विक्षनरी:ब्रजभाषा सूर-कोश खण्ड-२

ब्रजभाषा सूर-कोश द्वितीय खण्ड

सम्पादन
देवनागरी वर्णमाला का प्रथम व्‍यंजन। कंठ्य और स्‍पर्श वर्ण।


कं
जल।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
अस्तक।
सिंभु भव के पत्र वन दो बजे चक्र अनूप। देव कं को छत्र छावत सकल सोभा रूप।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
अग्नि।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
कम।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
सोना।
संज्ञा
[सं. कम्]


कं
सुख।
संज्ञा
[सं. कम्]


कँउधा
बिजली की चमक।
संज्ञा
[हिं. कौंधना]


कंक
सफेद चील।
संज्ञा
[सं.]


कंक
बगुला।
संज्ञा
[सं.]


कंकना
कलाई में पहनने का कड़ा।
तज्यौ तेल तमोल भूषन अंग बसन मलीन। कंकना कर बाम राख्यौ गढ़ी भुज गहि लीन - ३४५१।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँकरील
जिसमें कंकड़ अधिक हों।
वि.
[हिं. कंकड़, कँकड़ीला]


कंकाल
हड्डियों का ढाँचा, ठठरी, अस्थिपंजर।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
दुर्गा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
कर्कशा स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कंकालिनी
झगड़ालू, दुष्टा।
वि.


कंकाली
किंगरी बजाकर भीख माँगनेवाली जाति।
संज्ञा
[सं. कंकाल]


कंकाली
दुर्गा।
संज्ञा
[सं. कंकालिनी]


कंकाली
झगड़ालू, दुष्टा, कर्कशा।
वि.


कंकोल
शीतल चीनी की जाति का एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कंक
यम।
संज्ञा
[सं.]


कंक
युधिष्ठिर का कल्पित नाम जो उन्होंने राजा विराट के यहाँ रखा था।
संज्ञा
[सं.]


कंक
कंस का एक भाई।
संज्ञा
[सं.]


कंकड़
छोटा टुकड़ा, पत्थर का टुकड़ा, रोड़ा।
संज्ञा
[सं. कर्कर, प्रा. कक्कर]


कँकड़ीला
जिसमें कंकड़ अधिक हों।
वि.
[हिं, कंकड़]


कंकण
कड़ा या चूड़ा नामक आभूषण जो कलाई में पहना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कंकण
एक धागा जिसमें सरसों की पुटली, लोहे का छल्‍ला आदि बाँधकर दुलहिन और दूल्हे के हाथ में पहनाते हैं। विवाह के पश्चात दूल्‍हा दुलहिन का और दुलहिन दूल्हे का कंकण खोलती है।
संज्ञा
[सं.]


कंकण
ताल का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कंकन
कलाई में पहनने का एक आभूषण, कंगन, चूड़ा।
तेरो भलो मनैहौं झगरिनि, तू मत मनहिं डरै। दीन्हौं हार गर, कर कंकन, मोतिनि थार मरे - १०-१७।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कंकन
एक धागा जिसमें सरसों की पुटली, लोहे का छल्ला आदि बाँधकर दुलहिल और दूल्हे के हाथ में बाँधते हैं। विवाह के पश्चात दूल्हा दुल्हिन का कंकन खोलता है और दुलहिन दूल्हे का खोलती है।
कर कंपै, कंकन नहिं छूटै। राम-सिया-कर परस मगन भए, कौतुक निरखि सखी सुख लूटैं-६-२५।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कंठहार
गले को एक गहना, कंठी।
संज्ञा
[सं.]


कंठा
पक्षियों के गले में पड़ने वाली रंग-बिरंगी रेखा।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठा
गले का एक गहना जिसमें सोने, मोती आदि के मनके होते हैं।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठा
कुरते अदि पहनावों का गले पर पड़नेवाला भाग।
संज्ञा
[हिं. कंठ]


कंठाग्र
जो जबानी याद हो।
वि.
[सं.]


कंठी
माला जो छोटी छोटी गुरियों की बनी हो।
संज्ञा
[हिं. कंठ का अल्पा.]


कंठी
तुलसी आदि की माला।
संज्ञा
[हिं. कंठ का अल्पा.]


कंठ्य
जो गले से उत्पन्न हो।
वि.
[सं.]


कंठ्य
जिसका उच्चारण कंठ से हो।
वि.
[सं.]


कंठ्य
वह वर्ण जिसका उच्चारण कंठ से हो।
संज्ञा


कमलाकर
सरोवर।
संज्ञा
[सं.]


कमलाग्रजा
लक्ष्मी की बड़ी बहन, दरिद्रा।
संज्ञा
[सं. कमला=लक्ष्मी- +अग्रजा=बड़ी बहन]


कमलापति
लक्ष्मीपति विष्णु के अवतार श्री रामचंद्र।
तीनि जाम अरु बासर बीते, सिंधु गुमान भरयौ। कीन्हौ कोप कुँवर कमलापति, तब कर धनुष धरयौ–९ - १२२।
संज्ञा
[सं.]


कमलापति
श्रीकृष्ण।
हमसों कठिन भए कमलापति काहि सुनावौ रोई - २८८१।
संज्ञा
[सं.]


कमलापति
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कमलावली
कमलों की पाँति, कमल-समूह।
विकसत कमलावली, चले प्रपुंज-चंचरीक, गुंजत कलकोमल धुनि त्यागि, कंज न्यारे - १० - २०५।
संज्ञा
[सं. कमल+अवली]


कमलासन
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कमलिनी
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कमलिनी
वह तालाब जिसमें कमल हों।
संज्ञा
[सं.]


कमली
छोटा कंबल।
संज्ञा
[हि. कंबल]


गिरीश, गिरीस
सुमेरु पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरीश, गिरीस
कैलाश पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरीश, गिरीस
गोवर्द्धन पर्वत।
संज्ञा
[सं. गिरि+ईश]


गिरे
(जमीन पर) आ पड़े, गिर पड़े।
यह सुनत तब मातु धाईं, गिरे जानि झहरि-१०-६७।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिरेबान
कुरते, कोट आदि का गला।
संज्ञा
[फ़ा. गरेबान]


गिरैयाँ
गले की रस्सी।
संज्ञा
[हिं. गेराँव (पत्य.)]


गिरैयाँ
जो गिरने को हो, जो गिर रहा हो, गिरनेवाला।
वि.
[हिं. गिरना]


गिरों
रेहन, बंधक, गिरवीं।
वि.
[फ़ा.]


गिर्गिट
गिरगिटान।
संज्ञा
[हिं. गिरगिट]


गिर्द
आसपास, चारो ओर।
अव्‍य.
[फ़ा.]


गिर्दावर
घूमनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गिर्दावर
दौरा करके जाँचनेवाला।
वि.
[फ़ा.]


गिरथी
मारा गया, मरकर गिरा।
कनक-मृग मारीच मारयौ, गिरयौ लषन सुनाइ-९६०।
क्रि. अ.
[हिं. गिरना]


गिल
मिट्टी।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिल
गारा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिल
मगर, ग्राह।
संज्ञा
[सं.]


गिल
वह जो निगल ले या भक्षण कर ले।
संज्ञा
[सं.]


गिलई
निगल ले, खा डाले।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलगिल
नक, मगर।
संज्ञा
[सं.]


गिलगिलिया
एक चिड़िया।
संज्ञा
[अनु.]


गिलटी
शरीर के संधि स्थानों की गाँठ।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


गिलटी
शरीर के संधि स्थानों का सूजा हुआ भाग जो गाँठ के आकार का हो जाता है।
संज्ञा
[सं. ग्रंथि]


गिलन
निगलना।
संज्ञा
[सं.]


गिलना
निगलना।
क्रि. स.
[सं. गिरण]


गिलना
मन में रखना, प्रकट न करना।
क्रि. स.
[सं. गिरण]


गिलबिला
पिलपिला, मुलायम।
वि.
[अनु.]


गिलबिलाना
अस्पष्ट बात कहना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गिलम
ऊनी कालीन।
संज्ञा
[फ़ा. गिलमि=कंबल]


गिलम
मुलायम बिछौना या गद्दा।
संज्ञा
[फ़ा. गिलमि=कंबल]


गिलम
जो बहुत मुलायम या कोमल हो।
वि.


गिलगिन
एक कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरा
एक कपड़ा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरा
पान का बेलहरा।
संज्ञा
[देश.]


गिलहरी
एक छोटा जंतु, गिलाई, चिखुरी।
संज्ञा
[सं. गिरि=चुहिया]


गिला
उलाहना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिला
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिलान, गिलानि
घृणा, नफरत।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिलान, गिलानि
लज्जा।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिलाफ
तकिए आदि का खोल।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाफ
बड़ी रजाई।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाफ
म्यान।
संज्ञा
[अ. ग़िलाफ़]


गिलाव, गिलावा
गारा।
संज्ञा
[फा. गिल+आब]


गिलि
निगल कर, बिना दाँतों से चबाये गले में उतार कर।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलि
नष्ट हो गयी, प्रभावरहित हो गयी।
बेनु के राज मैं औषधी गिलि गईं, होइहैं सकल किरपा तुम्हारी-४-११।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिलिम
ऊनी कालीन।
संज्ञा
[हिं. गिलम]


गिलिम
मुलायम गद्दा या बिछौना।
संज्ञा
[हिं. गिलम]


गिलिहै
मन ही मन में रखेगी, प्रकट न करेगी।
की धौं हमहिं देखि उठि हमकौं मिलिहै कीधौं बाति उघारि कहैगी की मन ही गिलिहै–१२६५।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिली
गुल्ली डंडे के खेल की छोटी गुल्ली।
संज्ञा
[हिं. गुल्ली]


गिले
निगल गये।
(क) आजु जसोदा जाइ कन्हैया महा दुष्ट इक मारयौ। पन्नग-रूप गिले सिसु गोसुत, इहिं सब साथ उबारयौ-४३३।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिले
गुप्त रखा, प्रकट न किया।
क्रि. स.
[हिं. गिलना]


गिले
उलाहना।
खरिकहू नहिं मिलै कहै कह अनभले करन दै गिले तू दिननि थोरी।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिले
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिलेफ
तकिए आदि का खोल।
संज्ञा
(हिं. गिलाफ]


गिलो, गिलोय
गुरुच, गुड़ूची।
संज्ञा
[फ़ा.]


गिलोला
मिट्टी की छोटी गोली जो गुलेल से फेकी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा. गुलेला]


गिलौरी
पान या मलाई का बीड़ा जो तिकोना-चौकोना होता है।
संज्ञा
[देश.]


गिल्यान
घृणा, नफरत।
ताके मन उपजी गिल्यान। मैं कीन्ही बहु जिय की हान।
संज्ञा
[सं. ग्लानि]


गिल्ली
उलाहना।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिल्ली
शिकायत, निंदा।
संज्ञा
[फ़ा. गिला]


गिल्ली
गुल्ली।
संज्ञा
[हिं. गुल्ली]


गिष्ण, गिष्णु
गवैया।
संज्ञा
[सं.]


गींजना
मोसना, दबाना, मलना, मसलना।
क्रि. स.
[हिं. मींजना]


गींव
गर्दन, गला।
संज्ञा
[सं. ग्रीव]


गी
बोलने की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


गी
सरस्वती।
संज्ञा
[सं.]


गीउ
गरदन।
संज्ञा
[सं. ग्रीव]


गीठम
घटिया कालीन या गलीचा।
संज्ञा
[देश.]


गीड़, गीड़र
आँख का मैल, मैल।
संज्ञा
[हिं. कीट=मैल]


गीत
गाना, गाने की चीज।
संज्ञा
[सं.]


गीत
गीत गाना- बड़ाई करना।

अपना ही गीत गाना- अपनी ही हाँके जाना।

मु.


गीत
बड़ाई, यश।
संज्ञा
[सं.]


गीत
गीत का नायक।
संज्ञा
[सं.]


गीता
उपदेश।
संज्ञा
[सं.]


गीता
भगवद् गीता।
(क) वेद, पुरान, भागवत, गीता, सबकौ यह मत सार -१-६८।

(ख) समुझति नहीं ग्यान गीता कौ हरि मुसुकानि अरे-३११०।

संज्ञा
[सं.]


गीता
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


गीता
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीता
कथा-वृत्तांत।
संज्ञा
[सं.]


गीति
गान, गीत।
(क) चर-अचर-गति बिपरीत। सुनि बेनु-कल्पित गीति - ६२३।

(ख) सूर बिरह ब्रज भलो न लागत जहीं ब्याहु तही गीति-३१९३।

संज्ञा
[सं.]


गीति
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीतिका
एक छंद।
संज्ञा
[सं.]


गीतिका
गाना।
संज्ञा
[सं.]


गीतिरूपक
रूपक जिसमें गद्य कम और पद्य अधिक हो।
संज्ञा
[सं.]


गीदड़, गीदर
सियार।
संज्ञा
[सं. गृध्र। फ़ा. गीदी]


गीदड़, गीदर
कायर, डरपोक, असाहसी।
वि.


गीध
गिद्ध पक्षी।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गीध
जटायु पक्षी जिसको भगवान ने तारा था।
संज्ञा
[सं. गृध्र, हिं. गिद्ध]


गीधना
ललचना, परचना।
क्रि. अ.
[सं. गृध=लुब्ध]


गीधि
ललचकर, परचकर।
जानि जु पाए हौं हरि नीकैं। चोरि चोरि दधि माखन मेरौ, नित प्रति गीधि रहे हौ छींकैं-१०-२८७।
क्रि. अ.
[हिं. गीधना]


गोधिनी
गिद्ध की मादा।
बग-बगुली अरु गीध-गीधिनी आई जन्म लियौ तैसी-२-२४।
संज्ञा
[हिं. पुं. गिद्ध]


गीधे
ललचाये, परचे।
(क) इंद्री लई नैन अब लीने स्यामहिं गीधे भारे--पृ. ३२०। (ख) अब हरि कौन के रस गीधे-३२३६। (ग) लोचन लालच ते न टरे। हरि सारँग सों सारँग गीधे दधि सुत काज अरे -सा. उ. ६।
क्रि. अ.
[हिं. गीधना]


गीध्‍यौ
परच गया, ललचा गया, लिप्त रहा।
(क) गीध्यौ दुष्ट हेम तस्कर ज्यों, अति आतुर मतिमंद - १-१०२। (ख) धोखैं ही धोखैं डहकायौ। समुझि न परी, विषय-रस गीध्यौ हरि-हीरा घर माँझ गँवायौ-१-३२६।

(ग) स्याम रूप में मन गीध्यौ भलो बुरौ कहौ कोई-१४६३।

क्रि. अ. (भूत.)
[हिं. गाँधना]


गीर
वाणी।
संज्ञा
[सं. गिर या गी:]


गीरवाण, गीरवान
देवता।
संज्ञा
[सं. गीर्वाण]


गीर्ण
जिसका वर्णन किया गया हो।
वि.
[सं.]


गीर्ण
निगला हुआ।
वि.
[सं.]


गीर्वाण
देवता, सुर।
संज्ञा
[सं.]


गीला
भीगा हुआ, तर, नम।
वि.
[हिं. गलना]


गीला
एक लता।
संज्ञा
[देश.]


गीलापन
नमी।
संज्ञा
[हिं. गीला+पन (प्रत्य.)]


गीली
एक बड़ा पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कमाइच
सारंगी बनाने की कमानी।
संज्ञा
[हिं. कमानी]


कमाई
संचय की, एकत्र की।
लंका फिरि गई राम दोहाई। कहति मंदोदरि सुनि पिय रावन, तैं कहा कुमति कमाई - ९ - १४०।
क्रि. स.
[हिं. कमाना]


कमाई
कमाया हुआ धन।
भानु भानुसुत सी सुभान मम सबहित सरस कमाई–सा. - १६।
संज्ञा


कमाई
कमाने का धंधा, व्यवसाय।
संज्ञा


कमाऊ
धन कमानेवाला।
वि.
[हिं. कमाना]


कमान
धनुष।
(क) कुबुधि-कमान चढ़ाई कोप करि, बुधि-तरकस रितयौ १ - ६४ (ख) पिय बिन बहत बैरिन बाय। मदन बान कमान ल्यायौ करषि कोप चढ़ाय - सा. ३२।
संज्ञा
[फा.]


कमान
इद्रधनुष।
संज्ञा
[फा.]


कमान
तोप, बंदूक।
संज्ञा
[फा.]


कमाना
धन पैदा करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


कमाना
सेवा के काम करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


गीली
भीगी हुई, तर।
(क) पग द्वै चलति ठठकि रहै ठाढ़ी मौन धरे हरि के रस गीली–१३०९।

(ख) कुच कुंकुम कंचुकि बँद टूटे लटक रही लट गीली-१८४६।

वि.
[हिं. पुं. गीला]


गीव, गीवा
गरदन, गला।
संज्ञा
[सं. ग्रीवा]


गुंग, गुंगा
जो बोल न सके, मूक, गूँगा।
भक्ति बिन बैल बिराने ह्वैहौ। पाउँ चारि, सिर सृंग गुंग मुख, तब कैसैं गुन गैहौ - १-३३१।
वि.
[हिं. गूँगा]


गुंग, गुंगा
गूँगा मनुष्य।
बोलै गुंग, पंगु गिरि लंघै अरु आवै अंधौ जग जोइ-१-९५।
संज्ञा


गुंगी
दोमुहाँ साँप।
संज्ञा
[हिं. गूँगा]


गुंगी
जो (स्त्री) बोल न सके।
वि.


गुँगुआना
अच्छी तरह न जलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुँगुआना
गूँगे की तरह अस्पष्ट शब्द निकालना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुंचा
कली।
संज्ञा
[अ.]


गुंचा
नाच-रंग।
संज्ञा
[अ.]


गुंची
घुँघची की लता।
संज्ञा
[हिं. घुँघची]


गुंज
भौरों की गुंजार।
(क) नित प्रति अलि जिमि गुंज मनोहर, उड़त जु प्रेम-पराग-२-२२।

(ख) गये नवकुंज कुसुमनि के पुंज अलि करैं गुंज सुख हम देखि भई लवलीन- सा. उ.-४८।

संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
अस्पष्ट गुंजार।
अति बिलच्छन्न गुंज जोग मति लाए–२९९१।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
कलरव।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
घुँघची की लता या उसका फल।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
एक गहना।
संज्ञा
[सं. गुंजन]


गुंज
सलई नामक पेड़।
संज्ञा


गुंजत
गुनगुनाते हैं, भनभनाते हैं।
जहँ सनक-सिव हंस, मीन मुनि, नख रवि प्रभा प्रकास। प्रफुलित कमल, निमिष नहिं ससि-डर, गुंजत निगम सुबास -१-३३७।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजना]


गुंजन
गुंजार, भनभनाहट।
संज्ञा
[सं.]


गुंजन
आनंद ध्वनि, कलरव।
संज्ञा
[सं.]


गुंजना
भनभनाना, गुनगुनाना।
क्रि. अ.
[सं. गुंज]


गुंजना
मधुर या नद-ध्वनि निकालना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. गुंज]


गुंजनिकेतन
भौंरा।
संज्ञा
[सं.]


गुंजरत
(भौरे) गूँजते हैं, भनभनाते हैं।
गूँगी बातनि यौं अनुरागति, भँवर गुंजरत कमल मौं बंदहिं-१०-१०७।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजारना]


गुंजरत
बोलते हैं, ध्वनि करते हैं, गरजते हैं।
गर्जत गगन गयंद गुंजरत अरु दादुर किलकार-२८९३।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजारना]


गुंजरना
भौरों का गूँजना या भनभनाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजार]


गुंजरना
शब्द करना, गरजना।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजार]


गुंजरै
गुंजार।
संज्ञा
[सं. गुंजान]


गुँजहरा
बच्चों का कड़ा।
संज्ञा
[हिं. गुँजार]


गुंजा
घुँघची नाम की लता।
संज्ञा
[सं.]


गुंजा
घुंघची के लाल दाने।
ज्यौं कपि सीतहतन-हित गुंजा सिमिट होत लौलीन। त्यौं सठ बृथा तजत नहिं कबहूँ, रहत बिषय-आधीन-१-१०२।
संज्ञा
[सं.]


गुंजाइश, गुंजाइस
स्थान, अँटने की जगह।
जनम साहिबी करत गयौ। काया-नगर बड़ी गुंजाइस, नाहिंन कछु बढ्यौ-१-६४।
संज्ञा
[फ़ा. गुंजाइश]


गुंजाइश, गुंजाइस
समाई, सुबीता।
संज्ञा
[फ़ा. गुंजाइश]


गुंजान
घना, सघन।
वि.
[फ़ा.]


गुंजायमान
गूँजता या ध्वनि करता हुआ।
वि.
[सं.]


गुंजायमान
बोलता या शब्द करता हुआ।
वि.
[सं.]


गुंजार
भौरों की गूँज, भनभनाहट।
जहँ बृंदाबन आदि अजिर जहँ कुंजलता बिस्तार। तहँ बिहरत प्रिय प्रियतम दोऊ निगम भृंग-गुंजार।
संज्ञा
[सं. गुंज+आर]


गुंजार
मधुर ध्वनि, कलरव।
संज्ञा
[सं. गुंज+आर]


गुंजारना
गूँजना।
क्रि. अ.
[हिं. गूँजना]


गुंजारित, गुंजित
भौरों आदि की गुंजार से युक्त।
वि.
[सं. गुंजित]


गुंजिया
एक गहना।
संज्ञा
[हिं. गूँज]


गुंजै
(भौंरे) भनभनाते या गुनगुनाने हैं।
बृथा बहति जमुना तट खगरो वृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं–२७२१।
क्रि. अ.
[हिं. गुंजना]


गुंटा
छोटा तालाब।
संज्ञा
[देश.]


गुंठा
नाटा घोड़ा, टाँगन।
संज्ञा
[हिं. गठना]


गुंठा
कसेरू का पौधा।
संज्ञा
[सं.]


गुंठा
महीन पिसा हुआ।
वि.


गुंड
मलार राग का एक भेद।
राग रागिनी सँचि मिलाई गावैं गुंड मलार-२२७९।
संज्ञा


गुंडई
गुंडापन।
संज्ञा
[हिं. गुंडा+ अई (प्रत्य.)]


गुंडरी
गुंडापन।
संज्ञा
[हिं. गुंडा]


गुंडली
फेंटा।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गुंडली
गेंडुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


गुंडा
दुराचारी, कुमार्गी।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडा
झगड़ा करनेवाला।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडा
छैला।
वि.
[सं. गुंडक=मलिन]


गुंडापन
बदमाशी।
संज्ञा
[हिं. गुंडा+पन]


गुंडी
इँडुरी, गेंडुरी।
संज्ञा
[हिं. गेंडुरी]


गुँथना
(तागों, बालों आदि का) उलझना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुँथना
मोटी सिलाई करना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुँथना
लड़ने को भिड़ना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्‍स=गुच्छा]


गुंदल
एक घास।
संज्ञा
[सं. गुंडाला]


गुंदहि
गूँधते हैं।
बाजीपति अग्रज अंबा तेहिं, अरक थान सुत माला गुंदहिं-१०-१०७।
क्रि. स.
[हिं. गूँधना]


गुँधना
(आँटे आदि का पानी से) साना या माड़ा जाना।
क्रि. अ.
[सं. गुध= क्रीड़ा]


गुँधना
(बाल आदि का) गूँथना।
क्रि. अ.
[सं. गुत्सा= गुच्छ]


बँधवाना
गूँधने का काम कराना या इसकी प्रेरणा देना।
क्रि. स.
[हिं. गूँधना]


गुँधाई
गूँधने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुँधावट
गूँधने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुँधावट
गूँधने की रीति।
संज्ञा
[हिं. गूँधना]


गुंफ
फँसाव, गुत्थमगुत्था।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
गलमुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुंफ
अलंकार।
संज्ञा
[सं.]


गुंफन
उलझाव, गूँधना।
संज्ञा
[सं.]


गुंफित
गूँथा हुआ, उलझा हुआ।
वि.
[सं. गुंफन]


गुंबज, गुंबद
गोल छत।
संज्ञा
[फा. गुंबद]


गुंबा
गोल सूजन जो चोट लगने से सिर या माथे पर आ जाय।
संज्ञा
[हि. गोल+अंब]


गुँभी, गुंभ
अंकुर, गाभ।
टरति न टारे वह छबि मन में चुभी।...। सूरदास मोहन मुख निरखत उपजी सकल तन काम गुँभी -१४४६।
संज्ञा
[सं. गुंफ=गुच्छा]


गुआ
चिकनी सुपारी।
संज्ञा
[सं. गुवाक]


गुआ
सुपारी।
संज्ञा
[सं. गुवाक]


गुआर, गुआरि, गुआरी, गुआलिन
एक पौधा, कौरी, खुरथी।
संज्ञा
[सं. गोराणी, हिं. ग्वार]


गुइयाँ
साथी, सखी, सहचर, सहेली।
संज्ञा
[हिं. गोहन=साथ]


गुग्गुर, गुग्गुल
एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


गुग्गुर, गुग्गुल
एक सुगंधित द्रव्य।
संज्ञा
[सं.]


गुच्‍ची
छोटा गड्ढा।
संज्ञा
[अनु.]


गुच्‍ची
बहुत छोटी, नन्ही।
वि.


गुच्चीपारा, गुच्‍चीपाला
लड़कों का एक खेल।
संज्ञा
[हिं. गुच्ची+पारना]


गुच्छ, गुच्छक
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
घास की जूरी।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
झाड़।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
हार।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छ, गुच्छक
मोर की पूँछ।
संज्ञा
[सं.]


गुच्छा
पत्ती, या किसी चीज का समूह।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छा
फुलरा, फुँदना।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छी
कंजा।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छी
एक साग।
संज्ञा
[सं. गुच्छ]


गुच्छेदार
जिसमें गुच्छे हों।
वि.
[हिं. गुच्छा]


गुजर
निकास।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजर
पहुँच, प्रवेश।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजर
निर्वाह, काम चलना।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़र]


गुजरना
समय कटना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


गुजरना
आना-जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


कमाना
कर्म करना।
क्रि. स.
[हिं. काम]


कमाना
तुच्छ काम करना।
क्रि. अ.


कमाना
कम करना।
क्रि. स.


कमानियाँ
धनुष चलानेवाला।
संज्ञा
[फ़ा. कमान]


कमानिया
मेहराबदार।
वि.
[हिं. कमानी]


कमानी
धातु की लचीली तीली।
संज्ञा
[हिं. कमान]


कमायौ
कर्म संचय किया, कर्म किया।
(क) जोग-जज्ञ जप तप नहिं। कीन्हौं, बेद बिमल नहिं भाख्यौ। अति रस-लुब्ध स्वान जूठनि ज्यौं, अनत नहीं चित राख्यौ। जिहिं जिहिं जोनि फिरयौ संकट बस, तिहिं तिहिं यहै कमायौ। (ख) कहा होत अब के पछिताएँ, पहिलैं पाप कमायौ - १ - ३३५।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. कमाना]


कमाल
कुशलता, निपुणता।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
अनोखा काम।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
कारीगरी।
संज्ञा
[अ.]


गुजरना
गुजर जाना- मर जाना।
मु.


गुजरना
निर्वाह होना, निभना, काम चलना।
क्रि. अ.
[हिं. गुजर+ना प्रत्य.)]


गुजर-बसर
निर्वाह, काम चलाना।
संज्ञा
[फ़ा.]


गुजराती
गुजरात का।
वि.
[हिं. गुजरात]


गुजराती
गुजरात की भाषा।
संज्ञा


गुजरान
निर्बाह, निबाह।
संज्ञा
[हिं. गुजर]


गुजराना
बिताना, काटना।
क्रि. स.
[हिं. गुजारना]


गुजरिया
ग्वालिन, गोपी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरी
एक तरह की पहुँची।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटा
गूज़र का लड़का।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटा
ग्वाला।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटी, गुजरेठी
गूजर की बेटी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजरेटी, गुजरेठी
ग्वालिन, गोपी।
संज्ञा
[हिं. गूजर]


गुजारना
बिताना, काटना।
क्रि. स.
[फ़ा.]


गुजारा
निर्वाह।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारा
निर्वाह की वृत्ति।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारा
नाव की उतराई।
संज्ञा
[फ़ा. गुज़ारा]


गुजारिश, गुजारिस
प्रार्थना, निवेदना, विनय।
संज्ञा
[फ़ा. गुजारिश]


गुज्जरी
गुजरी।
संज्ञा
[सं.]


गुज्जरी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


गुज्झा
एक घास।
संज्ञा
[सं. गुह्यक]


गुज्झा
गूदा।
संज्ञा
[सं. गुह्यक]


गुज्झा
गुप्त, छिपा हुआ, अप्रकट।
वि.


गुझरोट, गुझरौट, गुझौट
कपड़े की सिकुड़न।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुच्झ + सं. आवर्त]


गुझरोट, गुझरौट, गुझौट
स्त्रियों की नाभि के आसपास का भाग।
संज्ञा
[सं. गुह्य, प्रा. गुच्झ + सं. आवर्त]


गुझा
एक पकवान, गुझिया।
गुझा इलाचीपाक अमिरती-३९६।
संज्ञा
[हिं. गोझा]


गुझाना
छिपाना, लुकाना।
क्रि. स
[सं. गुहय]


गुझिया
एक पकवान, पिराक।
संज्ञा
[सं. गुहयक, प्रा. गुज्झ‌अ, गुज्झा]


गुझिया
एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. गुहयक, प्रा. गुज्झ‌अ, गुज्झा]


गुटकना
गुटरगूँ करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


गुटकना
निगलना
क्रि. स.


गुटकना
खा लेना।
क्रि. स.


गुटका
गोटी, बटी।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
छोटे आकार की पुस्तक।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
लट्टू।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटका
एक मिठाई।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुटरगूँ
कबूतरों की बोली।
संज्ञा
[अनु.]


गटिका
गोटी, बटी।
संज्ञा
[सं.]


गटिका
एक सिद्धि जिसमें गोली मुँह में रखने पर साधक सब जगह जा सके और कोई उसे देख न पावे।
संज्ञा
[सं.]


गुट्ट
झुंड, दल।
संज्ञा
[सं. गोष्ठ=समूह]


गुट्ठल
जो तेज या पैना न हो।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
जड़, मूर्ख।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
गुठली के आकार का।
वि.
[हिं. गुठली]


गुट्ठल
गाँठ, गुलथी।
संज्ञा


गुट्ठल
गिलटी।
संज्ञा


गुट्ठी
गोल या लंबी गाँठ।
संज्ञा
[हिं. गाँठ]


गुठली
फल का कड़ा बीज।
संज्ञा
[सं. गुटिका]


गुठाना
गुठली-सी बँध जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुठली]


गुठाना
बेकार या निकम्मा हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. गुठली]


गुडंबा
गुड़ की चाशनी में उबाली हुई कच्चे आम की फाँकें।
संज्ञा
[हिं. गुड़+आँब, आम]


गुड़
ऊख का जमाया हुआ रस।
(क) रस लै लै औटाइ करत गुड़ (गुर) डारि देत हैं खोई। फिर औटाये स्वाद जात है, गुड़ तैं खाँड़ न होई-१-६३। (ख) दानव प्रिया सेर चालीसो सुरभी रस गुड़ सीचो -सा. ९०।
संज्ञा
[सं.]


गुड़
कुल्हिया में गुड़ फूटना- (१) गुप्त रूप से काम होना। (२) छिपाकर पाप होना।

गुड़ भरा हँसिया- ऐसा काम जिसे न करने से जी ललचाये और करने से संकोच हो। जो गुड़ खायगा सो कान छेदायेगा- जिसे लाभ होगा, उसे कष्ट भी सहना पड़ेगा। गुड़ खायगा, अँधेरे में आयगा- जिसे लाभ होगा वह कष्ट सहकर भी समय-कुसमय काम करेगा। गुड़ दिखाकर ढेला मारना- कुछ लालच देने के बाद रूखा या कठोर व्यवहार करना। गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे- जब सीधे से काम चल जाय तो कठोर बर्ताव क्यों किया जाय। गुड़ खाना गुलगुलों से परहेज (घिनाना)- कोई बड़ी बुराई करना पर उसी ढंग की छोटी बुराई करने में संकोच करना। गूँगे का गुड़- विषय या वस्तु का अनुभव करना परन्तु उसे शब्दों में उचित ढंग से समझा न पाना। चोरी का गुड़- छिपाकर पाया हुआ बेमेहनत का माल। उ.- मिसरी सूर न भावत घर की चोरी को गुड़ मीठो–सा. ९०। जहाँ गुड़ होगा, चीटियाँ (मक्खियाँ) आ जायँगी- पास में धन या दूसरों के लाभ की चीज होगी तो लाभ उठाने वाले बिना बुलाये अपने आप जुट आयँगे।

मु.


गुड़मुड़
वह शब्द जो बन्द चीज (जैसे पेट, हुक्का) में हवा के चलने से होता है।
संज्ञा
[अनु.]


गुड़गुड़ाना
गुड़गुड़ शब्द होना।
क्रि. अ.
[अनु. गुड़गुड़]


गुड़धनिया, गुड़धानी
मिठाई जो भुने हुए गेहुँओं को गुड़ में पागने से बनती है।
संज्ञा
[हिं. गुड़+धान]


गुड़ना
बेकार या खराब होना।
क्रि. अ.
[हिं. गोड़ना]


गुड़रा, गुडरू
गड़ुरी चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


गुड़हर गुड़हल
अड़हुल का पेड़ या फूल।
संज्ञा
[हिं. गुड़+ हर]


गुड़हर गुड़हल
एक वृक्ष जिसकी पत्तियाँ चबाने के बाद गुड़ का स्वाद ही नहीं आता।
संज्ञा
[हिं. गुड़+ हर]


गुडाकेश
शिव।
संज्ञा
[सं.]


गुडाकेश
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


गुड़िया, गुड़िला
कपड़े, मोम आदि की बनी छोटी पुतली जिससे बच्चे खेलते हैं।
संज्ञा
[हिं. पुं. गुड्डा]


गुड़िया, गुड़िला
गुड़िया सी- छोटी और सुन्दर।

गुड़ियों का खेल- बहुत सरल काम।

मु.


गुड़ी
पतंग, चंग।
(क) बँधी दृष्टि यों डोर गुडी बस पाछे लागति धावति - १४३१। (ख) परबस भई गुड़ी ज्यों डोलति परति पराये कर ज्यों-पृ. ३३२।
संज्ञा
[हिं. गुड्डी]


गुड़ीला
गुड़-सा मीठा।
वि.
[हिं. गुड़+ ईला (प्रत्य.)]


गुड़ीला
उत्तम, बढ़िया।
वि.
[हिं. गुड़+ ईला (प्रत्य.)]


गुड़ुची, गुड़ूची
एक बड़ी लता,गिलोय।
संज्ञा
[हिं. गुरुच]


गुड्डा
कपड़े, मोम आदि का बना पुतला जिससे बच्चे खेलते हैं।
संज्ञा
[सं. गुरु=खेलने की गोली]


गुड्डा
गुड्डा बाँधना- बुराई या निन्दा करना।
मु.


गुड्डा
बड़ी पतंग।
संज्ञा
[हिं. गुड्डी]


गुड्डी
पतंग, चंग।
(क) अति आधीन भई संग डोलति ज्यों गुड्डी बस डोर-पृ. ३३३।

(ख) हम दासी बिन मोल की ऊधो ज्यों गुड्डी बस डोर–३३२०।

संज्ञा
[सं. गुरु+उड्डीन]


गुढ़, गुढ़ा
छिपने का स्थान।
संज्ञा
[सं. गूढ़]


गुढ़ना
छिपना, लुकना।
क्रि. अ.
[हिं. गुढ़]


गुढ़ि
गढ़-गढ़ाकर, ठीक ठाक करके।
कन्हैया हालरु रे। गढ़-गुढ़ि ल्यायौ बाढ़ई धरनी पर डोलाई बलि हालरु रे -१०-४७।
क्रि. स.
[हिं. गढ़ना (अनु.)]


गुढ़ी
गाँठ, गुत्थी।
संज्ञा
[सं. गूढ़]


गुण
किसी वस्तु की विशेषता।
संज्ञा
[सं.]


गुण
निपुणता, चतुरता।
संज्ञा
[सं.]


गुण
कला, विद्या, हुनर।
संज्ञा
[सं.]


गुण
प्रभाव, असर।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
संगीतज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
रसोइया।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
पाकशास्त्रज्ञ।
संज्ञा
[सं.]


गुणकार
भीमसेन।
संज्ञा
[सं.]


गुणकारक, गुणकारी
लाभदायक।
वि.
[सं.]


गुणगौरि, गुणगौरी
गौरी के समान सौभाग्यवती स्त्री।
संज्ञा
[सं. गुणगौरि]


गुणगौरि, गुणगौरी
एक व्रत जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ चैत की चौथ को करती हैं।
संज्ञा
[सं. गुणगौरि]


गुणग्राहक, गुणग्राही
गुण या गुणी का आदर करनेवाला।
वि.
[सं.]


गुणज्ञ
गुण का पारखी।
वि.
[सं.]


गुणज्ञ
गुणी।
वि.
[सं.]


गुण
शील, सद्‍वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


गुण
गुण गाना- प्रशंसा करना।

गुण मानना- अहसान मानना।

मु.


गुण
विशेषता, खासियत।
संज्ञा
[सं.]


गुण
तीन की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


गुण
रस्सी, डोरा।
संज्ञा
[सं.]


गुण
धनुष की डोरी।
संज्ञा
[सं.]


गुण
एक प्रत्यय जो संख्यावाची शब्दों के अंत में रहता है।
प्रत्‍य.


गुणक
वह अंक जिससे किसी अंक को गुणा किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


गुणकर
लाभदायक।
वि.
[सं.]


गुणकरी, गुणकली
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


कमाल
कबीर के पुत्र का नाम।
संज्ञा
[अ.]


कमाल
पूरा।
वि.


कमाल
सबसे श्रेष्ठ।
वि.


कमाल
अत्यंत।
वि.


कमासुत
कमा कर रुपया लाने वाला।
वि.
[हिं. कमाना+सुत]


कमिहै
कम होगा, घट जायगा।
क्रि. अ.
[हिं. कमना]


कमी
न्यूनता, अभाव, अल्पता।
(क) कहा कमी जाके राम धनी - १ - ३९।

(ख) तुमही कहौ कमी काहे की नवनिधि मेरैं धाम - ३७६।

संज्ञा
[फा. कम]


कमी
हानि, घाटा।
संज्ञा
[फा. कम]


कमुकंदर
शिवजी का धनुष तोड़नेवाले राम
संज्ञा
[सं. कार्मुकं+दर]


कमोदन
कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[हिं. कुमुदिनी]


गुणज्ञता
गुण की परख।
संज्ञा
[सं.]


गुणन
गुणा, जरब।
संज्ञा
[सं.]


गुणनिका
वह नाटकीय अनुष्ठान जो नट कार्यारम्भ के पूर्व विघ्‍न शांति के लिए करते हैं।
संज्ञा
[सं.]


गुणनफल
वह संख्या जो गुणा करने पर निकले।
संज्ञा
[सं.]


गुणवन्त
गुणवान, गुणी।
वि.
[सं.]


गुणवती
जो गुणवान हो।
वि.
[सं.]


गुणवाचक
गुणसूचक।
वि.
[सं.]


गुणवान
गुणवाला।
वि.
[सं.]


गुणसागर
गुणों का समुद्र, गुणनिधि।
वि.
[सं.]


कमोदिक
वह संज्ञीतज्ञ जो कामोद राग गाता हो।
संज्ञा
[सं. कामोद = एक राग+क]


कमोदिक
गवैया, संगीतज्ञ।
बेगि चलौ बलि कुँअरि सयानी। समय बसंत बिपिन रथ हय गय मदन सुभट नृपफौज पलानी। .....। बोलत हँसत चपल बंदीजन मनहुँ प्रसंसित पिक बर बानी। धीर समीर रटत बर अंलिगन मनहुँ कमोदिक मुरलि सुठानी।
संज्ञा
[सं. कामोद = एक राग+क]


कमोदिन, कमोदिनो
कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कमोरा
मिट्टी का चौड़े मुँह का पात्र जिसमें दूध, दही रखा जाता है।
संज्ञा
[सं. कुंभ+ओरा (प्रत्य.)]


कमोरा
घड़ा।
संज्ञा
[सं. कुंभ+ओरा (प्रत्य.)]


कमोरी
मिट्टी का चौड़े मुँह का बर्तन जिसमें दूध-दही रखा जाता है, मटका।
(क) माखन भरी कमोरी देखत, लै लै लागे खान। ......। जौ चाहौ सब देउँ कमोरी, अति मीठौ कत डारत - १० - २६५। (ख) मीठौ अधिक, परम रुचि लागै, तौ भरि देउँ कमोरी - १० - २६७। (ग) हेरि मथानी धरी माट तैं, माखन हो उतरात। आपुन गई कमोरी माँगन हरि पाई ह्याँ घात। .....। आइ गई कर लिए कमोरी, घर तैं निकसे ग्वाल - १० - २७०।

(घ) कहि धौं मधुर बारि मथि माखन काढ़ि जो भरो कमोरी - ३०२८।

संज्ञा
[हिं. कमोरा]


कया
शरीर, काया।
संज्ञा
[हिं. काया]


कये
किये, करने से।
नीर छीर ज्यों दोउ मिलि गये। न्यारे होत न न्यारे कये ११ - ६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करक
मस्तक।
संज्ञा
[सं.]


करक
कमंडलु।
संज्ञा
[सं.]


कर
हाथ।
संज्ञा
[सं.]


कर
कर जोरे- (१) प्रार्थना करती हुई। (२)अनुनय-विनय करती हुई। उ. - मैं अपराध किये सिसु मारे कर जोरे बिललाई - सारा, ३८६। (३) प्रणाम करती हुई। (४) सविनय, विनम्र होकर, सेवा के लिए तत्पर। उ. - अष्टसिद्धि नवनिधि कर जोरे द्वारें रहत खरी - १० - ७६।

कर देति - (१) हाथ पकड़ती है, सहारा देती है। उ. - सूच्छम चरन चलावत बल करि। अटपटात कर देति सुन्दरी उठत तबै सुजतन तन-मन धरि - १० - १२०। (२) रोकती है, मना करती है। कर पसारौं - (किसी से कुछ) माँगूँ, याचना करूँ, कुछ देने के लिए विनती करूँ। उ. - अब तुम मोकौं करौ अजाँची जो कहुँ कर न पसारौं - १० - ३७। कर मारै- हाथ मलता है, झुंझलाता है, निराश या दुखी होता है। उ. - केस पकरि ल्यायौ दुस्सासन, राखी लाज मुरारे। ......। नगन न होति चकित भयौ राजा, सीस धुनै, कर मारै - १ - २५७। कर मीड़त - हाथ मलता है, पछताता है, निराश या दुखी होता है। उ. - (क) हरि दरसन कौं तड़पत अँखियाँ। झाँकति झपति झरोखा बैठी कर मीड़त ज्यौं मखियाँ - २७६६। (ख) सूरदास प्रभु तुमहिं मिलन कौं कर मीड़त पछितात - ३३५०। कर मीड़ै - दुखी होता है, पछताता है। उ.- सुदामा मन्दिर देखि डरयौ। सीस धुनै, दीऊ कर मीड़ै अंतर साँच परयौ -१० उ. --१६८। कर मीजै- हाथ मलकर, दुखी या निराश होकर। उ.- सूरदास बिरहिनी बिकल मति कर मीजै पछिताइ-२७१८।

मु.


कर
हाथी की सूँड़।
देखि सखी हरि-अंग अनूप। ........। कबहुँ लकुट तैं जानु फेरि लै, अपने सहज चलावत। सूरदास मानहु करभी कर बारंबार डुलावत - ६३२।
संज्ञा
[सं.]


कर
सूर्य की किरण।
संज्ञा
[सं.]


कर
प्रजा की आय या उपज से लिया गया राज का भाग।
संज्ञा
[सं.]


कर
उत्पन्न करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर
छल, पाखंड।
संज्ञा
[सं.]


कर
का।
जिनके क्रोध पुहुमि नभ पलटै सूखै सकल सिंधु कर पानी - ९ - ११६।
प्रत्य.
[सं. कृतः]


करइयै
कराइयै, करने में लगाइयै।
दुरजोधन कैं कौन काज जहँ आदर-भाव न पइयै। गुरुमुख नहीं, बड़े अभिमानी, कापै सबे करइयै - १ - २३९।
क्रि. स.
[हिं. करना' का प्रे. कराना’]


करई
करता है।
(क) नसै धर्म मन बचन काम करि, सिंधु अचंभौ करई - ९ - ७८। (ख) इतनी कहत गगनबानी भई, हनू सोच कत करई - ९ - ६६। (ग) बिधु बैरी सिर पर बसे निसि नींद न परई। हरि सुर भानु सुभट बिना यहि को बस करई - २८६१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करक
नारियल की खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


करक
ठठरी, ढाँचा, कंकाल
संज्ञा
[सं.]


करंज, करंजा
झाड़ी, कंजा नाम की कटीली झाड़ी।
भटकत फिरत पात द्रुम बेलनि कुसुम करंज भये। सूर बिमुख पद अंबु न छाँडे बिपैनि बिष बर छये - २९९२। (२) एक पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करंज, करंजा
भूरी आँख वाला।
वि.


करंज, करंजा
खाकी।
वि.


करंड
शहद का छत्ता।
संज्ञा
[सं.]


करंड
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करंड
करंडव हंस।
संज्ञा
[सं.]


करंड
डलिया, पिटारी।
संज्ञा
[सं.]


करंड
हथियार तेज करने का पत्थर।
संज्ञा
[सं.]


करई
एक पात्र, करवा।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करई
एक छोटी चिड़िया।
संज्ञा
[सं. करक]


करक
कमंडलु, करवा।
संज्ञा
[सं.]


करक
अनार, दाड़िम।
सहज रूप की रासि नागरी भूपन अधिक बिराजै...नासा नथ मुक्ता बिंबाधर प्रतिबिंबित असमूच। बीध्यौ कनक पास सुक सुन्दर करक बीच गहि चूंच।
संज्ञा
[सं.]


करक
पलाश।
संज्ञा
[सं.]


करक
कसक, चिनक।
संज्ञा
[हिं. कड़क]


करक
शरीर पर रगड़ से पड़ने वाला चिन्ह।
संज्ञा
[हिं. कड़क]


करकट
कूड़ा।
संज्ञा
[हिं. खर+सं. कट]


करकना
किसी वस्तु का चिटकना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़क (करक)]


करकना
दर्द करना, कसकना, खटकना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़क (करक)]


करकरा
एक तरह का सारस, करकटिया।
संज्ञा
[सं. कर्करेटु]


करकरा
खुरखुरा, जो चिकना न हो।
वि.
[सं. कर्कर]


करकस
कड़ा, कठोर, सख्त।
वि.
[सं. कर्कश]


करखना
खीचना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


करखना
जोश, उमंग या आवेश में आना।
क्रि. अ.
[सं. कर्षण]


करखा
युद्ध के अवसर पर गाये जाने वाले वीरोत्तेजक गीत।
संज्ञा
[हिं. कड़खा]


करखा
उत्तेजना, बढ़ावा, जोश, लाग-डाँट।
नैननि होड़ बदी बरखा सों राति दिवस बरसत झर लाये दिन दूना करखा सों - ३४५७।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करखा
करिखा, कालिख।
संज्ञा
[हिं. कालिख]


करगत
हाथ में आया हुआ, हस्तगत।
वि.
[सं.]


करगस
तीर, भाला, काँटा।
संज्ञा
[सं. कर+हिं गाँस]


करगह
कपड़ा बिनने का यंत्र।
संज्ञा
[हिं. करघा]


करगी
बाढ़।
संज्ञा
[हिं. कर+गहना]


करघा
कपड़ा बिनने का यंत्र।
संज्ञा
[फा. कारगाह]


करचंग
एक बाजा जिससे ताल दी जाती है।
संज्ञा
[हिं. कर+चंग]


करचंग
डफ।
संज्ञा
[हिं. कर+चंग]


करछा
एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. करौछ=काला]


करछैयाँ
हलके काले रंग की गाय।
संज्ञा
[हिं. करौछ=काला]


करछौंह
हलका काला रंग।
संज्ञा
[हिं. करौंछ=काला]


करज
नख, नाखून।
उरज करज मनो सिव सिर पर ससि सारंग सुधागरी–२१११।
संज्ञा
[सं. कर+ज=उत्पन्न]


करज
उँगली।
(क) सिय अन्देस जानि सूरज प्रभु लियौ करज की कोर। टूटत धनु नृप लुके जहाँ-तहँ ज्यों तरागन भोर - ९ - २३। (ख) करज मुद्रिका, कर कंकन छवि, कटि किंकिन नूपुर छबि भ्राजत। (ग) बलिहारी वा बाँसबंस की बंसी-सी सुकुमारी। सदा रहत है करज स्याम के नेकहु होत न न्यारी - ३४१२।
संज्ञा
[सं. कर+ज=उत्पन्न]


कंठ
कंठा, हँसुली।
संज्ञा
[सं.]


कंठ
कंठ फूटना - (१) बच्चों का स्वर साफ होना। (२) युवावस्था में स्वर-परिवर्तन। (३)पक्षियों के गले में रेखा पड़ना।

कंठ लाइ- गले लगाकर। उ. - ध्रुव राजा के चरननि परयौ। राजा कंठ लाइ हित करयौ–४ ६।

मु.


कंठगत
जो गले में अटका हो, जो निकलने को हो।
वि.
[सं.]


कंठगत
प्राण कंठगत होना- मरने लगना।
मु.


कंठमाला
गले का एक रोग जिसमें बहुत सी गाँठे पड़ जाती हैं।
संज्ञा
[सं.]


कँठला
वह गहना जिसमें नजरबट्ट, बाघनख, और दो चार ताबीज गूँथ कर बच्चे को इसलिए पहनाते हैं कि उसे नजर न लगे और अन्य आपत्तियों से वह रक्षित रहे।
संज्ञा
[हिं. - कंठ +ला (प्रत्य.)]


कंठश्री, कंठसिरी
सोने का एक जड़ाऊ गहना जो गले में पहना जाता है, कंठी।
संज्ञा
[सं.]


कंठस्थ
गले में स्थित, कंठगत।
वि.
[सं.]


कंठस्थ
कंठाग्र, जो जबानी याद हो।
वि.
[सं.]


कंठहरिया
कंठी।
सूर सगुन बँटि दियो गोकुल में अब निर्गुन को बसेरो। ताकी छटा छार कँठहरिया जो ब्रज जानो दुसेरो - ३१५४।
संज्ञा
[सं. कंठहार का अल्प,]


करज
ऋण, उधार।
करि अवारजा प्रेम प्रीति कौ, असलत हाँ खतियावै। दूजे करज दूरि करि दैंयत नैंकु न तामै आवै - १ - १४२।
संज्ञा
[अ. कर्ज़, कर्ज]


करट
कौआ।
संज्ञा
[सं.]


करट
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


करटी
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


करण
एक कारक।
संज्ञा
[सं.]


करण
औजार।
संज्ञा
[सं.]


करण
देह।
संज्ञा
[सं.]


करण
क्रिया, कार्य।
संज्ञा
[सं.]


करण
हेतु।
संज्ञा
[सं.]


करण
इन्द्रिय।
संज्ञा
[सं.]


करणिक
काम का कर्ता, कार्यकर्ता।
संज्ञा
[सं.]


करणी, करणीय
करने योग्य।
वि.
[सं. करणीय]


करत
करते हैं।
(क) बिनु बदलैं उपकार करत हैं, स्वारथ बिना करत मित्राई - १ - ३।

(ख) हौं कहा कहौं सूर के प्रभु के निगम करत जाकी क्रीति - १० उ. - १७५।

क्रि. स.
[सं. कण, हिं. करना]


करत
करत (रैनि)- रात करते हो, रात तक बाहर रहते हो, देर लगाते हो। उ. - जसुमति मिलि सुत सौं कहत रैनि करत किहिं काज - ४३७।
मु.


करतब
करनी, करतूत।
देखौ आइ पूत के करतब, दूध मिलावत पानी १० - ३३७।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतब
कला, गुण।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतब
जादू।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतरी, करतल, करतली
हाथ।
करतल-सोभित बान धनुहियाँ - ९ - १६।
संज्ञा
[सं .]


करतरी, करतल, करतली
हथेली, हाथ की गदेरी।
संज्ञा
[सं .]


करतव्य
करने योग्य कार्य या धर्म।
संज्ञा
[सं. कर्तव्य]


करतव्य
करने योग्य।
वि


करता
रचने या करनेवाला।
(क) नर के किएँ कछु नहिं होइ। करता-हरता आपुहिं सोइ - १ - २६१। (ख) मैं हरता करता संसार - ५ - २। (ग) येई हैं श्रीपति भुवनायक, येई करता हैं संसार - ४६७। (२) विधाता, ईश्वर। (३) एक कारक।
संज्ञा
[सं. कर्ता]


करतार
सृष्टि करनेवाला, ईश्वर।
धर्मपुत्र तू देखि बिचार। कारन करनहार करतार - १ - २६१।
संज्ञा
[सं. कर्तार]


करतारी
ईश्वरीय लीला।
संज्ञा
[हिं. करतारी]


करतारी
हाथ से ताली बजाने की क्रिया।
संज्ञा
[सं. कर+हिं. ताली]


करतारी
ताल देने का एक बाजा।
संज्ञा
[सं. कर+हिं. ताली]


करताल, करताली
दोनों हथेलियों के परस्पर बजाने का शब्द, ताली।
दै करताल बजावति, गावति राग अनूप मल्हावै - १० - १३०।
संज्ञा
[सं.]


करताल, करताली
एक बाजा जो लकड़ी या काँसे का होता है। इसका एक जोड़ा हाथ में लेकर बजाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


करताल, करताली
झाँझ, मजीरा।
संज्ञा
[सं.]


करतालिका
हथेली।
गावत हँसत, गॅंवाय हँसावत, पटकि पटकि करतालिका–८०६।
संज्ञा
[सं.]


करताहि
कर्त्‍ता को, ईश्वर को।
रही ग्वालि हरि कौ मुख चाहि। कैसे चरित किए हरि अबहीं बार-बार सुमिरहि करताहि - १० - ३१६।
संज्ञा
[सं. कर्ता+हि (हिं. प्रत्य.)]


करति
करती है, संपादन करती है।
करति बयारि निहारति हरि-मुख चंचल नैन बिसाल - ३९७।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करति
पकाती है, बनाकर तैयार करती है।
नंदधाम खेलत हरि डोलत। जसुमति करति रसोई भीतर आपुन किलकत बोलत १० - १११।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करतूत, करतूति
कर्म, करनी, काम, करतब।
(क) जग जानै करतूति कंस की, बृष मारयौ, बल-बाहीं - २ - २३। (ख) सब करतूति कैकेई कैं सिर, जिन यह दुख उपजायौ - ९ - ५०। (ग) कहा कठिन करतूति न समुझत कहा मृतक अबलनि सर मारति - २८४९।
संज्ञा
[सं. कर्तृत्व]


करतूत, करतूति
कला, हुनर, गुण।
संज्ञा
[सं. कर्तृत्व]


करतौ
(काम) चलाता, संपादित करता, करता।
(क) भक्ति बिना जौ कृपा न करते, तौ हौं आस न करतौ - १ - २०३। (ख) जौ तु हरि कौ सुमिरन करतौ। मेरैं गर्भ आनि अवतरतौ - ४ - ९।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करद
कर देने वाला, अधीन।
वि.
[सं. यर+द= देनेवाला]


करद
सहारा देनेवाला।
वि.
[सं. यर+द= देनेवाला]


करद
छुरा, चाकू।
संज्ञा
[फ़ा. कारद]


करदम
कीचड़।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदम
पाप।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदम
मांस।
संज्ञा
[सं. कर्दम]


करदा
बट्टा, कटौती।
संज्ञा
[हिं. गर्द]


करदा
बदलाई।
संज्ञा
[हिं. गर्द]


करधनि
कमर में पहनने का एक गहना। बच्‍चों के लिए यह घुँचरूदार होता है; जब वे चलते हैं तब इसके घुँघरु बजते हैं।
तनक कटि पर कनक-करधनि छीन छबि चमकाति - १० - १८४।
संज्ञा
[हिं. करधनी]


करधनी
कमर में पहनने का सोने-चाँदी का एक गहना जिसमें बच्चों के लिए घुँघरु लगाये जाते हैं।
संज्ञा
[सं. कटि+आधाना। सं. किंकिणी]


करधनी
कई लड़ों का सूत जो करधनी की तरह कमर में पहनने के काम आता है। इस सूत का रंग प्रायः काला होता है।
संज्ञा
[सं. कटि+आधाना। सं. किंकिणी]


करधर
बादल, मेघ।
करधर की धरमैर सखी री की सृक सीपज की बगपंगति की मयूर की पीड़ पखी री।
संज्ञा
[सं. कर =वर्षोपल+धर = धारण करनेवाला]


करन
कुंती का सबसे बड़ा पुत्र जो उसके कन्य काल में ही सूर्य से उत्पन्न हुआ था।
करन-मेघ- बान- बूँद भादौं-झरि लायौ। जित-जित मन अर्जुन कौ तितहिँ रथ चलायौ - १ - २३।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करन
करना,
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
संपादित करना।
(क) पारथ-तिय कुरुराजसभा मैं बोलि करन चहै नंगी। स्रवन सुनत करुनासरिता भये बाढ़ै बसन उमंगी–१ - २१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
पकाना, बचाना, तैयार करना।
जेवन करन चली जब भीतर छींक परी तों आजु सबारे - ५९५।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करन
करने योग्य, जिसका संपादन करना संभव हो।
दयानिधि तेरी गति लखि न परै। धर्म अधर्म, अधर्म धर्म करि, अकरन करन करै - १ - १०४।
वि.
[सं. करणीय]


करन
करनेवाले, कर्त्‍ता।
भजि मन नंद-नंदन चरन। परम पंकज अति मनोहर सकल सुख के करन - १ - ३०८।
संज्ञा
[सं. करण]


करन
इन्द्रिय।
छल-पल राउरे की आस। करन नाव सुपंच संज्ञा जान के सब नास - सा. उ ४१।
संज्ञा
[सं. करण]


करन
एक ओषधि।
संज्ञा
[देश.]


करनख
हाथ की छेटी उँगली का नाखून।
संज्ञा
[सं. कर+नख]


करनख
वर-नख पर धारी- हाथ की छोटी उँगली पर उठान, बहुत थोड़े परिश्रम से उठाना। उ. - राख्यौ गोकुल बहुत विघन तैं, कर नख पर गोबर्धन धारी - १ २२।
मु.


करनधार
माँझी, मल्लाह, केवट।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


करनपितु
कर्ण का पिता सूर्य।
माधो कीजिए बिस्राम। उदौ चाहत लेन बैरी करन-पितु हितु जाम - सा. ८८।
संज्ञा
[सं कर्ण+हिं. पिता]


करनफूल
कान में पहनने का सोने-चांदी का एक गहना जो सादा और जड़ाऊ, दोनों तरह का होता है, तरौना, काँप।
जिन स्रवनन ताटंक खुमी अरु करनफूल खुटिलाऊ। तिन स्रवनन कस्मीरी मुद्रा लै लै चित्र झुलाऊ - ३२२१।
संज्ञा
[सं. कर्ण + हिं. फूल]


करनबेध
बच्चों का एक संस्कार जिसमें कान छेदे जाते हैं, कर्णछेदन संस्कार।
संज्ञा
[सं. कर्णबेध]


करनहार
करने वाला, रचनेवाला।
तब भीषम नृप सौं यौं कहयौ। धर्मपुत्र तू देखि बिचार कारन करनहार करतार - १ - २६१।
संज्ञा
[सं करण + हिं. हार (प्रत्य.)]


करना
(काम को) चलाना या संपादित करना।
(क) काहूँ कह्यौ मंत्र जप करना। काहूँ कछु, काहूँ कछु बरना - १ - ३४१। (ख) तातैं संत-संग नित करना। संत-संग सेवौ हरिचरना - ५ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
पकाना, रींधना, तैयार करना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
देखना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
पति वा पत्नी बनाना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
व्यवसाय करना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
सवारी ठहराना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
बनाना, या नया रूप देना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करपर
कंजूस।
वि.
[सं. कृपण]


करपरी
पीठी की पकौड़ी।
संज्ञा
[देश.]


करपाल
खड्ग, तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करबर
अलप, घात, विपत्ति, आपत्ति।
(क) ढोटा एक भयौ कैसैहुँ करि, कौन कौन करबर बिधि भानी - ३६८।

(ख) कौनकौन करबर हैं टारे। जसुमति बाँधि अजिर लै डारे ९१। (ग) आनँद बधावनो मुदित गोप गोपीगन आजु परी कुसल कठिन करबर तैं। (घ) बड़ी करबर टरी साँप सों ऊबरी, बात के कहत तोहि लागत जरनी। (ङ) जबते जनम भयौ हरि तेरौ कितने करबर टरे कन्हाई।

संज्ञा
[हिं. करवर]


करबार
तलवार।
कोपि करबार गहि कह्यौ लंकाधिपति, मूढ़ कहा राम कौं सीस नाऊँ - ९ - १२६।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करभा
हाथी का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


करभा
हथेली के पीछे का भाग।
संज्ञा
[सं.]


करभा
कटि, कमर।
संज्ञा
[सं.]


करभ-कर
हाथी के बच्चे की सूँड़।
संज्ञा
[सं.]


करभा
हाथी का बच्चा।
(क) देखि सखी हरि अंग अनूप।.......। कबहुँ लकुट तैं जानु फेरि लै, अपने सहज चलावत। सूरदास मानहुँ करभा कर बारंबार चलावत - ६३२। (ख) चरन की छबि देखि डरप्यो अरुन गगन छपाइ। जानु करभा की सबै छबि निदरि लई छड़ाइ - १० - २३४।
संज्ञा
[सं. करभ]


करनि
मृतक-संस्कार।
संज्ञा
[हिं. करनी]


करनी
सुकृत्य, कार्य, कर्म, महिमा।
(क) करनी करुनासिंधु की मुख कहत न आवै - १ - ४। (ख) गनिका तरी आपनी करनी नाम भयौ तोरो - –१ - १२२। (ग) सूरदास प्रभु मुदित जसोदा पूरन भई पुरातन करनी - १० - ४४। (घ) मुरली कौन सुकृत-फल पाये।…..लघुता अंग, नहीं कुछ करनी, निरखत नैन लगाये ६६१। (ङ) लिखी मेटै कौन, करै करता जौन, सोइ ह्वै है जु होनहारि करनी - ६९८। (च) देखो करनी कमल की, कीनो जल सों हेत। प्रान तज्यौ प्रेम न तज्‍यौ, सूख्यौ सरहि समेत।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
करतूत (हीनता या उपेक्षा सूचक प्रयोग)।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
मृतक-क्रिया या संस्कार, अन्तेष्ठि कर्म।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
दीवार पर गारा लगाने की कन्‍नी।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
करना, करने की क्रिया।
मंदाकिनितट फटिक सिला पर, मुख-मुख जोरि तिलक की करनी। कहा कहौं, कछु कहत न आवै, सुमिरत प्रीति होइ उर अरनी - ९ - ११०।
संज्ञा
[हिं. करना]


करनी
हथिनी, हस्तिनी।
मानो ब्रज ते करनी चली मदमाती हो। गिरधर गज पै जाइ ग्वारि मदमाती हो। कुल अंकुस मानै नहीं मदमाती हो। संका बढ़े तुराइ मदमाती हो - २४०१।
संज्ञा
[सं. करिणी]


करनी
करना, संपादित करना।
मेरी कैंती बिनती करनी। पहिले करि प्रनाम, पाइनि परि, मनि रघुनाथ हाथ लै धरनी - ९ - १०१।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करनेता
रंग के आधार पर किये गये घोड़ों के भेदों में एक।
संज्ञा
[हिं. कर्नेता]


करपर
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं. कर्पर]


करना
कोई पद देना।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करना
एक पौधा जिसमें सफेद फूल लगते हैं, सुदर्शन।
जाही जूही सेवती करना अनिआरी। बेलि चमेली मालती बूझति द्रुमडारी–१८२२।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करना
पहाड़ी नीबू।
संज्ञा
[सं. करुण]


करना
किया हुआ काम, करनी, करतूत।
संज्ञा
[सं. करण]


करनाई
तुरही।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
सिंघा, भोंपा, नरसिंहा।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
बड़ा ढोल।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनाल
तोप।
संज्ञा
[अ. करनाय]


करनावली
सुदर्शन के पौधों का समूह जिनमें सफेद फूल लगते हैं।
कमल बिकच करनावली मुद्रिका बलय पुट भुज बेलि शुकचारी - २३०९।
संज्ञा
[हिं. करना+सं. अवली]


करनि
कार्य, कर्म, करनी, करतूत।
(क) बिनती करत डरत करुनानिधि, नाहिँन परत रह्यौ। सूर करनि तरु रच्यौ जु निज कर, सो कर नाहिं गह्यौ - १ - १६२। (ख) सुनहु सूर वह करनि कहनि यह, ऐसे प्रभु के ख्याल - ५९८। (ग) सुनहु सूर ऐसेउ जन-जग में करता करनि करे - पृ. ३३२।
संज्ञा
[हिं. करनी]


कंथी
भिखमंगा।
संज्ञा
[सं. कंथा=गुदड़ी]


कंद
गूदेदार और बिना रेशे की जड़
संज्ञा
[सं.]


कंद
कोमल मीठी दूब।
विहल भई जसोदा डोलतदुखित नंद उपनंद। धैनु नहीं पय स्रवति रुचिर मुख चरति नाहिं तृंन कंद - २७६०।
संज्ञा
[सं.]


कंद
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कंद
जमी हुई चीनी, मिसरी।
संज्ञा
[फ़ा]


कंदन
नाश, ध्वंस।
संज्ञा
[सं.]


कंदन
नाशक, ध्वंस करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कंदना
नाश करना, मारना।
क्रि. स.
[हिं. कंदन]


कंदर
गुफा, गुहा।
(क)सज्‍जा पृथ्वी करी विस्तार। गृह गिरि - कंदर करे अपार - २ - २०। (ख) अहो विहंग, अहो पन्नन- नृप, या कंदर के राइ। अबकैं मेरी विपति मिटावौ, जानकि देहु बताइ - ६ - ६४।
संज्ञा
[सं.]


कंदर
अंकुश।
संज्ञा
[सं.]


करभीर
सिंह।
संज्ञा
[सं.]


करभूषन
हाथ का भूषण, आरसी, आइना।
कर भूषन तन हेरन लागी गयो देख मन चोरे - सा. १००।
संज्ञा
[सं. कर+भूषण]


करभोरु
हाथी की सूड़ की तरह चिकनी और सुडौल जाँघ।
पृथु नितंब करभोरु कमल-पद-नख-मनि चंद्र अनूप। मानहु लुब्ध भयो बारिज दल इंदु किये दस रूप।
संज्ञा
[सं.]


करभोरु
सुंदर या सुडौल जाँघवाली।
वि.


