:: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के त वर्ग का प्रथम व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

तआँय :: (सर्व.) तहाँ जिआँय-तिआँय शब्द युग्म में प्रयुक्त।

तँइ :: (क्रि. वि.) ओर, तरफ, प्रति।

तइपे :: (अ.) अव्यव इस पर भी, तब भी, तब भी।

तइया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी की कड़ाही, जलेबी या मालपुआ बनाने की चपटे क्षैतिज तल वाली उथली कड़ाही।

तइयार :: (वि.) पूर्णता प्राप्त, वस्तु तत्पर, उद्यत।

तइयार :: (क्रि. वि.) तैयार।

तई :: (सं. स्त्री.) मालपुआ बनाने का एक बर्तन, प्रत्यय से अव्य., वास्ते, लिए हेतु, अतः।

तई :: (कहा.) तई की तेरी, खपड़ी की मेरी - तवे की रोटी तेरी बर्तन की मेरी, अपना ही मतलब देखना।

तँई :: (अ. क्रि.) तब ही, इसलिए।

तँई :: (क्रि.) तनिक, बहुत थोडी मात्रा तनक का ग्राम्य प्रयोग।

तउँ मऊ :: (अव्य.) तथापि, जिस पर भी, तो भी।

तक :: सीमा सूचक अव्य. पर्यन्त।

तक :: (कहा.) तक तिरिया आपनी, पर तिरिया मत ताक, पर नारी के ताकने, पड़ै सीस पर खाक - पराई स्त्री को बुरी नजर से मत देखो।

तकता :: (क्रि. स.) दूसरे को देखने में प्रवृत्त करना, तुलवाना, तौल कराना।

तकबौ :: (क्रि.) देखना, ताकना।

तकरार :: (सं. स्त्री.) विरोध, विवाद, झगड़ा।

तकली :: (सं. स्त्री.) हाथ से सूत कातने का उपकरण, जिसमें लोहे की चपटी गोल चकती के बीच से एक तार डला रहता है।

तकलीब :: (सं. स्त्री.) कष्ट, पीड़ा।

तका :: (सं. पु.) दीवार का छोटा आला, देखने वाला, दीवार में से बाहर देखने के लिए बना हुआ छेद।

तका :: (कहा.) तका पराया हाथ और गया नरक - दूसरे के पैसे नजर डालना बुरा है, अथवा दूसरे का सहारा अच्छा नहीं।

तकाई :: (सं. स्त्री.) ताकने की क्रिया या भाव, वह धन जो ताकने के बदले में दिया जाए।

तकाबी :: (सं. स्त्री.) कार्य विशेष के लिए सरकारी ऋण।

तकिया :: (सं. पु.) सिरहाना, किसी फकीर की मजार।

तकिया :: (सं. स्त्री.) मुसलमानों के मुर्दे दफन करने का स्थान, कब्रिस्तान, पीठ से लगाने का वस्त्र, मसनद।

तकुआ :: (सं. पु.) तकला चरखे की सुई जिस पर सूत लपेटते हैं, नोंकदार तार।

तकुआ :: (मुहा.) तकुआ टेडौ होबौ-सच बात कहने से अप्रसन्न हो जाना, मिजाज, बिगड़ना।

तकैया :: (वि.) देखने या ताकने वाला।

तकैया :: (सं. पु.) तौलने वाला।

तक्का :: (सं. पु.) दे. तका, दीवार की ऊँचाई पर बना छोटा आला।

तक्कातौल :: (वि.) संतुलित।

तक्ता :: (सं. पु.) तख्ता, आईना, दर्पण।

तखत :: (सं. पु.) तख्त, बैठने या लेटने के लिये लकडी की पटिया जड़ी चारपाई, सिंहासन।

तखता :: (सं. पु.) लकड़ी का कम चौड़ा और लम्बा पल्ला, आइना, दर्पण।

तखता दार चुरिया :: (सं. स्त्री.) लाख की बनी वे चूड़ियाँ जिनमें दर्पण के टुकड़े लगे होते हैं।

तखरियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटा तख्ता, लिखने की पट्टी, पटिया।

तखरी :: (सं. स्त्री.) तखरिया, तराजू, हाथ से तौलने की लकड़ी की बनी तराजू।

तंग :: (वि.) नाप में आवश्यक से कम, वस्त्र विस्तार में कमी।

तंग :: (सं. पु.) घोड़े पर पलेंचा कसने का पट्टा, परेशान।

तंग :: (मुहा.) तंग करना-सताना, परेशान करना।

तंगई :: (वि.) कंगाली, परेशानी।

तगदीर :: (सं. स्त्री.) तकदीर, भाग्य।

तगदीर :: (कहा.) कदीर सूदी तौ सब कछू - भाग्य प्रबल है तो सब कछू।

तगर :: (सं. पु.) सुगन्धित लकड़ी वाला एक पेड़।

तगा :: (सं. पु.) तागा, सूत, धागा, जनेऊ लाक्षणिक अर्थ।

तगाई :: (सं. स्त्री.) तागने का काम, तागने की मजदूरी, सिलाई।

तगादौ :: (सं. पु.) तकाजा, उधार दी हुई वस्तु की वापिसी की माँग।

तगाबौ :: (क्रि. स.) तगाने का काम कराना, सिलवाना।

तंगाबौ :: (क्रि.) परेशान करना, चिढ़ाना, उत्तेजित करना, तंग करना।

तगार :: (सं. पु.) ऊपरी सतह।

तगारी :: (सं. स्त्री.) पीतल का एक पात्र।

तंगी :: (सं. स्त्री.) अर्थाभाव, तंगी।

तचबौ :: (क्रि.) अधिक गर्म होना, गर्मी से प्रभावित होकर गर्म होना कुम्हलाना, गर्मी और हवा की कमी से व्याकुल होना।

तचबौ :: (प्र.) तचति धरनि जग जरति झर्रान-सेनापति।

तच्छक :: (सं. पु.) राजा परीक्षित को काटने वाला एक नाग का नाम, एक प्रकार का विषैला सर्प।

तज :: (सं. स्त्री.) दालचीनी, दवा और मसाले के काम आने वाली वृक्ष की छाल।

तजबजिबो :: (क्रि.) खोज, उपाय करना।

तजबीज :: (सं. स्त्री.) उपाय व्यवस्था संबंधी उपाय।

तजबौ :: (क्रि.) छोड़ना, त्यागना, विमुख होना।

तजुरबा :: (सं. पु.) अनुभव।

तँजेब :: (सं. स्त्री.) कढ़ाईदार मलमल।

तट-तठ :: (सं. पु.) तट, नदी आदि का किनारा, धार्मिक प्रसंगों में प्रयुक्त।

तड़क भड़क :: (सं. स्त्री.) ठाट-बाट, चमक-दमक।

तड़कबौ :: (क्रि.) बादलों का गरजना, रह-रह कर किसी नस में जोर का दर्द होना, कान में दर्द होना।

तड़के :: (क्रि. वि.) प्रातःकाल, एक दम सबेरे।

तड़के :: (कहा.) तड़के उठकर खाट से, छोड़ सब काम, माला लेकर हाथ में, जप साईं का नाम।

तड़को :: (वि.) सबेरा।

तड़ंगा :: (वि.) मजबूत।

तड़फबौ :: (क्रि.) व्याकुल होना, बेचैन होना, पीड़ा से छटपटाना।

तड़रबो :: (क्रि.) टल जाना।

तड़ाक :: (वि.) तड़ शब्द होना।

तड़ाका :: (सं. पु.) तड़का की आवाज के साथ लगने वाला चाँटा।

तड़ातड़ :: (क्रि. वि.) लगातार, तड़तड़ की आवाज हो, इस प्रकार मारने का विशेषण।

तड़ातड़ :: (क्रि. वि.) इस प्रकार मारने का विशेषण।

तड़ेल :: (सं. स्त्री.) ट्रेल, ताश के खेल में एक ही अंक के तीन पत्तों का समूह (त्रेल)।

तंत :: (सं. पु.) सूत धागा, तन्त्र शास्त्र।

तंत मंत :: (सं. पु.) झाड़ने फूकने का मन्त्र या सिद्धांत।

ततइया :: (सं. स्त्री.) पीली बर्र।

ततहड़ :: (वि.) उष्ण, तप्त।

तताई :: (वि. स्त्री.) उष्मा, ताप।

ततास :: (सं. पु.) अंदर घुमड़ता हुआ क्रोध।

ततुइया :: (सं. स्त्री.) धातु या मिट्टी की एक प्रकार की छोटी।

ततूरी :: (सं. स्त्री.) गर्म धरती पर नंगे पैर चलने से पैरों में होने वाली जलन।

ततैया :: (स्त्री.) बर्रे, तेज, फुर्तीली।

तत्त :: (सं. पु.) तत्व।

तत्ताथेइ :: (सं. स्त्री.) नाच के बोल, बच्चों का एक ही स्थान पर बार बार दौड़ना लाक्षणिक अर्थ।

तथई :: (सं. स्त्री.) तथैव, जैसे के तैसे, अप्रभावित, अछूते।

तंदरा :: (सं. स्त्री.) अचैतन्य, अर्द्धसुप्तावस्था, ऊँघ। (तन्द्रा)।

तंदूर-तंदूल :: (सं. पु.) भट्टी।

तँदूरो :: (सं. पु.) हवा का वेग।

तन :: (वि.) थोड़ी, तनिक तनिक।

तन :: (सं. पु.) तन, देह, शरीर, तन मन शब्द युग्म में तनिक के संक्षिप्त रूप में प्रयुक्त।

तन :: (कहा.) तन पै नइयाँ लत्ता, पान खायें अलबत्ता - घर में खाने को न होने पर भी शौक करना।

तनइया :: (सं. पु.) खींचने वाला, तानने वाला।

तनक :: (वि.) तनिक, अल्प थोड़ा।

तनक :: (कहा.) तनक सी कानियाँ, सबरी रात किस्सा तो थोड़ा, उसमें सारी रात बिता दी।

तनकउ :: (अ.) बिलकुल।

तनखा :: (सं. स्त्री.) वेतन, पारिश्रमिक।

तनजेब :: (सं. स्त्री.) कढ़ाईदार, मलमल।

तनतनाबौ :: (क्रि.) क्रोध में बकझक करना।

तनबो :: (अ. क्रि.) खिचाव आदि के कारण विस्तर पर पहुँचना, ताना जाना अकड़कर सीधा खड़ा होना।

तनसुक :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का मलमल का कपड़ा।

तनहाई :: (सं. स्त्री.) जेल की एकांत कोठरी।

तना :: (वि.) अगारी, आगे का कपड़ा।

तनाक :: (सं. स्त्री.) थोड़ा-सा, बहुत थोड़ा।

तनाजो :: (वि.) लड़ाई, विद्रोह।

तनातनी :: (सं. स्त्री.) तनावपूर्ण बताचीत, वैमनस्य।

तनी :: (सं. स्त्री.) बटनों की बजाय लगायी जाने वाली कपड़े की पतली पट्टी।

तनैया :: (वि.) तानने वाला, विस्तार करने वाला।

तन्त :: (वि.) सीधा और पतला लटठा।

तन्नयाबो :: (कि.) अकड़ना, कड़ा कराना, खींचकर सीधा करना।

तन्नाबो :: (क्रि.) शान दिखाना, ऐंठना।

तन्नी :: (सं. वि.) रस्सी, तनी, तराजू के पल्ले बाँधने वाली रस्सी।

तप :: (सं. पु.) तपस्या।

तपन :: (सं. स्त्री.) धूप से धरती तपने के कारण हुई गर्मी।

तपना :: (सं. पु.) दाह संस्कार।

तपबौ :: (क्रि.) गर्म होना, तपस्या करना।

तपसी :: (वि.) तपस्वी।

तपसीरा :: (सं. पु.) फाग।

तपसील :: (सं. पु.) विवरण, विस्तार, स्पष्टता।

तपा :: (सं. पु.) एक नक्षत्र जिसमें सर्वाधिक गर्मी पड़ती है, ऐसा माना जाता है कि तपा में जितनी तेज गर्मी पडेगी वर्षा उतनी ही अच्छी होगी।

तपा :: (कहा.) तपा रये - भीषण गर्मी पड़ रही है।

तपातूबो :: (क्रि.) तपा के समय कुछ पानी बरसना।

तपाबौ-तपैबौ :: (क्रि.) गर्म करना।

तपास :: (क्रि.) तलाश।

तफड़का :: (वि.) घबराहट।

तब :: (अव्य.) उससमय, इसके पश्चात, इस कारण।

तब :: (कहा.) तब लग झूठ न बोलिये, जब लग प्राण बसाय - जब तक वश चले झूठ नहीं बोलना चाहिए, विवशता की बात दूसरी है।

तबँइँ-तबँउँ :: (सर्व.) तभी।

तबक :: (सं. पु.) सोने चाँदी के बर्क।

तबरखा-तबर्रखा :: (सं. पु.) वर्षा ऋतु में ऐसा अंतराल जिसमें तेज धूप निकलती है और वर्षा नहीं होती तथा फसलें कुम्हलाने लगती हैं।

तबला :: (सं. पु.) चमड़े से मढ़ा हुआ थाप देकर बजाया जाने वाला वाद्ययंत्र।

तबा :: (सं. पु.) चूल्हे पर रोटी सेकने के लिए रखा जाने वाला मिट्टी या लोहे का गोल चपटा और थोड़ा गहरा बरतन या इसी आकृति की कोई अन्य वस्तु।

तबा :: (कहा.) तबा की तोरी मटेलनी की मोरी - तबे पर सिक रही है वह तुम्हारी और जो बन चुकी है वह मेरी, स्वार्थी के लिए।

तबिजिया :: (स्त्री.) छोटा ताबीज, किसी देवी आदि की धातु पर बनी आकृति जो गले में धारण की जाती है, सोने या चाँदी की चौकोर कलात्मक टिकिया, जिसके कुन्दे में डोरा डालकर आभूषण के रूप में गले में पहना जाता है।

तबिलिया :: (सं. स्त्री.) पीतल का छोटा तबेला।

तंबू :: (सं. पु.) खेमा, कपडे से बना अस्थायी आवास, डेरा।

तबेला :: (सं. पु.) तली के बराबर चौड़े मुँह का धातु पात्र, बड़ी पतेली।

तबै :: (अ.) तभी।

तमकबौ :: (क्रि.) क्रोध का भाव मुख पर झलकना।

तमका :: (वि.) तेज धूप।

तमखेरो :: (सं. पु.) तमाखू बेचने वाला।

तमचयाबौ :: (क्रि.) चाटे मार-मार कर पीटना।

तमंचा :: (सं. पु.) पिस्तौल, रिवाल्वर।

तमतडू :: (वि.) लम्बी-चौड़ी बातें हाँकने वाला।

तमतमाबौ :: (क्रि. अ.) अधिक ताप के कारण किसी चीज का लाल होना, चमकना, क्रोध से चेहरा लाल होना।

तमाखू :: (सं. स्त्री.) तम्बाकू, एक पौधे के पत्ते जिसको शरीर में हल्की सी उत्तेजित देने के लिए चूना के साथ मलकर चबाने या धूम्रपान के लिए काम में लाया जाता है।

तमाखो :: (क्रि.) पटकना, मूर्च्छित करना।

तमाचा :: (सं. पु.) चाँटा, थप्पड़।

तमारौ :: (सं. पु.) बैट कर उठने पर आने वाला ऐसा चक्कर जिसमें आँखों के सामने अन्धकार छा जाता है।

तमाल :: (सं. पु.) तमाशा, नाटक जादू टोने या हाथ की सफाई का प्रदर्शन।

तमिरयाई :: (सं. स्त्री.) पीतल, ताँबे आदि धातुओं के बरतनों का बाजार।

तमिरयानों :: (सं. पु.) तमेरों का मुहल्ला।

तमुआँ :: (सं. पु.) ताँबे का बर्तन तम्हैड़ी-ताँबे का बर्तन।

तमुखया :: (सं. पु.) तम्बाकू खाने वाला।

तंमू :: (सं. पु.) शामियाना, शिविर, डेरा, खेमा।

तमूरा :: (सं. पु.) एक तारा, तार को झंकार कर बजाय जाने वाला वाद्ययंत्र।

तँमूरो :: (सं. पु.) सितार की तरह का एक बाजा, तानपूरा (चार तार वाला)।

तमेंड़ौ :: (सं. पु.) ताँबे पीतल के बर्तन बनाने वाला, अब इनकी जाति ही अलग हो गयी है, ताम्रकार।

तमोर :: (सं. पु.) ताँबे का पैसा, नौरता के लोक गीत. में प्रयुक्त।

तमोली :: (सं. पु.) पान बेचने वाला।

तँमोली :: (सं. पु.) पान बेचने वाला, तम्बूल विक्रेता, एक जाति जो पान बेचने का धंधा करती है।

तर :: (वि.) गीला, हरा।

तर :: (क्रि. वि.) तले, नीचे।

तर :: (कहा.) तर धरती ऊपर राम - शपथ के समय कहते हैं।

तरइया :: (सं. स्त्री.) तारा चश्मे का काँच, लेंस, तोप का वह छिद्र जिस पर बारूद रखकर पलीता लगाया जाता है।

तरईयाँ :: (सं. पु.) तारागण, तारे।

तरकस :: (सं. पु.) बाण रखने का खोखा।

तरकस :: (कहा.) तरकश में तो तीर नहीं, पर शरमा - शरमी लड़ते हैं-सफलता की आशा न होने पर भी अपनी शर्म रखने के लिए कोई काम करना।

तरका :: (सं. पु.) गुड़ के ऊपर का भाग।

तरकारी :: (सं. स्त्री.) हरी सब्जी, पकायी हुई सब्जी।

तरकिया :: (सं. स्त्री.) कान का एक प्रकार का गहना।

तरकुला :: (सं. पु.) कान मे पहनने का स्त्रियों का आभूषण, कर्णफूल।

तरकुली :: (सं. स्त्री.) गाड़ी के पहिये को भौरे के डंडे मे डालकर लकड़ी की एक गोल मोटी चकली, उसके ऊपर कील लगाते है।

तरक्की :: (सं. स्त्री.) उन्नति, पदोन्नति।

तरगेरक :: (सं. स्त्री.) तराजू।

तरजना :: (क्रि. अ.) भला बुरा कहते हुए डाँटना, क्रोध पूर्वक बिगड़ना।

तरट :: (सं. पु.) पूजा करने का लोटा।

तरन-तारन :: (सं. पु.) पारलौकिक जीवनका उद्धार यौगिक शब्द।

तरप :: (वि.) दिशा, तरफ, ओर बगल, पक्ष।

तरपलिया :: (सं. स्त्री.) कान या नाक के आभूषणों में पीछे लगायी जाने वाली रोक, ताकि आभूषण अपने आप निकल न सकें।

तरफ :: (क्रि. वि.) पक्ष ओर।

तरफदारी :: (सं. स्त्री.) पक्षपात, पक्ष करने की क्रिया, तरै।

तरफदारी :: (क्रि. वि.) पक्ष में, ओर।

तरफराबो :: (क्रि. अ.) छटपटाना, तिलमिलाना, तड़फना, तरफराबौ।

तरबरया :: (सं. पु.) तलवार धारण करने वाला।

तरबाबौ :: (क्रि.) बैलों, घोड़ों आदि खुर वाले जानवरों को सख्त या कँकरीली पथरीली जमीन पर अधिक चलने के कारण खुरों में दर्द होना।

तरबूज :: (सं. पु.) कलींदा।

तरबो :: (सं. पु.) मोक्ष प्राप्त करना या पार करना, नदी आदि।

तरबौ :: (क्रि.) सदगति होना, उद्धार होना, मोक्ष होना।

तरभर :: (वि.) भगदड, खलबली।

तरयाबो :: (क्रि.) लज्जित करना, अछयाबो।

तरवा :: (सं. पु.) पैर के नीचे की गद्दी का बीच वाला भाग।

तरवा चाटबो :: (क्रि.) खुशामद करना।

तरवार :: (सं. स्त्री.) तलवार, करबाल, खड्ग, एक धारदार हथियार।

तरवार :: (कहा.) तरवार कौ घाव भर जात, पै बात को नईं भरत - तलवार का घाव भर जाता है पर बात का नहीं भरता।

तरस :: (सं. पु.) दया।

तरसबो :: (क्रि. अ.) किसी पदार्थ का दुख सहना, काटना, तरसना।

तरसबौ-तर्सबों :: (क्रि.) किसी वस्तु को प्राप्त करने की लालसा या आवश्यकता होते हुए भी प्राप्त न कर पाना।

तरसा :: (सं. पु.) सिंचाई करने का चमड़े का बना उपकरण।

तरसाबौ :: (क्रि.) अभाव का दुख होना व्यर्थ ललचाना।

तरा :: (सं. पु.) बड़ा तथा अधिक चमकीला तारा, भोर का तारा।

तरा ऊपर :: (सं. पु.) माँ के उदर से क्रमशः उत्पन्न हुए भाई, बहिन, एक के पश्चात दूसरा क्रमशः।

तराई :: (सं. स्त्री.) सींमेंट के नये काम को गीला रखने की क्रिया, ऐसा नीचा स्थान जहाँ अधिक नमी रहने के कारण अधिक ठण्डक रहती, तरावट।

तराटी :: (सं. स्त्री.) क्षेत्र, इलाका, पहाड़ी से लगी हुई चौरस भूमि।

तरिया :: (सं. स्त्री.) गाड़ी का एक भाग, घगरे की तली।

तरियाँ :: (सं. स्त्री.) तारा, नक्षत्र, नखत।

तरी :: (सं. स्त्री.) निचली सतह, शाक या गोश्त रसा अंतः करण में छुपा हुआ भाव, तली पेंदी, ठण्डक, तराबत, बनी हुई शाक के ऊपर तैरती चिकनाई।

तरीछौ :: (वि. क्रि.) तिरछा, तिर्यक।

तरुकला :: (सं. पु.) कानों को आभूषण।

तरूआ :: (सं. पु.) तलवा, पैर का तालू, सिर की खोपड़ी का मध्य भाग (तरुआ)।

तरूऊपर :: (वि.) एक के बाद एक।

तरें :: (वि.) नीचे, तल में, गहराई में, अधिपत्य में।

तरें :: (कहा.) तरे को रोवे नई ऊपर को रो - रो देय-अत्याचार पीड़ित तो रोता नहीं, अत्याचारी शोर मचाता है।

तरेट :: (सं. पु.) पेट के नीचे, नाभि के नीचे का भाग।

तरेटो :: (सं. पु.) गाँव के समीप का हिस्सा।

तरेरबो :: (क्रि.) क्रोध प्रदर्शन हेतु तिरछी निगाह से देखना।

तरैटी :: (सं. स्त्री.) दे. तराटी।

तरैया :: (सं. स्त्री.) तारा नक्षत्र।

तरैयाँ :: (सं. स्त्री.) तारा.नक्षत्र, नखत।

तरोतर :: (सं. पु.) मंशा, तर्क, आशय, निर्णायक बात।

तरोंना :: (सं. पु.) स्त्रियों का कान का आभूषण।

तरौ :: (सं. पु.) जूते तल्ला, पेंदी, नीचे का भाग, प्रेतयोनि से मुक्त हुआ जीव।

तरौई :: (वि.) तरोई, शाक।

तरौची :: (वि.) जरसा का जुआँ।

तरौंटा :: (सं. पु.) चक्की के नीचे वाला पत्थर।

तरौदिया :: (सं. पु.) पैर का एक आभूषण।

तरौर :: (वि.) एक के ऊपर एक रक्खे हुए मटके पर मटकी का समूह।

तरौंहाँ :: (सं. पु.) एक जागीर जो अँग्रेजों ने सरकारी राज्य में मिला ली थी।

तर्ज :: (सं. स्त्री.) पद्धति, शैली, तरीका, गीत का लय।

तर्पन :: (सं. पु.) पितृगण को जल अर्पण करने का एक हिन्दु कर्मकाण्ड।

तर्राबो :: (क्रि.) इठना, तेज होना।

तलइया :: (सं. पु.) छोटा, तालाब, प्राकृतिक पोखर।

तलक :: (अ.) तक।

तलफ :: (सं. स्त्री.) किसी नशीले या उत्तेजक पदार्थ जिसका कोई आदी हो, सेवन करने की तीव्र इच्छा।

तलफन :: (सं. स्त्री.) तड़पन, पीड़ा के कारण बेचैनी।

तलबो :: (अ. क्रि.) पिघले हुए गरम तेल आदि में खाद्य वस्तु पकाना।

तला :: (सं. पु.) तालाब, सरोवर, जलाशय।

तला :: (सं. पु.) तला खुदौ नईयाँ, मगर सुसानईं लगे-कोई वस्तु बन कर तो तैयार नहीं हुई और चाहने वालों की भीड़ लग गयी।

तलैया :: (सं. स्त्री.) छोटा ताल या तालाब।

तलैयाँ :: (सं. स्त्री.) अश्रु, भारी पलकें।

तल्ला :: (सं. पु.) स्थान, जगह, पीछा।

तल्लाक :: (सं. पु.) तलाक पूर्णतः छोड़ देने की संज्ञार्थक क्रिया विमुख होनेकी क्रिया।

तवा :: (सं. पु.) लोहे का वह छिछला गोल बरतन जिस पर रोटी सेंकते है।

तवा :: (कहा.) तवा न कुंडा न चुलहारी, कहे नार मैं हूं भटियारी - न तो तवा है, न कुंडा है, न चूल्हा ही है, फिर भी औरत अपने को भटियारिन बताती है।

तसबीर :: (सं. स्त्री.) चित्र, आकृति।

तसमई :: (सं. स्त्री.) खीर।

तसला :: (सं. पु.) चौड़े मुँह तथा पेंदी का उथला पात्र।

तसिया :: (सं.) कष्ट, दुख।

तस्दीक :: (सं. स्त्री.) प्रमाणीकरण।

तस्मा :: (सं. स्त्री.) चमड़े की पतली पट्टी।

तँहमत :: (सं. पु.) तहमत, लुँगी।

तहमद :: (सं. पु.) तेहमत, लुंगी।

ता :: (अ.) उस।

ताई :: (वि.) फाग।

ताँई :: संबंध सू तरफ और पक्ष में।

ताईपारा :: (सं. पु.) एक खेल।

ताउ :: (सं. पु.) पिता का बड़ा भाई, ताया।

ताकबो :: (क्रि.) देखना, प्रेम या बुरी नजर से देखना।

ताके :: (सर्व.) तिसके।

तागड़ धिन्ना :: (वि.) बाप की कमाई पै।

तागत :: (सं. स्त्री.) ताकत, शक्ति, बल, सामर्थ्य।

तागबौ :: (क्रि.) रूई भरे हुए कपड़े पर टाँके डालना, ताकि रूई खिसके नहीं।

ताँगा :: (सं. पु.) घोड़े से खींची जाने वाली विशेष प्रकार की सवारी।

ताजिया :: (सं. पु.) इमाम हसन और हुसैन की याद में बनायी जाने वाली उनके मकबरों की कलात्मक आकृतियाँ।

