विक्षनरी:ब्रजभाषा सूर-कोश खण्ड-५

ब्रजभाषा सूर-कोश पंचम खण्ड

सम्पादन
थरिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थाली)
थाली।


थरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
माँद।


थरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
गुफा।


थरू
संज्ञा
पुं.
[सं. स्थल]
जगह, स्थल।


थर्राना
क्रि. अ.
(अनु. थर थर)
डर से काँपना।


थर्राना
क्रि. अ.
(अनु. थर थर)
दहलना, भयभीत हो जाना।


थल
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल)
स्थान, ठिकाना।


थल
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल)
सूखी धरती।


थल
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल)
थल का मार्ग।


थल
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल)
रेगिस्तान।


थल
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल)
बाघ की माँद।


थलकना
क्रि. अ.
(सं. स्थूल)
झोल से हिलना- डोलना।


थलकना
क्रि. अ.
(सं. स्थूल)
मोटापे से मांस का डिलना-डोलना।


थलचर
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थलचर)
पृथ्वी के जीव-जन्तु।


थलचारी
वि.
(सं. स्थलचारी)
भूमि पर चलनेवाले।


थलज
संज्ञा
पुं.
(हिं. थल)
स्थल में उत्पन्न होनेवाला पेड़- पौधा आदि।


थलज
संज्ञा
पुं.
(हिं. थल)
गुलाब।


थलथल
वि.
(सं. स्थूल)
मोटापे या झोल के कारण हिलता-डोलता हुआ।


थलथलाना
क्रि. अ.
(हिं. थलथल या थलकना)
करण शरीर के मांस का हिलना-डोलना।


थलपति
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल + पति)
राजा।


थलरूह
वि.
(सं. स्थलरूह)
पृथ्वी पर के पेड़-पौधे।


थलिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
थाली।


थली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
स्थान, जगह।


थली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
जल के नीचे का तल।


थली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
बैठने का स्थान।


थली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
परती जमीन।


थली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थली)
टीला।


थवर्इ
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थपति, प्रा. थवइ)
मकान बनाने-वाला, कारीगर, राज, मेमार।


थसर
वि.
(सं. शिथिल)
शिथिल।


थसरना
क्रि. अ.
(सं. शिथिल)
शिथिल होना।


थापना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापना)
रखने का कार्य।


थापना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापना)
मूर्ति आदि की स्थापना।


थापना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापना)
नवरात्र में घट-स्थापना।


थापर
संज्ञा
पुं.
(हिं. थप्पड़)
तमाचा, झापड़।


थापरा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
छोटी नाव, डोंगी।


थापा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाप)
गीले हाथ से दिया हुआ रोली, चंदन अदि का छापा या चिन्ह।


थापा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाप)
देवी-देवता की पूज्ञा का चंदा, पुजौरा।


थापा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाप)
अनाज के ढेर पर डाला गया चिन्ह।


थापा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाप)
छापे का साँचा, छापा।


थापा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाप)
ढेर, राशि।


दरिद्री
वि.
(हिं. दरिद्र)
निर्धन।


दरिद्री
वि.
(सं. दरिद्र)
निर्धन, कंगाल, गरीब।


दरिया
संज्ञा
पुं.
(फा.)
नदी।


दरिया
संज्ञा
पुं.
(फा.)
समुद्र।


दरिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरना)
दला हुआ अनाज, दलिया।


दरियाई
वि.
(फा.)
नदी या समुद्र से संबंधित।


दरियाई
वि.
(फा.)
नदी या समुद्र में रहनेवाला।


दरियाई
वि.
(फा.)
नदी या समुद्र के निकट का।


दरियाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा.दाराई)
एक रेशमी साटन।


दरियादिल
वि.
(फा.)
बहुत उदार या दानी।


दरियादिली
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
उदारता, दानशीलता।


दरियाफ़्त
वि.
(फा.)
ज्ञात, जिसका पता लगा हो।


दरियाव
संज्ञा
पुं.
(फा. दरिया)
नदी।


दरियाव
संज्ञा
पुं.
(फा. दरिया)
समुद्र।


दरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्तर, स्तरी)
मोटे सूत का


दरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गुफा, खोह, पहाड़ के बीच की आड़।
उ.—अधम समूह उधारन कारन तुम जिय जक पकरी। मैं जु रह्यौं राजीवनैन दुरि, पाप-पहार-दरी—१-१३०।


दरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पहाड़ी खड्ड जहाँ नदी बहती हो।


दरी
वि.
(सं. दरिन्)
फाड़नेवाला।


दरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दर=द्वार)
द्वार का।


दरीखाना
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरी + खाना)
घर जिसमें बहुत से द्वार हों।


दरीचा
संज्ञा
पुं.
(फा. दरीचः)
खिड़की।


दरीचा
संज्ञा
पुं.
(फा. दरीचः)
खिड़की के पास बैठने की जगह।


दरीचा
संज्ञा
पुं.
(फा. दरीचः)
चोर दरवाजा।


दरीची
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दरीचा)
झरोखा, खिड़की।


दरीची
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दरीचा)
झरोखे के पास बैठने की जगह।


दरीबा
संज्ञा
पुं.
(?)
बाजार।


दरीबा
संज्ञा
पुं.
(?)
पान का बाजार।


दरीभृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पर्वत, पहाड़।


दरीमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गुफा का द्वार।


दरीमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीराम की सेना का बंदर।


दरेंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर + यंत्र)
अनाज पीसने की चक्की।


दरेग
संज्ञा
पुं.
(अ. दरेग)
कोर-कसर, कमी।


दरेर, दरेरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दरण)
रगड़ा, धक्का।


दरेर, दरेरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दरण)
मेंह का झोंका या झोला।
उ.—अति दरेर की झरेर टपकत सब अँबराई—१५६५।


दरेर, दरेरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दरण)
बहाब का जोर, धारा का तोड़।


दरेरना
क्रि. स.
(सं. दरण)
रगड़ना, पीसना।


दरेरना
क्रि. स.
(सं. दरण)
रगड़ते हुए धक्का देना, धकियाते हुए ले चलना।


दरैया
संज्ञा
पुं.
(सं. दरण)
दलने-पीसनेवाला।


दरैया
संज्ञा
पुं.
(सं. दरण)
घातक, विनाशक।


दरोग
संज्ञा
पुं.
(अ.)
झूठ, असत्य।


दरोगा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दारोगा)
थानेदार।


दर्ज
वि.
(फ़ा.)
कागज पर लिखा हुआ।


दर्जा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
श्रेणी।


दर्जा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
कक्षा।


दर्जा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
पद।


दर्जा
क्रि. वि.
(अ.)
गुना, गुणित।


दर्जिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दर्जी )
दर्जी जाति की स्त्री।


दर्जी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर्जी)
कपड़ा सीनेवाला।
मुहा.- दर्जी की सुई— जोकई तरह के काम करे।


दर्द
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
पीड़ा, कष्ट।
मुहा.— दर्द खाना— कष्ट सहन करना।


दर्द
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दुख, तकलीफ।


दर्द
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दया, करुणा।
मुहा.- दर्द खाना— तरस खाना, दया करना।


दर्द
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
धन की हानि का दुख या अफसोस।


दर्दमंद, दर्दी
वि.
(फ़ा.)
जो दर्द से दुखी हो।


दर्दमंद, दर्दी
वि.
(फ़ा.)
जो दूसरे का दुख-दर्द समझ सके, दयालु।


दर्दुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेढक।


दर्दुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


दर्दुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मलय पर्वत के समीप एक पर्वत।


दर्दुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक चमड़ामढ़ा बाजा।


दर्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घमंड, अहंकार, मद।


दर्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मान, मद मिश्रित कोप।


दर्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अक्खड़पन।


दर्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आतंक, रोब-दाब।


दर्पक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गर्व करनेवाला।


दर्पक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कामदेव, रति का पति।


दर्पण, दर्पन
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पण)
आइना, आरसी।


दर्पण, दर्पन
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पण)
आँख, दृग।


दर्पण, दर्पन
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पण)
उद्दीपन, उत्तेजना।


दर्पित
वि.
(सं.)
गर्व या मद से भरा हुआ।


दर्पी
वि.
(सं. दर्पिन्)
गर्व या मद करनेवाला।


दर्ब
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
धन।


दर्ब
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
सोना चाँदी आदि।


दर्बान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.दरबान)
द्वारपाल।


दर्बानी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरबानी)
द्वारपाल का काम।


दर्बार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरबार)
सभा, राजसभा।


दर्बारी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरबारी)
राजसभा का सदस्य।


दर्भ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कृश, डाभ।


दर्भ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुशासन।


दर्भट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भीतरी या गुप्त कोठरी।


दर्भासन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुश का बना आसन।


दर्रा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
सँकरा पहाड़ी मार्ग।


दर्रा
संज्ञा
पुं.
(सं.दरना)
मोटा आटा।


दर्रा
संज्ञा
पुं.
(सं.दरना)
दरार, दरज।


दर्राना
क्रि. अ.
(अनु.)
बैधड़क चले जाना।


दर्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिंसा में रुचि रखनेवाला।


दर्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राक्षस, दानव।


दर्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्राचीन जाति जो पंजाब के उत्तर में बसती थी।


दर्वरीक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र मघवा।


दर्वरीक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु, पवन।


दर्वरीक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का प्राचीन बाजा।


दर्वा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राजा ऊशीनर की पत्नी का नाम।


दर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिखाने या बतानेवाला।


दर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा के दर्शन करानेवाला।


दर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निरीक्षण करनेवाला।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखने की क्रिया, साक्षात्कार, देखा-देखी। इस प्रकार के दर्शन के प्रायः चार रूप हैं—प्रत्यक्ष, चित्र, स्वप्न और श्रवण।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भेंट, मुलाकात।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह विद्या या शास्त्र जिसमें पदार्थों के धर्म, कारण, संबंध आदि की विवेचना हो।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नेत्र, आँख।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वप्न।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुद्धिं।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म।


थाम
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थामना)
थामने की क्रिया या ढंग।


थामना, थाम्हना
क्रि. स.
(सं. स्तंभन, प्रा. थंभन = रोकना, हिं. थामना)
चलती या गिरती हुई चीज को रोकना।


थामना, थाम्हना
क्रि. स.
(सं. स्तंभन, प्रा. थंभन = रोकना, हिं. थामना)
पकड़ना, ग्रहण करना।


थामना, थाम्हना
क्रि. स.
(सं. स्तंभन, प्रा. थंभन = रोकना, हिं. थामना)
सहारा या सहायता देना।


थामना, थाम्हना
क्रि. स.
(सं. स्तंभन, प्रा. थंभन = रोकना, हिं. थामना)
कार्य का भार लेना।


थामना, थाम्हना
क्रि. स.
(सं. स्तंभन, प्रा. थंभन = रोकना, हिं. थामना)
चौकसी या पहरे में रखना।


थायी
वि.
(सं. स्थायी)
सदा रहनेवाला।


थार, थारा
संज्ञा
पुं.
(सं. थाल)
बड़ी थाली, थाल।
उ.— कर कनक-थार तिय करहिं गान—९-१६६।


थारा
सर्व.
(हिं. तुम्हारा)
तुम्हारा।


थारी
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाली)
थाली, बड़ी तश्तरी।
उ.—माँगत कछु जूठन थारी—१०-१८३।


दर्वा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राधा की एक सखी का नाम।
उ.—दर्वा, रंभा, कृष्ना, ध्याना, मैना, नैना, रूप—१५८०।


दर्विका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
घी का काजल।


दर्वी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कलछी।


दर्वी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
साँप का फन।


दर्वीका
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप जिसके फन हो।


दर्श
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दर्शन, साक्षात्कार।


दर्श
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वितीया तिथि।


दर्श
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अमावास्या।


दर्श
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अमावास्या को किया जानेवाला यज्ञ आदि।


दर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखने या दर्शन करनेवाला।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दर्पण, आरसी।


दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रंग, वर्ण।


दर्शन शास्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह शास्त्र जिसमें प्रकृति, आत्मा, परमात्मा, जीवन का लक्ष्य आदि का विवेचन होता है, तत्वज्ञान।


दर्शनीय
वि.
(सं.)
देखने योग्य।


दर्शनीय
वि.
(सं.)
सुंदर।


दर्शाना
क्रि. स.
(हिं. दरसाना)
दिखाना।


दर्शाना
क्रि. स.
(हिं. दरसाना)
समझाना।


दर्शित
वि.
(सं.)
दिखलाया या समझाया हुआ।


दर्शी
वि.
(सं. दर्शिन्)
देखनेवाला।


दर्शी
वि.
(सं. दर्शिन्)
जानने, समझने या विचार करनेवाला।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फूल की पंखड़ी


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पौधे का पत्ता।
उ.—अद्भुत राम नाम के अंक। धर्म-अंकुर के पावन द्वै दल, मुत्कि-बधू-ताटंक—१-९०।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समूह, गिरोह।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्ष, गुट्ट, मंडली।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेना।
उ.—(क) कौरौ-दल नासि-नासि कीन्हौं जन-भायौं—१-२३। (ख) जा सहाइ पाँडव दल जीतौ—१-२६९।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी फ़ल या समतल पदार्थ की मोटाई।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी अस्त्र का कोष म्यान।


दल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन।


दलक, दलकन
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दलक)
गुदड़ी


दलक, दलकन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दलकना)
किसी धातु या बाजे पर किये गये आघात से उत्पन्न कंप, थर-थराहट, धमक, झनझनाहट।


दलक, दलकन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दलकना)
रह रहकर उठने वाली टीस।


दलकना
क्रि. अ.
(सं. दलन)
फट या चिर जाना।


दलकना
क्रि. अ.
(सं. दलन)
काँपना, थर्राना।


दलकना
क्रि. अ.
(सं. दलन)
चौंकना।


दलकना
क्रि. अ.
(सं. दलन)
विकल होना।


दलकना
क्रि. स.
(सं. दलन)
डराना, भयभीत करना, भय से कँपाना।


दलकि
क्रि. स.
(हिं. दलकना)
भयभीत करके, डराकर।
उ.—सूरजदास सिंह बलि अपनी लीन्हीं दलकि सृगालहिं।


दलगंजन
वि.
(सं.)
सेना का नाश करनेवाला वीर।


दलदल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दलाढ्य)
कीचड़, पंक।


दलदल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दलाढ्य)
जमीन जहाँ बहुत कीचड़ हो।
मुहा.- दलदल में फँसना— (१) कीचड़ से लथपथ होना। (२) किसी मुसीबत या जंजट में फँस जाना। (३) किसी काम का उलजन याय जगड़े में इस तरह फँस जाना कि फैसला न हो सके, खटाई में पड़ जाना।


दलदला
वि.
पुं.
(हिं. दलदल)
जहाँ कीचड़ हो।


दलदली
वि.
स्त्री.
(हिं. दलदल)
(धरती) जहाँ कीचड़ हो।


दलदार
वि.
(हिं. दल + फ़ा. दार)
मोटे दल का।


दलन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दलने, पीसने या चूर करने का काम


दलन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश. संहार।


दलना
क्रि. स.
(सं. दलन)
रकड़ या पीसकर चूर चूर करना।


दलना
क्रि. स.
(सं. दलन)
रौंदना, कुचलना, दबाना भीड़ना, मसलना


दलना
क्रि. स.
(सं. दलन)
चक्की में डालकर अनाज आदि को मोटा मोटा पीसना।


दलना
क्रि. स.
(सं. दलन)
नष्ट-ध्वस्त करना, जीत लेना।


दलना
क्रि. स.
(सं. दलन)
तोड़ना, खंड खंड करना।


दलना
वि.
(सं. दलन)
संहार करने वाले, दलन करने वाले।
उ.—गोपी लै उठाई जसुमति कैं दीन्पौ अखिल असुर के दलना—१०-५४।


दलनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दलना)
पीसने-दलने की क्रिया।


दलनीय
वि.
(सं. दलन)
दलने के योग्य।


दलाप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेनानायक।


दलाप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोना।


दलपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अगुआ, मुखिया, सेनापति।


दल-बल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लाव-लश्कर, फौज-फाँटा।


दाल बादल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दल +बादल)
बादलों का समुह।


दाल बादल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दल +बादल)
भारी सेना, दल-बल।


दाल बादल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दल +बादल)
बड़ा शामियाना।


दलमलना
क्रि. स.
(हिं. दलना + मलना)
रौंद डालना, कुचल देना, पीस डालना।


दलमलना
क्रि. स.
(हिं. दलना + मलना)
नाश करना, मार डालना।


दलवाना
क्रि. स.
(हिं. दलना का प्रे.)
दलने पीसने का काम कराना।


दलवाना
क्रि. स.
(हिं. दलना का प्रे.)
कुचलवाना, रौदाना।


दलवाना
क्रि. स.
(हिं. दलना का प्रे.)
नष्ट कराना।


दलवाल
संज्ञा
पुं.
(सं. दलपाल)
सेनापति, सेनानायक।


दलवैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दलना)
दलने-पीसनेवाला।


दलसूचि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काँटा, पत्तों का काँटा।


दलसूसा
संज्ञा
पुं.
(स. दलश्रसा)
पत्तों की नस।


दलहन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाल +अन्न)
वह अनाज जिसकी दाल दली जाती हो।


दलहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाल +हारा)
दाल बेचनेवाला।


दलहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाल्हा)
थाला, आलबाल।


दलाना
क्रि. स.
(हिं. दलना का प्रे.)
दलवाना-पिसवाना।


दलारा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
झूलनेवाला बिस्तर।


दलाल
संज्ञा
पुं.
(अ.)
माल बेचने-खरीदने में कुछ धन लेकर सहायता करनेवाला।


दलाल
संज्ञा
पुं.
(अ.)
स्त्री-पुरुषों को अनाचार के लिए मिलानेवाला।


दलाली
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दलाल या मध्यस्थ का काम।


दलाली
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दलाल को मिलनेवाला धन।
उ.—भत्कनि-हाट बैठि अस्थिर ह्यौ, हरि नग निर्मल लेहि। काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह तू, सकल दलाली देहि—१-३१०।


दलि
क्रि. स.
(हिं. दलना)
रौंद या कुचल कर।
उ.—माधौ, नैंकु हटकौ गाइ।¨¨। छुधित अति न अधाति कबहूँ, निगम-द्रुम दलि खाइ—१-५६।


दलि
क्रि. स.
(हिं. दलना)
कुचली जाकर, कुचल जाने पर, पीड़ित होने पर।
उ.—रसना द्विज दलि दुखित होति बहु तउ रिस कहा करै—१-११७।


दलील
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
तर्क, युक्ति।


दलील
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
बहस।


दले
क्रि. स.
(हिं. दलना)
नष्ट किये, मार डाले।
उ.—सूरदास चिरजीवहु जुग-जुग दुष्ट दले दोउ नंददुलारे—२५६९।


दलेपंज
वि.
(हिं. ढलना+पंजा)
ढलती उम्र का।


दलैया
वि.
(हिं. दलना)
दलने-पीसने वाला।


दलैया
वि.
(हिं. दलना)
मीड़ने-मसलने वाला।


दलैया
वि.
(हिं. दलना)
मारने या नाश करने वाला।


दल्भ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धोखा।


दल्भ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पाप।


दवँगरा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
वर्षा ऋतु का पहला छींटा।


दलि-भलि
क्रि. स.
(हिं. दलना + मलना)
नाश करके, मारकर।
उ.—धनि जननी जो सुभटहिं जावै। भीर परैं रिपु कौं दल दलि-मलि कौतुक करि दिखरावै—९-१५२।


दलित
वि.
(सं.)
जो मसला या मीड़ा गया हो।


दलित
वि.
(सं.)
रौंदा या कुचला हुआ।


दलित
वि.
(सं.)
खंड-खंड किया हुआ।


दलित
वि.
(सं.)
नष्ट-विनष्ट, छिन्न भिन्न।


दलिद्र
वि.
(हिं. दरिद्र)
निर्धन, धनहीन।


दलिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दलना)
मोटा पिसा अनाज।


दली
क्रि. स.
(हिं. दलना)
रगड़ी, मसली, मीड़ी, कुचली।
उ.—पग सौं चाँपी पूँछ, सबै अवसान भुलायौ। चरन मसकि धरनी दली, उरग गयौ अकुलाइ—५८९।


दली
वि.
(सं. दलिन्)
दल या मोटाईवाला।


दली
वि.
(सं. दलिन्)
पत्तों से युक्त।


थापि
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित करके।


थापिया, थापी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थापना)
चिपटा- और चौड़ा काठ का दुकड़ा।


थापी
वि.
(हिं. थापना)
लिपा हुआ, सना हुआ, लिप्त।
उ.—कामी, बिबस कामिनी कैं रस, लोम-लालसा थापी-१-१४.।


थापी
संज्ञा
पुं.
प्रतिष्ठित या स्थापित करनेवाला।


थापे
क्रि. स.
(हिं थापना)
प्रतिष्ठित किया।
उ.—परसुराम ह्वै के द्विज थापे दूर कियो भुवि भार-सारा, १३९।


थापे
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. थापा)
रोली-चंदन आदि के हाथ से लगाये गये छापे या चिन्ह।
उ.—घर-घर थापे दीजिए घर-घर मंगलचार-९३३।


थापै
क्रि. स.
(हिं. थापना)
स्थापित करता है, जमाता है।
उ.—ग्वालनि देखि मनहिं रिस काँपै। पुनि मन मैं भय अंकुर थापै-५८५।


थापैंगे
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित करेंगे।
उ.—पुनि वलिराजहिं स्वर्गलोक में थापैंगे हरि राइ—सारा. ३४६।


थाप्यो, थाप्यौ
क्रि. स.
(हिं. थापना)
प्रतिष्ठित या स्थापित किया।
उ.— (क) जिनि जायौ ऐसौ पूत, सब सुख-करनि फरी। थिर थाप्यौ सब परिवार, मन की सूल हरी—१.-२४। (ख) जिहिं बल बिप्र तिलक दै थाप्यौ, रच्छा करी आप बिदमान—१.-१२.। (ग) इंद्रहिं मोहि गोबर्धन थाप्यो उनकी पूजा कहा सरै-६५३। (घ) मारि म्लेच्छ धर्म फिरि थाप्यो— सारा. ३२०।


थाम
संज्ञा
पुं.
(सं.. स्तंभ, प्रा. थंभ)
खंभ, स्तंभ।


दवँरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दँवरी)
अनाज के दानेदार डंठलों को बैलों से रौंदवाने की क्रिया।


दव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वन, जंगल।


दव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग जो वन में पेडों की रगड़ से सहसा लग जाती है।
उ. — द्रुम मनहुँ बेलि दव डाढ़ी —२५३५।


दव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग, अग्नि।
उ. — आजु अजुध्या जल नहिं अँचवौं ना मुख देखौं माई। सूरदास राघव के बिछुरे मरौं भवन दव लाई — ६-४७।


दव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग की लपट या तपन।


दवथु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जलन।


दवथु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुख।


दवन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
नाश।


दवन, दवना
संज्ञा
पुं.
(सं. दमनक)
दौना नामक पौधा।


दवंना
क्रि. स.
(सं. दव)
जलाना, भस्म करना।


दवागि, दवागिन, दवागी, दवाग्नि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दवाग्नि)
दव, वन में वृक्षों की रगड़ से सहसा लगने-वाली आग, दावानल।


दवानल
संज्ञा
पुं.
(सं. दव +अनल)
वन की आग।


दवानी
वि.
(अ.)
जो सदा बना रहे, स्थायी।


दवारि, दवारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दवाग्नि, हिं. दवागि)
वनाग्नि, दावानल।
उ.—दारुन दुख दवारि ज्यौं तृन-बन, नाहिंन बुझति बुझाई—-९-५२।


दश
वि.
(सं.)
जो गिनती म नौ से एक अधिक हो, दस।


दश
वि.
(सं.)
कई, बहुत से।


दशकंठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस सिर वाला, रावण।


दशकंठजहा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण को मारनेवाले श्रीराम।


दशकंठारि
संज्ञा
पुं.
(सं. दशकंठ +अरि)
श्रीराम।


दशकंध
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +हिं. कंध)
रावण।


दवनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दमन)
अनाज के सूखे पौधों को बैलों से रौंदवाने की किया, मँड़ाई, दँवरी।


दवरिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दावाग्नि)
जंगल की आग।


दवा
संज्ञा
पुं.
(सं. दव)
आग जो वन में सहसा लग जाती है।
उ. — (क) नारी-नर सब देखि चकित भए दवा लग्यौ चहुँ कोद —५९२। (ख) नहिं दामिनि, द्रुम दवा सैल चढ़ि फिरि बयारि उलटी झर लावति — ३४८५।


दवा
संज्ञा
पुं.
(सं. दव)
आग, अग्नि।
उ. — कालीदह के पुहुप माँगि पठए हमसौ उनि। ¨¨। जौ नहिं पठवहुँ काल्हि तौ, गोकुल दवा लगाइ — ५८६।


दवा
संज्ञा
पुं.
(सं. दव)
आग की लपट या तपन।
जोग-अगिनि की दवा देखियत —३०१८।


दवा, दवाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दवा)
औषध।
मुहा.- दवा को न मिलना— जरा भी न मिलना, दुर्लभ होना।


दवा, दवाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दवा)
रोग दूर करने का उपाय।


दवा, दवाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दवा)
(किसी भाव को) मिटाने का उपाय।


दवा, दवाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दवा)
((किसी के) उपचार या सुधारने का उपाय।


दवाखाना
संज्ञा
पुं.
(फा.)
औषधालय।


दशकंधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।
उ.—दशकंधर कौ बेगि सँहारौ दूर करौ भुव-भार—सारा.२५९।


दशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लगभग दस वस्तुओं आदि का समूह।
उ.—गाउँ दशक शिरदार कहाई—१००२।


दशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सन्, संवत् आदि में दस-दस वर्षों का समूह।


दशकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस संस्कार—गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नयन, जातकरण निष्कामण,नामकरण, अन्नप्राशन चुड़ाकरण, उपनयन और विवाह।


दशगात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर के दस प्रधान अंग।


दशगात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृतक-संबंधी एक कर्म जो मरने के बाद दस दिन तक पिंड-दान-द्वारा किया जाता है।


दशग्रीव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।


दशति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सौ, शत।


दशधा
वि.
(सं.)
दस प्रकार या ढग का।


दशधा
क्रि. वि.
(सं.)
दस प्रकार से।


दशद्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर के दस छिद्र—दो कान, दो आँख, दो नथुने, मुख, गुदा, लिंग और ब्रह्यांड।


दशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।
उ.—ज्यों गजराज काज के औसर औरे दशन देखावत—२९९३।


दशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कवच।


दशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिखर।


दशनच्छद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
होंठ।


दशनबीज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनार, दाड़िम।


दशनाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संन्यासियों के दस भेद—तीर्थ, आश्रम, वन, अरगय, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती भारती, पुरी।


दशनामी
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +हिं. नाम)
संन्यासियों का एक वर्ग जो शंकराचार्य के शिष्यों से चला माना जाता है।


दशनामी
वि.
(सं. दश +हिं. नाम)
दशनाम से संबंधित।


दशबल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुद्धदेव, जिन्हे दस बल प्राप्त थे—दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, बल, उपाय, प्रणिधि और ज्ञान।


दशभूमिग, दशभूमीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस बलों को प्राप्त करनेवाले बुद्धदेव।


दशम
वि.
(सं.)
दसवाँ।


दशम दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मरण, मृत्यु।


दशमलव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गणित में पूर्ण इकाई से कम और उसका अंश सूचित करने वाले अंक।


दशमांश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दसवाँ अंश या भाग।


दशमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चांद्र मास के शुक्ल और कृष्ण पक्षों की दसवीं तिथि।


दशमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विमुक्त अवस्था।


दशमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मरण अवस्था।


दशमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दसमुख वाला, रावण।


दशमूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस पेड़ों की छाल या जड़।


दशमौलि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।


दशरथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अयोध्या के राजा जो इक्ष्वाकु वंशी थे और जिनके चार पुत्रों में श्रीराम बड़े थे।


दसरथसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीरामचद्र।


दशरात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस रातों में होनेवाला यज्ञ।


दशवाजी
संज्ञा
पुं.
(सं. दशवाजिन्)
चंद्रमा।


दशवाहु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी, महादेव।


दशशिर
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +शिरस)
रावण।


दशशीर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।


दशशीर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अस्त्र जो दूसरों के अस्त्रों को निष्फल करनेके लिए चलाया जाता था।


दशशीश
संज्ञा
पुं.
(सं. दशशीर्ष)
रावण


दशस्यंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा दशरथ।


दशहरा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्येष्ठ शुक्ला दशमी जो गंगा जी की जन्म-तिथि मानी जाती है।


दशहरा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विजयादशमी।


दशांग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुगंधित धूप जो पूज न के समय जलायी जाती है।


दशांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुढ़ापा।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हालत, अवस्था, स्थिति।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मनुष्य के जीवन की दस अवस्थाओं —गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पोगड़, यौवन, स्थविर्य, जरा, प्राणरोध और नाश—में एक।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
साहित्य में विरही की दस अवस्थाओं —अभिलाष, चिंता, स्मरण, गुण-कथन, उद्वेग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरण—में एक।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह का नियत भोगकाल।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपक की बत्ती।


दशाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृतक-कर्मो का दसवाँ दिन।


दस
वि.
(सं. दश)
जो पाँच का दूना हो।
मुहा.- दस बीसक— कई, बहुत से। उ.— बेसन के दस-बीसक दोना— ३९६।


दस
संज्ञा
पुं.
(सं. दश)
पाँच की दूनी संख्या और उसका सूचक अंक।


दसएँ
वि.
(हिं. दसवाँ)
दसवाँ, दसवें।
उ.—दसए मास मोहन भए (हो) आँगन बाजै तू—१०-४०।


दसकंठ
संज्ञा
पुं.
(सं. दशकंठ)
रावण।


दसकंध
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +स्कध=हिं. कंध)
रावण।
उ.—बहुरि बीर जब गयौ अवासहिं, जहाँ बसै दस कंध—९-७५।


दसकंधर
संज्ञा
पुं.
(सं. दशकंधर)
रावण।
उ.—दस-कंधर मारीच निसाचर यह सुनि कै अकुलाए—९-५७।


दसक
वि.
(सं. दश +हिं. एक)
लगभग दस।
उ.—बर्ष ब्यतीत दसक जब होइ। बहुरि किसोर होइ पुनि सोइ—३-१३।


दसठोन
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +थन)
प्रसूता स्त्री का दसवें दिन का स्नान जब वह सौरी से दूसरे स्थान को जाती है।


दसन
संज्ञा
पुं.
(सं. दशन)
दाँत।
उ.—ज्यों गजराज काज के औसर औरे दसन दिखावत—२९९३।
मुहा.- तृन दसननि लै (धरि)— दाँत में तिनका लेकर, विनयपूर्वक क्षमा-याचना करके, गिड़गिड़ाते हुए। उ.— (क) तृन दसननि लै मिलि दसकंधर, कंठनि मेलि पगा— ९-११४। (ख) हा हा करि दस ननि तृन धरि धरि लोचन जलनि ढराउँरी— १६७३।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चित्त।


दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कपड़े का छोर या अंचल।


दशाकर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीपक


दशाकर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अंचल।


दशानन
संज्ञा
पुं.
(सं. दश + आनन=मुख)
रावण।


दशाश्व
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +अश्व)
चंद्रमा।


दशाश्वमेध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काशी का एक तीर्थ जहाँ राजार्षि दिवोदास की सहायता से ब्रह्या का दस अश्वमेध करना प्रसिद्ध है।


दशाश्वमेध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रयाग का एक घाट जहाँ का जल कभी बिगड़ता नहीं माना जाता।


दशास्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दशमुख, रावण।


दशाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस दिन।


थारू, थारु, थाल, थाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाली)
बड़ी थाली, बड़ी तश्तरी।


थाला
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थालक)
थाँवला, आल-बाल।


थाला
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थालक)
वृक्ष के चारों ओर बना चबूतरा।


थालिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थालिका)
थाला, थाँवला।


थालिका
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थाली)
थाली।
उ.— झलमल दीप समीप सौंजे भरि लेकर कंचन थालिका —८०६।


थाली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थाली =बटलोई)
काँसे-पीतल आदि धातुओं की बनी हुई बड़ी तश्तरी।
मुहा.- थाली का बैंगन— वह व्यक्ति जो निश्चित सिद्धांत न रखता हो और थोड़ॆ हानि-लाभ से विचलित होकर कभी एक पक्ष में हो जाय, कभी दूसरे।

थाली बजाना (१) साँप का विष उतारने के लिए थाली बजाकर मंत्र पढ़ना। (२) बच्चा होने पर थाली बजाने की रीति करना जिससे उसको डर न लगे।

थाव
संज्ञा
स्त्री.
(हिं थाह)
थाह, गहराई का अंत।


थावर, थावरु
वि.
(सं. स्थावर)
जो एक स्थान से दूसरे पर लाया न जा सके, अचल, जंगम का विपरीतार्थक।
उ. — (क) थावर-जंगम, सुर-असुर, रचे सबै मैं आइ - २-३६। (ख) थावर-जंगम मैं मोहिं ज नैं। दयासील, सबसौं हित मानै ३-१३।


थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
जलाशयों का तल या थल भाग, गहराई का अंत।
उ.— (क) ममता-घटा, मोह की बूँदैं, सरिता मैन अपारो। बूड़त कतहुँ थाह नहिं पावत, गुरु जन ओट अधारौ-१—२०९। (ख) बूड़त स्याम, थाह नहिं पावौं, दुस्साहस-दुख-सिंधु परी—१-२४९।
मुहा.- थाह मिलना (लगना)— (१) गहरे पानी में थल का पता लगना। (२) किसी भेद का पता चलना।

डूबते को थाह मिलना— संकट में पड़े हुँ आश्रयहीन व्यक्ति को सहारा मिलना।

थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
कम गहरा पानी।


दसना
संज्ञा
पुं.
(सं. दशन)
दाँत।
उ.—सोभित सुक-कपोल-अधार, अलप-अलप दसना—१०-९०।


दसना
क्रि. अ.
(हिं. डासना)
बिछाया जाना, फैलना।


दसना
क्रि. स.
(हिं. डासना)
(बिस्तर आदि) बिछाना।


दसना
संज्ञा
पुं.
(हिं. डासना)
बिस्तर, बिछौना, बिछावन।


दसना
क्रि. स.
(हिं. डसना)
डस लेना, डंक मारना।


दसम
वि.
(सं. दशम)
दसवाँ, दसवें।
उ.—दसम मास पुनि बाहर आबै—३-१३।


दसमाथ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दस +माथ)
रावण।


दसमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशमी)
चांद्र मास के कृष्ण अथवा शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि।
उ.—दसमी कौ संजम बिस्तरै—९-५।


दसमौलि
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +मौलि=सिर)
रावण।


दसरंग
संज्ञा
पुं.
(हिं. दस +रंग)
एक कसरत।


दसानन
संज्ञा
पुं.
(सं. दश + आनन)
रावण।


दसाना
क्रि. स.
(हिं. डासना)
बिछाना,


दसारी
संज्ञा
स्त्री.
(देश)
एक चिड़िया।


दसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशा)
कपड़े के छोर या किनारे का सूत,।


दसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशा)
कपड़े का पल्ला या आँचल।


दसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशा)
पता, निशाना, चिन्ह।


दसोतरा
वि.
(सं. दश + उत्तर)
दस से अधिक।


दसोतरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दश + उत्तर)
सौ में दस।


दसौं
वि.
(सं. दश, हिं. दस)
कुल दस, दस में प्रत्येक, दसों।
उ.—दसौं दिसि ततैं कर्म रोक्यो, मीन कौं ज्यौं जार—२-४।


दसौंधी
संज्ञा
पुं.
(सं. दास=दानपात्र + बंदी=भाट)
राजाऒं की वंशावली या विरुदावली का गान करने वाला, भाट।
उ.—देस देस तें ढाढ़ी आये मन-वांछित फल पायौ। को कहि सकै दसौंधी उनको भयो सबन मन भायौ—सारा. ४०५।


दसरथ
संज्ञा
पुं.
(सं. दशरथ)
अयोध्या के राजा दशरथ।
उ.—दसरथ नृपति —अजोध्या राव—९-१५।


दसरथकुमार
संज्ञा
पुं.
(सं. दशरथ +कुमार=पुत्र)
राजा दशरथ के पुत्र।


दसवाँ
वि.
(हिं. दस)
जो नौ के एक बाद हो।


दससिर
संज्ञा
पुं.
(सं. दश +शिरसू)
रावण।


दससीस
संज्ञा
पुं.
(सं. दसशीर्ष)
रावण।


दस-स्यंदन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दस +स्यंदन=रथ)
राजा दशरथ।


दसहिं
संज्ञा
स्त्री. सवि.
(हिं. दशा +हीं.)
दशा, स्थिति या अवस्था को।
उ. -- अपने तन में भेद बहुत बिधि, रसना न जानै नैन की दसहिं—३०१७।


दसांग
संज्ञा
पुं.
(सं. दशांग)
धूप जो पूजा के अवसर पर जलायी जाती है।


दसा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशा)
हालत, अवस्था, स्थिति।


दसा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दशा)
बुरी हालन, दुर्दशा।
उ.—नैनन दसा करी यह मेरी। आपुन भये जाइ हरि चेरे मोहिं करत हैं चेरी—पृ. ३३१ (६)।


दस्तगीर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
सहारा देनेवाला, सहायक।


दस्तयाब
वि.
(फ़ा.)
मिला हुआ, प्राप्त।


दस्तखान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरतरख्वान)
चादर जिस पर मुसलमानों के यहाँ भोजन की थाली रखी जाती है।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
हाथ में आनेवाली (चीज)।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
मूठ, बेंट।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
फूलों का गुच्छ गुलदस्ता।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
सिपाहियों की छोटी टुकड़ी।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
चौबीस कागजों की गड़डी।


दस्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तः)
डंडा सोंटा।


दस्ताना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दस्तानः)
हाथ का मोजा।


दतंदाजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
किसी काम में दखल देने या हस्तक्षेप करने की क्रिया।


दस्त
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
हाथ, हस्त।


दस्तक
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
हाथ मारकर खट खटाने की क्रिया।


दस्तक
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दरवाजा खटखटाना।
मुहा.- दस्तक देना— दरवाजा खटखटाना।


दस्तक
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
मालगुजारी वसूलने का हुक्मनामा।


दस्तक
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कर, महसूल टैक्स।
उ.—मोहरिल पाँच साथ करि दीने, तिनकी बड़ी बिपरीत। जिम्मै उनके, माँगैं मोतैं, यह तौ बड़ी अनीति। बढ़ौ तुम्हार बरामद हूँ कौ लिखि कीनौ है साफ। सूरदास की यहै बीनती, दस्तक कीजै माफ—१-१४३।
मुहा.- दस्तक बाँधना (लगाना)— बैकार का खर्च अपने ऊपर डालना।


दस्तकार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
हाथ का कारीगर।


दस्तकारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
हाथ की कारीगरी।


दस्तखत
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
हस्ताक्षर।


दस्तखती
वि.
(फ़ा. दस्तखत)
जिस पर हस्ताक्षर हों।


दस्तावेज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
वह पत्र पर जिस पर कुछ शर्तें तय करके दोनों पक्ष हस्ताक्षर करें।


दस्ती
वि.
(फ़ा. दस्त=हाथ)
हाथ का।


दस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दस्त=हाथ)
मशाल।


दस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दस्त=हाथ)
छोटी मूठ।


दस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दस्त=हाथ)
विजयादशमी के दिन राजा द्वारा सरदारों में बाँटी जानेवाली सौगात।


दस्तूर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
रीति-रिवाज, रस्म, प्रथा।


दस्तूर
संज्ञा
पुं.
(फा.)
नियम, कायदा।


दस्तूरी
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
दूकानदारों द्वारा धनियों के नौकरों को खरीदारी करने पर दिया जानेवाला इनाम।


दस्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डाकू।


दस्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
असुर।


दहड़-दहड़
क्रि. वि.
(अनु.)
धाँय-धायँ करके या लपट के साथ (जलना)।


दहत
क्रि. स.
पुं.
(हिं. दहना)
जलाता या भस्म करता है।
उ.—(क) उलटी गाढ़ परी दुर्वासैं, दहत सुदरसन जाकौं—१-११३। (ख) पावक जथा दहत सबही दल तूल-सुमेरु-समान—१-२६९।


दहति
क्रि. स.
(हिं. दहना)
क्रोध से संतप्त करती है, कुढ़ाती है।
उ.—कुँवरि सौं कहति बृषभानु घरनी। नैंकु नहिं घरे रहति, तोहिं कितनौ कहति, रिसनि मोहिं दहति, बन भई हरनी —६९८।


दहदल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दलदल)
कीचड़, दलदल।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जलनें या भस्म होने की क्रिया।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि, आग।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कृत्तिका नक्षत्र।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तीन की संख्या।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चीता पशु।


दहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक रुद्र।


दहिए
क्रि. स.
(हिं. दहना)
जलिए, भस्म होइए।
उ.—कै दहिए दारुन दावानल जाइ जमुन धँसि लीजैं—२८६४।


दहक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.दहन)
आग की धधक।


दहक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.दहन)
ज्वाला, लपट।


दहक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.दहन)
शर्म, लज्जा।


दहकन
संज्ञा
स्त्री.
(हि.दहकना)
आग दहकने की क्रिया।


दहकना
क्रि. अ.
(सं.दहन)
लपट लौ या धधक के साथ जलना।


दहकना
क्रि. अ.
(सं.दहन)
शरीर का तपना।


दहकाना
क्रि. स.
(हिं. दहकना)
लपट या धधक के साथ आग जलाना।


दहकाना
क्रि. स.
(हिं. दहकना)
क्रोध दिलाना।


दहग्गी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं दाह + आग)
ताप, गरमी।


दस्युता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लुटेरापन, डकैती।


दस्युता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
क्रूरता, दुष्टता।


दस्युवृत्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
डकैती, चोरी।


दस्युवृत्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
क्रूरता, दुष्टता।


दस्युवृत्ति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस्युओं को मारनेवाले, इंद्र।


दस्त्र
वि.
(सं.)
हिंसा करने वाला।


दह
संज्ञा
पुं.
(सं.ह्रद)
नदी का भीतरी गड़ढा, पाल।
उ.—लै बसुदेव धसैं दह सामुहिं तिहूँ लोक उजियारे हो।


दह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुंड, हौज।


दह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दहन)
ज्वाला, लपट लौ।


दह
वि.
(फ़ा.)
दस।
उ.—(क) भादौं घोर रात अँधियारी। द्वार कपाट काट भट रोके दह दिसि कंस भय भारी। (ख) गो-सुत गाइ फिरत हैं दह दिसि बने चरित्र न थोरे—२६६४।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छछूँदर।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भाई, भ्राता।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बालक।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नरक।


दहर
वि.
छोटा


दहर
वि.
सूक्ष्म।


दहर
वि.
दुर्बोध।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं. ह्रद )
नदी का गहरा गड़ढा, दह
उ.—अति अचगरी करत मोहन पटकि गेंड्डरी दहर।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं. ह्रद )
कुंड, हौज।


दहर
क्रि. स.
(हिं, दहलाना)
दहला कर, भयभीत करके।
उ.—सूर प्रभु आय गोकुल प्रगट भए सतन दै हरख, दुष्ट जन मन दहर के।


थित
वि.
(सं. स्थित)
रखा हुआ, स्थापित।


थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
ठहराव, स्थिरता।


थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
ठहरने का स्थान।


थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
रहने-ठहरने का भाव।


थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
बने रहने या रक्षित होने का भाव, रक्षा।
उ.—तुमहीं करत त्रिगुन बिस्तार। उतपति, थिति, पुनि करत सँहार-७-२१


थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
अवस्था, दशा।


थिर
वि.
(सं. स्थिर)
जो चलता हुआ या हिलता-डोलता न हो, ठहरा हुआ।


थिर
वि.
(सं. स्थिर)
शांत, धीर, अचंचल, अविचलित।


थिर
वि.
(सं. स्थिर)
जो एक ही अवस्था में रहे, स्थायी, अविनाशी।
उ.—(क) सूरदास कछु थिर न रहैगौ, जो आयौ सो जातौ—१-३०२। (ख) जीवन जन्म अल्प सपनौ सौ, समुझि देखि मन माहीं। बादर-छाँइ, धूम-घौराहर, जैसैं थिर न रहाहीं—१-३१९। (ग) मरन भूलि, जीवन थिर जान्यौ बहु उद्यम जिय धारयौ—१-३३६। (घ) चेतन जीव सदा थिर मानौ—५-४। (च) नर-सेवा तैं जो सुख होइ; छनभंगुर थिर रहे न सोइ-७-२। (छ) असुर कौ राज थिर नाहिं देखौं— ८-८।


थिरक
संज्ञा
पुं.
(हिं. थिरकना)
नाचते समय पैरों का हिलना-डोलना या उठना-गिरना।


दहनकेतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूम, धुआँ।


दहनशील
वि.
(सं.)
जलनेवाला।


दहना
क्रि. अ.
(सं.दहन)
जलना, भस्म होना।


दहना
क्रि. अ.
(सं.दहन)
क्रोध से कुढ़ना, झुंझलाना।


दहना
क्रि. स.
जलाना भस्म करना।


दहना
क्रि. स.
दुखी करना, कष्ट पहुँचाना।


दहना
क्रि. स.
कुढ़ाना।


दहना
क्रि. अ.
(हिं. दह)
धँसना, नीचे बैठना।


दहना
वि.
(हिं. दहिना)
बायाँ का उलटा, दहिना।


दहनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं.दहना)
जलने की क्रिया।


दहनीय
वि.
(सं.)
जलने या जलाये जाने योग्य।


दहनोपल
संज्ञा
पुं.
(सं.दहन + उपल)
सूर्यकांत मणि।


दहनोपल
संज्ञा
पुं.
(सं.दहन + उपल)
आतशी शीशा।


दहपट
वि.
(फा. दह=दस, दसो दिशा +पट=समतल
ध्वस्त, नष्टभ्रष्ट, ढाया हुआ।
उ.—तृन दसननि लै मिलि दसंकधर, कंठनि मेलि पगा। सूरदास प्रभु रघुपति आए, दहपट होई लँका ९-११४।


दहपट
वि.
(फा. दह=दस, दसो दिशा +पट=समतल
रौंदा या कुचला हुआ।


दहपटना
क्रि. स.
(हिं. दहपट)
ढा देना, नष्ट या चौपट करना।


दहपटना
क्रि. स.
(हिं. दहपट)
रौंदना, कुचलना।


दहपट्टे
क्रि. स.
(हिं. दहपट)
नष्ट किये, ध्वस्त कर दिये।
उ.—तब बिलंब नहिं कियौ, सबै दानव दहपट्टे—१-१८०।


दहबासी
संज्ञा
पुं.
[ फ़ा. दह =दस +बासी (प्रत्य.)]
दस सैनिकों का नायक।


दहर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छोटा चूहा।


दहर-दहर
क्रि. वि.
(अनु.)
धू-धू या धायँ-धाँयँ के साथ जलते हुए।


दहरना
क्रि. अ.
(हिं. दहलना)
भयभीत होना, डरना।


दहरना
क्रि. स.
(हिं. दहलाना)
भयभीत करना।


दहराकाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर।


दहरौरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दह् +बड़ा)
दहीबड़ा।


दहरौरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दह् +बड़ा)
गुलगुला-विशेष।


दहल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दहलना)
डर से काँपने की क्रिया।


दहलना
क्रि. अ.
(सं. दर=डर +हिं. हलना=हिलना)
डर से चौंकना या काँप उठना।
मुहा.- कलेजा (जी) गहलना— डर से छाती धक धक करना।


दहला
संज्ञा
पुं.
[फ़ा. दह=दस +ला (प्रत्य.)]
ताश (खेल) का वह पत्ता जिसमें दस चिन्ह या बूटियाँ हों।


दहला
संज्ञा
पुं.
(सं. थल)
थाला, थाँवला।


दहाड़ना
क्रि. अ.
(अनु.)
चिल्ला-चिल्ला कर रोना।


दहाना
संज्ञा
पुं.
(फा.)
चौड़ा मुँह या द्वार।


दहाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
स्थान जहाँ एक नदी दूसरी से या समुद्र से मिलती है।


दहार
संज्ञा
पुं.
(अ. दयार=प्रदेश)
प्रांत, प्रदेश।


दहार
संज्ञा
पुं.
(अ. दयार=प्रदेश)
आसपास का प्रदेश।


दहिगल
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक चिड़िया।


दहिजार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़ीजार)
पुरुषों के लिए स्त्रियों द्वारा प्रयुक्त एक गाली।


दहिना
वि.
(सं. दक्षिण)
बायाँ का उलटा।


दहिनावत
वि.
(सं. दक्षिणावर्त)
जिसका घुमाव दाहिनी ऒर को हो दाहिनी ऒर घूमा हुआ।


दहिनावत
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिणावर्त)
दाहिनी ऒर से चारो ऒर घूमने की क्रिया या भाव।
उ.—दहिनाबर्त देत ध्रुव तारे सकल नखत बहु बार—सारा. १७९।


दहलाना
क्रि. स.
(हिं. दहलना)
भयभीत करना।


दहलीज
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दहलीज)
बाहरी द्वार के चौखट की निचली लकड़ी, देहली, डेहरी।


दहलीज
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दहलीज)
बाहरी द्वार से मिला कोठा।
मुहा.- दहलीज का कुचा— हर समय पीछे लगा रहने नाला।

दहलीज न झाँकना- वैर या ईर्ष्या के कारण किसी के द्वारा पर न जाना। दहलीज की मिट्टी ले डालना— बार-बार किसी के दरवाजे पर जाना।

दहशत
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
डर, भय, शोक।


दहाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दह=दस)
दस का मान या भाव।


दहाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दह=दस)
दो अंकों की संख्या में बायाँ अंक जो दसगुने का बोधक होता है।


दहाई
क्रि. स.
(हिं. दहाना)
जलाकर, भस्म करके।


दहाड़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
जोर की गरज, घोर गर्जन।


दहाड़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
जोर से रोने-चिल्लाने की ध्वनि।


दहाड़ना
क्रि. अ.
(अनु.)
जोर से गरजना या चिल्लाना।


दहिने
क्रि. वि.
(हिं. दहिना)
दाहिनी ऒर को।
उ.—दहिने देखि मृगन की मालहिं—२४८३।
मुहा.- दहिने होना- अनुकूल होना, प्रसन्न होना।

दहिने बायें— इधर-उधर, दोनों ऒर।

दहिनैं
क्रि. वि.
(हिं. दाहिना)
दायीं ओर, दाहिने हाथ की तरफ।
उ.—देखें नंद चले घर आवत। पैठत पौरि छींक भई बाँए, दहिनैं धाह सुनावत—५४१।


दहिबो
संज्ञा
पुं.
(हिं. दहना=जलना)
जलने या भस्म होने का कार्य, भाव, प्रसंग, या स्थिति।
उ.—देखे जात अपनी इन अँखियन या तन को दहिबो—३४१४।


दहियक
संज्ञा
पुं.
((फ़ा. दह=दस)
दसवाँ हिस्सा।


दहियत
क्रि. स.
(हिं. दहना)
संतप्त करते हैं, दुख देते हैं।


दहियत
क्रि. स.
(हिं. दहना)
जलाते हैं, भस्म करते हैं।
उ.—(क) ते बेली कैसैं दहियत हैं, जे अपनैं रस भेइ—१३००। (ख) चदन चंद-किरनि पावक सम मिलि मिलि या तन दहियत—२३००। (ग) जरासंध पै जाय पुकारी महा क्रोध मन दहियत—सारा. ५९६।


दहियल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दहला)
थाला, थाँवला।


दहियौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दहि)
दधि, दही।
उ.—मथुरा जाति हौं बेचन दहियौ—१०-३१३।


दही
संज्ञा
पुं.
(सं. दधि)
खटाई डालकर जमाया हुआ दूध, दधि।
मुहा.- दही दही करना— कोई चीज मोल लेने के लिए जगह-जगह लोगों से कहते फिरना।


दही
क्रि. अ.
(हिं. दहना)
जली, संतप्न हुई।
उ.—(क) चितवति रही ठगी सी ठाढ़ी, कहि न सकति कछु, काम दही—३००४। (ख) अब इन जोग-सँदेसन सुनि-सुनि बिरहिनि बिरह दही—३३४४।


दहुँ, दहु
अव्य.
(सं. अथवा)
या, अथवा।


दहुँ, दहु
अव्य.
(सं. अथवा)
कदाचित्।


दहेंगर
संज्ञा
पुं.
(हिं. दही +घड़ा)
दही का घड़ा।


दहेंड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दही +हंडी)
दही की हंडी।


दहेज
संज्ञा
पुं.
(अ. जहेज)
विवाह में कन्या की ओर से वर-पक्ष को दिया जानेवाला धन और सामान, दायजा, यौतुक।


दहेला
वि.
[हिं. दहला +एला (प्रत्य.)]
जला हुआ।


दहेला
वि.
[हिं. दहला +एला (प्रत्य.)]
दुखी, संतप्त।


दहेला
वि.
(हिं. दहलना)
भीगा या ठिठुरा हुआ।


दहेली
वि.
(हिं. दहेला)
दुखी, संतप्त।
उ.—सुनि सजनी मैं रही अकेली बिरह दहेली इत गुरु जन झहरैं—१६७१।


दहोतरसो
संज्ञा
पुं.
(सं. दशोत्तरशत)
एक सौ दस।


दहै
क्रि. स.
(सं. दद्दन, हिं. दहना)
जलाती है, भस्म करती है।
उ.—अगिनि बिना जानैं जो गहै। तातकाल सो ताकौं दहै—६-३।


दहै
क्रि. स.
(सं. दद्दन, हिं. दहना)
संतप्त करे, दुख पहुँचाती है।
उ.—(क) यह आसा पापिनी दहै। तजि सेवा बैंकुठनाथ की, नीच नरनि कैं संग रहै—१-५३। (ख) देहऽभिमान ताहि नहिं दहै—३-१३।


दहै
क्रि. स.
(सं. दद्दन, हिं. दहना)
क्रोध दिलाती है, कुढ़ाती है।


दहै
क्रि. स.
(सं. दद्दन, हिं. दहना)
नष्ट करता या मिटाता है, क्षीण करता है।
उ.—त्यौं जो हरि बिन जानैं कहे। सो सब अपने पापनि दहै—६-४।


दहो
क्रि. स.
(हिं. दहना)
भस्म किया, जलाया।
उ.—निगड़ तोरि मिलि मात-पिता को हरष अनल करि दुखहिं दहो—२६४४।


दहौं
क्रि. अ.
(हिं. दहना)
जलता हूँ, बलता हूँ, भस्म होता हूँ।
उ.—और इहाँउ बिवेक अगिनि के बिरह-बिदाक दहौं—३-२।


दहौं
क्रि. स.
(हिं. दहना)
मिटाऊँ, नष्ट दूँ।
उ.—(क) तेरे सब संदेहैं दहौं—३-१३। (ख) तेरे सब संदेहनि दहौं—४-१२।


दहौंगौ
क्रि. स.
( हिं. दहना)
मिटा दूँगा, नष्ट कर दूँगा।
उ.—सूर स्याम कहै कर गहि ल्याऊ, ससि तन-दाप दहौंगौ—१०-१९४।


दहौ
क्रि. स.
(सं. दहना, हिं. दहना)
नष्ट करो, दूर करो, भस्म कर दो।
उ.—इहाँ कपिल सौं माता कह्यौ। प्रभु मेरौ अज्ञान तुम दहौ—३-१३।


दह्य
वि.
(सं.)
जो जल सकता हो।


दह्यो, दह्यौ
क्रि. स.
(हिं. दहना)
जलाया, भस्म किया।


दह्यो, दह्यौ
क्रि. स.
(हिं. दहना)
मारा, नाश किया।
उ. — भक्तबछल बपु धरि नरकेहरि, दनुज दह्यौ, उर दरि सुरसाँई-१-६।


दह्यो, दह्यौ
क्रि. अ.
(हिं. दहना)
जला, संतप्त हुआ।
उ.—सुनि ताको अंतर्गत दह्यौ—१०-उ.-७।


दह्यो, दह्यौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दहो)
दही।
उ.—(क) सद माखन धृत दह्यौ सजायौ अरु मीठो पय पीजै—१०-१९०। (ख) जाको राज-रोग कफ बाढ़त दह्यौ खवावत ताहि—३१४५। (ग) कृष्णछाँड़ि गोकुल कत आये चाखन दूध दह्यौ—२६६७।


दाँ
संज्ञा
पुं.
[सं. दाच् (प्रत्य.)]
दफा, बार।


दाँ
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
ज्ञाता, जानकार।


दाँई
वि.
स्त्री.
(हिं. दायाँ)
दाहिनी ऒर की।


दाँई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाई)
बारी, बार, दफा।


दाँउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
अवसर, मौका, दाउँ।
उ.—यक ऐसेहि झकझोरति मोको पायौ नीकौ दाँउ—१६१३।


दाँक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रांव= चिल्लाना)
दहाड़, गर्जन।


दाँकना
क्रि. अ.
(हिं. दाँक +ना)
गरजना, दहाड़ना।


दाँकै
क्रि. अ.
(हिं. दाँकना)
गरज कर, दहाड़ कर।
उ.—जैसे सिंह आपु मुख निरखै परै कूप में दाँकै हो।


दाँग
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दिशा, ऒर।


दाँग
संज्ञा
पुं.
(हिं. डंका)
नगाड़ा, डंका।


दाँग
संज्ञा
पुं.
(हिं. डूँगर)
टीला।


दाँग
संज्ञा
पुं.
(हिं. डूँगर)
श्रृंग।


दाँगर
संज्ञा
पुं.
(हिं. डाँगर)
पशु।


दाँगर
संज्ञा
पुं.
(हिं. डाँगर)
मूर्ख।


दाँगर
वि.
(हिं. डाँगर)
जो बहुत दुबला-पतला हो।


दाँज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. उदाहाये)
बराबरी, समता।


थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
गहराई का पता।
मुहा.- थाह लगाना— (१) गहराई का पता लगाना। (२) भेद का पता चलना।

थाह लेना— (१) गहराई का पता लगाना। (२) भेद का पता चलाना।

थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
अंत, पार, सीमा।


थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
परिमाण आदि का अनुमान।


थाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्था, हिं. थाह)
भेद, रहस्य।
मुहा.- मन की थाइ— गुप्त विचार का पता।


थाहना
क्रि. स.
(हिं थाह)
थाह या गहराई का पता लगाना।


थाहना
क्रि. स.
(हिं थाह)
पता लगाना, अनुमान करना।


थाद्दरा
वि.
(हिं. थाह)
छिछला, कम गहरा।


थाह्यौ
क्रि. स.
(हिं. थाहना)
थाह ली, गहराई का पता लगाया।
उ.- सो बल कहा भयौ भगवान ? जिहिं बल मीन.रूप जल थाह्यौ, लियौ निगम, इति असुर-परान-१.-१२७।


थिगली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. टिकली)
चकती, पैबँद।
मुहा.- थिगली लगाना- जोड़ तोड़ भिड़ाना, युक्ति लड़ाना।

बादल में थिगली लगाना- (१) बहुत कठिन काम करना। (२) असंभव बात कहना। रेशम में टाट की थिगली— बेमेल चीज।

थित
वि.
(सं. स्थित)
ठहरा हुआ, स्थिर, स्थायी।


दाँड़ना
क्रि. स.
(सं. दंड)
दंड देना।


दाँड़ना
क्रि. स.
(सं. दंड)
अर्थ-दंड देना, जुरमाना करना।


दाँडाजिनिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साधु-वेश में (दंड-आदि धारण करके) धोखा देनेवाला।


दाँडिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड देनेवाला।


दाँडित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जल्लाद।


दाँड़ी
संज्ञा
पुं.
(हिं. डाँड़)
डंडा।


दाँड़ी
संज्ञा
पुं.
हिं. डाँड़)
सीमा।


दाँड़ी
संज्ञा
स्त्री.
हिं. डाँड़)
डंडी


दाँड़ी
संज्ञा
स्त्री.
हिं. डाँड़)
डंडे में बँधी झोली की सवारी, झप्पान।


दाँत
संज्ञा
पुं.
(सं. दंत)
दंत, रद, दशन।


दाँत
यौ.
दाँत का चौका—सामने के चार दाँत।
मुहा.- दाँत उखाड़ना— कठिन दंड देना, मुँह तोड़ना। दाँतो (तले) उँगली काटना (दबाना)— (१) चकित होना, दंग रह जाना। (२) दुख या खेद प्रकट करना। (३) संकेत से मना करना। दाँत काटी रोटी— बहुत धनिष्ठता, गहरी दोस्ती। दाँत काढ़ना (निकालना)— (१) खीसें बाना, व्यर्थ ही हँसना। (२) दीनता दिखाना, गिड़ादड़ाना। दाँत किटकिटाना (किचकिचा ना, पासना)— (१) बहुत चोर लगाना। (२) बहुत क्रोध करना। दाँत पासि— बहुत क्रोध करके, झुंझला कर। उ.— सूर केस नहिं टारि सेकै काउ दाँत पासि जौ जग मरै— १-२३४। दाँत किरकिरे होना— हार मानना। दाँत कुरेदने को तिनका न रहना— सब कुछ चला जाना। दाँत खट्टे करना— (१) खूब है राम करना। (२) बुरी तरह हराना। दाँत खटूट हीना— (१) हैरान होना। (२) हार जाना। (किसी के) दाँतों चढ़ना— (१) किसी को खटकना या बुरा लगना। (२) किसी की टोंक या बूँस लगना। (किसी को) दाँतों चढ़ाना— (१) बुरी दृष्टि , देखना। (२) नजर लगाना। दाँत चबाना— क्रोध से दाँत पीसना। दाँत चबात— क्रोध से दाँत पीसने हुए। उ.— मेरी देह छुटत जम पठए जितक दूत धर मौं। दाँत चबात चले जमपुर हैं धाम हमारे कौं— १-१५१। दाँत जमना— दाँत निकालना। दाँत जाड़ देना— बहुत दंड देना, मुंह तोड़ना। दाँत गिरना (जड़ना, टूटना)— ब्रुढ़ापा आना। दाँत ताड़ना— (१) हैरान करना। (२) कठिन दंड देना। दाँत दिखाना— (१) हँसना। (२) डराना। (३) अपना बड़प्पन दिखाना। दाँत देखना— दाँत गिनना, परखना। दाँतों धरती पकड़ कर— बड़ी तकलीफ और किफायत से। दाँत न लगाना— बिना चबाये निगलना। किसी चीज का दाँत निकास देना, निकासना— (दाँत काढ़ना) फट जाना। दाँत निपोरना— (१) व्यर्थ ही हँसना। (२) गिड़गिड़ाना। दाँत पर न रखा जाना— बहुत ही खट्टा होना। दाँत पर मैल जमना— बहुत ही निर्धन होना। दाँत पर रखना— चखना। दाँतों पसीना आना— बहुत कठिन परिश्रम करना। दाँत बजना— दाँत चबात चले जमपुर हैं धाम हमारे कौं— १-१५१। दाँत जमना— दाँत निकालना। दाँत झाड़ देना— बहुत दंड देना, मुंह तोड़ना। दाँत गिरना (झड़ना, टूटना)— ब्रुढ़ापा आना। दाँत ताड़ना— (१) हैरान करना। (२) कठिन दंड देना। दाँत दिखाना— (१) हँसना। (२) डराना। (३) अपना बड़प्पन दिखाना। दाँत देखना— दाँत गिनना, परखना। दाँतों धरती पकड़ कर— बड़ी तकलीफ और किफायत से। दाँत न लगाना— बिना चबाये निगलना। किसी चीज का दाँत निकास देना, निकासना— (दाँत काढ़ना) फट जाना। दाँत निपोरना— (१) व्यर्थ ही हँसना। (२) गिड़गिड़ाना। दाँत पर न रखा जाना— बहुत ही खट्टा होना। दाँत पर मैल जमना— बहुत ही निर्धन होना। दाँत पर रखना— चखना। दाँतों पसीना आना— बहुत कठिन परिश्रम करना। दाँत बजना— सर्दी से दाँत बजना। दाँत मसमसाना (मीसना)— क्रोध से दाँत पीसना। दाँतों में जीभ-सा होंना— बौरयों या शत्रुऒं के बीच में रहना। दाँतों में तिनका लेना— बहुत गिड़गिड़ाना, विनती करना। (किसी जीज पर) दाँत रखना (लगना)— लेने . पाने की इच्छा रखना। ( किसी व्यक्ति पर) दाँत रखना— बदला लेने या वैर निकालने की इच्छा रखना। दाँतों से उठाना— बड़ा कंजूसी से जुगा कर रखना। (किसी पर) दाँत होना— (१) प्राप्त करने की इच्छा होना। (२) बदला लेने की इच्छा रखना। (किसी के) तालू में दाँत जमना— शामत आना।


दाँत
संज्ञा
पुं.
(सं. दंत)
दाँत या अंकुर की तरह किसी चीज का नुकीला भाग, दंदाना, दाँता।


दाँत
वि.
(सं.)
दबाया हुआ, दमन किया हुआ।


दाँत
वि.
(सं.)
जिसने इद्रियों को वश में कर लिया हो।


दाँत
वि.
(सं.)
दाँत से संबंध रखनेवाला।


दाँतना
क्रि. अ.
(हिं. दाँत)
(पशुऒं आदि का ) दाँत वाला होकर जवान होना।


दाँतली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. डाट)
काग, डाट।


दाँता
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँत)
दंदाना, नुकीला कँगूरा आदि।


दाँताकिटकिट, दाँताकिलकिल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत + किटकिटाना)
कहा-सुनी, झगड़ा।


दाँताकिटकिट, दाँताकिलकिल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत + किटकिटाना)
गाली, गलौज।


दाँति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
इंद्रियों का दमन, सहन-शक्ति।


दाँति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अधीनता।


दाँति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विनय, नम्रता।


दाँती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दात्री)
हँसिया।


दाँती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत)
दाँतों की पंक्ति, बत्तीसी।


दाँती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत)
सँकरा पंहाड़ी मार्ग, दर्रा।


दांपत्य
वि.
(सं.)
पति-पत्नी-संबंधी।


दांपत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पति-पत्नी का प्रेम-व्यवहार।


दांभिक
वि.
(सं.)
पाखंडी।


दांभिक
वि.
(सं.)
घमंडी।


दांभिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बगला, बक।


दाँव, दाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
अवसर, दाँव।


दाँवनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दामिनी)
एक गहना, दामिनी।


दाँवरि, दाँवरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाम, हिं. दाँवरी)
रस्सी, डोरी।
उ. — (क) दघि-मिस आपु बँघायौ दाँवरि सुत कुबेर के तारे— १-२५। (ख) बेद-उपनिषद जासु कौ निरगुनहिं बतावै। सोइ सगुन ह्यै नंद की दाँवरी बँधावै — १-४।


दा
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
सितार का एक बोल।


दा
प्रत्य.
स्त्री.
(अनु.)
देनेवाली, दात्री।


दाइँ दाइ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
बार, दफा।
उ.—एक दाइँ मरिवो पै मरिबो नंदनँदन के काजनि—२८७२।


दाइँ दाइ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
दाँव


दाइ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाई)
वह स्त्री जो स्त्रियों को बच्चा जनने में सहायता देती है, दाई।
उ.—लाख टका अरु झूमका सारी दाइ कौ नेग—१०-४०।


दाइज, दाइजा, दाइजो
संज्ञा
पुं.
(सं. दाय)
वह धन जो विवाह में वर-पक्ष को दिया जाय।
उ.—(क) दसरथ चले अवध आनंदत। जनकराइ बहु दाइज दै करि, बार-बार पद बंदत—९-२७। (ख) कहुँ सुत-ब्याह बहुँ कन्या को देत दाइजो रोई।


दाईं
वि.
स्त्री.
(हिं. दायाँ)
दाहिनी।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
[सं. दाचू (प्रत्य.), हिं. दाँ (प्रत्य.)]
बार, दफा।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धात्री या फा. दायः)
दूसरे के बच्चे को दूध पिला कर पालनेवाली. धाय।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धात्री या फा. दायः)
बच्चे की ददेखभाल करनेवाली सेविका।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धात्री या फा. दायः)
वह स्त्री जो बच्चा जनने में सहायता देती है।
उ.—झगविनि तैं नैं बहुत खिझ ई। कचन-हार दिऐं नहि मानति, तुहीं अनोखी दाई—१०-१६।
मुहा.- दाई से पेट छिपाना (दुराना)— जानने वाले से कोई भेद छिपाना। दाई आगे पेट दुरा-वति-रहस्य या भेद जाननेवालें से कोई बात छिपाती है। उ.— औरनि सौं दुगव जो करती तौ हम कहती भली सयानी। दाई आगे पेट दुरावति वाकी बुद्धि आज मैं जानी— १२६२।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दादी)
दादी।


दाईं
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दादी)
बूढ़ी स्त्री।


दाईं
वि.
(हिं. दायी)
देनेवाला।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
बार, दफा, मरतबा।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
बारी, पारी।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
मौका, उपयुक्त अवसर या संयोग।
उ.—यक ऐसिहि झकझोरिति मोंकौ पायौ नीकौ दाउँ—पृ. ३१३ (१३)।
मुहा.- दाँउ लेना— बुरे या अनुचित व्यवहार का बदला लेना। लैहौं दाउँ— पिछले अनुचित व्यवहार का बदला लूँगा | उ.-(क) असुर क्रोध ह्यौ कह्यौ बहुत तुम असुर संहारे। अब लैहौं वह दाँउ छाँड़िहौं नहिं बिन मारे— ३-११। (ख) सूर स्याम सोइ सोइ हम करि हैं, जोइ जोइ तुम सब कैहौ। लैहै दाँउ कबहुँ हम तुमसौं, बहुरि कहाँ तुम जैहौ— ७९३। लेत दाँउ— बदला लेता है, जैसा व्यवहार किया गया था, वैसा ही उत्तर देता है। उ.— मारि भजत जो जाहि, ताहिं सो मारंत, लेत अपनौ दाँउ— ५३३। लयौ दाउ— बदला ले लिया, प्रतिकार कर लिया। उ.— मेरे आगैं महरि जसोदा, तोकौं गगी दीन्ही।¨¨। तोकौं कहि पुनि कह्यौ बबा कौं, बढ़ौ धूत वृषभान। तब मैं दह्यौ, टग्यौ कब तुमकौं हँसि लागी लपटान। भली गही तू मेरी बेटी. लयौं आपनौ दाउ— ७०९। दाँउ लियौ-बदला लिया। उ.— और सकल नागरि नारिनि कौं दासी दाँउ लियौ— ३०८७।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
मतलब गाँठने का उपाय, चाल या युक्ति।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
कुश्ती जीतने का पेच या बंद।
उ.—तब हरि मिलि मल्लक्रीड़ा करि बहु बिधि दाँउ दिखाये सारा. ५२१।


दाँउ, दाउ
यौ.
दाँउ-घत
दाँव-पेच, जीत के उपाय, युक्ति।
उ.—यह बालक धौं कौन कौ कीन्हौ जुद्ध बनाइ। दाँउ-घात बहुतैं कियौ, मरत नहीं जदुराइ—५८९।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
छल-कपट का व्यवहार।
उ.—अब करति चतुराई जाने स्याम पढ़ाये दाँउ—१२८३।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
खेलन की बारी या पारी, चाल।


दाँउ, दाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाँव)
जीत की कौड़ी या पाँसा।
उ.—(क) दाँउ बलगम को देखि उन छल कियों रुक्म जीत्यौ कहन लगे सारे। देवबानी भई, जीत भई राम की, ताहू पै मूढ़ माहीं सँमारे—१० उ. ३३। (ख) दाँउ अबकैं परयौ पूनै, कुमति पिछली हारि—१-३०९।
मुहा.- दाँउ देना— खेल म हारने पर दूसरे को खिलाना या नियत दंड भोगना। दाँउ देत नहिं— हारने पर भी दूसरे को खेलने नहीं देते। उ.— तुमरे संग कहो को खेलै दाउँ देत नहिं करत रुनैया। दाँउ दियौ— स्वयं हारने के बाद जीतनेवाले को खिलाया। उ.— रुहठिं करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ सब ग्वैयाँ। सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाँउ दियौ करि नंद-दुहैया— १०-२४५।


दाऊ
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
अवस्था में बड़ा भाई, बड़े भैया।


दाऊ
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
श्री कुष्ण के भाई, बलराम।
उ.—(क) दाऊ जू, कहि स्याम पुकारूयौ—४०७। (ख) मैया री मोहिं दाऊ टेरत—४२४।


दाक्षायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोना, स्वर्ण।


दाक्षायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्णमुद्रा।


दाक्षायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दक्ष प्रजापति का किया हुआ एक यज्ञ।


दाक्षायण
वि.
दक्ष से उत्पन्न।


दाक्षायण
वि.
दक्षसंबंधी।


दाक्षायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्ष-कन्या।


दाक्षायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा।


दाक्षायणी
वि.
(सं. दाक्षायनिन )
सोने का, स्वर्णमय।


दाक्षिण
वि.
(सं.)
दक्षिण-संबंधी।


दाक्षिण
वि.
(सं.)
दक्षिणा-संबंधी।


दाक्षिणात्य
वि.
(सं.)
दक्षिण का, दक्षिणी।


दाक्षिणात्य
संज्ञा
पुं.
भारत का दक्षिणी भाग।


दाक्षिणात्य
संज्ञा
पुं.
इस भाग का निवासी।


दाक्षिणात्य
संज्ञा
पुं.
नारियल।


दाक्षिण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रसन्नता, अनुकूलता।


दाक्षिण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उदारता।


दाक्षिण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरे को प्रसन्न करने का भाव।


दाक्षिण्य
वि.
दक्षिण-संबंधी।


दाक्षिण्य
वि.
दक्षिणा-संबंधी।


दाक्षी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्ष की कन्या।


दाक्ष्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दक्षता, निपुणता, कौशल।


दाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दग्ध)
जलन, जलने की वेदना।
उ.—मिलिहै ह्रदय सिराइ स्रवन सुनि मेटि बिरह के दाग—२९४८।


दाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दग्ध)
जलने का चिह्न।


दाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दाग़)
धब्बा, चित्ती।


दाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दाग़)
निशान, चिह्न।
उ.—(क) कुंडल मकर कपोलनि झलकत स्रम सीकर के दाग—१२१४। (ख) दसन-दाग नख-रेख बनी है—१९५६।


दाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दाग़)
फल आदि के सड़ने का निशान।


दाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दाग़)
कलंक, दोष।


दागदार
वि.
(फ़ा.)
दागी।


दागदार
वि.
(फ़ा.)
धबीला।


दागना
क्रि. स.
(हिं. दाग)
जलना, दग्ध करना।


दागना
क्रि. स.
(हिं. दाग)
तपे हुए लोहे से चिह्न डालना।


दाख
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्राक्षा)
अंगूर।


दाख
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्राक्षा)
मुनक्का-किशमिश।
उ.—ऊथौ मन माने की बात। दाख-छुहारा छाँड़ि अमृत-फल बिष-कीरा बिष खात—४०२१।


दखिल
वि.
(फा.)
प्रविष्ट, घुसा हुआ।


दखिल
वि.
(फा.)
मिला हुआ, सम्मिलित।


दखिल
वि.
(फा.)
पहुँचा हुआ।


दाखिला
संज्ञा
पुं.
(फा.)
प्रवेश, पैठ।


दाखिला
संज्ञा
पुं.
(फा.)
सम्मिलित किये जाने का कार्य।


दाखी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाक्षी)
दक्ष की कन्या।


दाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दग्ध)
जलाने का काम, दाह।


दाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दग्ध)
मुर्दा जलाने का काम, दाह-कर्म।


थिरकना
क्रि. अं.
(सं. अस्थिर + करण)
नाचते समय पैरों को हिलाना-डुलाना या उठाना- गिराना।


थिरकना
क्रि. अं.
(सं. अस्थिर + करण)
मटक-मटक कर नाचना।


थिरकौंहाँ
वि.
(हिं. थिरकना)
थिरकने या हिलनेवाला।


थिरकौंहाँ
वि.
(हिं स्थिर)
ठहरा हुआ, स्थिर।


थिरजीह
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थिर + जिह्वा)
मछली।


थिरता, थिरताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिरता)
ठहराव।


थिरता, थिरताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिरता)
स्थायित्व।


थिरता, थिरताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिरता)
शांति, अचलता।


थिरना
क्रि. अ.
[सं. स्थिर, हिं. थिर+ना (प्रत्य.)]
द्रवों का हिलना-डोलना बंद होना।


थिरना
क्रि. अ.
[सं. स्थिर, हिं. थिर+ना (प्रत्य.)]
द्रवों के स्थिर होने पर उनमें घुली हुई चीज का तल में बैठना।


दागना
क्रि. स.
(हिं. दाग)
धातु के तप्त साँचे से चिह्न डालना।


दागना
क्रि. स.
(हिं. दाग)
तेज दवा से फोड़े-फुंसी को जलाना।


दागना
क्रि. स.
(हिं. दाग)
बंदूक आदि में बत्ती देना या आग लगाना।


दागना
क्रि. स.
(फ़ा. दाग़)
रंग आदि से चिह्न अंकित करना।


दागबेल
संज्ञा
स्त्री
(फ़ा. दाग़ +हिं. बेल)
कच्ची भूमि पर सिधान के लिए फावड़े आदि से बनाये हुए चिह्न।


दागर
वि.
(हिं.. दागना ?)
नष्ट करनेवाला, नाशक।


दागी
वि.
(फा. दाग)
जिस पर दाग-धब्बा लगा हो।


दागी
वि.
(फा. दाग)
जिस पर सड़ने का निशान हो।


दागी
वि.
(फा. दाग)
जिसको कलंक लगाया गया हो, कलंकित।


दागी
वि.
(फा. दाग)
जिसे दंड मिल चुका हो, दंडित।


दाड़क
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाढ़, ढाढ़।


दाड़क
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।


दाड़िम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनार।
उ.—दाड़िम दामिनि कुंदकली मिलि बाढ़ूयौ बहुत बषान— सा. उ.—१५।


दाड़िम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इलाइची।


दाड़िमप्रिय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तोता, शुक।


दाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाड़िम)
अनार, दाड़िम।


दाढ़
संज्ञा
स्त्री.
(सं.दंष्ट्रा, प्रा. डडडा)
दंत-पंक्तियों के दोनों छोरपर के चौड़े दाँत, चौभर।
मुहा.- दाढ़ गरम होना-भोजन मिलना।


दाढ़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
दहाड़


दाढ़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
चिल्लाहट।
मुहा.- ढाढ़ मारकर रोना— चिल्लाकर रोना।


दाढ़ना
क्रि. स.
(सं. दाहन)
आग मे जलना, भस्म होना


दागी
क्रि. स.
(हिं. दागना)
जलायी, भस्म की।


दागे
क्रि. स.
(फा. दाग)
रंग आदि के चिन्ह अंकित किये।
उ.—कबहुँक बैठि-अंस भुज धरि कै पीक कपोलनि दागे।


दाग्यौ
क्रि. स.
(हिं. दागना)
दाग लगाया, जला कर कोई चिन्ह बनाया, छाप, लगायी।
उ.—तौ. तुम कोऊ तारूयौ नहिं जौ मोसौं पतित न दाग्यौ—१-७३।


दाग्यौ
क्रि. स.
(हिं. दागना)
रंग आदि से चिन्हित किया।
उ.—कबहुँक जावक कहुँ बने समोर रंग कहुँ अंग सेंदुर दाग्यौ—१९७२।


दाध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गरमी, ताप, दाह, जलन।


दाज, दाझ
संज्ञा
पुं.
(सं. दाहन)
अँधेरा।


दाज, दाझ
संज्ञा
पुं.
(सं. दाहन)
अँधेरी रात।


दाजन, दाझन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दहन)
जलन।


दाजना, दाझना
क्रि. अ.
(सं. दग्व)
जलना, ईर्ष्या करना, द्वेष रखना।


दाजना, दाझना
क्रि. स.
जलाना, संतप्त करना।


दाढ़ना
क्रि. स.
(सं. दाहन)
संतप्त या दुखी करना।


दाढ़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़)
वन की आग।


दाढ़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़)
आग।


दाढ़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़)
दाह, जलन।
मुहा.- दाढ़ा फणूकना-जलन पैदा करना।


दाढ़िक, दाढ़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाद)
टोढ़ी, ठुड्डी।


दाढ़िक, दाढ़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाद)
गाल, दाढ़ और टुड्डी के बाल।


दाढ़ीजार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़ +जलना)
वह जिसकी दाढ़ी जली हो।


दाढ़ीजार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाढ़ +जलना)
मूर्ख पुरुषों के लिए झुँझलायी हुई स्त्रियों की एक गाली।


दात
संज्ञा
पुं.
(सं. दाता)
देनेवाला।
उ.—जाके सखा स्यामसुंदर से श्रीपति सकल सुखन के दात-१०-उ.५९।


दात
संज्ञा
पुं.
(सं. दातव्य)
दात।
उ.—गोकुल बजत सुनी बधाई लोगनि हियै सुहात। सूरदास आनंद नंद कैं देत वन क नग दात—१०-१२।


दातव्थ
वि.
(सं.)
देने योग्य।


दातव्थ
संज्ञा
पुं.
दान देने की क्रिया।


दातव्थ
संज्ञा
पुं.
उदारता।


दाता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो दान दे, दानी।


दाता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देनेवाला।


दाता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उदार।


दातापन
संज्ञा
पुं.
(सं. दाता +हिं. पन)
दानशीलता।


दातार
संज्ञा
पुं.
(स. दाता का बहु)
देनेवाले, दाता।
उ.—काकौं नाम बताऊँ तोकौं। दुखदायक अट्टप्ट मम मोकौं। कहियत इतने दुख-दातार—१-२९०।


दाती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दात्री)
देनेवाली।
उ.—पलित केस कफ कंठ बिरोध्यौ कल न परै दिन राती। माया-मोह न छाँड़े तृष्ना ए दोऊ दुख-दाती।


दातुन, दातून, दातौन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दतुवन)
दाँत साफ करने की क्रिया।


दातुन, दातून, दातौन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दतुवन)
नीम, बबूल आदि की छोटी टहनी का एक बालिश्त के बराबर टुकड़ा, जिससे दाँत साफ किये जाते हैं।


दातृता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दानशीलता, उदारता।


दातृत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दानीपन, उदारता।


दात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हँसिया, दाँती।


दात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देनेवाली।


दात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दात्र)
हँसिया, दाँती।


दाद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दद्रु)
एक चर्मरोग।


दाद
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
इंसाफ, न्याय।
मुहा.- दाद चाहना— अन्याय या अत्याचार के विरोध या प्रतिकार की प्रर्थना करना।

दाद देना— (१) न्याय या इसाफ करना। (२) प्रशंसा या बड़ाई करना, सराहना।

दादनी
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
रकम जो चुकानी हो।


दादनी
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
रकम जो अग्रिम दी जाय।


दाधीचि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दधीचि का वंशज या गोत्रज।


दाधे
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाद, दग्ध)
जला हुआ स्थान।
मुहा.- दाधे पर लोन लगावै— जले पर नमक लगाना, दुखी या पीड़िच को वाक्यों या कार्यों से और पीड़ा पहुँचाना। उ.— सूरदास प्रभु हमहिं निदरि दाधे पर लीन लगावै— ३०८८।


दाधे
क्रि. स.
जलाये, भस्म किये।
उ.—बिबरन भये खंड जो दाधे बारिज ज्यों जलमीन—२७६७।


दाधौ
वि.
(हिं. दाध)
जो जला हुआ हो।
उ.—हरि-मुख ए रंग-संग बिधे दाधौ फिरे जरै—२७७०।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देने का काम।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-भाव से देने का काम।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वस्तु जो दान में दी जाय।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कर, चुंगी, महसूल।
उ.— तुम समरथ की बाम कहा काहु को करिहौ। चोरी जातीं र्बेचि दान सब दिन का भरिहौं।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजनीति का एक उपाय जिसमें कुछ देकर शत्रु के विरुद्ध सफलता पाने का प्रयत्न किया जाय।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी का मद।


दादु
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दद्रु.)
दाद नामक चर्मरोग।


दादुर, दादुल
संज्ञा
पुं.
(सं.ददुर)
मेढक।
उ.—(क) मनु बरषत मास अषाढ़ दादुर मोर ररे—१०-२४। (ख) गर्जत गगन गयंद गुंजरत अरु दादुर किलकार—२८२०। (ग) दादुल जल दिन जियै पवन भख मीन तजै हठि प्रान—३३५७।


दादू
संज्ञा
पुं.
(अनु. दादा)
दादा के लिए स्नेह-सूचक संबोधन।


दादू
संज्ञा
पुं.
(अनु. दादा)
आत्मीयता सूचत सामान्य संबोधन।


दादू
संज्ञा
पुं.
(अनु. दादा)
अकबर के समकालीन एक साधु जिनका पथ प्रसिद्ध है।


दादूपंथी
संज्ञा
पुं.
(सं. दादू +पंथी)
दादू या दादू दयाल नामक साधु के अनुयायी, जिनके तीन वर्ग हैं—विरक्त या संन्यासी, नागा या सैनिक और विस्तर धारी या गृहस्थ।


दाध
संज्ञा
स्त्री. पुं.
(सं. दाद)
जलन, दाह, ताप।


दाधना
क्रि. स.
(सं. दग्ध)
जलाना, भस्म करना।


दाधा
संज्ञा
पुं.
(सं. दग्ध, हिं. दाध)
जलन, दुख, दाह, ताप।
उ.—(क)निरखत बिधि भ्रमि भूलि परयौ तब, मन-मन करत समाधा। सूरदास प्रभु और रच्यौ बिधि, सोच भयौ तन दाधा—९०५। (ख) सूरदास प्रभु मिले कृपा करि गये दुरति दुख दाधा—१४३७।


दाधा
वि.
जला हुआ, जो जल गया हो।


दादर
संज्ञा
पुं.
(हिं. दादुर)
मेढक, मंडूक।
उ.—ज़्यौं पावस रितु घन-प्रथम घोर। जल जावक, दादर रटत मोर—९-१६६।


दादर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह का चलता गाना।


दादरा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह का चलता गाना।


दादस
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दादा +सास)
सास की सास।


दादा
संज्ञा
पुं.
(पं, ताउ)
पिता के पिता, पितामह।


दादा
संज्ञा
पुं.
(पं, ताउ)
बड़ा भाई।


दादा
संज्ञा
पुं.
(पं, ताउ)
बड़ों के लिए आदरसूचक शब्द।


दादि
संज्ञा
स्त्री.
(फा. दाद.)
न्याय इंसाफ, प्रशंसा।
उ.—सदा सर्बदा राजाराम कौ सूर दादि तहँ पाई—९-१७।


दादी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दादा)
पिता की माता।


दादी
संज्ञा
पुं.
(फा. दाद)
न्याय चाहनेवाला।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छेदन।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुद्धि।


दान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का मधु।


दानक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा नान।


दानकुल्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हाथी का मद।


दानधर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान-पुण्य।


दानपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सदा दान देनेवाला।


दानपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अक्रूर का एक नाम जो उसे स्यमंतक मणि के प्रभाव से प्रति दिन प्रचुर दान देने के कारण दिया गया था।


दानपत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह पत्र या लेख जिसमें संपति दान का लेखा हो।


दानपात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान पाने का अधिकारी।


थीथी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
दशा, अवस्था, स्थिति।


थीथी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
धीरज, धैर्य।


थीर, थीरा
वि.
(सं. स्थिर, हिं थिर)
स्थिर।


थुकवाना , थुकाना
क्रि. स.
(हिं थूकना का प्रे.)
थूकने का कार्य दूसरे से कराना।


थुकवाना , थुकाना
क्रि. स.
(हिं थूकना का प्रे.)
उगलवाना।


थुकवाना , थुकाना
क्रि. स.
(हिं थूकना का प्रे.)
निंदा या तिरस्कार कराना।


थुकहाई
वि.
स्त्री.
[हिं. थूक +हाई (प्रत्य.)]
वह स्त्री जिसकी सब निंदा या बुराई करें।


थुकाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूकना)
थूकने की क्रिया।


थुकायल, थुकेल, थुकैल, थुकैला
वि.
(हिं. थूक + आयल, एल, ऐल, ऐला)
जिसकी सब निंदा करें।


थुक्का फजीहत
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूक + अ. फजीहत)
निंदा और बुराई।


दानवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दानवाकार भयानक आकृति और क्रूर प्रकृतिवाली स्त्री।


दानवी, दानवीय
वि.
(सं. दानवीय)
दानव-संबंधी।


दान-वीर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अत्यंत दानी।


दानवेंद्र
संज्ञा
पुं.
(सं. दानव +इंद्र)
राजा बलि।


दानशील
वि.
(सं.)
दान करनेवाला।


दानशीलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दान की वृत्ति, उदारता।


दानसागर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कई वस्तुऒं का महादानी।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
अनाज का कण।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
अनाज अन्न।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
भुना अनाज, चबेना।


दानलीला
संज्ञा
स्त्री.
(स.)
श्रीकृष्ण की एक लीला जिसमें उन्होंने गोपियों से गोरस का कर वसूल किया था।


दानलीला
संज्ञा
स्त्री.
(स.)
वह ग्रंथ जिसमें इस लीला का वर्णन किया गया हो।


दानव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दनु' नामत पत्नी ,से उत्पन्न कश्यप के पुत्र, दनुज, असुर, राक्षंस।


दानवगुरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुक्राचार्य।


दानवप्रिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दानव =दैत्य; यहाँ आशय कुंभकरण से है; कुंभकरण की प्रिया=नींद)
नींद, निद्रा।
उ.—दानव प्रिया सेर चलि सौ सुरभी रस गुड़ सीचों। तजत न स्वाद आपने तन को जो बिधि दीनो नीचो—सा. ९०।


दानवारि
संज्ञा
पुं.
(स. दानव +अरि=शत्रु)
विष्णु।


दानवारि
संज्ञा
पुं.
(स. दानव +अरि=शत्रु)
देवता।


दानवारि
संज्ञा
पुं.
(स. दानव +अरि=शत्रु)
इंद्र


दान-वारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी का मद।


दानवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दानव की स्त्री।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
छोटे-छोटे बीज।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
अनार आदि फलों के बीज।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
छोटी गोल वस्तु जो प्रायः गूँथी जाय।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
माला की एक मनका या गुरिया।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
छोटी छोटी गोल चीजों के लिए संख्या-सूचक शब्द।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
रवा, कण।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
किसी चीज का हलका उभार।


दाना
संज्ञा
पुं.
(फा. दान:)
शरीर के चमड़े पर किसी कारण पड़ जानेवाला हल्का उभार।


दाना
वि.
(फा. दाना)
बुद्धिमान, अक्लमंद।


दानाई
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
अक्लमंदी, बुद्धिमानी।


दानी
वि.
(सं. दानिन्)
जो दान करे, उदार।


दानी
संज्ञा
पुं.
दान करनेवाला व्यक्ति, दाता।


दानी
संज्ञा
पुं.
(सं. दानीय)
कर-संग्रह करने या दान लेनेवाला।
उ.—(क)तुम जो कहति हौ मेरौ कन्हैया गंगा केसौ पानी। बाहिर तरुन किसोर बयस बर बाट-घाट का दानी—१०-३११। (ख) परुसत ग्वारि ग्वार सब जेंवत मध्य ऊष्ण सुखकारी। सूर स्याम दधि दानी कहि कहि आनँद घोष-कुमारी।


दानीय
वि.
(सं.)
दान करने योग्य।


दाने
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. दाना)
अनाज के कण।
मुहा.- दाने दाने को तरसना— भोजन का बहुत कष्ट सहना।

दाने दाने को महताज— बहुत दरिद्र।

दानेदार
वि.
(फा.)
जिसमें दाने या रवे हों।


दानो, दानौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दानव)
दैत्य, दनुज, दानव।
उ.—हमता जहाँ तहाँ प्रभु नाहीं सो हमता क्यौं मानौं| प्रगट खंभ तैं दए दिखाई जद्यपि कुल कौ दानो—१-११।


दान्हे
वि.
(हिं. दाहना)
दाँया, दहना।
उ. — जल दान्हें कर आनि कहत मुख धोरहु नारी - ३०९०।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
जलन, ताप, दुख।
उ. — (क) दियौ क्रोध करि सिवहिं सराप करौ कृपा जो मिटै यह दाप — ४-५। (ख) हरि आगे कुबिजा अधिकारनि को जीवै इहिं दाप—२१७१।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
क्रोध।
उ. — कच कौं प्रथम दियौ मैं साप। उनहूँ मोहि दियौ करि दाप— ९-१७४।


दाना-चारा
संज्ञा
पुं.
(फा. दाना + हिं. चारा)
भोजन।


दानाध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान का प्रबंध करनेवाला कर्मचारी या सेवक।


दाना-पानी
संज्ञा
पुं.
(फा. दाना + हिं. पानी)
खान-पान, अन्न-जल।


दाना-पानी
संज्ञा
पुं.
(फा. दाना + हिं. पानी)
जीविका, रोजी।
मुहा.- दाना-पानी उठना— जीविका न रहना।


दाना-पानी
संज्ञा
पुं.
(फा. दाना + हिं. पानी)
कहीं रहने-बसने का संयोग।


दानि
वि.
(हिं. दानी)
जो दान करे, उदार।


दानि
संज्ञा
पुं.
दान करनेवाला व्यक्ति, दाता।
उ.—सकल सुख के दानि आनि उर, दृढ़ विश्वास भजौ नँदलालहिं—१-७४।


दानि
संज्ञा
पुं.
उदार।
उ.—कृपा निधान दानि दामोदर सदा सँवारन काज—१-१०९।


दानिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दान करनेवाली स्त्री।


दानिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दानी)
उदार, दानी।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
अहंकार, घमंड, अभिमान।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
शक्ति, बल, जोर।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
उत्साह, उमंग।


दाप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प, प्रा. दप्प)
रोब, आतंक।


दापक
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पक)
दबानेवाला।
उ.— सो प्रभु हैं जल-थल सब ब्यापक। जो है कंस दर्प को दापक— १००१।


दापना
क्रिं.स
(हिं. दाप)
दबाना।


दापना
क्रिं.स
(हिं. दाप)
रोकना।


दाब
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबना)
दबने-दबाने का भाव।


दाब
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबना)
भार, बोझ।
मुहा.- दाब में होना वश या अधीन होना।


दाब
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबना)
आतंक, अधिकार, दबदबा, शासन।
मुहा.- दाब दिखाना— अधिकार या हुकूमत जताना।

दाब मानना— वश में या अधीन होना। दाब में रखना— वश या शासन ममें रखना। दाब में लाना— वश या शासन में करना। दाब में होना— वश या शसन में हाना।

दाबदार
वि.
(हिं. दाब+फ़ा दार)
रोब-प्रभाव वाला।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
भार या बोझ के नीचे लाना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
शरीर के किसी अंग से जोर लगाना


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
पीछे हटाना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
गाड़ना या दफन करना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
प्रभाव या आतंक जमाना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
गुण या महत्व की अधिंकता से दूसरे को हीन कर देना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
बात या चर्चा को फैलने न देना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
दमन करना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
अनुचित अधिकार करना।


दाबना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
विवश कर देना।


दाभ
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्भ)
एक तरह का कुश डाभ।


दाभ्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जो वश में आ सके।


दाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रस्सी, रज्जु।
उ.—नंद पितु माता जसोदा बाँधे ऊखल दाम—२५८३।


दाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
माला, हार, लड़ी।
उ.—(क) कहुँ क्रीड़त, कहुँ दाम बनावत, कहुँ करत सिंगार। (ख) निरखि कोमल चारु मूरति ह्रदय मुक्रुता दाम—२५३५।


दाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समूह, राशि।


दाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लोक, विश्व।


दाम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
जाल, फदा, पाश।
उ.—लोचन चोर बाँधे स्याम। जात ही उन तुरत पकरे कुटिल अलकनि दाम—पृ. ३२४ (२८)।


दाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमड़ी)
एक दमड़ी का तीसरा भाग।
मुहा.- दाम दाम भर देना-लेना— कौड़ी-कौड़ी चुका देना-लेना।


दाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमड़ी)
मूल्य, कीमत, मोल।
उ.—हमसौं लीजै दान के दाम सबे परखाई—१०१७।
मुहा.- दाम उठना— कोई वस्तु बिक जाना।

(किसी वस्तु का) दाम करना (चुकाना)— मोल-भाव करना। दाम खड़ा करना— मूल्य वसूलना। दाम भरना— नष्ट करने के कारण किसी चीज का मूल्य देने को विवश होना, डाँड़ देना। दाम भर पाना— सारा मूल्य पा जाना।

दाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमड़ी)
धन, रुपया-पैसा।
उ.—(क) बालापन खेलत ही खोयौ, जोबन जोरत दाम—१-५७। (ख) कोउ कहै दैहैं दाम नृपति जेतौ धन चाहै—५८९।


दाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमड़ी)
सिक्का, रुपया।
उ.—हरि कौ नाम, दाम खोटे लौं, झकि झकि डारि दयौ—१-६४।


दाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमड़ी)
राजनीति में धन देकर शत्रु को वश में करने की चाल।


दाम
वि.
(स.)
देनेवाला, दाता।


दामक
संज्ञा
पुं.
(स.)
लगाम, बागडोर।


दामन
संज्ञा
पुं.
(फा.)
अंगे, कुर्ते आदि का निचला भाग, पल्ला।


दामन
संज्ञा
पुं.
(फा.)
पहाड़ का निचला भाग।


दामन
संज्ञा
पुं. बहु.
(सं.)
मूल्य, कीमत, मोल. धन।
मुहा.- बिन दामन मो हाथ बिकानौ— बिना मोल के दश में या अधीन हो गयी। उ.— धन्य धन्य डढ़ नेम तुमारों बिन दामन मो हाथ बिकानी— १७१९।


दामनगीर
वि.
(फा.)
पल्ला पकड़ने या पाछे पड़ जानेवाला, सिर हो जानेवाला।
उ.—अपनो पिंड पोषिबैं कारन कोटि सहस जिय मारे। इन पापनि तैं कयौं उबरौगे दामनगीर तुम्हारे—१-३३४।
मुहा.- दामनगीर होना— पीछे पड़ना या लगना।


दामनगीर
वि.
(फा.)
दावा करने वाला, दावेदार।


दामोदर
संज्ञा
पुं.
(सं. दाम=(१) रस्सी, (२) लोक + उदर ) (दम अर्थात इंद्रिय-दमन में श्रोठ)
श्रीकृष्ण जो एक बार रस्सी से बाँधे गयॆ थे।
उ. — (क) तौलौं बँधे देव दामादर जौ लौं यह कृत कीनी— सारा. ४५२।(ख) जन-कारन भुज आपु बँधाए वचन कियौ रिषि ताम। ताही दिन तैं प्रगट सूर प्रभु यह दामोदर नाम — २६१।


दामोदर
संज्ञा
पुं.
(सं. दाम=(१) रस्सी, (२) लोक + उदर ) (दम अर्थात इंद्रिय-दमन में श्रोठ)
विष्णु जिनके उदर में सारा विश्व है।


दामोदर
संज्ञा
पुं.
(सं. दाम=(१) रस्सी, (२) लोक + उदर ) (दम अर्थात इंद्रिय-दमन में श्रोठ)
जैनियों के एक तीर्थकर।


दायँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दावँ)
बार।


दायँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दावँ)
बारी।


दायँ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाईं)
बार।


दायँ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाईं)
बारी।


दायँ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दमन)
कटी हुई फसल को बैलों से रौंदवा कर दाना-भूसा अलग करने की क्रिया, दवँरी।


दायँ
संज्ञा
स्त्री.
(?)
बराबरी, समानता।


दाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी की दिया जानेवाला धन।


थिरना
क्रि. अ.
[सं. स्थिर, हिं. थिर+ना (प्रत्य.)]
मैल बैठने पर जल, तेल आदि का स्वच्छ हो जाना।


थिरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिरा)
पृथ्वी।


थिराना
क्रि. स.
(हिं. थिरना)
द्रवों का हिलना-डोलना बंद करना।


थिराना
क्रि. स.
(हिं. थिरना)
द्रवों को स्थिर करके घुली हुई चीजों को तल में बैठालना।


थी
क्रि. अ.
(हिं. था)
‘है’ किया का भूत. स्त्री रूप।


थीकरा
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थित + कर)
रक्षा का भार।


थीता
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थित, हिं. थित)
स्थिरता।


थीता
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थित, हिं. थित)
स्थायित्व।


थीता
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थित, हिं. थित)
अचंचल रहने का भाव।


थीथी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थिति)
दृढ़ता, स्थिरता।


दामनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
रस्सी, रज्जु।


दामर, दामरि, दामरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाम)
रस्सी।


दामा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दावा)
दावानल।


दामा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाम)
राधा की एक सखी का नाम।
उ.—कहि राधा किन हार चोरायौ।¨¨¨¨ प्रेमा दामा रूपा हसा रंगा हरषा जाउ—१५८०।


दामाद
संज्ञा
पुं.
(फा.)
जवाँई, जामाता।


दामिन, दामिनि, दामिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दामिनी)
बिजली, विद्युत्।
उ. — घन-दामिनि घरती लौं कौंधै, जमुना-जल सौं पागे — १०-४। (ख) नील बसन तनु, सजल जलद मनु, दामिनि बिवि भुज-दंड चलावति — १०-१४९।


दामिन, दामिनि, दामिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दामिनी)
स्त्रियों के सिर का एक गहना, बेंदी, बिंदिया, दावँनी।


दामी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाम)
कर, मालगुजारी।


दामी
वि.
(हिं. दाम)
अधिक दाम या मूल्यवाला।


दामोद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अथर्ववेद की एक शाखा।


दाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान आदि में देने का धन।


दाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उत्तराधिका रियों में बाँटा जा सकनेवाला पैतृक धन।


दाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान।


दाय
संज्ञा
पुं.
(सं. दाव)
जलन, ताप, दुख।


दायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देनेवाला, दाता।


दायज, दायजा, दायजो
संज्ञा
पुं.
(सं. दाय )
वह धन जो विवाह में वर-पक्ष को दिया जाय, दहेज, यौतुक।
उ.—कहुँ सुत ब्याह कहूँ कन्या को देत दायजौ रोईं—सारा. २३५।


दायभाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पैतृक धन का भाग।


दायभाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पैतृक या संबंधी के धन के बटवारे की व्यवस्था।


दायर
वि.
(फा.)
चलता हुआ।


दायर
वि.
(फा.)
जारी।
मुहा.- दायर होना— किसी के समक्ष पेश होना या उपस्थित किया जाना।


दायरा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
गोल घेरा।


दायरा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
वृत्त।


दायरा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
मडली।


दायरा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
खँजड़ी, डफली।


दायाँ
वि.
(हिं. दाहिना)
दाहिना।


दाया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दया)
दया-कृपा।
उ.—दाया करि मोकौं यह कहिए अमर हाहुँ जेहि भाँति—सारा. १५१।


दायागत
वि.
(सं.)
हिस्से में मिला हुआ।


दायाद
वि.
(सं.)
हिस्सा या दाय पाने का अधिकारी।


दायाद
संज्ञा
पुं.
पुत्र।


दायाद
संज्ञा
पुं.
सपिंड कुटुंबी।


दायादा, दायादी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कन्या।


दायित
वि.
(सं.)
दान किया हुआ।


दायित्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देनदार होने का भाव।


दायित्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जिम्मेदारी, जवाबदेही।


दायिनी
वि.
स्त्री.
(स.)
देनेवाली।


दायी
वि.
(पं. दायिन्)
देनेवाला |


दायें
क्रि. वि.
(हिं. दायाँ)
दाहिनी ऒर को।
मुहा.- दायें होना— अनुकूल या प्रसन्न होना।


दार
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्त्री, पत्नी, भार्या।
उ.—नाम सुनीति बड़ी तिहिं दार। सुरुचि दूसरी ताकी नार—४-९।


दार
संज्ञा
पुं.
(सं. दारु)
काठ।


दार
संज्ञा
पुं.
(सं. दारु)
बढ़ई।


दारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लड़का।


दारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुत्र।


दारक
वि.
(सं.)
फाड़ने या विदीर्ण करनेवाला।


दारकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विवाह।


दारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चीड़-फाड़ की क्रिया।


दारद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का विष।


दारद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पारा।


दारद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंगुर।


दारना
क्रि. स.
(सं. दारण)
चीरना फाड़ना।


दारना
क्रि. स.
(सं. दारण)
नष्ट करना।


दारपरिग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्त्री का ग्रहण, विवाह।


दारमदार
संज्ञा
पुं.
(फा.)
आश्रय।


दारमदार
संज्ञा
पुं.
(फा.)
कार्यभार।


दारसंग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्त्री का ग्रहण, विवाह।


दारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. पुं. दार)
स्त्री, पत्नी।
उ.—(क) सुख-संपत्ति दारा-सुत हय-गय झूठ सबै समुद्राइ—१-३१७। (ख) धन-दारा-सुत-बंधु-कुटुँब-कुल निरखि-निरखि बौरान्यौ—१-३१९।


दारि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाल)
दाल।
उ.—बेसन दारि चनक करि बान्यौ—१००९।


दारिउँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाड़िम)
अनार।


दारिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बालिका


दारिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पुत्री।


दारित़
वि.
(सं.)
चीरा-फाड़ा हुआ।


दारिद, दारिद्र, दारिद्रथ
संज्ञा
पुं.
(सं. दारिद्रथ)
दरिद्रता, निर्धनता।
उ.—सुदामा दारिद्र भंजे कूबरी तारी—१-१७६।


दारिम
संज्ञा
पुं.
(सं. दाड़िम)
अनार।


दारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेवाई का रोग, षर वा।


दारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दारिका)
युद्ध में जीत कर लायी गयी दासी।


दारीजार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दारी + सं. जार)
दासी का पति (गाली)।


दारीजार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दारी + सं. जार)
दासीपुत्र, गुलाम।


दारु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काष्ठ, काठ, लकड़ी।
उ.—जो यह बधू होइरंकाहू की, दारु-ध्वरूप धरे। छूटै देह, जाइ सरिंता तजि, पग सौं परस करे—९-४१।


दारु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवदार।


दारु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बढ़ई।


दारु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीतल।


दारु
वि.
दानी, उदार।


दारु
वि.
टूटने फूटनेवाला।


दारुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवदास।


दारुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण के सारथी का नाम जो इनके परम भक्त थे।


दारुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काठ का पुतला।


दारुका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कठपुतली।


दारुकावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वन जो तीर्थ भी है।


दारुज
वि.
(सं.)
काठ से पैदा होनेवाला।


दारुज
वि.
(सं.)
काठ का बना हुआ।


दारुण
वि.
(सं.)
भीषण, घोर।


दारुण
वि.
(सं.)
कठिन, दुःसह।


दारुण
वि.
(सं.)
फाड़नेवाला, विदारक।


दारुण
संज्ञा
पुं.
भयानक रस।


दारुण
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


दारुण
संज्ञा
पुं.
शिव।


दारुण
संज्ञा
पुं.
एक नरक।


दारुण
संज्ञा
पुं.
राक्षस।


दारुणारि
संज्ञा
पुं.
(सं. दारुण=राक्षस + अरि)
विष्णु।


दारुन
वि.
(सं. दारुण)
कठोर, भीषण, घोर, भयंकर।
उ.—(क) जहाँ न कहू कौ गम दुसह दारुन तम सकल बिधि बिषम खल मल खानि—१-७७। (ख) दुस्सासन अति दारुन रिस करि केसनि करि पकरी—१-२५४। काहै कौ कलह नाध्यौ दारुन दाँवरि बाँध्यौ. कठिन लकुट लैतैं त्रास्पौ मेरे भैया—३७२।


दारुन
वि.
(सं. दारुण)
विकट, प्रचंड, दुसह।
उ.—(क) दारुन दुख दवारि ज्यौं तृन बन नाहिंन बुझति बुझाई—९-५२। (ख) नाहीं सही परति अब मापै दारुन त्रास निसाचर केरी—९९३।


दारुनटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कठपुतली।


दारुपात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काठ का बरतन।


दारुपुत्रिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कठपुतली।


दारुमय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काठ का बना हुआ।


दारुमयी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
काठ से निर्मित।


दारु-योषिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कठपुतली।


दारू
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दवा।


दारू
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
शराब।


दारू
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
बारूद।


दारूकार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दारू + हिं. कार)
शराब बनानेवाले।


थुक्का फजीहत
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूक + अ. फजीहत)
लड़ाई-झगड़ा।


थुड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. थू थू =थूकने का शब्द)
घृणा या धिृक्कार-सूचक शब्द, लानत, फिटकार।
मुहा.- थुड़ी थुड़ी होना— निंदा या तिरस्कार होना।


थुथकार
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूक)
थूकने की क्रिया, भाव या शब्द।


थुथकारना
क्रि. अ.
(हिं. थुथकार)
घृणा दिखाना।


थुथना
संज्ञा
पुं.
(हिं. थूथन)
लंबा निकला हुआ मुँह।


थुथाना
क्रि. अ.
(हिं. थूथन)
नाराज होना।


थुनी, थुन्नी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थूण, हिं, थूनी)
थूनी, खंभा, चाँड़।
उ. — अति पूरन पूरे पुन्य, रोपी सुथिर थुनी — १०-२४।


थुरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना)
मारना-पीटना।


थुरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना)
कूटना-पीटना।


थुरहथ, थुरहथा
वि.
(हिं. थोडा+हाथ)
छोटे-छोटे हाथोंवाला।


दारूड़ा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दारू)
शराब , मध।


दारों, दारौं
संज्ञा
पुं.
(सं. दाड़िम)
अनार।


दारोगा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
निरीक्षक।


दारोगा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
थानेदार।


दाढ़र्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृढ़ता।


दारथों, दारथौं
संज्ञा
पुं.
(सं. दाडिम)
अनार।


दार्वंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मोर, मयूर।


दार्शनिक
वि.
(सं.)
दर्शन शास्त्र का ज्ञाता।


दार्शनिक
वि.
(सं.)
दर्शन शास्त्र से संबंध रखनेवाला।


दार्शनिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दर्शन शास्त्र का ज्ञाता व्यक्ति, तत्ववेत्ता।


दार्ष्टांतिक
वि.
(सं.)
दृष्टांत संबंधी।


दाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दालि)
मूल्य, कीमत, मोल, धन।


दाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दालि)
पानी में उबाला गया दला अन्न जिंसे लोग रोटी-भात के साथ खाते हैं।
उ. — दाल-भात घृत कढ़ी सलोनी अरू नाना पकवान-सारा. १८७।
मुहा.- दाल गलना— दाल का अच्छी तरह पक जाना।

(किसी की) दाल न गलना— (किसी का) मतलब पूरा न होना या काम सिद्ध न होना। दाल-दलिया— रूखा-सूखा भोजन। दाल नें कुछ काला होना— किसी काम या बोत में संवेह, खउका या रहस्य होना। दाल-रोटी- सादा भोजन। दाल-रोटी चलना- जीविका का निर्वाह होना। दाल-रोटी से खुश— अच्छी-खासीं हैसियत का, खाता-पीता। जूतियों दाल ब़ना— बहुत झगड़ा या अनबन होना।

दाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दालि)
दाल की बनावट की कोई चीज।


दाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दालि)
चेचक, फुंसी आदि की पपड़ी या खुरंडा।
मुहा.- दाल छूटना— खुरड अलग होना।

दाल बँधना— खुरंड पडूना।

दाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पेड़ के खोंडरे का शहद।


दालक
वि.
(हिं. दलना)
दूर करने वाले, दमन करने में समर्थ।
उ.—सूरदास प्रभु असुर निकंदन व्रज जन के दुख-दालक—२३६९।


दालमोठ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाल + मोठ)
एक नमकीन खाद्य।


दालान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
खुला कमरा, ऒसारा।


दालि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दाल।


दालि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अनार।


दालि
क्रि. स.
(हिं. दलना)
दबाकर, दमन करके।
उ.—अति घायल धीरज दुवाहिआ तेज दुर्जन दालि—२८२६।


दालिद
संज्ञा
पुं.
(सं. दारिद्रथ)
दरिद्रता।


दालिम
संज्ञा
पुं.
(सं. दाड़िम)
अनार।


दाली
क्रि. स.
(हिं. दलना)
दमन किया।
उ.—जिनि पहिले पलना पौढ़े पय पीवत पूतना दाली—२५६७।


दाल्मि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
बार, दफा।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
बारी, पारी।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
उपयुक्त अवसर, अनुकूल संयोग।
मुहा.- दाँव करना— घात लगाना।

दाँव चूकना- अनुकूल संयोग पाकर भी कुछ लाभ न उठाना। दाँव ताकना (लगानाँ)— अनुकूल अवसर की ताक में रहना। दाँव लगना— अनुचित व्यवहार का बदला लेना। उ.— असुर कुपित ह्रै कह्यौ बहुत असुर संहारे। अब लैहौं वह दाँव छाँड़िहौं नहिं बिनु मारे।

दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
युक्ति, उपाय, चाल, ढंग।
उ.—सुनहु सूर याको बन पठऊँ यहै बनैगो दाँव—२९१२।
मुहा.- दाँव पर आना (चढ़ना)— ऐसी स्थिति में पड़ जाना जिससे दूसरे का मतलब सिद्ध हो सके।

दाँव पर चढ़ाना (लाना)— दूसरे को ऐसी स्थिति में डालना जिससे अपना मतलब सिद्ध हो सके।

दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
कुश्ती जीतने की चाल या पेच।
उ.—तब हरि मिले मल्लक्रीड़ा करि बहु बिधि दाँव दिखाये।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
कार्य-साधन का छल-कपट।
मुहा.- दाँव खेलना— चाल चलना, धोखा देना।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
खेलने की बारी या चाल।
मुहा.- दाँव बदना (रखना, लगाना)— खेल या जुए में धन लगाकर हार-जीत होना।


दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
जीत का पाँसा या कौड़ी।
उ.—दाँव बलराम को देखि उन छल कियौ रुक्म जीत्यौ कहन लगे सारे। देव-बानी भयी जीति भई राम की, ताहुँ पै मूढ़ नाहीं सँभारे।
मुहा.- दाँव देना— खेल में हार जाने पर पूर्व-निश्चित दंड भोगना या श्रम करना। उ.— तुमरे संग कहौ को खेलै दाँव देंत नहिं करत रुनैया।

दाँव लेना— खेल में जीत जाने पर हारनेवाले से पूर्वनिश्चित श्रम कराना या दंड देना।

दावँ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य)
स्थान, ठौर, जगह।


दावँना
क्रि. स.
(सं. दमन)
अनाज अलग करने के लिए फसल को बैलों से रौंदवाना।


दावँनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दामिनी)
स्त्रियों का माथे का एक गहना, बंदी।


दावँरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाम)
रस्सी, रज्जु।


दाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जंगल, वन।


दाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वन की आग।


दाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग।


दाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जलन, तपन, ताप।


दाव
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक हथियार।


दाव
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक पेड़।


दावत
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दअवत)
भोज, प्रीतिभोज, ज्योनार।


दावत
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दअवत)
भोजन का निमंत्रण, न्योता।


दावदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. गुलदाउदी)
गुच्छेदार सुंदर फूलों का एक पौधा।


दावन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
दमन, नाश।


दावन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
नाश या दमन करनेवाले।
उ.—(क) ब्रह्म लियौ अवतार, दुष्ट के दावन रे—१०-२८। (ख) हरि ब्रज-जन के दुख-बिसरावन। कहाँ कंस, कब कमल मँगाए, कहाँ दवानल-दावन—६०३।


दावन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
हँसिया।


दावन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
टेढ़ा छरा, खुखड़ी।


दावन
संज्ञा
पुं.
(सं. दामन)
अंगे-कुर्ते का पल्ला।


दावना
क्रि. स.
(हिं. दावँना)
दाना-भूसा अलग करने के लिए डंठलों को बैलो से रौंदवाना, माँड़ना।


दावना
क्रि. स.
(हिं. दावन)
दमन या नष्ट करना।


दावनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दावँनी)
स्त्रियों के माथे का एक गहना, बंदी, दामिनी।


दावा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दाव)
वन की आग, दावानल।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
किसी वस्तु को अपनी कहना, किसी वस्तु पर अधिकार जताना।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
स्वत्व, हक, अधिकार।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
अधिकार या हक सिद्ध करने के लिए न्यायालय में दिया गया प्रार्थना-पत्र।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
नालिश, अभियोग।


दावेदार
संज्ञा
पुं.
(अ. दावा + फा. दार)
दावा करने या अपना हक जतानेवाला।


दाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केवट, धीवर।


दाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौकर।


दाशरथ
वि.
(सं.)
दशरथ संबंधी।


दाशरथ
संज्ञा
पुं.
राजा दशरथ के पुत्र श्रीरामचंद्र।


दाशरथि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दशरथ के पुत्र श्रीराम आदि।


दाश्त
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
पालन-पोषण, लालन-पालन।


दाश्व
वि.
(सं.)
देनेवाला।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवक, नौकर।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भक्त।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भक्त गज।
उ.—ग्राह गहे गजपति मुकराययौ हाथ चक्र लै धायौ। तजि बैकुंठ, गरुड़ तजि, श्री तजि, निकट दास कैं आयौ—१-१०।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शूद्र।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धीवर।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दस्यु।


दास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृत्रासुर।


दास
संज्ञा
पुं.
(हिं. दासन, डासन)
बिछौना।


दासक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दास, सेवक।


दासता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दास-कर्म, सेवावृत्ति।


दासत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दास-भाव


दासत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवावृत्ति।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
जोर, प्रताप।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
वह दृढ़ता या साहस जो यथार्थ स्थिति के निश्चय के कारण व्यक्ति में आ जाता है।


दावा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
दृढ़ता या साहसपूर्ण कथन।


दावागीर
संज्ञा
पुं.
(अ. दावा+फा. गीर)
दावा करने, हक जताने या अधिकार सिद्ध करनेवाला।


दावाग्नि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वन की आग, दावा।


दावात
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दवात)
स्याही का पात्र।


दावादार
संज्ञा
पुं.
(अ. दावा+फा. दार)
दावा करने या हक जतानेवाला।


दावानल
संज्ञा
पुं.
(सं. दाव+अनल)
वन की आग जो बाँसों या पेड़ों की टहनियों के रगड़ने से उत्पन्न होकर दूर तक फैलती चली जाती है।
उ. कबहुँ तुम नाहिंन गहरू कियौ।¨¨¨। अघ-अरिष्ट, केसी, काली मथि दावानलहिं पियौ — १-१२१।


दाविनी
संज्ञा
(सं. दामिनी)
बिजली, दामिनी।


दाविनी
संज्ञा
(सं. दामिनी)
स्त्रियों का माथे का एक गहना, बंदी।


दासन
संज्ञा
पुं.
(हिं. डासन)
बिछौना।


दासपन
संज्ञा
पुं.
[सं. दास +पन(प्रत्य.)]
दासत्व, सेवा-कर्म।
उ.—दासी-सुत तैं नारद भयौ। दोष दासपन कौ मिटि गयौ—१-२३०।


दासपनौ
संज्ञा
पुं.
[सं. दास + हिं. पन (प्रत्य.)]
दासत्व, सेवाक, दासभाव।
उ.—बंदन दासपनौ सो करै। भक्तनि सख्य-भाव अनुसरै—९-५।


दास-ब्रत
संज्ञा
पुं.
(सं. दास+ब्रत)
दास का व्रत, सेवक का प्रण।


दास-ब्रत
संज्ञा
पुं.
(सं. दास+ब्रत)
भक्त का प्रण, भक्त का निश्चय।
उ.—मुनि-मद मेटि दास-ब्रत राख्यौ, अंबरीष-हितकारी—१-१७।


दासा
संज्ञा
पुं.
(सं. दशन)
हँसिया।


दासा
संज्ञा
पुं.
(सं. दास)
सेवक, नौकर।


दासानुदास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवक का सेवक, तुच्छ सेवक। (नम्रता-सूचक प्रयोग)।


दासिका, दासी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दासी)
(सेविका)।


दासिका, दासी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दासी)
कुब्जा जो कंस की सेविका थी और जिसे श्रीकृष्ण ने, प्रसिद्धि के अनुसार, अपनाया था।
सूरज स्याम सुध दासी की करो कही बिधि कैसौ—सा. १०४।


थहना
क्रि. स.
(हिं. थाह)
थाह लगाना।


थहरना
क्रि. अ.
(अनु. थरथर)
काँपना, थर्राना।


थहरात
क्रि. स.
(हिं. थहरान)
थर्रा या काँप जाता है।
उ.— गगन मेध घहरात थहरात गात— ९६०।


थहराना
क्रि. /स.
(हिं. टहराना)
दुर्बलता से काँपना।


थहराना
क्रि. /स.
(हिं. टहराना)
भय या डर से काँपना।


थहाइ
क्रि. स.
(हिं. थहाना)
गहराई का पता लगाकर, थाह लेकर।
उ. — सूर कहै ऐसो को त्रिभुवन आवै सिंधु थहाइ - पृ. ३२८।


थहाना
क्रि. स.
(हिं. थाह)
थाह लेना, गहराई का पता लगाना।


थहाना
क्रि. स.
(हिं. थाह)
किसी की योग्यता, कुशलता, विद्वता, बुद्धि आदि का पता लगाना।


थहारना
क्रि. स.
(हिं. ठहराना)
जल में ठहराना।


थाँग
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थान या हिं. थान)
लुकने-छिपने का गुप्त स्थान।


थुरहथ, थुरहथा
वि.
(हिं. थोडा+हाथ)
किफायत करनेवाला।


थुरहथी
वि.
स्त्री.
(हिं. थुरहथ)
छोटे हाथवाली।


थुली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं . थूला)
अनाज का दलिया।


थूँक, थूक
संज्ञा
पुं.
(अनु. थू थू)
गाढ़ा खखार।
मुहा.- थूक उछालना— बेकार बकना।

थूक लागाकर रखना— कंजूसी से जोड़ जोड़कर रखना। थूक से (थूकी. सत्तू सानना कंजूसी) के मारे बहुत जरा सी चीज से बड़ा काम करने चलना।

थूँकना, थूकना
क्रि. अ.
[हिं. थूक + ना (प्रत्य.)]
मुँह से थूक निकाल कर फेंकना।
मुहा.- किसी (वातु या व्यक्त) पर न थूकना— बहुत घृणा करना।

थूकना और चाटना— (१) बात कहना और कहकर मुकर जाना। (२) वस्तु देकर फिर वापस कर लेना।

थूँकना, थूकना
क्रि. स.
[हिं. थूक + ना (प्रत्य.)]
मुँह की वस्तु उगलकर फेंकना।


थूँकना, थूकना
क्रि. स.
[हिं. थूक + ना (प्रत्य.)]
निंदा या बुराई करना, धिक्कारना।
मुहा.- (क्रोध-आदि) थूकना (थूक देना)— गुस्सा दबा लेना या शांत करना।


थू
अव्य.
(अनु.)
थूकने का शब्द।


थू
अव्य.
(अनु.)
घृणा या तिरस्कार सूचक शब्द, छिः।
मुहा.- थू-थू करना— घुणा तिरस्कार प्रकट करना।

थू-थू होना— निंदा या तिरस्कार होना।

थूथन, थूथुन
संज्ञा
पुं.
(देश.)
नर पशुऒं का लंबा मुँह। थूथन फुलाना (सुजाना)—नाराज होना।
मुहा.- थूथन फुलाना (सुजाना)— नाराज होना।


दासेय
वि.
(सं.)
दास से उत्पन्न।


दासेय
संज्ञा
पुं.
दास।


दासेय
संज्ञा
पुं.
धीवर।


दासेयी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
व्यास की माता सत्यवती।


दासेर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दास।


दासेर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धीवर।


दासेर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऊँट।


दासेरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दासीपुत्र।


दासेरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऊँट।


दास्तान
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
हाल, वृत्तांत।


दास्तान
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
किस्सा, कथा-कहानी।


दास्तान
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
बयान, वर्णन।


दास्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दासपन, सेवा, दासत्व।


दास्यमान
वि.
(सं.)
जो दिया जानेवाला हो।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जलाने की क्रिया या भाव।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शव या मुर्दा जलाने की क्रिया।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताप, जलन।
उ.—अंतर-दाह जु मिटट्यौ ब्यास कौ, इक चित ह्रै भगवान किऐ —१-८९।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शोक, दुख, संताप।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डाह, ईर्ष्या।


दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक रोग।


दाहन
संज्ञा
(सं.)
भस्म कराने या जलवाने का काम।


दाहना
क्रि. स.
(सं. दाह)
जलाना, भस्म करना।


दाहना
क्रि. स.
(सं. दाह)
सताना, दुख देना।


दाहना
वि.
(हिं. दाहिना)
दायाँ, दाहिना।


दाहसर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मुर्दा जलाने का स्थान।


दाहिन, दाहिना
वि.
(सं. दक्षिण, हीं. दाहिना)
दायाँ, बायाँ का उलटा, दक्षिण


दाहिनावर्त
वि.
(सं. दक्षिणावर्त)
दाहिनी ऒर को घूमा हुआ।


दाहिनावर्त
वि.
(सं. दक्षिणावर्त)
जो घूमने में दाहिनी ऒर से बढ़े।


दाहिनावर्त
संज्ञा
पुं.
प्रदक्षिणा।


दाहिनावर्त
संज्ञा
पुं.
एक तरह का शंख।


दाहक
वि.
(सं.)
जलानेवाला।
उ.—अहि मयंक मकरंद कंद हति दाहक गरल जिवाये—२८५४।


दाहक
वि.
(सं.)
संतापकारी।


दाहक
संज्ञा
पुं.
चित्रक वृक्ष।


दाहक
संज्ञा
पुं.
आग, अग्नि।


दाहकता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
जलाने का भाव या गुण।


दाहकत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जलाने का भाव या गुण।


दाहकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मुर्दा फूँकने का काम।


दाहक्रिया
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मुर्दा जलाने की क्रिया।


दाहत
क्रि. स.
(हीं. दाहना
जलाता है, भस्म करता है।
उ.—(क) जल नहिं बूड़त, अगिनि न दाहत, है ऐसौ हरि-नाम—१-९२। (ख) जैहै काहि समीप सूर नर कुटिल बचन-दव दाहत—१-२१०। (ग) सूरदास प्रभु हरि बिरहा-रिपु दाहत अंग दिखावत बास—सा. उ. २८।


दाहन
संज्ञा
(सं.)
जलाने का काम।


दाहिनी
वि. स्त्री.
(हिं. दाहिना)
दायीं ऒर की।
मुहा.- दाहिनी देना (लाना)— परिक्रमा या प्रदक्षिणा करना।

दाहिनी देहि- प्रदक्षिणा करके। उ.— जटा भस्म तनु दहै वृथा करि कर्म बँधावै। पुहुमि दाहिनी देहि गुफा बसि मोहि न पावै।

दाहिने
क्रि. वि.
(हिं. दाहिना)
दायें हाथ की ऒर।
मुहा.- दाहिने होना— अनुकूल या प्रसन्न होना।


दाहिनैं
क्रि. वि.
(हिं. दाहिना)
दाहिने हाथ की तरफ, दाहिनी ऒर।
उ.—बाएँ काग, दाहिनैं खर-स्वर, व्याकुल घर फिरि आई—५४०।


दाहिनौ
वि.
(हिं. दाहिना)
अनुकूल, प्रसन्न।
उ.—बड़ी बैस बिधि भयौ दाहिनौ, धनि जसुमति ऐसौ सुत जायौ—१०-२४८।


दाहीं
क्रि. स.
(हिं. दाहना)
जलायी गयीं।
उ.—चंदन तजि अँग भस्म बतावत बिरह अनल अति दाहीं—३३१२।


दाही
वि.
(सं. दाहिन)
जलाने या भस्म करनेवाला।


दाहु
संज्ञा
पुं.
(सं. दाह)
जलन, ताप।
उ.—सुरति सँदेस सुनाइ मेटौ बल्लमिनि को दाहु—३०२०।


दाहे
वि.
(हिं. दाह)
जले हुए।
उ.—पलक न परत चहूँ दिसि चितवत बिरहानल के दाहे—३०७८।


दाहै
क्रि. स.
(हिं. दाह)
जलाती है।
उ.—घर बन कछु न सुहाइ रैनि दिन मनहु मृगी दौ दाहै—२८०१।


दाह्य
वि.
(सं.)
जलाने या भस्म करने योग्य।


दिक्कत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
तंगी, तकलीफ परेशानी।


दिक्कत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
कठिनता, मुश्किल।


दिक्कन्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिशा-रूपी कन्याएँ जो ब्रह्मा की पुत्रियाँ मानी जाती है।


दिक्कर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


दिक्करि, दिक्करी
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक्करिन्)
दिशाऒं के हाथी


दिक्कांता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिशा-रूपी कन्या।


दिक्चक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आठ दिशाऒं का समुह।


दिक्पति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशाऒं के स्वामी ग्रह, यथा-दक्षिण के स्वामी मंगल, पश्चिम के शनि, उत्तर के बुध, पूर्व के सूर्य, अग्निकोण के शुक्र, नैर्ऋत-कोण के राहु, वायुकोण के चंद्रमा और ईशानकोण के वृहस्पति।


दिक्पति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दसों दिशाऒं के पालक देवता।


दिक्पाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दसों दिशाऒं के पालन-कर्त्ता देवता, यथा पूर्व के इंद्र, अग्निकोण के अग्नि, नैर्ऋतकोण के नैर्ऋत, पश्चिम के वरुण, वायुकोण के मरुत, उत्तर के कुबेर, ईशानकोण के ईश, ऊर्द्ध दिशा के ब्रह्मा, और अधोदिशा के अनंत।


दिए
क्रि. स.
(हिं. देना)
‘देना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘दिया’ का बहुवचन।
उ.—अरघावन करि हेत दिए (दए)—१०-८५२। इसका प्रयोग संयोजक-क्रिया के रूप में भी होता हे।
उ.—गुरु-सुत आनि दिए जमपुर तैं—१-१८


दिए
वि.
लगाये हुए।
उ.—चारु कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए—१०-९९।


दिक
वि.
(अ. दिक)
हैरान, तंग।


दिक
संज्ञा
पुं.
(अं दिक)
अस्वस्थ।


दिक
संज्ञा
पुं.
क्षय रोग, तपेदिक।


दिकदाह
संज्ञा
पुं.
(सं. दिग्दाह)
सूर्यास्त के पश्चात् भी दिशाओं का जलती-सी दिखायी देना।