करम
कर्म, करनी।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करम
कर्म का फल, भाग्य।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करम
करम का टेढ़ा या तिरछा होना - भाग्य फूटना, किस्मत खोटी होना। उ.- पालागौं छाँड़ौ अब अंचल बार-बार बिनती करौं तेरी। तिरछो करम भयो पूरब को प्रीतम भयो पाँय की बेरी।

करम के ओछे - भाग्य हीन, अभागा। उ.- कौन जाति अरु पाँति बिदुर की ताहीं कैं पग धारत। भोजन करत माँगि घर उनकैं राज मान-मद टारत। ऐसे जन्मकरम के ओछे ओछनि हूँ ब्योहारत। यहै सुभाव सूर के प्रभु कौ, भक्त-बछल प्रन पारत - १ - १२। करम कौ मारौ- भाग्यहीन, अभागा। उ.- जौ पै तुमहीं बिरद बिसारौ। तौ कहौ कहाँ जाइ करुनामय कृपिन करम कौ मारौ - १ - १५७।

मु.


करम
हरदू या हलदू नामक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


करमचंद
कर्म, करनी, भाग्य।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करमट्ठा
सूम, कंजूस।
वि.
[सं. कृपण]


करमठ
कर्म करने में आनन्द लेने वाला।
वि.
[सं. कर्मठ]


करमठ
कर्मकांडी।
वि.
[सं. कर्मठ]


करमात
कर्म, भाग्य, किस्मत।
वह मूरति द्वै नयन हमारे लिखी नहीं करमात। सूर रोम प्रति लोचन देतो बिधिना पर तर मात १४१८।
संज्ञा
[सं. कर्म]


करमाली
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


करमी
कर्म में आनंद लेनेवाला, कर्मनिष्ठ।
वि.
[सं. कर्म]


करमुखा, करमुहाँ
कलंकी, पापी।
वि.
[हिं. काला+मुख]


करमुखा, करमुहाँ
काले मुंह वाला।
वि.
[हिं. काला+मुख]


करर
एक जहरीला कीड़ा।
संज्ञा
[देश.]


करर
एक पौधा जिसके बीजों से तेल निकलता है जिससे मोमजामा बनाया जा सकता है।
संज्ञा
[देश.]


कररना, करराना
चरमर या मरमर शब्द करके टूटना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कररना, करराना
कड़ा शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कररान
धनुष की टंकार।
संज्ञा
[अनु.]


कररि, कररी.
वनतुलसी, ममरी।
ऊधो तनिक सुपस स्रौनन सुन। कंचन काँच कपूर कररि रस, सम दुख-सुख गुन-औगुन–३००१।
संज्ञा
[सं. कर्बर]


करल
कड़ाह, कड़ाही।
संज्ञा
[सं. कटाह]


करला
कोंपल, कोमल पत्ता।
संज्ञा
[हिं. कल्ला]


करली
कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[सं. करील]


करवट
एक बगल होकर लेटना।
संज्ञा
[सं. करवर्त, प्रा. करवट्ट]


करवट
करवत, आरा।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत]


करवट
प्रयाग, काशी आदि स्थानों में जो आरे या चक्र होते थे, वे करवट कहलाते थे। इनके नीचे लोग सुफल की आशा से प्राण देते थे। काशी-करवट लेना विशेष फलदायक समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत]


करवत
आरा नामक दाँतेदार औजार।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत्त]


करवत
प्रयाग, काशी आदि स्थानों में करवत रहते थे जिनके नीचे प्राण देने से सुफल मिलने की आशा होती थी।
(क) कहा कहौं कोउ मानत नाहीं इक चंदन औ चंद करासी। सूरदास प्रभु ज्यों न मिलैंगे लेहौं करवत कासी। (ख) गोपी ग्वाल-बाल वृन्दाबन खग मृग फिरत उदासी। सबई, पान तत्यौ चाहत है को करवत को कासी - ३४२२।
संज्ञा
[सं. करपत्र, प्रा. करवत्त]


करवर
अलप, विपत्ति, संकट, कठिनाई।
(क) त्राहि त्राहि कहि ब्रज-जन धाए, अब बालक क्‍यौं बचै कन्हाई। .......। करवर बड़ी हरी मेरे की, घर घर आनंद करत बधाई - १० - ५१। (ख) मैं नहिं काहू को कछु घाल्यौ पुन्यनि करवर नाक्यौ–२३७३।
संज्ञा
[देश.]


करवरना
चहकना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कलरव, हिं. करवर, कलबल]


करवाई
करने को प्रवृत्त किया।
रिषि नृप सौँ जग-बिधि करवाई। इला सुता ताकैं गृह जाई - ६ - २।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवाये
करने को प्रेरित किया।
राजनीति मुनि बहुत पढ़ाई गुरु सेवा करवाये - सारा. ५३८।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवायौ
करने को प्रवृत्त किया।
दिन दस लौं जलकुम्भ साजि सुचि, दीप-दान करवायौ - ९ - ५०।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवायौ
सिद्ध किया, संपादित किया।
करि दिग्विजय विजय को जग में भक्त पक्ष करवायौ - सारा, ८४१।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवार, करवाल
तलवार।
दामिनि करवार करनि कंपत सब गात उरनि जलधर समेत सेन इन्द्र धनुष साजे - २८१६।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करवाली
करौली, छोटी तलवार।
संज्ञा
[सं. करबाल]


करवावति
संपादन कराती है, (कार्य आदि) कराती है, (कर्म आज्ञापालन आदि) करने को प्रवृत्त करती है।
कोमल तन आज्ञा करवावति, कटिटेढ़ी ह्वै आवति - ६५५।
क्रि. स.
[हिं. करवाना]


करवीर
कनेर का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करवीर
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


करवीर
चेदि देश का एक प्राचीन नगर जहाँ के राजा शिशुपाल ने कृष्ण-बलराम से युद्ध किया था।
संज्ञा
[सं.]


करवील
करील, टेंटी का पेड़, कचरा।
कुमुद कदब कोविद कनक आदि सुकंज। केतकी करवील बेलउँ बिमल बहुबिधि मंत - २८२८।
संज्ञा
[सं.]


करवैया
करनेवाला।
वि.
[हिं. करना+वैया (प्रत्य.)]


करवोटी
एक चिड़िया।
संज्ञा
[देश.]


करष
खिचाव।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करष
मनमोटाव, द्रोह।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करष
क्रोध, ताव।
संज्ञा
[सं. कर्ष]


करषक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं. कर्षक]


करषत
खीचता है, घसीटत समय।
करषत सभा द्रुपद-तनया कौ अंबर अछय कियौ। सूर स्याम सरबज्ञ कृपानिधि, करुना मृदुल हियौ - १ - १२१।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषत
खीचती है, तानती है, घसीटती है।
दिन थोरी, भोरी, अति गोरी, देखत ही जु स्याम भए चाढ़ी। करषति है दुहु करनि मथानी, सोभा-रासि भुजा सुभ काढ़ी -१० - ३००।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषन
खीचना, खीचने का प्रयत्न करना।
हरष हरष करषन चित चाहत तेहितें का प्रतिनीक - सा. ५८।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषना
खींचना, घसीटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
सोख लेना, सुखाना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
बुलाना, निमंत्रित करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषना
इकट्टा करना, समेटना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करषहिं
खींचते हैं, आकर्षित करते हैं।
क्रि. स.
[हिं. करषना]


करषि
आकर्षण करके, समेट या बटोर कर।
(क) छिन इक मैं भृगुपति प्रताप बल करषि हृदय धरि लीनौ ९ - ११५। (ख) सकुचासन कुल सील करषि करि जगत बंध कर बंदन। मौनअपबाद पवन आरोधन हित क्रम काम निकंदन–३०१४।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषि
खीचकर, तानकर।
(क) पिय बिनु बहत बैरिन बाय। मदनबान कमान ल्यायो करषि कोपि चढ़ाय - सा. ३२। (ख) केस गहि करषि जमुना धार डारि दै सुन्यौ नृप नारि पति कृष्‍न मारयौ - २६१८। (ग) इन औरन अमरन सुख दीनों करषि केस सिर कंस - ३०१८।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषे
आकर्षण किये, समेटे, इकट्टा किटे, बटोरे, खीचे।
अंकम भरि भरि लेत स्याम कौं ब्रैज नर-नारि अतिहिँ मन हरषे। सूर स्याम संतन सुखदायक दुष्टन के उर सालक करषे - ६०७।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, हिं. करषना]


करषै
खींचती है, आकर्षित करती है, घसीटती है, तानती है।
(क) मंजुल तारनि की चपलाई, चित चतुराई करषै री - १० - १३७।

(ख) जसुमति रिसकरि करि रजु करषै - १० - ३४२।

क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करषै
समेटती है, बटोरती है, इकट्टा करती है।
सूरदास गोपी बड़भागिनि हरि-सुख क्रीड़ा करषै हो - २४००।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
आकर्षित किया, समेट लिया, बटोर लिया।
जिहिँ भुज परसुरराम बल करष्‍यौ, ते भुज क्‍यौँ न सँभारत फेरी १ - ९ - ९३।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
खीचा, एकाग्र किया, लगाया।
जब पूरी सुनि हरि हरष्‍यौ। तव भोजन पर मन करष्यौ - १० - १८३।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करष्यौ
ताना, घसीटा, दबाया
अंकुस राखि कुंभ पर करष्यौ हलधर उठे हँकारी - २५९४।
क्रि. स.
[स. कर्षण, हिं. करषना]


करसना
खीचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करसना
बुलाना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


करसाइल
काला मृग।
संज्ञा
[हिं. करसायल]


करसायर
किसान, खेतिहार।
संज्ञा
[सं. कृषाण]


करसायल, करसायल
काला मृग।
संज्ञा
[सं. कृष्णसार]


करसी
उपला या कंडा।
संज्ञा
[सं. करीष]


करसी
उपले या कंडे का टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. करीष]


करह
ऊँट।
संज्ञा
[सं. करभ]


करह
फूल की कली।
संज्ञा
[सं. कलि:]


करहाट, करहाटक
कमल की जड़।
संज्ञा
[सं.]


करहाट, करहाटक
कमल का छत्ता या छत्र।
संज्ञा
[सं.]


करहाट, करहाटक
मैनफल।
संज्ञा
[सं.]


करहु
करो।
पहिलेहिं रोहिनि सौं कहि राख्यौ, तुरंत करहु ज्योनार - ३९५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कराँकुल
एक बड़ी चिड़िया जो पानी के किनारे रहती है।
संज्ञा
[सं. कलांकुर]


करा
अंश, भाग।
संज्ञा
[सं. कला]


कराइबो
किया, संपादित कराया।
जुवा-जुवती खेलाइ कुल-व्यवहार सकल कराइबो। जननि मन भयौ सूर आनँद हरषि मंगल गाइबो - १० उ. - १२४।
क्रि. स.
[सं. करना]


कराई
कराते हैं, कराया।
(क) गावैं सखी परस्पर मंगल, रिषि अभिषेक कराई - ९ - १७।

(ख) कर परनाम देवगुरु द्विज को जल सुस्नान कराई–सारा. २१४।

क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराई
कर दी, (देर) लगा दी।
धेनु नहिं देखियत कहुँ नियरैं, भोजन ही मैं साँझ कराई–४७१।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराई
कालापन, श्यामता।
मुख मुखी सिर पखौआ बन-बन धेनु चराई। जे जमुना-जल रंग रॅंगे हैं ते अजहूँ नहिं तजत कराई।
संज्ञा
[हिं. कारा, काला]


कराऊँगो
कराऊँगा, कर लूँगा।
तब तनु परसि काम दुख मेरो जीवन सफल कराऊँगो - १९४३।
क्रि. स.
[हिं. करन]


कराएँ
कराने से, (किसी काम आदि में) लगने से।
कहा होत पय-पान कराएँ, विष नहिं तजत भुजंग - १ - ३३२।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना’ का प्रे. ‘कराना’]


कराना
करने को प्रवृत्‍त करना, करने में लगाना।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराया, करायौ
कराने को प्रेरित किया।
(क) असुर जोनि ता ऊपर दीन्ही, धर्म-उछेद करायौ - १ - १०४।

(ख) जानि एकादस बिप्र बुलाए, भोजन बहुत करायो - ९ - ५०।

क्रि. स. (भूत.)
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराया, करायौ
किये, बनाये, अंगीकार किये, माने।
कही कथा दत्तात्रय मुनि की गुरु चौबीस करायो - सारा. ८४३।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. ‘करना' का प्रे.]


कराग
कठोर।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
ट्ट्ढ़चित्‍त।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
कुर कुर शब्द करने वाला।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
उग्र, तेज।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
खरा, चोखा।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


कराग
हट्ठा-कट्ठा।
वि.
[हिं. कड़ा, कर्रा]


करारी
उग्र, तेज, तीक्ष्‍ण।
चकित देखि यह कहैं नर-नारी। धरनि अकास बराबरि ज्वाला झपटति लपट करारी - ५१८।
वि.
[हिं. पुं. कड़ा, कर्रा करारा]


कराल
डरावना, भयानक, भीषण।
(क) सूर सुजस-रागी न डरत मन, सुनि जातना कराल - १ - १८९ (ख) उचटत अति अँगार फुटत झर, झपरत लपट कराल - ६१५।
वि.
[सं.]


कराल
बड़े दाँत वाला।
वि.
[सं.]


कराल
ऊँचा।
वि.
[सं.]


कंध
कंधा।
चारि पहर दिन चरत फिरत बन, तऊ न पेट अवैहौ। टूटे कंधऽरु फूटी नावनि, कौ लौं धौं भुस खैहौं - १ - १३१।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंध
सिर।
तू भुल्यौ दससीस बीउ भुज, मोहि गुमान दिखावत। कंध उपारि डारिहौं भूतल, सूर सकल सुख पावत - ९ - १३३।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंध
तने का ऊपरी भाग जहाँ से शाखाएँ फूटती हैं।
संज्ञा
[सं. स्कंध]


कंधनी
मेखला, करधनी।
संज्ञा
[हिं. करधनी]


कंधर
गरदन
संज्ञा
[सं.]


कंधर
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कंधरा
गरदन।
संज्ञा
[हिं. कंधर]


कंधा
गले और मोढ़े के बीच का भाग।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]


कंधा
बाहुमूल, मोढ़ा।
संज्ञा
[सं. स्‍कंध, प्रा. कंध]


कंधार, कंधारी
केवट, मल्‍लाह, माँझी।
कहो कपि कैसे उतरयौ पार। दुस्तर अति गंभीर बारिनिधि सत जोजन बिस्तार। राम प्रताप सत्य सीता को यहै नाव कंधार। बिन अधार छन में अवलंघयौ आवत भई न बार - ९ - ८७।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


करार
नदी का किनारा।
मैं तौ स्याम-स्याम कै टेरैति कालिंदी के करार - २७६९।
संज्ञा
[सं. कराल-ऊँचा। हिं. कट=करना+सं. आर=किनारा]


करार
स्थिरता, ठहराव।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
धीरज, संतोष।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
आराम।
संज्ञा
[अ. करार]


करार
वादा, प्रतिज्ञा।
संज्ञा
[अ. करार]


करारत
कर्कश स्वर करता है, (कौवा) काँ काँ बोलता है।
कुँवरि ग्रसित श्री खंड अहि भ्रम चरन सिलीमुख लाग। बानी मधुर जानि पिक बोलत कदम करारत काग - १८२६।
क्रि. अ.
[हिं. करारना]


करारना
कर्कश शब्द करना, कौए का काँ काँ बोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कराग
नदी का ऊँचा किनारा।
संज्ञा
[हिं. करार=किनारा]


कराग
टीला।
संज्ञा
[हिं. करार=किनारा]


कराग
कौआ।
संज्ञा
[सं. करट]


करालिका, कराली
अग्नि की एक जिह्वा।
संज्ञा
[सं.]


करालिका, कराली
डरावनी, भयावनी।
वि.


करावत
कराते हैं, करने में प्रवृत्त करते हैं।
सूरदास संगति करि तिनकी, जे हरि सुरति करावत - १ - १७।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावति
कराती है।
तुमसौं कपट करावति प्रभु जू , मेरी बुद्धि भरमावै - १ - ४२।
क्रि. स.
[हिं. कराना (‘करना’ का प्रे.)]


करावते
कराते हैं।
सूरदास स्वामी तिहिं अवसर पुनि-पुनि प्रगट करावते - २७३५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावन
कराने के लिए, संपादित करने के उद्देश्य से।
पूतना पयपान करावन प्रेम-सहित चलि आई - सारा. ७४६।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


करावहु
कराओ, करने को प्रवृत्त करो।
तुब मुख-चंद्र, चकोर-दृग, मधुपान करावहु - १० - २३२।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराबै
कराता है, करवाये या करवावै।
असरन-सरन सूर जाँचत है, को अब सुरति करावै - १ - १७।
क्रि. स.
[हिं. ‘करना' का प्रे. रूप]


करावौ
करो, करवाओ, करने को प्रवृत्त करो।
अरी, मेरे लालन की आजु बरष-गाँठि, सबै सखिनि कौं बुलाई मंगल-गान करावौ - १० - ९५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराह, कराहा
पीड़ा या कसक सूचक दुखभरा शब्द।
संज्ञा
[हिं. करना+आह]


करिया
पतवार, कलवारी।
सारंग स्यामहिं, सुरति कराई। पौढ़े होंहि जहाँ नँदनंदन ऊँचे टेर सुनाइ। गए ग्रीषम पावस रितु आई सब काहू चित चाइ। तुम बिनु ब्रजबासी यौं जीवैं ज्यौं करिया बिनु नाइ - २८४४।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
माँझी, केवट, मल्लाह।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
पतवार या कलवारी थामने वाला।
संज्ञा
[सं. कर्ण]


करिया
काला, श्याम।
वि.


करियाई
कालिमा, श्यामता।
संज्ञा
[हिं. करिया+ई (प्रत्य.)]


करियाई
कालिख।
संज्ञा
[हिं. करिया+ई (प्रत्य.)]


करियारी
विष।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करियारी
लगाम, बाग।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करियै
करिए (आदरसूचक) कीजिए।
या देही कौ गरब न करियै, स्यार काग, गिद्ध खैहैं - १ - ८६।
क्रि. स.
[सं.करण, हि.करना]


करियौ
करना।
बंधू, करियौ राज सँभारे। राजनीति अरु गुरु की सेवा गाइ-बिप्र प्रतिपारे - ९ - ५४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


कराह, कराहा
कड़ाह, कड़ाही।
संज्ञा
[हिं. कराह]


कराहना
पीड़ा या कसक सूचक शब्द करना, आह-आह या हाय-हाय करना।
क्रि. अ.
[हिं. कराह]


कराहि
(इच्छा आदि) पूर्ण करें, करावें।
यह लालसा अधिक मेरैं जिय, जो जगदीस कराहिं। मो देखत कान्हा यहि आँगन, पग द्वै धरनि धराहिं—१० - ७५।
क्रि. स.
[हिं. कराना]


कराहि
हाय-हाय या आह-आह करके।
क्रि. अ.
[हिं. कराहना]


कराहीं
करते हैं।
घरी इक सजन-कुटुंब मिलि बैठैं, रुदन बिलाप कराहीं - १ - ३१९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिंद
श्रेष्ठ हाथी।
संज्ञा
[सं. करीदं]


करिंद
ऐरावत हाथी।
संज्ञा
[सं. करीदं]


करि
सूड़वाला, अर्थात हाथी।
संज्ञा
[सं. करी, करिन्]


करि
करके।
बकी कपट करि मारन आई, सो हरि जू बैकुंठ पठाई - १ - ३।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करि
बनाकर, रूप बदल कर।
सुन्दर गऊ रूप हरि कीन्हौ। बछरा करि ब्रह्मा संग लीन्हौं–७ - ७।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करि
द्वारा, से, जरिये से।
तैं कैकई कुमंत्र कियौं। अपने कर करि काल हँकारयौ, हठ करि नृप अपराध लियौ - ९ - ४८।
अव्य.


करि
की।
बाला बिरह दुसह सबहीं कौं जान्यौ राजकुमार। बान बृष्टि स्रोनित करि सरिता, ब्याहत लगी न बार–९–१२४।
प्रत्य.
[हिं. की]


करिखई, करिखा
कालापन।
संज्ञा
[हिं.कालिख]


करिणी, करिनी
हथिनी।
संज्ञा
[सं. पुं. करि]


करिबदन
जिनका मुँह हाथी का सा है, गणेश।
संज्ञा
[सं.]


करिबे
करने में, करने (के लिए)।
(क) अब यह बिथा दूरि करिबे कौं और न समरथ कोई - १ - ११८। (ख) सूर सु भुजा समेत सुदरसन देखि बिंरचि भ्रम्यौ। मानौ आन सृष्टि करिबे कौ, अंबुज नाभि जम्यौ - १ - २७३। (ग) थकित बिलोकि सारदा बर्नन करिबे बहुत प्रसंग –सारा. ९९६।
क्रि. स.
[हि. करना]


करिबे
रचने (को), बनाने (के लिए)
दियो बरदान सृष्टि करिबे को अस्तुति करि प्रमान–सारा. ५२।
क्रि. स.
[हि. करना]


करिबो
करना, संपादन करना।
सूर सुकमलन के बिछुरे झूठो सब जतननि को करिबो - २८६०।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करियत
करते हैं।
सूधी निपट देखियत तुमकौं तातैं करियत साथ। –६७४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिया
किये, कर दिये।
उपमा काहि देऊँ, को लायक, मन्मथ कोटिं वारने करिया - ६८८।
क्रि. अ.
[हिं. वरना]


करिहौ
करोगे, संपादित करोगे।
पतित-पावन-बिरद् साँच कौन भाँति करिहौ - १ - १२४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहौ
पैदा करोगे, अर्जन करोगे।
स्रुति पढ़िकै तुम नहिं उद्धरिहौ, बिद्या बेंचि जीविका करिहौ–४ - ५।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
की।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धरी लाजैं—१ - ५। (ख) अबलौं ऐसी नाहीं सुनी। जैसी करी नंद के नंदन अद्भुत बात गुनी - सा. १०४। उ. - पावक जठर जरन नहिं दीन्हौ, कंचन सी मम देह करी - १ - ११६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
रची, बनायी।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करी
हाथी।
पाइ पियादे धाइ ग्रह सौं लीन्हौ राखि करी - १ - १६।
संज्ञा
[सं. करि, करिन्]


करी
अधखिला फूल, कली।
संज्ञा
[सं. कांड, हिं. कली]


करीजै
कीजिए।
(क) अब मोपै प्रभु कृपा करीजै। भक्ति अनन्य आपुनी दीजै ३ - १३। (ख) साधु-संग प्रभु मोकौँ दीजै। तिहि संगति निज भक्ति करीजै - ७ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करीना
मसाला।
संज्ञा
[हिं. केराना]


करीब
पास, समीप।
क्रि. वि.
[अ.]


करीब
लगभग।
क्रि. वि.
[अ.]


करीम, करीमा
कृपालु, दयालु।
वि.
[अ.]


करीम, करीमा
ईश्वर।
संज्ञा


करीर
बाँस का नया कल्ला।
संज्ञा
[सं.]


करीर
करील का झाड़ीदार पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करीर
घड़ा।
संज्ञा
[सं.]


करील
एक तरह की झाड़ी जिसमें पत्तियाँ नहीं होतीं, केवल गहरे हरे रंग की पतली-पतली डंठले फूटती हैं। ब्रज में करील बहुत होते हैं। इसका फल कसैला होता है जिसे टेंटी कहते हैं।
जिहिँ मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यौं करीलफल भावै - १ - १६८।
संज्ञा
[सं. करीर]


करीश, करीस
गजेंद्र।
संज्ञा
[सं. करि+ईश]


करीष
गोबर जो जंगलों में पड़े-पड़े सूख जाता है और जलाने के काम आता है।
संज्ञा
[सं.]


करु
करो, अमल में लाओ।
सूर बुलाइ पूतना सौं कह्यौ, करु न बिलम्ब घरी - १० - ४८।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करुआ
कडुआ, तीक्ष्ण।
वि.
[सं. कटुक]


करिल
नया कल्ला, कोंपल।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


करिल
काला।
वि.


करिहाँ, करिहाँउँ, करिहाँव, करिहैंयाँ
कमर, कटि।
संज्ञा
[सं. कटिभाग]


करिहारी
कलियारी, विष।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करिहारी
लगाम।
संज्ञा
[सं. कलिकारी]


करिहैं
करेंगे, निबटाएँगे, संपादित करेंगे।
काके हित श्रीपति ह्याँ ऐहैं, संकट रच्छा करिहैं ? - १ - २९।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहैं
ब्याहेंगे, अपनाएँगे।
(नंद जू) आदि जोतिषी तुम्हारे घर कौ पुत्र-जन्म सुनि आयौ। लगन सोधि सब जोतिष गनिकै, चाहत तुम्हहिं सुनायौ। …..। ऊँच-नीच जुवती बहु करिहैं, सतएँ राहु परे हैं - १० - ८६।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करिहै
करेगा, बिगाड़ सकेगा।
जो घट अंतर हरि सुमिरै। ताकौ काल रूठि का करिहै, जो चित चरन धरै - १ - ८२।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिहै
संपादित करेगा।
उ. - तैं हूँ जो हरि-हित तप करिहै। सकल मनोरथ तेरौ पुरिहै - ४ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करिहै
करेगा, घटित करेगा।
पुनि हरि चाहै, करिहै सोइ - ७ - २।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कहनाकर
बहुत दयालु, करुणानिधि, करुणा की खानि।
वि.
[सं. करुणा+आकर (निधि)]


कहनाकर
दयालु ईश्वर।
नरहरि रूप धरयौ करुनाकर छिनक माहिं उर नखनि बिदारयौ - १ - १४।
संज्ञा
[सं.]


करुनानिधान
जो बहुत दयालु हो।
वि.
[सं. करुणानिधान]


करुनानिधि
जिसका हृदय दया से युक्त हो, दयालु।
वि.
[सं. करुणानिधि]


करुनामय
जिसका हृदय दया से भरा हो, दयालु, करुणा से युक्त।
वि.
[सं. करुणामय]


करुनामयी
जिसका हृदय करुणा से भरा हो, दयालु।
ध्रुव बिमाता-बचन सुनि रिसायौ। दीन के द्याल गोपाल, करुनामयी मातु सौं सुनि, तुरत सरन आयौ - ४ - १०।
वि.
[सं. करुणामयी]


करुनामूल
करुणाजनक, करुणामय।
थक्यौ बीच बिहाल, बिहवल, सुनौ करुनामूल - १ - ९९।
संज्ञा
[सं. करुणा+मूल]


करुना-सरिता
दया की नदी, जिसके हृदय में करुणा की धारा-सी प्रवाहित हो, अत्यंत दयालु।
पारथ-तिय कुरुराज सभा मैं बोलि करन चहै नंगी। स्रवन सुनत करुनासरिता भए, बढ़यौ बसन उमंगी - १ - २१।
संज्ञा
[सं. करुणा+सरिता]


करुनासागर
दया के समुद्र, बड़े दयालु।
वि.
[सं. करुणा+सागर]


करुनासिंधु
करुणा का समुद्र, जिसकी करुणा का भाव समुद्र के समान अथाह हो, अत्यंत दयालु।
वि.
[सं. करुणासिंधु]


करुणा
दया।
संज्ञा
[सं.]


करुणा
शोक।
संज्ञा
[सं.]


करुणा
करना का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


करुणाकर
दया करनेवाला।
वि.
[सं.]


करुणादृष्टि
कृपा।
संज्ञा
[सं.]


करुणानिधान, करुणानिधि
करुणा से युक्त, दयालु।
वि.
[सं.]


करुणावान
दयालु।
वि.
[सं. करुणा+हिं. वान]


करुना
दुखी का दुख दूर करने के लिए अंत:करण की प्रेरण, दया।
कछुक करुना करि जसोदा करति निपट निहोर। सूर स्याम त्रिलोक की निधि, भलैंहि माखन चोर–३६४।
संज्ञा
[सं.]


करुना
दुख, शोक।
करुना करति मँदोदरि रानी। चौदह सहस सुंदरी उमहीं, उठे न कंत महाअभिमानी - ९ - १६०।
संज्ञा
[सं.]


करुना
राधा की एक सखी का नाम।
कहि राधा किन हार चोरायो। ब्रजजुवतिन सबहीं मैं जानति घर घर लै लै नाम बतायौ। ......। रत्ना कुमुदा मोहा करुना ललना लोभा नूप - १५८०।
संज्ञा


कंदर
बादल।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदर
मूल।
सुंदर नंद महर के मंदिर प्रगट्यौ पूत सकल सुख कंदर - १० - ३२।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदरा
गुफा, गुहा।
(क) कहन लगे सब अपुनमें सुरभी चरै अघाइ। मानहुँ पर्वतकंदरा, मुख सब गए समाइ - ४३१। (ख) स्याम बलराम गये धनुषसाला। लियौ रथ तें उतरि रजक मारयौ जहाँ कंदरा तें निकसि सिंह-बाला - २५८५।
संज्ञा
[सं.]


कंदर्प
कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


कंदा
कंद।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदा
शकरकंद।
संज्ञा
[सं. कंद]


कंदुक
गेंद।
संज्ञा
[सं.]


कंदुक
गोल तकिया।
संज्ञा
[सं.]


कंदुक तीर्थ
ब्रज का एक तीर्थ। श्री कृष्ण यहाँ गेंद खेलते थे; अतएव उनके उपासकों के लिए यह दर्शनीय स्थान है।
संज्ञा
[सं.]


कँदैला
गँदला, मैला, मलिन।
वि.
[हिं. काँदौ+ला (प्रत्य.)]


करुआ
अप्रिय।
वि.
[सं. कटुक]


करुआई
कडुआपन।
संज्ञा
[हिं. करुआ, कडुआ]


करुआना
दुखना।
क्रि. अ.
[हिं. करुआ]


करुआना
कडुवा लगने पर मुँह बनाना।
क्रि. स.


करुई
जिसका स्वाद कडुआपन लिए हुए हो, कडुई।
(क) सुनत जोग लागत हमैं ऐसौ ज्यों करुई ककरी - ३३६०। (ख) फलन माँझ ज्यों करुई तोमरि रहत घुरे पर डारी। अब तौ हाथ परी जंत्री के बाजत राग दुलारी - २९३५।
वि.
[हिं. करुआ]


करुखिअनि
तिरछी चितवन, तिरछी नजर।
सूरदास प्रभु त्रिय मिली, नैन प्रान सुख भयौ चितए करुखिअनि अनकनि दिये - २०६९।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


करुखी
तिरछी चितवन या नजर।
संज्ञा
[हिं. कनखी]


करुण
दया।
संज्ञा
[सं.]


करुण
शोक।
संज्ञा
[सं.]


करुण
दया से युक्त।
वि.


करैत
काला साँप।
संज्ञा
[हिं. काला]


करैया
करने वाला।
(क) जब तैं ब्रज अवतार धरयौ इन, कोउ नहिं घात करैया–४२८। (ख) तुमसौं टहल करावति निसिदिन, और न टहल करैया - ५१३।
वि.
[हिं करना+ऐया (प्रत्य.)]


करोंट
करवट।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करोटी
खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


करोटी
करवट।
एक दिना हरि लई करोटी सुनि हरषीं नँदरानी। बिप्र बुलाइ स्वस्तिवाचन करि रोहिनि नैन सिरानी - सारा. ४२१।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करोड़
एक संख्या जो सौ लाख के बराबर होती है।
वि.
[सं. कोटि]


करोती
काँच का छोटा पात्र।
वै अति चतुर प्रबीन कहा कहौं जिनि पठई तोको बहरावन। सूरदास प्रभु जिय की होनी की जानति काँच करोती में जल जैसे ऐसे तू लागी प्रगटावन – २२०४।
संज्ञा
[हिं. करौती]


करोद्, करोदना, करोना
खुरचना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन]


करोती
दूध-दही की खुरचन।
संज्ञा
[हिं. करोना]


करोती
खुरचन नाम की मिठाई।
संज्ञा
[हिं. करोना]


करेणुका, करेनुका
हथिनी।
संज्ञा
[सं. पुं. करेणु]


करेर, करेरा
कड़ा, सख्त, कठिन।
वि.
[हिं. कठोर]


करेरन
कड़ीचोटें, थपेड़े, प्रहार।
सूर रसिक बिन को जीवति है निर्गुन कठिन करेरन - ३२७७।
संज्ञा
[हिं. करेर]


करेरुआ
एक कँटीली बेल जिससे परबल के बराबर फल लगते हैं जो खाने में बहुत कड़ुए होते हैं।
संज्ञा
[देश.]


करेला
एक बेल जिसमें गुल्ली की तरह लंबे हरे-हरे कडुए फल लगते हैं जो तरकारी के काम आते हैं।
बने बनाइ करेला कीने। लोन लगाइ तुरत तलि लीने - २३२१।
संज्ञा
[सं. कारवेल्ल]


करेली
छोटे-छोटे जंगली करेले जो बहुत कड़ुए होते हैं।
संज्ञा
[हिं. करेला]


करैं
करती हैं, लगाती हैं।
हरद अच्छत दूब दधि लै तिलक करैं ब्रजबाल - १० - २६।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करै
करे, करता है।
सूरदास जसुदा कौ नंदन जो कछु करै सो थोरी - १० - २९३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करै
पद देता है, बनता है, पद पर प्रतिष्ठित करता है।
उग्रसेन की आपदा सुनि सुनि बिलखावै। कंस मारि, राजा करै, आपहु सिर नावै - १ - ४।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करैगौ
करेगा, काम चलाएगा, संपादित करेगा।
(क) जब जम जाल-पसार परैगौ, हरि बिनु कौन करैगौ धरहरि - १ - ३१२। (ख) बदन दुराइ बैठि मंदिर में बहुरि निसापति उदय करैगो - २८७०।
क्रि. स.
[सं. करण, हि. करना]


करुनासिंधु
दयालु भगवान।
पुं.


करुर, करुवा
कडुवा, कटु।
वि.
[सं. कटुक, हिं. कड़ुवा]


करुवार, करुवारि
नाव खेने का डाँड़।
संज्ञा
[हिं. कलवारी]


करुनावत
कड़ुआ लगने का सा मुँह बनाते हैं।
षटरस के परकार जहाँ लगि लै लै अधर छुवावत। बिस्‍संभर जगदीस जगतगुरु, परसत मुख करुवावत - १० - ८९।
क्रि. अ.
[हिं. कड़ुआना]


करुवौ
अप्रिय, चुभने वाले, जो भला न लगे।
करुवौ बचन स्रवन सुनि मेरौ, अति रिस गही भुवाल - ९ - १०४।
वि.
[हिं. कडुआ, करुवा]


करू
कड़ुआ, तीखा।
वि.
[हिं. कटु]


करे
रचे, बनाये।
सज्जा पृथ्वी करी बिस्तार। गृह गिरि-कंदर करे अपार - २ - २०
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करे
उपजाये, उत्पन्न किये।
मैं तो जे हरे हैं ते तौ सोवत परे हैं, ये करे हैं कौनैं आन, अँगुरीनि दंत दै रह्यौ–४८४।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करेजा
कलेजा, हृदय।
संज्ञा
[सं. यकृत]


करेणु
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


करोर
करोड़।
अबकै जब हम दरस पावैं देहिं लाख करोर – ३३८३।
वि.
[हिं. करोड़]


करोरी
करोड़ों, बहुत, अनेक।
कंचन की पिचकारी छूटति छिरकति ज्यौं सचु पावै गोरी। अतिहि ग्वाल दधि गोरस माते गारी देत कहौ न करोरी - २४३६।
वि.
[हिं. करोड़ी]


करोला
गडुआ।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करोषत
खुरचते या खरोचते हैं।
(क) लाल निठुर ह्वै बैठि रहे। प्यारी हा हा करति न मानत पुनि पुनि चरन गहे। नहिं बोलत नहिं चितवत मुख तन धरनी नखन करोवत- पृ० ३१२। (ख) मैं जानी पिय मन की बात। धरनी पग नख कहा करोवत अब सीखे ए घात – २०००।
क्रि. स.
[हिं. करोना)


करोवति
कुरेदती या खुरचती है।
नीची दृष्टि करी धरनी नखनि करोवति एहो पिया तब हौं एक एक घूँघट तन चितै रही आहि कहा हो करो अब सोऊ - २२४०।
क्रि. स.
[हिं. करोना]


करौं
संपादित करूँ, पूर्ण करूँ।
रसना एक अनेक स्याम-गुन कहँ लगि करौं बखानौं – १ - ११।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौं
रचूँ, बनाऊँ, निर्माण करूँ।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौं
जन्माऊँ, पैदा करूँ।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


करौंछा
काला।
वि.
[हिं. काला]


करौंजी
एक पौधा, मरगल, मँगरैला।
संज्ञा
[हिं. कलौंजी]


करौंट
करवट।
संज्ञा
[हिं. करवट]


करौंदा
एक छोटा सुंदर फल जो कुछ सफेद और कुछ लाल होता है। इसका स्वाद खट्टा होता है और यह अचार-चटनी के काम आता है।
संज्ञा
[सं. करमर्द्द, पा. करमद्द, पुं. हिं. करवँद]


करौंदिया
हल्की स्याही लिये हुए लाल रंग का।
वि.
[हिं. करौंदा]


करौ
करो।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौ
बनाओ, स्वीकार करो, प्रतिष्ठित करो।
अब तुम बिस्वरूप गुरु करौ। ता प्रसाद या दुख कौं तरौ - ६ - ५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौ
बनाओ, रचाओ, जन्माओ, पैदा करो।
माधौ मोहिं करौ बृंदावन रेनु जिहिं चरननि डोलत नँदनंदन दिनप्रति बन-बन चारत धेनु - ४८९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौगो
करोगी, संपादित करोगी।
सूर राधिका कहत सखिन सौं बहुरि आइ घर काज करौगी - १२८९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


करौत,करौता
आरा।
संज्ञा
[हिं. करवत]


करौती
लकड़ी चीरने की आरी।
संज्ञा
[हिं. करौता=आरा]


करौती
काँच का छोटा पात्र या बरतन, शीशी।
(क) जाहीं सो लगत नैन, ताही खगत बैन, नख सिख लौं सब गात ग्रसति। जाके रँग राँचे हरि सोइ है अतरं संग, काँच की करौती के जल ज्यौं लसति। (ख) वे अति चतुर प्रबीन कहा कहौं जिन पठई तो को बहराबन। सूरदास प्रभुजी की होनी की जानति काँच करौती में जल जैसे ऐसे तू लागी प्रगटावन।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करौती
काँच की भट्ठी।
संज्ञा
[हिं. करवा]


करौला
हाँक या हकवा देनेवाला, शिकारी।
संज्ञा
[हिं. रौला=शोर]


करौली
छोटी छुरी।
संज्ञा
[सं. करवाली]


कर्क, कर्कट
केकड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कर्क, कर्कट
बारह राशियों में से चौथी राशि।
संज्ञा
[सं.]


कर्क, कर्कट
अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
कछुई।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
ककड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
सेमल का फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्कटी
साँप।
संज्ञा
[सं.]


कर्कश
खड्ग, तलवार।
संज्ञा
[सं.]


कर्कश
कठोर, कड़ा।
वि.


कर्कश
काँटेदार।
वि.


कर्कश
तेज, प्रचण्ड।
वि.


कर्कश
कठोर हृदय, क्रूर।
वि.


कर्कशा
झगड़ा करनेवाली, कटु या कठोर बोलनेवाली।
वि.
[हिं. कर्कश]


कर्कशा
झगड़ालू स्त्री।
संज्ञा


कर्ज
ऋण, उधार।
संज्ञा
[अ. कर्ज़, कर्जा]


कर्ण
कान नाम की इंद्रिय।
संज्ञा
[सं.]


कर्ण
कुंती का सबसे बड़ा पुत्र जो उसके कन्याकाल में सूर्य से उत्पन्न हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
केवट, नाविक।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


कर्णिका
कान का एक गहना, कर्णफूल।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
हाथ में बीच की उँगली।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
हाथी के सूँड़ की नोक।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिका
कमल का छत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कर्णिकार
कनक चंपा।
संज्ञा
[सं.]


कर्त्‍तन
कतरना, काटना।
संज्ञा
[सं.]


कर्त्‍तन
‍ सूत काटना।
संज्ञा
[सं.]


कर्तनी
कैंची।
संज्ञा
[सं.]


कर्तरि, कर्त्तरी
कैंची, कतरनी।
अद्‍भुत राम-नाम के अंक। जनममरन-काटन कौं कर्तरि तीछन बहु बिख्यात - १ - ९०।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्ण
नाव की पतवार।
संज्ञा
[सं.]


कर्णकटु
जो (बात, शब्द या अक्षर) सुनने में कटु या अप्रिय लगे।
वि.
[सं.]


कर्णकुहर
कान का छेद।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
माँझी, मल्लाह।
संज्ञा
[सं.]


कर्णधार
पतवार, कलवारी।
संज्ञा
[सं.]


कर्णपाली
कान की बाली या लौ।
संज्ञा
[सं.]


कर्णफूल
कान का एक आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कर्णवेध
बालकों के कान छेदने का संस्कार, कनछेदन।
संज्ञा
[सं.]


कर्णाट
एक राग जो मेघ राग का दूसरा पुत्र माना जाता है और जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कर्णाटी
एक रागिनी जो मालवा या दीपक राग की पत्नी मानी जाती है और रात में दूसरे पहर की दूसरी घड़ी में गायी जाती है।
मुरली बजाऊ रिझाऊँ गिरिधर गाऊँ न आज सुनाऊँ। तेइ तेइ तान तुम सी गीत गावत जेइ कर्णाटी गौरी मैं गाय सुनाऊँ - पृ. ३११।
संज्ञा
[सं.]


कंधार, कंधारी
पार लगानेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्णधार]


कँधावर
चादर या दुपट्टा जो कंधे पर डाला जाय।
संज्ञा
[हिं. कंधा+आवर (प्रत्य.)]


कँधेला
साड़ी का वह भाग जो स्त्रियां कंधे पर डालती हैं।
संज्ञा
[हिं. कंधा+एला (प्रत्य.)]


कँधैया
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[हिं. कन्हैया]


कंप
काँपना, कँपकँपी, धड़कन।
संज्ञा
[सं.]


कंप
एक सात्विक अनुभाव।
संज्ञा
[सं.]


कँपकँपी
थरथराहट, कंपन।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कंपत
भयभीत होकर, डरा हुआ।
क्रृपासिंधु पै केवट आयौ, कंपत करत सो बात। चरन-परसि पाषान उड़त है, कत बेरी उड़ि जात - ९ - ४१।
कि.अ.
[हिं. काँपना]


कंपत
शीत से काँपता है।
हा हा करति लि घोष कुमारि। सीत तें तन कँपत थर-थर बसन देहु मुरारि. - ७८९।
कि.अ.
[हिं. काँपना]


कँपतिँ
शीत से काँपती हैं।
थर- थर अंग कपतिँ सुकुमारी - ७९९।
क्रि.अ .
[सं. कंपन, हिं. कॅपना]


कर्पर
खप्पर।
संज्ञा
[सं.]


कर्पर
एक शस्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कर्पूर
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
सोना, स्वर्ण।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
धतूर।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
जल।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


कर्बुर
रंग-बिरंगा, चितकबरा।
वि.


कर्म
क्रिया, कार्य, काम।
असी-इक कर्म बिप्र कौ लियौ। रिषभ ज्ञान सबही कौ दियौ - ५ - २।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्तरि, कर्त्तरी
छुरी, कटारी।
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्तरि, कर्त्तरी
एक बोजा
(३) एक बाजा
संज्ञा
[सं. कर्तरी]


कर्तव्य
करने के योग्य, करणीय।
वि.
[सं.]


कर्तव्य
करने योग्य काम।
संज्ञा


कर्तव्यमूढ़, कर्तव्यविमूढ़
घबड़ाहट के कारण जो कार्य को न समझ सके।
वि.
[सं.]


कर्त्‍ता
रचनेवाला, निर्माता।
हर्त्ता-कर्त्ता आपै सोइ। घट-घट ब्यापि रह्यौ है जोइ– ७ - २।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
करनेवाला।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
विधाता, ईश्वर।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्त्‍ता
व्याकरण में पहला कारक।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का एक.]


कर्तार
करनेवाला।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का बहु.]


कर्तार
विधाता, ईश्वर।
संज्ञा
[सं. ‘कर्तृ' की प्रथमा का बहु.]


कर्दम
सूर्य का एक पुत्र, छाया से उत्पन्न होने के कारण जिनका ‘कर्दम' नाम पड़ा। इसकी पत्नी का नाम देवहूति और पुत्र का कपिलदेव था।
दच्छ प्रजापति कौं इक दई। इक रुचि, इक कर्दम-तिय भई। कर्दम कैं भयौ कपिलऽवतार–३ - १२।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
कीचड़, कीच।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
मांस।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कर्दम
छाया।
संज्ञा
[सं.]


कर्नेता
रंग के आधार पर किये गये घोड़े के भेदों में एक।
संज्ञा
[देश.]


कर्पट
फटा-पुराना कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कर्पटी
भिखारी, भिखमंगा जो गूदड़ पहने-ओढ़े।
संज्ञा
[सं. हिं. कर्पद=चिथड़ा=गुदड़ा]


कर्पर
खोपड़ी, कपाल।
संज्ञा
[सं.]


कर्म
विहित और निषिद्ध कार्य जिनका फल जाति, आयु और भोग माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
वह कार्य या क्रिया जिसका करना कर्तव्य है।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
कर्मफल, भाग्य।
(क) पग पग परत कर्म-तम-कूपहिं, को करि कृपा बचावै–१ - ४८। (ख) जाकौं नाम लेत भ्रम छूटै, कर्म-फंद सब काटे– ३४६।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्म
मृत-संस्कार, क्रिया-कर्म।
जब तनु तज्यौ गीध रघुपति तब कर्म बहुत बिधि कीनी। जान्यौ सखा राय दशरथ कौ तुरतहिं निज गति दीनी। (६) व्याकरण में दूसरा कारक।
संज्ञा
[सं. कर्मन् का प्रथमा रूप]


कर्मकांड
यज्ञ तथा अन्य धर्म के काम।
संज्ञा
[सं.]


कर्मकांड
वह शास्त्र या ग्रंथ जिसमें धर्म-कर्म की चर्चा हो।
संज्ञा
[सं.]


कर्मकांडी
यज्ञ आदि करानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
वह स्थान जहाँ काम किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
संसार जहाँ कर्म करना पड़ता है।
संज्ञा
[सं.]


कर्मक्षेत्र
भारतवर्ष।
संज्ञा
[सं.]


कर्मण्य
काम करने में आनंद लेनेवाला, उद्योगी, कर्मठ।
वि.
[सं.]


कर्मन
कर्मों का, भाग्य, प्रारब्ध।
जैसोई बोइयैं तैसोइ लुनिऐ, कर्मन भोग अभागे - १ - ६९।
संज्ञा
[सं. कर्म+न (प्रत्य.)]


कर्मना
कर्म से, कर्म द्वारा।
(क) मैं तौ राम-चरन चित दीन्हौं। मनसा, बाचा और कर्मना, बहुरि मिलन कौं आगम कीन्हौं - ९ - २। (ख) मनसा बाचा कहत कर्मना नृप कबहूँ न पतीजै–१० - ९। (ग) मनसि बचन अरु कर्मना कछु कहति नाहिंन राखि–३४७५।
क्रि. वि.
[सं. कर्मणा]


कर्मनि
कर्मों की।
संज्ञा
[हिं. कर्म+नि (प्रत्य.)]


कर्मनि
कर्मनि की मोटी- अत्यंत भाग्यशालिनी, अच्छे कर्मों का सुख लूटने की अधिकारिणी। उ - दोउ भैया मैया पै माँगत, दै री मैया माखन-रोटी।.........। सूरदास मन मुदित जसोदा, भाग बड़े, कर्मनि की मोटी - १० - १६५।
मु.


कर्मनिष्ठ
धर्म-कर्म तथा संध्या, अग्निहोत्र- आदि में निष्ठा रखनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मभोग
कर्म का फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्मभोग
पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगना।
जो कहौ कर्मभोग जब करिहैं, तब ये जीव सकल निस्तरिहैं। –७ - २।
संज्ञा
[सं.]


कर्मयुग
कलियुग।
संज्ञा
[सं.]


कर्मयोग
चित्त की शुद्धि के लिए किए जानेवाले शास्त्र-सम्मत कर्म।
(क) कर्म योग पुनि ज्ञान उपासन सबही भ्रम भरमायौ। श्री बल्लभ गुरु तत्व सुनायौ लीला भेद बतायौ–सारा. ११ ०२। (ख) तपसी तुमको तप करि पावै। सुनि भागवत गुही गुन गावै। कर्मयोग करि सेवत कोई। ज्यौं सेवै त्योंही गति होई - १० उ - १२७।
संज्ञा
[सं.]


कर्मचारी
काम के लिए नियुक्त, काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मचारिन्]


कर्मचारी
किसी विभाग में काम करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मचारिन्]


कर्मज
कर्म करने से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कर्मज
किये हुए पाप-पुण्य से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कर्मज
कलियुग।
संज्ञा


कर्मठ
काम में चतुर।
वि.
[सं.]


कर्मठ
धर्म-कर्म करनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मठ
वह मनुष्य जो नियमित रूप से धर्म-कर्म करे।
संज्ञा


कर्मठ
कर्मकांडी।
संज्ञा


कर्मणा
कर्म से, कर्म द्वारा।
क्रि. वि.
[सं. कर्णन् का तृतीय एक.]


कर्मेंद्रिय
काम करनेवाली इंद्रियाँ। ये पाँच हैं-हाथ, पैर, वाणी, गुदा और उपस्थ।
संज्ञा
[सं.]


करयौ
किया।
द्रुपद सुता की तुम पति राखी अंबर-दान करयौ - १ - १३३।
क्रि. स. (भूत.)
[सं. करण, हिं. करना]


कर्ष
खिंचाव
संज्ञा
[सं.]


कर्ष
खरोचना।
संज्ञा
[सं.]


कर्ष
ताव, बढ़ावा।
संज्ञा


कर्षक
खींचनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर्षक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
खींचना।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
जोतना।
संज्ञा
[सं.]


कर्षण
खेती का काम।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसंन्यास
कर्म के फल की चाह न करना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसाक्षी
जिसके सामने कर्म किया गया हो।
वि.
[सं. कर्मसाक्षिन्]


कर्मसाक्षी
वे नौ देवता–सूर्य, चन्द्र, यम, काल,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश–जो प्राणी को कर्म करते देखते रहते हैं।
संज्ञा


कर्महीन
जो शुभ कर्म करने में समर्थ न हो।
वि.
[सं.]


कर्महीन
अभागा, भाग्यहीन।
वि.
[सं.]


कर्महीनी
अभागा, भाग्यहीन।
मंदमति हम कर्म हीनी दोष काहि लगाइए। प्रानपति सौं नेह बाँध्यौ कर्म लिख्यौ सो पाइए।
वि.
[हिं. कर्महीन]


कर्मा
कर्म करनेवाला।
जज्ञ करत बैरोचन कौ सुत, बेद-बिहित-बिधि-कर्मा। सो छलि बाँधि पताल पठायौ, कौन कृपानिधि धर्मा - १ - १०४।
संज्ञा
[हिं. कर्म]


कर्मिष्ठ
कर्म में आनंद लेनेवाला, कर्मण्य, कर्मनिष्ठ।
वि.
[सं.]


कर्मी
कर्म करनेवाला।
वि.
[सं]


कर्मी
कर्म के फल की इच्छा करनेवाला।
वि.
[सं]


कर्मयोग
सिद्धि-असिद्धि को समान समझ कर कर्म करना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मरेख
भाग्य का लेखा, तकदीर का लिखा।
वाको न्याउ दोष सब हमको कर्मरेख को जानै। गोरस देखि जो राख्यौ गाह्क बिधिना की गति आनै—३४४१।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवाद
कर्म की प्रधानता मानना।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवाद
चित्त की शुद्धि के लिए किया जानेवाला शास्त्रसम्मत कर्म।
कर्मवाद थापन को प्रगटे पृश्निगर्भ अवतार। सुधापान दीन्हो सुरगन को भयौ जग जस बिस्तार–३२१।
संज्ञा
[सं.]


कर्मवादी
कर्म को प्रधान माननेवाला।
संज्ञा
[सं. कर्मवादिन्]


कर्मवान
शास्त्रसस्मत कर्म नियमित रूप से करनेवाला।
वि.
[सं.]


कर्मविपाक
पूर्वजन्म के कर्मों का भलाबुरा फल।
संज्ञा
[सं.]


कर्मशील
सिद्धि-असिद्धि को समान समझ कर कर्म करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कर्मशील
परिश्रमी, प्रयत्नशील।
संज्ञा
[सं.]


कर्मसंन्यास
कर्म न करना।
संज्ञा
[सं.]


कलँकी, कलंकी
कल्कि अवतार।
कलि के आदि अंत कृतयुग के है कलँकी अवतार - सारा. ३२०।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कलंदर
एक तरह के मुसलमान फकीर।
संज्ञा
[अ. कलंदर]


कलंदर
रीछ-बंदर नचाने वाला।
संज्ञा
[अ. कलंदर]


कलंदरी
एक तरह का रेशम कपड़ा।
संज्ञा
[हिं.]


कलंदरी
खेमें का अँकुड़ा जिस पर रेशम या कपड़ा लिपटा रहता है।
संज्ञा
[हिं.]


कल
आराम, चैन, सुख।
(क) पलित केस, कफ कंठ बिरुध्यौ, कल न परति दिन-राती - १ - ११८। (ख) डेढ़ ल ल कल लेत नाही प्रान प्रीतम प्रान - सा. २१। (ग) जसुमति बिकल भई छिन कल ना। लेहु उठाई पूतना-उर तैं, मेरौ सुभग साँवरो ललना - १० - ५४। (घ) एक बार कुलदेवी पूजत भयो दरस सखि मोहिं। ता दिन ते छिन कुल न परत है सत्य कहत हौं तोहिं। - सारा,२२१।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
स्वास्थ्य, आरोग्य।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
संतोष।
संज्ञा
[सं. कल्य, प्रा. कल्ल]


कल
मधुर ध्वनि।
अरुन अधर छवि दास बिराजत। जब गावत कल मंदन– ४७६।
संज्ञा
[सं.]


कल
वीर्य।
संज्ञा
[सं.]


कंपति
समुद्र।
संज्ञा
[सं.]


कंपन
कँपना, कँपकँपी।
संज्ञा
[सं.]


कँपना
हिलना-डोलना, काँपना।
क्रि. अ.
[सं. कंपन]


कँपना
डर से काँपना।
क्रि. अ.
[सं. कंपन]


कँपनी
कँपकँपी।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कंपा
बहेलियों की बाँस की पतली तीलियाँ जिनमें लासा लगाकर वे चिड़ियों को फँसाते हैं।
संज्ञा
[हिं. काँपना]


कँपाना
हिलाना-डोलाना।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपना का प्रे.]


कँपाना
डराना।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपना का प्रे.]


कॅंपावत
हिलाते हो, हिलाकर धमकाते हो।
तुम्हरे डर हम डरपत नाहिंन कहा कॅंपावत बेत - सारा. ८६२।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपाना]


कँपायौ
भयभीत किया, डराया।
मनौ मेघनायक रितु- पावस, बान वृष्टि करि सैन कँपायौ - ९ - १४१।
क्रि. स.
[हिं. कॅंपाना]


कर्षना
खींचना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण]


कर्षमर्ष
खींच तान, संधर्ष।
संज्ञा
[सं. कर्षण)


कलंक
लांछन, बदनामी।
मो देखत मो दास दुखित भयौ, यह वलंक हौं कहाँ गॅंवैहौं– ७०५।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
चंद्रमा का काला दाग।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
दोष।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
धब्बा।
संज्ञा
[सं.]


कलंक
कल्कि अवतार।
हरि करिहैं कलंक अवतार - १२.३।
संज्ञा
[सं.कल्कि, हिं. कलंकी]


कलंकि
कल्कि अवतार।
यों होइहै कलंकि अवतार - १२ - ३।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कलंकित
जिसे कलंक लगा हो, दोषी।
वि.
[सं.]


कलँकी, कलंकी
जिसे कलंक लगा हो।
का पटतरयौ चंद्र कलंकी घटत बढ़त दिन लाज लजाई - २२२७।
वि.
[सं. कलंकिन्]


कल
सुन्दर, मनोहर।
वि.


कल
कोमल, मधुर।
वि.


कल
आने वाला दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
आगे किसी समय।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
बीता हुआ दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य—प्रत्यूष, प्रभात]


कल
ओर, पहलू।
संज्ञा
[सं. कला-अंग, भाग]


कल
अंग, अवयव।
संज्ञा
[सं. कला-अंग, भाग]


कल
कला।
राधे आज मदनमद माती। सोहत सुन्दर संग स्याम के खरचत कोट काम कल थाती—सा. ५०।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
युक्ति, ढंग।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
यन्त्र।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कलत्र
दुर्ग, गढ़।
संज्ञा
[सं.]


कलधूत
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
सोना।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कलधौत
सुंदर, मधुर या कोमल ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


कलन
उत्पन्न करना।
संज्ञा
[सं.]


कलन
धारण करना।
संज्ञा
[सं.]


कलन
संबंध।
संज्ञा
[सं.]


कलना
ग्रहण करना।
संज्ञा
[सं.]


कलना
विशेष ज्ञान प्राप्त करना।
संज्ञा
[सं.]


कल
पेंच, पुरजा।
संज्ञा
[सं. कला=विद्या]


कल
‘काला' का संक्षिप्त रूप जो यौगिक शब्दों के शुरू में जुड़ता है।
वि.
[हिं. काला]


कलई
राँगा।
संज्ञा
[अ.]


कलई
राँगे का लेप जिसके चढ़ाने से बरतन में रखी हुई चीजें कसाती नहीं, मुलम्मा।
संज्ञा
[अ.]


कलई
वह लेप जो किसी वस्तु पर रंग चढ़ाने के लिए लगाया जाय।
संज्ञा
[अ.]


कलई
चमक-दमक, तड़क-भड़क।
संज्ञा
[अ.]


कलई
कलई आई उघरि- कलई खुल गयी, सच्चा रूप सामने आ गया, वास्तविकता ज्ञात हो गयी। उ. - (क) कीन्ही प्रीति पुहुप शुंडा की अपने काज के कामी। तिनको कौन परैखो कीजै जे हैं गरुड़ के गामी। आई उघरि प्रीति कलई सी जैसी खाटी आमी - ३०८०। (ख) देखो माधौ की मित्राई। आई उघरि कनक कलई सी दै निज गये दगाई - २७१८।
मु.


कलई
चूना।
संज्ञा
[अ.]


कलकंठ
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
कबूतर।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
हंस।
संज्ञा
[सं.]


कलकंठ
जिसका स्वर मीठा, कोमल या सुंदर हो।
वि.


कलक
दुख, चिंता।
संज्ञा
[क़लक़]


कलकना
शब्द करना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कलकल=शब्द]


कलकल
जल के गिरने या बहने का शब्द।
संज्ञा
[सं.]


कलकल
कोलाहल, शोर।
संज्ञा
[सं.]


कलकल
झगड़ा, कलह।
संज्ञा


कलकान, कलकानि, कलकानी
हैरानी, दुख।
नारी गारी बिनु नहिं बोलै पूत करै कलकानी। घर में आदर कादर कोसौं सीझत रैनि बिहानी।
संज्ञा
[अ.-क़लक=रंज]


कलकूजिका
मधुर या कोमल ध्वनि करनेवाली।
वि.
[सं.]


कलत्र
स्त्री, पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


कलपाना
दुखी करना, रुलाना।
क्रि. सं.
[हिं. कलपना]


कलपै
विलाप करता है, विलखता है, दुखी होता है।
प्रभु तेरौ बचन भरोसौ साँचौ। पोषन भरन बिसंभर साहब जो कलपै सो काँचौ - १ - ३२।
क्रि. अ.
[हिं. कलपना]


कलबल
अस्पष्ट (स्वर)।
(क) अलप दसन, कलबल करि बोलनि, बुधि नहिं परत बिचारी। बिकसित ज्योति अधर-बिच, मानौ बिधु मैं बिज्जु उज्यारी - १० - ६१। (ख) स्याम करत माता सौं, झगरौ, अटपटात कलबल करि बोल - १० - ६४। (ग) गहि मनि-खंभ डिंभ डग डोलैं। कलबल बचन तोतरे बोलैं - १० - ११७।
वि.
[अनु.]


कलबल
शोरगुल, हल्ला।
संज्ञा


कलबल
उपाय, युक्ति।
लगे हुलसन मेघ मंगल भरे बिथक सजोर। करन चाहत राख रोके काम कलबल छोर - सा. ६१।
संज्ञा
[सं. कला+बल]


कलबूत
साँचा।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कलबूत
ढाँचा।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कलभ
हाथी का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कलभ
ऊँट का बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कलभ
धतूरी।
संज्ञा
[सं.]


कलम
लिखने का उपकरण, लेखनी।
संज्ञा
[सं.]


कलम
किसी पेड़-पौधे की वह मुलायम और नयी टहनी जो दूसरी जगह या पेड़ में लगाने के लिए काटी जाय।
संज्ञा
[सं.]


कलम
वह पौधा जो कलम से तैयार हो।
संज्ञा
[सं.]


कलम
चित्रकारों की कूची।
संज्ञा
[सं.]


कलमख
पाप, दोष।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमख
कलंक।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमख
धब्बा।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमना
काटना, टुकड़े करना।
क्रि. स.
[हिं. कलम]


कलमलना, कलमलाना
अंग या शरीर का इधर-उधर हिलना-डोलना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कलमलात
शरीर के अंग इधर - उधर हिलते - डोलते हैं, कुलबुलाते हैं।
कौन कौन की दसा कहौं सुन सब ब्रज तिनते पर। निसि दिन कलमलात सुन सजनी सिर पर गाजत मदन अर–२७६४।
क्रि. अ.
[हिं. कलमलाना]


कलना
गणना, विचार।
संज्ञा
[सं.]


कलना
लेन-देन, व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कलप
ब्रह्मा का एक दिन।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलप
विधान, रीति।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलप
कल्प।
संज्ञा
[सं. कल्प]


कलपत
दुखी होना, सोचना, खिन्न होकर विचारना।
ब्रह्मादिक सनकादि महामुनि, कलपत दोउ कर जोर। बृन्दाबन ए तृन न भये हम लगत चरन के छोर–४७७।
क्रि. अ.
[हिं. कल्पना]


कलपतर, कलपतरु
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में माना जाता है और जो सभी इच्छाएँ पूरी करता है।
सूरदास यह सब हित हरि को रोप्यौ द्वार सुभगति कलपतर - १० उ. - ७०।
संज्ञा
[सं. कल्पतरु]


कलपना
दुखी होना, बिलखना।
क्रि. अ.
[सं. कल्पना=(दुख की) उद्‍भावना करना]


कलपना
कल्पना करना।
क्रि. अ.
[सं. कल्पना=(दुख की) उद्‍भावना करना]


कलपना
उद्‍भावना, अनुमान, कल्पना।
संज्ञा


कलमष, कलमस
पाप, अघ।
जौ पै यहै बिचार परी। तौ कत कलि-कल्मष लूटन कौं, मेरी देह धरी - १ - २११।
संज्ञा
[सं. कल्मष]


कलमा
वाक्य, बात।
संज्ञा
[अ. कल्मः]


कलमा
इसलाम के मूलमंत्र का वाक्य।
संज्ञा
[अ. कल्मः]


कलमुहाँ
जिसका मुँह काला हो।
वि.
[हिं. काला+मुँह]


कलमुहाँ
कलंकित, लांछित।
वि.
[हिं. काला+मुँह]


कलरव
मधुर शब्द।
नूपुर-कलरव मनु हंसनि सुत रचे नीड़, दै बाछँ बसाए - १० - १०४।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलरव
कोयल।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलरव
कबूतर।
संज्ञा
[सं. कल= सुंदर+रव= शब्द]


कलौ
मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कलरव]


कलवरिया
शराब की दुकान।
संज्ञा
[हिं. कलवार]


कलवार
शराब बनाने-बेचने वाला।
संज्ञा
[सं. कल्यपाल, प्रा. कल्लवाल]


कलश
घड़ा, गगरा।
कनक कलश कुच प्रगट देखियत आनँद कंचुकि भूली २५६१।
संज्ञा
[सं.]


कलश
मंदिर का शिखर।
संज्ञा
[सं.]


कलश
चोटी, सिरा।
संज्ञा
[सं.]


कलश
प्रधान व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कलशी
गगरी।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलशी
मंदिर आदि का कँगूरा।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलस
मंदिर-महल आदि का शिखर या कँगूरा।
ऊँचे मंदिर कौन काम के, कनक-कलस जो चढ़ाए। भक्त-भवन मैं हौं जु बसत हौं, जद्यपि तृन करि छाए - १ - २४३।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसा
गगरा, घड़ा।
हरि पर सर सरबर पर कलसा कलसा पर ससि भान - २१९१।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसी
गगरी, कल्सिया।
संज्ञा
[सं. कलश]


कॅंपावात
हिलाता-डुलाता (है), कपित करता (है)।
मुँह सम्हारि तू बोलत नाहीं, कहत बराबरि बात। पावहुगे अपनौ कियौ अबहीं, रिसनि कॅंपावत गात - ५३७।
क्रि. स.
[हिं, कँपना’ का प्रे. कॅंपना]


कंपित
काँपता हुआ, अस्थिर, चलायमान।
छोभित सिंधु, सेष सिर कंपित, पवन भयौ गति पंग - ९ - १५८।
वि.
[सं]


कंपै
काँपता या हिलता डोलता है।
(क) कंपै भुव, बर्षा नहिं होइ - १ - २८६।,

(ख) कर कंपै, कंकन नहिं छूटै - ६ - २५। (ग) जसुदा मदन गुपाल सुवावै। देखि सपन - गति त्रिभुवन कंपै, ईस विरंचि भ्रमावै - १० - ६५।

क्रि. स.
[हिं. कॅंपना]


कँप्‍यौ
डरा, भयभीत हुआ।
रिपिन कह्यौ, तुव सतम जज्ञ आरम्भ लखि, इन्द्र कौ राज-हित कॅंप्यौ हीयौ–४ - ११।
क्रि. स.
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


कंबर, कंबल
ऊन का बना मोटा कपड़ा जो ओढ़ने-बिछाने के काम आता है।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कंबु
शंख।
कंबु- कंठधर, कौस्तुभ- मनि-धर, वनमालाधर, मुक्तमाल-धर - ५७२।
संज्ञा
[सं.]


कंबु
शंख की चूड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कंबु
घोंघ।
संज्ञा
[सं.]


कंबुक
शंख,
संज्ञा
[सं.]


कंबुक
शंख की चूड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कलसी
छोटे कँगूरे।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलसी
मंदिर का छोटा शिखर या कँगूरा।
संज्ञा
[सं. कलश]


कलहंस
राजहंस।
संज्ञा
[सं.]


कलहंस
श्रेष्ठ राजा।
संज्ञा
[सं.]


कलहंस
ईश्वर, ब्रह्म।
संज्ञा
[सं.]


कलह
विवाद, झगड़ा।
(क) काहे कौं कलह नाध्यौ, दारुन दाँवरि बाँध्यौ, कठिन लकुट लै तैं त्रास्यौ मेरैं भैया - ३७२। (ख) सुनत स्याम कोकिल सभ बानी निकसे अति अतुराई (हो)। माता सौं कछु करत कलह हे रिस डारी बिसराई (हो) - ७००।
संज्ञा
[सं.]


कलह
युद्ध, संघर्ष।
निरखि नैन रसरीति रजनि रुचि काम कटक फिरि कलह मच्यौ - पृ० ३५० (६७)।
संज्ञा
[सं.]


