विक्षनरी:ब्रजभाषा सूर-कोश खण्ड-३

ब्रजभाषा सूर-कोश तृतीय खण्ड

सम्पादन
गुणा
गुणन क्रिया, जरब।
संज्ञा
[सं. गुणन]


गुणाकर
गुणनिधान।
वि.
[सं. गुण+आकर]


गुणाढ्य
गुण-संपन्न, गुणवान।
वि.
[सं. गुण+आढ्य]


गुणातीत
गुणों के परे।
वि.
[सं. गुण+अतीत]


गुणातीत
परमेश्वर।
संज्ञा


गुणानुवाद
बड़ाई, प्रशंसा।
संज्ञा
[सं.]


गुणित
गुणा किया हुआ।
वि.
[सं.]


गुणी
गुणवाला, गुणवान।
वि.
[सं. गुणिन]


गुणी
निपुण या कुशल व्यक्ति।
संज्ञा


गुणी
जन्त्र मन्त्र या झाड़ फूँक करनेवाला।
संज्ञा


गुथति
गूँथती है।
वाके गुनगन गुथति माल कबहूँ उरते नहिं छोरी - १० उ, ११६।
क्रि. स.
[हिं. गूथना]


गुथति
गुथी हुई, बनायी हुई।
वि.


गुथना
बँधना, फँसना, नथना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
टाँका या गूँथा जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
बहुत मोटी और भद्दी सिलाई होना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
हाथापाई करना, भिड़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
बँधना, फँसना, नथना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
टाँका या गूँथा जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
बहुत मोटी और भद्दी सिलाई होना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुथना
हाथापाई करना, भिड़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सन, प्रा. गुत्थन]


गुणीन
गुणा किया गया।
वि.
[हिं. गुणा]


गुणीन
गिना गया, गिनती में आया।
वि.
[हिं. गुणा]


गुण्य
वह अंक जिसे गुणा करना हो।
संज्ञा
[सं.]


गुण्य
गुणवान व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गुत्ता
लगान पर खेत देने की रीति।
संज्ञा
[देश.]


गुत्ता
लगान, भूमिकर।
संज्ञा
[देश.]


गुत्थमगुत्था
उलझाव, फँसाव।
संज्ञा
[हिं. गुथना]


गुत्थमगुत्था
हाथापाई, भिड़ंत।
संज्ञा
[हिं. गुथना]


गुत्थी
गिरह, ग्रंथि।
संज्ञा
[हिं. गुथना]


गुत्थी
समस्या, उलझन।
संज्ञा
[हिं. गुथना]


गुनगुना
मामूली गरम।
वि.
[हिं. कुनकुना]


गुनगुनाना
गुनगुन शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुनगुनाना
नाक में बोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुनगुनाना
धीरे-धीरे गाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुनगौरि
पार्वती के समान सौभाग्यवती स्त्री।
संज्ञा
[सं. गुण + गौरी]


गुनगौरि
पतिव्रता नारी।
संज्ञा
[सं. गुण + गौरी]


गुनज्ञा
(गुणों के) पारखी।
सूर स्याम सबके सुखदायक लायक गुननि गुनज्ञ - पृ. ३४६ (४४)।
वि.
[सं. गुणज्ञ]


गुनति
गुन रही है, सोच विचार रही है।
मेरौ कह्यौ नाहिंन सुनति। तबहिं ते इकटक रही है, कहा धौ मन गुनति - ७१९।
क्रि. अ.
[हिं. गुनना]


गुनन
मनन, विचार।
संज्ञा
[हिं. गुनना]


गुनन
अनेक गुण।
संज्ञा
[हिं. गुण]


गोपीथ
रक्षा।
संज्ञा
[सं.]


गोपीथ
राजा।
संज्ञा
[सं.]


गोपीनाथ
गोपियों के स्वामी श्रीकृष्ण'।
कहै सूरदास, देखि नैनन की मिटी प्यास, कृपा कीनी गोपीनाथ, आय भुवतल मैं - ८.५।
संज्ञा
[सं.]


गोपुच्छ
गाय की पूँछ।
संज्ञा
[सं.]


गोपुच्छ
एक बंदर।
संज्ञा
[सं.]


गोपुच्छ
एक हार।
संज्ञा
[सं.]


गोपुच्छ
एक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गोपुत्र
सूर्य-पुत्र कर्ण।
संज्ञा
[सं.]


गोपुर
नगर का द्वार।
ऐसे कहत गये अपने पुर सबहिं बिलच्छन देख्यौ। मनिमय महल फरिक गोपुर लखि कनक भुमि अवरेख्यौ - सारा. ८२० |
संज्ञा
[सं.]


गोपुर
किले का द्वार।
संज्ञा
[सं.]


गोबरगणेश गोवरगनेस
निकम्मा।
वि.
[हिं. गोबर + गणेश]


गोबरी
कंडा, उपला।
संज्ञा
[हिं. गोबर + ई (प्रत्य.)]


गोबरी
गोबर की लिपाई।
संज्ञा
[हिं. गोबर + ई (प्रत्य.)]


गोबरैल, गोबरौरा, गोबरौला
गोबर में उत्पन्न एक कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. गोबर + ऐला या औला (प्रत्य.)]


गोबर्धन
गायों की वृद्धि करनेवाला।
संज्ञा
[सं. गोवर्द्धन]


गोबर्धन
ब्रज का एक पर्वत। प्रसिद्धि है कि एक बार बहुत वर्षा होने पर श्रीकृष्ण ने इसे उँगली पर उठा लिया था।
संज्ञा
[सं. गोवर्द्धन]


गोबर्धनधारी
गोबर्धन पर्वत को उठानेवाले, श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोवर्द्धन + धारी]


गोबिंद, गोबिन्दा
श्रीकृष्ण।
संज्ञाा
[सं. गोपेंद्र, या गोविंद, हि. गोविंद]


गोबिंद, गोबिन्दा
परबह्म।
संज्ञाा
[सं. गोपेंद्र, या गोविंद, हि. गोविंद]


गोबिया
एक तरह का बाँस।
संज्ञा
[देश.]


गोप्य
रक्षा करने योग्य।
वि.


गोफ
दास. सेवक।
संज्ञा
[सं.]


गोफ
दासीपुत्र।
संज्ञा
[सं.]


गोफ
गोपियों का समूह।
संज्ञा
[सं.]


गोफण, गोफन, गोफना
जाल का झोला जिसमें कंकड़-पत्थर रखकर चलाये जायँ।
संज्ञा
[सं. गोफण]


गोफा
नया मुँहबँधा पत्ता।
संज्ञा
[सं. गुंफ]


गोफा
तहखाना, गुफा।
संज्ञा


गोबर
गाय का मल।
संज्ञा
[सं. गोमय]


गोबरगणेश गोवरगनेस
भद्दा, कुरूप।
वि.
[हिं. गोबर + गणेश]


गोबरगणेश गोवरगनेस
मूर्ख।
वि.
[हिं. गोबर + गणेश]


गोबी, गोभी
एक घास।
संज्ञा
[सं. गोजिह्वा]


गोबी, गोभी
एक शाक।
संज्ञा
[सं. गोजिह्वा]


गोबी, गोभी
पौधों का एक रोग।
संज्ञा
[सं. गोजिह्वा]


गोभ, गोभा
लहर।
संज्ञा


गोभुज
राजा।
संज्ञा
[सं.]


गोभृत
पर्वत, पहाड़।
संज्ञा
[सं.]


गोमंत
सह्याद्रि की एक पहाड़ी जहाँ गोमती देवी का स्थान है।
संज्ञा
[सं.]


गोम
घोड़ों की भँवरी।
संज्ञा
[देश.]


गोम
पृथ्वी।
संज्ञा
[देश.]


गोमती
उत्तर प्रदेश की एक प्रसिद्ध नदी।
मन यह करत बिचार गोमती तीर गये - १० - ३४७।
संज्ञा
[सं.]


गोमुखी
माल रखने की ऊनी थैली।
संज्ञा
[सं.]


गोमुखी
गंगोत्तरी का वह स्थान जहाँ से गंगा निकलती है और जिसकी बनावट गाय के मुख की सी है।
संज्ञा
[सं.]


गोमुखी
एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


गोमुखी
घोड़ों के उपरी होठों की एक भँवरी।
संज्ञा
[सं.]


गोमुदी
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


गोमूत्रिका
एक चित्रकाव्य।
संज्ञा
[सं.]


गोमूत्रिका
एक घास।
संज्ञा
[सं.]


गोमेद
गोमेदक मणि।
संज्ञा
[सं.]


गोमेद
शीतल चीनी।
संज्ञा
[सं.]


गोमेदक
एक मणि, राहु-रत्न।
संज्ञा
[सं.]


गोमती
बंगाल की एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


गोमती
गोमंत पर्वत की एक देवी।
संज्ञा
[सं.]


गोमती
एक मंत्र।
संज्ञा
[सं.]


गोमतीशिला
हिमालय की एक शिला जहाँ अर्जुन का शरीर गला था।
संज्ञा
[सं.]


गोमय, गोमल
गोबर।
संज्ञा
[सं.]


गोमर
गाय को मारने वाला, गोहिंसक, कसाई।
संज्ञा
[सं. गो+हिं. मर प्रत्य.)]


गोमा
गोमती नदी।
संज्ञा
[देश, ]


गोमाय, गोमायु
सियार, गीदड़।
चल्यौ भाजि गोमायु जंतु ज्यों लैंके हरि कौ भाग - सारा.२६७।
संज्ञा
[सं. गोमायु]


गोमाय, गोमायु
एक गन्धर्व।
संज्ञा
[सं. गोमायु]


गोमी
सियार।
संज्ञा
[सं. गोमिन्]


गोमी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं. गोमिन्]


गोमुख
गाय का मुख।
गउ चराइ, मम त्वचा उपारौ। हाड़न कौ तुम ब्रज सँवारौ। सुरपति रिषि की आज्ञा पाई। लिए हाड़, दियौ ब्रज बनाई। गौमुख असुध तबहिं तैं भयौ - ६ - ५।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
गोमुख नाहर (व्याघ्र) :- वह मनुष्य जो देखने में तो सीधा हो, पर वास्तव में बड़ा क्रूर और अत्याचारी हो।
मु.


गोमुख
नरसिंहा नामक बाजा।
एक पटह, एक गोमुख, एक आवझ, एक झालरी, एक अमृत कुंडल रबाब भाँति सौं दुरावै - २४२५।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
एक शंख।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
माला रखने की थैली जिसकी बनावट गाय के मुख की सी होती है।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
नाक नामक जल जंतु।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
योग का एक आसन।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
टेढ़ा मेढ़ा घर।
संज्ञा
[सं.]


गोमुख
हल्दी-चावल का ऐपन।
संज्ञा
[सं.]


गोरखो
एक लता जिसमें फूट नामक ककड़ी फलती है।
संज्ञा
[हिं. गोरख]


गोरज
गैयों के (चलते समय) खुरों से उड़ी हुई धूल।
संज्ञा
[सं.]


गोरटा
गोरे रंग का, गोरा।
वि.
[हिं. गोरा]


गोरस
दूध।
संज्ञा
[सं.]


गोरस
दधि, दही।
(क) गोरस मथत नाद इक उपजत, किंकिनि धुनि सुनि स्रवन रमापति - १० - १४९।

(ख) रैनि जमाई धरयौ हो गोरस, परयौ स्याम कैं हाथ - १० - २७७। (ग) गोरस बेचन गई बबा की सौं हौं मथुरा तें आई - २५४८।

संज्ञा
[सं.]


गोरस
मठा, छाछ।
संज्ञा
[सं.]


गोरस
इंद्रियों का सुख, विषय-सुख।
संज्ञा
[सं.]


गोरसा
बच्चा जो केवल ऊपरी (विशेषतः गाय के) दूध पर पला हो।
संज्ञा
[सं, गोरस]


गोरसी
दूध गरमाने की अँगीठी।
संज्ञा
[सं. गोरस + ई (प्रत्य.)]


गोरा
उज्ज्वल वर्ण का।
वि.
[सं. गौर]


गोर
उजला।
वि.
[सं. गौर]


गोरक
अरयल नामक वृक्ष।
संज्ञा
[देश.]


गोरख अमली (इमली)
एक बड़ा पेड़ जिसे कल्पवृक्ष भी कहते हैं।
संज्ञा
[हिं. गोरख+इमली]


गोरखधंधा
कई तारों-कड़ियों आदि का समूह जिन्हें जोड़ना या अलग करना कठिन होता है।
संज्ञा
[हिं. गोरख+धंधा]


गोरखधंधा
झगड़ा या उलझन का काम।
संज्ञा
[हिं. गोरख+धंधा]


गोरखधंधा
झगड़ा, उलझन।
संज्ञा
[हिं. गोरख+धंधा]


गोरखनाथ
गोरखपुर के एक प्रसिद्ध सिद्ध जिनका संप्रदाय अभी तक है।
संज्ञा
[सं. गोरक्षनाथ]


गोरखपंथी
गोरखनाथ का अनुयायी।
वि.
[हिं. गोरखनाथ + पंथी]


गोरखमुंडी
मुंडी नामक घास।
संज्ञा
[सं. मुंडी]


गोरखा
नैपाल का एक प्रदेश। इस प्रदेश का निवासी।
संज्ञा
[हिं. गोरख]


गोमेदक
काला विष।
संज्ञा
[सं.]


गोमेदक
एक साग।
संज्ञा
[सं.]


गोमेध
गोसव यज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


गोयँड़
गाँव के आसपास की भूमि।
संज्ञा
[हिं. गाँव + मेड़]


गोय
गेंद।
संज्ञा
[हिं. गोल]


गोया
मानो।
क्रि. वि.
[फ़ा.]


गोयो
छिपाया, लुप्त किया, दूर किया, मिटाया।
गोकुल गाय दुहत दुख गोयो् कूर भए ए बार - २८००।
क्रि. स.
[हिं. गोना]


गोर
मृत शरीर की कब्र।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोर
फारस का एक प्रदेश।
संज्ञा
[अ.ग़ार]


गोर
गोर।
(क) द्वै ससि। स्याम नवल घन द्वै कीन्हें विधि गोर. - १९१९।

(ख) बलि तुहिं जाउँ बेगि लै मिलऊ स्याम सरोज बदन तुव गोर - २२१५४। (ग) मनमोहन पिय दूल्हा राजत दुलहिन राधा गोर - शार.१०६६।

वि.
[सं. गौर]


गुनिया, गुनियाला
गुणवान्, गुणी।
वि.
[हिं. गुणी]


गुनिया, गुनियाला
राजों, बढ़इयों आदि का गोनिया नामक औजार।
संज्ञा
[हिं. कोन]


गुनिया, गुनियाला
वह मल्लाह जो नाव की गून खींचता है, गुनरखा।
संज्ञा
[सं. गुण = रस्सी]


गुनिये
समझिए, सोचिए।
कंचन कलस गढ़ाये कब हम देखे धौं यह गुनिये - ११३०।
क्रि. स.
[हिं. गुनना]


गुनी, गुनीला
गुणवाला, गुणयुक्त, सगुण।
गुन बिना गुनी, सुरूप रूप बिनु नाम बिना श्री स्याम हरी - ११५।
वि.
[सं. गुणिन, हिं. गुणी]


गुनी, गुनीला
कला-कुशल व्यक्ति।
सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल - गनक - गुनी - १० - २४।
संज्ञा


गुनी, गुनीला
झाड़-फूँक या जंत्र-मंत्र जाननेवाला।
(क) स्याम भुजंग डस्यौ हम देखत, ल्यावहु गुनी बोलाई ७४३।

(ख) तंत्र न फुरै, मंत्र नहिं लागै, चले गुनी गुन हारे - ३२५४।

संज्ञा


गुनी, गुनीला
सोची, मानी, समझी।
अब लौं ऐसी नाहिं सुनी। जैसी करी नंद के नंदन अद्‍भुत बात गुनी - सा. १०४।
क्रि. स.
[हिं. गुनना]


गुने
मनन किये, सोचे, विचारे।
सूत ब्यास सौं हरि - गुन सुने बहुरौ तिन निज मनमैं गुरे - १ - २२८।
क्रि. अ.

बहु.

[हिं. गुनना]


गुनोबर
चिलगोजे का वृक्ष।
संज्ञा
[फ़ा, सनोबर]


गोल
अंडे, नीबू आदि के आकार का।
वि.
[सं.]


गोल
गोल गोल :- (१) मोटे तौर पर, स्थूल रूप से।

(२) साफ साफ नहीं। गोल बात :- जो बात बिल्कुल स्पष्ट या साफ न हो। गोल मटोल (मठोल) :- (१) मोटे तौर पर। (२) मोटा और नाटा। (३) कम ऊँचाई का पर ज्यादा मोटाईवाला। गोल होना :- (१) चुप हो जाना। (२) चुपके से चले जाना।

मु.


गोल
वृत्त, घेरा।
संज्ञा
[सं.]


गोल
गोला।
संज्ञा
[सं.]


गोल
एक ओषधि।
संज्ञा
[सं.]


गोल
मैनफल या मदन वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


गोल
झुंड, समूह।
संज्ञा
[फ़ा गोल]


गोल
गोलमाल, गड़बड़, खलबली, हलचल |
संज्ञा
[सं. गोल (योग)]


गोल
गोल पारना (मारना) :- गड़बड़, खलबली या हलचल मचाना।

पारयो गोल :- खलबली पैदा कर दी, हलचल मचा दी। उ. - ल्याए हरि कुसलात धन्य तुम घर घर पारयौ गोल - ३२६५।

मु.


गोलक
गोलोक।
संज्ञा
[सं.]


गोरा
उजला, सफेद।
वि.
[सं. गौर]


गोरा
उज्ज्वलवर्ण का व्यक्ति।
संज्ञा


गोराई
गोरापन।
संज्ञा
[हिं. गोरा+ई+या आई]


गोराई
उज्ज्वलता।
संज्ञा
[हिं. गोरा+ई+या आई]


गोराई
सुंदरता।
संज्ञा
[हिं. गोरा+ई+या आई]


गोरिल्ला
एक बनमानुष।
संज्ञा
[अफ्रिका]


गोरी
गौर वर्ण की स्त्री. रूपवती रमणी।
जौ तुम सुनहु जसोदा गोरी - १० - २८६।
संज्ञा
[सं. गौरी, हिं. पुं. गोर]


गोरी
उजले रंग की, सफेद।
अपनी अपनी गाई ग्वाल सब आनि करौ इक ठौरी। पियरी, मौरी, गोरी गैनी, खैरी, कजरी जेती - ४४५।
वि.


गोरू
सींगवाला पशु, चौपाया, मवेशी।
संज्ञा
[सं, गो]


गोरू
दो कोस की नाप।
संज्ञा
[सं, गो]


गोरूप
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


गोरे, गोरैं
गोरे, गौर, वर्ण के।
गौरै भाल बिंदु बंदन, मनु इंदु प्रात रवि काँति - ७०४।
वि.
[सं. गौर, हिं. गोरा]


गोरोचन
एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य।
(क) बदन सरोज तिलक गोरोचन, लटलटकनि मधुकर - गति डोलनि - १० - १२१।

(ख) सुंदर भाल - तिलक गोरोचन, मिलि मसिबिंदुका लाग्यौ री - १० - १३७।

संज्ञा
[सं.]


गोरोचना
गोरोचन।
संज्ञा
[सं.]


गोलंदाज
गोला चलानेवाला।
संज्ञा
[फ़.]


गोलंदाजी
गोला चलाने की कला।
संज्ञा
[फ़.]


गोलंबर
गुंबद।
संज्ञा
[हिं. गोल + अंबर]


गोलंबर
गोलाई।
संज्ञा
[हिं. गोल + अंबर]


गोलंबर
बांग का गोल चबूतरा।
संज्ञा
[हिं. गोल + अंबर]


गोल
जिसका घेरा वृत्ताकार हो।
वि.
[सं.]


गोलियाना
गोल करना या बनाना।
क्रि. स.
[हिं. गोल]


गोलियाना
समूह या गोल बाँधना।
क्रि. स.
[हिं. गोल]


गोली
छोटा गोल पिंड।
संज्ञा
[हिं. गोला]


गोली
ओषधि की बटी।
संज्ञा
[हिं. गोला]


गोली
बालकों के खेलने का गोल पिंड।

है।

संज्ञा
[हिं. गोला]


गोली
गोली का खेल।
संज्ञा
[हिं. गोला]


गोली
सीसे का गोल छर्रा जो बंदूक से चलाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. गोला]


गोली
गोली खाना :- घायल होना।

गोली बचाना :- संकट टल जाना। गोली मारना :- परवाह न करना।

मु.


गोलोक
विष्णुलोक, जो बैकुंठ के दक्षिण में बताया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गोलोक
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


गोला
तोप से चलाने का गोल पिंड।
संज्ञा
[हिं. गोल]


गोला
नारियल की गरी।
संज्ञा
[हिं. गोल]


गोला
रस्सी, सूत आदि की गोल पिंडी।
संज्ञा
[हिं. गोल]


गोला
गोदावरी नदी।
संज्ञा
[सं.]


गोला
सखी, सहेली।
संज्ञा
[सं.]


गोला
मंडल।
संज्ञा
[सं.]


गोला
गोली।
संज्ञा
[सं.]


गोलाई
गोल होने का भाव, गोलापन।
संज्ञा
[हिं. गोल + आई (प्रत्य.)]


गोलाकार, गोलाकृति
गोल आकार या प्राकृतिवाला।
वि.
[सं.]


गोलार्द्ध
पृथ्वी का आधा भाग।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
गोल पिंड।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
मिट्टी का गोल घड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
फूलों का सार, इत्र।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
आँख की पुतली।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
गुंबद।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
धन जोड़ने की पात्र।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
गल्ला, गुल्लक।
संज्ञा
[सं.]


गोलक
आँख का डेला।
(क) अपने दीन दास के हित लगि, फिरते सँग सँगहीं। लेते राखि पलक गोलक ज्यों, संतन तिन सबहीं - १.२८३।

(ख). अति उनींद अलसात कर्मगति गोलक चपल सिथिल कछु थोरे। (ग) अति बिसाल बारिज - दल - लोचन, राजति काजर - रेख री। इच्छा सौं मकरंद लेत मनु अलि गोलक के बेष री - १० - १३६

संज्ञा
[सं.]


गोलमाल
गड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. गोल (योग)]


गोला
गोल बड़ा पिंड।
संज्ञा
[हिं. गोल]


गोलोक
ब्रजभूमि।
संज्ञा
[सं.]


गोलोकेश
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोलोक + ईश]


गोलोचन
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं. गोरोचन]


गोवत
छिपाते हैं।
यहूँ नैन की कोर निहारत कबहूँ बदन पुनि गोवत - १९६६।
क्रि. स.
[हिं. गोना]


गोवति
छिपाती है।
सूरदास प्रभु तजी गर्ब तैं नये प्रेम गति गोवति - १८००।
क्रि. स.
[हिं. गोना]


गोवध
गाय की हत्या।
संज्ञा
[सं.]


गोवना
छिपाना।
क्रि. स.
[हिं. गोना]


गोवना
खोना।
क्रि. स.
[हिं. गोना]


गोवर्द्धन
वृन्दावन का एक पर्वत जिसे श्रीकृष्ण ने उँगली पर उठाया था।
संज्ञा
[सं.]


गोवर्द्धन
मथुरा का एक प्राचीन नगर और तीर्थ।
संज्ञा
[सं.]


गोविंद
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोपेंद्र, प्रा. गोविंद]


गोविंद
वेदांत का ज्ञाता।
संज्ञा
[सं. गोपेंद्र, प्रा. गोविंद]


गोविंद
बृहस्पति।
संज्ञा
[सं. गोपेंद्र, प्रा. गोविंद]


गोविंद
परब्रह्म।
संज्ञा
[सं. गोपेंद्र, प्रा. गोविंद]


गोविंद
गोशाला का अध्यक्ष।
संज्ञा
[सं. गोपेंद्र, प्रा. गोविंद]


गोविंदपद
मोक्ष, मुक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गोवीथी
चंद्र मार्ग का एक अंश।
संज्ञा
[सं.]


गोवै
छिपाता है, लुकाता है।
माखन उलूखत बाँध्यौ, सकल लोग ब्रज जोवै। निरखि कुरुत्व उन बालनि को रिसि, लाजनि अँखियनि गोवै - ३४७।
क्रि. स.
[हिं. गोवना, गोना]


गोश
कान, श्रवण।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशमायल
पगड़ी में लगा मोतियों का गुच्छा जो कान के पास रहता है।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशमाली
कान उमेठना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशमाली
कड़ी चेतावनी देना |
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशा
कोना, कोण।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशा
एकांत स्थान।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशा
दिशा, ओर।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशा
कमान के सिरे।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोशाला
गैयों के रहने का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


गोश्त
मांस. आमिष।
संज्ञा
[फ़ा.]


गोष्ठ
गोशाला,
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठ
पशुशाला।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठ
सलाह, परामर्श।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठ
दल, मंडली।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठशाला
सभाभवन।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठी
सभा, मंडली।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठी
बात चीत।
संज्ञा
[सं.]


गोष्ठी
सलाह, परामर्श।
संज्ञा
[सं.]


गोष्पद
गोशाला।
संज्ञा
[सं.]


गोष्पद
गाय के खुर के बराबर गढ़ा।
संज्ञा
[सं.]


गोस
एक झाड़।
संज्ञा
[सं.]


गोस
प्रभात।
संज्ञा
[सं.]


गुनाह
पाप।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुनाह
अपराध।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुनाहगार
पापी।
वि.
[फा.]


गुनाहगार
दोषी।
वि.
[फा.]


गुनाहगारी
पापी, दोषी या अपराधी होने का भाव।
संज्ञा
[फा.]


गुनाही
पापी।
संज्ञा
[फा.]


गुनाही
दोषी।
संज्ञा
[फा.]


गुनि
समझकर, सोचकर।
(क) हरि सौं ठाकुर और न जन कौं।….। लग्यौ फिरत सुरभी ज्यौं सुत सँग, औचट गुनि गह बन कौं - १ - ९।

(ख) तुमहीं मन मैं गुनि धौं देखौ बिनु तप पायौ कासी - २९३७।

क्रि. स.
[हिं. गुनना]


गुनिनि
झाड़-फूँक करने वाले, जंत्र-मंत्र जाननेवाले।
जंत्र - मंत्र का जानै मेरौ ? यह तुम जाइ गुनिनि कों बूझौ, इहाँ करति कत झेरौ - ७५३।
वि.बहु.
[हिं. गुणी]


गुनियत
सोचता-विचारता है, समझता-बूझता है।
कैसो कनक मेखला कछनी यह मन गुनियत हैं - १४१२।
क्रि. स.
[हिं. गुनना]


गोसई
कपास का एक रोग।
संज्ञा
[देश.]


गोसनि
कमान के दोनों सिरों से।
यह अचरज सुबड़ो जिय मेरे वह छाँइनि वह पोसनि। निपट निकामजानि हम छाँड़ी ज्यों कमान दिन गोसनि - १०उ. ८८।
संज्ञा
[फ़ा. गोशा + नि (प्रत्य.)]


गोसमायल
पगड़ी में लगी मोतियों की गुच्छी जो कानों के पास लटकती है।
पाग ऊपर गोसमायंत रंग रंग रचि बनाइ - २३५०।
संज्ञा
[फ़ा. गोशमायल]


गोसव
गोमेध।
संज्ञा
[सं.]


गोसा
उपला, कंडा।
संज्ञा
[सं. गो]


गोसा
कोना।
संज्ञा
[हिं. गोशा]


गोसा
किनारा।
संज्ञा
[हिं. गोशा]


गोसाँई, गोसाई
गैयों का स्वामी।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसाँई, गोसाई
स्वर्ग का स्वामी, ईश्वर।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसाँई, गोसाई
संन्यासियों का एक संप्रदाय।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसाँई, गोसाई
विरक्त साधु।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसाँई, गोसाई
वह जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसाँई, गोसाई
मालिक, प्रभु।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गोसुत
गाय का बच्चा, बछड़ा।
(क) गोपी - ग्वाल - गाय - गोसुत - हित सात दिवस गिरि लीन्हयौ - १ - १७।

(ख) गोकुल पहुँचे जाइ गए बालक अपने घर। गोसुत अरु नर नारि मिली अति हेत लाइ गर।

संज्ञा
[सं. गो+सुत]


गोसूक्त
अथर्ववेद का एक अंश जिसमें ब्रह्मांङ-रचना का गाय के रूप में वर्णन है।
संज्ञा
[सं.]


गोसैयाँ
प्रभु, नाथ।
संज्ञा
[हिं. गोस.ई]


गोस्वामी
वह जिसने इंद्रियों को जीता हो।
संज्ञा
[सं.]


गोस्वामी
वैष्णवाचार्यों के वंशधर या गद्दी के अधिकारी।
संज्ञा
[सं.]


गोह
एक जंगली जंतु।
संज्ञा
[सं . गोधा]


गोह
उदयपुरी राजवंश का एक पूर्व पुरुष।
संज्ञा


गोहन
संग, साथ।
(क) भागैं कहाँ बचौगे मोहन। पाछै आइ गई तुव गोहन - १० - ७९९।

(ख) बरन बरन ग्वाल बने महरनंद गोप जने एक गावत एक नृत्यत एक रहत गोहन - २४२८। (ग) जाके दृष्टिपरे नंदनंदन सोउ फिरत गोइन डोरी डोरी - १४६९।

संज्ञा
[सं. गोधन = गौओं का समूह]


गोहन
साथी, सहचर।
(क) सूरदास प्रभु गोहन गोहन की छबि बाढी मेटति दुख निरखि नैन मैन के दरद को - पृ. ३५२ (८२)।

(ख) बार बार भुज धरि अंकम भरि मिलि बैठे दोउ गोहन - पृ. ३१५।

संज्ञा
[सं. गोधन = गौओं का समूह]


गोहनियाँ
साथ रहनेवाला, संगी, सहचर।
संज्ञा
[हिं. गोहन +इयाँ (पत्य.)]


गोहर
विसखोपरा जंतु।
संज्ञा
[सं. गोधा]


गोहरा
कंडा, उपला।
संज्ञा
[सं. गो + ईंल्ल]


गोहराना
आवाज देना।
क्रि. अ.
[हिं. गोहार]


गोहरायौ
पुकारा, गोहार मचायी।
को यह लिये जात कहँ हमको कृष्णकृष्ण कहि गोहरायौ - २३१६।
क्रि. अ.

भूत.

[हिं. गोहराना]


गोहलोत
गहलौत क्षत्रिय।
संज्ञा
[सं. गोह]


गोहार, गोहारि, गोहारी
पुकार मचाना, जोर से दुहाई देना, रक्षा या सहायता के लिए चिल्लाना।
घावहु नंद गोहारि लगौ किन तेरौ सुत अँधवाह उड़ायौ| १० - ७७।
संज्ञा
[सं. गो + हार (हरण)]


गोहार, गोहारि, गोहारी
शोर-गुल, कोलाहल।
संज्ञा
[सं. गो + हार (हरण)]


गौं
गौं का :- (१) विशेष कामका, उपयोगी।

(२) स्वार्थी, मतलबी। गौं का यार (साथी) :- मतलबी या स्वार्थी मित्र। गौं गाँठना (निकालना) :- काम निकालना, स्वार्थ साधना। गौं पड़ना :- गरज अटकना, काम पड़ना।

मु.


गौं
ढब, चाल, ढंग।
(क) यह सखि मैं पहिलें कहि राखी असित न अपने होंहीं। सूर काटि जौ माथौ दीजै चलत आपनी गौं हीं - ३०५६।

(ख) हम बावरी त्यों न चलि जान्यौ ज्यों गज चलत अपनी गौ हैं - ३४२८।

संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गँव]


गौं
पक्ष, पाश्र्व।
संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गँव]


गौंटा
छोटा गाँव।
संज्ञा
[हिं. गाँव+टा (प्रत्य॰)]


गौंटा
गाँव के लाभ के लिए किया गया खर्च।
संज्ञा
[हिं. गाँव+टा (प्रत्य॰)]


गौहाँ
गाँव-संबंधी।
वि.
[हिं० गाँव+हाँ (प्रत्य.)]


गौ
गाय, गैया।
संज्ञा
[सं.]


गौख
छोटी खिड़की, झरोखा।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गौख
बाहरी दालान, चौपाल, बैठक।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गौखा
झरोखा, छोटी खिड़की।
संज्ञा
[सं. गवाक्ष]


गोहार, गोहारि, गोहारी
भीड़ जो पुकार सुनकर इकट्ठा हो।
संज्ञा
[सं. गो + हार (हरण)]


गोही
दुराव, छिपाव।
संज्ञा
[सं. गोपन]


गोही
छिपी हुई बात, गुप्त बात।
अपनो बनिज दुरावत हौ कत नाउँ लियौ इतनौ ही। कहा दुरावत हौ मो आगे सब जानत तुव गोही - ११०९।
संज्ञा
[सं. गोपन]


गोही
महुए का बीज।
संज्ञा
[सं. गोपन]


गोही
फलों का बीज, गुठली।
संज्ञा
[सं. गोपन]


गोहुअन, गोहुवन
एक साँप।
संज्ञा
[हिं. गेहूँ]


गोंहुं
गेहूँ।
संज्ञा
[सं. गोधूम]


गोहेरा
बिसखोपरा जंतु।
संज्ञा
[सं. गोधा]


गौं
सुयोग, सुअवसर।
संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गँव]


गौं
मतलब, अर्थ।
तुम तौ अलि उनहीं के संगी अपना गौं कै टेकौ - ३२८७।
संज्ञा
[सं. गम, प्रा. गँव]


गौखा
गाय का चमड़ा।
संज्ञा
[हिं. गौ=गाय+खाल]


गौखी
जूता।
संज्ञा
[हिं. गौखा]


गौगा
शोरगुल, हो हल्ला।
संज्ञा
[अ. ग़ौग़ा]


गौगा
अफवाह, जनश्रुति।
संज्ञा
[अ. ग़ौग़ा]


गौचरी
गाय चराने का कर जिससे कुछ भूमि चराई की छोड़ी जाती है।
संज्ञा
[हिं. गौ+चरना]


गौड़
प्राचीन वंग प्रदेश।
संज्ञा
[सं.]


गौड़
इस प्रदेश का निवासी।
संज्ञा
[सं.]


गौड़
ब्राह्मणों की एक जाति।
संज्ञा
[सं.]


गौड़
राजपूतों की एक जाति।
संज्ञा
[सं.]


गौड़
कायस्थों की एक जाति।
संज्ञा
[सं.]


गौड़
एक राग जो तीसरे पहर और संध्या को गाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


गौड़िया
गौड़देशीय।
वि.
[सं. गौड़+इया (प्रत्य.)]


गौड़िया
गौड़िया सम्प्रदाय-चैतन्य महाप्रभु का वैष्णव संप्रदाय।
यौ.


गौड़ी
गुड़ से बनी मदिरा।
संज्ञा
[सं.]


गौड़ी
काव्य की परुषावृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


गौड़ी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


गौड़ेश्वर
श्रीकृष्ण चैतन्य स्वामी जो गौरांग महाप्रभु भी कहलाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गौण
अप्रधान, जो मुख्य न हो।
वि.
[सं.]


गौण
सहायक, संचारी।
वि.
[सं.]


गौणी
जो मुख्य न हो।
संज्ञा
[सं.]


गौणी
लक्षणा का एक भेद।
संज्ञा


गौतम
गोतम ऋषि के वंशज।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
एक न्यायशास्त्र-प्रणेता ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
बुद्ध देव।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
सप्तर्षि मंडल का एक तारा।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
वह पर्वत जिससे गोदावरी निकलती है।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
एक ऋषि जिन्होंने अपनी पत्नी अहल्या को इन्द्र के साथ अनुचित संबंध करने के कारण शाप देकर पत्थर का बना दिया था।
संज्ञा
[सं.]


गौतम
क्षत्रियों की एक जाति।
संज्ञा
[सं.]


गौतमतिया
गौतम ऋषि की स्त्री अहल्या। इन्द्र ने छल करके इसका सतीत्व नष्ट किया, यह भेद जानने पर गौतम ने इसे शाप देकर पत्थर का बना दिया। भगवान् रामचन्द्र ने विश्वामित्र के साथ जाते समय इसका उद्धार किया।
संज्ञा
[सं. गौतम = हिं. तिया]


गौतमी
गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या।
संज्ञा
[सं.]


गौतमी
कृपाचार्य की पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


गौतमी
गोदावरी नदी।
संज्ञा
[सं.]


गौतमी
गौतम ऋषिकृत स्मृति।
संज्ञा
[सं.]


गौतमी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


गौद, गौदा
(केले आदि) फलों का गुच्छा, घौद।
संज्ञा
[देश.]


गौदान
गाय को संकल्प करके दान करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गोदान]


गौदुमा
गाय की पूँछ की तरह मोटे से क्रमशः पतला होता जाना, उतार-चढ़ाव, गावदुम।
वि.
[हिं. गाय + दुम+ आ (प्रत्य.)]


गौन
जाना, चलना, यात्रा करना।
(क) तात बचन रघुनाथ माथ धरि, जब बन गौन कियौ - ९ - ४६।
संज्ञा
[सं. गमन]


गौन
चंचल, स्थिर।
वि.


गौनई
गान, संगीत।
संज्ञा
[सं . गायन]


गौर
लाल रंग।
संज्ञा
[सं.]


गौर
पीला रंग।
संज्ञा
[सं.]


गौर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


गौर
सोना।
संज्ञा
[सं.]


गौर
तौलने का तीन सरसों के बराबर भाग।
संज्ञा
[सं.]


गौर
केसर।
संज्ञा
[सं.]


गौर
एक मृग।
संज्ञा
[सं.]


गौर
सफेद सरसों।
संज्ञा
[सं.]


गौर
चैतन्य महाप्रभु का नाम।
संज्ञा
[सं.]


गौर
गौड़।
संज्ञा
[सं. गौड़]


गुन्नी
एक कोड़ा जिससे ब्रजवासी होली पर मार करते हैं।
संज्ञा
[सं. गुण, हिं. गून = रस्सी]


गुन्यो
मनन किया, विचार किया।
सुक सौं नृपति परीक्षित सुन्यौ। तिहि पुनि भली भाँति करि गुन्यौ - १ - २२७।
क्रि. अ.
[हिं. गुनना]


गुप
सन्नाटा, सूनसान।
संज्ञाा
[अनु.]


गुपचुप
छिपाकर, चुपचाप।
क्रि. वि.
[हिं. गुप्त + चुप]


गुपचुप
एक मिठाई।
संज्ञा


गुपचुप
एक खेल।
संज्ञा


गुपचुप
एक खिलौना।
संज्ञा


गुपाल
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोपाल]


गुपुत, गुप्त
छिपा हुआ, अप्रकट।
(क) राजहु भए, तजत नहिं लोभहिं गुप्त' नहीं जदुराइ - ३११४।

(ख) एक केहरि एक हंस गुपुत रहै, तिनहिं लग्यौ यह गात - सा, उ. - ३।

वि.
[सं. गुप्त]


गुपुत, गुप्त
जाति न गुप्त करी-छिपती नहीं।
कछु इक अंगनि की सहिदानी, मेरी दृष्टि परी।…..। मृग मूसी नैननि की सोभा, जाति न गुप्त करो - ९ - ६३।
यौ.


गौनहर
गाने-बजानेवाली।
संज्ञा
[हिं. गौनहारी]


गौनहर, गौनहाई
जिसका गौना हाल ही में हुआ हो।
वि.
[हिं. गौना + हाई (प्रत्य.)]


गौनहार
वह स्त्री जो दुलहिन के साथ उसकी ससुराल जाय।
संज्ञा
[हिं. गौना + हार (प्रत्य.)]


गौनहारिन, गौनहारी
गाने-बजाने का काम करनेवाली स्त्रियाँ।
संज्ञा
[हिं. गाना + हारी (वाजी)]


गौना
गमन, प्रस्थान, जाना।
(क) अका बकासुर तवहिं सँहारथी, प्रथम कियौ बन गौना - ६०१।

(ख) मो देखत अबहीं कियौ गौना - २४२१।

संज्ञा
[सं. गमन]


गौना
विवाह के बाद की एक रीति जिसमें वर वधू को ससुराल से बिदा करा कर घर ले आता है, मुकलावा, द्विरागमन।
संज्ञा
[सं. गमन]


गौने
गये, प्रस्थान किया।
(क) की हरि आजु पंथ यहि गौने कीधौं स्याम जलद उनयौ–१६२८।

(ख) सूरदास प्रभु मधुबन गौने तो इतनो दुख सहियत - २८५६।

क्रि. अ.
[सं. गमन]


गौमुखी
धन रखने की थैली।
संज्ञा
[सं. गोमुखी]


गौर
गोरे चमड़ेवाला, गोरी।
गौर बरन मोरे देवर सखि, पिय मम स्याम सरीर - ९ - ४४।
वि.
[सं.]


गौर
उजला, सफेद।
वि.
[सं.]


गौर
सोच-विचार, चिंतन।
संज्ञा
[अ. ग़ौर]


गौर
ध्यान, ख्याल।
संज्ञा
[अ. ग़ौर]


गौरता
गोरापन।
संज्ञा
[सं.]


गौरता
सफेदी।
संज्ञा
[सं.]


गौरव
महत्व, बड़प्पन।
संज्ञा
[सं.]


गौरव
भारीपन।
संज्ञा
[सं.]


गौरव
आदर, सम्मान।
संज्ञा
[सं.]


गौरव
उत्कर्ष।
संज्ञा
[सं.]


गौरवान्वित, गौरवित
महिमामय।
वि.
[सं.]


गौरवान्वित, गौरवित
सम्मानित, मान्य।
वि.
[सं.]


गौरी
आठ वर्ष की कन्या।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
हल्दी।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
तुलसी।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
गोरोचन।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
सफेद रंग की गाय।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
गंगा नदी।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
चमेली।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
गुड़ से बनी शराब, गौड़ी।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
एक रागिनी जो श्रीराग की स्त्री मानी जाती है।
(क) मालवाई राग गौरी अरु असावरी राग - २२१३।

(ख) बेनु पनि गहि मोको सिखावत मोहन गावन गौरी - २८७३।

संज्ञा
[सं.]


गौरांग
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


गौरांग
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


गौरांग
चैतन्य महाप्रभु।
संज्ञा
[सं.]


गौरा
गोरे रंग की स्त्री।
संज्ञा
[सं. गौर]


गौरा
पार्वती जी।
संज्ञा
[सं. गौर]


गौरा
हल्दी।
संज्ञा
[सं. गौर]


गौरा
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं. गौर]


गौरा
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं. गोरोचन]


गौरी
गोरे रंग की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गौरी
पार्वती जी।
संज्ञा
[सं.]


गौरीचंदन
लाल चंदन।
संज्ञा
[सं.]


गौरीज
अभ्रक।
संज्ञा
[सं. गौरी+ज]


गौरीज
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं. गौरी+ज]


गौरीज
गणेशजी।
संज्ञा
[सं. गौरी+ज]


गौरीनाथ, गौरीपति
शिव, महादेव।
गौरीपति पूजति ब्रजनारि - ७६६।
संज्ञा
[सं.]


गौरीशंकर
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


गौरीशंकर
हिमालय की सबसे ऊँची चोटी।
संज्ञा
[सं.]


गौरीश, गौरीस
शिव महादेव।
संज्ञा
[सं.]


गौरैया
एक काला जल-पक्षी।
संज्ञा


गौला
गौरी, पार्वती।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथ
गाँठ लगाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथ
धन।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथकर्ता, ग्रंथकार
ग्रंथ का रचयिता।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथचुम्बक
वह पाठक जिसने ग्रंथ का अध्ययन और मनन भली भाँति न किया हो।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ+चुंबक = घूमनेवाला]


ग्रंथचुम्बन
ग्रंथ की सरसरे ढग से पाठ मात्र करना, अध्ययन-मनन न करना।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ + चुंबन]


ग्रंथन
दो चीजों को गाँठ देकर जोड़ना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथन
जोड़ना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथन
गूँथना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथन
अनेक ग्रंथ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथ]


ग्रंथना
जोड़ना, बाँधना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


गौल्मिक
सिपाहियों के गुल्म का नायक।
संज्ञा
[सं.]


गौवन
गैयों ने।
कमल - बदन कुँभिलात सबन के गौवन छाँड़ी तृन की चरनी - ३३३०।
संज्ञा
[सं. गो+हिं. बन, अन]


गौहर
मोती, मुक्ता।
संज्ञा
[फ़ा.]


गौहरा
गैयों का स्थान।
संज्ञा
[हिं. गौ + इरा]


ग्याति
वंश, कुल, जाति।
संज्ञा
[हिं. जाति]


ग्यान
जानकारी, ज्ञान।
संज्ञा
[सं. ज्ञान]


ग्यारह
दस और एक।
वि.
[सं, एकादश, प्रा. एगारस]


ग्यारह
दस और एक सूचक संख्या।
संज्ञा


ग्रंथ
पुस्तक।
पहिले ही अति चतुर हुते अरु गुरु सब ग्रंथ दिखाये - ३३६३।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथ
गाँठ, ग्रंथि, गुल्थी।
जिय परी ग्रंथ कौन छोरे निकट ननँद न सास - ३४८ (५७)।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथना
गूँथना।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथन]


ग्रंथसंधि
ग्रंथ-विभाग अध्याय आदि।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथसाहब
सिक्खों का धर्मग्रंथ जिसमें उनके गुरुओ के उपदेश संकलित हैं।
संज्ञा
[हिं. ग्रंथ + साहब]


ग्रंथालय
पुस्तकालय।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथि
गाँठ।
कारो कारो कुटिल अति कान्हर अन्तर ग्रंथि न खोलै - ३०९१।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथि
बंधन।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथि
मायाजाल।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथि
गाँठ होने का रोग
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथि
कुटिलता।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथित
गूँथा हुआ।
वि.
[सं. ग्रंथन]


ग्रंथित
जिसमें गाँठ लगी हो।
जैसो कियो तुम्हारे प्रभु अति तैसो भयो तत्काल। ग्रंथित सूत धरत तेहि ग्रीवा जहाँ धरत बनमाल - ३३३३।
वि.
[सं. ग्रंथन]


ग्रंथिबंधन
विवाह के समय वर-कन्या के दुपट्टे का परस्पर गँठबंधन।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथिभेद
गिरहकट।
संज्ञा
[सं.]


ग्रंथिल
गठीला, गाँठदार।
वि.
[सं.]


ग्रंथिल
करील्वृक्ष।
संज्ञा


ग्रंथिल
अदरक।
संज्ञा


ग्रंथिल
कँटायवृक्ष।
संज्ञा


ग्रंथिल
चोरक नामक गंधद्रव्य।
संज्ञा


ग्रंथै
गुहते या गूँधते हैं।
जा सिर फूल फुलेल मेलि के हरि - कर ग्रंथै मोरी
क्रि. स.
[हिं. ग्रंथना]


ग्रंस
छल-कपट।
सखी री मथुरा में दा हंस। वै अकूर ए ऊधो सजनी जानत नीके ग्रंस - ३०४९।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि = कुटिलता]


ग्रंस
छलकपट करनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि = कुटिलता]


ग्रंस
दुष्ट व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि = कुटिलता]


ग्रथित
गूँथा हुआ, गुंफित।
ऐसैं मैं सबहिन तैं न्यारौं, मनिन ग्रंथित ज्यौं सूत - २ - ३८।
वि.
[हिं. गुँथना]


ग्रसत
पकड़ लेता है, ग्रस लेता है, पकड़ने पर।
ग्राह ग्रसत गज कौं जल बूड़त, नाम लेत वाकौं दुख टारयौ - १ - १४।
क्रि. स.
[हिं. ग्रंसना]


ग्रसन
निगलना, भक्षण करना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रसन
पकड़, ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


ग्रसन
चंगुल में फाँसना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रसन
ग्रास।
संज्ञा
[सं.]


ग्रसन
ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


ग्रसना
बुरी तरह पकड़ना, चंगुल में फाँसना।
क्रि. स.
[सं. ग्रसन]


गुप्ता
नायिका जो सुरति छिपा ले।
संज्ञा
[सं.]


गुप्ता
गुप्त रूप से रखी हुई अविवाहिता स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गुफा
कंदरा, गुहा।
संज्ञा
[सं. गुहा]


गुबर्धन
गोवर्द्धन पर्वत।
सूर प्रभु कर तें गुवर्धन धरयौ धरनि उतारि - ९९४।
संज्ञा
[सं. गोवर्द्धन]


गुबार
गर्द, धूल।
संज्ञा
[अ.]


गुबार
दबाया हुआ क्रोध, दुख आदि मनोभाव।
संज्ञा
[अ.]


गुबिंद
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोविंद]


गुब्बाड़ा, गुब्बारा
रबड़ या कागज का थैलीनुमा एक खिलौना।
संज्ञा
[हिं. कुप्या]


गुम
छिपा हुआ।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुम
अप्रसिद्ध
संज्ञा
[फ़ा.]


ग्रसना
सताना।
क्रि. स.
[सं. ग्रसन]


ग्रसि
ग्रास करके, दाँत से पकड़कर।
(१) कहौ तौ गन समेत ग्रसि खाऊँ, जमपुर जाइ न राम - ९ - १४८।

(ख) सिंह को सुत हर - भूषण ग्रसि ज्यों सोई गति भई हमारी - सा, उ. २९।

क्रि. स.
[सं. ग्रसन, हिं. ग्रंसना]


ग्रसित
ग्रसा हुआ, जकड़ा जाकर।
(क) काम - क्रोध - पद लोभ - ग्रसित ह्वै विषय पर बिष खायौ - १ - १११।

(ख) हरि उर मोहनी बेलि लसी। तापर उरग ग्रसित तब सोभित पूरन अंस ससी - स. उ. २५।

वि.
[हिं.ग्रसना]


ग्रसित
पीड़ित।
वि.
[हिं.ग्रसना]


ग्रसित
खाया हुआ।
वि.
[हिं.ग्रसना]


ग्रसिहै
ग्रस लेगा, पकड़ लेगा।
रूप, जोबन सकल मिथ्या, देखि जनि गरबाइ। ऐसेहिं अभिमान आलस, काल ग्रसिहै आइ - १ - ३१५।
क्रि. स.
[हिं. ग्राना]


ग्रसी
ग्रसता है।
चक्षुश्रुवा उरहार ग्रसी ज्यों छिन पुनि या बपु रेष - सा. उ. २९।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


ग्रसी
ग्रसित, ग्रस्त।
वि.
[हिं. ग्रस्त]


ग्रस्त
जकड़ा या पकड़ा हुआ।
वि.
[हिं. ग्रसना]


ग्रस्त
पीड़ित।
वि.
[हिं. ग्रसना]


ग्रस्त
खाया हुआ, ग्रसित।
वि.
[हिं. ग्रसना]


ग्रस्यौ
बुरी तरह पकड़ लिया, ग्रस लिया।
ग्रस्यौ गज ग्राह लै चल्यौ पाताल कौं, काल कैं त्रास मुख नाम आयौ - १.१।
क्रि. स.
[हिं. ग्रसना]


ग्रह
वे तारे जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
नौ की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
ग्रहण करना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
कृपा।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
चंद्र या सूर्य ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
राहु।
संज्ञा
[सं.]


ग्रह
बुरी तरह जकड़ने या तंग करनेवाला।
वि.


ग्रहक
ग्रहण करनेवाला, ग्राहक।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहण
सूर्य आदि ज्योति-पिंडों के ज्योति मार्ग में किसी अन्य आकाशवारी पिंड के आ जानेके कारण होनेवाली रुकावट या ज्योतिअवरोध।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहण
पकड़ने या लेने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहण
स्वीकृति, मंजूरी।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहण
अर्थ, तात्पर्य, मतलब।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहणि, ग्रहणी
शरीर की एक नाड़ी।

एक रोग।

संज्ञा
[सं.]


ग्रहणीय
ग्रहण करने योग्य।
वि.
[सं.]


ग्रहदशा
ग्रहों की स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहदशा
ग्रहों की स्थिति के अनुसार मनुष्य की भली-बुरी दशा।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहदशा
अभाग्य, बुरी दशा।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहपति
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहराज
बृहस्पति।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहवेध
ग्रहों की स्थिति, गति आदि का परिचय वेधशाला के यंत्रों द्वारा जानना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहित
पकड़ा, ग्रहण किया, आच्छादित किया, अवरोध किया।
चारु स्त्रवननि ग्रहित कीनी झलक ललित कपोल - १३५१।
क्रि. स.
[हिं. ग्रहना]


ग्रहीत
पकड़ा हुआ, ग्रहण किया हुआ, स्वीकृत, अंगीकृत।
वि.
[हिं. ग्रहण]


ग्रहीता
लेने या ग्रहण करनेवाला।
वि.
[हिं. ग्रहीत]


ग्राम
छोटी बस्ती, गाँव।
संज्ञा
[सं.]


ग्राम
बस्ती, आबादी, जनपद।
संज्ञा
[सं.]


ग्राम
समूह, ढेर।
संज्ञा
[सं.]


ग्राम
शिव।
संज्ञा
[सं.]


ग्राम
संगीत का सप्तक।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहपति
शनि।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहपति
आक या मदार का वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहपति - सुत - हित अनुचर को सुत
ग्रहपति = सूर्य + सुत (सूर्य का पुत्र=सुग्रीव) + हित = मित्र (सुग्रीव का मित्र राम) + अनुचर (राम का अनुचर या सेवक हनुमान)+सुत (हनुमान का सुत या पुत्र मकरध्वज और कामदेव का भी एक नाम है मकरध्वज)]। काम
ग्रहपति सुत - हित - अनुचर कौ सुत जारत रहत हमेस - सा. २७।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहबसु
राह, रास्ता।
ग्रहबसु मिलत संभु की। सैना चमकत चित न चितैहै - सा. १०।
संज्ञा
[सं. ग्रह - बसु (बसु आठ हैं। अतः आठवाँ ग्रह हुआ राहु। फिर राहु से अर्थ लिया राह)]


ग्रहमुनि - दुत
मंद प्रकाश।
ग्रहमुनि - दुत हित के हित कर ते मुकर उतारत नाधे - सा. ६।
संज्ञा
[सं. ग्रह+मुनि (मुनि सात हैं ; अत: ग्रह - मुनि का अर्थ हुआ सूर्य से सातवाँ ग्रह शनि जिसका दूसरा नाम है मंद) + द्यु ति = प्रकाश]


ग्रहमुनि - पिता - पुत्रिका
यमुना नदी।
ग्रहमुनि पिता - पुत्रिका को रस अति अदभुत गति मातो - सा. ११।
संज्ञा
[सं. ग्रह + मुनि मुनि सात हैं, अतः ग्रहमुनि का अर्थ हुआ सातवाँ ग्रह =शनि) + पिता (शनि के पिता=सूर्य)+पुत्रिका सूर्य की पुत्रिका या पुत्री यमुना)]


ग्रहमैत्री
वर-कन्या के ग्रहों की अनुकूलता जिसका विचार विवाह के समय होता है।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहयज्ञ
ग्रहों की उग्रता या कोप-शांति के लिए किया गया पूजन या यज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहराज
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


ग्रहराज
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


ग्राममृग, ग्रामसिंह
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


ग्रामिक
ग्राम-संबंधी, गाँव का।
वि.
[सं.]


ग्रामी
गाँव का
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी। भरि भरि द्रोह बिसै कौं धावत, जैसै सूकर - ग्रामी - १ - १४८।
वि.
[सं. ग्राम]


ग्रामीण
देहाती
वि.
[सं.]


ग्रामीण
गँवार।
वि.
[सं.]


ग्रामीण
मुरगा।
संज्ञा


ग्रामीण
कुत्ता।
संज्ञा


ग्राम्य
गाँव-सम्बन्धी, गाँव का।
वि.
[सं.]


ग्राम्य
मूर्ख।
वि.
[सं.]


ग्राम्य
असली, प्राकृत।
वि.
[सं.]


ग्राम्य
काव्य का एक दोष, जिसमें ग्रामीण विषयों या प्रयोगों की अधिकता हो।
संज्ञा


ग्राम्य
अश्लील प्रयोग।
संज्ञा


ग्राम्य
बैल आदि गाँव के पालतू पशु।
संज्ञा


ग्राव
ओला।
संज्ञा


ग्राव
पत्थर।
संज्ञा


ग्राव
पहाड़ी।
संज्ञा


ग्रास
कौर, गस्सा, निवाला।
संज्ञा
[सं.]


ग्रास
पकड़ने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


ग्रास
ग्रहण लगना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रासक
पकड़नेवाला।
वि.
[सं.]


ग्रासक
निगलनेवाला।
वि.
[सं.]


ग्रासक
छिपाने या दबानेवाला।
वि.
[सं.]


ग्रासत
खाते हैं, भोजन करते हैं।
सालन सकल कपूर सुवासत। स्वाद लेत सुंदर हरि ग्रासत - ३९६।
क्रि. स.
[हिं. ग्रासना]


ग्रासना
पकड़ना, धरना।
क्रि. स.
[सं . ग्रास]


ग्रासना
निगलना।
क्रि. स.
[सं . ग्रास]


ग्रासना
कष्ट देना, सताना।
क्रि. स.
[सं . ग्रास]


ग्रासित
ग्रसा जकड़ा या फँसा हुआ।
इहिं कलिकाल - ब्याल - मुख - ग्रासित सूर सरन उबरै - १.११७।
वि.
[हिं. ग्रासना]


ग्रासै
ग्रस सकता है, निगलता है।
मारि न सकै, बिघन नहिं ग्रासै, जम न चढ़ावै कमार - १ - ९१।
क्रि. स.
[हिं. ग्रासना]


ग्रासै
कष्ट देता या सताता है।
क्रि. स.
[हिं. ग्रासना]


ग्रास्यौ
ग्रस लिया, निगल लिया।
सबनि सनेहौ छाँड़ि दयौ। हा जदुनाथ जरा तन ग्रास्यौ, प्रतिभौ उतरि गयौ - १ - २९८।
क्रि. स.

भूत.

[हिं. ग्रासना]


ग्राह
मगर, घड़ियाल।
संज्ञा
[सं.]


ग्राह
ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


ग्राह
पकड़ लेना।
संज्ञा
[सं.]


ग्राह
ज्ञान।
संज्ञा
[सं.]


ग्राह
ग्रहण करनेवाला, ग्राहक।
संज्ञा
[सं.]


ग्राहक
ग्रहण करने या लेने वाला।
संज्ञा
[सं.]


ग्राहक
खरीदनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


ग्राहक
एक साग।
संज्ञा
[सं.]


ग्राहना
लेना, ग्रहण करना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


ग्राही
ग्रहण या स्वीकार करनेवाला व्यक्तिं।
संज्ञा
[सं.]


ग्राह्य
लेने योग्य।
वि.
[सं.]


ग्राह्य
मानने या स्वीकार करने योग्य।
वि.
[सं.]


ग्राह्य
जानने योग्य।
वि.
[सं.]


ग्रीखम
गरमी की ऋतु।
संज्ञा
[सं. ग्रीष्म]


ग्रीव, ग्रीवा
गर्दन।
ग्रीव कर परसि पग पीठि तापर दियौ उर्बसी रूप पटतरहिं दीन्हीं - २५८८।
संज्ञा
[सं.]


ग्रीवी
वह जिसकी गर्दन लंबी हो।
संज्ञा
[सं. ग्रीविन्]


ग्रीवी
ऊँट।
संज्ञा
[सं. ग्रीविन्]


ग्रीषम
गरमी की ऋतु।
संज्ञा
[सं. ग्रीष्म]


ग्रीषम
वह जो उष्ण हो।
संज्ञा
[सं. ग्रीष्म]


ग्रीषमरिपुन
स्तन, कुच।
सुद्ध आखर भरत ग्रीषम रिपुन मध्ये साप - सा. - २।
संज्ञा
[सं. ग्रीष्म = गर्मी+रिपु = शत्रु (गर्मी का शत्रु पयोधर ; पयोधर के दो अर्थ हैं - (१) एक बादल। (२) स्तन ; यहाँ दूसरा अर्थ लिया गया है)]


गुपुत, गुप्त
जो प्रकट करने योग्य न हो, रहस्यपूर्ण।
गुप्त मते की बात कहौ जनि काहू के आगे - ३२२७।
वि.
[सं. गुप्त]


गुपुत, गुप्त
जो शीघ्र समझ में न आ सके, गूढ़।
वि.
[सं. गुप्त]


गुपुत, गुप्त
रक्षित।
वि.
[सं. गुप्त]


गुपुत, गुप्त
वैश्यों की एक पदवी या जाति।
संज्ञा
[सं.]


गुपुत, गुप्त
एक प्राचीन भारतीय राजवंश।
संज्ञा
[सं.]


गुप्त काशी
एक तीर्थ जो हरद्वार और बदरीनाथ के बीच में है।
संज्ञा
[सं.]


गुप्तचर
भेदिया, जासूस।
संज्ञा
[सं.]


गुप्त दान
दान जिसे कोई न जाने।
संज्ञा
[सं.]


गुप्त मार
भीतरी चोट या आघात।
संज्ञा
[सं. गुप्त + हिं. मार]


गुप्त मार
छिपाकर किया हुआ अनिष्ट।
संज्ञा
[सं. गुप्त + हिं. मार]


ग्रीष्म
गर्मी की ऋतु।

हो।

संज्ञा
[सं.]


ग्रीष्म
वह जो गर्म या उष्ण हो।
संज्ञा
[सं.]


ग्रवेयक
गले में पहनने का गहना।
संज्ञा
[सं.]


ग्रवेयक
हाथी की हैकल।
संज्ञा
[सं.]


ग्रेह
घर।
नीकन अदभुत बात लई। आपु ना तजत ग्रेह पुर में करबर सूर सई - सा. ११५।
संज्ञा
[सं. गृह., हिं. गेह]


ग्रेहो
गृहस्थ।
सहज माधुरी अंग अंग प्रति सहज सदावन ग्रेही - १४८५।
संज्ञा
[हिं. गेह, ग्रेह]


ग्लान
रोगी, बीमार।
वि.
[सं.]


ग्लान
थका हुआ, क्लांत, भ्रांत।
वि.
[सं.]


ग्लान
कमजोर, निर्बल।
वि.
[सं.]


ग्लान
दीनता, निरीहता।
संज्ञा


ग्लानि
मानसिक शिथिलता, अनुत्साह, अक्षमता।
संज्ञा
[सं.]


ग्लानि
अपने अनुचित कार्यों के विचार से उत्पन्न खेद या खिन्नता।
ताकै मन उपजी तब ग्लानि। मैं कीन्ही बहु जिय की हानि - ४ - १२।
संज्ञा
[सं.]


ग्लानि
बीभत्स रस का एक स्थायी भाव।
संज्ञा
[सं.]


ग्वाँड़ा
घेरा, वृत्त।
संज्ञा
[सं. गुड]


ग्वाँड़ा
मकानादि के चारों ओर का बाड़ा।
संज्ञा
[सं. गुड]


ग्वाँड़ा
बाड़े या चारदीवारी से घिरा हुआ स्थान।
संज्ञा
[सं. गुड]


ग्वाच्छ
छोटी खिड़की, झरोखा।
सखा सहित गए माखन - चोरी। देख्यौ स्याम गवाच्छ - पंथ ह्वै, मथति एक दधि भोरी - १०.२७०।
संज्ञा
[स. गवाक्ष]


ग्वार
अहीर, ग्वाल।
(क) सोर सुनि नंद - द्वार आए विकल गोपी - ग्वाल - ३५७।

(ख) उत होरी पढ़त ग्वार इत गारी गावति ए नंद नहीं जाये तुम महरि गुनन भारी - २४२६।

संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


ग्वार
एक पौधा जिसकी फलियों की तरकारी और बीजों की दाल होती है।
संज्ञा
[सं. गोराणी]


ग्वारिन, ग्वारी
एक पौधा।
संज्ञा
[हिं. ग्वार]


ग्वारिनी
अहीरिन।
ढूँढ़त फिरत ग्वारिनी हरिकौं, कितहूँ भेद नहिं पावति - ४५९।
संज्ञा
[हिं. ग्वालिन]


ग्वाल
गाय पालने-चरानेवाले, अहीर।
संज्ञा
[सं. गो + पाल, प्रा. गोवाल]


ग्वाल
व्रज के गोपजातीय बालक जो श्रीकृष्ण के बाल-सखा थे।
संज्ञा
[सं. गो + पाल, प्रा. गोवाल]


ग्वाल
दो अक्षरों का एक छन्द।
संज्ञा
[सं. गो + पाल, प्रा. गोवाल]


ग्वालककड़ी
जंगली चिचड़ा नामक ओषधि।
संज्ञा
[हिं. ग्वाल+ककड़ी]


ग्वालदाड़िम
एक पेड़।
संज्ञा
[हिं. ग्वाल + दाड़िम]


ग्वालनी
अहीरिन।
गूढ़ोत्तर अस कहत ग्वालिनी - सा. उ. ८०।
संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


ग्वाला
अहीर।
संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


ग्वालिन, ग्वालिनियाँ, ग्वाली
ग्वाल जाति की स्त्री. अहीरिन
संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


ग्वालिन, ग्वालिनियाँ, ग्वाली
गँवार या मूर्ख स्त्री।
(क) हम ग्वाली तुम तरनि रूप रस रवि - ससि मोहै - ११४१।

(ख) जाको ब्रह्मापार न पावत ताहि खिलावति ग्वालिनियाँ - १० - १३२।

संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


ग्वालिन, ग्वालिनियाँ, ग्वाली
ग्वार नामक पौधा।
संज्ञा
[हिं. ग्वार]


ग्वालिन, ग्वालिनियाँ, ग्वाली
एक बरसाती कीड़ा।
संज्ञा
[सं. गोपालिका]


ग्वाह
गवाह, साक्षी।
संज्ञा
[हिं. गवाह]


ग्वैठना
मरोड़ना, ऐंठना, घुमाना, टेढ़ा करना।
क्रि. स.
[सं. गुंठन्हें हिं. गुमेठना]


ग्वैठा
ऐंठा हुआ, टेढ़ा-मेढ़ा।
वि.
[हिं. ऐंठा (अनु.)]


ग्वैठा
गोबर का कंडा, उपला।
संज्ञा
[हिं. गोइठा]


ग्वैंड़
सीमा हद।
संज्ञा


ग्वैंड़े, ग्वेंड़ा
गाँव के आसपास की भूमि।
(क) गोकुल के ग्वैड़ेएक साँवरो सो ढोटा माई - ८७२।

(ख) निकसि गाँव के ग्वैंड़े आये - १०१८।

संज्ञा
[हिं. गाँव+इड़ा]


ग्वैंड़े, ग्वेंड़ा
निकट, पास. करीब।
क्रि. वि.