दिकाक
संज्ञा
पुं.
(अ. दिक्रीक=बारीक)
कतरन, धज्जी।


दिकाक
वि.
(अ.दक्रियानूस)
बहुत चालाक, खुर्राट।


दिक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिशा, ऒर, तरफ।


दिक्क
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी का बच्चा।


दिंक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जूं नामक कीड़ा।


दिंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का नाच।


दिंडि, दिंडिर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिंडिर)
एक पुराना बाजा।


दिंडी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उन्नीस मात्राऒं का एक छंद


दिंडीर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र-फेन।


दिअना
संज्ञा
पुं.
(सं. दीपक)
दिआ, दीपक।


दिअली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिया)
छोटा दिया।


दिआ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिया)
दिया, दीपक।
उ.—तब फिरि जरनि भई नखसिख तें दिआ बात जनु मिलकी—२७८६।


दिउली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिया)
छोटा दिया।


दिउली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिया)
सूखे घाव के ऊपर की पपड़ी, खुरंड दाल।


दिक्पाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चौबीस मात्राऒं का एक छंद।


दिक्शूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विशिष्ट दिनों में, विशिष्ट दिशाऒं में यात्रा न करने का योग; यथा-शुक्र और रविवार को पश्चिम की ऒर, मंगल और बुध को उत्तर की ऒर, शनि और सोम को पूर्व की ऒर और वृहस्पति को दक्षिण की ऒर।


दिक्साधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशाऒं के ज्ञान ता उपाय।


दिक्सुन्दरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिशारूपी सुंदरी।


दिक्स्वामी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिक्पति।


दिखना
क्रि. अ.
(हिं. देखना)
दिखायी देना।


दिखराइहौं
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाऊँगा, दृष्टिगोचर कराऊँगा।
उ. — हँसि कह्यौ तुम्हैं दिखराइहौं रूप वइ।


दिखराई
क्रि. स.
(हिं. देखना का प्रे. रूप, दिखलाना )
दिखायी, दृष्टिगोचर करायी।
उ. — कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं काल १-१५३।


दिखराऊँ
क्रि. स.
(हिं. ‘देखना’ का प्रे. रूप दिखलाना)
दिखलाऊँ, प्रदर्शि करूँ, दृष्टिगोचर कराऊँ।
उ. — (क) बन बारानसि मुक्ति-छेत्र है, चलि तोकौं दिखराऊँ — १.३४०। (ख) कैसैं नाथहिं मुख दिखराऊँ जौ बिनु देखे जाऊँ — ६-७५। (ग) देखि तिया कैसौ बल करि तोहिं दिखराऊँ — ६-११८।


दिखराए
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाये, दृष्टि-गोचर कराये।
उ.— मुख मैं तीनि लोक दिखराए, चकित भई नँदरनियाँ— १०८३।


दिखराना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दृष्टिगोचर कराना।


दिखराना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
अनुभव कराना, मालूम कराना।


दिखरायौ
क्रि. स.
(हिं. दिखलाया)
दिखाया, देखने को प्रवृत्त किया।
उ. — (क) मैं ही भूलि चंद दिखरायौ, ताहि कहत मैं खैहौं — १०-१८९। (ख) माटी कैं मिस मुख दिखरायौ, तिहूँ लोक रजधानी — १०-२-५६।


दिखरावत
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाते है।


दिखरावत
क्रि. स.
(दिखलाना)
जताते या अनुभव कराते हैं।
उ.— सूर भजन-महिमा दिखरावत, इमि अति सुगम चरन आराधे — ९५८।


दिखरावति
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाती है।
उ. — जसुमति तब नंद बुलावति, लाल लिए कनियाँ दिखरावति, लगन घरी आवति, यातैं न्हवाइ बनावौ —१०-९५। (ख) ठाढ़ी अजिर जसोदा अपनैं हरिहिं लिए चंदा दिखरावति — १०-१८८।


दिखरावति
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
अनुभव कराती है, मालूम कराती है, जताती है।
उ.— हा हा लकुट त्रास दिखरावति— १०-३५६।


दिखरावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाने की क्रिया।
उ.— करिहौं नाम अचल पसुपतिं कौ, पूजा-बिधि कौतुक दिखरावन— ९-२३२।


दिखरावना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दृष्टिगोचर कराना।


दिखरावना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
अनुभव कराना, जताना।


थूथनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूथन)
मादा पशुओं का लंबा मुँह।
मुहा.- थूथनी फैलाना— नाराज होना।


थूथरा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
लंबा और भद्दा चेहरा।


थून, थूनि, थूनी
संज्ञा
पुं. स्त्री
(स. स्थूण)
खंभा।


थूरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना)
कुचलना।


थूरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना )
मारना-पीटना।


थूरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना )
ठूँस ठूँस कर भरना।


थूरना
क्रि. स.
(सं. थुर्वण=मारना )
खूब डटकर खाना।


थूल, थूला
वि.
(सं. स्थूल)
मोटा, भारी-भरकम।
उ.—देख्पौ भरत तरून अति सुंदर। थूल सरीर रहित सब सुंदर - ५-३।


थूल, थूला
वि.
(सं. स्थूल)
मोटपे के कारण भद्दा, मोटा और थलथल।


थूली
वि.
स्त्री.
(हिं. थूला)
मोटी-ताजी, भारी भरकम।


दिखरावती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाना)
दिखाने की क्रिया या भाव।


दिखरावती
क्रि. स.
दिखलाती


दिखरावती
क्रि. स.
अनुभव कराती।


दिखरावहु
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाऒ, दर्शन कराऒ।
उ.—तबहुँ देहुँ जल बाहर आवहु। बाँह उठाइ अंग दिखरावहु—७९९।


दिखरावे
क्रि. स.
(हिं. ’देखना‘ का प्रे. रूप)
दिखाता हे, दृष्टिगोचर कराता है।
उ.—ज्यौं बहु कला काछि दिखरावै, लोभ न छूटत नट कैं—१-२९२।


दिखरावौं
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाऊँ, दृष्टि-गोचर कराऊँ।
उ.—(क) मेरे कहैं नहीं तू मानति दिखरावौं मुख बाइ—१०-२५५। (ख) ब्रत-फल इनहिं प्रगट दिखरावौं।बसन हरौ लै कदम चढ़ावौं—७९९।


दिखरावौ
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाओं, दृष्टि-गोचर कराओ।
उ.—अछत-दूब दल बँधाइ, ललन की गँठि जुराइ, इहै मोहिं लाहौ नैननि दिखरावौ—१०-९५।


दिखलवाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाने की क्रिया या भाव।


दिखलवाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाना)
वह धन जो दिखाने के बदले में दिया या लिया जाय।


दिखलवाना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना का प्रे.)
दूसरे को दिखाने में लगाना या प्रवृत्त करना।


दिखाव
संज्ञा
पुं.
[हिं. दिखाना + आव (प्रत्य.)]
देखने का भाव या क्रिया।


दिखाव
संज्ञा
पुं.
[हिं. देखना + आव (प्रत्य.)]
दृश्य।


दिखाव
संज्ञा
पुं.
[हिं. देखना + आव (प्रत्य.)]
दूर और नीचे तक देखने का भाव।


दिखावट
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. देखना + आवट (प्रत्य.)]
दिखाने का भाव या ढंग।


दिखावट
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. देखना + आवट (प्रत्य.)]
ऊपरी तड़क-भड़क या बनावट।


दिखावटी
वि.
[हिं. दिखावट +ई (प्रत्य.)]
जो सिर्फ देखने के लिए हो, काम न आ सके, दिखौआ।


दिखावत
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
दिखाते हें या दिख-लाते हुए।
उ.—धर्म-धुजा अंतर कछु नाहीं, लोक दिखावत फिरतौ—१-२०३।


दिखावति
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाती है, देखने को प्रवृत्त करती है।
उ.—कुम्हिलानौ मुख चंद दिखावति, देखौ धौं नँदरानि—३६५।


दिखावहिंगे
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलायँगे, दृष्टिगोचर करायँगे।
उ.—तैसिए स्याम घटा घन-घोरनि बिच बगपाँति दिखावहिंगे—२८८९।


दिखावहु
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाऒ।
उ.—(क) अपनी भक्ति देहु भगवान। कोटि लालच जौ दिखावहु, नाहिनैं रुचि आन—१-१०६। (ख) अब की बार मेरे कुँवर कन्हैया नंदहि नाच दिखा-वहु—१०-१७९।


दिखाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दिखाना + आई (प्रत्य.)]
वह धन जो देखने के बदले में दिया जाय।


दिखाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दिखाना + आई (प्रत्य.)]
वह धन जो दिखाने के बदले में मिले।


दिखाऊ
वि.
[हिं. दिखाना या देखना + आऊ (प्रत्य.)]
देखने योग्य।


दिखाऊ
वि.
[हिं. दिखाना या देखना + आऊ (प्रत्य.)]
दिखाने योग्य।


दिखाऊ
वि.
[हिं. दिखाना या देखना + आऊ (प्रत्य.)]
जो सिर्फ देखने लायक हो, काम न आ सके।


दिखाऊ
वि.
[हिं. दिखाना या देखना + आऊ (प्रत्य.)]
सिर्फ दिखावटी या बनावटी।


दिखाए
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
पढ़ाये, अध्ययन कराये।
उ.पहिले ही अति चतुर हुए अरु गुरु सब ग्रंथ दिखाए—३३७३।


दिखाना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दृष्टिगोचर कराना।


दिखाना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
अनुभव कराना या जताना।


दिखायौ
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
दिखलाया, प्रदर्शित किया।
उ.—सूर अनेक देह धरि भूतल, नाना भाव दिखायौ—१-२०५।


दिखलाना
क्रि. स.
(हिं. दिखने का प्रे.)
दृष्टि-गोचर कराना।


दिखलाना
क्रि. स.
(हिं. दिखने का प्रे.)
अनुभव कराना, मालूम कराना।


दिखलावा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिखवा)
झूठा ठाट-बाट।


दिखवैया
संज्ञा
पुं.
[(हिं. दिखाना+वैया (प्रत्य.))]
दिखानेवाला।


दिखवैया
संज्ञा
पुं.
[(हिं. दिखाना+वैया (प्रत्य.))]
देखनेवाला।


दिखहार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिखाना +हार)
देखनेवाला।


दिखाइ
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
दिखा कर।
उ.—सोवत सपने मैं ज्यौं संपति, त्यौं दिखाइ बौरावै—१-४३।


दिखाई
क्रि. अ.
(हिं. देखना, दिखाना)
दीख पड़ना, सामने आना, प्रत्यक्ष होना।
उ.—प्रगट खंभ हैं दए दिखाई, जद्यपि कुल कौ दानौ—१-११।


दिखाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दिखाना + आई (प्रत्य.)]
देखने की क्रिया या भाव।


दिखाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दिखाना + आई (प्रत्य.)]
दिखाने की क्रिया या भाव।


दिगंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दसों दिशाएँ।


दिगंत
संज्ञा
पुं.
(सं. ट्टगू +अंत)
आँख का कोना।


दिगंतर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशाऒं के बीच का स्थान।


दिगंबर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


दिगंबर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जैन-यती जो नंगा रहता हो।


दिगंबर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशाऒं का वस्त्र, अंधकार।


दिगंबर
वि.
दिशाऒं का वस्त्र धारण करनेवाला, नंगा।
उ.—कहँ अबला, कहँ दसा दिगंबर।


दिगंबरता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नंगा रहने का भाव, नग्नता।


दिगंबरपुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह नगर या स्थान जहाँ दिगंबर रहने वाले व्यक्ति बसते हों।
उ.—सूरदास दिगंबरपुर ते रजक कहा ब्यौसाइ—३३३४।


दिगंबरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा।


दिखावा
संज्ञा
पुं.
[हिं. देखना + आवा (प्रत्य.)]
ऊपरी तड़क-भड़क, झूठा आडंबर, बनावटीपन।


दिखावै
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखलाती है, देखने को प्रेरित करती है।
उ.—महा मोहिनी मोहि आतमा, अपमारगहिं लगावै। ज्यौं दूती पर-बधू भोरि कै, लै पर-पुरुष दिखावै—१-४२।


दिखिअत
क्रि. स.
(हिं. दिखना)
दिखायी देता है, जान पड़ता है।
उ.—सूरदास गाहक नहिं कोऊ दिखिअत गरे परी—३१०४।


दिखैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. देखना + ऐया)
देखनेवाला।


दिखैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिखाना + ऐया)
दिखानेवाला।


दिखैहै
क्रि. अ.
[हिं. देखना, दिखाना]
दीख पड़ेगा, दिखायी देगा।
उ.—कहँ वह नीर, कहाँ वह सोभा, कहँ रँग-रुप दिखैहै—१-८६।


दिखौआ, दिखौवा
वि.
[हिं. देखना + औआ (प्रत्य.)]
जो देखने भर का हो, काम न आ सके; बनावटी।


दिगंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशा का छोर या अंत।


दिगंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश का छोर, क्षितिज।


दिगंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चारो दिशाएँ।


दिगंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
क्षितिज वृत्त का ३६० वां अंश।


दिग, दिग्
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिक्)
दिशा, ऒर, तरफ।


दिगज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिग्गाज=सिंदुर=१. हाथी। २. सिंदुर जिसकी बिंदी लगायी जाती है)
सिंदूर नामक लाल चूर्ण जिसकी बिंदी लगायी जाती है।
उ.—दिगज बिंदु बिजे छन बेनन भानु जुगल अन-रूप उँ ज्यारी—सा. ९८।


दिगदंती
संज्ञा
पुं.
[सं. दिक् +हिं. दंतार=दंत +आर (प्रत्य.)]
आठ हाथी जो आठों दिशाऒं की रक्षा के लिए स्थापित हैं। यथा—पूर्व में ऐरावत, पूर्व—दक्षिण में पुंडरीक, दक्षिण में वामन, दक्षिण पश्चिम में कुमुद, पश्चिम में अंजन, पश्चिम-उत्तर में पुष्प-दंत, उत्तर में सार्वभौम, उत्तर-पूर्व में सप्तसीक।
उ.—बिडरि चले घन प्रलय जानि कै, दिगपति दिगदंतीनि सकेलत—१०-६३।


दिगपति
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक्पति, दिग्पति)
दसों दिशाऒं के पालक देवता, यथा—पूर्व के इंद्र, अग्नि-कोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैर्ऋतकोण के नैर्ऋत, पश्चिम के वरुण, वायुकोण के मरुत, उत्तर के कुबेर, ईशानकोण के ईश, ऊर्द्ध दिशा के ब्रह्मा और अधोदिशा के अनंत।
बिडरि चले धन प्रलय जानि कै, दिगपति दिगदंतीनि सकेलत—१०-५३।


दिगबिजय
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिग्विजय)
अपना महत्व स्थापित करने के उद्देश्य से राजाऒं का देश देशांतरों में ससैन्य जाकर विजय प्राप्त करने की प्राचीन प्रथा।
उ.—(क) बहुरि राज ताकौ जब गयौ।मिस दिगविजय चहूँ दिसि गयौ—१-२९०। (ख) दिगबिजय कौं जुवति-मंडल भूप परि हैं पाइ—३२२७।


दिगबिजयी
वि.
पुं.
(सं. दिग्विजयी)
सभी दिशाऒं के राजाऒं को जीतनेवाला।
उ.—राज-अहँकार चढ़ यौ दिगबिजयी, लोभ छत्रकरि सीस। फौज असत-संगति की मेरैं, ऐसौं हौं मैं ईस—१-१४४।


दिगीश, दिगीश्वर, दिगेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिक्पाल।


दिगीश, दिगीश्वर, दिगेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य चंद्र आदि ग्रह।


दिग्गज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आठ हाथी आठों दिशाओं की रक्षा के लिए स्थापित हैं; पूर्व में ऐरावत, पूर्व-दक्षिणकोण में पुंडरीक, दक्षिण में वामन, दक्षिण-पश्चिमकोण में कुमुद, पश्चिम में अंजन, पश्चिम-उत्तर कोण में पुष्पदंत, उत्तर में सार्वभौम और उत्तर-पूर्व कोण में सप्ततीक।


दिग्गज
वि.
बहुत बड़ा या भारी।


दिग्गयंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशाऒं के हाथी, दिग्गज।


दिग्घ
वि.
(सं. दीर्घ)
लंबा।


दिग्घ
वि.
(सं. दीर्घ)
बड़ा।


दिग्जय
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिग्विजय)
दिग्विजय।


दिग्जया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
क्षितिज वृत्त का ३६० वाँ भाग।


दिग्दर्शक
वि.
(सं.)
दिशाओं का ज्ञान करानेवाला।


दिग्दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उदाहरण-रूप प्रस्तुत आदर्श या नमूना।


दिग्दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आदर्श या नमूना दिखाने का काम।


दिग्दर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जानकारी।


दिग्दर्शनी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशा-ज्ञान करानेवाली वस्तु।


दिग्दाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्यास्त के पश्चात् भी दिशाओं का लाल और जलती हुई सी दिखायी देना।


दिग्देवता
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक् +देवता)
दिक्पाल।


दिग्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष-बुझा वाण।


दिग्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि।


दिग्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष में बुझा हुआ।


दिग्ध
वि.
पुं.
(सं.)
लिप्त।


दिग्ध
वि.
(सं. दीर्घ)
बड़ा, लंबा, दीर्घ।


दिग्पट
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक्पट)
दिशा-रूपी वस्त्र।


दिग्पति
संज्ञा
पुं.
(सं. दिकू+पति)
दिक्पाल।


दिग्पाल
संज्ञा
पुं.
(सं. दिकू+पाल)
दिक्पाल।


दिग्भ्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशा का भूल जाना।


दिग्मंडल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सब दिशाएँ।


दिग्+राज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक् +राज)
दिक्पाल।


दिग्बसन, दिग्बस्त्र
संज्ञा
पुं.
(स. दिक् +वसन, वस्त्र)
शिव जी।


दिग्बसन, दिग्बस्त्र
संज्ञा
पुं.
(स. दिक् +वसन, वस्त्र)
दिगंबर जैनी।


दिग्बसन, दिग्बस्त्र
संज्ञा
पुं.
(स. दिक् +वसन, वस्त्र)
नग्न व्यक्ति।


दिग्वान्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पहरेदार, चौकीदार।


दिग्वारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्गज।


दिग्विजय
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राजाओं का देश-देशांतरों में जाकर विजय करना और इस प्रकार अपना महत्व स्थापित करना।
उ. — करि दिग्विजय विजय को जग में भक्त पक्ष करवायौ।(२) गुण, विद्वता आदि में दूमरों को पराजित करके स्व-प्रतिष्ठा स्थापित करना।


थेइ-थेइ, थेई-थेई
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
नाच का बोल।


थेगली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थिगली)
पेबंद, चकती।


थेथर
वि.
(देश.)
बहुत हारा-थका, परेशान।


थेथरई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थेथर)
थकान, परेशानी।


थेवा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
अँगूठी का घर जिसमें नगीना जड़ा जाता है।


थेवा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
अँगूठी का नगीना।


थेवा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
धातु का पत्तर जिस पर मुहर खोदी जाती है।


थैला
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल =कपड़े का घर)
कपड़े का बड़ा बटुआ।


थैला
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थल =कपड़े का घर)
रूपयों का थैला, तोड़ा।


थैली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थैली)
छोटा थैला।


दिङमूढ़
वि.
(सं.)
मूर्ख


दिच्छित
वि.
(सं. दीक्षित)
जिसने दीक्षा ली हो।


दिज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
ब्राह्मण।


दिज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
पक्षी |


दिज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
चंद्र |


दिजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
ब्राह्मण।


दिजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
चंद्रमा।


दिजोत्तम
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजोत्तम)
श्रेष्ठ ब्राह्मण।


दिठवन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवोत्थान)
कार्तिक शुक्ल एकादशीं को विष्णु का शेष-शैया से उठना।


दिठियार
वि.
[हिं. दीठ=दृष्टि+इयार या आर (प्रत्य)]
जिसे दिखायी देता हो, देखनेवाला।


दिग्विजयी
वि.
पुं.
(सं.)
दिग्विजय करनेवाला।
उ.—गज अहँकार चढ़यौ दिग्विजयी लोभ छत्र करि सीस।


दिग्विभाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशा, ऒर, तरफ।


दिग्व्यापी
वि.
(सं.)
जो सर्वत्र व्याप्त हो।


दिग्शिखा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पूर्व दिशा।


दिग्सिंधुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्गज।


दिङनाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्गज।


दिङनारि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बहुत से पुरुषों से प्रेंम करनेवाली स्त्री।


दिङमातंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्गज।


दिङमात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिर्फ नमूना भर।


दिङमूढ़
वि.
(सं.)
जो दिशाभूला हो।


दिठौना
संज्ञा
पुं.
[हिं. दीठ=दृष्टि+औना (प्रत्य.)]
नजर लगने से बचाने के लिए बच्चों के माथे पर लगाया गया काजल का बिंदु।


दिढ़
वि.
(सं. दृढ़)
मजबूत, पक्का।


दिढ़
वि.
(सं. दृढ़)
ध्रुव, पक्का।


दिढ़ता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
मजबूत होने का भाव।


दिढ़ता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
विचार आदि पर दृढ़ रहने का भाव।


दिढ़ाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़)
दृढ़ होने का भाव।


दिढ़ाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़)
विचार या निश्चय पर दृढ़ रहने का भाव।


दिढ़ाना
क्रि. स.
[सं. दृढ़+आना (प्रत्थ.) ]
पक्का या मजबूत करना।


दिढ़ाना
क्रि. स.
[सं. दृढ़+आना (प्रत्थ.) ]
निश्चित करना।


दितवार
संज्ञा
पुं.
(सं. आदित्यवार)
रविवार।


दिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कश्यय ऋषि की स्त्री जो दक्ष प्रजापति की कन्या और दैत्यों की माता थी।
उ.—कस्यप की दिति नारि, गर्भ ताकैं दोउ आए—३-११


दिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
खंडन।


दिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दाता।


दितिकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दैत्य वंश।


दितिज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिति से उत्पन्न, दैत्य।


दितिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दैत्य, असुर।


दित्सा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दान की इच्छा।


दित्स्य
वि.
(सं.)
जो दान किया जा सके।


दिद्य्क्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देखने की इच्छा।


दिद्य्क्षु
वि.
(सं.)
जो देखना चाहता हो।


दिद्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वज्र।


दिद्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वाण।


दिधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धैर्य।


दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय।
मुहा.- दिन को तारे दिखाई देना— इतना मानसिक कष्ट होना कि बुद्धि ठिकाने न रहे।

दिन को दिन रात को रात न जानना (समझना)— सुख या आराम की चिंता न करना। दिन चढ़ना— सूर्योदय के बाद समय बीतना। दिन छपना (हूबना, बृड़ना, मूँ दना)— संध्या होना। दिन टलना— सूर्यास्त होने को होना। दिन दहाड़े या दिन दोपहर— ठीक दिन के समय। दिन दूना रात चौगुना बढ़ना (हीना)— बहुत जल्दी उन्नति करना। दिन निकलना (होना)— सूर्योदय होना।

दिन
यौ.
दिन-रात—हर समय, सदा।


दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आठ पहर या चौबीस घंटे का समय जिसमें पृथ्वी एक बार अपने अक्ष पर घूम लेती है।
मुहा.- चार दिन— बहुत थोड़ा समय। उ.— चारि चारि दिन सबै सुहागिनि री ह्णै चुकी मैं स्वरूप अपनी— १७६२। दिन-दिन (दिन पर दिन)-हर रोज, सदा। उ.— मैं दिन दिन उनमानी मुहाप्रलय की नीति— ३४५७।


दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समय, काल, वक्त।
मुहा.- दिन काटना— कष्ट के दिन बिताना।

दिन गँकाना— बेकार समय खोना। दिन पूरे करना— कष्ट का समय किसी तरह बिताना। दिन बिगड़ना— बुरे दिन आना। दिन भुगतना— कष्ट के दिन काटना।

दिन
यौ.
पतले दिन—बुरे, खोटे या कष्ट के दिन।


दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नियत निश्चित या उचित समय।
उ.—सूर नंद सौं कहति जसोदा दिन आये अब करहु चँड़ाई—११८।
मुहा.- दिन आना— अंत समय आना।

दिन धरना— दिन निश्चित करना या ठहराना। दिन धराना (सुधाना)— दिन निश्चित करना या मुहूर्त्त निकलवाना। दिन धराइ (सुधाइ)— मुहूर्त्त निकलवाकर। उ.— पालनो आन्यौ सबहिं अति मन मान्यौ नीको सो दिन धराइ (सुधाइ) सखिन मंगल गवाइ रंगमहल में पौढ़यौ है कन्हैया— १०-४१।

दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विशेष घटना का काल या समय।
मुहा.- दिन चढ़ना- किसी स्त्री का गर्भवती होना।

दिन पड़ना— बुरा समय आना। दिन फिरना (बहुरना)- बुरे दिनों के बाद अच्छे दिन आना। दिन भरना- बुरे दिन बिताना। दिन उतरना— युवावस्था बीतना।

दिन
क्रि. वि.
सदा, सर्वदा, हमेशा।


दिनअर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनकर)
सूर्य।


दिनकंत
संज्ञा
पुं.
[सं. दिन + हिं. कंत (कांत)]
सूर्य।


दिनकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।
उ.—ज्यौं दिन-करहिं उलूक न मानत, परि आई यह टेव—१-१००।


दिनकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आक, मंदार।


दिनकर-कन्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
यमुना जी।


दिनकर-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यम।


दिनकर-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शनि।


दिनकर-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुग्रीव।


दिनकर-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अश्विनीकुमार।


दिनकर-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कर्ण।


दिनकर्त्ता, दिनकृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनकेशर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अँधेरा, अंधकार।


दिनचर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + हि. चर)
सूर्य।


दिनचर-सुत-सुत
संज्ञा
पुं.
[दिन (=हिं. वार) + चर (=वारचर=वारिचर=पानी में चलनेवाली मछली) + सुत (=मछली-सुत=व्यास) + सुत (व्यास के पुत्र शुकदेव=शुक=तोता)]
शुक, तोता।
उ.—दिनचर-सुत-सुत सरिस नासिका है कपोल श्री भाई—सा. १०३।


दिनचर्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिन भर का काम-धंधा।


दिनचारी
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनचारिनू)
दिन में चलने वाला, सूर्य।


दिन ज्योति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिन ज्योतिस्)
दिन का प्रकाश।


दिन ज्योति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिन ज्योतिस्)
धूप।


दिनदानी
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + हिं. दानी)
सदैव दान करनेवाला।


दिनदीप
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + दीप)
सूर्य।


दिनदुखि, दिनदुखी
(सं.)
चकवा पक्षी।


दिननाथ, दिननाह
संज्ञा
पुं.
(सं. दिननाथ)
सूर्य।


दिननायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन का स्वामी, सूर्य।


दिनप, दिनपति
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन +प, पति)
सूर्य।


दिनप, दिनपति
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन +प, पति)
मित्र ('मित्र' सूर्य का पर्यायवाची है। इसका दूसरा अर्थ सखा है। वही यहाँ लिया गया है।)
उ.—दिनपति चले धौं कहा जात—सा. ८।


दिनपति-सुत-अरि-पिता-पुत्र-सुत
संज्ञा
पुं.
[सं. दिन-पति (=सूर्य) + सुत (=सूर्य का पुत्र कर्ण) + अरि (कर्ण का अरि या शत्रु अर्जुन) + पिता (=अर्जुन के पिता इंद्र) +पुत्र (=इंद्र का पुत्र बालि) + पुत्र (=बालि का पुत्र अंगद)]
अंगद या बाजूबंद नामक आभूषण।
उ.—दिनपति-सुत-अरि-पिता-पुत्र-सुत सो निज करन सँभारे। मानहु कंज रिच्छ गहि तीजो कंचन भू पर धारे—सा. १३।


दिनपति-सुत-पतिनी-प्रिय
संज्ञा
पुं., स्त्री.
[सं. दिनपति (=सूर्य) + सुत (=सूर्य का पुत्र शनि) + पत्नी (=शनि की पत्नी कर्कशा) + प्रिय (=कर्कशा स्त्री का प्रिय कठोर वचन या वाणी)
क्रूर वचन या वाणी।
उ.—लषि वृजचंद चंदमुख राधे। दधि सुतसुत पतिनी न निकासत दिनपति-सुत-पतिनी-प्रिय बाधे—सा. ६।


दिनपाल, दिनपालक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


दिनमणि, दिनमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनमणि)
सूर्य।
उ.—(क) लै मुरली आँगन ह्णै देखौ, दिनमनि उदित भए द्विधरी—४०३। (ख) तूल दिनमनि कहा सारँग, नाहिं उपमा देत—७०६। (ग) बिनय अंचल छोरि रबि सौं, करति हैं सब बाम। हमहिं होहु दयाल दिनमनि तुम विदित संसार—७६७।


दिनमणि, दिनमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनमणि)
आक, मंदार।


दिनमयूख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनमयूख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


दिनमल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मास, महीना।


दिनमान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन की अवधि या उसका मान।


दिनमाली
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दिनमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सबेरा, प्रभात।


दिनरत्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिन + हि. आना)
ऐसी विषैली वस्तु जिसके खाने से मुत्यु हो जाय।
उ.—काके सिर पढ़ि मंत्र दियौ हम कहाँ हमारे पास दिनाई।


दिनागम
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + आगम)
प्रभात।


दिनाती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिन + आती)
एक दिन का काम या उसकी मजदूरी।


दिनादि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + आदि=शुरू)
प्रभात।


दिनाधीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिनाधीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


दिनारु, दिनालु
वि.
(सं. दिनालु)
बहुत दिनों का, पुराना।


दिनार्द्ध
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अर्द्ध)
आधा दिन, दोपहर।


दिनास्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संध्या, सायंकाल।


दिनिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक दिन की मजदूरी।


थूली
संज्ञा
स्त्री.
अनाज का मोटा दलिया।


थूवा
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तूप, प्रा. थूप, थूब)
टीला, ढूह।


थूवा
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तूप, प्रा. थूप, थूब)
मिट्टी का बड़ा लोंदा।


थूवा
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. थू थू)
घृणा का तिरस्कार सूचक शब्द।


थूहड़, थूहर
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थूए=थूनी)
एक पेड़।


थूहा
संज्ञा
पुं.
(स.स्तूप प्रा. थूप, थूप)
टीला।


थूही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूहा)
मिट्टी की ढेरी।


थूही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थूहा)
मिट्टी के खंभे जिन पर गराड़ी की लकड़ी रखी जाती है।


थेंथर
वि.
(देश.)
थका-थकाया, सुस्त, परेशान।


थेइ-थेइ, थेई-थेई
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
थिरक-थिरक कर नाचने की मुद्रा और ताल।
उ.—(क) कालिनाग के फन पर निरतत, संकर्षन कौ बीर। लाग मान थेइ-थेइ करि उघटत, ताल मृदंग गँमीर- ५७५(ख) होड़ा-होड़ी नृत्य करैं रीझि रीझि अंग भरै ताता थेई उघटत हैं हरषि मन — १७८१।


दिनरत्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


दिनराइ, दिनराई, दिनराउ, दिनराऊ, दिनराज, दिनराय
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनराज)
सूर्य, रवि।


दिनशेष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संध्या, सायंकाल।


दिनांक
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंक)
तारीख।


दिनांत
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंत)
संध्या, सायंकाल।


दिनांतक
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंतक)
अंधकार।


दिनांध
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंध)
वह जिसे दिन में दिखायी न दे।


दिनांश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंश)
प्रातः, मध्याह्न और सायं—दिन के तीन अंश या भाग।


दिनांश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + अंश)
दिन के पाँच अंश जिनमें प्रत्येक, सूर्योदय के पश्चात् तीन मूहूर्त का होता है; यथा प्रातः, संगव, मध्याह्न, अपराह्न, और सायंकाल


दिना
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन)
दिन।
उ.—(क) जा दिना तैं जनम पायौ, यहै मेरी रीति। बिषय-बिष हठि खात, नाहीं डरत करत अनीति—१-१०६। (ख) एक दिना हरि लई करोटी सुनि हरिषी नँदरानी—सारा. ४२१। (ग) अपनी दसा कहौं मैं कासौं बन-बन डोलति रैनि-दिना—१४९१। (घ) माई वै दिना यह देह अछत बिधना जो आनंरी—२९०४।
मुहा.— चार दिना— थोड़ा समय। उ.— दिना चारि रहते जग ऊपर— १०५३।


दिनियर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनकर)
सूर्य।


दिनी
वि.
[हिं. दिन + ई (प्रत्य.)]
बहुत दिनों का, पुराना।


दिनी
वि.
[हिं. दिन + ई (प्रत्य.)]
बूढ़ी।
उ.—भली बुद्धि तेरैं जिय उपजी। ज्यौं-ज्यौं दिनी भई त्यौं निपजी—३९१।


दिनेर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनकर, प्रा. दिनियर)
सूर्य।


दिनेश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश)
सूर्य, रवि।


दिनेश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश)
आक, मंदार


दिनेश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश)
दिन के स्वामी ग्रह।


दिनेशात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश + आत्मज=पुत्र)
शनि।


दिनेशात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश + आत्मज=पुत्र)
यम।


दिनेशात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश + आत्मज=पुत्र)
कर्ण।


दिनेशात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश + आत्मज=पुत्र)
सुग्रीव।


दिनेशात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश + आत्मज=पुत्र)
अश्विनीकुमार।


दिनेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिन + ईश्वर)
सूर्य, रवि।


दिनेस
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनेश)
सूर्य
उ. — सिव बिरंचि सनकादि महामुनि सेस सुरेस दिनेस। इन सबहिनि मिलि पार न पायौ द्वारावती नरेस — सारा. ६८४।


दिनौधी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दिन + अंध +ई (प्रत्य.)]
आँख का एक रोग जिसमें दिन के प्रकाश में कम दिखायी देता है।


दिपत
क्रि. अ.
(हिं. दिपना)
चमकते हैं, शोभा पाते हैं।
उ. —नीकन अधिक दिपत दुत ताते अंतरिच्छ छबि भारी — सा. ५१।


दिपति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीप्ति)
चमक, शोभा।


दिपति
क्रि. अ.
(सं. दीप्ति)
चमकती है, शोभा पाती है।


दिपना
क्रि. अ.
(सं. दीप्ति)
चमकना, शोभा पाना।


दिब
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव्य)
वह परीक्षा जो सत्यता या निर्दोषता सिद्ध करने के लिए दी जाय।


दियरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीया)
एक तरह का पकवान।


दियला, दियवा, दिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीया)
दीपक।


दियाबती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीया + बाती)
(साँझ को) दिया जलाने का काम।


दियारा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दयार)
नदी-किनारे की भूमि, कछार।


दियारा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दयार)
प्रदेश, प्रांत।


दिये
क्रि. स.
(हिं. देना)
लगाये (हुए)।
उ.— (क) मूँडयौ मूँड़ कंठ बनमाला, मुद्रा-चक्र दिये— १-१७१। (ख) तन पहिरे नूतन चीर, काजर नैन दिये— १०-२४।


दियो, दियौ
क्रि. स.
(सं. दान, हिं. देना)
दिया। प्रदान किया।
उ. — (क) करि बल बिगत उबारि दुष्ट तैं, ग्राह ग्रसत बैकुँठ दियौ— १-२६। (ख) मैं यह ज्ञान छली ब्रज-बनिता दियो सु क्यों न लहौं—१० उ. १०४।


दिर
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
सितार का एक बोल।


दिरद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विरद)
हाथी।


दिरद
वि.
दो दाँत वाला।


दिमाक, दिमाग
संज्ञा
पुं.
(अ. दिमाग़)
मस्तिष्क।
मुहा.- दिमाग खाना (चाटना)— बहुत बकवाद करके परेशान कर देना।

दिमाग खाली करना— मगजपच्ची करना। दिमाग आसमान पर होना (चढ़ना)— बहुत घमण्ड होना। दिमाग न पाया जाना (मिलना)- बहुत धमण्ड होना। दिमाग में खलल होना— पागल-सा हो जाना।

दिमाक, दिमाग
संज्ञा
पुं.
(अ. दिमाग़)
बुद्धि, समझ, मानसिक शक्ति।
मुहा.- दिमाग लड़ाना— सोच-विचार करना।


दिमाक, दिमाग
संज्ञा
पुं.
(अ. दिमाग़)
अभिमान, गर्व, घमण्ड, शेखी।
मुहा.- दिमा झड़ना— घमंड चूर होना।


दिमागदार
वि.
[अ. दिमाग़ + फ़ा. दार (प्रत्य.)]
बुद्धिमान या समझदार।


दिमागदार
वि.
[अ. दिमाग़ + फ़ा. दार (प्रत्य.)]
अभिमानी, घमंडी।


दिमागी
वि.
(हिं. दिमाग)
दिमाग से संबंध रखने-वाला।


दिमागी
वि.
(हिं. दिमाग)
अभिमानी, घमंडी।


दिमात
वि.
(सं. द्विमातृ)
जिसके दो माताएँ हों।


दियत
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देना)
किसी को मार डालने या घायल करने के बदले में आक्रमणकारी को दिया जानेवाला धन।


दियना, दियरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीया)
दीपक, चिराग।


दिरमान
संज्ञा
पुं.
(फा. दरमानः)
चिकित्सा।


दिरमानी
संज्ञा
पुं.
(हीं. दिरमान)
वैद्य, चिकित्सक।


दिरानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देवरानी)
देवर की स्त्री।


दिरिस
संज्ञा
पुं.
(सं. द्य्श्य)
देखने की वस्तु, दृश्य।


दिल
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
कलेजा।
मुहा.- दिल उछलना— (१) घबराहट होना। (२) प्रसन्नता होना।

दिल उड़ना— बहुत घबराहढ होना। दिल उलटना— (१) वमन करते-करते परेशान हो जाना। (२) होश हवास जाते रहना। दिल काँपना— डर लगना। दिल जलना— (१) कष्ट पहुंचना (२) बहुत बुरा लगना। दिल जलाना— दुख देना। दिल टूटना— हिम्मत न रह जाना, निराश हो जाना। दिल ठंढा करना— संतोष देना। दिल ठंढा होना— संतोष होना। दिल थाम कर बैंठ (रह) जाना— रोक कर, वेग दबाकर या मन मसोस कर रह जाना। दिल धक-धक करना— डर स बहुत घबराना। दिल घड़कना— (१) डर से घबराना। (२) बहुत चिंतित होना, जी में खटका होना। दिल निकाल कर रख देना- सबसे प्रिय वस्तु या सर्वस्व दे देना। दिल पक जाना— बहुत तंग या परेशान हो जाना। दिल बैठना— हुदय की गति बहुत क्षीण हो जाना। दिल का बुलबुला बैठना— शोक या दुख के आघात से हृदय की गति रूक जाना।

दिल
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मन, चित्त, हृदय, जी।
मुहा.- दिल अटकना— मुग्ध होना, प्रेम होना।

दिल आना— प्रेम करना। दिल उकताना, उचटना— जी उचाट होना, मन न लगना। दिल उठाना— (१) विरक्त होना। (२) इच्छा करना। दिल उमड़ना— चित्त में दुख या दया उमड़ना। दिल उलटना— (१) घबराहट होना। (२) मन न लगना। (३) घृणा होना। दिल उठाना— (१) मन फेर लेना। (२) इच्छा करना। दिल कड़ा करना— साहस या हिम्मत से काम लेना। दिल कड़ा होना— कठोर साहसी या हिम्मती होना। दिल कवाब होना— बहुत बुरा लगना, जी जल जाना। दिल करना— (१) साहस करना। (२) इच्छा करना। दिल का— जीवटवाला, हिम्मती, साहसी। दिल का कमल खिलना— बहुत प्रसन्नता होना। दिल का गवाही देना— किसी बात के करने या न करने अथवा उचित होने न होने का विचार मन में आना। दिल का गुबार (गुब्बार, बुखार) निकालना— क्रोध दुख या झुँझलाहट में खूब भली-बुरी सुनकर संतोष करना। दिल का बादशाह— (१) बहुत उदार। (२) मनमौजी। दिल का भरना (भर जाना)— (१) संतुष्ट होना, छक जाना, मन भर जाना। (२) इच्छा पूरी होना (३) रूचि या इच्छा के अनुकूल काम होना। (४) खटका या संदेह मिटना। (५) दिलजमई होना। दिल की दिल में रहना। (रह जाना)— इच्छा पूरी न हो सकना। दिल की फाँस— मन का दुक या कष्ट। दिल कुढ़ना— मन में दुख या कष्ट होना, जी जलना। दिल कुढ़ाना— दुख या कष्ट देना, जी जलाना। दिल कुम्हलाना— मन का खिन्न या उदास होना। दिल के दरवाजे खुलना— जी का हाल या भेद मालूम होना। दिल के फफोले फूटना— मन के भाव या चित्त के उद्गार प्रकट होना। दिल के फफोले फोड़ना— भली बुरी सुनाकर जी ठंढा करना। दिल को करार होना— जी को धैर्य, शांति या आशा होना। दिल मसोसना— शोक, क्रोध आदि को प्रकट न करके मन ही में दबाना। मन मसोस कर रह जाना— शोक, क्रोध आदि को कारणवश प्रकट न कर सकना। दिल को लगना— (१) किसी बात का मन पर बड़ा प्रभाव पड़ना। (२) बहुत लगन होना। दिल खट्टा होना— घृणा या विरक्ति होना। दिल को खटकना— (१) संदेह या चिंता होना। (२) जी हिचकिचाना। दिल खुलना— संकोच या हिचक न रह जाना। दिल खिलना— चित्त बहुत प्रसन्न होना। दिल खोलकर— (१) बिना हिचक या संकोच के, बेधड़क। (२) मनमाना (३) बहुत चाव या उत्साह के साथ। दिल चलना— (१) इच्छा होना। (२) चित्त चंचल या विचलित होना। (३) मोहित या मुग्ध होना। दिल, चुराना— किसी काम से भागना या टाल-टूल करना। दिल जमना— (१) किसी काम में मन या चित्त लगना। (२) किसी विषय या पदार्थ का रूचि के अनुकूल होना। दिल जमाना— किसी कार्य-व्यापार में ध्यान देना या मन लगाना। दिल जलना— (१) गुस्सा या जुँजलाहट लगना, कुढ़ना। (२) डाह या ईर्ष्या होना। दिल जलाना— (१) कुढ़ाना, चिढ़ाना। (२) सताना, दुखी करना। (३) डाह या ईर्ष्या पैदा करना। दिलजान से जुटना (लगना)— (१) खूब मन लगाना, बहुत ध्यान से काम करना। (२) कड़ी मेहनत करना। दिल टूट जाना, टूटना— निराशा या निरूत्साह होना। दिल ठिकाने होना— शान्ति, संतोष या धैर्य होना। दिल ठुकना— (१) चित्त स्थिर होना। (२) हिम्मत बाँधना। दिल ठोंकना— (१) जी पक्का करना। (२) हिम्मत बाँधना। दिल डूबना— (१) मूर्छित होना। (२) घबराहट होना। (३) निराशा होना। दिल तड़पना— अधिक प्रेम के कारण किसी के लिए जी में बेचैनी होना। दिल तोड़ना— हिम्मत या साहस भंग करग कर देना। दिल दहलना— बहुत भय लगना। दिल दुखना— कष्ट या दुख होना। दिल देखना— जी की थाह लेना। दिल देना— प्रेम करना। दिल दौड़ना— (१) बड़ी इच्छा होना। (२) जी इधर-उधर भटकना। दिल दौड़ाना— (१) इच्छा करना। (२) सोचना, ध्यान दौड़ाना। दिल धड़कना— (१) डर से जी काँपना। (२) चित में चिंता होना। दिल पक जाना— दुख सहते-सहते तंग आ जाना। दिल पकड़ लेना (कर बैठ जाना)— शोक या दुख के वेग को दबाकर रह जाना— प्रकट न कर पाना। दिल पकड़ा जाना— संदेह या खुटका पैदा होना। दिल पकड़े फिरना— मोह-ममता से प्रिय पात्र के लिए भटकते फिरना। दिल पर न वश होना— जी में अच्छी तरह बैठ जाना। दिल पर मैल आना— किसी के प्रति पहले का सा प्रेम या सद्भाव न रह जाना। दिल पर साँप लोटना— किसी की बढ़ती या उन्नति देखकर ईर्ष्या से दुखी होना। दिल पर हाथ रखे फिरना— मोह-ममता से भटकना। दिल पसीजना (पिघलना)— पुखी या पीड़ित को देखकर जी में दया उमड़ना। दिल पाना— मन की थाह पा लेना। दिल पीछे पड़ना— दुख-शोक भूलकर मन बहलाना। दिल फटना (फट जाना)— (१) पहले-सा प्रेम या व्यवहार न रहना। (२) उत्साह भंग हो जाना। दिल फिरना (फिर जाना)— पहले सा प्रेम न रहकर अरूचि या विरक्ति उत्पन्न हो जाना। दिल फीका होना— घुणा या विरक्ति हो जाना। दिल बढ़ना— (१) उत्साहित होना। (२) हिम्मत बढ़ना। दिल बढ़ाना— (१) उत्साहित करना। (२) हिम्मत बढ़ाना। दिल बह-लना— (१) आनंद या मनोरंजन होना। (२) दुख-चिंता भूलकर दूसरे काम में मन लगना। दिल बहलाना— (१) आनंद या मनोरंजन करना। (२) दुख-चिंता भूलकर दूसरे काम में मन लगना। दिल बुझना— मन में उत्साह या उमंग न रहना। दिल बुरा होना— (१) जी मचलाना। (२) घिन या अरूचि होना। (३) अस्वस्थ होना। (४) मन में दुर्भाव या कपट होना। दिल बेकल होना— बेचैनी या घबराहट होना। दिल बैठ जाना (बैठना)- (१) मूर्छा आना। (२) बहुत उदास या खिन्न होना। दिल बैठा जाना (१) चित्त ठिकाने न रहना। (२) जरा भी उमंग न रह जाना। (३) मूर्छा आने लगना। दिल मटकना— चित्त का व्यग्र या चंचल होना। दिल भर आना— मन में दया उमड़ना। दिल भारी करना— चित्त खिन्न या दुखी करना। दिल मसोसना— शोक-दुख आदि का वेग दबाना। दिल मारना— (१) उमंग या उत्साह को दबाना। (२) संतोष करना। दिल मिलना— स्नेह या प्रेम होना। दिल में आना— (१) विचार उठना। (२) इच्छा या इरादा होना। दिल में खुभना (गड़ना, चुभना)— (१) हृदय पर गहरा प्रभाव करना। (२) बराबर ध्यान बना रहना। दिल में गाँठ (गिरह) पड़ना— अनुचित कार्य-व्यवहार के कारण बुरा मानना। दिल में घर करना— (१) बराबर ध्यान बना रहना। (२) मन में बसना। दिल में चुटकियाँ (चुटकी) लेना— (१) हँसी उड़ाना (२) चुभती हुई बात करना। दिल में चोर बैठना— शंका या संदेह होना। दिल में जगह करना— (१) बराबर ध्यान बना रहना। (२) मन में बसाना। दिल में फफोले पड़ना— मन में बहुत दुखी होना। दिल में फरक आना (बल पड़ना)— शंका या संदेह होना, सद्भाव न रह जाना। दिल में धरना (रखना)— (१) ध्यान रखना। (२) बुरा मानना। (३) बात गुप्त रखना, अप्रकट रखना। दिल मैला करना— चित्त में दुर्भाव उत्पन्न करना। दिल रूकना— (१) जी घबराना। (२) जी में संकोच होना। (किसी का) दिल रखना— (१) किसी की इच्छा पूरी कर देना। (२) प्रसन्न या संतुष्ट करना। दिल लगना— (१) मन का किसी काम में रम जाना। (२) मन बहलाना। (३) प्रेम होना। दिल लगाना- (१) मन बहलाना। (२) प्रेम करना। दिल ललचाना— (१) कुछ पाने की इच्छा या लालसा होना। (२) मन मोहित होना। दिल लेना— (१) अपने प्रेम में फँसाना। (२) मन की थाह लेना। दिल लोटना— मन छटपटाना। दिल से उतरना (गिरना)— स्नेह, श्रद्धा या आदर का पात्र न रह जाना। दिल से— (१) खूब जी लगाकर। (२) अपनी इच्छा से। दिल से उठना— स्वयं कोई काम करने की इच्छा होना। दिल से दूर करना— भुला देना। दिल हट जाना— अरूचि हो जाना। (किसी के) दिल को हाथ में रखना— (किसी के) दिल को हाथ में लेना— किसी के दिल को अपने कार्य-व्यवहार से वश में कर लेना। दिल हिलना— बहुत भय लगना। दिल ही दिल में— चुपके-चुपके। दिल-जान से— (१) खूब मन लगाकर। (२) कड़ा परिश्रम करके।

दिल
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
साहस, दम।


दिल
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
प्रवृत्ति, इच्छा।


दिलचला
वि.
(फ़ा. दिल + चलना)
साहसी, हिम्मती।


दिलचला
वि.
(फ़ा. दिल + चलना)
वीर, बहादुर।


दिलदार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
वह जिससे प्रेम हो, प्रेम-पात्र।


दिलदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दिलदारी + ई (प्रत्य.))
उदारता।


दिलदारी
संज्ञा
स्त्री.
[फ़ा. दिलदारी + ई (प्रत्य.)]
रसिकता।


दिलपसंद
वि.
(फ़ा.)
जो दिल को भला लगे।


दिलबर
वि.
(फ़ा.)
प्रिय, प्यारा।


दिलरुबा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
प्रेम पात्र, प्रिय व्यक्ति।


दिलवाना
क्रि. स.
(हिं. देना का प्रे.)
देने का काम दूसरे से कराना।


दिलवाना
क्रि. स.
(हिं. देना का प्रे.)
प्राप्त कराना।


दिलवाला
वि.
[फ़ा. दिल + हिं. वाला (प्रत्य.)]
देने के काम में उदार।


दिलवाला
वि.
[फ़ा. दिल + हिं. वाला (प्रत्य.)]
बहादुर, साहसी।


दिलचला
वि.
(फ़ा. दिल + चलना)
दानी, उदार।


दिलचस्प
वि.
(फ़ा.)
मनोरंजक, मनोहर।


दिलचस्पी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
मनोरंजन,


दिलचस्पी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
रूचि।


दिलजमई
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दिल + अ. जमअई)
इत-मीनान, तसल्ली, भरोसा, संतोष।


दिलजला
वि.
(फ़ा. दिल + हिं. जलना)
दुखी, पीड़ित।


दिलदरिया, दिलदरियाव
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरियादिल)
उदार या दानी व्यक्ति।


दिलदरिया, दिलदरियाव
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरियादिल)
उदार या दानी होने का भाव।


दिलदार
वि.
(फ़ा.)
उदार, दाता,


दिलदार
वि.
(फ़ा.)
रसिक।


दिलीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक चंद्रवंशी राजा।


दिलेर
वि.
(फ़ा.)
बहादुर, साहसी।


दिलेरी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
बहादुरी, साहस।


दिल्लगी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दिल + हिं. लगना)
दिल लगाने की क्रिया या भाव।


दिल्लगी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दिल + हिं. लगना)
हँसी ठट्ठा, मजाक, मखौल, मसखरी।
मुहा.- दिल्लगी उडाना— हँसी में उड़ा देना।


दिल्लगीबाज
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिल्लगी + फ़ा. बाज़)
मस-खरा, मखौलिया, हँसोड़, हँसी- ठिठोली करनेवाला।


दिल्लगीबाजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिल्लगी + फ़ा. बाज़ी)
हँसी-ठठोली।


दिल्ली
संज्ञा
स्त्री.
यमुना नदी के किनारे बसा हुआ भारत का प्रसिद्ध नगर जो प्राचीन काल से हिंदू-मुसलमान राजाओं की राजधानी होता आया है। सन् ८०३ में अँग्रेजों ने इस पर अधिकार किया था और नौ वर्ष बाद इसको अपनी राजधानी बनाया था। स्वतंत्र भारत की राजधानी के रूप में आज यह नगर संसार में प्रसिद्ध है।


दिल्लीवाल
वि.
[हिं. दिल्ली +वाला (प्रत्य.)]
दिल्ली से संबंधित, दिल्ली का।


दिल्लीवाल
वि.
[हिं. दिल्ली +वाला (प्रत्य.)]
दिल्ली का रहनेवाला।


दिलवैया
वि.
(हिं. दिलवाना + ऐया)
दिलाने-वाला —प्राप्त करानेवाला।


दिलवैया
वि.
(हिं. दिलवाना + ऐया)
देनेवाला।


दिलाना
क्रि. स.
(हिं. ‘देना’ का प्रे.)
देने का काम दूसरे से कराना।


दिलाना
क्रि. स.
(हिं. ‘देना’ का प्रे.)
प्राप्त कराना।


दिलावर
वि.
(फ़ा.)
बहादुर, साहसी, वीर।


दिलावरी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
बहादुरी , साहस।


दिलासा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दिल + हिं. आशा)
तसल्ली, ढारस।


दिली
वि.
(फ़ा. दिल)
हार्दिक।


दिली
वि.
(फ़ा. दिल)
बहुत घनिष्ठ।


दिलीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इक्ष्वाकुवंशी एक राजा, ‘रघुवंश के अनुसार जिनकी पत्नी सुदक्षिणा के गर्भ से राजा रघु जन्मे थे।


थोथरा
वि.
(हिं. थोथी)
खोखला, खाली।


थोथरा
वि.
(हिं. थोथी)
निस्सार, तत्वरहित।


थोथरा
वि.
(हिं. थोथी)
बेकार।


थोथा
वि.
(देश.)
खाली, खोखला, पोला।


थोथा
वि.
(देश.)
जिसकी धार तेज न हो, गुठला।


थोथा
वि.
(देश.)
बिना दुम या पूँछ का।


थोथा
वि.
(देश.)
भद्दा, बेढंगा।


थोथा
वि.
(देश.)
निकम्मा, बेकार।


थोपड़ी, थोपी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थोपना)
चपत, धौल।


थोपना
क्रि. स.
(सं. स्थापन, हिं. थापन)
किसी गीली चीज की मोटी तह ऊपर जमाना, छोपना।


दिव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।
उ. —नीलावती चाँवर दिव दुरलभ। भात परोस्यौ माता सुरलभ— ३८६।


दिव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश।


दिव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वन।


दिव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन।


दिवराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग का राजा, इन्द्र।
उ.— सूरदास प्रभु कृपा करहिंगे सरन चलौ दिवराज।


दिवरानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देवरानी)
देवर की पत्नी।


दिवस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन, वासर, रोज।
उ. — एक दिवस हौं द्वार नंद के नहीं रहति बिनु आई— २५३८।


दिवस-अंध
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवस + हिं. अंधा)
उल्लू।


दिवसकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिवसकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


दिवस्पृश्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पैर से स्वर्ग को छूनेवाले वामनावतारी विष्णु।


दिवांध
वि.
(सं.)
जिसे दिन में दिखायी न दे।


दिवांध
संज्ञा
पुं.
दिनौंधी नामक रोग।


दिवांध
संज्ञा
पुं.
उल्लू।


दिवांधकी
स.
स्त्री.
(सं.)
छछूँ दर।


दिवा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन।


दिवा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


दिवाई
क्रि. स.
[हिं. दिलाना (प्रे.)
दिलायी, प्राप्त करायी।
उ. — (क) सिव-बिरंचि नारद मुनि देखत,, तिनहुँ न मौकौं सुरति दिवाई-७-४। (ख) कहा करौं, बलि जाउँ, छोरि तू तेरी सौंस दिवाई - ३६३। (ग) काहू तौ मोहिं सुधि न दिवाई - १०६४। (घ) जो भाई सो सौंह दिवाई तब सूघे मन मान्यौ— २२७५।


दिवाकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिवाकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कौआ, काक।


दिवसनाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, दिनकर, रवि।


दिवसपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दिवसपति-नंदनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिवसपति (=सूर्य) + नंदिनी=पुत्री)
सूर्य की पुत्री।


दिवसपति-नंदनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिवसपति (=सूर्य) + नंदिनी=पुत्री)
यमुना।


दिवसपतिसुतमात
संज्ञा
पुं.
[सं. दिवसपति (=सूर्य) + सुत (=सूर्य का पुत्र कर्ण) + माता (=कर्ण की माता कुंती=कुंत=वर्छा)]
बर्छा, भाला।
उ. — दिवसपति सुतमात अवधि विचार प्रथम मिलाप— सा. ३२।


दिवसमणि, दिवसमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवसमणि)
सूर्य, रवि।


दिवसमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सबेरा, प्रातःकाल।


दिवसमुद्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक दिन का वेतन।


दिवसेश
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवस+ईश)
सूर्य, रवि।


दिवसति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दिवाकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मदार का वृक्ष या फूल।


दिवाकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक फूल।


दिवाकीर्ति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाई।


दिवाकीर्ति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चाँडाल।


दिवाकीर्ति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उल्लू नामक पक्षी।


दिवाचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


दिवाचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चांडाल।


दिवाटन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कौआ, काक।


दिवातन
वि.
(सं. दिवा + वेतन ?)
दिन भर का।


दिवातन
संज्ञा
पुं.
एक दिन का वेतन या मजदूरी।


दिवान
संज्ञा
पुं.
(अ. दिवान)
मंत्री, वजीर।


दिवाना
वि.
(हिं. दीवाना)
पागल, मतवाला, बावला।


दिवानाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रवि। सूर्य।


दिवानी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
एक पेड़।


दिवानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीवाना)
दीवान का पद।


दिवानी
वि.
(हिं. दीवाना)
पगली, मतवाली, बावली।
उ.— (क) तब तू कहति सबनि सौं हँसि-हँसि अब तू प्रगटहिं भई दिवानी— ११९०। (ख) सूरदास प्रभु मिलिकै बिछुरे ताते भई दिवानी— ३३५९।


दिवापृष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दिवाभिसारिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह नायिका जो दिन में पति से मिलने के लिए जाय।


दिवाभीत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चोर


दिवाभीत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उल्लू।


दिवामणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दिवामणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मदार।


दिवामध्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोपहर, मध्याह्न।


दिवाय
क्रि.सं.
(हिं. दिलाना)
दिलाकर।


दिवाय
संयु.
देहु दिवाय
दिला दो।
उ.— फगुवा हमको देहु दिवाय—२४१०।


दिवायो, दिवायौ
क्रि. स.
(हिं. देना का प्रे.)
दिलाया, दिलवाया।
उ.— (क) जय अरू बिजय कर्म कइ कीन्हौ, ब्रह्मसराप दिवायौ—१-१०४। (ख) दोइ लख धेनु दई तेहि अवसर बहुतहि दान दिवायो— सारा. ३९२।


दिवार
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीवार)
दीवार, भीत।


दिवारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीवाली)
दीपावली का त्योहार।


दिवाल
वि.
[हिं. देना + दाल (प्रत्य.)]
देनेवाला।


दिवाल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीवार)
दीवार, भीत।


दिवाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीवा + बालना)
धन या पूँजी न रह जाने के कारण ऋण चुकाने की अस मर्थता, टाट उलटना।


दिवाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीवा + बालना)
किसी पदार्थ का बिलकुल खत्म हो जाना।


दिवालिया
वि.
(हिं. दिवाला + इया)
जो दिवाला निकाल चुका हो।


दिवाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीवाली)
दीपावली का त्योहार।


दिवावति
क्रि. स.
(हिं दिलाना)
दूसरे को देने के लिए प्रवृत्त करती है, दिलवाती है।


दिवावति
क्रि. स.
(हिं दिलाना)
प्राप्त कराती है, (शपथ आदि) रखती है।
उ. — छाँड़ि देहु बहि जाइ मथानी। सौंह दिवावति छोरहु आनी — ३९१।


दिवावति
क्रि. स.
(हिं दिलाना)
भूत-प्रेत की बाधा रोकने के लिए (हाथ) फिरवाती है।
उ. — (क) घर-घर हाथ दिवावति डोलति, बाँधति गरै बघनियाँ — १०-८३।। (ख) घर-घर हाथ दिवावति डोलति, गोद लिए गोपाल बिनानी—१०-२५८।


दिवि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव)
स्वर्ग।
उ. — (क) सूर भयौ आनंद नृपति-मन दिवि दुंदुभी बजाए—९-२४।


दिवि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव)
आकाश।
उ. — जैं दिवि भूतल सोभा समान। जै जै सूर, न सब्द आन —९-१६६।


दिवि
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव)
देव।
उ. — पाटंबर दिवि-मंदिर छायौ —१००१।


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपराधी या निरपराधी की परीक्षा की एक प्राचीत रीति।


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शपथ।


दिव्यकवच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अलौकिक कवच।


दिव्यकवच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह स्तोत्र जिसका पाठ करने से अंग-रक्षा हो


दिव्यक्रिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
व्यक्ति को अपराधी-निर-पराधी सिद्ध करने की प्राचीन परीक्षा-प्रणाली।


दिव्यगायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग के गायक, गंधर्व।


दिव्यचक्षु
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव्यचक्षुस्)
ज्ञान-चक्षु अंतःदृष्टि, दिव्यदृष्टि


दिव्यचक्षु
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव्यचक्षुस्)
अंधा।


दिव्यता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अलौकिक होन का भाव।


दिव्यता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देव भाव।


दिवोका, दिवौका
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवौकस्))
चातक पक्षी।


दिवोल्का
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिन से गिरनेवाली उल्का।


दिव्य
वि.
(सं. दिव्य)
स्वर्ग से संबंध रखनेवाला, स्वर्गीय।


दिव्य
वि.
(सं. दिव्य)
आकाश से संबंध रखने वाला।


दिव्य
वि.
(सं. दिव्य)
प्रकाशपूर्ण, चमकीला।
उ. — आजु दीपति दिव्य दीप मालिका— १०-८०९।


दिव्य
वि.
(सं. दिव्य)
बहुत बढ़िया।


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जौ नामक अन्न।


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आँवला


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्रकार के केतु।


दिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्गीय या अलौकिक नायक।


दिवि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीलकंठ पक्षी।


दिविता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीप्ति आभा, कांति।


दिविषत्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग-वासी।


दिविषत्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता।


दिविष्टि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यज्ञ।


दिविष्ठि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग में रहनेवाले, देवता।


दिवेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिक्पाल |


दिवैया
वि.
[हिं. देना + वैया (प्रत्य.)]
देने वाला।


दिवोका, दिवौका
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवौकस्))
स्वर्ग में रहने वाला।


दिवोका, दिवौका
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवौकस्))
देवता।


थैली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थैली)
रूपयों से भरी हुई थैली, तोड़ा।
मुहा.- थैली खोलना थैली से रूपया देना।


थोक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तोमक)
ढेर, राशि।


थोक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तोमक)
समूह, झुंड।
मुहा.- थोक करना इकट्ठा या जमा करना। सकै थोक कई- इकट्ठा कर सके। उ.— द्रुम चढ़ि काहे न टेरौ कान्हा, गैयाँ दूरि गयीं।¨¨¨¨। छाँड़ि खेल सब दूरि जात हैं बोले जो सकै थोक कई।


थोक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तोमक)
इकट्ठा बेचने का माल।


थोड़ा
वि.
[सं. स्तोक, पा. थोअ + ढ़ा (प्रत्य.)
कम, तनिक, जरा सा।


थोड़ा
थौ.
थोड़-बहुत—कुछ-कुछ किसी कदर।
मुहा.- थोड़ा थोड़ा होना- लज्जित होना। जो करॆ सो थोड़ा बहुत-कुच करना चाहिए।


थोड़ा
कि वि.
कम मात्रा में, जरा, तनिक, टुक।


थोड़े
वि. बहु.
(हिं. थोड़ा)
कुछ, कम संख्या में।


थोड़े
क्रि. वि.
(हिं. थोड़ा)
थोड़े परिमाण या मात्रा में।
मुहा.- थोड़े ही- नहीं, बिलकुल नहीं।


थोथ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थोथा)
निस्सारता, खोखलापन।


दिव्यता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उत्तमता, सुंदरता।


दिव्यदोहद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी इच्छा की सिद्धि के लिए देवता को अर्पित किया जानेवाला पदार्थ।


दिव्यदृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अंतः दृष्टि, अलौकिक दृष्टि।


दिव्यधर्मी
संज्ञा
पुं.
(सं. दिव्यधर्मिन्))
सुशील व्यक्ति।


दिव्यनगरी
संज्ञा
(सं.)
ऐरावती नगरी।


दिव्यनदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आकाश गंगा।


दिव्यनारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अप्सरा।


दिव्यपुष्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केरवीर, कनेर।


दिव्य रथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का विमान।


दिव्यवस्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य का प्रकाश।


दिव्यवाक्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देववाणी, आकाशवाणी।


दिव्य-सरिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.दिव्यसरित्)
आकाश गंगा।


दिव्यस्त्री, दिब्यांगना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देववधू अप्सरा।


दिव्यांशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दिव्यांगना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवी।


दिव्यांगना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अप्सरा।


दिव्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आँवला


दिव्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तीन प्रकार की नायिकों में एक, स्वर्गीय अथवा अलौकिक नायिका।


दिव्यादिव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तीन प्रकार कॆ नायकों में एक, वह मनुष्य जिसमें देबगुण हों।


दिव्यादिव्या
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तीन प्रकार की नायि काओं में एक, वह स्त्री जिसमें देवियों के गुण हों।


दिव्यास्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह अस्त्र जो देवों से मिला हो।


दिव्यास्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह अस्त्र जो मंत्रों से चले।


दिव्योदिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वर्षा का जल।


दिव्योपपादक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता जिनकी उत्पत्ति बिना माता-पिता के मानी जाती है।


दिश
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिश्)
दिशा, दिक्।


दिशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ओर, तरफ।


दिशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
क्षितिज-वृत्त के किये गये चार विभागों में से किसी एक की ओर का विस्तार। ये चार विभाग हैं -पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इनकें बीच के कोणों के नाम ये हैं। पूर्व दक्षिण के बीच अग्निकोण, दक्षिण पश्चिम के बीच नैर्ऋत्य कोण, पश्चिम-उत्तर के बीच वायव्य कोण और उत्तर-पूर्व के बीच ईशान कोण। इन आठ दिशाओं के सर के ऊपर की दिशा को ‘ऊद्र्ध्व’ और पैर के नीचे की दिशा को ‘अधः’ कहते हैं।


दिशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दस की संख्या।


दिशागज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्गज।


दिशाजय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिग्विजय।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भाग्य।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उपदेश।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उत्सव।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रसन्नता।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
देखने की शक्ति।


दिष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
नजर।


दिसंतर
संज्ञा
पुं.
(सं. देशांतर)
विदेश, परदेश।


दिसंतर
क्रि. वि.
दिशाओं के अंत तक, बहुत दूर तक।


दिस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
दिशा।


दिस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
ओर।


दिशापाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिक्पाल।


दिशाभ्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिशा-संबंधी भ्रम।


दिशाशूल, दिशासूल
संज्ञा
पुं.
(सं. दिक्शूल)
समय का वह योग जब विशेष दिशाओं में यात्रा करने का निषेध हो।


दिशि, दिसि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
दिशा ओर।


दिशेभ
संज्ञा
पुं.
(सं. दिश् + इभ)
दिग्गज।


दिश्य
वि.
(सं.)
दिशा-संबंधी।


दिष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भाग्य।


दिष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपदेश।


दिष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काल।


दिष्टांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृत्यु, मौत।


दिसना
क्रि. अ.
(हिं. दिखना)
दिखायी पड़ना।


दिसा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
दिशा।


दिसा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
ओर।


दिसा
संज्ञा
स्त्री.
मल त्यागने की क्रिया।


दिसादाह
संज्ञा
पुं.
(सं. दिश् + दाह)
सूर्यास्त के पश्चात् भी दिशाओं की जलती हुई सी दिखायी देना।


दिसावर
संज्ञा
पुं.
(सं. देशांतर)
विदेश, परदेश।
मुहा.- दिसावर उतरना— विदेशों में भाव गिरना।


दिसावरी
वि.
[हिं. दिसावर + ई (प्रत्य.)]
विदेश या परदेश से आया हुआ, बाहरी, परदेशी।


दिसि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिज्ञा)
ओर, तरफ।
उ. — (क) जापर कृपा करै करूनामय ता दिसि कौन निहारै—१-२५४। (ख) सूरदास भक्त दोऊ दिसि का पर चक्र चालाऊँ —


दिसि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिज्ञा)
दिशाएँ जिनकी संख्या दस है।


दिसिटि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दष्टि)
दृष्टि, नजर।


दिहाड़ा
संज्ञा
पुं.
[हिं. दिन + हार (प्रत्य.)]
दिन।


दिहाड़ा
संज्ञा
पुं.
[हिं. दिन + हार (प्रत्य.)]
बुरी दशा, दुर्गति।


दिहाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिहाड़ा + ई प्रत्य.)
दिन भर की मजदूरी।


दिहात
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देहात)
गाँव, देहात।


दिहात
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देहात)
वह स्थान जो सभ्यतादि में पिछड़ा हो।


दिहाती
वि.
(हिं. देहात)
गाँव का रहनेवाला।


दिहाती
वि.
(हिं. देहात)
असभ्य, गँवार, उजड्ड।


दिहातीपन
संज्ञा
पुं.
(हिं. देहातीपन)
ग्रामीणता।


दिहातीपन
संज्ञा
पुं.
(हिं. देहातीपन)
उजडँडता, गवारूपन।


दिहेज
संज्ञा
पुं.
(हिं. देहज)
विवाह में कन्यापक्ष की ओर से वर-पक्ष को दिया जानेवाला सामान आदि।


दिसिदुरद
संज्ञा
पुं.
(सं. दिशि + द्विरद)
दिग्गज।


दिसिनायक
संज्ञा
पुं.
(सं. दिशि + नायक)
दिक्पाल।


दिसिप, दिसिपति
संज्ञा
पुं.
(सं. दिशा + प, पति = पालक स्वामी, रक्षक)
दिक्पाल।


दिसिराज
संज्ञा
पुं.
(सं. दिशा + राजा)
दिक्पाल।


दिसैया
वि.
[हिं. दिसना=दिखना + ऐया (प्रत्य.)]
देखनेवाला।


दिसैया
वि.
[हिं. दिसना=दिखना + ऐया (प्रत्य.)]
दिखानेवाला


दिस्सा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दिशा)
ओर, तरफ, दिशा।


दिहंदा
वि.
(फ़ा.)
दाता, देनेवाला।


दिहरा
संज्ञा
पुं.
(सं. देव + हिं. धर=देवहर)
देव-मंदिर।


दिहल
क्रि. स.
[पू. हिं. में 'देना' क्रिया का भूत. रूप]
दिया, प्रदान किया।


दीअट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देवट)
दीपक रखने का आधार।


दीआ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीया)
दीप, दीपक।


दीए
क्रि. स.
(हिं. देना)
दियॆ, प्रदान किये।


दीए
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. दीया)
बहुत से दीपक।
मुहा.- दीए का हँसना-दीप की बत्ती से फूल झड़ना।


दीक्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीक्षा देनेवाला, गुरू।


दीक्षण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीक्षा देने की क्रिया।


दीक्षांत
संज्ञा
पुं.
(स.)
दीक्षा-संस्कार की समाप्ति पर किया जानेवाला यज्ञ।


दीक्षांत
संज्ञा
पुं.
(स.)
महाविद्या-लय या विश्वविद्यालय का उपाधि-वितरणोत्सव।


दीक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
यजन, यज्ञकर्म।


दीक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मंत्र की शिक्षा, मंत्रोपदेश।


दीक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उपनयन-संस्कार जिसमें गायत्री मंत्र दिया जाता है।


दीक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गुरू-मंत्र, आचार्योपदेश।


दीक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पूजन।


दीक्षागुरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंत्रोपदेंसक आचार्य।


दीक्षापति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यज्ञ का रक्षक, सोम।


दीक्षित
वि.
(सं.)
जो किसी यज्ञ में लगा हो।


दीक्षित
वि.
(सं.)
जिसने आचार्य से दीक्षा ली हो।


दीक्षित
संज्ञा
पं.
(सं.)
ब्राह्मणों का एक वर्ग।


दीखति
क्रि. अ.
(हिं. दीखना)
दिखायी देता है, दृष्टिगोचर होता है।


दीखति
क्रि. अ.
(हिं. दीखना)
जान पड़ता है, मालूम होता है।
उ. दीखति है कछु होवनहारी ४-५।


थोपना
क्रि. स.
(सं. स्थापन, हिं. थापन)
तवे पर गीला आटा फैलाना।


थोपना
क्रि. स.
(सं. स्थापन, हिं. थापन)
मोटा लेप चढ़ाना।


थोपना
क्रि. स.
(सं. स्थापन, हिं. थापन)
किसी के मत्थे मढ़ना या लगाना।


थोबड़ा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
पशुओं का थूथन।


थोर
वि.
(हिं. थाड़ा)
थोड़ा, कम।
उ.—धनुष-बान सिरान, कैधौं गरुड़ बाहन खोर। चक्र काहु चारायो, कैधौं भुजनि-बल भयौ थोर—१-२५३।
मुहा.- जो कीजे सो थोर— इनके लिए जो कुछ किया जाय वह कम होगा। उ.— हरि का दोष कहा करि दीजै जो कीजै सो इनको थोर— पृ.३३५(४०)


थोर
वि.
(हिं. थाड़ा)
छोटा, छोटा-सा।
उ.—बार-बार डरात तोकौं बरन बदनहिं थोर—३६४।


थोर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
केले की पेड़ी का बिचला भाग।


थोर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
थूहर का पेड़।


थोरनो
वि.
(हिं. थोडा)
कम, थोड़ा।
उ.—जैसी ही हरी हरी भूमि हुलसावनी मोर मराल सुख होत न थोरनो—२२८०।


थोरा
वि.
(हिं. थोड़ा)
कम, थोड़ा, अल्प।


दीखना
क्रि. अ.
(हिं. देखना)
दिखायी देना।


दीघी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीर्घिका)
तालाब, पोखरा।


दीच्छा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीक्षा)
मंत्रोपदेश।


दीजियै
क्रि. स.
(हिं. देना)
प्रदान कीजिए।
उ.— ताहिं कै हाथ निरमोल नग दीजिए— १-२२३।


दीजियौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
देना, प्रदान करना। प्र.— अंक दीजियो—गले लगाना।
उ.— तुम लछिमन निज पुरहिं सिधारौ।¨¨¨¨¨। सूर सुमित्रा अंक दिजियौ, कौसिल्याहिं प्रनाम हमारौ—९-३६।


दीजै
क्रि. स.
(हिं. देना)
दीजिए।
उ.— नर-देही पाइ चित्त चरन-कमल दीजै—।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
देखने की शक्ति, दृष्टि।
मुहा.- दीठ मारी जाना— देखने की शक्ति न रहना।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
देखने के लिए आँख की पुतली का घुमाव या स्थिति, अवलोकन, चितवन, नजर।
मुहा.- दीठ करना- देखना।

दीठ चुकना— देत न पाना। दीठ फिरना— (१) किसी दूसरी ओर देखने लगना। (२) कृपादृष्टि न रह जाना। दीठ फेंकना— नजर डालना। दीठ फेरना— (१) दूसरी ओर देखना। (२) अप्रसन्न हो जाना, कृपादृष्टि न रखना। दीठ बचाना— (१) सामने न पड़ना या होना। (२) छिपाना, दूसरे को देखने न देना। दीठि बाँधना— ऐसा जादू करना कि कुछ का कुछ दिखायी दे। दीठि लगाना— ताकना।

दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
ज्योति प्रसार जिससे रूप रंग का बोध हो।
मुहा.- दीठ पर चढ़ना— (१) अच्छा लगना, पसंद आना, निगाह में जँचना। (२) आंखों को बुरा लगना, नजरों में खटकना।

दीठ बिछाना— (१) बड़ी उत्कंठा से प्रतीक्षा करना। (२) बड़ी श्रद्धा और प्रीत से स्वागत करना। दीठ में आना (पड़ना)— दिखायी पड़ना। दीठे में समाना— भला या प्रिय लगने के कारण बराबर ध्यान में बना रहना। दीठि से उतरना (गिरना)— श्रद्धा, प्रीति या विश्वास के योग्य न रह जाना।

दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
किसी अक्छी चीज पर ऐसी कुदृष्टि पड़ना जिसका प्रभाव बहुत बुरा हो, कुदृष्टि, नजर।
मुहा.- दीठ उतारना (जाड़ना)— मंत्र द्वारा नजर या कुदृष्टि का बुरा प्रभाव दूर करना।

दीठि खा जाना (चढ़ना, पर चढ़ना)— कुदृष्टि पड़ना, मजर लगना, हूँस में आना, टोंक लगना। जीठि जलना— नजर या कुदृष्टि का प्रभाव दूर करने के लिए राई-नोन का उतारा करके जलाना।

दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
देखने के लिए खुली हुई आंख।
मुहा.- दीठि उठाना— निगाह ऊपर करके देखना।

दीठ गड़ाना (जमाना)— एकटक देखना या ताकना। दीठ चुराना— लज्जा, भय आदि से सामने म आना। दीठ जुड़ना (मिलना)— देखा देखी होना। दीठ जोढ़ना (मिलाना)— देखा-देखी करना। दीठी फिसलना— आंख में चकाचौंध होना। दीठ भर देखना— जी भरकर या अच्छी तरह देखना। दीठ मारना— (१) आंख से संकेत करना। (२) आंख के संकेत से माना करना। दीठ लगना— देखा-देखी के वाद प्रेम होना। दीठ लड़ना— देखा देखी होना। दीठ लड़ाना— आंख के सामने आंख किये रहना, एकटक देखना।

दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
देख-भाल, निगरानी।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
परख, पहचान।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
कृपादृष्टि, भलाई का ध्यान।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
आशा।


दीठ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृष्टि)
ध्यान, विचार।


दीठबंद
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीठ + सं. बंध)
ऐसा जादू या इन्द्रजाल कि कुछ का कुछ दिखायी दे।


दीठबंदी
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीठबंद)
ऐसी माया या जादू कि कुछ का कुछ दिखायी दे।


दीठवंत
वि.
(सं. दष्टि + वंत)
जिसे दिखायी दे, जिसके आंखें हों।


दीठवंत
वि.
(सं. दष्टि + वंत)
ज्ञानी।


दीन
संज्ञा
पुं.
(अ.)
धर्म-विश्वास, मत।


दीनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दरिद्रता, गरीबी।


दीनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कातरता, आत्तंभाव।
उ.—(क) उनकी मोसौं दीनता कोउ कहिं न सुनावौ—१-२३७।


दीनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उदासी, खिन्नता।


दीनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अधीनता का भाव, विनीत भाव।
उ.—कोमल बचन दीनता सब सौं, सदा अनंदित रहियै—२-१८।


दीनताई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीनता)
निर्धनता


दीनताई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीनता)
कातरता।


दीनत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निर्धनता।


दीनत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आर्त्तभाव।


दीनदयाल, दीनदयालु
वि.
(सं. दीनदयालु)
दीनों पर दया करनेवाला।


दीठि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीठ)
नेत्र-ज्योति, दृष्टि।


दीठि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीठ)
अवलोकन, दृक्पात, चितवन।
उ.—आइ निकट श्रीनाथ निहारे, परी तिलक पर दीठि—१-२७४।


दीठि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीठ)
कुदृष्टि, नजर।
उ.—(क) लालन वारी या मुख ऊपर। माई मेरिहि दीठि न लागै, तातैं मसि-बिंदा दियौ भ्रू पर—१०-९२। (ख) खेलत मैं कोउ दीठि लगाई, लै लै राई लौन उतारति—१०-२००। (ग) कुँवरी कौं कहु दीठि लागी, निरखि कै पछि-ताइ—६९६।


दीत
संज्ञा
पुं.
(सं. आदित्य)
सूर्य, रवि।


दीदा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दृष्टि।


दीदा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
देखादेखी।


दीदा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीदः)
आँख, नेत्र।
मुहा.- दीदा लगाना (जमना)— जी लगना, मन रमना।

दीदे का पानी ढल (में पानी रह) जाना— निर्लज्ज हो जाना। दीदा निकालना— (१) आंख फोड़ना। (२) क्रोध से देखना। दीदा पट्ट होना— (१) अंधा होना। (२) अक्ल कुंद होना। दीदा फाड़कर देखना— विस्मय या आश्चर्य से एकटक निहारना। दीदा मटकाना— आँख चमकाना।

दीदा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीदः)
ढिठाई, अनुचित साहस।


दीदाधोई
वि.
स्त्री.
(हिं. दीदा + धोना)
बेशर्म, निर्लज्ज।


दीदाफटी
वि.
स्त्री.
(हिं. दीदा + फटना)
बेशर्म, निर्लज्ज।


दीदार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
देखा-देखी, दर्शन।


दीदारु, दीदारू
वि.
(हिं. दीदार)
देखने योग्य।


दीदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दादा)
बड़ी बहन।


दीधिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सूर्य-चन्द्रमा आदि की किरण।


दीधिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उँगली |


दीन
वि.
(सं.)
दरिद्र, निर्धन।


दीन
वि.
(सं.)
दुखी, कातर, हीन दशावाला।
उ.—(क) सूर दीन प्रभु-प्रगट-बिरद सुनि अजहूँ दयाल पतत सिर नाई—१-६। (ख) सूरस्याम सुन्दर जौ सेवै क्यौं होवै गति दीन—१-४६। (ग) तुमहिं समान और नहिं दूजौ, काहि भजौं हौं दीन—१-१११।


दीन
वि.
(सं.)
उदास, खिन्न।


दीन
वि.
(सं.)
नम्र, विनीत।


दीन
क्रि. स.
(हिं. देना)
दी, दिया।
उ.—(क) पानि-ग्रहन रधुबर बर कीन्हयौ जनक-सुता सुख दीन—९-२६। (ख) जिन जो जाँच्यौ सोई दीन अस नँदराइ ढरे—१०-२४। (ग) षंडामर्क जो पूछन लाग्यौ तब यह उत्तर दीन—सारा. ११२। (घ) दीन मुक्ति निज पुर की ताकौं—सारा. २७३।


दीनदयाल, दीनदयालु
संज्ञा
पुं.
ईश्वर का एक नाम।


दीनदार
वि.
(अ. दीन + फ़. दार)
धार्मिक।


दीनदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
धर्म का आचरण।


दीनदुनिया, दीनदुना
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दीन + दुनिया )
लोक-परलोक।


दीननाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीनों के स्वामी।


दीननाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।
उ.—दीननाथ अब बारि तुम्हारी—१-११८।


दीननि
वि.
[सं. दीन + हिं. नि (प्रत्य.)]
दीनों को, दीनों पर।
उ.—जब जब दीननि कठिन परी। जानत हौं करुनामय जन कौं तब तब सुगम करी—१-१६।


दीनबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुखियों का सहायक।
उ.—दीन-बंधु हरि, भक्त -कृपानिधि, वेद-पुराननि गाए (हो)—१-७।


दीनबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।


दीनहिं
वि.
[हिं. दीन + हिं (प्रत्य.)]
दीन-दरिद्र को।
उ.—कह दाता जो द्रवै न दीनहिं, देखि दुखित ततकाल—१-१५९।


दीनहिं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया, प्रदान किया।


दीनानाथ
संज्ञा
पुं.
(सं. दीन + नाथ)
दीनों का स्वामी या रक्षक, दुखियों का पालक और सहायक।


दीनानाथ
संज्ञा
पुं.
(सं. दीन + नाथ)
ईश्वर के लिए एक संबोधन।
उ.—दीनानाथ दयाल मुगारि—७-२।


दीनार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोने का गहना।


दीनार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोने की मोहर।


दीनार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोने का एक प्राचीन सिक्का।


दीनी
क्रि. स.
(हिं. देना)
दी, प्रदान की।
उ.—(क) नर-देही दीनी सुमिरन कौं—१-११६। (ख) बकी जु गई घोष मैं छल करि, जसुदा की गति दीनी—१-१२२। (ग) बिभीषण कौ लंक दीनी—१-१७६। (घ) तिल-चाँवरी गोद करि दीनी फरिया दई फारि नव सारी—७०८।


दीनौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया, प्रदान किया।
उ.—पारथ बिमल बभुबाहन कौं सीस-खिलौना दीनौ—१-२९।
प्र.—मन दीनौ—मन लगाया, चित्त रमाया।
उ.—भाव-भत्कि कछु हृदय न उपजी, मन विषया मैं दीनौ—१-६५।


दीन्यौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया, प्रदान किया।


दीन्यौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
बंद किया, लगाया, रोका।
उ.—बड़े पतित पासंगहु नाही, अजामिल कौन बिचारौ। भाजे नरक नाम सुनि मेरौ, जम दीन्यौ हठि तैरौ—१-१३१।


दीन्हीं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दी, प्रदान की।
उ.—बिप्र सुदामा कौं निधि दीन्हीं—१-३६।


दीन्ही
क्रि. स.
(हिं. देना)
दी, प्रदान की।
उ.—असुर-जोनि ता ऊपर दीन्ही, धर्म-उछेद करायौ—१-१०४।


दीन्ही
क्रि. स.
(हिं. देना)
डाली, झोंक दी।
उ.—हरि की माया कोउ न जानै आँखि धूरि सी दीन्ही—९६४।।


दीन्हे
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिये रहता है।


दीन्हे
क्रि. स.
(हिं. देना)
बंद (रखता हे)।
उ.—कवै भपौनरक से प्रोसौ, दीन्हे रहत किवार—१-१४१।


दीन्हैं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिये, देने पर,
उ.—बिनु दीन्हैं ही देत सूर-प्रभु ऐसे हैं जदुनाथ-गुसाईं—१-३।


दीन्हौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया, प्रदान किया।
उ.—(क) बारह बरस बसुदेव देवकिहिं कंस महा दुख दीन्हौ—१-१५। (ख) निकसे खंभ-बीच तैं नरहरि, ताहि अभय पद दीन्हौ—१-१०४।


दीन्हौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
लगाया
उ.—अंजन दोउ दृग भरि दीन्हौ—१०-१८३।


दीन्ह्यौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया, प्रदान किया।
उ.—मागध हत्यौ, मुक्त नृप कीन्हें, मृतक बिप्र-सुत दीन्ह्यौ—१-१७।


दीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीपक, दीया।
उ.— धूप-नैवेद्य साजि कै, मंगल करै विचारि—३०-५०।


दीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक छंद।


दीप
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वीप)
द्वीप, टापू।
उ. — कंसहिं कमल पठाइहै, काली पठवै दीप—५८९।


दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीया, चिराग।
उ.— दीपक पीर न जानई (रे) पावक परत पतंग—१-३२५।


दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अर्थालङ्कार।


दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक ताल।


दीपक
वि.
प्रकाश करने या फैलानेवाला।
उ.—बासुदेव जादव कुल-दीपक बंदीजन बर भावत—२७२९।


दीपक
वि.
वेग या उमंग लानेवाला।


दीपक
वि.
बढ़ाने या वृद्धि करनेवाला।


दीपकजात
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीपक + जात=उत्पन्न)
काजल।
उ.— अलिहता रँग मिट्यौ अधरन लग्यौ दीपकजात—२१३०।


दीपकमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


दीपकमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपक अलंकार का एक भेद।


दीपकमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपक-पंक्ति।


दीपकलिका, दीपकली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीपकलिका)
दिये की लौ या टेम।


दीपकवृक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बड़ी दीयट जिसमें कई दीपक रखें जा सकें।


दीपकवृक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झाड़।


दीपकसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काजल, कज्जल।


दीपक ल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संध्याकाल जब दीप जलता है।


दीपकावृत्ति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीपक अंलकार का एक भेद।


दीपकिट्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काजल, कज्जल।


थ्यावस
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थेय)
ठहराव, स्थिरता।


थ्यावस
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थेय)
स्थायित्व।


थ्यावस
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थेय)
धैर्य, धीरता।


देवनागरी वर्णमाला का अठारहवाँ और तवर्ग का तीसरा व्यंजन; इसका उच्चारण स्थान दंतमूल है।


दंग
वि.
(फा.)
चकित, विस्मित।


दंग
संज्ञा
पुं.
(फा.)
भय, डर, घबराहट।
उ.—जब रथ साजि चढ़ौं रन सनमुख जीय न आनौं दंग। (तंक) राघव सैन समेत सँहारौं करौं रुधिरमय अंग—(पंक)—६-१३४।


दंगई
वि.
(हिं. दंगा)
दंगा या झगड़ा करनेवाला, उपद्रवी।


दंगई
वि.
(हिं. दंगा)
उग्र, प्रचंड।


दंगई
वि.
(हिं. दंगा)
लंबा-चौड़ा।


दंगई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दंगा)
दंगा करने का भाव, उपद्रव।


दीपकूपी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीए की बत्ती।


दीपत
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीप्ति)
कांति, ज्योति।
उ.—दधि-सुत दीपत तज मुरझानो दिनपति-सुत है भूषन हीन-सा. ९६।


दीपत
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीप्ति)
छटा, शोभा।
उ.— भू-सुत-सत्रु गेह में काडू दीपत द्वार दई —सा. ३१।


दीपत
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीप्ति)
कीर्ति।


दीपत
क्रि. अ.
(हिं. दीपना)
प्रकाशित होता है, चमकता है।


दीपत
क्रि. अ.
(हिं. दीपना)
शोभित है।
उ.— रामदूत दीपत नछत्र में पुरी धनद रूचि रचि तमहारी—सा.९८।


दीपत
वि.
चमकता हुआ, प्रकाश फैलाता हुआ।


दीपति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दीपना)
प्रकाशित होती है, चमकती है।
उ.— आज दीपति दिव्य दीपमालिका—८०९।


दीपदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पूजा का एक अंग जिसमें देवता के सामने दीपक जलाया जाता है।


दीपदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कार्तिक में राधादामोदर के लिए दीपक जलाने का कृत्य।


दीपदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक क्रिया जिसमें मरणासन्न के अथवा मृत व्यक्ति के हाथ से आटे के जलते हुए दीप का संकल्प कराया जाता है।
उ.— भस्म अंत तिल-अंजलि दीन्हीं देव बिमान चढ़ायौ। दिन दस लौं जल कुंभ साजि सुचि, दीपदान करवायौ—९-५०।


दीपदानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीप + हिं. दानी)
दीपक का समान-घी, बत्ती आदि—रखने की डिबिया।


दीपध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काजल, कज्जल।


दीपन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रकाश के लिए जलाने की क्रिया।


दीपन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बढ़ाने की क्रिया।


दीपन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वेग या उमंग को उत्तेजित करने की क्रिया।


दीपन
वि.
बढ़ाने या उत्तेजित करनेवाला।


दीपन
संज्ञा
पुं.
कुंकुंम, केसर।


दीपन
संज्ञा
पुं.
मंत्र-सिद्धि का एक संस्कार।


दीपना
क्रि. अ.
(सं. दीपन)
चमकना, जगमगाना।


दीपना
क्रि. स.
चमकाना, प्रकाशित करना।


दीपनीप
वि.
(सं.)
प्रकाशन के योग्य।


दीपनीप
वि.
(सं.)
उत्तेजन के योग्य।


दीपपादप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीवट।


दीपपादप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झाड़।


दीपमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
जलते हुए दीपकों की पंक्ति।


दीपमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
जली हुई बत्तियों का समूह।


दीपमालिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपकों की पंक्ति या समूह।


दीपमालिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिवाली।
उ.— आज दीपति दिव्य दीपमालिका—८०९।


दीपमालिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपदान या आरती के लिए जलायी गयी बत्तियों की पंक्ति।
उ.—दीपमालिका रचि-रचि साजत। पुहुपमाल मंडली बिराजत।


दीपमाली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीपमालिका)
दिवाली।


दीपवृक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीवट, दीपाधार।


दीपशत्रु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पतंग जो दीप को बुझा दे।


दीपशिखा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीप की लौ या टेम।


दीपशिखा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीपक का धुआँ या काजल।


दीपसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काजल, कज्जल।


दीपग्नि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीप की लौ की आँच।


दीपान्वता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दीवाली।


दीपवलि, दीपावली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीपावलि)
दीवाली।


दीपिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
छोटा दीप।
उ.—दोउ रूख लिये दीपिका मानो किये जात उजियारॆ—२१९०।


दीपिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक रागिनी जो प्रदोषकाल में गायी जाती है।


दीपित
वि.
(सं.)
प्रकाशित, जलता हुआ।


दीपित
वि.
(सं.)
चमकता या जगमगाता हुआ।


दीपित
वि.
(सं.)
उत्तेजित।


दीपै
क्रि. अ.
(हिं. दीपना)
चमकता है।


दीपै
संज्ञा
पुं.
[सं. द्विप, हिं. दीप + पै (प्रत्य.)]
द्वीपों-में।
उ. — तद्यपि भवन भाव नहिं ब्रज बिनु खोजौ दीपै सात—३३५१।


दीपोत्सव
संज्ञा
पुं.
(सं. दीप + उत्सव)
दिवाली।


दीप्त
वि.
(सं.)
जलता हुआ।


दीप्त
वि.
(सं.)
चमकता हुआ।


दीप्त
संज्ञा
पुं.
सोना, स्वर्ण।


दीप्त
संज्ञा
पुं.
सिंह।


दीप्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोना, स्वर्ण।


दीप्तकिरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दीप्तकिरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मदार।


दीप्तवर्ण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कार्त्तिकेय।


दिप्तवर्ण
वि.
जिसका शरीर कुन्दन सा चमकता हो।


दीप्तांग
संज्ञा
पुं.
(सं. दीप्त + अंग)
मोर, मयूर।


दीप्तांग
वि.
जिसका शरीर खूब चमकता हो।


दीप्तांशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दीप्तांशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मदार।


दीप्ता
वि.
स्त्री.
(सं.)
चमकती हुई, प्रकाशित।


दीप्ता
वि.
स्त्री.
(सं.)
सूर्य से प्रकाशित (दिशा)।


दीप्ताक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बिड़ाल, बिल्ली।


दीप्ताक्ष
वि.
जिसकी आँखें खूब चमकती हों।


दीप्ताग्नि
वि.
(सं. दीप्त + अग्नि)
जिसकी पाचन शक्ति तीव्र हो।


दीप्ताग्नि
वि.
(सं. दीप्त + अग्नि)
जिसको बहुत भूख लगी हो।


दीप्ताग्नि
संज्ञा
पुं.
अगस्त्य मुनि जिन्होंने समुद्र पी डाला था और वातापि राक्षस को पचा डाला था।


दीप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उजाला, प्रकाश।


दीप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चमक, प्रभा, द्युति।


दीप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कांति, शोभा, छवि।


दीप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ज्ञान का प्रकाश।


दीप्तिमान, दीप्तिमान्
वि.
(सं. दीप्तिमत्)
चमकता हुआ, प्रकाशित।


दीप्तिमान, दीप्तिमान्
वि.
(सं. दीप्तिमत्)
शोभा या कांति से युक्त।


दीप्तिमान, दीप्तिमान्
संज्ञा
पुं.
सत्यभामा से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक पुत्र।


दीप्तोपल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्यकान्त मणि।


दीप्य
वि.
(सं.)
जो जलाया जाने को हो।


दीप्य
वि.
(सं.)
जो जलाया जाने योग्य हो।


दीप्यमान
वि.
(सं.)
चमकता हुआ।


दीप्र
वि.
(सं.)
दीप्तिमान्, प्रकाशयुक्त।


दीबे
क्रि. स.
(हिं. देना)
देने (के लिए)।
उ.— (क) मंत्री काम कुमति दीबे कौं, क्रोध रहत प्रतिहारी —१-१४४। (ख) या छबि की पटतर दीबे कौं सुकवि कहा टकटोहै—१०-१५८।


दीबो, दीबौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
देना, प्रदान करना।


दीबो, दीबौ
संज्ञा
पुं.
देने या प्रदान करने की क्रिया।


दीमक
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
एक छोटा कीड़ा, बल्मीक।


दीयट
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीवट)
दीपक का आधार।


दीयमान
वि.
(सं.)
जो देने योग्य हो।


दीयमान
वि.
(सं.)
जो दिया जाने को हो।


दीया
संज्ञा
पुं.
(सं. दीपक, प्रा. दीअ)
दीप।
मुहा.- दीया जलना (जले)— संध्या होना (होने पर)।

दीया जलाना— दिवाला निकालना। दीया ठंढ़ा करना— दिया बुजाना। दिया ठंढा होना— दिया बुझना। किसी के घर का दीया ठंढ़ा होना— किसी कें वंश में पुत्र न रहने से घर में रौनक न रह जाना। दीया बढ़ाना— दीप बुझाना। दीया-बत्ती करना— रोशनी का सामान करना। दीया लेकर ढूंढना— बहुत छानबीन करना।

दीया
संज्ञा
पुं.
(सं. दीपक, प्रा. दीअ)
बत्ती जलाने का पात्र या बरतन।


दीयौ
क्रि. स.भूत
(सं. दान, हिं. देना)
दी, प्रदान की।


दीयौ
क्रि. स.भूत
(सं. दान, हिं. देना)
डाली, छोड़ी।
उ.—नृप कह्यौ, इंद्रपुरी की न इच्छा हमैं, रिषिनि तब पूरनाहुती दीयौ—४-११।


दीरघ
वि.
(सं. दीर्घ)
लंबा, बड़ा।
उ.— इन पै दीरघ धनुष चढ़ौ क्यौं, सखि, यह संसय मोर—९-२३।


दीरघ
वि.
(सं. दीर्घ)
गुरू या दीर्घ मात्रावाला।
उ. पाछिले कर पहिल दीरघ बहुरि लघुता बोर— सा. ११०।


दीरघता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीर्घता)
लंबाई, बड़ापन, (लघु का विपरीतार्थक), अधिकता
उ.— (क) तप अरू लघु-दीरघता सेवा, स्वामि-धर्म सब जगहिं सिखाए —९-१६८। (ख) लघु-दीरघता कछू न जानैं, कहुँ बछरा कहुं धेनु चराए —१०-३०९।


दीर्घ
वि.
(सं.)
लंबा।


दीर्घ
वि.
(सं.)
बड़ा।


दीर्घ
वि.
(सं.)
दीर्घ या गुरू मात्रावाला।


दीर्घ
संज्ञा
पुं.
गुरू या द्विमात्रिक वर्ण।


दीर्घकंठ
वि.
(सं.)
जिसकी गरदन लंबी हो।


दीर्घकंठ
संज्ञा
पुं.
बगुला।


दीर्घकंठ
संज्ञा
पुं.
एक दानव।


दंगल
संज्ञा
पुं.
(फा.)
पहलवानों की कुश्ती।


दंगल
संज्ञा
पुं.
(फा.)
कुश्ती लड़ने का अखाड़ा।
मुहा.- दंगल में उतरना- कुश्ती लड़ने को तैयार होना।


दंगल
संज्ञा
पुं.
(फा.)
समूह, दल, जमाव।


दंगल
संज्ञा
पुं.
(फा.)
मोटा गद्दा या तोशक।


दंगली
वि.
(फा. दंगल)
दंगल-सबंधी


दंगली
वि.
(फा. दंगल)
बहुत बड़ा।


दंगा
संज्ञा
पुं.
(फा. दंगल)
झगड़ा-फसाद, उपद्रव।


दंगा
संज्ञा
पुं.
(फा. दंगल)
शोर-गुल, गुल-गपाड़ा।


दंगैत, दँगैत
वि.
[हिं. दंगा + ऐत (प्रत्य.)]
उपद्रवी।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डंडा, सोंटा, लाठी।
उ.—(क) जानु-जंध त्रिभंग सुंदर, कलित कंचन-दंड—१-३०७। (ख) पिनाकहु के दंड लौं तन लहत बल सतराइ —३-३। (ग) बटुआ झोरी दंड अधारा इतने न को आराधै—३२८४।
मुहा.- दंड ग्रहण करना- संन्यास लेना।


दीर्घकंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मूली।


दीर्घकंधर
वि.
(सं.)
लंबी गरदनवाला।


दीर्घकंधर
संज्ञा
पुं.
बगुला पक्षी, बैंक।


दीर्घकर्ण
वि.
(सं.)
बड़े कानवाला।


दीर्घकाय
वि.
(सं.)
बड़े डील-डौल का।


दीर्घकेश
वि.
(सं.)
लंबे लंबे बालवाला।


दीर्घगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऊँट (जो लंबे डग रखता है)।


दीर्घग्रीव
वि.
(सं.)
लबी गरदनवाला


दीर्घग्रीव
संज्ञा
पुं.
नील कौंच या सारस पक्षी।


दीर्घघाटिका
वि.
(सं.)
जिसकी गरदन लंबी हो।


दीर्घघाटिका
संज्ञा
पुं.
ऊँट।


दीर्घच्छद
वि.
(सं.)
जिसके लंबे-लंबे पत्ते हों।


दीर्घच्छद
संज्ञा
पुं.
ईख, ऊख।


दीर्घजंघ
वि.
(सं.)
लंबी-लंबी टाँगोंवाला।


दीर्घजंघ
संज्ञा
पुं.
बक, बगुल।


दीर्घजंघ
संज्ञा
पुं.
ऊँट।


दीर्घजिह्व
वि.
(सं.)
लंबी जीभवाला।


दीर्घजिह्व
संज्ञा
पुं.
सर्प।


दीर्घजिह्व
संज्ञा
पुं.
दानव।


दीर्घजिह्वा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक राक्षसी जो विरोचन की पुत्री थी और जिसे इंद्र ने मारा था।


दीर्घजीवी
वि.
(सं. दीर्घजीविन्)
बहुत दिन जीनेवाला।


दीर्घतपा
वि.
(सं. दीर्घतपस्)
बहुत दिन तप करने वाला।


दीर्घतमा
संज्ञा
पुं.
(सं. दीर्घतमस्)
एक ऋषि जिनके रचे मंत्र ऋग्वेद के पहले मंडल में हैं।


दीर्घता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लंबाई।


दीर्घता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लंबे होने की भावना।


दीर्घदर्शिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूर तक सोचने की क्रिया, भावना या क्षमता, दूरदर्शिता।


दीर्घदर्शी
वि.
(सं. दीर्घर्शिन्)
दूर तक की बात सोचनेवाला, दूरदर्शी।


दीर्घदर्शी
वि.
(सं. दीर्घर्शिन्)
विचारवान्।


दीर्घदृष्टि
वि.
(सं.)
जो दूर तक देख सके।


दीर्घदृष्टि
वि.
(सं.)
जो दूर तक सोच सके।


दीर्घदृष्टि
संज्ञा
पुं.
गीध, जो दूर तर देखता है।


दीर्घनाद
वि.
(सं.)
जिससे जोर का शब्द निकले


दीर्घनाद
संज्ञा
पुं.
शंख।


दीर्घनिद्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मृत्यु, मौत।


दीर्घनिश्वास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लंबी साँस जो दुख-शोक में ली जाती है।


दीर्घपर्ण
वि.
(सं.)
जिसके पत्ते लम्बे हों।


दीर्घपाद
वि.
(सं.)
लम्बी टाँगोंवाला।


दीर्घपाद
संज्ञा
पुं.
कंक पक्षी।


दीर्घपाद
संज्ञा
पुं.
सारस।


दीर्घपृष्ठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्प, साँप।


दीर्घप्रज्ञ
वि.
(सं.)
दूरदर्शी, दीर्घदर्शी।


दीर्घबाहु
वि.
(सं.)
लंम्बी भुजाओंवाला।


दीर्घमारुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी।


दीर्घयज्ञ
वि.
(सं.)
बहुत समय तक यज्ञ करनेवाला।


दीर्घरद
वि.
(सं.)
लंबे-लंबे दाँतवाला।


दीर्घरद
संज्ञा
पुं.
सुअर, शूकर।


दीर्घरसन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्प, साँप।


दीर्घरोमा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भालू, रीछ।


दीर्घलोचन
वि.
(सं.)
बड़ी-बड़ी आँखवाला |


दीर्घवक्तृ
वि.
(सं.)
लम्बे मुँहवाला।


दीर्घवक्तृ
संज्ञा
पुं.
हाथी, गज।


दीर्घश्रुत
वि.
(सं.)
जो दूर तक सुनायी दे।


दीर्घश्रुत
वि.
(सं.)
जिसका नाम दूर-दूर तक फैला हो।


दीर्घसूत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत दिनों में समाप्त होने-वाला एक यज्ञ।


दीर्घसूत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो यह यज्ञ करे।


दीर्घसूत्रता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देर से काम करने का भाव।


दीर्घसूत्री
वि.
(सं. दीर्घसूत्रिन्)
देर से काम करनेवाला।


दीर्घायु
वि.
(सं.)
बहुत दिन जानेवाला।


दीर्घायु
संज्ञा
पुं.
कौआ, काक।


दीर्घायु
संज्ञा
पुं.
मार्कन्डेय |


दीवान
संज्ञा
पुं.
(अ.)
राजसभा।


दीवान
संज्ञा
पुं.
(अ.)
गजल-संग्रह।


दीवानआम
संज्ञा
पुं.
(अ.)
ऐसा दरबार जिसमें राजा से साधारण लोग भी मिल सकें।


दीवानआम
संज्ञा
पुं.
(अ.)
ऐसे दरबार का स्थान।


दीवानखाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बड़े आदमियों के घर की बैठक।


दीवानखास
संज्ञा
पुं.
(अ. दीवान + फा. खास)
ऐसा दरबार जिसमें राजा चुने हुए व्यक्तियों के साथ बैठता है।


दीवानखास
संज्ञा
पुं.
(अ. दीवान + फा. खास)
ऐसे दरबार का स्थान।


दीवाना
वि.
(फ़ा.)
पागल, तिड़ी।
मुहा.- किसी के पीछे दीवाना होना— उसको प्राप्ति के लिए पागल या बेचैन होना।


दीवानापना, दीवानापना
संज्ञा
पुं.
[फ़ा. दीवाना + हिं. पन (प्रत्य.)]
पागलपन, सिड़ीपन।


दीवानी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दीवान)
दीवान का पद।


दीवानी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दीवान)
धन-व्यवहार-संबंधी न्यायालय।


दीवानी
वि.
स्त्री.
(फ़ा. दीवाना)
पगली, बावली।


दीवार, दीवाल
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
पत्थर, ईंट आदि से बना ऊँचा परदा या घेंरा, भीत।


दीवार, दीवाल
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
किसी वस्तु का उठा हुआ घेरा।


दीवारगीर, दीवारगीरी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दिया आदि का आधार जो दीवार में लगाया जाता है।


दीवाली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीपावली)
कार्तिकी अमावास्या को मनाया जानेंवाला हिंदुओं का एक उत्सव जिसमें लक्ष्मी का पूजन करके दीपक जलायें जाते हैं।


दीवि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीलकंठ नामक पक्षी।


दीवी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दीया)
दीवट दीपाधार।


दीस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीश)
दिशा, ओर, तरफ।
उ.— गरजत रहत मत गज चहुँ दिसि, छत्र-धुजा चहुँ दीस —९-८५।


दीस
क्रि. अ.
(हिं. दिखना)
दिखायी पड़ता है।


दीर्घा
वि.
(सं.)
बड़े मुँहवाला।


दीर्घा
संज्ञा
पुं.
हाथी।


दीर्घा
संज्ञा
पुं.
शिव का एक अनुचर।


दीर्घाहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्रीष्म ऋतु, जब दिन बड़े होते हैं।


दीर्घिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बावली, छोटा तालाब।


दीर्ण
वि.
(सं.)
फटा या दरका हुआ।


दीवट
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दीपस्थ, प्रा. दीवट्ठ)
दीपकधार।


दीवला
संज्ञा
पुं.
[हिं. दीवा + ला (प्रत्य.)]
दीया, दीप।


दीवा
संज्ञा
पुं.
(सं. दीपक)
दीया, दीप।


दीवान
संज्ञा
पुं.
(अ.)
राज्य-प्रबन्धकर्त्ता मंत्री, प्रधान।
उ. —भक्त ध्रुव कौं अटल पदवी, राम के दीवान—१-२३५।


दीसत
क्रि. स.
(हिं. दीखना)
दिखायी देते हैं।
उ.— (क) जहाँ तहाँ दीसत कपि करत राम-आन—९-९६। (ख) उड़त धूरि, धुँआँ धुर दीसत सूल सकल जलधार—१० उ. २।


दीसति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दीसना)
दिखायी देती है।
उ.— (क) वै लखि आये राम रजा। जल कैं निकट आइ ठाढ़े भये दीसति बिमल ध्वजा—। (ख) उज्ज्वल असित दीसति हैं दुँहु नैननि-कोर—।


दीसति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दीसना)
जान पड़ती है, मालूम होती है।
उ.— राजा कह्यौ, सप्त दिन माहिं। सिद्धि होत कछु दीसति नाहिं—१-३४१।


दीसना
क्रि. अ.
(सं. दृश् = देखना)
दिखायी देना।


दीह
वि.
(सं. दीर्घ)
लम्बा, बड़ा।


दुंका
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तोक)
अन्न का दाना या कण।


दुँगरी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
एक मोटा कपड़ा।


दुंद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्धन्द्ध)
दो पक्षों में होनेवाला जगड़ा।


दुंद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्धन्द्ध)
उपद्रव, उधम।
उ.— कहा करौं हरिबहुत खिझाई।¨¨¨¨¨। भोर होत उरहन लै आबहिं, ब्रज की बधू अनेक। फिरत जहाँ तहै दुंद मचावत घर न रहत छन एक—३८८।


दुंद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्धन्द्ध)
जोड़ा, युग्म।


थोरि
वि.
स्त्री.
(हिं. पुं थोड़ा)
छोटी-सी, साधारण।
उ. — अरून अधरनि दसन झाई कहौं उपमा थोरि। नील पुट बिच मनौ मोती धरे बंदन बोरि-१०-२२५।


थोरिक
वि.
(हिं. थोड़ा + एक)
तनिक-सा, थोड़ा-सा।


थोरी
वि.
स्त्री.
(हिं. थोड़ा)
थोड़ी, कम।
उ.— राज-पाट सिंहासन बैठो, नील पदुम हूँ सों कहै थोरी।¨¨¨¨। हस्ती दॆखि बहुत मन-गर्वित, ता मूरख की मति है थोरी — १३०३।
मुहा.- जा कछु कह्या से थोरी (१) ऐसा (अनुचित कार्य किया है कि चाहे जितना बुरा भला या उचित अनुचित कहा जाय, कम है। (२) बहुत-कुछ कहा जा सकता है। उ.— सूरदास प्रभु अतुलित महिमा जो कछु कह्यौ सो थोरी— १० उ.-५२।२. मामूली, साधारण सी, तुच्छ। उ.— बौट न लेहु सबै चाहत है, यहै बात है थारी— १०-२६७।


थोरी
वि.
स्त्री.
(हिं. थोड़ा)
मामूली, साधारण सी, तुच्छ


थोरी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
एक हीन अनार्य जाति।


थोरे
वि.
(हिं. थोड़ा)
थोड़े, कम।
उ. — (क) थोरे जीवन भयो भारौ — १-१५२। (ख) की यहि गाउँ बसत की अनतहिं दिननि बहुत की थोरे — १२६०।


थोरेक
वि.
(हि. थोड़ा+एक)
थोड़ा ही, तनिक सा।
उ. — थोरेक ही बल सौं छिन भीतर दीनौ ताहि गिराइ — ४१०।


थोरैं
वि. सवि.
(हिं. थोड़ा)
थोड़े (के ही लिए), जरा से (के लिए)।
उ. — सुनहु महरि ऐसी न बुझिए , सुत बाँघति माखन दधि थोरैं — ३४४।


थोरो, थोरौ
वि.
(हिं. थोड़ा)
थोड़े, कम, अल्प।
उ. — औगुन और बहुत हैं मो मैं, कह्यौ सूर मैं थोरौ - १-१८६।


थौंद
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. तोंद)
तोंद।


दुंदुह
संज्ञा
पुं.
(सं. डुंडभ)
पानी का साँप, डेंड़हा।


दुंबुर
संज्ञा
पुं.
(सं. उदुंबर)
गूलर की जाति का एक पेड़।


दुःख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट, क्लेश, तकलीफ।


दुःख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संकट, विपत्ति, आपत्ति


दुःख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मानसिक कष्ट, खेद।


दुःख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीड़ा, व्यथा।


दुःख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रोग, बीमारी।


दुःखकर
वि.
(सं.)
कष्ट पहुंचानेवाला।


दुःखग्राम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार।


दुःखजीवी
वि.
(सं.)
कष्ट से जीवन बितानेवाला।


दुंद
संज्ञा
पुं.
(सं. दुंदुभि)
नगाड़ा।


दुंदर, दुंदरा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वंद्वं)
उलझन, झंझट, जंजाल।
उ.— देख्यौ भरत तरून अति सुन्दर। थूल सरीर रहित सब दुंदर—५-३।


दुंदरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुंद)
हलचल, उत्पात।
उ.— जुरी ब्रज सुंदरी दसन छबि कुंदरी कामतनु दुंदरी करनहरी—१२६०।


दुंदुभ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगाड़ा, घाँसा।


दुंदुभि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नगाड़ा, घाँसा।
उ.— हरि कह्यौ, मम हुदय माहिं तू रहि सदा, सुरनि मिलि देव-दुंदभि बजाई—८-८।


दुंदुभि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष


दुंदुभि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वरूण।


दुंदुभि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राक्षस जिसे मारकर ऋष्यमूक पर्वत पर फेंक देने पर बालि को वहाँ न जाने का शाप मिला था।


दुंदुभिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का कीड़ा।


दुंदुभी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुंदुभि)
नगाड़ा, घाँसा।


दुःखलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार, जगत।


दुःखसाध्य
वि.
(सं.)
जिस (काम) का करना कठिन या मुश्किल हो।


दुःखांत
वि.
(सं.)
जिसके अंत में कष्ट मिलें।


दुःखांत
वि.
(सं.)
जिसके अंत में कष्ट या दुख का वर्णन हो।


दुःखांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट का अंत।


दुःखांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत कष्ट।


दुःखायतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार, जगत।


दुःखार्त्त
वि.
(सं.)
कष्ट से व्याकुल।


दुःखित
वि.
(सं.)
जिसे कष्ट या तकलीफ हो।


दुःखिनी
वि.
(सं.)
जिस (स्त्री) पर दुख पड़ा हो।


दुःखी
वि.
पुं.
(सं.)
जो कष्ट में हो।


दुःशकुन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐसा लक्षण या दर्शन जिसका फल बुरा समझा जाता हो।


दुःशला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धुतराष्ट्र की पुत्री जो जयद्रथ की व्याही था।


दुःशासन
वि.
(सं.)
जो किसी का दबाव न मानें।


दुःशासन
संज्ञा
पुं.
धृतराष्ट्र का एक पुत्र जो दुर्योधन का प्रिय पात्र और मंत्री था।


दुःशील
वि.
(सं.)
बुरे स्वभाववाला।


दुःशीलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरा स्वभाव।


दुःशीलता
वि.
(सं.)
जिस (व्यक्ति) का सुधार करना कठिन हो।


दुःशीलता
वि.
(सं.)
जिस (धातु आदि) का शोधना कठिन हो।


दुःश्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काव्य का एक दोष जो उसमें कर्णकटु वर्ण आने से माना जाता है।


दुःखत्रय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तीन प्रकार के दुख।


दुःखद
वि.
(सं.)
कष्ट पहुँचानेवाला।


दुःखदग्ध
वि.
(सं.)
दुख से पीड़ित, बहुत दुखी।


दुःखदाता
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःखदातृ)
दुख देनेवाला।


दुःखदायक
वि.
(सं.)
जिससे दुख मिले।


दुःखयायी
वि.
(सं. दुःखदायिन्)
दुख देनेवाला।


दुःखप्रद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट देनेवाला।


दुःखबहुल
वि.
(सं.)
दुख या कष्ट से युक्त।


दुःखमय
वि.
(सं.)
कष्ट-पूर्ण, क्लेश-युक्त।


दुःखलभ्य
वि.
(सं.)
जो कष्ट से प्राप्त हो सके।


दुःसाहस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यर्थ का या निरर्थक साहस जिससे कुछ लाभ न हो।


दुःसाहस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुचित साहस, ढिठाई, धृष्टता।


दुःसाहसिक
वि.
(सं.)
जिस (कार्य) का करना निष्फल या अनुचित हो।


दुःसाहसी
वि.
(सं.)
निष्फल या अनुचित साहस के काम करनेवाला।


दुःस्थ
वि.
(सं.)
जिसकी स्थिति अच्छी न हो, दुर्दशा में पड़ा हुआ।


दुःस्थ
वि.
(सं.)
दरिद्र, निर्धन


दुःस्थ
वि.
(सं.)
मूर्ख, बुद्धिहीन, मूढ़।


दुःस्थिति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या कष्ट की अवस्था।


दुःस्पर्श
वि.
(सं.)
जो छूने लायक न हो।


दुःस्पर्श
वि.
(सं.)
जिसका छूना या पाना कठिन हो।


दुःषम
वि.
(सं.)
निंदनीय।


दुःषेध
वि.
(सं.)
जिसका दूर करना कठिन हो।


दुःसंकल्प
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खोटा या अनुचित विचार।


दुःसंकल्प
वि.
बुरा या अनुचित विचार रखनेवाला।


दुःसंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरे लोगों का साथ, कुसंग।


दुःसंधान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काव्य का एक रस जो बेमेल बातों को सुनकर होता है।


दुःसह
वि.
(सं.)
जो कष्ट से सहा जाय।


दुःसाधी
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःसाधिन)
द्वारपाल।


दुःसाध्य
वि.
(सं.)
जो कष्ट से किया जा सके।


दुःसाध्य
वि.
(सं.)
जिसका उपाय या उपचार करना कठिन हो।


दुःस्पर्श
संज्ञा
स्त्री.
आकाशगंगा।


दुःस्वप्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐसा स्वप्न जिसका फल बुरा हो।


दुःस्वभाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा स्वभाव।


दुःस्वभाव
वि.
बुरे स्वभाववाला।


दु
वि.
(हिं. दो)
‘दो’ का संक्षिप्त रूप जो समास-रचना के काम आता है।


दुअन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुवन)
दुष्ट मनुष्य।


दुअन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुवन)
शत्रु।


दुअन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुवन)
राक्षस, दैत्य।


दुअरवा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार या दरवाजा।


दुअरिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. द्वार)
छोटा द्वार या दरवाजा।


दुआ
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
प्रार्थना।


दुआ
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
आशीर्वाद।


दुआ
संज्ञा
पुं.
(हिं.दो)
गले का एक गहना।


दुआदस
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वादश))
बारह।


दुआब, दुआबा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दुआबा)
दो नदियों के बीच का उपजाऊ भू-भाग।


दुआर, दुआरा
संज्ञा
पुं.
(सं.द्वार)
द्वार, दरवाजा।
उ.— (क) मानिनि बार बसन उघार। संभु कोप दुआर आयो आद को तनु मार —सा. ८९। (ख) देखि बदन बिथ-कित भईं बैठी हैं सिंह-दुआर —२४४३।


दुआर-बैरी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार + हिं. बैरी)
द्वार का शत्रु, कपाट या किवाड़।
उ.— छूटे दिन दुआर के बैरी लटकत सो न सम्हार-सा. ८३।


दुआरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुआर)
छोटा दरवाजा।


दुइ, दुई
वि.
(हिं. दो)
दो।
उ.— दुइ मृनाल मातुल उभे द्वै कदली खंभ बिन पात-सा. उ. ३।
मुहा.- दुइ नाव पाँव धरि- दो नावों पर पैर रखकर, दो ऐसे पक्षों का आश्रय लेकर जो साथ-साथ न रह सके, न हो सकें। उ.— दुई तरंग दुइ नाव पाँव धरि ते कहि कवन न मूठे।


दुइज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीय, पा. दुईज)
दूज, द्वितीय।


दुकड़ी
वि.
(हिं. दो + कड़ी)
जिसमें दो कड़ीयाँ हों।


दुकना
क्रि. अ.
(देश.)
लुकना, छिपना।


दुकान
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
माल बिकने की जगह, हट्ट।
मुहा.- दुकान उठाना— दूकान बंद करना।

दुकान बढ़ाना— दूकान बंद करना। दुकान लगाना— (१) दूकान का सामान आकर्षक ढंग से सजाना। (२) बहुत सी चीज इधर-उधर फैलाना।

दुकानदार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दूकान का मालिक।


दुकानदार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
वह जो ढोंग या तिकड़म से पैसा बनाता हो।


दुकानदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दूकान की बिक्री का काम।


दुकानदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
तिकड़म से धन पैदा करने का काम।


दुकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + आकार)
दो रेखाऐ।
उ.—परयौ जो रेख ललाट और मुख भेंटि दुकार बनायौ—३३८८।


दुकाल
संज्ञा
पुं.
(सं. दुष्काल)
अकाल, दुर्भिक्ष।


दुकुल्ली
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
चमड़ामढ़ा एक बाजा।


थाँग
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थान या हिं. थान)
खोयी हुई चीज की खोज, सुराग।


थाँग
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थान या हिं. थान)
गुप्त भेद या पता।


थाँगी
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाँग)
चोरी का माल लेने या रखनेवाला।


थाँगी
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाँग)
चोरों का भेद जाननेवाला।


थाँगी
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाँग)
गुप्तचर, जासूस।


थाँगी
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाँग)
चोरों का नायक।


थाँभ
संज्ञा
पुं.
(सं. स्तंभ)
खंभा, थूनी, चाँड़, टेक।


थाँभना
क्रि. स.
(हिं. थामना)
रोकना, लेना, थामना।


थाँवला
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाला)
पौधे का थाला।


था
क्रि. अ.
(सं. स्था)
‘है’ का भूतकाल, रहा।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक योग का नाम।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चार हाथ की नाप


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इक्ष्वाकु राजा का एक पुत्र।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यम।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक घड़ी या चौबिस मिनट का समय।
उ. -- एक दंड दूदसी सुनायी - १००१।


दंडक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डंडा।


दंडक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड देनेवाला।


दंडक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
२६ से अधिक वर्णों का छंद।


दंडक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इक्ष्वाकु राजा का एक पुत्र जो शुक्राचार्य का शिष्य था और गुरु-कन्या का कौमार्य भंग करने के कारण जो अपने राज्य-सहित भस्म होगया थाः


दंडक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंडकवन।


दुइज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
दूज का चाँद।


दुऔ
वि.
(हिं. दोनों
दोनों।


दुकड़हा
वि.
[(हिं. दुकड़ा + हा (प्रप्य.)]
जिसका मूल्य एक दुकड़ा हो।


दुकड़हा
वि.
[(हिं. दुकड़ा + हा (प्रप्य.)]
बहुत मामूली या तुच्छ।


दुकड़हा
वि.
[(हिं. दुकड़ा + हा (प्रप्य.)]
नीच, कमीना।


दुकड़ा
संज्ञा
पुं.
[सं. द्विक + ड़ा (प्रप्य.)]
दो का जोड़ा।


दुकड़ा
संज्ञा
पुं.
[सं. द्विक + ड़ा (प्रप्य.)]
दो दमड़ी, छदाम।


दुकड़ी
वि.
स्त्री.
(हिं. दुकड़ा)
दो-दो (चीजों) का।


दुकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
ताश की दुग्गी।


दुकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
दो घोड़ों की बग्घी या गाड़ी।


दुकूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूत या तीसी के रेशे से बना कपड़ा।


दुकूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महीन कपड़ा।


दुकूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वस्त्र, कपड़ा।


दुकूल-कोट
संज्ञा
पुं.
(सं. दुकुल + कोट)
वस्त्र का समूह, कपड़े का ढेर।
उ.— रिपु कच गहत द्रुपद-तनया जब सरन सरन कहि भाषी। बढ़ौ दुकूल-कोट अंबर लौं सभा माँझ पति राखी—१-२७।


दुकेला
वि.
[हिं. दुक्का + एला (प्रत्य.)]
जिसके साथ की दूसरा भी हो।
अकेला-दुकेला-जिसके साथ कोई न हो या एक ही दो मामूली आदमी हों।


दुकेला
यौं
अकेला-दुकेला-जिसके साथ कोई न हो या एक ही दो मामूली आदमी हों।


दुकेले
क्रि. वि.
(हिं. दुकेला)
किसी को साथ लिये हुए।


दुकेले
यौं
अकेले-दुकेले—बिना किसी को साथ लिये या एक ही दो आदमियों के साथ।


दुक्कड़
संज्ञा
पुं.
(हिं, दो+कूँड़)
एक बाजा।


दुक्का
वि.
(सं. द्विक्)
जो किसी (व्यक्ति) के साथ हो।


दुक्का
वि.
(सं. द्विक्)
जो दो (वस्तुऐ) साथ हों।


दुक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विक्)
ताश की दुग्गी।


दुक्की
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुवकी)
ताश का एकपत्ता जिसमें दो बूटियाँ हों।


दुखंडा
वि.
(हिं.दो + खंड)
जिसमें दो खंड हों।


दुखंत
संज्ञा
पुं.
(सं. दुष्यंत)
राजा दुष्यंत।


दुख
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख)
कष्ट, क्लेश।
उ.—बारह बरस बसुदेव-देवकहिं कंस महा दुख दीन्हौ—१-१५।


दुख
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख)
संकट, आपत्ति, विपत्ति।


दुख
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख)
मानसिक कष्ट।


दुख
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख)
पीड़ा, व्यथा।


दुख
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख)
रोग।


दुखड़ा
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुख + ड़ा (प्रत्य.)]
दुख की कथा या चर्चा।
मुहा.- दुखड़ा रोना— दुख का हाल कहना।


दुखड़ा
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुख + ड़ा (प्रत्य.)]
कष्ट, मसीबत, विपत्ति।
मुहा.- (स्त्री पर) दुखड़ा पड़ना— (स्त्री का) विधवा हो जाना।

दुखड़ा पीटना (भरना)— बहुत कष्ट भोगना।

दुखता
वि.
[हिं. दुख + ता]
पीड़ित, दर्द करता हआ।


दुखती
वि.
स्त्री.
(हिं.दुखता)
दर्द करती हुई, पीड़ित।


दुखती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं.दुखता)
उठी हुई (आँख)।


दुखद
वि.
(सं. दुःख + द)
कष्ट, देनेवाला।


दुखदाइ, दुखदाई
वि.
(सं. दुःखदायिन्, हिं. दुखदायी)
दुख देनेवाला। जिससे कष्ट मिले।
उ.—(क) कह्यौ वृषभ सौं, को दुखदाइ? तासु नाम मोहिं देहु बताइ—१-२९०। (ख) कोउ कहै सत्रु होइ दुखदाई—१-२९०।


दुखदानि, दुखदानी
वि.
[सं. दुःख + दान +ई (प्रत्य.)]
दुखदाई, दुखद।
उ.—(क) भ्रम्यौ बहुत लघु धाम बिलोकत छन-भंगुर दुख दानी—१-८७। (ख) दरस-मलीन, दीन दुरबल अति, तिनकौं मैं दुख दानी। ऐसौ सूरदास जन हरि कौ, सब अधमनि मैं मानी—१-१२९।


दुखदाहक
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख + दाहक)
दुख दूर करनेवाले, क्लेश मिटानेवाले।
उ.— सूरदास सठ तातैं हरि भजि, आरत के दुख-दाहक—१-१९।


दुखदुंद
संज्ञा
पुं.
(सं. दुख + द्वंद्वं)
दुख और आपत्ति।
उ.—छन महँ सकल निसाचर मारे। हरे सकल दुख-दुंद हमारे।


दुखना
क्रि. अ.
(सं. दुःख)
(किसी अंग का) दर्द करना।


दुखनि
संज्ञा
पुं. सवि.
[सं. दुःख + नि (प्रत्य.)]
दुखों से।
उ.— जिहिं जिहिं जोनि भ्रम्यौ संकट-बस, सोइ-सोइ दुखनि भरि—१-८१।


दुखनी
वि.
(हिं. दुख + नी)
दुख माननेवाली।


दुखनी
वि.
(हिं. दुख + नी)
बहुत दुखनेवाली।


दुख-पुंज
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख +पुंज)
कष्ट-समूह, अनेक प्रकार के दुख, दुख की अधिकता, अधिक दुख।
उ.—मैं अज्ञान कछू नहिं समुझयौ, परि दुख-पुंज सह्यौ—१-४६।


दुखरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुखड़ा)
दुख की कथा या चर्चा।


दुखवना
क्रि. स.
(हिं. दुखना)
पीड़ा या कष्ट देना।


दुख-सागर
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःख + सागर)
दुख का समुद्र, अथाह समुद्र के समान महान दुख, महान क्लेश।


दुखहाया
वि.
[हिं. दुख + हाया (प्रत्य.)]
बहुत दुखी।


दुखाना
क्रि. स.
(सं. दुःख)
पीड़ा या कष्ट देना।
मुहा.- जी दुखाना— मानसिक कष्ट देना।


दुखाना
क्रि. स.
(सं. दुःख)
किसी पीड़ित या पके हुए अंग को छू देना।


दुखारा
वि.
[हिं. दुख + आर (प्रत्य.)]
दुखी, पीड़ित।


दुखारि-दुखारी
वि.
[हिं. दुखारी=दुख + आर (प्रत्य.)]
दुखी, व्यथित, खिन्न।
उ.—कुलिसहुँ तैं कठिन छतिया चितै री तेरी अजहुँ द्रवति जो न देखति दुखारि—३६१।


दुखारे, दुखारो
वि.
[हिं. दुख + आर (प्रत्य.)]
दुखी, पीड़ित।
उ.— (क) सूरदास जम कंठ गहे तैं, निकसत प्रान दुखारे—१-३३४। (ख) इती दूर स्त्रम कियो राज द्विज भए दुखारे—१० उ. ८।


दुखित
वि.
(सं. दुःखित)
पीड़ित, क्लेशित।
उ.—(क) रसना द्विज दलि दुखित होत बहु, तउ रिस कहा करै—१-११७। (ख) कुरूच्छेत्र मैं पुनि जब आयौ। गाइ बृषभ तहाँ दुखित पायौ—१-२९०। (ग) जननि दुखित करि इनहिं मैं लै चल्यौ भई ब्याकुल सबै घोष नारी—१५५१।


दुखिया
वि.
[हिं. दुख + इया (प्रत्य.)]
दुखी, पीड़ित।
उ.—पाऊँ कहाँ खिलावन कौ सुख, मैं दुखिया, दुख कोखि जरी—१०-८०।