ताजी :: (वि.) हाल ही तैयार की हुई, अभी तोड़ी हुई शाक।

ताजी :: (कहा.) ताजी तार खाय तुरकी आश पाय - योग्य पुरूष तो कष्ट उठाए और नालायक मौज कें।

ताज्जुब :: (सं. पु.) आश्चर्य।

ताड़का :: (सं. स्त्री.) एक राक्षसी जिसे श्री राम ने मारा था, लम्बी कुरुप स्त्री, लाक्षणिक अर्थ।

ताड़ना :: (सं. स्त्री.) भयभीत करने की क्रियार्थक संज्ञा।

ताँत :: (सं. स्त्री.) तंतु, चमड़े की डोरी, रस्सी, पशुओं की नसों से बनाया जाने वाला तन्तु या एक प्रकार की रस्सी, जो रुई धुनने के काम आती है, धुनकने की धुनकी, धनुष की प्रत्यंचा तथा रैकिटों की बुनाई के काम आती है।

ताँत :: (कहा.) तांत सी देह, पांव न हाथ लड़न चली सूरन के साथ - शक्ति से बाहर काम करने का दुस्साहस।

तातौ :: (वि.) गर्म।

ताँतौ :: (सं. पु.) आने जाने का लगातार क्रम, आने जाने जाने वालों की अनवरतता।

तादाद :: (सं. स्त्री.) मात्रा, संख्या।

तान :: (सं. स्त्री.) गीत का आरोह।

तान-तमूरा :: (सं. पु.) साज-सामान।

तानबौ :: (क्रि.) खींचना।

तानसेन :: (सं. पु.) अकबर के दरबार का प्रसिद्ध गायक, गायक (व्यंग्य अर्थ)।

तानों :: (सं. पु.) ताना, वस्त्र बुनने के लिए लम्बाई में कर्घे पर चढाया जाने वाला सूत।

ताप :: (सं. स्त्री.) बुखार।

तापबो :: (क्रि. अ.) सरदी लगने पर शरीर का कोई अंग गरम करना, तापना।

तापबौ :: (क्रि.) आग से शरीर को गर्माना।

ताब :: (सं. स्त्री.) साहस, हिम्मत किसी कार्य के लिए अपेक्षित शक्ति।

ताबीज :: (सं. पु.) तंत्र मंत्र या कवच जो किसी संपुट में रखकर पहना जाय, किसी उद्देश्य से बनाया गया यंत्र जो धातु की छोटी सी डिबिया में रखकर या कपडे में सिलकर गले में पहिना जाता है या भुजा पर बाँधा जाता है।

ताबेदार :: (सं. पु.) सेवक, पेशादार।

ताबेदारी :: (सं. स्त्री.) सेवा।

ताबौ :: (क्रि.) हड़पना।

तामचीनी :: (सं. स्त्री.) ताँबे या लोहे पर चढ़ी हुई चीनी मिट्टी की पर्त।

तामझाम :: (सं. पु.) तामजाम, एक प्रकार की खुली पालकी जो सामंतो के द्वारा सवारी के काम आती थी और कंधों पर ढोई जाती थी।

तामत :: (सं. पु.) तेहमत, लुंगी।

ताँमद :: (सं. पु.) तहमद, लुंगी।

तामस :: (सं. पु.) क्रोध।

तामसी :: (वि.) क्रोधी, उत्तेजना, पैदा करने वाला पदार्थ।

तामान :: (सं. पु.) ताँबे की छोटी थाली, जो पूजा के काम आती है।

तामियाँ :: (वि.) ताम्रवर्णी, भूरे ताँबे के रंग के।

ताँमिया :: (वि.) ताँबे के रंग का होना, लाल।

तामील-तामीली :: (सं. स्त्री.) आज्ञा पालन की क्रिया, सम्मन बाँटने की क्रिया।

तामों :: (सं. क्रि.) एक लाल रंग की धातु ताँबा।

ताँमो :: (सं. पु.) ताँबा, लाला रंग की एकमूल धातु।

तार :: (सं. पु.) धातु की धागे जैसी वस्तु, सूत तार-तार होना।

तार :: (मुहा.) में प्रयुक्त, चिपचिपी वस्तु को उँगलियों से दबाकर उँगलियाँ फिर सें उठाने से बनने वाले सूत जैसे आकार, तार की सहायता से भेजा गया संदेश, तैयारी।

तारकोल :: (सं. पु.) डामर, अलकतरा, सडकें बनाने के काम आने वाला पेट्रोलियम का एक उत्पाद, काला लिसलिसा पदार्थ।

तारतार :: (वि.) वस्त्र की जीर्णावस्था।

तारनहार :: (वि.) उद्धार करने वाला, मोक्ष देने वाला।

तारपाटो :: (सं. पु.) नारियल की तरह एक वृक्ष और उसका फल।

तारपीन :: (सं. स्त्री.) चीड़ के लीसा का तेल जो वार्निश और दवा के काम आता है।

तारबो :: (क्रि.) उद्धार करना, मोक्ष देना, नपना, बाँट के बराबर किसी बर्तन की समाई नापकर अंदाज करना।

तारासंखी :: (वि.) ऊधमी।

तारिया :: (वि.) ताली, तारियाँ देबौ, हँसी करना।

तारिया :: (कहा.) तारिया दोऊ हातन से बजत - ताली दोनों हाँथों से बजती है।

तारी :: (सं. स्त्री.) समाधि, ध्यान, मुद्रा, ताली, करतल ध्वनि ताली के संकेत।

तारीख :: (सं. स्त्री.) ईस्वी या हिजरी मास की तिथि।

तारीपीटबौ :: (क्रि.) उपहास करना, ताली बजाकर हर्ष प्रकट करना।

तारीफ :: (सं. स्त्री.) प्रशंसा, बड़ाई।

तारो :: (सं. पु.) तारा, नक्षत्र।

तारौ :: (सं. पु.) ताला, कान का पट।

ताल :: (सं. पु.) तालाब, सरोवर, जलाशय, संगीत में निश्चत मात्राओं पर दी जाने वाली हथेली की थाप।

ताल :: (कहा.) ताल न तलैया, गोओ सिंगारे भैईया - न ताल, न तलैया, सिंगाड़ों की खेती करेंगे, उपयुक्त साधन के बिना काम करना हँसी की बात है।

तालबुखारो :: (स्त्री.) कँटीले पत्ते वाली एक जडी जो दवा के काम आती है।

तालाबेली :: (सं. स्त्री.) हड़बडी, विविध कार्यो को निश्र्चत समय में निपटाने की जल्दबाजी।

तालेबर :: (वि. सं.) धनाढ्य एवं प्रभावशाली संज्ञा तथा विशेषण दोनों रूपों में पाया जाता है।

ताल्लुक :: (सं. पु.) सम्बन्ध, अवैध सम्बन्ध।

ताव :: (सं. पु.) क्रोध किसी पदार्थ को पकाने के लिए अपेक्षित ऊष्मा, कागज के दस्ते का एक पूरा पन्ना, शीट।

तास :: (सं. पु.) ताश, ईंट, पान, हुकुम, चिड़ी आदि छपे गत्ते के चौकोर टुकडे, जो खेलने के काम आते हैं, फौजी कोट या कमीज को टक्कन, सिलसिला।

तासक :: (सं. पु.) डेगची का ढक्कन।

तासनास :: (सं. वि.) संज्ञार्थक विशेषण तहस-नहस।

ताँसबौ :: (क्रि.) धमकाना, भय के प्रति सचेत करते हे डाँटना।

तासें :: (सर्व.) उससे।

ताँसो :: (सं. पु.) एक प्रचार का ढ़पला, चमड़े से मढ़ा हुआ पतली लकड़ियों से बजाया जाने वाला वाद्ययंत्र।

ति :: उप तीन का उपसर्ग जैसे तिगड्डा, तिराहा।

तिआ :: (सं. पु.) चौपड़ के खेल में पाँसे में पड़ी तीन की इकाई।

तिकड़म :: (सं. स्त्री.) जोड़-तोड़।

तिकड़ा :: (सं. पु.) बेरियों पर लगने वाली एक बेल जिसका फल तथा बीज तिकोने आकार के होते हैं।

तिकरी :: (सं. स्त्री.) जनेऊ बनाने की तकली।

तिकवान-तिकोनिया :: (वि.) तिकोना।

तिखूँटो :: (वि.) तीन कोने का तिकोना, तिखूँटा।

तिगड्डा :: (सं. पु.) तीन सड़कों का मिलन स्थल।

तिगनो :: (वि. स.) त्रिगुण, तीन गुना।

तिगुन :: (वि.) त्रिगुणित, तीन पत्तों में की गयी तह, तिहरी। तबला आदि के वादन में स्थायी मात्रा का तीन गुना तेज करके बजाना।

तिगैला :: (सं. पु.) तीन रास्ते वाला स्थान।

तिगैलिया :: (सं. पु.) वह स्थान जहाँ तीन ओर जाने वाला मार्ग हो।

तिजवारी :: (सं. पु.) दो दिन के अंतराल पर आने वाला मलेरिया बुखार, तिजारी।

तिजवारी :: (सं. स्त्री.) तीन दिन बाद पारी से आने वाला बुखार।

तिजोड़ी :: (सं. स्त्री.) तिजोरी, रूपया तथा बहुमूल्य वस्तुएँ रखने का मजबूत तथा बहुत वजनी संदूक।

तिड़ी :: (सं. स्त्री.) दे. तिड़कम, उदाहरण-तिड़ी होबो-भाग जाना, तिड़ी बिड़ी -तितर बितर।

तित :: (सं. स्त्री.) तिथि तितपावन।

तित :: (मुहा.) में प्रयुक्त, तितपावन।

तित :: (मुहा.) त्यौहार आदि विशेष अवसर यदा कदा।

तितर बितर :: (क्रि.) अस्त व्यस्त।

तितली :: (सं. स्त्री.) रंग बिरंगी एक पंखी।

तितेक :: (वि.) उतना, उसी परिणाम का।

तितै :: (क्रि. वि.) उस ओर, उधर, वहाँ, वही।

तिथ :: पावन-।

तिथ :: (क्रि. वि.) यदा-कदा कभी कभी।

तिथी :: (सं. स्त्री.) तिथि, भारतीय माह की तारीख।

तिदबारी :: (सं. स्त्री.) मुख्य निवास से अगल बना खुले दरवाजे वाला घर, बरामदा।

तिदानों :: (सं. पु.) स्त्रियों का गले का स्वर्णाभूषण जिसमें गुरिया की तीन कतारें एक पट्टे पर टंकी रहती हैं।

तिंदुआ :: (सं. पु.) तेंदुआ।

तिदुआरी :: (सं. स्त्री.) दालान, बरामदा।

तिनकबो :: (क्रि.) चिढ़ना, छोटी छोटी बात पर उत्तेजित होना।

तिनका :: (सं. पु.) घास का तृण, कहा तिनका. हो तो तोड़ लूं, प्रीत न तोड़ी जाय, प्रीत लगत टूटत नहीं जब लग मौत न आय।

तिनचर :: (सं. पु.) कम और धीरे धीरे घास खाने वाला ढोर।

तिनबौ :: (क्रि.) बछड़ों का एक एक तिनका मुँह में दबा कर धीरे धीरे घास खाना सीखना।

तिनुला :: (सं. पु.) धनु।

तिनुला :: दे. तिरूआ।

तिनूँका :: (सं. पु.) तृण, तिनका।

तिन्नी :: (सं. स्त्री.) पहनी हुई साड़ी का अग्रभाग जो चुन्नटें बनाकर कमर के अग्रभाग से खुर्सा जाता है।

तिपतिया :: (सं. स्त्री.) तीन पत्तों से खेला जाने वाला ताश का जुआ का खेल।

तिपनी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी इसके पत्ते तिकोने होते हैं यह बेल रहट की घरियों के बाँधने के काम आती।

तिपाई :: (सं. स्त्री.) स्टूल, तीन पैरों वाला।

तिपारौ :: (सं. पु.) अनाज का भूसा उड़ाते समय खड़े होने के लिए तीन पैरों का तीनचार फीट ऊँचा स्टूल।

तिपालौ :: (सं. पु.) भाले की तरह का एक हथियार।

तिप्पी :: (सं. स्त्री.) तीन अंको वाला ताश का पत्ता।

तिफन :: (सं. पु.) तीन फल वाला एक कृषि औजार।

तिबँदिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की बंदूक।

तिबनी :: (सं. स्त्री.) सोने के तीन गुरियों का मंगलसूत्र।

तिबरसी :: (वि.) तीन बरस की।

तिबरिया :: (सं. स्त्री.) सेव छाँटने का चौकोर झारा जो लकड़ी की पटरियों पर जड़ा रहता है, पत्थर ढोने के लिए दो गोड़ा की नसेंनी जैसी वस्तु।

तिबारौ :: (सं. पु.) दे. तिपारौ।

तिबासी :: (वि.) तीन दिन वासी खाना।

तिबासौ :: (वि.) तीन दिन का बासा।

तिया :: (सं. पु.) चौपड़, चंगला, सुरई आदि में पासों या कोंणियों पर आया तीन का अंक।

तियाई :: (सं. स्त्री.) भूमि का कर, लगान, भाग, भूमि कर के रूप में लिया जाता रहा हो।

तिरक :: (सं. पु.) सिर के बीच की जगह, तिहड्डा के ऊपर के स्थान।

तिरकारी :: (सं. स्त्री.) पुरखों पित्रों को तिल मिश्रित जल अर्पण करना, छोड़ना अंतिम रूप में या सदा के लिए त्यागना। (बनी हुई सब्जी) सागर दमोह जिले में प्रचलित।

तिरकुटी :: (सं. पु.) बनी हुई शाक।

तिरखूंट :: (वि.) तीन खूंटो या कोनों वाला तिकोना।

तिरप तिरप :: (सं. स्त्री.) अस्वभाविक चंचलता का दिखावा, शरीर को अस्वाभाविक ढंग से मटकाने की क्रिया।

तिरपट :: (वि.) तिर्यक, तिरछा, तिरछी, आँख करके देखने वाला, तीन कोनों पर जमी हुई वस्तु।

तिरपटा :: (वि.) तिरछी आँख करके देखने वाला। लोक विश्वास है कि ऐसे व्यक्ति का प्रातः काल दिखना अशुभ होता है।

तिरपबौ :: (क्रि.) तृप्त होना बिना तालमेल के अस्वाभाविक ढंग से थिरकना।

तिरपाल :: (सं. स्त्री.) सामान को भीगने से बचाने के लिए मोम लगा कपड़ा।

तिरपुटी :: (वि.) किसी वस्तु की तीन भावना देकर बनायी हुई दवा।

तिरपुण्ड :: (सं. पु.) शैवों का तीन आड़ी रेखाओं वाला तिलक।

तिरफला :: (सं. पु.) हर्र (हरड़), बहेरा व आँबला के योग से बनी प्रसिद्ध दवा।

तिरबेदी :: (सं. पु.) त्रिवेद को जानने वाला, ब्राह्मणों का एक भेद, त्रिपाठी।

तिरबैनी :: (सं. स्त्री.) त्रिवेणी, तीन नदियों का संगम स्थान जो प्रयाग में है।

तिरबौ :: (क्रि.) दे. तरबौ।

तिरसायली :: (वि.) तीन-तीन साल अंतराल से गर्भधान करने वाली गाय भैंस आदि।

तिरसूल :: (सं. पु.) तीन फलों वाला अस्त्र विशेष।

तिराट :: (क्रि. वि.) यंत्र चालित की भांति भागना।

तिरिया :: (सं. स्त्री. स्त्री. लो. गी. कहा.) तिरिया चरित्र जानें नहिं कोय, खसम मार कें सत्त्ती होय-स्त्रियों के चरित्र को जानना कठिन है।

तिरूला :: (सं. पु.) गेंहू के घुन में जो काले भूरे रंग के कीड़े होते है।

तिरेंदा :: (सं. पु.) मछली मारने की बंसी में लगाने वाली एक लकड़ी।

तिल :: (सं. पु.) काली तिली जो हवन तथा धार्मिक अनुष्ठानों में काम आती है, शरीर पर काला उभार।

तिल :: (कहा.) तिल को ताड़ बनाबो - छोटी सी बात को बहुत बढा कर कहना।

तिलँइँयाँ :: (सं. स्त्री.) मकर संक्राति के एक दिन पहले मनाया जाने वाला त्यौहार।

तिलक :: (सं. पु.) मस्तक पर चन्दन, रोली आदि से बनाया गया सम्प्रदाय विशेष का प्रतीक चिन्ह, राज्याभिषेक। विवाह पक्का होना जिसमें लड़की वाले वर को तिलक लगाते हैं (फलदान)।

तिलकूचा :: (सं. पु.) तिली को गुड़ और अदरक के साथ कूट कर बनाये गये लडडू माघ कृष्ण की चतुर्थी को होने वाले गणेश पूजन में इसका नैवैद्य, अर्पण किया जाता है।

तिलगा :: (सं. पु.) आग की चिनगारी, स्फुलिंग।

तिलगिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सा अँगारा।

तिलछॉयरी :: (सं. स्त्री.) एक खेल।

तिलनियाँ :: (सं. स्त्री.) कत्थई रंग का एक छोटा कीड़ा।

तिलपापार :: (सं. पु.) वृक्ष जिसके पत्ते पान और फल अंजीर की तरह होता है।

तिलबिली :: (सं. स्त्री.) आँखों के सामने दुर्बलता के कारण छाने वाले अँधेरे में दिखने वाली स्फुलिंग।

तिलमिलाबा :: (क्रि.) क्रोध को दबाना या कठोर पीड़ा को बल पूर्वक दबाना और उसके कारण क्षणिक असामान्य होना।

तिलमिली :: (सं. स्त्री.) दे. तिलबिली। (तिड़ी बिड़ी)।

तिलया :: (वि.) घास के पूरों का बड़ा आकार।

तिलयानों :: (सं. पु.) तेलियों का मुहल्ला।

तिलयाबौ :: (क्रि.) मशीनों आदि में तेल देकर घर्षण कम करना, किसी को शर्मिदा करना, झेंपना।

तिलस्म :: (सं. पु.) रहस्यमय दृश्य स्थान कार्य आदि।

तिलातिल :: (क्रि. वि.) थोड़ा करके।

तिलातिल :: (प्र.) भाव तिलतिल बाड़े फगुना गोडें पसारै।

तिलांद :: (वि.) तेल की बदबू तेल का स्वाद।

तिलारी :: (सं. स्त्री.) विवाह में तेल चढाने वाली बहिन, भाभियाँ इत्यादि स्त्रियाँ।

तिलिया :: (सं. पु.) तेल पेरने बौर बैचने का धंधा करने वाली एक जाति तेली।

तिली :: (सं. स्त्री.) तिल सफेद तिल एक तेल बीज जो तेल निकालने और खाने के काम आता है, तिली, तमाखू, सावनी, फिर मन समझावनी-तिली और सावन मे ही बो देना चाहिए, बाद मे बोना तो मन समझाना है।

तिलेंड़िया :: (सं. स्त्री.) तेल रखने का बर्तन।

तिलोक :: (सं. पु.) तीनों लोक।

तिलोका :: (वि.) काला या लाल बैल जिसके माथे पर सफेद तिलक जैसा धब्बा हो।

तिलोंय :: (क्रि. वि.) दीपक को तिरछा करना ताकि तेल बत्ती के अधिक निकट आ सके।

तिलौचिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का एक पात्र जिसमें अचार आदि रखते हैं।

तिलौछना :: (क्रि.) तेल लगाकर साफ करना या पोंछना।

तिल्ली :: (सं. स्त्री.) पेट के भीतर का एक अंग।

तिल्हाँडी :: (सं. स्त्री.) तेल रखने का मिट्टी का पात्र।

तिवारी :: (सं. पु.) त्रिपाठी, त्रिवेदी, ब्राह्मणों का एक आस्पद।

तिंस :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष जिसका सार प्रायः पोला होता है।

तिसना :: (सं. स्त्री.) तृष्णा।

तिसरतौ :: (सं. पु.) विवाह की विदा सहित लड़की की तीसरी विदाई।

तिसरयाबौ :: (क्रि.) एक ही काम को तीसरी बार करना।

तिंसा :: (सं. पु.) लकड़ी चीरने का छोटा आरा।

तिसैल :: (वि.) तीन कूँड निकाली हुई जमीन।

तिहत्तर :: (वि.) सत्तर और तीन के योग की संख्या।

तीं :: (क्रि.) थी।

तीकुर :: (सं. पु.) गेहूँ की बाल के नुकीले अग्रभाग।

तीको :: (सर्व.) तिसका।

तीखें :: (सं. स्त्री.) तीक्ष्ण बातें व्यंग्यबाण पर परोक्ष रूप से किये जाने वाले वाक् प्रहार।

तीखौं :: (वि.) तीक्ष्ण, क्षारीय स्वाद वाला।

तीछन :: (वि.) तीक्ष्ण।

तीज :: (सं. स्त्री.) तृतीय।

तीज :: (कहा.) तीज पड़े खेत में बीज सावन की - तीज को खेत में बीज पड़ता है।

तीजा :: (सं. स्त्री.) हरतालिका व्रत की तीज, मुसलमानों के मृत्यु के तीसरे दिन का संस्कार।

तीतर :: (सं. पु.) मुरगी की जाति का एक पक्षी तीतुर।

तीतर :: (कहा.) तीतर के मों लच्छमी - तीतर की वाणी सफल हो उसके मुँह मे तो लक्ष्मी का वास है।

तींती :: (सं. स्त्री.) ऐसी भूमि जो सदा गीली रहने के कारण कृषि योग्य नहीं रहती है।

तीतुर :: (सं. पु.) एक पक्षी, तीतुर।

तीतो :: (वि.) भीगा हुआ, आर्द्र, तर।

तींतौ :: (वि.) गीला।

तीन :: (वि.) तीन की संख्या।

तीन :: (कहा.) तीन तिकट महा बिकट - तीन एक धूर्त आदमी इकट्ठे हो जायँ तो उनसे पार पाना कठिन है।

तीन खाप :: (सं. पु.) जरी के तारों से बुना एक प्रकार का कपड़ा।

तीनर :: (वि.) तिहरा, तिगुना।

तीर :: (सं. पु.) बाण, धार्मिक संदर्भ में नदी का किनारा, कहा, तीर जुदाई आ लगा, दिया कलेजा छेद, पी अपना परदेश मां, किससे कहिए भेद-किसी विरहणी की उक्त।

तीरकश :: (सं. पु.) पराने भवनों में दीवारों में बने लम्बे छेद जिसने बाहर तीर चलाये जा सकें।

तीरथ :: (सं. पु.) तीर्थ स्थान, पवित्र स्थान।

तीरथ :: (कहा.) तीरथ, मूरत पूजकर, मत न उमर गंवाय, पूजा कर करतार की, जो तुरत मुक्त हो जाय - कबीर पंथी साधुयों का कहना है।

तीरा :: (सं. पु.) कमीज के पिछले हिस्से में कंधों के बीचों बीच लगने वाली पट्टी, अंधकार मय।

तीस :: (वि.) तीन दहाइयों के योग की संख्या।

तीसरौ :: (वि.) तीसरा, क्रम में दो के बाद आने वाला।

तीसें :: (अव्य.) उस कारण, उस हेतु।

तुअबो :: (अ. क्रि.) चूना, टपकना, गिरना, गर्भपात होना।

तुअर :: (सं. स्त्री.) एक अनाज जिसकी दाल बनती है।

तुआ :: (सं. पु.) आस पास ऊँची सतह पर जलाशय होने के कारण निचली सतह पर फूटने वाले जल स्त्रोत या स्त्रोते।

तुआतार :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल कबड्डी।

तुआलगबो :: (क्रि.) पानी की पतली धार या झरना।

तुक :: (सं. स्त्री.) गीत या कविता की पंक्ति का समध्वनि और सममात्रिक अंत, सामंजस्य औचित्य, मेल। अनुप्रास।

तुकबंदी :: (सं. स्त्री.) निम्न कोटि की कविता जिसमें केवल तुकें मिलायी गयी हों, भाटों आदि की कविता जिसमें किसी की प्रशंसा के लिये इधर उधर की तुकें मिलायी जाती हों।

तुकमा :: (सं. पु.) तमगा. मैडिल, प्रशंसा के प्रतीक स्वरूप दिया जाने वाला पदक।

तुक्क :: (सं. स्त्री.) पतंग की आकाश में स्थिर हो जाने की स्थिति।

तुक्कड़ :: (वि.) तुकें मिलाने वाला, हाँ में हाँ मिलाने वाला।

तुक्कमलंगा :: (सं. पु.) बीज जो पानी के साथ बाँटने पर लिसलिसे हो जाते हैं, सूखने पर उसकी लुंगदी बहुत कठोर हो जाती है पतंग उडाने की डोर पर मझा करने के काम आते हैं।

तुक्का :: (सं. पु.) बिना फर का बाण तीर नई तौ तुक्का।

तुक्का :: (मुहा.) प्रयुक्त।

तुंगारन :: (सं. पु.) ओरछा के बेतवा तट के पास का वन प्रदेश, तुंगारण्य, ओरछा के समीप का एक जंगल जो तुंगऋषि की तपस्थली माना जाता है।

तुचकबौ :: (क्रि.) बिचकना, रस हीन होने के कारण सिकुड़ना, झुरियाँ पड़ना।

तुतइया :: (सं. स्त्री.) टोंटीदार घण्टी, छोटी लुटिया, टोंटीदार मिट्टी की डबुलिया, पीली बर्र, भिड़।

तुतइया :: दे. ततइया।

तुतरा :: (वि.) तोतला, तुतलाने वाला।

तुतराबो :: (अ. क्रि.) तुतल्याबो।

तुतलयाबौ :: (क्रि.) तुतला कर बोलना, धूप या गर्मी के प्रभाव से फलों पर झुरियाँ पड़ना।

