विक्षनरी:भोजपुरी लोकोक्तियाँ
अकेले मियाँ रोवें की कबर खानें।
- अनुवाद : अकेले मियाँ रोएँ कि कब्र खोदें।
- भावार्थ : अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
अक्किल गईल घास चरे
- भावार्थ : सोच-विचार न कर पाना
अगिला खेती आगे-आगे, पछिला खेती भागे जागे
- भावार्थ : अग्र सोची सदा सुखी
अंडा सिखावे बच्चा के, बच्चा करु चेंव-चेंव
- भावार्थ : अज्ञानी का ज्ञानी को सिखाना
अंडा सिखावे बच्चा के,ए बच्चा तू चेंव-चेंव करअ।
- अनुवाद : अंडा सिखावे बच्चा को कि ऐ बच्चा तूँ चें-चें कर।
- भावार्थ : जिसे सबकुछ मालूम हो उसे बताना यानि अज्ञानी होकर ज्ञानी को उपदेश देना।
अपनी गली में त एगो कुत्ता शेर होला।
- अनुवाद : अपनी गली में एक कुत्ता भी शेर होता है।
- भावार्थ : अपने घर, गाँव, क्षेत्र आदि में सभी बहादुर होते हैं।
अपनी दही के केहु खट नाहीं कहेला।
- अनुवाद : अपनी दही को कोई खट्टा नहीं कहता है।
- भावार्थ : अपनी वस्तु आदि की कोई बुराई नहीं करता है।
अपनी दुआरे, कुतवो बरिआरे।
- अनुवाद : अपने दरवाजे पर कुत्ता भी बलवान।
- भावार्थ : अपनी गली में एक कुत्ता भी शेर होता है।
अपने खाईं, बिलरिया लगाईं।
- अनुवाद : खुद खाना और बिल्ली को लगाना।
- भावार्थ : गलत काम खुद करके दूसरे के मत्थे मढ़ना।
अबरा के मउगी, भर घर के भउजी
- भावार्थ : कमजोर का मजाक बनाना
अबरे के मेहरारू गाँवभरी के भउजाई।
- अनुवाद : दुर्बल की पत्नी गाँवभर की भौजाई।
- भावार्थ : कमजोर को सभी सताते हैं।
अभागा गइने ससुरारी अउरी उहवों माँड़े-भात।
- अनुवाद : अभागा गए ससुरार और वहाँ भी माँड़े-भात।
- भावार्थ : समय खराब होता है तो चारों तरफ से।
अहिर मिताई कब करे जब सब मीत मरी जाए।
- अनुवाद : अहिर से दोस्ती जब करे जब सब दोस्त मर जाएँ।
- भावार्थ : अहिर से दोस्ती अच्छी नहीं होती।
अहिर से इयारी, भादो में उजारी।
- अनुवाद : अहिर से यारी, भादों में उजारी (उजाड़)।
- भावार्थ : अहिर की दोस्ती ठीक नहीं।
आइल थोर दिन, गइल ढेर दिन।
- अनुवाद : आया थोड़ दिन, गया ढेर दिन।
- भावार्थ : समय बीतते देर नहीं लगती।
आई आम चाहें जाई लबेदा।
- अनुवाद : आएगा आम या जाएगा लबेदा।
- भावार्थ : हानि-लाभ की परवाह न करते हुए काम करना।
आखिर संख बाजल बाकिर बाबाजी के पदा के।
- अनुवाद : आखिर शंख बजा लेकिन बाबाजी को पदा के।
- भावार्थ : काम होना लेकिन बहुत परीश्रम के बाद।
आंगा नाथ ना पाछा पगहा
- भावार्थ : बिना रोक-टोक के
आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे।
- भावार्थ : उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है।
आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे।
- भावार्थ : उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है।
आगे नाथ ना पीछे पगहा,खा मोटा के भइने गदहा।
- अनुवाद : आगे नकेल ना पीछे पगहा(पशु को बाँधने की रस्सी), खा मोटाकर हुए गदहा।
- भावार्थ : स्वछंद व्यक्ति। जिसको रोकने-टोकनेवाला कोई न हो और इसलिए वह मनमौजी काम करता हो।
आदमी के काम हअए गलती कइल।
- अनुवाद : आदमी का काम है गलती करना।
- भावार्थ : गलती (अनजाने में हुआ गलत काम) आदमी से ही होती है अस्तु क्षमा कर देना ही उचित होता है।
आँधर गुरु बहिर चेला, माँगे गुड़ ले आवे ढेला।
- अनुवाद : अंधा गुरु बहरा चेला,माँगे गुड़ लाए ढेला।
- भावार्थ : उलटा काम करना।
आधा माघे कंबर काँधे।
- अनुवाद : आधा माघे कंबल कंधे।
- भावार्थ : आधा माघ महीना बीतते ही जाड़ा कम होने लगता है।
आन की धन पर कनवा राजा।
- भावार्थ : दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना।
आन की धन पर कनवा राजा।
- भावार्थ : दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना।
आन की धन पर तीन टिकुली।
- अनुवाद : दूसरे की धन पर तीन टिकुली।
- भावार्थ : दूसरे की धन पर ऐश करना।
आन की धन पर तेल बुकुआ।
- अनुवाद : दूसरे की धन पर तेल बुकुवा।
- भावार्थ : दूसरे की धन पर मजे करना। बुकुवा= पानी के साथ पीसी हुई सरसों (जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं) विशेषकर बच्चों, नई नवेली दुल्हन और जच्चा को।
आन के दाना हींक लगाके खाना।
- अनुवाद : आन का दाना भरपेट (दबाकर) खाना।
- भावार्थ : सुलभ (या दूसरे की) वस्तु का दुरुपयोग।
आन्हर कुकुर बतासे भोंके
- भावार्थ : बिना ज्ञान के बात करना
आन्हर कुकुर बतासे भोंके।
- अनुवाद : अंधा कुत्ता हवा बहने पर भी भोंके।
- भावार्थ : ऐसे ही या थोड़ा-सा भी संदेह होने पर हंगामा करना। (जानना ना समझना और ऐसे ही बकबक शुरु कर देना)
आपन अपने ह।
- अनुवाद : अपना अपना है।
- भावार्थ : अपना अपना ही होता है।
आपन इज्जत अपनी हाथे में हअ।
- अनुवाद : अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है।
- भावार्थ : अपनी इज्जत हम खुद ही बना के रख सकते हैं।
आपन निकाल मोर नावे दे।
- अनुवाद : अपना निकालो और मेरा डालने दो।
- भावार्थ : केवल अपना स्वार्थ देखना।
आपन पुतवा पुतवा ह अउरी सवतिया के पुतवा दूतवा ह।
- अनुवाद : अपना पुत पुत और सौत का पुत दूत।
- भावार्थ : अपने लोगों को ज्यादे महत्त्व देना और दूसरे को हीन समझना।
आपन पेट त सुअरियो पाली लेले।
- अनुवाद : अपना पेट तो सुअर भी पाल लेती है।
- भावार्थ : अपना पेट तो कोई भी पाल लेता है इसमें कौन-सी बड़ाई है। मानव वही जो सबका पेट भरे।
आपन भला त सब चाहेला।
- अनुवाद : अपना भला तो सब चाहते हैं।
- भावार्थ : आदमी वही जो दूसरे के अच्छे की भी सोंचे केवल अपना ही नहीं।
आपे-आपे लोग बिआपे, केकर माई केकर बापे।
- अनुवाद : अपना-अपना लोग चिल्लाएँ, किसकी माँ किसका बाप।
- भावार्थ : सबको अपनी ही पड़ी है या सब अपना ही लाभ देख रहे हैं यहाँ तक कि माँ-बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है।
आसमाने में थूकबS त मुँहवे पर आई।
- अनुवाद : आसमान में थूकेंगे तो अपने मुँह पर ही आएगा।
- भावार्थ : उलटा-पुलटा काम करके खुद फँसना।
इ कढ़ावें त उ घोंटावें।
- अनुवाद : ये कुछ कहें तो वे हामी भरें।
- भावार्थ : गहरी यारी।
इजती इजते पर मरेला।
- अनुवाद : इज्जतदार इज्जत पर मरता है।
- भावार्थ : इज्जतदार अपनी इज्जत के लिए सबकुछ न्यौछावर कर देता है।
इडिल-मिडिल के छोड़ आस, धर खुरपा गढ़ घास।
- अनुवाद : इडिल-मिडिल का छोड़िए आस, खुरपा पकड़कर गढ़िए घास।
- भावार्थ : पढ़ने में मन न लगे तो कोई और काम करना ही अच्छा है।
इस्क अउरी मुस्क छिपवले से नाहीं छीपेला।
- अनुवाद : इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता।
- भावार्थ : प्रेम और कस्तूरी (एक प्रकार का गंधद्रव्य) प्रगट हो ही जाते हैं।
इहे छउड़ी इहे गाँव, पूछे छउड़ी कवन गाँव
- भावार्थ : जानबूझ के अनजान बनना
उखड़े बार नाहीं अउरी बरियार खाँव नाव।
- अनुवाद : उखड़े बाल नहीं और बहादुर खाँ नाम।
- भावार्थ : मिट्टी के शेर। बनावटी वीर।
उँखी बहुत मीठाला त ओमे कीड़ा पड़ी जाने कुली।
- अनुवाद : गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं।
- भावार्थ : संबंध की एक सीमा होनी चाहिए।
उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी, भीख निदान।
- भावार्थ : (दादा-परदादा के समय में) सबसे अच्छा खेती करना उसके बाद व्यापार करना और उसके बाद नौकरी और सबसे गया गुजरा काम भीख माँगना माना जाता था।
उत्तर लउका लउके, दखिन गरजे मेह, ऊँचे दवड़ी नधइह, कही गइने सहदेव।
- भावार्थ : उत्तर दिशा में बिजली चमके और दक्षिण में बादल गरजे तो वर्षा अवश्य होती है।
उधिआइल सतुआ, पितर के दान।
- अनुवाद : उड़ा हुआ सत्तू पितृ को दान।
- भावार्थ : अनुपयोगी (खराब) वस्तु दूसरे को देना।
उधो के लेना, ना माधो के देना
- भावार्थ : अलग-अलग रहना
उपास से मेहरी के जूठ भला।
- अनुवाद : उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।
- भावार्थ : बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है।
उपास से मेहरी के जूठ भला।
- अनुवाद : उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।
- भावार्थ : बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है।
ऊपर से तऽ दिल मिला, भीतर फांके तीर
- भावार्थ : धोखेबाज
ए कुकुर तू काहें दूबर, दू घर के आवाजाई।
- अनुवाद : ऐ कुक्कुर तुम क्यों दुर्बल, दो घर का आना-जाना।
- भावार्थ : धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।
ए जबाना में पइसवे भगवान बाs।
- भावार्थ : आधुनिक युग में पैसा ही भगवान है।
एक घंटा माँगे त सवेसेर अउरी (और) दिनभर माँगे त सवे सेर।
- भावार्थ : मेहनत के बाद भी उन्नति न होना। जस का तस रहना।
एक तऽ बानर दूसरे मरलसी बीछी।
- अनुवाद : एक तो वानर दूसरे मार दी बिच्छी।
- भावार्थ : एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा।
एक बोलावे तेरह धावे। (बभने के)
- अनुवाद : ब्राह्मण को एक बार बुलाइए, तेरह बार आएगा।
- भावार्थ : ब्राह्मण खाने के लिए लालची होते हैं।
एक मुट्ठी लाई, बरखा ओनिये बिलाई