कलहकारी
कलह करनेवाली।
वि.
[सं. कलह+हिं. कारी (स्त्री.)]


कलहनीपतिपितापुत्री
यमुना नदी।
कलहनी-पति-पिता-पुत्री तकत बनत न आज। कौन जानत रहे यह बिनु संभवन को काज - सा. ३८।
संज्ञा
[सं. कलहिनी=(शनि की स्त्री का नाम)+ पति (कलहिनी का पति=शनि) + पिता (शनि का पिता=सूर्य) + पुत्री (सूर्य की पुत्री= यमुना)]


कलहांतरिता
वह नायिका जो पहले तो नायक का तिरस्कार करे, फिर पछताने लगे।
संज्ञा
[सं.]


कला
विद्या, शास्त्र।
कोक-कला वितपन्न भई हौ कान्हरूप तनु आधा - १४३७।
संज्ञा
[सं.]


कला
सूर्य का बारहवाँ भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
अग्निमंडल के दस भागों में एक।
संज्ञा
[सं.]


कला
समय का एक छोटा भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
करतूत, करनी, कौतुक, लीला (व्यंगात्मक)।
माधौ, नेकु हटकौ गाइ। ….। छहौं रस जौ धरौं आगैं, तउ न गंध सुहाइ। और अहित अभच्छ भच्छति कला बरनि न जाइ - १ - ५६।
संज्ञा
[सं.]


कला
कौतुक, खेल, क्रीड़ा।
(क) अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल। •••••। माया कौं कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ तिलक दियौ भाल। कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल सुधि नहिं कालः - १ - १५३। (ख) ना हरि भक्ति, न साधु समागम, रह्यौ बीच ही लटकैं। ज्यौं बहु कला काछि दिखरावै, लोभ न छूटत नट कैं - १ - २९२।

(ग) अज, अबिनासी अमर प्रभु जनमै मरै न सोइ। नट वत करत कला सकल बूझै बिरला कोइ - २ - ३६।

संज्ञा
[सं.]


कला
चतुरता, कुशलता।
रचि-प्रचि सोंचि सँवारि सकल अँग चतुर चतुराई ठानी। दृष्टि न दई रोम रोमनि प्रति इतनहिं कला नसानी - १३२१।
संज्ञा
[सं.]


कला
छल, कपट, धोखा।
संज्ञा
[सं.]


कला
हीला, बहाना।
संज्ञा
[सं.]


कला
उपाय, ढंग, युक्ति।
रहेउ दुष्ट पचिहार दुसासन कछू न कला चलाई - सारा. ७६९।
संज्ञा
[सं.]


कला
यन्त्र, पेंच।
संज्ञा
[सं.]


कलाई
हथेली से जुड़ा हुआ हाथ का भाग, मणिबंध, गट्टा, पहुँचा।
संज्ञा
[सं. कलाची]


कलाकर
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलाकौशल
कला में कुशलता, कारीगरी।
संज्ञा
[सं.]


कलाकौशल
शिल्प।
संज्ञा
[सं.]


कलात्मक
कलापूर्ण।
वि.
[सं.]


कलात्मक
कला सम्बन्धी।
वि.
[सं.]


कलाद
सोनार।
संज्ञा
[सं.]


कलादा
हाथी की गर्दन का वह भाग जहाँ महावत बैठता है, कलावा, किलावा।
संज्ञा
[सं. कलाप, हिं. कलावा]


कलाधर
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलहा
झगड़ालू, कलहप्रिय।
कलहा, कुही, मूष रोगी अरु काहूँ नैंकु न भावै - १ - १८६।
वि.
[सं. कलह]


कलहास
वह हास जिसमें कोमल ध्वनि हो।
संज्ञा
[सं.]


कलहिनी
झगड़ालू।
वि.
[सं.]


कलहिनी
शनि की स्त्री।
संज्ञा


कला
अंश, भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
चन्द्रमा का सोलहवाँ भाग।
संज्ञा
[सं.]


कला
कार्य-कुशलता।
संज्ञा
[सं.]


कला
विभूति।
संज्ञा
[सं.]


कला
शोभा, छटा, प्रभा।
संज्ञा
[सं.]


कला
ज्योति, तेज।
संज्ञा
[सं.]


कलाधर
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कलाधर
कला का ज्ञाता।
संज्ञा
[सं.]


कलानाथ, कलानिधि
चन्द्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलानिधान
कला का आश्रय।
संज्ञा
[सं.]


कलानिधान
विविध कलाओं का स्वामी।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
समूह।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
मोर की पूँछ।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
तरकश।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलाप
भूषण, गहना।
संज्ञा
[सं.]


कलापति
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कलापिनी
रात्रि।
संज्ञा
[सं.]


कलापिनी
मोरनी।
संज्ञा
[सं.]


कलापी
मोर
संज्ञा
[सं. कलापिन्]


कलापी
कोयल।
संज्ञा
[सं. कलापिन्]


कलापी
तरकश बाँधे हुए।
वि.


कलापी
समूह में रहने वाला।
वि.


कलार, कलाल
मद्य बेचने वाला।
संज्ञा
[सं. कल्यपाल]


कलावंत
संगीतज्ञ।
संज्ञा
[सं. कलावान]


कलावंत
कलाकुशल, नट।
संज्ञा
[सं. कलावान]


कलावती
जो कला में कुशल हो।
वि.
[सं.]


कलावती
सुन्दर, शोभायुक्त।
वि.
[सं.]


कलास
एक प्राचीन बाजा जिसपर चमड़ा चढ़ा रहता था।
धनुष कलास सही सब सिखि कै भई सयानी गानति। सूर सुन्दरी आपुही कहा तू सर संधानति - २९५१।
संज्ञा
[सं.]


कलाहक
काहल नामक बाजा।
संज्ञा
[सं.]


कलिंद
एक पर्वत जिससे जमुना नदी निकलती है।
उर कलिंद ते धँसि जल धारा उदर धरनि परबाह। जाति चली धारा ह्वै अध कौं, नाभी हृद अवगाह - ६३७।
संज्ञा
[सं.]


कलिंद
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कलिंदजा
कलिंद पर्वत से निकलने वाली जमुना नदी।
संज्ञा
[सं. कलिंद+जा]


कलि
कलियुग, चार युगों में चौथा युग, इसमें ४३२००० वर्ष होते हैं। ईसा के ३१०२ वर्ष पूर्व से इसका आरम्भ माना जाता है। प्राच्य पौराणिक विचारानुसार अधर्म और पाप की इस युग में प्रधानता रहती है।
संज्ञा
[सं.]


कलि
कलह, झगड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कलि
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कलि
वीर।
संज्ञा
[सं.]


कलि
तरकश।
संज्ञा
[सं.]


कलि
दुख।
संज्ञा
[सं.]


कलि
युद्ध।
संज्ञा
[सं.]


कलि
श्याम, काला।
वि


कलिकर्म
युद्ध।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
कली।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
मुहूर्त।
संज्ञा
[सं.]


कलिका
भाग।
संज्ञा
[सं.]


कलियारी
एक विषैला पौधा।
संज्ञा
[सं. कलिहारी]


कलियुग
चार युगों में चौथा।
वि.
[सं.]


कलियुगी
कलियुग का।
वि.
[सं.]


कलियुगी
बुरी आदतवाला।
वि.
[सं.]


कलिल
मिला हुआ, मिश्रित।
वि.
[सं.]


कलिल
घना, दुर्गम।
वि.
[सं.]


कलिल
समूह।
संज्ञा


कली
बिना खिला फूल, बोंडी, कलिका।
संज्ञा
[सं.]


कली
कन्या।
संज्ञा
[सं.]


कलुख, कलुष
मैल।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कलिकान
हैरान, परेशान।
वि.
[सं. कलि+हिं. कान]


कलिकाल
कलियुग।
संज्ञा
[सं.]


कलित
सुन्दर, मधुर।
जानु जंघ त्रिभंग सुंदर कलित कंचन दंड–१ - ३०७।
वि.
[सं.]


कलित
प्रसिद्ध।
वि.
[सं.]


कलित
मिला हुआ, प्राप्त।
वि.
[सं.]


कलित
सजा हुआ, शोभायुक्त।
वि.
[सं.]


कलिनि
कलियाँ, कलिकाएँ।
अँकुरित तरु पात,उकठि रहे जे गात, बनबेलि प्रफुलित कलिनि कहर के - १० - ३०।
संज्ञा
[सं. कली]


कलिमल
पाप, कलुष।
संज्ञा
[सं.]


कलिमलहिं
पाप या कलुष को।
यह भव-जल कलिमलहिं गहे हैं, बोरत सहस प्रकारौ। सूरदास पतितनि के संगी, बिरदहिं नाथ सम्हारो - १ - २०९।
संज्ञा
[सं. कलिमल+हिं (प्रत्य.]


कलियाना
कलियाँ निकलना, कलियों से युक्त होना।
क्रि. अ.
[हिं. कली]


कंबुक
घोंघ।
संज्ञा
[सं.]


कँबल
कमल।
संज्ञा
[सं. कमल]


कंस
मथुरा का अत्याचारी राजा जो उग्रसेन का पुत्र और श्रीकृष्ण का मामा था। इसने अपनी बहिन देवकी को पति-सहित जेल में डाल रखा था। इसके अत्याचार से जब त्राहि-त्राहि मच गयी तब श्रीकृष्ण ने इसे मार कर अपने माता-पिता का उद्धार किया और नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया।
संज्ञा
[सं.]


कंस
काँसा।
संज्ञा
[सं.]


कंस
कटोरी
संज्ञा
[सं.]


कंस
सुराही
संज्ञा
[सं.]


कंस
झाँझ।
संज्ञा
[सं.]


कंसताल
झाँझ।
कंसताल कठताल बजावत सृंग मधुर मुँहचंग।
संज्ञा
[सं.]


कंसासुर
मथुरा का अत्याचारी राजा जो अपने अत्याचारों के कारण असुर समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. कंस+असुर]


ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कलुख, कलुष
पाप, दोष।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कलुखी
कलंकी, पापी।
वि.
[सं. कलुष]


कलुषाई
बुद्धि या चित्त का विकार, दोष।
संज्ञा
[सं. कलुष-आई (प्रत्य.)]


कलुषाई
पाप, मलिनता।
संज्ञा
[सं. कलुष-आई (प्रत्य.)]


कलुषित
दोष युक्त।
वि.
[सं.]


कलुषित
मलिन।
वि.
[सं.]


कलुषी
पापिनी।
वि.
[सं.]


कलुषी
मैली, गंदी।
वि.
[सं.]


कलुषी
मैला, गंदा।
वि.
[सं. कलुषिन्]


कलुषी
पापी, दोषी।
असरन-सरन नाम तुम्हारौ, हौं कामी, कुटिल निमाउँ। कलुषी अरु मन मलिन बहुत मैं सेंत-मेंत न बिकाउँ - १ - १२८।
वि.
[सं. कलुषिन्]


कलेस
दुख, कष्ट, व्यथा।
(क) प्रभु, मोहिं राखियै इहिं ठौर। केस गहत कलेस पाऊँ, करि दुसासन जोर - १ - २५३। (ख) जलपति-भूषन उदित होत ही पारत कठिन कलेस - सा. २७। (ग) सूर स्याम सुजान संग ह्वै चली बिगत कलेस–सा. ५६।
संज्ञा
[सं. क्लेश]


कलै
कला, चतुरता, कुशलता।
संज्ञा
[सं. कला]


कलै
युक्ति, उपाय, रीति, ढंग।
अजहूँ कह्यौ मानि री मानिनि उठि चलि मिलि पिय को जिय लैहै। सूर मान गाढ़ो त्रिय कीन्हो, कहै बात कोउ कोटि कलै - २२१०।
संज्ञा
[सं. कला]


कलोर
वह गाय जो बरदाई या ब्याई न हो।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कलोल
आमोद-प्रमोद, क्रीड़ा, आनन्द।
(क) बिद्याधर-किन्नर कलोल मन उपजावत मिलि कंठ अमित गति - १० - ६। (ख) मिलि नाचत, करत, कलोल, छिरकत हरद दही। मनु बरषत भादौं मास, नदी घृत दूध दही –१० २४। (ग) दोउ कपोल गहि कै मुख चूमति, बरष-दिवस कहि करति किलोल - १० - ९४।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कलोलना
आनंद करना, मौज उड़ाना, क्रीड़ा या विहार करना।
क्रि. अ.
[हिं. कलोल]


कलोलै
आनन्द, क्रीड़ा।
इन द्योसनि रूसनो करति हौ करिहौ कबहिं कलोलै - २२७५।
संज्ञा
[हि. कलोल]


कलौंस
कालापन लिये हुए।
वि.
[हिं. काला+औंस (प्रत्य.)]


कलौंस
स्याही, कालिष।
संज्ञा


कलौंस
कलंक।
संज्ञा


कलूटा
बहुत काला।
वि.
[हिं. काला+टा (प्रत्य.)]


कलेऊ
जलपान, कलेवा।
(क) करि मनुहारि कलेऊ दीन्हौ, मुख चुपरयौ अरु चोटी - १० - १६३। (ख) उठिए स्याम कलेऊ कीजै - १० - २११। (ग) तिनहिं कह्यो तुम स्नान करौ ह्याँ हमहिं कलेऊ देहु - २५५३। (घ) चारो भ्रात मिल करत कलेऊ मधु मेवा पकवान - सारा. १७१।
संज्ञा
[हिं. कलेवा]


कलेजा
हृदय, दिल।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेजा
छाती, वक्षस्थल।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेजा
साहस, जीवट।
संज्ञा
[सं. यकृत]


कलेवर
शरीर, देह।
चरचित चंदन, नील कलेवर, बरषत बूँदनि सावन - ८ - १३।
संज्ञा
[सं.]


कलेवर
ढाँचा।
संज्ञा
[सं.]


कलेवा
प्रातः काल का हल्‍का भोजन, जलपान।
कमल नैन हरि करौ कलेवा। माखन-रोटी, सद्य जम्यौ दधि भाँति-भाँति के मेवा– १०.२१२।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कलेवा
यात्रा के लिए साथ लिया हुआ भोजन, पाथेय, संबल।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कलेवा
विवाह के दूसरे दिन वर का सखाओं सहित ससुराल जाकर भोजन करने की प्रथा, खिचड़ी, बासी।
संज्ञा
[सं. कल्यवर्त्त, प्रा. कल्लवट्ट]


कल्क
दंभ, पाखंड।
संज्ञा
[सं.]


कल्क
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कल्क
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कल्कि
विष्णु का दसवाँ अवतार।
संज्ञा
[सं.]


कल्की
विष्णु के दसवें अवतार का नाम जो संभल (मुरादाबाद) में एक कुमारी कन्या के गर्भ से होगा।
बासुदेव सोई भयौ, बुद्ध भयो पुनि सोइ। सोई कल्की होइहै, और न द्वितिया कोइ - २ - ३६।
संज्ञा
[सं. कल्कि]


कल्प
विधि, विधान।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
प्रात:काल।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
एक प्रकार का नृत्य।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
काल का एक विभाग जो ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष का होता है और ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है।
संज्ञा
[सं.]


कल्प
तुल्य, समान।
वि.


कल्पक
कल्पना करने वाला।
वि.
[सं.]


कल्पक
काटने वाला।
वि.
[सं.]


कल्पतरु
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में गिना जाता है। प्राणी की इच्छा पूरी करने के लिए यह प्रसिद्ध है।
तेरे चरन सरन त्रिभुवनपति मेटि कल्प तू होहि कल्पतरु - २२६६।
संज्ञा
[सं.]


कल्पद्रुम
एक वृक्ष जो समुद्र से निकले चौदह रत्नों में माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कल्पन
कल्पना, अनुमान।
जौ मन कबहुँक हरि कौ जाँचै।......। निसि दिन स्याम सुमिरि जस गावै, कल्पन मेटि प्रेम रस माँचै - २ - ११।
संज्ञा
[सं. कल्पना]


कल्पना
बनावट, रचनाक्रम।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
अनुमान, उद्‍भावना।
जैसी जाकैं कल्पना तैसहि दोउ आए। सूर नगर नर-नारि के मन चित्त चोराए - २५७६।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
एक वस्तु में अन्य का आरोप।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
मान लेना।
संज्ञा
[सं.]


कल्पना
गढ़ी हुई बात।
संज्ञा
[सं.]


कल्पलता
एक वृक्ष जिसकी गिनती समुद्र से निकले चौदह रत्नों में है। यह प्राणियों की इच्छा पूरी करता है और इसका नाश कभी नहीं होता।
संज्ञा
[सं.]


कल्पवृक्ष, कल्पवृच्छ
देवलोक का एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कल्पवृक्ष]


कल्पशाखी
कल्पवृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कल्पांत
प्रलय।
संज्ञा
[सं. कल्प+अंत]


कल्पित
रचा हुआ, निकला हुआ, उद्‍भूत।
चर-अचर-गति बिपरीत। सुनि बेनु-कल्पित गीत - ६२३।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्पित
मनमाना, मनगढ़ंत।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्पित
बनावटी, अयथार्थ, नकली।
वि.
[सं. कल्पना]


कल्मष
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कल्मष
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कल्य
सबेरा।
संज्ञा
[सं.]


कल्य
मधु, शराब।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
शुभ, भलाई।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
सोना।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
एक राग जो श्रीराग का सातवाँ पुत्र माना जाता है और जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
सूरदास प्रभु मुरली धरे आवत राग कल्याण (कल्यान) बजावत - २३४७।
संज्ञा
[सं.]


कल्याण
शुभ, कल्याणप्रद।
वि.


कल्याणी
कल्याण करनेवाली।
वि.
[सं.]


कल्याणी
गाय।
संज्ञा


कल्याणी
प्रयाग की एक देवी।
संज्ञा


कल्यान
मंगल, शुभ, भलाई, कल्याण।
आपुनौ कल्यान करि लै, मानुषी तन पाइ–१ - ३१५।
संज्ञा
[सं. कल्याण]


कल्यान
एक राग जो रात के पहले पहर में गाया जाता है।
सूर स्याम अति सुजान गावत कल्यान तान सपत सुरन कल इते पर मुरलिका बरषी री - २३६२।
संज्ञा
[सं. कल्याण]


कल्योना
कलेवा।
संज्ञा
[हिं. कलेवा]


कल्ला
अंकुर, गोंफा।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का करैल]


कल्ला
गाल का भीतरी भाग, जबड़ा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कल्ला
झगड़ा, विवाद।
संज्ञा
[हिं. कलह]


कल्लाना
जलन होना।
क्रि. अ.
[सं. कड् या कल्= संज्ञाहीन होना]


कल्लाना
दुखदायी होना।
क्रि. अ.
[सं. कड् या कल्= संज्ञाहीन होना]


कल्लोल
लहर, तरंग।
संज्ञा
[सं.]


कल्लोल
उमंग, मौज।
संज्ञा
[सं.]


कल्लोलिनी
वह नदी जिसमें तरंग या लहरें हों।
संज्ञा
[सं.]


कल्हरना
भुनना, तला जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कड़ाह+ना (प्रत्य.)]


कल्हारना
भुनना, तलना।
क्रि. स.
[हिं. कल्हरना]


कल्हारना
कराहना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[सं. कल्ल=शोर करना]


कवच
युद्ध में पहनने की लोहे की पोशाक, जिरहवकतर।
बीरा हार चीर चोली छबि सैना सजि सृङ्गार। परन बचन सल्लाह कवच दै जोरौ सूर अपार–१५९६।
संज्ञा
[सं.]


कवच
छाल, छिलका।
संज्ञा
[सं.]


कवच
तंत्र-शास्त्र का एक अंग।
संज्ञा
[सं.]


कवच
बड़ा नगाड़ा, डंका।
संज्ञा
[सं.]


कवन
कैसी, किस प्रकार की।
तोहिं कवन मति रावन आई - ९ - ११७।
वि.
[हिं. कौन]


कवन
किसने।
सुधाधर मुख पै रुखाई धौ कवन कह थाप–सा. ३६।
सर्व.


कवने
किसने।
कंचन को मृग कवने देख्यौ किन बाँध्यौ गहि डोरी - ३०२८।
सर्व.
[हिं. कवन, कौन]


कवर
ग्रास, कौर।
कबहूँ कवर खात मिरचन की लागी दसन टकोर। भाज चले तब गहे रोहिनी लाई बहुत निहोर–सारा. - ९०८।
संज्ञा
[सं. कवल]


कवर
बाल, केश।
संज्ञा
[सं.]


कवर
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


कवर
लोनापन।
संज्ञा
[सं.]


कवर
गुथा हुआ।
वि.


कवर
मिला हुआ।
वि.


कवरी
चोटी, जूड़ा, वेणी।
(क) गति मराल अरु बिंब अधर छबि, अहि अनूप कवरी - ६ - ६३। (ख) अति सुदेस मृदु चिकुर हरत चित गूँथे सुमन रसालहिं। कवरी अति कमनीय सुभग सिर राजति गोरी बालहिं। (ग) सुंदर स्याम गही कवरी कर मुक्‍तामाल गही बलवीर - १० - १६१। (घ) अरुन नैनमुख सरद निसाकर कुसुम गलित कवरी - २१०६।
संज्ञा
[सं.]


कवल
कौर, ग्रास, गस्सा।
संज्ञा
[सं.]


कवल
कुल्ली का जल।
संज्ञा
[सं.]


कवल
किनारा, कोना।
संज्ञा


कवल
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


विष्‍णु।
संज्ञा
[सं.]


कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


यम।
संज्ञा
[सं.]


मयूर।
संज्ञा
[सं.]


शब्द।
संज्ञा
[सं.]


जल।
संज्ञा
[सं.]


अग्नि।
संज्ञा
[सं.]


वायु।
संज्ञा
[सं.]


आत्‍मा
संज्ञा
[सं.]


कवल
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[देश.]


कवलित
खाया हुआ, ग्रसित।
वि.
[सं. कवल]


कवष
ढाल।
संज्ञा
[सं.]


कवष
एक प्राचीन ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कवाट
कपाट, किवाड़।
संज्ञा
[सं.]


कवि
कविता करनेवाला, काव्य रचनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कवि
ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कवि
ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं.]


कवि
शुक्राचार्य।
संज्ञा
[सं.]


कवि
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


कविकुल
कवियों का समूह या वर्ग।
लाल गोपाल बाल-छबि बरनत कविकुल करिहै हास री - १० - १३६।
संज्ञा
[सं.]


कविता, कविताई
काव्य, कविता।
संज्ञा
[सं. कविता]


कवित्त
कविता, काव्य।
संज्ञा
[सं. कवित्व]


कवित्त
एक प्रसिद्ध छन्द जिसमें ३१ अक्षर होते हैं।
संज्ञा
[सं. कवित्व]


कवित्व
कविता रचने की शक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कवित्व
काव्य गुण।
संज्ञा
[सं.]


कविनासा
कर्मनाशा।
संज्ञा
[सं. कर्मनाशा]


कविराज, कविराय
श्रेष्ठ कवि।
संज्ञा
[सं. कविराज]


कविलास
कैलाश।
संज्ञा
[सं. कैलास]


कविलास
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं. कैलास]


कशा
रस्सी
संज्ञा
[सं.]


कशा
कोड़ा, चाबुक।
संज्ञा
[सं.]


कश्चित
कोई।
वि., सर्व.
[सं.]


कष
सान।
संज्ञा
[सं.]


कष
कसौटी।
संज्ञा
[सं.]


कष
परीक्षा।
संज्ञा
[सं.]


कषाय
कसैया, बकठा।
वि.
[सं.]


कषाय
सुगंधित।
वि.
[सं.]


कषाय
रंगा हुआ।
वि.
[सं.]


कषाय
गेरू के रंग का।
वि.
[सं.]


कषाय
कसैली वस्तु।
संज्ञा


कषाय
गोंद।
संज्ञा


कषाय
गाढ़ा रस।
संज्ञा


कषाय
कलियुग।
संज्ञा


कष्ट
पीड़ा, दुख, तकलीफ।
संज्ञा
[सं.]


कष्ट
संकट, मुसीबत।
संज्ञा
[सं.]


कस
परीक्षा, कसौटी, जाँच।
संज्ञा
[सं. कष]


कस
तलवार की लचक।
संज्ञा
[सं. कष]


कस
बल, जोर।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कस
दबाव, वश, अधिकार।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कस
सार, तत्व।
संज्ञा
[सं. कषाय, हिं. कसाव]


कस
कैसे, क्योंकर।
क्रि. वि.


कस
क्यों।
क्रि. वि.


कसक
पीड़ा, दर्द, टीस।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
पुराना बैर।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
अरमान, अभिलाषा।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसक
दूसरे को दुखी देखकर स्वयं दुखी होना, सहानुभूति।
संज्ञा
[सं. कष=आघात, चोट]


कसकत
दर्द करता (है), सालता (है), टीसता (है)।
नाही कसकत मन, निरखि कोमल तन, तनिक से दधि काज, भली री तू मैया - ३७२।
क्रि. अ.
[हिं.कसक, कसकना]


कसकना
दर्द करना, टीसना।
क्रि. अ.
[हिं. कसक]


कसक्यौ
कसका, दर्द हुआ, टीस हुई।
जसुदा तोहिं बाँधि क्यों आयौ। कसक्यौ नाहिं नैकु मन तेरौ, यहै कोखि को जायौ–३७४।
क्रि. अ.
[हिं. कसक, कसकना]


कसना
सवारी तैयार होना।
क्रि. अ.


कसना
खूब भर जाना।
क्रि. अ.


कसना
कसौटी पर घिसकर परखना।
क्रि. स.


कसना
परीक्षा लेना, जाँचना।
क्रि. स.


कसना
घी में तलना।
क्रि. स.


कसना
दुख देना, कष्ट पहुँचना।
क्रि. स.
[सं. कषण=कष्ट देना]


कसना
कसने या बाँधने की डोरी, ररसी।
संज्ञा


कसनि, कसनी
कसने की रस्सी, बेठन।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कंचुकी, अँगिया।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कसौटी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसत
परखते हैं, जाँचते हैं।
सूर प्रभु हँसत, अति प्रभु प्रीति उर में बसत इन्द्र को कसत हरि जग धाता।
क्रि. अ.
[हिं. कसना]


कसन
कसने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसन
कसने का ढंग।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसन
कसने की रस्सी या डोरी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसना
बंधन खींचना या तानना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
जकड़ना, बाँधना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
सवारी तैयार करना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
दबा दबाकर भरना।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्‍सण]


कसना
बंधन खिंच जाना, जकड़ जाना।
क्रि. अ.


कसना
बंधना।
क्रि. अ.


कसनि, कसनी
परख, जाँच।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसनि, कसनी
कसैली वस्तु का पुट देने के लिए उसमें डुबोना।
संज्ञा
[हिं. कसाव]


कसब
काम, परिश्रम, मेंहनत।
आन देव की भक्ति-भाइ करि, कोटिक कसब करैगौ। सब वे दिवस चारि मनरंजन, अंत काल बिगरैगौ - १ - ७५।
संज्ञा
[अ.]


कसब
व्यभिचार।
संज्ञा
[अ.]


कसम
शपथ, सौगंध।
संज्ञा
[अ. क़सम]


कसमसाना
रगड़ खाना, कुलबुलाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
ऊबना, उकताना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
घबराना,बेचैन होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसमसाना
हिचकना, टाल-मटोल करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कसर
कमी, त्रुटि।
संज्ञा
[अ.]


कसाला
परिश्रम, मेंहनत।
संज्ञा
[सं. कष-पीड़ा, दुख]


कसाव
कसैलापन।
संज्ञा
[सं. कषाय]


कसाव
खिचाव, तनाव।
संज्ञा


कसावर
एक देहाती बाजा।
संज्ञा
[देश.]


कसि
अच्छी तरह बाँधकर, जकड़कर।
(क) तजौ बिरद के मोहिं उधारौ, सूर कहै कसि फेंट - १ - १४५ (ख) कसि कंचुकि, तिलक लिलार, सोभित हार हिये - १० - २४।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसी
एक पौधा।
संज्ञा
[सं. कशक]


कसी
तनी, तनी हुई।
किरनि कटाक्ष बान बर साँधे भौंह कलंक समान कसी री - १८९८।
वि.
[हिं. कसना]


कसीटना
कसना, रोकना।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसीस
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कासीस]


कसीस
निर्दयता।
संज्ञा


कसर
बैर, मनमोटाव।
संज्ञा
[अ.]


कसर
हानि, घाटा।
संज्ञा
[अ.]


कसर
दोष, विकार।
संज्ञा
[अ.]


कसरत
व्यायाम, मेहनत।
संज्ञा
[अ.]


कसरि
कमी, न्यूनता, त्रुटि।
अब कछू हरि कसरि नाहीं, कत लगावत बार ? सूर प्रभु यह जानि पदवी, चलत बैलहिं आर - १ - १९९।
संज्ञा
[अ. कसर]


कसाई
बधिक, हत्यारा।
श्रीधर बाँभन करम कसाई। कह्यौ कंस सौं बचन सुनाई। प्रभु, मैं तुम्हरौ आज्ञाकारी। नंद-सुवन कौं आवौं मारी - १० - ५७।
संज्ञा
[अ. कस्साब]


कसाना
खट्टी चीज का कसैला हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. काँसा]


कसाना
कसवाना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कसना' का प्रे.]


कसार
भुना आटा जिसमें चीनी मिला दी गयी हो, पँजरी।
संज्ञा
[सं. कृसर]


कसाला
दुख, कष्ट।
संज्ञा
[सं. कष-पीड़ा, दुख]


कँगन, कँगना
हाथ में पहनने का एक गहना, कड़ा, कंकण।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँगन, कँगना
लोहे का चक्र या कड़ा।
संज्ञा
[सं. कंकण]


कँगनी
छोटा कंगन।
संज्ञा
[हिं. कंगना]


कँगनी
एक अक्ष, काकुन।
संज्ञा
[सं. कंगु]


कँगला
भुखमरा, गरीब, बहुत लालची।
वि.
[हिं. कंगाल]


कंगाल
भुखमरा।
वि.
[सं. कंकाल]


कंगाल
दरिद्र
वि.
[सं. कंकाल]


कंगाली
भुखमरी।
संज्ञा
[हिं, कंगाल]


कंगाली
गरीबी, दरिद्रता।
संज्ञा
[हिं, कंगाल]


कँगुरिया, कँगुरी
छिगुनी, उँगली, छोटी उँगली।
जैसी तान तुम्हारे मुख की तैसिय मधुर उपाऊँ। जैसे फिरत रंध्र ममु कँगुरी तैसे मैंहुँ फिराऊँ - पृ. ३११।
संज्ञा
[हिं. कनगुरिया]


कइक
कई एक, कुछ।
राम दिन कइक ता ठौर अवरो रहे आइ वल्पवअ तहाँ दुई दिखाई - १० उ. - १८०।
वि.
[हिं. कई+एक]


कइत
ओर, तरफ।
संज्ञा
[हिं. कित]


कई
एक से अधिक, अनेक।
वि.
[सं. कति, प्रा. कइ]


कई
हल्के हरे रंग की महीन वास जो जल या सील में होती है।
अब इह बरषा बीति गई।…..घटी घटा सब अभिन मोह मद तमिता तेज हई। सरिता संयम स्वच्छ सलिल जल फाटी काम कई - २८३३।
संज्ञा
[सं. कावार, हिं. काई]


ककड़ी
एक बेल जिसमें पतले-पतले पर लंबे फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्कटी, पा. कक्‍कड़ी]


ककड़ी
एक बेल जिसमें धारीदार बड़े खरबूजे की तरह के फल लगते हैं और ‘फूट' कहलाते हैं।
संज्ञा
[सं. कर्कटी, पा. कक्‍कड़ी]


ककना
हाथ का एक गहना, कँगन।
संज्ञा
[सं. कंकण, हिं. कॅंगना]


ककनी
हाथ का कॅंगूरेदार चूड़ीनुमा गहना।
संज्ञा
[हिं. कॅंगना]


ककनू
एक पक्षी जिसके गाने से घोसले में आग लग जाती है और वह स्वयं जल मरता है।
संज्ञा
[देश.]


ककमारी
एक तरह की लता जिसके फल मछलियों और कौओं के लिए मादक होते हैं।
सं.
[सं. काक=कौवा+मारना]


कसीस
कोशिश।
संज्ञा


कसीसना
खीचना।
क्रि. अ.
[हिं. कसना= खींचना]


कसूँभी
कुसुम के रंग का।
वि.
[हिं. कुसुम]


कसूँभी
कुसुम के फूलों के रंग में रँगा हुआ।
वि.
[हिं. कुसुम]


कसूर
अपराध, दोष।
संज्ञा
[अ. कसूर]


कसे
बाँधे हुए, जकड़कर बाँधे हुए।
अलख-अनंत-अपरिमित महिमा, कटि-तट कसे तूनीर - ९ - २६।
क्रि. स.
[हिं. कसना]


कसेरा
फूलकाँसे आदि के बरतन ढालने-बेचनेवाला।
संज्ञा
[हिं. काँसा+एरा (प्रत्य.)]


कसैया
कसकर बाँधनेवाला
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसैया
परखने, जाँचनेवाला, पारखी।
संज्ञा
[हिं. कसना]


कसैला
जिसके स्वाद में कसैलापन हो।
वि.
[हिं. कसाव+ऐला (प्रत्य.)]


कहंत
कहता है, बोलता है।
जिय अति डरयौ, मोहि मति सापै ब्याकुल बचन कहंत। मोंहिं बर दियौ सकल देवनि मिलि, नाम धरयौ हनुमंत - ९ - ८३।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहना]


कह
क्या।
जाँचक पैं जाँचक कह जाँचै, जौ जाँचै तौ रसनाहारी - १ - ३४।
वि.
[सं. क:]


कहत
कहने में, वर्णन करने में।
अबिगत गति कछु कहत न आवै। ज्यौं गूंगे मीठे फल कौ रस अंतरगत हीं भावै–१ - २।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहत
कहता है, वर्णन करता है।
जग जानत जदुनाथ जिते जन निज भुज स्रम सुख पायौ। ऐसौ को जु न सरन गहे तैं कहत सूरउतरायौ - १ - १५।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहति
वर्णन करती है।
बकी जु गई घोष मैं छल करि, जसुदा की गति कीनी। और कहति स्रुति वृषभ व्याध की जैसी गति तुम कीनी - १ - १२२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहती
वर्णन करती, शब्दों में अभिप्राय बताती।
जो मेरी अखियनि रसना होती कहती रूप बनाइ री - १० - १३९।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहन
कहने या बताने के लिए।
बिहवल मति कहन गए, जोरे सब हाथा - ९ - ९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहन
कहन सुनन को- केवल कहने भर को, नाम मात्र को। उ. - सतजुग लाख बरस की आइ। त्रेता दस सहस्र कहि गाइ। द्वापर सहस एक की भई। कलिजुग सत संबत रह गयी। सोऊ कहन सुनन कौं रही। कलि मरजाद जाइ नहिं कही - १ - २३०।
मु.


कहना
बोलना, अभिप्राय प्रकट करना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
प्रकट करना, रहस्य खोलना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कसौंजा, कसौंदा
एक पौधा या उसका फूल।
संज्ञा
[सं. कासमई, पा. कासमद्द]


कसोटिया
कसौटी, सोना परखने का पत्थर।
तनिक कटि पर कनक-करधनि, छीन छबि चमकाति। मनौ कनक कसौटिया पर, लीक-सी लपटाति - १० - १८४।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी, हि. कसौटी]


कसौटी
एक काला पत्थर जिसपर रगड़ कर सोने की परख की जाती है। शालग्राम इसी पत्थर के होते हैं।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी]


कसौटी
परख, परीक्षा।
उ. - गोरस मथत नाद इक उपजत , किंकिनि धुनि सुनि स्रवन रमापति। सूर स्याम अँचरा धरि ठाढ़े, काम कसौटी कसि दिखरावति - १० - १४९। (ख) प्रीति पुरातन मोरी उनसों नेह कसौटी तोलै –३०९१।
संज्ञा
[सं. कषपट्टी]


कस्तूरि, कस्तूरिका, कस्तूरी
मृग विशेष की नाभि से निकलनेवाला एक सुगंधित द्रव्य।
उज्ज्वल पान कपूर कस्तूरी। आरोगत मुख की छबि रूरी - ३९६।
संज्ञा
[सं. कस्तूरी]


कस्यप
एक प्रजापति जो सुरों और असुरों के पिता थे।
संज्ञा
[सं. कश्यप]


कस्यौ
जकड़कर बाँधा।
(क) सुचि करि सकल बान सूधे करि, कटि-तट कस्यौ निपंग - ९ - १५८। (ख) सूर प्रभु देखि नृप क्रोध पुरी धरी कस्यौ कटि पीतपट देव राजै - २६१२।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कस्सण, हिं. कसना]


कहँ
के लिए। (अवधी में यह द्वितीया और चतुर्थी का चिन्ह है)।
प्रत्य.
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


कहँ
कहाँ, किस जगह।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहँ
कहँ लगि-कहाँ तक।
रसना एक, अनेक स्याम-गुन कहँ लगि करौं बखानी - १ - ११।
यौं.


कहना
सूचना या खबर देना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
पुकारना, नाम रखना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
समझाना-बुझाना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
बनावटी बातें करके भुलावे में डालना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
भला-बुरा कहना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
कविता रचना।
क्रि. स.
[सं. कथन, प्रा. कहन]


कहना
कथन, बात, अनुरोध।
संज्ञा


कहनि
वचन, बात, कथन।
संज्ञा
[सं. कथन, हिं. कहन]


कहनि
करनी, करतूत।
तृन की आग बरत ही बुझि गई हँसि हँसि कहत गोपाल। सुनहु सूर वह करनि, कहनि यह, ऐसे प्रभु के ख्याल - ५९८।
संज्ञा
[सं. कथन, हिं. कहन]


कहनी
कथा, कहानी।
संज्ञा
[सं. कथनी, प्रा. कहनी]


कहल
हवा के बंद हो जाने पर बढ़नेवाली गर्मी, उमस।
संज्ञा
[देश.]


कहल
कष्ट।
संज्ञा
[देश.]


कहलना
अकुलाना, व्याकुल होना।
क्रि. अ.
[हिं. कहल]


कहलवाना, कहलाना
कहने की क्रिया दूसरे से कराना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कहना' का प्रे.]


कहलवाना, कहलाना
संदेश भेजना।
क्रि. स.
[हिं. ‘कहना' का प्रे.]


कहवनि
कहना है।
अब मोकौं उनसौं कहवनि है कछु मैं गई बुलावन। आपुहिं काल्हि कृपा यह कीन्ही अजिर गये करि पावन - २१६४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहवाँ
कहाँ।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहवाए
कहलाये, प्रसिद्ध हुए।
(क) सूरजबंसी सो कहवाए। रामचंद्र ताही कुल आए - ९ - २।

(ख) राजा उग्रसेन कहवाए - २६४३।

क्रि. स.
[हिं. कहवाना]


कहवाना
कहलाना।
क्रि. स.
[हिं, ‘कहना' का प्रे.]


कहवाना
संदेश भेजना।
क्रि. स.
[हिं, ‘कहना' का प्रे.]


कहनी
बात, कथन।
संज्ञा
[सं. कथनी, प्रा. कहनी]


कहनाउत, कहनावत, कहनावति
बात, कथन।
सुनहु सखी राधा कहनावति। हम देखे सोई इन देखे ऐसेहि ताते कहि मन भावति–१६२९।
संज्ञा
(हिं. कहना+आवत (प्रत्य.)]


कहनाउत, कहनावत, कहनावति
चर्चा, प्रसंग।
कहाँ स्याम मिलि बैठी कबहूँ कहनावति ब्रज ऐसी। लूटहिं यह उपहास हमारौ यह तौ बात अनैसी - पृ. ३२४।
संज्ञा
(हिं. कहना+आवत (प्रत्य.)]


कहनूत
कहावत, कहनावत।
संज्ञा
[हिं. कहना+उत (प्रत्य.)]


कहर
विपत्ति, संकट।
संज्ञा
[अ.]


कहर
घोर, भयंकर।
वि.
[अ. कह्‌हार]


कहर
अपार, अथाह।
वि.
[अ. कह्‌हार]


कहरति
पीड़ित है, कराहती है।
मोह विपिन में पड़ी कराहति हौं नेह जीव नहिं जात। सूरस्याम गुन सुमिरि सुमिरि वै अंतरगति पछितात - पृ. ३२६।
क्रि. अ.
[हिं. कहरना]


कहरना
पीड़ा से ‘आह' करना, कराहना।
क्रि. अ.
[हिं. कराहना]


कहरी
विपत्ति लानेवाला।
वि.
[हिं. कहर]


कहवायौ
कहा जाता है, समझा जाता है, माना जाता है।
बीरा लैं आयौ सन्मुख तैं, आदर करि नृप कंस पठायो, जारि करौं परलय छिन भीतर, व्रज बपुरौ केतिक कहवायौ - ५९१।
क्रि. स.
[हिं. कहलाना]


कहावत
कहलाते हैं।
(क) सुदर कमलन की सोभा चरन कमल कहवावत - १९७५।

(ख) ऐसेहि जगतपिता कहवावत ऐसे घात करै सो दाता - १४२७। (ग) मधुकर अब भयौ नेह बिरानी। बाहर हेत हतो कहवावत भीतर काज सयानी - ३३७५।

क्रि. स.
[हिं. कहवाना]


कहवावै
कहलाता है।
(क) सिव सनकादि अंत नहिं पावैं, भक्त-बछल कहवावै - ४८२। (ख) वे हैं बड़े महर की बेटी तौ ऐसी कहवावै - १५९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहवैयौ
कहलाना, प्रसिद्ध कराना।
राधा-कान्ह कथा ब्रज घर घर ऐसे जनि कहवैयौ - - १४९६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहाँ
किस जगह, किस स्थान पर।
क्रि. वि.
[सं. कुहः]


कहाँ
पैदा होने वाले बच्चे का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कहा
कथन, बात, आज्ञा, उपदेश, कहना।
संज्ञा
[सं. कथन, प्रा. कहन, हिं. कहना]


कहा
कैसे, किस प्रकार के।
रूप देखि तुम कहा भुलाने मीत भए वनयाते - २५२८।
क्रि. वि.
[सं. कथम्]


कहा
क्या (व्रज)।
कलानिधान सकल गुन सागर, गुरु धौं कहा पढ़ाये (हो) - १ - ७।
सर्व.
[सं. कः]


कहा
कहा हो - क्या है, तुलना में कुछ नहीं है, तुच्छ है।

उ. - तुम जो प्यारी मोही लागत चंद्र चकोर कहा री हो। सूरदास स्वामी इन बातन नागरि रिझई भारी हो - १५६६।

मु.


कहा
क्या।
वि.


कहाइ
कहाकर, कहलाकर, प्रसिद्ध होकर।
(क) बेष धरि- धरि हरयौ परधन साधु-साधु कहाइ - १ - ४५। (ख) हौं कहाइ तेरौ, अब कौन कौ कहाऊँ - १ - १६५।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाउति
कहावत।
संज्ञा
[हिं. कहावत]


कहाऊँ
कहलाऊँ।
(क) हौं कहाइ तेरौ, अब कौन कौ कहाऊँ - १ - १६६। (ख) जो तुम्हरे कर सर न गहाऊँ गंगासुत न कहाऊँ - सारा. ७८०।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाऊँगो
कहलाऊँगा।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाए
कहलाये, प्रसिद्ध हुए।
तुम मोसे अपराधी माधव, केतिक स्वर्ग पठाए | (हो)। सूरदास-प्रभु भक्त-बछल तुम, पावन- नाम कहाए (हो) - १ - ७ |
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहाकही
वादविवाद।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहानी
कथा, आख्यायिका।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहानी
झूठी या गढ़ी बात, अद्भुत बात।
(क) कुटिल कुचाल जन्म की टेढ़ी सुंदरि करि घर आनी। अब वह नवन बधू ह्वै बैठी ब्रज की कहत कहानी - ३०८६। (ख) सिंह रहै जंबुक सरनागति देखी सुनी न अकथ कहानी - पृ. , ३४३ (२०)।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहार
एक शूद्र जाति जो पानी भरने और डोली उठाने का काम करती है।
संज्ञा
[सं. कं.=जल+हार अथवा सं. स्कंधभार]


कहाल
एक बाजा।
संज्ञा
[देश.]


कहावत
कहलाते हैं, प्रसिद्ध हैं।
(क) कहावत ऐसे त्यागी दानि। चारि पदारथ दिए सुदामहिं अरु गुरु के सुत आनि - १ - १३५। (ख) इन्द्रीजित हौं कहावत हुतौ, आपकौं समुझि मन माहिं ह्वै रह्यौ खीनौ - ८ - १०।

(ग) रूप-रसिक लालची कहावत सो करनी कछु वैन भई - २५३७।

क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहावत
अनुभव की बात जो सुंदर ढंग से कही जाने के कारण प्रसिद्ध हो जाय।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावत
कही हुई बात, उक्ति।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावत
मृत्यु का संदेश या सूचना।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहावै
कहलाता है, प्रसिद्ध है।
(क) साँचौ सो लिखहार कहावै। काया-ग्राम मसाहत करि कै, जमा बाँधि ठहरावै–१ - १४२। (ख) कामिनी धीरज धरै को सो कहावै री - ६२९।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहाहि
कहलाते हैं।
(क) ऐसे लच्छन हैं जिन माहिं। माता, तिनसौं साधु कहाहिं - ३ - १३।

(ख) स्याम हलधर सुत तुम्हारे और कौन कहाहिं - २९२८।

क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहि
कहना, कहने में समर्थ होना।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहि
कहि परति- कह सकना, वर्णन कर सकना। उ.- काहू के कुल तन न बिचारत। अबिगत की गति कहि न परति है, ब्याध अजामिल तारत - १ - १२।

कहि आयौ - कह सका, मुँह से निकल गया। उ.- करत बिवस्त्र द्रुपद-तनया कौं, सरन सब्द कहि आयौ। पूजि अनंत कोटि बसननि हरि अरि को गर्व गँवायौं - १ - १९.। कहि न जाइ- कहा नहीं जा सकता, वर्णन नहीं किया जा सकता। उ.- हरष अक्रूर हदय न भाइ। नेम भूल्यौ ध्यान स्याम बलराम कौ हृदय आनन्द मुख कहि न जाय - २५५६।

मु.


कहिअहु
कहना जाकर बताना, कह देना।
बिजै अधोमुख लेन सूर प्रभु कहिअहु बिपति हमारी–सा. उ. ३५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिए, कहिए
वर्णन कीजिए, बताइए।
सखा भीर लै पैठत घर मैं आपु खाइ तौ सहिऐ। मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ - १० - ३२२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिबे
कथन, वचन।
धिक तुम धिक या कहिबे ऊपर - १ - २८४।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहिबे
कहिबे के अनुमानैं- केवल कहने के लिए, कहकर अपना मन बहला लेने के लिए उ.- कहियै जो कुछ होई सखी री, कहिबे के अनु मानैं। सुंदर स्याम निकाई कौ सुख, नैना ही पै जानै - ७३०।
मु.


कहिबे
कहना, समाचार देना, बताना।
ऊधौ और कछु कहिबै कौ। मनमानैं सोंऊ कहि डारौ पालागैं हम सुनि सहिबे कौ - ३००४
क्रि. सं.


कहिबो
कहना, बताना, वर्णन करना।
(क) तुम सौं प्रेम कथा कौ कहिबौ मनहु काटिबों घास - ३३३६। (ख) हम पर हेतु किये रहिबो। या ब्रज कौ व्यवहार सखा तुम हरि सौं सब कहिबो - ३४१४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियत
कहलाते हैं, प्रसिद्ध हैं।
(क) वै रघुनाथ चतुर कहियत हैं, अंतरजामी सोइ। या भयभीत देखि लंका मैं, सीय जरी मति होइ - ९ - ९९। (ख) सूरदास गोपिन हितकारन कहियत माखन-चोर ४७७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियत
कहते हैं, वर्णन करते हैं।
राम-कृष्ण अवतार मनोहर भक्तन के हित काज। सोई सार जगत में कहियत ... सुनो देव द्विजराज - सारा. ११३।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियाँ
कहते हैं, बताते हैं।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियाँ
को, के लिए।
रघुकुल-कुमुद चंद चिंतामनि प्रगटे भूतल महिमाँ। आए ओप देन रघुकुल कौं, आनंदनिधि सब कहियाँ - ९ - १६।
क्रि. वि.
[हिं. कहँ]


कहिया
कब, किस दिन।
क्रि. वि.
[सं. कुह]


ककरी
ककड़ी का फल।
(क) ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ–२३२१।

(ख) सुनत जोग लागत हमैं ऐसो ज्यों करुई ककरी - ३३६०।

संज्ञा
[हिं. ककड़ी]


ककहरा
क' से 'ह' तक वर्णमाला।
संज्ञा
[हिं.]


ककहरा
प्रारंभिक बातें, साधारण ज्ञान।
संज्ञा
[हिं.]


ककही
कंघी।
संज्ञा
[हिं. कंघी]


ककही
एक तरह की कपास जिसकी रुई कुछ लाल होती है।
संज्ञा
[सं. कंकती, प्रा. कंकई]


ककुद
बैल के कन्धे का कूबड़।
संज्ञा
[सं.]


ककुद
राजचिह्न।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
अर्जुन का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
वीणा का ऊपरी भाग।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
दिशा।
संज्ञा
[सं.]


कहियै
बोलिए, वर्णन कीजिए।
मोसौं बात सकुच तजि कहियै - १ - १३५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियौ
कहना, बोलना, बताना।
कह्यौ मयत्रेय सौं समुझाइ। यह तुम बिदुरहिं कहियौ ज़ाइ - ३ - ४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहियौ
तब कहियौ नाम (बलराम) - जो कुछ मैं कह रहा हूँ वह पूरा न हो तो मेरा नाम नहीं, मेरा कहा ठीक न हो तो मेरा नाम नहीं। उ. - मोहिं दुहाई नंद की, अबहों आवत स्याम। नाग नाथि लै आइहैं, तब कहियौ बलराम - ५८९।
मु.


कहिहैं
कहेंगे, बतायेंगे।
ऊधव कह्यौ, हरि कह्यौ जो ज्ञान। कहिहैं तुम्हें मयत्रेय आन - ३ - ४।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिहौं
कहूँगा, सूचना दूँगा।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहिहौं
शिकायत करूँगा।
रोवत चले श्रीदामा घर कौं, जसुमति आगैं कहिहौं जाइ - ५३९।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहीं
किसी ऐसी जगह जिसका पता न हो।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
नहीं, कभी नहीं।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
अगर, यदि, कदाचित।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कहीं
बहुत बढ़कर।
क्रि. वि.
[हिं. कहाँ]


कही
वर्णन की, बतायी।
मैं तो अपनी कही बड़ाई - १ - २.७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कही
कही हुई बात, उक्ति, कथन।
यह सुनि ग्वाल गये तहँ धाई। नंद महर की कही सुनायी - १००४।
संज्ञा


कहीन्यौ
कहा है, वर्णन किया है।
जो जस करै सो पावै तैसौ, बेद-पुरान कहीन्यौ - ८ - १५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहुँ
कहीं, किसी स्थान पर।
अब तुम मोकौं करौ अजाचीं, जौ कहुँ कर न पसारौं - १० - ३७।
क्रि. वि.
[हिं. कहूँ]


कहु
कहो।
बग-बगुली अरु गीध-गीधनी, आइ जनम लियौ तैसौ। उनहूँ कैँ गृह, सुत, दारा हैं उन्हैं भेद कहु कैसौ - २ - १४।
क्रि. वि.
[हिं. कहो]


कहूँ
कहीं, किसी स्थान पर।
(क) हरि चरनारबिंद तजि लागत अनत कहूँ तिनकी मति काँची - १ - १८।

(ख) मेरे लाड़िले हो तुम जाउ न कहूँ - १० - २९५।

क्रि. वि.
[सं. कुह, हिं. कहीं]


कहूँ
कहूँ की कहूँ- कहीं की कहीं, एक सीधे प्रसंग से हटाकर किसी अन्य दूर के संबंध में जोड़ लेना, दूर का अर्थ निकालना। उ.- कहा करौं तुम बात कहूँ की कहूँ लगावति। तरुनिन इहै सोहात मोहिं यह कैसे भावति - १०७१।
मु.


कहे
कहना, कथन।
मेरे कहे में कोऊ नाहीं - ११९५।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहे
बोले, वर्णित किये।
नव स्कंध नृप सौं कहे श्रीसुकदेव सुजान - १० - १।
क्रि. सं.


कहैं
कहने से, बात मानकर।
कहैं तात के पंचवटी बन छाँड़ि चले रजधानी - १० - १९९।
संज्ञा
[हिं. कहना]


कहैं
कहते हैं, बताते हैं।
(क) चलत पंथ कोउ थाक्यौ होइ। कहैं दूरि, डरि मरिहै सोइ - ३ - १३। (ख) तनक सी बात कहै तनक तनकि रहे - १० - १५०।

(ग) जिनकौ मुख देखत दुख उपजत, तिनकौ राजा-राय कहै - १ - ५३।

क्रि. स.


कहैंगे
कहेंगे, बतायँगे।
नंद सुनि मोहिं कहा कहैंगे देखि तरु दोउ आइ - ३८७।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहेगौ
कहेगा, बोलेगा, अभिप्राय प्रकट करेगा।
कब हँसि बात कहैगौ मोसौं जा छबि तैं दुख दूरि हरै - १० - ७६।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहैहैं
कहलायँगे, प्रसिद्ध होंगे।
नंदहुं तैं ये बड़े कहैहैं फेरि बसैहैं यह ब्रजनगरी - १० - ३१९।
क्रि स.
[हिं. कहाना]


कहैहौं
कहलाऊंगा।
(क) हृदय कठोर कुलिस तैं मेरौ, अब नहिं दीनदयाल कहैहौं–७ - ५। (ख) काटि दसौ सिर बीस भुजा तब दसरथ-सुत जु कहैहौं–९ - ११३।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहौं
कहूँ, वर्णन करूँ।
कहा कहौं हरि केतिक तारे पावन-पद परतंगी। सूरदास, यह बिरद स्रवन सुनि, गरजत अधम अनंगी - १ - २१।
क्रि. स.
[हिं. कहाना]


कहौंगो
कहूँगा, बताऊँगा।
जब मोहि अंगद कुसल पूछिहै, कहा कहौंगो वाहि - ९ - ७५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहौ
कहो, बताओ, समझाओ।
सूर अधम की कहौ कौन गति, उदर भरे, परि सोए - १ - ५२।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कहौगे
बहकाओगे, बातों में भुलाओगे, बनावटी बातें करोगे।
लरिकनि कौं तुम सब दिन झुठवत, मोसौं कहा कहोगे। मैया मैं माटी नहिं खाई, मुख देखैं निबहौगे - १० - २५३।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यउ
कहा।
नृपति कह्यउ मेरे गृह चलिये करो कृतारथ मोय - सारा. ८००।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यौ
‘कहना' क्रिया के भूत कालिक रूप ‘कहा' का ब्रजभाषा का रूप, कहा, कहे।
(क) का न कियौ जन-हित जदुराई। प्रथम कह्यौ जो बचन दयारत तिहिं बस गोकुल गाय चराई - १ - ६। (ख) हरि कह्यौ-जज्ञ करत तहँ बाम्हन - ८००

(ग) सूरदास प्रभु अतुलित महिमा जो कछु कह्यौ सो थोड़ा - १० उ. - ५१।

क्रि. स.
[हिं. कहना]


कह्यौ
कहा, कथन, बात।
(क) अजहूँ चेति, कह्यौ करि मेरौ, कहत पसारे बाहीं–१ - २६९। (ख) बरजि रहे सब, कहयौ न मानत, करि-करि जतन उड़ात - २ - २४। (ग) तिन तौ कह्यौ न कीन्हौ कानी। तब तजि चली बिरह अकुलानी - ८००।
संज्ञा


काँइयाँ
जो बहुत चालाकी। दिखाये, धूर्त।
वि.
[अनु. काँव-काँव]


काँई
क्यों।
अव्य.
[सं. किम्]


काँई
किसे, किसको।
सर्व.
[हिं. काहि]


काँकर
कंकड़।
संज्ञा
[सं. कर्कर]


काँकरी
कंकड़ी।
संज्ञा
[हिं. काँकर]


काँ काँ
कौए की बोली।
घरी इक सजन-कुटुँब मिलि बैठे, रुदन बिलाप कराहीं। जैसैं काग काग के मूऐं काँ काँ करि उड़ि जाहीं - १ - ३१९।
संज्ञा
[अनु.]


कांक्षा
इच्छा, चाह।
संज्ञा
[सं.]


काँक्षी
इच्छा या चाह रखनेवाला, अभिलाषी।
वि.
[सं. कांक्षिन]


काँख
बगल।
संज्ञा
[सं. कक्ष]


काँखना
कराहना।
क्रि. अ.
[अनु.]


काँखासोती
जनेऊ की तरह दुपट्टा डालने का ढंग।
संज्ञा
[हि. काँख+सं. श्रोत्र, प्रा. सोत]


काँखी
चाहनेवाला, इच्छा रखनेवाला।
सुक भागवत प्रगट करि गायौ कछू न दुविधा राखी। सूरदास ब्रजनारि संग हरि माँगी करहिं नहीं कोऊ काँखी - १८५६।
संज्ञा
[सं. कांक्षी]


काँगनी
छोटा कंकण।
संज्ञा
[हिं. कँगनी]


काँगही
कंघी, छोटा कंघा।
संज्ञा
[हिं. कंघी]


काँगुरा
शिखर, चोटी।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


काँगुरा
बुर्ज।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


काँच
(सं. काँच) एक प्रकार का शीशा, पारदर्शक शीशा।
(क) कंचन-मनि खोलि डारि, काँन गर बँधाऊँ - १ - १६६। (ख) सूरदास कंचन अरु काँचहिं एकहिं धगा पिरोयौ - १.४३।
सज्ञा


काँच
धोती का पीछे खोंसा जानेवाला भाग।
संज्ञा
[सं. कक्ष]


काँचन
सोना।
संज्ञा
[सं.]


काँचन
चंपा।
संज्ञा
[सं.]


काँचन
धतूरा।
संज्ञा
[सं.]


काँचरी, काँचली
साँप की केंचुली।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका]


काँचरी, काँचली
चोली, कंचुकी।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका]


काँचा
जो पका न हो, कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँचा
दुर्बल, अस्थिर।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँची
कच्ची, अपक्‍व।
मृदु पद धरत धरनि ठहरात न, इत-उत भुज जुग लै लै भरि भरि। पुलकित सुमुखी भई स्याम-रस ज्यौं जल मैं काँची गागरि गरि - १० - १२०।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काँची
काँची मति- खोटी समझ, कच्ची बुद्धि। उ.- हरिचरनारबिंद तजि लागत अनत कहूँ तिनकी .... मति काँची - १ - १८।
मु.


काँची
करधनी।
संज्ञा
[सं.]


काँची
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं.]


काँचुरी,काँचुली
साँप की केंचुल (केंचुली)।
को है सुनत कहत कासौं हौ कौन कथा अनुसारी। सूर स्याम सँग जात भयौ मन अहि काँचुली उतारी - ३२९१।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका,हिं. काँचली]


काँचे
कच्चा, दुर्बल, जो किसी विषय में दृढ़ न हो, अस्थिर।
ऊधौ स्याम सखा तुम साँचे। फिर कर लियौ स्वाँग बीचहिं ते वैसेहि लागत काँचे।
वि.
[हिं. कच्चा]


काँचे
काँचे मन- मन में दृढ़ता न होना।
मु.


काँचे
काँच, शीशा।
प्रेम योग रस कथा कहो कंचन की काँचे - ३४४३।
संज्ञा
[सं. कांच]


काँचै
काँच, शीशा।
यह ब्रत धरे लोक मैं बिचरै, सम करि गनै महामनि काँचे - २ - ११।
संज्ञा
[सं. काँच]


काँचौ
कच्चा, अपक्व।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
अदृढ़, दुर्बल, अस्थिर।
प्रभु तेरौ बचन भरोसौ साँचौ। पोषन भरन बिसंभर साहब, जो कलपै सो काँचौं - १ - ३२।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
जो मजबूत या पक्का न हो।
जब तैं आँगन खेलत देख्यौ मैं जसुदा कौ पूत री। तब तैं गृह सौं नातौ टूट्यौ जैसे काँचौ सूत री - १० - १३६।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँचौ
जो औटाया या पकाया न गया हो, ताजा दुहा हुआ।
काँचौ दूध पियावति पचि पचि देत न माखन रोटी - १० - १७५।
वि.
[हिं. कच्चा, काँचा]


काँछना
सँवारना, पहनना।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काँछा
इच्छा, चाह।
संज्ञा
[सं. कांक्षा]


काँजी
पानी में पिसी राई का घोल जो दो तीन दिन रखने से खट्टा हो गया हो।
संज्ञा
[सं. कांजिक]


काँजी
मट्ठा, छाँछ।
संज्ञा
[सं. कांजिक]


काँट
काँटा।
संज्ञा
[हिं. काँटा]


काँट
कटीली, प्रभावित करनेवाली, मुग्ध करनेवाली।
भौहैं काँट कटीलियाँ सखि बस कीन्ही बिन मोल - १४६३।
वि.


काँटा
पेड़-पौधों के नुकीले अंकुर, कंटक।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
नुकीली वस्तु।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
तराजू की सुई।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटा
नाक में पहनने की कील, लौंग।
संज्ञा
[सं. कंटक]


कांड
शाखा, डंठल।
संज्ञा
[सं.]


कांड
गुच्छा।
संज्ञा
[सं.]


कांड
धनुष का बीच का मोटा भाग।
संज्ञा
[सं.]


कांड
कार्य का भाग।
संज्ञा
[सं.]


कांड
ग्रंथ का वह भाग जिसमें एक विषय पूरा हो।
संज्ञा
[सं.]


कांड
समूह।
संज्ञा
[सं.]


कांड
झूठी प्रशंसा।
संज्ञा
[सं.]


कांड
निर्जन स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कांड
घटना।
संज्ञा
[सं.]


कांड
बुरा।
वि.


काँटा
खटकनेवाली बात।
संज्ञा
[सं. कंटक]


काँटी
कटिया, कील।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँटी
छोटी तराजू।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँटी
झुकी हुई कील, अँकुड़ी।
संज्ञा
[हिं. काँटा का अल्प.]


काँठा
गला।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
तोते के गले की गोल रेखा।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
किनारा, तट।
संज्ञा
[सं. कंठ)


काँठा
बगल।
संज्ञा
[सं. कंठ)


कांड
बाँस, ईख आदि का पोर।
संज्ञा
[सं.]


कांड
वृक्ष का तना।
संज्ञा
[सं.]


ककुभ
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


ककुभा
दिशा।
संज्ञा
[सं. ककुभ]


ककोड़ा
खेखसा या ककरौल नामक तरकारी।
संज्ञा
[सं. कर्कोटक, पा, कक्कोडक]


ककोरना
खुरचना, कुरेदना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


ककोरना
मोड़ना, सिकोड़ना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना]


ककोरा
खेखसी, ककरौल,।
कुँदरू और ककोरा कौंरे। कचरी चार चचेड़ा सौरे - २३२१।
संज्ञा
[सं. कर्कोटक, प्रा. कक्कोडक, हिं. ककोड़ा]


कक्ष
काँख, बगल।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
काँछ, कछोटा, लॉग।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
कछार।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
कमरा, कोठरी।
संज्ञा
[सं.]


काँड़ना
रौंदना, कुचलना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ना
कूट कर चावल की भूसी अलग करना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ना
मारना पीटना।
क्रि. स.
[सं. कंडन (कडि=भूसी अलग करना]


काँड़ी
धान कूटने का गड्ढा।
संज्ञा
[सं. कांड]


काँड़ी
छड़, लट्ठा, डंठल।
संज्ञा
[सं. कांड]


कांत
पति।
संज्ञा
[सं.]


कांत
श्री कृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कांत
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कांत
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कांत
शिव।
संज्ञा
[सं.]


काँति, कांति
शोभा, छवि।
गोरे भाल बिंदु बंदन मनु इन्दु प्रात-रवि कांति ७०१।
संज्ञा
[सं.]


कांतिमान्
कांति या चमक वाला
वि.
[सं. कांतिमत्]


कांतिमान्
सुन्दर।
वि.
[सं. कांतिमत्]


कांतिसार
एक प्रकार का बढ़िया लोहा।
संज्ञा
[सं. कांत)


काँती
बिच्छू का डंक।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
कैंची, कतरनी।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
छोटी तलवार।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँती
छुरी।
कोउ ब्रज बाँचत नाहिन के पाती। कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काँती - २९८०।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती, हिं. काती]


काँथरि
गुदड़ी, कथरी।
संज्ञा
[सं. कंथा]


काँदना
रोना, चिल्लाना।
क्रि. स.
[सं. क्रंदन=चिल्लाना]


कांत
वसंत ऋतु।
संज्ञा
[सं.]


कांतलौह
चुंबक।
संज्ञा
[सं.]


कांता
सुन्दर स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कांता
विवाहित स्त्री, पत्नी।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
भयानक स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
गहन वन।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
खेद।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
दरार।
संज्ञा
[सं.]


कांतार
बाँस।
संज्ञा
[सं.]


काँति, कांति
प्रकाश, आभा, तेज।
बदन काँति बिलोकि सोभा सकै सूर न बरनि - ३५१।
संज्ञा
[सं.]