दुखियारा
वि.
(हिं. दुखिया)
जो दुख में पड़ा हो, दुखी।


दुखियारा
वि.
(हिं. दुखिया)
जिसे शारीरिक कष्ट हो, रोगी।


दुखियारी
वि.
स्त्री.
(हिं. दुखियारी)
दुःखिनी।


दुखियारी
वि.
स्त्री.
(हिं. दुखियारी)
रोगिणी।


दुखी
वि.
(सं. दुःखित, दुःखी)
जो दुख या कष्ट में हो।


दुखी
वि.
(सं. दुःखित, दुःखी)
जो खिन्न या उदास हो।


दुखी
वि.
(सं. दुःखित, दुःखी)
रोगी।


दुखीला
वि.
[(हिं. दुख + ईला (प्रत्य.)]
दुख अनुभव करने या माननेवाला (स्वभाव)।


दुखीली
वि.
स्त्री.
(हिं. दुखिला)
दुख, पीड़ा या कष्ट अनुभव करने की प्रकृति।


दुखौहाँ
वि.
[हिं. दुख + औहाँ (प्रत्य.)]
दुख देनेवाला।


दुखौहीं
वि.
स्त्री.
(हिं. दुखौहाँ)
दुखदायिनी।


दुग
वि.
(सं. द्विक)
दो।


दुगई
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
ओसारा, बरामदा।


दुगदुगी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धुकधुकी)
धुकधुकी।
मुहा.- दुगदुगी में दम— मरने के समीप।


दुगदुगी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धुकधुकी)
गले से छाती तक लटकनेवाला एक गहना।


दुगन, दुगना
वि.
(सं. द्विगुण, हिं. दुगना)
दूना।


दुगाड़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + गाड़)
दोहरी बंदूक या गोली।


दुगासरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्ग + आश्रय)
दुर्ग के समीप या नीचे बसा हुआ गाँव।


दुगुण, दुगुन
वि.
(हिं. दुगना)
दूना, द्विगुण।


दुग्ग
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्ग)
किला, दुर्ग, कोट।


दुग्ध
वि.
(सं.)
दुहा हआ।


दुग्ध
वि.
(सं.)
भरा हआ।


दुग्ध
संज्ञा
पुं.
दूध।


दुग्धकूपिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक पकवान।


दुग्धतालीय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूध का फेन।


दुग्धतालीय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूध की मलाई।


दुग्धफेन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूध का फेन।


दुग्धफेन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक पौधा।


दुग्धबीज्ञा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ज्वार, जुन्हरी।


दुग्धसागर, दुग्धसिंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुराणों के अनुसार सात समुद्रों में से एक, क्षीरसमुद्र, क्षीरसागर।
उ.— स्वास उदर उससित यों मानौ दुग्ध-सिंधु छवि पावै —१०-६५।


दुग्धाब्धि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
क्षीरसागर।


दुग्धाब्धितनया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लक्ष्मी।


दुग्धी
वि.
(सं. दुग्धिन्)
जिसमें दूध हो।


दुघड़िया
वि.
(हिं. दो + घड़ी)
दो घड़ी का।


दुघड़िया मुहूर्त्त
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + घड़ी + सं. मुहुर्त्त)
दो-दो घड़ियों का निकाला हुआ महूर्त।


दुघरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + घड़ी)
दुघड़िया मुहूर्त।


दुचंद
वि.
(फ़ा. दोचंद)
दूना, दुगना।


दुचल्ला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + चाल)
छत जो दोनों ओर को ढालू हो।


दुचित
वि.
(हिं. दो + चित्त)
जो दुबिधा में हो, अस्थिर चित्त।


दुचित
वि.
(हिं. दो + चित्त)
चिंतित, चिंता-ग्रसित।


दुचितई, दुचिताई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुचित)
दुबिधा, चित्त की अस्थिरता।
उ.— साँची कहहु देख स्त्रवनन सुख छाँढ़हु छिआ कुटिल दुचिताई—।


दुचितई, दुचिताई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुचित)
खटका, आशंका, चिंता।


दुचित्ता
वि.
(हिं. दो + चित्त)
जो दुबिधा में हो, अस्थिर चित्त।


दुचित्ता
वि.
(हिं. दो + चित्त)
संदेह में पड़ा हुआ।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दड के आकार की कोई चीज।
उ.—देखत कपि बाहु-दंड तन प्रस्वेद छूटै—९-९७।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्या-याम का एक प्रकार।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भूमि पर गिरकर किया हुआ प्रणाम, दडवत्।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह गा व्यूह।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपराध की सजा।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अर्थदंड, जुरमाना , डाँड।
मुहा - दंड पड़ना - घाटा या हानि होना। दंड भरना - (सहना) - १. जुरमाना देना। २. दूसरे का घाटा स्वयं पूरा करना। दंड भुगतना (भोगना) - १. सजा भुगतना। २. जान बूझकर कष्ट सहना।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दमन-शमन।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ध्वजा या झंडे का बाँस।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तराजू की डंडी।


दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मथानी।


दुचित्ता
वि.
(हिं. दो + चित्त)
चिंतित, जिसके मन में खटका हो।


दुछण
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वेषण=शत्रु)
सिंह।


दुज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
ब्राह्मण


दुज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज)
चंद्र।


दुजड़, दुजड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
तलवार, कटार।


दुजन्मा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजन्मा)
ब्राह्मण।


दुजन्मा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजन्मा)
चंद्र।


दुजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


दुजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गरूण।


दुजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण।


दुजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कपूर।


दुजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
श्रेष्ठ ब्राह्मण।


दुजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
चंन्द्रमा।


दुजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
पक्षिराज गरूड़।


दुजराज
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
कपूर।


दुजाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विजाति)
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जातियाँ जो यज्ञोपवीत संस्कार के बाद नया जन्म धारण करती मानी गयी हैं।


दुजाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विजाति)
ब्राह्मण।


दुजाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विजाति)
पक्षी।


दुजानू
क्रि. वि.
(फ़ा. दो +जानूँ
दोनों घुटनों के बल।


दुजीह
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजिह्ण)
साँप।


दुजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजेश)
ब्राह्मण।


दुजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजेश)
चंद्र।


दुटूक
वि.
(हिं. दो +टूक)
दो टुकड़ों में तोड़ा हुआ।
उ.— किया दुटूक चाप देखत ही रहे चकित सब ठाढ़े।
मुहा.- दुटूक बात— साफ-साफ बात जिसमें घुमाव-फिराव, राजनीति या छल-कपट न हो।


दुत
अव्य.
(अनु.)
तिरस्कार के साथ हटाने के लिए बोला जानेवाला शब्द।


दुत
अव्य.
(अनु.)
घृणा-सूचक शब्द।


दुत
अव्य.
अनु.)
बच्चों के लिए स्नेंह-सूचक शब्द।


दुतकार
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.दुत + कार)
धिक्कार, फटकार।


दुतकारना
क्रि. स.
(हिं. दुतकार)
‘दुत’ कहकर किसी को तिरस्कार के साथ हटाना।


दुतकारना
क्रि. स.
(हिं. दुतकार)
धिक्कारना, फटकारना।


दुतर्फा
वि.
(फ़ा. दो + हिं. तरफ)
दोनों ओर का।


दुतारा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + तार)
दो तार का बाजा।


दुति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्युति)
चमक।


दुति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्युति)
शोभा।


दुतिमान
वि.
(सं. द्यु तिमान)
चमक या प्रकाश-वाला।


दुतिय
वि.
(सं. द्वितीय)
दुसरा।


दुतिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीय)
प्रत्येक पक्ष की दूसरी तिथि, दूज, द्वितीया।
उ.— (क) वै देखौ रघुपति हैं आवत। दूरहिं तैं दुतिया के ससि ज्यौं, ब्योम बिमान महा छबि छावत—९-१६७। (ख) दुतिया के ससि लौं बाढ़ै सिसु देखौ जननि जसोइ—१०-५६।


दुतिवंत
वि.
(सं. द्यु ति +हिं. वंत)
चमकीला, कांतिवान, आभायुक्त, प्रकाशवान्।


दुतिवंत
वि.
(सं. द्यु ति +हिं. वंत)
सुंदर, शोभावाला।


दुती, दुतीय
वि.
(सं. द्वितीय)
दूसरा।
उ.—दुती लगन में है सिव-भूषन सो तन को सुखकारी— सा. ८१।


दुतीया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीय)
दूज, द्वितीय।


दुतीरास, दुतीरासि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीय +राशि)
दूसरी राशि, वृष राशि।


दुथन
संज्ञा
पुं.
(देश.)
पत्नी, विवाहिता स्त्री।


दुदल
वि.
(सं. द्विदल)
फूटने या टूटने पर जिसके दो बराबर खंड हो जायें।


दुदल
संज्ञा
पुं.
दाल।


दुदल
संज्ञा
पुं.
एक पौधा।


दुदलाना
क्रि. स.
(अनु.)
दुतकारना, फटकारना।


दुदहँडी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध +हंडी)
दूध की मटकी।


दुदामी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + दाम)
एक सूती कपड़ा।


दुदिला
वि.
(हिं. दो + फ़ा. दिल)
दुबिधा में पड़ा हुआ, दुचिता।


दुदिला
वि.
(हिं. दो + फ़ा. दिल)
चिंतित, घबराया हुआ।


दुदुकारना
क्रि. स.
(अनु.)
दुतकारना, फटकारना।


दुद्धी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबिधा)
दुबिधा।


दुद्धी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबिधा)
चिंता।


दुधपिठवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध + पीठा)
एक पकवान।


दुधमुख
वि.
(हिं. दूध + मुख)
दूधपीता (बालक या शिशु)।


दुधमुख
वि.
(हिं. दूध + मुख)
अनजान-अबोध।


दुधमुहाँ
वि.
(हिं. दूध + मुँह)
दूधपीता (बालक या शिशु)।


दुधमुहाँ
वि.
(हिं. दूध + मुँह)
अबोध, अनजान।


दुधहंडी, दुधाँडी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + हाँडी)
दूध रखने की मटकी।


दुधार
वि.
[हिं. दूध + आर (प्रत्य.)]
दूध देनेवाली।


दुधार
वि.
[हिं. दूध + आर (प्रत्य.)]
जिसमें दूध हो।


दुधार, दुधारा
वि.
(हिं. दो + धार)
(तलवार, छरी आदि) जिसमें दोनों ओर धार हो।


दुधार, दुधारा
संज्ञा
पुं.
चौड़ा, तेज खाँड़ा या तलवार।


दुधारी
वि.
स्त्री.
(हिं. दूध + आर)
दूध देनेवाली।


दुधारी
वि.
स्त्री.
(हिं. दो + आर)
दोनों ओर धारवाली।


दुधारी
संज्ञा
स्त्री.
कटारी जिसम दोनों ओर धार हो।


दुधारू
वि.
(हिं. दूध + आर)
दूध देनेवाली।


दुधिया
वि.
(हिं. दूध + इया)
जिसमें दूध पड़ा हो।


दुधिया
वि.
(हिं. दूध + इया)
जो दूध से बना हो।


दुधिया
वि.
(हिं. दूध + इया)
दूध सा सफेद।


दुनियाँई
संज्ञा
स्त्री.
संसार, जगत, दुनियाँ।


दुनियाँदार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
संसारी, गृहस्थ।


दुनियाँदार
वि.
व्यवहार-कुशल।


दुनियाँदार
वि.
चालाकी से काम निकालनेवाला।


दुनियाँदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दुनियाँ का कार-बार या व्यवहार।


दुनियाँदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दुनियाँ में काम निकालने की रीति-नीति।


दुनियाँदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दिखाऊ या बनावटी व्यवहार।
मुहा.- दुनियादारी की बात— मन का भाव छिपा कर की जानेवाली ल्लले-चप्पो की बात।


दुनियाँसाज
वि.
(फ़ा.)
मतलबी।


दुनियाँसाज
वि.
(फ़ा.)
चापलूस।


दुनियाँसाजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
मतलब निकालने की रीति-नीति।


दुधिया
संज्ञा
पुं.
दूध से बनी एक मिठाई।


दुधैली
वि.
(हिं. दूध +ऐल)
बहुत दूध देनेवाली।


दुनया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + सं. नदी, प्रा. णई)
वह स्थान जहाँ दो नदियों का संगम हो।


दुनरना, दुनवना
क्रि. अ.
(हिं. दो + नवना)
झुककर दोहरा हो जाना।


दुनरना, दुनवना
क्रि. स.
लचाकर या झुकाकर दोहरा कर देना।


दुनाली
वि.
स्त्री.
(हिं. दो + नाल)
दो नलोंवाली।


दुनियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दुनिया)
संसार, इहलोक।
मुहा.- दुनियाँ के परदे पर— सारे संसार में।

दुनियाँ की हा लगना— (१) सांसारिक अनुभव होना। (२) छल-कपट या चालाकी सीख जाना। दुनियाँ भर का— (१) बहुत अथिक। (२) बहुतों का। दुनियाँ से उठ जाना (चल बसना)— मर जाना।

दुनियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दुनिया)
संसार के लोग, जनता।


दुनियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दुनिया)
संसार का जाल या बंधन।


दुनियाँई
वि.
[अ. दुनिया + हिं. ई (प्रप्य.)]
सांसारिक।


दुनियाँसाजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
चापलूसी, चाटुकारी।


दुनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुनियाँ)
संसार, जगत।


दुपटा, दुपट्टा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + पाट=दुपट्टा)
चादर, चद्दर।
मुहा.- दुपट्टा तान कर सोना— चिंतारहित होकर सोना।

दुपट्टा बदलना— सखी या सहेली बनाना।

दुपटा, दुपट्टा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + पाट=दुपट्टा)
कंधे या गले में डालने का लंबा कपड़ा।


दुपटी, दुपट्टी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुपट्टा)
चादर, चद्दर।


दुपद
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + संपद)
दो पैरवाला, मनुष्य।
उ.—राजा, इक पंडित पौरि तुम्हारी। अपद-दुपद-पसु-भाषा बूझत, अबिगत अल्प अहारी—८-१४।


दुपर्दी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + फ़ा. पर्दां)
बगलबंदी या मिर्जई जिसमें दोनों ओर पर्दे हों।


दुपहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोपहर = दो+पहर)
दोपहर, मध्याह्नकाल।
उ.— दुपहर दिवस जानि घर सूनौ, ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही खायौ—१०-३३१।


दुपहरिया, दुपहरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोपहर)
मध्याह्नकाल, दोपहर का समय।


दुपहरिया, दुपहरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोपहर)
एक छोटा फूलदार पौधा।


दंडक बन
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडक वन)
दंडकारण्य जहाँ श्रीरामचंद्र ने बसकर शूर्पणखा का नासिकोच्छेदन किया था। विंध्य पर्वत से गोदावरी नदी तक फैले हुए इस प्रदेश में पहले इक्ष्वाकु राजा के एक पुत्र का राज्य था। गुरु-कन्या का कौमार्य भंग करने के अपराध में शुक्राचार्य के शाप से राज्य सहित वह भस्म हो गया था। तभी से वह प्रदेश दंडकारण्य कहलाने लगा।
उ.—तहँ ते चल दंडकबन को सुख निधि साँवल गात—सारा.२५४।


दंडकारण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंडकवन।


दंडकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ढोलक।


दंडध्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डंडे से मारने वाला।


दंडघ्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिया हुआ दंड न मानने वाला।


दंडढक्का
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगाड़ा, धौंसा, दमामा।


दंडत
क्रि. स.
(हिं. दंडना)
दंड देते-देते, दंड देकर, शासित करके।
उ.—मुसल मुदगर इनत, त्रिबिध करमनि गनत, मोहिं दंडत धरम-दूत हारे—१-१२०।


दंडदाता
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडदाता)
दंडविधायक, सर्व शासक।
उ.—यह सुनि दूत चले खिसियाइ। कह्य। तिन धर्मराज सौं जाइ। अबलौं हम तुमहीं कौं जानत। तुमहीं कौं दंड-दाता मानत—६४.।


दंडधर, दंडधार
वि.
(सं)
जो डंडा बाँधे हो।


दंडधर, दंडधार
संज्ञा
पुं.
(सं)
यम।


दुपी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विप)
हाथी, गज।


दुफसली
वि.
स्त्री.
(हिं. दो + फ़सल)
अनिश्चित।


दुबकना
वि.अ.
(हिं. दबकना)
छिपना, लुकना।


दुबज्यौरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध + जेवरा)
गले का एक गहना।


दुबधा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विविधा)
अनिश्चिय, चित्त की अस्थिरता।


दुबधा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विविधा)
संशय, संदेह


दुबधा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्विविधा)
असमंजस, पसोपेश (खटका, चिंता)।


दुबरा
वि.
(हिं. दुबला)
दुबला-पतला।


दुबराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबरा + ई)
दुर्बलता, दुबलापन।


दुबराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबरा + ई)
कमजोरी, शक्तिहीनता।


दुबराना
क्रि. अ.
(हिं. दुबलाना)
दुबला होना।


दुबला
वि.
(सं. दुर्बल)
हल्के और पतले शरीर का।


दुबला
वि.
(सं. दुर्बल)
कमजोर,शक्तिहीन।


दुबलापन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुबला + पन)
क्षीणता, कृशता।


दुबाइन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबे)
दुबे की स्त्री।


दुबारा
क्रि. वि.
(हिं. दो + बार)
दूसरी बार।


दुबाला
वि.
(फ़ा.)
दूना, दुगना।


दुबाहिया
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विवाह)
दोनों हाथ से तलवार चलानेवाला।


दुबिद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विविद)
राम की सेना का एक बंदर।


दुबिध, दुबिधा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबधा)
अनिश्चय चित्त की अस्थिरता।


दुबिध, दुबिधा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबधा)
संशय, संदेह।


दुबिध, दुबिधा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबधा)
असमंजस, आगापीछा।
उ.—(क) इक लोहा पूजा मैं राखत इक घर बधिक परौ। सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ—१-२२०। (ख) को जानै दुबिधा-सँकोच में तुम डर निकट न आवैं


दुबिध, दुबिधा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबधा)
खटका, चिंता।


दुबीचा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + बीच)
दुबिधा, अनिश्चय।


दुबीचा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + बीच)
संशय, संदेह।


दुबीचा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + बीच)
असमंजस, आगा-पीछा।


दुबीचा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + बीच)
खटका, चिंता।


दुभाखी, दुभाषिया, दुभाषी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विभाषित्, हिं. दुभाषिया)
दो भिन्न भाषाएँ बोलनेवालों का मध्यस्थ वह व्यक्ति जो एक को दूसरे का तात्पर्य समझाने की योग्यता रखता हो।


दुम
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
पशुओं की पूंछ, पुच्छ।
मुहा.- दुम के पीछे फिरना- साथ लगे रहना।

दुम बचाकर भागना— डरकर भाग जाना। दुम दबा जाना— (१) डर से भाग जाना। (२) डर से काम छोड़ बैठना। दम में घुसना— दूर हो जाना, छट जाना। दुम में घुसा रहना— खुशामद या लालच से साथ सगे रहना। दुम हिलाना— प्रसन्नता दिखाना।

दुम
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
पूँछ की तरह पीछे लगी, बँधी या टँकी चीज।


दुमुहाँ
वि.
(हिं. दो + मुँह)
दो मुँह वाला।


दुरंग, दुरंगा
वि.
(हिं. दो + रंग)
जिसमें दो रंग हों।


दुरंग, दुरंगा
वि.
(हिं. दो + रंग)
दो तरह का।


दुरंग, दुरंगा
वि.
(हिं. दो + रंग)
दोनों पक्षों से मेल—मुलाकात बनाये रखनेवाला।


दुरंगी
वि.
(हिं. दुरंगा)
दो रंगवाली।


दुरंगी
वि.
(हिं. दुरंगा)
दो तरह की।


दुरंगी
वि.
(हिं. दुरंगा)
दोनों पक्षों से मिली हुई।


दुरंगी
संज्ञा
स्त्री.
कुछ बातें पक्ष की, क्रुछ विपक्ष की अपनाने कि वृत्ति, दुबधा।


दुरंत
वि.
(सं.)
जिसका अंत या पार पाना कठिन हो।


दुरंत
वि.
(सं.)
जिसे करना या पाना कठिन हो, दुर्गम, दुस्तर।
उ.—वह जु हुती प्रतिमा समीप की सुखसंपति दुरंत जई री—२७८९।


दुम
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
पीछे-पीछे या साथ लगा रहनेवाला आदमी।


दुम
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
काम का शेषांश।


दुमची
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
तसमा जो दुम के नीचे दबा रहता है।


दुमची
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
पुट्टठों के बीच की हड्डी।


दुमदार
वि.
(फ़ा.)
जिसके पूँछ हो।


दुमदार
वि.
(फ़ा.)
जिसके पीछे दुम—जैसी कोई चीज बँधी या टँकी हो।


दुमन
वि.
(सं. दुर्मनस्, दुर्मना)
अनमना, खिन्न।


दुमात
वि.
(सं. दुर्मातृ)
बुरी माँ।


दुमात
वि.
(सं. दुर्मातृ)
सौतेली माँ।


दुमाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + माला)
पाश, फंदा।


दुरंत
वि.
(सं.)
घोर, प्रचंड।


दुरंत
वि.
(सं.)
जिसका अंत या फल बूरा हो।


दुरंत
वि.
(सं.)
दुष्ट, नीच।


दुरंतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


दुरंधा
वि.
(सं. द्विरंध्र)
जिसमें दो छेद हों।


दुरंधा
वि.
(सं. द्विरंध्र)
जो आरपार छिदा हुआ हो।


दुर
अव्य.
(हिं. दूर)
एक शब्द जिसका प्रयोग किसी को अपमान के साथ हटाने के लिए किया जाता है।
मुहा.- दुर-दुर करना— तिरस्कार के साथ हटाना।

दुर-दुर फिट-फिट— तिरास्कार और फटकार।

दुर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मोती।


दुर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मोती का लटकन जो नाक में स्त्रियाँ पहनती हैं।


दुर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
छोटी बाली जो कान में पहनी जाती है।
उ.—(क)कान्ह कुँ वर कौ कनछेदन है, हाथ सोहारी भेली गुर की।.......। कंचन के द्वै दुर मंगाइ लिए, कहौं कहा छेदनि आतुर की—१०-१८०। (ख) दुर दमंकत सुभग—स्रवननि १०-१८४।


दुरत्यय
वि.
(सं.)
जिसका पार पाना कठिन हो।


दुरत्यय
वि.
(सं.)
जिसको लाँघा न जा सके, दुस्तर।


दुरद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विरद)
हाथी, कुंजर।
उ.—(क) दुरद मूल के आदि राधिका बैठी करत सिंगार—सा. ३५। (ख) दुरद कौ दंत उपटाइ तुम लेत हे वहै बल आजु काहैं न संभारौ—३०६६।


दुरदाम
वि.
(सं. दुर्दम)
कठिन, कष्ट साध्य।
उ.—हरि राधा-राधा रटत जपत मंत्र दुरदाम। बिरह बिराग महाजोगी ज्यों बीतत हैं सब जाम।


दुरदाल
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विरद)
हाथी, कुंजर।


दुरदुराना
क्रि. स.
(हिं. दूर + दुर)
बड़े अपमान या तिर स्कार के साथ हटाना या भगाना।


दुरदृष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभागा।


दुरदृष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभाग्य।


दुरधिगम
वि.
(सं.)
जिसकी प्राप्ति संभव न हो।


दुरधिगम
वि.
(सं.)
जो समझ में न आ सके, दुर्बोध।


दुरइयै
क्रि. अ.
(हिं. दूर)
छिपाइए, गुप्त रखिए, प्रकट न कीजिए।
उ.—तुम तौ तीनि लोक के ठाकुर, तुम तैं कहा दुरइयै—१-२३९।


दुरगम
वि.
(सं.)
जहाँ जाना या पहुँचना कठिन हो।
उ.— जीव जल-थलांजिते, बेष धर-धर तिते अटत दुरगम अगम अचल भारे—१-१२०।


दुरजन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्जन)
दुष्ट, खल, नीच।
उ.—काकी ध्वंजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहैं—२-२९।


दुरजोधन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्योधन)
धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन जिसे युधिष्टिर 'सुयोधन' कहा करते थे।


दुरत
क्रि. अ.
(हिं. दूर, दुरना)
छिपता है, छिपाने से।
उ.—(क)सूरदास प्रभु दुरत दुराए डुँगरनि ओट सुमेर—४५८। (ख) दुख अस हाँसी सुनौ सखी री, कान्ह अचानक आए। सूर स्याम कौ मिलन सखी अब, कैसे दुरत दुराए—७९४।


दुरति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दूर, दुरना)
छिपाती है, दिखायी नहीं देती।


दुरति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दूर, दुरना)
ऒट में हो जाती है, आँख के आगे से हट जाती हे।
उ.—दूध-दंत-दुति कहि न जाति कछु अद्भुत उपमा पाई। किलकल-हँसत दुरति प्रगटति मनु, घन मैं बिञ्जु, छटाई—१०-१०८।


दुरतिक्रम
वि.
(सं.)
जिसका उल्लंघन या अतिक्रमण न हो सके।


दुरतिक्रम
वि.
(सं.)
ऐसा प्रबल कि जिसके बाहर या विरुद्ध कोई न हो सके।


दुरतिक्रम
वि.
(सं.)
जिसका पार पाना बहुत कठिन हो।


दुरध्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा मार्ग, कुपथ।


दुरना
क्रि. अ.
(हिं. दूर)
आड़ या ऒट में हो जाना।


दुरना
क्रि. अ.
(हिं. दूर)
छिपना, दिखायी न पड़ना।


दुरप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प)
गर्व, अभिमान।
उ.—सूर प्रत्यच्छ निहारत भूषन सब दुख दुरप झुलानौ—सा. १००।


दुरपदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रौपदी)
पांडवों की रानी द्रौपदी।


दुरबल
वि.
(सं. दुर्बल)
अशक्त, बलहीन।


दुरबल
वि.
(सं. दुर्बल)
कृश, दुबला-पतला।
उ.—पट कुचैल, दुरबल द्विज देखत, ताके तंदुल खाए (हो)—१-७।


दुरबास
संज्ञा
पुं.
(सं. दुवास)
बुरी गंध, दुर्गंध।


दुरबासा
संज्ञा
पुं.
(सं. दुवासा)
एक क्रोधी मुनि।


दुरबुद्धि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुः + बुद्धि)
दुष्ट मति, मुर्खता।
उ.—अब मोहिं कृपा कीजिए सोइ। फिरि ऐसी दुर-बुद्धि न होई—४-५।


दुरस्था
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या हीन दशा।


दुरवाय
वि.
(सं.)
जो आसानी से न मिल सके।


दुरस
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + औरस)
सगा भाई।


दुराइ
क्रि. स.
(हिं. दुराना)
छिपाकर।
उ.— लै राखे ब्रज सखा नंदगृह बालक भेष दुराइ—२५८०।


दुराइयाँ
क्रि. वि.
(हिं. दुराना)
छिपान से, प्रकट न करने से, गुप्त रखन से।
उ.— (तुम) केरि बालक जुवा खेल्यो, केरि दुरद दुराइयाँ — ५७७।


दुराई
क्रि. स.
स्त्री.पुं.
(हिं. दुराना)
दूर किया, हटाया, अदृश्य कर लिया।
उ.— रूद्र को बीर्य खसि कै परयौ धरनि पर, मोहिनी रूप हरि लियो दुराई—८-१०।


दुराई
क्रि. स.
स्त्री.पुं.
(हिं. दुराना)
छिपाया।


दुराई
प्र.
नाहिंन परति दुराई—छिपायी नहीं जाती।
उ.— जान देहु गोपाल बुलाई। उर की प्रीति प्रान कैं लालच नाहिंन परति दुराई —८०१। (ख) लै भैया केवट, उतराई। महाराज रघुपति इत ठाढ़ेत कत नाव दुराई—९-४०।


दुराईए
क्रि. स.
(हिं. दुराना)
छिपाइए, गुप्त रखिए।
उ.— तुम तौ तीन लोक के ठाकुर तुम तैं कहा दुराइए।


दुराउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुराव)
छिपाव, भेद-भाव।
उ.— गोपी इहै करत चबाउ। देखौ धौं चतुराई वाकी हम सौं कियो दुराउ—११८३।


दंडधर, दंडधार
संज्ञा
पुं.
(सं)
शासक


दंडधर, दंडधार
संज्ञा
पुं.
(सं)
साधु।


दंडन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड देने की क्रिया, शासन।


दंडना
क्रि. स.
(सं. दंडन)
सजा देना, शासित करना।


दंडनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेनापति।


दंडनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड-विधायक


दंडनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शासक


दंडनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यमराज।


दंडनीति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बल-प्रयोग की शासन-विधि।


दंडनीय
वि.
(सं)
दंड पाने योग्य (व्यक्ति-कार्य)।


दुरभाव
संज्ञा
पुं.
(सं. दुभाव)
बुरा भाव या विचार।


दुरभिग्रह़
वि.
(सं.)
जो मुश्किल से पकड़ा जा सके।


दुरभिसंधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरे अभिप्राय से किया गया षङयंत्र या रचा गया कुचक्र।


दुरभेव
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाव)
बुरा भाव।


दुरभेव
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाव)
मन-मोटाव, मनोमालिन्य।


दुरमति
वि.
(सं. दुर्मति)
दुर्बुद्धि, कम अक्ल।
उ.—परम गंग कौ छाँड़ि पियासौ दुरमति कूप खनावै—१-१६८।


दुरमति
वि.
(सं. दुर्मति)
खल, दुष्ट।
उ.— भीषम, करन, द्रोन देखत, दुस्सासन बाहँ गही। पूरे चीर, अंत नहिं पायौ, दुरमति हारि लही—१-१५८।


दुरमुट, दुरमुस
संज्ञा
पुं.
[सं. दुर (उप.) + मुस = कूटना]
गच या फर्श कूटन का लोहे या पत्थर-जड़ा डंडा।


दुरलभ
वि.
(सं. दुर्लभ)
जो कठिनता से प्राप्त हो, दुर्लभ।
उ.—अब सूरज दिन दरसन दुरलभ कलित कमल कर कंठ गहौ (हो) —९-३३।


दुरवस्थ
वि.
(सं.)
जो अच्छी दशा में न हो।


दुराए
क्रि. अ.
(हिं. दूर, दुराना)
छिपाने से, अलक्षित रखने से, छिपाकर, आड़ में धरके।
उ.— (क) सूरदास प्रभु दुरत दुराए कहुँ डुँगरनि ओट सुमेरू—४५८।


दुराए
क्रि. अ.
(हिं. दूर, दुराना)
गुप्त रखने या प्रकट न करने से।
उ.— सूर स्याम कौ मिलन सखी अब, कैसे दुरत दुराए —६७५।


दुराए
प्र.
छिपाये रखता है, आड़ में किये रहता है।
उ.—मानौ मनिधर मनि ज्यौं छाँड़यौ फन तर रहत दुराए—६७५।


दुरागमन, दुरागौन
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विरागमन)
वधू का दूसरी बार (गौना करके) ससुराल जाना।
मुहा.- दुरागौन देना— गौना करना।

दुरागौन लाना— गोना लाना।

दुराग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुचित हठ या जिद।


दुराग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गलत बात पर भी अड़े रहने का भाव।


दुराग्रही
वि.
(सं.)
अनुचित हठ या जिद रखनेवाला।


दुराग्रही
वि.
(सं.)
गलत बात पर भी अड़नेवाला।


दुराचरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा चालचलन।


दुराचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा चालचलन।


दुरादुरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुरना=छिपना)
दुराव-छिपाव।
मुहा.- दुरादुरी करके— छिपे-छिपे, गुपचुप।


दुराधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुतराष्ट्र के एक पुत्र।


दुराधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम।


दुराधर्ष
वि.
(सं.)
जिसको वश में करना कठिन हो।


दुराधर्षता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रबलता, प्रचण्डता।


दुराधार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी, महादेव।


दुराना
क्रि. अ.
(हिं. दूर)
दूर होना, हटना, भागना।


दुराना
क्रि. अ.
(हिं. दूर)
छिपना, आड़ में होना।


दुराना
क्रि. स.
दूर करना, हटाना, भगाना


दुराना
क्रि. स.
छोड़ना, त्यागना।


दुराचारी
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुराचार)
बुरे चालचलन का।


दुराज
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूर् + राज्य)
बुरा शासन।


दुराज
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + राज्य)
एक ही राज्य में दो का शासन जिससे प्रजा दुखी रहे।


दुराज
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + राज्य)
वह राज्य जहाँ दो शासक हों।


दुराजी
वि.
(सं. द्विराज्य)
दो शासकों से शासित।


दुराजी
संज्ञा
पुं.
दुराज, बुरा शासन।


दुराजैं
वि.
पुं. सवि.
[सं. दुर् + राज्य + ऐं (प्रत्य.)]
बुरे राज्य को, बुरे शासन को।
उ.— मारि कंस-केसी मथुरा मैं मेटूयौ सबै दुराजैं—१-३६।


दुराजैं
वि.
पुं. सवि.
[सं. दुर् + राज्य + ऐं (प्रत्य.)]
दो राजाओं के शासन में।
उ.— (क) कठुला कंठ। चिबुक तरैं मुख-दसन बिराजैं— खंजन बिच सुक आनि कै मनु परयौ दुराजैं १०-१३४। (ख) जोग-बिरह के बीच परम दुख परियत हैं यह दुसह दुराजैं—३२७३।


दुरात
क्रि. अ.
(हिं. दुराना)
दूर होते हैं, भागते हैं।
उ.— जदपि सूर प्रताप स्याम को दानव दूरि दुरात—३३५१।


दुरात्मा
वि.
(सं. दुरात्मन्)
दुष्ट व्यक्ति।


दुराना
क्रि. स.
छिपाना, गुप्त रखना।


दुरानौ
क्रि. अ.
(हिं. दुरना)
दूर हो गया।
उ.—सूर प्रतच्छ निहारत भूषन ,सब दुख-दुरप दुरानौ—सा. १००।


दुराय
वि.
(सं.)
जिसे पाना कठित हो, दुष्प्राप्य।


दुरायो, दुरायौ
क्रि. स.
(हिं. दूर)
गुप्त रखा, प्रकट न किया।
उ.—कासौं कहौं सखी कोउ नाहिंन, चाहति गर्भ दुरायौ—१०-४। (ख) मुख दधि पोंछि, बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ—१०-३३४।


दुरायो, दुरायौ
क्रि. अ.
आड़ म कर दिया, सामने न रहने दिया, अलक्षित किया।
उ.—(क) मनौ कुबिजा के कूबर माँह दुरायौ—३४४२। (ख) सूरदास ब्रजबासिन को हित हरि हिय माँझ दुरायौ—३४६४। (ग) इतने माँझ पुत्र लै भाज्यौ निधि मैं जाय दुरायौ—सारा. ६९२।


दुराराध्य
वि.
(सं.)
जिसकी आराधना कठिन हो।


दुराराध्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


दुरारोह
वि.
(सं.)
जिस पर चढ़ना कठिन हो।


दुरारोह
संज्ञा
पुं.
ताड़ का पेड़


दुरालंभ, दुरालभ
वि.
(सं. दुरालभ)
जिसका मिलना या प्राप्त होना कठिन हो, दुष्प्राप्य।


दुराश
वि.
(सं.)
जिसे अधिक आशा न हो।


दुराशय
वि.
(सं.)
जिसका उद्देश्य अच्छा न हो।


दुराशय
संज्ञा
पुं.
बुरा आशय।


दुराशय
संज्ञा
पुं.
बुरे आशयवाला।


दुराशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ऐसी आशा जो पूरी न हो सके, व्यर्थ की आशा।


दुरास
वि.
(सं. दुराश)
जिसे अधिक आशा न हो।


दुरासद
वि.
(सं.)
दुष्प्राप्य।


दुरासद
वि.
(सं.)
दुसाध्य।


दुरासा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुराशा)
ऐसी आशा जो पूरी न हो, व्यर्थ की आशा।
उ.—ऐसैं करत अनेक जनम गए, मन संतोष न पायौ। दिन-दिन अधिक दुरासा लाग्यो, सकल लोक भ्रमि आयौ—१-१५४।


दुरि
क्रि. अ.
(हिं. दुरना)
छिपकर, ओट में होकर, आड़ में जाकर।
उ.— (क) अधम-समूह उधारन-कारन तुम जिय जक पकरी। मैं जु रह्यौं राजीव-नैन, दुरि, पाप-पहार-दरी—१-१३०। (ख) सात देखत बधे एक ब्रज दुरि बच्यौ इत पर बाँधि हम पंगु कीन्हो—२६२४।


दुरालाप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या कटु वचन।


दुरालाप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाली, अपशब्द।


दुरालापी
वि.
(हिं. दुरालाप)
कटु या बुरी बात कहनेवाला।


दुरालापी
वि.
(हिं. दुरालाप)
गाली बकनेवाला


दुराव
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुराना + आव (प्रत्य.)]
छिपाव, भेद-भाव।
उ.—(क) औरनि सौं दुराव जो करती तौ हम कहती भली सयानी—१२६२। (ख) मेरी प्रकृति भलै करि जानति मैं तो सौं करिहौं दुराव ही—१२३७। (ग)कछू दुराव नहीं हम राख्यौ निकट तुम्हारे आई—११९२।


दुराव
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुराना + आव (प्रत्य.)]
छल-कपट।


दुरावत
क्रि. अ.
(हिं. दूर, दुराना)
छिपाते है, आड़ में करते है, गुप्त रखते हो, प्रकट नहीं करते।
उ.—(क) अखिल ब्रहमंङ खंड की महिमा, सिसुता माहिं दुरावत—१०-१०२। (ख) स्याम कहा चाहत से डोलत ? पूँछे तैं तुम बदन दुरावत, सूधे बोल न बोलत—१०-२७९। (ग) ब्रजहिं कृष्ण-अवतार है, मैं जानी प्रभु आज। बहुत किए फ़न-धात मैं, बदन दुरावत लाज—५८९। (घ) सगुन सुमेर प्रगट देखियत तुम तृन की ऒट दुरावत—३१३५।


दुरावति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दुराना)
छिपाती है, ऒट में करती है।
उ.—सूरदास-प्रभुंहोहु पराकृत, अस कहि भुज के चिन्ह दुरावति—१०-७। (ख) कबहुँ हरि कौं चितै चूमति, कबहुँ गावति गारि। कबहुँ लैं पाछे दुरावति, ह्याँ नहीं बनवारि१०-११८।


दुरावहु
क्रि. स.
(हिं. दुराना)
दूर करो, हटाओ, अदृश्य करो।
उ.—महाराज, यह रूप दुरावहु। रूप चतुर्भुज मोहिं दिखावहु—८-२।


दुरावैगी
क्रि. स.
(हिं. दुराना)
छिपाएगी, गुप्त रखेगी।
उ.—अब तू कहा दुरावैगी—२०७७।


दुरि
प्र.
रहे दुरि - छिपे हैं।
उ.— सारँगरिपु की ओट रहे दुरि सुंदर सारँग चारि— सा. उ. १७


दुरित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पाप, पातक।


दुरित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट दुख।
उ.— मात-पिता दुरित क्यों हरते—११०२।


दुरित
वि.
पाप करनेवाला पापी, पातकी।


दुरित
वि.
(हिं. दुरना)
छिपा हुआ, अप्रकट।
उ.— देवलोक देखत सब कौतुक, बाल-केलि अनुरागे। गावत सुनत सुजस सुखकरि मन, सूर दुरित दुख भागे—४१६।


दुरितदमनी
वि.
स्त्री.
(सं.)
पाप का नाश करनेवाली।


दुरियाना
क्रि. स.
(सं. दूर)
दूर करना, हटाना।


दुरियाना
क्रि. स.
(सं. दुर)
दुरदुराना, अपमान से हटाना।


दुरिष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पाप


दुरिष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक यज्ञ।


दुरुस्त
वि.
(फ़ा.)
जिसमें ऐब या दोष न हो।
मुहा.- दुरूस्त करना— (१) सुधारणा। (२) दंड देना।


दुरुस्त
वि.
(फ़ा.)
उचित, मुनासिब।


दुरुस्त
वि.
(फ़ा.)
ययार्थ।


दुरुस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
सुधार, संशोधन।


दुरुस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दंड, सजा, मरम्मत।


दुरुह
वि.
(सं.)
जिसका समझना कठिन हो, गूढ़।


दुरे
क्रि. अ.
(हिं. दुरना)
छिप गये, ओट में हो गये, आड़ में हो गये।
उ.—(क) प्रगटति हँसत दँतुलि, मनु सीपज दमकि दुरे दल ओलै री—१०-१३७। (ख) गोपाल दुरे हैं माखन खात—१०-२८३। (ग) अब कहा दुरे साँवरे ढोटा फगुआ देहु हमार —१४०४।


दुरेफ
संज्ञा
पुं.
(सं.द्विरेफ)
भ्रमर, भौंरा।
उ.— मुरली मुख-छबि पत्र-साखा दृग दुरेफ चढ़यौ-३३-७।


दुरैहौ
क्रि. स.
(हिं. दुराना)
छिपाऊँगी।
उ.— मोसौ कही, कौन तो सी प्रिय, तोसों बात दुरैहौं—१२६०।


दुरैहौ
क्रि. स.
(हिं. दूर)
दूर करोगे, हटाओगे, बचाओगे।
उ.— भक्ति बिनु बैल बिरानै ह्यौहौ।¨¨¨¨ लादत, जोतत लकुट बाजिहै, तब कहँ मूँढ़ दुरैहौ—१-३३१।


दुरिहै
क्रि. अ.
(हिं. दुरना)
छिपेगी, प्रकट न होगी, दिखायी न देगी।
उ.— तातैं यहै सोच जिय मोरैं, क्यौं दुरिहै ससि-बचन-उज्यारी—१०-११।


दुरी
क्रि. अ.
(हिं. दुरना)
आड़ में हो गयी, छिप गयी।
उ.—ज्ञान-बिवेक बिरोधे दोऊ, हते बंधु हितकारी। बाँध्यौ बैर दया भगिनी सौं, भागि दुरी सु बिचारी —१-१७३।


दुरीषणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अहित या अकल्याण की कामना।


दुरीषणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शाप।


दुरुखा
वि.
(हिं. दो + फ़ा. रुख़)
जिसके दोनों ओर मुँह हो।


दुरुखा
वि.
(हिं. दो + फ़ा. रुख़)
जिसकें दोनों ओर अलग-अलग रंग या उनकी छाया हो।


दुरुत्तर
वि.
(सं.)
जिसका पार पाना कठिन हो।


दुरुत्तर
संज्ञा
पुं.
अनुचित या कटु उत्तर।


दुरुपयोग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुचित उपयोग।


दुरुस्त
वि.
(फ़ा.)
जो टूटा-फूटा या खराब न हो, ठीक।


दंडपाणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यमराज।


दंडपाणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी के वर से काशी में स्थापित भैरव की एक मूर्ति।


दंडपाल, दंडपालक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वारपाल।


दंडपाशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घातक, जल्लाद।


दंडप्रणाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भूमि पर गिरकर सादर प्रणाम करने की मुद्रा।


दंडमान्
वि.
(हिं. दंड + मान्य)
दंडनीय।


दडमुद्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
साधुओं के दो चिन्ह—दंड और मुद्रा।


दडमुद्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तंत्र की एक मुद्रा।


दंडयाम
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चढ़ाई।,


दंडयाम
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वरयात्रा।


दुरोदर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुआ।


दुरोदर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुआरी।


दुरौंधा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार्रार्द्ध)
द्वार की ऊपरी लकड़ी।


दुर
अव्य.
या उप
(सं.)
दूषण या दोष (बुरा अर्थ)।


दुर
अव्य.
या उप
(सं.)
निषेध, मना करना


दुर
अव्य.
या उप
(सं.)
दुख।


दुर्कुल
संज्ञा
पुं.
(सं. दुष्कुल)
अप्रतिष्ठित कुल।


दुर्गन्ध
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी गंध, कुबास, बदवू।


दुर्गंधता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गंध का भाव।


दुर्ग
वि.
(सं.)
जहाँ जाना कठिन हो, दुर्गंम।


दुर्ग
संज्ञा
पुं.
गढ़, कोट, किला।


दुर्ग
संज्ञा
पुं.
एक असुर जिसको मारने से देवी का नाम दुर्गा पड़ गया।


दुर्ग
संज्ञा
पुं.
एक प्राचीन अस्त्र।
उ.— (क) तब चानूर गर्व मन लीन्हौ। दुर्ग प्रहार कुष्न पर कीन्हौ —३०७०।


दुर्गकारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किला बनानेवाला।


दुर्गत
वि.
(सं.)
जिसकी दशा बुरी या गिरी हो, दुर्दशाग्रस्त।


दुर्गत
वि.
(सं.)
दरिद्र।


दुर्गति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुः + गति)
दुर्दशा, बुरी गति, विपत्ति।
उ.— ध्रुवहिं अमै पद दियौ मुरारी। अंबरीष की दुर्गति टारी—१-२८।


दुर्गति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुः + गति)
परलोक में होने वाली दुर्दशा, नरक-भोग।


दुर्गपाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किले का रक्षक।


दुर्गम
वि.
(सं.)
जहाँ जाना-पहुँचना कठिन हो।


दुर्गम
वि.
(सं.)
जिसे समझना कठिन हो।


दुर्गम
वि.
(सं.)
जिसका करना कठिन हो, दुस्तर।


दुर्गम
संज्ञा
पुं.
गढ़, किला।


दुर्गम
संज्ञा
पुं.
वन।


दुर्गम
संज्ञा
पुं.
संकट का स्थान।


दुर्गम
संज्ञा
पुं.
एक असुर।


दुर्गम
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


दुर्गमत
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गम होने का भाव।


दुर्गमनीय, दुर्गम्य
वि.
(सं.)
जहाँ जाना कठिन हो।


दुर्गमनीय, दुर्गम्य
वि.
(सं.)
जिसे समझना कठिन हो।


दुर्गमनीय, दुर्गम्य
वि.
(सं.)
जिसे पार करना कठिन हो।


दुर्गरक्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्गपाल, किलेदार।


दुर्गलंचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऊँट।


दुर्गसंचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्गम स्थान तक पहुँचने के साधन।


दुर्गा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आदि शक्ति, देवी जिन्होंने महिषासुर, शुंभ, निशुंभ आदि को मारा था।


दुर्गा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपराजिता।


दुर्गा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ वर्ष की कन्या।


दुर्गाधिकारी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किले का स्वामी।


दुर्गाध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किले का स्वामी।


दुर्गानवमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कार्तिक, चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की नवमी।


दुर्घात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या भयानक घात या प्रहार।


दुर्घात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा छल-कपट।


दुर्घोष
वि.
(सं.)
जो कटु या कर्कश ध्वनि करे।


दुर्जन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुष्ट जन, खोटा आदमी।
उ.—(क) दुर्जन-बचन सुनत दुख जैसौ। बान लगैं दुख होइ न तैसौ—४-५। (ख) अति घायल धीरज दुवाहिआ तेज दुर्जन दालि—२८२६।


दुर्जनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुष्टता, खोटापन।


दुर्जय
वि.
(सं.)
जो जल्दी जीता न जा सके।


दुर्जय
संज्ञा
पुं.
एक राक्षस।


दुर्जय
संज्ञा
पुं.
विष्णु


दुर्जर
वि.
(सं.)
जो कठिनता से पच सके।


दुर्जति
वि.
(सं.)
जो बुरी रीति से जन्मा हो।


दुर्गाष्टमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की अष्टमी।


दुर्गाह्य
वि.
(सं.)
जिसका समझना कठिन हो।


दुर्गुण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष, ऐब, बुराई।


दुर्गेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्ग का स्वामी या रक्षक।


दुर्गोत्सव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्गा पूजा का उत्सव।


दुर्ग्रह
वि.
(सं.)
जो जल्दी पकड़ा न जा सके।


दुर्ग्रह
वि.
(सं.)
जो कठिनता से समझा जा सके।


दुर्घट
वि.
(सं.)
जिसका होना कठिन हो।


दुर्घटना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अशुभ या हानि-कारिणी घटना, बुरा संयोग।


दुर्घटना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विपत्ति।


दुर्जति
वि.
(सं.)
जिसका जन्म व्यर्थ ही हो |


दुर्जति
वि.
(सं.)
नीच।


दुर्जति
संज्ञा
व्यसन, दुर्व्यसन।


दुर्जति
संज्ञा
संकट।


दुर्जाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या नीच जाति।


दुर्जाति
वि.
बुरे कुल का।


दुर्जाति
वि.
बिगड़ी जीति का।


दुर्जीव
वि.
(सं.)
बुरी रीति से जीविका पानेवाला।


दुर्जेय
वि.
(सं.)
जो सरलता से जीता न जा सके।


दुर्जोधन, दुर्जोधना
संज्ञा
पुं.
(सं. दुयोधन)
धृतराष्ट्र का पुत्र जो चचेरे भाई पांडवों से वैर रखता या।


दुर्ज्ञेय
वि.
(सं.)
जो कठिनता से समझ में आ सके।


दुर्दम
वि.
(सं.)
जो सरलता से दबाया या जीता न जा सके।


दुर्दम
वि.
(सं.)
प्रबल, प्रचंड।


दुर्दम
संज्ञा
पुं.
रोहिणी और वसुदेव का एक पुत्र।


दुर्दमन
वि.
(सं.)
जिसको दबाना कठिन हो, प्रचंड।


दुर्दमनीय
वि.
(सं.)
जिसको दबाना कठिन हो प्रबल।


दुर्दम्य
वि.
(सं. दुर्दम)
जिसको दबाना कठिन हो।


दुर्दश, दुर्दशन
वि.
(सं.)
जो जल्दी दिखायी न पड़े।


दुर्दश, दुर्दशन
वि.
(सं.)
जो देखने में बड़ा भयंकर हो।


दुर्दशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी दशा, दुर्गति।


दुर्दात
वि.
(सं.)
जिसको दबाना कठिन हो, प्रबल।


दुर्दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा दिन।


दुर्दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह दिन जब घटा घिरी हो।


दुर्दिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट के दिन।


दुर्दैव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्भाग्य।


दुर्दैव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिनोंका फेर।


दुर्द्धर
वि.
(सं.)
जिसको पकड़ना कठिन हो।


दुर्द्धर
वि.
(सं.)
प्रबल, प्रचंड।


दुर्द्धर
वि.
(सं.)
जिसको समझना कठिन हो।


दुर्द्धर
संज्ञा
पुं.
एक नरक।


दुर्द्धर
संज्ञा
पुं.
महिषासुर का सेनापति।


दुर्द्धर
संज्ञा
पुं.
धृतराष्ट्र का एक पुत्र।


दुर्द्धर
संज्ञा
पुं.
रावण का एक सैनिक जो हनुमान द्वारा मारा गया था।


दुर्द्धर
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


दुर्द्धर्ष
वि.
(सं.)
जिसका दमन करना कठिन हो, प्रचंड।


दुर्द्धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धृतराष्टृ का एक पुत्र।


दुर्द्धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राक्षस का नाम।


दुर्द्धी
वि.
(सं.)
मंद बुद्धिवाला।


दुर्नय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरी चाल |


दुर्नय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अन्याय |


दंडयामा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यम।


दंडयामा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन।


दंडवत, दंडवत्
संज्ञा
पुं. स्त्री.
(सं. दंडवत्))
पृथ्वी पर लेटकर किया हुआ साष्टांग प्रणाम।
उ.—छेम-कुसल अरु दीनता. दंडवत सुनाई। कर जोरो बिनती करी, दुरबल-सुखदाई—१-२३८।


दंडवासी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडवासिन्)
द्वारपाल, दरबान।


दंडाकरन
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडकारणय)
दंडकवन।


दंडायमान
वि.
(सं.)
डंडे की तरह सीधा खड़ा।


दंडालय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्थान जहाँ दंड दिया जाय।


दंडाहत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छाछ-मट्ठा।


दंडित
वि.
(सं.)
जिसे दंड मिला हो।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
डंडा बाँधने वाला।


दुर्नाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या अप्रिय शब्द।


दुर्नाद
वि.
कर्कश या अप्रिय ध्वनि करनेवाला।


दुर्नाद
संज्ञा
पुं.
राक्षस।


दुर्द्धरूढ़
वि.
(सं.)
गुरू की बात शीघ्र न माने।


दुर्धर
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्द्धर)
रावण का एक सैनिक जो अशोक वाटिका उजाड़ते हुए हनुमान को पकड़ने आया था; परंतु राम दूत द्वारा स्वयं मारा गया था।
उ.— दुर्धर परहस्त संग आइ सैन भारी। पवन-दूत दखव दल ताड़े दिसि चारी—९-९-६।


दुर्नाम
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्नामन्)
बुरा नाम बद-नामी।


दुर्नाम
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्नामन्)
बुरा वचन, गाली।


दुर्निमित्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा सगुन।


दुर्निरीक्ष, दुर्निरीक्ष्य
वि.
(सं.)
जो देखा न जा सके।


दुर्निरीक्ष, दुर्निरीक्ष्य
वि.
(सं.)
देखने में भयंकर।


दुर्निरीक्ष, दुर्निरीक्ष्य
वि.
(सं.)
कुरूप।


दुर्निवार, दुरनिवार्य
वि.
(सं. दुर्मिवार्य्य)
जो जल्दी रोका न जा सके।


दुर्निवार, दुरनिवार्य
वि.
(सं. दुर्मिवार्य्य)
जिसे जल्दी दूर न किया जा सके।


दुर्निवार, दुरनिवार्य
वि.
(सं. दुर्मिवार्य्य)
जो जल्दी टल न सके।


दुर्नीति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुचाल, अन्याय।


दुर्बचन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्वचन)
दुर्वाक्य, कटु वचन।
उ.— सुत-कलत्र दुर्बचन जो भाखैं। तिंन्हैं मोहवस मन नाहिं राखै -५-४।


दुर्बचन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्वचन)
गाली।


दुर्बल
वि.
(सं.)
कमजोर, दुबला-पतला।


दुर्बलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कमजोरी, दुबलापन।


दुर्बासा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुर्वांसा)
एक क्रोधी मुनि जो अत्रि के पुत्र थे। इनकी पत्नी कंदली थी।


दुर्बासैं
संज्ञा
पुं. सवि.
(सं.दुर्वांसा)
दुर्वासा को, दुर्वासा पर।
उ.— उलटी गाढ़ परी दुर्बासे, दहत सुदरसन जाकौं—१-११३।


दुर्बुद्धी
वि.
(सं. दुर्बुद्धि)
मूर्ख, मंदबुद्धि।
उ.— निर्घिन, नीच, कुलज, दुर्बुद्धी, भौदू, नित कौ रौऊ —१-१८६।


दुर्बोध
वि.
(सं.)
जो जल्दी समझ में न आये, गूढ़।


दुर्भक्ष
वि.
(सं.)
जिसे खाना कठिन हो।


दुर्भक्ष
वि.
(सं.)
खाने में बुरा।


दुर्भक्ष
संज्ञा
पुं.
अकाल, दुर्भिक्ष।


दुर्भग
वि.
(सं.)
अभागा, भाग्यहीन।


दुर्भगा
वि.
स्त्री.
(सं.)
अभागिनी, भाग्यहीना।


दुर्भगा
संज्ञा
स्त्री.
पति-प्रेम से वंचिता पत्नी।


दुर्भर
वि.
(सं.)
भारी, वजनी।


दुर्भाग , दुर्भाग्य
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाग्य)
बुरा भाग्य, अभाग्य।


दुर्भागी
वि.
(सं. दुर्भाग्य)
मंद भाग्यवाला, अभागा।


दुर्भाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा भाव।


दुर्भाव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वेष।


दुर्भावना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी भावना।


दुर्भावना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
खटका, चिंता, अंदेशा।


दुर्भाव्य
वि.
(सं.)
जो जल्दी ध्यान में न आ सके।


दुर्भिक्ष, दुर्भिच्छ
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भिक्ष)
अकाल का समय, अन्न के अभाव का काल।


दुर्भेद, दुर्भद्य
वि.
(सं. दुर्भेद)
जिसका भेदना या छेदना कठिन हो।


दुर्भेद, दुर्भद्य
वि.
(सं. दुर्भेद)
जिसे जल्दी पार न किया जा सके।


दुर्मति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नासमझी।


दुर्मति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुबुद्धि।


दुर्मति
वि.
जिसकी समझ ठीक न हो।


दुर्मति
वि.
खल, दुष्ट नीच।


दुर्मद
वि.
(सं.)
नशे में चूर।


दुर्मद
वि.
(सं.)
गर्व में चूर।


दुर्मना
वि.
(सं. दुर्मनस्)
बुरे चित्त या विचार का, दुष्ट।


दुर्मना
वि.
(सं. दुर्मनस्)
उदास, खिन्न, अनमना।


दुर्मर
वि.
(सं.)
जिसकी मृत्यु बड़े कष्ट से हो।


दुर्मरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट से हेनेवाली मृत्यु।


दुर्मर्ष
वि.
(सं.)
जिसको सहना कठिन हो, दुःसह।


दुर्मल्लिका, दुर्मल्ली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुर्मल्लिका)
उपरूपक का एक भेद जो हास्यरस प्रधान होता है।


दुर्मिल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक मात्रिक और एक वर्णिक छंद।


दुर्मुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घोड़ा।


दुर्मुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीराम की सेना का एक बंदर।


दुर्मुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीराम का एक गुप्तचर।


दुर्मुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


दुर्मुख
वि.
जिसका मुख बुरा हो।


दुर्मुख
वि.
कटु-भाषी, कठोर बात कहनेवाला।


दुर्मुट, दुर्मुस
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर् + मुस = कूटना)
गच या फर्श कूटने का डंडा जिसके नीचे लोहा या पत्थर लगा होता है।


दुर्लभ
वि.
(सं.)
जो कठिनता से मिल सके, जिसे प्राप्त करना सहज न हो, दुष्प्राप्य।
उ.—सोइ सारँग चतुरानन दुर्लभ सोइ सारँग संभु मुनि ध्यात—सा. उ. २४।


दुर्लभ
वि.
(सं.)
अनोखा, बहुत बढ़िया।
उ.—दुर्लभ रूप देखिबे लायक—२४४४।


दुर्लभ
वि.
(सं.)
प्रिय, रुचिकर।
उ.—जहाँ तहाँ तैं सबै धार्इं सुनत दुर्लभ नाम—२९५५।


दुर्लभ
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


दुर्लेख्य
वि.
(सं.)
जो बुरी लिखावट में लिखा हो।


दुर्वच
वि.
(सं.)
जो दुख से कहा जा सके।


दुर्वच
वि.
(सं.)
जो कठिनता से कहा जा सके।


दुर्वच, दुर्वचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाली, कटुवचन।


दुर्वह
वि.
(सं.)
जिसे उठाकर ले चलना कठिन हो।


दुर्वाच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या कटुवचन।


दुर्मूल्य
वि.
(सं.)
जिसका दाम अधिक हो, मँहगा।


दुर्मेध
वि.
(सं. दुमेधस्)
नासमझ, मंद बुद्धिवाला।


दुर्यश
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्यशस)
बुराई, बदनामी, अपयश।


दुर्योध
वि.
(सं.)
कठिनाइयाँ सहकर भी युद्ध के मैदान में डटा रहनेवाला, विकट साहसी।


दुर्योधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुरुवंशीय राजा धृतराष्ट्र का ज्येष्ठ पुत्र जो चचेरे भाई पांडवों को अपना शत्रु समझता था और जिसे युधिष्ठिर ‘सुयोधन’ कहा करते थे। गदा चलाने में यह बड़ा निपुण था। धृतराष्ट्र की इच्छा युधिष्ठिर को ही युवराज बनाने की थी; परंतु दुर्योधन ने इसका विरोध किया और पांडवों को वन भेज दिया। लौटने पर युधिष्ठिर न इन्द्रप्रस्थ को राजधानी बनाकर राजसूय यज्ञ किया। उनके अपार वैभव को देखकर वह जल उठा। पश्चात् अपने मामा शकुनि के कौशल से युधिष्ठिर का राज्य और धन ही नहीं, द्रौपदी सहित उनके भाइयों को भी इसने जुए में जीत लिया। तब दुःशासन द्रोपदी को सभा में घसीट लाया और दुर्योधन ने उसे अपनी जाँघ पर बैठने का संकेत किया। भीम का क्रोध यह देखकर भभक उठा और उन्होंने गदा से दुर्योधन की जाँघ तोड़ने की प्रतिज्ञा की। द्युत के नियमानुसार पांडवों को बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास करना पड़ा। पश्चात् श्रीकृष्ण पांडवों के दूत होकर कौरव सभा में गये; परंतु दुर्योधन पूर्व निश्चय के अनुसार आधा राज्य तो क्या, पाँच गाँव देने को भी तैयार न हुआ। फलतः कुरुक्षेत्र का भयानक युद्ध हुआ जिसमें सौ भाइयों सहित दुर्योधन मारा गया।


दुर्योनि
वि.
(सं.)
जो नीच कुल में जन्मा हो।


दुर्रा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दुर्रः)
कोड़ा, चाबुक।


दुर्लंध्य
वि.
(सं.)
जिसे लाँघना सरल न हो।


दुर्लक्ष्य
वि.
(सं.)
जो कठिनता से दिखायी पड़े।


दुर्लक्ष्य
संज्ञा
पुं.
बुरा उदेश्य, लक्ष्य या स्वार्थ।


दुर्वाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निंदा, बदनामी।


दुर्वाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अप्रिय वाक्य।


दुर्वाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुचित विवाद।


दुर्वादी
वि.
(सं. दुर्वादिन्)
तर्क-कुतर्क करनेवाला।


दुर्वार, दुर्वार्य
वि.
(सं.)
जो जल्दी रोका न जा सके।


दुर्वासना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या अनुचित इच्छा।


दुर्वासना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
इच्छा जो पूरी न हो सके।


दुर्वासा
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्वासस्)
एक क्रोधी मुनि जो अत्रि के पुत्र थे। इन्होंने और्व मुनि की कन्या कंदली से विवाह किया था। पत्नी से सौ बार क्रुद्ध होने पर इन्होंने उसे क्षमा कर दिया; पश्चात किसी अपराध पर उसे शाप देकर भस्म कर दिया। इस पर इनके ससुर और्व मुनि ने शाप दिया—तुम्हारा गर्व चूर होगा। इसी कारण अंबरीष के प्रसंग में इन्हें नीचा देखना पड़ा।


दुर्विगाह
वि.
(सं.)
जिसकी थाह जल्दी न मिले।


दुर्विज्ञेय
वि.
(सं.)
जो जल्दी जाना न जा सके।


दुर्विद
वि.
(सं.)
जिसे जानना कठिन हो।


दुर्विदग्व
वि.
(सं.)
अधजला


दुर्विदग्व
वि.
(सं.)
अधपका।


दुर्विदग्व
वि.
(सं.)
घमंडी, अहंकारी।


दुर्विदग्घता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पूर्ण निपुणता का अभाव।


दुर्विध
वि.
(सं.)
दरिद्र।


दुर्विध
वि.
(सं.)
नीच।


दुर्विधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्भाग्य, अभाग्य।


दुर्विधि
संज्ञा
स्त्री.
बुरी विधि, अनीति, कुनीति।


दुर्विनीत
वि.
(सं.)
अशिष्ट, उद्धत, अक्खड़।


दंतमूलीय
वि.
(सं.)
दंतमूल से उच्चरित होने वाले (वर्ण जैसे त, थ)।


दंतवक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
करुष देश का राजा जो वृद्ध शर्मा का पुत्र था और शिशुपाल का भाई लगता था। इसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
उ.—सूर प्रभु रहे ता ठौर दिन और कछु मारि दंतवक्र पुर गमन कीन्हो—१० उ. ५६।


दंतशूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत की पीड़ा।


दंतार, दंताल
संज्ञा
पुं.
[(हिं. दाँत + आर (प्रत्य.)]
हाथी।


दंतार, दंताल
वि.
[(हिं. दाँत + आर (प्रत्य.)]
जिसके दाँत बड़े-बड़े हो, बड़दंता।


दंतालिका, दंताली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लगाम।


दंतावल, दंताहल
संज्ञा
पुं.
(सं. दंतावल)
हाथी।


दँतियाँ
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दाँत + इयाँ (प्रत्य.)]
बच्चों के छोटे-छोटे दाँत।
उ.—(क) किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत—१०-११०। (ख) बोलत स्याम तोतरी बतियाँ, हँसि-हँसि दतियाँ दूमै—१०-१४७। (ग) बिहँसत उघरि गर्ई दँतियाँ, लै सूर स्याम उर लायौ—१०-२८८।


दंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक पेड़।


दंती
संज्ञा
पुं.
(सं. दंत)
हाथी।


दुर्विपाक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुफल।


दुर्विपाक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्घटना |


दुर्विभाव्य
वि.
(सं.)
जिसका अनुमान भी न हो सके।


दुर्विलसित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या अनुचित काम।


दुर्विवाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा या निंदित विवाह।


दुर्विष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महादेव जिन पर विष का कोई प्रभाव न हुआ।


दुर्विषस
वि.
(सं.)
जिसे सहना कठिन हो, दुःसह।


दुर्वृत्त
वि.
(सं.)
जिसका आचरण बुरा हो।


दुर्वृत्त
संज्ञा
पुं.
बुरा आचरण, या व्यवहार।


दुर्वृत्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरा काम या व्यवसाय


दुर्व्यवस्था
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुप्रबंध।


दुर्व्यवहार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरा बर्ताव या आचरण।


दुर्व्यसन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरी लत या आदत।


दुर्व्यसनी
वि.
(सं.)
बुरी लत या आदतवाला।


दुर्व्रत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुरी इच्छा या निश्चय।


दुर्व्रत
वि.
बुरी इच्छा रखनेवाला, नीचाशय।


दुर्हृद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जो मित्र न हो, शत्रु।


दुलकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दलकना)
घोड़े की एक चाल।


दुलखना
क्रि. स.
(हिं. दो + लक्षण)
बार-बार कहना।


दुलड़ा
वि.
(हिं. दो + लड़)
जिसमें दो लड़ हों।


दुलड़ा
संज्ञा
पुं.
दो लड़ों का हार।


दुलड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुलड़ा)
दो लड़ों की माला।


दुलत्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + लात)
पशुओ का पिछले पैर उठा कर मारना।


दुलना
क्रि. अ.
(हिं. दुलना)
हिलना-डोलना।


दुलभ
वि.
(हिं. दुर्लभ)
दुष्प्राय्य।


दुलभ
वि.
(हिं. दुर्लभ)
बहुत सुंदर।


दुलराई
क्रि. वि.
(हिं. दुलारना)
लाड़ प्यार करके, दुलार करके।
उ.—जसोदा हरि पालनै झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै—१०-४३।


दुलराना
क्रि. स.
(हिं. दुलारना)
लाड़ प्यार करना।


दुलराना
क्रि. अ.
दुलारे बच्चों का सा व्यवहार करना।


दुलरावति
क्रि. स.
(हिं. दुलारना)
दुलार-प्यार कंरती है, लाड़-प्यार दिखाती है।
उ.—(क) बैठी हुती जसोदा मंदिर, दुलरावति सुत कुँवर कन्हाई—१०-५०। (ख) कर सौ ठोकि सुतहिं दुलरावति, चटपटाइ बैठे अतुराने—१०-१९७।


दुलरावन
संज्ञा
(हिं. दुलारना)
दुलार करने का भाव।


दुलरावन
प्र.
लागी दुलरावन—दुलार-प्यार का व्यवहार करने लगी।
उ.—अब लागी मोको दुलरावन प्रेम करति टरि ऐसी हो। सुनेहु सूर तुमरे छिन छिन मति बढ़ी प्रेम की गैसी हो।


दुलरावना
क्रि. स.
(हिं. दुलारना)
दुलार प्यार करना।


दुलरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + लड़ = दुलड़ी)
दो लड़ की माला।
उ.—(क) दुलरी कंठ नयन रतनारे मो मन चितै हरयौ—८८३। (ख) स्त्रुति मंडल मकराकृत कुंडल कंठ कनक दुलरी—३०२६।


दुलरी
वि.
दो लड़ की।
उ.—अंग-अभूषन जननि उतारति। दुलरी ग्रीव माल मोतिनि कौ, लै केयूर भुज स्याम निहारति—५१२।


दुलरुवा
वि.
(हिं. दुलारा)
प्यारा-दुलारा।


दुलह, दुलहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूल्हा)
वर, दूल्हा।
उ.—श्री बलदेव कह्यौ दुर्योधन नीको दुलह विचारो—सारा. ८०३।


दुलहन, दुलहिन, दुलहिनि, दुलहिनी , दुलहिया, दुलही,
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुलहन)
वधू, नयी बहू।
उ.—(क) आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहिं न जनैहों। हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया लैहौं—१०-१६३। (ख) दुलहिनि कहत दौरि दीजहु द्विज पाती नंद के लालहिं—१०-३-२०।


दुलही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुलहन)
श्रीकृष्ण का गैया-विशेष के लिए दुलार का संबोधन।
उ.—अपनी अपनी गाइ ग्वाल सब, आनि करौ इकठौरी।¨¨¨¨¨। दुलही, फुलही,भौंरी, भूरी, हाँकि ठिकाई तेती-४४५।


दुलहेटा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुलारा + बेटा)
लाड़ला-दुलारा बेटा।


दुलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. तुलाई, तुराई)
रूई भरी रजाई।


दुलाना
क्रि. स.
(हिं. डुलाना)
हिलना-डुलाना।


दुलार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुलारना)
लाड़-प्यार।


दुलारना
क्रि. स.
(सं. दुर्लालन, प्रा. दुल्लाडन)
लाड़-प्यार करना, लाड़ लड़ाना।


दुलारा
वि.
(हिं. दुलार, दुलारा)
प्यारा, लाड़ला।


दुलारा
संज्ञा
पुं.
प्यारा और लाड़ला पुत्र।


दुलारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. दुलारा)
लाड़ली बेटी, प्रिय कन्या।
उ.—यह सुनिकै बृषभानु मुदित चित, हँसि हँसि बूझति बात दुलारी—७०८।


दुलारी
वि.
स्त्री.
जिसका खूब दुलार-प्यार हो, लाड़ली।


दुलारे
वि.
(हिं. दुलार का बहु.)
जिनका बहुत लाड़-प्यार होता हो, लाड़ले प्यारे।


दुलारे
संज्ञा
पुं.
लाड़ला बेटा या बेटे।
उ.—कोमल कर गोबर्धन धारथै जब हुते नंद-दुलारे—१-२५।


दुलारो, दुलारौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुलारा)
लाड़ला बेटा, प्रिय पुत्र।
मिटि जु गयौ संताप जनम कौ, देख्यौ नंद-दुलारौ—१०-१५।


दुलीचा, दुलैचा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
गलीचा, कालीन।


दुलोही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + लोहा)
तलवार।


दुर्ल्लभ
वि.
(सं. दुर्लभ)
दुष्प्राप्य।


दुर्ल्लभ
वि.
(सं. दुर्लभ)
बहुत सूंदर।


दुल्हैयौ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुलहन)
नयी वधू।


दुव
वि.
(सं. द्वि)
दो।


दुवन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्मनस्)
दुष्ट प्रकृति का आदमी, दुर्जन।


दुवन
संज्ञा
पुं.
सं. दुर्मनस्)
शत्रु, वैरी।


दुवन
संज्ञा
पुं.
सं. दुर्मनस्)
राक्षस।


दुवन
वि.
बुरा, खराब।


दुवाज
संज्ञा
पुं.
(?)
एक तरह का घोड़ा।


दुवादस
वि.
(सं. द्वादश)
बारह।


दुवादस
वि.
(सं. द्वादश)
बारहवाँ।


दुवादस वानी
वि.
(सं. द्वादश=सूर्य + वर्ण)
सूर्य के समान चमक-दमक वाला, खरा, दमकता हुआ।


दुवादसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वादशी)
किसी पक्ष की बारहवीं तिथि।


दुवार
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार, दरवाजा, बाहर निकलने का पथ।
उ.—(क) आँखि, नाक, मुख, मूल दुवार—। (ख) दधिसुत जामें नंद-दुवार—४-१२। (ग) देहरि उलँधि सकत नाहिं सो अब खेलत नंद-दुवार—१०-१७३।(घ) सब सुंदरि मिलि मंगल गावत कंचन कलस दुवार—सारा.—१६३।


दुवारिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वारका)
द्वारकापुरी।


दुवारे, दुवारैं
संज्ञा
पुं. मुनि
(सं. द्वार)
द्वार पर।
उ.—अर्थ काम दोउ रहैं दुवारें, धर्म-मोक्ष सिर नावैं—१-४०। (ख) हरि ठाढ़े रथ चढ़े दुवारे—१-२४०। (ग) देखि फिरि हरि ग्वाल दुवारे। तब इक बुद्धि रची अपनैं मन, गए नाँधि पिछवारैं—१०-१७७।


दुविद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विविद)
श्रीराम का सेनानायक एक बंदर।


दुविधा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुबधा)
असमंजस।


दुविधा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुबधा)
खटका।


दुवो, दुवौ
वि.
(हिं. दव=दो + उ=ही)
दोनों।


दुशवार
वि.
(फ़ा.)
कठिन।


दुशवार
वि.
(फ़ा.)
दुःसह।


दुशवारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कठिनता।


दुशाला
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दोशाला)
बढ़िया चादर।
मुहा.- दुशाले में लपेटकर— छिपे-छिपे।


दुशासन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःशासन)
दुर्योधन का एक भाई।


दुशासन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःशासन)
बुरा या कष्टदायी शासन।


दुश्चर
वि.
(सं.)
जिसका करना कठिन हो।


दुश्चित्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घबराहट।


दुश्चेष्टा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरा काम, कुचेष्टा।


दुश्चेष्टित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पाप।


दुश्चेष्टित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीच काम।


दुश्च्यवन
वि.
(सं.)
जो जल्दी विचलित न हो।


दुश्च्यवन
संज्ञा
पुं.
देवराज इंद्र।


दुश्च्याव
वि.
(सं.)
जो जल्दी विचलित न हो।


दुश्च्याव
संज्ञा
पुं.
शिव जी, महादेव।


दुश्मन
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
शत्रु, वैरी।


दुश्मनी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
वैर, शत्रुता, विरोध।


दुश्चरित
वि.
(सं.)
बुरे चरित्रवाला।


दुश्चरित
वि.
(सं.)
कठिन।


दुश्चरित
संज्ञा
पुं.
बुरा आचरण।


दुश्चरित
संज्ञा
पुं.
पाप।


दुश्चरित्र
वि.
(सं.)
बुरे चरित्रवाला।


दुश्चरित्र
संज्ञा
पुं.
बुरा आचरण, दुराचार।


दुश्चलन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दः + हि. चलन)
दुराचार।


दुश्चित्य
वि.
(सं.)
जो कठिनता से समझ में आवे।


दुश्चिकित्स
वि.
(सं.)
जिसकी चिकित्सा न हो सके।


दुश्चित्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खटका।


दंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पहाड़ की चोटी।


दंतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।


दंतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पर्वत की चोटी।


दंतकथा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सुनी-सुनायी बात, जनश्रुति।


दंतताल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताल देने का एक बाजा।


दंतदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
क्रोध में दाँत निकालना।


दंतधावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत साफ करने की क्रिया।


दंतपत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कान का एक गहना।


दंतबक्र
संज्ञा
पुं.
(सं. दंतवक्र)
करुष देश का एक राजा।


दंतमूल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत उगने का स्थान।


दुष्कर
वि.
(सं.)
जिसको करना कठिन हो (काम)।


दुष्कर
संज्ञा
पुं.
आकाश, गगन।


दुष्कर्म
संज्ञा
पुं.
(सं. दुष्कर्म्मन्)
बुरा काम, पाप।


दुष्कर्मी, दुष्कमी
वि.
(सं. दुष्कर्मन्)
पापी।


दुष्काल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुसमय।


दुष्काल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अकाल।


दुष्कीर्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अपयश, बदनामी।


दुष्कुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीच या बुरा कुल।


दुष्कुल
वि.
नीच या अप्रतिष्ठित घराने का।


दुष्कुलीन
वि.
(सं.)
तुच्छ या अप्रतिष्ठित घराने का।


दुष्टवेता
वि.
(सं. दुष्टचेतस्)
कपटी।


दुष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दोष , ऐब।


दुष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुराई, खराबी।


दुष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
खोटाई, दुर्जनता।


दुष्टत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुष्टता, खोटापन, दुर्जनता।


दुष्टपना
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुष्ट +पन (प्रत्य.)]
खोटाई।


दुष्टमति
वि.
(सं.)
दुर्बुद्धि, दुराशय।


दुष्ट-सभा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुष्ट + सभा)
दुष्टों का समूह
उ.—बालक लियौ उछंग दुष्टमति, हरषित अस्तन-पान कराई—१०-५०।


दुष्ट-सभा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुष्ट + सभा)
दुराचारी कौरवों की राजसभा।
उ.—अंबर हरत द्रपद-तनया की दुष्ट-सभा मधि लाज सम्हारी—१-२२।


दुष्टा
वि.
स्त्री.
(सं.)
दुष्ट या बुरे स्वभाव की।


दुष्कृति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरा या नीच कर्म।


दुष्कृति
वि.
(सं.)
कुकर्मी, पापी।


दुष्कृती
वि.
(सं. दुष्कृतिन्)
बुरा काम करनेवाला।


दुष्क्रीत
वि.
(सं.)
अधिक मूल्य का, महँगा।


दुष्ट
वि.
(सं.)
जिसमें दोष हो, दूषित।


दुष्ट
वि.
(सं.)
खल, दुर्जन, खोटा।


दुष्टचारी
वि.
(सं. दुष्टचरिन्)
बुरा आचरण करनेवाला।


दुष्टचारी
वि.
(सं. दुष्टचरिन्)
खल, दुर्जन, नीच।


दुष्टवेता
वि.
(सं. दुष्टचेतस्)
बुरे विचार का।


दुष्टवेता
वि.
(सं. दुष्टचेतस्)
बुरा या अहित चाहनेवाला।


दुष्प्राय, दुष्प्राप्य
वि.
(सं. दुष्प्राप्य)
जो आसानी से मिल न सके, जिसका मिलना कठिन हो।


दुष्प्रेक्ष, दुष्प्रेक्ष्य
वि.
(सं. दुष्प्रेक्ष्य)
जिसे देखना कठिन हो।


दुष्प्रेक्ष, दुष्प्रेक्ष्य
वि.
(सं. दुष्प्रेक्ष्य)
देखने में भीषण या भयानक।


दुष्मंत, दुष्यंत
संज्ञा
पुं.
(सं. दुष्यंत)
एक पुरुवंशी राजा जिसने कण्व ऋषि की पोषिता कन्या शकुंतला से विवाह किया था और जिनकी कथा लेकर कालिदास ने ¨अभिज्ञान शाकुंतल¨ नाटक लिखा।


दुसराना
क्रि. स.
(हिं. दूसरा)
दुहराना।


दुसरिहा
वि.
[हिं. दूसरा + हा (प्रत्य.)]
साथ रहनेवाला, साथी-संगी।


दुसरिहा
वि.
[हिं. दूसरा + हा (प्रत्य.)]
प्रतिद्वंद्वी, विरोधी।


दुसह
वि.
(सं. दुःसह)
जो सरलता से सहा न जा सके, असह्य, बहुत कष्टदायक।
उ.—(क) तुम बिनु ऐसो कौन नंद-सुत यह दुख दुसह मिटावन लायक—९५४। (ख) अति ही दुसह सह्यौ नहिं जाई—२६५०। (ग) चलते हरि धिक जु रहत ये प्रान कहँ वह सुख, अब सहौं दुसह दुख, उर करि कुलिस समान—२९८४।


दुसह
वि.
(सं. दुःसह)
कठोर, दृढ़, मजबूत।
उ.—यह अति दुसह पिनाक पिता-प्रन राघव बयस किसोर—९-२३।


दुसही
वि.
[हिं. दुःसह + ई (प्रत्य.)]
जो कठिनता से सहन कर सके।


दुष्पराजय
वि.
(सं.)
जिसको जीतना कठिन हो।


दुष्परिग्रह
वि.
(सं.)
जिसको पकड़ना कठिन हो।


दुष्पर्श
वि.
(सं.)
जिसको स्पर्श करना कठिन हो।


दुष्पर्श
वि.
(सं.)
जिसको पकड़ना कठिन हो।


दुष्पार
वि.
(सं.)
जिसको पार करना कठिन हो।


दुष्पूर
वि.
(सं.)
जिसको पूरा भरना कठिन हो।


दुष्प्रकृति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या दुष्ट प्रकृति।


दुष्प्रकृति
वि.
खोटे या नीच स्वभाववाला।


दुष्प्रधर्ष
वि.
(सं.)
जो जल्दी पकड़ा न जा सके।


दुष्प्रवृत्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुरी या खोटी प्रकृति।


दुष्टाचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुकर्म, खोटा या बुरा काम।


दुष्टाचार
वि.
(सं.)
खोटा या बुरा काम करनेवाला।


दुष्टाचारी
वि.
(सं.)
बुरा काम करनेवाला, कुकर्मी।


दुष्टात्मा
वि.
(सं.)
खोटे या बुरे स्वभाव का।


दुष्टान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बासी या सड़ा अन्न।


दुष्टान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अन्न जो पाप की कमाई हो।


दुष्टान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीच का अन्न।


दुष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दोष, ऐब, पाप।


दुष्पच
वि.
(सं.)
जो जल्दी न पच सके।


दुष्पद
वि.
(सं.)
जो सरलता से प्राप्त न हो सके।


दुसही
वि.
[हिं. दुःसह + ई (प्रत्य.)]
डाह रखनेवाला, डाही, ईर्ष्यालु।


दुसाखा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + शाखा)
दो कनखे वाला शमादाना।


दुसाखा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + शाखा)
लकड़ी जिसमें दो कनखे हों।


दुसाध
वि.
(सं. दुःसाध्य)
नीच, दुष्ट।


दुसार, दुसाल
संज्ञा
पुं.
(दिं. दो + सालना)
आर पार किया गया या होनेवाला छेद।


दुसार, दुसाल
क्रि. वि.
एक पार से दूसरे पार तक।


दुसार, दुसाल
वि.
(सं. दुःशल्य)
बहुत कष्ट देनेवाला।


दुसाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुशाला)
पश्मीने की चादर।


दुसासन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःशासन)
धृतराष्ट्र का एक पुत्र जो भीम द्वारा मारा गया था।


दुसूती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + सूत)
एक मोटा कपड़ा।


दुसेजा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + सेज)
बड़ी खाट, पलँग।


दुस्कर
वि.
(सं. दुष्कर)
जिसे करना कठिन हो।


दुस्तर
वि.
(सं.)
जिसे पार करना कठिन हो।
उ. — सूरजदास स्याम सेए तैं दुस्तर पार तरै—१-९२।


दुस्तर
वि.
(सं.)
दुर्घट, बिकट, कठिन।


दुम्त्यज
वि.
(सं. दुस्त्याज्य)
जिसको त्यागना कठिन हो।


दुस्तर्क्य
वि.
(सं.)
जिसे तर्क से सिद्ध करना कठिन हो।


दुस्सह
वि.
(सं. दुःसह)
अत्यंत कष्टदायक, घोर।
उ. — हिरनकसिप दुस्सह तप कियौ—७-२।


दुस्सासन
संज्ञा
पुं.
(सं. दुःशासन)
धुतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक जो भीम द्वारा मारा गया था।


दुहत
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहते हैं, दुही जाती हैं।
उ. नव लख धेनु दुहत हैं नित प्रति, बड़ौ नाम है नंद महर कौ—१०-३३३।


दुहता
संज्ञा
पुं.
(सं. दौहित्र)
लड़की का लड़का, नाती।


दुहती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहिता)
पुत्री की पुत्री, नातिन।


दुहत्थड़, दुहत्था
वि.
(हिं. दो ÷ हाथ)
दोनों हाथों से किया हुआ।


दुहत्थड़, दुहत्था
वि.
(हिं. दो ÷ हाथ)
जिसमें दो हत्थे हों या मूँठें हों।


दुहन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहना)
दुहने की क्रिया, (थन से) दूध निकालने की किया।
उ. (क) काल्हि तुम्हें गो दुहन सिखावैं, दुही सबै अब गाइ—४००। (ख) मैं दुहिहौं, मोहिं दुहन सिखावहु —४०१। (ग) बाबा मोकौं दुहन सिखायौ—६६७।


दुहना
क्रि. स.
(सं. दोहन)
थन से दूध निकालना।


दुहना
क्रि. स.
(सं. दोहन)
सारा तत्व-भाग निचोड़ लेना।


दुहना
क्रि. स.
(सं. दोहन)
धन हर लेना।


दुहनियाँ, दुहनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दोहनी)
वह पात्र जिसमें दूध दूहा जाय।
उ. — डारि दियौ भरी दूध-दुहनियाँ अबहीं नीकैं आई—७४१।


दुहरना, दुहराना
क्रि. स.
(हिं. दोहराना)
किसी बात को बार-बार कहना।


दुहरना, दुहराना
क्रि. स.
(हिं. दोहराना)
किसी चीज को दोहरा करना।


दुहरा
वि.
(हिं. दोहरा)
दो तह का।


दुहरा
वि.
(हिं. दोहरा)
दुगना।


दुहरानी
वि.
(हिं. दोहराना)
दुगने के लगभग।
उ.— कहा करौं अपथि भई मिलि बढ़ी ब्यथा दुख दुहरानी —२८८७।


दुहहु
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहो, (पशुओं के) थन से दूध निकालो।
उ.—सूरदास नँद लेहु दोहिनी, दुहहु लाल की नाटी—१०-२५९।


दुहाइ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाई)
घोषणा, राजकीय सूचना।
मुहा.- फिरी दुहाइ— विजय-घोषणा हुई, जयजय कार हुई, प्रभुत्व का डंका पिटा। उ.— कुंभकरन तन पंक लगाई, लंक बिभिषन पाइ। प्रगट्यौ आइ लंक-दलकवि कौ, फिरी रघुबीर दुहाइ— ९-८३।


दुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वि = दो +आह्वान=पुकार)
घोषणा, पुकार, सूचना।
मुहा.- (किसी की) दुहाई फिरना— (१) राजा के सिंहासनासीन होने की घोषणा। उ.— (क) बैठे राम राज-सिंहासन जग में फिरी दुहाई— सारा. ३०२। (२) प्रताप का डंका बजना, जयजयकार होना। उ.— बंसी बनराज आज आई रन जीति। ¨¨¨। देत मदन मारूत मिलि दसों दिसि दुहाई— ६५०।


दुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वि = दो +आह्वान=पुकार)
सहायता, बचाव या रक्षा के लिए पुकार।
मुहा.- दुहाई देना— संकट पड़ने पर सहायता या रक्षा के लिए पुकारना।


दुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वि = दो +आह्वान=पुकार)
शपथ, कसम, सौगंद।
उ.— (क) अब मन मानि धौं राम दुहाई। मन-बच-क्रम हरिनाम ह्रदय धरि, ज्यों गुरू बेद बताई—१-३१८। (ख) मोहिं कहत जुवती सब चोर।¨¨¨¨। जहाँ मोहिं देखति तहँ टेरति, मैं नहिं जात दुहाई तोर—१३९८। (ग) जब लगि एक दुहौगे तब लौं चारि दुहौंगो नंद दुहाई—६६८।


दुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहना)
गाय-भैस आदि को दुहने की क्रिया।


दुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहना)
दुहने की मजदूरी।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
यमराज।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
शासक।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
द्वारपाल।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
दंड-कमंडल-धारी साधु।
उ.—हरि कौ भेद पाय के अजु— न धरि दंडी कौ रूप—सारा. ५०४।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
सूर्य का एक अनुचर।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
शिव।


दंडी
संज्ञा
पुं.
(सं. दंडिन्)
संस्कृत का एक प्रसिद्ध कवि।


दँडौत
संज्ञा
पुं. स्त्री.
(सं. दंडवंत्)
साष्टांग प्रणाम, पृथ्वी पर लेटकर किया हुआ नमस्कार, दंडवत्।
उ.—तातैं तुंम कौं करत दँडौत। अरू. सब नरहूँ कौ परिनौत—५-४।


दंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।
उ.—पटक्यो भूमि फेरि नहिं मटक्यो लीन्हे दंत उपारी—२५६४।
मुहा.- दंत तृन धरि कै- दया की विनती करके, गिड़गिड़ाकर, सविनय क्षमा माणगकर। उ.- सुनु सिख कंत, दंत तृन धरि कै, क्यौं परिवार सिधारौ- ६-११५। अँगुरीनि दंत दै रह्यौ- दाँतौं में उँगली दबा ली, बहुत चकित हुआ। उ. मैं तो जे हरे हैं, ते तो सोवत परे हैं. ये करे हैं कौनैं आन, अँगुरीनि दंत दै रह्यौ- ४८४।


दंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
३२ की संख्या।


दुहाऊँ
क्रि. स.
(हिं. दुहना का प्रे.)
दूध निकलवाऊँ।
उ.—कामधेनु छाँढ़ि कहा अजा लै दुहाऊँ—१-१६६।


दुहाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाग्य, प्रा. दुव्भाग)
दुर्भाग्य, अभाग्य।


दुहाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाग्य, प्रा. दुव्भाग)
सोहाग की हानि, वैधव्य।


दुहागा
वि.
(हिं. दुहाग)
अभागा, भाग्यहीन।


दुहागिन
वि.
(हिं. दुहागी)
विधवा


दुहागिन
वि.
(हिं. दुहागी)
अभागी।


दुहागिल
वि.
[वि. दुहाग + इल (प्रत्य.)]
अभागा।


दुहागिल
वि.
[वि. दुहाग + इल (प्रत्य.)]
अनाथ, अनाश्रित।


दुहागिल
वि.
[वि. दुहाग + इल (प्रत्य.)]
सूना, खाली।


दुहागी
वि.
(सं. दुर्भागिन)
अभाग भाग्यहीन।


दुहाजू
वि.
पुं.
(सं. द्विभार्य्य)
जो (पुरुष) पहली पत्नी के मर जाने पर दूसरा विवाह करे।


दुहाजू
वि.
स्त्री.
वह स्त्री जो पति के मरने पर दूसरा विवाह करे।


दुहाना
क्रि. स.
(हिं. दुहना प्रे.)
गाय-भैस आदि को दुहने का काम दूसरे से कराना।


दुहाव
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाना)
एक प्रथा जिसमें विशेष त्योहारों पर असामियों की गाय-भैंसों का दूध मालिक दूहा लेता है।


दुहाव
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाना)
वह दूध जो इस प्रथा के अनुसार मालिक को मिले।


दुहावति
क्रि. स.
स्त्री.
(हिं. दुहाना)
दुहाती है।
उ.—सूरदास प्रभु पास दुहावति. धनि-धनि श्री बृषभानु-लली—७३९।


दुहावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाना)
दुहाने के उद्देश्य से या दुहाने (के लिए)।
उ.—खरिक दुहावन जाति हौं, तुम्हरी सेवकाई—७१३।


दुहावनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाना)
दुहने की मजदूरी।


दुहावै
क्रि. स.
(हिं. दुहाना)
दुहने का काम कराये, दूध निकलवाये।
उ.—सूरदास-प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै—१-१६८।


दुहि
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दूध दुहकर।


दुहि
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
सार या तत्व निचोड़कर।
उ.—पाछे पृथु को रूप हरि लीन्हें नाना रस दुहि काढ़े—सारा. २४।


दुहिती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहितृ)
कन्या, पुत्री।


दुहितृपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दामाद, जामाता।


दुहिन
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रुहण)
ब्रह्मा, विधाता।


दुहिनि
वि.
(हिं. दुहूँ + नि)
दोनों के।
उ.—अबहीं सुनि बसुदेव-देवकी हरषित ह्ण हैं दुहिनि हियौ—३०८६।


दुहियन
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहते हैं, थन से दूध निकालते हैं।
उ.—(क) चहुँ ओर चतुरंग लच्छमी, कोटिक दुहियत धैन री—१०-१३९। (ख) साँझ कुतूहल होत है जहँ तहँ दुहियत गाइ—४९२।


दुहिहौं
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहूँगा, दूध निकालूँगा।
उ.—मैं दुहिहौं मोहिं दुहन सिखावहु—४०१।


दुहीं
वि.
(हिं. दुहना)
जो दुह ली गयी हों, जिनका दूध दुहा जा चुका हो।
उ.—काल्हि तुम्हैं गो-दुहन सिखावै, दुहीं सबै अब गाइ—४००।


दुही
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुह ली, (थन से) दूध निकाला।
उ.—सूर स्याम सुरभी दुही, संतनि हित-कारी—४०९।


दुहुँ
क्रि. वि.
[हिं. दो + हूँ (प्रत्य.)]
दोनों, दोनों ही।
उ.—मेरी पीर परम पुरुषोत्तम, दुख मेटूयौ दुहुँ घाँ कौ—१-११३।


दुहेली
वि.
स्त्री.
(हिं. दुहेला)
दुखदायिनी।


दुहेली
वि.
स्त्री.
(हिं. दुहेला)
दुखिया।


दुहैंगे
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहेंगे, दूध निकालेंगे।
उ.—सूर स्याम कह्यौ काल्हि दुहैंगे, हमहूँ तुम मिलि होड़ लगाई—६६८।


दुहैया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाई)
शपथ, कसम, सौगंद।
उ.—(क) सूरदास प्रभु खेल्योइ चाहत, दाऊँ दियौ करि नंद-दुहैया—१०-२४५। (ख) मानी हार सूर के प्रभु तब, बहुरि न करिहौं नँद दुहैया—७३५। (ग) दोउ सींग बिच ह्णै हौं आयौ, जहाँ न कोउ हो रखवैया। तेरौ पुन्य सहाय भयौ है उबरयौ बाबा नंद-दुहैया—१०-३३५। (घ) दै री मैया दोहनी, दुहिहौं मैं गैया।माखन खाए बल भयौ, करौं नंद-दुहैया—६६६।


दुहैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुहना)
दुहनेवाला।
उ.—अति रस काम की प्रीति जानिकै आवत खरिक दुहैया—७३३।


दुहोतरा
संज्ञा
पुं.
(सं. दौहित्र)
पुत्री का पुत्र, नाती।


दुहोतरा
वि.
(सं. द्वि, हिं. दो))
दो अधिक, दो ऊपर।


दुहोतरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहोतरा)
पुत्री की पुत्री।


दुहौंगो
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुह लूँगा, (थन से) दूध निकालूँगा।
उ,—जब लौं एक दुहौगे तब लौं चारि दुहौंको, नंद दुहाई—६६८।


दुहौ
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहो, (थन से) दूध निकालो।
उ.—(क) भोर दुहौ जनि नंद-दुहाई, उनसौं कहत सुनाइ—४००। (ख) ग्वाल एक दोहनि लै दीन्ही, दुहौ स्याम अति करौ चँडाई—७१७।


दुहुँ
वि.
(हिं. दो)
दो, दोनों।
उ.—इत-उत देखत जनम गयौ। या झूठी माया कैं कारन, दुहुँ दृग अंध भयौ—१-२९१।


दुहुँघा
क्रि. वि.
(हिं. दुहुँ=दो + घा=ऒर)
दोनों ओर से।


दुहुँन
वि.
(हिं. दोनो)
एक और दूसरा, दोनों।
उ.—दोऊ लगत दुहुन तैं सुंदर भले अनोन्या आजु-सा-४५।


दुहुँनि
सर्व.
[हिं. दो + नि (प्रत्य.)]
दोनों ही ने।
उ.—(क) दुहूँनि मनोरथ अपनौ भाप्यौ—१-२६८। (ख) सुर-असुर बहुत ता ठौर ही मरि गऐ, दुहुँनि कौ गर्व यौं हरि नसायौ—८-८।


दुहूँ
वि.
[हिं. दो + हूँ (प्रत्य.)]
दोनों।


दुहेनू
वि.
(हिं. दुहना)
दूध देनेवाली।


दुहेल
संज्ञा
पुं.
(सं. दुहेल.)
दुख, विपत्ति।


दुहेला
वि.
(सं. दुहेल.)
दुखद, कठिन, दुःसाध्य।


दुहेला
वि.
(सं. दुहेल.)
दुखी, दुखिया।


दुहेला
संज्ञा
पुं.
विकट खेल, कठिन या दुःसाध्य कार्य।


दुहौगे
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहोगे, थन से दूध निकालोगे।
उ.—जब लौं एक दुहौगे तब लौं, चारि दुहौगे नंद दुहाई—६६८।


दुह्य
वि.
(सं.)
दुहने योग्य।


दुह्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ययाति और शर्मिष्ठा का एक पुत्र जिसने पिता को अपनी युवावस्था देना अस्वीकार कर दिया था।


दुह्या
वि.
स्त्री.
(सं. दुह्य)
दुहने योग्य।


दूँगड़ा, दूँगरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दौंगरा)
गर्मी को तपन के बाद होनेवाली हलकी वर्षा।


दूँद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वंद्व)
उपद्रव।


दूँद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वंद्व)
घोर शब्द।


दूँदना
क्रि. अ.
(सं. दूँद)
उपद्रव करना, उधम मचाना।


दूँदना
क्रि. अ.
(सं. दूँद)
घोर शब्द करना।


दू
वि.
(हिं. दो)
दो।
सरबस मैं पहिलैं ही वारयौ नान्हीं नान्हीं दँतुली दू पर—१०-९२।


दूआ
संज्ञा
पुं.
(देश.)
कलाई का एक गहना, पछेली।


दूआ
संज्ञा
पुं.
[हिं. दो + आ (प्रत्य.)]
खेल की दुक्की।


दूआ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुआ)
प्रार्थना।


दूआ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुआ)
आशीश।


दूइ
वि.
(हिं. दो)
दो।


दूइज
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूज)
दूज, द्वितीया।


दूई
वि.
(हिं. दो)
दो।


दूक
वि.
(सं. द्वैक)
दो, एक, कुछ, थोड़े।


दूकान
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुकान)
दुकान।


दूख
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुख)
कष्ट, पीड़ा।


दूखन
संज्ञा
पुं.
(सं. दूषण)
दोष, ऐब।


दूखना
क्रि. स.
(सं. दूषण + ना)
दोष लगाना।


दूखना
क्रि. अ.
(हिं. दुखना)
कष्ट होना।


दुखित
वि.
(हिं. दूषित)
जिसमें दोष हो।


दुखित
वि.
(हिं. दुखित)
जो दुखी हो, पीड़ित।


दूखी
वि.
(हिं. दुखी)
दुखी हुई।
उ.—इते मान इहि जोग सँदेसनि सुनि अकुलानी दूखी—३०२९।


दूगुन
वि.
(सं. द्विगुण)
दूना, दुगना।


दूज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीया, प्रा. दुइय, दुइज)
किसी पक्ष की दूसरी तिथि, दुइज, द्वितीया।
मुहा.- दूज का चाँद होना— (१) कम दिखायी देनवाला। (२) जो बहुत दिन बाद दिखायी दे।


दूजा
वि.
(हिं. दो)
दूसरा, द्वितीय।


दूजी
वि.
(हिं. दूजा)
दूसरे, दूसरी।
उ.—सूर स्याम की इहै परेखो इक दुख दूजी हाँसी—३४०५।


दूधपिलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + पिलाना)
दूध पिलानेवाली धाय।


दूधपिलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + पिलाना)
ब्याह की रीति जिसमें माता वर को दूध पिलाने की सी मुद्रा बनाती है।


दूधपिलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + पिलाना)
वह धन या नेग जो माता को इस रीति के बदले में मिलता है।


दूधपूत
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध + पूत)
धन और संतान।
उ. —दूध-पूत की छाँड़ी आस।


दूधबहन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + बहन)
दूसरे की माता का दूध पीकर पलनेवाली लड़की जो उस स्त्री के पुत्र की ‘दूध-बहन’ कहलाती है।


दूधभाई
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध + भाई)
दूसरे की माता का दूध पीकर पलन वाला लड़का जो उस स्त्री के पुत्र-पुत्रियों का ‘दूधभाई’ कहलाता है।


दूधमुहाँ, दूधमुख
वि.
(हिं. दूध + मुँहा, मुख)
दूध पीता बच्चा।


दूधमुहाँ, दूधमुख
वि.
(हिं. दूध + मुँहा, मुख)
अबोघ और अनुभवहीन (व्यक्ति)।


दूधा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध)
एक तरह का धान।


दूधा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूध)
अन्न के कच्चे दानों का रस।


दूजे
वि.
(हिं. दूजा)
दूसरे, अन्य।
उ.—दूजे करज दूरि करि दैयत, नैंकु न न तामैं आवै—१-१४२।


दूजौ
वि.
(हिं. दूजा)
दूसरा, द्वितीय, अन्य।
उ.—(क) ऐसौ सूर नाहिं कोउ दूजौ, दूरि करै जम-दायौ—१-६७। (ख) तुमहिं समान और नहिं दूजौ, काहि भजौं हौं दीन—१-१११। (ग) कौरव छाँड़ि भूमि पर कैसैं दूजौ भूप कहावै—१-२७५। (घ) सूरदास कारी कामरि पै. चढ़त न दूजै रंग—१-३३२।


दूत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संदेश ले जानेवाला मनुष्य, चर।
उ.—पठवौ दूत भरत कौं ल्यावन, बचन कह्यौ बील-खाइ—९-४७।


दूत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रेमी-प्रेमिका का परस्पर संदेसा ले जाने वाला व्यक्ति।


दूतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत।


दूतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजाज्ञा का प्रचार करनेवाला कर्मचारी।


दूतकत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूतक का काम।


दूतकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत का काम।


दूतता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूत का काम।


दूतत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत का काम, दूतता।
उ.—पांडव कौ दूतत्व कियौ पुनि उग्रसेन कौं राज दयौ—१-२६।


दंतुर
वि.
(सं.)
बड़े दाँतवाला।


दंतुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी।


दंतुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जंगली सुअर।


दँतुरियाँ
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दाँत + इया (प्रत्य.)]
बच्चों के छोटे-छोटे दाँत।
उ.—दमकति दूध दँतुरियाँ रूगी—१०-११७।


दंतुल, दँतुला
वि.
(सं. दंतुल)
बड़े दाँत वाला।


दँतुलि, दँतुलिया, दँतुली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत)
बच्चों के छोटे-छोटे दाँत।
उ.—(क) दबहिं दँतुलि द्वै दूध की देखौं इन नैननि—१०-७४। (ख) माता दुखित जानि हरि बिहँसे, नान्ही दँतुलि दिखाइ—१०-८१। (ग) प्रगटति हँसत दँतुलि, मनु सीपज दमकि दुरे दल ऒलै री—१०-१३७। (घ) तनक-तनक सी दूध-दँतुलिया, देखौ, नैन सफल करौ आई—१०-८२। (च) दमकति दूध-दँतुलिया बिहँसत, मनु सीपज घर कियौ बारिज पर—१०-६३। (छ) सरबस सैं पहिलै ही वारथौ, नान्हीं-नान्हीं दँतुली दू पर—१०-६२। (ज) दुहुँघाँ द्वै दँतुली भंई. मुख अति छबि पावत—१०-१२२।


दंतोष्ठय
वि.
(सं.)
दाँत और ओठ से उच्चरित होनेवाले (वर्ण जैसे 'व')


दंत्य
वि.
(सं.)
दाँत से संबंध रखनेवाला।


दंत्य
वि.
(सं.)
दाँत के लिए गुणकारी।


दंत्य
वि.
(सं.)
(त, थ आदि वर्ण) जिसका उचरण दाँत से हो।


दूतपन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूत + पन)
दूत का काम।


दूतर
वि.
(सं. दुस्तर)
कठिन,दुस्साध्य।


दूतावास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विदेशी दूत का वास-स्थान।


दूति, दूतिका, दूती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दूती)
प्रेम-संदेसा ले जानेवाली स्त्री।
उ.—(क) निदरि हमैं अधरनि रस पीवति, पढ़ी दूतिका भाइ—६५६। (ख) ज्यों दूती पर-ब्रधू भोरि कै लै पर-पुरुष दिखावै—१-४२।


दूत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत का भाव या कार्य।


दूदुह
संज्ञा
पुं.
(सं. दुँडभ)
पानी का साँप, डेड़हा।


दूध
संज्ञा
पुं.
(सं. दुग्ध)
पय, दुग्ध।
मुहा.- दूध उतरना— थन या स्तन में दूध भर जाना।

दूध का दूध और पानी का पानी करना— ठीक-ठीक और निष्पक्ष न्याय करना। उ.— हम जातहिं वब उघरि परैगी दूध दूध पानी सौं पानी— १२६२। दूध का बच्चा— बहुत छोटा बच्चा जो दूध पर ही निर्भर हो। दूध का सा उबाल- शीघ्र ही शांत हो जानेवाला आवेग। दूध की मक्खी— तुच्छ और तिरस्कृत वस्तु। दूध की मक्की की तरह निकालना (निकालकर फेक देना)— किसी को तुच्छ या तिरस्कार योग्य समझकर अलग कर देना। काढ़ि डार्यौ ज्यों दूध माँझ तैं माखी— दूध की मक्की की तरह बेकार समझकर अलगद दिया। उ.— मनसा ज्यों बाचा कर्मना अब हम करत नहीं कछु राखी। सूर काढ़ि डार्यौ ब्रज तें ज्यों दूध माँज ते माखी— ३४८९। मुँह से दूध की गंध (बू) आना— अबोध और अनुभवहीन होना। दूध के दाँत (दँतियाँ दँतुलियाँ)- छोटी अवस्था के दाँत। उ.— (क) कब द्वौ दाँत दूध के देखौं, कब तोतरैं मुख बचन करै— १०-७६। (ख) हरषित देखि दूध की दँतियाँ ¨¨। तनक तनक सी दूध दँतुलिया— १०-८२। दूध के दाँत न टूटना— ज्ञान और अनुभव का अभाव होना। दूध चढ़ना— (१) स्तन में दूध कम हो जाना। (२) स्तन से अधिक दूध निकलना। दूध चढ़ाना— गाय-भैस का दूध इस तरह चढ़ा लेना कि कम दुहा जा सके और उसके बछड़े के लिए बच जाय। छठी का दूध याद आना— बहुत कष्ट या हैरानी होना। दूध छुड़ाना— बच्चे की दूध पीने की आदत छुड़ाना। दूध पीता— (१) गोदी का, बहुत छोटा। (२) अबोध और अनुभवहीन। किसी चीज का दूध पीना— किसी वस्तु का सुरक्षित रहना। दूध बढ़ाना- बच्चे की दूध पीने की आदत छुड़ाना। दूध भर आना— अधिक ममता के कारण स्तन में दूध उतर आना।

दूध
संज्ञा
पुं.
(सं. दुग्ध)
अनाज के हरे-भरे बीजों का रस।
मुहा.- दूध पड़ना— अनाज का तैयारी पर होना।


दूध
संज्ञा
पुं.
(सं. दुग्ध)
पौधों पत्तियों से निकलनेवाला सफेद पदार्थ।


दूधचढ़ीं
वि.
स्त्री.
(हिं. दूध + चढ़ना)
जिनका दूध पहले से अधिक बढ़ गया हो।
उ. गैयाँ गनी न जाहिं तरूनि सब बच्छ बढ़ीं। ते चरहिं जमुन के तीर दूने दूध चढ़ीं—१०-२४।


दूधाभाती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध + भात)
विवाह की एक रीति जिसमें विवाह के चौथे दिन वर-कन्या एक दूसरे को दूध-भात खिलाते हैं।


दूधिया
वि.
[हिं. दूध + इया (प्रत्य.)]
दूध का बना हआ।


दूधिया
वि.
[हिं. दूध + इया (प्रत्य.)]
दूध के रंग का।


दूधिया
वि.
[हिं. दूध + इया (प्रत्य.)]
कच्चे होने के कारण जिसका दूध सूखा न हो।


दूधिया
संज्ञा
पुं.
एक पत्थर।


दूधिया
संज्ञा
पुं.
एक मिठाई।


दूधी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुद्धी)
एक तरह की घास।


दूधो
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूधं)
दूध।
उ.— ताको कहा परेको कीजै माँगत छाँछ, न दूधो—३२७८।


दून
वि.
(हिं. दूना)
दुगुना, दूना।
उ.— ललित लट छिटकाति मुख पर देति सोभा दून—१०-१८४।


दून
संज्ञा
स्त्री.
दूने का भाव।
मुहा.- दून की लेना (हाँकना)— बहुत बढ़-चढ़-कर बातें करना।

दून की सूजना— बहुत बड़ी या असंभव बात ध्यान म आना।

दून
संज्ञा
स्त्री.
साधारण समय से कुछ जल्दी गाना।


दून
संज्ञा
पुं.
(देश.)
पहाड़ों के बीच या नीचे की समतल भूमि, तराई।


दूनर
वि.
(सं. द्विनम)
लचक कर दोहरा होनेवाला।


दूना
वि.
(सं. द्विगुण)
दुगना, दो बार उतना ही।
मुहा.- कलेजा (दिल) दूना होना— मन में खूब उमंग या जोश होना।

दिन दूना रात चौगुना— प्रति पल बढ़ती या उन्नति होना।

दूनी
वि.
स्त्री.
(हिं. दूना)
दुगुनी, दो गुनी।
उ.— (क) वा तैं दूनी देह धरी, असुर न सक्यौ सम्हारि —४३१। (ख) दिन प्रति लेत दान बृंदाबन दूनी रीति चलाई —३२५२।


दूनैं, दूनौं, दूनौ
वि.
(हिं. दूना)
दूना, दुगुना, बहुत अधिक।
उ. — (क) उनके सिर लै गयौ उतारि। कह्यो, पांडवनि आयौ मारि। बिन देखे ताकौं सुख भयौ। देखे तैं दूनौ दुख ठ्यौ—१-२८९। (ख) तहँ गैंयाँ गनी न जाहिं तरूनी बच्छ बढ़ी। जे चरहिं जमुन कैं तीर, दूनैं दूध चढ़ीं —१०-२४। (ग) यह सुखसूर-दास कैं नैननि दिन दिन दूनौ होइ —१०-५६।


दूब
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दूर्वा)
एक प्रकार की प्रसिद्ध घास जिसे हिंदू मंगल द्रव्य मानते हैं और जिसका व्यवहार वे पूजन में करते है।
उ.दधि-दूब-हरद, फल-फूल-पान कर कनक-थार तिय करतिं गान—९-१६६।


दूबदू
क्रि. वि.
(हिं. दो या फ़ा. रूबरू)
आमने-सामने।


दूबर, दूबरा, दूबरो, दूबला
वि.
(हिं. दुबला)
दुबला-पतला, क्षीण, कृश।
उ.- तन स्थूल अरु दूबर होइ। परमातम कौं ये नहिं दोइ—५-४।


दूबर, दूबरा, दूबरो, दूबला
वि.
(हिं. दुबला)
कमजोर, निर्बल।


दूबर, दूबरा, दूबरो, दूबला
वि.
(हिं. दुबला)
दीन, दबैल।


दूबा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूब)
दूब' नाम की घास।


दूबिया
वि.
(हिं. दूब + इया)
हरी घास का सा रंग।


दूबे
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विवेदी)
द्विवेदी ब्राह्मण।


दूभर
वि.
(सं. दुर्भर=जिसका निबाहना कठिन हो)
जिस (काम) का करना बहुत कठिन हो।


दूमना
क्रि. अ.
(सं. द्रुम)
हिलना-डोलना।


दूरंदेश
वि.
(फ़ा.)
आगा-पीछा सोचनेवाला, दूर की बात सोचनेवाला, दूरदर्शी।


दूरंदेशी
वि.
स्त्री.
(फ़ा.)
दूरदर्शिता।


दूर
क्रि. वि.
(सं.)
समीप या निकट का उलटा।
उ.— (क) दूर देखि सुदामा आवत धाइ परस्यौ चरन—१-२०२। (ख) अब रथ देख परत न धूर। दूर बड़ि गो स्याम सुंदर बृज सँजीवन मूर - सा. ३८।
मुहा.- दूर करना— (१) हटाना, अलग करना। (२) मिटाना, न रहने देना। उ.— जसुमति कोख आय हरि प्रगटे असुर-तिमिर कर दूर-सारा. ३९०।

दूर क्यों जायँ (जाइए)— दूर या अपरिचित की बात न करके निकट या परिचित का उदाहरण देना। दूर भागना (रहना)— बचे रहना, पास न जाना, संबंध न स्थापित करना। दूर होना- (१) हट जाना, छट जाना। (२) मिट जाना, नष्ट होना। दूर पहुँचना- (१) शक्ति या साधन के बाहर होना। (२) दूर की या महत्व की बात सोचना। दूर की बात- (१) महत्व की बात। (२) आगे होनेवाली बात। (३) दुःसाध्य बात। दूर की कहना- दूरदर्शिता की बात कहना।

दूर
वि.
जो निकट न हो, जो फासले पर हो।


दूरगामी
वि.
(सं.)
दूर तक चलने या जानेवाला।


दूरता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूरी, अंतर, फासला।


दूरत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूर होने का भाव, दूरी।


दूरदर्शक
वि.
(सं.)
दूर तक देखनेवाला।


दूरदर्शक
संज्ञा
पुं.
बुद्धिमान या विद्वान व्यक्ति।


दूरदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गिद्ध।


दूरदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विद्वान, पंडित।


दूरदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समझदार, बुद्धिमान।


दूरदर्शिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूर या आगे की बात सोचने की योग्यता या विशेषता, दूरंदेशी।


दूरदर्शी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गिद्ध।


दूरि
क्रि. वि.
(सं.)
अंतर पर, फासले पर, निकट नहीं।
उ. —(क) दूरि गयौ दरसन के ताईं, ब्यापक प्रभुता सब बिसरी —१-११५। (ख) जद्दपि सूर प्रताप स्याम को दानव दूरि दुरात—३३५१।
मुहा.- दूरि करन (करना)- (१) अलग करना, पास से हटाना। (२) मिटाना, नाश करना। उ.— कलिमल दूरि करन के काजैं, तुम लीन्हौ जग मैं अवतार— १-४१।

दुरि करौ— मिटाओ, नाश करो। उ.— सूरदास की सबै अविद्या दूरि करौ नँदलाल— १-१५३। दूरी धरयौ— छिपा कर या संचित करके रखा हुआ। उ.— ठाढ़ी कृष्न यौं बोलै। जैसैं कोऊ बिपति परे तैं, दूरि धरयौ धन धन खौलै— १-२५६।

दूरिहिं
क्रि. वि.सवि.
(हिं. दूर)
बहुत अंतर पर ही, दूर से ही।
उ.—वै देखौ रघुपति हैं आवत। दूरिहिं तै दुतिया के ससि ज्यौं, ब्योम बिमान महा छबि छावत—९-१६७।


दूरी
क्रि. स.
(हिं. दूर)
दूर होता है, जाता रहता है।
उ.— अरू तैसियै गाल मसूरी। जो खातहिं मुख-दुख दूरी—१०-१८३।


दूरी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दूर + ई (प्रत्य.)]
बीच का अंतर।


दूरोह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्यलोक जहाँ जाना असंभव है।


दूगेहण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, रवि।


दूर्वा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूब' नाम की घास।


दूर्वाष्टमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भादों सुदी अष्टमी।


दूलन
संज्ञा
पुं.
(सं. दोलन)
झूला, हिंडोला।


दूलभ
वि.
(सं. दुर्लभ)
जो कठिनता से मिले।


दूरदर्शी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पंडित।


दूरदर्शी
वि.
दूर या आगे की बात सोचनेवाला।


दूरदृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दूर या भविष्य का विचार।


दूरबा
संज्ञा
पुं.
(सं.दूर्वा)
दूब नाम की घास।


दूरबीन
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दूर की चीजें देखने का यंत्र।


दूरवर्ती
वि.
(सं.)
दूर का, जो दूर हो।


दूरवीक्षण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूरबीन।


दूरस्थ
वि.
(सं.)
जो दूर हो, दूर का।


दूरपात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अस्त्र जो दूर से मारा जाय।


दूरागत
वि.
(सं.)
दूर से आया हुआ।


दूलह, दूल्हा
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्लभ, प्रा. दुल्लह)
वर, दुलहा, पति, स्वामी।


दूलह, दूल्हा
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्लभ, प्रा. दुल्लह)
प्रिय, प्रियतम।
उ.—एकहिं एक परस्पर बूझतिजनु मोहन दूलह आए —२९५९।


दूश्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तंबू, खमा।


दूषक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष लगानेवाला (मनुष्य)।


दूषक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष उत्पन्न करनेवाला (पदार्थ)।


दूषण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण का एक भाई जो शूर्पणखा की नाक और कान कटने के पश्चात श्री रामचंद्र के हाथ से मारा गया।


दूषण़
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष, ऐब, अवगुण।


दूषण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष लगाने की क्रिया या भाव।


दूषणारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूषण दैत्य के शत्रु राम।


दूषणीय
वि.
(सं.)
दोष लगाने योग्य।


दूसर, दूसरा
वि.
(हिं. दूसरा)
अन्य, और।


दूसरे, दूसरैं
वि.
(हिं. दो, दूसरा)
दुसरा, द्वितीय।
उ.— दूसरैं कर बान न लैहों। सुनि सुग्रीव, प्रतिज्ञा मेरी, एकहिं बान असुर सब हैहौं—९-१५७।


दूहना
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
थन से दूध निकालना।


दूहनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोहनी)
दूध दुहने का पात्र।


दूहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दोहा)
दोहा' नामक छंद।


दूहिया
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह का चूहा।


दृक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छेद, छिद्र।


दृक
संज्ञा
पुं.
(सं. दृग्भू)
हीरा।


दृक्कर्ण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप जो आँख से सुनता भी है।


दृक्क्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखना, अवलोकन।


दूषन
संज्ञा
पुं.
(सं. दूषण)
दोष, अपराध, पाप।


दूषना
क्रि. स.
(सं. दूषण)
दोष या कलंक लगाना।


दूषि, दूषिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दूषिका)
आँख का मैल।


दूषित
वि.
(सं.)
जिसमें दोष हो, बुरा।


दूष्य
वि.
(सं.)
दोष लगाने योग्य।


दूष्य
वि.
(सं.)
निंदा के योग्य।


दूष्य
वि.
(सं.)
तुच्छ, हेय।


दूष्य
संज्ञा
पुं.
वस्त्र, कपड़ा।


दूष्य
संज्ञा
पुं.
खेमा, तंबू।


दूसर, दूसरा
वि.
(हिं. दूसरा)
दूसरा, भिन्न, अन्य।
उ.—आदि निरंजन, निराकार, कोउ हुतौ न दूसर—२-३६।


थाई
वि.
(सं. स्थायिन्, स्थायी)
स्थिर रहनेवाला।


थाई
संज्ञा
पुं.
बैठक, अथाई।


थाई
संज्ञा
पुं.
गीत का स्थायी या ध्रुव पद जो गाने में बार-बार कहा जाता है।


थाक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्था)
सीमा।


थाक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्था)
ढेर।


थाक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थकना)
थकने का भाव।


थाकना
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक जाना, शिथिल होना।


थाकी
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गयी, शिथिल हो गयी।
उ.—स्त्रवन न सुनत, चरन-गति थाकी, नैन भए जलधारी—१-११८।


थाकी
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
हार गयी, ऊब गयी, परेशान हो गयी।
उ.—(क) बार-बार हा-हा करि थाकी मैं तट लिए हँकारी— ११४१। (ख) बुधि बल छल उपाइ करि थाकी नेक नहीं मटके—१८५२।


थाकु
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाक)
ढेर, राशि, समूह, थोक।


दंदानेदार
वि.
(हिं. दंदाना)
जिसम दंदाने हों।


दंदारू
संज्ञा
पुं.
(हिं. दंद + आरू)
छाला, फफोला।


दंदी
वि.
(हिं. दंद)
उपद्रवी, झगड़ालू।


दंपति, दंपती
संज्ञा
पुं.
(सं. दंपति)
पति-पत्नी।


दंपा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दमकना)
चमकना।


दंभ
संज्ञा
पुं
(सं.)
झूठा आडंबर, ऊपरी दिखावट, पाखंड।


दंभ
संज्ञा
पुं
(सं.)
ठसक, अभिमान।


दंभक
संज्ञा
पुं.
(सं. )
पाखंडी, ढकोसलेबाज।


दंभान
संज्ञा
पुं.
(सं. दंभ)
पाखंड।


दंभान
संज्ञा
पुं.
(सं. दंभ)
ठसक।


दृक्पथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृष्टि की पहुँच।
मुहा.- दृक्पथ में आना— दिखायी देना।


दृक्पात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखना, अवलोकन।


दृक्श्रुति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप जो आँख से सुनता है।


दृगंचल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पलक।


दृगंचल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चितवन।


दृग
संज्ञा
पुं.
(सं.दृक्)
नेत्र, आँख।
उ.—इत-उत देखत जनम गयौ। या झूठी माया कैं कारन, दुहुँ दृग अंध भयौ—१-२९१।
मुहा.- दृग डालना (देना)— देखना।

दृग फेरना- (१) आँख हटा लेना, न देखना। (२) अप्रसन्न हो जाना।

दृग
संज्ञा
पुं.
(सं.दृक्)
देखनें की शक्ति, दृष्टि।


दृग
संज्ञा
पुं.
(सं.दृक्)
दो की संख्या।


दृगमिचाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. दृग + मीचना)
आँखमिचौनी नाम का खेल।


दृग्गात
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दृष्टि की गति या पहुँच।


दृढ़
वि.
(सं.)
निश्चय या सिद्धांत पर अटल, निडर, कड़े दिल का।
उ.—अब मैं हूँ याकौं दृढ़ देखौं। लखि विस्वास बहुरि उपदेसौं —४-९।


दृढ़
क्रि. वि.
दृढ़ता के साथ, अटल स्वर में।
उ.— दुर्योधन से कह्यौ दूत ह्यो भक्त पक्ष दृढ़ बोले—सारा. ७७३।


दृढ़
संज्ञा
पुं.
लोहा।


दृढ़
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


दृढ़
संज्ञा
पुं.
धृतराष्ट्र का एक पुत्र।


दृढ़
संज्ञा
पुं.
गणित का वह अंक जो दूसरे अंक से पूरा विभाजित न हो सके; जैसे- ३ आदि।


दृढ़कर्मा
वि.
(सं. दृढ़कर्मन्)
धीरता और स्थिरता से अपने काम में लगा रहनेवाला।


दृढ़कारी
वि.
(सं. दृढ़कारिन्)
दृढ़ता और स्थिरता से काम करनेवाला।


दृढ़कारी
वि.
(सं. दृढ़कारिन्)
मजबूत करनेवाला।


दृढ़-चेता
वि.
(सं. चेतस्)
दृढ़ विचारवाला।


दृग्गोचर
वि.
(सं.)
जो आँख से दिखायी दे।


दृग्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बज्र।


दृग्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दृग्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप।


दृग्वृत्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
क्षितिज।


दृढ़
वि.
(सं.)
कसकर बँधा या मिला हुआ।


दृढ़
वि.
(सं.)
कड़ा, जो जल्दी न टूटे।


दृढ़
वि.
(सं.)
बलवान, ह्ष्टपुष्ट।


दृढ़
वि.
(सं.)
जो जल्दी नष्ट या विचलित न हो।


दृढ़
वि.
(सं.)
निश्चित, ध्रुव।


दृढ़ताइ, दृढ़ताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
दृढ़ होने का भाव।
उ.—(क) जीव न तजै स्वभाव जीव कौ, लोक बिदित दृढ़ताई। तौ क्यौं तजै नाथ अपनौं प्रन? है प्रभु की प्रभुताई—१-२०७। (ख) दृढ़ताई मैं प्रगट कन्हाई—७९९।


दृढ़ताइ, दृढ़ताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
मजबूती।


दृढ़ताइ, दृढ़ताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
स्थिरता।


दृढ़ताइ, दृढ़ताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढ़ता)
पक्कापन।


दृढ़त्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृढ़ होने का भाव।


दृढ़धन्वा, दृढ़धन्वी
वि.
(सं. दृढ़धन्वन्)
जो धनुष चलाने में दृढ़ हो।


दृढ़धन्वा, दृढ़धन्वी
वि.
(सं. दृढ़धन्वन्)
जिसका धनुष दृढ़ हो।


दृढ़निश्चय
वि.
(सं.)
जो निश्चय पर डटा रहे।


दृढ़जोभि
वि.
(सं.)
जिसकी धूरी मजबूत हो।


दृढपाद
वि.
(सं.)
जो विचार का पक्का हो।


दृढ़प्रतिज्ञ
वि.
(सं.)
जो निश्चय पर डटा रहे।


दृढ़भूमि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मन को स्थिर करने का अभ्यास।


दृढ़मुष्टि
वि.
(सं.)
जोर से या कसकर पकड़नेवाला।


दृढ़मुष्टि
वि.
(सं.)
कंजूस, कृपण।


दृढ़व्रत
वि.
(सं.)
जो निश्चय पर डटा रहे।


दृढ़संध
वि.
(सं.)
जो संकल्प पर डटा रहे।


दृढ़ांग
वि.
(सं.)
जिसका अंग मजबूत हो, हृष्ट-पुष्ट।


दृढ़ाइ, दृढ़ाई
क्रि. स.
(हिं. दृढ़ाना)
दृढ़ या पक्का करके।


दृढ़ाइ, दृढ़ाई
प्र.
दीन्हो दृढ़ाइ—दृढ़ कर दिया।
उ.—पाछे बिबिध ज्ञान जननी को दीन्हों कपिल दृढ़ाइ।


दृढ़ाइ, दृढ़ाई
प्र.
लेत दृढ़ाइ—मजबूत या दृढ़ कर लेते हैं।
उ.—सूर प्रभु सन और यह कहि प्रेम लेत दृढ़ाई—३०२२।


दृढ़ाइ, दृढ़ाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दृढ़)
दृढ़ता, मजबूती।


दृढ़ाना
क्रि. स.
[हिं. दृढ़ + ना (प्रत्य.)]
दृढ़, पक्का या मजबूत करना।


दृढ़ाना
क्रि. अ.
कड़ा या दृष्ट होना।


दृढ़ाना
क्रि. अ.
स्थिर होना।


दृढ़ानो
क्रि. अ.
(हिं. दृढ़ाना)
स्थिर या दृढ़ हुआ हो।
उ.— पहिलो जोग कहा भयो ऊधो अब यह जोग दृढ़ानो—३०५९।


दृढ़ाय
क्रि. स.
(हिं. दृढ़ाना)
दृढ़ या पक्का करके।
उ.— (क) करि उपदेस ज्ञान हरि भक्तिहि अरू बैराग्य दृढ़ाय—सारा. १३६। (ख) देखि चरित्र बिनोद लाल के बिस्मित भे द्विजराय। अदुभुत केलि कृपा करि कीनी द्विज को ज्ञान दृढ़ाय—८०१।


दृढ़ायुव
वि.
(सं.)
अस्त्र ग्रहण करने में दृढ़।


दृढ़ायौ
क्रि. स.
(हिं. दृढ़ाना)
दृढ़ या पक्का किया।
उ.—सुन कटु बचन गये माता पै तब उन ज्ञान दृढ़ायौ—सारा. ७३।


दृढ़ाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. दृढ़ना + आव)
दृढ़ता।


दृढ़ावत
क्रि. स.
(हिं. दृढ़ाना)
दृढ़ या पक्का करते हैं।
उ.— कहुँ उपदेस कहूँ जैबे को कहूँ दृढ़ावत ज्ञान—सारा. ६६९।


दृत
वि.
(सं.)
सम्मानित, आदृत।


दृता
वि.
(सं. दृत)
जो (स्त्री) सम्मान योग्य हो।


दृन्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वज्र।


दृन्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


दृन्भू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा।


दृप्त
वि.
(सं.)
गर्व से ऐंठा या इतराया हुआ।


दृप्त
वि.
(सं.)
हर्ष से फूला या भरा हुआ।


दृप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चमक, कांति।


दृप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रकाश।


दृप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तेज, तेजस्विता।


दृप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उग्रता।


दृप्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्व।


दृप्र
वि.
(सं.)
प्रबल।


दृप्र
वि.
(सं.)
घमंडी, गर्वी।


दृब्ध
वि.
(सं.)
गुँथा हुआ।


दृब्ध
वि.
(सं.)
डरा हुआ।


दृशा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आँख।


दृशान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रकाश, आभा।


दृशि, दृशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दृष्टि।


दृशि, दृशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रकाश।


दृश्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखना, दर्शन।


दृश्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिखानेवाला।


दृश्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखनेवाला।


दृश्
संज्ञा
स्त्री.
दृष्टि।


दृश्
संज्ञा
स्त्री.
आंख।


दृश्
संज्ञा
स्त्री.
दो की संख्या।


दृश्य
वि.
(सं.)
जिसे देखा जा सके।


दृश्य
वि.
(सं.)
जो देखने योग्य हो, दर्शनीय।


दृश्य
वि.
(सं.)
सुंदर।


दृश्य
वि.
(सं.)
जानने योग्य।


दृश्य
संज्ञा
पुं.
देखने का पदार्थ या विषय।


दृश्य
संज्ञा
पुं.
मनोरंजक व्यापार, तमाशा।


दृश्य
संज्ञा
पुं.
नाटक।


दृश्यमान
वि.
(सं.)
जो दिखायी देता हो।


दृश्यमान
वि.
(सं.)
चमकीला, प्रकाशयुक्त।


दृश्यमान
वि.
(सं.)
सुंदर, मनोरम।


दृषत्, दृषद्
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृषत्)
पत्थर, शिला।


द्वषद्वान
वि.
(सं.दृषद्वत्)
पथरीला।


दृष्ट
वि.
(सं.)
देखा हुआ।


दृष्ट
वि.
(सं.)
जाना हुआ।


दंद
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वं द्व)
कष्ट. दुख, पीड़ा।
उ.—बोलि लीन्हीं कदम कैं तर, इहाँ आवहु नारि। प्रगट भए तहँ सबनि कौं हरि, काम-दंद निवारि—७६५।


दंद
संज्ञा
(सं. द्वं द्व)
लड़ाई, झगड़ा,।


दंद
संज्ञा
(सं. द्वं द्व)
हल्ला गुल्ला।


दंद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दहन)
किसी पदार्थ से निकलती हुई गरमी।


दंदन
वि.
(सं. द्वं द्व)
दमन करनेवाला।


दंदह्यमान
वि.
(सं.)
दहकता हुआ।


दंदा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वं द्व)
झगड़ा, कलह, बखेड़ा।
उ.—संत-उबारन, असुर-सँहारन, दूरि करन दुख-दंदा—१०—१६२।