- भावार्थ : थोड़ी मात्रा में
एक हाथ के ककरी अउरी नौ हाथ के बिआ।
- अनुवाद : एक हाथ की ककड़ी और नौ हाथ का बीज।
- भावार्थ : अफवाह। असत्य बात। किसी छोटी-सी बात को भी बहुत ही बढ़ा-चढ़ाकर बताना।
एगो पूते के पूत अउरी एगो आँखी के आँखि नाहीं कहल जाला।
- अनुवाद : एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता।
- भावार्थ : संतान एक से अधिक ही अच्छी है।
एगो पूते के पूत अउरी एगो आँखी के आँखि नाहीं कहल जाला।
- अनुवाद : एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता।
- भावार्थ : संतान एक से अधिक ही अच्छी है।
एगो हरे गाँव भरी खोंखी।
- अनुवाद : एक हर्रे,गाँवभर खाँसी।
- भावार्थ : एक अनार सौ बीमार।
एगो हरे गाँवभरी खोंखी।
- अनुवाद : एक हर्रे,गाँवभर खाँसी।
- भावार्थ : एक अनार सौ बीमार।
एतना बड़ाई अउरी फटही रजाई।
- अनुवाद : इतनी बड़ाई और फटी हुई रजाई।
- भावार्थ : उस योग्य न होने पर भी अपने को उससे बढ़ चढ़कर बताना। (ऊँची दुकान, फीका पकवान)
ओखर में हाथ, मुसर के देनी दोष
- भावार्थ : नाच न जाने आँगन टेढ़ा
ओरवानी के पानी बड़ेरी नाहीं चढ़ेला।
- अनुवाद : ओरवानी (मढ़ई का निचला हिस्सा जहाँ से पानी गिरता है) का पानी बड़ेरी (मथानी यानि मड़ई का सबसे ऊपरी भाग) नहीं चढ़ता।
- भावार्थ : असम्भव या विपरीत काम।
ओस के चटला से पिआस ना मिटे
- भावार्थ : ऊँट के मुंह में जीरा
ओस चटले से पिआस नाहीं बूझी।
- अनुवाद : ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती।
- भावार्थ : आवश्यकता से बहुत ही कम की प्राप्ति से क्या लाभ।
क, ख, ग, घ के लूर ना, दे माई पोथी
- भावार्थ : औकात से अधिक माँगना
कंकरी के चोर फाँसी के सजाए
- भावार्थ : छोटे गुनाह की बड़ी सज़ा
कनवा के देखि के अँखियो फूटे अउरी कनवा बिना रहलो न जाए।
- अनुवाद : काना व्यक्ति को देखकर आँख भी फूटे और उसके बिना काम भी न चले।
- भावार्थ : ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले।
कनवा के देखि के अँखियो फूटे अउरी कनवा बिना रहलो न जाए।
- अनुवाद : काना व्यक्ति को देखकर आँख भी फूटे और उसके बिना काम भी न चले।
- भावार्थ : ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले।
कफन में जेब ना, दफन में भेव
- भावार्थ : ईमानदार
कबो घानी घाना कबो मुठी चना कबो उहो मना।
- अनुवाद : कभी घानी घना, कभी मुट्ठी चना,कभी वह भी मना।
- भावार्थ : (क)किसी को कभी बहुत इज्जत देना और कभी अपमान करना। (ख)सब दिन होत न एक समाना।
कमजोर देही में बहुत रीसि होला।
- अनुवाद : कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है।
- भावार्थ : कमजोर व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता है।
करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हS।
- अनुवाद : कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है।
- भावार्थ : कर्जा लेना अच्छा नहीं होता।
करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हS।
- अनुवाद : कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है।
- भावार्थ : कर्जा लेना अच्छा नहीं होता।
करनी ना धरनी,धियवा ओठ बिदोरनी।
- अनुवाद : करनी ना धरनी, बेटी ओठ विदोरनी (मुँह बनानेवाली)।
- भावार्थ : कुछ काम भी न करना और नखरे भी दिखाना।
करब केतनो लाखी उपाई, बिधी के लिखल बाँव न जाई।
- अनुवाद : करेंगे कितना भी लाख उपाय, विधि का लिखा घटित होगा ही।
- भावार्थ : जो भाग्य में है वह होकर रहेगा।
करम फूटे त फटे बेवाय
- भावार्थ : अभागा
करिया अक्षर भँइस बराबर ।
- भावार्थ : काला अक्षर भैंस बराबर। (अनपढ़)
करिया अच्छर से भेंट ना, पेंगले पढ़ऽ ताड़ें
- भावार्थ : असमर्थ होकर भी बड़ी-बड़ी बातें करना
करिया बाभन गोर चमार।
- अनुवाद : काला ब्राह्मण गोर चमार।
- भावार्थ : दोनों बहुत तेज (ढीठ) होते हैं।
कहला से धोबी गदहा पर ना चढ़े
- भावार्थ : मनमौजी
कहले पर धोबिया गदहवा पर नाहीं चढ़ेला।
- अनुवाद : कहने पर धोबी गदहा पर नहीं बैठता।
- भावार्थ : कुछ लोग कहने पर वह काम नहीं करते जबकि अपने मन से वही काम करते हैं।
का अंधरा की जगले अउरी का ओकरी सुतले।
- अनुवाद : क्या अंधे व्यक्ति के जगने से और उसके सोने से।
- भावार्थ : अनुपयोगी।
का कहीं कुछ कही ना जाता अउरी कहले बिना रही ना जाता।
- अनुवाद : क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता है और कहे बिना रहा नहीं जाता है।
- भावार्थ : बरदाश्त के बाहर। असह्य।
का राम की घरे रहले आ का राम की बने गइले।
- अनुवाद : क्या राम के घर रहने से या क्या राम के वन जाने से।
- भावार्थ : अनुपयोगी व्यक्ति। अयोग्य व्यक्ति।
का हरदी के रंग अउरी का परदेशी के संग।
- अनुवाद : क्या हरदी का रंग और क्या परदेशी का संग।
- भावार्थ : क्षणभंगुर वस्तुओं का क्या भरोसा।
काछ कसौटी सांवर बान, ई छाड़ि मति किनिह आन।
- भावार्थ : दो दाँत और भूरे रंग वाला बैल अच्छा माना जाता है।
काठ के हड़िया चढ़े न दूजो बार
- भावार्थ : बिना अस्तित्व का
काठे के हाड़ी बार-बार नाहीं चढ़ेला।
- अनुवाद : काठ की हाड़ी बार-बार नहीं चढ़ती।
- भावार्थ : किसी (समझदार) का दुरुपयोग एक ही बार किया जा सकता है, बार-बार नहीं।
कानी बिना रहलो न जाये, कानी के देख के अंखियो पेराए
- भावार्थ : प्यार में तकरार
काने के कच्चा।
- अनुवाद : कान का कच्चा।
- भावार्थ : सहज विश्वासी। बिना सोचे-समझे विश्वास करनेवाला।
काम के न काज के, दुश्मन अनाज के।
- भावार्थ : अयोग्य पर खदक्कड़ (पेटू)।
काम न धाम हे दे बानी हे दे।
- अनुवाद : काम न धाम यहाँ हूँ यहाँ।
- भावार्थ : काम-धाम न करना लेकिन श्रेय लेने की कोशिश करना।
काली माई करिया, भवानी माई गोर
- भावार्थ : अपनी-अपनी किस्मत
की हंसा मोती चुने,की भूखे मर जाय।
- अनुवाद : कि हंस मोती चुगे,कि भूखे मर जाए।
- भावार्थ : शेर जब भी खाएगा मांस ही खाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ व्यक्ति परेशानी उठा लेंगे लेकिन अपने वसूल यानि मान-मर्यादा के खिलाफ नहीं जाएँगे।
कुकुरे की पोंछी केतनो घी लगाव उ टेड़े के टेड़े रही।
- अनुवाद : कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी।
- भावार्थ : प्रकृति नहीं जाती यानि स्वभाव बना रहता है।
कुकुरे के पोंछी बारह बरिस गाड़ी के राख, टेड़े के टेड़े रही।
- अनुवाद : कुत्ते की पूँछ को बारह वर्ष गाड़कर रखिए, टेड़ी की टेड़ी रहेगी।
- भावार्थ : स्वभाव (प्रकृति) बदलना बहुत ही कठिन होता है।
कुत्ता काटे अनजान के अउरी बनिया काटे पहचान के।
- भावार्थ : कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले को ठगता है।
कुत्ता काटे अनजान के अउरी बनिया काटे पहचान के।
- भावार्थ : कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचानवाले को ठगता है।
कुल अउरी कपड़ा रखले से।
- अनुवाद : कुल (वंश) और कपड़ा हिफाजत करने से।
- भावार्थ : कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे।
के पर करीं सिंगार पिया मोरे आनर।
- अनुवाद : किस पर करूँ श्रृंगार, पिया मोरे अंधे।
- भावार्थ : उस काम को करने से क्या लाभ जिसका महत्व समझने वाला ही कोई न हो।
केरा (केला), केकड़ा, बिछू, बाँस इ चारो की जमले नाश।
- भावार्थ : इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है।
केरा (केला), केकड़ा, बिछू, बाँस इ चारो की जमले नाश।
- भावार्थ : इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है।
केहु कही दी की कउआ कान लेगइल, तs आपन कान टोवबs आकि कउआ की पीछे दउड़बs।
- अनुवाद : कोई कह देगा कि कौआ कान ले गया तो अपना कान देखेंगे या कौआ के पीछे भागेंगे।
- भावार्थ : अफवाह पर ध्यान न देकर वास्तविकता जानें।
केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला।
- अनुवाद : किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक फोड़ नहीं लेना चाहिए।
- भावार्थ : किसी की बराबरी करने के लिए उलटा-पुलटा काम नहीं करना चाहिए।
केहू खात-खात मुए अउरी केहू खइले बिना मुए।
- अनुवाद : कोई खाता-खाता मरे और कोई खाने के बिना मरे।
- भावार्थ : दुरुपयोग होना। कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर कमी।
केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर
- भावार्थ : चोर-चोर मौसेरे भाई
कोइला से हीरा, कीचड़ से फूल
- भावार्थ : अद्भुत कार्य
कोदो देके नइखीं पढ़ले।
- अनुवाद : कोदों देकर नहीं पढ़ा हूँ।
- भावार्थ : अपने आप को मूर्ख नहीं समझना।
कोरा में लइका अउरी गाँवभरी ढ़िढोरा।
- अनुवाद : गोदी में लड़का और गाँवभर में ढ़िढोरा।
- भावार्थ : वास्तविकता को छोड़ अफवाह पर ध्यान।
खड़ी खेती,गाभिन गाय, तब जान जब मुँह में जाय।
- अनुवाद : खड़ी खेती, गाभिन गाय,तब जानिए जब मुँह में जाए।
- भावार्थ : खड़ी फसल और गाभिन गाय का भरोसा नहीं होता यानि जबतक फसल कटकर खलिहान में न आ जाए तबतक उसके नष्ट होने की संभावना बनी रहती है और गाभिन गाय भी जबतक बच्चा न जन दे तबतक उसका भी भरोसा नहीं।
