विक्षनरी : संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश/अफ-अह्नीकः
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मूलशब्द—व्याकरण—संधिरहित मूलशब्द—व्युत्पत्ति—हिन्दी अर्थ
अफल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निष्फल, फलरहित, बंजर
अफल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अनुर्वरा, निरर्थक, व्यर्थ पुरुषत्व से हीन, बधिया किया हुआ
अफलाकांक्षिन् —वि॰—अफल-आकांक्षिन्—-—जो पारिश्रमिक पाने की इच्छा नहीं रखता, स्वार्थरहित,
अफलप्रेप्सु —वि॰—अफल-प्रेप्सु—-—जो पारिश्रमिक पाने की इच्छा नहीं रखता, स्वार्थरहित
अफेन —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना झाग का, झाग रहित
अबद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वच्छन्द, न बंधा हुआ, बेरोक
अबद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अर्थहीन, बेमतलब, बेहूदा, विरोधी
अबद्धक —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वच्छन्द, न बंधा हुआ, बेरोक
अबद्धक —वि॰,न॰ त॰—-—-—अर्थहीन, बेमतलब, बेहूदा, विरोधी
अबद्धमुख —वि॰—अबद्ध-मुख—-—दुर्मुख, गाली से युक्त,बदजबान
अबन्धु —वि॰—-—-—मित्रहीन,एकाकी
अबान्धव —वि॰—-—-—मित्रहीन,एकाकी
अबल —वि॰,न॰ त॰—-—-—दुर्बल,बलहीन
अबल —वि॰,न॰ त॰—-—-—अरक्षित
अबलाजनः —पुं॰—अबला-जनः—-—स्त्री
अबलाबलम् —नपुं॰—अबला-बलम्—-—निर्बलता,बल की कमी
अबाध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनियन्त्रित,बाधारहित
अबाध —वि॰,न॰ त॰—-—-—पीड़ा से मुक्त
अबाधः —पुं॰—-—-—निराकरण का अभाव
अबाल —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बालक न हो, जवान
अबाल —वि॰,न॰ त॰—-—-—छोटा नहीं, पूर्ण
अबाह्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बाहरी न हो, भीतरी
अबाह्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—परिचित,जानकार
अबिन्धनः —पुं॰—-—आपः इन्धनं यस्य-ब॰ स॰—बडवाग्नि
अबुद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—मूर्ख,नासमझ
अबुद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—समझ की कमी
अबुद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अज्ञान,मूर्खता
अबुद्धिपूर्व —वि॰—अबुद्धिः-पूर्व—-—अनभिप्रेत
अबुद्धिपूर्वक —वि॰—अबुद्धिः-पूर्वक—-—अनभिप्रेत
अबुद्धिपूर्वम् —क्रि॰ वि॰—अबुद्धिः-पूर्वम्—-—अनजानपने में, अज्ञात रूप से
अबुद्धिपूर्वकम् —क्रि॰ वि॰—अबुद्धिः-पूर्वकम्—-—अनजानपने में, अज्ञात रूप से
अबुध् —वि॰,न॰ त॰—-—-—मूर्ख,मूढ
अबुध् —पुं॰—-—-—जड़,अज्ञान,बुद्धि का अभाव
अबुध —पुं॰—-—-—जड़,अज्ञान,बुद्धि का अभाव
अबोध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनजान,मूर्ख,मूढ
अबोधः —पुं॰—-—-—अज्ञान,जडता,समझ का अभाव
अबोधः —पुं॰—-—-—न जानना, जानकारी न होना
अबोधगम्य —वि॰—-—-—जो समझ में न आ सके, अकल्पनीय
अब्ज —वि॰—-—अप्सु जायते-अप्+जन्+ड—जल में पैदा हुआ या जल से उत्पन्न
अब्जम् —नपुं॰—-—अप्सु जायते-अप्+जन्+ड—कमल
अब्जम् —नपुं॰—-—अप्सु जायते-अप्+जन्+ड—एक अरब की संख्या
अब्जकर्णिका —स्त्री॰—अब्ज-कर्णिका—-—कमल का छत्ता
अब्जजः —पुं॰—अब्ज-जः—-—ब्रह्मा के विशेषण
अब्जभवः —पुं॰—अब्जः-भवः—-—ब्रह्मा के विशेषण
अब्जभूः —पुं॰—अब्जः-भूः—-—ब्रह्मा के विशेषण
अब्जयोनिः —पुं॰—अब्जः-योनिः—-—ब्रह्मा के विशेषण
अब्जबान्धवः —पुं॰—अब्ज-बान्धवः—-—कमलों का मित्र सूर्य
अब्जवाहनः —पुं॰—अब्जवाहनः—-—शिव की उपाधि
अब्जा —स्त्री॰—-—स्त्रियां टाप्—सीपी
अब्जिनी —स्त्री॰—-—अब्ज+इनि, स्त्रियां ङीप् —कमलों का समूह
अब्जिनी —स्त्री॰—-—अब्ज+इनि, स्त्रियां ङीप् —कमलों से पूर्ण स्थान
अब्जिनी —स्त्री॰—-—अब्ज+इनि, स्त्रियां ङीप् —कमल का पौधा
अब्जिनीपतिः —पुं॰—अब्जिनी-पतिः—-—सूर्य
अब्दः —पुं॰—-—अपो ददाति-दा+क—बादल
अब्दः —पुं॰—-—अपो ददाति-दा+क—वर्ष
अब्दः —पुं॰—-—अपो ददाति-दा+क—एक पर्वत का नाम
अब्दार्धम् —नपुं॰—अब्दः-अर्धम्—-—आधा वर्ष
अब्दवाहनः —पुं॰—अब्दः-वाहनः—-—शिव
अब्दशतम् —नपुं॰—अब्दः-शतम्—-—शताब्दी
अब्दसारः —पुं॰—अब्दः-सारः—-—एक प्रकार का कपूर
अब्धिः —पुं॰—-—आपः धीयन्ते अत्र--अप्+धा+कि—समुद्र,जलाशय
अब्धिः —पुं॰—-—आपः धीयन्ते अत्र--अप्+धा+कि—ताल,झील
अब्धिः —पुं॰—-—आपः धीयन्ते अत्र--अप्+धा+कि—सात की संख्या,कई बार चार की संख्या
अब्ध्याग्निः —पुं॰—अब्धिः-अग्निः—-—वाडवाग्नि
अब्धिकफः —पुं॰—अब्धिः-कफः—-—समुद्रझाग
अब्धिफेनः —पुं॰—अब्धिः-फेनः—-—समुद्रझाग
अब्धिजः —पुं॰—अब्धिः-जः—-—चन्द्रमा
अब्धिजः —पुं॰—अब्धिः-जः—-—शंख
अब्धिजा —स्त्री॰—अब्धिः-जा—-—वारुणी
अब्धिजा —स्त्री॰—अब्धिः-जा—-—लक्ष्मी देवी
अब्धिद्वीपा —स्त्री॰—अब्धिः-द्वीपा—-—पृथ्वी
अब्धिनगरी —स्त्री॰—अब्धिः-नगरी—-—कृष्ण की नगरी द्वारका
अब्धिनवनीतकः —पुं॰—अब्धिः-नवनीतकः—-—चन्द्रमा
अब्धिमण्डूकी —स्त्री॰—अब्धिः-मण्डूकी—-—मोती की सीप
अब्धिशयनः —पुं॰—अब्धिः-शयनः—-—विष्णु
अब्धिसारः —पुं॰—अब्धिः-सारः—-—रत्न
अब्रह्मचर्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो ब्रह्मचारी न हो
अब्रह्मचर्यम् —नपुं॰—-—-—लम्पटता,कामुकता
अब्रह्मचर्यम् —नपुं॰—-—-—मैथुन
अब्रह्मचर्यकम् —नपुं॰—-—-—लम्पटता,कामुकता
अब्रह्मचर्यकम् —नपुं॰—-—-—मैथुन
अब्रह्मण्य —वि॰,न॰ त॰—-—नञ्+ब्रह्मन्+यत्—जो ब्राह्मण के लिए उपयुक्त न हो
अब्रह्मण्य —वि॰,न॰ त॰—-—नञ्+ब्रह्मन्+यत्—ब्राह्मणों के लिए शत्रुवत
अब्रह्मण्यम् —नपुं॰—-—नञ्+ब्रह्मन्+यत्—अब्राह्मणोचित कार्य,या जो ब्राह्मण के लिय योग्य न हो।
अब्रह्मन् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—ब्राह्मणों से वियुक्त या विरहित
अभक्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—भक्ति या आसक्ति का अभाव
अभक्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अविश्वास,सन्दिग्धता।
अभक्ष्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो खाने योग्य न हो
अभक्ष्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—खाने के लिये निषिद्ध
अभक्ष्यम् —नपुं॰—-—-—खाने का निषिद्ध पदार्थ
अभग —वि॰—-—-—अभागा,बदकिस्मत
अभद्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—अशुभ,कुत्सित,दुष्ट
अभद्रम् —नपुं॰—-—-—दुष्टकर्म,पाप,दुष्टता
अभय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निर्भय,सुरक्षित,भयमुक्त
अभयम् —नपुं॰—-—-—भय का अभाव,भय से दूर रहना
अभयम् —नपुं॰—-—-—सुरक्षा,बचाव,भय या डर से रक्षा
अभयकृत् —वि॰—अभय-कृत्—-—जो भयानक न हो,मृदु
अभयकृत् —वि॰—अभय-कृत्—-—सुरक्षा देने वाला
अभयडिण्डिम —वि॰—अभय-डिण्डिम—-—सुरक्षा या विश्वसनीयता का ढिंढोरा
अभयडिण्डिम —वि॰—अभय-डिण्डिम—-—युद्ध भेरी
अभयद —वि॰—अभय-द—-—सुरक्षा का वचन देने वाला
अभयदायिन् —वि॰—अभय-दायिन्—-—सुरक्षा का वचन देने वाला
अभयप्रद —वि॰—अभय-प्रद—-—सुरक्षा का वचन देने वाला
अभयदक्षिणा —स्त्री॰—अभय-दक्षिणा—-—भय से मुक्ति का वचन या सुरक्षा की गारंटी
अभयदानम् —नपुं॰—अभय-दानम्—-—भय से मुक्ति का वचन या सुरक्षा की गारंटी
अभयप्रदानम् —नपुं॰—अभय-प्रदानम्—-—भय से मुक्ति का वचन या सुरक्षा की गारंटी
अभयपत्रम् —नपुं॰—अभय-पत्रम्—-—सुरक्षा का विश्वास दिलाने वाला लिखित पत्र
अभययाचना —स्त्री॰—अभय-याचना—-—रक्षा के लिये प्रार्थना
अभयवचनम् —नपुं॰—अभय-वचनम्—-—सुरक्षा का वचन या भय से मुक्त कर देने की प्रतिज्ञा
अभयवाच् —स्त्री॰—अभय-वाच्—-—सुरक्षा का वचन या भय से मुक्त कर देने की प्रतिज्ञा
अभयङ्कर —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो भयानक न हो
अभयङ्कर —वि॰,न॰ त॰—-—-—सुरक्षा करने वाला
अभयङ्कृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो भयानक न हो
अभयङ्कृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—सुरक्षा करने वाला
अभवः —पुं॰—-—-—अविद्यमानता
अभवः —पुं॰—-—-—छुटकारा मोक्ष
अभवः —पुं॰—-—-—समाप्ति या प्रलय
अभव्य —वि॰—-—-—जो न होना हो
अभव्य —वि॰—-—-—अनुपयुक्त,अशुभ
अभव्य —वि॰—-—-—दुर्भाग्यपूर्ण,अभागा,
अभाग —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसका सम्पत्ति में कोई हिस्सा न हो
अभाग —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविभक्त
अभावः —पुं॰—-—-—न होना,अनस्तित्व
अभावः —पुं॰—-—-—अनुपस्थिति,कमी,असफलता, सब कुछ विफल हो जाने पर
अभावः —पुं॰—-—-—सर्वनाश,मृत्यु,विनाश,सत्ताशून्यता
अभावः —पुं॰—-—-—लोप,असत्ता,अविद्यमानता या निषेध,कणाद के मान्यता अनुसार सातवाँ पदार्थ या वर्ग
अभावना —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—सत्यविवेचन या निर्णय का अभाव
अभावना —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—धार्मिक ध्यान का अभाव
अभाषित —वि॰,न॰ त॰—-—-—न कहा हुआ
अभाषितपुंस्क —वि॰—अभाषित-पुंस्क—-—वह शब्द जो कभी पुं॰ या स्त्री॰ में प्रयुक्त न होता हो-अर्थात् नित्यस्त्रीलिंग
अभि —अव्य॰—-—नञ्+भा+कि—की ओर,की दिशा में
अभि —अव्य॰—-—नञ्+भा+कि—के लिये, के विरुद्ध
अभि —अव्य॰—-—नञ्+भा+कि—पर, ऊपर, परे
अभिसिञ्च् ——अभि-सिञ्च्—-—पर छिड़कना
अभिभू —भ्वा॰पर॰—अभि-भू—-—हावी हो जाना
अभि —अव्य॰—-—-—अधिकता से, बहुत
अभि —अव्य॰—-—-—तीव्रता और प्राधान्य
अभिधर्मः —पुं॰—अभि-धर्मः—-—प्रधान कर्तव्य
अभिताम्र —वि॰—अभि-ताम्र—-—अत्यन्त लाल
अभिनव —वि॰—अभि-नव—-—बिल्कुल नया
अभि —अव्य॰—-—-—की ओर, की दिशा में, अव्ययीभाव समास बनाना
अभि —अव्य॰—-—-—की ओर, की दिशा में, के विरुद्ध
अभि —अव्य॰—-—-—निकट, पहले, सामने, उपस्थिति में
अभि —अव्य॰—-—-—पर ऊपर,संकेत करते हुए,के विषय में
अभि —अव्य॰—-—-—पृथक पृथक्, एक-एक करके
अभिक —वि॰—-—अभि+कन्—कामी,लंपट,विलासी
अभीक —वि॰—-—अभि+कन्—कामी,लंपट,विलासी
अभिकांक्षा —स्त्री॰—-—अभि+कांक्ष्+अङ्+टाप्—कामना,इच्छा,लालसा
अभिकांक्षिन् —वि॰—-—अभि+कांक्ष्+णिनि—लालसा रखने वाला,कामना करने वाला
अभिकाम —वि॰—-—अभिवृद्धः कामो यस्य-अभि+कम्+अच् ब॰ स॰—स्नेही,प्रेमी,इच्छुक,कामनायुक्त,कामुक
अभिकामः —पुं॰—-—प्रा॰ स॰—स्नेह,प्रेम
अभिकामः —पुं॰—-—प्रा॰ स॰—कामना,इच्छा
अभिक्रमः —पुं॰—-—अभि+क्रम्+घ्ञ् अवृद्धिः—आरम्भ,प्रयत्न,व्यवसाय
अभिक्रमः —पुं॰—-—अभि+क्रम्+घ्ञ् अवृद्धिः—निश्चित आक्रमण या धावा, अभियान,हमला
अभिक्रमः —पुं॰—-—अभि+क्रम्+घ्ञ् अवृद्धिः—आरोहण,सवार होना
अभिक्रमणम् —स्त्री॰—-—अभि+क्रम्+ल्युट्—उपागमन,आक्रमण करना
अभिक्रान्तिः —स्त्री॰—-—अभि+क्रम्+क्तिन् —उपागमन,आक्रमण करना
अभिक्रोशः —पुं॰—-—अभि+क्रुश्+घञ्—पुकारना,चिल्लाना
अभिक्रोशः —पुं॰—-—अभि+क्रुश्+घञ्—अपशब्द कहना,निंदा करना
अभिक्रोशकः —पुं॰—-—अभि+क्रुश्+ण्वुल—पुकारने वाला,गाली देने वाला,कलंक लगाने वाला
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—चमक-दमक,शोभा कांति
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—कहना,घोषणा करना
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—पुकारना,संबोधित करना
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—नाम,अभिधान
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—शब्द,पर्याय
अभिख्या —स्त्री॰—-—अभि+ख्या+अङ्+टाप्—प्रसिद्धि,यश,कुख्याति,महात्म्य
अभिख्यानम् —नपुं॰—-—अभि+ख्या+ल्युट्—ख्याति,यश
अभिगमः —पुं॰—-—अभिगम्+अप्—उपागमन,पास जाना या आना,दर्शनार्थ गमन,पहुँचना
अभिगमः —पुं॰—-—अभिगम्+अप्—संभोग
अभिगमनम् —नपुं॰—-—अभिगम्+ल्युट् —उपागमन,पास जाना या आना,दर्शनार्थ गमन,पहुँचना
अभिगमनम् —नपुं॰—-—अभिगम्+ल्युट् —संभोग
अभिगम्य —सं॰ कृ॰—-—अभिगम्+य्—उपागम्य,दर्शनीय
अभिगम्य —सं॰ कृ॰—-—अभिगम्+य्—प्राप्य
अभिगर्जनम् —सं॰ कृ॰—-—अभिगर्ज्+ल्युट्,क्त वा—जंगली तथा भीषण दहाड़, चीत्कार।
अभिगर्जितम् —सं॰ कृ॰—-—अभिगर्ज्+ल्युट्,क्त वा—जंगली तथा भीषण दहाड़, चीत्कार।
अभिगामिन् —वि॰—-—अभि+गम्+णिनि—निकट जाने वाला,संभोग करने वाला
अभिगुप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+गुप्+क्तिन्—संरक्षण,बचाव
अभिगोप्तृ —पुं॰—-—अभि+गुप्+तृच्—बचाने वाला,संरक्षक
अभिग्रहः —पुं॰—-—अभि+ग्रह+अच्—छीन लेना,ठगना, लूटना
अभिग्रहः —पुं॰—-—अभि+ग्रह+अच्—धावा,हमला
अभिग्रहः —पुं॰—-—अभि+ग्रह+अच्—ललकार
अभिग्रहः —पुं॰—-—अभि+ग्रह+अच्—शिकायत
अभिग्रहः —पुं॰—-—अभि+ग्रह+अच्—अधिकार,प्रभाव
अभिग्रहणम् —नपुं॰—-—अभि+ग्रह्+ल्युट्—लूटना,छीन लेना
अभिघर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+घृष्+ल्युट्—रगड़ना,झगड़ना
अभिघर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+घृष्+ल्युट्—बुरी भावना से अधिकार करना
अभिघातः —पुं॰—-—अभि+हन्+घञ्—आघात करना,मारना चोट पहुँचाना,प्रहार
अभिघातः —पुं॰—-—अभि+हन्+घञ्—विध्वंस,पूर्ण नाश,समूलोच्छेदन
अभिघातम् —नपुं॰—-—अभि+हन्+घञ्—कठोर उच्चारण
अभिघातक —वि॰—-—-—पीछे हटाने वाला,दूर कर देने वाला
अभिघाती —पुं॰—-—अभि+हन्+णिनि—शत्रु
अभिघारः —पुं॰—-—अभि+घृ+णिच्+घञ्—घी
अभिघारः —पुं॰—-—अभि+घृ+णिच्+घञ्—यज्ञ में घी की आहुति
अभिघारणम् —नपुं॰—-—अभि+घृ+णिच्+ल्युट्—घी छिड़कना
अभिघ्राणम् —नपुं॰—-—अभि+घ्रा+ल्युट्—सिर सूँघना
अभिचरः —पुं॰—-—अभि+चर्+अच्—अनुचर,सेवक
अभिचरणम् —नपुं॰—-—अभि+चर्+ल्युट्—झाड़ना-फूँकना,जादू-टोना,बुरे कामों के लिये मंत्र पढ़ कर जादू करना,इन्द्रजाल
अभिचरणम् —नपुं॰—-—अभि+चर्+ल्युट्—मारना
अभिचारः —पुं॰—-—अभि+चर्+घञ्—झाड़-फूँक करना,मंत्रमुग्ध करना,जादू के मंत्रों का बुरे कामों के लिये प्रयोग करना,जादू करना
अभिचारः —पुं॰—-—अभि+चर्+घञ्—हत्या करना
अभिचारज्वरः —पुं॰—अभिचारः-ज्वरः—-—जादू के मंत्रों द्वारा किया गया बुखार।
अभिचारमन्त्रः —पुं॰—अभिचारः-मन्त्रः—-—जादू का गुर,जादू करने के लिये मंत्र फूँकना
अभिचारयज्ञः —पुं॰—अभिचारः-यज्ञः—-—जादू-टोने के लिये किया जाने वाला यज्ञ,होम
अभिचारहोमः —पुं॰—अभिचारः-होमः—-—जादू-टोने के लिये किया जाने वाला यज्ञ,होम
अभिचारक —वि॰—-—अभि+चर्+ण्वुल्—अभिचार करने वाला ,जादू-टोना करने वाला
अभिचारिन् —वि॰—-—अभि+चर्+णिनि —अभिचार करने वाला ,जादू-टोना करने वाला
अभिचारकः —पुं॰—-—-—ऐन्द्रजालिक,जादूगर्
अभिचारी —पुं॰—-—-—ऐन्द्रजालिक,जादूगर्
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—कुटुम्ब,वंश,अन्वय, जन्म,उत्पत्ति,कुल
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—उत्तम कुल में जन्म,उत्तम कुटुम्ब में उत्पत्ति
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—जन्मभूमि,मातृभूमि,बापदादाओं की जन्मभूमि
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—ख्याति,प्रतिष्ठा
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—घर का मुखिया या कुलभूषण
अभिजनः —पुं॰—-—अभि+जन्+घञ् अवृद्धिः—अनुचर,परिजन
अभिजनवत् —वि॰—-—अभिजन्+मतुप्—उच्च कुल का,उत्तम वंश में उत्पन्न
अभिजयः —पुं॰—-—अभि+जि+अच्—जीत,पूर्ण विजय
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—उत्पन्न,सर्वथा विकसित,योग्य
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—जन्मा हुआ,पैदा हुआ
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—कुलीन,उच्च कुल में उत्पन्न,उच्च वंश में जन्म लेने वाला
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—योग्य,उचित उपयुक्त
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—मधुर,रुचिकर
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—मनोहर,सुन्दर
अभिजात —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+जन्+क्त—विद्वान,बुद्धिमान,विवेकशील
अभिजातिः —स्त्री॰—-—अभि+जन्+क्तिन्—उत्तम कुल में जन्म
अभिजिघ्रणम् —नपुं॰—-—अभि+घ्रा+ल्युट् जिघ्रादेशः—नाक से सिर का स्पर्श करना
अभिजित् —पुं॰—-—अभि+जि+क्विप्—विष्णु
अभिजित् —पुं॰—-—अभि+जि+क्विप्—एक नक्षत्र का नाम
अभिज्ञ —वि॰—-—अभि+ज्ञा+क—जानने वाला,जानकार,अनुभवशील,कुशल
अभिज्ञ —वि॰—-—अभि+ज्ञा+क—कुशल,दक्ष,चतुर
अभिज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+ज्ञा+क+टाप्—पहचान
अभिज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+ज्ञा+क+टाप्—याद,स्मृति चिह्न
अभिज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+ज्ञा+ल्युट्—पहचान
अभिज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+ज्ञा+ल्युट्—स्मरण,प्रत्यास्मरण
अभिज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+ज्ञा+ल्युट्—पहचान का चिह्न
अभिज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+ज्ञा+ल्युट्—चन्द्रमंडल में काला चिह्न
अभिज्ञानाभरणम् —नपुं॰—अभिज्ञानम्-आभरणम्—-—पहचान का भूषण,अंगूठी
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—निकट, की ओर ,सब ओर से
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—निकट मिला हुआ,समीप में, के सामने, की उपस्थिति में
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—सम्मुख, मुंह के आगे, सामने
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—दोनों ओर
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—पहले और पीछे
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—सब ओर से,चारों ओर से
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—पूर्ण रूप से,पूरी तरह से ,सर्वत्र
अभितः —अव्य॰—-—अभि+तसिल्—शीघ्र ही
अभितापः —पुं॰—-—अभितप्+घञ्—अत्यंत गर्मी-चाहे शरीर की हो य मन की,भावावेश,कष्ट,अधिक दुःख या पीड़ा
अभिताम्र —वि॰प्रा॰ स॰—-—-—बहुत लाल,लाल सुर्ख
अभिदक्षिणम् —अव्य॰ स॰—-—-—दक्षिण की ओर
अभिद्रवः —पुं॰—-—अभिद्रु+अप्—आक्रमण, हमला
अभिद्रवणम् —नपुं॰—-—अभिद्रु+ल्युट् —आक्रमण, हमला
अभिद्रोहः —पुं॰—-—अभि+द्रुह्+घञ्—चोट पहुँचाना,षडयंत्र रचना,हानि,क्रूरता
अभिद्रोहः —पुं॰—-—अभि+द्रुह्+घञ्—गाली,निन्दा
अभिधर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+घृष्+ल्युट्—भूत प्रेतादि से आविष्ट होना
अभिधर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+घृष्+ल्युट्—अत्याचार
अभिधा —स्त्री॰—-—अभि+घा+अङ्+टाप्—नाम,संज्ञा
अभिधा —स्त्री॰—-—अभि+घा+अङ्+टाप्—शब्द,ध्वनि
अभिधा —स्त्री॰—-—अभि+घा+अङ्+टाप्—शाब्दिक शक्ति या शब्दार्थ,संकेतन,शब्द की तीन शक्तियों में से एक
अभिधाध्वंसिन् —वि॰—अभिधा-ध्वंसिन्—-—अपने नाम को नष्ट करने वाला
अभिधामूल —वि॰—अभिधा-मूल—-—शब्द के संकेतित या मुख्यार्थ पर आधारित
अभिधानम् —नपुं॰—-—अभि+धा+ल्युट्—कहना,बोलना,नाम रखना,संकेत करना
अभिधानम् —नपुं॰—-—अभि+धा+ल्युट्—प्रकथन,वचन
अभिधानम् —नपुं॰—-—अभि+धा+ल्युट्—नाम,संज्ञा,पद
अभिधानम् —नपुं॰—-—अभि+धा+ल्युट्—भाषण,व्याख्यान
अभिधानम् —नपुं॰—-—अभि+धा+ल्युट्—कोश,शब्दावली,लुगत
अभिधानकोशः —पुं॰—अभिधानम्-कोशः—-—शब्दकोश
अभिधानमाला —स्त्री॰—अभिधानम्-माला—-—शब्दकोश
अभिधायक —वि॰—-—अभि+धा+ण्वुल्—नाम रखने वाला, वाचक
अभिधायक —वि॰—-—अभि+धा+ण्वुल्—कहने वाला, बोलने वाला, बतलाने वाला
अभिधायिन् —वि॰—-—अभि+धा+णिनि —नाम रखने वाला, वाचक
अभिधायिन् —वि॰—-—अभि+धा+णिनि —कहने वाला, बोलने वाला, बतलाने वाला
अभिधावनम् —नपुं॰—-—अभि+धाव्+ल्युट्—आक्रमण, पीछा करना
अभिधेय —सं॰ कृ॰—-—अभि+धा+यत्—नाम दिये जाने योग्य, कथनीय, वाच्य
अभिधेय —सं॰ कृ॰—-—अभि+धा+यत्—नाम के योग्य
अभिधेयम् —नपुं॰—-—अभि+धा+यत्—सर्थकता,अर्थ,भाव,तात्पर्य,
अभिधेयम् —नपुं॰—-—अभि+धा+यत्—भावाशय
अभिधेयम् —नपुं॰—-—अभि+धा+यत्—विषय
अभिधेयम् —नपुं॰—-—अभि+धा+यत्—मुख्यार्थ
अभिध्या —स्त्री॰—-—अभि+ध्यै+अङ्+टाप्—दूसरे की संपत्ति के लिये ललचाना
अभिध्या —स्त्री॰—-—अभि+ध्यै+अङ्+टाप्—प्रबल कामना,चाह,सामान्य इच्छा
अभिध्या —स्त्री॰—-—अभि+ध्यै+अङ्+टाप्—ग्रहण करने की इच्छा
अभिध्यानम् —नपुं॰—-—अभि+ध्यै+ल्युट्—चाहना,प्रबल इच्छा करना,ललचाना,कामना करना
अभिध्यानम् —नपुं॰—-—अभि+ध्यै+ल्युट्—मनन करना,प्रचिंतन
अभिनन्दः —पुं॰—-—अभि+नन्द्+घञ्—प्रहर्ष,प्रफुल्लता,प्रसन्नता
अभिनन्दः —पुं॰—-—अभि+नन्द्+घञ्—प्रशंसा,सराहना,अभिनन्दन,बधाई देना
अभिनन्दः —पुं॰—-—अभि+नन्द्+घञ्—कामना,इच्छा
अभिनन्दः —पुं॰—-—अभि+नन्द्+घञ्—प्रोत्साहन,कार्य में प्रेरणा
अभिनन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+नन्द्+ल्युट्—प्रहर्षण, अभिवादन,स्वागत करना
अभिनन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+नन्द्+ल्युट्—प्रशंसा करना,अनुमोदन करना
अभिनन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+नन्द्+ल्युट्—कामना,इच्छा
अभिनन्दनीय —सं॰ कृ॰—-—अभि+नन्द्+अनीय—प्रहृष्ट होना,प्रशंसित होना,सराहा जाना
अभिनन्द्य —सं॰ कृ॰—-—अभि+नन्द्+ण्यत् —प्रहृष्ट होना,प्रशंसित होना,सराहा जाना
अभिनम्र —वि॰प्रा॰ स॰—-—-—झुका हुआ,विनीत
अभिनयः —पुं॰—-—अभि+नी+अच्—नाटक खेलना,अंग विक्षेप,नाटकीय प्रदर्शन
अभिनयः —पुं॰—-—अभि+नी+अच्—नाटकीय प्रदर्शनी,स्वांग,मंच पर प्रदर्शन करना करना
अभिनव —वि॰प्रा॰ स॰—-—-—बिल्कुल नया या ताजा,नवोढ़ा
अभिनव —वि॰प्रा॰ स॰—-—-—बहुत छोटा,अनुभवहीन
अभिनवयौवन —वि॰—अभिनव-यौवन—-—नौजवान,बहुत छोटा
अभिनववयस्क —वि॰—अभिनव-वयस्क—-—नौजवान,बहुत छोटा
अभिनहनम् —नपुं॰—-—अभि+नह्+ल्युट्—आँख पर बाँधने की पट्टी,अंधा
अभिनियुक्त —वि॰—-—अभि+नि+युज्+क्त—काम में लगा हुआ, व्यस्त
अभिनिर्मुक्त —वि॰—-—अभि+निर्+मुच्+क्त—सूर्यास्त होने के कारण छुटा हुआ कार्य या छोड़ा हुआ कार्य
अभिनिर्मुक्त —वि॰—-—अभि+निर्+मुच्+क्त—सूर्यास्त के समय सोया हुआ
अभिनिर्याणम् —नपुं॰—-—अभि+निर्+या+ल्युट्—प्रयाण
अभिनिर्याणम् —नपुं॰—-—अभि+निर्+या+ल्युट्—आक्रमण, किसी शत्रु के सामने अभिप्रस्थान
अभिनिविष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नि+विश्+क्त—तुला हुआ,लीन,जुटा हुआ
अभिनिविष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नि+विश्+क्त—दृढ़तापूर्वक जमा हुआ सावधान,लगा हुआ
अभिनिविष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नि+विश्+क्त—सम्पन्न,अधिकारयुक्त
अभिनिविष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नि+विश्+क्त—दृढ़निश्चयी,कृतसंकल्प
अभिनिविष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नि+विश्+क्त—हठी,दुराग्रही
अभिनिविष्टता —स्त्री॰—-—अभिनिविष्ट+तल्+टाप्—दृढ़संकल्पता,दृढ़निश्चय
अभिनिवृत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+नि+वृत्+क्तिन्—निष्पन्नता,पूर्ति
अभिनिवेशः —पुं॰—-—अभि+नि+विश्+घञ्—लगन,आसक्ति एकनिष्ठता,दृढ़ विनियोग
अभिनिवेशः —पुं॰—-—अभि+नि+विश्+घञ्—उत्कट अभिलाष,दृढ़ प्रत्याशा
अभिनिवेशः —पुं॰—-—अभि+नि+विश्+घञ्—दृढ़संकल्प,दृढ़निश्चय,धैर्य,--जनकात्मजायां नितांतरूक्षाभिनिवेशमीशम्--रघु० १४/४३,अनुरूप शतोषिणा कु०५/७,
अभिनिवेशः —पुं॰—-—अभि+नि+विश्+घञ्—एक प्रकार का अज्ञान जो मृत्यु के भय का कारण हो,सांसारिक विषय वासनाओं तथा शारीरिक आमोदप्रमोद में व्यस्त रहना साथ ही यह भय भी लगा रहे कि मृत्यु के द्वारा इन सब से वियोग हो जाना है
अभिनिवेशिन् —वि॰—-—अभि+नि+विश्+णिनि—आसक्त,संस्क्त
अभिनिवेशिन् —वि॰—-—अभि+नि+विश्+णिनि—जमा रहने वाला,अनन्यचित
अभिनिवेशिन् —वि॰—-—अभि+नि+विश्+णिनि—दृढ़निश्चयी, कृतसंकल्प
अभिनिष्क्रमणम् —नपुं॰—-—अभि+निस्+क्रम्+ल्युट्—बाहर निकलना
अभिनिष्टानः —पुं॰—-—अभि+नि+स्तन्+घञ्-सस्य षत्वम्—वर्णमाला का अक्षर
अभिनिष्पतनम् —नपुं॰—-—अभि+निस्+पत्+ल्युट्—टूट पड़ना,निकल पड़ना
अभिनिष्पत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+निस्+पद्+क्तिन्—पूर्ति,समाप्ति,निष्पन्नता,पूर्णता
अभिनिह्नवः —पुं॰—-—अभि+नि+ह्नु+अप्—मुकरना,छिपाना
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—निकट लाया गया,पहुँचाया गया
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—किया गया,नाटक के रूप में खेला गया
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—सुसज्जित,अलंकृत,अत्यन्त श्रेष्ठ
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—उपयुक्त,उचित,योग्य
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—सहनशील,दयालु,समचित्त
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—क्रुद्ध
अभिनीत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+नी+क्त—कृपालु,मित्र सदृश
अभिनीतिः —स्त्री॰—-—अभि+नी+क्तिन्—इंगित,भावपूर्ण अंग विक्षेप
अभिनीतिः —स्त्री॰—-—अभि+नी+क्तिन्—कृपालुता,मित्रता,सहिष्णुता
अभिनेतृ —पुं॰—-—-—नाटक का पात्र
अभिनेत्री —स्त्री॰—-—-—नाटक की पात्री
अभिनेतव्य —सं॰ कृ॰—-—अभि+नी+तव्यत् —नाटक के रूप में खेले जाने योग्य
अभिनेय —सं॰ कृ॰—-—अभि+नी+यत्—नाटक के रूप में खेले जाने योग्य
अभिन्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—न टूटा हुआ,अनकटा
अभिन्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविकृत
अभिन्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपरिवर्तित
अभिन्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो अलग न हो,वही,एकरूप
अभिपतनम् —नपुं॰—-—अभि+पत्+ल्युट्—उपागमन
अभिपतनम् —नपुं॰—-—अभि+पत्+ल्युट्—टूट पड़ना,आक्रमण करना,चढ़ाई करना
अभिपतनम् —नपुं॰—-—अभि+पत्+ल्युट्—कूच करना,रवानगी
अभिपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+पद्+क्तिन्—उपागमन,निकट जाना
अभिपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+पद्+क्तिन्—पूर्ति
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—समीप गया हुआ या आया हुआ,उपागत,की ओर दौड़ा हुआ या गया हुआ
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—भागा हुआ,भगोड़ा शरणार्थी
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—पराभूत,पराजित,पीड़ित,गिरफ्तार किया हुआ,पकड़ा हुआ
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—भाग्यहीन,संकटग्रस्त
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—स्वीकृत
अभिपन्न —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+पद्+क्त—दोषी
अभिपरिप्लुत —वि॰—-—अभि+परि+प्लु+क्त—डूबा हुआ,भरा हुआ,बाढ़ग्रस्त,उखड़ा हुआ,-शोक,क्रोध आदि से
अभिपूरणम् —नपुं॰—-—अभि+पृ+ल्युट्—भरना,काबू में लाना
अभिपूर्वम् —अव्य॰—-—अव्य॰ स॰—क्रमशः
अभिप्रणयनम् —नपुं॰—-—अभि+प्र+नी+ल्युट्—वेदमंत्रों के द्वरा संस्कार करना
अभिप्रणयः —पुं॰—-—अभि+प्र+नी+अच्—प्रेम, कृपादृष्टि,अनुरंजन
अभिप्रणीत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+नी+क्त—संस्कार किया हुआ
अभिप्रणीत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+नी+क्त—लाया हुआ
अभिप्रथनम् —नपुं॰—-—अभि+प्रथ्+ल्युट्—फैलाना,विस्तार करना,ऊपर से डालना
अभिप्रदक्षिणम् —अव्य॰—-—अव्य॰ स॰—दाहिनी ओर
अभिप्रवर्तनम् —नपुं॰—-—अभि+प्र+वृत्+ल्युट्—आगे बढ़ना
अभिप्रवर्तनम् —नपुं॰—-—अभि+प्र+वृत्+ल्युट्—प्रगमन,आचरण
अभिप्रवर्तनम् —नपुं॰—-—अभि+प्र+वृत्+ल्युट्—बहना,बाहर आना जैसे पसीने का निकलना
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—प्राप्त करना, अधिग्रहण, उपलब्धि, अवाप्ति, लाभ
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—पहुँचना, प्राप्त करना
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—पहुँच, आगमन
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—देखना, मिलना
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—परास, पहुँच
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—अनुमान, अटकल
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—हिस्सा, अंश,ढेर
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—भाग्य, किस्मत
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—उदय, पैदावार
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—किसी पदार्थ को प्राप्त करने की शक्ति
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—संघ, समुच्चय, संहति
अभिप्राप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+प्र+आप्+क्तिन्—किसी योजना की सफल समाप्ति, सुखागम
अभिप्रायः —पुं॰—-—अभि+प्र+इ+अच्—लक्ष्य,प्रयोजन,उद्देश्य,आशय,कामना,इच्छा
अभिप्रायः —पुं॰—-—अभि+प्र+इ+अच्—अर्थ,भाव,तात्पर्य,या शब्द अथवा किसी परिच्छेद का उपलक्षित भाव,तेषामयमभिप्रायः--इस प्रकार का उनका आशय है,तात्पर्य
अभिप्रायः —पुं॰—-—अभि+प्र+इ+अच्—सम्मति,विश्वास
अभिप्रायः —पुं॰—-—अभि+प्र+इ+अच्—संबंध,उल्लेख
अभिप्रेत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+इ+क्त—अर्थपूर्ण,उद्दिष्ट,साशय,आकल्पित
अभिप्रेत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+इ+क्त—इष्ट,अभिलषित
अभिप्रेत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+इ+क्त—सम्मत,स्वीकृत
अभिप्रेत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्र+इ+क्त—प्रिय,रुचिकर
अभिप्रोक्षणम् —नपुं॰—-—अभि+प्र+उक्ष्+ल्युट्—छिड़कना,छिड़काव
अभिप्लवः —पुं॰—-—अभि+प्लु+अप्—कष्ट,बाधा
अभिप्लवः —पुं॰—-—अभि+प्लु+अप्—बाढ़,उतराकर बहना
अभिप्लुत —वि॰,भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+प्लु+क्त—पराभूत,व्याकुल
अभिबुद्धिः —स्त्री॰प्रा॰ स॰—-—-—बुद्धीन्द्रिय या ज्ञानेन्द्रिय,आंख,जिह्वा,कान,नाक और त्वचा
अभिभवः —पुं॰—-—अभि+भू+अप्—हार,पराभव,दमन
अभिभवः —पुं॰—-—अभि+भू+अप्—पराभूत होना,आक्रान्त या प्रभावित होना मूर्छित होना
अभिभवः —पुं॰—-—अभि+भू+अप्—तिरस्कार,अपमान
अभिभवः —पुं॰—-—अभि+भू+अप्—निरादर,मानभंग
अभिभवः —पुं॰—-—अभि+भू+अप्—प्रबलता,उद्भव,विस्तार
अभिभवनम् —नपुं॰—-—अभि+भू+ल्युट्—हावी होना,पराजित करना,जीतना,पराभूत होना
अभिभावनम् —नपुं॰—-—अभि+भू+णिच्+ल्युट्—विजयी कराना,पराजित करने वाला बनाना
अभिभाविन् —वि॰—-—अभि+भू+णिनि—पराजित करने वाला,हराने वाला,जीतने वाला
अभिभाविन् —वि॰—-—अभि+भू+णिनि—दूसरों से आगे बढ़ने वाला ,परमोत्कृष्ट,श्रेष्ठ होने वाला
अभिभावक —वि॰—-—-—पराजित करने वाला,हराने वाला,जीतने वाला
अभिभावक —वि॰—-—-—दूसरों से आगे बढ़ने वाला ,परमोत्कृष्ट,श्रेष्ठ होने वाला
अभिभावुक —वि॰—-—अभि+भू+उकञ् —पराजित करने वाला,हराने वाला,जीतने वाला
अभिभावुक —वि॰—-—अभि+भू+उकञ् —दूसरों से आगे बढ़ने वाला ,परमोत्कृष्ट,श्रेष्ठ होने वाला
अभिभाषणम् —नपुं॰—-—अभि+भाष्+ल्युट्—सम्बोधित करते हुये बोलना,भाषण देना
अभिभूतिः —स्त्री॰—-—अभि+भू+क्तिन्—प्रधानता,प्रभुत्व
अभिभूतिः —स्त्री॰—-—अभि+भू+क्तिन्—जीतना,हराना,पराभव
अभिभूतिः —स्त्री॰—-—अभि+भू+क्तिन्—अनादर,अपमान
अभिमत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+मन्+क्त—इष्ट,अभीष्ट,प्रिय,प्यारा,रुचिकर,वाञ्छनीय,सम्मानित,आदृत
अभिमत —भू॰क॰ कृ॰—-—अभि+मन्+क्त—सम्मत,स्वीकृत,माना हुआ
अभिमतम् —नपुं॰—-—-—कामना,इच्छा
अभिमतः —पुं॰—-—-—प्रियव्यक्ति,प्रेमी
अभिमनस् —वि॰,पुं॰—-—-—तुला हुआ,इच्छुक,आतुर,उत्कंठित
अभिमन्त्रणम् —नपुं॰—-—अभि+मन्त्र्+ल्युट्—विशेष मन्त्रों को पढ़कर संस्कारयुक्त करना,या पवित्र करना,या पवित्र करना
अभिमन्त्रणम् —नपुं॰—-—अभि+मन्त्र्+ल्युट्—सुहावना,मनोहर
अभिमन्त्रणम् —नपुं॰—-—अभि+मन्त्र्+ल्युट्—संबोधित करना,आमंत्रित करना,परमर्श देना
अभिमरः —पुं॰—-—अभि+मृ+अच्—हत्या,नाश,वध करना
अभिमरः —पुं॰—-—अभि+मृ+अच्—युद्ध,संघर्ष
अभिमरः —पुं॰—-—अभि+मृ+अच्—अपने ही पक्ष द्वारा विश्वासघात,अपने ही पक्ष वालों से भय
अभिमरः —पुं॰—-—अभि+मृ+अच्—बंधन,कैद,बेड़ी या हथकड़ी
अभिमर्दः —पुं॰—-—अभि+मृद्+घञ्—मलना,रगड़
अभिमर्दः —पुं॰—-—अभि+मृद्+घञ्—कुचलना,लूटखसोट, देश का उच्छेद,उजाड़ना
अभिमर्दः —पुं॰—-—अभि+मृद्+घञ्—युद्ध,संग्राम
अभिमर्दः —पुं॰—-—अभि+मृद्+घञ्—मदिरा,शराब
अभिमर्दन —वि॰—-—अभि+मृद्+ल्युट्—कुचलने वाला,दमन करने वाला
अभिमर्दनम् —नपुं॰—-—अभि+मृद्+ल्युट्—कुचलना,दमन करना
अभिमर्शः —पुं॰—-—अभि+मृश्+घञ्—स्पर्श, संपर्क
अभिमर्शः —पुं॰—-—अभि+मृश्+घञ्—अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग,
अभिमर्शनम् —नपुं॰—-—अभि+मृश्+ल्युट् —स्पर्श, संपर्क
अभिमर्शनम् —नपुं॰—-—अभि+मृश्+ल्युट् —अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग,
अभिमर्षः —पुं॰—-—अभि+मृष्+घञ्—स्पर्श, संपर्क
अभिमर्षः —पुं॰—-—अभि+मृष्+घञ्—अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग
अभिमर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+मृष्+ल्युट् —स्पर्श, संपर्क
अभिमर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+मृष्+ल्युट् —अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग
अभिमर्शक —वि॰—-—अभिमृश्+ण्वुल्—स्पर्श करने वाला,संपर्क में आने वाला
अभिमर्शक —वि॰—-—अभिमृश्+ण्वुल्—बलात्कार करने वाला
अभिमर्षक —वि॰—-—अभिमृष्+ण्वुल्—स्पर्श करने वाला,संपर्क में आने वाला
अभिमर्षक —वि॰—-—अभिमृष्+ण्वुल्—अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग
अभिमर्शिन् —वि॰—-—अभिमृश्+णिनि —स्पर्श करने वाला,संपर्क में आने वाला
अभिमर्शिन् —वि॰—-—अभिमृश्+णिनि —अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग
अभिमर्षिन् —वि॰—-—अभिमृष्+णिनि —स्पर्श करने वाला,संपर्क में आने वाला
अभिमर्षिन् —वि॰—-—अभिमृष्+णिनि —अभ्याघात,हिंसा,बलात्कार,संभोग
अभिमादः —पुं॰—-—अभि+मद्+घञ्—नशा, मादकता
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—गौरव,स्वाभिमान,सम्माननीय या योग्य भावना
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—अहंकार,घमंड,दर्प,अहंमन्यता
अभिमानवत् —वि॰—अभिमान-वत्—-—घमंडी,गर्वीला
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—सभी पदार्थों को आत्मा से संकेतित करना,अहंकार की क्रिया,व्यक्तित्व
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—कल्पना,अवधारणा,अटकल,विश्वास,सम्मति
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—स्नेह,प्रेम
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—इच्छा,कामना
अभिमानः —पुं॰—-—अभि+मन्+घञ्—चोट पहुँचाना,हत्या करना,चोट पहुँचाने का प्रयत्न करना
अभिमानशालिन् —वि॰—अभिमानः-शालिन्—-—घमंडी
अभिमानशून्य —वि॰—अभिमानः-शून्य—-—गर्व या घमंड से रहित,विनीत
अभिमानिन् —वि॰—-—अभि+मन्+णिनि—आत्माभिमानी
अभिमानिन् —वि॰—-—अभि+मन्+णिनि—अहंमन्य,घमंडी,गर्वीला,दम्भी
अभिमानिन् —वि॰—-—अभि+मन्+णिनि—सभी पदार्थों को आत्मा से संकेतित मानने वाला
अभिमुख —वि॰—-—-—जो किसी की ओर मुख किये हे हो,की ओर,किसी की ओर मुड़ा हुआ,सामने
अभिमुख —वि॰—-—-—पास आने वाला,समीप जाने वाला,निकट पहुँचने वाला
अभिमुख —वि॰—-—-—विचार करते हुए,प्रवृत्त,
अभिमुख —वि॰—-—-—अनुकूल,अनुकूलतापूरवक सम्पन्न
अभिमुख —वि॰—-—-—मुँह ऊपर को उठाये हुए
अभिमुखं —अव्य॰—-—-—की ओर, दिशा में सामना करते हुये,के सामने की,उपस्थिति में,के निकट
अभिमुखे —अव्य॰—-—-—की ओर, दिशा में सामना करते हुये,के सामने की,उपस्थिति में,के निकट
अभियाचनम् —नपुं॰—-—अभि=याच्+युच्, स्त्रियां टप् च—माँगना,प्रार्थना,अनुरोध,नम्र निवेदन
अभियाच्ञा —स्त्री॰—-—अभि=याच्+नङ् वा स्त्रियां टाप् च्—माँगना,प्रार्थना,अनुरोध,नम्र निवेदन
अभियातिः —पुं॰—-—-—शत्रुता की भावना के साथ पहुँचने वाला-शत्रु,दुश्मन
अभियातिन् —पुं॰—-—-—शत्रुता की भावना के साथ पहुँचने वाला-शत्रु,दुश्मन
अभियातृ —वि॰—-—अभि+या+तृच्,णिनि वा—निकट जाने वाला ,आक्रमण करने वाला
अभियायिन् —वि॰—-—अभि+या+तृच्,णिनि वा—निकट जाने वाला ,आक्रमण करने वाला
अभियानम् —नपुं॰—-—अभि+या+ल्युट्—उपागमन
अभियानम् —नपुं॰—-—अभि+या+ल्युट्—चढ़ाई करना,धावा बोलना,आक्रमण करनायुद्ध के लिये प्रस्थान
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—(क)व्यस्त,लगा हुआ,लीन,जुटा हुआ (ख) परिश्रमी,धैर्यवान,दृढ़संकल्प वाला,तुला हुआ,दत्तचित्त,सावधान
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—सुविज्ञ्,दक्ष
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—विद्वान्,सुप्रतिष्ठित,सुयोग्य न्यायाधीश,पण्डित
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—आक्रान्त,जिस पर हमला कर दिया गया हो
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—जिस पर अभियोग लगाया गया हो,जिस पर दोंषों का आरोपण किया गया हो अभ्यायारोपितयोजित,प्रतिवादी
अभियुक्त —भू॰ क॰ कृ॰ —-—अभि+युज्+क्त—नियुक्त
अभियोक्तृ —वि॰—-—अभि+युज्+तृच्—आक्रमण करने वाला,दोषारोपण करने वाला
अभियोक्ता —पुं॰—-—-—शत्रु,आक्रमणकारी,आक्रान्ता
अभियोक्ता —पुं॰—-—-—आरोपक,वादी,मुद्दई,अभियोजक
अभियोक्ता —पुं॰—-—-—मिथ्याभियोगी
अभियोगः —पुं॰—-—अभि+युज्+घञ्—लगाव,लगन,मेल-जोल, गुरुचर्या
अभियोगः —पुं॰—-—अभि+युज्+घञ्—घना लगाव,धीरज,प्रबल,प्रयास
अभियोगः —पुं॰—-—अभि+युज्+घञ्—(क)किसी चीजको सीखने की लगन(ख)सीखना,विद्वता
अभियोगः —पुं॰—-—अभि+युज्+घञ्—आक्रमण हमला,चढ़ाई
अभियोगः —पुं॰—-—अभि+युज्+घञ्—आरोप,दोषारोपण,पूर्वपक्ष
अभियोगिन् —वि॰—-—अभि+युज्+णिनि—मनोयोगपूर्वक लगा हुआ,तुला हुआ
अभियोगिन् —वि॰—-—अभि+युज्+णिनि—आक्रमणकारी, हमलावर
अभियोगिन् —वि॰—-—अभि+युज्+णिनि—दोषारोपण करने वाला
अभियोगिन् —पुं॰—-—अभि+युज्+णिनि—वादी, मुद्दई
अभिरक्षणम् —नपुं॰—-—अभि+रक्ष्+ल्युट्,अङ् वा—सब ओर से बचाव,पूरा-पूरा बचाव
अभिरक्षा —स्त्री॰—-—अभि+रक्ष्+ल्युट्,अङ् वा—सब ओर से बचाव,पूरा-पूरा बचाव
अभिरतिः —स्त्री॰—-—अभि+रम्+क्तिन्—आनन्द,हर्ष,संतोष,आसक्ति,लगन
अभिराम —वि॰—-—अभि+रम्+घञ्—आनन्दकर,हर्षपूर्ण,मधुर,रुचिकर
अभिराम —वि॰—-—अभि+रम्+घञ्—सुन्दर,सुहावना,मनोहर,मनोरम
अभिरामम् —अव्य॰—-—-—सुन्दर रीति से
अभिरुचिः —स्त्री॰—-—अभि+रुच्+इन्—इच्छा,शौक,पसंदगी,रस,हर्ष,आनन्द
अभिरुचिः —स्त्री॰—-—अभि+रुच्+इन्—यश क इच्छा,महत्त्वाकाँक्षा
अभिरुचितः —पुं॰—-—अभि+रुच्+क्त—प्रेमी
अभिरुतम् —नपुं॰—-—अभि+रु+क्त—ध्वनि,चिल्लाहट,कोलाहल
अभिरूप —वि॰—-—अभि+रूप्+अच्—अनुरूप,समनुरूप,उपयुक्त
अभिरूप —वि॰—-—अभि+रूप्+अच्—सुखद,हर्षपूर्ण
अभिरूप —वि॰—-—अभि+रूप्+अच्—प्रिय,प्यारा,इष्ट,कृपापात्र
अभिरूप —वि॰—-—अभि+रूप्+अच्—विद्वान,बुद्धिमान,समझदार
अभिरूपः —पुं॰—-—अभि+रूप्+अच्—चन्द्रमा
अभिरूपः —पुं॰—-—अभि+रूप्+अच्—शिव
अभिरूपः —पुं॰—-—अभि+रूप्+अच्—विष्णु
अभिरूपः —पुं॰—-—अभि+रूप्+अच्—कामदेव
अभिरूपपतिः —पुं॰—अभिरूप-पतिः—-—रुचि के अनुकूल सुन्दर पति प्राप्त करना, नाम का एक संस्कार जो परलोक में अच्छा पति पाने की इच्छा से किया जाता है
अभिलङ्घनम् —नपुं॰—-—अभि+लंघ्+ल्युट्—कूद कर पार करना,छलांग लगाना
अभिलषणम् —नपुं॰—-—अभि+लष्+ल्युट्—इच्छा करना,चाहना
अभिलषित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+लष्+क्त—इच्छित,चाहा हुआ,उत्कंठित
अभिलषितम् —नपुं॰—-—अभि+लष्+क्त—इच्छा, कामना, संकल्प
अभिलापः —पुं॰—-—अभि+लप्+घञ्—कथन,शब्द,भाषण
अभिलापः —पुं॰—-—अभि+लप्+घञ्—घोषणा,वर्णन,विशेष विवरण
अभिलापः —पुं॰—-—अभि+लप्+घञ्—किसी धार्मिक कर्तव्य या किसी उद्देश्य की प्रतिज्ञा की उद्घोषणा
अभिलावः —पुं॰—-—अभि+लू+घञ्—काटना,कटाई,लवन
अभिलाषः —पुं॰—-—अभि+लष्+घञ्—इच्छा,कामना,उत्कंठा,अनुराग,प्रियतम से मिलने की उत्कंठा,प्रेम
अभिलाषक —वि॰—-—अभि+लष्+ण्वुल्,णिनि,उकञ् वा—कामना या इच्छा करने वाला,चाहने वाला,लालायित,लालची
अभिलाषिन् —वि॰—-—अभि+लष्+ण्वुल्,णिनि,उकञ् वा—कामना या इच्छा करने वाला,चाहने वाला,लालायित,लालची
अभिलासिन् —वि॰—-—अभि+लष्+ण्वुल्,णिनि,उकञ् वा—कामना या इच्छा करने वाला,चाहने वाला,लालायित,लालची
अभिलाषुक —वि॰—-—अभि+लष्+ण्वुल्,णिनि,उकञ् वा—कामना या इच्छा करने वाला,चाहने वाला,लालायित,लालची
अभिलिखित —वि॰—-—अभि+लिख्+क्त—लिखा हुआ, खुदा हुआ
अभिलिखितम् —नपुं॰—-—अभि+लिख्+क्त—लिखना,खोदना
अभिलिखितम् —नपुं॰—-—अभि+लिख्+क्त—लेख
अभिलीन —वि॰—-—अभि+ली+क्त—चिपटा हुआ,सटा हुआ,आसक्त
अभिलीन —वि॰—-—अभि+ली+क्त—आलिंगन करते हुये,ढकते हुए @ मेघ॰ ३६
अभिलुलित —वि॰—-—अभि+लुड्+क्त डस्य लः—क्षुब्ध,बाधायुक्त
अभिलुलित —वि॰—-—अभि+लुड्+क्त डस्य लः—क्रीडायुक्त,अस्थिर
अभिलूता —स्त्री॰प्रा॰ स॰—-—-—एक प्रकार की लकड़ी
अभिवदनम् —नपुं॰—-—अभि+वद्+ल्युट्—संबोधन
अभिवदनम् —नपुं॰—-—अभि+वद्+ल्युट्—नमस्क्रिया
अभिवन्दनम् —नपुं॰—-—-—सादर नमस्कार
पादाभिवन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+बन्द्+ल्युट्—श्रद्धा और भक्ति के साथ दूसरों के चरण स्पर्श करना,नीचे
अभिवर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+वृष्+ल्युट्—बारिस होना,बरसना
अभिवादः —पुं॰—-—अभि+वद्+घञ्—ससम्मान नमस्कार,छोटों के द्वारा बड़ों को प्रणाम,शिष्य के द्वारा गुरू को प्रणाम
अभिवादनम् —नपुं॰—-—अभि+वद्+ल्युट् —ससम्मान नमस्कार,छोटों के द्वारा बड़ों को प्रणाम,शिष्य के द्वारा गुरू को प्रणाम
अभिवादक —वि॰—-—-—नमस्कार करने वाला
अभिवादक —वि॰—-—-—नम्र,सम्मान पूर्ण,विनीत
अभिविधि —वि॰—-—अभि+वि+धा+कि—पूरा सम्मिलन या संबोध,’आ’ का एक अर्थ आरंभिक सीमा
अभिविधि —वि॰—-—अभि+वि+धा+कि—पूर्ण प्रसार
अभिविश्रुत —वि॰—-—अभि+वि+श्रु+क्त—सुविख्यात,सुप्रसिद्ध
अभिवृद्धिः —स्त्री॰—-—अभि+वृध्+क्तिन्—बढ़ना,विकास,योग,सफलता,सम्पन्नता
अभिव्यक्तः —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+वि+अंज्+क्त—स्पष्ट किया हुआ,प्रकाशित,उद्घोषित
अभिव्यक्तः —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+वि+अंज्+क्त—विविक्त,स्पष्ट,साफ
अभिव्यक्तिः —स्त्री॰—-—अभि+वि+अंज्+क्तिन्—प्रकट होना,वैशिष्ट्य,दिखावा,प्रदर्शन
अभिवयञ्जनम् —नपुं॰—-—अभि+वि+अञ्ज्+ल्युट्—प्रकट करना,प्रकाशन करना
अभिव्यापक —वि॰—-—अभि+वि+आप्+ण्वुल्—सम्मिलित करने वाला,समझने वाला,प्रसार करने वाला।
अभिव्यापि्न् —वि॰—-—अभि+वि+आप्+णिनि —सम्मिलित करने वाला,समझने वाला,प्रसार करने वाला।
अभिव्याप्तिः —स्त्री॰—-—अभि+आप्+क्तिन्—सम्मिलित करना,संबोध,सर्वत्र फैलाव
अभिव्याहरणम् —नपुं॰—-—अभि+वि+आ+हृ+ल्युट्—बोलना,उच्चारण करना,कसना
अभिव्याहरणम् —नपुं॰—-—अभि+वि+आ+हृ+ल्युट्—प्रांजल तथा सार्थक शब्द,संज्ञा,नाम
अभिव्याहारः —पुं॰—-—अभि+वि+आ+हृ+घञ् —बोलना,उच्चारण करना,कसना
अभिव्याहारः —पुं॰—-—अभि+वि+आ+हृ+घञ् —प्रांजल तथा सार्थक शब्द,संज्ञा,नाम
अभिशंसक —वि॰—-—अभि+शंस्+ण्वुल्—दोषारोपक,कलंक लगाने वाला,अपमान करने वाला
अभिशंसिन् —वि॰—-—अभि+शंस्+णिनि —दोषारोपक,कलंक लगाने वाला,अपमान करने वाला
अभिशंसनम् —नपुं॰—-—अभि+शंस्+ल्युट्—दोषारोपण,दोष लगाना
मिथ्याभिशंसनम् —नपुं॰—मिथ्या-अभिशंसनम्—-—गाली,अपमान,निरादर
अभिशङ्का —स्त्री॰—-—अभि+शङ्क+अ+टाप्—संदेह,आशंका,भय,चिन्ता
अभिशपनम् —नपुं॰—-—अभि+शप्+ल्युट्—शाप,किसी का बुरा मानना
अभिशपनम् —नपुं॰—-—अभि+शप्+ल्युट्—गंभीर आरोप,दोषारोपण
अभिशपनम् —नपुं॰—-—अभि+शप्+ल्युट्—लांछन,मिथ्या आरोप
अभिशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —शाप,किसी का बुरा मानना
अभिशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —गंभीर आरोप,दोषारोपण
अभिशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —लांछन,मिथ्या आरोप
अभिशपनज्वरः —पुं॰—अभिशपनम्-ज्वरः—-—शाप के उच्चारण से उत्पन्न होने वाला बुखार
अभिशपज्वरः —पुं॰—अभिशप-ज्वरः—-—शाप के उच्चारण से उत्पन्न होने वाला बुखार
अभिशब्दित —वि॰—-—अभि+शब्द्+क्त—उद्घोषित,प्रकाशित,कथित,नाम लिया हुआ
अभिशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+शंस्+क्त—कलंकित,अभिश्प्त,अपमानित
अभिशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+शंस्+क्त—चोट पहुँचाया हुआ,क्षतिग्रस्त,आक्रान्त
अभिशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+शंस्+क्त—अभिशप्त
अभिशस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+शंस्+क्त—दुष्ट,पापी
अभिशस्तक —वि॰—-—अभिशस्त+कन्—मिथ्या दोषारोपित,बदनाम
अभिशस्तिः —स्त्री॰—-—अभि+शंस्+क्तिन्—अभिशाप
अभिशस्तिः —स्त्री॰—-—अभि+शंस्+क्तिन्—दुर्भाग्य,अनिष्ट,संकट
अभिशस्तिः —स्त्री॰—-—अभि+शंस्+क्तिन्—निंदा,लांछन,बदनामी,अपमान
अभिशस्तिः —स्त्री॰—-—अभि+शंस्+क्तिन्—पूछना,माँगना
अभिशापनम् —नपुं॰—-—अभि+शप्+णिच्+ल्युट्—शाप देना,कोसना
अभिशीत —वि॰—-—अभि+श्यै+क्त—शीतल,ठंडा जैसा कि वायु
अभिशोचनम् —नपुं॰—-—अभि+शुच्+ल्युट्—अत्यंत शोक या पीड़ा,कष्ट
अभिश्रवणम् —नपुं॰—-—अभि+श्रु+ल्युट्—श्राद्ध के अवसर पर बैठे हुए ब्राह्मणों द्वारा वेदमंत्रों का पाठ
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—पूरा संपर्क या मेल,आसक्ति,संयोग