ग्वैयाँ
-साथ का खिलाड़ी।
रुहठि करै तासौं को खेलै रहे बैठि जहँ - तहँ सब ग्वैयाँ - १० - २४५।
संज्ञा
[हिं. गोहनियाँ, गोइयाँ]


ग्वैयाँ
सखा, साथी, सहचर।
सूची प्रीति न जसुदा जानै, स्याम सनेही ग्वैयाँ - ३७१।
संज्ञा
[हिं. गोहनियाँ, गोइयाँ]


हिंदी वर्णमाला का चौथा व्यंजन; उच्चारण जिह्वामूल या कंठ से होता है ; स्पर्श वर्ण ; इसमें घोष, नाद, संवार और महाप्राण प्रयत्न होते हैं।


घँगोल
कुमुद।
संज्ञा
[देश, ]


घँघरा
स्त्रियों को लहँगा।
संज्ञा
[हिं. घघरा]


घँघराघोर
छुआछूत न मानना।
संज्ञा
[देश.]


घँघरी
छोटा लहँगा।
संज्ञा
[हिं. घघरी]


घँघोरना, घँघोलना
पानी में कुछ घोलना।
क्रि. स.
[हिं. घन + घोलना]


घँघोरना, घँघोलना
पानी गंदा करना।
क्रि. स.
[हिं. घन + घोलना]


घंट
घड़ा।
संज्ञा
[सं. घट]


घंट
जलपात्र जो मृतक-क्रिया में पीपल से बाँधा जाता है।
संज्ञा
[सं. घट]


घंट, घंटा
धातु के औंधे पात्र में लगे लंगर या लट्टू से बननेवाला बाजा।
घंट बजाइ देव अन्हवायौ - १० - २६१।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
धातु का गोल पत्तर जो मुँगरी से बजाया जाता है।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
घंटे मोरछल से उठाना :- किसी वृद्ध वृद्धा के शव को बाजे-गाजे से श्मशान ले जाना।
मु.


घंट, घंटा
घड़ियाल जो समय की सूचना के लिए बजाया जाता है।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
छोटी-छोटी घंटियाँ जो पशुओं के गले में बाँधी जाती हैं।
कटि किंक्रिन नूपुर बिछयनि धुनि। मनहु मदन के गज - घंटा सुनि - १००५।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
घंटे का शब्द या ध्वनि।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
दिन रात का चौबीसवाँ भाग, साठ मिनट का समय।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
ठेंगा, सींगा।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंट, घंटा
घंटा दिखाना :- कोई चीज माँगने पर न देना, सींगा दिखाना।

घंटा हिलाना :- व्यर्थ के काम में समय नष्ट करना।

मु.


घंटाकरन घंटाकर्ण
शिव का एक उपासक जो कान में इसलिए घंटा बाँधे रहता था कि विष्णु या राम का नाम लिये जाने पर उसे हिला दूँ और वह नाम सुन न सकूँ।
संज्ञा
[सं. घंटा + कर्ण]


घंटाघर
वह ऊँचा स्थान जिस पर बहुत बड़ी घड़ी लगी हो।
संज्ञा
[हिं. घंटा +घर]


घंटिका
छोटा घंटा।
संज्ञा
[सं.]


घंटिका
घुँघरू।
संज्ञा
[सं.]


घंटिका
छोटे छोटे लंबे घड़े जो रहँट में लगे रहते हैं, घरिया।
स्रवन कूप की रहँट घंटि का राजत सुभग समाज।
संज्ञा


घंटियार
पशुओं के गले में काँटे पड़ने का एक रोग।
संज्ञा
[हिं. घाँटी]


घंटी
छोटी लुटिया।
संज्ञा
[सं. घंटिका]


घंटी
बहुत छोटा घंटा।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंटी
घंटी बजने का शब्द।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंटी
घुँघरू।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंटी
गले का कौआ।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंटी
गले का कौग्रा।
संज्ञा
[सं. घंटा]


घंटील
एक घास।
संज्ञा
[देश.]


घई
पानी का भँवर या चक्कर, प्रवाह।

थूनी, टेक।

संज्ञा
[सं. गंभीर]


घई
गहरा, अथाह।
वि.
[सं. गंभीर]


घउरी
फल पत्तियों का गुच्छा।
संज्ञा
[हिं. घवरि]


घघरा
स्त्रियों का लहँगा।
संज्ञा
[हिं. घन + घेरा]


घवरी
छोटा लहँगा।
संज्ञा
[हिं. घघरा]


घचघच
नरम चीज में नुकीली चीज घुसने या धँसने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घट
घड़ा, जलपात्र, कलसा।
(क) माधौ, नैकु हटकौ गाइ।….। अष्टदस घट नीर अँचवति, तृषा तउ न बुझाइ - १ - ५६।

(ख) नैन घट घटत न एक धरी। कबहुँ न मिटत सदा पावस ब्रज लागी रहत झरी - ३४५५।

संज्ञा
[सं.]


घट
पिंड, शरीर।
संज्ञा
[सं.]


घटकना
पी जाना।
क्रि. स.
[हिं. घूँटना]


घटकर्ण
कुंभकर्ण।
संज्ञा
[सं.]


घटका, घटकी
कफ रुकना।
संज्ञा
[अनु, घर्र घर्र]


घटका, घटकी
घटका लगना :- मरते समय कफ रुकना।
मु.


घटकार
कुम्हार।
संज्ञा
[सं.]


घटज
अगस्त्य मुनि।
संज्ञा
[सं. घट+ज]


घटत
कम होता है, क्षीण होती है, घटते-घटते।
(क) हमारे निर्धन के धन राम। चोर न लेत, घटत नहिं कबहूँ, आवत गढ़ै काम - १.९२।

(ख) नैन घट घटत न एक घरी। कबहुँ न मिटत सदा पावस ब्रज लागी रहत झरी - ३४३५। (ग) दुतिया चंद बहुत ही बाढ़ै घटत घटत घटि जाइ - १ - २६५।

क्रि. अ.
[हिं. कटना]


घटति
कम या क्षीण होती है।
(क) सिर पर मीच, नीच नहिं चितवत, आयु घटति ज्यौं अंजुलि पानी - १०१५९।

(ख) जिह्वास्वाद, इंद्रियनि - कारन, आयु घटति दिन मान - १ - ३०४।

क्रि. अ.
[हिं. कटना]


घटती
कमी, कोर-कसर।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटती
घटती का पहरा :- अवनति के दिन।
मु.


घट
मन, हृदय।
(क) जो घट अंतर हरि सुमिरै। ताको काल रूठि का करिहे, जो चित चरन धरै - १ - ८२।

(ख) वै अबिगत अबिनासी पूरन सब घट रह्यौ समाइ - २९८८।

संज्ञा
[सं.]


घट
घट में बसना (बैठना) :- (१) मन में बसना, ध्यान रहना।

(२) बात समझ में आ जाना।

मु.


घट
कम, थोड़ा, छोटा।
वि.
[हिं. घटना]


घटक
मध्य में होनेवाला, मध्यस्थ।
संज्ञा
[सं.]


घटक
विवाह तै करानेवाला, बरेखिया।
संज्ञा
[सं.]


घटक
दलाल।
संज्ञा
[सं.]


घटक
चतुर व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


घटक
वंश-परंपरा बतानेवाला
संज्ञा
[सं.]


घटक
घटा।
संज्ञा
[सं.]


घटक
दो पक्षों का मध्यस्थ
संज्ञा
[सं.]


गुम
खोया हुआ।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुमक
महक, सुगंध।
संज्ञा
[सं. गमक= जाने या फैलनेवाला]


गुमक
जानेवाला।
संज्ञा


गुमक
सूचक, बोधक।
संज्ञा


गुमक
तबले की गंभीर ध्वनि।
संज्ञा


गुमकना
किसी पदार्थ आदि के भीतर ही भीतर शब्द का गूँजना।
क्रि. अ.
[सं. गम]


गुमका
भूसी से दाना अलगाना।
संज्ञा
[देश.]


गुमकि
(हृदय में) शब्द गूँजकर, क्रोध से भरकर, धड़क कर।
धमकि मारयौ घाउ गुमकि हृदय रहयौ झमकि गहि केस लै चले ऐसे - २६१५।
क्रि. स.
[हिं. गुमकना]


गुमची
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं, गुंजा]


गुमटा
एक कीड़ा।
संज्ञा
[देश.]


घटती
हीनता, अप्रतिष्ठा।
घटती होइ जाहि ते अपनी कीजै ताको त्याग - १०९५।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटदासी
नायक-नायिका का मेल करानेवाली।
संज्ञा
[सं.]


घटदासी
कुटनी।
संज्ञा
[सं.]


घटन
गढ़ा जाना।
संज्ञा
[सं.]


घटन
होना, उपस्थित होना।
संज्ञा
[सं.]


घटना
होना, घटित होना।
क्रि. अ.
[सं. घटन]


घटना
मेल मिल जाना।
क्रि. अ.
[सं. घटन]


घटना
उपयोग में आना।
क्रि. अ.
[सं. घटन]


घटना
कम या क्षीण होना।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


घटना
होनेवाली बात, वाकया।
संज्ञा
[सं.]


घटबढ़
कमीबेशी।
संज्ञा
[हिं. घटना + बढ़ना]


घटबढ़
कमबेश, न्यूनाधिक, कम ज्यादा।
वि.


घटयोनि
अगस्त्य मुनि।
संज्ञा
[सं. घट + योनि]


घटवाई
घाट का कर लेनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घाट+वाई]


घटवाई
कर या तलाशी के लिए रोकनेवाला।
आवत जान न पावत कोऊ तुम मग में घटवाई। सूर स्याम हमको बिरमावत खीझत बहिनी माई - ११४४।
संज्ञा
[हिं. घाट+वाई]


घटवाई
कम करवाई।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटवाना
कम कराना।
क्रि. स.
[हिं. घटना का प्रे.]


घटवार, घटवाल
घाट का कर या महसूल उगाहनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घट + वाला]


घटवार, घटवाल
मल्लाह, केवट।
संज्ञा
[हिं. घट + वाला]


घटवार, घटवाल
घाट पर दान लेनेवाला ब्राह्मण, घाटिया।
संज्ञा
[हिं. घट + वाला]


घटवार, घटवाल
घाट का देवता।
संज्ञा
[हिं. घट + वाला]


घटवारिया, घटवालिया
नदी के घाट पर बैठकर दान लेनेवाजा पंडा।
संज्ञा
[हिं. घाट + वाला]


घटवाही
घाट का कर।
संज्ञा
[हिं. घाट]


घटसंभव
अगस्त्य मुनि।
संज्ञा
[सं.]


घटसुत
अगस्त्य ऋषि जो घट से उत्पन्न माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं. घट + सुत]


घट - सुत - अरितनयापति
श्रीकृष्ण।
घटसुतअरितनयापति सजनी नाहिं नेह निबहो री - सा, उ. ५१।
संज्ञा
[सं. घटसुत = अगस्त्य ऋषि + अरि=शत्रु (अगस्त्य का शत्रु समुद्र)+ तनया (समुद्र की पुत्री लक्ष्मी)+ पति (लक्ष्मी के पति विष्णु = श्रीकृष्ण)]


घट सुत - असनसुत
चंद्रमा।
घटसुत असन समै सुत आनन अमीगलित जैसे मेत - सा. २९।
संज्ञा
[सं. घटसुत = अगस्त्य ऋषि + असन = भोजन (अगत्य ऋषि का भोजन समुद्र जिसका उन्होंने पान किया था) + सुत (समुद्र का पुत्र, चंद्रमा)]


घटस्थापन
किसी मंगल कार्य के पूर्व जल से भरा घडा पूजन के स्थान पर स्थापित करना।
संज्ञा
[सं.]


घटस्थापन
नवरात्र का पहला दिन जब घट की स्थापना होती है।
संज्ञा
[सं.]


घटहा
घाट का ठेकेदार।
संज्ञा
[हिं. घाट+ हा प्रत्य.)]


घटहा
नदी पार पहुँचानेवाली नाव।
संज्ञा
[हिं. घाट+ हा प्रत्य.)]


घटा
उमड़े हुए मेघ, घिरे हुए बादल, मेघमाला।
उड़त फूल उड़गन नभ अंतर, अंजन घटा घनी - २ - २८।
संज्ञा
[सं.]


घटा
समूह।
संज्ञा
[सं.]


घटाई
कम की, क्षीण कर दी।
केतिक राम कृपन, ताकी पितु मातु घटाई कानि - ९ - ७७।
क्रि. स.
[हिं. घटाना]


घटाई
हीनता।
संज्ञा
[हिं. घटना+ई (प्रत्य.)]


घटाई
अप्रतिष्ठा, बेइज्जती।
संज्ञा
[हिं. घटना+ई (प्रत्य.)]


घटाटोप
बादलों की चारो ओर घिरी हुई घटा।
संज्ञा
[सं.]


घटाटोप
गाड़ी, पालकी आदि को ढकनेवाला कपडा या ओहार।
संज्ञा
[सं.]


घटाटोप
चारो ओर से घेर लेनेवाला दल या समूह।
संज्ञा
[सं.]


घटाना, घटावना
कम करना।
क्रि. स.
[हिं. घटना]


घटि
तुच्छ, नीच, गिरी हुई।
(क) डर पावहु तिनको जे डरपहिं तुम ते घटि हम नाहीं - १११९।

(ख) कहाहम या गोकुल की गोपी बरनहीन घटि जाति - ३२२२।

वि.
[हिं. कटना]


घटिक
घंटा बजानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


घटिका
एक घड़ी (मिनट) का समय।
संज्ञा
[सं.]


घटिका
घड़ी यंत्र।
संज्ञा
[सं.]


घटिका
छोटा घड़ा।
संज्ञा
[सं.]


घटित
बना या रचा हुआ, रचित।
वि.
[सं.]


घटित
(बात या घटना) जो हुई हो।
वि.
[सं.]


घटित
भाव, अर्थ आदि के विचार से ठीक उतरा हुआ।
वि.
[सं.]


घटिताई
कमी, त्रुटि।
रनहूँ में घटिताई कीन्हीं। रसना, स्रवन, नैन के होते की रसनाहीं को नहिं दीन्हीं।
संज्ञा
[हिं घटी]


घटिया
कम मोल का, सस्ता।
वि.
[हिं. घट +इया (प्रत्य.)]


घटाना, घटावना
निकाल लेना।
क्रि. स.
[हिं. घटना]


घटाना, घटावना
अपमान या अप्रतिष्ठा करना।
क्रि. स.
[हिं. घटना]


घटाना, घटावना
घटित करना।
क्रि. स.
[सं . घटन]


घटाना, घटावना
भाव, अर्थ अथवा परिणाम के विचार से ठीक ठीक सिद्ध करना या पूरा उतारना।
क्रि. स.
[सं . घटन]


घटाव
कमी, न्यूनता।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटाव
अवनति, पतन।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटाव
नदी का घटना।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटावत
कम करते या घटाते हैं।
बहुत कानि मैं करी सजनी अब देखौ मर्याद घटावत - पृ. ३२९ |
क्रि. स.
[हिं. घटाना]


घटावै
कम या क्षीण करे।
ऐसौ को अपने ठाकुर कौ इहिं बिधि महत घटावै - १ - १९२।
क्रि. स.
[हिं. घटना]


घटि
कम, हीन, घटकर।
(क) अजामिल मनिका हैं कहा मैं घटि कियौ, तुम जो अब सूर चित तें बिसारे - १ - १२०।

(ख) मरियत लाज पाँच पतितनि मैं, हौं अब कहौ घटि कातैं - १.१३७। (ग) दुतिया - चंद बढ़त ही बाढ़ै, घटत घटत घटि जाइ - १ - २६५। (घ) बिधिमर्यादा लोक की लज्जा तृन हूँ तें घटि मानैं - पृ. ३४१ (१३)।

वि.
[हिं. कटना]


घटिया
तुच्छ, नीच।
वि.
[हिं. घट +इया (प्रत्य.)]


घटिहा
मौका देखकर स्वार्थ साधनेवाला।
वि.
[हिं. घात +हा (प्रत्य.)]


घटिहा
चतुर।
वि.
[हिं. घात +हा (प्रत्य.)]


घटिहा
धोखेबाज।
वि.
[हिं. घात +हा (प्रत्य.)]


घटिहा
आचरणहीन।
वि.
[हिं. घात +हा (प्रत्य.)]


घटिहा
दुष्ट, दुखदायी।
वि.
[हिं. घात +हा (प्रत्य.)]


घटी
एक घड़ी (मिनट) का समय।
संज्ञा
[सं.]


घटी
घड़ी यंत्र।
संज्ञा
[सं.]


घटी
घंटा घड़ी।
संज्ञा
[सं.]


घटी
रहँट की घरिया।
संज्ञा
[सं.]


घटी
कमी, हानि, घाटा
संज्ञा
[हिं. घटना]


घटी
घटी आना (पड़ना) :- हानि होना।
मु.


घटी
कम हुई, क्षीण हुई।
हृदय की कबहुँ न जरनि घटी। बिनु गोपाल बिथा या तन की कैसै जाति कटी - १ - ९८।
क्रि. अ.


घटूका
घटोत्कच नामक भीमसेन का पुत्र जो हिडिंबा से पैदा हुआ था।
संज्ञा
[सं. घटोत्कच]


घटै
कम होता है, छोटा होता है, क्षीण होता है, घटता है।
(क) घटै पल - पल, बढ़ै छिन - छिन, जात लागि न बार - १.८८।

(ख) ब्रहावान कानि करी, बल करि नहिं बाँध्यौ। कैसैं परताप घटै, रघुपति आराध्यौ - ९ - ९७।

क्रि. अ.
[हिं. कटना]


घटै
बीते, समाप्त हो, व्यतीत हो।
नींद न परै, घटै नहिं रजनी व्यथा विरह - ज्वर भारी - २७८२।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


घटैगौ
कम होगा, क्षीण होगा।
क्रि. अ.
[हिं. घटना]


घटैगौ
हानि या घाटा होगा, छोटा या तुच्छ हो जायगा।
इहिं बिधि कहा घटैगौ तेरौ १ नंदनंदन करि घर कौ ठाकुर, आपुन ह्वै रहु चेरौ - १ - २६६।
क्रि. अ.
[हिं. घटना]


घटो
घड़ा, कलश।
संज्ञा
[सं. घट]


घटोत्कच
भीमसेन का एक पुत्र जो हिडिंबा राक्षसी से पैदा हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


घटोद्भव
अगस्त्य मुनि।
संज्ञा
[सं घट + उद्भव]


घटोर
मेढ़ा, भेड़।
संज्ञा
[सं. घटोदर]


घट्ट
घाट।
संज्ञा
[सं.]


घट्टकर
घाट का कर।
संज्ञा
[हिं. घाट+कर]


घट्टा
घाटा, हानि।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घट्टा
कमी, घटी
संज्ञा
[हिं. घटना]


घट्टा
दरार, छेद।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घट्टा
घट्ठ।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घट्ठा
हाथ-पैर आदि में अधिक या नये काम के कारण पड़ जानेवाला कड़ा या उभड़ा हुआ चिन्ह।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घड़घड़
घड़घड़ाने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घड़घड़ाना
गड़गड़ाने का शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घड़घड़ाना
गड़गड़ाने का शब्द करना।
क्रि. स.


घड़घड़ाहट
घड़घड़ शब्द होने का भाव।
संज्ञा
[अनु. घड़घड़]


घड़घड़ाहट
बादल गरजने या गाड़ी चलने का शब्द।
संज्ञा
[अनु. घड़घड़]


घड़त
बनावट, ढाँचा।
संज्ञा
[हिं. गढ़त]


घड़नई, घड़नैल
बाँस में घड़े बाँधकर बनाया हुआ नाव का ढाँचा।
संज्ञा
[हिं. घड़ा + नैया (नाव)]


घड़ना
रचना, बनाना।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना]


घड़ा
मिट्टी का गगरा।
संज्ञा
[सं. घट]


घड़ा
घड़ों पानी पड़ना :- लज्जा के कारण सिर नीचा हो जाना, बहुत लज्जित होना।
मुु.


घड़ाई
गढ़ने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गढ़ाई]


गुमटा
मत्थे या सिर की सूजन।
संज्ञा
[सं. गुंबा + टा (प्रत्य.)]


गुमटी
ऊपरी छत।
संज्ञा
[फा. गुंबद]


गुमटी
गोलाकार घर।
संज्ञा
[फा. गुंबद]


गुमटी
चोट के कारण सिर या माथे पर आनेवाली सूजन।
संज्ञा
[फा. गुंबद]


गुमना
खो जाना।
क्रि. अ.
[फा, गुम]


गुमनाम
जिसे कोई जानता न हो।
वि.
[फा.]


गुमर
घमंड।
संज्ञा
[फा. गुमान]


गुमर
दबाया हुआ क्रोध आदि भाव, गुबार।
संज्ञा
[फा. गुमान]


गुमर
कानाफूसी, धीरे धीरे की हुई बात।
संज्ञा
[फा. गुमान]


गुमराह
भूल-भटका।
वि.
[फ़ा.]


घड़ाना
गढ़वाना।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ाना]


घड़ामोड़
शूरवीर।
वि.
[हिं. गढ़+मोड़ना]


घड़िया
मिट्टी का एक पात्र जिसमें चाँदी गलायी जाती है, घरिया।
संज्ञा
[सं. घटिका]


घड़िया
मिट्टी का छोटा प्याला।
संज्ञा
[सं. घटिका]


घड़िया
शहद का छत्ता।
संज्ञा
[सं. घटिका]


घड़िया
गर्भाशय।
संज्ञा
[सं. घटिका]


घड़िया
रहँट की ठिलियाँ।
संज्ञा
[सं. घटिका]


घड़ियाल
थालीनुमा बड़ा घंटा।
संज्ञा
[सं. घटिकालि, प्रा. घड़िआलि= घंटों का समूह]


घड़ियाल
एक बड़ा जलजंतु, ग्राहं।
संज्ञा
[हिं. घड़ा + आल = वाला]


घड़ियाली
घंटा बजानेवाला।
संज्ञा
[हिं. घड़ियाल]


घड़ियाली
घंटा जो पूजन में बजाया जाता है।
संज्ञा


घड़िला
छोटा घड़ा।
संज्ञा
[हिं. घड़ा]


घड़ी
मिनट का समय।
संज्ञा
[सं. घटी]


घड़ी
घड़ी-घड़ी :- बार बार।

घड़ी तोला, घड़ी माशा :- कभी एक बात कभी दूसरी। घड़ी गिनना :- (१) उत्कंठा से प्रतीक्षा करना। (२) मृत्यु का आसरा देखना। घड़ी में घड़ियाल है :- (१) जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं। (२) जरा देर में उलट-पुलट हो जाती है। घड़ी देना :- मुहूर्त या सायत बताना। घड़ी भर :- थोड़ी देर। घड़ी :- सायत पर होना, मरने के करीब होना।

मु.


घड़ी
समय, काल।
संज्ञा
[सं. घटी]


घड़ी
उपयुक्त अवसर।
संज्ञा
[सं. घटी]


घड़ी
समयसूचक यंत्र।
संज्ञा
[सं. घटी]


घड़ीसाज
घड़ी की मरम्मत करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घड़ी + फ़ा. साज]


घड़ीसाजी
घड़ीसाज का काम।
संज्ञा
[हिं. घड़ीसाज]


घड़ोला
छोटा घड़ा।
संज्ञा
[हिं. घड़ा+ओला (प्रत्य.)]


घड़ौंची
घड़ा रखने की चौकी या तिपाई।
संज्ञा
[हिं. घड़ा + औंची (प्रत्य.)]


घण
घन, बादल।
संज्ञा
[हिं. घन]


घतर
प्रभातकाल, तड़का।
संज्ञा
[देश.]


घतिया
घात करने या धोखा देनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घात + इया (प्रत्य.)]


घतियाना
घात या दाँव में लाना।

चुराना, छिपाना।

क्रि. स.
[हिं. घात]


घन
(क) मेघ, बादल।
किधौं घन बरसत नहिं. उन देसनि।
संज्ञा
[सं.]


घन
(ख) पयोधर, स्तन |
पगरिपु लगत सघन घन ऊपर बूझत कहा बतैहै—सा. १०।

(ख) नीकनन तें दिवस डारत परत घन पै हेर - सा. ६०।

संज्ञा
[सं.]


घन
लोहारों का बड़ा हथोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


घन
लोहा।
संज्ञा
[सं.]


घन
मुख।
संज्ञा
[सं.]


घन
समूह।
संज्ञा
[सं.]


घन
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


घन
घंटा।
संज्ञा
[सं.]


घन
लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का विस्तार।
संज्ञा
[सं.]


घन
एक सुगंधित घास।
संज्ञा
[सं.]


घन
अबरक।
संज्ञा
[सं.]


घन
कफ।
संज्ञा
[सं.]


घन
झाँझ, मँजीरा आदि बाजे।
संज्ञा
[सं.]


घन
शरीर।
संज्ञा
[सं.]


घन
घना, गझिन।
वि.


घन घनाना
घन घन शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घन घनाना
घनघन करना।
क्रि. स.


घन घनाना
घंटा बजाना।
क्रि. स.


घनघनाहट
घनघन शब्द या भाव |
संज्ञा
[अनु.]


घनघोर
भीषण ध्वनि, घनघनाहट।
संज्ञा
[सं. घन+घोर]


घनघोर
बादल की गरज।
संज्ञा
[सं. घन+घोर]


घनघोर
बहुत घना।
वि.


घनघोर
बहुत भयानक।
वि.


घनचक्कर
चंचल बुद्धिवाला।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घनचक्कर
मूर्ख।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घन
गठा हुआ, ठोस।
वि.


घन
दृढ़, मजबूत।
वि.


घन
बहुत अधिक।
वि.


घनक
गरज, गड़गड़ाहट।
संज्ञा
[अनु.]


घनकना
गरजना।
अ.
[अनु.]


घनकारा
गरजनेवाला।
वि.
[हिं. घनक]


घनकोदंड
इंद्रधनुष, मदइन।
कुटिल भू पर तिलक - रेखा, सीस सिखिनि सिखंड। मनु मदन धनु - सर - सँघाने, देखि घनकोदंड - १ - ३०७।
संज्ञा
[सं.]


घनगरज
बादल गरजने की ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. घन + गरज]


घनगरज
एक पौधा।
संज्ञा
[हिं. घन + गरज]


घनगरज
एक तोप।
संज्ञा
[हिं. घन + गरज]


घनत्व
अँणुओ गठाव, ठोसपन।
संज्ञा
[सं.]


घनदार
घना, गुंजान।
वि.
[सं. घन, फ़ा. दार (प्रत्य.)]


घननाद
बादलों की गरज।
संज्ञा
[सं.]


घननाद
रावण का पुत्र मेघनाद।
संज्ञा
[सं.]


घननाद
भीषण शब्द।
संज्ञा
[सं.]


घनपति
इंद्र।
संज्ञा
[सं. घन + पति=स्वामी]


घनप्रिय
मोर, मयूर।
संज्ञा
[सं.]


घनप्रिय
मोर शिखा नामक घास।
संज्ञा
[सं.]


घनफल
लंबाई, चौड़ाई और मोटाई (या ऊँचाई) का गुणनफल।
संज्ञा
[सं.]


घनफल
किसी संख्या को दो बार उसीसे गुणा करने पर प्राप्त फल।
संज्ञा
[सं.]


घनबान
एक बाण
संज्ञा
[हिं. घन + बाण]


घनबेल
बेल-बूटेदार, जिसमें बेल-बूटे बने हों।
कहुँ कहुँ कुचन पर दरकी अँगिया घनबेलि।
वि.
[हिं. घन + बेल]


घनबेली
बेला नामक पौधे की एक जाति।
संज्ञा
[सं. घन + हिं. बेल]


घनमूल
घनराशि का मूल अंक।
संज्ञा
[सं.]


घनरस
जल, पानी।
संज्ञा
[सं.]


घनरस
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


घनरस
हाथी का कोढ़ के समान एक रोग।
संज्ञा
[सं.]


घनवर्द्धन
धातु को पीट कर बढ़ाना।
संज्ञा
[सं.]


घनवाह
वायु।
संज्ञा
[सं.]


घनवाहन
इंद्र जिसका वाहन मेघ है।
संज्ञा
[सं.]


घनचक्कर
निठल्ला।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घनचक्कर
आतशबाजी, चरखी।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घनचक्कर
सूर्यमुखी का फूल।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घनचक्कर
चक्कर।
वि.
[सं. घन = चक्कर]


घनता
घना या ठोसपन।
संज्ञा
[सं.]


घनतार, घनताल
चातक पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


घनतार, घनताल
करताल, झाँझ।
संज्ञा
[सं.]


घनतोल
चातक पक्षी, पपीहा।
संज्ञा
[सं.]


घनत्व
घनापन।
संज्ञा
[सं.]


घनत्व
लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का विस्तार।
संज्ञा
[सं.]


घनहर
अनाज भुनाने के लिए भड़भूँजे के पास लेजानेवाला।
संज्ञा
[हिं. घान+हारा (प्रत्य.)]


घनहस्त
एक हाथ लंबा, चौड़ा और मोटा या ऊँचा पिंड, क्षेत्र या मान |
संज्ञा
[सं.]


घना
सघन, गझिन।
वि.
[सं. घन]


घना
घनिष्ट, निकट का
वि.
[सं. घन]


घना
बहुत अधिक, ज्यादा।
वि.
[सं. घन]


घनाक्षरी
दंडक, मनहर या कवित्त।
संज्ञा
[सं.]


घनाघन
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


घनाघन
मस्त हाथी।
संज्ञा
[सं.]


घनाघन
बरसनेवाला बादल |
संज्ञा
[सं.]


घनात्मक
जिसकी लंबाई, चौड़ाई और मोटाई समान हो।
वि.
[सं.]


गुमराह
जो उचित मार्ग पर न चले, कुमार्गी।
वि.
[फ़ा.]


गुमराही
भूल।
संज्ञा
[फा.]


गुमराही
कुमार्ग।
संज्ञा
[फा.]


गुमान
घमंड, अहंकार, गर्व।
(क) दधि लै मथति ग्वालि गरबीली।….। भरी गुमान बिलोकति ठाढ़ी, अपनैं रंग रँगीली - १० - २९९।

(ख) बृन्दाबन की बीथिनि तकि तकि रहत गुमान समेत। इन बातनि पति पावत मोहन जानत होहु अचेत - १०३५।

संज्ञा
[फा.]


गुमान
अनुमान।
संज्ञा
[फा.]


गुमान
लोगों की बुरी धारणा, लोकापवाद।
संज्ञा
[फा.]


गुमाना
खोना, गँवाना।
क्रि. स.
[फा. गुम]


गुमानी
घमंडी, अभिमानी।
वि.
[हिं. गुमान]


गुमाश्ता, गुमास्ता
वह कर्मचारी जो माल खरीदने-बेचने पर नियुक्त हो।
संज्ञा
[फा.]


गुमिटना
लिपटना।
क्रि. अ.
[सं. गुंफित]


घनश्याम
बादल के समान श्याम।
वि.
[सं.]


घनश्याम
काला बादल।
संज्ञा


घनश्याम
श्रीकृष्णचंद्र।
संज्ञा


घनश्याम
श्रीरामचंद्र।
संज्ञा


घनसागर
जल।
संज्ञा
[सं.]


घनसागर
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


घनसार, घनसारि
कपूर।
पवन पानि घनसारि सुमन दै दधिसुत - किरनि भानु भई भुजें - २७२१।
संज्ञा
[सं. घनसार]


घनस्याम
बादल-सा काला।
वि.
[सं. घनश्याम]


घनस्याम
काला बादल।
तड़ित - बसन, घनस्याम - सदृश तन, तेज पुंज तम कौं त्रासै - १ - ६९।
संज्ञा


घनस्याम
श्रीकृष्ण।
अंत के दिन कौं हैं घनस्याम - १.७६।
संज्ञा


घनात्मक
घनफल।
वि.
[सं.]


घनानंद
गद्यकाव्य का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


घनानंद
हिंदी का एक प्रसिद्ध कवि।
संज्ञा
[सं.]


घनाली
घन-समूह।
संज्ञा
[सं. घन + अवली]


घनिष्ट
घना, बहुत अधिक।
वि.
[सं.]


घनिष्ट
पास का, गहरा (संबंध आदि)।
वि.
[सं.]


घनी
सघन, गुंजान।
वि.
[सं. घन]


घनी
घनिष्ट, निकट की।
वि.
[सं. घन]


घनी
बहुत अधिक।
कहा कमी जाके राम धनी। मनसानाथ मनोरथपूरन, सुख निधान जाकी मौज घनी - १ - ३९।
वि.
[सं. घन]


घने
अनेक (संख्यावाचक)।
वि.
[सं. घन]


घबराने
व्याकुल या अधीर हुए।
क्रि. अ.
[हिं. घबराना]


घबराने
सकपका गये, भौचक्के हो गये।
पाती बाँचत नंद डराने। कालीदह के फूल पठावहु सुनि सबही घबराने - ५२६।
क्रि. अ.
[हिं. घबराना]


घमंका
घूँसा।
संज्ञा
[अनु.]


घमंका
वह प्रहार जिससे ‘घस' शब्द हो।
संज्ञा
[अनु.]


घमंड
अभिमान, गर्व।
संज्ञा
[सं. गर्व]


घमंड
घमंड पर आना (होना) :- इतराना, अभिमानना।

घमंड निकलना (टूटना) :- गर्व चूर होना।

मु.


घमंड
बल, वीरता, जोर, भरोसा।
जासु घमंड बदति नहिं काहुहिं कहा दुरावति मोसौं।
संज्ञा
[सं. गर्व]


घमंडिन
गर्वीली, अभिमानिनी।
संज्ञा
[हिं. घमंड]


घमंडी
गर्वी, अभिमानी।
वि.
[हिं. घमंड]


घम
धमाके का शब्द।
वि.
[अनु.]


घपुआ, घप्पु
मूर्ख।
वि.
[हिं. भकुआ]


घपूचंद
मूर्ख आदमी।
संज्ञा
[हिं. घपुआ]


घबड़ाना, घबराना
व्याकुल, अधीर या अशांत होना।
क्रि. अ.
[सं गह्वर या हिं. गड़बड़ाना]


घबड़ाना, घबराना
सकपकाना, भौचक्का होना
क्रि. अ.
[सं गह्वर या हिं. गड़बड़ाना]


घबड़ाना, घबराना
जल्दी करना, आतुर होना।
क्रि. अ.
[सं गह्वर या हिं. गड़बड़ाना]


घबड़ाना, घबराना
ऊबना, जी उजाट होना।
क्रि. अ.
[सं गह्वर या हिं. गड़बड़ाना]


घबड़ाहट, घबराहट
व्याकुलता, अधीरता, अशांति।
संज्ञा
[हिं. घबराना]


घबड़ाहट, घबराहट
सकपकाहट, कर्तव्यविमूढ़ता।
संज्ञा
[हिं. घबराना]


घबड़ाहट, घबराहट
हड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. घबराना]


घबड़ाहट, घबराहट
ऊबासी।
संज्ञा
[हिं. घबराना]


घनेरा
बहुत अधिक (परिमाण वाचक), अतिशय।
वि.
[हिं. घना]


घनेरे
बहुत, अधिक, अगणित (संख्या में)।
भैया - बंधु - कुटुंब घनेरे, तिनतैं कछु न सरी - १ - ७१।
वि.
[हिं. घने + एरे (प्रत्य.)]


घनेरो, घनेरौ
अधिक, अगणित(संख्यावाचक)।
(क) जो बनिता - सुत जूथ सकेले, हयगय बिभव घनेरौ। सबै समपौसूर स्याम कौं, यह साँचौ मत मेरौ - १ - २६६।

(ख) मैं निर्धन, कछु धन नहीं, परिवार घनेरौ - ९ - ४२।

वि.
[हिं. घनेरा]


घनेरो, घनेरौ
बहुत अधिक (परिमाणवाचक), अतिशय।
(क) जु पैचाहि तै स्याम करत उपहास घनेरो - १११९।

(ख) निजं जन जानि हरि इहाँ पठायौ दीनो बोझ घनेरो - ३४३१।

वि.
[हिं. घनेरा]


घनो, घनौ
बहुत अधिक (परिमाणवाचक), ज्यादा।
रवि - सुत - दूत बारि नहिं | सकते, कपट - घनौ उर बरतौ ०१ - २०३।
वि.
[हिं. घना]


घनोपल
ओला।
संज्ञा
[सं. घन+उपल=पत्थर]


घन्नई
घड़ों से बनायी नाव।
संज्ञा
[हिं. घइनैल]


घपचियाना
घबराना।
क्रि. अ.
[हिं घाची]


घपची
मजबूत पकड़।
संज्ञा
[हिं. घन+पंच]


घपला
गड़बड़, गोलमाल।
संज्ञा
[अनु.]


घमके
घूँसे के प्रहार का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घमकना
‘घम' शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु. घम]


घमकना
‘घम' से घूँसा मारना।
क्रि. स.


घमका
’घम' से प्रहार का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घमका
ऊमस. घमसा।
संज्ञा
[हिं. घाम]


घूमकि
‘घम घम' की ध्वनि करके।
(एरी) आनँद सौं दधि मथति जसोदा, घुमकि मथनियाँ घूमै - १० - १४७।
क्रि. वि.
[हिं. घमकना]


घमखोर
जो घाम या धूप में रह सके।
वि.
[हिं: घाम - फ़, खोर (खानेवाला)]


घमघमाना
गंभीर शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घमघमाना
घूँसा मारना।
क्रि. स.


घमघमाना
प्रहार करना।
क्रि. स.


घमर
भारी शब्द, गंभीर ध्वनि।
(क) त्यौं त्यौं मोहन नाचै ज्यौं ज्यौं रई - घमर कौ होई (री) - १० - १४८।

(ख) माखन खात पराये घर कौ। नित प्रति सहस मथानी मथिऐ, मेघ.शब्द दधिमाट घमर कौ - १० - ३३३।

संज्ञा
[अनु.]


घमरा
भँगरी बूटी।
संज्ञा
[सं. भृंगराज]


घमरौल
शोर-गुल, हो-हल्ला।
संज्ञा
[अनु. घमघम]


घमरौल
गड़बड़घोटाला।
संज्ञा
[अनु. घमघम]


घमस, घमसा
ऊमस. तपन।
संज्ञा
[हिं. घाम]


घमस, घमसा
घनापन, सघनता।
संज्ञा
[हिं. घाम]


घमसान
घोर युद्ध।
संज्ञा
[अनु. घम +सान]


घमाका
‘घम' का शब्द।
संज्ञा
[अनु. घम]


घमाघम
घमघम की ध्वनि।
संज्ञा
[अनु. घम]


घमाघम
धूमधाम, चहलपहल।
संज्ञा
[अनु. घम]


घमाघम
घमघम करके।
क्रि. वि.


घमाघम
धूमधाम से।
क्रि. वि.


घमाघमी
मारपीट।
संज्ञा
[हिं. घमाघम]


घमाना
धूप खाना।
क्रि. अ.
[हिं. घाम]


घमायल
धूप में पका हुआ फल।
वि.
[हिं. घाम]


घमासान
घोर युद्ध।
संज्ञा
[हिं. घमासान]


घमीला
घाम में मुरझाया हुआ।
वि.
[हिं. घाम]


घमोई
बाँस का एक रोग।
संज्ञा
[देश.]


घर
मकान, गृह, गेह।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
अपना घर (समझना) :- घर की तरह निःसंकोच व्यवहार का स्थान।

घर उजड़ना :- (१) कुल परिवार की धन-संपत्ति नष्ट होना। (२) घर के प्राणियों को तितर - बितर हो जाना। घर करना :- (१) बसना, रहना। (२) किसी वस्तु के लिए स्थान निकालना। (३) घर का प्रबंध करना। (स्त्री का) घर करना :- (१) पत्नी की तरह रहना। (२) बस जाना। उ. - मनु सीपज घर कियौ बारिज पर - १० - ९३। आँख (चित्त, मन, हृदय) में घर करना :- (१) बहुत पसंद आना। (२) बहुत प्रिय लगना। घर का (की) :- (१) अपना, निजी। उ. - मिसरी सूर न भावत घर की चोरी को गुड मठो - सा. ९०। (२) आपस का, आपसी। (३) अपने परिवार का व्यक्ति। (४) पति, स्वामी। घर का अच्छा :- अच्छे खाते पीते परिवार का। घर का आदमी :- भाई-बंधु। घर का उजाला :- (१) कुल की कीर्ति फैलानेवाला। (२) बहुत प्यारा। (३) बहुत सुन्दर। घर का घरवा (घरौवा) करना :- घर उजाड़ना। घर का बोझ उठाना (सम्हालना) :- घर का प्रबंध करना। घर का भेदी :- घर की सब बातें जाननेवाला। घर का भेदी (भेदिया) लंका दाहै (ढाई) :- घर का भेद बतानेवाला घर का सर्वनाश करा देता है। घर का काटने दौड़ना :- घर का सूनापन भयानक लगना। घर का न घाट का :- (१) जो न इधर का हो न उधर को, दोनों तरफ जिसका आदर न हो। (२) निकम्मा, बेकाम। घर का मर्द (शेर, वीर, बहादुर) :- घर ही में डींग हाँकनेवाला, जो बाहर कुछ न कर सके। घर के बाढे :- घर में या शत्रु के पीठ पीछे डींग हाँकनेवाला, सामने कुछ न कर सकनेवाला। उ. - (क) तुम कुँवर घर ही के बाढ़े अब कछू जिय जानिहौ - २२५९। (ख) अब घर के बाढ़ हो तुम ऐसे कहा रहे मुरझाई - २२६१। घर ही की बाढी :- घर में ही घमंड दिखानेवाली। उ. - ग्वालिन घर ही की बाढ़ी। निस दिन देखत अपने ही आँगन ठाढ़ी। घर का नाम उछालना (डुबोना) :- कुल - परिवार की बदनामी कराना। घर की बात - कुल - परिवार की बात या इज्जत। घर की तरह बैठना (रहना) :- आराम से बैठना या रहना। घर की खेती :- अपने यहाँ पैदा होनेवाली चीज, जो खरीदी न गयी हो।

मु.


घर
चौखटा।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
भंडार, खजाना।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
दाँवपेंच, युक्ति।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
(बाँस का) समूह।
संज्ञा
[सं. गृह]


घरऊ
घरेलू, घराऊ।
वि.
[हिं. घर + ग्राऊ (प्रत्य.)]


घरघराना
घर्र घर्र' ध्वनि करना।
क्रि.अ .
[अनु.]


घरघराना
कुल, परिवार।
संज्ञा
[हिं. घर+घराना]


घरघराहट
घर्र घर की ध्वनि।
संज्ञा
[अनु.]


घरघराहट
कफ के कारण कंठ से साँस लेते समय निकलने वाला शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घरघाल, घरघालक, घरघालन
घर की आर्थिक दशा बिगाड़नेवाला।
वि.
[हिं. घर+घालना]


घर
घर के घर :- (१) चुपचाप, गुप्त रीति से।

(२) बहुत से घर। घर खोना :- घर का नाश करना। घर-घर :- सभी घरों में। घर चलना :- (१) घर का नाश होना। (२) घर की बदनामी होना। घर-घाट :- (१) रंग-ढंग। (२) प्रकृति, स्वभाव। (३) ठौर-ठिकाना। घर-घाट जानना :- सभी भेद जानना। घर घालना :- (१) घर का नाश करना। (२) घर की बदनामी करना। (३) प्रेम करके घर बरबाद कर देना। घर घुसना :- हर समय घर ही में रहनेवाला। घर चलना :- निर्वाह होना। घर चलाना :- निर्वाह करना। घर डुबोना :- (१) घर बरबाद करना। (२) घर की बदनामी कराना। घर डूबना :- (१) घर बरबाद होना। (२) घर की बदनामी होना। घर जमना :- गृहस्थी का सामान जुटना। घर जाना :- कुल का नाश होना। घर जुगुत :- गृहस्थी का प्रबंध। घरझँकनी :- घर-घर झाँकनेवाली। घर तक पहुँचना :- माँ-बहन या बापदादे को गाली देना। घर देखना :- किसी के घर माँगने जाना। घर देख लेना (पाना) :- एक बार कुछ पाकर परच जाना। किसी के घर पड़ना :- पत्नी के रूप से रहना। (वस्तु) घर पड़ना :- किस भाव से घर आना। घर पीछे :- एक एक घर से। घर फटना :- (१) बुरा लगना। (२) घर वालों में झगड़ा होना। घर फूँक तमाशा देखना :- घर की संपत्ति आदि का नाश करके मनोरंजन करना या प्रसन्न होना। घर फोड़ना :- घर वालों में झगडा कराना। घर बंद होना :- (१) घर में ताला पड़ना। (२) घर वालों का तितर-बितर हो जाना। (३) घर से संबंध न रहना। घर बिगाड़ना :- (१) घर की संपत्ति नष्ट करना। (२) घरवालों में फूट पैदा करना। (३) घर की बहू-बेटी को बुरे मार्ग पर ले जाना। घर बनना :- घर की आर्थिक दशा सुधरना। घर बनाना :- (१) जम कर रहना। (२) घर की आर्थिक दशा सुधारना। (३) अपना घर भरना, अपना लाभ करना। घर बरबाद होना :- घर की आर्थिक दशा बिगाड़ना। घर बसना :- (१) घर की दशा सुधरना। (२) विवाह होना। घर बसाना :- (१) घर की दशा सुधारना। (२) विवाह करना। घर बैठना :- (१) एकांत में रहना (२) स्त्रियों में रहना। (३) काम छोड़ बैठना। (४) पत्नी-रूप में रहने लगना। घर बैठे रोटी :- बेमेहनत की जीविका। घर बैठे बैठे :- (१) बिना काम किये। (२) बिना कहीं गये-आये। (३) बिना यात्रा किये। घर भर-परिवार के सब लोग। घर भरना :- (१) अपना ही लाभ करना। (२) हानि की पूर्ति होना। (३) घर में मेहमान आना। घर में :- स्त्री. घरवाली। घर में डालना :- पत्नी रूप में रख लेना। घर में पड़ना :- पत्नी रूप से रहना। घर से :- पास से। घर से पाँव निकालना :- मनमाने ढंग से घूमना-फिरना। घर से बाहर पाँव निकालना :- हैसियत से ज्यादा काम करना। घर से देना :- (१) अपने पास से देना। (२) हानि उठाना। घर सेना :- (१) घर में पड़े रहना। (२) बेकार बैठना। घर होना :- (१) निबाह होना। (२) परस्पर प्रेम या मेल होना।

मु.


घर
जन्मभूमि, जन्मस्थान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
कुल, वंश।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
कार्यालय।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
कोठरी, कमरा।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
रेखाओं से घिरा स्थान, खाना।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
चौपड़, शतरंज आदि का खाना।
चौपरि जगत मड़े दिन बीते। गुन पासे क्रम अंक चार गति सारि न क कबहूँ जीते। चारि पसारि दिसानि, मनोरथ घर फिरि फिरि गिनि आने-१.६०।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
घर बंद होना :- गोटी चलने का रास्ता बंद होना।
मु.


घर
कोश, डिब्बा।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
(संदूक, अलमारी आदि का) खाना।
संज्ञा
[सं. गृह]


गुमेटना
लपेटना।
क्रि. स.
[सं. गुंफित]


गुम्मट, गुम्मर
गुंबद, गुंबज।
संज्ञा
[देश.]


गुम्मट, गुम्मर
चेहरे या शरीर के किसी अंग पर गोल सूजन, मसा या मांस का लोथड़ा।
संज्ञा
[देश.]


गुरंब, गुरंबा
गुड़ की चाशनी में पगाया हुआ पाग।
संज्ञा
[हिं. गुड़ंबा]


गुर
कड़ाह में गाढ़ा करके जलाया हुआ ऊख का रस. गुड़।
(क) रस लैलै - "श्रौटाइ करत गुर, डारि देत है खोई - १ - ६३।

(ख) गूँगे गुर की दसा भई है पूरन स्याम सोहाग सही - १९८२। (ग) अति बिचित्र लरिका की नाई गुर देखाइ बौरावहिं - २९८५।

संज्ञा
[सं. गुड़]


गुर
अध्यापक, उपदेशक, आचार्य।
तुम गुर होहु और जो सीखै तिनकी समुझ सहेली - सा, ८४।
संज्ञा
[हिं. गुरू]


गुर
मूलमंत्र, सार, तत्व की बात।
सूर भजि गोबिंद के गुन, गुर बताए देत - १:३११।
संज्ञा
[सं. गुर मंत्र]


गुर
तीन की संख्या।
संज्ञा
[सं. गुण]


गुर
भारी, बड़ा।
वि.
[सं. गुरु]


गुरगा
चेला, शिष्य।
संज्ञा
[सं. गुरुग]


घर
(पानी आदि के समाने का) स्थान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
(नगीना आदि जड़ने का) स्थान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
छेद, बिल।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
स्वर।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
उत्पत्ति का कारण।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
गृहस्थी, घरबार।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
गृहस्थी का सामान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
गृहस्थी का सामान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
(चोट या चार का) स्थान।
संज्ञा
[सं. गृह]


घर
आँख का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गृह]


घरघाल, घरघालक, घरघालन
कुल में कलंक लगानेवाला।
वि.
[हिं. घर+घालना]


घर जाया
घर का गुलाम।
संज्ञा
[हिं. घर + जाया]


घरणी
घरवाली, स्त्री।
संज्ञा
[हिं. घरनी]


घरदासी
पत्नी।
संज्ञा
[हिं. घर + सं. दासी]


घरद्वार
रहने का स्थान, ठौर, ठिकाना।
संज्ञा
[हिं. घर + सं. द्वार]


घरद्वार
गृहस्थी, घरबार।
संज्ञा
[हिं. घर + सं. द्वार]


घरद्वार
मकान, जायदाद।
संज्ञा
[हिं. घर + सं. द्वार]


घरद्वारी
कर जो घर पीछे लगे।
संज्ञा
[हिं. घरद्वार]


घरन
पहाड़ी भेड़, जुँबली।
संज्ञा
[देश, ]


घरनाल
एक तोप।
संज्ञा
[हिं. घड़ा + नाली]


घरबारी
बाल-बच्चोंवाला, गृहस्थ।
अब तो स्याम भये घरबारी।
संज्ञा
[हिं. घर - +बार]


घरबैसी
उपपत्नी।
संज्ञा
[हिं. घर + बैठना]


घरमकर
सूर्य।
संज्ञा
[सं. घर्म कर]


घरमना
बहना।
क्रि. अ.
[सं. धर्म + ना (प्रत्य.)]


घरघरर
घिसने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घररना
घिसना, रगड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. घररघरर]


घरवा, घरवाहा
छोटा-मोटा घर
संज्ञा
[हिं. घर + वा या वाहा (प्रत्य.)]


घरवा, घरवाहा
घरौंदा।
संज्ञा
[हिं. घर + वा या वाहा (प्रत्य.)]


घरवात
घर का साज-सामान या धन संपति, गृहस्थी।
संज्ञा
[हिं. घर + वात (प्रत्य.)]


घरवाला
घर का स्वामी या मालिक।
संज्ञा
[हिं. घर+वाला (प्रत्य.)]


घरनि, घरनी
घरवाली, भार्या, गृहिणी।
तरुवर.मूल अकेली ठाढ़ी दुखित राम की घरनी। बसन कुचील, चिहुर लपिटाने, बिपति जाति नहिं बरनी - ९ - ७३।

(ख) जांकी घनि हरी छल - बल करि, लायो बिलँब न आवत - ९ - १३३। (ग) सूरदास धनि नंद की घरनी, देखत नैन सिराइ - १० - ३३।

संज्ञा
[सं. गृहिणी, प्रा. घरणी]


घरफोड़ना, घरफोर
घरवालों में झगड़ा-बखेड़ा करानेवाला।
वि.
[हिं. घर + फोड़ना]


घरफोरी
घरवालों में फूट या कलह करानेवाली।
वि.
[हिं. घर + फोड़ना]


घरबसा
उपपति, प्रेमी।
संज्ञा
[हिं. घर + बसना]


घरबसी
रखेली। घर में पत्नी की तरह रहनेवाली प्रेमिका।
संज्ञा
[हिं. घ' +बसना]


घरबसी
घर की दशा सुधारनेवाली।
वि.


घरबसी
घर की दशा बिगाड़नेवाली (व्यंग्य)।
वि.


घरबार
रहने का स्थान, ठौर ठिकाना।
संज्ञा
[हिं. घर + बार=द्वार]


घरबार
घर का जंजाल, गृहस्थी।
संज्ञा
[हिं. घर + बार=द्वार]


घरबार
निज की सारी संपत्ति, गृहस्थी का साज-सामान, घरद्वार।
तुम्हरै भजन सबहि सिंगार। जो कोउ प्रीति करै पद - अंबुज, उर मंडत निरमोलक हार। किंकिनि नूपुर पाट - पटंबर, मानो लिये फिरैं घरबार - १ - ४१।
संज्ञा
[हिं. घर + बार=द्वार]


घरवाला
पति।
संज्ञा
[हिं. घर+वाला (प्रत्य.)]


घरवाली
घर की मालिकिन या स्वामिनी।
संज्ञा
[हिं. घर + वाली (प्रत्य.)]


घरवाली
पत्नी।
संज्ञा
[हिं. घर + वाली (प्रत्य.)]


घरसा
रगड़ा, विस्सा।
संज्ञा
[सं. घर्ष]


घरहाँई, घरहाई
घर में झगड़ा करनेवाली स्त्री।
संज्ञा
[हिं. घर+सं. घाती, हिं.घ ई]


घरहाँई, घरहाई
घर की बुराई करने या कलंक लगानेवाली स्त्री।
संज्ञा
[हिं. घर+सं. घाती, हिं.घ ई]


घरहाँई, घरहाई
झगड़ा करानेवाली।
वि.


घरहाँई, घरहाई
कलंक, लांछन यो दोष लगानेवाली स्त्री।
वि.


घराऊ
घर का, घरेलू।
वि.
[हिं. घर + आऊ (प्रत्य.)]


घराऊ
निजी, आपसी।
वि.
[हिं. घर + आऊ (प्रत्य.)]


घरी
समय, अवसर।
(क) बहुरि हिमाचल के सुभ घरी। पारवती ह्वै सो अवतरी - ४ - ७।

(ख) मेरे कहैं। बिप्रनि बुलाइ, एक सुभ घरी धराइ, बागे चीरे बनाइ भूषन पहिरावौ - १० - ९५।

संज्ञा
[हिं. घड़ी]


घरी
तह, परत।
संज्ञा
[हिं. घर=कोठा, खाना]


घरी
करत घरी-बाँधते हो, ल पेटते हो, सम्हालते हो।
इन निर्गुन निर्मोल की गठरी अब किन करत घरी - ३१०४।
प्र.


घरीक
एक घड़ी भर।
क्रि. वि.
[हिं. घड़ी + एक]


घरुआ, घरुवा
घर का ठीक-ठीक, बँधा-बँधाया प्रबंध या खर्च।
संज्ञा
[हिं. घर+वा (प्रत्य.)]


घरू
घर का, रेलू।
वि.
[हिं. घर + ऊ (प्रत्य.)]


घरेला, घरेलू
पालू, पालतू।
वि.
[हिं. घर + एला, एलू (प्रत्य.)]


घरेला, घरेलू
निजी, घर का।
वि.
[हिं. घर + एला, एलू (प्रत्य.)]


घरेला, घरेलू
घर का बना या तैयार किया हुआ।
वि.
[हिं. घर + एला, एलू (प्रत्य.)]


घरै
घर की।
स्याम अकेले आँगन छाँडे, आपु गई कछु काज घरै - १०.७६।
संज्ञा
[सं. गृह, हिं. घर]


घराती
विवाह में कन्या-पक्ष के लोग।
संज्ञा
[हिं. घर + आती (प्रत्य.)]


घराना
वंश, कुल।
संज्ञा
[हिं. घर + आना (प्रत्य.)]


घरि
घड़ी भर का समय।
(क) तुरतहिं देत बिलंब न घरि कौ - १० - १८१।

(ख) और किए हरि लगी न पलक घरि - ३४०९।

संज्ञा
[हिं. घड़ी, ]


घरिआर, घरियार
घंटाघड़ियाल।
सुनत शब्द घरियार के नृप द्वार बजावत - २५६०।
संज्ञा
[हिं. घड़ियाल]


घरिआर, घरियार
घड़ियाल नामक जल जंतु।
संज्ञा
[हिं. घड़ियाल]


घरिक
घड़ी भर, थोड़ी देर।
(क) तरु दोउ धरनि गिरे भहराइ।…...। कोउ रहे अकास देखत, कोउ रहे सिरनाइ। घरिक लौं जकि रहे जहँ तहँ, देह गति बिसराइ - ३८७।

(ख) घरिक मोहिं लगिई खरिका मैं, तू जनि आवै हेत - ६७९।

क्रि. वि.
[हिं. घड़ी + एक]


घरिया
मिट्टी का एक पात्र जिसमें सोना-चाँदो गलायी जाती है।
संज्ञा
[हिं. घड़िया]


घरियाना
(कपड़े आदि की) तह लगाना, लपेटना।
क्रि. स.
[हिं. घरी]


घरियारी
घंटा बजानेवाला।
संज्ञा
[हिं. घड़ियाल]


घरी
काल का एक समय जो चौबीस मिनट के बराबर होता है।
(क) राम न सुमिरयौ एक घरी - १ - ७१।

(ख) मोकौं मुक्ति बिचारत है प्रभु पचिहौ पहर - घरी - १.१३०।

संज्ञा
[हिं. घड़ी]


घलना
हथियार चल जाना, गोली छूट पड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. घालना]


घलना
मारपीट हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घालना]


घलाघल, घलाघजी
मारपीट।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घलुआ
घेलौना, घाता।
संज्ञा
[हिं. घाल]


घवद
फलों का गुच्छा।
संज्ञा
[हिं. गौद, घौद]


घवरि
फल पत्तियों का गुच्छा।
संज्ञा
[सं. गह्वर]


घसकना
सरकना, खिसकना।
क्रि. अ.
[हिं. खिसकना]


घसखुदा
जो घास खोदता हो।
वि.
[हिं. घास+खोदना]


घसखुदा
मूर्ख, गँवार, अनाड़ी।
वि.
[हिं. घास+खोदना]


घसना
रगडना, घिसना,
क्रि. स.
[सं. घर्षण]


घरैया
रका, घरेलू।
वि.
[हिं. घर + ऐया (पत्य.)]


घरैया
घर का आदमी, संबंधी।
संज्ञा


घरो
घड़ा, गगरा।
संज्ञा
[हिं. घड़ा]


घरौंदा, घरौंधा
बच्चों द्वारा बनाया हुआ धूल-मिट्टी का घर
संज्ञा
[हिं. घर + दा (प्रत्य.)]


घरौंदा, घरौंधा
छोटा-मोटा कच्चा घर।
संज्ञा
[हिं. घर + दा (प्रत्य.)]


घरौना
घर, मकान।
संज्ञा
[हिं. घर + औना (प्रत्य)]


घरौना
छोटा घर, घरौंदा।
संज्ञा
[हिं. घर + औना (प्रत्य)]


घर्घर
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


घर्घर
घड़घड़ाहट, घरघर शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घर्म
घाम, धूप।
संज्ञा
[सं.]


घर्मविंदु
पसीना।
संज्ञा
[सं.]


घर्मान्शु
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


घर्रा
आँख में लगाने का अंजन।
संज्ञा
[हिं. घररघरर]


घर्रा
कफ से गले की घरघराहट।
संज्ञा
[हिं. घररघरर]


घर्रा
घर्रा चलना (लगना) :- मरते समय कफ के कारण साँस का घरघराहट के साथ निकलना।
मु.


घर्राटा
गहरी नींद में नाक से निकलनेवाला ‘घरघर' का शब्द।
संज्ञा
[अनु, घर्र + आटा (प्रत्य.)]


घरोटा
घर्राटा भरना :- गहरी नींद में सोना।
मु.


घर्षण
रगड़, घिस्सा।
संज्ञा
[सं.]


घर्षित
रगड़ा हुआ, रगड़ खाया हुआ।
वि.
[सं.]


घलना
छूट जाना, गिर पड़ना, फेंका जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घालना]


गुदगुदी
मीठी खुजली या सुरसुराहट।
संज्ञा
[हिं. गुदगुदाना]


गुदगुदी
चाव
संज्ञा
[हिं. गुदगुदाना]


गुदगुदी
उत्कंठा।
संज्ञा
[हिं. गुदगुदाना]


गुदगुदी
उमंग।
संज्ञा
[हिं. गुदगुदाना]


गुदड़िया
गुदड़ीवाला।
वि.
[हिं. गुदड़ी]


गुदड़ी
फटे-पुराने कपड़ों से बना ओढ़ना या बिछौना, कंथा।
संज्ञा
[हिं. गूदड़]


गुदड़ी
गुदड़ी के लाल :- साधारण स्थान में बहुमूल्य वस्तु या महान व्यक्ति।

गुदड़ी का लाल :- ऐसा धनी या गुणी जिसके वेश से धन या गुण का पता न लगे।

मु.


गुदन
स्त्री जो गोदना गुदाये हो।
संज्ञा
[हिं. गोदना]


गुदना
गोदा हुआ चिन्ह।
संज्ञा
[हिं. गोदना]


गुदना
चुभना, धँसना, गड़ना।
क्रि. अ.


गुरगा
टहलुआ, नौकर।
संज्ञा
[सं. गुरुग]


गुरगा
दूत, चर, गुप्तचर।
संज्ञा
[सं. गुरुग]


गुर चियाना
सिकुड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. गुरुच]


गुरची
सिकुड़न।
संज्ञा
[हिं. गुरुच]


गुरचों
कानाफूसी, गपचुप बात।
संज्ञा
[अनु.]


गुरज
गदा, सोंटा।
संज्ञा
[हिं. गुर्ज]


गुरज
गुर्जा, बुर्ज।
संज्ञा
[फ़ा. बुर्ज़]


गुरदा
कलेजे के पास का एक अंग।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुरदा
साहस. हिम्मत।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुरदा
छोटी तोप।
संज्ञा
[फ़ा.]


घसीट
घसीटने का भाव।
संज्ञा
[हिं. घसीटना]


घसीट
जल्दी जल्दी लिखा हुआ।
वि.


घसीट
घसीटा हुआ।
वि.


घसीटना
रगड़ते हुए खींचना, कढ़ोरना। यौ-घसीटा-घसीटी-खींचातानी।
क्रि. स.
[सं. घृष्ट, प्रा. घिष्ट + ना (प्रत्य.)]


घसीटना
जल्दी से लिखकर चलता करना।
क्रि. स.
[सं. घृष्ट, प्रा. घिष्ट + ना (प्रत्य.)]


घसीटना
किसी झगड़े या मामले में जबरदस्ती शामिल करना।
क्रि. स.
[सं. घृष्ट, प्रा. घिष्ट + ना (प्रत्य.)]


घसेहो
घिस चुके हो, रगड आये हो।
लटपटी पाग महाबर के रँग मानिनि पग पर सीस घसेहो - १९५५।
क्रि. स.
[हिं. घसना]


घहनाना
किसी धातु खंड (घंटे अदि) पर आघात का शब्द होना, घहराना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घहनाने
(घंटे आदि) बजने या घनघनाने लगे।
क्रि. अ.
[हिं. घहनांना]


घहरत
घोर शब्द करता है, गरजता है।
गर्जत, ध्वनि प्रलयकाल गोकुल भयौ अंधकाल चकृत भए ग्वालबाल घइरत नभ करत चहल - ९४८।
क्रि. अ.
[हिं. घहरना]


घहरना
गंभीर, घोर या भीषण ध्वनि करना, गरजना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घंहराइ
गरजकर, गंभीर शब्द करके, घहराकर।
(क) गगन घहराइ जरी घटा कारी - ३८४।

(ख) फूले बजावत गिरि गिरी गार मदन भेरि घइराइ अपार संतन हित ही फूल डोल - २४१३।

क्रि. अ.
[हिं. घहराना]


घहरात
घोर शब्द करते हैं।
गगन भेद घंहरात थहरात गात - ९६०।
क्रि. अ.
[हिं. घहराना]


घहरान
गंभीर ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. घहराना]


घहराना
गरजना, गंभीर या घोर ध्वनि करना, भीषण शब्द निकालना।
क्रि. अ.
[अनु.]


घहरानि, घहरानी
गंभीर ध्वनि, तुमुल शब्द, गरज।
सुनत घहरानि ब्रज में लोग चकित भए, कहा आघात धुनि करत आव - २० - ६९।
संज्ञा
[हिं. घहराना]


घहरानि, घहरानी
गरजने लगी, घोर शब्द किया।
क्रि. अ.


घहरारा
घोर शब्द, गरज।
संज्ञा
[हिं. घहराना]


घहरारा
घोर शब्द करनेवाला, गरजनेवाला।
वि.


घहरारी
गंभीर ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. घहरारा]


घसना
खाना, भक्षण करना।
क्रि. स.
[सं. घनन]


घसि
घिसकर, रगड़कर, पीसकर।
(क) गुहि गुंजा, घसि बन धातु, अंगनि चित्र ठए - १० - २४।

(ख) एकनि कौं पुहुपनि की माला, एकनि कौं चंदन घसिनीर - १० - २५ (ग) घसि कै गरल चढाइ उरोजनि, लै रुचि सौं पय। प्याऊँ - १० - ४९।

क्रि. अ.
[हिं. घिसना, घसना]


घसि
(अपराध स्वीकार करके क्षमा मागते या बिनती करते हुए माथा आदि चरणों या देहली पर) घिसकर या रगड़कर।
जावक रस मनौ संबर अरिगन पिया मनायी पद ललाट घसि - १९५४।
क्रि. अ.
[हिं. घिसना, घसना]


घसिटना
रगड खाते हुए खिंचना।
क्रि. अ.
[सं. घर्षित + ना (प्रत्य.)]


घसियारा
घास खोदनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घास + आरा (प्रत्य.)]


घसियारा
मूर्ख, नासमझ।
संज्ञा
[हिं. घास + आरा (प्रत्य.)]


घसियारिन, घसियारी
घास बेचनेवाली।
संज्ञा
[हिं. घसियारा]


घसियारिन, घसियारी
मूर्ख या नासमझ स्त्री।
संज्ञा
[हिं. घसियारा]


घसीट
-जल्दी लिखने का भाव
संज्ञा
[हिं. घसीटना]


घसीट
जल्दी लिखा हुआ लेख।
संज्ञा
[हिं. घसीटना]


घहरारी
गंभीर ध्वनि करनेवाली, गरजनेवाली।
वि.