खाँ भीम अउरी हगें सकुनी।
- अनुवाद : खाएँ भीम और दिशा मैदान करें शकुनी।
- भावार्थ : एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।
खा मन भाता अउरी पहिनS जग भाता।
- अनुवाद : खाइए मन भाता और पहनिए जग भाता।
- भावार्थ : अपने रुचिनुसार भोजन करना चाहिए पर कपड़े ऐसा पहनना चाहिए, जो दूसरों को अच्छा लगे।
खाए के ठेकान ना, नहाये के तड़के
- भावार्थ : परपंच रचना
खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला।
- भावार्थ : भोजन सदा समय पर करें और कुसंगत से बचें।
खाली बाती से काम नाहीं चलेला।
- अनुवाद : केवल बात से काम नहीं चलता।
- भावार्थ : काम करके दिखाना चाहिए केवल गप नहीं मारना चाहिए।
खिंचड़ी के चारी इआर, दही, पापर, घी, अचार।
- अनुवाद : खिंचड़ी के चार यार,दही, पापड़, घी,अँचार।
- भावार्थ : खिंचड़ी खाने में तब मजा आता है जब साथ में दही, पापड़, घी, और अँचार भी हो।
खिचड़ी खात के नीक लागे अउरी बटुली माजत के पेट फाटे।
- अनुवाद : खिचड़ी खाते समय अच्छी लगे और बरतन धोते समय परेशानी हो।
- भावार्थ : बिना मेहनत के आराम करना ठीक नहीं।
खेत खा गदहा अउरी मारी खा जोलहा।
- अनुवाद : खेत खाए गदहा और मार खाए जोलहा।
- भावार्थ : गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना।
खेत खा गदहा अउरी मारी खा जोलहा।
- अनुवाद : खेत खाए गदहा और मार खाए जोलहा।
- भावार्थ : गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना।
खेत खाय गदहा, मारल जाय जोलहा
- भावार्थ : किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलना
खेतिहर गइने घर दाएँ बाएँ हर।
- अनुवाद : खेतिहर गए घर दाएँ बाएँ हल।
- भावार्थ : मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे।
खेतिहर गइने घर दाएँ बाएँ हर।
- अनुवाद : खेतिहर गए घर दाएँ बाएँ हल।
- भावार्थ : मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे।
खेती, बेटी, गाभिन गाय, जे ना देखे ओकर जाय।
- अनुवाद : खेती,बेटी गाभिन गाय, जो ना देखे, उसकी जाए।
- भावार्थ : खेती,बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है। यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो आप को पछताना पड़ सकता है।
खेलबी ना खेले देइबी, खेलिए बिगाड़बी।
- अनुवाद : न खेलूँगा न खेलने दूँगा, खेल को बिगाड़ुँगा।
- भावार्थ : न खुद अच्छा काम करना न दूसरे को करने देना।
खोंसू के जान जा अउरी खवइया के सवादे ना मिले।
- अनुवाद : खोंसू (बकरा) का जान जाए और खानेवाले को स्वाद ही न मिले।
- भावार्थ : बहुत ही हुज्जत करना ताकि कोई परेशान रहे।
गइने मरद जिन खइने खटाई अउरी गइली मेहरारू जिन खइली मिठाई।
- अनुवाद : गया मर्द जो खाया खटाई और गई औरत जो खाई मिठाई।
- भावार्थ : मर्द को खट्टी चीजें और औरतों को मीठी चीजें कम खानी चाहिए।
गइयो हाँ अउरी भइँसियो हाँ।
- अनुवाद : गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।
- भावार्थ : गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना।
गइयो हाँ अउरी भइँसियो हाँ।
- अनुवाद : गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।
- भावार्थ : गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना।
गइल जवानी फिर ना लौटी, चाहें घी, मलीदा खा।
- अनुवाद : गई जवानी फिर नहीं लौटेगी, चाहें घी, मलीदा खा।
- भावार्थ : एक बार जवानी जाने के बाद फिर कभी भी वापस नहीं आती। कुछ भी करें गया समय वापस नहीं आता।
गइल भँइस पानी में।
- अनुवाद : गई भैंस पानी में।
- भावार्थ : हानि। घाटा।
गइल माघ दिन ओनतीस बाकी।
- अनुवाद : गया माघ दिन उनतीस बाकी।
- भावार्थ : समय (अच्छा हो या बुरा) व्यतीत होते देर नहीं लगती।
गइल माघ दिन ओनतीस बाकी।
- अनुवाद : गया माघ दिन उनतीस बाकी।
- भावार्थ : समय (अच्छा हो या बुरा) व्यतीत होते देर नहीं लगती।
गइल राज जहवाँ चुगला पइठे, गइल पेड़ जहवाँ बकुला बइठे।
- अनुवाद : गया राज्य जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे।
- भावार्थ : चुगलखोर राज,परिवार आदि को नष्ट कर देते हैं और वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है जिसपर बराबर बकुला बैठते हैं।
गज भर के गाजी मियाँ नव हाथ के पोंछ
- भावार्थ : आडम्बर
गाइ ओसर अउरी भँइस दोसर।
- अनुवाद : गाय पहलौठी और भैंस दूसरे।
- भावार्थ : पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं।
गाइ ओसर अउरी भँइस दोसर।
- अनुवाद : गाय पहलौठी और भैंस दूसरे।
- भावार्थ : पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं।
गाइ बाँधी के राखल जाले साड़ नाहीं।
- अनुवाद : गाय बाँधकर रखी जाती है, साड़ नहीं।
- भावार्थ : मर्द की अपेक्षा औरत पर ज्यादे निगरानी रखना।
गाइ बाँधी के राखल जाले साड़ नाहीं।
- अनुवाद : गाय बाँधकर रखी जाती है, साड़ नहीं।
- भावार्थ : मर्द की अपेक्षा औरत पर ज्यादे निगरानी रखना।
गाई गुन बछरू, पिता गुन घोड़ा, नाहीं ढेर त थोड़ो थोड़ा।
- अनुवाद : गाय गुण बछरू, पिता गुण घोड़ा,नहीं अधिक तो थोड़ो-थोड़ा।
- भावार्थ : गाय का गुण बछड़े में और पिता का गुण घोड़े में थोड़ा बहुत अवश्य होता है।
गाड़ी में दम नाहीं बारी में डेरा।
- अनुवाद : गाड़ में दम नहीं बगीचे में डेरा।
- भावार्थ : डींगबाजी करनेवाले के लिए कहा जाता है। जो केवल बढ़-बढ़कर बातें करे उसके लिए कहा जाता है।
गारी में लसालस नाहीं पादे ठसाठस।
- अनुवाद : गाड़ में लसालस नहीं पादे ठसाठस।
- भावार्थ : अत्यधिक बहसनेवाले को कहा जाता है।
गुरु गुड़ रह गइलन, चेला चीनी हो गइले
- भावार्थ : गुरु से आगे निकल जाना
गेहूँ की साथे घुनवो पिसाला।
- अनुवाद : गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।
- भावार्थ : साथ रहनेवाला भी लपेट में आ जाता है यानि अच्छा होते हुए भी बुरे के साथ रहने पर कभी-कभी बुरी संगति के कारण परेशानी खड़ी हो जाती है।
गोर चमाइन गर्भे आनर।
- अनुवाद : गोर चमाइन घमंड से अंधी।
- भावार्थ : गोर चमाइन को घमंड होता है।
घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध
- भावार्थ : घर की मुर्गी दाल बराबर
घर के ना घाट के माई के न बाप के।
- भावार्थ : आवारा।
घर के भेदिया लंका ढाहे
- भावार्थ : चुगली करने वाला
घर फूटे गँवार लूटे।
- भावार्थ : अगर घर में फूट पड़ जाए तो उल्लू भी अपना उल्लू सीधा कर लेता है। यानि घर में सदा एकता होनी चाहिए।
घर फूटे जवार लूटे
- भावार्थ : दुसरे का फायदा उठाना
घर में दिया बारी के मंदिर में दिया बारल जाला।
- अनुवाद : घर में दीपक जलाने के बाद मंदिर में दीपक जलाया जाता है।
- भावार्थ : पहले आत्मा फिर परमात्मा। पहले अपना काम फिर दूसरे का।
घर में भूजी भाँग नाहीं बीबी पादे चिउड़ा।
- अनुवाद : घर में भूजिया (चावल), भाँग नहीं और बीबी पादे चिउड़ा।
- भावार्थ : उस योग्य न होने पर भी अपने को उससे बढ़ चढ़कर बताना। -अत्यधिक बहसना।
घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत
- भावार्थ : सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को
घीउ के लड्डू टेड़ों भला।
- भावार्थ : घी का लड्डू टेड़ों भला।
घीव के लड्डू, टेढो भला
- भावार्थ : मांगी हुई चीज़ हर हाल में अच्छी
घीव देख बाभन नरियात।
- अनुवाद : घी देखते ही ब्राह्मण चिल्लाए।
- भावार्थ : मनचाही वस्तु मिलने पर भी नाटक करना।
घोड़ा की पिछाड़ी अउरी हाकिम की अगाड़ी कबो नाहीं जाए के चाहीं।
- अनुवाद : घोड़ा की पीछे और अधिकारी के आगे कभी नहीं जाना चाहिए।
- भावार्थ : घोड़ा के पीछे जाने पर उसके लात मारने का खतरा रहता है जबकि अपने से बड़े अधिकारी के आगे-आगे करने पर उसके क्रोधित होने की संभावना होती है।
चउबे गइलन छब्बे बने दूबे बन के अइलन
- भावार्थ : फायदे के लालच में नुकसान करना
चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए
- भावार्थ : कंजूस
चमरा की मनवले डांगर नाहीं मरेला।
- अनुवाद : चमार के मनाने से पशु नहीं मरता।
- भावार्थ : वही होगा जो भगवान चाहेगा।
चलनी में दूध दुहे अउरी करमे के दोस दे।
- अनुवाद : चलनी (छलनी) में दूध दुहना और कर्म को दोष देना।
- भावार्थ : गलती खुद करना और दोष दूसरे पर लगाना।
चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला।
- अनुवाद : चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है।
- भावार्थ : गल्ती करे कोई और, पकड़ा जाए कोई और।
चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला।
- अनुवाद : चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है।
- भावार्थ : गल्ती करे कोई और, पकड़ा जाए कोई और।
चाल रहे सादा जे निबहे बाप-दादा।
- अनुवाद : चाल रहे सादा जो निबहे बाप-दादा।
- भावार्थ : चाल-चलन ऐसा रखना चाहिए कि जिसका निर्वाह आसानी से हो जाए।
चालीस में चारी कम (३६), हजाम, पंडीजी सलाम।
- अनुवाद : चालीस में चार कम हजाम, पंडितजी सलाम।
- भावार्थ : हजाम छत्तीसा (बहुत चालाक) होते हैं और उनका टक्कर केवल पंडित ही ले सकता है।