तुतला :: (वि.) तुतला कर बोलने वाला।

तुतु :: (सं. पु.) छोटे बच्चों की मूत्रेन्द्रिय।

तुतुआ :: (सं. पु.) टोंटी दार लोटा।

तुतैया :: (सं. स्त्री.) धातु या मिट्टी की एक तरह की छोटी झारी।

तुनकबौ :: (क्रि.) एकाएक उत्तेजित होना।

तुनका :: (सं. पु.) झटका, झूठी आशा देकर उत्साहित करने की क्रिया।

तुनकी :: (सं. स्त्री.) पतंग को ऊँचा करने के लिए उसकी डोर पर लगाये जाने वाले हल्के झटके। ठुमकी।

तुपक :: (सं. स्त्री.) छोटी तोप, बंदूक।

तुपकया :: (सं. पु.) बंदूक चलाने वाला व्यक्ति, बंदूकची, बंदूकधारी व्यक्ति।

तुपबो :: (क्रि.) किसी वस्तु को ढ़कना, लूटना, छीनना।

तुपवाबो :: (क्रि.) बंद करना, पुरवाना। बीड़ी को जर्दा भरने के बाद उसके मुँह को निहन्नी आदि से बँद करवाना या करना।

तुम :: (सर्व.) तुम, मध्यम पुरूष का एक वचन।

तुम :: (कहा.) तुम कौन तोप के मोरा से बाँध के उडा देओ - तुम हमारा क्या कर लोगे।

तुमन :: (सर्व.) तुम लोग।

तुमन :: (सं. पु.) का बहुवचन के लिए तुम औरें या तुम औरन का प्रयोग भी किया जाता है।

तुमरिया :: (सं. स्त्री.) तूमड़ी, लौकी की जाति का एक सुराही के आकार का कडुआ फल।

तुमाए :: (सर्व.) तुम्हारे।

तुमाए :: (कहा.) तुमाए जैसे तो हमाई अंटी में बँदे - अर्थात हमें तुम्हारी परवाह नहीं।

तुमाओ :: (सर्व.) तुम्हारा।

तुँमाये :: (सर्व.) तुम्हारा।

तुमारो :: (सर्व.) तुम्हारा।

तुमाव :: (सर्व.) तुम्हारा।

तुमियाँ :: (सं. स्त्री.) लम्बी गर्दन का लोटा जो प्रायः ताँबे का होता है।

तुम्हारो :: (सर्व.) तुम्हारा।

तुर :: (सं. स्त्री.) किसी आवश्यकता का आसन्न क्षण।

तुरइया :: (सं. स्त्री.) एक बेल जिसके लम्बे फलों की तरकारी बनायी जाती है, लम्बा पतला फल जिसके ऊपर उभरी हुई खड़ी धारियाँ होती है ये शाक के काम आती है।

तुरई :: (सं. स्त्री.) तुर्य, तुरही, फूँक से बजने वाल एक बाजा, शहनाई।

तुरई :: (कहा.) तुरई कद्दू, लानत हरदू - दानों पर लानत, दोनों ही निकम्मी।

तुरक :: (सं. पु.) मुसलमान।

तुरक :: (कहा.) तुरत काके मीत, सरप से का प्रीत - जाति विद्वेष भरी बातें।

तुरकी :: (सं. स्त्री.) खड़ी बोली, मुसलमानों जैसी भाषा झब्बेदार टोपी।

तुरकी :: (कहा.) तरकी पीटे ताजी कांपे एक को दंड देने से दूसरा भी सावधान हो जाता है।

तुरत :: (अव्य.) हाल ही, तुरंत।

तुरत :: (कहा.) तुरत दान महा कल्यान - किसी को कुछ देना हो, तो तुरंत देकर छुट्टी पानी चाहिए।

तुरंत :: (अव्य.) हाल ही तुरंत।

तुरतई :: (क्रि. वि.) अतिशीघ्र।

तुरंता :: (सं. पु.) तुरंत प्रभाव डालने वाला गाँजा जिसका धूम्रपान करते ही नशा आता है।

तुरप :: (सं. स्त्री.) ताश के खेल में वह रंग जिसको सर्वोच्च मान्यता दी जाती है वह दूसरे रंग के बडे से बडे पत्ते को काट देता है।

तुरपचाल :: (सं. स्त्री.) चालाकी पूर्ण, कार्य, बदमाशी, ताश के खेल में तुरप चलना।

तुरपन :: (वि.) तिर्यक सिलाई।

तुरपबौ :: (क्रि.) एक विशेष प्रकार की सिलाई करना, इसके टाँके तिर्यक होने से तनाव सहन कर लेता है।

तुरवा :: (क्रि. स.) अँगूठे और तर्जनी से गोल कर बनायी जाने वाली छोटी छोटी सिवइयाँ। (बिया) सागर दमोह जिले में प्रयुक्त।

तुरसी :: (सं. स्त्री.) खटाई।

तुर्त :: (क्रि. वि.) तुरंत, शीघ्र ही।

तुर्त फुर्त :: (क्रि. वि.) अतिशीघ्र।

तुर्रा :: (सं. पु.) साफेका कलफकिया और चुन हाया हुआ वह छोर जो साफेके ऊपर खड़ा रहता है।

तुलइया :: (सं. पु.) तौलने वाला, वजन कश।

तुलबाबो :: (क्रि. स.) वजन कराना।

तुलबो :: (क्रि. स.) तराजू पर तोला जाना, तौल के बराबर उतरना।

तुलसा तुलसी :: (सं. स्त्री.) तुलसी एक पवित्र पौधा, औषधि तथा वैष्णव पूजा में काम आता है, कहस.तुलसी जग में आय के, औगन तज दे चार, जारी, जामिनी, और पराई नार।

तुलसीघरा :: (सं. पु.) तुलसी चौरा, तुलसी रोपने के लिए बनाया गया विशेष स्थान, तुलसी मंदिर।

तुला :: (सं. स्त्री.) रत्ती स.व्यक्ति की तौल के बराबर किये जाने वाले दान की क्रिया, तुलादान का संक्षिम रूप।

तुलाई :: (सं. स्त्री.) तौलने का काम, तौलने की मजदूरी।

तुलाड़-तुल्लू :: (सं. पु.) खपरों से गिरने वाली जलधारा।

तुलैया :: (सं. पु.) तोंलने वाला।

तुल्लाँद :: (सं. स्त्री.) गर्म पानी जैसा स्वाद।

तुल्लाँयदों :: (वि.) गर्मी के कारण किसी शीतल पेय या फलों का अस्वाभाविक या विकृत स्वाद।

तुल्लू :: (सं. स्त्री.) तरल पदार्थ की पतली धार जो किसी छिद्र से निकल रही हो।

तुस :: (सं. पु.) भूसे का छोटा कण, केवल कहावत में प्रयुक्त, काँनी की आँख में तुस गव, ऊँखों आँख मींचबे कौ मिस भव।

तुसरयाउ :: (वि.) तुषार खाई हुई।

तुसार :: (वि.) तुषार के कारण पीला पड़ा पथा मुर्झाया हुआ फल, फूल, पत्ता या अनाज।

तुसार :: (सं. पु.) तुषार, फसल का लगने वाला पाला।

तूती :: (सं. स्त्री.) तुरही, चलती, व्यापक प्रभाव।

तूती :: (कहा.) तुती चुगे तो ऊँच चुग, नीची चुगन मत जाह, कुले लजाबे आपने, कहें अबार साह - किसी का अहसान ही लेना है तो बड़े आदमी का लेना चाहिए ओछे का एहसान लेना ठीक नहीं।

तूफन :: (सं. स्त्री.) अधिक गर्मी होने के कारण होनी वाली व्याकुलता।

तूफबौ :: (क्रि.) गर्मी या कार्य के लिए विपरीत परिस्थिति में कार्य करके परेशान होना।

तूबौ :: (क्रि.) पशुओं का गर्भपात होना।

तूमरी :: (सं. स्त्री.) छोटा तूमा, सूखी तुमड़ी से बनाया हुआ बाजा जिसे सपेरे बजाते है सूखी तुमड़ी का बनाया हुआ साधुओं का जल पात्र।

तूमा :: (सं. पु.) लौकी की एक जाति जो केवल आकार में भिन्न सुराही के समान होता है इस के सूखे फल से साधु अपना जल पात्र बनाते है इकतारा, तम्बूरा बनाने आदि के काम आता है।

तूर :: (सं. स्त्री.) कबड्डी के दो पालों के बीच की रेखा।

तूस :: (सं. पु.) लाल रंग का कपड़ा।

ते :: (क्रि.) थे, हते।

तें :: (सर्व.) तुम, कर्ता कारण, अनादरवाची प्रयोग।

तेइया :: (सं. पु.) एक पद्धति जिसके भूस्वामी अपनी कृषि भूमि किसी को उपज का तीसरा हिस्सा लेने की शर्त पर कृषि के लिए देता है।

तेई :: (सर्व.) वही।

तेंई :: (सर्व.) तुम्हीं।

तेईस :: (वि.) बीस और तीन के योग की संख्या।

तेउन :: (सं. पु.) रोटी के साथ खाने के लिए कुछ दाल कढ़ी आदि जैनियों में प्रचलित अन्य लोगों में संग शब्द प्रचलित है।

तेउन :: (प्र.) रोटी के लाने कछु संगे बनाउनें।

तेंउन :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके फल खाने के काम आते है तथा भीतरी संरचना और स्वाद में चीकू के समान होते हैं इसके पत्तों से बीड़ी बनायी जाती है।

तेओ :: (सर्व.) तेरा मध्यम पुरूष एक वचन, जो तू का संबंध कारक रूप है।

तेओन :: (सं. पु.) रसेदार सब्जी, रसीली तरकारी।

तेख :: (सं. पु.) गुस्सा।

तेखुर :: (वि.) चार पायों मे से जिसका एक पाया छोटा हो।

तेगा :: (सं. पु.) तलवार जो थोड़ी अधिक चौड़ी होती है।

तेगासाई :: (सं. पु.) दतिया की टकसाल का ताँबे का पैसा।

तेज :: (सं. पु.) आभा।

तेजवर :: (सं. पु.) एक प्रकार की थूहर।

तेजाई :: (वि.) क्रोध, मँहगाई, तेजी।

तेजाब :: (सं. पु.) अम्ल।

तेजाबी :: (वि.) तेजाब से शुद्ध किया हुआ।

तेजी :: (सं. स्त्री.) मँहगाई, तीव्रता।

तेतरा :: (सं. पु.) तीन लड़कियाँ होने के बाद जो पुत्र पैदा होता है उसे तेतरा कहते हैं।

तेतालीस :: (व.) चार दहाई और तीन के योग की संख्या।

तेंतिस :: (वि.) जो गिनती में तीस से अधिक हो।

तेतीस :: (वि.) तीस और तीन का योग।

तेंदुआ :: (सं. पु.) चीते की जाति का एक हिंसक पशु।

तेंदू :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके फल खाने के काम आते हैं तथा भीतरी संरचना और स्वाद में चीकू के समान होते हैं। इसके पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है।

तेबरा :: (सं. पु.) दो दलीय भूरे रंग का एक अनाज जो दाल और बेसन बनाने के काम आता है। पापड़ में प्रयुक्त होता है।

तेर :: (सं. पु.) कटना, बिताना, समय, काटना, उदाहरण-तेरऊतान, अत्यंत आवश्यकता का समय।

तेरँई :: (सं. स्त्री.) त्रयोदशी, मृत्यु के तेरहवें दिन होने वाला प्रेतकर्म, मृत्यु के पश्चात मृतक के मोक्ष और परिवार की शुद्धि हेतु किया जाने वाला गंगा पूजन एवं भोज।

तेरस :: (सं. स्त्री.) त्रयोदशी, तेरहवीं तिथि।

तेरा :: (वि.) तेरह, दस और तीन का योग।

तेरा :: (कहा.) तेरा है सो मेरा था, बराय खुदा टुक देखने दे - सास का बहू के प्रति, जिसने उसके लड़के को पूरी तरह काबू में कर रखा है।

तेराउनबै :: (वि.) नौ दहाई और तीन का योग।

तेरासी :: (वि.) अस्सी और तीन का योग।

तेरो :: (सर्व.) मेरा, तुम्हारा।

तेल :: (सं. पु.) तिलों का रस, कोई भी स्निग्ध तरल पदार्थ, उदाहरण-तेल चड़ाबों विवाह के पूर्व तेल की रस्म पूरी होना, तेल न ताई लगन दिखाई-बिना कारण के कार्य की संभावना करना।

तेल :: (कहा.) तेल जरै बाती जरै, नाम दिया को होय। गोरी तो लरका जने, नाम पिया को होय। कष्ट उठाकर काम कोई करे, यश किसी को मिले।

तेलाब :: (सं. पु.) तालाब, सरोवर।

तेलिया :: (वि.) तेल की तरह चमकीला और चिकना।

तेलिया पाखान :: (सं. पु.) एक प्रकार का काला चिकना पत्थर।

तेली :: (सं. पु.) तेल निकालने और बेचने का धंधा करने वाली जाति, गाय भैस के ब्याने के बाद एक दो दिन का दूध जो मध्यम आँच पर गरम करके जम जाता है, कहा तेली को बैल मरे कुमारिन सती होय-झूठी लल्लो-चप्पो करने वाला।

तेव :: (सर्व.) तुम्हारा, तेवई आय।

तेवरस :: (वि.) तीसरे वर्ष।

तेवरा :: (सं. पु.) एक अनाज, तीन वस्तुओं की मिलावट।

तेवरी :: (सं. स्त्री.) तेवर, दृष्टि, अधिकांश कुपित दृष्टि के लिए प्रचलित।

तेंसुर :: (क्रि. वि.) टेढ़ा, तिरछा।

तेहरा :: (सं. पु.) त्यौहार, पर्व, उत्साह।

तेहा :: (सं. पु.) क्रोध।

तेहार :: (सं. पु.) त्योहार कोई पवित्र या महत्वपूर्ण दिन।

तैं :: (सर्व.) तू, तुम।

तैंई :: (सं. पु.) रसेदार, सब्जी, रसीली तरकारी।

तैंई- :: (सर्व.) तुम ही।

तैखानों :: (सं. स्त्री.) तहखाना, भूमिगत प्रकोष्ठ।

तैनात :: (क्रि. वि.) नियुक्त।

तैमत :: (सं. पु.) तेहमत, लुंगी।

तैया :: (सं. स्त्री.) कड़ाही।

तैस :: (सर्व.) तैसोई-वैसा ही।

तैसील :: (सं. स्त्री.) वसूली, उगाही, वह कार्यालय जहाँ मालगुजरी दी जावे सरकारी कचहरी। तहसील)।

तैसीलदार :: (सं. पु.) कर वसूल करने वाला वह अधिकारी जो मालगुजारी वसूल करता है और माल के छोटे छोटे मुकदमों का फैसला करता है। तहसीलदार।

तैसें :: (क्रि. वि.) तैसो, तैसा, वैसा।

तो :: (क्रि. अ.) खटोला होना क्रिया का भूत कालिक रूप था।

तो :: (सर्व.) तुम अनादरवाची प्रयोग कुछ कारकों के साथ प्रचलित।

तो :: (प्र.) तो से तोने, तोय तोपे, तोरे आदि।

तो :: (प्र.) हम तो न करें जो काम।

तोई :: (सं. स्त्री.) लहँगा के ऊपर की गोट।

तोंका :: (सं. पु.) वर्षा ऋतु में ऐसा समय जब वर्षा कुछ दिन के लिए रूक जाती है और तेज धूप निकलती है।

तोड़ :: (सं. पु.) काट, समस्या का निदान किसी प्रभाव को निरस्त करने की क्रिया।

तोड़ा :: (सं. पु.) पैरों में पहनने का आभूषण, पुरूषों के पहनने का तोड़ा विशेष प्रकार की कोड़ियों से बनाया जाता था ताकि थोड़ा लचीला रहे, स्त्रियों के तोड़े ढलवा चाँदी के होते है।

तोड़ादार :: (सं. पु.) एक प्रकार की बंदूक।

तोड़िया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की पायल जिसमें घुंघरू लगो रहते हैं।

तोडो :: (सं. पु.) राजकोष का वह धन जो उपकोषों से मुख्य कोष या इसके विपरीत स्थानांतरित किया जाता था।

तोतलें :: (क्रि. वि.) तुतला कर बोलना।

तोतलो :: (वि.) तुतलाकर बोलने वाला, तुतलाने का सा।

तोता :: (सं. पु.) एक पक्षी, कीर, सुआ।

तोंद :: (सं. स्त्री.) बड़ा पेट जो श्रम न करने के कारण निकल आता है।

तोप :: (सं. स्त्री.) ताप, एक आग्रेय अस्त्र।

तोपखाना :: (सं. पु.) तोपें रखने का स्थान, पल्टन की तोपों वाली टुकड़ी।

तोपची :: (सं. पु.) तोप चलाने वाला।

तोपबौ :: (क्रि.) खूब मोटी पर्त से इस प्रकार ढकना कि ढँकी हुई वस्तु का आभास न हो।

तोबरा :: (सं. पु.) एक प्रकार का थैला जिसमें चने भर कर घोड़े के मुँह पर चढ़ाकर उसके सिर से लटका दिया जाता है।

तोयली :: (सं. स्त्री.) ऐसी गाय भैंस जिसका गर्भ गिर गया हो।

तोयलो :: (वि.) मुँह उतर जाना, उदासी।

तोर :: (सं. पु.) आम तोड़ने पर उसके डण्ठल के पास से निकलने वाला अम्लीय रस जिसके लग जाने से त्वचा पर दाने पड़ जाते हैं यह बिच्छू के काटे पर लगाने की दवा के काम आता है।

तोर चन्दी :: (सं. स्त्री.) बाँह में पहनने का गहना।

तोरका :: (सं. पु.) रस्सी का टूटा हुआ टुकड़ा।

तोरबो :: (क्रि. स.) तोड़ना फोड़ना नष्ट करना।

तोरा :: (सं. पु.) दे. तोड़ा।

तोरे :: (सर्व.) तुम्हारा, आपका।

तोरो- :: (सर्व.) तम्हारा आपका।

तोलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी की छोटी हण्डी।

तोव :: (सर्व.) तुम्हारा, आपका।

तोह :: (सर्व.) तुम्हें, आपको।

तौ :: (क्रि. वि.) तो बलवाची अव्य.।

तौक :: (सं. पु.) तौक जालदार चौड़ी पट्टी का एक आभूषण जिसमें घुगरिया पड़ी रहती है, तोते या किसी भी पक्षी के गले में बनी हुई बालों की पट्टी या घेरा प्रायः काले रंग का होता है।

तौका :: (सं. पु.) कठिन धूप।

तौंन :: (सर्व.) तवन, वह।

तौपें :: (सर्व.) तुम पर।

तौल :: (सं. पु.) वजन, वजन के समतुल्यता।

तौलनयाँ :: (सं. पु.) तौलने के काम आने वाला सिक्का या कोई वस्तु।

तौलबौ :: (क्रि.) तुल्यता का लगाना, वजन करना।

त्यागन :: (सं. पु.) छोड़ने की क्रिया।

त्योंन :: (सं. पु.) तरकारी आदि जिसके साथ भोजन किया जाता है।

त्योरस :: (सर्व.) अगली या पिछली तीसरी साल।

त्योरा :: (सं. पु.) तीन किस्म की चीजों की मिलावट, एक अनाज।

त्योरी :: (सं.) दृष्टि, भ्रूबंक दृष्टि, माथे के बलों के साथ दृष्टि।

त्रिफला :: (सं. पु.) दे. तिरफला।

त्रेपन :: (वि.) पचास और तीन के योग की संख्या।

त्रेसठ :: (वि.) साठ और तीन के योग की संख्या।

त्वार :: (सर्व.) तम्हारा।

थ- :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के त वर्ग का द्वितीय व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

थइँया :: (सं. स्त्री.) दे. थन्ना, बड़ों के खेल में जब बच्चे शामिल हो जाते हैं तो उन पर हार जीत का प्रभाव नहीं पड़ता विशेषकर हार का, नदी या कुए की थाँह।

थओ :: (सं. पु.) मोटी तह।

थकत :: (क्रि. वि.) स्थगित, असमर्थ होना।

थकत :: (प्र.) तौ बे थकित हो गये, उनसें काम काज नँई होत।

थकत :: (कहा.) थकत बैल, गौन भई भारी, अब क्या लादोगे व्यापारी वृद्धावस्था के लिए कहा है कि शरीर शक्तिहीन हो गया है, अब ठहर कर क्या होगा।

थकनवाँ :: (सं. स्त्री.) थकान, थकान पैदा करने वाली भाग दौड़।

थकाँद :: (क्रि. वि.) अधिक परिश्रम से हार जाना, ऊब जाना, शिथिल होना, थकान।

थकाबो :: (क्रि. स.) किसी दूसरे को थकाना।

थकित :: (क्रि. वि.) दे. थकत, थका हुआ या हुई।

थको-माँदो :: (वि.) परिश्रम करते करते अशक्त, शांत।

थक्का :: (सं. पु.) किसी तरल पदार्थ के जमने की अवस्था, लोथरा।

थट्टा :: (सं. पु.) हँसी मजाक।

थतोलबौ :: (क्रि.) टटोलना।

थतोलाँ :: (क्रि. वि.) टटोल-टटोल कर।

थत्ता-मम्मा- :: (सं. स्त्री.) चापलूसी, किसी को खुश रखने के लिए की जाने वाली बातें मुहा।

थन :: (सं. पु.) जानवरों के स्तन।

थनया-गगरा :: (सं. पु.) वह घड़ा जिसमें मिर्च आदि का अचार रखते हैं।

थनवा :: (वि.) थन से दुहा।

थनवारौ :: (सं. पु.) जानवरों का स्तन मण्हल।

थनेला :: (सं. पु.) धान के साथ उगने वाली उर्द की फसल।

थनैलू :: (सं. पु.) वह जिसका थन भारी हो (गाय भैस आदि)।

थन्ना :: (सं. स्त्री.) खेल में किसी दौड़ की पूर्णता लक्ष्य स्थान जैसे क्रिकेट की क्रीज।

थपकाबो :: (क्रि. स.) शरीर पर धीरे-धीरे हाथ मारना, धीरे धीरे ठोकना।

थपकी :: (सं. स्त्री.) बच्चों को सुलाने के लिए करतल का हल्का हल्का आघात।

थपयोरा :: (क्रि. वि.) हथेलियों की सहायता से दीवार पर अनगढ तरीके से मिट्टी छापना।

थपरयाबौ :: (क्रि.) थप्पड़ें मार मार कर पीटना।

थपरिया :: (सं. स्त्री.) इस दृष्टि से मारी थप्पड़ कि चोट न लगे।

थपरी :: (सं. स्त्री.) ताली बजाकर किया गया संकेत।

थपा :: (सं. पु.) लकड़ी का औजार जिससे मोम का पत्ता पीटते हैं।

थपिया :: (सं. स्त्री.) चपटी मोटी गोल आकृति, आम की चटनी की चपटी गोल करके सुखायी हुई थपियां. टिकियाँ।

थपेड़ा :: (सं. पु.) पानी या तेज हवा का आघाता।

थप्पी :: (सं. स्त्री.) एक के ऊपर एक रखकर लगाया गया क्रम, छल्ली।

थब्ई :: (सं. पु.) कारीगर, मकान बनाने वाला।

थँमइया :: (सं. पु.) थामने वाला, साधने वाला।

थमथमयाबो :: (क्रि.) चलते-चलते रुकने का मन करना, जो चाल स्पष्ट हो जाता है, रुकने न रुकने की द्विविधा में पड़ना।

थँमबो :: (क्रि.) रूकना, साधना।

थमबौ :: (क्रि.) रुकना।

थमाबौ :: (क्रि.) कुटिल भावना से पकड़ना।

थम्मा :: (सं. पु.) स्तम्भ, खम्भा।

थर थर :: (क्रि. वि.) काँपने की वह दशा जिसमें अंग निश्चित क्रम से हिलते हैं।

थरओ :: (सं. पु.) छोटी क्यारी।

थरकबौ :: (क्रि. अ.) थर्राना. थिरकना।

थरथराई :: (सं. पु.) विनती, निहोरा, प्रार्थना।

थरथराबो :: (क्रि.) काँपना।

थरा :: (सं. पु.) बड़ी थाली, थाली।

थराई :: (सं. स्त्री.) सीमित अर्थ में रूढ़ कृपा करने के लिए किया गया अनुरोध, कहा थर न थराई हरामजादी कहाई, पानी के लचका में परमेसुर की का थराई।

थराबो :: (अ. क्रि.) काँपना, थर थर काँपना, भयभीत होना।

थरिया :: (सं. स्त्री.) थाली, छोटा थाल, थलिया।

थरी :: (सं. स्त्री.) छोटा गोल पत्थर।

थरौ :: (सं. पु.) धान की पौध तैयार करने के लिए बनाया गया थाला, पौधों के आस पास खाद्य पानी ठीक से डालने के लिए बनायी गयी गोलाकार मेंढ़।

थरौरी :: (सं. स्त्री.) कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली भेंट।

थर्मामीटर :: (सं. पु.) ताप नापने का यंत्र।

थल :: (सं. पु.) जगह, स्थल।

थलार :: (सं. स्त्री.) एक बार में किये पतले गोबर की राशि।

थव :: (सं. पु.) दे. थरौ।

थाई थाई थपरी :: (सं. पु.) एक खेल।

थाई भाव :: (सं. पु.) स्थायी भाव।

थाई- :: (वि.) बहुत समय तक रहने वाला, स्थायी।

थाती :: (सं. स्त्री.) धरोहर, संचित धन, जमा पूंजी।

थान :: (सं. स्त्री.) स्थान, गाय, बैल आदि पालतू पशुओं के बाँधने का स्थान।

थानक :: (क्रि. वि.) स्थानक, के समान।

थानक :: (प्र.) वे हमाए लाने बाप के थानक हैं।

थानैत :: (सं. पु.) किसी चौकी या अड्डे का स्वामी, ग्राम देवता।

थानों :: (सं. पु.) थाना, पुलिस स्टेशन, अथाना, अचार।

थाप :: (सं. स्त्री.) ढोलक आदि ताल, वाद्य पर हथेली का आघात, हथेली का आघात दस्तक।

थापक :: (सं. पु.) स्थापक, सनाढय ब्राह्मणों का एक आस्पद।

थापना :: (सं. स्त्री.) स्थापक, देव मूर्ति की स्थापना।

थापबौ :: (क्रि. स.) स्थापित करना, गीली वस्तु को हाथ या साँचे में पीटकर बनाना।

थापर :: (सं. स्त्री.) मारने के लिए हथेली का आघात, चाँटा।

थापी :: (सं. पु.) मुगरी, ऊल।

थाबकथोबा :: (क्रि. वि.) ऊल जलूल।

थाबौ :: (क्रि.) जमीन पर आकार विशेष में मिट्टी थोपकर किसी वस्तु, का फारान कुठिया या गुढ़ा चूल्हे का आधार बनाना, थाह लेना।