दंदा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
ताल देने का एक बाजा।


दंदाना
क्रि. अ.
(हिं. दंद)
गरम लगना, गरमाना।


दंदाना
संज्ञा
पुं.
(फा.)
दाँत की तरह उभरी हुई चीजों की कतार जैसी कंधी या आरी में होती है।


दृष्टांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उदाहरण।


दृष्टांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अर्थालंकार।


दृष्टार्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह शब्द जिसका अर्थ स्पष्ट हो।


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देखने की शक्ति या वृत्ति।
मुहा.- दृष्टि मारी जाना— देखने की शक्ति न रह नाना।


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देखने के लिए नेत्रों की प्रवृत्ति, अवलोकन।
मुहा.- दृष्टि करना (चलाना, देना, फेंकना,)— नजर डालना, देखना।

दृष्टि चूकना— नजर का इधर-उधर होना। दृष्टि फिरना— (१) नेत्रों का दूसरी ओर हो जाना। (२) पहले की तरह प्रेम कृपा का भाव न रह जाना। दृष्टि फेरना— (१) दूसरी ओर देखना। (२) पहले की तरह प्रेम-कृपा का भाव न रखना। दृष्टि बचाना (१) सामने न आना, सामना बचाना। (२) छिपाना, न दिखाना। दृष्टि बाँधना— ऐसा जादू करना कि कुछ का कुछ दिखायी दे। दृष्टि लगाना— (१) टकटकी बाँधकर देखना, ताकना। (२) नजर लगाना।

दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नेत्र-ज्योति-प्रसार जिससे वस्तु के रूप-रंग आदि का बोध हो, दृक्पथ।
मुहा.- दृष्टि पड़ना— दिखाई देना। उ.— (क) नैंकु दृष्टि जहँ पर गई, सिव-सिर टोना लागे (हो)— १-४४। (ख) मेरी दृष्टि परे जा दिन तैं ज्ञान-मान हरि लीने री।

दृष्टि पर चढ़ना— (१) देखने में सुंदर लगना, निगाह में जँचना। (२) आँखों को खटकना। दृष्टि बिछाना— अत्यंत प्रेम या श्रद्धा से प्रतीक्षा करना। (२) किसी के आने पर बहुत प्रेम या श्रद्धा दिखाना। दृष्टि में आना- दिखायी पड़ना। दृष्टि से उतरना (गिरना)— पहले की तरह प्रेम या श्रद्धा का पात्र न रह जाना।

दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देखने के लिए खुली हुई आँख।
मुहा.- दृष्टि उठाना— देखने के लिए आँख उठाना।

दृष्टि गड़ाना (जमाना)— एकटक देखना। दृष्टि चुराना— सामने न पड़ना। दृष्टि जुड़ना (मिलना)— देखा देखी होना। दृष्टि जोड़ना (मिलाना)— देखा देखी करना। दृष्टि फिसलना— चमक-दमक के कारण नजर न ठहरना। दृष्टि भर देखना— जी भर कर निहारना। उ.— सूर श्रीगोपाल की छबि दृष्टि भरि देहि। दृष्टि मारना— (१) आँख से इशारा करना। (२) आँख के इशारे से किसी काम के लिए मना करना। दृष्टि में समाना— अच्छा लगने के कारण ध्यान में बना रहना। दृष्टि रखना— (१) ध्यान रखना, निगरानी करना (२) देख-रेख में रखना, चौकसी रखना। दृष्टि लगना— (१) नजर का पड़ना, दिखायी देना। (२) देखादेखी के बाद प्रेम होना। (३) नजर लगना। दृष्टि लगाना— (१) टकटकी बाँधकर देकना। (२) ताकना। (३) प्रेम करना। (४) नजर लगाना। दृष्टि लगाई— टकटकी बाँधकर देखते रहे। उ.— उनके मन को कह कहौं, ज्यौं दृष्टि लगाई। लैया नोई बृषभ सौं, गैया बिसराई— ७१५। दृष्टि लड़ना— (१) देखा-देखी होना। (२) प्रेम होना। दृष्टि लड़ाना— (१) खूब घूरना या ताकना।

दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
परख, पहचान,।


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कृपादृष्टि।


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आशा।


दृष्ट
वि.
(सं.)
प्रत्यक्ष, प्रकट, दृश्य।


दृष्ट
संज्ञा
पुं.
दर्शन।


दृष्ट
संज्ञा
पुं.
साक्षात्कार।


दृष्टकूट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पहेली।


दृष्टकूट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐसी कविता जिसका अर्थ शब्दों के साधारण अर्थ से स्पष्ट न हो, बल्कि प्रसंग या रूढ़ अर्थों से जाना जाय जो कवि को अभीष्ट हों। ऐसी कविता में एक ही शब्द का प्रयोग एक ही पद में विभिन्न अर्थों में किया जा सकता है। सूरदास की 'सहित्यलहरी' म ऐसे ही पद हैं।


दृष्टमान
वि.
(सं.दृश्यमान)
प्रकट, व्यक्त, प्रत्यक्ष।
दृष्टमान नास सब होई। साक्षी व्यापक नसै न सोई।


दृष्टवत्
वि.
(सं.)
प्रत्यक्ष या व्यक्त के समान।


दृष्टवत्
वि.
(सं.)
लौकिक, सांसारिक।


दृष्टवार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक दार्शनिक सिद्धांत जो केवल प्रत्यक्ष को मानता है।


दृष्टव्य
वि.
(सं.)
देखने योग्य,


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अनुमान।


दृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उद्देश्य।


दृष्टिकूट
संज्ञा
पुं.
(हिं. दृष्टकूट)
पहेली।


दृष्टिकूट
संज्ञा
पुं.
(हिं. दृष्टकूट)
दृष्टकूट, जिनका अर्थ सरलता से न खुले।


दृष्टिकोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह अंग जिससे कोई बात सोची-समझी जाय।


दृष्टिकोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी विषय में निश्चित् मत।


दृष्टिकोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाटक का एक दृश्य।


दृष्टिक्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृष्टिपात, देखना।


दृष्टिगत
वि.
(सं.)
जो दिखायी पड़ा हो।


दृष्टिगोचर
वि.
(सं.)
जो देखा जा सके।


दृष्टिनिपात, दृष्टिपात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देखना।


दृष्टिपूत
वि.
(सं.)
जो देखने में शुद्ध जाना पड़े।


दृष्टिपूत
वि.
(सं.)
जिसके देखने से आँखें पवित्र हों।


दृष्टिबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जादू या क्रिया जिससे देखनेवाले को कुछ का कुछ दिखायी पड़े।


दृष्टिबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथ की सफाई।


दृष्टिबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुगनू, खद्योत।


दृष्टिमान्
वि.
(सं. दृष्टिमत्)
आँख या दृष्टिवाला।


दृष्टिरोध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृष्टि की रोक या रूकावट, देखने की बाधा |


दृष्टिरोध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आड़, ओट।


दृष्टिवंत
वि.
[सं. दृष्टि + वंत (प्रत्य.)]
आँख या दृष्टिवाला।


दृष्टिवंत
वि.
[सं. दृष्टि + वंत (प्रत्य.)]
ज्ञानी, ज्ञानवान्।


दृस्यमान
वि.
(सं.दृश्यमान)
जो दिखाई पड़ रहा हो।
उ.—दृस्यमान बिनास सब होइ। साच्छी ब्यापक, नसै न सोइ—५-२।


दे
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवी)
स्त्रियों के लिए आदर सम्मान सूचक शब्द, देवी।
उ.—यह छवि सूरदास सदो रहे बानी। नँदनंदन राजा राधिका दे रानी—१७६२।


देइ, देई
क्रि. स.
(हिं. देना)
देता है, प्रदान करता है।
उ.—तद्यपि हरि तिहिं निज पद देइ—६-४।


देइ, देई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवी)
देवी।


देइ, देई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवी)
स्त्रियों के लिए आदर या सम्मान-सूचक शब्द।


देउ
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
देव, देवता।


देउ
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
पुरुषों के लिए आदर या सम्मान-सूचक शब्द।


देउर
संज्ञा
पुं.
(सं. देवर)
पति का छोटा भाई।


देउरानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवरानी)
पति के छोटे भाई की पत्नी।


देख
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखने की क्रिया या भाव।
मुहा.- देख में— प्रत्यक्ष आँख के सामने।


देख
क्रि. स.
देखकर।


देख
क्रि. स.
उपाय करके।
मुहा.- देख लेगे— उपाय या प्रतिकार करेंगे, समझ लेंगे।


देखई
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखता है।
उ.—परनि परेवा प्रेम की, (रे) चित लै चढ़त अकास। तहँ चढ़ि तीय जो देखई, (रे) भू पर परत निसास—१—३२५।


देखत
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखने से, देखते ही, देखने में या पर।
उ.—(क) मोहन के मुख ऊपर वारी। देखत नैन सबै सुख उपजत, बार बार तातैं बलिहारी—१-२९। (ख) काकैं द्वार जाई होउ ठाढ़ौ, देखत काहि सुहाउँ—१-२२८।
मुहा.- देखत-सुनत— जानकारी प्राप्त करके, समझ-बूझ कर।


देखत
प्र.
देखत ही रैहौ
सिर्फ देखते या ताकते रह जाओगे, कुछ कर न सकोगे।
उ.—लैहौं छीनि दूध दधि माखन देखत ही तुम रैहौ—१०८९।


देखति
क्रि. स.
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखती है।
मुहा.- देखति रहियौ— निगरानी रखना, नजर या ध्पान रखना। उ.— मथुरा जाति हौं बेचन दहियौ। मेरे घर कौ द्वार सखी री तब लौ देखति रहियौ— १०-३१३।


देखते
क्रि. स.
(हिं. देखना)
निहारते।


देखते
क्रि. स.
(हिं. देखना)
परखते।
मुहा.- किसी के देखते— किसी की उपस्थिति में, किसी के सामने।

देखते-देखते— (१) आँकों के सामने। (२) तिरंत, तत्काल। देखते रह जाना— हक्का-बक्का रह जाना, चकित हो जाना। हम भी देखते— हम समझ लेते, हम उपाय या प्रतिकार करते।

देखत्यौ
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखता, उपाय करता, प्रतिकार करता।
उ.—हौं तौ न भयौ री घर देखत्यौ तेरी यौं अर, फोरतो बासन सब जानति बलैया—३७२।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
सोचना-विचारना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
भोगना, अनुभव करना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
पढ़ना, बाँचना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
गुणदोष का पता लगाना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
संशोधन करना।


देखनि, देखनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखने की क्रिया या भाव।


देखनि, देखनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखने का ढंग।


देखने
क्रि. स.
(हिं. देखना)
ताकने, निहारने।
मुहा. देखने में (१) ऊपरी या साधारण बात, व्यवहार या लक्षण में। (२) रूप-रंग या आकृति में।


देखभाल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना + भालना)
जाँच पड़ताल, निगरानी।


देखभाल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना + भालना)
देखा-देखी, दर्शन।


देखन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखनै के उद्देश्य से, दृष्टिगोचर-हेतु।
उ.—सर-क्रीड़ा दिन देखन आवत, नारद, सुर तैंतीस—९-२०।


देखन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखने की क्रिया, भाव या ढंग।


देखनहार, देखनहारा, देखनहारो, देखनहारौ
संज्ञा
पुं.
[हिं. देखना + हारा (प्रत्य.)]
देखनेवाला।


देखनहारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखनहार)
देखनेवाली।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
अवलोकन करना, निहारना, ताकना।


देखना
यौ.
देखना-भालना-जाँच, निरीक्षण करना।
मुहा.- देखना-सुनना— पता लगाना, जानकारी प्राप्त करना।

देखना चहिए— कह नहीं सकते कि क्या होगा, फल की प्रतीक्षा करो।

देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
जाँच या निरीक्षण करना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
खोजना, ढूंढ़ना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
परखना, परीक्षा करना।


देखना
क्रि. स.
(सं. दृश्, द्रक्ष्यति, प्रा. देक्खइ)
ध्यान या निगरानी रखना।


देखाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. देखना)
तड़क-भड़क, ठाट बाट।


देखावट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखाना)
रंग-रूप दिखाने की क्रिया या भाव।


देखावट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखाना)
ठाट-बाट।


देखावना
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
अवलोकन कराना।


देखि
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखकर।
उ.— पहिरे राती चूनरी, सेत उपरना सोहै (हो)। कटि लहँगा नीलौ बन्यौ, को जो देखि न मोहै (हो)—१-४४।


देखिबो, देखिबौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. देखना)
देखना, देखने की क्रिया या भाव।
उ.—(क) पद-नौका की आस लगाए, बूढ़त हौं बिनु छाँह। अजबूँ सूर देखिबौ करिहौ, बेगि गहौ किन बाँह—१-१७५। (ख) बहु रथौ देखिबो वहि भाँति—२६४५।


देखियत
क्रि. स.
(हिं. देखना)
दिखायी देता है, दिखता है।
उ.—(क) गोबिंद चलत देखियत नीके—४३२। (ख) मन कठोर तन गाँठि प्रगट ही, छिद्र बिसाल बनाए। अन्तर सून्य सदा देखियत है, निज कुल बंस भुलाए—६६१।


देखियै
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देख लीजिए, निहारिए, दृष्टि डालिए।
उ,— सूरदास प्रभु समुझि देखियै, मैं बड़ तोहिं करि दीन्हौ—१-१९१।


देखी
क्रि. स.
(हिं. देखना)
अवलोकन की।


देखी
क्रि. स.
(हिं. देखना)
पायी, अनुभव की।
उ.— जीवन-आस प्रबल स्रुति लेखी। साच्छात सो तुममैं देखी—१-२८४।
यौ.—देखी-सुनी— न देखी है और न कभी सुनी है।
उ.— अनहोनी कहुँ भई कन्हैया देखी-सुनी न बात—१०-१८९।


देखराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाई)
दर्शन।


देखराई
प्र.
देहु देखराई—दिखला दो, प्रत्यक्ष करा दो।
उ. ब्रज जाहु देहु गोपिन देखराई—३४४३।


देखराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिखलाई)
देखने का नेग, दिखाई।


देखराना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
प्रत्यक्ष कराना।


देखबी
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखेंगे।
उ.—सुदिन कब जब देखबी बन बहुत बाल बिसाल—१८२८।


देखरावत
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
दिखाते हैं, प्रत्यक्ष कराते है, समझाते हैं।
उ.—(क) तीर चलावत सिष्य सिखावत धर निसान देखरावत सारा. १९०। (ख) सूरदास प्रभु काम-सिरोमनि कोक-कला देखरावत—१९०८।


देखरावना
क्रि. स.
(हिं. दिखलाना)
प्रत्यक्ष कराना।


देख-रेख
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना + सं. प्रेक्षण)
देखभाल, निगरानी, निरीक्षण।


देखहिंगे
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखेगे, परखेगे।
उ.जब लौ एक दुहौगे तब लौं, चारि दुहौगौ नंद दुहाई। झूठहिं करत दुहाई प्रातहिं, देखहिंगे तुम्हरी अधिकाई—६६८।


देखाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखाई)
देखने का नेग।


दंभी
वि.
(सं. दंभिन्)
पाखंडी।


दंभी
वि.
(सं. दंभिन्)
घमंडी।


दंभोलि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र का अस्त्र, वज्र।
उ.—मत्त मातंग बल अंग दंभोलि दल काछनी लाल गजमाल सोहै—२६०७।


दँवरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दमन, हिं. दाँवना)
सूखे डंठलों से अनाज अलग करने को बैलों से रौंदवाने की क्रिया।


दँवारि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दव+आगि)
दावानल।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत से काटने का घाव।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत से काटने की क्रिया।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप जैसे विषैले जंतु के काटने का घाव।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यंग्य, कटूक्ति।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वैर, द्वेष।


देखाऊ
वि.
(हिं. देखना)
झूठी तड़क झड़क वाला, जो देखने में ही सुंदर लगे (काम का न हो )।


देखाऊ
वि.
(हिं. देखना)
जो असली न हो, बनावटी।


देखा
क्रि. स.
(हिं. देखना)
निहारा, ताका, अवलोका।
मुहा.- देखना चाहिए— कह नहीं सकते कि आगे क्या होगा, फल की प्रतीक्षा करो।

देखा जायगा— (१) फिर विचार किया जायगा। (२) पीछे जो कुछ करना होगा किया जायगा।

देखादेखी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखना)
देखने की दशा या भाव, दर्शन, साक्षात्कार।


देखादेखी
क्रि. वि.
दूसरों को देखकर, दूसरों के अनुसार।


देखाना
क्रि. स.
(हिं. दिखाना)
अवलोकन कराना।


देखाभाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखभाल)
जाँच-पड़ताल, निगरानी।


देखाभाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देखभाल)
दर्शन, देखादेखी।


देखाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. देखना)
दृष्टि की सीमा।


देखाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. देखना)
रंग-रुप दिखाने का भाव, बनाव।


देखे
क्रि. स.
(हिं. देखना)
दीखे, दिखायी दिये, देखने पर, देखने से।
उ.— (क)गरुड़ चढ़े देखे नँदनंदन ध्यान चरन लपटानी—१-१५०। (ख) बिन देखे ताकौं सुख भयौ। देखे तें दूनौ दुख ठयौ—१-२८८।
मुहा.- देखे रहियौ— खबरदारी रखना, धयान या निगरानी रखना। उ.— (क) सूरदास बल सौं कहै जसुमति देखे रहियौ प्यारे— ४१३। (ख) सूरस्याम कौं देखे रहियौ मारै जनि कोउ गाइ— ६८०।


देखैं
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखे, देखने से, देखते है।
उ.— बिनु देखै, बिनुहीं सुनै, ठगत न कोऊ बाच्वौ (हो)—१-४४।


देखैंगे
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखेंगे, अवलोकन करेंगे।
उ.—नंदनंदन हमको देखैगे, कैसै करि जु अन्हैबौ—७७९।


देखौं
क्रि. स.
(हिं. देखना)
देखता हूँ।
उ.—कौन सुनैं यह बात हमारी। समरथ और न देखौं तुम बिनु, कासौं बिथा कहौं बनबारी—१-१६०।


देखौ
क्रि. स.
(हिं. 'देखना' का संबोधन रूप)
अवलोकन करो, देख कर ज्ञान प्राप्त करो।
उ.—प्रभु कौ देखौ एक सुभाइ। अति गंभीर उदार-उदधि हरि, जान-सिरोमनि राइ—२-८।


देखौआ
वि.
(हिं. दिखाऊ)
केवल ऊपरी या झूठी तड़क- भड़कवाला।


देखौआ
वि.
(हिं. दिखाऊ)
बनावटी, दिखावटी।


देख्यौ
क्रि. स.
भूत.
(हिं. 'देखना' )
देखा।
उ.—सुक नृप ओर कृपा करि देख्यौ—१-३४२।


देख्यौ
क्रि. स.
भूत.
(हिं. 'देखना' )
समझा, पाया, अनुभव किया।
उ.—हरि सौं मीत न देख्यौ कोई—१-१०।


देग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
चौड़े मुँह का बड़ा बरतन।


देनदारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देनदार)
ऋणी होनेकी स्थिति।


देनलेन
संज्ञा
पुं.
(हिं. देना + लेना)
सामान्य व्यवहार।


देनलेन
संज्ञा
पुं.
(हिं. देना + लेना)
व्याज पर रुपया उघार देना।


देनहार, देनहारा, देनहारो, देनहारौ
वि.
[हिं. देना + हार (प्रत्य.)]
देनेवाला, दाता।


देनहारी
वि.
स्त्री.
(हिं. देनहारा)
देनेवाली, दात्री।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
प्रदान करना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
सौंपना, हवाले करना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
थमाना, हाथ में देना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
रखना, डालना, लगाना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
मारना, प्रहार करना।


देगचा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. देगचः)
छोटा देग।


देत
क्रि. स.
(हिं. देना)
देते है, प्रदान करते है।
उ.—बिनु दीन्हैं ही देत सूर-प्रभु ऐसे हैं जदुनाथ गुसाइ—१-३।


देति
क्रि. स.
स्त्री.
(हिं. देना)
देती है।


देति
प्र.
भरमाइ देति—भ्रम में डाल देती हैं।
उ,— हरि, तेरौ भजन कियौ न जाइ। कह करौ, तेरी प्रबल माया देति मन भरमाइ—१-४५।


देत्यौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
देता, प्रदान करता।
उ.—सूर रोम प्रति लोचन देत्यौ, देखत बनत गुंपाल—६४३।


देदीप्यमान
वि.
(सं.)
प्रकाशपूर्ण, चमकदार।


देन
क्रि. स.
(हिं. देना)
देने को।
उ.—अंबरीष कौ साप देन गयौ, बहुरि पठायौ ताकौं—१-११३।
मुहा.- देने-लेने में होना-संबंध रखना। उ.— ये पांडव क्यौं गाड़िऐ, धरनीधर डोलैं। हम कछु लेन न देन मैं, ये बीर तिहारे— १-२३८।


देन
संज्ञा
स्त्री.
देने की क्रिया या भाव।


देन
संज्ञा
स्त्री.
दी हुई या प्रदान की हुई वस्तु या चीज।


देनदार
संज्ञा
पुं.
(हिं. देना + फा. दार)
ऋणी।


देवकर्म, देवकार्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं की प्रसन्नता के लिए किये गये यज्ञादि कर्म


देवकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कंस की चचेरी बहन जो वसुदेव को ब्याही थी। विवाह के बाद ही नारद के उकसाने पर कंस ने पति-सहित इसे बंदी कर लिया और बड़ी क्रूरता से इसके छः बालक मार डाले। इसीके आठवें गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।


देवकीनंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


देवकीपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


देवकीमातृ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण, जिनकी माता देवकी थी।


देवकीय
वि.
(सं.)
देवता का, देवता-संबंधी।


देवकीसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


देवकुंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्राकृतिक जलाशय।


देवगज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐरावत़।


देवगण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का वर्ग।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यक्ति जो बहुत तेजवान हो।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बड़ों के लिए सम्मानसूचक संबोधन।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा के लिए आदरसूचक संबोधन।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघ।


देव
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दैत्य, दानव, राक्षस।


देवअंशी
वि.
(स. देव + अंशिन्)
जो किसी देवता के अंश से उत्पन्न हो या किसी देवता का अवतार हो।


देवऋण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवों के प्रति कर्तव्य, यज्ञादि।


देवऋषि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवलोक के ऋषि, नारदादि।


देवक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता, सूर।


देवकन्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देव-पुत्री, देवी।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
भोगने को प्रवृत्त करना, अनुभव कराना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
निकालना, उत्पन्न करना।


देना
क्रि. स.
(सं. दान)
बंद करना, उड़काना।


देना
संज्ञा
पुं.
ऋण जो चुकाना हो।


देमान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीवान)
मंत्री, दीवान।


देय
वि.
(सं.)
देने या दान करने योग्य।


देर, देरी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. देर)
विलंब।


देर, देरी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. देर)
समय।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग में रहनेवाले अमर प्राणी, देवता, सुर।


देव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पूज्य व्यक्ति या सम्मनित व्यक्ति।


देवगण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत से देवताओं का समूह।


देवगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मृत्यु के बाद स्वर्ग-प्राप्ति।
उ.—श्री रघुनाथ धनुष कर लीनो लागत बान देवगति पाई।


देवगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मृत्यु के बाद देवयोनि की प्राप्ति।


देवगन
संज्ञा
पुं.
(सं. देवगण)
देवताओं का वर्ग।


देवगर्भ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह व्यक्ति जो देवता के वीर्य से उत्पन्न हुआ हो।


देवगांधार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग का नाम।


देवगांधारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक रागिनी।


देवगायक, देवगायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गंघर्व।


देवगिरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देववाणी, संस्कृत भाषा।


देवगिरी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक रागिनी।


देवठान
संज्ञा
पुं.
(सं. देवोत्थान)
कार्तिक शुक्ला एकादशी जब भगवान विष्णु सोकर उठते हैं।


देवढ़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. ड्योंढ़ी)
बाहरी द्वार, सिंहद्वार।


देवतरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं के पाँच वृक्षों—मंदार, पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन—में एक।


देवतर्पण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्रह्मा, विष्णु आदि देवों के नाम ले-ले कर तर्पण करने (पानी देने) की क्रिया।


देवता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग के अमर प्राणी, सुर।


देवताधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवराज इंद्र।


देवतीर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवपूजा का समय।


देवतीर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उंगलियों का अग्र भाग जिससे होकर तर्पण का जल गिरता है।


देवत्रया
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्रह्मा, विष्णु और शिव।


देवत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता होने का भाव या धर्म।


देवगुरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं के गुरू,बृहस्पति।


देवगुरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं के पिता, कश्यप।


देवगुही
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सरस्वती।


देवगृह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवालय, मंदिर।


देवचिकित्सक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं के वैद्य, अश्विनीकुमार।


देवचिकित्सक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो की संख्या।


देवज
वि.
(सं.)
देवता से उत्पन्न।


देवजुष्ट
वि.
(सं.)
देवता को चढ़ाया हुआ।


देवट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिल्पी, कारीगर।


देवठान
संज्ञा
पुं.
(सं. देवोत्थान)
विष्णु भगवान का सोकर उठना।


दंशाना
क्रि. स.
(सं.दंशन)
डंक मारना।


दंशाना
क्रि.सं.
(सं.दंशन)
डसना।


दंशित
वि.
(सं.)
दाँत से काटा हुआ।


दंशित
वि.
(सं.)
डसा हुआ।


दंशित
वि.
(सं.)
कवच पहने हुआ।


दंशी
वि.
(सं. दंशिन्)
दाँत से काटने, डंक मारने या डसनेवाला।


दंशी
वि.
(सं. दंशिन्)
कटूक्तियाँ या व्यंग्य वचन कहनेवाला।


दंशी
वि.
(सं. दंशिन्)
बैर या द्वेष रखनेवाला।


दंस
संज्ञा
पुं.
(सं. दंश)
दाँत से काटने का घाव।


संज्ञा
पुं.
(सं.)
पहाड़, पर्वत।


देवदीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आँख, नेत्र।


देवदुआरौ
संज्ञा
पुं.
(सं. देव + द्वार)
देवमंदिर, देव-मंदिर का द्वार।
उ.—टोना-टामनि जंत्र मंत्र करि, घ्यायौ देव-दुआरौ री—१०-१३५।


देवदूत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग।


देवदूत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पैगंबर।


देवदूती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्वर्ग की अप्सरा।


देवदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्रह्मा।


देवदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


देवदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महेश।


देवदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गणेश।


देवद्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार, पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन में एक।


देवदत्त
वि.
(सं.)
देवता का दिया हुआ, देवता से प्राप्त।


देवदत्त
वि.
(सं.)
देवता के लिए अर्पित।


देवदत्त
संज्ञा
पुं.
देव-अर्पित वस्तु या संपत्ति।


देवदत्त
संज्ञा
पुं.
शरीर की पाँच वायुओं में एक जिससे जंभाई आती है।


देवदत्त
संज्ञा
पुं.
अर्जुन के शंख का नाम।


देवदत्त
संज्ञा
पुं.
नागों का एक कुल।


देवदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता का दर्शन।


देवदार, देवदारु
संज्ञा
पुं.
(सं. देवदारु)
एक वृक्ष।


देवदासी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेश्या।


देवदासी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मंदिर को दान की हुई कन्या जो वहाँ नाचती-गाती है।


देवद्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवदास।


देवधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता को अर्पित धन।


देवधरा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवगृह)
देवालय, मंदिर।


देवधाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तीर्थ-स्थान, देव-स्थान।
मुहा.- देवधाम करना— तीर्थयात्रा करना।


देवधामी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवधाम)
तीर्थयात्रा।
उ.— महरि बृषभानु की यह कुमारी। देवधामी करत, द्वार द्वारैं परत, पुत्र द्वै, तीसरैं यहै बारी—६९९।


देवधुनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा नदी।


देवधेनु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कामधेनु।


देवनंदी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र का द्वारपाल।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यवहार।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरे से बढ़ने की इच्छा, जिगीषा।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खेल।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बगीचा।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कमल।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शोक, खेद।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कांति।


देवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्तुति।


देवनदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा या सरस्वती नदी।


देवना
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खेल, क्रीड़ा।


देवना
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवा।


देवनागारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भारत की प्रधान लिपि जिसमें संस्कृत, हिंदी आदि लिखी जाती हैं।


देवपदिमनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आकाशगंगा।


देवपर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह मनुष्य जो संकट पड़ने पर भी प्रयत्न न करे, भाग्य या देव पर विश्वास किये बैठा रहे।


देवपशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता के लिए अर्पित पशु।


देवपशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता का उपासक।


देवपात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग, अग्नि।


देवपालित
वि.
(सं.)
जहाँ वर्षाजल से ही खेती आदि का काम चल जाय।


देवपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता का पुत्र।


देवपुत्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवता की कन्या।


देवपुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अमरलोक, अमरावती।


देवपुरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अमरपुरी, अमराववती।


देवनाथ,देवनाथा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवनाथ)
शिव, महादेव।


देवनाथ,देवनाथा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवनाथ)
विष्णु।


देवनाथ,देवनाथा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवनाथ)
श्रीकृष्ण।
उ.—निदरि तुरत (ताहि) मार्यौ देवनाथा —२३१८।


देवनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवराज इंद्र।


देवनि
संज्ञा
पुं.
[सं. देव + हिं. नि (प्रत्य.)]
देवताओं (की)।
उ.—फल माँगत फिरि जात मुकर ह्यौ, यह देवनि की रीति —१-१७७।


देवनिकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देव-समूह।


देवनिकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवराज इंद्र।


देवपत्नी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता की स्त्री।


देवपथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छाया-पथ, आकाश।


देवबानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देववाणी)
आकाशवाणी।
उ.—देवबानी भई जीत भई राम की ताहू पै मूढ़ नाहीं सँभारे।


देवब्रह्म
संज्ञा
पुं.
(सं. देवब्रह्मन्)
नारद ऋषि।


देवब्राह्मण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुजारी, पंडा।


देवभवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवालय।


देवभवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवभाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता के लिए निकला भाग।


देवभाषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देववाणी, संस्कृत भाषा।


देवभिष्क
संज्ञा
पुं.
(सं. देवभिषज्)
अश्विनीकुमार।


देवभू, देवभूमि
संज्ञा
पुं.
(सं. देवभूमि)
स्वर्ग।


देवभूति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवताओं का ऐश्वर्य।


देवभृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इन्द्र।


देवभृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


देवभोज्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अमृत।


देवप्रंजर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कौस्तुभ मणि।


देवमंदिर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवालय, मंदिर।


देवमणि, देवमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. देव + मणि)
सभी देवों में श्रेष्ठ, श्रीकृष्ण।
उ.—तातैं कहत दयाल देवमनि, काहैं सूर बिसार्यौ—१-१०१।


देवमणि, देवमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. देव + मणि)
सूर्य।


देवमणि, देवमनि
संज्ञा
पुं.
(सं. देव + मणि)
कौस्तुभ मणि।


देवमाता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अदिति।


देवमादन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं को मत्त या मतवाला करनेवाला, सोमरस।


देवमानक
संज्ञा
पं.
(सं.)
कौस्तुभ मणि।


देवमाया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवताओं की माया।


देवमाया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ईश्वर की अविद्या माया जो जीवों को भ्रम या बंधन में डालती और नाच नचाती है।


देवमास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गर्भ का आठवाँ महीना।


देवमास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का एक महीना जो हमारे तीस वर्ष के बराबर होता है।


देवमुनि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नारद मुनि।


देवमूर्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवता की प्रतिमा या मूर्ति।


देवयजन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यज्ञ की वेदी।


देवयजनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी।


देवयज्ञ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
होम आदि कर्म।


देवरा
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
छोटा-मोटा देवता।


देवरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. देवर)
पति का छोटा भाई।


देवराज, देवराजा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवराज)
इन्द्र।


देवराज्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवरानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देवर)
देवर की स्त्री।


देवरानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देव + रानी)
इन्द्र की पत्नी शची।


देवराय, देवराया, देवरायो, देवरायौ
संज्ञा
पुं.
(सं. देवराज)
इन्द्र।


देवराय, देवराया, देवरायो, देवरायौ
संज्ञा
पुं.
(सं. देवराज)
श्रीकृष्ण।
उ.—अमर जय ध्वनि भई धाक त्रिभुवन गई कंस मारथौ निदरि देवरायौ—२६१५।


देवरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवरा)
छोटी-मोटी देवी।


देवर्षि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वब जो ऋषि होने पर भी देवता माना जाता हो।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विषैले जंतु का डंक।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खी जिसके डंक विषैले हों।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक असुर।


दंश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कवच।


दंशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत से काटनेवाला।


दंशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डंक मारनेवाला जंतु।


दंशन
संज्ञा
पुं.
(सं)
दाँत से काटने, डंक मारने या डसनें का कार्य।


दंशन
संज्ञा
पुं.
(सं)
कवच।


दंशना
क्रि. स.
(सं.दंशन)
दाँत सॆ काटना।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक ऋषि जिन्होंने जल में पैर पकड़ने पर एक गंधर्व को ग्राह हो जाने का शाप दिया था।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुजारी, पंडा।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धार्मिक व्यक्ति।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवर।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नारद।


देवल
संज्ञा
पुं.
(सं. देवालय)
देवमंदिर।


देवलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुजारी, पंडा, देवल।


देवला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दीवा)
छोटा दिया।


देवली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देउली)
छोटा दिया।


देवलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग; भु, भुव आदि सात लोक।
उ.—देवलोक देखत सब कौतुक बालकेलि अनुरागे—४१६।


देवयात
वि.
(सं.)
देवत्व को प्राप्त (प्राणी)।


देवयान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जीवात्मा को ब्रह्मलोक ले जानेवाला मार्ग।


देवयान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का विमान।


देवयानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शुक्राचार्य की कन्या जो राजा ययाति को ब्याही थी।


देवयुग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सत्ययुग।


देवयोनि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग आदि लोकों में रहनेवाले जीव जो देवों के अन्तर्गत माने जाते हैं।


देवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पति का छोटा भाई।
उ.—कौन बरन तुम देवर सखि री, कौन तिहारौ नाथ—९-४४।


देवरक्षित
वि.
(सं.)
जिसकी देवता रक्षा करें।


देवरथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का विमान या रथ।


देवरथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य का रथ।


देववक्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का मुँह, अग्नि।


देववधू
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवी।


देववधू
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अप्सरा।


देववर्त्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश।


देववाणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
संस्कृत भाषा।


देववाणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आकाशवाणी।


देववाहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग, अग्नि।


देवविहाग
संज्ञा
पुं.
(सं. देवविभाग)
एक राग।


देववृक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार, पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन में एक वृक्ष।


देववृक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवदास।


देवसभा, देवसमाज
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देव-ताओं की सभा।


देवसभा, देवसमाज
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राजसभा।


देवसभा, देवसमाज
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
युधिष्ठिर की ‘सुधर्मा’ अद्भुत नामक सभा जो मयदानव ने बनायी थी।


देवसरि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगानदी।


देवसृष्टा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मदिरा, मद्य।


देवसेना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवताओं की सेना।


देवसेनापति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुमार कार्तिकेय, स्कंद।


देवस्थान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवालय, देवमंदिर।


देवस्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देव-अर्पित धन।


देवहरा
संज्ञा
पुं
(हिं. देव + घर)
देवालय, मंदिर।


देवव्रत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भीष्मपितामह का नाम।


देवशत्रु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
असुर, राक्षस।


देवशिल्पी
संज्ञा
पुं.
(सं. देवशिल्पिन्)
विश्वकर्मा।


देवश्रुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर।


देवश्रुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नारद।


देवश्रुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शास्त्र।


देवसद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवस्थान।


देवसदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता का घर।


देवसदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवालय, देव-मंदिर।


देवसदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवहा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवहा या देविका)
सरयू नदी।


देवहू
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवताओं का आह्वान।


देवहूति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्वायंभुव मनु की तीन कन्याओं में से एक जो कर्दम मुनि को ब्याही थी। इसके गर्भ से नौ कन्याएँ और एक पुत्र हुआ। साँख्य शास्त्र-कर्त्ता कपिल इन्हीं के पुत्र थे।


देवांगन, देवांगना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवांगना)
देवताओं की स्त्री।
उ.—जय जयकार करति देवांगन बरखन कुसुम अपार-सारा—७९४।


देवांगन, देवांगना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देवांगना)
अप्सरा।


देवा
संज्ञा
पुं.
(सं. देव)
देवता, सुर।


देवा
वि.
(हिं. देना)
देनेवाला।


देवा
वि.
(हिं. देना)
देनदार, ऋणी।


देवाजीव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुजारी, पंडा।


देवातिदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


देवानीक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं की सेना।


देवानुचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विद्याधर आदि उपदेव जो देवताओं के साथ चलते हैं।


देवान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यज्ञ का हवि, चरु।


देवायु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवताओं का दीर्घ जीवनकाल।


देवायुध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का अस्त्र।


देवायुध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्रघनुष।


देवाये
क्रि. स.
(हिं. दिलाया)
देने को प्रेरित किया, दिलाये।
उ.—आप प्रभासु बिप्र बहुजन को बहुतक दात देवाये—सारा. ८३६।


देवायो
क्रि. स.
(हिं. दिलाना)
दिलाया, देने की प्रेरित किया।
उ.—(क) नौलख दान दयौ राजा नृग बहु-तक दान देवायो—सारा. ८२२। (ख) नाना बिधि कीन्ही हरि क्रीड़ा जदुकुल साप देवायो—८४२।


देवारण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं क उपवन।


देवारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं के शत्रु, राक्षस।


देवात्मा
संज्ञा
पुं.
(सं. देवत्मन्)
देव-स्वरुपा।


देवाधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इन्द्र।


देवाधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
परमेश्वर।


देवान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीवान)
दरवार, राज सभा।


देवान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीवान)
मंत्री, दीवान।


देवान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दीवान)
प्रबन्धक।


देवानंप्रिय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं को प्रिय।


देवाना
वि.
(हिं. दीवाना)
पागल, उन्मत्त।


देवाना
क्रि. स.
(हिं. दीलाना)
देने को प्रेरित करना।


देवानी
वि.
स्त्री.
(हिं. दीवानी)
पागल, उन्मत्त।
उ.—हमहूँ कौं अपराध लगावहिं ऐऊ भई देवानी—पृ. ३२४ (८६)।


देवामणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता के लिए दान।


देवाल
वि.
(हिं. देना)
देनेवाला, दाता।


देवालय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवालय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदिर।


देवाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दिवाला)
दिवाला।


देवाला
संज्ञा
पुं.
(सं. देवालय)
मंदिर।


देवाला
संज्ञा
पुं.
(सं. देवालय)
स्वर्ग।


देवाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दिवाली)
दीपावली।


देवालेई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देना + लेना)
लेनदेन।


देवावास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


देवावास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता का मंदिर, देवालय।


देवावास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीपल का पेड़।


देवाश्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इन्द्र का घोड़ा, उच्चैःश्र्वा।


देवाहार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अमृत।


देविका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
घाघरा नदी।


देवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवता की स्त्री।


देवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा।


देवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पटरानी।


देवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सुन्दर गुणोवाली स्त्री।


देवीभागवत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक पुराण।


संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।


संज्ञा
पुं.
(सं.)
देनेवाला, दाता।


संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पत्नी।


संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
रक्षा।


संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
खंडन।


दइ, दइउ
संज्ञा
पुं.
(सं. दैव)
भाग्य, विधाता।


दइजा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दायजा)
दहेज।


दइमारा, दइमारो
वि.
(हिं. दई+मारना)
अभागा, भाग्यहीन।
उ.—दूध दही नहिं लेव री, कहि कहि पचि हारी। कहति, सूर कोऊ घर नाहीं, कहै वई दउमारी।


दई
क्रि. स.
(हिं देना)
देना किया के भूत-कालिक रूप ‘दिया’ के स्त्रीलिंग ‘दी’ का व्रजभाषा-प्रयोग; दी।
उ.—(क) बहुत सासना दई प्रहला-दहिं, ताहिं निसंक कियौ—१-३८। (ख) दई न जाति खेवट उतराई चाहत चढ़्यौ जहाज—१-१०८।


दई
क्रि. स.
(हिं देना)
ब्याह दी।
उ.—(क) तनया तीनि सुनौ अब सोई। दच्छ प्रजापति कौं इक दई—३-१२। (ख) महादेव कौं सो तिन दई—४-४। (ग) जब तैं कन्या रिषि कौं दई—६-३।


देवीभोया
संज्ञा
पुं.
(हिं. देवी + भोयना=भुलाना)
देवी का भक्त या माननेवाला, ओझा।


देवेन्द्र
वि.
(सं.)
देवराज, इंद्र।


देवेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवराज इंद्र।


देवेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
परमेश्वर।


देवेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


देवेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


देवेशय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
परमेश्वर।


देवेशय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


देवेशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पार्वती।


देवेशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
देवी।


देवेष्ट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं को प्रिय।


देवै
संज्ञा
पुं.
(सं. देवकी)
श्रीकृष्ण की माता देवकी।
उ.—(क) जो प्रभु नर-देहीं नहिं धरते। देवै गर्भ नहीं अवतरते—११८६। (ख) बारबार देवै कहै कबहूँ गोद खिलाए नाहिं—२६२५।


देवैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. देना + ऐया)
देनेवाला, दाता।


देवोत्तर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देव-अर्पित धन।


देवोत्थान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कार्तिक शुक्ला एकादशी को विष्णु का शेष-शैया त्यागना।


देवोद्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं का बगीचा।


देश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्थान।


देश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जनपद।


देश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राष्ट्र।


देश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर का भाग, अंग।


देशभाषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रान्त या प्रदेश की भाषा।


देशस्थ
वि.
(सं.)
देश में रहने वाला या स्थित।


देशान्तर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विदेश परदेश।


देशान्तर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ध्रुवों की उत्तर-दक्षिणी मध्यरेखा से पूर्व या पश्चिम की दूरी।


देशांश
संज्ञा
पुं.
(सं. देशांतर)
अन्य देश, परदेस।


देशांश
संज्ञा
पुं.
(सं. देश + अंश)
देश का भाग।


देशाचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देश का आचार-व्यवहार।


देशाटन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भ्रमण, यात्रा।


देशिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पथिक, बटोही।


देशी, देशीय
वि.
(सं. देशीय)
देश का, देश से संबंधित।


देश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


देशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपदेश देनेवाला, उपदेशक।


देशगांधार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


देशज
वि.
(सं.)
देश में उत्पन्न।


देशज
संज्ञा
पुं.
वह शब्द जिसकी उत्पत्ति अज्ञात हो और जिसके मूल का पता न लगे।


देशज्ञ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देश की रीति-नीति जाननेवाला।


देशधर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देश का आचार-व्यवहार आदि।


देशना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सीख, उपदेश।


देशनिकाला
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देश + निकालना)
देश से निकाले जाने का दंड।


देशभक्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो देश की उन्नति के लिए तन-मन-धन वार सके।


देशी, देशीय
वि.
(सं. देशीय)
अपने देश का, स्वदेशी।


देशी, देशीय
वि.
(सं. देशीय)
अपने देश में बना हुआ।


देश्य
वि.
(सं.)
देश का।


देश्य
वि.
(सं.)
देशी।


देस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिक्, स्थान।


देस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पृथ्वी का प्राकृतिक विभाग, जनपद।


देस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राष्ट्र, राज्य।
उ.—(क) हरि, हौ सब पतितनि-पतितेस। और न सरि करिबैं कौ दूजौ, महामोह मम देस—१-१४१। (ख) हरीचंद सो को जग दाता सो घर नीच भरै। जे गृह छाँड़ि देस बहु धावै, तउ वह संग फिरै—१-२६४। (ग) छाँड़ि देस भय, यह कहि डाँटयौ—१-२९०। (घ) उदै सारंग जान सारंग गयौ अपने देस—सा. ५६। (ङ) सकल देस ताकौं नृप दयौ—९-२।


देसनिकारा, देसनिकारौ
संज्ञा
पुं.
(सं. देश + हिं. निकालना)
देश से निकाले जाने का दण्ड।
उ.—जो मेरैं लाल खिझावै। सो अपनौ कीनौ पावै। तिहिं दैहौं देस-निकारौ। ताकौ ब्रज नाहिंन गारौं—१०-१८३।


देसवाल, देसवाला
वि.
(हिं. देश + वाला)
अपने देश का, स्वदेशी।


देसावर
संज्ञा
पुं.
(सं. देश + अपर)
विदेश, परदेस।


देह
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
गाँव, खेड़ा, मौजा।


देहकान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. देहक़ान)
किसान।


देहकान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. देहक़ान)
गंवार।


देहकानी
वि.
(हिं. देहकान)
गँवारू, देहाती।


देहत्याग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृत्यु, मौत।


देहद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पारा।


देहधारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर धारण करने-वाला।


देहधारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाड़, हड़िडयाँ।


देह-धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर का पालन पोषण।


देह-धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जन्म।


देसावरी
वि.
(हिं. देसावर)
विदेश का, परदेशी।


देसी
वि.
(सं. देशीय)
अपने देश का।


देसी
वि.
(सं. देशीय)
अपने देश में बना हुआ या उत्पन्न।


देहंभर
वि.
(सं.)
अपने ही शरीर के भरण-भोषण में लगा रहनवाला।


देह
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शरीर, तन।
उ.—हरि के जन की अति ठकुराई। निरभय देह राज-गढ़ ताकौ, लोक मनन-उतसाहु। काम, क्रोध, मद लोभ, मोह ये भए चोर तैं साहु—१-४०।
मुहा.- देह छूटना— मृत्यु होना।

देह छोड़ना— मरना। देहु धरना— जन्म लेना। देह धरि— जन्म या अवतार लेकर। उ.— सूर देह धरि सुरनि उधारन, भूमि-भार येई हरिहैं— १०-१५। देह लेना— जन्म लेना। देह बिसारना— शरीर की सुध न रखना।

देह
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शरीर का कोई अंग।
उ.—लिंग-देह नृप कौं निज गेह। दस इंद्रिय दासी सौं नेह—४-१२।


देह
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
जीवन, जिंदगी।


देह
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विग्रह।


देह
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मुर्ति, चित्र।


देह
क्रि. स.
(हिं. देना)
दो, प्रदान करो।
उ.—बहुत दुखित है (यह) तेरैं नेह। एक बेर इहिं दरसन देह—९-२।


देहधारी
संज्ञा
पुं.
(सं. देहधारिन्)
शरीर धारण करनेवाला, जन्म लेने वाला।


देहधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चिड़ियों का पंख, पक्ष, डैना।


देहपात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृत्यु, मौत।


देहभृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जीव, प्राणी।


देहयात्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मरण, मौत, मृत्यु।


देहयात्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भरण-पोषण, पालन।


देहयात्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भोजन।


देहर
संज्ञा
स्त्री.
(सं. देव + ह्नर)
नदी किनारे की निचली भूमि।


देहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. देव + घर)
देवालय, मंदिर।


देहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. देह)
शरीर, देह।
उ.—निसि के सुख कहे देत अधर नैना उर नख लागे छबि देहरा—२००१।


देहवान्
वि.
(सं.)
जो तनधारी हो।


देहवान्
संज्ञा
पुं.
शरीरधारी, जीव या प्राणी।


देहवान्
संज्ञा
पुं.
सजीव प्राणी।


देहसार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मज्जा, धातु।


देहांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मौत, मृत्यु।


देहांतर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरा शरीर।


देहांतर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरे शरीर की प्राप्ति, पुनर्जन्म।


देहात
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
गाँव, ग्राम।


देहाती
वि.
(हिं. देहात)
गाँव में रहनेवाला


देहाती
वि.
(हिं. देहात)
गाँव में होनेवाला।


देहरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देहली)
देहली दरवाजे के नीचे की चौखट।
उ.—(क) भीतर तैं बाहर लौं आवत। घर-आँगन अति चलत सुगम भए, देहरि अँटकावत—१०-१२५। (ख) देहरि लौं चलि जात, बहुरि फिर-फिर इतहीं कौं आवै—१०-१२६। (ग) देहरि चढ़त परत गिरि-गिरि, कर-पल्लव गहति जु मैया—१०-१३१।


देहरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देहर)
नदी किनारे की निचली भूमि।


देहरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देहली)
द्वार के चौखटे की नीची लकड़ी, देहली।
उ.— (क) बसुधा त्रिपद करत नहिं आलस, तिनहिं कठिन भयौ देहरी उलँघना—१०-२२३। (ख) सूरदास अब धाम-देहरी चढ़ि न सकत प्रभु खरे अजान—१०-२२७।


देहला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मदिरा, शराब।


देहली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्वार की निचली चौखट।


देहली, दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देहली का दीपक जो बाहर-भीतर, दोनों ओर प्रकाश करता है।


देहली, दीपक
यौ.
देहली दीपक न्याय— देहली दीपक के बाहर-भीतर फैले प्रकाश के समान दोनों ओर लगनेवाली बात।


देहली, दीपक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अर्थालंकार।


देहवंत
वि.
(सं. देहवान् का बहु.)
जिसके शरीर हो।


देहवंत
संज्ञा
पुं.
वह जो शरीर धारण किये हो, प्राणी।


दई
संज्ञा
पुं.
(सं. दैव)
ईश्वर, विधाता।
उ.—(क) अबधौं कैसी करिहैं दई—१-२६१। (ख) अबिगत-गति कछु समुझि परत नहिं जो कछु करत दई—१-२६६।
मुहा.- दई का घाला (मारा, मारयौ)- अभागा। अब लाग्यौ पछितान पाइ दुख, दीन, दई को मारयौ। १-१०१। दई की घाली (मारी)- अभागी। उ.— जननि कहति दई की घाली, काहे को इतराति। दई दई— (१) हे दैव, रक्षा के लिए ईश्वर को पुकारवना। (२) अति विपत्ति में अपने दुर्भाग्य को कोसना।


दई
संज्ञा
पुं.
(सं. दैव)
भाग्य, प्रारब्ध, दैव, संयोग।


दईमार, दईमारा, दईमारो
वि.
(हिं. दई+मारना)
जिस पर दैवी कोप हो।


दईमार, दईमारा, दईमारो
वि.
(हिं. दई+मारना)
अभागा, कंबख्त।


दउरना
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
भागना, दौड़ना।


दए
क्रि. स.
(हिं. देना)
‘देना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘दिया’ के बहुवचन ‘दिये’ का ग्राम्य प्रयोग।
उ.—प्रगट खंभ तैं दए दिखाई जद्यपि कुल कौ दानौं—१-११।


दक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जल, पानी।


दकन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दक्षिण भारत।


दक्खिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
उत्तर दिशा के सामने की दिशा, दक्षिण दिशा।


दक्खिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
दक्षिण का प्रदेश।


देहाती
वि.
(हिं. देहात)
गँवार, उजड्ड।


देहातीत
वि.
(सं.)
जो शरीर से परे या स्वतंत्र हो।


देहातीत
वि.
(सं.)
जिसे शरीर का अभिमान न हो।


देहात्मवादी
संज्ञा
पुं.
(सं. देहात्मवादिन्)
वह जो शरीर को ही आत्मा मानता हो।


देहाध्यास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देह को ही आत्मा मानने-समझने का भ्रम।


देहिं
क्रि. स.
(हिं. देना)
देते हैं।


देहिं
प्र.
पीठि देहिं—मान-सम्मान नहीं देते, आदर-सत्कार नहीं करते। भजन-भाव नहीं करते, नहीं मानते।
उ.—भक्तबिरह-कातर करुनामय डोलत पाछैं लागे। सूरदास ऐसे स्वामी कौं देहिं पीठि सो अभागे—१-८।


देहींगी
क्रि. स.
(हिं. देना)
देंगी, प्रदान करेंगी।


देहींगी
प्र.
फल देहिंगी—बदला देंगी, परिणाम भुगता देंगी।
उ.—लालन हमहिं करे जे हाल उहै फल देहिंगी हो—२४१६।


देहि
क्रि. स.
(हिं. देना)
दो, प्रदान करो।


देहौं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दूँगा, समर्पित करूँगा।
उ.— रूक्म कह्यौ सिसुपालहिं देहौं, नाहीं कृष्ण सौ काम—सारा. ६२८।


दैं
अव्य.
(अनु.)
(क्रिया या व्यापार -सूचक) से।


दै
क्रि. स.
(हिं. देना
देकर।
उ.—पट कुचैल, दुरबल द्विज देखत, ताके तंदुल खाए (हो)। संपति दै ताकौ पतिनी कौं, मन अभिलाष पुराए (हो)—१-७।


दै
क्रि. स.
(हिं. देना)
दे, प्रदान कर।
उ.—हलधर कहउ, लाउ री मैया। मोकौ दै नहिं लेत कन्हैया—३९६।


दै
क्रि. स.
(हिं. देना)
डालकर, मिलाकर, छोड़कर।
उ.—भात पसारि रोहिनी ल्याई। घृत सुगंधि तुरतै दै ताई—३९६।


दै
प्र.
द तारी तार—ताली और ताल बजाकर।
उ.—मोहिं देखि सब हँसत परस्पर, दै दै तारी तार—१-१७५।


दै
प्र.
दै कान- कान देकर, ध्यान लगाकर।
उ.—और उपाय नहीं रे बौरे, सुनि तू यह दै कान—१-३०४।


दै
प्र.
दै लात—लात रखकर, खड़े होकर।
उ.—कैसै कहति लियौ छीकै तैं ग्वाल कंध दै लात।


दै
प्र.
लात मारकर, ठोकर देकर। आगैं दै—आगे करके।
उ.—आगे दै पुनि ल्यावत घर कौं—४२४।


दैअ
संज्ञा
पुं.
(सं. दैव)
दैव।


देहीं
संज्ञा
पुं. सवि.
(हिं. देह)
शरीर में।
उ.— देहीं लाइ तिलक केसरि कौ जोबन मद इतराति—१०-२९०।


देहीं
क्रि. स.
(हिं. देना)
देते हैं, प्रदान करते हैं।


देही
संज्ञा
पुं.
(सं. देहिन्)
जीवात्मा, आत्मा।


देही
संज्ञा
पुं.
(हिं. देह)
शरीर, देह।
उ.—नर-देही दीनी सुमिरन कौं मो पापी तैं कछु न सरी—१-११६।


देही
संज्ञा
पुं.
(हिं. देह)
शव।
उ.—भैया-बंधु-कुटुंब घनेरे, तिनतैं कछु न सरी। लै देही घर-बाहर जारी, सिर ठोंकी लकरी—१-७१।


देही
वि.
जिसके शरीर हो, शरीरी।


देहुँ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दूँ, प्रदान करूँ।
उ.—मैं बर देहुँ तोहिं सो लेहि—१-२२९।


दहु
क्रि. स.
(हिं. देना)
दो, प्रदान करो।
उ.— (क) सुख सोऊँ सुनि बचन तुम्हारे देहु कृपा करि बाँह—१-५१। (ख) तुम बिनु साँकरैं को काकौ। तुमहीं देहु बताइ देवमनि, नाम लेउँ धौं ताकौ—१-११३।


देहुगी
क्रि. स.
(हिं. देना)
दोगी, प्रदान करोगी।
उ.—अंबर जहाँ बताऊँ तुमको। तौ तुम कहा देहुगी हमको—७९९।


देहेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देह में स्थित आत्मा।


दैआ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दैया)
दैया।


दैउ
संज्ञा
पुं.
(सं. दैव)
दैव।


दैजा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दायजा)
दहेज।


दैत
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्य)
दैत्य, दानव।


दैतारि, दैतारी
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्यारि)
विष्णु।
उ.— (क) धन्य लियौ अंवतार, कोखि धनि, जहँ दैतारी—४३१। (ख) चरन पखारि लियौ चरनोदक धनि धनि कहि दैतारि—३०५०।


दतेय
वि.
(सं.)
दिति से उत्पन्न।


दतेय
संज्ञा
पुं.
दिति से उत्पन्न दैत्य।


दैत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कश्यप के दिति नामक पत्नी से उत्पन्न पुत्र, दैत्य।


दैत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत लंबे-चौड़े डील-डौल का मनुष्य।


दैत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी काम में अति या असाधारणता करनेवाला।


दैत्यारि, दैत्यारी
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्य + अरि)
विष्णु या उनके राम कृष्ण आदि अवतार।
उ.—(क) चरन पखारि लियो चरनोदक धनि धनि कहि दैत्यारी—२५८७। (ख) त्राहि-त्राहि श्रीपति दैत्यारी—२१५९। (ग) भयौ पूरब फल सँपूरन लह्यौ सुत दैत्यारि—३०९१।


दैत्यारि, दैत्यारी
संज्ञा
पुं.
सं. दैत्य + अरि)
इन्द्र।


दैत्यारि, दैत्यारी
संज्ञा
पुं.
सं. दैत्य + अरि)
सुर, देवता।


दैत्याहोरात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दैत्यों का एक रात-दिन जो मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है।


दैत्यंद्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दैत्यों का राजा।


दैनंदिन
वि.
(सं.)
प्रति दिन का, नित्य का।


दैनंदिन
क्रि.वि .
प्रतिदिन।


दैनंदिन
क्रि.वि .
दिनोंदिन।


दैनंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दैनंदिन)
दैनिकी, डायरी।


दैन
वि.
स्त्री.
(हिं. देना)
देनेवाली, प्रदान करनेवाली।
उ.— गंग-तरंग बिलोकत नैन।¨¨¨। परम पवित्र, मुक्ति की दाता, भागीरथहिं भब्य बर दैन —९-१२।


दैत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीच, दुष्ट।


दैत्यगुरु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुक्राचार्य।


दैत्यदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वरूण।


दैत्यदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु।


दैत्यपुरोधा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुक्राचार्य।


दैत्यमाता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अदिति।


दैत्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दैत्य जाति की स्त्री।


दैत्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दैत्य की पत्नी।


दैत्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मदिरा।


दैत्यारि, दैत्यारी
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्य + अरि)
दैत्यों के शत्रु।


दैन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देन)
देने की क्रिया या भाव।


दैन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देन)
दी हुई वस्तु।
मुहा.- लैन न दैन— न लेन में न देने में, किसी तरह के संबंध में नहीं। उ.— ए गीधे नहिं टरत वहाँ ते मोसौं लेन न दैन— पृं ३१३-१८।


दैन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीन होने का भाव, दीनता।


दैन
वि.
(सं.)
दिन संबंधी, दिन का।


दैनिक
वि.
(सं.)
प्रति दिन का।


दैनिक
वि.
(सं.)
नित्य होनेवाला।


दैनिक
वि.
(सं.)
जो एक दिन में हो।


दैनिक
वि.
(सं.)
दिन संबंधी।


दैनिक
संज्ञा
पुं.
एक दिन का वेतन।


दैनिकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दैनिक)
वह पुस्तिका जिसमें रोज के कार्य या विचार लिखें जायें, डायरी।


दैनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देना)
देनेवाली, प्रदान करनेवाली।
उ.— जय, जय, जय, जय माधव बेनी। जग हित प्रगट करी करूनामय, अगतिनि कौं गति दैनी—९-११।


दैनु
वि.
[हिं. देना (समास-वत् प्रयोग)]
देनेवाला, प्रदान करनेवाला।
उ.—सूर-स्याम संतन-हित-कारन प्रगट भए सुख-दैनु—१०-५०२।


दैनु
संज्ञा
पुं.
देना, देने का भाव।
मुहा.- लैनु न दैनु— लेना न देना, काम काज, उद्देश्य-प्रयोग या संबंध न होना, व्यर्थ ही। उ.— चलत कहाँ मन और पुरी तन जहाँ कछु लैन न दैनु— ४९१।


दैन्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीनता, दरिद्रता।


दैन्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विनीत भाव, विनम्रता।


दैन्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक संचारी भाव, कातरता।


दैबै
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. देना)
देने या प्रदान करने की क्रिया या भाव।
उ.—तन दैबै तैं नाहिंन भजौं —६-५।


दैयत
क्रि. स.
(हिं. देना)
देते हैं।


दैयत
प्र
दूरि करि दैयत- दूर कर देते हैं।
उ.— दूजे करज दूरि करि दैयत, नैंकु न तामैं आवै—१-१४२।


दैयत
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्य)
दानव, राक्षस।
उ.—(क) मति हिय बिलख करौ सिय, रघुबर हतिहैं कुल देयत को—९-८४। (ख) दासी हुती असुर दैयत की अब कुल-बधू कहावै—३०८८।


दैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. दैव)
दई, ईश्वर, विधाता।
मुहा.- दैया दैया— रक्षा के लिए ईश्वर की पुकार, हे दैव, हे दैव। उ.— ब्यानी गाइ बछुरूवा चाटति, हौं पय पियत पतूखिनि लैया। यहै देखि मोकौं बिजुकानी, भाजि चल्यौ कहिं दैया दैया— १०-३३५।


दैया
अव्य.
आश्चर्य, भय या दुख की अधिकता-सूचक, स्त्रियों के मुख से सहसा निकल पड़नेवाला एक शब्द, हे दैव, हे राम।


दैया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाई)
धाय, दाई।


दैयागति
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दैवगति)
भाग्य, कर्म।


दैर्ध्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीर्घता, लंबाई।


दैव
वि.
(सं.)
देवता-संबंधी।


दैव
वि.
(सं.)
देवता के द्वारा होनेवाला।


दैव
वि.
(सं.)
देवता को अर्पित।


दैव
संज्ञा
पुं.
भाग्य, होनी, प्रारब्ध।


दैव
संज्ञा
पुं.
ईश्वर, विधाता।
मुहा.- दैव लगाना— बुरे दिन आना, ईश्वरीय कोप होना।


दैव
संज्ञा
पुं.
आकाश, आसमान।


दैव
संज्ञा
पुं.
बादल, मेघ।
मुहा.- दैव बरसना— पानी बरसना।


दैवकोविद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवी-देवताओं के विषय का ज्ञाता।


दैवकोविद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


दैवगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दैवी घटना।


दैवगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भाग्य।


दैवचिंतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


दैवज्ञ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


दैवतंत्र
वि.
(सं.)
जो भाग्य के अधीन हो।


दैवत
वि.
(सं.)
देवता का, देवता-संबंधी।


दक्खिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
भारत का दक्षिणी प्रदेश।


दक्खिन
क्रि. वि.
(सं. दक्षिण)
दक्षिण दिशा में, दक्षिण की ऒर।


दक्खिनी
वि.
(हिं. दक्खिन)
दक्षिण से संबंधित।


दक्खिनी
संज्ञा
पुं.
(हिं. दक्खिन)
दक्षिणी प्रदेश का निवासी।


दक्खिनी
संज्ञा
स्त्री
(हिं. दक्खिन)
दक्षिणी भू-भाग की भाषा।


दक्ष
वि.
(सं.)
कुशल, चतुर


दक्ष
वि.
(सं.)
दाहना।


दक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्रजापति जो देवताऒं के आदि पुरुष माने जाते हैं।


दक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अत्रि ऋषि


दक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव का बैल।


दैववादी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आलसी।


दैवविद्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


दैवविवाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आठ प्रकार के विवाहों में एक जिसमें यज्ञ करनेवाला व्यक्ति ऋत्विज या पुरोहित को कन्यादान कर देता था।


दैवश्राद्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्राद्ध जो देवताओं के लिए हो।


दैवसर्ग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवताओं की सृष्टि।


दैवाकरि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य के पुत्र शनि और यम।


दैवाकरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सूर्य पुत्री यमुना नदी।


दैवागत
वि.
(सं.)
सहसा होनेवाला, आकस्मिक।


दैवागत
वि.
(सं.)
दैवी।


दैवात्
क्रि. वि.
(सं.)
अकस्मात, संयोग से।


दैवत
संज्ञा
पुं.
देवता।


दैवत
संज्ञा
पुं.
दैव प्रतिमा।


दैवतपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इन्द्र।


दैवतीर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उँगलियों का अग्र भाग।


दवदुर्विपाक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भाग्य का खोटापन।


दैवयोग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संयोग, इत्तिफाक।


दैवलेखक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


दैववश,दैववशात्
क्रि. वि.
(सं.)
संयोग से, अकस्मात।


दैववाणी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाशवाणी।


दैववादी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भाग्य के भरोसे रहकर परिश्रम न करनेवाला।


दैवात्यय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दैवी उत्पात।


दैविक
वि.
(सं.)
देवता का, देवता-संबंधी।


दैविक
वि.
(सं.)
देवताओं का दिया या रचा हुआ।


दैवी
वि.
स्त्री.
(सं.)
देवता से संबंध रखनेवाली।


दैवी
वि.
स्त्री.
(सं.)
देवताओं की की हुई।


दैवी
वि.
स्त्री.
(सं.)
अकस्मात या संयोग से होनेवाली।


दैवी
वि.
स्त्री.
(सं.)
देवता अर्पित।


दैवी
संज्ञा
स्त्री.
दैव की विवाहिता पत्नी।


दैवीगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दैव या ईश्वर-कृत बात या लीला।


दैवीगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भावी, होनहार।


दैहौं
प्र.
जान दे दूँगा, मर जाऊँगा। तव सिर छत्र न दैहौं—तुझे राजा नहीं बना लूँगा। तुझे न पहना दूँगा।
उ.— तब लगि हौं बैकुंठ न जैंहौं। सुनि प्रहलाद प्रतिज्ञा मेरी जब लगि तव सिर छत्र न दैंहौं—७-५।


दोंकना
क्रि. अ.
(देश)
गुर्रान।


दोंकी
संज्ञा
स्त्री.
(देश)
धौंकनी।


दींच, दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
दुबधा।


दींच, दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
कष्ट।


दींच, दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
दबाब।


दोंचना
क्रि. स.
(हिं. दोचना)
दबाव में डालना।


दोंचि
क्रि. स.
(हिं. दोंचना)
दबाव में डालकर।
उ.— तंदुल माँगि दोंचि कलाई सो दीन्हों उपहार—सारा—८०९।


दौर
संज्ञा
पुं.
(देश)
एक तरह का साँप।


दो
वि.
(सं. द्वि)
एक और एक।
मुहा.- दो-एक— कुछ, थोड़े।

दो-चार— कुछ, थोड़ें। दो-चार होना— मुलाकात होना। दो दिन का बहुत ही थोड़े समय का। दो दाने को फिरना (भटकना)— बहुत ही निर्धन दशा में भिक्षा मांगते घूमना। दो-दो बातें करना— (१) थोड़ी बातचीत। (२) पूँछ ताँछ। दो नावों पर पैर रखना— दो साथ न रहनेवाले आश्रयों या पक्षों का सहारा लेना। किसके दो सिर हैं— किसमें इतना साहस या बल है जो मरने से नहीं डरता।

दैव्य
वि.
(सं.)
देवता से संबंधित।


दैव्य
संज्ञा
पुं.
दव।


दैव्य
संज्ञा
पुं.
भाग्य, प्रारब्ध।


दैहिक
वि.
(सं.)
देह-संबंधी, शारीरिक।


दैहिक
वि.
(सं.)
देह से उत्पन्न।


दैशिक
वि.
(सं.)
देश या जनपद-संबंधी।


दैहैं
क्रि. स.
(हिं. देना)
देंगे, प्रदान करेंगे।
उ.—पहिरावन जो पाइहैं सो तुमहूँ दैहैं—२५७६।


दैहै
क्रि. स.
(हिं. देना)
देगी, प्रदान करेगी।
उ.—अजहुँ उठाइ राखि री मैया, माँगे तैं कह दैहै री। आवत ही लै जैहै राधा, पुनि पाछैं पछितैहै री—७११।


दैहौं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दूँगी , प्रदान कहूँगी।


दैहौं
प्र.
जान दैहौं जाने दूँगा, भेजने की व्यवस्था कर दूँगा।
उ.— सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब प्रात जान मैं दैहौं—४२०।


दो
संज्ञा
पुं.
दो की संख्या।


दो
संज्ञा
पुं.
(हिं. दव)
वन की आग, दावानल।
उ.—घर बन कुछ न सुहाइ रौनि-दिन मनहुँ मृगी दो दाहै—२८०१।


दोआब, दोआबा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दोआब)
दो नदियों के बीच की भूमि जो उपजाऊ होती है।


दोई
वि.
(हिं. दो)
दो।
उ.—दोई लख धेनु दई तेहि अवसर बहुतहिं दान दिवायो—सारा. ३९२।


दोई
वि.
(हिं. दो)
दोनों।
उ.—कुरपति कह्यो अंध हम दोइ। बन मैं भजन कौन बिधि होइ—१-२८४।


दोई
वि.
(हिं. दो)
भिन्न, अलग।
उ.—(क) ऊँच नीच हरि गनत न दोइ—१-२३६। (ख) हरि हरि-भक्त एक, नहिं दोइ—-१-२९०। (ग) सत्रु-मित्र हरि गनत न दोइ—२-५।


दोउ, दोऊ
वि.
(हिं. दो)
दोनों।
उ.—(क) उन दोउनि सौं भई लराई—१-२८९। (ख) माया-मोह न छाँड़ै तृष्णा, ये दोऊ दुख-थाती—१-११८।


दोक
वि.
(हिं. दो + का)
दो वर्ष का।


दोकड़ा, दोकरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुकड़ा)
जोड़ा।


दोकला
वि.
(हिं. दो + कल)
दो कल-पेंचवाला।


दोगुना
वि.
(हिं. दुगना)
दूना, दुगना।


दोचंद
वि.
(फ़ा.)
दूना, दुगना।


दोच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबोच)
दुबधा, असमंजस।


दोच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबोच)
कष्ट, दुख।
उ.— मनहिं यह परतीति आई दूरि हरिहौ दोच।


दोच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुबोच)
दबाव, दबाने का भाव।


दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबोचन)
दुबधा, असमंजस।


दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबोचन)
दबाव, दबाये जाने का भाव।


दोचन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबोचन)
दुख, कष्ट।
उ.— ऐसी गति मेरी तुम आगे करत कहा जिय दोचन—१५१७।


दोचना
क्रि. स.
(हिं. दोच)
जोर या दबाव डालना।


दोचित्ता
वि.
(हिं. दो + चित्त)
जिसका ध्यान दो कामों या बातों में बँटा हो, जो एकाग्र न हो।


दोकोहा
वि.
(हिं. दो + कोह कूबर)
दो कूबरवाला।


दोकोहा
संज्ञा
पुं.
दो कूबरवाला ऊँट।।


दोख
संज्ञा
पुं.
(सं. दोष)
बुराई, ऐब।


दोखना
क्रि. स.
(हिं. दोष + ना)
दोष लगाना।


दोखी
वि.
(हिं. दोषी)
जिसमें दोष या ऐब हो।


दोखी
वि.
(हिं. दोषी)
जो शत्रुता या वैर रखे।


दोगंग
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + गंगा)
दो नदियों के बीच की भूमि।


दोगंडी
वि.
(हिं. दो + गंडी)
झगड़ालू, उपद्रवी।


दोगला
वि.
(फ़ा. दोगला)
जो माता के वास्तविक पति से न पैदा हुआ हो, जारज।


दोगला
वि.
(फ़ा. दोगला)
जिसके माता-पिता भिन्न जाति के हों।


दोचित्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोचित्ता)
ध्यान का दो कामों या बातों में बँटा रहना।


दोज
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो)
दूज, दुइज, द्वितीया।


दोजख
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दोजख)
नरक।


दोजखी
वि.
(हिं. दोजख)
दोजख का।


दोजखी
वि.
(हिं. दोजख)
पापी।


दोजा
वि.
(हिं. दो)
जिसका दूसरा विवाह हो।


दोजा
वि.
(हिं. दूजा)
दूजा, दूसरा।


दोजानू
क्रि. वि.
(फ़ा.)
दोनों घुटने टककर।


दोजिया
वि.
(दो + जी, जीव)
गर्भवती (स्त्री, मादा)


दोजीवा
वि.
(हिं. दो + जीव)
गर्भवती (स्त्री, मादा)


दोतरफा, दोतर्फा
वि.
(हिं. दो + तरफ)
दोनों तरफ का, दोनों ओर से संबंधित।


दोतरफा, दोतर्फा
क्रि. वि.
दोनों ओर या तरफ।


दोतला, दोतल्ला
वि.
(हिं. दो + तल = दोतल्ला)
दो खंड का, जिसमें दो खंड या मंजिल हों।


दोतही, दोता
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + तह)
मोटी चादर।


दोतारा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + तार)
एक तरह का दुशाला।


दोतारा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + तार=धातु)
एक बाजा।


दोदना
क्रि. स.
[हिं. (दोहराना)]
कही हुई बात से मुकरना या इनकार करना।


दोदल
संज्ञा
पुं.
(हिं. द्विदल)
चने की दाल।


दोदिला
वि.
(हिं. दो + दिल)
जिसका चित्त या ध्यान दो कामों या बातों में बँटा हो, दोचित्ता।


दोदिली
वि.
(हिं. दोदिल)
दोचित्ती, दोचित्तापन।


दक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


दक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बल, वीर्य।


दक्षकन्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सती जो शिव को ब्याही थी और पिता के यज्ञ में बिना बुलाये जाकर अपमानित होने पर भस्म हो गयी थी।


दक्षता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुशलता, निपुणता।


दक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी, वसुधा।


दक्षा
वि.
स्त्री.
(सं.)
कुशला, चतुरा, निपुणा।


दक्षिण, दक्षिन
वि.
(सं. दक्षिण)
दाहिना, बायें का उलटा।


दक्षिण, दक्षिन
वि.
(सं. दक्षिण)
उत्तर दिशा के विपरीत।


दक्षिण, दक्षिन
वि.
(सं. दक्षिण)
अनुकूल।


दक्षिण, दक्षिन
वि.
(सं. दक्षिण)
कुशल, चतुर।


दोध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्वाला।


दोध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाय का बछड़ा।


दोध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कवि जो पुरस्कार के लोभ से कविता लिखे।


दोधक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


दोधार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + धार)
भाला, बरछा।


दोधारा
वि.
(हिं. दो + धार)
दोनों ओर धार वाला।


दोधी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दूध)
एक पौष्टिक पेय।


दोन
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो)
दो पहाड़ों की बिचली भीमि।


दोन
संज्ञा
पं.
(हिं. दो + नद)
दो नदियों का संगम स्थल।


दोन
संज्ञा
पं.
(हिं. दो + नद)
दो नदियों के बीच की भूमि।


दोन
संज्ञा
पं.
(हिं. दो + नद)
दो वस्तुओं की संधि या मेल।


दोनली
वि.
(हिं. दो + नाल)
जिसमें दो नाल हों।


दोना
संज्ञा
पुं.
(हिं. द्रोण)
पत्तों को मोड़कर बना हुआ गहरे कटोरे के आकार का पात्र।
उ.—दधि-ओदन दोना भरि दैहौं, अरू भाइनि मैं थपिहौं—९-१६४।


दोना
संज्ञा
पुं.
(हिं. द्रोण)
दोने में रखे हुए व्यंजन।
उ.— बेसन के दस-बीसक दोना—३९७।
मुहा.- दोना चढ़ाना— समाधि पर फूल-मिठाई चढ़ाना।

दोना खाना (चाटना) बाजार की चाट-मिठाई खाना।

दोनियाँ, दोनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोना का स्त्री. अल्पा.)
छोटा दोना।
उ.—डारत, खात, लेत अपनैं कर, रूचि मानत दधि दोनियाँ—१०-२३८।


दोनों
वि.
(हिं. दो)
एक और दूसरा, उभय।


दोनों
संज्ञा
पुं.
(हिं. दोना)
पत्तों का बना पात्र।
उ.— दधि ओदन भरि दोनों दैहौं अरू अंचल की पाग—२९४८।
मुहा.- दोनों की चाट पड़ना— बाजारू चाट या मिठाई खाने का चस्का पड़ जाना।


दोपट्टा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुपट्टा)
चादर, दपट्टा।


दोपलिया, दोपल्ली
वि.
[हिं. दो + पल्ला + ई(प्रत्य.)]
जिसमें दो पल्ले हों।


दोपलिया, दोपल्ली
संज्ञा
स्त्री.
एक तरह की हल्की महीन टोपी।


दोमहला
वि.
(हिं. दो + महल)
दो खंड या मंजिल का।


दोमुँहा
वि.
(हिं. दो + मुँह)
जिसके दो मुँह हों।


दोमुँहा
वि.
(हिं. दो + मुँह)
दोहरी चाल चलने या बात करनेवाला।


दोय
वि.
(हिं. दो)
दो।
उ.— दोय खंभ बिश्वकर्मा बनाए काम-कुंद चढ़ाई—२२७९।


दोय
वि.
(हिं. दोनों)
एक और दूसरा, दोनों।


दोय
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो)
दो की संख्या।


दोयम
वि.
(फ़ा.)
दूसरा, दूसरे दर्जे का।


दोयल
संज्ञा
पुं.
(देश)
बया पक्षी।


दोरंगा
वि.
(हिं. दो + रंग)
जिसमें दो रंग हों।


दोरंगा
वि.
(हिं. दो + रंग)
दोहरी चाल चलने या दावँ करनेवाला, दोनों पक्षों में लगा रहनेवाला।


दोपहर, दोपहरिया, दोपहरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + पहर)
मध्याह्नकाल।
मुहा.- दोपइर ढलना— दोपहर बीत जाना


दोपीठा
वि.
(हिं. दो + पीठ)
दोनों ओर एक सा, दोरूखा।


दोफसली
वि.
(हिं. दो + फसल)
दोनों फसलों से संबंधित।


दोफसली
वि.
(हिं. दो + फसल)
दोनों ओर काम देने योग्य।


दोबल
संज्ञा
पुं.
[हिं. दुर्बल (?)]
दोष, अपराध।
उ.— (क) दोबल कहा देति मोहिं सजनी तू तो बड़ी सुजान। अपनी सी मैं बहुतै कीन्हीं रहति न तेरी आन। (ख) दोबल देति सबै मोही को उन पठयो मैं आयो—११६६।


दोबारा
क्रि. वि.
(फ़ा.)
दूसरी बार या दफा।


दोबाला
वि.
(फ़ा.)
दूना, दुगना।


दोभाषिया
वि.
(हिं. दो + भाषा)
दो भिन्न भिन्न भाषाओं के जानकारों का मध्यस्थ जो एक को दूसरे का आशय समझा दे।


दोमंजिला
वि.
(फ़ा.)
दो खंड का, दो खंडा।


दोमट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + मिट्टी)
बालू मिली भूमि।


दोरंगी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दो + रंग + ई(प्रत्य.)]
दोनों ओर चलने या लगने का भाव।


दोरंगी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दो + रंग + ई(प्रत्य.)]
छल-कपट।


दोर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो)
जमीन जो दो बार जोती जाय।


दोरसा
वि.
(हिं. दो + रस)
जिसमें दो स्वाद हों।


दोराहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो +राह)
वह स्थान जहाँ से दो मार्ग भिन्न दिशाओं में जाते हों।


दोरुखा
वि.
(फ़ा. दोरुख)
दोनों ओर समान रूप-रंग का।


दोरुखा
वि.
(फ़ा. दोरुख)
दोनों ओर भिन्न रूप-रंग का।


दोर्दंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भुजदंड।


दोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झूला।


दोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डोली।


दोशाखा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दो बत्तियों का शमादान।


दोशाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. दुशाला)
बढ़िया शाल।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
बुरापन, अवगुण।
उ.—सूरदास बिनती कह बिनवै दोषनि देह भरी—१-१३१।
मुहा.- दोष लगाना— बुराई बताना, बुराइ का पता लगाना या बताना।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
अभियोग, लांछन, कलंक। दोष देना (लगाना) — कलंक लगाना।


दोष
यौ.
दोषारोपण— दोष लेना या लागाना।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
अपराध।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
पाप, पातक।
उ.—मन-कृत-दोष अथाह तरंगिनि, तरि नहिं सक्यौ, समायौ—१-६७।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
साहित्य में वे पाँच बातें जिनसे काव्य के गुण में कमी हो जाती है पद, पदांश, वाक्य, अर्थ और रस-दोष।


दोष
संज्ञा
पुं. संज्ञा
(सं.)
कुफल, बुरा परिणाम, अमंगल।
उ.— (क) छींक सुनत कुसगुन कह्यौ कहा भयौ यह पाप। अजिर चली पछितात छींक कौ दोष निवारन—५८९। (ख) आइ अजिर निकसी नंदरानी बहुरी दोष मिटाइ —५४०।


दोष
संज्ञा
पुं.
(सं.द्वेष )
विरोध, शत्रुता, बैर।


दोलड़ा
वि.
(हिं. दो + लड़)
जिसमें दो लड़ हों।


दो लड़ी
वि.
स्त्री.
(हिं. दोलड़)
दो लड़वाली।


दोला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
झूला।


दोला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चंडोल।


दोलायमान
वि.
(सं.)
झूलता या हिलता हुआ।


दोलायुद्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
युद्ध कभी जिसमें एक पक्ष की जीत हो, कभी दूसरे की, ओर निर्णय न हो सके।


दोलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
झूला।


दोलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
डोली।


दोलोही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुलोही)
वह तलवार जो लोहे के दो टुकड़ों को जोड़कर बनायी जाय।


दोलोत्सव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फागुन की पूर्णमा को वैष्णवों द्वारा ठाकुर जी को फलों के हिंडोले पर झुलाये जाने का उत्सव।


दोषक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाय का बछड़ा।


दोषग्राही
वि.
(सं. दोषग्राहिन्)
दुष्ट, दुर्जन।


दोषज्ञ
वि.
(सं.)
दोष का ज्ञाता, पंडित।


दोषता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दोष होने का भाव।


दोषत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोष होने का भाव।


दोषन
संज्ञा
पुं.
(सं. दूषण)
दोष, अपराध।
उ.— महरि तुमहिं कछु दोषन नाहीं।


दोषना
क्रि. स.
(सं. दूषण + ना)
दोष लगाना।


दोषपत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह कागज जिस पर किसी के दोषों या अपराधों का विवरण लिखा हो।


दोषल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जिसमें दोष हो, दूषित।


दोषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
रात, रात्रि।


दोषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
साँझ, संध्या।


दोषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भुजा,बाहु।


दोषाकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


दोषाक्षर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लगाया हुआ अपराध।


दोषातिलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीप, दीपक।


दोषारोपण
संज्ञा
पुं.
(सं. दोष + आरोपण)
दोष लगाना।


दोषावह
वि.
(सं.)
जिसमें दोष हों, दोषपूर्ण।


दोषिक
वि.
(सं. दूषित)
जिसमें दोष हों, दोषपूर्ण।


दोषिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रोग, बीमारी।


दोषिन
वि.
स्त्री.
(हिं. दोषी)
अपराधिनी।


दोषिन
वि.
स्त्री.
(हिं. दोषी)
पाप करनेवाली।


दोषी
वि.
(हिं.)
अपराधी।


दोषी
वि.
(हिं.)
पापी।


दोषी
वि.
(हिं.)
अभियुक्त।


दोषी
वि.
(हिं.)
जिसमें अवगुण या बुराई हो।


दोस
संज्ञा
पुं.
(सं. दोष)
अपराध, अवगुण।


दोसदारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दोस्तदारी)
मित्रता।


दोसरता
संज्ञा
पुं.
(हिं. दूसरा + ता)
गौना।


दोसा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोषा)
रात, रात्रि।


दोसा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोषा)
संध्या।


दक्षिणाचारी
वि.
(सं.)
सदाचारी, धर्मशील।


दक्षिणापथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विंध्य प्रदेश से दक्षिण वह प्रदेश जहाँ से दक्षिण भारत को मार्ग मिलता है।


दक्षिणायन
वि.
(सं.)
भूमध्य रेखा के दक्षिण।


दक्षिणायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कर्क रेखा से दक्षिण मकर रेखा की ओर सूर्य की गति।


दक्षिणायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छः महीने का वह समय (२ जून से २२ दिसंबर तक) जब सूर्य कर्क रेखा सें दक्षिण मकर रेखा की ओर बढ़ता है।


दक्षिणावर्त
वि.
(सं.)
दाहिनी ओर घूमा हुआ।


दक्षिणावह्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्षिण से आनेवाली हवा।


दक्षिणी, दाहिनी
वि.
[सं. दक्षिण+हिं. ई (प्रत्य.) ]
दक्षिण प्रदेश का।


दक्षिणी, दाहिनी
संज्ञा
पुं.
[सं. दक्षिण+हिं. ई (प्रत्य.) ]
दक्षिण प्रदेश का निवासी।


दक्षिणी, दाहिनी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. दक्षिण+हिं. ई (प्रत्य.) ]
दाक्षिण प्रदेश की भाषा।


दोसाला
वि.
(हिं. दो + साल)
दो वर्ष का।


दोसी
संज्ञा
पुं.
(देश.)
दही।


दोसती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दो + सूत)
एक मोटा कपड़ा।


दोसों
संज्ञा
पुं.
(हिं. दोष)
दोष बुरी।
उ.— सूर स्याम दरसन बिन पाये नयन देत मोहिं दोसों—१२२१।


दोस्त
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मित्र, स्नेही।


दोस्ताना
वि.
(फ़ा.)
मित्रता-संबंधी।


दोस्ताना
संज्ञा
पुं.
मित्रता, मित्रता का व्यवहार।


दोस्ती
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
मित्रता, स्नेह।


दोह
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रोह)
बैर, द्वेष।


दोहग, दोहगा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुभाग्य)
वह स्त्री जिसको, पति के मरने पर दूसरे पुरूष ने रख लिया हो, उपपत्नी।


दोहज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूध।


दोहता
संज्ञा
पुं.
(सं. दौहितृ)
पुत्री का पुत्र, नाती।


दोहती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोहता)
पुत्री की पुत्री।


दोहत्थड़
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + हाथ)
दोनों हाथों से मारा गया थप्पड़।


दोहत्था
क्रि. वि.
(हिं. दो + हाथ)
दोनों हाथों से।


दोहत्था
वि.
जो दोनों हाथों से ही या किया जाय।


दोहद
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भवती की इच्छा, उकौना।


दोहद
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भावस्था।


दोहद
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भ।


दोहद
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक प्रचीन कवि-श्रुति जिसके अनुसार सुंदर स्त्री के चरणाघात से अशोक, दृष्टिपात से तिलक, आलिंगन से कुर्वक, फूँक मारने से चंपा आदि वृक्ष फूलते हैं।


दोहदवती, दोहदान्विता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भवती।


दोहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुहने-मथने का कार्य।
उ. धनुष सौं टारि पर्बत किए एक दिसि, पृथी सम करि प्रजा सब बसाई। सुर-रिषिनि नृपति पुनि पृथी दोहन करी, आपनी जीविका सबनि पाई—४-११।


दोहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुहने का पात्र।


दोहना
क्रि. स.
(सं. दूषण)
दोष लगाना।


दोहना
क्रि. स.
(सं. दूषण)
तुच्छ ठहराना।


दोहना
क्रि. स.
(सं. दुहना)
(दूध) दुहना।


दोहनि, दोहनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दोहन)
दूध दुहने की हाँड़ी, मिट्टी अथवा धातु का वह पात्र जिसमें दूध दुहते हैं।
उ.— (क) मैं दुहिहौं मोहिं दुहन सिखावहु। कैसे गहत दोहनी घुटुवनि, कैसैं बछरा थन लै लावहु—४०१।


दोहनि, दोहनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दोहन)
दूध दुहने की क्रिया।


दोहर
संज्ञा
स्त्री.
(हि. दो + घड़ी)
दोहरी चादर।


दोहरना
क्रि. अ.
(हिं. दोहरी)
दो बार होना।


दोहरना
क्रि. अ.
(हिं. दोहरी)
दो परतों का या दोहरा किया जाना।


दोहरना
क्रि. स.
दो परतों में या दोहरा करना।


दोहरफ
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
धिक्कार, लानत।


दोहरा
वि.
पुं.
(हिं. दो + हरा)
दो तह या परत का।


दोहरा
वि.
पुं.
(हिं. दो + हरा)
दुगना, दूना।


दोहरा
संज्ञा
पुं.
सुपारी के टूकड़े।


दोहरा
संज्ञा
पुं.
दोहा।


दोहराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोहराना)
दोहराने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।


दोहराना
क्रि. स.
(हिं. दोहरना)
किसी बात को बार-बार कहना।


दोहराना
क्रि. स.
(हिं. दोहरना)
किसी कपड़े, कागज आदि की दो तहें करना।


दोहल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इच्छा।


दोहल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गर्भ।


दोहलवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भवती स्त्री।


दोहला
वि.
(हिं. दो + हल्ला)
दो बार की ब्याई।


दोहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + हा)
एक छंद।


दोहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दो + हा)
एक राग।


दोहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाई)
घोषणा, सूचना।
उ.— किसलै कुसुम नव नूत दसहुँ दिसि मधुकर मदन दोहाई—२७८४।
मुहा.- फिरत दोहाई— घोषणा फिर रही है। उ.— बोलत बग निकेत गरजै अति मानो फिरत दोहाई— २८३६।


दोहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाई)
रक्षा, बचाव या सहायता के लिए पुकार।


दोहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुहाई)
शपथ, कसम।
उ.— आपु गई जसुमतिहिं सुनावन दै गई स्यामहिं नंद दुहाई—७५७।


दोहाक, दोहाग
संज्ञा
पुं.
(सं. दुर्भाग्य, हिं. दोहाग)
अभाग्य, दुर्भाग्य, भाग्यहीनता।


दोहागा
वि.
(हिं. दोहाग)
अभागा, भाग्यहीन।


दोहान
संज्ञा
पुं.
(देश)
जवान बैल।


दोहित
संज्ञा
पुं.
(सं. दौहितृ)
बेटी का बेटा, नाती।


दोहिनि, दोहिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दोहनी)
दूध दुहने का बरतन।
उ.— सूरदास नँद लेहु दोहिनी, दुहहु लाल की नाटी—१०-२५९।


दोही
संज्ञा
पुं.
(सं. दोहिन्)
दूध दुहनेवाला, ग्वाला।


दोह्य
वि.
(सं.)
दुहने योग्य।


दोह्य
संज्ञा
पुं.
दूध।


दोह्य
संज्ञा
पुं.
मादा पशु जो दुही जाती है, स्त्री जिसके दूध होता है।


दौं
अव्य.
(सं. अथवा)
या अथवा।


दौं
संज्ञा
पुं.
(हिं. दव, दावा)
आग, अग्नि।
उ.— बल मोहन रथ बैठे सुफलकसुत चढ़न चहत यह सुनि चकित भई बिरह दौं लगाई—२५२५।


दौंकना
क्रि. अ.
(हिं. दमकना)
चमकना-दमकना।


दौंगरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दौ=आग)
वर्षा का पहला छींटा।


दौंच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
दुबधा।


दौंच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
कष्ट।


दौंच
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दोच)
दबाव।


दौंचना
क्रि. स.
(हिं. दबोचना)
किसी न किसी प्रकार दबाव डालकर लेना।


दौंचना
क्रि. स.
(हिं. दबोचना)
लेने को अड़ना।


दौंचि
क्रि. स.
(हिं. दौंचना)
लेने के लिए अड़कर या दबाव डालकर।
उ.—तंदुल माँगि दौंचि कै लाई सो दीनो उपहार— सारा.।


दौंजा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
मचान, पाड़।


दौंरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँना)
रस्सी।


दौंरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँना)
रस्सी में बँधे बैलों की जोड़ी।


दौंरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँना)
झुंड।


दौ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दव)
आग।
उ.—(क) पुनि जुरि दौ दीनी पुर लाइ। जरन लगे पुर लोग लुगाइ—४-१२। (ख) मेरे हियरे दौ लागति है जारत तनु को चीर—२६८६।


दौ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दव)
ताप, जलन।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ने की क्रिया या भाव।
मुहा.- दौड़ पड़ना— तेजी स चलने लगना।

दौड़ कर आना जाना— जल्दी आना- जाना।

दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
धावा, चढ़ाई।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
उद्योग में इधर-उधर फिरना, प्रयत्न।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
वेग, द्रुतगति, तेजी।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
पहुँच, गति की सीमा।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
उद्योग या प्रयत्न की सीमा या पहुँच।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
लंबाई, विस्तार।


दौड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दल, समूह।


दौड़धपाड़, दौड़धूप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ + धूप)
किसी काम के लिए इधर-उधर दौड़ने की क्रिया या भाव, प्रयत्न, उद्योग, परिश्रम।


दौड़ना
क्रि. अ.
(सं. धोरण)
बहुत तेजी से चलना।
मुहा.- चढ़ दौड़ना— धावा या चढ़ाई करना।


दौड़ना
क्रि. अ.
(सं. धोरण)
सहसा प्रवृत्त हो जाना, जुट पड़ना।


दौड़ना
क्रि. अ.
(सं. धोरण)
प्रयत्न में इधर-उधर फिरना।


दौड़ना
क्रि. अ.
(सं. धोरण)
छा जाना।


दौड़ाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ने की क्रिया या भाव।


दौड़ाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़-धूप।


दौड़ादौड़
क्रि. वि.
(हिं. दौड़ + दौड़)
बिना कहीं रूके।


दौड़ादौड़, दौड़ादौड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़धूप।


दौड़ादौड़, दौड़ादौड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
बहुत से लोगों का एक साथ दौड़ना।


दौड़ादौड़, दौड़ादौड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
हड़बड़ी, आतुरता।


दौड़ान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ने की क्रिया या भाव।


दौड़ान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
वेग, झोंक।


दौड़ान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
सिलसिला।


दौड़ान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
बारी, पारी।


दौड़ाना
क्रि. स.
(हिं. दौड़ना का रुक.)
दौड़ने में प्रवृत्त करना।


दौड़ाना
क्रि. स.
(हिं. दौड़ना का रुक.)
बार-बार आने-जाने को विवश करना।


दौड़ाना
क्रि. स.
(हिं. दौड़ना का रुक.)
हटाना।


थाट
संज्ञा
पुं.
(हिं. ठाट)
रचना, बनावट, श्रृंगार।


थाट
संज्ञा
पुं.
(हिं. ठाट)
तड़क-भड़क।


थात
वि.
(सं. स्थातृ, स्थाता)
जो टिका या स्थित हो, ठहरा या बैठा हुआ।
उ.— द्वै पिक बिंब बतीस बज्रकन एक जलज पर थात—१६८२।


थाति
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थात)
स्थिरता, ठहराव।


थाति, थाती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थात = स्थित)
संचित धन, पूँजी, गथ।
उ.—पलित केस, कफ कैठ विरूध्यौ, कल न परति दिन-राती। माया-मोह न छाँड़ै तृष्ना, ये दोऊ दुंख-थाती—१-११८।


थाति, थाती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थात = स्थित)
दूसरे के पास रखी गयी ऐसी वस्तु या संपत्ति जो माँगने पर मिल जाय, धरोहर।
उ. —थाती प्रान तुम्हारी मोपै, जनमत ही जौ दीन्ही। सो मैं बाँटि दई पाँचनि कौं, देह जमानति कीन्ही—१-१९६।


थाति, थाती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थात = स्थित)
कुसमय के लिए संचित वस्तु।


थान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान)
स्थान, ठौर-ठिकाना।
उ.-(क) उहाँई प्रेम भक्ति को थान—२८०६।


थान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान)
रहने या ठहरने का स्थान, डेरा, निवासस्थान।
उ. — (क) कहियौ बच्छ, सँदेसै इतनौ जब हम वै इक थान। सोवत काग छुयौ तन मेरौ, बरहहिं कीनौ बान—९-८३। (ख) बिपुल विभूति लई चतुरानन एक कमल करि थान—२३४०।


थान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान)
किसी देवी-देवता के रहने का स्थान।
मुहा.- थान का टर्रा— वह जो अपने घर या स्थान में ही बढ़-बढ़ कर बोले, बाहर कुछ न कर सके।

थान में आना— (१) चौपाये का धूल में लोटकर प्रसन्न होना। (२) खुशी में आकर कुलाँचे मारना।

दक्षिण, दक्षिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
उत्तर दिशा के सामने की दिशा।


दक्षिण, दक्षिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
वह नायक जो सब प्रेमिकाऒं से समान प्रेम करे।


दक्षिण, दक्षिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
विष्णु।


दक्षिण, दक्षिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
एक प्रकार का आचार।


दक्षिणा, दक्षिना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्षिणा)
दक्षिण दिशा


दक्षिणा, दक्षिना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्षिणा)
यज्ञादि धर्म-कर्म या विद्या प्राप्ति के बाद पुरस्कार या भेंट रूप में दिया जानेवाला धन या दान।
उ.—(क) गुरु दक्षिणा देन जब लागे गुरु पत्नी यह माँग्यौ—सारा. ५३६। (ख) गुरु सौं कह्यौ जोरि कर दोऊ दक्षिणा कहौ सो देउँ मँगाई—३००५।


दक्षिणा, दक्षिना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्षिणा)
वह नायिका जो नायक को अन्य स्त्रियों से प्रेम करते देखकर भी अपनी प्रीति पूर्ववत् बनाये रहे।


दक्षिणाचल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मलय पर्वत।


दक्षिणाचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुद्ध आचरण।


दक्षिणाचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वैदिक मार्ग से मिलता-जुलता एक आचार-मार्ग।


दौड़ाना
क्रि. स.
(हिं. दौड़ना का रुक.)
फैलाना, पोतना।


दौड़ाना
क्रि. स.
(हिं. दौड़ना का रुक.)
फेरना, चलाना।


दौत्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत का काम।


दौन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
दबाना।


दौन
संज्ञा
पुं.
(सं. दमन)
निग्रह, नियंत्रण।


दौना
संज्ञा
पुं.
(सं. दमनक)
एक पौधा।


दौना
संज्ञा
पुं.
(हिं. दोना)
पत्तों का दोना।


दौना
संज्ञा
पुं.
(हिं. दोना)
दोने में रखा खाने का सामान।
उ.—बोलत नहीं रहत वह मौना। दधि लै छीनि खात रह्यौ दौना।


दौना
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रौण)
एक पर्वत।


दौना
क्रि. स.
(सं. दमन)
दमन करना।


दौनागिरि
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रोणगिरि)
एक पर्वत जिस पर हनुमान जी लक्ष्मण जी के शक्ति लगने पर संजीवनी जड़ी लेने गये थे।
उ. — (क) दौनागिरि पर आहि सँजीवनि, बैद सुषेन बतायौ —९-१४९। (ख) दौनागिरि हनुमान सिधायौ—९-१५०।


दौर
संज्ञा
पुं.
(हिं. दौड़)
दौड़ने की क्रिया या भाव।


दौर
प्र.
परथौ अधिक करि दौर—प्राप्ति के लिए दौड़ पड़ा, दौड़कर उसे पा लिया या उसमें जा पड़ा।
उ.— माधौ जू मन माया बस कीन्हौ। लाभ-हानि कछु समुझत नाहीं ज्यौं पतंग तन दीन्हौ। गृह दीपक, धन तेल, तूल तिय, सुत ज्वाला अति जोर। मैं मतिहीन मरम नहिं जान्यौ, परयौ अधिक करि दौर—१-४६।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
चक्कर, भ्रमण, फेरा।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
दिनों का फेर।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
उन्नति का समय।


दौर
यौ.
दौरदौरा— प्रधानता, प्रबलता, अधिकार।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
प्रभाव, प्रताप।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
बारी, पारी।


दौर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
बार, दफा।


दौरत
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ते हैं, दौड़ते (समय, में)
उ.— (क) दौरत कहा, चोट लगिहै कहुँ पुनि खेलिहौ सकारे—१०-२२६। (ख) कहति रोहिनी सोवन देहु न, खेलत-दौरत हारि गए री—१०-२४७। (ग) मोहन मुसकि गही दौरत मैं छूटि तनी छँद रहित घाँघरी—२२९६। (घ) एक अँधेरो हिये की फूटी दौरत पहिर खराऊँ—३४६६।


दौरना
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ना, दौड़ने में प्रवृत्त होना।


दौरना
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
लगना, प्रवृत्त होना।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
चक्कर, भ्रमण।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
फेरा, गश्त।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
जाँच-पड़ताल के लिए घूमना।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
सहसा आ जाना।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
ऐसी बात होना जो समय-समय पर होती हो।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(अ. दौर)
ऐसा रोग जो समय - समय पर हो।


दौरा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रौण)
बड़ा टोकरा।


दौरादौर
क्रि. वि.
(हिं. दौड़ना)
लगातार, बिना थके या विश्राम लिये।


दौरादौर
क्रि. वि.
(हिं. दौड़ना)
धुन से, तेजी से।


दौरात्म्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुरात्मा होने का भाव, दुष्टता।


दौरान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
चक्र, फेरा।


दौरान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दिनों का फेर।


दौरान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बारी, पारी।


दौरान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
सिल-सिला, झोंक।


दौरि
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
दौड़कर, लपककर।
उ.— (क) ज्यौं मृगा कस्तूरि भूलै, सु तौ ताकैं पास। भ्रमत हीं वह दौरि ढूँढै, जबहिं पावै बास—१-७०। (ख) तुम हरि साँकरे के साथी। सुनत पुकार, परम आतुर है, दौरि छुड़ायौ हाथी—१-१११२।


दौरित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
क्षति, हानि।


दौरिबे
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ने की क्रिया या भाव।
उ.— यह सुनत रिस भरयौ दौरिबे को परयौ सूडि झटकत पटकि कूक पारयौ—२४९२।


दौर्मनस्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चित्त का खोटापन।


दौर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूरी, अंतर।


दौर् यौ
क्रि. वि.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ता हुआ, भागता हुआ, द्रुत गति से चलता हुआ।
उ.— फिरि इत-उत जसुमति जो देखै, दृष्टि न परै कन्हाई। जान्यौ जात ग्वाल संग दौरयौ, टेरित जसुमति धाई—४१३।


दौर् यौ
क्रि. वि.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ा, भागा।


दौर्हार्द
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुष्टता।


दौर्हार्द
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्भाव।


दौलत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
धन, संपत्ति।


दौलतखाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
निवास-स्थान।


दौलतमंद
वि.
(फ़ा.)
धनी, संपन्न।


दौलतमंदी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
संपन्नता।


दौरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौरा)
टोकरी, डलिया, चेगेरी।


दौरी
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दौड़ना, दौड़ी)
भागी, तेजी से चली।
उ.— सूर सुनत संभ्रम उठि दौरी प्रेम मगन तन दसा बिसारे—१-२४०।


दौरी
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. दौड़ना, दौड़ी)
दौड़कर, लपककर।
उ.— सूर सुकुबरी चंदन लीन्हें मिली स्याम को दौरी—२५८६।
मुहा.- फिरौगी दौरी दौरी— परेशान और हैरान होकर मारी-मारी फिरोगी। उ.— सूर सुनहु लैहैं छँढ़ाइ सब अबहिं फिरौगी दौरी दौरी— १११४।


दौरे
क्रि. अ.
बहु. भूत.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ पड़े, धाये।
उ.—असी सहस किंकर-दल तेहिके दौरे मोहिं निहारि—९-१०४।


दौरैं
क्रि. अ.
(हिं. दौड़ना)
दौड़ते हैं।
उ.— महासिंह निज भाग लेत ज्यों पाछे दौरे स्वान—सारा. ६३७।


दौर्ग
वि.
(सं.)
दुर्ग-संबंघी।


दौर्ग
वि.
(सं.)
दुर्गा-संबंधी।


दौर्जन्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्जनता, दुष्टता।


दौर्बल्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्बलता, कमजोरी।


दौर्भाग्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्भाग्य, अभागापन।


दौलति
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दौलत)
धन, संपत्ति।


दौलाई
क्रि. स.
(हिं. दव + लाना)
आग से जलायी।
उ.— हरि-सुत-बाहन-असन सनेही मानहु अनल देह दौलाई— सा. उ.—२१।


दौवारिक
संज्ञा
(सं.)
द्वारपाल।


दौष्यंत, दौष्यंति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुष्यंत का पुत्र भरत।


दौहित्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लड़की का लड़का, नाती।


दौहित्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तलवार।


दौहित्रिक
वि.
(सं.)
दौहित्र से संबंधित।


दौहृद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गर्भिणी की इच्छा।


दौहृदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भवती स्त्री।


द्याऊँ
क्रि. स.
[हिं. दिलाना (प्र.)]
दिलाऊँ, (दूसरे को) देने के लिए प्रवृत्त करूँ।
उ.— मेरे संग राजा पै आउ। द्याऊँ तोहि राज-धन-गाउँ—४-९।


द्याना
क्रि. स.
(हिं. दिलाना)
दिलाना।


द्याल
वि.
(सं. दयालु)
जिसमें दया-भाव अधिक हो, दयावान, दयालु।
उ.— दीन के द्याल गोपाल, करूना मयी मातु सो सुनि, तुरत सरन आयौ—४-१०।


द्यावत
क्रि. स.
(हिं. दिलाना)
दिलवाते हैं।


द्यावत
प्र.
गारी द्यावत - गाली दिलवाते हैं
उ.— सूर- स्याम सर्वग्य कहावत मात-पिता सौं द्यावत गारी—११३७।


द्यावत
प्र.
दरस नहिं द्यावत.... दर्शन नहीं देते, दर्शन नहीं कराती।
उ.— सूरस्याम कैसे तुम देखति मोहिं दरस नहिं द्यावत री—१६३४।


द्यावना
क्रि. स.
(हिं. दिलाना)
दिलाना।


द्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिन।


द्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश।


द्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


द्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि।


द्यु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्यलोक।


द्युग
वि.
(सं.)
आकाश में चलनेवाला (पक्षी)।


द्युचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्रह।


द्युचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


द्युत
वि.
(सं.)
प्रकाशवान।


द्युति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कांति, चमक।


द्युति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शोभा, छवि।


द्युति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लावण्य।


द्युति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
किरण, राशि।


द्युतिकर
वि.
(सं.)
चमकनेवाला।


द्युतिकर
संज्ञा
पुं.
ध्रुव (नक्षत्र)।


द्यतधर
वि.
(सं.)
प्रकाश धारण करनेवाला।


द्यतधर
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


द्युतिमंत्र
वि.
(हिं. द्यु तिमान)
प्रकाशयुक्त।


द्युतिमा
संज्ञा
स्त्री.
[सं. द्य ति + मा (प्रत्य.)]
प्रकाश।


द्युतिमान्
वि.
(सं. द्य तिमत्)
चमकवाला।


द्युत्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किरण।


द्युनिश
संज्ञा
पं.
(सं.)
दिन-रात।


द्युपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


द्युपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इन्द्र।


दगड़, दगड़ा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
बड़ा ढोल।


दगड़ना
क्रि. अ.
(देश.)
किसी की सच्ची बात का भी अविश्वास करना।


दगदगा
संज्ञा
पुं.
(अ. दग़दगा)
डर, भय।


दगदगा
संज्ञा
पुं.
(अ. दग़दगा)
संदेह, शक।


दगदगा
संज्ञा
पुं.
(अ. दग़दगा)
एक तरह की कंडील।


दगदगाना
क्रि. अ.
(हिं. दगना)
चमकना-दमकना।


दगदगाना
क्रि. स.
(हिं. दगना)
चमक पैदा करना, चमकाना।


दगदगाहट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दगदगाना)
चमक-दमक।


दगध
वि.
(सं. दग्ध)
जला-जलाया।


दगधना
क्रि. अ.
(सं. दग्ध+ना)
जलना।


द्युपथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाशमार्ग।


द्युमणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


द्युमणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंदार।


द्युमती
वि.
स्त्री.
(हिं. द्यु मान)
चमकीली।


द्युमयी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विश्वकर्मा की पुत्री जो सूर्य को ब्याही थी।


द्यमान, द्यमान्
वि.
(सं. द्यु मत्, हिं, द्यु मान् )
प्रकाशपूर्ण, कांतियुक्त।
उ.— तक्षक धनंजय पुनि देवदत्त अरू पौणड संख द्युमान्-सारा. ९।


द्युम्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


द्युम्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अन्न।


द्युलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग लोक।


द्युवन्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


द्युवन्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।


द्युषद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता।


द्युषद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्रह -नक्षत्र।


द्युसदत्र
संज्ञा
पुं.
(सं. द्यु सद्यन्)
स्वर्ग।


द्युसरित्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्वर्ग की नदी, मंदाकिनी।


द्युसिंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग की नदी, मंदाकिनी।


द्यू
वि.
(सं.)
जुआ खेलनेवाला, जुआरी।


द्यूत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुए का खेल।


द्यूतकर, द्यूतकार
वि.
(सं.)
जुआरी।


द्यूतक्रीड़ा
संज्ञा
(सं.)
जुए का खेल।


द्यों
क्रि. स.
(हिं. देना)
दूँ, प्रदान करूँ।


द्यों
प्र.
द्यो समझाये— समझाये देता हूँ।
उ.— जो कहै मोहिं काहे तुम्ह ल्याये। ताको उत्तर द्यों समुझाये — १०३-३२।


द्यो
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्वर्ग।


द्यो
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आकाश।


द्योकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
थवई, राजगीर।


द्योत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रकाश।


द्योत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूप।


द्योतक
वि.
(सं.)
प्रकाश करनेवाला।


द्योतक
वि.
(सं.)
बतानेवाला।


द्योतक
वि.
(सं.)
सूचित करनेवाला।


द्योतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बताने या दिखाने का काम।


द्योतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रकाश करने या जलाने का काम।


द्योतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दर्शन।


द्योतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीपक।


द्योतित
वि.
(सं.)
प्रकाशित।


द्योतिरिंगण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जूगनू, खद्योत।


द्योभूमि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


द्योषद्
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता।


द्योहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. देवधरा)
देवालय, मंदिर।


द्यौं
क्रि. स.
(हिं. देना)
दूँ, प्रदान करूँ।
उ.— (क) नैंकु रहौ, माखन द्यौं तुमकौ —१०-१६७। (ख) सद दधि-माखन द्यौं आनी—१०-१८३।


द्यौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दो, प्रदान करो।


द्यौ
प्र.
द्यो डारी— दे डालो, प्रदान कर दो।
उ.—चोली हार तुम्हहिं कौं दीन्हों, चीर हमहिं द्यौ डारी—७८८।


द्यौस
संज्ञा
पुं.
(सं. दिवस)
दिन।
उ.— (क) स्यार द्यौस, निसि बौलै काग—१-२८६। (ख) चलत चितवत द्यौस जागत सपन सोवत राति—३०७०।


द्रगण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का बाजा, दगड़ा।


द्रढिमा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रढिमन्)
दृढ़ता।


द्रढिष्ठ
वि.
(सं.)
बहुत दृढ़।


द्रप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प)
गर्व, अभिमान।
उ.— सात दिवस गोबर्धन राख्यो इंन्द्र गयौ द्रप छोड़ि—२५०५।


द्रप्स, द्रप्स्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह द्रव जो गाढ़ा न हो।


द्रप्स, द्रप्स्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मट्ठा।


द्रप्स, द्रप्स्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुक्र।


द्रप्स, द्रप्स्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रस।


द्रवंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नदी।


द्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहाव।


द्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दौड़, भाग।


द्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वेग।


द्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मदिरा।


द्रव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रस।


द्रव
वि.
पानी की तरह तरल।


द्रव
वि.
गीला।


द्रव
वि.
पिघला हुआ।


द्रवति
क्रि. अ.
(हिं. द्रवना)
पसीजती है, दयार्द्र होती है, दया करती है।
उ.— कुलिसहुँ तैं कठिन छतिया चितै री तेरी अजहुँ द्रवति जो न देखति दुखारि—३६२।


द्रवत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पिघलने-पसीजने का भाव।


द्रवना
क्रि. अ.
(सं. द्रवण)
बहना।


द्रवना
क्रि. अ.
(सं. द्रवण)
पिघलना।


द्रवना
क्रि. अ.
(सं. द्रवण)
पसीजना, दया करना।


द्रविड़
संज्ञा
पुं.
(सं. तिरमिक)
दक्षिण भारत का एक देश।


द्रविड़
संज्ञा
पुं.
(सं. तिरमिक)
इस देश का रहनेवाला।


द्रविण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन।


द्रविण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कंचन।


द्रविण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बल।


द्रवित
वि.
(हिं. द्रवना)
पुलकित, जो प्रेम से पसीज गया हो।
उ.—मनौ धेनु तृन छाडी बच्छ-हित, प्रेम द्रवित चित स्रवत पयोधर—१०-१२४।


द्रवीभूत
वि.
(सं.)
जो पानी की तरह पतला या तरल हो गया हो।


द्रवीभूत
वि.
(सं.)
गला या पिघला हुआ।


द्रवीभूत
वि.
(सं.)
पसीजा हुआ, दया से युक्त।


द्रवै
क्रि. अ.
(हिं. द्रवना)
पसीजे, दया दिखाये।
उ.— कह दाता जो द्रवै न दीनहिं देखि दुखित तत्काल—१-१५६।


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वस्तु, पदार्थ।


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह पदार्थ जो गुण अथवा गुण और क्रिया का आश्रय हो।


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सामान, सामग्री।


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन-दौलत


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
औषध।


द्रवक
वि.
(सं.)
भागनेवाला।


द्रवक
वि.
(सं.)
बहनेवाला।


द्रवज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रस से बनी वस्तु।


द्रवज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गुड़, राब आदि।


द्रवण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गमन, दौड़।


द्रवण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहाव।


द्रवण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पिघलने-पसीजने की क्रिया या भाव।


द्रवण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चित्त का द्रवित हो जाना।


द्रवत
क्रि. अ.
(हिं. द्रवना)
दया करते हैं, पसीज जाते हैं।
उ.—कहियत परम उदार कृपानिधि अंत-र्यामी त्रिभुवन तात। द्रवत हैं आपु देत दास को रीझत हैं तुलसी के पात।


द्रवता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पिघलने-पसीजने का भाव।


द्राव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुताप।


द्रावक
वि.
(सं.)
ठोस चीज को पिघलानेवाला।


द्रावक
वि.
(सं.)
बहाने या गलानेवाला।


द्रावक
वि.
(सं.)
चित्त को द्रवित कर देनवाला।


द्रावक
वि.
(सं.)
चतुर।


द्रावक
वि.
(सं.)
चुरानेवाला।


द्रावक
वि.
(सं.)
हृदयग्राही।


द्रावण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गलाने-पिघलाने का भाव।


द्राविड़
वि.
(सं.)
द्रविड़ देशवासी।


द्रविड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रविड़)
द्रविड़ जाति की स्त्री।


दगधना
क्रि. स.
(सं. दग्ध+ना)
जलाना।


दगधना
क्रि. स.
(सं. दग्ध+ना)
दुख देना।


दगना
क्रि. अ.
[सं. दग्ध+ना (प्रत्य.)]
बंदूक आदि का छूटना


दगना
क्रि. अ.
[सं. दग्ध+ना (प्रत्य.)]
बंदूक आदि का दागा जाना।


दगना
क्रि. अ.
[सं. दग्ध+ना (प्रत्य.)]
जल जाना, जलना।


दगना
क्रि. स.
(हिं. दागना)
बंदूक आदि छोड़ना।


दगर, दगरा, दगरो
संज्ञा
पुं.
(हीं. डगर)
देर, विलंब।
उ.—अंचल ऐंचि ऐचि राखत हो जान अब देहु होत है दगरौ—१०३१।


दगर, दगरा, दगरो
संज्ञा
पुं.
(हीं. डगर)
डगर, रास्ता।


दगरी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
दही जिस पर मलाई न हो।


दगलफसल
संज्ञा
पुं.
(अ.दगल+अनु. फ़सल या हि. फँसना)
छल-कपट, जाल-फरेब।


द्रष्टा
वि.
(सं.)
देखनेवाला।


द्रष्टा
वि.
(सं.)
भेंट या साक्षात् करनेवाला।


द्रष्टा
वि.
(सं.)
प्रकाशक।


द्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताल, झील।


द्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्थान जहाँ जल काफी गहरा हो, दह।


द्राक्षा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दाख, अंगूर।


द्राघिमा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्राघिमन्)
दीर्घता।


द्राव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गति।


द्राव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहाव।


द्राव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहने-पसीजने या गलने-पिघलने की क्रिया।


द्रव्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मद्य।


द्रव्य
वि.
पेड़ का, पेड़ से संबंधित।


द्रव्यत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्रव्य का भाव।


द्रव्यवती
वि.
स्त्री.
(हिं. द्रव्यवान)
धनी (स्त्री)।


द्रव्यवान्
वि.
(हिं. द्रव्यवत्)
धनी, धनवान।


द्रव्याधीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।


द्रष्टव्य
वि.
(सं.)
देखने योग्य।


द्रष्टव्य
वि.
(सं.)
जो दिखाया जाने को हो।


द्रष्टव्य
वि.
(सं.)
जिसे बताना-जताना हो।


द्रष्टव्य
वि.
(सं.)
प्रत्यक्ष कर्तव्य।


द्रविड़ी
वि.
द्रविड़ देश से संबंधित।
मुहा.- द्राविड़ी प्राणायाम- सीधी तरह होनेवाले काम को बहुत घुमा-फिरा कर करना।


द्रावित
वि.
(सं.)
पिघलाया या तरल किया हुआ।


द्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृक्ष।


द्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शाखा।


द्रघण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुठार, कुल्हाड़ी।


द्रुण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुष।


द्रुण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खड्ग।


द्रुणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धनुष की ज्या या डोरी।


द्रुत
वि.
(सं.)
गला हुआ।


द्रुत
वि.
(सं.)
शीघ्र चलनेवाला, तेज।


द्रुत
वि.
(सं.)
भागा हुआ।


द्रुतगति
वि.
(सं.)
तेज चलनेवाला।


द्रुतगति
संज्ञा
स्त्री.
तेज चाल।


द्रुतगामी
वि.
(सं.)
तेज चलनेवाला।


द्रुतपद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक छंद।


द्रुतविलंबित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


द्रुति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्रव।


द्रुति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गति।


द्रुनख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काँटा।


द्रुपद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक चंद्रवंशी राजा। द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पाँडवों की ब्याही थी। उसके पुत्र शिखंडी को आगे करके अर्जुन ने भीष्म को मारा था। महाभारत के युद्ध में द्रुपद भी मारा गया था।


द्रुपद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खड़ाऊँ।


द्रुपद-तनया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रुपद + तनया)
राजा द्रुपद की पुत्री, द्रौपदी।


द्रुपद-सुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रुपद + सुता)
राजा द्रुपद की पुत्री, द्रौपदी।


द्रुपदात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिखंडी।


द्रुपदात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धृष्टद्युम्न।


द्रुपदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रौपदी)
राजा द्रुपद की पुत्री, द्रौपदी जो पाँडवों को ब्याही थी।


द्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृक्ष।
उ.—बोलत मोर सैल द्रुम चढ़ि-चढ़ि बग जु उड़त तरू डारै—२८२०।


द्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पारिजात।


द्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।


द्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रूक्मिणी से उत्पन्न श्री कृष्ण के एक पुत्र का नाम।


द्रोणगिरि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक पर्वत जहाँ से हनुमान जी लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी जड़ी लाये थे।


द्रोणाचल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्रोणगिरि नामक पर्वत।


द्रोणाचार्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा जो कौरवों-पांडवों के गुरू थे।


द्रोणि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
डोंगी।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
छोटा दोना।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
काठ का प्याला।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दो पर्वतों की बिचली भूमि।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक नदी।


द्रोणि, द्रोणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्रोणाचार्य की स्त्री, कृपी।


द्रू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोना, कंचन।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पत्तों का दोना।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाव, डोंगा।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काला कौआ।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बिच्छू।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघों का एक नायक।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृक्ष, पेड़।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक पर्वत।


द्रोण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा द्रोणाचार्य।


द्रोण-काक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काला कौआ।


द्रुम-डरिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रुम + हिं. डाली)
पेड़ की डाल या शाखा।
उ.— अब कैं राखि लेहु भगवान। हौं अनाथ बैठयौ द्रुम-डरिया, पारधि साधे बान—१-९७।


द्रुमनख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काँटा।


द्रुमशीर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पेड़ का सिरा।


द्रुमसार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनार, दाड़िम।


द्रुमारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी, गज।


द्रुमालय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जंगल।


द्रुमेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


द्रुमेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पारिजात।


द्रुह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुत्र।


द्रुह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृक्ष।


द्रोन
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रोण)
द्रोणाचार्य।


द्रोह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वैर, द्वेष।


द्रोहाट
वि.
(सं.)
ऊपर से साधु भीतर से दोषी।


द्रोही
वि.
(सं. द्रोहिन)
द्रोह या बुराई करनेवाला।


द्रोही
संज्ञा
पुं.
वैरी, शत्रु।


द्रोहु
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रोह)
द्रोह, वैर, द्वेष।


द्रौणायन, द्रोणायनि , द्रौणि
संज्ञा
पं.
(सं.)
द्रोणाचार्य का पुत्र, अश्वत्थामा।


द्रौपद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा द्रुपद का पुत्र।


द्रौपदि, द्रौपदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रौपदी)
राजा द्रुपद की कृष्णा नाम्नी कन्या जो अर्जुन को ब्याही थी, परंतु माता की आज्ञा से जिसे अन्य चारों पाँडवों ने भी स्वीकार किया था।


द्रौपदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्रौपदी के पुत्र।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुबधा, असमंजस।


द्वंद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुंदुभी)
दुंदुभी।


द्वंदज
वि.
(सं. द्वंद्वज)
द्वंद से उत्पन्न।


द्वंदर
वि.
(सं. द्वंद्वालु)
झगड़ालू।


द्वंदर
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वंद्व)
द्वंद।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जोड़ा, युग्म।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर-मादा का जोड़ा।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो परस्पर विरोधी चीजों का जोड़ा।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रहस्य, भेद, गुप्त बात।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लड़ाई, झगड़ा।


दक्षिणीय
वि.
(सं.)
दक्षिण दिशा से संबंधित।


दक्षिणीय
वि.
(सं.)
जो दक्षिण का पात्र हो।


दखन, दखिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
दक्षिण दिशा।


दखल
संज्ञा
पुं.
(अ. दखल)
अधिकार, कब्जा।


दखल
संज्ञा
पुं.
(अ. दखल)
किसी काम में हाथ डालना, हस्तक्षेप।


दखल
संज्ञा
पुं.
(अ. दखल)
पहुँच। प्रवेश।


दखिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
दक्षिण।


दखिनहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दक्खिन+हारा)
दक्षिण से आनेवाली हवा।


दखिनहा
वि.
[हिं. दक्खिन+हा (प्रत्य.)]
दक्षिण का, दक्षिण दिशा से संबंध रखनेवाला।


दखील
वि.
(अ. दख़ील)
जिसका कब्जा हो।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जोड़ा, युग्म।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रति-द्वंद्वी।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वंद्व युद्ध।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झगड़ा-बखेड़ा, कलह।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो परस्पर विरूद्ध चीजों का जोड़ा जैसे राग-द्वेष, सुखृ-दुख।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उलझन, जंजाल।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्ट, दुख।
उ.— बोलि लीन्हों कदम के तर इहाँ आवहु नारि। प्रगट भए तहाँ सबनि को हरि काम द्वंद निवारि—।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपद्रव, ऊधम।
उ.—भोर होत उरहन लै आवति ब्रज की बधू अनेक। फिरत जहाँ तहँ द्वंद मचावत घर न रहत छन एक।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रहस्य, भेद, गुप्त बात।


द्वंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भय, आशंका।
उ.—काम-क्रोध लोभहिं परिहरै। द्वंद रहित उद्यम नहीं करै—३-१३।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कलह, बखेड़ा।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समास का एक भेद।


द्वंद्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्ग, किला।


द्वंद्वचर, द्वंद्वचारो
संज्ञा
पं.
(सं.)
चकवा, चक्रवाक।


द्वंद्वचर, द्वंद्वचारो
वि.
जोड़े के साथ रहनेवाला।


द्वंद्वज
वि.
(सं.)
सुख-दुख आदि द्वंद्वों से उत्पन्न (मनोवृत्ति)


द्वंद्वयुद्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो पुरूषों का युद्ध।


द्वय
वि.
(सं.)
दो।


द्वयता
संज्ञा
स्त्री.
[सं. द्वय + ता (प्रत्य.)]
‘दो’ का भाव।


द्वयता
संज्ञा
स्त्री.
[सं. द्वय + ता (प्रत्य.)]
भेद-भाव।


द्वादस
संज्ञा
पुं.
बारह की संख्या या अंक।


द्वादस अच्छर
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वादशाक्षर)
विष्णु का एक मंत्र- ओं नमो भगवते वासुदेवाय।
उ.—द्वादस अच्छर मंत्र सुनायौ। और चतुरभुज रूप बतायौ —४-९।


द्वादसि, द्वादसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वादशी)
किसी पक्ष की बारहवीं तिथि।
उ.—द्वादसि पोषै लै आहार। घटिका दोइ द्वादसी जान—९-५।


द्वापर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बारह युगों में तीसरा युग जो ८६४००० वर्ष का माना जाता है।


द्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मुख, मुहाना।


द्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दरवाजा।
मुहा.- द्वार खुलना— मार्ग या उपाय निकलना।

द्वार-द्वार फिरना— (१) बहुतों के यहाँ जाना। (२) घर-घर भीख माँगना। द्वार लगना— (१) दरवाजा बंद होना। (२) आस लगाये द्वार पर खड़े रहना। (३) छिपकर आहट लेने के लिए द्वार पर खड़े होना। द्वारे लागे— आशा से द्वार पर खड़े रहे। उ.— यह जान्यौ जिय राधिका द्वारे हरि लागे। गर्व कियो जिय प्रेम को ऐसे अनुरागे। द्वार लगाना— द्वार बंद करना।

द्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आँख, कान आदि इंद्रियों के छेद।


द्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपाय, साधन।


द्वारकंटक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किवाड़, कपाट।


द्वारका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक पुरानी नगरी जो काठि-यावाड़, गुजरात में है और सात पुरियों में मानी गयी है। जरासंध के उपद्रवों से तंग आकर श्रीकृष्ण यहीं जाकर बसे थे।


द्वाज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जारज संतान।


द्वादश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बारह की संख्या या अंक।


द्वादशलोचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वामी कार्तिकेय।


द्वादशांग
वि.
(सं.)
जिसके बारह अंग हों।


द्वादशांशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वृहस्पति।


द्वादशाक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वामी कार्तिकेय।


द्वादशाक्षर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु का एक मंत्र- ओं नमो भगवते वासुदेवाय।


द्वादशात्मा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वादशात्मन्)
सूर्य, रवि।


द्वादशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
किसी पक्ष की बारहवीं तिथि।


द्वादस
वि.
(सं. द्वादश)
बारह, बारहवाँ।


द्वारकाधीश, द्वारकानाथ, द्वारकेश
संज्ञा
पं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


द्वारकाधीश, द्वारकानाथ, द्वारकेश
संज्ञा
पं.
(सं.)
श्रीकृष्ण की मूर्ति जो द्वारका में हैं।


द्वारचार
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार + चार=व्यहार)
विवाह की एक रीति जो लड़कीवाले के यहाँ बारात पहुँचने पर की जाती है।


द्वारछेंकाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. द्वार + छेंकना)
विवाह की एक रीति जिसमें वधू को साथ लेकर आते हुए वर का द्वार उसकी बहन रोकती है और कुछ नेग पाकर हट जाती है।


द्वारछेंकाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. द्वार + छेंकना)
वह नेग जो इस रीति में बहन को दिया जाता है।


द्वारप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वारपाल।


द्वार-पट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वार पर टाँगने का परदा।


द्वारपाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ड्योढ़ीदार, दरबान, प्रतिहार।


द्वारपालक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वारपाल।


द्वारपिंडी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ड्योढ़ी, दहलीज।


द्वारपूजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विवाह की एक रीति जिसमें कन्या पक्षवाले कलश आदि का पूजन करके वर का स्वागत करते हैं।


द्वारयंत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताला।


द्वारवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्वारावती, द्वारका।


द्वारस्थ
वि.
(सं.)
जो द्वार पर बैठा हो।


द्वारा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार, दरवाजा , फाटक।
उ.—धेनु-रूप धरि पुहुमि पुकारी, सिव बिरंचि के द्वारा—१०-४।


द्वारा
यौ.
गृह-द्वारा-घर-द्वार, घर-गृहस्थी।
उ.—गृह-द्वारा कहुँ है की नाहीं पिता-मातु-पति-बंधु न भाई—१०८६।


द्वारा
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
मार्ग, राह, पथ, रास्ता।


द्वारा
अव्य
(सं. द्वारात्)
हेतु से, जरिये से।


द्वारवति, द्वारवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वारवती)
द्वारका जो काठियावाड़ गुजरात में स्थित है और जिसकी गणना चार धामों और सात पुरियों में है।


द्वारि
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार, दरवाजा।
उ.—याकौं ह्याँ तैं देहु निकारि। बहुरि न आवै मेरे द्वारि —१-२८४।


द्वारिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वारपाल।


द्वारिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वारका)
काठियावाड़, गुजरात की एक प्राचीन नगरी जिसे श्रीकृष्ण ने, जरासंध के आक्रमणों से मथुरावासियों को बचाने के उद्देश्य से, अपनी राजधानीबनाया था।


द्वारिकाराइ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वारका + राय)
द्वारकानाथ, श्रीकृष्णचन्द्र।
उ.— बन चलि भजौ द्वारिकाराय—१-२८४।


द्वारिकावासी
वि.
(हिं. द्वारिका + वासी)
द्वारका में बसने वाले।
उ.— हा जदुनाथ द्वारिका बासी जुग जुग भक्त आपदा फेरी—१-२५१।


द्वारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. द्वार + ई)
छोटा द्वार।


द्वारे
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
दरवाजा, द्वार।
उ.—छोरे निगड़, सोआए पहरू, द्वारे कौ कपाट उघरयौ —१०-८।


द्वारैं
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार पर।
उ.—सूरदास -प्रभु भक्त-बछल हरि, बलि-द्वारैं दरबान भयौ —१-२६।


द्वारथौ
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वार)
द्वार पर।
उ.— ताहि अपनी करी चले आगे हरी गये जहाँ कुबलिया मल्ल द्वारयौ —२५८८।


द्वास्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वारपाल।


द्वि
वि.
(सं.)
दो।


द्विक
वि.
(सं.)
दो अंगों का।


द्विक
वि.
(सं.)
दोहरा।


द्विक
संज्ञा
पुं.
काक।


द्विक
संज्ञा
पुं.
चकवा, कोक।


द्विकर्मक
वि.
(सं.)
(क्रिया) जिसके दो कर्म हों।


द्विकल
संज्ञा
पुं.
(हिं. द्वि+कला)
छंदशास्त्र में दो मात्राओं का समूह।


द्विगु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समास का एक भेद।


द्विगुण
वि.
(सं.)
दूना, दुगना।


द्विगुणित
वि.
(सं.)
दूना, दुगना।


द्विगुणित
वि.
(सं.)
दूना या दुगना किया हुआ।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह प्राणी जिसका जन्म दो बार हुआ हो।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जिनको यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार है।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुदामा।
उ.— रोर कै जोर तैं सोर घरनी कियौ चल्यौ द्विज द्वारिका-द्वार ठाढ़ौ—१-५।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।
उ.— (क) रखना द्विज दलि दुखित होत बहु तउ रिस कहा करै। छमि सब छोभ जु छाँड़ि, छवौ रस लै समीप सँचरै—१-११७। (ख) सुभग चिबुक द्विज-अधर नासिका—१०-१०४।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।
उ.— निकट बिटप मानौ द्विज-कुल कूजत बय बल बढ़ौ अनंग—१०६४।


द्विज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चद्रंमा।


द्विजदंपति
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज + दंपती)
चाँदी का पत्तर जिस पर लक्ष्मीनारायण का युगल चित्र खुदा रहता है और जो मृतक स्त्रियों के दशाह में ब्राह्मण को दान में दिया जाता है।


द्विजन्मा
वि.
(सं. द्विजन्मन्)
जो दा बार जन्मा हो।


द्विजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण।


द्विजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


द्विजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कपूर।


द्विजपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गरूड़।


द्विजबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संस्कार या कर्महीन द्विज।


द्विजब्रुव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संस्कार या कर्महीन द्विज।


द्विजराज, द्विजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
ब्राह्मण।


द्विजराज, द्विजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
चंन्द्रमा।


द्विजराज, द्विजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
कपूर।


द्विजराज, द्विजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजराज)
गरूड़।


द्विजलिंगी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विजलिंगिन्)
ब्राह्मण-वेशधारी निम्न वर्ग का मनुष्य।


दगल, दगला
संज्ञा
पुं.
(देश.)
रुईदार अँगरखा।


दगवाना
क्रि. स.
(हिं. दागना का प्रे.)
दागने का काम करने की दूसरे को प्रेरणा देना।


दगहा
वि.
[हिं दाग+हा (प्रत्य.)]
दाग वाला।


दगहा
वि.
[हिं दाग+हा (प्रत्य.)]
जिसके सफद दाग हों।


दगहा
वि.
(हि. दागना हा)
जिसने किसी के शव का दाह-कर्म किया हो।


दगहा
वि.
(हिं. दगना+हा)
जो दग्ध किया गया हो।


दगा, दगाई
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दगा, हिं. दगा)
धोखा, छल-कपट।
उ.—(क) सोवत कहा, चेत रे रावन, अब क्यौं खात दगा—६—११४। (ख) दै दै दगा, बुलाइ भवन मैं भुज भरि भेंटति उरज-कठोरी—१०-३०५। (ग) सूरदास याही ते जड़ भए इन पलकन ही दगा दई—२५३७। (घ) सुफलक-सुत लै गए दगा दै प्रानन ही के प्रीते—२८६३। (च) आई उघरि कनक कलई सी दै निज गए दगाई—२७१८।


दगादार
वि.
(हिं. दगा+फा. दार)
छली-कपटी।


दगाबाज
वि.
(फ़ा. दग़ाबाज़)
छली, कपटी, धोखा देने वाला।
उ.—दगाबाज कुतवाल काम रिपु, सरबस लूटि लय़ौ—१-६४।


दगाबाज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दग़ाबाज़)
छली मनुष्य, धोखा देनेवाला मनुष्य।


द्विजेंद्र, द्विजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज + इन्द्र, + ईश)
ब्राह्मण।


द्विजेंद्र, द्विजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज + इन्द्र, + ईश)
कपूर।


द्विजेंद्र, द्विजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज + इन्द्र, + ईश)
गरूड़।


द्विजोत्तम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्विओं में श्रेष्ठ, ब्राह्मण।


द्वितय
वि.
(सं.)
जिसके दो अंश या भाग हों।


द्वितय
वि.
(सं.)
दोहरा।


द्वितिय
वि.
(सं. द्वितीय)
दूसरा, द्वितीय।
उ.—प्रथम ज्ञान, बिज्ञानक द्वितिय मत, तृतीय भक्ति कौ भाव—२-३८।


द्वितिया
वि.
(सं. द्वितीया)
दूसरा।
उ.— (क) तब सिव-उमा गए ता ठौर, जहाँ नहीं द्वितिया कोउ और—१-२२६। (ख) कोउ कहै हरि-इच्छा दुख होइ। द्वितिया दुखदायक नहिं कोई—१-२९०।


द्वितीय
वि.
(सं.)
दूसरा।


द्वितीय
संज्ञा
पुं.
पुत्र, लड़का।


द्वितीयक
वि.
(सं.)
दूसरे स्थान का।


द्वितीयक
वि.
(सं.)
अप्रधान।


द्वितीया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पक्ष की दूसरी तिथि, दूज।


द्वितीयाश्रम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गृहस्थाश्रम।


द्वित्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो का भाव


द्वित्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दोहरे होने का भाव।


द्विदल
वि.
(सं.)
जिसमें दो दल हों।


द्विदल
वि.
(सं.)
जिसमें दो पत्ते हों।


द्विदल
वि.
(सं.)
जिसमें दो पंखुड़ियाँ हों।


द्विदल
संज्ञा
पुं.
वह अन्न जिसमें दो दल हों।


द्विजवाहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


द्विजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्विज की स्त्री।


द्विजाग्रज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण।


द्विजाति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य जिन्हें यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार है।


द्विजाति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


द्विजाति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दाँत।


द्विजिह्व
वि.
(सं.)
जिसके दो जीभें हों।


द्विजिह्व
वि.
(सं.)
इधर की उधर लगानेवाला, चुगलखोर।


द्विजिह्व
वि.
(सं.)
खल।


द्विजेंद्र, द्विजेश
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विज + इन्द्र, + ईश)
चंद्रमा।


द्विपाद
संज्ञा
पुं.
मनुष्य।


द्विपायी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विपायिन्)
हाथी।


द्विपास्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गजमुख, गणेश।


द्विबाहु
वि.
(सं.)
दो भुजाओंवाला।


द्विभाव
संज्ञा, वि.
(सं.)
दो भाव, दुराव, छिपाव।


द्विभाव
वि.
दो भाव रखनेवाला।


द्विभाषी
वि.
(हिं. दुभाषिन्)
दो भाषाऐं जाननेवाला।


द्विभुज
वि.
(सं.)
जिसके दो हाथ हों।


द्विमातृ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
(दो माताओं से उत्पन्न) जरासंध।


द्विमातृज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
(दो माताओं के गर्भ-से उत्पन्न होनेवाला) जरासंध।


द्विदेवता
वि.
(सं.)
दो देवताओं का।


द्विदेह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गणेश।


द्विधा
क्रि. वि.
(सं.)
दो प्रकार या तरह से।


द्विधा
क्रि. वि.
(सं.)
दो खंड या भागों में।


द्विधातु
वि.
(सं.)
दो धातुओं का बना हुआ।


द्विप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी।
उ.— द्विप दंत कर कलित, भेष नटवर ललित मल्ल उर सल्ल तल ताल बाजैं —३०७७।


द्विपक्ष
वि.
(सं.)
जिसके दो पर या पक्ष हों।


द्विपक्ष
संज्ञा
पुं.
पक्षी।


द्विपक्ष
संज्ञा
पुं.
महीना।


द्विपथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्थान जहाँ दो पक्ष मिलते हों।


द्विपद
वि.
(सं.)
जिसके दो पैर हों।


द्विपद
वि.
(सं.)
जिसमें दो पद या शब्द हों।


द्विपद
वि.
(सं.)
जिसमें दो चरण हों (गीत)।


द्विपद
संज्ञा
पुं.
दो पैर का प्राणी।


द्विपद
संज्ञा
पुं.
मनुष्य।


द्विपदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दो पदों का गीत।


द्विपाद
वि.
(सं.)
दो पैरोंवाला।


द्विपाद
वि.
(सं.)
दो पद या शब्दवाला।


द्विपाद
वि.
(सं.)
दो चरणवाला (गीत)।


द्विपाद
संज्ञा
पुं.
दो पैरवाला प्राणी।


द्विविध
वि.
(सं.)
दो प्रकार का।


द्विविध
क्रि. वि.
दो रीति या प्रकार से।


द्विविधा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुबधा।


द्विवेद
वि.
(सं.)
दो वेद पढ़नेवाला।


द्विवेदी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्विवेदिन्)
ब्राह्मणों की उपजाति।


द्विशिर
वि.
(सं.)
जिसके दो सिर हों।
मुहा.- कौन द्विशिर है— किसके दो सिर हैं ? किसको मरने का डर नहीं है ?