चिउरा के गवाह दही। -- -चिउड़ा का गवाह दही।
- भावार्थ : एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।
चिरई के जान जा, लइकन के खेलौना।
- अनुवाद : चिड़िया का जान जाए और बच्चों का खिलौना।
- भावार्थ : दूसरे के कष्ट को नजरअंदाज करना।
चिरईं के जान जाए, लईका के खेलवना
- भावार्थ : किसी का कष्ट देख खुश होना
चिरई में कउआ, मनई में नउआ।
- अनुवाद : चिड़िया में कौआ,मनई में नउआ (हजाम)।
- भावार्थ : पक्षियों में कौवा और आदमियों में हजाम बहुत चतुर होते हैं।
चोरवा के मन बसे ककड़ी की खेत में।
- अनुवाद : चोर का मन बसे ककड़ी के खेत में।
- भावार्थ : आदत नहीं जाती।
छत्री के छौ बुधी, बभने के बारह, अहिरे के एके बुधी बोलब त मारबी।
- भावार्थ : क्षत्रिय की छह बुद्धि, ब्राह्मण की बारह, अहिर की एक ही बुद्धि बोलोगे तो मारूँगा।
छाती पर मुंग दरऽ
- भावार्थ : बिना मतलब का कष्ट देना
छिया-छिया गप-गप।
- अनुवाद : छी-छी गप-गप।
- भावार्थ : किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।
छिया-छिया गप-गप।
- अनुवाद : छी-छी गप-गप।
- भावार्थ : किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।
जइसन खाइ अन, वइसन रही मन।
- अनुवाद : जैसा खाएँगे अन्न, वैसा रहेगा मन।
- भावार्थ : हम क्या खाते हैं,उसका प्रभाव आचरण और मनोवस्था पर भी पड़ता है।
जइसन देखीं गाँव के रीती ओइसन उठाईं आपन भीती।
- अनुवाद : जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।
- भावार्थ : समय को देखते हुए काम करें।
जइसन देखीं गाँव के रीती ओइसन उठाईं आपन भीती।
- अनुवाद : जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।
- भावार्थ : समय को देखते हुए काम करें।
जइसन बोअबऽ, ओइसन कटबऽ।
- अनुवाद : जैसा बोएँगे, वैसा काटेंगे।
- भावार्थ : कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति।
जइसन बोअबऽ, ओइसने कटबऽ
- भावार्थ : जैसी करनी वैसी भरनी
जइसन माई ओइसन धिया, जइसन काकड़ ओइसन बिया।
- अनुवाद : जैसी माँ वैसी पुत्री, जैसा काकड़ वैसा बीज।
- भावार्थ : पुत्री में माँ का गुण होता है।
जनम के संघाती सब केहु ह लेकिन करम के नाहीं।
- अनुवाद : जनम के दोस्त सभी होते हैं लेकिन कर्म का कोई नहीं।
- भावार्थ : कर्म खुद करना पड़ता है।
जब भगवान मुँह चिरले बाने त खाएके देबे करीहें।
- अनुवाद : जब भगवान मुँह बनाए हैं तो खाना भी देंगे।
- भावार्थ : अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।
जवन रोगिया के भावे उ बैदा फुरमावे।
- अनुवाद : जो रोगी को अच्छा लगे वही वैद्य बतावे।
- भावार्थ : किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे।
जवन रोगिया के भावे उ बैदा फुरमावे।
- अनुवाद : जो रोगी को अच्छा लगे वही वैद्य बतावे।
- भावार्थ : किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे।
जवने खातिर अलगा भइनीऽ उहे परल बखरा।
- अनुवाद : जिसके लिए अलग हुआ वही मेरे हिस्से में आ गया।
- भावार्थ : अनचाहा काम आदि जो करना पड़े।
जवने पतल में खाना ओही में छेद करना।
- अनुवाद : जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना।
- भावार्थ : विश्वासघात करना।
जवने पतल में खाना ओही में छेद करना।
- अनुवाद : जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना।
- भावार्थ : विश्वासघात करना।
जात-जात के भेदिया जात-जात घर जाए बाभन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए।
- भावार्थ : ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं।
जाति सुभाव ना छुटे, टाँग उठा के मुते। (कुत्ता)
- अनुवाद : जाति स्वभाव ना छुटे, टाँग उठाकर मूते।
- भावार्थ : स्वभाव (प्रकृति) नहीं बदलता। जैसे- चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
जाहाँ लूटी परे ताहाँ टूटी परे, जाहाँ मारी परे ताहाँ भागी परे।
- अनुवाद : जहाँ लूट पड़े तहाँ टूट पड़े, जहाँ मार पड़े तहाँ भाग पड़े।
- भावार्थ : खुदगर्ज।
जिअते माछी नाहीं घोंटाई।
- अनुवाद : जिंदा मक्खी नहीं घोंटी जाती (खाई जाती)।
- भावार्थ : अपने सामने ही कोई ग़लती करे तो उसको नजरअंदाज करना मुश्किल होता है।
जिनगी भर गुलामी, बढ़-बढ़ के बात
- भावार्थ : छोटी मुँह बड़ी बात
जिनगी में उतार-चढ़ाव आवत जात रहेला।
- अनुवाद : जिन्दगी में उतार-चढ़ाव आता-जाता रहता है।
- भावार्थ : सब दिन होत न एक समाना।
जियते पिया बाती न पूछें,मुअते पिपरवा पानी। -- -जीवित रहने पर पिया बात न पूँछे,मरते ही पीपल में पानी।
- भावार्थ : दिखावा करना।
जीअत पर छूँछ भात, मरले पर दूध-भात।
- अनुवाद : जीवित रहने पर केवल भात, मरने पर दूध-भात।
- भावार्थ : मरने के बाद आदर बढ़ जाना।
जीअत पर छूँछ भात, मरले पर दूध-भात।
- अनुवाद : जीवित रहने पर केवल भात, मरने पर दूध-भात।
- भावार्थ : मरने के बाद आदर बढ़ जाना।
जे ऊँखियारे ऊँखी नाहीं दी ऊ कलुहारे मिठा देई।
- अनुवाद : जो गन्ने के खेत में गन्ना नहीं देगा वह कोल्हुआड़ (गुड़ पकाने की जगह) में गुड़ देगा।
- भावार्थ : बड़बोला।
जे केहु से ना हारे उ अपने से हारेला।
- भावार्थ : जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है।
जे केहु से ना हारे उ अपने से हारेला।
- भावार्थ : जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है।
जे गुड़ खाई उ कान छेदाई।
- अनुवाद : जो गुड़ खाएगा वो कान छेदाएगा।
- भावार्थ : गलत काम का परिणाम भी गलत होता है।
जे न देखल कनेया पुतरी उ देखल साली
- भावार्थ : उन्नति कर जाना
जे ना देखन अठन्नी-चवन्नी उ देखल रूपइया
- भावार्थ : सौभाग्यशाली
जे पंडीजी बिआह करावेने उहे पिंडो परावेने।
- अनुवाद : जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी।
- भावार्थ : अच्छा बुरा दोनों करना।
जेकर बनरिया उहे नचावे, दूसर जा त काटे धावे।
- अनुवाद : जिसकी बन्दरिया वही नचावे, दूसरा जा तो काटे धावे।
- भावार्थ : जिसकी जो वस्तु होती है उसका उपयोग वही अच्छी तरह कर सकता है।
जेकर बनरी उहे नचावे, दोसर नचावे त काटे धावे
- भावार्थ : जिसकी चीज़ उसी की अक्ल
जेकर बहिन अंदर ओकर भाई सिकनदर।
- अनुवाद : जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर।
- भावार्थ : भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है।
जेकर बहिन अंदर ओकर भाई सिकनदर।
- अनुवाद : जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर।
- भावार्थ : भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है।
जेकरी छाती बार नाहीं, ओकर एतबार नाहीं।
- अनुवाद : जिसके सीने पर बाल नहीं, उसका भरोसा नहीं।
- भावार्थ : जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए।
जेकरी छाती बार नाहीं, ओकर एतबार नाहीं।
- अनुवाद : जिसके सीने पर बाल नहीं, उसका भरोसा नहीं।
- भावार्थ : जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए।
जेतना के बबुआ ना ओतना के झुनझुना
- भावार्थ : अधिक खर्च करना
जेतने मुँह ओतने बातें।
- अनुवाद : जितने मुँह उतनी बातें।
- भावार्थ : सब अपनी-अपनी राय देते हैं या अपनी-अपनी बुद्धि से एक ही बात को अलग-अलग ढंग से कहते हैं।
जेतने वेकती ओतने कार, नाहीं वेकती नाहीं कार।
- अनुवाद : जितने व्यक्ति उतना काम, नहीं व्यक्ति नहीं काम।
- भावार्थ : जितने लोग रहते हैं उतना ही काम रहता है।
जेतने सरी ओतने तरी।
- अनुवाद : जितना सड़ेगा उतना तरेगा।
- भावार्थ : जितना पुराना उतना ही बढ़िया।
ढुलमुल बेंट कुदारी अउरी हँसी के बोले नारी।
- अनुवाद : हिलता बेंत कुदाल का और हँस के बोले नारी।
- भावार्थ : दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं।
ढुलमुल बेंट कुदारी अउरी हँसी के बोले नारी।
- अनुवाद : हिलता बेंत कुदाल का और हँस के बोले नारी।
- भावार्थ : दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं।
तीन जाति अलगरजी, नाऊ, धोबी, दर्जी।
- भावार्थ : हजाम, धोबी और दर्जी बेपरवाह होते हैं।
तीन जाति गड़िआनर, ऊँट, बिदारथी, बानर।
- भावार्थ : ऊँट, विद्यार्थी और वानर अविवेकी होते हैं।
तीन में ना तेरह में
- भावार्थ : कहीं का नहीं
तेली के जरे मसाल, मसालची के फटे कपार
- भावार्थ : इर्ष्या करना
तेली के लइका भूखे मरे अउरी लोग कहे की पी के मातल बा।
- अनुवाद : तेली का लड़का भूखे मरे और लोग कहें कि पीकर मतवाला हो गया है।
- भावार्थ : किसी चीज का कारण कुछ और हो और कुछ और समझा जाए।
थूके सतुआ नाहीं सनाई।
- अनुवाद : थूक से सतुआ नहीं सनेगा (गूँथेगा)।
- भावार्थ : अत्यधिक परिश्रम/सामग्री आदि की आवश्यकता होना। मेहनत की आवश्यकता।
दउरा में डेग डालल
- भावार्थ : धीरे-धीरे चलन
दस (आदमी) के लाठी एक (आदमी) के बोझ।
- भावार्थ : एकता में शक्ति है।
दस (आदमी) के लाठी एक (आदमी) के बोझ।
- भावार्थ : एकता में शक्ति है।
दाँत बा तS चाना नाहीं, चाना बा तS दाँत नाहीं।
- अनुवाद : दाँत है तो चना नहीं, चना है तो दाँत नहीं।
- भावार्थ : समयानुसार आवश्यक वस्तु की कमी।