थामों :: (सं. पु.) स्तम्भ, किसी टँगी हुई वस्तु को सहारा देने के लिए आधार रूप में खड़ी की जाने वाली मोटी लकड़ी।

थायँ :: (सं. स्त्री.) थाह, जल की गहराई की अंतिम सीमा या आधार।

थार :: (सं. पु.) बडी थाली, भोजन परोसी हुई बड़ी थाली, सम्मानपूर्ण संदर्भ में प्रयुक्त।

थारी :: (सं. स्त्री.) थाली, भोजन परोसी हुई थाली, पूजा सामग्री, सजायी हुई थाली।

थारी :: (कहा.) थारी गिरी, झनकार सबने सुनी - जब कोई लडाई-झगड़ा या कोई विशेष घटना होती है, तो उसका पता पड़ ही जाता है।

थारौली :: (सं. स्त्री.) विवाह की एक रस्म, शादी में दूल्हा भाँवर पड़ने तक लड़की के घर नहीं जाता है, बारात आने पर डेरे में दूल्हा को भोजन कराने के लिए स्त्रियाँ थाली में भोजन सजाकर गाती बजाती हैं, इसी रस्म को थारौली कहा जाता है।

थिंगरया :: (वि.) पैबंद लगा हुआ।

थिंगरा :: (सं. पु.) पैबंद, (थिगड़ा)।

थिर :: (वि.) स्थिर, शांत।

थिरकबौ :: (क्रि. अ.) नृत्य में अंग संचालन करना नाचना, चंचलता के कारण हिलना डुलना, मटकना, हरकत करना।

थिरदा :: (सं. पु.) धैर्य, धीरता, शांति, स्थिरता।

थिरदाबो :: (सं. पु.) धैर्य, धारण करना, स्थिर होना।

थिराबो :: (क्रि. स.) निथारना, स्थिर करना, गीली वस्तु को स्थिर होने देना।

थिरें :: (सं. स्त्री.) स्थिर संज्ञार्थक क्रिया, किसी को अनुकूल करने की क्रिया।

थिली :: (सं. स्त्री.) रहँट में लगी लकडी।

थीदबो :: (क्रि.) जमना।

थीदबो :: (मुहा.) घी थीद गओ।

थुअर :: (सं. पु.) थूहर वृक्ष।

थुई :: (सं. स्त्री.) खेल में खिलाड़ी द्वारा लिया जाने वाला स्वैच्छिकविराम।

थुकथुकाबौ :: (क्रि. वि.) बार बार थूँकना।

थुकनू :: (सं. स्त्री.) गाली।

थुकयाबौ :: (क्रि.) थूँक से गीला करना, किसी की निन्दा करना।

थुकयाबौ :: (मुहा.) नाम पर थुकना।

थुकाई :: (सं. स्त्री.) थूकने की क्रिया या भाव।

थुकाबो :: (क्रि. स.) थूकने में प्रवृत्त करना, उगलवाना, निन्दा करना।

थुकी :: (सं. स्त्री.) बार-बार थूकने की आदत एक प्रकार का रोग।

थुकेल :: (वि.) तिरस्कृत, निंद्य।

थुकैला :: (वि.) बेशर्म।

थुक्का-फजीता :: (सं. पु.) तू-तू मैं-मैं जिसमें दोनों पक्षों की पोलें खुलती है।

थुजथुलो :: (वि.) मोटाई के कारण ढीला शरीर।

थुड़याबौ :: (क्रि.) किसी के कार्य विशेष को लेकर निन्दा करना।

थुडू थुडू :: (सं. स्त्री.) बदनामी।

थुथनी :: (सं. स्त्री.) दे. थुतरी।

थुंदबारौ :: (सं. पु.) मांसल पेट, माफक कौ थुँदबारौ-ईसुरी।

थुँदैल :: (वि.) बड़ी तोंद वाला।

थुनियाँ :: (सं. स्त्री.) मण्डल या छप्पर के लिए आधार रूप में लगायी जाने वाली एक सिरे पर फँगसादार लकड़ी।

थुनी :: (सं. पु.) खूँटा।

थुबर :: (सं. पु.) एक कँटीला वृक्ष।

थुरमतौ :: (वि.) स्थिर, मति, शांत।

थुरमोलू :: (सं. स्त्री.) कम दामों की वस्तु।

थुरमोलू :: (कहा.) थुरमोलू और दुधार, लमथनू और नैनवार - गाय सस्ती और दुधार भी हो, और लंबे थनों की हो, और अधिक घी वाली हो, जब कोई कम दामों में बढ़िया चीज लेना चाहे तब कहते हैं।

थुरयाबौ :: (क्रि.) दे. थुड़याबौ।

थुरहता :: (वि.) छोटे हाथ वाला जिसकी हथेली में कम वस्तु सके।

थुरिया :: (सं. स्त्री.) जवान भैंस के लिए संबोधन।

थुरू :: (क्रि. वि.) जल्दी।

थुली :: (सं. स्त्री.) पकाया हुआ गेहूँ का दलिया।

थू :: (नि.) थूकने, निन्दा करने या अपमानित करने के भाव को प्रकट करने का संकेत।

थूक :: (सं. पु.) लसीला, मुख से निकलने वाला पदार्थ।

थूक :: (कहा.) थूक के चाटबो - प्रतिज्ञा भंग करना, कहकर मुकर जाना।

थूँक :: (सं. पु.) मुँह में रहने वाला तरल पदार्थ।

थूँक :: (मुहा.) थूक सूकबो-घबरा जाना, थूक बिलोंना बैहूदी बात करना।

थूकबौ :: (क्रि.) थूँक या बलगम को मुँह से बाहर फेंकना, निन्दा करना लाक्षणिक अर्थ।

थूतर :: (सं. स्त्री.) पशुओ के मुँह का अग्रभाग, मुँह व्यंग्य अर्थ।

थूतरो, थूथरो :: (सं. पु.) बुरा चेहरा, भद्दा चेहरा, (स्त्री. लिग. थुतरिया)।

थूनी :: (सं. स्त्री.) चाँड़ टेक, खंभा।

थूबर :: (सं. स्त्री.) थूहर कम जल पर जीवित रहने वाले पौधों की अनेक किस्मों का एक नाम, कैक्टस।

थूल मथूल :: (वि.) थुलथुल, वादी के कारण बैडौल ढंग से मोटा, ढीले माँसवाला।

थूलबौ :: (क्रि.) फलास की जड़ से बकोंड़े निकालने या उसकी पोतने की कुची बनाने के लिए सिरे को पत्थर पर ठोक ठोक कर रेशेदार बनाना।

थें :: कारक चिन्ह से, प्र मनथे -वहाँ से।

थेई थेड़ :: (सं. स्त्री.) शैतान, ऊधम, बच्चों की भागदौड़, नाच के बोल।

थेंतौ :: (सं. पु.) शाक आदि को कढ़ाई से टारने या पलटने का रसोई घर का एक उपकरण, खोंचा।

थैला :: (सं. पु.) लटकाने वाला झोला आधुनिक फैशन का बैग।

थैलिया :: (सं. स्त्री.) रुपने रखने की छोटी थैली, पान सुपारी रखने की थैली।

थैलिया :: (कहा.) थैलियाँ सिमा राखो - जब कहीं से झूठ मूठ ही रुपया मिलने की आशा लगाए बैठा हो, तब व्यंग्य में।

थोक :: (वि.) राशि में, ढेर में, फुटकर के विपरीत।

थोंतरा :: (वि.) मोंथरी धार वाला, बेकार।

थोती :: (वि.) रिक्त, खाली, तत्वहीन, स्वत्वहीन, बेकार, बिना धार की, थोतरी, हल्की फुलकी।

थोंद :: (सं. स्त्री.) दे. तोंद।

थोंना :: (सं. पु.) मुँह व्यंग्यार्थ विकृति सूचक प्रयोग।

थोपबौ :: (क्रि.) हथेलियों से पीट पीटकर किसी सतह को समतल करना, पीटना, आरोप लगाना, किसी के मत्थे कोई जिम्मेवारी जबरदस्ती डालना।

थोबरौ :: (सं. पु.) दे. थोंना।

थोरक :: (वि.) थोड़ा सा. अल्पमात्रा में, बलवाची प्रयोग।

थौंद :: (सं. स्त्री.) तोंद, बड़ा हुआ पेट, पेट।

थौरौ :: (वि.) थोडा, अल्प।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के त वर्ग का द्वितीय वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

दइ :: (सं. पु.) दही।

दइओ :: (क्रि. अ.) देना, सौपना, ग्रहण करना।

दइबरा :: (सं. पु.) मोइन दिये हुए आटे की घी में तली हुई तथा शक्कर में पागी गयी टिकिया, एक मिठाई, दही बड़ा।

दइमारी :: (वि.) देवताओं से अभिशप्त।

दइमारी :: (सं. स्त्री.) एक गाली योगिक शब्द।

दइया :: (संबो.) सम्बो. देवता. आश्चर्य या शोक की स्थिति में देवता को पुकारने का सम्बोधन।

दइया :: (सं. पु.) देवता. लोक साहित्य दइरा. मारी, गाली में प्रयुक्त।

दइसत :: (सं. पु.) दहशत, उदाहरण-दिल की दइसत बढ़ी, छत्र।

दई :: (सं. पु.) दही, विधाता, दैव, भाग्य।

दई :: (मुहा.) दई में मूसर देबो - कार्य को बिगाड़ना।

दई :: (कहा.) दई-दुआई खरी न खाय, पीछें कोलू चाटन जाय - बैल दी हुई खरी तो खाता नहीं है, बाद में कोल्हू चाटता फिरता है, प्रायः लोग कहने और मनाने से काम नहीं करते, अपने आप फिर वही काम भले ही करें।

दईत :: (सं. पु.) दैत्य, असाधारण शरीर वाला, असाधारण भोजन करने या सोने वाला व्यक्ति।

दईरो :: (सं. स्त्री.) एक पेड़ जिसके पत्ते महुआ के जैसे होते हैं।

दउआ :: (सं. पु.) बड़े. भाई को पुकारने का सम्बोधन, अब अहीरों के लिए आदरवाची शब्द रूप में रूढ़।

दओ :: (क्रि.) दिया।

दकसक :: (सं. पु.) दुख -सुख।

दक्खिन :: (सं. पु.) दक्षिण।

दक्खिन :: (कहा.) दक्खिन गये न बहुरे, रहे चंदेरी छाया - ऐसे आदमी के लिए कहते है जो घर छोड़कर विदेश में रह जाए।

दक्खिनाइन :: (वि.) सूर्य की दक्षिणायन स्थिति।

दक्खिनी :: (वि.) दक्षिण की ओर या दिशा का, दक्षिण दिशा का।

दखल :: (सं. पु.) अधिकार, कब्जा, बोझ।

दखल :: (कहा.) दखल दर माकूलात करना - उचित काम में हस्तक्षेप करना।

दखलन्दाजी :: (सं. स्त्री.) हस्तक्षेप।

दंग :: (वि.) आश्चर्यचकित।

दगदगा :: (सं. पु.) आशंका, अँदेशा, भय, धुआँ।

दगदगाबौ, दगबो :: (क्रि.) बिना लपटों और धुंआ के अग्नि का तेजी से जलना, पके फोड़े में जलन पड़ना।

दगनारों :: (वि.) दागी, कलंकी, पापी, दगैल।

दगबाबो :: (क्रि. स.) दगने का काम दूसरे से कराना।

दगर :: (सं. स्त्री.) अंगारे मिली राख।

दगरा :: (सं. पु.) छः महीने से बड़ा सुअर का बच्चा।

दँगरी :: (सं. स्त्री.) मोटा कपड़ा, खादी, गाढ़ा।

दंगल :: (सं. पु.) मल्ल युद्ध का आयोजन, मेले आदि की भीड़-भाड़।

दगला :: (सं. पु.) रूई भरा अँगरखा, लबादा।

दगली :: (सं. पु.) रूई भरा वस्त्र, रूई भरा अँगरखा।

दँगली :: (वि.) मजबूत और प्रशस्त कद-काँठी वाला, पहलवान जैसा।

दगहा :: (सं. पु.) बैल, सांड।

दँगा :: (सं. पु.) दलीय संघर्ष, लड़कों की ऐसी शैतानी जिससे दूसरे के कामकाज में बाधा पड़े।

दगा। :: (सं. स्त्री.) धोखा, अप्रत्याशित धोखा।

दगाबाज :: (वि.) मिलकर धोखा देने वाला।

दगाबाजी :: (सं. स्त्री.) धोखा देने की क्रिया।

दगैत :: (वि.) बदनाम।

दगैल :: (वि.) धब्बों से भरा हुआ, अकुलीन, मिलकर एकाएक धोखा देने वाला।

दगैलया :: (वि.) धब्बों से भरा हुआ, दोषयुक्त चरित्र।

दँच :: (सं. पु.) फूटी कौड़ी।

दचक :: (सं. स्त्री.) दचकने की क्रिया या भाव, धक्का, ठोकर।

दचकबौ :: (क्रि.) क्रोध प्रदर्शन के लिए किसी वस्तु को जोर से किन्तु संभाल कर नीचे पटकना।

दचका :: (सं. पु.) ऊबड़-खाबड़ जमीन पर चलने के कारण चक्को वाले वाहन को लगने वाले झटके।

दच्च :: (सं. पु.) ठोकर, दचक, धक्का।

दच्च :: (सं. स्त्री.) सौदे में घाटा (दच्च लगाना)।

दच्चा :: (सं. पु.) ठोकर, धक्का, दचक।

दच्चौ :: (सं. पु.) व्यापार में घाटा, आर्थिक हानि।

दच्छ :: (सं. पु.) चतुर, कुशल, एक प्रजापति का नाम।

दच्छना :: (सं. स्त्री.) दक्षिणा, धार्मिक अनुष्ठान कराने वाले को दाता की श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दिया जाने वाला पारिश्रमिक।

दच्छया :: (सं. स्त्री.) दीक्षा, गुरूमंत्र लेने क्रिया।

दच्छया :: (कहा.) दच्छया लैबो तौ आसान है, पै सीदौ दैबो कठिन - किसी काम की जम्मेदारी ले लेना तो आसान है, पर उसका निबाहना कठिन है।

दच्छया :: (सं. स्त्री.) दीक्षा, गुरूमंत्र लेने क्रिया।

दच्छिन :: (सं. पु.) तथा।

दच्छिन :: (वि.) दक्षण उत्तर के विपरीत दिशा।

दच्छिन :: दे. दक्खिन।

दड़दड़ात :: (क्रि. वि.) बिना रोक टोक के तेजी से चले आना।

दड़दड़ाबो :: (क्रि.) कड़ी वस्तुओं को दाँतो से चबाने पर दड़-दड़ ध्वनि निकलना, चक्की में अनाज के साथ कंकड़ आ जाने से होने वाली विशेष ध्वनि, बैलगाड़ी के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने से होने वाली आवाज।

दड़ा :: (सं. पु.) ढेर।

दंडोत :: (सं. पु.) साष्टांग प्रणाम, दंडवत।

दत :: (सं. स्त्री.) पत्थर, प्राकृतिक अवस्था में पडा हुआ, अनगढ़ पत्थर।

दंत :: (सं. पु.) दाँत, अदँत में प्रयुक्त उदाहरण-दंत कड़ो दिल्लगी करने वाला दंत निपरी हँसी मजाक, गप्प।

दतबौ :: (क्रि.) चारों तरफसे निश्चित होकर किसी कार्य पर जुटना, लगे रहना।

दतल :: (सं. स्त्री.) वह स्त्री जिसके दाँत आगे निकले हो।

दतला :: (वि.) बड़े दाँतों वाला, जिसके दाँत बाहर दिखते रहते हो।

दता :: (सं. पु.) फेंक कर मारने योग्य आकार का पत्थर।

दताई :: (सं. पु.) पशु रोग, जबड़े में फोड़े की भाँति।

दंती :: (सं. पु.) (दंतिन) दाँतों वाला।

दतीला :: (सं. पु.) ऐसा पत्थर जिसके ऊपर मणि उभरे रहते है, ऐसे पत्थरों को लोग प्रायः देव स्थानों में रख देते है।

दतीला :: (वि.) के रूप में भी प्रयुक्त।

दतुआ :: (सं. पु.) दाँते, बखर में पास लगाने के लिए लोड पर हुए लकड़ी या लोहे के खूँटे।

दँतुरिया :: (सं. स्त्री.) बच्चों के छोटे छोटे दाँत।

दँतैल :: (वि.) जिसके दाँत बड़े हों।

दतोंन :: (सं. स्त्री.) दाँत साफ करने के लिए नीम, बबूल आदि की ताजी टहनी, मुँह साफ करने की क्रिया।

दंतोर :: (सं. पु.) दाँत से चबाया हुआ खाद्य या निशान।

दतौरी :: (सं. पु.) दाँत, बत्तीसी, दत्ती बाँधना।

दद :: (सं. पु.) दही।

दद :: (मुहा.) दद लुटबौ-आनन्दमय प्राप्ति।

दंद :: (सं. पु.) झंझट, संकट, दुर्निवार, स्थिति।

दंद फंद :: (सं. पु.) जोड़-तोड़, जटिलता युक्त कार्य।

दँदकबौं :: (क्रि.) चौंकना, उदकना।

दँदका :: (सं. पु.) रह रह कर कोंचने वाली चिन्ता, आशंका, गर्मी, उमस।

दँदकायनो :: (सं. पु.) जन्माष्टमी के बाद का दिन।

ददखानों :: (सं. पु.) राधा नवमी को होने वाला दधिकंद।

दददना :: (क्रि. वि.) लगातार प्रहार।

ददरी :: (सं. स्त्री.) शरीर पर निकली छोटी फुंसी, घमौरी।

ददरीलो :: (सं. स्त्री.) खुरदरी वस्तु या शरीर।

ददाजू :: (सं. पु.) दादा जी, पति के बड़े भाई।

ददिया ससुर :: (सं. स्त्री.) स्त्री या पुरूष के ससुर के पिता।

दंदी :: (वि.) झगड़ालू, उपद्रवी।

दंदी फंदी :: (वि.) दंद फंद करने वाला, अपनी हैसियत से अधिक, झूठा प्रदर्शन करने के प्रयत्न में संलग्न रहने वाला।

ददुर ददोरा :: (सं. पु.) मच्छर या किसी कीड़े के काटने से शरीर पर उभर आने वाला लाल धब्बा। (ददौरा)।

दँदोर :: (सं. पु.) लड़ाई झगड़ा।

दंदोरो :: (सं. पु.) बिना प्रयोजन का उपद्रव।

दद्दा :: (सं. पु.) दादा, पिता के बड़े भाई के लिए सम्बोधन।

दद्दा :: (कहा.) दद्दा, हम पाँव सिकोर के उमानों दै आय, कई तौ बेटा कौन सुख से पैर लई - यह सोच कर कि जूता छोटा बनने से भी कम देने पड़ेंगे, बहुत चतुराई से भी कभी कभी हानि होती है।

दधकाँदो :: (सं. पु.) दे. दे ददखानों।

दनदनात :: (क्रि. वि.) क्रोध में बड़बड़ाते हुए, बिना रोक-टोक।

दनदनाबौ :: (क्रि. वि.) क्रोध में डांट-फंटकार करना।

दनादन :: (क्रि.) बिना रोक टोक के तुरंत, लगातार।

दन्ती :: (वि.) दन्त्य य का विशेषण, दाँतों की सहायता से होने वाला उच्चारण।

दन्द :: (सं. पु.) धंधा, काम दंद में प्रयुक्त।

दन्दफन्द :: (सं. पु.) जोड़-तोड़ जटिलता युक्त कार्य।

दन्दी फन्दी :: (वि.) दन्द फंद करने वाला, अपनी हैसियत के झूठे प्रदर्शन में संलग्न।

दन्न :: (सं. स्त्री.) धाऊ, लकड़ी के चाक पर चढ़ाई जाने वाली लोहे की हाल।

दन्न से :: (वि.) तुरंत।

दन्ना :: (वि.) दानेदार।

दन्नों :: (सं. पु.) मोटा पिसा हुआ अनाज, दलिया।

दपका :: (सं. पु.) स्त्री के प्रसव के पश्चात जब पहली बार अन्न का भोजन दिया जाता है तो भात में लाल गर्म थैता (कोंचा) खुर्स कर भात के ऊपर घी डाल दिया है यही भात दपका कहलाता है, चपटी सुराही लुधाँती में प्रयुक्त।

दपका :: दे. पोतला।

दपकाबौ :: (क्रि.) धमकाना।

दपकी :: (सं. पु.) किसान या चरवाहों द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला, पीने के पानी का एक प्रकार का मिट्टी का पात्र।

दफतर :: (सं. पु.) कार्यालय, कचहरी।

दफनाबौ :: (क्रि.) मुसलमानों की अन्त्येष्टि क्रिया।

दफा :: (सं. स्त्री.) कानून की धारा।

दफेदार :: (सं. पु.) चौकीदारों का प्रभारी, पुलिस अधिकारी।

दबकबो :: (क्रि. अ.) भय के कारण छिप जाना, लुकना दुबकना।

दबकला :: (वि.) दबने वाला।

दबका :: (सं. पु.) दे. दपका।

दबकाबौ :: (क्रि.) दे. दपकाबौ।

दबकावनी :: (सं. स्त्री.) धमकी।

दबकी :: (सं. स्त्री.) गले में लटकने योग्य सुराही।

दबकुल :: (सं. पु.) एक पक्षी, रंग मटया, दबती, अधिक।

दबकेलुआ :: (वि.) किसी के अहसान में दबा हुआ, दबाब में रहने वाला।

दबदबो :: (वि.) रोआब।

दबना :: (सं. पु.) चूहों को मारने का एक उपकरण।

दबबाबों :: (कि.) थकान दूर करने केलिए शरीर दबवाना।

दबबो :: (क्रि. अ.) भारी बोझ के नीचे आना या होना, दाब में आना, किसी के सामने हलका ठहरना, झेंपना।

दबाई :: (सं. स्त्री.) औषधि, दवा।

दबाउ :: (वि.) दबाने वाला (गाड़ी आदि) जिसका अगला हिस्सा पिछले हिस्सा से अधिक बोझिल होना।

दबात :: (सं. स्त्री.) स्याही रखने का छोटा पात्र, दबात (कलम दबात में प्रयुक्त)।

दबाब :: (सं. पु.) बोझ का प्रभाव, वश में रखने का उपाय या कारण।

दबाबौ :: (क्रि.) दबाब डालना, वजन के नीचे चपाना, वश में रखना।

दबार :: (सं. पु.) आग।

दबारी :: (सं. पु.) राजाओं के सभापद, निठल्ले लोग जो यहाँ वहाँ बैठकर गपशप करते है, ऐसे लोग जो चार आदमियों में बैठकर मजे बातें करना जानते हैं।

दबिया :: दे. डबिया।

दबैदबै :: (क्रि. वि.) चुपचाप, दबे पाँव।

दबैल :: (वि.) एहसान मंद, जिस पर किसी का प्रभाव या दबाव हो, दब्बू, कमजोर।

दबोचबो :: (क्रि.) दाबना।

दबोत :: (सं. स्त्री.) दबात, मसियानी, स्याही रखने का पात्र।

दब्बू :: (वि.) डरपोक, धोंम में जल्दी आने वाला।

दम :: (सं. स्त्री.) श्वास, हिम्मत, गाँजे या चरस पीने की क्रिया, दम लगाना।

दम :: (कहा.) दम भाई किसके, दम लगाई खिसके - अपना मतलब गाँठ कर देने वालों के लिए कहते हैं।

दमक :: (सं. स्त्री.) चमक, कांति रह रह कर कोंधने वाली चमक।

दमकबो :: (क्रि. अ.) चमकना, चमचमाना।

दमंग :: (वि.) निर्भय, किसी से न दबने वाला, निर्भय होकर भी सच वोलने वाला, आजकल दबंग।

दमचबौ :: (क्रि.) बंद किबाड़ों को खुलवाने के लिए धक्का दे देकर भड़भड़ाना, किबाड़ से किबाड़ ठीक से भिड़ाकर लगाना।

दमड़ी, दमरी :: (सं. स्त्री.) एक पुराने पैसे का आठवाँ भाग।

दमड़ी, दमरी :: (कहा.) दमड़ी की अरहर, सारी रात खड़हर - जरा से काम को बहुत करके दिखाना।

दमतड़के :: (सं. पु.) बेरे।

दमदम :: (सं. स्त्री.) दे. दमचक, जल्दी मचाना।

दमदम :: (प्र.) बलम ने दमदम मचाई रे काजर की डबिया मायके में छोड़ आई रे।

दमदमाबो :: (वि.) चमकना।

दमदमों :: (सं. पु.) समतल भूमि पर कुछ ऊँचाई वाला स्थान।

दमदार :: (वि.) हिम्मत वाला, साहसी।

दमपक :: (वि.) मध्यम आँच पर पकाया हुआ, गर्म राख में दबा कर भूना हुआ।

दमफूलबो :: (क्रि.) अधिक परिश्रम के कारण हाँफना।

दमरियां :: (सं. स्त्री.) छोटी मछलियाँ।

दमरी :: (सं. स्त्री.) लेनदेन की बहुत छोटी इकाई, पुराने पैसे का आठवाँ भाग।

दमा :: (सं. पु.) एक श्वास रोग।

दमा :: (कहा.) दमा दम के साथ - दमा दम के साथ ही जाता है।

दमाद :: (सं. पु.) जामात, लड़की का पति।

दमामा :: (सं. पु.) नगाड़ा।

दमार दमारौ :: (सं. स्त्री.) जंगल की आग, दावाग्नि, दावानल।

दमोदर :: (सं. पु.) दमोदर, श्री कृष्ण।

दम्मों :: (सं. पु.) कूद कर बीच में आकर अपना अधिकार जमाने की क्रिया।

दम्मों :: (प्र.) कूद कर बीच में आकर अपना अधिकार जमाने की क्रिया।

दया :: (सं. स्त्री.) दया करूणा, हृदय के कारण विगलित होने की क्रिया, इसका उच्चारण दया और करुण दया और करुणा के बीच का होता है।