काँदव, काँदो
कीच,कीचड़।
संज्ञा
[सं. कदम, पा. कद्दम]


काँध
कंधा।
(क) काँध कमरिया हाथ लकुटिया, बिहरत बछरनि साथ - ४८७। (ख) कहत न बनै काँध कामरि छबि बन गैयन को घेरन - ३२७७। (ग) बन बन गाय चरावत डोलत काँध कमरिया राजै - ७४१ सारा.।
संज्ञा
[हिं. कंधा]


काँधना
उठाना, सम्हालना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
ठानना, मचना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
सहन करना
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधना
स्वीकार करना।
क्रि. स.
[हि. काँध]


काँधर
कृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. व कण्‍ह]


कोधा
उठाया, सम्हाला।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


कोधा
स्वीकार किया।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


संज्ञा
कंधा।
पुं.
[हिं. कंधा]


काँपत
डर से काँपते हैं, थर्राते हैं।
(क) उछरत सिंधु, धराधर काँपत, कमठ पीठ अकुलाइ। सेष सहसकन डोलन लागे, हरि पीवत जब पाइ - १० - ६४। (ख) मंदर डरत सिंधु पुनि काँपत फिरि जनि मथन करै - १० - १४३।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपि
थरथरा कर, काँपकर।
पूँछ राखी चाँपि, रिसनि काली काँपि देखि सब साँपि अवसान भूले - ५५२।
क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँपन
हिलने या थरथराने (लगी)।
काँपन लागी धरा पाप तैं ताड़ित लखि जदुराई। आपुन भए उधारन जग के, मैं सुधि नीकैं पाई - १० - २०७।
क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँपना
हिलना, थरथराना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपना
डर से थर्राना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपना
डरना।
क्रि. सं.
[सं. कंपन]


काँपा
हिला डुला, थरथराया।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपी
हिलने डुलने लगी।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपी
थर्राने लगी, डर से काँपने लगी।
काँपी भूमि कहा अब ह्वै है, सुमिरत नाम मुरारि - ९ - १५८।
क्रि. स.
[हिं. काँपना]


काँपै
हिलता-डुलता है, थर्राता है।
(क) चितवनि ललित लकुटलासा लट काँपै अलक तरंग - पृ. ३२५।

(ख) ग्वालनि देखि मनहिं रिस काँपैं - ५८५।

क्रि. स.
[हि. काँपना]


काँधियतु
(युद्ध) ठानते या मचाते हैं।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधी
मानी, स्वीकार की।
जाकी बात कही तुम हम सौं सोधौं कहौ को काँधी। तेरो कहो सो पवन भूस भयौ बहो जात ज्यौं आँधी - ३०२१।
क्रि. स.
[हिं. काँधन]


काँधे, काँधै
कंधा, कंधे पर।
(क) तिहिं सौं भरत कछू नहिं कह्यौ। सुख- आसन काँधे पर गह्यौ– ५ - ३। (ख) ग्वाल के काँधे चढ़े तब लिए छींके उतारि - १० - २८९। (ग) और बहुत काँवरि दधि-माखन अहिरनि काँधे जोरि - ५८३। (घ) ग्वाल-रूप इक खेलत हो सँग लै गयौ काँधै डारि - ६०४।
संज्ञा
[सं. स्कंध, प्रा. खंभ]


काँधे, काँधे
उठाये, सम्हाले।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधे, काँधे
स्वीकार करे।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधो
(युद्ध) ठानना, संग्राम करना।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँधो
स्वीकार करना, अंगीकार करना।
क्रि. स.
[हिं. काँधना]


काँन
कृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, हिं. कान्ह]


काँप
बाँस की लचीली तली।
संज्ञा
[सं. कंपा]


काँप
कान में पहनने का एक गहना, करनफूल।
संज्ञा
[सं. कंपा]


काँपौं
डर से काँपता था, थर्राता था।
हौं डरपौं, काँपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ। थरसि गयौ नहिं भागि सकौं, वै भागे जात अगाऊ - ४८१।
क्रि. स
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


काँप्यौ
काँपा, डरा, भयभीत हुआ, थर्राया।
(क) काल बली तैं सब जग काँप्यौ, ब्रह्मादित हूँ रोए - १.५२। (ख) उर काँप्यौ तन पुलकि पसीज्यौं बिसरि गये मुख-बैन –७४९।
क्रि. स.
[सं. कंपन, हिं. काँपना]


काँय काँय, काँव काँव
कौए का शब्द।
संज्ञा.
[अनु.]


काँवरा
बहँगी जिसके दोनों सिरों पर लंबे छींके होते हैं।
धेनु चरावन चले स्यामघन ग्वाल मंडली जोर। हलधर संग छाक भरि काँवर करत कुलाहल सोर - ४७१ सारा.।
संज्ञा
[हिं. काँध+ आव (प्रत्य.)]


काँवरा
घबराया हुआ, हक्का-बक्का।
वि.
[पं. कमला=पागल]


काँवरि
बहँगी, जिसके सिरे पर सामान ले जाने के लिए लंबे छींके होते हैं।
(क) सहस सकट भरि कमल चलाये।...। और बहुत काँवरि दधि माखन, अहिरनि काँधे जोरि। नृप कैं हाथ पत्र यह दीजौ बिनती कीजौ मोरि ५८३। (ख) ओदन भोजन दै दधि काँवरि भूख लगे तैं खैहौं - ४१२।
संज्ञा
[हिं. काँवर]


काँवरिया
बहँगी ले जानेवाला।
संज्ञा
[हिं. काँवरि]


काँवाँरथी
किसी कामना से तीर्थ-यात्रा करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कामार्थी]


काँस
एक प्रकार की घास।
(क) लटकि जात जरि-जेरि द्रम-बेली, पटकत बाँस, काँस, कुस ताल - ५९४। (ख) डासन काँस कामरी ओढ़न बैठन गोप सभा ही - २२७५।
संज्ञा
[सं. काश]


काँसा, काँस्य
ताँबे और जस्ते के मिश्रण से बनी एक धातु।
संज्ञा
[सं. कांस्य]


का
संबंध या षष्ठी का चिन्ह या विभक्ति।
प्रत्य.
[सं. प्रत्य. क]


का
क्या, कैसा।
(क) का न कियौ जन-हित जदुराई –१ - ६। (ख) देखौं धौं का रस चरननि मैं मुख मेलत करि आरति - १० - ६४।
सर्व.
[सं. कः]


का
ब्रजभाषा में 'किस' या 'कौन' का विभक्ति लगने से पूर्व रूप। जैसे काको, कासौं।
सर्व.
[सं. कः]


काइफल
एक वृक्ष जिसकी छाल दवा के काम आती है।
कूट काइफल सोंठ चिरैता कटजीरा कहुँ देखत - ११०८।
संज्ञा
[सं. कट्फल, हिं. कायफल]


काई
जल पर जमनेवाली एक प्रकार की महीन घास जो हलके हरे रंग की होती है।
संज्ञा
[सं. कावार]


काई
मैले।
संज्ञा
[सं. कावार]


काऊ
कभी।
क्रि. वि.
[सं. कदा]


काऊ
कोई।
सर्व.
[सं. कः]


काऊ
कुछ।
सर्व.
[सं. कः]


काक
कौआ।
संज्ञा
[स.]


काक
लँगड़ा।
संज्ञा
[स.]


काकगोलक
कौए की आँख की पुतली जो केवल एक होती है और दोनों आँखों में आती-जाती रहती है।
संज्ञा
[सं.]


काकतालीय
संयोगवश घटित होनेवाला।
वि.
[सं.]


काकदंत
कौए के दाँत की तरह अविश्वसनीय बात।
संज्ञा
[सं.]


काकपक्ष, काकपच्छ
बालों के पट्टे जो दोनों ओर कानों और कनपटियों के ऊपर रहते हैं, जुल्‍फ, कुल्ला।
(क) कटि तट पीत पिछौरी बाँधे, काकपच्छ धरे सीस - ९ - २०। (ख) कर धनु, काकपच्छ सिर सोभित, अंग-अंग दोउ बीर - ९ - २६।
संज्ञा
[सं. काकपक्ष]


काकपद, काकपाद
एक चिन्ह जो छूटे हुए अंश का स्थान बताने के लिए लगाया जाता है
संज्ञा
[सं.]


काकपाली
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


काकबंध्या
वह स्त्री जो केवल एक संतान उत्पन्न करे।
संज्ञा
[सं.]


काकभुशुंडि
राम का भक्त एक ब्राह्मण जो लोमश ऋषि के शाप से कौआ हो गया था।
संज्ञा
[सं.]


काकरी
कंकड़ी।
संज्ञा
[सं. कर्कटी]


काकली
कोमल या मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


काकली
गुंजा।
संज्ञा
[सं.]


काका
घुँघची,
संज्ञा
[सं.]


काका
मकोय।
संज्ञा
[सं.]


काका
बाप का भाई, चाचा।
संज्ञा
[फ़ा. काका=बड़ा भाई]


काकिणी, काकिनी
गुंजा, घुँघची।
संज्ञा
[सं.]


काकिणी, काकिनी
कौड़ी।
संज्ञा
[सं.]


काकी
किसकी।
(क) काकी ध्वजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहै - १ - २९।

(ख) तिन पूछ्यौ तू काकी धी है - ४ - १२ (ग) बूझत स्याम कौन तू गोरी। कहाँ रहत काकी है बेटी देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी–६७३।

सर्व.
[हिं. का+ की (प्रत्य.]


काकी
चाचा की पत्नी, चाची।
संज्ञा
[हिं. पुं. काका]


काकु
व्यंग्य, ताना, चुटीली बात।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
दुपट्टे यी चादर का आँचल।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
श्रेणी, दर्जा।
संज्ञा
[सं.]


कक्ष
पटुका, कमरबंद।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
समता, बराबरी।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
श्रेणी, दुर्जा।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
काँख, बगल।
संज्ञा
[सं.]


कक्षा
काँछ, कछोटा, लॉग।
संज्ञा
[सं.]


कखिआँ, कखियाँ
बाहुमूल, काँख।
चल्यौ न परत पग गिरि परी सूधे मग भामिनि भवन ल्याई कर गहे कखिआँ - २३६६।
संज्ञा
[सं. कक्ष, हिं. काँख]


कखौरी
काँख, बगल।
संज्ञा
[हिं. काँख]


कगर
ऊँचा किनारा, बाढ़।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


काग
कौआ, वायस।
संज्ञा
[सं. काक]


कागज
सन, रुई आदि से बना हुआ लिखने का पत्र।
तनु जोबन ऐसे चलि जैहै जनु फागुन की होरी। भीजि बिनसि जाई छन भीतर ज्यौं कागज की चोली री - २०४०।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
समाचार पत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
लेख।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागज
प्रमाणपत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागद
कागज।
(क) चित्रगुप्त जमद्वार लिखत हैं, मेरे पातक झारि। तिनहुँ चाहि करी सुनि औगुन, कागद दीन्हे डारि - १ - १६७।

(ख) विचारत ही लागे दिन जान। सजल देह, कागद तैं कोमल, किहिं बिधि राखै प्रान - १ - ३०४।

संज्ञा
[हिं. कागज]


कागभुसुंड, कागभुसुंडी
एक ब्राह्मण जो शाप से कौआ हो गया था।
संज्ञा
[सं. काकभुशुंडि]


कागर
कागज।
(क) तुम्हरे देस कागर-मसि खूटी। प्यास अरु नींद गई सब हरि कै बिना बिरह तन टूटी। (ख) रति के समाचार लिखि पठए सुभग कलेवर कागर - २१२८।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागा
चढ़ावै कागर- कागज पर लिख ले, टाँक ले। उ.- अब तुम नाम गहौ मन नागर। जातैं काल अगिनि तैं बाँचौ, सदा रहौ सुख-सागर। मारि न सके, बिघन नहिं ग्रासै, जम न चढ़ावै कागर १ - ९१।

नाव कागर की - शीघ्र डूब जाने या नष्ट हो जानेवाली चीज, अधिक समय तक न टिकनेवाली चीज। उ.- जेइ निर्गुन गुनहीन गनैगौ सुनि सुंदरि अलसात। दीरघु नदी नाउ कागर की को देखो चढ़ि जात - ३२८२।

मु.


कागा
पक्षियों के पर, पंख।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


काकु
एक अलंकार जिसमें शब्दों की ध्वनि से ही अर्थ समझा जाय।
संज्ञा
[सं.]


काकुल
कनपटी पर लटकते हुए लंबे बाल, जुल्फें।
संज्ञा
[फा.]


काके
किसके।
काके हित श्रीपति ह्याँ ऐहैं, संकट रच्छा करिहैं ? - १ - २९
सर्व.
[हिं. का+के (प्रत्य॰)]


काकैं
किसके, किसके यहाँ।
काकैं सत्रु जन्म लीन्यौ है, बूझौ मतौ बुलाई - १५ - ४।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का(कौन)+कैं (विभक्ति)]


काकोदर
कौए का पेट।
संज्ञा
[सं.]


काकोदर
साँप।
संज्ञा
[सं.]


काकौ
किसका, किसको।
काकौ बदन निहारि द्रौपदी दीन दुखी संभरिहै - १ - २९।
सर्व.
[हिं, का+कौ (प्रत्य.)]


काख
काँख, बंगल।
आतम ब्रह्म लखावत डोलत घर घर ब्यापक जोई। चापे काँख फिरत निर्गुन गुन इहाँ गाहक नहिं कोई - ३०२२।
संज्ञा
[सं. कक्ष, हि. काँख]


काखी
चाहनेवाला, इच्छुक।
सुक भागवत प्रगट करि गायौ कछू न दुबिधा राखी। सूरदास ब्रजनारि संग हरि बाकी रह्यो न कोऊ काखी - १८५६।
संज्ञा
[सं. काँक्षी, हिं. काँखी]


काख्यौ
इच्छा, चाह।
फागु रंग करि हरि रस राख्यौ। रह्यौ न मन जुवतिन के काख्यौ - २४५९।
संज्ञा
[सं. कांक्षा]


कागा
प्रमाणपत्र।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागा
दस्तावेज, बहीखाता।
ब्याध, गीध, गनिका जिहिं कागर, हौं तिहिं चिठि न चढ़ायौ - १ - १९३।
संज्ञा
[अ. काग़ज़]


कागरी
तुच्छ, हीन।
वि.
[हिं. कागर=कागज]


कागा
कौआ
संज्ञा
[हिं. काग]


कागरबासी
सबेरे के समय छानी जानेवाली भाँग।
संज्ञा
[हिं. कागा+बासी]


कांगा-रोल
कौओं की काँव-काँव की तरह होने वाला शोर।
संज्ञा
[हिं. काग=कौआ+रौल =रोर=शोर]


कागासुर
कंस के एक दैत्य का नाम जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
तृनावर्त से दूत पठाये। ता पाछे कागासुर धाये - ५२१।
संज्ञा
[सं. काक+असुर]


कागौर
श्राद्ध में भोजन का वह भाग जो कौए के लिए निकाला जाता है।
संज्ञा
[सं. काकबलि]


काच
शीशा।
काच पोत गिरि जाइ नंदघर गथौ न पूजै - ११२७।
संज्ञा
[हिं. काँच]


काच
जो पका न हो, कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काच
जिसका मन पक्का न हो, कायर।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचरी
कच्चे फल। पिसे हुए चावल या साबूदाने के सुखाये हुए टुकड़े जो घी में तलकर खाये जाते हैं।
पापर बरी मिथौरि फुलौरी। कूर बरी काचरी पिठौरी - ३९६।
संज्ञा
[हिं. कच्चा, कचरी]


काचरी
साँप की केंचुल।
ज्यौं भुजंग काचरी बिसरात फिरि नहिं ताहि निहारत | तैसेहिं जाइ मिले इकटक ह्वै डरत लाज निरवारत - पृ. ३२१।
संज्ञा
[सं. कंचुलिका, हिं. काँचली]


काचा
कच्चा।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचा
अस्थिर, चंचल।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचा
जो झूठा हो, जो नष्ट हो जाय, मिथ्या, अनित्य।
वि.
[हिं. कच्चा]


काची
कच्ची, जो पकी न हो।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काची
जिसका व्रत या निश्चय ट्टढ़ न हो, भक्ति या प्रीति में जो कच्ची हो।
(क) दीन बानी स्रवन सुनि सुनि द्रए परम कृपाल। सूर एकहु अंग न काँची धन्य धनि ब्रजबाल - पृ० ३४२ - १७।

(ख) सूर एकहुं अंग न काँची मैं देखी टकटोरी—३४६८।

वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काची
झूठी, बनावटी, टालमटोल को, हँसने योग्य।
कहे बनै छाँड़ौ चतुराई बात नहीं यह काची। सूरदास राधिका सयानी रूपरासि-रसखानी - १४३८।
वि.
[हिं. पुं. कच्चा]


काचे
कच्चे, अकुशल, नौसिखिया, अदृढ़।
भले ही जु जाने लाल अरगजे भीने मोल केसरि तिलक भाल मैंन मंत्र काचे - २००३।
वि.
[हिं. कच्चा]


काचे
कच्चे, शीघ्र टूट जानेवाले।
प्रेम न रुकत हमारे बूते। किहि गयंद बाँध्यौ सुन मधुकर पद्यमनाल के काचे सूते - ३३०५।
वि.
[हिं. कच्चा]


काछ
धोती का भाग जो पेड़ू से जाँघ के कुछ नीचे तक रहता है।
(क) सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए नाँगे पाइनि, गाइनि टहल करैं - ४५३।

(ख) कटि तट काछ बिराजई पीताबंर छबि देत - २३५०। (२) पेड़ू से जाँघ के कुछ नीचे तक का भाग।

संज्ञा
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


काछत
स्वाँग बनाते हैं, वेष धरते हैं, रूप धरते हैं, चाल चलते हैं।
स्याम बनी अब जोरी नीकी सुनहु सखी मानत तोऊ हैं। सूर स्याम जितने रंग काछत जुवती-जन-मन के गोऊ हैं - ११५९।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काछना
धोती, काँछनी आदि पहनना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछना
बनाना, सँवारना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछना
वेश धरना, स्वाँग बनाना।
क्रि. स.
[कक्षा, प्रा. कच्छ]


काछनी
ऊँची कसी धोती, कछनी।
काछनी कटि पीत पट दुति, कमल केसर खंड - १ - ३०७।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछनी
मूर्तियों का चुन्नटदार पहनावा जो प्रायः जाँघिए के ऊपर पहना जाता है।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछा
धोती जो कसकर पहनी जाय और जिसकी दोनों लाँगों को ऊपर खोंसा जाय, कछुनी।
संज्ञा
[हिं. काछना]


काछि
बन-ठनकर, साज-सँवार कर।
(क) माया को कटि फेटाँ बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल। कोटिक कला काछि दिखराई जल-थल-सुधि नहिं काल - १.१५३। (ख) कीन्हें स्वाँग जिते जाने मैं, एक तौ न बच्यो। सोधि सकल गुन काछि दिखायौ, अंतर हो जो सच्यौ - १ - १७४।
क्रि. स.
[सं. कक्षा, प्रा. कच्छ, हिं. कच्छ]


काछी
तरकारी बोने-बेचने वाली एक जाति।
संज्ञा
[सं. कच्छ=जलप्राय भूमि]


काछू
कछुआ।
संज्ञा
[हिं. कछुआ]


काछे
बनाये हुये, सँवारे हुए, पहने हुये।
तीन्यौ पन मैं ओर निबाहे इहै स्वाँग कौं काछे। सूरदास कौं यहै बड़ो दुख, परति सबनि के पाछे - १ - १३६।
क्रि. स.
[सं. कक्षा, प्रा. कच्छ, हिं. कोछना]


काछे
पास, निकट, समीप।
ताहि कह्यौ सुख दे चलि हरि कौ मैं आवति हौं पाछे। वैसहिं फिरी सूर के प्रभु पै जहाँ कुंज गृह काछे।
क्रि. वि.
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


काछयौ
(रूप) धारण किया, बनाया।
तब केसी ह्वै बर बपु काछयो लै गयौ पीठि चढ़ाई। उतरि परे हरि ता ऊपर तैं कीन्हौं युद्ध अघाइ - २३७७।
क्रि. स.
[हिं. काछना]


काज
कार्य, काम, कृत्य, सेवा-कार्य।
पाइँ धोइ मंदिर पग धारे काज देव के कीन्हे - १० - २६०।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
काज बिगारत- काम बिगड़ता है, नष्ट करता है। उ.- ज्ञानी लोभ करत नहिं कबहूँ, लोभ बिगारत काज।

काज बिगारयौ- काम या मामला बिगाड़ दिया; सब चौपट कर दिया। उ.- रसना हूँ कौ कारज सारयो। मैं यौं अपनौं काम बिगारयौ - ४ - १२। काज सँवारे- काम बना दिया।उ. - (क) कहा गुन बरनौ स्याम तिहारे। कुबिजा, बिदुर, दीन द्विज, गनिका सब के काज सँवारे - १ - २५। (ख) जो पद-पदुम रमत पांडव-दल दूत भये सब काज सँवारे - १ - ६४।

मु.


काज
व्यवसाय, धंधा।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
अर्थ, उद्देश्य, प्रयोजन।
(क) नृप कह्यौ सुरनि कैं हेतु मैं जग्य कियौ इंद्र मम अस्व किहिं काज लीन्हौ - ४ - ११। (ख) गोपालहिं राखौ मधुबन जात। लाज गये कछु काज न सरि है बिछुरत नँद के तात - २५३१।
संज्ञा
[सं. कार्य, प्रा. कज्ज]


काज
काज सरत- उद्देश्य पूरा हो, अर्थ सिद्ध हो। उ.- अबिहित बाद-बिबाद सकल मत इन लगि भेष धरत। इहिं बिधि भ्रमत सकल निसि-दिन गत, कछू न काज सरत - १ - ५५।

(इनहीं, तुमहीं) काज- (इनके, तुम्हारे) लिए, हेतु, निमित्त। उ. - (क) गाउँ तजौं कहुँ जाउँ निकसि लै, इनहीं काज पराउँ - ५२८। (ख) पूछौ जाइ तात सौं बात। मैं बलि जाउँ मुखारबिंद की, तुमहीं काज कंस अकुलात - ५३०। काज परयौ- काम पड़ा, मतलब अटका, प्रयोजन पड़ा, आवश्यकता हुई। उ. - बोलि-बोलि सुत-स्वजन-मित्रजन, लीन्हौ सुजस सुहायौ। परयौ जु काज अंत की बिरियाँ तिनहु न अनि छुड़ायौ - २.३०।

मु.


काजर
काजल जो आँख में लगाया जाता है, कालौंछ।
कुमकुम कौ लेप मेटि, काजर मुख ल्याऊँ - १ - १६६।
संज्ञा
[सं. कज्जल, हिं. काजल]


काजर
काला।
अघासुर मुख पैठि निकसे बाल-बच्छ छुड़ाई। लिख्यौ काजर नाग द्वारैं स्याम देखि डराई - ४९८।
वि.


काजरी
वह गाय जिसकी आँखों पर काले रंग का घेरा हो।
संज्ञा
[सं. कुज्जली]


काजल
दीपक के धुएँ की कालिख।
वह मथुरा काजल की कोठरि जे आवहिं ते कारे।
संज्ञा
[सं. कज्जल]


काजा
काम, कृत्य।
संज्ञा
[हिं. काज]


काजा
(उन) काजा- (उनके) लिए (उनके) हेतु या निमित्त। उ.- तातैं सकुवत हौं उन काजा। बालक सुनत होति जिय लाजा - २४५९।
मु.


काजो
मुसलमानी न्यायाधीश।
सूर मिलै मन जाहि जाहि सौं ताको कहा करै काजो - २६७८।
संज्ञा
[अ. क. ज़]


काजू-भोजू
जो अधिक समय तक काम न आ सके।
वि.
[हिं. काज+भोग]


काजे
(काम) के लिए, (काम) के हेतु या निमित्त।
इन लोभी नैनन के काजे परबस भई जो रहौं - २७७४।
संज्ञा
[हिं. काज]


काज
(काज) के लिए, (काम) के हेतु।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धरी लाजैं - १ - ५।

(ख) नाचत त्रैलोकनाथ माखन के काजै - १०.१४६।. (ग) तेरे ही काजैं गोपाल, सुनहु लाड़िले लाल, राखे हैं भाजन भरि सुरस छहूँ - १० - २६५।

संज्ञा
[हिं. काज]


काट
काटना।
हाथ-पाइँ बहुतनि के काट। आइ नवायौ सिवहिं ललाट - ४.५।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काट
काटने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
काटने का ढंग, तराश।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
घाव।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
छलकपट, चालबाजी।
संज्ञा
[हिं. काटना]


काट
तिरछी, टेढ़ी, कटीली, तेज, काट करनेवाली।
भौंहें काट कटीलियाँ मोहिं मोल लई बिन मोल - ८९३।
वि.
[हिं. काटा]


काट-कपट
छलकपट।
संज्ञा
[हिं. काटना+कपटना]


काटत
दूर करते (हो), नष्ट करते (हो), मिटाते (हो)।
जन के उपजत दुख किन काटत - १ - १०७।
क्रि. स.
[हिं. काटन]


काटन
काटने के लिए टुकड़े करना।
काटन दै दस सीस बीस भुज अपनौ कृत येऊ जो जानहि - ९.९५।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काटन
दूर करने या मिटाने के लिए।
जिहिं जिहिं जोनि जन्म धारयौ, बहु जोरयौ अघ कौ भार। तिहिं काटन कौं समरथ हर कौ तीछन नाम कुठार - ६८।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन, हिं. काटना]


काटन
कतरन।
संज्ञा


काटना
टुकड़े करना, अलग करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
चूरा करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
घाव करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
भाग निकालना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
मार डालना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
कतरना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
नष्ट करना, दूर करना, मिटाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
समय बिताना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
रास्ता तय करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
अनुचित या असत्य ढंग से ले लेना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
मिटाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
डसना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
किसी जीव का सामने से निकल जाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
(किसी की बात या राय का) खंडन करना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटना
बुरा लगना, कष्ट पहुँचाना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कट्टन]


काटर
कड़ा, कठिन।
वि.
[सं. कठोर]


काटर
कट्टर।
वि.
[सं. कठोर]


काटर
काटनेवाला।
वि.
[सं. कठोर]


काटि
काट कर, खंड करके।
आनँद-मगन राम-गुन गावै, दुख-संताप की काटि तनी–१ - ३९.।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


कगर
मेंड, डाँड़।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


कगर
कॅगनी।
संज्ञा
[सं. क=जल+अग्र = समाना]


कगर
किनारे पर।
क्रि. वि.


कगर
पास, निकट।
क्रि. वि.


कगर
अलग, दूर।
क्रि. वि.


कगरी
किनारा, करार।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगरी
टीला।
ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं। हंस सुता की सुंदर कगरी अरु कुंजन की छाहीं।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगरो
अलग, दूर।
जसुमति तेरो बारो अतिहि अचगरो। दूध दही माखन लै डारि दयौ सगरो। लियो दियो कछु सोऊ डारि देहु कगरो - १०५६।
क्रि. वि.
[हिं. कगर]


कगार
किनारा जो ऊँचा हो।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कगार
नदी का किनारा।
संज्ञा
[हिं. कगर]


काटि
किसी जीव का सामने से निकले जाना।
मंजारी गई काटि बाट, निकसत तब बाइन - ५८९।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


कादिबो
काटना, छीलना।
तुमसौं प्रेम-कथा को कहिबो मनहु काटिबो घास - ३३३६।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटो
काट ली।
सूरदास-प्रभु इक पतिनी ब्रत, काटी नाक गई खिसियाई - ९ - ५६।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काटो
टुकड़े-टुकड़े कर दिया, चूर-चूर कर दिया।
जोजन-बिस्तार सिला पवनसुत उपाटी। किंकर करि बान लच्छ अंतरिच्छ काटी - ९.९६।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काटू
काटनेवाला।
वि.
[हिं. काटना]


काटू
डरावना, भयानक।
वि.
[हिं. काटना]


काटे
धड़ से अलग कर दिये, टुकड़े किये।
जिहि बल रावन के सिर काटे कियौ विभीषन नृपति निदान - १० - १२७।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटै
काटता है।
जद्यपि मलय वृक्ष जड़ काटै, कर कुठार पकरै। तऊ सुभाव न सीतल छाँड़ै, रिपु-तन-ताप हरै - १ ११७।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटै
नष्ट करता है, मिटाता है।
जाकौ नाम लेत भ्रम छूटे, कर्म-फंद सब काटै - ३४६।
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काटौ
मुक्त करो, छुड़ाओ, छाँटो।
कर जोरि सूर बिनती करै, सुनहु न हो रुकुमिनि-रवन। काटौ न फंद मो अंध के, अब बिलंब कारन कवन - १ - १८० |
क्रि. स.
[हिं. काटना]


काट्यौ
काटा, मुक्ति दी, (बंधन से) छुड़ाया।
हा करुनामय कुंजर टेरयौ, रह्यौं नहीं बल थाकौ। लागि पुकार तुरत छुटकायौ, काट्यौ बंधन ताकौ - १ - ११३।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काट्यौ
दूर किया, नष्ट किया।
बिछुरन कौ संताप हमारौ, तुम दरसन दै काट्यौ - ९.८७।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. काटना]


काठ
लकड़ी।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
लकड़ी की बेड़ी।
मांडव ऋषि जब सूली दयौ। तब सो काठ हरौ ह्वै गयौ - ३ - ५।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
जलाने की लकड़ी, ईंधन।
ताको जननी की गति दीन्हीं परम कृपालु गुपाल। दीन्हो फूँक काठ तन वाको मिलिके सकल गुवाल - ४१८ सारा.।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठ
काठ की पुतली।
संज्ञा
[सं. काष्ठ, प्रा. काठ]


काठिन्य
कड़ापन।
संज्ञा
[सं.]


काठी
घोड़ा, ऊँट आदि की पीठ पर की जानेवाली जीन या गद्दी जिसमें काठ लगा रहता है।
संज्ञा
[हिं. काठ]


काठी
शरीर की गठन।
संज्ञा
[हिं. काठ]


काढ़त
खींचा जाता (है), खोला जाता है, आवरण रहित किया जाता (है), निकालता है।
(क) भीषम, द्रोन, करन दुरजोधन, बैठे सभा- बिराज। तिन देखत मेरौ पट काढ़त, लीक लगै तुम लाज - १ - २५५। (ख) फाटे बसन सकुच अति लागत काढ़त नाहिंन हाथ - ८१८ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़त
बाल बनाता है, कंधे से बाल सवाँरता है।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं ह्वै है लाँबी-मोटो। काढ़त-गुहत न्हवाहत जैहै नागिन सी भुईं लोटी - १० - १७५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़त
किसी पदार्थ में पड़े हुए कीड़े-पतंगे निकालता है।
मैं अपने मंदिर के कोनै राख्यौ माखन, छानि। ....। सूर स्याम यह उतर बनायौ चोंटी काढ़त पानि - १० - २८०।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ति
(रेख आदि) खीचती है, चित्रित करती है।
अपनी अपनी ठकुराइनि की काढ़ति है भुव रेख - पृ. ३४७ (५६)।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़न
निकालने के लिए,(भीतर की चीज को) बाहर करने के लिए।
देखत हौं गोरस मैं चींटी, काढ़न कौं कर नायौ - १० - २७९।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ना
किसी वस्तु को भीतर से बाहर निकालना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
खोलना या आवरण हटाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
अलग करना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
बेल-बूटे बनाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
उधार लेना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ना
पकाना।
क्रि. स.
[स. कर्षण, प्रा. कड्‍ढण]


काढ़ा
पानी में उबाल कर निकाला हुआ ओषधियों का रस।
संज्ञा
[हिं. काढ़ना]


काढ़ि
किसी वस्तु के भीतर से बाहर करना, निकालना।
(क) परयौ भव-जलधि मैं हाथ धारि काढ़ि मम दोष जनि धारि चित काम - १ - २१४। (ख) स्याम, भुज गहि काढ़ि लीजै, सूर व्रज कैं कुल - १.९९।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ि
निकाल देना, अश्रय न देना, शरण में न लेना, ठुकरा देना।
बड़ी है राम नाम की ओट। सरन गऐं प्रभु काढ़ि देते हैं, करत। कृपा कैं कोहा।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ी
तैयार की है, प्रस्तुत की है,बनायी है।
(क) चकित भई देखें ढिग ठाढ़ी। मनौ चितरैं लिखि लिखि काढ़ी - ३९१। (ख) रही जहाँ सो तहाँ सब ठाढ़ी। हरिके चलत देखियत ऐसी मनहुँ चित्रि लिखि काढ़ी - २५३५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ी
कोई वस्तु दूसरी से अलग की।
सब हेरि धरी है साढ़ी। लई ऊपर ऊपर काढ़ी - १० - १८३।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ो
निकालो, (भाव या विचार) दूर करो।
गृह नछत्र अरु बेद अरध करि खात हरष मन बाढ़ो। तातें चहत अमरपन तन को समुझ समुझ चित काढ़ों - सा. ६५।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़ौ
किसी वस्तु को बाहर करो, निकालो।
जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देखि घिनैहैं। घर के कहत सबारे काढ़ौ, भूत होइ धरि खैहैं - १ - ८६।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कडूढण, हिं. काढ़ना]


काढ़ौ
तान लिये, खड़े किये, निकाल कर ताने।
बिषधर झटकीं पूछ फटकि सहसौ फन काढ़ौ। देख्यौ नैन उघारि, तहाँ बालक इक ठाढ़ो - ५८९।
क्रि. स.
[सं. कर्षण, प्रा. कडूढण, हिं. काढ़ना]


काढ़यौ
निकाल दिया, बाहर किया।
(क) कंचन कलस विचित्र चित्र करि, रचि पचि भवन बनायौ। तामैं तैं ततछन ही काढ़यौ, पलभर रहन न पायौ - १ - ३०। (ख) अघ बक बच्छ अरिष्ट केसी मथि जल तें काढ़यौ काली - २५६७।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


काढ़यौ
खीचा, निकाला, प्राप्त किया।
यह भुवमंडल कौ रस काढ़यौ भाँति भाँति निज हाथ - ८४ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. काढ़ना]


कातना
रूई से सूत कातना।
क्रि. स.
[सं. कर्त्तन, प्रा. कत्‍तन]


कातर
अधीर, व्याकुल।
भक्त बिरह-कातर करुनामय, डोलत पाछैं लागे। सूरदास ऐसे स्वामी कौं देहिं पीठि सो अभागे - १ - ८।
वि.
[सं.]


कातर
डरा हुआ, भयभीत।
वि.
[सं.]


कातर
कायर।
वि.
[सं.]


कातर
आत्‍त, दुखित।
वि.
[सं.]


कातरता
अधीरता।
संज्ञा
[सं.]


कातरता
दुख।
संज्ञा
[सं.]


कातरता
कायरता।
संज्ञा
[सं.]


काता
सूत, तागा।
संज्ञा
[हिं. कातना]


काता
बाँस काटने की छुरी, छुरी।
पुं.
[सं. कर्तृ, कर्त्तृ; प्रा. कत्ता]


कातिक
क्वार के बाद का महीना।
संज्ञा
[सं. कार्तिक]


कातिब
लिखनेवाला।
संज्ञा
[अ. क़ातिब]


कातिल
प्राण हरनेवाला।
वि.
[अ. क़ातिल]


कातिल
हत्यारा।
वि.
[अ. क़ातिल]


काती
कैंची, कतरनी।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती]


काती
छुरी, छोटी तलवार।
ऊधौ कुलिस भई यह छाती। मेरे मन रसिक नंदलालहिं झषत रहत दिन राती। तजि व्रज लोग पिता अरु जननी कंठ लाइ गए काती - ३११६।
संज्ञा
[सं. कर्त्री, प्रा. कत्ती]


कातैं
किससे।
(क) जुग जुग बिरद यहै चलि आयो टेरि कहत हौं यातैं। मग्यित लाज पाँच पतितनि मैं, हौं अब कहौ घटि कातैं - १ - १३७।

(ख) हम तुम सब बैस एक कातैं को अगरो - १० - ३३६।

सर्व., सवि.
[सं. कः= हिं. का+तैं (प्रत्य.)]


कात्यायनी
दुर्गा देवी।
संज्ञा
[सं.]


कात्यायनी
भगवा वस्त्र पहननेवाली विधवा।
संज्ञा
[सं.]


काथ
कत्था।
संज्ञा
[हिं. कत्था]


काथ
गुदड़ी।
संज्ञा
[हिं. कंथा]


काथरी
गुदड़ी।
संज्ञा
[हिं. कथरी]


कादंब
समूह-संबंधी।
वि.
[सं.]


कादंब
कदंब का पेड़ या फूल।
संज्ञा


कादंब
कलहंस।
संज्ञा


कादंब
कदंब की शराब।
संज्ञा


कादंबरी
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कादंबरी
सरस्वती देवी।
संज्ञा
[सं.]


कादंबरी
शराब
संज्ञा
[सं.]


कादंबिनी
मेघ, घटा।
संज्ञा
[सं.]


कादंबिनी
एक रागिनी।
संज्ञा
[सं.]


कादर
डरपोक, भीरु, कायर।
वि.
[सं. कातर, हिं. कायर]


कादर
व्याकुल, अधीर।
(क) भगत बिरह की अतिहीं कादर, असुर-गर्ब-बल नासत - १ - ३१, (ख) देखि देखि डरपत ब्रजबासी अतिहिं भये मन कादर.. - ९४९।
वि.
[सं. कातर, हिं. कायर]


कादिरी
एक तरह की चोली।
संज्ञा
[अ.]


कान
श्रवणेंद्रिय, श्रवण, श्रुति।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
कान कटाई- जगहँसाई होना, अपमान होना। उ. - (क) कीजै कृष्ण दृष्टि की बरषा, जन की जाति लुनाई। सूरदास के प्रभु सो करियै, होइ न कान कटाई - १ - १८५ (ख) सूर स्याम अपने या ब्रज की इहिं बिधि कान कटाई - ३०७७।

करी न कान - ध्यान नहीं दिया। उ. - जब तोसौं समुझाइ कही नृप तब तैं करी न कान - १ - २६९। कान दै- ध्यान देकर, एकाग्र चित्त होकर, एक ही ओर ध्यान लगाकर। उ. - (क) तू जानति हरि कछू न जानत, सुनत मनोहर कान दै। सूर स्याम ग्वालिनि बस कीन्हौं, राखति तन-मन-प्रान दै - १० - २७४। (ख) तब गदगद बानी प्रभु प्रगटी सुन सजनी दै कान - १९८४ | (ग) सुनौ धौं दै कान अपनी लोक लोकनि क्रांत - ३४७६। कान लगि कह्यौ- चुपके से कहना, धीरे से सलाह देना। उ.- कान लगि कह्यो जननि जसोदा वा घर में बलराम। बलदाउं कौं आवन दैहौं श्रीदामा सौं काम -10-240।

मु.


कान
सुनने की शक्ति।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
कान में पहनने का एक गहना।
संज्ञा
[सं. कर्ण, प्रा. कण्ण]


कान
मर्यादा, लोकलाज।
(क) तोहि अपने लाल प्यारो हमैं कुल की कान - सा. ११४। (ख) मोरि प्रतिज्ञा तुम राखी है मेटि बेद की कान - ७८५ सारा.।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कान
लिहाज, संकोच।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कान
कृष्ण।
(क) हौं चाहे तासों सब सीखब रसबस रिझबो कान - सा. ६८।

(ख) कूदो कालीदह में कान - सा. ७३। (ग) रथ को देखि बहुत भ्रम कीन्हों धों आये फिर कान - ५६१ सारा.।

संज्ञा
[सं कृष्ण, हिं. कान्ह]


कानन
जंगल, वन।
संज्ञा
[सं.]


कानन
घर।
संज्ञा
[सं.]


काना
जिसके एक ही आँख हो।
वि.
[सं. काण]


काना
कोनेदार, तिरछा, टेढ़ा।
वि.
[सं. कर्ण]


काना
जिस फल में कीड़े हों।
वि.
[सं. कर्णक]


कानि
लोक-लाज, मर्यादा, मर्यादा का ध्यान।
जिन गोपाल मेरौ प्रन राख्यौ, मेटि बेद की कानि - १ - २७९।
संज्ञा


कानि
लिहाज, दबाव, संकोच, संबंध का विचार।
(क) ब्रह्मबान कानि करी बल करि नहिं बाँध्यौ - ६.९७।

(ख) जसुदा कहँ लौं कीजै कानि। दिन प्रति कैसैं सही परति है, दूध-दही की हानि - १०. २८० | (ग) लागे लैन नैन जल भरि भरि, तब मैं कानि न तोरी - १० - २८६। (घ) ल्खा परस्पर मारि करौं, कोउ कानि न मानै - ५८९।

संज्ञा


कानी
लोकलाज, मर्यादा का ध्यान।
(क) कान्हहिं बरजति किन नँदरानी। एक गाउँ कैं बसत कहाँ लौं, करौं नंद की कानी - १० - ३११। (ख) लोक-बेद कुल-धर्म केतकी नेक न मानत कानी हो - २४००।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कानी
दबाव, संकोच, लिहाज।
कंस करत तुम्हरी अति कानी - १००३।
संज्ञा
[हिं. कानि]


कानी
जिसकी एक आँख फूटी हो, एक आँखवाली।
बकुची खुमी आँधिरि काजर कानी नकटी पहिरै बेसरि। मुँडली पटिया पारि सँवारे कोढ़ी लावै केसरि - ३०२६।
वि.
[हिं. काना]


कानी
कान।
संज्ञा
[हिं. कान]


कानी
न कीन्हौ कानी- कान न किया, सुना नहीं, सुनकर ध्यान नहीं दिया। उ. - तिन तौ कह्यौ न कीन्हौ कानी। तन तजि चली बिरह अकुलानी - ८००।
मु.


कानी
सबसे छोटी (उँगली)।
वि.
[सं. कनीनी]


कानीन
क्‍वारी कन्या से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कानीन
वह पुत्र जो क्‍वारी कन्या से उत्पन्न हुआ हो।
संज्ञा


कानून
राजनियम, बिधि।
संज्ञा
[यू. केनान]


कानून
नियम-संग्रह, विधान।
संज्ञा
[यू. केनान]


काने
कान।
संज्ञा
[हिं. कान]


काने
न कीन्हौ काने- कान नहीं किया, नही सुना, सुनकर ध्यान नहीं दिया। उ. - तिन तो कह्यौ न कीन्हों काने - ८६६
मु.


कगार
टीला।
संज्ञा
[हिं. कगर]


कच
बाल।
संज्ञा
[सं.]


कच
झुंड।
संज्ञा
[सं.]


कच
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कच
वृहस्पति का पुत्र जो दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास संजीवनी-विद्या सीखने गया था।
संज्ञा
[सं.]


कच
चुभने का शब्द या भाव।
संज्ञा
[अनु.]


कचनार
एक छोटा पेड़ जो सुन्दर फूलों और कलियों के लिए प्रसिद्ध है।
संज्ञा
[सं. कांचनार]


कचनारयौ
कचनार की कली।
ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कचनार]


कचपच
बहुत सी चीजों को गचपच करके थोड़े से स्थान में रखना।
संज्ञा
[अनु.]


कचपची
छोटे - छोटे तारों का गुच्छा या समूह, कृतिका नक्षत्र।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कानै
कान।
निर्गुन बचन कहहु जनि हमसौं ऐसी करहिं न कानै - ३३६६।
संज्ञा
[हिं. कान]


कानौ
एक आँख का, काना।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-बिहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन १ - ३२१।
वि.
[सं. काना]


कानौ
कमी, दोष।
अपनैं ही अज्ञान-तिमिर मैं बिसरयौ परम ठिकानौं। सूरदास की एक आँखि है, ताहू मैं कछु कानौ - १ - ४७।
वि.
[सं. काना]


कान्यकुब्ज
एक प्राचीन प्रांत जो वर्तमान कन्नौज के आसपास था।
संज्ञा
[सं.]


कान्यकुब्ज
इस देश का निवासी।
संज्ञा
[सं.]


कान्ह, कान्हर
श्री कृष्ण।
मो देखत कान्हर इहि आँगन पग है धरनि धराहिं - १० ७५।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


कान्हरो
एक राग जो रात को गाया जाता है।
सुर साँवत भूपाली ईमन करत कान्हरो गान–१० १३ सारा.।
संज्ञा
[सं. कर्णाट, हिं. कान्हड़ा]


कान्हा
श्रीकृष्ण।
ऐसी रिस करौ न कान्हा। अब खाहु कुँवर कछु नान्हा - १००१८३।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्‍ह]


कान्हैं
श्रीकृष्ण को।
कान्हैं लै जसुमति कोरा तैं रुचि करि कंठ लगाए - १० - ५३।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह, हि. कान्ह]


कान्है
श्रीकृष्ण।
सुनु री सखी कहति डोलति है या कन्या सौं कान्है - १० - ३१५।
संज्ञा
[सं. कृष्ण, प्रा. कण्ह]


क़ाफिर
जो ईश्वर को न माने।
वि.
[अ.]


क़ाफिर
निर्दयी।
वि.
[अ.]


काफिला
यात्रियों का दल।
संज्ञा
[अ.]


काफी
जितना चाहिए हो उतना ; पर्याप्त।
वि.
[अ.]


काबर
चितकबरा।
वि.
[सं. कर्बुर, प्रा. कब्बुर]


काबर
रेत मिली भूमि, दोमट, खाभर।
संज्ञा


काबा
अरब में मक्के का वह स्थान जहाँ मुहम्मद साहब रहते थे। यह मुसलमानों का तीर्थ है।
संज्ञा
[अ.]


काबिल
योग्य।
वि.
[अ.]


काबिल
विद्वान।
वि.
[अ.]


काबिस
एक रंग जिससे मिट्टी के कच्चे बर्तने रँगे जाते हैं।
संज्ञा
[म. कपिश]


कापर, कापरा
कपड़ा, वस्त्र।
काढ़ौ कोरे कापरा (अरु) काढ़ौ घी के भौन। जाति पाँति पहिराइ कै (सब) समदि छतीसौ पौन - १० - ४०।
संज्ञा
[सं. कर्पट=वस्‍त्र, प्रा. कप्पड़]


कपाल
एक प्राचीन संधि।
संज्ञा
[सं.]


कापालिक
शैव मत के साधु जो कपाल या खोपड़ी में मांसादि खाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कापालिका
एक बाजा जो मुँह से बजता था।
संज्ञा
[सं.]


कापा
बाँस की पतली तीलियाँ जिनमें लासा लगाकर चिड़ियाँ फँसायी या पकड़ी जाती हैं।
मुरली अधर चंप कर कापा मोर मुकुट लट वारि - २७१७।
संज्ञा
[हिं. कंप।]


कापाली
शिव।
संज्ञा
[सं. कापालिन्]


कापुरुष
कायर।
संज्ञा
[सं.]


कापै
किससे, किसके द्वारा।
बृन्दाबन ब्रज कौ महत कापै बरन्यौ जइ - ४६२।
सर्व., सवि.
[सं. वः=का, केन]


काफिया
अंत्यानुप्रास, तुक।
संज्ञा
[अ.]


क़ाफिर
जो इस्लाम धर्म न माने।
वि.
[अ.]


काबू
वश, अधिकार।
संज्ञा
[तु.]


काम
इच्छा, मनोरथ।
(क) सूरदास प्रभु अंतरजामी कीन्हौ पूरन काम - ६७९। (ख) चिरजीवौ जसुदानन्द पूरन काम करी - १ - २४।

(ग) किये सनाथ बहुत मुनि कुल को बहु विधि पूरे काम - २४७ सारा.

संज्ञा
[सं.]


काम
महादेव।
संज्ञा
[सं.]


काम
कामदेव।
(क) सूरदास प्रभु अंग अंग नागरि मनो काम किये रूप बयोरी - सा. उ. १८। (ख) सूर हरि की निरखि सोभा कोटि काम लजाइ - ३५२।
संज्ञा
[सं.]


काम
इंद्रियों की विलास की प्रवृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


काम
भोग-विलास की इच्छा।
(क) मुख देखत हरि कौ चकित भई तन की सुधि बिसराई। सूरदास प्रभु कैं रसबस भई काम करी कठिनाई - ७२९। (ख) भ्रम-मद-मत्त काम-तृष्ना-रस-बेग न क्रमै गह्यौ - १.४९।
संज्ञा
[सं.]


काम
चार पदार्थों में एक।
अथ धर्म अरु काम मोक्ष फल चारि पदारथ देइ गनी - १ ३९।
संज्ञा
[सं.]


काम
क्रिया, व्यापार, कार्य।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
कठिन कार्य, कौशलयुक्त क्रिया।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
प्रयोजन, अर्थ, मतलब।
(क) अन्त के दिन कौं हैं घनस्याम। माता पिता बन्धु सुत तौ लगि जौ लगि जिहिं कौं काम - १ - ७६। (ख) कान लागि कह्यौ जननि जसोदा वा घर में बलराम। बलदाऊ कौं आवन दैहौं श्रीदामा सौं काम - १० - २४०।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम परयौ- अवश्यकता हुई, प्रयोजन हुआ, दरकार हुई।

काम बनावै- मतलब निकालता है, स्वार्थ पूरा करता है। उ. - मूक, निंद, निगोड़ा, भोड़ा, कायर काम बनावै - १ - १८६। काम सरै- काम बनता है, उद्देश्य की सिद्धि होती है, मतलब निकलता है। उ. - सब तजि भजिए नंदकुमार। और भजे तैं काम सरै नहिं, मिटे न भव जंजार - १ - ६८।

मु.


काम
वास्ता, सरोकार, सम्बन्ध।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम परयौ- पाला पड़ना, वास्ता होना, व्यवहार या सम्बन्ध होना। उ.- परयौ काम सारँग बासी सौं राखि लियौ बलबीर–१ - ३३। (ख) नर हरि ह्वै हिरनाकुस मारयौ काम परयौं हो बाँकौ। गोपीनाथ सूर के प्रभु कैं बिरद न लाग्यौ टाँकौ - १ - १२३। (ग) अब तौ आनि परयौ है गाढ़ौ सूर पतित सौं काम - १ - १७९।
मु.


काम
उपयोग, व्यवहार।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
काम आवैं- (१) साथ दें, सहारा दें, सहायक हों, आड़े आवें। उ.- (क) धन-सुत-दारा कान न आवैं, जिनहिं लागि अपुनपौ हारौ - १ - ८०। (ख) आवत गाढ़ै काम हरि, देख्यौ सूर विचारि - २ - २९। (ग) हरि बिन कोऊ काम न आयौ - २ - ३० (२) उपयोगी हुई, व्यवहार में आयी। उ. - काया हरि कैं काम न आई। भावभक्ति जहँ हरि-जस सुनियत, तहाँ जात अलसाई - १ - २९५।
मु.


काम
कारबार,रोजगार।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
कारीगरी, दस्तकारी।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


काम
बेल बूटे।
संज्ञा
[सं. कर्म, प्रा.कम्म]


कामकला
कामदेव की स्त्री, रति।
संज्ञा
[सं.]


कामकला
मैथुन।
संज्ञा
[सं.]


कामकाज
कारबार।
संज्ञा
[हिं. काम]


कामकेलि
काम क्रीड़ा, रति।
संज्ञा
[सं.]


कामग
मनमानी करनेवाला।
वि.
[सं.]


कामग
काम से।
वि.
[सं.]


काम-ग्रंथ-अरि-गुन-रिपु-सुत
हाथी।
काम ग्रन्थ-अरि गुन रिपु-सुत-सम गति अति नीक विचारी–सा. १०३।
संज्ञा
[सं. कामग्रंथ (कोक=चक्रवाक) + अरि (चक्रवाक का शत्रु=रात; क्योंकि रात को चकवा-चकवी को अलग होने से दुख मिलता है।+ गुन (रात का गुण = अन्धकार) + रिपु (अंधकार का शत्रु=दीपक) + सुत (दीपक का सुत= अजन=दिग्गज= गज=हाथा)]


कामजित्
काम या वासना को जीतनेवाला।
वि.
[सं.]


कामजित्
महादेव।
संज्ञा


कामजित्
कार्तिकेय।
संज्ञा


कामतरु
कल्‍पवृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कामद
इच्छा पूरी करने वाला।
वि.
[सं. (द=देनेवाला)]


कामदगिरि
चित्रकूट का एक पर्वत जहाँ श्रीराम ने वास किया था।
संज्ञा
[सं.]


कामदहन
कामदेव को भस्म करनेवाले शिवजी।
संज्ञा
[सं.]


कामदा
कामधेनु।
[सं. कामद]


कामदा
एक देवी।
[सं. कामद]


कामदुधा
कामधेनु।
संज्ञा
[सं.]


कामदेव
स्त्री-पुरुष-संयोग का प्रेरक एक देवता जो बहुत सुन्दर माना गया है। रति इसकी स्‍त्री, सखा वसंत, वाहन कोकिल, अस्त्र फूलों का धनुष-बाण है।
संज्ञा
[सं.]


कामधाम
कामधंधा।
ब्रजधर गयीं गोप कुमारि। नेकहूँ कहुँ मन न लागत काम धाम बिसारि।
संज्ञा
[हिं. काम+ धाम (अनु.)]


कामधुक
कामधेनु।
संज्ञा
[सं.]


कामधुज
मछली जो कामदेव की ध्वजा पर अंकित है।
लाभ थान पंचमी कामधुज गृहनिध गृह में आई। मान लेहु मन अपने भू सब हरो भार इन भाई - सा. ८१।
संज्ञा
[सं. कामध्वज]


कामधेनु
समुद्र से निकली गाय जो चौदह रत्नों में एक है और जो सभी अभिलाषाएँ पूरी करती है।
संज्ञा
[सं.]


कमध्वज
वह जो कामदेव की ध्वजा पर अंकित है, मछली।
संज्ञा
[सं.]


कामना
इच्छा, अभिलाषा।
संज्ञा
[सं.]


कामनाधेनु
कामधेनु जो समुद्र के रत्नों के साथ निकली थी।
कामनाधेनु पुनि सप्तरिषि कौं दई, लई उन बहुत मन हर्ष कीन्हे - ८ - ८।
संज्ञा
[सं.]


कामबन
ब्रजमंडल के अंतर्गत एक वन।
संज्ञा
[स. काम+वन]


कामबाण
कामदेव के पाँच वाण - मोहन, उन्मादन, संतपन, शषण और निश्चेष्टकरण। कामदेव के वाण फूलों के भी कहे जाते हैं, वे फूल ये हैं - लाल कमल, अशोक, आम, चमेली और नील कमल।
संज्ञा
[सं.]


कामभूरुह
कल्‍पवृक्ष।
संज्ञा
[सं. (भूरूह - वृक्ष)]


कामरि
कमली, कंबल।
(क) सूरदास कारी कामरि पे, चढ़त न दूजौ रंग - १ - ३३२। (ख) सोई हरि काँधे कामरि, काछ किए, नाँगे पाइनि, गाइनि टहल करैं - ४५३।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कामरिया
कमली, कंबल।
कान्ह काँधे कामरिया कारी, लकुट लिए कर धरै हो - ४५२।
संज्ञा
[सं. कंबल, हि. कमली]


कामरी
कमली, कंबल।
एक दूध, फल, एक झगरि चबेना लेत निज निज कामरी के आसननि कीने - ४६७।
संज्ञा
[स. कंबल]


कामली
कमली, कंबल।
संज्ञा
[सं. कंबल]


कामशास्त्र
वह विद्या जिसमें स्त्री-पुरुष-प्रसंग का सविस्तार वर्णन हो।
संज्ञा
[स.]


कामसखा
वसंत।
संज्ञा
[सं.]


कामांध
जो कामवासना की प्रबलता के करण उचित-अनुचित का ज्ञान न रख सके।
वि.
[सं.]


कामा
हेतु, लिए।
फैंट छाँड़ि मेरी देहु श्रीदामा। काहे कौं तुम रारि बढ़ावत, तनक बात कैं कामा - ५३६।
क्रि. वि.
[हि. काम]


कामा
कामवती स्त्री।
संज्ञा


कामा
इच्छा, अभिलाषा।
तबहिं असीस दई परसन ह्वै सफल होहु तुम कामा १० उ. - ६६।
संज्ञा


कामा
राधा की एक सखी का नाम।
(क) इंदा बिंदा राधिका स्यामा कामा नारि - ११०१।

(ख) स्थामा कामा चतुरा नवला प्रमुदा सुमदा नारि - १५८०। (ग) स्याम गये उठि भोर हीं बृन्दा के धाम। कामा के गृह निसि बसे पुरयौ मन काम - २१२६।

संज्ञा


कामातुर
काम या संभोग की इच्छा से व्याकुल।
भज्यौ मोहिं कामातुरनारी - ७९९।
वि.
[सं. काम+आतुर]


कामानुज
क्रोध गुस्सा।
संज्ञा
[स. काम+अनुज]


कामायनी
वैवस्त मनु की पत्नी श्रद्धा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कामारि
कामदेव के शत्रु, शिव।
संज्ञा
[सं. काम+अरि]


कामि
भोग-विलास में लिप्त रहनेवाला, कामुक।
पुहुप पराग परस मधुकरगन मत्त करत गुंजार। मानो कामि जन देख जुवति जन बिषयासक्ति अपार - १०४४ सार.।
वि.
[सं. कामिन्, हिं. कामी]


कामिनी, कामिनी
कामवती स्त्री।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
सुन्दर नारी।
अंतर गहत कनक-कामिनि कौं, हाथ रहैगौ पचिबौ - १.५९।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
मदिरा।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामिनी, कामिनी
एक पुष्प।
संज्ञा
[सं. कामिनी]


कामी
कामना रखनेवाला, इच्छुक।
वि.
[सं. कामिन्]


कामी
विषयी, कामुक।
यहै जिय जानि कै अंध भव-त्रास तैं, सूर कामी कुटिल सरन आयौ - १ - ५।
वि.
[सं. कामिन्]


कामी
मतलबी, स्वार्थी।
कीन्हीं प्रीति पहुँष शुंडा की अपने काज के कामी - ३०८०।
वि.
[सं. कामिन्]


कामुक
इच्छा रखनेवाला।
वि.
[पुं.]


कचपची
चमकीली टिकलियाँ या बुँदे जिन्हें स्त्रियाँ माथे पर लगाती हैं।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कचबची
चमकीले बुंदे या बिंदियाँ जिन्हें स्त्रियाँ माथे या गाल पर लगाती हैं, सितारा, चमकी।
संज्ञा
[हिं. कचपच]


कचरना
रौंदना, कुचलना,दबाना।
क्रि. स.
[सं. कच्चरण-बुरी तरह चलना]


कचरना
चबाना, खाना।
क्रि. स.
[सं. कच्चरण-बुरी तरह चलना]


कचरा
खरबूजा या ककड़ी का कच्चा फल।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
सेमल का डोडा।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
कूड़ा-करकट।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरा
सेवार।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरी
ककड़ी की तरह की एक बेल जिसे सुखाकर और तलकर खाया जाता है। कहीं-कहीं इसकी चटनी भी बनती है।
(क) पापर बरी फुलौरी कचौरी। कुरबरी कचरी औ मिथौरी।

(ख) ककरी कचरी अरु कचनारयौ। सुरस निमोननि स्वाद सँवारयौ - २३२१।

संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचरी
काट कर सुखाये हुए फल- मूल आदि जो आगे तरकारी बनाने के लिए सुखाकर रख लिये जाते हैं।
कुँदरू ककोड़ा कौरे। कचरी चार चचेंडा सौरे - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कामुक
कामी, विलासी।
वि.
[पुं.]


कामोद्दपन
काम की इच्छा या उत्तेजन।
संज्ञा
[सं. काम+उद्दीपन]


काम्य
जिसकी इच्छा हो।
वि.
[सं.]


काम्य
जिससे इच्छा पूरी हो।
वि.
[सं.]


काम्य
चाहने योग्य।
वि.
[सं.]


काम्य
वासना-संबंधी।
वि.
[सं.]


काय, कायक
काया, शरीर।
बंदन दासपनौ सो करै। भक्तनि सख्य-भाव अनुसरै। काय-निवेदन सदा बिचारै। प्रेम-सहित नवधा विस्तारै–५८९५।
संज्ञा
[सं.]


काय, कायक
मूल धन
संज्ञा
[सं.]


काय, कायक
स्वभाव, लक्षण।
संज्ञा
[सं.]


कायफर, कायफल
वृक्ष जिसकी छाल दवा के काम आती है।
संज्ञा
[सं. कटफल]


कायिक
शरीर संबंधी।
वि.
[सं.]


कायिक
शरीर से उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कारंड, कारंडव
हंस की जाति का एक पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


कारधमी
लोहे जैसी धातुओं से सोना बनानेवाला, कीमियागर।
संज्ञा
[सं.]


कार
कार्य, क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कार
करने या बनानेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कार
पूजा की बलि।
संज्ञा
[सं.]


कार
पति।
संज्ञा
[सं.]


कारक
करनेवाला।
वि.
[सं.]


कारक
वाक्य में संज्ञा सर्वनाम की अवस्था जो क्रिया के साथ संबंध प्रकट करती है।
संज्ञा
[सं.]


कायर
भीरु, असाहसी, डरपोक।
मूकु, निंद, निगोड़ा, भोंड़ा, कायर, काम बनावै - १ - १८६।
वि.
[सं. कातर]


कायरता
डरपोकपन।
संज्ञा
[सं. कातरता]


कायल
जिसने दूसरे का तर्क स्वीकार कर लिया हो।
वि.
[अ.]


कायली
मथानी।
संज्ञा
[सं. क्ष्वेलिका]


कायली
ग्लानि लज्जा।
संज्ञा
[हिं. कायर]


कायली
कायल होने की भावना।
संज्ञा
[हिं. कायल]


काया
शरीर, तन, देह।
जनम साहिबी करत गयौ। काया नगर बड़ी गुंजाइस, नाहिंन कछु बढ़यौ - १ - ६४।
संज्ञा
[सं. काय]


कायाकल्प
ओषधों के प्रयोग और नियम-संयम से वृद्ध और रोगी शरीर सशक्त और स्वस्थ करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कायापलट
शरीर या रूप बदल डालने की क्रिया।
संज्ञा
[हि. काया+पलटना]


कायापलट
महान परिवर्तन।
संज्ञा
[हि. काया+पलटना]


कारकदीपक
एक काव्यालंकार।
संज्ञा
[सं.]


कारकुन
प्रबंधक।
संज्ञा
[फा.]


कारखाना
व्यापारिक वस्तु-निर्माण का स्थान।
संज्ञा
[फा.]


कारगर
लाभदायक, प्रभावकारी।
वि.
[फा.]


कारगुजार
अच्छी तरह काम करनेवाला, मुस्तैद।
वि.
[फा.]


कारगुजारी
कार्य-कुशलता, मुस्तैदी।
संज्ञा
[फा.]


कारज
काम, उद्देश्य, मतलब।
मम आयसु तुम माथैं धरौ। छल-बल करि मम कारज करौ - १० - ५८।
संज्ञा
[सं. कार्य]


कारज
कारज सरी- काम बन जायगा, उद्देश्य की सिद्धि होगी, इच्छा पूरी होगी। उ. - सूर प्रभु के संत बिलसत सकल कारज सरी - १० ३०२।

कारज सरै- उद्देश्य सिद्ध हो, मतलब निकले, काम बने। उ.- किए नर की स्तुती कौन कारज सरै, करै सो आपनौ जन्म हारै - ४ - ११। कारज सारथौ- काम बनाया, इच्छा पूरी की। उ.- रसना हूँ कौ कारज सारयौ, मैं यौं अपनौ काज बिगारयौ - ४ - १२।

मु.


कारजी
काम करनेवाला, सेवक।
ऐसे हैं ये स्वामि-कारजी तिनकौ मानत स्याम–पृ. ३२०।
वि.
[हिं. कारज]


कारटा
कौआ, काग।
संज्ञा
[सं. करट]


कारण
सबब, हेतु।
संज्ञा
[सं.]


कारण
हेतु, निमित्त।
संज्ञा
[सं.]


कारण
आदि, मूल।
संज्ञा
[सं.]


कारण
साधन।
संज्ञा
[सं.]


कारण
कर्म।
संज्ञा
[सं.]


कारण
प्रमाण।
संज्ञा
[सं.]


कारणमाला
कारणों की श्रेणी, अनेक संबंधित कारण।
संज्ञा
[सं.]


कारणमाला
एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण के फलस्वरूप कार्य से संबंधित पुनः किसी कार्य के होने का वर्णन हो।
संज्ञा
[सं.]


कारणिक
कर्मचारी से संबंध रखने वाला।
वि.
[सं.]


कारन
हेतु,सबब।
सूरदास सारँग किहि कारन सारँगकुलहिं लजावत - सा. उ० ३९।
संज्ञा
[सं. कारण]


कारन
निमित्त।
(क) बलि बल देखि, अदिति सुत-कारन त्रिपद- ब्याज तिहुँ पुर फिरि आई - १ - ६। (ख) अधर अरुन, अनूप नासा निरखि जन-सुखदाई। मनौ सुक फल बिंब कारन लेन बैठ्यौ आइ - १० - २३४।

(ग) मो कारन कछु आन्यौ है बलि, बन- फल तोरि कन्हैया - ४१८।

संज्ञा
[सं. कारण]


कारन
करनेवाले।
सब हित कारन देव, अभयपद नाम प्रताप बढ़ायौ - १ - १८८।
वि.


कारन
रोने की करुण ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कारुण्य]


कारन-अंत
कारण का अंत, काज, कार्य।
कारन अंत-अंत ते घटकर आदि घटत पै जोई। मद्ध घटे पर नास कियौ है नीतन में मन भोई - सा. ५।
संज्ञा
[सं. कारण+अंत]


कारनकरन
उपादान कारण और सृष्टि का करनेवाला निमित्त कारण, सृष्टि का मूल तत्व, ईश्वर
(क) कारन-करन, दयालु दयानिधि, निज भय दीन डरै। इहिं कलिकाल-ब्याल मुख-ग्रासित सूर सरन उबरै - १. ११७। (ख) माया प्रगति सकल जग मोहै। कारन करन करै सो सोहै - १०३।
संज्ञा
[सं. करण-कारण]


कारनकरन
रोने की करुण ध्वनि।
संज्ञा
[सं. कररुणा]


कारनमाला
एक अर्थालंकार जिसमें किसी कारण से होनेवाले कार्य से फिर किसी कार्य के होने का वर्णन हो।
सोतन हान होन चाहत है बिना प्रानपति पाये। कर संका कारन की माला तेहि पहिराउ सुभाये - सा. ४८।
संज्ञा
[सं. कारणमाला]


कारनी
प्रेरणा करनेवाली, प्रेरक।
संज्ञा
[सं. कारण]


कारनी
परस्पर भेद करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कारीनि]


कारनी
बुद्धि या विचार पलटनेवाला।
संज्ञा
[सं. कारीनि]


कारने
के लिए, हेतु।
(क) सखियन सुख देखन कारने रंग हो हो होरी - १४१०।

(ख) दह्यौ बह्यौ के कारने कहहि बढ़ावति रारि - ११०८। (ग) तुम सौं अब दधि कारने कौन बढ़ावै रारि - ११२३।

संज्ञा
[सं. कारण]


कारबार
कामकाज।
संज्ञा
[फा.]


कारबार
पेशा।
संज्ञा
[फा.]


कारबारी
कामकाजी।
वि.
[हिं. कारबार]


कारा
बन्धन, कैद।
संज्ञा
[सं.]


कारा
कारा गृह, बन्दीगृह।
संज्ञा
[सं.]


कारा
पीड़ा, दुख।
संज्ञा
[सं.]


कारा
काले रंग का, काला।
वि.
[हिं. काला]


कारागार, कारागृह
बन्दीगृह, जेल।
संज्ञा
[सं.]


कारावास
जेल में रहना, कैद।
संज्ञा
[सं.]


कारिंदा
जो दूसरे की ओर से काम करे, गुमाश्ता।
संज्ञा
[फा.]


कारिका
श्लोक-रूप में की गयी किसी सूत्र की व्याख्या।
संज्ञा
[सं.]


कारिख
स्याही, कालिमा।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिख
काजल।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिख
कलंक, दोष।
जो कारिख तन मेटो चाहत तौ कमल बदन तनु चाहि - ३३९०।
संज्ञा
[सं. कलुष]


कारिणी
करनेवाली।
वि.
[सं.]


कारित
कराया हुआ।
वि.
[सं.]


कारी
काले रंग की।
(क) अनत सुत गोरस कौं कह जात। घर सुरभी कारी धौरी कौ माखन माँगि न खात - १० - ३२६।

(ख) गगनै घहराइ जुरी घटा कारी–६८४। (ग) स्याम सुखरासि रसरासि भारी।…..। सील की रासि जस रासि आनंदरासि, नव जलद छबि बरन कारी–१३४०।

वि.
[हिं. पुं. काला]


कारी
होतपीरी काली- काली-पीली होना, गुस्सा दिखाना, झुँझलाना। उ.- ज्यों ज्यों मैं निहोरे करौं त्यौं त्यौं यौं बोलत है री अनोखी रूसनहारी। बहियाँ गहत कौन पर मगधरी उँगरी कौन पै होत पीरी कारी - २०४७।
मु.


कारी
करनेवाला (प्रत्य. रूप में)
वि.
[सं. कारिन्]


कारी
मर्मभेदी।
वि.
[फा.]