दादा कहने सरसउवे लदीहS।
- अनुवाद : दादा कहे सरसों ही लादना (यानि सरसों का ही व्यापार करना)
- भावार्थ : लकीर के फकीर।
दान की बछिया के दाँत नाहीं गिनल जाला।
- अनुवाद : दान की बछिया के दाँत नहीं गिनते।
- भावार्थ : मुफ्त में मिल रही वस्तु के अवगुण नहीं देखते।
दाल-भात के कवर
- भावार्थ : बहुत आसन होना
दुधारू गाइ के लतवो सहल जाला।
- अनुवाद : दुधारू गाय का लात भी सहा जाता है।
- भावार्थ : जिस व्यक्ति से अपना फायदा हो अगर वह कुछ उलटा-पुलटा भी करे या बोले तो सहा जाता है।
दुधारू गाय के लातो सहल जाला
- भावार्थ : लाभ मिले तो मार भी सहनी पड़ती है
दुलारी घिया के कनकटनी नाव।
- अनुवाद : दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।
- भावार्थ : ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है।
दुलारी घिया के कनकटनी नाव।
- अनुवाद : दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।
- भावार्थ : ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है।
दूनू लोक से गइने पाड़े,न हलुआ मिलल न माड़े।
- अनुवाद : दोनों लोक से गए पाण्डेय (ब्राह्मणों की एक उपजाति),न हलुआ मिला न माड़े (माड़-भात में से निकला लसदार थोड़ा गाढ़ा पदार्थ)।
- भावार्थ : धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का।
दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।
- भावार्थ : दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना।
दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।
- भावार्थ : दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना।
देखादेखी पाप अउरी (और) देखादेखी धरम।
- भावार्थ : देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं।
देखादेखी पाप अउरी (और) देखादेखी धरम।
- भावार्थ : देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं।
देही ना दासा गाड़ी तेलवासा।
- अनुवाद : देह न दासा गाड़ तेलवासा (तेल लगाना)।
- भावार्थ : अच्छी शरीर न होने पर भी अत्यधिक बनाव-श्रृंगार करनेवालों के लिए कहा जाता है।
धन के बढ़ल अछा हS, मन के बढ़ल नाहीं।
- भावार्थ : धन का बढ़ना अच्छा है, मन का बढ़ना नहीं।
धान गिरे बढ़ भाग,गोहूँ गिरे दुरभाग।
- अनुवाद : धान गिरे बढ़ भाग्य, गेहूँ गिरे दुरभाग्य।
- भावार्थ : खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती। यानि गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे और सारहीन हो जाते हैं।
धोबिया अपनी गदहवो के बाबू कहे।
- अनुवाद : धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे।
- भावार्थ : मीठा बोलें और सम्मानित बोलें। अपनी बोली (भाषा) कभी खराब न करें, सुबोली बोलें न कि कुबोली।
नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला।
- अनुवाद : हजाम को देखकर हजामत बढ़ जाती है।
- भावार्थ : असमय इच्छा करना। आवश्यकता न होने पर भी आसानी से प्राप्त होनेवाली वस्तु का उपयोग करने की इच्छा।
नन्ही चुकी गाजी मियाँ, नव हाथ के पोंछ
- भावार्थ : सम्भलने से परे
नया-नया दुलहिन के नया-नया चाल
- भावार्थ : नई प्रथा शुरू करना
नरको में ठेलाठेली।
- अनुवाद : नरक में भी ठेलाठेली।
- भावार्थ : कहीं भी आराम नहीं।
नरको में ठेलाठेली।
- अनुवाद : नरक में भी ठेलाठेली।
- भावार्थ : कहीं भी आराम नहीं।
नव के लकड़ी, नब्बे खरच
- भावार्थ : बेवकूफी में खर्च करना
नव नगद ना तेरह उधार
- भावार्थ : लेन-देन बराबर रखना
नवकि में नव के पुरनकी में ठाढ़े
- भावार्थ : नये-नये को इज्जत देना
ना खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ब
- भावार्थ : किसी को आगे न बढ़ने देना
ना चलनी में पानी आइ ना मूंजी के बरहा बराई।
- अनुवाद : ना चलनी में पानी आएगा ना मूँज का बरहा बन पाएगा।
- भावार्थ : असम्भव काम।
ना नईहरे सुख, ना ससुरे सुख
- भावार्थ : अभागा
ना नीमन गीतिया गाइब, ना मड़वा में जाइब
- भावार्थ : ना अच्छा काम करेंगे ना पूछ होगी
ना नीमन गीती गाइबी, ना दरबार धके जाइबी।
- अनुवाद : ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा।
- भावार्थ : जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना।
ना नौ मन तेल होई ना राधा नचिहें
- भावार्थ : न साधन उपलब्ध होगा, न कार्य होगा
ना रही बाँस ना बाजी बँसुरी।
- अनुवाद : न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
- भावार्थ : मूल का ही सफाया।
नाचे कूदे बंदर अउरी (और) माल खाए मदारी।
- भावार्थ : किसी दूसरे के मेहनताने पर ऐश करना।
नानी की आगे ननीअउरे के बखान।
- अनुवाद : नानी की आगे ननिहाल का वर्णन।
- भावार्थ : जिसे सबकुछ मालूम हो,उसे बताना।
नानी के धन,बेइमानी के धन अउरी जजमानी के धन नाहीं रसेला।
- भावार्थ : ननिहाल, बेइमानी और यजमानी का धन व्यर्थ ही जाता है। यानि किसी काम का नहीं होता।
नाया लुगा नौ दिन, लुगरी बरीस दिन।
- अनुवाद : नया कपड़ा नौ दिन, फटा-पुराना सालभर।
- भावार्थ : अपना पुराना ही काम आता है। नया भी कुछ दिन के बाद पुराना हो जाता है।
नाहीं चिन त नाया कीन।
- अनुवाद : नहीं पहचान तो नया खरीद।
- भावार्थ : पारखी न होने पर कोई भी वस्तु नया ही खरीदना चाहिए।
निरबंस अच्छा लेकिन बहुबंस नाहीं अच्छा।
- अनुवाद : निरवंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा।
- भावार्थ : संतान हो तो अच्छे गुण वाली, नहीं तो हो ही न।
निरबंस आछा लेकिन बहुबंस नाहीं आछा।
- अनुवाद : निर्वंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा।
- भावार्थ : पुत्र हो तो सदाचारी न तो न ही हो।
नीक रही करम, त का करीहें बरम।
- अनुवाद : अच्छा रहेगा करम, तो क्या करेंगे बरम (एक गाँव के देवता)।
- भावार्थ : अपना कर्म हमेशा अच्छा रखना चाहिए।
नेबुआ तs लेगइल सागे में मती डाले।
- अनुवाद : नेंबू तो ले गया, साग में मत डाले।
- भावार्थ : किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका।
नेबुआ तs लेगइल सागे में मती डाले।
- अनुवाद : नेंबू तो ले गया, साग में मत डाले।
- भावार्थ : किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका।
नौ के लकड़ी,नब्बे खर्च।
- भावार्थ : नौ की लकड़ी,नब्बे खर्च।
पइसा ना कउड़ी बीच बाजार में दौड़ा-दौड़ी
- भावार्थ : बिना साधन के भविष्य की कल्पना
पड़लें राम कुकुर के पाले
- भावार्थ : कुसंगति में पड़ना
पहीले दिन पहुना,दूसरे दिन ठेहुना,तीसरे दिन केहुना।
- भावार्थ : रिस्तेदारी में ज्यादे दिन रहने से धीरे-धीरे इज्जत कम होने लगती है।
पाईं त रस लाई, नाहीं त घर-घर आगी लगाईं।
- अनुवाद : पाऊँ तो रस लाऊँ, नहीं तो घर-घर आग लगाऊँ।
- भावार्थ : मिलने पर खुश और न मिलने पर हंगामा।
पातर देहरी अन्न के खानि।
- अनुवाद : पतली देहली अन्न की खान।
- भावार्थ : पतला आदमी ज्यादे खाता है।
पानी पीअs छानी के अउरी गुरु करs जानी के।
- अनुवाद : पानी पीजिए छानकर और गुरु कीजिए जानकर।
- भावार्थ : पानी छानकर पीना चाहिए और सोच समझकर गुरु करना चाहिए।
पाव भरी के देबी अउरी नौ पाव पूजा।
- अनुवाद : पावभर की देवी और नौ पाव पूजा।
- भावार्थ : नौ की लकड़ी,नब्बे खर्च।
पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।
- अनुवाद : पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।
- भावार्थ : रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए।
पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।
- अनुवाद : पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।
- भावार्थ : रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए।
पेट कबो नाहीं भरेला।
- अनुवाद : पेट कभी नहीं भरता।
- भावार्थ : दुनिया में सबकुछ भर सकता है केवल पेट को छोड़कर। यानि बिना खाए काम नहीं चल सकता।
पेटवे सब कुछ करावेला।
- अनुवाद : पेट ही सबकुछ कराता है।
- भावार्थ : पेट के कारण ही जीव बुरे से बुरा काम भी करता है।
पैर पुजाइल बा पीठी नाहीं।
- अनुवाद : पैर की पुजा हुई है पीठ की नहीं।
- भावार्थ : एक सीमा तक ही सहा जा सकता है। (यह कहावत उदंड रिस्तेदार जैसे उदंड दमाद आदि के लिए कही जाती है)
फटकी के लS अउरी अउरी फटकी के दS।
- अनुवाद : फटक कर लीजिए और फटक कर दीजिए।
- भावार्थ : हिसाब बराबर रखना। मरौवत न रखना।
फुटली आँखों ना सोहाला
- भावार्थ : बिल्कुल नापसंद
बइठले ले बेगारी भला।
- अनुवाद : बेकार से बेगार भला।
- भावार्थ : खाली बैठना ठीक नहीं। हमेशा कुछ न कुछ (अच्छा ही) करते रहना ही ठीक होता है।
बईठल बनिया का करे, एह कोठी के धान ओह कोठी धरे
- भावार्थ : बिना मतलब का काम करना
बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई।
- अनुवाद : बकरी की माँ कबतक खर जिउतिया मनाएगी।
- भावार्थ : जो होना है वह होगा ही।
बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई।
- अनुवाद : बकरी की माँ कबतक खर जिउतिया मनाएगी।
- भावार्थ : जो होना है वह होगा ही।