दयाबंत :: (वि.) दयालु, कोमल हृदय।

दयाल :: (वि.) दयालु, दयावान, करुणाकर।

दयाल :: (प्र.) दुर्गा हो जा दयाल, लोक गीत. में. प्रयुक्त।

दर :: (सं. स्त्री.) वास्तविकता, इज्जत, प्रतिष्ठा, भाव।

दरइया :: (सं. पु.) दलहनों को दल कर दाल निकालने वाला, दलिया पीसने वाला।

दरकबौ :: (क्रि.) दरार पड़ना, केवल भौतिक संदर्भ में प्रयुक्त।

दरकार :: (सं. स्त्री.) आवश्यकता, परवाह, सामाजिक सम्बंधों का शील, जरुरत।

दरखत :: (सं. पु.) बहुत बड़ा वृक्ष, दरख्त।

दरखास :: (सं. स्त्री.) दरख्वास्त, विनय यत्र।

दरगा :: (सं. स्त्री.) दरगाह, किसी मुस्लिम संत की कब्र जिसे पूजा जाता हो।

दरंगा :: (सं. पु.) दरज, संधि, दरार।

दरज :: (सं. पु.) दर्ज करने की क्रिया।

दरजन :: (सं. स्त्री.) बारह की इकाई, दर्जी की पत्नि।

दरजा :: (सं. पु.) पाठशाला की कक्षा स्तर।

दरजी :: (सं. पु.) कपड़े सीने वाला, कपड़े सीने वाली एक जाति।

दरद :: (सं. पु.) दर्द, पीड़ा, संवेदना।

दरदराबो :: (क्रि. वि.) पिसने में कंकड़ की आवाज आना, बेरोक-टोक अधिकार पूर्वक चले जाना या आना।

दरदराबौ. :: (क्रि.) क्रिपिसने में कंकड पिसने की आवाज, बेरोकटोक, अधिकार पूर्वक चले जाना या आना।

दरदरौ :: (वि.) खुरदरा, बारीक न पिसी हुई वस्तु का विशेषण।

दरन :: (सं. पु.) दाल दलने से निकली टूटी दाल तथा भूसी का मिश्रण।

दरप :: (सं. पु.) दर्प, घमण्ड, तेजी।

दरब :: (सं. पु.) किसी तीखी मिर्च आदि अथवा पीडा की तेजी।

दरबज्ज :: (सं. पु.) द्वार, किबाड़, पट।

दरबटना :: (सं. पु.) दाल बाँटने के लिए विशेष रूप से बनाया जाने वाला लम्बा पत्थर।

दरबा :: (सं. पु.) मुर्गी अथवा कबूतर बंद करने का लकड़ी आदि से बनाया गया घर।

दरबाजौ :: (सं. पु.) द्वार, घर के सामने का भाग, कहा दरवाजे पर आई बरात, समधिन को लगी हगास-काम के समय गायब हो जाना।

दरबान :: (सं. पु.) द्वारपाल, दरवाजे पर रखवाली करने वाला नौकर।

दरबार :: (सं. पु.) गजाओं के सभासदों की औपचारिक सभा, अपने पास चार छः लोगों को जोड़कर गपशप करते रहने की क्रिया।

दरबौ :: (क्रि.) दलहन को दलकर निकालना, दलिया पीसना।

दरभजिया :: (सं. पु.) दाल और भाजी मिलाकर बनाया जाने वाला शाक यौगिक शब्द।

दरमा :: (सं. पु.) दीवाल में बना किबाड़ों वाला आला, बाँस की चटाई।

दरयाब :: (सं. पु.) हृदय, कबीर द्वारा प्रयुक्त-आग लगी दरयाब में धुँआ न परगट होय।

दरस :: (सं. पु.) दर्शन, झलक (दैवी संदर्भ में प्रयुक्त झलक)।

दरसन :: (सं. पु.) देवताओं या आदरणीय लोगों को देखने की क्रिया।

दरसबौ :: (क्रि.) दिखना, झलक पड़ना।

दरसाबौ :: (क्रि.) मार्ग दर्शन करना, झलक देना, समझाना।

दराई :: (सं. स्त्री.) दलने की मजदूरी, दलने के काम।

दराँच :: (सं. स्त्री.) दरार।

दराँचौ :: (वि.) दरार युक्त।

दराज :: (सं. स्त्री.) दीवार में पड़ी मोटी दरार, टेबिल खण्ड।

दरार :: (सं. स्त्री.) दरार।

दरारौ :: (वि.) दरारयुक्त।

दरिद्दरी :: (वि.) गंदा रहने वाला, कुलक्षण युक्त।

दरिया :: (सं. पु.) भात की तरह बनाया जाने वाला गेंहू का दलिया।

दरी :: (सं. स्त्री.) बिछात, दरवाजों वाली (बारादरी) सुनारों का एक घनाकार उपकरण जिसमें चारों तरफ भिन्न आकारों के गोल गड्ढे होते है जिनकी सहायता से आधे गोल बनाये जाते हैं।

दरीखानों :: (सं. पु.) जेलों का वह स्थान जहाँ दरियाँ बुनी जाती है, राज महलों में बिछातों फर्शा आदि का भण्डार कक्ष।

दरेरा :: (सं. पु.) रोंदने की क्रिया।

दरेसी :: (सं. स्त्री.) भूमि को समतल करने की क्रिया।

दरैया :: (वि.) दलने वाला, घातक।

दरोगा :: (सं. पु.) देखभाल करने वाला अधिकारी, अटाले का दरोगा, सफाई दरोगा, पुलिस का थानेदार।

दरोरबौ :: (क्रि.) सिल लोढे से किसी वस्तु को मोटा मोटा पीसना।

दर्ज :: (सं. पु.) लिखने या प्रविष्टि करने की क्रिया।

दर्जन :: (सं. स्त्री.) बारह की इकाई, दर्जी की स्त्री।

दर्जयानों :: (सं. पु.) दर्जियों का मुहल्ला।

दर्जा :: (सं. पु.) कक्षा, स्तर।

दर्जी :: (सं. पु.) दे. दरजी।

दर्रा :: (सं. पु.) मोटा पिसा हुआ अनाज, बडे-बडे कणों वाली कोई भी वस्तु।

दर्राबौ :: (क्रि.) कुत्ते का भौंकना।

दर्सनी :: (वि.) देखने योग्य, हुण्डी का एक प्रकार जिसको प्रस्तुत करने पर तुरंत भुगतान किया जाता है।

दल :: (सं. पु.) फल में गूदे की मोटाई, गिरोह, पत्ता।

दलक :: (वि.) धमक, कपन।

दलकबो :: (क्रि.) काँपना, चौकन्ना, धमकना।

दलदल :: (सं. पु.) कीचड़।

दलदलाबौ :: (क्रि.) बड़े बच्चों का बिस्तरो में या अनुचित स्थान पर पेशाब करने के लिए एक तिरस्कारवाची ध्वन्यात्मक शब्द।

दलबा :: (सं. पु.) धोखा।

दलाँक :: (सं. स्त्री.) लड़ने की मुद्रा में बैलों द्वारा किया जाने वाला शब्द।

दलाँकबौ :: (क्रि.) दलाँकने की क्रिया, चिल्लाकर बोलना।

दलान :: (सं. पु.) ओसरा, दालान।

दलाल :: (सं. पु.) व्यापारी और उत्पादक के बीच माल का सौदा जुटाने वाला, किसी भी कुकर्म में पैसे के लिए माध्यम बनने वाला।

दलाली :: (सं. स्त्री.) दलाल का कार्य, दलाली करने से मिलने वाला धन, कमीशन।

दलिद्दर :: (सं. पु.) दरिद्र, गरीबी के कारण रहने वाली और अस्वच्छता बीमारी आदि आलस्य और अतिशय नींद जिसके कारण मनुष्य और विपन्न हो जाता है।

दलिद्दरी :: (वि.) गन्दा अस्वच्छ।

दलिद्दरी :: दे. दलिद्दर।

दलीप :: (सं. पु.) दिलीप, इक्ष्वाकु वंश के एक प्रसिद्ध राजा हैं जिन्होने नन्दिनी गौ की सेवा करके, आशीर्वाद से पुत्र पैदा किया था।

दलील :: (सं. स्त्री.) बात सिद्द करने के लिए तर्क।

दलुआ साँई :: (सं. स्त्री.) बढ़ा चढ़ा कर की जाने वाली बाते, गप्पें सामासिक शब्द।

दलुद्दर :: (सं. स्त्री.) दरिद्रता, निर्धनता।

दलेल :: (सं. स्त्री.) शारीरिक श्रम के रूप में दिया जाने वाला दण्ड।

दल्ल दल्ला :: (सं. पु.) चूहें, साँपों, केंकड़ों आदि का बिल।

दस :: (वि.) पाँच और पाँच की संख्या के जोड की संख्या।

दस खाँड :: (वि.) लगभग दस, दस की करीब।

दसकत :: (सं. पु.) दस्तखत, हस्ताक्षर, अक्षर वर्ण।

दसटौन :: (सं. पु.) प्रसूता के दस दिन पूर्ण होने पर उसके स्नान या मंगल गायन तथा भोजन का शुभ दिन।

दसबाननी :: (सं. स्त्री.) ब्याह आदि शुभ कार्यो में दसवें दिन का संस्कार।

दसमुख :: (सं. पु.) रावण, लंकाधिपति।

दसरइयाँ :: (सं. स्त्री.) दशहरे के दिन बनायी जाने वाली गोबर की दस थपियाँ देवेत्थानी, एकादशी को इन्हें जलाकर घर की देव मूर्तीयों को तपवाया जाता है इनका दशहरे को पाथा जाना इस बात का प्रतीक है कि आज से गोबर पाथा जाना प्रारम्भ है बारिश में गोबर नहीं पाथा जाता है।

दसरओ :: (सं. पु.) विजयदशमी, दशहरा, गंगा दशहरा।

दसरत :: (सं. पु.) अयोध्या के राज श्री राम के पिता।

दसरव :: (सं. पु.) दशहरा, विजयदशमी।

दसरैयां :: (सं. स्त्री.) विजयादशमी के दिन स्त्रियों द्वारा बनायी जाने वाली गोबर की प्रतिमाएँ।

दसा :: (सं. स्त्री.) दशा।

दसा :: (वि.) हालत (अधिकतर दुर्दशा के अर्थ में प्रयुक्त) अग्रवाल वैश्यों का एक वर्ग।

दसाँगरौ :: (सं. पु.) पैर तथा हाथ की अँगुलियों का श्रृगार।

दसाम :: (क्रि. वि.) दशम एक से दस तक की गिनती में दस का विशेषण-दसाम दस, कई संख्याओं के पहाड़ों में भी प्रयुक्त होता है।

दसारानी :: (सं. स्त्री.) परिवार की मुख समृद्धि के लिए किया जाने वाला देवी का एक व्रत जो तुलसी के अपने आप उगे पौधे में पहली मंजरी आने, किसी महिला के प्रथम प्रसव पुत्र को जन्म देने, गाय के पहले ब्यान में बछड़ा होने पर गण्डा लेकर प्रारम्भ किया जाता है प्रतिदिन दसारानी के द्वारा उपकार की एक कहानी कही जाती है और गण्डे में एक गाँठ लगा दी जाती है यह व्रत दस दिन किया जाता है दशमें दिन पूजा को समाप्त किया जाता है।

दसें :: (सं. स्त्री.) दशवी, पखबाड़े का दसवाँ दिनाँक।

दसैरी :: (वि.) दशहरी आम की एक किस्म।

दसैरौ :: (सं. पु.) दशहरा, विजयदशमी।

दस्टोन :: (सं. पु.) प्रसव के दसवें दिन होने वाला प्रसूता का स्नान तथा संस्कार और आयोजन।

दस्त :: (सं. पु.) पतली टट्टी।

दस्तन्दाजी :: (सं. पु.) हस्ताक्षेप, अधिकतर प्रकरणों में।

दस्तन्दाजी :: (वि.) के रूप में प्रयुक्त।

दस्तबंद :: (सं. पु.) करधनी की सी बनावट वाला सोने का हाथ का गहना।

दस्ता :: (सं. पु.) चौबीस या पच्चीस कागज की शीटों की इकाई, मुठिया, पुलिस या फौज की एक निशिचत सँख्या (जैसे फौजी दस्ता)।

दस्ताने :: (सं. पु.) हाथों की सुरक्षा हेतु पहिने जाने वाले ऊन या चमड़े के मोजे।

दस्ताबर :: (वि.) ऐसी वस्तु जिसके खाने से टट्टी साफ आती है।

दस्ताबेज :: (सं. पु.) ऋण अनुबंध आदि संबंधी प्रमाणक पत्र।

दस्ती :: (वि.) हाथों-हाथ जाने वाला पत्र।

दस्तूर :: (सं. पु.) रूढि, परम्परा, नेग।

दस्तूरी :: (सं. स्त्री.) कर कार्य सापेक्ष, रिश्र्वत की रूढ परम्परा, इस प्रकार की रिश्र्वत में लिया जाने वाला धन।

दहचाल :: (सं. पु.) विग्रह, विद्रोह।

दहन :: (सं. पु.) जलने की क्रिया लंका दहन तथा लंका दहन के व्यंग्य प्रयोग में प्रयुक्त (होलिका दहन)।

दहलबौ :: (क्रि.) ऐसा भयभीत होना जिससे दिल की धड़कन बढ़ जाये।

दहा :: (सं. पु.) ताश का दस अंकों वाला पत्ता।

दहाई :: (सं. स्त्री.) किसी संख्या का दायें से दूसरा अंक।

दहाड़बो :: (क्रि. अ.) गरजना, जोर जोर से आने वाली आवाज में बोलना, चिल्ला-चिल्लाकर रोना।

दहानों :: (सं. पु.) घोडे के मुँह में लगाने वाला एक लोहे का उपकरण दहाना-मुँह।

दहाबौ :: (क्रि.) स्थानीय मान के अनुसार अंको का पढना।

दहार :: (सं. स्त्री.) नदी के बहाब में बीच-बीच में पड़ जाने वाले कुण्ड, दह।

दहेंडी :: (सं. स्त्री.) रखने का बर्तन, दधि भण्ड।

दहोकर :: (क्रि. वि.) दशोत्तर, सौ के ऊपर दस।

दहोकर :: (प्र.) दस गिरधाम दहोकर सौ।

दा :: प्रत्यय, दादा बलबाची प्रत्यय, यौगिक शब्द।

दाँअनाँ :: (वि.) दहिनी, बायाँ का उल्टा, अनुकूल।

दाइजौ :: (सं. पु.) दायज, दहेज, दायजो, बूँ।

दाइबो :: (क्रि.) दौड़ना।

दाइबो :: (मुहा.) दौरा दोरी, दौर-पदौर।

दाइर :: (सं. पु.) दायर।

दांई :: (वि.) दाहिनी, बार, दफा।

दांई :: (कहा.) दाई-दाई ऊँटनी, सवा घडी मूतनी-बच्चों की तुकबंदी।

दाउजू :: (सं. पु.) पति का बड़ा भाई, बड़ा भाई, बड़े बूढों के लिए एक सम्बोधन।

दाउनी :: (सं. स्त्री.) बिजली, दामिनी।

दाऊ :: (सं. पु.) बड़े भाई का सम्बोधन।

दाएँ :: (वि.) दाहिनी ओर, दाहिने।

दाँकबो :: (क्रि.) गरजना, चिल्लना।

दाख :: (सं. स्त्री.) द्राक्ष, किसमिस।

दाखल :: (क्रि. वि.) प्रविष्ट, समान स्तर पर।

दाखल :: (प्र.) हम उने बाप के दाखल मानत।

दाखला :: (सं. पु.) प्रवेश, शाला में भर्ती की क्रिया।

दाखी :: (सं. स्त्री.) किसमिश के रंग का।

दाखें :: (सं.) द्राक्षी, अंगूर, मुनक्का।

दाग :: (सं. पु.) धब्बा, कलंक, भावात्मक अर्थ, मुर्दा जलाने की क्रिया।

दागबेल :: (वि.) नींव खोदने के लिए डाला गया निशान।

दागबो :: (क्रि.) गरम धातु से जलाना।

दागबौं :: (क्रि.) तोप या बंदूक चलाना।

दागी :: (वि.) धब्बों से युक्त, दागदार, दोष युक्त।

दाँगी :: (सं. पु.) एक जाति।

दाजनी :: (सं. स्त्री.) जैन समाज में बरात में आने वाली महिलाएँ।

दाड़ :: (सं. स्त्री.) जबड़े के भीतर के मोटे और चौड़े दाँत, चौभर।

दाड़ी :: (सं. स्त्री.) ठुड्डी के ऊपर के बाल, डाढ़ी।

दाँत :: (सं. पु.) दंत, दाँतों की आकृति की अन्य संरचना।

दाता :: (वि.) तथा।

दाता :: (सं. पु.) देने वाला।

दाता :: (कहा.) दाता देय भंडारी कौ पेट पिराय।

दाँता किलकिल :: (सं. स्त्री.) मौखिक लडाई, कहासुनी।

दाँती :: (सं. स्त्री.) दे. दाँता किलकिल।

दातुन :: (सं. स्त्री.) कूजी बनाकर दाँत साफ करने के लिए कुछ विशेष वृक्षों की पतली टहनी, मुँह साफकरने की क्रिया, दातुन का नव प्रवर्तित अर्थ।

दाँतो :: (सं. पु.) असुर, राक्षस।

दाँतोन :: (सं. स्त्री.) दे. दातुन।

दाद :: (सं. स्त्री.) एक चर्म रोग, दंद्रु।

दाँद :: (सं. स्त्री.) गर्मी, उमस, अनावश्यक बहस अधिक बातचीत, अनावश्यक बहस।

दादरे :: (सं. पु.) खुशी के अवसर पर महिलाओं के द्वारा गाये जाने वाले गीत।

दादा :: (सं. पु.) बाबा, पिता, बड़े भाई या किसी भी आयु के वृद्ध व्यक्ति के लिए आदर सूचक सम्बोधन, आजकल गुण्डों के लिए भी प्रयुक्त, कहा दादा कहने से बनिया गुड़ देता है।

दादागिरी :: (सं. स्त्री.) गुण्डागर्दी।

दादासिंगारी :: (सं. पु.) एक ग्रामीण खेल इसमें दो लडके एक दूसरे का हाथ पकड़कर घूमते है और तीसरा लडका उन्हें छुडाने की कोशिश करता है।

दान :: (सं. पु.) श्रद्धा भक्ति से दिया जाने वाला अन्न, धन आदि।

दान :: (कहा.) दान की बछिया के कान नई होते - दान में मिली वस्तु प्रायः निकम्मी होती है।

दानी :: (वि.) श्रद्धा भक्ति से प्रेरित होकर देने वाला।

दानों :: (सं. पु.) दाना, अनाज का एक दाना, नग, दानव घोड़ों को खिलाया जाने वाला अनाज, उदार।

दानौ :: (सं. पु.) दानव, राक्षस।

दाँप :: (सं. स्त्री.) गाहनी।

दाब :: (सं. स्त्री.) दाँय किया किन्तु बिना उड़ाया हुआ भूसा मिश्रित अनाज।

दाबडार :: (सं. पु.) दीवार के बीच में मजबूती के लिए लगाई जाने वाली ईंट व चूने की भरावट।

दाबबौ :: (क्रि.) दबाने की क्रिया, शरीर को दबाना।

दाबा :: (सं. पु.) न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा माँग करने के लिए प्रार्थना, साधिकार की जाने वाली माँग।

दाम :: (सं. पु.) मुद्रा, मौद्रिक, मूल्य।

दाम :: (कहा.) दाम करे सब काम - पैसे से ही सब काम होता है।

दामजौ :: (सं. पु.) एक जड़ी।

दामन :: (सं. पु.) अचकन या शेरवानी के नीचे का हिस्सा, दादा जी।

दामी :: (वि.) पैसे वाला।

दामोदर :: (सं. पु.) श्री कृष्ण का एक नाम।

दाँय :: (सं. स्त्री.) फसलों को बैलों से कुचलवा कर अनाज निकालने की क्रिया।

दायजौ :: (सं. पु.) दहेज, कन्या के विवाह में दी जाने वाली वस्तुएँ।

दाँयनों :: (वि.) दाहिना, वायाँ का उल्टा।

दायरा :: (सं. पु.) एक गोल चक्र के समान वाद्ययंत्र जिसमें घूंघरू लगे रहते हो।

दार :: (सं. स्त्री.) बार (एक दार, दो दार आदि) दाल, सुअरों का झुंड।

दार :: (कहा.) दार भात में मूसर चंद - दो आदमियों की बात में तीसरा व्यर्थ हस्तक्षेप करने पहुँच जाय तब।

दारमदार :: (सं. पु.) उत्तर दायित्व।

दारी :: (वि.) पुंश्र्चली, एक गाली जो ब्रज और बुन्देलखण्ड में अधिक प्रचलित प्रत्यय।

दारी :: (स्त्री.) जैसे दुनियादारी जिम्मेदारी लेनदारी, देनदारी।

दारू :: (सं. स्त्री.) बारूद, शराब।

दारू :: (कहा.) दारू ये गजब खामोशी दवाई (दवादारू) दवाई दारू।

दारूखोर :: (वि.) शराबी।

दारैं :: (सं. पु.) बार, दफा।

दालद्दुरी :: (वि.) घृणिक व्यक्ति जिस देखकर घृणा उत्पन हो।

दालान :: (सं. स्त्री.) दहलान, बरामदा।

दालुद्दुर :: (सं. पु.) दे. दलिद्दर।

दाव :: (सं. पु.) खेल में बाजी, वारी, खेल में लगाया जाने वाला धन, अवसर, पहलवानों में विपक्षी को परास्त करने की युक्ति।

दाँव :: (सं. पु.) पारी, वार, दफा, चाल, वह धन जो जुआ खेलने के समय खिलाडी सामने रखते है।

दावजू :: (सं. पु.) दाऊ जी बडे भाई का सम्बोधन, अधिकांश क्षत्रियों को पुकारा जाने वाला सम्बोधन यौगिक शब्द।

दावन :: (सं. स्त्री.) दबाब, दबाने के लिए रखा जाने वाला वजन।

दावनी :: (सं. स्त्री.) दामिनी कई लड़ियों वाला, एक सिर का आभूषण।

दाँवनी :: (सं. स्त्री.) उठे हुए बालों के किनारे माँग से लेकर कानों तक पहिनी जाने वाली सोने की चपटी लडी, दामिनी से विकसित।

दास :: (सं. पु.) गुलाम, खरीदे या युद्ध में जीते हुए लोग राजाओं के यहाँ शादी में मिलने वाले नौकर।

दासी :: (सं. स्त्री.) राजाओं की महिला सेविकायें प्रायः उनकी रखैलें भी हुआ करती थीं।

दासी :: (कहा.) दासी करम कहार से नीचे - नौकरानी का पेशा सबसे बुरा।

दासों :: (सं. पु.) दरवाजों में डाले जाने वाले पत्थर, मकान की कुर्सी के ऊपर तथा दीवालों के बीच में डाला जाने वाला पत्थर, शहतीर।

दाह :: (सं. स्त्री.) जलन, छाती या पेट में होने वाली जलन डाह।

दाँहनों :: (सं. पु.) दहिनी, वायाँ का उल्टा अनुकूल।

दिअट :: (सं. पु.) दीवार में लगा हुआ लकड़ी या पत्थर का टुकड़ा जो दीपक रखने के काम आता है, तीपधारा।

दिअल :: (सं. स्त्री.) दीपक।

दिआ :: (सं. पु.) दीपक।

दिआ बाती :: (सं. स्त्री.) दीपक बत्ती सँभालने या प्रकाश की व्यवस्था करने का समय, लौलइया, संध्या तब अँधेरा छाने लगे।

दिउलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का छोटा दीपक।

दिकचिक :: (सं. स्त्री.) अडंगेबाजी।

दिक्कित :: (सं. स्त्री.) दिक्कत, कठिनाई।

दिक्खदारी :: (सं. स्त्री.) अस्वस्थता, रोग।

दिखउआल :: (सं. पु.) विवाह के उद्देश्य से लड़का या लड़की को देखने वाले।

दिखदअल :: (वि.) प्रकट रूप से दिखाने के लिए, बनावटी।

दिखनी :: (सं. स्त्री.) देखने की इच्छा, दर्शन की अभिलाषा।

दिखनी :: (सं. स्त्री.) लड़की के विवाह में लग्र पत्रिका लाने वाले के साथ उपहार स्वरूप भेजी जाने वाली मिठाई तथा पकवान जिसमें प्रत्येक नग बहुत बड़ा बनाया जाता है।

दिखनोस :: (सं. पु.) प्रदर्शन की भावना।

दिखनोसूं :: (वि.) शोभार्थ, प्रदर्शन योग्य, देखने में सुंदर किन्तु कमजोर।

दिखबैइया :: (सं. पु.) चुनौती देने वाला, रखवाला, देखने वाला।

दिखबौ :: (क्रि. अ.) दिखाई देना, देखने में आना।

दिखवाई :: (सं. स्त्री.) देखने की क्रिया, दिखावट, बाहरी रूप रेखा, बनावट।

दिखवाई :: (मुहा.) दिखाई-लिखाई।

दिखाई :: (सं. स्त्री.) दिखाने योग्य जो केवल देखनेभर के योग्य हो।

दिखाबौ :: (क्रि.) दिखाना, दिखाना, संकेत करना, परीक्षण करवाना।

दिखाव :: (सं. पु.) प्रदर्शन।

दिखावट :: (सं. स्त्री.) बाहरी रूप रंग, बनक ठनक।

दिखावटी :: (वि.) केवल प्रदर्शन के लिए नकली, बनावटी।

दिखित :: (सं. पु.) ठाकुरों की एक जाति।

दिखैया :: (सं. पु.) देखने वाला, दिखाने वाला।

दिखोनी :: (सं. स्त्री.) शादी की मिठाई जो बिरादारी में बंटती है।

दिखौआ :: (वि.) दिखावटी, बनावटी।

दिगर :: (सं. पु.) एक मछली।

दिड़ :: (वि.) दृढ़।

दिन :: (सं. पु.) सूर्योदय से सूर्यास्त का समय, सामान्य गणना के लिए रात और दिन के चौबीस घंटे का समय।

दिन :: (कहा.) दिन भर नायं - मायं, जुँदैयन कपास में बींने-दि भर तो इधर उधर घूमें और चाँदनी में कपास बीनने जायँ, ठीक समय पर काम न करना दिन का प्रयोग हिन्दुओं में मरण के बाद खारी उठने के बाद रसोई के लिए भी किया जाता है।