द्विशीर्ष
वि.
(सं.)
जिसके दो सिर हों।


द्विष, द्विषत्, द्विष्
वि.
(सं.)
द्वेष रखनेवाला।


द्विष, द्विषत्, द्विष्
संज्ञा
पुं.
शत्रु, वैरी, विरोधी, द्वेषी।


द्विष्ट
वि.
(सं.)
जिसमें द्वेष हो।


द्विरागमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरी बार आना।


द्विरागमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वधू का पति के घर दूसरी बार आना, गौना, दोंगा।


द्विराय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी।


द्विरुक्त
वि.
(सं.)
दो बार या दूसरी बार कहा हुआ।


द्विरुक्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दो बार कथन।


द्विरुढ़ा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्त्री जिसका एक बार एक पति से और दूसरी बार दूसरे से विवाह हो।


द्विरेफ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भौंरा, भ्रमर।


द्विविंदु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विसर्ग।


द्विविद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक बंदर जो रामचंद्र की सेना का सेनापति था।
उ.— नल-नील-द्विविद, केसरि, गवच्छ। कपि कहे कछुक, हैं बहुत लच्छ—९१६६।


द्विविद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक बंदर जो नरकासुर का मित्र था और बलदेव जी द्वारा मारा गया था।
उ.— रामदल मारि सो वृक्ष चुरकुट कियौ द्विविद सिर फट गयौ लगत ताके —१०३-४५।


द्विमातृज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गणेश।


द्विमात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीर्घ मात्रा का वर्ण।


द्विमुख
वि.
(सं.)
जिसके दो मुख हों।


द्विमुख
संज्ञा
पुं.
दो मुँहवाला साँप, गूँगी।


द्विमुखी
वि.
स्त्री.
(सं.)
जिसके दो मुख हों।


द्विरद
वि.
(सं.)
दो दाँतोंवाला।


द्विरद
संज्ञा
पुं.
हाथी।
उ.—द्विरद को दंत उपटाय तुम लेते हे वहै बल आजु काहे न सँभारौ।—२६०२।


द्विरद
संज्ञा
पुं.
दुर्योधन का एक भाई।


द्विरदाशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंह।


द्विरसन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँप।


द्वीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
थल का वह भाग जो चारों तरफ जल से घिरा हो।


द्वीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुराणानुसार पृथ्वी के सात बड़े विभाग।
उ.— सातौ द्वीप राज ध्रुव कियौ। सीतल भयौ मातु कौ हियौ —४-९।


द्वीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आधार।


द्वीपवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक नदी।


द्वीपवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भूमि।


द्वीपी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वीपिन्)
बाघ।


द्वीपी
संज्ञा
पुं.
(सं. द्वीपिन्)
चीता।


द्वीश
वि.
(सं.)
जो दो का स्वामी हो।


द्वीश
वि.
(सं.)
जिसमें दो स्वामी हों।


द्वीश
वि.
(सं.)
जो दो स्वामियों या देवताओं के लिए हो।


दगबाजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दगाबाज)
छल-कपट।


दगैल
वि.
[हिं. दाग+ऐल (प्रत्य.)]
दागी, जो दागी हो।


दगैल
वि.
[हिं. दाग+ऐल (प्रत्य.)]
जिसके दाग हों, दागदार।


दगैल
वि.
[हिं. दाग+ऐल (प्रत्य.)]
जिसमें दोष हो।


दगैल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दगा)
छली-कपटी, दगाबाज।


दग्ध
वि. सं.
जला या जलाया हुआ।


दग्ध
वि. सं.
दुखित, पीड़ित, संतप्त।
उ.—साप दग्ध ह्यौ सुत कुबेर के आनि भए तरु जुगल सुहाये—३५६।


दग्धा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सूर्यास्त की दिशा।


दग्धाक्षर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झ, भ, र, ष और ह जिनसे छंद का आरंभ नहीं होना चाहिए।


दग्धित
वि.
(सं. दग्ध)
जला या जलाया हुआ।


द्वेष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शत्रुता, वैर।
उ.—मिटि गए राग-द्वेष सब तिनके जिन हरि प्रीति लगाई—१-३१८।


द्वेषी
वि.
(सं. द्वेषिन)
द्वेष या वैरभाव रखने या करनेवला।


द्वेषी
वि.
(सं. द्वेषिन)
शत्रु।


द्वेष्टा
वि.
(सं. द्वेष)
द्वेषी।


द्वेष्टा
वि.
(सं. द्वेष)
शत्रु।


द्वै
वि.
(सं. द्वय)
दो, दोनों भेद।
उ.—सलिल लौं सब रंग तजि कै, एक रंग मिलाइ। सूर जो द्वै रंग त्यागै, यहै भक्त सुभाइ—१-७०।


द्वै
वि.
(सं. द्वय)
भिन्न, अलग।
उ.— सूरदास -सरवरि को करिहै, प्रभु पारथ द्वौ नाहीं —१-२६९।


द्वैक
वि.
(हिं. दो + एक)
दो-एक, एक-आध, बहुत कम (संख्यावाचक)।
उ.—(क) जसुमति मन अभिलाष करै। कब मेरौ लाल घुटुरूवनि रेंगै, कब धरनी पग द्वैक धरै—१०-७६। (ख) पुनि क्रम-क्रम भुज टेकि कै, पग द्वैक चलावै—१०-११२। (ग) कबहुँ कान्ह कर छाँड़ि नंद, पग द्वैक रिंगावत—१०-१२२। (घ) यह कहियौ मेरी कही, कमल पठाए कोटि। कोटि द्वैक जलहीं धरे, यह बिनती इक छोरि—१०-५८९। (ङ) द्वैक पग धारि हरि-सँमुख आयौ—३०७६।


द्वैगुणिका
वि.
(सं.)
दूना सूद-ब्याज लेनेवाला।


द्वैज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्वितीय, प्रा. दुइय)
द्वितीया, दूज।


द्वैज
वि.
द्वितीया का, दूज का।
उ.— (क) सीपज-माल स्याम उर सौहै, बिच बघ-नहँ छबि पावै री। मनौ द्वौज ससि नखत सहित है, उपमा कहत न आवै री—१०-१३९। (ख) गनहु द्वैज दिन सोधि कै हरि होरी—२४५५।


द्वैत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दो का भाव, युगल।


द्वैत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपने-पराये का भेद-भाव।


द्वैत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुबधा, भ्रम।


द्वैत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अज्ञान।


द्वैत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
द्वैतवाद।


द्वैतवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वन जिसमें युधिष्ठिर कुछ समय तर रहे थे।


द्वैतवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक दार्शनिक सिद्धांत जिसमें आत्मा-परमात्मा या जीव ईश्वर को भिन्न माना जाता है।


द्वैतवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक दर्शनिक सिद्धांत जिसमें शरीर और आत्मा को भिन्न माना जाता है।


द्वैध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विरोधी।


द्वौ
वि.
(हिं. दो + ऊ दोउ)
दोनों।


द्वौ
संज्ञा
पुं.
(सं. दव)
दावा, दावाग्नि।


देवनागरी वर्णमाला का उन्नीसवाँ व्यंजन और तवर्ग का चौथा वर्ण जो दंतमूल से उच्चरित होता है।


धंगर
संज्ञा
पुं.
(देश)
चरवाहा, ग्वाला।


धंगा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
खाँसी।


धंदर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक धारीदार कपड़ा।


धंधक, धंधरका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धंधा)
काम-धंधे का झगड़ा, बखेड़ा या जंजाल।


धंधक, धंधरका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
एक तरह का ढोल।


धंधकधोरी, धंधरकधोरी
वि.
(हिं. धंधक + धोरी)
जो हर समय काम के झगड़े में पृड़ा रहे।


धंधका
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह का ढोल।


द्वैध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कूटनीति।


द्वैपद
वि.
(सं.)
दो पैर वाले।
उ.— ए षटपद वै द्वैपद चतुर्भुज काइ भाँति भेद नहिं भ्रातनि—३१७३।


द्वैपायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वेदव्यास का नाम क्योंकि इनका जन्म जमुना नदी के एक द्वीप में हुआ था।


द्वैपायन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह तालाब जिसमें यद्ध से भागकर दुर्योधन छिपा था।


द्वैमातुर
वि.
(सं.)
जिसकी दो माताएँ हों।


द्वैमातुर
संज्ञा
पुं.
गणेश।


द्वैमातुर
संज्ञा
पुं.
जरासंध।


द्वैवार्षिक
वि.
(सं.)
जो प्रति दूसरे वर्ष हो।


द्वैविध्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुबधा।


द्वैहै
क्रि. स.
(हिं. दुहना)
दुहेगा।
उ.— कहियहु बेगि पठवहिं गृह गाइनि को द्वैहै—२७०६।


धंधला
संज्ञा
पुं.
(हिं. धंधा)
छल-कपट।


धंधला
संज्ञा
पुं.
(हिं. धंधा)
बहाना।


धंधलाना
क्रि. अ.
(हिं. धँधला)
छल-कपट करना।


धंधा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन-धान्य)
काम-काज।


धंधा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन-धान्य)
कार-बार, व्यवसाय, रोजगार।


धंधार
वि.
(देश.)
अकेला, एकाकी।


धंधारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धंधा)
गोरखपंथी साधुओं के पास रहनेवाला ‘गोरखधंधा’।


धंधारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धंधार)
एकांत।


धंधारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धंधार)
सन्नाटा।


धंधाला
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धंधा)
कुटनी, दूती।


धंधोर
संज्ञा
पुं.
(अनु. धायँ धायँ)
होली, होलिका।


धंधोर
संज्ञा
पुं.
(अनु. धायँ धायँ)
आग की लपट, ज्वाला।


धँस
संज्ञा
पुं.
(हिं. धँसना)
डुबकी, गोता।


धँसन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसना)
धँसने की क्रिया, ढंग या गति।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. दंशन)
गड़ना, चुभना।
मुहा.- जी (मन) में धँसना— (१) मन पर प्रभाव डालना। (२) बराबर ध्यान पर चढ़ा रहना।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. दंशन)
जगह बनाकर बढ़ना या पैठना।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. दंशन)
धीरे-धीरे नीचे जाना या उतरना।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. दंशन)
नीचे की ओर दब या बैठ जाना।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. दंशन)
गड़ी चीज का खड़ी न रह कर बैठ या दब जाना।


धँसना
क्रि. अ.
(सं. ध्वंसन)
नष्ट होना, मिटना।


धँसनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धसन)
घुसने-पैठने की क्रिया, रीति या चाल।


धँसान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसना)
धसने की क्रिया या ढंग।


धँसान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसना)
दलदल।


धँसान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसना)
ढाल, उतार।


धँसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
गड़ाना, चुभाना,घुसाना।


धँसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
प्रवेश करना, पैठाना।


धँसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
नीचे की ओर बैठाना।


धँसायौ
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
धँसा लिया, डुबा लिया, बूड़ गए।
उ.—हम सँग खेलत स्याम जाइ जल माँझ धैसायौ—५८६।


धँसाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. धँसना)
धँसने की क्रिया या भाव।


धँसाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. धँसना)
दलदल।


धँसि
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
घस-पैठकर, डूबकर।


धँसि
प्र.
धँसि लैहौं-डूब जाऊँगी।
उ.—जो न सूर कान्ह आइहैं तौ जाइ जमुन धँसि लैहौं—२५५०।


धँसी
क्रि. अ.
(हिं. धसना)
गड़ गयी, चुभी।
मुहा.- मन महं धँसी— हृदय में अंकित हो गयी, चित्त से न हट सकी। उ.— मन महं धँसी मनोहर मूरति टरति नहीं वह टारे।


धँसी
क्रि. अ.
(हिं. धसना)
नीचे उतरी, नीचे आयी।
उ.—पति पहिचानि धँसी मंदिर मैं सूर तिया अभिराम।आवहु कंत लखहु हरि को हित पाँव धारिए धाम।


धँसे
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
घुसे, गड़े, दब गये।
उ.— गयौ कूदि हनुमंत जब सिंधु-पारा। सेष के सीस लागे कमठ पीठि सौं, धँसे गिरिवर सबै तासु भारा—९-७६।


धउरहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौरहर)
ऊँची अटारी, बुर्ज।


धक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
दिल धड़कने का शब्द या भाव।
मुहा.- जी धक-धक करना— भय आदि से जी धड़कना।

जी धक हो जाना— (१) डर से दहल जाना। (२) चौंक पड़ना। जी धक (से) होना— (१) घबराहट होना। (२) भय होना।

धक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
उमंग, चाव, चोप।


धक
क्रि. वि.
अचानक, सहसा, एकबारगी।


धकधकात
क्रि. अ.
(हिं. धकधकाना)
भय या घबराहट से (हृदय) धड़कता है।
उ.— (क) टटके चिन्ह पाछिले न्यारे धकधकात उर डोलत है—२११०। (ख) धकधकात उर नयन स्त्रवत जल सुत अँग परसन लागे—२४७३। (ग) सकसकात तन धकधकात उर अक-बकात सब ठाढ़े—२९६९। (घ) धकधकात जिय बहुत सँभारै।


धकधकाना
क्रि. अ.
(अनु. धक)
भय, घबराहट आदि से (हृदय का) जोर जोर धड़कना।


धकधकाना
क्रि. अ.
(अनु. धक)
(आग का) लपट के साथ जलना।


धकधकाहट
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक)
हृदय के धड़कने की क्रिया या भाव, धड़कन।


धकधकाहट
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक)
खटका, आशंका।


धकधकाहट
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक)
सोचबिचार, आगा-पीछा।


धकधकी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक)
हृदय के धड़कने की क्रिया या भाव, धड़कन।
उ.— (क) आये हौ सुरति किए ठाठ करख लिए सकसकी धकधकी हिये—२६०९। (ख) आवत देख्यौ बिप्र जोरि कर रूक्मिनि धाई। कहा कहैगौ आनि हिए धकधकी लगाई—१०उ. ८।


धकधकी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक)
गले और छाती के बीच का गढ़ा जिसमें धड़क मालूम होती है, धुकधकी।
मुहा.- धकधकी धड़कना— जी धकधक करना, खटका या आशंका होना।


धकना
क्रि. अ.
(हिं. दहकना)
दहक कर जलना।


धकपक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
जी की धड़कन, धकधकी।


धकपक
क्रि. वि.
डरते हुए या धड़कते जी से।


धकपकाना
क्रि. अ.
(अनु. धक)
डरना, भयभीत होना।


धकपेल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धक + पेलना)
धक्कमधक्का।


धका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धक्का)
टक्कर।


धका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धक्का)
झोंका।


धकाधकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धक्का)
धक्कमधक्का।


धकाधकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धक्का)
रेल-पेल।


धकाना
क्रि. स.
(हिं. दहकाना)
जलाना, सुलगाना।


धकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. ध + कार)
‘ध’ अक्षर।


धकारा, धकारो
संज्ञा
पुं.
(अनु. + धक)
खटका, आशंका।
उ.— तुम तो लीला करत सुरन मन परो धकारो।


धकियाना
क्रि. स.
(हिं. धक्का)
धक्का देना, ढकेलना।


दग्धित
वि.
(सं. दग्ध)
जिसे कष्ट या दुख पहुँचा हो, पीड़ित।


दचक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
धक्के से लगी हुई चोट।


दचक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
धक्का, ठोकर।


दचक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
दबाव।


दचकना
क्रि. अ.
(अनु.)
ठोकर लगना।


दचकना
क्रि. अ.
(अनु.)
दब जाना।


दचकना
क्रि. अ.
(अनु.)
झटका खाना।


दचकना
क्रि. स.
(अनु.)
धक्का देना


दचकना
क्रि. स.
(अनु.)
दबना।


दचना
क्रि. अ.
(अनु.)
गिरना-पड़ना।


धकेलना
क्रि. स.
(हिं. धक्का)
ठेलना, धक्का देना।


धकेल
वि.
(हिं. धकेलना)
धक्का देनेवाला।


धकैत
वि.
(हिं. धक्का + ऐत)
धक्कमधक्का करनेवाला।


धकोना
क्रि. स.
(हिं. धकियाना)
धक्का देना।


धक्क
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धक)
(जी) धड़कने का भाव।


धक्कपक्क
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धकपक)
धड़कन, धकधकी।


धक्कपक्क
क्रि. वि.
धड़कते हुए जी से, भयभीत होकर।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
टक्कर, रेला।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
ढकेलने की क्रिया, चपेट।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
(भीड़ की) कसमकस।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
दुख की चोट, संताप।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
विपत्ति, दुर्घटना।


धक्का
संज्ञा
पुं.
(सं. धम, हिं. धमक, धौंक)
हानि, घाटा।


धक्कामुक्की
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धक्का + मुक्की)
धक्के-घूँसे की मारपीट।


धगड़, धगड़ा
संज्ञा
पुं.
(सं. धब=पति)
जार, उपपति।


धगड़बाज
वि.
स्त्री.
(हिं. धग + फ़ा. बाज)
उपपति से प्रेम करनेवाली, व्यभिचारिणी।


धगड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धगड़ा)
व्यभिचारिणी।


धगधागना
क्रि. अ.
(अनु.)
(जी का) धकधक करना।


धगधाग्यो, धगधागयौ
क्रि. अ.
(हिं. धगधगाना)
(जी) धड़कने लगा।
उ.—जब राजा तेहि मारन लाग्यौ। देवी काली मन धगधाग्यौ।


धगरिन
संज्ञा
स्त्री.
(हि. धाँगर)
धाँगर स्त्री जो बच्चों के जन्मने पर उनकी नाल काटती है।


धगरी
वि.
(हिं. धगड़ी)
पति की दुलारी या मुँह-लगी।


धगरी
वि.
(हिं. धगड़ी)
व्यभिचारिणी, कुलटा।


धगा
संज्ञा
पुं.
(हिं. तागा, धगा)
बटा हुआ सूत, डोरा, तागा।
उ.— सूरदास कंचन अरू काँचहिं, एकहिं धगा पिरोयौ—१-४३।


धगुला
संज्ञा
पुं.
(देश)
हाथ में पहनने का कड़ा।


धगाड़
संज्ञा
पुं.
(हिं. धगड़)
जार, उपपति।


धचकचाना
क्रि. स.
(अनु.)
डराना, दहलाना।


धचकना
क्रि. अ.
(अनु.)
दलदल-कीचड़ में फँसना।


धचका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
धक्का, झटका, आघात।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
सजावट, बनाव।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
सुंदर या आकर्षक ढंग।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
बैठने-उठने की रीति, ठवन।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
ठसक, नखरा।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
रूप-रंग, शोभा।


धज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज = चिन्ह, पताका)
डील-डौल, बनावट, आकृति।


धजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज)
ध्वजा, पताका।


धजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज)
कतरन, धज्जी।


धजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वज)
रूपरंग, डील-डौल।


धजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धज्जी)
धज्जी।


धजीला
वि.
[हिं. धज + ईला (प्रत्य.)]
सुंदर, सजीला।


धजीला
वि.
धज्जीधारी, जो फटे कपड़े पहने हो।


धटी
संज्ञा
पुं.
शिव।


धड़ंग
वि.
(हिं. धड़ + अंग)
नंगा।


धड़
संज्ञा
पुं.
(सं. धर = धारण करनेवाला)
शरीर का मध्य भाग।


धड़
संज्ञा
पुं.
(सं. धर = धारण करनेवाला)
पेड़ का तना, पैड़ी।


धड़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
सहसा गिरने जैसा शब्द।


धड़क
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़)
हृदय की धड़कन या स्पंदन।


धड़क
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़)
हृदय के धडकने का शब्द।


धड़क
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़)
भय, आशंका आदि से जी का धकधक करना।


धड़क
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़)
खटका, आशंका।


धड़क
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़)
साहस, हिम्मत।


धज्जियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धजी)
कपड़े-कागज की लंबी कतरन।


धज्जियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धजी)
लोहे-लकड़ी की कटी-फटी लंबी पट्टियाँ।
मुहा.- धज्जियाँ उड़ना— (१) टुकड़े-टुकड़े या खील-खील होना। (२) (किसी के) दोषों का खूब भंडाफोड़ होना या दुर्गति होना।

धज्जियाँ उड़ाना— (१) टुकड़े-टुकड़े या खील-खील करना। (२) (किसी के) दोषों का खूब भडाफोड़ करना या दुर्गति करना। (३) मार-मार या काट-काट कर टुकड़े करना। धज्जियाँ लगना— कपड़ों का कटा-फटा होना, गरीबी आना। धज्जियाँ लगाना— फटे पुराने कपड़े पहनना।

धज्जी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धटी)
कपड़े कागज या लोहे-लकड़ी की कटी-फटी पट्टी।


धट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तुला, तराजू।


धटिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वस्त्र।


धटिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कौपीन।


धटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चीर, वस्त्र।


धटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कौपीन।


धटी
वि.
(सं. धटिन्)
तौलनेवाला।


धटी
संज्ञा
पुं.
तुला राशि।


धड़क
यौ.—
बेधड़क—बिना किसी खटके या संकोच के


धड़कन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़क)
हृदय का स्पंदन।


धड़कना
क्रि. अ.
(हिं. धड़क)
छाती का धकधक करना या काँपना।
मुहा.- छाती (जी, दिल) धड़कना— भय, खटके या आशंका से जी का दहलना या काँपना।


धड़कना
क्रि. अ.
(हिं. धड़क)
भारी चीज के गिरने का शब्द होना।


धड़का
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
हृदय की धड़कन।


धड़का
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
हृदय के स्पंदन का शब्द।


धड़का
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
भय, खटका।


धड़का
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
सहसा गिरने का शब्द।


धड़का
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
खेत का धोखा या नकली पुतला।


धड़काना
क्रि. स.
(हिं. धड़क)
जी धकधक कराना।


धड़काना
क्रि. स.
(हिं. धड़क)
डराना, दहलाना।


धड़काना
क्रि. स.
(हिं. धड़क)
धड़धड़ शब्द कराना।


धड़क्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़का)
धड़कन।


धड़क्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़का)
अंदेशा।


धड़टूटा
वि.
(हिं. धड़ + टूटना)
जिसकी कमर झुकी हुई हो।


धड़टूटा
वि.
(हिं. धड़ + टूटना)
कुबड़ा।


धड़धड़
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
गिरने-छूटने का शब्द।


धड़धड़
क्रि. वि.
धड़धड़ शब्द करके।


धड़धड़
क्रि. वि.
बेधड़क।


धड़धड़ाना
क्रि. अ.
(अनु. धड़)
धड़धड़ शब्द करना।


धड़ल्ला
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
धड़धड़ शब्द, धड़ाका।
मुहा.- धडल्ले से— निडर, बेधड़क। (१) भीड़भाड़, धूमधाम। (२) बड़ी भीड़।


धड़वाई
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़ा)
तौलनेवाला।


धड़ा
संज्ञा
पुं.
(सं. धट)
तराजू का बाट, बटखरा।
मुहा.- धड़ा करना (बाँधना)— तौलने के पहले तराजू के दोनों पलड़ों को तौल में बराबर कर लेना।

धड़ा बाँधना— कलंक या दोष लगाना।

धड़ा
संज्ञा
पुं.
(सं. धट)
एक तौल।


धड़ा
संज्ञा
पुं.
(सं. धट)
तराजू, तुला।


धड़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़क्का)
दल, झुंड, समूह।


धड़ाक, धड़ाका
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
धड़धड़ शब्द।
मुहा.- धड़ाक (धड़ाके) से चटपट, बेखटके।


धड़ाधड़
क्रि. वि.
(अनु. धड़)
धड़धड़ शब्द के साथ।


धड़ाधड़
क्रि. वि.
(अनु. धड़)
लगातार, जल्दी जल्दी, ताबड़तोड़।


धड़बंदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़ा + फ़ा. बंदी)
धड़ा बाँधना।


धड़बंदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़ा + फ़ा. बंदी)
दोनों पक्षों का अपने को समान सबल बनाना।


धड़ाम
संज्ञा
पुं.
(अनु. धड़)
कूदने-गिरने का शब्द।


धड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धटिका, धटी)
एक तौल।
मुहा.- धड़ी भर (धड़ियों)— बहुत सा, ढेर का ढेर।

धड़ी भरना— तोलना। धड़ी-धड़ी करके लुटना— सब कुछ लुट जाना। धड़ी धड़ी करके लूटना— सब कुछ लूट लेना।

धड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धटिका, धटी)
पाँच सौ की रकम


धड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धटिका, धटी)
रेखा, लकीर।


धत
संज्ञा
स्त्री.
(सं. रत, हिं. लत)
लत, बुरी बान, कुटेव।


धत
संज्ञा
स्त्री.
(सं. रत, हिं. लत)
जिद, रट, रटन।


धतकारना
क्रि. स.
(अनु. धत्)
तिरस्कार या अपमान के साथ हटाना।


धतकारना
क्रि. स.
(अनु. धत्)
धिक्कारना।


धता
वि.
(अनु. धत्)
जो दूर हो गया हो।
मुहा.- धता बताना— (१) चलता करना, हटाना। (२) धोखा देकर टाल देना, टालटूल करना।


दज्जाल
संज्ञा
पुं.
(अ. दज्ज़ाल)
झूठा, अन्यायी।


दड़ोकना
क्रि. अ.
(अनु.)
गरजना, दहाड़ना।


दढ़ना
क्रि. अ.
(सं. दहन)
जलना, जल जाना।


दढ़ियल
वि.
(हिं. दाढ़ी+इयल)
जिसके दाढ़ी हो।


दढ़ी
क्रि. अ.
(हिं. दढ़ना)
जली, जल गयी।
उ.— (क) भई देह जो खेह करम-बस, जनु तट गंगा अनल दढ़ी। सूरदास प्रभु द्दष्टि सुधानिधि मानौ फेरि बनाइ गढ़ी—६-१७०। (ख) तन मन धन यौवन सुख संपति बिरहि-अनल दढ़ी—२७६४।


दणियर
संज्ञा
पुं.
(सं. दिनमणि)
सूर्य।


दतना
क्रि. अ.
(देश.)
मग्न या लीन होना।


दतवन, दतवनि
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दाँत+अवन (प्रत्य.)]
दतून, दातौन, दतौन।
उ.—दतवनि लै दुहुँ करौ मुखारी, नैननि कौ आलस जु बिसारौ—४०७।


दतारा
वि.
(हि. दाँत+आरा)
जिसमें दाँत हों।


दतिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दाँत का अल्प.)
छोटा दाँत।


धतिया
वि.
(हिं. धत्)
बुरी लतवाला।


धतिया
वि.
(हिं. धत्)
जिद्दी हठी।


धतींगड़, धतीगड़ा
संज्ञा
पुं.
(देश)
बैडौल, मुस्टंड।


धतूर
संज्ञा
पुं.
(अनु. धू + सं. तूर)
धूतू या नरसिंहा नामक बाजा, तुरही।
उ.—दसएँ मास मोहन भए मेरे आँगन बाजै धतूर।


धतूर, धतूरा, धत्तूर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुस्तूर, हिं. धतूरा)
एक पौधा जिसके फल शिवजी पर चढ़ाये जाते हैं।
मुहा.- धतूरा खाये फिरना— पागल की तरह घूमना। उ.— सूरदास प्रभु दरसन कारन मानहुँ फिरत धतूरा खाये— ३३०३।


धत्
अव्य
(अनु.)
दुतकारने का शब्द।


धधक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
आग बढ़ने का भाव।


धधक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
आँच, लपट।


धधकना
क्रि. अ.
(हिं. धधक)
आग का दहकना या लपट के साथ जलना।


धधकाना
क्रि. स.
(हिं. धधकना)
आग को दहकाना।


धनंजय
वि.
धन जीतने या प्राप्त करनेवाला।


धनंजय
संज्ञा
पुं.
अग्नि।


धनंजय
संज्ञा
पुं.
अर्जुन का एक नाम।


धनंजय
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


धनंजय
संज्ञा
पुं.
शरीर की पाँच दायुश्रों में एक।


धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संपत्ति, द्रव्य, दौलत।
मुहा.- धन उड़ाना— धन को चटपट खर्च कर डालना।


धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गायों आदि का समूह।


धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अत्यंत प्रिय पात्र, जीवन-सर्वस्व।
उ.—सिव कौ धन, संतनि कौ सरबस महिमा वेद-पुरान बखानत—१-११४।


धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मूल, पूँजी।


धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कच्ची धातु।


धन
वि.
(हिं. धन्य)
धन देनेवाला।


धन
वि.
(हिं. धन्य)
प्रशंसापात्र।


धन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धनी)
युवती, वधू।
उ.— (क) गायौ गौध, अजामिल गनिका, गायौ पारथ-धन रे—१-६६। (ख) सूरदास सोभा क्यौं पावै पिय विहीन धन मटके—१-२९२। (ग) एकटक सिव धरे नैनन लागत स्याम सुता-सुत-धन आई—सा.-उ. ३०।


धनक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन की इच्छा।


धनक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुष, कमान।


धनकुट्टी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान + कूटना)
धान कूटने की क्रिया।


धनकुट्टी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान + कूटना)
धान कूटने की ओखली या मूसल।
मुहा.- धनकुट्टी करना— बहुत मारना-पीटना।


धनकुवेर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत धनी आदमी।


धनकेलि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुवेर।


धनतेरस
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धन + तेरस)
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी जब रात में लक्ष्मी जी की पूजा होती है।


धनवंतरि
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वंतरि)
देवताओं के वैद्य जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में माने जाते हैं।


धनवती
वि.
स्त्री.
(सं.)
जिसके पास खूब धन हो।


धनवा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वा)
धनुष, कमान।


धनवान, धनवान्
वि.
(सं. धनवान)
धनी।


धनशाली
वि.
(सं. धनशालिन्)
धनी, धनवान।


धनस्यक
वि.
(सं.)
धन की इच्छा रखनेवाला।


धनस्वामी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।


धनहर
वि.
(सं.)
धन का हरण करनेवाला।


धनहर
संज्ञा
पुं.
चोर, लुटेरा।
उ.—धनहर-हित-रिपु सुत-सुख पूरत नैनन मद्व लगावै—सा. ८९।


धनहीन
वि.
(सं.)
निर्धन, दरिद्र।


धनदंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुरमाना।


धनद
वि.
(सं.)
धन देनेवाला।


धनद
संज्ञा
पुं.
कुबेर।
उ.—रामदूत दीपत नछत्र में पुरी धनद रूचि रूचि तम हारी—सा. ९८।


धनद
संज्ञा
पुं.
अग्नि।


धनदतीर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्रज के अंतर्गत एक तीर्थ।


धनदा
वि.
स्त्री.
(सं.)
धन देनेवाली, दात्री।


धनदा
संज्ञा
स्त्री.
आश्विन कृष्ण एकादशी का नाम।


धनदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुवेर।


धनधान्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन-अन्न आदि।


धनधाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घर-बार और रूपया-पैसा।


धननाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुवेर।


धनपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।
उ.— सुमना-सुत लै कमलसुमंजित धनपति धाम को नाम खँवारे—सा. उ. १०।


धनपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वायु का नाम।


धनपति-धाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अलकापुरी।


धनपत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहीखाता।


धनपात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनी, धनवान्।


धनपाल
वि.
(सं.)
धन की रक्षा करनेवाला।


धनपाल
संज्ञा
पुं.
कुबेर।


धनमद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन का अभिमान।
उ.— धन-मद मूढ़नि अभिमानिनि मिलि लोभ लिए दुर्बचन सहै—१-५३।


धनवंत
वि.
(हिं. धनवान्)
धनी।
उ.—आपुन रंक भई हरि-धन को हमहिं कहति धनवंत—१३२४।


धनियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धनिका)
युवती, वधू।
उ.— सूर-स्याम देखि सबै भूलीं गोप-धनियाँ—१०-२३८।


धनियाँ
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्याक, धनिका)
एक छोटा पौधा जिसके छोटे छोटे फल सुखाकर मसाले के काम में आते हैं।


धनियामाल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धना + माला)
गले का एक गहना।


धनिष्ट
वि.
(सं.)
धनी।


धनिष्टा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तेईसवाँ नक्षत्र।


धनी
वि.
(सं. धनिन्)
धनवान।


धनी
वि.
(सं. धनिन्)
दक्षता-संपन्न, गुणवान।


धनी
संज्ञा
पुं.
धनवान व्यक्ति।


धनी
संज्ञा
पुं.
अधिपति, स्वामी।


धनी
संज्ञा
पुं.
महाजन, पालक, रक्षक।
उ.— कहा कमी जाके राम धनी—१-३९।


धना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनि=श्त्री)
युवती, वधू।


धनाढ्य
वि.
(सं.)
मालदार, धनवान्।


धनाधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।


धनध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खजांची।


धनध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर।


धनाना
क्रि. अ.
(सं. धेनु)
गाय का गाभिन होना।


धनार्थी
वि.
(सं. धनार्थिन)
धन चाहनेवाला।


धनाश्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक रागिनी जिसका प्रयोग वीर रस में विशेष होता है और जो दिन के दूसरे या तीसरे पहर में गायी जाती है।


धनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धनी)
युवती, वधू।
उ.— सूरदास सोभा क्यौं पावै, पिय-बिहीन धनि मटकै—१-२९२।


धनि
वि.
(सं. धन्य)
पुण्यवान, सुकृती, प्रशंसनीय, कृतार्थ।
उ.— (क) धनि मम गृह, धनि भाग हमारे, जौ तुम चरन कृपानिधि धारे—१-३४३। (ख) सूरदास धनि-धनि वह प्रानी जो रहि को व्रत लै निबट्यौ—२-८। (ग) गरूड़ त्रास तैं जौ हथाँ आयौ।¨¨¨¨। धनि रि, साप दियौ खगपति कौं हथाँ तब रह्यौ छपाई—५७३।


धनिक
संज्ञा
पुं.
धनी, धनवान्।


धनिक
संज्ञा
पुं.
धनी व्यक्ति।


धनिक
संज्ञा
पुं.
पति।


धनिक
संज्ञा
पुं.
महाजन।


धनिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धनी स्त्री।


धनिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
युवती।


धनिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धनी होने का भाव।


धनियाँ
वि.
(सं. धनिक)
स्वामी, रक्षक, आश्रयदाता
उ.—(क) निरखि निरखि मुख कहति लाल सौं मो निधनी के धनियाँ—१०-८१। (ख) नैंकु रहौ माखन देउँ मेरे प्रान-धनियाँ—१०-१४५।


धनियाँ
वि.
(सं. धनिक)
पति, प्रिय।


धनियाँ
वि.
(सं. धनिक)
आढ्य, संपन्न।
उ.— मिस्त्री, दधि, माखन मिस्त्रित करि, मुख नावत छबिधनियाँ—१०-१४५।


धनुहाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनु + हाई)
धनुष की लड़ाई।


धनुहियाँ, धनुहिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनुष)
छोटा धनुष, छोटी कमान।
उ.— (क) करतल-सोभित बान धनुहियाँ—९-१९। (ख) जैसे बधिक गँवहिते खेलत अंत धनुहिया तानै—३३६६।


धनुहीं, धनुही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनुष)
छोटी कमान।
उ.— धनुहीं-बान लए कर डोलत—९-२०।


धनेश, धनेस
संज्ञा
पुं.
(सं. धनेश)
धन का स्वामी या रक्षक।


धनेश, धनेस
संज्ञा
पुं.
(सं. धनेश)
कुबेर।


धनेश्वर, धनेस्वर
संज्ञा
पुं.
(सं. धनेश्वर)
धन का स्वामी।


धनेश्वर, धनेस्वर
संज्ञा
पुं.
(सं. धनेश्वर)
कुबेर।


धनैषी
वि.
(सं. धनैषिन्)
धन चाहनेवाला।


धन्न
वि.
(सं. धन्य)
धन्य।


धन्नासेठ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धनु + सेठ)
बहुत धनी।


दच्छ
संज्ञा
पुं.
(सं. दंक्ष)
एक प्रजापति जिनसे देवता उत्पन्न हुए थे।


दच्छकुमारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्ष+कुमारी)
सती जो शिव जी को ब्याही थी।


दच्छना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्षिणा)
भेंट, दान।


दच्छसुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दक्ष+सुता)
सती जो शिव जी को ब्याही थी।


दच्छिन
वि.
(सं. दक्षिण)
दाहना दायाँ।
उ.—(क) लेहु मातु, साहिदानि मुद्रिका, दई प्रीति करि नाथ। सावधान हे सोक निवारहु. ऒड़हु दच्छिन हाथ—६—५३। (ख) बाम भुजहिं सखा अँस दीन्हे दच्छिन कर द्रुम-दरियाँ—४७०।


दच्छिन
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिण)
दक्षिण दिशा।
उ.—दच्छिन राज करन सो पठाये—६-२।


दच्छिनाइनि
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्षिणायन)
छह महीने का वह समय जिसमें सूर्य कर्क रेखा से चलकर बराबर दक्षिण की ओर बढ़ता रहता है।


दच्यौ
क्रि. अ. भूत.
[हिं. दचना (अनु.)]
गिरा, गिर पड़ा।
उ.—खेलत रह्यो घोष कैं बाहर, कोउ आयौ सिसु-रूप रच्यौ री। गगन उड़ाइ गयौ लै स्यामहिं, आनि धरनि पर आप दच्यौ री—६०६।


दछ
संज्ञा
पुं.
(सं. दक्ष)
एक प्रजापति जिनसे देवताओं की उत्पत्ति हुई थी। सती इन्हीं की पुत्री थीं। इनको शिवजी के गणों ने मारा था।
उ.—दछ सिर काटि कुंड मैं डारि—४-५।


दछिन
वि.
(सं. दक्षिण)
दाहना, दायाँ।
उ.—बहुरि जब रिषिनि भुज दछिन कीन्ही मथन, लच्छमी सहित पृथु दरस दीन्हौ—४-११।


धनी
संज्ञा
पुं.
पति, स्वामी।


धनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
युवती, वधू।
उ.—(क) देखहु हरि जैसे पति आगम सजति सिंगार धनी—२४६१। (ख) बहुरीं सब अति आनंद, निज गृह गोप-धनी—१०-२४।


धनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुष, कमान।
उ.— मनु मदन धनु-सर सँधाने देखि धनृकोदंड—१-३०७।


धनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राशि।


धनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक नाप जो चार हाथ की होती है।


धनुआ
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वा)
धनुष।


धनुइ, धनुई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनुष)
छोटा धनुष।


धनुक
संज्ञा
पुं.
(सं. धनुष)
धनुष।


धनुगुर्ण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुष की डोरी।


धनुर्ग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुर्धर।


धनुर्ग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुर्विद्या।


धनुर्द्धर, धनुर्द्धारी
वि.
(सं.)
धनुष चलानेवाला।


धनुर्यज्ञ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक यज्ञ जिसमें धनुष की पूजा और धनुर्विद्या की परीक्षा होती है।


धनुर्विद्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धनुष चलाने की विद्या।


धनुर्वेद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक शास्त्र जिसमें धनुष चलाने की विद्या का वर्णन है।


धनुष, धनुस, धनुस्
संज्ञा
पुं.
(सं. धनुस)
कमान।


धनुष, धनुस, धनुस्
संज्ञा
पुं.
(सं. धनुस)
एक राजा।


धनुष, धनुस, धनुस्
संज्ञा
पुं.
(सं. धनुस)
एक लग्न।


धनुष-टंकार
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
‘टन’ का शब्द जो धनुष की डोरी को खींचकर छोड़ देने से होता है।


धनुषशाला
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धनुष + शाला)
वह स्थान जहाँ परीक्षा या यज्ञ का धनुष रखा हो।
उ.— धनुषशाला चले नंदलाला—२५८४।


धन्वी
वि.
(सं. धन्विन्)
धनुर्द्धर।


धन्वी
वि.
(सं. धन्विन्)
चतुर।


धप
संज्ञा
स्त्री.
(अनु)
भारी और मुलायम चीज के गिरने का शब्द।


धप
संज्ञा
पुं.
धौल, धपड़, तमाचा।


धपना
क्रि. अ.
(हिं. धाप)
दौड़ना।


धपना
क्रि. अ.
(हिं. धाप)
लपकना।


धपाना
क्रि. स.
(हिं. धपना)
दौड़ाना।


धपाना
क्रि. स.
(हिं. धपना)
घुमाना।


धपि
क्रि. अ.
(हिं. धपना)
झपटकर, लपककर।
उ.— सीला नाम ग्वालिनी तेहि गहे कृष्न धपि धाइ हो—२४४९।


धप्पा
संज्ञा
पुं.
(अनु. धप)
थप्पड़।


धन्नी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. (गो) धन]
गाय-बैलों की एक जाति।


धन्नी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. (गो) धन]
घोड़े की एक जाति।


धन्नी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. (गो) धन]
बेगार का आदमी।


धन्य
वि.
(सं.)
पुण्यवान्, प्रशंसा करने या साधुवाद देने के योग्य।
उ.— (क) धन्य भाग्य, तुम दरसन पाए—१-३४१। (ख) धन्य-धनि कह्यौ पुनि लक्ष्छमी सौ सबनि—८-८।


धन्य
वि.
(सं.)
धन देनेवाला।


धन्यवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साधुवाद, प्रशंसा।


धन्यवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपकार के प्रत्युत्तर में कहा जानेवाला कृतज्ञता-सूचक शब्द।


धन्या
वि.
स्त्री.
(सं.)
बड़ाई या प्रशंसा के योग्य।


धन्या
संज्ञा
स्त्री.
उपमाता।


धन्या
संज्ञा
स्त्री.
बनदेवी।


धन्वंतर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चार हाथ की नाप।


धन्वंतरि, धन्वंत्रि
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वंकरि)
देव-वैद्य जो चौदह रत्नों के साथ समुद्र से निकले थे।
उ.— बहुरि धन्वंत्रि आयौ समुद्र सौं निकसि सुरा अरू अमृत निज संग लायौ—८-८।


धन्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुष, कमान।


धन्वा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वन्)
धनुष।


धन्वा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वन्)
रेगि-स्तान।


धन्वा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वन्)
सूखी जमीन।


धन्वा
संज्ञा
पुं.
(सं. धन्वन्)
आकाश, अंतरिक्ष।


धन्वाकार
वि.
(सं.)
धनुष की तरह गोलाई के साथ झुका हुआ।


धन्वायी
वि.
(सं. धन्वायिन)
धनुर्द्धर।


धन्विन
वि.
(सं.)
सुअर, शूकर।


धमक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम)
भारी चीज के चलने-लुढ़कने से होनेवाला शब्द।


धमक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम)
चोट, आघात।


धमक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम)
भारी शब्द का हृदय पर आघात, दहल।


धमक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धौंकनेवाला।


धमक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लोहार।


धमकना
क्रि. अ.
(हिं. धमक)
धमाका करना।
मुहा.- आ धमकना— जोर-शोर से आना।

जा धमकना— जोर-शोर से जा पहुँचना।

धमकना
क्रि. अ.
(हिं. धमक)
रह रह कर दर्द करना, व्यथित होना।


धमकाना
क्रि. स.
(हिं. धमक)
डराना।


धमकाना
क्रि. स.
(हिं. धमक)
डांटना


धमकि
क्रि. अ.
(हिं. धमकना)
धमाका करके।
उ.— धमकि मार्यौ घाउ गमकि हृदय रह्यौ झमकि गहि केस लै चले ऐसे —२६२१।


धप्पा
संज्ञा
पुं.
(अनु. धप)
हानि, घाटा।


धप्पाड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धप)
दौड़।


धब
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
भारी और मुलायम चीज के गिरने का शब्द।


धब
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
मोटे-फफ्फस आदमी के पैर रखने का शब्द।


धबला
संज्ञा
पुं.
(देश)
स्त्रियों का लँहगा।


धब्बा
संज्ञा
पुं.
(देश)
दाग, निशान।


धब्बा
संज्ञा
पुं.
(देश)
कलंक।
मुहा.- नाम में धब्बा लगना— कलंक लगना।

नाम में धब्बा लगाना— कलंक या दोष लगाना।

धम
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
भारी चीज गिरने का शब्द।


धमक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम)
भारी चीज गिरने का शब्द।


धमक
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम)
जोर से पैर रखने का शब्द।


धमकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धमकाना)
डाँट-डपट, घुड़की।
मुहा.- धमकी में आना— डरकर कोई काम करना।


धमक्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. धमाका)
आघात।


धमक्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. धमाका)
घूँसा।


धमगजर, धमगज्जा
संज्ञा
पुं.
(अनु. धम + गर्जन)
उधम, उत्पात।


धमगजर, धमगज्जा
संज्ञा
पुं.
(अनु. धम + गर्जन)
लड़ाई, युद्ध।


धमधमाना
क्रि. अ.
(अनु. धम)
‘धम धम’ शब्द करना।


धमधूसर
वि.
(अनु. धम + सं. धूसर)
मोटा और बेडौल।


धमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हवा से फूँकने का काम।


धमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फुँकनी, धौंकनी।


धमना
क्रि. स.
(सं. धमन्)
धौंकना, फूँकना।


धमाधम
क्रि. वि.
(अनु.)
‘धमधम’ शब्द के साथ।


धमाधम
क्रि. वि.
(अनु.)
कई बार धमाके के साथ।


धमाधम
संज्ञा
स्त्री.
कई बार ‘धमधम’ शब्द।


धमाधम
संज्ञा
स्त्री.
मार-पीट।


धमाना
क्रि. स.
(देश.)
जोर से हवा करना, धौंकना।


धमार, धमारि,धमारी, धमाल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. हिं. धमार)
उछल-कूद, धमाचौकड़ी।


धमार, धमारि,धमारी, धमाल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. हिं. धमार)
नटों की कलाबाजी।


धमार, धमारि,धमारी, धमाल
संज्ञा
पुं.
होली में गाने का एक ताल।


धमार, धमारि,धमारी, धमाल
संज्ञा
पुं.
होली में गाने का एक तरह का गीत।
उ.— (क) एक गावत है धमारि एक एकनि देति गारि गारी—२४२९। (ख) जुगल किसोर चरन रज माँगौं गाऊँ सास धमार—२४४७।


धमारिया, धमारी
(हिं. धमार)
उपद्रवी, उत्पाती।


धमारिया, धमारी
संज्ञा
पुं.
कलाबाज नट।


धमारिया, धमारी
संज्ञा
पुं.
धमार का गायक।


धमूका
संज्ञा
पुं.
(अनु. धाम)
धमाका।


धमूका
संज्ञा
पुं.
(अनु. धाम)
घूँसा।


धम्माल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धम)
उछलकूद।


धम्माल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धम)
कलाबाजी।


धम्मिल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बँधे हुए बाल, जूड़ा।


धर
वि.
(सं.)
धारण करने या सँभालनेवाला।
उ.— (क) रवि दो धर रिपु प्रथम बिकासो।¨¨¨। पतनी लै सारँगधर सजनी सारँगधर मन खैंचो— सा. ४८। (ख) गिरिधर, बजधर, मुरलीधर, धरनीधर, माधौ पीताम्बरधर—५७२।


धर
वि.
(सं.)
ग्रहण करने या थामनेवाला।


धर
संज्ञा
पुं.
पर्वत, पहाड़।


दति
सुत-संज्ञा
पुं.
(सं. दिति+सुत)
राक्षस, असुर।


दतुअन, दतुवन, दतुवनि, दतौन, दतौनी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. दाँत+अवन (प्रत्य.)]
दतौन, दतून, दातुन।
उ.— (क) प्रातहिं तैं मैं दियौ जगाइ। दतुवनि करि जु गए दोउ भाइ—५४७। (ख) माता दुहुँनि दतौनी कर दै, जलझारी भरि ल्याइ—६०६।


दत्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दत्तात्रेय।
उ.—(क) ताकैं भयौ दत्त अवतार—४-२। (ख) भृगु कै दुर्बासा तुम होहु। कपिल कै दत्त, कहौ तुम मोहु—५-४।


दत्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान।


दत्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दत्तक।


दत्त
वि.
(सं.)
दिया हुआ, भेंट किया हुआ।


दत्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गॊद लिया हुआ लड़का।


दत्तचित्त
वि.
(सं.)
जिसने खूब ध्यान दिया हो।


दत्ता, दत्तात्रेय
संज्ञा
पुं.
(सं. दत्तात्रेय)
एक प्रसिध्द ऋषि जो विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक माने जाते हैं। इन्होंने चौबीस पदाथों को गुरु माना था।


दत्तात्मा
संज्ञा
पुं.
(सं. दत्तात्मन्)
त्यक्त-अनाथ पुथ।


धमनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धमनी।


धमनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शब्द।


धमनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शरीर की छोटी-बड़ी नाड़ी।


धमसा
संज्ञा
पुं.
(देश)
धाँसा, नगाड़ा।


धमाका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
भारी चीज गिरने का शब्द।


धमाका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
घूँसा।


धमाका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
तोप-बन्दूक या पटाखे का शब्द।


धमाका
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
आघात, धक्का।


धमाचौकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम + हिं. चौकड़ी)
कूद-फाँद, उछल-कूद।


धमाचौकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धम + हिं. चौकड़ी)
मार-पीट।


धरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुल, बाँध।


धरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार।


धरणि, धरणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरणि)
पृथ्वी।
उ.—(क) सूर तुरत मधुबन पग धारे धरणी के हितकारि —२५३३। (ख) धरणि उमंगि न माति धर मैं यती योग बिसारि—पृ. ३४७ (५४)।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
पृथ्वी को धारण करनेवाला।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
कच्छप।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
पर्वत।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
विष्णु।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
श्रीकृष्ण।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
शिव।


धरणिधर, धरणीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
शेषनाग।


धर
संज्ञा
पुं.
कच्छप जो धरा को धारण किये है।


धर
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


धर
संज्ञा
पुं.
श्रीकृष्ण।


धर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़)
शरीर का मध्य भाग, धड़।
उ.— (क) राहु सिर, केतु धर कौ भयौ तबहिं तैं, सूर-ससि कौं सदा दःखदाई—८-८। (ख) राहु-सिर, केतु धर भयौ यह तबहिं सूर-ससि दियौ ताकौं बताई—८-९।


धर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
धरने-पकड़ने की क्रिया।


धर
यौ.
धर-पकड़— बंदी बनाने की क्रिया, गिरफ्तारी।


धर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरा)
धरती, पृथ्वी।
उ.— (क) माधौ जू, यह मेरी इक गाइ।¨¨¨। ब्योम, धर, नद, सैल, कानन इते चरि न अघाइ—१-५५। (ख) धर बिधंसि नल करत किरषि हल बारि बीज बिथरै—१-११७। (ग) उबर् यौ स्याम महरि बढ़-भागी। बहुत दूरि तै आइ पर् यौ धर धौं कहुँ चोट न लागी—१०-७९। (घ) लोटत धर पर ग्यान गर्ब गयौ—३४०९।


धर
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखकर।
उ.—सुचही-पति पितु प्रिया पाइ पर धर सिर आप मनावो—सा. ९।


धर
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़कर, ग्रहण करके।
मुहा.- धर दबाना (दबोचना)— बलपूर्वक पकड़ कर अपने अधिकार में कर लेना। (२) तर्क या विवाद में हराना।

धर-पकड़ करे— जबरदस्ती।

धरई
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखता है, धरता है।
मुहा.- नहिं चित्त धइई— ध्यान नहीं रखता है। उ.— बीज बोइये जोइ अंत लोनिये सोइ समुजि यह बात नहिं चित्त धरई— १०।

गर्वै जिय धरई- मन में बहुत अभिमान रखता है। उ.— गगन सिखर उतर चढै गर्वे जिय धरई— २८६८।

धरक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़क)
भय, आशंका।


धरक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़क)
साहस।


धरकना
क्रि. अ.
(हिं. धड़कना)
(हृदय का) स्पंदन करना।


धरकि
क्रि. अ.
(हिं. धड़कना)
स्पंदन करके।


धरकि
प्र.
छतियाँ धरकि रही—आवेग आदि के कारण छाती धड़क रही है।
उ.— सेज रचि पचि साज्यौ सघन कुंज निकुंज चित चरनन लाग्यौ छतियाँ धरकि रही— २२३६।


धरकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धड़क)
धड़कन, धुकधुकी।
उ. — कछु रिस कछु नागर जिय धरकी—पृ. ३१७ (६८)।


धरके
क्रि. अ.
(हिं. धड़कना)
भय से धड़कने या स्पंदन करने लगे।
उ.—सूरदास प्रभ आइ गोकुल प्रगट भए, संतनि हरष, दुष्ट-जन-मन धरके—२०-३०।


धरकौ
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धड़क (अनु.)]
डर, भय।
उ.—माखन खान जात पर घर कौ। बाँधत तोहिं नैंकु नहिं धरकौ—९३१।


धरकौ
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धड़क (अनु.)]
आशंका, खटका।


धरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रखने, थामने, धारण करने आदि की क्रिया।


धरता
क्रि. स.
भूत
धारण करता है।


धरता
क्रि. स.
भूत
पकड़ता।


धरतिं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
आरोपित करती हैं, अंगीकार करती हैं।


धरतिं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करती है , स्थापित करती हैं।
उ.—मन ही मन अभिलाष करतिं सब हृदय धरतिं यह ध्यान—१०-२८२।


धरति
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखती है, सहारा लेती है।


धरति
प्र.
धरति न धीर—धीरज नहीं रखती, धैर्य न रख सकी।
उ.—पुत्र-कबंध अंक भरि लीन्हौ, धरति न इक छिन धीर—१-२९।


धरति
क्रि. स.
(हिं. धरना)
स्थित या स्थापित करती है।
उ.— कमल पर बजू धरति उर लाइ—२५५५।


धरति
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़ने का प्रयत्न करती हुई।
उ.—रोस कै कर दाँवरी लै फिरति घर घर धरति—२६६९।


धरती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरित्री)
धरती।


धरती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरित्री)
स्थावर संपत्ति, गाँव-गिराँव, धाम।
उ.—जौबन-रूप-राज-धन-धरती जानि जलद की छाहीं—२-२३।


धरणीपूर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र, सागर।


धरणीसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंगल।


धरणीसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नरकासुर।


धरणीसुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सीता जी।


धरत
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करता है।
उ.—अबिहित बाद-बिबाद सकल मत इन लगि भेष धरत—१-५५।


धरत
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखता है।
उ.—बान भीर सुजान निकसत धरत धरनी पाइ—सा. १८।


धरता
संज्ञा
पुं.
(सं. धरना)
देनदार, ऋणी।


धरता
संज्ञा
पुं.
(सं. धरना)
धर्मार्थ की गयी कटौती।


धरता
संज्ञा
पुं.
(सं. धरना)
कार्य-भार लेनेवाला।


धरता
यौ.
कर्ता-धरता— सब कुछ करने धरनेवाला।


धरती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरित्री)
संसार, जगत।


धरती
क्रि. स.
भूत
(हिं. धरना)
धारण करती।


धरती
क्रि. स.
भूत
(हिं. धरना)
स्थिर या स्थापित करती।


धरती
क्रि. स.
भूत
(हिं. धरना)
पकड़ती, थामती।


धरते
क्रि. स.
(हिं. धरना)
आरोपित करते, अवलंबन करते, अंगीकार करते।
उ.— सूर-स्याम तौ घोष कहातौ जो तुम इती निठुराई धरते—२७३८।


धरते
क्रि. स.
(हिं. धरना)
ग्रहण करते।


धरते
प्र.
देह धरते—अवतार लेते।
उ.—जौ प्रभु नर-देही नहीं धरते। देवै गर्भ नहीं अवतरते—११८६।


धरतौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरता, रखता।
मुहा.- पग धरतौ— चलता, आगे बढ़ता। उ.— मुख मृदु-बचन जानि मति जानहु, सुद्व पंथ पग धरतौ— १-२०३।


धरतौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़ता, हथियाता, ग्रहण करता।
उ.—जौ तू राम-नाम-धन धरतौ। अबकौ जन्म, आगिलौ तेरौ, दोऊ जन्म सुधरतौ—१-२९७।


धरधर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धराधर)
पृथ्वी को धारण करनेवाले।


धरधर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धराधर)
शेषनाग।


धरधर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धराधर)
पर्वत।


धरधर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धराधर)
विष्णु।


धरधर
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धड़धड़)
जलधारा के गिरने का शब्द।
उ.—बाजत सब्द नीर को धरधर—१०५७।


धरधरा
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
धड़कन, धकधकाहट।


धरधराना
क्रि. अ.
(हिं. धड़धड़ाना)
‘धड़धड़’ शब्द होना।


धरधराना
क्रि. स.
‘धड़धड़’ शब्द करना।


धरन
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धर, रख।
उ.— पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह-सिवार—१-९९।


धरन
प्र.
देह धरन—अवतार धारण करने की क्रिया या भाव, अवतार धारण करनेवाला।
उ.—भक्त हते देह धरन पुहुमी कौ भार हरन जनम-जनम मुक्तावन—१०-१५१।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
धारण करने या उठानेवाला उसकी क्रिया या भाव।
उ.—(क) बूड़तहिं ब्रज राखि लीन्हौं, नरहिं गिरिवर धरन—१-२०२। (ख) परसि गंगा भई पावन, तिहूँ पुर धर-धरन—।¨¨¨जासु महिमा प्रगट केवट, धोइ पग सिर धरन—१-३०८।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
रखने या स्थित करने की क्रिया या भाव।
उ.—मुरली अधर धरन सीखत हैं बनमाला पीताम्बर काछे—५०७।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
लकड़ी-लोहे की कड़ी, धरनी।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
गर्भाशय को जकड़नेवाली नस।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
गर्भाशय।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
टेक, हठ, जिद।


धरन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरणि)
धरती, जमीन।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
पकड़ना, थामना, ग्रहण करना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
रखना, स्थित या स्थापित करना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
पास या रक्षा में रखना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
पहनना, धारण करना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
आरोपित करना, अवलंबन करना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
आश्रय ग्रहण करना, सहायता के लिए घेरना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
किसी स्त्री को रखेली की तरह रखना।


धरना
क्रि. स.
(हिं. धारण)
गिरवीं या रेहन रखना।


धरना
संज्ञा
पुं.
कोई बात पूरी कराने के लिए अड़कर या हठ करके बैठना।


धरनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरणि)
पृथ्वी।
उ.—(क) धरनि पत्ता गिरि परे तैं फिर न लागै डार—१-८८। (ख) कागद धरनि, करै द्रुम लेखनि जल-सायर मसि घोरै—१-१२५। (ग) चलत पद-प्रतिबिंब मनि आँगन घुटरूवनि करनि। जलज-संपुट सुभग छबि भरि लेति उर जनु धरनि—१०-१०९।


धरनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरन)
टेक, हठ, अड़, जिद।
उ.— (क) एक अधार साधु संगति कौ रचि-पचि मति सँचरी। याहू सौंज संचि नहिं राखी अपनी धरनि धरी—१-१३०। (ख) सूर जबहिं आवतिं हम तेरैं तब तब ऐसी धरनि धरी री—। (ग) ज्यों चातक स्वातिहिं रट लावै तैसिय धरनि धरी-पृ.। (घ) ज्यों अहि डसत उदर नहिं पूरत ऐसी धरनि धरी —।


धरनिधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
पृथ्वी को धारण करनेवाला।


धरनिधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
कच्छप।


धरनिधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
शेषनाग।


थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गये।
उ.— आँखिनि अंध, स्त्रवन नहिं सुनियत, थाके चरन समेत— १-२९६।


थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थिर या अचल हो गये।
उ.— मेरे साँवरे जब मुरली अधर धरी।¨¨। चर थाके, अचल टरे—६२३।


थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
हार गये, सफल न हुए।
उ.— सूर गारूड़ी गुन करि थके, मंत्र न लागत थर तैं—७४४।


थाके
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
मंत्र-मुग्ध-से रह गये।
उ.—धरनि जीव जल-थल के मोहे नभ-मंडल सुर थाके—१७५५।


थाकै
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक जाय, क्लांत या श्रांत हो जाय।
उ. — अचला चलै, चलत पुनि थाकै, चिरंजीवि सो मरई—६-७८।


थाकौ
क्रि. अ.
(हिं. थकना)
थक गया।
उ.— हा करूनामय कुंजर टेग्यौ, रह्यौ नहीं बल, थाकौ—१-११३।


थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
थक गया।
उ. —थाके हस्त, चरनगति थाकी, अरू थाक्यौ पुरूषारथ—१-२८७।


थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
स्थिर या अचल हो गया।
उ. —रथ थाक्यो मानो मृग मोहे नाहिंन कहूँ चंद को टरिबो—२८६०।


थाक्यौ
क्रि. अ. भूत.
(हिं. थकना)
मुग्ध हो गये।
उ. —सुंदर बदन री सुख सदन स्याम को निरखि नैन मन थाक्यौ—२५४६।


थाट
संज्ञा
पुं.
(हिं. ठाट)
ढाँचा, पंजर।


दत्ती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सगाई पक्की होना।


दत्तेय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र, देवराज।


दत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धन।


दत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोना, स्वर्ण।


ददन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान देने की क्रिया।


ददरा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
छानने का कपड़ा, छन्ना।


ददा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दादा)
बड़ा भाई।
उ.—देखत यह बिनोद धरनीधर, मात पिता बलभद्र ददा रे—१०-१६०।


ददिऔर, ददिऔरा, ददियाल, ददिहाल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दादा+आलय)
दादा का कुल।


ददिऔर, ददिऔरा, ददियाल, ददिहाल
संज्ञा
पुं.
(हिं. दादा+आलय)
दादा का घर या स्थान।


ददोड़ा, ददोरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दाद)
चकत्ता।


धर-पकड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना + पकड़ना)
अपराधी या शत्रु वर्ग के व्यक्ति को पकड़ने की क्रिया या भाव।


धरम
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्म)
धर्म, कर्तव्य।


धरम
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्म)
धर्म-राज, यमराज।
उ.— (क) जीव, जल-थल जिते, वेष धरि धरि तिते अटत दुरगम अगम अचल भारे। मुसल मुदगर हनत, त्रिविध करमनि गनत, मोहि दंडत धरम-दूत हारे—१-१२०। (ख) आज रन कोपो भीम कुमार। कहत सबै समुझाय सुनो सुत-धरम आदि चित धार— सा. ७४।


धरम
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्म)
धर्मात्मा, धर्म की गति समझनेवाला।


धरमसार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धर्मशाला)
धर्मशाला।


धरमसार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धर्मशाला)
सदाव्रत।


धरमसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्मसुत)
धर्म के पुत्र युधिष्ठिर।
उ.—रही न पैज प्रबल पारथ की, जब तैं धरमसुत धरनी हारी—१-२४८।


धरमाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धर्म + आई (प्रत्य.)]
धार्मिकता।


धरमी
वि.
(सं. धर्म्मिन्)
धर्माचरण करनेवाला, धर्मात्मा।


धरमी
वि.
(सं. धर्म्मिन्)
किसी धर्म में विश्वास रखनेवाला।


धरनिधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि)
पर्वत।


धरनिपति
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणि + पति)
पृथ्वी के स्वामी।
उ.—रूद्रपति, छुद्रपति, लोकपति, वोकपति धरनिपति गगनपति, अगमबानी—१५२२।


धरनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरणि)
पृथ्वी, धरती।
उ.—बान भरि सुजान निकसत धरत धरनी पाइ— सा. ३८।


धरनी
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरना, रखना।
उ.— मेरी कैंती बिनती करनी। पहिलैं करि प्रनाम पाइनि परि, मनि रघुनाथ हाथ धरनी—९-१०१।


धरनीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणिधर)
पृथ्वी को धारण करनेवाले।


धरनीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणिधर)
कच्छप।


धरनीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणिधर)
शेषनाग।


धरनीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणिधर)
पर्वत।


धरनीधर
संज्ञा
पुं.
(सं. धरणिधर)
विष्णु या उनके अवतार।
उ.—गिरिधर, बज्रधर, मुरलीधर, धरनीधर, माधौ, पीतांबरधर—५७२।


धरनेत, धरनैत
संज्ञा
पुं.
[हिं. धरना + एत, ऐत (प्रत्य.)]
अड़ने या धरना देनेवाला।


धरवाना
क्रि. स.
(हिं. धरना का प्रे)
पकड़ाना।


धरवाना
क्रि. स.
(हिं. 'धरना' का प्रे.)
रखवाना।


धरवायौ
क्रि. स.
(हिं. धरवाना)
धराया, रखाया, अंगीकार कराया, अवलंबन दिया—।
उ.— माता कौं परमोधि, दुहुँनि धीरज धरवायौ—५८९।


धरषना
क्रि. अ.
(सं. धर्षण)
दबाना, मल डालना।


धरसना
क्रि. अ.
(सं. धर्षण)
डर जाना, दब जाना।


धरसना
क्रि.स
अपमानित करना।


धरसनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धर्षणी)
कुलटा स्त्री।


धरहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना + हर)
धर-पकड़, गिरफ्तारी।


धरहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना + हर)
बीच-बचाव।


धरहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना + हर)
रक्षा,बचाव।


धरहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना + हर)
धैर्य धीरज।


धरहरना
क्रि. अ.
(अनु.)
‘धड़-धड़’ शब्द करना।


धरहरा
संज्ञा
पुं.
(सं. धवलगृह)
मीनार, धौरहर।


धरहरि
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धरना + हर (प्रत्य.)=धरहर]
धरपकड़, गिरफ्तारी।


धरहरि
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धरना + हर (प्रत्य.)=धरहर]
बीच-बचाव, लड़ने-वालों को रोकने का काम।


धरहरि
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धरना + हर (प्रत्य.)=धरहर]
बचाने का काम, रक्षा।
उ.— (क) भीषम, द्रोन, करन, अस्थामा, सकुनि सहित काहू न सरी। महापुरूष सब बैठे देखत, केस गहत धरहरि न करी—१-२४९। (ख) कहा भीम के गदा धरैं कर, कहा धनुष धरैं पारथ। काहु न धरहरि करी हमारी, कोउ न आयौ स्वारथ—१-२५९। (ग) जब जमजाल पसार परैगौ हरि बिनु कौन करैगौ धरहरि —१-३१२।


धरहरिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरहरि)
बीच-बचाव करनेवाला।


धरहरिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरहरि)
बचाव या रक्षा करनेवाला।


धरहु
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरो, रखो।
उ.—उर ते सखी दूरि करू हारहिं कंकन धरहु उतारि—२६८२।


धरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी, धरती।
उ.— काँपन लागी धरा, पाप तैं ताढ़ित लखि जदुराई—१-२०७।


धरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
संसार, जगत।


धरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गर्भाशय।


धरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाड़ी।


धराइ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धर कर, धारण करके।
उ.—रंक चलै सिर छत्र धराइ—१-१।


धराइ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
शोध करा-कर।
उ.— मेरे कहैं बिप्रनि बुलाइ, एक सुभ घरी धराइ, बागे चीरे बनाइ, भूषन पहिरावौ—१०-९५।


धराई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धर + ई (प्रत्य.)]
पृथ्वी पर।
उ.— सुरपति पूजा मेटि धराई—१०१७।


धराई
क्रि. स.
(हिं. धराना)
रखायी, स्थापित की।


धराउर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरोहर)
थाती, अमानत।


धराऊ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धराना)
स्थित करानेवाला, रखानेवाला, देनेवाला।
उ.—भागि चलौ, कहि गयौ उहाँ तैं काटि खाइ रे हाऊ। हौं डरपौं, काँपौं अरू रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ—४८१।


धराऊ
वि.
(हिं. धरना + आऊ (प्रत्य.)]
मामूली से बहुत अच्छा, बहुमूल्य।


धराए
क्रि. स.
(हिं. ‘धरना’ का प्रे.)
स्थित कराये।


धराए
क्रि. स.
(हिं. ‘धरना’ का प्रे.)
रखाये।
उ.— मेरी देह छुटत जम पठए, जितक दूत घर मौं। लै लै ते हथियार आपने, सान धराए त्यौं —१-१५१।


धराक, धराका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धड़ाका)
‘धड़धड़’ शब्द।


धरातल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पृथ्वी।


धरातल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सतह।


धरातल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लंबाई चौड़ाई का गुणनफल।


धरात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंगल।


धरात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नरकासुर।


धरात्मजा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सीता जी।


धराधर, धराधान
संज्ञा
पुं.
(सं. धराधर)
शेषनाग जो पृथ्वी को धारण करता है।
उ.—उछरत सिंधु, धराधर काँपत, कमठ पीठ अकुलाइ—१०-६४।


धरापुत्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सीता जी।


धराये
क्रि. स.
(हिं. धराना)
रखवाये, स्थापित कराये।
उ.—मंगल कलश धराये द्वारे बंदनबार बँधाई—सारा.—२९९।


धरायो, धरायौ
क्रि. स.
(हिं. धराना)
धराया, रखाया, निर्धारित कराया।
उ.—(क) बहुरौ एक पुत्र तिन जायौ। नाम पुररुवा ताहि धरायौ—९-२। (ख) पहिलो पुत्र पुक्मिनी जायौ, प्रद्युम्न धरायौ-सारा. ६८९।


धरायो, धरायौ
क्रि. स.
(हिं. धराना)
रखवाया, धारण कराया।
उ.—गरुड़-त्रास तैं जौ ह्याँ आयौ। तौ प्रभु-चरन-कमल फन-फन प्रति अपनैं सीस धरायौ—५७३।


धरावत
क्रि. स.
(हिं. धरावना)
रखाते है, निर्धारित कराते है।
उ.—जो परि कृष्ण कूबरिहिं रीझे तो सोइ किन नाम धरावत—२२९३।


धरावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरावना)
धराने या रखाने की क्रिया या भाव।


धरावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरावना)
धराने-रखाने वाले।


धरावन
प्र.
देह धरावन— अवतार लेनेवाले।
उ.—दीन-बन्धु असरन के सरन, सुखनि जसुमति के कारन देह धरावन—१०-२५१।


धरावना
क्रि. स.
(हिं. धराना)
पकड़ाना, थमाना।


धरावना
क्रि. स.
(हिं. धराना)
स्थित कराना, रखाना,।


धराधर, धराधान
संज्ञा
पुं.
(सं. धराधर)
विष्णु या उनके श्रीकृष्ण आदि अवतार।
उ.—सूर स्याम गिरिधर धराधर हलधर यह छवि सदा थिर रहौ मेरैं जियतौ—३७३।


धराधरन-धर-रिपु
संज्ञा
पुं.
(सं. धरा (=पृथ्वी) + धरन (=धारण करनेवाला, शेषनाग) + धर (शेषनाग को धारण करनेवाला, शिवजी) + रिपु (शिवजी का शत्रु काम )
कामदेव।
उ.—धराधरनधर-रिपु तन लीनो कहो उदधि-सुत बात—सा. ८।


धराधार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शेषनाग।


धराधारधारी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी।


धराधिपति
संज्ञा
पुं.
(सं. धरा + अधिपति)
राजा।


धराधीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा।


धराना
क्रि. स.
(हिं. 'धरना' का प्रे.)
पकड़ाना, थमाना।


धराना
क्रि. स.
(हिं. 'धरना' का प्रे.)
रखाना, स्थित कराना।


धराना
क्रि. स.
(हिं. 'धरना' का प्रे.)
ठहराना, निश्चित कराना।


धरापुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंगल ग्रह।


धरावना
क्रि. स.
(हिं. धराना)
ठहराना, निश्चित करना।


धराशायी
वि.
(सं. धराशायिन्)
जमीन पर गिरा या पड़ा हुआ।


धरासुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मंगल ग्रह।


धरासुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सीताजी।


धरासुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण (देवता)


धरास्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का अस्त्र।


धराहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुर + धर)
मीनार, धौराहर।


धराहिं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरें, रखें।
उ.—यह लालसा अधिक मेरै जिय जो जगदीस कराहिं। मो देखत कान्हर इहिं आँगन, पग द्वै धरनि धराहिं—१०-७५।


धराहीं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
आरोपित करें, अवलंबन करें।
उ.—अबला सार ज्ञान कहा जानै कैसैं ध्यान धराहीं—३३१२।


धरि
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करके, (रुप) धर कर, रख कर।
उ.—(क) भक्तबछल बपु धरि नरकेहरि, दनुज दह्यौ, उर दरि, सुर- साँईं—१-६। (ख) रहि न सके नरसिंह रुप धरि, गहि कर असुर पछारयौ—१-१०९।


धरिहै
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करेगा, ग्रहण करेगा।
उ.— भऐं अस्पर्स देव-तन धरिहै—८-२।


धरिहौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरोगे, स्थापित करोगे, रखोगे।
उ.— या बिधि जौ हरि-पद उर धरिहौ। निस्संदेह सूर तौ तरिहौ—१-३४२।


धरी
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण की, स्थिर की, रखी।
उ.— (क) ऐसी को करी अरू भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धरी लाजैं—१-५। (ख) सदा सहाइ करी दासनि की जो उर धरी सोइ प्रति-पारी—१-१६०।


धरी
क्रि. स.
(हिं. धरना)
बसायी, स्थापित की।
उ.— मनसा-बाचा कर्म अगोचर सो मूरति नहिं नैन धरी—१-११५।


धरी
क्रि. स.
(हिं. धरना)
ठहरायी, स्थिर की।
उ.— तब रिषि कृपा ताहि पर धरी—९-३।


धरी
प्र.
आनि धरी—पकड़ लाया, आकर पकड़ा।
उ.—सभा मँझार दुष्ट दुस्सासन द्रौपदि आनि धरी—१-१६।


धरी
प्र.
मौन धरी—चुप्पी साधी, विरोध नहीं किया।
उ.—अर्जुन भीम महाबल जोधा इनहूँ मौन धरी—१-२५४।


धरी
प्र.
मन धरी—विचार किया, निश्चय किया, इच्छा की।
उ.—कृपा तुम करी मैं भेंट कौं मन धरी नहीं कछु बस्तु ऐसी हमारैं—४११।


धरी
प्र.
देह धरी—अवतार लिया। शरीर बढ़ाया।
उ.—तब वह देह धरी जोजन लौं—१०-५३।


धरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
रखैल, रखेली स्त्री।


दध, दधि
संज्ञा
पुं.
(सं. दधि)
दही, जमाया हुआ दूध।


दध, दधि
संज्ञा
पुं.
(सं. दधि)
वस्त्र, कपड़ा।


दध, दधि
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि)
समुद्र, सागर।


दधसार
संज्ञा
पुं.
(हिं. दधि+सार)
मक्खन।


दधिकाँदौ
संज्ञा
पुं.
(सं. दधि+हिं. काँदौ=कीचड़)
जन्माष्टमी के समय का एक उत्सव जिसमें लोग परस्पर हल्दी मिला हुआ दही छिड़कते हैं।
उ.—जसुमति भाग-सुहागिनी (जिनि) जायौ हरि सौ पूत। करहु ललन की आरती (री) आरु दधिकाँदौ सूत—१०-४०।


दधिकाँदौ
संज्ञा
पुं.
(सं. दधि+हिं. काँदौ=कीचड़)
दही की कीचड़।
उ.—सींके छोरि, मारि लरिकनि कौं, माखन-दधि सब खाई। भवन मच्यौ दधिकाँदौ, लरिकनि रोवत पाए जाइ—१०-३२८।


दधिकूर्चिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
फटे हुए दूध का सार भाग जो पानी निकलने पर बचता है, छेना।


दधिचार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मथानी।


दधिज, दधिजात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खन।


दधिज, दधिजात
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि+ज, जात)
चंद्रमा।
उ.—देखौ माई दधिसुत् में दधिजात १०-१७२।


धरि
क्रि. स.
(हिं. धरना)
जबरदस्ती पकड़ कर।
उ.— जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देख घिनै-हैं। घर के कहत सबारे काढ़ौ, भूत होहि धरि खैहै—१-८६। (ख) बालक-बच्छ लै गयौ धरि—४८५।


धरि
क्रि. स.
(हिं. धरना)
स्थपित करके, जमाकर, ठहराकर।
उ.— सतगुरू कौ उपदेस हृदय धरि जिन भ्रम सकल निवार्यौ—१-३३६।


धरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरन)
टेक, आश्रय, सहारा, रक्षा का उपाय।
उ.— अब मोकौं धरि रही न कोऊ तातैं जाति मरी—१-२५४।


धरिऐ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
अंगीकार कीजिए, अवलंबन कीजिए।
उ.— सरन आए की प्रभु, लाज धरिऐ—१-११०।


धरित्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धरती, पृथ्वी।


धरिबो
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
लेने या रखने की क्रिया या भाव।
उ.— दूरि न करहि बीन धरिबो—२८६०।


धरिया
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरना, रखना, स्थित करना।
उ.— नवल किसोर नवल नागरिया। अपनी भुजा स्याम-भुज ऊपर, स्याम-भुजा अपनैं उर धरिया—६८८।


धरिहैं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
स्त्री को रखेली की भाँति रखेंगे।
उ.— राधा को तजिहैं मनमोहन कहा कंस दासी धरिहैं—२६७७।


धरिहैं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
लेंगे, धारण करेंगे।
उ.— कनक-दंड आपुन कर धरिहैं—११६१।


धरिहै
क्रि. स.
(हिं. धरना)
अंगीकार करे, सुने, स्वीकार करे, माने।
उ.—भए अपमान उहां तू मरिहै। जौ मम बचन हृदय नहिं धरिहै—४-५।


धरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. ढार)
कान का एक गहना।


धरे
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण किये हुए, रखे हुए, पकड़े हुए।
उ.— चक्र धरे बैकुंठ तैं धाए, वाकी पैज सरै—१-८२। (ख) खड़ग धरे आवै तुम देखत, अपनैं कर छिन माहँ पछारै—१०-१०।


धरे
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़े हुए, पकड़ कर।
उ.— वह देवता कंस मारैगौ केस धरे धरनी घिसियाइ—५३१।


धरे
प्र.
मन धरे—ध्यान लगाये, चित्त रमाये।
उ.—(क) बिषयी भजे, बिरक्त न सेए, मन धन-धाम धरे—१-१९८। (ख) सूरदास स्वामी मनमोहन, तामै मन न धरे—४८३।


धरे
प्र.
वेष धरे—वेश बनाये, सजे-सजाये।
उ.—सुन्दर बेष धरे गोपाल—४७४।


धरे
प्र.
दोष धरे—दोष लगाये—
उ.—सूरदास गथ खोटो काहे पारखि दोष धरे—पृ. ३३१ (५)।


धरे
प्र.
देह धरे को—जन्म लेने का।
उ.—देह धरे को यह फल प्यारी—१२२९।


धरेल, धरेली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना)
रखैल, रखेली।


धरेला
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरना)
वह प्रेमी जिसे बिना विवाह के ही पति-रूप में ग्रहण कर लिया गया हो।


धरैं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरने से, पकड़ने या ग्रहण करने से।
उ.— कहा भीम के गदा धरैं कर, कहा धनुष धरैं पारथ—१-२५९।


धरैं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करते हैं।


धरैं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखते हैं।
उ.— इक दधि गोरोचन-दूब सबकैं सीस धरैं—१०-२४।


धरै
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरता है, रखता है।
उ.—कौन बिभीषन रंक-निसाचर, हरि हँसि छत्र धरै—१-३५।


धरै
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करता है, आरोपित करता है, अंगीकर करता है।
उ.—(क) ब्रज-जन राखि नंद कौ लाला, गिरिधर बिरद धरै—१-३७।


धरै
क्रि. स.
(हिं. धरना)
ध्यान लगाये।
उ.— जो घट अंदर हरि सुमिरै। ताकौ काल रूठि का करिहै, जो चित चरन धरै—१०-८२।


धरैगौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरेगा, रखेगा, धारण करेगा।
उ.—जौ हरि-ब्रत निज उर न धरैगौ। तौं को अस त्राता जु अपन करि, कर कुठावँ पकरैगौ—१-७५।


धरैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरना)
धरनेवाला, रखनेवाला
उ.—भक्ति-हेत जसुदा के आगैं, धरनी चरन धरैया—१०-१३१।


धरैया
संज्ञा
पुं.
पकड़नेवाला।


धरैहौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखोगे, धरोगे।
मुहा.- नाम धरैहौ— बदनामी कराओगी। उ.— तुम हौ बड़े महर की बेटी कुल जनि नाम धरैहौ— १४९८।


धरो
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखो।


धरौवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धरना)
बिना विवाह के स्त्री रख लेने की चाल या रीति।


धर्त्ता
संज्ञा
पुं.
(हिं. धतृ)
धारण करनेवाला।


धर्त्ता
संज्ञा
पुं.
(हिं. धतृ)
कोई काम या दायित्व अपने ऊपर लेनेवाला।


धर्त्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरती)
पृथ्वी।


धर्त्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरती)
संसार।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो धारण किया जाय, प्रकृति, स्वभाव।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पारलौकिक सुख के लिए किया गया शुभ कर्म।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उचित व्यवहार या कर्म, कर्तव्य।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुकृत, सदाचार, सत्कर्म, पुण्य।
मुहा.- धर्म खाना— धर्म की शपथ खाना। धर्म के विरूद्ध व्यवहार करना। स्त्री का सतीत्व नष्ट करना।

धर्म लगती (से) कहना— सत्य-सत्य बात कहना।

धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में विशेष रूप का विश्वास और आराधना की प्रणाली-विशेष, मत, संप्रदाय, पंथ।
उ.— धर्म-कर्म अधिकारिनि सौं कछु नाहिंन तुम्हरौ काज—१-२१५।


धरो
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़ो।


धरोड़, धरोहर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना, धरोहर)
थाती, अमानत।


धरौं
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरता हूँ, रखता हूँ, रखूँ।
उ.— छहौं रस जौ धरौं आगै, तऊ न गंध सुहाइ—१-५६।


धरौं
प्र.
भरि धरौं अँकवारि—छाती से लगाकर रखूँ, पकड़कर छाती से लगा लूँ।
उ.—कोउ कहति, मैं देखि पाऊँ, भरि धरौं अँकवारि—१०-२७३।


धरौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़ो।
उ.— भरत पंथ पर देख्यौ खरौ। वाकै बदले ताकौं धरौ—५-४।


धरौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरो, रखो अपनाओ।


धरौ
प्र.
चित धरौ विचारो, सोचो।
उ.—(क) हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ—१-२२०।


धरौ
प्र.
ध्यान करो।
उ.—हरि-चरनारबिंद उर धरौ—१-२२४।


धरौ
प्र.
मेरी इच्छा धरौ—मेरी चाहना रखते हो, मुझे पाना चाहते हो।
उ.—जौ तुम मेरी इच्छा धरौ। गंधर्बनि कैं हित तप करौ—९-२।


धरौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
स्त्री को बिना विवाह के पत्नी की तरह रख लो।
उ.— ब्याहौ बीस धरौ दस कुबजा अंतहु स्याम हमारे—३३४२।


धर्मचक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म का समूह।


धर्मचक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गौतम बुद्ध की धर्म-शिक्षा।


धर्मचक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बुद्ध देव।


धर्मचर्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धर्म का आचार-व्यवहार।


धर्मचारी
वि.
(सं. धर्मचारिन्)
धर्म-कर्म करनेवाला।


धर्मचिंतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-संबंधी विचार।


धर्मज
वि.
(सं.)
धर्म से उत्पन्न।


धर्मज
संज्ञा
पुं.
धर्मपत्नी से उत्पन्न प्रथम पुत्र।


धर्मज
संज्ञा
पुं.
धर्मराज के पुत्र युधिष्ठिर।


धर्मज
संज्ञा
पुं.
नर-नारायण।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीति, न्याय व्ववस्था, कानून।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उचित-अनुचित का विभेद करनेवाली न्यायबुद्धि, विवेक, ईमान।
उ. कहयौ तुम बाँटि पर हमैं बिस्वास है, देहु बाँटि जो धर्म होई —८-८।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मराज, यमराज।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-शास्त्र।
उ.— धर्म कहैं, सर-सयन गंग-सुत तेतिक नाहिं सँतोष—१-२१५।


धर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह गुण या वृत्ति जो उपमेय और उपमान में समान हो (अलंकारशास्त्र)।


धर्म-अँकुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्म + अंकुर)
धर्म रूपी अँखुआ या कल्ला।
उ.—अदभुत राम नाम के अंक। धर्म-अँकुर के पावन द्वै दल, मुक्ति-बधू-ताटंक—१-९०।


धर्म-कर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह कर्म जिसका करना आवश्यक कहा गया हो।


धर्मक्षेत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुरूक्षेत्र।


धर्मक्षेत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भारतवर्ष।


धर्मग्रंथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह पुस्तक जिसमें आचार-व्यवहार और पूजा-उपासना आदि विषयों की शिक्षा या चर्चा हो।


धर्मजीवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म कर्म कराकर जीविका अर्जित करनेवाला ब्राह्मण।


धर्मज्ञ
वि.
(सं.)
धर्म का तत्व समझनेवाला।


धर्मतः
अव्य.
(सं.)
धर्म का ध्यान रखत्ते हुए।


धर्मदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुद्ध धर्मबुद्धि से निस्वार्थ दिया जानेवाला दान।


धर्मदार, धर्मदारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धर्मपत्नी।


धर्मद्रवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा नदी।


धर्मधक्क
संज्ञा
पुं.
(हिं. धर्म + हिं. धक्का)
धर्म के लिए सहा गया कष्ट।


धर्मधक्क
संज्ञा
पुं.
(हिं. धर्म + हिं. धक्का)
व्यर्थ का कष्ट।


धर्मध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धार्मिकों-सा वेश बनाकर ठगने वाला, पाखंडी।


धर्मनाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


धर्मनिष्ट
वि.
(सं.)
धर्म में श्रद्धा रखनेवाला।


धर्मनिष्टा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धर्म में श्रद्धा या आस्था।


धर्मपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मात्मा।


धर्मपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वरूण।


धर्मपत्नी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विवाहिता स्त्री।


धर्मपत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गूलर का वृक्ष।


धर्मपरिणाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक धर्म के पश्चात् दूसरे निश्चित धर्म की प्राप्ति।


धर्मपाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म का पालन करनेवाला।


धर्मपीठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म का मुख्य स्थान जहाँ धर्म की व्यवस्था मिल सके।


धर्मपीठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काशी।


धर्मभीरु
वि.
(सं.)
जो अधर्म से डरे।


धर्मयुग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सत्ययुग।


धर्मयुद्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह यद्ध जिसमें किसी तरह का अन्याय या नियम-भंग न हो।


धर्मयुद्ध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म की रक्षा के लिए किया जानेवाला युद्ध।


धर्मराइ
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्म + हिं. राय)
धर्मराज, यमराज।
उ.—बिदुर सु धर्मराइ अवतार—३-५।


धर्मराज, धर्मराय
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्मराज)
धर्मपालक, राजा।


धर्मराज, धर्मराय
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्मराज)
युधिष्ठिर।


धर्मराज, धर्मराय
संज्ञा
पुं.
(सं. धर्मराज)
यमराज।


धर्मलुप्तोपमा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह उपमा जिसमें उप-मेय-उपमान के समान गुण का कथन न हो।


धर्मवाहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मराज का वाहन, भैसा।


दधि-तिय
संज्ञा
स्त्री.
[सं. उदधि (=समुद्र) + स्त्री (समुद्र की स्त्री)]
गंगा।
दधि-सुत में दधि-तिय दीपति सी मृदु मुख तें मुसकात—सा. ६२।


दधियूप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का पकवान।


दधिमंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दही का पानी।


दधिमंडोद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दही का समुद्र।


दधि-मुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक बंदर जो सुग्रीव का मामा और मधुवन का रक्षक था।


दधिसागर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दही का समुद्र।


दधिसार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खन।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि + सुत)
कमल।
उ.—देखौ माई दधिसुत् में दधिजात १०-१७२।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि + सुत)
मुक्ता, मोती।
उ.—दधिसुत जामें नेद-दुवार १०-१७३।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि + सुत)
चंद्रमा।
ड—(क) मानिनि अजहूँ छाड़ो मान। तीन बिवि दधिसुत उतारत रामदल जुत सान-सा. ८१। (ख) दधि-सुत में दधि-तिय दीपति सी मृदु-मुख ते मुसकात-सा. ६२। (ग) राधा दधिसुत क्यों न दुरावति—सा. उ. ३६।


धर्मपीड़ा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धर्म के विरूद्ध आचरण।


धर्मपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा पांडु की पत्नी कुंती के गर्भ से उत्पन्न धर्मदेव के पुत्र युधिष्ठिर।
उ.—धर्मपुत्र, तू देखि विचार—१-२६१।


धर्मपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर-नारायण।


धर्मपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह पुत्र जिसे धर्मानुसार ग्रहण किया गया हो।


धर्मपुरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
यमलोक।


धर्मपुरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
न्यायालय।


धर्मप्राण
वि.
(सं.)
धर्म को प्राण से भी प्रिय समझनेवाला, बहुत धर्मात्मा।


धर्मबुद्धि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भले-बुरे का विचार।


धर्मभाणक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कथा सुनानेवाला।


धर्मभिक्षुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जिसने केवल धर्म-पालन के लिए भिक्षा लेना आरंभ किया हो।


धर्मविवेचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-संबंधी विचार।


धर्मविवेचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-अधर्म का विचार।


धर्मवीर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो धर्म करने में साहसी हो।


धर्मशाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह मकान जो यात्रियों के निःशुल्क रहने के लिए बनवाया गया हो।


धर्मशाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
न्यायालय।


धर्मशास्त्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह ग्रंथ जिसमें मानव-समाज-विशेष के आचार-व्यवहारों का उल्लेख हो।


धर्मशास्त्री
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मशास्त्र का पंडित।


धर्मशील
वि.
(सं.)
धर्मानुसार कर्म करनेवाला।


धर्मशीलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धर्माचरण का भाव।


धर्मसंकट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐसी स्थिति जिसमें हर तरह से कुछ न कुछ हानि या संकट हो।


धर्माचार्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-शिक्षक।


धर्मात्मा
वि.
(सं. धर्मात्मन्)
धर्म करनेवाला।


धर्माधिकरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
न्यायालय।


धर्माधिकारी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-अधर्म का निर्णायक।


धर्माधिकारी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दान का प्रबंधक या अध्यक्ष।


धर्माध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्माधिकारी।


धर्मारण्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तपोवन।


धर्मार्थ
क्रि. वि.
(सं.)
धर्म या परोपकार के लिए।


धर्मावतार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत धर्मात्मा।


धर्मावतार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म-अधर्म का निर्णायक।


धर्मसभा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह सभा जिसमें धर्मसंबंधी विचार हो।


धर्मसभा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
न्यायालय।


धर्मसारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धर्मशाला)
धर्मशाला।
उ.— राजा इक पंडित पौरि तुम्हारी।¨¨¨¨। हूँठ पैंड दै बसुधा हमकौ तहां रचौं धर्मसारी (ध्रमसारी)—८-१४।


धर्मसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मराज के पुत्र युधिष्ठिर।


धर्म-सुधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म रूपी संपत्ति या निधि।
उ.— पाप उजीर कह्यो सोइ मान्यौ, धर्म-सुधन लुटयौ—१-६४।


धर्मसुवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्मराज के पुत्र युधिष्ठिर।
उ.—सूरस्याम मिलि धर्मसुवन-रिपु ता अवतारहिं सलिल बहावै—सा. उ. २१।


धर्मसेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेतु की तरह धर्म को धारण— धर्म का निर्वाह— करनेवाला।
उ.— धर्मसेतु ह्वै धर्म बढ़ायौ भुवि को धारण कीन्हो—सारा. ३४६।


धर्मस्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
न्यायकर्त्ता, न्यायाधीश।


धर्माध
वि.
(सं.)
जो धर्म के नाम पर उचित अनुचित सभी कार्य करने को तत्पर हो।


धर्मा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म, नीति।
उ.— यज्ञ करत बैरौचन कौ सुत, वेद-बिहित-बिधि-कर्मा। सो छलि बाँधि पताल पठायौ, कौन कृपानिधि धर्मा—१-१०४।


धरयौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
निर्धारित या निश्चित किया।
उ.—बिप्र बुलाइ नाम लै बूझयौं रासि सोधि इक सुदिन धरयौ—१०-८८।


धरयौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
पकड़ा, थामा, रोका।
उ.— आगै हरि पाछैं श्रीदामा, धरयौ स्याम हँकारि—१०-२१३।


धरयौ
प्र.
धरयौ रहै—रखा रहता है।
उ.—मेरे कुँवर कान्ह बिनु सब कुछ वैसेहि धरयौ रहि जैहै—२७११।


धरयौ
प्र.
धरयौ रहि जैहै—रखा रह जायेगा, पड़ा रह जायेगा।
उ.—यह व्यापार तुम्हारौ ऊधौ ऐसेहिं धरयौ रहि जैहै—३००५।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अविनय, धृष्टता।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
असहन-शीलता।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अधीरता।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अशीलता।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दबाव, बंधन, रोक।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिंसा।


धर्मावतार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
युधिष्ठिर।


धर्मासन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
न्यायाधीश का आसन।


धर्मिणी
वि.
(सं.)
धर्म करनेवाली।


धर्मिष्ट
वि.
(सं.)
धर्म में श्रद्धा रखनेवाला।


धर्मी
वि.
(सं. धर्मिन्)
जिसमें धर्म हो।


धर्मी
वि.
(सं. धर्मिन्)
धार्मिक, धर्म करनेवाला।


धर्मी
वि.
(सं. धर्मिन्)
धर्म का अनुयायी।


धर्मी
संज्ञा
पुं.
धर्म का आधार।


धर्मी
संज्ञा
पुं.
धर्मात्मा।


धर्मीपुत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाटक का अभिनेता।


धर्मीले
वि.
(हिं. धर्मी)
धर्मात्मा, पुण्यात्मा।
उ.— मधुबन के सब कृतज्ञ धर्मीले —३०५५।


धर्मोन्मत्त
वि.
(हिं. धर्म + उन्मत)
जो धर्म के नाम पर उचित-अनुचित, सभी कुछ कर सके।


धर्मोपदेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म की शिक्षा या उपदेश।


धर्मोपदेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म की व्यवस्था।


धर्मोपदेशक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धर्म की शिक्षा देनेवाला।


धर्मोपाध्याय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुरोहित।


धर्म्य
वि.
(सं.)
जो धर्म के अनुसार हो।


धरयौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण किया, उठाया।
उ.— ग्वालनि हेत धर्यौ गोबर्धन, प्रगट इंद्र कौ गर्ब प्रहारयौ—१-१४।


धरयौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखा, निश्चित किया।
उ.— (क) पतित-पावन हरि बिरद तुम्हारौ कौनैं नाम धरयौ—१-३३। (ख) नाम सुद्युम्न ताहि रिषि धरयौ—९-२। (ग) गोपिन नावँ धरयौ नवरंगी—२६७५।


धरयौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखा, स्थापित किया।
उ.—दच्छ-सीस जो कुंड मैं जरयौ। ताके बदलैं अज-सिर धरयौ—४-५।


धर्षित
वि.
(सं.)
अपमानित।


धर्षित
वि.
(सं.)
पराजित।


धर्षी
वि.
(सं. धर्षिन्)
अपमान करनेवाला।


धर्षी
वि.
(सं. धर्षिन्)
हरानेवाला।


धर्षी
वि.
(सं. धर्षिन्)
नीचा दिखानेवाला।


धव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पति, स्वामी।


धव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुरूष।


धवनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धमनी)
धौंकनी, भाथी।


धवर
वि.
(सं. धवल)
सफेद, उजला।


धवरहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुर + धर)
मीनार, धौराहर।


धर्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपमान।


धर्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दमन करनेवाला।


धर्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपमान करनेवाला।


धर्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सतीत्व हरण करनेवाला।


धर्षक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभिनय करनेवाला।


धर्षकारी
वि.
(सं. धर्षकारिन्)
दमन करनेवाला।


धर्षकारी
वि.
(सं. धर्षकारिन्)
अपमान या तिरस्कार करनेवाला।


धर्षकारिणी
वि.
(सं.)
व्यभिचारिणी।


धर्षण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपमान।


धर्षण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
असहनशीलता।


धवरा
वि.
(सं. धवल)
उजला, सफेद।


धवराहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुर + धर)
मीनार, धौराहर।


धवरी
वि.
स्त्री.
(सं. धवल)
सफेद, उजली।
उ.—कब-हुँक लै लै नाउ मनोहर धवरी धेनु बुलावते—२७३५।


धवरी
संज्ञा
स्त्री.
सफेद रंग की गाय।


धवल
वि.
(सं.)
सफेद, उज्जवल।
उ.—धवल बसन मिल रहे अंग में सूर न जानो जात—सा. ७६।


धवल
वि.
(सं.)
निर्मल, स्वच्छ।


धवल
वि.
(सं.)
सुंदर।


धवलगिरि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिमालय की एक चोटी।


धवलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सफेदी, उजलापन।


धवलत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सफेदी, उज्जवलता।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि + सुत)
जालंधर दैत्य।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. उदधि + सुत)
विष, जहर।
उ.—नहिं बिभूति दधि-सुत न कंठ दइ मृगमद चदंन चरचित तन।


दधिसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खन।
उ.—गिरि गिरि परत बदन तैं उर पर हैं दधि-सुत के बिंदु। मानहुँ सुभग सुधाकन बरसत प्रिय-जन आगम इंदु—१०-२५३।


दधिसुत—अरि-भष-सुत-सुभाव
संज्ञा
स्त्री.
[सं उदधि (=समुद्र) + सुत (समुद्र का पुत्र, चंद्रमा) + अरि (=चंद्रमा का शत्रु राहु) + भष (=राहु का भक्षण, सुर्य) +सुत (=सूर्य का पुत्र, कर्ण) + सुभाव (=कर्ण का स्वभाव 'दानी' होना ; उर्दू में 'दानी' का अर्थ होता है सखी)]
सखी, सहेली।
उ.—दधिसुत-अरि-भष-सुत-सुभाव चल तहाँ उताइल आई—सा. ५७।


दधिसुत-गृह
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (उदधि=समुद्र) + सुत (=समुद्र का सुत, अमृत) + गृह (=अमृत का घर अर्थात् ऒठ]
अधर, ऒठ।
उ.—बिप्र बिचित्र रेख दधि-सुत गृइ रेसम छद घन ऊपर आज—सा. ६६।


दधिसुत-(धर) धरन-रिपु
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (उदधि=समुद्र) + सुत (=समुद्र का पुत्र, चंद्रमा) + धर (=चंद्रमा को धारण करनेवाला, महादेव) + रिपु (=महादेव का शत्रु, कामदेव)]
कामदेव, मदन।
उ.—(क) रजनिचरगुन जानि दधि-सुत-धरन रिपु हित चाव—सा. १। (ख) दधिसुत धर-रिपु सहे सिलीमुष सुख सब अंग नसायौ—सा. ४६।


दधिसुत-धर-रिपु-पिता
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (उदधि=समुद्र) + सुत (समुद्र का पुत्र, चंद्रमा) + धर (=चंद्रमा को धारण करनेवाला, महादेव) + रिपु=महादेव का शत्रु, कामदेव) +पिता (=कामदेव के पिता श्रीकृष्ण के पत्र थे)]
श्रीकृष्ण।
उ.—दधि सुत-धर-रिपु-पिता जानि मन पाछे आयो मोरे—सा. १००।


दधि-सुत-बाहन
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (=उदधि=समुद्र) + सुत (समुद्र का पुत्र, चंद्रमा) + बाहन (=चंद्रमा का बाहन=मृग)]
मृग।
उ.—दधि-सुत-बाहन मेखला लेके बैठि अनईस गनोरी—सा. उ. ५२।


दधि-सुत-सुत
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (=उदधि=समुद्र) + सुत (=समुद्र या जल का पुत्र, कमल) + सुत (=कमल का पुत्र, ब्रह्मा)]
ब्रह्मा।
उ.—आजु चरित नँद-नंदन सजनी देख। कीनो दधि-सुत-सुत से सजनी सुन्दर स्याम सुभेष—सा. ७५।


दधि-सुत-सुत-पतिनी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. दधि (=उदधि=समुद्र) + सुत (समुद्र या जल का पुत्र। कमल) + सुत (कमल से उत्पन्न ब्रह्मा) + पत्नी (ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती=गिरा=वाणी)]
वाणी, बोली, वचन।
उ.—लखि बृजचंद्र चंद्र मुख राधे। दधि-सुत-सुत-पतनी न निकासत दिन-पति-सुत-पतिनी प्रिय बाधे- सा. ६।


धवलिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उज्जवलता।


धवलिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सफेदी।


धवली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सफेद गाय।


धवलीकृत
वि.
(सं.)
जो सफेद किया गया हो।


धवलीभूत
वि.
(सं.)
जो सफेद हुआ हो।


धवलोत्पल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुमुद।


धवा
संज्ञा
पुं.
(सं. धव)
पति।


धवा
संज्ञा
पुं.
(सं. धव)
पुरूष।


धवाए
क्रि. स.
(हिं. धवाना)
दौड़ाए।
उ.— तिनके काज अहीर पठाए। बिलम करहु जिनि तुरत धवाए—१०-२१।


धवाणक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु।


धवाना
क्रि. स.
(हिं. धाना का प्रे.)
दौड़ाना।


धस
संज्ञा
पुं.
(हिं. धँसना)
डुबकी, गोता।


धसक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धसकना)
डाह, ईर्ष्या।


धसकना
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
नीचे को खसक जाना।


धसकना
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
डाह या ईर्ष्या करना।


धसका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धसक)
शोक आदि का आघात।


धसना
क्रि. अ.
(सं. ध्वंसन)
नष्ट होना, मिटना।


धसना
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
नीचे खसकना या दबना।


धसनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसन)
धँसने की क्रिया या ढंग।


धसमसाना
क्रि. अ.
(हिं. धसना)
धरती में धँसना।


धवलना
क्रि. स.
(सं. धवल)
उजालना, उज्जवल करना, चमकाना, निखारना।


धवलपक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुक्ल पक्ष।


धवलपक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हंस।


धवलांग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हंस।


धवला
वि.
स्त्री.
(सं. धवल)
सफेद, उजली।


धवला
संज्ञा
स्त्री.
सफेद रंग की गाय।


धवला
संज्ञा
पुं.
सफेद रंग का बैल।


धवलाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धवल + आई)
सफेदी।


धवलागिरि
संज्ञा
पुं.
(सं. धवल + गिरि)
हिमालय की एक प्रसिद्ध चोटी।


धवलित
वि.
(सं.)
जो साफ किया गया हो।


धा
वि.
धारण करनेवाला।


धा
प्रत्य.
तरह, भाँति, प्रकार।


धा
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
तबले का एक बोल।


धा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाय)
धाय, दाई,।


धा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धव)
पति, स्वामी।


धा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धव)
पुरूष।


धाइ
क्रि. स.
(हिं. धाना)
दौड़कर, भाग कर।
उ.— (क) पाइ पियादे धाइ ग्राह सौं लीन्हौ राखि करी—१-१६। (ख) जोग को अभिमान करिहै ब्रजहिं जैहै धाइ—२९१४।


धाइ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाय)
धाय, दाई।


धाई
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ पड़ी, चल दी।
उ.— इतनी सुनत कुंति उठि धाई, बरषत लोचन नीर—१-२९।


धाई
अव्य.
दौड़कर।
उ.—पहुँचे आइ निकट रघुबर कैं, सुग्रीव आयौ धाई—९-१०२।


धसाऊ
संज्ञा
(हिं. धँसना)
धँसने की क्रिया, भाव या ढंग।
उ.— मथि समुद्र सुर असुरनि कैं हित मंदर जलधि धसाऊ—१०-२२१।


धसान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धँसान)
धँसने की क्रिया या ढग।


धसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
गड़ाना, चुभाना।


धसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
प्रवेश कराना।


धसाना
क्रि. स.
(हिं. धँसना)
नीचे की ओर बैठाना।


धसाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. धँसाव)
धँसने की क्रिया या भाव।


धसि
क्रि. अ.
(हिं. धँसना)
डूबकर, गोता मारकर।


धसि
प्र.
धसि लीजै—डूब मरिए।
उ.—कै दहिए दारुन दावानल जाइ जमुन धसि लीजै—२८६४।


धसी
क्रि. अ.
(हिं. धसना)
जल में प्रविष्ट हुई।


धाँधना
क्रि. स.
(देश.)
बंद करना, उड़काना, भेड़ना।


धाँधना
क्रि. स.
(देश.)
बहुत ज्यादा खा लेना।


धाँधल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
उधम, उपद्रव।


धाँधल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
छल-कपट, धोखा।


धाँधल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
बहुत जल्दी, उतावली।


धाँधलपन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाँधल + पन)
शरारत।


धाँधलपन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाँधल + पन)
धोखेबाजी।


धाँधली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाँधल + ई)
बेइमानी, गड़बड़।


धाँस
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
मिर्च, तंबाक् आदि की गंध।


धा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्रह्मा।


धा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बृहस्पति।


धाड़ना
क्रि. अ.
(हिं. दहाड़ना)
जोर से चिल्लाना।


धाड़ी
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाड़)
लुटेरा, डाकू।


धातवीय
वि.
(सं.)
धातु का, धातु-संबंधी।


धाता
संज्ञा
पुं.
(सं. धातृ)
ब्रह्मा।


धाता
संज्ञा
पुं.
(सं. धातृ)
महेश।


धाता
संज्ञा
पुं.
(सं. धातृ)
शिव।


धाता
संज्ञा
पुं.
(सं. धातृ)
शेषनाग।


धाता
वि.
पालक।


धाता
वि.
रक्षक।
उ.—सूर प्रभु सुनि हँसत प्रीति उर मैं बसत इन्द्र कौ कसत हरि जगत धाता—९५५।


धाता
वि.
धारण करनेवाला।


धाक
संज्ञा
स्त्री.
रोब, दबदबा, आतंक।


धाक
संज्ञा
पुं.
(हिं. ढाक)
पलाश।


धाकड़
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाक)
जिसकी खूब धाक हो।


धाकड़
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाक)
बहुत बली या प्रभावशाली।


धाकना
क्रि. अ.
(हिं. धाक)
धाक या रोब जमाना।


धाखा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
पलाश का पेड़।


धागा
संज्ञा
पुं.
(हिं. तागा)
डोरा, तागा।


धाड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दहाड़)
जोर का शब्द।


धाड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धार)
आक्रमण, चढ़ाई।
मुहा.- धाड़ पड़ना— बहुत जल्दी होना।


धाड़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धार)
झुंड, समूह, जत्था।


धाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाय)
धाय, दाई।


धाउ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
धाओ, दौड़ो, जल्दी करो।
उ.—सीतल चंदन कटाउ, धरि खराद रंग लाउ, बिबिध चौकी बनाउ, धाउ रे बनैया—१०-४१।


धाउ
संज्ञा
पुं.
(सं.धाव)
नाच का एक प्रकार।


धाऊँ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ूँ, चलूँ, भागूँ, घूमूँ।
उ.—(क) हय-गयंद उतरि कहा गर्दभ चढ़ि धाऊँ।¨¨¨¨। अंब सुफल छाँड़ि, कहा सेमर कौं धाऊँ—१-१६६। (ख) जहँ जहँ भीर परै भक्तनि कौं, तहाँ तहाँ उठि धाऊँ—१-२४।


धाऊँ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
आक्रमण करूँ।
उ.—स्यंदन खंडि महाराथि खंडौं, कपिध्वज सहित गिराऊँ। पांडव-दल-सन्मुख ह्वै धाऊँ, सरिता-रुधिर बहाऊँ—१-२८०


धाऊ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धावन)
हरकारा।


धाए
क्रि. अ.
भूत.
(हिं. धाना)
दौड़े, भागे।
उ.—सिव-बिरंचि मारन कौं धाए यह गति काहू देव न पाई—१-३।


धाक
संज्ञा
(अनु.)
(अनु.)
भोजन।


धाक
संज्ञा
(अनु.)
(अनु.)
अनाज।


धाक
संज्ञा
स्त्री.
प्रसिद्धि, शोर।
उ.—(क) अपनी पत्रावलि सब देखत, जहँ तहँ फेनि पिराक। सूरदास प्रभु खात ग्वाल सँग, ब्रह्मलोक यह धाक—४६४। (ख) अमर जय ध्वनि भई धाक त्रिभुवन गई कंस मारयौ निदरि देवरायौ—२६१५।


धात्रेयी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धाय, दाई।


धात्वर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
(शब्द का ) धातु से ज्ञात अर्थ।


धाधना
क्रि.स
(देश.)
देखना।


धाधे
क्रि.स
(हिं. धाधना)
देखने लगे।
उ.—सूरज प्रभु लख धीर रूप कर चरन कमल पर धाधे— सा. ६।


धान
संज्ञा
पुं.
(हिं. धान्य)
चावल।


धान
संज्ञा
पुं.
(हिं. धान्य)
अन्न।
उ.—करुपति कह्यौ. धान मम खाइ। पांडु सुतनि की करत सहाइ—१-२८४।


धानक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनिया।


धानक
संज्ञा
पुं.
(सं. धानुष्क)
धनुष चलानेवाला, कमनैत, धनुर्द्धारी।


धानक
संज्ञा
पुं.
(सं. धानुष्क)
रुई धुननेवाला, धुनिया।


धानकी
संज्ञा
पुं.
(हिं. धानुक)
धनुर्द्धारी।


दधि-सुत-सुत-बाहन
संज्ञा
पुं.
[सं दधि (=उदधि=समुद्र) + सुत (=समुद्र या जल से उत्पन्न कमल) + सुत (=कमल से उत्पन्न ब्रह्मा) + बाहन (=ब्रह्मा का बाहन, हंस)]
हंस पक्षी।
उ.—ठढी जलजा-सुत कर लीने। दधि-सुत-सुत बाहन हित सजनी भष बिचार चित दीने—सा.७२।


दधि-सुत-सुत-सुत-सुत-अरि-भष-मुख
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (=उदाधि=समुद्र) +सुत (समुद्र या जल का पुत्र, कमल) + सुत (कमल से उत्पन्न ब्रह्मा) +सुत (=ब्रह्मा का पुत्र, कश्यप) +सुत (=कश्यप का पुत्र, सूर्य) +अरि (=सूर्य का शत्रु, राहु) +भष (=राहु का भक्ष्य, चंद्रमा=चंद्र) +मुख (=चंद्रमुख)]
चंद्रमुख।
उ.—दुरद मूल के आदि राधिका बैठी करत सिंगार। दधि-सुत-सुत-सुत-सुत-अरि-भष-मुख करे बिमुख दुख भार—सा. ३५।


दधि-सुत-सुत-हितकारी
संज्ञा
पुं.
[सं. दधि (=उदधि=समुद्र) +सुत (समुद्र या जल से उत्पन्न, कमल) +सुत (=कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा) +सुत (=ब्रह्मा का पुत्र, वशिष्ट) + हितकारी (=वशिष्ट का सहायक, अग्नि)]
अग्नि।
उ.—दधि-सुत-सुत-सुत के हितकारी सज-सज सेज बिछावै—सा.६५।


दधि-सुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. उदधि + सुता)
सीप, सीपी।
उ.—दधि-सुता सुत अवलि ऊपर इंद्र आयुध जानि।


दधि-स्नेह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दही की मलाई।


दधि-स्वेद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छाछ, मट्ठा।


दधीच, दधीचि
संज्ञा
पुं.
(सं. दधीचि)
एक वैदिक ऋषि। इनके पिता का नाम किसी ने अथर्व लिखा है और किसी ने शुक्राचार्य। इन्होने देवताऒं की रक्षा के लिए वज्र बनाने के उद्देश्य से अपनी हड्डियाँ दान दे दी थीं।


दधीच्यस्थि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वज्र।


दधीच्यस्थि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हीरा।


दनदनाना
क्रि. अ.
(अनु.)
दनदन का शब्द करना।


धातू
संज्ञा
पुं.
(सं. धातु)
धातु।


धात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पात्र, बरतन।


धात्रिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आँवला।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
माता।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धाय, दाई।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भगवती, गायत्री।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सेना।


धात्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गाय।


धातु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गेरू, खड़िया आदि पदार्थ जो प्रायः उपरस कहलाते हैं। पूर्वकाल में इनका चित्रकारी में भी उपयोग किया जाता था।
उ.—(क) बनमाला तुमकौं पहिरावहिं, धातु-चित्र तनु-रेखहिं—४२६। (ख) मुकुट उतारि धरयौ लै मंदिर, पोछति है अंग धातु—५११।


धातु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक खनिज पदार्थ।


धातु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शरीर को धारण करनेवाला द्रव्य।


धातु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शुक्र, वीर्य।


धातु
संज्ञा
पुं.
भूत, तत्व।
उ.—जाके उदित नचत नाना बिधि गति अपनी-अपनी। सूरदास सब प्रकृति धातुमय अति बिचित्र सजनी।


धातु
संज्ञा
पुं.
शब्द का मूल।


धातु
संज्ञा
पुं.
परमात्मा।


धातुराग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धातु से निकले इँगुर आदि रंग।


धातुवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रसायन बनाने का काम।


धातुवादी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रसायनी, कीमियागर।


धानकी
संज्ञा
पुं.
(हिं. धानुक)
कामदेव।


धानपान
संज्ञा
पुं.
(हिं. धान + पान)
विवाह की एक रीति जिसमें वर-पक्ष की ओर से कन्या के घर धान, हल्दी आदि भेजी जाती है।


धानमाली
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूसरे के चलाये अस्त्र को रोकने की एक क्रिया।


धाना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान)
धान।


धाना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान)
अनाज।


धाना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान)
भुना हुआ धान या जौ।


धाना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान)
सत्तू।


धाना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान)
धनिया


धाना
क्रि. अ.
(हिं. धावन)
दौड़ना, भागना।


धाना
क्रि. अ.
(हिं. धावन)
प्रयत्न करना।


धानुष्क
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धनुर्द्धारी, धनुर्धर, कमनैत।


धान्य, धान्यक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धान।


धान्य, धान्यक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अन्न।


धान्यपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चावल।


धान्यपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जौ।


धान्यराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जौ।


धान्याकृत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसान, खेतिहर, कृषक।


धान्यारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चूहा, मूषक।


धाप
संज्ञा
पुं.
(हिं. टप्पा)
लंबा-चौड़ा मैदान।


धाप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धापना)
तृप्ति, संतोष, छकना।


धानाचूर्ण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सत्तू।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्थान, जगह।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह जिसमें कोईं चीज या वस्तु रखी जाय।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धनिया।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान + ई)
हलका हरा रंग।


धानी
वि.
धान की पत्ती-सा हलके हरे रंग का।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान्य)
धान।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान्य)
अन्न।


धानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धान्य)
धनिया।


धानुक
संज्ञा
पुं.
(सं. धानुष्क)
धनुष चलानेवाला।


धामन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धामिन)
एक तरह का साँप।


धामन
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. धाम)
घरों-मकानों पर।
उ.—अति संभ्रम अंचल चंचल गति धामन ध्वजा बिराजत—२५६१।


धामा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाम)
भोजन का निमंत्रण।


धामिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाना)
एक तरह का साँप।


धामिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाम)
एक पंथ।


धामीनिधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


धायँ
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
तोप-बंदूक पटाखा आदि छटने का शब्द।


धाय
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धात्री)
दाई, धात्री।


धाय
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़कर।


धाया
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ा, भागा।
उ.—सुनत सब्द तुरतहिं उठि धाया—४९९।


धापना
क्रि. अ.
(सं. तर्पण)
तृप्त होना, अघाना।


धापना
क्रि.स
तृप्त या संतुष्ट करना।


धापना
क्रि. अ.
(सं. धावन)
दौड़ना, भागना।


धापहु
क्रि. अ.
(हिं. धापना=दौड़ना)
दौड़ो, भागो।
उ.—द्रुमन चढ़े सब सखा पुकारत मधुर सुनावहु बैन। जनि धापहु बलि चरन मनोहर कठिन काँट मग ऐन।


धापी
क्रि. अ.
(सं. तर्पण)
संतृष्ट या तृप्त हुई, अघा-कर।
उ.—(क) भच्छि अभच्छ, अपान पान करि, कबहुँ न मनसा धापी—१-१४०। (ख) दूतन कह्यौ बड़ौ यह पापी। इन तौ पाप किए हैं धापी—६-४।


धावा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
मकान की अटारी।


धाभाई
संज्ञा
पुं.
(हिं. धा =धाय + भाई)
दूधभाई।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
गृह, घर, स्थान।
उ.—(क) धाम धुआँ के कहौ कौन पै बैठी कहाँ अथाई। (ख) अरध बीच दै गये धाम को हरि अहार चलि जात— सा.२३।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
देवस्थान, पुण्यस्थान।
उ.—तौ लगि यह संसार सगौ है जौ लगि लेहि न नाम। इतनी जउ जानत मन मूरख, मानत याहीं धाम—१-७६।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
निधि, आलय, आकर।
उ.—बैकुंठनाथ सकल सुखदाता, सूरदास सुखधाम—१-९२।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
देह, शरीर, तन।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
शोभा।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
प्रभाव।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
ब्रह्म।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
परलोक।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
स्वर्ग।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं. धामन्)
अवस्था, गति।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्रकार के देवता।


धाम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


धामन
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह का बाँस।


धायी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाय)
दाई, धात्री।


धायौ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ा, भागा।
उ.—छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवन तैं अधिक धायौ—१५।


धायौ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़-धूप की।
उ.—छलबल करि जित-तित हरि पर-धन धायौ सब दिन रात—१-२१६।


धायौ
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
चाल चला।
उ.—टेढ़ी चाल, पाग सिर टेढ़ी टेढ़ै टेढ़ै धायौ—१-३०१।


धाय्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुरोहित।


धार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तेज वर्षा।
उ.— सलिल अखंड धार धर टूटत कियौ इंद्र भंन सादर—९४९।


धार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वर्षा का इकट्ठा किया हुआ जल।


धार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऋण।


धार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रदेश।


धार
वि.
(सं.)
गहरा, गंभीर।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
(जल आदि) द्रव पदार्थ के गिरने या बहने का तार।
उ.— (क) रुधिर-धार रिषि आँखिन ढरी—९-३। (ख) बिबिध सस्त्र छूटत पिचकारी चलत रुधिर की धार— सारा. २६। (ग) मनहुँ सुरसरी धार सरस्वति-जमुना मध्य बिराजै सारा. १७३। (घ) एक धार दोहनि पहुँचावत एक धार जहँ प्यारी ठाढ़ी। (ङ) माया-लोभ-मोह हैं चाँड़े काल-नदी की धार—१-८४।
मुहा.- धार चढ़ाना— किसी देवी-देवता, नदी, वृक्ष आदि पर दूध, जल आदि चढ़ाना।

पय धार चढ़ावो— दूध चढ़ाओ। उ.— सुर-समुह पय धार परम हित आषत अमल चढ़ावो— सा। धार टूटना— धार का प्रवाह खंडित हो जाना। धार देना— (१) दूध देना। (२) उपयोगी काम करना। धार निकालना— दूध दुहना। धार बँधना धार— बँधकर गिरना।

धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
पानी का सोता या स्रोत।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
तलवार, चाकू आदि की बाढ़।
उ.—निकट आयुध बधिक धारे, करत तीच्छन धार। अजानायक मगन क्रीड़त चरत बारंबार—१-३२१।
मुहा.- धार बँधना— मंत्र आदि के बल से हथियार की धार का बेकार हो जाना।

धार बाँधना— मंत्र आदि के बल से हथियार की धार को बेकार कर देना।

धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
किनारा, छोर, सिरा।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
सेना।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
डाका, आक्रमण।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
ओर, तरफ, दिशा।
उ.—(क)बिबिध खिलौना भाँति के (बहु) गज-मुक्ता चहुँ धार—१०४२-। (ख) महर पैठत सदन भीतर छींक बाईं धार—५२४।


धार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
सीमा, निधि, राशि।
उ.— दरसन को तरसत हरि लोचन तू सोभा की धार—२२१२।


धार
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरकर, रखकर।


धार
प्र.
चित धार—ध्यान लगाकर।
उ.—(क) कहौं, सुनौ सो अब चित धार—१-२३०। (ख) राजा, सुनौ ताहि चितधार—४-५।


दनदनाना
क्रि. अ.
(अनु.)
खूब आनंद मनाना।


दनादन
क्रि. वि.
(अनु.)
दनदन शब्द के साथ।


दनु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्ष की एक कन्या जो कश्यप को ब्याही थी और जिसके चालीस पुत्र हुए जो 'दानव' कहलाये।


दनुज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दक्ष की कन्या दनु से उत्पन्न असुर, राक्षस।


दनुज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिरण्यकशिपु।
उ.—भक्त बछल बपु धरि नर केहरि दनुज दह्यौ, उर दरि, सुरसाँइ—१-६।


दनुज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कंस।


दनुज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।


दनुजदलनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा।


दनुजपति-अनुज-प्यारी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. दनुज (=दैत्य) +पति (=राक्षसों का स्वामी, रावण) +दनुज (रावण का छोटा भाई, कुंभकरण) +प्यारी (कुंभकर्ण की प्रिय वस्तु, निद्रा)]
निद्रा, नींद।
उ.—दनुजपति की अनुज प्यारी गई निपट बिसार —सा. २४।


दनुजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. दनुज +हिं. राय)
हिरण्य कशिपु।


धार
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धारण करके।
उ.—दत्तात्रेयऽरु पृथु बहुरि, जज्ञपुरुष बपु धार—२-३६।


धारक
वि.
(सं.)
धारण करनेवाला।


धारक
वि.
(सं.)
रोकनेवाला।


धारक
वि.
(सं.)
ऋण लेनेवाला।


धारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कलश, घड़ा।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी पदार्थ को अपने ऊपर लेने, रखने या थामने की क्रिया या भाव।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पहनने की क्रिया या भाव।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवन करने की क्रिया या भाव।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्रहण या अंगीकार करने की क्रिया या भाव।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऋण लेने की क्रिया या भाव।


धारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी का एक नाम।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धारण करने की क्रिया या भाव।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुद्धि, समझ।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दृढ़ सम्मति या निश्चय।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मर्यादा।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्मृति, याद।


धारणा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
योग का एक अंग जिसमें मन में केवल ब्रह्म का ही ध्यान रहता है।