बड़ के लइका पादे त बाबू के हवा खुली गइल अउरी छोट के पादे त मार सारे पदले बा ।
- अनुवाद : बड़ का लड़का पादे तो बाबू का हवा खुल गया और छोट का पादे तो मार साला पाद दिया।
- भावार्थ : बड़ को इज्जत और छोट का अपमान।
बड़ के लइका पादे त बाबू के हवा खुली गइल अउरी छोट के पादे त मार सारे पदले बा ।
- अनुवाद : बड़ का लड़का पादे तो बाबू का हवा खुल गया और छोट का पादे तो मार साला पाद दिया।
- भावार्थ : बड़ को इज्जत और छोट का अपमान।
बड़ रहें जेठानी त राखें आपन पानी।
- अनुवाद : बड़ रहें जेठानी तो रखें अपना पानी (इज्जत)।
- भावार्थ : अपनी इज्जत अपने हाथ में है।
बड़ संग रहिअ त खइहS बीड़ा पान, छोट संग रहिअ त कटइहS दुनु कान।
- अनुवाद : बड़ संग रहेंगे तो खाएंगे बीड़ा पान,छोट संग रहेंगे तो कटाएँगे दोनों कान।
- भावार्थ : सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है।
बड़-बड़ घोड़ा दहाइल जा अउरी गदहा पूछे केतना पानी।
- अनुवाद : बड़े-बड़े दह जाएँ और गदहा पूछे कितना पानी।
- भावार्थ : जो बड़ों से न हो वह छोटे करने का दुस्साहस करें (हास्य)। किसी छोटे द्वारा दुस्साहस करने पर कहा जाता है।
बढ़ जाती बतिअवले अउरी छोट जाती लतिअवले।
- भावार्थ : सभ्य बात से समझता है जबकि असभ्य (नीच) मारपीट से।
बतिया मानबी बाकिर खूँटवा ओहि जागि गारबी।
- अनुवाद : बात मानूँगा पर खूँटा अपनी जगह पर ही गाड़ूँगा।
- भावार्थ : दूसरे की सुनना पर करना अपनी वाली ही।
बनला के सभे इयार, बिगड़ला के केहू ना
- भावार्थ : समय का फेर
बनले के साथी सब केहू ह अउरी बिगड़ले के केहु नाहीं।
- अनुवाद : बनने पर साथी सभी पर बगड़ने पर कोई नहीं।
- भावार्थ : सुख के साथी सभी हैं लेकिन दुख में ना कोय।
बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया।
- भावार्थ : पैसे का ही महत्व होना।
बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया।
- भावार्थ : पैसे का ही महत्व होना।
बभने के बनावल नाहीं त बभने खाई, नाहीं त बैले खाई।
- अनुवाद : ब्राह्मण का बनाया नहीं तो ब्राह्मण खाएगा नहीं तो बैल खाएगा।
- भावार्थ : ब्राह्मण भोजन या तो बहुत ही अच्छा बनाता है नहीं तो बहुत ही खराब।
बभने में तिउआरी, कटहल के तरकारी अउरी हैजा के बेमारी।
- अनुवाद : ब्राह्मण में तिवारी और कटहल की तरकारी एवं हैजा की बीमारी।
- भावार्थ : तीनों का भरोसा नहीं।
बहसू के नव गो हर, खेते में गइल एको नाहीं।
- अनुवाद : बहसनेवाला के पास नौ हल, पर खेत में गया एक भी नहीं।
- भावार्थ : केवल बहसने से काम नहीं चलता।
बाग़ के बाग़ चउरिये बा
- भावार्थ : बेवकूफ जनता
बाढ़े पूत पिता की धरमा, खेती उपजे अपनी करमा।
- भावार्थ : पिता के अच्छे कर्मों से पुत्र की उन्नति होती है और अपनी मेहनत से ही खेत में अच्छी पैदावार होती है।
बाण-बाण गइल त नौ हाथ के पगहा ले गइल
- भावार्थ : खुद तो डूबे दूसरे को भी ले डूबे
बानर का जानी आदी के सवाद।
- अनुवाद : बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
- भावार्थ : सब वस्तु की महत्ता सब लोग नहीं जानते।
बाप ओझा अउरी माई डाइन।
- अनुवाद : बाप ओझा (झाड़-फूँक करनेवाला) और माँ डाइन।
- भावार्थ : विरोधाभास। एक अच्छा तो दूसरा बुरा।
बाबा के धियवा लुगरी अउरी भइया के धियवा चुनरी।
- अनुवाद : दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी।
- भावार्थ : बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान।
बाबा के धियवा लुगरी अउरी भइया के धियवा चुनरी।
- अनुवाद : दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी।
- भावार्थ : बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान।
बाभन बुधी।
- अनुवाद : ब्राह्मण बुद्धि।
- भावार्थ : चालूपना ।प्रयोग-- यहाँ ब्राह्मण बुद्धि नहीं चलेगी।
बाभन मुअतो खाला अउरी जिअतो खाला।
- अनुवाद : ब्राह्मण मरकर भी खाता है और जीते भी खाता है।
- भावार्थ : ब्राह्मण से कभी पीछा नहीं छूटता।
बाभन, कुकुर, भाँट, जाति-जाति के काट।
- भावार्थ : ब्राह्मण, कुत्ता और भाँट अपनी जाति के लोगों के ही दुश्मन होते हैं।
बाभन,कुकुर, भाँट, जाति-जाति के काट।
- भावार्थ : ब्राह्मण ,कुत्ता और भाँट अपनी जाति के लोगों के ही दुश्मन होते हैं।
बाभन,कुकुर,हाथी,नाहीं जात के साथी।
- अनुवाद : ब्राह्मण,कुत्ता, हाथी, नहीं जाति के साथी।
- भावार्थ : ब्राह्मण,कुत्ता और हाथी अपनी ही जाति के सदस्यों के शत्रु होते हैं यानि इनमें आपस में एकता का अभाव होता है। विशेष- लेकिन हाथी एक झुंड में रहते हैं।
बाँसे की कोखी रेड़ जामल।
- अनुवाद : बाँस की कोंख से रेड़ पैदा होना।
- भावार्थ : कुपुत्र होना।
बाहे न बिआ उ बतिए कहा।
- अनुवाद : गाभिन हो न बच्चा दे वह बतिया कही जाए।
- भावार्थ : उम्र बढ़ती ही रहती है।
बिधी के लिखल बाँव ना जाई।
- अनुवाद : विधि का लिखा गलत नहीम होगा।
- भावार्थ : विधि का लिखा अवश्य घटित होगा।
बिधी के लिखल बाँव ना जाई।
- अनुवाद : विधि का लिखा गलत नहीम होगा।
- भावार्थ : विधि का लिखा अवश्य घटित होगा।
बिन घरनी,घर भूत के डेरा।
- अनुवाद : बिन औरत, घर भूत के डेरा।
- भावार्थ : औरत से ही घर,घर लगता है।
बिन मारे मुदई (शत्रु) मरे, की खड़े ऊँख बिकाए
- भावार्थ : गन्ने की खड़ी फसल बिक जाए, बिना दहेज के बर मिले तो तीनों काम बन जाए।
बिना बुलावे कुकुर धावे।
- अनुवाद : बिना बुलाए कुत्ता जाए।
- भावार्थ : बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए।
बिनु घरनी, घर भूत के डेरा
- भावार्थ : नारी बिना घर सूना
बिलइया के नजर मुसवे पर
- भावार्थ : लक्ष्य पर ध्यान होना
बीछी के मंतरिए ना जाने अउरी साँपे की बिअली में हाथ डाले।
- अनुवाद : बिच्छी का मंतर ही न जाने और साँप के बिल में हाथ डाले।
- भावार्थ : नासमझ होते हुए भी समझदार बनने का दिखावा करना।
बुढ़ सुगा पोस ना मानेला
- भावार्थ : पुराने को नयी सीख नहीं दी जा सकती
बुढ़वा भतार पर पाँची गो टिकुली।
- अनुवाद : बुढ़े पति पर पाँच टिकली।
- भावार्थ : वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो।
बुढ़वा भतार पर पाँची गो टिकुली।
- अनुवाद : बुढ़े पति पर पाँच टिकली।
- भावार्थ : वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो।
बुन्नी नाचे थुन्नी पर, फुहरी बड़ेरी पर।
- अनुवाद : बुन्नी नाचे थूनी पर, फूहड़ी (फूहड़ महिला) बड़ेर (मड़ई का सबसे ऊपरी भाग) पर।
- भावार्थ : डिंग हाँकना (एक से बड़कर एक)।
बुरा काम के नतीजो बुरे होला।
- भावार्थ : बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है।
बूनभर तेल करिआँवभरी पानी।
- अनुवाद : बूँदभर तेल और कमर तक पानी।
- भावार्थ : कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग।
बूनभर तेल करिआँवभरी पानी।
- अनुवाद : बूँदभर तेल और कमर तक पानी।
- भावार्थ : कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग।
बेटओ मीठ अउरी भतरो मीठ।
- अनुवाद : बेटा भी मीठा और पति भी मीठा।
- भावार्थ : सबसे मिला हुआ।
बेटा अउरी लोटा बाहरे चमकेला।
- अनुवाद : पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है।
- भावार्थ : जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है।
बेटा अउरी लोटा बाहरे चमकेला।
- अनुवाद : पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है।
- भावार्थ : जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है।
बेटा के भुजा अउरी दमादे के जाउर।
- अनुवाद : बेटा को कुरमुरा और दमाद को खीर।
- भावार्थ : अपनों का अनादर और दूसरों का सम्मान।
बेटी के बेटा कवने काम, खइहें इहँवा चेटइहें गाँव।
- अनुवाद : बेटी के बेटा किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव।
- भावार्थ : दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते।
बेहाया की पीठी पर रूख जामल ओकरा खातिर छाहें हो गइल।
- अनुवाद : बेहया की पीठ पर पेड़ जम गया तो उसके लिए छाया हो गया।
- भावार्थ : निर्लज्जता से बाज न आना।
भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी।
- अनुवाद : भैंस पानी में हगेगी तो (गोबर) ऊपर आएगा ही।
- भावार्थ : छिपी हुई बात प्रकट हो जाती है। सच्चाई छिप नहीं सकती, बनावट के वसूलों से।
भगवान की घर में देर बा, अंधेर नाहीं।
- भावार्थ : भगवान के घर में देर है, अंधेर नहीं।
भगवान के बाँही बहुत लमहर ह।
- अनुवाद : भगवान की बाँह बहुत लंबी होती है।
- भावार्थ : भगवान सबकी रक्षा करता है।
भगवान के भाई भइल बारअ।
- अनुवाद : भगवान के भाई बने हैं।
- भावार्थ : जब कोई काम करने में टालमटोल करता है या कहता है कि बाद में करूँगा तो कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि कोई भी काम कल पर नहीं टालना चाहिए।
भगवान के माया कहीं धूप कहीं छाया।
- अनुवाद : भगवान की माया कहीं धूप कहीं छाया।
- भावार्थ : दुनिया में जो कुछ भी घटित हो रहा है यानि अच्छा या बुरा,वह भगवान की ही कृपा से।
भगीमाने के हर भूत हाँकेला।