दिन मैंत :: (सं. स्त्री.) दिन मेहनत, दैनिक मजदूरी।

दिनछित :: (क्रि. वि.) दिन रहते हुए दिन में ही यौगिक शब्द।

दिनरी :: (सं. स्त्री.) गीत, ग्राम गीत जिन्हें स्त्रियाँ खेत में फसल काटते समय गाती है।

दिनाँ :: (सं. पु.) दिन के सांकेतिक संदर्भ में यह चौबीस घण्टे की इकाई के लिए प्रयुक्त।

दिनाई :: (सं. स्त्री.) धीरे-धीरे प्रभाव डालने वाला विष।

दिनांक :: (सं. पु.) एकाध दिन यौगिक शब्द., निश्चित तिथि।

दिनारू :: (वि.) पुराना, अधिक उम्र का।

दिनौंधी :: (सं. स्त्री.) दिन का अंधा, दिन में न दिखाई पडने का रोग।

दिपबो :: (क्रि.) दिखाई देना।

दिबइया :: (सं. पु.) देनेवाला, दाता।

दिबरया :: (वि.) दिवाली को जलाया जाने वाला मिट्टी का दीपक, प्रकाश की अनेक व्यवस्थाएँ हो जाने के कारण नव प्रवर्तित विशेषण।

दिबालौ :: (सं. पु.) देवालय, मंदिर, व्यापारी की शाख।

दिमाँक :: (सं. पु.) दिमाग, मस्तिष्क, घमण्ड।

दिमान :: (सं. पु.) अधिकतर बड़े जागीरदारों की पदवी जिनसे राजा अवसर पड़ने पर मंत्रणा करते थे, अन्य बड़े क्षत्री परिवारों में भी मान्य रिश्तेदारों के लिए आदरसूचक सम्बोधन।

दिमारौ :: (सं. पु.) दीपक, लकड़ी, कागज आदि में लगने वाला कीड़ा।

दियट :: (सं. पु.) दीपक रखने का अड्डा।

दियट :: दे. दियट।

दियरा :: (सं. स्त्री.) दीपक।

दियल, दियला :: (सं. पु.) दिआ, चिराग।

दियल, दियला :: दे. दिअला।

दिया :: (सं. पु.) दे. दीपक, कहा, दिया न बाती, मुंडों फिरें इतराती-कोरा घमंड।

दियाठानो :: (सं. पु.) दिआठानों, एक निश्चित जगह जहाँ दीपक रखा जाता है। दीपक रखने का स्थान।

दियानों :: (वि.) बाबला, पागल।

दियाबाती :: (सं. स्त्री.) दीपक-बत्ती, संभालने या प्रकाश की व्यवस्था करने का समय, लौलइया, संध्या, जब अंधेरा छाने लगे यौगिक शब्द।

दियाबाती :: (सं. स्त्री.) दे. दिआवाती यौगिक शब्द।

दियासलाई :: (सं. स्त्री.) दे. दियासलाई।

दिरकबो :: (क्रि.) किसी वस्तु के बीच से दरार पड़ना।

दिरोंदा :: (सं. पु.) दरवाजे के ऊपर पाटने के लिए रखा जाने वाला पत्थर या लकड़ी का शहतीर।

दिल :: (सं. पु.) मन रक्त बनाने वाला शरीर का एक मुख्य अंग।

दिल :: (कहा.) दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है - प्रेम में रूप-कुरूप नहीं दिखाई देता।

दिलजमई :: (सं. स्त्री.) तसल्ली।

दिलजोई :: (सं. स्त्री.) खातिर, ढांढस।

दिलदार :: (वि.) उदार।

दिलदिल घोड़ी :: (सं. स्त्री.) घुड़सवार का स्वांग रचने के लिए बाँस की कर्मचारियों और कागजों से बनायी गयी घोड़े की आकृति जिसकी पीठ में एक बड़ा छेद होता है उसमें से घुसकर कोई व्यक्ति उसको कंधों पर टाँग लेता है तथा लगाम हाथ में पकडकर बाजों की धुन पर नाचता है यौगिक शब्द।

दिला :: (सं. पु.) फाटकों के चौखटों में लगाये जाने वाले लकड़ी क कामदार पटिया या काँच।

दिलासा :: (सं. स्त्री.) आश्र्वासन, धैर्य।

दिलेर :: (वि.) बहादुर, साहसी।

दिल्ली :: (सं. स्त्री.) भारत की राजधानी, एक ऐतिहासिक नगर, कहा दिल्ली दूर है-अभी रास्ता बहुत तय करना।

दिल्लीगी :: (सं. स्त्री.) विनोद पूर्ण व्यंग्य, आरोप, या बातचीत।

दिवार :: (सं. स्त्री.) दीवाल, देने वाला।

दिवारी, दिवाई :: (सं. स्त्री.) दीवाली, दीपावली, दीपोत्सव, हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार, महारात्रियों में से एक रात।

दिवारी, दिवाई :: (कहा.) दिवारी के चौखें पड़ा मोंटो नई होत है - एक दिन अच्छा भोजन कर लेने से कोई तगड़ा नहीं होता है।

दिवालिया :: (सं. पु.) ऐसा व्यापारी जो घाटा हो जाने के कारण अन्य व्यापारियों की लेन दारियाँ चुकाने में असमर्थ हो और उसने अपनी असमर्थता को घोषित कर दिया हो उसकी शाख समाप्त हो जाती है।

दिवालों :: (सं. पु.) मंदिर, ठाकुर, देवालय।

दिवैया :: (वि.) देने वाला, वस्तु प्रदान करने वाला।

दिसम्बर :: (सं. पु.) अँग्रेजी सन् का बारहवाँ महीना।

दिसा :: (सं. स्त्री.) ओर, तरफ, दिशा, उदाहरण-मैदान जाना-शौच के लिए जाना, दिसाफराकत-शौच।

दिसाउर :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जहाँ से व्यापारिक माल आता है।

दिसाउरी :: (वि.) विदेशी माल, अन्य देश का।

दिसावरी :: (वि.) बाहर से आने वाला माल।

दिसासूल :: (सं. पु.) दिसासूल।

दिस्टान्त :: (सं. पु.) दृष्टान्त किसी बात या सिद्धांत की पुष्टि मे कही जाने वाली कहानी।

दिहरी :: (सं. स्त्री.) देहरी।

दिहात :: (सं. स्त्री.) गाँव, देहात।

दीं :: (सं. स्त्री.) दे. दिमारौ।

दीअला :: (सं. पु.) दीपक लोक गीत।

दीअला :: (प्र.) सोने के दियला जलाव महाराज, सोहर।

दीकेरी :: (सं. स्त्री.) दोपहर का भोजन।

दीच्छया :: (सं. स्त्री.) दीक्षा, गुरूमंत्र।

दीछत :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक गोत्र, दीक्षित।

दीठ :: (सं. स्त्री.) कुदृष्टि, बच्चों को लगने वाली नजर।

दीदी :: (सं. स्त्री.) माँ, बड़ी बहिन को पुकारने का शब्द।

दीन :: (सं. पु.) धर्म, (दीन दुनिया में प्रयुक्त)।

दीन :: (कहा.) दिन दुनिया की खबर नइयाँ - किसी बात का पता न रखना, काम-काज में बेखबर रहना।

दीनबंद :: (सं. पु.) दीनों की सहायता, दीनबंधु ईश्वर, गरीब।

दीना :: कारक क्रिया विशेषण द्योतक शब्दों के साथ प्रयुक्त, ऐ वाची कारक चिन्ह।

दीना :: (प्र.) वे गिरे और झट्ट दीना उठ बैठे।

दीप :: (सं. पु.) धूप दीप में प्रयुक्त, दीपक।

दीपक :: (सं. पु.) पूजा या देव स्थान में जलने वाला, दीपक।

दीबानी :: (सं. स्त्री.) माल सम्बंधी दावा, माल के प्रकरण दिपटाने वाली अदालत।

दीवान :: (सं. पु.) राजाओं के मंत्री।

दीवानी :: (सं. स्त्री.) माल सम्बंधी दावा, माल के प्रकरण दिपटाने वाली अदालत।

दीवानी :: (कहा.) दीवानी आदमी को दीवाना कर देती है - दीवानी के मुकदमे आदमी को पागल बना देते हैं, वे वर्षों चलते हैं।

दीवानों :: (सं. पु.) किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति के लिए पागलों की तरह लगा रहने वाला।

दीवानों :: (कहा.) दीवानों के क्या सिर सीग होते हैं - जब कोई बेसिर-पैर की बात कहें।

दीसबों :: (क्रि.) दिखाई पड़ना, उदाहरण-निर्मल आकास दीसत लाली से भरो री गंगा।

दु :: (उप.) दो का अर्थबोधक उपसर्ग।

दु :: (प्र.) दुप्पी, दुरी आदि।

दुअरा :: (वि.) दुहरा, दो तरह का।

दुअरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा द्वार (अधिकतर डॉट वालो द्वार)।

दुआ :: (सं. पु.) चौपड़ या चंगला के खेल में पाँसों या कौड़ियों पर आने वाला दो का अंक।

दुआई :: (सं. स्त्री.) घोषणा, पुकार, शपथ (दुहाई)।

दुआभांति :: (सं. स्त्री.) भेदभाव, असमान व्यवहार।

दुआर :: (सं. पु.) दरवाजा, किबाड़, कपाट।

दुआरिया :: (सं. स्त्री.) दुआरिया, दुकान का द्वार।

दुआवनी :: (सं. स्त्री.) दूध दुहने की मजदूरी।

दुआस्ती :: (सं. स्त्री.) द्वादशी, पखवाड़े की बारहवीं तिथि।

दुकउअल :: (क्रि. वि.) छुपाकर।

दुकनया :: (सं. पु.) दुकानदार, हाटों, बाजारों या मेलों में अस्थायी दुकानें लगाने वाले दुकानदार।

दुकबो :: (क्रि.) छुपना।

दुकरी :: (सं. स्त्री.) सोने का एक आभूषण।

दुका :: (सं. पु.) छुपाछुपउअल का खेल। दुकादुकउअल।

दुका :: (सं. पु.) दे. दुका।

दुकादुकौवल :: (सं. पु.) एक खेल, बच्चों का छिपने का खेल।

दुकान :: (सं. स्त्री.) विक्रय स्थल।

दुकानदार :: (सं. पु.) दुकान रखकर वस्तुएँ बेचने वाला।

दुकानदारी :: (सं. स्त्री.) दुकान करने का धंधा लेने देन को दृष्टि में रखते हुए की जाने वाली बात।

दुकाबौ :: (क्रि.) छुपाना, आँख बचाकर चोरी करना।

दुकाल :: (सं. पु.) अकाल, बुरा समय।

दुकेला :: (वि.) जिसके साथ कोई दूसरा भी हो।

दुकेला :: (सं. स्त्री.) दुकेली, दुकेले।

दुकेला :: (क्रि. वि.) किसी के साथ।

दुकेले :: (क्रि. वि.) किसी के साथ।

दुक्की :: (सं. स्त्री.) ताश का दो अंकों वाला पत्ता।

दुक्ख :: (सं. पु.) दुख, पीड़, कष्ट, बल युक्त प्रयोग।

दुख :: (सं. पु.) दुख, पीड़ा, कष्ट सामान्य प्रयोग।

दुखनी :: (सं. स्त्री.) दुख से टूटी हुई।

दुखबौ :: (क्रि.) पीड़ित करना।

दुखयारी :: (सं. स्त्री.) दे. दुखनी।

दुगई :: (सं. स्त्री.) दो दरवाजों वाली डांट की दहलान।

दुगड्ड :: (सं. स्त्री.) दो विपरीत समस्याएँ जो एक हाथ आयें, दो के बीच, चौपड़ के घर में दों गोटों का एक साथ होना, जुग युग्म।

दुगदी :: (सं. स्त्री.) सफेद ज्वार।

दुगनों :: (वि.) द्विगुणित, दूना।

दुगला :: (सं. पु.) दौरी, टोकनी।

दुगाडों :: (सं. पु.) दो बत्ती का लैम्प, दो नाली बंदूक।

दुगासरों :: दे. दुगासरौ।

दुगुन :: (वि.) द्विगुणित, दुगनी मात्रा में जुए में दाँव से दुगना किया जाने वाला भुगतान।

दुंचग :: (सं. स्त्री.) द्विविधा, दो के बीच में।

दुचंगा :: (सं. पु.) अनाज की दाँय करने के लिए जब बैलों को दो पंक्तियों में जोता जाता है उसको दुचंगा कहते हं।

दुचलबौ :: (क्रि.) बुरी तरह कुचलना, बुरी तरह पीटना।

दुचली :: (सं. स्त्री.) बुरी तरह की गयी पिटाई।

दुतइ :: (सं. स्त्री.) इधर कीबात उधर कहने की क्रिया चुगली।

दुतकारबौ :: (क्रि.) अपमानित करके भागा देना, किसी की बात का अपमान जनक उत्तर देना।

दुतू :: (सं. स्त्री.) दूसरों से चुगली करने वाली औरत।

दुद :: (सं. स्त्री.) दूध बेचने वाली वे स्त्रियाँ या गाँये-भैंसे जिनमें दूध निकला हो विशेषण।

दुंद :: (सं. पु.) झगड़ा, उपद्रव।

दुदार-दुधार :: (वि.) अधिक दूध देने वाली।

दुदाही :: (सं. स्त्री.) एक प्राचीन नियासत गौडों का राज्य उत्तर की ओर यहीं तक फैला था।

दुदिलौ :: (वि.) दुचिता, चिंतित।

दुदी :: (सं. स्त्री.) पौधों की एक जाति जिसको तोड़ने से दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है एक पत्थर जो दूध के समान सफेद होता है।

दुदुआ :: (सं. पु. स्त्री.) के स्तन लोक गीत।

दुद्दी :: (सं. स्त्री.) सफेद पत्थर का टुकड़ा खड़िया मिटटी।

दुद्दू :: (सं. पु.) दूध बच्चों की भाषा में।

दुधमोजर :: (वि.) ज्वार की किस्म।

दुधारा :: (सं. पु.) एक तलवार।

दुधारी :: (सं. स्त्री.) दोनों तरफ धार वाली तलवार या छूरी।

दुधारु :: (क. वि.) दूध देने वाला गाय भैंस।

दुधारो :: (वि.) दे. धार वाला, जिसमें दोनों ओर धार हो।

दुधेडी :: (सं. पु.) दुध रखने या दुहने का बर्तन।

दुनओ :: (सं. स्त्री.) दो नदियों का संगम।

दुनयाबौ :: (क्रि.) दुहरा करना, अनाज को भूसे से पृथक करने के लिए दूसरी बार उड़ाना ताकि पूरी तरह सा हो जाये, मोड़ना।

दुनव :: (सं. पु.) दो नालियों वाली बंदूक।

दुना :: (वि.) चुगल खोर, इधर की बात उधर कहने वाला।

दुनिया :: (सं. स्त्री.) छोटा दोना, भोज में परोसा जाने वाला मिठाई का दोना, संसार।

दुनियादारी :: (सं. स्त्री.) सामाजिक व्यवहार, चालाकियों के समझते हुए किया जाने वाला व्यवाहर।

दुन्द :: (सं. पु.) द्वन्द, झंगड़ा।

दुन्न :: (सं. स्त्री.) जुए में दांव से दुगना किया जाने वाला भुगतान।

दुपर :: (सं. पु.) दोपहर दिन चढ़ आने का समय, मध्यान्ह।

दुपरिया :: (सं. स्त्री.) दोपहर का समय, दोपहर की तेज धूप।

दुपहरिया :: (सं. स्त्री.) दोपहर, मध्यान्ह।

दुपारिया :: (सं. पु.) अतिशबाजी की एक वस्तु जिसको जलाने से तेज और सफेद प्रकाश होता है।

दुपारी :: (सं. स्त्री.) दे. दुपरिया।

दुपाँस :: (सं. स्त्री.) चौपड़ के खेल में ऐसी स्थिति जब एक ही पक्ष में खेलने वाले दो खिलाड़ियों में से एक की सब गोटें लाल अंदर हो जाती है तो उसके पाँसों का लाभ भी उसके पक्ष में खेलने वाले को मिलने लगता है।

दुप्पी :: (सं. स्त्री.) ताश का दो अंको वाला पत्ता।

दुफगसा :: (सं. पु.) पेड़ का वह स्थान जहाँ से दो डालें निकली हों।

दुफर :: (सं. स्त्री.) दोपहर, मध्यान्ह।

दुफरिया, दुफाई :: (सं. स्त्री.) मध्यान्ह, दोपहर, एक फूल वाला पौधा।

दुफाइ :: (वि.) गेंहू, जौ आदि के अंकुरों की वह स्थिति जब उनमें दो पत्तियों का विकास प्रारम्भ होता है।

दुफारिया :: (सं. स्त्री.) तेज रोशनी करने वाली बारूद की आतिशबाजी।

दुफेर :: (सं. स्त्री.) दोपहर, मध्यान्ह।

दुबकनो :: (अ. क्रि.) छिपना, लुकना, डरकर छिपना।

दुबच :: (सं. स्त्री.) दो वस्तुओं के बीच की संकरी जगह।

दुबँदना :: (सं. स्त्री.) दोनो तरफसे बंधी हुई।

दुबदा :: (सं. स्त्री.) मन की अस्थिरता का भाव, संशय, संदेह, चिंता।

दुबन :: (सं. स्त्री.) दुबे की स्त्री, दुबे का बहुवचन।

दुबन्ना :: (वि.) दो प्रकार का।

दुबयानों :: (सं. पु.) दुबे लोगों का मुहल्ला।

दुबरउअल :: (वि.) दुहरा किसी वस्त्र या रस्सी आदि की दो पर्ते जो एक साथ हों।

दुबरयाबौ :: (क्रि.) दुबला या दुर्बल होना।

दुबराबो :: (वि.) दुबाला होना।

दुबरी :: (वि.) दुर्बल।

दुबादनों :: (सं. पु.) दो तरफ की रस्सियों से बांधा जाने वाला।

दुबारो :: (सं. पु.) दरवाजा, किबाड़, कपाट।

दुबीच :: (सं. स्त्री.) दे. दुबच।

दुबीचाँ :: (क्रि. वि.) दो के बीच में।

दुबीचे :: (क्रि. वि.) मध्य में।

दुबे :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक आस्पद।

दुबैया :: (सं. पु.) दोहने वाला।

दुभ :: (क्रि.) दुहना।

दुभात :: (वि.) भेदभाव, करना।

दुमची :: (सं. स्त्री.) घोड़े की पूँछ में होकर डाली जाने वाली लकड़ी।

दुमट :: (सं. स्त्री.) काबर की हल्की किस्म।

दुमड़ना :: (क्रि.) दुबारा आटा गूंथने की क्रिया।

दुमड़बौ :: (क्रि.) गुँदे हुए आटे को बन्द मुट्ठी के बाहर भाग से दबा-दबा कर चपटा करना और उसे दुहरा करके पुनः इसी प्रकार इससे रोटी अच्छी और मुलायम बनती है।

दुमदुमों :: (सं. पु.) दे. दमदमो।

दुम्म :: (सं. पु.) खूब फूला हुआ।

दुम्म :: (प्र.) ऊ कौ पेट फूल के दुम्म हो गव।

दुर :: (उप.) बुरे का अर्थ देने वाला उपसर्ग।

दुर :: (सं. स्त्री.) नथ. नथ का मोती, कान की छोटी वाली, नाक में पहिनने वाली बड़ी वाली।

दुरई- :: (सं. पु.) मोम के लम्बे टुकड़ों को समान भागों में काटने का औजार सुनार।

दुरकनू :: (सं. स्त्री.) एक घास तिपनी, तिपनी दूबा से कहते हैं।

दुरकाँचरी :: (सं. पु.) चींटे की शक्ल का बहुत छोटा काले रंग का कीड़ा।

दुरक्खा :: (सं. स्त्री.) गोल पट्टी वाली चूड़ी जिस पर हरे और पीले रंग की सींक तथा बीच में नाली सी होती है।

दुरगत :: (वि.) दुर्दशा।

दुरगा :: (सं. स्त्री.) आदिशक्ति, देवी दुर्गा।

दुरंगू :: (वि.) दो रंग का चपटी, पट्टी वाली नीले रंग की चूड़ी।

दुरजन :: ((सं. दुर्जन)) एक प्राचीन गोड़ राजा।

दुरजोधन :: (सं. पु.) दुर्योधन, कौरबो में ज्येष्ठ।

दुरत्तर :: (वि.) दुष्कर, कठिन।

दुरदसा :: (सं. स्त्री.) दुर्दशा, बुरी हालत (यौगिक शब्द.)।

दुरदिन :: (सं. पु.) दुर्दिन, बुरे दिन (यौगिक शब्द.)।

दुरबीन :: (सं. स्त्री.) दूरबीन, दूरदर्शक यन्त्र।

दुरबो :: (वि.) दूर होना, छिपना, आड़ या ओट में होना।

दुरभीली :: (वि.) दुविधा युक्त, संशय युक्त।

दुरमट :: (सं. पु.) मिट्टी को समतल करने का लकड़ी पत्थर या लोहे का औजार।

दुरस्त :: (वि.) दुरूस्त, ठीक हालत में।

दुराचारी :: (सं. पु.) बुरे आचरण वाला, दुश्चरित्र।

दुँरायचों :: (सं. पु.) तेंदुए की मादा और शेर के सम्भोग से उत्पन्न तेंदुआ जो अधिक शक्तिशाली और खूँखार होता है।

दुराव :: (सं. पु.) छुपाव, छद्म व्यवहार।

दुरी :: (सं. स्त्री.) चंगला के खेल में कौड़ियों पर या चौपड़ के खेल में पाँसो पर दो अंक।

दुरेठी :: (सं. स्त्री.) लड़की की शादी में बनाया जाने वाला मिट्टी का एक पात्र जिसमें दो खण्ड होते हैं इसमें वधू द्वारा एक खण्ड में आटा तथा दूसरे में सात बार खिचड़ी डालकर भरा जाता है और हर बार वर पैर से इसका स्पर्श करता हैं यह कन्या की बुआ को दी जाती है।

दुरोपति :: (सं. स्त्री.) पाण्डवों की पत्नि द्रोपति, बहु पुरुष भोगी स्त्रियों के लिए व्यंग्यार्थ में प्रयुक्त, एक स्त्री नाम।

दुर्गत :: (सं. स्त्री.) दुर्गति, बुरी हालत (यौगिक शब्द.)।

दुर्गा :: (सं. स्त्री.) भवानी, पार्वती, शक्ति, महामाया।

दुर्गुन :: (सं. पु.) दुर्गुण, बुरे व्यसन, बुरी आदतें, किसी खाद्य वस्तु का स्वास्थ्य के लिये हानिकारक प्रभाव।

दुर्जन :: (सं. पु.) दुष्ट व्यक्ति (केवल नाम के रूप में प्रयुक्त)।

दुर्दसा :: (सं. स्त्री.) दे. दुरदसा।

दुर्दिन :: (सं. पु.) दे. दुरदिन।

दुर्बाचन :: (वि.) परेशानी।

दुलइया :: (सं. स्त्री.) दुल्हिन, पत्नि, वधू।

दुलकी :: (सं. स्त्री.) घोड़े की एक चाल जिसमें वह धीरे-धीरे किन्तु नाचता हुआ सा चलता है।

दुलत्तू :: (सं. स्त्री.) घोड़े या गधे के पिछले दो पैरों का प्रहार (दुलत्ती)।

दुलदुलाबौ :: (क्रि.) दे. दलदलाबौ।

दुलदुलो :: (वि.) संशय।

दुलरी :: (सं. स्त्री.) दो लड़ वाली माला या हार।

दुलीचा :: (सं. पु.) गलीचा, कालीन।

दुलीची :: (सं. स्त्री.) रंगीन दरी, छोटी आसनी जो कालीन की तरह बनी होती है।

दुलेटी :: (सं. स्त्री.) पत्थर का काट-छांट कर साफ किया हुआ शहतीर जो छज्जे आदि के काम आता है।

दुलेंन :: (सं. स्त्री.) दुलहन, अनुज बधुओं और पुत्र वधुओं का सम्बोधन।

दुलैया :: (सं. स्त्री.) दुल्हन, नव वधू।

दुल्लम :: (वि.) दुर्लभ, कठिनाई से प्राप्त होने वाला।

दुल्हन :: (सं. स्त्री.) दुल्हन, नववधू।

दुवार :: दरवाजा, किबाड़, कपाट।

दुष्ट :: (वि.) क्रूर, निर्मम।

दुसरकमों :: (सं. पु.) किसी काम को दूसरी बार करने का झंझट।

दुसरतौ :: (सं. पु.) वधु का वर के घर गोने के बाद दूसरी बार आने का दस्तूर।

दुसरयाबौ :: (क्रि.) दे. दुनयाबौ।

दुसाई :: (वि.) दुफसली, भूमि।

दुसाका (खा) :: (सं. पु.) गुलेल बनाने के लिए फँगसों वाली लकड़ी।

दुसाध :: (वि.) कठिनाई से पूरा होने योग्य कठिनाई से वश में आने वाला, कठिनाई से ठीक होने वाला (रोग), दुसाध्य।

दुसायली :: (वि.) दो वर्ष वाद गाभिन होने वाली (गाय भैंस) दो वर्ष बाद गर्भ धारण करने वाली स्त्री।

दुसूती :: (सं. पु.) दुहते सूत का बना हुआ कपड़ा।

दुस्मन :: (सं. पु.) दुश्मन, शत्रु।

दुस्मनयाई :: (सं. स्त्री.) दुश्मनी, शत्रुता।

दुहत्तू :: (क्रि. वि.) दोनों हाथों से पकड़कर किया हुआ (लाठी का प्रहार)।

दुहनी :: (सं. स्त्री.) दुध दुहने की छोटी हंडी।

दुहरो :: (वि.) दुहरा।

दुहाई :: (सं. स्त्री.) साक्ष्य कथन की पुष्टि में देवी-देवताओं के साक्ष्य का कथन।

दुहाड़ी :: (सं. स्त्री.) दूध से बना बर्तन।

दुहाबो :: (स. क्रि.) दूध निकलवाना, दुहाना।

दुहेंडी :: (सं. स्त्री.) दूध दही का दोहनी।

दुहैया :: (वि.) दुहने का काम करने वाला।

दूखबो :: (अ. क्रि.) पीड़ा होना, दुखना। दुखतो-दुःख, कष्ट।

दूत :: (सं. पु.) राजाओं के सन्देशवाहक, वर्तमान सामाजिक सन्दर्भ में गुप्तचर दूताबाई -दूतपथ।