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—हार,वैराग्य,पराजय
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अचानक आया हुआ आघात,शोक,दुःख,संकट या दुर्भाग्य
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—भूत प्रेतादि से आविष्ट होना
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—शपथ
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—आलिंगन,संभोग
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अभिशाप,कोसना,दुर्वचन कहना
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—मिथ्या दोषारोपण,बदनामी या लांछन
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—घृणा,अनादर
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—पूरा संपर्क या मेल,आसक्ति,संयोग
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—हार,वैराग्य,पराजय
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अचानक आया हुआ आघात,शोक,दुःख,संकट या दुर्भाग्य
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—भूत प्रेतादि से आविष्ट होना
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—शपथ
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—आलिंगन,संभोग
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अभिशाप,कोसना,दुर्वचन कहना
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—मिथ्या दोषारोपण,बदनामी या लांछन
अभिसङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—घृणा,अनादर
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—पूरा संपर्क या मेल,आसक्ति,संयोग
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—हार,वैराग्य,पराजय
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—अचानक आया हुआ आघात,शोक,दुःख,संकट या दुर्भाग्य
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—भूत प्रेतादि से आविष्ट होना
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—आलिंगन,संभोग
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—अभिशाप,कोसना,दुर्वचन कहना
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—मिथ्या दोषारोपण,बदनामी या लांछन
अभिषञ्जनम् —नपुं॰—-—-—घृणा,अनादर
अभिषवः —पुं॰—-—अभि+षु+अप्—सोमरस निचोड़ना
अभिषवः —पुं॰—-—अभि+षु+अप्—शराब खींचना
अभिषवः —पुं॰—-—अभि+षु+अप्—धार्मिक कृत्यों या संस्कारों से पूर्व किया जाने वाला स्नान या,आचमन
अभिषवः —पुं॰—-—अभि+षु+अप्—स्नान या आचमन
अभिषवः —पुं॰—-—अभि+षु+अप्—यज्ञ
अभिषवम् —नपुं॰—-—अभि+षु+अप्—काञ्जी
अभिषवणम् —नपुं॰—-—अभि+षु+ल्युट्—स्नान
अभिषिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+सिच्+क्त—छिड़का हुआ,आर्द्र किया हुआ
अभिषिक्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+सिच्+क्त—जिसका अभिषेक हो चुका हो,प्रतिष्ठापित,पदारूढ़
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—छिड़कना,पानी के छींटे देना
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—राज्यतिलक करना,राजा या मूर्ति आदि का जलसिंचन द्वारा प्रतिष्ठापन
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—राजाओं का सिंहासनारोहण,प्रतिष्ठापन्न,पदरोहण,राज्यतिलक सम्स्कार
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—प्रतिष्ठापन के अवसर पर काम आने वाला पवित्र जल
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—स्नान,आचमन,पवित्र या धर्म स्नान
अभिषेकः —पुं॰—-—अभि+सिच्+घञ्—उस देवता पर जल छिड़कना जिसकी पूजा की जा रही है
अभिषेकाहः —पुं॰—अभिषेकः-अहः—-—राजतिलक क दिवस
अभिषेकशाला —स्त्री॰—अभिषेकः-शाला—-—राज्यभिषेक का मंडप
अभिषेचनम् —नपुं॰—-—अभि+सिच्+ल्युट्—जल छिड़कना
अभिषेचनम् —नपुं॰—-—अभि+सिच्+ल्युट्—राजतिलक,राज्यप्रतिष्ठापन
अभिषेणनम् —नपुं॰—-—सेनया सह शत्रोः अभिमुखं यानम्--इति-अभि+सेना+णिच्+ल्युट्—शत्रु पर चढ़ाई करने के लिये कूच करना,शत्रु का मुकाबला करना
अभिषेणयति —ना॰ धा॰—-—-—सेना के साथ कूच करना,आक्रमण करना,सेना द्वारा शत्रु का मुकाबला करना
अभिष्टवः —पुं॰—-—अभि+स्तु+अप्—प्रशंसा,स्तुति
अभिष्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—स्राव,बहाव,टपकना
अभिष्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—आँख आना
अभिष्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—अतिवृद्धि,अतिरेक,आधिक्य,अतिरिक्त भाग
अभिस्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—स्राव,बहाव,टपकना
अभिस्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—आँख आना
अभिस्यन्दः —पुं॰—-—अभि+स्यन्द्+घञ्—अतिवृद्धि,अतिरेक,आधिक्य,अतिरिक्त भाग
अभिष्वङ्गः —पुं॰—-—अभि+स्वञ्ज्+घञ्—संपर्क
अभिष्वङ्गः —पुं॰—-—अभि+स्वञ्ज्+घञ्—अत्यधिक आसक्ति,प्रेम,स्नेह
अभिसंश्रयः —पुं॰—-—अभि+सम्+श्रि+अच्—शरण,आश्रय
अभिसंस्तवः —पुं॰—-—अभि+सम्+स्तु+अप्—महती प्रशंसा
अभिसंतापः —पुं॰—-—अभि+सम्+तप्+घञ्—युद्ध,संग्राम,संघर्ष
अभिसन्देहः —पुं॰—-—अभि+सम्+दिह्+घञ्—विनिमत
अभिसन्देहः —पुं॰—-—अभि+सम्+दिह्+घञ्—जननेन्द्रिय
अभिसन्धः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+क,स्वार्थे कन् च—धोखा देने वाला,वंचक,
अभिसन्धः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+क,स्वार्थे कन् च—निन्दक,लांछन लगाने वाला
अभिसन्धकः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+क,स्वार्थे कन् च—धोखा देने वाला,वंचक,
अभिसन्धकः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+क,स्वार्थे कन् च—निन्दक,लांछन लगाने वाला
अभिसन्धा —स्त्री॰—-—अभि+सम्+धा+अङ्+टाप्—भाषण,उद्घोषणा,शब्द,कथन,प्रतिज्ञा
अभिसन्धा —स्त्री॰—-—अभि+सम्+धा+अङ्+टाप्—धोखा
अभिसन्धानम् —नपुं॰—-—अभि+सम्+धा+ल्युट्—भाषण, शब्द, सोद्देश्य उद्घोषणा,प्रतिज्ञा
अभिसन्धानम् —नपुं॰—-—अभि+सम्+धा+ल्युट्—ठगना,धोखा देना
अभिसन्धानम् —नपुं॰—-—अभि+सम्+धा+ल्युट्—उद्देश्य,इरादा,प्रयोजन
अभिसन्धानम् —नपुं॰—-—अभि+सम्+धा+ल्युट्—सन्धि करना
अभिसन्धायः —पुं॰—-—-—भाषण,सोद्देश्य उद्घोषणा,प्रतिज्ञा
अभिसन्धायः —पुं॰—-—-—इरादा,लक्ष्य,प्रयोजन,उद्देश्य
अभिसन्धायः —पुं॰—-—-—निहितार्थ,अभिप्रेत अर्थ
अभिसन्धायः —पुं॰—-—-—सम्मति,विश्वास
अभिसन्धायः —पुं॰—-—-—विशेष अनुबन्ध,अनुबंध की शर्तें,प्रतिबंध,करार
अभिसन्धिः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+कि—भाषण,सोद्देश्य उद्घोषणा,प्रतिज्ञा
अभिसन्धिः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+कि—इरादा,लक्ष्य,प्रयोजन,उद्देश्य
अभिसन्धिः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+कि—निहितार्थ,अभिप्रेत अर्थ
अभिसन्धिः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+कि—सम्मति,विश्वास
अभिसन्धिः —पुं॰—-—अभि+सम्+धा+कि—विशेष अनुबन्ध,अनुबंध की शर्तें,प्रतिबंध,करार
अभिसमवायः —पुं॰—-—अभि+सम्+अव+इ+अच्—एकता
अभिसम्पत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+सम्+पद्+क्तिन्—पूर्ण रूप से प्रभावित होना,अपने मत को बदल देना,परिवर्तन,बदल जाना
अभिसम्परायः —पुं॰—-—अभि+सम्+परा+इ+अच्—भविष्यत काल
अभिसम्पातः —पुं॰—-—अभि+सम्+पत्+घञ्—इकट्ठे मिलना,समागम, संगम
अभिसम्पातः —पुं॰—-—अभि+सम्+पत्+घञ्—युद्ध,संग्राम,संघर्ष
अभिसम्पातः —पुं॰—-—अभि+सम्+पत्+घञ्—अभिशाप
अभिसम्बन्धः —पुं॰—-—अभि+सम्+बन्ध्+घञ्—संबंध,रिश्ता,संयोजन,संपर्क,मैथुन
अभिसम्मुख —वि॰प्रा॰ब॰—-—-—संमुख होने वाला,सामने खड़ा हुआ,सम्मान की दृष्टि से देखने वाला
अभिसरः —पुं॰—-—अभि+सृ+अच्—अनुगामी,अनुचर
अभिसरः —पुं॰—-—अभि+सृ+अच्—साथी
अभिसरणम् —नपुं॰—-—अभि+सृ+ल्युट्—उपागमन,मुकाबला करने के लिये जाना
अभिसरणम् —नपुं॰—-—अभि+सृ+ल्युट्—सम्मिलन,संकेतस्थान,नयक या नायिका द्वारा मिलने का स्थान नियत करना
अभिसर्गः —पुं॰—-—अभि+सृज्+घञ्—सृष्टि,रचना
अभिसर्जनम् —नपुं॰—-—अभि+सृज्+ल्युट्—उपहार,दान
अभिसर्जनम् —नपुं॰—-—अभि+सृज्+ल्युट्—हत्या
अभिसर्पणम् —नपुं॰—-—अभि+सृप्+ल्युट्—उपागमन,मुकाबला करने के लिये शत्रु के निकट जाना
अभिसान्त्वः —पुं॰—-—अभि+सान्त्व्+घञ्,ल्युट् वा—सुलह,समझौता,ढाढस,तसल्ली
अभिसान्त्वनम् —नपुं॰—-—अभि+सान्त्व्+घञ्,ल्युट् वा—सुलह,समझौता,ढाढस,तसल्ली
अभिशान्त्वः —पुं॰—-—अभि+सान्त्व्+घञ्,ल्युट् वा—सुलह,समझौता,ढाढस,तसल्ली
अभिशान्त्वनम् —नपुं॰—-—अभि+सान्त्व्+घञ्,ल्युट् वा—सुलह,समझौता,ढाढस,तसल्ली
अभिसायम् —अव्य॰—-—अव्य॰ स॰—सूर्यास्त के समय,संध्यासमय
अभिसारः —पुं॰—-—अभि+सृ+घञ्—प्रिय से मिलने के लिये जाना,नियत करना या स्थिर करना
अभिसारः —पुं॰—-—अभि+सृ+घञ्—वह स्थान जहाँ नायक नायिका नियत समय पर मिलते हैं,संकेतस्थल
अभिसारः —पुं॰—-—अभि+सृ+घञ्—हमला,आक्रमण
अभिसारस्थानम् —नपुं॰—अभिसारः-स्थानम्—-—मिलने के लिये उपयुक्त स्थान
अभिसारिका —स्त्री॰—-—अभि+सृ+ण्वुल्+टाप्—वह स्त्री जो अपने प्रिय से मिलने जाती है,या उसके द्वारा नियत संकेत का पालन करती है
अभिसारिन् —वि॰—-—अभि+सृ+णिनि—मिलने,दर्शन करने,आक्रमण करने,जाने वाला;जल्दी से बाहर जाने वाला
अभिसारिणी —स्त्री॰—-—अभि+सृ+णिनि+ङीष्—वह स्त्री जो अपने प्रिय से मिलने जाती है,या उसके द्वारा नियत संकेत का पालन करती है
अभिस्नेहः —पुं॰—-—अभि+स्निह्+घञ्—आसक्ति,अनुराग,प्रेम,इच्छा
अभिस्फुरित —वि॰—-—अभि+स्फुर+क्त—पूर्ण रूप से फैला हुआ,पूर्ण विकसित
अभिहत —वि॰—-—अभि+हन्+क्त—प्रहृत,पीटा गया,आहत,घायल किया गया
अभिहत —वि॰—-—अभि+हन्+क्त—जिस पर प्रहार किया गया है,अभिभूत,पराभूत
अभिहत —वि॰—-—अभि+हन्+क्त—बाधामय
अभिहत —वि॰—-—अभि+हन्+क्त—गुणित
अभिहतिः —स्त्री॰—-—अभि+हन्+क्तिन्—प्रहार करना,पीटना,चोट पहुँचाना
अभिहतिः —स्त्री॰—-—अभि+हन्+क्तिन्—गुणन,गुणा
अभिहरणम् —नपुं॰—-—अभि+हृ+ल्युट्—निकट लाना,जाकर लाना
अभिहरणम् —नपुं॰—-—अभि+हृ+ल्युट्—लूटना
अभिहवः —पुं॰—-—अभि+ह्वे+अप्—आवाहन,आमंत्रण
अभिहवः —पुं॰—-—अभि+ह्वे+अप्—पूर्ण रूप से यज्ञानुष्ठान
अभिहवः —पुं॰—-—अभि+ह्वे+अप्—यज्ञ,बलिदान
अभिहारः —पुं॰—-—अभि+घृ+घञ्—ले जाना,लूट लेना,चुरा लेना
अभिहारः —पुं॰—-—अभि+घृ+घञ्—हमला,आक्रमण
अभिहारः —पुं॰—-—अभि+घृ+घञ्—शास्त्रार्थ से सुसज्जित करना,शस्त्र ग्रहण करना
अभिहासः —पुं॰—-—अभि+हस्+घञ्—दिल्लगी,मजाक,विनोद
अभिहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+घा+क्त—कहा गया,बोला गया,घोषित किया गया
अभिहित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+घा+क्त—संबोधित किया गया,पुकारा गया
अभिहितान्वयवादः —पुं॰—अभिहित-अन्वयवादः—-—नैयायिकों का एक विशेष प्रकार का सिद्धान्त
अभिहितवादी —पुं॰—अभिहित-वादिन्—-—नैयायिकों का एक विशेष प्रकार क सिद्धान्त
अभिहोमः —पुं॰प्रा॰ स॰—-— —घी की आहुति देना
अभी —वि॰न॰ ब॰—-—-—निर्भय,निडर
अभीक —वि॰—-—अभि+कन्+दीर्घः—प्रबल इच्छा रखने वाला,अतुर
अभीक —वि॰—-—अभि+कन्+दीर्घः—कामुक,विषयासक्त,विलासी
अभीक —वि॰—-—अभि+कन्+दीर्घः—निर्मय,निडर
अभीक्ष्ण —वि॰—-—अभि+क्ष्णु+ड,दीर्घः—दुहराया हुआ,बार-बार होने वाला
अभीक्ष्ण —वि॰—-—अभि+क्ष्णु+ड,दीर्घः—सतत,निरन्तर
अभीक्ष्ण —वि॰—-—अभि+क्ष्णु+ड,दीर्घः—अत्यधिक
अभीक्ष्णम् —अव्य॰—-—-—बारंबार,पुनः पुनः
अभीक्ष्णम् —अव्य॰—-—-—लगातार
अभीक्ष्णम् —अव्य॰—-—-—अत्यंत,बहुत अधिक
अभीघात —वि॰—-—-—पीछे हटाने वाला,दूर कर देने वाला
अभीप्सित —वि॰—-—अभि+आप्+सन्+क्त—चाहा हुआ अभीष्ट
अभीप्सितम् —नपुं॰—-—-—कामना,इच्छा
अभीप्सिन् —वि॰—-—अभि+आप्+सन्+णिनि—इच्छुक,प्राप्त करने की इच्छा वाला
अभीप्सु —वि॰—-—अभि+आप्+सन्+उ —इच्छुक,प्राप्त करने की इच्छा वाला
अभीरः —पुं॰—-—अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः,अभि+ईर्+अच्—अहीर,गोपाल,गड़रिया
अभीरः —पुं॰—-—अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः,अभि+ईर्+अच्—ग्वाला
अभीरः —पुं॰—-—अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः,अभि+ईर्+अच्—एक देश तथा उसके निवासी
अभीरपल्ली —नपुं॰—अभीरः-पल्ली—-—ग्वालों का गाँव
अभीशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ्—कोसना
अभीशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —शाप,किसी का बुरा मानना
अभीशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —गंभीर आरोप,दोषारोपण
अभीशापः —पुं॰—-—अभि+शप्+घञ् —लांछन,मिथ्या आरोप
अभीशुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—बागडोर,लगाम
अभीशुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—प्रकाशकिरण
अभीषुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—बागडोर,लगाम
अभीषुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—प्रकाशकिरण
अभीशुमत् —वि॰—अभीशुः-मत्—-—अत्युज्वल,अत्युत्तम
अभीषुमत् —वि॰—अभीषुः-मत्—-—अत्युज्वल,अत्युत्तम
अभीशुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—इच्छा
अभीशुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—आसक्ति
अभीषुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—इच्छा
अभीषुः —पुं॰—-—अभि+अश्+उन् पृषो॰ अत इत्वम्-अभि+इष्+कु वा—आसक्ति
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—पूरा संपर्क या मेल,आसक्ति,संयोग
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—हार,वैराग्य,पराजय
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अचानक आया हुआ आघात,शोक,दुःख,संकट या दुर्भाग्य
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—भूत प्रेतादि से आविष्ट होना
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—शपथ
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—आलिंगन,संभोग
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—अभिशाप,कोसना,दुर्वचन कहना
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—मिथ्या दोषारोपण,बदनामी या लांछन
अभिषङ्गः —पुं॰—-—अभि+षंज्+घञ्—घृणा,अनादर
अभीष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+इष्+क्त—चाहा हुआ,इच्छित
अभीष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+इष्+क्त—प्रिय,कृपापात्र,प्रियतम
अभीष्टा —स्त्री॰—-—-—गृहस्वामिनी,प्रेमिका
अभीष्टम् —नपुं॰—-—-—अभीष्ट पदार्थ
अभीष्टम् —नपुं॰—-—-—रुचिकर पदार्थ
अभुग्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो झुका हुआ या टेढ़ा मेढ़ा न हो,सीधा
अभुग्न —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वस्थ,रोगमुक्त
अभुज —वि॰,न॰ त॰—-—-—बाहुरहित,लूला
अभुजिष्या —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—जो दासी या सेविका न हो,स्वतन्त्र स्त्री
अभूः —पुं॰—-—-—विष्णु,जो पैदा न हुआ हो
अभूत —वि॰,न॰ त॰—-—-—सत्ताहीन,जो हुआ न हो,अविद्यमान,अवास्तविक,मिथ्या
अभूताहरणम् —नपुं॰—अभूत-आहरणम्—-—अवस्तु कथन,कपटपूर्ण या व्यंगमय बात कहना
अभूततद्भावः —वि॰—अभूत-तद्भावः—-—जो पहले विद्यमान न हो उसका होना,या बनना,या बदलना
अभूतपूर्व —वि॰—अभूत-पूर्व—-—जो पहले न हुआ हो,जिससे आगे कोई न बढ़ा हो
अभूतप्रादुर्भावः —पुं॰—अभूत-प्रादुर्भावः—-—जो पहले न हुआ हो उसका प्रकट होना
अभूतशत्रु —वि॰—अभूत-शत्रु—-—शत्रुहीन,जिसका कोई शत्रु न हो्
अभूतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—सत्ताहीनता,अविद्यमानता
अभूतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—निर्धनता
अभूमिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—भूमि का न होना,भूमि को छोड़कर अन्य कोई पदार्थ
अभूमिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अनुपयुक्त स्थान या पदार्थ,अनुचित स्थान
अभृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसका भाड़ा न दिया गया हो
अभृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसको समर्थन प्राप्त न हो
अभृत्रिम —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसका भाड़ा न दिया गया हो
अभृत्रिम —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसको समर्थन प्राप्त न हो
अभेद —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अविभक्त
अभेद —वि॰,न॰ ब॰—-—-—समरूप,वही
अभेदः —पुं॰—-—-—भिन्नता का अभाव,समरूपता या समानता का होना
अभेदः —पुं॰—-—-—घनिष्ट एकता
अभेद्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बेधा न जा सके
अभेद्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बेधा न जा सके
अभैदिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविभाज्य
अभैदिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविभाज्य
अभोज्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—खाने के अयोग्य,भोजन के लिये निषिद्ध,अपवित्र
अभोज्यान्न —वि॰—अभोज्य-अन्न—-—जिसका भोजन दूसरों के लिये खाने के अनुपयुक्त हो
अभ्यग्र —वि॰,ब॰ स॰—-—-—निकट,समीप
अभ्यग्र —वि॰,ब॰ स॰—-—-—ताजा, नया
अभ्यग्रम् —नपुं॰—-—-—सामीप्य,सानिध्य
अभ्यङ्क —वि॰,प्रा॰स॰—-—-—हाल ही का चिह्नित
अभ्यङ्गः —पुं॰—-—अभि+अञ्ज्+घञ्—किसी तेल या चिकने पदार्थ को शरीर पर मलना,तेल की मालिश
अभ्यङ्गः —पुं॰—-—अभि+अञ्ज्+घञ्—मालिश,लेप
अभ्यङ्गः —पुं॰—-—अभि+अञ्ज्+घञ्—उबटन
अभ्यञ्जनम् —नपुं॰—-—अभि+अञ्ज्+ल्युट्—चिकने पदर्थों को शरीर पर मलना
अभ्यञ्जनम् —नपुं॰—-—अभि+अञ्ज्+ल्युट्—मालिश करना
अभ्यञ्जनम् —नपुं॰—-—अभि+अञ्ज्+ल्युट्—आँखों में काजल डालना
अभ्यञ्जनम् —नपुं॰—-—अभि+अञ्ज्+ल्युट्—चिकना पदार्थ,तेल,उबटन
अभ्यधिक —वि॰ प्रा॰स॰—-—-—अपेक्षाकृत अधिक
अभ्यधिक —वि॰ प्रा॰स॰—-—-—बढ़ चढ़कर,गुणा या परिमाण में अपेक्षाकृत अधिक,अधिक ऊँचा,अधिक बड़ा
अभ्यधिक —वि॰ प्रा॰स॰—-—-—सामान्य से अधिक,असाधारण,प्रमुख
अभ्यनुज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—स्वीकृति
अभ्यनुज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—सहमति,अनुमति
अभ्यनुज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—आज्ञा,आदेश
अभ्यनुज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—छुट्टी स्वीकार करना,बर्खास्त करना
अभ्यनुज्ञा —स्त्री॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—तर्क को स्वीकार करना
अभ्यनुज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—स्वीकृति
अभ्यनुज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—सहमति,अनुमति
अभ्यनुज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—आज्ञा,आदेश
अभ्यनुज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—छुट्टी स्वीकार करना,बर्खास्त करना
अभ्यनुज्ञानम् —नपुं॰—-—अभि+अनु+ज्ञा+अङ्+टाप्,ल्युट् वा—तर्क को स्वीकार करना
अभ्यन्तर —वि॰,पुं॰—-—-—भीतरी भाग,आन्तरिक,अन्दरूनी
अभ्यन्तर —वि॰,पुं॰—-—-—अन्तर्गत होना,किसी समूह या शरीर का एक अंग
अभ्यन्तर —वि॰,पुं॰—-—-—दीक्षित,परिचित,कुशल
अभ्यन्तर —वि॰,पुं॰—-—-—निकटतम,घनिष्ट,अत्यन्त संबद्ध
अभ्यन्तरम् —नपुं॰—-—-—भीतर का,भीतरी, अन्दर का,अन्दरूनी भाग,भीतरी स्थान
अभ्यन्तरम् —नपुं॰—-—-—सम्मिलित किया हुआ स्थल,समय या स्थान का अवकाश
अभ्यन्तरकरण —वि॰—अभ्यन्तर-करण—-—अन्दर ही अन्दर गुप्त अंगों वाला.प्रत्यक्षज्ञान की शक्ति को अन्दर रखने वाला
अभ्यन्तरकला —वि॰—अभ्यन्तर-कला—-—गुप्त कला,प्रेम लीला या हावभाव प्रदर्शित करने की कला
अभ्यन्तरकः —पुं॰—-—अभ्यन्तर+कन्—घनिष्ट मित्र
अभ्यन्तरीकृ —तना॰उभ॰—-—अभ्यन्तर+च्वि+कृ—दीक्षित करना,परिचित करना
अभ्यन्तरीकृ —तना॰उभ॰—-—अभ्यन्तर+च्वि+कृ—परिचय कराना
अभ्यन्तरीकृ —तना॰उभ॰—-—अभ्यन्तर+च्वि+कृ—किसी को निकटमित्र बनाना
अभ्यन्तरीकरणम् —नपुं॰—-—अभ्यंतर+च्वि+कृ+ल्युट्— दीक्षित करना,परिचय करना
अभ्यमनम् —नपुं॰—-—अभि+अम्+ल्युट्—प्रहार,क्षति
अभ्यमनम् —नपुं॰—-—अभि+अम्+ल्युट्—रोग
अभ्यमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+अम्+क्त—रोगी,बीमार
अभ्यमित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+अम्+क्त—चोट खाया हुआ,घायल
अभ्यान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+अम्+क्त—रोगी,बीमार
अभ्यान्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+अम्+क्त—चोट खाया हुआ,घायल
अभ्यमित्रम् —अव्य॰ स॰—-—-—शत्रु के ऊपर आक्रमण
अभ्यमित्रम् —क्रि॰ वि॰—-—-—शत्रु की ओर या शत्रु के विरुद्ध चढ़ाई करना
अभ्यमित्रीणः —पुं॰—-—अभि+अमित्र+ख,छ,यत् वा—वह योद्धा जो वीरतापूर्वक शत्रु का सामना करता है
अभ्यमित्रीयः —पुं॰—-—अभि+अमित्र+ख,छ,यत् वा—वह योद्धा जो वीरतापूर्वक शत्रु का सामना करता है
अभ्यमित्र्यः —पुं॰—-—अभि+अमित्र+ख,छ,यत् वा—वह योद्धा जो वीरतापूर्वक शत्रु का सामना करता है
अभ्ययः —पुं॰—-—अभि+इ+अच्—आना,पहुँचना
अभ्ययः —पुं॰—-—अभि+इ+अच्—अस्त होना
अभ्यर्चन —वि॰—-—अभि+अर्च्+ल्युट्,अङ्+टाप् वा—पूजा,सजावट,समादर
अभ्यर्चा —स्त्री॰—-—अभि+अर्च्+ल्युट्,अङ्+टाप् वा—पूजा,सजावट,समादर
अभ्यर्ण —वि॰—-—अभि+अर्द्+क्त—निकट,समीप,स्थान के निकट या समीप होने वाल, समीप आने वाला
अभ्यर्णम् —नपुं॰—-—अभि+अर्द्+क्त—सामीप्य,सानिध्य
अभ्यर्थनम् —नपुं॰—-—अभि+अर्थ्+ल्युट्,स्त्रियां टाप्—प्रार्थना,अनुरोध,दरख्वास्त,नालिश
अभ्यर्थना —स्त्री॰—-—अभि+अर्थ्+ल्युट्,स्त्रियां टाप्—प्रार्थना,अनुरोध,दरख्वास्त,नालिश
अभ्यर्थिन् —वि॰—-—अभि-अर्थ्+णिनि—याचना या प्रार्थना करने वाला
अभ्यर्हणा —स्त्री॰—-—अभि+अर्ह्+युच्,स्त्रियां टाप्—पूजा
अभ्यर्हणा —स्त्री॰—-—अभि+अर्ह्+युच्,स्त्रियां टाप्—आदर,सम्मान,समादर
अभ्यर्हित —वि॰—-—अभि+अर्ह्+क्त—सम्मानित,प्रतिष्ठित,अत्यादरणीय
अभ्यर्हित —वि॰—-—अभि+अर्ह्+क्त—योग्य,सुहावना,उपयुक्त
अभ्यवकर्षणम् —नपुं॰—-—अभि+अव+कृष्+ल्युट्—निकालना,खींचकर बाहर करना
अभ्यवकाशः —पुं॰—-—अभि+अव+काश्+घञ्—खुली जगह
अभ्यवस्कन्दः —पुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+घञ्—डट कर शत्रु का मुकाबला करना,शत्रु पर चढ़ाई करना
अभ्यवस्कन्दः —पुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+घञ्—शत्रु को निश्शस्त्र करने के लिए प्रहार करना
अभ्यवस्कन्दः —पुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+घञ्—आघात
अभ्यवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+ल्युट्—डट कर शत्रु का मुकाबला करना,शत्रु पर चढ़ाई करना
अभ्यवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+ल्युट्—शत्रु को निश्शस्त्र करने के लिए प्रहार करना
अभ्यवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अभि+अव+स्कन्द्+ल्युट्—आघात
अभ्यवहरणम् —नपुं॰—-—अभि+अव+हृ+ल्युट्—नीचें फेंक देना
अभ्यवहरणम् —नपुं॰—-—अभि+अव+हृ+ल्युट्—भोजन ग्रहण करना, गले के नीचे उतारना
अभ्यवहारः —पुं॰—-—अभि+अव+हृ+घञ्—भोजन ग्रहण करना,आहार लेना,खाना पीना आदि
अभ्यवहारः —पुं॰—-—अभि+अव+हृ+घञ्—आहार
अभ्यवहार्य —वि॰—-—अभि+अव+हृ+ण्यत्—खाने के योग्य,भोज्य
अभ्यवहार्यम् —नपुं॰—-—अभि+अव+हृ+ण्यत्—आहार
अभ्यसनम् —नपुं॰—-—अभि+अस्+ल्युट्—बार-बार करना,बार-बार किया गया अभ्यास
अभ्यसनम् —नपुं॰—-—अभि+अस्+ल्युट्—निरन्तर अध्ययन,अनुशीलन
अभ्यसूयक —वि॰—-—अभि+असु+ण्वुल्—ईर्ष्याल,डाहभरा,निन्दक,कलंक लगाने वाला
अभ्यसूया —स्त्री॰—-—अभि+असु+यक्+अ+टाप्—डाह,ईर्ष्या,द्वेष,क्रोध
अभ्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अधि+अस्+क्त—बार-बार दोहराया गया,बार-बार अभ्यास किया गयाप्रयोग में लाया गया,आदत डाली हुई
अभ्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अधि+अस्+क्त—सीखा हुआ,पढ़ा हुआ
अभ्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अधि+अस्+क्त—गुणा किया गया
अभ्यस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अधि+अस्+क्त—द्वित्व किया गया
अभ्याकर्षः —पुं॰—-—अभि+आ+कृष्+घञ्—हाथ से छाती ठोंकर ललकारना
अभ्याकाङ्क्षितम् —नपुं॰—-—अभि+आ+काङ्क्ष्+क्त—मिथ्या आरोप,निराधार शिकायत
अभ्याकाङ्क्षितम् —नपुं॰—-—अभि+आ+काङ्क्ष्+क्त—इच्छा
अभ्याख्यानम् —नपुं॰—-—अभि+आ+ख्या+ल्युट्—मिथ्या आरोप,लाञ्छन,निन्दा,बदनामी
अभ्यागत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+आ+गम्+क्त—निकट आया हुआ,पहुँचा हुआ
अभ्यागत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+आ+गम्+क्त—अतिथि के रूप में आया हुआ
अभ्यागतः —पुं॰—-—-—अतिथि,दर्शक
अभ्यागमः —पुं॰—-—अभि+आ+गम्+घञ्—निकट आना या जाना,पहुँच,दर्शनार्थ गमन
अभ्यागमः —पुं॰—-—अभि+आ+गम्+घञ्—सामीप्य,पड़ोस
अभ्यागमः —पुं॰—-—अभि+आ+गम्+घञ्—मुकाबला,हमला
अभ्यागमः —पुं॰—-—अभि+आ+गम्+घञ्—युद्ध,संग्राम
अभ्यागमः —पुं॰—-—अभि+आ+गम्+घञ्—शत्रुता,विद्वेष
अभ्यागमनम् —नपुं॰—-—अभि+आ+गम्+ल्युट्—उपागमन,पहुँच,दर्शनार्थ गमन
अभ्यागरिकः —पुं॰—-—अभि+आगार+ठन्—परिवार के पालन में यत्नशील
अभ्याघातः —पुं॰—-—अभि+आ+हन्+घञ्—हमला,आक्रमण
अभ्यादानम् —नपुं॰—-—अभि+आ+दा+ल्युट्—उपक्रम,प्रारम्भ, सूत्रपात करना
अभ्याधानम् —नपुं॰—-—अभि+आ+धा+ल्युट्—रखना,डालना
अभ्यान्त —वि॰—-—अभि+आ+अम्+क्त—बीमार,रुग्ण,रोगी
अभ्यापातः —पुं॰—-—अभि+आ+पत्+घञ्—संकट,दुर्भाग्य
अभ्यामर्दः —पुं॰—-—अभि+आ+मृद्+घञ्—युद्ध,संग्राम,संघर्ष,आक्रमण
अभ्यामर्दनम् —नपुं॰—-—अभि+आ+मृद्+ल्युट् —युद्ध,संग्राम,संघर्ष,आक्रमण
अभ्यारोहः —पुं॰—-—अभि+आ+रुह्+घञ्—चढ़ना,सवार होना,ऊपर तक जाना
अभ्यारोहणम् —नपुं॰—-—अभि+आ+रुह्+ल्युट् —चढ़ना,सवार होना,ऊपर तक जाना
अभ्यावृत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+आ+वृत्=क्तिन्—दोहराना,बार--बार होना,
अभ्याश —वि॰—-—अभि+अश्+घञ्—निकट,समीप
अभ्याशः —पुं॰—-—अभि+अश्+घञ्—पहुँचना,व्याप्त होना
अभ्याशः —पुं॰—-—अभि+अश्+घञ्—समीपस्थ पड़ोस,आसपस का
अभ्याशः —पुं॰—-—अभि+अश्+घञ्—परिणाम,फल
अभ्याशः —पुं॰—-—अभि+अश्+घञ्—अभुदय,प्रत्याशंसा
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—आवृत्ति
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—बार-बार किसी कार्य को करना,लगातार किसी कार्य में लगे रहना अनवरत अभ्यास के द्वारा
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—आदत,प्रथा,चलन
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—शस्त्रास्त्र विषयक अनुशासन,कवायद,सैनिक कवायद
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—पाठ करना,अध्ययन करना
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—आसपास का सामीप्य ,पड़ोस
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—द्वित्व होना
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—द्वित्व हुए मूलशब्द का प्रथम अक्षर,द्वित्व अक्षर
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—गुणा
अभ्यासः —पुं॰—-—अभि+आ+अस्+घञ्—सम्मिलित,गान,गीत का टेक
अभ्यासगत —वि॰—अभ्यासः-गत—-—उपागत,निकट गया हुआ
अभ्यासयोगः —पुं॰—अभ्यासः-योगः—-—अनवरत गहन चिंतन से उत्पन्न मनोयोग
अभ्यासलोपः —पुं॰—अभ्यासः-लोपः—-—द्वित्व किये हुए अक्षर को हटा देना
अभ्यासव्यवायः —पुं॰—अभ्यासः-व्यवायः—-—द्वित्व अक्षर से उत्पन्न अन्तराल
अभ्यासादनम् —नपुं॰—-—अभि+आ+सद्+णिच्+ल्युट्—शत्रु का सामना करना या उस पर हमला करना
अभ्याहननम् —नपुं॰—-—अभि+आ+हन्+ल्युट्—प्रहार करना,चोट पहुँचाना,हत्या करना
अभ्याहननम् —नपुं॰—-—अभि+आ+हन्+ल्युट्—रोक लगाना,बाधा डालना
अभ्याहारः —पुं॰—-—अभि+आ+ह+घञ्—निकट लाना,ले जाना
अभ्याहारः —पुं॰—-—अभि+आ+ह+घञ्—लूटना
अभ्युक्षणम् —नपुं॰—-—अभि+उक्ष्+ल्युट्—छिड़कना,तर करना
अभ्युक्षणम् —नपुं॰—-—अभि+उक्ष्+ल्युट्—अभिषेक द्वारा संस्कार
अभ्युचित —वि॰—-—प्रा॰ स॰—प्रथा के अनुकूल
अभ्युच्चयः —पुं॰—-—अभि+उत्+चि+अच्—वृद्धि,आगम
अभ्युच्चयः —पुं॰—-—अभि+उत्+चि+अच्—सम्पन्नता
अभ्युत्क्रोशनम् —नपुं॰—-—अभि+उत्+कुश्+ल्युट्—ऊँचे स्वर से चिल्लाना।
अभ्युत्थानम् —नपुं॰—-—अभि+उत्+स्था+ल्युट्—सत्कारार्थ उठाना,किसी के सम्मान मे खड़े होना
अभ्युत्थानम् —नपुं॰—-—अभि+उत्+स्था+ल्युट्—रवाना होना,प्रस्थान करना,कूच करना
अभ्युत्थानम् —नपुं॰—-—अभि+उत्+स्था+ल्युट्—उठना,उन्नति,संपन्नता,मर्यादा
अभ्युत्पतनम् —नपुं॰—-—अभि+उत्+पत्+ल्युट्—किसी पर उछलना,कुदना,अक्स्मात् झपटना,हमला करना
अभ्युदयः —पुं॰—-—अभि+उद्+इ+घञ्—सूर्य चन्द्रादि,का निकलना सूर्योदय
अभ्युदयः —पुं॰—-—अभि+उद्+इ+घञ्—उन्नति,सम्पन्नता,सौभाग्य,ऊचा उठना, सफलता
अभ्युदयः —पुं॰—-—अभि+उद्+इ+घञ्—उत्सव,उत्सव का अवसर
अभ्युदयः —पुं॰—-—अभि+उद्+इ+घञ्—उपक्रम,आरम्भ
अभ्युदाहरणम् —नपुं॰—-—अभि+उद्+आ+ह्+ल्युट्—विपरीत बात के द्वारा उदाहरण या निदर्शन देना ।
अभ्युदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+इ+त—निकला हुआ उन्नत
अभ्युदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+इ+त—उन्नत
अभ्युदित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+इ+त—सूर्योदय के अवसर पर सोया हुआ।
अभ्युद्गगमः —पुं॰—-—अभि +उद्+गम्+घञ्—किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या अतिथि के सम्मानार्थ उठकर चलना
अभ्युद्गगमः —पुं॰—-—अभि +उद्+गम्+घञ्—निकला, हुआ,उत्पन्न होना।
अभ्युद्गगमनम् —नपुं॰—-—अभि +उद्+गम्+घञ्, ल्युट्—किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या अतिथि के सम्मानार्थ उठकर चलना
अभ्युद्गगमनम् —नपुं॰—-—अभि +उद्+गम्+ल्युट्—निकला, हुआ,उत्पन्न होना।
अभयुद्गतिः —स्त्री॰—-—अभि +उद्+गम्+क्तिन्—किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या अतिथि के सम्मानार्थ उठकर चलना
अभयुद्गतिः —स्त्री॰—-—अभि +उद्+गम्+क्तिन्—निकला, हुआ,उत्पन्न होना।
अभ्युद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+यम्+क्त्—उठा हुआ,ऊपर उठाया हुआ
अभ्युद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+यम्+क्त्—तत्पर ,तैयार ,प्रयत्नशील,
अभ्युद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+यम्+क्त्—आगे गया हुआ ,निकला हुआ,सामने दिखयी देने वाला,निकट आने वाला
अभ्युद्यत —भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उद्+यम्+क्त्—अयाचित दिया हुआ या लाया हुआ।
अभ्युन्नत —वि॰—-—अभि+उद्+नम्+क्त्त्—उठा हुआ ,ऊँचा किया हुआ
अभ्युन्नत —वि॰—-—अभि+उद्+नम्+क्त्त्—ऊपर को उभरा हुआ,बहुत ऊचाँ
अभ्युन्नतिः —स्त्री॰—-—अभि+उद्+नम्+क्त्तिन्—बडी उन्नति या समृद्धि
अभ्युपगमः —पुं॰—-—अभि+उप्+गम्+घञ्—उपागमन,पहुंच
अभ्युपगमः —पुं॰—-—अभि+उप्+गम्+घञ्—स्वीकार करना, मानना, सत्य समझना, मान लेना
अभ्युपगमः —पुं॰—-—अभि+उप्+गम्+घञ्—जिम्मेदारी ,प्रतिज्ञा करना संविदा, करार, प्रतिज्ञा
अभ्युपगमसिद्धान्तः —पुं॰—अभ्युपगमः-सिद्धान्तः—-—मानी हुई प्रस्तावित योजना या सूक्ति
अभ्युपपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+उप्+पद्+क्तिन्—सहायतार्थ निकट जाना,दया करना,कृपा करना,अनुग्रह,कृपा
अभ्युपपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+उप्+पद्+क्तिन्—ढाढस,तसल्ली
अभ्युपपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+उप्+पद्+क्तिन्—रक्षा,बचाव
अभ्युपपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+उप्+पद्+क्तिन्—इकरारनामा,स्वीकृति प्रतिज्ञा
अभ्युपपत्तिः —स्त्री॰—-—अभि+उप्+पद्+क्तिन्—स्त्री का गर्भवती होना
अभ्युपायः —पुं॰—-—अभि+उप्+इ+अच्—प्रतिज्ञा,वादा,इकरार
अभ्युपायः —पुं॰—-—अभि+उप्+इ+अच्—साधन,युक्ति,उपचार
अभ्युपायनम् —नपुं॰—-—अभि+उप+अय्+ल्युट्—सम्मान सूचक उपहार,प्रलोभन,रिश्वत।
अभ्युपेत —वि॰भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उप+इ+क्त—निकट आया हुआ,उपागत
अभ्युपेत —वि॰भू॰ क॰ कृ॰—-—अभि+उप+इ+क्त—प्रतिज्ञात,स्वीकृत,अंगीकृत
अभ्युपेत्य —अव्य॰—-—अभि + उप + इ + ल्यप्(क्त्वा)—पहुँच कर, स्वीकार करके, प्रतिज्ञा करके
अभ्युपेत्याशुश्रुषा —स्त्री॰—अभ्युपेत्य-अशुश्रुषा—-—हिन्दूधर्मशास्त्र के १८ अधिकारों मे से एक,स्वामी और सेवक के मध्य की हुई संविदा का भंग
अभ्युषः —पुं॰—-—अभितः उष्यते अग्निना दह्यते-उष् बाहु॰ क—एक प्रकार की रोंटी बाटी।
अभ्यूषः —पुं॰—-—अभितः ऊष्यते अग्निना—एक प्रकार की रोंटी बाटी।
अभ्योषः —पुं॰—-—दहाते-उ-ऊष् बाहु०क—एक प्रकार की रोंटी बाटी।
अभ्यूहः —पुं॰—-—अभि+उह्+घञ्—तर्क करना,दलील देना,विचार विमर्श करना
अभ्यूहः —पुं॰—-—अभि+उह्+घञ्—आगमन,अनुमान,अटकल
अभ्यूहः —पुं॰—-—अभि+उह्+घञ्—अध्याहार करना
अभ्यूहः —पुं॰—-—अभि+उह्+घञ्—समझना
अभ्र् —भ्वा॰ पर॰ <अभ्रति>,<आनभ्र्>,<अभ्रित>—-—-—जाना,इधर उधर घूमना
अभ्रम् —नपुं॰—-—अभ्र्+अच् या अप् + भृ अपो बिभर्ति- भृ+क—बादल
अभ्रम् —नपुं॰—-—अभ्र्+अच् या अप् + भृ अपो बिभर्ति- भृ+क—वायुमंडल,आकाश
अभ्रम् —नपुं॰—-—अभ्र्+अच् या अप् + भृ अपो बिभर्ति- भृ+क—चिलचिल, अबरक
अभ्रम् —नपुं॰—-—अभ्र्+अच् या अप् + भृ अपो बिभर्ति- भृ+क—शून्य
अभ्रावकाशः —पुं॰—अभ्रम्-अवकाशः—-—बचाव के लिये केवल मात्र बादल,बारिश होना।
अभ्रावकाशिक —वि॰—अभ्रम्-अवकाशिक—-—बारिश में रहकर , बारिश से बचाव का कोई उपाय न करने वाला
अभ्रावकाशिन् —वि॰—अभ्रम्-अवकाशिन्—-—बारिश में रहकर , बारिश से बचाव का कोई उपाय न करने वाला
अभ्रोत्थः —पुं॰—अभ्रम्-उत्थः—-—आकाश में उत्पन्न इन्द्र का वज्र
अभ्रनागः —पुं॰—अभ्रम्-नागः—-—ऐरावत नाम का हाथी जो धरती को धारण किये हुए हैं
अभ्रपथः —पुं॰—अभ्रम्-पथः—-—वायुमंडल
अभ्रपथः —पुं॰—अभ्रम्-पथः—-—गुब्बारा
अभ्रपिशाचः —पुं॰—अभ्रम्-पिशाचः—-—राहु की उपाधि, मेघासुर
अभ्रपिशाचकः —पुं॰—अभ्रम्-पिशाचकः—-—राहु की उपाधि, मेघासुर
अभ्रपुष्पः —पुं॰—अभ्रम्-पुष्पः—-—एक प्रकार की बेंत
अभ्रपुष्पम् —नपुं॰—अभ्रम्-पुष्पम्—-—पानी
अभ्रपुष्पम् —नपुं॰—अभ्रम्-पुष्पम्—-—असंभव बात, हवाई किला
अभ्रमातङ्गः —पुं॰—अभ्रम्-मातङ्गः—-—इन्द्र का हाथी ऐरावत
अभ्रमाला —स्त्री॰—अभ्रम्-माला—-—बादलों की पंक्ति या समूह
अभ्रवृन्दम् —नपुं॰—अभ्रम्-वृन्दम्—-—बादलों की पंक्ति या समूह
अभ्रंलिह —वि॰—-—अभ्र्+लिह्+खश् मुमागमः—‘बादलों को चूमन वाला’ स्पर्श करने वाला अर्थात् बहुत ऊँचा
अभ्रंलिहः —पुं॰—-—अभ्र्+लिह्+खश् मुमागमः—वायु, हवा
अभ्रकम् —नपुं॰—-—अभ्र+कन्—चिलचिल, अबरक
अभ्रकभस्मन् —नपुं॰—अभ्रकम्-भस्मन्—-—अबरक का कुश्ता,अबरक की भस्त ।
अभ्रकसत्त्वम् —नपुं॰—अभ्रकम्-सत्त्वम्—-—इस्पात
अभ्रङ्कष —वि॰—-—अभ्र + कष् + खच् मुमागमः—बादलों को छूने वाला,बहुत ऊँचा
अभ्रङ्कषः —पुं॰—-—अभ्र + कष् + खच् मुमागमः—वायु, हवा
अभ्रङ्कषः —पुं॰—-—अभ्र + कष् + खच् मुमागमः—पहाड़
अभ्रमुः —स्त्री॰—-—अभ्र+मा+उ—इन्द्र के हाथी ऐरावत की सहचरी,पूर्वदिशा के दिग्गज की हथिनी
अभ्रमुप्रियः —पुं॰—अभ्रमुः-प्रियः—-—ऐरावत
अभ्रमुवल्लभः —पुं॰—अभ्रमुः-वल्लभः—-—ऐरावत
अभ्रिः —स्त्री॰—-—अभ्र+इन् —लकड़ी की बनी हुई नोकदार फरही जिससे नाव की सफाई की जाती है
अभ्रिः —स्त्री॰—-—अभ्र+इन् —कुदाल,खुरपी
अभ्री —स्त्री॰—-—अभ्र+ङीष्—लकड़ी की बनी हुई नोकदार फरही जिससे नाव की सफाई की जाती है
अभ्री —स्त्री॰—-—अभ्र+ङीष्—कुदाल,खुरपी
अभ्रित —वि॰—-—अभ्र+इतच्—बादलो से आच्छदित,बादलो से घिरा हुआ
अभ्रिय —वि॰—-—अभ्र+घ—बादलो से सम्बन्ध रखने वाला,आकाश या मुस्ता अथवा बादलो से उत्पन्न
अभ्रियः —पुं॰—-—अभ्र+घ—बिजली
अभ्रियम् —नपुं॰—-—अभ्र+घ—गरजने वालें बादलों का समूह।
अभ्रेषः —पुं॰—-—-—अव्यत्यय,योग्यता,उपयुक्तता।
अम् —अव्य॰—-—अम्+क्विप्—जल्दी,शीघ्र
अम् —अव्य॰—-—अम्+क्विप्—जरा,थोड़ा
अम् —भ्वा॰ प॰ <अमति>,<अमितुम्>,<अमित>—-—-—जाना,की ओर जाना
अम् —भ्वा॰ प॰ <अमति>,<अमितुम्>,<अमित>—-—-—सेवा करना,सम्मान करना
अम् —भ्वा॰ प॰ <अमति>,<अमितुम्>,<अमित>—-—-—शब्द करना
अम् —भ्वा॰ प॰ <अमति>,<अमितुम्>,<अमित>—-—-—खाना,
अम् —चु॰ प॰ या प्रेर॰—-—-—टूट पड़ना,आक्रमण करना,रोग से कष्ट होना,किसी व्याधि से पीड़ित होना
अम् —चु॰ प॰ या प्रेर॰—-—-—रोगी होना, कष्टग्रस्त या रोगग्रस्त होना।
अम —वि॰—-—अम्+घञ् अवृद्धि—कच्चा
अमः —पुं॰—-—अम्+घञ् अवृद्धि—जाना
अमः —पुं॰—-—अम्+घञ् अवृद्धि—रुग्णता,रोग
अमः —पुं॰—-—अम्+घञ् अवृद्धि—सेवक,अनुचर
अमः —पुं॰—-—अम्+घञ् अवृद्धि—यह,स्वयम्
अमङ्गल —वि॰,ब॰स॰,न॰त॰—-—-—अशुभ,बुरा, अकल्याणकर
अमङ्गल —वि॰,ब॰स॰,न॰त॰—-—-—भाग्यहीन,दुर्भाग्य पूर्ण
अमङ्गल्य —वि॰,ब॰स॰,न॰त॰—-—-—अशुभ,बुरा, अकल्याणकर
अमङ्गल्य —वि॰,ब॰स॰,न॰त॰—-—-—भाग्यहीन,दुर्भाग्य पूर्ण
अमङ्गलः —पुं॰—-—-—एरण्ड का वृक्ष
अमङ्गलम् —नपुं॰—-—-—अशोभनीयता,दुर्भाग्य,अकल्याण,प्रायः नाट्य-शास्त्र मे प्रयुक्त
अमण्ड —वि॰—-—-—बिना सजावट का,अलंकार रहित
अमण्ड —वि॰—-—-—बिना झाग का,या बिना मांड का
अमण्डः —वि॰—-—-—एरण्ड का वृक्ष।
अमत —वि॰—-—-—अननुभूत,मन के लिए असंलक्ष्य,अज्ञात
अमत —वि॰—-—-—नापसन्द,अमान्य।
अमतः —पुं॰—-—-—रुग्णता,रोग
अमति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—दुर्मना,दुष्ट,दुश्वरित्र।
अमतिः —पुं॰—-—-—धूर्त,कपटी
अमतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अज्ञान,संज्ञाहीनता,ज्ञान का अभाव, अदूरदर्शिता
अमतिपूर्व —वि॰—अमति-पूर्व—-—सज्ञांहीन,विचारहीन
अमत्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो नशे मे न हो, सही दिमाग का।
अमत्रम् —नपुं॰—-—अमति भुक्ते अन्नमत्र- अम्+आधारे अत्रन्—वर्तन्,बासन,पात्र
अमत्रम् —नपुं॰—-—अमति भुक्ते अन्नमत्र- अम्+आधारे अत्रन्—सामर्थ्य, शक्ति
अमत्सर —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो ईर्ष्यालु या डाहयुक्त न हो,उदार।
अमनस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना मन या ध्यान के
अमनस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बुद्धिहीन (जैसे को बालक)
अमनस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—ध्यान न देने वाला
अमनस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका अपने मन के ऊपन कोई नियंत्रण न हो
अमनस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—स्नेहहीन
अमनस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—बिना मन या ध्यान के
अमनस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—बुद्धिहीन (जैसे को बालक)
अमनस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—ध्यान न देने वाला
अमनस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—जिसका अपने मन के ऊपन कोई नियंत्रण न हो
अमनस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—स्नेहहीन
अमनः —नपुं॰—-—-—जो इच्छा का अंग न हों, प्रत्यक्षज्ञान का अभाव
अमनः —नपुं॰—-—-—ध्यानशून्य
अमनगत —वि॰—अमनस्-गत—-—अज्ञात, अविचारित
अमनज्ञ —वि॰—अमनस्-ज्ञ—-—नापसन्द, रद्द किया गया, धिक्कृत
अमननीत —वि॰—अमनस्-नीत—-—नापसन्द, रद्द किया गया, धिक्कृत
अमनयोगः —वि॰—अमनस्-योगः—-—ध्यान न देना
अमनहर —वि॰—अमनस्-हर—-—जो सुखकर न हो, जो रुचिकर न हो
अमनाक् —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—थोड़ा नहीं, बहुत, अत्यधिक
अमनुष्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अमानुषिक,जो मनुष्योचित न हो
अमनुष्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जहाँ मनुष्य का आना जाना बहुत कम हो
अमनुष्यः —पुं॰—-—-—जो मनुष्य न हो
अमन्त्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—वैदिक मन्त्रो से रहित, वह संस्कार जिसमे वेदमंन्त्रो के पाठ की आवश्यकता न हो
अमन्त्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसे वेद के पढ़ने का अधिकार न हो
अमन्त्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो वेदपाठ से अनभिज्ञ हो
अमन्त्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रोग की वह चिकित्सा जिसमें जादूमंत्र की क्रिया न की जाती हो
अमन्त्रक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—वैदिक मन्त्रो से रहित, वह संस्कार जिसमे वेदमंन्त्रो के पाठ की आवश्यकता न हो
अमन्त्रक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—जिसे वेद के पढ़ने का अधिकार न हो
अमन्त्रक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—जो वेदपाठ से अनभिज्ञ हो
अमन्त्रक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप् च—रोग की वह चिकित्सा जिसमें जादूमंत्र की क्रिया न की जाती हो
अमन्द —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सुस्त या मन्द न हो, फुर्तीला, बुद्धिमान्
अमन्द —वि॰,न॰ त॰—-—-—तेज, प्रबल, प्रचण्ड
अमन्द —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनल्प, अति, अधिक, बहुत, तीव्र
अमम —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना अहंकार के,स्वार्थ या सांसारिक आसक्ति से शून्य,ममता रहित।
अममता —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—उदासीनता,स्वार्थराहित्य।
अममत्वम् —नपुं॰—-—-—उदासीनता,स्वार्थराहित्य।
अमर —वि॰—-—-—जो कभी मृत्यु को प्राप्त न हो,न मरने वाला,अविनाशी
अमरः —पुं॰—-—-—तेंतीस की संख्या
अमरः —पुं॰—-—-—हड्डियों का ढेर
अमरा —स्त्री॰—-—-—इन्द्र का आवासस्थान
अमरा —स्त्री॰—-—-—गृहस्तम्भ
अमरी —स्त्री॰—-—-—देवपत्नी, देवकन्या
अमरी —स्त्री॰—-—-—इन्द्र की राजधानी
अमराङ्गना —स्त्री॰—अमर-अङ्गना—-—दिव्य अप्सरा, देवकन्या
अमरस्त्री —स्त्री॰—अमर-स्त्री—-—दिव्य अप्सरा, देवकन्या
अमराद्रिः —पुं॰—अमर-द्रिः—-—देव पर्वत अर्थात् सुमेरु पहाड़
अमराधिपः —पुं॰—अमर-अधिपः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरेन्द्रः —पुं॰—अमर-इन्द्रः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरीशः —पुं॰—अमर-ईशः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरीश्वरः —पुं॰—अमर-ईश्वरः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरपतिः —पुं॰—अमर-पतिः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरभर्ता —पुं॰—अमर-भर्ता—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमरराजः —पुं॰—अमर-राजः—-—देवताओं का स्वामी, इन्द्र की उपाधि, कई बार विष्णु और शिव की भी उपाधि
अमराचार्यः —पुं॰—अमर-आचार्यः—-—देवताओं के गुरु, बृहस्पति की उपाधि
अमरगुरुः —पुं॰—अमर-गुरुः—-—देवताओं के गुरु, बृहस्पति की उपाधि
अमरपूज्यः —पुं॰—अमर-पूज्यः—-—देवताओं के गुरु, बृहस्पति की उपाधि
अमरापगा —स्त्री॰—अमर-आपगा—-—स्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ
अमरतटिनी —स्त्री॰—अमर-तटिनी—-—स्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ
अमरसरित् —स्त्री॰—अमर-सरित्—-—स्वर्गीय नदी, गंगा की उपाधियाँ
अमरालयः —पुं॰—अमर-आलयः—-—देवताओं का आवासस्थान, स्वर्ग
अमरकण्टकम् —नपुं॰—अमर-कण्टकम्—-—विंध्यपर्वतश्रेणी के उस भाग का नाम जो नर्मदा नदी के उद्गम स्थान के निकट है
अमरकोशः —पुं॰—अमर-कोशः—-—अमरसिंह द्वारा रचित संस्कृत भाषा का एक सुप्रसिद्ध कोश
अमरकोषः —पुं॰—अमर-कोषः—-—अमरसिंह द्वारा रचित संस्कृत भाषा का एक सुप्रसिद्ध कोश
अमरतरुः —पुं॰—अमर-तरुः—-—दिव्य वृक्ष, इन्द्र के स्वर्ग का एक वृक्ष
अमरतरुः —पुं॰—अमर-तरुः—-—देवदारु
अमरतरुः —पुं॰—अमर-तरुः—-—कल्पवृक्ष
अमरदारुः —पुं॰—अमर-दारुः—-—दिव्य वृक्ष, इन्द्र के स्वर्ग का एक वृक्ष
अमरदारुः —पुं॰—अमर-दारुः—-—देवदारु
अमरदारुः —पुं॰—अमर-दारुः—-—कल्पवृक्ष
अमरद्विजः —पुं॰—अमर-द्विजः—-—केवल ब्राह्मण जो मंदिर या मूर्ति संबंधी कार्य करता हो, मन्दिर का अधीक्षक
अमरपुरम् —पुं॰—अमर-पुरम्—-—देवताओं का आवासस्थान, दिव्य स्वर्ग
अमरपुष्पः —पुं॰—अमर-पुष्पः—-—कल्पवृक्ष
अमरपुष्पकः —पुं॰—अमर-पुष्पकः—-—कल्पवृक्ष
अमरप्रख्य —वि॰—अमर-प्रख्य—-—देवताओं जैसा
अमरप्रभ —वि॰—अमर-प्रभ—-—देवताओं जैसा
अमररत्नम् —नपुं॰—अमर-रत्नम्—-—स्फटिक
अमरलोकः —पुं॰—अमर-लोकः—-—देवताओं की दुनियाँ, स्वर्ग
अमरता —स्त्री॰—अमर-ता—-—स्वर्गीय सुख
अमरसिंहः —पुं॰—अमर-सिंहः—-—अमरकोश के रचयिता का नाम, वह जैन धर्मावलम्बी थे, कहा जाता है कि विक्रमादित्य महाराज के नवरत्नों में एक रत्न थे।
अमरता —स्त्री॰—-—अमर+तल्+,टाप्—देवत्व।
अमरत्वम् —नपुं॰—-—अमर+ त्वल् —देवत्व।
अमरावती —स्त्री॰—-—अमर+मतुप्,दीर्घः,ङीप्—देवताओ का आवासस्थान,इन्द्र का घर
अमर्त्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मरणधर्मा न हो ,दिव्य,अविनाशी।
अमर्त्यभुवनम् —नपुं॰—अमर्त्य-भुवनम्—-—स्वर्ग
अमर्त्यता —स्त्री॰—अमर्त्य-ता—-—अविनश्वरता
अमर्त्यापगा —स्त्री॰—अमर्त्य-आपगा—-—देवनदी, गङ्गा की उपाधि