घहरि
गूँजना, शब्दायमान होना।
मथति दधि जसुमति मथानी, पुनि रही घर - घहरि - १० - ६७।
क्रि. अ.
[हिं. घहरना]


घहरै
घोर शब्द करता है।
इहिं अंतर अँधवाह उठयौ इक, गरजत गगन सहित घहरै - १० - ७६।
क्रि. अ.
[हिं. घहरना]


घाँ
दिशा, दिक्।
किहिं घाँ के तुम बीर बटाऊ कौन तुम्हारौ गाउँ - ९४४।
संज्ञा
[सं. ख या घट = ओर]


घाँ
ओर, तरफ, पक्ष।
(क) गर्भ परीच्छित रच्छा कीनी, हुतौ नहीं बस माँ कौ। मेटी पीर परम पुरुषोत्तम, दुख मेट्यौ दुहुँ घाँ कौ - १ - ११३।

(ख) सूर तबहि हम सौं जौ कहती तेरी घाँ ह्वै लरती - १२७१।

संज्ञा
[सं. ख या घट = ओर]


घाँघरा, घँघरी, घाँघरो
स्त्रियों का घेरदार पहनावा, लहँगा।
संज्ञा
[सं. घर्घर= क्षुद्र घंटिका]


घाँची
तेली।
संज्ञा
[हिं. घान + ची]


घाँटी
गले की भीतरी घंटी, कौआ।
संज्ञा
[सं. घंटिका]


घाँटी
गला।
संज्ञा
[सं. घंटिका]


घाँटो
एक तरह का गाना।
संज्ञा
[हिं. घट]


घाई
पानी का भँवर।
संज्ञा
[हिं. घाँ, घा]


घाई
दो उँगलियों के बीच की संधि।
संज्ञा
[सं. गभस्ति =उँगली]


घाई
पेड़ी और ङाल के बीच का कोना।
संज्ञा
[सं. गभस्ति =उँगली]


घाई
चोट, आघात, मार।
संज्ञा
[हिं. घाव]


घाई
धोखा, चालबाजी।
संज्ञा
[हिं. घाव]


घाई
घाइयाँ बताना :- झाँसा देना।
मु.


घाई
पाँच वस्तुओं का समूह।
संज्ञा
[हिं. गाही]


घाउ
संज्ञा घाव, क्षत, जखम, चोट, आघात।
(क) धमकि मारथौ घाउ गुमकि हृदय रहयौ झमकिं गहि केस लै चले ऐसे - २६१५।

(ख) रिषि दधीचि हाड़ ले दान। ताकौ तू निज बज्र बनाउ। मरि है असुर ताहि कैं घाउ - ६ - ५।

संज्ञा
[हिं. घाव]


घाऊघप्प
गुप्त रूपसे माल उड़ानेवाला।
वि.
[हिं. खाऊ+गप या घप]


घाऊघप्प
जिसका भेद न खुले।
वि.
[हिं. खाऊ+गप या घप]


घाँह, घाँही
ओर, तरफ, पक्ष।
संज्ञा
[हिं. घाँ]


घाँह, घाँही
दिशा।
संज्ञा
[हिं. घाँ]


घा
ओर, तरफ।
संज्ञा
[हिं. घाँ]


घाइ
घाव, जख्म, चोट, आघात।
हरि बिछुरे हम जिती सहत हैं तिते बिरह के घाइ - ३१५९।
संज्ञा
[हिं. घाव]


घाइ
मारकर, नाश करके।
क्रि. स.
[हिं. घाना]


घाइल
जिसे घाव लगा हो, जखमी, घायल।
वि.
[हिं. घायल]


घाई
ओर, तरफ।
संज्ञा
[हिं. घाँ, घा]


घाई
दिशा।
संज्ञा
[हिं. घाँ, घा]


घाई
दो वस्तुओं के बीच का स्थान, संधि।
संज्ञा
[हिं. घाँ, घा]


घाई
बार, दफा।
संज्ञा
[हिं. घाँ, घा]


घाघरा
सरजू नदी का एक नाम।
संज्ञा


घाघरिया, घाघरी
घघरिया, लहँगा।
मोहन मुसुकि गही दौरत मैं छूटि तनी छंद रहित घाघरी - २३९६।
संज्ञा
[हिं. घाघर=लहँगा]


घाघस
घाघ पक्षी।
संज्ञा
[हिं. घाघ - घुग्घू]


घाट
नदी या जलाशय का ऐसा स्थान जहाँ लोग नहाते-धोते हैं।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
घाट-वाट-सर्वत्र, सभी स्थलों पर।
करि हियाव, यह सौंज लादि के, हरि कै पुर लै जाहि। घाट-बाट कहुँ अटक होइ नहिं. सब कोउ देहि निंबाहि -- १-३१०।
यौ.


घाट
नदी या जलाशय का वह स्थान जहाँ धोबी कपड़े धोते हैं।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
नदी या जलाशय का वह स्थान जहाँ लोग नाव पर चढ़कर पर उतरते हैं।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
घाट धरना :- राह रोकना।

घाट धरयौ :- जबरदस्ती रास्ता रोक लिया। उ. - धाट धरयौ तुम यहै जानि कै करत ठगन के छंद। घाट मारना :- नाव या पुल का किराया (उतराई) न देना। घाट लगना :- नाव पर एक बार में चढ़नेवाले यात्रियों का इकट्ठा होना। नाव का घाट लगना :- नाव किनारे पहुँचना। (किसी का) किनारे लगना :- आश्रय या सहारा पा जाना।

मु.


घाट
तंग पहाड़ी रास्ता या उतार।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
पहाड़।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाएँ
ओर, तरफ।
संज्ञा
[देश.]


घाएँ
बार, अवसर, दफा।
संज्ञा
[देश.]


घाएँ
ओर से, तरफ से।
क्रि. वि.


घाग, घाघ
एक अनुभवी व्यक्ति जिसकी कहावतें बहुत प्रसिद्ध हैं।
संज्ञा


घाग, घाघ
बड़ा चालक या खुर्राट आदमी।
संज्ञा


घाग, घाघ
जादूगर।
संज्ञा


घाग, घाघ
उल्लू की जाति का एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. घुग्घू]


घाघरा
स्त्रियों का एक पहनावा, लहँगा।
संज्ञा
[सं, घर्घर=क्षुद्रांटिका]


घाघरा
एक कबूतर।
संज्ञा
[सं. घर्घर= उल्लू]


घाघरा
एक पौधा।
संज्ञा
[देश.]


घाट
ओर, तरफ।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
दिशा।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
रंग-ढंग, चाल ढाल।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
तलवार की धार।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
अँगिया का गला।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
दुलहिन का लहँगा।
संज्ञा
[सं. घट्ट]


घाट
छल, कपट, धोखा।
संज्ञा
[सं. घात या हिं. घट= कम]


घाट
बुरा कर्म।
संज्ञा
[सं. घात या हिं. घट= कम]


घाट
कम, थोड़ा।
वि.
[हिं. घट]


घाट
गरदन का पिछला भाग।
संज्ञा
[सं.]


घात
अहित, बुराई।
संज्ञा
[सं.]


घात
दाँव, सुयोग।
आप अपनी घात निरखत खेल जम्यौ बनाई।
संज्ञा
[सं.]


घात
घात पर चढ़ना (में आना) :- वश में आना, हत्थे चढ़ना।

घात में पाना :- काम सिद्ध होने की स्थिति में पा जाना। घात लगना :- सुयोग मिलना। घात लगाना :- उपाय भिड़ाना, तदबीर लगाना, मौका ढूँढ़ना। उ. - सहसबाहु के सुतनि पुनि राखी घात लगाइ। परसुराम जब बन गयौ मारयौ रिसि कौं धाइ - ९ - १४।

मु.


घात
उपयुक्त अवसर या सुयोग की प्रतीक्षा, ताक।
संज्ञा
[सं.]


घात
घात में फिरना :- ताक में घूमना।

घात में बैठना :- छिपकर बैठना या तैयार रहना। घात में रहना (होना) :- अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करना। घात लगाना :- तदबीर लडाना, मौका ताकना।

मु.


घात
दाँव-पेंच, छल-कपट।
(क) मैं जानी पिय मन की बात। धरनी पग - नख कहा करोवत अब सीखे ए घात - २०००।

(ख) घात मन करत लैं डारिहौं दुहुनि पर दियो गज पेलि आपुन हँकारयो - २५९२। (ग) भाजि जाहि सघन स्याम महूँ जहाँ न कोऊ घात - २७७७ |

संज्ञा
[सं.]


घात
घात बताना :- (१) चालाकी सिखाना।

(२) चाल चलना, बहलाना, रास्ता बताना।

मु.


घात
रंग-ढंग, तौर-तरीका, ढब, धज।
संज्ञा
[सं.]


घातक, घातकी
मारनेवाला, हत्यारा।
संज्ञा
[सं. घातक]


घातक, घातकी
क्रूरकर्मा, हिंसक, बधिक, जल्लाद।
माघौ जू मोतैं और न पापी। घातक, कुटिल, चबाई कपटी, महाक्रूर संतापी - १ - १४१
संज्ञा
[सं. घातक]


गुरदा
बडा चमंचा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुरबरा
उर्द की पीठी के बड़े जो गुड़ के रस में या उसकी चटनी में भिगोये गये हों।
मूँगपकौरा पनौ पतबरा। इक कोरे, इक भिजे गुरबरा - ३९६।
संज्ञा
[हिं. गुड़ + बड़ा= पीठी की गोल चकतियाँ]


गुरमुख
गुरू से मंत्र लेनेवाला, जिसने दीक्षा ली हो, दीक्षित।
वि.
[हिं. गुरु + मुख]


गुरम्मर
आम का वह वृक्ष जिसके फल खूब मीठे हों।
संज्ञा
[हिं. गुड़ + अंब]


गुरवी
घमंडी, अहंकारी।
वि.
[सं. गर्व]


गुराई
गोरापन।
संज्ञा
[हिं. गोरा]


गुराब
तोप लादने की गाड़ी।
संज्ञा
[देश.]


गुराव
चारे के टुकड़े।
संज्ञा
[हिं. गुरिया]


गुराव
चारा काटने का हथियार, गड़ासा।
संज्ञा


गुरिंदा
गुप्तचर, भेदिया।
संज्ञा
[फ़ा. गोइंदा]


घाटवाला
घाटिया।
संज्ञा
[हिं. घाट + वाला]


घाटा
हानि, नुकसान।
संज्ञा
[हिं. घटना]


घाटा
घाटा भरना :- कमी पूरी करना।
मु.


घाटारोह
[हिं. घाट+सं. रोध) घाट से किसी को उतरने-चढ़ने न देना।
संज्ञा


घाटि
बाकी (रही), शेष (बची), कम (रही)।
कौन करनी घाटि मोसौं, सो करौं। फिरि काँधि। न्याइकै नहिं खुनुस कीजै, चूक पल्लैं बाँधि - १ - १९९।
वि.
[हिं. घटना, घाटा]


घाटि
नीच कर्म, पाप, बुरा काम।
संज्ञा
[सं. घात, हिं. घाट = कम]


घाटिका
गरदन का पिछला भाग।
संज्ञा
[सं.]


घाटिया
घाट पर दान लेनेवाला ब्राह्मण, गंगापुत्र।
संज्ञा
[सं. घाट+इया (प्रत्य.)]


घाटी
गले का पिछला भाग।
संज्ञा
[सं.]


घाटी
पर्वतों के बीच की भूमि।
संज्ञा
[हिं. घाट]


घाटी
पहाड़ी सँकरा मार्ग, दर्रा।
संज्ञा
[हिं. घाट]


घाटी
पहाड़ी ढाल या उतार।
संज्ञा
[हिं. घाट]


घाटी
मार्ग-कर चुकाने का प्राप्तिपत्र।
संज्ञा
[हिं. घाट]


घाटे
घटकर, कम।
ये कुलटा कलीट वे दोऊ। इक तें एक नहिं घाटे दोऊ
वि.
[हिं. घटना]


घाटो
कमी, घटी, हानि।
संज्ञा
[हिं. घाटा]


घाटो
घाँटो नामक गीत।
संज्ञा
[हिं. घट]


घाटो
दरिद्र।
वि.
[हिं. घटना = कम करना]


घात
प्रहार, चोर, मार।
(क) सुआ पढ़ावत गनिका तारी, व्याध तरयौ सर - घात किऐं - १८९।

(ख) घात करयौ नख उर कौं–७३८।

संज्ञा
[सं.]


घात
घात चलाना :- जादू टोना करना।
मु.


घात
वध, हत्या, नाश।
उ. - (क) प्रान हमारे घात होत हैं तुमरे भावै हाँसी–३०६३।

(ख) सूरदास सिसुपाल पानि गहै पावक जारि करौं तन घात–१०उ. ११।

संज्ञा
[सं.]


घातक, घातकी
शत्रु।
संज्ञा
[सं. घातक]


घातक, घातकी
हानिकारिणी, नाशक।
किंचित स्वाद स्वान बानर ज्यौं, घातक रीति ठटी - १.९८।
वि.
[हिं. घात]


घाता
समाप्त, खत्म।
केसि - कंस दुष्ट मारि, मुष्टिक कियौ घाता - १ - १२३।
वि.
[सं. घात]


घातिक
हत्यारा, वधिक।
संज्ञा
[हिं. घातक]


घातिनी
नाश करनेवाली।
कुच बिष बाँटि लगाइ कपट करि, बालघातिनी परम सुहाई - १० - ५०।
संज्ञा
[सं.]


घातिनी
मारनेवाली।
संज्ञा
[सं.]


घातिया, घाती
घातक, हिंसक, संहारक।
घाती कुटिल ढीठ अति क्रोधी कपटी कुमति, जुलाई - १ - १८६।
संज्ञा
[सं. घातिन्, हिं. घाती]


घातिया, घाती
वध या नाश करनेवाला।
क्यों एं बचन सुअंक सूर सुनि बिरह मदन सर घाती - २९८०।
संज्ञा
[सं. घातिन्, हिं. घाती]


घातुक
बधिक।
वि.
[सं.]


घातुक
क्रूर।
वि.
[सं.]


घाम
घाम खाना :- धूप में रहना।

घाम लगना :- लू खा जाना। घाम में घर छाना :- घर को कष्ट या संकट में डालना। घर में घाम आना :- बड़ी मुसीबत में पड़ जाना।

मु.


घामड़
जो (चौपाया) धूप से व्याकुल हो।
वि.
[हिं. घाम]


घामड़
नासमझ, मूर्ख।
वि.
[हिं. घाम]


घामड़
आलसी।
वि.
[हिं. घाम]


घाय
घाव, जख्म।
संज्ञा
[हिं. घाव]


घायक
मारनेवाला।
वि.
[हिं. घातक]


घायक
घायल करनेवाला।
वि.
[हिं. घातक]


घायल
आहत, चुटैल, जख्मी।
कहुँ जावक कहूँ बने तँबोल रँग, कहुँ अँग सेंदुर दाग्यौ। मानो रन छूटे घायल कौं जहँ तहँ स्रोनित लाग्यौ - १९७२।
वि.
[हिं. घाय]


घार
पानी के बहाव से कटकर बननेवाला गड्ढा या मार्ग।
संज्ञा
[सं. गत्त']


घाल, घाला
घलुआ, घाता।
[हिं. घलना]


घातें, घातैं
दाँव, सुयोग, स्वार्थ सिद्धि का उपयुक्त स्थान और अवसर।
मोंसों कहत स्याम हैं कैसे ऐसी मिलई घातें–१२६०।
संज्ञा
[सं. घात]


घातें, घातैं
चाल, छल, कपटयुक्ति।
(क) मेरी बाँह छोड़ि दै राधा, करत उपरफट बातें। सूर स्याम नागर, नागरि सौं, करत प्रेम की घातै - ६८१।

(ख) हम सब जानत हरि की घातैं - ३३३८। (ग) तुम निसि दिन उर अंतर सोचत ब्रज जुवतिन की घातैं - ३०२४।

संज्ञा
[सं. घात]


घातुक
निष्ठुर, हिंसक।
वि.
[हिं. घात]


घान
उतनी वस्तु जितनी एक बार कोल्हू में पेरने, चक्की में पीसने, कड़ाही में पकाने या भाड़ में भूनने के लिए डाली जाय।
संज्ञाा,
[सं. घन=समूह]


घान
प्रहार, चोट।
संज्ञा
[हिं. घन=बड़ा हथौड़ा]


घाना
संहार या नाश करना, मारना।
क्रि. स.
[सं. घात, प्रा. घाय+ना (प्रत्य.)]


घाना
पकड़ा देना।
क्रि. स.
[हिं. गहना = पकड़ना]


घानी
घान।
संज्ञा
[हिं घान]


घानी
ढेर।
संज्ञा
[हिं घान]


घाम
धूप, सूर्यातप।
मीत, घाम घन, बिपति बहुत बिधि, भार तरैं मर जैहौं - १ - ३३१।
संज्ञा
[सं. घर्म, प्रा. घम्म]


घाल, घाला
घाल न गिनना :- बहुत तुच्छ समझना।
मु.


घालक
मारनेवाला।
जौ प्रभु भेष धरैं नहिं बालक। कैसे होहिं पूतनाघालक - ११०४।
संज्ञा
[हिं. घालना]


घालक
नाश करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घालना]


घालकता
मारने या नाश करने की क्रिया या भावना।
संज्ञा
[सं. घालक + ता (प्रत्य.)]


घालत
बिगाड़ते हैं, नाश करते हैं।
सूर स्याम संगहि सँग डोलत औरनि के घर घालत - पृ० ३२२।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालत
(मारकर) डाल देंगे।
तनक तनक से ग्वाल छोहरन कंस अबहिं | बधि घालत - २५७४।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालति
मारती है, चलाती है, चुभोती है।
घालति छुरी प्रेम की बानी सूरदास को सकै सँभारि।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालना
(किसी वस्तु के भीतर या ऊपर) रखना या डालना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन या घलन]


घालना
फेंकना, चलाना, छोडना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन या घलन]


घालना
(काम) कर डालना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन या घलन]


घाली
घायल किया।
क्रि. स.
[हिं. घायल]


घाले
दूर किये, मिटाये, नष्ट किये।
तुम पूरे सब भाँति मातु पितु संकट घाले - ११३७।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालौं
नष्ट कर दूँ, मिटा दूँ।
इनकी बुद्धि इनकौं अब घालौं - १०४२।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घाल्यौ
बिगाडा, बुरा चैता, अनिष्ट किया।
मैं नहिं काहू को कछु घाल्यौ पुन्यमि करवर नाक्यौ - २३७३।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घाल्यौ
किसी चीज के भीतर या ऊपर डाला।
बिन ही भीत चित्र किन कीनो किन नभ हठ करि घाल्यौ झोरी - ३०२८।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घाव
क्षत, जख्म।
परत निसासनि घाव तमकि धनु तरपत जिहिं जिहिं वार - २८२६।
संज्ञा
[सं. घात, प्रा. घाअ]


घाव
चोट, अघात।
संज्ञा
[सं. घात, प्रा. घाअ]


घाव
घाव खाना :- घायल होना।

घाव (जले) पर नमक (नोन) छिड़कना :- दुख के समय और जी दुखाना। घाव देना :- जी दुखाना। घाव पूजना (भरना, पूरना) :- (१) घाव ठीक होना। (२) शोक या दुख कम होना।

मु.


घावरिया
घाव का इलाज करनेवाला, जर्राह।
संज्ञा
[हिं. घाव + वरिया (वाला)]


घास
तृण, चारा।
हरी घास हू सो नहिं चरै - ५ - ३।
संज्ञा
[सं.]


घालना
नाश करना, बिगाड़ना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन या घलन]


घालना
मार डालना।
क्रि. स.
[सं. घटन, प्रा. घडन या घलन]


घालमेल
मिलावट, गड़बड़।
संज्ञा
[हिं. घालना + मेल]


घालमेल
मेलजोल, घनिष्टता।
संज्ञा
[हिं. घालना + मेल]


घालि
रखकर, डालकर।
टूक टूक ह्वै सुभट मनोरथ आने झोली घालि - ३८२६।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालि
(चोंच आदि) मारकर।
रसमय जानि सुवा सेमर कौं चोंच घालि पछितायौ - १ - ५८।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालि
किसी वस्तु के भीतर या ऊपर रखकर।
कहा मन मैं घालि बैठी भेद मैं नहिं लख सकी - २२५९।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घालिका
नाश करनेवाली।
संज्ञा
[हिं. घालक]


घालिनी
नाश करनेवाली।
संज्ञा
[हिं. घालना]


घाली
चलायी, फेंकी।
क्रि. स.
[हिं. घालना]


घिनौना
घिनावना।
वि.
[हिं. घिनाना]


घिनौरी
एक कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. घिन]


घिन्नी
चरखी। चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घिरनी]


घिय, घियतौ
घी।
ठाढो बाँध्यौ बलबीर, नैननि शिरत नीर, हरिजू तैं प्यारौ तोकौं, दूध, दही घियतौ - ३७३।
संज्ञा
[से, घृत, हिं. घी]


घिया
एक बेल। तुरई।
संज्ञा
[हिं. घी]


घियाकश
कद्दूकश।
संज्ञा
[हिं. घिया +फ़ा. कश]


घियातरोई, घियातोरई
तुरई की लता या फली।
संज्ञा
[हिं. घिया + तोरी]


घिरत
घी, घृत।
घेवर अति घिरत चभोरे - १० - १८३।
संज्ञा
[सं. घृत]


घीरतिं
घिरती हैं, रुकती हैं।
घेरे घिरतिं न तुम बिनु माधौ, मिलतिं न बेगि दई - ६१२।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण, हिं. घिरना]


घिरना
घेरा या छेंका जाना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रहण]


घास
घास काटना (खोदना) :- (१) तुच्छ या हीन काम करना

(२) व्यर्थ का प्रयत्न करना। (३) लापरवाही से काम करना। काटिबो घास :- निरर्थक प्रयत्न करना। उ. - तुम सौं ने प्रेमकथा को कहिबो, मनौ काटिबो घास - ३३३६। घास खाना :- मूर्खता का काम करना। घास छीलना :- तुच्छ या निरर्थक काम करना।

मु.


घासी
चारा, तृण।
संज्ञा
[हिं. घास]


घाह
उँगलियों के बीच की संधि, गावा, घाई।
संज्ञा
[सं. गभस्ति = उँगली]


घाहु
जख्म, आघात, चोट।
देखहु जाइ रूप कुबजा को सहिन सकत यहु घाहु - ३२२४।
संज्ञा
[हिं. घाव]


घिअ
घी, घृत।
संज्ञा
[हिं. घी]


घिआँड़ा
घी का पात्र।
संज्ञा
[हिं. घी + हंडा]


घिआ
एक बेल।
संज्ञा
[हिं. घिया]


घिउ
घी, घृत।
संज्ञा
[हिं. घी]


घिग्घी
रोते-रोते पड़नेवाली सुबकी या हिचकी।
संज्ञा
[अनु.]


घिग्घी
डर के मारे मुँह से शब्द ननिकलना।
संज्ञा
[अनु.]


गुरिद
गदा या सोंटा।
संज्ञा
[फ़ा. गुर्ज़]


गुरिया
माला आदि का दाना, मनका या गाँठ।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुरिया
छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुरीरा, गुरीला
गुड़ की तरह मीठा।
वि.
[हिं. गुड़+ईला (प्रत्य.)]


गुरीरा, गुरीला
सुन्दर, बढ़िया।
वि.
[हिं. गुड़+ईला (प्रत्य.)]


गुरु
बड़ा, लम्बा-चौड़ा।
वि.
[सं.]


गुरु
भारी, वजनी।
वि.
[सं.]


गुरु
जो कठिनता से पके या पचे।
वि.
[सं.]


गुरु
देवताओं के प्राचार्य, बृहस्पति।
संज्ञा


गुरु
बृहस्पति नायक ग्रह।
लटकन लटकि रहे भ्रू् ऊपर रंग रंग मनिगन पोहे री। मानहु गुरु सनि - सुक्र एक ह्वै लाल भाल पर सोहै री - १० - १३९।
संज्ञा


घिघियाना
करुण स्वर से | विनती करना, गिड़गिड़ाना।
क्रि. अ.
[हिं. घिग्घी]


घिघियाना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. घिग्घी]


घिचपिच
स्थान की कमी
संज्ञा
[सं. घृष्ट पिष्ट]


घिचपिच
कम जगह में बहुत सी चीजें होना।
संज्ञा
[सं. घृष्ट पिष्ट]


घिन
नफरत, घृणा, अरुचि।
संज्ञा
[सं. घृणा]


घिन

जी मिचलाना।

संज्ञा
[सं. घृणा]


घिनाना
घृणा करना।
क्रि. अ.
[हिं. घिन]


घिनाने
घृणा करने लगे।
क्रि. अ.
[हिं. घिनाना]


घिनावना
जिसे देखकर घिन लगे, बुरा, गंदा, घिनौना।
वि.
[हिं. घिन + आवना (प्रत्य.)]


घिनैहैं
घृणा करेंगे, अरुचि दिखायँगे।
जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देखि घिनैहैं - १ - ८६।
क्रि. अ.
[हिं. घिनाना]


घिरना
चारो ओर छा जाना।
क्रि. अ.
[सं. ग्रहण]


घिरनी
चरखी,
संज्ञा
[सं. घूर्णन]


घिरनी
चक्कर।
संज्ञा
[सं. घूर्णन]


घिराई
घेरने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घिराना
रगड़ना, घिसना।
क्रि. स.
[अनु, घर्र]


घिराना
चारों ओर से रुकवाना।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घिराव
घेरना।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घिराव
घेरा।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घिरावत
चारो तरह से रुकवाते हैं, घिरवाते हैं।
मैया हौं न चरैहौं गाइ। सिगरे ग्वाल घिरावत मोसौं, मेरे पाइ पिराइँ - ५१०।
क्रि. स.
[हिं. घिराना]


घिरावना
इकट्ठी कराना।
क्रि. स.
[हिं. घिराना]


घिव
घी, घृत।
संज्ञा
[हिं. घी]


घिसकना
सरकना, हटना।
क्रि. अ.
[हिं. खसकना]


घिसघिस
सुस्ती, शिथिलता।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिसघिस
अनिश्चय, गड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिसटना
रगड़ा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घसिटना]


घिसटाना
रगड़ते हुए खीचना।
क्रि. स.
[हिं. घसीटना]


घिसटायौ
रगड़ते हुए घसीटा।
केस गहे पुहुमी घिसिटायौ - २६२१।
क्रि. स.
[हिं. घिसटाना]


घिसन
रगड़।
संज्ञाा
[हिं. घिसना]


घिसन
काम होने से मशीन आदि की क्षीणता।
संज्ञाा
[हिं. घिसना]


घिसना
रगड़ना।
क्रि. स.
[सं. घर्षण, प्रा. घसण]


घिरित
घी।
संज्ञा
[सं. घृत]


घिरिनपरेवा
गिरहबाज कबूतर।
संज्ञा
[हिं. घिरनी + परेवा]


घिरिनपरेवा
एक पक्षी जो पानी के ऊपर मँडराता रहता है।
संज्ञा
[हिं. घिरनी + परेवा]


घिरिया
शिकारियों का घेरा।
संज्ञा
[हिं. घिरना]


घिरौरा
घूस या चूहे का बिल।
संज्ञा
[देश, ]


घिर्राना
घसीटना।
क्रि. स.
[अनु. घिरघिर]


घिर्राना
घिघियाना, गिड़गिडाना।
क्रि. स.
[अनु. घिरघिर]


घिर्री
एक घास।
संज्ञा
[देश.]


घिर्री
चरखी, गराड़ी।
संज्ञा
[देश.]


घिर्री
घेरा, चक्कर।
संज्ञा
[देश.]


घिसना
पीसना, मलना।
क्रि. स.
[सं. घर्षण, प्रा. घसण]


घिसना
रगड़ खाकर कम होना, छीजना।
क्रि. अ.


घिसपिस
घिसघिस।
संज्ञा
[अनु.]


घिसपिस
मेलजोल।
संज्ञा
[अनु.]


घिसवाना
रगड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. घिसाना]


घिसाई
घिसने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिसाना
रगड़ना।
क्रि. स.
[हिं. घिसना का प्रे.]


घिसावन
रगड़, घिसन।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिसि
घिसकर, पीसकर।
कुब्जा घिसि चंदन लै आई - सारा, ५०२।
क्रि. स.
[हिं. घिसना]


घिसिआना, घिसियाना
घसीटना।
क्रि. स.
[हिं. घिसना]


घींचना
खींचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. खींचना]


घी
दूध का सार, घृत।
संज्ञा
[सं. घृत, प्रा. घीअ]


घी
घी का कुप्पा :- बड़ा धनी।

घी का कुप्पा लुढ़कना :- (१) धनी आदमी का मरना। (२) गहरी हानि होना। घी के कुप्पे से जा लगना :- (१) धनी से भेंट और लाभ होना। (२) मोटा होने लगना। घी के दिये जलना :- (१) कामना पूरी होना। (२) उत्सव होना। (३) धन धान्य से पूर्ण होना। घी के दिये जलाना :- (१) इच्छा पूर्ति पर उत्सव मनाना। (२) धन-धान्य से पूर्ण होना। घी के दिये भरना :- (१) उत्सव मनाना। (२) सुख-संपति भोगना। घी -खिचड़ी :- खूब मिला-जुला। घी खिचड़ी होना :- बहुत गहरी मित्रता होना। पाँचों उँगलियाँ घी में होना :- खूब लाभ का सुख होना।

मु.


घीउ, घीऊ
घी, घृत।
संज्ञा
[हिं. घी]


घीकुवाँर
ग्वार पाठा।
संज्ञा
[सं. घृतकुमारी]


घीया
तुरई।
संज्ञा
[हिं. घी]


घीया
कद्दू।
संज्ञा
[हिं. घी]


घीव
घी।
रोटी, बाटी, पोरी झोरी। इक कोरी, इक घीव नभोरी - ३९६।
संज्ञा
[हिं. घी]


घीसा
घिसने या रगड़ने की क्रिया, माँजा, रगड़।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घुँगची, घुँघची
गुंजा की लता।
संज्ञा
[सं. गुंजा, प्रा. गुंचा]


घिसियाइ
घसीटेगा, रगड़ेगा।
तुमहिं कहत कोउ करै सहाइ। वह देवता कंस मारैगौ, केस धरे धरनी घिसिआइ - ५३१।
क्रि. स.
[हिं. घिसिआना]


घिसिरपिसिर
घिसघिस।
संज्ञा
[अनु.]


घिस्टपिस्ट
गहरा मेलजोल, घनिष्टता।
संज्ञा
[हिं. घिस घिस]


घिस्टपिस्ट
अनुचित संबंध।
संज्ञा
[हिं. घिस घिस]


घिस्समघिस्सा
खूब भीड़भाड़।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिस्समघिस्सा
हाथ से डोरी लड़ाने को खेल।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिस्सा
रगड़ा।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिस्सा
धक्का, ठोकर।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घिस्सा
हाथ से डोरी लड़ाने का खेल।
संज्ञा
[हिं. घिसना]


घींच
गरदन, ग्रीव।
(क) घींच मरोरि, दियौ कागासुर मेरें ढिग फटकारी - १० - ६०।

(ख) नाथत ब्याल बिलँब न कीन्हौ। पग सौं चाँपि घींच बल तोरयौ, नाक फोरि गहि लीन्हौ - ५५७।

संज्ञा
[सं. ग्रीव अथवा हिं. घींचना]


घुँघरू
बूट का कोष जिसमें चना दाना रहता है।
संज्ञा
[अनु. घुन घुन + सं. रव या रू]


घुँघरू
सनई का सूखा फल जिसके बीज बजते हैं।
संज्ञा
[अनु. घुन घुन + सं. रव या रू]


घुँघरूदार
जिसमें घुँघरू लगे या बंधे हों, घुँघुरुओं से युक्त।
वि.
[हिं. घुँघरू + फ़ा. दार]


घुँघवारा, घुघवारे
छल्लेदार।
वि.
[हिं.घुँघराला]


घुंडी
कपड़े की सिली हुई छोटी गोली जो बटन की जगह लगायी जाती है।
संज्ञा
[सं, ग्रंथि]


घुंडी
जी की घुंडी खोलना :- मन से बैर द्वेष निकालना।
मु.


घुंडी
कड़े, बाजु, जोशन आदि गहनों की गाँठ।
संज्ञा
[सं, ग्रंथि]


घुंडी
कटने पर धान की जड़ से फूटनेवाला नया अंकुर, दोहला।
संज्ञा
[सं, ग्रंथि]


घुंडीदार
घुंडीवाला।
वि.
[हिं. घुंडी+फ़ा. दार]


घुग्घू. घुघुआ
उल्लू।
संज्ञा
[सं. घूक, हिं. घुग्घू]


घुँगची, घुँघची
इस लता को लाल बीज जिस पर एक छोटा काला छींटा रहता है।
संज्ञा
[सं. गुंजा, प्रा. गुंचा]


घुँघनी
घी-तेल में तला हुआ अन्न।
संज्ञा
[अनु.]


घुँघनी
घुँघनी मुँह में रखकर बैठना :- मौन रहना।
मु.


घुँवरारे, घुँघराला, घुँघराले
छल्ले या लच्छेदार (बाल)।
मृगमद मलय अलक घुँघरारे। उन मोहन मन हेरे हमारे।
वि.
[हिं. घुँघरना+वाले]


घुँघरू
धातु की पोली गुरिया जिसमें कंकड़ आदि भरकर बजाते हैं।
संज्ञा
[अनु. घुन घुन + सं. रव या रू]


घुँघरू
घुँघरू सा लदना :- शरीर में बहुत अधिक चेचक के दाने, छाले या फुंसियाँ होना।
मु.


घुँघरू
छोटी छोटी गुरियों का बना पैर का गहना जो बच्चों को पहनाया जाता है या नाचनेवाले पहनते हैं।
प्रेम सहित पग बाँधि घूँघरू सक्यौ न अंग नचाइ - १५५।
संज्ञा
[अनु. घुन घुन + सं. रव या रू]


घुँघरू
घुँघरु बाँधना :- (१) नाचना सिखाने के लिए चेला बनाना।

(२) नाचने को तैयार होना।

मु.


घुँघरू
मरते समय कफ की अधिकता के कारण निकलनेवाला घुरघुर शब्द।
संज्ञा
[अनु. घुन घुन + सं. रव या रू]


घुँघरू
घुँघरू बोलना :- मरते समय कफ के कारण घुरघुर शब्द निकलना, घर्रा या घटका लगना।
मु.


घुघुआना, घुघुवाना
उल्लू का, या उल्लू की तरह, बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. घुघुआ]


घुघुआना, घुघुवाना
बिल्ली का, या बिल्ली की तरह, गुर्राना।
क्रि. अ.
[हिं. घुघुआ]


घुघरी, घुघुरी
घुँघरू।
संज्ञा
[हिं. घुँघरू]


घुघरी, घुघुरी
घी-तेल में तला अन्न।
संज्ञा
[हिं. घु्घुनी]


घुटकना
पीना।
क्रि. स.
[हिं. घूँट+करना]


घुटकना
निगलना।
क्रि. स.
[हिं. घूँट+करना]


घुटकी
घुटकने की नली।
संज्ञा
[हिं. घुटकना]


घुटना
जाँध और टाँग के बीच की गाँठ, संधि या जोड़।
संज्ञा
[सं. घुंटक]


घुटना
घुटना टेकना :- (१) घुटनों के बल बैठना।

(२) नम्र होना, प्रार्थना करना। घुटनों (के बल) चलना :- बच्चों का बैंयाँ बैयाँ चलना। घुटनों में सिर देना :- (१) सिर नीचा करना, चिंतित या उदास होना। (२) मुँह छिपाना, लज्जित होना। घुटनों से लगकर बैठना :- हर समय पास रहना।

मु.


घुटना
साँस का रुकना, फँसना या खुल कर न लिया जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


गुरुच
एक बेल।
संज्ञा
[सं. गुंडुची]


गुरुज
गदा, सोंटा।
संज्ञा
[फ़ा. गुर्ज]


गुरुज
किले की बुर्जी, गरगज।
संज्ञा
[अ. बुर्ज]


गुरुज
मीनार या अन्य इमारत का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[अ. बुर्ज]


गुरुजन
विद्या, बुद्धि, वय, पद आदि में बड़े, पूज्य व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गुरुता, गुरुताई
भारीपन।
संज्ञा
[सं. गुरुता]


गुरुता, गुरुताई
बड़प्पन।
संज्ञा
[सं. गुरुता]


गुरुता, गुरुताई
गुरु या आचार्य का कर्तव्य।
संज्ञा
[सं. गुरुता]


गुरुत्व
भारीपन।
संज्ञा
[सं.]


गुरुत्व
बड़प्पन।
संज्ञा
[सं.]


घुटरुनि, घुटरुवनि
घुटनों के बल।
(क) घुटरुनि चलत अजिर महँ बिहरत मुख मंडित नवनीत - १० - ९७।

(ख) घुटरुन चलत कनक आँगन में - सारा. १६६।

क्रि. वि.
[हिं. घुटना]


घुटरूँ
पैर के बीच की गाँठ या जोड़, घुटना।
संज्ञा
[हिं. घुटना]


घुटवाना
घोट्ने। या रगड़ने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. घोटना का प्रे.]


घुटवाना
बाल मुँड़ाना
क्रि. स.
[हिं. घोटना का प्रे.]


घुटाई
घोटने, रगडने, चिकना या चमकीला बनाने की क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हि.घुटना]


घुटाना
घोंटने या रगड़ने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. घोटना का प्रे]


घुटाना
बाल मुड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. घोटना का प्रे]


घुटुरुनि, घुटुरुअनि, घुटुरुवनि
घुटनों के बल।
(क) कबहिं घुटुरुवनि, चलहिंगे, कहि, बिधिहिं मनावै - १० - ७४।

(ख) कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगै, कब धरनी पग द्वै क धरै - १०.७६। (ग) घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित सूरदास बलि जाई - १० - १०८।

क्रि. वि.
[सं. घुंटक, हिं. घुटना]


घुटुरू, घुटुवा
घुटना।
संज्ञा
[हिं. घुटना]


घुट्टा
घोटने की वस्तु।
संज्ञा
[हिं. घोटा]


घुट्टी
बच्चों की एक दबा।
संज्ञा
[हिं. घूँट]


घुट्टी
घुट्टी में पड़ना :- स्वभाव का अंग होना।
मु.


घुड़कना
डाँटना, डपटना।
क्रि. स.
[सं. घुर]


घुड़की
डाँट, डपट, फटकार।
संज्ञा
[हिं. घुड़कना]


घुड़की
घुड़कने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घुड़कना]


घुइकी
बंदर घुड़की-झूठमूठ डराना, धमकाना।
या


घुड़चढ़ा
घुड़सवार।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + चढ़ना]


घुड़चढ़ी
विवाह की एक रीति जिसमें दुलहिन के घर जाने के लिए दूल्हा | घोड़े पर चढ़ता है।
संज्ञा
[हिं. घोड़.+चढ़ना]


घुड़दौड़, घुड़दौर
घोड़ों की दौड़।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + दौड़]


घुड़दौड़, घुड़दौर
जुआ। जो घोड़ों के दौड़ने पर खेला जाता है।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + दौड़]


घुटना
घुटघुट कर मरना :- (१) बड़ी कठिनता से प्राण निकलना।

(२) बहुत कष्ट सहकर जीवन बिताना। (३) कष्ट सहने को इस प्रकार विवश या अधीन होना कि उसका विरोध करना तो दूर, चर्चा तक न कर सकना।

मु.


घुटना
फँसना, उलझ कर खड़ा हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


घुटना
पीसा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घोटना]


घुटना
घुटा हुआ :- बहुत चालाक, काँइयाँ, छँटा हुआ।
मु.


घुटना
रगड़ से चिकना-चमकीला होना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


घुटना
मेल जोल या घनिष्टता होना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


घुटना
घुसघुस कर बातें होना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


घुटना
(कार्य या अभ्यास) बार बार होना।
क्रि. अ.
[हिं. घूँटना या घोरना]


घुटना
जोर से पकड़ना या कसना।
क्रि. स.
[अनु.]


घुटन्ना
पायजामा।
संज्ञा
[हिं. घुटना]


घुड़दौड़, घुड़दौर
बड़ी तेजी या शीघ्रता से।
क्रि. वि.


घुड़नाल
एक तोप।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + नाल]


घुड़बहल
वह रथ जिसमें घोड़े जोते जाते हों।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + बहल]


घुड़मुहाँ
लंबे मुँहवाला।
वि.
[हिं. घोड़ा+मुँह]


घड़ला
मिट्टी धातु आदि का घोड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + ला (प्रत्य.)]


घड़ला
छोटा घोड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + ला (प्रत्य.)]


घुड़सार, घुड़साल
घोड़े बाँधने का स्थान, अस्तबल, पैड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा + शाला]


घुड़िया
छोटी घोड़ी।
संज्ञा
[हि. घोड़ी (अल्प.)]


घुड़िया
दीवाल में लगी खूँटी।
संज्ञा
[हि. घोड़ी (अल्प.)]


घुण
एक बहुत छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


घुन्ना
क्रोध, द्वेष आदि को मन ही मन रखने या पालनेवाला, चुप्पा।
वि.
[अनु. घुनघुनाना]


घुन्नी
मन का भाव छिपाने में कुशल, चुप्पी, मौन।
वि.
[हिं. घुन्ना]


घुप
गहरा या घना (अँधेरा)।
वि.
[सं. कूप या अनु.]


घुमँड़ना
इकट्ठा होना, छाना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमड़ना]


घुमक्कड़
बहुत घूमने-फिरनेवाला।
वि.
[हिं. घूमना + अकड़ (प्रत्य)]


घुमक्कड़
आवारा।
वि.
[हिं. घूमना + अकड़ (प्रत्य)]


घुमची
गुंजा, गुंजिका।
संज्ञा
[हिं. घुँघची]


घुमटा
चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घूमना + टा (प्रत्य.)]


घुमड़
बादलों का उमड़ना।
संज्ञा
[हिं. घुमड़ना]


घुमड़ना
बादलों का छाना या उमढ़ना।
क्रि. अ.
[हिं. घूम + अटना]


घुणाक्षरन्याय
ऐसा कार्य या रचना जो अनजान या आकस्मिक रूप से हो जाय।
संज्ञा
[सं.]


घुन
एक छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[सं. घुण]


घुन
घुन लगना :- (१) इस कीड़े की लकड़ी या अनाज को खाना।

(२) धीरे धीरे किसी चीज का छीजना या नष्ट होना।

मु.


घुनघुना
एक खिलौना, झुनझुना।
संज्ञा
[अनु.]


घुनना
घुन के द्वारा लकड़ी आदि का खाया जाना।

ना।

क्रि. स.
[हिं. घुन]


घुनना
किसी चीज का भीतर ही भीतर छीजना या नष्ट होना।
क्रि. स.
[हिं. घुन]


घुना
घुना हुआ, छीज हुआ।
वि.
[हिं. घुनना]


घुना
घुन गया, नष्ट हो गया।
क्रि. स.


घुनि
घुन लग गया, घुन गया।
स्याम के बचन सुनि, मनहिं मन रहयो गुनि, काठ ज्यौं गयौ घुनि, तनु भुलानौ - ५९०।
क्रि. स.
[हिं. घुनना]


घुनो
घुना हुआ, छीजा हुआ।
घुनो बाँस गत बु न्यौ खटोला काहू को पलँग कनक पाटी को - १० उ. - ७१।
वि.
[हि. घुना]


घुमड़ना
इकट्ठा होना, छाना।
क्रि. अ.
[हिं. घूम + अटना]


घुमड़ाना
छाना, उमड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमड़ना]


घुमड़ाना
छाया हुआ, उमडते हुए।
वि.


घुमड़ा
घूमने या चक्कर खाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमड़ा
सिर का चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमड़ा
चक्कर आने का रोग।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमड़ा
परिक्रमा।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमना
घूमनेवाला, घुमक्कड़।
वि.
[हिं. घूमना]


घुमनी
घूमने-फिरनेवाली।
वि.
[हिं. घुमना]


घुमनी
चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमरी
चक्कर आने की बीमारी
संज्ञा
[हिं. घुमड़ा]


घुमरयौ
घुमरने लगा।
पटकि चरन नृप स्रवनन घुमरयौ - २६४३।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुमाँ
जमीन की एक नाप जो दो बीघों के बराबर होती है।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमाना
चक्कर देना, चारो ओर फिराना।
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
टहलाना सैर कराना।
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
किसी विषय या काम में लगाना
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
चक्कर देना, चारो ओर फिराना।
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
टहलाना सैर कराना।
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
किसी विषय या काम में लगाना
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमाना
ऐंठना, मरोड़ना।
क्रि. स.
[हिं. घूमना]


घुमनी
चक्कर आने का रोग।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमनी
परिक्रमा।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घुमरना
घोर शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु. घमघम]


घुमरना
बादलों का छाना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमड़ना]


घुमरना
घूमना-फिरना।
क्रि. अ.
[हि. घूमना]


घुमरात
घुमरता हुआ।
गरजि घुमरात मद मार गंडनि स्रवत पवन ते बेग | तेहि समय चीन्हो - २५९१।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुमराना
शब्द करना, गूँजना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुमरि
घोर शब्द करके, ऊँचे स्वर से बजकर, गूँजकर।
सूर धन्य जदुबंस उजागर धन्य धन्य धुनि घुमरि रह्यौ–२६१६।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुमरी
चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घुमड़ा]


घुमरी
(पानी का) भँवर।
संज्ञा
[हिं. घुमड़ा]


घुरमित
घूमता हुआ।
वि.
[सं. घूर्णित]


घुरहुरी
पगडंडी।
संज्ञा
[हिं. घुर + हर (प्रत्य.)]


घुरि
घुलकर, हिलमिलकर।
फेनी घुरि मिसि मिली दूध संग - २३२१।
क्रि. अ.
[हिं. घुलना]


घुरि
शब्द करके, बजकर।
क्रि. अ.
[हिं. घुरना]


घुरुहरी
तंग रास्ता, पगडंडी।
संज्ञा
[हिं. घुरहुरी]


घुरे
कूड़े-करकट का ढेर, घूरा।
फलन माँझ ज्यों करुई तोमरि रहत घुरे पर डारी - २९३५।
संज्ञा
[हिं. घूरा]


घुरे
बजने या शब्द करने लगे।
क्रि. अ.
[हिं. घुरन]


घुर्मित
घूमता फिरता हुआ चक्कर खाता हुआ।
क्रि. वि.
[सं. घूर्णित]


घुर्राना
घुरघुर शब्द करना।
क्रि. अ.
[हिं. गुर्राना]


घुर्रुवा
जानवरों का एक रोग।
संज्ञा
[देश.]


गुरु
पुष्प नक्षत्र।
संज्ञा


गुरु
कुलगुरू, कुलाचार्य।
संज्ञा


गुरु
किसी मन्त्र का उपदेष्टा।
संज्ञा


गुरु
शिक्षक, उस्ताद।
संज्ञा


गुरु
दीर्घ मात्रावाला अक्षर।
संज्ञा


गुरु
वह व्यक्ति जो विद्या, वय, पद आदि में बड़ा हो।
सूरज दोष देत गोबिंद कौं गुरु तोगनि न लजात - १० - २९४।
संज्ञा


गुरु
ब्रह्मा।
संज्ञा


गुरु
विष्णु।
संज्ञा


गुरु
शिव।
संज्ञा


गुरु
कुमंत्रणा देनेवाला व्यक्ति, गुरु घंटाल (व्यंग्य)।
एक हरि चतुर हुते पहिले ही अब बहुतै उन गुरु सिखई - ३३०४।
संज्ञा


घुमाव
घुमाने का भाव।
संज्ञा
[हिं. घुमाना]


घुमाव
फेर, चक्कर।
संज्ञा
[हिं. घुमाना]


घुमाव
घुमाव-फिराव की बात :- छल कपट, हेर फेर या दाँव-पेंच की बात या चाल।
मु.


घुमावदार
जिसमें घुमव-फिराव या चक्कर हों, चक्करदार।
वि.
[हिं. घुमाव+फ़ा. दार]


घुम्मरना
शब्द करना, बजना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुम्मरना
उमड़ना, छाना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुम्मरना
घूमना।
क्रि. अ.
[हिं. घुमरना]


घुरकना
घुड़की देना।
क्रि. अ.
[हिं. घुड़कना]


घुरकी
घुड़की, डाँटडपट।
लोचन भरि भरि दोऊ माता, कनछेदन देखत जिय मुरकी। रोवत देखि जननि अकुलानी, दियौ तुरत नौवा कै घुरकी - १० - १८०।
संज्ञा
[हिं. घुड़कन, घुड़की]


घुरघुर
कफ रुकने के कारण होनेवाली शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घुरघुर
(बिल्ली आदि के) गुर्राने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


घुरघुराना
घुरघुर करना।
क्रि. अ.
[अनु. घुरघुर]


घुरघुराहट
घुरघुर शब्द निकालने का भाव, घुर्राहट।
संज्ञा
[हिं. घुरघुराना]


घुरत
बजता है, शब्द करता है।
अवधपुर आए दसरथ राई।…..। घुरत निसान, मृदंग - सुख धुनि, भेरि झाँझ सहनाइ - ९ - २९।
क्रि. अ.
[सं. घुर]


घुरना
हिलमिल जाना।
क्रि. अ.
[हिं. घुलना]


घुरना
शब्द करना, गूँजना।
क्रि. अ.
[सं. घुर]


घुरबिनिया
घूरे के दाने बीनना।
संज्ञा
[हिं. घूरा + बीनना]


घुरबिनिया
टूटी-फूटी चीजें बीनना।
संज्ञा
[हिं. घूरा + बीनना]


घुरबिनिया
घूरे से दाने बीननेवाला।
वि.


घुरमना
फिरना, चकराना।
क्रि. अ.
[हिं. घूमना]


घुलना
किसी द्रव पदार्थ का खूब हिल-मिल जाना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन, प्रा. घुलन]


घुलना
घुलघुल कर बातें करना :- बड़ी लगन या प्रीति से बातें करना।

घुलमिलकर :- बड़ी लगन या प्रीति से। नजर (आँखें) घुलना :- प्रेमपूर्वक देखना।

मु.


घुलना
जल, दूध आदि के संयोग से गलना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन, प्रा. घुलन]


घुलना
नरम या पिलापिला होना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन, प्रा. घुलन]


घुलना
रोग आदि से शरीर क्षीण या दुर्बल होना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन, प्रा. घुलन]


घुलना
घुला हुआ :- जिसकी शक्तियाँ क्षीण हो गयी हैं, बुड्ढा।

घुलघुल कर काँटा होना :- इतना दुर्बल होना कि हड्डियाँ दिखायी दें।

मु.


घुलना
(समय) बीतना या व्यतीत होना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन, प्रा. घुलन]


घुलाना
गलाना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलाना
शरीर क्षीण करना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलाना
धीरे धीरे रस चूसना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलाना
पकाकर या दबाकर पिलपिला करना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलाना
समय बिताना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलाना
घुलने की क्रिया।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घुलावट
घुलने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घुलना]


घुसना
अंदर जाना, प्रवेश करना।
क्रि. अ.
[सं. कुश = घेखा अथवा घर्षण]


घुसना
चुभना, गड़ना।
क्रि. अ.
[सं. कुश = घेखा अथवा घर्षण]


घुसना
किसी काम में दखल देना।
क्रि. अ.
[सं. कुश = घेखा अथवा घर्षण]


घुसना
किसी विषय में ध्यान लगाना।
क्रि. अ.
[सं. कुश = घेखा अथवा घर्षण]


घुसना
दूर होना, जाती रहना।
क्रि. अ.
[सं. कुश = घेखा अथवा घर्षण]


घुसपैठ
पहुँच।
संज्ञा
[हिं. घुसना + पैठना]


घुसाना
भीतर करना, प्रवेश करना
क्रि. स.
[हिं. घुसना]


घुसाना
चुभाना, धँसाना।
क्रि. स.
[हिं. घुसना]


घुसेड़ना
घुसाना, धँसाना।
क्रि. स.
[हिं. घुसना]


घूँगची
गुंजा।
संज्ञा
[हिं. घुँघची]


घूँघट
साड़ी जैसे वस्त्र का वह भाग जिससे कुलवधू का मुँह ढँका रहता है।
(क) घूँघट पट कोट टूटे, छुटे दृग ताँजी - ६५०।

(ख) घूघट ओट महल में राखति पलक कपाट दिये - पृ. ३२६।

संज्ञा
[सं. गंठ]


घूँघट
घूँघट उठाना (उलटना) :- (१) घुँघट हटाकर मुँह खोलना।

(२) परदा दूर करना। (३) नयी वधू का मुँह खोलना। घूँघट करना :- लाज-शर्म करना। घूँघट काढ़ना (निकालना, मारना) :- घूँघट डाल कर मुँह ढकना। दै घूँघट पट :- घूँघट काढ़कर, मुँह ढककर। उ. - दै घूँघट पट ओट नील, हँसि, कुँवर मुदित मुख हेरे - ६३२।

मु.


घूँघट
परदे की दीवार, ओट।
संज्ञा
[सं. गंठ]


घूँट
पानी आदि द्रवों का उतना अंश जितना एक बार में घूँटा जाय।
संज्ञा
[अनु. घुटघुट]


घूँटना
घूँट भरना, पीना।
क्रि. स.
[हिं. घूँट]


घूँटा
घुटना।
संज्ञा
[सं, घुंटक, हिं. घुटना]


घूमना
मुड़ जाना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमना
लौटना, वापस आना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमना
मतवाला होना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमनी
सिर का चक्कर, घुमटा।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घूमि
चक्कर खाकर।
घूमि रहीं जित तित दधि - मथनी, सुनत मेघ - धुनि लाजै री - १० - १३९।
क्रि. अ.
[हि. घूमना]


घूमै
चारो ओर फिरती है, चक्कर खाती है।
(एरी) आनँद सौं दधि मथति जसोदा, धमकि मथनियाँ घूमै - १० - १४०।
क्रि. अ.
[हिं. घूमना]


घूर
कूड़ा फेकने का स्थान।
(क) पग तर जरत न जानै मूरख, घर तजि घूर बुझावै - २ - १३।

(ख) अपनो घर परिहरै कहौ को घूर बतावै…..। (ग) ऊधौ घर लागै अब घूर कहौ मन कहा धावै - ३४४३।

संज्ञा
[सं. कूट, हिं. कुरा, कूड़ा, घूरा]


घूर
कूड़े का ढेर।
संज्ञा
[सं. कूट, हिं. कुरा, कूड़ा, घूरा]


घूर
गंदा स्थान।
संज्ञा
[सं. कूट, हिं. कुरा, कूड़ा, घूरा]


घूरना
बुरे भाव या बुरी | नियत से ताकना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन]


घूँसा
मुक्के का प्रहार।
संज्ञा
[हिं. घिस्सा]


घूआ
काँस आदि के फूल।
संज्ञा
[देश.]


घूघ
सिपाहियों की लोहे-पीतल की टोपी।
संज्ञा
[हिं. घोघो या फ़ा. खोद]


घूटना
साँस रोकना।
क्रि. स.
[हिं. घुटना]


घूम
घुमाव।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घूम
मोड़।
संज्ञा
[हिं. घूमना]


घूमना
घूमना, चक्कर खाना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमना
टहलना, सैर करना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमना
यात्रा करना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूमना
घेरे में मँडराना, कावा काटना।
क्रि. स.
[सं. धूर्णन]


घूँटी
बच्चों की एक औषध।
संज्ञा
[हिं. घूँट]


घूँघर
बालों का छल्ला।
संज्ञा
[हिं. घुमरना]


घूँघवारी
छल्लेदार, झबरीले।
लघु - लघु लट सिर घूँ घरवारी, लटकन | लटकि रह्यो माथे पर - १० - ९३।
वि.
[हिं. घूँ घर]


घूँघरवारे, घूँघरवाले
छल्लेदार।
(क) गभुआरे सिर केस हैं बर घूँघरवारे. - १० - १३४।

(ख) अरुझि रहे मुकताइल निरवारत सोहत घूँघरवारे बाल - पृ. ३१५।

वि.
[हिं. घूँघर]


घूँघरा
एक तरह का बाजा।
संज्ञा
[देश.]


घूँघरी
नूपुर, घुँघरू।
संज्ञा
[अनु. घुन+घुर]


घूँघरू
नुपूर, नेउर।
संज्ञा
[हिं. घुँघरू]


घूंटैं
पीता है।
लाख जतन करि देखौ, तैसें बार बार बिष घूँटै - १ - ६३।
क्रि. स.
[हिं. घूँटना]


घूंटैं
साँस रोकने से, साँस दबाने से।
कहा पुरान जु पढ़ै अठारह, ऊर्ध्व धूम के घूँटै - २०१९।
क्रि. स.
[हिं. घुटना]


घूँसा
बँधी हुई मुट्ठी, मुक्का, धमाका।
संज्ञा
[हिं. घिस्सा]


घेपना
(किसी गाढी चीज को) हाथ या उँगली से मिलाना।
क्रि. स.
[हिं घोपना]


घेपना
खुरचना।
क्रि. स.
[हिं घोपना]


घेर
घेरा, परिधि।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेर
निंदामय चर्चा, बदनामी।
घर घर इहै घेर (घैर) बृथा मोसों करै बैर यह सुनि स्रवननि हृदय सहि दहिये - १२७३।
संज्ञा
[हिं. घैर]


घेरघार
घेरने या छाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरघार
चारो ओर का फैलाव, विस्तार।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरघार
बार-बार प्रार्थना या सिफारिश लेकर जाना।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरत
चोर ओर से रोकते हैं, इधर-उधर नहीं जाने देते।
मैया री मोहिं दाऊ टेरैत। मोकौं बन - फल तोरि देत हैं, आपुन गैयनि घेरत–४२४।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरन
घेरने, रोकने या छाने की क्रिया, युक्ति या रीति।
(क)कहत न बनै काँध कामरि छबि बन गैयन की घेरन - ३२७७।

(ख) कोउ गए ग्वाल गाइ बन घेरन कोउ गए बछरु लिवाइ - ५००।

संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरना
चारो ओर छाना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


घूरना
क्रोध से देखना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन]


घूरना
घूमना, टहलना।
क्रि. अ.
[सं. घूर्णन]


घूरा
कूड़े का ढेर।
संज्ञा
[हिं. घूर=कूड़ा]


घूरा
वह स्थान जहाँ कूड़ा फेका जाय।
संज्ञा
[हिं. घूर=कूड़ा]


घूरा
गंदा स्थान।
संज्ञा
[हिं. घूर=कूड़ा]


घूराघारी
घूरने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. घूरना]


घूस
एक बड़ा चूहा।
संज्ञा
[सं. गुहाशय]


घूस
रिश्वत।
संज्ञा
[सं. गुह्य + आशय]


घृणा
घिन, नफरत।
संज्ञा
[सं.]


घृणा
बीभत्स रस का स्थायी भाव।
संज्ञा
[सं.]


गुरु असुर
दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य।
नील सेत अरु पीत लाल मनि लटकन भाल रुलाई। सनि गुरु - असुर देवगुरु मिलि मनुभौम सहित समुदायी - १० - १०८।
संज्ञा
[सं. असुर + गुरु]


गुरु आईन
गुरु की स्त्री।
संज्ञा
[सं. गुरु+हिं. आइन (प्रत्य.)]


गुरु आईन
अध्यापिका।
संज्ञा
[सं. गुरु+हिं. आइन (प्रत्य.)]


गुरुआई
गुरु का धर्म।
संज्ञा
[सं. गुरु+हिं. आई (प्रत्य.)]


गुरुआई
गुरु का काम।
संज्ञा
[सं. गुरु+हिं. आई (प्रत्य.)]


गुरुआई
चालाकी, धूर्तता।
संज्ञा
[सं. गुरु+हिं. आई (प्रत्य.)]


गुरुआनी
गुरु की स्त्री।
संज्ञा
[सं. गुरु + आनी (प्रत्य.)]


गुरुआनी
अध्यापिका।
संज्ञा
[सं. गुरु + आनी (प्रत्य.)]


गुरुकुल
आचार्य का निवास स्थान जहाँ। रहकर ही विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करें।
संज्ञा
[सं.]


गुरुन
गुरु का वध करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


घृणित
घृणा के योग्य।
वि.
[सं.]


घृणित
जिसे देख या सुनकर मन में घृणा पैदा हो।
वि.
[सं.]


घृत
घी।
संज्ञा
[सं.]


घृतकुमारी
घीकुवार।
संज्ञा
[सं.]


घृतपूर
घेवर नामक पकवान।
संज्ञा
[सं.]


घृतँसार
सार-रूप घृत।
है हरि नाम कौ आधार।….। सकल स्रुति - दधि मथत पायौ, इतोई, घृत - सार - २ - ४।
संज्ञा
[सं.]


घृताची
एक अप्सरा।
संज्ञा
[सं.]


घृताची
यज्ञ में घी डालने की करछुली, श्रुवा।
संज्ञा
[सं.]


घेंट
गला, गरदन।
संज्ञा
[हिं. घाँटी]


घेघा
गले की नली।
संज्ञा
[देश.]


घेरना
(पशु) चराना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


घेरना
किसी स्थान पर अधिकार जमाये रखना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


घेरना
आक्रमण के लिए चारो ओर फैलना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


घेरना
किसी के पास प्रार्थना या स्वार्थ से जाना।
क्रि. स.
[सं. ग्रहण]


घेरनो
चारों ओर से घेरने या रोकने की क्रिया।
गैयाँ गई बगराइ सघन बृंदावन बंसीबट जमुना तट घेरनो - २२८०।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरहिं
आक्रमण करने या अधिकार जमाने के लिए चारो ओर से घेर लें।
सब दल होहु हुसियार चलहु मठ घेरहिं जाई - १० उ.८।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरा
चारो ओर की सीमा या फैलाव, परिधि।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरा
सीमा या परिधि का जोड़ या मान।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरा
दीवार आदि जो किसी स्थान को घेरे हो।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरा
घिरा हुआ स्थाम, हाता।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरा
सेना को आक्रमण।
संज्ञा
[हिं. घेरना]


घेरा
निंदामय चर्चा, बदनामी।
(क) सकुचति हौं घर घर घेरा को नेक लाज नहिं तेरे - १०३९।

(ख) घेरा यहै चलावत घर घर सवन सुनत जिय खुनसों - १२२१। (ग) सुनि न जात घरघर को घेरा काहू मुख न समाऊँ - १२२२।

संज्ञा
[हिं. घैर]


घेराई
घेरने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. घिराई]


घेराई
पशु चराने की क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. घिराई]


घेराव
घेरने या घिरने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. घिराव]


घेराव
घेरा, मंडल।
संज्ञा
[हिं. घिराव]


घेरि, घेरी
चारो ओर से उमड़ कर, छा कर।
(क) अति भयभीत निरखि भवसागर, घन ज्यों घेरि रहयौ घट घरहरि - १. ३१२।

(ख) माधव मेघ घेरि कितौं आए - ९५८।

क्रि. स.
[हिं.घेरना]


घेरि, घेरी
चारो ओर से रोक या छेंक कर।
(क) गैयन घेरि सखा सब लाए।

(ख) ग्वाल - बाल संग लिए थेरि रहै डगरौ - १० - ३३६।

क्रि. स.
[हिं.घेरना]


घेरि, घेरी
रोककर, पकड़ कर।
तुम तें दूरि होत नहिं कतहूँ तुम राखौ मोहिं घेरी - ११९३।
क्रि. स.
[हिं.घेरना]


घेरि, घेरी
दुर्ग पर अधिकार करने के लिए आक्रमण करने या चारो ओर से छेंक कर।
(क) लखन दल संग लै लंक घेरी - ९:१३९।

(ग) भीषम भवन रहत ज्यों लुब्धक असुर सैन्य मिलि घेरी - १० उ. - १२।

क्रि. स.
[हिं.घेरना]


घेरे
घेरने से रोकने से।
घेरे घिरतिं न तुम बिनु माधौ, मिलतिं न बेगि दई - ६१२
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरे
चारो ओर छा जाते हैं।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरे
किसी स्वार्थ या उद्देश्य से सदा साथ रहते हैं।
या संसार विषय विष - सागर, रहत सदा सब घेरे - १ - ८५।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरे
मंडल में।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


घेरै
आक्रांत करता, छेंकता बा ग्रसता है।
दिन है लेहु गोविंद गाई। मोह माया - लोभ लागे, काल घेरै आइ - १ - ३१६।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरो, घेरौ
स्थान, विस्तार, फैलाव।
कहा भयौ जौ संपति बाढ़ी, कियौ बहुत घर घेरौ - १ - २३६।
संज्ञा
[हिं. घेरा]


घेरो, घेरौ
चारो ओर से रोको, छेंको।
माधव सखा स्याम इन कहि - कहि अपने गाइग्वाल सब घेरौ - २५३२।
क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेरो, घेरौ
निंदमय चर्चा, बदनामी।
कहाँ कान्ह कहाँ मैं सजनी ब्रज घर घर यह चलत है घेरो - १२७१।
संज्ञा
[हिं. घैर]


घेरयो
चारो ओर से घेरा, ग्रसा, छेको, आक्रांत क्रिया।
(क) ग्राह जब गजराज घेरयौ, बल गयौ हारी। हारि कै जब टेरि दीन्ही, पहुँचे गिरधारी - १ - १७६।

(ख) सुरति के दस द्वार रूँधे, जरा घेरयौ आइ। सूर हरि की भक्ति कीन्हैं, जन्म - पातक जाई - १ - ३१६।

क्रि. स.
[हिं. घेरना]


घेलौना
घलुवा, घाता।
संज्ञा
[हिं. घाल]


घोट, घोटक
घोड़ा, अश्व।
संज्ञा
[सं. घोटक]


घोटना
एक वस्तु को चमकीली बनाने के लिए दूसरी से रगड़ना।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
पीसने के लिए रगड़ना।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
मिलाना।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
बार बार अभ्यास करना, रटना।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
डाँटना, फटकारना।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
गला इस तरह दबाना कि दम घुट जाय।
क्रि. स.
[सं, घुट]


घोटना
घोटने की वस्तु या औजार।
संज्ञा


घोटा
वस्तु जिससे घोटने का काम किया जाय।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटा
चमकीला कपड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घेवर
एक प्रकार की मिठाई जो, मैदे, घी और चीनी से बनती है।
घेवर अति घिरत - चभोरे - १० - १८३।
संज्ञा
[हिं. घो+पूर]


घैया
ताजे दूध के ऊपर के माखन को काछकर इकट्ठा करने की क्रिया |
(क) कजरी धौरी, सेंदुरि, धूमरि मेरी गैया। दुहि ल्याऊँ मैं तुरत हीं, तू करि दै री घैया–६६६।

(ख) दूध दोहनी लै री मैया। दाऊ टेरत सुनि आऊँ तब लौं करि बिधि धैया–७२५।

संज्ञा
[देश.]


घैया
गाय के थन से निकलती हुई दूध की धार जो मुँह लगाकर पी जाय।
गिरि पर चढ़ि गिरवर - घर टेरे। अहो सुबल, श्रीदामा भैया, ल्यावहु गाइ खरिक के नेरे। आई छाक अबार भई है, नैंसुक घैया पिएउ सबेरे - ४६३।
संज्ञा
[देश.]