दूती :: (सं. स्त्री.) रानियों की सन्देशवाहक लड़कों के लिए लड़कियाँ या इसके विपरीत पटाने वाली दुश्र्चरित्र स्त्री, कुट्टनी।

दूद :: (सं. पु.) दूध, गोरस, स्त्री के स्तान।

दूदन (न) :: (सं. पु.) दूध का बहुवचन, दूध से, (करक युक्त शब्द), दूदन नहानो पूतन फलौ (आशीर्वचन में प्रयुक्त)।

दूदा (धा) :: (सं. पु.) दूध से बना छैना (लोक गीत. दूधा के लडुआ ताती जलेवी खावे न राजा गौरी बिना)।

दूदागरी :: (सं. पु.) नारियल का वह कच्चा गोला जिसमें पानी हो।

दूदाभाती :: (सं. स्त्री.) विवाह की एक रस्म जिसमें वर वधु एक दूसरे को दूधभात खिलाते है (यौगिक शब्द.)।

दूदिया :: (वि.) दूध जैसा रंग, मिश्रित।

दूदौर :: (सं. पु.) एक बैल।

दूधी :: (सं. पु.) एक चावल।

दून :: (सं. स्त्री.) दूहरा करने के लिए मोड़ा जाने वाला स्थान, दुहरी पर्त।

दूनर :: (वि.) दुहरा (केवल मुड़े हुए अर्थ में प्रयुक्त)।

दूनों :: (वि.) दुगना।

दूब :: (सं. स्त्री.) दूब पूजा के संदर्भ में घास की एक किस्म।

दूबरौ :: (वि.) दुर्बल, दुबला।

दूबा :: (सं. स्त्री.) दूर्बा, दूब एक प्रकार की घास।

दूभर :: (वि.) दुर्लभ।

दूर :: (क्रि. वि.) फासले पर।

दूरंदेसी :: (वि.) दूरदर्शी किसी कार्य के भावी परिणामों पर विचार करने वाला।

दूला :: (सं. पु.) वह लड़का जिसकी शादी हो रही हो, पति, आयोजन का नायक, जैसे रनदूला, सैनिक, अभियान का संचालक।

दूसरे :: (क्रि. वि.) दूसरी बार।

दूसरौ :: (वि.) एक के बाद दूसरा क्रम, पराया।

दे :: (सं. स्त्री.) देवी (राँड़दे, छिनारदे, आदि स्त्री गालियों में व्यंग्यार्थ मे प्रयुक्त)।

देइ :: (सं. स्त्री.) देवी (स्त्री नामों के अंतिम शब्द देवी का उच्चारण रूप देइ बात में प्रयुक्त)।

देइया :: देह, शरीर।

देई :: (सं. स्त्री.) देवी, देवता की पत्नि।

देउर :: (सं. पु.) पति का छोटा भाई, देवर।

देउलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का छोटा दीपक, सनाढ्य ब्राह्मणों का एक आस्पद।

देउली :: (सं. स्त्री.) चने की दाल को पानी में फुला कर तथा तेल में तलकर बनाया जाने वाला नमकीन पकवान, चेचक की फु सियों पर जमी खुरण्ट।

देखबौ :: (क्रि.) नेत्रों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना खोजना, परखना, निगरानी करना, अनुभव करना, विचार करना, चुनौती देना, मन भरना।

देखादेखी :: (सं. स्त्री.) अनुकरण, कहा देखा देख परोसन की-आस-पड़ोस के लोगों के कहने में आकर जब कोई काम करें।

देजाब :: (कहा.) तेजाब के डूबे हैं - खूब खरे रूपये, व्यंग्य में ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त जो खूब घिसा-पिसा और अनुभवी हो।

देदूलो :: (सं. पु.) दूल्हा, वर।

देंनगी :: (सं. स्त्री.) मजदूरी के बदले किया जाने वाला भुगतान।

देंनदारी :: (सं. स्त्री.) देय, वह भुगतान जो स्वयं को करना हो, कर्ज या वस्तुओं का मूल्य जो देना हो।

देनों :: (सं. पु.) दे. देनदारी।

देनों :: (वि.) ऋण।

देबतानी :: (वि.) देवताओं से सम्बधित।

देबलदेवी :: (सं. स्त्री.) आल्हखण्ड के नायक, आल्ह ऊदल की माँ।

देबागती :: (सं. स्त्री.) दैवगति।

देबार :: (सं. पु.) देने वाला, दाता।

देर :: (सं. स्त्री.) अवधि या आवश्यकता से अधिक समय, निश्चित या अपेक्षित समय के बाद।

देरी :: (सं. स्त्री.) देहरी, दहलीज।

देलान :: (सं. स्त्री.) दहलान (देर लगने को भी कहते हैं)।

देव :: (सं. पु.) देव (देवठानी ग्यारस में देवता अर्थ में प्रयुक्त) दैत्य।

देवका :: (सं. स्त्री.) देविका, देवकी, श्रीकृष्ण की माता, एक नाम।

देवठानी :: (वि.) देवोत्थानी( एकादशी)।

देवतानी :: (वि.) दे. देबतानी।

देवधनी :: (सं. पु.) कारसदेव।

देवरानी :: (सं. स्त्री.) देवर की पत्नि।

देवरौत :: (सं. पु.) देवर का लड़का।

देवल :: (सं. स्त्री.) चने की दाल।

देवला :: (सं. पु.) पागल पड़ा, साँड़, मिट्टी का दिआ।

देवलिया :: (सं. पु.) दिया, दीपक।

देवलियाई :: (सं. स्त्री.) वह भूमि जहाँ पलाश के वृक्ष अधिक हो।

देवली :: (सं. स्त्री.) दे. देउली, भुने हुए देवल।

देविहाई :: (वि.) पशुओं का एक तरह रोग।

देवी :: (सं. स्त्री.) देवी, महामाया, दुर्गा, देवपलि।

देस :: (सं. पु.) रहने का क्षेत्र, (अब राष्ट्रीय चेतना के विकास के कारण राष्ट्र के अर्थ में भी प्रयुक्त)।

देस :: (कहा.) देस चोरी, परदेस भीक - जब कोई बहुत दरिद्र होकर चोरी ओर आवारा गर्दी करने लगता है तब उसके लिए कहते है।

देसदुनी :: (वि.) जाड़े में देह कम्पत सब दैसदुनी की गंगा।

देसी :: (वि.) स्थानीय।

देसी :: (कहा.) देसी मुर्गी, बिलायती बोली - अपनी रहन-सहन या भाषा बरते।

देसी पान :: (वि.) महोबा में पैदा होने वाला एक पान।

देसी मठली :: (वि.) एक प्रकार का धान जिसका दाना छोटा तथा मोटा होता है।

देह :: (सं. स्त्री.) शरीर, कहा, देह में न लत्ता, लूटे के कलकत्ता पास में पैसा नहीं है, फिर भी कलकत्ते को जाकर जूटेंगें, दुस्साहस।

देहरा :: (सं. स्त्री.) देह, देहरिया-देह।

देहरी :: (सं. स्त्री.) दे. देरी।

देहरौ :: (सं. पु.) देवगृह, मंदिर।

देहरौटा :: (सं. पु.) चौखट के नीचे वाली लकड़ी।

देहात :: (सं. पु.) ग्राम (एक वचन में प्रयुक्त)।

देहाती :: (वि.) ग्राम्य, असंस्कृत।

दैत :: (सं. पु.) असुर, राक्षस।

दैन :: प्रत्यय देने वाला जैसे दुख दैन।

दैनदायजो :: (सं. पु.) दहेज।

दैनहार :: (वि.) देने योग्य।

दैनी :: (सं. स्त्री.) मजदूरी, भेंट, उपहार। लोकगीत दिवारी में जैसी दैनी हमें दई उसई तुमें देवे श्री भगवान रे।

दैनो :: (वि.) उधार, ऋण।

दैनो :: (कहा.) दैनो भलो न बाप कौ, बेटी भली न एक, चलनो भलो न कोस कौ जो बिध राखे टेक।

दैबो :: (क्रि.) देना।

दैबो :: (सं. पु.) देनदारी, कर्ज।

दैयत :: (सं. पु.) दैत्य, असुर, राक्षस।

दैया :: (सं. स्त्री.) दैया, दैव, ईश्वर।

दैरी :: (सं. स्त्री.) देहरी, दहलीज, देहली।

दैलवा :: (सं. पु.) बड़े आकार का दीपक, बड़ा दिया।

दैसत :: (सं. स्त्री.) दहसत, भय।

दो :: (वि.) एक और एक के योग की संख्या, देना क्रिया का आज्ञावाची रूप, कहा, दो घर कौ पाउनों भूकन मरत किसी काम के लिए दो मनुष्यों के भरोसे पर रहने वाला व्यक्ति धोखा खाता है।

दोआरो :: (सं. पु.) एक तरह का खजूर, पिण्ड खजूर।

दोइदोई :: (वि.) दोनों, दोऊ।

दोक :: (अ.) लगभग दो।

दोंकबौ :: (क्रि.) शेर का दहाड़ना सरलता से कही गयी बात को उत्तेजना पूर्ण और कड़े शब्दों में उत्तर देना, क्रोध के साथ बोलना। (लाक्षणिक अर्थ.)।

दोख :: (सं. पु.) दोष, अवगुण कमी, खराबी।

दोखन :: (वि.) पापिनी।

दोखल :: (वि.) दोषयुक्त (निरदोखल में प्रयुक्त)।

दोंगरे :: (सं. पु.) वर्षा ऋतु की पहली झड़ी चौमासे की वर्षा।

दोगला :: (वि.) पुंश्र्चली स्त्री, (पुत्र) अनिश्र्चित औरस का पुत्र, एक पुरूष के औरस और दूसरे का वैध कहलाने वाला (पुत्र) वचन देकर धोखा देने वाला, शेर और मादा तेंदुआ की संतान।

दोचबो :: (क्रि. स.) दबाब डालना, जोर से दबाना।

दोंचबौ :: (क्रि.) किसी संकरी जगह, जगह, कोने आदि में करके पीटना जहाँ से वह भाग न सके, ऐसा पीटना जिसमें प्रतिघात न हो।

दोंचा :: (सं. पु.) नोंकदारी पत्थर या पैनी लकड़ी से लगी ऐसी चोट जिसमें चमड़ी पर घाव न हो किन्तु माँस में चोट आ जाये।

दोंची :: (सं. स्त्री.) ऐसी भूमि जिसमें पग पग पर ऊँचा नीचा हो।

दोछ :: (सं. पु.) दोष, पाप कलंक, आरोप।

दोज :: (सं. स्त्री.) द्वितीया, पखवाड़े की दूसरी तिथि।

दोज :: (कहा.) दोज कौ बायनो तीज कौ फेर दओ एहसान लौटा दिया, किसी का कोई निहोरा नहीं रखा।

दोजया-दोजा :: (वि.) ऐसा वर जिसकी एक पत्नि मर चुकी हो और दूसरा विवाह कर रहा है।

दोत :: (सं. स्त्री.) दवात।

दोत्रे :: (सं. पु.) दोत्रेय, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का संयुक्त अवतार।

दोंदत :: (सं. पु.) दो दाँत वाला।

दोदना :: (सं. पु.) उपद्रव, ऊधम।

दोदबौ :: (क्रि.) किसी बात को तर्कहीन ढंग से गलत सिद्ध करने का प्रयास करना।

दोंदरया :: (वि.) ऐसी शैतानी करने वाला जिससे दूसरों के काम काज में बाधा पड़े या टूट फूट हो।

दोंदा :: (वि.) किसी बात को गलत सिद्ध करने का प्रयास करने वाला।

दोंदा :: (कहा.) लाबर बड़ों कै दोंदा।

दोनऊँ :: (सर्व.) दोनों।

दोना :: (सं. पु.) कटोरे जैसा पत्तों का बना पात्र।

दोंना :: (सं. पु.) पत्तों से बनाया हुआ अस्थायी पात्र।

दोंनागिर :: (सं. पु.) द्रोणागिर, बुन्देलखण्ड का एक जैन तीर्थ।

दोनियाँ :: (सं. स्त्री.) दूध दोहने का बर्तन।

दोनी :: (सं. स्त्री.) दोहनी।

दोनेरू :: (सं. पु.) गाय-भैंस के छोटे बच्चे जो दूध पीते हों।

दोबो :: (क्रि. स.) दोहन, दुहना, चौपाये के धन से दूध निचोड़कर निकालना, सार खींचना, खूब धन बसूल करना।

दोयल :: (सं. पु.) दहियल।

दोर :: (सं. पु.) दोरो-दरवाजा, किवाड़, कपाट।

दोरयाबो :: (क्रि.) दुहराना।

दोला :: (वि.) द्वितीय श्रेणी।

दोल्लां :: (सं. स्त्री.) टोकनी।

दोवार :: (सं. पु.) दरवाजा, द्वार, किबाड़।

दोवारो :: (सं. पु.) दरवाजा, द्वार, किबाड़।

दोस :: (सं. पु.) अवगुण, खराबी, दोष अपराध।

दोसदारी :: (वि.) दोस्ती।

दोहद :: (वि.) गर्भिणी स्त्री का इच्छा।

दोहर :: (सं. स्त्री.) मोटे कपड़े से बनी बिना रूई भरी रजाई जिसको ठण्ड से बचने के लिए किसान शरीर पर शाल की तरह लपेटते है।

दोहा :: (सं. पु.) मात्राओं के क्रम से चार चरणों वाला एक छन्द, मोनिया नृत्य या अन्य लोकगीत गोष्ठियों में प्रारम्भ में कहा जाने वाला छन्द।

दौ :: (सं. स्त्री.) दह, दहार, नदी के बहाव में बन गया कुण्ड।

दौ :: दे. दहार (उ. राजा नल पै विपदा परी, भूँजी मछली दौ में गिरी)।

दौआ :: (सं. पु.) अधिकारियों का निरीक्षण कार्यक्रम, दौरा।

दौंगरा :: (सं. पु.) दँवगरा, वर्षा ऋतु की पहली झड़ी।

दौदा :: (वि.) अपनी ही बात करने वाला।

दौन :: (सं. स्त्री.) लाल रंग की दो पहाड़ों के बीच की भूमि।

दौनगिर :: (सं. पु.) दौनाचल, दौनागिरी।

दौना :: (सं. पु.) पत्तों का कटोरा।

दौनी :: (सं. स्त्री.) वह पात्र जिसमें दूध दुहा जाता है, दुहनी।

दौर :: (सं. स्त्री.) चर्सा के द्वारा कुएं से पानी खींचते समय बैलों का चलने के लिए बनाया जाने वाला ढालू पथ, दौड़ भागने का खेल या व्यावाम।

दौरा :: (सं. पु.) दे. दौड़ा, मिरगी आदि मानसिक रोगों का आकस्मिक आघात।

दौरिया :: (सं. स्त्री.) बाँस की कमचियों से बना हुआ, उथला, चौड़े मुँह का पात्र एक प्रकार का सूपा।

दौरीं :: (सं. स्त्री.) स्त्रीयों का हाथों में पहना जाने वाला एक आभूषण।

दौरें :: (सं. स्त्री.) दरवाजे पर।

दौरौ :: (वि.) दुहरा, दुगना, दुपर्ती।

दौलत :: (सं. स्त्री.) सम्पत्ति।

दौल्ला :: (सं. पु.) नालों के बहाव में बना छोटा दह, बड़े आकार का दौरिया।

दौल्ला :: दे. नालों के बहाव में बना छोटा दह, बड़े आकार का दौरिया।

दौहैया :: (सं. पु.) दूध दुहने वाला, दुहाई।

द्या :: (सं. स्त्री.) दया इसके उच्चारण में स्वरहीन द नहीं है बल्कि उसमें ईषत स्वर है जिसके उच्चारण की कुछ एकारात्मक प्रकृति है।

द्याल :: (वि.) दयालु।

द्याल :: (प्र.) दुर्गा हो जो द्याल, राजा जगत के लाने लो. गी.।

द्रास्ती :: (सं. स्त्री.) दे. दुआस्ती, द्वादशी, बारस।

द्रोपती :: (सं. स्त्री.) दे. दुरोपति।

द्वापर :: (सं. पु.) युगों के क्रम में तीसरा जिसमें श्री कृष्ण ने जन्म लिया था।

द्वार :: (सं. पु.) दे. दुआर।

द्वारका :: (सं. पु.) हिन्दुओं का एक तीर्थ जो गुजरात में है, श्री कृष्ण के द्वारा बसाया हुआ नगर द्वारिका, एक नाम।

द्वारचार/द्वारो :: (सं. पु.) द्वार, दरवाजा, किवाड़।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के त वर्ग का चतुर्थ वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

धइ :: (सं. स्त्री.) दुहाई, शपथ, साक्ष्य।

धइ :: (प्र.) रामधइ राम की शपथ।

धकधकाबो :: (क्रि.) हृदय में धड़कन होना।

धकधकाबौ :: (क्रि.) आग का तेजी से नर्धूम जलना।

धकधकी :: (सं. स्त्री.) हृदय की धड़कन।

धका :: (सं. पु.) धक्का, बहुत भीड़, टक्कर।

धक्क :: (सं. स्त्री.) आकस्मिक भय से हृदय पर लगने वाला झटका।

धक्क-धक्क :: (सं. स्त्री.) हृदय की भय जन्य तेज धड़कन।

धक्क-मकाई :: (सं. स्त्री.) धक्क-मुक्की, अनियन्त्रित भीड़।

धक्कड़ी :: (वि.) निर्भय होकर काम करने वाला, आगा पीछा न सोचने वाला।

धक्कौ :: (सं. पु.) अँधेरी रात में नगरों के ऊपर आसमान में दूर से दिखने वाला परोक्ष प्रकाश।

धज :: (सं. स्त्री.) बनावट, श्रृंगार।

धज :: (प्र.) सजधज में भी प्रयुक्त।

धंज :: (वि.) दशा।

धजरी :: (सं. स्त्री.) कपड़े की पतली लम्बी पट्टी जो बाँधने योग्य हो।

धजा :: (सं. स्त्री.) ध्वज देवालयों पर लगा झण्डा, खिसला हुआ कुआँ।

धंजा :: (सं. स्त्री.) ध्वाजा पताका।

धजी :: (सं. पु.) दे धजरी।

धटाव :: (सं. पु.) कमी, उतार।

धड़ :: (सं. पु.) सिर छोड़ कर बाकी शरीर।

धड़कबौ :: (क्रि.) दिल का धड़कना।

धड़का :: (सं. पु.) आशंका, हृदय रोग।

धड़धड़ाबौ :: (क्रि. वि.) धड़धड़ की आवाज के साथ, बिना रोक-टोक।

धड़ल्ला :: (क्रि. वि.) पदरूप, धड़ल्ले से बिना रोक-टोक शान के साथ (आना)।

धड़ाक :: (सं. स्त्री.) किसी भारी वस्तु के गिरने की आवाज।

धड़ाकों :: (सं. पु.) बंदूक की आवाज।

धड़ाधड़ :: (क्रि. वि.) एक के बाद एक का शीघ्रता एवम निश्चिंत भाव से (आना)।

धड़ाम :: (सं. स्त्री.) मकान आदि भारी वस्तु के गिरने की ध्वनि (अकर्मक शब्द.)।

धतरौ :: (सं. पु. स्त्री.) धतूरा, कनक, एख विषैला पौधा जो औषधियों के काम आता है।

धता :: (सं. पु.) अवज्ञा करते हुए अँगूठा दिखाना धता बताना (अँगूठा हाथ का)।

धंताड़ी :: अधिकांश खेलने में मस्त रहने वाला बच्चा।

धताधतेरो :: (सं. पु.) पीतल, ताँबे के बर्तन बनाने वाला व्यक्ति, ताम्रकार।

धतूँ :: (सं. स्त्री.) दे धक्कड़ी।

धत्-धत् :: (अव्य. (अनु.)) दुतकारने का शब्द, दूर हो, हट जा।

धँदकबौ :: (क्रि.) धधकना।

धँदका :: (सं. पु.) लकड़ी के कोयले के बन्द भट्टों में नीचे की ओर बगल में हवा जाने के लिए बनाये जाने वाले छेद।

धँदकायानों :: (सं. पु.) दधिकंद, उठा पटक, लड़ाई झगड़ा।

धँदद :: (सं. स्त्री.) ऊँची लपटों वाली अग्रि (राठ)।

धँदबौं :: (क्रि.) अपर्याप्त स्थान में कई लोगों का एक साथ रहना।

धँदूरबौं :: (क्रि.) जबरदस्ती अपनी झूठी बातों को मनवाने का प्रयत्न करना।

धँदों :: (सं. पु.) काम काज, व्यवसाय, व्यापार।

धँधेरा :: (सं. पु.) राजपूतों की एक जाति।

धँधेरे :: (वि.) राजपूतों की एक जाति।

धँधों :: (सं. पु.) दे धँदौ।

धन :: (सं. पु.) जोड़ की क्रिया, सभी प्रकार की सम्पत्ति।

धन :: (सं. स्त्री.) पालतू पशु, पुत्री।

धन :: (प्र.) यह किसकी पुत्री है तो प्रायः यह उत्तर मिलता है कि रामलाल कौ धन आय, नाम कोई भी हो सकता है इसमें ममत्व का परोक्ष प्रदर्शन रहता है।

धनइँयाँ :: (सं. स्त्री.) छोटे बच्चों के खेलने का धनुष।

धनखरौ :: (सं. पु.) वह खेत जिसमें से धान की फसल काट ली गयी हो।

धनतेरस :: (सं. स्त्री.) कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी, भगवान, धनवन्तरि का जन्म दिवस।

धनधारी :: (वि.) धनवान, धनन्ती, धनबारौ, धनेखर।

धनन्तर :: (सं. पु.) भगवान धनवन्तरि, एक पौधा जिसके पत्ते मोटे और कटावदार होते है तथा पीले पत्ते चटनी के काम आते है।

धना :: (सं. पु.) धनियाँ एक मसाला, युवती, गृह स्वामिनी।

धनाबौ :: (क्रि.) गाय-भैंस का बियाने लगना, गाभिन होना।

धनी :: (सं. पु.) गृह स्वामी, पति, धनवान (विशेषण.)।

धनुक :: (सं. पु.) धनुष।

धनुषधारी :: (सं. पु.) श्री राम के लिए रूढ़ (योगरूढ शब्द)।

धनैला :: (सं. स्त्री.) धान के साथ आने वाली उर्द की फसल।

धन्दौ :: (सं. पु.) आजीविका उपार्जन के लिए वस्तुओं के क्रय-विक्रय का कार्य।

धन्न :: ((नि.)) धन्य (अधिकतर व्यंग्य प्रयोग) पुरूषार्थ का प्रशंसा सूचक निपात।

धन्नासेटी (ठी) :: (सं. स्त्री.) धनी होने की डींग।

धन्नासेठ :: (वि.) धन-दौलत का मालिक।

धन्नी :: (सं. स्त्री.) ठाठ में लगायी जाने वाली चीर कर एक सी की हुई लकड़ी, प्रायः इटारसी टाइल्स के छप्पर में काम आती है, धरणी, धरनी।

धन्नों :: (सं. पु.) धरना, किसी माँग को लेकर अड़कर बैठने की क्रिया, देवता से मनोंती माँग कर उससे चबूतरे पर एक पत्थर रख मनोकामना पूर्ण होने पर पूजा आदि का वचन दिया जाता है, कामनापूर्ति पर वचन निर्वाह कर पत्थर उठा लिया जाता है यह पत्थर रखने की क्रिया धन्नों धरना कहलाती है।

धपचा :: (सं. पु.) किसी वस्तु के चपेट टुकड़े।

धपरा :: (सं. पु.) दीवार की छावन से गिरे हुए मिट्टी के चपटे टुकड़े, गुली (महुए के फल) या कंजी के फलों के दल।

धपा :: (सं. पु.) खेलने के लिए बनाया जाने वाला खपरिया का गोल टुकड़ा।

धपाड़ा, धप्पड़ :: (वि.) चाँटा, तमाचा।

धप्प :: (सं. पु.) पीठ पर खुली हथेली से मारने या चपटी वस्तु के गिरने का अनुकारी शब्द, घौंस, धप्प।

धप्पड़ :: (सं. स्त्री.) खुली हथेली का पीठ पर आघात जिसके कारण धप्प की आवाज हो, धप्पा अधिक बलशाली है।

धप्पा :: (वि.) दाग, निन्दा।

धबई :: (सं. स्त्री.) एक छोटा पेड़ा इसमें छोटे-छोटे लाल फूल होते है इन्हें तेल में उबालकर इस को शीत की दवा के काम में लाया जाता है यह पेड़ नालों के किनारे या उपेक्षित कुओं की दीवारों पर पैदा होता है।

धबका :: (सं. पु.) धोखा।

धबका :: (क्रि. वि.) टुकड़े-टुकड़े।

धबा :: (सं. पु.) चिकनी ओर सफेद छाल वाला एक वृक्ष।

धब्बा :: (सं. पु.) दाग, कलंक, लांछन।

धमक :: (सं. स्त्री.) किसी भारी वस्तु के गिरने से आस-पास होने वाला कम्पन, गिरने की आवाज।

धमकबौ :: (क्रि.) अचानक आ टपकना, अधिकार पूर्वक या ढिठाई के साथ आ जाना, अचानक मार देना, आघात करना।

धमका :: (सं. पु.) दोपहार (दिन) की ऐसी धूप जिसमें हवा चलना बंद हो जाती है, क्वार और आषाढ में प्रायः ऐसी धूप होती है।

धमकाबौ :: (क्रि.) धमकी देना, किसी कार्य के दुष्परिणामों के प्रति सचेत करना।

धमकी :: (सं. स्त्री.) धमकी देने की क्रिया।

धमक्का :: (सं. पु.) पीठ पर खुले पंजे या घूंसे का जोर का प्रहार।

धमधमात :: (क्रि. वि.) फूहढ़ ढंग से (आना), धम-धम की आवाज के साथ।

धमधमाबौ :: (क्रि.) बिना सुर ताल के ढोल पीटना।

धमधूसर :: (वि.) मोटा और बेडौल, भद्दे व्यक्तित्व वाला।

धमधूसरा :: (सं. पु.) मोटी और बड़ी रोटियाँ, भद्दी और बड़ी संरचानाएँ।

धमना :: (सं. पु.) साँपों की एक जाति जो बहुत तेज भागती है तथा पूँछ से आक्रमण करती हैं, इसकी पूँछ के नीचे एक काँटा-सा होता है, कहते हैं इसी में विष होता है।

