम् —नपुं॰—-—उप+चूल्+ल्युट्—गरम करना, जलाना
उपच्छदः —पुं॰—-—उप+छ्द्+णिच्+घ—ढक्कन, चादर
उपच्छन्दनम् —नपुं॰—-—उप+छ्न्द्+णिच्+ल्युट्—प्रलोभन देकर मनाना या फुसलाना, समझा बुझा कर किसी कार्य के लिए उकसाना
उपच्छन्दनम् —नपुं॰—-—उप+छ्न्द्+णिच्+ल्युट्—आमंत्रण देना
उपजनः —पुं॰—-—उप+जन्+अच्—जोड़, वृद्धि
उपजनः —पुं॰—-—उप+जन्+अच्—परिशिष्ट
उपजनः —पुं॰—-—उप+जन्+अच्—उगना, उद्गमस्थान
उपजल्पनम् —नपुं॰—-—उप+जल्प्+ल्युट्—बात, बतचीत
उपजल्पितम् —नपुं॰—-—उप+जल्प्+क्त—बात, बतचीत
उपजापः —पुं॰—-—उप+जप्+घञ्—चुपचाप कान में फुसफुसाना या समाचार देना
उपजापः —पुं॰—-—उप+जप्+घञ्—शत्रु के मित्रों के साथ गुप्त बातचीत, फूट के बीज बोकर विद्रोह के लिए भड़काना
उपजापः —पुं॰—-—उप+जप्+घञ्—अनैक्य, वियोग
उपजीवक —वि॰—-—उप+जीव्+ण्वुल्—किसी दूसरे के सहारे रहने वाला, से जीविका करने वाला
उपजीवक —पुं॰—-—उप+जीव्+ण्वुल्—पराश्रित, अनुचर
उपजीविन् —वि॰—-—उप+जीव्+ णिनि—किसी दूसरे के सहारे रहने वाला, से जीविका करने वाला
उपजीविन् —पुं॰—-—उप+जीव्+ णिनि—पराश्रित, अनुचर
उपजीवनम् —नपुं॰—-—उप+जीव्+ल्युट्—जीविका
उपजीवनम् —नपुं॰—-—उप+जीव्+ल्युट्—जीवन-निर्वाह का साधन, गुजारा या वृत्ति
उपजीवनम् —नपुं॰—-—उप+जीव्+ल्युट्—जीविका का साधन, संपत्ति आदि
उपजीविका —स्त्री॰—-—उप+जीव्+क्वुन् —जीविका
उपजीविका —स्त्री॰—-—उप+जीव्+क्वुन् —जीवन-निर्वाह का साधन, गुजारा या वृत्ति
उपजीविका —स्त्री॰—-—उप+जीव्+क्वुन् —जीविका का साधन, संपत्ति आदि
उपजीव्य —वि॰—-—उप+जीव्+ण्यत्—जीविका प्रदान करने वाला
उपजीव्य —वि॰—-—उप+जीव्+ण्यत्—संरक्षक, संरक्षण देने वाला
उपजीव्य —वि॰—-—उप+जीव्+ण्यत्—लिखने के लिए सामग्री देने वाला, जिससे कि मनुष्य सामग्री प्राप्त करे
उपजीव्यः —पुं॰—-—उप+जीव्+ण्यत्—संरक्षक
उपजीव्यः —पुं॰—-—उप+जीव्+ण्यत्—स्रोत या प्रामाणिक ग्रंथ
उपजोषः —पुं॰—-—उप+जुष्+घञ्—स्नेह
उपजोषः —पुं॰—-—उप+जुष्+घञ्—सुखोपभोग
उपजोषः —पुं॰—-—उप+जुष्+घञ्—बार-बार करना
उपजोषणम् —नपुं॰—-—उप+जुष्+ल्युट्—स्नेह
उपजोषणम् —नपुं॰—-—उप+जुष्+ल्युट्—सुखोपभोग
उपजोषणम् —नपुं॰—-—उप+जुष्+ल्युट्—बार-बार करना
उपज्ञा —स्त्री॰—-—उप+ज्ञा+अङ्—अन्तःकरण में अपने आप उपजा हुआ ज्ञान, आविष्कार
उपज्ञा —स्त्री॰—-—उप+ज्ञा+अङ्—व्यवसाय जो पहले कभी न किया गया हो
उपढौनकम् —नपुं॰—-—उप+ढौक्+ल्युट्—सम्मानपूर्ण भेंट या उपहार, नजराना
उपतापः —पुं॰—-—उप+तप्+घञ्—गर्मी, आँच
उपतापः —पुं॰—-—उप+तप्+घञ्—कष्ट, दुःख, पीडा, शोक
उपतापः —पुं॰—-—उप+तप्+घञ्—संकट, मुसीबत
उपतापः —पुं॰—-—उप+तप्+घञ्—बीमारी
उपतापः —पुं॰—-—उप+तप्+घञ्—शीघ्रता, हड़बडी
उपतापनम् —नपुं॰—-—उप+तप्+णिच्+ल्युट्—गरम करना
उपतापनम् —नपुं॰—-—उप+तप्+णिच्+ल्युट्—कष्ट देना, सताना
उपतापिन् —वि॰—-—उप+तप्+णिनि—तपाने वाला, जलाने वाला
उपतापिन् —वि॰—-—उप+तप्+णिनि—गर्मी या पीडा को सहन करने वाला, बीमार रहने वाला
उपतिष्यम् —नपुं॰—-—-—आश्लेषा नक्षत्रपुंज
उपतिष्यम् —नपुं॰—-—-—पुनर्वसु नक्षत्र
उपत्यका —स्त्री॰—-—उप+त्यकन् - पर्वतस्यासन्नं स्थलमुपत्यका @ सिद्धा॰ —पर्वत की तलहटी, निम्नभूभाग
उपदंशः —पुं॰—-—उप+दंश्+घञ्—भूख या प्यास लगाने वाली वस्तु, चाट, चटनी अचार आदि
उपदंशः —पुं॰—-—उप+दंश्+घञ्—काटना, डङ्क मारना
उपदंशः —पुं॰—-—उप+दंश्+घञ्—आतशक रोग
उपदर्शकः —पुं॰—-—उप+दृश्+णिच्+ण्वुल्—मार्गदर्शक, निर्देशक
उपदर्शकः —पुं॰—-—उप+दृश्+णिच्+ण्वुल्—द्वारपाल, साक्षी, गवाह
उपदश —वि॰, ब॰ स॰—-—-—लगभग दस
उपदा —स्त्री॰—-—उप+दा+अङ्—उपहार, किसी राजा या महापुरुष को दी गई भेंट, नजराना
उपदा —स्त्री॰—-—उप+दा+अङ्—रिश्वत, घूस
उपदानम् —नपुं॰—-—उप+दा+ल्युट्—आहुति, उपहार
उपदानम् —नपुं॰—-—उप+दा+ल्युट्—संरक्षा या अनुग्रह प्राप्त करने के लिए दी गई भेंट, जैसे कि रिश्वत
उपदानकम् —नपुं॰—-—उप+दा+ल्युट्, कन् च—आहुति, उपहार
उपदानकम् —नपुं॰—-—उप+दा+ल्युट्, कन् च—संरक्षा या अनुग्रह प्राप्त करने के लिए दी गई भेंट, जैसे कि रिश्वत
उपदिश् —स्त्री॰—-—-—मध्यवर्ती दिशा, जैसे कि ऐशानी, आग्नेयी, नैऋती और वायवी
उपदिशा —स्त्री॰—-—-—मध्यवर्ती दिशा, जैसे कि ऐशानी, आग्नेयी, नैऋती और वायवी
उपदेवः —पुं॰—-—-—छोटा देवता, घटिया देवता
उपदेवता —स्त्री॰—-—-—छोटा देवता, घटिया देवता
उपदेशः —पुं॰—-—उप+दिश्+घञ्—शिक्षण, अध्ययन, नसीहत, निर्देशन
उपदेशः —पुं॰—-—उप+दिश्+घञ्—विशिष्ट निर्देश, उल्लेख
उपदेशः —पुं॰—-—उप+दिश्+घञ्—व्यपदेश, बहाना
उपदेशः —पुं॰—-—उप+दिश्+घञ्—दीक्षा, दीक्षा-मन्त्र देना
उपदेशक —वि॰—-—उप+दिश्+ण्वुल्—शिक्षण प्रदान करने वाला, अध्यापन करने वाला
उपदेशकः —पुं॰—-—उप+दिश्+ण्वुल्—शिक्षक, निर्देशक, गुरु या उपदेष्टा
उपदेशनम् —नपुं॰—-—उप+दिश्+ल्युट्—नसीहत करना, शिक्षण देना
उपदेशिन् —वि॰—-—उप+दिश्+णिनि—नसीहत करने वाला, शिक्षण देने वाला
उपदेष्ट्ट —वि॰—-—उप+दिश्+तृच्—नसीहत या शिक्षण देने वाला, अध्यापक, गुरु, विशेषकर अध्यात्म गुरु
उपदेहः —पुं॰—-—उप्+दिह्+घञ्—मल्हम
उपदेहः —पुं॰—-—उप+दिह्+घञ्—चादर, ढक्कन
उपदोहः —पुं॰—-—उप्+दुह्+घञ्—गाय के स्तनों का अग्रभाग
उपदोहः —पुं॰—-—उप्+दुह्+घञ्—दूध दूहने का पात्र
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—दुःखद दुर्घटना, मुसीबत, संकट
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—चोट, कष्ट, हानि
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—बलात्कार, उत्पीडन
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—राष्ट्र-संकट
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—राष्ट्रीय अशान्ति, विद्रोह
उपद्रवः —पुं॰—-—उ+द्रु+अप्—लक्षण, अकस्मात् आ टपकने वाला रोग
उपधर्मः —पुं॰—-—उप+धृ+मन्—उपविधि, एक अप्रधान या तुच्छ धर्म-नियम
उपधा —स्त्री॰—-—उप+धा+अङ्—छल, जालसाजी, धोखा-देही, कपट
उपधा —स्त्री॰—-—उप+धा+अङ्—ईमानदारी की जांच या परीक्षण
उपधा —स्त्री॰—-—उप+धा+अङ्—उपाय, तरकीब
उपधा —स्त्री॰—-—उप+धा+अङ्—अन्त्याक्षर से पहला
उपधाभूतः —पुं॰—उपधा-भूतः—-—बेईमान सेवक
उपधाशुचि —वि॰—उपधा-शुचि—-—परीक्षित, निष्ठावान्
उपधातुः —पुं॰—-—-—घटिया धातु, अर्धधातु
उपधातुः —पुं॰—-—-—शरीर के अप्रधान स्राव जो गिनती में छः हैं
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—ऊपर रखना या आराम करना
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—तकिया, गद्देदार आसन
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—विशेषता, व्यक्तित्व
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—स्नेह, कृपा
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—धार्मिक अनुष्ठान
उपधानम् —नपुं॰—-—उप+धा+ल्युट्—श्रेष्ठाता, श्रेष्ठ गुण
उपधानीयम् —नपुं॰—-—उप+धा+अनीयर्—तकिया
उपधारणम् —नपुं॰—-—उप+धृ+णिच्+ल्युट्—संचिन्तन, विचार-विमर्श
उपधारणम् —नपुं॰—-—उप+धृ+णिच्+ल्युट्—खींचना, खिंचाव
उपधिः —पुं॰—-—उप+धा+कि—धोखादेहि, बेईमानी
उपधिः —पुं॰—-—उप+धा+कि—सचाई को दबाना, झूठा सुझाव
उपधिः —पुं॰—-—उप+धा+कि—त्रास, धमकी, बाध्यता, मिथ्या फुसलाहट
उपधिः —पुं॰—-—उप+धा+कि—पहिये का वह भाग जो नाभि और पुट्ठी के बीच का स्थान है, पहिया
उपधिकः —पुं॰—-—उपधि+ठन्—धोखेबाज, प्रवञ्चक
उपधूपित —वि॰—-—उप+धूप्+क्त—धूनी दिया गया
उपधूपित —वि॰—-—उप+धूप्+क्त—मरणासन्न, अत्यन्त पीड़ा-ग्रस्त
उपधूपितः —पुं॰—-—उप+धूप्+क्त—मृत्यु
उपधृतिः —स्त्री॰—-—उप+धृ+क्तिन्—प्रकाश की किरण
उपध्यमानः —पुं॰—-—उप+ध्मा+ल्युट्—ओष्ठ
उपध्यमानम् —नपुं॰—-—उप+ध्मा+ल्युट्—फूँक मारना, साँस लेना
उपध्यमानीयः —पुं॰—-—उप+ध्मा+अनीयर—प् और फ् से पूर्व रहने वाला महाप्राण विसर्ग
उपनक्षत्रम् —नपुं॰—-—-—गौण नक्षत्र पुंज, अप्रधान तारा
उपनगरम् —नपुं॰—-—-—नगरांचल
उपनत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+नम्+क्त—आया हुआ, पहुँचा हुआ, प्राप्त, आ टपका हुआ आदि
उपनति —स्त्री॰—-—उप+नम्+क्तिन्—पास जाना,
उपनति —स्त्री॰—-—उप+नम्+क्तिन्—झुकना, नति, नमस्कार
उपनयः —पुं॰—-—उप+नी+अच्—निकट लाना, ले जाना
उपनयः —पुं॰—-—उप+नी+अच्—उपलब्धि, अवाप्ति, खोज लेना
उपनयः —पुं॰—-—उप+नी+अच्—काम पर लगाना
उपनयः —पुं॰—-—उप+नी+अच्—उपनयन संस्कार
उपनयः —पुं॰—-—उप+नी+अच्—तर्क शास्त्र में भारतीय अनुमान प्रक्तिया के पाँच अंगों में से चौथा
उपनयनम् —नपुं॰—-—उप+नी+ल्युट्—निकट ले जाना
उपनयनम् —नपुं॰—-—उप+नी+ल्युट्—उपहार, भेंट
उपनयनम् —नपुं॰—-—उप+नी+ल्युट्—जनेऊ संस्कार
उपनागरिका —स्त्री॰—-—-—वृत्त्यनुप्रास का एक भेद, यह माधुर्य-व्यंजक वर्णों के योग से बनता है
उपनायः —पुं॰—-—-—निकट लाना, ले जाना
उपनायनम् —नपुं॰—-—-—उपलब्धि, अवाप्ति, खोज लेना
उपनायकः —पुं॰—-—उप+नी+ण्वुल्—नाट्य-साहित्य या किसी अन्य रचना में वह पात्र जो नायक का प्रधान सहायक हो,
उपनायकः —पुं॰—-—उप+नी+ण्वुल्—उपपति, प्रेमी
उपनायिका —स्त्री॰—-—-—नाट्य-साहित्य या किसी अन्य रचना में वह पात्र जो नायिका की प्रधान सखी या सहेली हो,
उपनाहः —पुं॰—-—उप+नह्+घञ्—गठरी
उपनाहः —पुं॰—-—उप+नह्+घञ्—किसी घाव पर लगाई जाने वाली मल्हम
उपनाहः —पुं॰—-—उप+नह्+घञ्—वीणा की खूंटी जिसको मरोड़ने से सितार के तार कसे जाते हैं
उपनाहनम् —नपुं॰—-—उप+नह्+णिच्+ल्युट्—उबटन आदि का लेप
उपनाहनम् —नपुं॰—-—उप+नह्+णिच्+ल्युट्—मालिश करना, लेप करना
उपनिक्षेपः —पुं॰—-—उप+नि+क्षिप्+घञ्—धरोहर या न्यास के रूप में रखना
उपनिक्षेपः —पुं॰—-—उप+नि+क्षिप्+घञ्—खुली धरोहर, कोई वस्तु जिस का रूप, परिमाण आदि बताकर उसे दूसरे को संभाल दिया जाता है
उपनिधानम् —नपुं॰—-—उप+नि+धा+ल्युट्—निकट रखना
उपनिधानम् —नपुं॰—-—उप+नि+धा+ल्युट्—जमा करना, किसी की देख-रेख में रखना
उपनिधानम् —नपुं॰—-—उप+नि+धा+ल्युट्—धरोहर
उपनिधिः —पुं॰—-—उप+नि+धा+कि—धरोहर, अमानत
उपनिधिः —पुं॰—-—उप+नि+धा+कि—मुहरबंद अमानत
उपनिपातः —पुं॰—-—उप+नि+पत्+घञ्—निकट पहुँचना, निकट आना
उपनिपातः —पुं॰—-—उप+नि+पत्+घञ्—आकस्मिक तथा अप्रत्याशित आक्रमण या घटना
उपनिपातिन् —वि॰—-—उप+नि+पत्+णिनि—अचानक आ टपकने वाला
उपनिबन्धनम् —नपुं॰—-—उप+नि+बन्ध्+ल्युट्—किसी कार्य को सम्पादित करने का उपाय
उपनिबन्धनम् —नपुं॰—-—उप+नि+बन्ध्+ल्युट्—बंधन, जिल्द