घैया
पेड़ काटने या उसमें से रस निकालने के उद्देश्य से किया गया आघात।
संज्ञा
[देश.]


घैया
ओर, दिशा।
संज्ञा
[हिं. घाई' या घा]


घैर, घैरु, घैरो, घेरौ
निंदामय चर्चा, बदनामी, अपयश।
सूरदास - प्रभु बड़े गारुडी, ब्रज - घर - घर यह घेरु चलाइ - ७६१।
संज्ञा
[देश, ]


घैर, घैरु, घैरो, घेरौ
चुगली, शिकायत, उलाहना।
संज्ञा
[देश, ]


घैला
घड़ा, कलसा।
संज्ञा
[सं. घट]


घैहल, घैहा
घायल, जख्मी।
वि.
[हिं. घाव]


घोंघा
शंख की तरह का पानी का एक कीड़ा।
संज्ञा
[देश, ]


घोंघा
गेहूँ के दाने का कोश।
संज्ञा
[देश, ]


घोंघा
व्यर्थ, सारहीन।
वि.


घोंघा
मूर्ख, जर।
वि.


घोंचा
गौद, गुच्छा।
संज्ञा
[हिं. गुच्छा]


घोंटना
घूँट घूँट करके या धीरे धीरे पीना।
क्रि. स.
[हिं. घूँट, पू. हिं. घोंट]


घोंटना
हजम करना।
क्रि. स.
[हिं. घूँट, पू. हिं. घोंट]


घोंटना
(गला) दबाना।
क्रि. स.
[सं. घुट]


घोंपना
चुभाना। गाँठना।
क्रि. स.
[अनु. घप]


घोंसला, घोंसुआ
चिड़ियों का घर, नीड़, खोता।
संज्ञा
[सं. कुशालय या हिं घुसना]


घोखना
रटना, घोटना।
क्रि. स.
[सं. घुप]


घोटा
एक औजार।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटा
रगड़ा, घुटाई।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटा
हजामत।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटाई
घोटने का भाव, क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. घोटना + आई (प्रत्य)]


घोटाला
गड़बड़, घपला।
संज्ञा
[देश.]


घोटू
घोटनेवाला।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटू
रट्टू।
संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटू
घोटनेवाला।

रट्टू। घोटने का औजार या वस्तु।

संज्ञा
[हिं. घोटना]


घोटू
पैर की गाँठ, घुटना।
संज्ञा
[हिं. घुटना]


घोड़, घोड़ा
अश्व, तुरंग।
संज्ञा
[सं. घोटक, प्रा. घोड़ा]


घोण
तारदार एक बाजा।
संज्ञा
[देश.]


घोण
नाक।
संज्ञा
[सं. घ्राण]


घोर
कठिन, कड़ा।
कटक.सोर अति घोर दसौं दिसि, दीसति बनचर - भीर - ९ - ११५
वि.
[सं.]


घोर
सघन, घना।
वि.
[सं.]


घोर
भयानक, डरावना।
ज्यौं पावस रितु घन - प्रथम - घोर। जल जीवक, दादर रटत मोर - ९ - १६६।
वि.
[सं.]


घोर
क्रोध की मुद्रा के साथ, दृढ़ता से पकड़े हुए।
चित दै चितै तनय मुख ओर। सकुचत सीत भीत जलरुह ज्यौं तुव कर लकुट निरखि सखि घोर - ३५७।
वि.
[सं.]


घोर
गहरा, गाढ़ा।
वि.
[सं.]


घोर
बहुत बुरा।
वि.
[सं.]


घोर
बहुत अधिक।
वि.
[सं.]


घोर
शब्द, गर्जन, ध्वनि।
कहि काको मन रहत स्रवन सुनि सरस मधुर मुरली की घोर - १४४७।
संज्ञा
[सं. घुर]


घोड़, घोड़ा
घोड़ा छोड़ना :- (१) किसी के पीछे घोड़ा दौड़ामा।

(२) घोड़े को इच्छानुसार चलने देना। घोड़ा डालना :- किसी के पीछे घोड़े को जोर से दौड़ाना। घोड़ा निकालना :- घोड़े को दूसरे से आगे बढ़ा लेना। घोड़े पर चढ़े आना :- लौटने की बहुत जल्दी करना। घोड़ा फेंकना :- घोड़ा बहुत तेज दोडाना। घोड़ा बेचकर सोना :- गहरी नींद लेना।

मु.


घोड़, घोड़ा
बंदूक को एक पेंच या खटका।
संज्ञा
[सं. घोटक, प्रा. घोड़ा]


घोड़, घोड़ा
शतरंज का एक मोहरा जो ढाई घर चलता है।
संज्ञा
[सं. घोटक, प्रा. घोड़ा]


घोड़, घोड़ा
खुँटी।
संज्ञा
[सं. घोटक, प्रा. घोड़ा]


घोड़िया
छोटी घोड़ी।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी+इया (प्रत्य.)]


घोड़िया
छोटा घोड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी+इया (प्रत्य.)]


घोड़िया
छोटी खूँटी।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी+इया (प्रत्य.)]


घोड़ी
घोड़े की मादा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोड़ी
विवाह की एक रीति जिसमें दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर दुलहिन के घर जाता है।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोड़ी
विवाह के गीत जो वर-पक्ष की ओर से गाये जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


गुर्जर
गूजर जाति।
संज्ञा
[सं.]


गुर्जरी
गुजराती स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गुर्जरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


गुर्राना
क्रोधी का अभिमानवश कर्कश स्वर में बोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुर्रो
भुने हुए जौ।
संज्ञा
[देश.]


गुर्वि
विशाल, बड़ी।
वि.
[हिं. गुर्वि]


गुर्विणी
गर्भवती।
वि.
[सं.]


गुर्वी
श्रेष्ट या उत्तम स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गुर्वी
गर्भवती।
वि.


गुर्वी
विशाल, बड़ी।
वि.


घोरिला
लड़कों के खेलने का मिट्टी का घोड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी]


घोरिला
खुँटा जिसकी बनावट घोड़े के मुँह की तरह हो।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी]


घोरी
घोड़ी।
संज्ञा
[हिं. घोड़ी]


घोरी
घोलकर, मिलाकर।
कुंकुम चंदन अरगजा घोरी - २४४४।
क्रि. स.
[हिं. घोलना]


घोरै
घोड़े (पर)।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोरै
मनु आई चढ़ि घोरै :- (१) बहुत जल्दी मचा रही है।

(२) बड़ा गर्व कर रही है, किसी घमंड में है। उ. - कहा भयौ तेरे भवन गए जो दियौ तनक लै भोरे। ता ऊपर का हैं गरजति है, मनु आई चढ़ि घोरे - १० - ३२१।

मु.


घोरै
ध्वनि, शब्द।
सुनि मुरली को घोरै सुर - बधू सीस ढोरें - २२८७।
संज्ञा
[सं. घुर, हिं. घोर]


घोरै
घोलता है, पानी आदि। में मिलता है।
कागद धरनि करै द्रुम लेखनि जल - सायर मसि घोरै - १ - १२५।
क्रि. स.
[हिं घोलना]


घोरौं
घोल दूँ, मिला दूँ।
कहौं तौ पैठि सुधा कैं सागर, जल समस्त मैं घोरौं। - ९ - १४८।
क्रि. स.
[हिं. घोलना]


घोल
वह पानी जिसमें कुछ घुला हो।
संज्ञा
[हिं. घोलना]


घोलना
पानी आदि द्रव पदार्थों में हल करना या मिलाना।
क्रि. स.
[हिं. घुलना]


घोला
जो घोलकर बना हो।
वि.
[हिं. घोलना]


घोला
घोले में डालना :- (१) किसी काम को उलझन में डाल कर देर लगाना।

(२) टालटूल करना। घोले में पड़ना :- झगड़े में पड़ना, देर लगाना।

मु.


घोलुवा
घोला हुआ।
वि.
[हिं. घोलना + उवा (प्रत्य.)]


घोलुवा
घोलुवा पीना :- कड़ुई वस्तु पीना।

घोलुवा घोलना :- काम में देर लगाना।

मु.


घोष
अहीरों की बस्ती।
(क) बकीजु गई घोष मैं छल करि, जसुदा की गति दीनी - १ - १२२।

(ख) आजु कन्हैया बहुत बच्यौ री। खेलत रह्यौ घोष के बाहर कोउ आयो शिशु रूप रच्यौ री।

संज्ञा
[सं.]


घोष
अहीर।
बिछुरत भेंट देहु ठाढे ह्वै निरखो घोष - जन्म को खेरो - २५३२।
संज्ञा
[सं.]


घोष
गोशाला।
नंद बिदा ह्वै घोष सिधारौ - २६५३।
संज्ञा
[सं.]


घोष
तट, किनारा।
संज्ञा
[सं.]


घोष
शब्द, नाद।
संज्ञा
[सं.]


घोर
अश्व, तुरंग।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोर
बहुत, अत्यंत।
क्रि. वि.


घोरत
भारी शब्द करता है, गरजता है।
चहुँ दिसि पवन चकोरत घोरत मेघ घट गंभीर - ६६४।
क्रि. अ.
[हिं. घोरना]


घोरना
घोलना, मिलाना।
क्रि. स.
[हिं. घोलना]


घोरना
भारी शब्द करना, गरजना।
क्रि. अ.
[हिं. घोर]


घोरनो
शब्द करना।
तैसोई नन्ही नन्ही बूँदनि बरषै मधुर मधुर ध्वनि घोरनो - २२८०।
क्रि.
[हिं. घोरना]


घोरा
घोड़ा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोरा
खूँटा।
संज्ञा
[हिं. घोड़ा]


घोरि
घोलकर, पानी आदि में-मिलाकर।
(क) जो गिरिपति मसि घोरि उदघि मैं, लै सुरतरु विधि हाथ। ममकृत दोष लिखे बसुधा भरि, तऊ नहीं मिति नाथ - १ - १११।

(ख) घोरि हलाहल सुन री सजनी औसर सर तेहि न पियो - २५४५।

क्रि. स.
[हिं. घोलना]


घोरिया
छोटा घोड़ा घोड़ी।
संज्ञा
[हिं. घोड़िया]


घोष
गरजने का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


घोषकुमारि, घोषकुमारी
अहीरों या ग्वालों की कुमारियाँ।
बहुत नारि सुहाग सुंदरि और घोषकुमारि - १०.२६
संज्ञा
[सं. घोष + हिं. कुमारी]


घोषणा
सूचना।
संज्ञा
[सं.]


घोषणा
राजाज्ञा आदि की सूचना, मुनादी।
संज्ञा
[सं.]


घोषणापत्र
राजाज्ञा-सूचना पत्र।
संज्ञा
[सं.]


घोषपुरी
अहीरों की बस्ती या नगरी।
जो सुख ब्रज में एक घरी। सो सुख तीनि लोक मैं नाहीं घनि यह घोष पुरी - १० - ६९।
संज्ञा
[सं. घोष + हिं. पुरी]


घोषवती
वीणा।
संज्ञा
[सं.]


घोसी
अहीर, ग्वाला।
संज्ञा
[सं. घोष]


घौंर, घौंरा, घौद
घौद, गौद, फलों का गुच्छा।
संज्ञा
[हिं. गौद]


घौरी
गौद, फलगुच्छ।
संज्ञा
[हिं. घौद]


चंक
पूरा-पूरा, सारा।
वि.
[सं. चक्र]


चंक
उत्सव जो फसल कटने पर मनाया जाता है।
वि.
[सं. चक्र]


चंकुर
रथ।
संज्ञा
[सं.]


चंकुर
पेड़।
संज्ञा
[सं.]


चंक्रमण
घूमना, टहलना।
संज्ञा
[सं.]


चंग
एक बाजा।
(क) महुवरि बाँसुरी चंग लाल रंग हो हो होरी - २४१०।

(ख) डिमडिमी पटह ढोल डफ बीणा मृदंग उपंग चंग तार - २४४६।

संज्ञा
[फ़ा.]


चंग
जौ।
संज्ञा
[देश.]


चंग
जौ की शराब।
संज्ञा
[देश.]


चंग
पतंग, गुड्डी।
संज्ञा
[सं चं - चंद्रमा]


चंग
चंग चढ़ना या उमहना :- खूब जोर या बढ़ती होना।

चंग पर चढ़ना :- (१) इधर उधर की बातें करके अपने अनुकूल या पक्ष में करना। (२) मिजाज बढ़ा-चढ़ा देना।

मु.


घौहा
चुटीला फल।
संज्ञा
[हिं. घाव + हा (प्रत्य.)]


घौहा
चुटीला, घायल, चोट खाया हुआ।
वि.


घ्राण
नाक।
संज्ञा
[सं.]


घ्राण
सूँघने की-शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


घ्राण
गंध, सुगंध।
संज्ञा
[सं.]


क वर्ग का अंतिम अक्षर, स्पर्श वर्ण जिसका उच्चारण कंठ और नाक से होता है।


सूँघने की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गंध, सुगंध।
संज्ञा
[सं.]


भैरव।
संज्ञा
[सं.]


हिंदी का छठा व्यंजन और अपने वर्ग का पहलाअक्षर जिसका उच्चारण तालु से होता है।


चंग
कुशल।
वि.


चंग
स्वस्थ।
वि.


चंग
सुंदर।
वि.


चंगना
खींचना।
क्रि. स.
[हिं. चंगा या फ़ा. तंग]


चंगना
कसना।
क्रि. स.
[हिं. चंगा या फ़ा. तंग]


चंगा
स्वस्थ, तंदुरुस्त।
वि.
[हिं. चंग]


चंगा
सुंदर, भला।
वि.
[हिं. चंग]


चंगा
निर्मल, शुद्ध।
वि.
[हिं. चंग]


चंगी
भली लगनेवाली, सुंदर।
भले जू भले नंदलाल वेऊ भली चरन जावक पाग जिनहिं रंगी। सूर - प्रभु देखि अंग अंग बानिक कुसल मैं रही रीझि वह नारि चंगी।
वि.
[हिं. चंगा]


चंगी
बनी-चगी :- बनी-चुनी, सजी-सजायी, खूब छँटी हुई, चतुर, भली (व्यंग्य)।

उ. - सखी बूझत ताहि हँसत जामुख चाहि स्याम को मिली री बनी चंगी - २१७५।

मु.


चंगु
चंगुल, पंजा।
संज्ञा
[हिं. चंगुल]


चंगु
पकड़, वश, अधिकार
संज्ञा
[हिं. चंगुल]


चंगुल
पशुपक्षियों का टेढ़ा और कड़ा पंजा।
संज्ञा
[हिं. चौ= चार + अंगुल]


चंगुल
किसी चीज को पकड़ते या लेते समय हाथ के पंजों की स्थिति।
संज्ञा
[हिं. चौ= चार + अंगुल]


चंगुल
चंगुल में फँसना :- वश या काबू में होना।
मु.


चँगेर, चँगेरी, चँगेली
बाँस की डलिया या टोकरी।
संज्ञा
[सं. चंगोरिक]


चँगेर, चँगेरी, चँगेली
फूल रखने की डलिया।
संज्ञा
[सं. चंगोरिक]


चँगेर, चँगेरी, चँगेली
चमड़े की मशक।
संज्ञा
[सं. चंगोरिक]


चँगेर, चँगेरी, चँगेली
बच्चों का झूला या पालना।
संज्ञा
[सं. चंगोरिक]


चँगेर, चँगेरी, चँगेली
चाँदी का जालीदार पात्र।
संज्ञा
[सं. चंगोरिक]


चंच
चेंच नामक साग।
संज्ञा
[हिं. चंचु]


चंच
मृग।
संज्ञा
[हिं. चंचु]


चँचरी
एक चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


चंचरी
भ्रमरी।
संज्ञा
[सं.]


चंचरी
होली का एक गीत।
संज्ञा
[सं.]


चंचरी
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


चंचरीक
भ्रमर, भौंरा।
बिकसत कमलावली, चले प्रपुज - चंचरीक, गुंजत कतकोमल धुनि त्यागिं कंज न्यारे - १० - २०५।
संज्ञा
[सं.]


चंचरीकावली
भौंरों की पंक्ति।
संज्ञा
[सं. चंचरीक + अवली]


चंचरीकावली
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं. चंचरीक + अवली]


चंचल
अस्थिर, चलायमान।
वि.
[सं.]


चंचल
अधीर, एकाग्र न रहनेवाला।
वि.
[सं.]


चंचल
घबराया हुआ।
वि.
[सं.]


चंचल
नटखट, शैतान।
वि.
[सं.]


चंचल
वायु।
संज्ञा


चंचल
रसिक, कामुक।
संज्ञा


चंचलता, चंचलताई
अस्थिरता, चपलता।
तब लगि तरुनि तरल चंचलता, बुधि - बल सकुचि रहै। सूरदास जब लगि वह धुनि सुनि, नाहिंन धीर ढहै - ६४६।
संज्ञा
[सं. चंचलता]


चंचलता, चंचलताई
नटखटी, शरारत।
संज्ञा
[सं. चंचलता]


चंचला
लक्ष्मी।
संज्ञा
[सं.]


चंचला
बिजली।
संज्ञा
[सं.]


चंचलाई
चपलता, अस्थिरता।

नटखटी।

संज्ञा
[सं. चंचल + आई (प्रत्य.)]


गुरुबिनी
गर्भवती।
संज्ञा
[सं. गुर्विणी]


गुरुवार
बृहस्पति का दिन।
संज्ञा
[सं.]


गुरुसिंह
एक पर्व।
संज्ञा
[सं.]


गुरू
अध्यापक।
बड़े गुरु की बुद्धि बड़ी वह काहू को न पत्यैहै - १२६३।
संज्ञा
[सं. गुरु]


गुरेरना
आँखें फाड़ फाड़ कर देखना, घूरना।
क्रि. स.
[सं. गुरु - बड़ा+ हेरना = ताकना]


गुरेरा
मिट्टी की गोली जो गुलेल से चलायी जाती है।
संज्ञा
[हिं. गुलेला]


गुर्ज
गदा, सोंटा।
संज्ञा
[फ़ा. गुर्ज़]


गुर्ज
किले का गोलाकार स्थान जहाँ से सिपाही लड़ते हैं, बुर्ज।
संज्ञा
[फ़ा. बुर्ज]


गुर्जर
गुजरात प्रदेश।
संज्ञा
[सं.]


गुर्जर
गुजरात निवासी।
संज्ञा
[सं.]


चंचलास्य
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


चंचलाहट
चंचलता, चुलबुलाहट।
संज्ञा
[सं. चंचल + आहट]


चंचलाहट
नटखटी।
संज्ञा
[सं. चंचल + आहट]


चंचा
घास फूस का पुतला जो खेतों में पशु-पक्षियों के डराने के लिए गाड़ते हैं।
संज्ञा
[सं.]


चंचु
चेंच का साग।
संज्ञा
[सं.]


चंचु
रेंड का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


चंचु
मृग, हिरन।
संज्ञा
[सं.]


चंचु
चिड़ियों की चोंच।
संज्ञा


चंचुका, चंचुपुट
चोंच।
संज्ञा
[सं.]


चंचुभृत, चचुमान्
पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चंचुर
दक्ष, कुशल, निपुण, चतुर।
वि.
[सं.]


चंचुर
चेच या चेंचु का साग।
संज्ञा


चँचोरना
दाँत से दबाकर चूसना।
क्रि. स.
[अनु.]


चँचोरि
चूसकर।
क्रि. स.
[हिं. चँचोरना]


चंट
चालाक
वि.
[स. चंड]


चंट
छटा हुआ।
वि.
[स. चंड]


चंड
तेज, उग्र, घोर।
वि.
[सं.]


चंड
बहुत, बलवान।
वि.
[सं.]


चंड
विकट, कठोर।
वि.
[सं.]


चंड
क्रोधी।
वि.
[सं.]


चंड
ताप, गरमी।
संज्ञा


चंड
एक यमदूत।
संज्ञा


चंड
एक दैत्य।
संज्ञा


चंड
कार्तिकेय।
संज्ञा


चंड
राम की सेना का एक बंदर।
संज्ञा


चंड
कंस का एक भाई।
संज्ञा


चंडकर
तेज किरणोंवाला सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


चंडकौशिक
एक मुनि।
संज्ञा
[सं.]


चंडता, चंडताई
उग्रता, प्रबलता।
संज्ञा
[सं. चंडता]


चंडता, चंडताई
बल, प्रताप, वीरता।
संज्ञा
[सं. चंडता]


चंडत्व
उग्रता
संज्ञा
[सं.]


चंडत्व
प्रताप।
संज्ञा
[सं.]


चंडांशु
सूर्य।
संज्ञा
[सं. चंड+ अंशु = किरण]


चंडा
उग्र स्वभाववाली।
वि.
[सं.]


चंडा
आठ नायिकाओं में एक।
संज्ञा


चंडा
चोर नामक गंध-द्रव्य।
संज्ञा


चंडा
केवाँ च।
संज्ञा


चँड़ाइ चँड़ाई
शीघ्रता, जल्दी, उतावली।
(क) जेंवत परखि लियौ नहि हमकौं, तुम अति करी चँड़ाइ - ४४४।

(ख) मैं अन्हवाए देति दुहूनि कौं, तुम आत करौ चँड़ाई - ५११। (ग) रीदिनि भोजन करौ चँड़ाईं बार - बार कहि - कहि करि आरति - ५१२। (घ) जननि मथत दधि, दुहुत कन्हाई। सखा परस्पर कहत स्याम सौं हमहूँ सौं तुम करत चँड़ाई - ६६८। (ङ) गाई गई सब प्याइ के, प्रातहिं नहिं आई। ता कारन मैं जाति हौं, अति करति चँडाई–७१३। (च) सूर नंद सौं कहति जसोदा, दिन आए अब करहु चँडाई - ८११।

संज्ञा
[सं. चंड=तेज]


चँड़ाइ चँड़ाई
प्रबलता।
संज्ञा
[सं. चंड=तेज]


चँड़ाइ चँड़ाई
अन्याय, अत्याचार।
संज्ञा
[सं. चंड=तेज]


चंडाल
डोम।
संज्ञा
[सं. चाँडाल]


चंडाल
नीच।
संज्ञा
[सं. चाँडाल]


चंडालता
नीचता, अधमता।
संज्ञा
[सं.]


चंडालपक्षी
काक, कौआ।
संज्ञा
[सं.]


चंडालिनी
चंडाल वर्ण की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


चंडालिनी
दुष्ट या कर्कशा स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


चंडावल
सेना के पीछे का भाग, ’हरावल' का विपरीतार्थक।
संज्ञा
[सं. चंड + अवलि]


चंडावल
वीर योद्धा।
संज्ञा
[सं. चंड + अवलि]


चंडावल
पहरेदार।
संज्ञा
[सं. चंड + अवलि]


चंडिका, चंडी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


चंडिका, चंडी
लड़ाकू स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


चंडिका, चंडी
लडाकू, कर्कशा, उग्र स्वभाववाली।
वि.


चंडीपति
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंडू
अफीम का किवाम।
संज्ञा
[सं. चंड]


चंडूल
एक चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


चंडूल
पुराना चंडूल :- बेडौल या मूर्ख आदमी।
मु.


चंडोल
एक तरह की पालकी।
संज्ञा
[सं. चंद्र+दोल]


चंडोल
मिट्टी का एक खानेदार खिलौना
संज्ञा
[सं. चंद्र+दोल]


चंद
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंद
चंद्रमा के समान सुख-शांति देनेवाला व्यक्ति।
सूरदास पर कृपा करौ प्रभु श्रीबृंदाबन - चंद - १ - १६३।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदन
एक सुगंधित लकड़ी जिसको पीसकर हिंदू माथे पर तिलक लगाते हैं, पूजा करते हैं और स्थान आदि लिपाते हैं।
कंचन-कलस, होम द्विज-पूजा, चंदन भवन लिपायौ १० - ४।
संज्ञा
[सं.]


चंदन
राम की सेना का एक वानर।
संज्ञा
[सं.]


चंदनगिरि
मलय पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


चंदनहार
गले का एक गहना।
संज्ञा
[सं. चंद्रहार]


चंदना
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं. चंद्रमा]


चंदनी
चाँदनी।
संज्ञा
[हिं. चाँदनी]


चँदनौता
एक तरह का लहँगा।
संज्ञा
[देश.]


चंदबाण, चंदबान
एक बाण।
संज्ञा
[सं. चंद्रवाण]


चँदराना
बहलाना।
क्रि. स.
[सं. चंद्र (दिखलाना)]


चँदराना
जान-बूझ कर अनजान बनना।
क्रि. स.
[सं. चंद्र (दिखलाना)]


चंद
पृथ्वीराज-रासो का रचयिता हिंदी का एक कवि।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंद
थोड़े से।
वि.
[फ़ा.]


चंद
गिने चुने।
वि.
[फ़ा.]


चंदक
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदक
चाँदनी।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदक
एक मछली।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदक
माथे को एक गहना।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदचूर
शिव जी।
संज्ञा
[सं. चंद्रचूड़]


चंदक पुष्प
लौंग।
संज्ञा
[सं.]


चंदक पुष्प
चंद्रकला।
संज्ञा
[सं.]


चंदला
गंजा।
वि.
[हिं. चाँद = खोपड़ी]


चँदवा
सिंहासन का चँदोवा।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चँदवा
गोल चकती।
संज्ञा
[सं. चंद्रक]


चँदवा
तालाब में गहरा गड्डा।
संज्ञा
[सं. चंद्रक]


चँदवा
मोर की पूँछ का अर्द्धचंद्रक चिह्न।
मोरन के चँदवा माथे बने राजत रुचिर सुदेस री।
संज्ञा
[सं. चंद्रक]


चँदवा
मछली।
संज्ञा
[सं. चंद्रक]


चंदा
चंद्रमा।
(क) अपने कर गहि गगन बतावै खेलन को माँगै चंदा - १०. १९२।

(ख) ज्यौं चकोर चंदा को इकटक भृंगी. ध्यान लगावै - १८१८।

संज्ञा
[सं. चंद्र]


चंदा
राधा की एक सखी।
कमला तारा बिमला चंदा चंद्रावलि सुकुमारि - १५८०।
संज्ञा


चंदा
वह धन जो दान या सहायता-रूप में लिया जाय।
संज्ञा
[फ़ा. चंद्र = कुछ]


चंदा
पत्र-पत्रिका या सभा-समिति का मासिक, छमाही या वार्षिक शुल्क।
संज्ञा
[फ़ा. चंद्र = कुछ]


चंदिका
चाँदनी।
संज्ञा
[सं. चंद्रिका]


चंदिनि, चंदिनो
चाँदनी।
संज्ञा
[सं. चंदू]


चंदिनि, चंदिनो
उजेली, चाँदनी से युक्त।
वि.


चँदिया
खोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चँदिया
चँदिया पर बाल न छोड़ना :- (१) सब कुछ हर लेना।

(२) खूब जूते मारना। चंदिया मूड़ना :- धन-संपत्ति हर लेना। चँदिया खाना :- (१) बकवाद से सिर खाना। (२) सब कुछ हरकर दरिद्र बनाना। चँदिया खुजलाना - मार खाने को जी चाहना।

मु.


चँदिया
पिछली छोटी रोटी।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चँदिया
ताल का सबसे गहरा तल या स्थान।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चँदिया
चाँदी की टिकिया।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चंदिर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


चंदिर
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


गुरुत्व - केंद्र
किसी पदार्थ का वह विंदु या स्थान, जिसे किसी नोक पर टिकाने से वह पदार्थ ठीक ठीक तुल जाय, इधर उधर झका न रहे।
संज्ञा
[सं]


गुरुत्वाकर्षण
वह आकर्षण जिसके द्वारा पृथ्वी पर सब पदार्थ गिरते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गुरुदक्षिणा
भेंट या दक्षिणा जो शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात प्राचार्य को दी जाय।
संज्ञा
[सं.]


गुरुद्वारा
आचार्य का निवास स्थान।
संज्ञा
[सं. गुरु+ द्वार]


गुरुद्वारा
सिखों का पूज्य स्थान।
संज्ञा
[सं. गुरु+ द्वार]


गुरु - बांधव
एक ही गुरु के शिष्य, गुरु-भाई।
संज्ञा
[सं गुरु + बन्धु, हिं. बांधव]


गुरुबिनी
गर्भवती रत्री।
संज्ञा
[सं. गुर्विणी]


गुरुभाई
एक ही गुरु के शिष्य, गुरु-बांधव।
संज्ञा
[सं. गुरु + हिं. भाई]


गुरुमुख
जिसने गुरुमंत्र लिया हो, दीक्षित, गुरु के प्रति कृतज्ञ या नम्र।
दुरजोधन कें कौन काज जहँ आदर भाव न पइयै। गुरुमुख नहीं बड़े अभिमानी, कापै सेवा करइयै - १ - २३९।
वि.
[सं. गुरु + मुख]


गुरुमुखी
पंजाब में प्रचलित एक लिपि जो देवनागरी का ही एक रूप है।
संज्ञा
[सं. गुरु + हिं.मुखी]


चँदेरी
एक प्राचीन नगर जो ग्वालियर राज्य में था।
(क) रुक्म चँदेरी बिप्र पठायौ–१० उ. ७।

(ख) राव चँदेरी को भूपाल।

संज्ञा
[सं. चेदि या हिं. चंदेल]


चँदेरीपँति
शिशुपाल।
संज्ञा
[सं.]


चंदेल
क्षत्रियों की एक शाखा।
संज्ञा
[सं.]


चँदोआ, चँदोया, चाँदोवा
सिंहासन पर सोने-चाँदी के चोबों पर तना वितान।
संज्ञा
[हिं. चँदवा]


चंद्र
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
एक की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
मोर की पूँछ को चंद्रिका।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
जल।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
सोना।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
वह बिंदी जो सानुनासिक वर्ण पर लगायी जाती है।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
लाल रंग का मोती।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
हीरा।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
सुखदायी वस्तु या पात्र।
संज्ञा
[सं.]


चंद्र
आनंददायक।
वि.


चंद्र
सुंदर।
वि.


चंद्रक
चंद्रमा।
काम की केली कमनीय चंद्रक चकोर, स्वाति को बू्ँद चातक परौ री - ६९१।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
चंद्रमा-सा मंडल या घेरा |
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
चाँदनी।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
मोर-पूँछ की चंद्रिका।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
नाखून।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
एक मछली।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


चंदकला
चंद्रमंडल का सोलहवाँ भाग।
संज्ञा
[सं.]


चंदकला
चंद्रकिरण या ज्योति।
चंद्रकला जनु राहु गहौ री–१० उ. ३०।
संज्ञा
[सं.]


चंदकला
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


चंदकला
माथे-का एक गहना।
संज्ञा
[सं.]


चंदकला
छोटा ढोल।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकलाधर
महादेव, शिव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
एक रत्न जो चंद्रमा के सामने पसीजता है।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
एक रत्न जो चंद्रमा के सामने पसीजता है।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
चंदन।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांत
कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांता
चंद्रमा की पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांता
रात।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांता
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकांति
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकी
मोरपक्षी।
संज्ञा
[सं. चंद्रकिन्]


चंद्रकुमार
चंद्रमा का पुत्र बुध।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रकेतु
लक्ष्मण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रक्षय
अमावास्या।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रगुप्त
चित्रगुप्त।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रगुप्त
एक मौर्यवंशी राजा।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रगुप्त
एक गुप्तवंशी राजा।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रगोलिका
चाँदनी, चंद्रिका।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रग्रहण
चंद्रमा का ग्रहण।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रचूड़
मस्तक पर चंद्रमा धारण करनेवाले शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रज
चंद्रमा का पुत्र बुध।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबंधु
शंख।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबंधु
कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबधूटी
बीरबहूटी।
संज्ञा
[सं. इंद्रवधू]


चंद्रबाण, चंद्रबान
बाण जिसका फल अर्द्धचंद्राकार होता है।
नख मानों चंद्रबान साजि कै झझकारत उर अग्यौ - १९७२।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबिंदु
अर्द्ध अनुस्वार का चिह्न।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबिंब
चंद्रमा का मंडल।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभस्म
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभा
चंद्रमा का प्रकाश।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभाग
चंद्रमा की कला।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभाग
सोलह की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रजोत, चंद्रजोती, चंदज्योति
चंद्रमा का प्रकाश।
संज्ञा
[सं. चंद्र + ज्योति]


चंद्रजोत, चंद्रजोती, चंदज्योति
एक आतिशबाजी।
संज्ञा
[सं. चंद्र + ज्योति]


चंद्रदारा
सत्ताइस नक्षत्र जो चंद्रमा की पत्नियाँ मानी जाती हैं।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रद्युति
चंद्रकिरण या चंद्र प्रकाश।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रद्युति
चंदन।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रधनु
चंद्रमा के प्रकाश से रात को दिखायी देनेवाला इंद्रधनुष।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रधर
महादेव, शिव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रप्रभ
चंद्रमा-सी कांतिवाला।
वि.
[सं.]


चंद्रप्रभा
चंद्रमा की ज्योति।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रप्रभा
बकुची नामक औषध।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभाग
एक पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभागा
पंजाब की एक नदी।
सुभ कुरुखेत अयोध्या, मिथिला, प्राग त्रिबेनी न्हाए। पुनि सतनु औरहु चंद्रभागा, गंग ब्यास अन्हवाए - सारा, ८२८।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभाट
एक साधु।
संज्ञा
[सं. चंद्र + हिं. भाट]


चंद्रभानु
श्रीकृष्ण का एक पुत्र जो सत्यभामा के गर्भ से पैदा हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभाल
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभूति
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रभूषण
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमणि, चंद्रमनि
चंद्रकांत मणि।
चौकी हेम चंद्रमनि लागी हीरा रतन जराय खची।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमा
चाँद, इंदु, सुधांशु।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमाललाट
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमाललाम
महादेव, शिव, शंकर।
संज्ञा
[सं. चंद्रमा +ललाम = मस्तक पर तिलक का चिन्ह]


चंद्रमाला
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमाला
चंद्रहार।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमास
वह मास जिसमें चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा कर लेता है।
संज्ञा
[सं. चंद्र+मास]


चंद्रमौलि
मस्तक पर चंद्रमा धारण करनेवाले शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्ररेखा, चद्रलेखा
चंद्रमा की कला।
संज्ञा
[सं.]


चंद्ररेखा, चद्रलेखा
चंद्रमा की किरण।
संज्ञा
[सं.]


चंद्ररेखा, चद्रलेखा
द्वितीया का चंद्रमा जो एक रेखा के रूप में होता है।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रलोक
चंद्रमा का लोक।
चंद्रलोक दीन्हो ससि को तब फगुआ में हरि आय। सब नछत्र को राजा कीन्हो ससि मंडल में छाय।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रवंश
क्षत्रियों का एक कुल।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रवंशी
चंद्रवंश का।
वि.
[सं. चंद्रवंशिन्]


चंद्रवधू, चंद्रवधूटी
बीर बहूटी नामक एक छोटा लाल कीड़ा।
संज्ञा
[सं. इंद्रवधू]


चंद्रवल्लरी, चंद्रवल्ली
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रवार
सोमवार।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रबिंदु
अर्द्धअनुस्वार का चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रवेश
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रव्रत
एक व्रत।
संज्ञा
[सं. चांद्रायण]


चंद्रशाला, चंद्रसाला
चाँदनी।
संज्ञा
[सं. चंद्रशाला]


चंद्रशाला, चंद्रसाला
मकान की सबसे ऊपरी अटारी।
संज्ञा
[सं. चंद्रशाला]


चंद्रशृंग
द्वितीया के चंद्रमा के दोनों नुकीले ओर या किनारे।
संज्ञा
[सं.]


गुलकंद
चीनी में अमलतास या गुलाब के फूल धूप की गर्मी से पकाकर तैयार किया हुआ पदार्थ।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुलअकीक
एक पौधा।
संज्ञा
[फ़ा. गुल + अक़ीक़]


गुलकारी
बेल-बूटे का काम।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुलाल
एक लाल बुकनी जो होली में चेहरे पर मली जाती है।
संज्ञा
[फ़ा. गुल्लाला]


गुलियाना
गोल बनाना।
क्रि. स.
[हिं. गोलियाना]


गुलिस्ताँ
बाग-बाटिका।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुलू
एक बड़ा वृक्ष।
संज्ञा
[देश.]


गुलूबन्द
सूती, ऊनी या रेशमी पट्टी जो गले या सिर में लपेटी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुलूबन्द
गले का एक गहना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुलेनार
अनार का फूल।
संज्ञा
[हि. गुलनार]


चंद्रशेखर, चंद्रसेखर
शिव जी जिनके मस्तक पर चंद्रमा है।
संज्ञा
[सं. चंद्र + शेखर]


चंद्रसरोवर
ब्रज का एक तीर्थ स्थान जो गोवर्द्धन के समीप स्थित है।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रहार
गले में पहनने की सोने की माला जिसके बीच में सोने का चंद्राकार पान रहता है।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रहास
तलवार।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रहास
रावण की तलवार
संज्ञा
[सं .]


चंद्रहास
चाँदी।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रा
चँदोवा।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रा
गुर्च।
संज्ञा
[सं .]


चंद्रा
मरने की अवस्था जब-टकटकी बँध जाती है और गला रुँध जाता है।
संज्ञा
[सं चंद्र]


चंद्रातप
चाँदनी।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रातप
चँदोवा।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रापीड़
शिव, महादेव
संज्ञा
[सं.]


चंद्रायण, चंद्रायन
महीने भर का एक व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने बढ़ने के अनुसार आहार घटाना-बढ़ाना होता है।
सहस बार जौ बेनी परसै, चंद्रायन कीजै सौ बार - २ - ३।
संज्ञा
[सं. चांद्रायण]


चंद्रालोक
चंद्रमा का प्रकाश।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रावलि, चंद्रावली
श्री कृष्ण की प्रेमिका और राधा की एक सखी जो चंद्रभानु की पुत्री थी।
(क) ललिता अरु चंद्रावली सखिन मध्य सुकुमारि - ११०२।

(ख) तारा, कमला बिमला चंद्रा चंद्रावलि सुकुमारि - १५८०।

संज्ञा
[सं. चंद्रावली]


चंद्रिका
चंद्रमा का प्रकाश, चाँदनी।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
मोर की पूँछ का अर्द्धचंद्राकार चिन्ह।
सोभित सुमन मयूर चंद्रिका नील नलिन तनु स्याम।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
इलायची।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
चाँदा मछली।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
चंद्रभागा नदी।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
जूही, चमेली।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
एक देवी।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
माथे का वेदी नामक गहना।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिका
रानियों का एक शिरोभूषण, चंद्रकला।
संज्ञा
[सं]


चंद्रिकोत्सव
शरदपूनों का उत्सव।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रिल
शिव, महादेव।
संज्ञा
[सं.]


चंदोद्य
चंद्रमा का उदय।
संज्ञा
[सं. चंद्र + उदय]


चंदोद्य
चँदवा, चँदोवा।
संज्ञा
[सं. चंद्र + उदय]


चंद्रोपल
चंद्रकांतमणि।
संज्ञा
[सं. चंद्र+उपल]


चंप
चंपा।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंप
कचनार।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपई
चंपे के पीले रंग का।
वि.
[हिं चंपा]


चंपक
चंपा जिसका फूल हलका पीले रंग का होता है। सुंदर नारियों के रंग की उपमा इससे दी जाती है।
(क) चंपक - बरन, चरन कमलनि, दाड़िम दसन लरी - ९ - ६३।

(ख) चंपक जाइ गुलाब बकुल फूले तरु प्रति बूझति कहुँ देखे नँदनंदन - १८१०।

संज्ञा
[सं.]


चंपकली
चंपे की कली।
(क) रंगभरी सिर सुरंग पाग लटक रही बाम भाग चंपकली कुटिल अलक बीच - बीच रखी री - २३६२।

(ख) चंपकली सी नासिका रंग स्यामहिं लीन्हे - पृ.३२९।

संज्ञा


चंपकली
गले में पहनने का एक आभूषण।
संज्ञा


चंपत
गायब, लुप्त, ' अंतर्धान।
वि.
[देश.]


चंपत
दबता है।
क्रि. अ.
[हिं. चँपन]


चँपना
बोझ से दबना।
क्रि. अ.
[सं. चप्]


चँपना
लज्जित होना।
क्रि. अ.
[सं. चप्]


चँपना
उपकार मानना।
क्रि. अ.
[सं. चप्]


चंपा
एक पौधा जिसमें हल्के पीले रंग के फूल लगते हैं, जिन पर, प्रसिद्धि है कि भौरे नहीं बैठते।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
अंगदेश के राजा कर्ण की राजधानी।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
एक केला।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
एक घोड़ा।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
रेशम का एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
एक पेड़।
संज्ञा
[सं. चंपक]


चंपा
राधा की एक सखी।
सुमना, बहुला चंपा जुहिला ज्ञाना भाना भाउ - १५८०।
संज्ञा


चंपाकली
गले का एक गहना जिसमें चंपे की कली की तरह के दाने होते हैं।
संज्ञा
[हिं चंपा + कली]


चंपू
गद्य-पद्य-मय काव्य।
संज्ञा
[सं]


चँपे
दबाते हैं।
घर बैठेहि दसन अधरन धरि चँपै स्वाँस भरैं।
क्रि. स.
[हिं. चँप ना]


चंबल
एक नदी।
संज्ञा
[सं. चर्मण्वती]


चंबल
पानी की बाढ़।
संज्ञा


चंबल
भिखारी का कटोरा।
संज्ञा
[फ़ा. चुंबल]


चँवर
सुरागाय की पूँछ के बालों का गुच्छा जो काठ, सोने या चाँदी की डाँड़ी में लगाकर राजा या देवी-देवताओं पर डुलाया जाता है।
बैठति कर - पीठ ढीठ, अधर - छत्रछाँहि। राजति अति सँवर चिकुर, सरद सभा माँहि - ६५३।
संज्ञा
[सं चामर]


चँवर
घोड़े या हाथी के सिर पर लगाने की कलगी।
संज्ञा
[सं चामर]


चँवरढार
वह सेवक जो चँवर डुलाता हो, चँवरधारी सेवक।
संज्ञा
[हिं. चँवर + ढारना]


चँवरी
लकड़ी की डाँडी जिसमें घोड़े की पूँछ के बाले लगाकर चँवर बनाते हैं।
संज्ञा
[हिं. चँवर लकड़ी]


कछुआ, कच्छप।
संज्ञा
[सं.]


चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


चोर।
संज्ञा
[सं.]


दुर्जन।
संज्ञा
[सं.]


चइत
चैत नामक महीना।
संज्ञा
[हिं. चैत]


चइन
आराम, सुख, आनंद।
संज्ञा
[हिं. चैन]


चउँ हान
क्षत्रियों की एक शाखा।
संज्ञा
[हिं. चौहान]


चउक
आँगन।
संज्ञा
[हिं. चौक]


चउक
बाजार।
संज्ञा
[हिं. चौक]


चउकी
छोटा तखत।
संज्ञा
[हिं. चौकी]


चउकी
पड़ाव, टिकान।
संज्ञा
[हिं. चौकी]


चउकी
स्थान जहाँ सिपाही रहें।
संज्ञा
[हिं. चौकी]


चउरा
किसी देवी-देवता, महात्मा, साधु आदि का स्थान
संज्ञा
[हिं. चौरा]


चउहट्ट
चौहट्ट, चौराहा।
संज्ञा
[हिं. चौ+हाट]


चऊतरा
चबूतरा।
संज्ञा
[हिं. चौतरा]


चक
चकई नाम का खिलौना।
(क) दै मैया भौंरा चक डोरीं - ६७९।

(ख) ब्रज लरिकन सँग खेलत, हाथ लिए चक डोरि - ६७०।

संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
चकवा पक्षी, चक्रवाक।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
चक्र नामक अस्त्र।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
चक्का, पहिया।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
छोटा गाँव।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
किसी बात का सिलसिला या क्रम।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
अधिकार, दखल।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चउतरा
चबूतरा।
संज्ञा
[हिं. चौतरा]


चउथा
तीसरे के बाद का।
वि.
[हिं. चौथा]


चउदस
पक्षका चौदहवाँ दिन।
संज्ञा
[हिं. चौदस]


चउदह
तेरह के बाद का।
वि.
[हि. चौदह]


चउपाई
एक छंद। खाट।
संज्ञा
[हिं. चौपाई]


चउपार, चउपारि चउपाल, चउपालि
बैठक।
संज्ञा
[हिं. चौपाल]


चउपार, चउपारि चउपाल, चउपालि
दालान।
संज्ञा
[हिं. चौपाल]


चउर
चँवर, मोरछल।
संज्ञा
[हिं. चँवर]


चउर
धान, चावल।
संज्ञा
[हिं. चावल]


चउरा
चौतरा।
संज्ञा
[हिं. चौरा]


चक
एक गहना।
संज्ञा
[सं. चक्र.]


चक
भरपूर, अधिक, ज्यादा।
वि.


चक
चकपकाया हुआ, भौचक्की, चकित।
वि.


चक
साधु।
संज्ञा
[सं.]


चकई
मादा चकवा कविप्रसिद्धि के अनुसार जो अपने नर से रात्रि में बिछुड़ जाती है।
चकई री, चलि चरन - सरोवर, जहाँ न प्रेम - बियोग - १ - ३३७।
संज्ञा
[हिं. चकवा]


चकई
घिरनी के आकार का छोटा खिलौना जिसे डोरी के सहारे लड़के नचाते हैं।
भौंरा चकई लाल पाट को लेडुआ माँग खिलौना।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चकई
गोल बनावट है।
वि.


चकचकाना
पानी, खून आदि का छन छन कर ऊपर आना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चकचकाना
भीग जाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चकचकी
करताल नामक बाजा।
संज्ञा
[अनु.]


गुदर
निर्वाह, निभना।
संज्ञा
[फ़ा. गुजर]


गुदर
निवेदन, प्रार्थना।
संज्ञा
[फ़ा. गुजर]


गुदर
उपस्थिति, हाजिरी।
संज्ञा
[फ़ा. गुजर]


गुदरना
त्याग करना, अलग रहना।
क्रि. अ.
[फा. गुजर + हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरना
हाल कहना, निवेदन करना।
क्रि. अ.
[फा. गुजर + हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरना
बीतना, गुजरना।
क्रि. अ.
[फा. गुजर + हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरना
उपस्थित या पेश किया जाना।
क्रि. अ.
[फा. गुजर + हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरानना, गुदराना
भेंट देना, सामने रखना।
क्रि. स.
[फ़ा. गुजरान+हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरानना, गुदराना
हाल कहना, निवेदन करना।
क्रि. स.
[फ़ा. गुजरान+हिं. ना (प्रत्य.)]


गुदरिया, गुदरी
गुदड़ी, कंथा।
अब कंथा एकै अति गुदरी क्यों उपजी मति मन्द - ३२३१।
संज्ञा
[हिं. गुदड़ी]


गुलंच
एक प्रकार का कंद।
संज्ञा
[सं.]


गुलंचा
एक बेल, गुरुच।
संज्ञा
[हिं. गुडुच]


गुल
गुलाब का फूल।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुल
फूल।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुल
गुल खिलना :- (१) आनंददायी घटना होना।

(२) उपद्रव होना। गुल कतरना :- (१) कागज-कपड़े के बेल-बूटे बनाना। (२) अद्भुत काम करना। (३) गालों में हँसते समय पड़नेवाला गड्ढा। (४) शरीर पर गरम धातु से डाला गया दाग या छाप (५) दीपक की बत्ती का जला हुआ भाग। (६) चिलम की तंबाकू का जला हुआ अंश। (७) किसी चीज पर भिन्न रंग का दाग या चिन्ह। (८) आँख का डेला। (९) अंगारा।

मु.


गुल
गुल बँधना :- (१) कोयलों को खूब दहकना।

(२) कुछ धन प्राप्त होना।

मु.


गुल
सुंदर स्त्री. नायिका।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुल
हलवाई की भट्टी।
संज्ञा
[देश.]


गुल
कनपटी।
संज्ञा
[देश.]


गुल
शोर, कोलाहल।
संज्ञा
[फ़ा. गुल]


चकचौंधी
अत्यधिक प्रकाश के कारण आँखों की झपक या तिलमिलाहट।
संज्ञा
[हिं. चकाचौंध]


चकचौंह
आँखों की झपक।
संज्ञा
[हिं. चकाचौंध]


चकचौंहना
आशा से ताकना।
क्रि. अ.
[देश.]


चकचौहाँ
देखने योग्य, सुंदर।
वि.
[देश.]


चकडोर, चकडोरि, चकडोरी
चकई में लपेटने की डोरी।
अरुझि परयो मेरो मन तब तें, कर झटकत चकडोरि हलत - ६७१।

(ख) दै मैया भंवरा चकडोरी। (ग) हाथ लिए भौंरा चकडोरी।

संज्ञा
[हिं. चकई + डोर]


चकडोर, चकडोरि, चकडोरी
चकई नामक खिलौना, चक्कर खानेवाली वस्तु, चक्कर, फेरी।
उत ते वै पठवत इतते नहिं मानत हौं तौं दुहुनि बिच चकडोरी कीनी - २२३८।
संज्ञा
[हिं. चकई + डोर]


चकडोर, चकडोरि, चकडोरी
चकई की डोरी
संज्ञा
[हिं. चकई + डोर]


चकत
दाँत की काट या पकड़।
संज्ञा
[हिं. चकत्ता]


चकताई
दाग, धब्बा, चकत्ता।
संज्ञा
[हिं. चकत्ता]


चकती
कपड़े, चमड़े अदि का टुकड़ा, चकत्ता, थिगली।
संज्ञा
[सं. चक्रवत्]


चकचाना
चकाचौंध लगना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चकचाल
चक्कर।
संज्ञा
[सं. चक + हिं. चाल]


चकचाव
चकाचौंध।
संज्ञा
[अनु.]


चकचून
पिसा हुआ।
वि.
[सं. चक्र+चूर्ण]


चकचोही
चिकनी-चुपड़ी।
वि.
[हिं. चिकना]


चकचौंध
कड़ी चमक या। अधिक प्रकाश के सामने आँखों की झपक।
संज्ञा
[हिं. चकाचौंध]


चकचौंधति
आँख में चमक या चकचौंध उत्पन्न करती है।
चमकि चमकि चपला चकचौंधति स्याम कहत मन धीर।
क्रि. स.
[हिं. चकचौंधना]


चकचौंधना
अधिक प्रकाश में आँख झपकना, चकाचौंध होना।
क्रि. अ.
[सं. चक्षुष + अंध]


चकचौंधना
आँखों में चकाचौंध उत्पन्न करना।
क्रि. स.


चकचौंधी
चमक से आँख तिलमिला गयी, प्रकाश के सामने न ठहर सकी।
कोउ चक्रित भई दसन - चमक पर चकचौंधी अकुलानी - ६४४।
क्रि. अ.
[हिं. चकचौंधना]


चकनाचूर
बहुत हारा-थका, शिथिल।
वि.
[हिं. चक=भरपूर]


चकपक
चकित, भौचक्का।
वि.
[सं. चक = भ्रांत]


चकपकाना
आश्चर्य से ताकना, भौचक्का होना।
क्रि. अ.
[हिं. चकपक]


चकपकाना
शंकित होकर चौंकना।
क्रि. अ.
[हिं. चकपक]


चकफेरी
चक्कर, परिक्रमा।
संज्ञा
[हिं. चक + फेरी]


चकबंदी
हद बाँधना।
संज्ञा
(हिं. चक+फ़ा. बंदी]


चकबस्त
जमीन की चकबंदी।
संज्ञा
[फ़.]


चकबस्त
काश्मीरी ब्राह्मणों का एक भेद।
संज्ञा


चकमक, चकमक
एक पत्थर जिस पर चोट करने से जल्दी आग निकलती है।
संज्ञा
[तु. चकमक़]


चकमा
भुलावा, धोखा।
संज्ञा
[सं. चक = भ्रांत]


चकती
बादल में चकती लगाना :- असंभव बात करने को तैयार होना, बहुत बढ़ी-चढ़ी बातें करना।
मु.


चकत्ता
शरीर पर लाल-नीले उभरे हुए दाग।
संज्ञा
[सं. चक्र + वत्]


चकत्ता
काटने का चिह्न।
संज्ञा
[सं. चक्र + वत्]


चकत्ता
चकत्ता भरना (मारना) :- काटना।
मु.


चकत्ता
तातारवंशी चगताई के वंशज मुगल बादशाह।
संज्ञा
[तु. चग़ताईं]


चकत्ता
चगताई वंशज पुरुष।
संज्ञा
[तु. चग़ताईं]


चकदार
दूसरे की जमीन पर कुँआ बनवाने, उसे काम में लाने और उसका लगान देनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चक + फ़ा.दार (प्रत्य.)]


चकना
चकपकाना, भौचक्का होना।
क्रि. अ.
[सं. चक = भ्रांति]


चकना
चौंकना, अशंकित होना।
क्रि. अ.
[सं. चक = भ्रांति]


चकनाचूर
चूर चूर, खंड खंड।
वि.
[हिं. चक=भरपूर]


चकमा
हानि, नुकसान।
संज्ञा
[सं. चक = भ्रांत]


चकमा
एक खेल।
संज्ञा
[सं. चक = भ्रांत]


चकभाकी
जिसमें चकमक लगा हो।
वि.
[हिं. चकमक]


चकर
चकवा या चक्रवाक पक्षी।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चकर
चक्कर, फेरी, परिक्रमा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चकरबा
असमंजस. ऐसी स्थिति जब उचित-अनुचित न सूझे
संज्ञा
[सं. चक्रव्यूह]


चकरबा
झगड़ा।
संज्ञा
[सं. चक्रव्यूह]


चकरा
पानी का भँवर।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चकरा
चौड़ा, विस्तृत।
वि.
[हिं. चौड़ा]


चकराना
सिर का घूमना या चक्कर खाना।
क्रि. अ.
[सं. चक्र]


चकल
मिट्टी की पीड़ी जो ऐसे पौधे में लगी रहती है।
संज्ञा
[हिं. चक्का]


चकलई
चौड़ाई।
संज्ञा
[हिं. चकला]


चकला
पत्थर या लकड़ी का रोटी बेलने का गोल पाटा।
संज्ञा
[हिं. चक + ला (प्रत्य.)]


चकला
चक्की।
संज्ञा
[हिं. चक + ला (प्रत्य.)]


चकला
इलाका, जिला।
संज्ञा
[हिं. चक + ला (प्रत्य.)]


चकला
चौड़ा, विस्तृत।
वि.


चकलाना
पौधे को एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थान पर लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चकल]


चकलाना
चौड़ा करना।
क्रि. स.
[हिं. चकला]


चकली
घिरनी, गड़ारी
संज्ञा
[सं.चक्र, हिं. चक]


चकली
चंदन आदि घिसने का छोटा चकला।
संज्ञा
[सं.चक्र, हिं. चक]


चकराना
चकित होना, चकपकाना
क्रि. अ.
[सं. चक्र]


चकराना
चकित करना, आश्चर्य में डालना।
क्रि. स.


चकरानी
दासी, सेविका।
संज्ञा
[फ़ा. चाकर]


चकरिया, चकरिहा
चाकरी या नौकरी करनेवाला, सेवक
संज्ञा
[फ़ा. चाकरी + हा (प्रत्य.)]


चकरी
चौड़ी, विस्तृत।
सौ जोजन विस्तार कनकपुरी, चकरीजोजन बीस - ९ - ७५।
वि.
[सं. चक्री]


चकरी
चक्की, चक्की का पाट।
संज्ञा


चकरी
लड़कों का चकई नामक खिलौना।
संज्ञा


चकरी
भ्रमित, घूमनेवाला, अस्थिर, चंचल।
सु तौ ब्याधि हमेकौ लै आए देखी - सुनी न करी। यह तौ सूर तिन्हैं ले सौपौ जिनके मन चकरी - ३३६०।
वि.


चकरीन
चकई नामक खिलौना।
तैसेइ हरि तैसेइ सब बालक कर भौंरा चकरीन की जोरी।
संज्ञा
[हिं. चकरी + न (प्रत्य.)]


चकल
पौधे को उखाड़ने और दूसरे स्थान में लगाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चक्का]


चकली
चौड़ी, विस्तृत।
वि.
[किं. चकला]


चकवा, चकवाहा
एक पक्षी जिसके संबंध में प्रसिद्ध है कि रात में यह अपनी मादा से अलग रहता है।
संज्ञा
[सं. चक्रवाक]


चकवाना
हैरान या चकित होना।
क्रि. अ.
[देश.]


चकवारि
कछुवा।
संज्ञाा.


चकवी
चकवे की मादा।
संज्ञाा.
[हिं. चकवा]


चकहा, चका
पहिया, चक्का।
संज्ञाा.
[सं. चक्र]


चकहा, चका
चकवा, चक्रवाक।
संज्ञाा.
[हिं. चकवा]


चकाचक
शरीर पर तलवार आदि के प्रहार का शब्द।
संज्ञाा.
[अनु.]


चकाचक
तर, डूबा हुआ, निमग्न।
वि.


चकाचक
भरपेट।
क्रि. वि.
[सं. चक=तृप्त होना]


चक्रवर्ती
सार्वभौम राजा, समुद्रात पृथ्वी का राजा।
संज्ञा


चक्रवर्ती
किसी दल का समूह।
संज्ञा


चकासना
चमकानी।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चकित
विस्मित, आश्चर्यान्वित।
सूरदास - प्रभु - रूप चकित भए पंथ चलत नर बाम - ९ - ४४।
वि.
[सं.]


चकित
हैरान, घबराया हुआ।
अजित रूप ह्वै शैल घरो हरि जलनिधि मथिबे काज। सुर अरु असुर चकित भए देखे किये भक्त के काज -
वि.
[सं.]


चकित
चौकन्ना, डरा हुआ।
वि.
[सं.]


चकित
कायर।
वि.
[सं.]


चकित
विस्मय।
संज्ञा


चकित
भय।
संज्ञा


चकित
कायरता।
संज्ञा


चकितवंत
विस्मित, चकित, चकपकाया हुआ।
अब अति चकितवंत मन मेरो। हौं आयौ निर्गुन उपदेसन भयौ सगुन कौ चेरौ - ३४३१।
वि.
[सं. चकित+वत् (प्रत्य.)]


चकिताई
विस्मय, अचरज, आश्चर्य।
संज्ञा
[हिं. चकित+आई (प्रत्य.)]


चकी
चकित, विस्मित।
वि.
[सं.चकित]


चकुला
चिड़िया का बच्चा।
संज्ञा
[देश.]


चकृत
विस्मित, चकपकायी हुई।
अंबू पंडन शब्द सुनत ही चित चकृत उठि धावत - सा, उ, ३३।
वि.
[सं. चकित]


चकृत
हैरान, घबराई हुई।
कौसिल्या सुनि परम दीन ह्वै, नैन नीर ढरकाए। बिह्वल तन - मन, चकृत भई सो यह प्रतच्छ सुपनाए - ९ - ३१।
वि.
[सं. चकित]


चकैया
चकई।
संज्ञा
[हिं. चकई]


चकोटना
चुटकी काटना।
क्रि. स.
[हिं. चिकोटी]


चकोतरा
एक बड़ा नीबू।
संज्ञा
[सं चक्र = गोला]


चकोर
एक तीतर जिसके काले काले रँग पर सफेद चित्तियाँ होती हैं। चोंच और आँखें इसकी लाल होती हैं। भारतीय कवियों में यह चंद्रमा का बड़ा प्रेमी प्रसिद्ध है और उन्होंने इसके प्रेम का बराबर उल्लेख किया है।
संज्ञा
[सं.]


गुलेनार
लाल रंग।
संज्ञा
[हि. गुलनार]


गुलेराना
सुन्दर फूल।
संज्ञा
[फ़ा. गुल + अ. राना]


गुलेल
एक तरह की कमान जिससे मिट्टी की गोलियाँ चलायी जाती हैं।
संज्ञा
[फ़ा. गिलूल]


गुलेलची
गुलेल चलानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[हिं. गुलेल+ची (प्रत्य.)]


गुलेला
गुलेल से चलाने की गोली।
संज्ञा
[हिं. गुलेल]


गुलेला
बड़ी गुलेल।
संज्ञा
[हिं. गुलेल]


गुलौर, गुलौरा
वह स्थान जहाँ गुड़ बनाया जाता है।
संज्ञा
[सं. गुल = गुड़ हिं. औरा (प्रत्य.)]


गुल्गा
एक तरह का ताड़।
संज्ञा
[देश.]


गुल्फ
एँड़ी के ऊपर की गाँठ।
संज्ञा
[सं.]


गुल्म
पौधों की एक जाति।
एक जाति ह्वै रहे वृन्दावन गुल्मलता कर बास - सारा, ५७९।
संज्ञा
[सं]


चकाचौंध, चकाचौंधी
बहुत चमक या प्रकाश से आँखों की झपक या तिलमिलाहट।
चमकि गए बीर सब चकाचौंधी लगी चितै डरपे असुर घटा घोटा - २५९१।
संज्ञा
[सं. चक=चमकना +चौ = चारो ओर + अंध]


चकाना
अचंभे से ठिठकना, चकराना, हैरान होना, चकपकाना।
क्रि. अ.
[सं. चक=भ्रांत]


चकाने
चकराये, घबराय।
क्रि. अ.
[हिं. चकाना]


चकाबू, चकाबूह
चक्रव्यूह।
संज्ञा
[सं. चक्रव्यूह]


चकार
चवर्ग का पहला वर्ण।
संज्ञा
[सं.]


चकार
सहानुभूति सूचक शब्द।
संज्ञा
[सं.]


चक्रबंधु, चक्रबांधव
सूर्य (जिसके प्रकाश में चकवा चकवी साथ रहते हैं)।
संज्ञा
[सं. चक्र = चकवा]


चक्रभेदिनी
रात (जो चकवा-चकवी को अलग कर देती है)।
संज्ञा
[सं. चक्र = चकवा]


चक्रमुद्रा
विष्णु के अयुधों के चिन्ह जो वैष्णव बाहु आदि पर गुदाते हैं।
मूड़े मूड़ कंठ बनमाला मुद्रा चक्र दिये। सब कोउ कहते गुलाम स्याम कौ सुनत सिरात हिए।
संज्ञा
[सं.]


चक्रवर्ती
सार्वभौम।
वि.
[सं. चक्रवर्तिन]


चक्कर
घुमाव का रास्ता।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
फेरा, परिक्रमा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
पहिए की तरह घूमना।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
चक्कर काटना :- मँडराना, बार बार आनाजाना।

चक्कर खाना :- (१) टेढ़े-मेढ़े या घुमावदार मार्ग से जाना। (२) धोखा खाना। (३) भटकना, मारे मारे फिरना। चक्कर पड़ना :- ज्यादा घुमाव या फेर पड़ना। चक्कर आना :- हैरान होना, दंग रह जाना। चक्कर में डालना :- (१) हैरान करना। (२) कठिन स्थिति में डालना। चक्कर में पड़ना :- (१) हैरान होना। (२) दुबिधा में पड़ना। चक्कर लगाना :- (१) मँडराना। (२) घूमना-फिरना।

मु.


चक्कर
घुमाव, पेंच, जटिलता, धोखा, भुलावा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
चक्कर में आना (पड़ना) :- धोखा खाना।
मु.


चक्कर
सिर घूमना, मूर्च्छा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
पानी का भँवरा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
चक्र नामक अस्त्र।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कवइ
चक्रवर्ती (राजा)।
वि.
[सं. चक्रवर्ती, प्रा.चक्क वत्तीं]


चक्कवर्त
चक्रवर्ती राजा।
संज्ञा
[सं. चक्रवर्ती]


चक्कवा
चकवा पक्षी।
संज्ञा
[सं. चक्रवाक]


चकवै
चक्रवर्ती राजा।
वि.
[हिं. चक्क वइ]


चक्का
पहिया।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक]


चक्का
पहिये की तरह गोल चीज।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक]


चक्का
बड़ा टुकड़ा
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक]


चक्का
जमा हुआ भाग, थक्का।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक]


चक्का
ईटों का ढेर।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक]


चक्काब्यूह
चक्रव्यूह।
संज्ञा
[सं. चक्रव्यूह]


चक्की
आटा-दाल आदि पीसने का यंत्र, जाँता।
संज्ञा
[सं. चक्री, प्रा. चक्की]


चकोरी
मादा चकोर।
संज्ञा
[सं.]


चकोरै
नर चकोर।
तुव मुख दरस आस के प्यासे हरि के नयन चकोरै - २२७५।
संज्ञा
[हिं. चकोर]


चकोह
पानी का भँवर।
संज्ञा
[सं. चक्रवाह]


चकौंध
चमक या प्रकाश की अधिकता से आँख की झपक।
संज्ञा
[हिं. चकाचौंध]


चक्क
पीड़ा, दर्द।
संज्ञा
[सं.]


चक्क
चकवा पक्षी।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्क
कुम्हार को चाक।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्क
दिशा, प्रांत।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
पहिए की तरह गोल वस्तु।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्कर
गोल घेरा।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चक्की
चक्की की मानी :- (१) चक्की के निचले पाट की वह खुँटी जिस पर ऊपरी पाट घूमती है।

(२) ध्रुव तारा। चक्की छूना :- (१) चक्की चलाना शुरू करना। (२) अपनी कथा छेड़ना। चक्की पीसना :- (१) चक्की चलाना। (२) कड़ा परिश्रम करना।

मु.


चक्की
पैर के घुटने की गोल हड्डी।
संज्ञा
[सं. चक्रिक]


चक्की
बिजली, बज्र।
संज्ञा
[सं. चक्रिक]


चक्कू
चाकू।
संज्ञा
[हिं. चाकू]


चक्खै
स्वाद लेकर खाय।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चक्र
पहिया।
थकित होत रथ चक्र हीन ज्यौं - १ - २०१।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
कुम्हार का चाक।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
चक्की, जाँता।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
कोल्हू।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
पहिए की। तरह गोल वस्तु।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
शरीर के कमल।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
मंडल, घेरा।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
रेखाओं से घिरे हुए खाने।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
घुमाव, चक्कर।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
दिशा।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
धोखा।
संज्ञा
[सं.]


चक्रतीर्थ
दक्षिण भारत का एक तीर्थं।
संज्ञा
[सं.]


चक्रतीर्थ
नैमिषारण्य का एक कुंड।
संज्ञा
[सं.]


चक्रधर, चक्रधारी
जो चक्र धारण करे।
वि.
[सं.]


चक्रधर, चक्रधारी
चक्र धारण करनेवाला।
संज्ञा


चक्र
एक गोल अस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
विष्णु भगवान का विशेष अस्त्र।
ग्राह गहे गजपति मुकरायौ, हाथ चक्र लै धायौ - १ - १०।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
चक्र गिरना (पड़ना) :- विपत्ति आना।
मु.


चक्र
पानी का भँवर।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
हवाका चक्कर, बवंडर।
अति विपरीत तृनावर्त आयौ। बात - चक्र मिस ब्रज ऊपर परि नंद - पौरि कैं भीतर धायौ - १० - ७७।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
समूह, मंडली।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
दल, झुंड।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
सेना का एक व्यूह।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
मंडल, प्रदेश।
संज्ञा
[सं.]