धारणाशाली
वि.
(सं.)
तीव्र धारणा-शक्तिवाला।


धारणिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऋणी।


धारणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाड़ी।


धारना
संज्ञा
पुं.
धारण करने की क्रिया, ग्रहण, अपने ऊपर लेना।
उ.—तब गंगा जू दरसन दियौ। कह्यौ, मनोरथ तेरौ करौं। पै मैं जब अकास तै परौं। मोकौं कौन धारना करै ? नृप कह्यौ, संकर तुमकौं धरै—९-१०।


धारयित
संज्ञा
पुं.
(सं. धारयितृ)
धारण करनेवाला।


धारयित्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धारण करनेवाली।


धारयित्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी।


धारांग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खड़ग, तलवार।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लकीर, रेखा।
उ.—(क)राजति रोम राजी रेख। नील घन मनु धूम-धारा, रही सूच्छम सेष—६३५। (ख) रोमावली-रेख अति राजति। सूच्छँम बेष धूम की धारा नव घन ऊपर भ्राजति—६३८।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अखंड प्रवाह, धार।
उ.—उर-कलिंद तै धँसि जल-धारा, उदर-धरनि परबाह—६३८।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हथियार की धार या बाढ़।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सोता, झरना, स्त्रोत।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बहुत अधिक वर्षा।


धारणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पंक्ति, श्रेणी।


धारणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पृथ्वी।


धारणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सीधी रेखा।


धारणीय
वि.
(सं.)
धारण करने के योग्य।


धारत
क्रि. स.
(हिं. धरना)
धरते है, रखते है।


धारत
प्र.
पग धारत—पैर रखते है, जाते हैं।
उ.—कौन जाति अरु पाँति बिदुर की, ताही कै पग धारत—१-१२।


धारत
प्र.
ध्यान धारत—ध्यान लगाते हैं।
उ.—सनक संकर ध्यान धारत निगम आगम बरन—१-३०८


धारति
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण करती है, रखती है, अपनाती है।
उ.—(क) बार-बार कुलदेव मनावति, दोउ कर जोरि सिरहिं लै धारति—१०-२००। (ख) कर अपनैं उर धारतिं, आपुन ही चोली धरि फारि—१०-३०४।


धारन
संज्ञा
पुं.
(सं. धारण)
धारण करनेवाला।
उ.—संभु-पतनी-पिता धारन बक बिदारन बीर— सा. ९३।


धारना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारण)
धारणा योग, के आठ अंगों मे से एक, मन की वह स्थिति जिसमें केवल ब्रह्म का चिंतन रहता है।
उ.—(क) प्रत्याहार-धारना-ध्यान। करै जु छाँड़ि वासना आन—२-२१। (ख) जोग धारना करि तनु त्याग्यौ। सिव-पद-कमल हृदय अनु-राग्यौ—४-५। (ग) तन दैबै तै नाहिंन भजौ। जोग धारना करि इहिं तजौं—६-५। (घ) आसन बैसन ध्यान धारना मन आरोहण कीजै—२४६१।


धारावाहिक, धारावाही
वि.
(सं.)
धारा के समान बराबर बढ़नेवाला।


धारासार
वि.
(सं.)
बराबर पानी बरसना।


धारि
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण करके, उठाकर।
उ.—गिरि कर धारि इंद्र-मद मद्यौं, दासनि सुख उपजाए—१-२७।


धारि
क्रि. स.
(हिं. धारना)
पहनकर।
उ.—जीरन पट कुपीन तन धारि। चल्यौ सुरसरी सीस उघारि—१-३४१।


धारि
प्र.
देह (बपु) धारि—शरीर धारण करके, जन्म लेकर।
उ.—(क) नर-बपु धारि नाहिं जन हरि कौं, जम की मार सो खेहै—१-८६। (ख) कहत प्रहलाद के धारि नरसिंह बपु निकसि आये तुरत खंभ फारी—७-६। (ग) सूरदास प्रभु भक्त-हेत ही देह धारि कै आयौ—३४६।


धारि
प्र.
चित धारि—चित्त में सोंचकर, ठह-राकर।
उ.—परयौ भव-जलधि मैं, हाथ धरि काढ़ि मम दोष जनि धारि चित काम-कामी—१-२१४।


धारि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
समूह, झुंड।


धारिणी
वि.
(सं.)
धारण करनेवाली।


धारिणी
संज्ञा
स्त्री.
धरती, पृथ्वी।


धारिणी
संज्ञा
स्त्री.
प्रमुख देवताओं की स्त्रियाँ।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
झुंड, समूह।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सोना या उसका अगला भाग।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उन्नति।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
यश, कीर्ति।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पहाड़ की चोटी।


धारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
घोड़े की चाल।


धारा
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण किया।
उ.— चारि भुजा मम आयुध धारा—१० उ. ४४।


धाराट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चातक।


धाराट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघ।


धाराट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अच्छी चालवाला घोड़ा।


धाराट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मस्त हाथी।


धाराधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


धाराधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तलवार।


धारा-प्रवाह
वि.
(सं.)
जो धारा की तरह बराबर चलता रहे।


धारायंत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फुहारा।


धाराल
वि.
(सं.)
तेज धारवाला।


धाराली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धाराल)
तलवार।


धाराली
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धाराल)
कटार।


धारावनि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु, हवा।


धारावर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघ, बादल।


धारे
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण किये, हाथ में लिये।
उ.—(क) निकट आयुध बधिक धारे करत तीच्छन धार—१-३२१। (ख) ते सब ठाढ़े सस्त्रनि धारे—४-१२।


धारे
प्र.
पग धारे—पधारे, गये।
उ.—(क) गरुड़ छाँड़ि प्रभु पायँ पियादे गज-कारन पग धारे—१-२५। (ख) ध्रुव निज पुर कौं पुनि पग धारे—४-९। (ग) सूर तुरत मधुबन पग धारे धरनी के हितकारि—२५३३।


धारे
प्र.
बपु धारे—शरीर धारण किये, जन्म लिये।
उ. - जब जब प्रगट भयौ जल थल मै, तब तब बहुबपू धरे-१ -२७


धारे
प्र.
ब्रत धारे—ब्रत किये।
उ.—व्याध, गीध, गौतम की नारी, कहौ कौन ब्रत धारे—१-१५८।


धारे
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. धारा)
अनेक प्रवाह।
उ.—सुमिरि सुमिरि गर्जत जल छाँड़त अस्त्रु सलिल के धारे—२७६१।


धारैं
क्रि. स.
(हिं. धारना)
ग्रहण करें, लावें, अपनावें।
उ.—(क) हरि हरि नाम सदा उच्चारैं। बिद्या और न मन मैं धारैं—७-२। (ख) बिनु अपराध पुरुष हम मारैं। माया-मोह न मन मैं धारैं—९-२।


धारै
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण करे।
उ.—अबरन, बरन सुरति नहिं धारै। गोपिनि के सो बदन निहरै—१०-३।


धारोष्ण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
थन से निकला ताजा दूध जो कुछ देर तक गरम रहता है।


धारौं
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण करूँगा, पहनूँगा।
उ.—राज-छत्र नाहीं सिर धारौं—१-२६१।


धारौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
ग्रहण करो, अपनाओ।
उ.—सूर सुमारग फेरि चलैगौ बेद बचन उर धारौ—१-१९२।


धारौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
ग्रहण किया, अपनाया।
उ.—उन यह बचन हृदय नहिं धारौ—३-६।


धारौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
उठाया, धारण किया।
उ.—भक्त बछल प्रभु नाम तुम्हारौ। जल संकट तैं राखि लियौ गज ग्वालनि हित गोबर्धन धारौ—१-१७२।


धारौ
क्रि. स.
(हिं. धरना)
रखो, दूसरे को पहनाओ।
उ.—चौदह वर्ष रहैं बन राधव, छत्र भरत सिर धारौ—९-३०।


धार्म
वि.
(सं.)
धर्म-संबंधी।


धार्मिक
वि.
(सं.)
धर्म-संबंधी।


धार्मिक
वि.
(सं.)
धर्मात्मा।


धार्मिकता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धार्मिक होने का भाव।


धार्मिक्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धार्मिक होने का भाव।


धार्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वस्त्र, कपड़ा।


धार्य
वि.
(सं.)
धारण करने योग्य, धारणीय।


धारी
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण करके , उठाकर
उ. --राख्यौ गोकुल बहुत बिघन तै, कर-नख पर गोबर्धन धारी-१-२२|


धारी
क्रि. स.
(हिं. धारना)
निश्चित की, सोची, विचारी।
उ.—महा-राज दसरथ मन धारी। अवधपुरी कौ राज राम दै, लीजै ब्रत बनचारी—९-३०।


धारी
प्र.
दियौ धारी—रख दिया, धारण करा दिया।
उ.—भयौ हलाहल प्रगट प्रथम ही मथत जब रुद्र कै कंठ दियौ ताहि धारी—८-८।


धारी
वि.
(सं. धारिन्)
धारण करनेवाले।
उ.—महा सुभट रनजीत पवनसुत, निडर बज्र-बपु-धारी—९-११५।


धारी
वि.
(सं. धारिन्)
ग्रंथ का तात्पर्य समझनेवाला।


धारी
वि.
(सं. धारिन्)
ऋण लेनेवाला।


धारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
सेना।


धारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
समूह।


धारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धारा)
रेखा।


धारीदार
वि.
(हिं. धारी + फ़ा. दार)
जिसम रेखाएँ हों।


दनुजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. दनुज +हिं. राय)
कंस।


दनुजराय
संज्ञा
पुं.
(सं. दनुज +हिं. राय)
रावण।


दनुज-सुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पूतना।
उ.—दनुज-सुता पहिले संहारी पयपीवत दिन सात—२४६३।


दनुजारि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दानवों का शत्रु।


दनुजेंढ्र, दनुजेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिरण्यकशिपु।


दनुजेंढ्र, दनुजेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण।


दनुजेंढ्र, दनुजेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कंस।


दनुनारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राक्षसी, पूतना।
उ.—कागासुर सकटासुर मारथौ पय पीवत दनु-नारी ६८६।


दनुसंभव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दनु से उत्पन्न, दानव।


दनू
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दनु.)
दक्ष की कन्या, दनु।


धावाहिंगे
क्रि. अ.
(हिं. धावना)
दौड़ पड़ेगे।
उ.—अब के चलते जानि सूर प्रभु सब पहिले उठि धावहिंगे—२७८९।


धावहिं
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ते है।
उ.—बाल बिलख मुख गौ न चरति तृन बछ पय पियन न धावहिं—३५२७।


धावहु
क्रि. अ.
(हिं. धावन)
दौड़ो, भागो, तेजी से जाओ।
उ.—अस्व देखि कहथौ, धावहु, धावहु। भागि जाहि मति, बिलँब न लावहु—९-९।


धावा
संज्ञा
पुं.
(सं. धावन)
आक्रमण, चढ़ाई।


धावा
संज्ञा
पुं.
(सं. धावन)
किसी काम के लिए जल्दी से जाना।
मुहा.धावा मारना जल्दी-जल्दी घूम आना।


धावा
क्रि. अ.
भूत.
(हिं. धाना)
दौड़ा, भागा, लपका।


धावैं
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ते है, भागते है।
उ.—औरनि कौं जम कैं अनुसासन, किंकर कोटिक धावैं। सुनि मेरी अपराध अधमई, कोऊ निकट न आवैं—१-१९७।


धावै
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़े, जाय।
उ.—(क) रुप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु निरालंब कित धावै—१-२।


धावै
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
दौड़ता है, मारा मारा फिरता है।
उ.—कहूँ ठौर नहि चरन-कमल बिनु, भृंगी ज्यौं दसहूँ दिसि धावै—१-२३३।


धाह
संज्ञा
स्त्री.
(सं. अनु.)
चोर से चिल्लाकर रोना, धाड़।
उ.—देखे नंद चले घर आवत। पैठत पौरि छींक भई बाएँ, दहिनैं धाह सुनावत—५४१।


धारथौ
क्रि. स.
(हिं. धारना)
धारण किया, उठाया।
उ.—कोमल कर गोबर्धन धारथौ जब हुते नंद-दुलारे—१-२५।


धारथौ
क्रि. स.
(हिं. धारना)
लिया, ग्रहण किया।


धारथौ
प्र.
जन्म धारथौ—जन्म लिया, शरीर धारण किया।
उ.—जिहिं-जिहिं जोनि जन्म धारथौ, बहु जोरथौ अघ कौ भार—१-६८।


धारथौ
प्र.
पग धारथौ—आया, गया।
उ.—जहाँ मल्ल तहँ को पग धारथौ—२६४३।


धारथौ
क्रि. स.
(हिं. धारना)
अपनाया, ठाना।
उ.—(क)मन चातक जल तज्यौ स्वाति-हित, एक रुप ब्रत धारथौ—१-२१०। (ख) मरन भूलि, जीवन थिर जान्यौ, बहु उद्यम जिय धारथौ—१-३३६।


धावक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हरकारा।


धावक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धोबी।


धावण
संज्ञा
पुं.
(सं. धावन)
दूत, हरकारा।


धावत
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
भागते है, दौड़ पड़ते है।
उ.—(क) संकट परैं तुरत उठि धावत, परम सुभट निज पन कौं—१-९। (ख) धावत कनक-मृगा कैं पाछैं राजिवलोचन परम उदारी—१०-१९८।


धावति
क्रि. अ.
स्त्री.
(हिं. धाना)
धाती है, दौड़ती है, भागती है।
उ.—(क) सखि री, काहैं गहरु लगावति। सब कोऊ ऐसौ सुख सुनिकै क्यौं नाहिंन उठि धावति—१०-२३। (ख) निठुर भए सुत आजु, तात की छोह न आवति। यह कहि कहि अकुलाइ, बहुरि जल भीतर धावति—५८९।


धावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत शीघ्र जाने की क्रिया, दौड़कर जाना।
उ.—गजहित धावन, जन-मुकरावन, बेद बिमल जस गावत—८-४।


धावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दूत, हरकारा, संदेशवाहक।
उ.—(क) दससिर बोलि निकट बैठायौ, कहि धावन सति भाउ। उद्यम कहा होत लंका कौं, कौंनैं कियौ उपाउ—९-१२१। (ख) द्विविद करि कोप हरि पुरी आयौ। नृप सुदक्षिण जरथौ जरी वारानसी धाय धावन जबहि यह सुनांयौ—१०३-४५।


धावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धोने या साफ करने का काम।


धावन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह चीज जिससे गंदी वस्तु को साफ किया जाय।


धावना
क्रि. अ.
(सं. धावन)
दौड़ना, भागना।


धावनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धावन=गमन)
जल्दी चलने की क्रिया, दौड़।
उ.—वापट पीत की फहरानि। कर धरि चक्र, चरन की धावनि, नहिं बिसरत वह बानि—१-२७९।


धावनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धावन=गमन)
धावा, चढ़ाई।


धावरा
वि.
(सं. धवल)
उज्ज्वल, सफेद।


धावरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धवल)
सफेद गाय, धौरी।


धावरी
वि.
सफेद, उजली, उज्ज्वल।


धाही
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाम)
दाई, धात्री।


धिंग
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धींगी)
उधम, उपद्रव।


धिंगरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धींगरा)
मोटा ताजा, मुस्तंडा।


धिंगा
वि.
(सं. दृढाग)
दुष्ट।


धिंगा
वि.
(सं. दृढाग)
निर्लज्ज।


धिंगाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढांगी)
शरारत, दुष्टता
उ.—जानि बूझि इन करी धिंगाई। मेरी बलि पर्वतहिं चढ़ाई।


धिंगाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दृढांगी)
निर्लज्जता।


धिंगाना
क्रि. स.
(हिं. धिंगा)
उधम मचाना।


धिंगी
वि.
(हिं. धिंगा)
दुष्ट या निर्लज्ज (स्त्री)।


धिआ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता, प्रा. धीआ)
बेटी, कन्या।


धिग
अव्य.
(सं. धिक्)
धिक्, धिक्कार, लानत।
उ.—(क) धिग धिग मेरी बुद्धि, कृष्न सौं बैर बढ़ायौ—४९२। (ख) धिग धिग मोहि तोहि सुन सजनी धिग जेहि हेति बोलाई—सा. ४७।


धिय, धिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता, प्रा. धीआ)
कन्या, बेटी।


धिय, धिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता, प्रा. धीआ)
लड़की, बालिका।


धिरकार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धिक्कार)
धृणा या तिरस्कार सूचक शब्द।


धिरमा
क्रि. स.
(हिं. धिरवना)
डाँटना, धमकाना।


धिरयौ
क्रि. स.
(हिं. धिरना)
डाँटा, धमकाना।
उ.—सूर नंद बलरामहिं धिरयौ तब मन हरष कन्हैया—१०-२१७।


धिरवति
क्रि. स.
(हिं. धिरवना)
धमकाती है।
उ.—मुख झगरति आनँद उर धिरवति है घर जाहु—१०२६।


धिरवना
क्रि. स.
(हिं. धिर्षण)
डराना-धमकाना।


धिराना
क्रि. स.
(हिं. धिरवना)
भय दिखाना।


धिरावति
क्रि. स.
(हिं. धिरवना)
डराती-धमकाती है।
उ.—जाति-पाँति सों कहा अचगरी यह कहिं सुतहिं धिरावति।


धिआन, धिआना
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्यान)
ध्यान।


धिआना
क्रि. स.
(हिं. ध्यावना)
ध्यान लगाना।


धिक
अव्य.
(सं. धिक्)
धिक्, लानत।
उ.—(क) प्रभु जू, बिपदा भली बिचारी। धिक यह राज बिमुख चरननि दैं, कहति पाँडु की नारी—१-२८२। (ख) धिक तुम, धिक या कहिबे ऊपर। जीवित रहिहौ कौ लौं भू पर—१-२८४।


धिकना
क्रि. अ.
(हिं. दहकना)
खूब गरम होना।


धिकाना
क्रि. स.
(हिं. दहकाना)
खूब गरम करना।


धिक्
अव्य.
(सं.)
तिरस्कार सूचक शब्द।


धिक्
अव्य.
(सं.)
निंदा, शिकायत।


धिक्कार
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तिरस्कार या धृणा सूचक शब्द, लानत, फटकार।


धिक्कारना
क्रि. स.
(सं. धिक)
बहुत बुरा-भला कहना।


धिक्कृत
वि.
(सं.)
जो धिक्कारा जाय।


धिरावति
क्रि. अ.
(सं. धीर)
धीमा होना।


धिरावति
क्रि. अ.
(सं. धीर)
स्थिर होना।


धिरावै
क्रि. स.
(हिं. धिराना)
डराता-धमकाता है।
उ.—भ्राता मारन मोहिं धिरावै देखे मोहें न भावत।


धिषणा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बृहस्पति।


धिषणा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिक्षक।


धिषणा
वि.
बुद्धिमान, समझदार।


धिषण
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुद्धि।


धिषण
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वाक्शक्ति।


धिषण
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्तुति।


धींग
वि.
(सं. दृढान्ग)
हट्टा-कट्टा।


धींग
वि.
(सं. दृढान्ग)
ढीठ, धृष्ट, उपद्रवी,।
उ.—धींग तुम्हारौ पूत धींगरी हमकौ कीन्हीं—१८७०।


धींग
वि.
(सं. दृढान्ग)
कुमार्गी, पापी।


धींग
संज्ञा
पुं.
हट्टा-कट्टा मनुष्य।
उ.—धींगरी धींग चाचरि करै मोहिं बुलावत साखि।


धींगधुकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींग)
शरारत, पाजीपन।


धींगड़ा, धींगरा
संज्ञा
पुं.
(सं. ड़िगर)
हट्टा-कट्टा।


धींगड़ा, धींगरा
संज्ञा
पुं.
(सं. ड़िगर)
दुष्ट।


धींगरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींगरा)
दुष्टा, उपद्रव करने वाली।
उ.—धींग तुम्हरौ पूत धींगरी हमकौ कीनी—१०७०।


धींगा
संज्ञा
पुं.
(सं. ड़िगर)
पाजी, उपद्रवी।


धींगावोंगी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींग)
दुष्टता, पाजीपन।


धींगावोंगी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींग)
जबरदस्ती।


धींगामुश्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींग + मस्ती)
दुष्टता, पाजीपन।


धींगामुश्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धींग + मस्ती)
जबरदस्ती लड़ना या हाथाबाँही करना।


धींद्रिय
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आँख, कान आदि इंद्रियाँ जिनसे किसी बात का ज्ञान प्राप्त किया जाय।


धींवर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धीवर)
केवट, मल्लाह।


धी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता, प्रा. धीआ)
पुत्री, बेटी।
उ.—पुर कौं देखि परम सुख लह्यौ। रानी सौ मिलाप तहँ भयौ।तिन पूछ यौ तू काकी धी है ? उन कह्यौ नहिं सुमिरन मम ही है—४-१२।


धी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुद्धि


धी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मन।


धी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कर्म |


धीआ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता)
पुत्री, बेटी।


धीजना
क्रि. स.
(सं. धृ, धैर्य)
ग्रहण या स्वीकार करना।


धीजना
क्रि. स.
(सं. धृ, धैर्य)
धीरज रखना।


धीजना
क्रि. स.
(सं. धृ, धैर्य)
प्रसन्न या संतुष्ट होना।


धीत
वि.
(सं.)
जो पिया गया हो।


धीत
वि.
(सं.)
जिसका तिरस्कार हुआ हो।


धीत
वि.
(सं.)
जिसकी पूजा-आराधना की जाय।


धीदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता)
कन्या।


धीदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दुहिता)
पुत्री।


धीपति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वृहस्पति।


धीम
वि.
(हिं. धीमा)
सुस्त।


धीम
वि.
(हिं. धीमा)
हलका, धीमा।


दनू
संज्ञा
पुं.
(सं. दानव)
दैत्य, राक्षस।


दन्न
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
तोप छूटने का शब्द।


दपट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. डपट)
डपट, घुड़की।


दपटना
क्रि. स.
(हीं. दपट)
डाँटना, घुड़कना।


दपु
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प))
घमंड, अहंकार।
उ.—सात दिवस गोबर्धन राख्यौ इन्द्र गयौ दपु छोड़ि।


दपेट
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दपट)
डपट, घुड़की।


दपेटना
क्रि. स.
(हिं. दपटना)
डाँटना-घुड़कना।


दफन
संज्ञा
पुं.
(अ. दफ़न)
गाड़ने की क्रिया।


दफन
संज्ञा
पुं.
(अ. दफ़न)
मुरदा गाड़ने की क्रिया।


दफनाना
क्रि. स.
(हिं. दफन+आना)
गाड़ना।


धीर
वि.
(सं.)
दृढ़ और शांत चित्तवाला।
उ.—इत भगदत्त, द्रोन, भूरिश्रव चुम सेनापति धीर—१-२६९।


धीर
वि.
(सं.)
बली, शलिशाली।


धीर
वि.
(सं.)
विनीत, नम्र।


धीर
वि.
(सं.)
गंभीर।


धीर
वि.
(सं.)
सुंदर, मनोहर।


धीर
वि.
(सं.)
मंद।


धीर
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
धीरज।


धीर
संज्ञा
पुं.
(सं.धैर्य)
संतोष।


धीरक
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
धीरज, ढारस।
उ.—राज-खनि गाई व्याकुल ह्णै, दै दै तिनकौं धीरक। मागध हति राजा सब छोरे, ऐसे प्रभु पर-पीरक—१-११२।


धीरज
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
धैर्य, धीरता, चित्त की स्थिरता।
उ.—(क) सूर पतित जब सुन्यौ बिरद यह, तब धीरज मन आयौ—१-१२५। (ख) जननि कैसे धरथौ धीरज कहति सब पुर बाम—२५६५।


धीमर
संज्ञा
पुं.
(सं. धीवर)
केवट, मल्लाह।


धीमा
वि.
(सं. मध्यम)
जिसकी चाल तेज न हो।


धीमा
वि.
(सं. मध्यम)
जो तीव्र या उग्र न हो, हलका।


धीमा
वि.
(सं. मध्यम)
जो ऊँचा या तेज न हो।


धीमा
वि.
(सं. मध्यम)
जिसका जोर कम हो गया हो।


धीमान, धीमान्
संज्ञा
पुं.
(सं. धीमत्)
बृहस्पति।


धीमान, धीमान्
संज्ञा
पुं.
(सं. धीमत्)
बुद्धिमान, समझदार।


धीय
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धी)
पुत्री, कन्या।


धीय
संज्ञा
पुं.
जमाई, दामाद, जामाता।


धीया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धी)
लड़की, बेटी।


धीरज
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
उतावाली न होने का भाव, सब्र, संतोष।


धीरज
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
आशा, सांत्वना।
उ.—इतनेहि धीरज दियौ सबन कौ अवधि गए दै आस—२५३४ .।


धीरजमान
संज्ञा
पुं.
(सं. धीर)
धैर्यवान, धीर।


धीरता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चित्त की दृढ़ता या स्थिरता, धैर्य।


धीरता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
संतोष।


धीरत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धीर होने का भाव।


धीरना
क्रि. अ.
(हिं. धीर)
धीरज रखना।


धीरना
क्रि. स.
धीरज बँधाना, धीरज रखाना।


धीरललित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह नायक जो सदा सजा-सजाया और प्रसन्न रहे।


धीर शांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह नायक जो शील, दया, गुण और पुण्यवान हो।


धीरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह नायिका जो नायक के शरीर पर पर-स्त्री-रमण के चिह्न देखकर ताने से अपना क्रोध प्रकट करे।


धीरा
वि.
(सं. धीर)
मंद, धीमा।


धीरा
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
धीरज, धैर्य।


धीराधीरा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह नायिका जो नायक के शरीर पर पर-स्त्री-रमण के चिह्न देखकर कुछ गुप्त और कुछ प्रकट रुप से अपना क्रोध जता दे।


धीरे
क्रि. वि.
(हिं. धीर)
धीमी चाल या गति से।


धीरे
क्रि. वि.
(हिं. धीर)
चुपके से जिससे किसी को पता न चले।


धीरोदात्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह नायक जिसमें दया, क्षमा, वीरता, धीरता आदि सद्गुण हों।


धीरोदात्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वीर-रस-प्रधान नाटक का नायक।


धीरोद्धत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह प्रबल शक्तिवाला नायक जो दूसरे का गर्व न सहकर अपने ही गुणों का बखान किया करे।


धीर्य
संज्ञा
पुं.
(सं. धैर्य)
धीरज, धीरता।


धीवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मल्लाह, मछुआ, केवट।
उ.— बार-बार श्रीपति कहैं, धीवर नहिं मानै—९-४२।


धीवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेवक।


धीवरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मल्लाह य केवट की स्त्री।


धीवरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मछली पकड़ने की कँटिया।


धुँकार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि + कार)
गरज, गड़गड़ाहट।


धुँगार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूम्र + आधार)
बघार, तड़का, छाँक।


धुँगारना
क्रि. स.
(हिं. धुँगार)
छौकना, बघारना


धुँगारना
क्रि. स.
(अनु.)
मारना, पीटना।


धुँगारी
क्रि. स.
(हिं. धुँगारना)
छौंक या बघारकर।
उ.—छाँछ छबीली धरी धुँगारी। झहरैं उठत जार की न्यारी।


धुँज, धुंजैं
वि.
(हिं. धुंध)
धुँधली या मंद दृष्टि।
उ.—सूरदास प्रभु तुम्हरै दरस को मग जोवत अँखियाँ भइ धुंजैं—२७२१।


धुँद
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
आँधी से होनेवाला अँधेरा।


धुँदा
वि.
(हिं. धुंध)
अंधा।


धुँध, धुँधक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.धूम्र + अंध)
हवा में उड़ती हुई धूल।


धुँध, धुँधक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.धूम्र + अंध)
इस धूल से होनेवाला अँधेरा।


धुँध, धुँधक
संज्ञा
स्त्री.
(सं.धूम्र + अंध)
मंद दृष्टि का रोग।


धुँधका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ)
धुआँ निकलने का छेद।


धुँधकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुँकार)
गरज गड़गड़ाहट।


धुँधकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुँकार)
अँधेरा, अंधकार।


धुँधर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
गर्द, गुबार।


धुँधर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
धूल के उड़ने से होनेवाला अंधेरा।
उ.—तृनाबर्त बिपरीत महाखल सो नृपराय पठायौ। चक्रवात ह्वै सकल घोष मैं रज धुंधर ह्वै छायौ— सारा. ४२८।


धुँधली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
मंद ज्योति।


धुँधाना
क्रि. अ.
[हिं. धुंध + आना (प्रत्य.)]
धुआँ देते हुए जलना।


धुँधाना
क्रि. अ.
[हिं. धुंध + आना (प्रत्य.)]
धुँधला होना।


धुँधाना
क्रि. स.
किसी चीज में धुआँ लगाना।


धुँधार
वि.
(हिं. धुआँधार=धुआँ + धार)
धुएँ से भरा हुआ, धूममय।
उ.—अति अगिनि-झार, भंभार धुंधार करि, उचटि अंगार झंझार छायौ—५९६।


धुँधि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
धुँधलापन, हलका अंधकार।
उ.—धुरवा धुंधि बढ़ी दसहूँ दिसि गर्जि निसान बजायौ—२८१९।


धुंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राक्षस जो कुवलयाश्व द्वारा मारा गया था।


धुंधुकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुंधु + कार)
अँधेरा।


धुंधुकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुंधु + कार)
धुँधलापन।


धुंधुकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुंधु + कार)
नगाड़े की गड़गड़ाहट।


धुँधराना
क्रि. अ.
(हिं. धुँधलाना)
धुँधला पड़ना।


धुँधलका
वि.
(हिं. धुँधला)
धएँ के रंग का।


धुँधला
वि.
(हिं. धुँध + ला)
धुँएँ की तरह हलका काला।


धुँधला
वि.
(हिं. धुँध + ला)
जो साफ न दिखायी दे।


धुँधला
वि.
(हिं. धुँध + ला)
कुछ-कुछ अँधेरा।


धुँधलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुँधला + ई)
धुँधलापन।


धुँधलाना
क्रि. अ.
(हिं. धुँधला)
धुँधला पड़ना।


धुँधलापन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुँधला + पन)
अस्पष्ट होने का भाव।


धुँधलापन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुँधला + पन)
कम दिखायी देने का भाव।


धुँधलापन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुँधला + पन)
हलका अंधकार होने का भाव।


धुंधुकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुंधु + कार)
गरज।


धुंधुरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
गर्द-गुबार धूल या आँधी के कारण होनेवाला अंधकार।


धुंधुरित
वि.
(हिं. धुंधुरि)
धुँधला किया हुआ।


धुंधुरित
वि.
(हिं. धुंधुरि)
धुँधली या मंद दृष्टिवाला।


धुंधुरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंधुरि)
आँधी से होनेवाला अँधेरा।


धुंधुरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंधुरि)
धुँधलापन।


धुंधुरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंधुरि)
दृष्टि मंद होने या कम दिखायी देने का रोग।


धुँधुवाना
क्रि. अ.
(हिं. धुआँ)
धुआँ करना।


धुँधेरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंधुरि)
अँधेरा, धुँधलापन।


धुँधेला
वि.
(हिं. धुंध + एला)
दुष्ट।


धुँधेला
वि.
(हिं. धुंध + एला)
छली।


धुँरवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुरवा)
बादल, मेघ।
उ. —उड़त धूरि धुँरवा धुर दीसत सूल सकल जलधार—१० उ. २।


धुआँ
संज्ञा
पुं.
(सं. धूम्र)
धूम।
उ.—धाम धुआँ के कहो कवन कै कवनै धाम उठाई—३३४३।
मुहा.- धुआँ देना- (१) धुआँ निकालना। ((२) धुआँ पहुँचाना।

धुआँ काढ़ना (निकालना)- बढ़बढ़कर बातें करना, शेखी हाँकना। धुआँ रमना- धुएँ का छाया रहना। मुँह धुआँ होना- चेहरा फीका पड़ जाना। (किसी चीज का) धुँआ होना- उस चीज का काला पड़ जाना।

धुआँ
संज्ञा
पुं.
(सं. धूम्र)
भारी समूह।


धुआँ
संज्ञा
पुं.
(सं. धूम्र)
धुर्रा, धज्जी


धुआँदाना
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ + दान)
धुआँ घर से बाहर निकालने का छेद।


धुआँधार
वि.
(हिं. धुआँ + धार)
धुएँ से भरा हुआ।


धुआँधार
वि.
(हिं. धुआँ + धार)
तड़क-भड़कदार, भड़कीला।


धुआँधार
वि.
(हिं. धुआँ + धार)
धुएँ के से रंग का, काला।


धुआँधार
वि.
(हिं. धुआँ + धार)
बड़े जोर का, प्रचंड, घोर, बहुत प्रभावशाली।


दफनाना
क्रि. स.
(हिं. दफन+आना)
जमीन में मुर्दा गाड़ना।


दफा
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दफअः)
बार, बेर।


दफा
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दफअः)
नियम की धारा।


दफा
वि.
(अ. दफाः)
हटाया या दूर किया हुआ।
मुहा.- रफा-दफा करना— जगड़ा निबटाना।


दफीना
संज्ञा
पुं.
(अ.)
गड़ा हुआ धन।


दफ्तर
संज्ञा
पुं.
(फा. दफ्तर)
कार्यालय।


दफ्तरी
संज्ञा
पुं.
(फा. दफ्तरी)
कार्यालय का कर्मचारी।


दफ्तरी
संज्ञा
पुं.
(फा. दफ्तरी)
जिल्दसाज।


दबंग
वि.
(हिं. दबाव)
निडर, प्रभावशाली।


दबक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबकना)
छिपने की क्रिया या भाव।


धुआँना
क्रि. अ.
(हिं. धुआँ + आना)
धुएँ की गंध आ जाने से स्वाद बिगड़ जाना।


धुआँयँध
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुआँ + गंध)
धुएँ की सी गंध।


धुआँयँध
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुआँ + गंध)
बदहज्मी की डकार, धूम।


धुआँरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ)
धुँआ बाहर जाने का छेद।


धुआँस
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुवाँस)
उरद का आटा जिससे पापड़ या कचौड़ी बनती है।


धुआँसा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ)
धुएँ की कालिख।


धुआँसा
वि.
धुएँ की सी गंधवाला।


धुआँवत
क्रि. स.
(हिं. धुलाना)
धुलाती है।
उ.—हरि स्त्रम-जल अंतर तनु भीजे ता लालच न धुआवत सारी—३४२५।


धुईं
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूनी)
धूनी।
उ.—मनहुँ धुई निर्धूम अग्नि पर तप बैठे त्रिपुरारि—१६८६।


धुएँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ)
धुआँ का विभक्ति के संयोग के उपयुक्त रुप।
मुहा.- धुएँ का धौरहर— थोड़े समय में नष्ट हो जानेवाली चीज।

धुएँ के बादल उड़ाना— गढ़-गढ़ कर बाते बनाना, गप हाँकना। धुएँ उड़ाना (बिखेरना)— टुकड़े-टुकड़े करना, नाश करना।

धुकड़पुकड़
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
घबराहट।


धुकड़पुकड़
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
आगा-पीछा, पशोपेश।


धुकड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
छोटी थैली, बटुआ।


धुकत
क्रि. अ.
(हिं. झुकना, धुकना)
झुकता है, नीचे की ओर ढलता है, नवता है।
उ.— डगमगात गिरि परत पानि पर, भुज भ्राजत नँदलाल। जनु सिर पर ससि जानि अधोमुख, धुकत नलिनि नमि नाल—१०-१४४।


धुकधुकी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धुकधुक (अनु.)]
पेट और छाती के बीच का भाग।


धुकधुकी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धुकधुक (अनु.)]
कलेजा, हृदय।


धुकधुकी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धुकधुक (अनु.)]
कलेजे की धड़कन, कंप।
उ.— (क) बिधि बिहँसत, हरि हँसत हेरि हेरि, जसुमति की धुकधकी सु उर की—१०-१८०। (ख) तनु अति कँपति बिरह अति ब्याकुल उर धुकधुकी स्वेद कीन्ही—३४४९।


धुकधुकी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धुकधुक (अनु.)]
डर, भय।


धुकधुकी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धुकधुक (अनु.)]
छाती का एक गहना, पदिक, जुगनू।


धुकना
क्रि. अ.
(हिं. झुकना)
झुकना, नवाना।


धुकना
क्रि. अ.
(हिं. झुकना)
गिर पड़ना।


धुकना
क्रि. अ.
(हिं. झुकना)
झपटना, वेग से टूट पड़ना।


धुकरना
क्रि. अ.
(अनु.)
शब्द करना।


धुकान
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धमकाना)
गर्जना, घोर शब्द।


धुकाना
क्रि. स.
(हिं. धुकना)
झुकाना, नवाना।


धुकाना
क्रि. स.
(हिं. धुकना)
गिराना।


धुकाना
क्रि. स.
(हिं. धुकना)
पटकना, हराना।


धुकाना
क्रि. स.
(सं. धूमकरण)
धूनी देना।


धुंकर, धुकारी
संज्ञा
स्त्री.
('धु' से अनु.)
नगाड़े का शब्द।


धुकि
क्रि. अ.
(हिं. झुकना)
चक्कर खाकर गिरता है, गिरकर।
उ.— (क) लेति उसास नयन जल भरि भरि, धुकि सो परै धरि धरनी—९-७३। (ख) रूंड पर रूंड धुकि परे धरि धरणी पर गिरत ज्यों संग कर बज्र मारे—१० उ. २१।


धुजिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वजा)
सेना , फौज।


धुडंग, धुडंगा
वि.
(हिं. धूर + अंग)
नंगा।


धुत
अव्य.
(हिं. दुत)
घृणा या तिरस्कार-सूचक शब्द।


धुत
अव्य.
(हिं. दुत)
घृणा या तिरस्कार से हटाने का शब्द।


धुतकार
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दुतकार)
तिरस्कार, फटकार।


धुतकारना
क्रि. स.
(हिं. दुतकारना)
घृणा या तिरस्कार से हटाना।


धुतकारना
क्रि. स.
(हिं. दुतकारना)
धिक्कारना।


धुताई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूर्त्तता)
वंचकता, चालबाजी, ठगपना, चालाकी।
उ.— तोसौं कहा धुताई करिहौं। जहाँ करी तहँ देखी नाहीं, कह तोसौं मैं लरिहौं—५३७।


धुतू
संज्ञा
पुं.
(हिं. धूतू)
‘तुरही’ नामक बाजा।


धुतूरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धतूरा)
धतूरे का पेड़।


धुक्कन
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
घोर शब्द।


धुक्कन
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
नगाड़े का घोर शब्द।


धुक्कना
क्रि. अ.
(हिं. धुकना)
झुकना।


धुक्कना
क्रि. अ.
(हिं. धुकना)
गिरना।


धुक्कारना
क्रि. स.
(हिं. धुकाना)
झुकाना।


धुक्कारना
क्रि. स.
(हिं. धुकाना)
गिराना।


धुगधुगी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुकधुकी
धड़कन, स्पंदन।


धुज
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्वजा)
पताका।
उ.— हुमासन धुज जात उन्नत बहयौ हर दिसि बाउ— सा. उ. ४०।


धुजा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. ध्वजा)
पताका, झंडा।
उ.—(क) धर्म-धुजा अंतर कछु नाहीं, लोक दिखावत फिरतौ—१-२०३। (ख) गरजत रहत मत्त गज चहुँ दिसि छत्र-धुजा चहुँ दीस—९-७५।


धुजानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वजा)
सेना।


धुत्ता
संज्ञा
पुं.
(सं. धूर्त्तता)
छल-कपट, दुष्टता।


धुधकार, धुधुकारी, धुधुकी
संज्ञा
स्त्री.
('धुधु' से अनु)
‘धू-धू’ की ध्वनि।


धुधकार, धुधकारी, धुधकी
संज्ञा
स्त्री.
('धुधु' से अनु)
गरज, गड़गड़ाहट।


धुन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काँपने की क्रिया या भाव, कंपन।


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुनना)
लगन, तीव्र इच्छा।
यौ.— धुन का पक्का— सच्ची लगनवाला जो किसी काम को शुरू करके किसी भी दशा में अधूरा न छोड़े।


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुनना)
मन की मौज, तरंग


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुनना)
सोच-विचार, चिंता।


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
गाने का तर्ज या ढंग।


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
एक राग।


धुन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
ध्वनि।


धुनकना
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
धुनकी से रूई साफ करना।


धुनकना
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
खूब मारना-पीटना।


धुनकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धनुस)
रूई साफ करने का धनुष की तरह का एक औजार, पिंजा, फटका।


धुनकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धनुस)
छोटा धनुष।


धुनति
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
मारती-पीटती है।
मुहा.- सिर धुनति— शोक या पश्चाताप की अधिकता से सिर पीटती है। उ.— बारबार सिर धुनति बिसूरति बिरह ग्राह जनु भखियाँ— २७६६।


धुनना
क्रि. स.
(हिं. धुनकी)
धुनकी से रूई साफ करना।


धुनना
क्रि. स.
(हिं. धुनकी)
खूब मराना-पीटना।
मुहा.- सिर धुनना- शोक या पश्चाताप की अधिकता से सिर पीटकर रोना या विलाप करना।


धुनना
क्रि. स.
(हिं. धुनकी)
बार बार कहते जाना।


धुनना
क्रि. स.
(हिं. धुनकी)
बराबर काम करते जाना।


धुनवाना
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
धुनने का काम दूसरे से कराना।


धुनवी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुनकी)
धुनकी।


धुना
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुनना)
रूई धुननेवाला।


धुनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
ध्वनि, शब्द।


धुनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नदी।


धुनि
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
धुनकर, पीटकर।
मुहा.- माथौ (सिर) धुनि— शोक या पश्चात्ताप से माथा या सिर पीटकर, पछताकर। उ.— (क) पटकि पूँछ माथौ लौटै लखी न राघव नारि— ९-७५। (ख) हरि बिन को पुरवै मो स्वारथ ? मीड़त हाथ, सीस धुनि ढोरत, रूदन करत नृप, पारथ— २८७। (ग) इतनौ बचन सुनत सिर धुनि कै बोली सिया रिसाइ— ९-७७। (घ) सभा माँज असुरनि के आगै सिर धुनि धुनि पछितायौ— १०-६०। (ङ) रोहिनि चितै रही जसुमति तन सिर धुनि धुनि पछितानी— ३९५।


धुनियत
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
पीटते हैं।
मुहा.- सिर धुनियत— शोक या पश्चात्ताप से सिर पीटते हैं। उ.— ह्हाँऊ जाई अकाज करैगे गुन गुनि गुनि सिर धुनियत— पृ. ३२६ (५८)।


धुनियाँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुनना)
रूई धुनकनेवाला।


धुनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
ध्वनि, शब्द।
उ.—ग्रह-लगन-नषत-पल सोधि, कीन्ही बेद-धुनी—१०-२४।


धुनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नदी।


धुनीनाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सागर, समुद्र।


धुनेहा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुनियाँ)
रूई धुननेवाला।


धुनै
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
धुनता है, पीटता है।
मुहा.- सीस धुनै— शोक या पश्चात्ताप से सिर धुनता है। उ.— नगन न होति चकित भयौ राजा सीस धुनै कर मारै— १-२५७।


धुपधुप
वि.
(हिं. धूप)
साफ।


धुपधुप
वि.
(हिं. धूप)
चमकीला।


धुपना
क्रि. अ.
(हिं. धुलना)
धोया जाना, धुलना।


धुपाना
क्रि. स.
(हिं. धूप =एक सुगंधित पदार्थ)
धूप के धुएँ से सुगंधित करना।


धुपाना
क्रि. स.
(हिं. धूप =सूर्य का ताप)
धप दिखाकर सुखाना या तपाना।


धुपेना
संज्ञा
पुं.
(हिं. धूप+एना(प्रत्य.)
‘धूप’ नामक सुगंधित पदार्थ सुलगाने का पात्र, धूपदानी।


धुप्पस
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
बनावटी धौंस।


धुबला
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लहँगा, घाघरा।


धुमई
वि.
[सं. धूम्र + ई (प्रत्य.)]
धुएँ के रंग का।


धुमई
संज्ञा
पुं.
धुएँ के से रंग का बैल।


धुमरा
वि.
(हिं. धूमिल)
धुएँ की तरह लाली लिये हल्के काले रंग का।


धुमरा
वि.
(हिं. धूमिल)
धुँधला।


धुमला
संज्ञा
पुं.
(सं. धूम्र + ला)
अंधा।


धुमलाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धूमिल + आई (प्रत्य.)]
धूमिल होने का भाव।


धुमलाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धूमिल + आई (प्रत्य.)]
अँधेरा, अंधकार।


धुमारा
वि.
(सं. धूम्र + आरा)
धुएँ के रंग का।


धुमिला
वि.
(हिं. धूमिल)
धुँधला।


धुमिला
वि.
(हिं. धूमिल)
धुएँ के रंग का।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
भार या बोझ के नीचे पड़ना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
दाब में आ जाना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
हार मानकर पीछे हटना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
विवश होना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
तुलना में कम जँचना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
बात या विषय का अधिक फैल न सकना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
शांत रहना, बढ़ न पाना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
दूसरे के अधिकार में होना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
धीमा या मंद पड़ना।


दबना
क्रि. स.
(सं. दमन)
संकोच करना।


धुमिलाना
क्रि. अ.
(हिं. धूमिल)
धूमिल या काला होना।


धुरंधर
वि.
(सं.)
भारी, बड़ा।


धुरंधर
वि.
(सं.)
श्रेष्ठ।


धुरंधर
संज्ञा
पुं.
बोझ ढोनेवाला।


धुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
गाड़ी का धुरा।


धुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
मुख्य स्थान।


धुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
भार, बोझ।


धुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
बैलों के कंधे का जुआ।


धुर
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
आरंभ।
उ.— धुर ही ते खोटो खायौ है लिए फिरत सिर भारी—३३४०।
मुहा.- धुर सिरे से— बिलकुल नये सिरे से।


धुर
अव्य.
बिलकुल सीधा, न इधर का न उधर का।


धुर
अव्य.
बहुत दूर, एकदम छोर या सीमा पर।
उ.— उड़त धूरि धुरवा धुर दीसत सूल सकल जलधार—३४९५।


धुर
वि.
(सं. ध्रुव)
दृढ़, पक्का।


धुरजटी
संज्ञा
पुं.
(सं. धूर्जटी)
शिव, महादेव।


धुरना
क्रि. स.
(सं. धूर्वण)
मारना-पीटना।


धुरना
क्रि. स.
(सं. धूर्वण)
बजाना।


धुरपद
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्रुपद)
एक प्रकार का गीत।
उ.—ध्रुवा छंद धुरपद जस हरि को हरि ही गाय सुनावत—१०८२।


धुरवा
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर् + वाह)
बादल, मेघ।
उ.— (क) उड़त धूरि धुरवा धुर दीसत सूल सकल जलधार—३४९५। (ख) धुरवा धुन्धि बढ़ी दसहूँ दिसि गर्जि निसान बजायौ—२८१९। (ग) कारी घटा देखि धुरवा जनु बिरह लयौ करता जनु—२८७२।


धुरा
संज्ञा
पुं.
(सं. धुर)
पहिये, गाड़ी आदि के बीचोंबीच का डंड़ा, अक्ष।


धुरा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भार, बोझ।


धुरियाधुरंग
वि.
(देश.)
जिस गाने के साथ बाजे की जरूरत न हो।


धुर्रे
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. धुर्रा)
छोटे-छोटे कण।
मुहा.- धुरें उड़ाना (उड़ा देना)— (१) नष्ट-भ्रष्ट कर डालना। (२) बहुत अधिक मारन-पीटना।


धुलना
क्रि. अ.
(हिं. धोना)
धोया जाना।


धुलवाना
क्रि. स.
(हिं. धुलना का प्रे. )
धोने का काम दुसरे से कराना।


धुलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धोना)
धोने का काम, भाव या मजदूरी।


धुलाना
क्रि. स.
(सं. धवल)
धोने का काम कराना।


धुलेंडी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूल + उड़ाना)
होली जलने के दूसरे दिन मनाया जानेवाला एक त्योहार जिस दिन खूब रंग चलता है।


धुलेंडी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूल + उड़ाना)
उक्त त्योहार का दिन।


धुव
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्रुव)
ध्रुवतारा।


धुव
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्रुव)
ध्रुव।


धुव
संज्ञा
पुं.
(हिं.)
कोप, क्रोध, गुस्सा।


धुरियाधुरंग
वि.
(देश.)
अकेला।


धुरियाना
क्रि. स.
(हिं. धुर)
धूल डालना।


धुरियाना
क्रि. स.
(हिं. धुर)
दोष दबाना।


धुरियाना
क्रि. अ.
धूल का डाला जाना।


धुरियाना
क्रि. अ.
दोष का दबाया जाना।


धुरियाम लार
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एर राग।


धुरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुरा)
छोटा धुरा।


धुरीण, धुरीन
वि.
(सं. धनुण)
बोझ या भार सँभालनेवाला।


धुरीण, धुरीन
वि.
(सं. धनुण)
मुख्य प्रधान।


धुरीण, धुरीन
वि.
(सं. धनुण)
भारी।


धुरेंडी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुलेंडी)
होली जलने के दूसरे दिन मनाया जानेवाला एक त्योहार।


धुरे
क्रि. स.
(हिं. धुरना)
बजाये।
उ.— पहुँचे जाइ राजगिरि द्वारे धुरे निसान सुदेस—१० उ. ४८।


धुरेटना
क्रि. स.
(हिं. धुर + एटना)
धूल लगाना।


धुर्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पशुओं के कंधे पर रखा जानेवाला जुआ।


धुर्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बोझ, भार।


धुर्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पहिए का धुरा।


धुर्
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धन-संपत्ति।


धुर्य
वि.
(सं.)
धुरंधर।


धुर्य
वि.
(सं.)
श्रेष्ठ।


धुर्रा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धूर)
कण, रजकण।


धुवका
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्रुवक)
गीता की टेक।


धुवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग।


धुवन
वि.
चलाने, कँपाने या हिलानेवाला।


धुवाँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ)
धूम, धुआँ।


धुवाँधज
संज्ञा
पुं.
(सं. धुम्र + ध्वज)
अग्नि।


धुवाँय
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुआँ + द्वार)
धुआँ निकलने का छेद।


धुवाँस
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूर + माष)
उरद का आटा जिससे पापड़ या कचौड़ी बनती है।


धुवाए
क्रि. स.
(हिं. धुलाना)
धुलाए, (जल से) पखराए।
उ.—कनक-थार मैं हाथ धुवाए—३९६।


धुवाना
क्रि. स.
(हिं. धुलाना)
धुलवाना।


धुस्तूर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धतूरा।


धुस्स
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्वंस)
ढेर, टीला।


धुस्स
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्वंस)
बाँध।


धूँव, धूँधि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुंध)
धूलभरी आँधी के कारण होनेवाला अँधेरा।
उ.— धूम धुंध छाई धर अंबर चमकत बिच बिच ज्वाल—६१५।


धूँधर
वि.
(सं. धुंध)
धुँधला।


धूँधर
संज्ञा
स्त्री.
हवा में छाई हुई धूल।


धूँधर
संज्ञा
स्त्री.
इस धूल के कारण होनेवाला अँधेरा।


धूँसना
क्रि. अ.
(देश.)
जोर का शब्द करना।


धूँसा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसा)
बड़ा नगाड़ा, डंका।


धू
वि.
(सं. ध्रुव)
स्थिर, अचल।


धू
संज्ञा
पुं.
ध्रुव तारा।


धू
संज्ञा
पुं.
भक्त ध्रुव।


धू
संज्ञा
पुं.
धुरी।


धूईं
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुआँ)
धूनी।


धूक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु।


धूक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काल।


धूजट
संज्ञा
पुं.
(हिं. धूर्जटी)
शिव, महादेव।


धूत
वि.
(सं.)
हिलता या काँपता हुआ।


धूत
वि.
(सं.)
जो डाँटा गया हो।


धूत
वि.
(सं.)
छोड़ा हुआ, त्यागा हुआ।


धूत
वि.
(सं. धूर्त्त)
धूर्त, काइयाँ।
उ.— (क) लंपट, धूत, पूत दमरी कौ, बिषय-जाप कौ जापी—१-१४०। (ख) ऐसेई जन धूत कहावत। (ग) सूरस्याम दीन्हैं ही बनिहै बहुत कहावत धूत—५३६। (घ) धूत धौल लंपट जैसे हरि तैसे और न जानैं—३३६६।


धूत
वि.
(सं. धुर्त्त)
मायावी, छली, कपटी।
उ.—भए पांडवनि के हरि दूत। गए जहाँ कौरवपति धूत—१-२३७।


धूतना
क्रि. स.
(हिं. धूर्त)
धोखा देना।


धूतपाप
वि.
(सं.)
जिसके पाप दूर हो गये हों।


धूतपापा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
काशी की एक प्राचीन नदी जो अब सूख गयी है।


धूता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पत्नी, भार्या।


धूति
क्रि. स.
(हिं. धूतना)
धूर्तता करके, धोखा देकर, ठगकर।
उ.— हौं तव संग जरौंगी, यौं कहि, तिया धूति धन खायौ—२-३०।


धूती
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
एक चिड़िया।


धूतो
वि.
(सं. धूर्त्त)
धोखा देनेवाला, धूर्त्त।


धूत्यौ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूर्त्तता)
वंचकता, चालबाजी, ठगपना।
उ.— तुमसौं धूत्यौ कहा करौं, धूत्यौ नहिं देख्यौ—५८९।


धू धू
संज्ञा
पुं.
(अनु.)
आग की लपट उठने का शब्द।


धून
वि.
(सं.)
कंपित।


धूनक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिलाने-डुलानेवाला।


धूनना
क्रि. स.
(हिं. धूनी)
जलाकर धूनी देना।


धूनना
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
रूई साफ करना।


धूनना
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
मारना-पीटना।


धूनियत
क्रि. स.
(हिं. धुनना)
धूनी देते हैं।


धूनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुआँ)
किसी सुगंधित द्रव्य या साधारण वस्तु को जलाकर उठाया हुआ धुआं।
मुहा.- धूनी देना— जलाकर धुआँ उठाना और उससे सेंकना।


धूनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुआँ)
वह आग जिस तापने या शरीर को तपाने के लिए साधु चारों ओर जलाये रहते हैं।
मुहा.- धूनी जगना (लगना)- (साधुओं के तापने की) आग जलना।

धूनी जगाना (लगाना)— (१) साधुओं का अपने सामने आग जलाना। (२) शरीर तपाना। (३) साधु या विरक्त होना। धूनी रमाना— (१) आग से शरीर को तपाना। (२) साधु या विरक्त होना।

धूप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुगंधित पदार्थों का धुआँ।
उ.—प्रति-प्रति गृह तोरन ध्वजा धूप। सजे सजल कलस अरु कदलि यूप—९-१६६।


धूप
संज्ञा
स्त्री.
वह द्रव्य जिसका धुआँ सुगंधित हो।


थान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान)
चौपायों के बाँधने का स्थान।


थानक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानक)
स्थान, ठौर।


थानक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानक)
नगर


थानक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानक)
थाला, थाँवला।


थानक
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानक)
फेन, झाग।


थाना
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान, हि. थान)
ठिकने-बैठने का ठौर।


थाना
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान, हि. थान)
पुलिस कीं चौकी।


थाना
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान, हि. थान)
बाँस का समूह या उसकी कोठी।


थानी
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानिन्)
स्थान का स्वामी या अधिकारी।


थानी
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थानिन्)
दिशाओं का स्वामी या रक्षक, दिक्पाल।


दबक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबकना)
सिकुड़न।


दबकना
क्रि. अ.
(हिं. दबाना)
डर के मारे छिपना।


दबकना
क्रि. अ.
(हिं. दबाना)
लुकना, छिपना।


दबकना
क्रि. स.
(सं. दर्प)
डाँटना-डपटना, घुड़कना।


दबंका
संज्ञा
पुं.
(हिं. दबकना)
सुनहरा-रुपहला तार।


दबकाना
क्रि. स.
(हिं. दबकना का प्रे.)
छिपाना, आड़ में करना।


दबकाना
क्रि. स.
(हिं. दबकना का प्रे.)
डाँटना।


दबकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दबकना)
छिपना, दुबकना।
मुहा.- दबकी मारना— छिप जाना।


दबगर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
ढाल आदि बनानेवाला।


दबदबा
संज्ञा
पुं.
(अ.)
रोबदाब, आतंक।


धूप
संज्ञा
स्त्री.
सूर्य का प्रकाश और ताप, घाम।
मुहा.- धूप खाना— धूप में खड़े होना, धूप में तरना।

धूप खिलाना— धूप में तपाना। धूप चढ़ना— (१) धूप फैलना। (२) ज्यादा समय दीतना। धूप दिखाना— धूप में रखना या तपाना। धूप में बाल सफेद करना— बूढ़ा होना, पर जीवन का अनुभव न होना। धूप लेना— धूप में खड़े होना।

धूपघड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूप + घड़ी)
धूप में छाया से समय जानने का यंत्र।


धूपछाँह
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूप + छाँह)
एक कपड़ा जिसमें एक स्थान पर कभी एक रंग जान पड़ता है, कभी दूसरा।


धूपदान
संज्ञा
पुं.
(सं. धूप + आधान)
‘धूप’ नामक सुगंधित द्रव रखने या जलाने का पात्र।


धूपदानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूपदान)
‘धूप’ नामक सुगंधित द्रव्य रखने या जलाने का छोटा पात्र।


धूपन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूप देने की क्रिया।


धूपना
क्रि. अ.
(सं. धूपन)
सुगंधित द्रव्य जलने से धुआँ उठना।


धूपना
क्रि. स.
गंध-द्रव्य जलाकर उसके धुएँ से वातावरण को सुगंधित करना।


धूपना
क्रि. स.
(सं. धूपन)
दौड़ना, हैरान होना।


धूपपात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूप जलाने का पात्र।


धूपबत्ती
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूप + बत्ती)
गंध-द्रव्य लगी सींक या बत्ती जिसको जलाने से वातावरण सुगन्धित हो जाता है।


धूपवास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्नान के पीछे सुगंधित धुएँ में कुछ काल तक रहकर शरीर को बसाने की प्राचीन प्रथा।


धूपपायित, धूपित
वि.
(सं.)
धूप या सुगंधित धुएँ से बसाया हुआ।


धूपपायित, धूपित
वि.
(सं.)
हैरान या थका हुआ, श्रांत।


धूम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुआँ, धूआँ।
उ.—बादर-छाहँ, धूम-धौराहर, जैसै थिर न रहाहीं—१-३१९।
मुहा.- धूम के हाथी— तुरंत नष्ट हो जाने या किसी उपयाग में न आनेवाली वस्तु। उ.— देखत भले काज को जैसे होत धूम के हाथी— ३३२०।


धूम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अजीर्ण की डकार।


धूम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विशेष पदार्थो का धुआँ जो रोगियों के लिए प्रस्तुत किया जाता है।


धूम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूमकेतु।


धूम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उल्कापात।


धूम
संज्ञा
स्त्री.
रेलपेल, हलचल।


धूम
संज्ञा
स्त्री.
उपद्रव, उत्पात।


धूम
संज्ञा
स्त्री.
भीड़-भाड़, ठाटबाट, सजधज।


धूम
संज्ञा
स्त्री.
शोरगुल, कोलाहल।


धूम
संज्ञा
स्त्री.
प्रसिद्ध, जनरव।


धूमक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुआँ, धूम।


धूमकधैया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूम)
उपद्रव, उत्पात।


धूमकधैया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूम)
मार-पीट।


धूमकधैया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूम)
कूटना-पीटना।


धूमकेतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि।


धूमकेतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केतु ग्रह।


धूमकेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि।


धूमकेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केतु ग्रह, पुच्छल तारा।


धूमकेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव।


धूमकेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घोड़ा जिसकी पूँछ में भँवरी हो।


धूमकेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण की सेना का एक राक्षस।


धूमग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राहु ग्रह।


धूमज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुएँ से बनाबा दल।


धूमदर्शी
वि.
(सं. धूमदशिर्न्)
जिसे धुँधला दिखायी दे।


धूमधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि, आग।


धूमवाम
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. धूम + धाम (अनु.)]
ठाट-बाट, साज-बाज और तैयारी, समारोह।


धूमावती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दस महाविद्याओं में एक।


धूमित
वि.
(सं.)
जिसमें धुआँ लगा हो।


धूमिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दिशा जिसमें सूर्य जाने को हो।


धूमिल
वि.
(सं. धूमल)
धुएँ के रंग का।


धूमिल
वि.
(सं. धूमल)
धुँधला।
उ.—मुख अरबिंद धार मिलि सोभित धूमिल नील अगाध। मनहुँ बाल-रवि रस समीर संकित तिमिर कूट ह्वै आध।


धूमी
वि.
(सं. धूमिन)
धुएँ से भरा हुआ।


धूमोत्थ
वि.
(सं.)
धुएँ से निकला हुआ।


धूम्र
वि.
(सं.)
धुएँ के रंग का।


धूम्र
संज्ञा
पुं.
ललाई लिए काला रंग, धुएँ का रंग।


धूम्र
संज्ञा
पुं.
शिव जी।


धूमरि, धूमरी
वि.
स्त्री.
(सं. धूमल)
धुएँ के रंग की, लालिमा युक्त काले रंग की।
उ.—(क) अपनी अपनी गाइ ग्वाल सब आनि करौ इकठौरी। धौरी धूमरि, राती, रौंछी, बोल बुलाइ चिन्हौरी। (ख) आपुस मैं सब करत कुलाहल, धौरी, धूमरि, धेनु बुलाए—४४७।


धूमल
वि.
(सं.)
धुएँ के रंग का।


धूमला
वि.
(सं. धूमल)
धुएँ के रंग का।


धूमला
वि.
(सं. धूमल)
धुँधले रंग का, जो चटक न हो।


धूमला
वि.
(सं. धूमल)
मलिन कांतिवाला, जिसकी कांति फीकी पड़ गयी हो।


धूमवान
वि.
(सं. धूमवत्)
धुएँ से युक्त।


धूमसी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उरद का आटा, धुआँस।


धूमांग
वि.
(सं.)
धुएँ के से अंगवाला।


धूमाग्नि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आग जिसमें लपट न हो।


धूमाभ
वि.
(सं.)
धुएँ के रंग का।


धूमधामी
वि.
[हिं. धूमधाम]
जो खूब धूमधाम से हो।


धूमधामी
वि.
[हिं. धूम ]
नटखट, उपद्रवी।


धूमध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आग, अग्नि।


धूमपथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुआँ निकलने का रास्ता।


धूमप्रभा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक नरक जहाँ सदा धुआँ भरा रहता है।


धूमयोनि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुएँ से बना बादल।


धूमर
वि.
(सं. धूमल)
धुएँ के रंग का।


धूमर
संज्ञा
स्त्री.
धुमैले रंग की गाय।
उ.—धौरी धूमर काजर कारी कहि कहि नाम बुलावै—१-७९।


धूमरज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुएँ की कालिख।


धूमरा
वि.
(सं. धूम)
धुएँ के रंग का।


धूर्त्त
वि.
(सं.)
छली।


धूर्त्त
वि.
(सं.)
धोखेबाज।


धूर्त्त
संज्ञा
पुं.
एक प्रकार का शठ नायक (साहित्य)।


धूर्त्त
संज्ञा
पुं.
धतूरा।


धूर्त्त
संज्ञा
पुं.
जुआरी।


धूर्त्त
संज्ञा
पुं.
काँइयाँ।


धूर्त्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुआरी।


धूर्त्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गीदड़।


धूर्त्तता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चालाकी, ठगपना।


धूर्वर
वि.
(सं.)
बोझ ढोनेवाला, भारवाही।


धूरडाँगर
संज्ञा
पुं.
(देश.)
सींगवाला चौपाया।


धूरत
वि.
(सं. धूर्त्त)
धोखा देनावाला।


धूरत
वि.
(सं. धूर्त्त)
छली।


धूरधान
संज्ञा
पुं.
(हिं. धूल + धान)
गर्द का ढेर।


धूरधानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूरधान)
गर्द की ढेरी।


धूरधानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूरधान)
नाश।


धूरसंझा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूलि + संध्या)
संध्या।


धूरा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूल)
धूल, गर्द, चूरा, रज।
मुहा.- धूरा देना— अपने अनुकूल करना।


धूरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूल)
धूल, रज, गर्द।
उ.—(क) ससि सन्मुख जो धूरि उड़ावै उलटि ताहि कैं मुख परै—१-२३४। (ख) हरि की माया कोउ न जानै, आँखि धूरि सी दीन्हीं—६९४।
मुहा.- धूरि बठीरत— व्यर्थ का काम करना, देमतलब का काम करना। उ.— कबहूँ मग-मग धूरि बटोरत, भोजन कौ बिलखात— २-२२।


धूर्जटि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी, महादेव।


धूम्र
संज्ञा
पुं.
श्रीराम की सेना का एक भालू।


धूमर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऊँट।


धूम्रलोचन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कबूतर।


धूमवर्ण
वि.
(सं.)
धुएँ के रंग का।


धूमवर्ण
संज्ञा
पुं.
ललाई लिए काला रंग।


धूम्रवर्ण
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अग्नि की एक जिह्वा।


धूम्राक्ष
वि.
(सं.)
जिसकी आँखें धुँधले रंग की हों।


धूर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धूल)
धूल, रेण, रज।


धूर
अव्य.
(हिं. धुर)
सीधा, न इधर न उधर।


धूरजटी
संज्ञा
पुं.
(सं. धूर्जटि)
शिवजी, महादेव।


दबवाना
क्रि. स.
(हिं. दबना का प्रे.)
दबाने का काम दूसरे से कराना।


दबाऊ
वि.
(हिं दबना)
दबानेवाला।


दबाऊ
वि.
(हिं दबना)
दब्बू, बोझ से झुका हुआ।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
बोझ के नीचे लाना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
दबाकर जोर पहुँचाना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
पीछे हटाना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
गाड़ना, दफनाना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
प्रभाव या दबाव से कुछ करने को विवश करना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
तुलना में एक चीज को मात कर देना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
किसी बात को फैलने न देना।


धूसग्ति
वि.
(सं.)
जो धूल से मटमैला हो गया हो।


धूसग्ति
वि.
(सं.)
जिसमें धूल लगी हो।


धूसरे, धूसरो, धूसल,धूसला, धूसलो
वि.
(सं. धूसर)
मटीला।


धूसरे, धूसरो, धूसल,धूसला, धूसलो
वि.
(सं. धूसर)
धूल भरा।


धृक, धृग
अव्य.
(सं. धिक्, पुं. हिं. धृक)
धिक्, लानत, धिक्कार।
उ.—धृग तव जन्म, जियन धृग तेरौ, कही कपट-मुख बाता—९-४९। (ख) तुमहिं बिना मन धृक अरु धृक घर। तुमहिं बिना धृक धृक माता पितु धृक धृक कुल की कान लाज डर—१२९६। (ग) धृग मोको धृग मेरी करनी तब हीं क्यों न मरथौ—२५५२। (घ) मार-मार कहि गारि दै धृग गाइ चरैया—२५७५। (ङ) मारि डारै कहा बंदि को जीवन धृग मीच हमको नहीं मनन भूल्यौ—२६२४।


धृत
वि.
(सं.)
पकड़ा हुआ।


धृत
वि.
(सं.)
ग्रहण या धारण किया हुआ।


धृत
वि.
(सं.)
स्थिर य़ा निश्चित किया हुआ।


धृत
वि.
(सं.)
पतित, पापी।


धृतराष्ट्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुर्योधन के पिता जो विचित्रवीर्य के पुत्र थे।


धूसना
क्रि. स.
(सं. ध्वंसन)
मसलना।


धूसना
क्रि. स.
(सं. ध्वंसन)
ठूसना।


धूसर
वि.
(सं.)
धूल से सना हुआ, धूल से भरा ङुआ, जिसके धूल लगी हो।
उ.—(क) हौं बलि जाउँ छबीले लाल की। धूसर धूरि धुटुरुवनि रेंगनि, बोलनि बचन रसाल की—१०-१०५। (ख) सखि री, नंदनंदन देखु। धूरि धूसर जटा जुटली, हरि किए हरभेषु—१०१७०। (ग) बिहरत बिबिध बालक संग। डगनि डगमग पगनि डोलत, धूरि-धूसर अंग—१०-१८४।


धूसर
यौ.
धूल-धौसर—धूल से सना या भरा हुआ।


धूसर
वि.
(सं.)
धूल के रंग का, मटमैला, मटीला।


धूसर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मटमैला या मटीला रंग।


धूसर
संज्ञा
पुं.
गधा।


धूसर
संज्ञा
पुं.
ऊँट।


धूसरा
वि.
(सं. धूसर)
मटमैला, मटीला।


धूसरा
वि.
(सं. धूसर)
जिसमे धूल लगी हो, धूल से भरा हुआ।


धूर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


धूल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूलि)
रज, गर्द, रेण।
मुहा.- (कहीं) धूल उड़ना— (१) तबाही आना। (२) चहल पहल न रहना।

(किसी की) धूल उड़ना— (१) बुराइयों का प्रकट किया जाना। (२) उपहास होना। (किसी की) धूल उड़ाना— (१) दोषों को प्रकट करना। (२) हँसी उड़ाना। धूल उड़ाते फिरना— (१) मारे-मारे धूमना। (२) दीन दशा में परेशान धूमना। धूल की लस्सी बटना— बेकार का परिश्रम करना। धूल चाटना— (१) बहुत बिनती करना। (२) बहुत नम्रता दिखाना। धूल छानना— मारे-मारे धूमना। धूल झड़ना— मार पड़ना, पिटना। धूल झाड़ना— (१) मारना-पीटना। (२) खुशामद करना। धूल डालना— (१) (किसी बात को) दबाना या फैलने न देना। (२) ध्यान देना। धूल फाँकना— (१) मारे-मारे फिरना। (२) सरासर झुठ बोलना। धूल बरसना— चहल-पहल, रौनक न रहना। धूल में मिलना— नष्ट हो जाना। धूल में मिलाना— नष्ट करना। (कहीं की) धूल ले डालना— (कहीं पर) बहुत बार पहुँचना। पैर की धूल— बहुत तुच्छ चीज। धूल सिर पर डालना— बहुत पछताना।

धूल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूलि)
धूल के बराबर तुच्छ चीज।
मुहा.- धूल समझना— कुछ न गिनना।


धूलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जहर, विष।


धूलधानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धुल + धान)
नाश, विनाश।


धूला
संज्ञा
पुं.
(देश.)
टुकड़ा, खंड।


धूलि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धूल, गर्द, रज।


धूलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कणों की झड़ी।


धूलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुहरा।


धूलिध्जव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वायु।


धेन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र।


धेन, धेनु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हाल की बच्चाजनी गाय, सवत्सा गाय।


धेन, धेनु
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गाय।
उ.— कदली कंटक, साधु असाधुहिं, केहरि कैं सँग धेनु बँधाने। यह बिपरीत जानि तुम जन की, अंतर दै विच रहे लुकाने—१-२१७।


धेनुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राक्षस जिसे बलदेव जी ने मारा था।
उ.— धेनुक असुर तहाँ रखवारी।¨¨¨¨। पकरि पाइँ बलभद्र फिरायौ। मारि ताहि तरू माहिं गिरायौ—४९९।


धेनुक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तीर्थ।


धेनुमती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गोमती नदी।


धेनुमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गोमुख नामक बाजा।


धेनुष्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गाय जो बंधक रखी हो।


धेय
वि.
(सं.)
धारण करने योग्य।


धेय
वि.
(सं.)
लालन-पालन करने योग्य।


धृतराष्ट्री
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धृतराष्ट्र की स्त्री।


धृतव्रत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्रत करनेवाला।


धृतात्मा
वि.
(सं. धृतात्मन्)
धीर, धैर्यवान्।


धृतात्मा
संज्ञा
पुं.
धीर व्यक्ति।


धृतात्मा
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


धृति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धरने पकड़नेवाला।


धृति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्थिर रहने की क्रिया या भाव।


धृति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धैर्य, धीरता।


धृती
वि.
(सं. धृतिन्)
धीर, धैर्यवान्।


धृष्ट
वि.
(सं.)
निर्लज्ज।


धृष्ट
वि.
(सं.)
अनुचित साहस करनेवाला, ढीठ, उद्वत।


धृष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ढिठाई।


धृष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
निर्लज्जता।


धृष्टद्युम्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा द्रुपद का पुत्र जो पांडवों की सेना का नायक था।


धृष्णता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धृष्टता।


धृष्णत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धृष्टता।


धृष्णि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किरण।


धृष्णु
वि.
(सं.)
ठीठ, उद्धत।


धृष्णु
वि.
(सं.)
प्रगल्भ।


धेन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नद।


धेय
वि.
(सं.)
पीने योग्य।


धेयना
क्रि. अ.
(सं. ध्यान)
ध्यान करना।


धेरा
वि.
(देश.)
भेंगा।


धेलचा, धेला
संज्ञा
पुं.
(हिं. अधेला)
आधा पैसा।


धेली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. अधेल)
आधा रूपया।


धैंताल
वि.
(अनु धै + हिं. ताल)
चपल, चंचल।


धैंताल
वि.
(अनु धै + हिं. ताल)
उजड्ड, गँवार।


धैन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धेनु)
गाय, धेनु।
उ.— चहुँ ओर चतुरंग लच्छमी, कोटिक दुहियत धेन री—१०-१३६।


धैनव
वि.
(सं.)
गाय से उत्पन्न।


धैनव
संज्ञा
पुं.
गाय का बछड़ा।


धोंधा
संज्ञा
पुं.
(सं. ठुंढि)
बेडौल पिंड, लोंदा।


धोंधा
संज्ञा
पुं.
(सं. ठुंढि)
भद्दा और बेडौल शरीर।
मुहा.- मिट्टी का लोंदा— (१) मूर्ख। (२) निकम्मा।


धो
क्रि. स.
(हिं. धोना)
पानी से साफ करो, पखारो।


धो
क्रि. स.
(हिं. धोना)
दूर करो, हटाओ, मिटाओ, मिटा दो।
मुहा.- धो बहाओ— मिटा दो, न रहने दो।


धोइ
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोकर।
उ.— चरन धोइ चरनोदक लीन्हौं—१-२३९।


धोइ
क्रि. स.
(हिं. धोना)
बहाकर, मिटाकर।
उ.— मेघ परस्पर यहै कहत हैं धोइ करहु गिरि खादर—९४९।


धोइ
प्र.
धोइ डारै—दूर कर दिये, हटाये, मिटा दिये।
उ.—पतित अजामिल, दासी कुब्जा, तिनके कलिमल डारे धोइ—१९५।


धोइ
प्र.
धोइ डारौ—मिटा दूँ, बहा दूँ।
उ.—जल बरषि ब्रज धोइ डारौं लोग देउँ बहाइ—९४३।


धोइऐ
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धो डालो।
उ.— लाल उठौ मुख धोइऐ, लागी बदन उघारन—४३९।


धोई
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धो लेना, छुड़ा सकना।
उ.— सेत, हरौ, रातौ अरू पियरौ रंग लेत है धोई। कारौ अपनौ रंग न छाँड़ौ, अनरँग कबहुँ न होई—१-६३।


धैना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना या धंधा)
आदत, स्वभाव।


धैना
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धरना या धंधा)
काम-धंधा।


धैनु
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धेनु)
गाय, धेनु।
उ.— बार-बार हरि कहत मनहिं मन, अबहिं रहे सँग चारत धेनु—५०१।


धैबो
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धाना)
धाने या दौड़ने की क्रिया।
उ.—कैसे हार तोरि मेरो डारयौ बिसरत नाहीं रिसकर धैबो—१०५२।


धैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धाय)
धाय, दाई, दूध पिलाकर पालनेवाली।
उ.— धन्य जसोमति त्रिभुवनपति धैया—२६३१।


धैर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धीरज, धीरता, चित्त की स्थिरता।


धैर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उतावली या हड़बड़ी न करने का भाव, संतोष।


धैर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चित्त में आवेश या उद्वेग न उत्पन्न होने का भाव।


धैवत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संगीत का छठा स्वर।


धैहौं
क्रि. अ.
(हिं. धाना)
धाऊँगा, दौड़ूँगा, तेजी से जाऊँगा।
उ.—(क) करिहौं, नहिं बिलंब कछू अब, उठि रावन सन्मुख ह्यौ धैहौं —९-१५७। (ख) देखि स्वरूप रहि न सकिहौं रथ तैं धैहों धर धाइ—२४८५।


धोई
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोकर।
उ.—पहिले की चढ़ि रह्यौ स्याम रँग छूटत नहिं देख्यौ धोई—३१४८।


धोई
वि.
धोकर साफ की हुई।


धोई
वि.
जो धो डाली गयी हो, स्वचछ।


धोई
वि.
धोकर छिलका उतारी हुई (दाल)।


धोई
संज्ञा
स्त्री.
धुली हुई उरद या मूँग की दाल।


धोई
संज्ञा
पुं.
(हिं. थवई)
राजगीर, कारीगर।


धोए
क्रि. स.
(हिं. धोना)
पखारे।
उ.—तेल लगाइ कियौ रूचि-मर्दन, बस्तर मलि-मलि धोए—१-५२।


धोक
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
छल-कपट, धोखा।


धोकड़
वि.
(देश.)
हट्टा-कट्टा, मोटा-ताजा।


धोकर
क्रि. स.
(हिं. धोना)
पानी से पखारकर।
मुहा.- हाथ धोकर पीछे पड़ना— सब काम छोड़-छाड़कर पीछे लग जाना, पूरी शक्ति से या सब ओर से निश्चिंत होकर परेशान करने में प्रवृत्त होना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
दमन या शांत करना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
अनुचित रूप से अधिकार कर लेना।


दबाना
क्रि. स.
(सं. दमन)
किसी चीज को कस कर पकड़ना।


दबाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. दबाना)
दबाने की क्रिया या भाव।


दबाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. दबाना)
रोब-दाब, प्रभाव।


दबि
क्रि. अ.
(हिं. दबना)
भार या बोझ के नीचे दबकर।
उ.—डारि न दियो कमल-कर तें गिरि दबि मरते ब्रजवासी—१६५०।


दबी
वि.
(हिं. दबना)
धीमी, मंद।
गुहा—दबी आवाज—१. बहुत मंद आवाज। २. बिना जोर दिये कही हुई बात। दबी जबान ले कहना— (१) भय आदि के कारण अस्पष्ट रूप से कुछ कहना। (२) बिना जोर दिये कहना।


दबीज
वि.
(फा)
मोटे दल का।


दबे
वि.
(हिं. दबना)
धीमें, मंद।
मुहा.- दबे-दबाये रहना— चुपचाप रहना, अधीन रहना। दबे पाँव (पैर) चलना— ऐसे चलना कि आवाज न हो।


दबीर
संज्ञा
पुं.
(फा)
लिखनेवाला, मुंशी।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
छल, धूर्त्तता, दगा।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
भ्रम, भुलावा।
उ.— आजु सखी अरूनोदय मेरे नैनन धोख भयौ। की हरि आजु पंथ यहि गौने कीधौं स्याम जलद उनयौ—१६६६।
मुहा.- धोखा खाना— ठगा जाना।

धोखा देना— (१) भ्रम या भुलावे में डालना, छलना। (२) विश्वासघात करना। (३) वियोग, मृत्यु द्वारा दुख देना।

धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
भ्रम, भ्रांति, भूल, मिथ्या प्रतीति।
मुहा.- धोखा खाना— कुछ का कुछ समझना।

धोखा पड़ना— भूल-चूक या भ्रम होना।

धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
भ्रम में डालने की असत् या मायामय वस्तु।
मुहा.- धोखा खड़ा करना (रचना)— भ्रम में डालने या भुलावा देने के लिए माया का आडंबर खड़ा करना।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
जानकारी का अभाव, अज्ञान।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
हानि या अनिष्ट की संभावना।
मुहा.- धोखा उठाना— भ्रम या असावधानी से हानि उठाना या कष्ट सहना।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
संशय, कुछ का कुछ होने की आशंका।
मुहा.- धोखा पड़ना— सोचा कुछ हो, पर होना कुछ और।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
भूल-चूक, कसर, त्रुटि।
मुहा.- धोखा लगना— कमी या कसर होना।

धोखा लगाना— कमी या कसर करना।

धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
खेत में पक्षियों को डराने-भगाने के लिए खड़ा किया जानेवाला पुतला।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
फलवाले पेड़ों पर रस्सी से बाँधी गयी लकड़ी जिससे ‘खटखट’ शब्द करके चिड़ियों को भगाया जाता है, खटखटा।


धोख, धोखा
संज्ञा
पुं.
(सं. धूकत = धूर्त्तता, हिं. धोखा)
बेसन का एक पकवान।


धोखे
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
‘धोखा’ का विभक्ति संयोग के उपयुक्त रुप।


धोखे
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
भ्रम में डालनेवाली चीज।
मुहा.- धोखे की टट्टी— (१) वह परदा या ओट जिसके पीछे छिपकर शिकार खेला जाता है। (२) भ्रम में डालनेवाली चीज। (३) निरर्थक या सारहीन वस्तु। (४) भ्रम, भ्रांति। असत धारणा। उ.— आसंन देइ बहुत करि बिनती सुत धोखे तव बुद्धि हेराई— १० उ. ११३। (२)जानकारी के अभाव या अज्ञान में।


धोखेबाज
वि.
(हिं. धोखा + फा. बाज)
छली-कपटी।


धोखेबाजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धोखाबाज)
छल-कपट।


धोखैं
संज्ञा
पुं.सवि.
(हिं. धोखा)
भ्रम, मिथ्या प्रतीति।
उ.—नील पाट पिरोइ मनि गन फनिग धोखै जाइ—१०-१७०।


धोखैं
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
अज्ञान या जानकारी के अभाव में।
मुहा.- धोखैं ही धोखैं— अज्ञानता की स्थिति में, भ्रम या असावधानी की दशा में। उ.— धोखै ही धोखैं डहकायौ। समुझि न परी, बिषय-रस गीध्यौ, हरि-हीरा घर माँज गँवायौ— १-३२६।


धोखें
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धोखा)
भूल-चूक में, प्रमाद में।
उ.—लियौ न नाम कबहुँ धोखै हूँ सूरदास पछितायौ—२-३०।


धोखो, धोखौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
छल-कपट।


धोखो, धोखौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोखा)
भ्रम।


धोड़
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का साँप।


धोतर
संज्ञा
पुं.
(सं. अधोवस्त्र)
एक मोटा कपड़ा।


धोती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. अधोवस्त्र)
एक वस्त्र जो पुरुष कमर के नीचे का अंग और स्त्रियाँ सारा शरीर ढकने के लिए पहनती हैं।
मुहा.- धोती बाँधना— (१) धोती पहनना। (२) कमर कसकर तैयार होना।

धोती ढीली करना— डरकर भागना। धोती ढीली होना— भयभीत होना।

धोती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धोती)
योग की एक क्रिया जिसमें कपड़े की एक लंबी धज्जी मुँह से निगलते है।


धोना
क्रि. स.
(सं. धावन)
पानी से साफ करना, पखारना।
मुहा.- (किसी चीज से) हाथ धोना— (उस चीज को) गँवा बैठना।


धोना
यौ.
धोना-धाना—धोकर सफाई करने की क्रिया।


धोप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धूर्वा या धर्वन)
खड्ग, तलवार |


धोब
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
धोये जाने की क्रिया।
मुहा.- धोब पड़ना— धोया जाना।


धोबइन, धोबन, धोबिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धोबी)
कपड़ा धोनेवाली स्त्री।


धोबइन, धोबन, धोबिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धोबी)
धोबी की स्त्री।


धोरी
संज्ञा
पुं.
(सं. धौरेय)
भार उठानेवाला।


धोरी
संज्ञा
पुं.
(सं. धौरेय)
बैल।


धोरी
संज्ञा
पुं.
(सं. धौरेय)
प्रधान, मुखिया।


धोरी
संज्ञा
पुं.
(सं. धौरेय)
बड़ा, श्रेष्ठ या महान व्यक्ति।


धोरे, धोरैं
क्रि. वि.
(सं. धर=किनारा)
पास, निकट, समीप।
उ.—अपराधी मतिहीन नाथ हौं चूक परी नीज धोरैं।


धोरे, धोरैं
यौ.
धोरे-धोरे—आस-पास।


धोवत
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोता है, (पानी से) स्वच्छ करता है, पखारता है।
उ.—(क) त्रियाचरित मतिमंत न समुझत, उठि प्रक्षालि मुख धोवत—९-३१। (ख) नृपति रजक अंबर नृप धोवत—२५७४।


धोवती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. अधोवस्त्र)
धोती।


धोवती
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोती, पखारती।


धोवन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
धोने का भाव।


धोबिघटा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोबी + घाट)
वह घाट जहाँ धोबी कपड़े धोते हों।


धोबी
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
कपड़े धोनेवाला।
मुहा.- धोबी का कुत्ता— निकम्मा या व्यर्थ का व्यक्ति, व्यर्थ इधर-उधर धूमनेवाला व्यक्ति।

धोबी का छैला— (१) मँगनी की या पराईं चीज लेनेवाला। (२) मँगनी की या पराई चीज पर घमंड करने या इतरानेवाला।

धोय
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोकर, पखारकर।
उ.—सूरदास हरि कृपा-बारि सौं कलिमल धोय बहावै।


धोय
क्रि. स.
(हिं. धोना)
दूर करके, मिटाकर।
उ.—साधन मंत्र जंत्र उद्यम बल यह ,सब डारौ धोय। जोकछु लिखि राखि नँदनंदन मेटि सकै नहिं कोय।


धोयौ
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोया।
उ.—धोयौ चाहत कीच भरौ पट, जल सौं रुचि नहिं मानौं—१-१९४।


धोर
संज्ञा
पुं.
(सं. धर=किनारा)
निकटता, समीपता।


धोर
संज्ञा
पुं.
(सं. धर=किनारा)
किनारा, धार, बाढ़।


धोरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सवारी।


धोरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दौड़।


धोरणि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
श्रेणी, परंपरा।


धोवन
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
वह पानी जिससे कोई चीज धोयी गयी हो।


धोवना
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोना।


धोवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
धोवन।


धोवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धोना)
जल।


धोवाना
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धुलाना।


धोवाना
क्रि. अ.
धुलना, धोया जाना।


धोवै
क्रि. स.
(हिं. धोना)
धोता है, पखारता है, प्रक्षालन करता है।
उ.— इतनक मुख माखन लपटान्यौ, डरनि आँसुवनि धोवै—३४७।


धोसा
संज्ञा
पुं.
(हिं. ठोस)
गुड़ की भेली।


धौं
अव्य.
(सं. अथवा, हिं. दँव, दहुँ)
संशयात्मक प्रश्नों के साथ प्रायः प्रयुक्त एक अव्यय, न जाने, कौन जाने, कह नहीं सकते।
उ.— (क) कलानिधान सकल गुन सागर गुरू धौं कहा पढ़ाए हो ? —१-७। (ख) काकी तिनकौं उपमा दीजै, देह धरे धौं कोइ—९-४५।


धौं
अव्य.
(सं. अथवा, हिं. दँव, दहुँ)
कि, किधौ, या, अथवा।
उ.— गुनत सुदमा जात मनहिं मन चीन्हैंगे धौं नाहीं।


धौं
अव्य.
(सं. अथवा, हिं. दँव, दहुँ)
तो, भला, कहो।
उ.— (क) भुवन चोदह खुरनि खूँदति. सु धौं कहाँ समाइ —१-५६। (ख) यह गति भई सूर की ऐसी स्याम मिलैं धौं कैसे—१-२९३। (ग) कहत बनाइ दीप की बतियाँ कैसैं धौं हम नासत—२-२५।


धौं
अव्य.
(सं. अथवा, हिं. दँव, दहुँ)
कि।


धौं
अव्य.
(सं. अथवा, हिं. दँव, दहुँ)
‘तो’ (जोर देने के लिए)।
उ.— (क) को करि सकै बराबरि मेरी सो धौं मोहिं बताउ—१-१४५। (ख) अब धौं कहो, कौन दर जाऊँ—१-१६५। (ग) कहि धौं सुक, कहा अब कीजै, आपुन भए भिखारि—८-१४।


धौंक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंकना)
आग सुलगाने के लिए भाथी से निकाला गया हवा का झोंक्रा।


धौंक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंकना)
गरम हवा का झोंका, लू।


धौंकना
क्रि. स.
(सं. धम)
आग बढ़ाने के लिए भाथी से हवा का झोंका पहुँचाना।


धौंकना
क्रि. स.
(सं. धम)
(किसी के ऊपर) भार डालना।


धौंकना
क्रि. स.
(सं. धम)
किसी पर दंड लगाना।


धौंकनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंकना)
आग फूँकने की नली या भाथी।
मुहा.- धौंकनी लगना— साँस फूलना।


धौंका
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंकना)
लू का झोंका।


धौंकिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंकना)
आग फूँकनेवाला।


धौंकी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंकना)
धौंकनी।


धौंज, धौंजा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंजना)
दौड़-धूप।


धौंज, धौंजा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंजना)
धबराहट, हैरानी, व्याकुलता।


धौंजना
क्रि. अ.
(सं. ध्वंजन)
दौड़ना-धूपना।


धौंजना
क्रि. स.
रौंदना, मसलना।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
धुनी, धुन में लगा हुआ।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
चुस्त, चालाक।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
साहसी, हिम्मती।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
मजबूत।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
तेज, पटु।


धौंताल, धौंताली
वि.
(हिं. धुन + ताल)
उपद्रवी, उधमी।


धौंधौंमा
संज्ञा
स्त्री.
(अनु. धमधम + हिं. मार)
उतावली।


धौंर
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धवल)
सफेद ईख।


धौंस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दं.)
धमकी, घुड़की।


धौंस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दं)
धाक, रोबदाब।


धौंस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दं)
भुलावा, झाँसापट्टी।


धौंसना
क्रि. स.
(हिं. धौंस)
दबाना, दमन करना।


धौंसना
क्रि. स.
(हिं. धौंस)
धमकी या घुड़की देना।


धौंसना
क्रि. स.
(हिं. धौंस)
मारना-पीटना।


धौंसपट्टी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौंस + पट्टी)
भुलावा, झाँसा।
मुहा.- धौंसपट्टी में आना— भुलावे में आना।


धौंसा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसना)
बड़ा नगाड़ा, डंका।
मुहा.- धौंसा देना (बजाना)। चढ़ाई का डंका बजाना या घोषणा करना।


धौंसा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसना)
शक्ति, सामर्थ, क्षमता।


धौंसि
क्रि. स.
(हिं. धौंसना)
धमकी या घुड़की देने के लिए, डराने-धमकाने के लिए।
उ.—राजा बड़े, बात यह समझी, तुमको हम पै धौंसि पठायौ।


धौंसिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसना)
धौंस जमानेवाला।


धौंसिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसना)
झाँसापट्टी या धोका देनेवाला।


धौंसिया
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौंसना)
नगाड़ा बजानेवाला।


धौत
वि.
(सं.)
सना हुआ, भरा हुआ, नहाया हुआ।
उ.—(क) धूरि धौत तन, अंजन नैननि, चलत लटपटी चाल—१०-११४। (ख) धूसरि धूरि धौत तनु मंडित मानि जसोदा लेत उछंगना।


धौत
वि.
(सं.)
धोया हुआ, साफ।


धौत
वि.
(सं.)
उजला, सफेद।


दबेला
वि.
[हिं. दबना + एला (प्रत्य.)]
दबा हुआ।


दबैल
वि.
[हिं. दबना + ऐल (प्रत्य.)]
दब्बू, डरपोक।


दबोचना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
पकड़ कर धर दबाना।


दबोचना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
छिपाना।


दबोरना
क्रि. स.
(हिं. दबाना)
तुलना या लड़ाई में अपने सामने न ठहरने देना।


दबोस
संज्ञा
पुं.
(देश.)
चकमक पत्थर।


दबोसना
क्रि. स.
(देश.)
शराब पीना।


दभ्र
वि.
(सं.)
थोड़ा, कम, अल्प।


दमंकना
क्रि. अ.
(हिं. दमकना)
चमकना।


दम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंमन, दंड, सजा।


धौत
संज्ञा
पुं.
रूपा, चाँदी।


धौतशिला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्फटिक, बिल्लौर।


धौतात्मा
वि.
(सं. धौतात्मन्)
पवित्रात्मा।


धौति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
शुद्धि।


धौति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
योग में शरीर को भीतर बाहर से शुद्ध करने की क्रिया।


धौम्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पांडवों के पुरोहित।


धौर
संज्ञा
पुं.
(हि. धवल)
एक सफेद चिड़िया।


धौरहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौराहर)
बुर्ज, मीनार।


धौरा
वि.
(सं. धवल)
सफेद, उजला।


धौरा
वि.
(सं. धवल)
सफेद रंग का बैल।


धौरा
वि.
(सं. धवल)
एक तरह का पंडुक नामक पक्षी।


धौरादित्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तीर्थ का नाम।


धौराहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. धुर=ऊपर + घर)
भवन का खंभेसा ऊँचा भाग जिस पर भीतरी सीढ़ियों द्वारा चढ़ते है, ऊँची अटारी, धरहरा, बुर्ज, मीनार।
उ.— जीवन जन्म अल्प सपनौ सौ, समुझि देखि मन माहीं। बादर-छाँह, धूम-धौराहर, जैसे थिर न रहाहीं—१-३१९।


धौरिय
संज्ञा
पुं.
(सं. धौरेय)
बैल।


धौरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. धौरा)
सफेद रंग की गाय, कपिला।
उ.— (क) बाँह उठाइ काजरी-धौरी गैयनि टेरि बुलावत—१०-११७। (ख) बाँह उचाइ काल्हि की नाइ धौरी धेनु बुलावहु—१०-१७९।


धौरी
वि.
सफेद, उजली, धवल।


धौरे
क्रि. वि.
(हिं. धोरे)
निकट, पास, समीप।


धौरेय
वि.
(सं.)
रथ आदि खींचनेवाला।


धौरेय
संज्ञा
पुं.
रथ या गाड़ी खीचनेवाला बैल।


धौर्त्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूर्तता।


धौलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. धौल+आई)
सफेदी।


धौलागिरि
संज्ञा
पुं.
(सं. धवलगिरि)
एक पर्वत।
उ.— धौलागिरि मानौ धातु चली बहि—२४१९।


धौली
संज्ञा
पुं.
(सं. धवलगिरि)
उड़ीसा का एक पर्वत।


ध्याइ
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान करके।


ध्याइ
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
स्मरण करके, सुमिरकर।
उ.— जातैं ये परगट भए आइ। ताकौं तू मन मैं निज ध्याइ—४-५।


ध्याई
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान लगाकर, स्मरण करके।
उ.—द्रुपद-सुता समेत सब भाई। उत्तर दिसा गए हरि ध्याई—१-२८८।


ध्याऊँ
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान करूँ, स्मरण करूँ, कामना करूँ, ध्यान में लाऊँ।
उ.—स्याम-बल-राम बिनु दूसरे देव कौं, स्वप्न हूँ माहिं नहिं हृदय ल्याऊँ। यहै जप, यहै तप, यहै मम नेम-ब्रत, यहै मम प्रेम, फल यहै ध्याऊँ—१-१६७।


ध्याए
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान किया।


ध्याए
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
स्मरण किया।
उ.—जब गज गह्यौ ग्राह जल-भीतर, तब हरि कौं उर ध्याए (हो)—१-७।


ध्यात
वि.
(सं.)
ध्यान किया या विचारा हुआ।


धौल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
चाँटा, थप्पड़।


धौल
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
हानि।


धौल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धवल)
सफेद ईख।


धौल
वि.
उजला, सफेद, श्वेत |
मुहा.- धौल धूत— पक्का धूर्त्त या काँइयाँ। उ.— धूत धौल लंपट जैसे हरि तैसे और न जानै— ३४६६।


धौल
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौराहर)
धरहरा, बुर्ज, मीनार।


धौलधक्कड़, धौल-धक्का, धौल-धप्पड़, धौल-धप्पा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौल + धक्का)
मारपीट, दंगा।


धौलधक्कड़, धौल-धक्का, धौल-धप्पड़, धौल-धप्पा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौल + धक्का)
आघात, चपेट।


धौलहर, धौलहरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. धौराहर)
बुर्ज, मीनार।


धौला
वि.
(सं. ध्वल)
सफेद, उजला।


धौला
संज्ञा
पुं.
सफेद रंग का बैल।


ध्याता
वि.
(सं. ध्यातृ)
ध्यान करनेवाला।


ध्याता
वि.
(सं. ध्यातृ)
विचार करनेवाला।


ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अंतःकरण में किसी वस्तु या व्यक्ति को उपस्थित करने की क्रिया या भाव।
मुहा.- ध्यान में डूबना (मग्न होना)— इतनी एकाग्रता से ध्यान करना कि अन्य विषयों का बोधन रहे।

ध्यान धरना— रूप आदि का स्मरण करना। ध्यान में लगना— स्मरण करके मग्न हो जाना।

ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सोच-विचार, चिंतन, मनन।


ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भावना, प्रत्यय, विचार।
मुहा.- ध्यान आंना— विचार उत्पन्न होना।

ध्यान जमना— विचार स्थिर होना। ध्यान बँधना— विचार का बहुत देर तक बना रहना। ध्यान रखना— न भूलना। ध्यान लगाना— बराबर ख्याल बना रहना।

ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चित्त, मन।
मुहा.- ध्यान में न लाना— (१) चिंता या पर-बाह न करना। (२) सोच-विचार न करना।


ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चेतना की प्रवृत्ति, चेत।
मुहा.- ध्यान जमना— चित्त का एकाग्र होना।

ध्यान जाना— बोध होना। ध्यान दिलाना— दिखाना, जताना या सुझाना। ध्यान देना— ख्याल करना, गौर करना। ध्यान पर चढ़ना- चित्त से न हटना। ध्यान बँटना— चित्त का एकाग्र न रहना। ध्यान बँटाना— चित्त को एकाग्र न रहने देना। ध्यान बँधना— चित्त एकाग्र होना। ध्यान लगना— चित्त एकाग्र होना। ध्यान लगाना— चित्त एकाग्र करना।

ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समझ, बुद्धि।
मुहा.— ध्यान पर चढ़ना (में आना)— समझ म आना।

ध्यान में जमना— विश्वास के रूप में मन में स्थिर होना।

ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धारणा, स्मृति, याद।
मुहा.- ध्यान आना— याद होना।

ध्यान दिलाना— याद दिलाना। ध्यान पर चढ़ना— याद होना। ध्यान रखना— याद रखना। ध्यान रहना— याद रहना। ध्यान से उतरना— याद न रहना, भूल जाना।

ध्यान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चित्त को एकाग्र करके किसी ओर लगाना।
मुहा.- ध्यान छूटना— चित्त की एकाग्रता न रहना। उ.— देखन लग्यौ सुत मृतक जान। रूदन करत छूटयौ रिषि ध्यान।

ध्यान धरना— चित्त को एकाग्र करके आराध्य की ओर लगाना।

ध्यानना
क्रि. स.
(हिं. ध्यान)
ध्यान करना।


ध्यानयोग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
योग जिसका प्रधान-अंग ध्यान हो।


ध्याना
क्रि. स.
(सं. ध्यान)
ध्यान करना।


ध्याना
क्रि. स.
(सं. ध्यान)
सुमरना, स्मरण करना।


ध्याना
संज्ञा
स्त्री.
राधा की एक सखी का नाम।
उ.—दर्वा रंभा कृष्णा ध्याना मैना नैना रूप—५८ ०।


ध्यानिक
वि.
(सं.)
जिसकी प्राप्ति ध्यान से हो।


ध्यानी
वि.
(सं. ध्यानिन्)
जो ध्यान मे हो।


ध्याम
वि.
(सं.)
साँवला, श्यामल।


ध्याय
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान लगाकर।


ध्यायो, ध्यायौ
क्रि. स.
(हिं. ध्यान)
ध्यान क्रिया।
उ.— सूर प्रभु-चरन चित चेति चेतन करत, ब्रह्म-शिव-सेस-सुक-सनक ध्यायौ—१-११९। (ख) मैं तो एक पुरूष कौं ध्यायौ। अरू एकहिं सौं चित्त लगायौ—४-३। (ग) तैं गोविन्द चरन नहिं ध्यायौ—४-९।


ध्यायो, ध्यायौ
क्रि. स.
(सं. ध्यान)
स्मरण किया, सुमरा।
उ.— हरिहिं मित्र-बिंदा चित ध्यायौ। हरि तहँ जाइ बिलंब न लायौ।


ध्यावत
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान करते हैं।
उ.— (क) नारदादि सनकादि महामुनि, सुमिरत मन-बच ध्यावत—९-११३। (ख) सनक संकर जाहि ध्यावत निगम अबरन बरन।


ध्यावै
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान करे।
उ.—कमल-नैन कौ छाँड़ि महातम, और देव कौ ध्यावै—१-१६८।


ध्यावै
क्रि. स.
(हिं. ध्याना)
ध्यान लगाता है।
उ.—एक निरंतर ध्यावै ज्ञानी। पुरूष पुरातन सो निर्बानी—१०-३।


ध्येय
वि.
(सं.)
ध्यान करने योग्य।


ध्येय
वि.
(सं.)
जिसका ध्यान या स्मरण किया जाय।


ध्रमसारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धर्मशाला)
धर्मशाला।
उ.— तीन पैग बसुधा दै मोकौं, तहाँ रचौं ध्रमसारी—८-१४।


ध्रुपद
संज्ञा
पुं.
(सं.ध्रुवपद)
एक प्रकार का गीत।


ध्रुव
वि.
(सं.)
एक ही स्थान पर अचल या स्थिर रहनेवाला।


ध्रुव
वि.
(सं.)
सदा एक ही अवस्था में रहनेवाला।


ध्रुव
वि.
(सं.)
निश्चित, पक्का।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
आकाश।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
पर्वत।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
खंभा।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
बरगद का वृक्ष।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
विष्णु।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
हर।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
ध्रुवतारा।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
राजा उत्तानपाद का सुनीति के गर्भ से उत्पन्न पुत्र जो छोटी ही अवस्था में विमाता सुरूचि द्वारा तिरस्कृत होकर तप करने चला गया था। बालक की इस दृढ़ता से भगवान शीघ्र ही प्रसन्न हुए और उन्होंने वर दिया— सब लोकों ओर नक्षत्रों से ऊपर तुम सदा अचल भाव से स्थित रहोगे।
उ.—ध्रुवहिं अभै पद दियौ मुरारी—१-२७।


ध्रुव
संज्ञा
पुं.
पृथ्वी के वे दोनों सिरे जिनसे अक्षरेखा जाती मानी गयी है।


ध्रुवा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ध्रुपद गीत।


ध्रुवा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सती।


ध्रुवीय
वि.
(सं.)
ध्रव-संबंधी।


ध्रुवीय
वि.
(सं.)
ध्रुव प्रदेश का।


ध्वंस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश, हानि, क्षय।


ध्वंसक
वि.
(सं.)
नाश करनेवाला।


ध्वंसन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश करने की क्रिया या भाव।


ध्वंसित
वि.
(सं.)
नष्ट किया हुआ।


ध्वंसी
वि.
(सं. ध्वंसिन)
नाश करनेवाला।


ध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चिह्न,।


ध्रुवता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्थिरता, अचलता।


ध्रुवता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दृढ़ता।


ध्रुवता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दृढ़ निश्चयता।


ध्रुवतारा
संज्ञा
पुं.
(सं. ध्रु + वहिं. तारा)
एक तारा जो सदा ध्रुव अर्थात् मेरू के ऊपर रहता है।


ध्रुवदर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सप्तर्षि मंडल।


ध्रुवदर्शक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुतुबनुमा।


ध्रुवदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विवाह की एक प्रथा जिसमें वर-वधू के संबंध की दीर्घता की कामना से ध्रुवतारा दिखाया जाता है।


ध्रुवनंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नंद जी के एक भाई का नाम।


ध्रुवपद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ध्रुपद गीत।


ध्रुवलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह लोक जिसमें ध्रुव स्थित है।


दम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्रियों को वश में रखना, इंद्रिय-दमन।
उ.—गो.कह्यौ हरि बैकुंठ सिधारे। सम-दम उनहीं संग पधारे—१—१-२९०।


दम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दबाव।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
साँस, श्वाँस।
मुहा.- दम अटकना (उखड़ना, खिंचना)— (मरते समय) साँस रुकना।

दम उलटना— (१) जी घब-राना। (२) साँस न लिया जा सकना। दम खाना (लेना)— सुस्ताना। दम खींचना— (१) चुप रहना। (२) साँस खींचना। दम घुटना— हवा की कमी से साँस न ले सकना। दम घोटना— (१) साँस न लेने देना। (२) बहुत कष्ट देना। दम घोटकर मारना— (१) गला दबाकर मारना। (२) बहुत कष्ट देना। दम चढ़ना (फूलना)— (१) दौड़-धूप या मेंहनत से हाँफना। (२) दमे का दौरा होना। दम चुराना— जान बूज कर साँस रोकना। दम टूटना— (१) प्राण निकलना। (२) इतना हाँफने लगना कि दौड़-धूप के काम ज्यादा न कर सकना। दम तोड़ना— प्राण निकलना। दम पचना- अधिक परिक्षम करने पर भी न हाँफना। दम भरना— (१) किसी के प्रति अधिक प्रेम या मित्रता रखने की साभिमान चर्चा करना। (२) मेंहनत या दौड़-धूप से थक जाना। दम मारना— (१) विश्राम करना। (२) बोलना। (३) बीच में दखल देना। दम साधना— (१) साँस रोकने का अभ्यास करना। (२) मौन रहना।

दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
साँस के साथ नशीली चीज का धुआँ खींचना।
मुहा.- दम मारना (लगाना)— नशीली चीज का धुआँ साँस के साथ खींचना।

दम लगना— नशीली चीज का धुआँ खींचा जाना।

दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
साँस खींचकर जोर से बाहर फूँकना।
मुहा.- दम मारना— झाड़-फूँक करना।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
समय जो एक बार साँस लेने में लगे, पल।
मुहा.- दम के दम— क्षण भर।

दम पर दम— हरदम, बराबर।

दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
प्राण, जान, जी।
मुहा.- दम उलजना— जी घबराना।

दम खाना— परेशान करना। दम खुश्क होना (फना होना, सूखना)— बहुत भयभीत होना। दम चुराना— बहाने से जान बचाना। नाक में दम आना— बहुत परेशान होना। नाक में दम करना— बहुत तंग करना। दम निकलना— मृत्यु होना। दम पर आ बनना— आफत या हैरान होना। दम फड़क उठना (जाना)— रूप, रंग या गुण को देखकर चित्त बहुत प्रसन्न होना। दम फड़कना— बेचैनी होना। दम में दम आना— भय या घबराहट होना। दम में दम रहना (होना)— (१) शरीर में प्राण रहना। (२) हिम्मत बँधी होना।

दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
प्राण या जीवन-शक्ति।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
व्यक्तित्व।
मुहा.- (किसी का) दम गनीमत होना— (किसी के) जीवित रहने तक ही भले काम होना।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
संगीत में किसी स्वर का देर तक उच्चारण होना।


ध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निशान, झंडा।


ध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ध्वजा लेकर चलनेवला।


ध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दर्प, गर्व।


ध्वजवान
वि.
(सं.)
जो ध्वजा लिये हो।


ध्वजवान
वि.
(सं.)
चिह्नवाला।


ध्वजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.ध्वज)
पताका, झंडा, निशान।
उ.— (क) द्रुपदकुमार होइ रथ आगै धनुष गहौ तुम बान। ध्वजा बैठि हनुमत गल गाजै प्रभु हाँकै रथ यान—१-२७५। (ख) प्रति-प्रति गृह तोरन ध्वजा धूप—९-१६६। (ग) उड़त ध्वजा तनु सुरति बिसारे अंचल नहीं सँभारति—२५६२।


ध्वजिक
वि.
(सं.)
पाखंडी, आडंबरी।


ध्वजी
वि.
(सं. ध्वजिन्)
ध्वजवाला, चिह्नवाला।


ध्वजी
संज्ञा
पुं.
संग्राम, रण।


ध्वजी
संज्ञा
पुं.
ध्वजा लेकर चलनेवाला।


ध्वनि, ध्वनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
शब्द, नाद, आवाज।
उ.—(क) किंकिनि सब्द चलत ध्वनि रूनझुन ठुमुक-ठुमुक गृह आवै—२५४९। (ख) गाये जु गीत पुनीत बहु बिधि बेद रवि सुंदर ध्वनी—१७०३।


ध्वनि, ध्वनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
आवाज, गूँज।


ध्वनि, ध्वनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
वह काव्य जिसमें व्यंग्यार्थ की प्रधानता हो।


ध्वनि, ध्वनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ध्वनि)
आशय, गूढ़ार्थ।


ध्वनिग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कान।


ध्वनित
वि.
(सं.)
प्रकट किया हुआ।


ध्वनित
वि.
(सं.)
बजाया हुआ।


ध्वनित
वि.
(सं.)
शब्दता।


ध्वनित
संज्ञा
पुं.
मृदंग जैसा एक बाजा।


ध्वन्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यंग्यार्थ।


ध्वन्यात्मक
वि.
(सं.)
ध्वनिमय।


ध्वन्यात्मक
वि.
(सं.)
काव्य जिसमें व्यंग्य की प्रधानता हो।


ध्वन्यार्थ
संज्ञा
पुं.
(ध्वन्यर्थ)
वह अर्थ जिसका बोध शब्द की अभिधा शक्ति से न होकर व्यंजना से हो।


ध्वस्त
वि.
(सं.)
गिरा हुआ, च्युत।


ध्वस्त
वि.
(सं.)
टूटा बूटा, भग्न।


ध्वस्त
वि.
(सं.)
नष्ट-भ्रष्ट।


ध्वस्त
वि.
(सं.)
पराजित।


ध्वस्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाश, विनाश।


ध्वांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अंधकार।


ध्वांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक नरक।


ध्वांतचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निशाचर, राक्षस।


ध्वांतवित्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जुगनूँ, खद्योत।


ध्वांतशत्रु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


ध्वांतशत्रु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अग्नि।


ध्वान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शब्द।


देवनागरी वर्णमाला का बीसवाँ और तवर्ग का पाँचवाँ व्यंजन वर्ण जिसका उच्चारण स्थान दंत है।


नंग
संज्ञा
पुं.
(हिं. नंगा)
नंगापन।


नंग
संज्ञा
पुं.
(हिं. नंगा)
गुप्तांग।


नंग
वि.
लुच्चा, बदमाश और बेहया।


नंगता
वि.
(हिं. नंगा)
वस्त्रहीन।


नंगता
वि.
(हिं. नंगा)
निर्लज्ज।


नंग-धड़ंग
वि.
(हिं. नंगा + अनु. धड़ंग)
बिलकुल नंगा।


नँगपैरा
वि.
(हिं. नंगा + पैर)
जो नंगे पैर हो।


नंगा
वि.
(सं. नग्न)
जिसके शरीर पर वस्त्र न हो।


नंगा
वि.
(सं. नग्न)
निर्लज्ज, बेहया।


नंगा
वि.
(सं. नग्न)
लुच्चा।


नंगा
वि.
(सं. नग्न)
जो ढका हुआ न हो, खुला हुआ।


नंगा
संज्ञा
पुं.
शिव, महादेव।


नंगा
संज्ञा
पुं.
एक पर्वत।


नंगाझोरी, नंगाझोली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नंगा + झोरना)
कपड़े खुलवाकर ली जानेवाली तलाशी।


नंगाबुंगा
वि.
[हिं. नंगा + बुंगा (अनु.)]
वस्त्र हीन।


नंगाबुंगा
वि.
[हिं. नंगा + बुंगा (अनु.)]
खुला हुआ।


नंगाबुच्चा, नंगाबूचा
वि.
(हिं. नंगा + बूचा)
बहुत निर्धन।


नंगालुच्चा
वि.
(हिं. नंगा + लुच्चा)
बेहया और नीच।


नँगियाना, नँग्याना
क्रि. स.
(हिं. नंगा)
नंगा करना।


नँगियाना, नँग्याना
क्रि. स.
(हिं. नंगा)
सब कुछ छीन लेना।


नँगियावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नँगियाना)
नंगा करने की क्रिया।


नँगियावन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नँगियाना)
सब कुछ ले लेने की क्रिया।


नंगी
वि.
(हिं. नंगा)
वस्त्रहीन।
उ.— पारथ-तिय कुरूराज सभा मैं बोलि करन चहै नंगी। स्त्रवन सुनत करूना-सरिता भए, बाढ़यौ बसन उमंगी—१-२१।


नंदंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुत्र।


नंदंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा।


नंदंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मित्र।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हर्ष, आनंद।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ निधियों में एक।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धुतराष्ट्र का एक पुत्र।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वसुदेव का मदिरा के गर्भ से उत्पन्न पुत्र।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का मृदंग।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बाँसुरी का एक भेद।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लड़का, पुत्र।


नंद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गोकुल में बसनेवाल गोपों के नायक जिनके यहाँ श्रीकृष्ण का बाल्यकाल बीता था। यशोदा इनकी स्त्री थी। बालक कृष्ण को ये पुत्रवत् मानते थे और स्वभावतः उनके प्रति इनके हृदय में अगाध वात्सल्य था।


नंदक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण की तलवार।


नंदक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा नंद जिन्होंने श्रीकृष्ण का पालन किया था।


नंदक
वि.
आनंददायक।


नंदक
वि.
कुल-पालक।


नंदकिशोर, नंदकिसोर
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद + किशोर)
श्रीकृष्ण।


नंदकुँवर, नंदकुमार
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद+कुमार)
नंद जी के पुत्र, श्रीकृष्ण।


नंदगाँव, नंदग्राम
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिग्राम)
वृंदावन के निकट एक गाँव जहाँ नदं आदि गोप रहते थे।
उ.—हिलिमिलि चले सकल ब्रजवासी नंदगांव फिरि आयो—सारा. ५३३।


नंदगाँव, नंदग्राम
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिग्राम)
अयोध्या के निकट एक गाँव जहाँ चित्रकूट से लौटकर भरत चौदह वर्ष रहे थे।


नंदद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आनंद देनेवाला, पुत्र।


नंददुलारे
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद+हिं. दुलारे)
नंद के प्यारे नंदजी के प्यारे-दुलारे पुत्र, नंदजी के यहाँ रहते समय का श्रीकृष्ण का बाल-रूप।
उ.— कोमल कर गोबर्धन धारयौ जब हुते नंददुलारे—१-२५।


नंदनँद, नंदनंद, नंद-नंदन, नदनंदन
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद + नंदन)
नंदजी द्वारा पुत्र के समान पाले जानेवाले बालक श्रीकृष्ण।


नंदनंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नंदजी की कन्या, योगमाया।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुत्र।
उ.—पारथ-सीस सोधि अष्टाकुल, तब जदुनंदन ल्याए—१-२९।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र का उपवन।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कामाख्या देश का एक पर्वत।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केसर।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंदन।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अस्त्र।


नंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघ,बादल।


नंदन
वि.
आनंद या संतोष देनेवाला।


नंदनप्रधान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नंदन वन के स्वामी, इंद्र।


नंदनमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक तरह की माला जो श्रीकृष्ण को विशेष प्रिय थी।


नंदनवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्र की वाटिका।


नंदना
क्रि. अ.
(सं. नंद)
प्रसन्न या संतुष्ट होना।


नंदना
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नंद=बेटा)
पुत्री, लड़की।


नंदनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गोपपति नंद।
उ.—साँचैहिं सुत भयौ नँदनायक कै हौं नाहीं बौरावति—१०-२३।


दमकि
क्रि. स.
(हिं. दबकाना)
झपाटे से पकड़कर।
उ.—देखि नृप तमकि हरि चमकि तहाँई गये दमकि लीन्हों गिरहबाज जैसे—२६१५।


दमखम
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दमखम)
दृढ़चा, मजबूती।


दमखम
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दमखम)
जीवन या प्राण-शक्ति।


दमखम
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दमखम)
तलवार की धार का झुकाव।


दमड़ा
संज्ञा
पुं.
[हिं. दाम +ड़ा (प्रत्य.)]
रुपया-पैसा।


दमड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. द्रविण +धन)
पैसे का चौथा या आठवाँ भाग।
मुहा.- दमड़ी का तीन— इतना सस्ता कि कोई न खरीदे, इतना अधिक कि कोई न पूछ़े।


दमदमा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
किलेबंदी, मोरचा।


दमदार
वि.
(फ़ा.)
जो जीवनी-शक्ति से पूर्ण हो।


दमदार
वि.
(फ़ा.)
दृढ़, मजबूत।


दमदार
वि.
(फ़ा.)
जो (वस्तु या व्यक्ति) अधिक समय तक हवा या साँस रोक सके।


नंदनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नंदिनी)
कन्या, पुत्री।
उ.—मित्र-बिंदा यक नृपति नंदनी ताकौ माधव ब्याये—सारा. ६५५।


नँदरनियाँ, नँदरानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नंदरानी)
यशोदा।
उ.— नंद जू के बारे कान्ह छाँड़ि, दै मथनियाँ। बार बार कहति मातु जसुमति नँदरनियाँ—१०-१४५।


नंदरैया
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद+हिं. राय)
नंदराय, श्रीकृष्ण।


नंदरैया
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद+हिं. राय)
नंद जी।
उ.—(क) देखत प्रगट धरयौ गोबर्धन चकित भए नँदरैया—९६५। (ख) लकुटनि टेकि सबन मिलि राख्यौ अरू बाबा नँदरैया—१०७१।


नंदलाल
संज्ञा
पुं.
(सं.नंद+हिं. लाल)
श्रीकृष्ण।


नंदसुत
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद)
श्रीकृष्ण।


नंदा
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद)
पुत्र, बेटा।
उ.— आँगन खेलै नद के नंदा—१०-११७।


नंदा
संज्ञा
पुं.
(सं. नंद)
बरवा छंद का एक नाम।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा, योगमाया।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गौरी।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक तरह की कामधेनु।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी तिथि।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
संपत्ति।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक अप्सरा।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पति की बहन,ननद।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक तीर्थ।


नंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राधा की एक सखी का नाम।
उ. कहि राधा किन हार चोरायौ।¨ ¨ ¨ ¨ ¨। सुखमा सीला अवधा नंदा बृंदा जमुना सारि—१५८०।


नंदातीर्थ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हेमकूट पर्वत का एक तीर्थ।


नंदात्मज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


नंदात्मजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
योगमाया।


नंदादेवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हिमालय की एक चोटी।


नंदि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आनंद।


नंदि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आनंदमय ब्रह्म।


नंदिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आनंद, हर्ष।


नंदिका
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


नंदिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
इंद्र की नंदनवाटिका।


नंदिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी तिथि।


नंदिकेश, नंदिकेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव के द्वारपाल।


नंदिग्राम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अयोध्या के निकट एक गाँव जहाँ श्रीराम के वनवास की अवधि भर भरत जी तप करते रहे।


नंदिघोष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अर्जुन का रथ जो उन्हें अग्निदेव से मिला था।


नंदिघोष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शुभ घोषणा।


नंदित
वि.
(सं.)
सुखी, प्रसन्न।


नंदित
वि.
(हिं. नादना)
बजता हुआ।


नंदितूर्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्रचीन बाजा।


नंदिन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नंदिनी)
पुत्री, बेटी।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पुत्री, बेटी।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
उमा।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा का एक नाम।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा का एक नाम।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मनद।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वसिष्ठ की कामधेनु जिसकी राजा दिलीप ने सेवा की थी।


नंदिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पत्नी।


नंदिमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी का एक नाम।


नंदिरुद्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी का एक नाम।


नंदिवर्द्धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


नंदिवर्द्धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुत्र, बेटा।


नंदिवर्द्धन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मित्र।


नंदिवर्द्धन
वि.
आनंद या हर्ष बढ़ानेवाला।


नंदी
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिन्)
शिव के एक प्रकार के गण। इनके तीन वर्ग हैं—कनकनंदी, गिरिनंदी और शिवनंदी।
उ. दच्छ देखि अतिसय दुख तए।¨¨¨। जज्ञ भाग याकौं नहिं दीजै।¨¨¨। नंदी-हृदय भयौ सुनि ताप। दियौ ब्राह्मननि कौं तिन साप—४-५।


नंदी
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिन्)
शिव का द्वारपाल।


नंदी
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिन्)
विष्णु।


नंदी
वि.
हर्ष या आनंद बढ़ानेवाला।


नंदीपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी, महादेव।


नंदीमुख
संज्ञा
पुं.
(सं. नंदिमुख)
शिवजी का एक नाम।


नंदीमख
संज्ञा
पुं.
(सं. नांदीमुख)
एक प्रकार का श्राद्ध।


नंदीश, नंदीश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी।


नंदेउ, नंदेऊ, नंदोई
संज्ञा
पुं.
(हिं. नंदोई)
ननद के पति


संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपमा।


संज्ञा
पुं.
(सं.)
रत्न।


संज्ञा
पुं.
(सं.)
सां ..।


अव्य.
नहीं, मत।
उ. — (क) इहि राजस को को न बिगोयौ—१-५४। (ख) पवन न भई पताका अंबर भई न रथ के अंग—२५४०।


अव्य.
कि नहीं, या नहीं (प्रश्नवाचक वाक्य-प्रयोग)।


नइयो
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
नवाइयो, झुकाइयो।
उ.— ताको पूजि बहुरि सिर नइयो अरू कीजो परनाम—सारा. ५५३।


नइहर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नैहर)
माता का घर, पीहर।


नई
वि.
(सं. नया)
नीतिज्ञ, नीतिवान्।


नई
वि.
स्त्री.
(हिं. नया)
नवीन, नव।
उ.— (क) मातु-पिता भैया मिले नई रूचि नई पहिचानि—१-३२५। (ख) सूर के प्रभू की नित्य लीला नई सकै कहि कौन यह कछुक गाई—८-१६।


नई
संज्ञा
स्त्री.
नयी बात, नवीन घटना।
उ.—नई न करन कहत प्रभु तुम हौ सदा गरीब-निवाज—१-१०८।


नई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नदी)
नदी, सरिता।


नउँजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. लीची)
लीची नामक फल।


नउ
वि.
(सं. नव)
नया, नवीन।


नउ
वि.
(सं. नव)
नौ (संख्या)


नउआ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाऊ)
नाऊ, नाई।
उ.— दियौ तुरत नउआ (नौआ) को घुरकी—७-१८०।


नउका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.नौका)
नाव, नौका।


नउत
वि.
(हिं. नवना)
नीचे को झुका हुआ।


नउरंग
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नारंगी)
नारंगी।


नउर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नेवला )
नेवला।


नउलि
वि.
(सं. नवल)
नया, नवीन।


नए
वि.
(हिं. नया)
नवीन, नूतन।
उ.— (क) इहाँ अपसगुन होत नित नए—१-२८६। (ख) सिर दधि-माखन के माट गावत गीत नए—१०-२४। (ग) चाड़ सरै पहिचानत नाहीं प्रीतम करत नए—२९९३। (घ) इहाँ अटक अति प्रेम पुरातन वहाँ अति नेह नए—३१४१।


नए
क्रि. स.
(हिं. नवना)
झुके।
उ.— ह्यै आधीन पंच ते न्यारे कुल लज्जा न नए री— पृ. ३३५ (४३)।


नएपंज
संज्ञा
पुं.
(देश.)
जवान घोड़ा।


नओढ़
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नवोढ़ा)
वह नायिका जो लज्जा या भय से नायक के पास न जाना चाहती हो।


नककटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
कटी नाकवाला।


नककटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
जिसकी दुर्दशा या अप्रतिष्ठा हुई हो।


नककटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
निर्लज्ज बेहया।


नककटी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + कटना)
नाक कटने की क्रिया।


नककटी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + कटना)
अप्रतिष्ठा, दुर्दशा।


नककटी
वि.
स्त्री.
जिसक नाक कटी हो।


नककटी
वि.
स्त्री.
जिसकी दुर्दशा या अप्रतिष्ठा हुई हो।


नककटी
वि.
स्त्री.
निर्लज्ज।


नकघिसनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + घिसना)
जमीन पर नाक रगड़ने की क्रिया।


नकघिसनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + घिसना)
बहुत अधिक दीनता।


नकचढ़ा
वि.
(हिं. नाक + चढ़ना)
चिड़चिड़े मिजाज का।


नकटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
जिसकी नाक कटी हो।


नकटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
जिसकी अप्रतिष्ठा या दुर्दशा हुई हो।


नकटा
वि.
(हिं. नाक + कटना)
निर्लज्ज, बेहया।


नकटा
संज्ञा
पुं.
वह जिसकी नाक कटी हो।


नकटा
संज्ञा
पुं.
एक तरह का गीत।


नकटा
संज्ञा
पुं.
उक्त गीत गाने का अवसर।


नकटी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकटा)
वह जिसकी नाक कटी हो।
उ.— कच खुबि आँधारे काजर नकटी पहिरै बेसरि—३०२६।


नकतोड़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाक + तोड़=गति)
नाक-भौं चढ़ाकर बात करना।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
पकाने की एक क्रिया।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
घोखा।
मुहा.- दम देना— झाँसा देना। दम खाना— धोखा खाना।


दम
यौ.
दम झाँसा-छल-कपट। दम दिलासा (पट्टी) झूठी-आशा। छल-कपट। दमबाज-धोखा देने या फुसलाने वाला।


दम
संज्ञा
पुं.
(फा.)
छुरी-तलवार आदि की धार।


दमक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. चमक का अनु.)
चमक, चमचमाहट।
उ.—मिटि गइ चमक-दमक अँग अँग की, मति अरु ट्टष्टि हिरानी—१-३०५।


दमक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दमन या शांत करनेवाला।


दमकति
क्रि. अ.
(बिं. दमकना)
चमकती है, चम-चमाती है।
उ.—(क) दमकति दूध-दँतुलिया बिहँ-सत, मनु सीपज घर कियौ बारिज पर—१०-९३। (ख) दमकति दूध-दँतुरियाँ रूरी—१०-११९। (ग) दमकति दोउ दूध की दतियाँ, जगमग-जगमग होति री—१०-१३६।


दमकना
क्रि. अ.
(हिं. चमकना का अनु.)
चमचमाना।


दमकनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दमक)
चमकने-दमकने का भाव या क्रिया।
उ.—दामिनि की दमकनि बूँदनि की झमकनि सेज की तलफ कैसे जीजियत माई है—२८२७।


दमकि
क्रि. अ.
(हिं. दमकना)
चमककर, चमचमाकर।
उ.—प्रगटति हँसत दँतुलि, मनु सीपज दमकि दुरे दल ऒलै री—१०-१३७।


नकना
क्रि. स.
नाक में दम करना।


नकफूल
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाक + फूल)
नाक में पहनने का फूल या कील नामक गहना।


नकब
संज्ञा
पुं.
(अ नक़ब)
दीवार में चोरी के उद्देश्य से लगाई गयी सेंध।


नकबानी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नाक + बानी (?)]
नाक में दम, हैरानी, परेशानी।
उ.— उतै देखि धावै, इत आवै, अचरज पावै, सूर सुरलोक ब्रजलोक एक ह्वै रह्यौ। बिवस ह्वै हार मानी, आपु आयौ नकबानी, देखि गोप-मंडली कमंडली चितै रह्यौ—४८४।


नकबेसर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + बेसर)
नाक में पहनने की बेसर या छोटी नथ।


नकमोती
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाक + मोती)
नाक में पहनने का लटकना या मोती।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
सच्चे या खरे की अनुकृति।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
असली के अनुरूप वस्तु बनाने की क्रिया।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
प्रतिलिपि।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
वेश, हाव-भाव का अनुकरण।


नकतोड़े
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. नकतोड़ा)
नखरे।
मुहा.- नकतोड़े उठाना— नखरे सहना।

नकतोड़े तोड़ना— बहुत ज्यादा नखरे दिखाना या अनखना कर काम करना।

नकद
संज्ञा
पुं.
(अ. नक़द)
तैयार रूपया-पैसा।


नकद
वि.
(रूपया-पैसा) जो तैयार हो और तुरंत काम में लाया जा सके।


नकद
वि.
खास तुरत, तैयार।


नकद
क्रि. वि.
तुरंत रूपया-पैसा देकर या लेकर।


नकदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकद)
रूपया-पैसा, रोकड़।


नकना
क्रि. स.
(हिं. नाकना)
लाँघना, फाँदना, उल्लंघन करना।


नकना
क्रि. स.
(हिं. नाकना)
चलना।


नकना
क्रि. स.
(हिं. नाकना)
छोड़ना।


नकना
क्रि. अ.
(हिं. नकियाना)
नाक में दम होना।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
हास्यास्पद, धजा या आकृति।


नकल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल)
हास्यपूर्ण बातचीत या चुटकुला।


नकलनवीस
संज्ञा
पुं.
(हिं. नकल + फ़ा. नवीस)
लेख आदि की नकल करके जीविका कमानेवाला।


नकलनवीसी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकल नवीस)
नकल-नवीस का काम या पद।


नकली
वि.
(अ.)
कृत्रिम, बनावटी।
उ.—मानुष-जनम पोत नकली ज्यौं, मानत भजन-बिना बिस्तार —१-४१।


नकली
वि.
(अ.)
खोटा, जाली, झूठा।


नकसीर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाक + सं. क्षीर=जल)
नाक से रक्त बहना।


नकाना
क्रि. अ.
(हिं. नाकियाना)
बहुत परेशान होना।


नकाना
क्रि. स.
नाक में दम करना, बहुत परेशान करना।


नकाब
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नक़ाब)
चेहरा छिपाने का कपड़ा या जाली।


नकाब
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नक़ाब)
घूँघट।


नकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
‘न’ या ‘नहीं’ का बोधक शब्द या वाक्य।


नकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अस्वीकृति, इनकार।


नकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
‘न’ अक्षर।


नकारना
क्रि. अ.
(हिं. न + करना)
इनकार करना।


नकारा
वि.
(हिं. न + कार्य)
बुरा, खराब।


नकारात्मक
वि.
(सं. नकर + आत्मक)
अस्वीकृति-सूचक (उत्तर या कथन)


नकारात्मक
वि.
(सं. नकर + आत्मक)
जिसमें ‘नहीं’ हो।


नकाशना
क्रि. स.
(अ. नक्काशी)
नक्काशी बनाना।


नकियाना
क्रि. अ.
(हिं. नाक)
नाक से बोलना या उच्चारण करना।


नकियाना
क्रि. अ.
(हिं. नाक)
दुखी या हैरान होना।


नकियाना
क्रि. स.
दुखी, परेशान या तंग करना।


नकीब
संज्ञा
पुं.
(अं नक़ाब)
बादशाही दरबारी चारण जो किसी को उपाधि या पद मिलने या किसी के आने की घोषणा करते हैं।
उ.— आसा कैं सिंहासन बैठ्यौ, -छत्रदंभ सिर तान्यौ। अपजस अति नकीब कहि टेर्यौ, सब सिर आयसु मान्यौ—१-१४१।


नकीब
संज्ञा
पुं.
(अं नक़ाब)
कड़खा गानेवाला पुरूष, कड़खैत।


नकुट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाक, नासिका।


नकुड़ा, नकुरा
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्र + पुट, प्रा. नक्कुउड़)
नथना।


नकुड़ा, नकुरा
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्र + पुट, प्रा. नक्कुउड़)
नाक का अगला भाग।


नकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा पांडु के चौथे पुत्र जो उनकी पत्नी माद्री के गर्भ से अश्वनीकुमारों द्वारा उत्पन्न हुए थे। इनका नाम तंत्रिपाल भी था। ये बहुत सुंदर थे। पशु-चिकित्सा का इन्हें अच्छा ज्ञान था। इनका विवार चेदिराज की कन्या करेणमती से हुआ था जिससे इनके निरमित्र नामक पुत्र था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इन्होंने पश्चिम प्रदेशों पर विजय पायी थी।


नकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नेवला नामक जंतु।


नकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बेटा, पुत्र।


नकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


नकुल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्राचीन बाजा।


नकुल
वि.
जिसका कुल-परिवार न हो।


नकुलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्राचीन गहना।


नकुलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
थैली।


नकुला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गौरी, पार्वती।


नकुला
संज्ञा
पुं.
(सं. नकुल)
नेवला।


नकुली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
केसर।


नकुली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नेवले की मादा।


नकुली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
रूपया-पैसा रखने की थैली।


नकुवा
संज्ञा
पुं.
[हिं. नाक + उवा (प्रत्य.)]
नाक, नासिका।


नकुवा
संज्ञा
पुं.
[हिं. नाक + उवा (प्रत्य.)]
तराजू की डंडी का छेद।


नकेल
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नाक)
भालू या ऊँट की नाक में बँधी रस्सी या लगाम।
मुहा.- किसी की नकेल हाथ में होना— किसी की कोर दबी होने या स्वार्थ अटका रहने के कारण वश या अधिकार में होना।


नक्कना
क्रि. स.
(सं. लंधन)
लाँधना, नाँधना।


नक्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाक)
सुई का छेद।


नक्का
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाक)
कौड़ी।


नक्कार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तिरस्कार, अवज्ञा।


नक्कारखाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नौबत बजने की जगह।
मुहा.- नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है— (१) बहुत शोरगुल या भीड़-भाड़ में कही हुई बात कौन सुनता है ? (२) बड़े लोगों के बीच में छोटों की बात कौन सुनता है ?