अमर्मन् —नपुं॰— —-—शरीर का वह अंग जो मर्मस्थल न हो।
अमर्मवेधिन् —वि—अमर्मन्-वेधिन्—-—मर्मस्थल को न बींधने वाला,मृदु,कोमल।
अमर्याद —वि॰,न॰ ब॰—-—-—उचित सीमाओ को पार करने वाला,सीमा को उल्लंघन करने वाला,अनादर करने वाला,अनुचित
अमर्याद —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सीमा रहित, असीम
अमर्यादा —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—उचित सीमा का उल्लंघन करना , आचरणहीनता अप्रतिष्ठा उचित सम्मान की अवहेलना
अमर्ष —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असहनशील
अमर्षः —पुं॰—-—-—असहिष्णुता,असहनशीलता,धैर्यशून्यता,ईर्ष्या, ईर्ष्यायुक्त क्रोध,
अमर्षः —पुं॰—-—-—क्रोध,आवेश,कोप,
सामर्ष —वि॰—-—-—क्रुद्ध, कुपित,
सामर्षम् —वि॰—-—-—क्रोद्ध पूर्वक
अमर्ष —वि॰— —-—तीव्रता, प्रचण्डता
अमर्षज —वि॰—अमर्ष-ज—-— क्रोध या असहनशीलता से उत्पन्न
अमर्षहासः —पुं॰—अमर्ष-हासः—-—क्रोद्धपूर्ण हंसी,खिल्ली उड़ाना
अमर्षण —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—धैर्यहीन, असहनशील,क्षमा न करने वाला
अमर्षण —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—क्रुद्ध, कुपित, प्रचण्ड स्वभाव का
अमर्षण —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—प्रचण्ड, दृढ़ संकल्प
अमर्षित —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—धैर्यहीन, असहनशील,क्षमा न करने वाला
अमर्षित —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—क्रुद्ध, कुपित, प्रचण्ड स्वभाव का
अमर्षित —वि॰,न॰ ब॰, न॰ त॰—-—-—प्रचण्ड, दृढ़ संकल्प
अमर्षिन् —वि॰—-—-—धैर्यहीन, असहनशील,क्षमा न करने वाला
अमर्षवत् —वि॰—-—-—धैर्यहीन, असहनशील,क्षमा न करने वाला
अमर्षिन् —वि॰— —-—क्रुद्ध, कुपित, प्रचण्ड स्वभाव का
अमर्षवत् —वि॰— —-—क्रुद्ध, कुपित, प्रचण्ड स्वभाव का
अमर्षिन् —वि॰—-— —प्रचण्ड, दृढ़ संकल्प
अमर्षवत् —वि॰—-— —प्रचण्ड, दृढ़ संकल्प
अमल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—मलरहित,मलमुक्त,पवित्र,निष्कलंक,विमल,विशुद्ध, निष्कपट
अमल —वि॰—-—-—श्वेत, उज्ज्वल
अमला —स्त्री॰—-—-—लक्ष्मी देवी
अमला —स्त्री॰—-—-—आँवले का वृक्ष
अमलपतत्री —पुं॰—अमल-पतत्रिन्—-—जंगली हंस
अमलरत्नम् —नपुं॰—अमल-रत्नम्—-—स्फटिक पत्थर
अमलमणिः —पुं॰—अमल-मणिः—-—स्फटिक पत्थर
अमलिन —वि॰—-—-—स्वच्छ,बेदाग,पवित्र,
अमसः —पुं॰—-—अम्+असच्—मूर्खता
अमसः —पुं॰—-—अम्+असच्—मूर्ख
अमा —वि॰,न॰ त ॰—-—-—अपरिमित
अमा —अव्य॰—-—-—से,निकट,पास
अमा —अव्य॰—-—-—के साथ, से मिलकर,
अमा —स्त्री॰—-—-—नूतन चन्द्रमा का दिन, सूर्य और चन्द्र के संयोग का दिन
अमा —स्त्री॰—-—-—चन्द्रमा की सोलहवीं कला
अमान्तः —पुं॰—अमा-अन्तः—-—नूतन चन्द्रमा के दिन की समाप्ति
अमापर्वन् —नपुं॰—अमा-पर्वन्—-—अमा का पवित्र काल, नूतन चन्द्रमा का दिवस
अमांस —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—बिना मांस का,मांस रहित,
अमांस —वि॰—-—-—दुबला, पतला, बलहीन
अमांसम् —नपुं॰—-—-—जो मांस न हो, मांस को छोड़कर और कोई वस्तु।
अमांसोदनिक —वि॰—अमांस-ओदनिक—-—मांसयुक्त बने हुए चावलों से संबंध न रखने वाला ।
अमात्यः —पुं॰—-—अमा+त्यक्—राजा का सहचर,या अनुयायी,मंन्त्री,
अमात्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सीमा रहित, अपरमित
अमात्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अपूर्ण, असमस्त
अमात्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो आरम्भिक न हो
अमात्रः —पुं॰—-—-—परब्रह्म
अमाननम् —नपुं॰—-—-—अनादर,अपमान,अवज्ञा।
अमानना —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अनादर,अपमान,अवज्ञा।
अमानस्यम् —नपुं॰—-—-—पीडा।
अमानिन् —वि॰—-—-—विनम्र,विनीत।
अमानुष —वि॰,न॰त॰—-—-—अमानवी,मनुष्य से सम्बन्ध न रखने वाला,अलौकिक,अपार्थिव,अपौरुषेय।
अमानुष्य —वि॰,न॰त॰—-—-—अमुनष्योचित,अपौरुषेय आदि।
अमामसी —स्त्री॰—-— —अमावसी या अमावस्या
अमामासी —स्त्री॰—-—-—अमावसी या अमावस्या
अमाय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अकुटिल,पारखी,मायारहित,निष्कपट
अमाय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो मापा न जा सके
अमाया —स्त्री॰—-—-—कपटशून्यता, इमानदार, निष्कपटता
अमाया —स्त्री॰—-—-—भ्रम का अभाव, परमात्मा का ज्ञान
अमायम् —नपुं॰—-—-—परब्रह्म
अमायिक —वि॰,न॰त॰—-—-—मायारहित,निश्छल,ईमानदार।
अमायिन् —वि॰,न॰त॰—-—-—मायारहित,निश्छल,ईमानदार।
अमावस्या —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमावास्या —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमावसी —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमावासी —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमामसी —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमामासी —स्त्री॰—-—अमा+वस्+यत्,ण्यत् वा अमा+वस्+अप्, घञ् वा—चन्द्रमा का दिन,वह समय जब की सूर्य और चन्द्रमा दोनो संयुक्त रह्ते है,प्रत्येक चान्द्रमास के कृष्ण पक्ष का पन्द्रहवाँ दिन।
अमित —वि॰,न॰त॰—-—-—जो मापा न गया हो,असीम,सीमारहित,विशाल
अमित —वि॰,न॰त॰—-—-—उपेक्षित, अनादृत
अमित —वि॰,न॰त॰—-—-—असंस्कृत
अमिताक्षर —वि॰—अमित-अक्षर—-—गद्यात्मक
अमिताभ —वि॰—अमित-आभ—-—अतिकांतियुक्त, असीम प्रभायुक्त
अमितौजस् —वि॰—अमित-ओजस्—-—असीम तेजोयुक्त, अखिल शक्तिसंपन्न, सर्वशक्तिमान्
अमिततेजस् —वि॰—अमित-तेजस्—-—असीम तेज या कांतियुक्त
अमितद्युति —वि॰—अमित-द्युति—-—असीम तेज या कांतियुक्त
अमितविक्रमः —पुं॰—अमित-विक्रमः—-—असीम बल शाली
अमितविक्रमः —पुं॰—अमित-विक्रमः—-—विष्णु
अमित्रः —पुं॰—-—अम्+इत्र—जो मित्र न हो,शत्रु,विरोधी,वैरी,प्रतिद्वन्दी,विपक्षी।
अमित्रघात —वि॰—अमित्रः-घात—-—शत्रुओं को मारने वाला
अमित्रघातिन् —वि॰—अमित्रः-घातिन्—-—शत्रुओं को मारने वाला
अमित्रघ्न —वि॰—अमित्रः-घ्न—-—शत्रुओं को मारने वाला
अमित्रहन् —वि॰—अमित्रः-हन्—-—शत्रुओं को मारने वाला
अमित्रजित् —वि॰—अमित्रः-जित्—-—अपने शत्रुओं को ज़ीतने वाला
अमिथ्या —क्रि॰ वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मिथ्या न हो,सचमुच
अमिन् —वि॰—-—अम्+णिनि—बीमार,रोगी।
अमिषम् —नपुं॰—-—अम्+इषन्—सांसारिक सुख के पदार्थ,विलास की सामग्री
अमिषम् —नपुं॰—-—अम्+इषन्—ईमानदारी, निश्छलता, निष्कपटता
अमिषम् —नपुं॰—-—अम्+इषन्—मांस
अमीवा —पुं॰—-—अम्+वन् ईडागमः—कष्ट,बीमारी,रोग
अमीवा —पुं॰—-—अम्+वन् ईडागमः—दुःख, त्रास
अमीवम् —नपुं॰—-—-—कष्ट, दुःख, पीड़ा आदि
अमुक —पुं॰—-—अदस्-टेरकच्, उत्वमत्त्वे- तारा॰ —कोई व्यक्ति या पदार्थ फलां-२,ऐसा-ऐसा)
अमुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसके बन्धन खोले न गये हों,जो जाने मे स्वतन्त्र नहीं
अमुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जन्ममरण के बंधन से जिसे छुटकारा न मिला हो, जिसे मोक्ष प्राप्त न हुआ हो
अमुक्तम् —नपुं॰—-—-—एक हथियार जो सदैव पकड़ा जाता है, फेंका नहीं जाता
अमुक्तहस्त —वि॰—अमुक्त-हस्त—-—मितव्ययी, कंजूस अल्पव्ययी, परिमितव्ययी
अमुक्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—स्वातंत्र्यशून्यता
अमुक्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—स्वतंत्रता या मोक्ष का भाव
अमुतः —अव्य॰—-—अदस्+तसिल् उत्व्-मत्व्—वहां से,वहां
अमुतः —अव्य॰—-—अदस्+तसिल् उत्व्-मत्व्—उस स्थान से, ऊपर से अर्थात् परलोक से या स्वर्ग से
अमुतः —अव्य॰—-—अदस्+तसिल् उत्व्-मत्व्—इस पर, ऐसा होने पर, अब से आगे
अमुत्र —अव्य॰—-—अदस्+त्रल् उत्व्-मत्व्—वहां, उस स्थान पर,वहां पर
अमुत्र —अव्य॰—-—अदस्+त्रल् उत्व्-मत्व्—वहां, उस अवस्था में
अमुत्र —अव्य॰—-—अदस्+त्रल् उत्व्-मत्व्—वहां, ऊपर, परलोक में, आगामी जन्म में
अमुत्र —अव्य॰—-—अदस्+त्रल् उत्व्-मत्व्—वहां
अमुथा —अव्य॰—-—अदस्+ थाल् उत्व-मत्व्—इस प्रकार,इस रीति से
अमुष्य —अव्य॰—-—अदस्-संब॰—ऐसे
अमुष्यकुल —वि॰,अलु॰ स॰—अमुष्य-कुल—-—ऐसे कुल से संबंध रखने वाला
अमुष्यकुलम् —नपुं॰—अमुष्य-कुलम्—-—प्रसिद्ध घराना
अमुष्यपुत्रः —पुं॰—अमुष्य-पुत्रः—-—ऐसे प्रसिद्ध कुल का पुत्र
अमुष्यपुत्रः —पुं॰—अमुष्य-पुत्रः—-—सत्कुल में उत्पन्न, ऐसे उच्चवंशीय व्यक्ति का पुत्र या सुविख्यात कुल में उत्पन्न
अमुष्यपुत्री —स्त्री॰—अमुष्य-पुत्री—-—ऐसे प्रसिद्ध कुल का पुत्री
अमुष्यपुत्री —स्त्री॰—अमुष्य-पुत्री—-—सत्कुल में उत्पन्न, ऐसे उच्चवंशीय व्यक्ति का पुत्री या सुविख्यात कुल में उत्पन्न
अमूदृश् —वि॰ —-—अदस्+दृश्+क्विन्—ऐसा,इस प्रकार का,इस रूप या ढंग का।
अमूदृश —वि॰ —-—अदस्+दृश्+क्विन्—ऐसा,इस प्रकार का,इस रूप या ढंग का।
अमूदृक्ष —वि॰ —-—अदस्+दृश्+क्विन्—ऐसा,इस प्रकार का,इस रूप या ढंग का।
अमूदृशी —स्त्री॰—-—अदस्+दृश्+कञ्, क्स वा—ऐसा,इस प्रकार का,इस रूप या ढंग का।
अमूदृक्षी —स्त्री॰—-—अदस्+दृश्+कञ्, क्स वा—ऐसा,इस प्रकार का,इस रूप या ढंग का।
अमूर्त —वि॰,न॰ त॰ —-—-—आकरहीन,अशरीरी,शरीर रहित।
अमूर्तगुणः —पुं॰—अमूर्त-गुणः—-—धर्म, अधर्म जैसे गुणों को अमूर्त या अशरीरी समझा जाता है
अमूर्ति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—आकरहीन, रूप रहित
अमूर्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—रुप या आकार का न होना
अमूल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निर्मूल,बिना किसी आधार के,निराधार,आधार रहित
अमूल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी प्रमाण के, जो मूल में न हो
अमूल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी भौतिक कारण के
अमूलक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निर्मूल,बिना किसी आधार के,निराधार,आधार रहित
अमूलक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी प्रमाण के, जो मूल में न हो
अमूलक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी भौतिक कारण के
अमूल्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अनमोल,बहुमूल्य
अमृणालम् —नपुं॰—-—-—एक सुगन्धित घास की जड, जिस के परदे या टट्टियां बनती है।
अमृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मरा न हो
अमृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविनाशी, अनश्वर
अमृतः —पुं॰—-—-—देव, अमर, देवता
अमृतः —पुं॰—-—-—देवों के वैद्य धन्वन्तरि
अमृता —स्त्री॰—-—-—मादक शराब
अमृता —स्त्री॰—-—-—नाना प्रकार के पौधों के नाम
अमृतम् —नपुं॰—-—-—अमरता, परममुक्ति, मोक्ष
अमृतम् —नपुं॰—-—-—देवों का सामूहिक शरीर
अमृतम् —नपुं॰—-—-—अमरता की दुनिया, स्वर्गलोक
अमृतम् —नपुं॰—-—-—सुधा, पीयूष, अमृत
अमृतम् —नपुं॰—-—-—विष नाशक औषध
अमृतम् —नपुं॰—-—-—अयाचितभिक्षा, बिना मांगे दान मिलना
अमृतम् —नपुं॰—-—-—उबले हुए चावल, भात
अमृतम् —नपुं॰—-—-—मिष्ट पदार्थ, कोई भी मधुर वस्तु
अमृतम् —नपुं॰—-—-—परब्रह्म
अमृताङ्शुः —पुं॰—अमृत-अङ्शुः—-—चन्दमा के विशेषण
अमृतकरः —पुं॰—अमृत-करः—-—चन्दमा के विशेषण
अमृतदीधितिः —पुं॰—अमृत-दीधितिः—-—चन्दमा के विशेषण
अमृतद्युतिः —पुं॰—अमृत-द्युतिः—-—चन्दमा के विशेषण
अमृतरश्मिः —पुं॰—अमृत-रश्मिः—-—चन्दमा के विशेषण
अमृतान्धस् —पुं॰—अमृत-अन्धस्—-—वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर
अमृताशनः —पुं॰—अमृत-अशनः—-—वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर
अमृताशिन् —पुं॰—अमृत-आशिन्—-—वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर
अमृताहरणः —पुं॰—अमृत-आहरणः—-—गरुड़ जिसने एक बार अमृत चुराया था
अमृतोत्पन्ना —स्त्री॰—अमृत-उत्पन्ना—-—मक्खी
अमृतोत्पन्नम् —नपुं॰—अमृत-उत्पन्नम्—-—एक प्रकार का सुर्मा
अमृतोद्भवम् —नपुं॰—अमृत-उद्भवम्—-—एक प्रकार का सुर्मा
अमृतकुण्डम् —नपुं॰—अमृत-कुण्डम्—-—वह बर्तन जिसमें अमृत रक्खा हो
अमृतक्षारम् —नपुं॰—अमृत-क्षारम्—-—नौसादर
अमृतगर्भ —वि॰—अमृत-गर्भ—-—अमृत या जल से भरा हुआ, अमृतमय
अमृतगर्भः —पुं॰—अमृत-गर्भः—-—आत्मा
अमृतगर्भः —पुं॰—अमृत-गर्भः—-—परमात्मा
अमृततरंगिणी —स्त्री॰—अमृत-तरंगिणी—-—ज्योत्स्ना, चांदनी
अमृतद्रव —वि॰—अमृत-द्रव—-—चन्द्रकिरण जो अमृत छिड़कती हैं
अमृतद्रवः —पुं॰—अमृत-द्रवः—-—अमृत प्रवाह
अमृतधारा —स्त्री॰—अमृत-धारा—-—एक छन्द का नाम
अमृतधारा —स्त्री॰—अमृत-धारा—-—अमृत का प्रवाह
अमृतपः —पुं॰—अमृत-पः—-—अमृत पान करने वाला, देव या देवता
अमृतपः —पुं॰—अमृत-पः—-—विष्णु
अमृतपः —पुं॰—अमृत-पः—-—शराब पीने वाला
अमृतफला —स्त्री॰—अमृत-फला—-—अंगूरों का गुच्छा, अंगूरों को बेल, दाख, द्राक्षा
अमृतबन्धुः —पुं॰—अमृत-बन्धुः—-—देव, देवता
अमृतबन्धुः —पुं॰—अमृत-बन्धुः—-—घोड़ा, चन्द्रमा
अमृतभुज् —पुं॰—अमृत-भुज्—-—अमर, देव, देवता जो यज्ञशेष का स्वाद लेता है
अमृतभू —वि॰—अमृत-भू—-—जन्ममरण से मुक्त
अमृतमन्थनम् —नपुं॰—अमृत-मन्थनम्—-—अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मथन
अमृतरसः —पुं॰—अमृत-रसः—-—अमृत, पीयूष
अमृतरसः —पुं॰—अमृत-रसः—-—परब्रह्मा
अमृतलता —स्त्री॰—अमृत-लता—-—अमृत देने वाली बेल
अमृतलतिका —स्त्री॰—अमृत-लतिका—-—अमृत देने वाली बेल
अमृतवाक् —वि॰—अमृत-वाक्—-—अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला
अमृतसार —वि॰—अमृत-सार—-—अमृतमय
अमृतसारः —पुं॰—अमृत-सारः—-—घी
अमृतसूः —पुं॰—अमृत-सूः—-—चन्द्रमा
अमृतसूः —पुं॰—अमृत-सूः—-—देवताओं की माता
अमृतसूतिः —पुं॰—अमृत-सूतिः—-—चन्द्रमा
अमृतसूतिः —पुं॰—अमृत-सूतिः—-—देवताओं की माता
अमृतसोदरः —पुं॰—अमृत-सोदरः—-—अमृत का भाई,
अमृतस्रवः —पुं॰—अमृत-स्रवः—-—अमृत का प्रवाह
अमृतस्रुत् —वि॰—अमृत-स्रुत्—-—अमृत चुवाने वाला
अमृतकम् —नपुं॰—-—अमृत्+कन्—अमृत,अमरत्व प्रदयाक रस।
अमृतता —स्त्री॰—-—अमृत+तल्—अमरत्व,अमरता।
अमृतत्वम् —नपुं॰—-—अमृत+त्वल—अमरत्व,अमरता।
अमृषा —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—झूठपने से नही,सचमुच।
अमृष्ट —वि॰,न॰ त॰—-—-—न मसला हुआ,न रगड़ा हुआ।
अमृष्टमृज —वि॰—अमृष्ट-मृज—-—अक्षुष्ण पवित्रा वाला।
अमेदस्क —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप् च—जिसमे चर्बी न हो,दुबला- पतला।
अमेधस् —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—बुद्धिहीन,मूर्ख,जड़।
अमेध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो यज्ञ के योग्य,या अनुमत न हो
अमेध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—यज्ञ के अयोग्य
अमेध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपवित्र, मलयुक्त, मैला, गंदा, अस्वच्छ
अमेध्यम् —नपुं॰—-—-—विष्ठा, लीद
अमेध्यम् —नपुं॰—-—-—अपशकुन, अशुभशकुन
अमेध्यकुणपाशिन् —वि॰—अमेध्य-कुणपाशिन्—-—मुर्दा खाने वाला
अमेध्ययुक्त —वि॰—अमेध्य-युक्त—-—मलयुक्त, मैला, मलिन, गंदा
अमेध्यलिप्त —वि॰—अमेध्य-लिप्त—-—मलयुक्त, मैला, मलिन, गंदा
अमेय —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपरिमेय,सीमारहित
अमेय —वि॰,न॰ त॰—-—-—अज्ञेय
अमेयात्मन् —वि॰—अमेया-आत्मन्—-—अपरिमेय आत्मा को धारण करने वाला, महात्मा, महामना
अमेयात्मा —पुं॰—अमेया-आत्मन्—-—विष्णु
अमोघ —वि॰,न॰ त॰—-—-—अचुक, ठीक निशाने पर लगने वाला
अमोघ —वि॰,न॰ त॰—-—-—निर्भ्रान्त, अचूक
अमोघ —वि॰,न॰ त॰—-—-—अव्यर्थ, सफल, उपजाऊ
अमोघदण्डः —पुं॰—अमोघ-दण्डः—-—दंड देने में अटल, शिव
अमोघदर्शिन् —वि॰—अमोघ-दर्शिन्—-—निर्भ्रान्त मन वाला, अचूक नज़र वाला
अमोघदृष्टि —वि॰—अमोघ-दृष्टि—-—निर्भ्रान्त मन वाला, अचूक नज़र वाला
अमोघबल —वि॰—अमोघ-बल—-—अटूट शक्ति सम्पन्न
अमोघवाच् —स्त्री॰—अमोघ-वाच्—-—वाणी जो व्यर्थ न जाय, वाणी जो अवश्य पूरी हो
अमोघवाच् —वि॰—अमोघ-वाच्—-—जिसके शब्द कभी व्यर्थ न हों
अमोघवाञ्छित —वि॰—अमोघ-वाञ्छित—-—जो कभी निराश न हो
अमोघविक्रमः —पुं॰—अमोघ-विक्रमः—-—अटूट शक्तिशाली, शिव
अम्ब् —भ्वा॰आ॰—-—-—शब्द करना
अम्बः —पुं॰—-—अम्ब्+घञ्,अच् वा—पिता
अम्बम् —नपुं॰—-—अम्ब्+घञ्,अच् वा—आँख
अम्बम् —नपुं॰—-—अम्ब्+घञ्,अच् वा—जल
अम्ब —अव्य॰—-—-—स्वीकृति बोधक ‘हाँ’ ‘बहुत अच्छा’ अव्यय
अम्बकम् —नपुं॰—-—अम्ब् +ण्वुल्—आँख
अम्बकम् —नपुं॰—-—अम्ब् +ण्वुल्—पिता
अम्बरम् —नपुं॰—-—अम्बः शब्दः तुं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क—आकाश,वायुमण्डल,अन्तरिक्ष
अम्बरम् —नपुं॰—-—अम्बः शब्दः तुं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क—कपड़ा, वस्त्र, परिधान, पोशाक
अम्बरम् —नपुं॰—-—अम्बः शब्दः तुं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क—केसर
अम्बरम् —नपुं॰—-—अम्बः शब्दः तुं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क—अबरक
अम्बरम् —नपुं॰—-—अम्बः शब्दः तुं राति धत्ते इति-अम्ब+रा+क—एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य
अम्बरान्तः —पुं॰—अम्बरम्-अन्तः—-—वस्त्र की किनारी
अम्बरान्तः —पुं॰—अम्बरम्-अन्तः—-—क्षितिज
अम्बरौकस् —पुं॰—अम्बरम्-ओकस्—-—स्वर्ग में रहने वाला, देवता
अम्बरदम् —नपुं॰—अम्बरम्-दम्—-—कपास
अम्बरमणिः —पुं॰—अम्बरम्-मणिः—-—सूर्य
अम्बरलेखिन् —वि॰—अम्बरम्-लेखिन्—-—गगनचुंबी
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—भाड़,कड़ाही
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—खेद, दुःख
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—युद्ध, संग्राम
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—नरक का एक भेद
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—छोटा जानवर, बछड़ा
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—सूर्य
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—विष्णु
अम्बरीषम् —नपुं॰—-—अम्ब+अरिष् नि॰ दीर्घ॰—शिव
अम्बष्ठः —पुं॰—-—अम्ब+स्था+क—ब्राह्मण पिता तथा वैश्य माता से उत्पन्न सन्तान
अम्बष्ठः —पुं॰—-—अम्ब+स्था+क—महावत
अम्बष्ठः —पुं॰—-—अम्ब+स्था+क—एक देश तथा उसके निवासियों का नाम
अम्बष्ठा —स्त्री॰—-—अम्ब+स्था+क+टाप्—कुछ पौधों के नाम
अम्बष्ठा —स्त्री॰—-—अम्ब+स्था+क+टाप्—अम्बष्ठ जाति की स्त्री
अम्बष्ठी —स्त्री॰—-—अम्ब+स्था+क+ङीष्—अम्बष्ठ जाति का स्त्री
अम्बा —स्त्री॰—-—अम्ब्+घञ्+टाप्—माता,भद्र महिला,भद्र माता
अम्बा —स्त्री॰—-—अम्ब्+घञ्+टाप्—दुर्गा, भवानी
अम्बा —स्त्री॰—-—अम्ब्+घञ्+टाप्—पांडु की माता, काशिराज की कन्या
अम्बाडा —स्त्री॰—-—अम्बा+ला+क+टाप्—माता।
अम्बाला —स्त्री॰—-—अम्बा+ला+क+टाप्—माता।
अम्बालिका —स्त्री॰—-—अम्बा+क+टाप् इत्वम्—माता,भद्र महिला
अम्बालिका —स्त्री॰—-—अम्बा+क+टाप् इत्वम्—अंबाडा नामक पैधा
अम्बालिका —स्त्री॰—-—अम्बा+क+टाप् इत्वम्—काशिराज की सबसे छोटी पुत्री, बिचित्रवीर्य की पत्नी
अम्बिका —स्त्री॰—-—अम्बा+कन्+टाप इत्वम्—माता, भद्र महिला
अम्बिका —स्त्री॰—-—अम्बा+कन्+टाप इत्वम्—शिव की पत्नी पार्वती
अम्बिका —स्त्री॰—-—अम्बा+कन्+टाप इत्वम्—काशिराज की मझली पुत्री
अम्बिकापतिः —पुं॰—अम्बिका-पतिः—-—शिव
अम्बिकाभर्ता —पुं॰—अम्बिका-भर्ता—-—शिव
अम्बिकापुत्रः —पुं॰—अम्बिका-पुत्रः—-—धृतराष्ट्र
अम्बिकासुतः —पुं॰—अम्बिका-सुतः—-—धृतराष्ट्र
अम्बिकेयः —पुं॰—-—अम्बिका+ढ—गणेश या कार्तिकेय,या धॄतराष्ट्र।
अम्बिकेयकः —पुं॰—-—अम्बिका+ढ—गणेश या कार्तिकेय,या धॄतराष्ट्र।
अम्बु —नपुं॰—-—अम्ब्+उण्—जल
अम्बु —नपुं॰—-—अम्ब्+उण्—रुधिर के अन्तर्गत जलीय तत्त्व
अम्बुकणः —पुं॰—अम्बु-कणः—-—पानी की बूँद
अम्बुकण्टकः —पुं॰—अम्बु-कण्टकः—-—घड़ियाल
अम्बुकिरातः —पुं॰—अम्बु-किरातः—-—घड़ियाल
अम्बुकीशः —पुं॰—अम्बु-कीशः—-—कछुवा
अम्बुकूर्मः —पुं॰—अम्बु-कूर्मः—-—कछुवा
अम्बुकेशरः —पुं॰—अम्बु-केशरः—-—नींबू का पेड़
अम्बुक्रिया —स्त्री॰—अम्बु-क्रिया—-—पितृ तर्पण, पितरों को जलदान
अम्बुग —वि॰—अम्बु-ग—-—जल में रहने वाला, जलचर
अम्बुचर —वि॰—अम्बु-चर—-—जल में रहने वाला, जलचर
अम्बुचारिन् —वि॰—अम्बु-चारिन्—-—जल में रहने वाला, जलचर
अम्बुघनः —पुं॰—अम्बु-घनः—-—ओला
अम्बुचत्वरम् —नपुं॰—अम्बु-चत्वरम्—-—झील
अम्बुज —वि॰—अम्बु-ज—-—जल में उत्पन्न, जलज
अम्बुजः —पुं॰—अम्बु-जः—-—चन्द्रमा
अम्बुजः —पुं॰—अम्बु-जः—-—कपूर
अम्बुजः —पुं॰—अम्बु-जः—-—सारस पक्षी
अम्बुजः —पुं॰—अम्बु-जः—-—शंख
अम्बुजम् —नपुं॰—अम्बु-जम्—-—कमल
अम्बुजम् —नपुं॰—अम्बु-जम्—-—इन्द्र का वज्र
अम्बुभूः —पुं॰—अम्बु-भूः—-—कमल से उत्पन्न देवता, ब्रह्मा
अम्ब्वासनः —पुं॰—अम्बु-आसनः—-—कमल से उत्पन्न देवता, ब्रह्मा
अम्ब्वासना —स्त्री॰—अम्बु-आसना—-—लक्ष्मीदेवी
अम्बुजन्मन् —नपुं॰—अम्बु-जन्मन्—-—कमल
अम्बुजन्मा —पुं॰—अम्बु-जन्मन्—-—चन्द्रमा
अम्बुजन्मा —पुं॰—अम्बु-जन्मन्—-—शंख
अम्बुजन्मा —पुं॰—अम्बु-जन्मन्—-—सारस पक्षी
अम्बुतस्करः —पुं॰—अम्बु-तस्करः—-—जलचोर, सूर्य
अम्बुद —वि॰—अम्बु-द—-—जल देने वाला
अम्बुदः —पुं॰—अम्बु-दः—-—बादल
अम्बुधरः —पुं॰—अम्बु-धरः—-—बादल
अम्बुधरः —पुं॰—अम्बु-धरः—-—अबरक
अम्बुधिः —पुं॰—अम्बु-धिः—-—पानी का आशय, जलपात्र
अम्बुधिः —पुं॰—अम्बु-धिः—-—समुद्र
अम्बुधिः —पुं॰—अम्बु-धिः—-—चार की संख्या
अम्बुनिधिः —पुं॰—अम्बु-निधिः—-—पानी का खजाना, समुद्र
अम्बुप —वि॰—अम्बु-प—-—पानी पीने वाला
अम्बुपः —पुं॰—अम्बु-पः—-—समुद्र
अम्बुपः —पुं॰—अम्बु-पः—-—वरुण
अम्बुपातः —पुं॰—अम्बु-पातः—-—जलधारा, जलप्रवाह, नदी या झरना
अम्बुप्रसादः —पुं॰—अम्बु-प्रसादः—-—कतक, निर्मली का पेड़
अम्बुप्रसादनम् —नपुं॰—अम्बु-प्रसादनम्—-—कतक, निर्मली का पेड़
अम्बुभवम् —नपुं॰—अम्बु-भवम्—-—कमल
अम्बुभृत् —पुं॰—अम्बु-भृत्—-—जलवाहक, बादल
अम्बुभृत् —पुं॰—अम्बु-भृत्—-—समुद्र
अम्बुभृत् —पुं॰—अम्बु-भृत्—-—अबरक
अम्बुमात्रज —वि॰—अम्बु-मात्रज—-—जो केवल जल में ही उत्पन्न हो
अम्बुमात्रजः —पुं॰—अम्बु-मात्रजः—-—शंख
अम्बुमुच् —पुं॰—अम्बु-मुच्—-—बादल
अम्बुराजः —पुं॰—अम्बु-राजः—-—समुद्र
अम्बुराजः —पुं॰—अम्बु-राजः—-—वरुण
अम्बुराशिः —पुं॰—अम्बु-राशिः—-—जलाशय या पानी का भंडार, समुद्र
अम्बुरुह् —नपुं॰—अम्बु-रुह्—-—कमल
अम्बुरुह् —नपुं॰—अम्बु-रुह्—-—सारस
अम्बुरुहः —पुं॰—अम्बु-रुहः—-—कमल
अम्बुरुहम् —नपुं॰—अम्बु-रुहम्—-—कमल
अम्बुरोहिणी —स्त्री॰—अम्बु-रोहिणी—-—कमल
अम्बुवाहः —पुं॰—अम्बु-वाहः—-—बादल
अम्बुवाहः —पुं॰—अम्बु-वाहः—-—झील
अम्बुवाहः —पुं॰—अम्बु-वाहः—-—जलवाहक
अम्बुवाहिन् —वि॰—अम्बु-वाहिन्—-—पानी ले जाने वाला
अम्बुवाही —पुं॰—अम्बु-वाहिन्—-—बादल
अम्बुवाहिनी —स्त्री॰—अम्बु-वाहिनी—-—काठ का डोल, एक प्रकार का पानी उलीचनें का बर्तन
अम्बुविहारः —पुं॰—अम्बु-विहारः—-—जल क्रीड़ा
अम्बुवेतसः —पुं॰—अम्बु-वेतसः—-—एक प्रकार का वेत, नरकुल जो जल में पैदा होता है
अम्बुसरणम् —नपुं॰—अम्बु-सरणम्—-—जलप्रवाह, जलधारा
अम्बुसर्पिणी —स्त्री॰—अम्बु-सर्पिणी—-—जोक
अम्बुसेचनी —स्त्री॰—अम्बु-सेचनी—-—जल छिड़कने का पात्र
अम्बुमत् —वि॰—-—अम्बु+मतुप्—पनीला,जिसमे जल हो
अम्बुमती —स्त्री॰—-—अम्बु+मतुप्+ङीप्—एक नदी का नाम।
अम्बुकृत —वि॰—-—अम्बु+च्चि+कृ+क्त—बड़ बड़ाया हुआ
अम्बुकृतम् —नपुं॰—-—अम्बु+च्चि+कृ+क्त—बड़बड़ाने का शब्द, भालू के गुर्राने का शब्द
अम्भ् —भ्वा॰ आ॰ <अम्भते>, <अम्भित>—-—-—शब्द करना, आवाज करना।
अम्भस् —नपुं॰—-—अम्भ्+असुन्—जल
अम्भस् —नपुं॰—-—अम्भ्+असुन्—आकाश
अम्भस् —नपुं॰—-—अम्भ्+असुन्—जन्मकुंडली में लग्न से चौथा स्थान
अम्भोज —वि॰—अम्भस्-ज—-—जल में उत्पन्न
अम्भोजः —पुं॰—अम्भस्-जः—-—चन्द्रमा
अम्भोजः —पुं॰—अम्भस्-जः—-—सारस पक्षी
अम्भोजम् —नपुं॰—अम्भस्-जम्—-—कमल
अम्भोजखण्डः —पुं॰—अम्भस्-ज-खण्डः—-—कमलों का समूह
अम्भोजखण्डम् —नपुं॰—अम्भस्-ज-खण्डम्—-—कमलों का समूह
अम्भोजन्मा —पुं॰—अम्भस्-जन्मन्—-—कमलोत्पन्न देवता, ब्रह्मा की उपाधि
अम्भोजनिः —पुं॰—अम्भस्-जनिः—-—कमलोत्पन्न देवता, ब्रह्मा की उपाधि
अम्भोयोनिः —पुं॰—अम्भस्-योनिः—-—कमलोत्पन्न देवता, ब्रह्मा की उपाधि
अम्भोजन्मन् —नपुं॰—अम्भस्-जन्मन्—-—कमल
अम्भोदः —पुं॰—अम्भस्-दः—-—बादल
अम्भोधरः —पुं॰—अम्भस्-धरः—-—बादल
अम्भोधिः —पुं॰—अम्भस्-धिः—-—जल का भंडार, समुद्र
अम्भोनिधिः —पुं॰—अम्भस्-निधिः—-—जल का भंडार, समुद्र
अम्भराशिः —पुं॰—अम्भस्-राशिः—-—जल का भंडार, समुद्र
अम्भोवल्लभः —पुं॰—अम्भस्-वल्लभः—-—मूंगा
अम्भोरुट् —नपुं॰—अम्भस्-रुह्—-—कमल
अम्भोरुहम् —नपुं॰—अम्भस्-रुहम्—-—कमल
अम्भोरुह् —पुं॰—अम्भस्-रुह्—-—सारस पक्षी
अम्भोसारम् —नपुं॰—अम्भस्-सारम्—-—मोती
अम्भोसूः —पुं॰—अम्भस्-सूः—-—धूआं, अंधकार
अम्भोजिनी —स्त्री॰—-—अम्भोज+इनि+ङीप्—कमल का पौधा,कमलों का समूह
अम्भोजिनी —स्त्री॰—-—अम्भोज+इनि+ङीप्—कमलों का समूह
अम्भोजिनी —स्त्री॰—-—अम्भोज+इनि+ङीप्—वह स्थान जहाँ कमल बहुतायत से हों
अम्मय —वि॰ —-—अप+मयट्—जलीय या जल से बना हुआ।
अम्र —पुं॰—-—-—आम्र का वृक्ष
अम्ल —वि॰—-—अम्+क्ल्+अच्—खट्टा,तीखा
अम्लः —पुं॰—-—अम्+क्ल्+अच्—खटास,तीखापन,६ प्रकार के रसों में से एक
अम्लः —पुं॰—-—अम्+क्ल्+अच्—सिरका
अम्लः —पुं॰—-—अम्+क्ल्+अच्—नोनिया साग, इमली
अम्लः —पुं॰—-—अम्+क्ल्+अच्—नीबू का वृक्ष
अम्लः —पुं॰—-—अम्+क्ल्+अच्—उद्वगम
अम्लाक्त —वि॰—अम्ल-अक्त—-—खट्टा किया हुआ
अम्लोद्गारः —पुं॰—अम्ल-उद्गारः—-—खट्टी डकार
अम्लकेशरः —पुं॰—अम्ल-केशरः—-—चकोतरे का वृक्ष
अम्लगन्धि —वि॰—अम्ल-गन्धि—-—खट्टी गंध वाला
अम्लगोरसः —पुं॰—अम्ल-गोरसः—-—खट्टी छाछ
अम्लजम्बीरः —पुं॰—अम्ल-जम्बीरः—-—नींबू का वृक्ष
अम्लनिम्बकः —पुं॰—अम्ल-निम्बकः—-—नींबू का वृक्ष
अम्लपित्तम् —नपुं॰—अम्ल-पित्तम्—-—एक रोग जिसमें आहार आमाशय में पहुँच कर अम्ल हो जाता है, खट्टा पित्त
अम्लफलः —पुं॰—अम्ल-फलः—-—इमली का वृक्ष
अम्लफलम् —नपुं॰—अम्ल-फलम्—-—इमली
अम्लरस —वि॰—अम्ल-रस—-—खट्टे स्वाद वाला
अम्लरसः —पुं॰—अम्ल-रसः—-—खटास, तेजाबी अंश
अम्लवृक्षः —पुं॰—अम्ल-वृक्षः—-—इमली का वृक्ष
अम्लसारः —पुं॰—अम्ल-सारः—-—नींबू का पौधा
अम्लहरिद्रा —स्त्री॰—अम्ल-हरिद्रा—-—आंवाहल्दीका पौधा
अम्लकः —पुं॰—-—अम्ल+कन्(अल्पार्थे)—लकुच,बडहर।
अम्लान —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मुर्झाया न हो
अम्लान —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वच्छ, साफ उज्ज्वल , निर्मल, बिना बादलों का
अम्लानः —पुं॰—-—-—बाणपुष्पवृक्ष, दुपहरिया
अम्लानि —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सशक्त, न मुर्झाने वाला
अम्लानिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—शक्ति
अम्लानिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—ताजगी, हरियाली
अम्लानिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वच्छ ,साफ
अम्लानी —स्त्री॰—-—-—बाणपुष्प-वृक्षो का समूह
अम्लिका —स्त्री॰—-—अम्ला+कन् टाप् इत्वम्—मुँह का खट्टा स्वाद,खट्टी डकार
अम्लिका —स्त्री॰—-—अम्ला+कन् टाप् इत्वम्—इमली का वृक्ष
अम्लीका —स्त्री॰—-—अम्ल+ङीष्+क+टाप् —मुँह का खट्टा स्वाद,खट्टी डकार
अम्लीका —स्त्री॰—-—अम्ल+ङीष्+क+टाप् —इमली का वृक्ष
अम्लिमन् —पुं॰—-—अम्ल+इमनिच्—खटास,खट्टापन।
अन्तरय् —वि॰—अन्तर्-अय्—-—अन्तःप्रवेश करना, हस्तक्षेप करना
अभ्युदय् —वि॰—अभ्युद्-अय्—-—निकलना (जैसे कि चन्द्रमा, सूरज)
अभ्युदय् —वि॰—अभ्युद्-अय्—-—फलना-फूलना, समृद्ध होना
उदय् —वि॰—उद्-अय्—-—निकलना, उगना (जैसा कि सूर्य)
उदय् —वि॰—उद्-अय्—-—प्रकट होना, दिखलाई देना
उदय् —वि॰—उद्-अय्—-—फूटना, उदय होना, जन्म लेना, उत्पन्न होना
पलाय् —वि॰—पल्-अय्—-—भागना, वापिस होना, भाग जाना
अयः —पुं॰—-—इ+अच्—जाना,चलना,फिरना
अयः —पुं॰—-—इ+अच्—पूर्वजन्म के अच्छे कृत्य
अयः —पुं॰—-—इ+अच्—अच्छा भाग्य, अच्छी किस्मत
अयः —पुं॰—-—इ+अच्—खेलने का पासा
अयान्वित —वि॰—अयः-अन्वित—-—सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मत वाला
अयाऽयवत् —वि॰—अयः-अयवत्—-—सौभाग्यशाली, अच्छी किस्मत वाला
अयक्ष्मम् —नपुं॰—-—-—स्वास्थ्य का होना,नीरोगता।
अयज्ञ —वि॰,न॰ ब॰—-—-—यज्ञ न करने वाला
अयज्ञः —पुं॰—-—-—यज्ञ का न होना,बुरा होना
अयज्ञिय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो यज्ञ के योग्य न हो
अयज्ञिय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो यज्ञ करने का अधिकारी न हो
अयज्ञिय —वि॰,न॰ त॰—-—-—लौकिक, गंवारू
अयत्न —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना ही यत्न किये होने वालाअनायास,बिना परीश्रम के,आसानी से,तत्परता के साथ।
अयत्नः —पुं॰—-—-—श्रम या उद्योग का अभाव
अयत्नेन —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अनायास, बिना परिश्रम के आसानी से तत्परता के साथ
अयथा —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—जिस प्रकार होना चाहिये वैसे न होना,अनुपयुक्त रुप से,अनुचित ढंग से,गलत तरीके से
अयथार्थ —वि॰—अयथा-अर्थ—-—जो नितांत भाव के अनुकूल न हो, अर्थहीन, भावरहित
अयथार्थ —वि॰—अयथा-अर्थ—-—असंगत, अयोग्य, मिथ्या, अशुद्ध, गलत
अयथानुभवः —पुं॰—अयथा-अनुभवः—-—अशुद्ध या असत्य ज्ञान, गलत भाव
अयथेष्ट —वि॰—अयथा-इष्ट—-—जो इच्छानुकूल न हो, नापसंद
अयथेष्ट —वि॰—अयथा-इष्ट—-—अपर्याप्त, नाकाफी
अयथोचित —वि॰—अयथा-उचित—-—अयुक्त, अनुपयुक्त
अयथातथ —वि॰—अयथा-तथ—-—जो जैसा होना चाहिए वैसा न हो, अयुक्त, अनुपयुक्त, अयोग्य
अयथातथ —वि॰—अयथा-तथ—-—अर्थहीन, व्यर्थ, लाभरहित
अयथातथम् —अव्य॰—अयथा-तथम्—-—अयुक्तता के साथ, अनुपयुक्तता के साथ
अयथातथम् —अव्य॰—अयथा-तथम्—-—व्यर्थ, अकारथ, बेकार
अयथातथ्यम् —अव्य॰—अयथा-तथ्यम्—-—अनुपयुक्तता, असंगतता, व्यर्थता
अयथाद्योतनम् —अव्य॰—अयथा-द्योतनम्—-—आशातीत घटना का होना
अयथापुर —वि॰—अयथा-पुर—-—जो पहले कभी न हुआ हो, अभूतपूर्व, अनुपम
अयथापूर्व —वि॰—अयथा-पूर्व—-—जो पहले कभी न हुआ हो, अभूतपूर्व, अनुपम
अयथावृत्त —वि॰—अयथा-वृत्त—-—गलत तरीके से कार्य करने वाला
अयथाशास्त्रकारिन् —वि॰—अयथा-शास्त्रकारिन्—-—शास्त्रानुकूल कार्य न करने वाला, अधार्मिक
अयथावत् —अव्य॰—-—-—गलती से ,अनुचित तरीके से।
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—जाना,हिलना,चलना
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—राह, पथ, मार्ग, सड़क
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—स्थान, जगह, घर
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—प्रवेशद्वार, व्यूह में प्रवेश करने का मार्ग
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—सूर्य का मार्ग, सूर्य की विषुवत् रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर गति
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—(अत एव) इस मार्ग का अवधि-काल, छः मास, एक अयनबिंदु से दूसरे अयनबिंदु तक जाने का समय
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—विषुव और अयनसंबंधी बिन्दु
दक्षिणायनम् —नपुं॰—-—-—शिशिरऋतु का अयन
उत्तरायणम् —नपुं॰—-—-—ग्रीष्म अयन
अयनम् —नपुं॰—-—अय्+ल्युट्—अन्तिममुक्ति
अयनकालः —पुं॰—अयनम्-कालः—-—दोनों अयनों के मध्य की अवधि
अयनवृत्तम् —नपुं॰—अयनम्-वृत्तम्—-—ग्रहणरेखा
अयन्त्रित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनियंन्त्रित,जिसको रोका न जा सके,स्वेच्छाचारी,मनमानी करने वाला।
अयमित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनियन्त्रित
अयमित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिस पर प्रतिबंध न लगा हो
अयमित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसकी काट-छांट न की गई हो, असज्जित
अयशस् —वि॰—-—-—यशोहीन,बदनाम,अकीर्तिकर
अयशः —नपुं॰—-—-—बदनामी, अपकीर्ति, कुख्याति, अवमान, निन्दा
अयशस्कर —वि॰—अयशस्-कर—-—बदनाम, कलंकी
अयशस्य —वि॰—-—-—बदनाम,कलंकी।
अयस् —नपुं॰—-—इ+असुन्—लोहा
अयस् —नपुं॰—-—इ+असुन्—इस्पात
अयस् —नपुं॰—-—इ+असुन्—सोना
अयस् —नपुं॰—-—इ+असुन्—धातु
अयस् —नपुं॰—-—इ+असुन्—अगर नामक लकड़ी
अयस् —पुं॰—-—इ+असुन्—अग्नि
अयाग्रम् —नपुं॰—अयस्-अग्रम्—-—हथौड़ा, मूसल
अयाग्रकम् —नपुं॰—अयस्-अग्रकम्—-—हथौड़ा, मूसल
अयस्काण्डः —पुं॰—अयस्-काण्डः—-—लोहे का बाण
अयस्काण्डः —पुं॰—अयस्-काण्डः—-—बढ़िया लोहा
अयस्काण्डः —पुं॰—अयस्-काण्डः—-—लोहे का बड़ा परिमाण
अयस्कान्तः —पुं॰—अयस्-कान्तः—-—चुंबक, चुंबक पत्थर
अयस्कान्तः —पुं॰—अयस्-कान्तः—-—मूल्यवान् पत्थर
अयस्कान्तमणिः —पुं॰—अयस्-कान्तः-मणिः—-—चुंबक पत्थर
अयस्कारः —पुं॰—अयस्-कारः—-—लुहार, लोहे का काम करने वाला
अयस्कीटम् —नपुं॰—अयस्-कीटम्—-—लोहे का ज़ंग या मुर्चा
अयस्कुम्भः —पुं॰—अयस्-कुम्भः—-—लोहे का बर्तन, इंजिन का बायलर आदि
अयस्पात्रम् —नपुं॰—अयस्-पात्रम्—-—लोहे का हथौड़ा
अयोघनः —पुं॰—अयस्-घनः—-—लोहे का हथौड़ा
अयश्चूर्णम् —नपुं॰—अयस्-चूर्णम्—-—लोहे का चूरा
अयज्जालम् —नपुं॰—अयस्-जालम्—-—लोहे की जाली
अयोस्दण्डः —पुं॰—अयस्-दण्डः—-—लोहे की मुद्गर
अयोधातुः —पुं॰—अयस्-धातुः—-—लोहधातु
अयस्प्रतिमा —स्त्री॰—अयस्-प्रतिमा—-—लोहे की मूर्ति
अयोमलम् —नपुं॰—अयस्-मलम्—-—लोहे का जंग
अयोरजः —पुं॰—अयस्-रजः—-—लोहे का जंग
अयोरसः —पुं॰—अयस्-रसः—-—लोहे का जंग
अयोमुखः —पुं॰—अयस्-मुखः—-—लोहे की नोक लगा हुआ बाण
अयश्शङ्कुः —पुं॰—अयस्-शङ्कुः—-—लोहे की बर्छी
अयश्शङ्कुः —पुं॰—अयस्-शङ्कुः—-—लोहे की कील, लोकदार लोहे की छड़
अयश्शलूम् —नपुं॰—अयस्-शलूम्—-—लोहे का भाला
अयश्शलूम् —नपुं॰—अयस्-शलूम्—-—प्रबल साधन, तीक्ष्ण उपाय
अयोहृदय —वि॰—अयस्-हृदय—-—लौह-हृदय, कठोर, निष्ठुर
अयस्मय —नपुं॰—-—अयस्+मयट्—लोहे या किसी धतु का बना हुआ।
अयोमय —नपुं॰—-—अयस्+मयट्—लोहे या किसी धतु का बना हुआ।
अयाचित —वि॰,न॰ त॰—-—-—न मांगा हुआ,अप्रार्थित
अयाचितम् —नपुं॰—-—-—अप्रार्थित भिक्षा
अयाचितोपनत —वि—अयाचित-उपनत—-—बिना निमंत्रण या प्रार्थना के पहुंचा हुआ
अयाचितोपस्थित —वि—अयाचित-उपस्थित—-—बिना निमंत्रण या प्रार्थना के पहुंचा हुआ
अयाचितवृत्तिः —स्त्री॰—अयाचित-वृत्तिः—-—बिना मांग़ी या अप्रर्थित भिक्षा पर जीवित रहना
अयाज्य —वि॰,न॰ त॰—-—-— जिसके लिये यज्ञ नहीं करना चाहिये,या जो यज्ञ का अधिकारी न हो
अयाज्य —वि॰,न॰ त॰—-—-— जाति बहिष्कृत, पतित
अयाज्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—यज्ञ करने का अनधिकारी
अयाज्ययाजनम् —नपुं॰—अयाज्य-याजनम्—-—उस व्यक्ति के लिए यज्ञ करना जिसके लिए किसी को यज्ञ नहीं करना चाहिए
अयाज्यसंयाज्यम् —नपुं॰—अयाज्य-संयाज्यम्—-—उस व्यक्ति के लिए यज्ञ करना जिसके लिए किसी को यज्ञ नहीं करना चाहिए
अयात —वि॰,न॰ त॰—-—-—न गया हुआ
अयातयाम —वि॰—अयात-याम—-—जो बासी न हो ,ताजा,जो उपयोग मे आने के कारण जीर्ण-शीर्ण न हुआ हो, ताजा, खिला हुआ
अयाथर्थिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सत्य न हो,न्याय विरुद्ध, अनुचित
अयाथर्थिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—अवास्तविक, असंगत, बेतुका
अयाथार्थ्यम् —नपुं॰—-—-—अयोग्यता,अशुद्धता
अयाथार्थ्यम् —नपुं॰—-—-—बेतुकापन, असंगतता
अयानम् —नपुं॰—-—-—न जाना, न हिलना-डुलना, ठहरना, टिकना
अयि —अव्य॰—-—इ+इनि—मित्रादिकों के प्रति नम्र संबोधन
अयि —अव्य॰—-—इ+इनि—प्रार्थना या अनुरोध बोधक अव्यय
अयि —अव्य॰—-—इ+इनि—सामान्य सानुग्रह
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो जुता न हो,या जिस पर जीन न कसा गया हो
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मिला हुआ न हो,संबद्ध या संयुक्त न हो
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो भक्त या धार्मिक न हो,ध्यान रहित,उपेक्षाशील
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अभ्याससापेक्ष,अनभ्यस्त,जो नियुक्त न हुआ हो
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अयोग्य,अनुचित,अनुपयुक्त
अयुक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—झूठ,गलत
अयुक्तकृत् —वि॰—अयुक्त-कृत्—-—अनुचित या गलत काम करने वाला
अयुक्तपदार्थः —पुं॰—अयुक्त-पदार्थः—-—शब्द का वह अर्थ जो दिया गया हो
अयुक्तरूप —वि॰—अयुक्त-रूप—-—असंगत, अनुपयुक्त
अयुग —वि॰,न॰ त॰—-—-—पृथक्,अकेला
अयुग —वि॰,न॰ त॰—-—-—ऊबड़-खाबड़,बिषम
अयुगल —वि॰,न॰ त॰—-—-—पृथक्,अकेला
अयुगल —वि॰,न॰ त॰—-—-—ऊबड़-खाबड़,बिषम
अयुगार्चिस् —पुं॰—अयुग-अर्चिस्—-—आग
अयुगलार्चिस् —पुं॰—अयुगल-अर्चिस्—-—आग
अयुगनेत्रः —पुं॰—अयुग-नेत्रः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुगलनेत्रः —पुं॰—अयुगल-नेत्रः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुगनयनः —पुं॰—अयुग-नयनः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुगलनयनः —पुं॰—अयुगल-नयनः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुगशरः —पुं॰—अयुग-शरः—-—विषम (५) बाणों वाला, कामदेव
अयुगलशरः —पुं॰—अयुगल-शरः—-—विषम (५) बाणों वाला, कामदेव
अयुगसप्तिः —पुं॰—अयुग-सप्तिः—-—साथ घोड़ों वाला, सूर्य
अयुगलसप्तिः —पुं॰—अयुगल-सप्तिः—-—साथ घोड़ों वाला, सूर्य
अयुगपद् —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—सब एक साथ नहीं, क्रमशः, यथाक्रम
अयुगपदग्रहणम् —नपुं॰—अयुगपद-ग्रहणम्—-—क्रमपूर्वक समझना
अयुगपदभावः —पुं॰—अयुगपद-भावः—-—अनुक्रम, आनुक्रमिकता
अयुग्म —वि॰,न॰ त॰—-—-—अकेला,न्यारा
अयुग्म —वि॰,न॰ त॰—-—-—निराला,विषम
अयुग्मछदः —पुं॰—अयुग्म-छदः—-—सप्तपर्ण नामक पौधा
अयुग्मपत्रः —पुं॰—अयुग्म-पत्रः—-—सप्तपर्ण नामक पौधा
अयुग्मनयनः —पुं॰—अयुग्म-नयनः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुग्मनेत्रः —पुं॰—अयुग्म-नेत्रः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुग्मलोचनः —पुं॰—अयुग्म-लोचनः—-—विषम (३) आँखों वाला, शिव
अयुग्मबाणः —पुं॰—अयुग्म-बाणः—-—विषम (५) बाणों वाला, कामदेव
अयुग्मशरः —पुं॰—अयुग्म-शरः—-—विषम (५) बाणों वाला, कामदेव
अयुग्मवाहः —पुं॰—अयुग्म-वाहः—-—सात घोड़ों वाला सूर्य
अयुग्मसप्तिः —पुं॰—अयुग्म-सप्तिः—-—सात घोड़ों वाला सूर्य
अयुज् —वि॰,न॰ त॰—-—-—निराला,विषम
अयुजिषुः —पुं॰—अयुज्-इषुः—-—पांच बाणों वाला, कामदेव
अयुक्बाणः —पुं॰—अयुज्-बाणः—-—पांच बाणों वाला, कामदेव
अयुक्शरः —पुं॰—अयुज्-शरः—-—पांच बाणों वाला, कामदेव
अयुक्छदः —पुं॰—अयुज्-छदः—-—सप्तपर्ण
अयुक्पलाशः —पुं॰—अयुज्-पलाशः—-—सप्तपलाश
अयुक्पाद —वि॰—अयुज्-पाद—-—पहले और तीसरे पाद में भिन्न अर्थों वाले एक से अक्षर रखने वाला अनुप्रास का एक भेद
अयुक्यमकम् —नपुं॰—अयुज्-यमकम्—-—पहले और तीसरे पाद में भिन्न अर्थों वाले एक से अक्षर रखने वाला अनुप्रास का एक भेद
अयुग्नेत्र —वि॰—अयुज्-नेत्र—-—शिव
अयुक्लोचन —वि॰—अयुज्-लोचन—-—शिव
अयुकाक्ष —वि॰—अयुज्-अक्षः—-—शिव
अयुक्शक्ति —वि॰—अयुज्-शक्ति—-—शिव
अयुत —वि॰—-—-—न मिला हुआ,पृथककृत,असंबद्ध
अयुतम् —नपुं॰—-—-—दस हजार,दस सहस्र की संख्या
अयुताध्यापकः —पुं॰—अयुत-अध्यापकः—-—अच्छा अध्यापक
अयुतसिद्ध —वि॰—अयुत-सिद्ध—-—अपृथक्करणीय,अन्तर्निहित
अयुतसिद्धि —स्त्री॰—अयुत-सिद्धि—-—ऐसा प्रमाण जिससे निश्चय हो कि कुछ वस्तुऐं तथा मान्यताएं अपृथक्करणीय तथा अन्तर्हित हैं।
अये —अव्य॰—-—इ+एच्—संबोधनात्मक अव्यय या संबोधन नम्र प्रकार
अये —अव्य॰—-—इ+एच्—विस्मयादि द्योतक अव्यय
अयोगः —पुं॰—-—-—अलगाव, वियोग, अन्तराल
अयोगः —पुं॰—-—-—अयोग्यता, अनौचित्य, असंगति
अयोगः —पुं॰—-—-—अनुचित संबंध
अयोगः —पुं॰—-—-—विधुर, अनुपस्थित प्रेमी या पति
अयोगवः —पुं॰—-—अय इव कठिना गौर्वाणी यस्य- ब॰ स॰ नि॰ अच्—शूद्र पिता और वैश्य माता की सन्तान
अयोग्य —वि॰न॰ त॰—-—-—जो योग्य न हो,अनुपयुक्त,निरर्थक
अयोध्य —वि॰न॰ त॰—-—-—जिस पर आक्रमण न किया जा सके,जिसका मुकाबला न किया जा सके
अयोध्या —वि॰न॰ त॰—-—-—सरयू नदी के तट पर स्थित वर्तमाना अयोध्या नगरी,रघुवंश मे उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी
अयोनि —वि॰न॰ ब॰—-—-—अजन्मा,नित्य
अयोनि —वि॰न॰ ब॰—-—-—जो कोख से उत्पन्न न हो, अधर्म अथवा अवैध रूप से उत्पन्न
अयोनिः —स्त्री॰न॰ त॰—-—-—जो योनि न हो
अयोनिः —पुं॰—-—-—ब्रह्मा, शिव
अयोनिज —वि॰—अयोनि-ज—-—जो जरायु से न जन्मा हो, सामान्य जन्मपद्धति के अनुसार जिसने जन्म न लिया हो
अयोनिजन्मन् —वि॰—अयोनि-जन्मन्—-—जो जरायु से न जन्मा हो, सामान्य जन्मपद्धति के अनुसार जिसने जन्म न लिया हो
अयोनीशः —पुं॰—अयोनि-ईशः—-—शिव
अयोनीश्वरः —पुं॰—अयोनि-ईश्वरः—-—शिव
अयोनिजा —स्त्री॰—अयोनि-जा—-—जनक की पुत्री सीता जो कि खेत के खूड से उत्पन्न हुई थी
अयोनिसम्भवा —स्त्री॰—अयोनि-सम्भवा—-—जनक की पुत्री सीता जो कि खेत के खूड से उत्पन्न हुई थी
अयौगपद्यम् —नपुं॰—-—-—समकालीनता का अभाव
अयौगिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—व्याकरण के नियमानुसार जो शब्द व्युत्पन्न न हो
अरः —पुं॰—-—ऋ+अच्—पहिए के अरे या पहिए अर्धव्यास
अरान्तर —वि॰—अरः-अन्तर—-—अरों का अन्तराल
अरोघट्टः —पुं॰—अरः-घट्टः—-—रहट जिसके द्वारा कुएँ से पानी निकाला जाता है
अरोघट्टकः —पुं॰—अरः-घट्टकः—-—रहट जिसके द्वारा कुएँ से पानी निकाला जाता है
अरोघटी —स्त्री॰—अरः-घटी—-—रहट में प्रयुक्त किया जाने वाला डोल
अरोघट्टः —पुं॰—अरः-घट्टः—-—गहरा कुँआ
अरोघट्टकः —पुं॰—अरः-घट्टकः—-—गहरा कुँआ
अरजस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—धूल या गर्द से रहित,साफ स्वच्छ
अरजस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रज या वासना से युक्त
अरजस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसे मासिक धर्म न आता हो
अरज —वि॰,न॰ ब॰—-—-—धूल या गर्द से रहित,साफ स्वच्छ
अरज —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रज या वासना से युक्त
अरज —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसे मासिक धर्म न आता हो
अरजस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—-—धूल या गर्द से रहित,साफ स्वच्छ
अरजस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रज या वासना से युक्त
अरजस्क —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसे मासिक धर्म न आता हो
अरजाः —स्त्री॰—-—-—वह कन्या जिसे अभी रजोधर्म आरम्भ नही हुआ
अरज्जु —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसमे रस्सियां न लगी हो,रस्सियों से विरहित
अरणिः —पुं॰—-—-—शमी की लकड़ी का टुकड़ा
अरणी —स्त्री॰—-—-—शमी की लकड़ी का टुकड़ा
अरणी —स्त्री॰,द्वि॰ व॰—-—-—यज्ञाग्नि प्रज्वलित करने के लिए लकड़ी की दो समिधाएँ
अरणिः —पुं॰—-—-—फलीता, चकमक पत्थर
अरण्यम् —नपुं॰—-—अर्यते गम्यते शेषे वयसि - ऋ+अन्य—जंगल,बन,उजाड़, जंगली, जंगल में उत्पन्न
अरण्यबीजम् —नपुं॰—अरण्यम्-बीजम्—-—जंगली बीज
अरण्यमार्जार —वि॰—अरण्यम्-मार्जार—-—जंगली बिल्ली
अरण्यमूषकः —पुं॰—अरण्यम्-मूषकः—-—जंगली चूहा
अरण्याध्यक्षः —पुं॰—अरण्यम्-अध्यक्षः—-—वन की देख रेख करने वाला, राजिक
अरण्यायनम् —नपुं॰—अरण्यम्-अयनम्—-—जंगल में चले जाना, वानप्रस्थ लेना
अरण्ययानम् —नपुं॰—अरण्यम्-यानम्—-—जंगल में चले जाना, वानप्रस्थ लेना
अरण्यौकस् —वि॰—अरण्यम्-ओकस्—-—अरण्यवासी, जंगल में रहने वाला
अरण्यौकस् —वि॰—अरण्यम्-ओकस्—-—विशेषतः वह जिसने अपना परिवार छोड़ दिया हो और वानप्रस्थी हो गया हो, जंगल में रहने वाला
अरण्यसद् —वि॰—अरण्यम्-सद्—-—अरण्यवासी, जंगल में रहने वाला
अरण्यसद् —वि॰—अरण्यम्-सद्—-—विशेषतः वह जिसने अपना परिवार छोड़ दिया हो और वानप्रस्थी हो गया हो, जंगल में रहने वाला
अरण्यकदली —पुं॰—अरण्यम्-कदली—-—जंगली केला
अरण्यगजः —पुं॰—अरण्यम्-गजः—-—जंगली हाथी
अरण्यचटकः —पुं॰—अरण्यम्-चटकः—-—जंगली चिड़िया
अरण्यचंद्रिका —स्त्री॰—अरण्यम्-चंद्रिका—-—जंगल में चन्द्रमा का प्रकाश
अरण्यचंद्रिका —स्त्री॰—अरण्यम्-चंद्रिका—-—निरर्थक शृंगार या आभूषण, ऐसा बनावसिंगार जिसे कोई देखने-सराहने वाला न हो
अरण्यचर —वि॰—अरण्यम्-चर—-—जंगली
अरण्यजीव —वि॰—अरण्यम्-जीव—-—जंगली
अरण्यज —वि॰—अरण्यम्-ज—-—वन्य
अरण्यधर्मः —पुं॰—अरण्यम्-धर्मः—-—जंगली अवस्था या प्रथा, जंगली स्वभाव
अरण्यनृपतिः —पुं॰—अरण्यम्-नृपतिः—-—जंगल का स्वामी, सिंह या व्याघ्र का विशेषण
अरण्यपतिः —पुं॰—अरण्यम्-पतिः—-—जंगल का स्वामी, सिंह या व्याघ्र का विशेषण
अरण्यराज् —पुं॰—अरण्यम्-राज्—-—जंगल का स्वामी, सिंह या व्याघ्र का विशेषण
अरण्यराट् —पुं॰—अरण्यम्-राट्—-—जंगल का स्वामी, सिंह या व्याघ्र का विशेषण
अरण्यराजः —पुं॰—अरण्यम्-राजः—-—जंगल का स्वामी, सिंह या व्याघ्र का विशेषण