उपनिमन्त्रणम् —नपुं॰—-—उप+नि+मन्त्र्+णिच्+ल्युट्—आमन्त्रण, बुलाना, प्रतिष्ठापन, उद्घाटन
उपनिवेशित —वि॰—-—उप+नि+विश्+णिच्+क्त—रक्खा गया, स्थापित किया गया, बसाया गया
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—ब्राह्मण ग्रन्थों के साथ संलग्न कुछ रहस्यवादी रचना जिसका मुख्य उद्देश्य वेद के गूढ अर्थ का निश्चय करना है
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—एक गूढ या रहस्यमय सिद्धान्त
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—रहस्यवादी ज्ञान या शिक्षा
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—परमात्मा के संबंध में सत्य ज्ञान
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—पवित्र एवं धार्मिक ज्ञान
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—गोपनीयता, एकान्तता
उपनिषद् —स्त्री॰—-—उप+नि+सद्+क्विप्—समीपस्थ भवन
उपनिष्करः —पुं॰—-—उप+निस्+कृ+ध—गली, मुख्यमार्ग, राजमार्ग
उपनिष्क्रमणम् —नपुं॰—-—उप+निस्+क्रम्+ल्युट्—बाहर जाना, निकलना
उपनिष्क्रमणम् —नपुं॰—-—उप+निस्+क्रम्+ल्युट्—एक धार्मिक अनुष्ठान या संस्कार जिसमें बच्चे को सर्वप्रथम बाहर खुली हवा में निकाला जाता है
उपनिष्क्रमणम् —नपुं॰—-—उप+निस्+क्रम्+ल्युट्—मुख्य या राजमार्ग
उपनृत्यम् —नपुं॰—-—-—नाचने का स्थान, नृत्यशाला
उपनेतृ —वि॰—-—उप+नी+तृच्—जो नेतृत्व करता है, या निकट लाता है, ले आने वाला , उपनयन संस्कार को कराने वाला गुरु
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—निकट रखना, अगल बगल रखना
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—धरोहर, अमानत
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—वक्तव्य, सुझाव, प्रस्ताव
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—भूमिका, प्रस्तावना
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—संकेत, उल्लेख
उपन्यासः —पुं॰—-—उप+नी+अस्+घञ्—शिक्षा, विधि
उपपतिः —पुं॰—-—-—प्रेमी, जार
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—होना, घटित होना, आविर्भाव, उत्पत्ति, जन्म
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—कारण, हेतु, आधार, युक्तियुक्त
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—योग्यता, औचित्य
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—निश्चयन, प्रदर्शन, प्रदर्शित उपसंहार
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—प्रमाण, प्रदर्शन
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—उपाय, तरकीब
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—करना, अमल में लाना, प्राप्त करना, सम्पन्न करना
उपपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+पद्+क्तिन्—अवाप्ति, प्राप्ति
उपपदम् —नपुं॰—-—-—वह शब्द जो किसी से पूर्व लगाया गया हो या बोला गया हो
उपपदम् —नपुं॰—-—-—पदवी, उपाधि, सम्मानसूचक विशेषण यथा आर्य, शर्मन्
उपपदम् —नपुं॰—-—-—वाक्य का गौणशब्द, किसी क्रिया या क्रिया से बने संज्ञा शब्दों से पूर्व लगाया गया उपसर्ग, निपात आदिशब्द
उपपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+पद्+क्त—प्राप्त, सेवित, सहित, युक्त
उपपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+पद्+क्त—ठीक, योग्य, उचित, उपयुक्त
उपपरीक्षा —स्त्री॰—-—उप+परि+ईक्ष्+अङ्+टाप्—अनुसंधान, जाँच पड़ताल
उपपरीक्षणम् —नपुं॰—-—उप+परि+ईक्ष्+ल्युट्—अनुसंधान, जाँच पड़ताल
उपपातः —पुं॰—-—उप+पत्+घञ्—अप्रत्याशित घटना
उपपातः —पुं॰—-—उप+पत्+घञ्—संकट, मुसीबत, दुर्घटना
उपपातकम् —नपुं॰—-—-—तुच्छ पाप, जुर्म
उपपादनम् —नपुं॰—-—उप+पद्+णिच्+ल्युट्—कार्यान्वित करना, अमल में लाना, संपन्न करना
उपपादनम् —नपुं॰—-—उप+पद्+णिच्+ल्युट्—देना, सौंपना, प्रस्तुत करना
उपपादनम् —नपुं॰—-—उप+पद्+णिच्+ल्युट्—प्रमाणित करना, प्रदर्शन, तर्क द्वारा स्थापना
उपपादनम् —नपुं॰—-—उप+पद्+णिच्+ल्युट्—परीक्षा, निश्चयन
उपपापम् —नपुं॰—-—-—तुच्छ पाप, जुर्म
उपपार्श्वः —पुं॰—-—-—पार्श्वांग, पार्श्व
उपपार्श्वः —पुं॰—-—-—विरोधी पक्ष
उपपार्श्वम् —पुं॰—-—-—कंधा
उपपार्श्वम् —पुं॰—-—-—पार्श्वांग, पार्श्व
उपपार्श्वम् —पुं॰—-—-—विरोधी पक्ष
उपपीडनम् —नपुं॰—-—उप+पीड+णिच्+ल्युट्—पेलना, निचोड़ना, बर्बाद करना, उजाड़ना
उपपीडनम् —नपुं॰—-—उप+पीड+णिच्+ल्युट्—प्रपीडित करना, चोट पहुँचाना
उपपीडनम् —नपुं॰—-—उप+पीड+णिच्+ल्युट्—पीडा, वेदना
उपपुरम् —नपुं॰—-—-—नगरांचल
उपपुराणम् —नपुं॰—-—प्रा॰ स॰—गौण या छोटा पुराण
उपपुष्पिका —स्त्री॰, अत्या॰ स॰—-— संज्ञायां कन्, टाप्, इत्वम्—जम्हाई लेना, हाँफना
उपप्रदर्शनम् —नपुं॰—-—-—निर्देश करना, संकेत करना
उपप्रदानम् —नपुं॰—-—-—दे देना, सौंप देना
उपप्रदानम् —नपुं॰—-—-—रिश्वत, उपायन
उपप्रदानम् —नपुं॰—-—-—उपहार
उपप्रलोभनम् —नपुं॰—-—-—बहकाना, फुसलाना
उपप्रलोभनम् —नपुं॰—-—-—रिश्वत, फुसलाहट, ललचाव
उपप्रेक्षणम् —नपुं॰—-—-—उपेक्षा करना, अवहेलना करना
उपप्रैषः —नपुं॰—-—-—आमन्त्रण, बुलावा
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—विपत्ति, दुष्कृत्य, संकट, दुःख, आपदा
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना, आघात, कष्ट
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—बाधा, रुकावट
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—उत्पीडन, सताना, कष्ट देना
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—डर, भय
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—अपशकुन, अनिष्टकर दैवी उपद्रव
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—विशेषकर सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—राहु
उपप्लवः —पुं॰—-—उप+प्लु+अप्—अराजकता
उपप्लविन् —वि॰—-—उपप्लव+इनि—दुःखी, कष्टग्रस्त
उपप्लविन् —वि॰—-—उपप्लव+इनि—अत्याचार से पीडित
उपबन्धः —पुं॰—-—उप+बन्ध्+घञ्—संबंध
उपबन्धः —पुं॰—-—उप+बन्ध्+घञ्—उपसर्ग
उपबन्धः —पुं॰—-—उप+बन्ध्+घञ्—रतिक्रिया का आसन विशेष
उपबर्हः —पुं॰—-—बर्ह्+घञ्—तकिया
उपबर्हणम् —नपुं॰—-—बर्ह्+ल्युट्—तकिया
उपबहु —वि॰, —-—-—कुछ, थोड़े बहुत
उपबाहुः —पुं॰—-—-—कोहनी से नीचे का हाथ का भाग
उपभङ्गः —पुं॰—-—उप+भंञ्+घञ्—भाग जाना, पश्चगमन
उपभङ्गः —पुं॰—-—उप+भंञ्+घञ्—एक भाग
उपभाषा —स्त्री॰—-—-—बोलचाल की गौण भाषा
उपभृत् —स्त्री॰—-—उप+भृ+क्विप्, तुकागमः—यज्ञों में प्रयुक्त होने वाला गोल प्याला
उपभोगः —पुं॰—-—उप+भुज्+घञ्—रसास्वादन, खाना, चखना
उपभोगः —पुं॰—-—उप+भुज्+घञ्—उपयोग, प्रयोग
उपभोगः —पुं॰—-—उप+भुज्+घञ्—फलोपभोग
उपभोगः —पुं॰—-—उप+भुज्+घञ्—आनन्द, संतृप्ति
उपमन्त्रणम् —नपुं॰—-—उप+मन्त्र्+ल्युट्—संबोधित करना, आमंत्रण, बुलावा
उपमन्त्रणम् —नपुं॰—-—उप+मन्त्र्+ल्युट्—उकसाना, उपच्छंदन
उपमन्थनी —स्त्री॰—-—उप+मन्थ्+ल्युट्+ङीप्—अग्नि को उद्दीप्त करने वाली लकड़ी
उपमर्दः —पुं॰—-—उप+मृद्+घञ्—घर्षण, रगड़, दबाव, बोझ के नीचे कुचल जाना
उपमर्दः —पुं॰—-—उप+मृद्+घञ्—नाश, आघात, वध करना
उपमर्दः —पुं॰—-—उप+मृद्+घञ्—झिड़कना, दुर्वचन कहना, अपमानित करना
उपमर्दः —पुं॰—-—उप+मृद्+घञ्—भूसी अलग करना
उपमर्दः —पुं॰—-—उप+मृद्+घञ्—आरोप का निराकरण
उपमा —स्त्री॰—-—उप+मा+अङ्+टाप्—समरूपता, समता, साम्य
उपमा —स्त्री॰—-—उप+मा+अङ्+टाप्—एक दूसरे से भिन्न दो पदार्थों की तुलना, तुल्यता, तुलना
उपमा —स्त्री॰—-—उप+मा+अङ्+टाप्—तुलना का मापदण्ड - उपमान, बहुधा समासान्त में 'की भांति' 'मिलते जुलते'
उपमा —स्त्री॰—-—उप+मा+अङ्+टाप्—समानता
उपमाद्रव्यम् —नपुं॰—उपमा-द्रव्यम्—-—तुलना के लिए प्रयुक्त किये जाने वाला पदार्थ
उपमातृ —स्त्री॰—-—-—दूसरी माता, दूध पिलाने वाली धाय
उपमातृ —स्त्री॰—-—-—निकट संबंधिनी स्त्री
उपमानम् —नपुं॰—-—उप+मा+ल्युट्—तुलना, समरूपता
उपमानम् —नपुं॰—-—उप+मा+ल्युट्—तुलना का मापदण्ड जिससे किसी की तुलना की जाय, उपमा के चार अपेक्षित गुणों में से एक
उपमानम् —नपुं॰—-—उप+मा+ल्युट्—सादृश्य, समानता की मान्यता, चार प्रकार के प्रमाणों में से एक जो यथार्थ ज्ञान तक पहुँचाने में सहायक होता है
उपमितिः —स्त्री॰—-—उप+मा+क्तिन्—समरूपता, तुलना, समानता
उपमितिः —स्त्री॰—-—उप+मा+क्तिन्—सादृश्य, नियमन, सादृश्य से प्राप्त वस्तुज्ञान, उपमान के द्वारा निगमित उपसंहार
उपमितिः —स्त्री॰—-—उप+मा+क्तिन्—एक अलंकार
उपमेय —सं॰ कृ॰—-—उप+मा+यत्—समानता या तुलना करने के योग्य, तुल्य
उपमेयम् —नपुं॰—-—-—तुलना करने का विषय, तुलनीय
उपमेयोपमा —स्त्री॰—उपमेय-उपमा—-—एक अलंकार जिसमें उपमेय और उपमान की तुलना इस दृष्टि से की जाती है कि उनके समान कोई और वस्तु है ही नहीं
उपयन्तृ —पुं॰—-—उप+यम्+तृच्—पति
उपयन्त्रम् —नपुं॰—-—-—चीरफाड़ का एक छोटा उपकरण
उपयमः —पुं॰—-—उप+यम्+अप्—विवाह, विवाह करना
उपयमः —पुं॰—-—उप+यम्+अप्—प्रतिबंध
उपयमनम् —नपुं॰—-—उप+यम्+ल्युट्—विवाह करना
उपयमनम् —नपुं॰—-—उप+यम्+ल्युट्—प्रतिबंद्ह लगाना
उपयमनम् —नपुं॰—-—उप+यम्+ल्युट्—अग्नि को स्थापित करना
उपयष्टृ —पुं॰—-—उप+यज्+तृच्—यज्ञ के सोलह ऋत्विजों में से 'उपयज्' का पाठ करने वाला प्रतिप्रस्थाता नामक ऋत्विक्
उपयाचक —वि॰—-—उप+याच्+ण्वुल्—मांगने वाला, प्रार्थी, विवाहार्थी, भिक्षुक
उपयाचनम् —नपुं॰—-—उप+याच्+ल्युट्—निवेदन करना, मांगना, प्रार्थना करने के किसी के निकट जाना
उपयाचित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+याच्+क्त—जिससे मांगा गया हो, या प्रार्थना की गई हो
उपयाचितम् —नपुं॰—-—उप+याच्+क्त—निवेदन या प्रार्थना
उपयाचितम् —नपुं॰—-—उप+याच्+क्त—मनौती, अपनी अभीष्टसिद्धि हो जाने पर देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रतिज्ञात भेंट
उपयाचितम् —नपुं॰—-—उप+याच्+क्त—अपनी इष्टसिद्धि के लिए देवता के प्रति प्रार्थना या निवेदन
उपयाचितकम् —नपुं॰—-—उप+याच्+क्त—जिससे मांगा गया हो, या प्रार्थना की गई हो
उपयाजः —पुं॰—-—उप+या+ल्युट्—यज्ञ के अतिरिक्त यजुर्वेदीय मंत्र
उपयानम् —नपुं॰—-—उप+या+ल्युट्—पहुँचना, निकट आना
उपयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+युज्+क्त—संलग्न
उपयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+युज्+क्त—योग्य, सही, उचित
उपयुक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+युज्+क्त—सेवा के योग्य, काम का
उपयोगः —पुं॰—-—उप+युज्+घञ्—काम, लाभ, प्रयोग, सेवन
उपयोगः —पुं॰—-—उप+युज्+घञ्—औषधि तैयार करना या देना
उपयोगः —पुं॰—-—उप+युज्+घञ्—योग्यता, उपयुक्तता, औचित्य
उपयोगः —पुं॰—-—उप+युज्+घञ्—संपर्क, आसन्नता
उपयोगिन् —वि॰—-—उप+ युज्+घनुण्—काम में आनेवाला, लाभदायक
उपयोगिन् —वि॰—-—उप+ युज्+घनुण्—सेवा के योय, काम का
उपयोगिन् —वि॰—-—उप+ युज्+घनुण्—योग्य, उचित
उपरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+रञ्ज्+क्त—कष्ट-ग्रस्त, संकटग्रस्त, दुःखी
उपरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+रञ्ज्+क्त—ग्रहण-ग्रस्त
उपरक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+रञ्ज्+क्त—रंजित, रंगीन
उपरक्तः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+क्त—ग्रहण-ग्रस्त सूर्य या चंद्र
उपरक्षः —पुं॰—-—उप+रक्ष्+अच्—अंग रक्षक
उपरक्षणम् —नपुं॰—-—उप+रक्ष्+ल्युट्—पहरेदार, गारद, चौकी
उपरत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+रम्+क्त—निवृत्त, विरक्त
उपरत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+रम्+क्त—मृत
उपरतकर्मन् —वि॰—उपरत-कर्मन्—-—सांसारिक कार्यों पर भरोसा न करने वाला
उपरतस्पृह —वि॰—उपरत-स्पृह—-—इच्छा से शून्य, सांसारिक आसक्ति और सम्पत्तियोम् के प्रति उदासीन
उपरतिः —स्त्री॰—-—उप+रम्+क्तिन्—विरक्ति, निवृत्ति
उपरतिः —स्त्री॰—-—उप+रम्+क्तिन्—मृत्यु
उपरतिः —स्त्री॰—-—उप+रम्+क्तिन्—विषय-भोग से विरक्ति
उपरतिः —स्त्री॰—-—उप+रम्+क्तिन्—उदासीनता
उपरतिः —स्त्री॰—-—उप+रम्+क्तिन्—यज्ञादि विहित कर्मों से विरक्ति, प्रथापालन के हेतु किये जाने वाले कर्म कांड में अविश्वास
उपरत्नम् —नपुं॰—-—-—अप्रधान या घटिया रत्न
उपरमः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—विरक्ति, निवृत्ति
उपरमः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—परिवर्जन, त्याग
उपरमः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—मृत्यु
उपरामः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—विरक्ति, निवृत्ति
उपरामः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—परिवर्जन, त्याग
उपरामः —पुं॰—-—उप+रम्+अञ्—मृत्यु
उपरमणम् —नपुं॰—-—उप+रम्+ल्युट्—रति सुख से विरक्ति
उपरमणम् —नपुं॰—-—उप+रम्+ल्युट्—प्रथानुरूप कर्मकाण्ड से विरति
उपरमणम् —नपुं॰—-—उप+रम्+ल्युट्—विरक्ति, निवृत्ति
उपरसः —पुं॰—-—-—अप्रधान खनिज धातु
उपरसः —पुं॰—-—-—गौण भाव या आवेश
उपरसः —पुं॰—-—-—अप्रधान रस
उपरागः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+घञ्—सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण
उपरागः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+घञ्—राहु या शिरोबिंदु की ओर चढ़ने वाला
उपरागः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+घञ्—लाली, लाल रंग, रंग
उपरागः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+घञ्—संकट, कष्ट, आघात
उपरागः —पुं॰—-—उप+रञ्ज्+घञ्—झिड़की, निन्दा, दुर्वचन
उपराजः —पुं॰—-—-—वाइसराय, राजप्रतिनिधि, उपशासक
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—पृथकरूप से प्रयुक्त होने वाला संबंधबोधक अव्यय
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—ऊपर, अधिक, पर, पै, की ओर
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—समाप्ति पर
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—परे, अतिरिक्त
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—के संबंध में, के विषय में, की ओर, पर, तुम्हारे कारण
उपरि —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिल्, उप आदेशः—के बाद
उपर्युपरि —अव्य॰—उपरि-उपरि—-—जरा ऊपर
उपर्युपरि —अव्य॰—उपरि-उपरि—-—उच्च से उच्चतर, कहीं ऊँचा, ऊपर, ऊँचाई पर
उपर्युपरि —अव्य॰—उपरि-उपरि—-—अत्यन्त ऊँचाई पर, पर, ऊपर की ओर
उपर्युपरि —अव्य॰—उपरि-उपरि—-—इसके सिवाय, इसके अतिरिक्त, अधिक और
उपर्युपरि —अव्य॰—उपरि-उपरि—-—बाद में
उपरिचर —वि॰—उपरि-चर—-—ऊपर विचरने वाला
उपरितन —वि॰—उपरि-तन—-—अधिक ऊपर का, अपेक्षाकृत ऊँचा
उपरिस्थ —वि॰—उपरि-स्थ—-—अधिक ऊपर का, अपेक्षाकृत ऊँचा
उपरिभावः —पुं॰—उपरि-भावः—-—ऊपर का अंश या पार्श्व
उपरिभूमिः —स्त्री॰—उपरि-भूमिः—-—ऊपर वाली धरती
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—अधिक, ऊपर, ऊँचे
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—इसके आगे, बादमें, इसके पश्चात्, अन्त में
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—के पीछे
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—अधिक, पर
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—सिर से पैर तक
उपरिष्टात् —अव्य॰—-—ऊर्ध्व+रिष्टातिल्, उप आदेशः—के पीछे
उपरीतकः —पुं॰—-—उपरि+इ+क्त+कन्—रतिक्रिया का आसन विशेष
उपरूपकम् —नपुं॰—-—उपगतं रूपकं दृश्यकाव्यं सादृश्येन—घटिया प्रकार का नाटक
उपरोधः —पुं॰—-—उप+रुध्+घञ्—अवबाधा, रुकावट, रोक
उपरोधः —पुं॰—-—उप+रुध्+घञ्—बाधा, कष्ट
उपरोधः —पुं॰—-—उप+रुध्+घञ्—आच्छादित करना, घेरा डालना, अवरुद्ध करना
उपरोधः —पुं॰—-—उप+रुध्+घञ्—संरक्षा, अनुग्रह
उपरोधक —वि॰—-—उप+रुध्+ण्वुल्—अवबाधक
उपरोधक —वि॰—-—उप+रुध्+ण्वुल्—आड़ करने वाला, घेरा डालने वाला
उपरोधकम् —नपुं॰—-—उप+रुध्+ण्वुल्—भीतर का कमरा, निजी कमरा
उपरोधनम् —नपुं॰—-—उप+रुध्+ल्युट्—अवबाधा, रुकावट आदि
उपलः —पुं॰—-—उप+ला+क—पत्थर, पाषाण
उपलः —पुं॰—-—उप+ला+क—मूल्यवान पत्थर, रत्न, मणि
उपलकः —पुं॰—-—उपल+कन्—पत्थर
उपला —स्त्री॰—-—-—रेत, बालुका
उपला —स्त्री॰—-—-—परिष्कृत शर्करा
उपलक्षणम् —नपुं॰—-—उप+लक्ष्+ल्युट्—देखना, दृष्टि डालना, अंकित करना
उपलक्षणम् —नपुं॰—-—उप+लक्ष्+ल्युट्—चिह्न, विशिष्ट या भेदक रूप
उपलक्षणम् —नपुं॰—-—उप+लक्ष्+ल्युट्—पद, पदवी
उपलक्षणम् —नपुं॰—-—उप+लक्ष्+ल्युट्—किसी ऐसी बात का ध्वनित होना जो वस्तुतः कही न गई हो, किसी अतिरिक्त वस्तु की ओर या अन्य किसी समरूप पदार्थ की ओर संकेत जबकि केवल एक का ही उल्लेख किया गया हो, समस्त वस्तु के लिए उसके किसी एक भाग का कथन, पूरी जाति को प्रकट करने के लिए व्यक्ति की ओर संकेत आदि
उपलब्धिः —स्त्री॰—-—उप+लभ्+क्तिन्—प्राप्ति, अवाप्ति, अभिग्रहण
उपलब्धिः —स्त्री॰—-—उप+लभ्+क्तिन्—पर्यवेक्षण, प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान
उपलब्धिः —स्त्री॰—-—उप+लभ्+क्तिन्—समझ. मति
उपलब्धिः —स्त्री॰—-—उप+लभ्+क्तिन्—अटकल, अनुमान
उपलब्धिः —स्त्री॰—-—उप+लभ्+क्तिन्—संलक्ष्यता, आविर्भाव
उपलम्भः —पुं॰—-—उप+लभ्+घञ्, नुम्—अभिग्रहण
उपलम्भः —पुं॰—-—उप+लभ्+घञ्, नुम्—प्रत्यक्ष ज्ञान, अभिज्ञान, स्मृति से भिन्न संबोध
उपलम्भः —पुं॰—-—उप+लभ्+घञ्, नुम्—निश्चय करना, जानना
उपलालनम् —नपुं॰—-—उप+लल्+णिच्+ल्युट्—लाड प्यार करना
उपलालिका —स्त्री॰—-—उप+लल्+ण्वुल्, इत्वम्—प्यास
उपलिङ्गम् —नपुं॰—-—-—अपशकुन, दैवी घटना जो अनिष्ट सूचक हो
उपलिप्सा —स्त्री॰—-—उप+लभ्+सन्+अ+टाप्—प्राप्त करने की इच्छा
उपलेपः —पुं॰—-—उप+लिप्+घञ्—लेप, मालिश
उपलेपः —पुं॰—-—उप+लिप्+घञ्—सफाई करना, सफेदी पोतना
उपलेपः —पुं॰—-—उप+लिप्+घञ्—अवबाधा, जड होना, सुन्न होना
उपलेपनम् —नपुं॰—-—उप+लिप्+ल्युट्—मालिश, लेप, पोतना
उपलेपनम् —नपुं॰—-—उप+लिप्+ल्युट्—मलहम, उबटन
उपवनम् —नपुं॰—-—-—बाग, बगीचा, लगाया हुआ जंगल
उपवर्णः —पुं॰—-—उप+वर्ण+घञ्—सूक्ष्म या ब्योरेवार वर्णन
उपवर्णम् —नपुं॰—-—उप+वर्ण+ल्युट्—सूक्ष्म वर्णन, ब्योरे वार चित्रण
उपवर्तनम् —नपुं॰—-—उप+वृत्+ल्युट्—व्यायामशाला
उपवर्तनम् —नपुं॰—-—उप+वृत्+ल्युट्—जिला या परगना
उपवर्तनम् —नपुं॰—-—उप+वृत्+ल्युट्—राज्य
उपवर्तनम् —नपुं॰—-—उप+वृत्+ल्युट्—कीचड़, दलदल
उपवसथः —पुं॰—-—उप+वस्+अथ—गाँव
उपवस्तम् —नपुं॰—-—उप+वस् (स्तम्भे)+क्त—उपवास, व्रत
उपवासः —पुं॰—-—उपवस्+घञ्—व्रत
उपवासः —पुं॰—-—उपवस्+घञ्—यज्ञाग्नि का प्रदीप्त करना
उपवाहनम् —नपुं॰—-—उप+वह्+णिच्+ल्युट्—ले जाना, निकट लाना
उपवाह्यः —पुं॰—-—उप+वह्+ण्यत्, स्त्रियां टाप् —राजा की सवारी का हाथी या हथिनी
उपवाह्यः —पुं॰—-—उप+वह्+ण्यत्, स्त्रियां टाप् —राजकीय सवारी
उपवाह्या —स्त्री॰—-—उप+वह्+ण्यत्, स्त्रियां टाप् —राजा की सवारी का हाथी या हथिनी
उपवाह्या —स्त्री॰—-—उप+वह्+ण्यत्, स्त्रियां टाप् —राजकीय सवारी
उपविद्या —स्त्री॰, पुं॰—-—-—सांसारिक ज्ञान, घटिया ज्ञान
उपविषः —पुं॰—-—-—कृत्रिम जहर
उपविषः —पुं॰—-—-—निद्रा-जनक, मूर्छाकारी नशीली औषध
उपविषम् —नपुं॰—-—-—कृत्रिम जहर
उपविषम् —नपुं॰—-—-—निद्रा-जनक, मूर्छाकारी नशीली औषध
उपवीणयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—वीणा या सारंगी बजाना
उपवीतम् —नपुं॰—-—उप+वे+क्त—जनेऊ संस्कार
उपवीतम् —नपुं॰—-—उप+वे+क्त—जनेऊ या यज्ञोपवीत जिसको हिन्दू जाति के प्रथम तीन वर्ण धारण करते हैं
उपवृंहणम् —नपुं॰—-—उप+बृंह्+ल्युट्—वृद्धि, सञ्चय
उपवेदः —पुं॰—-—-—घटिया ज्ञान, वेदों से निचले दर्जे का ग्रन्थसमूह। उपवेद गिनती में चार हैं, और प्रत्येक वेद के साथ एक एक उपवेद संलग्न हैं - उदा॰, ऋग्वेद के साथ आयुर्वेद, यजुर्वेद के साथ धनुर्वेद या सैनिक शिक्षा, सामवेद के साथ गांधर्ववेद या संगीत और अथर्ववेद के साथ स्थापत्य-शस्त्रवेद या यान्त्रिकी।
उपवेशः —पुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—बैठना, आसन जमाना जैसा कि प्रायोपवेशन में
उपवेशः —पुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—संलग्न होना
उपवेशः —पुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—मलोत्सर्ग
उपवेशनम् —नपुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—बैठना, आसन जमाना जैसा कि प्रायोपवेशन में
उपवेशनम् —नपुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—संलग्न होना
उपवेशनम् —नपुं॰—-—उप+विश्+घञ्, ल्युट् वा—मलोत्सर्ग
उपवैणवम् —नपुं॰—-—उप+वेणु+अण्—दिन के तीन काल - अर्थात् प्रातः काल, मध्याह्नकाल और सायंकाल -त्रिसंध्या