चक्र
चकवा पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चक्रधर, चक्रधारी
विष्णु।
संज्ञा


चक्रधर, चक्रधारी
श्रीकृष्ण।
संज्ञा


चक्रधर, चक्रधारी
जादूगर।
संज्ञा


चक्रधर, चक्रधारी
साँप।
संज्ञा


चक्रपाणि, चक्रपाणी, चक्रपानि, चक्रपानी
चक्रधारी विष्णु।
संज्ञा
[सं. चक्र + पाणि = हाथ]


चक्रवाक
चकवा पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चक्रवाकि
चकवी, चकई।
रबि - छबि कैंधौं निहारि, पंकज बिगसाने। किधौं चक्रवाक निरखि, पतिहीं रति मानें - ६४२।
संज्ञा
[सं. चक्रवाक]


चक्रवात
वेग से चक्कर खाती हुई हवा, बवंडर, वातचक्र।
तृनावर्त बिपरीत महाखल सो नृप राय पठायौ। चक्रवात ह्वै सकल घोष मैं रज धुंधर ह्वै धायौ–सारा. ४२८।
संज्ञा
[सं.]


चक्रवाल
अंतरिक्ष।
संज्ञा
[सं.]


चक्रव्यूह
सेना की एक स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


चक्रित
हैरान, घबराया हुआ।
(क) नंदहिं कहति जसोदा रानी। माटी कैं मिस मुख दिखायौ, तिहुँ लोक रजधानी। नदी सुमेर देखि चक्रित भई, यकी अकथ कहानी १० - २५६।
वि.
[सं. चकित]


चक्रित
चौकन्ना, सशंकित।
(क) गोपाल दुरै हैं माखन खात।…..। उठि अवलोकि ओट ठाढ़े ह्वै, जिहिं बिधि हैं लखि लेत। चक्रित नैन चहूँ दिसि चितवत, और सखनि कौ देत - १० - २८३।

(ख) तरु दोउ धरनि गिरे भहराइ। जर सहित अरराइ कै, आघात सब्द सुनाई। भए चक्रित लोग ब्रज के सकुचि रहे डराइ - ३८७।

वि.
[सं. चकित]


चक्रित
चकित, विस्मित, भौचक्का, भ्रांत।
(क) सुनत नंद जसुमति चक्रित चित, चक्रित गोकुल के नर - नारि - ४३०।

(ख) देखि बदन चक्रित भई सौंतुष की सपनैं ४३९।

वि.
[सं. चकित]


चक्री
चक्र धारण करनेवाला।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
विष्णु।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
चकवा पक्षी।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
कुम्हार।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
साँप।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
जासूस. दूत।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
तेली।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्रांक
चक्र आदि का। चिह्न जो वैष्णव शरीर पर गुदाते हैं।
संज्ञा
[सं. चक्र + अंक]


चक्रांकित
जिसके चक्र आदि का चिह्न शरीर पर गुदा या अंकित हो।
वि.
[सं.]


चक्रांकित
वैष्णवों का एक वर्ग जो विष्णु के चक्र आदि आयुधों के चिह्न शरीर पर गुदाता है।
संज्ञा


चक्राकार
गोल।
वि.
[सं. चक्र + आकार]


चक्राकी
मादा हंस।
संज्ञा
[सं.]


चक्राट
साँप पकड़नेवाला।
संज्ञा
[सं.]


चक्राट
साँप का विष झाड़नेवाला।
संज्ञा
[सं.]


चक्राट
धूर्त।
संज्ञा
[सं.]


चक्रायुध
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चक्रिक
चक्र धारण करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


गुल्लाल
एक लाल फूल।
संज्ञा
[फा.]


गुल्लाल
श्मशान।
संज्ञा


गुल्ली
फल की गुठली।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
महुए का बीज।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
किसी चीज को छोटा नुकीला टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
लकड़ी का छोटा टुकड़ा जिसे डंडे से मारने का एक खेल होता है।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
केवड़े का फूल।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
एक तरह की मैना।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
गन्ने की गँडेरी।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


गुल्ली
एक पासा।
संज्ञा
[सं. गुलिका=गुठली]


चखपुतरि, चखपुतरी
अत्यंत प्रिय पात्र।
संज्ञा
[हिं. चक्षु + पुतली]


चखा
चखनेवाला।
वि.
[हिं. चखना]


चखा
रस या स्वाद लेनेवाला, रसिक।
वि.
[हिं. चखना]


चखाचखी
कहा-सुनी।
संज्ञा
[हिं. चख चख]


चखाना
स्वाद दिलाना।
क्रि. स.
[हिं. चखना का प्रे.]


चखावहु
स्वाद दो, खिलाओ।
कनक कलस रस मोहिं चखावहु - १०५०।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चखु
आँख।
संज्ञा
[सं. चक्षु]


चखैहौं
चखाऊँगा, खिलाऊँगा, स्वाद दिलाऊँगा।
यह हित मनै कहत सूरज प्रभु, इहिं कृत कौ फज तुरत चखैहौं - ७ - ५।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चखोड़ा, चखौड़ा
काजल की लंबी रेखा जो बच्चों को नजर से बचाने के लिए उनके माथे पर लगाई जाती है।
(क) लट लटकनि सिर चारु चखौड़ा, सुठि सोभा सिसु भाल - १० - ११४।

(ख) भाल तिलक पख स्याम चखौड़ा जननी लेति बलाइ - १० - १३३। (ग) चारु चखौड़ा पर कुंचित कच, छबि मुक्ता ताहू मैं - १० - १४७। (घ) अंजन दोउ दृग भरि दीन्हौ। भ्रव चारु चखौड़ा कीन्हौ - १० - १८३।

संज्ञा
[हिं. चख + ओड़ा]


चखौती
चटपटी भोजन।
संज्ञा
[हिं. चखना]


चक्री
चकवर्ती।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
कौआ।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
गदहा।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्री
रथी।
संज्ञा
[सं. चक्रिन्]


चक्षुःश्रवा
साँप जो आँख से सुनता भी है।
संज्ञा
[सं. चक्षुःश्रवस्]


चक्षु
आँख।
संज्ञा
[सं. चक्षुस्]


चक्षु रिंद्रिय
देखने की इंद्रिय, आँख।
संज्ञा
[सं.]


चक्षश्रवा
साँप।
चक्षुश्रवा डर हर ग्रसी ज्यौं छिन द्वितिया बपु रेख - २७५१।
संज्ञा
[हिं. चक्षःश्रवा]


चक्षुष्पति
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


चक्षुष्य
जो (औषध आदि) नेत्रों को हितकर हो।
वि.
[सं.]


चक्षुष्य
जो नेत्रों को प्रिय लगे, सुंदर।
वि.
[सं.]


चक्षुष्य
नेत्र-संबंधी।
वि.
[सं.]


चक्षुष्य
केतकी, केवड़ा।
संज्ञा


चक्षुष्य
अंजन।
संज्ञा


चख
आँख।
लटकति बेसरि जननि की, इकटक चख लावै - १० - ७२।
संज्ञा
[सं. चक्षु स्]


चख
झगड़ा, तकरार, टंटा।
संज्ञा
[अनु.]


चखचख
बकबक, कहासुनी।
संज्ञा
[अनु.]


चखचौंध
अधिक प्रकाश के कारण आँखों की झपक या तिलमिलाहट।
संज्ञा
[हिं. चकचौंध]


चखना
स्वाद लेना।
क्रि. स.
[सं. चष]


चखपुतरि, चखपुतरी
आँख की पुतली।
संज्ञा
[हिं. चक्षु + पुतली]


चटक
तेजी, फुर्ती।
संज्ञा
[सं. चटुल = चंचल]


चटक
तेजी या फुर्ती से, चटपट।
क्रि. वि.


चटक
फुर्तीला, तेज |
वि.


चटक
चटपटे या तीक्ष्ण स्वाद का।
वि.


चटक
छपे कपड़ों को धोने की रीति।
संज्ञा


चटकई
तेजी, फुर्ती।
संज्ञा
[हिं. चटक]


चटकत
‘चट' ध्वनि करके टूटता या फूटता है, तड़कता है।
दसहूँ दिसा दुसह दवामिनि, उपजी है इहिं काल। पटकत बाँस, काँस कुस चटकत, लटकत ताल तमाल - ६१५।
क्रि. अ.
[हिं. चटकना (अनु.)]


चटकदार
चटकीला, भडकीला, चमकीला।
वि.
[हिं. चटक + फ़ा. दार (प्रत्य.)]


चटकन
चटकना, तड़कना।
संज्ञा
[हिं. चटकना]


चटकन
चमकदमक, कांति।
संज्ञा
[हिं. चटक]


चट
घाव का चकत्ता।
संज्ञा
[सं. चित्र, हिं. चित्ती]


चट
दोष, ऐब।
संज्ञा
[सं. चित्र, हिं. चित्ती]


चट
किसी कड़ी चीज के टूटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु]


चट
उँगली आदि चटकाने का शब्द।
संज्ञा
[अनु]


चट
चाट पोंछकर खाया हुआ।
वि.
[हिं. चाटना]


चट
चटकर जाना :- (१) झटपट खा लेना।

(२) दूसरे की चीज हड़प लेना या हजम कर जाना।

मु.


चटक
गौरैया पक्षी, चिड़ा।
संज्ञा
[सं.]


चटक
चमकदमक, कांति।
मुकुट लटकि भ्रकुटी मटक देखौ कुंडल की चटक सों अटकि परी दृगनि लपट - ३०३९।
संज्ञा
[सं. चटुल = सुंदर]


चटक
चटक-मटक-बनाव सिंगार, चमकदमक।
यौ


चटक
चटकीला, चमकीला, मनोहर, आकर्षक।
(क) नटवर बेष बनाये चटक सो ठाढो रहे, जमुना के तीर नित नव मृग निकट बोलावै - ८४०।

(ख) ऐसो माई एक कोद को हेत। जैसे बसन कुसुंभ रँग मिलिकै नेकु चटक पुनि स्वेत - ३३४६।

वि.


चगड़
चालाक, चतुर, काइयाँ।
वि.
[देश.]


चचीडा, चचेंडा
एक तरकारी।
संज्ञा
[सं. चिचिड]


चचेरा
चाचा से उत्पन्न।
वि.
[हिं. चाचा]


चचोड़ना, चचोरना
दाँत से दबा-दबाकर या खींच खींचकर रस चूसना।
क्रि. स.
[अनु. या देश.]


चचोरत
चुसता है।
सूरदास प्रभु ऊख छाँड़ि के चतुर चकोरत आग - ३०अ९५।
क्रि. स.
[हिं. चचोड़ना]


चचोरैं
चूसते हैं।
आपु गयौ तहाँ जहँ प्रभु परे पालनैं, कर गहे चरन अँगुठा चचोरैं - १० - ६२।
क्रि. स.
[हिं. चचोड़ना]


चच्छवादिक
चक्षु् इत्यादि।
तामैं सक्ति अपनी धरी। चच्छावादिक इंद्री बिस्तरी - ३ - १३।
संज्ञा
[सं. चक्षु +आदिक]


चच्छु
नेत्र।
सो अंजन कर ले सुत - चच्छुहिं आँजति जसुमति माइ - ४८७।
संज्ञा
[सं. चक्षु]


चट
झटपट, तुरंत।
क्रि. वि.
[सं. चटुल = चंचल]


चट
दाग, धब्बा।
संज्ञा
[सं. चित्र, हिं. चित्ती]


चटकना
‘चट' शब्द करके टुडनी या तडकना
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
(कोयले आदि का) चटचट करना।
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
चिड़चिड़ाना, झल्लाना।
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
(उँगली का) चटचट करना।
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
कलियों का फूटना।
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
अनबन या खटपट होना।
क्रि. अ.
[अनु, चट]


चटकना
तमाचा, थप्पड़
संज्ञा
[अनु. चट]


चटकै - मटक
बनाव-सिंगार।
संज्ञा
[हिं. चटकना +मटकना]


चटकै - मटक
नाज-नखरा।
संज्ञा
[हिं. चटकना +मटकना]


चटका
फुर्ती, जल्दी।
जुग जुग यहै बिरद चलि आयो टेरि कहत हौ याते। मरियत लाज पाँच पतितन में होब कहा चटका ते।
संज्ञा
[हिं. चट]


चटकारा, चटकारे
चमकीला, चटकीला।
वि.
[सं. चटुल]


चटकारा, चटकारे
चंचल, चपल, तेज।
अटपटात अलसात पलक पट मूँदत कबहूँ करत उघारे। मनहुँ मुदित मरकत मनि आँगन खेलत खंजरीट चटकारे - २१३२।
वि.
[सं. चटुल]


चटकारा, चटकारे
स्वाद या रस लेते हुए जीभ चटकाने का शब्द।
वि.
[अनु. चट]


चटकारा, चटकारे
चटकारे का :- चरपरे या मजेदार स्वाद का।

चटकारे भरना :- स्वाद लेकर चाटना।

मु.


चटकाली
चिड़ियों का समूह।
संज्ञा
[सं. चटक + आलि]


चटकाली
गौरैया का झुंड।
संज्ञा
[सं. चटक + आलि]


चटकाहट
चटकने का शब्द या भाव।
संज्ञा
[हिं. चटकना]


चटकाहट
कलियाँ खिलने का शब्द।
संज्ञा
[हिं. चटकना]


चटकि
बिगड़कर, झगड़कर, अनबन करके।
एक ही संग हम तुम सदा रहति हीं आजु ही चटकि तू भई न्यारी - २२६९।
क्रि. अ.
[हिं. चटकना]


चटकीला, चटकीलो
चटक रंग का, भड़कीला
चटकीला पट लपटानो कटि बंसीवट जमुना के तट नागर नट ८३९।

(२) चमकदार। (३) चटपटे स्वाद का।

वि.
[हिं. चटक + ईला (प्रत्य.)]


चटका
चकत्ता।
संज्ञा
[सं. चित्र, हिं. चित्ती]


चटका
चटपटा या तीक्ष्ण स्वाद।
संज्ञा
[हिं. चाट]


चटका
चस्का।
संज्ञा
[हिं. चाट]


चटकाई
चटकीलापन।
संज्ञा
[हिं. चटक]


चटकाना
तड़काना, तोड़ना।
क्रि. स.
[अनु. चट]


चटकाना
उँगलियाँ दबाकर चटचट शब्द करना।
क्रि. स.
[अनु. चट]


चटकाना
किसी वस्तु से चटचट शब्द निकालना।
क्रि. स.
[अनु. चट]


चटकाना
जूतियाँ चटकाना :- मारे-मारे फिरना।
मु.


चटकाना
अलग या दूर करना।
क्रि. स.
[अनु. चट]


चटकाना
चिढ़ाना।
क्रि. स.
[अनु. चट]


चटपटी
उतावली, शीघ्रता, हड़बड़ी।
संज्ञा
[हिं. चटपट]


चटपटी
घबराहट, आकुलता।
संज्ञा
[हिं. चटपट]


चटपटी
उत्सुकता, छटपटाहट।
(क) देखे बिना चटपटी लागति कछू मूड़ पड़ि पर ज्यौं।

(ख) नैनन चटपटी मेरे तब ते लगी रहति कहौ प्रान प्यारे निर्धन कौ धन - १८१०।

संज्ञा
[हिं. चटपट]


चटपटी
चटपटे स्वाद की।
वि.
[हिं. चटपटा]


चटपटी
चटपटे स्वादवाली चीज।
संज्ञा


चटर
चट चट शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चटवानां
चाटने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटवानां
तलवार पर सान रखना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटशाला, चटसार, चटसाल
बच्चों की पाठशाला, शिक्षालय।
(क) तिनकै सँग चटसार पठायौ। राम - नाम सौं तिन चित लायौ - ७.२।

(ख) अब समझीं हम बात तुम्हारी पढे एक चटसार - १४८३। (ग) चातक मोर चकोर् बदत पिक मनहु मदन चटसार पढ़ावत - १०उ. - ५।

संज्ञा
[सं. चेतक या हिं. चट्ट=चेला+सार, साल या शाला]


चटशाला, चटसार, चटसाल
शाला, समाज, समूह।
भँवर कुरंग काग अरु। कोकिल कपटिन की चटसार - २६८७।
संज्ञा
[सं. चेतक या हिं. चट्ट=चेला+सार, साल या शाला]


गुवा, गुवाक
चिकनी सुपारी।
संज्ञा
[सं.]


गुवार
अहीर, ग्वाला।
संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


गुवारि
ग्वालिन, गोपी।
हरि कौं टेरत फिरति गुवारि - ४६१।
संज्ञा
[हिं. पुं. ग्वाल]


गुवाल, गुवाला
ग्वाल, अहीर।
(क) सब आनंद - मगन गुवाल, काहूँ बदत नहीं - १० - २४।

(ख) बिहँसत हरि - संग चले गुवाला - ४९९ |

संज्ञा
[हिं. ग्वाल]


गुविंद
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. गोविंद]


गुसल
स्नान।
संज्ञा
[अ.गुस्ल]


गुसलखाना
नहाने का घर या स्थान।
संज्ञा
[अ. गुस्ल + फा. खाना]


गुसाँई
प्रभु, स्वामी, ईश्वर।
बिनु दीन्हैं ही देत सूर - प्रभु ऐसे हैं। जदुनाथ गुसाई' - १ - ३।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गुसाँई
वैष्णव-आचार्य।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


गुसाँई
उपदेशक, वक्ता (व्यंग्य)।
होहु बिदा घर जाहु गुसाई माने रहियो नात - २६५७।
संज्ञा
[सं. गोस्वामी]


चटकीलापन
चमकदमक, कांति।
संज्ञा
[हिं. चटकीला + पन (प्रत्य.)]


चटकीलापन
चटपटापन
संज्ञा
[हिं. चटकीला + पन (प्रत्य.)]


चटकोरा
एक खिलोना।
संज्ञा
[देश, ]


चटखना
तड़कना, खिलना।
क्रि. स.
[हिं. चटकना]


चटखना
तमाचा, थप्पड़।
संज्ञा


चटचट
चटकने या टूटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चटचट
उँगलियाँ चटकाने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चटचटकि
चटचटाकर (टूटना, फूटना) या जलना।
झपटि झपटत लपट, फूल - फल चटचटकि, फटत लटलट द्रुम द्रुमनवारौ - ५९६।
क्रि. अ.
[हिं. चटचटाना]


चटचटात
चटचट ध्वनि करके (टूटता या फूटता)।
सरन - सरन अब मरत हौं, मैं नहिं जान्यौ तोहिं। चटचटात अँग फटत हैं, राखु राखु प्रभु मोहिं - ५८९।
क्रि. अ.
[हिं. चटचटाना]


चटचटाना
चटचट शब्द करके टूटना या फूटना।
क्रि. अ.
[सं. चट = भेदन]


चटचटाना
लकड़ी-कोयले का चटचट करके जलना।
क्रि. अ.
[सं. चट = भेदन]


चटचेटक
इंद्रजाल।
संज्ञा
[सं. चेटक]


चटनी
चाटने की पतली चीज।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चटनी
धनिया-पुदीना आदि की पिसी हुई चरपरी चीज।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चटनी
चटनी करना (बनाना) :- चूर चूर करना।
मु.


चटपट
झटपट, तुरंत
क्रि. वि.
[अनु.]


चटपट
चटपट होना :- चटपट मर जाना।
मु.


चटपटा
चरपरे स्वाद का।
वि.
[हिं. चाट]


चटपटाइ
हड़बड़ी कर, जल्दी करके।
कर सौं हाँकि सुतहिं दुलरावति, चटपटाइ बैठे अतुराने - १० - १९७।
क्रि. अ.
[हिं. चटपट, चटपटाना]


चटपटाना
जल्दी करना।
क्रि. अ.
[हिं. चटपट]


चटाइ
चटाकर।
गउ चटाइ मम त्वचा उपारी - ६ - ५।
क्रि. स.
[हिं. चटाना]


चटाई
सींक, ताड़ के पत्तों आदि से बननेवाला बिछावन, साथरी।
संज्ञा
[सं. कट]


चटाई
चटाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चटाक, चटाख
टूटने या चटकने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चटाक, चटाख
चकत्ता, दाग।
संज्ञा
[हिं. चट्टा]


चटाका
टूटने या चटकने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चटाका
चटाके का :- बहुत तेज़ या कड़ा।
मु.


चटाना
चटाने खिलाने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटाना
चटाना, खिलाना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटाना
घूस देना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटाना
छुरी आदि पर सान रखाना।
क्रि. स.
[हिं. चाटना का प्रे.]


चटापटी
शीघ्रता।
संज्ञा
[हिं. चटपट]


चटापटी
शीघ्र या चटपट मृत्यु।
संज्ञा
[हिं. चटपट]


चटावन
बच्चे को पहली बार अन्न चटाने का संस्कार, अन्नप्राशन।
संज्ञा
[हिं. चटाना]


चटावै
चटाती है, खिलाती है।
दधिहिं बिलोइ. सदमाखन राख्यौ, मिश्री सानि चटावै नँदलाल - १० - ८४।
क्रि. स.
[हिं. चटाना]


चटिक
चटपट, तुरंत।
क्रि. वि.
[हिं. चट]


चटियल
जिसमें पेड़-पौधे नहों।
वि.
[देश.]


चटिया
दास. नौकर।
अजामील, गनिका व्याध, नृग, ये सब मेरे। चटिया। उनहूँ जाइ सौंह दे पूछौ, मैं करि पठयौ सटिया - १ - १९२।
संज्ञाा.
[सं. चेटक]


चटिहाट
जड़, मूर्ख।
वि.
[देश.]


चटी
पाठशाला।
संज्ञा
[हिं. चट्ट = चेला]


चटु
खुशामद।
संज्ञा
[सं.]


चटु
पेट, उदर।
संज्ञा
[सं.]


चटुल
चंचल, चपल।
वि.
[सं.]


चटुल
चालाक, काँइयाँ।
वि.
[सं.]


चटुल
जिसे देखकर सुख मिले, प्रियदर्शन। सुंदर |
चटुल चारु रतिनाथ के हरि होरी है। - २४५५ (८)।
वि.
[सं.]


चटुला
बिजली, चपला।
संज्ञा
[संज्ञा]


चटोरा
अच्छी चीजें खाने का लालची, स्वादू।
वि.
[हिं. चाट + ओरा (प्रत्य.)]


चटोरा
लोभी।
वि.
[हिं. चाट + ओरा (प्रत्य.)]


चटोरापन
अच्छी चीजें खाने का लोभ या व्यसन।
संज्ञा
[हिं. चटोरा + पन (प्रत्य.)]


चट्ट
चाट-पोंछ कर खाया हुआ।
वि.
[हिं. चाटना]


चट्टी
पैर को एक गहना।
संज्ञा
[देश.]


चट्टी
हानि।
संज्ञा
[हिं. चाँटा]


चट्टी
दंड।
संज्ञा
[हिं. चाँटा]


चटटू
चटोरा, स्वादू, लोभी।
वि.
[हिं. चाट]


चटटू
पत्थर का खरल।
संज्ञा
[हिं. चट्टान]


चटटू
चाटने का खिलौना।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चड़ बड़
बकबक, झकझक।
संज्ञा
[अनु.]


चड्डा
जाँघ का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[देश.]


चड्डा
गावदी, मूर्ख, उजड्ड।
वि.


चढ़त
चढ़ता है, लगाया या पोता जाता है।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चट्ट
समाप्त, नष्ट।
वि.
[हिं. चाटना]


चट्टा
चेला, शिष्य।
संज्ञा
[सं. चेटक=दास]


चट्टा
बाँस की चटाई।
संज्ञा
[सं. कंट]


चट्टा
सफाचट मैदान।
संज्ञा
[देश.]


चट्टा
शरीर के चकत्ते, दाग।
संज्ञा
[हिं. चकत्ता]


चट्टान
पत्थर का बड़ा टुकड़ा।
संज्ञा
[हि, चट्टा]


चट्टाबट्टा
काठ के छोटे-छोटे खिलौनों का समूह।
संज्ञा
[हिं. चट्टू = चाटने का खिलौना+ बट्टा = गोला]


चट्टाबट्टा
बाजीगर के छोटे-बड़े गोले।
संज्ञा
[हिं. चट्टू = चाटने का खिलौना+ बट्टा = गोला]


चट्टाबट्टा
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे :- एक ही रुचि, स्वभाव और ढंग के आदमी।

चट्टे-बट्टे लड़ाना :- कुछ कहकर आपस में झगड़ा कराना।

मु.


चट्टी
टिकान, पड़ाव, मंजिल।
संज्ञा
[देश.]


चढ़त
रंग चढ़त :- रंग खिलता (है)।

उ. - (क) सूरदास कारी कमरि पै, चढ़त न दूजौ रंग - १ - ३३२। (ख) जो पै चढ़त रंग तौ ऊपर त्यौं पै होब स्यामता सेतु - ३३९०।

मु.


चढ़त
ऊपर उठता है, उड़ता है।
परनि परेवा प्रेम की (रे) चित लै चढत अकास - १ - ३२५।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़त
किसी देवता पर चढ़ाई वस्तु या भेंट।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ता
द्वार की ओर उठाया जाता हुआ।
वि.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ता
प्रारंभ होता और बढ़ता हुआ।
वि.
[हिं. चढ़ना]


चढ़न
चढ़ने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़न
देवता पर चढ़ायी हुई वस्तु।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ना
ऊँचाई की ओर जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
ऊपर उठना, उड़ना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
ऊपर की ओर खिसकना या समिटना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़वाना
चढ़ाना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाइ
सितार, धनुष आदि में तार या डोरी चढ़ाकर या कसकर।
कुबुधि - कमान चढ़ाई कोप करि, बुधि - तरकस रितयौ - १ - ६४।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाइ
मलकर, लगाकर।
उ. - घसि कै गरल चढ़ाइ उरोजनि लै रुचि सौं पय प्याऊँ - १० - ४९।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाई
(सितार, धनुष आदि में) डोरी कसी या कसकर।
उ. - तुम तौ द्विज, कुल - पूज्य हमारे, हम - तुम कौन लराई १ क्रोधवंत कछु सुन्यौ नहीं, लियौ सायकधनुष चढ़ाई - ९ - २८।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाई
लियो धनुष चढ़ाइ :- धनुष की डोरी कसी
मु.


चढ़ाई
भेंट की, अर्पित की।
मेरी बलि पर्वतहिं चढ़ाई - १०४१।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाई
चढ़ने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाई
ऊँचाई की ओर जानेवाली भूमि।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाई
लड़ने के लिए प्रस्थान, धावा, आक्रमण।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाई
किसी देवी-देवता की पूजा की तैयारी।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ना
देवता या महात्मा को अर्पित करना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
सवारी करना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
वर्ष, मास आदि का आरंभ होना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
ऋण या कर्ज होना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
बही आदि में लिखा जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
बुरा असर या प्रभाव होना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
चूल्हे या अँगीठी पर रखा जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
पोतना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
रंग चढ़ना :- (१) रंग का खिलना या आना।

(२) किसी प्रकार का प्रभाव पड़ना।

मु.


चढ़ना
किसी झगड़े को अदालत तक ले जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


गुल्म
सेना का एक वर्ग।
संज्ञा
[सं]


गुल्म
पेट का रोग।
संज्ञा
[सं]


गुल्मप
एक गुल्म का नायक।
संज्ञा
[सं.]


गुल्लक
धन रखने का पात्र।
संज्ञा
[हिं. गोलक]


गुल्ला
गुलेल की गोली।
संज्ञा
[हिं गोला]


गुल्ला
एक बँगला मिठाई।
संज्ञा
[हिं गोला]


गुल्ला
गन्ने की गँडेरी।
संज्ञा
[हिं. गुल्ली]


गुल्ला
शोर, हल्ला, कोलाहल।
संज्ञा
[अ. गुल]


गुल्ला
गुलेल नामक कमान।
संज्ञा
[हिं. गुलेल]


गुल्ला
एक पहाड़ी पेड़।
संज्ञा
[देश.]


चढ़ना

एक वस्तु के ऊपर दूसरी का मढ़ा जाना।

क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
उन्नति करना, बढ़ना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
चढ़ (बढ़) कर होना :- अधिक श्रेष्ठ या महत्व का होना।

चढ़ा बढ़ा :- श्रेष्ठ। चढ़ बनना :- लाभ का अवसर हाथ आना। चढ़ बजना :- बात बनना, पौ बारह होना।

मु.


चढ़ना
(नदी या पानी का) बढ़ना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
धावा या चढ़ाई करना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
धूमधाम या साज-बाज के साथ कहीं जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
महँगा हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
सुर या स्वर तेज होना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
नदी के प्रवाह के विरुद्ध चलना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ना
(नस. डोरी या तार) कस जाना।
क्रि. अ.
[सं. उच्चुलन, प्रा. उच्चडन, चड्ढन]


चढ़ाए
कसे, खींचे।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाए
नैन चढ़ाए :- क्रोध से भृकुटी ताने हुए।

उ. - नैन चढ़ाए कापर डोलति ब्रज मैं तिनुका तोरि - १० - ३१०।

मु.


चढ़चढ़ी
होड़, लागडाँट।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाना
ऊँचाई पर पहुँचाना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
चढ़ने का काम करना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
ऊपर की ओर सिकोड़ना या समेटना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
धावा या चढ़ाई करना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
भाव बढ़ाना, मँहगा करना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
स्वर ऊँचा करना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
सितार, धनुष आदि की डोरी कसना या चढ़ाना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
देवता या महात्मा को भेंट देना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
सवारी कराना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
चटपट पी जाना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
ऋण या कर्ज बढ़ाना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
बही आदि में लिखना या टाँकन।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
चूल्हे-अँगीठी पर रखना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
लगाना, पोतना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ाना
एक वस्तु को दूसरी पर मढ़ना।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना का प्रे.]


चढ़ानी
चढ़ाई।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
लेप किया, लगाया, मला, पोता।
चोवा चंदन अगर कुमकुमा परिमल अंग चढ़ायौ - १०उ. ६५।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाई
किसी देवी देवता को पूजा या भेंट चढ़ाने की क्रिया या सामग्री, चढ़ावा, कढ़ाई।
सूर नंद सों कहत जसोदा दिन आये अब करहु चढ़ाई।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाउ
चढ़ने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चढ़ाव]


चढ़ाउतरी
बार बार चढ़ने-उतरने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना+उतरना]


चढ़ाउतरी
कूद-फाँद।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना+उतरना]


चढ़ाऊँ
लगाऊँ, मलूँ, पोतुँ।
तन मन जारौं, भस्म चढ़ाऊँ बिरहिन गुरु उपदेस - २७५४।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ा - ऊपरी
अधिक उँचे चढ़ने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना+ऊपर]


चढ़ा - ऊपरी
आगे बढ़ जाने का भाव या प्रयत्न, लागडाँट।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना+ऊपर]


चढ़ाए
मढ़वाए, आवरणरूप में लगाए।
ऊँचे मंदिर कौन काम के कनक - कलस जो चढ़ाए। भक्त भवन मैं हौं जू बसति हौं जद्यपि तृन करि छाए - १ - २४३।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाए
सवार कराये।
कंचन को रथ आगे कीन्हों। हरिहिं चढ़ाए वर कै - २५२९।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाए
लगाये हुए, मले हुए।
भुजा बिसाल स्याम सुंदर की चंदन खौरि चढ़ाए री - १३४३।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावा
टोने टुटके की चीज।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ावा
उत्साह, प्रोत्साहन |
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ावैं
देवता के अर्पण करें।
कमल - पत्र मालूर चढ़ावें - ७९९।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावै
पुस्तक, बही, कागज आदि पर लिखे।
अब तुम नाम गहौ मन नागर।…..। मारि न सके, बिघन नहिं ग्रासै, जम न चढ़ावै कागर - १ - ९१।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाहु
चढ़ाओ, सवार कराओ।
कहै भामिनि कंत सौं मोहि कंध चढ़ाहु - १८८९।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ि
चढ़कर, सवार होकर।
बिप्रनि पै चढ़िकै जौ आवहु। तौ तुम मेरौ। दरसन पावहु - ६ - ७।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ि
उन्नति करके, बढ़कर।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ि
चढ़ि बाजी :- बात बन गयी, पौ बारह हो गयी।

उ. - अधर रस मुरली लूट करावति। आपुन बार बार लै अँचवति जहाँ तहाँ ढरकावति। आजु यहाँ चढ़िबाजी वाकी जोइ कोइ करै बिराजै।

मु.


चढ़ि
धावा या आक्रमण करके, चढ़ाई करके।
बार सत्रह, जरासंध मथुरा चढ़ि आयो - १० उ.३।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ि
लगाकर, मलकर, पोतकर।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाव
चढ़ाव उतार-क्रमशः मोटाई कम होना।
यौ.


चढ़ाव
विवाह में दुलहिन को चढ़ाये गये गहने आदि, चढ़ावा।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाव
विवाह में दुलहिन को दिये गये गहने आदि पहनने की रीति।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाव
वह दिशा जिधर से नदी बहकर आ रही ही।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ावत
सवार कराते हैं।
गैवर भेति चढ़ावत रासभ प्रभुता मेटि करत हिनती - १२२८।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावत
मलते हैं, लगाते हैं।
जो पै जोग लिखि पठयौ हमकौ तुमहु न भस्म चढ़ावत - ३२१८।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावन
देवार्पित करना, चढ़ाने की क्रिया |
दस मुख छेदि सुपक नव फल ज्यौं, संकर - उर दससीस चढ़ावन - ९ - १३१।
संज्ञा
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावहु
अर्पित करो।
जरासंध सिसुपाल नृपति ते जीते हैं उठि अर्ध्य चढ़ावहु - १० उ. - २३।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ावा
वे गहने जो दुलहिन। को चढ़ाये जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ावा
वह सामग्री जो देवी देवता पर चढ़ायी जाती है, पुजापा।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
किसी देवी-देवता को अर्पित किया।
अब गोकुल भूतल नहिं राखौं मेरी बलि मोको न चढ़ायौ - ९४२।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
लिखा, दर्ज किया, टाँका।
ब्याध, गीध, गनिका जिहिं कागर, हौं तिहिं चिठि न चढ़ायौ - १ - १९३।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
पान किया, पी लिया।
प्रथम जोबन रस चढ़ायौ अतिहिं भई खुमारि - ११६६।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
ऊँचे पर पहुँचाया, ऊपर उठाया।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
मूड़ चढायौ :- सर पर चढ़ा लिया है, ढीठ कर दिया है।

उ - (क) बारे ही तैं मूढ़ चढ़ायौ - ३९१। (ख) तैही उनको मूढ़ चढत्यौ - १६५८। सीस चढ़ायौ :- माथे से लगाया, प्रणाम किया, बंदना की। उ. - तब बसुदेव लियौ कर पलना अपने सीस चढायौ - सारा, ३७४।

मु.


चढ़ायो, चढ़ायौ
किसी के ऊपर चढ़ाकर उँचा किया।
ऊखल ऊपर अनि पीठि दै तापर सखा चढ़ायौ - १० - २९२।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ायो, चढ़ायौ
सवार कराया, सवारी पर बैठाया।
चले बिमान संग गुरु - पुरजन तापर नृप पौढायौ। भस्म अंत तिल अंजलि दीन्हीं, देव इमान चढ़ायौ - ९.५०
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ाव
चढ़ने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ाव
चढ़ाव-उतार, ऊँचा-नीचा स्थान।
यौ.


चढ़ाव
बढ़ने का भाव, वृद्धि, बाढ़, बढ़ती।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना]


चढ़ि
रंग चढ़ि रह्यौ :- रंग आ चुका है, रंग चढ़कर खिल चुकी है।

उ. - पहले ही चढ़ि रह्यौ स्याम रंग छूटत नहिं देख्यो धोई - ३१४५।

मु.


चढ़ी
(नदी आदि) बाढ़ पर आयी, बढ़ गयी।
तुम्हरे बिरह ब्रजनाथ राधिका नैनन नदी बढ़ी। लीने जाति निमेष कूल दोउ एते मान चढ़ी - ३४५४।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ी
ऊपर गयी हुई, ऊँचे स्थान पर पहुँची हुई।
नंदनंदन को रूप निहारत अहनिसि अटा | चढ़ी - २७९४।
वि.


चढ़े
(सवारी पर) बैठकर, सवार होकर।
(क) आनँदमगन सब अमर - गगन छाए, पुहुप बिमान चढ़े पहर पहर के - १० - ३०।

(ख) कहुँ गजराज बाजि सृंगारे तापर चढ़े जु आप - सारा, ६७७।

क्रि. अ.
[हिं. चढना]


चढ़ेउ
आक्रमण या धावा किया, चढ़ाई की।
सब मिलि करहु कछु उपाव। मार मारन चढ़ेउ बिरहिन करहु लीनो चाव - २७१५।
क्रि. अ.
[हिं. चढना]


चढ़ै
नीचे से ऊपर जाती है, चढ़ती है।
एकनि लै मन्दिर चढ़ै, एकनि बिरचि बिगोवै (हो) - १ - ४४।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ै
लेप होता है, पोता या लगाया जाता है।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ै
रंग चढ़ै :- किसी वस्तु पर रंग आवे या खिले।

उ. - सूरदास स्याम रंग राँचे, फिर न चढ़े रँग रातै - ३०२४।

मु.


चढ़ै
(चूल्हे, अँगीठी आदि पर) चढ़ाकर।
एक जेंवन करत त्याग्यौ चढ़े चूल्है दारि - पृ० ३३९ (८४)
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़ैए
पोतिए, मलिए, लगाइए।
जिहि सिर केस कुसुम भरि गूँदै तेहि कैसे भसम चढ़ए - ३१२४।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चणक
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


चतुरंग
एक गाना।
संज्ञा
[सं.]


चतुरंग
चतुरंगिणी सेना का प्रधान अधिकारी।
संज्ञा
[सं.]


चतुरंग
सेना के चार अंग-हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल।

चार अंगों से युक्त सेना।

संज्ञा


चतुरंग
चार अंगों से युक्त।
मनहुँ चढ़त चतु रंग चमू नभ बाढ़ी है खुर खेह - २८२०।
वि.


चतुरंग
शतरंज का खेल।
संज्ञा
[सं.]


चतुरंगिणी, चतुरंगिनी
चार अंगों से युक्त (सेना)।
वि.
[सं. चतुरंगिणी]


चतुरंगिणी, चतुरंगिनी
सेना जिसमें चारो अंग हों-हाथी, घोड़े, रथ और पैदल।
संज्ञा


चतुर
प्रवीण, कुशल, निपुण।
वि.
[सं.]


चतुर
फुरतीला, तेज।
वि.
[सं.]


चढ़ैत
चढ़नेवाला।
संज्ञा
[हिं. चढ़ना + ऐत (प्रत्य.)]


चढ़ैया
चढ़ने यो चढ़ानेवाला।
वि.
[हिं. चढना + ऐया (प्रत्य.)]


चढ़ैहैं
भेंट देंगे, (देवता पर) चढ़ावेंगे।
जा दिन राम रावनहिं मारैं, ईसहिं लै दससीस चढ़ेहैं। ता दिन सूर राम पै सीता सरबस बारि बधाई दैहैं - ९ - ८१।
क्रि. स.
[हिं. चढावा]


चढ़ैहौं
भेंट करूँगा, देवार्पित करुँगा |
दैत्य प्रहारि पाप - फल - प्रेरित, सिरमाला सिव सीस चढ़ैहौं - ९ - १५७।
क्रि. स.
[हिं. चढ़ाना]


चढ़ौ
सवार हो।
सूरज दास चढ़ौ प्रभु पाछ्, रेनु पखारन दीजै - ९ - ४१।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़यौ
ऊपर उठा, ऊँचे स्थान को गया।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़यौ
रवि चढ़यौ :- सूर्य उदय होकर क्षितिज पर आ गया।

उ. - रवि बहु चढ़ैयौ, रैनि सब निघटी, उचटे सकल किवार - ४०८।

मु.


चढ़यौ
सवार हुआ, सवार होना।
दई न जाति खेवट उतराई, चाहत चढ़ैयौ जहाज - १ - १०८।
क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चढ़यौ
आक्रमण किया, धावा किया।
(क) गज अहंकार चढ़ायौ दिग बिजयी, लोभ - छत्र - करि सीस १ - १४४।

(ख) इंद्रजित चढ़यौ निज सैन सब साजि कै रावरी सैनहूँ साज कीजै - ९ - १३६।

क्रि. अ.
[हिं. चढ़ना]


चणक
चना।
संज्ञा
[सं.]


गुहराना
चिल्लाकर पुकारना।
क्रि. स.
[हिं. गुहार]


गुहरायो
पुकारा, चिल्लाया
क्रि. स.
[हिं. गुहार, गुहराना]


गुहरायो
(जोर-जोर से चिल्ला कर) शिकायत की, उलाहना दिया।
काहू के लरिकहिं हरि मारयौ, भोरहिं आनि तिनहिं गुहरायौ - ३६९।
क्रि. स.
[हिं. गुहार, गुहराना]


गुहरावत
पुकारते हैं।
बार बार हरि सौं गुहरावत मोहिं मँगावत पुनि - पुनि आनि लरै - १६७१।
क्रि. स.
[हिं. गुहराना]


गुहरावहु
शिकायत करो, पुकारो, दोहाई दो।
जाइ सबै कंसहिं गुहरावहु। दधि माखन घृत लेत छँड़ाए आजुहिं मोहिं हजूर बोलावहु - १०९४।
क्रि. स.
[हिं. गुहराना]


गुहरावै
पुकार करें, दोहाई दें।
हम अब कहा जाइ गुहरावै बसत तुम्हारे गाउँ - १०९२।
क्रि. स.
[हिं. गुहराना]


गुहवाना
गुँथवाना।
क्रि. स.
[हिं. गुइना का प्रे०])


गुहा
गुफा, कंदरा।
(क) अयुत अधार नहीं कछु समझत भ्रम गहि गुहा रहै - ३३५६।

(ख) जनु सु अहेरो हति यादव पति गुहा। पींजरी तोरी - १० उ.५२।

संज्ञा
[सं.]


गुहाई
गुहने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. गुहना]


गुहाई
गुहने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. गुहना]


चतुर
धूर्त, काँइयाँ।
वि.
[सं.]


चतुर
नायक का एक भेद।
संज्ञा


चतुरई
चतुराई, चतुरता।
(क) मोहन काहैं न उगिलै माटी।….| महतारी सौं मानत नाहीं कपट - चतुरई ठाटी - १० - २५४।

(ख) चोर अधिक चतुरई सीखी जाइ ने कथा कही - १० - २९१।

संज्ञा
[हिं. चतुराई]


चतुरई
धूर्तता, काँइयाँपन।
जैसे हरि तैसे तुम सेवक कपट चतुरई साने हो - ३००५।
संज्ञा
[हिं. चतुराई]


चतुरई
चतुरई छोलत हौ :- चालाकी दिखाते हो, धोखा देते हो।

उ. - जाहु चले गुन - प्रगट सूरप्रभु कहा चतुरई छोलत हौ। चतुरई तौलत हौ :- चालाकी करते हो। उ. - बहुनावकी आजु मैं जानी कहा चतुरई तौलत हौ।

मु.


चतुरक
चतुर प्राणी।
संज्ञा
[सं.]


चतुरगुन
चौगुना।
लियौ तँबोल माथ धरि हनुमत, कियौं चतुरगुन गात - ९ - ७४।
वि.
[सं. चतुर्गुण]


चतुरता
चतुर होने का भाव, चतुराई।
संज्ञा
[चतुर +ता (प्रत्य.)]


चतुरता
कुशलता, निपुणता।
संज्ञा
[चतुर +ता (प्रत्य.)]


चतुरदस
चौदह।
वि.
[सं. चतुर्दश]


चतुरा
राधा की एक सखी का नाम।
स्यामा, कामा चतुरानवला प्रमुदा सुमदानारि - १५८०।
संज्ञा


चतुराई, चतुराई
निपुणता, दक्षता।
संज्ञा
[सं. चतुर + हिं. आई (प्रत्य.)]


चतुराइ, चतुराई
धूर्तता, चालाकी।
(क) मन तोस किती कही समुइ। नंद नँदन के चरन - कमल भजि, तजि पाखँड चतुराइ - १ - ३१७।

(ख) स्याम फाँसि मन करण्यो हमरो अब समुझी चतुराई - १३१३।

संज्ञा
[सं. चतुर + हिं. आई (प्रत्य.)]


चतुराइ, चतुराई
काट-कपट।
बृद्ध बयस पूरे पुन्यनि तैं तैं बहुतै निधि पाई। ताहू के खैबे - पीबे कौ कहा करति चतुराई - १० - ३२५।
संज्ञा
[सं. चतुर + हिं. आई (प्रत्य.)]


चतुरात्मा
ईश्वर।
संज्ञा
[सं.]


चतुरात्मा
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चतुरानन
चार मुखवाले, ब्रह्मा।
माया कला ईस चतुरानन चतुब्यूह धर रूप - सारा, ३५५।
संज्ञा
[सं.]


चतुरापन
चतुराई, होशियारी।

धूर्तता।

संज्ञा
[हिं. चतुरा+पन (प्रत्य.)]


चतुरापन
चतुराई, होशियारी।

धूर्तता।

संज्ञा
[हिं. चतुरा+पन (प्रत्य.)]


चतुराय
चतुरता, चालाकी।
गयौ हरषि भुज ललिता धाय। गयी स्याम की सब चतुराय - २४५४ (८)।
संज्ञा
[हिं. चतुराई]


चतुरनमनि
चतुरों में श्रेष्ठ।
ग्याननमनि, विद्यामनि, गुनमनि, चतुरनमनि, चतुराई - २१७०।
वि.
[सं. चतुर + मणि]


चतुरनीक
चतुरानन, ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


चतुरभुज
चार भुजाओंवाला।
बहुरौ धरै हृदय महँ ध्यान। रूप चतुरभुज स्याम सुजान - ३ - १३।
वि.
[सं. चतुर्भुज]


चतुरमास
बरसात के चार महीने, चौमासा।
चतुरमास सूरजे प्रभु तिहिं ठौर बितायौ - ९.७१।
संज्ञा
[सं. चातुर्मास, हिं. चतुर्मास]


चतुरमुख
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं. चतुर्मुख]


चतुरमुख
विष्णु।
संज्ञा
[सं. चतुर्मुख]


चतुरमुख
चार मुखवाला।
वि.


चतुरसम
एक गंध द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


चतुरा
चतुर।
वि.
[हिं. चतुर]


चतुरा
काँइयाँ।
वि.
[हिं. चतुर]


चतुर्दशी, चतुर्दसि, चतुर्दसी
चौदहवीं तिथि, चौदस।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्दिक, चतुर्दिश
चारो दिशाएँ।
संज्ञा
[सं. चतुर + दिक्, दिशा]


चतुर्दिक, चतुर्दिश
चारो ओर।
क्रि. वि.


चतुर्बाहु
शिव।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्बाहु
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्भुज
चार भुजाओं वाला।
वि.
[सं.]


चतुर्भुज
विष्णु।
संज्ञा


चतुर्भुजा
एक देवी।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्भुजी
एक वैष्णव संप्रदाय।
संज्ञा
[सं. चतुर्भुज + ई (प्रत्य.)]


चतुर्भुजी
इस संप्रदाय का अनुयायी।
संज्ञा
[सं. चतुर्भुज + ई (प्रत्य.)]


चतुर्
चार।
वि.
[सं.]


चतुर्
चार की संख्या।
संज्ञा


चतुर्गति
ईश्वर।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्गति
ईश्वर।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्गुण, चतुर्गुन
चार गुणवाला।
वि.
[सं. चतुर्गुण]


चतुर्थ
चौथा।
वि.
[सं.]


चतुर्थांश
चौथाई भाग।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्थी
चौथी तिथि, चौभ।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्थी
मृत्यु के चौथे दिन की रस्म, चौथा।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्दश, चतुर्दस
चौदह।
संज्ञा
[सं. चतुर्दश]


चतुर्भुजी
चार भुजावाला।
वि.


चतुर्मास
वर्षा के चार महीने-आषाढ़, सावन, भादों और कुआर, चौमासा।
संज्ञा
[सं. चातुर्मास]


चतुर्मुख
चार मुखवाला।
चारौं बेद चतुर्माख ब्रह्मा जस गावत हैं ताको - १ - ११३।
वि.
[सं.]


चतुर्मुख
ब्रम्हा।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्मुख
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्मुख
चारो ओर।
क्रि. वि.


चंतर्मूर्ति
ईश्वर।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्युगी
उतना समय (वर्ष) जिसमें एक बार चारो युग बीत जायँ।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्वर्ग
अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्वर्ण
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
संज्ञा
[सं.]


चद्दर
चदरा, दुपट्टा।
संज्ञा
[फ़ा. चादर]


चद्दर
किसी धातु का लंबा चौड़ा पत्तर।
संज्ञा
[फ़ा. चादर]


चद्दर
नदी आदि के बहते हुए पानी का वह अंश, जिसका ऊपरी भाग चादर के समान समतल हो जाता है, जिसमें लहरें नहीं उठतीं और जिसमें फँस जानेवाली नाव या प्राणी कठिनता से बचता है।
संज्ञा
[फ़ा. चादर]


चनक
चना।
बेसन दारि चनक करि बान्यो - १००६।
संज्ञा
[सं. चणक]


चनकना
फूटना, खिलना।
क्रि. अ.
[हिं. चटकना]


चनखना
चिढ़ना।
क्रि. अ.
[हिं. अनखना]


चनदारी
चने की दाल।
मूँग, मसूर, उरद, चनदारी। कनक - फटक धरि फटकि पछारी - ३९६।
संज्ञा
[हिं. चना + दाल]


चनन
संदल, चंदन।
संज्ञा
[सं. चंदन]


चनवर
ग्रास. कौर।
संज्ञा


चनसित
श्रेष्ठ, महान।
संज्ञा
[सं.]


चतुष्पद
चार पैरवाला पशु।
संज्ञा
[सं.]


चतुष्पद
चार पदं यो चरणवाला।
वि.


चतुष्पदी
चार पदों का गीत।
संज्ञा
[सं.]


चतुरसम
एक गंध द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


चत्वर
चौराहा।
संज्ञा
[सं.]


चत्वर
चबूतरा, वेदी।
संज्ञा
[सं.]


चत्वर
घिरा हुआ कोई चौकोर स्थान।
संज्ञा
[सं.]


चदरा
दुपट्टा, ओढ़ना।
संज्ञा
[फ़ा. चादर]


चदिर
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


चदिर
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्विद्या
चारो वेदों की विद्या।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्वेद
ईश्वर।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्वेद
चार वेद।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्वेदी
चारो वेद जाननेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. चतुर्वेदिन्]


चतुर्वेदी
ब्राह्मणों की एक जाति।
संज्ञा
[सं. चतुर्वेदिन्]


चतुर्व्यूह
चार मनुष्यों या पदार्थों का वर्ग अथवा समूह जैसे राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न या कृष्ण, बलदेव, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध।
(क) प्रगट भए दसरथ गृह पूरन चतुर्व्यूह अवतार - सारा, १६०।

(ख) माया कला ईस चतुरानन चतुर्व्यूह धरि रूप - सारा.३५५।

संज्ञा
[सं.]


चतुर्व्यूह
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्व्यूह
योग शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


चतुर्व्यूह
चिकित्सा शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


चतुष्कोण
चौकोर, चौकोनी।
वि.
[सं.]


चपटी
धँसी या बैठी हुई।
वि.
[हिं. चिपटी]


चपड़ चपड़
वह शब्द जो खातेपीते समय कुत्ते के मुँह से निकलता है।
संज्ञा
[अनु.]


चपड़ा
साफ की हुई लाख का पत्तर।
संज्ञा
[हिं. चपटा]


चपड़ा
चिपटी वस्तु, पत्तर।
संज्ञा
[हिं. चपटा]


चपत
हल्का तमाचा या थप्पड़।
संज्ञा
[सं. चपट]


चपत
धक्का, हानि, नुकसान।
संज्ञा
[सं. चपट]


चपत
कुचल जाता है।
क्रि. अ.
[हिं. चपना]


चपना
कुचल जाना।
क्रि. अ.
[सं. चपन=कूटना, कुचलना]


चपना
लज्जित होना।
क्रि. अ.
[सं. चपन=कूटना, कुचलना]


चपना
नष्ट होना।
क्रि. अ.
[सं. चपन=कूटना, कुचलना]


गुसा
क्रोध, रोष।
(क) सूरदास चरननि के बलि बलि कौन गुसा ते कृपा बिसारी।

(ख) रति माँगत' पै मान कियौ सखि सो हरि गुसा गही - २८९९।

संज्ञा
[हिं. गुस्सा]


गुसाई, गुसैयाँ
प्रभु, नाथ, ईश्वर।
(क) मेरौ मन मतिहीन गुसाई'। सब सुखनिधि पद - कमल छाँङि, स्रम करत स्वान की नाई' - १० - १०३।

(ख) तुम्हरीं कृपा कृपाल गुसाई किहिं किहिं स्रम न गँवायौ - १ - १९०।

संज्ञा
[हिं. गोसाईं, गुसाई']


गुसाई, गुसैयाँ
मालिक, स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गोसाईं, गुसाई']


गुसाई, गुसैयाँ
पूज्य व्यक्ति।
(क) खेलत मैं को काकौ गुसैयाँ - १० - २४५।

(ख) नहिं अधीन तेरे बाबा के नहिं तुम हमरे नाथगुसैयाँ - ७३५। (ग) यह सुनिकै बलदेव गुसाई हल मूसल लियौ हाथ - सारा - ८३३।

संज्ञा
[हिं. गोसाईं, गुसाई']


गुस्ताख
ढीठ, अशिष्ठ।
वि.
[फ़ा. गुस्ताख]


गुस्ताखी
ढिठाई, अशिष्टता।
संज्ञा
[हिं.गुस्ताख]


गुस्सा
क्रोध, रिस।
संज्ञा
[अ.]


गुस्सा
गुस्सा उतरना :- क्रोध शांत होना।

(किसी पर) गुस्सा उतारना (निकालना) :- (१) क्रोध का फल चखाना। (२) एक के क्रोध का फल दूसरे को चखाना। गुस्सा थूक देना :- क्षमा करना। नाक पर गुस्सा होना (रहना) :- बहुत जल्दी गुस्सा हो जाना। गुस्सा पीना (मारना) :- क्रोध प्रगट न करना। गुस्से से लाल होना :- क्रोध से तमतमा जाना।

मु.


गुस्सैल
बहुत जल्दी क्रोधित हो जानेवाला।
वि.
[हिं. गुस्सा + ऐल (प्रत्य.)]


गुह
मैला, गंदा।
संज्ञा
[सं. गुह्य]


चना
एक प्रधान अन्न।
साग चना सँग सब चौराई - २३११।
संज्ञा
[सं. चणक]


चना
चने का मारा मरना :- इतना दुबला कि जरा सी चोट से मर जाय।

नाकों चने चबवाना :- बहुत हैरान करना | लोहे का चना :- बहुत कठिन काम। लोहे के चने चबाना :- कठिन काम करना।

मु.


चपकन
अंगा, अँगरखा।
संज्ञा
[हिं. चपकना]


चपकना
जुड़ना, चिपकना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपकना]


चपकाना
जोड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चिपकाना]


चपट
चपत, तमाचा, चोट।
संज्ञा
[सं.]


चपटना
भिड़ना, जुटना।
क्रि. अ.
[चिपटना]


चपटा
बैठा या धँसा हुआ।
वि.
[हिं. चिपटा]


चपटाना
चिपकाना, सटाना।
क्रि. स.
[हिं. चिपटाना]


चपटाना
लिपटाना, आलिंगन करना।
क्रि. स.
[हिं. चिपटाना]


चपनी
कटोरी।
संज्ञा
[हिं. चपना]


चपनी
एक कमंडल।
संज्ञा
[हिं. चपना]


चपनी
हाँडी का ढक्कन।
संज्ञा
[हिं. चपना]


चपनी
घुटने की हड्डी।
संज्ञा
[हिं. चपना]


चपरगट्टू
नाश करने वाला।
वि.
[हिं. चौपट + गटपट]


चपरगट्टू
अभागा।
वि.
[हिं. चौपट + गटपट]


चपरगट्टू
उलझा हुआ।
वि.
[हिं. चौपट + गटपट]


चपरना
गीली या चिपचिपी वस्तु चुपड़ना या लगाना।
क्रि. स.
[अनु. चपचप]


चपरना
मिलाना, सानना, ओतप्रोत करना।
क्रि. स.
[अनु. चपचप]


चपरना
भाग जाना, खिसकना।
क्रि. स.
[अनु. चपचप]


चपरि
फुर्ती से, तेजी से, जोर से।
मवरजु एक चकृत चपरि कर भरि बंदूर्ष षग डारि है - सा. उ. ४।
क्रि. वि.
[सं. चपल]


चपल
चंचल, अस्थिर, तेज, गतिवान।
(क) रथ तै उतरि अवनि आतुर ह्वै, चले चरन अति धाए। मनु संचित भू - भार उतारन चपले भए अकुताए - १ - २७३।

(ख) चपल समीर भयो तेहि रजनी भीजे चारों यामा - १० उ. ६६।

वि.
[सं.]


चपल
क्षणिक।
वि.
[सं.]


चपल
हड़बड़ी मचानेवाला।
वि.
[सं.]


चपल
अवसर पर न चूकनेवाला, बहुत चालक।
वि.
[सं.]


चपल
पारा।
संज्ञा


चपल
मछली।
संज्ञा


चपल
चातक।
संज्ञा


चपल
एक पत्थर।
संज्ञा


चपल
चौर नामक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा


चपरना
तेजी करना।
क्रि. अ.
[सं. चपल]


चपरा
लाख का पत्तर।
संज्ञा
[हिं. चपड़ा]


चपरा
कहकर मुकर जानेवाला, झूठा।
वि.


चपरा
हठात, जैसे हो तैसे।
अव्य,
[हिं. चपरना]


चपराना
झूठा बनाना।
क्रि. स.
[हिं. चपरा]


चपरास
चपरासी की पट्टी या पेटी।
संज्ञा
[हिं. चपरासी]


चपरास
मुलम्मा करने की कलम।
संज्ञा
[हिं. चपरासी]


चपरासी
चपरास पहननेवाला अरदली या नौकर।
संज्ञा
[फ़ा. चप=वायाँ+रास्ता=दाहनः]


चपरि
किसी गीली या चिपचिपी वस्तु को चुपड़कर।
ऊधौ जाके माथे - भागु। अबलन जोग सिखावन आए चेरिहिं चपरि सोहाग - ३०९५
क्रि. स.
[हिं. चपरना]


चपरि
मिलाकर, सानकर, ओतप्रोत करके।
बिषय चिंता दोऊ हैं माया। दोउ चपरि ज्यों तरुवर छाया - ११ - ६।
क्रि. स.
[हिं. चपरना]


चपल
एक चूहा।
संज्ञा


चपल
राई।
संज्ञा


चपलता
चंचलता, तेजीं, जल्दी।
संज्ञा
[सं.]


चपलता
चालाकी, ढिठाई, धृष्टता।
संज्ञा
[सं.]


चपला
फुरतीली, तेज।
वि.
[सं.]


चपला
लक्ष्मी।
संज्ञा


चपला
बिजली।
संज्ञा


चपला
चरित्रहीन स्त्री।
संज्ञा


चपला
पीपल।
संज्ञा


चपला
जीभ।

संज्ञा


चपला
भाँग।
संज्ञा


चपला
भाँग।
संज्ञा


चपलाई
चपलता, चंचलता।
(क) मंजुल तारनि की चपेलाई, चित चतुराई करषै री - १० - १३७।

(ख) कुंडल किरनि निकट भूलोचन आरति मीन दृग सम चपलाई - १३३८। (ग) खंजन मीन मृगज चपलाई नहिं पटतर एक सैन - १३४९।

संज्ञा
[सं. चपल.]


चपलाना
हिलना-डोलना।
क्रि. अ.
[सं. चपत]


चपलाना
हिलाना-डोलाना, चलाना।
क्रि. स.


चपाक
चटपट। अचानक।
क्रि. वि.
[हिं. चटपट]


चपाना
जोड़ना, फँसाना।
क्रि. स.
[हिं. चपना]


चपाना
दबवाना।
क्रि. स.
[हिं. चपना]


चपाना
लज्जित करना, झिपाना।
क्रि. स.
[हिं. चपना]


चपेट
धक्का, अघात।
संज्ञा
[हिं. चपाना = दबाना]


चपेट
थप्पड़, तमाचा।
संज्ञा
[हिं. चपाना = दबाना]


चपेट
संकट, दबाव।
संज्ञा
[हिं. चपाना = दबाना]


चपेटना
दबाना, दबोचना।
क्रि. स.
[हिं. चपेट]


चपेटना
मारते-पीटते हुए पीछे खदेड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चपेट]


चपेटना
फटकारना, डाँटना।
क्रि. स.
[हिं. चपेट]


चपेरना
दबाना।
क्रि. स.
[हिं. चापना]


चपै
दबे, प्रभावित हो।
करनि तिह तुम्हरी घरी, कैसे चपै सुगाल - १० उ. - ८।
क्रि. अ.
[हिं. चपना]


चप्पा
चौथाई भाग।
संज्ञा
[सं. चतुष्पाद, प्रा. चउप्पाव]


चप्पा
थोड़ा भाग।
संज्ञा
[सं. चतुष्पाद, प्रा. चउप्पाव]


चप्पा
चार अंगुल या एक बालिस्त जगह।
संज्ञा
[सं. चतुष्पाद, प्रा. चउप्पाव]


चप्पा
थोड़ी जगह।
संज्ञा
[सं. चतुष्पाद, प्रा. चउप्पाव]


चप्पी
धीरे धीरे पैर दाबने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं.चपना = दबना]


चप्यौ
दबगया, कुचल गया।
बृच्छ दोउ धर परे देखे, महरि कीन्ह पुकार। अबहिं आँगन छाँड़ि आई, चप्पौ तरु की डार - ३८७।
क्रि. अ.
[हिं. चपना]


चबक
टीस. चिलक।
संज्ञा
[देश.]


चबक
दब्बू, कायर, डरपोक।
वि.
[हिं. चपना]


चबकना
टीसना, चिलकना।
क्रि. अ.
[हिं. चबक]


चबकी
पराँदा, चँवरी।
संज्ञा
[देश, ]


चबाइ
चुगलखोर।
चंचल, चपल, चबाइ, चौपटा, लिए मोह की फाँसी - १ - ८६।
वि.
[हिं. चबाव]


चबाइन
बदनामी की चर्चा, निंदा।
दासी तृष्ना भ्रमत टहल - हित, लहत न छिन बिश्राम। अनाचार - सेवक सौं मिलिकै, करत चबाइनि काम - १ - १४१।
संज्ञा
[हिं चाव]


चबाई
इधर की उधर लगानेबाला, चुगलखोर।
(क) माधौ जू, मोतैं और न पापी। घातक, कुटिल, चबाई, केपटी, महाकुर, संतापी - १ - १४०।

(ख) सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई जनमत ही कौ धूर्त - १० - २१५। (ग) सूरदास बल बड़ौ चबाई सैसेहिं मिले सखाऊ - ४८१।

वि.
[हिं. चबाव]


चबाउ
चारो ओर फैलनेवाली चर्चा, प्रवाद।
संज्ञा
[हिं. चौबाई, चबाव]


चबाउ
बुराई या निंदा की चर्चा।
नैनन तें यह भई बड़ाई। घर घर यहै चबाउ चलावत हम सौं भेंट न माई।
संज्ञा
[हिं. चौबाई, चबाव]


चबाउ
पीठ पीछे की निंदा।
संज्ञा
[हिं. चौबाई, चबाव]


चबात
चबाते हुए।
क्रि. स.
[हिं. चबाना]


चबात
दाँत चबात :- क्रोध प्रदर्शित करते हुए।

उ. - दाँत चबात चले जमपुर तै धाम हमारे कौं - १ - १५१।

मु.


चबाना
दाँत से कुचलना।
क्रि. स.
[सं. चर्वण]


चबाना
चबा चबाकर बात करना :- स्वर बनाकर बोलना

चबे को चबाना :- किया हुआ काम फिर से करना।

मु.


चबाना
दाँत से काटना, दरदराना।
क्रि. स.
[सं. चर्वण]


चबारा
ऊपरी बैठक।
संज्ञा
[हिं. चौवारा]


चबाव, चबावन
चर्चा, प्रवाद।
संज्ञा
[हिं. चबाव]


चबाव, चबावन
निंदा या बुराई की चर्चा।
संज्ञा
[हिं. चबाव]


चबाव, चबावन
चुगलखोरी।
संज्ञा
[हिं. चबाव]


चबूतरा
चौतरा।
संज्ञा
[हिं. चौतरा]


चबेना
भुना हुआ सूखा अनाज, भूँजा, चर्वण।
एक दूध, फल, एक झगरि चबेना लेत, निज निज कामरी के आसननि कीने - ४६७।
संज्ञा
[हिं. चबाना]


चबेनी
बरातियों को दिया जानेवाला जलपान।
संज्ञा
[हिं. चबाना]


चबेनी
जलपान का मूल्य।
संज्ञा
[हिं. चबाना]


चब्भू, चब्बू
बहुत खानेवाला।
वि.
[हिं. चबाना]


चब्भो
दूसरे का दिया हुआ गोला, डुब्बी, डुबकी।
संज्ञा
[हिं. चभकना]


चभक
पानी में डूबने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चभक
डंक मारने की क्रिया।
संज्ञा
[देश.]


गुह
कार्तिकेय।
संज्ञा
[सं.]


गुह
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


गुह
केवट जिसने श्रीराम को गंगा पार पहुँचाया था।
संज्ञा
[सं.]


गुह
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


गुह
गुफा।
संज्ञा
[सं.]


गुह
हृदय।
संज्ञा
[सं.]


गुहत
(चोटी आदि) गू्ँधकर, गूँधने पर।
मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी...। काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन - सी भुई' लोटी - १०.१७५।
क्रि. स.
[हिं. गुहना]


गुहन
एक में पिरोने (को), गूँथने या गूँधने (को)।
कहि हैं न चरनन देन जावक गुहन बेनी फूल - २७५६।
क्रि. स.
[हिं. गुहना]


गुहना
पिरोना, गूँथना।
क्रि. स.
[सं. गुंफन]


गुहना
सुई तागे से सी देना।
क्रि. स.
[सं. गुंफन]


चभड़चभड़
खाते-पीते समय मुँह का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चभड़चभड़
कुत्ते-बिल्ली का पानी पीने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चभना
कुचला जाना।
क्रि. अ.
[हिं चाभना]


चभाना
खिलाना।
क्रि. स.
[हिं. चाभना]


चभोक
मूर्ख, गावदी, बेवकूफ।
वि.
[देश.]