अरण्यपण्डितः —पुं॰—अरण्यम्-पण्डितः—-—‘वन में विद्वान्’ मूर्ख पुरुष जो वन में ही अपना पांडित्य प्रकट कर सके
अरण्यभव —वि॰—अरण्यम्-भव—-—जंगल में उत्पन्न, जंगली
अरण्यमक्षिका —स्त्री॰—अरण्यम्-मक्षिका—-—डांस
अरण्ययानम् —नपुं॰—अरण्यम्-यानम्—-—जंगल में चले जाना
अरण्यरक्षकः —पुं॰—अरण्यम्-रक्षकः—-—अरण्यपाल
अरण्यरुदितम् —नपुं॰—अरण्यम्-रुदितम्—-—जंगल में रोना, अरण्यरोदन, ऐसा रोना जिसे कोई सुननें वाला न हो, निष्फल कथन
अरण्यवायसः —पुं॰—अरण्यम्-वायसः—-—जंगली कौवा, पहाड़ी कौवा
अरण्यवासः —पुं॰—अरण्यम्-वासः—-—जंगल में चले जाना, जंगल में आवास
अरण्यसमाश्रयः —पुं॰—अरण्यम्-समाश्रयः—-—जंगल में चले जाना, जंगल में आवास
अरण्यवासिन् —वि॰—अरण्यम्-वासिन्—-—जंगल में रहने वाला
अरण्यवासी —पुं॰—अरण्यम्-वासिन्—-—अरण्यवासी, वानप्रस्थी
अरण्येविलपितम् —नपुं॰—अरण्यम्-विलपितम्—-—जंगल में रोना, अरण्यरोदन, ऐसा रोना जिसे कोई सुननें वाला न हो, निष्फल कथन
अरण्येविलापः —पुं॰—अरण्यम्-विलापः—-—जंगल में रोना, अरण्यरोदन, ऐसा रोना जिसे कोई सुननें वाला न हो, निष्फल कथन
अरण्यश्वन् —पुं॰—अरण्यम्-श्वन्—-—जंगली कुत्ता, भेड़िया
अरण्यसभा —स्त्री॰—अरण्यम्-सभा—-—जंगल की कचहरी
अरण्यकम् —नपुं॰—-—अरण्य+कन्—जंगल , वन ।
अरण्यानिः —स्त्री॰—-—अरण्य+आनुक् —एक बड़ा जंगल, या बीहड़ मरुभूमि, विस्तृत उजाड़ ।
अरण्यानी —स्त्री॰—-—अरण्य+आनुक् ङीप् च—एक बड़ा जंगल, या बीहड़ मरुभूमि, विस्तृत उजाड़ ।
अरत —वि॰,न॰ त॰—-—-—मन्द,विरक्त, अनासक्त
अरत —वि॰,न॰ त॰—-—-—असंतुष्ट,तुष्टिरहित, पराङ्मुख
अरतम् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अमैथुन
अरतत्रप —वि॰—अरत-त्रप—-—मैथुन करने में न लजाने वाला
अरतत्रपः —पुं॰—अरत-त्रपः—-—कुत्ता
अरति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असंतुष्ट
अरति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सुस्त, निढाल
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—आमोद-प्रमोद का अभाव
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—पीड़ा, कष्ट
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—चिन्ता, खेद, बेचैनी, क्षोभ
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—असन्तोष, संतोषाभाव
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—निढालपना, सुस्ती
अरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—एक पैत्तिक रोग
अरत्निः —पुं॰—-—ऋ+कत्नि=रत्निः,स नास्ति यत्र—कुहनी,कई बार मुक्का
अरत्निः —पुं॰—-—ऋ+कत्नि=रत्निः,स नास्ति यत्र—एक हाथ की माप,कुहनी से कानी उंगली के छोर तक की माप, लंबाई नापने का पैमाना
अरत्निकः —पुं॰—-—अरत्नि+कन्—कुहनी।
अरम् —अव्य॰—-—ऋ+अम्—तेजी से,निकट,पास ही,उपस्थित
अरम् —अव्य॰—-—ऋ+अम्—तत्परता के साथ।
अरमण —वि॰—-—-—जो सुखकर न हो,असंतोषजनक,अरुचिकर
अरमण —वि॰—-—-—अविराम,अनवरत।
अरममाण —वि॰—-—-—जो सुखकर न हो,असंतोषजनक,अरुचिकर
अरममाण —वि॰—-—-—अविराम,अनवरत।
अररम् —नपुं॰—-—ऋ+अरन्—किवाड़ का दिला
अररम् —नपुं॰—-—ऋ+अरन्—ढक्कन, म्यान
अररे —अव्य॰—-—अर+रा+के—(क)बड़े उतावलेपन (ख)तथा घृणा और अवज्ञा को प्रकट करने वाला संबोधन बोधक अव्यय
अरविन्दम् —नपुं॰—-—अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते- अर+विन्द्+श—कमल
अरविन्दम् —नपुं॰—-—अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते- अर+विन्द्+श—लाल या नील कमल
अरविन्दः —पुं॰—-—अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते- अर+विन्द्+श—सारस पक्षी
अरविन्दः —पुं॰—-—अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते- अर+विन्द्+श—तांबा
अरविन्दाक्ष —वि॰—अरविन्दम्-अक्ष—-—कमल जैसी आंखो वाला, विष्णु की उपाधि
अरविन्ददलप्रभम् —नपुं॰—अरविन्दम्-प्रभम्—-—तांबा
अरविन्दनाभिः —पुं॰—अरविन्दम्-नाभिः—-—विष्णु
अरविन्दसद् —पुं॰—अरविन्दम्-सद्—-—ब्रह्मा
अरविन्दिनी —स्त्री॰—-—अरविन्द्+इनि+ङीप्—कमल का पौधा
अरविन्दिनी —स्त्री॰—-—अरविन्द्+इनि+ङीप्—कमल फूलों का समूह
अरविन्दिनी —स्त्री॰—-—अरविन्द्+इनि+ङीप्—वह स्थान जहाँ कमल बहुतायत से होते हों।
अरस —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रसहीन,निरस,फीका
अरस —वि॰—-—-—मंद,बुद्धिहीन
अरस —वि॰—-—-—निर्बल,बलहीन,अयोग्य।
अरसिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—रुखा,रसहीन,फीका,बिना स्वाद का
अरसिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—भावना या स्वाद से विरहित, मन्द, काव्यादि का रस लेने में असमर्थ, कविता के मर्म को न जानने वाला
अराग —वि॰,न॰ ब॰—-— —शांत वासना रहित
अरागिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—शांत वासना रहित
अराजक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना राजा का,जहाँ राजा न हो
अराजन् —पुं॰—-—-—जो राजा न हो,जो किसी राजा द्वारा प्रतिष्ठित न किया गया हो,अवैध,गैरकानूनी।
अराजभोगीन —वि॰—अराजन्-भोगीन—-—राजा के काम के अनुपयुक्त
अराजस्थापित —वि॰—अराजन्-स्थापित—-—जो किसी राजा द्वारा प्रतिष्ठित न किया गया हो, अवैध, गैरकानूनी
अरातिः —पुं॰—-—-—शत्रु ,दुश्मन
अरातिः —पुं॰—-—-—छः की संख्या
अरातिभङ्गः —पुं॰—अरातिः-भङ्गः—-—शत्रुओं का नाश
अराल —वि॰—-—ऋ-विच् अरम् आलाति,ला+क—मुड़ा हुआ,टेढ़ा
अरालः —पुं॰—-—ऋ-विच् अरम् आलाति,ला+क—वक्र भुजा
अरालः —पुं॰—-—ऋ-विच् अरम् आलाति,ला+क—मतवाला हाथी
अराला —स्त्री॰—-—ऋ-विच् अरम् आलाति,ला+क+टाप्—पुंश्चली, वेश्या, वारांगना
अरालकेशी —स्त्री॰—अराल-केशी—-—घुंघराले बालों वाली स्त्री
अरालपक्ष्मन् —वि॰—अराल-पक्ष्मन्—-—मुड़ी हुई पलकों वाला
अरिः —पुं॰—-—ऋ+इन—शत्रु,दुश्मन
अरिः —पुं॰—-—ऋ+इन—मनुष्य जाति का शत्रु
अरिः —पुं॰—-—ऋ+इन—छः की संख्या
अरिः —पुं॰—-—ऋ+इन—गाड़ी का पहिया
अरिकर्षण —वि॰—अरिः-कर्षण—-—शत्रुओं को पीडित या पराभूत करने वाला
अरिकुलम् —नपुं॰—अरिः-कुलम्—-—शत्रुओं का समूह
अरिकुलम् —नपुं॰—अरिः-कुलम्—-—शत्रु
अरिघ्नः —पुं॰—अरिः-घ्नः—-—शत्रुओं का नाश करने वाला
अरिचिन्तनम् —नपुं॰—अरिः-चिन्तनम्—-—शत्रुओं के नाश के लिए बनाई हुयी योजनाएँ, विदेश विभाग का प्रशासन
अरिचिन्ता —स्त्री॰—अरिः-चिन्ता—-—शत्रुओं के नाश के लिए बनाई हुयी योजनाएँ, विदेश विभाग का प्रशासन
अरिनन्दन —वि॰—अरिः-नन्दन—-—शत्रु को प्रसन्न करने वाला, शत्रु को विजय दिलाने वाला
अरिभद्रः —पुं॰—अरिः-भद्रः—-—बड़ा शक्तिशाली शत्रु
अरिसूदनः —पुं॰—अरिः-सूदनः—-—शत्रुओं का नाश करने वाला
अरिहन् —वि॰—अरिः-हन्—-—शत्रुओं का नाश करने वाला
अरिहिंसक —वि॰—अरिः-हिंसक—-—शत्रुओं का नाश करने वाला
अरिक्थभाज् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पैतृक संपत्ती में हिस्सा पाने का अधिकारी न हो
अरिक्थीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पैतृक संपत्ती में हिस्सा पाने का अधिकारी न हो
अरित्रम् —नपुं॰—-—ऋ+इत्र—डांड
अरित्रम् —नपुं॰—-—ऋ+इत्र—पतवार,लंगर
अरिन्दम् —वि॰—-—अरि+दम्+खच्—शत्रुओं का दमन करने वाला,शत्रु विजयी,शत्रु को जितने वाला।
अरिषम् —नपुं॰—-—-—लगातार वर्षा होना
अरिषः —नपुं॰—-—-—एक प्रकार का गुदारोग।
अरिष्ट —वि॰—-—-—अक्षत,पूर्ण,अविनाशी,निरापद
अरिष्टः —पुं॰—-—-—जंगली कौवा
अरिष्टः —पुं॰—-—-—नाना प्रकार के पौधों के नाम
अरिष्टम् —नपुं॰—-—-—दुर्भाग्य, अनिष्ट, बदकिस्मती
अरिष्टम् —नपुं॰—-—-—दुर्भाग्यमिश्रित अनिष्टसूचक घटना, अपशकुन
अरिष्टम् —नपुं॰—-—-—प्रतिकूल लक्षण
अरिष्टम् —नपुं॰—-—-—सौभाग्य, अच्छी किस्मत, सुख
अरिष्टम् —नपुं॰—-—-—मादक शराब
अरिष्टगृहम् —नपुं॰—अरिष्ट-गृहम्—-—सूतिकागृह
अरिष्टताति —वि॰—अरिष्ट-ताति—-—सौभाग्यशाली या सुखी बनाने वाला, शुभ
अरिष्टतातिः —स्त्री॰—अरिष्ट-तातिः—-—सुरक्षा, सौभाग्य का उत्तराधिकार, अनवरत सुख
अरिष्टमथनः —पुं॰—अरिष्ट-मथनः—-—शिव, विष्णु
अरिष्टशय्या —स्त्री॰—अरिष्ट-शय्या—-—प्रसूता का पलंग
अरिष्टसूदनः —पुं॰—अरिष्ट-सूदनः—-—अरिष्टनाशक, विष्णु की उपाधि
अरिष्टहन् —पुं॰—अरिष्ट-हन्—-—अरिष्टनाशक, विष्णु की उपाधि
अरुचिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अनिच्छा, किसी वस्तु का अच्छा न लगना
अरुचिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—भूख न लगना, स्वादु न लगना, उकता जाना
अरुचिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—संतोषजनक व्याख्या का अभाव
अरुचिर —वि॰,न॰ त॰—-—-—भला न लगने वाला अरुचिकर,उकताहट पैदा करने वाला।
अरुच्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—भला न लगने वाला अरुचिकर,उकताहट पैदा करने वाला।
अरुज् —वि॰,न॰ त॰—-—-—रोगमुक्त,स्वस्थ,नीरोग।
अरुज —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वस्थ,नीरोग।
अरुण —वि॰—-—ऋ+उनन्—अर्ध या कुछ-लाल,भूरा,पिगल,लाल,गुलाबी
अरुण —वि॰—-—ऋ+उनन्—विस्मित,व्याकुल
अरुणः —पुं॰—-—ऋ+उनन्—लाल रंग, उषा का रंग या प्रातःकालीन संध्यालोक
अरुणः —पुं॰—-—ऋ+उनन्—सूर्य का सारथि
अरुणः —पुं॰—-—ऋ+उनन्—सूर्य
अरुणम् —नपुं॰—-—ऋ+उनन्—लाल रंग
अरुणम् —नपुं॰—-—ऋ+उनन्—सोना
अरुणम् —नपुं॰—-—ऋ+उनन्—केसर
अरुणाग्रजः —पुं॰—अरुण-अग्रजः—-—गरुड़
अरुणानुजः —पुं॰—अरुण-अनुजः—-—अरुण का छोटा भाई, गरुड़
अरुणावरजः —पुं॰—अरुण-अवरजः—-—अरुण का छोटा भाई, गरुड़
अरुणार्चिस् —पुं॰—अरुण-अर्चिस्—-—सूर्य
अरुणात्मजः —पुं॰—अरुण-आत्मजः—-—अरुण का पुत्र जटायु
अरुणात्मजः —पुं॰—अरुण-आत्मजः—-—शनि, सावर्णि मनु, कर्ण, सुग्रीव, यम और अश्विनीकुमार
अरुणात्मजा —स्त्री॰—अरुण-आत्मजा—-—यमुना, ताप्ती
अरुणेक्षण —वि॰—अरुण-ईक्षण—-—लाल आँखों वाला
अरुणोदयः —पुं॰—अरुण-उदयः—-—दिन निकलना, उषा
अरुणोपलः —पुं॰—अरुण-उपलः—-—लाल
अरुणकमलम् —नपुं॰—अरुण-कमलम्—-—लाल कमल
अरुणज्योतिस् —पुं॰—अरुण-ज्योतिस्—-—शिव
अरुणप्रियः —पुं॰—अरुण-प्रियः—-—लाल फूल या कमलों का प्यारा, सूर्य
अरुणप्रिया —स्त्री॰—अरुण-प्रिया—-—सूर्य पत्नी
अरुणप्रिया —स्त्री॰—अरुण-प्रिया—-—छाया
अरुणलोचन —वि॰—अरुण-लोचन—-—लाल आँखों वाला
अरुणलोचनः —पुं॰—अरुण-लोचनः—-—कबूतर
अरुणसारथिः —पुं॰—अरुण-सारथिः—-—जिसका सारथि अरुण है, सूर्य
अरुणित —वि॰—-—अरुण + क्विप्(ना॰ धा॰)+क्त—लाल किया हुआ, लालरंग में रंगा हुआ, पिंगल रंग का किया हुआ
अरुणिकृत —वि॰—-—अरुण+च्वि+कृ+त ईत्वम्—लाल किया हुआ, लालरंग में रंगा हुआ, पिंगल रंग का किया हुआ
अरुन्तुद —वि॰—-—अरुषिं मर्माणि तुदति- इति- अरुस्+तुद्+ खश् मुम् च—मर्मस्थानों को छेदने वाला, घायल करने वाला, पीडाजनक, तीक्ष्ण, मर्मवेधी
अरुन्तुद —वि॰—-—अरुषिं मर्माणि तुदति- इति- अरुस्+तुद्+ खश् मुम् च—तीक्ष्ण, उग्र कटुस्वभाव
अरुन्ध्रती —स्त्री॰—-—न रुन्धति प्रतिरोधकारिणी—वशिष्ट की पत्नी
अरुन्ध्रती —स्त्री॰—-—न रुन्धति प्रतिरोधकारिणी—प्रभात कालीन तारा,वशिष्ठ की पत्नी,सप्तर्षिमंडल का एक तारा
अरुन्ध्रतीजानिः —पुं॰—अरुन्ध्रती-जानिः—-—वशिष्ठ,सप्तर्षिमंडल का एक तारा
अरुन्ध्रतीनाथः —पुं॰—अरुन्ध्रती-नाथः—-—वशिष्ठ,सप्तर्षिमंडल का एक तारा
अरुन्ध्रतीपतिः —पुं॰—अरुन्ध्रती-पतिः—-—वशिष्ठ,सप्तर्षिमंडल का एक तारा
अरुष् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्रुद्ध,शान्त।
अरुष्ट —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्रुद्ध,शान्त।
अरुष —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्रुद्ध
अरुष —वि॰,न॰ त॰—-—-—चमकीला,उज्जवल।
अरुस् —वि॰—-—ऋ+उसि—ग्हायल,चोट खाया हुआ
अरुः —पुं॰—-—ऋ+उसि—आक का पौधा,मदार
अरुः —पुं॰—-—ऋ+उसि—लाल खदिर
अरुः —पुं॰—-—ऋ+उसि—मर्मस्थल,घाव,ब्रण
अरुस् —नपुं॰—-—ऋ+उसि—मर्मस्थल,घाव,ब्रण
अरुस्कर —वि॰—अरुस्-कर—-—क्षत-विक्षत करने वाला,घायल करने वाला।
अरूप —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रूपरहित,आकार शून्य
अरूप —वि॰,न॰ ब॰—-—-—कुरूप,विरूप
अरूप —वि॰,न॰ ब॰—-—-—विषम,असम
अरूपम् —नपुं॰—-—-—एक बुरी या भद्दी आकृति
अरूपम् —नपुं॰—-—-—सांख्यों का प्रधान तथा वेदान्तियों का ब्रह्म।
अरूपहार्य —वि॰—अरूप-हार्य—-—जो सौन्दर्य से आकृष्ट या वशीभूत न किया जा सके
अरोपक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी आकृति या रूपक के,जो आलंकारिक न हो,शाब्दिक।
अरे —अव्य॰—-—ऋ+ए—एक संबोधनात्मक अव्यय
अरेपस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निष्पाप,निष्कलंक
अरेपस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निर्मल पवित्र।
अरे रे —अव्य॰—-—अरे-अरे इति वीप्सायां द्वित्वम्—विस्मयादिबोधक अव्यय
अरोक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—कान्तिहीन,मलिन,धुँधला।
अरोग —वि॰,न॰ ब॰—-—-—रोगमुक्त,नीरोग,स्वस्थ,अच्छा
अरोगः —पुं॰—-—-—अच्छा स्वास्थ
अरोगिन् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निरोग,स्वस्थ।
अरोग्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निरोग,स्वस्थ।
अरोचक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो चमकीला न हो
अरोचक —वि॰,न॰ त॰—-—-—भूख मंद करने वाला
अरोचकः —पुं॰—-—-—भूख का कम लगना,अरुचिकर,जुगुप्सा।
अर्क् —चु॰ प॰—-—-—गर्म करना
अर्क् —चु॰ प॰—-—-—स्तुति करना।
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—प्रकाशकिरण,बिजली की चमक
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—सूर्य
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—अग्नि
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—स्फटिक
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—ताँबा
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—रविवार
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—आक का पौधा,मदार
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—इन्द्र
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—आहार
अर्कः —पुं॰—-—अर्क्+घञ्-कुत्वम्—बारह की संख्या।
अर्काश्मन् —पुं॰—अर्कः-अश्मन्—-—सूर्यकान्त मणि
अर्कोपलः —पुं॰—अर्कः-उपलः—-—सूर्यकान्त मणि
अर्काह्वः —पुं॰—अर्कः-आह्वः—-—मदार,आक
अर्केन्दुसङ्गमः —पुं॰—अर्कः-इन्दुसङ्गमः—-—सूर्य और चन्द्रमा का संयोग
अर्ककान्ता —स्त्री॰—अर्कः-कान्ता—-—सूर्यपत्नी
अर्कचन्दनः —पुं॰—अर्कः-चन्दनः—-—एक प्रकार का रक्त चन्दन
अर्कजः —पुं॰—अर्कः-जः—-—कर्ण की उपाधि,यम,सुग्रीव
अर्कजौ —पुं॰—अर्कः-जौ—-—स्वर्ग के वैद्य अश्विनीकुमार
अर्कतनयः —पुं॰—अर्कः-तनयः—-—सूर्यपुत्र' कर्ण का विशेषण,यम और शनि
अर्कतनया —स्त्री॰—अर्कः-तनया—-—यमुना और ताप्ती नदियाँ
अर्कत्विष् —स्त्री॰—अर्क-त्विष्—-—सूर्य की ज्योति
अर्क-दिनम् —नपुं॰—अर्क-दिनम्—-—रविवार
अर्क-वासरः —पुं॰—अर्क-वासरः—-—रविवार
अर्कनन्दनः —पुं॰—अर्क-नन्दनः—-—शनि,कर्ण और यम के नाम
अर्कपुत्रः —पुं॰—अर्क-पुत्रः—-—शनि,कर्ण और यम के नाम
अर्कसूतः —पुं॰—अर्क-सूतः—-—शनि,कर्ण और यम के नाम
अर्कसुनुः —पुं॰—अर्क-सुनुः—-—शनि,कर्ण और यम के नाम
अर्कबन्धुः —पुं॰—अर्क-बन्धुः—-—कमल
अर्क-बान्धवः —पुं॰—अर्क-बान्धवः—-—कमल
अर्क-मण्डलम् —नपुं॰—अर्क-मण्डलम्—-—सूर्यमंडल
अर्क-विवाहः —पुं॰—अर्क-विवाहः—-—मदार से विवाह
अर्गलः —पुं॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—अगड़ी,किल्ली या मूसली, ब्योंडा,सिटकिनी,आगल, बाधित
अर्गलः —पुं॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—तरंग वा झाल।
अर्गलम् —नपुं॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—अगड़ी,किल्ली या मूसली, ब्योंडा,सिटकिनी,आगल, बाधित
अर्गलम् —नपुं॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—तरंग वा झाल।
अर्गला —स्त्री॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—अगड़ी,किल्ली या मूसली, ब्योंडा,सिटकिनी,आगल, बाधित
अर्गला —स्त्री॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—तरंग वा झाल।
अर्गली —स्त्री॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—अगड़ी,किल्ली या मूसली, ब्योंडा,सिटकिनी,आगल, बाधित
अर्गली —स्त्री॰—-—अर्ज्+कलच् न्यङ्क्त्वादि कुत्वं-तारा॰—तरंग वा झाल।
अर्गलिका —स्त्री॰—-—अर्गला+कन्+ताप् इत्वम्—छोटी आगल,छोटी चटखनी।
अर्घ् —भ्वा॰ पर॰<अर्घति>,<अर्घित>—-—-—मूल्यवान होना,मूल्य रखना,मूल्य लगना
अर्घः —पुं॰—-—अर्घ्+घञ्—मूल्य,कीमत, वास्तविक मूल्य से घटी हुई, अवमूल्यित
अर्घः —पुं॰—-—अर्घ्+घञ्—पूजा की सामग्री,देवताओं या सम्मान्य व्यक्तियों को सादर आहुति या उपहार
अर्घार्ह —वि॰—अर्घः-अर्ह—-—सामान्य उपहार के योग्य
अर्घःबलाबलम् —नपुं॰—अर्घः-बलाबलम्—-—मूल्य की दर,उचित मूल्य,मूल्यों में घटत बढ़त
अर्घसङ्ख्यानम् —नपुं॰—अर्घः-सङ्ख्यानम्—-—मूल्यांकन,वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करना
अर्घसंस्थापनम् —नपुं॰—अर्घः-संस्थापनम्—-—मूल्यांकन,वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करना
अर्घ्य —वि॰—-—अर्घ्+यत् अर्घमर्हति—मूल्यवान
अर्घ्य —वि॰—-—अर्घ्+यत् अर्घमर्हति—सम्माननीय
अर्घ्यम् —नपुं॰—-—अर्घ्+यत् अर्घमर्हति—किसी देवता या सम्मान्य व्यक्ति को सादर आहुति या उपहार
अर्च् —भ्वा॰ उभ॰ <अर्चति>, <अर्चते>,<अर्चित> —-—,—(क) पूजा करना,अभिवादन करना,सत्कार करना, (ख) सम्मान करना अर्थात् अलंकृत करना, सजाना
अर्च् —चु॰ पर॰ या भ्वा॰ उभ॰—-—-—स्तुति करना, सम्मान करना,अलंकृत करना,पूजा करना
अभ्यर्च् —वि॰—अभि-अर्च्—-—पूजा करना,अलंकृत करना,सम्मान करना
अर्चसमाधि —वि॰—अर्च्-समाधि—-—पूजा करना,अलंकृत करना,सम्मान करना
प्रानर्च —वि॰—प्र-अर्च्—-—स्तुति करना,स्तुतिगान करना
प्रानर्च —वि॰—प्र-अर्च्—-—सम्मान करना,पूजा करना
अर्चक —वि॰—-—अर्च्+ल्युट्—पूजा करने वाला,आराधना करने वाला
अर्चकः —पुं॰—-—अर्च्+ल्युट्—पूजक
अर्चन —वि॰—-—अर्च्+ल्युट्—पूजा करने वाला,स्तुति करने वाला
अर्चनम् —नपुं॰—-—अर्च्+ल्युट्—पूजा,अपने से बड़ों का और देवों का आदर व सम्मान।
अर्चना —स्त्री॰—-—अर्च्+ल्युट्+टाप्—पूजा,अपने से बड़ों का और देवों का आदर व सम्मान।
अर्चनीय —स॰ कृ॰—-—अर्च्+अनीय—पूजा या आराधना करने योग्य,सम्माननीय,आदरणीय
अर्च्य —स॰ कृ॰—-—अर्च्+ण्यत्—पूजा या आराधना करने योग्य,सम्माननीय,आदरणीय
अर्चा —स्त्री॰—-—अर्च्+अङ्+टाप्—पूजा,आराधना
अर्चा —स्त्री॰—-—अर्च्+अङ्+टाप्—वह प्रतिमा या मूर्ति जिसकी पूजा की जाय
अर्चिः —स्त्री॰—-—अर्च्+इन्—किरण
अर्चिष्मत —वि॰—-—अर्चिस्+मतुप्—लपटवाला,उज्ज्वल,चमकदार
अर्चिष्मत —पुं॰—-—अर्चिस्+मतुप्—अग्नि
अर्चिष्मत —पुं॰—-—अर्चिस्+मतुप्—सूर्य।
अर्चिस् —न॰—-—अर्च्+इसि—प्रकाशकिरण,लौ
अर्चिस् —न॰—-—अर्च्+इसि—प्रकाश,चमक
अर्चिः —पुं॰—-—अर्च्+इसि—प्रकाशकिरण,लौ
अर्चिः —पुं॰—-—अर्च्+इसि—प्रकाश,चमक
अर्चिस् —पुं॰—-—अर्च्+इसि—प्रकाशकिरण
अर्चिस् —पुं॰—-—अर्च्+इसि—अग्नि।
अर्ज् —भ्वा॰ पर॰<अर्जति>, <अर्जित>—-—-—उपार्जन करना,उपलब्ध करना,प्राप्त करना,कमाना
अर्ज् —भ्वा॰ पर॰<अर्जति>, <अर्जित>—-—-—ग्रहण करना
अर्ज् —चु॰ पर॰या भ्वा॰ पर॰ —-—-—उपार्जन करना,अधिकार में करना,प्राप्त करना
स्वयमर्जित —वि॰—-—-—अपने आप कमाया हुआ।
स्वार्जित —वि॰—-—-—अपने आप कमाया हुआ।
उपार्ज् —भ्वा॰ पर॰—उप-अर्ज्—-—प्राप्त करना या उपार्जन करना।
अर्जक —वि॰—-—अर्ज्+ण्वुल्—उपार्जन करने वाला,अधिकार करने वाला,प्राप्त करने वाला।
अर्जनम् —नपुं॰—-—अर्ज्+ल्युट्—प्राप्त करना,अधिग्रहण करना
अर्जुन —वि॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—सफेद,चमकीला,उज्ज्वल,दिन जैसा रंगीन
अर्जुन —वि॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—रुपहला
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—श्वेत रंग
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—मोर
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—गुणकारी छाल वाला अर्जन नामक वृक्ष
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—इन्द्र द्वारा कुन्ती से उत्पन्न तृतीय पांडव
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—कार्तवीर्य
अर्जुनः —पुं॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च—अपनी माता का एक मात्र पुत्र
अर्जुनी —स्त्री॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च,ङीप्—दूती,कुटनी
अर्जुनी —स्त्री॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च,ङीप्—गौ
अर्जुनी —स्त्री॰—-—अर्ज+उनन्,णिलुक् च,ङीप्—एक नदी जिसे 'करतीया कहते हैं
अर्जुनोपमा —स्त्री॰—अर्जुन-उपमा—-—सागवान का वृक्ष।
अर्जुनछवि —वि॰—अर्जुन-छवि—-—उज्ज्वल,उज्ज्वल रंग वाला।
अर्जुनध्वजः —पुं॰—अर्जुन-ध्वजः—-—श्वेत ध्वजा वाला,हनुमान।
अर्णः —पुं॰—-—ऋ+न—सागवान का वृक्ष
अर्णः —पुं॰—-—ऋ+न— एक अक्षर।
अर्णवः —पुं॰—-—अर्णांसि सन्ति यस्मिन्-अर्णस्+व,सुलोपः— समुद्र,सागर
शोकार्णवः —पुं॰—-—-—शोक का समुद्र
चिन्तार्णवः —पुं॰—-—-—चिंतासमुद्र
जनार्णवः —पुं॰—-—-—जनसमुद्र
अर्णवान्तः —पुं॰—अर्णव-अन्तः—-—सागर की सीमा
अर्णवोद्भवः —पुं॰—अर्णव-उद्भवः—-—चन्द्रमा
अर्णवोद्भवा —स्त्री॰—अर्णव-उद्भवा—-—लक्ष्मी
अर्णवोद्भवम् —नपुं॰—अर्णव-उद्भवम्—-—अमृत
अर्णवपोतः —पुं॰—अर्णव-पोतः—-—किश्ती या जहाज
अर्णवयानम् —नपुं॰—अर्णव-यानम्—-—किश्ती या जहाज
अर्णवमन्दिरः —पुं॰—अर्णव-मन्दिरः—-—सागरवासी वरुण,जलों का स्वामी
अर्णवमन्दिरः —पुं॰—अर्णव-मन्दिरः—-—विष्णु
अर्णस् —नपुं॰—-—ऋ+असुन् नुट् च—जल
अर्णदः —पुं॰—अर्णस्-दः—-—बादल
अर्णभवः —पुं॰—अर्णस्-भवः—-—शंख।
अर्णस्वत् —वि॰—-—अर्णस्+मतुप्—बहुत अधिक पानी रखने वाला
अर्णस्वत् —पुं॰—-—अर्णस्+मतुप्—सागर
अर्तनम् —नपुं॰—-—ऋत्+ल्युट्—निन्दा,फटकार,अपशब्द या गाली।
अर्तिः —स्त्री॰—-—अर्द्+क्तिन्—पीडा,शोक,दुःख
शिरोऽर्तिः —स्त्री॰—-—-—सिर दर्द।
अर्तिः —स्त्री॰—-—अर्द्+क्तिन्—धनुष का किनारा।
अर्तिका —स्त्री॰—-—-—बड़ी बहन
अर्थ् —चु॰आ॰<अर्थयते>,<अर्थित>—-—-—प्रार्थना करना,याचना करना, गिड़गिड़ाना,मांगना,अनुरोध करना,दीन भाव से मांगना
अर्थ् —चु॰आ॰<अर्थयते>,<अर्थित>—-—-—प्राप्त करने का प्रयत्न करना,चाहना,इच्छा करना,
अभ्यर्थ् —चु॰आ॰—अभि-अर्थ्—-—मांगना,गिड़गिड़ाना,प्रार्थना करना
अभिप्रार्थ् —चु॰आ॰—अभिप्र-अर्थ्—-—मांगना,प्रार्थना करना
अभिप्रार्थ् —चु॰आ॰—अभिप्र-अर्थ्—-—चाहना
प्रार्थ् —चु॰आ॰—प्र-अर्थ्—-—मांगना,प्रार्थना करना,याचना,प्रार्थना
प्रार्थ् —चु॰आ॰—प्र-अर्थ्—-—चाहना,आवश्यकता होना,इच्छा करना,प्रबल अभिलाष रखना
प्रार्थ् —चु॰आ॰—प्र-अर्थ्—-—ढूंढना,तलाश करना,खोज करना
प्रार्थ् —चु॰आ॰—प्र-अर्थ्—-—आक्रमण करना,टूट पड़ना
प्रत्यर्थ् —चु॰आ॰—प्रति-अर्थ्—-—ललकारना,मुकाबला करना,शत्रुवत् व्यवहार करना
प्रत्यर्थ् —चु॰आ॰—प्रति-अर्थ्—-—किसी को शत्रु बनाना
समर्थ् —चु॰आ॰—सम्-अर्थ्—-—विश्वास करना,सोचना,खयाल करना,चिंतन करना
समर्थ् —चु॰आ॰—सम्-अर्थ्—-—समर्थन करना,सहायता समर्थन करना,सहायता करना,प्रमाण द्वारा सिद्ध करना
समप्र्यर्थ् —चु॰आ॰—समप्रि-अर्थ्—-—याचना करना,प्रार्थना करना आदि।
सम्प्रार्थ् —चु॰आ॰—सम्प्र-अर्थ्—-—याचना करना,प्रार्थना करना आदि।
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—आशय,प्रयोजन,लक्ष्य,उद्देश्य,अभिलाष,इच्छा
किमर्थम् —अव्य॰—-—-—किस प्रयोजन के लिए
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—कारण,प्रयोजन,हेतु,साधन
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—अभिप्राय,तात्पर्य,सार्थकता,आशय
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—वस्तु या विषय,पदार्थ,सारांश
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—(क) मामला,व्यापार,बात,कार्य, (ख)हित,इच्छा, (ग) विषयसामग्री,विषय-सूची
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—दौलत,धन,सम्पत्ति,रुपया
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—धन या सांसारिक ऐश्वर्य का प्राप्त करना,जीवन के चार पुरुषार्थों में से एक
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—(क)उपयोग,हित,लाभ,भलाई, (ख)उपयोग,आवश्यकता,जरूरत,प्रयोजन
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—मांगना,याचना,प्रार्थना,दावा,याचिका
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—कार्यवाही,अभियोग
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—वस्तुस्थिति,याथार्थ्य
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—रीति,प्रकार,तरीका
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—रोक,दूर रखना, प्रतिषेध,उन्मूलन
अर्थः —पुं॰—-—ऋ+थन्—विष्णु।
अर्थाधिकारः —पुं॰—अर्थः-अधिकारः—-—रुपये-पैसे का कार्यभार,कोषाध्यक्ष का पद
अर्थाधिकारी —पुं॰—अर्थः-अधिकारिन्—-—कोषाध्यक्ष
अर्थान्तरम् —नपुं॰—अर्थः-अन्तरम्—-—अन्य अभिप्राय या भिन्न अर्थ
अर्थान्तरम् —नपुं॰—अर्थः-अन्तरम्—-—दूसरा कारण या प्रयोजन
अर्थान्तरम् —नपुं॰—अर्थः-अन्तरम्—-—एक नई बात या परिस्थिति,नया मामला
अर्थान्तरम् —नपुं॰—अर्थः-अन्तरम्—-—विरोधी या विपरीत अर्थ, अर्थ में भेद
अर्थान्तरन्यासः —पुं॰—अर्थः-अन्तरम्-न्यासः—-—एक अलंकार जिसमें सामान्य से विशेष या विशेष से सामान्य का समर्थन होता है
अर्थान्वित —वि॰—अर्थः-अन्वित—-—धनवान,दौलतमंद
अर्थान्वित —वि॰—अर्थः-अन्वित—-—सार्थक
अर्थार्थिन् —वि॰—अर्थः-अर्थिन्—-—जो अपना अभीष्ट सिद्ध करने के लिए या धन प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करता है
अर्थालङ्कारः —पुं॰—अर्थः-अलङ्कारः—-—साहित्यशास्त्र में वह अलंकार जो या तो अर्थ पर निर्भर हो, या जिसका निर्णय अर्थ से किया जाय, शब्द से नही
अर्थागमः —पुं॰—अर्थः-आगमः—-—धन की प्राप्ति,आय
अर्थागमः —पुं॰—अर्थः-आगमः—-—किसी शब्द के अभिप्राय को बतलाना
अर्थापत्तिः —स्त्री॰—अर्थः-आपत्तिः—-—परिस्थितियों के आधार पर अनुमान लगाना, अनुमानित वस्तु, फलितार्थ
अर्थापत्तिः —स्त्री॰—अर्थः-आपत्तिः—-—एक अलंकार
अर्थोत्पत्तिः —स्त्री॰—अर्थः-उत्पत्तिः—-—धनप्राप्ति
अर्थोपक्षेपकः —पुं॰—अर्थः-उपक्षेपकः—-—एक परिचयात्मक दृश्य
अर्थोपमा —स्त्री॰—अर्थः-उपमा—-—जो उपमा अर्थ पर निर्भर रहे
अर्थोष्मा —पुं॰—अर्थः-उष्मन्—-—धन की चमक या गर्मी
अर्थोघः —पुं॰—अर्थः-ओघः —-—कोष,धन का भण्डार
अर्थराशिः —पुं॰—अर्थः-राशिः—-—कोष,धन का भण्डार
अर्थकर —वि॰—अर्थः-कर—-—धनी बनाने वाला
अर्थकर —वि॰—अर्थः-कर—-—उपयोगी,लाभदायक
अर्थकृत् —वि॰—अर्थः-कृत्—-—धनी बनाने वाला
अर्थकृत् —वि॰—अर्थः-कृत्—-—उपयोगी,लाभदायक
अर्थकाम —वि॰—अर्थः-काम—-—धन का इच्छुक
अर्थकामौ —पुं॰—अर्थः-कामौ—-—धन और चाह या सुख
अर्थकृच्छम् —नपुं॰—अर्थः-कृच्छम्—-—कठिन बात
अर्थकृच्छम् —नपुं॰—अर्थः-कृच्छम्—-—आर्थिक कठिनाई
अर्थकृत्यम् —नपुं॰—अर्थः-कृत्यम्—-—किसी कार्य का सम्पन्न करना
अर्थगौरवम् —नपुं॰—अर्थः-गौरवम्—-—अर्थ की गहराई
अर्थघ्न —वि॰—अर्थः-घ्न—-—अतिव्ययी,अपव्ययी,फिजूलखर्च
अर्थजात —वि॰—अर्थः-जात—-—अर्थ से परिपूर्ण
अर्थजातम् —नपुं॰—अर्थः-जातम्—-—वस्तुओं का संग्रह
अर्थजातम् —नपुं॰—अर्थः-जातम्—-—धन की बड़ी रकम,बड़ी सम्पत्ति
अर्थतत्त्वम् —नपुं॰—अर्थः-तत्त्वम्—-—वास्तविक सच्चाई,यथार्थता
अर्थतत्त्वम् —नपुं॰—अर्थः-तत्त्वम्—-—किसी वस्तु की वास्तविक प्रकृति या कारण
अर्थद —वि॰—अर्थः-द—-—धन देने वाला
अर्थद —वि॰—अर्थः-द—-—लाभदायक,उपयोगी
अर्थदूषणम् —नपुं॰—अर्थः-दूषणम्—-—अतिव्यय,अपव्यय
अर्थदूषणम् —नपुं॰—अर्थः-दूषणम्—-—अन्यायपूर्वक किसी की संपत्ति ले लेना,या किसी का उचित पावना न देना
अर्थदोषः —पुं॰—अर्थः-दोषः—-—साहित्यिक त्रुटि या दोष
अर्थनिबन्धन —वि॰—अर्थः-निबन्धन—-—धन के ऊपर आश्रित
अर्थनिश्चयः —पुं॰—अर्थ-निश्चयः—-—निर्धारण,निर्णय
अर्थपतिः —पुं॰—अर्थः-पतिः—-—धन का स्वामी, राजा
अर्थपतिः —पुं॰—अर्थः-पतिः—-—कुबेर की उपाधि
अर्थपर —वि॰—अर्थः-पर—-—धन प्राप्त करने पर जुटा हुआ,लालची
अर्थपर —वि॰—अर्थः-पर—-—कंजूस
अर्थलुब्ध —वि॰—अर्थः-लुब्ध—-—धन प्राप्त करने पर जुटा हुआ,लालची
अर्थलुब्ध —वि॰—अर्थः-लुब्ध—-—कंजूस
अर्थप्रकृतिः —स्त्री॰—अर्थः-प्रकृतिः—-—नाटक के महान उद्देश्य का प्रमुख साधन या अवसर
अर्थप्रयोगः —पुं॰—अर्थः-प्रयोगः—-—ब्याजखोरी
अर्थबन्धः —पुं॰—अर्थः-बन्धः—-—शब्दों का यथाक्रम रखना,रचना,पाठ,श्लोक,चरण
अर्थबुद्धि —वि॰—अर्थः-बुद्धि—-—स्वार्थी
अर्थबोधः —पुं॰—अर्थः-बोधः—-—वास्तविक आशय का संकेत
अर्थभेदः —पुं॰—अर्थः-भेदः—-—अर्थों में भेद
अर्थमात्रम् —नपुं॰—अर्थः-मात्रम्—-—सम्पत्ति,धन-दौलत
अर्थमात्रा —स्त्री॰—अर्थः-मात्रा—-—सम्पत्ति,धन-दौलत
अर्थयुक्त —वि॰—अर्थः-युक्त—-—सार्थक
अर्थलाभः —पुं॰—अर्थः-लाभः—-—धन की प्राप्ति
अर्थलोभः —पुं॰—अर्थः-लोभः—-—लालच
अर्थवादः —पुं॰—अर्थः-वादः—-—किसी उद्देश्य की घोषणा
अर्थवादः —पुं॰—अर्थः-वादः—-—निश्चयात्मक घोषणा,घोषणाविषयक प्रकथन
अर्थवादः —पुं॰—अर्थः-वादः—-—प्रशंसा,स्तुति
अर्थविकल्पः —पुं॰—अर्थः-विकल्पः—-—सच्चाई से इधर-उधर होना,तथ्यों का तोड़-मरोड़
अर्थविकल्पः —पुं॰—अर्थः-विकल्पः—-—अपलाप
अर्थवृद्धिः —स्त्री॰—अर्थः-वृद्धिः—-—धन-संचय
अर्थव्ययः —पुं॰—अर्थः-व्ययः—-—धन का खर्च करना
अर्थज्ञ —वि॰—अर्थः-ज्ञ—-—रुपये-पैसे की बातों का जानकार
अर्थशास्त्रम् —नपुं॰—अर्थः-शास्त्रम्—-—धन-विज्ञान
अर्थशास्त्रम् —नपुं॰—अर्थः-शास्त्रम्—-—राजनीति-विज्ञान,राजनीति विषयक शास्त्र
अर्थव्यवहारिन् —वि॰—अर्थः-व्यवहारिन्—-—राजनीतिज्ञ
अर्थव्यवहारिन् —वि॰—अर्थः-व्यवहारिन्—-—व्यवहारिक जीवन का शास्त्र
अर्थशौचम् —नपुं॰—अर्थः-शौचम्—-—रुपये-पैसे के मामले में ईमानदारी या खरापन
अर्थसंस्थानम् —नपुं॰—अर्थः-संस्थानम्—-—धन का संचय
अर्थसंस्थानम् —नपुं॰—अर्थः-संस्थानम्—-—कोष
अर्थसंबन्धः —पुं॰—अर्थः-संबन्धः—-—वाक्य या शब्द से अर्थ का संबन्ध
अर्थसारः —पुं॰—अर्थः-सारः—-—बहुत धन
अर्थसिद्धिः —स्त्री॰—अर्थः-सिद्धिः—-—अभीष्ट सिद्धि,सफलता।
अर्थतः —अव्य॰—-—अर्थ+तसिल्—अर्थ या किसी विशेष उद्देश्य का उल्लेख करते हुए
अर्थतः —अव्य॰—-—अर्थ+तसिल्—वस्तुतः,वास्तव में,सचमुच
अर्थतः —अव्य॰—-—अर्थ+तसिल्—धन के लिए,लाभ या प्राप्ति के लिए
अर्थतः —अव्य॰—-—अर्थ+तसिल्—के कारण
अर्थना —स्त्री॰—-—अर्थ्+युच्+टाप्—प्रार्थना,अनुरोध,नालिश,याचिका
अर्थवत् —वि॰—-—अर्थ्+मतुप्—धनवान
अर्थवत् —वि॰—-—अर्थ्+मतुप्—सार्थक,अभिप्रायः या अर्थ से परिपूर्ण
अर्थवत् —वि॰—-—अर्थ्+मतुप्—अर्थ रखने वाला।
अर्थवत् —वि॰—-—अर्थ्+मतुप्—किसी प्रयोजन को सिद्ध करने वाला,सफल,उपयोगी
अर्थवत्ता —स्त्री॰—-—अर्थ+मतुप्+तल्+टाप्—धन-दौलत,सम्पत्ति।
अर्थात् —अव्य॰—-—‘अर्थ’ का अपा॰ का रूप—सच बात तो यह है कि,निस्सन्देह
अर्थात् —अव्य॰—-—-—परिस्थिति के अनुसार
अर्थात् —अव्य॰—-—-—कहने का भाव यह है कि,नामों के अनुसार।
अर्थिकः —पुं॰—-—अर्थयते इत्यर्थी+कन्—चिल्लाने वाला,चौकीदार
अर्थिकः —पुं॰—-—अर्थयते इत्यर्थी+कन्—विशेषतः भाट जिसका कर्तव्य दिन के विभिन्न निश्चित समयों कीघोषणा करना है।
अर्थित —वि॰,भू॰ क॰ कृ॰—-—अर्थ्+क्त—प्रार्थित,याचित,इच्छित
अर्थितम् —नपुं॰—-—-—चाह,इच्छा,नालिश।
अर्थिता —स्त्री॰—-—अर्थिन्+तल् टाप्—मांगना,प्रार्थना करना
अर्थिता —स्त्री॰—-—अर्थिन्+तल् टाप्—चाह,इच्छा।
अर्थित्वम् —नपुं॰—-—अर्थिन्+त्वल् —मांगना,प्रार्थना करना
अर्थित्वम् —नपुं॰—-—अर्थिन्+त्वल् —चाह,इच्छा।
अर्थिन् —वि॰—-—अर्थ्+इनि—प्राप्त करने की चेष्टा करने वाला,अभिलाषी,इच्छुक
अर्थिन् —वि॰—-—अर्थ्+इनि—अनुरोध करने वाला,या किसी से कुछ मांगने वाला
अर्थिन् —वि॰—-—अर्थ्+इनि—मनोरथ रखने वाला
अर्थिन् —पुं॰—-—अर्थ्+इनि—याचक, प्रार्थयिता, भिक्षुक, दीन याचक, निवेदक, विवाहार्थी
अर्थिन् —पुं॰—-—अर्थ्+इनि— वादी, अभियोक्ता, प्राभियोजक
अर्थिन् —पुं॰—-—अर्थ्+इनि—सेवक अनुचर
अर्थिभावः —पुं॰—अर्थिन्-भावः—-—याचना,माँगना,प्रार्थना
अर्थिसात् —क्रि॰ वि॰—अर्थिन्-सात्—-—भिखारियों के अधिकार में करके
अर्थीय —वि॰—-—अर्थ+छ—पूर्वनिर्दिष्ट,अभिप्रेत,कष्ट उठाना,भाग्य में बदा था
अर्थीय —वि॰—-—अर्थ+छ—संबंध रखने वाला
अर्थ्य —वि॰—-—अर्थ+ण्यत्—जिससे सर्वप्रथम याचना की जाय
अर्थ्य —वि॰—-—अर्थ+ण्यत्—योग्य,उचित
अर्थ्य —वि॰—-—अर्थ+ण्यत्—उपयुक्त,आशय से इधर उधर न होने वाला,सार्थक
अर्थ्य —वि॰—-—अर्थ+ण्यत्—धनी,दौलतमंद
अर्थ्य —वि॰—-—अर्थ+ण्यत्—समझदार,बुद्धिमान
अर्थ्यम् —नपुं॰—-—अर्थ+ण्यत्—गेरु
अर्द् —भ्वा॰ पर॰<अर्दति>,<अर्दित>—-—-—दुःख देना,व्यथित करना,प्रहार करना,चोट पहुँचाना,मारना
अर्द् —भ्वा॰ पर॰<अर्दति>,<अर्दित>—-—-—माँगना,प्रार्थना करना,निवेदन करनाक
अर्द् —भ्वा॰ पर॰—-—-—(क)सताना,पीड़ित करना,दुःखाना, (ख)प्रहार करना,चोट पहुँचाना,घायल करना,वध करना
अत्यर्द् —भ्वा॰ पर॰—अति-अर्द्—-—अधिक सताना,आक्रमण करना,टूट पड़ना
अभ्यर्द् —भ्वा॰ पर॰—अभि-अर्द्—-—दुःखाना,सताना,पीड़ित करना।
अर्दन —वि॰—-—अर्द्+ल्युट्—दुःखाने वाला,सताने वाला
अर्दनम् —नपुं॰—-—अर्द्+ल्युट्—पीड़ा,कष्ट,चिन्ता,उत्तेजना,क्षोभ
अर्दनम् —नपुं॰—-—अर्द्+ल्युट्—जाना,हिलना
अर्दनम् —नपुं॰—-—अर्द्+ल्युट्—पूछना,माँगना
अर्दनम् —नपुं॰—-—अर्द्+ल्युट्—वध करना,चोट पहुँचाना,पीड़ा देना।
अर्दना —स्त्री॰—-—अर्द्+ल्युट्+टाप्—जाना,हिलना
अर्दना —स्त्री॰—-—अर्द्+ल्युट्+टाप्—पूछना,माँगना
अर्दना —स्त्री॰—-—अर्द्+ल्युट्+टाप्—वध करना,चोट पहुँचाना,पीड़ा देना।
अर्ध —वि॰—-—ऋध्+णिच्+अच्—आधा,आधा भाग बनाने वाला
अर्धम् —नपुं॰—-—ऋध्+णिच्+अच्—आधा,आधा भाग
अर्धः —पुं॰—-—ऋध्+णिच्+अच्—आधा,आधा भाग
अर्धश्याम —वि॰—अर्ध-श्याम—-—आधा काला
अर्धतृतीयम् —नपुं॰—अर्ध-तृतीयम्—-—दो और आधा तीसरा अर्थात् अढ़ाई
अर्धाक्षि —नपुं॰—अर्ध-अक्षि—-—अपाँगदृष्टि,आँख का झपकना
अर्ध-अङगम् —नपुं॰—अर्ध-अङगम्—-—आधा शरीर
अर्धाङ्शः —पुं॰—अर्ध-अङ्शः—-—आधा भाग,आधा हिस्सा
अर्धाङ्शिन् —वि॰—अर्ध-अङ्शिन्—-—आधे का हिस्सेदार
अर्धार्धः —पुं॰—अर्ध-अर्धः—-—आधे का आधा,चौथाई
अर्धार्धः —पुं॰—अर्ध-अर्धः—-—आधा और आधा
अर्धार्धम् —नपुं॰—अर्ध-अर्धम्—-—आधे का आधा,चौथाई
अर्धार्धम् —नपुं॰—अर्ध-अर्धम्—-—आधा और आधा
अर्धावभेदकः —पुं॰—अर्ध-अवभेदकः—-—आधासीसी,आधे सिर की पीड़ा
अर्धावशेष —वि॰—अर्ध-अवशेष—-—जिसके पास केवल आधा ही शेष बचे
अर्धासनम् —नपुं॰—अर्ध-आसनम्—-—आधा आसन
अर्धासनम् —नपुं॰—अर्ध-आसनम्—-—सम्मानपूर्वक अभिवादन करना
अर्धासनम् —नपुं॰—अर्ध-आसनम्—-—निन्दा से मुक्ति
अर्धेन्दुः —पुं॰—अर्ध-इन्दुः—-—आधा चाँद,दूज का चाँद
अर्धेन्दुः —पुं॰—अर्ध-इन्दुः—-—अंगुली के नाखून की अर्धवर्तुलाकार छाप,बालेन्दु के आकार की नख-छाप
अर्धेन्दुः —पुं॰—अर्ध-इन्दुः—-—बालचन्द्र के आकार के समान सिर वाला बाण
अर्धमौलि —पुं॰—अर्ध-मौलि—-—शिव
अर्धोक्त —वि॰—अर्ध-उक्त—-—आधा कहा हुआ
अर्धोक्तिः —स्त्री॰—अर्ध-उक्तिः—-—भग्नवाणी,अन्तर्बाधित वाणी
अर्धोदयः —पुं॰—अर्ध-उदयः—-—अर्ध चन्द्रमा का निकलना
अर्धोदयः —पुं॰—अर्ध-उदयः—-—आंशिक उदय
अर्धासनम् —नपुं॰—अर्ध-आसनम्—-—समाधि में बैठने का एक प्रकार का आसन
अर्धूरुकम् —नपुं॰—अर्ध-ऊरुकम्—-—स्त्रियों के पहनने का अन्तर्वस्त्र,पेटीकोट
अर्धकृत —वि॰—अर्ध-कृत—-—आधा किया हुआ,अपूर्ण
अर्धखारम् —नपुं॰—अर्ध-खारम्—-—एक प्रकार का माप
अर्धखारी —स्त्री॰—अर्ध-खारी—-—आधी खारी
अर्धगङ्गा —स्त्री॰—अर्ध-गङ्गा—-—कावेरी नदी
अर्धगुच्छः —पुं॰—अर्ध-गुच्छः—-—चौविस लड़ियों का हार
अर्धगोलः —पुं॰—अर्ध-गोलः—-—गोलार्ध
अर्धचन्द्र —वि॰—अर्ध-चन्द्र—-—बालेन्दु के आकार वाला
अर्धचन्द्रः —पुं॰—अर्ध-चन्द्रः—-—आधा चन्द्रमा,बालेन्दु
अर्धचन्द्रः —पुं॰—अर्ध-चन्द्रः—-—मोर की पूँछ पर अर्धवर्तुलाकार चिह्न
अर्धचन्द्रः —पुं॰—अर्ध-चन्द्रः—-—बालचन्द्र के आकार के सिर वाला बाण
अर्धचन्द्रः —पुं॰—अर्ध-चन्द्रः—-—बालचन्द्र के आकार की नख छाप
अर्धचन्द्रः —पुं॰—अर्ध-चन्द्रः—-—अर्द्ध वृत्त के रूप में झुका हुआ हाथ,
अर्धचन्द्रं —नपुं॰—अर्ध-चन्द्रं—-—गर्दनिया देकर बाहर निकालना
अर्धचन्द्रा —स्त्री॰—अर्ध-चन्द्रा—-—गर्दनिया देकर बाहर निकालना
अर्धचन्द्राकार —वि॰—अर्ध-चन्द्राकार—-—आधे चन्द्रमा के आकार वाला
अर्धचन्द्राकृति —वि॰—अर्ध-चन्द्राकृति—-—आधे चन्द्रमा के आकार वाला
अर्धचोलकः —पुं॰—अर्ध-चोलकः—-—अंगिया
अर्धदिनम् —नपुं॰—अर्ध-दिनम्—-—आधा दिन ,दिन का मध्य भाग
अर्धदिनम् —नपुं॰—अर्ध-दिनम्—-—बारह घण्टे का दिन
अर्धदिवसः —पुं॰—अर्ध-दिवसः—-—आधा दिन ,दिन का मध्य भाग
अर्धदिवसः —पुं॰—अर्ध-दिवसः—-—बारह घण्टे का दिन
अर्धनाराचः —पुं॰—अर्ध-नाराचः—-—बाल चन्द्र के आकार का लोहे की नोक वाला बाण
अर्धनारीशः —पुं॰—अर्ध-नारीशः—-—शिव का एक रूप
अर्धनारीश्वरः —पुं॰—अर्ध-नारीश्वरः—-—शिव का एक रूप
अर्धनावम् —नपुं॰—अर्ध-नावम्—-—आधी किस्ती
अर्धनिशा —स्त्री॰—अर्ध-निशा—-—मध्य रात्रि,आधी रात
अर्धपञ्चाशत् —स्त्री॰—अर्ध-पञ्चाशत्—-—पच्चीस
अर्धपणः —पुं॰—अर्ध-पणः—-—आर्धे पण की माप
अर्धपथम् —नपुं॰—अर्ध-पथम्—-—आधा मार्ग
अर्धपथे —अव्य॰—अर्ध-पथे—-—मार्ग के मध्य में
अर्धप्रहरः —पुं॰—अर्ध-प्रहरः—-—आधा पहरा,डेढ़ घण्टे का समय
अर्धभागः —पुं॰—अर्ध-भागः—-—आधा,आधा भाग या हिस्सा
अर्धभागिक —वि॰—अर्ध-भागिक—-—आधे भाग का साझीदार
अर्धभाज् —वि॰—अर्ध-भाज्—-—आधे भाग का हिस्सेदार,आधे भाग का अधिकारी
अर्धभाज् —वि॰—अर्ध-भाज्—-—साथी,साझीदार
अर्धभास्करः —पुं॰—अर्ध-भास्करः—-—दिन का मध्य भाग,दोपहर
अर्धमाणवकः —पुं॰—अर्ध-माणवकः—-—वारह लड़ियों का हार,
अर्धमाणवः —पुं॰—अर्ध-माणवः—-—वारह लड़ियों का हार,
अर्धमात्रा —स्त्री॰—अर्ध-मात्रा—-—आधी मात्रा
अर्धमात्रा —स्त्री॰—अर्ध-मात्रा—-—व्यंजन वर्ण
अर्धमार्गे —अव्य॰—अर्ध-मार्गे—-—मार्ग के बीच में
अर्धमासः —पुं॰—अर्ध-मासः—-—आधा महीना,एक पक्ष
अर्धमासिक —वि॰—अर्ध-मासिक—-—प्रत्येक पक्ष में होने वाला
अर्धमासिक —वि॰—अर्ध-मासिक—-—एक पक्ष तक रहने वाला
अर्धमुष्टिः —स्त्री॰—अर्ध-मुष्टिः—-—आधा भिंचा हुआ हाथ
अर्धयामः —पुं॰—अर्ध-यामः—-—आधा पहर
अर्धरथः —पुं॰—अर्ध-रथः—-—किसी दूसरे के साथ रथ पर बैठकर युद्ध करने वाला योद्धा
अर्धरात्रः —पुं॰—अर्ध-रात्रः—-—आधीरात
अर्धविसर्गः —पुं॰—अर्ध-विसर्गः—-—क्,ख् तथा प्,फ् से पूर्व विसर्ग ध्वनि
अर्धविसर्जनीयः —पुं॰—अर्ध-विसर्जनीयः—-—क्,ख् तथा प्,फ् से पूर्व विसर्ग ध्वनि
अर्धवीक्षणम् —नपुं॰—अर्ध-वीक्षणम्—-—तिरछी चितवन,कनखी
अर्धवृद्ध —वि॰—अर्ध-वृद्ध—-—अधेड़ उम्र का
अर्धवैनाशिकः —पुं॰—अर्ध-वैनाशिकः—-—कणाद का अनुयायी
अर्धवैशसम् —नपुं॰—अर्ध-वैशसम्—-—आधा या अपूर्ण वध
अर्धव्यासः —पुं॰—अर्ध-व्यासः—-—वृत्त में केन्द्र से परिधि तक की दूरी
अर्धशतम् —नपुं॰—अर्ध-शतम्—-—पचास
अर्धशेष —वि॰—अर्ध-शेष—-—जिसके पास केवल आधा ही शेष रहा है,
अर्धश्लोकः —पुं॰—अर्ध-श्लोकः—-—आधा श्लोक या श्लोक के दो चरण
अर्धसीरिन् —पुं॰—अर्ध-सीरिन्—-—बटाईदार,अपने परिश्रम के बदले आधी फसल लेने वाला किसान
अर्धसीरिन् —पुं॰—अर्ध-सीरिन्—-—आधी नाप रखने वाला
अर्धसीरिन् —पुं॰—अर्ध-सीरिन्—-—आधे भाग का अधिकारी
अर्धहारः —पुं॰—अर्ध-हारः—-—६४ लड़ियों का हार
अर्धह्रस्वः —पुं॰—अर्ध-ह्रस्वः—-—लघु स्वर का आधा
अर्धक —वि॰—-—अर्ध+कन्—आधा भाग बनाने वाला
अर्धिक —वि॰—-—अर्धमर्हति-अर्ध+ठन्—आधी नाप रखने वाला
अर्धिक —वि॰—-—अर्धमर्हति-अर्ध+ठन्—आधे भाग का अधिकारी
अर्धिकः —पुं॰—-—अर्धमर्हति-अर्ध+ठन्—वर्णसंकर
अर्धिन् —वि॰—-—अर्ध+इनि—आधे भाग का साझीदार।
अर्पणम् —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—रखना,स्थिर करना,जमाना
अर्पणम् —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—बीच में डालना,रखना
अर्पणम् —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—देना,भेंट करना,त्यागना
अर्पणम् —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—वापस करना,देना,लौटा देना
अर्पणम् —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+ल्युट्,पुकागमः—छेदना,गोदना
अर्पिसः —नपुं॰—-—ऋ+णिच्+इसुन् पुकागमः—हृदय,हृदय का माँस
अर्ब् —भ्वा॰ पर॰ <अर्बति>,<आनर्ब>,<अर्बितुम्>—-—-—की ओर जाना
अर्ब् —भ्वा॰ पर॰ <अर्बति>,<आनर्ब>,<अर्बितुम्>—-—-—वध करना,चोट मारना
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—सूजन, रसौली
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—दस करोड़ की संख्या
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—भारत के पश्चिम में स्थित आबू पहाड़
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—साँप
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—बादल
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—मांसपिंड
अर्बुदः —पुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—साँप जैसा राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था।
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—सूजन, रसौली
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—दस करोड़ की संख्या
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—भारत के पश्चिम में स्थित आबू पहाड़
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—साँप
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—बादल
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—मांसपिंड
अर्बुदम् —नपुं॰—-—अर्ब्+विच्-उद्-इ+ड—साँप जैसा राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था।
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—सूजन, रसौली
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—दस करोड़ की संख्या
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—भारत के पश्चिम में स्थित आबू पहाड़
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—साँप
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—बादल
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—मांसपिंड
अर्वुदः —पुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—साँप जैसा राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था।
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—सूजन, रसौली
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—दस करोड़ की संख्या
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—भारत के पश्चिम में स्थित आबू पहाड़
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—साँप
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—बादल
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—मांसपिंड
अर्वुदम् —नपुं॰—-—अर्व्+विच्-उद्-इ+ड—साँप जैसा राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था।
अर्भक —वि॰—-—अर्भ+कन्—छोटा,सूक्ष्म,थोड़ा
अर्भक —वि॰—-—अर्भ+कन्—दुबला पतला
अर्भक —वि॰—-—अर्भ+कन्—मूर्ख
अर्भक —वि॰—-—अर्भ+कन्—बच्चा,छौना
अर्भकः —पुं॰—-—अर्भ+कन्—बालक,बच्चा
अर्भकः —पुं॰—-—अर्भ+कन्—किसी जानवर का बच्चा
अर्भकः —पुं॰—-—अर्भ+कन्—मूर्ख जड़।
अर्य —वि॰—-—ऋ+यत्—श्रेष्ठ,बढ़िया
अर्यः —पुं॰—-—ऋ+यत्—स्वामी,प्रभु
अर्यः —पुं॰—-—ऋ+यत्—तीसरे वर्ण का व्यक्ति,वैश्य
अर्यी —स्त्री॰—-—-—वैश्य की स्त्री
अर्यवर्यः —पुं॰—अर्य-वर्यः—-—सम्मान्य वैश्य
अर्यमन् —पुं॰—-—अर्यं श्रेष्ठं मिमीते-मा+कनिन् नि॰—सूर्य
अर्यमन् —पुं॰—-—अर्यं श्रेष्ठं मिमीते-मा+कनिन् नि॰—पितरों के प्रधान
अर्यमन् —पुं॰—-—अर्यं श्रेष्ठं मिमीते-मा+कनिन् नि॰—मदार का पौधा।
अर्याणी —स्त्री॰—-—अर्य+ङीष्,आनुक—वैश्य जाति की स्त्री।
अर्वन् —पुं॰—-—ऋ+वनिप्—घोड़ा
अर्वन् —पुं॰—-—ऋ+वनिप्—चन्द्रमा के दस घोड़ों में से एक
अर्वन् —पुं॰—-—ऋ+वनिप्—इन्द्र
अर्वन् —पुं॰—-—ऋ+वनिप्—गोकर्ण परिणाम
अर्वती —स्त्री॰—-—-—घोड़ीकुटनी
अर्वाच् —वि॰—-—अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+क्विन् पृशो॰ अर्वादेशः—इस ओर आते हुए
अर्वाच् —वि॰—-—अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+क्विन् पृशो॰ अर्वादेशः—की ओर मुड़ा हुआ,किसी से मिलने के लिए आता हुआ
अर्वाच् —वि॰—-—अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+क्विन् पृशो॰ अर्वादेशः—इस ओर होने वाला
अर्वाच् —वि॰—-—अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+क्विन् पृशो॰ अर्वादेशः—नीचे या पीछे होने वाला
अर्वाच् —वि॰—-—अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+क्विन् पृशो॰ अर्वादेशः—बाद में होने वाला,बाद का