उपव्याख्यानम् —नपुं॰—-—-—बाद में जोड़ी हुई व्याख्या या टीका
उपव्याघ्रः —पुं॰—-—-—एक छोटा शिकारी चीता
उपशमः —पुं॰—-—उप+शम्+घञ्—शान्त होना, उपशान्ति, सान्त्वना, निवृत्ति, रोक, परिसमाप्ति
उपशमः —पुं॰—-—उप+शम्+घञ्—विश्राम, छुट्टी, विराम
उपशमः —पुं॰—-—उप+शम्+घञ्—शान्ति, स्थैर्य, धैर्य
उपशमः —पुं॰—-—उप+शम्+घञ्—ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण
उपशमनम् —नपुं॰—-—उप+शम्+णिच्+ल्युट्—शान्त करना, शान्ति रखना, चुप करना
उपशमनम् —नपुं॰—-—उप+शम्+णिच्+ल्युट्—लघूकरण
उपशमनम् —नपुं॰—-—उप+शम्+णिच्+ल्युट्—बुझाना, विराम
उपशयः —पुं॰—-—उप+शी+अच्—पास लेटना
उपशयः —पुं॰—-—उप+शी+अच्—माँद, घात का स्थान
उपशल्यम् —नपुं॰—-—-—ग्राम या नगर के बाहर का खुला स्थान, नगरांचल, उपनगर
उपशाखा —स्त्री॰, पुं॰—-—-—गौण शाखा, अप्रधान शाखा
उपशान्तिः —स्त्री॰, पुं॰—-—-—विराम, शमन, प्रशमन
उपशान्तिः —स्त्री॰, पुं॰—-—-—आश्वासन, अभिशमन
उपशायः —पुं॰—-—उप+शी+घञ्—बारी-बारी से सोना, दूसरे पहरेदारों के साथ रात को सोने की बारी
उपशालम् —नपुं॰—-—-—घर के निकट का स्थान, घर के आगे का सहन
उपशालम् —अव्य॰—-—-—घर के निकट
उपशास्त्रम् —नपुं॰—-—-—लघु विज्ञान या ग्रन्थ
उपशिक्षा —स्त्री॰—-—उप+शिक्ष्+अ, ल्युट् वा—अधिगम, सीखना, प्रशिक्षण
उपशिक्षणम् —नपुं॰—-—उप+शिक्ष्+अ, ल्युट् वा—अधिगम, सीखना, प्रशिक्षण
उपशिष्यः —पुं॰—-—-—शिष्य का शिष्य
उपशोभनम् —नपुं॰—-—उप+शुभ्+ल्युट्, अ वा—सजाना, अलंकृत करना
उपशोभा —स्त्री॰—-—उप+शुभ्+ल्युट्, अ वा—सजाना, अलंकृत करना
उपशोषणम् —नपुं॰—-—उप+शुष्+णिच्+ल्युट्—सूखना, मुर्झाना
उपश्रुतिः —स्त्री॰—-—उप+श्रु+क्तिन्—सुनना, कान देना
उपश्रुतिः —स्त्री॰—-—उप+श्रु+क्तिन्—श्रवण-परास
उपश्रुतिः —स्त्री॰—-—उप+श्रु+क्तिन्—रात को सुनाई देने वाली मूर्तिमती निशादेवी की भविष्यसूचक देववाणी
उपश्रुतिः —स्त्री॰—-—उप+श्रु+क्तिन्—प्रतिज्ञा, स्वीकृति
उपश्लेषः —पुं॰—-—उप+श्लिष्+घञ्, ल्युट् वा—पास पास रखना, संपर्क
उपश्लेषः —पुं॰—-—उप+श्लिष्+घञ्, ल्युट् वा—अलिंगन
उपश्लेषणम् —नपुं॰—-—उप+श्लिष्+घञ्, ल्युट् वा—पास पास रखना, संपर्क
उपश्लेषणम् —नपुं॰—-—उप+श्लिष्+घञ्, ल्युट् वा—अलिंगन
उपश्लोकयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—कविता में स्तुति करना, प्रशंसा करना
उपसंयमः —पुं॰—-—उप+सम्+यम्+अप्—दमन करना, रोकना, बांधना
उपसंयमः —पुं॰—-—उप+सम्+यम्+अप्—सृष्टि का अंत, प्रलय
उपसंयोगः —पुं॰—-—उप+सम्+युज्+घञ्—गौण संबंध, सुधार
उपसंरोहः —पुं॰—-—उप+सम्+रुह्+घञ्—एक साथ उगना, ऊपर उगना, अंगूर आना
उपसंवादः —पुं॰—-—उप+सम्+वद्+घञ्—करार, संविदा
उपसंव्यानम् —नपुं॰—-—उप्+सम्+व्ये+ल्युट्—अन्तःपट
उपसंहरणम् —नपुं॰—-—उप्+सम्+हृ+ल्युट्—हटा लेना, वापिस लेना
उपसंहरणम् —नपुं॰—-—उप्+सम्+हृ+ल्युट्—रोक रखना
उपसंहरणम् —नपुं॰—-—उप्+सम्+हृ+ल्युट्—बाहर निकालना
उपसंहरणम् —नपुं॰—-—उप्+सम्+हृ+ल्युट्—आक्रमण करना, हमला करना
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—एक स्थान पर कर देना, सिकोड़ देना
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—वापिस लेना, रोक रखना
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—संचय, संघात
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—बटोरना, समेटना, समाप्ति
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—इति श्री
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—सारसंग्रह, संक्षिप्त विवरण
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—संक्षेप, संहृति
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—पूर्णता
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—विनाश, मृत्यु
उपसंहारः —पुं॰—-—उप+सम्+हृ+घञ्—आक्रमण करना, हमला करना
उपसंहारिन् —वि॰—-—उप+सम्+हृ+घिनुण्—समाविष्ट करने वाला
उपसंहारिन् —वि॰—-—उप+सम्+हृ+घिनुण्—एकांतिक, अपवर्जी
उपसंक्षेपः —पुं॰—-—उप+सम्+क्षिप्+घञ्—सार, सारांश, संक्षिप्त विवरण
उपसंकख्यानम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ख्या+ल्युट्—जोड़ना
उपसंख्यानम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ख्या+ल्युट्—बाद में जोड़ा हुआ, वृद्धि, अतिरिक्त निर्देशन
उपसंख्यानम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ख्या+ल्युट्—रूप और अर्थ की दृष्टि से प्रत्यादेश
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—प्रसन्न रखना, सहारा देना, निर्वाह करना
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—सादर अभिवादन
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—स्वीकरण, दत्तक लेना
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—विनम्र संबोधन, अभिवादन
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—एकत्रीकरण, मिलाना
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—ग्रहण करना
उपसंग्रहः —पुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—परिशिष्ट, कोई ऐसी वस्तु जो या तो उपयोगी हो, अथवा सजावट के काम आवे, उपकरण
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—प्रसन्न रखना, सहारा देना, निर्वाह करना
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—सादर अभिवादन
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—स्वीकरण, दत्तक लेना
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—विनम्र संबोधन, अभिवादन
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—एकत्रीकरण, मिलाना
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—ग्रहण करना
उपसंग्रहणम् —नपुं॰—-—उप+सम्+ग्रह्+अप्, ल्युट् वा—परिशिष्ट, कोई ऐसी वस्तु जो या तो उपयोगी हो, अथवा सजावट के काम आवे, उपकरण
उपसत्तिः —स्त्री॰—-—उप+सद्+क्तिन्—संयोग, मेल
उपसत्तिः —स्त्री॰—-—उप+सद्+क्तिन्—सेवा, पूजा, परिचर्या
उपसत्तिः —स्त्री॰—-—उप+सद्+क्तिन्—भेंट, दान
उपसदनम् —नपुं॰—-—उप+सद्+ल्युट्—निकट जाना, समीप पहुँचना
उपसदनम् —नपुं॰—-—उप+सद्+ल्युट्—गुरु के चरणों में बैठना, शिष्य बनना
उपसदनम् —नपुं॰—-—उप+सद्+ल्युट्—पास-पड़ौस
उपसदनम् —नपुं॰—-—उप+सद्+ल्युट्—सेवा
उपसंतानः —पुं॰—-—उप+सम्+तनु—अव्यवहित संयोग
उपसंतानः —पुं॰—-—उप+सम्+तनु—संतति
उपसंधानम् —नपुं॰—-—उप+सम्+धा+ल्युट्—जोड़ना, मिलाना
उपसन्यासः —पुं॰—-—उप+सम्+नि+अस्+घञ्—डाल देना, छोड़ देना, त्याग देना
उपसमधानम् —नपुं॰—-—उप+सम्+आ+धा+ल्युट्—एकत्र करना, ढेर लगाना
उपसंपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+सम्+पद्+क्तिन्—समीप जाना, पहुँचना
उपसंपत्तिः —स्त्री॰—-—उप+सम्+पद्+क्तिन्—किसी अवस्था में प्रविष्टा होना
उपसंपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सम्+पद्+क्त—उपलब्ध
उपसंपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सम्+पद्+क्त—पहुँचा हुआ
उपसंपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सम्+पद्+क्त—उपस्कृत, अन्वित
उपसंपन्न —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सम्+पद्+क्त—यज्ञ में बलि दिया गया, बलि दिया गया
उपसंपन्नम् —नपुं॰—-—उप+सम्+पद्+क्त—मसाला
उपसंभाषः —पुं॰—-—उप+सम्+भाष्+घञ्, अ वा—वार्तालाप
उपसंभाषः —पुं॰—-—उप+सम्+भाष्+घञ्, अ वा—मैत्रीपूर्ण अनुरोध
उपसंभाषा —स्त्री॰—-—उप+सम्+भाष्+घञ्, अ वा—वार्तालाप
उपसंभाषा —स्त्री॰—-—उप+सम्+भाष्+घञ्, अ वा—मैत्रीपूर्ण अनुरोध
उपसरः —पुं॰—-—उप+सृ+अप्—अभिगमन
उपसरः —पुं॰—-—उप+सृ+अप्—गाय का प्रथम गर्भ
उपसरणम् —नपुं॰—-—उप+सृ+ल्युट्—जाना
उपसरणम् —नपुं॰—-—उप+सृ+ल्युट्—जिसकी शरण ग्रहण की जाय
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—बीमारी, रोग, रोग से उत्पन्न कृशता आदि विकार
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—मुसीबत, कष्ट, संकट, आघात, हानि
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—अपशकुन, अनिष्टकर प्राकृतिक घटना
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—ग्रहण
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—मृत्यु का लक्षण या चिह्न
उपसर्गः —पुं॰—-—उप+सृज्+घञ्—धातु के पूर्व लगने वाला उपसर्ग
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—उड़ेलना
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—मुसीबत, संकट, अपशकुन
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—छोड़ना
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—ग्रहण लगना
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—अधीनस्थ व्यक्ति या वस्तु, प्रतिनिधि
उपसर्जनम् —नपुं॰—-—उप+सृज्+ल्युट्—वह शब्द जिसका अपना मूल स्वतंत्र स्वरूप व्युत्पत्ति के कारण या रचना में प्रयुक्त होने के कारण नष्ट हो गया हो और जब कि वह दूसरे शब्द के अर्थ का भी निर्धारण करे
उपसर्पः —पुं॰—-—उप+सृप्+घञ्—समीप जाना, पहुँच
उपसर्पणम् —नपुं॰—-—उप+सृप्+ल्युट्—निकट जाना, पहुँचना, अग्रसर होना
उपसर्या —स्त्री॰—-—उप+सृ+यत्+टाप्—गर्मायी हुई या ऋतुमती गाय जो साँड़ के उपयुक्त हो
उपसुन्दः —पुं॰—-—-—एक राक्षस, निकुंभ का पुत्र तथा सुद का भाई
उपसूर्यकम् —नपुं॰—-—उपसूर्य+कन्—सूर्यमण्डल या परिवेश
उपसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सृज्+क्त—मिलाया हुआ, संयुक्त, संलग्न
उपसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सृज्+क्त—भूत-प्रेताविष्ट, या भूत-प्रेत-ग्रस्त
उपसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सृज्+क्त—कष्टग्रस्त, अभिभूत, क्षतिग्रस्त
उपसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सृज्+क्त—ग्रहण-ग्रस्त
उपसृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+सृज्+क्त—उपसर्ग-युक्त
उपसृष्टः —पुं॰—-—-—ग्रहण से ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा
उपसृष्टम् —नपुं॰—-—-—मैथुन, संभोग
उपसेकः —पुं॰—-—उप+सिच्+घञ्—उड़ेलना, छिड़कना, सींचना
उपसेकः —पुं॰—-—उप+सिच्+घञ्—भीगना, रस
उपसेचनम् —नपुं॰—-—उप+सिच्+ ल्युट्—उड़े, छिड़कना, सींचना