कारी
करने का काम।
संज्ञा
[सं. कारिता]


कारीगर
शिल्पकार।
संज्ञा
[फा.]


कारीगर
हाथ के काम में चतुर।
वि.


कारु
कारीगर, शिल्पी।
संज्ञा
[सं.]


कारुणिक
दयालु, कृपालु।
वि.
[सं.]


कारुण्य
दया, कृपा।
संज्ञा
[सं.]


कारे
काला, श्याम।
(क) गरजत कारे भारे जूथ जलधर के १० - ३४।

(ख) डसी स्याम भुअंगम कारे - ७४७।

वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारे
बड़ा, भारी।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारे
कारे कोसनि- बहुत दूर। उ.- तातैं अब मरियत अपसोसनि। मथुरा हू ते गये सखी री अब हरि कारे कोसनि - १० उ०.८८।
मु.


कारे
करनेवाला (प्रत्य. रूप)।
मोरन के सुर सरस सम्हारत पय सुरतिया बीच रुचकारे - सं. ९१।
संज्ञा
[कारिन, कारी]


कार
काले साँप।
(क) ताकी माता खाई कारैं। सो मरि गयी साँप के मारे - ७ - ८।

(ख) एक बिटिनियाँ सँग मेरे ही, कारैं खाई ताहि तहाँरी - ६९ - ७। (ग) क्यौंरी कुँवरि गिरी मुरझाई १ यह बानी कही सखियन आगैं, मोकौं कारैं खाई–७४१।

संज्ञा
[सं. काल, हिं. काला]


कारो
काला।
सूरस्याम सुजान पाइन परो कारो काम–सा. २१।
वि.
[हिं. काला।]


कारौ
काला, कृष्ण, श्याम।
कारौ अपनौ रंग न छाँड़ै, अनसँग कबहुँ न होई–१ - ६३।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कारौ
बुरा, कलुषित।
तीनौं पन मैं भक्ति न कीन्हीं, काजर हूँ तैं कारो - १ - १७८।
वि.
[सं. काल, हिं. काला]


कार्त्‍तवीय
सहस्रार्जुन जिसके हजार हाथ थे। यह कृतवीर्य का पुत्र था। इसे परशुराम ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


कार्त्तिक
क्‍वार के बाद का महीना।
संज्ञा
[सं.]


कार्त्तिकेय
कृतिका नक्षत्र में जन्में स्कंद जी जिनके ६ मुख माने जाते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कार्दम
कीचड़ से भरा हुआ।
वि.
[सं.]


कार्दम
कर्दम से संबंधित।
वि.
[सं.]


कचरी
छिलकेवाली दाल।
संज्ञा
[हिं. कच्चा]


कचहरी
जमाव, गोष्टी।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
दरबार, राजसभा।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
न्यायालय, अदालत, कोर्ट
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचहरी
कार्यालय, दफ्तर।
संज्ञा
[हिं. कचकच = वादविवाद + हरी (प्रत्य.)]


कचाई
कच्चा होना, पक्का न होना
संज्ञा
[हिं. कच्चा+ई (प्रत्य.)]


कचाई
अज्ञानता, अनुभवी हीनता।
संज्ञा
[हिं. कच्चा+ई (प्रत्य.)]


कचाना, कचियाना
हिम्मत हार कर पीछे हटना।
क्रि. अ.
[हिं. कच्चा]


कचाना, कचियाना
डरना।
क्रि. अ.
[हिं. कच्चा]


कचीली
तारों का समूह, कृत्तिका।
संज्ञा
[हिं. कचपची]


कार्पण्‍य
कंजूसी, कृपणता।
संज्ञा
[सं.]


कार्मण, कार्मना
तंत्र-मंत्र का प्रयोग।
संज्ञा
[सं.]


कार्मुक
धनुष।
संज्ञा
[सं.]


कार्मुक
इंद्रधनुष।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
काम-धंधा।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
कारण का फल।
संज्ञा
[सं.]


कार्य
परिणाम, फल।
संज्ञा
[सं.]


कार्यकर्ता
काम करनेवाला, कर्मचारी।
संज्ञा
[सं.]


कार्यक्रम
काम की व्यवस्था या प्रबंध।
संज्ञा
[सं.]


काल
समय, अवसर।
हरि सौं मीत न देख्यौ कोई। बिपति-काल सुमिरत, तिहिं औसर आनि तिरीछौ होई - १ - १०।
संज्ञा
[सं.]


काल
मृत्यु।
काल अवधि जब पहुँची आइ। तब जम दीन्हें दूत पठाइ - ६ - ४।
संज्ञा
[सं.]


काल
यमराज, यमदूत।
(क) ग्रस्यो गज ग्राह लै चल्यौ पाताल कौं, काल कैं त्रास मुख नाम आयौ। छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवन तैं अधिक धायौ - १ - ५।

(ख) कहत हे, आगैं जपिहैं राम। बीचहिं भई और की औरै परयौ काल सौं काम - १ - ५७।

संज्ञा
[सं.]


काल
नियत समय या ऋतु।
संज्ञा
[सं.]


काल
अकाल, महँगी।
संज्ञा
[सं.]


काल
काला साँप।
संज्ञा
[सं.]


काल
शनि।
संज्ञा
[सं.]


काल
शिव का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


काल
काले रंग का, काला।
वि.


काल
बीता हुआ दिन, आनेवाला दिन।
क्रि. वि.
[हिं. काल]


कालअगिन
प्रलय काल की आग।
संज्ञा
[सं. काल+अग्नि]


कालकंठ
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कालकंठ
मोर।
संज्ञा
[सं.]


कालकंठ
नीलकंठ पक्षी।
संज्ञा
[सं.]


कालकूट
भयंकर विष।
संज्ञा
[सं.]


कालकेतु
एक राक्षस का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कालक्षेप
समय बिताना।
संज्ञा
[सं.]


कालचक्र
समय का हेर-फेर या परिवर्तन।
संज्ञा
[सं .]


कालधर्म
मृत्यु, नाश।
संज्ञा
[सं.]


कालनाथ
शिव।
संज्ञा
[सं.]


कालनाथ
काल भैरव।
संज्ञा
[सं.]


कालनिशा
दिवाली की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालनिशा
भयंकर काली रात।
संज्ञा
[सं.]


कालबूत
कच्चा भराव जो मेहराब बनाने के लिए किया जाता है, छैन।
संज्ञा
[फा. कालबुद]


कालनेमि
एक दानव जो देवताओं को पराजित करके स्वर्ग का अधिकारी बन बैठा था। अपने शरीर को चार भागों में बाँट कर यह सारा शासन-कार्य करता था। अंत में विष्णु द्वारा यह मारा गया और यही दूसरे जन्म में कंस हुआ।
कालिंदी के कूल बसत इक मधुपुरी नगर रसाला। कालनेमि अरु उग्रसेन कुल उपज्यौ कंस भुआला - १० - ४।
संज्ञा
[सं.]


कालनेमि
एक राक्षस जो रावण का मामा था।
संज्ञा
[सं.]


कालयवन
एक यवन राजा जो जरासंध के साथ मथुरा पर चढ़ाई करने गया था। श्रीकृष्ण ने चालाकी से मुचकंद की कोपदृष्टि से इसे भस्म करा दिया था।
तब खिसियाइ कै (जरासंध) कालयवन अपने सँग ल्यायौ - १० उ० - ३।
संज्ञा
[सं.]


कालपुरुष
ईश्वर का विराट रूप।
संज्ञा
[सं.]


कालपुरुष
काल।
संज्ञा
[सं.]


कालयापन
दिन बिताना।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
भयानक अँधेरी रात।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
प्रलय की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
मृत्यु की राति।
संज्ञा
[सं.]


कालराति, कालरात्रि
दिवाली की रात।
संज्ञा
[सं.]


कालवाचक, कालवाची
समय बतानेवाला।
वि.
[सं.]


कालविपाक
समय की समाप्ति।
संज्ञा
[सं.]


कालविपाक
काम पूरा होने की अवधि।
संज्ञा
[सं.]


काल-सर्प
वह साँप जिसका डसा हुआ बचता नहीं।
संज्ञा
[सं.]


काला
कोयले के रंग का।
वि.
[सं. काल]


काला
बुरा, कलुषित, कलंकित।
वि.
[सं. काल]


काला
भारी, बड़ा।
वि.
[सं. काल]


काला
काला साँप।
संज्ञा


काला
समय, अवसर।
घन तन स्याम सुरेस पीत पट सीस मुकुट उर माला। जनु दामिनि घन रवि तारागन प्रगट एक ही काला - २५६६ और १० उ. - ४।
संज्ञा


कालाकलूटा
बहुत काला, गहरा काला।
[हिं. काला+कलूटा]


कालाक्षरी
भारी विद्वान।
वि.
[सं.]


कालाग्नि
प्रलय काल की अग।
संज्ञा
[सं.]


काला भुजंग
बहुत काला।
वि.
[हिं. काला+भुजंग]


कालानल
प्रलयकाल की आग।
संज्ञा
[सं.]


काला नाग
काला साँप जो बड़ा विषैला होता है।
संज्ञा
[हिं. काला + नाग]


काला नाग
बहुत बुरा अदमी।
संज्ञा
[हिं. काला + नाग]


कालिंदी
कलिंद पर्वत से निकली हुई नदी यमुना।
संज्ञा
[सं.]


कालिंदी
श्रीकृष्ण की एक स्त्री।
(क) हरि सुमिरन कालिंदी कीन्हौ। हरि तब जाइ दरस तेहि दीन्हों। पानिग्रहन पुनि ताकौं कीन्हौ - १० उ. - २८।

(ख) तहँ कालिंदी बन में व्‍याही अति सुन्दर सुकुमार - ६५४ सारा.।

संज्ञा
[सं.]


कालिंदीभेदन
बलराम जो हल से यमुना नदी को वृंदावन खींच लाये थे।
संज्ञा
[सं.]


कालि
आगामी दिवस, आने वाला दिन।
बल-मोहन तेरे दुहुँनि कौं, पकरि मँगाऊ कालि। पुहुप बेगि पठऐं बनै, जौ रे बसौ व्रजपालि - ५८९।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालि
बीता दिन।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालि
शीघ्र ही।
क्रि. वि.
[सं. कल्य]


कालिक
समय सम्बन्धी।
वि.
[सं.]


कालिक
समय के अनुसार।
वि.
[सं.]


कालिक
जिसका समय निश्चित हो।
वि.
[सं.]


कालिका
कालापन, कलौंछ, कालिख।
आजु दीपति दिव्य दीपमालिका। मनहु कोटि रवि-चंद्र कोटि छबि, मिटि जु गई निसि कालिका - ८०९।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
चंडिका देवी, काली।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
स्याही।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
आँख की काली पुतली।
संज्ञा
[सं.]


कालिका
रणचंडी।
संज्ञा
[सं.]


कालिख
कलौंछ, स्याही।
संज्ञा
[सं. कालिका]


कालिनाग
काली नाम का सर्प जो यमुना में व्रज के समीप रहता था और जिसे श्रीकृष्ण ने वश में किया था।
संज्ञा
[सं. कालिय+नाग]


कालिमा
कलंक,दोष,पाप,लांछन।
कलिमल-हरन, कालिमा टारन, रसना स्याम न गायौ - १ - ५८।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
कालापन, कलंक।
बिधु बैरी सिर पर बसै निसि नींद न परई ...। घटै बढ़ै यहि पाप ते कालिमा न टरई - २८६१।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
कालिख।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिमा
अँधेरा।
संज्ञा
[सं. कालिमन्]


कालिय
एक सर्प जिसे श्री कृष्ण ने नाथा था।
संज्ञा
[सं.]


कालियादह
एक कुंड जो वृन्‍दावन में जमुना में था और जहाँ काली नामक नाग उहता था।
ग्वाल-सँग मिलि गेंद खेलत आयो जमुना तीर। काहु लै मोहिं डारि दीन्हौ, कालियादह-नीर - ५८०।
संज्ञा
[सं. कालिय+दह=कुंड]


काली
एक नाग का नाम जो वृंन्दावन में जमुना के एक कुंड या दह मैं रहता था और जिसे श्रीकृष्ण ने नाथा था।
(क) अघ अरिष्ट, केसी, काली मथि दावानलहिं पियौ - १ - १२१। (ख) अघ बक बच्छ अरिष्ट केसी मथि जल तैं काढ़यौ काली - २५६७।
संज्ञा
[सं. कालिय]


काली
चंडी, देवी, दुर्गा।
जब राजा तिहिं मारन लग्यौ। देवी काली मनडगमग्यौ–५ - ३।
संज्ञा
[सं.]


काली
पार्वती।
संज्ञा
[सं.]


काली
एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


काली
एक महाविद्या।
संज्ञा
[सं.]


काली
अग्नि की सात जिह्वा में पहली।
संज्ञा
[सं.]


कालीदह
वृंदावन में जमुना का एक कुंड जिसमें काली नामक नाग रहा करता था।
तृषावंत सुरभी बालकगन, कालीदह, अँचयौ जल जाइ। निकसि आइ सब तट ठाढ़े भए, बैठि गए जहँ तहँ अकुलाइ - ५०१।
संज्ञा
[सं. कालीय + हिं. दह= कुंड]


कालोंछ, कालौंछ
कालापन, स्याही।
संज्ञा
[हिं. काला+औंछ (प्रत्य.)]


कालोंछ, कालौंछ
कालिख, काजल।
संज्ञा
[हिं. काला+औंछ (प्रत्य.)]


काल्पनिक
कल्पना करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


काल्पनिक
कल्पना किया हुआ, कल्पित।
वि.


काल्ह, काल्हि
कल, दूसरे दिन।
काल्हि जाइ अस उद्यम करौं। तेरे सब भंडारनि भरौं - ४ - १२।
क्रि. वि.
[सं. कल्य=पत्यूष, प्रभात; हिं. कल]


काव्य
सरस, सुरुचिपूण और आनंददायक वाक्य-रचना, कविता।
संज्ञा
[सं.]


काव्य
कविता का ग्रंथ।
संज्ञा
[सं.]


काव्यलिंग
एक काव्यालंकार।
संज्ञा
[सं.]


काव्‍यार्थपति
एक अर्थालंकार।
संज्ञा
[सं.]


काशिका
काशी पुरी।
संज्ञा
[सं.]


काशी
उत्तरप्रदेश का एक प्रसिद्ध तीर्थ, बनारस, वाराणसी।
संज्ञा
[सं.]


काशी करवट
काशी के अंतर्गत एक स्थान जहाँ पूर्व समय में आरे से कटकर मरना या प्राण त्याग करना बड़े पुण्य का कार्य समझा जाता था।
संज्ञा
[सं. काशी+करपत्र, प्रा. करवत]


कचीली
जबड़ा, दाढ़।
संज्ञा
[हिं. कचपची]


कचूर
हल्दी की जाति का एक पौधा।
संज्ञा
[सं. कर्चूर]


कचूर
कटोरा।
संज्ञा
[हिं. कचोरा]


कचोटना
चुभना, गड़ना।
क्रि. अ.
[हिं. कुचोना]


कचोरा
कटोरा, प्याला।
मुकुलित केस सुदेस देखियत नीलबसन लपटाये। भरि अपने कर कनक कचोरा पीवति प्रियहि चुखाये - १० उ. - १३८।
संज्ञा
[हिं. काँसा + ओरा (प्रत्य.)]


कचोरी
कटोरी, प्याली।
संज्ञा.
[हिं. कचोरा+ई (प्रत्य.)]


कचौड़ी, कचौरी
मोटी पूरी जिसमें उरद या और किसी दाल की पीठी भरी जाती है।
पूरि सपूरि कचौरी कौरी। सदल सु उज्जवल सुन्दर सौरी - २३२१।
संज्ञा
[हिं. कचरी]


कच्चा
जो (फल आदि) पका न हो, अपक्व।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो आँच पर अच्छी तरह पका या सिका न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जिसका पूरा विकास न हुआ हो
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


काश्त
खेती, कृषि।
संज्ञा
[फा.]


काश्त
खेती करने का अधिकार।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकार
खेतिहर, किसान |
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
खेती, कृषि।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
खेती करने का अधिकार।
संज्ञा
[फा.]


काश्तकारी
वह भूमि जिस पर खेती करने का अधिकार हो।
संज्ञा
[फा.]


काषाय
कसैली वस्तुओं में रँगा हुआ।
वि.
[सं.]


काषाय
गेरुआ।
वि.
[सं.]


काषाय
कसैली वस्तुओं में रंगा हुआ वस्त्र।
संज्ञा


काषाय
गेरुआ वस्त्र।
संज्ञा


काष्ठ
काठ।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठ
ईंधन।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
अवधि, सीमा।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
अधिक से अधिक ऊँचाई या उन्नति।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
ओर, तरफ।
संज्ञा
[सं.]


काष्ठा
स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


कास
एक प्रकार की घास, काँस।
(क) दिसि अति कालिंदी अति कारी। •••••। बिगलित कच कुच कास कुलिन पर पंक जु काजल सारी - २७२८।

(ख) अमल अकास कास कुसुमिन छिति लच्छन स्वाति जनाए - २८५४।

संज्ञा
[सं. काश]


कासनी
एक पौधा जिसमें नीले रंग के फूल होते हैं।
संज्ञा
[फा.]


कासनी
एक प्रकार का नीला रंग।
संज्ञा
[फा.]


कासा
प्याला, कटोरा।
संज्ञा
[फा.]


कासा
भोजन।
संज्ञा
[फा.]


कासार
तालाब, पोखर।
संज्ञा
[सं.]


कासार
एक तरह का छंद।
संज्ञा
[सं.]


कासार
एक पकवान जो प्रायः कथा के अवसर पर बाँटा जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कासी
काशी नामक प्रसिद्ध नगर जिसकी गणना श्रेष्ठ तीर्थ स्थानों में है।
ऊधौ यह राधा सौं कहियौ। •••••••। मोपर रिस पावत बेकारन मैं हौं तुम्हरी दासी। तुमहीं मन मैं गुनि धौं देखौ बिन तप पायौ कासी - २९३७।
संज्ञा
[सं. काशी]


कासी करवत
काशी के अंतर्गत काशी-करवट नामक तीर्थस्थान में जाकर आरे से गला कटाना या अन्य किसी तरह से प्राण देना बड़ा पुण्य समझा जाता था।
सूरदास प्रभु जौ न मिलैंगे लेहौं करवत कासी - २८४३।
संज्ञा
[सं. काशीकरवट]


कासे
किससे।
(क) कासे कहो समूचे भूषन सुमिरन करत बखानी - सा. ५५।

(ख) सूरदास पुकार कासे करै बिन घन मोर - सा. ११०।

सर्व.
[हिं. का+से (प्रत्य.)]


कासो, कासौं
किससे।
तेरो कासों कीजै ब्याह ? तिन कह्यौ मेरौ पति सिव आह - ५ - ७।
सर्व.
[हिं. का+सौं (प्रत्य.)]


काह
क्या, कौन बात या वस्तु।
कह्यौ प्रिया अब कीजै सोइ ? देखौं नृपति, काह धौं होइ - ४ - २२।
क्रि. वि.
[सं. कः, को]


काहल
ढोल।
संज्ञा
[सं.]


काहल
मुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


काहल
अव्यक्त शब्द।
संज्ञा
[सं.]


काहल
गंदा, मैला।
वि.
[अ. काहिल]


काहली
आलसी, सुस्त।
वि.
[अ. काहिल]


काहली
आलस्य।
संज्ञा


काहिं
किसे, किसको।
यह बिपदा कब मेटहिं श्री पति अरु हौं काहिं पुकारौं - १० - ४।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हिं (प्रत्य.)]


काहिं
किससे।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हिं (प्रत्य.)]


काहि
किसको, किसे।
तुमहिं समान और नहिं दूजौ काहि भजौं हौं दीन - १ - १११।
सर्व.
[सं. कः, हि. वा+ हिं. (प्रत्य.)]


काहिल
आलसी, सुस्त।
वि.
[अ.]


काहिली
आलस्य।
संज्ञा
[अ.]


काहीं
को, पास, द्वारा।
अव्य.
[हिं. को, कहँ]


काहु
किसी, किसी ने।
कह्यौ तुम एक पुरुष जो ध्यायौ। ताकौ दरसन काहु न पायौ - ४ - ३।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हू (प्रत्य.)=काहू]


काहुँ, काहू
किसी, कीसी को, किसी के।
(क) माधौ, नैकु हटकौ गाइ।.......। ढीठ, निठुर, न डरति काहूँ, त्रिगुन ह्वै समुहाइ - १ - ५६। (ख) वा घट मैं काहूँ कैं लरिका मेरौ माखन खायौ - १० - १५६।
सर्व.
[सं. कः, हिं. का+हूँ (प्रत्य.)]


काहे
क्यों, किसलिए।
तुम कब मोसौं पतित उधारयौ। काहे कौं हरि बिरद बुलावल, बिन मसकत को तारयौ - १ - १३२।
क्रि. वि.
[सं. कथं, प्रा. कहँ]


काहैं
किससे, किस साधन से, क्यों।
हौं कुटुंब काहै प्रतिपारौं, वैसी मति ह्वै जाई–९ - ४०।
क्रि. वि.
[सं. कथं, प्रा. कहं, हिं. काहे]


किं
कैसे ?
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किंकर
दास, सेवक, परिचारक।
संज्ञा
[सं.]


किंकर
एक जाति के राक्षस जो हनुमान जी द्वारा मारे गये थे।
संज्ञा
[सं.]


किंकर्तव्यविमूढ़
जिसे कर्तव्य न सूझ पड़े, भौचक्का।
वि.
[सं.]


किंकिणि, किंकिणी
करधनी, क्षुद्रघंटिका।
किंकिणि सब्द चलत ध्वनि रुनझुन ठुमक-ठुमक गृह आवै - २५४९।
संज्ञा
[सं.]


किंकिनि, किंकिनी
क्षुद्र घंटिका, करधनी।
मनौ मधुर मराल-छौना किंकिनी-कल-राव- १० - ३०७।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


किंकिरिनि
दासियों की, सेविकाओं की।
किंकिरिनि की लाज धरि ब्रज सुबस करहु निटोल - ३४७५।
संज्ञा
[सं. किंकरी]


किंगरी, किंगिरी
छोटी सारंगी।
संज्ञा
[सं. किन्नरी]


किंचन
थोड़ी वस्तु।
संज्ञा
[सं.]


किंचित
कुछ, थोड़ा।
वि.
[सं.]


किंचित
कुछ।
क्रि. वि.


किंजल्क
कमल के फूल का पराग।
भृंगी री, भजि स्याम-कमल-पद, जहाँ न निसि कौ त्रास।….। जहँ किंजल्क भक्ति नव-लच्छन, कामज्ञान-रस एक - १ - ३३९।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
कमल।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
नागकेसर।
संज्ञा
[सं.]


किंजल्क
केसर के रङ्ग का, पीला।
वि


कि
एक संयोजक अव्यय।
अव्‍य.


किए
‘करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किये या किया' का बहुवचन, बनाये, लगाये।
चंदन की खौरि किए नटवर कछि काछनी बनाइ री - ८८२।
क्रि. स.
[सं. करण, हिं. करना]


किकियाना
रोना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कीकना.]


किचकिच
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[अनु.]


किचकिच
झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किचकिचाना
पूरा जोर लगाने के लिए दाँत पर दाँत जमाना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किचकिचाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किचड़ाना
आँख में कीचड़ भर आना।
क्रि. अ.
[हिं. कीचड़+आना]


किचपिच, किचर पिचर
क्रमरहित, अस्पष्ट।
वि.
[अनु.]


किचपिच, किचर पिचर
छोटी छोटी बहुत सी संतान।
वि.
[अनु.]


किंतु
पर, परंतु, लेकिन।
अव्य.
[सं.]


किंपुरुख, किंपुरुष
किन्नर।
संज्ञा
[सं.]


किंभूत
कैसा, किस प्रकार का।
वि.
[सं.]


किंभूत
अद्भुत।
वि.
[सं.]


किंभूत
भद्दा, कुरूप।
वि.
[सं.]


किंवदंति, किंवदंती
उड़ती खबर, जन-रव।
संज्ञा
[सं.]


किंवा
या, अथवा, या तो।
अव्य.
[सं.]


किंशुक
पलाश, टेसू।
संज्ञा
[सं.]


कि
हिं ‘विभक्ति का’ का स्त्री. 'की'।
सूर पतित, तुम पतित उधारन, बिरद कि लाज धरे - १.१९८।
प्रत्‍य.
[हिं. का.]


कि
कैसे, किस प्रकार।
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किछु
कुछ।
वि.
[हिं. कुछ]


किटकिट
व्यर्थ की बकवाद।
संज्ञा
[अनु.]


किटकिट
झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किटकिटाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किट्ट
धातु पर जमा हुआ मैल।
संज्ञा
[हिं. कीट]


कित
कहाँ, किस ओर, किधर।
रूप-रेख-गुन-जाति-जुगति-बिनु निरालंब कित धावै - १ - २
क्रि. वि.
[सं. कुत्र]


कितक
कितने, बहुत, अधिक।
(क) ऐसौ नीप-बृच्छ बिस्तारा। चीर हार धौं कितक हजारा–७९९। (ख) हरि मुख बिधु मेरी अँखियाँ चकोरी। राखे रहति ओट पट जतननि तऊ न मानत कितक निहोरी - पृ. ३२८।
वि.
[सं. कियदेक, हिं. कितेक]


कितक
कितना, बहुत थोड़ा, बिलकुल साधारण।
(क) कितक बात यह धनुष रुद्र कौं सकल विश्व कर लैहौं। आज्ञा पाय देव रघुपति की छिनक माँझ हठ जैहौं - २२४ सारा.। (ख) अमित एक उपमा अव लोकत जिय में परत बिचार। नहिं प्रवेस अज सिव, गनेस पुनि कितक बात संसार–९९९ सारा.।
वि.
[सं. कियदेक, हिं. कितेक]


कितना
किस परिमाण, मात्र या संख्या का; बहुत अधिक।
वि.
[सं. कियत्]


कितना
किस मात्रा या परिमाण में ? कहाँ तक।
क्रि. वि.


कितनौ
कितना, कहाँ तक।
नैकु नहिं घर रहति, तोहिं कितनौ कइति, रिसन मोहिं दहति, बन भई हरनी - ६९८।
क्रि. वि.
[हिं. कितना]


कितव
जुआरी।
संज्ञा
[सं.]


कितव
छली कपटी।
रे रे मधुप कितव के बंधू चरन परस जिन करिहौं। प्रिया अंक कुंकुम कर राते ताही को अनुसरिहौं - ५६६ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कितव
पागल।
संज्ञा
[सं.]


कितव
दुष्ट।
संज्ञा
[सं.]


कितव
धतू्रा।
संज्ञा
[सं.]


किता
कपड़े की काट-छाँट या कतर-ब्योंत।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किता
चाल-ढाल।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किता
संख्या।
संज्ञा
(अ. कितऽ]


किताब
पुस्तक, ग्रंथ।
संज्ञा
(अ.]


कच्चा
जो ठीक से तैयार न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो मजबूत या स्थायी न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो ठीक या उचित न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
जो प्रामाणिक तोल या नाप से कम हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
नासमझ, जो कुशल या चतुर न हो।
वि.
[सं. कषण = कच्चा]


कच्चा
बखिया, सींवन।
संज्ञा


कच्चा
ढाँचा, खाका।
संज्ञा


कच्चा
जबड़ा, दाढ़।
संज्ञा


कच्चा
पांडुलेख।
संज्ञा


कच्छ
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


किताब
बही।
संज्ञा
(अ.]


किताबी
किताब का।
वि.
[अ. किताब]


किताबी
किताब के आकार का।
वि.
[अ. किताब]


किताबी
लंबोतरा।
वि.
[अ. किताब]


कितिक
कितनी, बहुत साधारण।
(क) राघौ जू, कितिक बात, तजि चिंत। - ९ - १०७।

(ख) कर गहि धनुष जगत कौं जीतैं, कितिक निसाचर जूथ - ९ - १४७। (ग) सतभामा सौं इती बात जबतें न कही री। कितिक कठिन सुरतरु प्रसून की या कारन तू रूठि रही री - १० उ. - २८।

वि.
[हिं. कितना]


कितिक
अधिक, बहुत ज्यादा।
काल-बितीत कितिक जब भयौ। गाई चरावन कौं सो गयौ - ९.१७३।
वि.
[हिं. कितना]


किती
कितनी, बहुत।
मन, तोसौं किती कही समुझाइ - १ - ३१७।
वि.
[सं. कियत]


किती
कितनी (संख्यावाचक)।
मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी। किती बार मोहिं दूध पियति भई यह अजहूँ है छोटी - १० - १७५।
वि.
[सं. कियत]


किते
कितने। (संख्यावाचक)।
किते दिन हरि..सुमिरन बिनु खोए - १.५२।
वि.
[सं. कियत्, हिं. कित्ता या कित्ते]


कितेक
कितना।
वि.
[सं. कियदेक]


कितेक
बहुत, असंख्य।
वि.
[सं. कियदेक]


कितेब
ग्रन्थ, पुस्तक।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितेब
धर्मग्रन्थ।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितेब
कुरान।
संज्ञा
[हिं. किताब)


कितै
किस ओर, कहाँ, किधर।
पावँ अबार सु धारि रमापति, अजस करत जस पायौ। सूर कूर कहै मेरी बिरियाँ बिरद कितै बिसरायौ - १ - १८८।
क्रि. वि.
[सं. कुत्र, हिं. कित]


कितो
कितना, बहुत।
(क) सूर कितौ सुख पावत लोचन, निरखत। घुटुरुनि चाल - १० - १४८। (ख) मानैं नहीं कितौ समुझाई - ३९१।
वि.
[सं. कियत, हिं. कितो]


कितोक
कितना, कितना अधिक।
कितोक बीच बिरह परमारथ जानत हौ किधौ नाहीं - ३ ०७४।
वि.
[हिं. कितना, कितो]


कित्ति
कीर्ति, यश।
संज्ञा
[सं. कीर्ति, प्रा. कित्ति]


कित्तो, कित्तौ
कितना, कितना अधिक।
वि.
[हिं. कितना]


किधर
किस ओर।
क्रि. वि.
[सं. कुत्र]


किधों, किधौं
अथवा,या तो, न जाने।
(क) ह्वै अंतरधान हरि, मोहिनी रूप धरि, जाइ बन माहिं दीन्हे दिखाई। सूर-ससि किधौं चपला परम सुन्दरी, अंग भूषननि छबि कहि न जाई - ८ - १०। (ख) किधौं यह प्रतिबिंब जल में देखत किधौं निज रूप दोऊ है सुहाए - २५७०।
अव्य.
[सं. किम्]


किन
किसने, क्यों न।
(क) पुनि पाछैं अघ-सिंधु बढ़त है, सूर खाल किन पाटत - १ - १०७। (क) बिनु हरि भक्ति मुक्ति नहिं होई। कोटि उपाय करो किन कोई।

(ख) तौ लगि बेगि हरौ किन पीर। जौ लगि आन न आनि पहुँचै, फेरि परैगी भीर - १ - १९१।

क्रि. वि.
[सं. किम्+न]


किन
किस का बहुवचन।
सर्व.


किन
चिह्न, दाग, निशान।
संज्ञा
[सं. किण]


किनका
छोटा दाना, कण।
संज्ञा
[सं. कणिक]


किनका
छोटी बूँद।
संज्ञा
[सं. कणिक]


किनारा
किसी वस्तु की लंबाई चौड़ाई का सिरा।
संज्ञा
[फा.]


किनारा
जलाशय या नदी का तट, तीर।
संज्ञा
[फा.]


किनारा
हाशिया, बार्डर। बगल, पार्श्‍व।
संज्ञा
[फा.]


किनि
किसने, किनने।
किनि बहकाइ दई है तुमकौं, ताहि पकरि लै जाँहि - ७५३।
सर्व.
[हिं. 'किस']


किनिका, किनुका
छोटा दाना, कण।
संज्ञा
[हिं. किनका]


किन्नर
देवताओं का एक वर्ग जो पुलस्त्य ऋषि का वंशज माना जाता है। किन्नरों का मुख घोड़े के समान होता है और ये संगीत में निपुण होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


किन्नर
तँबूरा या सारंगी।
एक बीना, एक किन्नर, एक मुरली, एक उपंग एक तुंमर एक रबाब भाँति सौ दुरावै–५२४२।
संज्ञा
[सं. किन्नरीवीणा]


किन्नरी
किन्नर जाति की स्त्रियाँ
संज्ञा
[सं.]


किन्नरी
तंबूरा या सारंगी।
(क) झँझ झालरी किन्नरी रँग भीजी ग्वालिनि - २४०५।

(ख) ताल मुरज रबाब बीना किन्नरी रस सार - पृं ३४६ (४५)। (ग) बाजत बीन रबाब किन्नरी अमृत कुंडली यंत्र - १०७३ सारा.।

संज्ञा
[सं. किन्नरी वीणा]


किफायती
कमखर्ची, मितव्यय।
संज्ञा
[अ.]


किफायती
कम खर्च करनेवाला, मितव्ययी।
वि.
[अ. किफायत]


किफायती
कम दाम का।
वि.
[अ. किफायत]


किमपि
कोई भी, कुछ भी।
कोक कोटि करम सरसि कहरि सूरज बिबिध कल माधुरी किमपि नाहिंन बची - २२६८।
सर्व., सवि.
[सं. किम्]


किमि
कैसे, किस प्रकार, किस तरह।
बिदुखि सिंधु सकुचत, सिव सोचत, गरलादिक किमि जात पियौ - १० - १४३।
क्रि. वि.
[सं. किम्]


किम्
क्या,
वि., सर्व.
[सं.]


किम्
कौन सा।
वि., सर्व.
[सं.]


किय
किया।
निर्भय किय लंकेस बिभीषन राम लखन नृप दोय - २९५ सारा.
क्रि. स.
[हिं. करना, किया]


कियत्
कितना।
वि.
[सं.]


कियारी
सिंचाई के लिए बनाये गये खेतों के छोटे छोटे भाग।
संज्ञा
[हिं. क्यारी]


कियारी
बागबगीचों की नाली की तरह या गोल-तिकोनी खुदी पंक्तियाँ जिन में अलग अलग पेड़ लगाये जाते हैं, क्यारी।
संज्ञा
[हिं. क्यारी]


किये, कियौ
‘करना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाषा रूप, किया।
(क) रोर कै जोर तैं सोर घरनी कियौ, चल्यौ द्विज द्वारिका-द्वार ठाढ़ौ - १ - ५। (ख) का न कियौ जन-हित जदुराई - १ - ६।

(ग) चरित अनेक किये रघुनायक अवधपुरी सुख दीन्हो—३०८ सारा.।

क्रि. स.
[सं. करण, हिं करना]


किरका, किरको
कंकड़, किरकिरी।
गर्व करत गोबर्द्धन गिरि कौ। पर्वत माँह आह वह किरका - १०४३।
संज्ञा
[सं. कर्कट=कंकड़ी]


किरकिटी
कण या धूल जो आँखों में पढ़ कर दुख देती है।
संज्ञा
[सं. ककट)


किरकिरा
जिसमें महीन गर्द मिली हो।
वि.
[सं. कर्कट]


किरकिराना
हलकी हलकी पीड़ा होना।
क्रि. अ.
[हिं. किरकिरा]


किरकिरी
धूल या तिनके का कण, किनका।
संज्ञा
[सं. कर्कट]


किरकिरी
शान में बट्टा लगाना, अप्रतिष्ठा।
संज्ञा
[सं. कर्कट]


किरकिल
शरीर की वह वायु जिससे झींक आती है।
संज्ञा
[सं. कृकर या कृकल]


किरकिला
मछली खानेवाला एक पक्षी।
संज्ञा
[हिं. किलकिला]


किरकिला
संज्ञा
एक समुद्र।


किरकी
एक गहना।
संज्ञा
[सं. किंकिणी]


किरच, किरचक
(काँच आदि का) छोटा नुकीला टुकड़ा।
छाँड़ि कनक-मनि रतन अमोलक, काँच की किरच गही - १ - ३२४।
संज्ञा
[सं. कृति=कैंची (अस्त्र)]


किरण
प्रकाश या ज्योति की रेखाएँ, रश्मि, मयूख।
संज्ञा
[सं.]


किरणमाली
सूर्य।
संज्ञा
[सं.]


किरतम
माया, प्रपंच।
संज्ञा
[सं. कृत्रिम]


किरनि
ज्योति या प्रकाश की रेखाएँ, किरण।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरनि
ज्योति-रेखाएँ, मयूख, रश्मि, मरीचि।
तरनि किरन महलनि पर झाँई इहै मधुपुरी नाम - २५५९।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरपा
दया, कृपा, अनुग्रह।
कर जोरे बिनती करी दुरबल-सुखदाई। पाँच गाउँ पाँचौ जननि किरपा करि दीजै। ये तुमरे कुल वंस हैं, हमरी सुनि लीजै - १ - २३८।
संज्ञा
[सं. कृपा]


किरपान
तलवार।
संज्ञा
[सं. कृपाण]


किरम
कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कृमि]


किरमाल
तलवार, खड्ग।
संज्ञा
[सं. करवाल]


किरराना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किरराना
किर्र किर्र शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


किरवान, किरवार
तलवार, खड्‍ग।
संज्ञा
[हिं. करवाल]


किरवारा
अमलतास का पेड़।
संज्ञा
[सं. कृतमाल]


किरषि
खेती, किसानी।
धर बिधसि नर करत किरषि हल,बारि, बीज बिथरै। सहि सन्मुख तउ सीत-उष्न कौं, सोई सुफल करै - १ - ११७।
संज्ञा
[सं. कृषि]


किराँची, किराचिन
माल ढोने की गाड़ी।
संज्ञा
[अँ. केरोच]


किराँची, किराचिन
बैलगाड़ी।
संज्ञा
[अँ. केरोच]


किरात
एक जंगली जाति।
संज्ञा
[सं.]


किरान
पास, निकट।
क्रि. वि.
[अ. किरान]


किराना
मसाले और सूखा मेवा।
संज्ञा
[सं. क्रपण]


किराया
भाड़ा।
संज्ञा
[अ.]


किरार
एक नीच जाति।
संज्ञा
[देश.]


किरावल
लड़ाई का मैदान ठीक करनेवाली सेना जो सब से आगे जाती है।
संज्ञा
[तु. करावल]


किरिच, किरिचक
काँच आदि का नुकीला टुकड़ा।
लोक लज्जा काँच किरिचक स्याम कंचन खानि।
संज्ञा
[हिं. किरच]


किरिन
किरणें।
(क) सुंदर तन, सुकुमार दोउ जन, सूर-किरिन कुम्हिलात - ९ - ४३। (ख) अनतहि बसत अनत ही डोलत आवत किरिन प्रकास - - २०१८।
संज्ञा
[सं. किरण]


किरिया
सौगंध, कसम।
संज्ञा
[सं. क्रिया]


किरिया
क्रिया - कर्म।
संज्ञा
[सं. क्रिया]


किरीट
माथे पर बाँधने का एक भूषण जिसके ऊपर कभी कभी मकुट भी पहना जाता था।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
इंद्र।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


किरीटी
राजा।
संज्ञा
[सं.]


किरीरा
खेल, क्रीड़ा।
संज्ञा
[हिं. क्रीड़ा]


किरोध
गुस्सा, क्रोध।
संज्ञा
[सं. क्रोध]


किर्च
एक तरह की तलवार।
संज्ञा
[हिं. किरच]


किर्तनिया
कीर्तन करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कीर्त्‍तन]


किल
अवश्य, निश्चय ही।
अव्य.
[सं.]


किल
सचमुच।
अव्य.
[सं.]


किलक
किलकने या हर्ष ध्वनि करने की क्रिया।
गरज किलक आघात उठत, मनु दामिनि पावक झार - ९ - १२४।
संज्ञा
[हिं.किलकना]


किलकत
हँसते हैं, हर्षध्वनि करते हैं, किलकारी मारते हैं।
(क) निरखि जननी-बदन किलकत त्रिदसपति दै तारि - १० - ७१। (ख) हरि किलकत जसुदा की कनियाँ - १० - ८१।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकन
किलकने की क्रिया,किलक।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकना
किलकारी मारना, हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[सं. किलकिला]


किलकनि
किलकारी, हर्षध्वनि।
पुन्य फल अनुभवति सुतहिं बिलोकि कै नँद-घरनि। सूर प्रभु की उर बसी किलकनि ललित लरखरानि - १० - १०९।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकात
किलकते हैं, हर्ष ध्वनि करते हैं।
बिहरत बिबिध बालक सँग।….। चलत मग, पग बजति पैजनि, परस्पर किलकात। मनौ मधुर मराल-छौना बोलि बैन सिहात - १०.१८४।
क्रि. अ.
[हिं. किलकारना]


कँगूरन
शिखर, चोटी।
स्रवनन सुनत रहत जाको नित सो दरसन भये नैन। कंचन कोट कँगूरन की छबि मानहु बैठे मैन - २५५६।
संज्ञा
[हिं. कँगूरा]


कँगूरा
शिखर, चोटी।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कँगूरा
किले का बुर्ज।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कँगूरा
गहनों में शिखर की तरह की बनावट।
संज्ञा
[फा. कुँगरा]


कंघा
बाल झाड़ने की वस्तु।
संज्ञा
[सं. कंक]


कंच
शीशा, काँच।
संज्ञा
[हिं. काँच]


कंचन
सोना, स्वर्ण।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
धन, संपत्ति।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
धतूरा।
संज्ञा
[सं. कांचन]


कंचन
स्वस्थ।
वि.


कछनी
घुटने के ऊपर चढ़ा कर पहनी हुई छोटी धोती।
(क) कोउ निरखि कटि पीत कछनी मेखला रुचिकारि। कोउ निरखि हृद- नाभि की छबि डारयौ तन-मन-बारि - - - ६३४। (ख) खेलत हरि निकसे ब्रज खोरी। कटि कछनी पीताम्बर बाँधे, हाथ लए भौंरा, चक, डोरी - ६७२।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कछप
विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक।
सुरनि-हित हरि कछपरूप धारयौ। मथन करि जलधि, अंमृत निकारयौ - - ८ - ८।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछप
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछरा
मिट्टी का चौड़े मुँह का एक पात्र जिसकी अवँठ ऊँची और दृढ़ होती है।
संज्ञा
[सं. क = जल + क्षरण = गिरना]


कछान
घुटने से ऊँची धोती पहनना।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कछार
नदी या अन्य जलाशय के किनारे की नीची और तर भूमि, खादर, दिवारा।
संज्ञा
[हिं. कच्छ]


कछु
थोड़ी संख्या या मात्रा का, जरा, थोड़ा, टुक।
वि.
[सं. किंचित्, पा. किंची, पू. हिं. किछु, हिं. कुछ]


कछु
कोई (वस्तु या बात)।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कछुअ
कुछ, थोड़ा।
ऊधो जो तुम बात कही। ताको कछुअ न उत्तर आवै समुझि बिचारि रही - ३३७०।
वि.
[हिं. कुछ]


कछुआ
एक जल-जन्तु जिसकी पीठ बड़ी कड़ी होती है। यह जमीन पर भी चल सकता है।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


किलकार
हर्षध्वनि, किलकारी।
चकित सकल परस्पर बानर बीच परी किलकार। तहँ इक अद्‍भुत देखि निसिचरी सुरसामुख-बिस्तार - ९ - ७४।
संज्ञा
[हिं. किलक]


किलकार
किलकते हैं, ध्वनि करते हैं।
गर्जत गगन गयंद गुजरत अरु दादुर किलकार - २८२०।
क्रि. अ.


किलकारत
किलकारी भरते हैं, हर्षध्वनि करते हैं।
गावत, हाँक देत, किलकारत, दुरि देखत नंदरानी। अति पुलकति गदगद मुख बानी, मन-मन महरि सिहानी - १० - २५३।
संज्ञा
[हिं. किलकारना]


किलकारना
उत्साह दिखाना, हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[सं. किलकना]


किलकारि, किलकारी
हर्षध्वनि, किलकार।
(क) द्रुम गहि उपाटि लिए, दै दै किलकारी। दानव बिन प्रान भए, देखि चरित भारी - ९९६।

(ख) रीछ लंगूर किलकारि लागे करन, आन रघुनाथ की जाइ फेरी - ९ - १३८।

संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलकिंचित
संयोग शृंगार का एक हाव जिसमें एक साथ कई भाव नायिका प्रकट करती है।
संज्ञा
[सं.]


किलकि
किलकारी मारकर, हर्षध्वनि करके, आनंद प्रकट करके।
(क) आपु गयौ तहाँ जहाँ प्रभु परे पालनै, कर गहे चरन अँगुठा चचोरैं। किंलकि किलकत हँसत, बाल सोभा लसत, जानि यह कपट, रिपु आयौ भोरैं - १० - ६२। (ख) हँसे तात मुख हेरिकै, करि पग - चतुराई। किलकि झटकि उलटे परे, देवन-मुनि राई - १० - ६६।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकिल
लड़ाई-झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


किलकिला
मछली-खानेवाली एक छोटी चिड़िया जो पानी से आठ दस हाथ ऊपर उड़ती हुई बड़ी सतर्कता से मछली को देखती है।
जैसैं मीन किलकला दरसत, ऐसैं रहौ प्रभु डाटत - १ - १०७।
संज्ञा
[सं. कूकल]


किलकिला
हर्षध्‍वनि।
संज्ञा
[सं.]


किलकिलात
चिल्लाता हुआ, भयंकर शब्द करता हुआ।
रावन, उठि निरखि देखि, आजु लंक घेरी। ••••••। गहगरात किलकिलात अंधकार आयौ। रबि कौ रथ सूझत नहिं, धरनि गगन छायौ - ९.१३९।
क्रि. अ.
[हिं. किलकिलाना]


किलकिलाना
हर्षध्वनि करना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिलाना
चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिलाना
झगड़ा करना।
क्रि. अ.
[हि. किलकिला]


किलकिहि
किलकारी मारेगा, हर्षध्वनि करेगा।
काकी ध्वजा बैठि कपि किलकिहि, किहिं भय दुरजन डरिहैं - १ - २९।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकी
किलकारी भरी, हर्षध्वनि की।
सुपने हरि आये हौं किलकी - २७८६
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकै
किलकता है, किलकारी भरता है, हर्षध्वनि करता है।
आँनंद प्रेम उमंगि जसोदा खरी गोपाल खिलावै। कबहुँक हिलके-किलकै जननी-मन-सुख-सिंधु बढ़ावै - १० - १३०।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


किलकैया
किलकारी भरनेवाला।
संज्ञा
[हिं. किलकना]


किलना
मंत्रों से कीला जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलना
वश में किया जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलना
गति रोका जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कील]


किलनी
एक छोटा कीड़ा, किल्ली।
संज्ञा
[सं. कीट, हिं. कीड़ा]


किलबिलाना
बहुत से कीड़ों या छोटे छोटे जंतुओं का थोड़ी जगह में हिलना-डोलना, चंचल होना।
क्रि. अ.
[हिं. कुलबुलाना]


किलवॉंक
एक तरह का घोड़ा।
संज्ञा
[देश.]


किलवाना
कील जड़ाना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलवाना
टोना-टुटका कराना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलवाना
तंत्र-मंत्र से भूत-प्रेत की बाधा रुकाना।
क्रि. स.
[हिं. कीलन]


किलविष
पाप।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किलविष
दोष।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किलविष
रोग।
संज्ञा
[सं. किल्विष]


किला
गढ़, दुर्ग।
संज्ञा
[अ. किला]


किलोल
क्रीड़ा,
संज्ञा
[सं. कल्लोल, हिं. कलोल]


किल्लत
कमी, तंगी।
संज्ञा
[अ.]


किल्लत
कठिनता।
संज्ञा
[अ.]


किल्ली
खूँटी, मेख।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्ली
सिटकिनी।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्ली
कल चलाने की मुठिया।
संज्ञा
[हिं, कीला]


किल्विष
पाप।
संज्ञा
[सं.]


किल्विष
दोष। रोग।
संज्ञा
[सं.]


किवाड़, किवार
पट, कपाट, किवाड़।
संज्ञा
[हिं. किवाड़]


किवाड़, किवार
दीन्हे रहत किवार- द्वार बंद रखता है। उ.- गढ़वै भयौ नरकपति मोसो, दीन्हे रहत किवार। सेना साथ भाँति भाँतिन की, कीन्हें पाप अपार - १ - १४१। लाइ किवार- किवाड़ लगाकर, द्वार बंद करके। उ.- सूर पाप कौ गढ़ दृढ़ कीन्हौ, मुहकम लाई किवार - १ - १४४।
मु.


किवाड़, किवार
पट, कपाट, किवाड़।
लंक गढ़ माहिं आकास मारग गयो, चहूँ दिसि बज्र लागे किवारा - ९ - ७६।
संज्ञा
[हिं. किवार, किवाड़]


किशमिश
सुखायी हुई छोटी दाख।
संज्ञा
[फ़ा]


किशमिश
किशमिश के रंग का।
वि.


किशलय
नया पत्ता, कल्ला।
संज्ञा
[सं.]


किशोर
११ से १५ वर्ष की अवस्था का बालक।
संज्ञा
[सं .]


किशोर
पुत्र।
संज्ञा
[सं .]


किशोरक
छोटा बालक।
संज्ञा
[सं.]


किष्किंध
मैसूर प्रदेश का प्राचीन नाम।
संज्ञा
[सं.]


किष्किंधा
किष्किंध देश की एक पर्वत श्रेणी।
संज्ञा
[सं.]


किस
‘कौन’ का विभक्तिरहित रूप।
सर्व.
[सं. कस्य]


किसनई
किसानी।
संज्ञा
[हिं. किसान]


किसब
कारीगरी, व्यवसाय।
संज्ञा
[अ. कसबी]


किसमिस
सुखाया हुआ छोटा अंगूर, किशमिश।
संज्ञा
[फा. किशमिश]


किसमी
मजदूर, श्रमजीवी।
संज्ञा
[अ. कसबी]


किसलय
कोमल पत्ता, कल्ला।
संज्ञा
[सं. किशलय]


किसान
खेती करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कृषक]


किसानी
खेती बारी।
संज्ञा
[हिं. किसान]


किसी
(कोई) का वह रूप जो विभक्ति लगने पर प्राप्त होता है।
सर्व., वि.
[हिं. किस+ही]


किसू
किसी।
सर्व.
[हिं. किसी]


किहि
किस।
महा मधुर प्रिय बानी बोलत, साखामृग, तुम किहि के तात - ९ - ६९।
सर्व.
[हिं. केहि]


की
हिं. विभक्ति ‘क’ का स्त्री।
बासुदेव कौ बड़ी बड़ाई। जगतपिता जगदीस जगतगुरु, निज भक्तनि की सहत ढिठाई - १ - ३।
प्रत्‍य.
[हिं. की]


की
हिं, ‘करना’ के भूत कालिक रूप ‘किया' का स्त्री,।
अब भ्रम-भँवर परयौ व्रजनायक निकसन की बस विधि की। - १ - २१३।
क्रि. स.
[सं. कृत, प्रा. कि]


की
क्या ?
अव्‍य.
[‘कि' का विकृत रूप]


की
या तो।
अव्‍य.
[‘कि' का विकृत रूप]


कीक
चीख, चिल्लाहट, चीत्कार।
संज्ञा
[अनु.]


कीकट
मगध-प्रदेश का प्राचीन नाम।
संज्ञा
[सं.]


कीकट
घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कीकना
हर्ष-भय में ‘की की' शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कीका
घोड़ा।
संज्ञा
[सं. ककट]


किसोर
११ वर्ष से १५ वर्ष तक की अवस्था का।
वि.
[सं. किशोर]


किसोर
११ वर्ष से १५ वर्ष तक की अवस्था का बालक।
संज्ञा


किसोर
पुत्र, बेटा।
संज्ञा


किसोरी
पुत्री, बेटी।
संज्ञा
[सं. किशोरी]


किसोरी
छोटी अवस्‍था की लड़की।
नयौ नेह, नयौ गेह, नयौ रस, नवल कुँवरि वृषभानु किसोरी - ६८५।
संज्ञा
[सं. किशोरी]


किस्‍म
भेद, प्रकार, जाति, चाल।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
कहानी, गल्प।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
बात, हाल, समाचार।
संज्ञा
[अ.]


किस्सा
झगड़ा-बखेड़ा।
संज्ञा
[अ.]


किहिं
किस, किसके।
किहिं भय दुरजन डरिहै - १ - २९।
सर्व.
[हिं. केहि]


कीकै
कूक, कीक, चिल्लाहट, चीत्कार।
सूरदास प्रभु भलैं परे फँद, देउँ न जान भावते जी कैं। भरि गंडूक, छिरक दै नैननि, गिरिधर भाजि चले दै कीकै १० - २८७।
संज्ञा
[अनु. हिं. कीक]


कीच
कीचड, पंक, कर्दम।
(क) सुनि सुनि साधु-बचन ऐसौ सठ, हठि औगुननि हिरानौ। धोयौ चाहत कीच भरौ पट, जल सौं रुचि नहिं मानौ - १ - १९४। (ख) भाजन फोरि दहीं सब डारयौ माखन कीच मचायौ - १० - ३४२।

(ग) कुमकुम कज्जल कीच बहै जनु कुच जुग पारि परी - २८१४।

संज्ञा
[सं. कच्छ]


कीचक
राजा विराट का साला जो उसका सेनापति भी था। पांडवों के अज्ञातवास काल में इसने द्रौपदी पर कुदृष्टि डाली थी। इसलिए भीम ने इसे मार डाला था।
संज्ञा
[सं.]


कीचड़, कीचर
गंदी गीली मिट्टी, पंक।
संज्ञा
[हिं. कीच+ड़ (प्रत्य.)]


कीचड़, कीचर
आँख का मैल।
संज्ञा
[हिं. कीच+ड़ (प्रत्य.)]


कीजत
करते हैं, (कार्य) संपादन करते हैं।
(क) जो कछु करन कहत सोई सोइ कीजत अति अकुलाए - १ १६३।

(ख) मोहन तेरे आधीन भये री। इति रिस कबते कीजत री गुनआगरी नागरी - २२५०।

क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजिए
किसी काम के संपादन के लिए निवेदन करना, करिए।
अब मोहिं कृपा कीजिए सोइ। फिर ऐसी दुरबुद्धि न होइ - ४ - ५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजै
कीजिए, करिए।
(क) मैं-मेरी कबहूँ नहिं कीजै, कीजै पंच-सुहायौ - १ - ३०२।

(ख) दीन-बचन संतनि-सँग दरस-परस कीजै - १ - ७२। (ग) हरि को दोष कहा करि दीजै जो कीजै सो इनको थोर - पृ. ३३५।

क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीजैगी
करेगी, किया जायगा।
अवसर गऐं बहुरि सुनि सूरज कह कीजैगी देह। बिछुरत हंस बिरह कैं सूलनि, झूठे सबै सनेह - ८०१।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीजौ
करना।
नृप कै हाथ पत्र यह दीजौ, बिनती कीजौ मोरि - ५८३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीट
कीड़ा मकोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कीट
मैले।
संज्ञा
[सं. किट्ट]


कीड़ा
उड़ने या रेंगनेवाले छोटे-छोटे जंतु।
संज्ञा
[सं. कीट, प्रा. कीड़]


कीड़ा
थोड़े दिन का बच्चा।
संज्ञा
[सं. कीट, प्रा. कीड़]


कीड़ी
छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[हिं. कीड़ा]


कीड़ी
चींटी।
संज्ञा
[हिं. कीड़ा]


कीड़ी
क्रीड़ी तनु ज्यों पाँख उपाई- चिउँटी के पंख निकलना। इस तरह इतराना, क्रोध या गर्व करना कि अंत में मरना ही पड़े। उ.- गिरिवर सहितै ब्रजै बहाई। सूरदास सुरपति रिस पाई। कीड़ी तनु ज्यौं पाँख उपाई - १०४१।
मु.


कीदहु
या, अथवा।
अव्य.
[हिं. किधौं]


कीदहु
या तो, न जाने।
अव्य.
[हिं. किधौं]


कीधौं
अथवा, किधौं, कैंधौं, या, या तो।
(क) निसि के उनींदे नैन, तैसे रहे ढरि ढरि। कीधौं कहूँ प्यारी को लागी टटकी नजरि - ७५२। (ख) हँसत कहत कीधौं सतभाव - १२४०। (ग) कीधौं कौन कार्य को आये सो पूँछत हौं तोहि - ८१३ सारा.।
क्रि. वि.
[सं. किम्, हिं. किधौं]


कच्छ
नदी या जलाशय के किनारे की जमीन, कछार।
संज्ञा
[सं.]


कच्छ
तुन का पेड़।
संज्ञा


कच्छप
कछुआ नामक जलजंतु।
संज्ञा
[सं.]


कच्छप
विष्णु के २४ अवतारों में से एक।
हरि जू की आरती बनी। अति विचित्र रचना रचि राखी, परति न गिरा गनी। कच्छप अध आसन अनूप अति, डाँडी सहस फनी - २ - २८।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
कछुई।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
छोटी वीणा।
संज्ञा
[सं.]


कच्छपी
सरस्वती की वीणा का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कच्छा
एक तरह की नाव।
संज्ञा
[सं. कच्छ]


कच्छू
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कच्छप]


कछना
पहिनना, धारण करना।
संज्ञा
[हिं. काछना]


कौन
किया, संपादित किया।
(क) दुष्टनि दुख, सुख संतनि दीन्हौ, नृप-व्रत पूरन कीन - ९ - २६। (ख) मुकुट कुंडल किरनि रवि छबि परम बिगसित कीन - २३५८।

(ग) सूरदास प्रभु बिन गोपालहिं कत बिघनै एई कीन - २७६८।

क्रि. स.
[हिं. करना]


कौन
रची, लिखी, बनायी, संपादित की।
नंदनंदनदास हित साहित्यलहरी कीन - सा. १०९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनना
खरीदना, मोल लेना।
क्रि. स.
[सं. क्रीणन]


कीना
द्वेष, वैर।
संज्ञा
[फा.]


कीनी
की, किया।
(क) बरज्यौ आवत तुम्हैं असुर-बुद्धि इन यह कीनी - ३ - ११।

(ख) एक मीन ने भक्ष कियो तब हरि रखबारी कीनी–६९३ सारा.।

क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीनी
पत्नी बनाया।
बाम बाम जिन सजनी कीनी। तिनकौ ऊधौ कहाँ बात बढ़ हम हित जोग जुगुत चित चीनी - सा. ५९।
क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीनी
कर दी, नाप ली।
अहुँठ पैग बसुधा सब कीनी - १० - १२५।
क्रि. अ.
[हिं. करना]


कीने
किये, कर दिया, किये है।
थकित भए कछु मंत्र न फुरई, कीन मोह अचेत - १ - २९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनौ
भूत. ‘किया’ का व्रज, प्रयोग, किया, संपादित किया।
नर तैं जनम पाइ कह कीनौ - १ - ६५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीनौ
करनी का फल।
जो मेरैं लाल खिझावै। सो अपनो कीनौ पावै - १० - १८३।
संज्ञा


कीन्यौ
किया।
बाँधन गए, बँधाए आपुन, कौन सयानप कीन्यौ - ८.१५।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. करना]


कीन्ही
‘करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाषिक स्त्रीलिंग, की।
भक्तनि हित तुम कहा न कियौ ? गर्भ परिच्छित इच्छा कीन्ही अम्बरीष-ब्रत राखि लियौ - १.२६।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हें
करना' क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किये' का ब्रजभाषा बहुवचन अथवा आदर-सूचक रूप, कार्य संपादित किये।
(क) मागध हत्यौ, मुक्‍त नृप कीन्हें, मृतक बिप्र-सुत दीन्ह्यौ - १ - १७। (ख) कीन्हें केलि बिबिध गोपिन सों सबहिन कौं सुख दीन्हें - ८६७ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हें
बनाये, स्वीकार किये।
कीन्हें गुरु चौबीस सीख लै जदु को दीन्हो ज्ञान - ६२ सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हौं
‘करना’ क्रिया के भूतकालिक रूप ‘किया' का ब्रजभाष रूप, किया।
(क) रघुकुल राघव कृष्न सदा ही गोकुल कीन्हीं थानौ - १ - ११। (ख) कौरौ-दल नासि नासि कीन्हौं जन-भायौ- १- २३।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीन्हयौ
किया।
बहुत जन्म इहिं बहु भ्रम कीन्ह्यौ - ४.११।
क्रि. स. (भूत.)
[हिं. करना]


कीमत
मूल्य, दाम।
संज्ञा
[अ. क्रीमत]


कीमती
अधिक मूल्य का।
वि.
[अ.]


कीमिया
रसायन, रासायनिक क्रिया।
संज्ञा
[फा.]


कीये
किये।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीरी
बहुत छोटे छोटे कीड़े।
संज्ञा
[सं. कोट]


कीण
बिखरा या फैला हुआ।
वि.
[सं.]


कीण
छाया हुआ, ढका हुआ।
वि.
[सं.]


कीर्त्‍तन
यश गुण-वर्णन।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्‍तन
राम-कृष्ण लीला के भजन, गीत या कथा।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्‍तन
भक्ति का एक अंग।
स्रवन, कीर्तन, स्मरनपाद, रत अरचन बंदन दास - ११६ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तनिया
राम-कृष्ण की लीला को गानेवाला, कीर्त्त करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कीर्तन+इया (प्रत्य.)]


कीर्ति, कीर्त्ति
पुण्य।
संज्ञा
[सं.]


कीर्ति, कीर्त्ति
यश, बड़ाई।
तेरो तनु धनरूप महागुन सुन्दर स्याम सुनी यह कीर्ति - २२२३।
संज्ञा
[सं.]


कीर्ति, कीर्त्ति
सीता की एक सखी।
संज्ञा
[सं.]


कीये
बनाये, चुने, स्थापित या नियुक्त किये।
आठों लोकपाल तब कीये अपन अपन अधिकार २० सारा.।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कीर
तोता।
(२) बहेलिया।
संज्ञा
[सं.]


कीर
कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कीट]


कीरत, कीरति
पुण्य।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरत, कीरति
ख्‍याति, बड़ाई।
नंदनंदन की कीरत सूरज संभावन गावै - सा. ६३।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरत, कीरति
राधा की माता कीर्ति।
संज्ञा
[सं. कीर्त्ति]


कीरतन
कथन, यश-गुणवर्णन।
जाके गृह मैं हरि-जन जाइ। नामकीरतन करै सो गाइ - ६ - ४।
संज्ञा
[सं. कीर्तन]


कीरतन
राम कृष्ण-लीला संबंधी भजन या गीत।
संज्ञा
[सं. कीर्तन]


कीरति-सुता
कीर्ति की पुत्री, राधा।
संज्ञा
[सं. कीर्ति+सुता=पुत्री]


कीरी
चीटी, कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कोट]


कीर्ति, कीर्त्ति
राधा की माता का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तिमान
यशस्वी।
वि.
[सं.]


कीर्त्तिस्‍तंभ
किसी की किर्त्ति की स्मृति-रक्षा में निर्मित स्तंभ।
संज्ञा
[सं.]


कीर्त्तिस्‍तंभ
वह कार्य या वस्तु जिससे किसी की कीर्त्ति की स्मृति-रक्षा की जाय।
संज्ञा
[सं.]


कील
मेख, काँटा, खूँटी।
संज्ञा
[सं.]


कील
नाक में पहनने का एक छोटा आभूषण, लौंग।
संज्ञा
[सं.]


कीलन
रोक, रुकावट।
संज्ञा
[सं.]


कीलन
मंत्र कीलने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कीलना
कील लगाना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलना
मंत्र का प्रभाव नष्ट करना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलना
वश में करना।
क्रि. स.
[सं. कीलन]


कीलित
जड़ित।
वि.
[हिं. कलना]


कीलित
निश्चेष्ट।
वि.
[हिं. कलना]


कीली
चक के बीच की कील या धुरी जिस पर वह घूमता है।
संज्ञा
[सं. कील]


कीली
धुरी या कील।
संज्ञा
[सं. कील]


कीश, कीस
बंदर, बानर, लंगूर।
रीछ कीस बस्य करौं, रामहिं गहि ल्याऊँ - ९ - ११८।
संज्ञा
[सं. केश]


कीश, कीस
सूर्य।
संज्ञा
[सं. केश]


कीसा
थैली
संज्ञा
[फा.]


कीसा
जेब।
संज्ञा
[फा.]


कुँअर
लड़का।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअर
राजकुमार।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअर
धनी का पुत्र।
संज्ञा
[सं. कुमार, हिं. कुँवर]


कुँअरविरांस
एक तरह का चावल।
संज्ञा
[हिं. कुँअर+विलास]


कुँअरेटा
लड़का, बालक।
संज्ञा
(हिं. कुँअर+एटा (प्रत्य.)]


कुँअरि
पुत्री, बालिका।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँअरि
राजपुत्री, राजकुमारी।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँअरि
प्रतिष्ठित पदाधिकारी या धनी की पुत्री।
ठाढ़ी कुँअरि राधिका लोचन मोचत तहँ हरि आए ६७५।
संज्ञा
[सं. पुं. कुमार]


कुँआँ
कूप, कूँआ।
संज्ञा
[हिं. कूँआ]


कँआरा
जिसका ब्याह न हुआ हो।
वि.
[सं. कुमार]


कुँईं
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी, प्रा. कुउई]


कुंकम
केसर।
संज्ञा
[सं.]


कुंकम
रोली।
संज्ञा
[सं.]


कुंकम
लाख का पोला गोला, कुंकुमा।
संज्ञा
[सं.]


कुंकुमा
लाख का पोला गोला जिसमें गुलाल भर कर मारते हैं।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कंचन
सिकुड़ने या सिमटने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंचिका
घुँघची, गुंजा।
संज्ञा
[सं.]


कुंचिका
ताली, कुंजी।
संज्ञा
[सं.]


कुंचित
घूँघरवाले, छल्लेदार।
कुंचित अलक, तिलक, गोरोचन, ससि पर हरि के ऐन - १० - १०३।
वि.
[सं.]


कुंचित
टेढ़ा, घूमा हुआ।
वि.
[सं.]


कुँची, कुंची
ताली, कुंजी, चाभी।
धर्मवीर कुलकानि कुंची कर तेहि तारौ दै दूरि धरयौ री - १४४८।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कुंज
स्थान जो लतादि से मंडप की तरह ढका हो।
जहँ वृन्दावन आदि अजिर जहँ कुंजलता बिस्तार। तहँ बिहरत प्रिय प्रीतम दोऊ निगम भृंग गुंजार।
संज्ञा
[सं.]


कुंज
कुंजकी खोरी - कुंजगली, पतली गली।
सूरदास प्रभु सकुचि निरखि मुख भजे कुंज की खोरी - १० - ६६७।
यौ.


कुंजक
अन्तःपुर में आने-जाने का अधिकारी द्वारपाल या चोबदार, कंचुकी।
संज्ञा
[सं.]


कुंजकुटीर
लताओं से घिरा हुआ घर।
संज्ञा
[सं.]


कुंजगली
लताओं-बेलों से छायी हुई पगडंडी।
संज्ञा
[हिं.]


कुंजगली
गली।
संज्ञा
[हिं.]