- अनुवाद : भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।
- भावार्थ : भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है।
भगीमाने के हर भूत हाँकेला।
- अनुवाद : भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।
- भावार्थ : भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है।
भर घरे देवर, भसुरे से मजाक
- भावार्थ : उल्टा काम करना
भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले
- भावार्थ : मौसमी अंदाज
भाग वाला के भूत हर जोतेला
- भावार्थ : भाग्यवान का काम बन जाना
भूख त छूछ का, नींद त खरहर का
- भावार्थ : आवश्यकता प्रधान
भूखे भजन न होई गोपाला, ले लS आपन कंठी माला।
- अनुवाद : भूखे भजन न होय गोपाला, ले लीजिए अपनी कंठी माला।
- भावार्थ : भूखे रहकर कोई काम नहीं होता।
भूखे भजन ना होइहें गोपाला, लेलीं आपन कंठी-माला
- भावार्थ : खाली पेट काम नहीं होता
भेड़ियाधसान
- भावार्थ : घमासान, भेड़-चाल
भोला गइलें टोला प, खेत भइल बटोहिया, भोला बो के लइका भइल ले गइल सिपहिया
- भावार्थ : ना घर का ना घाट का
मँगनी के चनन, घिसें रघुनंनन।
- अनुवाद : मँगनी के चंदन,घिसें रघुनंदन।
- भावार्थ : दूसरे की वस्तु का दुरुपयोग।
मंगनी के बैल के दांत ना गिनाये
- भावार्थ : मुफ्त में मिली वस्तु की तुलना नहीं की जाती
मन चंगा त कठवती में गंगा।
- अनुवाद : मन चंगा तो कठवत में गंगा।
- भावार्थ : मन की पवित्रता सर्वोपरि है।
मन चंगा त कठवती में गंगा।
- अनुवाद : मन चंगा तो कठवत में गंगा।
- भावार्थ : मन की पवित्रता सर्वोपरि है।
मन चंगा तऽ कठवती में गंगा।
- भावार्थ : मन साफ होना चाहिए।
मन में आन, बगल में छुरी, जब चाहे तब काटे मूरी।
- अनुवाद : मन में कुछ और, बगल में छुरी, जब चाहो तब काटो मुंडी (सिर)।
- भावार्थ : बगुला भगत।
मन मोरा चंचल, जिअरा उदास, मन मोरा बसे इयरवा के पास।
- अनुवाद : मन मेरा चंचल, मन उदास, मन मेरा बसे यार के पास।
- भावार्थ : मन की चंचलता या किसी काम में मन न लगना।
मरदे के खाइल अउरी मेहरारू के नहाइल, केहू देखेला नाहीं।
- अनुवाद : मर्द का खाना और औरत का नहाना, कोई नहीं देख पाता।
- भावार्थ : मर्द को खाने में और औरत को नहाने में अधिक समय नहीं लगाना चाहिए।
मरले से भूतो भागी जाला।
- अनुवाद : मारने से भूत भी भग जाता है।
- भावार्थ : कभी-कभी बिना कठोर हुए काम नहीं चलता। कभी-कभी अंगुली टेड़ी ही करनी पड़ती है।
महँगा रोए एकबार, सस्ता रोए बार-बार।
- भावार्थ : महँगी वस्तुएँ अधिक दिन चलती हैं और अच्छी भी होती हैं।
माई के जिअरा (मनवा) गाई अइसन, बाप के जिअरा कसाई अइसन।
- अनुवाद : माँ का हृदय गाय के समान, बाप का हृदय कसाई के समान।
- भावार्थ : बाप की अपेक्षा माँ अत्यधिक स्नेही होती है।
माई के मनवा गाई जइसन, अउरी पूत के मनवा कसाई जइसन।
- अनुवाद : माँ का मन गाय जैसा और पूत का मन कसाई जैसा।
- भावार्थ : पुत्र कुपुत्र पर माता सदा सुमाता।
माई चले गली-गली, बेटा बने बजरंगबली
- भावार्थ : खुद की तारीफ़ करना
माघ के टूटल मरद अउरी भादो के टूटल बरध कबो नाहीं जुटेलें।
- अनुवाद : माघ महीने में टूटा मर्द और भादों में टूटा बैल कभी नहीं जुटते।
- भावार्थ : माघ में जिस आदमी की शरीर टूट गई मतलब कमजोर हो गई और भाद्रपद में जिस बैल की शरीर कमजोर हो गई वह फिर कभी तैयार नहीं होती यानि उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता।
माघे जाड़ ना पूसे जाड़, जब बयारी बहे तबे जाड़।
- अनुवाद : माघ में जाड़ा ना पूस में जाड़ा,जब हवा बहे तभी जाड़ा।
- भावार्थ : ठंडी के दिनों में जब हवा बहती है तो ठंडक बढ़ जाती है।
माड़-भात-चोखा, कबो ना करे धोखा
- भावार्थ : सादगी का रहन-सहन
मानS तS देव नाहीं तS पत्थर।
- अनुवाद : मानिए तो देव नहीं तो पत्थर।
- भावार्थ : विश्वास ही सर्वोपरी है।
मारे छोहन छाती फाटे अउरी आँसू के ठेकाने नाहीं।
- अनुवाद : मारे प्रेम से छाती फाटे और आँसू का ठिकाना ही नहीं।
- भावार्थ : दिखावामात्र घड़ियाली आँसू बहाना।
मारे छोहन छाती फाटे अउरी आँसू के ठेकाने नाहीं।
- अनुवाद : मारे प्रेम से छाती फाटे और आँसू का ठिकाना ही नहीं।
- भावार्थ : दिखावामात्र। घड़ियाली आँसू बहाना।
मुअल घोड़ा के घास खाइल
- भावार्थ : मिथ्या आरोप
मुराइलो हँसुआ अपनीए ओर खींचेला।
- अनुवाद : भोथरा हँसुआ भी अपनी ओर ही खींचता है।
- भावार्थ : पक्षपात करना।
मुरुगा ना रही त बिहाने नाहीं होई।
- अनुवाद : मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी।
- भावार्थ : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता।
मुरुगा ना रही त बिहाने नाहीं होई।
- अनुवाद : मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी।
- भावार्थ : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता।
रसरी जरी गइल पर एंठ नाहीं गइल।
- भावार्थ : रस्सी जल गई पर ऐंठ नहीं गई। (घमंड न जाना)
रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा
- भावार्थ : असमर्थता
रहे निरोगी जे कम खाया, काम न बिगरे जो गम खाया।
- भावार्थ : कम खाना और गम खाना अच्छा होता है।
रहे निरोगी जे कम खाया, काम न बिगरे जो गम खाया।
- भावार्थ : कम खाना और गम खाना अच्छा होता है।
राजा के मोतिये के दुःख बाऽ
- भावार्थ : सक्षम को क्या दुःख
राम मिलवने जोड़ी एगो आँधर एगो कोढ़ी।
- अनुवाद : राम मिलाए जोड़ी एक आँधर एक कोढ़ी।
- भावार्थ : जो जैसा रहता है उसकी संगति भी वैसी ही मिल जाती है। (दानी को दानी मिले, मिले सोम को सोम अच्छा को अच्छा मिले, मिले डोम को डोम।)
राम मिलावे जोड़ी एगो आन्हर एगो कोढ़ी
- भावार्थ : एक जैसा मेल करना
रामजी के चिरईं, रामजी के खेत, खाले चिरईं भर-भर पेट
- भावार्थ : अपने धन पर ऐश
रूप न रंग, मुँह देखाइये मांगताड़े
- भावार्थ : ठगी करना
रो रो खाई,धो धो जाई।
- अनुवाद : रो-रो खाएगा, धो-धो जाएगा।
- भावार्थ : भोजन सदा प्रसन्न मन से करना चाहिए। अप्रसन्न मन से किया हुआ भोजन शरीर को लाभ नहीं पहुँचाता।
रोग के जड़ खाँसी।
- भावार्थ : खाँसी रोगों की जड़ है।
रोग के जड़ खाँसी।
- भावार्थ : खाँसी रोगों की जड़ है।
रोजो कुँआ खोदS अउरी रोजो पानी पीअS।
- अनुवाद : रोज कुँआ खोदना और रोज पानी पीना।
- भावार्थ : भविष्य के बारे में न सोचना। यानि केवल जो आगे आए उसी पर विचार करनेवाला। अदूरदर्शी व्यक्ति के लिए।
रोवहीं के रहनी तवले अँखिए खोदा गइल।
- अनुवाद : रोने को था ही तभी आँख खुद गई।
- भावार्थ : इच्छित काम होना। जैसा चाहना वैसा (घटना, काम आदि) हो जाना (नकारात्मक)। जवन रोगिया के भावे उ बैदा फरमावे।
रोवे के रहनी अंखिये खोदा गइल
- भावार्थ : बहाना मिल जाना
रोवे गावे तूरे तान, ओकर दुनिया राखे मान।
- भावार्थ : नंगा (निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाला) की बात सब लोग मान लेते हैं।
लईकन के संग बाजे मृदंग, बुढ़वन के संग खर्ची के दंग
- भावार्थ : जब जैसा तब तैसा
लगन चरचराई अपने हो जाई
- भावार्थ : समय पर काम बन जाना
लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।
- अनुवाद : जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।
- भावार्थ : पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना।
लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।
- अनुवाद : जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।
- भावार्थ : पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना।
लाजे भवही बोले ना अउरी सवादे भसुर छोड़े ना।
- अनुवाद : लज्जा के कारण भवज बोले नहीं और स्वाद के लिए भसूर (जेठ- पति का जेठा भाई) छोड़े नहीं।
- भावार्थ : किसी की चुप्पी या मजबूरी का नाजायज फायदा उठाना।
लाठी कपारे भेंट नाहीं अउरी बाप-बाप चिल्ला।
- अनुवाद : लाठी सिर से लगी नहीं और बाप-बाप चिल्लाए।
- भावार्थ : नखरेबाजी।
लाठी के देवता बाती से नाहीं मानेलें।
- अनुवाद : लाठी के देवता बात से नहीं मानते।
- भावार्थ : दुष्ट समझाने से नहीं समझता। कभी-कभी अंगुली टेड़ी करना आवश्यक होता है।
लाठी के मारल भुला जाला लेकिन बाती के नाहीं।
- अनुवाद : लाठी की मार भुल जाती है लेकिन बात की नहीं।
- भावार्थ : बात रूपी तीर से घायल व्यक्ति का घाव कभी नहीं भरता।
लात के देवता बात से ना माने
- भावार्थ : आदत से लाचार
लाते के देवता बाती से ना मानेला।
- अनुवाद : लात का देवता बात से नहीं मानता है।
- भावार्थ : दुष्ट को समझाने से कोई फायदा नहीं।
लाद दऽ लदवा दऽ, घरे ले पहुँचवा दऽ
- भावार्थ : बढ़ता लालच
लामही से पाँव लागी लेहल ठीक ह।
- अनुवाद : दूर से ही प्रणाम कर लेना अच्छा है।
- भावार्थ : कभी-कभी अत्यधिक मेल-जोल ठीक नहीं।
लाल,पीयर जब होखे अकास, तब नइखे बरसा के आस।
- अनुवाद : लाल, पीला जब हो आकाशा,तब नहीं है वर्षा की आशा।
- भावार्थ : अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती।
लूर-लुपुत बाई मुअले प जाई
- भावार्थ : आदत से लाचार
लोग न लइका मुँहे लागल करिखा।