उपसेचनम् —नपुं॰—-—उप+सिच्+ ल्युट्—भीगना, रस
उपसेकनी —स्त्री॰—-—-—कड़छी या कटोरी जिससे उड़ेला जाय
उपसेवनम् —नपुं॰—-—उप+सेव्+ल्युट्, अ+टाप् वा—पूजा करना, सम्मान करना, आराधना
उपसेवनम् —नपुं॰—-—उप+सेव्+ल्युट्, अ+टाप् वा—उपासना
उपसेवनम् —नपुं॰—-—उप+सेव्+ल्युट्, अ+टाप् वा—लिप्त होना
उपसेवनम् —नपुं॰—-—उप+सेव्+ल्युट्, अ+टाप् वा—काम लेना, उपभोग करना
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—जो किसी वस्तु के पूरा करने के काम आवे, संघटक, अवयव
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—मसाला जो भोजन को स्वादिष्ट बनाये
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—सामान, उपबन्ध, उपांग, उपकरण
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—घर-गृहस्थी के काम की वस्तु
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—आभूषण
उपस्करः —पुं॰—-—उप+कृ+अप्, सुट्—निन्दा, बदनामी
उपस्करणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्, सुट्—वध करना, क्षत-विक्षत करना
उपस्करणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्, सुट्—संचय
उपस्करणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्, सुट्—परिवर्तन, सुधार
उपस्करणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्, सुट्—अध्याहार
उपस्करणम् —नपुं॰—-—उप+कृ+ल्युट्, सुट्—बदनामी, निन्दा
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—अतिरिक्तक, परिशिष्ट
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—अध्याहार
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—सुन्दर बनाना, सजाना, शोभायुक्त करना
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—आभूषण
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—प्रहार
उपस्कारः —पुं॰—-—उप+कृ+घञ्, सुट्—संचय
उपस्कृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+कृ+क्त, सुट्—तैयार किया हुआ
उपस्कृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+कृ+क्त, सुट्—संचित
उपस्कृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+कृ+क्त, सुट्—सजाया गया, अलंकृत किया गया
उपस्कृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+कृ+क्त, सुट्—अध्याहृत
उपस्कृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+कृ+क्त, सुट्—सुधारा गया
उपस्कृतिः —स्त्री॰—-—उप+कृ+क्तिन्, सुट्—परिशिष्ट
उपस्तम्भः —पुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—टेक, सहारा
उपस्तम्भः —पुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—प्रोत्साहन, उकसाना, सहायता
उपस्तम्भः —पुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—आधार, नींव, प्रयोजन
उपस्तम्भनम् —नपुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—टेक, सहारा
उपस्तम्भनम् —नपुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—प्रोत्साहन, उकसाना, सहायता
उपस्तम्भनम् —नपुं॰—-—उप+स्तम्भ्+घञ्, ल्युट् वा—आधार, नींव, प्रयोजन
उपस्तरणम् —नपुं॰—-—उप्+स्तृ+ल्युट्—फैलाना, बिछाना, बखेरना
उपस्तरणम् —नपुं॰—-—उप्+स्तृ+ल्युट्—चादर
उपस्तरणम् —नपुं॰—-—उप्+स्तृ+ल्युट्—बिस्तरा
उपस्तरणम् —नपुं॰—-—उप्+स्तृ+ल्युट्—कोई बिछाई हुई
उपस्त्री —स्त्री॰, पुं॰—-—-—रखैल
उपस्थः —पुं॰—-—उप+स्था+क—गोद
उपस्थः —पुं॰—-—उप+स्था+क—मध्य भाग, पेडू
उपस्थम् —नपुं॰—-—उप+स्था+क—जनेन्द्रिय, विशेषतः योनि
उपस्थम् —नपुं॰—-—उप+स्था+क—गुदा
उपस्थम् —नपुं॰—-—उप+स्था+क—कूल्हा
उपस्थनिग्रहः —पुं॰—उपस्थः-निग्रहः—-—इन्द्रियदमन, संयम
उपस्थदलः —पुं॰—उपस्थः-दलः—-—पीपल का वृक्ष
उपस्थपत्रः —पुं॰—उपस्थः-पत्रः—-—पीपल का वृक्ष
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—उपस्थिति, सामीप्य
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—पहुँचना, आना, प्रकट होना, दर्शन देना
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—पूजा करना, प्रार्थना, आराधना, उपासना
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—अभिवादन, नमस्कार
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—आवास
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—देवालय, पुण्यस्थल, मन्दिर
उपस्थानम् —नपुं॰—-—उप+स्था+ल्युट्—स्मरण, प्रत्यास्मरण, स्मृति
उपस्थापनम् —नपुं॰—-—उप+स्था+णिच्+ल्युट्—निकट रखना, तैयार होना
उपस्थापनम् —नपुं॰—-—उप+स्था+णिच्+ल्युट्—स्मृति को जगाना
उपस्थापनम् —नपुं॰—-—उप+स्था+णिच्+ल्युट्—परिचर्या, सेवा
उपस्थायकः —पुं॰—-—उप+स्था+ण्वुल्—सेवक
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—पास जाना
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—सामीप्य, विद्यमानता
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—अवाप्ति, प्राप्ति
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—सम्पन्न करना, कार्यान्वित करना
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—स्मरण, प्रत्यास्मरण
उपस्थितिः —स्त्री॰—-—उप+स्था+क्तिन्—सेवा, परिचर्या
उपस्नेहः —पुं॰—-—उप+स्निह्+घञ्—गीला होना
उपस्पर्शः —पुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—स्पर्श करना, संपर्क
उपस्पर्शः —पुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—स्नान करना, संक्षालन, धोना
उपस्पर्शः —पुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—कुल्ला करना, आचमन करना, मार्जन करना
उपस्पर्शनम् —नपुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—स्पर्श करना, संपर्क
उपस्पर्शनम् —नपुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—स्नान करना, संक्षालन, धोना
उपस्पर्शनम् —नपुं॰—-—उप+स्पर्श्+घञ्, ल्युट् वा—कुल्ला करना, आचमन करना, मार्जन करना
उपस्मृतिः —स्त्री॰, पुं॰—-—-—लघु धर्मशास्त्र या विधि ग्रन्थ
उपस्रवणम् —नपुं॰—-—उप+स्रु+ल्युट्—रज का मासिक स्राव होना
उपस्रवणम् —नपुं॰—-—उप+स्रु+ल्युट्—बहाव
उपस्वत्वम् —नपुं॰—-—-—राजस्व, लाभ
उपस्वेदः —पुं॰—-—उप+स्विद्+घञ्—गीलापन, पसीना
उपहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हन्+क्त—क्षत-विक्षत, जिस पर आघात किया गया हो, क्षीण, पीडित, चोट लगा हुआ
उपहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हन्+क्त—अभिभूत, आबद्ध, आहत, पराभूत
उपहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हन्+क्त—सर्वथा विनष्ट
उपहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हन्+क्त—निंदित, भर्त्सना किया गया, उपेक्षित
उपहत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हन्+क्त—दूषित, कलुषित, अपवित्रीकृत
उपहतात्मन् —वि॰—उपहत-आत्मन्—-—क्षुब्धमना, उद्विग्नमना
उपहतदृश् —वि॰—उपहत-दृश्—-—चौंधियाया हुआ, अंधा किया गया
उपहतधी —वि॰—उपहत-धी—-—मू़ढ़
उपहतक —वि॰—-—उपहत+कन्—हतभाग्य, अभागा
उपहतिः —स्त्री॰—-—उप+हन्+क्तिन्—प्रहार
उपहतिः —स्त्री॰—-—उप+हन्+क्तिन्—वध, हत्या
उपहत्या —स्त्री॰, पुं॰—-—-—आँखों का चौंधियाना
उपहरणम् —नपुं॰—-—उप+हृ+ल्युट्—निकट लाना, जाकर लाना
उपहरणम् —नपुं॰—-—उप+हृ+ल्युट्—ग्रहण करना, पकड़ना
उपहरणम् —नपुं॰—-—उप+हृ+ल्युट्—देवता आदि को भेंट प्रस्तुत करना
उपहरणम् —नपुं॰—-—उप+हृ+ल्युट्—बलिपशु देना
उपहरणम् —नपुं॰—-—उप+हृ+ल्युट्—भोजन परोसना या बाँटना
उपहसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+हस्+क्त—मजाक उड़ाया गया, भर्त्सना किया गया
उपहसितम् —नपुं॰—-—उप+हस्+क्त—व्यंजग्यपूर्ण अट्टहास, हसी उड़ाना
उपहस्तिका —स्त्री॰—-—उपहस्त+कन्+टाप्, इत्वम्—पान-दान
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—आहुति
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—भेंट, उपहार
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—बलि-पशु, यज्ञ, देवता का नजराना
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—सम्मान-सूचक भेंट, अपने बड़ों को उपहार देना
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—सम्मान
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—शांति के मूल्य स्वरूप क्षति पूरक उपहार
उपहारः —पुं॰—-—उप+हृ+घञ्—अभ्यागतों में परोसा गया भोजन
उपहारिन् —वि॰—-—उपहार+णिनि—देने वाला, उपहार प्रस्तुत करने वाला, लाने वाला
उपहालकः —पुं॰—-—-—कुन्तल देश का नाम
उपहासः —पुं॰—-—उप+हस्+घञ्—मजाक उड़ाना, हंसी-दिल्लगी
उपहासः —पुं॰—-—उप+हस्+घञ्—व्यंग्यपूर्ण अट्टहास
उपहासः —पुं॰—-—उप+हस्+घञ्—हंसी मजाक, खेलकूद
उपहासास्पदम् —नपुं॰—उपहासः-आस्पदम्—-—उपहास की सामग्री, भांड, उपहास्य
उपहासपात्रम् —नपुं॰—उपहासः-पात्रम्—-—उपहास की सामग्री, भांड, उपहास्य
उपहासक —वि॰—-—उप+हस्+ण्वुल्—हंसी-मजाक उड़ाने वाला
उपहासकः —पुं॰—-—उप+हस्+ण्वुल्—विदूषक, दिल्लगीबाज
उपहास्य —वि॰, सं॰ कृ॰—-—उप+हस्+ण्यत्—मजाकिया या हंसी-मजाक की वस्तु बनाना, ठिठोलिया
उपहित —वि॰—-—उप+धा+क्त—रक्खा गया
उपहूतिः —स्त्री॰—-—उप+ह्वे+क्तिन्—बुलावा, आह्वान, निमंत्रण
उपह्वरः —पुं॰—-—उप+हवृ+घ—एकान्त या अकेला स्थान, निजी जगह
उपह्वरः —पुं॰—-—उप+हवृ+घ—सामीप्य
उपह्वानम् —नपुं॰—-—उप+ह्वे+ल्युट्—बुलाना, निमंत्रित करना
उपह्वानम् —नपुं॰—-—उप+ह्वे+ल्युट्—प्रार्थना मंत्रों के साथ आवाहन
उपांशु —अव्य॰—-—उपगता अंशवो यत्र—मन्द स्वर से, कानाफूसी
उपांशु —अव्य॰—-—उपगता अंशवो यत्र—चूपके से, गुप्तरूप से
उपांशुः —पुं॰—-—उपगता अंशवो यत्र—मन्द स्वर में की गई प्रार्थना, मंत्रों का जप करना
उपाकरणम् —नपुं॰—-—उप+आ+कृ+ल्युट्—आरंभ करने के लिए निमंत्रण, निकट लाना
उपाकरणम् —नपुं॰—-—उप+आ+कृ+ल्युट्—तैयारी, आरम्भ, उपक्रम
उपाकरणम् —नपुं॰—-—उप+आ+कृ+ल्युट्—प्रार्ंभिक अनुष्ठान करने के पश्चात् वेद-पाठ का उपक्रम
उपाकर्मन् —नपुं॰—-—उप+आ+कृ+मनिन्—तैयारी, आरम्भ, उपक्रम
उपाकर्मन् —नपुं॰—-—उप+आ+कृ+मनिन्—वर्षारंभ के पश्चात् वेदपाठ के उपक्रम से पूर्व किया जाने वाला अनुष्ठान
उपाकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+आ+कृ+क्त—निकट लाया हुआ
उपाकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+आ+कृ+क्त—यज्ञ में बलि दिया गया