नक्कारची
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नगाड़ा बजानेवाला।


नक्कारा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नगाड़ा, नौबत, डंका।
मुहा.- नक्कारा बजाते फिरना— (किसी बात को) चारों ओर कहते फिरना।

नक्कारा बजाकर— खुल्लम-खुल्ला, डंके की चोट पर। नक्कारा हो जाना— बहुत फूल जाना, फूलकर नागाड़ा हो जाना।

नक्काल
वि.
(अ.)
नकल करनेवाला।


नक्काल
वि.
(अ.)
बहुरूपिया।


नक्काली
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
नकल करने का काम।


नक्काली
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
बहुरूपियापन।


नक्काश
संज्ञा
पुं.
(अ.)
नक्काशी करनेवाला।


नक्काशी
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
धातु, पत्थर आदि पर बेल-बूटे बनाना।


नक्काशी
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
बेल-बूटे।


नक्काशीदार
वि.
(अ. नक्काशी + फ़ा. दार)
जिस पर बेलबूटे का या कारीगरी का काम किया गया हो।


नक्कू
वि.
(हिं. नाक)
बड़ी नाकवाला।


नक्कू
वि.
(हिं. नाक)
अपनी प्रतिष्ठा का बहुत अधिक ध्यान करनेवाला।


नक्कू
वि.
(हिं. नाक)
सबसे अलग और उलटा काम करनेवाला।


नक्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संध्याकाल।


नक्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रात।


नक्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक व्रत।


नक्त
वि.
लज्जित, शरमाया हुआ।


नक्तचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रात को घूमनेवाला।


नक्तचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राक्षस।


नक्तचरी
वि.
(सं. नत्कचारिन्)
रात में घूमनेवाला।


नक्तांध
वि.
(सं.)
जिसे रात में दिखायी न दे।


नक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्राह नामक जल-जंतु।
उ.— नीरहू तै न्यारै कीनौ चक्र नक्र सीस दीनौ, देवकी के प्यारे लाल ऐंचि लाए थल मैं—८-५।


नक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घड़ियाल।


नक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाक, नासिका।


नक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घड़ियाल,ग्राह, मगर।


नक्श
वि.
(अं नक़्श)
अंकित, चित्रित, खचित।
मुहा.- मन में नक्श करना— किसी बात का निश्चय करना।

मन में नक्श कराना— कोई बात मन में बैठाना। नक्श होना— पूरा पूरा निश्चय हो जाना।

नक्श
संज्ञा
पुं.
(अ.)
चित्र, तसवीर


नक्श
संज्ञा
पुं.
(अ.)
कलम-कूची आदि से बनाया गया बेल-बूटे, फूल पत्ती आदि का काम।


नक्श
संज्ञा
पुं.
(अ.)
मोहर, छापा।


नक्श
संज्ञा
पुं.
(अ.)
जादू-टोना।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
चित्र, तसवीर।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
बनावट-आकृति।


दमदार
वि.
(फ़ा.)
तेज धारवाला।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दबाने की क्रिया।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
इंद्रिय-निग्रह।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव।


दमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक ऋषि जिनके यहाँ दमयंती जन्मी थी।


दमनक, दमनशील
वि.
(सं.)
दमन करनेवाला।


दमनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दमन)
संकोच, लज्जा।


दमनी, दमनीय
वि.
(सं.)
जो दमन करने योग्य हो।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
वस्तु या पदार्थ का स्वरूप।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
चाल-ढाल।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
दशा, अवस्था।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
ढाँचा।


नक्शा
संज्ञा
पुं.
(अ. नकशा)
मानचित्र।


नक्षत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तारा या तारों का समूह जो चंद्रमा के पथ में पड़ता हो। इनकी संख्या हमारे यहाँ सत्ताइस मानी गयी है; यथा—अश्वनी, भरणी। कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराघा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरासाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती। इनके अतिरिक्त एक ‘अभिजित’ नक्षत्र और था जो अब ‘पूर्वाषाढ़ा’ के ही अंतर्गत माना जाता है।


नक्षत्रदश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नक्षत्रों को देखनेवाला।


नक्षत्रदश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ज्योतिषी।


नक्षत्रदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भिन्न-भिन्न नक्षत्रों में अलग-अलग पदार्थों का दान।


नक्षत्रनाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चद्रंमा।


नक्षत्रप, नक्षत्रपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


नक्षत्रपथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नक्षत्रों के चलने का मार्ग।


नक्षत्रमाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
२७ मोतियों की माला।


नक्षत्रराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नक्षत्रों का स्वामी, चंद्रमा।


नक्षत्रलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रलोक से ऊपर का लोक जिसमें नक्षत्र हैं।


नक्षत्रवृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तारा टूटना।


नक्षत्रसाधक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी, महादेव।


नक्षत्री
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्रिन्)
चंद्र।


नक्षत्री
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्रिन्)
विष्णु।


नक्षत्री
वि.
(सं. नक्षत्र + ई)
भाग्यशाली, जो अच्छे नक्षत्र में जन्मा हो।


नक्षत्रेश, नक्षत्रॆश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


नख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाखून।


नख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक गंधद्रव्य।


नख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खंड।


नख
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नख)
बटा हुआ तागा, डोर।


नखक्षत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाखून गड़ने से बन जानेवाला चिन्ह।


नखक्षत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्त्री के शरीर पर का चिन्ह जो पुरूष के नाखून से बन जाय।


नखचारी
वि.
(सं. नखचारिन्)
पंजे के बल चलनेवाला।


नखच्छत
संज्ञा
पुं.
(सं. नखक्षन)
नाखून गड़ाने का चिन्ह।


नखत
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्र)
नक्षत्र।
उ.—नखत उत्तरा आप बिचारेउ कालकंस को आयउ—सारा. ५२५।


नखतर
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्र)
तारा, नक्षत्र।


नखतराज, नखतराय
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्र)
चंद्रमा।


नखन
संज्ञा
पुं. बहु.
(हिं. नख)
नाखून।
उ.— कर कपोल भुज धरि जंघा पर लेखनि भाई नखन की रेखनि—२७२२।


नखना
क्रि. अ.
(हिं. नाखना)
लाँघ जाना।


नखना
क्रि. स.
लाँघना, पार करना।


नखना
क्रि. स.
(सं. नष्ट)
नष्ट करना।


नखनि
संज्ञा
पुं.
[सं. नख + नि (प्रत्य.)]
नखों से।
उ.—नरहरि रूप धरयौ करूनाकर, छिनक माहिं उर नखनि बिदारयौ—१-१४।


नख-प्रकास
संज्ञा
पुं.
(सं. नख + प्रकाश)
नाखून की छटा, सुंदरता या ज्योति।
उ.— सूर स्याम-पद-नख-प्रकास बिनु, क्यौं करि तिमिर नसावै —१-४८।


नखरा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नाज, चोचला, हाव-भाव।


नखरा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
चुलबुलापन।


नखरा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बनावटी इनकार।


नखरीला
वि.
(फ़ा. नखरा + ईला)
नखरा करनेवाला।


नखरेखा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नख + रेख)
नख गड़ने का चिन्ह।


नखरेखा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नख + रेख)
कश्यप की एक पत्नी जो बादलों की माता थी।


नखरेबाज
वि.
(फ़ा.)
बहुत नखरा करनेवाला।


नखरेबाजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नखरा + बाजी)
नखरा करने की क्रिया या भाव।


नखरेट, नखरौटा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नख + हिं. खरोट)
नाखून की खरोट, नाखून गड़ने का चिन्ह।


नखबिंदु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाखूनों पर मेहदी या महावर से बनाया जानेवाला गोल या चंद्राकार चिन्ह।


नखविष
वि.
(सं.)
जिसके नाखूनों में विष हो।


नखशिख, नखसिख
संज्ञा
पुं.
(सं. नख + शिख)
पैर के नख से सिर तक शरीर के सारे अंग।
मुहा.- नखशिर से— (१) सिर से पैर तक। (२) बहुत बुरी तरह से, फूल-फूटकर, रोम-रोम से। उ.— (क) मनसिज मन हरन हँसि साँवरो सुकुमार रासि नखसिख अंग-अंग निरखि सोभा की सींव नखीरी— २४६२। (ख) संकर कौ मन हरयौ कामिनी, सेज छाँड़ि भू सोयौ। चारू मोहिनी आइ आँध कियौ, तब नख-शिख तैं रोयो— १-४३।


नखहिं
संज्ञा
पुं.
[सं. नख + हिं. (प्रत्य.)]
हाथ के नखों पर।
उ.— बूड़तहिं ब्रज राखि लीन्हौ, नखहिं गिरिवर धरन—१-२०२।


नखांक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाखून गड़ने का चिन्ह।


नखास
संज्ञा
पुं.
(अ. नख्खास)
कबाड़ी बाजार।


नखायुध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नखों से शरीर फाड़े डालनेवाले हिंसक पशु।


नखायुध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नृसिंह।


नखियाना
क्रि. स.
(हिं. नख + इयाना)
नाखून गड़ाना।


नखी
वि.
(सं. नखिन्)
नाखून से चीरने-फाड़नेवाला।


नखोटना
क्रि. स.
[सं. नख + ओटना अनु.)]
नाखून से नोचना या खरोचना।


नखोटै
क्रि. स.
(हीं. नखोटना)
नखों से नोचता है।
उ.—कान्ह बलि जाऊँ, ऐसी आरि न कीजै।¨ ¨ ¨ ¨। धरत धरनि पर लोटे, माता को चीर नखोटै—१०-१८३।


नख्खास
संज्ञा
पुं.
(अ. नख्खास)
कबाड़ी बाजार।


नाग
वि.
(सं.)
न चलनेवाला, अचल, स्थिर।


नाग
संज्ञा
पुं.
पहाड़, पर्वत।
उ.— सुंदर आखर नग पै नगपति धन कहि लजत न गात—सा. ६२।


नाग
संज्ञा
पुं.
पेड़, वृक्ष।


नाग
संज्ञा
पुं.
साँप।


नाग
संज्ञा
पुं.
सूर्य, रवि।


नाग
संज्ञा
पुं.
सात की संख्या।


नाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नगीना)
पत्थर या शीशे का रंगीन टुकड़ा, नगीना।
उ.— इते मान यह सूर महा सठ, हरि-नग बदलि, बिषय-बिष आनत—१-११४।


नाग
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नगीना)
संख्या।


नगज
वि.
(सं. नग + ज)
जो पर्वत से उत्पन्न हो।


नगजा
वि.
(सं. नगज)
पर्वत से उत्पन्न होनेवाली।


नगजा
संज्ञा
स्त्री.
(हिमालय-कन्या) पार्वती।


नगण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पिंगल शास्त्र का एक ‘गण’ जिसमें तीनों अक्षर लघु होते हैं, जैसे ‘कमल’।


नगण्य
वि.
(सं.)
साधारण, तुच्छ, गया-बीता।


नगदंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विभीषण की स्त्री।


नगद
संज्ञा
पुं.
(हिं. नकद)
तैयार रूपया-पैसा।


नगदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नकद)
तैयार रूपया-पैसा।


नगधर, नगधरन
संज्ञा
पुं.
(सं. नग + हिं. धरना)
(गोवर्द्धन) पर्वत को उठानेवाले श्रीकृष्ण।


नगनंदनो
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
हिमालय-कन्या पार्वती।


नगन
वि.
(सं. नग्न)
वस्त्रहीन।
उ.— दुस्सा-सन गहि केस द्रौपदी, नगन करन कौ ल्यायौ—१-१०९।


नगन
वि.
(सं. नग्न)
जिसके ऊपर आवरण न हो।


नगनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नग्ना)
छोटी आयु की बालिका।


नगनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नग्ना)
पुत्री, बेटी।
उ.— रवि तनया कह्यौ मोहि बिबाहि। कच कह्यौ तू गुरू नगनी आहि।


नगनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नग्ना)
वस्त्रहीन स्त्री।


नगपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुमेरू।
उ.— चतुरानन बल सँभारि मेघनाद आयौ। मानौ घन पावस मैं नगपति है छायौ—९-९६।


नगपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिमालय पर्वत।


नगपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चंद्रमा।


नगपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कैलाश के स्वामी शिवजी।
उ.— सुंदर आखर नग पै नगपति घन कहि लजत न गात— सा. ६२।


नगभिद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
(पर्वतों के पंख काटनेवाले) इंद्र।


नगभू
वि.
(सं.)
जो पर्वत से उत्पन्न हुआ हो।


नगर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरह।
उ.— (क) जनम साहिबी करत गयौ। काया-नगर बड़ी गुंजाइस नाहिन कछु बढ़यौ—१-६४। (ख) नगर नीक औ काम बीच ते गोग्रह अंत भरे— सा. ८०।


नगर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार।


नगरनायिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेश्या।


नगरनारि, नगरनारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेश्या।


नगरपाल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगर-रक्षक अधिकारी।


नगरमार्ग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगर का राजमार्ग।


नगरवासी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगर का रहनेवाला।


नगरविवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुनिया के झगड़े-टंटे।


नगरह
वि.
(हिं. नगर + हा)
शहर में रहनेवाला।


नगराई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नगर + आई (प्रत्य.)]
नागरिकता, नागरिकों की शिष्टता-विशिष्टता।


नगराई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नगर + आई (प्रत्य.)]
चतुराई, चालाकी।
उ.— चारौं नैन भए इक ठाहर, मन हीं मन दुहुँ रूचि उपजाई। सूरदास स्वामी रति-नागर, नागरि देखि गई नगराई—७२०।


दमाद
संज्ञा
पुं.
(हिं. दामाद)
जमाई, जामाता।


दमादम
क्रि. वि.
(अनु.)
लगातार, बराबर।


दमानक
संज्ञा
स्त्री.
(दंश.)
तोपों की बाढ़।


दमाम, दमामा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नगाड़ा, डंका, धौसा।


दमारि
संज्ञा
पुं.
(सं. दावानल)
जंगल की आग।


दमावति
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दमयंती)
नल की पत्नी।


दमि
क्रि. स.
(सं. दमन)
दमन करके, नष्ट करके।
उ.—इमि दमि दुष्ट देव-द्विज मोचन, लंक बिभीषन, तुमकौं दैहौं—९-१५७।


दमी
वि.
(सं. दम)
दमन करनेवाला।


दमी
वि.
(फ़. दम)
दम लगाने या कश लगानेवाला।


दमी
वि.
(हिं. दमा)
जिसे दमे का रोग हो।


नगराध्यक्ष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नगर-रक्षक अधिकारी।


नगरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नगर, शहर।
उ.— मथुरा नगरी कृष्न राजा, सूर मनहिं बधावना—५७७।


नगरी
संज्ञा
पुं.
(सं. नगरिन्)
नगर में रहनेवाला।


नगाड़ा, नगारा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नक्कारा)
डंका, धौंसा।


नगाधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिमालय पर्वत।


नगाधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सुमेरू पर्वत।


नगारि
संज्ञा
पुं.
[सं. नग = पर्वत + अरि]
इन्द्र जिन्होंने पर्वतों के पंख काट डाले थे।


नगी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नग = पर्वत + ई (प्रत्य.)]
रत्न, नग, नागीना।


नगी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नग = पर्वत + ई (प्रत्य.)]
पर्वत-पुत्री पार्वती।


नगी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नग = पर्वत + ई (प्रत्य.)]
पहाड़िन।


नगीच
क्रि. वि.
(हिं. नजदीक)
निकट, पास।


नगीना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
रत्न, मणि।
मुहा.- नगीना सा— बहुत छोटा और सुन्दर।


नगेंद्र, नगेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पर्वतराज, हिमालय।


नगौक
संज्ञा
पुं.
(सं. नगौकस)
पक्षी।


नगौक
संज्ञा
पुं.
(सं. नगौकस)
कौआ।


नग्न
वि.
(सं.)
जिसके शरीर पर वस्त्र न हो।


नग्न
वि.
(सं.)
जिसके उपर आवरण न हो।


नग्नता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नंगे होने का भाव।


नग्नता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नीचता, निर्लज्जता, दुष्टता।


नघना
क्रि. स.
(सं. लंघन)
लाँघना, नाँघना।


नचवैया
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाच)
नाचनेवाला।


नचाइ
क्रि. स.
(हिं. नाचना का प्रे.)
नचाना।
उ.— प्रेम सहित पग बाँधि घूँघरू, सक्यौ न अंग नचाइ—१-१५५।


नचाई
क्रि. स.
(हिं. नाचना)
नाचने को प्रवृत्त किया, दूसरे को नचाया।
उ.—सो मूरति तैं अपनैं आँगन, चुटकी दै जु नचाई—३६३।


नचाना
क्रि. स.
(हिं. नाचना का प्रे.)
दूसरे को नाचने में प्रवृत्त करना।


नचाना
क्रि. स.
(हिं. नाचना का प्रे.)
किसी से बार-बार उठने बैठने या इधर-उधर जाने का काम कराना।
मुहा.- नाच नचाना— (१) बार-बार उठने-बैठने का काम कराना। (२) उठा-बैठा कर या दौड़ा-घुमाकर परेशान करना।


नचाना
क्रि. स.
(हिं. नाचना का प्रे.)
चक्कर खिलाना, घुमाना।
मुहा.- आँखें (नयन नेत्र) नचाना— चंचलता के साथ इधर उधर बार-बार देखना।


नचाना
क्रि. स.
(हिं. नाचना का प्रे.)
इधर-उधर दौड़ा-फिराकर हैरान करना।


नचावई
क्रि. स.
(हिं. नचाना)
नचाती है, नाचने को प्रेरित करती है।
उ.—जसुमति सुतहिं नचावई छबि देखति जिय तैं—१०-१३४।


नचावत
क्रि. स.
(सं. नृत्य, हिं. नाच)
नचाते हैं।
उ.— चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसुकात —१०-२१५।


नचावत
क्रि. स.
(सं. नृत्य, हिं. नाच)
घुमाती हुई।
उ. — हाथ नचावत आवति ग्वारिनि जीम करै किन थोरी—१०-२९३।


नघाना
क्रि. स.
(सं. लंघन)
लाँघना, फाँदना।


नघावत
क्रि. स.
(हिं. नाँघना)
नाँघने में, आरपार जाने में, लाँधते हैं।
उ.— घर-आँगन अति चलत सुगम भए, देहरि अँटकावत। गिरि गिरि परत, जात नहिं उलँघी, अति स्त्रम होत नघावत—१०-१२५।


नचत
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
नाचते (हैं)।
उ.— नचत हैं सारंग सुंदर करत सब्द अनेक—सा. ९४।


नचना
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
नृत्य करना, नाचना।


नचना
वि.
नाचनेवाला।


नचना
वि.
चक्कर खानेवाला।


नचनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाचना)
नाच, नृत्य।


नचनियाँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाचना)
नाचनेवाला।


नचनी
वि.
स्त्री.
(हिं. नचना)
नाचनेवाली।


नचनी
वि.
स्त्री.
(हिं. नचना)
चक्कर खानेवाली।


नचावत
क्रि. स.
(सं. नृत्य, हिं. नाच)
घुमाते हैं, चक्कर खिलाते हैं, दौड़ाते फिराते हैं।
उ.— कबहूँ सधे अस्व चढ़ि आपुन नाना भाँति नचावत—सारा. १९०।


नचावहीं
क्रि. स.
(हिं. नचाना)
नचाती हैं, नाचने को प्रेरित करती है।
उ.— चुटकी देतिं नचावहीं सुत जानि नन्हैया—१०-११६।


नचावहुगे
क्रि. स.
(हिं. नचाना)
नाचने को प्रेरित करोगे।
मुहा.- नाच नचावहुगे— हैरान परेशान करोगे। उ.— तब चरित्र हमहीं देखैगी जैसे नाच नचावहुगे— १९७८।


नचावै
क्रि. स.
(हिं. नचाना)
नाचने को प्रेरित करे।
मुहा.- नाच नचावै— हैरान-परेशान करनेवाले काम करावे। उ.— माया नटी लकुटि कर लीन्हे कोटिक नाच नचावै— १-४२।


नचिकेता
संज्ञा
पुं.
(सं. नचिकेतस)
वाजश्रवा ऋषि का पुत्र जिसने मृत्यु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त क्रिया था।


नचिकेता
संज्ञा
पुं.
(सं. नचिकेतस)
अग्नि।


नचिबौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाचना)
नाचने की क्रिया या भाव।
उ.— सूरदास प्रभु हरि-सुमिरन बिनु जोगी-कपि ज्यौं नचिबौ—१-५९।


नचीला
वि.
(हिं. नाच)
घुमक्कड़, चंचल।


नचौहाँ
वि.
[हिं. नाचना + औहाँ (प्रत्य.)]
नाचने-वाला।


नचौहाँ
वि.
[हिं. नाचना + औहाँ (प्रत्य.)]
चंचल, अस्थिर।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
निगरानी, देखरेख।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
ध्यान, ख्याल।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
परख,पहचान।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
कुदृष्टि जो किसी सुंदर वस्तु या प्राणी पर पड़कर उसको हानि पहुँचा सके।
मुहा.- नजर उतारना- टोना-टुटका करके कुदृष्टि का कुप्रभाव दूर करना।

नजर खाना (खा जाना)— कुदृष्टि का कुफल भुगतना। नजर जलाना (जुड़ना)— कुदृष्टि का कुप्रभाव दूर करना। नजर लगाना— कुदृष्टि डालकर हानि पहुँचाना।

नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
भेंट, उपहार।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
अधीनस्थ कर्मचारी या प्रजावर्ग की ओर से भेंट में दिया जानेवाला धन आदि।


नजरना
क्रि. अ.
[अ. नजर + हिं. ना (प्रत्य.)]
देखना।


नजरना
क्रि. अ.
[अ. नजर + हिं. ना (प्रत्य.)]
कुदृष्टि डालना।


नजरना
क्रि. अ.
[अ. नजर + हिं. ना (प्रत्य.)]
कुदृष्टि लग जाना।


नजरबंद
वि.
(अ. नजर + फा. बंद)
जिस पर कड़ी निगरानी रखी जाय।


नच्यौ
क्रि. अ.
(हिं. नाच)
नाचना, नाच करना।


नच्यौ
प्र.
उघरि नच्यौ चाहत हौं—नंगे नाचना चाहता हूँ, निर्लज्जता का व्यवहार करना चाहता हूँ।
उ.—हौं तौ पतित सात पीढ़िनि कौ, पतितै ह्यै निस्तरिहौं। अब हौं उघरि नच्य़ौ चाहत हौं, तुम्हैं बिरद बिन करिहौं—१-१३४।


नच्यौ
क्रि. अ.
(हिं. नाच)
स्थिर न रहा, चंचलता दिखायी।
उ.— तिहारे आगै बहुत नच्यौ। निसि दिन दीनदयाल, देवमनि, बहु विधि रूप रच्यौ—१-१७४।


नछत्र
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्र)
चन्द्रमा के पथ में पड़नेवाले तारे जिनके विभिन्न नाम रखे गये हैं।
उ.—रामदूत दीपत नछत्र में पुरी धनद रूचि रूचि तम हारी—सा. ९८।


नछत्री
वि.
[सं. नक्षत्र + ई (प्रत्य.)]
जिसका जन्म अच्छे नक्षत्र में हुआ हो, भाग्यवान।


नजदीक
क्रि. वि.
(फ़ा. नजदीक)
निकट, पास।


नजदीकी
वि.
(हिं. नजदीक)
निकट या पास का।


नजम
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नज़्म)
कविता, पद्य।


नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
दृष्टि, चितवन।
मुहा.- नजर आना— दिखायी देना।

नजर करना— देखना। नजर पर चढ़ना— अच्छा लगना, भा जाना। नजर पढ़ना— दिखायी पड़ना। नजर फेंकना— (१) दूर तक देखना। (२) सरसरी तौर से देखना। नजर बाँधना— जादू-टोने से कुछ का कुछ दिखाना।

नजर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
कृपा-दृष्टि, दया-दृष्टि।
मुहा.- नजर रखना— दया दृष्टि बनाये रखना।


नजरबंद
वि.
(अ. नजर + फा. बंद)
जो ऐसे स्थान पर निगरानी में रखा जाय जहाँ कोई आ-जा न सके।


नजरबंद
संज्ञा
पुं.
जादू-टोने से दृष्टि बाँधकर किया जानेवाला खेल।


नजरबंदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजरबंद्)
किसी पर कड़ी निगरानी रखने का भाव।


नजरबंदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजरबंद्)
कड़ी निगरानी का दंड।


नजरबंदी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजरबंद्)
जादूगरी, बाजीगरी।


नजरानना
क्रि. स.
[हिं. नजर + आनना (प्रत्य.)]
भेंट-उपहार में देना।


नजरानना
क्रि. स.
[हिं. नजर + आनना (प्रत्य.)]
नजर लगाना, कुदृष्टि डालना।


नजराना
क्रि. अ.
(हिं. नजर)
नजर लग जाना, कुदृष्टि के कुप्रभाव में आ जाना।


नजराना
क्रि. स.
नजर लगाना।


नजराना
संज्ञा
पुं.
भेंट, उपहार।


नजारा
संज्ञा
पुं.
(अ. नजारा)
दष्टि।


नजारा
संज्ञा
पुं.
(अ. नजारा)
दृश्य।


नजिकाई
क्रि. अ.
(हिं. नजिकाना)
निकट आना।
उ.— मरन अवस्था जब नजिकाई।


नजिकाना
क्रि. अ.
[हिं. नजदीक + आना (प्रत्य.)]
निकट आना, नजदीक पहुँचना।


नजीक
क्रि. वि.
(फ़ा, नजदीक)
निकट, पास।


नजीर
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नजीर)
उदाहरण, मिसाल।


नजूम
संज्ञा
पुं.
(अ.)
ज्योतिष विद्या।


नजूमी
संज्ञा
पुं.
(अ.)
ज्योतिषी।


नट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाटक का अभिनेता।


नट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक जाति जिसका काम गाना-बजाना है।


नजराना
संज्ञा
पुं.
भेंट या उपहार-स्वरूप दी जानेवाली वस्तु।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
दृष्टि, चितवन।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
दया-दृष्टि।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
निगरानी।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
ध्यान, ख्याल।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
परख।


नजरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नजर)
कुदृष्टि जो किसी सुंदर वस्तु या प्राणी को हानि पहुँचा सके।


नजला
संज्ञा
पुं.
(अ. नजलः)
जुकाम, सरदी।


नजाकत
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नजाकत)
सुकुमारता।


नजात
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
छुटकारा, मुक्ति।


दमनी, दमनीय
वि.
(सं.)
जिसको दबाया जा सके।


दमबाज
वि.
(फ़. दम +बाज़)
बहानेबाज।


दमबाजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़. दम +बाज़ी)
बहानेबाजी।


दमयंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री जो नल को ब्याही थी।


दमयंती
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बेला।


दमरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दमड़ी)
पैसे का आठवाँ भाग।


दमशील
वि.
(सं.)
इंद्रिय-निग्रही।


दमशील
वि.
(सं.)
दमन करनेवाला, दमनशील।


दमसाज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दमसाज़)
गवैये के साथ स्वर साधनेवाला उसका सहायक।


दमा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
एक भयंकर श्वाँस रोग।


नटन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नृत्य।


नटन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभिनय।


नटना
क्रि. अ.
(सं. नट)
अभिनय करना।


नटना
क्रि. अ.
(सं. नट)
नाचना।


नटना
क्रि. अ.
(सं. नट)
कहकर मुकर जाना।


नटना
क्रि. स.
(सं. नष्ट)
नष्ट करना।


नटना
क्रि. अ.
नष्ट हो जाना।


नटनागर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।
उ.— नटगागर पट पै तब ही ते लटक रह्यौ मन मेरौ—सा. ४२।


नटनारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नटनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नर्तन)
नृत्य, नाच।


नट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक नीच जाति जो रस्सी और बाँस पर खेल-तमाशे और कसरत करके पेट पालती है।
उ.— मन मेरैं नट के नायक ज्यौं नितहीं नाच नचायौ—१-२०५।


नट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अशोकवृक्ष।


नटई
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
गला।


नटई
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
गले की घंटी।


नटकनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नट)
नट की कला, नृत्य, नाच।
उ.—लज्जित मनमथ निरखि बिमल छबि, रसिक रंग भौंहनि की मटकनि। मोहनलाल, छबीलौ गिरिधर, सूरदास बलि नागर नटकनि—६१८।


नटखट
वि.
(हिं. नट + अनु. खट)
उपद्रवी, उघमी।


नटखटी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटखट)
शरारत, उघम।


नटचर्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अभिनय।


नटता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नट की क्रिया या भाव।


नटनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटना)
मुकरने की क्रिया या भाव, अस्वीकृति।


नटनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटनी)
नट जाति की स्त्री।


नटनी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नट + नी (प्रत्य.)]
नट की स्त्री।


नटनी
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नट + नी (प्रत्य.)]
नट जाति की स्त्री।
उ.— त्यों नटनी कर लिए लकुटिया कपि ज्यौं नाच नचावै—३०८८।


नटमल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नटमल्लार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नटराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महादेव।


नटराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


नटवति
क्रि. स.
(हिं. नटवना)
अभिनय करती है, स्वाँग भरती है।
उ.—एक ग्वालि नटवति बहु लीला एक कर्म गुन गावति।


नटवना
क्रि. स.
(सं. नटन)
अभिनय या स्वाँग करना।


नटसाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नट + हिं. सालना)
बहुत छोटी फाँस जो निकल न सके।


नटसाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नट + हिं. सालना)
कसक, पीड़ा।


नटांतिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लज्जा, लाज, शर्म।


नटिन, नटिनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटनी)
नट की स्त्री।


नटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नट जाति की स्त्री।


नटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाचनेवाली, नर्तकी।


नटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अभिनय करनेवाली।


नटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाचनेवाली।
उ.—माया नटी लकुटि कर लीन्हे कोटिक नाच नचावै—१-४२।


नटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेश्या।


नटुआ, नटुवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नट)
नट।


नटुआ, नटुवा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटई)
गला।


नटुआ, नटुवा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नटई)
गले की घंटी।


नटेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महादेव।


नटेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


नट्ट
संज्ञा
पुं.
(सं. नट)
नट।


नट्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक रागिनी।


नठना
क्रि. अ.
(सं. नष्ट)
नष्ट होना।


नठना
क्रि. स.
नष्ट करना।


नड़
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नरसल, नरकट।


नढ़ना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
गूँथना।


नटवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाट्य-कला में बहुत दक्ष व्यक्ति।
उ.— कटि तट पट पियरो नटवर बपु साधे सुख रूख जीके—सा. १००।


नटवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मुख्य नट।


नटवर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण जो नाट्य कला के आचार्य विख्यात है।


नटवर
वि.
नाट्यकला में दक्ष।
उ.— सूरदास प्रभु मुरलि बजावत, ब्रज आवत नटवर गोपाल—४८२।


नटवर
वि.
बहुत चतुर, चालाक।


नटवा
संज्ञा
पुं.
(सं. नट)
नट।
उ.—बेष धरि-धरि हरयौ पर-धन, साधु-साधु कहाइ। जैसैं नटवा लोभ-कारन करत स्वाँग बनाइ—१-४५।


नटवा
वि.
(हिं. नाटा)
नाटे कद का।


नटसार, नटसारा
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नाट्यशाला)
वह स्थान जहाँ नाटक का अभिनय हो।


नटसाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नट + हिं. सालना)
चुभे हुए काँटे का वह भाग जो टूटकर शरीर में ही रह गया हो।


नटसाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नट + हिं. सालना)
वाण की गाँसी जो टूटकर शरीर में रह जाय।


नथना, नथुना
क्रि. अ.
(हिं. नाथना)
छिदना, छेदा जाना।


नथनी, नथिया, नथुनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नथ)
नाक में पहनने की छोटी नथ।
उ.—(क) मोतिनि सहित नासिका नथुनी कंठ-कमल-दल-माल की—१०-१०५। (ख) सारँग-सुत-छबि बिन नथुनी रस-बिंदु बिना अधिकात—सा. ५२।


नथनी, नथिया, नथुनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नथ)
बुलाक।


नथनी, नथिया, नथुनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नथ)
तलवार की मूठ का छल्ला।


नथनी, नथिया, नथुनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नथ)
नथ-जैसी गोल चीज।


नद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुल्लिंगवाची नामवाली नदी।


नदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शब्द करना।


नद-नदी-पति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र, सिंधु।


नदना
क्रि. अ.
(सं. नदन)
पशुओं का रँभाना या बँवाना।


नदना
क्रि. अ.
(सं. नदन)
बजना , शब्द करना।


नढ़ना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
बाँधना।


नत
वि.
(सं.)
झुका हुआ।


नत
वि.
(सं.)
विनीत।


नतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नत होने की क्रिया या भाव।


नतपाल
संज्ञा
पुं.
(सं. नत + पालक)
प्रणाम करनेवाले का पालक, प्रणतपाल, शरणपाल।


नतमस्तक
वि.
(सं.)
(लज्जा, संकोच,विनय आदि से) जिसका मस्तक झुका हुआ हो।


नत-माथ
वि.
(सं. नत + हिं. माथा)
(लज्जा, संकोच,विनय आदि से) जिसका मस्तक झुका हुआ हो।


नतर, नतरक, नतरु, नतरुक
क्रि. वि.
(हिं. न + तो)
नहीं तो, अन्यथा।
उ.— तजि अभिमान, राम कहि बौरै, नतरूक ज्वाला तचिबौ—१-५९।


नति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
झुकाव, उतार।


नति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रणाम।


नति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विनय।


नति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नम्रता।


नतिनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाती)
लड़की की लड़की।


नतीजा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
परिणाम, फल।


नतु
क्रि. वि.
(हिं. न + तो)
नहीं तो।


नतैत
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाता)
संबंधी, नातेदार।


नत्थ, नथ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाथना, नथ)
नथ नामक गहना जो नाक में पहना जाता है और हिंदुओं में सौभाग्य का चिन्ह समझा जाता है।
उ.—(क) नासा नथ मुकुता की सोभा रह्यौ अधर तट जाइ—१०७९। (ख) भाल तिलक अंजन चख नासा बेसरि नथ में फूली—३२२१।


नथना, नथुना
संज्ञा
पुं.
(सं. नस्त)
नाक का छेद।


नथना, नथुना
संज्ञा
पुं.
(सं. नस्त)
नाक का अगला भाग।
मुहा.- नथना फुलाना— क्रोध करना।

नथना फूलना— क्रोध आना।

नथना, नथुना
क्रि. अ.
(हिं. नाथना)
नाथा जाना, एक सूत्र में बँधना।


ननकारना
क्रि. अ.
(हिं. न + करना)
मंजूर न करना, इनकार करना।


ननँद, ननद, ननदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. ननंद्द)
पति की बहिन।
उ.— (क) ननदी तौ न दियै बिनु गारी नैंकहु रहति—१४९२। (ख) जिय परी ग्रंथ कौन छोरै निकट ननँद न सास— पृ. ३४५ (५७)।


ननदोइ, ननदोई
संज्ञा
पुं.
[हिं. ननद + ओई (प्रत्य.)]
ननद का पति।


ननसार, ननसाल
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाना + शाला)
नाना का घर, ननिहाल।
उ.—असुरनि बिस्वरूप सौं कह्यौ। भली भई तू सुर गुरू भयौ। तुव ननसाल माहिं हम आहिं। आहुति हमैं देत क्यौं नाहिं—६-५।


नना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
माता।


नना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कन्या।


ननिहाल
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाना + आलय)
नाना का घर।


नन्ना
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाना)
नाना।


नन्ना
वि.
(हिं. नन्हा)
छोटा, नन्हा।


नन्हा
वि.
(सं. न्यंच)
छोटा।
मुहा.- नन्हा सा— बहुत छोटा।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
पूरे हाथ या पंजे का आघात, थप्पड़।
उ.— बारि बाँधे वीर चहुँधा देखत ही बज्र सम थाप बल बुंभ दीन्हो २५६०।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
चिन्ह, छाप, थापा।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
स्थिति, जमाव।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
प्रतिष्ठा, धाक।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
मान, कदर।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
शपथ।
मुहा- किसी का थाप देना- कसम रखाना।


थापा
क्रि. स.
(हिं. थोपना)
स्थापित करता है।


थापन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थाप)
प्रतिष्ठित या स्थापित करने की क्रिया।
उ.—(क) नाना वाक्य धर्म थापन को तिमिर हरन भुव भारन— सारा. ३१८। (ख) कर्मकद थापन को प्रकटे पृश्नि गर्भ अवतार-सारा. ३२१।


थापना
क्रि. स.
(सं. स्थापन)
बैठाकर, जमाकर या स्थापित करके रखना।


थापना
क्रि. स.
(सं. स्थापन)
किसी गीली चीज को हाथ से पीट-पाट कर कोई आकार देना।


दमुना
संज्ञा
पुं.
(देश.)
अग्नि, आग।


दमैया
वि.
(हिं. दमन +ऐया)
दमन करनेवाला।


दमोड़ा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दमन +ऒड़ा)
मूल्य, कीमत।


दमोदर
संज्ञा
पुं.
(सं. दामोदर)
विष्णु, श्रीकृष्ण।


दम्य
वि.
(सं.)
दमन करने के योग्य।


दयंत
संज्ञा
पुं.
(सं. दैत्य)
दानव, राक्षस।


दय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दया, कृपा।


दयन
वि.
(हिं. देना)
देनेवाला।
उ.— (क) श्री बृंदाबन कमलनयन। मनु आयौ है मदन गुन गुदर दयन—२४८४। (ख) त्रिबिध पवन मन हरष दयन —२३८७।


दया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुखी के प्रति करुणा या सहानुभूति का भाव।


दया
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्षप्रजापति की एक कन्या जो धर्म को ब्याही थी।


नदीकांत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र, सागर।


नदीज
वि.
(सं.)
जो नदी से जन्मा हो।


नदीपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र।


नदीपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वरूण।


नदीमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नदी का मुहाना।


नदीश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समुद्र।


नधना
क्रि. अ.
[सं. नद्ध = बँधा हुआ + ना (प्रत्य.)]
गाड़ी आदि में जुतना।
मुहा.- काम में नधना— काम में जुतना।


नधना
क्रि. अ.
[सं. नद्ध = बँधा हुआ + ना (प्रत्य.)]
जुड़ना।


नधना
क्रि. अ.
[सं. नद्ध = बँधा हुआ + ना (प्रत्य.)]
काम का ठन जाना।


ननकहा, ननका
वि.
(हिं. नन्हा)
छोटा।


नदनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेघ।


नदनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शब्द।


नदनु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंह।


नदराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सागर, समुद्र।


नदान
वि.
(फ़ा. नादान)
नासमझ, अनजान।


नदान
वि.
(फ़ा. नादान)
बहुत छोटी अवस्था का जब संसार का ज्ञान न हो।


नदारद
वि.
(फ़ा.)
गायब, लुप्त।


नदि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्तुति।


नदि, नदिया, नदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नदी)
सरिता, तटिनी।
उ.— इक नदिया इक नार कहावत मैलौ नीर भरौ। जब मिलि गए तब एक बरन ह्यै, गंगा नाम परयौ —१-२२०।
मुहा.- नदी-नाव-संयोग— ऐसा संयोग जो संयोग से ही हो जाय और बार-बार न हो।


नदि, नदिया, नदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नदी)
किसी बहनेवाली चीज का प्रवाह।


नबेड़ना
क्रि. स.
(हिं. निपटाना)
चुन लेना, छाँट लेना।


नब्ज
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नब्ज)
नाड़ी।
मुहा.- नब्ज चलना— शरीर में प्राण होना।

नब्ज छूटना (न रहना)— शरीर में प्राण न रहना।

नब्बे
संज्ञा
पुं.
(सं. नवति)
संख्या जो सौ से दस कम हो।


नभःकेतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य।


नभःसरित
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आकाशगंगा।


नभःसुत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पवन, हवा।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
आकाश नामक तत्व।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
आकाश।
उ.— चलति नभ चितै नहिं तकति धरनी—६९८।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
शून्य।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
सावन मास।


नफर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
दास, सेवक।


नफरत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.नफ़रत)
घिन, घृणा।


नफरी
संज्ञा
स्त्री.
(फा.)
मजदूर का एक दिन का काम या वेतन।


नफा
संज्ञा
पुं.
(अ. नफ़ा,)
लाभ, फायदा।
उ.— (क) होतौ नफा साधु की संगति मूल गाँठि नहिं टरतौ—१-२९७। (ख) सुनहु सूर हमसौं हठ माँड़ति कौन नफा करि लैहौ—१११८। (ग) गुप्त प्रीति काहे न करी हरि सौं प्रगट किए कछु नफा बढ़ैहै—११९२। (घ) लै आए हौ नफा जानि कै सबै बस्तु अकरी—३१०४। (ङ) प्रेम बनिज कीन्हौं हुतौ नेह नफा जिय जानी—३१४९।


नफासत
संज्ञा
स्त्री.
(अ. नफ़ासत)
बढ़ियापन।


नफीरी
संज्ञा
स्त्री.
(फा. नफ़ीरी)
तुरही, शहनाई।


नफीस
वि.
(अ. नफ़स)
बढ़िया, सुंदर।


नफो
संज्ञा
पुं.
(अ. नफ़ा)
लाभ, नफा।
उ.—तहीं दीजै मुर परैना नफो तुम कछु खाहु—३००३।


नबी
संज्ञा
पुं.
(अ.)
ईश्वरीय दूत, पैगंबर।


नबेड़ना
क्रि. स.
(हिं. निपटाना)
निपटाना, तय करना।


नन्हाइ, नन्हाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नन्हा + ई (प्रत्य.)]
छोटापन।


नन्हाइ, नन्हाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नन्हा + ई (प्रत्य.)]
हेठी, बदनामी।
उ.— (क) ब्रज परगन-सिकदार महर तू ताकी करत नन्हाई—३२९। (ख) नंद महर की करै नन्हाई—३९१।


नन्हैया
वि.
[हिं. नन्हा + ऐया (प्रत्य.)]
बहुत छोटा।
उ.— (क) चुटकी देहिं नचावहीं सुत जानि नन्हैया—१०-११६। (ख) पाँच बरस कौ मेरौ नन्हैया अचरज तेरी बात—१०-२५७। (ग) तृनावर्त पूतना पछारी, तब अति रहे नन्हैया—४२८।


नपाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नाप + आई (प्रत्य.)]
नापने का काम, भाव या वेतन।


नपुंसक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुरूषत्वहीन व्यक्ति।


नपुंसक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो न स्त्री हो न पुरूष, क्लीव।


नपुंसक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कायर।


नपुंसकता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नपुंसक होने का भाव।


नपुंसकत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नपुंसक होने का भाव।


नपुआ
संज्ञा
पुं.
[हिं. नाप + उआ (प्रत्य.)]
कोई वस्तु नापने का पात्र।


नभग
वि.
आकाश में विचरनेवाला, आकाशगामी।


नभगनाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गरूड़।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
चंद्र।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
सूर्य।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
तारा।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
पक्षी।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
देवता।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
हवा।


नभगामी
संज्ञा
पुं.
(सं. नभोगामिन्)
बादल।


नभगेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गरूड़।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
भादो मास।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
आश्रय, अधार।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
निकट, पास।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
शिव, महादेव।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
जल।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
मेघ, बादल।


नभ
संज्ञा
पुं.
(सं. नभसर)
वर्षा।


नभग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


नभग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हवा।


नभग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


नभचर
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चर)
पक्षी।


नभचर
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चर)
बादल।


नभचर
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चर)
हवा।


नभचर
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चर)
सूर्य, चंद्र आदि ग्रह।


नभचर
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चर)
देवता।


नभधुज, नभध्वज
संज्ञा
पुं.
(सं. नभध्वज)
बादल।


नभश्चक्षु
संज्ञा
पुं.
(सं. नभश्चक्षुस)
सूर्य।


नभश्चर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


नभश्चर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


नभश्चर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हवा।


नभश्चर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, चंद्र आदि ग्रह।


नभश्चर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता।


नभस्थल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश।


नभस्थल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव।


नभस्थित
वि.
(सं.)
आकाश में ठहरा हुआ।


नभोगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षी।


नभोगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


नभोगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हवा।


नभोगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सूर्य, चंद्र आदि ग्रह।


नभोगति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
देवता।


नम
वि.
(फा.)
गीला, तर, आर्द्र।


नम
संज्ञा
पुं.
(सं. नमस्)
नमस्कार, प्रणाम।


नमक
संज्ञा
पुं.
(फा.)
नोन, लवण।
मुहा.- नमक अदा करना— स्वामी के उपकार का बदला चुकाना।

(किसी का) नमक खाना— (किसी का) दिया खाना। नमक-मिर्च मिलाना (लगाना)— (बात को) बढ़ा-घटाकर कहना। नमक फूट-कर निकलना— उपकार न मानने का दैवी दंड मिलना। नमक से अदा होना— स्वामी के उपकार से उऋण होना। कटे पर नमक छिड़कना- दुखी को और जलाना। नमक का सहारा— (१) बहुत थोड़ी सहायता। (२) बहुत छोड़ा लाभ।

नमक
संज्ञा
पुं.
(फा.)
सलोनापन, लावण्य।


नमकहराम
वि.
(फा. नमक + अ. हराम)
जो किसी का अन्न खाकर उसी को हानि पहुँचावे, कृतघ्न।


नमकहरामी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नमक हराम + ई (प्रत्य.)]
नमकहराम होने का भाव, कृतघ्नता।


नमकहलाल
वि.
(फा. नमक + अ. हलाल)
जो किसी का नमक खाकर बदले में उसका भला भी करे।


नमकहलाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नमकहलाल)
नमकहलाल होने का भाव, स्वामिभक्ति।


नमकीन
वि.
(हिं. नमक)
नमक के स्वादवाला।


नमकीन
वि.
(हिं. नमक)
जिसमें नमक पड़ा हो।


दयाकरन
वि.
((सं. दया +करण=करनेवाले )
दयालु, दयावान।
उ.—दीनबंधु, दयाकरन, असरन-सरन, मंत्र यह तिनहिं निज मुख सुनायौ—८-८,


दयाकूर्च
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गौतम बुद्ध।


दयादृष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
किसी के प्रति कृपा, करुणा या सहानुभूति का भाव।


दयानत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
ईमान, सत्यनिष्ठा।


दयानतदार
वि.
(अ. दयानत + फ़ा. दार)
ईमानदार।


दयानतदारी
संज्ञा
स्त्री.
(अ. दयानत + फ़ा. दारी)
सच्चाई, ईमानदारी।


दयाना
क्रि. अ.
[हिं. दया + ना (प्रत्य.)]
दयालु होना।


दयानिधान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत दयालु व्यक्ति।


दयानिधान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।


दयानिधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सदय, दयालु।


नमकीन
वि.
(हिं. नमक)
सलोना।


नमकीन
संज्ञा
पुं.
नमकीन पकवान।


नमत
वि.
(सं.)
नम्र, जो झुकता हो, विनयी।


नमत
संज्ञा
पुं.
स्वामी, प्रभु, मालिक।


नमदा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
जमाया हुआ ऊनी कंबल।


नमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रणाम, नमस्कार।
उ.—पर्वत बहुत नमनि करि पूजा यह बिनती करवाये—सारा. ६१७।


नमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झुकाव।


नमना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
झुकना।


नमना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
प्रणाम या नमस्कार करना, नम्रता दिखाना।


नमनीय
वि.
(सं.)
नमस्कार या प्रणाम करने के उपयुक्त।


नमनीय
वि.
(सं.)
जो झुक सके या झुकाया जा सके।


नमनीयता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
‘नमनीय’ होने का भाव।


नमस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
झुकना।


नमस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रणाम।


नमसकार, नमस्कार
संज्ञा
पुं.
(सं. नमस्कार)
प्रणाम, अभिवादन।
उ.—नमस्कार मेरो जदुपति सौं कहियौ गहिकै पाय—३४९४।


नमस्कार्य
वि.
(सं.)
जो नमस्कार के योग्य हो, पूज्य।


नमस्कार्य
वि.
(सं.)
जिसे नमस्कार किया जाय।


नमस्ते
वाक्य
(सं.)
आपको नमस्कार है।
उ.—नमो नमस्ते बारंबार—१० उ.-१३०।


नमाइ
क्रि. स.
(हिं. नमाना)
झुकाकर, नम्रता प्रदर्शित करके।
उ.—हरष अक्रूर हृदय नमाइ—२५५६।


नमाज
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नमाज)
मुसलमानी प्रार्थना।


नमाजी
वि.
(हिं. नमाज)
नमाज पढ़नेवाला।


नमाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
झुकाना, नम्रता दिखाना।


नमाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
दबाकर वश में करना।


नमामि
वाक्य
(सं.)
मैं नमस्कार करता हूँ।


नमि
क्रि. अ.
(हिं.नमना)
झुकाकर, नीची करके।
उ.—जनु सिर पर ससि जानि अधोमुख, धुकत नलिनि नमि नाल—१०-११४।


नमित
वि.
(सं.)
झुका हुआ।
उ.— (क) भू भृत सीस नमित जो गर्बगत, सींच्यौ नीर—९-२६। (ख) नमित मुख इमि अधर सूचत, सकुच मैं कछु रोष—३५०।


नमी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
गीलापन, तरी, आर्द्रता।


नमुचि
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
कामदेव।


नमूना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बानगी।


नमूना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
आदर्श।


नमूना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
ढाँचा।


नमो
संज्ञा
पुं.
(सं. नमस)
नमस्कार है, प्रणाम करता हूँ, नमता हूँ।
उ.—(क) नमो नमो हे कृपानिधान —। (ख) नमो-नमो भक्तनि-भयहारी —२-३२। (ग) हरि-हर संकर नमो-नमो—१०-१७१।


नम्य
वि.
(सं.)
जो झुकाया जा सके।


नम्र
वि.
(सं.)
विनीत।


नम्र
वि.
(सं.)
झुका हुआ।


नम्रता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नम्र होने का भाव।


नय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीति।


नय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नम्रता।


नय
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नद)
नदी।
उ.—(क) रंभापति-सुत-सत्रु-पिता ज्य नयौ अहि अंत न तोलै—सा. ४३। (ख) सुछ बसन नय उर के रस सें मिले लाल मुख पोछो—सा. ८३।


नयकारी
संज्ञा
पुं.
(सं. नृत्यकारी)
नर्तकों का नायक या मुखिया।


नयकारी
संज्ञा
पुं.
(सं. नृत्यकारी)
नाचनेवाला, नचनिया।


नयन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नेत्र, आँख।
उ.— (क) नयन ठहरात नहिं बहत अति तेज सी—१४८७। (ख) काहे को लेति नयन जल भरि भरि नयन भरे ते कैसे सूल टरैगो—२८७०।
मुहा.- निरखि नयन भरि— भली भाति दे ले, नेत्रों में छबि भर ले। उ.— निरखि सरूप बिबेक-नयन भरि सुख तै नहिं और कछू अब—।


नयन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ले जाना।


नयनगोचर
वि.
(सं.)
दिखायी पड़नेवाला।


नयनपट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आँख का पलक।


नयना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
नम्र होना।


नयना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
झुकना, लटकना।


नयना
संज्ञा
पुं.
नेत्र, आँख।


नय-नागर
वि.
(सं.)
नीति में बहुत चतुर।


नयनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आँख की पुतली।


नयनी
वि.
स्त्री.
आँखवाली।


नयनूँ
संज्ञा
पुं.
(सं. नवनीत)
मक्खन।


नयर
संज्ञा
पुं.
(सं. नगर)
नगर, शहर, पुर।


नयशील
वि.
(सं.)
नीतिज्ञ।


नयशील
वि.
(सं.)
विनीत।


नया
वि.
(सं. नव)
नवीन, नूतन।
मुहा.- नया लिखना— पुराना हिसाब साफ करके नया चालू करना।


नया
यौ.
नया-नवेला—नवयुवक, नौजवान।


नया
वि.
(सं. नव)
जो थोड़े ही समय से ज्ञात हुआ हो।


नया
वि.
(सं. नव)
जो पहले व्यवहार में न आया हो, कोरा।


नया
वि.
(सं. नव)
जिसका आरंभ फिर से या हाल ही में हुआ हो।


नयापन
संज्ञा
पुं.
[हिं. नया + पन (प्रत्य.)]
नवीनता।


नयौ
वि.
(हिं. नया)
नवीन, नूतन।
मुहा.- लिखत नयौ— पुराना हिसाब साफ या बंद करके नया चालू करना। उ.— बरस दिवस करि होत पुरातन फिरि फिरि लिखत नयौ— १-२६८।


नयौ
क्रि. अ.
(हिं. नयना)
झुक गया, मिट गया, जाता रहा।
उ.—अंबर हरत द्रौपदी राखी, ब्रह्म-इन्द्र कौ मान नयौ—१-२६।


नर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु


नर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिवजी।


नर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अर्जुन।


नर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पुरूष।
उ.—सूरदास-प्रभु-रूप चकित भए पंथचलत नर बाम—९-४४।


नर
वि.
जो पुरूष वर्ग का प्राणी हो।


नर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नल)
पानी आदि का नल।


नर-अवतार
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + अवतार)
मनुष्य-जन्म-मनुष्य-योनि।
उ.—नहीं अस जनम बारंबार। पुर-बलौ धौं पुन्य प्रगट्यौ, लह्यौ नर-अवतार—१-८८।


नरई
संज्ञा
स्त्री.
(देशज)
गेहूँ आदि की बाल का डंठल।


नरकंत
संज्ञा
पुं.
(सं. नरकांत)
राजा, नृप।


नरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह स्थान जहाँ पापी पाप का फल भोगने जाता है।


नरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बहुत गंदा स्थान।


नरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कष्टदायी स्थान।


नरक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक असुर।


नरकगति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पाप जिससे नरक भोगना हो।


नरकगामी
वि.
(सं.)
नरक में जानेवाली।


नरक चतुर्दशी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी जब घर का सारा कूड़ा-करकट साफ किया जाता है।


नरकट
संज्ञा
पुं.
(सं. नलकट)
एक पौधा।


नरकपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
यमराज।
उ.— गढ़वै भयौ नरकपति मोसौं दीन्हे रहत किवार—१-१४१।।


नरकारि
संज्ञा
पं.
(सं.)
विष्णु या उनके अवतार।


नरकासुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक दैत्य जो बाराह भगवान के पृथ्वी के साथ गमन करने पर जन्मा था। जब यह प्राग्ज्योतिषपुर का राजा बना तब इसने बहुत अत्याचार किया। अंत में श्रीकृष्ण ने इसको मारकर सोलह हजार बंदिनी युवतियों का उद्धार किया था।
उ.—नरकासुर को मारि स्यामघन सोरह सहस त्रिय लाये—सारा. ६५८।


नरकी
वि.
(हिं. नारकी)
नरक भोगनेवाला, पापी।


नरकुल
संज्ञा
पुं.
(सं. नल)
नरकट का पौधा।


नरकेशरी, नरकेसरी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नृसिंह भगवान।


नरकेहरि, नरकेहरी
संज्ञा
पुं.
(सं. नरकेसरी)
नृसिंह।


नरगिस
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
एक पौधा जिसके फूल के साथ कवि आँख की उपमा देते हैं।


नरगिसी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नरगिस के सफेद फूल के रंग का।


नरगिसी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
नरगिस-संबंधी।


नरतात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नृप, नृपति।


नरत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर के गुण-युक्त होने का भाव।


नरद
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नर्द)
चौसर खेलने की गोटी।


नरद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नर्द्द)
शब्द, ध्वनि, नाद।


नरदन
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नर्द्दन)
गरजना, शब्द करना।


नरदारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + दारा)
नपुंसक।


नरदारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + दारा)
कायर।


नरदारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + दारा)
जो पुरूष स्त्रियों सा कार्य करे।


नरदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा।


नरदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ब्राह्मण।


दयानिधि
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।
उ.—दयानिधि तेरी गति लखि न परै—१-१०४।


दयानी
क्रि. स.
(हिं. दयाना)
(दया) दिखायी।
उ.—कहा रही अति क्रोध हिये धरि नेक न दया दयायनी—२२७५।


दयापात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जिस पर दया करना उचित हो, जो वस्तु दया के योग्य हो।


दयामय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दयालु व्यक्ति।


दयामय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।


दयार
संज्ञा
पुं.
(सं. देवदार)
देवदार का पेड़।


दयार
संज्ञा
पुं.
(अ.)
प्रांत, प्रदेश।


दयारत
क्रि. वि.
(सं. दया + रत)
दयावश, दयालु होकर।
उ.—का न कियौ जनहित जदुराई। प्रथम कह्यौ जो बचन दयारत, तिहिं बस गोकुल गाय चराई—१-६।


दयारत
वि.
(सं. दया + रत)
दयालु दया-कार्य में लगे रहनेवाला।


दयार्द्र
वि.
(सं.)
दयापूर्ण, दया से पसीजा हुआ।


नरनाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नृपति, भूपाल।


नरनायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नृप, नृपाल।


नर-नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर-नारायण नामक दो ऋषि जो विष्णु के अवतार माने जाते हैं।


नर-नारि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अर्जुन की स्त्री द्रौपदी।


नरनाह
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + नाथ=स्वामी)
नरपति, राजा, नृप, नृपाल।
उ.— ब्रह्मा कह्यो, सुनौ नर-नाह। तुमसौं नृप जग मैं अब नाह—९-४।


नरनाहर
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + हिं. नाहर)
नृसिंह।


नरपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नृपति, भूप।
उ.—(क) नरपति एक पुरूरवा भयौ—९-२। (ख) नरपति ब्रह्म-अंस सुख रूप—४१२।


नरपशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नृसिंह भगवान।


नरपशु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो मनुष्य होकर भी पशु का आचरण करे।


नरपाल
संज्ञा
पुं.
(सं. नृपाल)
राजा, नृप।


नरपिशाच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बड़ा दुष्ट और नीच।


नर-बपु
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + बपु)
मनुष्य- शरीर, मनुष्य-जन्म, मनुष्य-योनि।
उ.—नर-बपु धारि नाहिं जन हरि कौं, जम की मार सो खैहै—१-८६।


नरभक्षी
वि.
(सं. नरभक्षिन्)
मनुष्यों को खानेवाला।


नरभक्षी
संज्ञा
पुं.
हिंसक पशु।


नरभक्षी
संज्ञा
पुं.
राक्षस, दैत्य।


नरम
वि.
(फ़ा. नम)
मुलायम।


नरमा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नरम)
सेमर की रूई।


नरमा
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नरम)
कान का निचला भाग, लौल।


नरमाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नरम)
मुलायमियत।


नरमाना
क्रि. स.
[हिं. नरम + आना (प्रत्य.)]
नरम करना।


नरमाना
क्रि. स.
[हिं. नरम + आना (प्रत्य.)]
शान्त या धीमा करना।


नरमाना
क्रि. अ.
नरम होना।


नरमाना
क्रि. अ.
शांत होना।


नरमी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नरम)
मुलायमियत, कोमलता।


नरमे
वि.
(हिं. नरम)
मुलायम, कोमल।
उ.— माथ नाइ करि जोरि दोउ कर रहे बोलि लीन्हों निकट बचन नरमे—२४६६।


नरमेध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक यज्ञ जिसमें मनुष्य के मांस की आहु ति दी जाती थी।


नरलोक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संसार, मृत्युलोक।


नरवाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नरई)
गेहूँ की बाल का डंठल।
उ.— बालि छाँड़ि कै सूर हमारे अब नरवाई को लुनै—३१५८।


नरवाह, नरवाहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सवारी जिसे मनुष्य खींचता या ढोता हो।


नरव्याघ्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मनुष्यों में श्रेष्ठ।


नरव्याघ्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक जल-जंतु जिसका निचला शरीर मनुष्य-सा और ऊपरी बाघ-सा होता हैं।


नरशक्र
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + शक्र)
राजा, नरेंद्र।


नरसल
संज्ञा
पुं.
(हिं. नरकट)
नरकट का पौधा।


नरसिंगा, नरसिंघा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नर=बड़ा + सिघा=सींग का बाजा)
तुरही की तरह का एक बाजा जो फूँककर बजाया जाता है।


नरसिंघ, नरसिंह
संज्ञा
पुं.
(सं. नृसिंह)
नृसिंह।


नरसों
क्रि. वि.
(हिं. अतरसों)
पिछले परसों के पहले और अगले परसों के बाद का दिन।


नरहरि, नरहरी
संज्ञा
पुं.
(सं. नरहरि)
नृसिंह भगवान।
उ.—फटि तब खंभ भयौ द्वै फारि। निकसे हरि नरहरि-बपु धारि—७-२।


नरहरि, नरहरी
संज्ञा
पुं.
(सं. नरहरि)
९ मात्राओं का एक छंद।


नरहरिरुप
संज्ञा
पुं.
(सं. नर + हरि + रुप)
विष्णु का चौथा अवतार जिसका आधा शरीर मनुष्य का और आधा सिंह का था।


नरांतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण का एक पुत्र जो अंगद के हाथ से मारा गया था।


नराच
संज्ञा
पुं.
(सं. नाराच)
बाण।


नराच
संज्ञा
पुं.
(सं. नाराच)
एक छंद।


नराचिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक छंद।


नराज
वि.
(हिं. नाराज)
रूष्ट, अप्रसन्न।


नराजना
क्रि. स.
(हिं. नाराज)
अप्रसन्न करना।


नराजना
क्रि. अ.
नाराज या अप्रसन्न होना।


नराट
संज्ञा
पुं.
(सं. नरराट्)
राजा, नृप।


नराधिप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नृपाल।


नरायन
संज्ञा
पुं.
(सं. नारायण)
विष्णु, भगवान्।


नरिंद, नरिंद्र
संज्ञा
पुं.
(सं. नरेंद्र)
राजा।


नरिअर नरियर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नारियल)
नारियल।


नरियाना
क्रि. अ.
(सं. नर्द्दन)
शब्द करना, चिल्लाना।


नरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.नलिका)
नली, पुपली।


नरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नर)
स्त्री, नारी।


नरु
संज्ञा
पुं.
(हिं. नर)
मनुष्य, नर।


नरुई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नली)
छोटी नली।


नरेंद्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नरपति, नरेश।


नरेश, नरेस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा, नरपति नरेंद्र।


नरों
क्रि. वि.
(हिं. नरसों)
पिछले परसों के पहले और अगले परसों के बाद का दिन।


नरोत्तम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर।


नरोत्तम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रेष्ठ नर।


नर्क
संज्ञा
पुं.
(सं. नरक)
नरक।


नर्कुटक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाक, नासिका।


नर्त्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाचनेवाला।


नर्त्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाचनेवाला, नट।


नर्त्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चारण, बंदीजन।


नर्त्तक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव जी का एक नाम।


नर्त्तकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाचनेवाली।


नर्त्तकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वेश्या।


नर्त्तन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाच, नृत्य।


नल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रामचंद्र जी की सेना का एक बंदर जो विश्वकर्मा का पुत्र माना जाता है और जो ऋतुध्वज ऋषि के शाप-वश घृताची के गर्भ से जन्मा था।प्रसिद्धि है कि नील की सहायता से समुद्र पर पुल इसी ने बाँधा था।


नल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निषघ देश के राजा वीरसेन का पुत्र जिसका विवाह दमयंती से हुआ था।


नल
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल)
लंब पोली छड़।


नलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लंबी पोली हड्डी।।


नलका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नलिका)
नली, नाल।


नलकूबर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुबेर का पुत्र, जिसे नारद ने उस समय अर्जुन वृक्ष हो जाने का शाप दिया था जब वह मदमाता होकर गंगा में स्त्रियों के साथ विहार कर रहा था। रामायण के अनुसार, एक बार रंभा अप्सरा को नलकुबेर के यहाँ जाते देखकर, रावण उठा ले गया था। इस पर रावण को उसने शाप दिया कि किसी भी स्त्री के साथ बलात्कार करने पर तू तुरंत मर जायगा। सूरदास ने भी इसी कथा की ओर संकेत किया है।
उ.— त्रिजटी सीता पै चलि आई। मन मैं सोच न करि तू माता, यह कहि कै समुझाइ। नलकूबर कौ साप रावनहिं, तो पर बल न बसाई—।


नलद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मकरंद।


नलद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खस।


नलसेतु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रामेश्वर के निकटवर्ती समुद्र पर बना पुल जो श्री राम ने नल-नील से बनवाया था।


नलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नली।


नर्त्तनशाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाचघर।


नर्दन
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाद, गरजन।


नर्म
संज्ञा
पुं.
(सं. नर्मन्)
परिहास, हँसी-ठट्ठा।


नर्म
संज्ञा
पुं.
(सं. नर्मन्)
हँसोड़ या विनोदी मित्र।


नर्मट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रवि, सूर्य।


नर्मठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विनोदी।


नर्मठ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपपति।


नर्मदा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मध्यदेश की एक नदी।


नर्मदेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर्मदा नदी से निकले हुए अंडाकार शिवलिंग।


नर्मसचिव, नर्मसुहृद, नर्मसहचर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा का मित्र, विदूषक।


नलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
‘नाल’ या ‘नालक’ नामक एक प्राचीन अस्त्र।


नलिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तीर रखने का तर्कश।


नलिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कमल।


नलिन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जल, पानी।


नलिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कमलिनी।


नलिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह स्थान जहाँ कमल अधिक हों।


नलिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नदी।


नलिनीरुह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कमल की नाल।


नली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नल)
पतला नल।


नव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्तोत्र, स्तव।


दयाल, दयालु
(सं. दयालु)
बहुत दया करनेवाला।


दयालता, दयालुता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दयालुता)
दया करने का भाव, दयालु होने की प्रवृत्ति।


दयावंत
वि.
(सं.दयावान् का बहु.)
दयालु।


दयावती
वि.
स्त्री.
(सं.)
दया करनेवाली।


दयावना, दयाने, दयावनो
वि.
पुं.
(हिं. दया +आवना, आवने, आवनो)
जो दीन हो और वस्तुतः दया का पात्र हो।


दयावनी
वि.
स्त्री.
(हिं. दयावना)
दया की पात्री।


दयावान्
वि.
पुं.
(सं.)
जो दयालु हो।


दयावीर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वीर-रस के अंतर्गत गिनाये गये चार प्रकार के वीरों में एक जो दया करने में अपने प्राण भी लगा दे।


दयाशील
वि.
(सं.)
दयालु, दयावान्।


दयासागर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जो बहुत दयालु हो।


नव
वि.
(सं.)
नया, नूतन, नवीन।


नव
वि.
(सं. नवन्)
दस से एक कम।
उ.—आँखि, नाक, मुख, मूल दुवार। मूत्र, स्त्रौन नव पुर को द्वार—४-१२।


नवकुमारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नौ-रात्र में पूजनीय नौ देवियाँ - कुमारिका, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, काली, चंद्रिका, शांभवी, दुर्गा और सुभद्रा।


नवखँड, नवखंड
संज्ञा
पुं.
(सं. नवखंड)
भूमि के नौ विभाग; यथा-भरत, इलावृत, किंपुरूष, भद्र, केतुमाल, हरि, हिरण्य, रम्य और कुश।
उ.— तिनमैं नव नवखँड अधिकारी। नव जोगेस्वर ब्रह्म विचारी —५-२।


नवग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फलित ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल,बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहु और केतु ग्रह।


नवछावरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. न्योछावर)
निछावर।
उ.— लेति बलाइ करति नवछावरि बलि भुजदंड कनक अति त्रासी।


नवजात
वि.
(सं.)
हाल का जनमा हुआ।


नवजोबनियाँ
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नव + यौवन)
नवयुवती।
उ.—बहुरि गोकुल काहे को आवत भावत नवजोबनिया—२८७९।


नवतन
वि.
(सं. नवीन)
नया, ताजा, नवीन।


नवता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नयापन, नवीनता।


नवति
वि.
(सं.)
नब्बे।


नवदंड
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा के तीन क्षत्रों में एक।


नवदल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कमल का पत्ता जो उसके केसर के पास होता है।


नवदुर्गा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ दुर्गाएँ जिनकी नवरात्र में नौ दिनों तक क्रमशः पूजा होती है; यथा - शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदा।


नवद्वार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर के नौ द्वार, यथा- दो नेत्र, दो कान, दो नथुने, मुख, गुदा, लिंग या भग।


नवद्वीप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बंगाल का एक नगर।


नवधा अंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शरीर के नौ अंग; यथा-दो नेत्र, दो कान, दो हाथ, दो पैर,और एक नाक।


नवधाभक्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नौ प्रकार की भक्ति; यथा— श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, बंदन, सख्य, दास्य और आत्मनिवेदन।


नवन
संज्ञा
पुं.
(सं. नमन)
प्रणाम।


नवन
संज्ञा
पुं.
(सं. नमन)
झुकाव।


नवना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
झुकना।


नवना
क्रि. अ.
(सं. नमन)
नम्र या विनीत होना।


नवनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नवना)
झुकने की क्रिया या भाव।


नवनि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नवना)
नम्रता, दीनता।


नवनिधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुबेरे के नौ प्रकार के रत्न, पद्य, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद नील और वर्च्च।


नवनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मक्खन, नवनीत।


नवनीत, नवनीति,
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खन।
उ.— अतिहिं ए बाल हैं भोजन नवनीति के जानि तिन्हे लीन्हें जात दनुज पासा—२५५१।


नवनीत, नवनीति,
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


नवनीतक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घी।


नवनीतक्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मक्खन।


नवप्रसूत
वि.
(सं.)
हाल का जनमा हुआ।


नवप्राशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नया अन्न-फल खाना।


नवम
वि.
(सं.)
नवाँ।
उ.— नवम मास पुनि बिनती करै—३१३।


नवमल्लिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
चमेली।


नवमल्लिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नेवारी।


नवमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
किसी पक्ष की नवीं तिथि।


नवयुवक, नवयुवा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तरूण, जवान।


नवयुवती, नवयौवना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तरूणी।


नवरंग
वि.
स्त्री., पुं.
(सं. नव + हिं. रंग)
सुंदर, रूपवान्।
उ.— सूरदास जुग भरि बीतत छिनु। हरि नवरंग कुरंग पीव बिनु।


नवरंग
वि.
स्त्री., पुं.
(सं. नव + हिं. रंग)
नये ढंग की, नवेली, नयी शोभावाली।
उ.—आज बनी नवरंग किसोरी।


नवरंगी
वि.
स्त्री., पुं.
[हिं. नवरंग + ई (प्रत्य.)]
रँगीली, हँसमुख।
उ.— नाइनि बोलहु नवरंगी (हो), ल्याउ महावर बेग। लाख टका अरू झूमका (देहु), सारी दाइ कौं नेग—१०-४०।


नवरंगी
वि.
स्त्री., पुं.
[हिं. नवरंग + ई (प्रत्य.)]
नित्य नये आनंद करनेवाला, रँगीला।
उ.— (क) ऐसे हैं त्रिभंगी नव-रंगी सुखदाई री—१४६४। (ख) गोपिन नाम धरयौ नवरंगी—३६७५।


नवरत्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मोती, पन्ना, मानिक, गोमेद, हीरा, मूँगा, लहसुनिया, पद्मराग या पुखराज और नीलम।


नवरत्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गले का हार जिसमें नौ तरह के रत्न हों।


नवरत्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह की चटनी।


नवरस
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काव्य के नौ रस— श्रृंगार, करूण, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शांत।


नवरात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ दिन तक होनेवाला एक यज्ञ।


नवरात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नवदुर्गा का व्रत, घटस्थापन और पूजन जो चैत्र शुक्ला और आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से नवमी तक, वर्ष में दो बार होता है।


नवल
वि.
(सं.)
युवा, युवती, जवान।
उ— प्रात भयौ जागौ गोपाल। नवल सुंदरी आई, बोलत तुमहिं सबै ब्रजबाल—१०-२०६।


नवल
वि.
(सं.)
कांति-युक्त, सुंदर।
उ.— (क) ना जानौं करिहौ ऽब कहा तुम नागर नवल हरी—१-१३०। (ख) नागर नवल कुँवर बर सुंदर, मारग जात लेत मन जोइ—१०-२१०।


नवल
वि.
(सं.)
नया, नवीन, ताजा।
उ.—(क) पवन सधावन भवन छोढ़ावन नवल रिसाल पठायौ—२९९९। (ख) एकादस लैं मिलौ बेगहूँ जानहु नवल रसाल—सा. २९।


नवल
वि.
(सं.)
शुद्ध, स्वच्छ।


नवलकिशोर, नवलकिसोर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रीकृष्ण।


नवला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तरूणी, नवयुवती।
उ.— नित नवला नवसत साजि कै अरू वह भावक राखी—२८७६।


नवला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
राधा की एक सखी का नाम।
उ.— स्यामा कामा चतुरा नवला प्रमदा सुमदा नारि —१५८०।


नवविंश
वि.
(सं.)
उनतीसवाँ।


नवविंशति
वि.
(सं.)
उनतीस।


नवविष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ प्रकार के विष— वत्सनाभ, हारिद्रक, सक्तुक, प्रदीपन, सौराष्ट्रिक, श्रृंगक, काल-कूट, हलाहल और ब्रम्हपुत्र।


नवशक्ति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नौ शक्तियाँ— प्रभा, माया, जया, सूक्ष्मा, विशुद्धा, नंदिनी, सुप्रभा, विजया और सर्वसिद्धिदा।


नवशिक्षित
वि.
(सं.)
जिसने नयी तरह की शिक्षा पायी हो।


नवशिक्षित
वि.
(सं.)
जो हाल ही में शिक्षा पा चुका हो।


नवशोभा
वि.
(सं.)
नयी शोभावाला, युवक।


नवसंगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रथम समागम।


नवसत
संज्ञा
पुं.
(सं. नव + हिं. सत =सप्त, सात)
नौ और सात, सोलह श्रृंगार।
उ.— (क) नवसत साजि भई सब ठाढ़ी को छबि सकै बखानी— पृ. ३४३ (२३)। (ख) नित नवला नवसत साजि कै अरू वह भावक राखी—२८७६।


नवसत
वि.
सोलह, षोडश।


नवसप्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नौ और सात, सोलह श्रृंगार।


नवसप्त
वि.
सोलह, षोडश।


नवसर
वि.
(हिं. नौ + सं. सृक)
नौ लड़ों का (हार)।
उ.— कंठसिरी दुलरी तिलरी को और हार इक नवसर।


नवसर
वि.
(सं. नव + वत्सर)
नयी उम्रवाला, नव वयस्क।
उ.— सूर स्याम स्यामा नवसर मिलि रीझे नंदकुमार।


नवससि
संज्ञा
पुं.
(सं. नवशशि)
दूज का चाँद।


नवाँ
वि.
(सं. नवम)
जो गिनती में नौ के स्थान पर हो, नौवाँ, नवम्।


नवा
वि.
(हिं. नया)
नया, नूतन।


नवाई
क्रि. स.
(हिं. नाना, नवाना)
झुकायी, नम्रता दिखायी।
उ.— काया हरि कैं काम न आई। ¨ ¨ ¨। चरन-कमल सुंदर जहँ हरि के, क्यौंहुँ न जाति नवाई —१-२९५।


नवाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नवना)
विनीत होने का भाव।


नवाई
वि.
नया, नवीन।
उ.— यह मति आप कहाँ धौं पाई। आजु सुनी यह बात नवाई।


नवाए
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
झुकाये, विनय दिखायी, अधीनता स्वीकार की।
उ.— पुनि प्रहलाद राज बैठाए। सब असुरनि मिलि सीस नवाए—७-२।


नवागत
वि.
(सं.)
नया आया हुआ, जो अभी ही आया हो, नवागंतुक।


नवाज
वि.
(फ़ा.)
दया दिखानेवाला।


नवाजना
क्रि. स.
(फ़ा. नवाज)
दया दिखाना।


नवाजिश
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कृपा, दया।


नवाड़ा
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक तरह की नाव।


नवाना
क्रि. स.
(सं. नवन)
झुकाना।


नवान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नयी फसल का अनाज।


नवान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताजा पका अन्न।


नवान्न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक तरह का श्राद्ध।


नवाब
संज्ञा
पुं.
(अ. नव्वाब)
बादशाह का प्रतिनिधि शासक।


नवाब
संज्ञा
पुं.
(अ. नव्वाब)
प्रतिनिधि शासकों की उपाधि।


नवाब
वि.
बहुत ठाट-बाट से रहनेवाला।


नवाब
वि.
ठसक-लापरवाही दिखाने में ही शान समझनेवाला।


नवाबी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नवाब + ई (प्रत्य.)]
नवाब का पद, काम या भाव।


नवाबी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नवाब + ई (प्रत्य.)]
नवाबों का राज्यकाल।


नवाबी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नवाब + ई (प्रत्य.)]
नवाब का शासन या अधिकार।


नवाबी
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नवाब + ई (प्रत्य.)]
अमीरों का तत्व-हीन ठाठ-बाट।


नवायौ
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
नवाया, झुकाया।
उ.— (क) राजा उठि कै सीस नवायौ—१-३४३। (ख) उठि कै सबहिनि माथ नवायौ—४-५।


नवासा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बेटी का बेटा।


नवासी
वि.
(सं. नवाशीति)
एक कम नब्बे।


नवासी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नवासा)
बेटी की बेटी।


नवावति
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
नवाती है, झुकाती है।
उ.—मुरली तऊ गुपालहिं भावति।¨ ¨ ¨। अति आधीन सुजान कनौड़े, गिरिधर नार नवावति—६५४।


नवावै
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
झुकाता है, नवाता है।


नवावै
क्रि. स.
(हिं. नवाना)
अधीन करता है, नीचा दिखाता है, (गर्व) चूर करता है।
उ.—बालक-बच्छ ब्रह्म हरि लै गयौ, ताकौ गर्व नवावै—४८२।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गुफा।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फाड़ने की क्रिया।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डर।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं. दल)
सेना, समूह, दल।


दर
संज्ञा
पुं.
(हिं. थल या फ़ा. दर)
जगह, स्थान।


दर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थल या फ़ा. दर)
भाव, मूल्य।


दर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थल या फ़ा. दर)
ठौर-ठिकाना।


दर
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थल या फ़ा. दर)
प्रतिष्ठा, आदर, महिमा।


दर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
द्वार, दरवाज।
उ.—माया नटी लकुटि कर लीन्हे, कोटिक नाच नचावै। दर-दर लोभ लागि लिये डोलति, नाना स्वाँग बनावै (करावै)—१-४२।
मुहा.- दर दर मारे मारे फिरना— वीपत्ति या दुर्दिन में आश्रय या सहायता की आशा से द्वार-द्वार या स्थान-स्थान पर फिरना।


दर
वि.
(सं.)
थोड़ा-सा, जरा-सा।


नवीन
वि.
(सं.)
ताजा, नया, नूतन।


नवीन
वि.
(सं.)
विचित्र, अपूर्व।


नवीन
वि.
(सं.)
युवक, तरूण।


नवीनता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नवीन)
नूतनता, नयापन।


नवीस
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
लिखनेवाला, लेखक।


नवीसी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
लिखने की क्रिया या भाव।


नवेद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निवेदन)
न्योता, निमंत्रण।


नवेद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निवेदन)
निमंत्रणपत्र।


नवेला
वि.
(सं. नवल)
नवीन।


नवेला
वि.
(सं. नवल)
तरूण।


नवोदित
वि.
(सं.)
हाल में ही अस्तित्व में आया हुआ, जिसने हाल ही में उन्नति की हो।


नवौ
वि.
(सं. नव)
कुल नौ, नव में से सब।
उ.— नव सुत नवौ खंड नृप भए—५-२।


नव्य
वि.
(सं.)
नया।


नव्य
वि.
(सं.)
स्तुति-योग्य।


नशना
क्रि. अ.
(हिं. नाश)
नष्ट या बर्बाद होना।


नशा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. या अ. नशः)
मादक द्रव्य-पान की स्थिति।
मुहा.- नशा उतरना— नशे का प्रभाव न रह जाना।

नशा किरकिरा हो जाना— किसी अप्रिय बात या घटना के कारण नशे का आनंद न उठा सकना। नशा चढ़ना— मादक द्रव्य-सेवन से नशा होना। (आँखों)में नशा छाना— नशे की मस्ती होना। नशा जमना— खूब नशा होना। नशा टूटना— नशा उतरना। नशा हिरन होना— किसी असंभावित घटना या प्रसंग से नशा जमने के पहले ही उतर जाना।

नशा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. या अ. नशः)
मादक द्रव्य जिसके सेवन से नशा हो।


नशा
यौ.
नशा-पानी
मादक द्रव्य-सेवन का आयोजन या प्रबंध, नशे का सामान।


नशा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. या अ. नशः)
धन, विद्या, रूप आदि का गर्व या घमंड।
मुहा.- नशा उतारना— घमंड दूर करना, गर्व चूर करना।


नशाई
क्रि. स.
(हिं. नशाना)
नष्ट होना।
उ.— (क) जाति महति पति जाइ न मेरी अरू परलोक नशाई री—१२०३। (ख) प्रात के समै ज्यौं भानु के उदय तें भलै उदय होइ जात उडगन नशाई—१०३०।


नवेली
वि.
(सं. नवल)
नयी।


नवेली
वि.
(सं. नवल)
तरूणी।


नवेली
संज्ञा
स्त्री.
नयी स्त्री, नवयुवती।
उ.— नवल आपुन बनी नवेली नगर रही खेलाइ—२६७६।


नवै
क्रि. अ.
(हिं. नवना)
झुके।
उ.—तिनको ध्यान धरैं निसिबासर औरहिं नवै न सीस—३१३०।


नवोढ़ा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नवविवाहिता स्त्री, नववधू।


नवोढ़ा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नवयौवना।


नवोढ़ा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वह नायिका जो लज्जा-भय से नायक के पास न जाना चाहती हो।


नवोत्थान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नये सिरे से होनेवाली उन्नति, पुनः उत्थान।


नवोत्थान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नवजागृति।


नवोत्थित
वि.
(सं.)
नवजाग्रत, नवोन्नत।


नशाना
क्रि. स.
(सं. नशा)
नष्ट या बरबाद करना।


नशाना
क्रि. अ.
खो जाना।


नशानी
क्रि. स.
स्त्री.
(हिं. नशाना)
नष्ट हो गयी।
उ.—दृष्टि न दई रोम रोमनि प्रति इतनहिं कला नशानी—१३२१।


नशावरो
क्रि. स.
(हिं. नशावना)
नष्ट करते।


नशावरो
क्रि. स.
(हिं. नशावना)
मिटाते, दूर करते।
उ.— आगम सुख उपचारबिरह ज्वर बासर ताप नशावते—२७३५।


नशावन
वि.
(सं. नश)
नाश करनेवाला।


नशीन
वि.
(फ़ा.)
बैठनेवाला।


नशीनी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
बैठने की क्रिया या भाव।


नशीला
वि.
[फ़ा. नशा + ईला प्रत्य.)]
नशा लानेवाला।


नशीला
वि.
[फ़ा. नशा + ईला प्रत्य.)]
जिस पर नशे का प्रभाव हो।


नशेबाज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नशेबाज)
जिसे नशीला द्रव्य सेवन करने की आदत हो।


नशोहर
वि.
(सं. नश + ओहर)
नाश करनेवाला।


नश्तर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
छोटा तेज चाकू जो चीर फाड़ के काम आता है।


नश्तर
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
फोड़ा आदि चीरने-फाड़ने की क्रिया या भाव।


नश्वर
वि.
(सं.)
नष्ट हो जानेवाला।


नश्वरता
वि.
(सं.)
नश्वर होने का भाव।


नष
संज्ञा
पुं.
(सं. नख)
नख, नाखून।


नषत
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्षत्र)
नक्षत्र, तारा।


नष-शिष
संज्ञा
पुं.
(सं. नखशिख)
नख से शिख तक अंग।


नष-शिष
संज्ञा
पुं.
(सं. नखशिख)
इन अंगों का वर्णन।


नष्ट
वि.
(सं.)
जो दिखायी न दे।


नष्ट
वि.
(सं.)
जिसका नाश हो गया हो।


नष्ट
वि.
(सं.)
नीच, अधम।


नष्ट
वि.
(सं.)
व्यर्थ, निष्फल।


नष्ट
वि.
(सं.)
धनहीन।


नष्टता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नष्ट होने का भाव।


नष्ट-भ्रष्ट
वि.
(सं.)
टूटा-फूटा और नष्ट।


नष्टा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुराचारिणी, वेश्या।


नष्टात्मा
वि.
(सं.)
दुष्ट, नीच, अधम।


नष्टार्थ
वि.
(सं.)
धनहीन, दरिद्र।


नष्टि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाश, विनाश।


नसंक
वि.
(सं. निःशंक)
निडर, निर्भय।


नस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्नायु)
शरीर तंतु, शरीर की रक्तवाहिनी नलियों का लच्छा।
मुहा.- नस चढ़ना (भड़कना)— नस का अपने स्थान से इधर-उधर हटकर पीड़ा करना।

नस-नस ढीली होना— (१) थकावट आना। (२) पस्त होना। नस नस में— सारे शरीर में। नस-नस फड़क उठना— बहुत प्रसन्नता या उमंग होना।

नस
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्नायु)
पत्ते-पत्तियों का रेशा या तंतु।


नसतरंग
संज्ञा
पुं.
(हिं. नस + तरंग)
एक बाजा।


नसना
क्रि. अ.
(सं. नशन)
नष्ट या बरबाद होना।


नसना
क्रि. अ.
(सं. नशन)
खराब होना।


नसर
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
गद्य, ‘प्रोज़’ (अँग्रेजी)।


नसल
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
वंश, कुल।


नसहा
वि.
(हिं. नस + हा)
जिसमें नसें हों।


नसा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाक, नासा, नासिका।


नसा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नशा)
नशा, मद।


नसाइ
क्रि. स.
(हिं. नसाना)
नष्ट जाय।
उ.— सूर रहि कौ भजन करि लै, जनम-मरन नसाइ—१-३१५।


नसाई
क्रि. स.
(हिं. नसाना)
नाश किया।


नसाई
प्र.
देउँ नसाई—नाश कर दूं।
अंग याकौ मैं देउँ नसाई—१०-५७।


नसाई
क्रि. स.
(हिं. नसाना)
दूर कर दी।
उ.— सूर धन्य व्रज जन्म लियौ हरि, धरनी की आपदा नसाई—३८३।


नसाना
क्रि. अ.
(हिं. नसना का प्रे.)
नष्ट या बरबाद हो जाना।


नसाना
क्रि. अ.
(हिं. नसना का प्रे.)
बिगड़ना, खराब होना।


नसानी
क्रि. अ.
(हिं. नसाना)
नाश की, दूर की, नष्ट की।
उ.— जानत नाहिं जगतगुरू माधौ, इहिं आए आपदा नसानी—१०-२५८।


नसायौ
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नष्ट किया, दूर किया।
उ.— सूरदास द्विज दीन सुदामा, तिहिं दारिद्र नसायौ—१-२०।


नसावत
क्रि. स.
(हिं. नसाना)
मिटाते हो, नष्ट करते या कराते हो, दूर करते-कराते हो।
उ.—(क) कत अपनी परतीति नसावत, मैं पायौ हरि हीरा। सूर पतित तबहीं उठिहै, प्रभु जब हँसि दैहौ बीरा—१-१३४। (ख) सूर स्याम नागर नारिनि कौं बासर-बिरह नसावत—४७९।


नसावन
वि.
(हिं. नसाना)
दूर या नाश करनेवाला।


नसावना
क्रि. अ.
(हिं. नसाना)
नष्ट होना।


नसावहु
क्रि. स.
(हिं. नसाना)
नाश करो, नष्ट करो, दूर करो।
उ.— मोकौं मुख दिखराइ कै, त्रय ताप नसावहु—१०-२३२।


नसावै
क्रि. अ.
(हिं. नसाना)
दूर करे या करता है, नसता है।
उ.— अस्मय-तन गौतम-तिया कौ साप नसावै—१-४। (ख) सूर स्याम-पद-नख-प्रकास बिनु, क्यौं करि तिमिर नसावै—१-४८।


नसाहिं
क्रि. अ.
(हिं. नसाना)
नष्ट होते हैं, नसाते हैं।
उ.— अतिहिं मगन महा मधुर रस, रसन मध्य समाहिं। पदुम-बास सुगंध-सीतल, लेत पाप नसाहिं—१-३३८।


नसीठ
संज्ञा
पुं.
(देश.)
असगुन, बुरा शकुन।


नसीनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निःश्रेणी)
सीढ़ी, जीना।


नसीब
संज्ञा
पुं.
(अ.)
भाग्य, किस्मत, तकदीर।


नसीबजला
वि.
(अ. नसीब + हॆ. जलना)
अभागा।


नसीबवर
वि.
(अ.)
भाग्यवान्।


नसीबा
संज्ञा
पुं.
(अ. नसीब)
भाग्य।


नसीला
वि.
(हिं. नस + ईला)
नसदार।


नसीहत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
सीख, उपदेश।


नसेनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. श्रेणी)
सीढ़ी।


नसै
क्रि. अ.
(हिं. नसना)
नष्ट हो, बरबाद हो।
उ.— (क) क्रम क्रम करि सबकी गति होइ। मेरौ भक्त नसै नहिं कोइ—३-१३। (ख) दृस्यमान बिनास सब होइ। साच्छी ब्यापक, नसै न सोइ—५-२।


नस्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नास, सुँघनी।


नहँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नख)
नख, नाखून।
उ.— सीपज माल स्याम-उर सोहै, बिच बघ-नह छबि पावै री—१३९।


नहछू
संज्ञा
पुं.
(सं. नखक्षौर)
विवाह की एक रीति जिसमें वर के नाखून-बाल कटाकर मेंहदी आदि लगायी जाती है।


नहन
संज्ञा
पुं.
(देश.)
पुरवट खींचने की मोटी रस्सी।


दयासागर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का एक नाम।


दयासील
वि.
(सं. दयाशील)
दयालु, कृपालु।


दयित
वि.
(सं.)
प्यारा, प्रिय पात्र।


दयित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पति।


दयिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रियतमा।


दयिता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पत्नी।


दये
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिये।


दयो, दयौ
क्रि. स.
(हिं. देना)
दिया।
उ.—उग्रसेन कौं राज दयौ—१-२६।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शंख।


दर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गड्ढा, दरार।


नहना
क्रि.
(हिं. बाँधना)
काम में लगाना, जोतना।


नहर
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
सिंचाई आदि के लिए बनाया गया जलमार्ग।
उ.— राम अरू जादवन सुभट ताके हते रूधिर के नहर सरिता बहाई।


नहरुआ, नहरुवा, नहरू
संज्ञा
पुं.
(देश.)
एक रोग।


नहला
संज्ञा
पुं.
(हिं. नौ)
नौ बिंदी का ताश।


नहलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नहलाना + ई)
नहलाने की क्रिया या भाव।


नहलाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नहलाना + ई)
नहलाने से प्राप्त धन।


नहलाना, नहवाना
क्रि. स.
(हिं. 'नहाना' का सक.)
स्नान कराना, स्नान करने को प्रवृत्त करना।


नहसुत
क्रि. स.
(सं. नखसुत)
नख की रेखा या निशान। नखाग्र भाग।
उ.—नहसुत कील कपाट सुलछन दै दृग द्वार अगोट—२२१८।


नहाँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नख)
नख, नहँ, नाखून।
उ.—उर बघनहाँ, कंठ कठुला, झँडूले बार, बेनी लटकन मसि-बुंदा मुनि-मनहर—१०-१५१।


नहाए
क्रि. अ.
बहु.
(हिं. नहाना)
स्नान की क्रिया।
उ.—दुहुँ तब तीरथ माहिं नहाए—३-१३।


नहान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्नान)
नहाने की क्रिया।


नहान
संज्ञा
पुं.
(सं. स्नान)
पर्व जब स्नान का महत्व हो।


नहाना
क्रि. अ.
(सं. स्नान, प्रा. हारण, बुं. हनाना)
स्नान करना।


नहाना
क्रि. अ.
(सं. स्नान, प्रा. हारण, बुं. हनाना)
तर या शराबोर हो जाना।


नहार
वि.
(फ़ा.)
निराहार, बासी मुँह।


नहारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नहार)
जलपान, नाश्ता।


नहाहीं
क्रि. अ.
(हिं. नहाना)
नहाती हैं, स्नान करती हैं।
उ.—प्रातहिं तैं इक जाम नहाहीं। नेम धर्म हीं मैं दिन जाहीं—८९९।


नहिं
अव्य
(हिं. नहीं)
नहीं।


नहिअन, नहियाँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नह =नख)
पैर की छोटी उँगली का एक गहना।


नहीं
अव्य
(हिं. नहीं)
अस्वीकृति या निषेध-सूचक एक अव्यय।


नहुष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अयोध्या का इक्ष्वाकुवंशी एक राजा जो अंबरीष का पुत्र और ययाति का पिता था। एक बार इंद्रासन मिलने पर यह इंद्राणी पर मोहित हो गया। बुलाने पर इंद्राणी ने कहलाया-सप्तर्षियों से पालकी उठवाकर हमारे यहाँ आओ तो तुम्हारी इच्छा पूरी हो सकती है। पालकी लेकर सप्तर्षि धीरे-धीरे चल रहे थे। नहुष ने अधीर होकर ‘सर्प सर्प’ (जल्दी चलने को) कहा। अगस्त्य मुनि ने इस पर नहुष को सर्प हो जाने का शाप दे दिया। युधिष्ठिर ने इस योनि से उसका उद्धार किया।


नहैहौं
क्रि. अ.
(हिं. नहाना)
नहाऊँगा, स्नान करूँगा।
उ.— (क) गहि तन हिरनकसिप कौ चीरौं, फारि उदर तिहिं रूधिर नहैहौं—७-५। (ख) सूरदास है साखि जमुन-जल सौंह देहु जु नहैहौं—४१२।


नहूसत
संज्ञा
पुं.
(अ.)
खिन्नता, मनहूसी, उदासीनता।


नहूसत
संज्ञा
पुं.
(अ.)
अशुभ लक्षण।


नाउँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम।
उ.—अब झूठौ अभिमान करति है, झुकति जौ उनकैं नाउँ—९-७७।


नाँगा
वि.
(हिं. नंगा)
नग्न, वस्त्रहीन।


नाँगी
वि.
स्त्री.
(हिं. नंगा)
नंगी, नग्न, वस्त्ररहित।
उ.— (क) तुम यह बात अचंभौ भाषत, नाँगी आवहु नारी—७८८। (ख) जल भीतर जुवती सब नाँगी—७९९।


नाँगे
वि.
(हिं. नंगा)
नंगा, नग्न, वस्त्रहीन।


नाँगे
वि.
(हिं. नंगा)
आवरणरहित, खुला हुआ, जो ढका न हो।
उ.— (क) सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए नाँगे पाइनि, गाइनि टहल करैं—४५३। (ख) सूरदास प्रभु नाँगे पायँन दिनप्रति गैया चारीं —३४१२।


नाँगौ
वि.
(हिं. नंगा)
नंगा, वस्त्ररहित।
उ.—अर्द्ध-निसा नृप नाँगौ धायौ—९-२।


नाँघना
क्रि. स.
(हिं. लाँघना)
उछलकर पार जाना।


नाँचौ
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
हर्ष के मारे स्थिर न रहो, हृदयोल्लास के कारण अंगों को गति दो।
उ.—सूरदास प्रभु हित कै सुमिरौ जौ, तौ आनँद करिकै नाँचौ—१८३।


नाँठना
क्रि. अ.
(सं. नष्ट)
नष्ट हो जाना।


नाँद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नंदक)
बड़ा और चौड़ा पात्र।


नाँदना
क्रि. अ.
(सं. नाद)
शब्द या शोर करना।


नाँदना
क्रि. अ.
(सं. नाद)
छींकना।


नाँदना
क्रि. अ.
(सं. नंदन)
प्रसन्न या आनंदित होना।


नांदी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आशीर्वादात्मक पद्य जो नाटका भिनय के आरंभ में सूत्रधार कहता है।


नांदीमुख
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक श्राद्ध (वृद्धिश्राद्ध) जो पुत्रजन्म, विवाह आदि मंगल अवसरों पर किया जाता है।
उ.— तब न्हाइ नंद भए ठाढ़े अरू कुस हाथ धरे। नांदीमुख पितर पुजाइ, अंतर सोच हरे—१०-२४।


नाँदीमुखी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


नाँयँ
अव्य
(हिं. नहीं)
नहीं।


नाँव
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम, संज्ञा।
उ.— कुमति तासु रानी कौ नाँव—४-१२।


नाँह
वाक्य
(हिं. न + आइ =है)
नहीं है।
उ.— मेरो मन पिय-जीव बसत है, पिय को जीव मो मैं नाँह—१६७४।


ना
अव्य
(सं.)
न, नहीं।
उ.— (क) बयरोचन-सुत को सुभाव संग देखि परत ना मित्त—सा. ८६। (ख) ना जानौं करिहौ अब कहा तुम—१-१३०। (ग) जसुमति बिकल भई छिन कल ना—१०५४।


नाइ
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
नवाकर, नम्र हो कर।
उ.— सुकदेव हरि चरननि सिर नाइ। राजा सौं बोलौ या भाइ—२-१।


नाइ
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
नीचा करके, नीचे झुकाकर।
उ.— गहि असुर धाइ, पुनि नाइ निज जंघ पर, नखनि सौं उदर डारयौ बिदारी—७-६।


नाइ
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
डालकर।
उ.—कनक थार भरि खीर धरी लै, तापर घृत-मधु नाइ—१०-८९।


नाइ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाव)
नाव, नौका।
उ.— तुम बिनु ब्रजबासी ऐसे जीवैं ज्यौं करिया बिन नाइ—२८४४।


नाइक
संज्ञा
पुं.
(सं. नायक)
नायक।


नाइन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. नाई)
नाई जाति कि स्त्री।


नाइन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. नाई)
नाई की पत्नी।


नाइहो, नाइहौ
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
झुकाओगे।
उ.— करि करि समाधान नीकी बिधि मोहि को माथौ नाइहो—२९४२।


नाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. न्याय)
समान दशा, एक सी स्थिति।


नाई
वि.
समान, तुल्य, तरह।
उ.— (क) रावन अरि कौ अनुज बिभीषन, ताकौं मिले भरत की नाईं—१-३। (ख) स्त्रम करत स्वान की नाई—१-१०३। (ग) भ्रमि आयौ कपि गुंजा की नाईं—१-१४७। (घ) बादत बड़े सूर की नाईं —२५९०।


नाई
संज्ञा
पुं.
(सं. नापित)
नाऊ, हज्जाम।


नाई
वि.
(हिं. नाई)
समान, तुल्य, तरह।
उ.— आत अति बोल झोल तनु डारयौ अनल भँवर की नाई—३१७७।


नाई
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
झुकाकर, नम्र होकर।
उ.— सूर दीन प्रभु प्रगट-बिरद सुनि अजहुँ दयाल पतत सिर नाई—१-६।


नाई
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
घुसेड़कर, ठूँस कर।
उ.— मुख चुम्यौ, गहि कंठ लगायौ, बिष लपटयौ अस्तन मुख नाई—१०-५१।


नाई
क्रि. स.
(हिं. नवाना, नाना)
छोड़कर, ऊपर से डालकर, मिलाकर।
उ.—अति प्यौसर सरस बनाई। तिहि सोंठ-मिरिचि रूचि नाई—१०-१८३।


नाउँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम।
उ.— तुम कृपालु, करूनानिधि, केसव, अधम उधारन नाउँ—१-१२८।


नाउँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
चिन्ह, नाम निशान।
उ.— इंद्रहिं पेलि करी गिरि पूजा सलिल बरषि ब्रज नाउँ मिटावहि—९४७।


नाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम, संज्ञा।
उ.— पतित-उधारन है हरि-नाउ—६-३।


नाउ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाव)
नाव, नौका।
उ.— दीरघ नाउ कागर की को देखौ चढ़ि जात—३२८२।


नाउत
संज्ञा
पुं.
(देश.)
झाड़-फूँक करनेवाला।


नाउन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. नाऊ)
नाऊ जाति की स्त्री।


नाउन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. पुं. नाऊ)
नाऊ की पत्नी।


नाउम्मेद
वि.
(फ़ा.)
(फ़ा.)
निराश।


नाउम्मेदी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
निराशा।


नाऊँ
क्रि. स.
(हिं. नाना, नवाना)
नवाता हूँ, झुकाता हूँ।
उ.— हरि, हरि-भक्तनि कौं सिर नाऊँ—१-२९०।


नाऊँ
संज्ञा
पुं.
(हि. नाम)
नाम।
उ.— जानि लई मेरे जिय की उन गर्व-प्रहारन उनको नाऊँ—१६५४।


नाऊ
संज्ञा
पुं.
(सं. नापित)
नाई, हज्जाम |


नाए
क्रि. स.
(सं. नवाना)
झुकाये।


नाए
क्रि. स.
(सं. नवाना)
डाले।
मुहा.- मुख नाए— मुख में डाले, खाये। उ.— गोबिंद गाढ़े दिन के मीत।¨¨¨¨। लाखा गृह पांडवनि उबारे, साक-पत्र मुख नाए— १-१३१।


नाक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नक, पा. नाक्का)
नासिका।
मुहा.- नाक कटना— अप्रतिषिठा कराना।

नाक का बाल— बहुत धनिष्ठ मित्र या सहायक। नाक घिसना— बहुत बिनती करना। नाक चढ़ना— क्रोध आना। नाक चढ़ाना- क्रोध करना। अरूचि दिखाना। नाकों चने चबवाना- खूब तंग या हैरान करना। नाक तक खाना- ठूँस-ठँसकर खाना। नाक पकड़ते दम निकलना— बहुत ही दुबला होना। माक पर मक्खी न बैठने देना- बहुत साफ तबियत का आदमी होना, बहुत साफ हिसाब किताब रखनेवाला। बहुत साफ-सुथरा रहना। दूसरे का जरा भी अहसान न लेना। (किसी की) नाक पर सुपारी तोड़ना— बहुत तंग या हैरान करना। नाक-भौं चढ़ना (सिकोड़ना)- अरूचि या अप्रसन्नत दिखाना। चिढ़ना और घिनाना। नाक में दम रखना- बहुत बिनती करना। नाक रगड़े का बच्चा— वह पुत्र जो देवताओं की बहुत पूजा-सेवा और मनौती करने पर हुआ हो। नाकों आना— बहुत तंग या महीन आवाज में बोलना। नाक में बोलना— नकियाना, बहुत महीन आवाज में बोलना। नाक लगाकर बैठना- बड़ी इज्जतवाला बनना। नाक सिकोड़ना— अरूचि दिखाना, घिनाना।

नाक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नक, पा. नाक्का)
नाक का मल।


नाक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नक, पा. नाक्का)
प्रतिष्ठा या शोभा की वस्तु।


नाक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नक, पा. नाक्का)
मान, प्रतिष्ठा।
मुहा.- नाक रख लेना— मान की रक्षा करना।


नाक
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नक्र)
एक जलजंतु।


नाक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकाश।


नाक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग।
उ.—नाक निरै सुख-दुःख सूर नहिं, जिहिं की भजन प्रतीति—२-१२।


नाकनटी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्वर्गीय नर्तकी, अप्सरा।


नाकना
क्रि. स.
(सं. लंघन, हिं. लाँघना, नाँघना)
उछलकर पार करना, लाँघना, डाँकना।


नाकना
क्रि. स.
(सं. लंघन, हिं. लाँघना, नाँघना)
बढ़ जाना, मात कर देना।


नाकबुद्धि
वि.
(हिं. नाक + बुद्धि)
तुच्छ बुद्धि, ओछी समझ का।
उ.—अपनो पेट दियो तैं उनको नाकबुद्धि तिय सबै कहै री।


नाका
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाकना)
मुहाना, प्रवेशद्वार।


नाका
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाकना)
मुख्य स्थान।


नाका
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाकना)
नगर का प्रवेशद्वार।


नाका
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाकना)
चौकी।


नाका
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाकना)
सुई का छेद।


नाका
संज्ञा
पुं.
(सं. नक्र)
एक जलजंतु।


नाकाबिल
वि.
(फ़ा. ना +अ. काबिल)
अयोग्य।


नाकी
संज्ञा
पुं.
(सं. नाकिन्)
देवता।


नाकु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीमक का ढूह, वल्मीक।


नाकु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
टीला, भीटा।


नाकु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पर्वत।


नाकुल
वि.
(सं.)
नेवला-संबंधी।


नाकुल
संज्ञा
पुं.
नकुल की संतति।


नाकुली
वि.
(सं. नकुल)
नकुल का बनाया हुआ।


नाकेश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वर्ग का स्वामी, इन्द्र।


नाक्षत्र
वि.
(सं.)
नक्षत्र-संबंधी।


दर
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दारू=लकड़ी)
ईख, ऊख।


दरक
वि.
(सं.)
डरनेवाला, कायर, भीरु।


दरक
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दरकना)
दरार, चीर।


दरकच
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
दबने-कुचलने की चोट।


दरकचाना
क्रि. स.
(हिं.)
थोड़ा-थोड़ा कुचलना।


दरकटी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दर=भाव +काटना)
पहले से ही भाव का ठहराव।


दरकना
क्रि. अ.
(हिं. दर=फाड़ना)
फटना, चिरना।


दरका
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरकना)
दरार, फटने का चिन्ह।


दरका
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरकना)
चोट या आघात जिससे कोई चीज फट जाय या उसमें दरार पड़ जाय।


दरकाना
क्रि. स.
(हिं. दरकना)
फाड़ना।


नाखत
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
नाश या नष्ट करते है।
उ.—जे नखचंद्र भजन खल नाखत रमा हृदय जेहि परसत—१३४२।


नाखना
क्रि. स.
(सं. नष्ट)
नाश या नष्ट करना।


नाखना
क्रि. स.
(सं. नष्ट)
फेंकना, गिराना, डालना।


नाखना
क्रि. स.
(हिं. नाकना)
लाँघना, उल्लंघन करना।


नाखि
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
नष्ट करके।


नाखि
प्र.
डारै नाखि—नष्ट कर दिये।
उ.—प्रथम ऊधौ आनि दै हम सगुन डारै नाखि—३०४८


नाखी
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
फेंकी, गिरायी, डाली |


नाखी
प्र.
दियो नाखी—गिरा दिया, फेंक दिया, डाल दिया।
उ.—जब सुरपति ब्रज बोरन लीनो दियो क्यों न गिरि नाखी—२७३९


नाखी
क्रि. स.
(हिं. नाकना)
लाँघी, पार की।
उ.—पाछे तैं सीय हरी बिधि मरजाद राखी। जो पै दसकंध बली रेख क्यौं न नाखी।


नाखुश
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
नाराज, अप्रसन्न।


नाखुशी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
नाराजी, अप्रसन्नता।


नाखून
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नाखुन)
नख, नहँ।


नाखै
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
नष्ट कर दे, मिटा दे।
उ.—जो हरि-चरित ध्यान उर राखै। आनँद सदा दुखित-दुख नाखै—३९१।


नाख्यो, नाख्यौ
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
हटा दिया, तोड़ दिया, दूर कर दिया, टाल दिया, मिटा दिया।
उ.—भारत में मेरौ प्रन राख्यौ। अपनौ कहयौ दूरि करि नाख्यौ—१-२७७।


नाख्यो, नाख्यौ
क्रि. स.
(हिं. नाखना)
नष्ट कर दिया, नाश कर दिया।
उ.—(क) आये स्याम महल ताही के नृपति महल सब नाख्यो—२६३४। (ख) मात-पिता हित प्रीति निगम पथ तजि दुख-सुख भ्रम नाख्यौ—३०१४।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्प, साँप।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कद्रू से उत्पन्न कश्यप की संतान जो पाताल में रहती है।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक ऐतिहासिक जाति।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाथी।
उ.—रोवैं बृषभ, तुरग अरु नाग—१-२८६।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कंस का कुबलयापीड़ हाथी जिसे बलराम और श्रीकृष्ण ने मारा था।
उ.—सूरदास प्रभु सुर सुखदायक मारयौ नाग पछारी—२५९४।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पान, तांबूल।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बादल।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आठ की संख्या।


नाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दुष्ट और क्रूर मनुष्य।


नाग-कन्या
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाग-जाति की युवती जो बहुत सुन्दर मानी जाती है।


नागचूड़
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


नागजा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाग-कन्या।


नागझाग
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाग + झाग)
अफीम।


नागधर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव, महादेव।


नागध्वनि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक संकर रागिनी।


नागनक्षत्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अश्लेषा नक्षत्र।


नागनग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गजमुक्ता।


नागपंचमी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सावन सुदी पंचमी जब नाग-पूजन होता है।


नागपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्पराज वासुकि।


नागपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हस्तिराज ऐरावत।


नागपाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वरुण का एक अस्त्र।


नागपुर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्प नगरी भोगवती जो पाताल लोक में है।


नागफनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाग-फन)
एक कटीला पौधा।


नागफनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाग-फन)
एक बाजा।


नागफनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाग-फन)
कान का एक गहना।


नागफनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाग-फन)
नागा साधु का कौपीन।


नागबंधु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीपल का पेड़।


नागबेल
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पान की बेल।


नाग-यज्ञ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जनमेजय का यज्ञ जिसमें नागों की आहुतियाँ देकर नाग जाति का विनाश किया गया था।


नागरंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नारंगी।


नागर
वि.
(सं.)
नगर में रहनेवाला।


नागर
वि.
(सं.)
नगर से संबंध रखनेवाला।


नागर
संज्ञा
पुं.
नगर में रहनेवाला मनुष्य।


नागर
संज्ञा
पुं.
चतुर, सभ्य और सज्जन व्यक्ति।


नागर
संज्ञा
पुं.
देवर।


नागर
संज्ञा
पुं.
गुजराती ब्राह्मणों की एक जाति।


नागरक्त
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंदूर।


नागरता, नागरताई,
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नागरता)
नागरिकता।


नागरता, नागरताई,
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नागरता)
नगर का सभ्य और शिष्ट व्यवहार।
उ.—नागरता की रासि किसोरी—२३१०।


नागरता, नागरताई,
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नागरता)
चतुरता।
उ.—नवनागर तबहीं पहिचाने नागरि नागरिताई—२२७५।


नागरबेल
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नागवल्ली)
पान की बेल।


नागराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सर्पों का राजा बासुकि।


नागराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शेषनाग।


नागराज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हस्तिराज ऐरावत।


नागरि
वि.
(सं. नागरी)
नगर की रहनेवाली।


नागरि
वि.
(सं. नागरी)
सुन्दर, चतुर।
उ.—काम क्रोधऽरु लोभ मोह्यौ, ठग्यौ नागरि नारि—१-३०९।


नागरि
संज्ञा
स्त्री.
नगर की रहनेवाली स्त्री।


नागरि
संज्ञा
स्त्री.
चतुर नारी।


नागरिक
वि.
(सं.)
नगर-संबंधी।


नागरिक
वि.
(सं.)
नगर में रहनेवाला।


नागरिक
वि.
(सं.)
चतुर।


नागरिक
वि.
(सं.)
सभ्य।


नागरिक
संज्ञा
पुं.
नगर-निवासी।


नागरिक
संज्ञा
पुं.
सभ्य और सज्जन व्यक्ति।


नागरिकता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नागरिक' होने का भाव।


नागरिया
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नागरी)
युवती, नागरी।
उ.—नवल किसोर नवल नागरिया। अपनी भुजा स्याभ-भुज ऊपर, स्याम भुजा अपनैं उर धरिया—६८८।


नागरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. पुं. नागर)
चतुर और शिष्ट स्त्री।
उ.—नैननि झुकी सु मन मैं हँसी नागरी, उरहनौ देत, रुचि अधिक बाढ़ी—१०-३०७।


नागरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. पुं. नागर)
नगर में रहनेवाली स्त्री।


नागरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. पुं. नागर)
देवनागरी लिपि।


नागरी
वि.
चतुर और शिष्ट।
उ.—श्री मदन मोहन लाल सँग नागरी ब्रजबाल—६२३।


नागरीट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लंपट।


नागरीट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जार।


नागरेणु
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंदूर।


नागलता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पान की लता, पान।


नागलोक
संज्ञा
पुं.
(सं. नाग + लोक)
पाताल जहाँ कद्रू से उत्पन्न कश्यप के ‘नाग’ नामक पुत्र-रहते हैं।


नागाशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंह।


नागिन, नागिनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाग)
नाग की मादा।


नागेंद्र, नागेश, नागेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शेषनाग।


नागेंद्र, नागेश, नागेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बासुकि।


नागेंद्र, नागेश, नागेश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ऐरावत।


नाघ्यौ
क्रि. स.
(हिं. लाँघना, नाँघना)
लाँघा, पार किया।
उ.—जान्यौ नहीं निसाचर कौ छल, नाघ्यौ धनुष-प्रकार—९-८२।


नाच
संज्ञा
पुं.
(सं. नृत्य, प्रा. णाच्य, अथवा सं. नाट्य)
उमंग या उल्लास के कारण सामान्य उछल-कूद-अथवा संगीत के ताल-स्वर के अनुसार अंगों की गति।
मुहा.- नाचकाछना— नाचने को तैयार होना। उ.— मैं अपनौ घूँघट छोरयौ तब लोक-लाज सब फटकि पछोरयौ।

नाच दिखाना— (१) किसी के सामने नाचना।(२) उछलना-कूदना। (३) विचित्र व्यवहार करना। नाच नचाना— (१) मनचाहा काम करा लेना। (२) तंग, हैरान या परेशान करना। नाच नचायौ— तंग या हैरान किया। उ.— इक कौ आनि ठेल पाँच। करूनामय कित जाउँ कृपानिधि, बहुत नचायौ नाच। नाच नचावै— मनचाहा प्रचरण या व्यवहार करने पर विवश करें। उ.— इक मन अरू ज्ञानेंद्री पाँच। नर कौं सदा नचावैं नाच— १-१९६। नाच नचावै— मनचाहा काम करने को विवश करती है। उ.— (क) माया नटी लकुटि कर लीन्हे कोटिक नाच नवावै— १-४२। (ख) जो कछु कुबिजा के मन भावै सौई नाच नचावै— ३४४१।

नाच
संज्ञा
पुं.
(सं. नृत्य, प्रा. णाच्य, अथवा सं. नाट्य)
खेल, क्रीड़ा।


नाच
संज्ञा
पुं.
(सं. नृत्य, प्रा. णाच्य, अथवा सं. नाट्य)
काम-धंधा।


नाच-कूद
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाच + कूद)
नाच तमाशा।


नागवल्लरी, नागवल्ली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पान।


नागवार
वि.
(फ़ा.)
जो अच्छा न लगे, अप्रिय।


नागांतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षिराज गरूड़।


नागांतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मयूर, मोर।


नागांतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिंह, केहरी।


नागा
संज्ञा
पुं.
(सं. नग्न)
एक संप्रदाय के साधु जो नंगे रहते हैं।


नागा
संज्ञा
पुं.
(अ. नागः)
कार्यक्रम-भंग, अन्तर।


नागार्जुन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्रचीन बौद्ध महात्मा।


नागाशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पक्षिराज गरूड़।


नागाशन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मोर, मयूर।


दरगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दरबार, कचहरी।


दरगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
सिद्ध साधु का समाधि स्थान, मकबरा, मजार।


दरगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
मठ, मंदिर।


दरगुजर
वि.
(फ़ा.)
वंचित।


दरगुजर
वि.
(फ़ा.)
क्षमाप्राप्त।
मुहा.- दरगुजर करना— माफ करना, छोड़ देना।


दरगुजरना
क्रि. अ.
(फ़ा.)
छोड़ना, बाज आना।


दरगुजरना
क्रि. अ.
(फ़ा.)
जाने देना, क्षमा कर देना।


दरज
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर=दरार)
दरार, दराज।


दरजा
संज्ञा
पुं.
(अ. दर्जा)
श्रेणी, वर्ग।


दरजा
संज्ञा
पुं.
(अ. दर्जा)
कक्षा।


नाच-कूद
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाच + कूद)
प्रयत्न करने को हाथ-पैर मारना।


नाच-कूद
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाच + कूद)
क्रोध में उछलना-कूदना।


नाचघर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाच + घर)
नृत्यशाला।


नाचत
क्रि.अ
(हिं. नाचना)
नाचते हैं।


नाचत
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
इधर से उधर फिरते हैं, स्थिर नहीं रहते |
उ. ब्रह्मा-महादेव-सुर-सुरपति नाचत फिरत महा रस भोयौ—१-५४।


नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
उमंग या उल्लास से अँगों को गति देना।


नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
थिरकना, नृत्य करना।


नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
चक्कर काटना, घूमना-फिरना।
मुहा.- सिर पर नाचना— (१) घेरना, ग्रसना, प्रभाव डालना। (२) पास या निकट आना।

आँख के सामने नाचना— ध्यान में ज्यों का त्यों बना रहना।

नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
दौड़ना-धूपना, घूमना-फिरना।


नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
थर्राना, काँपना।


नाचना
क्रि. स.
(हिं. नाच)
क्रोध में उछलना-कूदना और हाथ पैर पटकना।


नाचमहल
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाच + महल)
नाचघर।


नाच-रंग
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाच + रंग)
आमोद-प्रमोद।


नाचार
वि.
(फ़ा.)
लाचार।


नाचार
वि.
(फ़ा.)
व्यर्थ।


नाचार
क्रि. वि.
विवश होकर, हारकर, लाचारी से।


नाची
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
उमंग या उल्लास में अंगों को गति दी।


नाची
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
नृत्य करने या थिरकने लगी।


नाची
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
चक्कर मारने या घूमने लगी।
मुहा.- सीस पर नाची— (१) ग्रस लिया, आकांत कर लिया, प्रभावित किया। उ.— रावन सौ नृप जात न जान्यौ, माया बिषम सीस पर नाची— १-१८।


नाचीज
वि.
(फ़ा. नाचीज)
तुच्छ, निकम्मा।


नाचे
क्रि. अ.
बहु.
(हिं. नाचना)
इधर-उधर दौड़ते-घूमते फिरे; जैसा कहा, वैसा किया।
उ.—प्रीति के बचन बाचे बिरह अनल आँचे अपनी गरज को तुम एक पाइँ नाचे—२००३।


नाचे
यौ.
नाचे-गाए—आमोद-प्रमोद से।
उ.—ना जानौं अब भलो मानिहै ऊधौ नाचे-गाए—३४०३।


नाचै
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
इधर-उधर भटकना, स्थिर न रहना।


नाचै
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
जन्म लेकर सांसारिक झगड़ों में पड़कर दौड़-धूप करे।
उ.—जाइ समाइ सूर वा निधि मैं, बहुरि जगत नहिं नाचै—१-८१।


नाच्यौ
क्रि. अ.
(हिं. नाचना)
नाचा, नृत्य किया।
उ.—अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल—१-१५३।


नाज
संज्ञा
पुं.
(हिं. अनाज)
अनाज।


नाज
संज्ञा
पुं.
(हिं. अनाज)
भोजन।


नाज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नाज)
ठसक, नखरा, चोंचला।


नाज
यौ.
नाज-अदा या नाज-नखरा—
नखरा, चोंचला हाव-भाव।


नाज
यौ.
चटक-मटक।
मुहा.- नाज उठाना— नखरे या चोंचले सहना।

नाज से पालना— बड़े लाड़-प्यार से पालना।

नाज
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. नाज)
गर्व, घमंड अभिमान, गरूर।


नाजनी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. नाज़नी)
सुंदर स्त्री।


नाजायज
वि.
(अ. नाजायज)
अनुचित, नियम-विरुद्ध।


नाजु
संज्ञा
पुं.
(हिं. अनाज)
भोजन, खाना, खाद्य पदार्थ।
उ.—राखौ रोकि पाइ बंधन कै, अरु रोकौ जल नाजु—७८।


नाजुक
वि.
(फ़ा. नाजुक)
कोमल, सुकुमार।


नाजुक
वि.
(फ़ा. नाजुक)
महीन, बारीक


नाजुक
वि.
(फ़ा. नाजुक)
सूक्ष्म।


नाजुक
वि.
(फ़ा. नाजुक)
जरा सी ठेस से ही टूट जानेवाली।


नाजुक
वि.
(फ़ा. नाजुक)
जिसमें हानि होने का डर हो।


नाजो
वि.
स्त्री.
(हिं. नाज)
दुलारी।


नाजो
वि.
स्त्री.
(हिं. नाज)
कोमलांगी।


नाट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नृत्य, नाच।


नाट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नकल, स्वाँग।
उ.—यह व्यवहार आजु लौं है ब्रज कपट नाट छल ठानत—२७०३।


नाट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नाटक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रदर्शन, अभिनय।
उ.—बदन उघारि दिखायौ अपनौ नाटक की परिपाटी—१०-२५४।


नाटक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभिनय करनेवाला।


नाटक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह ग्रंथ जिसका अभिनय किया जा सके।


नाटकशाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्थान जहाँ अभिनय हो।


नाटकावतार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक नाटक के बीच दूसरे नाटक का अभिनय।


नाटकी
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाटक)
नाटक करनेवाला।


नाटकीय
वि.
(सं.)
नाटक-संबंधी।


नाटना
क्रि. अ.
(सं. नाट्य=बहाना)
वचन देकर फिर मुकर जाना, वादे से इनकार करना।


नाटवसंत
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नाटा
वि.
(सं. नत)
छोटे कद का।


नाटिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाटक का एक भेद जिसमें चार अंक होते हैं।


नाटिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक रागिनी।


नाटित
वि.
(सं.)
जिसका अभिनय हुआ हो।


नाटी
वि.
स्त्री.
(हिं. पुं. नाटा)
छोटी, जो ऊँची न हो।


नाटी
संज्ञा
स्त्री.
छोटे डील की गाय।
उ.—सूरदास नँद लेहु दोहिनी, दुहहु लाल की नाटी—१०-२५९।


नाट्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नटों का काम।


नाट्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अभिनय।


नाट्य
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्वाँग, नकल।


नाट्यकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाटक करनेवाला, नट।


नाट्यरासक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अंक का उपरूपक।


नाटकशाला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्थान जहाँ नाटक हो।


नाठ
संज्ञा
पुं.
(सं. नष्ट, प्रा. नट्ठ)
नाश, ध्वंस।


नाठना
क्रि. स.
(सं. नष्ट, प्रा. नट्ठ)
नष्ट करना।


नाठना
क्रि. अ.
नष्ट या ध्वस्त होना।


नाठना
क्रि. अ.
(हिं. नाटना )
हट जाना, भागना।


नाड़ा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाड़)
इजारबंद, नीबी।


नाता
संज्ञा
पुं.
(हिं. नात)
संबंध, लगाव।
उ.—(क) अपनी प्रभु भक्ति देहु जासौं तुम नाता—१-१२३। (ख) सूरदास श्री रामचंद्र बिनु कहा अजोध्या नाता—९-४९।


नातिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाती)
लड़की की लड़की।


नाती
संज्ञा
पुं.
(सं. नप्तृ, प्रा. नत्ति)
लड़की का लड़का।
उ.—सुत के सुत नाती पतिनी की महिमा कहिय न जाई—८३९।


नाते
क्रि. वि.
(हिं. नाता)
संबंध से।
उ.—मिलि किन जाहु बटाऊ नाते—२५२८।


नाते
क्रि. वि.
(हिं. नाता)
हेतु, वास्ते, लिए।
उ.—दूध-दही के नाते बनवत बातें बहुत गुपाल।


नाते
संज्ञा
पुं. बहु.
बहुत से संबंध या रिश्ते।
उ.— झूठे नाते जगत के सुत-कलत्र-परिवार—२-२९।


नातेदार
वि.
(हिं. नाता + दार)
सगे-संबंधी।


नातै
क्रि. वि.
(हिं. नाता)
संबंध से, संबंध के कारण।
उ.—(क) पुनि पुनि तुमहिं कहत कत आवै कछुक सकुच है नातै—३०२४। (ख) उग्रसेन बैठारि सिंहासन लोग कहत कुल नातै—३३२४।


नातौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नात)
कौटुंबिक घनिष्ठता, जाति-संबंध, रिश्ता।
उ.—(क) जग मैं जीवन ही कौ नातौ—१-३०२। (ख) रघुपति चित्त बिचार करयौ। नातौ मानि सगर सागर सौं, कुस-साथरी परयौ —९-१२२। (ग) हमहिं तुमहिं सुत-तात को नातौ और परयौ है आइ—२६५१।


नातौ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नात)
लगाव, संबंध।
उ.—तब तें गृह सौं नातौ टूट्यौ जैसैं काँचो सूत री—१०-१३६।


नाड़िया
संज्ञा
पुं.
(सं. नाड़ी)
नाड़ी पकड़नेवाला, वैद्य।


नाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नली।


नाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धमनी।
मुहा.- नाड़ी चलना— कलाई की नाड़ी में गति होना जो जीवन का लक्षण है।

नाड़ी छूटना— (१) नाड़ी न चलना। (२) मूर्च्छा आना। (३) मृत्यु होना।

नाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ज्ञान, शक्ति और श्वास वाहिनी नालियाँ।


नाड़ी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
वर-वधू की गणना बैठाने में कल्पित चक्रों में स्थित नक्षत्र-समूह।


नात
संज्ञा
पुं.
(सं. ज्ञाति, प्रा. णाति)
नातेदार, संबंधी।


नात
संज्ञा
पुं.
(सं. ज्ञाति, प्रा. णाति)
नाता, संबंध।
उ.—(क) राखो मोहिं नात जननी को मदनगुपाल लाल मुख फेरो—२५३२। (ख) होहु बिदा घर जाहु गुसाईँ माने रहियौ नात—२६५७। (ग) सूर प्रभु यह सुनहु मोसों एकहीं सों नात—२९१७।


नातरि, नातरु
अव्य
(हिं. न + ता + अरु)
और नहीं तो अन्यथा।
उ.—(क) गाइ लेहु मेरे गोपालहिं। नातरु काल-ब्याल लेतै हैं, छाँड़ि देहु तुम सब जंजालहिं—१-७४। (ख) जा सहाइ पांडव-दल जीतौं, अर्जुन कौ रथ लीजै। नातरु कुटुँब सकल संहरि कै, कौन काज अब जीजै—१-१६९। (ग) कोउ खवावै तो कछु खाहिं। नातरु बैठे ही रहि जाहिं—५-२।


नातवाँ
वि.
(फ़ा.)
निर्बल, दुर्बल, अशक्त।


नाता
संज्ञा
पुं.
(हिं. नात)
संबंध, रिश्ता।


नात्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शिव।


नाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रभु, स्वामी।
उ.—तहँ सुख मानि बिसारि नाथ पद अपनै रंग बिहरतौ —१-२०३।


नाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पति।
उ.—कौन बरन तुम देवर सखि री, कौन तिहारौ नाथ—९-४४।


नाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गोरखपथिया की उपाधि या पदवी जो उनके नामों से मिली रहती है।


नाथ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पशुओं को नाथने की रस्सी।


नाथ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नथ)
नाक में पहनने की नथ।


नाथत
क्रि. स.
(हिं. नाथ, नाथना)
नाक छेदकर वश में करते है, नाथते है।
उ.—नाथत ब्याल बिलंब न कीन्हौ—५५७।


नाथता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
प्रभुता, स्वामीपन।


नाथत्व
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रभुत्व, स्वामित्व।


नाथन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाथने की क्रिया या भाव।
सात बैल नाथन के कारन आप अजोघ्या आये—सारा. ६५५।


दरकाना
क्रि. अ.
(हिं. दरकना)
फट जाना।


दरकानी
क्रि. अ.
(हिं. दरकना)
फट गयी, मसक गयी।
उ.—पुलकित अंग अँगिया दरकानी उर आनँद अंचल फहरात।