अर्वाक् —अव्य॰—-—-—इस ओर,इधर की तरफ
अर्वाक् —अव्य॰—-—-—किसी एक स्थान से
अर्वाक् —अव्य॰—-—-—नीचे की ओर,पीछे,नीचे
अर्वाक् —अव्य॰—-—-—बाद में,पश्चात्
अर्वाक् —अव्य॰—-—-—के अन्दर,निकट
अर्वाज्कालः —पुं॰—अर्वाच्-कालः—-—बाद में आने वालासमय
अर्वाज्कालिक —वि॰—अर्वाच्-कालिक—-—आसन्न काल से संबंध रखने वाला,आधुनिक
अर्वाज्कालिकता —स्त्री॰—अर्वाच्-कालिक-ता—-—आधुनिकता,उत्तरकालीनता
अर्वाज्कूलम् —नपुं॰—अर्वाच्-कूलम्—-—नदी का निकटस्थ तट।
अर्वाचीन —वि॰—-—अर्वाच्+ख—आधुनिक, हाल का
अर्वाचीन —वि॰—-—अर्वाच्+ख—उल्टा, विरोधी
अर्वाचीनम् —अव्य॰—-—-—इस ओर
अर्वाचीनम् —अव्य॰—-—-—के बाद का
अर्शस् —नपुं॰—-—ऋ+असुन् व्याधौ शुट् च—बवासीर।
अर्शघ्न —वि॰—अर्शस्-घ्न—-—बवासीर को नष्ट करने वाला
अर्शघ्नः —वि॰—अर्शस्-घ्नः—-—सूरण,भिलावा
अर्शस —वि॰—-—अर्शस्+अच्—बवासीर से पीड़ित
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—अधिकारी होना, योग्य होना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—अधिकार रखना,अधिकारी बनना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—योग्य होना,पात्र बनना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—समान होना, योग्य होना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—योग्य होना, अनुवाद ‘सकता’
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ <अर्हति>,<अर्हितुम्>,<आनर्ह>,<अर्हित>—-—-—पूजा करना, सम्मान करना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ —-—-—कृपा करना, अनुग्रह करना, प्रसन्न होना
अर्ह् —भ्वा॰ पर॰ —-—-—सम्मान करना, पूजा करना
अर्ह —वि॰—-—अर्ह्+अच्—आदरणीय,आदरयोग्य,पात्र,अधिकारी
अर्ह —वि॰—-—अर्ह्+अच्—योग्य, दावेदार, अधिकारी
अर्ह —वि॰—-—अर्ह्+अच्—सुहावना, उचित, उपयुकत
अर्ह —वि॰—-—अर्ह्+अच्—उचित मूल्य का, कीमत का
अर्हः —पुं॰—-—अर्ह्+अच्—इन्द्र
अर्हः —पुं॰—-—अर्ह्+अच्—विष्णु
अर्हः —पुं॰—-—अर्ह्+अच्—मूल्य
अर्हा —स्त्री॰—-—अर्ह्+अच्+टाप्—पूजा, आराधना
अर्हणम् —नपुं॰—-—अर्ह् + भावे ल्युट —पूजा,आराधना,सम्मान,आदर तथा सम्मान के साथ व्यवहार करना
अर्हणा —नपुं॰—-—अर्ह् + भावे ल्युट —पूजा,आराधना,सम्मान,आदर तथा सम्मान के साथ व्यवहार करना
अर्हत् —वि॰—-—अर्ह् + शतृ—योग्य,अधिकारी,पूजनीय
अर्हत् —पुं॰—-—अर्ह् + शतृ—बुद्ध
अर्हत् —पुं॰—-—अर्ह् + शतृ—बौद्धधर्म की पुरोहिताई में उच्चतमपद
अर्हत् —पुं॰—-—अर्ह् + शतृ—जैनियों के पूज्य देवता,तीर्थंकर
अर्हन्त —वि॰—-—अर्ह् + झ बा॰—योग्य,अधिकारी
अर्हन्तः —पुं॰—-—अर्ह् + झ बा॰—बुद्ध
अर्हन्तः —पुं॰—-—अर्ह् + झ बा॰—बौद्धभिक्षु
अर्हन्ती —स्त्री॰—-—अर्ह् + झ बा॰ङीप्—पूजा के योग्य होने का गुण,सम्मान,पूजा
अर्ह्य —स॰ कृ॰—-—अर्ह् + ण्यत्—योग्य,आदरणीय
अर्ह्य —स॰ कृ॰—-—अर्ह् + ण्यत्—प्रशंसा के योग्य
अल् —भ्वा॰ उभ॰ <अलति>, <अलते>,<अलितुम्>,<अलित>—-—-—सजाना
अल् —भ्वा॰ उभ॰ <अलति>, <अलते>,<अलितुम्>,<अलित>—-—-—योग्य या सक्षम होना
अल् —भ्वा॰ उभ॰ <अलति>, <अलते>,<अलितुम्>,<अलित>—-—-—रोकना, दूर रखना
अलम् —अव्य॰—-—अल् + अच्—बिच्छु का डंक जो उसकी पूछ में होता है
अलम् —अव्य॰—-—अल् + अच्—पीली हरताल
अलकः —पुं॰—-—अल् + क्वुन्—घुंघराले बाल, जुल्फें बाल
अलकः —पुं॰—-—अल् + क्वुन्—मस्तक के घूंघर
अलकः —पुं॰—-—अल् + क्वुन्—शरीर पर मला हुआ केसर
अलका —स्त्री॰—-—अल् + क्वुन्+टाप्—आठ से दश वर्ष तक की आयु की कन्या
अलका —स्त्री॰—-—अल् + क्वुन्+टाप्—यक्षोंके स्वामी कुबेर की राजधानी
अलकाधिपः —पुं॰—अलकः-अधिपः—-—अलका का स्वामी, कुबेर
अलकीश्वरः —पुं॰—अलकः-ईश्वरः—-—अलका का स्वामी, कुबेर
अलकपतिः —पुं॰—अलकः-पतिः—-—अलका का स्वामी, कुबेर
अलकान्तः —पुं॰—अलकः-अन्तः—-—घूंघर का किनारा या लट
अलकनन्दा —स्त्री॰—अलकः-नन्दा—-—गंगा , गंगा में ,गिरने वाली नदी
अलकनन्दा —स्त्री॰—अलकः-नन्दा—-—आठ से दस वर्ष के बीच की आयु की लड़की ।
अलकप्रभा —स्त्री॰—अलकः-प्रभा—-—कुबेर की राजधानी
अलकसंहतिः —स्त्री॰—अलकः-संहतिः—-—घूंघरों की पंक्तियाँ
अलक्तः —पुं॰—-—न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वम् - स्वार्थे कन्- तारा॰—कुछ वृक्षों से निकलने वाली राल, लाल रंग की लाख महावर
अलक्तकः —पुं॰—-—न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वम् - स्वार्थे कन्- तारा॰—कुछ वृक्षों से निकलने वाली राल, लाल रंग की लाख महावर
अलक्तरसः —पुं॰—अलक्तः-रसः—-—महावरः लाक्षारस
अलक्तरागः —पुं॰—अलक्तः-रागः—-—महावर का लाल रंग
अलक्षण —वि॰—-—-—परिचायक चिह्न से हीन,परिभाषारहित
अलक्षण —नपुं॰—-—-—जिस में कोई अच्छा चिह्न न हो, अशुभ, अपशकुन
अलक्षणम् —नपुं॰—-—-—बुरा या अशुभ चिह्न
अलक्षणम् —नपुं॰—-—-—जो परिभाषा न हो,बुरी परिभाषा
अलक्षित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अदृष्ट, अनवलोकित
अलक्ष्मीः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—दुर्भाग्य, बुरी किस्मत, निर्धनता
अलक्ष्य —वि॰—-—-—अदृश्य,अज्ञात, अनवलोकित
अलक्ष्य —वि॰—-—-—चिह्नरहित
अलक्ष्य —वि॰—-—-—जिस पर कोई विशिष्ट चिह्न न हो
अलक्ष्य —वि॰—-—-—देखने में नगण्य
अलक्ष्य —वि॰—-—-—जिसमें कोई बहाना न हो, छल कपट से रहित
अलक्ष्य —वि॰—-—-—अर्थो की दृष्टि से गौण
अलक्ष्यगति —वि॰—अलक्ष्य-गति—-—अदृश्य रुप से घूमने बाला
अलक्षजन्मता —स्त्री॰—अलक्ष्य-जन्मता—-—अज्ञात जन्म, अप्रकटक जन्म
अलक्ष्यलिंग —वि॰—अलक्ष्य-लिंग—-—जो वेश बदले हुए हो, जिसका नाम पता छिपा हो
अलक्ष्यवाच् —वि॰—अलक्ष्य-वाच्—-—किसी अदृश्य वस्तु को संबोधित करके बोलने बाला ।
अलगर्दः —पुं॰—-—लगति स्पृशति इति लग्+क्विप्, लग् अदर्यति इति अर्द+अच्, स्पृशन् सन्, अर्दो न भवति —पानी का साँप
अलघु —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो हल्का न हो, भारी, बड़ा
अलघु —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो छोटा न हो, लम्बा
अलघु —वि॰,न॰ त॰—-—-—संगीन, गंभीर
अलघु —वि॰,न॰ त॰—-—-—गहन, प्रचण्ड, बहुत बड़ा
अलघूपलः —पुं॰—अलघु-उपलः—-—चट्टान
अलघुप्रतिज्ञ —पुं॰—अलघु-प्रतिज्ञ—-—गंभीर प्रतिज्ञा करने बाला
अलङ्करणम् —वि॰—-—अलम्+ कृ + ल्युट् —सजावट, सजाना
अलङ्करणम् —वि॰—-—अलम्+ कृ + ल्युट् —आभूषण
अलङ्करिष्णु —वि॰—-—अलम्+कृ+ इष्ण् च् —आभूषणों का शौक़ीन
अलङ्करिष्णु —वि॰—-—अलम्+कृ+ इष्ण् च् —सजाने बाला, सजाने की क्रिया में कुशल
अलङ्कारः —वि॰ —-—अलम्+कृ+घञ्—सजावट, सजाने या अलंकृत करने की क्रिया
अलङ्कारः —वि॰ —-—अलम्+कृ+घञ्—आभूषण
अलङ्कारः —वि॰ —-—अलम्+कृ+घञ्—अलंकार
अलङ्कारः —वि॰ —-—अलम्+कृ+घञ्—काव्य के गुण दोष बताने बाला शास्त्र ।
अलङ्कारशास्त्रम् —नपुं॰—अलङ्कार-शास्त्रम्—-—काव्य कला तथा साहित्य शास्त्र
अलङ्कारसुवर्णम् —नपुं॰—अलङ्कार-सुवर्णम्—-—अभूषण घडने के लिये सोना
अलङ्कारकः —पुं॰—-—अलम्+कृ+घञ्, स्वार्थे कन्—आभूषण, सजावट
अलङ्कारकः —पुं॰—-—अलम्+कृ+ण्वुल्—सजाने वाला
अलङ्कृतिः —स्त्री॰—-—अलम्+कृ+क्तिन्—सजावट
अलङ्कृतिः —स्त्री॰—-—अलम्+कृ+क्तिन्—आभूषण, कर्णालङ्कृतिः
अलङ्कृतिः —स्त्री॰—-—अलम्+कृ+क्तिन्—साहित्यिक आभूषण, अलंकार
अलङ्क्रिया —स्त्री॰—-—अलम्+कृ+श+टाप्—अलङ्कृत करना, आभूषित करना, सजाना।
अलङ्घनीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो लांघा न जा सके, पार न किया जा सके, जहाँ पहुँचा न जा सके, पहुँच के बाहर ।
अलजः —वि॰—-—अल+जन्+ड—एक प्रकार का पक्षी
अलञ्जरः —पुं॰—-—अलं सामर्थ्यं जृणाति- जृ+अच् पृषो॰ उत् तारा॰—मिट्टी का बर्तन, मर्तबान, घड़ा
अलजुरः —पुं॰—-—अलं सामर्थ्यं जृणाति- जृ+अच् पृषो॰ उत् तारा॰—मिट्टी का बर्तन, मर्तबान, घड़ा
अलम् —अव्य॰—-—अल्+अम् बा॰—(क)पर्याप्त, यथेष्ट, काफी, (ख)समकक्ष, तुल्य
अलम् —अव्य॰—-—अल्+अम् बा॰—योग्य,सक्षम
अलम् —अव्य॰—-—अल्+अम् बा॰—बस बहुत चुका, कोई आवश्यकता नहीं, कोई लाभ नहीं
अलम् —अव्य॰—-—अल्+अम् बा॰—(क)पूर्ण रुप से, पूरी तरह से, (ख)बहुत, अत्यधिक, बहुत ही अधिक
अलङ्कर्मीण —वि॰—अलम्-कर्मीण—-—कार्य करने में सक्षम, दक्ष, कुशल
अलञ्जीविक —वि॰—अलम्-जीविक—-—जीविका के लिए यथेष्ट
अलन्धन —वि॰—अलम्-धन—-—यथेष्ट धन रखने बाला, धनवान्
अलन्धूमः —पुं॰—अलम्-धूमः—-—अधिक धूआँ, धूम्रपुंज, धूएँ का अंबार
अलम्पुरुषीण —वि॰—अलम्-पुरुषीण—-—यो मनुष्य के योग्य हो, मनुष्य के लिए पर्याप्त हो
अलम्बल —वि॰—अलम्-बल—-—पर्याप्त बलशाली, यथेष्ट शक्तिशाली
अलम्बुद्धिः —स्त्री॰—अलम्-बुद्धिः—-—पर्याप्त समझ
अलम्भूष्णु —वि॰—अलम्-भूष्णु—-—योग्य, सक्षम
अलम्पट —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो लम्पट या विषयी न हो, शुद्ध चरित्र वाला
अलम्पटः —पुं॰—-—-—अन्तःपुर
अलम्बुषः —पुं॰—-—अलं पुष्णाति इति - पुष् + क पृषो॰ पस्य बः —वमन, छर्दि
अलम्बुषः —पुं॰—-—अलं पुष्णाति इति - पुष् + क पृषो॰ पस्य बः —खुले हुए हाथ की हथेली
अलय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—गृहहीन, आवारा
अलय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—नाश न होने वाला, अविनश्वर
अलयः —पुं॰—-—-—अनश्वरता, स्थायित्व
अलयः —पुं॰—-—-—जन्म, उत्पत्ति
अलर्कः —वि॰—-—अलम् अर्क्यते अर्च्यते वा अर्क्+अच्, अच्+घञ् वा शक॰ पररूपम्—पागल कुत्ता या मदोन्मत्त व्यक्ति
अलर्कः —वि॰—-—अलम् अर्क्यते अर्च्यते वा अर्क्+अच्, अच्+घञ् वा शक॰ पररूपम्—सफेद मदार
अलले —अव्य॰—-—अर+रा+के रस्य लः—बहुधा नाटकों में प्रयुक्त होने वाला पैशाची बोली का शब्द जिसका कोई अपना तात्पर्य नहीं
अलवालम् —नपुं॰,न॰ त॰—-—-—वृक्ष में पानी देने के लिए जड़ में बना हुआ स्थान
अलवालम् —नपुं॰,न॰ त॰—-—-—पानी भरने का स्थान, खाई
अलस् —वि॰,न॰ त॰—-—न॰ त॰ लस् + क्विप् —न चमकने वाला
अलस —वि॰—-—न लसति व्याप्रियते - लस् + अच् —अक्रिय, स्फूर्तिहीन, सुप्त, आलसी
अलस —वि॰—-—न लसति व्याप्रियते - लस् + अच् —थका हुआ, श्रान्त, क्लान्त
अलस —वि॰—-—न लसति व्याप्रियते - लस् + अच् —मृदु, कोमल
अलस —वि॰—-—न लसति व्याप्रियते - लस् + अच् —ढीला, मन्द
अलसेक्षणा —स्त्री॰—अलस-ईक्षणा—-—वह स्त्री जिसकी मदभरी दृष्टि हो
अलसक —वि॰—-—अलस + कन्—अकर्मण्य, सुस्त
अलसकः —पुं॰—-—अलस + कन्—अफारा, पेट का एक रोग ।
अलातः —वि॰,न॰ त॰—-—-—अंगार ,अधजली लकड़ी
अलातम् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अंगार ,अधजली लकड़ी ।
अलाबुः —स्त्री॰—-—न- लम्बते—लंबी लौकी
अलाबूः —स्त्री॰—-—न+ लम्ब् + उ- णित् नलोपश्च वृद्धिः - तारा॰ —लंबी लौकी
अलाबु —नपुं॰—-—-—तुमड़ी का बना पान पात्र
अलाबु —नपुं॰—-—-—तुमड़ी का हलका फल जो पानी पर तैरता है ।
अलाबुकटम् —नपुं॰—अलाबुः-कटम्—-—लौकी का कसा हुआ चूरा
अलाबुपात्रम् —नपुं॰—अलाबुः-पात्रम्—-—तुमड़ी का बना बर्तन
अलारम् —नपुं॰—-—ऋ + यड्, लुक् + अच् रस्य लः —दरवाजा
अलिः —पुं॰—-—अल्+इन् —भौंरा
अलिः —पुं॰—-—अल्+इन् —बिच्छू
अलिः —पुं॰—-—अल्+इन् —कौवा
अलिः —पुं॰—-—अल्+इन् —कोयल
अलिः —पुं॰—-—अल्+इन् —मदिरा
अलिकुलम् —नपुं॰—अलिः-कुलम्—-—भौंरा का झुंड
अलिकुलसङ्कुल —वि॰—अलिः-कुलम्-सङ्कुल—-—मक्खियों के झुंड से भरा हुआ
अलिसकुल —वि॰—अलिः-सकुल—-—कुब्ज नामक पौधा
अलिजिह्वा —पुं॰—अलिः-जिह्वा—-—गले के भीतर का कौवा, घांटी, कोमल तालु
अलिजिह्वका —पुं॰—अलिः-जिह्वका—-—गले के भीतर का कौवा, घांटी, कोमल तालु
अलिप्रिय —वि॰—अलिः-प्रिय—-—जो भौरों को अच्छा लगे
अलिप्रियः —पुं॰—अलिः-प्रियः—-—लाल कमल
अलिप्रिया —स्त्री॰—अलिः-प्रिया—-—बिगुल जैसा फूल
अलिमाला —स्त्री॰—अलिः-माला—-—भौरों का समूह
अलिविरावः —पुं॰—अलिः-विरावः—-—भौरों का गुंजार
अलिरुतम् —नपुं॰—अलिः-रुतम्—-—भौरों का गुंजार
अलिवल्लभः —पुं॰—अलिः-वल्लभः—-—लाल कमल
अलिकम् —नपुं॰—-—अल्यते भूष्यते- अल् + कर्मणि इकन् —मस्तक
अलिन् —पुं॰—-—अल्+ इनि—बिच्छू
अलिन् —पुं॰—-—अल्+ इनि—भौंरा
अलिनी —स्त्री॰—-—-—भौंरो का झुंड
अलिगर्दः —पुं॰—-—-—एक प्रकार का साँप
अलिगर्दः —पुं॰—-—-—पानी का साँप
अलिङ्ग —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका कोई विशिष्ट चिह्न न हो , चिह्न रहित
अलिङ्ग —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बुरे चिह्नों वाला
अलिङ्ग —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका कोई लिंग न हो ।
अलिञ्जरः —पुं॰—-—अलनम् - अलिः अल् = इन् तं जरयति इति जृ + अच् पृषो॰ मुम्—जलपात्र
अलिञ्जरः —पुं॰—-—अलनम् - अलिः अल् = इन् तं जरयति इति जृ + अच् पृषो॰ मुम्—मिट्टी का बर्तन, मर्तबान, घड़ा
अलिन्दः —पुं॰—-—अल्यते भूष्यते, अल् - कर्मणि किदच्—घर के दरवाजे के सामने का चबूतरा
अलिन्दः —पुं॰—-—अल्यते भूष्यते, अल् - कर्मणि किदच्—दरवाजे पर बनी चौकोर जगह
अलिम्पक —पुं॰—-—-—मधुमक्खी
अलीक —वि॰—-—अल्+वीकन्—अप्रिय, अरुचिकर
अलीक —वि॰—-—अल्+वीकन्—असत्य, मिथ्या, मनगढ़न्त
अलीकम् —नपुं॰—-—-—मिथ्यात्व, असत्यता
अलीकिन् —वि॰—-—अलीक + इनि —अरुचिकर, अप्रिय
अलीकिन् —वि॰—-—अलीक + इनि —मिथ्या, छलने वाला
अलुः —वि॰—-—अल् + उन्—छोटा जलपात्र
अलुक् —वि॰—-—नास्ति विभक्तेः लुक् लोपो यत्र —एक समास जिसमें पूर्व पद की विभक्ति का लोप नहीं होता
अलुक्समासः —पुं॰—अलुक्-समासः—नास्ति विभक्तेः लुक् लोपो यत्र —एक समास जिसमें पूर्व पद की विभक्ति का लोप नहीं होता
अले —अव्य॰—-—अरे, अरेरे इत्येव रस्य लः —बहुधा नाटकों में प्रयुक्त निरर्थक शब्द जो पिशाची बोली में पाये जाते हैं
अलेले —अव्य॰—-—अरे, अरेरे इत्येव रस्य लः —बहुधा नाटकों में प्रयुक्त निरर्थक शब्द जो पिशाची बोली में पाये जाते हैं
अलेपक —अव्य॰,न॰ ब॰ —-—कप्—बेदाग
अलोक —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—जो दिखाई न दे
अलोक —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—जिसमें लोग न हों
अलोक —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—जो मृत्यु के उपरांत किसी दूसरे लोक में नहीं जाता
अलोकः —पुं॰—-—-—जो लोक न हो
अलोकः —पुं॰—-—-—संसार की समाप्ति या नाश, लोगों का अभाव
अलोकम् —नपुं॰—-—-—जो लोक न हो
अलोकम् —नपुं॰—-—-—संसार की समाप्ति या नाश, लोगों का अभाव
अलोकसामान्य —वि—अलोक-सामान्य—-—असाधारण, असामान्य
अलोकनम् —नपुं॰—-—-—अदृश्यता, दिखाई न देना, अन्तर्ध्यान होना ।
अलोल —वि॰,न॰ त॰—-—-—शान्त, क्षोभरहित
अलोल —वि॰,न॰ त॰—-—-—दृढ़, स्थिर
अलोल —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो प्यासा न हो, इच्छा रहित
अलोलुप —वि॰,न॰ त॰—-—-—इच्छाओं से मुक्त
अलोलुप —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो लालची न हो, बिषयों से उदासीन
अलौकिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो लोक में प्रचलित न हो, असाधारण, लोकोत्तर
अलौकिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सामान्य भाषा में प्रचलित न हो
अलौकिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—प्राक्काल्पनिक
अलौकिकत्वम् —नपुं॰—-—-—किसी शब्द का विरल प्रयोग
अल्प —वि॰—-—अल्+प—तुच्छ, महत्वहीन, नगण्य
अल्प —वि॰—-—अल्+प—छोटा, थोड़ा, सूक्ष्म, जरा सा
अल्प —वि॰—-—अल्+प—मरणशील, जो थोड़ी देर जीवे
अल्प —वि॰—-—अल्+प—कभी-कभी होने वाला, विरल
अल्पम् —क्रि॰ वि॰—-—-—जरा से, कारण से
अल्पम् —क्रि॰ वि॰—-—-—अनायास, बिना किसी कष्ट या कठिनाई के
अल्पेन —क्रि॰ वि॰—-—-—जरा से, कारण से
अल्पेन —क्रि॰ वि॰—-—-—अनायास, बिना किसी कष्ट या कठिनाई के
अल्पात् —क्रि॰ वि॰—-—-—जरा
अल्पात् —क्रि॰ वि॰—-—-—जरा से, कारण से
अल्पात् —क्रि॰ वि॰—-—-—अनायास, बिना किसी कष्ट या कठिनाई के
अल्पाल्प —वि॰—अल्प-अल्प—-—बहुर ही जरा सा, सूक्ष्म, थोड़ा-थोड़ा करके
अल्पासु —वि॰—अल्प-असु—-—थोड़े वजन का, थोड़ी माप का
अल्पासु —वि॰—अल्प-असु—-—थोड़े प्रमाणों वाला, थोड़े से साध्य पर निर्भर रहने वाला
अल्पाकांक्षिन् —वि॰—अल्प-आकांक्षिन्—-—थोड़ा चाहने वाला, सन्तुष्ट, थोड़े से ही सन्तुष्ट
अल्पायुस् —वि॰—अल्प-आयुस्—-—थोड़ी देर जीने वाला
अल्पायुः —पुं॰—अल्प-आयुः—-—छोटी आयु का, बच्चा
अल्पायुः —पुं॰—अल्प-आयुः—-—बकरी
अल्पाहार —वि॰—अल्प-आहार—-—मिताहारी, खाने में औसतदर्जे का
अल्पाहरिन् —वि॰—अल्प-आहारिन्—-—मिताहारी, खाने में औसतदर्जे का
अल्पाहारः —पुं॰—अल्प-आहारः—-—परिमितता,भोजन में संयम
अल्पेतर —वि॰—अल्प-इतर—-—जो छोटा न हो, बड़ा
अल्पेतर —वि॰—अल्प-इतर—-—जो कम न हो, बहुत
अल्पेतराः —पुं॰—अल्प-इतराः—-—कल्पना, नाना प्रकार के विचार
अल्पोन —वि॰—अल्प-ऊन—-—ईषद्दोषी, अधूरा
अल्पोपायः —पुं॰—अल्प-उपायः—-—छोटे साधन
अल्पगन्ध —वि॰—अल्प-गन्ध—-—थोड़ी गंध वाला
अल्पगन्धम् —नपुं॰—अल्प-गन्धम्—-—लाल कमल
अल्पचेष्टित —वि॰—अल्प-चेष्टित—-—क्रियाशून्य
अल्पछद —वि॰—अल्प-छद—-—थोड़े वस्त्र धारण किये हुए
अल्पछाद —वि॰—अल्प-छाद—-—थोड़े वस्त्र धारण किये हुए
अल्पज्ञ —वि॰—अल्प-ज्ञ—-—थोड़ा जानने वाला, उथले ज्ञान वाला, मोटी जानकारी रखने वाला
अल्पतनु —वि॰—अल्प-तनु—-—ठिंगना, छोटे कद का
अल्पतनु —वि॰—अल्प-तनु—-—दुर्बल, पतला
अल्पदृष्टि —वि॰—अल्प-दृष्टि—-—जिसका मन उदार न हो, अदूरदर्शी
अल्पधन —वि॰—अल्प-धन—-—जो धनवान् न हो, धनहीन
अल्पधी —वि॰—अल्प-धी—-—दुर्बलमना, मूर्ख
अल्पप्रजस् —वि॰—अल्प-प्रजस्—-—थोड़ी संतान वाला
अल्पप्रमाण —वि॰—अल्प-प्रमाण—-—थोड़े वजन का, थोड़ी माप का
अल्पप्रमाण —वि॰—अल्प-प्रमाण—-—थोड़े प्रमाणों वाला, थोड़े से साध्य पर निर्भर रहने वाला
अल्पप्रमाणक —वि॰—अल्प-प्रमाणक—-—थोड़े वजन का, थोड़ी माप का
अल्पप्रमाणक —वि॰—अल्प-प्रमाणक—-—थोड़े प्रमाणों वाला, थोड़े से साध्य पर निर्भर रहने वाला
अल्पप्रयोग —वि॰—अल्प-प्रयोग—-—विरलता से प्रयुक्त, कभी-कभी प्रयुक्त
अल्पप्राण —वि॰—अल्प-प्राण—-—थोड़ा श्वास रखने वाला, दमे का रोग
अल्पासु —वि॰—अल्प-असु—-—थोड़ा श्वास रखने वाला, दमे का रोग
अल्पासुणः —पुं॰—अल्प-असु-णः—-—थोड़ा श्वास लेना, दुर्बल श्वास
अल्पासुणः —पुं॰—अल्प-असु-णः—-—वर्णमाला के महाप्राणताहीन अक्षर
अल्पबल —वि॰—अल्प-बल—-—दुर्बल, बलहीन, कम शक्ति रखने वाला
अल्पबुद्धि —वि॰—अल्प-बुद्धि—-—दुर्बलबुद्धि, मूर्ख, अज्ञानी
अल्पमति —वि॰—अल्प-मति—-—दुर्बलबुद्धि, मूर्ख, अज्ञानी
अल्पभाषिन् —वि॰—अल्प-भाषिन्—-—वाक्-कृपण, थोड़ा बोलने वाला
अल्पमध्यम —वि॰—अल्प-मध्यम—-—पतली कमर वाला
अल्पमात्रम् —वि॰—अल्प-मात्रम्—-—थोड़ा सा, जरा सा
अल्पमूर्ति —वि॰—अल्प-मूर्ति—-—छोटे कद का, ठिंगना
अल्पमूर्तिः —स्त्री॰—अल्प-मूर्तिः—-—छोटे आकृति या वस्तु
अल्पमूल्य —वि॰—अल्प-मूल्य—-—थोड़ी कीमत का सस्ता
अल्पमेधस् —वि॰—अल्प-मेधस्—-—थोड़ी समझ का, अज्ञानी, मूर्ख
अल्पवयस् —वि॰—अल्प-वयस्—-—थोड़ी आयु का, कमसिन
अल्पवादिन् —वि॰—अल्प-वादिन्—-—अल्पभाषी
अल्पविद्य —वि॰—अल्प-विद्य—-—अज्ञानी, अशिक्षित
अल्पविषय —वि॰—अल्प-विषय—-—सीमित परास या धारिता से युक्त
अल्पशक्ति —वि॰—अल्प-शक्ति—-—कमजोर, दुर्बल
अल्पसरस् —नपुं॰—अल्प-सरस्—-—पोखर, छोटा जोहड़
अल्पक —वि॰—-—अल्प+ कन्—छोटा, थोड़ा
अल्पक —वि॰—-—अल्प+ कन्—क्षुद्र, नीच
अल्पम्पच —वि॰—-—अल्प+पच्+खश् - मुम् —थोड़ा पकाने वाला, लालची, कंजूस्, मक्खीचूस
अल्पशः —अव्य॰—-—अल्प+शस्—थोड़े अंश मे, जरा, थोड़ा
अल्पशः —अव्य॰—-—अल्प+शस्—कभी-कभी, यदा कदा
अल्पित —अव्य॰—-—अल्प कृतार्थे णिच् कर्मणि - क्त—घटाया हुआ
अल्पित —अव्य॰—-—अल्प कृतार्थे णिच् कर्मणि - क्त—सम्मान की दृष्टि से नीचा, तिरस्कृत
अल्पिष्ठ —वि॰—-—अतिशयेन अल्पः- इष्ठन्—न्युनातिन्युन, छोटे से छोटा, अत्यन्त छोटा
अल्पीकृ —तना॰ उभ॰—-—-—छोटा बनाना, घटाना, संख्या में कमी करना
अल्पीयस् —वि॰—-—अतिशयेन अल्पः - ईयसुन् —अपेक्षाकृत छोटा, दूसरे से कम, बहुत थोड़ा
अल्ला —वि॰—-—अल्यते इति अल्+क्विप्, अले भूषार्थे लाति गृह्णाति - ला + क—माता
अव् —भ्वा॰ पर॰ <अवति>, <अवित>, <ऊत>—-—-—रक्षा करना, बचाना
अव् —भ्वा॰ पर॰ <अवति>, <अवित>, <ऊत>—-—-—प्रसन्न करना, संतुष्ट करना, सुख देना
अव् —भ्वा॰ पर॰ <अवति>, <अवित>, <ऊत>—-—-—पसन्द करना, कामना करना, इच्छा करना
अव् —भ्वा॰ पर॰ <अवति>, <अवित>, <ऊत>—-—-—कृपा करना, उन्नत करना
अव —अव्य॰—-—अव्+अच्—दूर, परे, फासले पर, नीचे
अव —अव्य॰—-—-—क्रिया से पूर्व उपसर्ग के रूप में
अव —अव्य॰—-—-—तत्पुरुष समास के प्रथम खण्ड के रुप में इसका अर्थ होता है - अवक्रुष्ट
अवकट —वि॰—-—अव - स्वार्थे - कटच् —नीचे की ओर, पीछे की ओर
अवकट —वि॰—-—अव - स्वार्थे - कटच् —विपरीत, विरोधी
अवकटम् —नपुं॰—-—-—विरोध, वैपरीत्य
अवकरः —पुं॰—-—अव्+कॄ+अप्—धूल, बुहारन
अवकर्तः —पुं॰—-—अव+कृत्+घञ्—टुकड़ा, धज्जी
अवकर्तनम् —नपुं॰—-—अव+कृत्+ल्युट्—काटना, धज्जियाँ करना
अवकर्षणम् —नपुं॰—-—अव+कृष्+ल्युट्—बाहर निकालना, खींचना
अवकर्षणम् —नपुं॰—-—अव+कृष्+ल्युट्—निष्कासन
अवकलित —वि॰—-—अव+कल्+क्त—दृष्ट, अवलोकित
अवकलित —वि॰—-—अव+कल्+क्त—ज्ञात
अवकलित —वि॰—-—अव+कल्+क्त—लिया हुआ, गृहीत
अवकाशः —वि॰—-—अव+काश्+घञ्—अवसर, मौका
लब्धावकाशः —वि॰—-—-—कार्य के लिए क्षेत्र या अवसर प्राप्त करना
अवकाशः —वि॰—-—अव+काश्+घञ्—स्थान, जगह, ठौर
यथावकाशं नी ——-—-—उचित स्थान पर ले जाना
अवकाशः —वि॰—-—अव+काश्+घञ्—पदार्पण, प्रवेश, पहुँच, अन्तर्गमन
अवकाशं रुध् ——-—-—रोकना, बाधा डालना
अवकाशः —वि॰—-—अव+काश्+घञ्—अन्तराल, बीच का स्थान या समय
अवकाशः —वि॰—-—अव+काश्+घञ्—द्वारक, विवर
अवकीर्णिन् —वि॰—-—अवकीर्ण+इनि—संयम का उल्लंघन करने वाला, ब्रह्मचर्य व्रतको तोड़ देने वाला
अवकीर्णी —पुं॰—-—-—धर्मनिष्ठ विद्यार्थी
अवकुञ्चनम् —नपुं॰—-—अव+कुञ्च्+ल्युट्—झुकाव, मोड़, सिकुड़न
अवकुण्ठनम् —नपुं॰—-—अव+कुण्ठ्+ल्युट्—घेरना, घेरा डालना
अवकुण्ठनम् —नपुं॰—-—अव+कुण्ठ्+ल्युट्—आकृष्ट करना, कस से पकड़ना
अवकुण्ठित —वि॰—-—अव+कुण्ठ्+क्त—घेरा हुआ, परिवेष्टित
अवकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—अव+कृष्+क्त—खींचकर नीचे किया हुआ
अवकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—दूर हटाया हुआ
अवकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—निष्कासित, बाहर निकाला हुआ
अवकृष्ट —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—घटिया, नीच ,पतित, बहिष्कृत
अवकृष्टः —भू॰ क॰ कृ॰—-—-—वह नौकर जो झाडू-बुहारु आदि का काम करता है
अवक्लृप्तिः —स्त्री॰—-—अव+क्लृप्+क्तिन्—संभव, समझना, संभावना
अवक्लृप्तिः —स्त्री॰—-—अव+क्लृप्+क्तिन्—उपयुक्ततता
अवकेशिन् —वि॰—-—अवच्युतं कं सुखं यस्मात्- अवकम् (फलशून्यता) तदीशितुं शीलमस्य इति अवक+ईश्+णिनि—फलहीन, बंजर
अवकोकिल —वि॰—-—अवक्रुष्टः कोकिलया—कोयल द्वारा तिरस्कृत
अवक्र —वि॰—-—न॰त॰—जो टेढ़ा न हो, ईमानदार, सच्चा
अवक्रन्द —वि॰—-—अव+क्रन्द्+घञ्—शनैः शनैः रुदन करने वाला, दहाड़ने वाला, हिनहिनाने वाला
अवक्रन्दः —पुं॰—-—-—चिल्लाना, चीख, चीत्कार
अवक्रन्दनम् —नपुं॰—-—अव+क्रन्द्+ल्युट्—जोर से चिल्लाना, ऊँचे स्वर से रोना।
अवक्रमः —पुं॰—-—अव+क्रम्+घञ्—नीचे उतरना, उतार
अवक्रयः —पुं॰—-—अव+क्री+अच्—मूल्य
अवक्रयः —पुं॰—-—अव+क्री+अच्—मजदूरी, किराया, खेत का भाड़ा
अवक्रयः —पुं॰—-—अव+क्री+अच्—किराये पर देना, पट्टे पर देना
अवक्रयः —पुं॰—-—अव+क्री+अच्—कर या राजस्व, शुक्ल
अवक्रान्तिः —स्त्री॰—-—अव्+क्रम्+क्तिन्—उतार
अवक्रान्तिः —स्त्री॰—-—-—उपागम
अवक्रिया —स्त्री॰—-—अव+कृ+श+टाप्—भूल, चूक
अवक्रोशः —पुं॰—-—अव+क्रोशः+घञ्—बेमेल ध्वनि
अवक्रोशः —पुं॰—-—-—दुर्वचन, निन्दा
अवक्लेदः —पुं॰—-—अव+क्लिद्+घञ्—टपकना, ओस पड़ना
अवक्लेदः —पुं॰—-—अव+क्लिद्+घञ्—कचलहू, पीप
अवक्लेदनम् —नपुं॰—-—अव+क्लिद्+ल्युट्—बूंद बूंद टपकना, ओस या कुहरे का गिरना
अवक्वणः —पुं॰—-—अव+क्वण्+अच्—बेसुरा अलाप
अवक्वाथः —पुं॰—-—अव+क्वथ्+घञ्—अधूरा पचन या अधूरा उबालना
अवक्षयः —पुं॰—-—अव+क्षि+अच्—नाश, वरबादी, ध्वंस, तबाही
अवक्षयणम् —नपुं॰—-—अव+क्षि+ल्युट्—बुझाने के साधन
अवक्षेपः —पुं॰—-—अव+क्षिप्+घञ्—लांछन, निन्दा
अवक्षेपः —पुं॰—-—अव+क्षिप्+घञ्—आक्षेप
अवक्षेपणम् —नपुं॰—-—अव+क्षिप्+ल्युट्—नीचे की ओर फेंकना, कर्म के पाँच प्रकारों में से एक
अवक्षेपणम् —नपुं॰—-—अव+क्षिप्+ल्युट्—घृणा, नफ़रत
अवक्षेपणम् —नपुं॰—-—अव+क्षिप्+ल्युट्—बदनामी, लांछन
अवक्षेपणम् —नपुं॰—-—अव+क्षिप्+ल्युट्—पराजित करना, दमन करना
अवक्षेपणी —स्त्री॰—-—-—बागडोर, लगाम
अवखण्डनम् —नपुं॰—-—अव+खण्ड्+ल्युट्—बांटना, नष्ट करना
अवखातम् —नपुं॰—-—प्रा॰ स॰—गहरी खाई
अवगणनम् —नपुं॰—-—अब+गण्+ल्युट्—अवज्ञा, तिरस्कार, अवहेलना
अवगणनम् —नपुं॰—-—अब+गण्+ल्युट्—निन्दा, लांछन
अवगणनम् —नपुं॰—-—अब+गण्+ल्युट्—अपमान, मानभंग
अवगण्डः —पुं॰—-—प्रा॰ स॰—फोड़ा फुंसी जो गाल पर होती है ।
अवगतिः —स्त्री॰—-—अव+गम्+क्तिन्—ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण, समझ, सत्य ओर निश्चित ज्ञान
अवगमः —पुं॰—-—अव+गम्+घञ्—निकट जाना, नीचे उतरना
अवगमः —पुं॰—-—अव+गम्+घञ्—समझना, प्रत्यक्षीकरण, ज्ञान
अवगमनम् —नपुं॰—-—अव+गम्+ल्युट्—निकट जाना, नीचे उतरना
अवगमनम् —नपुं॰—-—अव+गम्+ल्युट्—समझना, प्रत्यक्षीकरण, ज्ञान
अवगाढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+गाह्+क्त—डुबकी लगाया हुआ, घुसा हुआ, डूबा हुआ
अवगाढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+गाह्+क्त—नीचे दबाया गया, नीचा, गहरा
अवगाढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+गाह्+क्त—घनीभूत, जमा हुआ
अवगाहः —पुं॰—-—अव+गाह्+घञ्—स्नान
अवगाहः —पुं॰—-—अव+गाह्+घञ्—डुबकी लगाना, डुबाना, घुसना
अवगाहः —पुं॰—-—अव+गाह्+घञ्—निष्णात होना, सीख लेना
अवगाहः —पुं॰—-—अव+गाह्+घञ्—स्नानागार
अवगाहनम् —नपुं॰—-—अव+गाह्+ल्युट्—स्नान
अवगाहनम् —नपुं॰—-—अव+गाह्+ल्युट्—डुबकी लगाना, डुबाना, घुसना
अवगाहनम् —नपुं॰—-—अव+गाह्+ल्युट्—निष्णात होना, सीख लेना
अवगाहनम् —नपुं॰—-—अव+गाह्+ल्युट्—स्नानागार
अवगीत —भू॰क॰कृ॰—-—अव+गै+क्त—बेमेल स्वर से गाया हुआ, बुरी तरह से गाया हुआ
अवगीत —वि॰—-—-—धमकाया हुआ, गाली दिया हुआ, कोसा गया
अवगीत —वि॰—-—-—दुष्ट, बदमाश
अवगीत —वि॰—-—-—गाना द्वारा व्यंग्यात्मक ढंग सेचोट किया गया
अवगीतम् —नपुं॰—-—-—व्यंग्यगान, परिहास
अवगीतम् —नपुं॰—-—-—धिक्कार, लांछन
अवगुणः —पुं॰—-—-—अपराध, दोष, बुराई
अवगुण्ठनम् —नपुं॰—-—अव+गुण्ठ्+ल्युट्—घूंघट निकालना, छिपाना, बुर्का ओढ़ना
अवगुण्ठनम् —नपुं॰—-—-—पर्दा
अवगुण्ठनम् —नपुं॰—-—-—घूंघट, बुर्का
अवगुण्ठनवत् —वि॰—-—अवगुण्ठन + मतुप्—घूंघट से ढका हुआ, पर्दे से आवृत
अवगुण्ठिका —स्त्री॰—-—-—घूंघट, पर्दा
अवगुण्ठिका —स्त्री॰—-—अव+गुण्ठ+ण्वुल्+टाप्—आवरण
अवगुण्ठिका —स्त्री॰—-—अव+गुण्ठ+ण्वुल्+टाप्—चिक या पर्दा
अवगुण्ठित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अव+गुण्ठ्+क्त—पर्दा पड़ा हुआ, ढका हुआ, छिपा हुआ
अवगुरणम् —नपुं॰—-—अव+गुर्+ल्युट्—घुड़कना, धमकाना, मार डालने के इरादे से प्रहार करना, शस्त्रों से आक्रमण करना
अवगोरणम् —नपुं॰—-—अव+गुर्+ल्युट्—घुड़कना, धमकाना, मार डालने के इरादे से प्रहार करना, शस्त्रों से आक्रमण करना
अवगूहनम् —नपुं॰—-—अव+गूह्+ल्युट्—छिपाना, प्रछन्न रखना
अवगूहनम् —नपुं॰—-—अव+गूह्+ल्युट्—आलिंगन करना
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—समस्त पद के घटक शब्दों को अलग अलग करना, सन्धिच्छेद करना
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—इस प्रकार की पृथकता को द्योतन करनेवाला चिह्न
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—विराम, सन्धि का न होना
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—ए और से परे ‘अ’ का लोप हो जाने पर ऽ चिह्न
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—वर्षा का न होना, सूखा पड़ना, अनावृष्टि
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—बाधा, रोक
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—हाथियों का समूह
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—हाथी का मस्तक
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—प्रकृति, मूलस्वभाव
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—दण्ड
अवग्रहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—कोसना गाली देना
अवग्रहणम् —नपुं॰—-—अव+ग्रह्+ल्युट्—बाधा, रुकावट
अवग्रहणम् —नपुं॰—-—अव+ग्रह्+ल्युट्—अनादर, अवहेलना
अवग्राहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—टूटना, वियोजन
अवग्राहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—अड़चन
अवग्राहः —पुं॰—-—अव+ग्रह्+घञ्—शाप
अवघट्टः —पुं॰—-—अव+घट्ट+घञ्—बिल, गुहा, मांद॑
अवघट्टः —पुं॰—-—अव+घट्ट+घञ्—शिला, चक्की
अवघट्टः —पुं॰—-—अव+घट्ट+घञ्—जोर से हिलाना
अवघर्षणम् —नपुं॰—-—अव+घृष्+ल्युट्—रगड़ना
अवघर्षणम् —नपुं॰—-—अव+घृष्+ल्युट्—मलना
अवघर्षणम् —नपुं॰—-—अव+घृष्+ल्युट्—पीसना
अवघातः —पुं॰—-—अव+हन्+घञ्—प्रहार करना
अवघातः —पुं॰—-—अव+हन्+घञ्—चोट पहुँचाना, मारना
अवघातः —पुं॰—-—अव+हन्+घञ्—प्रचण्ड आघात, तीव्र आघात
अवघातः —पुं॰—-—अव+हन्+घञ्—धान आदि को ओखल में डालकर मूसल से कूटना
अवघूर्णनम् —नपुं॰—-—अव+घूर्ण्+ल्युट्—घुमेरी आना, चक्कर आना
अवघोषणम् —नपुं॰—-—अव+घुष्+ल्युट्—घोषणा करना
अवघोषणम् —नपुं॰—-—अव+घुष्+ल्युट्—उद्घोषणा
अवघोषणा —स्त्री॰—-—अव+घुष्+ल्युट्—घोषणा करना
अवघोषणा —स्त्री॰—-—अव+घुष्+ल्युट्—उद्घोषणा
अवघ्राणम् —नपुं॰—-—अव+घ्रा+ल्युट्—सूँघने की क्रिया
अवचन —वि॰,न॰ब॰—-—-—न बोलने बाला, चुप, वाणी रहित
अवचनम् —नपुं॰—-—-—उक्ति का अभाव, चुप्पी, मौन
अवचनम् —नपुं॰—-—-—निन्दा, लांछन, भर्त्सना
अवचनकर —वि॰—अवचन-कर—-—आज्ञा न मानने बाला
अवचनीय —वि॰,न॰त॰—-—-—जो कहने के या उच्चारण करने के योग्य न हो, अश्लील या अशीष्ट
अवचनीय —वि॰,न॰त॰—-—-—जो निन्दा या लांछन के योग्य न हो, निन्दा से मुक्त
अवचनीयता —वि॰,न॰त॰—अवचनीय-ता—-—कहने में अनौचित्य,निन्दा से मुक्ति
अवचयः —पुं॰—-—अव+चि+अच्—चयन करना
अवचायः —पुं॰—-—अव+चि+घञ्—चयन करना
अवचारणम् —नपुं॰—-—अव+चर्+णिच्+ल्युत्—किसी काम पर नियुक्त करना, प्रयोग, प्रगमन की पद्धति
अवचूडः —पुं॰—-—अवनता चुडा अग्रं यस्म वा डो लः—रथ के ऊपर लहराता हुआ कपड़ा, ध्वजा के शिरोभाग में बंधा हुआ (चौरी जैसा), अधोमुख वस्त्रखंड
अवचूलः —पुं॰—-—अवनता चुडा अग्रं यस्म वा डो लः—रथ के ऊपर लहराता हुआ कपड़ा, ध्वजा के शिरोभाग में बंधा हुआ (चौरी जैसा), अधोमुख वस्त्रखंड
अवचूर्णनम् —नपुं॰—-—अव+चूर्ण्+ल्युट्—चूरा करना, पीसना, चूर्ण बनाना
अवचूर्णनम् —नपुं॰—-—अव+चूर्ण्+ल्युट्—चूरा बुरकाना विशेषकर कोई सूखी दवा घाव पर बुरकना
अवचूल —पुं॰—-—अवनता चुडा अग्रं यस्म वा डो लः—रथ के ऊपर लहराता हुआ कपड़ा, ध्वजा के शिरोभाग में बंधा हुआ (चौरी जैसा), अधोमुख वस्त्रखंड
अवचूलकः —पुं॰—-—अवनता चुडा यस्य—मक्खियों को उड़ाने के लिए ब्रुश या चंवर
अवचूलकम् —नपुं॰—-—अवनता चुडा यस्य, डस्य लत्वम् - संज्ञायां कन्—मक्खियों को उड़ाने के लिए ब्रुश या चंवर
अवच्छदः —पुं॰—-—अव+छद्+क—आवरण, ढक्कन
अवच्छादः —पुं॰—-—अव+छद्+क—आवरण, ढक्कन
अवच्छिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+छिद्+क्त—काटा हुआ
अवच्छिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+छिद्+क्त—अलगाया हुआ, बंटा हुआ, पृथक किया हुआ
अवच्छिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+छिद्+क्त—अपने विहित विशिष्ट गुणों द्वारा दूसरी सब वस्तुओं से पृथक् की गई वस्तु
अवच्छिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+छिद्+क्त—सीमित, विकृत, निश्चित
अवच्छिन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+छिद्+क्त—किसी विशेषण युक्त, विशिष्ट, विविक्त तथा उपलक्षित
अवच्छुरित —वि॰—-—अव+छुर्+क्त—मिश्रित
अवच्छुरितम् —नपुं॰—-—-—अट्टहास
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—खंड, अंश
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—सीमा, मर्यादा
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—विच्छेद
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—भेद, विवेचन, विशिष्टीकरण
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—दृढ़ निश्चय, निर्णय, फैसला
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—पदार्थ का वह गुण जो उसे औरों से अलग कर दे, लक्षणदर्शी गुण
अवच्छेदः —वि॰—-—अव+छिद्+घञ्—सीमा बाँधना, परिभाषा करना
अवच्छेदक —वि॰—-—अव+छिद्+ण्वुल्—वियोजक
अवच्छेदक —वि॰—-—-—निर्धारक, निर्णायक
अवच्छेदक —वि॰—-—-—सीमा बाँधने वाला
अवच्छेदक —वि॰—-—-—विवेचक, विशिष्टीकारक
अवच्छेदक —वि॰—-—-—विशेष लक्षण
अवच्छेदकः —नपुं॰—-—-—जो विवेचन करे
अवच्छेदकः —नपुं॰—-—-—विधेय, लक्षण, गुण
अवजयः —नपुं॰—-—अव+जि+अच्—पराजय, दूसरों पर विजय
अवजितिः —नपुं॰—-—अव+जि+क्तिन—विजय , पराजय
अवज्ञा —स्त्री॰—-—अव+ज्ञा+क—अनादर, तिस्कार, अवमति, अवहेलना
अवज्ञोपहत —वि॰—अवज्ञा-उपहत—-—उपहततिरस्कारपीड़ित, नीचा दिखाया गया
अवज्ञादुःखम् —नपुं॰—अवज्ञा-दुःखम्—-—नीचा दिखाये जाने की वेदना
अवज्ञानम् —नपुं॰—-—अव+ज्ञा+ल्युट्—अनादर, तिस्कार
अवटः —पुं॰—-—अव+अटन्—विवर, गुफा
अवटः —पुं॰—-—अव+अटन्—शरीर का कोई दबा हुआ या नीचा भाग, नाड़ीव्रण
अवटः —पुं॰—-—अव+अटन्—बाजीगर
अवटकच्छपः —पुं॰—अवटः-कच्छपः—-—गढ़े में घुसा हुआ कछुवा
अवटकच्छपः —पुं॰—अवटः-कच्छपः—-—अनुभवशून्य, जिसने संसारा का कुछ न देखा हो
अवटिः —स्त्री॰—-—अव्+अटि—विवर
अवटिः —स्त्री॰—-—अव्+अटि—कुआँ
अवटी —स्त्री॰—-—अव्+अटि+पक्षे ङीष्—विवर
अवटी —स्त्री॰—-—अव्+अटि+पक्षे ङीष्—कुआँ
अवटीट —वि॰—-—नासिकायाः नतं अवटीटम्, अब+टीटन् नासिकायाः संज्ञायाम् नासिकाप्यवटीटा, पुरुषोऽप्यवटीटः—जिसकी नाक चपटी है, चपटी नाक वाला ।
अवटुः —पुं॰—-—अव+टीक्+डुः—बिल
अवटुः —पुं॰—-—-—गरदन का पृष्ठभाग
अवटुः —पुं॰—-—-—शरीर का दवा हुआ अंग
अवटुः —स्त्री॰—-—-—गरदन का उठा हुआ भाग
अवटु —नपुं॰—-—-—विवर , ददार
अवडीनम् —नपुं॰—-—अव+डी+क्त—पक्षी की उड़ान, नीचे की ओर उड़ना ।
अवतंसः —पुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—हार
अवतंसः —पुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—कर्णाभूषण, अंगूठी के आकार का आभूषण, कान का गहना
अवतंसः —पुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—शिरोभूषण, मुकुट
अवतंसः —पुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—आभूषण का काम देने वाली कोई भी वस्तु
अवतंसम् —नपुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—हार
अवतंसम् —नपुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—कर्णाभूषण, अंगूठी के आकार का आभूषण, कान का गहना
अवतंसम् —नपुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—शिरोभूषण, मुकुट
अवतंसम् —नपुं॰—-—अव+तंस्+घञ्—आभूषण का काम देने वाली कोई भी वस्तु
अवतंसकः —पुं॰—-—अव+तंस्+ण्वुल्—कर्णाभूषण, आभूषण ।
अवतंसयति —ना॰धा॰पर॰—-—-—कर्णाभूषण के रुप में प्रयुक्त करना, कानों की बालियाँ बनाना
अवततिः —स्त्री॰—-—अव+तन्+क्तिन्—फैलाव, प्रसार
अवतप्त —भू॰क॰कृ॰—-—अव+तप्+क्त—गरम किया हुआ, चमकाया हुआ
अवतमसम् —नपुं॰—-—-—झुटपुटा, अल्पांधकार, अन्धकार
अवतरः —पुं॰—-—अव+तृ+अप्—उतार
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—स्नान करने के लिए पानी में नीचे उतरना, उतार, नीचे आना
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—अवतार
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—पार करना
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—स्नान करने का पवित्र स्थान
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—परिचय
अवतरणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+ल्युट्—उद्धृत किया हुआ, उद्धरण
अवतरणिका —स्त्री॰—-—अबतरणी+कन् ह्रस्वः टाप्—ग्रन्थ के आरम्भ में किया गया मंगलाचरण
अवतरणिका —स्त्री॰—-—अबतरणी+कन् ह्रस्वः टाप्—प्रस्तावना, भूमिका
अवतरणी —स्त्री॰—-—अबतरति ग्रन्थोऽनया - अवतृ+करणे ल्युट्—भूमिका
अवतर्पणम् —नपुं॰—-—अव+तृप्+ल्युट्—शान्ति देने वाला उपचार ।
अवताडनम् —नपुं॰—-—अव+तड्+णिच्+ल्युट्—कुचलना, रोदना
अवताडनम् —नपुं॰—-—अव+तड्+णिच्+ल्युट्—मारना
अवतानः —पुं॰—-—अव+तन्+घञ्—फैलाव
अवतानः —पुं॰—-—अव+तन्+घञ्—धनुष का तनाव
अवतानः —पुं॰—-—अव+तन्+घञ्—आवरण, चंदोवा
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—उतार, उदय, आरंभ
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—रुप, प्रकट होना
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—देवता का भूमि पर पदार्पण, अवतार लेना
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—विष्णु का अवतार
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—नया दर्शन, विकास, जन्म
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—तीर्थ स्थान
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—उतरने का स्थान
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—अनुवाद
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—जोहड़, तालाब
अवतारः —पुं॰—-—अव+त+घञ्—प्रस्तावना, भूमिका
अवतारक —वि॰—-—अव+तृ+णिच्+ण्वुल्—किसी को जन्म देने वाला
अवतारक —वि॰—-—अव+तृ+णिच्+ण्वुल्—अवतार लेने वाला ।
अवतारणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+णिच्+ल्युट्—उतारना
अवतारणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+णिच्+ल्युट्—अनुवाद
अवतारणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+णिच्+ल्युट्—किसी भूत प्रेत का आवेश
अवतारणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+णिच्+ल्युट्—पूजा, आराधना
अवतारणम् —नपुं॰—-—अव+तृ+णिच्+ल्युट्—भूमिका या प्रस्तावना
अवतीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+तृ+क्त—नीचे आया हुआ, उतरा हुआ
अवतीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+तृ+क्त—स्नात
अवतीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+तृ+क्त—पार गया हुआ, पार किया हुआ
अवतोका —स्त्री॰—-—अवपतितं तोकम् अस्याः प्रा॰ ब॰—स्त्री या गाय जिसका किसी दुर्घटना के कारण गर्भ गिर गया हो ।
अवत्तिन् —वि॰—-—अव+दो+इनि—जो विभाजन करता है, काटकर पृथक् करता है
पञ्चावत्तिन् —वि॰—पञ्च-अवत्तिन्—-—पांच भागों में बाँटने वाला
अवदंशः —पुं॰—-—अव+दंश्+घञ्—ऐसा चरपरा भोजन जिसके खाने से प्यास लगे, उत्तेजक ।
अवदाघः —पुं॰—-—अव+दह्+घञ् हस्य घः—गर्मी
अवदाघः —पुं॰—-—अव+दह्+घञ् हस्य घः—ग्रीष्म ऋतु
अवदात —वि॰—-—अव+दै+क्त—सुन्दर
अवदात —वि॰—-—अव+दै+क्त—स्वच्छ, पवित्र, निर्मल, परिष्कृत
अवदात —वि॰—-—अव+दै+क्त—उज्ज्वल,श्वेत
अवदात —वि॰—-—अव+दै+क्त—गुणी, सद्गुणी
अवदात —वि॰—-—अव+दै+क्त—पीला
अवदातः —पुं॰—-—-—श्वेत या पीला रंग
अवदानम् —नपुं॰—-—अव+दो+ल्युट्—पवित्र एवं मान्यता प्राप्त वृत्ति
अवदानम् —नपुं॰—-—अव+दो+ल्युट्—सम्पन्न कार्य
अवदानम् —नपुं॰—-—अव+दो+ल्युट्—शौर्य सम्पन्न या कीर्तिकर कार्य, पराक्रम, शूरवीरता, प्रशस्त सफलता
अवदानम् —नपुं॰—-—अव+दो+ल्युट्—कथावस्तु
अवदानम् —नपुं॰—-—अव+दो+ल्युट्—काट कर टुकड़े टुकड़े करना
अवदारणम् —नपुं॰—-—अव+दृ+णिच्+ल्युट्—फाड़ना, बांटना, खोदना, काट कर टुकड़े टुकड़े करना
अवदारणम् —नपुं॰—-—अव+दृ+णिच्+ल्युट्—कुदाल, खुर्पा
अवदाहः —पुं॰—-—अव+दह्+घञ् —गर्मी, जलन
अवदीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+दृ+क्त—बांटा हुआ, टुटा हुआ
अवदीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+दृ+क्त—पिघलाया हुआ, खंण्डित
अवदीर्ण —भू॰क॰कृ॰—-—अव+दृ+क्त—हड़बड़ाया हुआ
अवदोहः —पुं॰—-—अव+दुह्+घञ्—दुहना
अवदोहः —पुं॰—-—अव+दुह्+घञ्—दूध
अवद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—त्याज्य, निंद्य, प्रशंसा के अयोग्य
अवद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—सदोष, दोषयुक्त, निन्दार्ह, अरुचिकर, अप्रिय
अवद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—चर्चा के अयोग्य
अवद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—नीच, अधम
अवद्यम् —नपुं॰—-—-—अपराध, दोष, खोट
अवद्यम् —नपुं॰—-—-—पाप, दुर्व्यसन
अवद्यम् —नपुं॰—-—-—लांछन, निन्दा, झिड़की
अवद्योतनम् —नपुं॰—-—अव+द्युत्+ल्युट्—प्रकाश
अवधानम् —नपुं॰—-—अव+धा+ल्युट्—ध्यान, एकाग्रता, सावधानी
अवधानम् —नपुं॰—-—अव+धा+ल्युट्—लगन, सतर्कता, चौकसी
अवधानात् —वि॰—-—अव+धा+ल्युट्—सतर्कतापूर्वक, ध्यानपूर्वक
अवधारः —पुं॰—-—अव+धृ+णिच्+घञ्—सही निश्चय, सीमा
अवधारक —वि॰—-—अव+धृ+णिच्+ण्वुल्—सही निश्चय करने वाला ।
अवधारण —वि॰—-—अव+धृ+णिच्+ल्युट्—प्रतिबंधक, सीमाबन्धन करने वाला
अवधारणम् —नपुं॰—-—-—निश्चय, निर्धारण
अवधारणम् —नपुं॰—-—-—पुष्टीकरण, बल
अवधारणम् —नपुं॰—-—-—सीमा नियत करना
अवधारणम् —नपुं॰—-—-—किसी एक निदर्शन तक
अवधारणा —स्त्री॰—-—-—निश्चय, निर्धारण
अवधारणा —स्त्री॰—-—-—पुष्टीकरण, बल
अवधारणा —स्त्री॰—-—-—सीमा नियत करना
अवधारणा —स्त्री॰—-—-—किसी एक निदर्शन तक
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि— प्रयोग, ध्यान
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—सीमा मर्यादा, सिरा, समाप्ति, उपसंहार
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—नियतकाल, समय
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—पूर्वनियुक्ति
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—नियुक्ति
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—प्रभाग, जिला, विभाग
अवधिः —पुं॰—-—अव+धा+कि—विवर, गर्त
अवधीर् —चु॰ पर॰—-—-—अवहेलना करना, अनादर करना, नीचा दिखाना, घृणा करना, तिरस्कार करना
अवधीरणम् —नपुं॰—-—अव+धीर्+ल्युट्—अनादर पूर्वक बर्ताव करना
अवधीरणा —स्त्री॰—-—अव+धीर्+ल्युट्+टाप्—अनादर, तिरस्कार
अवधूत —भू॰क॰कृ॰—-—अव+धू+क्त—हिलाया हुआ, लहराया हुआ
अवधूत —भू॰क॰कृ॰—-—अव+धू+क्त—त्यागा हुआ, अस्वीकृत, घृणित
अवधूत —भू॰क॰कृ॰—-—अव+धू+क्त—अपमानित, तिरस्कृत
अवधूतः —पुं॰—-—-—वह संन्यासी जिसने सांसारिक बंधनों तथा विषय - वासनाओं को त्याग दिया है
अवधूननम् —नपुं॰—-—अव+ध+ल्युट्—हिलाना, लहराना
अवधूननम् —नपुं॰—-—अव+ध+ल्युट्—क्षोभ, कंपकंपी
अवधूननम् —नपुं॰—-—अव+ध+ल्युट्—अवहेलना
अवध्य —वि॰,न॰त॰—-—-—मारने के अयोग्य, पवित्र, मृत्यु से मुक्त ।
अवध्वंसः —पुं॰—-—-—परित्याग, उन्मोचन
अवध्वंसः —पुं॰—-—-—चूरा, राख
अवध्वंसः —पुं॰—-—-—अनादर, निंदा, लांछन
अवध्वंसः —पुं॰—-—-—गिर कर अलग होना
अवनम् —नपुं॰—-—अव+ल्युट्—रक्षा, प्रतिरक्षा
अवनम् —नपुं॰—-—अव+ल्युट्—तृप्तिकर, प्रसन्नतादायक
अवनम् —नपुं॰—-—अव+ल्युट्—कामना, इच्छा
अवनम् —नपुं॰—-—अव+ल्युट्—हर्ष, संतोष
अवनत —भू॰क॰कृ॰—-—अब+नम्+क्त—नीचे झुका हुआ, खिन्न
अवनत —भू॰क॰कृ॰—-—अब+नम्+क्त—डूबता हुआ, झुकता हुआ, नीचे गिरते हुआ
अवनतिः —स्त्री॰—-—अब+नम्+क्तिन्—झुकना, मस्तक झुकाना, झुकाव
अवनतिः —स्त्री॰—-—अब+नम्+क्तिन्—पश्चिम में छिपना,डूबना
अवनतिः —स्त्री॰—-—अब+नम्+क्तिन्—प्रणाम, दंडवत्
अवनतिः —स्त्री॰—-—अब+नम्+क्तिन्—झुकाव
अवनतिः —स्त्री॰—-—अब+नम्+क्तिन्—शालीनता, विनम्रता ।
अवनद्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+नह्+क्त—निर्मित, बना हुआ
अवनद्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+नह्+क्त—स्थिर, बैठाया हुआ, बांधा हुआ, जुड़ा हुआ, एक जगह रखा हुआ
अवनम्र —वि॰—-—-—अवनत, झुका हुआ
पादावनम्र —वि॰—पाद-अवनम्र—-—पैरों पर गिरा हुआ
अवनयः —पुं॰—-—अव+नी+अच्—नीचे ले जाना
अवनयः —पुं॰—-—अव+नी+अच्—नीचे उतारना ।
अवनायः —पुं॰—-—अव+नी+घञ् —नीचे ले जाना
अवनायः —पुं॰—-—अव+नी+घञ् —नीचे उतारना ।
अवनाट —वि॰—-—नतं नासिकायाः, अव्+नाटच्, दे॰ अवटीट—चपटी नाक वाला ।
अवनामः —पुं॰—-—अव+नम्+घञ्—झुकना, नमस्कार करना,पैरों पर गिरना
अवनामः —पुं॰—-—अव+नम्+घञ्—नीचे झुकाना
अवनाहः —पुं॰—-—अव+नह्+घञ्—बांधना, पेटी लगाना, कसना
अवनिः —स्त्री॰—-—अव्+अनि—पृथ्वी
अवनिः —स्त्री॰—-—अव्+अनि—आकृति
अवनिः —स्त्री॰—-—अव्+अनि—नदी
अवनी —स्त्री॰—-—अव्+अनि, पक्षे ङीष्—पृथ्वी
अवनी —स्त्री॰—-—अव्+अनि, पक्षे ङीष्—आकृति
अवनी —स्त्री॰—-—अव्+अनि, पक्षे ङीष्—नदी
अवनीशः —पुं॰—अवनिः-ईशः—-—भूस्वामी, राजा
अवनीश्वरः —पुं॰—अवनिः-ईश्वरः—-—भूस्वामी, राजा