उपाकृत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+आ+कृ+क्त—आरब्ध, उपक्रांत
उपाक्षम् —अव्य॰ स॰—-—-—आँखों के सामने, अपने समक्ष
उपाख्यानम् —नपुं॰—-—उप+आ+ख्या+ल्युट्—छोटी कथा, गल्प या आख्यायिका
उपाख्यानकम् —नपुं॰—-—उप+आ+ख्या+ल्युट्, कन् च—छोटी कथा, गल्प या आख्यायिका
उपागमः —पुं॰—-—उप+आ+गम्+अप्—निकट जाना, पहुँचना
उपागमः —पुं॰—-—उप+आ+गम्+अप्—घटित होना
उपागमः —पुं॰—-—उप+आ+गम्+अप्—प्रतिज्ञा, करार
उपागमः —पुं॰—-—उप+आ+गम्+अप्—स्वीकृति
उपाग्रम् —नपुं॰—-—-—चोटी या किनारे के निकट का भाग
उपाग्रम् —नपुं॰—-—-—गौण अंग
उपाग्रहणम् —नपुं॰—‘—उप+आ+ग्रह्+ल्युट्—दीक्षित होकर वेदाध्ययन करना
उपाङ्गम् —नपुं॰—-—-—उपभाग, उपशीर्षक
उपाङ्गम् —नपुं॰—-—-—कोई छोटा अंग या अवयव
उपाङ्गम् —नपुं॰—-—-—परिशिष्ट का पूरक
उपाङ्गम् —नपुं॰—-—-—घटिया प्रकार का अतिरिक्त कार्य
उपाङ्गम् —नपुं॰—-—-—विज्ञान का गौण भाग - वेदांगों के परिशिष्ट स्वरूप लिखा गया ग्रन्थ समूह
उपचारः —पुं॰—-—उप+आ-चर+घञ्—स्थान
उपचारः —पुं॰—-—उप+आ-चर+घञ्—कार्यविधि
उपाजे —अव्य॰—-—-—सहारा देना
उपाञ्जनम् —नपुं॰—-—उप+अञ्ज्+ल्युट्—मलना, लीपना, पोतना
उपात्ययः —पुं॰—-—उप+अति+इ+अच्—उल्लंघन करना, विचलन
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—लेना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना, अवाप्त करना
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—उल्लेख, वर्णन
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—समावेश, मिलाना
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—सांसारिक पदार्थों से अपनी ज्ञानेन्द्रियों व मन को हटाना
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—कारण, प्रयोजन, प्राकृतिक या तात्कालिक कारण
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—सामग्री जिनसे कोई वस्तु बने, भौतिक कारण
उपादानम् —नपुं॰—-—उप+आ+दा+ल्युट्—अभिव्यंजना की एक रीति जिसमें अपने वास्तविक अर्थ को प्रकट करने के अतिरिक्त न्यूनपद की पूर्ति भी अध्याहार द्वारा कर ली जाती है
उपादानकारणम् —नपुं॰—उपादानम्-कारणम्—-—भौतिक कारण
उपादानलक्षणा —नपुं॰—उपादानम्-लक्षणा—-—अजहत्स्वार्था
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—जालसाजी, धोखा, दाँव
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—प्रवंचना, छद्मवेष धारण करना
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—विवेचक या विभेदक गुण, विशेषण, विशेषता
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—पद, उपनाम
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—सीमा, अवस्था
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—प्रयोजन, संयोगम्, अभिप्राय
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—किसी सामान्य बात का विशेष कारण
उपाधिः —पुं॰—-—उप+आ+धा+कि—जो व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सावधान है
उपाधिक —वि॰,अत्या॰ स॰—-—-—अधिक, अधिसंख्य, अतिरिक्त
उपाध्यायः —पुं॰—-—उपेत्याधीयते अस्मात् - उप+अधि+इ+घञ्—अध्यापक, गुरु
उपाध्यायः —पुं॰—-—उपेत्याधीयते अस्मात् - उप+अधि+इ+घञ्—विशेषतः अध्यात्मगुरु, धर्मशिक्षक
उपाध्याया —स्त्री॰—-—-—स्त्री अध्यापिका
उपाध्यायी —स्त्री॰—-—-—अध्यापिका
उपाध्यायी —स्त्री॰—-—-—गुरुपत्नी
उपाध्यायानी —स्त्री॰—-—उपाध्याय+ङीष्, आनुक्—गुरुपत्नी
उपानह् —स्त्री॰—-—उप+नह्+क्विप् उपसर्गदीर्घः—चप्पल, जूता
उपान्तः —पुं॰—-—-—किनारी, छोर, गोट, पल्ला, सिरा
उपान्तः —पुं॰—-—-—आँख की कोर
उपान्तः —पुं॰—-—-—अव्यवहित सान्निध्य, पड़ौस
उपान्तः —पुं॰—-—-—पार्श्वभाग, नितम्ब
उपान्तिक —वि॰—-—-—निकटस्थ, समीपी, पड़ौसी
उपान्तिकम् —नपुं॰—-—-—पड़ौस, सामीप्य
उपान्त्य —वि॰—-—उपान्त+यत्—अन्तिम से पूर्व का
उपान्त्यः —पुं॰—-—उपान्त+यत्—आँख की कोर
उपान्त्यम् —नपुं॰—-—उपान्त+यत्—पड़ौस
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—साधन, तरकीब, युक्ति
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—पद्धति, रीति, कूटचाल
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—आरम्भ, उपक्रम
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—प्रयत्न, चेष्टा
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—शत्रु पर विजय पाने का साधन
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—सम्मिलित होना
उपायः —पुं॰—-—उप+इ+घञ्—पहुँचना
उपायचतुष्टयम् —नपुं॰—उपायः-चतुष्टयम्—-—शत्रु के विरुद्ध की जाने वाली चार तरकीबें
उपायज्ञ —वि॰—उपायः-ज्ञ—-—तरकीब निकालने में चतुर
उपायतुरीयः —पुं॰—उपायः-तुरीयः—-—चौथी तरकीब अर्थात् दंड
उपाययोगः —पुं॰—उपायः-योगः—-—साधन या युक्ति का प्रयोग
उपायनम् —नपुं॰—-—उप+अय्+ल्युट्—निकट जाना, पहुँचना
उपायनम् —नपुं॰—-—उप+अय्+ल्युट्—शिष्य बनना
उपायनम् —नपुं॰—-—उप+अय्+ल्युट्—किसी धार्मिक संस्कार में व्यस्त रहना
उपायनम् —नपुं॰—-—उप+अय्+ल्युट्—उपहार, भेंट
उपारम्भः —पुं॰—-—उप+आ+रभ्+घञ्, नुम्—आरंभ, उपक्रम, शुरू
उपार्जनम् —नपुं॰—-—उप+अर्ज्+ल्युट्, युच् वा—कमाना, लाभ उठाना
उपार्जना —स्त्री॰—-—उप+अर्ज्+ल्युट्, युच् वा—कमाना, लाभ उठाना
उपार्थ —वि॰,ब॰ स॰—-—-—थोड़े मूल्य का
उपालम्भः —पुं॰—-—उप+आ+लभ्+घञ्, नुम्—दुर्वचन, उलाहना, निन्दा
उपालम्भः —पुं॰—-—उप+आ+लभ्+घञ्, नुम्—विलंब करना, स्थगित करना
उपालम्भनम् —नपुं॰—-—उप+आ+लभ्+नुम्, ल्युट् —दुर्वचन, उलाहना, निन्दा
उपालम्भनम् —नपुं॰—-—उप+आ+लभ्+नुम्, ल्युट् —विलंब करना, स्थगित करना
उपावर्तनम् —नपुं॰—-—उप+आ+वृत्+ल्युट्—वापिस आना या मुड़ना, लौटना
उपावर्तनम् —नपुं॰—-—उप+आ+वृत्+ल्युट्—घूमना, चक्कर काटना
उपावर्तनम् —नपुं॰—-—उप+आ+वृत्+ल्युट्—पहुँचना
उपाश्रयः —पुं॰—-—उप+आ+श्रि+अच्—अवलंब, आश्रय, सहारा
उपाश्रयः —पुं॰—-—उप+आ+श्रि+अच्—पात्र, पाने वाला
उपाश्रयः —पुं॰—-—उप+आ+श्रि+अच्—भरोसा, निर्भर रहना
उपासकः —पुं॰—-—उप+आस्+ण्वुल्—सेवा में उपस्थित, पूजा करने वाला
उपासकः —पुं॰—-—उप+आस्+ण्वुल्—सेवक, अनुचर
उपासकः —पुं॰—-—उप+आस्+ण्वुल्—शूद्र, निम्न-जाति का व्यक्ति
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—सेवा, हाजरी, सेवा में उपस्थित रहना
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—व्यस्त, तुला हुआ, जुटा हुआ
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—पूजा, आदर
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—अराधना, शराभ्यास
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—धार्मिक मनन
उपासनम् —नपुं॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—यज्ञाग्नि
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—सेवा, हाजरी, सेवा में उपस्थित रहना
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—व्यस्त, तुला हुआ, जुटा हुआ
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—पूजा, आदर
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—अराधना, शराभ्यास
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—धार्मिक मनन
उपासना —स्त्री॰—-—उप+आस्+ल्युट्, युच् वा—यज्ञाग्नि
उपासा —स्त्री॰—-—उप+आस्+अ+टाप्—सेवा, हाजरी
उपासा —स्त्री॰—-—उप+आस्+अ+टाप्—पूजा, अराधना
उपासा —स्त्री॰—-—उप+आस्+अ+टाप्—धार्मिक मनन
उपास्तमनम् —नपुं॰—-—-—सूर्य छिपना
उपास्तिः —स्त्री॰—-—उप+आस्+क्तिन्—सेवा, सेवा में उपस्थित रहना
उपास्तिः —स्त्री॰—-—उप+आस्+क्तिन्—पूजा, आराधना
उपास्त्रम् —नपुं॰—-—-—गौण या छोटा हथियार
उपाहारः —पुं॰—-—-—हल्का जलपान
उपाहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+आ+धा+क्त—रक्खा गया, जमा किया गया, पहना गया आदि
उपाहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+आ+धा+क्त—संबद्ध, सम्मिलित
उपाहितः —पुं॰—-—उप+आ+धा+क्त—आग से भय, या आग से होने वाला विनाश
उपेक्षणम् —नपुं॰—-—-—उपेक्षा
उपेक्षा —स्त्री॰—-—उप+ईक्ष्+अ+टाप्—नजर-अंदाज करना, लापरवाही बरतना, अवहेलना करना
उपेक्षा —स्त्री॰—-—उप+ईक्ष्+अ+टाप्—उदासीनता, घृणा, नफरत
उपेक्षा —स्त्री॰—-—उप+ईक्ष्+अ+टाप्—छोड़ना, छुटकारा देना
उपेक्षा —स्त्री॰—-—उप+ईक्ष्+अ+टाप्—अवहेलना, दांव पेंच, मक्कारी
उपेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप - इ+क्त—समीप आया हुआ, पहुँचा हुआ
उपेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप - इ+क्त—उपस्थित
उपेत —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप - इ+क्त—युक्त, सहित
उपेन्द्रः —पुं॰—-—उपगत इन्द्रम् - अनुजत्वात्—विष्णु या कृष्ण
उपेयः —सं॰ कृ॰—-—उप+इ+यत्—पहुँचने के योग्य
उपेयः —सं॰ कृ॰—-—उप+इ+यत्—प्राप्त कर लेने के योग्य
उपेयः —सं॰ कृ॰—-—उप+इ+यत्—किसी भी साधन से प्रभावित होने के योग्य
उपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+वह्+क्त—संचित, एकत्र किया हुआ, जमा किया हुआ
उपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+वह्+क्त—निकट लाया हुआ, निकटस्थ
उपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+वह्+क्त—युद्ध के लिए पंक्तिबद्ध
उपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+वह्+क्त—आरब्ध
उपोढ —भू॰ क॰ कृ॰—-—उप+वह्+क्त—विवाहित
उपोत्तम —वि॰, अत्या॰ स॰—-—-—अन्तिम से पूर्व का
उपोत्तमम् —नपुं॰—-—-—अन्तिम अक्षर से पूर्व का अक्षर
उपोद्घातः —पुं॰—-—उप+उद्+हन्+घञ्—आरम्भ
उपोद्घातः —पुं॰—-—उप+उद्+हन्+घञ्—प्रस्तावना, भूमिका
उपोद्घातः —पुं॰—-—उप+उद्+हन्+घञ्—उदाहरण, समुपयुक्त तर्क या दृष्टान्त
उपोद्घातः —पुं॰—-—उप+उद्+हन्+घञ्—सुयोग, माध्यम, साधन
उपोद्घातः —पुं॰—-—उप+उद्+हन्+घञ्—विश्लेषण, किसी वस्तु के तत्त्वों का निश्चय करना
उपोद्बलक —वि॰—-—उप+उद्+बल्+ण्वुल्—पुष्ट करने वाला
उपोद्बलनम् —नपुं॰—-—उप+उद्+बल्+ल्युट्—पुष्ट करना, समर्थन करना
उपोषणम् —नपुं॰—-—उप+वस्+ल्युट्, क्त वा—उपवास रखना, व्रत
उपोषितम् —नपुं॰—-—उप+वस्+ल्युट्, क्त वा—उपवास रखना, व्रत
उप्तिः —स्त्री॰—-—वप्+क्तिन्—बीज बोना
उब्ज् —तुदा॰ पर॰, <उब्जति>, उब्जित>—-—-—भींचना, दबाना