दरकार
वि.
(फ़ा.)
आवश्यक, जरूरी।


दरकिनार
क्रि. वि.
(फ़ा.)
अलग, एक ओर, दूर।


दरकी
क्रि. अ.
(हिं. दरकना)
(दाब या जोर पड़ने से) फट गयी, मसक गयी, चिर गयी, विदीर्ण हुई।
उ.—(क) लिए लगाई कठिन कुच कैं बिच, गाढ़ै चाँपि रही अपनैं कर। उमँगि अंग अंगिया उर दरकी, सुधि बिसरी तन की तिहें औसर—१०-३०१। (ख) प्रेम बिबस सब ग्वालि भईं। पुलक अंग अँगिया उर दरकी, हार तोरि कर आपु लंई—७०१।


दरकूच
क्रि. वि.
(फ़ा.)
यात्रा में बराबर बढ़ता हुआ।


दरखत, दरख्त
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरख्त)
पेड़, वृक्ष।


दरखास्त, दरख्वास्त
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दरख्वात्त)
निवेदन, प्रर्थना।


दरखास्त, दरख्वास्त
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा. दरख्वात्त)
प्रार्थना-पत्र।


दरगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
चौखट, देहरी।


नाथना
क्रि. स.
(हिं. नाथ)
पशुओं को वश में रखने के लिए नाक छेदकर उसमें रस्सी डालना।
मुहा.- नाक पकड़कर नाथना— वल से वश में करने।


नाथना
क्रि. स.
(हिं. नाथ)
वस्तु को छेदकर तागा डालना, नत्थी करना।


नाथद्वारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाथद्वार)
उदयपुर में वल्लभ-संप्रदायी वैष्णवों का मंदिर जहाँ श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित है।


नाथा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाथ)
नाथ, स्वामी।
उ.—बानर बन बिघन कियौ, निसिचर कुल नाथा—९-९६।


नाथि
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
नाथकर, नाक छेदकर, वश में करके।
उ.—(क) नाग नाथि लै आइहैं, तब कहियौ बलराम—५८९। (ख) काली ल्याए नाथि, कमल ताही पर ल्याए—५८९।


नाथियाँ
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
नाथ लिया, नाक छेदकर वश में कर लिया।
उ.—(तब) धाइ धायौ अहि जगायौ, मनौ छूटै हाथियाँ। सहस फन फुफुकार छाँड़े, जाइ काली नाथियाँ—५७७।


नाथे
क्रि. वि.
(हिं. नाथना)
नाथे हुए, वश में किये हुए।
उ.—आवत उरंग नाथे स्याम—१०-५६३।


नाथै
संज्ञा
पुं.
(सं. नाथ)
नाथ, स्वामी।
उ.—कहि कुसलातैं साँची बातैं आवन कह्यौ हरिनाथै—३४४१।


नाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शब्द, ध्वनि।
उ.—तृष्ना नाद करत घट भीतर, नाना बिधि दै ताल—१-१५३।


नाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वर्णों का अव्यक्त मूल रूप।


नाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सानृनासिक स्वर।


नाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संगीत।


नादना
क्रि. स.
(हिं. नाद)
बजाना, ध्वनि निकालना।


नादना
क्रि. अ.
बजना।


नादना
क्रि. अ.
चिल्लाना, गरजना।


नादना
क्रि. अ.
(सं. नंदन)
प्रफुल्लित होना, लहलहाना।


नादान
वि.
(फ़ा.)
अनजान, नासमझ।


नादानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नादान)
नासमझी।


नादार
वि.
(फ़ा.)
निर्धन, कंगाल।


नादारी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
गरीबी, निर्धनता।


नाधे
क्रि. स.
(हिं. नाधना)
ठाना है, आरंभ किया है।
उ.—मेरी कही न मानत राधे। ये अपनी मति समु झत नाहीं, कुमति कहा पन नाधे।


नाधौ
क्रि. स.
(हिं. नाधना)
ठाना (है), आरंभ किया (है)।
उ.—नैननि नाधौ है झर—२७६४।


नाध्यौ
क्रि. स.
(हिं. नाधना)
आरंभ किया, (किसी काम को) ठाना या अनुष्ठित किया।
उ.—काहे कौं कलह नाध्यौ, दारुन दाँवरि बाँध्यौ, कठिन लकुट लै तैं त्रास्यौ मेरें भैया—३७२।


नानक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पंजाब के एक प्रसिद्ध महात्मा जो सिख संप्रदाय के आदि गुरु थे।


नानस
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. ननिया सास)
सास की माँ।


नानसरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. ननिया ससुर)
पति या पत्नी का नाना।


नाना
वि.
(सं.)
अनेक प्रकार के, विविध।
सखा लिए संग प्रभु रंग नाना करत देव नर कोउ न लखहि करत व्याला—२५८४।


नाना
वि.
(सं.)
अनेक, बहुत (संख्यावाचक )
उ.—सूरदास-प्रभु अपने जन के नाना त्रास निवारे—१-१०।


नाना
वि.
(सं.)
अधिक, बहुत (परिमाणवाचक)
उ.—पांडु-सुत बिपति-मोचन महादास लखि, द्रौपदी-चीर नाना बढ़ायौ—१-११९।


नाना
संज्ञा
पुं.
(देश.)
माता का पिता, मातामह।


नादित
वि.
(सं.)
शब्द करता या बजाया हुआ।


नादिया
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बैल, नंदी।


नादिर
वि.
(फ़ा.)
अनोखा, अद्भुत।


नादिहंद
वि.
(फ़ा.)
न देनेवाला।


नादी
वि.
(सं. नादिन)
शब्द करने या बजनेवाला।


नादेय
वि.
(सं.)
नदी में होनेवाला।


नाधना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
रस्सी आदि से पशु को गाड़ी में जोतना या बाँधना।


नाधना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
जोड़ना, संबद्ध करना।


नाधना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
गूंथना, पिरोना।


नाधना
क्रि. स.
(हिं. नाथना)
काम आरम्भ करना।


नाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
झुकाना।


नाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
नीचा करना।


नाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
डालना, छोड़ना।


नाना
क्रि. स.
(सं. नमन)
घुसाना।


नाना
संज्ञा
पुं.
(अ.)
पुदीना।


नानी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाना)
माता की माँ, मातामही।
उ.—कहा कथन मोसी, के आगे जानत नानी नानन—३३२६।
मुहा.- नानी मर जाना (याद आना)— प्राण सूख जाना, मुसीबत आ जाना, संकट पड़ जाना।


ना-नुकर
संज्ञा
पुं.
(हिं. न + करना)
नाहीं, इनकार।


नान्ह
वि.
(हिं. नन्हा)
छोटा, थोड़ी उम्र का।
उ.—चले बन धेनु चारन कान्ह। गोप-बालक कछु सयाने नंद के सुत नान्ह—६१०।


नान्ह
वि.
(हिं. नन्हा)
नीच, क्षुद्र।


नान्ह
वि.
(हिं. नन्हा)
महिन, सूक्ष्म।
मुहा.- नान्ह कातना— महीन काम करना। कठिन या दुष्कर कार्य करना।


नाप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. माप)
नापने का काम।


नाप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. माप)
मान।


नाप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. मापना)
नपना, पैमाना।


नापना
क्रि. स.
(हिं. मापना)
मापना।


नापना
क्रि. स.
(हिं. मापना)
अंदाजना।


नापसंद
वि.
(फ़ा.)
अप्रिय, अरुचिकर।


नापाक
वि.
(फ़ा.)
अपवित्र।


नापाक
वि.
(फ़ा.)
गंदा।


नापाकी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
अपवित्रता।


नापाकी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
गंदगी।


नान्हरिया
वि.
(हिं. नान्ह)
छोटा, नन्हा।
उ.—नान्हरिया गोपाल लाल तू बेगि बड़ौ किन होहि—१०-७४।


नान्हा
वि.
(हिं. नन्हा)
छोटा, लघु।


नान्हा
वि.
(हिं. नन्हा)
पतला, महीन।


नान्हा
वि.
(हिं. नन्हा)
नीच, क्षुद्र।


नान्हा
यौ.
नान्हा बारा—छोटा बालक।


नान्हि, नान्हीं, नान्ही
वि.
स्त्री.
(हिं. नान्ह)
नन्ही, छोटी।
उ.—(क) माता दुखित जानि हरि बिहँसे, नान्हीं दँतुलि दिखाइ—१०-८०। (ख) ठाढ़े हरि हँसत नान्हि दँतियन छबि छाजै—१०-१४६। (ग) नान्हीं एड़ियनि-अरुनता फलबिंब न पूजै—१०-१३४।


नान्हे
वि.
(हिं. नन्हा)
छोटे, नन्हे।
उ.—हौं वारी नान्हे पाइनि की दौरि दिखावहु चाल—१०-२२३।
मुहा.- नान्हे-नून्हे— छोटे-मोटे, बहुत साधारण। उ.— अबलौं नान्हे-नून्हे तारे, ते सब बृथा अकाज। साँचै बिरद सूर के तारत, लोकनि-लोक अवाज— -१-९६।


नान्हे
वि.
(हिं. नन्हा)
नीच, क्षुद्र।
उ.—खेलत खात रहे ब्रज भीतर। नान्हें लोग तनक धन ईतर—१०४२।


नान्हो
वि.
(हिं. नन्हा)
तुच्छ, साधारण।
उ.—सत्रु नान्हो जानि रहे अब लौ बैठि जन आपने को मारि डारौं—२६०२।


नाप
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. माप)
माप, परिमाण।


नापित
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाऊ, नाई, हज्जाम।


नापी
क्रि. स.
(हिं. नापना)
थाह ली, अनुमान किया।
उ.—जेतिक अधम उधारे प्रभु तुम, तिनकी गति मैं नापी—१-१४०।


नाबालिग
वि.
(अ. + फ़ा.)
छोटी अवस्था का।


नाबूद
वि.
(फ़ा.)
जिसका अस्तित्व न रहा हो।


नाभ
संज्ञा
स्त्री.
[सं. नाभि (समासांत रूप)]
नाभि।


नाभा
संज्ञा
पुं.
‘भक्तमाल’ के रचयिता।


नाभाग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राजा ययाति के पुत्र जो राजा दशरथ के पितामह थे।


नाभि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ढ़ोंढी, तुंदी, तोंदी।
उ.—नाभि-हृद, रोमावली-अलि, चले सहज सुभाव—१-३०७।


नाभि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कस्तुरी।


नाभि
संज्ञा
पुं.
प्रधान व्यक्ति।


नाभि
संज्ञा
पुं.
महादेव।


नाभि
संज्ञा
पुं.
आग्नीध्र राजा का पुत्र जिसकी पत्नी मेरुदेवी के गर्भ से ऋषभदेव का जन्म हुआ था जो विष्णु के चौबीस अवतारों में मान जाते हैं।
उ.—प्रियब्रत कैं अग्नीध्र सु भयौ। नाभि जन्म ताही तैं लयौ—५-२।


नाभिकमल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रलयोपरांत वट-शायी बालरुप नारायण की नाभि से उत्पन्न कमल जिससे ब्रह्मा की उत्पत्ति मानी जाती है।
उ.—नाभि-कमल तैं ब्रह्मा भयौ—९-२।


नाभिज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाभि से उत्पन्न ब्रह्मा।


नाभी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
तोंदी, ढोंढी।


नाभ्य
वि.
(सं.)
नाभि का, नाभि-संबंधी।


नामंजूर
वि.
(फ़ा. + अ.)
अस्वीकृत।


नाम
संज्ञा
पुं.
(सं. नामन्)
वह शब्द जिससे किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि का बोध हो; संज्ञा।
उ.—नाम सुनीति बड़ी तिहिं दार—४-९।
मुहा.- नाम उछलना— निंदा या बदनामी होना।

नाम उछालना— निंदा या बदनामी कराना। नाम उठ जाना (उठना)— चर्चा या स्मरण तक न होना, चिन्ह भी न रहना। नाम करना— पुकारने का नाम निश्चित कराना। (किसी का) नाम करना- दूसरे के नाम पर दोष लगाना। (किसी बात का) नाम करना- दिखाने या उलाहना छड़ाने के लिए अथवा कहने भर को कुछ कर देना। नाम का- (१) नाम-धारी। (२) कहने-सनने भर को। नाम के लिए (को)- (१) कहने- सुनने भर को (२) उपयोग या व्यवहार के लिए नहीं। (३) बहुत थोड़ा। नाम चढ़ना- किसी सूचि आदि में नाम लिखा जाना। नाम चढ़ाना- नाम लिखाना। नाम चमकाना— अच्छा नाम या यश होना। नाम चलना— (१) याद बनी रहना। (२) वंश के लोग जीवित रहना। नाम चार को— (१) कहने-सुनने भर को। (२) बहुत थोड़ा। नाम जगाना— (१) ऐसा काम करना कि लोग चर्चा करने लगें। (२) ऐसा काम करना कि लोगों में याद बनी रहे। नाम जगायौ— ऐसा काम किया कि चारों ओर चर्चा होने लगी। उ.— त्रिभुवन में अति नाम जगायौ फिरत स्याम संग ही— पृ. ३२२। नाम जपना— बार-बार नाम लेना। नाम देना— नाम रखना। नाम धरता— नामकरण करनेवाला। नाम धरति हैं— दोष लगाती हैं, बदनाम करती हैं। उ.— ब्रज-बनिता सब चोर कहति तोहिं लाजनि सकुचि जात मुख मेरौ। आजु मोहिं बलराम कहत हे, झूठहिं नाम धरति हैं तेरौ— ३९९। (किसी का) नाम धरना— (१) नामकरण करना। (२) बदनामी करना, दोष लगाना। (३) वस्तु का दाम स्थिर करना। नाम धराना— (१) नामकरण कराना। (२) निंदा या बदनामी कराना। नाम धरयौ— निंदा या बदनामी करायी। उ.— गोपराइ के पुत्र है नाम धरायौ— ११३५। नाम धरावत— नामकरण कराते हैं, नाम रखाते हैं। उ.— जो परि कृष्णा कूबरिहिं रीझे तो सोई किन नाम धरावत— ३०९३। उ.— रिषि कह्यौ ताहि, दान-रति देहि। मैं बर देहुँ तोहि सो लेहि। तू कुमारिका बहुरौ होइ। तोकौं नाम धरै नहिं कोई— १-२२९। नाम धरैहौ— बदनामी या निंदा करायेगी। उ.— तुम हौ बड़े महर की बेटी कुल जनि नाम धरैहौ— १४९८। नाम धरयौ— (१) नामकरण किया। उ.— पतित पावन-हरि बिरद तुम्हारौ, कौनैं नाम धरयौ— १-१३३। नाम लगाया- दोषारोपण किया। दोषी ठहराया। उ.— बल मोहन कौ नाम धरयौ, कह्यौ पकरि मँगावन— ५८९। नाम न लेना- (१) अरूचि, घृणा यो क्रोध से चर्चा तक न करना। (२) लज्जा-संकोच से नामोच्चार न करना। तो मेरा नाम नहीं— तो मुझे तुच्छ समझना। नाम निकल जाना (निकलना)— (१) किसी बुरी-भली बात के कर्त्ता या सहयागी के रूप में बदनाम हो जाना। (२) नाम का प्रकाशित होना। नाम निकलवाना— (१) बदनामी कराना। (२) तंत्र-मंत्र से अपराधी का पता लगवाना (३) किसी नामावली से नाम कटवा देना। (४) नाम प्रकाशित करा देना। नाम पड़ना- नाम रख जाना, नाम निश्चित हो जाना। (किसी के) नाम— (१) किसी के लिए निश्चय या कानून द्वारा सुरक्षित। (२) किसी के संबंध में। (३) किसी को संबोधन करके। किसी के नाम पर— (१) किसी के स्मारक-रूप में। (२) पुण्य-दान के लिए किसी देवी-देवता आदि तोष के लिए। किसी के नाम पड़ना— (१) किसी के लिए निश्चित या निर्धारित किया जाना, किसी के नाम लिखा जाना। (२) किसी को सौंपा जाना। किसी के नाम डालना— (१) किसी के लिए निश्चित या निर्धारित करना। (१) किसी को सौंपना। (किसी के) नाम पर मरना (मिटना)— (किसी के प्रति इतना) प्रेम होना कि अपने हानि-लाभ की जरा भी चिंता न करना। (किसी के) नाम पर बैठना— (१) किसी की सहायता या दया के भरोसे पर संतोष करना। (२) किसी के आसरे प जरूरी काम भी न करना। (बड़ा) बड़ौ नाम— बहुत प्रसिद्ध या विख्यात होना। उ.— नव लख धेनु दुहत हैं नित प्रति, बड़ौ नाम है नंद महर कौ— १०-३३३। नाम बद (बदनाम) करना— बदनामी कराना, कलंक लगाना। नाम बाकी रहना— (१) कहीं चले जाने या मरने के बाद भी लोगों को नाम का स्मरण रहना। (२) सब कुछ मिट जाना, केवल नाम भर रह जाना। नाम बिकना— (१) नाम प्रसिद्ध हो जाने के कारण ही उससे संबंधित वस्तु का आदर होना। (२) किसी प्रसिद्ध व्यत्कि के नाम पर वस्तु विशेष का नाम रखकर उसे बेचना। नाम बिगाड़ना— (१) बुरा काम करके बदनाम होना (२) दोष या कलक लगाना। नाम मिटना— (१) नाम का स्मरण भी न रह जाना। (२) चिह्न तक मिट जाना। नाम मात्र को— बहुत ही थोड़ा। नाम भयौ— नाम हुआ, श्रेय मिला। उ.— गनिका तरी आपनी करनी नाम भयौ प्रभु तेरौ— १-१३२। नाम रखना— (१) नामकरण करना। (२) अच्छा काम करके यश बनाये रखना। (३) बदनामी करना। नाम लगना- दोष, बुराई या अपराध के सिलसिले में नाम लिया जाना। नाम लगाना— दोष, बुराई या अपराध का जिम्मेदार ठहराना, दोष मढ़ना। नाम लेकर— (१) नाम के प्रभाव से। (२) नाम का स्मरण करके। नाम लेना— (१) नाम का उच्चारण करना। (२) जपना या स्मरण करना। (३) गुण गाना, प्रशंसा करना। (४) जिक्र या चर्चा करना। (५) दोष या अपराध लगाना। नाम लीन्हौ— भय या आतंक दिखाने के लिए नाम का उच्चारण किया। उ.— यह कह्यौ नंद, नुप बंदि, अहि-इंद्र पै गयौ मेरौ नंद, तुव नाम लीन्हौ— ५८४। नाम-निशान— चिन्ह, पता, खोज। नाम-निशान मिट जाना (मिटना)— ऐसा चिन्ह तक न रह जाना जिससे कुछ पता चल सके। नाम-निशान न होना— ऐसा कोई चिन्ह न होना जिससे पता चलाया जा सके। नाम से— (१) चर्चा या जिक्र से। (२) संबंध बताकर। (३) स्वामी या मालिक मानकर। (४) नाम के प्रभाव से (५) नाम सुनते ही। नाम से काँपना— नाम सुनते ही डर जाना। नाम होना— (१) दोष या कलंक लगना। (२) नाम प्रसिद्ध होना। (३) कार्य-संपादन का श्रेय मिलना।

नाम
संज्ञा
पुं.
(सं. नामन्)
सुनाम, कीर्ति, यश, ख्याति।
मुहा.- नाम कमाना (करना)— प्रसिद्ध होना। नाम को मरना— (१) यश या बड़ाई पाने के लिए जी-जान से कोशिश करना। (२) यश या कीर्ति बनाये रखने के लिए जी-जान से कोशिश करना। नाम चलना-यश या कीर्ति बनी रहना। नाम जगना— यश या कीर्ति फैलना। नाम जगाना— यश या कीर्ति फैलना। नाम डुबाना— यश या कीर्ति मिटाना। नाम डूबना— यश या कीर्ति न रह जाना। नाम पाना— यश या कीर्ति मिलना। नाम रह जाना— यश या कीर्ति की चर्चा होना। नाम से पुजना— यश या कीर्ति के कारण ही आदर होना। नाम से बिकना— यश या कीर्ति के कारण ही बिकना। नाम ही नाम रह जाना— पिछले यश की चर्चा भर रह जाना, वास्तविक काम या मूल्य न रह जाना।


नाम
संज्ञा
पुं.
(सं. नामन्)
ईश्वर या इष्टदेव का नाम।
उ.— पतित पावन जनि सरन आयौ। उदधि-संसार सुभ नाम-नौका तरन अटल अस्थान निजु निगम गायौ—१-११९।
मुहा.- नाम आना— ईश्वर का नाम मुख से उच्चरित होना।

नाम आयौ— ईश्वर का नाम मुख से उच्चरित हुआ। उ.— ग्रस्यौ गज ग्राह लै चल्यौ पाताल कौं, काल कैं त्रास मुख नाम आयौ— १-५। नाम जपना— (१) भक्ति या प्रेम से ईश्वर का बार-बार नाम लेना। (२) जाप करना, माला फेरना। नाम देना— इष्टदेव का या सांप्रदायिक मंत्र देना। नाम न लेना— ईश्वर का स्मरण न करना। नाम (पर)— ईश्वर के निमित्त। नाम पर बैठना— ईश्वर के सहारे रहकर संतोष करना। नाम पुकारना— ईश्वर का नाम जोर से लेना। नाम लेकर— देवी-देवता, इष्टदेव या ईश्वर का स्मरण करके। नाम लेना— (१) देवी-देवता या ईश्वर का स्मरण करना। (२) जाप करना, माला फेरना। (३) कीर्तन या ईश्वर-चर्चा करना। नाम से— (१) ईश्वर की कथा-वार्ता, कीर्तन-चर्चा से। (२) ईश्वर का नाम लेकर। (३) देवी-देवता के उपयोग या सेवा के लिए। (४) ईश्वर के नाम के प्रभाव से। (५) ईश्वर के नाम का उच्चारण करते ही। नाम लीजै— ईश्वर का स्मरण या जाप कीजिए। उ.— (सनकादि) कह्यौ, यह ज्ञान, या ध्यान, सुमुरन यहै, निरखि हरि रूप मुख नाम लीजै— ४-११।

नामक
वि.
(सं.)
नाम धारण करनेवाला।


नामकरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाम रखने का काम।


नामकरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हिंदुओं के सोलह संस्कारों में पाँचवाँ जब बच्चे का नाम रखा जाता है।


नाम-कीर्तन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर का जप-भजन।


नाम-ग्राम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाम और पता।


नामजद
वि.
(फ़ा. नामजद)
जिसका नाम किसी पद के लिए प्रस्तावित हुआ हो।


नामजद
वि.
(फ़ा. नामजद)
प्रसिद्ध।


नामदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कृष्णोपासक वामदेव जी के नाती जिनकी कथा भक्तमाल में है। बचपन से ही कृष्ण में इनकी सच्ची भक्ति थी। एक बार बाहर जाते समय वामदेव जी अपने इस छोटे दौहित्र से भगवान श्रीकृष्ण को प्रतिदिन दूध चढ़ाने को कहते गए। नामदेव ने दूसरे दिन दूध सामने रखकर प्रतिमा से पीने की प्रार्थना की और उसके न पीने पर वे आत्महत्या करने को तैयार हुए। भक्त की रक्षा के लिए भगवान ने प्रकट होकर दूध पी लिया। लौटने पर नाना वामदेव यह अद्भुत व्यापार देख बड़े चकित हुए। धीरे-धीरे इनकी प्रसिद्धि चारों ओर हो गयी।


नामदेव
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध कवि।


नामवन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक संकर राग।


दरजिन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दरजी)
दर्जी की पत्नी।


दरजी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर्जी)
कपड़ा सीनेवाला।
उ.—सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन बिना तनु भयो ब्योंत, बिरह भयौ दरजी—३१६२।


दरजी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर्जी)
कपड़ा सीने का व्यवसाय करने वाली जाति का पुरुष।


दरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दलने-पीसने की क्रिया।


दरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश, ध्वंस।


दरद
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर्द)
सहानुभूति, करुणा, दया, तर्स, रहम।
उ.—(माई) नैंकुहूँ न दरद करति, हिलकिनि हरि रोवै। बज़्रहुँ तैं कठिन हियौ, तेरौ है जसोवै—३४८।


दरद
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर्द)
पीड़ा, कष्ट, तकलीफ।


दरद
वि.
(सं.)
भयकारक, भयंकर।


दरद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
काश्मीर प्रदेश और हिंदूकुश पर्वत के मध्यवर्ति भू-भाग का प्राचीन नाम।


दरद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक प्राचीन म्लेच्छ जाति।


नाम-धराई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाम + धरना )
निंदा।


नाम-धाम
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम + धाम )
पता-ठिकाना।


नामधारी
वि.
(सं.)
नाम धारण करनेवाला।


नाम-निशान
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम + फ़ा. निशान)
चिह्न, पता-ठिकाना।


नाम बोला
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम + बोलना)
विनयपूर्वक नाम जपने या स्मरण करनेवाला।


नाम-राशि, नामरासि, नामरासी
संज्ञा
पुं.
(सं. नामराशि)
एक ही नाम और विचारवाले व्यक्ति


नामर्द
वि.
(फ़ा.)
नपुंसक। कायर।


नामर्दी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
नपुंसकता।


नामर्दी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कायरता।


नामलेवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम + लेना)
नाम लेने या स्मरण करनेवाला।


नामलेवा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम + लेना)
उत्तराधिकारी।


नामवर
वि.
(फ़ा.)
नामी, प्रसिद्ध।


नामवरी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कीर्ति, प्रसिद्धि।


नामशेष
वि.
(सं.)
जिसका केवल नाम ही रह गया हो, नष्ट।


नामशेष
वि.
(सं.)
मृत, गत।


नामांकित
वि.
(सं.)
जिस पर नाम पड़ा हो।


नामा
वि.
(सं.)
नामवाला, नामधारी।


नामा
संज्ञा
पुं.
नाई जाति का एक भक्त जिसका छप्पर भगवान ने छाया था।
उ.—कलि मैं नामा प्रगट ताकी छानि छवावै—१-४।


नामाकूल
वि.
(फ़ा. ना + अ. माकूल)
नालायक, अयोग्य।


नामाकूल
वि.
(फ़ा. ना + अ. माकूल)
अनुचित।


नामावली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाम-सूची।


नामिक
वि.
(सं.)
नाम संबंधी, नाम का।


नामित
वि.
(सं.)
झुकाया हुआ।


नामी
वि.
[हिं. नाम + ई (प्रत्य.)]
नामक, नामधारी।


नामी
वि.
[हिं. नाम + ई (प्रत्य.)]
प्रसिद्ध, विख्यात।
उ.—(क) पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितनि मैं नामी—१-१४८। (ख) सुत कुबेर के ये दोउ नामी—३९१। (ग) एक कुवलिया त्रिभुवनगामी। ऐसे और कितिक हैं नामी—२४५९।


नामी-गिरामी
वि.
(फ़ा.)
प्रसिद्ध, विख्यात।


नामुनासिब
वि.
(फ़ा.)
अनुचित, अयोग्य।


नामुमकिन
वि.
(फ़ा. ना + अ. मुमकिन)
असंभव।


नाम्ना
वि.
(सं.)
नामधारी, नामवाली।


नायँ
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम।


नायँ
अव्य
(हिं. नहीं)
नहीं।


नाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीति।


नाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उपाय।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सरदार, नेता, अगुआ।
उ.—(क) हरि, हौं सब पतितनि को नायक—१-१४६। (ख) मन मेरैं नट के नायक ज्यौं नितहीं नाच नाचायौ—१-२०५।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अधिपति, स्वामी।
उ.—तुम कृतज्ञ, करुनामय, केसव, अखिल लोक के नायक—१-१७७।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रेष्ठ व्यक्ति।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
किसी ग्रंथ का सर्वप्रमुख पुरुष पात्र।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
श्रृंगार का आलंबन या साधक।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कलावंत।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


नायबी
संज्ञा
स्त्री.
[अ. नायब + ई (प्रत्य.)]
नायक का काम।


नायिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
रुप गुणवती स्त्री।


नायिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
श्रेष्ठ स्त्री।


नायिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
ग्रंथ की सर्वप्रमुख स्त्री पात्री।


नायो, नायौ
क्रि. स.
(हिं. नाना)
झुकाया नवाया।
उ.—अबल प्रहलाद, बलि दैत्य सुखहीं भजत, दास ध्रव चरन चित-सीस नायौ—१-११९।


नायो, नायौ
क्रि. स.
(हिं. नाना)
डाला, छोड़ा।
उ.—(क) सुत-तनया-बनिता-बिनोद-रस, इहिं जुर-जरनि जरायौ। मैं अग्यान अकुलाइ, अधिक लै, जरत माँझ घृत नायौ—१-१५४। (ख) तामें मिश्रित मिश्री करि दै कपूर पुट जावन नायो—११७९। (ख)


नायो, नायौ
क्रि. स.
(हिं. नाना)
पड़ा हुआ, फेंका हुआ।
उ.—दै करि साप पिता पहँ आयौ। देख्यौ सर्प पिता-गर नायौ—१-२९०।


नारंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नारंगी।


नारंग
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाजर।


नारंगी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारंग, या अ. नारंज)
नीबू की जाति का एक फंल।


नायक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग।


नायका
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नायिका)
कुटनी, दूती।


नायकी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राग का नाम।


नायकी कान्हड़ा
संज्ञा
पुं.
एक राग का नाम।


नायकी मल्लार
संज्ञा
पुं.
(सं. नायक + मल्लार)
एक राग।


नायकी मल्लार
वि.
दयालु, दया कार्य में रहनेवाले।


नायन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाई)
नाई की स्त्री।


नायब
संज्ञा
पुं.
(अ.)
मुख्तार


नायब
संज्ञा
पुं.
(अ.)
सहकारी।


नायबी
संज्ञा
स्त्री.
[अ. नायब + ई (प्रत्य.)]
नायब का पद।


नारंगी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारंग, या अ. नारंज)
पीलापन लिये लाल रंग।


नारंगी
वि.
पीलापन लिये लाल रंगवाला।


नार
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल)
उल्व नाल, आँवल, नाल।
उ.—(क) जसुदा नार न छेदन दैहौं—१०-१५। (ख) बेगहिं नार छेदि बालक कौ, जाति बयारि भराई—१०-१६।


नार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नाल, नाड)
जुलाहों की ढरकी नाल।
मुहा.- नार नवाना (नीची करना)- (१) सिर या गरदन झुकाना। (२) लज्जा, संकोच या मान से दृष्टि नीची करना। नार नावति— लज्जा या संकोच से दृष्टि नीचे करती है। उ.— समुझि निज अपराध करनी नार नावति नीचि। नार नीची करि— लाज, संकोच य मान से दृष्टि नीची करके। उ.— मान मनायो राधा प्यारी।¨¨¨। कत ह्णै रही नार नीची करि देखत लोचन झूले।


नार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नाल, नाड)
गला, गरदन, ग्रीवा।


नार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नर-समूह।


नार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाल का जन्मा बछड़ा।


नार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
जल, पानी।


नार
वि.
नर संबंधी।


नार
वि.
नारायण-संबंधी।


नार
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाला)
नाला।
उ.—इक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरौ। जब मिलि गए तब एक बरन ह्वै , गंगा नाम परौ—१-२१०।


नार
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाला)
नारा, नाला, इजारबन्द, नीबी।


नार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारी)
स्त्री।


नार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारी)
पत्नी।
उ.—(क) धर्मपुत्र कौं जुआ खिलाए। तिन हारयौ सब भूमि-भँडार। हारी बहुरि द्रौपदी नार—१-२४६। (ख) नाम सुनीति बड़ी तिहिं दार। सुरुचि दूसरी ताकी नार—४-९।


नारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नरक।


नारक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह प्राणी जो नरक में रहता हो।


नारकी
वि.
(सं.नारकिन्)
नरक-संबंधी।


नारकी
वि.
(सं.नारकिन्)
नरक भोगनेवाला प्राणी, पापी।


नारकीट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह जो आशा देकर निराश करे।


नारति
क्रि. स.
(हिं. नारना)
थाह लगाती है, भाँपती है।
उ.—राधा मन मैं यहै बिचारति।¨¨¨¨¨¨ मोहू ते ये चतुर कहावति ये मन ही मन मोकों नारति।


नारद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक देवर्षि जो ब्रह्मा के पुत्र कहे जाते है। नाना लोकों में विचरना और एक का संवाद दूसरे तक पहुँचाना, इनका कार्य बताया गया है। ये बड़े हरिभक्त माने जाते है। कहीं कहीं कलह कराने में भी इनका हाथ रहना कहा गया है। इसी से इधर की उधर लगाने वाले को 'नारद' कहते है।


नारना
क्रि. स.
(सं. ज्ञान, प्रा. णाण + हिं. ना)
थाह का पता लगाना, भाँपना, ताड़ जाना, अंदाजना।


नारबेवार
संज्ञा
पुं.
(हिं. नार + सं. विवार=फैलाव)
आँवल नाल, नाल और खेड़ी आदि।


नारांतक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रावण का एक पुत्र।


नारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल, हिं. नार)
नाला, इजारबंद, नीबी।
नारा सूथन जधन बाँधि नारा बँद तिरनी पर छबि भारी—पृ. ३४५ (४०)।


नारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल, हिं. नार)
लाल रँगा सूत, मौली।


नारा
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल, हिं. नार)
नाला जिसमें पानी बहता है।


नाराइन
संज्ञा
पुं.
(सं. नारायाण)
नारायण, विष्णु।


नाराच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लोहे का तीर जिसमें पांच पंख होते है और जिसका चलाना कठिन होता है।


नाराच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह दुर्दिन जब अंधड़ आदि चले।


नाराच
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक वर्णवृत्त।


नाराज
वि.
(फ़ा.)
रुष्ट, अप्रसन्न।


नाराजगी, नाराजी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
अप्रसन्नता।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु, ईश्वर।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पूस का महीना।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अस्त्र का नाम।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अजामिल के पुत्र का नाम।


नारायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दुर्गा।


नारायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लक्ष्मी।


नारायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गंगा।


थानी
वि.
पूर्ण, संपूर्ण, अशेष।


थानु-सुत
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थाणु + सुत)
गणेश जी।


थानेत
संज्ञा
पुं.
(हिं. थानैत)
स्थान का स्वामी।


थानेदार
संज्ञा
पुं.
(हिं. थाना +फा. दार)
थाने का प्रधान अधिकारी।


थानेदारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. थानेदार )
थानेदार का पद या उसका कार्य और दायित्व।


थानैत
संज्ञा
पुं.
[ हिं. थाना + ऐत (प्रत्य.) ]
स्थान का स्वामी।


थानैत
संज्ञा
पुं.
[ हिं. थाना + ऐत (प्रत्य.) ]
स्थान-विशेष का देवता।


थानैत
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान)
ग्राम-देवता।


थानौ
संज्ञा
पुं.
(सं. स्थान, हिं. थान)
टिकने या रहने का स्थान, वासस्थान।
उ.- रघुकुल राघव कृस्न सदा हो गोकुल कीन्हौ थानौ १-११।


थाप
संज्ञा
स्त्री.
(सं. स्थापन)
तबले आदि पर दी गयी थपकी या ठोंक


दरन
क्रि. स.
(हिं. दरना, दलना)
नष्ट करनेवाले, दूर करनेवाले।
उ.—अरु जन-सँताप-दरन, हरन-सकल-सँताप—१-१८२।


दरना
क्रि. स.
(हिं. दलना)
दलना, पीसना।


दरना
क्रि. स.
(हिं. दलना)
नष्ट या ध्वस्त करना।


दरप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प )
घमंड, अभिमान।


दरप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प )
मान, रूठना।


दरप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प )
अक्खड़पन।


दरप
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्प )
दबाव, रोब।


दरपक
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पक)
अभिमानी, घमंडी।


दरपक
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पक)
मान करने या रूठनेवाला।


दरपक
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पक)
कामदेव।


नारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नार)
हल बाँधने की रस्सी।


नारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाड़ी)
हठयोग में ज्ञान, शक्ति और श्वास-प्रश्वास-वाहिनी नालियाँ।
उ.—इंगला पिंगला सुषमना नारी—३३०८।


नारौ
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल, हिं. नाला)
बरसाती या गंदा पानी बहने का प्राकृतिक मार्ग, नाला।
उ.—गरजत क्रोध-लोभ कौ नारौ, सूझत कहूँ न उतारौ—१-२०९।


नालंदा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बिहार का एक प्राचीन क्षेत्र जहाँ प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था।


नाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कमल, कुमुद आदि फूलों की पोली, लंबी डंडी, डांड़ी।
उ.—(क) बह्मा यौं नारद सौं कह्यौ। जब मैं नाभि-कमल मैं रह्यौ। खोजत नाल कितौ जुग गयौ। तौहू में कछु मरम न लयौ—२-३७। (ख) जाकैं नाल भए ब्रह्मादिक, सकल जोग ब्रत साध्यौ हो—१०-१२८।


नाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
पौधे का डंठल।


नाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
गेहूँ, जौ आदि की पतली डंडी।
मुहा.- नाल काटनेवाली— बड़ी-बूढ़ी।

कहीं नाल गड़ना— (१) उस स्थान पर जन्मभूमि-जैसा इतना प्रेम बोना कि वहाँ से जल्दी न हटना। (२) उस स्थान पर दादा या अधिकार होना।

नाल
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नली।


नाल
संज्ञा
पुं.
आँवल नाल, उल्व नाल।


नाल
संज्ञा
पुं.
(अ.)
लोहे का अर्द्धचंद्राकार टुकड़ा जो पशुओं के खुरों या टापों में जड़ा जाता है।


नारायणी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
श्रीकृष्ण की सेना का नाम।


नारायणीय
वि.
(सं.)
नारायण संबंधी।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं. नारायण)
ईश्वर, विष्णु।


नारायण
संज्ञा
पुं.
(सं. नारायण)
अजामिल के पुत्र का नाम।
उ.—सुतहित नाम लियौ नारायन, सो बैकुंठ पठायौ—१-१०४।


नारायन-बानी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारायण + वाणी)
नारायण' नाम का उच्चारण।
उ.—अजामील द्विज सौं अपराधी अंतकाल बिडरै। सुत-सुमिरत नारायन-बानी, पार्षद धाइ परैं—१-८२।


नारि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नारी)
स्त्री, नारी।


नारिकेर, नारिकेल
संज्ञा
पुं.
(सं. नारिकेल)
नारियल।


नारि-पर
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नारी-पर)
दूसरे की स्त्री।
उ. - पंजा पंच प्रपंच नारि-पर भजत, सारि फिरि सारी—१-६०।


नारियल
संज्ञा
पुं.
(सं. नारिकेल)
एक प्रसिद्ध पेड़।


नारी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
स्त्री।


नाल
संज्ञा
पुं.
(अ.)
पत्थर का भारी टुकड़ा जिसमें दस्ता लगा हो।


नाल
संज्ञा
पुं.
(अ.)
रूपया जो जुआरियों से अड्डेवाला लेता है।


नालकी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नाल=डंडा)
खुली हुई पालकी जिसमें दूल्हा बैठकर ब्याहने जाता है।


नाला
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल)
प्राकृतिक या गंदे पानी के बहने का छोटा जलमार्ग।


नाला
संज्ञा
पुं.
(सं. नाल)
नाड़ा, नीबी।


नालायक
वि.
(फ़ा. ना + अ. लायक)
निकम्मा, मूर्ख।


नालिश
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
अभियोग, फरियाद।


नाली
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाला)
प्राकृतिक या गंदा जल बहने का पतला मार्ग, मोरी।


नाली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाड़ी।


नाली
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कमल।


नालौट
वि.
(हिं. न + लौटना)
बात कहकर या वादा करके मुकर जानेवाला।
मुहा.- बालू में नाव चलाना— बालू में नाव चलाने जैसा व्यर्थ और मूर्खता का प्रयत्न करना। सिकता (=सिकता=बालू) हठि नाव चलावहु— मूर्खता का और निष्फल प्रयत्न कर रहे हो। उ.— सूर सिकत हठि नाव चलावहु ये सरिता है सूखी। सूखे में नाव वहीं चलती— दिना खर्च क्रिय या उदारता दिखाये नाम नहीं होता।

नाव में धूल उड़ाना— (१) सरासर झूठ दोलना। (२) झूठा अपराध लगाना।

नाव
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नौका)
नौका, किश्ती।
उ.—(क) लै भैया केवट, उतराई। महाराज रघुपति इत ठाढ़े, तैं कत नाव दुराई—९-४०। (ख) दुई तरंग दुइ नाव-पाँव धरि ते कहि कवननि मूठे—३२८०।


नाव
संज्ञा
पुं.
(हिं. नाम)
नाम।
उ.—गोपिनि नाव धरयो नवरंगी—२६७५। (ख) यह सुख सखी निकसि तजि जइए जहाँ सुनीय नाव न—२८६९।


नावक
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
एक तरह का छोटा बाण या तीर।


नावक
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मधुमक्खी का डंक।


नावक
संज्ञा
पुं.
(सं. नाविक)
केवट, मल्लाह।


नावक
संज्ञा
पुं.
(सं. नाविक)
मल्लाह जिसने श्रीराम को नाव पर चढ़ाकर गंगा पार किया था।
उ.—पुनि गौतम घरनी जानत है, नावक सबरी जान—सारा. ६८६।


नावत
क्रि. स.
(हिं. नाना)
(किसी छिद्र आदि में) डालता है, छोड़ता है।
उ.—(क) माखन तनक आपनैं कर लै, तनक बदन मैं नावत—१०-१७७। (ख) जूठौ लेत सबनि के मुख कौ, अपनैं मुख मैं नावत—४६८।


नावत
क्रि. स.
(हिं. नाना)
झूकाते या नवाते है।
उ.—सूर सीस नीचे क्यों नावत अब काहे नहिं बोलत—३१२१।


नावति
क्रि. स.
(हिं. नाना)
देती है, डालती है, घुसाती है।
उ.—भरथौ चुरू मुख धोइ तुरत हीं पीरे पानबिरी मुख नावति—५१४।


नावना
क्रि. स.
(सं. नामन)
झुकाना, नवाना।


नावना
क्रि. स.
(सं. नामन)
डालना, फेंकना।


नावना
क्रि. स.
(सं. नामन)
घुसाना, प्रविष्ट कराना।


नावर,नावरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाव)
नाव, नौका।


नावर,नावरि
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाव)
नाव-क्रीड़ा जिसमें नाव को जल में चक्कर खिलाते हैं।


नावाकिफ
वि.
(फ़ा. ना + अ. वाकिफ)
अनजान।


नाविक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
केवट, मांझी, मल्लाह।


नावैं
क्रि. स.
(हिं. नाना)
डालते हैं घुसाते हैं, प्रविष्ट कराते हैं।
उ.—जल-पुट आनि धरनि पर राख्यौ, गहि आन्यौ वह चंद दिखावे। सूरदास प्रभु हँसि मुसु-क्याने, बार-बार दोऊ कर नावैं—१०-१९१।


नावै
क्रि. स.
(हिं. नाना)
नवाता है, झुकाता है, नम्रतापूर्वक बंदना करता है।
उ.—उग्रसेन की आपदा सुनि-सुनि बिलखावै। कंस मारि, राजा करै आपहु सिर नावै—१-४।


नावै
क्रि. स.
(हिं. नाना)
डालता है, छोड़ता है।
उ.—महामूढ़ सो मूल तजि, साखा जल नावै—२-९।


नाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ध्वंस, बरबादी।


नाशक
वि.
(सं.)
नाश करनेवाला।


नाशक
वि.
(सं.)
मारनेवाला।


नाशक
वि.
(सं.)
दूर कर देनेवाला।


नाशकारी
वि.
(सं. नाशकारिन्)
नाश करनेवाला।


नाशन
वि.
(सं.)
नाश करनेवाला।


नाशन
संज्ञा
पुं.
नाश करने की क्रिया या भाव।


नाशना
क्रि. स.
(सं. नाश)
नाश करना।


नाशपाती
संज्ञा
स्त्री.
(तु.)
एक प्रसिद्ध फल।


नाशवान्
वि.
(सं.)
जो नष्ट हो जाय, नश्वर।


नाशित
वि.
(सं.)
जिसका नाश किया गया हो।


नाशी
वि.
(सं.)
नाश करनेवाला, नाशक।


नाशी
वि.
(सं.)
नष्ट होनेवाला, नश्वर।


नाशी
क्रि. स.
(हिं. नाशना)
नष्ट हो गयी, दूर हो गयी।
उ.—ता दिन नींदौ पुनि नाशी चौंकि परति अधिकारे—३०४५।


नाश्ता
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
कलेवा, जलपान।


नाश्य
वि.
(सं.)
जो नाश के योग्य हो।


नास
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नासा)
सुँघनी।


नास
संज्ञा
पुं.
(सं. नाश)
नाश।
उ.—जिनके दरस-परस करुना ते दुख-दरिद्र के नास—सीरी. ८०८।


नासत
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नाश करते हैं।
उ.—भगत-बिरह कौ अतिहीं कादर, असुर-गर्ब-बल नासत—१-३१।


नासना
क्रि. स.
(हिं. नाश)
नष्ट करना, नाश करना।


नासना
क्रि. स.
(हिं. नाश)
मार डालना, वध करना।


नासमझ
वि.
(फ़ा. ना + समझ )
मूर्ख, बुद्धिहीन।


नासमझी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नासमझ)
मूर्खता |


नासा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाक, नासिका।
उ.—जल-चर-जा-सुत-सुत सम नासा धरे अनासा हार—सा. ३५।


नासा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाक का छेद, नथना।


नासाग्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाक की नोक।


नासापुट
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाक का परदा।
उ.—हम पर रिस करि करि आवलोकत नासापुट फरकावत।


नासाबेध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नथुने का छेद जिसमें नथ आदि पहनी जाती है।


नासि
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नष्ट करके, मारकर।
कौरो-दल नासि-नासि कीन्हौं जन-भायौ—१-२३।


नासिका
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नाक, नासा।


नासिका
वि.
श्रेष्ठ. मुख्य, प्रधान।


नासी
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नाश कर दी, बरबाद कर दी।
उ.—इहाँ आइ सब नासी—१-१९२।


नासीर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सेनानायक के आगे चलनेवाला सैन्यदल।


नासूर
संज्ञा
पुं.
(अ.)
एक भयानक रोग।


नासै
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नाश करता है, दूर करता है।
उ.—(क) उर बनमान बिचित्र बिमोहन, भृगु-भँवरी भ्रम कौं नासै—१-६९। (ख) कोटि ब्रह्मांड छनहिं मैं नासै, छनहीं मैं उपजावै—४८२।


नास्तिक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर को न माननेवाला।


नास्तिकता
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर को न मानने का भाव, नास्तिक होने की बुद्धि।।


नास्तिवाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नास्तिकों का तर्क।


नास्य
वि.
(सं.)
नासिका का, नासिका-संबंधी।


नास्यौ
क्रि. स.
(हिं. नासना)
नष्ट कर दिया।
उ.—जिहिं कुल राज द्वारिका कीन्हौ, सो कुल साप तैं नास्यौ—१-१५।


निंदत
क्रि. स.
(हिं. निंदना)
निंदा करता है, बुरा कहते है।
उ.—(क) निंदत मृढ़ मलय चंदन कौं, राख अंग लपटावै—२-१३। (ख) हरि सबके मन यह उपजाई। सुरपति निंदत, गिरिहिं बड़ाई।


निंदति
क्रि. स.
(हिं. निंदना)
निंदा करती है, बुरा कहती है।
उ.—ललना लै लै उछंग, अधिक लोभ लागै। निरखतिं निंदति निमेष करत ओट आगै—।


निंदन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निंदा करने का काम।


निंदना
क्रि. स.
(सं. निंदन)
निंदा करना, बुरा कहना, बदनाम करना।


निंदनीय
वि.
(सं.)
बुरा, निंदा-योग्य।


निंदरना
क्रि. स.
(सं. निंदना)
निंदा करना, निंदना।


निंदरिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नींद)
निद्रा, नींद।
उ.—(क) मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै—१०-४३। (ख) सूर स्याम कछु कहत-कहत ही बस कर लीन्हे आइ निंदरिया—१०-२४६।


निंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दोष-कथन, अपवाद।
उ.—निंदा जग उपहास करत, मग बंदीगन जस गावत—१-१४१।


निंदा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बदनामी, कुख्याति।


निंदासा
वि.
(हिं. नींद)
जिसे नींद रही हो, जो उनींदा हो।


दरद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईं गुर।


दर दर
क्रि. वि.
(फ़ा. दर=द्वार)
द्वार-द्वार, जगह-जगह, ठौर-कुठौर।
उ.—(क) माया नटिनि लकुटि कर लीन्हें कोटिक नाच नचावै। दर-दर लोभ लागि लै डोलै नाना स्वाँग करावै। (ख) जीवत जाँचत कन-कन निर्धन दर-दर रहत बिहाल —१-१५६।


दरदरा
वि.
(सं. दरण=दलना)
जो मोटा पिसा हुआ हो, जो महीन न पिसा हो।


दरदराना
क्रि. स.
(सं. दरण)
मोटा-मोटा पीसना।


दरदराना
क्रि. स.
(सं. दरण)
किटकिटाकर दाँत से काट लेना।


दरदरी
वि.
स्त्री.
(हिं. दरदरा)
मोटो कण या रवे का।


दरदरी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. धरित्री)
पृथ्वी, धरती।


दरदवंत
वि.
[(फ़ा. दर्द +(प्रत्य)]
दया या सहानुभूति दिखानेवाला।


दरदवंत
वि.
[(फ़ा. दर्द +(प्रत्य)]
पीड़ित, दुखी।


दरद्द
संज्ञा
पुं.
(हिं. दर्द)
पीड़ा, कष्ट।


नास्यौ
क्रि. स.
(हिं. नासना)
फेंका, बरबाद किया।
उ.—मेरै भैया कितनौ गोरस नास्यौ—३७५।


नाह
क्रि. स.
(हिं. न + आह=है)
नहीं है, न है।
उ.—ब्रह्मा कह्यौ, सुनो नर-नाह। तुम सौं नृप नग मैं अब नाह—९-४।


नाह
संज्ञा
पुं.
(सं. नाथ)
नाथ, स्वामी, मालिक।


नाह
संज्ञा
पुं.
(सं. नाथ)
पति।
उ.—जाहु नाह, तुम पुरी द्वारिका कृष्ण-चन्द्र के पास—सारा. ८०८।


नाह
संज्ञा
पुं.
(सं. नाम)
पहिए का छेद।


नाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बंधन।


नाह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फंदा।


नाहक
क्रि. स.
(फ़ा. ना + अ. हक)
दृथा, व्यर्थ, निष्प्रयोजन।
उ.—(क) सूरदास भगवंत-भजन बिनु, नाहक जनम गँवायौ—१-७९। (ख) ऐसौ को अपने ठाकुर कौ इहिं बिधि महत घटावै। नाहक मैं लाजनि मरियत है, इहाँ आइ सब नासी—१-१९२।


नाहट
वि.
(देश.)
बुरा, नटखट।


नाहनूह
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नाहीं)
इनकार।


नाहर, नाहरू
संज्ञा
पुं.
(सं. नरहरि)
सिंह, शेर।
उ.—तुमहिं दूर जानत नर नाहर—१० उ.-१२९।


नाहर, नाहरू
संज्ञा
पुं.
(सं. नरहरि)
बाघ।


नाहिं
अव्य
(हिं. नहीं)
निषेध या अस्वीकृति सूचक अव्यय, न, नहीं।
उ.—ऐसौ सूर नाहिं कोउ दूजौ, दूरि करै जम-दायौ—१-६७।


नाहिंन, नाहिनैं, नाहिनै
वाक्य
(हिं. नाहीं)
नहीं है, नहीं।
उ.—(क) नाहिनैं जगाइ सकति सुनि सुबात सजनी—८१९। (ख) नाहिंन नैन लगे निसि इहिं डर—३०७३। (ग) नाहिंन तेरौ अति हठ नीकौ—३३५६। (घ) नीहिंनैं अब ब्रज नंदकुमार—४००४।


नाहीं
अव्य
(सं. नहिं, हिं. नहीं)
निषेध या अस्वीकृति -सूचक अव्यय।
उ.—हाँ नाहीं नहीं कहत हौ मेरी सौं काहे—२९३८।


नाहीं
अव्य
(सं. नहिं, हिं. नहीं)
उपस्थित न होना, नहीं है।
उ.—हमता जहाँ तहाँ प्रभु नाहीं, सो हमता क्यौ मानौ—१-११।


नाहुष
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नहुष का पुत्र ययाति।


निंद
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निद्रा,)
निद्रा, नींद।
उ.—(क) तुरत जाइ पौढ़े दोउ भैया, सोवत आई निंद—१०-२३०। (ख) पौढ़े जाय दोउ सैया पर सोवत आई निंद—सारा. ५०७।


निंद
वि.
(सं. निंद्य)
निंदा-योग्य, निंदनीय।


निंदक
संज्ञा
पुं.
(सं. निंदक)
निंदा करनेवाला।
उ.—साधु-निंदक, स्वाद-लँपट, कपटी, गुरु-द्रोही। जेते अपराध जगत, लागत सब मोहीं—१-१२४।


निःश्रेयस
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मुक्ति, मोक्ष।


निःश्रेयस
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मंगल, कल्याण।


निःश्रेयस
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
भक्ति।


निःश्रेयस
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विज्ञान।


निःश्वास
संज्ञा
पुं.
(सं.)
साँस |


निःसंकल्प
वि.
(सं.)
इच्छा-रहित।


निःसंकोच
क्रि. वि.
(सं.)
बिना संकोच के, बेधड़क।


निःसंग
वि.
(सं.)
निर्लिप्त।


निःसंग
वि.
(सं.)
जो लगाव या मेल न रखता हो।


निःसंतान
वि.
(सं.)
जिसके संतान न हो।


निंबू
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नीबू।


निः
अव्य
(सं. निस)
नहीं।


निः
अव्य
(सं. निस)
रहित।


निःक्षोभ
वि.
(सं.)
जिसको क्षोभ न हो।


निःशंक
वि.
(सं.)
निर्भय, निडर।


निःशब्द
वि.
(सं.)
शब्दरहित।


निःशुल्क
वि.
(सं.)
बिना शुल्क का।


निःशेष
वि.
(सं.)
सब।


निःशेष
वि.
(सं.)
समाप्त।


निःशोक
वि.
(हिं. निः + शोक)
शोकरहित, अशोक।
उ.—ताको दर्शन देखि भयौ अज सब बातन निःशोक-—सारा. १३।


निंदास्तुति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
निंदा के बहाने स्तुति।


निंदि
क्रि. स.
(हिं. निंदना)
निंदा करके।
उ.—(क) मोकौं निंदि परबतहिं बंदत—१०४२। (ख) जाकौ निंदि बंदियै सो पुनि वह ताको निदरै—११५९।


निंदित
वि.
(सं.)
जिसे बुरा कहा गया हो।


निंदिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नींद)
नीद, ऊँघ।


निंद्य
वि.
(सं.)
बुरा।


निंद्य
वि.
(सं.)
निंदनीय।


निंद्य
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निंदा)
बदनामी, बुराई।
उ.—कहा भए जो आप स्वारथी नैननि अपनी निंद्य कराई—पृ. ३३१ (१)।


निब
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नीम का पेड़।


निंबरिया
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नींम + बारी)
बारी जिसमें सब या अधिकांश पेड़ नीम के ही हों।


निंबादित्य, निंबार्क
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निंबार्क संप्रदाय के आदि आचार्य जिनकी गद्दी वृन्दावन के पास 'ध्रुव' पहाड़ी पर है।


निःसंदेह
वि.
(सं.)
जिसे या जिसमें संदेह न हो।


निःसंशय
वि.
(सं.)
शंका या संशय-रहित।


निःसत्व
वि.
(सं.)
जिसकी कुछ असलियत न हो।


निःसत्व
वि.
(सं.)
तत्व या सार-रहित।


निःसार
वि.
(सं.)
जिसमें सार या तत्व न हो।


निःसार
वि.
(सं.)
जिसकी कुछ असलियत न हो।


निःसार
वि.
(सं.)
महत्वहीन।


निःसीम
वि.
(सं.)
जिसकी सीमा न हो, असीम।


निःसृत
वि.
(सं.)
निकला हुआ।


निःस्पंद
वि.
(सं.)
स्पंदनरहित, निश्चल।


निःस्पृह
वि.
(सं.)
इच्छारहित।


निःस्पृह
वि.
(सं.)
निर्लोभ।


निःस्व
वि.
(सं.)
धनहीन, दरिद्र।


निःस्वार्थ
वि.
(सं.)
जो लाभ, सुख या सुविधा का ध्यान न रखता हो।


निःस्वार्थ
वि.
(सं.)
जो(कार्य-व्यापार) लाभ, सुख या सुविधा के लिए न किया गया हो।


नि
अव्य
(सं.)
एक उपसर्ग जो अनेक अर्थें का द्योतंक है; यथा--


नि
अव्य
(सं.)
समूह।


नि
अव्य
(सं.)
अत्यन्त।


नि
अव्य
(सं.)
नित्य।


नि
अव्य
(सं.)
अंतर्भाव।


नि
संज्ञा
(सं.)
समीप।


नि
संज्ञा
पुं.
निषाद स्वर का संकेत।


निअर
अव्य
(सं. निकट, प्रा. निअड)
समीप, पास।


निअराना
क्रि. स.
(हिं. निअर)
समीप पहुँचना।


निअराना
क्रि. अ.
निकट या पास आना।


निअरानी
क्रि. स.
स्त्री.
(हिं. निअराना)
निकट आ गयी।
उ.— ताकी मृत्यु आइ निअरानी—१० उ.-४४।


निअरे
अव्य
(हिं. निअर)
निकट, समीप।
वै तो भूषन परखन लागीं तब लगि निअरे आए—३४४१।


निआउ
संज्ञा
पुं.
(सं. न्याय)
नीति, न्याय।


निआथी
वि.
(सं. निः + अर्थी)
निर्धन, गरीब।


निआथी
संज्ञा
स्त्री.
निर्धनता, गरीबी।


निआन
संज्ञा
पुं.
(सं. निदान)
अंत, परिणाम।


निआन
अव्य
अंत में।


निआमत
संज्ञा
स्त्री.
(अ.)
अलभ्य पदार्थ।


निआरा
वि.
(हिं. न्यारा)
अद्भुत, न्यारा।


निकंटक
वि.
(सं. निष्कंटक)
कंटकरहित।


निकंदन
संज्ञा
पुं.
(सं. नि + कंदन=नाश, वध)
नाश करनेवाले।
उ.—(क) सूरदास प्रभु कंस निकंदन देवनि करन सनाथ—२५३४। (ख) सूरदास प्रभु दुष्ट-निकंदन धरनी भार उतारनकारी—२५८९।


निकंदना
क्रि. स.
(हिं. निकंदन)
नष्ट करना।


निकंदा
वि.
(सं. नि + कंदन=नाश, वध)
नाश करनेवाले, वध करनेवाले।
उ.—सूरदास बलि गई जसोदा, उपज्यौ कंस-निकंदा—१०-१९२।


निकट
क्रि. वि.
(सं.)
समीप, पास।
उ.—बंसीबट के निकट आजु हो नेक स्याम मुख हेरो—सा. ४२।


निकट
वि.
पास का।


निकट
वि.
जिसमें अंतर न हो।


निकटता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
समीपता, सामीप्य।


निकटपना
संज्ञा
पुं.
(सं. निकट + हिं. पना)
निकटता, सामीप्य।


निकटवर्ती
वि.
(हिं. निकट)
पासवाला।


निकटस्थ
वि.
(सं.)
निकट या पास का।


निकम्मा
वि.
(सं. निष्कर्म, प्रा. निकम्म,)
जो कुछ न करे-धरे, जो कुछ करने-धरने योग्य न हो।
उ.— बड़ौ कृतघ्नी, और निकम्मा, बेधन, राँकौ-फीकौ—१-१८६।


निकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समूह।
उ.— भृकुटी सूर गही कर सारँग निकर कटाछनि चोर— सा. उ. १६।


निकर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राशि।


निकरई
क्रि. अ.
(हिं. निकारना)
निकलती है।
उ.— किरनि सकंति भुज भरि हनै उर तें न निकरई—२८६१।


निकरना
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
बाहर आना।


दरपना
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्पक)
शीशा, आइना, दर्पण, आरसी।
उ.—(क) ज्यौं दरपन प्रतिबिंब, त्यौं सब सृष्टि करी—२-३६। (ख) इंद्र दिंसि के आदि राखै आदि दरपन बरन—सा.५७।


दरपना
क्रि. स.
(सं. दर्प)
ताव दिखाना, क्रुद्ध होना।


दरपना
क्रि. स.
(सं. दर्प)
घमंड या अहंकार करना।


दरपनी
संज्ञा
स्त्री.
(हि. दरपन)
छोटा दर्पण।


दरपेश
क्रि. वि.
(फ़ा.)
आगे, सामने।


दरब
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य.)
धन।


दरब
संज्ञा
पुं.
(सं. द्रव्य.)
धातु।


दरबर
वि.
(सं. दरण)
मोटा पिसा, दरदरा।


दरबर
संज्ञा
स्त्री.
(अनु.)
उतावली, आतुरता।


दरबराना
क्रि. स.
(हिं. दरबर)
किसी को इस तरह घबरा देना कि वह मन की बात न कह सके।


निकरि
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकलकर।
उ.— मानौ निकरि तरनि रंध्रनि तैं उपजी अति आगि—९-१५८।


निकरी
क्रि. अ.
(हिं. निकरना)
निकली।


निकरी
प्र.
जात निकरी—निकले जाते है।
उ.—सूरदास प्रभु बेगि मिलहु किनि नातरु प्रान जात निकरी—३१८८।


निकरै
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकलता है।


निकरै
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
जाकर बसता है।
उ.— अरजुन के हरि हुते सारथी, सोऊ बन निकरै—१-२६४।


निकर्मा
वि.
(सं. निष्कर्मा)
जो काम न करे, आलसी।


निकलंक
वि.
(सं. निष्कलंक)
दोषरहित, निर्दोष।
उ.—आनन रही ललित पय छींटें, छाजति छबि तृन तोरे। मनौ निकसे निकलंक कलानिधि दुग्धसिंधु मधि बोरे—७३२।


निकलंकी
संज्ञा
पुं.
(सं. निष्कलंक)
विष्णु का दसवाँ अवतार जो कलि के अंत में होगा, कल्कि अवतार।


निकलंकी
वि.
कलंकरहित, निर्दोष।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
बाहर आना।
मुहा.— निकल जाना- (१) बहुत आगे बढ़ जाना। (२) नष्ट हो जाना, ले लिया जाना। (३) कम हो जाना। (४) न पकड़ा जाना। (स्त्री का) निकल जाना— स्त्री का घर छोड़कर किसी पुरूष के साथ चले जाना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
व्याप्त या लगी हुई चीज का अलग होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
आर-पार होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
कक्षा आदि में उत्तीर्ण होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
जाना, गुजरना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
उदय होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
उत्पन्न होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
दिखायी पड़ना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
किसी ओर को बढ़ा हुआ होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
ठहराया जाना, निश्चित होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्रकट या स्पष्ट होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
अलग होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
आरंभ होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्राप्त या सिद्ध होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्रश्न या समस्या का हल होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
फैलाव होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्रचलित होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्रकाशित होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
छूट जाना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
श्रेष्ठ, मुख्य, प्रधान।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
प्रमाणित होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
संबंध न रखना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
अपने को बचा जाना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
मुकरना, नटना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
शरीर से उत्पन्न होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
बिक जाना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
हिसाब बाकी होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
टूट या फटकर अलग होना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
दूर होना, मिट जाना।


निकलना
क्रि. अ.
(हिं. निकालना)
बीतना, गुजरना।


निकलवाना, निकलाना
क्रि. स.
(हिं. निकालना का प्रे.)
निकालने का काम दूसरे से कराना।


निकषा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कसौटी।


निकषा
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सान चढ़ाने का पत्थर।


निकषण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सान या कसौटी पर चढ़ाना।


निकषा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
सुमालि की पुत्री और विश्रवा की पत्नी जिसके गर्भ से रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण जन्मे थे।


निकसत
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकलते ही, निकलते है।
उ.— (क) जब लगि डोलत, बोलत, चितवत, धन-दारा हैं तेरे। निकसत हंस, प्रेत कहि तजिहैं, कोउ न आवै नेरे—१-३१९। (ख) सूरदास जम कंठ गहे तैं, निकसत प्रान दुखारे —१-३३४।


निकसत
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
उधार निकलते हैं, उधार बाकी हैं |
उ.— लेखौ करत लाख ही निकसत को गनि सकत अपार—१-१९६।


निकसन
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकलना, निकसना)
निकलने, छुटकारा पाने, बचने।
उ.— अब भ्रम-भँवर परयौ ब्रजनायक, निकसन की सब बिधि की—१-२१३।


निकसन
क्रि. अ.
निकलने।
उ.— तलफि तलफि जिय निकसन लागे पापी पीर न जानी —३०५९।


निकसना
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकलना।


निकसबी
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकलूँ।
उ.— निकसबी हम कौन मग हो कहै बारी बैस - सा. १७।


निकसि
क्रि. अ.
(हिं. निकसना)
प्रकट होकर, अवतरित होकर।
उ.— बहुत सासना दई प्रहलादहिं, ताहि निसंक कियौ। निकसि खंभ तैं नाथ निरंतर, निज जन राखि लियौ—१-३८।


निकसि
क्रि. अ.
(हिं. निकसना)
निकलकर, बाहर आकर।
उ.— रथ तैं उतरि चक कर लीन्हौ, सुभट सामुहैं आए। ज्यौं कंदर तैं निकसि सिंह, झुकि, गज-जूथनि पर धाए—१-२७४।


निकसिहैं
क्रि. अ.
(हिं. निकलना, निकसना)
निकलेंगे।


निकसिहैं
प्र.
आइ निकसिहैं—आ निकलेंगे, आ जायेंगे, उपस्थित हो जायेंगे।
अबहिं निवछरौ समय, सुचित ह्रै, हम तौ निधरक कीजै। औरौ आइ निकसिहैं तातैं, आगैं है सो लीजै—१-१९१।


निकसे
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
प्रकट हुए, आविर्भूत हुए।
उ.— निकसे खंभ-बीच तैं नरहरि, ताहि अभय पद दीन्हौ—१-१०४।


निकसे
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
निकले, बाहर आए।
उ.— आइ गई कर लिए कमोरी, घर तैं निकसे ग्वाल।¨¨¨। भुज गहि लियौ कान्ह इक बालक, निकसे ब्रज की खोरि—१०-२७०।


निकसे
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
गये, प्रस्थान किया।
उ.— बारक इन बीथिन ह्वै निकसे मैं दूरि झरो-खनि झाँक्यो—२५४६।


निकसै
क्रि. अ.
(हिं. निकलना)
जन्म लेने पर, उत्पन्न होने पर।
उ.— जैसैं जननि-जठर-अंतरगत सुत अपराध करै। तौऊ जतन करै अरू पोषै, निकसै अंक भरै—१-११७।


निकस्यौ
क्रि. अ.
(हिं. निकलना, निकसना))
निकला, बाहर आया।
उ.— रथ तैं उतरि चलनि आतुर ह्यै, कच रज की लपटानि। मानौ सिंह सैल तैं निकस्यौ, महा मत्त गज जानि—१-२७९।


निकाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीक + आई (प्रत्य.)]
सुन्दरता, सौंदर्य।
उ.— (क) सुन्दर स्याम निकाई कौ सुख, नैना ही पै जानै—७३०। (ख) अरून अधर नासिका निकाई बदत परस्पर होड़—१३५७।


निकाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीक + आई (प्रत्य.)]
भलाई, अच्छापन।


निकाज
वि.
(हिं. नि + काज)
निकम्मा, बेकाम, अकर्मण्य।
उ.— ताहूँ सकुच सरन आए की होत जु निपट निकाज —१-१८१।


निकाम
क्रि. वि.
(हिं. नि + काम)
व्यर्थ, निष्प्रयोजन।


निकाम
वि.
निकम्मा।


निकाम
वि.
बुरा, खराब।


निकाम
वि.
(सं.)
अभिलषित।


निकाम
वि.
(सं.)
पर्याप्त।


निकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समूह।


निकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
राशि।


निकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निलय, वासस्थान।


निकाय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ईश्वर।


निकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हार।


निकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपमान।


निकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अपमान, मानहानि।


निकार
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तिरस्कार।


निकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निकालना)
निकालने का काम।


निकार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निकालना)
निकलने का द्वार, निकास।


निकार
क्रि. स.
निकालकर, निष्कासित करके।


निकारण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बध, मारण।


निकारना
क्रि. स.
(हिं. निकालना)
निकालना।


निकारि
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकालना, निकासना, निकारना
निकाल, निकालकर।
उ.— याकौं ह्याँ तैं देहु निकारि। बहुरि न आवै मेरे द्वारि—१-२८४।


निकारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकालना)
निकालने की क्रिया, निकालना, निष्कासन।
उ.— निकालो, भीतर से बाहर लाओ। असुर सौं हेत करि, करौ सागर मथन तहाँ तैं अमृत कौं पुनि निकारौ—९-४४।


निकारौ
क्रि. स.
(हिं. निकालना)
निकालो, भीतर से बाहर लाओ।
उ.—असुर सौं हेत करि, करौ सागर मथन तहाँ तैं अमृत कौं पुनि निकारौ—८-८-।


निकर्यौ
क्रि. स.
(हिं. निकालना, निकासना)
निकाला, निकाल दिया।
उ.—काल अवधि पूरन भई जा दिन, तनहूँ त्यागि सिधारयौ। प्रेत-प्रेत तेरौ नाम परयौ, जब जेंवरि बाँधि निकारयौ —१-३३६।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
भीतर से बाहर लाना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
व्याप्त या ओतप्रोत वस्तु को अलग करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
एक ओर से दूसरी ओर ले जाना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
ले जाना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
किसी ओर को बढ़ा देना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
निश्चित करना, ठहराना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
उपस्थित करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
स्पष्ट या प्रकट करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
चलाना, आरंभ करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
सबके सामने लाना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
घटना, कम करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
जुड़ा या लगा न रहने देना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
समूह से अलग करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
काम से अलग करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
पास न रखना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
बेंचना, खपाना।


दरबराना
क्रि. स.
(हिं. दरबर)
दबाव डालना।


दरबा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर)
पक्षियों को बंद करने का काठ का खानेदार संदूक।


दरबा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दर)
दीवार या पेड़ का कोटर या कोल जिसमें कोई पक्षी आदि रहता हो।


दरबान, दरबाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरबान)
द्वारपाल।


दरबानी
संज्ञा
स्त्री.
(दरबान)
द्वारपाल का काम।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
राजसभा।
उ.—(क) जाति-पाँति कोउ पूछत नाहीं. श्रोपति कैं दरबोर—१-२३१। (ख) देखि दरबार, सब ग्वार नहिं पार कहुँ, कमल के भार सकटनि सजाए—५८४।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
वह स्थान जहाँ नायक या राजा अपने सहकारियों के साथ बैठता हो।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
वह स्थान जहाँ कोई पदाधिकारी अपने चाटुकारों के साथ हैठता हो व्यग्य।
मुहा.- दरबार करना— राज-सभा या बैठक में बैठना। दरबार खुलना— वहाँ जाने की आज्ञा होना। दरबार बंद होना— वहाँ जाने की मनाही होना। दरबार बाँधना— घूस या रिश्वत तय करना। दरबार लगना— सभासदों, सहकारियों या चाटुकारों का इकट्ठा होना।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
राजा, महाराजा।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
अमृतसर में सिखों का मन्दिर जिसमें उनकी धार्मिक पुस्तक, ग्रंथ साहब रखी है।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
सिद्ध करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
निर्वाह करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
प्रश्न या समस्या का हल करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
फैलाना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
प्रचलित करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
नयी बात प्रकट करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
उद्धार करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
प्रकाशित करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
रकम जिम्मे ठहराना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
बरामद करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
दूर करना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
दूसरे से अपनी वस्तु ले लेना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
सुई से काढ़ना।


निकालना
क्रि. स.
(सं. निष्कासन, हिं. निकासना)
सिखाना, शिक्षा देना।


निकाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. निकालना)
निकालने का काम।


निकाला
संज्ञा
पुं.
(हिं. निकालना)
निकाले जाने का दंड, निष्कासन, निर्वासन।


निकाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आकृति।


निकाश
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समानता।


निकास
क्रि. स.
(हिं. निकासना)
निकालना।


निकास
प्र.
देहु निकास—निकाल दो, बाहर कर दो, हटा दो।
उ.—भृगु कह्यो, करत जज्ञ ये नास। इनकौं ह्याँ तैं देहु निकास—४-५।


निकास
संज्ञा
पुं.
निकालने की क्रिया या भाव।


निकास
संज्ञा
पुं.
वह स्थान या छिद्र जहाँ से कुछ निकले


निकास
संज्ञा
पुं.
द्वार, दरवाजा।


निकास
संज्ञा
पुं.
खुला स्थान, मैदान।
उ.—(क) खेलत बनै घोष निकास—१०-२४४। (ख) खेलन चले कुँवर कन्हाई। कहत घोष-निकास जैये, तहाँ खेलैं धाइ—५३२।


निकास
संज्ञा
पुं.
उद्गम, मूल स्थान।


निकास
संज्ञा
पुं.
वंश का मूल।


निकास
संज्ञा
पुं.
बचाव का मार्ग या उपाय।


निकास
संज्ञा
पुं.
निर्वाह का ढंग या सिलसिला।


निकास
संज्ञा
पुं.
आय का मार्ग या साधन।


निकास
संज्ञा
पुं.
आय, आमदनी।


निकासत
क्रि. स.
(हिं. निकासना)
निकालता है।


निकासना
क्रि. स.
(हिं. निकालना)
निकालना।


निकासी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकास)
प्रस्थान, रवानगी।


निकासी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकास)
लाभ का धन।


निकासी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकास)
आय।


निकासी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निकास)
बिक्री, खपत।


निकाह
संज्ञा
पुं.
(अ.)
विवाह (मुसलमान)।


निकियाना
क्रि. स.
(देश.)
धज्जियाँ अलग करना।


निकिष
वि.
(सं. निकृष्ट)
बुरा, नीच, अधम।


निकुंज
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लतागृह, लता-मंडप।
उ.—सघन निकुंज सुरत संगम मिलि मोहन कंठ लगायौ—७१८।


निकुंजबिहारी
संज्ञा
पुं.
(सं. निकुंजविहारी)
शीतल निकुंजों में विहार करनेवाले, श्रीकृष्ण।
उ.—तुम अबिगत, अनाथ के स्वामी, दीन दयाल, निकुंज-बिहारी—१-१६०।


निकुंभ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कुंभकरण का एक पुत्र जिसे हनुमान ने मारा था।


निकुंभ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक राजा जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।


निकुंभ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
महादेव का एक गण।


निकुंभिला
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
मेघनाद की आराध्या देवी।


निकृत
वि.
(सं.)
वहिष्कृत, निष्कासित।


निकृत
वि.
(सं.)
तिरस्कृत।


निकृत
वि.
(सं.)
नीच।


निकृत
वि.
(सं.)
वंचित।


निकृति
वि.
(सं.)
निष्कासन।


निकृति
वि.
(सं.)
तिरस्कार।


निकृति
वि.
(सं.)
नीचता।


निकृति
वि.
(सं.)
वंचकता।


निकृती
वि.
(सं. निकृतिन्)
नीच, दुष्ट।


निकृष्ट
वि.
(सं.)
बुरा, नीच, अधम।


निकृष्टता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बुराई, नीचता।


निकेत, निकेतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घर, मकान, स्थान।
उ.—(क) गुरु-ब्राह्मन अरु संत-सुजन के, जात न कबहुँ निकेत—२-१५। (ख) बहुरौ ब्रह्मा सुरनि समेत। नरहरि जू के जाइ निकेत—७-२।


निकोसना
क्रि. स.
(सं. निस् + कोश)
दाँत निकालना।


निकोसना
क्रि. स.
(सं. निस् + कोश)
दाँत पीसना, किटकिटाना।


निकौनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निराना)
निराने का काम।


निकौनी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निराना)
निराने की मजदूरी।


निक्का
वि.
(सं. न्यत्क=नत)
छोटा-रूप में।


निक्षिप्त
वि.
(सं.)
फेंका हुआ।


निक्षिप्त
वि.
(सं.)
डाला या छोड़ा हुआ।


निक्षिप्त
वि.
(सं.)
धरोहर रखा हुआ।


निक्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फेंकने-डालने की क्रिया या भाव।


निक्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चलाने की क्रिया या भाव।


निक्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पोंछने की क्रिया या भाव।


निक्षेप
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धरोहर, अमानत।


निक्षेपण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
फेंकना, डालना।


निखट्टू
वि.
(हिं. नि+ खटना)
निकम्मा, आलसी।


निखनन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
खोदना।


निखनन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाड़ना।


निखरना
क्रि. अ.
(सं. निक्षरण)
निर्मल, स्वच्छ या झकाझक होना।


निखरना
क्रि. अ.
(सं. निक्षरण)
रंगत खुलना।


निखरवाना
क्रि. स.
(हिं. निखारना)
स्वच्छ कराना।


निखरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निखरना)
पक्की रसोई।


निखरी
वि.
साफ, स्वच्छ, झकाझक।


निखरी
क्रि. अ.
झकाझक हुई।


निखरी
क्रि. अ.
रंगत खुली।


निक्षेपण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
छोड़ना, चलाना।


निक्षेपण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
त्यागना।


निक्षेपी
वि.
(सं. निक्षेपिन्)
फेंकने, छोड़ने या त्यागनेवाला।


निक्षेपी
वि.
(सं. निक्षेपिन्)
धरोहर रखनेवाला।


निक्षेप्य
वि.
(सं.)
फेंकने, छोड़ने या त्यागने योग्य।


निखंग
संज्ञा
पुं.
(सं. निषंग)
तरकश, तूणीर।


निखंगी
वि.
(हिं. निषंगी)
तीर चलानेवाला।


निखंड
वि.
(सं. निस् + खंड)
ठीक, बीचोबीच।


निखट्टर
वि.
(हिं. नि+ कट्टर)
कड़े या कठोर जी का।


निखट्टर
वि.
(हिं. नि+ कट्टर)
निर्दय, निष्ठुर।


निखर्व
वि.
(सं.)
दस हजार करोड़।


निखवख
वि.
(सं. न्यक्ष=सारा)
सब, सारा।


निखाद
संज्ञा
पुं.
(हिं. निषाद)
एक अनार्य जाति।


निखार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निखरना)
निर्मलपन, स्वच्छता।


निखार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निखरना)
सजाव, श्रृंगार, रंगत।


निखारना
क्रि. स.
(हिं. निखरना)
स्वच्छ कराना।


निखारना
क्रि. स.
(हिं. निखरना)
पावन या पवित्र करना।


निखालिस
वि.
(हिं. नि + अ.खालिस)
विशुद्ध।


निखिल
वि.
(सं.)
सब, सारा, संपूर्ण।


निखेध
संज्ञा
पुं.
(हिं. निषेध)
वर्जन, मनाही।


दरबार
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
द्वारा, दरवाजा।
उ.—दधि मथि कै माखन बहु दैहौं, सकल ग्वाल ठाढ़े दरबार—४०३।


दरबारदारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दरबार)
दरबार में उपस्थित होना।


दरबारदारी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दरबार)
किसी नायक या पदाधि-कारी या बड़े आदमी के यहाँ नियमित रूप से बैठने और खुशामद करने का काम।


दरबारविलासी
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरबार +सं. विलासी)
द्वारपाल।


दरबारी
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरबार)
राजसभा का सदस्य, सभासद।
उ.—दास ध्रुव कौं अटलं पद दियौ, राम दरबारी—१-१७६।


दरबारी
वि.
(हिं. दरबार)
दरबार का, दरबार से संबंधित।


दरभ
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्भ)
कुश।


दरभ
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्भ)
बंदर।


दरमा
संज्ञा
पुं.
(सं. दाड़िम)
अनार।


दरमियान
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
मध्य, बीच।


निगड़
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
जंजीर।


निगति
संज्ञा
पुं.
(हिं. नि + गति)
पापी जिसे अच्छी गति न मिल सके।


निगति
संज्ञा
स्त्री.
दुर्दशा, कुदशा।


निगति
संज्ञा
स्त्री.
बुरी गति।


निगद़
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भाषण, कथन।


निगदित
वि.
(सं.)
कहा हुआ, कथित।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मार्ग।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वेद।
उ.—सूर पूरन ब्रह्म निगम नाहीं गम्य तिनहिं अक्रूर मन यह बिचारै—२५५१।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
हाट-बाजार।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मेला।


निखेधना
क्रि. स.
(हिं. निषेध)
मना करना।


निखोट
वि.
(हिं. नि + खोट)
निर्दोष।


निखोट
वि.
(हिं. नि + खोट)
जिसमें झगड़ा-टंटा न हो, साफ।


निखोट
क्रि. वि.
बिना संकोच के, बेधड़क।


निखोटना
क्रि. स.
(हिं. नख)
नोचना-खसोटना।


निखोटै
क्रि. स.
(हिं. निखोटना)
नोचता-खसोटता है, खींचता है।
उ.—बरजत बरजत बिरुझाने। करि क्रोध मनहिं अकुलाने। कर धरत धरनि पर लोटै। माता कौ चीर निखोटै—१०-१८३।


निखोड़ा
वि.
(देश.)
कठोर, निर्दय।


निखोरना
क्रि. स.
(हिं. नि+खोदना)
नोचना।


निगंध
वि.
(सं. निर्गंध)
गंधहीन।


निगड़
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बेड़ी।
उ.— (क) छोरे निगड़ सोआए पहरू, द्वारे कौ कपाट उघरयौ —१०-८। (ख) निगड़ तोरि मिलि मात-पिता को हरष अनल करि दुखहि दहो—२६४४।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यापार।


निगम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कायस्थों का एक भेद।


निगम-ऐन
संज्ञा
पुं.
(सं. निगम + अयन)
वेद का बताया हुआ धर्म-पथ, वेद-वर्णित धर्म-मार्ग, निर्वाण।
उ.—दीन जन क्यौं करि आवै सरन ? ¨¨¨¨¨¨। परम अनाथ, बिवेक-नैन बिनु, निगम-ऐन क्यौं पावै—१-४८।


निगम-द्रुम
संज्ञा
पुं.
(सं. निगम + द्रुम)
वेद रूपी वृक्ष।
उ.—माधौ, नैंकु हटकौ गाइ।¨¨¨¨¨¨। छुधित अति न अघाति कबहूँ, निगम-द्रुम दलि खाइ—१-५६।


निगमन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सिद्ध की जानेवाली बात को सिद्ध करके परिणामस्वरूप उसको दोहराना।


निगमनि
संज्ञा
पुं.
[सं. निगम + नि (प्रत्य.)]
वेदों में, धर्म-शास्त्रों में।
उ.—तातैं बिपति-उधारन गायौ। स्रवननि साखि सुनी भक्तनि मुख, निगमनि भेद बतायौ—१-१८८।


निगमनिवासी
संज्ञा
पुं.
(सं.)
विष्णु, नारायण।


निगमागम
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वेद-शास्त्र।


निगर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भोजनं।


निगर
वि.
(सं.निकर)
सब, सारा।


निगर
संज्ञा
पुं.
समूह।


निगर
संज्ञा
पुं.
राशि।


निगर
संज्ञा
पुं.
निधि।


निगरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
भक्षण।


निगरण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गला।


निगराँ
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
रक्षक।


निगराँ
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
निरीक्षक।


निगरा
वि.
(हिं. नि+सं. गरण)
विशुद्ध।


निगराना
क्रि. स.
(सं. नय + करण)
निर्णय करना।


निगराना
क्रि. स.
(सं. नय + करण)
अलग करना।


निगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
ध्यान, विचार।


निगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
परख, पहचान।


निगिम
वि.
(सं. निगुह्य)
अत्यंत प्रिय।


निगुंफ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गुच्छा, समूह।


निगुण, निगुन
वि.
(सं. निर्गुण)
जो सत्व, रज और तम, तीनों गुणों से परे हो।


निगुण, निगुन
वि.
(सं. निर्गुण)
जिसम कोई गुण न हो।


निगुनी
वि.
(हिं. नि + गुनी)
जो गुणी न हो, गुणहीन।


निगुनी
वि.
(हिं. नि + गुनी)
जो सत, रज, तम से परे हो।


निगुरा
वि.
(हिं. नि + गुरु)
जिसने गुरु-मंत्र न लिया हो।


निगूढ़
वि.
(सं.)
अत्यंत गुप्त, अगम।


निगराना
क्रि. स.
(सं. नय + करण)
स्पष्ट करना।


निगरानी
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
देख-रेख, निरीक्षण।


निगरू
वि.
(सं. नि.+ गुरु)
जो भारी न हो।


निगलना
क्रि. स.
(सं. निगरण)
लीलना, गटकना।


निगलना
क्रि. स.
(सं. निगरण)
खाना।


निगलना
क्रि. स.
(सं. निगरण)
दूसरे का धन मारकर पचा जाना।


निगाली
संज्ञा
स्त्री.
(देश.)
हुक्के की नली।


निगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
दृष्टि, नजर।


निगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
देखने की रीति या क्रिया, चितवन।


निगाह
संज्ञा
स्त्री.
(फ़ा.)
कृपादृष्टि।


निगूढ़ार्थ
वि.
(सं.)
जिसका अर्थ छिपा हो।


निगूहन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गोपन, छिपाव।


निगृहीत
वि.
(सं.)
जो पकड़ा या घेरा गया हो।


निगृहीत
वि.
(सं.)
जिस पर आक्रमण हुआ हो।


निगृहीत
वि.
(सं.)
पीड़ित, दुखी।


निगृहीत
वि.
(सं.)
दंडित।


निगोड़ा
वि.
(हिं. निर्गुण)
जिसके ऊपर कोई न हो।


निगोड़ा
वि.
(हिं. निर्गुण)
जिसके आगे-पीछे कोई न हो,


निगोड़ा
वि.
(हिं. निर्गुण)
दुष्ट, नीच। गाली (स्त्री.)
उ.— मूकू, निंद, निगोड़ा, भोंड़ा, कायर, काम बनावै—१-१८६।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रोक, रुकावट।


निग्रहना
क्रि. स.
(सं. निग्रहण)
दंड देना।


निग्रहना
क्रि. स.
(सं. निग्रहण)
सताना।


निग्रही
वि.
(सं. निग्रहिन्)
रोकने, दबाने या वश में रखनेवाला।


निग्रही
वि.
(सं. निग्रहिन्)
दंड देने या दमन करनेवाला।


निग्रहों, निग्रहौं
क्रि. स.
(हिं. निग्रहना)
पकड़ूँ, थाम लूँ, गहूँ।
उ.—कंस केस निग्रहों पुहुमि को भार उतारों—११३८।


निग्रह्यो, निग्रह्यौ
क्रि. स.
(हिं. निग्रहना)
पकड़ा, थामा, गहा।
उ.—तब न कंस निग्रह्यो पुहुमि को भार उतारथो—११३९।


निघंटु
संज्ञा
पं
(सं.)
वैदिक शब्द-कोश।


निघंटु
संज्ञा
पं
(सं.)
विषय-विशेष के शब्दों का संग्रह मात्र।


निघटत
क्रि. अ.
(हिं. निघटना)
घटता है।
उ.—भरे रहत अति, नीर न निघटत, जानत नहिं दिन-रैन—२७६८।


निघटति
क्रि. अ.
(हिं. निघटना)
घटती है।
उ.—सँदेसनि क्यों निघटति दिन-राति—३१८५।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दमन।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
चिकित्सा,


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीड़ा देने की क्रिया या भाव। बंधन।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बंधन।


निग्रह
संज्ञा
पुं.
(सं.)
डाँट-फटकार।


निग्रहण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रोकने-थामने का काम।


निग्रहण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दंड देने या सताने का काम।


निग्रहना
क्रि. स.
(सं. निग्रहण)
पकड़ना, थामना, गहना।


निग्रहना
क्रि. स.
(सं. निग्रहण)
रोकना।


निघटना
क्रि. अ.
(हिं. नि + घटना)
घटना, कम होना।


निघटी
क्रि. अ.
(हिं. निघटना)
घटी, समाप्त हुई, व्यतीत हुई।
उ.—(क) निसि निघटी रवि-रथ रुचि साजी। चंद मलिन चकई रति-राजी—१०-२३३। (ख) जागहु जागहु नंदकुमार। रवि बहु चढ्यौ रैनि सब निघटी, उचटे सकल किवार—४०८।


निघरघट
वि.
(हिं. नि + घर + घाट)
जो घर-घाट का न हो, जिसका ठौर-ठिकाना न हो।
मुहा.- निघरघट देना— पकड़े और लज्जित किये जाने पर झूठी बातें बनाना।


निघरघट
वि.
(हिं. नि + घर + घाट)
निर्लज्ज।


निघरा
वि.
(हिं. नि + घर)
जिसके घर-बार या ठौर-ठिकाना न हो।


निघरा
वि.
(हिं. नि + घर)
नीच, दुष्ट, निगोड़ा।


निघर्षण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
घिसना, रगड़ना।


निघात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रहार।


निघात
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अनुदात्त स्वर।


निघाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
लौहदंड।


दरमियान
क्रि. वि.
(फ़ा.)
मध्य में, बीच में।


दरमियानी
वि.
(फ़ा.)
बीच का, मध्य का।


दरमियानी
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
बीच में पड़नेवाला, मध्यस्थ।


दररना
क्रि. स.
(हिं. दरना)
पीसना।


दररना
क्रि. स.
(हिं. दरना)
नष्ट करना।


दररना
क्रि. स.
(हिं. दरेरना)
रगड़ना।


दररना
क्रि. स.
(हिं. दरेरना)
ठेलते या रगड़ते हुए धकियाना।


दरवाजा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
द्वार।


दरवाजा
संज्ञा
पुं.
(फ़ा.)
किवाड़।


दरवान, दरवाना
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरबान)
द्वारपाल ड्योढ़ीदार।
उ.—पौरि-पाट टूटि परे, भागे दर-वाना—९-१६९।


निघाति
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
निहाई।


निघ्न
वि.
(सं.)
वशीभूत।


निघ्न
वि.
(सं.)
आश्रित।


निचय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
समूह।


निचय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निश्चय, दृढ़ विचार।


निचय
संज्ञा
पुं.
(सं.)
संचय, संग्रह।


निचल
वि.
(सं. निश्चल)
अचल, निश्चल।


निचला
वि.
[हिं. नीचा + ला (प्रत्य.)]
नीचे का।


निचला
वि.
(सं. निश्चल)
अचल।


निचला
वि.
(सं. निश्चल)
स्थिर।


निचाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीच + आई (प्रत्य.)]
नीचा होने का भाव, नीचापन।


निचाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीच + आई (प्रत्य.)]
नीचे का विस्तार।


निचाई
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीच + आई (प्रत्य.)]
नीच होने का भाव, नीचता, ओछापन।


निचान
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीचा]
नीचे की ओर दूरी या विस्तार।


निचान
संज्ञा
स्त्री.
[हिं. नीचा]
ढाल, ढलान।


निचिंत
वि.
(सं. निश्चंत)
चिंतारहित।


निचित
वि.
(सं.)
संचित।


निचित
वि.
(सं.)
निर्मित।


निचुड़ना
क्रि. अ.
(सं. नि + न्यवन=चूना)
भीनी या रसीली चीज का इस प्रकार दबना कि पानी या रस छटकर या टपककर निकल जाय।


निचुड़ना
क्रि. अ.
(सं. नि + न्यवन=चूना)
रस या सार-रहित होना।


निचुड़ना
क्रि. अ.
(सं. नि + न्यवन=चूना)
(शरीर का ) तेज या शक्ति से रहित होना।


निचै
संज्ञा
पुं.
(सं. निचय)
समूह।


निचै
संज्ञा
पुं.
(सं. निचय)
निश्चय, दृढ़ विचार।


निचै
संज्ञा
पुं.
(सं. निचय)
संचय।


निचोई
वि.
[हिं. निचोना, निचोड़ना]
जिसमें रस आदि निचोड़ा गया हो।
उ.—चौराई लाल्हा अरु पोई। मध्य मेलि निबुआनि निचोई—३९६।


निचोड़, निचोर
संज्ञा
पुं.
[हिं. निचोड़ना]
(जल, रस आदि) वस्तु जो निचोड़ने से निकले।


निचोड़, निचोर
संज्ञा
पुं.
[हिं. निचोड़ना]
सार, सत।


निचोड़, निचोर
संज्ञा
पुं.
[हिं. निचोड़ना]
कथन का तात्पर्य या सारांश।


निचोड़ना, निचोना, निचोरना
क्रि. स.
[हिं. निचुड़ना]
भीगी या रसीली चीज को दबाकर पानी या रस टपकाना।


निचोड़ना, निचोना, निचोरना
क्रि. स.
[हिं. निचुड़ना]
किसी वस्तु का सार ले लेना।


निचोलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कवच।


निचोवना
क्रि. स.
[हिं. निचोना]
निचोड़ना।


निचौहाँ
वि.
[हिं. नीचा + औहाँ (प्रत्य.)]
नीचे को झुका हुआ, नमित।


निचौहीं
वि.
स्त्री.
[हिं. निचौहाँ]
नीचे की ओर झुकी हुई।
उ.—साखिनि मध्य करि दीठि निचौहीं राधा सकुच भरी।


निचौहै
क्रि. वि.
[हिं. निचौहाँ]
नीच की ओर।


निछत्र
वि.
(सं. निः + छत्र)
जो छत्रहीन हो।


निछत्र
वि.
(सं. निः + छत्र)
बिना राज्य या राज्यचिह्न का।


निछत्र
वि.
(सं. निः + क्षत्र)
क्षत्रियों से हीन, क्षत्रियरहित।
उ.—मारयौ मुनि बिनहीं अपराधहिं, कामधेनु लै आऊ। इकइस बार निछत्र करी छिति, तहाँ न देखे हाऊ—१०-२२१।


निछनियाँ
क्रि. वि.
[हिं. निछान (नि=नहीं+ छान=जो छानने से निकले)]
एकदम, पूर्ण रूप से, बिलकुल।
उ.—जसुमति दौरि लिए हरि कनियाँ। आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, हौं बलि जाउँ निछनियाँ—४१८।


निछल
वि.
(सं. निश्छल)
छल-कपटरहित।


निचोड़ना, निचोना, निचोरना
क्रि. स.
[हिं. निचुड़ना]
सर्वस्व हर लेना।


निचोयो
क्रि. स.
[हिं. निचोना]
निचोड़ने से।
उ.—सूरदास क्यों नीर चुवत है नीरस बसन निचोयो—३४८२।


निचोरौं
क्रि. स.
[हिं. निचोड़ना]
निचोड़ लूँ, रस-पदार्थ निकाल लूँ।
उ.—कहौ तौ चंद्रहिं लै अकास तैं, लछिमन मुखहिं निचोरौं—९-१४८।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ढीला-ढाला कुरता, अंगा।
उ.—(क) सिर चौतनी, डिठौना दीन्हौ, आँखि आँजि पहिराइ निचोल—१०-९४। (ख) ओढ़े पीरी पावरी हो पहिरे लाल निचोल—८९३।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ढकने का पकड़ा।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
स्त्री की ओढ़नी।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लहँगा, घाघरा।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अधोवस्त्र।


निचोल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वस्त्र।


निचोलक
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अंगा।


निझरना
क्रि. अ.
[हिं. नि + झरना]
टूटकर गिरना।


निझरना
क्रि. अ.
[हिं. नि + झरना]
सार-वस्तु से रहित हो जाना।


निझरना
क्रि. अ.
[हिं. नि + झरना]
अपने को दोष से बचा जाना।


निझरि
क्रि. अ.
[हिं. निझरना]
निचुड़ गये, (बरस-बरस कर) खाली हो गये।
उ.—भुव पर एक बूँद नहिं पहुँची निझरि गए सब मेह—९७१।


निझरि
क्रि. अ.
[हिं. निझरना]
अपने को निर्दोष प्रमाणित करके।
उ.—सदा चतुराई फबती नाहीं अति ही निझरि रही हो—१५२७।


निझाना
क्रि. अ.
(देश.)
आड़ से छिपकर देखना।


निझोटना
क्रि. स.
(देश.)
खींच या झपटकर छीनना।


निटर
वि.
(देश.)
जो (खेत) उपजाऊ न रहा हो, जिसकी उर्वरा शक्ति चुक गयी हो।


निटोल
संज्ञा
पुं.
[हिं. नि + टोला]
टोला, मोहल्ला।
उ.—किंकिरिनि की लाज धरि ब्रज सुबस करो निटोल—३४७५।


निठल्ला
वि.
[हिं. नि + टहल]
जिसके पास काम-धंधा न हो।


निज
वि.
(सं.)
मुख्य, प्रधान।
उ.—परम चतुर निज दास स्याम के संतत निकट रहत हौ।


निज
वि.
(सं.)
ठीक, सही, वास्तविक।


निज
अव्य
ठीक ठीक।


निज
अव्य
विशेष रूप से।


निजकाना
क्रि. अ.
(फ़ा, नजदीक)
समीप आना।


निजी
वि.
[हिं. निज]
निज का, खास अपना।


निजु
अव्य
[सं. निज]
निश्चय, ठीक-ठीक, सही-सही।


निजु
अव्य
[सं. निज]
विशेष करके, मुख्यतः, खास करके।
उ.—(क) पतित पावन जानि सरन आयौ। उदधि-संसार सुभ नाम-नौका तरन, अटल अस्थान निजु निगम गायौ—१-११९। (ख) उ.—बान बरषा सुरसरी-सुवन रनभूमि आए।¨¨¨¨¨¨। कह्यौ करि कोप प्रभु अब प्रतिज्ञा तजौ, नहीं तौ जुद्ध निजु हम हराए—१-२७१।


निजू
वि.
[हिं. निज]
निज का, निजी।


निजोर
वि.
[हिं. नि + फ़ा. जोर]
निर्बल।


निछला
वि.
[हिं. निछल]
एकमात्र, केवल।


निछान
क्रि. वि.
[हिं. नि + छान]
एकदम, बिलकुल।


निछान
वि.
विशुद्ध, खालिस।


निछान
वि.
एकमात्र, केवल।
मुहा.- निछावर करना— छोड़ देना, त्यागना।

निछावर होना— (१) त्याग दिया जाना। (२) प्राण त्यागना, मर जाना।

निछावर, निछावरि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. न्यास + अवर्त्त=न्यासावर्त्त, हिं. निछावर)
वाराफेरा, उतारा।
उ.—अब कहा करौं निछावरि, सूरज सोचति अपनैं लालन जू पर—१०-९२।


निछावर, निछावरि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. न्यास + अवर्त्त=न्यासावर्त्त, हिं. निछावर)
वह धन या वस्तु जो उतारा या वाराफेरा करके दी जाय।


निछावर, निछावरि
संज्ञा
स्त्री.
(सं. न्यास + अवर्त्त=न्यासावर्त्त, हिं. निछावर)
इनाम, नेग।


निछोह, निछोही
वि.
[हिं. नि + छोह]
जिसे प्रेम न हो, प्रेम-रहित।


निछोह, निछोही
वि.
[हिं. नि + छोह]
निष्ठुर, निर्दय।


निज
वि.
(सं.)
अपना, स्वकीय।
उ.— बासुदेव की बड़ी बड़ाई। जगत-पिता, जगदीस, जगतगुरु, निज भक्तनि की सहत ढिठाई—१-३।


निठल्ला
वि.
[हिं. नि + टहल]
बेरोजगार।


निठल्ला
वि.
[हिं. नि + टहल]
निकम्मा।


निठल्लू
वि.
(हिं. निठल्ला)
निकम्मा।


निठुर
वि.
(सं. निष्ठुर)
निर्दय, कठोर।
उ.—(क) बड़ौ निठुर बिधना यह देख्यौ—६४३। (ख) तनक हँस मन दै जुवतिनि को निठुर ठगोरी लाइ—२५३३।


निठुरई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निठुरता)
निर्दयता।


निठुरता
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निष्ठुरता)
निर्दयता।


निठुराई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निठुर)
निठुरता, क्रूरता, निर्दयता।
उ.—(क) हठ करि रहे, चरन नहिं छाँड़े, नाथ तजौ निठुराई—९-५३। (ख) अब अपने घर के लरिका सौं इती करति निठुराई—३६३। (ग) ऐसे में न सूध्यौ करै अति निठुराई धरै उनैं उनै घटा देखो पावस की आई है—२८२७।


निठराउ, निठराऊ, निठराव
संज्ञा
पुं.
(हिं. निठराव)
निठुरता, क्रूरता, निर्दयता।
उ.—सोऊ तौ बूझे ते बोलत इनमें इह निठराउ— पृ. ३३२ (१९)।


निठोर, निठौर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नि + ठौर)
बुरा स्थान, कुठौर।
मुहा.- निठौर पड़ा— बुरी दशा या स्थिति में पड़ना। परी निठोर— बुरी दशा या स्थिति में पड़ गयी। उ.— बहुरि बन बोलन लागे मोर।¨¨¨¨¨¨। जिनको पिय परदेस सिधारो सो तिय परी निठोर— २१३७।


निठोर, निठौर
संज्ञा
पुं.
(हिं. नि + ठौर)
बुरा दाँव, बुरी दशा।


निडर
वि.
(हिं. उप. नि + डर)
जिसे डर न हो, निशंक, निर्भय।


निडर
वि.
(हिं. उप. नि + डर)
साहसी।


निडर
वि.
(हिं. उप. नि + डर)
धृष्ट, ढीठ।
उ.—तुम प्रताप-बल बदत का काहूँ, निडर भए घर-चेरे—१-१७०।


निडरता
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निडर)
निर्भयता, निर्भीकता।


निडरपन, निडरपना
संज्ञा
पुं.
[हिं. निडर + पन (प्रत्य.)]
निडर होने का भाव, निर्भयता।


निढाल
वि.
(हिं. नि + ढाल=गिरा हुआ)
थकामाँदा, शिथिल, पस्त।


निढाल
वि.
(हिं. नि + ढाल=गिरा हुआ)
उत्साहहीन।


निढिल
वि.
(हिं. नि + ढीला)
जो ढीला न हो, कसा या तना हुआ।


निढिल
वि.
(हिं. नि + ढीला)
कड़ा।


नितंब
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कमर का पिछला उभरा हुआ भाग।


दरसनी हुंडी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर्शन)
वह हुंडी जिस का भुगतान दस दिन के भीतर ही हो जाय।


दरसनी हुंडी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर्शन)
वह वस्तु जिसे दिखाते ही काम की जीच मिल जाय।


दरसनी हुंडी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर्शन)
दर्पण, आरसी।


दरस-परस
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्श +स्पर्श)
देखा-देखी, संग साथ, भेंट-समागम।
उ.—दीन बचन, संतनि-सँग दरस-परस कीजै—१-७२।


दरसाना, दरसावना
क्रि. स.
(सं. दर्शन)
दिख-लाना।


दरसाना, दरसावना
क्रि. स.
(सं. दर्शन)
प्रकट करना, समझाना।


दरसाना, दरसावना
क्रि. अ.
(सं. दर्शन)
दिखायी पड़ना, देखने में आना।


दरसायौ
क्रि. अ.
भूत.
(हिं. दरसाना)
दिखायी दिया, दृष्टिगोचर हुआ।
उ.—ढूँढ़त ढूँढ़त बहु स्रम पायौ। पै मृगछौना नहिं दरसायौ—५-३।


दरसावै
क्रि. अ.
(हिं. दरसाना)
प्रकट होना, स्पष्ट होना, समझ पड़ना।
उ.—तब आतम घट घट दरसावै। मगन होइ, तन-सुधि बिसरावै—३-१३।


दरसाहिं
क्रि. अ.
(हिं. दरसाना)
दिखायी पड़ता है, दृष्टिगोचर होता है।
उ.—पै उनकौं कोउ देखै नाहिं। उनकौ सकल लोक दरसाहिं—९-२।


नितंब
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कंधा।


नितंब
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तट, तीर।


नितंबिनि, नितंबिनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. नितंब)
सुंदर स्त्री।
उ.—निरखति बैठि नितंबिनि पिय सँग सार-सुता की ओर—१६१८।


नित
अव्य
(सं. नित्य)
प्रति दिन।


नित
अव्य
(सं. नित्य)
सदा।


नितल
संज्ञा
पुं.
(सं.)
सात पातालों में एक।


नितांत
वि.
(बंगाली)
बहुत-अधिक।


नितांत
वि.
(बंगाली)
निपट।


निति,नित्त
अव्य
(सं. नित्य)
प्रति दिन, नित्य।
उ.—मुख कटु बचन, नित्त पर-निंदा, संगति-सुजस न लेत—२-१५।


नित्य
वि.
(सं.)
जो सदा बना रहे, अविनाशी।


नित्यशः
अव्य
(सं.)
प्रति दिन।


नित्यशः
अव्य
(सं.)
सदा।


निथंभ
संज्ञा
पुं.
[हिं. नि + सं. स्तंभ]
खंभा, स्तंभ।


निथरना
क्रि. अ.
(हिं. नि + थिरना)
थिरकर साफ होना।


निथार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निथरना)
घुली चीज जो तल पर बैठ जाय।


निथार
संज्ञा
पुं.
(हिं. निथरना)
घुली चीज के तल पर बैठ जाने से साफ हो जानेवाला जल।


निथारना
क्रि. स.
(हिं. निथरना)
थिराकर साफ करना।


निदई
वि.
(सं. निर्दय)
कठोर, क्रूर।


निदरना
क्रि. स.
(सं. निरादर)
अपमान करना।


निदरना
क्रि. स.
(सं. निरादर)
त्याग करना।


निदरना
क्रि. स.
(सं. निरादर)
तुच्छ ठहराना, बढ़ जाना।


निदरि
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
निरादर करके, अपमान करके।


निदरि
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
मात करके, पराजित करके, तुच्छ ठहराकर।
उ.—चरन की छबि देखि डरप्यौ अरुन गगन छपाइ। जानु करमा की सबै छबि निदरि लई छँड़ाइ—१०-२३४।


निदरि
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
तिरस्कार करके, त्यागकर।
उ.—(क) निदरि चले गोपाल आगे बकासुर कै पास—४२७। (ख) निदरि हमैं अधरनि रस पीवति पढ़ी दूतिका भाइ—६५६।


निदरिहौं
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
निरादर करूँगा।
उ.—लोग कुटुंब जग के जे कहियत पेला सबै निदरिहौं—१५१८।


निदरी
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
तिरस्कार किया, उपेक्षा की, चिंता नहीं की।
उ.—सूर स्याम मिलि लोक-बेद की मर्यादा निदरी—पृ. ३३६ (५०)।


निदरे
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
निरादर या तिरस्कार किया।
उ.—ऐसे ढीठ भए तुम डोलत निदरे ब्रज की नारि—१५०७।


निदरौगे
क्रि. स.
(हिं. निदरना)
निरादर करोगे।
उ.—सूर स्याम मोहू निदरौगे देत प्रेम की गारि—१५०७।


निदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दिखाने या प्रर्दिशत करने का कार्य।


निदर्शन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
उदाहरण।


नित्य
वि.
(सं.)
प्रति दिन का, रोज का।


नित्य
अय.
प्रतिदिन।


नित्य
अय.
सदा, सर्वदा।


नित्यकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रति दिन का काम।


नित्यकर्म
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रति दिन किया जानेवाला धर्म-कर्म।


नित्यता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
अनश्वरता।


नित्पदा
अव्य
(सं.)
सदा, सर्वदा।


नित्यप्रति
अव्य
(सं.)
प्रति दिन, हर रोज।


नित्ययौवना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
द्रौपदी।


नित्ययौवना
वि.
जिसका यौवन सदा बना रहे।


निद्रित
वि.
(सं.)
सोया हुआ, सुप्त।


निधड़क
क्रि. वि.
(हिं. नि + धड़क)
बेरोक-टोक।


निधड़क
क्रि. वि.
(हिं. नि + धड़क)
बिना संकोच या भय के।


निधन
वि.
(हिं. नि + धन)
निर्धन, धनहीन, दरिद्र।
उ.— परम उदार, चतुर चिंतामनि, कोटि कुबेर निधन कौं—१-९।


निधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश।


निधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मरण।


निधनपति
संज्ञा
पुं.
(सं.)
प्रलयकर्त्ता, शिवजी।


निधनियाँ
वि.
स्त्री.
(सं. निर्धन)
निर्धन स्त्री, गरीब, कंगाल।
उ.— आरि जनि करौ, बलि-बलि जाउँ हौं निधनियाँ—१०-१४५।


निधनी
वि.
स्त्री.
(सं. निर्धन)
धनहीन, गरीब, दरिद्र, कंगाल।
उ.— (क) जननी देखि छबि, बलि जाति। जैसैं निधनी धनहिं पाऐं, हरष दिन अरू राति—१०-७१। (ख) मो निधनी कौ धन रहै, किलकत मनमोहन—१०-७२।


निधरक
क्रि. वि.
(हिं. निधड़क)
बेरोक, बिना रूकावट।


निदर्शना
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
एक अर्थालंकार।


निदहना
क्रि. स.
(सं. निदहन)
जलाना।


निराघ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ताप।


निराघ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
धूप, घाम।


निराघ
संज्ञा
पुं.
(सं.)
ग्रीष्मकाल।


निदान
अव्य
(सं.)
अंत में, आखिर।
उ.-बहुरौ नृप करिकै मध्यान | दीनौ ताकौ छाँडि निदान-९-१३|


निदान
वि.
बहुत ही गया-बीता, निकृष्ट।


निदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कारण।


निदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
आदि कारण।


निदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
रोग का लक्षण।


निदान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
अंत।


निदेश, निदेस
संज्ञा
पुं.
(सं. निदेश)
शासन।


निदेश, निदेस
संज्ञा
पुं.
(सं. निदेश)
आज्ञा।


निदेश, निदेस
संज्ञा
पुं.
(सं. निदेश)
कथन।


निदेशी
वि.
(हिं. निदेश)
आज्ञा देनेवाला।


निदोष
वि.
(सं. निर्देष)
दोषरहित।


निद्र
संज्ञा
पुं.
(सं.)
एक अस्त्र।


निद्रा
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नींद।


निद्रायमान
वि.
(सं.)
सोता हुआ।


निद्रालु
वि.
(सं.)
सोनेवाला।


निनान
वि.
बुरा।


निनान
वि.
बिलकुल, एकदम।


निनाना
क्रि. स.
(सं. नवाना)
झुकाना, नवाना।


निनार, निनारा
वि.
(सं. निः + निकट, प्रा. निनिअड़, हिं. निनर)
भिन्न, न्यारा।


निनार, निनारा
वि.
(सं. निः + निकट, प्रा. निनिअड़, हिं. निनर)
हटा हुआ।


निनार, निनारा
वि.
(सं. निः + निकट, प्रा. निनिअड़, हिं. निनर)
अनोखा।


निनारी
वि.
स्त्री.
(हिं. निनारा)
अनोखी, विलक्षण।
उ.— साझे भाग नहीं काहू को हरि की कृपा निनारी—२९३५।


निनारी
वि.
स्त्री.
(हिं. निनारा)
विशेष, विशिष्ट।
उ.— जैसी मोपै स्याम करत हैं तैसी तुम करहु कृपा निनारी—१० उ. ४२।


निनारे
वि.
(हिं. निनारा)
अलग रहकर, दूर रहकर।
उ.— बै जलहर हम मीन बापुरी कैसें जिवहिं निनारे—१० उ. ८३।


निनावँ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नि =बुरा + नाँव=नाम)
वह वस्तु जिसका नाम लेना अशुभ समझा जाय।


निधिनाथ, निधिप, निधिपति, निधिपाल, निधीश्वर
संज्ञा
पुं.
(सं.)
निधियों के नाथ, कुबेर।


निनय
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नम्रता।


निनरा, निनरे
वि.
(सं. नि + निकट, प्रा. निनिअड़)
न्यारा, अलग।
उ.— मानहु बिबर गए चलि कारे तजि केंचुल भए निनरे री।


निनाद
संज्ञा
पुं.
(सं.)
शब्द, आवाज।


निनादना
क्रि. अ.
(सं. निनाद)
शब्द करना।


निनादित
वि.
(सं.)
ध्वनित, शब्दित।


निनादी
वि.
(सं. निनादिन्)
शब्द करनेवाला।


निनान
संज्ञा
पुं.
(सं. निदान)
अंत।


निनान
संज्ञा
पुं.
(सं. निदान)
लक्षण।


निनान
क्रि. वि.
अंत में, आखिर।


निधरक
क्रि. वि.
(हिं. निधड़क)
बिना संकोच के, बिना आगा-पीछा सोंचे।


निधरक
क्रि. वि.
(हिं. निधड़क)
निश्चिंत, निशंक।
उ.— (क) निधरक रहौ सूर के स्वामी, जनि मन जानौ फेरि। मन-ममता रूचि सौं रखवारी, पहिलैं लेहु निबेरि—१-५१। (ख) निधरक भए पांडु-सुत डोलत, हुतौ नहीं डर काकौ—१-११३। (ग) अबहिं निवछरौ समय, सुचित ह्वै, हम तौ निधरक कीजै —१-१९१।


निधरके
क्रि. वि.
(हिं. निधड़क)
निशंक, निश्चिंत।
उ.— बै जानत हम सरि को त्रिभुवन ऐसे रहत निधरके री— पृ. ३२२ (११)।


निधान, निधानी
संज्ञा
पुं.
(सं. निधान)
आधार।


निधान, निधानी
संज्ञा
पुं.
(सं. निधान)
निधि।
उ.— सखा हंसत मन ही मन कहि कहि ऐसे गुननि निधानी—१५५८।


निधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
धन, संपत्ति।


निधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
कुबेर की नौ निधियाँ— पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और वर्च्च।


निधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
आधार, घर।


निधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
विष्णु, परमात्मा।
उ.— जाइ समाइ सूर वा निधि मैं, बहुरि जगत नहिं नाचै—१-८१।


निधि
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
नौ की संख्या।


दरवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर्वी)
साँप का फन।


दरवी
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर्वी)
सँड़सी।


दरवेश, दरवेस
संज्ञा
पुं.
(फ़ा. दरवेश)
फकीर।


दरश, दरस
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्श)
दर्शन।
उ.—करुनासिंधु, दयाल, दरस दै सब संताप हरूयै—१-१७।


दरश, दरस
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्श)
भेंट, मुलाकात।


दरश, दरस
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्श)
रूप, सुंदरता।


दरशन, दरसन
संज्ञा
पुं.
(सं. दर्शन)
देखादेखी, अवलोकन, झलक।
उ.—एकनि कौं दरसन ठगै, एकनि के सँग सोवै (हो)—१-४४।


दरशाना, दरसाना
क्रि. अ.
(सं. दर्शन)
देखने में आना।


दरशाना, दरसाना
क्रि. अ.
(सं. दर्शन)
देखना, लखना, अवलोकना।


दरसनीय
वि.
(सं. दर्शनीय)
देखने के योग्य,।


निपटाना
क्रि. स.
(हिं. निपटना)
तय करना।


निपतन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गिरना, अधःपतन।


निपतित
वि.
(सं.)
गिरा हुआ, पतित।


निपाँगुर
वि.
(हिं. नि + पंगु)
अपाहिज, पंगु।


निपान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
नाश, विनाश।
उ.— और नैंकु छबै देखें स्यामहिं, ताकौं करौं निपात—३७५।


निपान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मृत्यु, क्षय।
उ.— कंस निपात करौगे तुमहीं हम जानी यह बात सही परि—४२९।


निपान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पतन, गिराव।


निपान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह शब्द जो सामान्य व्याकरणिक नियमों के अनुसार न हो।


निपातन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गिराने, नाश करने या मार डालने का काम।


निपातना
क्रि. स.
(हिं. निपातन)
गिराना।


निनावँ
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नि =बुरा + नाँव=नाम)
चुड़ैल, भुतनी।


निनौरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. नानी + औरा)
ननिहाल।


निन्यानबे
वि.
(सं. नवनवति, प्रा. नवनवइ)
सौ से एक कम।
उ.— बहुरि नृप जज्ञ निन्यांनबे करि, सतम जज्ञ कौं जबहिं आरंभ कीन्हौ—४-११।
मुहा.- निन्यानबे के फेर में पड़ना— धन बढ़ाने की चिंता या उपाय में लगे रहना।


निन्हियाना
क्रि. अ.
(अनु. नी नी )
दीनता दिखाना।


निपंक, निपंग
वि.
(सं. नि + पंगु)
अपाहिज, पंगु।


निपजना
क्रि. अ.
(सं. निष्पद्यते, प्रा. निपज्जइ)
उगना, उत्पन्न होना।


निपजना
क्रि. अ.
(सं. निष्पद्यते, प्रा. निपज्जइ)
पकना, बढ़ना, पुष्ट होना।


निपजना
क्रि. अ.
(सं. निष्पद्यते, प्रा. निपज्जइ)
बनना, तैयार होना।


निपजी
क्रि. अ.
(हिं. निपजना)
बढ़ी, पुष्ट हुई, परिपक्व हुई।
उ.— भली बुद्धि तेरैं जिय उपजी। ज्यौं ज्यौं दिनी भई त्यौं निपजी—१०-३९१।


निपजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निपजना)
लाभ।


निपजी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निपजना)
उपज।


निपत्र
वि.
(सं. निष्पत्र)
जिसमें पत्ते न हों, ठूँठ।


निपट
अव्य
(हिं. नि + पट)
निरा, विशुद्ध, केवल, एकमात्र।


निपट
अव्य
(हिं. नि + पट)
सरासर, नितांत, बहुत अधिक, पूर्ण, बिलकुल।
उ.— (क) सूरदास जो चरन-सरन रह्यो, सो जन निपट नींद भरि सोयौ—१-५४। (ख) करि हरिसौं सनेह मन साँचौ। निपट कपट की छाँड़ि अटपटी, इंद्रिय बस राखहि किन पाँचौ—१-८३। (ग) नैनन निपट कठिन ब्रत ठानी—३०३७।


निपटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन)
छुट्टी पाना।


निपटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन)
समाप्त होना।


निपटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन)
खत्म होना।


निपटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन)
शौचादि से छुट्टी पाना।


निपटाना
क्रि. स.
(हिं. निपटना)
समाप्त करना।


निपटाना
क्रि. स.
(हिं. निपटना)
चुकाना।


निपातना
क्रि. स.
(हिं. निपातन)
नष्ट करना।


निपातना
क्रि. स.
(हिं. निपातन)
वध करना।


निपातहु
क्रि. स.
(हिं. निपातना)
वध करो।
उ.— सूर-दास प्रभु कंस निपातहु—२५५८।


निपाता
संज्ञा
पुं.
(सं. निपात)
वध, नाश।
उ.—जैसौ दुख हमको एहि दीन्हो तैसे याको होत निपाता—१४२७।


निपाती
वि.
(सं. निपातिन्)
गिराने या चलानेवाला।


निपाती
वि.
(सं. निपातिन्)
मारने या घात करनेवाला।


निपाती
संज्ञा
पुं.
शिव, महादेव।


निपाती
वि.
(हिं. नि + पाती)
बिना पत्ती का, ठूँठ।


निपाती
क्रि. स.
(हिं. निपातना)
मारा, वध किया, मार गिराया।
उ.—(क) पय पीवत पूतना निपाती, तृनावर्त इहिं भाँत—५०८। (ख) कपटरूप की त्रिया निपाती, तबहिं रह्यौ अति छौना—६०१। (ग) केसी अघ पूतना निपाती लीला गुननि अगाध—२५८०। (घ) सूपनखा ताड़का निपाती सूरदास यह बानि—३२३८।


निपात्यो
क्रि. स.
(हिं. निपातना)
मारा, वध किया।
उ.—वत्सासुर को इहाँ निपात्यो—३४०९।


निपीड़ित
वि.
(सं.)
दलित, दलामला।


निपीड़ित
वि.
(सं.)
पेरा या निचोड़ा हुआ।


निपुण
वि.
(सं.)
दक्ष, कुशल, चतुर।


निपुणता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
दक्षता, कुशलता।


निपुणाई
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. निपुण + आई)
दक्षता।


निपुत्री
वि.
(हिं. नि + पुत्री)
संतानरहित।


निपुन
वि.
(सं. निपुण)
चतुर, कुशल।


निपुनइ, निपुनई, निपुनता, निपुनाई
संज्ञा
स्त्री.
(सं. निपुण)
निपुणता, दक्षता।


निपूत, निपूता
वि.
(सं. निष्पुत्र)
पुत्रहीन।


निपूती
वि.
स्त्री.
(हिं. निपूता)
स्त्री जिसके पुत्र न हो, पुत्रहीना स्त्री।
मुहा.- खीस(दाँत) निपोरना— (१) व्यर्थ हैसना। (२) निर्लज्जता से हैसना।


निपान
संज्ञा
पुं.
(सं.)
तालाब।


निपीड़क
वि.
(सं.)
पीड़ा देनेवाला।


निपीड़क
वि.
(सं.)
मलने-दलनेवाला।


निपीड़क
वि.
(सं.)
पेरने-निचोड़नेवाला।


निपीड़न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पीड़ा देना।


निपीड़न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
मलना-दलना।


निपीड़न
संज्ञा
पुं.
(सं.)
पेरना-निचोड़ना।


निपीड़ना
क्रि. स.
(सं. निपीड़न)
मलना-दलना, दबाना।


निपीड़ना
क्रि. स.
(सं. निपीड़न)
पीड़ा या कष्ट देना।


निपीड़ित
वि.
(सं.)
पीड़ित।


निपोड़ना, निपोरना
क्रि. स.
[सं. निष्पुट, प्रा. निष्पुड + ना (प्रत्य.)]
खोलना, उघारना।


निफन
वि.
(सं. निष्पन्न, पा. निष्फन्न)
पूरा, संपूर्ण।


निफन
क्रि. वि.
अच्छी तरह, पूर्ण रूप से।


निफरना
क्रि. अ.
(हिं. निफारना)
छिदकर, चुभकर या धँसकर आरपार होना।


निफरना
क्रि. अ.
(सं. नि + स्फुट)
प्रकट या स्पष्ट होना।


निफल
वि.
(सं. निष्फल, प्रा. निप्फल)
व्यर्थ, निरर्थक।
उ.—राख्यौ सुफल सँवारि, सान दै, कैसैं निफल करौं वा बानहिं—९-९५।


निफाक
संज्ञा
पुं.
(अ. निफ़ाक)
विरोध, द्रोह।


निफाक
संज्ञा
पुं.
(अ. निफ़ाक)
बिगाड़, अनबन।


निफारना
क्रि. स.
(हिं. नि + फाड़ना)
बेध या छेदकर आरपार करना।


निफारना
क्रि. स.
(सं. नि + स्फुट)
प्रकट या स्पष्ट करना।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गाँठ।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वीणा या सितार की खूँटी।


निबंधनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बंधन।


निबंधनी
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
बेड़ी।


निबंकौरी
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. नीम, नीम + कौड़ी)
नीम का फल या बीज, निबौली, निबौरी।


निबटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन, प्रा. निवट्टना)
छुट्टी पाना, निवृत्त होना।


निबटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन, प्रा. निवट्टना)
पूरा या समाप्त होना।


निबटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन, प्रा. निवट्टना)
तै या निर्णय होना।


निबटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन, प्रा. निवट्टना)
चुकना, अदा होना।


निबटना
क्रि. अ.
(सं. निवर्त्तन, प्रा. निवट्टना)
शौच से निवृत्त होना।


निफालन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दृष्टि।


निफोर
वि.
(सं. नि + स्फुट)
साफ, प्रकट, स्पष्ट।


निबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बंधन।


निबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
लेख, प्रबंध।


निबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
गीत।


निबंध
संज्ञा
पुं.
(सं.)
वह वस्तु जिसे देने को वचनबद्ध हो।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
बंधन।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कर्त्तव्य।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
कारण।


निबंधन
संज्ञा
पुं.
(सं.)
व्यवस्था, नियम।


निबद्ध
वि.
(सं.)
गुथा हुआ।


निबद्ध
वि.
(सं.)
जड़ा हुआ।


निबद्ध
संज्ञा
पुं.
गीत जिसमें गति समय, ताल, गमक आदि का पूरा ध्यान रखा जाय।


निबर
वि.
(सं. निर्बल)
बल या शक्तिहीन।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
बँधी-टँकी चीज का छूटकर अलग होना।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
मुक्ति या उद्धार पाना।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
छुट्टी या अवकाश पाना।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
(काम) पूरा या समाप्त होना।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
फैसला या निर्णय होना |


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
उलझन या अड़चन दूर होना।


दरसै
क्रि. अ.
(हिं. दरसना)
दिखायी दे, दीख पड़े, मालूम हो, जान पड़े।
उ.—भय-उदधि जमलोक दरसै, निपट ही अँधियार—३-८८।


दरसैहौं
क्रि. स.
(हिं. दरसाना)
दिखाऊँगी।
उ.—सूर कही राधा के आगे कैसे मुख दरसैहौं—१२६०।


दरस्यो
क्रि. स.
(हिं. दरसना)
देखा, दिखायी दिया।
उ.—नैन चकोर चंद्र दरस्यौ री—२४०७।


दराँती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दात्र)
हँसिया।


दराँती
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दात्र)
चक्की।


दराज
वि.
(फा.)
बड़ा।


दराज
वि.
(फा.)
लंबा।


दराज
क्रि. वि.
(फा.)
बहुत, अधिक, ज्यादा।


दराज
संज्ञा
स्त्री.
(हिं. दरार)
दरार, छेद, रंध्र, दरज।


दरार
संज्ञा
स्त्री.
(सं. दर)
लकड़ी के तख्ते के फट जाने से या दो तख्तों के जोड़ के पास रह जानेवाली खाली जगह, शिगाफ, दराज।


निबटाना
क्रि. स.
(हिं. निबटना)
छुट्टी दिलाना, निवृत्त कराना।


निबटाना
क्रि. स.
(हिं. निबटना)
पूरा या समाप्त करना।


निबटाना
क्रि. स.
(हिं. निबटना)
तै या निर्णय करना।


निबटाना
क्रि. स.
(हिं. निबटना)
खत्म करना।


निबटाना
क्रि. स.
(हिं. निबटना)
चुकाना, अदा करना।


निबटाव, निबटेरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. निबहना)
निबटने का भाव या क्रिया।


निबटाव, निबटेरा
संज्ञा
पुं.
(हिं. निबहना)
निर्णय, फैसला।


निबड़ना
क्रि. अ.
(हिं. निबटना)
समाप्त या खत्म होना।


निबद्ध
वि.
(सं.)
बंधा हुआ।


निबद्ध
वि.
(सं.)
रुका हुआ।


निबरना
क्रि. अ.
(सं. निवृत्त, प्रा. निबिड्ड)
दूर होना, रह न जाना।


निबरी
क्रि. अ.
(हिं. निबरना)
(काम) पूरा हो जायगा, निवृत्ति मिल जायगी।
उ.—सूरदास बिसती कह बिनवै, दोषनि देह भरी। अपनौ बिरद सम्हारहुगे तौ यामैं सब निबरी—१-१३०।


निबरी
क्रि. अ.
(हिं. निबरना)
खत्म हो जाना, रह न जाना।
उ.—अब नीकै कै समुझि परी। जिन लगि हती बहुत उर आसा सोऊ बात निबरी।


निबरी
क्रि. अ.
(हिं. निबरना)
मुक्त हो गयी।


निबेरैं
क्रि. अ.
(हिं. निबरना)
मिली-जुली वस्तुओं को अलग करने से।
उ.—नैना भए पराए चेरे।¨¨¨¨। त्यौं मिलि गए दूध पानी ज्यौं निबरत नहीं निबेरैं—२३९५।


निबेरैंगे
क्रि. अ.
(हिं. निबरना)
मुक्त होंगे, बचे रहेंगे, पार पायेगे।
उ.—कबलौं कहौ पूजि निबरैंगे बचिहैं बैर हमारे।


निबल
वि.
(सं. निर्बल)
बल या शक्तिहीन।


निबहत
क्रि. अ.
(हिं. निबहना)
निभ सकता है।
उ.—कैसे है निबहत अबलनि पै कठिन जोग को साजु—३२३५।


निबहन
संज्ञा
पुं.
(हिं. निबहना)
निभने की क्रिया या भाव।


निबहन
प्र.
निबहन पैहौं—छुटकारा मिल सकेगा, बचा जा सकेगा।
उ.—स्याम गए देखै जनि कोई। सखियनि सौं निबहन किमि पैहौं इन आगे राखौं रस गोई।


निबहन
प्र.
निबहन पैहौं—छुटकारा पा सकोगे, बच सकोगे।
उ.—मेरे हठ क्यों निबहन पैहौ। अब तौ रोकि सबनि कौ राख्यौ कैसे कै तुम जैहौ।


निबहना
क्रि. अ.
(हिं. निबाहना)
मुक्ति या पार पाना, बच निकलना।


निबहना
क्रि. अ.
(हिं. निबाहना)
निर्वाह, पालन या रक्षा होना।


निबहना
क्रि. अ.
(हिं. निबाहना)
(काम) पूरा होना या निभना।


निबहना
क्रि. अ.
(हिं. निबाहना)
(बात या वचन का ) पालन होना।


दरारना
क्रि. अ.
[हिं. दरार +ना (प्रत्य.)]
फटना, चिरना।


दरारा
संज्ञा
पुं.
(हिं. दरना)
धक्का, रगड़ा।


दरिंदा
संज्ञा
पुं.
(फ़.)
मांस-भक्षी पशु।


दरि
क्रि. स.
(सं. दरण, हिं. दरना)
ध्वस्त करके नाश करके।


दरि
क्रि. स.
(सं. दरण, हिं. दरना)
फाड़ कर, चीर कर।
उ.—भक्त-बछल बपु धरि नरकेहरि, दनुज दह्यौ, उर दरि सुरसाँई—१-६।


दरिद, दरिद्दर
संज्ञा
पुं.
(सं. दारिद्र)
निर्धनता, कंगाली।


दरिद, दरिद्दर, दरिद्र
वि.
(सं. दरिद्र)
निर्धन, गरीब।


दरिद, दरिद्दर, दरिद्र
संज्ञा
पुं.
(सं. दरिद्र)
निर्धन मनुष्य, कंगाल आदमी।


दरिद्रता
संज्ञा
स्त्री.
(सं.)
निर्धनता, गरीबी, कंगाली।


दरिद्रनारायण
संज्ञा
पुं.
(सं.)
दीन-दुखियों के रूप में मान्य ईश्वर।