अवनिनाथः —पुं॰—अवनिः-नाथः—-—भूस्वामी, राजा
अवनिपतिः —पुं॰—अवनिः-पतिः—-—भूस्वामी, राजा
अवनिपालः —पुं॰—अवनिः-पालः—-—भूस्वामी, राजा
अवनिचर —वि॰—अवनिः-चर—-—पृथ्वी पर घूमने वाला, आवारागर्द, घुमक्कड़
अवनिध्रः —पुं॰—अवनिः-ध्रः—-—पहाड़
अवनितलम् —नपुं॰—अवनिः-तलम्—-—पृथ्वीतल
अवनिमण्डलम् —नपुं॰—अवनिः-मण्डलम्—-—भुमंडल
अवनिरुहः —पुं॰—अवनिः-रुहः—-—वृक्ष
अवनिरुट् —पुं॰—अवनिः-रुट्—-—वृक्ष
अवनेजनम् —नपुं॰—-—अव+निज्+ल्युट्—प्रक्षालन, मार्जन
अवनेजनम् —नपुं॰—-—अव+निज्+ल्युट्—धोने के लिए पानी, पैर धोना
अवनेजनम् —नपुं॰—-—अव+निज्+ल्युट्—श्राद्ध में पिंडदान की वेदी पर बिछाये हुए कुशों पर जल छिड़कना
अवन्तिः —स्त्री॰—-—अव+झिच्, बा॰—एक नगर का नाम,
अवन्तिः —स्त्री॰—-—अव+झिच्, बा॰—एक नदी का नाम
अवन्तिः —पुं॰—-—अव+झिच्, बा॰—एक देश का नाम
अवन्तिपुरम् —नपुं॰—अवन्तिः-पुरम्—-—अवन्ती नामक नगर, उज्जयिनी
अवन्ध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बंजर न हो, उर्वर, उपजाऊ
अवपतनम् —नपुं॰—-—अव+पत्+ल्युट्—उतरना, नीचे आना
अवपाक —वि॰—-—अवकृष्टः पाको यस्य - ब॰ स॰—बुरी तरह पकाया हुआ
अवपाकः —पुं॰—-—अवकृष्टः पाको यस्य - ब॰ स॰—बुरी तरह से पकाना ।
अवपातः —पुं॰—-—अव+पत्+घञ्—नीचे गिरना
अवपातः —पुं॰—-—अव+पत्+घञ्—पैरों पर गिरना, चापलूसी
अवपातः —पुं॰—-—अव+पत्+घञ्—उतरना, नीचे आना
अवपातः —पुं॰—-—अव+पत्+घञ्—विवर, गर्त
अवपातः —पुं॰—-—अव+पत्+घञ्—विशेषकर हाथियों को पकड़ने के लिए बनाया गया बिल या गर्त
अवपातनम् —नपुं॰—-—अव+पत्+णिच्+ल्युट्—गिराना, ठुकराना, नीचे फेंकना
अवपात्रित —वि॰—-—अवपात्र (ना॰ घा॰)+णिच्+क्त—जाति बहिष्कृत
अवपीडः —पुं॰—-—अव+पीड+णिच्+घञ्—नीचे दबाना, दबाव
अवपीडः —पुं॰—-—अव+पीड+णिच्+घञ्—एक प्रकार की औषधि जिसके सूंघने से छींकें आती है, नस्य
अवपीडनम् —नपुं॰—-—अव+पीड+णिच्+ल्युट्—दबाने की क्रिया
अवपीडनम् —नपुं॰—-—अव+पीड+णिच्+ल्युट्—नस्य
अवपीडना —स्त्री॰—-—-—क्षति, आघात
अवबोधः —पुं॰—-—अव्+बुध्+घञ्—जागना, जागरुक होना
अवबोधः —पुं॰—-—अव्+बुध्+घञ्—ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण
अवबोधः —पुं॰—-—अव्+बुध्+घञ्—विवेचन, निर्णय
अवबोधः —पुं॰—-—अव्+बुध्+घञ्—शिक्षण, संसूचन
अवबोधक —वि॰—-—अव+बुध्+ण्वुल्—संकेतक, दर्शाने वाला
अवबोधकः —पुं॰—-—अव+बुध्+ण्वुल्—सूर्य॑
अवबोधकः —पुं॰—-—अव+बुध्+ण्वुल्—भाट
अवबोधकः —पुं॰—-—अव+बुध्+ण्वुल्—अध्यापक
अवबोधनम् —नपुं॰—-—अव्+बुध्+ल्युट्—ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण
अवभङ्गः —पुं॰—-—अव+भञ्ज्+घञ्—नीचा दिखाना, जीतना, हराना ।
अवभासः —पुं॰—-—अव+भास्+घञ्—चमक - दमक, कान्ति, प्रकाश
अवभासः —पुं॰—-—अव+भास्+घञ्—ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण
अवभासः —पुं॰—-—अव+भास्+घञ्—प्रकत होना, प्रकाशन, अन्तः प्रेरना
अवभासः —पुं॰—-—अव+भास्+घञ्—स्थान, पहुंच, क्षेत्र
अवभासः —पुं॰—-—अव+भास्+घञ्—मिथ्याज्ञान
अवभासक —वि॰—-—अव+भास्+ण्वुल्—प्रकाशक
अवभासकम् —नपुं॰—-—अव+भास्+ण्वुल्—परब्रह्म
अवभुग्न —वि॰—-—अव+भुज्+क्त—सिकुड़ा हुआ, झुका हुआ, टेढ़ा किया हुआ
अवभृथः —पुं॰—-—अव+भृ+कथन्—मुख्य यज्ञ की समाप्ति पर शुद्धि के लिए किया जाने वाला स्नान
अवभृथः —पुं॰—-—अव+भृ+कथन्—मार्जन के लिए जल
अवभृथः —पुं॰—-—अव+भृ+कथन्—अतिरिक्त यज्ञ जो पूर्वकृत मुख्य यज्ञ की त्रुटियों की शांति के लिए किया जाता है, सामान्य यज्ञानुष्ठान
अवभृथस्नानम् —नपुं॰—अवभृथः-स्नानम्—-—यज्ञानुष्ठान की समाप्ति पर किया जाने वाला स्नान ।
अवभ्रः —पुं॰—-—-—अपहरण, उठाकर ले जाना ।
अवभ्रट —वि॰—-—नतं नासिकायाः - अव+ भ्रटच्—चपटी नाक वाला ।
अवम —वि॰—-—अव्+अमच्—पापपूर्ण
अवम —वि॰—-—अव्+अमच्—घृणित, कमीना
अवम —वि॰—-—अव्+अमच्—खोटा, नीच, घटिया
अवम —वि॰—-—अव्+अमच्—अगला, घनिष्ट
अवम —वि॰—-—अव्+अमच्—पिछला, सबसे छोटा ।
अवमत —भू॰क॰कृ॰—-—अव+मन्+क्त—घृणित, कुत्सित
अवमताङ्कुशः —पुं॰—अवमत-अङ्कुशः—-—अंकुश को न मानले वाला हाथी , मदमत्त
अवमतिः —स्त्री॰—-—अव+मन्+क्तिन्—अवहेलना, अनादर
अवमतिः —स्त्री॰—-—अव+मन्+क्तिन्—अरुचि, नापसंदगी
अवमर्दः —पुं॰—-—अव+मृद्+घञ्—कुचलना
अवमर्दः —पुं॰—-—अव+मृद्+घञ्—वर्बाद करना, अत्यचार करना
अवमर्शः —पुं॰—-—अव+मृश्+घञ्—स्पर्श, संपर्क
अवमर्षः —पुं॰—-—अव+मर्ष+घञ्—विचारविमर्श, आलोचना
अवमर्षः —पुं॰—-—अव+मर्ष+घञ्—नाटक की पाँच मुख्य सन्धियों मे से एक
अवमर्षः —पुं॰—-—अव+मर्ष+घञ्—आक्रमण करना
अवमर्षणम् —नपुं॰—-—अव+मृष्+ल्युट्—असहनशीलता, असहिष्णुता
अवमर्षणम् —नपुं॰—-—अव+मृष्+ल्युट्—मिटा देना, मिटा डालना, स्मृतिपथ से निष्कासन ।
अवमानः —पुं॰—-—अव+मन्+घञ्—अनादर, तिरस्कार, अवहेलना ।
अवमाननम् —नपुं॰—-—अव+मन्+णिच्+ल्युट् —अनादर , तिरस्कार
अवमानना —स्त्री॰—-—अव+मन्+णिच्+ युच्—अनादर , तिरस्कार ।
अवमानिन् —वि॰—-—अव+मन्+णिच्+णिनि—तिरस्कार करने वाला, घृणा करने वाला, अपमान करने वाला
अवमूर्धन् —वि॰—-—अवनतो मूर्धाऽस्य—सिर झुकाये हुए
अवमूर्धशय —वि॰—अवमूर्धन-शय—-—सिर को नीचे लटका कर लेटा हुआ
अवमोचनम् —नपुं॰—-—अव+मुच्+ल्युट्—स्वतंत्र करना,मुक्त करना , ढीला करना
अवयवः —पुं॰—-—अव+यु+अच्—अंग, सदस्य
अवयवः —पुं॰—-—अव+यु+अच्—भाग, अंश
अवयवः —पुं॰—-—अव+यु+अच्—तर्कसंगत युक्ति या अनुमान का घटक या अंग
अवयवः —पुं॰—-—अव+यु+अच्—शरीर
अवयवः —पुं॰—-—अव+यु+अच्—घटक, संविधायी, उपादान
अवयवार्थः —पुं॰—अवयवः-अर्थः—-—शब्द के संविधायी अंशों का आशय
अवयवशः —अव्य॰—-—अवयव+शस्—अंश अंश करके, अलग अलग टुकड़े करके
अवयविन् —वि॰—-—अवयव +इनि—अवयव, अंश या उपभागों से बना हुआ।
अवयवयी —पुं॰—-—-—अनुमान वाक्य या कोई तर्कसंगत सन्धि ।
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—(क)आयु में छोटा, (ख)बाद का , पश्चवर्ती, पिछला
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—अनुवर्ती, उत्तरवर्ती
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—नीचे, अपेक्षाकृत नीचा, घटिया, कम
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—नीच, महत्वहीन, सबसे बुरा, निम्नतम
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—अन्तिम
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—न्युनातिन्यून
अवर —वि॰,न॰ त॰—-—न वरः इति अवरः, वृ+अप् बा॰—पश्चिमी
अवरम् —नपुं॰—-—-—हाथी की पिछली जांघ
अवरार्धः —पुं॰—अवर-अर्धः—-—थोड़े से थोड़ा भाग, न्युनातिन्यून
अवरार्धः —पुं॰—अवर-अर्धः—-—उत्तरार्ध
अवरार्धः —पुं॰—अवर-अर्धः—-—शरीर का पिछ्ला भाग
अवरावर —वि॰—अवर-अवर—-—नीचतम, सबसे घटिया
अवरोक्त —वि॰—अवर-उक्त—-—अन्त में कहा हुआ
अवरज —वि॰—अवर-ज—-—अपेक्षाकृत छोटा, कनीयान्
अवरजः —पुं॰—अवर-जः—-—छोटा भाई
अवरवर्ण —वि॰—अवर-वर्ण—-—नीच जाति का
अवरवर्णः —पुं॰—अवर-वर्णः—-—शूद्र
अवरवर्णः —पुं॰—अवर-वर्णः—-—अन्तिम या चौथा वर्ण
अवरवर्णकः —पुं॰—अवर- वर्णकः—-—शूद्र
अवरवर्णजः —पुं॰—अवर-वर्णजः—-—शूद्र
अवरव्रतः —पुं॰—अवर- व्रतः—-—सूर्य
अवरशैलः —पुं॰—अवर- शैलः—-—पश्चिमी पहाड़
अवरतः —अव्य॰—-—अवर+तसिल्—पीछे, बाद में, पिछला, पश्चवर्ती
अवरतिः —स्त्री॰—-—अव+रम्+क्तिन्—ठहरना, रुकना
अवरतिः —स्त्री॰—-—अव+रम्+क्तिन्—विराम, विश्राम, आराम
अवरीण —वि॰—-—अवर+ख—पदावनत, खोट मिला हुआ
अवरुग्ण —वि॰—-—अव+रुज्+क्त—टूटा हुआ, फटा हुआ
अवरुग्ण —वि॰—-—अव+रुज्+क्त—रोगी
अवरुद्धिः —स्त्री॰—-—अव+रुध्+क्तिन्—रुकावट, प्रतिबन्ध
अवरुद्धिः —स्त्री॰—-—अव+रुध्+क्तिन्—घेरा
अवरुद्धिः —स्त्री॰—-—अव+रुध्+क्तिन्—प्राप्ति
अवरूप —वि॰—-—ब॰ स॰—कुरूप, विकलांग
अवरोचकः —पुं॰—-—अव+रुच्+ण्वुल्—भूख न लगना
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—बाधा, रुकावट
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—प्रतिबंध
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—अन्तःपुर, जनानखाना, रनवास
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—राजा की रानीयाँ
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—घेरा, बन्दीकरण
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—किलाबंदी, नाकेबंदी
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—ढक्कन
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—बाड़ा,गोठ
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—चौकीदार
अवरोधः —पुं॰—-—अव+रुध्+घञ्—हलकापन, खोखलापन
अवरोधक —वि॰—-—अव+रुध्+ण्वुल्—बाधा डालने वाला
अवरोधक —वि॰—-—अव+रुध्+ण्वुल्—घेरा डालने वाला
अवरोधकम् —नपुं॰—-—-—रोक,बाड़
अवरोधनम् —नपुं॰—-—अव+रुध्+ल्युट्—किलाबंदी, नाकेबंदी
अवरोधनम् —नपुं॰—-—अव+रुध्+ल्युट्—बाधा
अवरोधनम् —नपुं॰—-—अव+रुध्+ल्युट्—रुकावट,अड़चन
अवरोधनम् —नपुं॰—-—अव+रुध्+ल्युट्—राजा का अन्तःपुर
अवरोधिक —वि॰—-—अवरोध+ठन्—बाधाजनक, अड़चन डालने वाला
अवरोधिक —वि॰—-—-—घेरा डालने वाला
अवरोधिकः —पुं॰—-—-—अंतःपुर का पहरेदार
अवरोधिका —स्त्री॰—-—-—अंतःपुर की पहरेदार स्त्री
अवरोधिन् —वि॰—-—अवरोध+इनि—रुकावट डालने वाला, बाधा डालने वाला
अवरोधिन् —वि॰—-—अवरोध+इनि—घेरा डालने वाला
अवरोपणम् —नपुं॰—-—अव+रुह्+णिच्+ल्युट्, पुकागमः—उन्मूलन
अवरोपणम् —नपुं॰—-—-—नीचे उतारना
अवरोपणम् —नपुं॰—-—-—ले जाना, वञ्चित करना, घटाना
अवरोहः —पुं॰—-—अव+रुह्+घञ्—उतार
अवरोहः —पुं॰—-—-—नीचे से चोटी तक वृक्ष के ऊपर लिपटने वाली लता
अवरोहः —पुं॰—-—-—लटकती हुई शाखा
अवरोहः —पुं॰—-—-—स्वरों का उपर से नीचे आना
अवरोहणम् —नपुं॰—-—अव+रुह्+ल्युट्—उतरना, नीचे आना
अवरोहणम् —नपुं॰—-—अव+रुह्+ल्युट्—चढ़ना
अवर्ण —वि॰,न॰ब॰—-—-—रंगहीन
अवर्णः —पुं॰—-—-—लोकापवाद, अपकीर्ति, कलंक, बट्टा
अवर्णः —पुं॰—-—-—लांछन, निन्दा
अवलक्ष —वि॰—-—अव+लक्ष्+घञ्—श्वेत
अवलक्षः —पुं॰—-—-—श्वेत वर्ण
अवलग्न —वि॰—-—अव+लग्+क्त—चिपका हुआ, लगा हुआ, सटा हुआ ।
अवलम्बः —पुं॰—-—अव+लम्ब्+घञ्—नीचे लटकना
अवलम्बः —पुं॰—-—अव+लम्ब्+घञ्—सहारे लटकना, सहारा
अवलम्बः —पुं॰—-—अव+लम्ब्+घञ्—स्तंभ, आड़, आश्रय, दुसरों के सहारे चलने वाली
अवलम्बः —पुं॰—-—अव+लम्ब्+घञ्—अतः बैसाखी या छड़ी
अवलम्बनम् —नपुं॰—-—अव+लम्ब्+ल्युट्—स्तंभ, सहारा, आड़
अवलम्बनम् —नपुं॰—-—अव+लम्ब्+ल्युट्—सहायता, मदद
अवलिप्त —वि॰—-—अव+लिप्+क्त—घमंडी, उद्धत, अभिमानी
अवलिप्त —वि॰—-—अव+लिप्+क्त—लिपा पुता, सना हुआ
अवलीढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+लिह्+क्त—खाया हुआ, चबाया हुआ
अवलीढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+लिह्+क्त—चाटा हुआ, लप लप करके पिया हुआ, स्पृक्त
अवलीढ —भू॰क॰कृ॰—-—अव+लिह्+क्त—निगला हुआ, नष्ट किया हुआ
अवलीला —भू॰क॰कृ॰—-—अवरा लीला - प्रा॰ स॰—क्रीड़ा, खेल, प्रमोद
अवलीला —भू॰क॰कृ॰—-—अवरा लीला - प्रा॰ स॰—तिरस्कार
अवलुञ्चनम् —नपुं॰—-—अव+ल्युञ्च्+ल्युट्—काटना, फाड़ना, उखाड़ना
अवलुञ्चनम् —नपुं॰—-—-—उन्मूलन
अवलुण्ठनम् —नपुं॰—-—अव+लुण्ठ्+ल्युट्—भूमि पर लोटना या लुढ़कना
अवलुण्ठनम् —नपुं॰—-—अव+लुण्ठ्+ल्युट्—लूटना
अवलेखः —पुं॰—-—अव+लिख्+घञ्—तोड़ना, खरोंचना, छीलना
अवलेखः —पुं॰—-—अव+लिख्+घञ्—खुरची हुई कोई वस्तु ।
अवलेखा —स्त्री॰—-—अव+लिख्+अ+टाप्—रगड़ना
अवलेखा —स्त्री॰—-—अव+लिख्+अ+टाप्—किसी को सुसज्जित करना
अवलेपः —पुं॰—-—अव+लिप्+घञ्—अहंकार, घमंड
अवलेपः —पुं॰—-—अव+लिप्+घञ्—अत्याचार, आक्रमण, अपमान, वलात्कार
अवलेपः —पुं॰—-—अव+लिप्+घञ्—लीपना पोतना
अवलेपः —पुं॰—-—अव+लिप्+घञ्—आभूषण
अवलेपः —पुं॰—-—अव+लिप्+घञ्—संघ, समाज
अवलेपनम् —नपुं॰—-—अव+लिप्+ल्युट्—लीपना, पोतना
अवलेपनम् —नपुं॰—-—अव+लिप्+ल्युट्—तेल, कोई चिकना पदार्थ
अवलेपनम् —नपुं॰—-—अव+लिप्+ल्युट्—संघ
अवलेपनम् —नपुं॰—-—अव+लिप्+ल्युट्—घमंड
अवलेहः —पुं॰—-—अव+लिह्+घञ्—चाटना,लपलपाना
अवलेहः —पुं॰—-—अव+लिह्+घञ्—अर्क
अवलेहः —पुं॰—-—अव+लिह्+घञ्—चटनी
अवलेहिका —स्त्री॰—-—-—चटनी
अवलोकः —पुं॰—-—अव+लोक्+घञ्—देखना, दृष्टि डालना
अवलोकः —पुं॰—-—अव+लोक्+घञ्—दृष्टि
अवलोकनम् —नपुं॰—-—अव+लोक्+ल्युट्—अवलोकन करना, दृष्टि डालना, देखना
अवलोकनम् —नपुं॰—-—अव+लोक्+ल्युट्—दृष्टि में रखना, पर्यवेक्षण करना
अवलोकनम् —नपुं॰—-—अव+लोक्+ल्युट्—दृष्टि, आँख
अवलोकनम् —नपुं॰—-—अव+लोक्+ल्युट्—नजर, झांकी
अवलोकनम् —नपुं॰—-—अव+लोक्+ल्युट्—खोज करना, पूछताछ
अवलोकित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+लोक्+क्त—देखा हुआ
अवलोकितम् —नपुं॰—-—-—दृष्टि, झांकी
अववरकः —पुं॰—-—अव+वृ+अप् ततः संज्ञायां वुन्—रन्ध्र, छिद्र
अववरकः —पुं॰—-—अव+वृ+अप् ततः संज्ञायां वुन्—खिड़की
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—निन्दा
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—विश्वास, भरोसा
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—अवहेलना, अनादर
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—सहारा, आश्रय
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—बुरी रिपोर्ट
अववादः —पुं॰—-—अव+वद्+घञ्—आदेश
अवव्रश्चः —पुं॰—-—अव+व्रश्च्+अच्—छिपटी, खपची
अवश —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वतंत्र, मुक्त
अवश —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो वश्य या आज्ञाकारी न हो, अवज्ञाकारी, स्वेच्छाचारी
अवश —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो किसी के अधीन न हो
अवश —वि॰,न॰ त॰—-—-—लाचार, इन्द्रियों का दास
अवश —वि॰,न॰ त॰—-—-—पराश्रित, असहाय, शक्तिहीन
अवशेन्द्रियचित्त —वि॰—अवश-इन्द्रियचित्त—-—जिसका मन और इन्द्रियाँ किसी दूसरे के अधीन न हो
अवशङ्गमः —पुं॰—-—-—जो दूसरे की इच्छा के अधीन न हो ।
अवशातनम् —नपुं॰—-—-—नष्ट करना
अवशातनम् —नपुं॰—-—-—काटना, काट गिराना
अवशातनम् —नपुं॰—-—-—मुर्झाना, सूख जाना
अवशेषः —पुं॰—-—अव+शिष्+घञ्—बचा हुआ, शेष , बाकी, असमाप्त,मेरी बात सुनो, मुझे अपनी बात पूरी करने दो
वृत्तांतावशेषः —पुं॰—वृत्तांत-अवशेषः—-—कथा का शेष भाग
अर्धावशेषः —पुं॰—अर्ध-अवशेषः—-—जिसका केवल नाम ही जीवित हो
नामावशेषः —पुं॰—नाम-अवशेषः—-—जिसका केवल नाम ही जीवित हो
अवश्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो वश में न किया जा सके, जिसको नियन्त्रण में न लाया जा सके
अवश्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनिवार्य
अवश्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनुपेक्ष्य, आवश्यक।
अवश्यपुत्रः —पुं॰—अवश्य-पुत्रः—-—ऐसा बेटा जिसको सिखाना या शासन में रखना असंभव हो
अवश्यम् —अव्य॰—-—अव+श्यै+डमु - तारा॰—आवश्यक रूप से, अनिवार्य रुप से
अवश्यम् —अव्य॰—-—अव+श्यै+डमु - तारा॰—निश्चय से, चाहे कुछ भी हो, सवर्था, यकीनन, निस्संदेह
अवश्यमेव —अव्य॰—-—-—अत्यन्त निश्चयपूर्वक
अवश्यपाच्य —वि॰—-—-—जो निश्चित रुप से पकाया जाय
अवश्यकार्य —वि॰—-—-—जो निश्चित रुप से किया जाता है ।
अवश्यम्भाविन् —वि॰—-—अवश्यम्+भू+इनि—अवश्य होने वाला, अनिवार्य
अवश्यक —वि॰—-—अवश्य+कन्—आवश्यक, अनिवार्य, अनुपेक्ष्य
अवश्या —स्त्री॰—-—अव+श्यै+क—कुहरा, पाला, धुंद
अवश्यायः —पुं॰—-—अव+श्यै+ण—कुहरा, ओस
अवश्यायः —पुं॰—-—अव+श्यै+ण—पाला, सफेद ओस
अवश्यायः —पुं॰—-—अव+श्यै+ण—घमंड
अवश्रयणम् —नपुं॰—-—अव+श्रि+ल्युट्—आग के ऊपर से कोई वस्तु उतारना
अवष्टब्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+स्तम्भ्+क्त—सहारा दिया गया , थामा गया, पकड़ा गया
अवष्टब्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+स्तम्भ्+क्त—से/पर लटका हुआ
अवष्टब्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+स्तम्भ्+क्त—निकटवर्ती, संसक्त
अवष्टब्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+स्तम्भ्+क्त—बाधायुक्त, झुका हुआ
अवष्टब्ध —भू॰क॰कृ॰—-—अव+स्तम्भ्+क्त—बांधा हुआ, बंधा हुआ ।
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—टेक लगाना, सहारा लेना
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—आश्रय, आधार
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—अहंकार, घमंड
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—थूनी, स्तभं
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—सोना
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—उपक्रम, आरम्भ
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—ठहरना, रोक
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—साहस, दृढ़ निश्चय
अवष्टम्भः —पुं॰—-—अव+स्तम्भ्+घञ्—पक्षाघात, स्तब्धता
अवष्टम्भनम् —नपुं॰—-—अव+स्तम्भ्+ल्युट्—टिकना, सहारा लेना
अवष्टम्भनम् —नपुं॰—-—अव+स्तम्भ्+ल्युट्—थूनी, स्तम्भ
अवष्टम्भमय —वि॰—-—अवष्टम्भ+मयट्—सुनहरी, सोने का बना हुआ, अथवा खंभे के बराबर लंबा
अवसक्त —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सञ्ज्+क्त—स्थगित, प्रस्तुत
अवसक्त —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सञ्ज्+क्त—संपर्कशील, स्पर्शी
अवसक्थिका —स्त्री॰—-—अवबद्धे सक्थिनी यस्यां कप्—कपड़े की पट्टी
अवसक्थिका —स्त्री॰—-—अवबद्धे सक्थिनी यस्यां कप्—अतः वेष्टन, पटका या पट्टी
अवसण्डीनम् —नपुं॰—-—अव+सम्+डी+क्त—पक्षियों के झुंड की नीचे की ओर उड़ान ।
अवसथः —पुं॰—-—अव+सो+कथन्—आवासस्थान, घर
अवसथः —पुं॰—-—अव+सो+कथन्—गाँव
अवसथः —पुं॰—-—अव+सो+कथन्—विद्यालय या महाविद्यालय
अवसथ्यः —पुं॰—-—अवसथ+यत्—महाविद्यालय,विद्यालय ।
अवसन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सद्+क्त—उदास, शिथिल
अवसन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सद्+क्त—समाप्त, अवसित, बीता हुआ
अवसन्न —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सद्+क्त—खोया हुआ वंचित
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—मौका, सुयोग, समय
अवसरप्राप्तम् —नपुं॰—अवसर-प्राप्तम्—-—मौके के मुताविक
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—उपयुक्त सुयोग
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—स्थान, जगह, क्षेत्र
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—अवकाश, लाभप्रद अवस्था
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—वत्सर
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—वर्षण
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—उतार
अवसरः —पुं॰—-—अव+सृ+अच्—गुप्त परामर्श
अवसर्गः —पुं॰—-—अव+सृज्+घञ्—मुक्त करना, ढीला करना।
अवसर्गः —पुं॰—-—अव+सृज्+घञ्—स्वेच्छानुसार कार्य करने देना
अवसर्गः —पुं॰—-—अव+सृज्+घञ्—स्वतंत्रता
अवसर्पः —पुं॰—-—अव+सृप्+घञ्—भेदिया, गुप्तचर ।
अवसर्पणम् —नपुं॰—-—अव+सृप्+ल्युट्—नीचे उतरना, नीचे जाना ।
अवसादः —पुं॰—-—अव+सद्+घञ्—उदासी, मूर्च्छा, सुस्ती
अवसादः —पुं॰—-—अव+सद्+घञ्—बर्बादी, विनाश
अवसादः —पुं॰—-—अव+सद्+घञ्—अन्त, समाप्ति
अवसादः —पुं॰—-—अव+सद्+घञ्—स्फूर्ति का अभाव, थकान, थकावट
अवसादः —पुं॰—-—अव+सद्+घञ्—अभियोग का खराब होना, पराजय, हार
अवसादक —वि॰—-—अव+सद्+णिच्+ण्वुल्—उदास करने वाला, मुर्च्छित करने वाला,असफल बनाने वाला
अवसादक —वि॰—-—अव+सद्+णिच्+ण्वुल्—खिन्नता लाने वाला, थकान पहुँचाने वाला ।
अवसादनम् —नपुं॰—-—अव+सद्+णिच्+ल्युट्—पतन, नाश
अवसादनम् —नपुं॰—-—अव+सद्+णिच्+ल्युट्—उत्पीड़न
अवसादनम् —नपुं॰—-—अव+सद्+णिच्+ल्युट्—समाप्त कर देना
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—ठहरना
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—उपसंहार, समाप्ति, अन्त
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—मृत्यु, रोग
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—सीमा, मर्यदा
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—किसी शब्द या अवधि का अन्तिम अंश
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—विराम
अवसानम् —नपुं॰—-—अव+सो+ल्युट्—स्थान, विश्रामस्थल, आवासस्थान
अवसायः —पुं॰—-—अव+सो+घञ्—उपसंहार, अन्त, समाप्ति
अवसायः —पुं॰—-—अव+सो+घञ्—अवशिष्ट
अवसायः —पुं॰—-—अव+सो+घञ्—पूर्ति
अवसायः —पुं॰—-—अव+सो+घञ्—संकल्प, दृढ़निश्चय, निर्णय
अवसित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सो+क्त—समाप्त, अन्त किया गया, पूरा किया गया
अवसित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सो+क्त—ज्ञान, अवगत
अवसित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सो+क्त—प्रस्तावित, निर्धारित, निश्चय किया गया
अवसित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सो+क्त—जमा किया हुआ, एकत्र किया हुआ
अवसित —भू॰क॰कृ॰—-—अव+सो+क्त—बंधा हुआ, नत्थी किया हुआ, बांधा हुआ ।
अवसेकः —पुं॰—-—अव+सिच्+घञ्—छिड़काव, भिगोना
अवसेचनम् —नपुं॰—-—अव+सिच्+ल्युट्—छिड़कना
अवसेचनम् —नपुं॰—-—अव+सिच्+ल्युट्—छिड़कने के लिए पानी
अवसेचनम् —नपुं॰—-—अव+सिच्+ल्युट्—रुधिर निकालना
अवस्कन्दः —पुं॰—-—अव+स्कन्द्+घञ्—आक्रमण करना, आक्रमण, हमला
अवस्कन्दः —पुं॰—-—अव+स्कन्द्+घञ्—उतार
अवस्कन्दः —पुं॰—-—अव+स्कन्द्+घञ्—शिविर
अवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अव+स्कन्द्+ ल्युट्—आक्रमण करना, आक्रमण, हमला
अवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अव+स्कन्द्+ ल्युट्—उतार
अवस्कन्दनम् —नपुं॰—-—अव+स्कन्द्+ ल्युट्—शिविर
अवस्कन्दिन् —वि॰—-—अव+स्कन्द्+णिन्—आक्रमणकारी, हमलावर, बलात्कार करने वाला ।
अवस्करः —पुं॰—-—अवकीर्यते इति अवस्करः, कृ+अप, सुट्—विष्ठा, मल
अवस्करः —पुं॰—-—अवकीर्यते इति अवस्करः, कृ+अप, सुट्—गुह्यदेश
अवस्करः —पुं॰—-—अवकीर्यते इति अवस्करः, कृ+अप, सुट्—गर्द, बुहारन ।
अवस्तरणम् —नपुं॰—-—अव+स्तृ+ल्युट्—विछौना, विछाबन ।
अवस्तात् —अव्य॰—-—अवरस्मिन् अवरस्मात् अवरमित्यर्थे - अवर+अस्ताति अवादेशः—नीचे, नीचे से, नीचे की ओर
अवस्तात् —अव्य॰—-—अवरस्मिन् अवरस्मात् अवरमित्यर्थे - अवर+अस्ताति अवादेशः—अधस्तात् नीचे
अवस्तारः —पुं॰—-—अव+स्तृ+घञ्—पर्दा
अवस्तारः —पुं॰—-—अव+स्तृ+घञ्—चादर कनात
अवस्तारः —पुं॰—-—अव+स्तृ+घञ्—चटाई
अवस्तु —नपुं॰—-—-—निकम्मी वस्तु, तुच्छ बात
अवस्तु —नपुं॰—-—-—अवास्तविकता, सारहीनता
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—हालन, दशा, स्थिति
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—हालत, परिस्थिति
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—काल, दशाक्रम
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—रूप, छवि
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—दर्जा, अनुपात
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—स्थिरता, दृढ़ता
अवस्था —स्त्री॰—-—अव+स्था+अङ्—न्यायालय में उपस्थित होना
अवस्थान्तरम् —नपुं॰—अवस्था-अन्तरम्—-—बदली हुई दशा
अवस्थाचतुष्टय —नपुं॰—अवस्था-चतुष्टय—-—मानवजीवन की चार दशाएँ
अवस्थात्रयम् —नपुं॰—अवस्था-त्रयम्—-—तीन अवस्थाएँ
अवस्थाद्वयम् —नपुं॰—अवस्था-द्वयम्—-—जीवन के दो पहलू
अवस्थानम् —नपुं॰—-—अव+स्था+ल्युट्—खड़ा होना, रहना, वसना
अवस्थानम् —नपुं॰—-—अव+स्था+ल्युट्—स्थिति, हालत
अवस्थानम् —नपुं॰—-—अव+स्था+ल्युट्—आवासस्थान, घर, ठहरने का स्थान
अवस्थानम् —नपुं॰—-—अव+स्था+ल्युट्—ठहरने का समय
अवस्थायिन् —वि॰—-—अव+स्था+णिनि—ठहरने वाला, रहने वाला
अवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अव+स्था+क्त—रहा हुआ, ठहरा हुआ
अवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अव+स्था+क्त—उद्देश्य में स्थिर, दृढ़
अवस्थित —भू॰ क॰ कृ॰—-—अव+स्था+क्त—टिका हुआ, सहारा लिए हुए
अवस्थितिः —स्त्री॰—-—अव+स्था+क्तिन्—निवास करना, वसना
अवस्थितिः —स्त्री॰—-—अव+स्था+क्तिन्—निवासस्थान, आवास
अवस्यन्दनम् —नपुं॰—-—अव+स्यन्द्+ल्युट्—बूंद बूंद टपकना, रिसना
अवस्रंसनम् —नपुं॰—-—अव+स्रंस्+ल्युट्—नीचे टपकना, नीचे गिरना, अधःपात ।
अवहतिः —स्त्री॰—-—अव+हन्+क्तिन्—पीटना, कुचलना
अवहननम् —नपुं॰—-—अव+हन्+ल्युट्—चावल कूटना, पीटना
अवहननम् —नपुं॰—-—अव+हन्+ल्युट्—फेफड़े
अवहरणम् —नपुं॰—-—अव+हृ+ल्युट्—ले जाना, हटाना
अवहरणम् —नपुं॰—-—अव+हृ+ल्युट्—फेंक देना
अवहरणम् —नपुं॰—-—अव+हृ+ल्युट्—चुराना, लूटना
अवहरणम् —नपुं॰—-—अव+हृ+ल्युट्—सुपुर्दगी
अवहरणम् —नपुं॰—-—अव+हृ+ल्युट्—युद्ध का अस्थायी स्थगन, सन्धि
अवहस्तः —पुं॰—-—अवरं हस्तस्य इति - ए॰ त॰—हथेली की पीठ
अवहानिः —स्त्री॰—-—प्रा॰ स॰—खो जाना, घाटा
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—चोर
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—शार्क नाम की मछली
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—अस्थायी, युद्धविराम,सन्धि
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—बुलावा, आमंत्रण
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—धर्मत्याग
अवहारः —पुं॰—-—अव्+हृ+ण—सुपुर्दगी, वापस लेना
अवहारकः —पुं॰—-—अव+हृ+ण्वुल्—शार्क मछली
अवहार्य —सं॰ कृ॰—-—अव+हृ+ण्यत्—ले जाने के योग्य, हटाने के योग्य
अवहार्य —सं॰ कृ॰—-—अव+हृ+ण्यत्—दंड के योग्य, सजा दिये जाने के योग्य
अवहार्य —सं॰ कृ॰—-—अव+हृ+ण्यत्—पुनः प्राप्त करने योग्य, फिर मोल लेने के योग्य
अवहालिका —स्त्री॰—-—अव+हल्+ण्वुल्+टाप्, इत्व—दीवार
अवहासः —पुं॰—-—अव+हस्+घञ्—मुस्कुराना, मुस्कान
अवहासः —पुं॰—-—अव+हस्+घञ्—दिल्लगी, मजाक, उपहास
अवहित्था —स्त्री॰—-—न बहिः तिष्ठति इति - स्था+क पृषो—पाखंड
अवहित्था —स्त्री॰—-—न बहिः तिष्ठति इति - स्था+क पृषो—आन्तरिक भावगोपन, तैंतीस व्यभिचारिभावों में से एक
अवहित्थम् —नपुं॰—-—न बहिः तिष्ठति इति - स्था+क पृषो—पाखंड
अवहित्थम् —नपुं॰—-—न बहिः तिष्ठति इति - स्था+क पृषो—आन्तरिक भावगोपन, तैंतीस व्यभिचारिभावों में से एक
अवहेलः —पुं॰—-—अव+हेल्+क्—अनादर, तिरस्कार, अवहेलना
अवहेला —स्त्री॰—-—अव+हेल्+क्, स्त्रियां टाप्—अनादर, तिरस्कार, अवहेलना
अवहेलनम् —नपुं॰—-—अव+हेल्+ल्युट्—अवज्ञा
अवहेलना —स्त्री॰—-—अव+हेल्+ल्युट्, स्त्रियां टाप्—अवज्ञा
अवाक् —अव्य॰—-—अव+अच्+क्विन्—नीचे की ओर
अवाक् —अव्य॰—-—अव+अच्+क्विन्—दक्षिणी, दक्षिण की ओर
अवाग्ज्ञानम् —नपुं॰—अवाक्-ज्ञानम्—-—अनादर
अवाग्भव —वि॰—अवाक्-भव—-—दक्षिणी
अवाग्मुख —वि॰—अवाक्-मुख—-—नीचे की ओर देखने वाला
अवाग्मुख —वि॰—अवाक्-मुख—-—सिर के वल
अवाक्शिरस् —वि॰—अवाक्-शिरस्—-—नीचे को सिर लटकाये हुए
अवाक्ष —वि॰—-—अवनतान्यक्षाणि इन्द्रियाणि यस्य - ब॰ स॰—अभिभावक, संरक्षक
अवाग्र —वि॰—-—अवनतमग्रमस्य - ब॰ स॰—नीचे को सिर किये हुए, नीचे को झुके हुए ।
अवाच् —वि॰,न॰ब॰—-—-—वाणीरहित, मूक
अवाच् —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—नीचे की ओर झुका हुआ, मुड़ा हुआ
अवाच् —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—नीचे की ओर स्थित, अपेक्षाकृत नीचा
अवाच् —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—सिर के बल
अवाच् —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—दक्षिणी
अवाञ्च —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—नीचे की ओर झुका हुआ, मुड़ा हुआ
अवाञ्च —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—नीचे की ओर स्थित, अपेक्षाकृत नीचा
अवाञ्च —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—सिर के बल
अवाञ्च —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्विन्—दक्षिणी
अवाची —स्त्री॰—-—-—दक्षिणदिशा
अवाञ्ची —स्त्री॰—-—-—निम्नप्रदेश
अवाचीन —वि॰—-—अवाच्+ख—नीचे की ओर, सिर के वल
अवाचीन —वि॰—-—अवाच्+ख—दक्षिणी
अवाचीन —वि॰—-—अवाच्+ख—उतरा हुआ
अवाच्य —वि॰,न॰ त॰ —-—-—जिसे संबोधित करना उचित न हो
अवाच्य —वि॰,न॰ त॰ —-—-—बोले जाने के अयोग्य, निकृष्ट, दुष्ट
अवाच्य —वि॰,न॰ त॰ —-—-—अस्पष्ट उक्ति, शब्दों द्वारा अकथनीय
अवाच्यदेशः —पुं॰—अवाच्य-देशः—-—बोलने के अयोग्य स्थान, योनि ।
अवाञ्चित —वि॰—-—अव+अञ्च्+क्त—झुका हुआ, नीचा ।
अवानः —पुं॰—-—अव+अन्+अच्—सांस लेना, श्वास अन्दर की ओर ले जाना ।
अवान्तर —वि॰,पुं॰—-—-—बीच में स्थित या खड़ा हुआ
अवान्तर —वि॰,पुं॰—-—-—अंतर्गत, सम्मिलित
अवान्तर —वि॰,पुं॰—-—-—अधीन,गौण
अवान्तर —वि॰,पुं॰—-—-—घनिष्ट संबन्ध से रहित, असंबद्ध, अतिरिक्त
अवान्तरदिश् —नपुं॰—अवान्तर-दिश् —-—मध्यवर्ती दिशा
अवान्तरदिशा —स्त्री॰—अवान्तर-दिशा—-—मध्यवर्ती दिशा
अवान्तरदेशः —पुं॰—अवान्तर-देशः—-—दो स्थानों का मध्यवर्ती स्थान, अन्तःप्रवेश
अवाप्तिः —स्त्री॰—-—अव+आप्+क्तिन्—प्राप्त करना, ग्रहण करना
अवाप्य —स॰ कृ॰—-—अव+आप्+ण्यत्—प्राप्त करने के योग्य
अवारः —पुं॰—-—न वार्यते जलेन-वृ+कर्मणि घञ्—नदी का निकटस्थ किनारा
अवारः —पुं॰—-—न वार्यते जलेन-वृ+कर्मणि घञ्—इस ओर
अवारम् —नपुं॰—-—न वार्यते जलेन-वृ+कर्मणि घञ्—नदी का निकटस्थ किनारा
अवारम् —नपुं॰—-—न वार्यते जलेन-वृ+कर्मणि घञ्—इस ओर
अवारपारः —पुं॰—अवार-पारः—-—समुद्र
अवारपारीण —वि॰—अवार-पारीण—-—समुद्र से संबंध रखने वाला
अवारपारीण —वि॰—अवार-पारीण—-—समुद्र को पार करने वाला
अवारीणः —पुं॰—-—अवार+ख—नदी को पार करने वाला
अवावटः —पुं॰—-—-—प्रथम पति को छोड़कर उसी जाति के किसी दूसरे पुरुष से उत्पन्न हुआ किसी स्त्री का पुत्र
अवावन् —पुं॰—-—ओण् (यङ्)+वनिप्—चोर, चुराकर ले जाने वाला
अवासस् —वि॰,न॰ ब॰—-—-—वस्त्र न पहने हुए, नंगा
अवास्तव —वि॰—-—-—अवास्तविक
अवास्तव —वि॰—-—-—निराधार, विवेक शून्य
अविः —पुं॰—-—अव+इन्—वायु, हवा
अविः —पुं॰—-—अव+इन्—ऊनी कंबल
अविः —पुं॰—-—अव+इन्—दीवार,बाड़ा
अविः —स्त्री॰—-—अव+इन्—भेड़
अविः —स्त्री॰—-—अव+इन्—रजस्वला स्त्री
अविकटः —पुं॰—अविः-कटः—-—रेवड़
अविकटोरणः —पुं॰—अविः-कटोरणः—-—एक प्रकार का उपहार
अविदुग्धम् —नपुं॰—अविः-दुग्धम् —-—भेड़ का दूध
अविदूसन् —नपुं॰—अविः-दूसन्—-—भेड़ का दूध
अविमरीसम् —नपुं॰—अविः-मरीसम् —-—भेड़ का दूध
अविसोढम् —नपुं॰—अविः-सोढम्—-—भेड़ का दूध
अविपटः —पुं॰—अविः-पटः—-—भेड़ की खाल, ऊनी कपड़ा
अविपालः —पुं॰—अविः-पालः—-—गडरिया
अविस्थलम् —नपुं॰—अविः-स्थलम्—-—भेड़ों का स्थान, एक नगर का नाम
अविकः —पुं॰—-—अवि+कन्—भेड़ा
अविका —स्त्री॰—-—अवि+कन्+टाप्—भेड़ा
अविकम् —नपुं॰—-—अवि+कन्—हीरा
अविका —स्त्री॰—-—अवि+कन्+टाप्—भेड़,भेड़ी
अविकत्थ —वि॰,न॰ब॰—-—-—जो शेखी न मारता हो,अभिमान न करता हो
अविकत्थन —वि॰न॰ब॰—-—-—जो शेखी न बघारे,जो अभिमान न करे
अविकल —वि॰,न॰त॰—-—-—अक्षत,समस्त,पूरा,सम्पूर्ण, सारा
अविकल —वि॰,न॰त॰—-—-—नियमित,सुव्यवस्थित,सुसंगत,शान्त
अविकल्प —वि॰न॰ब॰—-—-—अपरिवर्तनीय
अविकल्पः —पुं॰—-—-—संदेह का अभाव
अविकल्पः —पुं॰—-—-—इच्छा या विकल्प का अभाव
अविकल्पः —पुं॰—-—-—विधि या नियम
अविकल्पम् —अव्य॰—-—-—निस्सन्देह,निस्संकोच
अविकार —वि॰,न॰ब॰—-—-—निर्विकार
अविकारः —पुं॰—-—-—अविकृति,अपरिवर्तनशीलता
अविकृतिः —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—परिवर्तन का अभाव
अविकृतिः —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—अचेतन सिद्धान्त जिसे प्रकृति कहते हैं और जो इस विश्व का भौतिक कारण है
अविक्रम —वि॰—-—-—शक्तिहीनता,दुर्बल
अविक्रियः —वि॰,न॰ब॰—-—-—अपरिवर्तनशीलता,निर्विकार
अविक्रियम् —नपुं॰—-—-—ब्रह्म
अविक्षत —वि॰,न॰त॰—-—-—अक्षत,पूर्ण,समस्त
अविग्रह —वि॰,न॰त॰—-—-—शरीररहित,परब्रह्म का विशेषण
अविग्रहः —पुं॰—-—-—नित्य समास
अविघात —वि॰,न॰ब॰—-—-—बाधारहित,बिना रुकावट के
अविघातगति —वि॰—अविघात-गति—-—अपने मार्ग में निर्बाध
अविघ्न —वि॰,न॰ब॰—-—-—निर्बाध
अविघ्नम् —नपुं॰—-—-—बाधा या रुकावट से मुक्ति,कल्याण
अविचार —वि॰,न॰त॰—-—-—विचारशून्य,विवेकरहित
अविचारः —पुं॰—-—-—अविवेक,नासमझी
अविचारित —वि॰,न॰त॰—-—-—बिना विचारा हुआ,जो भली-भाँति विचारा न गया हो
अविचारितनिर्णयः —पुं॰—अविचारित-निर्णयः—-—पक्षपात,पक्षपातपूर्ण सम्पत्ति
अविचारिन —वि॰,न॰त॰—-—-—उचित अनुचित का विचार न करने वाला,विवेकहीन
अविचारिन —वि॰,न॰त॰—-—-—आशुकारी
अविज्ञातृ —वि॰,न॰त॰—-—-—अनजात
अविज्ञाता —पुं॰—-—-—परमेश्वर
अवडीनम् —नपुं॰—-—-—पक्षियों की सीधी उड़ान
अवितथ —वि॰,न॰त॰—-—-—जो झुठा नहो, सच्चा
अवितथ —वि॰,न॰त॰—-—-—पूरा किया हुआ, सकल
अवितथम् —अव्य॰—-—-—जो मिथ्या न हो, सचाईपूर्वक
अविदूर —वि॰,न॰त॰—-—-—जो दूर न हो, निकटस्थ, समीपस्थ ।
अविदूरम् —नपुं॰—-—-—सामीप्य
अविदूरम् —अव्य॰—-—-—निकट, दूर नहीं
अविद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—अशिक्षित, मूर्ख, नासमझ
अविद्य —वि॰,न॰त॰—-—-—अज्ञान, मूर्खता,ज्ञान का अभाव
अविद्या —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—आध्यात्मिक अज्ञान
अविद्या —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—भ्रम, माया
अविद्यामय —वि॰—-—अविद्या+मयट्—जो अज्ञान या भ्रम के द्वारा उत्पन्न हो ।
अविधवा —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—जो बिधवा नहो,बिवाहित स्त्री जिसका पति जीवित हो
अविधा —अव्य॰—-—-—बिस्मयादिद्योतक अव्यय
अविधेय —वि॰,न॰त॰—-—-—जिसे वश में न किया जा सके, विपरीत
अविनय —वि॰,न॰ब॰—-—-—अविनीत, दुर्विनीत, अशिष्ट
अविनयः —पुं॰—-—-—शिष्टता या शालीनता का अभाव
अविनयः —पुं॰—-—-—दुर्व्यवहार, उजडुपन, अशिष्ट या उजडुव्यवहार
अविनयः —पुं॰—-—-—अशिष्टाचार, अनादर
अविनयः —पुं॰—-—-—अपराध, जुर्म, दोष
अविनयः —पुं॰—-—-—घमंड, अहंकार, धृष्टता
अविनाभावः —पुं॰—-—-—वियोग का अभाव
अविनाभावः —पुं॰—-—-—अन्तर्हित या अनिवार्य चरित्र, वियुक्त न होने योग्य संबंध
अविनाभावः —पुं॰—-—-—सम्बन्ध
अविनीत —वि॰,न॰ त॰—-—-—विनयशून्य, दुःशील
अविनीत —वि॰,न॰ त॰—-—-—धृष्ट, उजड्ड
अविभक्त —वि॰,न॰ ब॰—-—-—न बाँटा हुआ, अविभाजित, संयुक्त
अविभक्त —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो टूटा न हो, समस्त
अविभाग —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो बाँटा न गया हो, अविभक्त ।
अविभागः —पुं॰—-—-—बँटवारा न होना
अविभागः —पुं॰—-—-—बिना बाँटा दायभाग
अविभाज्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बाँटा न जा सके
अविभाज्यम् —नपुं॰—-—-—न बाँटा जाना
अविभाज्यम् —नपुं॰—-—-—जो बँटवारे के योग्य न हो
अविभाज्यता —स्त्री॰—-—-—न बाँटा जाना, बँटवारे की अयोग्यता ।
अविरत —वि॰,न॰ त॰—-—-—विरामशून्य, न रुकने वाला, सतत, निरन्तर
अविरतम् —अव्य॰—-—-—नित्यतापूर्वक, लगातार
अविरति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निरन्तर
अविरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—सातत्य, निरन्तरता
अविरतिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—कामातुरता
अविरल —वि॰,न॰ त॰—-—-—घना, सघन
अविरल —वि॰,न॰ त॰—-—-—सटा हुआ
अविरल —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्थुल, मोटा, ठीस
अविरल —वि॰,न॰ त॰—-—-—निर्बाध, लगातार
अविरलम् —अव्य॰—-—-—घनिष्ठतापूर्वक
अविरलम् —अव्य॰—-—-—निर्बाधरुप से, लगातार
अविरोधः —पुं॰—-—-—सुसंगतता, अनुकुलता
अविलम्ब —वि॰,न॰ब॰ —-—-—आशुकारी
अविलम्बः —पुं॰—-—-—विलम्ब का अभाव, आशुकारिता
अविलम्बम् —अव्य॰—-—-—बिना देर किये, शीघ्र ही
अविलम्बेन —अव्य॰—-—-—बिना देर किये, शीघ्र ही
अविलम्बित —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना देर किये, शीघ्रकारी, क्षिप्र, आशुकारी
अविलंबितम् —अव्य॰—-—-—शीघ्रतापूर्वक,बिना देर किये
अविला —स्त्री॰—-—अव्+इलच्+टाप्—भेड़
अविवक्षित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनभिप्रेत, अनुद्दिष्ट
अविवक्षित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बोलने या कहने के लिए न हो
अविविक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसकी छानबीन न की गई हो, जो भली भांति विचारा न गया हो
अविविक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो विशेषता या भेद न जानता हो, विस्मित
अविविक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—सार्वजनिक
अविवेक —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—व्चारशून्य, विवेकशून्य
अविवेकः —वि॰,न॰ त॰—-—-—भेदक ज्ञान या विचार का अभाव, अविचार
अविवेकः —वि॰,न॰ त॰—-—-—जल्दबाजी, उतावलापन
अविशङ्क —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—भयरहित, संदेहशून्य, निडर
अविशङ्का —स्त्री॰—-—-—संदेह या भय का प्रभाव, भरोसा
अविशङ्कम् —नपुं॰—-—-—निस्संदेह, निस्संकोच ।
अविशङ्केन —नपुं॰—-—-—निस्संदेह, निस्संकोच ।
अविशङ्कित —वि॰,न॰ त॰—-—-—निःशंक, निडर
अविशङ्कित —वि॰,न॰ त॰—-—-—निस्संदेह, विश्वासी
अविशेष —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बिना किसी अन्तर या भेद के, बराबर, समान
अविशेषः —पुं॰—-—-—अन्तर का अभाव, समानता
अविशेषः —पुं॰—-—-—एकता, समता
अविशेषम् —नपुं॰—-—-—अन्तर का अभाव, समानता
अविशेषम् —नपुं॰—-—-—एकता, समता
अविशेषज्ञ —वि॰—-—-—चीजों के अन्तर को न समझने वाला, अविभेदक ।
अविष —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो जहरीला न हो
अविषः —पुं॰—-—-—समुद्र, राजा
अविषय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अगोचर, अदृश्य
अविषयः —पुं॰—-—-—अविद्यमानता
अविषयः —पुं॰—-—-—निर्विषय, जो पहुँच के अन्दर न हो, परे, बढ़चढ़कर
अविषयः —पुं॰—-—-—इन्द्रियार्थो की उपेक्षा
अवी —स्त्री॰—-—अवत्यात्मानं लज्जया - इति अव्+ई—रजस्वला स्त्री
अवीचि —वि॰,न॰ ब॰—-—-—तरंगशून्य
अवीचिः —पुं॰—-—-—नरक विशेष
अवीर —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो बीर न हो, कायर
अवीर —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसके कोई पुत्र न हो
अवीरा —स्त्री॰—-—-—वह स्त्री जिसके न कोई पुत्र हो न पति हो
अवृत्ति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसकी सत्ता न हो, जो विद्यमान न हो
अवृत्ति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसकी कोई जीविका न हो
अवृत्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—वृत्तिका अभाव, जीविका का कोई साधन न होना, अपर्याप्त आश्रय
अवृत्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—पारिश्रमिक का अभाव
अवृत्वम् —नपुं॰—-—-—अनस्तित्व
अवृथा —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—व्यर्थ नहीं, सफलता पूर्वक
अवृथार्थ —वि॰—अवृथा-अर्थ—-—सफल
अवृष्टि —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बारिश न करने वाला
अवृष्टिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—बृष्टि का अभाव, अनाबृष्टि ।
अवेक्षक —वि॰—-—अन्+ईक्ष्+ण्वुल्—निरीक्षण करने वाला, देखरेख करने वाला, अधोक्षक ।
अवेक्षणम् —अव्य॰—-—अव+ईक्ष्+ल्युट्—किसी ओर देखना, नजर डालना
अवेक्षणम् —अव्य॰—-—अव+ईक्ष्+ल्युट्—रखवाली करना, देखरेख रखना, सेवा करना, अधीक्षण, निरीक्षण
अवेक्षणम् —अव्य॰—-—अव+ईक्ष्+ल्युट्—ध्यान, देखरेख, पर्यवेक्षण
अवेक्षणम् —अव्य॰—-—अव+ईक्ष्+ल्युट्—खयाल करना, ध्यान रखना
अवेक्षणीय —सं॰ कृ॰—-—अव+ईक्ष्+अनीयर्—देखने के योग्य, आदर करने के योग्य, ध्यान रखने के योग्य, विचार किये जाने के योग्य
अवेक्षा —स्त्री॰—-—अव+ईक्ष्+अङ्+टाप्—देखना, दृष्टि डालना
अवेक्षा —स्त्री॰—-—अव+ईक्ष्+अङ्+टाप्—ध्यान, देखरेख, खयाल
अवेद्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—न जानने योग्य, गुप्त
अवेद्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—प्राप्त करने के योग्य
अवेल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असीम, सीमारहित, निस्सीम
अवेल —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असामयिक
अवेलः —पुं॰—-—-—जानकारी का छिपाव
अवेला —स्त्री॰—-—-—प्रतिकूल समय
अवैध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनियमित, जो नियम या कानुन के अनुसार न हो
अवैध —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो शास्त्रविहित न हो
अवोक्षणम् —नपुं॰—-—अव+उक्ष्+ल्युट्—झुके हुए हाथ से छिड़काव करना
अवोदः —पुं॰—-—अव+उन्द्+घञ् नि॰ न लोपः—छिड़काव करना, गीला करना
अव्यक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अस्पष्ट, अप्रकट, अदृश्यमान, अनुच्चरित
अव्यक्तवर्ण —वि॰—अव्यक्त-वर्ण—-—अस्पष्ट भाषण
अव्यक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अदृश्य, अप्रत्यक्ष
अव्यक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनिश्चित
अव्यक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविकसित, अरचित
अव्यक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अज्ञात
अव्यक्तः —पुं॰—-—-—मूल प्रकृति
अव्यक्तम् —नपुं॰—-—-—ब्रह्म
अव्यक्तम् —नपुं॰—-—-—आध्यात्मिक अज्ञान
अव्यक्तम् —नपुं॰—-—-—आत्मा
अव्यक्तम् —अव्य॰—-—-—अप्रत्यक्षरुप से, अस्पष्ट रूप से ।
अव्यक्तानुकरणम् —नपुं॰—अव्यक्त-अनुकरणम्—-—अनुच्चरित तथा निरर्थक ध्वनियों की नकल करना ।
अव्यक्तादि —वि॰—अव्यक्त-आदि—-—जिसका आरम्भ अगाध हो
अव्यक्तक्रिया —स्त्री॰—अव्यक्त-क्रिया—-—बीज गणित का हिसाब
अव्यक्तपद —वि॰—अव्यक्त-पद—-—अनुच्चरित शब्द ।
अव्यक्तमूलप्रभवः —पुं॰—अव्यक्त-मूलप्रभवः—-—सांसारिक अस्तित्व रुपी वृक्ष ।
अव्यक्तराग —वि॰—अव्यक्त - राग—-—हलका लाल, गुलाबी
अव्यक्तरागः —पुं॰—अव्यक्त - रागः—-—ऊषा का रंग
अव्यक्तराशिः —पुं॰—अव्यक्त-राशिः—-—अज्ञात अंक या परिमाणः
अव्यक्तलक्षणः —पुं॰—अव्यक्त-लक्षणः —-—शिव
अव्यक्तव्यक्तः —पुं॰—अव्यक्त-व्यक्तः —-—शिव
अव्यक्तवत्मन् —वि॰—अव्यक्त-वत्मन्—-—जिसके मार्ग अगाध और अभेद्य हैं ।
अव्यक्तमार्ग —वि॰—अव्यक्त-मार्ग—-—जिसके मार्ग अगाध और अभेद्य हैं ।
अव्यक्तवाच् —वि॰—अव्यक्त-वाच्—-—अस्पष्ट रुप से बोलने वाला
अव्यक्तसाम्यम् —वि॰—अव्यक्त-साम्यम्—-—अज्ञात परिणामों की समीकरण राशि ।
अव्यग्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्षुब्ध,अनाकुल,स्थिर,शान्त
अव्यग्र —वि॰—-—-—किसी काम में न लगा हुआ
अव्यङ्ग —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो क्षतविक्षत या दोषयुक्त न हो,सुनिर्मित,ठोस,पूरा
अव्यञ्जन —वि॰,न॰ ब॰—-—-—चिह्नरहित,लक्षणरहित
अव्यञ्जना —स्त्री॰—-—-—कन्या
अव्यञ्जन —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अस्पष्ट
अव्यञ्जनः —पुं॰—-—-—बिना सींग का पशु
अव्यथ —वि॰,न॰ ब॰—-—-—पीड़ा से मुक्त
अव्यथिषः —पुं॰—-—न व्यथ्+टिषच्—सूर्य
अव्यथिषः —पुं॰—-—न व्यथ्+टिषच्—समुद्र
अव्यथिषी —स्त्री॰—-—न व्यथ्+टिषच्+ङीप्—पृथ्वी
अव्यथिषी —स्त्री॰—-—न व्यथ्+टिषच्+ङीप्—आधी रात,रात
अव्यभिचारः —पुं॰—-—-—वियोग का अभाव
अव्यभिचारः —पुं॰—-—-—एकनिष्ठता,वफादारी
अव्यभीचारः —पुं॰—-—-—वियोग का अभाव
अव्यभीचारः —पुं॰—-—-—एकनिष्ठता,वफादारी
अव्यभिचारिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविरोधी,अप्रतिकूल,अनुकूल
अव्यभिचारिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपवादरहित
अव्यभिचारिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—सद्गुणी,सदाचारी,ब्रह्मचारी (सती)
अव्यभिचारिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्थिर,स्थायी,श्रद्धालु
अव्यय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अपरिवर्तनशील,अविनश्वर,अखंडित
अव्यय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—नित्य,शाश्वत
अव्यय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो खर्च न किया गया हो,जो व्यर्थ नष्ट न किया गया हो
अव्यय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—मितव्ययी
अव्यय —वि॰,न॰ ब॰—-—-—शाश्वत फल देने वाला
अव्ययम् —नपुं॰—-—-—वह शब्द जिसके रूप में वचन लिंगादि के कारण कोई विकार नहीं होता
अव्ययात्मन् —वि॰—अव्यय-आत्मन्—-—अविनश्वर या नित्य
अव्ययात्मा —पुं॰—अव्यय-आत्मा—-—आत्मा या ब्रह्म
अव्ययवर्गः —पुं॰—अव्यय-वर्गः—-—अव्ययों की सूची
अव्ययीभावः —पुं॰—-—अनव्यमव्ययं भवत्यनेन,अव्यय +च्वि+भू+घञ्—संस्कृतभाषा के चार मुख्य समासों में से एक
अव्ययीभावः —पुं॰—-—अनव्यमव्ययं भवत्यनेन,अव्यय +च्वि+भू+घञ्—व्यय का अभाव(दरिद्रता के कारण)
अव्ययीभावः —पुं॰—-—अनव्यमव्ययं भवत्यनेन,अव्यय +च्वि+भू+घञ्—अनश्वरता
अव्यलीक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो झूठा न हो,सच्चा
अव्यलीक —वि॰—-—-—प्रिय,अरुचिकर भावनाओं से रहित
अव्यवधान —वि॰,न॰ ब॰—-—-—मिला हुआ, पास का, अन्तररहित
अव्यवधान —वि॰ —-—-—खुला हुआ