उब्ज् —तुदा॰ पर॰, <उब्जति>, उब्जित>—-—-—सीधा करना
उभ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उभति>, <उभ्नाति>—-—-—संसीमित करना
उभ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उभति>, <उभ्नाति>—-—-—संक्षिप्त करना
उभ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उभति>, <उभ्नाति>—-—-—भरना
उभ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उभति>, <उभ्नाति>—-—-—आच्छादित करना, ऊपर बिछाना
उम्भ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उम्भति>, <उम्भित>—-—-—संसीमित करना
उम्भ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उम्भति>, <उम्भित>—-—-—संक्षिप्त करना
उम्भ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उम्भति>, <उम्भित>—-—-—भरना
उम्भ् —तुदा॰ क्रया॰ पर॰, <उम्भति>, <उम्भित>—-—-—आच्छादित करना, ऊपर बिछाना
उभ —सर्व॰ वि॰—-—उ+भक्—दोनों
उभय —सर्व॰ वि॰—-—उभ्+अयट्—दोनों
उभयचर —वि॰—उभय-चर—-—जल, स्थल या आकाश में विचरण करने वाला, जल स्थल चारी
उभयविद्या —स्त्री॰—उभय-विद्या—-—दो प्रकार की विद्याएँ, परा और अपरा, अर्थात् अध्यात्म विद्या और लौकिक ज्ञान
उभयविध —वि॰—उभय-विध—-—दोनों प्रकार का
उभयवेतन —वि॰—उभय-वेतन—-—दोनों स्थानों से वेतन ग्रहण करने वाला, दो स्वामियों का सेवक, विश्वासघाती
उभयव्यञ्जन —वि॰—उभय-व्यञ्जन—-—दोनों के चिह्न रखने वाला
उभयसम्भवः —पुं॰—उभय-सम्भवः—-—उभयापत्ति, दुविधा
उभयतः —अव्य॰—-—उभय+तसिल्—दोनों ओर से, दोनों ओर
उभयतः —अव्य॰—-—उभय+तसिल्—दोनो दशाओं में
उभयतः —अव्य॰—-—उभय+तसिल्—दोनों रीतियों से
उभयतदत् —वि॰—उभयतः-दत्—-—दोनों ओर, दांतों की पंक्ति वाला
उभयदन्तः —वि॰—उभयतः-दन्तः—-—दोनों ओर, दांतों की पंक्ति वाला
उभयतमुख —वि॰—उभयतः-मुख—-—दोनों ओर देखने वाला
उभयतमुख —वि॰—उभयतः-मुख—-—दुमुंहा
उभयतमुखी —स्त्री॰—उभयतः-खी—-—ब्याती हुई गाय
उभयत्र —अव्य॰—-—उभय+त्रल्—दोनों स्थानों पर
उभयत्र —अव्य॰—-—उभय+त्रल्—दोनों ओर
उभयत्र —अव्य॰—-—उभय+त्रल्—दोनों अवस्थाओं में
उभयथा —अव्य॰—-—उभय+थाल्—दोनों रीतियों से
उभयथा —अव्य॰—-—उभय+थाल्—दोनों दशाओं में
उभयद्युः —अव्य॰—-—उभय+द्युस्, एद्युस् वा—दोनों दिन
उभयद्युः —अव्य॰—-—उभय+द्युस्, एद्युस् वा—आगामी दोनों दिन
उभयेद्युः —अव्य॰—-—उभय+द्युस्, एद्युस् वा—दोनों दिन
उभयेद्युः —अव्य॰—-—उभय+द्युस्, एद्युस् वा—आगामी दोनों दिन
उम् —अव्य॰—-—उम्+डुम्—क्रोध
उम् —अव्य॰—-—उम्+डुम्—प्रश्नवाचकता
उम् —अव्य॰—-—उम्+डुम्—प्रतिज्ञा या स्वीकृति
उम् —अव्य॰—-—उम्+डुम्—सौजन्य या सान्त्वना को प्रकट करने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—हिमवान् और मेना की पुत्री, शिव की पत्नी, कालिदास नाम की व्युत्पत्ति इस प्रकार करता है - उ मेति
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—प्रकाश, आभा
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—यश, ख्याति
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—शान्ति, प्रशान्तता
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—रात
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—हल्दी
उमा —स्त्री॰—-—ओः शिवस्य मा लक्ष्मीरिव, उं शिवं माति मन्यते पतित्वेन मा + क वा तारा॰—सन
उमागुरुः —पुं॰—उमा-गुरुः—-—हिमालय पर्वत
उमाजनकः —पुं॰—उमा-जनकः—-—हिमालय पर्वत
उमापतिः —पुं॰—उमा-पतिः—-—शिव
उमासुतः —पुं॰—उमा-सुतः—-—कार्तिकेय या गणेश
उम्बरः —पुं॰—-—उम्+वृ+अच् पृषो॰—तरंगा, द्वार की चौखट की ऊपर वाली लकड़ी
उम्बुरः —पुं॰—-—उम्+वृ+अच् पृषो॰—तरंगा, द्वार की चौखट की ऊपर वाली लकड़ी
उरगः —पुं॰—-—उरसा गच्छति, उरस्+गम्+ड, सलोपश्च—सर्प, साँप
उरगः —पुं॰—-—उरसा गच्छति, उरस्+गम्+ड, सलोपश्च—नाग या पुराणों में वर्णित मानव मुख वाला अर्धदिव्य साँप
उरगः —पुं॰—-—उरसा गच्छति, उरस्+गम्+ड, सलोपश्च—सीसा
उरगा —स्त्री॰—-—-—एक नगर का नाम
उरगारिः —पुं॰—उरगः-अरिः—-—गरुड़
उरगारिः —पुं॰—उरगः-अरिः—-—मोर
उरगाशनः —पुं॰—उरगः-अशनः—-—गरुड़
उरगाशनः —पुं॰—उरगः-अशनः—-—मोर
उरगशत्रुः —पुं॰—उरगः-शत्रुः—-—गरुड़
उरगशत्रुः —पुं॰—उरगः-शत्रुः—-—मोर
उरगेन्द्रः —पुं॰—उरगः-इन्द्रः—-—वासुकि या शेषनाग
उरगराजः —पुं॰—उरगः-राजः—-—वासुकि या शेषनाग
उरगप्रतिसर —वि॰—उरगः-प्रतिसर—-—विवाह-मुद्रिका के स्थान में साँप रखने वाला
उरगभूषणः —पुं॰—उरगः-भूषणः—-—शिव
उरगसारचन्दनः —पुं॰—उरगः-सारचन्दनः—-—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
उरगसारचन्दनम् —नपुं॰—उरगः-सारचन्दनम्—-—एक प्रकार की चन्दन की लकड़ी
उरगस्थानम् —नपुं॰—उरगः-स्थानम्—-—नागों का आवासस्थान अर्थात् पाताल
उरङ्गः —पुं॰—-—उर्स्+गम्+खच्, सलोपः, मुमागमश्च—साँप
उरङ्गमः —पुं॰—-—उर्स्+गम्+खच्, सलोपः, मुमागमश्च—साँप
उरणः —पुं॰—-—ऋ+क्यु, उत्वं, रपरश्च—भेंड़ा, भेंड़
उरणः —पुं॰—-—-—एक राक्षस जिसे इन्द्र ने मार दिया था
उरणकः —पुं॰—-—उरण+कन्—भेंड़ा, मेष
उरणकः —पुं॰—-—उरण+कन्—बादल
उरभ्रः —पुं॰—-—उरु उत्कटं भ्रमति इति - उरु+भ्रम्+श पृषो उलोपः—भेंड़, मेष
उररी —अव्य॰—-—उर्+अरीक् बा॰—सहमति या स्वीकृति बोधक अव्यय
उररी —अव्य॰—-—उर्+अरीक् बा॰—विस्तार
उररीकृ —तना॰ उभ॰—-—-—सहमति देना, अनुमति देना, स्वीकार करना
उरस् —नपुं॰—-—ऋ+असुन्, उत्वं रपरश्च—छाती, वक्षःस्थल
उरःक्षतम् —नपुं॰—उरस्-क्षतम्—-—छाती की चोट
उरोग्रहः —पुं॰—उरस्-ग्रहः—-—छाती का रोग, फेफड़े की झिल्ली की सूजन, प्लूरिसी
उरोघातः —पुं॰—उरस्-घातः—-—छाती का रोग, फेफड़े की झिल्ली की सूजन, प्लूरिसी
उरश्छदः —पुं॰—उरस्-छदः—-—चोली, अँगिया
उरस्त्राणम् —नपुं॰—उरस्-त्राणम्—-—कवच, सीनाबन्द
उरोजः —पुं॰—उरस्-जः—-—स्त्री की छाती, स्तन
उरोभूः —पुं॰—उरस्-भूः—-—स्त्री की छाती, स्तन
उर उरसिजः —पुं॰—उरस्-उरसिजः—-—स्त्री की छाती, स्तन
उर उरसिरुहः —पुं॰—उरस्-उरसिरुहः—-—स्त्री की छाती, स्तन
उरोभूषणम् —नपुं॰—उरस्-भूषणम्—-—छाती का आभूषण
उरःसूत्रिका —स्त्री॰—उरस्-सूत्रिका—-—मोतियों का हार जो छाती के ऊपर लटक रहा हो
उरःस्थलम् —नपुं॰—उरस्-स्थलम्—-—छाती, वक्षःस्थल
उरसिल —वि॰—-—उरस्+इलच्—विशाल वक्षःस्थल वाला
उरस्य —वि॰—-—उरस्+यत्—औरस सन्तान
उरस्य —वि॰—-—उरस्+यत्—एक ही वर्ण के विवाहित दम्पती का पुत्र या पुत्री
उरस्य —वि॰—-—उरस्+यत्—उत्तम
उरस्वत् —वि॰—-—उरस्+मतुप्, मस्य वः—विशाल वक्षःस्थल वाला, चौड़ी छाती वाला
उरी —अव्य॰—-—-—स्वीकृतिबोधक अव्यय
उरीकृ ——-—-—अनुमति देना, अनुज्ञा देना, स्वीकृति देना
उरीकृ ——-—-—अनुसरण करना, आश्रय लेना
उरु —वि॰—-—-—विस्तृत, प्रशस्त
उरु —वि॰—-—-—अतिशय, अधिक, प्रचुर
उरु —वि॰—-—-—श्रेष्ठ, मूल्यवान, कीमती
उरुकीर्ति —वि॰—उरु-कीर्ति—-—प्रख्यात, सुविख्यात
उरुक्रमः —पुं॰—उरु-क्रमः—-—वामनावतार के रूप में विष्णु भगवान
उरुगाय —वि॰—उरु-गाय—-—उत्तम व्यक्तियों द्वारा जिसका स्तुतिगान किया गया हो
उरुमार्गः —पुं॰—उरु-मार्गः—-—लंबी सड़क
विक्रमोरु —वि॰—उरु-विक्रम॰—-—पराक्रमी, बलशाली
उरुस्वन —वि॰—उरु-स्वन—-—ऊँची आवाज वाला, अत्युच्च शब्दकारी
उरुहारः —पुं॰—उरु-हारः—-—मूल्यवान हार
उर्णनाभः —पुं॰—-—उर्णेव सूत्रं नाभौ गर्भेऽस्य - ब॰ स॰—मकड़ी,
उर्णा —स्त्री॰—-—उर्णु+ड ह्रस्वः—ऊन, नमदा या ऊनी कपड़ा
उर्णा —स्त्री॰—-—उर्णु+ड ह्रस्वः—भौवों के बीच केशवृत्त
उर्वटः —पुं॰—-—उरु+अट्+अच्—बछड़ा
उर्वटः —पुं॰—-—उरु+अट्+अच्—वर्ष
उर्वरा —स्त्री॰—-—उरु शस्यादिकमृच्छ्ति - ऋ+अच्—उपजाऊ भूमि
उर्वरा —स्त्री॰—-—उरु शस्यादिकमृच्छ्ति - ऋ+अच्—भूमि
उर्वशी —स्त्री॰—-—उरुन् महतोऽपि अश्नुते वशीकरोति - उरु+अश्+क गौरा॰ ङीष् - तारा॰—इन्द्रलोक की एक प्रसिद्ध अप्सरा जो पुरूरवा की पत्नी बनी
उर्वशीरमण —पुं॰—उर्वशी-रमण—-—पुरूरवा
उर्वशीवल्लभः —पुं॰—उर्वशी-वल्लभः—-—पुरूरवा
उर्वशीसहायः —पुं॰—उर्वशी-सहायः—-—पुरूरवा
उर्वारुः —पुं॰—-—उरु+ऋ+उण्—एक प्रकार की ककड़ी
उर्वी —स्त्री॰—-—उर्णु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, ङीष्—विस्तृत प्रदेश, भूमि
उर्वी —स्त्री॰—-—उर्णु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, ङीष्—पृथ्वी, धरती
उर्वी —स्त्री॰—-—उर्णु+कु, नलोपः, ह्रस्वः, ङीष्—खुली जगह, मैदान
उर्वीशः —पुं॰—उर्वी-ईशः—-—राजा
उर्वीश्वरः —पुं॰—उर्वी-ईश्वरः—-—राजा
उर्वीधवः —पुं॰—उर्वी-धवः—-—राजा
उर्वीपतिः —पुं॰—उर्वी-पतिः—-—राजा
उर्वीधरः —पुं॰—उर्वी-धरः—-—पहाड़
उर्वीधरः —पुं॰—उर्वी-धरः—-—शेषनाग
उर्वीभृत् —पुं॰—उर्वी-भृत्—-—राजा
उर्वीभृत् —पुं॰—उर्वी-भृत्—-—पहाड़
उर्वीरुहः —पुं॰—उर्वी-रुहः—-—वृक्ष
उलपः —पुं॰—-—वल्+कपच्, संप्रसारण—लता, बेल
उलपः —पुं॰—-—वल्+कपच्, संप्रसारण—कोमल तृण
उलूप —पुं॰—-—वल्+कपच्, संप्रसारण—लता, बेल
उलूप —पुं॰—-—वल्+कपच्, संप्रसारण—कोमल तृण
उलूकः —पुं॰—-—वल्+ऊक् संप्रसारण—उल्लू
उलूकः —पुं॰—-—वल्+ऊक् संप्रसारण—इन्द्र
उलूखलम् —नपुं॰—-—ऊर्ध्वं खम् उलूखम्, पृषो॰ ला+क—ओखली
उलूखलिक —वि॰—-—उलूखल+ठन्—खरल में पीसा हुआ
उलूतः —पुं॰—-—उल्+ऊतज्—अजगर, शिकार को दबोच कर मारने वाला विषहीन सर्प
उलूपी —स्त्री॰—-—-—नाग कन्या
उल्का —स्त्री॰—-—उष्+कक्+टाप्, षस्य लः—आकाश में रहने वाला दाहक तत्त्व, लूक
उल्का —स्त्री॰—-—उष्+कक्+टाप्, षस्य लः—जलती हुई लकड़ी, मसाल
उल्का —स्त्री॰—-—उष्+कक्+टाप्, षस्य लः—अग्नि, ज्वाला
उल्काधारिन् —वि॰—उल्का-धारिन्—-—मशालची
उल्कापातः —पुं॰—उल्का-पातः—-—उल्कापिंड का टूट कर गिरना
उल्कामुखः —पुं॰—उल्का-मुखः—-—एक राक्षस या प्रेत
उल्कुषी —स्त्री॰—-—उल्+कुष्+क+ङिष्—केतु, उल्का
उल्कुषी —स्त्री॰—-—उल्+कुष्+क+ङिष्—मशाल
उल्बम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—भ्रूण
उल्बम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—योनि
उल्बम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—गर्भाशय
उल्बण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—गाढ़ा, जमा हुआ, पर्याप्त, प्रचुर
उल्बण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—अधिक, अतिशय, तीव्र
उल्बण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—दृढ़, बलशाली, बड़ा