कुंजबिहारी
कुंजों में विहार करनेवाला।
संज्ञा
[सं. कुंजविहारी]


कुंजबिहारी
श्रीकृष्‍ण।
(क) अगम अगोचर, लीलाधारी। सो राधा-बस के कुंजबिहारी - १० - ३।

(ख) जबते बिछुरे कुंजबिहारी। नींद न परै घटै नहिं रजनी ब्यथा बिरह ज्वर भारी - २७८२।

संज्ञा
[सं. कुंजविहारी]


कुँजड़ा
तरकारी बोने-बेचनेवाली एक जाति।
संज्ञा
[सं. कुंज+ड़ा (प्रत्य.)]


कुंजबिलासी
कुंजों में विलास करने वाले।
संज्ञा
[सं.]


कुंजबिलासी
श्रीकृष्‍ण।
इहि घट प्रान रहत क्यों ऊधौ विछुरे कुंजबिलासी–३३०५।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
बाल।
संज्ञा
[सं.]


कुंजर
उत्तम, श्रेष्ठ।
वि.


कुंजरारि
हाथी का शत्रु, सिंह।
संज्ञा
[सं. कुंजर+अरि]


कुंजल
हाथी, गज।
ज्यों सिवछति दरसन रवि पायौ जेहि गरनि गरयौ। सूरदास प्रभु रूप थक्यौ मन कुंजल पंक परयौ - १४८९।
संज्ञा
[सं.]


कुंजविहारी
कुंज में विहार करनेवाला पुरुष।
संज्ञा
[सं.]


कुंजविहारी
श्रीकृष्‍ण।
संज्ञा
[सं.]


कुंजित
कुंजो से युक्त।
वि.
[सं.]


कुंजी
चाभी, ताली।
संज्ञा
[सं. कुंजिका]


कछुक
कुछ, थोड़ा।
(क) जबै आवौं साधु-संगति कछुक मन ठहराइ - १ - ४५। (ख) सूर कहौ क्यौं कहि सकै, जन्म - कर्म-अवतार। कहे कछुक गुरु-कृपा तें श्री भागवतऽनुसार - २ - ३६।
वि.
[हिं. कछु + एक]


कछुक
कछुक कही नहिं जात- दुविधा या असमंजस के कारण कुछ कहा नहीं जाता। उ. - स्रवन सुनत अकुलात साँवरो कछुक कही नहिं जात - सारा० - ९४९।
मु.


कछुव
कुछ।
(क) तुम प्रभु अजित, अनादि, लोकपति, हौं अजान मतिहीन। कछुव न होत निकट उत लागत, मगन होत इत दीन - १ - १८१। (ख) जोग-जुक्ति हम कछुव न जानैं ना कछु ब्रह्मज्ञानो - ३०६४।
वि.
[हिं. कुछ]


कछुवा
कछुआ।
संज्ञा
[हिं, कछुआ]


कछुवै
कुछ भी।
(क) जय अरु विजय कथा नहिं कछुवै, दसमुख बध-बिस्तार - १ - २१५। (ख) बालापन खेलत ही खोयौ, जोबन जोरत दाम। अब तो जरा निपट नियरानी, करयो न कछुवै काम-१-५७।

(ग) तीरथ ब्रत कछुवै नहिं कीन्हौ, दान दियौ नहिं जागे----१-६१।

विं,
[हिं. कुछ]


कछू
कोई वस्तु।
सर्व.
[सं. कश्चित्, पा. कोचि, हिं. कुछ]


कछू
कोई काम, कोई विशेष बात।
जौ सुरपति कोप्यौ ब्रज ऊपर, क्रोध न कछू सरै–१ - ३७।
सर्व.
[सं. कश्चित्, पा. कोचि, हिं. कुछ]


कछोटा
घुटने के ऊपर तक पहनी हुई धोती, कछोटी, ऊपर चढ़ायी हुई धोती।
संज्ञा
[हिं. काछ]


कछोटी
छोटी धोती।
संज्ञा
[हिं. कछोटा]


कज
टेढ़ापन।
संज्ञा
[फा.]


कुंजी
(ग्रंथ की) टीका।
संज्ञा
[सं. कुंजिका]


कुंठ
जो तेज न हो, गुठला, कुंद।
[सं.]


कुंठ
जिसकी बुद्धि तेज न हो, सूर्ख।
[सं.]


कुंठन
हिचक, कुंठित होने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंठित
जिसकी धार तेज न हो।
वि.
[सं.]


कुंठित
मन्द, निकम्मा।
वि.
[सं.]


कुंड
अग्निहोत्र आदि करने का गढ़ा अथवा मिट्टी या धातु का पात्र जिसमें आग जलायी जाती है।
(क) जज्ञ पुरुष प्रसन्न सब गए। निकसि कुंड तैं दरसन दए - ४ - ५। (ख) आहुति जज्ञकुंड़ में डारि। कह्यौं पुरुष उपजै बल भारि।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
चौड़ै मुँह का बरतन।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
छोटा तालाब।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
पूला, गट्‍ठा।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
लोहे का टोप।
संज्ञा
[सं.]


कुंड
हाथी का हौदा।
संज्ञा
[सं.]


कुँड़रा
गोल रेखा।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुँड़रा
लपेटी हुई रस्सी या कपड़ा, इँबा, गेंड़ुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुँडरा
कुंडा, मटका।
संज्ञा
[सं.कुंड]


कुँडरी
जन्‍म के ग्रहों की स्थिति बतानेवाला चक्र
संज्ञा
[सं.]


कुँडरी
खँझरी, डफली।
एक पटह एक गोमुख एक आवझ एक झालरी एक अमृत एक कुंडरी एक एक डफ कर धारे - २४२५।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
कानों में पहनने का सोने-चाँदी का एक आभूषण।
परम रुचिर मनिकंठ किरनिगन, कुंडल-मुकुटा-प्रभा न्यारी - १ - ६९।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
गोरखनाथ के अनुयायियों का कान में पहनने का गोल आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
वह मंडल जो बदली में चंद्रमा या सूर्य के किनारे दिखायी देता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडल
(साँप की) फेरों में सिमटकर बैठने की स्थिति।
संज्ञा
[सं.]


कुंडलिनी
शरीर का एक कल्पित अंग जो मूलाधार में सुषुम्‍ना नाड़ी के नीचे साढ़े तीन कुंडली में घूमा माना गया है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडलिया
दोहे और रोला के योग से बनानेवाला एक छंद।
संज्ञा
[सं. कुंडलिका]


कुंडली
कुंडलिनी।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
ज्योतिष के अनुसार वह चक्र जो जन्मकाल में ग्रहों की स्थिति सूचित करने के लिए बनाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
गेंडुरी।
संज्ञा
[सं.]


कुंडली
साँप के गोलाकार बैठने का ढंग।
संज्ञा
[सं.]


कुंडा
बड़ा मटका।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कुंडा
दरवाजे की बड़़ी कुंडी, साँकल।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कुंडिका
कमंडल।
संज्ञा
[सं.]


कुंडिका
पथरी, कूँडी, प्याली।
संज्ञा
[सं.]


कुंडिका
ताँबे का हवन-कुंड।
संज्ञा
[सं.]


कुंडी
तसले या कंडलदार थाली की तरह का बड़ा गहरा बर्तन।
पूँगी फलजुत जल निरमल धरि, आनी भरि कुंडी जो कनक की। खेलत जूप सकल जुवतिनि मैं, हारे रघुपति, जिती जनक की - ९ - २५।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कुंडी
जंजीर की कड़ी।
(२) साँकल।
संज्ञा
[हिं. कुंडा]


कुंडोदर
शिव जी का एक गण।
संज्ञा
[सं. कुंड+उदर]


कुंत
भाला, बरछी।
ठौर ठौर अभ्यास महाबल करत कुंत-असि-बान - ९ - ७५।
संज्ञा
[सं.]


कुंत
क्रूर भाव, अनस।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
सिर के बाल, केश।
(क) कुंतल कुटिल, मकर कुंडल, भ्रुव नैन बिलोकनि बंक - १०.१५४। (ख) स्रवन मनि ताटंक मंजुल कुटिल कुंतल छोर।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
प्याला।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
सूत्रधारा।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
वेश बदलनेवाला पुरुष, बहुरूपिया।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
जौ।
संज्ञा
[सं.]


कुंतल
घास।
संज्ञा
[सं.]


कुंता, कुंति, कुंती
राजा पांडु की स्‍त्री। यह शूरसेन यादव की कन्या और वसुदेव की बहन थी। इस नाते श्रीकृष्ण की यह बुआ थी। भोज देश के राजा कुंतिभोज इसके चाचा थे और उन्होंने इसे गोद लिया था। दुर्वासा ऋषि की सेवा करके इसने पाँच मंत्र प्राप्त किये थे जिनके द्वारा यह देवताओं का आह्वान कर पुत्र उत्पन्न करा सकती थी। मंत्रों की सत्यता जाँचने के लिए इसने कुमारी अवस्था में ही सूर्य से 'कर्ण’ को उत्पन्न किया था। विवाह के बाद धर्म, पवन और इंद्र द्वारा कमशः युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसके उत्पन्न हुए थे।
संज्ञा
[सं. कुंती]


कुंता, कुंति, कुंती
बरछी, भाला।
संज्ञा
[सं. कुंत]


कुंद
एक पौधा जिसमें मीठी सुगंध वाले सफेद फूल लगते हैं। इसकी कलियों से दाँतों की उपमा दी जाती है।
(क) अति ब्याकुल भई गोपिका ढूँढ़ति गिरिधारी। बूझति हैं बन बेलि सौं देखे बनवारी ...। खुझा मरुवा कुंद सों कहैं गोद पसारी। बकुल बहुलि बट कदम पै ठाढ़ी ब्रजनारी - १८२२।

(ख) चिबुक मध्य मेचक रुचि उपजत राजति बिंब कुंद रदनी - पृ. ३१६।

संज्ञा
[सं.]


कुंद
कनेर का पेड़।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुंद
खरोद।
संज्ञा
[सं.]


कुंदन
स्वच्छ स्वर्ण, बढ़िया सोना।
आसन एक हुतासन बैठी, ज्यों कुंदन-अरुनाई। जैसैं रवि इक पल धन भीतर बिनु मारुत दुरि जाई - ९ - १६२।
संज्ञा
[सं. कुंद=श्वेत पुष्प]


कुंदन
शुद्ध, बढ़िया।
वि.


कुंदन
सुंदर, निरोग।
वि.


कुंदनपुर
विदर्भ देश का एक नगर जिसके राजा भीष्मक की कन्या रुक्मिणी को श्रीकृष्ण हर लाये थे।
कुंदनपुर को भीषम राई - १० उ. - ७।
संज्ञा
[सं. कुंडिनपुर]


कुंदर
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुंदा
लकड़ी का लट्ठा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जिस पर रखकर लकड़ी गढ़ी जाती है।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
बन्दूक का पिछला भाग।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
दस्ता, मूठ।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदा
बड़ी मुगरी।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुंदी
कपड़ों को मुगरी से कूटना।
संज्ञा
[हि. कुंदा]


कुंदी
खूब मारना पीटना।
संज्ञा
[हि. कुंदा]


कुंदुर
पीला गोंद।
संज्ञा
[सं.]


कुँदेरना
खुरचना, छीलना।
संज्ञा
[सं. कुंदलन=खोदना]


कुँदेरा
खरोदने का काम करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कुँदेरना+एरा (प्रत्य.)]


कुंभ
घड़ा, घट।
स्रम-स्वेद सीकर गुंड मंडित रूप अंबुज कोर। उमँगि ईषद यौं स्रम तज्यौ पीयूष कुंभ हिलोर - पृ. ३१०।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
हाथी के सिर के दोनों ओर का उभड़ा हुआ भाग।
(क) बाज सौं टूटि गजराज हाँकत परयौ मनौ गिरि चरन धरि लपकि लीन्हे। बारि बाँधे बीर चहुँधा देखत ही बज्र सम थाप बल कुंभ दीन्हे - २५९०। (ख) तब रिस कियौ महावत भारी••••••। अंकुस राखि कुंभ पर करष्‍यौ हलधर उठे हँकारी - २५९४।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
दसवीं राशि।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
प्राणायाम के तीन भागों में एक।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
एक पर्व जो प्रति बारहवें वर्ष होता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंभ
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कुंभक
प्राणायाम के तीन भागों में से एक जिसमें साँस लेकर वायु को शरीर के भीतर रोका जाता है।
जोग बिधि मधुबन सिखि आई जाइ…..। सब आसन रेचक अरु पूरक कुंभक सीखे पाइ - ३१३४।
संज्ञा
[सं.]


कुंभकरन
एक राक्षस का नाम जो रावण का भाई और बड़ा बली था। प्रसिद्धि है कि यह छह महीने सोता था।
संज्ञा
[सं. कुंभकर्ण]


कुंभकर्ण
रावण का भाई जो छः महीने तक सोता था।
संज्ञा
[सं.]


कुंभकार
कुम्हार।
संज्ञा
[सं.]


कुंभज, कुंभजात, कुंभयोनि, कुंभसंभव
अगस्त्य ऋषि जिनकी उत्पत्ति घड़े से हुई थी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभा
वेश्या।
संज्ञा
[सं.]


कुंभार
कुम्हार।
संज्ञा
[सं. कुंभकार]


कुंभिका
जलकुंभी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभिका
वेश्या।
संज्ञा
[सं.]


कुंभिका
कायफल।
संज्ञा
[सं.]


कुँभिलाना
ताजा न रहना, मुरझा जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाना
सूखने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाना
कांति मलीन होना, सुस्त हो जाना, उदासी छाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानी
कुम्हला गयी, मुरझा गयी।
(क) हरबराइ उठि धाइ प्रात ते बिथुरीं अलक अरु बसन मरगजे तैसीये कुँभिलानी मात - ११८३।

(ख) प्रफुलित कमल गुंजार करत अलि पहु फाटी कुमुदिनि कुँभिलानी - २२४८।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानी
उदास हो गयी, सुस्त हो गयी।
(ख) निठुर बचन सुनि स्याम के जुवती बिकलानी।….। मनो तुषार कमलन परयौ ऐसे कुँभिलनी - पृ. ३४१।

(ग) ऊधौ जिय जानी मन कुभिलानी कृष्न संदेस पठाये - ३४४१।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलानो, कुँभिलानौ
कुम्हला गया, उदास हो गया, प्रभाहीन हो गया।
अति रिसि कृस ह्वै रही किसोरी करि मनुहारि मनाइए। …..। छूटे चिहुर बदन कुँभिलानौ सुहथ सँवारि बनाइए - १६८८।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुँभिलाहि
सूख जाती है, मरझा जाती है।
जल में रहहि जलहि ते उपजहि जल ही बिन कुँभिलाहि - २७५७।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुंभी
हाथी।
संज्ञा
[सं.]


कुंभी
बंसी।
संज्ञा


कुंभी
एक नरक का नाम, कुंभीपाक।
संज्ञा


कुंभीनस
साँप।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीनस
रावण।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीपाक
एक नरक जिसमें मांसाहारी व्यक्ति खौलते हुए तेल में डाला जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीपुर
हस्तिनापुर का एक नाम, पुरानी दिल्ली।
संज्ञा
[सं.]


कुंभीर
नाक नामक जलजंतु।
संज्ञा
[सं.]


कुँवर
राजपुत्र, राजकुमार।
इक दिन नृपति सुरुचि-गृह अयौ। उत्तम कुँवर गोद बैठायौ - ४ - ९।
संज्ञा
[सं. कुमार]


कुँवरि
कुमारी।
संज्ञा
[हिं. पुं. कुँवर]


कुँवरि
राजकन्या,प्रतिष्ठित व्यक्ति की कन्या।
(क) गुप्त प्रीति न प्रगट कीन्ही, हृदय दुहुनि छिपाइ। सूंर प्रभु के बचन सुनि-सुनि रही कुँवरि लजाइ - ६७६। (ख) नयौ नेह, नयौ गेह, नयौ रस, नवल कुँवरि बृषभानु-किसोरी - ६८५।
संज्ञा
[हिं. पुं. कुँवर]


कुँवरिया
बेटी, पुत्री।
सूरदास बलि-बलि जोरी पर, नंद-कुँवर बृषभानु कुँवरिया–६८८।
संज्ञा
[हिं. कुँवरि]


कजरी
एक गीत जो बरसात में गाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरी
एक तरह का काला धान।
संज्ञा
[सं. कज्‍जल]


कजरौटा
काजलकी डिबिया।
संज्ञा
[हिं. कजलौटा]


कजला
काली आँखों वाला बैल।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजला
एक काला पक्षी।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजला
काली आँखों वाला।
वि.


कजलाना
काला हो जाना।
क्रि. अ.
[हिं. काजल]


कजलाना
आग बुझना।
क्रि. अ.
[हिं. काजल]


कजलाना
काजल लगाना, आँजना।
क्रि. स.


कजली
कालापन, कालिख।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कुँवरी
कुमारी, कुँवरि।
कुँवरी अहि जसु हेमखंभ लगि ग्रीव कपोत बिसारी - २३०४।
संज्ञा
[हिं. कुँवरि]


कुँवरेटा
छोटा लड़का, बच्चा।
संज्ञा
[हिं. कुँवर+एटा (प्रत्य.)]


कुँवाँ
कूप, कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुआँ]


कुँवार, कुँवारा
जिसका ब्याह न हुआ हो।
वि.
[सं. कुमार, प्रा. कुँवार]


कुँहकुँह
केशर, जाफरान।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कु
एक उपसर्ग जो शब्द के आदि में जुड़कर 'नीच', ‘बुरा' आदि का अर्थ देता है, जैसे कुपुत्र, कुसंग।
उप.
[सं.]


कु
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


कुअंक
बुरे अंक।
संज्ञा
[सं. कु+अंक]


कुअंक
बुरा भाग्य, दुर्भाग्य।
संज्ञा
[सं. कु+अंक]


कुआँ
कूप।
संज्ञा
[स. कूप, प्रा. कूव]


कुआँर, कुअर
भादों के बाद का महीना।
संज्ञा
[प्रा. कुँमार, हिं. क्वार]


कुईं
छोटा कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुइयाँ]


कुईं
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुव]


कुइयाँ
छोटा कुआँ।
संज्ञा
[हिं. कुआँ]


कुकड़ना
सिकुड़ जाना, संकुचित होना।
क्रि. अ.
[हिं. सिकुड़ना]


कुकड़ी
कच्चे सूत की अण्टी।
संज्ञा
[सं. कुक्कुटी]


कुकनू
एक पक्षी।
संज्ञा
[यू.]


कुकरना
सिकुड़ जाना।
क्रि. अ.
[हिं. सिकुड़ना]


कुकरी
मुरगी।
संज्ञा
[सं. कुक्कट, पुं. हिं. कुकड़ा]


कुकपि
दुष्ट कपि।
संभु की सपथ, सुनि कुकपि कायर कृपन, स्वास आकास बनचर उड़ाऊँ - ९ - १२९।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कुकर्म
बुरा या खोटा काम, दुष्कर्म।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+कर्म]


कुकर्मी
बुरा काम करनेवाला, पापी।
वि.
[हिं. कुकर्म]


कुकवि
बुरा कवि, पापी कवि, ऐसा कवि जिसने कोई पुण्य कार्य न किया हो।
सूरदास बहुरौ बियोग गति कुकवि निलज ह्वै गावत - ३३९२।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+कवि]


कुकुर
एक क्षत्रिय जाति।
संज्ञा
[सं.]


कुकुर
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कुकुर
एक साँप का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुकुरमुत्ता
एक बदबूदार बनस्पति।
संज्ञा
[हिं. कुक्कुर=कुत्ता+मूत]


कुकुही
बनमुर्गी।
संज्ञा
[सं. कुक्कुभ, प्रा. कुक्कुह]


कुक्कुट
मुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुट
चिनगारी।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुट
जटाधारी।
संज्ञा
[सं.]


कुक्कुर
कुत्ता।
संज्ञा
[सं.]


कुक्ष
पेट, उदर।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
पेट।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
कोख।
संज्ञा
[सं.]


कुक्षि
गोद।
संज्ञा
[सं.]


कुखेत
बुरा स्थान, कुठाँव।
चारों ओर ब्यास खगपति के झुंड झुंड बहु आये। ते कुखेत बोलत सुनि सुनि के सकल अंग कुम्हिलाये।
संज्ञा
[सं. कुक्षेत्र, प्रा. कुखेत]


कुख्यात
बदनाम, निंदित।
वि.
[सं. कु+ख्यात]


कुख्याति
बदनामी, निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुगंधि
बुरी गंध, दुर्गंध।
हंस काग को भयौ संग।...। जैसे कंचन काँच संग ज्यौं चंदन संग कुगंध। जैसे खरी कपूर दोउ यक मय यह भइ ऐसी संधि - २९१२।
संज्ञा
[सं.]


कुगति
बुरी दशा, दुर्गति।
संज्ञा
[सं.]


कुगहनि
वह हठ या आग्रह जो उचित न हो।
संज्ञा
[सं. कु+ग्रहण]


कुघा
ओर, तरफ, दिशा।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुघात
बुरा अवसर या समय।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. घात]


कुघात
बुरी चाल, छल-कपट।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. घात]


कुच
स्तन, छाती।
संज्ञा
[सं.]


कुच
सिमटा हुआ, संकुचित।
वि.


कुच
कंजूस।
वि.


कुचकुचा
कोंचा या मसला हुआ।
वि.
[अनु. कुचकुच]


कुचकुचाना
बार बार कौंचना या चुभाना।
क्रि. स.
[अनु. कुचकुच]


कुचक्र
षड्यंत्र, छलकपट।
संज्ञा
[सं.]


कुचक्री
छली, षड्यंत्रकारी।
संज्ञा
[सं. कुचक्र]


कुचना
सिकुड़न, सिमिटना, संकुचित होना।
क्रि. अ.
[सं. कुंचन]


कुचना
दब जाना, कुचल जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूँचना]


कुचर
आवारा।
संज्ञा
[सं.]


कुचर
कुकर्मी।
संज्ञा
[सं.]


कुचर
दूसरे की निंदा करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कुचलना
दबाना, मसलदेना।
क्रि. स.
[हिं. कूँचना]


कुचलना
पैरों से रौंदना।
क्रि. स.
[हिं. कूँचना]


कुचाल
बुरा चालचलन।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. चाल]


कुचाल
खोटापन, दुष्टता।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. चाल]


कुचालिया, कुचाली
जिसका आचरण अच्छा न हो।
वि.
[हिं. कुचाल]


कुचालिया, कुचाली
जिसकी नीति ठीक न हो, दुष्ट, अन्याय, अत्याचारी।
जिनि हति संकट, प्रलंब, तृनावृत, इंद्र-प्रतिज्ञा टाली। एते पर नहिं तजत अघोड़ी कपटी कंस कुचाली - २५३७।
वि.
[हिं. कुचाल]


कुचाह
बुरी या अशुभ बात, अमंगलसूचक समाचार।
संज्ञा
[सं. कु+ हिं. चाह]


कुचिल
मैला, गंदा।
कहो कैसे मिले स्याम संघाती। कैसे गए सुवंत कौन बिधि परसे हुते बस्तर कुचिल कुजाती - १० उ. - ७२।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुचिलगे
दब गया, मसल गया।
क्रि. स.
[हिं. कुचलना]


कुची
कुंजी, ताली।
संज्ञा
[हिं. कुंजी]


कुची
कूचा, ब्रुश।
संज्ञा
[हिं. कुंजी]


कुचील
मैले वस्त्रवाला, मैला-कुचैला, मलिन।
(क) हौं कुचील, मतिहीन सकल बिधि, तुम कृपालु जगजान - १ - १००। (ख) कज्जल कीच कुचील किये तट अंचर, अधर कपोल। थकि रहे पथिक सुयश हित ही के हस्त चरन मुख बोल - ३४५४।

(ग) कुटिल कुचील जन्म की टेढ़ी सुंदरि करि धर आनी–३०८६। (घ) दुर्बल बिप्र कुचील सुदामा ताको कंठ लगाये - ८१८ सारा.।

वि.
[सं. कुचेल]


कुचीलनि
मैले-कुचैलों से, मलिन लोगों से।
साधु-सील, सद्रूप पुरुष कौ, अपजस बहु उच्चरतौ। औघड़-असत-कुचीलनि सौं मिलि, मायाजल मैं तरतौं - १ २०३।
वि. बहु.
[सं. कुचेल, हिं. कुचील+नि (प्रत्य.)]


कुचीला
मैला, गंदा।
वि.
[हिं. कुचील]


कुचीला
मैले या गंदे वस्‍त्रवाला।
वि.
[हिं. कुचील]


कुचेल
मैला कपड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुचेल
मैला, गंदा।
वि.


कुचेल
मैले कपड़ेवाला।
वि.


कुचेष्ट
बुरी अकृतिवाला।
वि.
[सं.]


कुचेष्ट
बुरी चालबाजी।
वि.
[सं.]


कुचेष्टा
बुरी चाल या चेष्टा।
संज्ञा
[सं.]


कुचेष्टा
बुरी आकृति-प्रकृति।
संज्ञा
[सं.]


कुचैन
व्याकुलता, अशांति।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.चैन]


कुचैल, कुचैला
जिसका कपड़ा मैला हो।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुचैल, कुचैला
मैला, गंदा।
पट कुचैल, दुरबल द्विज देखत, ताके तंदुल खाये (हो)। संपति दै वाकी पतिनी कौं, मन-अभिलाष पूराए (हो) - १.७।
वि.
[हिं. कुचैला]


कुच्छि
पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुच्छि
कोख।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कुच्छित
बुरा, नीच।
वि.
[सं. कुत्सित]


कुछ
थोड़ा, जरा।
वि.
[सं. किंचित, पा. किंची, पू. हिं. किछु]


कुछ
कोई (वस्तु), थोड़ी (वस्तु)।
जब वह विप्र पढ़ावै कुछ कुछ सुनके चित धरि राखै - ११० सारा.।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कुछ
कोई (विशेषता या बड़ी बात)।
सर्व.
[सं. कश्चित, पा. कोचि]


कुछ
जो कुछ करै सो थोरा- सब कुछ करने की सामर्थ्य है, शक्ति या सामर्थ्य इतनी अधिक है कि बड़े से बड़ा काम करना भी उनके लिए साधारण बात होगी। उ. - इतनी सुनत घोष की नारी रहसि चली मुख मोरी। सूरदास जसुदा कौ नंदन, जो कछु करै सो थोरी - १० - २९३।
मु.


कुजंत्र
टोना, टोटका।
संज्ञा
[सं. कुयंत्र]


कुज
मंगल ग्रह।
भाल बिसाल ललित लटकन मनि, बालदसा के चिकुर सुहाए। मानौ गुरु सनि-कुज आगैं करि, ससिहिं मिलन तम के गन आए - १० - १०४।
संज्ञा
[सं.]


कुज
पेड़।
संज्ञा
[सं.]


कुज
(कु=पृथ्वी) पृथ्वी का पुत्र नरकासुर।
संज्ञा
[सं.]


कुज
लाल रंग का।
वि.


कुजा
पृथ्वी की पुत्री सीता।
संज्ञा
[सं. कु=पृथ्वी+जा]


कुजात, कुजाति, कुजाती
बुरी या नीच जाति।
संज्ञा
[सं. कुजाति]


कुजात, कुजाति, कुजाती
बुरी जाति का।
वि.


कुजात, कुजाति, कुजाती
पतित या नीच, दीन-दुखी या अनाथ।
कहौ कैसे मिले स्याम संघाती। कैसे गये सु कंत कौन बिधि परसे हुए बस्तर कुचिल कुजाती - १० उ. - ८७।
वि.


कुजोग
बुरा मेल या संबंध, कुसंग।
संज्ञा
[सं. कुयोग]


कुजोग
बुरा संयोग या अवसर।
संज्ञा
[सं. कुयोग]


कज
दोष, ऐब, कसर।
संज्ञा
[फा.]


कजरा
काजल।
ता दिन तें कजरा मैं देहौं। जो दिन नँदनंदन के नैनन अपने नैन मिलैहौं - २७७६।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरा
बैल जिसकी आँखें काली हों।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरा
काली आँखोंवाला।
वि.


कजराई
कालापन।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरारा
जिस (नेत्र) में काजल लगा हो, अंजनयुक्त।
वि.
[हिं. काजल+आरा (प्रत्य.)]


कजरारा
(काजल के समान) काला।
वि.
[हिं. काजल+आरा (प्रत्य.)]


कजरी
काली आँखों वाली गाय।
(क) कजरी कौ पय पियहु लाल जासौ तेरि वेनि बढ़ै - १० - १७४। (ख) अपनी अपनी गाइ ग्वाल सब आनि करौ इक ठौरी। …...| पियरी, मौरी, गोरी, गैनी, खैरी, कजरी जेती - ४४५। (ग) कजरी, धौरी, सेंदुरी, धूमरि मेरी गैया - ६६६।
संज्ञा
[हिं. काजल, कजली]


कजरी
कजराई, कालापन।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजरी
एक त्योहार जो कहीं सावन की पूर्णिमा को और कहीं भादों बड़ी तीज को मनाया जाता है। इस दिन से कजली गाना बंद कर दिया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजोगी
जो संयमी न हो।
वि.
[सं. कुयोगी]


कुज्‍जा
पुराना मिट्टी का प्याला।
संज्ञा
[फा. कूजा=प्याला]


कुज्‍जा
मिट्टी के कुज्जे में जमाई हुई मिश्री।
संज्ञा
[फा. कूजा=प्याला]


कुटंत
कुटाई, पिटाई।
संज्ञा
[हिं. कूटना+त (प्रत्य.)]


कुटंत
मार, चोट।
संज्ञा
[हिं. कूटना+त (प्रत्य.)]


कुट
घर
संज्ञा
[सं.]


कुट
किला, गढ़।
संज्ञा
[सं.]


कुट
कलश।
संज्ञा
[सं.]


कुट
एक झाड़ी।
संज्ञा
[सं. कुष्ठ]


कुट
कुटा हुआ अंश।
संज्ञा
[सं. कूट=कूटना]


कुटका
कटा हुआ छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कुटज
एक जंगली वृक्ष, कुरैया, कर्ची।
कुटज कुमुद कदंब कोविद कनक आरि सुकंज। केतकी करवील बेलउ बिमल बहु बिधि मंत - २८२८
संज्ञा
[सं.]


कुटना
नायक का दूत।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुटना
परस्पर झगड़ा करनेवाला।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुटना
कूटने का हथियार।
संज्ञा
[हिं. कुटना]


कुटना
कूटा जाना।
क्रि. अ.


कुटनी
नायक की दूती। झगड़ा करनेवाली।
संज्ञा
[सं. कुट्टनी]


कुटिया
झोपड़ी।
संज्ञा
[सं. कुटी]


कुटिल
कपटी, छली, शठ, खल।
(क) साँचे सूर कुटिल ये लोचन ब्यथा मीन छबि छानि लयी - २५३३।

(ख) मल्लयुद्ध प्रति कंस कुटिल मति छल करि इहाँ हँकारे - २५६९। (ग) रिपु भ्राता जान्यो जु विभीषन निसिचर कुटिल सरीर - २९० सारा.।

वि.
[सं.]


कुटिल
वक्र, टेढ़ा।
कुटिल भ्रू पर तिलक रेखा सीस सिखिनि सिखंड - १ - ३०७।
वि.
[सं.]


कुटिल
घूमा या बल खाया हुआ।
वि.
[सं.]


कुटिल
छल्लेदार, घुँघराला।
लला हौं वारी तेरैं मुख पर। कुटिल अलक मोहन मन बिहसनि, भृकुटी बिकट ललित नैननि पर - १० - ९३। (ख) कुटिल कुंतल मधुप मिलि मनु कियौ चाहत लरनि - ३५१।
वि.
[सं.]


कुटिलता
टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं.]


कुटिलता
छल, कपट।
संज्ञा
[सं.]


कुटिलाई
कुटिलता।
संज्ञा
[हिं. कुटिल]


कुटी
पर्णशाला, कुटिया, झोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कुटी
घास-फूस का घेरा।
तुम लछिमन या कुंज-कुटी मैं देखौ जाइ निहारि। कोउ इक जीव नाम मम लै लै उठत पुकारि-पुकारि - ९ - ६५।
संज्ञा
[सं.]


कुटीर
कुटी।
सूरदास स्वामी अरु प्यारी बिहरत कुंज कुटीर - १५६१।
संज्ञा
[सं. कुटी]


कुटुँब, कुटुम्ब
परिवार, कुनबा।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटुम्‍बी
परिवार या कुटुम्ब के अन्य प्राणी।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटुम
परिवार, कुटुम्ब।
उग्रसेन सब कुटुम लै ता ठौर सिधायौ - १० उ. - ३।
संज्ञा
[सं. कुटुम्ब]


कुटेक
अनुचित बात पर अड़ना।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. टेक]


कुटेव
खराब या बुरी आदत।
नैनन यह कुटेव पकरी। लूटत स्याम रूप आपुन ही निसि दिन पहर घरी - पृ. ३३०।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. टेव= आदत]


कुटौनी
धान कुटने का काम।
संज्ञा
[हिं. कुटना+औनी]


कुटौनी
धान कूटने की मजूरी।
संज्ञा
[हिं. कुटना+औनी]


कुट्टनी
दूती, कुटनी।
संज्ञा
[हिं. कुटनी]


कुट्टमित
सुख-विलास के समय स्त्रियों का दुख या कष्ट का बनावटी भाव जो विशेष प्रिय लगता है।
संज्ञा
[सं.]


कुठाँउ, कुठाँय, कुठाँव
बुरी ठौर या जगह।
यह सब कलियुग कौ परभाव, जौ नृप कौ मन गयौ कुठाँव।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.ठाँव]


कुठाँउ, कुठाँय, कुठाँव
संकट में, विपत्ति के स्थान में।
जौ हरि ब्रत निज उंर न धरैगौ। तौ को अस त्राता जु अपन करि, कर कुठावँ पकरैगौ - १ - ७५।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.ठाँव]


कुठाट
बुरा साज-सामान।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाट]


कुठाट
बुरा विचार, प्रबंध या आयोजन।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाट]


कुठाय
बुर ठौर।
संज्ञा
[हिं. कुठाँव]


कुठार
लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी।
जद्यपि मलय-बृच्छ जड़ काटै, करकुठार पकरै। तऊ सुभाव न सीतल छाँड़ै, रिपु-तन-ताप हरै १ - ११०।
संज्ञा
[सं.]


कुठार
परशु, फरसा।
संज्ञा
[सं.]


कुठार
नाश करनेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुठारपाणि, कुठारपानि
वह जिसके हाथ में परशु या फरसा हो, परशुराम।
संज्ञा
[सं. कुठार+पाणि]


कुठाराघात
कुल्हाड़ी की चोट।
संज्ञा
[सं.]


कुठाराघात
गहरी चोट।
संज्ञा
[सं.]


कुठारी
कुल्हाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कुठारी
नाश करने वाली स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कुठाली
सोना-चाँदी गलाने की घरिया।
संज्ञा
[सं.]


कुठाहर
बुरी जगह।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाहर=जगह]


कुठाहर
बेमौका।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+हिं. ठाहर=जगह]


कुठिया
मिट्टी का बड़ा बरतन जिसमें अनाज रखा जाता है।
संज्ञा
[सं. कोष्ठ, प्रा. कोट्ठ]


कुठौर
बुरा स्थान।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. ठौर]


कुठौर
बेमौका।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. ठौर]


कुड़कुड़ाना
मन ही मन कुढ़ना या क्षुब्ध होना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुड़बुड़ाना
मन में कुढ़नी।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुडमल
फूल की कली।
संज्ञा
[सं.]


कुडमल
एक नरक का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुडरी
गेंडुरा, इँडुरी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कुडरी
नदी के घुमाव के बीच की जमीन।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कुडौल
भद्दा, भौंडा।
वि.
[सं. कु+हिं.डौल]


कुढंग
बुरी रीति या चाल।
संज्ञा
[सं. कु + हिं. ढंग]


कुढंग
बुरा, बेढंगा।
वि.


कुढंग
बुरी तरह का।
वि.


कुढंगा
जो काम का ढङ्ग न जाने, उजड्ड।
वि.
[हिं. कुढंग]


कुढंगा
भद्दा।
वि.


कुढंगी
बुरी चाल का, जिसका आचरण ठीक न हो।
वि.
[हिं. कुढंग]


कुढ़,कुढ़न
भीतरी क्रोध या दुख।
संज्ञा
[सं. क्रुद्ध, प्रा. कुड्ढ]


कुढ़ना
मन ही मन खीझना या चिढ़ना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ना
ईर्ष्‍या या डाह करना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ना
दुखी होना, मन मसोसकर रह जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुढ़न]


कुढ़ब
बुरे ढंग का।
वि.
[सं. कु+हिं.ढब]


कुढ़ब
कठिन।
वि.
[सं. कु+हिं.ढब]


कुढ़ब
बुरा स्वभाव, बुरी प्रकृति।
संज्ञा


कुढर
जो ठीक ढला न हो।
वि.
[सं. कु+हिं. ढर]


कुढर
भद्दा।
वि.
[सं. कु+हिं. ढर]


कुढ़ाना
दूसरे का जी दुखाना।
क्रि. स.
[हिं. कुढ़ना]


कुण
मैल।
संज्ञा
[सं.]


कुण
बच्चा।
संज्ञा
[सं.]


कुतका
डंडा, सोंटा।
संज्ञा
[हिं, गतको]


कुतका
वह डंडा, जिससे भाँग घोटी जाय।
संज्ञा
[हिं, गतको]


कुतना
कूता जाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूतना]


कुतरना
(कुछ भाग) दाँत से काटना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन= कतरना]


कुतरना
(कुछ भाग) निकाल लेना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन= कतरना]


कुतरा
कुता।
संज्ञा
[हिं. कुत्ता]


कुतर्क
व्यर्थ का तर्क, बकवाद।
संज्ञा
[सं]


कुतर्की
व्यर्थ की बात करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कुतर्की
बकवादी।
संज्ञा
[सं.]


कुतवार
कोतवाल।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवारी
कोतवाल का काम |
सेस न पायौ अंत जाकी फनवारी। पवन बुहारत द्वार सदा संकर कुतवारी - ११२८।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवारी
कोतवाली।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल]


कुतवाल
पुलिस का एक बड़ा कर्मचारी जिनके अधीन कई थाने और थानेदार रहते हैं, कोतवाल।
दगाबाज कुतवाल काम रिपु, सरबस लूटि लयो - १ - ६४।
संज्ञा
[सं. कोटपाल, हिं. कोतवाल]


कुताही
कमी, कैसर।
संज्ञा
[फा. कोताही]


कुतुक
इच्छा।
संज्ञा
[हिं. कौतुक]


कुतूहल
क्रीड़ा, आनंद, आमोद-प्रमोद।
(क) उर मेले नंदराई कै गोप-सखनि मिलि हार। मागध-बंदी-सूत अति करत कुतुहल बार - १० - २७।

(ख) साँझ कुतूहल होत है जहँ तहँ दुहियत गाय - ४९२।

संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
प्रबल इच्छा, उत्कंठा।
संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
कौतुक।
संज्ञा
[सं.]


कुतूहल
अचरज, अचंभा।
संज्ञा
[सं.]


कजली
काली आँख वाली गाय।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
सफेद भेड़ जिसकी आँख के बाल काले होते हैं।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
एक गीत जो बरसात में गाया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
एक त्योहार जो कहीं सावन की पूर्णिमा को और कहीं भादों बड़ी तीज को मनाया जाता है। इस दिन से कजली का गीत गाना बन्द कर दिया जाता है।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजली
वे हरे अंकुर जिन्हें कजली का त्योहार मनाकर स्त्रियाँ अपने संबंधियों को बाँटती हैं।
संज्ञा
[हिं. काजल]


कजलीबन
केले का बन।
संज्ञा
[सं. कदलीवन]


कजलौटा
काजल रखने की डिबिया।
संज्ञा
[हिं. काजल+औटा (प्रत्य.)]


कजा
काँजी, माँड।
संज्ञा
[सं. कांजी]


कजाक
लुटेरा, डाकू, ठग।
संज्ञा
[तु. क़ज्ज़ाक़]


कजाकी
लूटमार।
संज्ञा
[हिं. कजाक]


कुतूहल
एक आभूषण।
संज्ञा
[सं.]


कुतुहली
तमाशा देखनेवाला।
वि.
[सं. कुतूहलिन्]


कुतुहली
कौतुकी।
वि.
[सं. कुतूहलिन्]


कुत्ता
श्वान, कुकुर।
संज्ञा
[देश.]


कुत्ता
नीच मनुष्य।
संज्ञा
[देश.]


कुत्‍स
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सन
निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सन
नीच या बुरा काम।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सा
निंदा।
संज्ञा
[सं.]


कुत्सित
निंदित, नीच, बुरा।
वि.
[सं.]


कुथ
कथरी, कंथा।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
हाथी की झूल।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
रथ या पालकी का ओहार।
संज्ञा
[सं.]


कुथ
एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुदकना
कूदना-फाँदना।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कुदरत
शक्ति, सामर्थ्‍य।
संज्ञा
[सं.]


कुदरत
प्रकृति, माया।
संज्ञा
[सं.]


कुदरत
रचना, कारीगरी।
संज्ञा
[सं.]


कुदरा
कुदार
संज्ञा
[हिं. कुदाल]


कुदरसन
कुरूप, भद्दा।
(क) कामी, कृपिन, कुचील, कुदरसन, को न कृपा करि तारयौ। तातैं कहत दयाल देवमनि, काहैं सूर बिसारयौ।–१ १०१। (ख) कामी, कुटिल, कुचील कुदरसन, अपराधी, मतिहीन - १ - १११।
वि.
[सं. कुदर्शन]


कुदर्शन
जो देखने में अच्छा न लगे।
वि.
[सं.]


कुदलाना
उछलना-कूदना |
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कुदाँव
बुरा दाँव-घात, धोखा।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कुदाँव
कष्ट की स्थिति।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कुदाँव
बुरा स्थान।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा+हि. दाँव]


कदाई
दाँवघात करनेवाला, छलीकपटी।
वि.
[हिं. कुदाँव]


कुदाउँ, कुदाउ
कुघात, कुदाँव।
संज्ञा
[हिं. कुदाँव]


कुदान
बुरा या अनुचित (धन का) दान।
संज्ञा
[सं.]


कुदान
बुरे पात्र को दान।
संज्ञा
[सं.]


कुदान
कूदने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कुदान
कूदने की दूरी।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कुदाना
कूदने को प्रेरित करना।
क्रि. स.
[हिं. कूदना]


कुदाम
खोटा सिक्का या रुपया।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. दाम]


कुदाय
दाँव-घात, छल-कपट।
संज्ञा
[हिं. कुदाँव]


कुदार, कुदारी
जमीन खोदने का एक औजार।
तनु गिरि जानि अनि अवनी इहि उडि भीत रहे। गमन कान्ह छन छन तु काम ससि किरनि कुदार गहे - २८९८।
संज्ञा
[हिं. कुदाल]


कुदाल, कुदाली
जमीन खोदने या गोड़ने का औजार।
संज्ञा
[सं. कुद्दाल]


कुदिन
कष्ट-संकट के दिन।
संज्ञा
[सं.]


कुदिन
वह दिन जब कष्टदायक घटना हो।
संज्ञा
[सं.]


कुदिष्टि
पाप या वासना की दृष्टि।
संज्ञा
[सं. कुदृष्टि]


कुदृष्टि
बुरी या पाप की दृष्टि।
संज्ञा
[सं.]


कुदेव
ब्राह्मण।
संज्ञा
[सं. कु=भूमि+देव]


कुदेव
राक्षस।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा+देव]


कुद्रव
तलवार चलाने का एक ढंग।
संज्ञा
[देश.]


कुधर
पहाड़।
संज्ञा
[सं. कुध्र]


कुधर
शेषनाग।
संज्ञा
[सं. कुध्र]


कुधातु
बुरी धातु।
संज्ञा
[सं.]


कुधातु
लोहा।
संज्ञा
[सं.]


कुनकुना
थोड़ा गरम, गुनगुना।
वि.
[सं. कदुष्ण]


कुनना
खरोदना।
क्रि स.
[सं. क्षणान]


कुनना
खरोचना।
क्रि स.
[सं. क्षणान]


कुनबा
परिवार।
संज्ञा
[कुटुंब, प्रा.कुडुंब]


कुनह
द्वेष, मनमुटाव।
संज्ञा
[फा. कीन:]


कुनह
पुराना बैर।
संज्ञा
[फा. कीन:]


कुनाई
खरोदने या खुरचने पर निकलनेवाला चुरा।
संज्ञा
[हिं. कुनना]


कुनाई
खरोदने या खुरचने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कुनना]


कुनाम
बदनामी, बुराई।
वृन्दा बन हरि बैठे धाम। काहे को गथ हरयौ सबन को काहे अपनो कियो कुनाम - १८८१।
संज्ञा
[सं.]


कुनारी
दुष्ट स्त्री।
हरि, हौं महा अधम संसारी। आन समुझ मैं बरिया ब्याही, आसा कुमति कुनारी - १ - १७३।
संज्ञा
[हिं. कु=बुरा]


कुनित
बजता हुआ, झनकारता हुआ, शब्द करता हुआ।
(क) कनक-रतन-मनिरचित कटि-किंकिनि कुनित पीतपट तनियाँ - १० - १०६। (ख) किंकिनी कटि कुनित कंकन, काचुरी झनकार। हृदय चौकी चमक बैठो सुभग मोतिनहार।

(ग) सखि हरषि झूले बृषभानुनंदिनी सोभि सँग नंदलालनो। मनिमय नूपुर कुनित कंकन किंकिनी झनकारनो - २.२८०।

[सं. क्‍वणित]


कुपंगु
बुरी तरह अपाहिज।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-विहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन - १ - ३२१।
संज्ञा
[सं.]


कुपंथ
बुरा मार्ग।
संज्ञा
[सं. कुपथ]


कुपंथ
बुरी रीति-नीति।
संज्ञा
[सं. कुपथ]


कुपढ़
अनपढ़।
वि.
[सं. कु+हिं. पढ़ना]


कुपथ
बुरा मार्ग
संज्ञा
[सं.]


कुपथ
बुरी चाल।
संज्ञा
[सं.]


कुपथ
हानिकारी भोजन।
संज्ञा
[सं. कुपथ्य]


कुपथी
बुरे मार्ग पर चलनेवाला।
वि.
[सं.]


कुपथी
हानिकारी भोजन करनेवाला।
वि.
[सं. कुपथ्य, कुपथ्यी]


कुपथी
हानिकारी भोजन करने की क्रिया।
संज्ञा


कुपथी
बदपरहेजी।
जो हुती निकट मिलन की आसा सो तो दूर गयी। जथा योग ज्यों होत रोगिया कुपथी करत नयी--२९०१।
संज्ञा


कुपथ्य
वह आहार-विहार जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारी हो।
संज्ञा
[सं.]


कुपना
अप्रसन्न होना।
क्रि. अ.
[हिं. कोपना]


कुपाठ
बुरी सलाह।
संज्ञा
[सं.]


कुपात्र
अयोग्य।
वि.
[सं.]


कुपात्र
जो दान का अधिकारी न हो।
वि.
[सं.]


कुपार
समुद्र।
संज्ञा
[अकूपार]


कुपित
क्रोध में भरा हुआ।
वि.
[सं.]


कुपित
अप्रसन्न।
वि.
[सं.]


कुपीन
लँगोटी, कफनी, कच्छी।
जीरन पट कुपीन तन धारि। चल्यौ सुरसरी, सीस उघारि-१-३४१।
संज्ञा
[सं. कौपीन]


कुपुटना
काटकपट करना, छिपा कर निकाल लेना।
कि. स.
[हिं. कपटना]


कुपुत्र
बुरा पुत्र, कपूत।
संज्ञा
[सं.]


कुपेड़े
बुरा मार्ग।
छाँड़ि राजमारग यह लीला कैसे चलहिं कुपैड़े-३०६९।
संज्ञा
[सं. कु+पैड़]


कुपैड़ो
बुरा पथ या मार्ग।
राजपंथ तैं टारि बतावत उज्ज्वल कुचल कुपैड़ो -३३१३।
संज्ञा
[सं कु+पैंड़]


कुप्रबन्ध
बुरा इंतजाम।
संज्ञा
[सं. कु+प्रबंध]


कुप्रयोग
वस्तु, पद या अधिकार का अनुचित प्रयेाग।
संज्ञा
[सं. कु+प्रयोग]


कुफुर, कुफ
इसलाम से भिन्न धर्म।
(२) इसलाम धर्म के विरूद्ध बात।
संज्ञा
[अ.]


कुबंड
धनुष।
संज्ञा
[सं. कोदंड]


कुबंड
जिसके शरीर का कोई अंग खंडित हो।
वि.
[सं. कु+बंठ= खंड]


कुब
कूबड़।
संज्ञा
[हिं. कूबड़]


कुबजा
कंस की एक दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[सं. कुब्जा]


कुबड़ा
जिसकी पीठ झुक गयी हो।
वि.
[सं. कुब्ज]


कुबड़ा
झुका हुआ।
वि.


कुबड़ी
जिसकी पीठ झुक गयी हो।
वि.
(हिं. कुबढ़ा]


कुबड़ी
मोटी छड़ी जिसका सर झुका हो।
वि.
(हिं. कुबढ़ा]


कुबत
बुराई, निंदा।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बात]


कुबत
बुरी चाल।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बात]


कुबरी
कंस की कबड़ी दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[हि.कुबड़ा]


कुबरी
जिसकी पीठ झुकी हुई हो।
संज्ञा
[हि.कुबड़ा]


कुबलय
नीला कलभ।
कुबलयदल कुसमय सैय्या रचि पंथ निहारत तोर---९२६ सारा.।
संज्ञा
[सं. कुबलय]


कुचल्या
कुबलयापीड़ नामक कंस का हाथी जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं. कुबलया]


कुबाक
कड़ी या कठोर बात।
संज्ञा.
[सं.कुवाक्य]


कट
शव।
संज्ञा
[सं.]


कट
टिकटी, अरथी।
संज्ञा
[सं.]


कट
श्मशान।
संज्ञा
[सं.]


कट
समय।
संज्ञा
[सं.]


कट
एक प्रकार का काला रंग।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कट
‘काट' का संक्षिप्त रूप।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कट
बहुत
वि.


कट
उग्र।
वि.


कटक
काँटा, दुख।
संज्ञा
[सं. कंटक]


कटक
सेना, दल।
महाराज, तुम तौ हौ साध। मम कन्या तैं भयौ अपराध। या कन्या कौं प्रभु तुम बरौ। कटक–सूल किरपा करि हरौ - ९ - २। स्याम बलराम जब कंस मारयौ। सुनि जरासंध बृतांत अस सुता तें युद्ध हित कटक अपनौ हँकारयौ - १० उ. - १।
संज्ञा
[सं.]


कुबाक
गाली।
संज्ञा.
[सं.कुवाक्य]


कुबानि
बुरी आदत, कुटेव।
संज्ञा
[सं. कु+हिं.बानि]


कुबानी
बुरा व्यवसाय।
संज्ञा
[सं. कु+बानी (वाणिज्य)]


कुबानी
[सं. कु+वाणी]
बुरी या अशुभ बात।
संज्ञा


कुबानी
बुरी आदत।
संज्ञा
[सं. कु+हिं. बानि]


कुबिज
पीठ का टेढ़ापन, कूबड़।
हरि करि कृपा करी पटरानी कुबिज मिटायौ डारि-२६४०।
संज्ञा
[सं. कुब्ज]


कुबिज
कुब्जा नामक कंस की दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
संज्ञा
[सं. कुब्जा]


कुबुद्धि
जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो, दुर्बुद्धि, मूर्ख।
वि.
[सं.]


कुबुद्धि
मूर्खता।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कुबुद्धि
बुरी सलाह, कुमन्त्रणा।
संज्ञा
[सं. कु=बुरा]


कबुधि
जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो, मूर्ख।
वि.
[सं. कुबुद्धि]


कबुधि
मूर्खता।
तजो हरिबिमुखन कौ संग। जिनकैं संग कुबुधि (कुमति) उपजति है, परत भजन मैं भंग --- १-३३।
संज्ञा
[सं.]


कबुधि
बुरी सलाह, कुमन्त्रणा।
संज्ञा
[सं.]


कुबेर
एक देवता।
संज्ञा
[सं. कुबेर]


कुबेर
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कुवेला, हि.कुबेला]


कुबेरिया
अनुपयुक्त समय, बुरा काल।
आवहु कान्ह, साँझ की बेरिया। गाइनि माँझ भए हौ ठाढ़े, कहति जननि यह बड़ी कुबेरिया-१०-२४६।
संज्ञा
[सं. कुवेला, हिं. कुबेला]


कुबेला
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कुवेला]


कुबोल
बुरी या अशुभ बात।
संज्ञा
[सं.कु+हिं. बोल]


कुबोलना
बुरी या अशुभ बात कहनेवाला।
वि.
[हिं. कु+बोलना]


कुबोलिनी, कुबोली
अप्रिय या कटु बात कहनेवाली।
वि.
[हिं. कुबोल]


कुब्ज
जिसकी पीठ टेढ़ी हो, कुबड़ा।
स्वान कुब्ज, कुपंगु, कानौ, स्रवन-पुच्छ-विहीन। भग्न भाजन कंठ, कृमि सिर, कामिनी आधीन-१-३२१।
वि.
[सं.]


कुब्जा
कंस की एक बड़ी दासी जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी और प्रसिद्धि है कि जिसे उन्होंने अपना लिया था।
संज्ञा
[सं.]


कुब्जा
कैकेयी की मन्थरा नामक दासी जे कुबड़ी थी।
संज्ञा
[सं.]


कुब्बा
कूबड़, कोहान, डिल्ला।
संज्ञा
[हिं. कुबड़ा]


कुभा
पृथ्वी की छाया।
संज्ञा
[सं.]


कुभा
काबुल नदी।
संज्ञा
[सं.]


कुभाउ
बुरा या अनुचित विचार।
यह सब कलिजुग कौ परभाउ। जो नृप कैं मन भयउ कुभाउ-१-२९०।
संज्ञा
[सं. कुभाव]


कुभाव
बुरा, अनुचित या अशुभ विचार।
संज्ञा
[सं. कु+भाव]


कुमंठी, कुमंडी
पेड़ की पतली और लचीली टहनी।
संज्ञा
[सं. कमठ=बाँस]


कुमंत्र
बुरी सलाह, बुरी सलाह के अनुसार अनुचित कार्य।
तैं कैकई कुमंत्र कियौ। अपने कर करि काल हँकारयौ, हठकरि नृप-अपराध लियौ--९४८।
संज्ञा
[सं. कु+मंत्र]


कुमंत्रण
बुरी सलाह।
संज्ञा
[सं.]


कुमक
सहायता, मदद।
संज्ञा
[तु.]


कुमक
पक्षपात, तरफदारी।
संज्ञा
[तु.]


कुमकुम
गुलाल।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुम
केशर।
(क) कुमकुम कौ लेप मेटि, काजर मुख लाऊँ--- १-१६६। (ख) तहाँ स्याम घन रास उपायौ। कुमकुम जल सुख वृष्टि रमायौ

(ग) उनै उनै घन बरसत चख उर सरिता सलिल भरी। कुमकुम कज्जल कीच बहै जनु कुचयुग पारि परी---२८१४।

संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुम
कुमकमा।
संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमकुमा
लाख के बने पीले गोले जो अबीर गुलाल भरकर एक दूसरे को होली के दिनों में मारते हैं।
संज्ञा
[तु. कुमकुमा]


कुमकुमा
काँच के बने छोटे-बड़े गोले।
संज्ञा
[तु. कुमकुमा]


कुमकुमा
केशर।
(क) मलयज पंक कुमकुमा मिलिकै जल जमुना इक रंग --१८४२।

(ख) मृगमद मलय कपूर कुमकुमा सींचति आनि अली--२७३८।

संज्ञा
[सं. कुंकुम]


कुमग
कुमार्ग, बुरा मार्ग।
अदभुत राम नाम के अंक। अंधकार-अज्ञान हरन कौं रबि-ससि जुगल-प्रकास। बासर-निसि दोऊ करैं प्रकासित महा कुमग अनयास-१-९०।
संज्ञा
[सं. कुमार्ग]


कुमत
दुर्बुद्धि।
बाजि मनोरथ, गर्ब मत्त गज, असत-कुमत रथ-सूत--१ १४१।
संज्ञा
[सं. कुमति]


कुमत
दुर्बुद्ध नायिका।
मेरी कही न मानत राधै। ए अपनी मत समुझत नाहीं कुमत कहाँ पन नाधे-सा. ६५।
संज्ञा
[सं. कुमति]


कुमति
दुर्बुद्धि।
संज्ञा
[सं.]


कुमति
कुमंत्रणा।
मंत्री काम कुमति दीबे कौं, क्रोध रहत प्रतिहारी-१-१४४
संज्ञा
[सं.]


कुमति
पुरंजन नामक एक प्राचीन राजा की रानी का नाम।
तन पुर, जीव पुरंजन राव। कुमति तासु रानी कौं नाँव-४.१२।
संज्ञा
[सं.]


कुमया
निष्ठुरता, कठोरता, निर्दयता, अनुचित व्यवहार।
यह कुमया जौ तब ही करते। तौ कत इन ये जिवत आजु लौं या गोकुल के लोग उबरते–२७३८।
संज्ञा
[सं. कु+माया]


कुमाच
रेशमी वस्त्र।
संज्ञा
[अ. कुमाश]


कुमाच
कौंच नामक लता।
संज्ञा
[अ. कुमाश]


कुमार
पाँच वर्ष की आयु का बालक।
संज्ञा
[सं]


कुमार
पुत्र, बेटा।
सब तज भजिए नंद-कुमार-१-६८।
संज्ञा
[सं]


कुमार
किशोर, वह जो किशोरावस्था का हो।
बालमीकि मुनि बसत निरंतर राम मंत्र उच्चार। ताकौ फल मोंहिं आजु भयौ, मोहि दरसन दियौ कुमार।
संज्ञा
[सं]


कुमार
वह मार (कामदेव) जो शत्रु का सा कठोर व्यवहार करे।
व्रज में आजु एक कुमार। तपनरिपु चले तासु पति हित अंत हीन बिचार–सा. ३०।
संज्ञा
[सं]


कुमार
जिसका विवाह न हुआ हो, कुआँरा।
वि.


कुमारग
बुरा या अनुचित मार्ग।
संज्ञा
[सं. कुमार्ग]


कुमारि
राजकुमारी।
श्री रघुनाथ-रमनि, जग-जननी, जनक-नरेस कुमारी- ९-६५।
संज्ञा
[सं. कुमारी]


कुमारिका
बारह वर्ष तक की अवस्था की कन्या।
रिषि कह्यौ ताहि, दान रति देहि। मैं बर देहुँ, तोहिं सौ लेहि। तू कुमारिका, बहुरौ होइ। तोकौं नाम धरै नहिं कोई--१-२२९।
संज्ञा
[सं. कुमारी]


कुमारी
वह कन्या जिसकी अवस्था बारह वर्ष से अधिक न हो।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
सीता जी का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
पार्वती
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कुमारी
जिस कन्या का विवाह न हुआ हो।
वि.


कुमारी-पूजन
वह देवी-पूजा जिसमें कुमारियों का पूजन किया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुमारिल
प्रसिद्ध मीमांसक जो जाति के भट्ट थे।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्ग
बुरी राह।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्ग
पाप की रीति या चाल, अधर्म।
संज्ञा
[सं.]


कुमार्गी
बुरे मार्ग पर चलने वाला।
वि.
[हिं. कुमार्ग]


कुमार्गी
पापी, अधर्मी।
वि.
[हिं. कुमार्ग]


कुमीच
कुत्सित मृत्यु पानेवाला व्यक्ति।
संज्ञा
[सं. कु+मीच=मृत्यु]


कुमीच
अधम मृत्यु।
कहा जाने कैवाँ मुवौ, (रे) ऐसैं कुमति कुमीच। हरि सौं हेत बिसारि कै, (रे) सुख चाहत है नीच---- १-३२५।
संज्ञा
[सं. कु+मीच=मृत्यु]


कुमुख
रावण पक्ष का एक वीर जिसका नाम दुर्मुख था।
संज्ञा
[सं.]


कुमुख
सुअर।
संज्ञा
[सं.]


कुमुख
भद्दे मुँहवाला।
वि.


कुमुख
बुरे या अनुचित शब्द कहनेवाला।
वि.


कुमुद
कुईं, कोई।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
एक लाल कमल जो चंद्रमा को देखकर (या रात्रि में) खिलता है।
आँगन खेलैं नंद के नंदा। जदुकुल-कुमुद- सुखद चारु चंदा-१०-११७।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
चाँदी।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
राम-पक्ष के एक बन्दर का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
कपूर।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
विष्णु का एक दरबारी।
संज्ञा
[सं.]


कुमुद
कंजूस।
वि.


कुमुद
लोभी।
वि.


कुमुदकर
चंद्रमा की किरण।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदकला
चंद्र किरण।
संज्ञा
[सं.]


कमुदकिरण
चंद्र किरण।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदनी
कुँई, कोई।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदनी
वह स्त्री जो अनुचित बातों में आनन्द ले।
कत मो सुमन सो लपटात।…..कुमुदनी संग जाहु करके केसरी कौ गात - सा. ७१।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदबन
वृदावन के समीप एक गाँव।
(क) आजु चरावन गाइ चलौ जू, कान्ह, कुमुदबन जैऐ। सीतल कुंज कदम की छहियाँ, छाक छहूँ रस खैहै - ४४५। (ख) मधुबन और कुमुदबन सुंदर बहुलाबन अभिराम–१०८८ सारा.।
संज्ञा
[सं. कुमुद+वन]


कुमुदा
राधा की एक सखी का नाम जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी।
कहि राधा किन हार चोरायौ….। रत्ना कुमुदा मोहा करुना ललना लोभां नूप। इतनीन में कहि कौने लीन्हौ ताको नाउ बताउ - - १५८० (ख) रहे हरि रैनि कुमुदा गेह - - २१६०।
संज्ञा
[सं.]


कुमुदिनि, कुमुदिनी
कुईं, कोईं जो रात में खिलती है और दिन में मुँद जाती है।
कुमुदिनि सकुची बारिज फूले - १० - २३३।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुमुदिनीनाथ
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कुमेरु
दक्षिणी ध्रुव।
संज्ञा
[सं.]


कुमैत
स्याही लिये लाल रंग का मजबूत और तेज घोड़ा।
निकसे सबै कुँअर असवारी उच्चैःश्रवा के पोर। लीले सुरंग कुमैत स्याम तेहि पर दे सब मन रंग - - १० उ० - ६।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुमोद
कुईं।
संज्ञा
[सं. कुमुद]


कुमोद
लाल कमल।
संज्ञा
[सं. कुमुद]


कुमोदनी, कुमोदिनी
कुईं, कोई, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी]


कुम्मैत, कुम्मैद
घोड़े का स्याही लिये लाल रंग।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुम्मैत, कुम्मैद
वह घोड़ा जिसका रंग स्याही लिये लाल हो।
संज्ञा
[तु. कुमेत]


कुम्मैत, कुम्मैद
स्याही लिये लाल रंग का।
वि.


कुम्हड़ा
एक बेल जिसमें बड़े बड़े गोल फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कूष्मांड, पा. कुम्हंड, प्रा. कुमंड]


कुम्हड़ा
कुम्हड़े का फल।
संज्ञा
[सं. कूष्मांड, पा. कुम्हंड, प्रा. कुमंड]


कजाकी
छल- कपट, धोखाधड़ी।
संज्ञा
[हिं. कजाक]


कज्‍जल
अंजन, काजल !
(क) ललित कन - संजुत कपोलनि लसत कज्‍जल अंक। मनहु राजत रजनि, पूरन कलापति सकलंक - ३५३। (ख) उनै उनै घन बरषत चष उर सरिता सलिल भरी। कुमकुम कज्‍जल कीच बहै जनु कुच जुग पारि परी - २८१४१
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
सुरमा।
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
कालिख, स्याही,
संज्ञा
[सं.]


कज्‍जल
बादल।
संज्ञा
[सं.]


कज्जलित
जिस नेत्र में काजल लगा हो, आँजा हुआ।
वि.
[सं.]


कज्जलित
काला।
वि.
[सं.]


कट
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


कट
नरकट की घास या उसकी बनी चटाई।
संज्ञा
[सं.]


कट
खस की घास या उसकी बनी टट्टी।
संज्ञा
[सं.]


कुम्हड़ौरी
पीठी में कुम्हड़े के टुकड़े मिला कर बनायी हुई बरी।
संज्ञा
[हिं. कुम्हड़ा+बरी]


कुम्हलाना
मुरझाना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हलाना
सूखने लगना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हलाना
कांति या शोभा फीकी पड़ना।
क्रि. अ.
[सं. कु+म्लान]


कुम्हार
मिट्टी के बरतन बनानेवाला।
संज्ञा
[सं. कुंभकार, प्रा. कुंभार]


कुम्ही
पानी पर फैलने, फूलने और फलनेवाला एक पौधा |
लोचन सपने के भ्रम भूले।…….। निदरे रहत मोहिं नहिं मानत कहत कौन इम तूले। मोते गये कुम्ही के जर ज्यौं ऐसे वे निरमूले। सूर स्याम जल रासि परे अब रूपरंग अनुकूले।
संज्ञा
[सं. कुंभी]


कुम्हिलाइ, कुम्हिलाई
प्रफुल्लतारहित हुई, कांतिहीन हो गयी।
सुता लई उर लाइ, तनु निरखि पछिताइ, डरनि गइ कुम्हिलाइ, सूर बरनी - - पृ. - ६९८।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलाइ, कुम्हिलाई
मुरझाने लगी, सूख चली।
ससि उर चढ़त प्रेम पावक परि बंक कुसुम्भ रहे कुम्हिलाई - सा. उ. १९।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हलाए
कुम्हला गये, कांति या शोभाहीन हो गये।
(क) काहैं आजु अबार लगायी कमल बदन कुम्हिलाए - ५ ११।

(ख) चारो ओर ब्यास खगपति के झुंड झुंड बहु आए। ते कुखेत बोलत सुनि सुनि के सकल अंग कुम्हिलाए - - सा. १०२।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलात
कांतिहीन होता है, प्रफुल्लतारहित हो जाता है।
सुंदर तन सुकुमार दोउ जन, सूर-किरिन कुम्हिलात - - - ९ - ४३।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलाना
मुरझाना, उदास हेाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलानि
मरझा गये, सूखने लगे।
बाटिका बहु बिपिन जिनकै एक वै कुम्हिलानि–३३५५।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुम्हिलानौ
कुम्हला गया, मलिन हुआ, प्रफुल्लतारहित हो गया।
(क) है निरदई, दया कछु नाहीं, लागि रही गृह काम। देखि छुधा तैं मुख कुम्हिलानौ, अति कोमल तन स्याम - - ३६१। (ख) देखियत कमल बदन कुम्हिलानौ, तू निरमोही बाम - - - ३६७।
क्रि. अ.
[हिं. कुम्हिलाना]


कुम्हिलानौ
कुम्हलाया हुआ, मलिन।
प्रात:काल हैं बाँधे मोहन, तरनि चढ्यौ मधि आनि। कुम्हिलानौ मुख चंद दिखावति, देखौ धौं नँदरानि - ३६५।
वि.