चभोकना, चभोरना
गोता देना, डुबोना।
क्रि. स.
[हिं. चुभकी]


चभोकना, चभोरना
भिगोना, तर करना।
क्रि. स.
[हिं. चुभकी]


चभोरी
भीगी हुई, तर।
रोटी, बाटी, पोरी, झोरी। इक कोरी इक घीव चभोरी - ३९६।
वि.
[हिं. चभोरना]


चभोरे
भीगे हुए, तर, रस में डूबे हुए।
(क) मीठे अति कोमल हैं नीके। ताते, तुरत चभोरे घी के - ३९६।

(ख) घेवर अति घिरत चभोरे। लै खाँड उपर तर बोरे - १० - १८३।

वि.
[हिं. चभोरना]


चमंक
प्रकाश।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चमकनी
जल्दी चिढ़ने या भड़कनेवाली।
वि.
[हिं. चमकना]


चमकनी
हाव-भाव बतानेवाली।
वि.
[हिं. चमकना]


चमकाति
चमकाती है, कांति लाती है।
तनक कटि पर कनक - कर - धनि, छीन छबि चमेकाति - १० - १८४।
क्रि. स.
[हिं. चमकाना]


चमकाना
चमकीला करना, झलकाना।
क्रि. स.
[हिं. चमकना]


चमकाना
साफ या उजला करना।
क्रि. स.
[हिं. चमकना]


चमकाना
भड़काना, चौंकाना।
क्रि. स.
[हिं. चमकना]


चमकाना
चिढ़ाना, खिझाना।
क्रि. स.
[हिं. चमकना]


चमकाना
उँगली मटका कर भाव बताना।
क्रि. स.
[हिं. चमकना]


चमकारा
चमक, प्रकाश।
संज्ञा
[सं. चमत्कार]


चमकारी
चमक, प्रकाश।
अधर बिंब दसननि की सोभा दुति दामिनि चमकारी।
संज्ञा
[हिं. चमकारा]


चमकन
जगमगाना, प्रकाशपूर्ण होना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
झलकना, दमकना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
प्रसिद्ध होना, उन्नति करना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
बढ़ना, बढ़ती पर होना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
चौंकना, भड़कना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
झटपट खिसक जाना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
एक बारगी दर्द होने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
मटकना; उँगलियाँ मटकाकर भाव बताना |
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन
क्रोध प्रकट करना
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकन

क्रि. अ.

[हिं. चमक]


चमंक
कांति।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चमकना
जगमगाना।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चमक
प्रकाश, ज्योति, रोशनी।
संज्ञा
[सं. चमत्कृत]


चमक
कांति, आभा, दमक।
संज्ञा
[सं. चमत्कृत]


चमक
चमक देना (मारना) :- चमकना।

चमक लाना :- चमकाना।

मु.


चमक
कमर आदि की चिक या झटका।
संज्ञा
[सं. चमत्कृत]


चमकत
चमकते हुए, ज्योतियुक्त।
रिषि - दृग चमकत देखत भई - ९ - ३।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चमकताई
कांति, अभा, दमक।
हँसति दसननि चमकताई बज्र कन रुचि पाँति - १३५५।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चमक दमक
आभा, कांति, तड़क-भड़क।
मिटि गई चमक दमक अँग - अँग की, मति अरु दृष्टि हिरानी - १ - ३०५।
संज्ञा
[हिं. चमक + दमक (अनु.)]


चमकदार
चमकीला।
वि.
[हिं. चमक + फ़ा. दार]


चमकारी
चमकीली, प्रकाशयुक्त, अभावाली।
वि.


चमकावै
चमकता है।
तरपि तरपि चपला चमकावै - १०४९।
क्रि. स.
[हिं. चमकाना]


चमकि
चमक कर, जगमगाकर, प्रकाशयुक्त होकर।
तृष्ना - तड़ित चमकि छनहीं छन, अह - निसि यह तन जारौ - १ - २०९।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकि
फुरती से खिसक कर, झटपट भाग कर।
सुखा साथ के चमकि गये सब गयी स्याम कर धाइ। औरनि जानि जान मैं दीन्हौं, तुम कहँ जर पराइ - १० - ३१४।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकि
चौंके कर, भड़क कर।
चमकि गये बोर सेव चकाचौंधी लगी चितै। डरपै असुर घटा घोटा - २५९१।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमकी
रुपहले-सुनहले तारों के गोल-चौकोर तारे या सितारे।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चमकीला
जिसमें चमक हो, चमकदार।
वि.
[हिं. चमक + ईला (प्रत्य.)]


चमकीला
भड़कीला।
वि.
[हिं. चमक + ईला (प्रत्य.)]


चमकै
चमकती है, जगमगाती है, आलोकित होती है।
निसि अँधेरी, बीजु चमकै, सघन बरसै मेह - १० - ५।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चमक्यौ
मटकने लगा।
एक सखा हरि त्रिया रूप करि पठै दियौ तिनं पास।…..। पीलांवर जिनि देहुं स्याम को यह कहि चमक्यौ ग्वाल - २४१६।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चमगादड़
एक पक्षी जो दिन में नहीं निकलता, रात में उड़ता है।
संज्ञा
[सं. चर्मचटका, पं. चमचिचड़ी, हिं. चमगिदड़ी]


चमवम
एक बंगाली मिठाई।
संज्ञा
[देश.]


चमवम
झलक या कांतिसहित।
क्रि. वि.


चमचमाति
चमकती है, झलकती है।
(क) चपली चमचमाति चमकि नभ झहरात राखिले क्यों न ब्रज नंद तात - ९६०

(ख) चपला अति चमचमाति ब्रज जन सब डर डरात टेरत सिसु पिता - मात ब्रज गलबल।

क्रि. अ.
[हिं. चमचमाना]


चमचमाना
चमकना, प्रकाशित होना, झलकना, दमकना।
क्रि. अ.
[हिं. चमक]


चमचमाना
चमक-दमक लाना, झलकाना।
क्रि. स.


चमचा
चम्मच।
संज्ञा
[फ़ा.]


चमचा
चिमटा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चमची
छोटा चम्मच।
संज्ञा
[हिं. चमचा]


चमची
आचमनी।
संज्ञा
[हिं. चमचा]


चमची
चिमटी।
संज्ञा
[हिं. चमचा]


चमजुई, चमजोई
एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं. चर्मपूका]


चमजुई, चमजोई
पीछा न छोडनेवाली वस्तु या पात्र।
संज्ञा
[सं. चर्मपूका]


चमटना
चिपटना, लिपटना।
क्रि. स.
[हिं. चिमटना]


चमड़ा
चर्म, त्वचा।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चमड़ा
खाल, चरसा।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चमड़ा
छाल, छिलका।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चमड़ी
चर्म।
संज्ञा
[हिं. चमड़ा]


चमड़ी
खाल।
संज्ञा
[हिं. चमड़ा]


चमत्करण
चमत्कार लाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चमन
गुलजार या रौनकदार बस्ती।
संज्ञा
[फ़ा.]


चमर
सुरा गाय।
संज्ञा
[सं.]


चमर
सुरा गाय की पूछ का बना चँवर या चामर।
चारु चक्रमनि खचित मनोहर चंचल चमर पताका - २५६६।
संज्ञा
[सं.]


चमर
एक दैत्य।
संज्ञा
[सं.]


चमरख
चरखे की गुडियों में लगाने की चकती।
संज्ञा
[हिं. चाम + रक्षा]


चमरख
बहुत दुबली-पतली, सूखी-साखी।
संज्ञा


चमरशिखा, चमरसिखा
घोड़ों की कलगी।
संज्ञा
[सं. चामर +, शिखा]


चमरी
सुरा गाय।
संज्ञा
[सं.]


चमरी
चँवरी, चामर।
संज्ञा
[सं.]


चमरी
मंजरी।
संज्ञा
[सं.]


चमत्कार
आश्चर्य, विस्मय।
संज्ञा
[सं.]


चमत्कार
अद्भुत व्यापार।
संज्ञा
[सं.]


चमत्कार
अनूठापन, विलक्षणता।
संज्ञा
[सं.]


धमत्कारक
अनूठा, विलक्षण।
वि.
[सं.]


चमत्कारी
अद्भुत, विलक्षण।
वि.
[सं.]


चमत्कारी
विलक्षण काम करनेवाला, करामाती।
वि.
[सं.]


चमत्कृत
विस्मित, चकित।
वि.
[सं.]


चमत्कृति
विस्मय, आश्चर्य।
संज्ञा
[सं.]


चमन
हरी-भरी क्यारी।
संज्ञा
[फ़ा.]


चमन
फुलवारी।
संज्ञा
[फ़ा.]


चमरौधा
एक भद्दा जूता।
संज्ञा
[हिं. चाम]


चमला
भीख माँगने का पात्र।
संज्ञा
[देश.]


चमस
एक यज्ञपात्र, चम्मच।
संज्ञा
[सं.]


चमाऊ
चमर, चँवर।
संज्ञा
[सं. चामर]


चमक
कांति, प्रकाश।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चमाकना
चमकना।
क्रि. अ.
[हिं. चमकना]


चमाचम
चमकता हुआ।
वि.
[हिं. चमक]


चमार
एक जाति जो चमड़े का काम बनाती है।
संज्ञा
[सं . चर्मकार]


चमारनी, चमारिन, चमारी
चमार की स्त्री।
संज्ञा
[हिं. चमार]


चमारनी, चमारिन, चमारी
चमार का काम।
संज्ञा
[हिं. चमार]


गुहाए
गुथाये या पिरोये (हुए)।
इन बिरहिन मैं कहूँ तू देखी सुमन गुहाए मंग - ३२२३।
क्रि. स.
[हिं. गुहना]


गुहाना
गुँथवाना।
क्रि. स.
[हिं. गुहना का प्रे.]


गुहार, गुहारि, गुहारी
रक्षा के लिए की गयी पुकार, दोहाई।
(क) सृंगीरिषि तब कियौ बिचार। प्रजा दोष करैनृपति गुहार - १ - २९०।

(ख) दीन गुहारि सुनौ स्रवननि भरि गर्व बचन सुनि हृदय जरौं - ११०३। (ग) प्रभु स्रवनन तहँ परी गुहारी - २४५९। (घ) अब यह कृपा जोग लिखि पठए मनसिज करी गुहारि - ३००२।

संज्ञा
[सं. गो +हार]


गुहार, गुहारि, गुहारी
लगहु गुहार-दुहाई करो, पुकार लगाओ।
शत्रु - सेन सुधाम फेरथौ सूर लगहु् गुहार - २८३४।
प्र.


गुहार, गुहारि, गुहारी
शोर-गुल, हो-हल्ला, कोलाहल, जोर का शब्द।
(क) दौरि परे ब्रज के नर - नारी। नंद द्वार कछु होत गुहारी - ३९१।

(ख) धाए नंद, जसोदा धाई, नित प्रति कहा गुहारि - ६०४।

संज्ञा
[सं. गो +हार]


गुहारना
रक्षार्थ दुहाई देना।
क्रि. स.
[हिं. गुहार]


गुहाल
गोशाला।
संज्ञा
[सं. गोशाला]


गुहि
गूँथकर, पिरो. कर।
(क) गुहि गुंजा घसि बन धातु, अंगनि चित्र ठए - १० - २४।

(ख) सूरदास प्रभु की यह लीला, ब्रज - बनिता पहिरै गुहि हार - १० - १७३। (ग) संभुभूषन बदन बिलसत कंज ते गुहि माल - सा. ९४।

क्रि. स.
[सं. गुंफन, हिं. गुहना]


गुही
गूँथी, एक में पिरोई, गाँथी।
(क) सुभ स्रवननि तरल तरौन, बेनी सिथिल गुही - १० - २४।

(ख) तब कित लाड़ लड़ाइ लड़इते बेनी कुसुम गुही गाढ़ी - पृ. ३५३ (६५)।

क्रि. स.
[सं. गुंफन, हिं. गुहना]


गुईहौं
गुँधवाऊँगा, गुहाऊँगा।
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुईहौं - १० - १९३।
क्रि. स.
[हिं. गुहाना, गुहवाना]


चमू
सेना, फौज।
(क) सत्रह बार फेर फिरि आयौ हरि सब चमू सँहारी - सारा, ५९८।

(ख) सखी री - पावस सैन पलान्यो। ......। दसहु दिसा सों धूम देखियत कंपति है। अति देह। मनहु चलत चतुरंग चमू नभ बाढ़ी है। खुर खेह - २८२०।

संज्ञा
[सं.]


चमू
सेना जिसमें हाथी, इतने ही रथ, तिगुने सवार और पँचगुने पैदल हों।
संज्ञा
[सं.]


चमूर
सिपाही।
संज्ञा
[सं.]


चमूर
सेनापति।
संज्ञा
[सं.]


चमेलिया
पीले रंग का।
वि.
[हिं. चमेली]


चमेलिया
चमेली की गंध से युक्त।
वि.
[हिं. चमेली]


चमेली
एक झाड़ी या लता जिसके फूल सफेद या पीले होते हैं।
संज्ञा
[सं. चंपकवेलि]


चमोटो
चाबुक, कोड़ा।
माखन - चोर री मैं पायौ।...। बारबार हौं ढूँका लागी मेरी घात न आयौ। नोई नेत की करौं चमोटी घूँघट में डरवायौ ९०६।
संज्ञा
[हिं. चाम + औटा (प्रत्य.)]


चमोटो
पतली छड़ी, बेंत।
संज्ञा
[हिं. चाम + औटा (प्रत्य.)]


चम्मच
हल्का चमचा।
संज्ञा
[फ़ा. सं. चमस]


चयन
चैन, आरम, सुख।
त्रिबिध पवन मन हरष दयन। सदा बहत न बिहरत चयन - २३६७।
संज्ञा
[हिं. चैन]


चयनशील
संग्रही।
वि.
[सं. चयन+शील (प्रत्य.)]


चयना
संचय या इकट्ठा करना।
क्रि. स.
[सं. चयन]


चयनिका
चुनी हुई वस्तुओं, बातों या रचनाओं का संग्रह।
संज्ञा
[सं.]


चर
गुप्त रूप से कार्य करने को नियुक्त व्यक्ति।

कौड़ी। दलदल।

संज्ञा
[सं.]


चर
अप चलनेवाला, जंगम।
जब हरि मुरली अधर धरत। थिर चर, चर थिर, पवन थकित रहैं, , जमुना जल न बहत - ६२०।
वि.
[सं.]


चर
अस्थिर, एक स्थान पर न रहनेवाला।
वि.
[सं.]


चर
भोजन करनेवाला।
वि.
[सं.]


चर
कागज-कपड़ा फटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चरई
पशुओं को पानी पिलाने का पक्का गहरा गढ़ा या छोटा हौज।
संज्ञा
[हिं. चारा]


चय
समूह, ढेर, राशि।
संज्ञा
[सं.]


चय
टीला।
संज्ञा
[सं.]


चय
गढ़, किला।
संज्ञा
[सं.]


चय
चहारदीवारी।
संज्ञा
[सं.]


चय
नींव।
संज्ञा
[सं.]


चय
चबूतरा।
संज्ञा
[सं.]


चय
चौकी, ऊँचा आसन।
संज्ञा
[सं.]


चयन
इकट्ठा करने का कार्य, संग्रह, संचय।
संज्ञा
[सं.]


चयन
चुनने का काम, चुनाई।
संज्ञा
[सं.]


चयन
क्रम से लगाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चरक
दूत, चर।
संज्ञा
[सं.]


चरक
जासूस।
संज्ञा
[सं.]


चरक
पथिक, मुसाफिर।
संज्ञा
[सं.]


चरक
भिखारी।
संज्ञा
[सं.]


चरक
एक प्रकार की मछली।
संज्ञा


चरकटा
पशु का चारा काटनेवाला आदमी।
संज्ञा
[हिं. चारा+काटना]


चरकटा
तुच्छ मनुष्य।
संज्ञा
[हिं. चारा+काटना]


चरकना
टूटना, फूटना, दरकना।
क्रि. अ.


चरका
हलका घाव, जख्म।
संज्ञा
[फ़ा चरक]


चरका
दागने का चिन्ह।
संज्ञा
[फ़ा चरक]


चरका
हानि, नुकसान।
संज्ञा
[फ़ा चरक]


चरख
पहिया, चोक।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरख
खराद
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरख
रेशम आदि लपेटने का ढाँचा |
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरख
चरखा।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरख
तोप लादने की गाड़ी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरख
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
गोल चक्कर, चरख।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
सूत कातने का यंत्र।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
कुएँ से पानी निका लने का रहट।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
सूत लपेटने की चरखी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
गराड़ी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
बुढ़ापे या कमजोरी के कारण बहुत शिथिल शरीर।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
झगड़े या झंझट का काम।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
गोल चक्कर, चरख।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
सूत कातने का यंत्र।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
कुएँ से पानी निका लने का रहट।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
सूत लपेटने की चरखी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
गराड़ी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखा
बुढ़ापे या कमजोरी के कारण बहुत शिथिल शरीर।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरचना
अनुमान करना।
क्रि. स.
[सं. चर्चन]


चरचना
पहचानना।
क्रि. स.
[सं. चर्चन]


चरचना
पूजा करना, पूजना।
क्रि. स.
[सं. अर्चन]


चरचरा
एक चिड़िया।
संज्ञा
[अनु.]


चरचरा
चिड़चिड़े स्वभाव का।
वि.
[हिं. चिड़चिड़ा]


चरचराना
चरचर शब्द करके जलना, टूटना या फटना।
क्रि. अ.
[अनु. चरचर]


चरचराना
घाव आदि का दर्द करना या चर्राना।
क्रि. अ.
[अनु. चरचर]


चरचराहट
दर्द करने या चने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चरचराना+हट (प्रत्य.)]


चरचराहट
चरचर करके फटने या टूटने का शब्द।
संज्ञा
[हिं. चरचराना+हट (प्रत्य.)]


चरचा
जिक्र, वर्णन।
हरि - जन हरि - चरचा जो करै। दासी - सुत सो हिरदै धरै - ७ - ८।
संज्ञा
[सं. चर्चा]


चरचारी

संज्ञा

[हिं. चरचा]


चरचारी
निंदा या शिकायत करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चरचा]


चरचि
देह में चंदन, अरगजा आदि सुगंधित पदार्थ लगाकर।
बाजत ताल - मृदंग जंत्र - गति, चरचि अरगजा अंग चढ़ाई - १० - १९।
क्रि. स.
[हिं. चरचना]


चरचि
पूजकर।
सूरदास मुनि चरन चरचि करि सुर लोकनि रुचि मान।
क्रि. स.
[हिं. चरचना]


चरचित
लगाया या पोता हुआ, लेप हुआ।
चरचित चांदन नील कलेवर, बरसत बू दन सावन - ८:१३।
वि.
[सं. चर्चित]


चरच्यौ
चंदन आदि लगाया।
चंदन अंग सखिन कै चरच्यौ - ३९६।
क्रि. स.
[हिं. चरचना]


चरज
चरख नामक पक्षी।
संज्ञा
[फ़ा. चरग़]


चरजना
बहकाना, भुलावा देना।
क्रि. अ.
[सं. चर्चन]


चरजना
अनुमान करना, अंदाज लगाना
क्रि. अ.
[सं. चर्चन]


चरट
खंजन पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चरखा
झगड़े या झंझट का काम।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ख]


चरखी
घूमनेवाली वस्तु।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरखी
छोटा चरखा।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरखी
कपास की ओटनी।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरखी
कुएँ से पानी खींचने की गराड़ी।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरखी
कुम्हार का चाक।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरखी
एक अतिशबाजी।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरंग
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[फ़ा.]


चरचना
देह में चंदन आदि लगाना।
क्रि. स.
[सं. चर्चन]


चरचना
लेपना, पोतना।
क्रि. स.
[सं. चर्चन]


चरण
पैर, पग।
संज्ञा
[सं.]


चरण
चरण देना :- पैर रखना।

चरण पड़ना :- आगमन होना, कदम जाना।

मु.


चरण
बड़ों का संग, बड़ों की समीपता।
जहाँ जहाँ तुम देह धरत हौ तहाँ तहाँ जनि चरण (चरन) छुड़ायहु।
संज्ञा
[सं.]


चरण
छंद या श्लोक का एक पद।
संज्ञा
[सं.]


चरण
चौथाई भाग।
संज्ञा
[सं.]


चरण
मूल, जड़।
संज्ञा
[सं.]


चरण
गोत्र।
संज्ञा
[सं.]


चरण
क्रम।
संज्ञा
[सं.]


चरण
घूमने का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


चरण
सूर्य आदि की किरण।
संज्ञा
[सं.]


गुह्य
छिपा हुआ, गुप्त।
वि.
[सं.]


गुह्य
छिपाने योग्य।
वि.
[सं.]


गुह्य
गूढ़, जटिल।
वि.
[सं.]


गुह्य
छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


गुह्य
कछुआ।
संज्ञा
[सं.]


गुह्य
शरीर के गुप्त अंग।
संज्ञा
[सं.]


गुह्य
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


गुह्य
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गूँग, गँगा, गूँगे
वह मनुष्य जो बोल न सके।
बहिरौ सुनै गूँग पुनि बोले - रंक चलै सिर छत्र धराई - १ - १।
संज्ञा
[फ़ा. गुंग]


गूँग, गँगा, गूँगे
जो बोल न सके, मूक।
वि.


चरणपीठ
खड़ाऊँ, पाँवड़ी।
संज्ञा
[सं.]


चरणामृत
वह जल जिसमें किसी महात्मा आदि के चरण धोये गये हों।
संज्ञा
[सं.]


चरणामृत
दूध, दही, घी, शकर और शहद का घोल जिसमें किसी देवमूर्ति को स्नान कराया गया हो।
संज्ञा
[सं.]


चरणायुध
मुरगा।
संज्ञा
[सं.]


चरणोदक
चरणामृत।
संज्ञा
[सं.]


चरत
(पशु आदि) चरते हैं।
अजानायक मगन क्रीड़त, चरत बारंबार - १ - ३२१।
क्रि. स.
[सं. चर= चरना]


चरत
एक बड़ा पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


चरता
चलने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


चरता
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


चरति
चरती हैं, (चारा आदि) खाती हैं।
जहाँ जहँ गाइ चरतिं ग्वालनि संग, तहँ तहँ आपुन धायो - ४११।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चरण
गमन, जाना।
संज्ञा
[सं.]


चरण
गमन, जाना।
संज्ञा
[सं.]


चरण
चरना।
संज्ञा
[सं.]


चरणचिह्न
धूल आदि पर पड़ा पैर का निशान।
संज्ञा
[सं.]


चरणचिह्न
चरण के आकार का चिह्न जिसका पूजन होता है।
संज्ञा
[सं.]


चरणतल
पैर का तलुवा।
संज्ञा
[सं.]


चरणदासी
स्त्री. पत्नी।
संज्ञा
[सं. चरण +दासी]


चरणदासी
जूता, पनही।
संज्ञा
[सं. चरण +दासी]


चरणपादुका
खड़ाऊँ, पाँवड़ी।
संज्ञा
[सं.]


चरणपादुका
चरणचिह्न जिसका पूजन होता है।
संज्ञा
[सं.]


चरपर, चरपरा
चुस्त, तेज, फुर्तीला।
वि.
[सं. चपल]


चरपराना
घाव या जख्म का चर्रना या पीड़ा देना।
घाव या जख्म का चर्र्राना या पीड़ा देना।
क्रि. अ.
[हिं. चरचर]


चरपराहट
स्वाद की तीक्ष्णता।
संज्ञा
[हिं. चरपरा]


चरपराहट
घाव की जलन।
संज्ञा
[हिं. चरपरा]


चरपराहट
ईर्ष्या।
संज्ञा
[हिं. चरपरा]


चरफरा
तीक्ष्ण स्वाद का।
वि.
[हिं. चरपरा]


चरफराना
तड़पना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चरब
तेज, तीखा।
वि.
[फ़ा. चर्ब]


चरब
चरब जवानी-खुशामद करना।
यौ.


चरबन
भुना अन्न, चबेना।
संज्ञा
[सं. चर्वण]


चरनि
चाल, गति।
संज्ञा
[सं. चर=गमन]


चरनी
चरने का स्थान, चरी, चरागाह।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरनी
चारा देने की नाँद।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरनी
पशुओं का चारा या आहार।
कमल बदन कुँमिलात सबन के गौवन छाँड़ी चरनी - ३३३०।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरनी
चरने की क्रिया।
गौवन छाँड़ी तृन की चरनी।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरनोदक
चरणामृत।
(क) जाको चरनोदक सिव सिर धरि तीनि लोक हितकारी - १ - १५।

(ख) चरन धोइ चरनोदक लीन्हौं - १ - २३९।

संज्ञा
[सं. चरण + उदक = जल]


चरपट
चपत, तमाचा।
संज्ञा
[सं. चर्पट]


चरपट
चोर, उचक्का।
संज्ञा
[सं. चर्पट]


चरपट
एक छंद।
संज्ञा
[सं. चर्पट]


चरपर, चरपरा
स्वाद में तीक्ष्ण या तीता।
मीठे चरपर उज्ज्वल कौरा। हौंस होइ तौ ल्याऊँ औरा - ३९६।
वि.
[अनु.]


चरती
व्रत न करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरन
चरण, पैर।
संज्ञा
[सं. चरण]


चरन
बड़ों का संग-साथ या सामीप्य।
जहाँ जहाँ तुम देह धरत हौ तहाँ तहाँ जनि चरन छुड़ायडु।
संज्ञा
[सं. चरण]


चरन
छंद का एक पद।
संज्ञा
[सं. चरण]


चरनदासी
जूता।
संज्ञा
[सं. चरणदासी]


चरना
पशु का घास खाना।
क्रि. स.
[सं. चर]


चरना
घूमना-फिरना, विचरना।
क्रि. अ.


चरना
काछ।
संज्ञा
[सं. चरण]


चरनायुध
मुरगा।
संज्ञा
[सं. चरणायुध]


चरनारबिंद
चरण कमलों को।
सूर भज चरनारबिंदनि, मिटै जीवन - मरन - १ - ३०९ |
संज्ञा
[सं. चरण + अरविंद]


चरमगिरि
अस्ताचल।
संज्ञा
[सं.]


चरमर
चीमड़ वस्तु के दबने या मुड़ने पर होनेवाला शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


चरमराना
चरमर शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चरवाँक
चतुर।
वि.
[हिं. चरवाँक]


चरवाँक
निडर।
वि.
[हिं. चरवाँक]


चरवा
मुलायम चार।
संज्ञा
[देश.]


चरवाँई
चराने का काम।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चरवाँई
चराने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चरवाना
चराने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरवारे
चरवाहा, चौपायों का रक्षक।
राजनीति जानौ नहीं, गो - सुत चरवारे - २ - २३८।
संज्ञा
[हिं. चरवाहा]


चरवाहा
पशुओं को चरानेवाला, चौपायों का रक्षक।
संज्ञा
[हिं. चरना+वाहा=वाहक]


चरवाही
पशुओं को चराने का काम।
संज्ञा
[हिं. चरवाहा]


चरवाही
चराने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. चरवाहा]


चरवैया
चरनेवाला पशु आदि।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरवैया
चरानेवाला, चरवाहा।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरबो
खाने, पीने आदि की क्रिया।
इन गैयन चर वो छाँड़ों है जो नहिं लाल चरै हैं—३४३६।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरस, चरसा
चमड़े का थैला।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चरस, चरसा
चमड़े का पुर या मोट।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चरस, चरसा
गाँजे के पेड़ का गोंद जो मादक होता है।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चरस, चरसा
बनमोर नामक पक्षी।
संज्ञा
[फ़ा. चर्ज]


चरबाँक, चरबाक
चतुर, चालाक, होशियार।
वि.
[हिं. चरब]


चरबाँक, चरबाक
निर्भय, निडर, शोख।
वि.
[हिं. चरब]


चरबा
नकल, खाका।
संज्ञा
[फ़ा. चरबः]


चरबा
चरबा उतारना :- नकल करना।
मु.


चरबी
शरीर का चिकना गाढ़ा पदार्थ जो मांस से बनता है, मेद।
संज्ञा
[फा.]


चरबी
चरबी चढ़ना :- मोटा होना।

चरबी छाना :- (१) मोटा होना। (२) गर्व से अंधा होना।

मु.


चरम
सबसे बढ़ा-चढ़ा, चोटी का।
वि.
[सं.]


चरम
पश्चिम।
संज्ञा


चरम
अंत।
संज्ञा


चरम
चमडा।
चमड़ा।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चरावन
चराने के लिए।
(क) गाय चरावन को सो गयौ - ९ - ७१।

(ख) आजु मैं गाय चरावन जैहौं - ४११।

संज्ञा
[हिं. चराना]


चरावना
चार खिलाना।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरावर
व्यर्थ की बात।
संज्ञा
[देश, ]


चरावै
(गाय, भैंस आदि) चराता है।
सौह गोप की गाई चरावै - १० - ३।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरिंदा
चरनेवाला पशु।
संज्ञा
[फ़ा.]


चरि
चारा खाकर, चरकर।
(क) व्योम, थर, नद, सैल, कानन इते चरि न अघाइ-१-५६।

(ख) जगत-जननी करी बारी मृगा चरि चरि जाइ-९-६०।

क्रि. स.
[सं. चर=चलना]


चरि
पशु
संज्ञा
[सं.]


चरित
रहन-सहन, आचरण।
संज्ञा
[सं.]


चरित
करनी, करतूत (व्यंग्य)।
अपनो भेद तुम्हैं। नहिं के हैं। देखहु जाइ चरित तुम वाके जैसे गाल बजैहै - १२६३।
संज्ञा
[सं.]


चरित
कृत्य, लीला |
चरननि चित्त निरंतर अनुरत, रसना - चरित - रसाल - १ - १८९।
संज्ञा
[सं.]


चरसिया, चरसी
चरस से पानी खींचनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चरस + इया ई, (प्रत्य.)]


चरसिया, चरसी
चरस नामक मद पीनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चरस + इया ई, (प्रत्य.)]


चरहिं
चरती हैं।
तहँ गैयाँ गनी न जाहिं. तरुनी बैच्छ बढ़ीं। जो चरहिं जमुन कै तीर, दूनै दूध चढ़ीं - १० - २४।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चरही
पशुओं के चरने या पानी पीने का स्थान।
संज्ञा
[हिं. चरनी]


चराइ
पशुओं को चारा खिलाने के लिए मैदान में ले जाना।
माधौ जू, यह मेरी इक गाइ। अब आज हैं आप - प्रागै दई, लै आइयै चराई - १ - ५१।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चराई
मैदान में ले जाकर पशुओं को चारा खिलाया।
प्रथम कयौ जो बचन दया रत, तिहिं बस गोकुल गाइ चराई - १६।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चराई
चरने का काम।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चराई
चराने का काम।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चराई
चराने की मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चराऊ
चारागाह, चरनी।
संज्ञा
[हिं. चरना]


गुथवाना
गूथने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. गूथना]


गुदकार, गुदकारा
गूदेदार।
वि.
[हिं. गूदा या गुदार]


गुदकार, गुदकारा
गुदगुदा, मोटा।
वि.
[हिं. गूदा या गुदार]


गुदकार, गुदकारा
गूदेदार।
वि.
[हिं. गूदा या गुदार]


गुदकार, गुदकारा
गुदगुदा, मोटा।
वि.
[हिं. गूदा या गुदार]


गुदगुदा
मुलायम।
वि.
[हिं. गूदा]


गुदगुदा
गूदेदार, मांस या गूदे से युक्त।
वि.
[हिं. गूदा]


गुदगुदाना
गुदगुदी करना।
क्रि. अ.
[हिं. गुदगुदा]


गुदगुदाना
हँसी के लिए छेड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. गुदगुदा]


गुदगुदाना
चित्त में चाह या उत्कंठा पैदा करना।
क्रि. अ.
[हिं. गुदगुदा]


गूँग, गँगा, गूँगे
गूँगे को गुड़ :- वह विषय या बात जिसका अनुभव तो हो परंतु वर्णन न किया जा सके।

उ. - (क) अमृत कहा अमित गुन प्रगटै सो हम कहा बतावैं। सूरदास गूँगे के गुर ज्यों बूझति कहा बुझावै १६३६। (ख) गूँगे गुर की दसा भई ह्वै पूरन स्याम सोहाग सही - १९८२।

मु.


गूँगी
गोल बिछिया जो स्त्रियाँ उँगली में पहनती हैं।

दोमुहाँ साँप।

संज्ञा
[हिं. गूँगा]


गूँगी
जो गूँगी हो।
वि.


गूँगै
गूँगे व्यक्ति को (ने)।
(क) अबिगत - गति कछु कहत न आवै। ज्यौं गूँगै मीठे फल कौ रस अंतरगत हीं भावे - १ - २।

(ख) कहि न जाइ या सुख की महिमा ज्यौं गूँगे गुर खायो - ४ - ३३।

संज्ञा
[हिं. गूँगा]


गूँगौं
गूँगा व्यक्ति, मूक प्राणी।
संज्ञा
[हिं. गूँगा]


गूँगौं
गूँगौ गुर खाइ :- ऐसी बात जिसका अनुभव तो हो, परंतु वर्णन न हो सके, जैसे गुड़ के स्वाद का अनुभव करके भी गूँगा उसे कह नहीं पाता।

उ. - ज्यों गूँगौ गुर खाइ अधिक रस, सुख स्वाद न बतावै (हो) - २ - १०।

मु.


गूँच
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं. गुंज]


गूँज
भौरों का गुंजार।
संज्ञा
[सं. गुंज]


गूँज
प्रतिध्वनि।
संज्ञा
[सं. गुंज]


गूँज
लट्टू, की कील।
संज्ञा
[सं. गुंज]


चरागाह
चरने का स्थान, चरी।
संज्ञा
[फ़ा.]


चराचर
चर और अचर, जड़ और चेतन, स्थावर और जंगम।
त्रिभुवन - हार सिंगार भगवती, सलिन चराचर जाके ऐन। सूरजदास विधात कें तर प्रगट भई संतनि सुख देन - ९ - १२।
वि.
[सं.]


चराचर
जगत्, संसार।
वि.
[सं.]


चराचर
कौड़ी।
वि.
[सं.]


चरान
चरने की भूमि।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरान
समुद्र के किनारे का दल दल।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चराना
पशु को चराने ले जाना।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चराना
धोखा देना, मूर्ख बनाना।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चरायौ
(गाय, भैंस आदि को) चराया।
धनि गो - सुत, धनि गाइ ये, कृष्ण चरायौ अपु - ४९२।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चराव
चरने का स्थान।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरित्र
आचरण, चरित।
संज्ञा
[सं.]


चरित्रनायक
वह व्यक्ति जिसके चरित्र के अधार पर कोई ग्रंथ लिखा जाय।
वह व्यक्ति जिसके चरित्र के आधार पर कोई ग्रंथ लिखा जाय।
संज्ञा
[सं.]


चरित्रवती
अच्छे चरित्रवाली।
वि.
[हिं. चरित्रवान]


चरित्रवान
अच्छे आचरणवाला।
वि.
[सं.]


चरी
चराई का स्थान।
संज्ञा
[हिं. चारा]


चरी
छोटी ज्वारका हर पेड़ जो चारेके काम आता है।
संज्ञा
[हिं. चारा]


चरी
दूती।
संज्ञा
[चर= डूत]


चरी
दासी।
संज्ञा
[चर= डूत]


चरु
हवन या आहुति का अन्न।
संज्ञा
[सं.]


चरु
हवन का अन्न पकाने का पात्र।
संज्ञा
[सं.]


चरु
भाँड़ के साथ पकाया हुआ चावल।
संज्ञा
[सं.]


चरु
चराई का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


चरु
यज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


चरु
बादल।
संज्ञा
[सं.]


चरुआ
मिट्टी का पात्र जिसमें प्रसूता स्त्री के लिए जल पकाया जाता है।
संज्ञा
[सं. चरु]


चरुखला
चरखा।
संज्ञा
[हिं. चरखा]


चरू
हवन का अन्न।
संज्ञा
[हिं. चरु]


चरू
चराई का स्थान।
संज्ञा
[हिं. चरी]


चरेर, चरेरा
कड़ा और खुरदुरा।
वि.
[अनु.]


चरेर, चरेरा
कर्कश और रूखा।
वि.
[अनु.]


चरित
जीवन चरित, जीवनी।
संज्ञा
[सं.]


चरितनायक
वह व्यक्ति या नायक जिसके चरित्र के आधार पर पुस्तक लिखी जाय।
संज्ञा
[सं.]


चरितवान
सदाचारी।
वि.
[सं. चरित्रवान]


चरितव्य
आचरण करने योग्य।
वि.
[सं.]


चरितार्थ
जिसका उद्देश्य पूरा हो चुका हो, कृतार्थ।
वि.
[सं.]


चरितार्थ
जो ठीक ठीक घटे या पूरा उतरे।
वि.
[सं.]


चरित्तर
धूर्तता, चालबाजी।
संज्ञा
[सं. चरित्र]


चरित्र
कार्य, लीला।
भूषन - बिबिध चिसद अंबर जुत सुंदर स्वाम सरीर। देखत मुदित चरित्र सबै सुर ब्योम - विमाननि भीर ९:२६।
संज्ञा
[सं.]


चरित्र
स्वभाव।
संज्ञा
[सं.]


चरित्र
करनी, करतूत (व्यंग्य)।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
नाटक का एक गान।
संज्ञा
[सं.]


चर्चरीक
बाल सँवारने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चर्चा
जिक्र, वर्णन।
हरिजन हरि - चर्चा जो करें।
संज्ञा
[सं.]


चर्चा
बातचीत।
संज्ञा
[सं.]


चर्चा
किंवदंती, अफवाह।
संज्ञा
[सं.]


चर्चा
ऐसी बातचीत का प्रसंग जो जगह-जगह किसी की निंदा के उद्देश्य से छिड़ा रहे।
चर्चा परी बहुत द्वारावति कृष्नचंद्र की बात। तब हरि गये सैल कंदर मैं अति कोमल मृदु गात - सारा, ६४६।
संज्ञा
[सं.]


चर्चा
लेपना, पोतना।
संज्ञा
[सं.]


चर्चिका
चर्चा, जिक्र।
संज्ञा
[सं.]


चर्चित
लगाया या पोता हुआ।
वि.
[सं.]


चर्चित
जिसकी चर्चा, वर्णन या जिक्र हो।
वि.
[सं.]


चर्खो
चरखी, गाड़ी।
संज्ञा
[हिं. चरखी]


चर्चक
चर्चा करनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


चर्चन
चर्चा।
संज्ञा
[सं.]


चर्चन
लेपन।
संज्ञा
[सं.]


चर्चरिका
एक नाटकीय गान।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
बसंत या फाग का गीत, चाँचर।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
होली की धूमधाम।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
ताली बजाने का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
आमोद-प्रमोद।
संज्ञा
[सं.]


चचरी
गाना बजाना।
संज्ञा
[सं.]


चरेरू
चिड़िया, पक्षी।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चरै
चरता है, खाता है।
संग मृगनिहू को नहिं करै। हरी घासहू सो नहिं चरै - ५ - ३।
क्रि. स.
[हिं. चरना]


चरैऐ
चराइए।
जमुनातट तुन बहुत, सुरभि - गन तहाँ चरैऐ - ४३१।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरैया
चरानेवाला।
(क) ये दोऊ मेरे गाइ चरैया - ५१३

(ख) मार मार कहि गारि दै धृग गाई चरैया - ५७५।

संज्ञा
[हिं. चराना]


चरैया
चरनेवाला पशु।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चरैहैं
चायेंगे।
इन गैयन चरबो छड़ो है जो नहिं लाल चरैहैं - ३४३६।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरैहौं
चराऊँगा।
मैया हौंन चरैहौं गाइ - ५१०।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चरोखर
चरी।
संज्ञा
[हिं. चारा+खर]


चरौवा
चरने का स्थान।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चर्खा
सूत कातने का चरखा।
संज्ञा
[सं.]


चर्म
ढाल।
संज्ञा
[सं.]


चर्मकार
चमार।
संज्ञा
[सं.]


चर्मचक्षु
साधारण नेत्र
संज्ञा
[सं.]


चर्म जा
रोआँ।
संज्ञा
[सं.]


चर्म जा
खून।
संज्ञा
[सं.]


चर्मदृष्टि
साधारण दृष्टि, आँख।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
वह जो किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
चालचलन।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
काम-काज।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
जीविका।
संज्ञा
[सं.]


चर्चित
लेपन।
संज्ञा


चर्चट
थप्पड़।
संज्ञा
[सं.]


चर्चट
हथेली।
संज्ञा
[सं.]


चर्चट
विपुल, अधिक
वि.


चर्भटी
चर्चरी गीत।
संज्ञा
[सं.]


चर्भटी
चर्चा।
संज्ञा
[सं.]


चर्भटी
आनंद, क्रीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


चर्भटी
आनंद ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


चर्म
चमड़ा।
संज्ञा
[सं.]


चर्म
(वृक्षादि की) ऊपरी छाल।
ह्वै बिरक्त, सिर जटा धरै द्रुम. चर्म, भस्म सव गात - ९.३८।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
सेवा।
संज्ञा
[सं.]


चर्या
गमन।
संज्ञा
[सं.]


चर्य्य
करने या आचरने योग्य।
वि.
[हिं. चर्चा]


चरयौ
घुमा-फिरा, विचरण, करता रहा।
मन बस होत नाहिंनै मेरें।….। कहा करौं, यह चरयौ बहुत दिन, अंकुस बिना मुकेरैं अब करि सूरदास प्रभु आपुन, द्वार परयौ है तेरैं - १ - २०६।
क्रि. अ.
[हिं. चरना]


चरोना
चरचर शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चरोना
घाव में पीड़ा होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चरोना
तीव्र इच्छा होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चर्रो
चुभती हुई बात।
संज्ञा
[हिं. चर्राना]


चर्वण
चबाना।
संज्ञा
[सं.]


चर्वण
वह वस्तु . जो चबायी जाय।
संज्ञा
[सं.]


गूँजना
भौरों का गुंजारना।
क्रि. अ.
[सं. गुंजन]


गूँजना
प्रतिध्वनि होना।
क्रि. अ.
[सं. गुंजन]


गूँजना
ध्वनि तरंगों को दूर तक व्याप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. गुंजन]


गूँझा
बड़ी पिराक, जो आटे या मैदे की अर्द्धचंद्राकार बनती है।
पिस्ता, दाख, बदाम, छुहारा, खुरमा, खाझा, गूँझा, मटरी - ८१०।
संज्ञा
[सं. गुह्यक, प्रा. गुज्झा, हिं. गूझा]


गूँथना
पिरोना, गूँधना।
क्रि. स.
[हिं. गूथना]


गूँथि
गूथ कर, (एक लड़ी में) पिरोकर।
दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजबनिता, गूँथि कुसुम बनमाल - १० - २०६।
संज्ञा
[हिं. गूथना]


गूँथी
(लड़ी में) गूँथ दी, पिरो ली।
माँग पारि बेनी जु सँवारति, गूँथी सुन्दर भाँति - ७०४।
संज्ञा
[हिं. गूँथना]


गूँदना
गुझियाँ, पिराक, समोसे आदि का मुँह बंद करना।
क्रि. स.
[हिं. गूँधना]


गूँदे
गुझिया, पिराक आदि बनाये।
गोझा गूदे गाल मसूरी - २३२१।
क्रि. स.
[हिं. गूँदना]


गूँदि
चोटी गूँधकर।
बूझति जननि कहाँ हुती प्यारी। किन तेरे भाल तिलक रचि कीनौ, किहिं कच गूँदि माँग सिर पारी - ७०८।
क्रि. स.
[हिं. गूँदना, गूँथना]


घल
काँपन।
संज्ञा
[सं.]


घल
दोष।
संज्ञा
[सं.]


घल
भूल-चूक।
संज्ञा
[सं.]


घल
छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


चलकना
चमकना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चलकना
रह-रह कर दर्द उठना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चलकना
दर्द का एकबारगी बंद हो जाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चलचलाव
यात्रा।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलचलाव
मृत्यु।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलचा
ढाक, पलाश।
संज्ञा
[देश.]


चलचाल
चंचल, अस्थिर।
वि.
[सं.]


चलचूक
धोखा।
संज्ञा
[सं. चल+हिं. चूक]


चलत
चलते या गमन करसे। (समय)।
चिति चरन - मृदु - चारु - नंद - नख, चलल चिन्ह चहुँ दिसि सोभा - १ - ६९।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलता
चलता या जाता हुआ।
वि.
[हिं. चलना]


चलता
चलता करना :- (१) हटाना, टालना।

(२) झगड़ा निपटाना। चलता पुरजा :- बहुत काइयाँ। चलता बनना (होना) :- झटपट चल देना।

मु.


चलता
जिसका क्रम या सिलसिला न टूटा हो।
वि.
[हिं. चलना]


चलता
चलता लेखा (खाता) :- चालू हिसाब।
मु.


चलता
जिसका चलन या प्रचार खूब हो।
वि.
[हिं. चलना]


चलता
चलता गाना :- जो गाना खूब लोकप्रिय हो।
मु.


चलता
जो काम करने योग्य हो।
वि.
[हिं. चलना]


चर्वण
भुना अन्न, चबेना।
संज्ञा
[सं.]


चर्वित
दाँतों से चबाया हुआ।
वि.
[सं.]


चर्वित चर्वण
किसी की हुई क्रिया या बात को बार-बार करना या कहना, पिष्टपेषण।
संज्ञा
[सं.]


चव्‌र्य
चबाकर खाने योग्य।
वि.
[सं.]


चलंता
चलनेवाला।
वि.
[हि. चलना]


घल
चंचल, चलायमान।
वि.
[सं.]


घल
पारा।
संज्ञा
[सं.]


घल
दोहे का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


घल
शिव।
संज्ञा
[सं.]


घल
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


चलन
चलना, गति, चाल, चलने का भाव, ढंग या क्रिया।
(क) ज्यों कोउ दूरि चलेन कौं करै। क्रम - क्रम करि डग डग पग धरै - ३ - १३।

(ख) कबहुँ हरि कौं लाइ अँगुरी, चलन सिखावति ग्वारि - १० - ११८। (ग) तीनि पैंड़ जाके धरनि न आवै। ताहि जसोदा चलन सिखावै - १० - १२९।

संज्ञा
[हिं. चलना]


चलन
रीति-रिवाज, रस्म-व्यवहार।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलन
चलन से चलना :- हैसियत से रहना।
मु.


चलन
किसी चीज का व्यवहार या प्रचार।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलन
गति, भ्रमण।
संज्ञा
[सं.]


चलन
काँपना, कंपन।
संज्ञा
[सं.]


चलन
हिरन।
संज्ञा
[सं.]


चलन
पैर, चरण।
संज्ञा
[सं.]


चलन
चलना चलते रहना।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलन
लागी चलन-चलनेलगी। प्रवाहित हुई, बह चली।
कियौ जुद्ध अति ही बिकरार। लागी चलन रुधिर की धार - १ - २७६।
प्रयो.


चलता
चतुर।
वि.
[हिं. चलना]


चलता
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


चलता
कवच।
संज्ञा
[देश.]


चलता
चंचल होने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


चलति
चलती है, प्रचलित है।
केसी सकट अरु बृथभ पूतना तृनाबत की चलति कहानी - २३७९।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलती
प्रभाव, अधिकार।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलतू
चलता हुआ।
वि.
[हिं. चलना]


चलतू
चालू।
वि.
[हिं. चलना]


चलतू
जो (भूमि) जोती-बोई जाती हो।
वि.
[हिं. चलना]


चलदल
पीपल का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


चलनसार
जिसका खूब व्यवहार या प्रचार हो।
वि.
[हिं. चलन + सार (प्रत्य.)]


चलनसार
जो काफी समय तक चल या टिक सके।
वि.
[हिं. चलन + सार (प्रत्य.)]


चलना
गमन या प्रस्थान करना, जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
हिलना-डोलना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
पेट चलना :- निर्वाह होना।

मन (दिल) चलना :- प्राप्ति की इच्छा होना। मुँह चलना :- (१) खाते रहना। (२) मुँह से बराबर अनुचित शब्द निकलना। हाथ चलना :- मारने को हाथ उठाना। चल बसना :- मर जाना। अपने चलते :- भरसक, यथाशक्ति, शक्ति भरे।

मु.


चलना
कोई काम करने में समर्थ होना, निभना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
चल निकलना :- उन्नति करना।
मु.


चलना
बहना, प्रवाहित होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
वृद्धि या बढ़ती पर होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
किसी उपाय को काम में आना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
तीर-गोली छूटना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
जड़ाई-झगड़ा होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
काम चमकना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
पढ़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
सफल होना, प्रभाव डालना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
किसी की चलना :- प्रयत्न सफल होना, दूसरे का वश या अधिकार होना।
मु.


चलना
आचरण या काम करना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
खाया जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
सड़ जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
शतरंज, ताश आदि के मोहरे या पत्ते बढ़ाना या डालना।
क्रि. स.


चलना
बड़ी चलनी।
संज्ञा
[हिं. चलनी]


चलना
छन्ना।
संज्ञा
[हिं. चलनी]


चलनि
चलने की क्रिया, गति, चाल।
रथ तै उतरि चलनि आतुर ह्वै कच रज की लपटानि - १.२७९।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलनिका
लहँगा।
संज्ञा
[सं.]


चलनिका
झालर।
संज्ञा
[सं.]


चलनी
आटा-आदि छानने की छलनी।
संज्ञा
[हिं. छलनी]


चलनौस, चलनौसन
चोकर, चालन।
संज्ञा
[हिं. चलना + औस (प्रत्य.)]


चलपत्र
पीपल का वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


चलबाँक
तेज चालवाला।
वि.
[हिं. चलना+बाँका]


चलवंत
पैदल सिपाही।
संज्ञा
[सं. चल + वंत]


चलना
आरंभ होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
क्रम या परंपरा का निर्वाह होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
क्रम या परंपरा का निर्वाह होना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
खाने के लिए रखा जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
टिकना ठहरना, काम में आना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
लेन-देन या व्यवहार में आना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
लेन-देन या व्यवहार में आना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
जारी होना, प्रचार बढ़ना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
उपयोग या काम में लाया जाना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलना
अच्छी तरह या ठीक काम देना।
क्रि. अ.
[सं. चलन]


चलाई
कृतकार्य में सफल हुए।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलाई
कछु न चलाई :- कुछ वश न चला, कोई उपाय काम न आया, प्रयत्न सफल न हुआ।

उ. - (क) रहेउ दुष्ट पचि हार दुसासन कछू न कला चलाई - सारा. ७६९। (ख) दुर्वासा सापन को आये तिनकी कछु न चलाई - सारा, ७७२।

मु.


चलाई
प्रसंग छेड़ा, बात शुरू की।
(क) सूरदास वे सखी सयानी और कहूँ की बात चलाई - १२६६।

(ख) समय पाय ब्रज बात चलाई सुख ही माझ सुहाती - ३४१८।

क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलाई
चोट की, प्रहार किया।
मनु सुक सुरँग बिलोकि बिंव - फल चाखन कारन चोंच चलाई - ६१६।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलाऊँ
प्रचलित करू।
(क) यह मारग चौगुनो चलाऊँ, तौ पूरौ ब्यापारी - १ - १४६।

(ख) यकटक रहैं पलक नहिं लागें पद्धति नई चलाऊँ - १४२५।

क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलाऊँ
प्रहार या आघात करू।
सूरजदास भक्त दोऊ दिसि कापर चक्र चलाऊँ - १ - २७४।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलाऊ
बहुत दिन चलनेवाला, टिकाऊ।
वि.
[हिं. चलना]


चलाऊ
बहुत घूमने-फिरनेवाला।
वि.
[हिं. चलना]


चलाँक, चलाक
होशियार।
वि.
[हिं. चालाक]


चलाँकी, चलाकी
होशियारी।
संज्ञा
[हिं. चालाकी]


गूढ़
छिपा हुआ, गुप्त।
वि.
[सं.]


गूढ़
विशेष अर्थ या अभिप्राय से युक्त, गंभीर।
वि.
[सं.]


गूढ़
कठिनता से समझ में आनेवाला, जटिल, कठिन।
कहत पठवन बदरिका मोहिं गूढ़ ज्ञान सिखाइ - ३ - ३।
वि.
[सं.]


गूढ़
एक अलंकार, गूढोक्ति।
संज्ञा


गूढ़ताँ
छिपाव, गुप्तता।
संज्ञा
[सं.]


गूढ़ताँ
गंभीरता, अबोध्यता।
संज्ञा
[सं.]


गूढ़ताँ
कठिनता, जटिलता।
संज्ञा
[सं.]


गूढत्व
गुप्तता
संज्ञा
[सं.]


गूढत्व
गंभीरता, अबोध्यता।
संज्ञा
[सं.]


गूढत्व
कठिनता, जटिलता।
संज्ञा
[सं.]


चला
पीपल।
संज्ञा
[सं.]


चला
एक गंधद्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


चला
व्यवहार, प्रचार, रीति, रस्म।
संज्ञा
[हिं. चाल या चलना]


चला
अधिकार, प्रभुत्व।
संज्ञा
[हिं. चाल या चलना]


चलाइ
हिला-डुलाकर, भाव बताकर।
चलत अंग त्रिभंग कटिकै भौंह भाव चलाइ - १३५६।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाइ
आरंभ की, वर्णन की, बतायी।
बचन परगट करन कारन प्रेमकथा चलाइ - २९१६।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाइ
लक्ष्य पर फेंक कर, (तीर आदि) छोड़कर।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाइ
दियौ चलाई- चला दिया, लक्ष्य करके छोड़ दिया।
अस्वत्थामा बहुरि खिस्याइ। ब्रह्म अस्त्र कौं दियौ चलाइ - १ - २८९।
प्रयो.


चलाइ
दए चलाइ- भगा दिये।
छिरक लरिकन मही सौं भरि, ग्वाल दए चलाइ - १० २८९।
प्रयो.


चलाई
आरंभ की, प्रचलित की।
नई रीति इन अवहिं चलाई - १०४१।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलवाना
चलाने का काम दूसरे से कराना।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलवाना
छानने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलविचल
अंडबंड, बेठिकाने, अस्तव्यस्त।
वि.
[सं. चल + विचल]


चलविचल
अक्रम, अव्यवस्थित।
वि.
[सं. चल + विचल]


चलविचल
नियम का उल्लंघन, व्यतिक्रम।
संज्ञा


चलवैया
चलनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलहिंगे
चलेंगे, (एक स्थान से दूसरे को जायँगे।
कबहि घुटरुवनि चलहिंगे, कहि बिधिहिं मनोवै - १० - ७४।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चला
बिजली।
संज्ञा
[सं.]


चला
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


चला
लक्ष्मी।
संज्ञा
[सं.]


चलका
बिजली, विद्युत।
संज्ञा
[सं. चला]


चलाचल
चलने की धूमधाम या तैयारी।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाचल
गति, चाल।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाचल
चपल, चंचल, अस्थिर।
वि.
[सं.]


चलाचली
चलने की धूम या तैयारी।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाचली
बहुतों को साथ चलना।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाचली
चलने का समय।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाचली
जो चलने को तैयार हो।
वि.


चलान
चलने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलान
चलाने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाना
आरंभ करना, छेड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
आरंभ करना, छेड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
क्रम बनाये रखना
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
खाने की चीज परसना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
बराबर उपयोग में लाना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
लेन-देन या व्यवहार में लाना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
प्रचलित करना, प्रचार करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
लाठी (आदि) का उपयोग करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
(तीर गोली) छोड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
प्रहार करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलान
अपराधी का न्यायालय भेजा जाना।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलान
एक स्थान से दूसरे को भेजा जानेवाला माल।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलान
ऐसे माल की सूची, रवन्ना।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाना
चलने को प्रेरित करना, चलने में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
हिलाना-डुलाना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
किसी की चलाना :- किसी की चर्चा करना।

पेट चलाना :- निर्वाह करना। मन (दिल) चलाना :- पाने की इच्छा होना, मन विचलित होना। मुँह चलाना :- (१) खाते रहना। (२) बहुत बातें करना या बनाना। हाथ चलाना :- मारना-पीटना।

मु.


चलाना
निभाना, निर्वाह करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
बहा देना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
उन्नति करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
काम को जारी रखना या पूरा करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
काम चमकाना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाना
आचरण करना।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलायमान
जो चलनेवाला हो।
वि.
[सं.]


चलायमान
चंचल, अस्थिर।
वि.
[सं.]


चलायमान
विचलित, डिगा हुआ।
वि.
[सं.]


चलायमान
चलाया, चलने के लिए प्रेरित किया।
जित - जित मन अर्जुन कौ तितहिं रथ चलायौ - १ - २३।
क्रि. स.
[हिं. चलना]


चलाव
यात्रा
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलाव
रस्म।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलावत
हिलाते-डुलाते हैं, गति देते हैं।
मनहूँ तें अति बेग अधिक करि, हरिजू चरन चलावत - ८ - ४।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावत
प्रारंभ करते हैं, छेड़ते हैं।
(क) फिरि फिरि नृपति चलावत बात। कहु री सुमति कहा तोहि पलटी, प्रान - जिवन कैसे बन जात - ९ - ३८।

(ख) निकट नगर जिय जानि धँसे घर, जन्मभूमि की कथा चलावत - ९ - १६७। (ग) कहुँ पांडव की कथा चलावत चिंता करत अपार - सारा.६७५।

क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावत
(तीर गोली आदि) छोड़ते हैं।
तीर चलावत सिष्य सिखावत घर निसान देखरावत - सारा, १९०।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावत
(धार, पानी आदि) चलाते या फेकते हैं।
इत चितवत उत धार चलावत यहै सिखायौ मैया - ७३४।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावन
चलाने के लिए, प्रचलित करने को, प्रचार करने को।
दैहौं राज बिभीषन जन कौं, लंकापुर रघु - आन चलावन - ९ - १३१।
संज्ञा
[हिं. चलाना]


चलावना
गति देना, चलाना।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावा
रीति-रस्म।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलावा
गौना, मुकलावा, द्विरागमन।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलावा
एक उतारा।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलावै
हिलावे-डुलावे, गति दे।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावै
(खाने के लिए) मुँह हिलाये, खाने का प्रयत्न करे।
हौं यहि जानति बानि स्याम की अँखियाँ मचे बदन चलावै - १० - २३१।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावै
आँखें या भौहें) मटकावे, चमकावे या भाव बतावे |
(क) सखियन बीच भरयो घट सिर पर तापर नैन चलावै - ८७५।

(ख) ठठकति चलै मटकि मुँह मोरे बंकट भौंह चलावें - ८७६।

क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावै
(प्रसंग) छेड़े, (चर्चा) करे।
(क) रे मन, निपट निलज अनीति। जियत की कहि को चलावै, मरत विषयनि प्रीति - १ - ३२१।

(ख) इद्रादिक की कौन चलावै संकर करत खवासी - ३०८६।

क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलावै
निर्वाह करे, वंश-परि-वार का क्रम या परंपरा बनाये रखे।
सो सपूत परिवार चलावै एतौ लोभी धृत इनही - पृ. ३२२।
क्रि. स.
[हिं. चलाना]


चलि
चलकर, प्रस्थान करके।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलि
चलि आयो :- प्रसिद्ध है, प्रचलित है।

उ - (क) जुग जुग बिरद यहै चलि आयौ, भक्तनिहाथ बिकानौ - १ - ११। (ख) जुग जुग विरद यहै। चलि आयौ, टेरि कहत हौं यातै - १ - १३७। (ग) जुग जुग यह घलि यौ - ९ - ५०।

मु.


चलित
अस्थिर, हिलता-डोलता हुआ।
चलित - कुंडल गंड - मंडल, मनहुँ निर्तत मैन - १ - ३०७।
वि.
[सं.]


चलित
चलता हुआ।
वि.
[सं.]


चलिबे
चजना, प्रस्थान।
धर्मपुत्र कौं दै हरि राज। निज पुर चैलिचे कौं कियौ साज - १ - २८१।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चलिये
प्रस्थान कीजिए।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलिहौं
चलूँगा, प्रस्थान करूँगा।
सूर सकल सुख छाँड़ि आपनौ, बनबिपदा - सँग चलिहौं - ९ - ३५।
किं. अ.
[हिं. चलना]


चली
आरंभ हुई, छिड़ी।
भारतादि कुरुपति की जथा, चली पांडवनि की जब कथा - १ - २८४।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलैया
चले गये।
सूर स्याम सनमुस्व जे आये ते सब स्वर्ग चलैया - २३७४।
क्रि. अ.


चलौं
चलूँ, गमन करूँ।
बचन बाह लै चलौं गाँठि दै, पाऊँ सुख अति भारी - १ - १४६।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलौ
चलो, प्रस्थान करो।
सूरदास प्रभु इहिं औसर भजि उतरि चलौ भवसागर - १ - ६१।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलौ
व्यवहार या आचरण करो, ढंग रखो।
हम अहीर ब्रजबासी लोग। ऐसे चलौ हँसै नहिं कोऊ घर में बैठि करौ सुख भोग - १४९७।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलौखा
एक उतारा |
संज्ञा
[हिं. चलावा]


चल्यौ
चला, प्रस्थान किया।
रोर के जोर तें सोर घरनी कियों, चल्यौ द्विज द्वारिका द्वार ठाढ़ौ - १ - ५।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चल्ली
सूत की तकली, कुकड़ी।
संज्ञा
[देश.]


चवकी
छोटा तखत, चौकी।
संज्ञा
[हिं. चौकी]


चवना
चू पड़ना, टपकना।
क्रि. अ.
[हिं. चुअना]


चवन्नी
चार आने का सिक्का।
संज्ञा
[हिं. चौ+ना]


चले
प्रस्थान या गमन किया, जाने लगे।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चले
प्रस्तुत हुए, कटिबद्ध हुए, तैयार हुए।
कौरव - काज चले रिषि - सापन, साक पत्र सु अघाए - १ - १३।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलै
चलता है।
रंक चलै सिर छत्र धराइ - १ - २।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलै
प्रसिद्ध है, प्रचलित है।
उ. - जाकी जग मैं चलै कहानी - १ २२६।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलै
सफल हो।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलै
(एक की) कहा चलै :- (एक का) क्या वश चल सकता है, क्या सफलता मिल सकती है।

उ. - अंग निरखि अनंग लज्जित सकै नहिं ठहराय। एक की कहा चलै शत कोटि रहत लजाय।

मु.


चलैगी
प्रचलित होगी, प्रसिद्ध रहेगी।
यह तौ कथा चलैगी आगैं, सबअ पतितनि मैं हाँसी - १ - १९२।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलैगौ
प्रचलित होगा, प्रचार बढ़ेगा।
सूर सुमारग फेरि चलैगौ, बेदबचन उर धारौ - १ - १९२।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलैगौ
जायगा, चलेगा।
(क) सिर पर धरि न चलैगौ कोऊ, जो जतननि करि माया जोरी - १ - ३०३।

(ख) धोखें ही धोखें बहुत बह्यौ। मैं जान्यौ सब संग चलेगौ, जहँ। को तहाँ रहैगौ - १ - १३७।

क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चलैया
चलनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चलना]


गूँधना
(आटा आदि) माड़ना, मलना या मसलना।
क्रि. स.
[सं. गुध = क्रीड़ा]


गूँधना
(माला आदि) गूँथना या पिरोना।

(चोटी आदि) करना।

क्रि. स.
[सं. गुंथन]


गूग्गुल, गूगुल
एक गोंद जो सुगंध के लिये जलाया जाता है।
संज्ञा
[सं. गुग्गुल]


गूजर
अहीर।
संज्ञा
[सं. गुर्जर]


गूजर
एक क्षत्रिय जाति।
संज्ञा
[सं. गुर्जर]


गूजरी
अहीरन, ग्वालिन, गोपी।
गोरस बेचनहारि गुजरी अति इतराती - १०६५।
संज्ञा
[सं. गुर्जरी]


गूजरी
पैर का एक गहना।
संज्ञा
[सं. गुर्जरी]


गूजरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं. गुर्जरी]


गूझा
आटे या मैदे का एक पकवान।
गूझा बहु पूरन पूरे। भरि भरि कपूर रस चूरे - १० - १८३।
संज्ञा
[सं. गुह्यक, प्रा. गुज्झा]


गूझा
गूदा।
संज्ञा
[सं. गुह्यक, प्रा. गुज्झा]


चवपैया
एक छंद।
संज्ञा
[हिं. चौपैया]


चवपैया
खाट।
संज्ञा
[हिं. चौपैया]


चवर
मोरछल, चँवर।
संज्ञा
[हिं. चवर]


चवरा, चत्रल
लोबिया।
संज्ञा
[सं. चवल]


चवर्ग
च से अ तक पाँच अक्षरों का समूह जिसका उच्चारण तालु से होता है।
संज्ञा
[सं.]


चवा
सब दिशाओं से एक साथ चलनेवाली हवा।
संज्ञा
[हिं. चौवाई]


चवाई
बदनामी की चर्चा फैलानेवाला, निंदा करनेवाला।
घातक कुटिल चवाई कपटी महाक्रूर संतापी।
संज्ञा
[हिं. चवाव]


चवाई
झूठी बात कहने वाला, चुगली खानेवाला।
सुनहु स्याम बलभद्र चवाई (चबाई) जनमत हो कौ धूत - १० - २१५।
संज्ञा
[हिं. चवाव]


चवाउ, चवाव
निंदा या बुराई की चर्चा।
(क) गोरी इहै करति चवाउ। देखौं धौ चतुराई वाकी इमहि कियौं दुराउ - १२८३।

(ख) नैनन तें यह भई बड़ाई। घर घर यई चवाव चलावत हम सौं भेंट न माई - २८८०।

संज्ञा
[हिं. चवाव]


चवाउ, चवाव
प्रवाद, अफवाह।
संज्ञा
[हिं. चवाव]


चषक
मधु, शहद।
संज्ञा
[सं.]


चषक
एक मदिरा।
संज्ञा
[सं.]


चषचोल
आँख का परदा या पलक।
संज्ञा
[हिं. चष=आँख+चोल = वस्त्र]


चषण
भोजन।
संज्ञा
[सं.]


चषण
वध।
संज्ञा
[सं.]


चषण
क्षय।
संज्ञा
[सं.]


चसक
हलका दर्द, कसक।
संज्ञा
[देश.]


चसक
शराब पीने का पात्र।
संज्ञा
[सं. चषक]


चसकना
मीठा दर्द होना।
क्रि. अ.
[हिं. चसक]


चसका
शौक, आदत।
संज्ञा
[सं. चषण]


चवाउ, चवाव
चुगलखोरी।
संज्ञा
[हिं. चवाव]


चवैया
बदनामी की चर्चा।
संज्ञा
[हिं. चवाई]


चवैया
झूठी बात कहनेवाला, चुगलखोर।
संज्ञा
[हिं. चवाई]


चश्म
नेत्र, आँख।
संज्ञा
[फ़ा. चश्मा]


चश्मा
ऐनक।
संज्ञा
[फ़ा.]