अव्यवधान —वि॰ —-—-—जो ढका न हो, नंगा
अव्यवधान —वि॰ —-—-—असावधान, लापरवाह
अव्यवधानम् —नपुं॰—-—-—लापरवाही
अव्यवस्थ —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—जो नियत न हो, हिलने डुलने वाला, अस्थिर
अव्यवस्थ —वि॰,न॰ ब॰ —-—-—अनिश्चित, विशृंखल, अनियमित
अव्यवस्था —स्त्री॰—-—-—अनियमितता, मान्यता प्राप्त नियम से स्खलन
अव्यवस्था —स्त्री॰—-—-—शास्त्रविरुद्ध व्यवस्था
अव्यवस्थित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो प्रचलित व्यवस्था या कानुन के अनुरुप न हो
अव्यवस्थित —वि॰,न॰ त॰—-—-—विनिमयरहित, चंचल, अस्थिर
अव्यवस्थित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो क्रमबद्ध न हो, विधिपूर्वक न हो
अव्यवहार्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो अपने जातिबन्धुओं के साथ खाने पीने का अधिकारी न हो, जातिबहिष्कृत
अव्यवहार्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मुकदमे का विषय न बनाया जा सके, व्यवहार के अयोग्य ।
अव्यवहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—व्यवधानरहित, साथ मिला हुआ
अव्याकृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविकसित, अस्पष्ट
अव्याकृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—प्रारंभिक
अव्याकृतम् —नपुं॰—-—-—प्रारंभिक तत्व
अव्याकृतम् —नपुं॰—-—-—प्रधान-प्रकृति का प्राथमिक अणु
अव्याजः —पुं॰—-—-—छल कपट का अभाव, ईमानदारी
अव्याजः —पुं॰—-—-—सादगी, अकृतिमता
अव्याजम् —नपुं॰—-—-—छल कपट का अभाव, ईमानदारी
अव्याजम् —नपुं॰—-—-—सादगी, अकृतिमता
अव्यापक —वि॰, न॰त॰—-—-—जो बहुत विस्तीर्ण न हो
अव्यापक —वि॰, न॰त॰—-—-—जिसने समस्त को न व्यापा हो, विशेष ।
अव्यापार —वि॰, न॰ब॰—-—-—जिसके पास कोई कार्य न हो, काम में न लगा हो ।
अव्यापारः —पुं॰—-—-—काम से विराम
अव्यापारः —पुं॰—-—-—ऐसा काम जो न तो किया जा सके, न समझ में आवे
अव्यापारः —पुं॰—-—-—जो अपना निजी व्यापार न हो
अव्याप्तिः —स्त्री॰, न॰त॰—-—-—अपर्याप्त विस्तार, या प्रतिज्ञा पर अधूरी व्याप्ति
अव्याप्तिः —स्त्री॰, न॰त॰—-—-—परिभाषा में दिये गये लक्षण का घटित न होना,परिभाषा के तीन दोषों में से एक
अव्याप्य —वि॰, न॰ त॰—-—-—जो सारी स्थिति के लिए लागू न हो, समस्त विस्तार पर छाया हुआ न हो
अव्याप्यवृत्तिः —स्त्री॰—अव्याप्य - वृत्तिः—-—सीमित प्रयोग के एक श्रेणी, देशकाल की स्थिति से आंशिक विद्यमानता
अव्याहत —वि॰, न॰त॰—-—-—न टूटा हुआ, बाधारहित, निर्बाध, मानी हुई (आज्ञा)
अव्युत्पन्न —वि॰, न॰त॰—-—-—अकुशल, अनुभवशून्य, अव्यवहृत, अनाड़ी
अव्युत्पन्न —वि॰, न॰त॰—-—-—(शब्द) जिसकी व्युत्पत्ति नियमित न हो
अव्युत्पन्नः —पुं॰—-—-—भाषा के व्याकरण तथा वाग्धारा आदि के ज्ञान से शून्य व्यक्ति, पल्लवग्राही, भाषाशास्त्री ।
अव्रत —वि॰, न॰ब॰—-—-—जो धार्मिक संस्कार तथा अन्य धर्मानुष्ठान का पालन न करता हो
अश् —स्वा॰ आ॰ <अश्नुते>,<अशित>,<अष्ट>—-—-—व्याप्त होना, पूरी तरह से भरना, प्रविष्ट होना
अश् —स्वा॰ आ॰ <अश्नुते>,<अशित>,<अष्ट>—-—-—पहुंचना, जाना या आना, उपस्थित होना, प्राप्त करना
अश् —स्वा॰ आ॰ <अश्नुते>,<अशित>,<अष्ट>—-—-—प्राप्त करना, ग्रहण करना, आनंद लेना, अनुभव प्राप्त करना
उपाश् —वि॰—उप-अश्—-—प्राप्त करना,उपभोग करना, ग्रहण करना ।
व्यश् —वि॰—वि-अश्—-—पूर्ण रुप से भरना, व्याप्त होना, स्थान ग्रहण करना
अश् —क्र्या॰ पर॰<अश्नाति>, <अशित>—-—-—खाना, उपभोग करना
अश् —क्र्या॰ पर॰<अश्नाति>, <अशित>—-—-—स्वाद लेना, रस लेना
अश् —क्र्या॰ पर॰ प्रेर॰—-—-—खिलाना, भोजन करना, खिलवाना, पिलवाना
प्राश् —क्र्या॰ पर॰—प्र-अश्—-—पीना
प्राश् —क्र्या॰ पर॰—प्र-अश्—-—खाना, निगलना
समश् —क्र्या॰ पर॰—सम्-अश्—-—खाना
समश् —क्र्या॰ पर॰—सम्-अश्—-—स्वाद लेना, अनुभव लेना, रस लेना
अशकुनः —पुं॰—-—-—अशुभ या बुरा शकुन
अशकुनम् —नपुं॰—-—-—अशुभ या बुरा शकुन
अशक्तिः —स्त्री॰, न॰त॰—-—-—कमजोरी, शक्तिहीनता
अशक्तिः —स्त्री॰, न॰त॰—-—-—अयोग्यता, अक्षमता
अशक्य —वि॰, न॰त॰—-—-—असंबभ, अव्यवहार्य ।
अशङ्क —वि॰, न॰ब॰—-—-—निर्भय निश्शंक
अशङ्क —वि॰, न॰ब॰—-—-—सुरक्षित, सन्देह रहित
अशङ्कित —वि॰, न॰ त॰—-—-—निर्भय निश्शंक
अशङ्कित —वि॰, न॰ त॰—-—-—सुरक्षित, सन्देह रहित
अशनम् —नपुं॰—-—अश्+ल्युट्—व्याप्ति, प्रवेशन
अशनम् —नपुं॰—-—अश्+ल्युट्—खाना, खिलाना
अशनम् —नपुं॰—-—अश्+ल्युट्—स्वाद लेना, रस लेना
अशनम् —नपुं॰—-—अश्+ल्युट्—आहार
अशना —स्त्री॰—-—अशन मिच्छति - अशन+क्यच्+क्विप्—खाने की इच्छा, भूख
अशनाया —स्त्री॰—-—अशन मिच्छति - अशन+क्यच् स्त्रियां भावे अ —भूख
अशनायित —वि॰—-—अशन+क्यच्(ना॰धा॰)+क्त—भूखा
अशनायुक —वि॰—-—अशन+क्यच्(ना॰धा॰)+क्त, पक्षे उकञ्—भूखा
अशनिः —पुं॰—-—अश्नुते संहति - अश्+अनि—इन्द्र का वज्र
अशनिः —पुं॰—-—अश्नुते संहति - अश्+अनि—बिजली की चमक
अशनिः —पुं॰—-—अश्नुते संहति - अश्+अनि—फेंक कर मारेजाने वाला अस्त्र
अशनिः —पुं॰—-—अश्नुते संहति - अश्+अनि—अस्त्र की नोक
अशनिः —पुं॰—-—-—बिजली से पैदा हुई आग
अशब्द —वि॰,न॰ब॰—-—-—जो शब्द में न कहा गया हो
अशब्दम् —नपुं॰—-—-—अव्यक्त अर्थात ब्रह्म
अशब्दम् —नपुं॰—-—-—प्रधान या प्रकृति का आरम्भिक अणु
अशरण —वि॰,न॰ब॰—-—-—असहाय, परित्यक्त, शरणरहित
अशरीर —वि॰,न॰ब॰—-—-—शरीररहित, बिना शरीर का ।
अशरीरः —पुं॰—-—-—परमात्मा, ब्रह्म
अशरीरः —पुं॰—-—-—कामदेव, प्रेम का देवता
अशरीरः —पुं॰—-—-—सन्यासी जिसने अपने सांसारिक संबंध त्याग दिये हैं ।
अशरीरिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—शरीररहित, अपार्थिव, स्वर्गीय ।
अशास्त्र —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो धर्मशास्त्र के अनुकुल न हो, पाखंड ।
अशास्त्रविहित —वि॰—अशास्त्र-विहित —-—जो धर्मशास्त्र से अनुमोदित न हो ।
अशास्त्रसिद्ध —वि॰—अशास्त्र-सिद्ध—-—जो धर्मशास्त्र से अनुमोदित न हो ।
अशास्त्रीय —वि॰, न॰त॰—-—-—शास्त्रविरुद्ध, विधि-विरुद्ध, अनैतिक
अशित —भू॰क॰कृ॰—-—अश्+क्त—खाया हुआ, तृप्त
अशित —भू॰क॰कृ॰—-—अश्+क्त—उपभुक्त
अशितङ्गवीन —वि॰—-—अशितास्तृप्ताः गावोऽत्र—वह स्थान जहाँ पहले मवेशी चरा करते थे, पशुओं के चरने का स्थान ।
अशित्रः —पुं॰—-—अश्+इत्र—चोर
अशित्रः —पुं॰—-—अश्+इत्र—चावल की आहुति
अशिरः —पुं॰—-—अश्+इरच्—सूर्य
अशिरः —पुं॰—-—अश्+इरच्—वायु
अशिरः —पुं॰—-—अश्+इरच्—पिशाच
अशिरस् —वि॰,न॰ब॰—-—-—बिना सिर का
अशिरस् —पुं॰—-—-—बिना सिर का शरीर, कबंध, घड़, तना ।
अशिव —वि॰,न॰ब॰—-—-—अशुभ, अमंगलकारी
अशिव —वि॰,न॰ब॰—-—-—अभागा, बदकिस्मत ।
अशिवम् —नपुं॰—-—-—दुर्भाग्य, बदकिस्मती
अशिवाचारः —पुं॰—अशिव-आचारः—-—अनुचित व्यवहार, आचरण की अशिष्टता
अशिवाचारः —पुं॰—अशिव-आचारः—-—दुराचरण
अशिष्ट —वि॰, न॰त॰—-—-—शिष्टतारहित, उजड्ड
अशिष्ट —वि॰, न॰त॰—-—-—असंस्कृत, असभ्य, अयोग्य
अशिष्ट —वि॰, न॰त॰—-—-—नास्तिक, भक्तिशून्य
अशिष्ट —वि॰, न॰त॰—-—-—जो किसी प्रामाणिक ग्रन्थ द्वारा सम्मत न हो
अशिष्ट —वि॰, न॰त॰—-—-—जो किसी प्रामाणिक शास्त्र द्वारा विहित न हो ।
अशीत —वि॰, न॰त॰—-—-—जो ठंडा न हो, गर्म
अशीतकरः —पुं॰—अशीत-करः—-—सूर्य
अशीतरश्मिः —पुं॰—अशीत-रश्मिः—-—सूर्य
अशीतिः —स्त्री॰—-—निपातोऽयम्—अस्सी
अशीर्षक —वि॰—-—-—बिना सिर का
अशीर्षक —पुं॰—-—-—बिना सिर का शरीर, कबंध, घड़, तना ।
अशुचि —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो साफ न हो, गंदा, मलिन, अपवित्र
अशुचिः —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—अपवित्रता
अशुचिः —स्त्री॰,न॰त॰—-—-—अधःपतन
अशुद्ध —वि॰,न॰ब॰—-—-—अपवित्र
अशुद्ध —वि॰,न॰ब॰—-—-—अशुद्ध, गलत
अशुद्धि —वि॰,न॰ब॰—-—-—अपवित्र, मलिन
अशुद्धि —वि॰,न॰ब॰—-—-—दुष्ट
अशुद्धिः —स्त्री॰, न॰ त॰—-—-—अपवित्रता, मलिनता
अशुभ —वि॰,न॰ब॰—-—-—अमंगलकारी
अशुभ —वि॰,न॰ब॰—-—-—अपवित्र, मलिन
अशुभ —वि॰,न॰ब॰—-—-—अभागा, बदकिस्मत ।
अशुभम् —नपुं॰—-—-—दुर्भाग्य, विपत्ति
अशुभोदयः —वि॰, न॰त॰—अशुभ-उदयः—-—अशुभ शकुन
अशून्य —वि॰, न॰त॰—-—-—जो रिक्त या शून्य न हो
अशून्य —वि॰, न॰त॰—-—-—परिचर्या किया गया, पूरा किया गया, निष्पादित
अशृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना पकाया हुआ, कच्चा, अनपका
अशेष —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसके कुछ वाकी न वचा हो,सम्पुर्ण, समस्त, पूरा, समग्र
अशेषः —पुं॰—-—-—जो बाकी न वचा हो
अशेषम् —क्रि॰वि॰—-—-—पूर्ण रुप से, पूरी तरह से
अशेषेण —क्रि॰वि॰—-—-—पूर्ण रुप से, पूरी तरह से
अशेषतः —क्रि॰वि॰—-—-—पूर्ण रुप से, पूरी तरह से
अशोक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसे कोई रंज न हो ,जो किसी प्रकार के रंज या शोक का अनुभव न करता हो
अशोकः —पुं॰—-—-—लाल फुलों वाला एक प्रसिद्ध वृक्ष
अशोकः —पुं॰—-—-—मौर्यवंश का एक प्रसिद्ध राजा
अशोकम् —नपुं॰—-—-—अशोक वृक्ष का फूलना
अशोकारिः —पुं॰—अशोक-अरिः—-—कदंबवृक्ष
अशोकाष्टमी —स्त्री॰—अशोक-अष्टमी—-—चैत कृष्णपक्ष की अष्टमी
अशोकतरुः —पुं॰—अशोक-तरुः—-—अशोक वृक्ष
अशोकनगः —पुं॰—अशोक-नगः—-—अशोक वृक्ष
अशोकवृक्षः —पुं॰—अशोक-वृक्षः—-—अशोक वृक्ष
अशोकत्रिरात्रः —पुं॰—अशोक-त्रिरात्रः—-—एक उत्सव का नाम जो तीन रात तक रहता है
अशोकत्रिरात्रम् —नपुं॰—अशोक-त्रिरात्रम्—-—एक उत्सव का नाम जो तीन रात तक रहता है
अशोकवनिका —स्त्री॰—अशोक-वनिका—-—अशोक वृक्षों का उद्यान
अशोच्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसके लिये शोक करना उचित नहीं
अशौचम् —नपुं॰—-—-—पवित्रता, मैलापन, मलिनता
अशौचम् —नपुं॰—-—-—सूतक,पातक
अश्नीतपिवता —स्त्री॰—-—-—खाने पीने के लिए निमंत्रण,दावत जिस्में खाने पीने के लिए लोग आमंत्रित किये जाते हैं
अश्मकः —पुं॰—-—अश्मेव स्थिरः, इवार्थे कन्—दक्षिण में एक देश
अश्मकः —पुं॰—-—अश्मेव स्थिरः, इवार्थे कन्—उस देश के निवासी
अश्मन् —पुं॰—-—अश्+मनिन्—पत्थर
अश्मन् —पुं॰—-—अश्+मनिन्—फलीता,चकमक पत्थर
अश्मन् —पुं॰—-—अश्+मनिन्—बादल
अश्मन् —पुं॰—-—अश्+मनिन्—वज्र
अश्मोत्थम् —नपुं॰—अश्मन्-उत्थम्—-—शिलाजीत
अश्मकुट्ट —वि॰—अश्मन्-कुट्ट—-—पत्थर पर रखकर चीज तोड़ने वाला
अश्मकुट्टक —वि॰—अश्मन्-कुट्टक—-—पत्थर पर रखकर चीज तोड़ने वाला
अश्मकुट्टकः —पुं॰—अश्मन्-कुट्टकः—-—भक्तों का समुदाय, वानप्रस्थ
अश्मगर्भः —पुं॰—अश्मन्-गर्भः—-—पन्ना
अश्मगर्भम् —नपुं॰—अश्मन्-गर्भम्—-—पन्ना
अश्मगर्भजः —पुं॰—अश्मन्-गर्भजः—-—पन्ना
अश्मगर्भजम् —नपुं॰—अश्मन्-गर्भजम्—-—पन्ना
अश्मयोनिः —पुं॰—अश्मन्-योनिः—-—पन्ना
अश्मजः —पुं॰—अश्मन्-जः—-—गेरू
अश्मजः —पुं॰—अश्मन्-जः—-—लोहा
अश्मजम् —नपुं॰—अश्मन्-जम्—-—गेरू
अश्मजम् —नपुं॰—अश्मन्-जम्—-—लोहा
अश्मजतु —नपुं॰—अश्मन्-जतु—-—शिलाजीत
अश्मजतुकम् —नपुं॰—अश्मन्-जतुकम्—-—शिलाजीत
अश्मजातिः —स्त्री॰—अश्मन्-जातिः—-—पन्ना
अश्मदारणः —पुं॰—अश्मन्-दारणः—-—पत्थर तोड़ने के लिए हथौड़ा
अश्मपुष्पम् —नपुं॰—अश्मन्-पुष्पम्—-—शिलाजीत
अश्मभालम् —नपुं॰—अश्मन्-भालम्—-—पत्थर की खरल या लोहे का इमामदस्ता
अश्मसार —वि॰—अश्मन्-सार—-—पत्थर या लोहे जैसा
अश्मसारः —पुं॰—अश्मन्-सारः—-—लोहा
अश्मसारः —पुं॰—अश्मन्-सारः—-—नीलमणि
अश्मसारम् —नपुं॰—अश्मन्-सारम्—-—लोहा
अश्मसारम् —नपुं॰—अश्मन्-सारम्—-—नीलमणि
अश्मन्तम् —नपुं॰—-—अस्मनो॑ऽन्तोऽत्र शकं० पररुपम्—अंगीठी,अलाव
अश्मन्तम् —नपुं॰—-—अस्मनो॑ऽन्तोऽत्र शकं० पररुपम्—खेत,मैदान
अश्मन्तम् —नपुं॰—-—अस्मनो॑ऽन्तोऽत्र शकं० पररुपम्—मृत्यु
अश्मन्तकः —पुं॰—-—अश्मानमन्तयति इति-अश्मन्+अंत्+णिच्+न्वुल्—अलाव, अंगीठी
अश्मन्तकम् —नपुं॰—-—अश्मानमन्तयति इति-अश्मन्+अंत्+णिच्+न्वुल्—अलाव, अंगीठी
अश्मन्तकः —पुं॰—-—अश्मानमन्तयति इति-अश्मन्+अंत्+णिच्+न्वुल्—एक पौधे का नाम जिसके रेशों से ब्राह्मण की तगड़ी बनाई जाती है
अश्मरी —स्त्री॰—-—अश्मानं राति इति रा+क +ङीप्—एक रोग का नाम जिसे पथरी कहते है, मूत्रकृच्छ्र
अश्रम् —नपुं॰—-—अश्नुते नेत्रम्-अश्+रक्—आँसूसम
अश्रम् —नपुं॰—-—अश्नुते नेत्रम्-अश्+रक्—रुधिर
अश्रपः —पुं॰—अश्रम्-पः—-—रुधिर पीने वाला, राक्षस,नरभक्षक
अश्रवण —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बहरा, जिसके कान न हों
अश्राद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—श्राद्ध का अनुषठान न करने वाला
अश्राद्धः —पुं॰—-—-—श्राद्ध का अनुष्ठान न करना
अश्राद्धभोजिन् —वि॰—अश्राद्ध-भोजिन्—-—जिसने श्राद्ध-अनुष्ठान में भोजन न करने का ब्रत ले लिया है
अश्रान्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—न थका हुआ,अथक
अश्रान्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनवरत,लगातार
अश्रान्तम् —अव्य॰—-—-—निरन्तर,लगातार
अश्रिः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—किनारा, कोण समास के अन्त में चतुर,त्रि,पट तथा और कुछ शब्दों के साथ वदल कर 'अस्त्र' हो जाता है
अश्रिः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—तेजधार
अश्रिः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—किसी वस्तु का तेज किनारा,धार
अश्रीः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—किनारा, कोण समास के अन्त में चतुर,त्रि,पट तथा और कुछ शब्दों के साथ वदल कर 'अस्त्र' हो जाता है
अश्रीः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—तेजधार
अश्रीः —स्त्री॰—-—अश्+कि पक्षे ङीष्—किसी वस्तु का तेज किनारा,धार
अश्रीक —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप्, रस्य लः—श्रीहीन, असुन्दर विवर्ण
अश्रीक —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप्, रस्य लः—भाग्यहीन, जो सम्पन्न न हो
अश्रील —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप्, रस्य लः—श्रीहीन, असुन्दर विवर्ण
अश्रील —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप्, रस्य लः—भाग्यहीन, जो सम्पन्न न हो
अश्रु —नपुं॰—-—अश्नुते व्याप्नोति नेवमदर्शनाय-अश्+क्रुन्—आँसू
अश्रोपहत —वि॰—अश्रु-उपहत—-—आंसुओं से ग्रस्त, आँसुओं स् ढका हुआ
अश्रुकला —स्त्री॰—अश्रु-कला—-—आँसू की बूँद, अश्रुबिंदु
अश्रुपरिपूर्ण —वि॰—अश्रु-परिपूर्ण—-—आंसओं से भरा हुआ
अश्र्यक्ष —वि॰—अश्रु-अक्ष—-—आंसुओं से भरी हुई आँखों वाला
अश्रुपरिप्लुत —वि॰—अश्रु-परिप्लुत—-—आँसुओं से भरा हुआ, अश्रुस्नात
अश्रुपातः —पुं॰—अश्रु-पातः—-—आँसू गिरना, आँसूओं का गिराना
अश्रुपूर्ण —वि॰—अश्रु-पूर्ण—-—आंसुओं से भरा हुआ
अश्र्वाकुल —वि॰—अश्रु-आकुल—-—आँसुओं से भरा हुआ तथा व्याकुल
अश्रुमुख —वि॰—अश्रु-मुख—-—आँसुओं से युक्त, अचानक आँसू गिराने वाला
अश्रुलोचन —वि॰—अश्रु-लोचन—-—आँसुओं से भरी हुई आँखों वाला, जिसकी आँखें आँसूओं से भरी हुई हों
अश्रुनेत्र —वि॰—अश्रु-नेत्र—-—आँसुओं से भरी हुई आँखों वाला, जिसकी आँखें आँसूओं से भरी हुई हों
अश्रुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—न सुना हुआ,जो सुनाई न दे
अश्रुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—मूर्ख, अशिक्षित
अश्रौत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो वेदो के द्वारा अनुमोदित न हो
अश्रेयस् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपेक्षाकृत जो उत्कृष्ट न हो, घटिया
अश्रेयस् —नपुं॰—-—-—बुराई, दुःख
अश्लील —वि॰—-—न श्रियं लाति-ला+क—भद्दा , कुरुप
अश्लील —वि॰—-—न श्रियं लाति-ला+क—ग्राम्य गन्दा, अक्खड़
अश्लील —वि॰—-—न श्रियं लाति-ला+क—अपभाषित
अश्लीलम् —नपुं॰—-—न श्रियं लाति-ला+क—देहाती या गंवारू भाषा ,गाली
अश्लीलम् —नपुं॰—-—न श्रियं लाति-ला+क—रचना का एक दोष जिसमें ऐसे शब्द प्रयुक्त किये जायँ जिनसे श्रोता के मन मे शर्म , जुगुप्सा और अमंगल की भावना पैदा हो
अश्लेषा —स्त्री॰—-—न श्लिष्यति यत्रोत्पन्नेन शिशुना , श्लिष्+घञ् तारा॰—नवाँ नक्षत्र जिसमें पाँच तारे होते है
अश्लेषा —स्त्री॰—-—न श्लिष्यति यत्रोत्पन्नेन शिशुना , श्लिष्+घञ् तारा॰—अनैक्य, वियोग
अश्लेषाजः —पुं॰—अश्लेषा-जः—-—केतुग्रह अर्थात् उतार का शिरोबिन्दु
अश्लेषाभवः —पुं॰—अश्लेषा-भवः—-—केतुग्रह अर्थात् उतार का शिरोबिन्दु
अश्लेषाभूः —पुं॰—अश्लेषा-भूः—-—केतुग्रह अर्थात् उतार का शिरोबिन्दु
अश्वः —पुं॰—-—अंश्+क्वन्—घोड़ा
अश्वः —पुं॰—-—अंश्+क्वन्—सात की संख्या का प्रकट करने वाला प्रतीक
अश्वः —पुं॰—-—अंश्+क्वन्—मनुष्यों की दौड़
अश्वौ —पुं॰—-—अंश्+क्वन्—घोड़ा और घोड़ी
अश्वाञ्जनी —स्त्री॰—अश्वः-अञ्जनी—-—हंटर
अश्वाधिकः —वि॰—अश्वः-अधिक—-—जो अश्वारोहियों मे प्रबल हो, जिसके पास घोड़ें अधिक हों
अश्वाध्यक्षः —पुं॰—अश्वः-अध्यक्षः—-—अश्वारोहियों का सेनापति
अश्वानीकम् —नपुं॰—अश्वः-अनीकम्—-—अश्वारोहियों की सेना
अश्वारि —पुं॰—अश्वः-अरिः—-—भैंसा
अश्वायुर्वेदः —पुं॰—अश्वः-आयुर्वेदः—-—अश्वचिकित्सा-विज्ञान
अश्वारोह —वि॰—अश्वः-आरोह—-—घोड़े पर चढ़ा हुआ
अश्वारोहः —वि॰—अश्वः-आरोहः—-—घुड़सवार, अश्वारोही
अश्वारोहः —पुं॰—अश्वः-आरोहः—-—घुड़सवारी
अश्वोरस् —वि॰—अश्वः-उरस्—-—घोड़े की भाँति चौड़ी छाती वाला
अश्वकर्णः —पुं॰—अश्वः-कर्णः—-—एक वृक्ष
अश्वकर्णः —पुं॰—अश्वः-कर्णः—-—घोड़े का कान
अश्वकर्णकः —पुं॰—अश्व-कर्णकः—-—एक वृक्ष
अश्वकर्णकः —पुं॰—अश्व-कर्णकः—-—घोड़े का कान
अश्वकुटी —पुं॰—अश्वः-कुटी—-—घुड़शाल
अश्वकुशल —वि॰—अश्वः-कुशल—-—घोड़े को सधाने में चतुर
अश्वकोविद —वि॰—अश्वः-कोविद्—-—घोड़े को सधाने में चतुर
अश्वखरजः —पुं॰—अश्वः-खरजः—-—खच्चर
अश्वखुरः —पुं॰—अश्वः-खुरः—-—घोड़े का सुम
अश्वगोष्ठम् —नपुं॰—अश्वः-गोष्ठम्—-—घुड़्साल ,अस्तबल
अश्वघासः —पुं॰—अश्वः-घासः—-—घोड़े की चरागाह
अश्वचलनशाला —स्त्री॰—अश्वः-चलनशाला—-—घोड़ों को घुमाने का स्थान
अश्वचिकित्सकः —पुं॰—अश्वः-चिकित्सकः—-—शालिहोत्री, पशुओं का डाक्टर
अश्ववैद्यः —पुं॰—अश्व-वैद्यः—-—शालिहोत्री, पशुओं का डाक्टर
अश्वचिकित्सा —स्त्री॰—अश्वः-चिकित्सा—-—घोड़े की चिकित्सा, पशुचिकित्साविज्ञान
अश्वजघनः —पुं॰—अश्वः-जघनः—-—नराश्व
अश्वदूतः —पुं॰—अश्वः-दूतः—-—घुड़सवार दूत
अश्वनायः —पुं॰—अश्वः-नायः—-—घोड़ो को चराने वाला ,घोड़ो का समुह
अश्वनिबन्धिक —पुं॰—अश्वः-निबन्धिकः—-—घोड़ों का साइस,घोड़ों को बांधने वाला
अश्वपः —पुं॰—अश्वः-पः—-—साइस
अश्वपालः —पुं॰—अश्वः-पालः—-—घोड़ों का साइस
अश्वपालकः —पुं॰—अश्वः-पालकः—-—घोड़ों का साइस
अश्वरक्षः —पुं॰—अश्वः-रक्षः—-—घोड़ों का साइस
अश्वबंध —पुं॰—अश्वः-बंधः—-—साइस
अश्वभा —पुं॰—अश्वः-भा—-—बिजली
अश्वमहिषिका —स्त्री॰—अश्वः-महिषिका—-—भैसे और घोड़े के वीच रहने वाली स्वाभाविक शत्रुता
अश्वमुख —वि॰—अश्वः-मुख—-—जिसका मुह घोड़े जैसा है
अश्वमुखः —पुं॰—अश्वः-मुखः—-—घोड़े के मुँह वाला पशु, किन्नर,देवदुत
अश्वमुखी —स्त्री॰—अश्वः-मुखी—-—किन्नर स्त्री
अश्वमेधः —पुं॰—अश्वः-मेधः—-—एक यज्ञ जिसमे घोड़ें की वली चड़ाई जाती है
अश्वमेधिक —वि॰—अश्वः-मेधिक—-—अश्वमेध के उपयुक्त य अश्वमेध से सम्बन्ध रखने वाला
अश्वमेधीय —वि॰—अश्वः-मेधीय—-—अश्वमेध के उपयुक्त घोड़ा
अश्वमेधिकः —पुं॰—अश्वः-मेधिकः—-—अश्वमेध के उपयुक्त घोड़ा
अश्वमेधीयः —पुं॰—अश्वः-मेधीयः—-—अश्वमेध के उपयुक्त घोड़ा
अश्वयुज् —वि॰—अश्वः-युज्—-—जिसमें घोड़े जुते हुए हों
अश्वयुज् —स्त्री॰—अश्वः-युज्—-—एक नक्षत्रपुञ्ज, अश्विनी नक्षत्र
अश्वयुज् —स्त्री॰—अश्वः-युज्—-—मेष राशि
अश्वयुज् —स्त्री॰—अश्वः-युज्—-—आश्विन मास
अश्वरक्षः —पुं॰—अश्वः-रक्षः—-—अश्वारोही या घोड़े का रखवाला, साइस
अश्वरथः —पुं॰—अश्वः-रथः—-—घोड़गाड़ी
अश्वरथा —स्त्री॰—अश्वः-रथा—-—गंधमादन पर्वत के निकट बहनेवाली एक नदी
अश्वरत्नम् —नपुं॰—अश्वः-रत्नम्—-—बढ़िया घोड़ा,या घोड़ो का स्वामी
अश्वराजः —पुं॰—अश्वः-राजः—-—बढ़िया घोड़ा,या घोड़ो का स्वामी
अश्वलाला —पुं॰—अश्वः-लाला—-—एक प्रकार का साँप
अश्ववक्त्र —नपुं॰—अश्वः-वक्त्र—-—अश्वमुख
अश्ववडवम् —नपुं॰—अश्वः-वडवम्—-—साँड घोड़ों की जोड़ी
अश्ववहः —पुं॰—अश्वः-वहः—-—अश्वारोही
अश्ववारः —पुं॰—अश्वः-वारः—-—अश्वारोही,साइस
अश्ववारकः —पुं॰—अश्वः-वारकः—-—अश्वारोही,साइस
अश्ववाहः —पुं॰—अश्वः-वाहः—-—घुड़सवार
अश्ववाहकः —पुं॰—अश्वः-वाहकः—-—घुड़सवार
अश्वविद् —वि॰—अश्वः-विद्—-—घोड़ों को सधाने में कुशल
अश्वविद् —वि॰—अश्वः-विद्—-—घोड़ों का दलाल
अश्वविद् —पुं॰—अश्वः-विद्—-—पेशेवर घुड़सवार
अश्वविद् —पुं॰—अश्वः-विद्—-—नल का विशेषण
अश्ववृषः —पुं॰—अश्वः-वृषः—-—बीजाश्व,सांडघोड़ा
अश्ववैद्यः —पुं॰—अश्वः-वैद्यः—-—घोड़ो का चिकित्सक
अश्वशाला —स्त्री॰—अश्वः-शाला—-—अस्तबल
अश्वशाबः —पुं॰—अश्वः-शाबः—-—बछेरा,बछेरी
अश्वशास्त्रम् —नपुं॰—अश्वः-शास्त्रम्—-—शालिहोत्र,पशु चिकित्सा-विज्ञान की पाठ्यपुस्तक
अश्वशृगालिका —स्त्री॰—अश्वः-शृगालिका—-—घोड़े और गीदर की स्वाभाविक शत्रुता
अश्वसादः —पुं॰—अश्वः-सादः—-—घुड़सवार,अश्वारोही अश्वसैनिक
अवसादिन् —पुं॰—अश्वः-सादिन्—-—घुड़सवार,अश्वारोही अश्वसैनिक
अश्वसारथ्यम् —नपुं॰—अश्वः-सारथ्यम्—-—कोचवानी,सारथिपना, घोड़ों और रथों का प्रबन्ध
अश्वस्थान —वि॰—अश्वः-स्थान—-—अस्तबल में उत्पन्न
अश्वस्थानम् —नपुं॰—अश्वः-स्थानम्—-—घुड़साल,तबेला
अश्वहारकः —पुं॰—अश्वः-हारकः—-—घुड़चोर, घोड़ों को चुराने वाला
अश्वहृदयम् —नपुं॰—अश्वः-हृदयम्—-—घोड़े की इच्छा
अश्वहृदयम् —नपुं॰—अश्वः-हृदयम्—-—अश्वारोहिता
अश्वक —वि॰—-—अश्व+कन्—घोड़े जैसा
अश्वकः —पुं॰—-—अश्व+कन्—छोटा घोड़ा
अश्वकः —पुं॰—-—अश्व+कन्—भाड़े का टट्टु
अश्वकः —पुं॰—-—अश्व+कन्—सामान्य घोड़ा
अश्वकिनी —स्त्री॰—-—अश्वस्य कं मुखं तत्सदृशाकारोऽस्त्यस्य इनि ङीप्-तारा॰—अस्विनी नक्षत्र
अश्वतरः —पुं॰—-—अश्व+ष्टरच्—खच्चर
अश्वत्थः —पुं॰—-—न श्वश्चिरं शाल्मलीबृक्षादिवत् तिष्ठति-स्था +क पृषो॰ तारा॰—पीपल का पेड़
अश्वत्थामन् —पुं॰—-—अश्वस्येव स्थाम् बलमस्य, पृषो॰ तु॰ महा॰-अश्वस्येवास्य यत्स्थाम नदतः प्रदिशॊगतक्म्, अश्वत्थामैव वालोऽयं तस्मान्नम्ना भविष्यति—दोण और कृपी का पुत्र, कुरुराज दुर्योधन की और से लड़ने वाला ब्राह्मण योद्धा व सेनापति
अश्वस्तन —वि॰—-—न श्वो भवः इति-श्वस्+ट्युल् तुट् च, न॰ त॰ \ श्वस्तन +ठन् च न॰ त॰—जो आगामी कल का न हों, आज का
अश्वस्तन —वि॰—-—न श्वो भवः इति-श्वस्+ट्युल् तुट् च, न॰ त॰ \ श्वस्तन +ठन् च न॰ त॰—जो आगामी कल का प्रबंध नहीं रखता
अश्वस्तनिक —वि॰—-—न श्वो भवः इति-श्वस्+ट्युल् तुट् च, न॰ त॰ \ श्वस्तन +ठन् च न॰ त॰—जो आगामी कल का न हों, आज का
अश्वस्तनिक —वि॰—-—न श्वो भवः इति-श्वस्+ट्युल् तुट् च, न॰ त॰ \ श्वस्तन +ठन् च न॰ त॰—जो आगामी कल का प्रबंध नहीं रखता है
अश्विक —वि॰—-—अश्व +ठन्—जो घोड़े से खिचा जाय
अश्विन् —पुं॰—-—अश्व+इन्—अश्वारोही,घोड़ों को सधाने वाला
अश्विनौ —पुं॰—-—अश्व+इन्—देवताओं के दो वैद्य जो कि सूर्य के द्वारा घोड़ी के रुप मे एक अप्सरा से जुड़वे पैदा हुए थे
अश्विनी —स्त्री॰—-—अश्व+इनि +ङीप्—२७ नक्षत्रों में सबसे पहला नक्षत्र
अश्विनी —स्त्री॰—-—अश्व+इनि +ङीप्—एक अप्सरा जो वाद में अश्विनीकुमारों की माता मानी जाने लगी,सूर्य पत्नी जो कि घोड़ी के रुप में छिपी हुई थी
अश्विनीकुमारौ —पुं॰—अश्विनी-कुमारौ—-—सूर्यकी पत्नी अश्विनी के यमज पुत्र
अश्विनीपुत्रौ —पुं॰—अश्विनी-पुत्रौ—-—सूर्यकी पत्नी अश्विनी के यमज पुत्र
अश्विनीसुतौ —पुं॰—अश्विनी-सुतौ—-—सूर्यकी पत्नी अश्विनी के यमज पुत्र
अश्वीय —वि॰—-—अश्व+छ—घोड़ों से संवंध रखनेवाला घोड़ों का प्रिय
अश्वीयम् —नपुं॰—-—अश्व+छ—घोड़ों का सम्मूह, अश्वारोही सेना
अशडक्षीण —वि॰—-—न सन्ति-षडक्षीणि यत्र-न॰ ब॰ ततः ख—जो छः आखों से न देखा ज सके ,जो केवल दो व्यक्तियों के द्वारा निश्चित या निर्णीत किया जाय
अशडक्षीणम् —नपुं॰—-—न सन्ति-षडक्षीणि यत्र-न॰ ब॰ ततः ख—रहस्य
अषाढः —पुं॰—-—अषाढ्या युवता पौर्णमासी आषाढी सा अस्ति यत्र मासे अण् वा हृस्वः—अषाढ़ का महीना
अष्टक —वि॰—-—अष्टन्+कन्—आठ भागों वाला , आठ तह वाला
अष्टकः —पुं॰—-—अष्टन्+कन्—जो पाणिनि निर्मित आठों अध्यायों का जान कार है, या उनका अध्ययन करता है
अष्टका —स्त्री॰—-—अष्टन्+कन्+टाप्—पूर्णिमा के पश्चात सप्तमी से आरंभ करके आने वाले तीन दिन
अष्टका —स्त्री॰—-—अष्टन्+कन्+टाप्—उन तीन महीनों की अष्टमीयं ,जवकि पितरों का तर्पण होता है
अष्टका —स्त्री॰—-—अष्टन्+कन्+टाप्—उपर्युक्त दिनों मे किया जाने वाला श्राद्ध-अनुष्ठान
अष्टकम् —नपुं॰—-—अष्टन्+कन्—आठ अवयवों की बनी कोई समूची वस्तु
अष्टकम् —नपुं॰—-—अष्टन्+कन्—पाणिनिसूत्रों के आठ अध्याय
अष्टकम् —नपुं॰—-—अष्टन्+कन्—ऋग्वेद का एक खंण्ड (ऋग्वेद ८ अषटक या दस मंडलों में विभक्त हैं)
अष्टकम् —नपुं॰—-—अष्टन्+कन्—आठ वस्तुओं का समूह=वानराष्टकम्,ताराष्टकम्, गंगाष्टकमादि
अष्टकम् —नपुं॰—-—अष्टन्+कन्—आठ की संख्या
अष्टकाङ्गम् —नपुं॰—अष्टक-अङ्गम्—-—एक प्रकार का फलक या कपड़ा जिस पर आठ खाने बने होते हैं और जो पाँसा खेलने का काम आता है
अष्टन् —सं॰ वि॰—-—अंश् +कनिन्,तुट् च —आठ, कुछ संज्ञाओं तथा संख्यावाचक शब्दों से मिलकर इसका रुप समास में ’अष्टा’ रह जाता है, उदा॰-अष्टादशन्,अष्टाविंशतिः,अष्टापद आदि
अष्टाङ्ग —वि॰—अष्टन्-अङ्ग —-—जिसके आठ खंड या अवयव हों
अष्टाङ्गम् —नपुं॰—अष्टन्-अङ्गम्—-—शरीर के आठ अंग जिनसे अति नम्र अभिवादन किया जाता है
अष्टपातः —पुं॰—अष्टन्-पातः—-—साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने वाला नम्र अभिवादन
अष्टप्रणामः —पुं॰—अष्टन्-प्रणामः—-—साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने वाला नम्र अभिवादन
साष्टाङ्गनमस्कारः —पुं॰—-—-—साष्टाङ्गनमस्कारः शरीर के आठों अंगों से किया जाने वाला नम्र अभिवादन
अष्टाङ्गम् —नपुं॰—अष्टन्-गम्—-—योगाभ्यास अर्थात मन की एकाग्रता के आठ भाग
अष्टाङ्गम् —नपुं॰—अष्टन्-गम्—-—पूजा की सामग्री,अर्ध्यम् आठ वस्तुओं का उपहार,धुपः आठ औषधि से बनी एक प्रकार की ज्वर उतारने वाली धूप ,मैथुनम् आठ प्रकार का संभोग-रस ,प्रणय की प्रगति में आथ अवस्थाएँ
अष्टार्घ्यम् —नपुं॰—अष्टन्-अर्घ्यम्—-—आठ वस्तुओं का उपहार
अष्टधूपः —पुं॰—अष्टन्-धूपः—-—आठ औषधियों से बनी एक प्रकार की ज्वर उतारनेर् वाली धूप
अष्टमैथुनम् —नपुं॰—अष्टन्-मैथुनम्—-—आठ प्रकार का संभोग-रस, प्रणय की प्रगति में आठ अवस्थाएँ
अष्टाध्यायी —स्त्री॰—अष्टन्-अध्यायी—-—पाणिनि मुनि का वनाया व्याकरणग्रन्थ जिसमें आठ अध्याय हैं
अष्टास्त्रम् —नपुं॰—अष्टन्-अस्त्रम्—-—अष्टकोण
अष्टास्त्रिय —वि॰—अष्टन्-अस्त्रिय—-—अष्टकोणीय
अष्टनाह —वि॰—अष्टन्-अह—-—आठदिन तक होने वाला
अष्टाहन् —वि॰—अष्टन्-अहन्—-—आठदिन तक होने वाला
अष्टकर्ण —वि॰—अष्टन्-कर्ण—-—आठ कानों वाला
अष्टकर्णः —पुं॰—अष्टन्-कर्णः—-—ब्रह्मा की उपाधि
अष्टकर्मन् —पुं॰—अष्टन्-कर्मन्—-—राजा जिसने अपने आठ कर्तव्य पूरे करने हैं
अष्टगतिकः —पुं॰—अष्टन्-गतिकः—-—राजा जिसने अपने आठ कर्तव्य पूरे करने हैं
अष्टकृत्वस् —अव्य॰—अष्टन्-कृत्वस्—-—आठ वार
अष्टकोणः —पुं॰—अष्टन्-कोणः—-—आठ कोण वाला, अठपहल
अष्टगवम् —नपुं॰—अष्टन्-गवम्—-—आठ गौओं का लहँडा
अष्टगुण —वि॰—अष्टन्-गुण—-—आठ तह वाला
अष्टगुणम् —नपुं॰—अष्टन्-गुणम्—-—वह आठ गुण जो व्राह्मणमें अवश्य पाये जाने चाहिए
अष्टनाश्रयः —वि॰—अष्टन्-आश्रय—-—इन आठ गुणों से युक्त
अष्टनाष्टचत्वारिंशत् —वि॰—अष्टन्-अष्ट-चत्वारिंशत्—-—अड़तालीस
अष्टनाष्टाचत्वारिंशत् —वि॰—अष्टन्-अष्टा-चत्वारिंशत्—-—अड़तालीस
अष्टतय —वि॰—अष्टन्-तय—-—आठ तहों वाला
अष्टत्रिंशत् —वि॰—अष्टन्-त्रिंशत्—-—अड़तीस
अष्टात्रिंशत् —वि॰—अष्टा-त्रिंशत्—-—अड़तीस
अष्टत्रिकम् —नपुं॰—अष्टन्-त्रिकम्—-—चौबीस
अष्टदलम् —नपुं॰—अष्टन्-दलम्—-—आठ पंखड़ियों वाला कमल
अष्टदलम् —नपुं॰—अष्टन्-दलम्—-—अठकोन
अष्टादशन् —वि॰—अष्टन्-दशन्—-—अठारह
अष्टदिश् —स्त्री॰—अष्टन्-दिश्—-—आठ दिग्बिन्दु्
अष्टकरिण्यः —स्त्री॰—अष्टन्-करिण्यः—-—आठ दिग्बिन्दुओं पर स्थित आठ हथिनियाँ
अष्टपालाः —पुं॰—अष्टन्-पालाः—-—आठ दिग्बिन्दुओं पर स्थित आठ दिशापाल
अष्टगजाः —पुं॰—अष्टन्-गजाः—-—आठ दिशाओं की रक्षा करने वाले आठ हाथी
अष्टधातुः —पुं॰—अष्टन्-धातुः—-—आठ धातुओं का समुदाय
अष्टपद —वि॰—अष्टन्-पद—-—आठ पैरों वाला
अष्टपद —वि॰—अष्टन्-पद—-—कथा में वर्णित शरम नाम का जन्तु
अष्टपद —वि॰—अष्टन्-पद—-—सिटकिनी
अष्टपद —वि॰—अष्टन्-पद—-—कैलास पर्वत
अष्टपद् —वि॰—अष्टन्-पद्—-—आठ पैरों वाला
अष्टपद् —वि॰—अष्टन्-पद्—-—कथा में वर्णित शरम नाम का जन्तु
अष्टपद् —वि॰—अष्टन्-पद्—-—सिटकिनी
अष्टपद् —पुं॰—अष्टन्-पद्—-—कैलास पर्वत
अष्टपदः —पुं॰—अष्टन्-पदः—-—सोना
अष्टपदः —पुं॰—अष्टन्-पदः—-—पासा खेलने के लिएबिसात या एक फलक,फट्टा
अष्टपदम् —नपुं॰—अष्टन्-पदम्—-—सोना
अष्टपदम् —नपुं॰—अष्टन्-पदम्—-—पासा खेलने के लिएबिसात या एक फलक,फट्टा
अष्टपत्रम् —नपुं॰—अष्टन्-पत्रम्—-—सोने की पट्टी
अष्टमङ्गलः —पुं॰—अष्टन्-मङ्गलः—-—एक घोड़ा जिसका मुंह,पूँछ, अय़ाल, छाती तथा सुम सफेद हो
अष्टमङ्गलम् —नपुं॰—अष्टन्-मङ्गलम्—-—आठ सौभाग्यसूचक वस्तुओं का संग्रह
अष्टमानम् —नपुं॰—अष्टन्-मानम्—-—एक ’कुडव’ नामक माप
अष्टमासिक —वि॰—अष्टन्-मासिक—-—आथ महीनों में एक वार होने वाला
अष्टमूर्तिः —स्त्री॰—अष्टन्-मूर्तिः—-—अष्टरूप,शिव का विशेषण-आठ रुप हैं-पाँच तत्व
अष्टधरः —पुं॰—अष्टन्-धरः—-—आठ रूपोंवाला, शिव
अष्टरत्नम् —नपुं॰—अष्टन्-रत्नम्—-—समष्टि रूप से ग्रहण किये गये आठ रत्न
अष्टरसाः —पुं॰—अष्टन्-रसाः—-—नाटकों में प्रयुक्त आठ रस
अष्टाश्रय —वि॰—अष्टन्-आश्रय—-—आठ रसों से सम्पन्न , या आठ रसों को प्रदर्शित करने वाला
अष्टविधि —वि॰—अष्टन्-विधि—-—आठ तह वाला, या आठ प्रकार का
अष्टविङ्शतिः —स्त्री॰ —अष्टन्-विङ्शतिः—-—अठाईस
अष्टश्रवणः —पुं॰—अष्टन्-श्रवणः—-—ब्रह्मा
अष्टश्रवस् —पुं॰—अष्टन्-श्रवस्—-—ब्रह्मा
अष्टतय —वि॰—-—अष्टन्+तयप्—आटठ खंड या आठ अंगों वाला
अष्टतयम् —नपुं॰—-—अष्टन्+तयप्—सब मिलाकर आठ वाला
अष्टधा —अव्य॰—-— —आठ तह वाला, आठ वार
अष्टधा —अव्य॰—-—-—आठ भागों या अनुभागों में
अष्टम —वि॰—-—अष्टन्+डट् मट् च—आठवां
अष्टमः —पुं॰—-—अष्टन्+डट् मट् च—आठवाँ भाग
अष्टमी —स्त्री॰ —-—अष्टन्+डट् मट् च, ङीप्—चान्द्रमास के दोनों पक्षों का आठवां दिन
अष्टमाङ्शः —पुं॰—अष्टम-अङ्शः—-—आठवाँ भाग
अष्टमकालिक —वि॰—अष्टम-कालिक—-—जो व्यक्ति सात समय भोजन न करके आठवें समय पर ही भोजन ग्रहण करता है
अष्टमक —वि॰—-—अष्टम्+कन्—आठवाँ
अष्टमिका —स्त्री॰ —-—अष्टम्+क्न् हृस्वः ,टाप्—चार तोले का वजन
अष्टादशन् —वि॰—-—अष्ट च दश च —अठारह
अष्टादशनोपपुराणम् —नपुं॰—अष्टादशन्-उपपुराणम्—-—गौण या छोटे पुराण
अष्टादशपुराणम् —नपुं॰—अष्टादशन्-पुराणम्—-—अठारह पुराण,
अष्टादशविवादपदम् —नपुं॰—अष्टादशन्-विवादपदम्—-—मुकदमेबाजी के अठारह विषय
अष्टिः —स्त्री॰ —-—अस्+क्तिन् पृषो॰ पत्वम्—खेल का पासा
अष्टिः —स्त्री॰ —-—अस्+क्तिन् पृषो॰ पत्वम्—सोलह की संख्या
अष्टिः —स्त्री॰ —-—अस्+क्तिन् पृषो॰ पत्वम्—बीज
अष्टिः —स्त्री॰ —-—अस्+क्तिन् पृषो॰ पत्वम्—गुठली
अष्ठीला —पुं॰—-—अष्ठिस्तत्तुल्यकठिनाश्मानं राति-रा+क रस्य लः दीर्घः-तारा॰—गोल मटोल शरीर
अष्ठीला —पुं॰—-—अष्ठिस्तत्तुल्यकठिनाश्मानं राति-रा+क रस्य लः दीर्घः-तारा॰—गोल कंकरी या पत्थर
अष्ठीला —पुं॰—-—अष्ठिस्तत्तुल्यकठिनाश्मानं राति-रा+क रस्य लः दीर्घः-तारा॰—गिरी,गुठली
अष्ठीला —पुं॰—-—अष्ठिस्तत्तुल्यकठिनाश्मानं राति-रा+क रस्य लः दीर्घः-तारा॰—बीज का अनाज
अस् —अदा॰ पर॰—-—अस्ति आसीत् , अस्तु, स्यात्-आर्धधातुक लकारों में सदोष रूपरचना-अर्थात् भू धातु से—होना,रहना,विद्यमान होना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—संवंध रखना,अधिकार में करना(अधिकर्ता में संवं०)=यन्ममास्तिहरस्व तत्-पंच०४।७६,=यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा-५।७०,
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—भागी होना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—उदय होना घटित होना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—नेतृत्व करना, हो जाना, प्रमाणित होना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—पर्याप्त होना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—ठहरना, बसना, रहना, बसना, आवास करना
अस् —अदा॰ पर॰—-—-—विशेष संबंध रखना, प्रभावित होना
अस्तु —अव्य॰—-—-—अच्छा, होने दो
एवमस्तु —अव्य॰—-—-—ऐसा ही होवे, स्वस्ति, अध्युक्त पूर्ण भूतकालिक क्रिया का रुप बनाने के लिये धातु से पूर्व जोड़ा जाने वाला आस कई बार धातु से पृथक करके लिखा जाता है
तथास्तु —अव्य॰—-—-—ऐसा ही होवे, स्वस्ति, अध्युक्त पूर्ण भूतकालिक क्रिया का रुप बनाने के लिये धातु से पूर्व जोड़ा जाने वाला आस कई बार धातु से पृथक करके लिखा जाता है
अत्यस —अदा॰ पर॰—अति-अस्—-—समाप्त होना,श्रेष्ठ होना,बढ़ चढ़ कर होना
अभ्यस —अदा॰ पर॰—अभि-अस्—-—संबंध रखना, अपने भाग का हिस्सेदार बनना
आविरस् —अदा॰ पर॰—आविस्-अस्—-—निकलना, उभरना, दिखाई देन
प्रादुरस् —अदा॰ पर॰—प्रादुस्-अस्—-—प्रकट होना, ऊपर को उभरना
व्यत्यस् —आ॰ <व्यतिहे>, <व्यतिसे>, <व्यतिस्ते>—व्यति-अस्—-—बढ़ जाना , बढ़ चढ़ कर होना, श्रेष्ठ या बढिया होना, मात कर देना
अस् —दिवा॰ पर॰—-—अस्यति,अस्त—फेंकना, छोड़ना, जोर से फेंकना, दागना, निशाना लगाना
अस् —दिवा॰ पर॰—-—-—फेंकना, ले जाना, जाने देना, छोड़ना, छोड़ देना, जैसा कि 'अस्तमान', 'अस्तशोक', और 'अस्तकोप' में
अत्यस् —दिवा॰ पर॰—अति-अस्—-—निशाने से परे फेंकना, हावी होना
अत्यस्त —वि॰,द्वि॰ त॰ स॰—-—-—दूर परे निशाना लगाकर, बढ़ चढ़ कर
अध्यस् —दिवा॰ पर॰—अधि-अस्—-—एक के उपर दुसरे वस्तु रखना
अध्यस् —दिवा॰ पर॰—अधि-अस्—-—जोड़ना
अध्यस् —दिवा॰ पर॰—अधि-अस्—-—एक वस्तु की प्रकृति को दुसरी में घटाना
अपास —दिवा॰ पर॰—अप्-अस्—-—फेंक देना ,दूर करना,छोड़ना, त्याग देना,रद्दी में डालना, अस्वीकार करना, अस्वीकृत, निराकृत
अपास —दिवा॰ पर॰—अप्-अस्—-—हांक कर दूर कर देना, तितर वितर करना
अभ्यस —दिवा॰ पर॰—अभि-अस्—-—अभ्यास करना, मश्क करना
अभ्यस —दिवा॰ पर॰—अभि-अस्—-—किसी कार्य को बार-बार करना, दोहराना
अभ्यस —दिवा॰ पर॰—अभि-अस्—-—अध्ययन करना ,सस्वर पड़ना, पड़ना
उदस् —दिवा॰ पर॰—उद्-अस्—-—उठाना, ऊपर करना, सीधा करना
उदस् —दिवा॰ पर॰—उद्-अस्—-—मुड़ जाना
उदस् —दिवा॰ पर॰—उद्-अस्—-—निकाल देना, वाहर कर देना
उपन्यस् —दिवा॰ पर॰—उपनि-अस्—-—निकट रखना, धरोहर रखना
उपन्यस् —दिवा॰ पर॰—उपनि-अस्—-—कहना, संकेत करना,सुझाव देना, प्रस्तुत करना
उपन्यस् —दिवा॰ पर॰—उपनि-अस्—-—सिद्ध करना
उपन्यस् —दिवा॰ पर॰—उपनि-अस्—-—किसी की देख रेख में देना , सुपुर्द करना
उपन्यस् —दिवा॰ पर॰—उपनि-अस्—-—सविवरण वर्णन करना
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—उपक्रम करना, रखना, नीचे फेंकना
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—एक ओर रखना, छोड़ना, त्यागना,परित्याग करना, तिलांजलि देना
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—अन्दर रखना, किसी वस्तु पर रखना (अधि० के साथ)
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—सौंपना, हवाले करना, देखरेख में रखना
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—देना, प्रदान करना, वितरण करना
न्यस् —दिवा॰ पर॰—नि-अस्—-—कहना, सामने रखना, प्रस्तुत करना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—निकाल फेंकना, फेंक देना, छोड़ना, छोड़देना, वापिस मोड़ देना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—नष्ट करना, दूर करना, हराना, मारना, मिटाना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—निकालना, निष्कासन, निर्वासित करना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—बाहर फेंकना,छोड़ना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—अस्वीकार करना, निराकरण करना
निरस् —दिवा॰ पर॰—निस्-अस्—-—ग्रहण लगना,छिप जाना,पृष्ठभूमि में गिर पड़ना
परास —दिवा॰ पर॰—परा-अस्—-—छोड़ना,त्यागना, त्याग देना,छोड़ देना
परास —दिवा॰ पर॰—परा-अस्—-—निकाल देना
परास —दिवा॰ पर॰—परा-अस्—-—अस्वीकार करना,निराकरण करना,प्रत्याख्यान करना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—चारों ओर फेंकना, सब ओर फैलाना,प्रसार करना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—फैला देना,घेरना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—मोड़ लेना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—गिराना, नीचे फेंकना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—उलट देना,पलट देना
पर्यस —दिवा॰ पर॰—परि-अस्—-—बाहर फेंकना
परिन्यस् —दिवा॰ पर॰—परिनि-अस्—-—फैलाना ,बिछाना
पर्युदस् —दिवा॰ पर॰—पर्युद्-अस्—-—अस्वीकार करना निकाल देना
पर्युदस् —दिवा॰ पर॰—पर्युद्-अस्—-—निषेध करना, आक्षेप करना
प्रास् —दिवा॰ पर॰—प्र-अस्—-—फेंकना, फेंक देना, उछाल देना
व्यस् —दिवा॰ पर॰—वि-अस्—-—उछालना,बखेरना, अलग-अलग फेंकना, फाड़ देना, नष्ट करना
व्यस् —दिवा॰ पर॰—वि-अस्—-—खण्डोंमें बिभक्त करना पृथक२ करना, क्रम से रखना
व्यस् —दिवा॰ पर॰—वि-अस्—-—अलग-अलग लेना, एक-एक करके लेना
व्यस् —दिवा॰ पर॰—वि-अस्—-—उलट देना,पलटदेना
व्यस् —दिवा॰ पर॰—वि-अस्—-—निकाल देना, हटा देना
विन्यस् —दिवा॰ पर॰—विनि-अस्—-—रखना,जमा करना, रख देना
विन्यस् —दिवा॰ पर॰—विनि-अस्—-—जमा देना, किसी की और निर्देश करना
विन्यस् —दिवा॰ पर॰—विनि-अस्—-—सौपना, दे देना, सुपुर्द कर देना, किसी के जिम्मे कर देना
विन्यस् —दिवा॰ पर॰—विनि-अस्—-—क्रम में रखना, सवारना
विपर्यस् —दिवा॰ पर॰—विपरि-अस्—-—उलट देना, पलट दीना, औंधा कर देना
विपर्यस् —दिवा॰ पर॰—विपरि-अस्—-—बदलना, परिवर्तन करना
विपर्यस् —दिवा॰ पर॰—विपरि-अस्—-—भ्रमग्रस्त होना, गलत समझना
विपर्यस् —दिवा॰ पर॰—विपरि-अस्—-—परिवर्तित होना
समास —दिवा॰ पर॰—सम्-अस्—-—मिलाना,एकत्र करना,मिलाना, जोड़ देना
समास —दिवा॰ पर॰—सम्-अस्—-—समास में जोड़ देना, समासकरना
समास —दिवा॰ पर॰—सम्-अस्—-—सामुदायिक रुप से ग्रहण करना
संन्यस् —दिवा॰ पर॰—सनि-अस्—-—रखना,सामने लाना, जमा करना
संन्यस् —दिवा॰ पर॰—सनि-अस्—-—एक ओर रखना,छोड़ना, त्यागना, छोड़ देना
संन्यस् —दिवा॰ पर॰—सनि-अस्—-—दे देना, सौपना, सुपुर्द करना, हवाले करना
संन्यस् —दिवा॰ पर॰—सनि-अस्—-—संसार को त्यागना, सांसारिक बंधन तथा सब प्रकार की आसक्तियॊं को त्याग कर विरक्त हो जाना
अस् —भ्वा॰ उभ॰—-—<असति>, <असिते>, <असित>—जाना
अस् —भ्वा॰ उभ॰—-—-—लेना,ग्रहण करना,पकड़ना
असंयत —वि॰,न॰ त॰—-—-—संयमरहित, अनियंत्रित
असंयत —वि॰,न॰ त॰—-—-—बंधनहीन,जैसे
असंयमः —पुं॰—-—-—संयम हीनता,नियन्त्रण का अभाव,विशेषतः ज्ञानेन्द्रियों के ऊपर
असंव्यवहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—व्यवधान रहित,अवकाश रहित
असंशय —वि॰,न॰ ब—-—-—संदेह से मुक्त, निश्चयवान्
असंशयम् —अव्य॰—-—-—निस्सन्देह, असन्दिग्धरूप से, निश्चय ही
असंश्रव —वि॰,न॰ ब—-—-—जो सुनने से बाहर हो, जो सुनाई न दे
असंश्रवे —पुं॰—-—-—सुनने के क्षेत्र से बाहर
असंसृष्ट —वि॰,न॰ ब—-—-—अमिश्रित,अयुक्त
असंसृष्ट —वि॰,न॰ ब—-—-—जो सबके साथ मिल कर न रहता हो, संपत्ति का बटवारा होने के पश्चात् जो फिर न मिला हो
असंस्कृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—संस्कारहीन, अपरिष्कृत,अपरिमार्जित
असंस्कृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सवारा न ग्या हो, सजाया न गया हो
असंस्कृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसका कोई शोधनात्मक या परिष्कारात्मक संस्कार न हुआ हो
असंस्कृतः —पुं॰—-—-—व्याकरण विरुद्ध,अपशब्द
असंस्तुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अज्ञात, अनजाना, अपरिचित
असंस्तुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—असाधारण,विचित्र
असंस्तुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—सामंजस्य रहित
असंस्थानम् —नपुं॰—-—-—संसक्ति का अभाव
असंस्थानम् —नपुं॰—-—-—अव्यवस्था,गड़बड़
असंस्थानम् —नपुं॰—-—-—कमी ,दरिद्रता
असंस्थित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अव्यवस्थित,क्रमरहित
असंस्थित —वि॰,न॰ त॰—-—-—असंगृहीत
असंस्थितिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—अव्यवस्था
असंस्थितिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—गड़बड़
असंहत —वि॰,न॰ त॰—-—-—न जुड़ा हुआ , असंयुक्त, बिखरा हुआ
असंहतः —पुं॰—-—-—पुरूष या आत्मा
असकृत् —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—एक बार नहीं, बार-बार,वहुधा
असकृतसमाधिः —स्त्री॰—असकृत-समाधिः—-—बारबार चिंतन ,मनन
असकृतगर्भवासः —पुं॰—असकृत-गर्भवासः—-—बारबार जन्म
असक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनासक्त, वेल्गाव,उदासीन
असक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—न फँसा हुआ
असक्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—सांसारिक भावनाओं तथा संवंधो के प्रति अनासक्त
असक्तम् —अव्य॰—-—-—अनासक्तिपूर्वक
असक्तम् —अव्य॰—-—-—अनवरत, बिना रूके
असकथ —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जंघारहित
असखिः —पुं॰—-—-—शत्रु,विरोधी
असगोत्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो एक ही गोत्र या कुलका न हो
असङ्कुल —वि॰,न॰ त॰—-—-—जहाँ भीड़-भ्ड़क्का न हो, खुला हुआ, चौड़ा
असङ्कुलः —पुं॰—-—-—चौड़ी सड़क
असङ्ख्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—गिनती से परे, गणनारहित,अनगिनत
असङ्ख्यता —वि॰,न॰ ब॰—असङ्ख्य-ता—-—अनंतता
असङ्ख्यत्वम् —वि॰,न॰ ब॰—असङ्ख्य-त्वम्—-—अनंतता
असङ्ख्यात —वि॰,न॰ त॰—-—-—गणनारहित,अनगिनत
असङ्ख्येय —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनगिनत
असङ्ख्येयः —पुं॰—-—-—शिव की उपाधि
असङ्ग —वि॰—-—-—अनासक्त,संसारिक व्बंधनों से मुक्त
असङ्ग —वि॰—-—-—बाधारहित,निर्बाध, अकुण्ठित
असङ्ग —वि॰—-—-—असंयुक्त अकेला निर्लिप्त
असङ्गः —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अनासक्ति
असङ्गः —वि॰,न॰ ब॰—-—-—पुरूष या आत्मा
असङ्गत —वि॰,न॰ त॰—-—-—न जुड़ा हुआ,न मिला हुआ
असङ्गत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनुचित ,बेमेल
असङ्गत —वि॰,न॰ त॰—-—-—उजड्ड,अशिष्ट,अपरिष्कृत
असङ्गतिः —वि॰,न॰ त॰—-—-—मेल का होना
असङ्गतिः —वि॰,न॰ त॰—-—-—असंबद्धता,अनौचित्य
असङ्गतिः —वि॰,न॰ त॰—-—-—एक अलंकार जिसमें कार्य और कारण की स्थानीय अनुकूलता न पाई जाय-जहाँ कारण और कार्य के प्रतीयमान संबंध का उल्लंघन हो
असङ्गम —वि॰,न॰ ब॰—-—-—न मिला हुआ
असङ्गमः —वि॰,न॰ ब॰—-—-—वियोग,अलगाव
असङ्गमः —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असंबद्धता
असङ्गिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—न मिला हुआ,असंबद्ध
असङ्गिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—संसारिक विषयों में अनासक्त
असंज्ञ —वि॰,न॰ ब॰—-—-—संज्ञाहीन
असंज्ञा —पुं॰—-—-—वियोग,असहमति,असामंजस्य
असत् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविद्यमान जिसका अस्तित्व न हो
असत् —वि॰,न॰ त॰—-—-—सत्ताहीन, अवास्तविक
असत् —वि॰,न॰ त॰—-—-—दुष्ट,पापी,निद्य जैसे विचार
असत् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अव्यक्त
असत् —वि॰,न॰ त॰—-—-—गलत,अनुचित,मिथ्या,असत्य
असत् —नपुं॰—-—-—अनस्तित्व,असत्ता
असत् —नपुं॰—-—-—झुठ,मिथ्यात्व
असती —स्त्री॰—-—-—दुश्चरित्रा स्त्री
असतध्येतृ —पुं॰—असत्-अध्येतृ—-—वह ब्राह्मण जो पाखंडयुक्त रचनाओं को पढ़्ता हैं,जो अपनी वेदशाखा की उपेक्षा करके दुसरी शाखा का अध्यन करता हैं शाखारंड कहलाता है
असतागमः —पुं॰—असत्-आगमः—-—धर्मविरुद्ध शास्त्र या सिद्धान्त
असतागमः —पुं॰—असत्-आगमः—-—अनुचित साधनों से धन की प्राप्ति
असतागमः —पुं॰—असत्-आगमः—-—बुरा साधन
असताचार —वि॰—असत्-आचार—-—दुराचारी,बुरा आचरण करने वाला, दुष्ट
असताचारः —पुं॰—असत्-आचारः—-—अशिष्ट-आचरण
असत्कर्म —नपुं॰—असत्-कर्मन्—-—बुरा काम
असत्कर्म —नपुं॰—असत्-कर्मन्—-—बुरा व्यवहार
असत्क्रिया —स्त्री॰—असत्-क्रिया—-—बुरा काम
असत्क्रिया —स्त्री॰—असत्-क्रिया—-—बुरा व्यवहार
असत्कल्पना —स्त्री॰—असत्-कल्पना—-—गलत कार्य
असत्कल्पना —स्त्री॰—असत्-कल्पना—-—मिथ्या प्रपंच
असत्ग्रहः —पुं॰—असत्-ग्रहः—-—बुरा दाँव