कुम्हिलैहै
कांतिहीन होगा, प्रफुल्ल रहित हो जायगा।
(क) तजि वह जनकराज-भोजन-सुख, कल तृन-तलप, बिपिन-फल खाहु। ग्रीषम कमल बदन कुम्हिलैहै, तजि सर निकट दूरि कित न्हाहु- ९ - ३४।

(ख) तुम्हरौ कमल-बदन कुम्हिलैहै, रेंगत घामहिं माँझ–४११।

क्रि. अ.
[हिं. कुम्हलाना]


कुयश
बुराई, बदनामी।
संज्ञा
[सं. कु+यश]


कुयोनि
नीच योनि।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
मृग, हिरन।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
बादामी रंग का हिरन।
संज्ञा
[सं.]


कुरंग
बुरा रंग-ढङ्ग।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
स्याही लिये लाल रंग।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
स्याही लिये लाल रंग का घोड़ा।
संज्ञा
[सं.कु=बुरा+हिं. रंग]


कुरंग
बुरे रँग का।
वि.


कुरंगक
हिरन, मृग।
संज्ञा
[सं. कुरंग]


कुरंगलांछन
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कुरंगसार
कस्तूरी जो हिरन (कुरंग) की नाभि से निकलती है, मुश्क।
संज्ञा
[सं.]


कुरंगिना
हिरनी।
संज्ञा
[सं. कुरंग]


कुरंड
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[सं. कुरुविंद=मणिक]


कुरंड
एक पौधा जिसके फूल सफेद होते हैं।
संज्ञा
[सं.]


कुरकुद
मुर्गा।
संज्ञा
[हिं. कुक्कुट]


कुरकुटा
किसी चीज का छोटा टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कुट=कूटन]


कुरकुटा
रोटी का टुकड़ा।
संज्ञा
[सं. कुट=कूटन]


कुरकुर
खरी चीजों के टूटने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कुरकुरा
जिसे तोड़ने पर कुरकुर शब्द हो।
वि.
[हिं. कुरकुर]


कुरकुरी
पतली मुलायम हड्डी।
संज्ञा
[अनु.]


कुरकुरी
जिसे तोड़ने में कुरकुर शब्द हो।
वि.
[हिं. कुरकुरा]


कुरच
पानी के पास रहनेवाला कराँकुल नामक जल-पक्षी।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कुरता
एक पहनावा।
संज्ञा
[तु.]


कुरना
ढेर लगाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरना
पक्षियों का कलरव करना।
क्रि. अ.
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरबान
निछावर।
वि.
(अ.]


कुरबानी
बलिदान।
संज्ञा
[अ.]


कुरमा
परिवार।
संज्ञा
[हिं. कुनवा]


कुररा
कराँकुल नामक जल पक्षी।
संज्ञा
[सं. कुरर]


कुररा
टिटिहर।
संज्ञा
[सं. कुरर]


कुरल
कुंडली।
संज्ञा
[सं.]


कुरलना
पक्षियों का कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कलरव या कुरव]


कुरला
लाल फूलवाला एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कुरला
सफेद मदार का वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कुरला
जिसका स्वर कटु या कठोर हो।
वि.
[सं. कुरव]


कुरव
बुरा या अशुभ स्वर।
संज्ञा
[सं. कु+हि. रव]


कुरव
बुरी बोली बोलनेवाला।
वि.


कुरवना
एक जगह बहुत सी ढेर लगा देना।
क्रि. स.
[हिं. कुराना]


कुरवाना
खोदना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरवाना
नोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरवारति
खोदती है, खरोचती है।
राधा हरि की गरब गहीली।......। धरनी। नख चरनन कुरवारति सौतिन भाग सुहाग डहीली - - १३०९।
क्रि. स.
[हिं. कुरवारना]


कुरवारही
खोलती है, करोदती है।
अपने कर नखनि अलक कुरवारही कबहुँ बाँधे अतिहिं लगत लोभा - १५६३।
क्रि. स.
[हिं. कुरवारना]


कुरविंद
दर्पण, शीशा।
संज्ञा
[सं. कुरुविंद]


कुरा
कटसरैया का पौधा।
संज्ञा
[सं. कुरव]


कुराई
ऊँचा-नीचा गड्ढा और तंग रास्ता।
संज्ञा
[हिं. कुराह]


कुरान
इस्लामी धर्मग्रंथ।
संज्ञा
[अ.]


कुराय
ऊँचा नीचा और तंग रास्ता।
संज्ञा
[हिं.+कुराह]


कुराय
गड्ढा।
संज्ञा
[हिं.+कुराह]


कुराह
ऊँच-नीचा रास्ता।
संज्ञा
[सं. कु+ फ़ा. राह]


कुराह
बुरी रीति नीति या चाल।
संज्ञा
[सं. कु+ फ़ा. राह]


कुराहर
शोर-गुल।
संज्ञा
[सं. कोलाहल]


कुराही
कुमार्ग पर चलनेवाला।
वि.
[हिं. कुराह+ई (प्रत्य.)]


कुरिया
झोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. कुटिया]


कुरिया
महल।
संज्ञा
[हिं. कुटिया]


कुरियार, कुरियाल
चिड़ियों का पंख खुजलाकर सुखी होना।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुरिहार
शोरगुल।
संज्ञा
[हिं. कोलाहल]


कुरी
अरहर की फलियाँ।
संज्ञा
[सं.]


कुरी
वंश, खानदान।
संज्ञा
[सं. कुल]


कुरी
भाग, टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. कूरा=ढेर]


कुरीति
बुरी रीति, अनीति, कुचाल।
अब राधे नाहिंन व्रजनीति। नृप भयौ कान्ह काम अधिकारी उपजी है ज्यौं कठिन कुरीति - - - २२२३।
संज्ञा
[सं.]


कुरु
एक चंद्रवंशी राजा जिनके वंश में पांडु और धृतराष्ट्र हुए थे।
संज्ञा
[सं.]


कुरु
कुरु के वंश में जन्मा व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुरुई
बाँस या मूँज की छोटी डलिया।
संज्ञा
[सं. कुडव]


कुरुक्षेत्र
एक प्राचीन तीर्थ जो सरस्वती नदी के किनारे था। यह अंबाले और दिल्ली के बीच में स्थित है। महाभारत के प्रसिद्ध युद्ध के अतिरिक्त कई बड़े युद्ध यहाँ हुए थे। ग्रहण और कुम्भ के अवसर पर यहाँ बड़ा मेला लगता है।
संज्ञा
[सं.]


कुरुख
जो मुँह बनाये हो, कुपित, क्रुद्ध।
थकित सुमन दृग अरुन उनींदे कुरुख कटाक्ष, करत मुख थोरी। खंजन मृग अकुलात घात उर स्याम ब्याध बाँधे रति डोरी।
वि.
[सं. कु+ फ़ा. रुख]


कुरुखि
कटाक्ष, तिरछी चितवन।
संज्ञा
[हिं. कुरुख]


कुरुखेत
कुरुक्षेत्र।
या रथ बैठि बंधु की गर्जहिं पुरवै को कुरुखेत–१ - २९।
संज्ञा
[सं. कुरुक्षेत्र]


कुरुच्छेत्र
अम्बाले और दिल्ली के बीच में स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ जहाँ महाभारत का युद्ध हुआ था।
सज्ञा
[सं. कुरुक्षेत्र]


कुरुपति
दुर्योधन।
संज्ञा
[सं.]


कुरुम
कछुआ।
संज्ञा
[सं. कूर्म्‍म]


कुरुरना
बोलना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[हिं. कलरवना]


कुरुराज
दुर्योधन।
संज्ञा
[सं.]


कुरुविंद
दर्पण, शीशा।
संज्ञा
[सं.]


कुरूप
असुंदर, बेडौल, बेढंगा, बदसूरत।
वि.
[सं.]


कुरूपता
असुंदरता, बदसूरती।
संज्ञा
[सं.]


कुरेदना
खुरचना, खरोचना।
क्रि. स.
[सं. कर्तन]


कुरेर
आमोद-प्रमोद, मन बहलाव।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुरेलना
खुरचना या खोदना।
क्रि. स.
[हिं. कुरेदना]


कुरैया
एक पेड़ जिसके फूल सुंदर होते हैं।
संज्ञा
[सं. कुठज]


कुरौना
ढेर लगाना।
क्रि. स.
[हिं. कुराना]


कुलङ्ग
पानी के किनारे रहनेवाली एक चिड़िया जिसका सिर लाल होता है और शरीर मटमैला।
संज्ञा
[फा.]


कुलंग, कुलंजन
एक पौधा।
संज्ञा
[सं.]


कुल
वंश।
(क) राम भक्त बत्‍सल निज बानौं। जाति, गोत, कुल, नाम गनत नहिं, रंक होइ कै रानौं - १.११।

(ख) भुव पर नहिं राखौ उनकौ कुल - १०४३।

संज्ञा
[सं.]


कुल
जाति।
संज्ञा
[सं.]


कुल
समूह।
जरासंध बन्दी करैं नृप-कुल जस गावै - १ - ४।
संज्ञा
[सं.]


कटक
राजशिविर।
संज्ञा
[सं.]


कटक
चूड़ा, कंकण, कड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कटक
चक्र। समूह।
संज्ञा
[सं.]


कटकई
सेना, दल, लश्कर।
संज्ञा
[सं. कटक+ई (प्रत्य.)]


कटकट
दाँत बजने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कटकट
लड़ाई, झगड़ा।
संज्ञा
[अनु.]


कटकटान, कटकटाना
क्रोध से दाँत पीसना।
क्रि. अ.
[हिं. कटकट]


कटकाई
सेना, दल, लश्कर।
संज्ञा
[हिं. कटक+आई (प्रत्य.)]


कटजीरा
काला जीरा।
कूट कायफर सोठि चिरैता कटजीरा कहुँ देखत। आल मजीठ लाख सेंदुर कहुँ ऐसेहिं बुधि अवरेखत - ११०८।
संज्ञा
[सं. कणजीरक]


कटत
कटते हैं, खंड खंड होते हैं।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


कुल
समस्त, सब।
वि.
[अ.]


कुलकंटक
परिवारियों को कष्ट देने वाला।
संज्ञा
[सं.]


कुलकना
हर्ष से उछलने लगना।
क्रि. अ.
[हिं. किलकना]


कुलकलंक
वह व्यक्ति जो अपने कुल में दाग लगाये।
संज्ञा
[सं.]


कुल-कानि
वंश की मर्यादा, कुल की लज्जा।
जन की और कौन पति राखै। जाति-पाँति कुल-कानि न मानत, बेद पुराननि साखै - - - १ - १५।
संज्ञा
[सं. कुल+हि. कानि=मर्यादा]


कुलकुल
पानी बहने का शब्द।
संज्ञा
[अनु.]


कुलकुलाना
कुलकुल शब्द करना।
क्रि. अ.
[अनु.]


कुलकुलाना
ऑंतें कुलकुलाना- भूख लगना।
मु.


कुलक्षण
बुरा चिन्ह या लक्षण।
संज्ञा
[सं.]


कुलक्षण
बुरा आचरण या व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कुलक्षणी
बुरे चिन्हवाली।
वि.
[सं.]


कुलक्षणी
बुरे आचरणवाली।
वि.
[सं.]


कुलचन्द
वंश को चन्द्रमा के समान स्वकीर्ति से प्रकाशित करनेवाले।
सोई दसरथ कुलचन्द अमित बल, आए सारँगपानी - ९ - ११५।
संज्ञा
[सं.]


कुलच्छन
बुरा चिन्ह।
संज्ञा
[सं. कुलक्षण]


कुलच्छन
बुरा आचरण।
संज्ञा
[सं. कुलक्षण]


कुलच्छनि, कुलच्छनी
बुरे लक्षणवाली।
कै हौं कुटिल, कुचील, कुलच्छनि, तजी कंत तबहीं - ९ - ९१।
संज्ञा
[सं. कुलक्षणी]


कुलच्छनि, कुलच्छनी
बुरे आचरणवाली।
संज्ञा
[सं. कुलक्षणी]


कुलज
कुल में उत्‍पन्न, वंश का।
वि.
[सं. कुल+ज=उत्पन्न]


कुलज
अच्छे कुल में उत्पन्न
वि.
[सं. कुल+ज=उत्पन्न]


कुलज
कुल को लजानेवाला।
वि.
[सं. कुल+हि. लाज=लजानेवाला]


कुलज
निर्लज्ज।
निर्धिन, नीच, कुलज, दुर्बुद्धी भोंदू, नित कौ रोऊ। तृष्‍ना हाथ पसारे निसि दिन, पेट भरे पर सोऊ - - - १ - १८६।
वि.
[सं. कु+लज्जा]


कुलजा, कुलजात
कुल या वंश में उत्पन्न।
वि.
[सं.]


कुलजा, कुलजात
अच्छे कुल में जन्मा।
वि.
[सं.]


कुलट
अनेक स्त्रियों से गुप्त प्रेम-सम्बन्ध स्थापित करनेवाला, व्यभिचारी।
तब चित चोर भोर व्रजबासिनि प्रेम नेक व्रत टारे। लै सरबस नहिं मिले सूर-प्रभु कहिये कुलट बिचारे।
वि.
[सं.]


कुलटा
अनेक पुरुषों से गुप्त प्रेम सम्बन्ध रखनेवाली, व्यभिचारिणी।
वि.
[सं.]


कुलटी
अनेक पुरुषों से गुप्त प्रेम करनेवाली।
(क) अहो सखी तुम ऐसी हो। अब लौं कुलटी करि जानति मोकौं री सब तैसी हो १५३६। (ख) उत होरी पढ़त ग्वार इत गारी गावति ए नंद नाहिं जाये तुम महरि गुनन भारी। कुलटी उनतै को है नंदादिक मन मोहै बाबा बृषभानु की वै सूर सुनहु प्यारी - २४२६।
वि.
[सं. कुलटा]


कुलतारक, कुलतारन
वंश को अपने आचरण से पवित्र करने या तारनेवाला।
वि.
[सं. कुल+ हिं. तारक या तारन]


कुलदेव
परंपरा से जिस देवता की पूजा कुल में सभी शुभ अवसरों पर की जाती हो, कुलदेवता। विश्वास है कि सभी संकटों से कुलपरिवार की ये रक्षा करते हैं।
साँझहिं तैं अतिहीं बिरुझानौ, चंदहि देखि करी अति आरति। बार-बार कुलदेव मनावति, दोउ कर जोरि सिरहिं लै धारति - - १० - २००।
संज्ञा
[सं.]


कुलदेवता
कुल का इष्टदेव, कुल देव।
संज्ञा
[सं.]


कुलदेवी
वह देवी जिसकी पूजा कुल में बहुत समय से होती आयी हो।
संज्ञा
[सं.]


कुलधर, कुलधारक
बेटा, पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कुलधर्म
परिवार की रीति या परंपरा।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
घर का बड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
अध्यापक जो शिक्षा देने के साथ साथ विद्यार्थियों का भरण-पोषण भी करे।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
महंत।
संज्ञा
[सं.]


कुलपति
विश्वविद्यालय का प्रधान।
संज्ञा
[सं.]


कुलपूज्य
जिस (व्यक्ति) का मान कुल के स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े, सभी करते हों।
वि.
[सं.]


कुलफ
ताला।
लोचन लालची भये री। सारँगरिपु के हरत न रोके हरि सरूप गिधए री। काजर कुलुफ मेलि में राखे पलक कपाट दये री - पृ. ३३५ और सा. उ. ७।
संज्ञा
[अ. कुलुफ]


कुलफा
एक साग।
संज्ञा
[फा. खुर्फः]


कुलफा
जमी हुई बड़ी कुलफी।
संज्ञा
[फा. खुर्फः]


कुलफी
पेंच।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलफी
टीन का पात्र जिसमें दूध की बरफ जमाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलफी
जमी हुई दूध की बरफ।
संज्ञा
[हिं. कुलुफ]


कुलबधू
कुलीन वंश की वधू।
संज्ञा
[सं. कुलवधू]


कुलबधू
मान-मर्यादा से रहनेवाली स्त्री।
संज्ञा
[सं. कुलवधू]


कुलबुलाना
धीरे-धीरे हिलना-डुलना।
क्रि. अ.
[अनु. कुलबुल]


कुलबुलाना
चंचल होना।
क्रि. अ.
[अनु. कुलबुल]


कुलबोरन
अपने आचरण से वंश की मान-मर्यादा मिटाने वाला।
वि.
[हिं.कुल बोरन=डुबाना]


कुलबोरन
अयोग्य।
वि.
[हिं.कुल बोरन=डुबाना]


कुललज्या
वंश की मान-मर्यादा, कुल की लाज।
लोचन लालची भये री।……..। ह्वै आधीन पंच तै न्यारे कुललज्या न नये री - - पृ० ३३५ और सा. उ. ७।
संज्ञा
[सं. कुल+लज्जा]


कुलवंत
अच्छे वंश का, कुलीन।
वि.
[सं.]


कुलवधू
अच्छे कुल की वधू।
संज्ञा
[सं.]


कुलवधू
मान-मर्यादा से रहनेवाली वधू।
संज्ञा
[सं.]


कुलवान्
अच्छे कुल का।
वि.
[सं. कुल+हिं. वान्]


कुलसै
वज्र को भी।
हमारे हिरदै कुलसै (कुलिसै) जीत्यौ - २८८४।
संज्ञा
[सं. कुलिश]


कुलह, कुलहा
टोंपी।
संज्ञा
[फ़ा. कुलाह]


कुलह, कुलहा
शिकारी चिड़ियों की आँख पर पहनाया जाने वाला टोपी की तरह का ढक्कन।
संज्ञा
[फ़ा. कुलाह]


कुलहि, कुलहिया, कुलही
बच्चों की टोपी, कनटोप।
(क) स्याम बरन पर पीत झगुलिया, सीस कुलहिया चौतनियाँ - - - १०.१३२।

(ख) कुलहि लसत सिर स्याम सुभग अति बहु बिधि सुरंग बनाई–१० - १४८ |

संज्ञा
[फ़ा. कुलाह, हिं. कुलही]


कुलांगार
वंश का नाश करनेवाला।
वि.
[सं.]


कुलाँच, कुलाँट
चौकड़ी, छलाँग।
संज्ञा
[तु. कुलाच]


कुलाँचना
चौकड़ी भरना, छलाँग मारना।
क्रि. अ.
[तु. कुलाच]


कुलाचार
वह रीति नीति जो किसी वंश में प्रचलित रही हो।
संज्ञा
[सं. कुल+आचार]


कुलाधि
पाप।
संज्ञा
[सं. कुल=समूह+आधि=रोग, दोष]


कुलाबा
लोहे का छल्ला जो दरवाजे को चौखटों से जकड़े रहता है।
संज्ञा
[अ.]


कुलाल
जंगली मुर्गा।
जैसैं स्वान कुलाल के पाछैं लगि धावै - २ - ९।
संज्ञा
[सं.]


कुलाल
कुम्हार।
ऊधो भली भई अब आये। विधि कुलाल कीन्‍हें काचे घट ते तुम आनि पकाये -। ’६१।
संज्ञा
[सं.]


कुलाह
ऊँची टोपी।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुलाहर, कुलाहल
चिल्लाहट,शोर, हल्ला।
अस्व देखि कहयौ, धावहु-धावहु। भागि जाहि मति, बिलँब न लावहु। कपिल कुलाहल सुनि अकुलायौ। कोपि-दृष्टि करि तिन्हैं जरायौ - ९ - ९। (ख) जा जल सुद्ध निरखि सन्मुख ह्वै, सुन्दरि सरसिज-नैनी। सूर परस्पर करत कुलाहल, गर सृग पहिरावैनी - ९ - ११।

(ग) आपुस में सब करत कुलाहर धौरी धूमरि धेनु बुलाये - ४७। (घ) हलधर संग छाक भरि काँवर करत कुलाहल सोर - ४७१, सारा.।

संज्ञा
[सं. कोलाहल]


कुलिंग
चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कुलिक
कारीगर, शिल्पकार।
संज्ञा
[सं.]


कुलिक
कुलीन वंश में उत्पन्न व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
हीरा।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
वज्र।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
ईश्वरावतारों (राम, कृष्ण आदि) के चरणों का वज्र-आकार का एक चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


कुलिश
कुठार।
संज्ञा
[सं.]


कुलिस
वज्र।
हृदय कठोर कुलिस तैं मेरौ–७४।
संज्ञा
[सं. कुलिश]


कुलीन
उत्तम कुल में उत्पन्न, अच्छे वंश का।
वि.
[सं.]


कुलीन
पवित्र, शुद्ध, निर्मल।
वि.
[सं.]


कुलुफ
ताला।
नैना न रहैं री मेरे हटकै। कछु पढ़ि दिये सखी यहि ढोटा घूँघर वारे लटकै। कज्‍जल कुलुफ मेलि मंदिर में पलक सँदूक पट अटकै।
संज्ञा
[अ. कुफल]


कुलेल
खेल, क्रीड़ा, आनंद।
संज्ञा
[सं. कल्लोल]


कुलेलना
खेलना, आनन्द मनाना।
क्रि. अ.
[हिं. कुलेल]


कुल्या
नहर।
संज्ञा
[सं.]


कुल्या
छोटी नदी।
संज्ञा
[सं.]


कुल्या
कुलीन स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कुल्ल
सब, समस्त, पूरा, तमाम।
मुलजिम जोरे ध्यान कुल्ल कौ, हरिसौं तहँ लै राखै। निर्भय रूपै लोभ छाँड़िकै, सोई बारिज राखै–१ - १४।
वि.
[अ. कुल]


कुल्ला
बल, पट्टा।
संज्ञा
[फा. काकुल। सं. कुंतल]


कुल्ली
बाल,पट्टा, जुल्फ।
संज्ञा
[फ़ा. काकुल। (सं. कुंतल)]


कुल्हड़
मिट्टी का पुरवा, चुक्कड़।
संज्ञा
[सं. कुल्हर]


कुल्‍हरा, कुल्हाड़ा
लकड़ी कटने या चीरने का एक औजार।
संज्ञा
[सं. कुठार]


कुल्हरी, कुल्हाड़ी
छोटा कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हड़]


कुल्‍हारा, कुल्‍हारौ
पेड़ काटने या लकड़ी चीरने का एक औजार, कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हाड़ा]


कुल्‍हारा, कुल्‍हारी
पाउँ कुल्हारौ मारौ- अपने आप अपनी हानि करना। उ.- इद्री स्वाद-बिवस निसि बासर, आपु अपुननै हारौ। जल औंड़े मैं चहुँ दिनि-पैरयौ, पाउँ कुल्हारौ मारौ - १ - १५२।
मु.


कुव
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुव
फूल।
संज्ञा
[सं.]


कुवज
कमल से उत्पन्न, ब्रह्मा।
संज्ञा
[सं. कुव+ज]


कुवलय
नीली कोईं।
संज्ञा
[सं.]


कुवलय
नील कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुवलयापीड़, कुवलिया
कंस का एक हाथी जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था |
कुवलिया मल्ल मुष्टिक चानूर से कियौ मैं कर्म यह अति उदासा - २५५१।
संज्ञा
[सं.]


कुवाँ
कुआँ।
संज्ञा
[सं. कूप, हिं. कुआँ]


कुवाँर
आश्विन मास।
संज्ञा
[हिं. कुवार)


कटत
नष्ट या दूर होते हैं, छीजते हैं।
(क) जे पद - पदुम - परस - जल - पावन - सुरसरिदरस कटत अघ भारे–१ - ९४। (ख) कमल नैन की लीला गावत कटत अनेक बिकार - २ - २।
क्रि. अ.
[हिं. कटना]


कटताल
करताल नामक काठ का बाजा।
संज्ञा
[हिं. काठ+ताल]


कटनंस
काट कर नष्ट करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. काटना+नाश]


कटना
टुकड़े-टुकड़े होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(किसी नोक आदि से) कट फट जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(किसी अंश या भाग का) अलग हो जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
मरना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
कतरना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
नष्ट या दूर होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
समय बीतना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कुवाच्य
जो बात कहने योग्य न हो, गंदी।
वि.
[सं.]


कुवाच्य
गाली, दुर्बचन।
संज्ञा


कुवाट
किवाड़, दरवाजा।
संज्ञा
[सं. कपट]


कुवाण
धनुष।
संज्ञा
[सं. कृपाण]


कुवार
आश्विन का महीना।
संज्ञा
[सं. अश्विनी=कुमर]


कुविचार
बुरा विचार।
संज्ञा
[सं.]


कुवेर
एक देवता जो विश्रवस् ऋषि के पुत्र और रावण के सौतेले भाई थे। इलविला इनकी माता थी। विश्वकर्मा से कहकर सोने की लंका इन्होंने ही बनवायी थी। जब शिव के वर से शक्तिशाली होकर रावण ने इनसे लंका छीन ली तो इन्होंने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने इन्हें इंद्र का भंडारी और समस्त संसार के धन का स्वामी बना दिया। इनके एक आँख, तीन पैर और आठ दाँत हैं। इनका पूजन नहीं होता।
संज्ञा
[सं.]


कुवेराचल
कैलास पर्वत।
संज्ञा
[सं.कुवेर+अचल]


कुवेष
बुरी वेश-भूषा, मैले-कुचैले वस्त्र।
संज्ञा
[सं. कु+वेश]


कुवेष
असगुन।
बातैं बूझतियौं बहभवति। सुनहु स्याम वै सखी सयानी पावस रितु राधहिं न सुनावति।...। कबहुँक प्रगट पपीहा बोलत कहि कुवेष करतारि बजावत - ३४८५।
संज्ञा
[सं. कु+वेश]


कुव्यवहार
बुरा या अनुचित व्यवहार।
संज्ञा
[सं.]


कुश
एक घास जो पवित्र मानी जाती है और जिसका प्रयोग प्रायः कर्मकांड तथा तर्पण में होता है, दाभ, डाभ।
संज्ञा
[सं.]


कुश
जल।
संज्ञा
[सं.]


कुश
रामचन्द्र का एक पुत्र।
संज्ञा
[सं.]


कुश
सात द्वीपों में से एक जो चारो ओर घृत-समुद्र से घिरा है।
सातों द्वीप कहे सुझ मुनि ने सोइ कहत अब सूर। जंबु, प्लक्ष, कौंच, शाक, शाल्मलि, केश, पुष्कर भरपूर - ३४ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कुशध्वज
जनक के छोटे भाई का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुशमुद्रिका
कुश का बना हुआ छल्ला जो कर्मकांड आदि के अवसर पर पहना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
चतुर, प्रवीण।
वि.
[सं.]


कुशल
भला, अच्छा, श्रेष्ठ।
वि.
[सं.]


कुशल
पुण्यात्मा।
वि.
[सं.]


कुशल
राजी-खुशी, क्षेम, मंगल।
न्हात बार न खसै इनको कुशल पहुँचैं धाम - २५६५।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
वह जिनके हाथ में कुश हो।
संज्ञा
[सं.]


कुशल
शिव का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुशलक्षेम
राजी खुशी।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
चतुराई।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
योग्यता।
संज्ञा
[सं.]


कुशलता
कल्याण, क्षेम।
संज्ञा
[हिं. कुशल]


कुशलाई
कल्याण, कुशल, क्षेम।
मेरौ कह्यौ सत्य के जानौ। जौ चाहौ व्रज की कुशलाई तौ गोबर्धन मानौ - - - ९१५।
संज्ञा
[हिं. कुशल]


कुशलात, कुशलता
कुशलक्षेम-समाचार, मंगल-सूचना।
(क) मधुकर ल्याये जोग सँदेसो। भली स्याम कुशलात (कुसलात) सुनाई सुनतहिं भयो अँदेसो - ३२६३। (ख) दुहूँ की कुशलात कहियो तुमहिं भूलत नाहिं - २९ २८।

(ग) ऊधो जननी मेरी को मिलिहौ अरु कुशलात कहोगे–२९३२।

संज्ञा
[सं. कुशलता]


कुशलातैं
क्षेम या कुशल सूचक समाचार।
कहि कहि उधौ हरि कुशलातैं।...। कहि कुशलातैं साँची बातैं आवन कह्यौ हरि नाथै - ३४४१।
संज्ञा
[हिं. कुशलता]


कुशली
सकुशल
वि.
[सं. कुशलिन्]


कुशली
स्वस्थ।
वि.
[सं. कुशलिन्]


कुशवन
एक वन जो गोकुल के पास है।
संज्ञा
[सं.]


कुशा
कुश।
संज्ञा
[सं.]


कुशाग्र
कुश की नोक-सा तेज, तीव्र।
वि.
[सं.]


कुशासन
कुश का बना आसन या चटाई।
संज्ञा
[सं. कुश+आसन]


कुशिक
एक राजा जिनके पुत्र गाधि थे और पौत्र विश्वामित्र।
संज्ञा
[सं.]


कुशीलव
कवि।
संज्ञा
[सं.]


कुशीलव
नट।
संज्ञा
[सं.]


कुशेश, कुशेशय
कमल।
संज्ञा
[सं.]


कुश्ता
धातुओं को फूँककर बनाया हुआ चूर्ण।
संज्ञा
[फ़ा. कुश्तः]


कुश्ती
लड़ाई, मल्लयुद्ध।
संज्ञा
[फ़ा.]


कुष्ट, कुष्ठ
कोढ़ नाम का रोग।
संज्ञा
[सं.]


कुष्मांड
कुम्हड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कुसंग
बुरे लोगों का साथ।
संज्ञा
[सं. कु+संग]


कुसंगति
बुरे लोगों का साथ।
संज्ञा
[सं. कु=संगति]


कुसंस्‍कार
बुरी वासना, वातावरण का बुरा प्रभाव।
संज्ञा
[सं.]


कुस
एक प्रकार की घास जिसका प्रयोग यज्ञों में होता था और जो अब भी पवित्र समझी जाती है।
दुरवासा दुरजोधन पठयौ पांडव अहित बिचारी। साक पत्र लै सबै अघाए, न्हात भजे कुस डारी १ - १२२।
संज्ञा
[सं. कुश]


कुसआसन
कुश की बनी चटाई।
संज्ञा
[सं. कुश=आसन=कुशासन]


कुसगुन
असगुन, कुलक्षण, बुरा सगुन।
फटवत स्रवन स्वान द्वारै पर, गररी करत लराई। माथे पर ह्वै काग उड़ान्यौ, कुसगुन बहुतक पाई - ५४१।
संज्ञा
[सं. कु= बुरा (उप.)=हिं. सगुन]


कुसमय
बुरा या अनुपयुक्त समय।
संज्ञा
[सं.]


कुसमय
बुरे या दुख के दिन।
संज्ञा
[सं.]


कुसमित
फूलों से युक्त।
मधुर मल्लिका कुसमित कुंजन दंपति लगत सोहाये - १००३ सारा.।
वि.
[सं. कुसुमित]


कुसरात
कुशलता।
संज्ञा
[हिं. कुशलात]


कुसल
क्षेम, मंगल, राजी-खुशी।
(क) सुनि राजा दुर्जोधना, हम तुम पैं आए। पांडव सुत जीवत मिले, दै कुसल पठाए। छेम-कुसल अरु दीनता दंडवत सुनाई १ - २३८। (ख) प्रभु जागे, अर्जुन तन चितयौ, कब आए तुम, कुसल खरी - १ - २६८।
संज्ञा
[सं. कुशल]


कुसल
चतुर।
परम कुसल कोबिद लीला नट मुसुकनि मन हरि लेत - १० - १५४।
संज्ञा
[सं. कुशल]


कुसलई
चतुरता।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. ई (प्रत्य.)]


कुसलाई
चतुरता, कुशलता।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. आई (प्रत्य.)]


कुसलाई
कुशल-क्षेम, खैरियत।
संज्ञा
[सं. कुशल+हिं. आई (प्रत्य.)]


कुसलात
कुशल, क्षेम, आनन्द-मंगल।
(क) सबै दिन एकै से नहिं जात। सुमिरन-भजन कियौ करि हरि कौ, जब लौं तन कुसलात - २ - २२। (ख) कहौ कपि, जनकसुता-कुसलात - ९ - १०४।

(ग) सूर सुनत सुग्रीव चले उठि, चरन गहे, पूछी कुसलात - ९ - ६६। (घ) सूरज आलस जथासंख कर बूझी सखी कुसलात - सा.५२।

संज्ञा
[सं. कुशल, हिं. कुशलता]


कुसली
गोझा या पिराक नामक पकवान।
संज्ञा
[हिं. कसैली]


कुसली
आम की गुठली।
संज्ञा
[हिं. कसैली]


कुसाइत
बुरा समय।
संज्ञा
[सं. कु. + अ. साअत]


कुसाइत
बुरा मुहूर्त।
संज्ञा
[सं. कु. + अ. साअत]


कुसाखी
बुरा पेड़।
संज्ञा
[सं. कु + साखिन=वृक्ष]


कुसासन
कुश की बनी चटाई।
संज्ञा
[सं. कुशासन=कुश+आसन]


कुसासन
बुरा राजप्रबन्ध।
संज्ञा
[सं. कु+ शासन]


कुसी
हल की फाल।
संज्ञा
[सं. कुशी]


कुसुंब
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ या कुसुंबक]


कुसंभ
कुसुम।
संज्ञा
[सं.]


कुसंभ
केसर, कुमकुम।
संज्ञा
[सं.]


कुसंभ
लाल रंग।
ऐसो माई एक कोद को हेतु। जैसे बसन कुसुम रँग मिलिकै नेक चटक पुनि स्वेत–३३०९।
संज्ञा
[सं.]


कसुंभा
कुसुंभ का लाल रंग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ]


कुसुंभी
कुसुंभ के रंग का, लाल।
(क) दीजै कान्ह काँधे हूँ को वंमर। नान्ही नान्ही बूँदन बरषन लागौ भीजत कुसुंभी अंबर - १५६६। (ख) स्याम अङ्ग कुसुंभी सारी फल गुंजा का भाँति। इत नागरी नीलांबर पहिरे जनु दामिनि घन काँति - पृ. ३१३।
वि.
[सं. कुसुंभ]


कुसुंम
कुमकुम, केसर, चंपक।
ससि उर चढ़त प्रेम पावक परि बंक कुसुंम रहे कुम्हिलाई - सा. उ. १९।
संज्ञा
[सं. कुसुम्भ, कुसुंबक]


कुसुम
फूल, पुष्प, सुमन।
सुनि सीता सपने की बात।... कुसुम विमान बैठी बैदेही देखी राघव-पास - ९ - ८३।
संज्ञा
[सं.]


कुसुम
एक वृक्ष।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुम
लाल रंग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुम
एक राग।
संज्ञा
[सं. कुसुंभ, कुसुंबक]


कुसुमनि
फूलों से।
सब कुसुमनि मिलि रस करैं, (पै) कमल बँधावै आप। सुनि परिमिति पिय प्रेम की, (रे) चातक चितवन पारि–१ - ३२५।
संज्ञा
[सं. कुसुम+हिं. नि (प्रत्य.)]


कुसुमपुर
पटना का पुराना नाम।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमरेणु
पराग।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमवाण
कामदेव।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमशर, कुसुमसर
कामदेव।
कुसुमसर रिपुनन्द बाहन हरषि हरषित गाउ - २७१५।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमांजलि, कुसुमांजली
फूलों से भरी हुई अंजली।
कुसुमांजलि बरषत सुर ऊपर, सूरदास बलि जाई - ६२६।
संज्ञा
[सं. कुसुम+अंजलि]


कुसुमाकर
वसंत।
ठौर ठौर झिल्ली ध्वनि सुनियत मधुर मेघ गुंजार। मानो मन्मथ मिलि कुसुमाकर फूले करत बिहार - १०४१ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमाकर
वाटिका।
संज्ञा
[सं.]


कुसुमागम
वसंत।
संज्ञा
[कुसुम+आगम]


कुसुमायुध
कामदेव।
संज्ञा
[सं. कुसुम+आयुध]


कुसुमावलि, कुसुमावली
फूलों का गुच्छा।
संज्ञा
[सं.कुसुम+अवलि]


कुसुमासव
पुष्परस, पुष्पमधु।
संज्ञा
[सं. कुसुम+आसव=मदिरा]


कुसुमित
फूलों से युक्त, पुष्पित।
मधुर मल्लिका कुसुमित कुंजन दंपति लगत सोहये - १००३ सारा.।
वि.
[सं.]


कुसुमित
फूलों की कोमलता से युक्त, फूलों के समान सुखदायी सरल और सीधा-सादा।
कुसुमित धर्म कर्म कौ मारग जउ कोउ करत बनाई। तदपि बिमुख पाँती सो गनियत, भक्ति हृदय नहिं आई–१ - ९३।
वि.
[सं.]


कुसूत
बुरा सूत।
संज्ञा
[सं. कु+सूत्र, प्रा. सुत्त]


कुसूत
बुरा प्रबन्ध।
संज्ञा
[सं. कु+सूत्र, प्रा. सुत्त]


कुसेस, कुसेसय, कुसेसै
कमल।
राजिव दल इंदीवर सतदल कमल कुसेसय (कुसेसै) जाति। निसि मुदित प्रातहिं ए बिगसत ए बिगसत दिन राति - १३४९।
संज्ञा
[सं. कुशेशय]


कुरटी
कोढ़ी।
संज्ञा
[सं. कुष्ट]


कुस्तुभ
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कुहँकुहँ
कुमकुम, केसर।
संज्ञा
[हिं. कुहकुह]


कुहक
धोखा, माया।
संज्ञा
[सं.]


कंचन
सुन्दर।
वि.


कंचनराज
एक प्राचीन नगर जो विदर्भ देश में था। यहाँ भीष्मक राज करते थे, जिनकी पुत्री रुक्मिणी को श्रीकृष्ण हर ले गये थे।
कंचनराज को काज सँवारयौ भूपन को यह काज १० उ.-१०८।
संज्ञा
[सं.]


कंचनी
वेश्या।
संज्ञा
[सं. कंचन]


कंचनी
अप्सरा।
संज्ञा
[सं. कंचन]


कंचुक
चपकन, अचकन।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
वस्त्र।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
एक प्रकार का कवच जो घुटने तक होता था।
संज्ञा
[सं]


कंचुक
चोली, अँगिया।
संज्ञा


कंचुक
केचुल।
संज्ञा


कंचुकि, कंचुकी
अँगिया, चोली।
(क) कसि कंचुकि, तिलक लिलार, सोभित हार हियै-१०-१४।(ख) कोउ केसरि कौ तिलक बनावति, कोउ पहिरति कंचुकी सरीर - १०-३५। (ग) कबहिं गुपाल कंचुकि फारी, कब भये ऐसे जोग–७७४। (घ) कनक-कलस कुच प्रकट देखियत आनन्द कंचुकि भूली - २५६१।
संज्ञा
[सं. कंचुकी]


कटना
समाप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
चुपचाप खिसक जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
लज्जित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
ईर्ष्‍या से जलना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
मोहित होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
बेकार खर्च होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
बिक जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
प्राप्त होना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटना
(सूची से नाम) हटा दिया जाना।
क्रि. अ.
[सं. कर्तन, प्रा. कट्टन]


कटनास
नीलकंठ पक्षी।
संज्ञा
[सं. कीट अथवा हिं. कटना+नाश]


कुहक
धूर्त, ठग।
वि.


कुहक
जादू जाननेवाला।
वि.


कुहकना
पक्षियों का मीठे स्वर में बोलना, पीकना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कुहुकुहू]


कुहकिनि, कुहकिनी
कोयल।
संज्ञा
[सं. कुहुक या कुहू]


कुहकिनि, कुहकिनी
जादूगरनी।
संज्ञा
[सं. कुहुक या कुहू]


कुहकुह
केसर, जाफरान।
संज्ञा
[सं. कुमकुम]


कुहकुहाना
कोयल की कूकना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहकुह]


कुहन, कुहना
बहुत मारना-पीटना।
क्रि. स.
[सं. कु+हनन=मारना]


कुहन, कुहना
गाना।
संज्ञा
[अनु. कुहू=कोयल की बोली]


कुहप
रजनीचर, राक्षस।
संज्ञा
[सं. कुहू=अमावस्या +प]


कुहबर
वह स्थान जहाँ विवाह के अवसर पर कुलदेवता स्थापित किये जाते हैं।
संज्ञा
[हिं. कोहबर]


कुहर
छेद, सूराख।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
गले का छेद।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
खाली या शेष भाग।
कहा कहैं छबि आज की मुख-मंडित खुर-धूरि। मानौ पूरन चंद्रमा कुहर रह्यौ आपूरि - ४३७।
संज्ञा
[सं.]


कुहर
जमी हुई भाप के कण जो वायु में मिले रहते हैं, कोहरा।
बिछुरन कौ संताप हमारौ तुम दरसन दै काट्यौ। ज्यों रबि तेज पाइ दमहूँ दिसि दौष कुहर कौ फाटयों - ९ - २७।
संज्ञा
[हिं. कुहरा, कोहरा]


कुहरा
कोहरा।
संज्ञा
[हिं. कोहरा]


कुहराम
रोना-पीटना।
संज्ञा
[अ. क़हर+आम]


कुहराम
हलचल।
संज्ञा
[अ. क़हर+आम]


कुहरित
शब्दायमान।
वि.
[हिं. कोहराम]


कुहाड़ा
कुल्हाड़ा।
संज्ञा
[हिं. कुल्हाड़ा]


कुहाना
रूठना,‍ रिसाना।
क्रि. अ.
[सं. क्रोधन्‌, पा. कोहन]


कुहारा, कुहारो
कुल्हाड़ा, टाँगी।
इंद्री स्वाद बिबस निसि बासर आपु अपुनपौ हारी। जल औड़े मैं चहुँ दिसि पैरयौ, पाउँ कुहारो (कुल्हारौ) मारौ - १ - १५२।
संज्ञा
[सं. कुठार, हिं. कुल्हाड़ा]


कुहासा
कुहरा।
संज्ञा
[सं. कुहेड़ी]


कुही
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[सं. कुधि]


कुही
घोड़े की एक जाति।
संज्ञा
[फ़ा. कोही=पहाड़ी]


कुही
क्रोध करने वाला, क्रोधी।
मूकू, निंद निगोड़ा, भोड़ा, कायर काम बनावै। कलहा, कुही, मूषक रोगी अरु काहूँ नैंकु न भावै - १ - १८६।
वि.
[हिं. कोह=कोध, कोही, क्रोधी]


कुहु
अमावस्या।
संज्ञा
[सं. कुहू)


कुहुकंठ
कोमल।
संज्ञा
[सं.]


कुहुक
पक्षियों, विशेषतः कोयल और मोर का मधुर स्वर।
संज्ञा
[अनु.]


कुहुकना
पक्षियों, विशेषतः कोयल और मोर का मधुर स्वर में बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहुक+ना (प्रत्य.)]


कुहकबान
एक तरह का वाण जिसे चलाते समय कुछ शब्द निकलता है।
संज्ञा
[हिं. कुहुकना + वाण]


कुहुकिनी
कोयल।
संज्ञा
[हिं. कुहुक]


कुहुकुहाना
पक्षियों का मधुर स्वर में बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कुहुकना]


कुहुकुहानि
पक्षियों की मीठी बोली।
ज्यों कोइ लखत काग जिवाए भक्ष अभक्ष कहाइ। कुहुकुहानि सुनि रितु बसंत की अन्त मिले कुल अपने जाइ - ३०५३।
संज्ञा
[हिं. कुहुक]


कुहुराति
अमावस्या की काली रात।
दामिनी थिर घनघटा बर कबहुँ ह्वै एहि भाँति। कबहुँ दिन उद्योत कबहूँ होत अति कुहुराति - सा. उ. ५।
संज्ञा
[सं. कुहू+रात्रि]


कुहू
अमावस्या की रात।
(क) सूरदास रसरासि बरषि कै चली जनौ हरतिलक कुहू उग्यौ री - ६९१। (ख) सदा सरद ऋतु सकल कला लै सनमुख रहै जन्हाइ। सो सित पच्छ कुहू सम बीतत कबहुँ न देत दिखाइ - ३४८६।

(ग) नँद नंदन बृन्दाबन चंद।...। जठर कुहू ते बहिर बारिनिधि दिसि मधुपुरी सुछंद - १३ ३१।

संज्ञा
[सं.]


कुहू
अमावस्या की अधिष्ठात्री देवी।
संज्ञा
[सं.]


कुहू
मोर या कोयल को मीठी बोली।
संज्ञा
[सं.]


कुहू
कुहूकुहू ‘कुहू’ ‘कुहू' का शब्द।
यौ.


कुहेलिका
कुहरा, कोहरा।
संज्ञा
[सं.]


कुहौ
बोली, ध्वनि।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कुहौ
मोर,कोयल आदि की कूक।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूँख
कोख, पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि]


कूँखना
काँखना।
क्रि. अ.
[हिं. काँखना]


कूँचना
कुचलना, कूटना।
क्रि. स.
[अनु. कुचकुच]


कूँचा
झाडू, बढ़नी।
संज्ञा
[सं. कूर्च]


कूँची
छोटी झाडू।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
चूना पोतने की मूँज की कूँची।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
चित्रकार की तूलिका।
संज्ञा
[हिं. कूँचा=झाडू]


कूँची
कुंजी या कुंडी जो दरवाजे में उसे बंद करने के लिए लगी रहती है।
सहज कपाट उघरि गए ताला कूँची टूटि - २६२५।
संज्ञा
[सं. कुंचिका]


कूँज
क्रौंच पक्षी।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कूँजत
मधुर स्वर से बोलता है।
(क) ऊधव कोकिल कूँजत कानन। तुम हमकौ उपदेस करत हौ भसम लगावन आनन। (ख) पपिहा गुंज, कोकिल बन कूँजत, अरु मोरनि कियौ गाजन - ६२२।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना, कँजना]


कूँजत
चिल्लाता या दहाड़ता है।
बातैं बूझत यौं बहरावति। सुनहुँ स्याम वै सखी सयानी पावस-रितु राधहिं न सुनावति। घन गर्जत मनु कहत कुसलमति कूँजत गुहा सिंह समुझावति - ३४८५।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना, कँजना]


कूँजना
बोलना, चिल्लाना।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूँजना
मधुर स्वर से बोलना।
क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूँड़, कूँड
लोहे की टोपी जो लड़ाई के समय पहनी जाती है।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़, कूँड
कुएँ से पानी निकालने का टोपीनुमा बरतन।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
बड़ा बरतन।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
गमला।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ा
शीशे की बड़ी हाँडी जिसमें रोशनी जलायी जाती है।
संज्ञा
[सं. कुंड]


कूँड़ी, कूँडी
पत्थर की प्याली।
संज्ञा
[हिं. कूँड़ा]


कूँड़ी, कूँडी
छोटी नाँद।
संज्ञा
[हिं. कूँड़ा]


कूँथना
दुख से कराहना।
संज्ञा
[सं. कुंथन=दुख सहना]


कूँथना
कबूतरों का ‘गुटूरगूँ’ करना।
संज्ञा
[सं. कुंथन=दुख सहना]


कूँदना
खरोदना।
क्रि. स.
[हिं. कुनना]


कूँआँ
कुआँ, कूप।
संज्ञा
[सं. कूप]


कुईं
कमल की तरह का एक पौधा जो जल में होता है और चाँदनी रात में खिलता है, कोकाबेली, कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुव+ई (प्रत्य.]


कूक
लंबी मधुर ध्वनि
सोवत लरिकनि छिरकि मही सौं हँसत चलै दै कुक - १० - ३१७।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
कर्कश स्वर।
यह सुनत रिस भरयौ दौरिबे को परयौ सूड़ि झटकत पटकि कुक पारयौ - २५६२।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
मोर या कोयल की सुरीली बोली।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
रोने का महीन स्वर।
संज्ञा
[सं. कूजन]


कूक
हूक, कसक, वेदना।
ऊधौ, कहा हमारी चूक। वै गुन-अवगुन सुनि सुनि हरि के हृदय उठत है कूक।
संज्ञा
[हिं. हूक]


कूकना
लंबी सुरीली ध्वनि निकालना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकना
कर्कश स्वर से बोलना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकना
कोयल या मोर का बोलना।
क्रि. अ.
[सं. कूजन]


कूकर
कुत्ता, श्वान।
उदर भरयौ कूकर-सूकर लौं, प्रभु कौं नाम न लीनौ - १ - ६५।
संज्ञा
[सं. कुकूकर]


कूकरकौर
बच्चा-खुचा भोजन, टुकड़ा।
संज्ञा
[हिं. कूकुर+कौर]


कूकरकौर
तुच्छ वस्तु।
संज्ञा
[हिं. कूकुर+कौर]


कूच
यात्रा करना, जाना, प्रस्थान।
संज्ञा
[तु.]


कूच
देवता कूच कर जाना- बहुत भयभीत होना।
मु.


कूचा
गली।
संज्ञा
[फ़ा.]


कूचा
क्रौंच पक्षी, कराँकुल।
संज्ञा
[सं. क्रौंच]


कूचिका, कूची
ब्रश, तूलिका।
संज्ञा
[सं. तूलिका]


कूज
ध्वनि, शब्द।
संज्ञा
[हिं. कूजना]


कूज
शब्द करने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूजना]


कूजत
मधुर स्वर से बोलते हैं।
(क) कनक किंकिनी, नूपुर कलरव, कूजत बोल मराल। (ख) उपजत छबिकर अधर संख मिलि सुनियत सब्द प्रसंसा। मानहु अरुन कमल मंडल में कूजत हैं कल हंसा - २५६६।
क्रि. अ.
[सं. कूजन)


कूजन
मधुर ध्वनि।
संज्ञा
[सं.]


कूजन
शब्द करने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कूजना
कोमल शब्द या ध्वनि करना, बोलना, कलरव करना।
क्रि. अ.
[सं. कुजन]


कूजा
मिट्टी का पुरवा या कुल्हड़।
संज्ञा
[फ़ा. कूजः]


कूजा
मिट्टी के पुरवे में जमायी हुई मिश्री।
संज्ञा
[फ़ा. कूजः]


कूजा
मोतिया या बेले का फूल।
कुजा, मरुओ, मोगरो मिलि झूमक हो।
संज्ञा
[सं. कुब्जक]


कूजित
बोला हुआ, ध्वनित।
वि.
[सं. कूजन]


कूजित
गूंजा हुआ स्थान।
वि.
[सं. कूजन]


कूजित
पक्षियों के कलरव से युक्त।
वि.
[सं. कूजन]


कूजै
मधुर शब्द करती है; कोमल स्वर से बजती है।
(क) पाइनि नूपुर बाजई, कटि किंकिनि कूजै - - - १० - १३४।

(ख) चरन रुनित नूपुर कटि किंकिनि काल कूजै - ६६२।

क्रि. अ.
[हिं. कूजना]


कूट
पहाड़ की चोटी।
संज्ञा
[सं.]


कूट
अन्न का ढेर।
संज्ञा
[सं.]


कूट
छल, धोखा।
संज्ञा
[सं.]


कूट
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कटनि
काट।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कटनि
रीझ, प्रीति, आसक्ति।
संज्ञा
[हिं. कटना]


कटनी
काटने का काम |
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
काटने का औजार।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
फसल काटना।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटनी
आड़े-तिरछे भागना।
संज्ञा
[हिं कटना]


कटरा
कटार।
संज्ञा
[हिं. कटार]


कटवा
गले का एक गहना।
संज्ञा
[देश.]


कटसरैया
एक कँटीला पौधा।
संज्ञा
[हिं. कटसारिका]


कटहर, कटहल
एक पेड़ जिनमें बड़े-बड़े फल लगते हैं।
संज्ञा
[सं. कंठकिफल, हिं. काठ+फल)


कूट
गुप्त भेद या रहस्य।
संज्ञा
[सं.]


कूट
वह रचना जिसका अर्थ सरलता से न स्पष्ट हो।
संज्ञा
[सं.]


कूट
गूढ़ हास्य या व्यंग्य।
संज्ञा
[सं.]


कूट
झूठा।
वि.


कूट
छलिया।
वि.


कूट
बनावटी।
वि.


कूट
अच्छा, प्रधान।
वि.


कूट
धर्म भ्रष्ट।
वि.


कूट
एक औषधि।
कूट काइफल सोंठि चिरैता कटजीरा कहुँ देखत - - ११०८।
संज्ञा
[हिं. कुट]


कूट
कूटने-पीटने की क्रिया।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूट
झोपड़ी।
संज्ञा
[हिं. कुटी]


कूटता
कठिनाई।
संज्ञा
[सं.]


कूटता
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कूटता
छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


कूटन
कूटने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूटन
मारना-पीटना।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूदना
मारना, पीटना, ठोंकना।
क्रि. स.
[सं. कुट्टन]


कूटनीति
दाँव-पेंच की चाल जिसका भेद दूसरे न पा सकें।
संज्ञा
[सं.]


कूटयोजना
षड्यंत्र।
संज्ञा
[सं.]


कूटस्थ
अचल।
वि.
[सं.]


कूटस्थ
अविनाशी।
वि.
[सं.]


कूटस्थ
छिपा हुआ।
वि.
[सं.]


कूटि
कुट्टी, मारना, पीटना।
कूटि करेंगे बलभैया अब हमहीं छोड़ि किनि देहु - २४ ०८।
संज्ञा
[हिं. कूटना]


कूटै
कूटे, कूटकर।
बिनु कन दुस कौं कूटैं - - २ - २०
क्रि. स.
[सं. कुट्टन, हिं. कुटना]


कूड़ा
बेकार या बेकाम चीज।
संज्ञा
[सं. कुट, प्रा. कूड=ढेर]


कूढ़
नासमझ, मूढ़।
वि.
[सं. कूह, पा. कूध]


कूत
अनुमान।
संज्ञा
[सं. आकूत=आशय]


कूत
संख्या, परिमाण आदि का अनुमान।
संज्ञा
[सं. आकूत=आशय]


कूतना
अनुसान या अंदाज करना।
क्रि. स.
[हिं. कूत]


कूतना
संख्या, परिमाण आदि का अनुमान या अंदाज करना।
क्रि. स.
[हिं. कूत]


कूते
अनुमान करे।
क्रि. स.
[हिं. कूतना]


कूथाना
मारना-पीटना।
क्रि, स.
[सं. कुंथन]


कूद
उछलने-कूदने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. कूदना]


कूद
कूद-फाँद - उछलना-कूदना।
यौ.


कूद
व्यर्थ का प्रयत्न।
यौ.


कूदत
कूदते ही, उछलता फाँदता है।
सुनि कै सिंह-भयान अवाज। मारि फलाँग चली सो भाज। कूदत ताकौ तन छुटि गयौ - - - ५ - ३।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदन
कूदना, फाँदना।
नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर बारी - - - १ - २२१।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदना
उछलना, फाँदना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
जानकर गिरना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
किसी के बीच में दखल देना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
बहुत खुश होना
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
शेखी मारना।
क्रि. अ.
[सं. स्कुंदन]


कूदना
लाँघना, नाँघ जाना।
क्रि. स.


कूदि
कूदकर, उछलकर, फाँद कर।
जैसैं केहरि उझकि कूप-जल, देखत अपनी प्रति। कूदि परयौ, कछु मरम न जान्यौ, भई आइ सोइ गति - १ - ३००।
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूदो
कूदा, कूद पड़ा।
कूदो, कालीदह में कान - सा. ७३
क्रि. अ.
[हिं. कूदना]


कूनना
खरोदना, खरोचना।
क्रि. स.
[हिं. कुनना]


कूप
कुआँ।
(क) सँदेसनि मधुबन कूप भरे। (ख) परो कूप पुकार काहू सुनी ना संसार - - सा. ११८.।
संज्ञा
[सं.]


कूप
छेद।
संज्ञा
[सं.]


कूप
गढ़ा।
संज्ञा
[सं.]


कूपनि
कुओं में।
नरक-कूपनि जाई जमपुर परयौ बार अनेक - १ - १०६।
संज्ञा
[सं. कूप+हिं. नि. (प्रत्य.)]


कूपमंडूक
कुएँ में ही रहनेवाला, मेढक।
संज्ञा
[सं.]


कूपमंडूक
संसार की बहुत कम जानकारी रखने वाला, अनुभवहीन व्यक्ति।
संज्ञा
[सं.]


कूपहिं
कूप में, कुएँ में।
पग पग परत कर्म-तम-कूपहिं को करि कृपा बचावै–१ - ४८।
संज्ञा
[सं. कूप+हिं (प्रत्य.)]


कूब,कूबड़
पीठ का उभाड़ या टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं. कूबर]


कूब,कूबड़
किसी चीज का उभाड़ या टेढ़ापन।
संज्ञा
[सं. कूबर]


कूबरी
कुब्जा नामक कंस की एक दासी जिसकी पीठ पर कूबड़ था। श्रीकृष्ट से इसको बड़ा प्रेम था और भक्तों का विश्वास है कि उन्होंने भी इसे अपना लिया था।
संज्ञा
[हिं. कुबड़ी, कुबरी]


कूबा
कूबड़।
संज्ञा
[हिं. कूबड़]


कूर
जिसमें दया न हो, निर्दयी, कठोर।
[सं. क्रूर]


कूर
डरावना।
[सं. क्रूर]


कूर
दुष्ट, कुमार्गी, बुरा
(क) तौ जानौं जौ मोहिं तारिहौ, सूर कूर कवि ढोट - १ - १३२। (ख) साँचे कूर कुटिल ए लोचन वृथा मीन छबि छीन लईं - २५२७।

(ग) सूरबरी लैजाहु तहाँ जहँ कुबजा कूर रई - सा. ३१।

[सं. क्रूर]


कूर
बेकार, निकम्मा।
[सं. क्रूर]


कूरना
निर्दयता, कठोरता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
मूर्खता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
अरसिकता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरना
कायरता।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरपन
कठोरपन।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरपन
कायरपन।
संज्ञा
[हिं. कूर]


कूरम
विष्णु का दूसरा अवतार कछुआ।
हरि जू अपनौ बिरद सँभारयौ। सूरज प्रभु कूरम तनु धारयौ - - ८ - ७।
संज्ञा
[सं. कूर्म]


कूरा
ढेर, राशि।
संज्ञा
[सं. कूट, प्रा. कूड़ = ढेर]


कूरा
भाग हिस्सा।
संज्ञा
[सं. कूट, प्रा. कूड़ = ढेर]


कूरी
टीला, घुस।
संज्ञा
[हिं. कुरा]


कूरी
छोटी राशि।
संज्ञा
[हिं. कुरा]


कूरे, कूरै
निर्दयी, कठोर।
(क) पूरनता ए नैनन पूरे।…...| ए अलि चपल में दरस लंपट कटु संदेस कथत कत कूरे - ३०४२। (ख) सूर नृप क्रूर अक्रूर कूरै (कूरे) भयो धनुष देखन कहत कपटी महा है - २५०३।
वि.
[सं.क्रूर, हिं. कूर)


कूर्च
भौहों के बीच का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
झूठ।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
दंभ।
संज्ञा
[सं.]


कूर्च
सिर।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
कछुआ, कच्छप।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
विष्णु का दूसरा अवतार जो पौष शुक्ल द्वादशी को कछुए के रूप में हुआ है।
कूर्म कौ रूप धरि, धरयौ गिरि पीठि पर - ९ - ८।
संज्ञा
[सं.]


कूर्म
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कूर्मिका, कूर्मि
एक प्राचीन बाजा।
संज्ञा
[सं. कूर्मिका]


कूल
किनारा, तट।
संज्ञा
[सं.]


कूल
नहर।
संज्ञा
[सं.]


कूल
तालाब।
संज्ञा
[सं.]


कूल
पास, निकट, समीप।
क्रि. वि.


कूलिनी
नदी।
संज्ञा
[सं.]


कूल्‍हा
कमर में पेडू के दोनों तरफ निकली हुई हड्डियाँ।
संज्ञा
[सं. क्रोड=कोड, कोल]


कूवत
बल, शक्ति।
संज्ञा
[अ.]


कूवर
रथ का एक भाग जिस पर जूआ बाँधा जाता है।
संज्ञा
[सं]


कूवर
रथिक के बैठने का स्थान।
संज्ञा
[सं]


कूवर
कुबड़ा।
संज्ञा
[सं]


कूवर
सुन्दर।
वि.


कूष्मांड
कुम्हड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कूष्मांड
पेठा।
संज्ञा
[सं.]


कूष्मांड
एक ऋषि।
संज्ञा
[सं.]


कूह
हाथी की चिंघाड़।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूह
चिल्लाहट।
संज्ञा
[हिं. कूक]


कूही
एक शिकारी चिड़िया।
संज्ञा
[हिं. कूही]


कृकाटिका
कंधे और गले की जोड़, घाँटी।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
कष्ट,दुख।
संज्ञा
[सं.]


कटहर, कटहल
इस पेड़ का फल जिसके ऊपरी मोटे छिलके पर नुकीले कँगूरे होते हैं।
संज्ञा
[सं. कंठकिफल, हिं. काठ+फल)


कटा
मार-काट।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटा
वध, हत्या।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटा
प्रहार, चोट।
संज्ञा.
[हिं. काटना]


कटाइक
काटनेवाला।
वि.
[हिं. काटना]


कटाई
कटाया।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कटाई
अपयश कराया।
कौन कौन कौ बिनय कीजिए कहि जेतिक कहि आई। सूर स्याम अपने या ब्रज की इहि बिधि कान कटाई - ३०७७।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कटाउ
काट-छाँट।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाउ
काटकर बनाये हुए बेल-बूटे।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाउ
काट लो, काटने का काम करो।
पालनौ अति सुन्दर गढ़ि ल्याउ रे बढ़ैया। सीतल चंदन कटाउ धरि खराद रंग लाउ, बिबिध चौकरी बनाउ, धाउ रे बढ़ैया - १० - ४१।
क्रि. स.
[हिं. कटाना]


कृच्छा
पाप।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
एक व्रत जिसमें पंचगव्य (गाय से प्राप्त होनेवाले पाँच द्रव्य–दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र) खा कर दूसरे दिन उपवास किया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कृच्छा
कठिन, कष्टसाध्य।
वि.


कृत
किया हुआ, संपादित।
(क) मन-कृत-दोष अथाह तंरगिनि, तरि नहिं सक्यौ, समायौ - - - - १.६७। (ख) और कहाँ लौं कहौं एक मुख या मन के कृत काज - १ - १०२।
वि.
[सं.]


कृत
बनाया हुआ, रचित।
तू कृत मम जस जो गावैगो सदा रहै मम साथ - ११०४ सारा.।
वि.
[सं.]


कृत
संबंध रखने वाला, तत्संबंधी।
वि.
[सं.]


कृत
सतयुग।
संज्ञा
[सं.]


कृत
चार की संख्या।
संज्ञा
[सं.]


कृत
काम-काज।
(क) बड़ी बेर भइ अजहुँ न आए गृह-कृत कछु न सुहाइ - ५८७। (ख) अपने कृत तैं हों नहिं बिलमत सुनि कृपाल वृजराई - १ - २०७।
संज्ञा
[सं. कृत्य]


कृतक
अनित्य, कृत्रिम।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
जिसने अपने प्रयत्न में सफलता प्राप्त कर ली हो।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
चतुर।
वि.
[सं.]


कृतकर्मा
संन्यासी।
संज्ञा


कृतकर्मा
परमेश्वर।
संज्ञा


कृतकाम
जिसकी इच्छा पूरी हो चुकी हो।
वि.
[सं.]


कृतकारज
जिसको अपने कार्य में सफलता मिल चुकी हो।
वि.
[सं. कृतकार्य]


कृतकार्य
जिसका काम पूरा हो चुका हो।
वि.
[सं.]


कृतकृत्य
जिसका कार्य या उद्देश्य सफल हो चुका हो, सफल-मनोरथ।
वि.
[सं.]


कृतकृत्य
धन्य।
वि.
[सं.]


कृतघन
किये हुए उपकार को न मानने वाला, अकृतज्ञ।
वि.
[सं. कृतघ्न]


कृतघ्‍न
जो दूसरे का उपकार न माने, अकृतज्ञ।
वि.
[सं.]


कृतघ्नता
दूसरे का किया हुआ उपकार न मानने का भाव।
संज्ञा
[सं.]


कृतताई
किये हुए उपकार को न मानने का भाव।
संज्ञा
[हिं.कृतघ्न]


कृतघ्नी
अकृतज्ञ, नमकहराम।
महा कठोर सुन्न हिरदै कौ, दोष देन कौं नीकौ। बड़ौ कृतघ्नी और निकम्मा, बेधन, राकौफीकौ - - - १ - १८६।
वि.
[सं. कृतघ्न]


कृतज्ञ
उपकार माननेवाला।
मधुबन के सब कृतज्ञ धर्मीले। अति उदार परहित डोलत हैं बोलत बचन सुसीले - ३०५५।
वि.
[सं.]


कृतज्ञता
दूसरों के उपकार को मानने का भाव, निहोरा मानना।
संज्ञा
[सं.]


कृतदंड
यमराज।
गोपन सखा भाव करि देखे दुष्ट नृपति कृतदंड। पुत्र भाव बसुदेव देवकी देखे नित्य अखंड।
संज्ञा
[सं.]


कृतनिंदक
जो किये हुए उपकार को न माने।
वि.
[सं.]


कृतमुख
पंडित।
संज्ञा
[सं.]


कृतयुग
सतयुग।
कृतयुग धम भये त्रेता में पूरन रमा प्रकास - - - ३०६ सारा।
संज्ञा
[सं.]


कृतविद्य
किसी विद्या या कला का पूर्ण ज्ञाता, पंडित।
वि.
[सं.]


कृतवेदी
दूसरे का उपकार माननेवाला।
वि.
[सं.]


कृतहस्त
काम में चतुर।
वि.
[सं.]


कृतहस्त
वाण चलाने में कुशल।
वि.
[सं.]


कृतहिं
किये हुए उपकार को।
(क) सूरदास जो सरबस दीजै कारे कृतहिं न मानै - ३४०४। (ख) तिनहिं न पतीजै री जे कृतहिं न मानै - - - २७८९।
संज्ञा
[सं. कृति+ हिं. हिं (प्रत्य.)]


कृतहीन
कृतघ्न।
वि.
[सं.]


कृतांजलि
हाथ बाँधे या जोड़े हुए।
वि.
[सं.]


कृतांत
अंत करनेवाला।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
यमराज।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
कर्मों का फल।
संज्ञा
[सं.]


कृतांत
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


कृतात्मा
शुद्ध आत्मावाला, महात्मा।
वि.
[सं. कृतात्मन्]


कृतारथ
कृतकृत्य, सकल-मनोरथ।
(क) बन मैं करी तपस्या जाइ, रह्यौ हरि चरननि सौं चित लाइ। या बिधि नृपति कृतारथ भयौ - - ९ - १७४। (ख) नृपति कह्यौ मेरे गृह चलिये करौ कृतारथ मोय - ८०० सारा।
वि.
[सं. कृतार्थ]


कृतार्थ
जो सफलता से संतुष्ट हो।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
संतुष्ट।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
कुशल।
वि.
[सं.]


कृतार्थ
दूसरे के उपकार से प्रसन्न।
वि.
[सं.]


कृतास्‍त्र
धनुष चलाने में निपुण।
वि.
[सं.]


कृति
करनी, करतूत।
(क) निज कृति-दोष बिचारि सूर, प्रभु तुम्हारी सरन गयौ - १ - २९८। (ख) यह हित मनै कहत सूरज प्रभु इहि कृति कौ फल तुरत चखैहौं - ७ - ५।

(ग) नैन उघारि बिप्र जौ देखै, खात कन्हैया देख न पायौ। देखौ आइ जसोदा, सुत कृति, सिद्ध पाक इहि आइ जुठायौ - १० - २४८।

संज्ञा
[सं.]