- अनुवाद : लोग न लड़का, मुँह में लगा कालिख।
- भावार्थ : बदनामी।
लोहा के लोहे काटेला।
- अनुवाद : लोहे को लोहा काटता है।
- भावार्थ : समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है।
लोहा के लोहे काटेला।
- अनुवाद : लोहे को लोहा काटता है।
- भावार्थ : समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है।
वेश्या में नाव लिखाइल त का मोट अउरी का पातर।
- अनुवाद : वेश्या में नाम लिख गया तो क्या मोटा और क्या पतला।
- भावार्थ : जो काम करना है उसे करना है चाहे वह छोटा हो या बड़ा।
सइंया भये कोतवाल,अब डर काहे का।
- अनुवाद : सैंया भए कोतवाल तो अब किस बात का डर।
- भावार्थ : अपने शासन में अपनीवाली करना। यानि जिसकी लाठी उसकी भैंस।
सईयाँ के मन-मुँह पाईं तS सासु के झोंटा नेवाईं।
- अनुवाद : पति के मन की बात समझूँ तो सासु का बाल नोंचू।
- भावार्थ : संगति मिलते ही गलत काम करना।
सउती के रीसि कठवती पर।
- अनुवाद : सौत का गुस्सा कठौत पर।
- भावार्थ : गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर।
सब चाही त काम आँटी।
- अनुवाद : सब चाहेंगे तो काम अँटेगा।
- भावार्थ : अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए।
सब चाही त काम आँटी।
- अनुवाद : सब चाहेंगे तो काम अँटेगा।
- भावार्थ : अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए।
सब धन बाईसे पसेरी
- भावार्थ : सब एक समान
सब धन-धाम सरीरिएले।
- अनुवाद : सब धन-धाम शरीर तक ही।
- भावार्थ : जबतक शरीर ठीक है तभी तक धन कमाया जा सकता है या घूमा (तीर्थयात्रा) जा सकता है।
सब धान बाइसे पसेरी।
- अनुवाद : सब धान बाइस ही पसेरी। (पसेरी एक तौल है जो लगभग पाँच किलो के बराबर माना जाता है)
- भावार्थ : सब एक जैसे। (व्यंग्य में कहा जाता है- एक जैसे गलत लोगों के लिए। जैसे- अगर आप के तीन-चार लड़के हैं और सब कुपात्र ही हैं तो आप अपने बच्चों के लिए कह सकते हैं- सब धान बाइसे पसेरी। )
सब रामायन बीती गइल, सीता केकर बाप।
- अनुवाद : सब रामायण खत्म हो गया, सीता किसकी बाप।
- भावार्थ : अच्छी तरह से समझाने के बाद भी उसी प्रकरण से संबंधित मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना।
सबकुछ खइनी दुगो भुजा ना चबइनी।
- अनुवाद : सब कुछ खाया दो भुजा न चबाया।
- भावार्थ : भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए।
सबकुछ खइनी दुगो भुजा ना चबइनी।
- अनुवाद : सब कुछ खाया दो भुजा न चबाया।
- भावार्थ : भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए।
सराहल धिया डोम घरे जाली।
- अनुवाद : सराहना की हुई पुत्री ही डोम के घर जाती है।
- भावार्थ : अत्यधिक बढ़ाई कर देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं।
सरी पाकी जइहें, गोतिया ना खइहें, गोतिया के खाइल, अकारथ जइहें।
- अनुवाद : सड़-पक जाएगा, दूसरा न खाएगा, दूसरे का खाया, अकारथ (बेकार) जाएगा।
- भावार्थ : खराब हो जाने देना लेकिन दूसरे को उपयोग न करने देना।
ससुर के परान जाए पतोह करे काजर
- भावार्थ : निष्ठुर होना
साँच के आँच नाहीं लागेला।
- अनुवाद : साँच को आँच नहीं।
- भावार्थ : सच्चा का अहित नहीं होता ना ही डर।
साँच के आँच नाहीं लागेला।
- अनुवाद : साँच को आँच नहीं।
- भावार्थ : सच्चा का अहित नहीं होता ना ही डर।
साँचे कहले साथ छुटेला।
- अनुवाद : सच्चाई कहने से साथ छूटता है।
- भावार्थ : सच्चाई कहने से दुश्मनी हो जाती है।
साँचे कहले साथ छुटेला।
- अनुवाद : सच्चाई कहने से साथ छूटता है।
- भावार्थ : सच्चाई कहने से दुश्मनी हो जाती है।
साँपे के काटल रसियो देखी के डेराला।
- अनुवाद : जिसको साँप काट देता है वह रस्सी को भी देखकर डरता है।
- भावार्थ : दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है।
साँपे के काटल रसियो देखी के डेराला।
- अनुवाद : जिसको साँप काट देता है वह रस्सी को भी देखकर डरता है।
- भावार्थ : दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है।
सांवा खेती, अहिर मीत, कबो-कबो होखे हीत।
- भावार्थ : साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं।
सांवा खेती, अहिर मीत, कबो-कबो होखे हीत।
- भावार्थ : साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं।
सुखे के साथी सब केहु हs।
- अनुवाद : सुख के साथी सब हैं।
- भावार्थ : सुख के साथी सब हैं दुख का है न कोय।
सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तS फाटे बेवाइ।
- भावार्थ : सुख में सिहुला (एक त्वचा रोग) होता है, दुख में दिनाइ (एक प्रकार का खाज रोग) और जब कर्म ही फूट जाता है तो पैर में बिवाई फट जाती है।
सुपवा हंसे चलनिया के कि तोरा में सतहत्तर छेद
- भावार्थ : खुद दोषी होकर किसी को कोसना
सूप त सूप चलनियो हँसे जवने में छपन गो छेद।
- अनुवाद : सूप तो सूप छलनी भी हँसे जिसमें छप्पन छेद होता है।
- भावार्थ : अवगुणी व्यक्ति द्वारा दूसरे की कमियाँ निकालना।
सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी।
- अनुवाद : मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी।
- भावार्थ : किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो।
सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी।
- अनुवाद : मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी।
- भावार्थ : किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो।
सोने के कुदारी माटी कोड़े के हअ।
- अनुवाद : सोने की कुदाल माटी कोड़ने के लिए है।
- भावार्थ : सबको अपनी योग्यतानुसार कार्य करना ही अच्छा होता है।
सौ पापे बाघ मरेला।
- अनुवाद : सौ पाप करने पर बाघ मरता है।
- भावार्थ : अति सर्वत्र वर्जयेत। पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ही ।
सौ पापे बाघ मरेला।
- अनुवाद : सौ पाप करने पर बाघ मरता है।
- भावार्थ : अति सर्वत्र वर्जयेत। पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ही ।
हड़बड़ी के बिआह, कनपटीये सेनुर
- भावार्थ : हड़बड़ी का काम गड़बड़ी में
हथिया की पेटे जाड़ ह।
- अनुवाद : हाथी की पेट से जाड़ा है।
- भावार्थ : हस्त नक्षत्र से जाड़ा शुरु हो जाता है।
हथिया-हथिया कइलन गदहो ना ले अइलन
- भावार्थ : नाम बड़े दर्शन छोटे
हम चराईं दिल्ली, हमरा के चरावे घर के बिल्ली
- भावार्थ : घर की मुर्गी दाल बराबर
हर द हरवाह द अउरी गाड़ी खोदे के पैना द।
- अनुवाद : हल दीजिए, हलवाहा दीजिए और बैल को हाँकने के लिए डंडा भी दीजिए।
- भावार्थ : पूरी तरह से दूसरे पर निर्भर होने वाले आलसी जो सब कुछ दूसरे से ही अपेक्षा करते हैं उनके लिए कहा जाता है।
हरिकल मानेला परिकल नाहीं मानेला।
- अनुवाद : हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है । (परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो)
- भावार्थ : खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया
हरिकल मानेला परिकल नाहीं मानेला।
- अनुवाद : हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है। (परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो)
- भावार्थ : खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता।
हरीसचंद पर विपती पड़ी त पकवल मछरी जल में कूदी।
- अनुवाद : हरिशचंद्र पर विपत्ति पड़ी तो (आग में) पकाई हुई मछली जल में कूदी।
- भावार्थ : विपत्ति बहुत बुरी होती है।
हवा के आंगा, बेना के बतास
- भावार्थ : सूरज को दीपक दिखाना
हंस के मंत्री कौआ
- भावार्थ : बेमेल
हँसुआ की बिआहे में खुरपी के गीत।
- अनुवाद : हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।
- भावार्थ : जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना।
हँसुआ की बिआहे में खुरपी के गीत।
- अनुवाद : हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।
- भावार्थ : जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना।
हंसुआ के बिआह, खुरपी के गीत
- भावार्थ : बेमतलब की बात
हाथी आइली हाथी आइली पदलसी भढ़ाक दे।
- अनुवाद : हाथी आयी, हाथी आयी पादी भढ़ाक दे।
- भावार्थ : अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात।
हाथी आइली हाथी आइली पदलसी भढ़ाक दे।
- अनुवाद : हाथी आयी, हाथी आयी पादी भढ़ाक दे।
- भावार्थ : अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात।
हाथी चले बाजार, कुकुर भोंके हजार
- भावार्थ : गंभीरता से काम करना
हाथे में पइसा रहेला तब बुधियो काम करेले।
- अनुवाद : हाथ में पैसा रहने पर बुद्धि काम करती है।
- भावार्थ : पास में पैसा रहने पर दिमाग अपने-आप चलता है।
हुँसीयार लइका हगते चिन्हाला।
- अनुवाद : होशियार लड़का पाखाना करते समय भी पहचाना जाता है ।
- भावार्थ : होनहार विरवान के होत चिकने पात।
हेलल भंईसिया पानी में
- भावार्थ : सब खत्म हो जाना
होता घीवढारी आ सराध के मंतर
- भावार्थ : विपरीत काम करना
हंसले घर बसेला
- भावार्थ : उन्नति करना