उल्बण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—स्पष्ट, साफ
उल्मुकः —पुं॰—-—उष्+मुक्, षस्य लः—जलती लकड़ी, मशाल
उल्लङ्घनम् —नपुं॰—-—उद्+लङ्घ्+ल्युट्—छ्लांग लगाना, लांघना
उल्लङ्घनम् —नपुं॰—-—उद्+लङ्घ्+ल्युट्—अतिक्रमण, तोड़ना
उल्लल —वि॰—-—उद्+लल्+अच्—डांवाडोल, कंपनशील
उल्लल —वि॰—-—उद्+लल्+अच्—घने बालों वाला, लोमश
उल्लसनम् —नपुं॰—-—उद्+लस्+ल्युट्—आनन्द, हर्ष
उल्लसनम् —नपुं॰—-—उद्+लस्+ल्युट्—रोमांच
उल्लसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+लस्+क्त—चमकीला, उज्ज्वल, आभायुक्त
उल्लसित —भू॰ क॰ कृ॰—-—उद्+लस्+क्त—आनन्दित, प्रसन्न
उल्लाघ —वि॰—-—उद्+लाघ्+क्त—रोग से मक्त, स्वास्थ्योन्मुख
उल्लाघ —वि॰—-—उद्+लाघ्+क्त—दक्ष, चतुर, कुशल
उल्लाघ —वि॰—-—उद्+लाघ्+क्त—पवित्र
उल्लाघ —वि॰—-—उद्+लाघ्+क्त—आनन्दित, प्रसन्न
उल्लापः —पुं॰—-—उद्+लप्+घञ्—भाषण, शब्द
उल्लापः —पुं॰—-—उद्+लप्+घञ्—अपमानजनक शब्द, सोपालंभ भाषण, उपालंभ
उल्लापः —पुं॰—-—उद्+लप्+घञ्—ऊँची आवाज से पुकारना
उल्लापः —पुं॰—-—उद्+लप्+घञ्—संवेग या रोग आदि के कारण आवाज में परिवर्तन
उल्लापः —पुं॰—-—उद्+लप्+घञ्—संकेत , सुझाव
उल्लाप्यम् —नपुं॰—-—उद्+लप्+णिच्+यत्—एक प्रकार का नाटक
उल्लासः —पुं॰—-—उद्+लस्+घञ्—हर्ष, खुशी
उल्लासः —पुं॰—-—उद्+लस्+घञ्—प्रकाश, आभा
उल्लासः —पुं॰—-—उद्+लस्+घञ्—एक अलंकार
उल्लासः —पुं॰—-—उद्+लस्+घञ्—पुस्तक के प्रभाग अध्याय, अनुभाग, पर्व, कांड आदि
उल्लासनम् —नपुं॰—-—उद्+लस्+णिच्+ल्युट्—आभा
उल्लिङ्गित —वि॰—-—उद्+लिंग+क्त—प्रसिद्ध, विख्यात
उल्लीढ —वि॰—-—उद्+लिह्+क्त—रगड़ा हुआ, जिला किया गया
उल्लुञ्चनम् —नपुं॰—-—उद्+लुञ्च्+ल्युट्—तोड़ना, काटना
उल्लुञ्चनम् —नपुं॰—-—उद्+लुञ्च्+ल्युट्—बालों को नोचना, उखाड़ना
उल्लुण्ठनम् —नपुं॰—-—उद्+लुण्ठ्+ल्युट्, अ वा—व्यंग्योक्ति
उल्लुण्ठा —स्त्री॰—-—उद्+लुण्ठ्+ल्युट्, अ वा—व्यंग्योक्ति
उल्लेखः —पुं॰—-—उद्+लिख्+घञ्—संकेत, जिक्र
उल्लेखः —पुं॰—-—उद्+लिख्+घञ्—वर्णन, उक्ति
उल्लेखः —पुं॰—-—उद्+लिख्+घञ्—सूराख करना, खुदाई
उल्लेखः —पुं॰—-—उद्+लिख्+घञ्—एक अलंकार
उल्लेखः —पुं॰—-—उद्+लिख्+घञ्—रगड़ना, खुरचना, फाड़ना
उल्लेखनम् —नपुं॰—-—उद्+लख्+ल्युट्—रगड़ना, खुरचना, छीलना आदि
उल्लेखनम् —नपुं॰—-—उद्+लख्+ल्युट्—खोदना
उल्लेखनम् —नपुं॰—-—उद्+लख्+ल्युट्—वमन करना
उल्लेखनम् —नपुं॰—-—उद्+लख्+ल्युट्—जिक्र, संकेत
उल्लेखनम् —नपुं॰—-—उद्+लख्+ल्युट्—लेख, चित्रण
उल्लोचः —पुं॰—-—उद्+लोच्+घञ्—वितान या शामियाना, चंदोआ, तिरपाल
उल्लोल —वि॰—-—उद्+लोड्+घञ्, डस्य लत्वम्—अति चंचल, अत्यन्त कंपनशील
उल्लोलः —पुं॰—-—उद्+लोड्+घञ्, डस्य लत्वम्—एक बड़ी लहर या तरंग
उल्वम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—भ्रूण
उल्वम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—योनि
उल्वम् —नपुं॰—-—उच+ब(व) न्, चस्य लत्वम्—गर्भाशय
उल्वण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—गाढ़ा, जमा हुआ, पर्याप्त, प्रचुर
उल्वण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—अधिक, अतिशय, तीव्र
उल्वण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—दृढ़, बलशाली, बड़ा
उल्वण —वि॰—-—उत्+ब (व) ण्+अच् पृषो—स्पष्ट, साफ
उशनस् —पुं॰—-—वश्+कनसि - संप्र॰—शुक्र-ग्रह का अधिष्ठातृ देवता, भृगु का पुत्र, राक्षसों का गुरु, वेद में इनका नाम 'काव्य' संभवतः इनकी बुद्धिमत्ता की ख्याति के कारण मिलता है
उशी —पुं॰—-—वस्+ई, संप्र॰—कामना, इच्छा
उशीरः —पुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उशीरम् —नपुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उषीरः —पुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उषीरम् —नपुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उशीरकम् —नपुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उषीरकम् —नपुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उष् —भ्वा॰ पर॰, <ओषित>,< ओषित-उषित-उष्ट>—-—-—जलाना, उपभोग करना, खपाना
उष् —भ्वा॰ पर॰, <ओषित>,< ओषित-उषित-उष्ट>—-—-—दण्ड देना, पीटना
उष् —भ्वा॰ पर॰, <ओषित>,< ओषित-उषित-उष्ट>—-—-—मार डालना, चोट पहुँचाना
उषः —पुं॰—-—उष्+क—प्रभात काल, पौ फटना
उषः —पुं॰—-—उष्+क—रिहाली धरती
उषणम् —नपुं॰—-—उष्+ल्युट्—काली मिर्च
उषणम् —नपुं॰—-—उष्+ल्युट्—अदरक
उषपः —पुं॰—-—उष्+कपन्—अग्नि
उषपः —पुं॰—-—उष्+कपन्—सूर्य
उषस् —स्त्री॰—-—उष्+असि—पौ फटना, प्रभात
उषस् —स्त्री॰—-—उष्+असि—प्रातः कालीन प्रकाश
उषस् —स्त्री॰—-—उष्+असि—सांध्यकालीन अधिष्ठातृदेवी
उषसी —स्त्री॰—-—उष्+असि—दिन का अवसान, सायंकालीन संध्या
उषोबुधः —पुं॰—उषस्-बुधः—-—अग्नि
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—प्रभात काल, पौ फटना
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—प्रातः कालीन प्रकाश
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—संध्या
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—रिहाली धरती
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—डेगची, बटलोही
उषा —स्त्री॰—-—ओषत्यन्धकारम् - उष्+क—बाण राक्षस की पुत्री तथा अनिरुद्ध की पत्नी
उषेशः —पुं॰—उषा-ईशः—-—उषा का स्वामी अनिरुद्ध
उषाकालः —पुं॰—उषा-कालः—-—मुर्गा
उषापतिः —पुं॰—उषा-पतिः—-—अनिरुद्ध, उषा का पति
उषारमणः —पुं॰—उषा-रमणः—-—अनिरुद्ध, उषा का पति
उषित —वि॰—-—वस् (उष्)+क्त—बसा हुआ
उषित —वि॰—-—वस् (उष्)+क्त—जला हुआ
उषीर —पुं॰—-—वस्+ईरन्, कित्, सम्प्र॰, उष्+कीरच् वा, स्वार्थे कन् च—वीरणमूल, खस
उष्ट्रः —पुं॰—-—उष्+ष्ट्रन्, कित्—ऊँट
उष्ट्रः —पुं॰—-—उष्+ष्ट्रन्, कित्—भैंसा
उष्ट्रः —पुं॰—-—उष्+ष्ट्रन्, कित्—ककुद्मान् साँड
उष्ट्री —स्त्री॰—-—-—ऊँटनी
उष्ट्रिका —स्त्री॰—-—उष्ट्र्+कन्+टाप्, इत्वम्—ऊँटनी
उष्ट्रिका —स्त्री॰—-—उष्ट्र्+कन्+टाप्, इत्वम्—ऊँट की शक्ल की मिट्टी की बनी मदिरा रखने की सुराही
उष्ण —वि॰—-—उष्+नक्—तप्त, गर्म
उष्ण —वि॰—-—उष्+नक्—तीक्ष्ण, स्थिर, फुर्तीला
उष्ण —वि॰—-—उष्+नक्—रिक्त, तीखा, चरपरा
उष्ण —वि॰—-—उष्+नक्—चतुर, प्रवीण
उष्ण —वि॰—-—उष्+नक्—क्रोधी
उष्णः —पुं॰—-—उष्+नक्—ताप, गर्मी
उष्णः —पुं॰—-—उष्+नक्—ग्रीष्म ऋतु
उष्णम् —नपुं॰—-—उष्+नक्—ताप, गर्मी
उष्णम् —नपुं॰—-—उष्+नक्—ग्रीष्म ऋतु
उष्णम् —नपुं॰—-—उष्+नक्—धूप
उष्णांशुः —पुं॰—उष्ण-अंशुः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णकरः —पुं॰—उष्ण-करः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णगुः —पुं॰—उष्ण-गुः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णदीधितिः —पुं॰—उष्ण-दीधितिः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णरश्मिः —पुं॰—उष्ण-रश्मिः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णरुचिः —पुं॰—उष्ण-रुचिः—-—गर्म किरणों वाला, सूर्य
उष्णाधिगमः —पुं॰—उष्ण-अधिगमः—-—गर्मी का निकट आना, ग्रीष्म ऋतु
उष्णागमः —पुं॰—उष्ण-आगमः—-—गर्मी का निकट आना, ग्रीष्म ऋतु
उष्णोपगमः —पुं॰—उष्ण-उपगमः—-—गर्मी का निकट आना, ग्रीष्म ऋतु
उष्णोदकम् —पुं॰—उष्ण-उदकम्—-—गर्म या तप्त पानी
उष्णकालः —पुं॰—उष्ण-कालः—-—गर्म ऋतु
उष्णगः —पुं॰—उष्ण-गः—-—गर्म ऋतु
उष्णवाष्पः —पुं॰—उष्ण-वाष्पः—-—आँसू
उष्णवाष्पः —पुं॰—उष्ण-वाष्पः—-—गर्म भाप
उष्णवारणः —पुं॰—उष्ण-वारणः—-—छाता, छतरी
उष्णवारणम् —नपुं॰—उष्ण-वारणम्—-—छाता, छतरी
उष्णक —वि॰—-—उष्ण+कन्—तेज, फुर्तीला, सक्रिय
उष्णक —वि॰—-—उष्ण+कन्—ज्वरग्रस्त, पीड़ित
उष्णक —वि॰—-—उष्ण+कन्—गर्मी पहुँचाने वाला, गर्म करने वाला
उष्णकः —पुं॰—-—उष्ण+कन्—ज्वर
उष्णकः —पुं॰—-—उष्ण+कन्—निदाघ, ग्रीष्म ऋतु
उष्णालु —वि॰—-—उष्ण+आलुच्—गर्मी न सह सकने योग्य, दग्ध, संतप्त
उष्णिका —स्त्री॰—-—अल्प+कन्, नि॰ उष्ण आदेशः, टाप्+इत्वम्—माँड
उष्णिमन् —पुं॰—-—उष्ण+इमनिच्—गर्मी
उष्णीषः —पुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—जो सिर के चारों ओर बाँधी जाय
उष्णीषः —पुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—अतः पगड़ी, साफा, शिरोवेष्टन, मुकुट
उष्णीषः —पुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—प्रभेदक चिह्न
उष्णीषम् —नपुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—जो सिर के चारों ओर बाँधी जाय
उष्णीषम् —नपुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—अतः पगड़ी, साफा, शिरोवेष्टन, मुकुट
उष्णीषम् —नपुं॰—-—उष्णमीषते हिनस्ति - इष्+क तारा॰—प्रभेदक चिह्न
उष्णीषिन् —वि॰—-—उष्णीष+इनि—शिरोवेष्टन पहने हुए या राजमुकुट धारण किए हुए
उष्णीषिन् —पुं॰—-—उष्णीष+इनि—शिव
उष्मः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—गर्मी
उष्मः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—ग्रीष्म ऋतु
उष्मः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—क्रोध
उष्मः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—सरगरमी, उत्सुकता, उत्कण्ठा
उष्मकः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—गर्मी
उष्मकः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—ग्रीष्म ऋतु
उष्मकः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—क्रोध
उष्मकः —पुं॰—-—उष्+मक्, कन् च—सरगरमी, उत्सुकता, उत्कण्ठा
उष्मान्वित —वि॰—उष्मः-अन्वित—-—क्रुद्ध
उष्मभास् —पुं॰—उष्मः-भास्—-—सूर्य
उष्मस्वेदः —पुं॰—उष्मः-स्वेदः—-—बफारा, भाप से स्नान
उष्मन् —पुं॰—-—उष्+मनिन्—ताप, गर्मी
उष्मन् —पुं॰—-—उष्+मनिन्—वाष्प, भाप
उष्मन् —पुं॰—-—उष्+मनिन्—ग्रीष्म ऋतु
उष्मन् —पुं॰—-—उष्+मनिन्—सरगरमी, उत्सुकता
उष्मन् —पुं॰—-—उष्+मनिन्—श्, ष्, स् और ह् अक्षर
उस्रः —पुं॰—-—वस्+रक्, संप्र॰—किरण, रश्मि
उस्रः —पुं॰—-—वस्+रक्, संप्र॰—साँड़
उस्रः —पुं॰—-—वस्+रक्, संप्र॰—देवता
उस्रा —स्त्री॰—-—-—प्रभात काल, पौ फटना
उह् —अव्य॰—-—-—बुलाने या पुकारने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय
उहह —अव्य॰—-—-—बुलाने या पुकारने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला विस्मयादि द्योतक अव्यय
उह्रः —पुं॰—-—वह्+रक् संप्र॰—साँड़