कृति
बड़ा काम।
संज्ञा
[सं.]


कृति
जादू।
संज्ञा
[सं.]


कृति
विष्णु।
संज्ञा


कृतिका
एक नक्षत्र।
संज्ञा
[सं. कृत्तिका]


कृतिवास, कृतिवासा
महादेव।
संज्ञा
[सं. कृत्तिवास]


कृती
कुशल।
वि.
[सं.]


कृती
साधु।
वि.
[सं.]


कृती
पुण्यात्मा।
वि.
[सं.]


कृती
जिसने महान कार्य किया हो।
वि.
[सं.]


कृत्ति
मृगचर्म।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
चमड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
भोजपत्र।
संज्ञा
[सं.]


कृत्ति
कृत्तिका नक्षत्र।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिका
सत्ताइस नक्षत्रों में तीसरा जिसमें छः तारे हैं। इनका आकर अग्नि-शिखा के समान होता है। यह चंद्रमा की पत्नी मानी जाती है और अग्नि इसकी अधिष्ठात्री है।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिका
बैलगाड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कृत्तिवास
महादेव का एक नाम जो गजासुर को मारने के बाद उसकी खाल ओढ़ लेने के कारण पड़ा था।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
वे काम जिनका करना धर्म की दृष्टि से आवश्यक हो।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
करनी, करतूत।
सूर स्याम के कृत्य जसोमति ग्वाल- बाल कहि प्रगट सुनावत - ४८०।
संज्ञा
[सं.]


कृत्य
भूत-प्रेत।
संज्ञा
[सं.]


कृत्यका
भयंकर कार्य कर सकनेवाली साहसी स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कृत्यविद्
कर्तव्य-पालन में चतुर।
वि.
[सं.]


कृत्या
एक राक्षसी जिसे तांत्रिक अपने अनुष्ठान से उत्पन्न करके विपक्षी का नाश करने के लिए भेजते हैं।
(क) रिषि सक्रोध इक जटा उपारी। सो कृत्या भइ ज्वाला भारी–९.५। (ख) तब सिव ने उन कृत्या दीन्हीं बाढ़ो क्रोध अपार - ७०७ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


कृत्या
तंत्र-मंत्र से साधे गये घातक कर्म।
संज्ञा
[सं.]


कृत्या
कर्कशा स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कृत्रिम
नकली, बनावटी।
वि.
[सं.]


कृदंत
वह शब्द जो धातु में ‘कृत' प्रत्यय लगने से बनता है, जैसे भोक्ता।
संज्ञा
[सं.]


कृपण
कंजूस, सूम।
वि.
[सं.]


कृपण
नीच, दुष्ट।
वि.
[सं.]


कृपणता
कंजूसी, सूमता।
संज्ञा
[सं.]


कृपणता
नीचता।
संज्ञा
[सं.]


कृपन
कंजूस, सूम, अनुदार।
(क) कृपानिधान सूर की यह गति, कासौं कहै, कृपन इहिं काल - - १ - १२९

(ख) स्याम अछय निधि पाइकै तउ कृपन (कृपण) कहावै - - - पृ० ३२२। (ग) कीजै कहा कृपन की संपति बिन भोजन बिन दान - - - २०५१। (घ) हम निसिदिन करि कृपन की सम्पति कियो न कबहू भोग - - २७९३।

वि.
[सं. कृपण]


कृपन
तुच्छ, नीच।
वि.
[सं. कृपण]


कृपनाई
कंजूसी,सूमता।
संज्ञा
[सं. कृपण+आई (प्रत्‍य.)]


कृपया
कृपापूर्वक।
क्रि. वि.
[सं.]


कृपा
निस्वार्थ भाव से दूसरे की भलाई करने की भावना या इच्छा। अनुग्रह, दया।
संज्ञा
[सं.]


कृपा
क्षमा।
संज्ञा
[सं.]


कृपाकरन
कृपालु।
भक्त-बछल, कृपाकरन, असरन-सरन, पतित उद्धरन कहैं बेद गाई - - ८ - ९।
वि.
[सं. कृपा+करण]


कृपाचार्य
ये गौतम के पौत्र और शरद्वत के पुत्र थे। इन्होंने कौरवों और पांडवों को शस्‍त्र-विद्या सिखायी थी।
संज्ञा
[सं.]


कृपाण, कृपान
तलवार।
संज्ञा
[सं.]


कृपाण, कृपान
कटार।
संज्ञा
[सं.]


कृपानाथ
कृपा करनेवाले।
संज्ञा
[सं.]


कृपानिधि
कृपा के भांडार, अत्यन्त कृपालु।
संज्ञा
[सं. कृपा+निधि]


कृपानिधि
कृपालु ईश्वर।
संज्ञा
[सं. कृपा+निधि]


कृपापात्र
वह व्यक्ति जो दया का अधिकारी हो।
संज्ञा
[सं.]


कृपायतन
दया के भंडार, बहुत दयालु।
संज्ञा
[सं.]


कृपाल
कृपा करनेवाला, दयालु।
वि.
[सं. कृपालु]


कृपालता
दया का भाव।
संज्ञा
[सं. कृपालुता]


कृपाला
दया करनेवाला।
जो तुम जानत तत्व कृपाला मौन रहौ तुम घर अपने - ३२१२।
वि.
[सं. कृपालु]


कृपालु
कृपा करनेवाला, दयालु।
वि.
[सं.]


कृपालुता
दया का भाव।
संज्ञा
[सं.]


कृपावंत
कृपा करनेवाला।
सूरदास प्रभु कृपावंत ह्वै लै भक्तनि मैं डारौं १ - १७८।
संज्ञा
[सं.]


कटाना
काटने के काम में लगाना या नियुक्त करना।
क्रि. स.
[हिं. 'काटना' का प्रे.]


कटार, कटारी
एक छोटा दुधारी हथियार।
संज्ञा
[सं. कट्टार]


कटाव
काट-छाँट, कतरब्योंत।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटाव
काटकर बनाये गये बेल-बूटे।
संज्ञा
[हिं. काटना]


कटाह
बड़ा कढ़ाव।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
कछुए की खोपड़ी।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
कुआँ।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
नरक।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
भैंस का बछड़ा जिसके सींग निकलते हों।
संज्ञा
[सं.]


कटाह
ऊँचा टीला।
संज्ञा
[सं.]


कृपावंत
कृपालु ईश्वर।
सूरदास जो संतन कौं हित, कृपावंत मेटत दुख-जालहिं - - - १ - ७४।
संज्ञा
[सं.]


कृपिण, कृपिन
कंजूस, सूम, अनुदार।
कहा कृपिन की माया गनियै, करत फिरत अपनी अपनी - - - १ - ३९।
वि.
[सं. कृपण]


कृपिणता, कृपिनता, कृपिनाई
कंजूसी।
संज्ञा
[सं. कृपणता]


कृपी
द्रोणाचार्य की पत्नी जो कृपाचार्य की बहन थी। इसी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कृमि
छोटा कीड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कृश
दुबला पतला।
वि.
[सं.]


कृश
छोटा।
वि.
[सं.]


कृशता, कृशताई
दुबलापन।
संज्ञा
[सं.]


कृशता, कृशताई
कमी।
संज्ञा
[सं.]


कृशानु
अग्नि, आग।
संज्ञा
[सं.]


कृशित
दुबला-पतला।
वि.
[सं.]


कृष
पतला, क्षीणकाय।
(क) कृष (कृश या कृस) कटि सबल डंड बंधन मनो विधि दीन्हो बंधान - १९९७। (ख) लई जाइ जब ओट अटन की चीर न रहत कृष गात - २५३९।
वि.
[सं. कृश]


कृषक
किसान, खेतिहर।
संज्ञा
[सं.]


कृषि
खेती, किसानी।
संज्ञा
[सं.]


कृषिक
खेती-बारी से सम्बन्धित।
वि.
[सं. कृषि]


कृषिफल
फसल, पैदावार।
संज्ञा
[सं.]


कृषी
खेती, किसानी।
ते खोजत-खोजत तहँ आए। जहँ जड़ भरत कृषी मैं छाए - ५ - ३।
संज्ञा
[सं. कृषि]


कृष्ण
श्याम, काला।
वि.
[सं.]


कृष्ण
नीला, आसमानी।
वि.
[सं.]


कृष्ण
यदुवंशी वसुदेव के पुत्र जो कंस के कारागृह में देवीकी के गर्भ से जन्मे थे। मथुरा के अत्याचारी राजा कंस को मार कर प्रजा को इन्होंने सुखी किया था। द्वारका में यादवों का राज्य स्थापित करने वाले ये ही थे। महाभारत के भयंकर युद्ध में ये पांडव-पक्ष में रहे। एक बहेलिये का तीर लगने से इनकी मृत्यु हुई। ये विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं।
संज्ञा


कृष्‍णचंद्र
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णद्वैपायन
वेदव्यास जो पराशर के पुत्र थे।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णपक्ष
वह पक्ष जिसमें चंद्रमा घटता है। अँधियारा पक्ष।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसखा
अर्जुन।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसखी
द्रौपदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसार
काला मृग।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णसार
शीशम।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
द्रौपदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
दक्षिण भारत की एक नदी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
राधा की एक सखी।
कहि राधा किनि हार चोरायो। …..। दर्वा रंभा कृष्णा ध्याना मैना नैना रूप। इतनिन में कहि कौने लीन्हौ ताको नाउ बताउ - १५८०।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
अग्नि की एक चिह्ना।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
आँख की पुतली।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णा
काली देवी।
संज्ञा
[सं.]


कृष्‍णाभिसारिका
वह नायिका जो अँधेरी रात में प्रिय से मिलने संकेत-स्थल पर जाय।
संज्ञा
[सं.]


कृष्णाष्टमी
भादों के कृष्णपक्ष की अष्टमी जिस दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
संज्ञा
[सं.]


कृष्नाकृति
कृष्ण-स्वरूप, कृष्ण- लक्षण, कृष्ण की आकृति।
सुनि सानंद चले बलिराजा, आहुति जज्ञ बिसारी। देखि सरूप सकल कृष्नाकृति, कीनी चरन जुहारी - ८ - १४।
संज्ञा
[सं. कृष्‍ण+आकृति]


कृष्ण
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण]


कृस
दुबली, पतली, क्षीण।
कहाँ लगि सहौं रिस, बकत भई हौं कृस, इहिं सिस सूर स्याम-बदन चहूँ - १० - २९५।
वि.
[सं. कृश]


कृसानु
अग्नि।
संज्ञा
[सं. कृशानु]


कृसानु-सुत
अग्नि का पुत्र धूम।
सुन-कृसानु-सुत प्रबल भए मिल चार ओर ते आये - सा. ११।
संज्ञा
[सं. कृशानु+सुत]


कृष्य
खेती के योग्य (भूमि)।
वि.
[सं.]


कृस्न
श्रीकृष्ण।
संज्ञा
[सं. कृष्ण]


केंचुआ
एक कीड़ा जो प्रायः बरसात में जन्मता है और मिट्टी खाता है।
संज्ञा
[सं. किंचिलिक, प्रा. केचुओ]


केंचुर, केंचुल
सर्प जैसे कीड़ों के शरीर के ऊपर की वह झिल्ली जो प्रतिवर्ष अपने आप अलग होकर गिर जाती है।
संज्ञा
[सं. कंचुक]


केंचुरि, केंचुलि, केंचुली
झिल्ली, केंचुल।
(क) नैन बैन मुख नासिका ज्यों केंचुलि तजै भुजंग - ११८२। (ख) ज्यों भुजंग तजि गयौ केंचुली सो गति भई हमारी - ३०५९।
संज्ञा
[हिं. केंचुल]


केंद्र
किसी घेरे के ठीक बीच का बिंदु।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
मुख्य स्थान जहाँ से दूर-दूर फैले कार्यों का संचालन हो।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
बीच या मध्य।
संज्ञा
[सं.]


केंद्र
अधिक समय तक रहने का स्थान।
संज्ञा
[सं.]


केंद्रित
केंद्र-स्थान में इकट्ठा किया हुआ।
वि.
[सं.]


केंद्री
बीच में स्थित।
वि.
[सं. केंद्रिन्]


केंद्रीकरण
शक्तियों-अधिकारों आदि को केंद्र में एकत्र करना।
संज्ञा
[सं.]


केंद्रीय
जिसका सम्बन्ध केंद्र से हो।
वि.
[सं. केंद्र]


केंवरा, केवरो
केवड़े का पौधा और फूल।
तहाँ कमल केंवरो फूले जहाँ केतकी कनेर फूले संतन हित ही फूल डोल - २४०६।
संज्ञा
[हिं. केवड़ा]


के
सम्बन्ध सूचक ‘का’ विभक्ति का बहुवचन रूप। एक वचन प्रयोग भी होता है जब सम्बन्ध वान् के आगे कोई विभक्ति होती है।
छाँड़ि सुखधाम अरु गरुड़ तजि साँवरौ पवन के गवत तैं अधिक धायौ - १ - ५।
प्रत्य.
[हिं. का]


के
कौन ?
सर्व.
[सं. कः]


केउ
कोई।
सर्व.
[हिं. के+उ (प्रत्य.)=भी]


केउर
एक आभूषण।
संज्ञा
[सं. केयूर]


केऊ
कोई।
सर्व.
[हिं. के+ऊ (प्रत्य.)]


केऊ
कई, कितने ही।
वि.


केकइ
राजा दशरथ की छोटी रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं. कैकेयी]


केकड़ा
पानी का एक कीड़ा।
संज्ञा
[सं.कर्कट, पा. ककट]


केकय
उत्तरी भारत का एक प्राचीन देश जो वर्तमान काश्मीर में है।
संज्ञा
[सं.]


केकय
इस देश का निवासी या राजा।
संज्ञा
[सं.]


केकय
कैकेयी के पिता।
संज्ञा
[सं.]


केकयी
राजा दशरथ की रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं.]


केका
मोर की बोली या कुक।
संज्ञा
[सं.]


केकि, केकी
मोर, मयूर।
केकी-पच्छ-मुकुट सिर भ्राजत, गौरी राग मिलै सुर गावत - ५०६।
संज्ञा
[सं. केकिन्]


केचित्
कोई-कोई।
सर्व.
[सं.]


केड़ा
नया पौधा, कोयल।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का कल्ला]


केड़ा
किशोर, नवयुवक।
संज्ञा
[सं. करीर=बाँस का कल्ला]


केणिक
तंबू, रावटी।
संज्ञा
[सं. कोणिका]


केत
एक राक्षस का कबंध। यह राक्षस समुद्र-मंथन के समय अमृत-पान करते करते विष्णु द्वारा मारा गया था। इसका धड़ राहु कहाता है। सूर्य और चन्द्रमा ने इसे पहचाना था; इसीलिए ग्रहण-काल में यह उन्हीं को ग्रसता माना जाता है।
राम-नाम बिनु क्यों छूटोगे, चंद्र गहै ज्यौं केत - १ - २९६।
संज्ञा
[सं. केतु]


केत
घर, भवन।
संज्ञा
[सं.]


केत
स्थान, बस्ती।
संज्ञा
[सं.]


केत
ध्वजा।
संज्ञा
[सं.]


केत
बुद्धि।
संज्ञा
[सं.]


केत
सलाह
संज्ञा
[सं.]


केत
अन्न।
संज्ञा
[सं.]


केतक
केवड़ा।
संज्ञा
[सं.]


केतक
कितने।
वि.
[सं. कति+एक]


केतक
बहुत।
वि.
[सं. कति+एक]


केतक
बहुत-कुछ।
वि.
[सं. कति+एक]


केतकर
केतकी का पौधा और फूल।
संज्ञा
[सं. केतकी]


केतकी
एक छोटा झाड़ या पौधा जिसके सफेद फूल बहुत सुगंधित होते हैं। प्रसिद्धि है कि इसके फूल पर भौंरा नहीं बैठता।
लोचन लालच तें न टरैं।….। ज्यों मधुकर रुचि रच्यौ केतकी कंटक कोटि अरै। तैसोई लोभ तजत नहिं लोभी फिरि फिरि फिरी फिरै - - - - २७७०।
संज्ञा
[सं.]


केतकी
एक रागिनी का नाम।
रामकली गुनकली केतकी सुर सुघराई गायौ। जैजैवंती जगतमोहिनी सुर सों बीन बजायौ - १०१७ सारा.।
संज्ञा
[सं.]


केतन
निमंत्रण।
संज्ञा
[सं.]


केतन
ध्वजा।
संज्ञा
[सं.]


केतन
चिन्ह।
संज्ञा
[सं.]


केतन
घर।
संज्ञा
[सं.]


केतन
स्थान।
संज्ञा
[सं.]


केतने
कितने (संख्यावाचक)
हौं अलि केतने जतन विचारों - सा. ६७।
वि.
[हिं. कितना]


केता
कितना।
वि.
[सं. कियत्]


केतारा
एक तरह की ऊख।
संज्ञा
[देश.]


केति,केतिक
कितना, किस कदर।
(क) तुम मोते अपराधी माधव, केतिक स्वर्ग पढ़ाए (हो) - १ - ७। (ख) कहौ बात अपने गोकुल की केतिक प्रीति ब्रजबालहिं।

(ग) केतिक दूरि गयौ रथ माई - २५८०। (घ) आगैं दै पुनि ल्यावत घर कौं तू मोहिं जान न देति। सूर स्याम जसुमत मैया सौं हा हा करि कहै केति–४२४।

वि.
[सं. कति+एक]


केति,केतिक
बहुत।
वि.
[सं. कति+एक]


केती
कितनी।
एती केती तुमरी उनकी कहत बनाइ-बनाई - ३३३४।
वि.
[हिं. केता]


केतु
ज्ञान।
संज्ञा
[सं.]


केतु
प्रकाश।
संज्ञा
[सं.]


केतु
ध्वजा, पताका।
संज्ञा
[सं.]


कटाऊ
काट- छाँट।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाऊ
बेल- बूटे।
संज्ञा
[हिं. कटाव]


कटाक्ष
तिरछी चितवन या नजर।
चंचलता निर्तनि कटाक्ष रस भाव बतावत नीके - सा. उ. - ८।
संज्ञा
[सं.]


कटाक्ष
व्यंग्य, ताना।
संज्ञा
[सं.]


कटाक्ष
लीला या अभिनय के अवसर पर पात्रों के नेत्रों के बाहरी कोरों पर खींची जानेवाली पतली काली रेखाएँ।
संज्ञा
[सं.]


कटाच्छ
चितवन, दृष्टि।
(क) नमो नमो हे कृपानिधान। चितवत कृपाकटाच्छ तुम्हारी, मिटि गयौ तम-अज्ञान - २ - ३३। (ख) कृपा-कटाच्छ कमल-कर फेरत सूर-जननि सुख देत - १० - १५४।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाच्छ
कृपादृष्टि।
काली बिषगंजन दह आइ। देखे मृतक बच्छ बालक सब लये कटाच्छ जिवाइ - ५७८।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाच्छ
तिरछी चितवन या नजर, कटाक्ष।
कबहिं करन गयौ माखन चोरी। जानै कहा कटाच्छ तिहारे, कमलनैन मेरौ इतनक सो री - १० - ३०५।
संज्ञा
[सं. कटाक्ष]


कटाछनि
तिरछी दृष्टि या चितवन।
भृकुटी सूर गही कर सारँग निकर कटाछनि चोट–सा. उ. - १६।
संज्ञा
[से, कटाक्ष]


कटान
कोटने की क्रिया या भाव।
संज्ञा
[हिं. काटना + आन (प्रत्य.)]


केतु
चिन्ह
संज्ञा
[सं.]


केतु
एक राक्षस का कबन्ध, जो नौ ग्रहों में माना जाता है।
संज्ञा
[सं.]


केतु
पुच्छल सारा जिसकी पूँछ से प्रकाश निकलता है।
संज्ञा
[सं.]


केतुमान
तेजस्वी।
वि.
[सं.]


केतुमान
जिसके पास ध्वजा हो।
वि.
[सं.]


केतुमान
बुद्धिमान।
वि.
[सं.]


केते
कितने।
रावा निसि केते अन्तर ससि, निमिष चकोर न लावत - १ - २१०।
वि.
[हिं. केता]


केतो, केतौ
कितना, कितना ही।
कह्यौ, विषय सौं तृप्ति न होइ। केतौ भोग करौ किन कोई - - ९.८।

(ख) मोहन हमारौ भैया केतो दधि पियतौ - ३७३।

वि.
[हिं. केता]


केदलि, केदली
केले का पेड़।
खग पर कमल कमल पर केदलि केदलि पर हरि ठान। हरि पर सर सरवर पर कलसा कलसा पर ससि भान - - २१९१।
संज्ञा
[सं. कदली]


केदार
हिमालय पर्वत का एक शिखर और प्रसिद्ध तीर्थ जहाँ केदार नामक शिवलिंग है।
अस्व मेध जज्ञहु जौ कीजै, गया बनारस-अरु केदार। राम नाम-सरि तऊ न पूजै, तनु गारौ जाइ हिवार - २ - ३।
संज्ञा
[सं]


केदार
एक राग जो रात्रि के दूसरे पहर में गाया जाता है।
रागरागिनी साँचि मिलाई गावैं सुघर गुंड मलार। सुहवी सारँग टोडी भैरवों केदार - २२७९।
संज्ञा
[सं]


केदार
वृक्ष के नीचे का थाला, थाँवला।
संज्ञा
[सं]


केदार
कामरूप देश का एक तीर्थ।
संज्ञा
[सं]


केदार
श्रीराम की सेना का एक बंदर।
कपि सोभित सुभर अनेक संग। ज्यौं पूरन ससि सागर तरंग। सुग्रीव बिभीषन जामवंत अंगद सुषेन केदार संत - - - ९ - १६६।
संज्ञा
[सं]


केदारनाथ
हिमालय का एक पर्वत जिस पर केदारनाथ नामक शिवलिंग है।
संज्ञा
[सं.]


केदारो, केदारौ
मेघराग का चौथा भेद जो रात के दूसरे पहर में गाया जाता है।
(क) मधुरैं सुर गावत केदारौ, सुनत स्याम चित लाई। सूरदास प्रभु नंदसुवन कौं नींद गई तब आई - - - - - १० - २४२। (ख) ऊँछ अड़ाने के सुर सुनियत निपट नायकी लीन। करत बिहार मधुर केदारो सफल सुरन सुख दीन - १०१४ सारा.
संज्ञा
[स. केदार]


केना
वह अन्न जो साग-भाजी लेने पर बदले में दिया जाता है।
संज्ञा
[सं. क्रेणि=मोल लेना]


केना
साग-भाजी।
संज्ञा
[सं. क्रेणि=मोल लेना]


केम
कदंब।
संज्ञा
[सं. कदंब]


केयूर
बाँह में पहनने का एक अभूषण; अंगद, भुजबंद, भुजभूषण।
अंग अभूषनि जननि उतारति। दुलरी ग्रीव माल मोतिनि की, लै केयूर भुज स्याम निहारति - - ५१२।
संज्ञा
[सं.]


केयूरी
जो केयूर नामक अलंकार धारण किये हो।
वि.
[सं.]


केर
संबंध सूचक विभक्ति। अवधी भाषा में 'का' के लिए इसका प्रयोग होता है।
अव्य.
[सं. कृत]


केरा
केला, कदली।
खारिक, दाख, खोपरा, खीरा। केरा, आम, ऊख रस सीरा - १० - २११।
संज्ञा
[हिं. केला]


केराना
मसाला, मेवा आदि।
संज्ञा
[हिं. किराना]


केराव
मटर।
संज्ञा
[सं. कलाय]


केरि
की।
प्रत्य.
[सं. कृत]


केरि
क्रीड़ा।
संज्ञा
[सं. केलि]


केरी
की।
(क) नाहीं सही परति मोपै अब, दारुन त्रास निसाचर केरी - ९९३।

(ख) सूर स्याम तुमको अति चाहत तुम प्यारी हरि केरी - - १४५७।

प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. 'केर' अथवा 'के' विभक्ति का स्त्री. रूप]


केरी
कच्ची अँबिया।
संज्ञा
[देश.]


केरे
के।
(क) गाउँ हमारो छाँड़ि जाइ बसिहौ केहि केरे - - - १०१५।

(ख) बहुरि तातो कि यो डारि तिन पर दियो आय लपटे सुतहु नंद केरे - २५९०

प्रत्‍य.
[सं. कृत, हिं. ‘केर' का बहु. रूप]


केरो, केरौ
का, के।
अजान जानिकै अपनो दूत भयो उन केरो - ३४३१।
प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. केर]


केलक
हाथ में तलवार, कटारी आदि लेकर नाचनेवाले लोग।
संज्ञा
[सं.]


केला
एक पेड़ जिसके पत्ते खूब लंबे और गूदेदार फल मीठे होते हैं।
संज्ञा
[सं. कदल, प्रा. कयल]


केलि
खेल, क्रीड़ा, लीला।
आउ धाम मेरे लाल कैं आँगन बाल-केलि कौं गावति है - १० - ७३।
संज्ञा
[सं.]


केलि
रति, समागम।
संज्ञा
[सं.]


केलि
हँसी- ठट्ठा।
संज्ञा
[सं.]


केलि
पृथ्वी।
संज्ञा
[सं.]


केलिक
अशोक वृक्ष।
संज्ञा
[सं.]


केलिकला
सरस्वती की वीणा।
संज्ञा
[सं.]


केलिकला
रति, समागम।
संज्ञा
[सं.]


केलिकिल
नाटक का विदूषक।
संज्ञा
[सं.]


केलिकिल
कामदेव की स्त्री, रति।
संज्ञा


केली
[सं. कदली, प्रा. कदली]
छोटी जाति का केला।
संज्ञा


केली
क्रीड़ा, आनंद, विनोद, रंजन।
मधुकर हम न होहिं वै बेली। जिन भजि तजि तुम फिरत और रँग करत कुसुम रस केली - २९९४।
संज्ञा
[सं. केलि]


केवट
क्षत्रिय पिता और वैश्या माता से उत्पन्न एक वर्ण संकर जाति जिसके लोग प्रायः नाव चलाते हैं।
जासु महिमा प्रगटि केवट, धोइ पग सिर धरन - १ - ३०८।
संज्ञा
[सं. कैवर्त्त, प्रा. केवट्ट]


केवड़ा, केवरा
सफेद केतकी का पौधा।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवड़ा, केवरा
इस पौधे को फूल।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवड़ा, केवरा
इस फूल का उतारा हुआ अरक।
संज्ञा
[सं. केविका]


केवल
अकेला।
वि.
[सं.]


केवल
पवित्र।
वि.
[सं.]


केवल
उत्तम, श्रेष्ठ।
वि.
[सं.]


केवल
जिसमें दूसरी बात या चीज की मिलावट न हो।
वि.
[सं.]


केवल
सिर्फ, मात्र।
क्रि. वि.


केवल
विशुद्ध और सम्यक ज्ञान।
संज्ञा


केवली
मुक्ति का अधिकारी।
संज्ञा
[सं. केवल+ई (प्रत्‍य.)]


केवली
मुक्ति प्राप्त।
संज्ञा
[सं. केवल+ई (प्रत्‍य.)]


केवाँच
एक बेल।
संज्ञा
[हिं. कौंछ]


केवा
कमल की कली।
संज्ञा
[सं. कुव=कमल]


केवा
बहाना, मिस।
संज्ञा
[सं. किंवा]


केवाईं
कुईं, कुमोदनी।
संज्ञा
[हिं. केवा]


केश
किरण।
संज्ञा
[सं.]


केश
विश्व।
संज्ञा
[सं.]


केश
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


केश
सूर्य के बाल।
संज्ञा
[सं.]


केश
केशी नामक दैत्य जो कंस का सेवक था।
संज्ञा
[सं.]


केशकर्म
बाल सँवारने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


केशट
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


केशट
कामदेव का शोषण नामक वाण।
संज्ञा
[सं.]


केशपाश
बालों की लट।
संज्ञा
[सं.]


केशर
केसर।
संज्ञा
[सं. केसर]


केशरिया
केसर के रंग का।
वि.
[हिं. केसरिया]


केशरी
सिंह।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केशरी
हनुमान के पिता का नाम।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केशव
विष्णु का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


केशव
श्रीकृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


केशव
परमेश्वर।
संज्ञा
[सं.]


केशविन्यास
बालों का सँवारना।
संज्ञा
[सं.]


केशांत
मुंडन संस्कार।
संज्ञा
[सं.]


केशि
एक राक्षस जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं.]


केशिनी
सुंदर बालवाली।
वि.
[सं.]


केशी
एक असुर जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
संज्ञा
[सं. केशिन्]


केशी
एक यादव।
संज्ञा
[सं. केशिन्]


केशी
अच्छे बालोंवाला।
वि.


केस
सिर के बाल।
संज्ञा
[सं. केश]


केस
केस खसै- बाल बाँका हो, कष्ट पड़े। उ.- जाकौं मनमोहन अंग करै। ताकौ केस खसै नहिं सिर तैं, जौ जग बैर परै - १ - ३७।

केस नहिं टारि सके- बाल बाँका न कर सके, कुछ हानि न पहुंचा सके। उ.- जाकी कृपा पपित ह्वै पावन पग परसत पाहन तरै। सूर केस नहिं टारि सकै कोउ, दाँति पीसि जौ जग मरै - १ - २३४।

मु.


केसपास
बालों की लट।
बरना भख कर में अवलोकत केसपास कृतबंद - - - ९८९ सारा.।
संज्ञा
[सं. केशपाश]


केसर
बाल की तरह पतली सीकें जो फूलों के बीच में होती हैं।
संज्ञा
[सं.]


केसर
एक प्रकार के फूल का केसर जिसका रंग लाल होता है, पर पीसने पर पीला हो जाता है।
संज्ञा
[सं.]


केसर
घोड़े, सिंह आदि की गरदन के बाल, अयाल।
संज्ञा
[सं.]


केसर
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


केसर
नागकेसर।
संज्ञा
[सं.]


केसरि
केसर के रंग का, पीले रंग का।
केसरि चीर पर अबीर मानो परयौ खेलत फागु डारयौ खिलारी - २५९५।
वि.
[हिं. केसर]


केसरिया
केसर के रंग का।
वि.
[सं. केसर+इया (प्रत्य.)]


केसरिया
जिसमें केसर पड़ी हो।
वि.
[सं. केसर+इया (प्रत्य.)]


केसरी
सिंह।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
घोड़ा
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
नागकेसर।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
हनुमान जी के पिता का नाम।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसरी
राम की सेना का एक बंदर।
नल-नील द्विविद-केसरी-गवच्छ। कपि कहे कछुक हैं बहुत लच्छ - ९ - १६६।
संज्ञा
[सं. केसरिन्]


केसव
विष्णु का एक नाम।
संज्ञा
[सं. केशव]


कटि
कमर।
गये कटि नीर लौं नित्य संकल्प करि करत स्नान इक भाव देख्यौ - २५५४।
संज्ञा
[सं.]


कटि
मंदिर का द्वार।
संज्ञा
[सं.]


कटि
हाथी का गंडस्थल।
संज्ञा
[सं.]


कटि
पीपल।
संज्ञा
[सं.]


कटिजेब
करधनी, किंकिणी।
संज्ञा
[सं. कटि+फ़ा जेब]


कटिबंध
कमरबंद।
संज्ञा
[सं.]


कटिबंध
गरमी-सरदी के आधार पर किये हुए पृथ्वी के पाँच भाग।
संज्ञा
[सं.]


कटिबद्ध
कमर बाँधे हुए।
वि.
[सं.]


कटिबद्ध
तैयार, उद्यत।
वि.
[सं.]


कटि-बसन
कमर में पहनने का वस्त्र, साड़ी।
संज्ञा
[सं. कटि+बसन]


केसव
श्रीकृष्ण का एक नाम।
संज्ञा
[सं. केशव]


केसवराई
श्रीकृष्ण का एक नाम, केशवराय।
कर गहि छीर पियावत अपनौ, जानति केसवराई - १० - ५२।
संज्ञा
[सं. केशव+हिं. राय]


केसारी
एक तरह की मटर।
संज्ञा
[सं. कृसर, हिं. खेसारी]


केसि, केसी
कंस का दरबारी एक राक्षस जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
बकी बका सकटा त्रिन केसी बछ वृष भये समै अलि बिन गोपाल इति बैर कीन - सा.उ. ३९।
संज्ञा
[सं. केशिन्, केशी]


केसू
टेसू, पलाश।
संज्ञा
[सं. किंशुक]


केहरि, केहरी
सिंह, शेर।
कठुला-कंठ, बज्र केहरि नख, राजत रुचिर हिए - १० - ९९।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केहरि, केहरी
घोड़ा।
संज्ञा
[सं. केसरी]


केहरिनहा
बघनहा।
संज्ञा
[सं. हरि+हिं. नख]


केहरी
सिंह।
संज्ञा
[सं.]


केहा
मोर।
संज्ञा
[सं. केका, प्रा. केआ]


केह
बटेर के बराबर एक पक्षी।
संज्ञा
[सं. केका, प्रा. केआ]


केहि, केही
किस।
ब्रह्मा सिव स्तुति न सकैं करि मैं बपुरो केहि माहीं - १० उ. - १३२।
वि.
[सं. किं]


केहूँ
किसी भाँति या तरह।
क्रि. वि.
[सं. कथम्]


केहू
कोई।
सर्व.
[हिं. के]


कैं
कर, करके।
लच्छागृह तैं काढ़ि कैं पांडव गृह ल्यावै–१ - ४।
प्रत्य.
[हिं. कर]


कैं
कर्म, संप्रदान और अधिकरण का विभक्ति-प्रत्यय, के, के यहाँ।
(क) जैसें गैया बच्छ कैं सुमिरत उठि ध्यावे - १ - ४। (ख) कौन जाति अरु पाँति बिदुर कीताही कैं पग धारत - १ - १२।
प्रत्‍य.
[हिं. के]


कैं
संबंधसूचक विभक्ति-प्रत्यय, के।
(क) तजि बैकुंठ, गरुड़ तजि, श्री तजि, निकट दास कैं आयौ–१०१०।
प्रत्य.
[हिं. का]


कैंकर्य
सेवा, सेवकाई।
संज्ञा
[सं.]


कैंचा
ऐंचाताना।
वि.
[हिं. काना+ऐंचा=कनैचा]


कैंचा
बड़ी कैंची।
संज्ञा
[तु. कैंची]


कैंची
कतरनी।
संज्ञा
[तु.]


कैंची
तिरछी रखी हुई तीलियाँ-सलाइयाँ आदि।
संज्ञा
[तु.]


कैंचुल
केंचुल।
संज्ञा
[हिं. केंचुल]


कैड़ा
नापने का एक पैमाना।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैड़ा
चाल, ढंग।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैड़ा
चतुराई।
संज्ञा
[सं. कांड=एक माप]


कैती
ओर से।
मेरी कैंती बिनती करनी–९ - १०१।
क्रि. वि.
[हिं. के+तीर]


कै
कितना (संख्या), किस कदर (परिमाण)।
जैसैं अंधौ अंध कूप मैं गनत न खाल-पनार। तैसेहिं सूर बहुत उपदेसैं सुनि सुनि गे कै बार - १.८४।
वि.
[सं. कति, प्रा. कइ]


कै
या, वा, अथवा, या तो।
(क) राम भक्तबत्सल निज बानौं। जाति, गोत, कुल नाम गनत नहिं रंक होइ कै रानौ - १ - ११। (ख) जन्म सिरानौ ऐसैं ऐसैं। कै घर घर भरमत जदुपति बिनु, कै सोवत, कै बैंसें। कै कहुँ खान-पान रमनादिक, कै कहुँ बाद अनैसैं। कै कहुँ रंक, कहूँ ईस्वरत्ता, नट-बाजीगर जैसे - १.२९३।
अव्‍य.
[सं. किम्]


कै
सम्बन्ध-सूचक विभक्ति, के, कर।
(क) रोर कै जोर तैं सोर घरनी कियौ चल्यौ द्विज द्वारिका-द्वार ठाढ़ौ - १.५।

(ख) महा मोहिनी मोहि आत्मा अपमारगाहिं लगावै। ज्यों दूती पर-बधू भोरि कै, लै पर-पुरुषदिखावै -१- ४२।

प्रत्य.
[हिं. का]


कै
करो, उपयोग में लायो।
नभ तैं निकट आनि राख्यौ है, जल-पुट जतन जुगै। लै अपने कर काढ़ि चंद कौं, जो भावै सो कै - १० - १९५।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कै
करके।
सुनि स्रवन, दस-बदन सदन-अभिमान, कै नैन की सैन अंगद बुलायौ - ९:१२८।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कै
एक तरह का मोटा धान।
संज्ञा
[देश.]


कै
वमन, उलटी।
संज्ञा
[अ. कै]


कैकइ, कैकई
राजा दशरथ की रानी जो भरत की माता थी।
संज्ञा
[सं. कैकेयी]


कैकस
राक्षस।
संज्ञा
[सं.]


कैकेयी
कैकय देश या गोत्र की स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कैकेयी
राजा दशरथ की रानी जो कैकय देश की राजकुमारी थी।
संज्ञा
[सं.]


कैटभ
एक दैत्य जो मधु का छोटा भाई था और विष्णु द्वारा मारा गया था।
संज्ञा
[सं.]


कैटभा
दुर्गा का एक नाम।
संज्ञा
[सं.]


कैटभारि
विष्णु का एक नाम जो कैटभ दैत्य को मारने के कारण पड़ा था।
बोलत खग-निकर मुखर, मधुर होइ प्रतीति सुनौ, परम प्रान-जीवन-धन मेरे तुम बारे। मनौ बेद-बंदीजन, सूतवृंद मागधगन, बिरद बदत जै जै जै जैति कैटभारे - १० - २०५।
संज्ञा
[सं. कैटभ+अरि]


कैतव
धोखा, छल-कपट।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
जुआ, द्यूत।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
लहसुनियाँ।
संज्ञा
[सं.]


कैतव
छली, कपटी।
वि.


कैतव
जुआरी।
वि.


कैतवापह्नति
एक अलंकार जिसमें विषय का किसी बहाने से गोपन या निषेध किया जाय।
संज्ञा
[सं.]


कैथ, कैथा
एक कँटीला पेड़।
संज्ञा
[सं. कपित्थ]


कैथी
एक पुरानी लिपि जो अधिकतर बिहार में प्रचलित है।
संज्ञा
[हिं. कायस्थ]


कैद
कारावास।
साचौं सो लिखहार कहावै।...। मन महतौ करि कैद अपने मैं, ज्ञान-जहतिया लावै–१ - १४२।
संज्ञा
[अ.]


कैद
बंधन।
संज्ञा
[अ.]


कैद
शर्त, प्रतिबंध।
संज्ञा
[अ.]


कैदखाना
जेलखाना, कारागार, बंदीगृह।
संज्ञा
[फा. कैदख़ाना]


कैदी
जो कैद हो, बंदी।
संज्ञा
[अ. कैद]


कैदु
बंधन, प्रतिबन्ध।
हारि मानि उठि चल्यौ दीन ह्वै जानि अपुन पै कैदु - ३४६८।
संज्ञा
[हिं. कैद]


कैधों, कैधौं
या, वा, अथवा।
कैधौं तुम पावन प्रभु नाहीं, के कछु मो मैं झोलौ। तौ हौं अपनी फेरि सुधारौं, वचन एक जौ बोलौ - १ - १३६।
अव्य.
[हिं, कै+धौं]


कैन
बाँस की पतली टहनी।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कैन
पतली टहनी।
संज्ञा
[सं. कंचिका]


कैनित
एक खनिज पदार्थ।
संज्ञा
[देश.]


कैफ
नशा, मद।
संज्ञा
[अ.]


कैफ
चारा जिसमें मादक द्रव्य मिला हो।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
समाचार, हाल।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
विवरण।
संज्ञा
[अ.]


कैफियत
विचित्र घटना।
संज्ञा
[अ.]


कैबर
तीर का फल।
संज्ञा
[देश.]


कैबा
कितनी बार।
संज्ञा
[हिं. कै=कई+बार]


कैबा
कई बार।
संज्ञा
[हिं. कै=कई+बार]


कैबार
किवाड़।
संज्ञा
[हिं. किवाड़]


कैम, कैमा
चौड़े सिरे के पत्तेवाला कदंब।
संज्ञा
[सं. कदंब]


कैयो
कई प्रकार के, कई तरह के।
कैयो भाँति केरा करि लीने - २३२१।
क्रि. वि.
[हिं. कै=कई+यो]


कैर
एक कँटीली झाड़ी।
संज्ञा
[सं. करील]


कैरव
, कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
सफेद कमल।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
शत्रु।
संज्ञा
[सं.]


कैरव
जुआरी।
संज्ञा
[सं.]


कैरवाली
कैरवों का समूह।
संज्ञा
[सं.]


कैरवि
चंद्रमा।
संज्ञा
[सं.]


कैरवी
चाँदनी (रात)।
संज्ञा
[सं.]


कैरा
भूरा (रंग)।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
लाल झलकवाली सफेदी।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
एक तरह का बैल।
संज्ञा
[सं. कैरव=कुमुद]


कैरा
जिसकी आँखें भूरी हों।
वि.


कैरात
किरात जाति या देश संबंधी।
वि.
[सं.]


कैरात
एक तरह का चंदन।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
बली आदमी।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
एक तरह का साँप।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
एक चिड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कैरात
राग का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कैरी
भूरे रंग की।
वि.
[हिं. कैरा]


कैरी
लाली लिये सफेद रंग की।
वि.
[हिं. कैरा]


कैरी
छोटा आम, अँबिया।
संज्ञा
[हिं. केरी]


कैरी
की।
प्रत्य.
[सं. कृत, हिं. ‘केर' का स्त्रीलिंग रूप]


कैल
वृक्ष की नयी पतली शाखा, कनखा।
संज्ञा
[हिं. कल्ला]


कैलास
हिमालय की चोटी जिस पर शिव जी का निवास माना जाता है, शिव का निवास स्थान।
संज्ञा
[सं.]


कैलास
एक प्रकार के षट्कोण मंदिर।
संज्ञा
[सं.]


कैलास
स्वर्ग।
संज्ञा
[सं.]


कैफी
मतवाला।
वि.
[अ.]


कैफी
नशेबाज।
वि.
[अ.]


कैलासपति
शिव जी।
संज्ञा
[सं.]


कैलासवास
मृत्यु।
संज्ञा
[सं.]


कटु
मन को बुरा लगनेवाला, कड़ुआ
कै सरनागत कौं नहिं राख्यौ। कै तुमसौं काहू कटू भाख्यौ। - १ - २८६।
वि.
[सं.]


कटु
छः रसों में से एक, चरपरा, कड़ुआ।
कंचन-काँच कपूर कटु खरी एकहिं सँग क्‍यौं तोले - ३२६४।
वि.
[सं.]


कटुआ
कटा हुआ, टुकड़े - टुकड़े।
वि.
[हिं. काटना]


कटुक
कडुआ, कटु।
वि.
[सं.]


कटुक
जो चित्त को बुरा लगे।
(क) मुख जो कही कटुक सब बानी हृदय हमारे नाहीं - ११९१। (ख) एते मान भये बस मोहन बोलत कटुक डराई। दीपक प्रेम क्रोध मारुत छिन परसत जिनि बुझि जाई - १२७५।
वि.
[सं.]


कटुक
खट्टे।
सबरी कटुक बेर तजि, मीठे चाखि, गोद भरि ल्याई। जूठनि की कछु संक न मानी भच्छ किए सत-भाई - १ - १३।
वि.
[सं.]


कटुके
कडुआ, कटु।
वि.
[सं. कटुक]


कटुके
अप्रिय, जो चित्त को भला या प्रिय न हो।
लीजो जोग सँभारि आपनो जाहु तहीं तटके। सूर स्याम तजि कोउ न लैहै या जोगहिं कटुके–३१०७।
वि.
[सं. कटुक]


कटुत
कडुआपन, अप्रियता।
संज्ञा
[सं.]


कटूक्ति
कडुई या अप्रिय बात।
संज्ञा
[सं. कटु+उक्ति]


कैलासी
कैलास निवासी शिव।
संज्ञा
[सं. कैलास=ई (प्रत्य.)]


कैलासी
कुबेर।
संज्ञा
[सं. कैलास=ई (प्रत्य.)]


कैवर्त
एक वर्णसंकर जाति, केवट, मल्लाह।
संज्ञा
[सं. कैवर्त]


कैवर्तिका
एक लता।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
शुद्धता, मिलावट न होना।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
मुक्ति, निर्वाण।
संज्ञा
[सं.]


कैवल्य
एक उपनिषद का नाम।
संज्ञा
[सं.]


कैवाँ, कैवा
कई बार।
कहा जानै कैवाँ मुवौ, (रे) ऐसे कुमति, कुमीच। हरि सौं हेतु बिसारि कै, (रे) सुख चाहत है नीच - १ - ३२५।
क्रि. वि.
[हिं. कै=कई+वाँ=बार]


कैशिक
बड़े बालवाला।
वि.
[सं.]


कैशिक
केशसमूह।
संज्ञा


कैशिक
केशशृंगार।
संज्ञा


कैशिकी
नाटक की एक वृत्ति।
संज्ञा
[सं.]


कैसा
किस तरह का।
वि.
[सं. कीदृश, प्रा. करेस]


कैसा
किसी प्रकार का नहीं (निषेधात्मक प्रश्न रूप में)।
वि.
[सं. कीदृश, प्रा. करेस]


कैसा
के समान, की तरह।
क्रि. वि.
[हिं. का+सा]


कैसिक
कैसे, किस भाँति।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
किस प्रकार से, किस रीति से।
कहि, जाकौं ऐसौ सुत बिछुरै, सो कैसैं जीवै महतारी - १० - ११।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
किस हेतु, किस लिए, क्यों।
क्रि. वि.
[हिं. कैसा]


कैसे, कैसैं
कैसेहूँ करि- किसी प्रकार से, बड़े यत्नों से, बड़े भाग्य से, राम-राम करके। उ.- ढोटा एक भयौ कैसेहुँ करि कौन कौन करबर विधि भानी - ३६८।
मु.


कैसो, कैसौ
कैसा
उनहूँ कैं गृह, सुत, द्वारा हैं, उन्हैं भेद कहु कैसो - २ - १४।
वि.
[हिं. कैसा]


कैसो, कैसौ
के समान, की तरह।
कबहुँ नाहिं इहिं भाँति देख्यौ आजु कैसौ रंग - ४१७।
क्रि. वि.
[हिं. का+सा]


कैहूँ
किस तरह, किस प्रकार।
क्रि. वि.
[हिं. कै= कैसे+हूँ (प्रत्य.)]


कैहैं
कहेंगे।
सबै कैहैं इहै भली मति तुम यहै नंद के कुँवर दोउ मल्ल मारे - २६०५।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कैहै
करेगा, संपादन करेगा।
कहयौ तोहिं ग्राह आनि जब गैहै। तू नारायन सुमिरन कैहै - ८ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कैहौं
करुँगा।
जब मैं भक्ति स्याम की कैहौं। जानत नहीं कहा मैं पैहौं–४ - ९।
क्रि. स.
[हिं. करना]


कैहौ
कहोगे, मुख से बोलोगे।
(क) एक गाँव एक ठाँव को बास एक तुम कैहौ, क्यों मैं सैहों - ८४३। (ख) कबहुक तात तात मेरे मोहन या मुख मोसौं कैहौ–२६५०।
क्रि. स.
[हिं. कहना]


कोंइछा
आँचल का भाग जिसमें कुछ बाँधकर कमर में खोंसा जाय।
संज्ञा
[हिं. कोंछा]


कोई
कुमुदिनी।
संज्ञा
[सं. कुमुदिनी, प्रा. कुउई]


कोंचना
चुभाना, गड़ाना।
क्रि. स.
[सं. कुच्]


कोंचा
पक्षी फँसाने की लासा लगी लग्घी।
संज्ञा
[हिं. कोंचना]


कोंचा
भड़भूजे का कल्छा।
संज्ञा
[हिं. कोंचना]


कोंचा
स्त्रियों के अंचल का छोर या कोना।
संज्ञा
[सं. कक्ष, प्रा. कच्छ]


कोंछना
स्त्रियों की साड़ी का या मर्दो की बंगाली ढंग से पहनी जानेवाली धोती का आगे का भाग चुनना।
क्रि. स.
[हिं. कोंछ]


कौंछियाना
कोंछना।
क्रि. स.
[हिं. कोछ]


कोंछी
साड़ी या धोती का वह भाग जो चुनकर पेट के आगे खोंसा जाय, नीबी।
संज्ञा
[हिं. कोंछ]


कोड़ई
एक कँटीला पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोड़हा, कोंढ़ा
धातु का छल्ला।
संज्ञा
[सं. कुंडल]


कोंढ़ी
कली जो खिली न हो।
संज्ञा
[सं. कोष्ठ]


कोंध
दिशा, ओर।
एक कोंध ब्रज सुन्दरी एक कोंध ग्वाल-गोविन्द हो। सरस परस्पर गावहीं द नारि गारि बहु वृंद हो - २४४९।
संज्ञा
[सं. कोण अथवा कुत्र, पुं. हिं. कोद, कोध]


कोप
कल्‍ला, अंकुर।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


कोंपना
कोंपल निकलना।
क्रि. अ.
[हिं. कोंपल]


कोंपर
अधपका आम।
संज्ञा
[हिं. कोंपल]


कोंपल
नयी पत्ती, कल्ला, कनखा।
संज्ञा
[सं. कोमल या कुपल्लव]


कोंवर, कोंवरी
कोमल, नरम, मुलायम।
वि.
[सं. कोमल]


कोंवर, कोंवरी
सहनीय, भली लगनेवाली।
प्रात-समय रवि-किरनि कोंवरी, सो कहि सुतहिं बतावति है। आउ धाम मेरे लाल कैं आँगन, बाल केलि कों गावति है - १० - ७३।
वि.
[सं. कोमल]


कोंस
लंबी कली, छीमी।
संज्ञा
[सं. कोश]


कोंहड़ा
कुम्हड़ा, सीताफल।
संज्ञा
[हिं. कुम्हड़ा]


कोहड़ौरी
कुम्हड़े या पेठे की बरी।
संज्ञा
[हिं. कोहड़ा=कुम्हड़ा+बरी]


कोंहरा
उबाले हुए चने या मटर जो छौंक कर खाये जाते हैं।
संज्ञा
[देश.]


कोंहार
कुम्हार।
संज्ञा
[हिं. कुम्हार]


को
कौन, किसने।
(क) ऐसी को करी अरु भक्त काजैं। जैसी जगदीस जिय धारी लाजैं - १ - ५। (ख) तू को ? कौन देश है तेरौ, कै छल गहयौ राज सब मेरो - १ - २९०।
सर्व.
[सं. कः]


को
कर्म और संप्रदान कारकों की विभक्ति।
प्रत्‍य.


कोआ
रेशम का कीड़ा।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोआ
रेशमी कीड़े का घर।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोआ
कटहल का कोया।
संज्ञा
[सं. कोश या हिं. कोसा]


कोइ
का।
सुनि देवता बड़े, जगपावन तू पति या कुल कोई - १० - ५६।
प्रत्‍य.
[हिं. का]


कोइ
कुमुदिनी।
पूरन मुख चंद्र देख नैन-कोइ फूलीं - ६४२।
संज्ञा
[हिं. कुँईं]


कोइरी
साग-तरकारी बोने वाली एक जाति।
संज्ञा
[हिं. कोपर=साग-पात]


कोइल, कोइलिया
मथानी में लगी गोल छेददार लकड़ी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कोइल, कोइलिया
करघी के बगल में लगी करघे की लकड़ी।
संज्ञा
[सं. कुंडली]


कोइल, कोइलिया
कोयल।
संज्ञा
[सं. कोंकिल, हिं. कोयल)


कोइली
कच्चा आम जिस पर कोयल के बैठने से काला सा दाग पड़ जाय।
संज्ञा
[हिं. कोयल]


कोई
अज्ञात मनुष्य या पदार्थ।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
अनिर्देशित व्यक्ति या वस्तु।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
एक भी (मनुष्य)।
हरि सौं मीत न देख्यो कोई १-१०।
सर्व.
[सं. कोपि, प्रा. कोवि]


कोई
मनुष्य या पदार्थ जो अज्ञात हो।
वि.


कोई
अनेक में से कोई एक।
वि.


कोई
एक भी।
वि.


कोई
लगभग।
क्रि. वि.


कोउ
कोई।
सूरदास की बीनती कोउ लै पहुँचावै–१ - ४।
सर्व.
[हिं. को+हू=भी]


कोउक
कोइ एक, कुछ लोग।
सर्व.
[हिं. कोउ+एक]


कोऊ
कोई, कोई भी।
गनिका-सुत सोभा नहिं पावत, जाके कुल कोऊ न पिता री - १ - ३४।
सर्व.
[हिं. को+हू (पत्य.) = भी]


कोकंब
एक पेड़ जिसके सब भाग खट्टे होते हैं।
संज्ञा
[देश.]


कोक
चकवा पक्षी, चक्रवाक।
सूरस्याम पर गई बारने निरष कोक जनु कोकी -सा. ११२।
संज्ञा
[सं.]


कोक
कोकदेव जो रतिशास्त्र के आचार्य थे।
संज्ञा
[सं.]


कोक
संगीत का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कोक
विष्णु।
संज्ञा
[सं.]


कोक
भेड़िया।
संज्ञा
[सं.]


कोकई
गुलाबीपन लिये नीला।
वि.
[तु. कोक]


कोककला
रति विद्या, कामशास्त्र।
(क) हाव-भाव, कटाच्छ लोचन, कोक-कला सुभाई - ६९०। (ख) कोककला-गुन प्रगटे भारी - - १२१६।

(ग) कोककला वितपन्न भई हौ कान्हरूप तनु आधा - १४३७।

संज्ञा
[सं.]


कोकन
एक पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोकनद
लाल कमल।
संज्ञा
[सं.]


कोकनद
लाल कुमुद।
संज्ञा
[सं.]


कोकना
कच्ची सिलाई करना, लंगर डालना।
क्रि. स.
[फ़ा. कोक=कच्ची सिलाई]


कोकनी
एक तरह का तीतर।
संज्ञा
[सं. कोक=चकवा]


कोकनी
एक रंग।
संज्ञा
[तु. कोक=आसमानी]


कोकनी
छोटा, नन्हा।
वि.
[देश.]


कोकनी
घटिया, मामूली।
वि.
[देश.]


कोकम
एक दक्षिणी पेड़।
संज्ञा
[देश.]


कोकव
एक राग।
संज्ञा
[सं.]


कोकशास्त्र
कोकदेव नामक एक पंडित कृत रति-शास्त्र।
संज्ञा
[सं.]


कोका
एक तरह का कबूतर।
संज्ञा
[हिं. कोक]


कोका
चकवा।
संज्ञा


कोकाबेरी, कोकाबेली
नीली कुईं या कुमुदिनी
संज्ञा
[सं. कोका+हिं. बेली]


कोकाह
सफेद रंग का घोड़ा।
संज्ञा
[सं.]


कोकिल
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कोकिल
छप्पय छंद का एक भेद।
संज्ञा
[सं.]


कोकिला
कोयल।
संज्ञा
[सं.]


कोकी
मादा चकवा।
संज्ञा
[सं.]


कोको
कौआ।
संज्ञा
[अनु.]


कटियाना
हर्षित या पुलकित होना।
क्रि. अ.
[हिं. काँटा]


कटिसूत्र
सूत की करधनी, मेखला।
संज्ञा
[सं.]


कटी
कट गयी।
क्रि. अ. भूत
[हिं. कटना]


कटी
दूर होती है, नष्ट होती है, छँटती है।
हृदय की कबहु न जरनि घटी। बिनु गोपाल बिथा या तन की कैसैं जाति कटी–१ - ६८।
क्रि. अ. भूत
[हिं. कटना]


कटीला
तेज, तीक्ष्ण
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
खूब चुभने या गहरा प्रभाव करनेवाला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
मोहित करनेवाला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीला
छैल-छबीला।
वि.
[हिं. काँटा]


कटीलियाँ
बहुत शीघ्र प्रभाव डालनेवाली, गहरा असर करनेवाली, मोहित करनेवाली।
(क) ओढ़े पीरी पावरी हो पहिरे लाल निचोल। भौहें काट कटीलियाँ मोहिं मोल लई बिन मोल - ८९३। (ख) भौहैं काट कटीलियाँ सखि बस कीन्हीं बिन मोल - १४६३।
वि.
[हिं. कटीली]


कटीले
काँटेदार, काँटों से भरे हुए।
कमल-कमल कहि बरनिए हो पानि पिय गोपाल। अब कवि कुल साँचे से लागे रोम कटीले नाल - पृ० ३४८ (५८)।
वि.
[हिं. काँटा]


कोख
गर्भाशय।
(क) जसुमति कोख आय हरि प्रगटे असुर तिमिर कर दूर - सारा. ३९। (ख) धन्य कोख जिहिं तोकौं राख्यौ, धनि घरि जिहिं अवतारी–७०३।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोख
कोख भाग सुहाग भरी- पति-पुत्र का सुख देखनेवाली और भाग्यवती। उ. धनि दिन है, धनि यह राति, धनि-धनि पहर-घरी। धनि धनि महरि की कोख, भाग-सुहाग भरी - १० - २४।

कोख की आँच- संतान का वियोग, संतान की ममता।

मु.


कोख
उदर, पेट।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोख
पेट के दोनों बगलों का स्थान।
संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि]


कोखजली
जिसकी संतान मर जाती हो।
वि.
[हिं. कोख+जलना]


कोखबंद
जिसके संतान हुई ही न हो, बाँझ।
वि.
[हिं. कोख+बंद]


कोखि
गर्भाशय, गर्भ।
(क) याकी कोखि औतरै जो सुत करै प्रान-परिहारा - १०.४। (ख) अहो जसोदा कत त्रासति हौ यहै कोखि कौ जायौ - ३४६।

(ग) तिनमें प्रथम लियो कश्यप गृह दिति की कोखि मँझार - सारा. ४४।

संज्ञा
[सं. कुक्षि, प्रा. कुक्खि, हिं. कोख]


कोखिजरी
जिसकी संतान जीवित न रहे, जिसे संतान का सुख़ न मिले।
पाऊँ कहाँ खिलावन कौ सुख, मैं दुखिया दुख कोखिजरी - १० - ८०।
वि.
[हिं. कोख+जलना]


कोगी
एक जानवर (सोनहा) जो लोमड़ी के बराबर होता है।
संज्ञा
[देश.]


कोचना
चुभाना, गड़ाना।
क्रि. स.
[सं. कुच् = लिखना]


कोचरा
एक घनी लता।
संज्ञा
[देश.]


कोचरी
एक पक्षी।
संज्ञा
[देश.]


कोचा
हल्का घाव।
संज्ञा
[हिं. कोचना]


कोचा
चुटीली बात, तानी।
संज्ञा
[हिं. कोचना]


कोजागर
शरद की पूर्णिमा।
संज्ञा
[सं.]


कोट
यूथ, जत्था।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोट
समूह, ढेर।
(क) सभा मँझार दुष्ट दुस्सासन द्रौपदि आनि धरी। सुमिरत पट कौ कोट बढ्यौ तब, दुख-सागर उबरी - १ - १६। (ख) जैसे बने गिरिराज जू तैसे अन को कोट–९१२

(ग) दसहूँ दिसि तैं उदित होत हैं दावानल के कोट - २७०३।

संज्ञा
[सं. कोटि]


कोट
महल, राजप्रासाद।
स्रवनन सुनत रहत जाको नित सो दरसन भये नैन। कंचन कोट कँगूरनि की छबि मानहु बैठे मैंन - २५५८।
संज्ञा
[सं.]


कोट
दुर्ग, किला।
(क) मय, मायामय कोट सँवारो। ता मैं बैठि सुरनि जय करौ। तुम उनके मारे नहिं मरौ - - ७ - ७। (ख) रही दे घूँघट पट की ओट। मनो कियो फिरि मान मवासो मनमथ बिकटे कोट - सा. उ. १६।
संज्ञा
[सं.]


कोट
शहरपनाह, प्राचीर।
संज्ञा
[सं.]


कोट
करोड़।
(क) राधे आज मदन-मद माती। सोहत सुंदर संग स्याम के षरचत कोट काम कल थाती - सा. ५०।

(ख) भादौं की अधराति अँध्यारी। द्वार-कपाट कोट भट रोके दस दिसि कंत कंस-भय भारी - १० - ११।

वि.
[सं. कोटि]


कोटपाल
दुर्गरक्षक।
संज्ञा
[सं.]


कोटर
पेड़ का खोखला भाग।
संज्ञा
[सं.]


कोटर
दुर्ग के आसपास का वन।
संज्ञा
[सं.]


कोटरी
दुर्गा, चंडिका।
संज्ञा
(सं]


कोटि
सौ लाख की संख्या, करोड़।
वि.
[सं.]


कोटि
धनुष का सिरा।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
वर्ग, श्रेणी।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
उत्तमता।
संज्ञा
[सं.]


कोटि
समूह, जत्था।
संज्ञा
[सं.]


कोटिक
करोड़।
वि.
[सं कोटि+क (प्रत्य.)]


कोटिक
अमित, असंख्य।
वि.
[सं कोटि+क (प्रत्य.)]


कोटिक्रम
विषय प्रतिपादन-क्रम।
संज्ञा
[सं.]


कोटिच्युत
पद से नीचे भेजा हुआ।
वि.
[सं.]


कोटिच्युति
पद से गिराने की क्रिया।
संज्ञा
[सं.]


कोटितीर्थ
एक तीर्थ जो उज्जैन, चित्रकूट आदि अनेक स्थानों पर है।
संज्ञा
[सं.]


कोटिनि
करोड़ों का समूह, ढेर।
पांडु-बधू पटहीन सभा मैं, कोटिनि बसन पुजाए। बिपति काल सुमिरत तिहिं अवसर जहाँ तहाँ उठि धाए - १ - १५८।
संज्ञा
[सं. कोटि+ हिं. नि (प्रत्य.)]


कोटिफली
गोदावरी नदी के सागर संगम समीप एक तीर्थ। प्रसिद्धि है कि इंद्र का अहिल्या संबंधी पाप यहीं स्नान करने से दूर हुआ था।
संज्ञा
[सं.]


कोटिबंध
पद, महत्व या मूल्य के अनुसार श्रेणी-विभाजन करना।
संज्ञा
[सं.]


कोटिबद्ध
श्रेणियों में विभक्त।
वि.
[सं.]


कोटिशः
बहुत तरह से।
क्रि. वि.
[सं.]


कोटिशः
बहुत बहुत।
वि.


कोटी
नोक या धार।
मेली सजि मुख-अंबुज भीतर उपजी उपमा मोटी। मनु बराह भूधर सह पुहुमी धरी दसन की कोटी - १० - १६४।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोटी
किसी अस्त्र की नोक।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोटू
एक पौधा जिसके बीजों का आटा फलहार रूप में खाया जाता है।
संज्ञा
[देश.]


कोट्टवी
वाणासुर की माता जो पुत्र की श्रीकृष्ण से रक्षा के लिए वस्त्र त्याग कर युद्ध क्षेत्र में आयी थी।
संज्ञा
[सं.]


कोट्टवी
वस्त्ररहित स्त्री।
संज्ञा
[सं.]


कोट्टवी
दुर्गा।
संज्ञा
[सं.]


कोठ
बहुत खट्टा।
वि.
[सं. कुंठ]


कोठरिया, कोठरी
छोटा या तंग कमरा।
संज्ञा
[हिं. कोठा+ड़ी (री)]


कोठा
बड़ा कमरा।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
भंडार।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
अटारी।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
पेट
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
गर्भाशय।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
खाना (शतरंज या चौपड़)।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठा
शरीर या मस्तिष्क का भीतरी भाग।
संज्ञा
[सं. कोष्ठक]


कोठार
अन्न आदि का भंडार।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठारी
भंडारी।
संज्ञा
[हिं. कोठार+ई (प्रत्य.)]


कोठी
बड़ा और बढ़िया पक्का मकान।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
उस धनी या महाजन का मकान जो खूब लेन-देन करता हो या थोक विक्रेता हो।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
कोठी खोलि- लेन देन का काम या बड़ा कारबार शुरू करके। उ. - करहु यह जस प्रगट त्रिभुवन निठुर कोठी खोलि। कृपा चितवनि भुज उठावहु प्रेम बचननि बोलि-पृ. ३४२ (१७)।
मु.


कोठी
अनाज का भंडार या कोठार।
संज्ञा
[हिं. कोठा]


कोठी
बाँसों का समूह जो एक साथ उगे हों।
संज्ञा
[सं. कोटि=समूह]


कोठीवाल
बड़ा महाजन।
संज्ञा
[हिं. कोठी+वाला (प्रत्य.)]


कोठीवाल
बड़ा व्यापारी।
संज्ञा
[हिं. कोठी+वाला (प्रत्य.)]


कोड़ना
खेत गोड़ना।
क्रि. स.
[सं. कुंड=खंडित करना]


कोड़ा
चाबुक, सोंटा।
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ा
उत्तेजक बात।
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ा
चेतावनी
संज्ञा
[सं. कवर=गुथे हुए बाल]


कोड़ाई
खेत गोड़ने की मजदूरी या काम।
संज्ञा
[हिं. कोड़ना]


कोड़ाना
कोड़ने का काम दूसरे से कराना।
क्रि. स.
[हिं. कोड़ना का प्रे.]


कोड़ी
बीस का समूह।
संज्ञा
[सं. कोटि]


कोढ़
एक भयानक रोग।
संज्ञा
[सं. कुष्ट]


कोढ़
कोढ़ की (में) खाज- दुख पर दुख।
मु.


कोढ़ी
कोढ़ नामक भयानक रोग से पीड़ित मनुष्य जो घृणित और अस्पृश्य समझा जाता है।
उल्टी रीति तिहारी ऊधौ सुनै सु ऐसी को है।...। मुडली पटिया पारि सँवारे कोढ़ी लावै केसरि। ...। सो गति होई सबै ताकी जो ग्वारिनि जोग सिखावै - ३०२६।
संज्ञा
[हिं. कोढ़]


कोण
कोना।
संज्ञा
[सं.]


कोण
दो दिशाओं के बीच की दिशा।
संज्ञा
[सं.]


कोण
हथियारों की धार।
संज्ञा
[सं.]


कोण
सोटा, डंडा।
संज्ञा
[सं.]


कोणार्क
एक तीर्थ जो जगन्नाथपुरी में है।
संज्ञा
[सं.]


कोत
बल, शक्ति।
संज्ञा
[अ. क़ुवत]


कोत
दिशा।
संज्ञा
[हिं. कोद, कोध]


कोतल
सजा हुआ घोड़ा जिस पर कोई सवार न हो।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोतल
राजा की सवारी का घोड़ा।
संज्ञा
[फ़ा.]


कोतल
जिसे कोई काम न हो।
वि.


कोतवार, कोतवाल
पुलिस का एक प्रधान कर्मचारी।
संज्ञा
[सं. कोटपाल)


कोतवार, कोतवाल
सभा या पंचायत में भोजनादि का प्रबंध करनेवाला कर्मचारी।
संज्ञा
[सं. कोटपाल)


कोतवाली
कोतवाल का कार्यस्थान।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल+ई (प्रत्य.)]


कोतवाली
कोतवाल का पद।
संज्ञा
[हिं. कोतवाल+ई (प्रत्य.)]


कोतह
छोटा, कम।
वि.
[फ़ा.]


को