चश्मा
पानी का सोता।
संज्ञा
[फ़ा.]


चश्मा
छोटी नदी।
संज्ञा
[फ़ा.]


चश्मा
जलाशय।
संज्ञा
[फ़ा.]


चष
नेत्र, आँख।
उनै उनै घन बरषत चष उर सरिता सलिन भरी - २८१४।
संज्ञा
[सं, चक्षु]


चषक
शराब पीने का पात्र।
प्रान ये मन रसिक ललित घी लोचन चषक विवति मकरंद सुख रासि अंतर सची।
संज्ञा
[सं.]


चसना
प्राण त्यागना।
क्रि. अ.
[सं. चषण]


क्रि. अ.
चिपकना, जुड़ना।
चसना
[हिं. चाशनी]


चसम
आँख।
संज्ञा
[फ़ी, चश्म]


चसमा
ऐनक।
संज्ञा
[फ़ा. चश्मा]


चसमा
पानी का सोता।
संज्ञा
[फ़ा. चश्मा]


चसी
सट गयी, लगी, जुड़ी, चिपकी।
ज्यों नाभी सर एक नाल नव कनक बिख रहे चसी री।
क्रि. अ.
[हिं. चसना]


चस्का
शौक, लत।
संज्ञा
[हिं. चसका]


चस्पाँ
चिपकाया या सटाया हुआ।
वि.
[फ़ा.]


चह
नाव पर चढ़ने का पाट।
संज्ञा
[सं. चय]


चह
गड्ढा, गर्त।
संज्ञा
[फ़ा. चाह]


चहना
इच्छा या प्रेम करना।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहनि
इच्छा, प्रीति।
संज्ञा
[हिं. चाह]


चहबच्चा
गंदे पानी का गड्ढा।
संज्ञा
[फ़ा. चाह = कुआँ+बच्चा]


चहबच्चा
छोटा तहखाना।
संज्ञा
[फ़ा. चाह = कुआँ+बच्चा]


चहर
आनंद की धूम।
पंच सब्द ध्वनि बाजत नाचत गावत मंगलचार चहर की - १० - ३०।
संज्ञा
[हिं. चहल]


चहर
शोरगुल, हल्ला।
संज्ञा
[हिं. चहल]


चहर
उपद्रव, उत्पात।
संज्ञा
[हिं. चहल]


चहर
बढ़िया, उत्तम।
वि.


चहर
चुलबुला, तेज।
वि.


चहरना
प्रसन्न होना।
क्रि. अ.
[हिं. चहर]


चहचहा
हँसी-दिल्लगी, ठट्टा, चुहलबाजी।
संज्ञा
[हिं. चहचहाना]


चहचहा
मनोहरे, आनंददायी।
वि.


चहचहा
ताजा, नया।
वि.


चहचहाना
पक्षियों का चहकना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चहटा
कीचड़, पंक।
संज्ञा
[अनु.]


चहत
चाहता है, इच्छा करता है।
अजहुँ सँग रहत, प्रथम लाज गहेउ संतत सुभ चहत, प्रिय जन जानि - १ - ७७।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चहता
प्रिय पात्र।
संज्ञा
[हिं. चहेता]


चहति
चाहती हैं, अभिलाती हैं।
उमँगी ब्रजनारि सुभग, कान्ह बरष - गाँठ उमँग, चहतिं बरष बरषनि - १० - ९६।
क्रि. स.
[हिं. चाह, चाहना]


चहनना
दबाना, रौंदना।
क्रि. स.
[हिं. चहलना]


चहनना
चहनकर खाना :- डटकर खाना।
मु.


चहक
चहचह शब्द।
संज्ञा
[हिं. चहकना]


चहक
पंक, कीचड़
संज्ञा
[हिं. चहला]


चहकना
पक्षियों का चहचहाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चहकना
उमंग या प्रसन्नता से बोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चहका
जलती हुई लकड़ी।
संज्ञा
[देश.]


चहका
कीचड़, पंक।
संज्ञा
[हिं. चहला]


चहकार
चहचह शब्द।
संज्ञा
[हिं. चहक]


चहकारना
चहचहाना।
क्रि. अ.
[हिं. चहकना]


चहकारा
कलरव करनेवाला।
वि.
[हिं. चहकार]


चहचहा
चहकने का भाव, चहक।
संज्ञा
[हिं. चहचहाना]


चहर पहर
चहलपहल।
संज्ञा
[हिं. चहलपहल]


चहराना
प्रसन्न होना।
क्रि. अ.
[हिं. चहर]


चहराना
हल्की पीड़ा होना।
क्रि. अ.
[हिं. चर्राना]


चहराना
फटना, चटकना।
क्रि. अ.
[देश.]


चहरि
शोर-गुल, होहल्ला।
(क) मथति दधि जसुमति मथानी, धुनि रही घर घहरि। खवन सुनति न महर - बातें, जहाँ - तहँ गह चहरि - १० - ६७।

(ख) तनु बिष रहयौ है छहरि।…..। गए अवसान, भीर नहिं भावै, भावै नहीं चहरि। ल्यावौ गुनी जाइ गोबिंद कौं बाढ़ी अतिहिं लहरि - ७५०। (ग) नेकहूँ नहिं सुनति स्रवननि करति हैं हम चहरि - ८६०।

संज्ञा
[सं. चहर]


चहरि
आनंद की धूम, रौनक।
संज्ञा
[सं. चहर]


चहरि
उपद्रव, उत्पात।
सुत को बरजि राखौ महरि।…...। सूर स्यामहिं नेक बरजौ करत हैं अति चहरि - २०३९।
संज्ञा
[सं. चहर]


चहल
कीचड़, कीच, कर्दम।
संज्ञा
[अनु.]


चहल
आनंद की धूम।
संज्ञा
[हिं. चहचहाना]


चहलपहल
अनंद की धूम, रौनक।

बहुत से लोगों का आना-जाद।

(१) आनंद की धूम, रौनक।

(२) बहुत से लोगों का आना - जाना।

संज्ञा
[अनु.]


चहुटना
चोट-चपेट लगना।
क्रि. स.


चहुँधार
चारो तरफ।
बिबिध खिलौना | भाँति के (बहु) गजमुक्ता चहुँधार - १० - ४२।
वि.
[हिं. चार (चहुँ =चार)]+धार= ओर, दिशा]


चहुआन, चहुवान
एक क्षत्रिय जाति।
[हिं. चौहान]


चहूँ
चार, चारों।
सूरदास भगवंत भजत जे, तिनकी लीक चहूँ जुग खाँची - १ - १
वि.
[हिं. चार]


चहूँ
चाहती हूँ।
क्रि. स.
[हिं.चौहना]


चहूँघा
चारो तरफ।
उपवन बन्यौ चहूँघा पुर के अति ही मोकों भावत - २५५९।
क्रि. वि.
[हिं. चहूँ+घा= ओर]


चहूँटना
सटना, मिलना।
क्रि. अ.
[हिं. चिमटना]


चहेटना
निचोड़ना, गारना।
क्रि. स.
[हिं. चपेटना]


चहेटना
दबाना, दबोचना, चपेटना।
क्रि. स.
[हिं. चपेटना]


चहेता
प्यारा।
वि.
[हिं. चाहना+एता (प्रत्य.)]


चहला
कीचड़, पंक।
संज्ञा
[सं. चिकिल]


चहली
कुएँ की गराड़ी।
संज्ञा
[देश.]


चहारदीवारी
प्राचीर, कोट, परिखा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चहिबो
चाहना, इच्छा करना।
तब न कियो प्रहार प्राननि को फिरि फिरि क्यों चहिबो - ३३१४।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहियत
चाहता है, इच्छा करता है।
एक जु हरि दरसन की आसा ता लगि यह दुख सहियत। मन क्रम बचन सपथ सुन सूरज और नहीं कछु चहियत - ३३००।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहिये
उचित है, उपयुक्त है।
(क) कहत नारि सब जनक नगर की बिघि सों गोद पसारि। सीता जू को बर यह चहिये है जोरी सुकुमार - सारा, २११।

(ख) सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि रसिकहिं सब सुन चहिये जू - २०१५।

अव्य.
[हिं. चाहिए]


चही
चाही थी, इच्छा की थी।
रिषि कयौ, रानी पुत्री चही। मेरे मन मैं सोई। रही - ९ - २।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहुं
चार, चारों।
वि.
[हिं. चार]


चहुँक
चौंकना।
संज्ञा
[हिं. चिहुँक]


चहुँघा
चारो तरफ, चारो ओर।
(क) दावानल ब्रजजन पर धायौ। गोकुल ब्रज बृंदाबन तृन द्रुम, चहुँघा चहत जरायौ - ५९२।

(ख) बारि बाँधे बीर चहुँघा देखत ही बज्र सम थाप गल कुंभ दीन्हो - २५९०।

क्रि. वि.
[हिं. चहुँ= चार+घा = ओर, तरफ]


गूढ़नीड़
खंजन पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


गूढजीवी
गुप्त रीति से जीविका प्राप्त करनेवाला।
संज्ञा
[सं. गूढजीविन्]


गूढजीवी
गुप्त रीति से जीविका प्राप्त करनेवाला।
संज्ञा
[सं. गूढजीविन्]


गूढजीवी
गुप्त कार्य (जैसे चोरी) करके निर्वाह करनेवाला।
संज्ञा
[सं. गूढजीविन्]


गूढ़पद, गूढ़पाद
साँप, सर्प।
संज्ञा
[सं.]


गूढोक्ति
एक अलंकार।
संज्ञा
[स.]


गूढोत्तर
एक अलंकार।
गूढ़ोत्तर अस कहत ग्वालिनी मोहि गेह रखवारी - सा, ८०।
संज्ञा
[सं.]


गूथना
(माला आदि) गूँधना या पिरोना।
क्रि. स.
[सं. गुंथन]


गूथना
टाँकना।
क्रि. स.
[सं. गुंथन]


गूथना
जोड़ देना।
क्रि. स.
[सं. गुंथन]


चाँगला
चतुर।
वि.
[हिं. चंगा]


चाँचर, चाँचरि, चाँचरी
होली, फाग या बसंत को राग या गीत।
होली, फाग या बसंत का राग या गीत।
संज्ञा
[हिं.चाचर]


चांचल्य
चंचलता, चपलता।
संज्ञा
[सं.]


चाँचु
चोंचे।
बकासुर रचि रूप माया रह्यो छल करि आइ। चाँचु पकरि पुहुमी लगाई इक अकास समाइ।
संज्ञा
[सं. चंचु]


चाँट
उड़ते हुए जल कण।
संज्ञा
[हिं. छींटा]


चाँटा
चींटा, च्युँटा।
संज्ञा
[हिं. चिमटना]


चाँटा
थप्पड़, तमाचा।
संज्ञा
[अनु. चट]


चाँटी
चींटी।
संज्ञा
[हिं. चाँटा]


चाँड़
प्रबल, बलवान।
वि.
[सं. चंड]


चाँड़
उद्दंड, शोख, उग्र।
वि.
[सं. चंड]


चह्यौ
चाहा, अभिलाषा की।
(क) उरझयौ बिबस कर्म - निरअंतर, समि सुख - सरनि चहयौ - १ - १६२।

(ख) एकै चीर हुतौ मेरे पर, सो इन इरन चढ्यौ - १ - २४७।

क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाँइयाँ, चाँई
ठग।
वि.
[देश.]


चाँइयाँ, चाँई
छती, कपटी।
वि.
[देश.]


चाँक, चाँका
अन्न की राशि पर ठप्पा लगाने की थापी।
संज्ञा
[हिं. चौ+ अंक]


चाँक, चाँका
अन्नराशि पर लगाया हुआ ठप्पा या चिह्न।
संज्ञा
[हिं. चौ+ अंक]


चाँक, चाँका
टोटके के लिए शरीर पर खींचा गया घेरा।
संज्ञा
[हिं. चौ+ अंक]


चाँकना
अन्न की राशि पर ठप्पा लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चाकना]


चाँकना
सीमा की हद बाँधना।
क्रि. स.
[हिं. चाकना]


चाँकना
पहचान का चिन्ह लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चाकना]


चाँगला
स्वस्थ।
वि.
[हिं. चंगा]


चहेती
जिसे चाहा जाय।
वि.
[हिं. चहेता]


चहेल
कीचड़, कीच, कर्दम।
संज्ञा
[हिं. चसला]


चहेल
दलदली भूमि।
संज्ञा
[हिं. चसला]


चहैं
चाहते हैं, इच्छा है।
कइयौ, यहै हम तुम सौं चहैं। पाँच बरस के नितहीं रहैं - ३ - ६।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहै
चाहता या इच्छा करता है, अभिलाषा रखता है।
पारथ तिय कुरुराज सभा में बोलि करन चहै नंगी - १ - २१।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहै
प्रीति करता है।
जों चहै मोहिं मैं ताहि नाही चहौं - ८८।


चहोड़ना, चहोरना
पौधा रोपना या बैठाना।
क्रि. अ.
[देश.]


चहोड़ना, चहोरना
सहेजना, सँभालना।
क्रि. अ.
[देश.]


चहौं
चाहता हूँ, इच्छा है।
आयसु दियौ, जाउ बदरीबन, कहैं, सो कियौ चहौं - ३ - २।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चहौं
प्रीतिक रती हूँ।
जो चहै। मोहिं मैं ताहिं नाहीं चहौं - ८८।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाँड़
बढ़ा-चढ़ा, उत्तम।
वि.
[सं. चंड]


चाँड़
संतुष्ट।
वि.
[सं. चंड]


चाँड़
खंभा, टेक, थूनी।
संज्ञा


चाँड़
बहुत आवश्यकता, गहरी चाह, भारी लालसा।
संज्ञा


चाँड़
चाँड़ सरना :- इच्छा या लालसा पूरी होना।

चाँड़ सराना :- इच्छा या लालसा पूरी करना। चाँड़ सरायौ :- इच्छा पूरी की। उ. - पुरुष भँवर दिन चारि आपने अपनो चाँड़ सरायौ।

मु.


चाँड़
दबाव, संकट।
संज्ञा


चाँड़
प्रबलता, अधिकता।
संज्ञा


चाँड़ना
खोदना, उजाड़ना।
क्रि. स.
[हिं. उजाड़ना]


चांडाल
डोम-श्वपच।
संज्ञा
[सं.]


चांडाल
कुकर्मी।
संज्ञा
[सं.]


चांडाली
चांडाल जाति की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


चाँड़िला
प्रबल, उग्र।
वि.
[चाँड़]


चाँड़िला
अधिक।
वि.
[चाँड़]


चाँड़िले
प्रचंड, उग्र, उद्धत, नटखट।
नंद सुत लाड़ले प्रेम के चौंड़िले सौंहु दै कहत है बारि आगे।
वि.
[हिं. चाँड़िला]


चाँड़े
प्रबल, बलवान, घेगवान।
हरि बिन अपनौ को संसार। मायालोभ - मोह हैं चाँड़े काल - नदी की धार - १ - ८४।
वि.
[सं. चंड, हिं. चाँड़]


चाँड़े
उग्र, उद्धत, शोख।
धीर धरहु फल पावहुगे। अपने ही प्रिय के सुख चाँड़े कबहूँ तो बस आवहुगे।
वि.
[सं. चंड, हिं. चाँड़]


चाँडू
अफीम का किवाम, चंडू।
संज्ञा
[सं. चंड]


चाँद
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चाँद
चाँद का कुंडल (मंडल) बैठना :- हलकी बदली में चंद्रमा के चारो ओर घेरा बन जाना।

चाँद का टुकड़ा :- बहुत सुंदर व्यक्ति। चाँद चढ़ना :- चाँद का ऊपर उठना। चाँद दीखे :- शुक्लपक्ष की द्वितीया के बाद। चाँद पर थूकना :- महात्मा पर कलंक लगाना जिससे स्वयं अपमानित होना पड़े। चाँद पर धूल डालना :- निर्दोष या साधु को दोष लगाना। चाँद सा :- बहुत सुंदर। किधर चाँद निकला है :- कैसे दिखायी दिये, बहुत दिन बाद दिखायी दिये।

मु.


चाँद
चाँदमास. महीना।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चाँद
द्वितीया के चंद्रमा के आकार का एक आभूषण।
संज्ञा
[सं. चंद्र]


चाँद
खोपड़ी।
संज्ञा


चाँद
खोपड़ी का निचला भाग।
संज्ञा


चाँद
चाँद पर बाल न छोड़ना :- बहुत मारना-पीटना।

सब कुछ हर लेना, खूब मूड़ना।

मु.


चाँदना
प्रकाश।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदना
चाँदनी।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदनी
चंद्रमा का प्रकाश या उजाला, चंद्रिका।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदनी
चार दिन की चाँदनी :- थोड़े दिन का सुख।
मु.


चाँदनी
बिछाने की सफेद चादर।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदनी
एक पौधा।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँपति
दबाकर, मीड़कर।
चाँपति कर भुज दंड रेष गुन अंतर बीच कसी - सा. उ. २५।
क्रि. स.
[हिं. चाँपना]


चाँपना
दबाना, मीड़ना।
क्रि. स.
[सं. चपन]


चाँपि
दबाकर, मीड़कर।
कहौ तौ परबत चाँपि चरन तर, नीर - खार मैं गारौ - ९ - १०७।
क्रि. स.
[हिं. चौपना]


चाँयचाँय, चाँवचाँव
बकवाद।
संज्ञा
[अनु.]


चाँवर, चाँवरी
चावल।
(क) नीलावती चाँवर दिवि - दुर्लभ। भात परौस्यौ माता सुरलभ - ३९६।

(ख) तिल चाँवरी, बतासे, मेवा, दियौ कुँवरि की गोद। सूर स्याम राधा - तनु चितवत, जसुमति मन - मन, मोद - ७०४।

संज्ञा
[हिं. चावल]


चाइ, चाई
प्रबल इच्छा, अभिलाषा।
(क) अबकी बार मनुष्यदेह धरि, कियौ न कछू उपाइ। भटकत फिरथौ स्वान की नाई', नैकु जूठ के चाइ - १ - १५५।

(ख) कहा करौं चित चरन अटक्यौ सुधा - रस के चाइ - ३ - ३। (ग) बिष्णु - भक्ति कौ ता मान चाई - १० उं. ७।

संज्ञा
[हिं. चाह, चाव]


चाइ, चाई
चाव, उमंग, उत्साह।
गए ग्रीषम पावस रितु आई सब काहू चित चाइ - २८४४।
संज्ञा
[हिं. चाह, चाव]


चाउ, चाऊ
इच्छा, अभिलाषा।
(क) चित्रकेतु पृथ्वीपति राउ। सुबन हित भयौ तास चित चाउ - ६ - ५।

(ख) मैन - बचकर्म और नहिं दूजौ, विन रघुनंदन राउ। उनकै क्रोध भस्म है जैहौं, करौ न सीता चाउ - ९ - ७८।

संज्ञा
[सं. चाव]


चाउ, चाऊ
चाउ सरना :- इच्छा पूरी होना।

चाउ सरै :- इच्छा पूरी होने पर। उ - चाउ सरै पहिचानत नाहिंन प्रीतम करत नये - २९९३।

मु.


चाउर
चावल।
संज्ञा
[हिं. चावल]


चाँदला
टेढ़ा, कुटिल, वक्र।
वि.
[हिं. चाँद]


चाँदी
एक धातु, रजत।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदी
चाँदी का जूता :- घूस में दिया जाने वाला धन।

चाँदी काटना :- खूब माल मारना। चाँदी का पहरा :- सुख - समृद्धि को समय। चाँदी होना :- खूब लाभ होना।

मु.


चाँदी
धन का लाभ।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चाँदी
चाँद, चँदिया।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चांद्र
चंद्रम-संबंधी।
वि.
[सं.]


चांद्र
चाँद्रायण व्रत।
संज्ञा


चांद्र
चंद्रकांतमणि।
संज्ञा


चांद्रमास
वह काल (या महीना) जो चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करने में लगाता है।
संज्ञा
[सं]


चाँद्रवत्सर
वह वर्ष जो चंद्रमा की गति के अनुसार निश्चित किया जाता है।
संज्ञा
[सं]


चांद्रायण
महीने भर का एक व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार आहार घटाया-बढ़ाया जाता है।

एक छंद।

संज्ञा
[सं]


वांद्री
चंद्रमा की स्त्री।
संज्ञा
[सं]


वांद्री
चाँदनी।
संज्ञा
[सं]


वांद्री
चंद्रमा संबंधी, चंद्रमा का।
वि.


चाँप
धनुष।
संज्ञा
[हिं. चाप]


चाँप
चँपने का भाव, दबाव।
संज्ञा
[हिं. चँपना]


चाँप
पैर की अहट, चाप।
संज्ञा
[हिं. चँपना]


चाँप
चंपे का फूल।
संज्ञा
[हिं. चंपा]


चाँप
दबाव।
संज्ञा
[हिं.चपना]


चाँप
रेलपेल।
संज्ञा
[हिं.चपना]


चाक
कुम्हार का एक गोल पत्थर।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक्क]


चाक
गाड़ी का एक पहिया।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक्क]


चाक
कुएँ की गराड़ी।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक्क]


चाक
अन्न-राशि पर छापा लगाने का थापा।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक्क]


चाक
गोल चिन्ह की रेखा, गोंडला।
संज्ञा
[सं. चक्र, प्रा. चक्क]


चाक
दरार, चीढ़।
संज्ञा
[फ़ा.]


चाक
चाक करना (देना) :- चीरना, फाड़ना।

चाक होना :- चिरना, फटना।

मु.


चाक
दृढ़।
वि.
[तु.]


चाक
स्वस्थ।
वि.
[तु.]


चाकचक
दृढ़, मजबूत।
वि.
[तु. चाक]


गूथना
मोटी सिलाई करना, गाँथना।
क्रि. स.
[सं. गुंथन]


गूद
गूदा।
संज्ञा
[सं. गुप्त, प्रा. गुत्त]


गूद
गड्ढा।
संज्ञा
[सं. गर्त]


गूद
गहरा, चिह्न, निशान या दाग।
संज्ञा
[सं. गर्त]


गूदड़ गूदर
फटा-पुराना कपडा, चिथड़ा।
संज्ञा
[हिं. गूथना= मोटी सिलाई, करना]


गूदना
माला अदि गूँथना।
क्रि. स.
[हिं. गूथना]


गूदा
फल का सरस सार भाग।
संज्ञा
[सं. गुप्त, प्रा. गुत्त]


गूदा
खोपड़ी का सार भाग, भेजा, मगज।
संज्ञा
[सं. गुप्त, प्रा. गुत्त]


गूदा
गिरी, मींगी।
संज्ञा
[सं. गुप्त, प्रा. गुत्त]


गूदा
वस्तु का सार या तत्व।
संज्ञा
[सं. गुप्त, प्रा. गुत्त]


चाकचक्य
चमक।
संज्ञा
[सं.]


चाकचक्य
सुंदरता।
संज्ञा
[सं.]


चाकना
सीमा बाँधना।
क्रि. स.
[हिं. चाक]


चाकना
अन्न-राशि पर छापा लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चाक]


चाकना
चिन्ह बनाना।
क्रि. स.
[हिं. चाक]


चाकरनी, चाकरानी
दासी।
संज्ञा
[हिं. चाकर]


चाकर
दास. सेवक।
संज्ञा
[फ़ा.]


चाकरी
सेवा, नौकरी।
संज्ञा
[हिं. चाकर]


चाकल
चौड़ा, विस्तृत।
वि.
[हिं. चलना]


चाका
गाड़ी का पहिया।
संज्ञा
[हिं. चाक]


चाकी
पीसने की चक्की।
संज्ञा
[हिं. चाक]


चाकी
बिजली, बज्र।
संज्ञा
[सं. चक्र]


चाकू
फल या तरकारी आदि काटने का छुरीनुमा औजार।
संज्ञा
[तु.]


चाक्रि
चारण, भाट।
संज्ञा
[सं.]


चाक्रि
तेली।
संज्ञा
[सं.]


चाक्रि
गाड़ीवान।
संज्ञा
[सं.]


चाक्रि
कुम्हार।
संज्ञा
[सं.]


चाक्रि
सेवक।
संज्ञा
[सं.]


चाक्रि
मंडल या चक्र से संबंधित।
वि.


चाक्षुष
चतु संबंधी।
वि.
[सं.]


चाखे
चखता है, स्वाद लेता है।
ब्यंजन सकल मँगाइ सखनि के आगैं राखे। खाटे - मीठे स्वाद, सबै रस लै - लै चाखे - ४९१।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाखे
खाये।
आँव आदि दै सबै सँधाने। सब चाखे गोबर्धन - राने - ३९६।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाख्यौ
स्वाद लिया, खाया।
(क) जिहिं मधुकर अंबुज - रस चाख्यौ, क्यों करील - फल भावें - १ - १६८।

(ख) सद माखन अति हित मैं राख्यौ। आज नहीं नैंकहुँ तुम चाख्यौ - ५४७।

क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाचर, चाचरि
होली या फाग के गीत।
संज्ञा
[सं. चर्चरी]


चाचर, चाचरि
होली का स्वाँग और हुल्लड़।
संज्ञा
[सं. चर्चरी]


चाचर, चाचरि
हल्ला-गुल्ला, उपद्रव।
संज्ञा
[सं. चर्चरी]


चाचरी
योग की एक मुद्रा।
संज्ञा
[सं. चर्चरी]


चाचा
बाप का छोटा भाई।
संज्ञा
[सं तात]


चाची
चाचा की स्त्री।
संज्ञा
[हिं. चाचा]


चाट
स्वाद लेने की। प्रबल इच्छा
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चाक्षुष
जिसका ज्ञान या बोध नेत्रों से हो, देखने का।
वि.
[सं.]


चाख
चांही पक्षी।
संज्ञा
[सं. चाष]


चाख
नीलकंठ पक्षी।
संज्ञा
[सं. चाष]


चाख
आँख, नेत्र।
संज्ञा
[सं . चक्ष]


चाखत
चखकर, स्वाद लेकर।
यह जग - प्रीति सुवा - सेमर ज्यौं, चाखत ही उड़ि जात - १ - ३१३।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाखन
चखना, स्वाद लेना।
यह संसार सुवा - सेमर ज्यों, सुंदर देखि लुभायो। चाखन लाग्यौ रुई गई उड़ि, हाथ कछू नहिं आयौ - १ - ३३५।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाखन
चखना, खाना।
मनु सुक सुसँग बिलोकि बिंब फल चाखन कारन चोंच चलाई - ६१६
संज्ञा


चाखनहारौ
चखनेवाला, स्वाद लेनेवाला।
इनहिं स्वाद जो लुब्ध सूर सोइ जानत चाखनहारौ री - १० - १३५।
क्रि. स.
[हिं. चखना + हार (प्रत्य.)]


चाखना
खाना, स्वाद लेना।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाखि
चखकर, स्वाद लेकर।
सबरी कटुक बेर तजि, मीठे चाखि गोद भरि ल्याई - १ - १३।
क्रि. स.
[हिं. चखना]


चाट
शौक, चसका।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चाट
प्रबल इच्छा, लोलुपता।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चाट
लत, आदत
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चाट
चटपटी चीज।
संज्ञा
[हिं. चाटना]


चाट
ठग।
संज्ञा
[सं.]


चाट
उचक्का, चाँई।
संज्ञा
[सं.]


चाटत
(जीभ लगाकर) चाटता है।
(क) मनौ भुजंक अमी - रस - लालच, फिरि फिर चाटत सुभग सुचंदहि - १० - १०७।

(ख) जैसे धेनु बच्छ कौ चाटत तैसे मैं अनुरागूँ - सारा.१३३।

क्रि. स.
[हिं. चाटना]


चाटति
(प्यार से किसी वस्तु पर) जीभ चलाती हैं।
ब्यानी गाइ बछरुवा चाटति, हौं पय पियत पतखिनि लैया - १० - ३३५।
क्रि. स.
[हिं. चाटना]


चाटना
जीभ लगाकर खाना या स्वाद लेना।
क्रि. स.
[अनु. चटचट = जीभ चलाने का शब्द]


चाटना
पोछ-पाँछ कर खा जाना।
क्रि. स.
[अनु. चटचट = जीभ चलाने का शब्द]


चाड़िला
नटखट।
वि.
[हिं. चाँडिला]


चाड़ी
निंदा, चुगली।
संज्ञा
[सं. चाटु]


चाढ़
इच्छा, कामना।
जज्ञ - पुरुष तजि करत जज्ञे - ब्रिधि, तातै कहि कह चाढ़ सरी - ८०६।
संज्ञा
[हिं. चाड़]


चढ़ा
प्रिय पात्र।
संज्ञा
[हिं. चाड़]


चढ़ा
प्रेमी।
संज्ञा
[हिं. चाड़]


चाढ़ी
चाहनेवाला, प्रेमी, आसक्त।
देखी हरि मथति ग्वालि दधि ठाढ़ी। जोबन मदमाती इतराती, बेनि ठरति कटि लौं, छबि बाढ़ी। दिन थोरी, भोरी, अति गोरी, देखत ही जु स्याम भए चाढ़ी। - १० - ३००।
वि.
[हिं., चाढ़ा]


चाढ़े
प्रिय पात्र।
धन्य धन्य भक्तत के चाढ़े - १०३५।
संज्ञा
[हिं. चाढ़ा]


चाढ़े
प्रेमी, चाहनेवाला।
(क) तुम हम पर रिस करति हौ। हम हैं तुव चाढ़े। निठुर भई हौ लाड़ली कब के हम ठाढ़े।

(ख) दिन थोरी भोरी अति को देखत ही जु स्याम भए चाढे (चाढ़ी) - १० - ३००।

संज्ञा
[हिं. चाढ़ा]


चाणक्य
चंद्रगुप्त मौर्य का मंत्री।
संज्ञा
[सं.]


चाणाक्ष
धूर्त, चालाक, काँइयाँ।
वि.


चाटना
प्यार से जीभ फेरना।
क्रि. स.
[अनु. चटचट = जीभ चलाने का शब्द]


चाटना
कीड़ों का किसी वस्तु को खा जाना।
क्रि. स.
[अनु. चटचट = जीभ चलाने का शब्द]


चाटु
मीठी या प्रिय लगनेवाली बात।
संज्ञा
[सं.]


चाटु
झूठी प्रशंसा, खुशामद, चापलूसी।
संज्ञा
[सं.]


चाटुकार
चापलूस. खुशामदी।
संज्ञा
[सं.]


चाटुकारी
झूठी प्रशंसा या खुशामद, चापलूसी।
संज्ञा
[सं. चाटुकार+ई (प्रत्य.)]


चाटुपट
झूठी प्रशंसा या चापलूसी करने में बहुत कुशल।
संज्ञा
[सं .]


चाटुपट
भाँड़, भंड।
संज्ञा
[सं .]


चाटे
पोंछ-पाँछ कर चट कर गये।
दूध - दही के भोजन चाटे नेकहुँ लाज न आई - सारा, ७४९।
क्रि. स.
[हिं. चाटना]


चाड़
चाह, चाव, प्रेम।
हौं अपने गोपाल खड़े हौं, भौन - चाँङ सब रहौ धरी। पाऊँ कहाँ खिलावन कौ सुख, मैं दुखिया, दुख कोखि जरी - १० - ८०।
संज्ञा
[हिं चाँड़]


चाणूर
कंस का एक पहलवान जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


चातक
वर्षाकाल में बोलनेवाला एक पक्षी जिसके संबंध में कवियों का विश्वास है कि यह नदी-सरोवर का संचित जल न पीकर केवल स्वाती नक्षत्र की बूँदों से अपनी प्यास बुझाता है।
संज्ञा
[सं.]


चातकनी
मादा चातक।
संज्ञा
[हिं. चातक]


चातर
जाल।
संज्ञा
[हिं. चादर]


चातर
षड्यंत्र।
संज्ञा
[हिं. चादर]


चातर
चालाक, काँइयाँ।
वि.
[हिं. चातुर]


चातुर
दिखायी देनेवाला।
वि.
[सं.]


चातुर
चतुर, चालाक।
वि.
[सं.]


चातुर
खुशामदी, चापलूस. चाटुकार।
वि.
[सं.]


चातुर
चतुरता।
रोचन भरि लै देत सीक सौं, स्रवन निकट अतिहीं चातुर की - १० - १८०।
संज्ञा
[हिं. चातुर]


चातुर
गोल तकिया।
संज्ञा


चातुर
चौपहिया गाड़ी।
संज्ञा


चातुरई, चतुरता, चतुरताई
चालाकी।
संज्ञा
[हिं. चतुरता]


चातुरई, चतुरता, चतुरताई
बुद्धि।
जे जे प्रेम छके मैं देखे तिनहिं न चातुरताई - २२७५।
संज्ञा
[हिं. चतुरता]


चातुरिक
सारथी, रथवान।
संज्ञा
[सं.]


चातुरी
चतुर।
नारि गई फिरि भवन आतुरी। नंद - घरनि अब भई चातुरी - ३९१।
वि.
[सं.]


चातुर्थक, चातुर्थिक
चौथे दिन होनेवाला।
वि.
[सं.]


चातुर्मास्य, चातुर्मासिक
चार महीनों में होनेवाला, चार महीने का।
वि.
[सं.]


चातुर्य
चतुराई, निपुणता।
संज्ञा
[सं.]


चातुर्वर्ण्य
चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

इनका धर्म।

संज्ञा
[सं.]


चात्रिक
चातक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. चातक]


चादर
ओढ़ना, दुपट्टा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चादर
चादर उतारना :- स्त्री का अपमान करना।

चादर रहना :- इज्जत बनी रहना। चादर से बाहर पैर फैलाना :- हैसियत से ज्यादा खर्च करना।

मु.


चादर
धातु का पत्तर।
संज्ञा
[फ़ा.]


चादर
पानी की ऊपर से गिरने वाली धार।
संज्ञा
[फ़ा.]


चादर
पानी का फैलाव जिसमें लहरें या भँवर न हों।
संज्ञा
[फ़ा.]


चादर
देवता या पूज्य स्थान पर चढ़ाई जानेवाली फूलों की राशि।
संज्ञा
[फ़ा.]


चादरा
मरदानी चादर।
संज्ञा
[हिं. चादर]


चीन
चंद्रमा।
संज्ञा
[हिं. चाँद]


चानक
सहसा, एकाएक।
क्रि. वि.
[हिं. अचानक]


गूदरि
फटा-पुराना ओढ़ना बिछौना।
पाटंबर - अंबर तजि गूदरि पहराऊँ - १.१६६।
संज्ञा
[हिं. गूदड़]


गूदे
चोटी आदि में फूल, मोती आदि) गूँथे या पिरोये।
जिहि सिर केस कुसुम भरि गूदे तेहि कैसे भसम चढ़ैए - ३१२४।
क्रि. स.
[हिं. गूदना]


गून
नाव खींचने की रस्सी।
संज्ञा
[से गुण = रस्सी]


गून
रीहा नामक घास।
संज्ञा
[से गुण = रस्सी]


गूनसराई
रोहू नामक वृक्ष।
संज्ञा
[देश.]


गूमा
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. कुंभा, गुंभा]


गूलर
एक बड़ा पेड़ जिसके फल में बहुत से भुनगे रहते हैं।
मैं ब्रह्मा इक लोक कौ, ज्यौं गूलर - फल जीव। प्रभु तुम्हरे इक रोम प्रति, कोटिक ब्रह्मा सींव - ४९२।
संज्ञा
[सं. उदुंबर]


गूलर
गूलर का कीड़ा :- अनुभवहीन व्यक्ति, कूपमंडूक |

गूलर का फूल :- वह (वस्तु, पात्र आदि) जो कभी देखने में न आवे। गूलर का फूल होना :- कभी दिखायी न देना। गूलर का पेट फड़वाना (पेट फाड़कर जीव उड़ाना) :- गुप्त भेद प्रकट कराना, भंडा फुड़वाना।

मु.


गूलर
मेढक, दादुर।
संज्ञा
[देश.]


गूलू
एक वृक्ष।
संज्ञा
[देश.]


चानन
चंदन।
संज्ञा
[हिं. चंदन]


चानना
उमंग से होना।
क्रि. अ.
[हिं. चान +ना (प्रत्य.)]


चानूर
कंस का एक मल्ल जिसे धनुष-यज्ञ के समय श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं. चाणूर]


चाप
धनुष, कमान।
संज्ञा
[सं.]


चाप
दबाव।
संज्ञा


चाप
पैर की आहट।
संज्ञा


चापट, चापड़, चापर
भूसी, चोकर।
संज्ञा
[हिं. चपटा]


चापट, चापड़, चापर
चपटा।
वि.


चापट, चापड़, चापर
समतल।
वि.


चापट, चापड़, चापर
उजाड़।
वि.


चापति
(स्नेह से) दबाती है।
भुज चापति चुमति बलि जाई - १० - ७१।
क्रि. सु.
[हिं. चापना]


चापना
दबाना, मीड़ना।
क्रि. स.
[सं. चाप]


चापल
चंचल होने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


चापल
चंचल, अस्थिर।
वि.
[हिं. चपल]


चापलता, चपलताई
चंचलता, अस्थिरता।
संज्ञा
[हिं. चापल +ता, ताई]


चापलता, चपलताई
ढिठाई।
संज्ञा
[हिं. चापल +ता, ताई]


चापलूस
खुशामदी, चाटुकार।
वि.
[फ़ा.]


चापलूसी
खुशामद।
संज्ञा
[हिं. चापलूस]


चापल्य
चपलता।
संज्ञा
[हिं. चपल]


चापि
दबाकर, मसलकर, मीड़ कर।
चापि ग्रीव हरि प्रान हरे, दृग - रकत - प्रवाह चल्यौ अधिकानी - १० - ७८।
क्रि. स.
[हिं. चापना]


चापी
धनुष धारण करनेवाला।
संज्ञा
[सं. चापिन्]


चापी
शिव।
संज्ञा
[सं. चापिन्]


चाब
बाद, अवड़ा।
जब मुख गए समाइ, असुर तब चाब सकोरथौ - ४३१।
संज्ञा
[हिं. चाबना]


चाब
चौखूटे दाँत।
संज्ञा
[हिं. चाबना]


चाब
बच्चे के जन्मोत्सव की एक रीति।
संज्ञा
[हिं. चाबना]


चाब
एक बाँस।
संज्ञा
[सं. चप]


चाब
एक पौधा या उसका फल।
संज्ञा
[सं. चव्य]


चाब
चार की संख्या।
संज्ञा
[सं. चव्य]


चाब
कपड़ा।
संज्ञा
[सं. चव्य]


चाबना
दाँतों से कुचलना।
क्रि. स.
[सं. चर्वण, प्रा. चबण]


चाबना
खूब भोजन करना।
क्रि. स.
[सं. चर्वण, प्रा. चबण]


चाबी, चाभी
कुंजी, ताल |
संज्ञा
[हिं. चाप]


चाबुक
कोड़ा, हंटर, सोंटा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चाबुक
बात जिससे काम करने की उत्तेजना मिले।
संज्ञा
[फ़ा.]


चाभ
पौधा।
संज्ञा
[हिं. चाब]


चाभ
डाढ़।
संज्ञा
[हिं. चाब]


चाभना
खाना, भक्षण करना।
क्रि. स.
[हिं. चाबना]


चाम
चमड़ा, खाल, चमड़ी।
आमिष - रुधिर अस्थि अँग जौ कौं, तौ लौ कोमल चाम - १ - ७६।
संज्ञा
[सं. चर्म]


चाम
चाम के दाम :- चमड़े का सिक्का।

चाम के दाम चलाना :- अन्याय या अंधेर करना। चाम के दाम चलाबै :- अन्याय या अंधेर करता है। उ. - ऊधौ अब कछु कहत ने अवै। सिर पै सौति हमारे कुबिजा चाम के दाम चलावै - ४२५७।

मु.


चामड़ी
चमड़ी, खाल।
संज्ञा
[हिं. चमड़ी]


चाय
एक पौधा जिसकी पत्तियाँ उबाल कर पी जाती हैं।
संज्ञा
[चीनी चा]


चाय
उमंग, उत्साह, चाव।
भरि भरि सकट चले गिरि सनमुख अपने अपने चाय - ९१८।
संज्ञा
[हिं. चाव]


चाय
इच्छा, कामना।
चित में यह अनुरक्त बिचारत हरि दरसन की चाय - सारा. ८४८।
संज्ञा
[हिं. चाव]


चाय
प्रेम।
संज्ञा
[हिं. चाव]


चायक
चाहनेवाला, प्रेमी।
संज्ञा
[हिं. चाय]


चायक
चुननेवाला।
संज्ञा
[सं. चयन]


चार
दो और दो का योग।
वि.
[सं. चतुर]


चार
चार आँखें करना :- सामने आना।

चार आँखें होना :- देखा देखी होना। चार चाँद लगना :- मान, प्रतिष्ठा या सौंदर्य बढ़ना। चार कंधे चढ़ना (चलना) :- मरना। चार-पाँच करना :- (१) हीला - हवाला करना। (२) झगड़ा करना। चारों फूटना :- न देख सकना और न विचार कर सकना। चारों खाने चित्त होना :- (१) बिलकुल हार जाना। (२) सकपका जाना।

मु.


चार
कई एक, बहुत से।
वि.
[सं. चतुर]


चार
थोड़े, कुछ।
वि.
[सं. चतुर]


चामर
चौंर, चँवर, चौरी।
संज्ञा
[हिं. चँवर]


चामर
मोरछल।
संज्ञा
[हिं. चँवर]


चामर
एक छंद।
संज्ञा
[हिं. चँवर]


चामरिक
चँवर डुलानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


चामरी
सुरा गाय।
संज्ञा
[सं.]


चामिल
भिक्षापात्र।
संज्ञा
[हिं. चंबल]


चामीकर
स्वर्ण।
संज्ञा
[सं.]


चामीकर
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


चामीकर
स्वर्णमय, सुनहरा।
वि.


चामुंडा
एक देवी।
संज्ञा
[सं.]


चार
चार दिन :- थोड़े दिन।

चार पैसे :- थोड़ा धन।

मु.


चार
चार की संख्या।
संज्ञा


चार
गति, चाल।
संज्ञा
[सं.]


चार
बंधन।
संज्ञा
[सं.]


चार
दूत, चर
संज्ञा
[सं.]


चार
दास. सेवक
संज्ञा
[सं.]


चार
चिरौंजी का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


चार
बनावटी विष।
संज्ञा
[सं.]


चार

रीति-रस्म।

संज्ञा
[सं.]


चारक
चरवाहा।
संज्ञा
[सं.]


चारक
संचालक,
संज्ञा
[सं.]


चारक
गति, चाल।
संज्ञा
[सं.]


चारक
कारागार।
संज्ञा
[सं.]


चारक
गुप्तचर।
संज्ञा
[सं.]


चारक
साथी।
संज्ञा
[सं.]


चारक
सवार।
संज्ञा
[सं.]


चारक
मनुष्य।
संज्ञा
[सं.]


चारण
भाट, बंदीजन।
बिद्याधर गंधर्व अपसरा गान करत सब ठाढ़े। चारण (चारन) सिद्ध पढ़त बिरुदावलि लै फगुवा सुख बाढ़े - सारा. २८।
संज्ञा
[सं.]


चारण
राजपूताने की एक जाति।
संज्ञा
[सं.]


चारण
भ्रमणकारी।
संज्ञा
[सं.]


चारण
चराना।
गोपी ग्वाल गाइ बन चारण (चारन) अति दुख पायौ त्यागत - २९१५।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चारत
चराते हुए।
बन - बन फिरत चारत धेनु - ४२७।
क्रि. स.
[हिं. चारना]


चारदा
चौपाया।
संज्ञा
[हिं. चार + दा (प्रत्य.)]


चारदीवारी
घेरा, हाता, प्राचीर।
संज्ञा
[फ़ा.]


चारन
वंश की कीर्ति गाने वाला, बंदीजन।
(क) बिप्र - सुजन - चारन - बंदी - जन सकल नंद - गृह आए - १० - ८७।

(ख) चारन सिद्ध पढ़त बिरुदावलि लै फगुवा सब ठाढे - सारा, २८।

संज्ञा
[सं. चारण]


चारन
चराने की क्रिया या भाव |
(क) धन्य गाइ, धनि द्रुम - बन चारन। धनि जमुना हरि करत बिहारन - ३९१। (ख) प्रात जात गैया ले चारन घर आवत है साँझ - ४११।
संज्ञा
[हिं. चराना]


चारन
(गाय आदि) चराने।
बछरा चारन चले गोपाल–४१०।
क्रि. स.
[हिं. चारना]


चारना
चराना।
क्रि. स.
[सं. चारण]


चारपाई
खाट, खटिया।
संज्ञा
[हिं चार+पाया]


चारपाई
चारपाई पर पड़ना :- बीमार होना।

चारपाई धरना (पकड़ना, लेना) :- (१) बहुत बीमार होना। (२) लेट जाना। चारपाई से पीठ लगना :- बीमारी से बहुत दुबले हो जाना।

मु.


चारा
पशुओं के चुगने की चीजें।
लोचन भए पखेरू माइ। लुब्धे' स्याम रूप चारा को अकल फंद परे जाइ - पृ.३२५।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चारा
मछलियों को फँसाने का आटा या अन्य वस्तु जो कँटिया पर लगायी जाती है।
संज्ञा
[हिं. चरना]


चारा
उपाय, इलाज, तदबीर।
संज्ञा
[फ़ा.]


चारि
चार, तीन और एक का योग।
चौपरि जगत मड़े जुग बीते। गुन पाँसे, क्रम अक, चारि गति सारि, न कबहूँ जीते - १६०।
वि.
[हिं. चार]


चारि
थोड़ा-बहुत, कुछ।
वि.
[हिं. चार]


चारि
चार दिवस :- थोड़े दिन, कुछ दिन।

उ. - सब वे दिवस चारि मन रंजन, अंत काल बिगरै गो - १.७५।

मु.


चारिणी
आचरण करनेवाली।
वि.
[सं.]


चारित, चारितु
जो चलाया गया हो।
वि.
[सं.]


चारित, चारितु
पशुओं का चारा।
संज्ञा
[हिं. चारा]


चारित, चारितु
(चलाया जाने वाला) आरा
संज्ञा
[सं.]


गूषणा
मोरपंखी का अर्द्धचंद्र।
संज्ञा
[सं.]


गूह
मल, मैला।
संज्ञा
[सं. गुह]


गृध्र
गिद्ध, गीध।
संज्ञा
[सं.]


गृध्र
जटायु, संपाती आदि पक्षी जिनकी पौराणिक कथाएँ प्रसिद्ध हैं।
संज्ञा
[सं.]


गृध्रव्यूह
सेना की एक व्यूह-रचना।
संज्ञा
[सं.]


गृह
घर
संज्ञा
[सं.]


गृह
वंश।
संज्ञा
[सं.]


गृहआस्रम
गृहस्थाश्रम जिसमें मनुष्य बाल बच्चों के साथ रहता है।
गृहस्रम है अति सुखदाई। तप तजि कै गृहआस्रम करौं - ९.८।
संज्ञा
[सं. गृह + आश्रम]


गृहप
घर का स्वामी।
संज्ञा
[सं.]


गृहप
घर का रक्षक।
संज्ञा
[सं.]


चारित, चारितु
चरित्र।
संज्ञा
[हिं. चरित्र]


चारित्र
कुल-आचार।
संज्ञा
[सं.]


चारित्र
स्वभाव, प्रकृति।
संज्ञा
[सं.]


चारिव्य
चरित्र, चालचलन।
संज्ञा
[सं.]


चारी
चलनेवाला।
वि.
[सं. चारिन्]


चारी
व्यवहार या आचरण करनेवाला।
वि.
[सं. चारिन्]


चारी
पैदल सिपाही।
संज्ञा


चारी
संचारी भाव।
संज्ञा


चारी
नृत्य का एक अंग।
संज्ञा
[सं.]


चारी
चार।
महामुक्ति कोऊ नहिं बाँछै जदपि पदारथ चारी - ३३१६।
वि.
[हिं. चार]


चारी
चरायीं।
सूरदास प्रभु नाँगे पाँयन दिन प्रति गैयाँ चारी - ३४१२।
क्रि. स.
[हिं. चराना]


चारु
सुंदर, मनोहर।
चारु मोहिनी आइ आँध कियौ, तब नख - सिख तैं रोयौ - १ - ४३।
वि.
[सं.]


चारु
रुचिकर, सरस।
सूरप्रभु कर गहत ग्वालिनी, चारु चुंबन हेत - १० - १८४।
वि.
[सं.]


चारु
बृहस्पति।
संज्ञा
[सं.]


चारु
रुक्मिणी से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारु
केसर।
संज्ञा
[सं.]


चारुगर्भ
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चरुगुप्त
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुचित
धृतराष्ट्र की एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुता, चारुताई
सुंदरता, मनोहरता, सुहावनापन।
संज्ञा
[सं.]


चारुता, चारुताई
सरसता।
संज्ञा
[सं.]


चारुदेष्ण
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुधारा
इंद्र की पत्नी शची।
संज्ञा
[सं.]


चारुनेत्र
सुंदर नेत्रवाला।
वि.
[सं.]


चारुनेत्र
हिरन, मृग।
संज्ञा


चारुबाहु
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुभद्र
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुमती
श्रीकृष्ण की एक पुत्री।
संज्ञा
[सं.]


चारुयश
श्रीकृष्ण की एक पुत्री।
संज्ञा
[सं.]


चारुविंद
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चारुश्रवा
सुदर कानवाला।
वि.
[सं. चारुश्रवस्]


चारुश्रवा
श्रीकृष्ण का एक पुत्र।
संज्ञा


चारुहासी
सुंदर हँसीवाला।
वि.
[सं.]


चारुहासिनी
सुंदर मुस्कानवाली।
वि.
[सं.]


चारे
चरने (के लिए)।
टेरि उठे बलराम स्याम कौं आवहु जाहिं धेनु बन चारे - ४२३।
क्रि. अ.
[हिं. चारना]


चारै
चार।
दुखित देखि बसुदेवदेवकी, प्रगट भए धारि कै भुज चारै - १० - १०।
वि.
[हिं. चार]


चारौं
चारों।
चारों बेद चतुर्मुख। ब्रह्मा जस गावत हैं ताको - १ - ११३।
वि.
[हिं चार]


चारौ
भोजन, भोज्य पदार्थ।
संज्ञा
[हिं. चरना, चार]


चारौ
कियो गीध कौ चारौ :- मार डाला।

उ. - नवग्रह परे रहैं पाटीतर, कूपहिं काल उसारौ। सो रावन रघुनाथ छिनक मैं कियौ गीध कौ चारौ - ६ - १५७।

मु.


चारौ
चारों।
दीनदयाल, पतितपावन, जस बेद बखानत चारौ - १ - १५७।
वि.
[हिं. चार]


चारौ
चराता है।
ब्रह्म, सनक, सिव, ध्यान न अवत, सो ब्रज गैयनि चारौ - १० - ३७८।
क्रि. स.
[हिं.चराना]


चारयो
चारों।
वि.
[हिं. चार]


चारयो
चारयो (चारों) फूटना :- चर्मचक्षु और ज्ञानचक्षु नष्ट होना, दृष्टि और बुद्धि का नाश होना।

उ. - निसि दिन बिषय-बिलासनि बिलसत, फूटि गई तव चारयौ - १ - १०१।

मु.


चार्वाक
एक नास्तिक।
संज्ञा
[सं.]


चार्वी
बुद्धि।
संज्ञा
[सं.]


चार्वी
चाँदनी।
संज्ञा
[सं.]


चार्वी
कांति।
संज्ञा
[सं.]


चार्वी
सुंदर स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


चार्वी
कुबेर की पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


चाल
गति, गमग, चलने की क्रिया।
(क) इंद्री अजित, बुद्धि बिषयारत, मन की दिन दिन उलटी चाल - १ - १२७।

(ख) टेढ़ी चाल, पाग सिर टेढ़ी, टेढ़ै टेढ़ै धायो - १ - ३१०।

संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
आचरण, चलन, बर्ताव।
(क) महामोह के नूपुर बाजत, निंदा - सब्द रसाल। भ्रम - भोयौ मन भयौ पखावज, चलत असंगत चाल - १ - १५३।

(ख) अब कछु औरहि चाल चाली - २७३४। (ग) अब समीर पावक सम लागत सब ब्रज उलटी चाल - ३१५५। (घ) कहा वह प्रीति रीति राधा सौ। कहाँ यह करनी उलटी चाल - ३४५।

संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
चलन, रीति-रिवाज, प्रथा, परिपाटी।
सूर स्याम कौ कहा निहोरौ, चलत बेद की चाल - १ - १५९।

(ङ) अपने सुत की चाल न देखत उलटी तू हमपै रिस ठीनति।

संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
चलने का ढंग, ढब या प्रकार।
(क) हौं वारी नान्हें पाइनि की दौरि दिखावहु चाल - १० - २२३।

(ख) धूरि घौत तन अंजन नैननि, चलत लटपटी चाल - १० - ११४। (ग) सूरदास गोरी अति राजत ब्रज कौं आवत सुंदर चाल - ४७३। (अ) वह चितवन वह चाल मनोहर वह मुसुक्यानि जो मंद धुनि गावन–३३०७।

संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
आकार, प्रकार, बनावट, गदन |
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
गमन-मुहूर्त, चलने की सायत, चला।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
कार्य करने की युक्ति, उपाय या ढंग।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
धोखा देने की युक्ति, छल-कपट, धूर्तता।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
चाल चलना (अक.) :- धोखा देने की युक्ति या कार्य सफल होना

चाल चलना (सक.) :- धोखा देना, चालाकी करना चाल में आना :- धोखे में पड़ना

मु.


चाल
ढंग, प्रकार, विधि, तरह।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
शतरंज या ताश में मोहरा या पत्ता चलना।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चालन
चलाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चालन
चलने की क्रिया, गति।
संज्ञा
[सं.]


चालन
चलनी, छलनी
संज्ञा
[सं.]


चालन
छानने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चालन
चोकर, चलनौस।
संज्ञा
[हिं. चालना]


चालनहार
चलानेवाला, ले जानेवाला।
संज्ञा
[हिं. चालन+हार (प्रत्य.)]


चालनहार
चलनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चालना
चलाना, संचालित करना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
एक स्थान से दूसरे को ले जाना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
विदा कराके ले जाना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चाल
हलचल, धूम।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
आहट, खटका।
संज्ञा
[सं. चार, हिं.चलन]


चाल
छाजन।
संज्ञा
[सं.]


चाल
स्वर्ण चूड़ पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चालक
चलानेवाला, संचालक।
संज्ञा
[सं.]


चालक
नटखट हाथी।
संज्ञा
[सं.]


चालक
हाथ चलाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चालक
छल-कपटी।
संज्ञा
[हिं. चाल=धूर्तता]


चालचलन
आचरण।
संज्ञा
[हिं. चाल+चलन]


चालढाल
तौर तरीका, ढंग।
संज्ञा
[हिं. चाल+डाल]


चालना
हिलाना-डुलाना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
काम निपटाना या भुगताना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
बात या प्रसंग छेड़ना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
छानना।
क्रि. स.
[सं. चालन]


चालना
गति में होना, चलना।
क्रि. अ.
[सं. चालन]


चालना
विदा होकर आना, चाला होना।
क्रि. अ.
[सं. चालन]


चालनी
चलनी, छलनी।
संज्ञा
[सं.]


चालबाज
धूर्त, छली।
वि.
[हिं. चान + फ़ा. बाज़]


चालबाजी
छल-कपट।
वि.
[हिं. चाजबाज]


चालहिं
चाल से, गति से।
कनक - कामिनी सौं मन बाँध्यौ, ह्वै गज चल्यौ स्वान की चालईि - १ - ७४।
संज्ञा
[हिं. चाल + हिं.(प्रत्य.)]


चालीसवाँ
जो क्रम में उनतालीस के आगे पड़ता है।
संज्ञा
[हिं. चालीस]


चालु
जो चल रहा हो।
वि.
[हिं. चलना]


चालु
जिसका चलन रोका न गया हो, चलता हुआ
वि.
[हिं. चलना]


चालै
चलता है, जाता है।
साधु - संग, भक्ति बिना, तन अकार्थ जाई। जारी ज्यौं हाथ झारि चालै छुट काई - १ - ३३०।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चालै
चलावे, बखान करे, प्रशंसा करे।
अपनी को चालै सुनि सूरज पिता जननि बिसराई।
क्रि. स.
[चलाना]


चाल्ह, चाल्हा
एक मछली।
संज्ञा
[देश.]


चाँवचाँव
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[हिं. चाँयँ चाँयँ]


चाव
प्रबल इच्छा, लालसा।
चित्रकेतु पृथ्वीपति राव। सुतहित भयो तासु हिय चाव।
संज्ञा
[हिं. चाह]


चाव
चाव निकलना :- लालसा पूरी होना।
मु.


चाव
प्रेम, चाह।
संज्ञा
[हिं. चाह]


गृहप
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


गृहप
आग।
संज्ञा
[सं.]


गृहपति
घर का स्वामी।
संज्ञा
[सं.]


गृहपति
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


गृहपति
आग, अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


गृहपाल
घर का रक्षक।
संज्ञाा
[सं.]


गृहपाल
कुत्ता।
संज्ञाा
[सं.]


गृहमणि, गृहमनि
दीप, दीपक।
संज्ञा
[सं.]


गृहस्त, गृहस्थ
गृहस्थ
संज्ञा
[सं.]


गृहस्त, गृहस्थ
ब्रह्मचर्य के बाद के आश्रम का धर्म निबाहनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


चालान
माल लाने या लेजाने का आज्ञापत्र।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चालान
अपराधियोंका अदालतमें भेजा जाना।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चालिया
धूर्त, छली।
वि.
[हिं. चाल +इया (प्रत्य.)]


चालीं
चल दीं, प्रस्थान कर दिया।
बेनु स्रवन सुनि, गोबर्धन तैं तृन दंतनि धरि चालीं - ६१३।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चाली
धूर्त, चालबाज, चालिया।
वि.
[हिं. चाल]


चाली
चंचल, नटखट, शैतान।
वि.
[हिं. चाल]


चाली
प्रसंग चलाया, बात शुरू की।
(क) ऊधौ कत ए बातैं चालीं - ३२२८।

(ख) बहुरयो ब्रज बात न चाली। १० उ. - ७९।

क्रि. स.
[हिं. चालना]


चाली
अयोजन किया।
क्रि. स.
[हिं. चालना]


चाली
चाल चाली :- धोखा देने का प्रयोजन किया, चालाकी की।

उ. - अब कछु ओरहि चाल चाली - २७३४।

मु.


चालीस
बीस की दुगनी संख्या।
संज्ञा
[सं. चत्वारिंशत्, प्रा. चत्तालीस]


चालहिं
चलते हैं।
सूरदास प्रभु पथिक न चालहिं कासौं कहाँ सँदेसनि।
क्रि. अ.
[हिं. चलना]


चाला
प्रस्थान, कूच।
संज्ञा
[हिं. चाल]


चाला
नयी बधू को पहले पहल ससुराल या मायके जाना।
संज्ञा
[हिं. चाल]


चाला
यात्रा का मुहूर्त या शुभ सायत।
संज्ञा
[हिं. चाल]


चालाक
चतुर।
वि.
[फ़ा.]


चालाक
चालबाज।
वि.
[फ़ा.]


चालाकी
चतुराई, दक्षता।
संज्ञा
[फ़ा.]


चालाकी
धूर्तता, चालबाजी।
संज्ञा
[फ़ा.]


चालाकी
युक्ति, कौशल।
संज्ञा
[फ़ा.]


चालान
भेजे हुए माल का बीजक या हिसाब।
संज्ञा
[हिं. चलना]


चाव
शौक, उत्कंठा।
संज्ञा
[हिं. चाह]


चाव
लाड़-प्यार, दुलार
संज्ञा
[हिं. चाह]


चाव
उमंग, उत्साह।
संज्ञा
[हिं. चाह]


चावड़ी
ठहरने का स्थान, चट्टी।
संज्ञा
[देश.]


चावण
एक गुजराती राजवंश।
संज्ञा
[देश.]


चावनी
चाहना।
क्रि. स.
[हिं. चाव]


चावर, चावल
एक अन्न तंदुल।
संज्ञा
[सं. तंडुत]


चावर, चावल
पकाया चावल, भात।
संज्ञा
[सं. तंडुत]


चावर, चावल
छोटे छोटे बीज के दाने जो खाये जायँ।
संज्ञा
[सं. तंडुत]


चावर, चावल
एक रत्ती का अठवाँ भाग।
संज्ञा
[सं. तंडुत]


चावर, चावल
चावल भर :- रत्ती केआठवें भाग के बराबर।
मु.


चाशनी
चीनी या गुड़ का रस जो आँच पर चढ़ाकर गाढ़ा किया गया हो।
संज्ञा
[फा.]


चाशनी
किसी पदार्थ में मीठेकी मिलावट।
संज्ञा
[फा.]


चाशनी
चसको, मजा।
संज्ञा
[फा.]


चाष
नीलकंठ पक्षी। चाहा पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


चाष
आँख, नेत्र।
संज्ञा
[सं. चक्षु]


चास
जोत, बाँह।
संज्ञा
[हिं. चासा]


चासना
जोतना।
क्रि. स.
[हिं. चास]


चासनी
चाशनी।
संज्ञा
[फा. चाशनी]


चासा
हलवाहा।
संज्ञा
[देश.]


चासा
किसान।
संज्ञा
[देश.]


चाह
इच्छा, अभिलाषा
(क) भक्ति भाव की जो तोहिं चाह। तो सौं नहिं ह्वै है निर्वाह - ४ - ९।

(ख) तुम कह्यौ मरिबे की तोहि चाइ। सव काहू कौं है यई राइ - ५ - ३।

संज्ञा
[सं. इच्छा, पु. हिं. चाहि अथवा सं.उत्साह, प्रा. उच्छाह]


चाह
प्रेम, प्रीति।
संज्ञा
[सं. इच्छा, पु. हिं. चाहि अथवा सं.उत्साह, प्रा. उच्छाह]


चाह
आदर, कदर।
संज्ञा
[सं. इच्छा, पु. हिं. चाहि अथवा सं.उत्साह, प्रा. उच्छाह]


चाह
माँग, आवश्यकता।
संज्ञा
[सं. इच्छा, पु. हिं. चाहि अथवा सं.उत्साह, प्रा. उच्छाह]


चाह
खबर, सूचना, समाचार, भेद की बात।
(क) हौं सखि नई चाइ इक पाई। ऐसे दिननि नंद कैं सुनियत उपज्यौ पूत कन्हाई - १० - २२।

(ख) चकित भयौ ब्रज चाह सुनाई - १५६१।

संज्ञा
[हिं. चाल = आहट]


चाह
उमंग, रुचि।
संज्ञा
[हिं. चाव]


चाहक
प्रेम करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चाहना]


चाहत
प्रीति, लगन।
संज्ञा
[हिं. चाह]


चाहत
इच्छा करता है, हता है, अभिलाषा करता है।
(क) बोवत बबुर, दाख फल चाइत, जोवत है फल लागे - १ - ६१।

(ख) सुरतरु सदन सुभाव छाँड़ि कह चाहत है द्रुम भूम भँडारौ - सा. १११।

क्रि. स.
[हिं. चाइ]


चाहा
प्रीति की, लगन लगायी।
क्रि. स
[हिं. चाहना]


चाहि
प्रेम करके।
क्रि. स.
[हिं. चाइना]


चाहि
देखकर।
क्रि. स.
[हिं. चाइना]


चाहि
चाहि रही-देखती, ताकती या निहारती। रही।
रही ग्वाति हरि कौ मुख चाहि - १० - ३१६।
प्रो.


चाहि
अपेक्षाकृत (अधिक), से बढ़कर, बनिस्बत।
अव्य
[सं. चैव = और भी]


चाहिए
उचित या उपयुक्त है।
अव्य
[हिं. चाहना]


चाही
इच्छित, चहेती।
वि.
[हिं. चाह]


चाही
(वह भूमि) जो कुएँ के जज से सींची जाय।
वि.
[फा. चाह = कु]


चाहे
देखे, निहारे।
सूर नप नारि हरि बचन मान्यौ सत्य हरष है स्याम मुख संबनि चाहे - १६१८ |
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाहे
जी चाहे, इच्छा हो।
अव्य


चाहे
जैसा जी चाहे, या तो।
अव्य


चाहे
होनेवाला हो।
अव्य


चाहैं
चाहते हैं, इच्छा करते हैं।
लियें दियौ चाहैं सब कोऊ, सुनि समरथ जदुराई - १ - १६५।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाहै
इच्छा करते ही, इच्छा होते ही।
रीत भरे, भरें पुनि ढारे, चाहै फेरि भरे - १ - १०५।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाहै
मिल्यौ न चाहै-मिल नहीं पाती, प्राप्त नहीं होती।
घर मैं गथ नहिं भजन तिहारौ, जौन दिऐ मैं छुटौं। धर्म - जमानत मिल्यौ न चाहै, तातें ठाकुर लूटौ - १ - १८५।
प्रो


चाहो, चाहौ
इच्छा करो, चाह हो।
(क) हरि की भक्ति करो सुख नीके जो चाहो सुख पायौ - सारा, ७३।

(ख) करो उपाव बचो जो चाहो मेरो बचन प्रमानो - सारा, ४८७।

क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाहो, चाहौ
देखो, निहारो।
कोउ नयनन सों नयन जोरि कै कहति न मो तनचाहो - २४२७।
क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चाहौं
चाहता हूँ, इच्छा करता हूँ।
कळू चाहीँ कहौं, सकुचि मन मैं रहौं, अपने कर्म लखि त्रास अवै - १ - ११०।
क्रि. स
[हिं. चाहना]


चाह्यौ
चाह की, इच्छा की।
(क) नाग - नर - पसु सबनि चाह्यौ सुरसरी कौ छंद - ६ - १०।

(ख) जल ते बिछुरि तुरत तनु त्याग्यौ तउ कुल जल को चाह्यौ - ३१४६।

क्रि. स.
[हिं. चाहना]


चि, चियाँ
इमली का बीज।
संज्ञा
[सं. चिंचा = इमली]


चाहति
इच्छा करती है, अभिलाषती है।
(क) चरन - कमल नित रमापलोवै। चाहति नैंकु नैन भरि जोवै - १० - ३।

(ख) कासौं कहाँ सवी कोउ नाहिंन, चाहति गर्भ दुरायौ - १० - ४।

क्रि. स.
[हिं. चाह, चाहना]


चाहना
इच्छा करना, कामना रखना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
प्रेम करना, प्रीति रखना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
पाने की इच्छा जताना, माँगना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
प्रयत्न या कोशिश करना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
चाह से ताकना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
खोजना, ढूँढ़ना।
क्रि. स.
[हिं. चाह]


चाहना
चाह, जरूरत, आवश्यकता।
संज्ञा


चाहा
बगले-सा एक जलपक्षी।
संज्ञा
[सं. चाष]


चाहा
इच्छा की, कामना की।
क्रि. स
[हिं. चाहना]


चि, चियाँ
चिआँ सी :- बहुत छोटी।
मु.