असत्ग्रहः —पुं॰—असत्-ग्रहः—-—बुरी राय,पक्षपात
असत्ग्रहः —पुं॰—असत्-ग्रहः—-—बच्चों जैसी इच्छा
असत्ग्राहः —पुं॰—असत्-ग्राहः—-—बुरा दाँव
असत्ग्राहः —पुं॰—असत्-ग्राहः—-—बुरी राय,पक्षपात
असत्ग्राहः —पुं॰—असत्-ग्राहः—-—बच्चों जैसी इच्छा
असच्चेष्टितम —नपुं॰—असत्-चेष्टितम्—-—क्षति,आघात
असत्दृश् —वि॰—असत्-दृश्—-—बुरी दृष्टि वाला
असत्पथः —पुं॰—असत्-पथः—-—बुरा मार्ग
असत्पथः —पुं॰—असत्-पथः—-—अनिष्ट-आचरण या सिद्धान्त
असत्परिग्रहः —पुं॰—असत्-परिग्रहः—-—बुरे मार्ग को ग्रहण करना
असत्परिग्रहः —पुं॰—असत्-प्रतिग्रहः—-—बुरी वस्तुओं का उपहार,
असत्परिग्रहः —पुं॰—असत्-प्रतिग्रहः—-—अनुपयुक्त उपहार ग्रहण करना या अनुचित व्यक्तियों से लेना
असत्भावः —पुं॰—असत्-भावः—-—अनस्तित्व,अभाव
असत्भावः —पुं॰—असत्-भावः—-—बुरी राय या दुर्गति
असत्भावः —पुं॰—असत्-भावः—-—अहितकर स्वभाव
असत्वृत्ति —वि॰—असत्-वृत्ति—-—अनिष्टकर आचरण करने वाला,दृष्ट
असत्व्यवहार —वि॰—असत्-व्यवहार—-—अनिष्टकर आचरण करने वाला,दृष्ट
असत्तिः —स्त्री॰—असत्-त्तिः—-—नीच या अपमानजनक पेशा
असत्तिः —स्त्री॰—असत्-त्तिः—-—दुष्टता
असत्शास्त्रम् —नपुं॰—असत्-शास्त्रम्—-—गलत सिद्धान्त
असत्शास्त्रम् —नपुं॰—असत्-शास्त्रम्—-—धर्मविरुद्ध सिद्धान्त
असत्संसर्गः —पुं॰—असत्-संसर्गः—-—बुरी संगति
असत्हेतुः —पुं॰—असत्-हेतुः—-—बुरा या आभासी कारण
असतायी —स्त्री॰—-—-—दुष्टता
असत्त्व —वि॰,न॰ ब॰—-—-—शक्तिहीन,सत्तरहित
असत्त्व —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसके पास कोई पशु न हो
असत्वम् —नपुं॰—-—-—अनस्तित्व
असत्वम् —नपुं॰—-—-—अवास्तविकता,असत्यता
असत्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—झुठ,मिथ्या
असत्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—काल्पनिक,अवास्तविक
असत्यम् —नपुं॰—-—-—मिथ्यात्व,झुठ बोलना,झुठ
असत्यवादिन् —वि॰—असत्य-वादिन्—-—झुठ बोलने वाला
असत्यसन्ध —वि॰—असत्य-सन्ध—-—अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ न रखने वाला ,झुठा, कमीना,धोखेबाज
असदृश —वि॰—-—-—असमान बेमेल
असदृश —वि॰—-—-—अयोग्य,अनुपयुक्त,असंबद्ध
असद्यस् —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—तुरन्त नहीं, देरी करके
असनम् —नपुं॰—-—अस्+ल्युट्—फेंकना,दागना,चलाना, जैसा कि 'इष्वसन' धनुष में
असनमनः —पुं॰—-—-—पीतसाल नाम का वृक्ष
असन्दिग्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसमें सन्देह न हो ,स्पष्ट,साफ
असन्दिग्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—निश्चित,शंकारहित
असन्दिग्धम् —अव्य॰—-—-—निश्चय ही,निस्संदेह
असन्धि —वि॰—-—-—जिनका जोड़ न हुआ हो
असन्धि —वि॰—-—-—बंधनरहित,अबद्ध,स्वतन्त्र
असन्धिः —पुं॰—-—-—संधि का अभाव
असन्नद्ध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित न हो
असन्नद्ध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—धूर्त,घमंडी,पंडितंमन्य
असन्निकर्षः —पुं॰—-—-—पदार्थो का दृष्टिगोचर न होना,मन को वस्तुओं का बोध न होना्
असन्निकर्षः —पुं॰—-—-—दूरी
असन्निवृत्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—वापिस न मुड़ना
असपिण्ड —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पिंडदान से संबद्ध न हो ,जो रुधिर-संबन्ध से संयुक्त न हो ,जो अपने वंश या कुल का न हो
असभ्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—सभा में बैठने के अयोग्य, गँवार, नीच, अश्लील, अशिष्ट
असम —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो बराबर न हो, विषम
असम —वि॰,न॰ त॰—-—-—असदृश,बेजोड़,अनूठा
असमेषुः —पुं॰—असम-इषुः—-—विषम संख्या के तीरों को धारण करने वाला, कामदेव जिसके पांच वाण हैं
असमबाणः —पुं॰—असम-बाणः—-—विषम संख्या के तीरों को धारण करने वाला, कामदेव जिसके पांच वाण हैं
असमसायकः —पुं॰—असम-सायकः—-—विषम संख्या के तीरों को धारण करने वाला, कामदेव जिसके पांच वाण हैं
असमनयन —वि॰—असम-नयन—-—विषम संख्या की आँखों वाला , शिव जिसके तीन आँखें हैं
असमनेत्र —वि॰—असम-नेत्र—-—विषम संख्या की आँखों वाला , शिव जिसके तीन आँखें हैं
असमलोचन —वि॰—असम-लोचन—-—विषम संख्या की आँखों वाला , शिव जिसके तीन आँखें हैं
असमञ्जस् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अस्पष्ट,जो बोधगम्यन हो
असमञ्जस् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अयुक्त,अनुचित
असमञ्जस् —वि॰,न॰ त॰—-—-—बेतुका, निरर्थक ,मूर्खतापूर्ण
असमवायिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो घनिष्ट या अन्तऱित न हो ,आनुषंगिक,विच्छेद्य
असमवायिकारणम् —वि॰,न॰ त॰—असमवायि-कारणम्—-—आनुषांगिक कारण,अन्तहित या घनिष्ठ संबन्ध न होना
असमस्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपूर्ण, आंशिक, अधुरा
असमस्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—समास से युक्त न हो, जिसमें समास न हुआ हो
असमस्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—पृथक,वियुक्त,असंबद्ध
असमस्तम् —नपुं॰—-—-—बिना समास की रचना
असमाप्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो अभी पूरा न हुआ हो,अधूरा रहा हुआ
असमाप्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पूरी तरह ग्रहण न किया गया हो,अपूर्ण
असमीक्ष्य —अव्य॰—-—-—बिना भली भाँति विचार किये
असमीक्ष्यकारिन् —वि॰—असमीक्ष्य-कारिन्—-—बिना विचारे काम करने वाला,अविवेकी,असावधान
असम्पत्ति —वि॰,न॰ ब॰—-—-—दरिद्र,दुःखी
असम्पत्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—दुर्भाग्य
असम्पत्तिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—कार्य का पूरा न होना,असफलता
असम्पूर्ण —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पूरा न हो,अधूरा
असम्पूर्ण —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सारा न हो
असम्पूर्ण —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपूर्ण,आंशिक-जैसा कि चाँद
असम्बद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो मुड़ा हुआ न हो,असंगत
असम्बद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—निरर्थक,बेतुका,अर्थहीन
असम्बद्धालापिन् —वि॰—असम्बद्ध-आलापिन्—-—निरर्थक बातें करने वाला, बेहूदा व्यक्ति
असम्बद्धप्रलापिन् —वि॰—असम्बद्ध-प्रलापिन्—-—निरर्थक बातें करने वाला, बेहूदा व्यक्ति
असम्बद्ध —वि॰—-—-—अनुचित, गलत
असम्बद्धम् —नपुं॰—-—-—बेतुका वाक्य,निरर्थक या अर्थहीन भाषण जैसे कोई कहे
असम्बन्ध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका कोई सम्बन्ध न हो,किसी से सम्बन्ध न रखने वाला
असम्बन्धः —पुं॰—-—-—सम्बन्ध का न होना,संबन्ध का अभाव-यद्वा साध्यवदन्यस्मिन्नसंबन्ध उदाहृतः
असम्बाध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो संकीर्ण न हो,विस्तृत
असम्बाध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जहाँ लोगों की भींड़-भाड़ न हो,अकेला,एकान्त
असम्बाध —वि॰,न॰ ब॰—-—-—खुला हुआ,सुगम
असम्भव —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो संभव न हो,असंभाव्य
असम्भवः —पुं॰—-—-—अनस्तित्व
असम्भवः —पुं॰—-—-—असंभाव्यता
असम्भवः —पुं॰—-—-—असंभावना
असम्भव्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अशक्य
असम्भव्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अबोध्य
असम्भाविन् —वि॰—-—-—अबोध्य
असम्भावना —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—समझने की कठिनाई या अशक्यता,असंभाव्यता
असम्भृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो कृत्रिम उपायों से प्रकाशित न किया गया हो,अकृत्रिम,प्राकृतिक
असम्भृत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो भली-भाँति पाला पोसा न गया हो
असम्मत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अननुमोदित,अननुज्ञात,अस्वीकृत
असम्मत —वि॰,न॰ त॰—-—-—नापसंद,अरुचिकर
असम्मत —वि॰,न॰ त॰—-—-—असहमत,भिन्न मत रखने वाला
असम्मतादायिन् —वि॰—असम्मत-आदायिन्—-—स्वामी की स्वीकृति के बिना उसकी चीज उठा ले जाने वाला,चोर
असम्मतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—विमति,असहमति
असम्मतिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अस्वीकृति,नापसंदगी
असम्मोहः —पुं॰—-—-—मोह का अभाव
असम्मोहः —पुं॰—-—-—अचलता,स्थैर्य,शान्तचित्तता
असम्मोहः —पुं॰—-—-—वास्तविक ज्ञान,सच्ची अन्तर्दृष्टि
असम्यच् —वि॰,न॰ त॰—-—-—बुरा,अनुचित,अशुद्ध
असम्यच् —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपूर्ण,अधूरा
असलम् —नपुं॰—-—अस्+कलच्—लोहा
असलम् —नपुं॰—-—अस्+कलच्—अस्त्र छोड़ते समय पढ़ा जाने वाला मंत्र
असलम् —नपुं॰—-—अस्+कलच्—हथियार
असवर्ण —वि॰,न॰ त॰—-—-—भिन्न जाति या वर्ण का
असह —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो सहा न जाय,असह्य,अधीर
असह —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असहिष्णु
असहन —वि॰,न॰ ब॰—-—-—असहिष्णु,असहनशील,ईर्ष्यालु
असहन —वि॰,न॰ त॰—-—-—असहिष्णुता,अधीरता
असहनम् —नपुं॰—-—-—असहिष्णुता,अधीरता
असहनीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सहा न जाय,दुःसह,अक्षन्तव्य
असहितव्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सहा न जाय,दुःसह,अक्षन्तव्य
असह्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सहा न जाय,दुःसह,अक्षन्तव्य
असाक्षात् —अव्य॰,न॰ त॰—-—-—जो आँखों के सामने न हो,अदृश्य रूप से,अप्रत्यक्ष रूप से
असाक्षिक —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका कोई गवाह न हो,बिना साक्ष्य के,जिसका कोई साक्षी न हो
असाक्षिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो चश्मदीद गवाह न हो
असाक्षिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसका साक्ष्य कानूनी दृष्टि से ग्राह्य न हो
असाक्षिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो किसी कानूनी दस्तावेज को प्रमाणित करने का अधिकारी न हो
असाधनीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सम्पन्न न किया जा सके,या पूरा न किया जा सके
असाधनीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो प्रमाणित होने के योग्य न हो
असाधनीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसकी चिकित्सा न हो सके
असाध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सम्पन्न न किया जा सके,या पूरा न किया जा सके
असाध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो प्रमाणित होने के योग्य न हो
असाध्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसकी चिकित्सा न हो सके
असाधारण —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सामान्य न हों,असामान्य,विशेष,विशिष्ट
असाधारण —वि॰,न॰ त॰—-—-— जो सपक्ष या विपक्ष किसी में भी हेतु के रूप में विद्यमान न हो
असाधारण —वि॰,न॰ त॰—-—-—निजी,जिसका कोई और दावेदार न हो
असाधारणः —पुं॰—-—-—तर्कशास्त्र में हेत्वाभास,अनैकांतिक के तीन भेदों में से एक
असाधु —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो अच्छा न हो बुरा,स्वादरहित,अप्रिय
असाधु —वि॰,न॰ त॰—-—-—दुष्ट
असाधु —वि॰,न॰ त॰—-—-—दुश्चरित्र अ
असाधु —वि॰,न॰ त॰—-—-—भ्रष्ट,अपभ्रंश
असामयिक —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना अवसर का,जो ऋतु के अनुकूल न हो
असामान्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो साधारण न हो,विशेष
असामान्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—असाधारण
असामान्यम् —नपुं॰—-—-—विशेष या विशिष्ट सम्पत्ति
असाम्प्रत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनुपयुक्त,अशोभन,अनुचित
असाम्प्रतम् —अव्य॰—-—-—अनुचित रूप से,अयोग्यतापूर्वक
असार —वि॰,न॰ ब॰—-—-—नीरस,स्वादहीन
असार —वि॰,न॰ ब॰—-—-—(क)रसहीन,निरर्थक
असार —वि॰,न॰ ब॰—-—-—(ख)निकम्मा,अशक्त,सारहीन
असार —वि॰,न॰ ब॰—-—-—व्यर्थ,अलाभकर
असार —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निर्बल,कमजोर,बलहीन
असारः —पुं॰—-—-—अनावश्यक या महत्त्वहीन भाग
असारः —पुं॰—-—-—एरंड वृक्ष
असारः —पुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
असारम् —नपुं॰—-—-—अनावश्यक या महत्त्वहीन भाग
असारम् —नपुं॰—-—-—एरंड वृक्ष
असारम् —नपुं॰—-—-—अगर की लकड़ी
असारता —स्त्री॰—-—असार+तल्+टाप्—नीरसता
असारता —स्त्री॰—-—असार+तल्+टाप्—निकम्मापन
असारता —स्त्री॰—-—असार+तल्+टाप्—सारहीन प्रकृति,क्षणभंगुर अवस्था
असाहसम् —नपुं॰—-—-—बलप्रयोग का अभाव,सुशीलता
असिः —पुं॰—-—अस्+इन्—तलवार
असिः —पुं॰—-—अस्+इन्—पशुओं की हत्या करने वाला चाकू
असिगण्डः —पुं॰—असिः-गण्डः—-—गालों के नीचे रखा जाने वाला छोटा तकिया
असिः-जीविन् —पुं॰—असिः-जीविन्—-—तलवार ही जिसकी जीविका का साधन है,वेतन पाने वाला सैनिक योद्धा
असिः-दंष्ट्रकः —पुं॰—असिः-दंष्ट्रकः—-—मगरमच्छ,घड़ियाल
असिदन्तः —पुं॰—असिः-दन्तः—-—घड़ियाल
असिधारा —स्त्री॰—असिः-धारा—-—तलवार की धार
असिधाराव्रतम् —नपुं॰—असिः-धाराव्रतम्—-—तलवार की धार पर खड़े होने की प्रतिज्ञा, युवती पत्नी के रहकर भी उसके साथ मैथुन की इच्छा को दृढ़तापूर्वक रोकना
असिधाराव्रतम् —नपुं॰—असिः-धाराव्रतम्—-—कोई भी अत्यन्त कठिन कार्य
असिधावः —पुं॰—असिः-धावः—-—शस्त्रकार,सिकलीगर या शस्त्र-परिष्कारक
असिधावकः —पुं॰—असिः-धावकः—-—शस्त्रकार,सिकलीगर या शस्त्र-परिष्कारक
असिधेनुः —पुं॰—असिः-धेनुः—-—चाकू
असिधेनुका —स्त्री॰—असिः-धेनुका—-—चाकू
असिपत्र —वि॰—असिः-पत्र—-—जिसके पत्ते तलवार की आकृति के हैं
असिपत्रः —पुं॰—असिः-पत्रः—-—गन्ना,ईख
असिपत्रः —पुं॰—असिः-पत्रः—-—एक प्रकार का वृक्ष जो कि निचले संसार में उगता है
असिपत्रम् —नपुं॰—असिः-पत्रम्—-—तलवार का फल
असिपत्रम् —नपुं॰—असिः-पत्रम्—-—म्यान
असिवनम् —नपुं॰—असिः-वनम्—-—एक प्रकार का नरक जहाँ वृक्षों के पत्ते ऐसे तीक्ष्ण होते हैं जैसे कि तलवार
असिपत्रकः —पुं॰—असिः-पत्रकः—-—गन्ना,ईख
असिपुच्छः —पुं॰—असिः-पुच्छः—-—सूँस,शिशुमार,सकुची मछली
असिपुच्छकः —पुं॰—असिः-पुच्छकः—-—सूँस,शिशुमार,सकुची मछली
असिपुत्रिका —स्त्री॰—असिः-पुत्रिका—-—छुरी
असिपुत्री —स्त्री॰—असिः-पुत्री—-—छुरी
असिमेदः —पुं॰—असिः-मेदः—-—विट्खदिर
असिहत्यम् —नपुं॰—असिः-हत्यम्—-—तलवार या छुरियों से लड़ना
असिहेतिः —स्त्री॰—असिः-हेतिः—-—खड्गधारी पुरुष,तलवार रखने वाला
असिकम् —नपुं॰—-—असि+कन्—ठोडी और निचले हिस्से का भाग
असिक्नी —स्त्री॰—-—सिता केशादौ शुभ्रा जरती तद्भिन्ना अवृद्धा असित-तकारस्य ल्नादेशः ङीप् च—अन्तःपुर की युवती परिचारिका
असिक्नी —स्त्री॰—-—सिता केशादौ शुभ्रा जरती तद्भिन्ना अवृद्धा असित-तकारस्य ल्नादेशः ङीप् च—पंजाब देश की एक नदी
असिक्निका —स्त्री॰—-—संज्ञायां कन् ह्रस्वः—युवती सेविका
असित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो सफेद न हो,काला,नीला,गहरे रंग का
असितः —पुं॰—-—-—गहरा नीला रंग
असितः —पुं॰—-—-—चान्द्रमास का कृष्णपक्ष
असिता —स्त्री॰—-—-—नील का पौधा
असिता —स्त्री॰—-—-—अन्तःपुर की दासी
असिता —स्त्री॰—-—-—यमुना नदी
असितम्बुजम् —नपुं॰—असित-अम्बुजम्—-—नीलकमल
असितोत्पलम् —नपुं॰—असित-उत्पलम्—-—नीलकमल
असितार्चिस —पुं॰—असित-अर्चिस—-—अग्नि
असिताश्मन —पुं॰—असित-अश्मन—-—अग्नि
असितोपलः —पुं॰—असित-उपलः—-—गहरा नीला पत्थर
असितकेशा —स्त्री॰—असित-केशा—-—काले बालों वाली स्त्री
असितकेशान्त —वि॰—असित-केशान्त—-—काली जुल्फों वाला
असितगिरिः —पुं॰—असित-गिरिः—-—नीलगिरि
असितनगः —पुं॰—असित-नगः—-—नीलगिरि
असितग्रीव —वि॰—असित-ग्रीव—-—काली गर्दन वाला
असितग्रीवः —पुं॰—असित-ग्रीवः—-—अग्नि
असितनयन —वि॰—असित-नयन—-—काली आँखों वाला
असितपक्षः —पुं॰—असित-पक्षः—-—कृष्णपक्ष
असितफलम् —नपुं॰—असित-फलम्—-—मीठा नारियल
असितमृगः —पुं॰—असित-मृगः—-—काला हरिण
असिद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो पूरा या संपन्न न हो
असिद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपूर्ण, अधूरा
असिद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अप्रमाणित
असिद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनपका, कच्चा
असिद्ध —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो अनुमेय न हो
असिद्धः —पुं॰—-—-—हेत्वाभास के पाँच मुख्य भागों में से एक, यह तीन प्रकार का है (1) आश्रयासिद्ध- जहाँ गुण के आश्रय सत्ता सिद्ध न हो (2) स्वरुपासिद्ध- जहाँ निर्दिष्ट स्वरुप पक्ष में न पाया जाय तथा (3) व्याप्यतासिद्ध- जहाँ सहवर्तिता की उक्त स्थिरता वास्तविक न हो
असिद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—अपूर्ण निष्पन्नता, विफलता
असिद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—परिपक्वता की कमी
असिद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—निष्पत्ति का अभाव
असिद्धिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—वह उपसंहार जो प्रतिज्ञासे सम्मोदित न हो
असिरः —पुं॰—-—अस+किरच—शहतीर, किरण
असिरः —पुं॰—-—अस+किरच—तीर, सिटकिनी
असुः —पुं॰—-—अस्+उन्—सश्वास,प्राण,आध्यात्मिक जीवन
असुः —पुं॰—-—अस्+उन्—मृतात्माओं का जीवन
असुः —पुं॰—-—अस्+उन्—शरीर में रहने वाले पाँच प्राण
असु —नपुं॰—-—अस्+उन्—शोक,दुःख
असुधारणम् —नपुं॰—असुः-धारणम्—-—जीवन धारण,जीवन,अस्तित्व
असुधारणा —स्त्री॰—असुः-धारणा—-—जीवन धारण,जीवन,अस्तित्व
असुभङ्गः —पुं॰—असुः-भङ्गः—-—जीवन का नाश,जीवहानि
असुभङ्गः —पुं॰—असुः-भङ्गः—-—जीवन का भय या आशंका
असुभृत् —पुं॰—असुः-भृत्—-—जीवित जन्तु,प्राणी
असुसम् —वि॰—असुः-सम्—-—प्राणों के समान प्यारा
असुसमः —पुं॰—असुः-समः—-—पति,प्रेमी
असुमत् —वि॰—-—असु+मतुप्—जीवित,प्राणी
असुमत् —वि॰—-—असु+मतुप्—जीवित प्राणी
असुमत् —वि॰—-—असु+मतुप्—जीवन
असुख —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अप्रसन्न,दुःखी
असुख —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जिसका प्राप्त करना आसान न हो,कठिन
असुखम् —नपुं॰—-—-—दुःख,पीड़ा
असुखावह —वि॰—असुख-आवह—-—दुःख से पीड़ित
असुखाविष्ट —वि॰—असुख-आविष्ट—-—अत्यन्त पीड़ाकर
असुखोदय —वि॰—असुख-उदय—-—अप्रसन्न्ता पैदा करने वाला
असुखजीविका —स्त्री॰—असुख-जीविका—-—विषण्ण जीवन
असुखिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्वामी की स्वीकृति के बिना उसकी चीज उठा ले जाने वाला,चोर
असुत —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निस्सन्तान,पुत्रहीन
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—दैत्य,राक्षस-रामायण में नामों का कारण बतलाया गया है
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—देवताओं का शत्रु,दैत्य ,दानव
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—भूत, प्रेत
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—सूर्य
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—हाथी
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—राहु
असुरः —पुं॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा—बादल
असुरा —स्त्री॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा, टाप्—रात्रि
असुरा —स्त्री॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा, टाप्—राशिविषयक संकेत
असुरा —स्त्री॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा, टाप्—वेश्या
असुरी —स्त्री॰—-—असु+र,न सुरः इति न॰ त॰ वा, ङीप्—दानवी,असुर की पत्नी।
असुराधिपः —पुं॰—असुरः-अधिपः—-—असुरों का स्वामी
असुराधिपः —पुं॰—असुरः-अधिपः—-—बलि की उपाधि,प्रह्लाद का पौत्र
असुरराज् —पुं॰—असुरः-राज्—-—असुरों का स्वामी
असुरराज् —पुं॰—असुरः-राज्—-—बलि की उपाधि,प्रह्लाद का पौत्र
असुरराजः —पुं॰—असुरः-राजः—-—असुरों का स्वामी
असुरराजः —पुं॰—असुरः-राजः—-—बलि की उपाधि,प्रह्लाद का पौत्र
असुराचार्यः —पुं॰—असुरः-आचार्यः—-—असुरों के गुरु शुक्राचार्य
असुराचार्यः —पुं॰—असुरः-आचार्यः—-—शुक्रग्रह
असुरगुरुः —पुं॰—असुरः-गुरुः—-—असुरों के गुरु शुक्राचार्य
असुरगुरुः —पुं॰—असुरः-गुरुः—-—शुक्रग्रह
असुराह्वम् —नपुं॰—असुरः-आह्वम्—-—तांबे और टीन की मिश्रित धातु
असुरक्षयण —वि॰—असुरः-क्षयण—-—राक्षसों का नाश करने वाला
असुरक्षिति —वि॰—असुरः-क्षिति—-—राक्षसों का नाश करने वाला
असुरद्विष् —पुं॰—असुरः-द्विष्—-—राक्षसों का शत्रु अर्थात् देवता
असुरमाया —स्त्री॰—असुरः-माया—-—राक्षसी जादू
असुररिपुः —पुं॰—असुरः-रिपुः—-—राक्षसों का हन्ता,विष्णु
असुरसूदनः —पुं॰—असुरः-सूदनः—-—राक्षसों का हन्ता,विष्णु
असुरहन् —पुं॰—असुरः-हन्—-—राक्षसों का नाश करने वाला,अग्नि,इन्द्र आदि
असुरहन् —पुं॰—असुरः-हन्—-—विष्णु
असुरसा —स्त्री॰,न॰ ब॰ —-—न सुष्ठु रसो यस्याः—एक प्रकार का पौधा,तुलसी का एक भेद
असुर्य —वि॰—-—असुराय हिताः गवा॰ यत्—राक्षसी,आसुरी
असुलभ —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो आसानी से उपलब्ध न हो सके,प्राप्त करने में कठिन
असुसूः —पुं॰—-—असून् प्राणान् सुवति-सू+क्विप्—तीर
असूक्षणम् —नपुं॰—-—सूक्ष्+आदरे+ल्युट्—अपमान,अनादर
असूत —वि॰,न॰ त॰,न॰ ब॰ —-—कप्—जिसने कुछ पैदा नहीं किया है,बांझ
असूतिक —वि॰,न॰ त॰,न॰ ब॰ —-—न॰ त॰,न॰ ब॰ कप्—जिसने कुछ पैदा नहीं किया है,बांझ
असूतिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—पैदा न करना,बांझपना
असूतिः —स्त्री॰,न॰ त॰ —-—-—अड़चन,स्थानान्तरण
असूयति —ना॰ धा॰ पर॰—-—-—डाह करना,ईर्ष्यालु होना मान घटाना,अप्रसन्न होना,घृणा करना,असन्तुष्त होना,क्रुद्ध होना
असूयक —वि॰—-—असूय+ण्वुल्—ईर्ष्यालु,मान घटाने वाला,निंदक
असूयक —वि॰—-—असूय+ण्वुल्—असन्तुष्ट,अप्रसन्न
असूयकः —पुं॰—-—असूय+ण्वुल्—अपमान कर्ता,ईर्ष्यालु व्यक्ति
असूयनम् —नपुं॰—-—असूय+ल्युट्—अपमान,निन्दा
असूयनम् —नपुं॰—-—असूय+ल्युट्—ईर्ष्या,डाह
असूया —स्त्री॰—-—असूय+अङ्+टाप्—ईर्ष्या,असहिष्णुता,डाह-क्रुधद्रुहेर्ष्या सूयार्थानां यं प्रति कोपः
असूयासासूयम् —नपुं॰—असूया-सासूयम्—-—ईर्ष्या के साथ
असूया —स्त्री॰—-—असूय+अङ्+टाप्—निन्दा,अपमान
असूया —स्त्री॰—-—असूय+अङ्+टाप्—क्रोध,रोष
असूयुः —पुं॰—-—असूय्+उ—ईर्ष्यालु,डाह करने वाला
असूयुः —पुं॰—-—असूय्+उ—अप्रसन्न
असूर्य —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सूर्यरहित
असूर्यम्पश्य —वि॰—-—सूर्यमपि न पश्यति-दृश्+खश्मुम् च—सूर्य को भी न देखने वाला
असूर्यम्पश्या —स्त्री॰—-—-—सती पतिव्रता स्त्री
असृज् —नपुं॰—-—न सृज्यते इतरराहवत् संसृज्यते सहज त्वात्-न+सृज्+क्विन्-तारा॰—रुधिर
असृज् —नपुं॰—-—न सृज्यते इतरराहवत् संसृज्यते सहज त्वात्-न+सृज्+क्विन्-तारा॰—मंगल ग्रह
असृज् —नपुं॰—-—न सृज्यते इतरराहवत् संसृज्यते सहज त्वात्-न+सृज्+क्विन्-तारा॰—केसर
असृक्करः —पुं॰—असृज्-करः—-—लंसिका
असृग्धरा —स्त्री॰—असृज्-धरा—-—त्वचा,चमड़ी
असृग्प —वि॰—असृज्-प—-—लोहू पीने वाला राक्षस
असृग्पाः —पुं॰—असृज्-पाः—-—लोहू पीने वाला राक्षस
असृग्पातः —पुं॰—असृज्-पातः—-—रुधिर का गिरना
असृग्वह्वा —स्त्री॰—असृज्-वह्वा—-—रक्त वाहिका,नाड़ी
असृग्विमोक्षणम् —नपुं॰—असृज्-विमोक्षणम्—-—रुधिर का बहना
असृग्श्रावः —पुं॰—असृज्-श्रावः—-—रुधिर का बहना
असृग्स्रावः —पुं॰—असृज्-स्रावः—-—रुधिर का बहना
असेचन —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसे देखते देखते जी न भरे,मनोहर,सुन्दर
असेचनक —वि॰,न॰ त॰—-—-—जिसे देखते देखते जी न भरे,मनोहर,सुन्दर
असौष्ठव —वि॰,न॰ ब॰—-—-—सौन्दर्यविहीन, लावण्यरहित,जो सजीला न हो
असौष्ठव —वि॰,न॰ ब॰—-—-—कुरूप,विकलांग
असौष्ठवम् —नपुं॰—-—-—निकम्मापन,गुणों की हीनता
असौष्ठवम् —नपुं॰—-—-—विकलांगता,कुरूपता
अस्खलित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अटल,दृढ़,स्थायी
अस्खलित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्षत
अस्खलित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अविचलित,सावधान
अस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अस्+क्त—फेंका हुआ,क्षिप्त,छोड़ा हुआ,त्यागा हुआ
अस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अस्+क्त—समाप्त
अस्त —भू॰ क॰ कृ॰—-—अस्+क्त—भेजा हुआ
अस्तकरुण —वि॰—अस्त-करुण—-—दयारहित
अस्तधी —वि॰—अस्त-धी—-—मूर्ख
अस्तव्यस्त —वि॰—अस्त-व्यस्त—-—इधर-उधर बिखरा हुआ अव्यवस्थित,क्रमरहित
अस्तसंख्य —वि॰—अस्त-संख्य—-—अनगिनत
अस्तः —पुं॰—-—अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र-अस+आधारे क्त—अस्ताचल या पश्चिमाचल
अस्तः —पुं॰—-—अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र-अस+आधारे क्त—सूर्य का डूबना
अस्तः —पुं॰—-—अस्यन्ते सूर्यकिरणा यत्र-अस+आधारे क्त—डूबना, गिरना,पतन
अस्तः —पुं॰—-—-—डूबना,पश्चिमी क्षितिज में गिरना
अस्तः —पुं॰—-—-—रुकना,नष्ट होना,दूर हटना,अंतर्धान होना,समाप्त होना(
अस्ताचलः —पुं॰—अस्तः-अचलः—-—अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़
अस्ताद्रिः —पुं॰—अस्तः-अद्रिः—-—अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़
अस्तगिरिः —पुं॰—अस्तः-गिरिः—-—अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़
अस्तपर्वतः —पुं॰—अस्तः-पर्वतः—-—अस्ताचल पहाड़ या पश्चिमी पहाड़
अस्तावलम्बनम् —नपुं॰—अस्तः-अवलम्बनम्—-—क्षितिज के पश्चिमी भाग पर आकाशस्थित सूर्य चन्द्रादिक का डूबते समय आराम करना
अस्तोदयौ —पुं॰—अस्तः-उदयौ—-—डूबना और निकलना,उदय और पतन,-अस्तोदयावदिशदप्रविभिन्नकालम्-मुद्रा०३/१७,
अस्तग —वि॰—अस्तः-ग—-—डूबने वाला,तारे की भाँति अदृश्य हो जाने वाला
अस्तगमनम् —नपुं॰—अस्तः-गमनम्—-—डूबना,छिपना
अस्तगमनम् —नपुं॰—अस्तः-गमनम्—-—मृत्यु,जीवन के सूर्य प्रदीप का बुझना
अस्तमनम् —नपुं॰—-—अन्+अप्(बा॰)अस्तम्=अदर्शनस्य अनम्=गतिः—डूबना
अस्तमयः —पुं॰—-—अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम्+इ+अच्—डूबना
अस्तमयः —पुं॰—-—अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम्+इ+अच्—नाश,अन्त,पतन,हानि
अस्तमयः —पुं॰—-—अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम्+इ+अच्—पात,अभिभव
अस्तमयः —पुं॰—-—अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम्+इ+अच्—तिरोधान,अन्धकार ग्रस्त होना
अस्तमयः —पुं॰—-—अस्तमीयते गम्यतेऽस्मिन् इति अस्तम्+इ+अच्—सूर्य से संयोग
अस्ति —अव्य॰—-—अस्+श्तिप्—होना,सत्,विद्यमान
अस्ति —अव्य॰—-—अस्+श्तिप्—प्रायः किसी घटना या कहानी के आरंभ में या तो केवल ’अनुपूरक’ अर्थ में प्रयुक्त होता है,अथवा ’अतः यह है कि’ अर्थ को प्रकट करता है
अस्तिकायः —पुं॰—अस्ति-कायः—-—वर्ग या अवस्था
अस्तिनास्ति —अव्य॰—अस्ति-नास्ति—-—सन्दिग्ध,आंशिक रूप से सत्य
अस्तित्वम् —नपुं॰—-—अस्ति+त्व—सत्त्ता,विद्यमानता
अस्तेयम् —नपुं॰—-—-—चोरी न करना
अस्त्यानम् —नपुं॰—-—-—झिड़की,कलंक
अस्त्रम् —नपुं॰—-—अस्+ष्ट्रन्—फेंककर चलाया जाने वाला हथियारआयुधविज्ञान
अस्त्रम् —नपुं॰—-—अस्+ष्ट्रन्—तीर,तलवार
अस्त्रम् —नपुं॰—-—अस्+ष्ट्रन्—धनुष
अस्त्रागारम् —नपुं॰—अस्त्रम्-अगारम्—-—शस्त्रशाला,तोपखाना,आयुधागार
अस्त्रागारम् —नपुं॰—अस्त्रम्-आगारम्—-—शस्त्रशाला,तोपखाना,आयुधागार
अस्त्रआघातः —पुं॰—अस्त्रम्-आघातः—-—व्रण,घाव
अस्त्रकंटकः —पुं॰—अस्त्रम्-कंटकः—-—तीर
अस्त्रकारः —पुं॰—अस्त्रम्-कारः—-—हथियार बनाने वाला,जर्राह
अस्त्रकारकः —पुं॰—अस्त्रम्-कारकः—-—हथियार बनाने वाला,जर्राह
अस्त्रकारिन् —पुं॰—अस्त्रम्-कारिन्—-—हथियार बनाने वाला,जर्राह
अस्त्रचिकित्सा —स्त्री॰—अस्त्रम्-चिकित्सा—-—चीर फाड़ या शल्य-क्रिया,जर्राही
अस्त्रजीवः —पुं॰—अस्त्रम्-जीवः—-—सैनिक,योद्धा
अस्त्रजीविन् —पुं॰—अस्त्रम्-जीविन्—-—सैनिक,योद्धा
अस्त्रधारिन् —पुं॰—अस्त्रम्-धारिन्—-—सैनिक,योद्धा
अस्त्रनिवारणम् —नपुं॰—अस्त्रम्-निवारणम्—-—हथियार के वार को रोकना
अस्त्रमन्त्रः —पुं॰—अस्त्रम्-मन्त्रः—-—अस्त्र चालन या प्रत्याहरण के समय पढ़ा जाने वाला मंत्र
अस्त्रमार्जः —पुं॰—अस्त्रम्-मार्जः—-—सिकलीगर
अस्त्रमार्जकः —पुं॰—अस्त्रम्-मार्जकः—-—सिकलीगर
अस्त्रयुद्धम् —नपुं॰—अस्त्रम्-युद्धम्—-—हथियारों से लड़ना
अस्त्रलाघवम् —नपुं॰—अस्त्रम्-लाघवम्—-—अस्त्रधारण या चालन में कुशलता
अस्त्रविद् —वि॰—अस्त्रम्-विद्—-—आयुध विज्ञान में दक्ष
अस्त्रविद्या —स्त्री॰—अस्त्रम्-विद्या—-—अस्त्रचालन विज्ञान या कला, आयुधविज्ञान
अस्त्रशास्त्रम् —नपुं॰—अस्त्रम्-शास्त्रम्—-—अस्त्रचालन विज्ञान या कला, आयुधविज्ञान
अस्त्रवेदः —पुं॰—अस्त्रम्-वेदः—-—अस्त्रचालन विज्ञान या कला, आयुधविज्ञान
अस्त्रवृष्टिः —स्त्री॰—अस्त्रम्-वृष्टिः—-—अस्त्रों की बौछार
अस्त्रशिक्षा —स्त्री॰—अस्त्रम्-शिक्षा—-—सैनिक अभ्यास, अस्त्र चालन व प्रत्याहरण की शिक्षा
अस्त्रिन् —वि॰—-—अस्त्र+इन्—अस्त्र से युद्ध करने वाला, धनुर्धारी
अस्त्री —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—जो स्त्री न हो
अस्त्री —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—पुल्लिंङ्ग और नपुंसक लिंग
अस्थान —वि॰,न॰ ब॰—-—-—बहुत गहरा
अस्थानम् —नपुं॰—-—-—बुरा स्थान
अस्थानम् —नपुं॰—-—-—अनुचित स्थान, पदार्थ या अवसर
अस्थाने —अव्य॰—-—-—बिना ऋतु के, उपयुक्त स्थान से बाहर, बिना अवसर के, गलत जगह पर, अयोग्य वस्तु पर
अस्थावर —वि॰,न॰ त॰—-—-—चर, जंगम, अस्थिर
अस्थावर —वि॰,न॰ त॰—-—-—निजी चल वस्तु जैसे कि संपत्ति, पशु, धन आदि
अस्थि —नपुं॰—-—अस्यते-अस्+कथिन—हड्डी
अस्थि —नपुं॰—-—अस्यते-अस्+कथिन—फल की गिरी या गुठली
अस्थिकृत —पुं॰—अस्थि-कृत्—-—चर्बी, वसा
अस्थितेजस् —पुं॰—अस्थि-तेजस्—-—चर्बी, वसा
अस्थिसम्भव —वि॰—अस्थि-सम्भव—-—चर्बी, वसा
अस्थिसारः —पुं॰—अस्थि-सारः—-—चर्बी, वसा
अस्थिस्नेहः —पुं॰—अस्थि-स्नेहः—-—चर्बी, वसा
अस्थिजः —पुं॰—अस्थि-जः—-—चर्बी
अस्थिजः —पुं॰—अस्थि-जः—-—वज्र
अस्थितुण्डः —पुं॰—अस्थि-तुण्डः—-—एक पक्षी
अस्थिधन्वन् —पुं॰—अस्थि-धन्वन्—-—शिव
अस्थिपञ्जरः —पुं॰—अस्थि-पञ्जरः—-—हड्डियों का ढांचा, कंकाल
अस्थिप्रक्षेपः —पुं॰—अस्थि-प्रक्षेपः—-—मृतक की हड्डियों को गंगा या किसी अन्य पवित्र जल में प्रवाहित करना
अस्थिभक्षः —पुं॰—अस्थि-भक्षः—-—हड्डियों को खाने वाला, कुत्ता
अस्थिभुक् —पुं॰—अस्थि-भुक्—-—हड्डियों को खाने वाला, कुत्ता
अस्थिमाला —स्त्री॰—अस्थि-माला—-—हड्डियों का हार
अस्थिमाला —स्त्री॰—अस्थि-माला—-—हड्डियों की पंक्ति
अस्थिमालिन् —पुं॰—अस्थि-मालिन्—-—शिव
अस्थिसञ्चयः —पुं॰—अस्थि-सञ्चयः—-—शवदाह के पश्चात् उसकी हड्डियों और भस्मावशेष को एकत्र करना
अस्थिसञ्चयः —पुं॰—अस्थि-सञ्चयः—-—हड्डियों का ढेर
अस्थिसन्धिः —पुं॰—अस्थि-सन्धिः—-—जोड़, जोड़बन्दी
अस्थिसमर्पणम् —नपुं॰—अस्थि-समर्पणम्—-—मृतक की अस्थियों को गंगा या किसी
अस्थिस्थूणः —पुं॰—अस्थि-स्थूणः—-—हड्डियों को स्तम्भ के रूप में धारण करने वाला, शरीर
अस्थितिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—दृढ़ता या जमाव का अभाव
अस्थितिः —स्त्री॰,न॰ त॰—-—-—मर्यादा या शिष्ट व्यवहार का अभाव
अस्थिर —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो स्थिर या दृढ़ न हो, डावाँडोल, चंचल
अस्पर्शनम् —नपुं॰—-—-—संपर्क का न होना, स्पर्श को टालना
अस्पष्ट —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो स्पष्ट न हो, स्पष्ट रूप से दिखाई न देता हो
अस्पष्ट —वि॰,न॰ त॰—-—-—धुंधला, जो साफ समझ में न आवे, संदिग्ध
अस्पृश्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो छूने के योग्य न हो
अस्पृश्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—अशुचि, अपावन
अस्फुट —वि॰,न॰ त॰—-—-—दुरूह, अस्पष्ट
अस्फुटम् —नपुं॰—-—-—दुर्बोध भाषण
अस्फुटफलम् —नपुं॰—अस्फुट-फलम्—-—धुंधला या दुरूह परिणाम
अस्फुटवाच् —वि॰—अस्फुट-वाच्—-—तुतला कर बोलने वाला, अस्पष्टभाषी
अस्मद् —सर्व॰/त्रिलिङ्ग—-—अस्+मदिक्—सर्वनामविषयक प्रातिपदिक जिससे कि उत्तमपुरुषसंबंधी पुरुषवाचक सर्वनाम के अनेक रूप बनते हैं
अस्मविध —वि॰—अस्मद्-विध—-—हमारे समान या हम जैसा
अस्मास्मादृश —वि॰—अस्मद्-अस्मादृश—-—हमारे समान या हम जैसा
अस्मदीय —वि॰—-—अस्मद्+छ—हमारा, हम सब का
अस्मार्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो स्मृति के भीतर न हो, स्मरणातीत
अस्मार्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—अवैध, आर्य-धर्मशास्त्रों के विपरीत
अस्मार्त —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्मार्त संप्रदाय से संबंध न रखने वाला
अस्मि —अव्य॰—-—अस्+मिन्—मैं-अहम्
अस्मिता —स्त्री॰—-—अस्मि+तल्+टाप्—अहंकार
अस्मृतिः —वि॰,न॰ त॰—-—-—स्मृति का अभाव, भूलना
अस्रः —पुं॰—-—अस्+रन्—किनारा, कोश
अस्रः —पुं॰—-—अस्+रन्—सिर के बाल
अस्रम् —नपुं॰—-—अस्+रन्—आँसू
अस्रम् —नपुं॰—-—अस्+रन्—रुधिर
अस्रकण्ठः —पुं॰—अस्रः-कण्ठः—-—बाण
अस्रजम् —नपुं॰—अस्रः-जम्—-—मांस
अस्रपः —पुं॰—अस्रः-पः—-—रुधिर पीने वाला राक्षस
अस्रपा —स्त्री॰—अस्रः-पा—-—जोंक
अस्रमातृका —स्त्री॰—अस्रः-मातृका—-—अन्नरस, आमरस, आँव
अस्व —वि॰,न॰ ब॰—-—-—अकिंचन, निर्धन
अस्व —वि॰,न॰ ब॰—-—-—जो अपना न हो
अस्वतंत्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—आश्रित, अधीन, पराधीन
अस्वतंत्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—विनीत
अस्वप्न —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निद्रारहित, जागरूक
अस्वप्नः —पुं॰—-—-—अनिद्रा
अस्वरः —पुं॰—-—-—मन्द स्वर
अस्वरम् —अव्य॰—-—-—ऊँचे स्वर से नहीं, धीमी आवाज से
अस्वर्ग्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो स्वर्ग से प्राप्त करने योग्य न हो
अस्वस्थ —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो नीरोगी न हो, रोगी, अतिरुग्ण
अस्वाध्यायः —पुं॰—-—न स्वाध्यायो वेदाध्ययनमस्य—जिसने अभी अध्ययन आरंभ नहीं किया, जिसका अभी यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ हो
अस्वाध्यायः —पुं॰—-—न स्वाध्यायो वेदाध्ययनमस्य—अध्ययन में रूकावट
अस्वामिन् —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो किसी वस्तु का अधिकारी न हो, जो स्वामी न हो
अस्वामिविक्रयः —पुं॰—अस्वामिन्-विक्रयः—-—बिना स्वामी बने किसी वस्तु का बेंचना
अह् —भ्वा॰ आ॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—जाना, समीप जाना, प्रयाण करना, आरम्भ करना
अह् —भ्वा॰ आ॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—भेजना
अह् —भ्वा॰ आ॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—चमकना
अह् —भ्वा॰ आ॰ या चुरा॰ उभ॰—-—-—बोलना
अह् —अव्य॰—-—अंह्+घञ् पृषो॰ न लोपः—निम्न अर्थों को प्रकट करने वाला निपात या अव्यय (क) स्तुति, (ख) वियोग, (ग) दृढ़संकल्प या निश्चय (घ) अस्वीकृति (च) प्रेषण तथा (छ) पद्धति या प्रथा की अवहेलना
अहंयु —वि॰—-—अहम्+युस्—घमंडी, अहंकारी, स्वार्थी
अहत —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्षत, अनाहत
अहत —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना धुला, नया
अहतम् —नपुं॰—-—-—बिना धुला, या नया कपड़ा
अहन् —नपुं॰—-—न जहाति त्यजति सर्वथा परिवर्तनं, न+हा+कनिन्—दिन
अहन् —नपुं॰—-—न जहाति त्यजति सर्वथा परिवर्तनं, न+हा+कनिन्—दिन का समय
अहरागमः —पुं॰—अहन्-आगमः—-—दिन का आना
अहरादिः —पुं॰—अहन्-आदिः—-—उषःकाल
अहस्करः —पुं॰—अहन्-करः—-—सूर्य
अहर्गणः —पुं॰—अहन्-गणः—-—यज्ञ के दिनों का सिलसिला
अहर्गणः —पुं॰—अहन्-गणः—-—महीना
अहर्दिवम् —अव्य॰—अहन्-दिवम्—-—प्रतिदिन, हर रोज, दिन प्रति दिन
अहर्निशम् —नपुं॰—अहन्-निशम्—-—दिन-रात
अहर्पतिः —पुं॰—अहन्-पतिः—-—सूर्य
अहर्बान्धवः —पुं॰—अहन्-बान्धवः—-—सूर्य
अहोमणिः —पुं॰—अहन्-मणिः—-—सूर्य
अहोमुखम् —नपुं॰—अहन्-मुखम्—-—दिन का आरंभ, प्रभात, उषःकाल
अहोशेषः —पुं॰—अहन्-शेषः—-—सायंकाल
अहोशेषम् —नपुं॰—अहन्-शेषम्—-—सायंकाल
अहम् —सर्व॰—-—अस्मद् शब्द का कर्तृ कारक ए॰ व॰ —मैं
अहमाग्रिका —स्त्री॰—अहम्-अग्रिका—-—श्रेष्ठता के लिए होड़, प्रतिद्वन्द्विता
अहमाहमिका —स्त्री॰—अहम्-अहमिका—-—होड़, प्रतियोगिता, अपनी श्रेष्ठता का दावा
अहमाहमिका —स्त्री॰—अहम्-अहमिका—-—अहंकार
अहमाहमिका —स्त्री॰—अहम्-अहमिका—-—सैनिक, अहंमन्यता
अहङ्कारः —पुं॰—अहम्-कारः—-—अभिमान, आत्मश्लाघा, वेदान्त दर्शन में 'आत्मप्रेम' अविद्या या आध्यात्मिक अज्ञान समझा जाता है
अहङ्कारः —पुं॰—अहम्-कारः—-—घमंड, स्वाभिमान, गर्व
अहङ्कारः —पुं॰—अहम्-कारः—-—सृष्टि के मूलतत्त्व या आठ उत्पादकों में से तीसरा अर्थात् आत्माभिमान या अपनी सत्ता का बोध
अहङ्कारी —वि॰—अहम्-कारिन्—-—घमंडी, स्वाभिमानी
अहङ्कृति —स्त्री॰—अहम्-कृतिः—-—अहंकार, घमंड
अहपूर्व —वि॰—अहम्-पूर्व—-—होड़ में प्रथम रहने का इच्छुक
अहपूर्विका —स्त्री॰—अहम्-पूर्विका—-—होड़ के साथ सैनिकों की दौड़, होड़ प्रतियोगिता
अहपूर्विका —स्त्री॰—अहम्-पूर्विका—-—डींग मारना, आत्मश्लाघा
अहप्रथमिका —स्त्री॰—अहम्-प्रथमिका—-—होड़ के साथ सैनिकों की दौड़, होड़ प्रतियोगिता
अहप्रथमिका —स्त्री॰—अहम्-प्रथमिका—-—डींग मारना, आत्मश्लाघा
अहभद्रम् —नपुं॰—अहम्-भद्रम्—-—स्वाभिमान, अपनी श्रेष्ठता का दृढ़ विचार
अहभावः —पुं॰—अहम्-भावः—-—घमंड, अहंकार
अहमतिः —स्त्री॰—अहम्-मतिः—-—आत्मरति या स्वानुराग जो आध्यात्मिक अज्ञान समझा जाता है
अहमतिः —स्त्री॰—अहम्-मतिः—-—दम्भ, घमंड, अहंकार
अहरणीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो चुराये जाने के योग्य न हो, या हटाये जाने अथवा दूर ले जाये जाने के योग्य न हो
अहरणीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—श्रद्धालु, निष्ठावान्
अहरणीय —वि॰,न॰ त॰—-—-—दृढ़, अविचल, अननुनेय
अहरणीयः —वि॰,न॰ त॰—-—-—पहाड़
अहार्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो चुराये जाने के योग्य न हो, या हटाये जाने अथवा दूर ले जाये जाने के योग्य न हो
अहार्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—श्रद्धालु, निष्ठावान्
अहार्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—दृढ़, अविचल, अननुनेय
अहल्य —वि॰,न॰ त॰—-—-—बिना जोता हुआ
अहल्या —स्त्री॰—-—-—गौतम की पत्नी
अहह —अव्य॰—-—अहं जहाति इति-हा+क पृषो॰—विस्मयादि द्योतक निपात निम्नांकित अर्थों में प्रयुक्त होता है-(क) शोक, खेद, (ख) आश्चर्य, विस्मय, (ग) दया, तरस, (घ) बुलाना, (ङ) थकावट
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—साँप, अजगर
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—सूर्य
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—राहुग्रह
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—वृत्रासुर
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—धोखेबाज, बदमाश
अहिः —पुं॰—-—आहन्ति-आ+हन्+इण् स च डित् आङो ह्रस्वश्च—बादल
अहिकान्तः —पुं॰—अहिः-कान्तः—-—वायु, हवा
अहिकोषः —पुं॰—अहिः-कोषः—-—साँप की केंचुली
अहिछत्रकम् —नपुं॰—अहिः-छत्रकम्—-—कुकुरमुत्ता
अहिजित् —पुं॰—अहिः-जित्—-—कृष्ण
अहिजित् —पुं॰—अहिः-जित्—-—इंद्र
अहितुण्डिकः —पुं॰—अहिः-तुण्डिकः—-—साँप पकड़ने वाला, सप्वेरा, बाजीगर
अहिद्विष् —पुं॰—अहिः-द्विष्—-—गरुड़
अहिद्विष् —पुं॰—अहिः-द्विष्—-—नेवला
अहिद्विष् —पुं॰—अहिः-द्विष्—-—मोर
अहिद्विष् —पुं॰—अहिः-द्विष्—-—इन्द्र
अहिद्विष् —पुं॰—अहिः-द्विष्—-—कृष्ण
अहिद्रुह् —पुं॰—अहिः-द्रुह्—-—गरुड़
अहिद्रुह् —पुं॰—अहिः-द्रुह्—-—नेवला
अहिद्रुह् —पुं॰—अहिः-द्रुह्—-—मोर
अहिद्रुह् —पुं॰—अहिः-द्रुह्—-—इन्द्र
अहिद्रुह् —पुं॰—अहिः-द्रुह्—-—कृष्ण
अहिमार —पुं॰—अहिः-मार—-—गरुड़
अहिमार —पुं॰—अहिः-मार—-—नेवला
अहिमार —पुं॰—अहिः-मार—-—मोर
अहिमार —पुं॰—अहिः-मार—-—इन्द्र
अहिमार —पुं॰—अहिः-मार—-—कृष्ण
अहिरिपु —पुं॰—अहिः-रिपु—-—गरुड़
अहिरिपु —पुं॰—अहिः-रिपु—-—नेवला
अहिरिपु —पुं॰—अहिः-रिपु—-—मोर
अहिरिपु —पुं॰—अहिः-रिपु—-—इन्द्र
अहिरिपु —पुं॰—अहिः-रिपु—-—कृष्ण
अहिविद्विष् —पुं॰—अहिः-विद्विष्—-—गरुड़
अहिविद्विष् —पुं॰—अहिः-विद्विष्—-—नेवला
अहिविद्विष् —पुं॰—अहिः-विद्विष्—-—मोर
अहिविद्विष् —पुं॰—अहिः-विद्विष्—-—इन्द्र
अहिविद्विष् —पुं॰—अहिः-विद्विष्—-—कृष्ण
अहिनकुलम् —नपुं॰—अहिः-नकुलम्—-—साँप और नेवले
अहिनकुलिका —स्त्री॰—अहिः-नकुलिका—-—साँप और नेवले के मध्य स्वाभाविक वैर
अहिनिर्मोकः —पुं॰—अहिः-निर्मोकः—-—साँप की केंचुली
अहिपतिः —पुं॰—अहिः-पतिः—-—साँपों का स्वामी, वासुकि
अहिपतिः —पुं॰—अहिः-पतिः—-—कोई बड़ा साँप, अजगर साँप
अहिपुत्रकः —पुं॰—अहिः-पुत्रकः—-—साँप के आकार की बनी किश्ती
अहिफेनः —पुं॰—अहिः-फेनः—-—अफीम
अहिफेनम् —नपुं॰—अहिः-फेनम्—-—अफीम
अहिभयम् —नपुं॰—अहिः-भयम्—-—किसी छिपे हुए साँप का भय, धोखे की शङ्का, अपने-मित्रों की ओर से भय
अहिभुज् —पुं॰—अहिः-भुज्—-—गरुड़
अहिभुज् —पुं॰—अहिः-भुज्—-—मोर
अहिभुज् —पुं॰—अहिः-भुज्—-—नेवला
अहिभृत् —पुं॰—अहिः-भृत्—-—शिव
अहिंसा —पुं॰—-—-—अनिष्टकारिता का अभाव, किसी प्राणी को न मारना, मन वचन कर्म से किसी को पीड़ा न देना
अहिंस्र —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनिष्टकर, निर्दोष, अहिंसक
अहिंकः —पुं॰—-—-—एक अंधा साँप
अहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो रक्खा न गया हो, धरा
अहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—क्षतिकर, अनिष्टकर
अहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अनुपकारक
अहित —वि॰,न॰ त॰—-—-—अपकारी, विरोधी
अहितम् —नपुं॰—-—-—हानि, क्षति
अहिम —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो ठंडा न हो, गर्म
अहिमाङ्शुः —पुं॰—अहिम-अङ्शुः—-—सूर्य
अहिमकरः —पुं॰—अहिम-करः—-—सूर्य
अहिमतेजस् —पुं॰—अहिम-तेजस्—-—सूर्य
अहिमद्युतिः —पुं॰—अहिम-द्युतिः—-—सूर्य
अहिमरुचिः —पुं॰—अहिम-रुचिः—-—सूर्य
अहीन —वि॰,न॰ त॰—-—-—अक्षुण्ण, पूर्ण, समस्त
अहीन —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो छोटा न हो, बड़ा
अहीन —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो वञ्चित न हो, अधिकार प्राप्त
अहीन —वि॰,न॰ त॰—-—-—जातिबहिष्कृत न हो, दुश्चरित्र न हो
अहीनः —पुं॰—-—-—कई दिनों तक होने वाला यज्ञ
अहीनम् —नपुं॰—-—-—कई दिनों तक होने वाला यज्ञ
अहीनवादिन् —पुं॰—अहीन-वादिन्—-—गवाही देने में असमर्थ, अयोग्य गवाह
अहीरः —पुं॰—-—आभारी+पृषो॰ साधुः—ग्वाला, अहीर
अहुत —वि॰,न॰ त॰—-—-—जो यज्ञ न किया गया हो, जो हवन में प्रस्तुत न किया गया हो
अहुतः —पुं॰—-—-—धर्मविषयक चिन्तन, मनन, प्रार्थना और वेदाध्ययन
अहे —अव्य॰—-—अह+ए—झिड़की, भर्त्सना, खेद, वियोग को प्रकट करने वाला निपात
अहेतु —वि॰,न॰ ब॰—-—-—निष्कारण्अ, स्वतः स्फूर्त
अहेतुक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप्—निराधार, निष्कारण, निष्प्रयोजन
अहैतुक —वि॰,न॰ ब॰—-—कप्—निराधार, निष्कारण, निष्प्रयोजन
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—निम्नांकित अर्थों को प्रकट करने वाला अव्यय - (क) आश्चर्य या विस्मय -बहुधा रुचिकर, (ख) पीडाजनक आश्चर्य
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—शोक या खेद
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—प्रशंसा
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—झिड़की
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—बुलाना, संबोधित करना
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—ईर्ष्या, डाह
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—उपभोग, तृप्ति
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—थकावट
अहो —अव्य॰,न॰ त॰—-—हा+डो—कई बार केवल अनुपूरक के रूप में
अहो वत —अव्य॰—-—-—प्रकट करता है
अहो वत —अव्य॰—-—-—(क) दया, तरस तथा खेद, (ख) संतोष, (ग) संबोधित करना, बुलाना, (घ) थकावट
अहोपुरुषिका —स्त्री॰—अहो-पुरुषिका—-—अत्यधिक अहंमन्यता या घमंड
अहोपुरुषिका —स्त्री॰—अहो-पुरुषिका—-—सैनिक आत्मश्लाघा, शेखी बघारना
अहोपुरुषिका —स्त्री॰—अहो-पुरुषिका—-—अपने पराक्रम की डींग मारना
अह्नाय —अव्य॰—-—ह्न्+घञ् वृद्धि, पृषो॰ वस्य यत्वम्—तुरन्त, शीघ्र, फौरन
अह्नीक —वि॰,न॰ ब॰ —-—कप्—निर्लज्ज, ढीठ
अह्नीकः —पुं॰—-—-—बौद्ध भिक्षुक