चिउँटा
चींटा नामक कीड़ा।
संज्ञा
[सं. चिमटा]


चिउँटा
गुड़ चींटा होना :- परस्पर चिमट जाना।

चिउँटे के पूर निकलना :- मरने को होना, इतराकर ऐसा काम करना जिससे हानि की संभावना हो।

मु.


चिउँटिया रेंगान
बहुत धीमी या सुस्त चाल या क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चिउँटी+रेंगना]


चिउँटी
चींटी, पिपीलिका।
संज्ञा
[हिं. चिमटना]


चिउँटी
चिउँटी की चाल :- सुस्त चाल, मंदगति।
मुु.


चिंगट
झिंगवा या झिंगा मछली।
संज्ञा
[सं.]


चिंघाड़
चीखने-चिल्लाने का घोर शब्द।
संज्ञा
[सं. चीत्कार]


चिंघाड़
चीखने-चिल्लाने का घोर शब्द।
संज्ञा
[सं. चीत्कार]


चिंघाड़ना
हाथी का बोलना।
क्रि. अ.
[सं. चीत्कार]


चिंच
इमली।
संज्ञा
[सं.]


चिंचिनी
इमली।
संज्ञा
[सं. तिं तिड़ी]


चिवी
गुंजा, धुंधची।
संज्ञा
[सं.]


चिंज, चिंजा
पुत्र, बेटा।
संज्ञा
[सं. चिरंजीव]


चिंजी
लड़की, बेटी।
संज्ञा
[हिं. चिजी]


चिंत
चिंता, चिंतन, ध्यान, याद, फिक्र।
राघौ जु, कितिक बात, तजि चिंत - ६:१०७।
संज्ञा
[सं. चिंता]


चिंतक
चिंतन या ध्यान करनेवाला।
वि.
[सं.]


चिंतक
ख्याल या ध्यान करनेवाला।
वि.
[सं.]


चिंतत
ध्यान लगाते हैं, स्मरण करते हैं।
सनक - संकर ध्यान धारत, निगम अगम बरन। सेस, सारद, रिषय नारद, संत चिंतत सरन - १ - ३०८।
क्रि. स.
[हिं. चिंतना]


चिंतन
स्मरण, ध्यान।
चित्त चिंतन करत जा - अघ हरत, तारन - तरन| १ - ३०८।
संज्ञा
[सं.]


गृहस्त, गृहस्थ
घरबारवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गृहस्थाश्रम
ब्रह्मचर्य के पश्चात का आश्रम जिसमें स्त्री और संतान के साथ व्यक्ति रहता और उनके प्रति स्वकर्तव्य निबाहता है।
संज्ञा
[सं.]


गृहस्थी
गृहस्थाश्रम।
संज्ञा
[सं, गृहस्थ+हिं. ई (प्रत्य.)]


गृहस्थी
घर-बार।
संज्ञा
[सं, गृहस्थ+हिं. ई (प्रत्य.)]


गृहस्थी
लड़के-बाले।
संज्ञा
[सं, गृहस्थ+हिं. ई (प्रत्य.)]


गृहस्थी
घर का सामान।
संज्ञा
[सं, गृहस्थ+हिं. ई (प्रत्य.)]


गृहबासी
घर में रहनेवाला, गृहस्थ।
संज्ञा
[सं . गृहवासी]


गृहिणी, गृहिनी
घर की स्वामिनी, मालकिन।
संज्ञा
[सं.]


गृहिणी, गृहिनी
पत्नी, भार्या, स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


गृही
गृहस्थ।
तपसी तुमको तप करि पावै। सुनि भागवत गृही गुन गावै - १० उ. - १२७।
संज्ञा
[सं. गृहिन्]


चिंतन
विचार, गौर।
संज्ञा
[सं.]


चिंतना
ध्यान या स्मरण करना।
क्रि. स.
[सं. चिंतन]


चिंतना
सोचना, गौर करना।
क्रि. स.
[सं. चिंतन]


चिंतना
ध्यान, स्मरण।
संज्ञा


चिंतना
चिंता।
संज्ञा


चिंतनीय
ध्यान करने योग्य।
वि.


चिंतनीय
चिंता या फिक्र करने लायक।
वि.


चिंतनीय
विचार करने योग्य।
वि.


चितवन
स्मरण, ध्यान।
संज्ञा
[सं. चिंतन]


चिता
ध्यान, भावना।
संज्ञा
[सं .]


चिता
सोच, फिक्र, खटका।
चिंता मानि, , चितै अंतर - गति, नाग - लोक को ध्याए - १ - २६।
चिंता लगना :- बराबर फिक्र रहना।

कुछ चिंता नहीं :- कोई परवाह या फिक्र की बात नही।

चिंता


चिंताकुन
चिंता से आतुर।
वि.
[सं. विता+प्राकु तु]


चिंतातुर
चिंता से आतुर।
वि.
[सं. चिंता+आतुर]


चिंतापल
चिंतित, चिंता से व्यग्र।
वि.


चिंतामणि, चिंतामनि
परमेश्वर
परमें उदार चतुर चिंतामनि कोटि कुबेर निधन कौं - १ - ६।
संज्ञा
[सं. चिंतामणि]


चिंतामणि, चिंतामनि
एक कल्पित रत्न जो सभी तरह की इच्छा पूरी करता है।
संज्ञा
[सं. चिंतामणि]


चिंतामणि, चिंतामनि
ब्रह्मः।
संज्ञा
[सं. चिंतामणि]


चिंतामणि, चिंतामनि
सरस्वती देवी का एक मंत्र।
संज्ञा
[सं. चिंतामणि]


चिंति
ध्यान करो, स्मरण करो।
चिंति चरन मृदु - चंद - नख, चलत चिन्ह चहुँ दिसि सोभा - १ - ६६।
क्रि. स.
[हिं. चिंतना]


चिंति
एक देश या उसका निवासी।
संज्ञा
[सं.]


चिंतित
जिसे बहुत चिंता हो।
वि.
[सं.]


चिंत्य
विचार या चिंता के योग्य।
वि.
[सं.]


चिंदी
टुकड़ा।
संज्ञा
[देश.]


चिंदी
हिंदी की चिंदी निकालना :- बहुत छोटी छोटी भूलें दिखाना।
मु.


चिउड़ा, चिउरा
चिउड़ा, दूरी।
श्रीफ त मधुर, चिरौंजी अनी। सफरी चिउरा, अरुन खुबानी १० - २११।
संज्ञा
[सं. चिविट, प्रा. चित्रिड, चिउड़ा]


चिउड़ा, चिउरा
महुए की जाति का एक जंगली पेड़।
संज्ञा
[देश, ]


चिउड़ा, चिउरा
एक रेशमी कपड़ा।
संज्ञा
[देश, ]


चिउड़ा, चिउरा
चिकनी सुपारी।
संज्ञा
[सं. चिपिट, प्रा. चिवड, चिविल]


चिक
बाँस आदि की तीलियों का परदा।
संज्ञा
[तु. चिक]


चिक
कसाई।
संज्ञा
[तु. चिक]


चिक
कमर की चिलक या झटका |
संज्ञा
[देश.]


चिकट, चिकटा
मैला कुचैला, गंदा।
वि.
[सं. चिक्लिद]


चिकट, चिकटा
लसीला या चिपचिपा।
वि.
[सं. चिक्लिद]


चिकट, चिकटा
एक रेशमी कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


चिकटना
मैल से चिपकना।
क्रि. अ
[हिं. चिकट]


चिकन
एक महीन कपड़ा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चिकना
जो खुरदुरा या ऊबड़ खाबड़ न हो।
वि.
[सं. चिक्कण]


चिकना
जिस पर हाथ-पैर फिसले।
वि.


चिकना
चिकना देखकर फिसल पड़ना :- ऊपरी धन, रूप की चमक-दमक पर लुभा जाना।
मु.


चिकना
जो रूख-सूखा न हो, स्निग्ध।
वि.


चिकनावट, चिकनाहट
चिकनाई, चिकनापन।
संज्ञा
[हिं. चिकना+ वट, हट (प्रत्य.)]


चिकनियाँ, चिकनिया
बनाठना, छैल छबीला, शौकीन।
(क) सब हीं ब्रज के लोग चिकनियाँ मेरे भाएँ घास।

(ख) बहुरि गोकु काहे को आवत भावत नवजोबनियाँ। सूरदास प्रभु वाके बस परि अब हरि भये चिकनियाँ - ३८७।

वि.
[हिं. चिकना]


चिकनी
साफ सुथरी।
वि.
[हिं चिकना]


चिकनी
बनी उनी।
वि.
[हिं चिकना]


चिकनी
जिस पर हाथ-पैर फिसले।
वि.
[हिं चिकना]


चिकनी
जिसमें तेल लगा हो।
वि.
[हिं चिकना]


चिकरना
जोर से चीखना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[सं. चीत्कार प्रा. चीक्कार, चिक्कार]


चिकवा
एक रेशमी, कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


चिकार
चीत्कार, चिल्लाहट।
(क) मरत असुर चिकार पारयौ मारयौ नंदकुमार।

(ख) गर्जनि पणव निसान संख हय गय हींस चिकार - १० उ. २।

संज्ञा
[सं. चीत्कार, प्रा. चिक्कार]


चिकारना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. चिकार]


चिकना
चिकना घड़ा :- निर्लज या बेहया।

चिकने घड़े पर पानी पड़ना (न ठहरना) :- अच्छी बात या उपदेश का कुछ असर न होना।

मु.


चिकना
साफ सुथरा, सजा सजाया।
वि.


चिकना
चिकना चुपड़ा :- बना-ठना, छैला।

चुपड़ी (बातें) :- बनावटी स्नेह की मीठी मीठी बातें जो फुसलाने या धोखा देने के लिए की जाय। चिकना मुँह :- (१) सजा-सजाया। (२) धन या पदवाला। चिकने मुँह का ठग :- वह धूर्त जो देखने में भला जान पड़े। चिकने मुँह को चूमना :- धनी-मानी का आदर करना।

मु.


चिकना
चिकनी चुपड़ी या मीठी-मीठी बातें कहने वाला।
वि.


चिकना
स्नेही, प्रेमी।
वि.


चिकना
तेल घी आदि चिकने पदार्थ।
संज्ञा


चिकनाई
चिकनाहट।
चित महिं और कपट अंतर गति ज्यौं फज, नीर खोर चिकनाई - ३३१०।
संज्ञा
[हिं. चिकना+ई (प्रत्य.)]


चिकनाई
सरसता।
संज्ञा
[हिं. चिकना+ई (प्रत्य.)]


चिकनाई
घी तेल जैसे चिकने पदार्थ।
संज्ञा
[हिं. चिकना+ई (प्रत्य.)]


चिकनाना
चिकना करना।
क्रि. स
[हिं. चिकना + ना (प्रत्य.)]


चिकनाना
तेल आदि लगाना।
क्रि. स
[हिं. चिकना + ना (प्रत्य.)]


चिकनाना
साफ-सुथरा करना, सँवारना।
क्रि. स
[हिं. चिकना + ना (प्रत्य.)]


चिकनाना
चिकना होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
तेल आदि लगा होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
मोटा-ताजा होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
चिकना होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
तेल आदि लगा होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
मोटा-ताजा होना।
क्रि. अ.


चिकनाना
स्नेह पूर्ण या प्रेमयुक्त होना।
क्रि. अ.


चिकनापन
चिकनाई, चिकनाहट।
संज्ञा
[हिं चिकना + पन (प्रत्य.)]


चिकारा
सारंगी की तरह का एक बाजा।
संज्ञा
[हिं. चिकार]


चिकारा
एक जंगली जानवर।
संज्ञा
[हिं. चिकार]


चिकित्सक
रोग दूर करने का उपाय करनेवाला, वैद्य।
संज्ञा
[सं]


चिकित्सा
रोग दूर करने की युक्ति या क्रिया।
संज्ञा
[सं]


चिकित्सा
वैद्य का व्यवसाय या कार्य।
संज्ञा
[सं]


चिकित्सालय
वैद्य के बैठने का स्थान, दवाखाना, अस्पताल।
संज्ञा
[सं चिकित्सा + आलय]


चिकिल
कीचड़, पंक।
संज्ञा
[सं.]


चिकुटी
चुटकी।
संज्ञा
[हिं. चिकोटी]


चिकुर, चिकूर
सिर के बाल, केश।
संज्ञा
[सं.]


चिकुर, चिकूर
पर्वत।
संज्ञा
[सं.]


चिखुरन
खेत जोतने पर निकाली हुई घास।
संज्ञा


चिखुरना
खेत जोतते समय घास निकालना।
क्रि. स.


चिखुराई
चिखुरने की क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा


चिखुरी
गिलहरी नायक जंतु।
संज्ञा


चिखौनी
चखने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चीखना]


चिखौनी
स्वाद लेने की वस्तु।
संज्ञा
[हिं. चीखना]


चिचान
बाज पक्षी।
संज्ञा
[सं. सचान]


चिचाना, चिचावना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[अनु. चीची]


चिचिंगा, चिचिंड, चिबिंडा, चिविंडी, चिचेंडा
एक बेज जिसके फज्ञों की तर कारी होती है।
वनकौरा पिंडीके चिचिंडी। सीप पिंडारू कोमल भिंडी - ३६६।
संज्ञा
[से, चिचिंड]


चिचियाना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[अनु. चींची]


चिकुर, चिकूर
रेंगने वाले जंतु, सरीसृप।
संज्ञा
[सं.]


चिकुर, चिकूर
चंचल, पल।
वि.


चिकोटी
चुटकी।
संज्ञा
[हिं. चुटकी]


चिक्कट
मैल, कीट।
संज्ञा
[हिं. चिकना + काट]


चिक्कण, विक्कन
चिकना।
वि.
[सं.]


चिक्कण, विक्कन
सुपारी।
संज्ञा


चिक्कण, विक्कन
हड़, हरें।
संज्ञा


चिक्करना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[सं. चीत्कार]


चिक्कार
चीत्कार।
संज्ञा
[हिं. चिकार]


चिखना
चटपटी चाट।
संज्ञा
[हिं. चखना]


गुदरैन
पढ़ा हुआ पाठ सुनाना।
संज्ञा
[हिं. गुदरना]


गुदरैन
परीक्षा, इम्तहान।
संज्ञा
[हिं. गुदरना]


गुदाना
गोदने का काम कराना या गोदने की प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. गोदना (प्रे.)]


गुदार
गूदेदार, मांसल।
वि.
[हिं. गूदा]


गुदारना
ध्यान न देना।
क्रि. स.
[हिं. गुदरना]


गुदारना
सेवा में उपस्थित करना।
क्रि. स.
[हिं. गुदरना]


गुदारना
बिताना, गुजारना।
क्रि. स.
[हिं. गुदरना]


गुदारा
नाव पर नदी पार करना।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुदारा
नाव की उतराई।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुदारा
निर्वाह
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गृही
यात्री।
संज्ञा
[सं. गृहिन्]


गृहीत
स्वीकृत।
वि.
[सं.]


गृहीत
पकड़ा हुआ।
वि.
[सं.]


गृहय
गृह-गृहस्थी-संबंधी।
वि.
[सं.]


गेंगटा
केकड़ा।
संज्ञा
[सं. कर्कट]


गेड़
ऊख का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[सं. कांड]


गेड़
अन्न रखने का घेरा, घेरा।
संज्ञा
[सं. गोष्ठ]


गेड़ना
हद बाँधना, पतली . दीवार से घेरना।
क्रि. स.
[हिं. गेड़]


गेड़ना
अन्न रखने का घेरा बनाना।
क्रि. स.
[हिं. गेड़]


गेंडली
कुंडल, घेरा, फेंटा।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


चिट्टा

संज्ञा

झूठा बढ़ावा देना।


चिट्ठा
जमा-खर्च या लेनदेन की बही, खाता या लेखा।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठा
लाभ-हानि का लेखा।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठा
सूची।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठा
प्रति सप्ताह था मास की मजदूरी में बटनेवाला धन।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठा
ब्योरा।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठा
कच्चा चिट्ठा :- पूरा पूरा और ठीक ठीक भेद।

कच्चा चिट्ठा खोलना :- भेद को ब्योरे के साथ प्रकट करना।

मु.


चिट्ठी
पत्र, खत।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठी
लिखा हुआ छोटा पुरजा।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठी
आज्ञा पत्र
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिचियाहट
चिल्लाहटे।
संज्ञा
[हिं. चिचियाना]


चिचोड़ना, चिचोरना
खूब दबाकर चूसना।
क्रि. स
[हिं. चिचोड़ना]


चिजारा
राज, कारीगर, मेमार।
संज्ञा


चिट
कपड़े-कागज आदि का छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं.चीड़ना या सं.चीर]


चिट
पुरजा, रुक्का।
संज्ञा
[हिं.चीड़ना या सं.चीर]


चिटकना
सूखने पर जगह जगह फटना या दरकना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चिटकना
चिढ़ना, चिड़चिड़ाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


चिटका
चिता।
संज्ञा
[हिं. चितः]


चिट्टा
सफेद, धवल।
वि.
[सं. सिते, प्रा. चित्त]


चिट्टा
(चमचमाता हुआ) रुपया।
संज्ञा


चिट्ठी
निमंत्रण पत्र।
संज्ञा
[हिं. चिट]


चिट्ठीपत्री
पत्र, खत।
संज्ञा
[हिं. चिट ठी+पत्री]


चिट्ठीपत्री
पत्र व्यवहार, खत-किताबत।
संज्ञा
[हिं. चिट ठी+पत्री]


चिठि
चिट्ठा।
संज्ञा
[हिं. चिट, चिट्ठा]


चिठि
हिसाब को कागज।
संज्ञा
[हिं. चिट, चिट्ठा]


चिठि
नाम की सूची।
संज्ञा
[हिं. चिट, चिट्ठा]


चिड़चिड़ाहट
चिढ़ने या चिड़चिड़ाने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चिड़चिड़ाना+हट]


चिड़वा
चिउड़ा, चुरा।
संज्ञा
[सं. चिविट]


चिड़ा
नर गौरैया।
संज्ञा
[सं. चटक]


चिड़िया
पक्षी।
संज्ञा
[सं. चटक, हिं. चिड़ा]


चिड़िया
चिड़िया का दूध :- अप्राप्य वस्तु।

चिड़िया चोथन (नोचन) :- चारो तरफ का तकाजा या झंझट। चिड़िया फँसना :- किसी मालदार को अपने पक्ष में करना। सोने की चिड़िया :- (१) धनी असामी। (२) सुंदर या प्रिय पात्र।

मु.


चिड़िहार, चिड़िमार
चिड़ियाँ पकड़नेवाला, बहेलिया।
संज्ञा
[हिं. चिड़िया + हार (प्रत्य.)=मारना]


चिढ़
कुढ़न, खीझ।
संज्ञा
[हिं. चिड़चिड़ाना]


चिढ़
चिढ़ निकालना (पकड़ना) :- कुढ़ाना, खिझाना, चिढ़ाने की बात पकड़ना।
मु.


चिढ़ना
कुढ़ना, खीझना, झल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. चिड़चिड़ाना]


चिढ़ना
बुरा मानना।
क्रि. अ.
[हिं. चिड़चिड़ाना]


चिढ़ाना
खिझाना, कुढ़ाना।
क्रि. स.
[हिं. चिढ़ना]


चिढ़ाना
खिझाने की लिए भद्दी नकल बनाना।
क्रि. स.
[हिं. चिढ़ना]


चिढ़ाना
अजित करने के लिए हँसी उड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. चिढ़ना]


चित्
चेतना।
संज्ञा
[सं.]


चित्
चित्तवृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


निश्चयवाचक
बीननेवाला।
संज्ञा


निश्चयवाचक
अग्नि
संज्ञा


निश्चयवाचक
एक निश्चयवाचक प्रत्यय।
प्रत्य.


चित
एकत्र।
वि.
[सं.]


चित
ढका हुआ।
वि.
[सं.]


चित
मन, जी, अंतःकरण।
संज्ञा
[सं. चित्त]


चित
चित उचटना :- जी न लगना।

चित करना :- इच्छा होना। चित कीन्हो :- इच्छा हुई। उ. - द्वादस बन अवलोक मधुपुरी तीरथ कौं चित कीन्हौ-सारा ८२७। चित चढ़ना :- ध्यान रहना, याद आना। चित चुराना :- मन हरना। चित चोरै :- मन हरता या मोहित करता है। उ. - रमकत झमकत जनकसुता सँग हाव - भाव चित चोरैसारा. ३१०। चितहिं चुरावति :- मन हरती है। उ. - नैन सैन दै चितहिं चुरावति यहै मंत्र टोना सिर डारि। चित देना :- ध्यान देना, मन लगना। चित दे :- ध्यान देकर। उ. - (क) चित दै सुनौ हमारी बात। (ख) बिनती सुनौ दीन की चित दै कैसे तुव गुन गावै - १ - ४२। चित धरना :- (१) मन लगाना। (२) मन में लाना। चित धार (सुनौ) :- ध्यान से (सुनो)। उ. - कहौं सो कथा सुनौ चित धार। चित न धरौ :- ध्यान मत दो, मन में न लाओ। उ. - हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ - १ - २२०। चित धरि राखे :- स्मरण रखे, ध्यान में रखे। उ. - जब वह बिप्र पढ़ावै कुछ कुछ सुन कै चित धरि राखै - सारा. ११०। चित पर चढ़ना :- (१) बार बार ध्यान में आना। (२) याद होना। चित बँटना :- ध्यान इधर - उधर होना। चित बँटाना :- ध्यान एक ओर न रहने देना। चित में बैठना :- जी में पैठ जाना, मन में दृढ़ होना। चित बैठयौ :- हृदय में (यह विचार) दृढ़ हो गया है। उ. - अब हमरे चित बैठ्यो यह पद होनी होउ सो होउ। चित में आना (होना, में होना) :- इच्छा होना, जो चाहना। चित में आई :- इच्छा हुई, जी चाहा। उ. - खेलत खेलत चित में आई सृष्टि करन विस्तार - सारा, ५। चित होत :- ईच्छा होती है। उ. - यह चित होत जाउँ मैं अबही यहाँ नहीं मन लागत। चित न रहना :- जी उचाट होना। चित न रहै :- जी घबराता है, मन नहीं लगता। उ. - तब ही तैं ब्याकुल भइ डोलति चित न रहै कितनों समझाऊँ - १६५४। चित लगना :- (१) जी न घबराना। (२) ध्यान बना रहना। चित लाग्यौ :- ध्यान बना रहता है। उ. - (क) गुरु दच्छिना देन जब लागे गुरुपत्नीं यह मौंग्यौ। बालक बहेउ सिंधु में हमरो सो नित प्रति चित लाग्यौ - सारा, ५३६। (ख) उफनत तक्र चहूँ दिति चितवति चित लाग्यौ नंदलालहिं - ११८१। चित लेना :- जी चाहना। चित से उतरना :- (१) भूल जाना। (२) प्रेम या आदर का पात्र न रहना। चित से नहिं उतरत :- ध्यान नहीं भूलता, याद बनी रहती है। उ. - सूर स्याम चित तें नहिं उतरत वह बन कुज थली। चित से न टलना :- न भूलना। चित तें टरत नहीं ध्यान से नहीं हटती, कभी भूलती नहीं, बराबर याद आती है। उ. - सूर चित तैं टरत नाहीं राधिका की प्रीति।

मु.


चित
दृष्टि, नजर।
संज्ञा
[हिं. चितवन]


चित
पीठ के बल गिरा या पडा हुआ।
पीठ के बल गिरा या पड़ा हुआ।
वि.
[सं. चित = ढेर किया हुआ]


चित
चित करना :- कुश्ती में हराना।

चारो खाने चित :- (१). हाथ पैर फैलाये पीठ के बल गिरा हुआ। (२) हक्का - बक्का। चित् होना :- बेहोश होना।

मु.


चित
पीठ के बल।
क्रि. वि.


चितई
देखा, ताका, निहारी।
देखी जाइ मथति दधि ठाढ़ी, आपु लगे खेलन द्वारे पर। फिरि चितई, हरि दृष्टि गए परि, बोलि लए हरुऐ सूनैं घर - १० - ३०१।
क्रि. स.
[सं. चेतना, हिं. चितवना]


चितउन
दृष्टि।
संज्ञा
[सं. चितवन]


चितउर
चित्तौर नगर।
संज्ञा
[हि. चित्तौर]


चितए
देखे, देखने लगे।
(कसू' रघुराइ चिते हनुमान दिसि, आइ तन तुरत ही सीस नाया - ९ - १०६।

(ख) देखत नारि चित्र सी ढाढ़ी चितए कुँ अर कन्हाई - २५३३।

क्रि. स.
[हिं. तिवना]


चितकबरा
दाग-धबीला।
वि.
[सं. चित्र+कर्बुर]


चितकूट
एक प्रसिद्ध पर्वत।
संज्ञा
[से, चित्रकूट]


चितगुपति
एक यमराज जो पाप-पुण्य का लेखा रखते हैं।
संज्ञा
[सं. चित्रगुप्त]


चितचिता, चितचेता
मनचाहा, इच्छित, अभिलाषत।
वि.
[हिं. चित्त + चौता]


चितचोर
मन-भावना, प्रिय पात्र।
सूरदास चातक भई गोपी कहाँ गए चितचोर - ३०८४।
संज्ञा
[हिं. चित + चोर]


चितभंग
ध्यान न लगना, उदासी।
(क) कमल खंजन मीन मधुकर होत है चितभंग।

(ख) मेरौ मन हरि चितवन अरुझानौ। -। सूरदास चितभंग होत क्यों जो जिहिं रूप समानौ - २२८५।

संज्ञा
[सं. चित+भगं]


चितभंग
होश ठिकाने न रहना, भौचक्कापन, मतिभ्रम।
संज्ञा
[सं. चित+भगं]


चितयो
देखा, दृष्टि डाली।
क्रि. स.
[चेतना]


चितरन
चित्रित करना।
संज्ञा
[हिं. चितरना]


चितरनहार
चित्रण करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. चितरना + हार (प्रत्य.)]


चितरना
चित्रित करना।
क्रि. स.
[सं. चित्र]


चितला
चितकबरा, रंग-बिरंगी।
वि.
[सं. चित्रल]


चितवत
देखता (है), अवलोक कर, देखते देखते।
(क) सिर पर मीच, नीच नहिं चितवत, आयु घटति ज्यौं अंजुलि पानी१ - १४९।

(ख) ज्यों चितवत ससि ओर चकोरी, देखत ही सुख मान - १ - १६९।

क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चितवति
देखती है, ताकती है।
कंधनि बाँह धरे चितवति - २५३५।
क्रि. स.
[हिं. चितवना]


चिता
श्मशान, मरघट।
संज्ञा
[सं.]


चिताना
सचेत या सावधान करना, होशियार करना।
क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चिताना
याद या सुध दिलाना।
क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चिताना
ज्ञानोपदेश करना।
क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चिताना
(आग) सुलगाना या जलाना।
क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चिताभूमि
श्मशान।
संज्ञा
[सं.]


चितारी
चित्र बनानेवाला।
संज्ञा
[हिं. चितेरा]


चितावनी
सतर्क, सावधान, या होशियार करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं चिताना]


चिति
चिता।
संज्ञा
[सं .]


चिति
समूह।
संज्ञा
[सं .]


चितवन
ताकने का भाव या ढंग, दृष्टि, कटाक्ष।
(क) चितवन रोके हूँ ने रही - १२७०।

(ख) मेरौ मन हरि चितवन अरुझानौ - २२८५।

संज्ञा
[हिं. चेतना]


चितवन
चितवन चढ़ाना :- क्रोध से घूरना।
मु.


चितवन
देखना, निहारना।
क्रि. स.


चितवन
चितवन देत-देखने देना, निगाह डालने देना।
नाहिं चितवन देत सुत - तिय नाम नौका ओर - १ - ९९।
प्र.


चितवन
देखना, ताकना।
क्रि. स.
[हिं. चेतना]


चितवनि, चितवनियाँ
देखने का ढंग, दृष्टि, कटाक्ष।
(क) अंजन रंजित नैन चितवनि चित चोरे, मुख सोभा पर वा अमित असम - सर - १० - १५१।

(ख) बाल सुभाव बिलोल बिलोचन, चोरतिचितहिं चारु चितवनियाँ - १० - १०६।

संज्ञा
[हिं. चितवन]


चितवाना
दिखाना।
क्रि. स.
[हिं. चितवना का प्रे.]


चितवै
देखता है, दृष्टि डालता है।
चितवै कहा पानि - पल्लव पुट, प्रान प्रहारौं तेरो - ९ - १३२।
क्रि. स.
[हिं. चितवना]


चितवौं
देखता हूँ, ताकता हूँ, अवलोकता हूँ।
हौं पतित अपराध। पूरन, भरयौ कर्म - विकार। काम - क्रोध अरु लोभ चितवौं, नाथ तुमहिं विसार - १ - १२६।
क्रि. स.
[हिं. चेतना, चितवन]


चिता
शव-दाह के लिए बिछाथी गयी लकड़ियों को ढेर।
(१) शव - दाह के लिए बिछायी गयी लकड़ियों को ढेर।
संज्ञा
[सं.]


चिति
चुनने की क्रिया चुनाई।
संज्ञा
[सं .]


चिति
ईंटों की जुड़ाई।
संज्ञा
[सं .]


चिनिका
करधनी, मेखला।
संज्ञा
[सं .]


चिती
वह कौड़ी जिसकी पीठ चिपटी होती है। और जो फेकने पर चित अधिक पड़ती है।
अंतर्यामी वहौ न जानत जो मो उरहिं बिती। ज्यों जुआरि रस बींधि हारि गथ सोचत पटकि चिती - १० उ. - २०३।
संज्ञा
[हिं. चित्ती या चित = पीठ के बल पड़ा हुआ]


चितु
मन, जी. दिल।
संज्ञा
[सं. चित्त]


चितेरा
चित्र बनानेवाला।
संज्ञा
[सं चित्रकार]


चितेरिन, चितेरी
चित्र बनानेवाली।
संज्ञा
[हिं. चितेरा]


चितेरिन, चितेरी
चित्रकार की स्त्री।
संज्ञा
[हिं. चितेरा]


चितेरे, चितरै, चतेला
चित्रकार।
(क), राधा ये ढंग हैं री तेरे, वैस हाल मथत दधि कीन्हे, हरि मनु लिखे चितेरे - ७१८।

(ख) चकित भई देखें ढिग ठाढ़ी। मनौ चितेरौं लिखि लिखि काढ़ी - ३९१।

संज्ञा
[हिं चितेरा]


चितै
देखकर, दृष्टि डाल कर।
(क) नैंकु वितै, मुमक्याइ कै, सबकौ मन हरि लीन्हो (हो) - १ - ४४।

(ख) चितै रघुनाथ बदन की ओर - ९ - २३। (ग) अति कोमल। तन चितै स्याम कौ बार - बार पछितात - १० - ८१।

क्रि. स.
[हिं. चेतना, चितवना]


गेंडा
ईख का ऊपरी भाग, अगौरा।
संज्ञा
[मं. कांड]


गेंडा
गन्ना, ईखे।
संज्ञा
[मं. कांड]


गेंडु, गेंडुक
गेंद, कंदुक।
संज्ञा
[सं.]


गेंडुआ
तकिया।
संज्ञा
[सं. गंडक]


गेंडुआ
गेंद।
संज्ञा
[सं. गंडक]


गेंडुरी, गेंडुली
रस्सी का मेंडरा, इँडरी, बिड़वा।
काहू की छीनत हौ गेडुरी काहू की फोरत हो गगरी - ८५३।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गेंडुरी, गेंडुली
फेंटा, -कुंडली, घेरा।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गेंडुरी, गेंडुली
साँप की कुंडलाकार बैठक।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गेंद
रबर, चमड़े आदि का छोटा-गोला जिससे लड़के खेलते हैं, कंदुक।
लै कर गेंद गये हैं खेलन लरिकन संग कन्हाई - सा. १०२।
संज्ञा
[सं. कंदुक]


गेंदई
गेंदे के फूल की तरह पीला।
वि.
[हिं. गेंदा]


चित्रज, चित्रभू
कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


चित्तरसारी
चित्रसाला।
संज्ञा
[हिं. चित्रशाला]


चित्तवान
उदार चित्तवाला।
वि.
[सं.]


चित्त विक्षेप
चित्त की चंचलता।
संज्ञा
[सं.]


चित्तविद
चित्त की बात जाननेवाला।
संज्ञा
[सं.]


चित्तवृत्ति
चित्त की गति या अवस्था।
संज्ञा
[सं.]


चित्ति
ख्याति।
संज्ञा
[सं.]


चित्ति
कर्म।
संज्ञा
[सं.]


चित्ती
छोटा दाग या धब्बा।
संज्ञा
[सं. चित्र, प्रा. चित्त]


चित्ती
लाल की मादा।
संज्ञा
[सं. चित्र, प्रा. चित्त]


चितै
सोच-समझकर, विचार करके।
चिंता मानि, चितै अंतरगति, नाग - लोक कौं धाए - १ - २९।
क्रि. स.
[हिं. चेतना, चितवना]


चितै
ध्यान या स्मरण करके।
तब से कर तप को निकसे चितै कमलदल नैन - सारा. ६६।
क्रि. स.
[हिं. चेतना, चितवना]


चितैबो
देखना, तकना, निहारना, दृष्टि मिलाना।
चितैबौ छाँड़ि दै री राधा। हिल - मिल खेलि स्यामसुंदर सौं, करति काम कौ बाधा - ८२०।
संज्ञा
[हिं. चितवना]


चितौन
दृष्टि, कटाक्ष।
संज्ञा
[हिं. चितवन]


चितौना
देखना, ताकना।
क्रि. स.
[हिं. वितवना]


चितौनि
दृष्टि, कटाक्ष।
संज्ञा
[हिं. चितवन]


चितौनी
सावधान करने या चिताने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चेतावनी]


चित्कार
चिल्लाहट।
संज्ञा
[हिं. चीत्कार]


चित
अंत:करण का एक भेद या वृत्ति।

वह मानसिक शक्ति जिससे धारणा, भावना आदि की जाती है; जी, मन।

संज्ञा
[सं.]


चित
चित्त उचटना :- जी न लगना।

चित करना :- जी चाहना। चित्त चढ़ना (पर चढ़ना) :- (१) मन में बसना। (२) याद पड़ना। चित्त चुराना :- मन मोहना। चित्त चुराइ :- मुग्ध करके, मोहित करके, आकर्षित करके। उ. - हरे खल - बल दनुजमानव सुररान सीस चढ़ाई। रचि - बिरुचि - मुख - भौंहछबि, लै चलति चित्त बुराइ - १:५६। चित्त चोराए :- मन हर लिया। उ: - सूर नगर नर नारि के मन चित्त चोराए - २५६५। चित्त देना :- गौर करना, ध्यान देना। चित्त धरना :- (१) ध्यान देना। (२) मन में लाना। चित्त बँटना :- ध्यान इधर-उधर होना। चित्त बँटाना :- ध्यान इधर-उधर करना। चित्त में धँसना (जमना, बैठना) :- मन में दृढ़ होना। चित्त होना (में होना) :- जी चाहना। चित्त लगना :- (१) जी न ऊबना। (२) प्रेम होना। चित्त से उतरना :- (१) भूल जाना। (२) प्रेम या आदर का पात्र न रहना। चित्त से न टलना :- बराबर ध्यान बना रहना।

मु.


चित्रक
चीते का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


चित्रक
चीता, बाघ।
संज्ञा
[सं.]


चित्रक
बलवान।
संज्ञा
[सं.]


चित्रक
चित्रकार।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकर
चित्र बनानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकर्मी
चित्र बनानेवाला।
संज्ञा
[सं. चित्रकर्मिन्]


चित्रकर्मी
विचित्र या अद्भुत कार्य करनेवाला।
संज्ञा
[सं. चित्रकर्मिन्]


चित्रकला
चित्र बनाने की विद्या।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकाय
चीता।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकार
चित्र बनानेवाला, चितेरा।
संज्ञा
[सं.]


चित्ती
चित्तीदार साँप, चीतल
संज्ञा
[सं. चित्र, प्रा. चित्त]


चित्ती
कौड़ी जिसकी पीठ चिपटी हो, टैयाँ।
संज्ञा
[हिं. चित = पीठ के बल पड़ा हुआ]


चित्तौर
एक प्राचीन नगर जो उदयपुरी महाराणाओं की राजधानी थी।
संज्ञा
[सं. चित्रकूर, प्रा. चित्तऊड़, चितउड़]


चित्य
चुनने लायक।
वि.
[सं.]


चित्य
चिता-संबंधी।
वि.
[सं.]


चित्य
चिता।
संज्ञा


चित्य
अग्नि।
संज्ञा


चित्र
चंदन अथवा अन्य किसी सुगंधित पदार्थ या भस्म से माथे, छाती या बाहु आदि अंगों पर बनाये हुए चिह्न।
गुहि गुंजा घसि बनमुद्रा, अंगनि चित्र ठए - १० - २४।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
विविध रंगों के मेल से बनायी हुई आकृतियाँ, तसवीर।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
काव्य का एक अंग जिसमें व्यंग्य की प्रधानता रहती है।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
एक अलंकार जिसमें पदों के अक्षर इस क्रम से लिखे जाते हैं कि रथ, कमल अदि के आकार बन जायँ।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
आकाश।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
चित्रगुप्त।
संज्ञा
[सं.]


चित्र
अद्‍भुत, विचित्र।
वि.


चित्र
चितकबरा, रंगबिरंगा।
वि.


चित्र
अनेक प्रकार का।
वि.


चित्र
चित्र के समान ठीक, दुरुस्त।
वि.
[सं.]


चित्रकंठ
कबूतर, परेवा, कपोत।
संज्ञा
[सं.]


चित्रक
तिलक।
संज्ञा
[सं.]


चित्रना
चित्रित करना, चित्र बनाना।
क्रि. स.
[सं. चित्र+ना (प्रत्य.)]


चित्रना
रंग भरना।
क्रि. स.
[सं. चित्र+ना (प्रत्य.)]


चित्रपट
चित्र बनाने का कपड़ा, कागज आदि आधार।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपट
वह वस्त्र जिस पर चित्र बने हों।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपटी
छोटा चित्रपट।
संज्ञा
[सं. चित्रपट]


चित्रपत्र
आँख की पुतली का पिछला भाग जिसपर प्रकाश की किरणें पड़ने पर पदाथों के रूप दिखायी देते हैं।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपत्र
रंग-बिरंगे या विचित्र पंखवाला।
वि.


चित्रपदा
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपदा
मैना, सारिका।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपदा
छुईमुई की लता।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपिच्छक
मयूर, मोर।
संज्ञा
[सं.]


चित्रपुंख
बाण, तीर।
संज्ञा
[सं.]


चित्रमति
अद्भुत बुद्धिवाला।
वि.
[सं. चित्र+मति]


चित्ररथ
सूर्य।
संज्ञा
[सं .]


चित्ररथ
एक गंधर्व।
संज्ञा
[सं .]


चित्ररेखा
वाणासुर की कन्या ऊषा की सहेली जो चित्रकला में बहुत निपुण थी।
कुँअर तन स्याम मानो काम है दूसरो सपन में देखि ऊषा लोभाई। चित्ररेखा सकल जगत के नपन की छिन में मुरति तब लिखि देखाई - १० - उ. ३४।
संज्ञा
[सं .]


चित्रल
चितकबरा, रंगबिरंगा।
वि.
[सं .]


चित्रलिखन
सुंदर लिखावट।
संज्ञा
[सं .]


चित्रलिखन
चित्र बनाने का कार्य।
संज्ञा
[सं .]


चित्रलेखनी
चित्र बनाने की कूची।
संज्ञा
[सं .]


चित्रकारि, चित्रकारी
चित्र, चित्र बनाने की कला।
ऐसे कहैं नर नारि बिना भीति चित्रकारि काहे को देखें मैं कान्ह कहा कहौ सहिए - १२७३।
संज्ञा
[हिं. चित्रकार+ई (प्रत्य.)]


चित्रकारि, चित्रकारी
चित्र बनाने का व्यवसाय।
संज्ञा
[हिं. चित्रकार+ई (प्रत्य.)]


चित्रकाव्य
काव्य का एक ढंग जिसमें अक्षरों को ऐसे क्रम से रखते हैं कि कमल, रथ आदि के चित्र बन जायें।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकूट
बाँदा जिले का एक पर्वत जहाँ वनवास-काल में राम-सीता ने बहुत समय तक वास किया था।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकूट
हिमालय की एक श्रृंग।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकेतु
एक राजा जिसके पुत्र को उसकी छोटी रानियों ने जहर देकर मार डाला और पुत्रशोक से जिसे दुखी देख नारद ने मंत्रोपदेश दिया था।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकेतु
वइ जो चित्रित पताका लिये हो।
संज्ञा
[सं.]


चित्रकेतु
लक्ष्मण का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रगुप्त
चौदह यमराजों में एक जो प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा रखते हैं।
संज्ञा
[सं.]


चित्रण
चित्र या दृश्य अंकित करना, चित्रित करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


चित्रगद
सत्यवती और शांतनु का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रगद
एक गंधर्व।
संज्ञा
[सं.]


चित्रांगदा
चित्रवाहन की कन्या जो अर्जुन को ब्याही थी।
संज्ञा
[सं.]


चित्रांगदा
रावण की एक पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
नक्षत्र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
खीरा ककड़ी।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
एक अप्सरा।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


चित्रा
एक वर्णवृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


चित्रशाला, चित्रसाला
चित्रों के संग्रह का स्थान।
संज्ञा
[सं. चित्र+शाला]


चित्रशाला, चित्रसाला
चित्रकला सिखाने का स्थान।
संज्ञा
[सं. चित्र+शाला]


चित्रसारी
वह स्थान जहाँ चित्रों का संग्रह हो अथवा दीवालों पर चित्र बने हों।
संज्ञा
[सं.]


चित्रसारी
सजा हुआ भवन, विलास भवन, रंगमहत्व।
कबहुँ क रत्न महल चित्रसारी सरद निसा उजिंयारी। बैठे जनकसुता सँग बिलसत मधर केलि मनु हारी - सारा, ३१२।
संज्ञा
[सं.]


चित्रसेन
धृतराष्ट्र का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रसेन
एक गंधर्व।
संज्ञा
[सं.]


चित्रसेन
परीक्षित का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रस्थ
चित्र में अंकित किया हुआ।
वि.
[सं.]


चित्रस्थ
चित्र में अंकित व्यक्ति या पात्र के समान।
वि.
[सं.]


चित्रांग
जिसके अंग पर चित्तियाँ हों।
संज्ञा
[सं.]


गेंदई
गेंदे के फूल की तरह पीला रंग।
संज्ञा


गेंदवा
तकिया।
संज्ञा
[सं. गेंडुक]


गेंदा
एक पौधा जिसमें पीले फूल लगते हैं।
संज्ञा
[हिं. गेंद]


गेंदा
एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गेंद]


गेंदुआ
तकिया।
संज्ञा
[सं. गेंदुक]


गेंदुआ
गेंद।
संज्ञा
[सं. गेंदुक]


गेंदुकि
गेंद, कंदुक।
(क) कर राजति गेंदुकि नौलासी - २४४१।

(ख) फूलन के गेंदुकि नवला सजि कनक लकुटिया हाथ - २५०२।

संज्ञा
[सं. कंदुक]


गेंदुवा
गोल तकिया।
संज्ञा
[सं. गेंडुक]


गे
गये।
(क) तैसेहिं सूर बहुत उपदेसैं सुनि सुनि गे कै बार - १ - ८४।

(ख) बाचर खचर हार गे बनचर - सा, ११५।

क्रि. अ. बहु.
[हिं. गया]


गेय
गाने के योग्य।
वि.
[सं.]


चित्रलेखा
एक वर्णवृत्त।
संज्ञा
[सं .]


चित्रलेखा
बाणासुर की कन्या ऊषा की सखी।
संज्ञा
[सं .]


चित्रलेखा
एक अप्सरा।
संज्ञा
[सं .]


चित्रलेखा
चित्र बनाने की कैंची।
संज्ञा
[सं .]


चित्रविचित्र
रंगबिरंगा।
वि.
[सं .]


चित्रविचित्र
बेल बूटे या नक्काशीदार।
वि.
[सं .]


चित्रविद्या
चित्र बनाने की कला।
संज्ञा
[सं .]


चित्रशाला, चित्रसाला
चित्र बनने बिकने का स्थान।
संज्ञा
[सं. चित्र+शाला]


चित्रशाला, चित्रसाला
चित्रों के संग्रह का स्थान।
संज्ञा
[सं. चित्र+शाला]


चित्रशाला, चित्रसाला
चित्र बनने बिकने का स्थान।
संज्ञा
[सं. चित्र+शाला]


चित्रा
एक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


चित्राक्ष
विचित्र या सुंदर नेत्रवाला। |
वि.
[सं.]


चित्राधार
चित्र-संग्रह। चित्रपट।
संज्ञा
[सं.]


चित्रित
चित्रयुक्त, जिस पर चित्र बने हों।
चित्रित बाँह, पहुँचिया पहुँचे, साथ मुरलिया बाजे - ४५१।
वि.
[सं. चित्र]


चित्रित
चित्र द्वारा दिखाया हुआ।
वि.
[सं. चित्र]


चित्रित
सांगोपांग वर्णन से युक्त।
वि.
[सं. चित्र]


चित्रित
जिसपर चित्तियाँ पड़ी हों।
वि.
[सं. चित्र]


चित्रे
चित्र बनाये, चित्रित किये।
बेनी लसति क छबि ऐसी महलन चित्रे उर्ग - २५६२।
क्रि. स.
[सं. चित्र]


चित्रश
चित्रा नक्षत्र का पति र।
संज्ञा
[सं.]


चित्रोक्ति
वह बात जो अलंकृत भाषा में कही जाय।
संज्ञा
[सं. चित्र + उक्ति]


चित्रोत्तर
एक अलंकार जिसमें प्रश्न में ही उत्तर हो अथवा कई प्रश्नों का एक ही उत्तर हो।
संज्ञा
[सं.]


चिथड़ा
फटा-पुराना कपड़ा।
संज्ञा
[सं. चर्ण]


चिथाड़ना
चीरना, फाड़ना।
क्रि. स.
[हिं. चिथड़ा]


चिथाड़ना
लज्जित करना, नीचा दिखाना।
क्रि. स.
[हिं. चिथड़ा]


चिदात्मा
चैतन्यस्वरूप ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


चिदानंद
चैतन्य अनदमय ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


चिदाभास
हृदय पर ब्रह्म का आभास।
संज्ञा
[सं.]


चिद्रूप
चैतन्य-स्वरूप ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


चिद्विलास
चैतन्यस्वरूप ब्रह्म की माया।
संज्ञा
[सं.]


चिद्विलास
शंकराचार्य का एक शिष्य।
संज्ञा
[सं.]


चिनक, चिनग
जलन, पीड़ा।
संज्ञा
[हिं. चिनगी]


चिनगारी, चिनगी
दहकते कोयले का टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. चूण, हिं. चुन+ अंगार]


चिनगारी, चिनगी
दहकती आग से उड़नेवाले कण।
संज्ञा
[सं. चूण, हिं. चुन+ अंगार]


चिनगारी, चिनगी
आँख से चिनगारी छूटना :- क्रोध से आँख लाल होना।

चिनगारी छोड़ना (डालना) :- झगड़े वाली बात करना।

मु.


चिनना
दीवार खड़ी करना।
क्रि. अ.
[हिं. चुनना]


चिनाना
बिनवाना।
क्रि. स.
[हिं. सुनाना]


चिनाना
ईंट आदि की जोड़ाई करना।
क्रि. स.
[हिं. सुनाना]


चिनाब
पंजाब की एक नदी जिसका प्राचीन नाम चन्द्रभागा था।
संज्ञा
[सं. चंद्रभाग]


चिनार
जान-पहचान।
संज्ञा
[हिं. चिन्हार]


चिन्मये
ज्ञानमय।
वि.
[सं.]


चिन्हौरी
पह चानने का लक्षण, पहचान, संकेत का नाम।
अपनी गाई ग्वाले सब प्रानि करौ इकठौरी। धौरी, धूमरि, राती, रौंछी, बोल बुलाइ चिन्हौरी ४४५।
संज्ञा
[सं. चिन्ह, दिं. चिन्हारी]


चिपकना
ल सीली वस्तु से जुड़ना या सटना।
क्रि. अ.
[अनु, चिपचिर]


चिपकना
लिपटना।
क्रि. अ.
[अनु, चिपचिर]


चिपकना
किसी व्यवसाय या काम में लगना।
क्रि. अ.
[अनु, चिपचिर]


चिपकाना
काम-धंधे या व्यापार में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. चिकना]


चिपचिप
लसीली वस्तु छूने से होने वाला शब्द या अनुभव।
संज्ञा
[अनु.]


चिपचिपा
लसदार।
वि.
[अनु, चिपचिपा]


चिपचिपाना
लसदार या चिपचिपा मालूम होना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपचिप]


चिपचिपाहट
चिपचिपाने का भाव, लसीलापन, लस।
संज्ञा
[हिं. चिपचिपा]


चिपटना
सटनी, चिपकना।
क्रि. अ.
[सं. चिपिट - चिपटा]


चिन्मये
परब्रह्म, परमेश्वर।
संज्ञा


चिन्ह
निशान, संकेत, लक्षण।
मेचक अधर निमेष पिक रुचि सों चिह्न देखि तुम्हारे - २०८८।
संज्ञा
[सं. चिह्न]


चिन्हवाना, चिन्हाना
पहचान करा देना, पहचनवाना।
किं. स.
[हिं. चीन्हना का प्रे.]


चिन्हानी
चीन्हने की वस्तु, पहचान, लक्षण।
संज्ञा
[सं. चिन्ह]


चिन्हानी
स्मारक, यादगार।
संज्ञा
[सं. चिन्ह]


चिन्हानी
रेखा, धारी।
संज्ञा
[सं. चिन्ह]


चिन्हार
जान पहचान का, जिससे जान-पहचान हो, परिचितं।
वि.
[हिं. चिन्ह]


चिन्हारा
जान-पहचान, भेट मुलाकात।
सोच लाग्यौ करन, यई धौं जान की, कै कोऊ और, मोहिं नहिं चिन्हारा - ६ - ७६।
संज्ञा
[सं. चिन्ह]


चिन्हारी
जान-पहचान।
संज्ञा
[हिं. चिन्ह]


चिन्हित
चिह्न लगाया हुआ।
वि.
[सं. चिन्हित]


चिपटना
लिपटना, चिमटना।
क्रि. अ.
[सं. चिपिट - चिपटा]


चिपटा
दबा या धंसा हुआ।
वि.
[सं. चिपिट]


चिढ़ाना
सटाना, जोड़ना।
क्रि. स.
[ईि, चिपटना]


चिढ़ाना
लिपटाना, आलिंगन करना।
क्रि. स.
[ईि, चिपटना]


चिपड़ी, चिपरी
उपली।
संज्ञा
[हिं. चिप्पड़]


चिपिट
चिपटा, चपटा।
वि.
[सं.]


चिपिट
चिउड़ा, चिड़वा।
संज्ञा


चिपिट
वह मनुष्य जिसकी नाक चपटी हों।
संज्ञा


चिपिट
दृष्टि की चकपकाहट।
संज्ञा


चिप्पड़
छोटा टुकड़ा। लकड़ी की सूखी पपड़ी।
संज्ञा
[सं. चिपिट]


चिप्पड़
ऊपरी छाल।
संज्ञा
[सं. चिपिट]


चिप्पिका
एक रात्रि जंतु।
संज्ञा
[सं.]


चिप्पिका
एक चिड़िया।
बाँसा, बटेर, लव और सिचान। धूती चिपिका चटक भान।
संज्ञा
[सं.]


चिप्पा
छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. चिप्पड़]


चिप्पा
उपली।
संज्ञा
[हिं. चिप्पड़]


चिप्पा
तौलने का एक बाँट।
संज्ञा
[हिं. चिप्पड़]


चिबिल्ला
चंवल, चपल, शोख।
वि.
[हिं. बिलबिला]


चिबू, चिबुक
ठुड्डी, ठोड़ी।
संज्ञा
[सं. चिबुक]


चिमटना
सट जाना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपटना]


चिमटना
लिपटना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपटना]


चिरंटी
सयानी लड़की जो पिता के घर रहे।
संज्ञा
[सं.]


चिरंटी
युवती।
संज्ञा
[सं.]


चिरंतन
बहुत पुराना, पुरातन।
वि.
[सं.]


चिरं
बहुत दिनों का |
वि.
[सं.]


चिरं
अधिक समय तक।
सूरदास चिर जीवहु जुग जुग दुष्ट दले दोउ नंददुलारे२५६६।

(ख)कबहुँक कुल - देवता मनावति, चिर जीवहु मेरों के वर कन्हैया - १० - ११५। (ग) चिर जीवहु जसुदा कौ नंदन, सूरदास कौं तरनी - १० - १२३। (घ) देत असीस सूर, चिरजीवौ रामचंद्र रनधीर ६ - २८। (च) चिरजीवी सुकुमारं पवन - सुत, गहति - दीन ह्व पाइ - ६ - ८३।

क्रि. वि.


चिरई
चिड़िया, पक्षी।
संज्ञा
[सं. चटक]


चिरकाल
बहुत समय।
संज्ञा
[सं.]


चिरकालिक, चिरकालीन
पुराना।
वि.
[सं.]


चिरकूट
चिथड़ा।
संज्ञा
[सं. चिर+कुट्ट]


चिरचना
चिड़चिड़ाना, क्रुद्ध होना।
क्रि.अ


चिमटना
गुथना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपटना]


चिमटना
पीछा न छोड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. चिपटना]


चिमटा
लोहे पीतल की संसी।
संज्ञा
[हिं.चिमटना]


चिमटाना
चिपकाना, सटाना, लसाना।
क्रि. स.
[हिं. चिमटना]


चिमटाना
लिपटाना।
क्रि. स.
[हिं. चिमटना]


चिमटी
छोटा चिमटा।
संज्ञा
[ईि, चिमटा]


चिमड़ा
चीमड़।
वि.
[हिं. चमड़]


चिर जीव
बहुत दिनों.तक जीवित रहनेवाला चिरजीवी।
(क) जब लगि जिय घट - अंतर मेरै, को सरवरि करि पावै ? चिरंजीव तौलौं दुरजोधन, जियत न प करयौ अवै - १ - २७५।

(ख) चिरंजीव रहौ सूर नंदसुत जीजत मुख चितए - ३१४१।

वि.
[हिं. चिर + जो ना]


चिरंजीवी
बहुत दिन तक जीनेवाला।
वि.
[हिं. चिरजीवी]


चिरंजीवी
अनर।
वि.
[हिं. चिरजीवी]


गेरता
गिराते हैं, नीचे डालते हैं।
क्रि. स.
[हिं. गेरना = गिराना]


गेरता
ढालते हैं, उँडेलते हैं, मूँदते हैं।
बारंबार जगावति माता, लोचन खोलि पलक पुनि गेरत - ४०५।
क्रि. स.
[हिं. गेरना = गिराना]


गेरना
गिराना।
क्रि. स.
[सं. गलन या गिरण]


गेरना
उँडेलना।डालना।
क्रि. स.
[सं. गलन या गिरण]


गेरना
(सुरमा आदि) डालना।
क्रि. स.
[सं. गलन या गिरण]


गेरना
घूमना, परिक्रमा करना।
क्रि. अ.
[हिं. घेरना]


गेरवाँ
पशुओं के गले पर लिपटा हुआ रस्सी का भाग।
संज्ञा
[हिं. गेराँव]


गेरुआ
गेरू के मटमैले लाल रंग का।
वि.
[हिं. गेरू + अ (प्रत्य.)]


गेरुआ
गेरू में रंगा हुआ, जोगिया, भगवा।
वि.
[हिं. गेरू + अ (प्रत्य.)]


गेरुआ
एक कीड़ा।
संज्ञा


चिराक, चिराग
चिराग गुल होना :- (१) दीपक बुझना।

(२) रौनक न रहना। (३) वंश का नाश होना। चिराग जले :- संध्या समय। चिराग ठंडा करना :- दीपक बुझाना। चिराग तले अँधेरा :- (१) ऐसे स्थान पर बुराई होना जहाँ उसे रोकने का प्रबंध हो। (२) ऐसे व्यक्ति द्वारा बुराई होना जो उसे रोकने पर नियुक्त हो।

मु.


चिरातन
पुराना, पुरातन।
वि.
[सं. चिरंतन]


चिरातन
जीर्ण।
हम तौ तबही हैं जोग लियौ। पहिरि मेखला चीर चिरातन पुनि पुनि फेरि सिआए - ३१२५।
वि.
[सं. चिरंतन]


चिराना
फड़वाना।
क्रि. स.
[हिं. चीरना]


चिराना
पुराना।
वि.
[हिं. चिरातन]


चिराना
जीर्ण।
वि.
[हिं. चिरातन]


चिरायँध
मांस आदि के जलने की दुर्गंध।
संज्ञा
[सं. चर्म+गंध]


चिरायँध
बदनामी।
संज्ञा
[सं. चर्म+गंध]


चिरायता
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. चिरात्]


चिरायु
बड़ी उम्र वाला।
वि.
[सं. चिर+आयु]


चिरजीवी
बहुत दिनों तक जीवित रहनेवाला।
वि.
[सं.]


चिरजीवी
सदा जीवित रहनेवाला।
वि.
[सं.]


चिरजीवी
विष्णु।
संज्ञा


चिरजीवी
कौ।
संज्ञा


चिरजीवी
मार्कंडेय ऋषि।
संज्ञा


चिरजीवी
अश्वत्थामा, बलि, व्यास. हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम जो चिरजीवी माने जाते हैं।
संज्ञा


चिरेता
अमरता।
संज्ञा
[सं.चिर + हिं. ता]


चिरना
फटना, कटना।
क्रि. अ.
[हिं. चीरना]


चिरना
लकीर के रूप में घाव होना।
क्रि. अ.
[हिं. चीरना]


चिरना
चीरने का औजार।
संज्ञा


चिरविदा
मृत्यु, मौत।
संज्ञा
[सं.]


चिरम
गुंजा, घुंघुची।
संज्ञा
[देश.]


चिरवाई
चीरना, चिरने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं.]


चिरवाना
चीरने का काम कराना।
क्रि. स.
[हिं.चीरना]


चिरस्थायी
बहुत समय तक रहनेवाला।
वि.
[सं.]


चिरस्मरणीय
बहुत समय तक। स्मरण रखने योग्य।
वि.
[सं.]


चिरस्मरणीय
पूजनीय।
वि.
[सं.]


चिरहँटा
चिड़ीमार।
संज्ञा
[हिं. चिड़ी+हंता]


चिराई
चिरने का भाव, क्रिया या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. चीरंना]


चिराक, चिराग
दीपक।
संज्ञा
[फ़ा. चिराग]


चिरायु
देवता।
संज्ञा


चिरारी
चिरौंजी।
खरिक, दाख अरु गरी चिरारी। पिंड बदाम लेहु बनवारी - ३६६।
संज्ञा


चिराव
चीरने का भाव या क्रिया।
संज्ञा
[हिं. चिरना]


चिराव
चीरने से होनेवाला घाव
संज्ञा
[हिं. चिरना]


चिरिया, चिरैया, चिरी
पक्षी, पखेरू, पंछी।
(क) चिरिया कहा समुद्र उलीचे - १ - २३४

(ख) सूरस्याम: कौं जसुमति बोधत गगन चिरैया उड़त दिखावत - १० - १८८।

संज्ञा
[हिं. चिड़िया]


चिरिहार
चिड़ियाँ फँसानेवाला, बहेलिया।
संज्ञा
[हिं. चिड़िया + हारे = वाला (प्रत्य)]


चिरीखाना
चिड़िया घर।
संज्ञा
[हिं. चिड़िया + खाना]


चिरौंजी
पियाले वृक्ष के फलों के बीज की गिरी जो मेवों में समझी जाती है।
श्रीफल मधुर चिरौंजी श्रानी - १० - २११.
संज्ञा
[सं. चार+चीज]


चिरौरी
विनीत, प्रार्थना।
संज्ञा
[अनु.]


चिलक
आभा, कांति, झलक।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चिलचिलाना
चमकाना।
क्रि. स.
[अनु.]


चिलबिल
एक पेड़।
संज्ञा
[सं. चिलबिल्ल]


चिलबिली, चिलबिल्ला
चंचल, चपल, शोख, नटखट।
वि.
[सं चल + बल]


चितम
मिट्टी की कटोरी जिसका निचला भाग नली की तरह होता है। इस पर आग रखकर तंबाकू पी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा.]


चिलमन
बाँस की तीलियों से बना परदा, चिक।
संज्ञा
[फ़ा.]


चिल्ला
चालीस दिन का समय।
संज्ञा
[फ़ा.]


चिल्ला
चिल्ले का जाड़ा :- चालीस दिन की बहुत अधिक जाड़े का समय।
मु.


चिल्ला
एक जंगली पेड़।
संज्ञा
[देश.]


चिल्ला
मोटी रोटी।
संज्ञा
[देश.]


चिल्ला
धनुष की डोरी।
संज्ञा
[देश.]


चिलक
दर्द, टीस।
संज्ञा
[हिं. चमक]


चिलकना
रह रह कर चमकना।
क्रि. अ.
[हिं. चिल्ली]


चिलकना
दर्द का उठना और बंद होना।
क्रि. अ.
[हिं. चिल्ली]


चिलका
चाँदी का रुपया।
संज्ञा
[हिं. चिलक]


चिलकाई
चमक।
संज्ञा
[हिं. चिलक + आई]


चिलकाना
चमकानी, झलकाना।
क्रि. स.
[हिं. चिलकना]


चिलकाना
माँज कर उजला करना।
क्रि. स.
[हिं. चिलकना]


चिलगोजा
एक मेवा।
संज्ञा
[फ़ा.]


चिलचिल
अबरक।
संज्ञा
[हिं. चिलकना]


चिलचिलाना
रह रह कर चमकना।
क्रि. अ.
[हिं. चिलकना]


चिहुँटना
चित्त चिहुँटना :- चित्त में चुभना, मन स्पर्श करना।
मु.


चिहुँटना
चिपटना, लिपटना।
क्रि. स.
[सं. चिपिट, हिं. चिमटना]


चिहुँटिनी
गुंजा, घुंघुचि।
संज्ञा
[देश.]


चिहुँटी
चिकोटी।
संज्ञा
[हिं. चुटकी]


चिहुर
सिरके बाल, केश।
(क) तरुवर मूल अकेली ठाढ़ी, दुखित राम की घरनी। बसन कुचील, चिहुर लपटाने, बिपति जाति नहिं बरनी–६ - ७३।

(ख) छूटे चिहुर बदन कुम्हि लाने ज्यौं नलिनी हिमकर की मारी - ३४२५।

संज्ञा
[सं. चिकुर]


चिह्न
निशान, संकेत, लक्षण।

दाग।

संज्ञा
[सं.]


चिह्न
पताका, झंडी।
संज्ञा
[सं.]


चिह्न
दाग।
संज्ञा
[सं.]


चिह्नित
जिस पर चिह्न हो।
वि.
[सं.]


चीं, चींची, चीं चपड़े
किसी के विरोध में किया हुआ शब्द या कार्य।
संज्ञा
[अनु.]


चींटवा, चींटा
चिहुँटा नामक कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. चिंउटा]


चींटा
चिउँटी, पिपिलिका।
संज्ञा
[हिं. चिउँटी]


चीतना
चित्रित करना।
क्रि. स.
[हिं. चितना]


चींथना
नोचना-फाड़ना।
क्रि. स.
[हिं.चीथना]


चीक, चीख
चिल्लाहट।
संज्ञा
[सं. चीत्कार]


चीकट
मैल, तलछट।
संज्ञा
[हिं. कीचड़]


चीकट
एक रेशमी कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


चीकट
गहने-कपड़े जो भाई द्वारा बहन को इसकी संतान के विवाह में दिये जायें।
संज्ञा
[देश.]


चीकट
बहुत मैला या गंदा।
वि.


चीकना, चीखना
जोर से चिल्लाना।
क्रि. अ.
[सं. चीत्कार]


चिल्लाना
जोर से बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. चीत्कार]


चिल्लाहट
चिल्लाने का भाव।
संज्ञा
[हिं. चिल्लाना]


चिल्लाहट
शोर, गुळ, हल्ला।
संज्ञा
[हिं. चिल्लाना]


चिल्लिका
भौंहों के बीच का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


चिल्ली
झिल्ली नामक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


चिल्ली
बिजली।
संज्ञा
[सं चिरिको = एक अस्त्र]


चिल्ही
चिल्ल, चील।
संज्ञा
[सं.]


चिव
चिबुक, ठोढ़ी।
संज्ञा
[सं.]


चिहुँकना
चौंकना।
क्रि. अ.
[सं. चमत्कृ, प्रा. चाँकि]


चिहुँटना
चुटकी काटना, चिकोटी लेना।
क्रि. स.
[सं. चिपिट, हिं. चिमटना]


चीठा
बही-खाता
संज्ञा
[हिं. चिडा]


चीठा
सूची।
संज्ञा
[हिं. चिडा]


चीठा
मजदूरी का धन।
संज्ञा
[हिं. चिडा]


चीठा
ब्योरा।
संज्ञा
[हिं. चिडा]


चीठी
चिट्ठी-पत्री।
संज्ञा
[हिं. चिट्ठी]


चीड़, चीढ़
एक पेड़।
संज्ञा
[सं. चीड़ा]


चीत
चित्त, मन।
संज्ञा
[सं. चित्त]


चीत
हेरत चीत :- चित्त हरता है, मन मोहता है।

उ. - संग रहत सिर मेलि उगौरी, हरत अचानक चीत - २७३०।

मु.


चीत
चित्रा नक्षत्र।
संज्ञा
[सं. चित्रा]


चीत
सीमा नामक धातु।
संज्ञा
[सं.]


गेरुआ
पौधों का एक रोग।
संज्ञा


गेरू
मटमैलापन लिये हुए एक तरह की लाल मिट्टी।
जैसे कंचन काँच बराबर गेरू काम सिदूर - २६८३।
संज्ञा
[सं. गवेरूक]


गेह
घर, मकान।
(क) बिदुर - गेह हरि भोजन पाए - १ - २३६।

(ख) करि दंडवत चली ललिता जो गई राधिका गेह - १.२३६ और सारा. ९२०।

संज्ञा
[सं. गृह]


गेहनी
घरवाली, पत्नी।
तुम रानी वसुदेव गेहनी हौं गँवारि ब्रजबासी - २७१०।
संज्ञा
[हिं. गेह]


गेहपति
घर का स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गेह+सं. पति]


गेहपति
पति, स्वामी।
संज्ञा
[हिं. गेह+सं. पति]


गेहरा
घर, गे