धमनी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की जड़ी।

धमाकौ :: (सं. पु.) किसी भारी वस्तु के गिरने या विस्फोट की आवाज।

धमाचौकड़ी :: (सं. पु.) उपद्रव, ऊधम।

धमार :: (सं. पु. (अनु.)) उछलकूद, उत्पात।

धमेल :: (सं. स्त्री.) विजय का डंका, दशहरे के पूरे दिन बसोर प्रातः ढोल लेकर अपने किसानों के दरबाजे पर श्रीराम की विजय के डंके के प्रतीक स्वरूप बजाते हैं इसके बदले उन्हें कुछ दिया जाता है वह क्रिया दसरए की धमेल कहलाती है।

धम्मक-धैया :: (सं. पु.) उपद्रव, ऊधम।

धरउअल :: (सं. स्त्री.) जो समय विशेष पर इस्तेमाल की जाय (वस्तु)।

धरकबो :: (अ. क्रि.) दिल की धक-धक करना, धड़धड़ शब्द होना, धड़कना।

धरकाबौ :: (स. क्रि.) दिल में धड़क पैदा करना, जी दहलाना।

धरता :: (सं. पु.) सूदखोरों द्वारा ब्याज पर दी जाने वाली राशि में से पहले से ही एक वर्ष के ब्याज के बराबर काटी गयी राशि जिसका सामायिक ब्याज की गणना में समायोजन नहीं होता, रख रखाव, करने वाला (करता-धरती शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

धरती :: (सं. स्त्री.) पृथ्वी, जमीन, संसार।

धरन :: (सं. स्त्री.) धरनी, धरती, जमीन, पकड़ जिद, टेक।

धरनी :: (सं. स्त्री.) भूमि, (गम्भीर एवं भावात्मक अर्थ में प्रयुक्त)।

धरबौ :: (स. क्रि.) पकड़ना, थामना, ग्रहण करना, पहनना, आश्रय लेना, गिरवी रखना।

धरम :: (सं. पु.) मूल गुण, स्वभाव, कर्तव्य, पंथ, मत, कर्तव्य ईश्वरीय आस्था के साथ किए जाने वाल आचार-विचार।

धरमखातो :: (सं. पु.) धर्मार्थ किया जाने वाला व्यय, धमार्थ बनाया हुआ भवन।

धरमसाला :: (सं. स्त्री.) यात्रियों के टिकने के लिए धर्मार्थ बनाया हुआ भवन।

धरमातमा :: (वि.) धर्म करने वाला, धर्म निष्ठा।

धरमी :: (वि.) धर्म करने वाला, धर्म का अनुयायी।

धरमी :: (सं. पु.) धार्मिक व्यक्ति।

धरमेसरी :: (सं. पु.) दे धरमी।

धरलई :: (वि.) पकड़ना।

धरातिया :: (सं. पु.) पूर्व जन्म का देनदार।

धरातौ :: (सं. पु.) ऋण।

धरिया :: (सं. पु.) कच्चा लोहा।

धरी :: (सं. स्त्री.) निश्चित बाँटो से की जाने वाली तौल की संख्या।

धरी :: (प्र.) पसेरी की दस धरी हो गयी अर्थात् पचास सेर तुल गया।

धरोर :: (सं. पु.) धरोहर, अमानत।

धरौ :: (सं. पु.) जिस बरतन में घी, तेल आदि लेना हो पहले उसकी तौल बराबर करने की क्रिया।

धरौकराबौ :: (सं. पु.) कोई वस्तु को तोलने के पहले तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर करना।

धर्मात्मा :: (वि.) धर्मानुसार आचरण करने वाला।

धर्मादा :: (सं. पु.) व्यापारियों द्वारा धर्मार्थ स्थापित निधि।

धसकबौ :: (क्रि.) आधार, कमजोर होने के कारण नीचे खिसकना।

धँसबो :: (अ. क्रि.) धँसना, गड़ना, चुभना, प्रविष्ट होना।

धसबौ :: (क्रि.) बल पूर्वक घुसना, ठासना, अबांछित स्थिति में प्रवेश करना।

धसान :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड की एक नदी।

धँसाबो :: (सं. क्रि.) गड़ाना, चुभाना, प्रवेश कराना।

धाई :: (सं. स्त्री.) खेल में बारी।

धाउ :: (सं. स्त्री.) गाड़ी के पहिये पर चढ़ाई जाने वाली लोहे की हाल।

धाक :: (सं. स्त्री.) सामान्य लोगों में मान्यता, भयजन्य मान्यता।

धाकड़ :: (वि.) दे. धक्कड़ी।

धाँगीचा :: (सं. पु.) भीड़, हुल्लड़, ऊधम, झगड़ा।

धाड़ :: (सं. स्त्री.) चिल्लाकर रोने का शब्द, दहाड़।

धाड़बो :: (अ. क्रि.) दहाड़ना।

धात :: (सं. स्त्री.) वह अपार दर्शक खनिज विशुद्ध द्रव्य जिससे बरतन आभूषण आदि बनाये जाते हैं, धातु, (वीर्य)।

धातम :: (सं. पु.) काम धंधा।

धाँदल पट्टी :: (सं. स्त्री.) स्वेच्छाचारिता के कारण अनियमित आचरण और अपनी चलाने का प्रयास।

धाँदू :: (सं. पु.) आल्हा खण्ड का एक मात्र, धाँदल पट्टी करने वाला।

धान :: (सं. स्त्री.) एक अनाज जिससे चावल निकाला जाता ह।

धान बुबाई :: (सं. स्त्री.) शादी में एक दस्तूर।

धानक :: (सं. पु.) बसोर, बंशकार, एक जाति जो बांस के बर्तन डलियाँ-टोकरी आदि बनाती है ये लोग बाजे बजाने का काम भी करते हैं, प्राचीन काल में शायद ये धनुष बनाने का काम भी करते थे।

धानपान :: (वि.) दुबला-पतला, कोमल।

धानी :: (वि.) धान की हरी पत्तियों के रंग का, हल्का हरे रंग का।

धानों :: (सं. पु.) कुँए पर नहाने के लिए बना विशेष घाट।

धान्न :: (सं. पु.) धान्य, अनाज, (कुधान्न में प्रयुक्त)।

धाप :: (सं. स्त्री.) ढोलक पर आधात, ताप, खेत की भूमि का इस तरफ या उस तरफ का भाग।

धाबा :: (सं. पु.) आक्रमण, झपटने की क्रिया।

धाम :: (सं. पु.) वह स्थान जो तीर्थ हो, चारों धाम-बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारिका, देवताओं का आवास।

धामन :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी लकड़ी की काँवर गुलेल इत्यादि बनती है।

धामना :: (सं. स्त्री.) मनोंती सम्पन्न होने पर की जाने वाली गीत गोष्ठी।

धामा :: (वि.) प्राणनाथ जी का सम्प्रदाय जिसका मूल स्थान पन्ना है।

धामुन :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

धाय :: (सं. स्त्री.) बच्चों को दूध पिलाने और पालन करने वाली माँ के अतिरिक्त अन्य स्त्री, राजाओं के बच्चों को प्रायः दूसरी स्त्रियाँ दूध पिलाती थी।

धाँय :: (सं. स्त्री.) बन्दूक चलने का स्वर।

धाँय-धाँय :: (सं. स्त्री.) गोलियाँ चलाने की क्रिया।

धाँय-धाँय :: (क्रि. वि.) पूरी तीव्रता से आग जला।

धार :: (सं. स्त्री.) रेखा, प्रायः गहरी रेखा, तलवार-छुरी-चाकू आदि का पैना किनारा, बहाव, नदी की धार, तेल की धार आदि।

धारणा :: (सं. स्त्री.) धारणा, मन में बैठ जाने वाला विचार, धृष्टिकोण।

धारन :: (सं. स्त्री.) धारण, अंगीकार करने की क्रिया।

धारा :: (सं. स्त्री.) दशा, अधिकतर बुरी दशा, व्यक्तित्व का बाह्म रूप, नदी आदि का बहाव।

धारी :: (वि.) धारण करने वाला।

धारेकाड़बो :: (क्रि.) दूध दुहना।

धावन :: (सं. पु.) हरकारा, वृक्ष।

धावें :: (सं. पु.) एक वृक्ष, धावन।

धिक्कार :: (सं. स्त्री.) भर्त्सना का स्वर।

धिक्कारबौ :: (क्रि.) भर्त्सना करना, निन्दा करना।

धिंग :: (सं. स्त्री.) सम्भवतः फ जीहत अपमान, (लिंग धिंग में प्रयुक्त)।

धिंगाना :: (सं. पु.) ऊधम, धिंगाबो-उपद्रव।

धिंगानों :: (सं. पु.) लड़ाई-झगड़ा, अप्रिय विवाद जिसमें अश्लील भाषा का प्रयोग हो, आरोप प्रत्यारोप।

धिंची :: (सं. स्त्री.) धेला, पुराने पैसे के आधे का सिक्का।

धिया :: (सं. स्त्री.) बेटा, पुत्री।

धियापूत :: (सं. पु.) बाल-बच्चे।

धिरकार :: (वि.) धिक्कार, लानत।

धिलचा :: (सं. पु.) धिलची-पैसा पुराना।

धी :: (सं. स्त्री.) अक्कल, बुद्धि, बेटी।

धींगमधींग :: (सं. स्त्री.) दे. धिंगानों, झूमा झटकी।

धींगा धींगी :: (सं. स्त्री.) जबरदस्ती, बदमाशी, धींगामस्ती।

धींगा धींगी :: (सं. स्त्री.) अत्याचार, उपद्रवा, बदमाशी।

धीबर :: (सं. पु.) मल्लाह।

धीमो :: (वि.) जिसकी गति तेज न हो, तेज का विपर्याय।

धीर :: (सं. पु.) धैर्य, उताबली न करने की क्रिया।

धीरजवान :: उत्तेजित या उतावला न होने वाला धीरता।

धीरजवान :: (सं. स्त्री.) धैर्य।

धीरें :: (क्रि. वि.) धीरे, धीमी गति से।

धुंअनी :: (सं. स्त्री.) किसी औषधि पदार्थ को जलाकर शरीर पर पर उसका धुँआ लगाने की क्रिया, एक प्रकार का उपचार।

धुआ :: (वि.) धसकबो।

धुँआ :: (सं. पु.) धूम्र, मृत्यु (लाक्षणिक अर्थ.)।

धुँआ :: (प्र.) ओतोरौ धुँआ देखें (गाली)।

धुआई :: (सं. स्त्री.) दुहाई शपथ।

धुआई :: (प्र.) रामधुआई-राम की शपथ, दे धई, धोने की क्रिया, धुलाई का पारिश्रमिक।

धुँआँधार :: (क्रि. वि.) एक दम लगातार।

धुँआँधार :: (सं. पु.) जबलपुर से लगभग बीस कि. मी. दूर नर्मदा नदी पर प्रसिद्ध तथा सुन्दर जल प्रपात, पूरी शक्ति से और बिना रुके काम करना।

धुआँनी :: (सं. स्त्री.) दे धुअनी, धुआँ से शरीर का बाह्म उपचार।

धुआँनी :: (प्र.) धुआनी लैबौ।

धुआमार :: (सं. पु.) एक खेल।

धुँआँयद :: (सं. पु.) धुँआ, धुँए का दिखाई पड़ना या खुशबु आना।

धुक-धुक :: (सं. स्त्री.) चिंता, घबराहट।

धुकधुकी :: (सं. स्त्री.) हृदय की धड़कन, संशय।

धुकना :: (क्रि. वि.) धौंकना।

धुकबौ :: (क्रि.) प्रतिष्ठा या भय के कारण किसी की मान्यता होना।

धुकयाबो :: (क्रि.) धोखा खाना।

धुकार :: (वि.) जोर की आवाज।

धुकैल :: (वि.) धोखा देने वाला, अप्रत्याशित रूप से अपने वचन से पलटने वाला।

धुँगयाबौ :: (क्रि.) बड़े लोगों का बच्चों के समान शैतानी करना।

धुँगा :: (सं. पु.) बच्चों के समान शैतानी करने वाला, जवान, समाजोचित व्यवहार के विरूद्ध आचरण करने वाला, फूहड़, किसी की मर्यादा को न मानने वाला।

धुँगा :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

धुँगोइँ :: (सं. स्त्री.) धुंगपन, धुंगों का आचरण।

धुज :: (सं. स्त्री.) ध्वज, विशेषकर मंदिर का ध्वज।

धुटकना :: (क्रि. स.) गुटकना, निगलना।

धुतकार :: (सं. स्त्री.) तुरही या शंख की ध्वनि, अपमान पूर्ण डाँट-फटकार।

धुतकारबौ :: (क्रि.) अपमानपूर्ण डाँभगाना।

धुतिया :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के पहिनने की धोती, सादा साड़ी।

धुँद :: (सं. स्त्री.) अंधयारी, आकाश में बहुत अधिक गर्द या भाप के छा जाने के कारण आँख का एक रोग जिसमें चीजें धुंधली दिखाई देती है।

धुँदयाबों :: (क्रि.) आँखों में धुँआ लगना, कम दिखाई पड़ना।

धुँदलो :: (वि.) कुछ-कुछ अंधेरा, धुँए के रंग का, अस्पष्ट।

धुँदाबो :: (क्रि.) धुँआ होना।

धुंदी :: (सं. स्त्री.) धुन्ध, अस्पष्ट देखने की स्थिति।

धुँदुआ :: (सं. पु.) धुँआ निकालने के लिए विशेष रूप से बनाया जाने वाला ताक या छेद या चिमनी (अंग्रेजी.)।

धुँध :: (वि.) महुए का एक रोग।

धुँधर के :: (अव्य.) ऊषा काल, सबेरे, तड़के।

धुन :: (सं. स्त्री.) लगन, मन की लहर।

धुनकन :: (सं. पु.) धुनकने या आघातों से तार-तार हुई वस्तु, रूई आदि।

धुनकबौ :: (क्रि.) धुनक से रूई को तार-तार करके फुलाना, पीटना (लाक्षणिक अर्थ.)।

धुनका :: (सं. पु.) रूई धुनकने वाला, बेंना, बेंहना।

धुनकाई :: (सं. स्त्री.) धुनकने का पारिश्रमिक।

धुनकी :: (सं. स्त्री.) रूई धुनने का यंत्र।

धुनघुना :: (सं. स्त्री.) घुनघुन करने वाला खिलौना, झुनझुंना।

धुनबो :: (स. क्रि.) धुनकी से रूई साफ करना, खूब मारना, पीटना।

धुनिया :: (सं. पु.) एक अन्न, वर्षा में स्वयं उग कर सावन में पक जाता है विशेष प्रकार के घास के बीज।

धुनी :: (सं. स्त्री.) गप्प, झूठी बात, अफवाह।

धुप्प-धुप्पल :: (सं. स्त्री.) गप्प, झूठी बात, अफवाह।

धुब :: (वि.) स्थिर, अचल, ध्रुव तारा।

धुबघटा :: (सं. पु.) वह खेत जिसकी मिट्टी वर्षा से वह गयी हो।

धुबयाघाट :: (सं. पु.) वह घाट जहाँ धोबी कपड़े धोता है, धोबी घाट।

धुबाई :: (सं. स्त्री.) धुलाई की क्रिया, धुलाई का पारिश्रमिक।

धुर :: (सं. स्त्री.) गाड़ी।

धुर :: (सं. स्त्री.) दे. धुप्प।

धुरँइँया :: (सं. पु.) असभ्य तथा असंस्कृत।

धुरन्दर :: (वि.) पक्के, निपुण, (विशेषकर चालाकियों में निपुण)।

धुरपट :: (सं. स्त्री.) दे. धुप्प।

धुरपद :: (सं. पु.) ध्रुपद, गायन की एक शैली, जोर-जोर से और बेसुरे ढंग से गाने की क्रिया, (व्यंग्यार्थ)।

धुरयाबौ :: (क्रि.) धूल-धूसरित हा, किसी के ऊपर धूल फें ककर अपमानित करना।

धुरा :: (सं. पु.) बैलगाड़ी के आधार भाग में लगी दो बल्लियाँ।

धुरार :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी का वह ऊपरी भाग जो पहियों के भोंरा पर लगा रहता है, बैलगाड़ी का आधार भाग।

धुरी :: (सं. स्त्री.) छोटा धुरा, अक्ष।

धुरूष :: (सं. पु.) ध्रवतारा।

धुरेंड़ी :: (सं. स्त्री.) होलिका दहन के दूसरे दिन का होली का त्यौहार ऐसा माना जाता है कि इस दिन धूल, राख तथा कीचड़-गिलारे की फाग खेली जाती है रंग गुलाल की दोज और रंगपंचमी को।

धुर्रबौ :: (क्रि.) अपनी -अपनी बात चलाना, किसी की न सुनकर अपनी ही बात मनवाने के लिए तर्क-कुर्तक देना।

धुलेंडी :: (सं. पु.) होली का दूसरा दिन।

धुस्सड़ तिस्सड़ :: (सं. पु.) ताश का एक खेल।

धुस्सा :: (सं. पु.) मिलों के काम के अयोग्य रूई से बनाये जाने वाले सूती कम्बल।

धूका :: (सं. पु.) मध्यम आकार की बाँस की टोकरी।

धूका :: (सं. पु.) (अनुकरणात्मक.) आग दहकने या जलने का शब्द।

धूत्त :: (वि.) नशे में मस्त, नशे के कारण बेखबर।

धूँदूरिया :: (वि.) झूठी बातें जमाने का प्रयास करने वाला।

धूँधरो :: (वि.) धुंधला।

धूनी :: (सं. स्त्री.) दे धुँअनी, साधुओं के स्थान पर अखण्ड जलने वाला कौंड़ा, (कुण्डी)।

धूप :: (सं. स्त्री.) पूजा में सुगंधित धुँआ उत्पन्न करने के लिए जलाया जाने वाला पदार्थ।

धूपछाँह :: (सं. पु.) एक खेल।

धूम :: (सं. स्त्री.) ख्याति, बहुप्रचलन।

धूमा :: (सं. पु.) देथामों। दही बिलोते समय मथानी को बाँधने की जमीन में गढ़ी हुई मोटी लकड़ी।

धूर :: (सं. स्त्री.) चुनौती।

धूरन :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु का बचा हुआ बारीक अवशेष।

धूरा :: (सं. स्त्री.) धूल, बारीक रेत।

धूसर :: (वि.) धूल के रंग का, खाकी, मटमैला, एक व्यापारिक जाति, वैश्य और ब्राह्मणों की।

धेन :: (सं. स्त्री.) धेनु, थोड़े दिन की ब्याई हुई गाय।

धेय :: (सं. पु.) उद्देश्य।

धेला :: (सं. पु.) पुराने पैसे के आधे मूल्य का सिक्का।

धेला :: (मुहा.) धेला-पइसा।

धोई :: (क्रि.) धोना।

धोंउन :: (सं. पु.) किसी वस्तु को धोने से निकला पानी या अन्य तरल पदार्थ।

धोंकनी :: (सं. स्त्री.) दे. आग तेज करने के लिए हवा देने का यंत्र, शेखी बघारना।

धोकौ :: (सं. पु.) धोखा, दल, भ्रान्ति, अज्ञान।

धोत :: (सं. स्त्री.) धौत, चाँदी, विशाल सम्पत्ति।

धोती :: (सं. स्त्री.) पुरुषों का अधोवस्त्र।

धोप :: (सं. पु.) धुलाई की क्रिया।

धोबन :: (सं. स्त्री.) धोबी जाति की स्त्री, एक वृक्ष।

धोबिन :: (सं. स्त्री.) खंजन पक्षी, कौड़िया, कपड़े धोने वाली स्त्री।

धोबी :: (सं. पु.) एक जाति जो वस्त्र धोने का काम करती है, रजक।

धोरी :: (सं. स्त्री.) सफेद रंग की गाय।

धोवा :: (वि.) धुली हुई भिगोकर छिलके निकाली हुई दाल।

धोंस :: (सं. स्त्री.) पापड़ बनाने के लिए एक या कुछ दालों को मिश्रण का आटा, धमकी।

धोंसा :: (सं. पु.) सैनिक अभियान के समय सेना के आगे बजने वाला नगाड़ा।

धौ :: (सं. पु.) ऊपर से काफी चिकनी लकड़ी वाला एक वृक्ष।

धौ :: (कहा.) न धौ चड़े न गिर परे। एक प्रकार का वृक्ष ऊपर से चिकनी लकड़ीवाला एक वृक्ष।

धौउन :: (सं. स्त्री.) दे धोंउन, धोने से बचा पानी।

धौंकनी :: (सं. स्त्री.) खलांत।

धौंकबो :: (क्रि.) हवा करने की क्रिया।

धौकर :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी मे बैलों केपीछे वाली वह लकड़ी की पटली जिसमें तीन छेद रहते हैं और उनमें से धुरा तथा सींक निकली रहती है।

धौकरा :: (सं. पु.) जंगली पेड़।

धौंदा :: (सं. पु.) सूराख, छेद।

धौंदू :: (सं. पु.) भारी शरीर, बेड़ौल।

धौंदो :: (वि.) बड़ा छेद।

धौबौ :: (क्रि.) पानी या तरल से साफ करना।

धौर कें जाबो :: (क्रि. वि.) जल्दी-जल्दी या बारम्बार जाना।

धौरबौ :: (अ. क्रि.) दौड़ना, दौरना, चक्कर लगाना।

धौरौ :: (वि.) धवल, सफेद।

धौल :: (सं. स्त्री.) थप्पड़, थप्पर, धक्का-मुक्की, चाँटा।

धौंस :: (सं. पु.) उर्द या मूंग का पिसा हुआ आटा झरपटा, शान।

धौंस जमाबो :: (क्रि.) रौब दिखाना।

धौंसा :: (वि.) बड़ा नगाड़ा, डंका।

धौंसू :: (वि.) कुछ सफेद कुछ मटमैले रंग की।

धौंसू :: (सं. पु.) मकड़ी का जाला।

ध्यान :: (सं. पु.) ध्यान, अवधान, स्मरण, मन की एकाग्रता ध्यान से उतरबो।

ध्यान :: (क्रि.) भूल जाना।

ध्यानी :: (सं. पु.) ध्यान करने वाला, ईश्वरीय चिन्तन करने वाला।

ध्यानी :: (मुहा.) ग्याँनी ध्यानी।

ध्याबो :: (अ. क्रि.) ध्यान करना, ख्याल में लाना, विचार करना।

ध्वार :: (सं. पु.) घोड़ा, अश्व।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के त वर्ग का पंचम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

 :: (नि.) देवनागरी लिपि के तवर्ग का पंचम दन्त्य नासिकाय वर्ण। निषेधात्मक निपात (अधिकतर अनिश्चय वाची स्थिति में प्रयुक्त), बहुवचनवाची परसर्ग।

नँइँ :: (नि. अ.) निश्चयवाची, निषेधात्मक, निपात नहीं।

नइँया :: (सं. स्त्री.) नहीं है, नाहीं (निषेधयुक्त क्रिया)।

नईं :: (अव्य.) नहीं, ना, न।

नईंखों :: (सर्व.) यही, यहाँ।

नईटूट :: (सं. पु.) वह स्वेत जो परती से हाल में ही जोता गया हो।

नईंटोर :: (सं. पु.) परती भूमि को तोड़कर बनाया गया खेत।

नईंतर :: (अव्य.) नहीं तो।

नईंयाँ :: (अ.) नहीं है, उदा, मेरे राजा घरे नइयाँ असड़वा बैरी आन लगो। (अषाढ़)।

नउआ :: (सं. पु.) पक्षी, रंग दाखी, पूँछ काली सफे द, सिर पर कलगी, चोंच लम्बी काली, नाई।

नओ :: (वि.) नया, ताजा।

नकछिकनी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी जिसका पत्ता पीसकर सूँघने से छींके आती है।

नकटयानों :: (सं. स्त्री.) बेशरमाई।

नकटा :: (वि.) जिसकी नाक कटी हो, निर्लज्ज, बेशर्म, एक गाली (यौगिक शब्द.)। स्त्री.लि.-नकटी।

नकटा :: (स्त्री.) नकटी।

नकटो :: (वि.) जिसकी नाक काट गयी हो, निर्लज्ज, बेशरम।

नकबाबो :: (क्रि.) परेशान होना, नाक में दम।

नकबौ :: (क्रि.) पार कर जाना, निकलजाना।

नकबौ :: (प्र.) अबनो तौ बे दो कोस जाँगा नक गये हुइएँ)।

नकर :: (सं. स्त्री.) लकड़ी।

नकर :: (प्र.) नकर लगै-अर्थी उठे, जलाया जाये, मर जाये।

नकरयाबौ :: (क्रि.) अकड़जाना, क्रोध में बोलना।

नकरयारो :: (सं. पु.) लकड़ी बेचने वाला।

नकरिया :: (सं. स्त्री.) दे नकर।

नकल :: (वि. स्त्री. सं.) अनुलेख, लेख को यथावत् पृथक से लिखना, तदनुरूप क्रिया करना।

नकलची :: (वि.) नकल करने वाला, परीक्षा में नकल करने वाला, किसी की नकल कर मनोरंजन करने वाला।

नकली :: (वि.) बनावटी, असल की अनुकृति।

नकलें :: (सं. स्त्री.) व्यंग्य क्रियाएँ।

नकवानी :: (सं. स्त्री.) नाक में दम।

नकसा :: (सं. पु.) भूचित्र, भवन बनाने के लिए रूपरेखा का प्रस्तावित चित्र, नक्शा।

नकाबो :: (क्रि.) लाँघना।

नकीब :: (सं. पु.) राजाओं के आगे-आगे आगमन की सूचना देता हुआ चलने वाला व्यक्ति, खँगारों के लिए आदरवाची शब्द।

नकीबन :: (सं. स्त्री.) भाट (बंदीजन) की स्त्री।

नकील :: (सं. स्त्री.) ऊँट को नियंत्रण में रखने के लिए उसके नथुने में डाली जाने वाली लोहे की कील, नकेल।

नकुआ :: (सं. पु.) नथुना, नाक का सूखा हुआ मैल।

नकेल :: (सं. स्त्री.) दे. नकील।

नकोटन :: (सं. पु.) नकुआ।

नक्काल :: (सं. पु. वि.) दूसरों की नकलें कर मनोरंजन करने वाले भाँड़ आदि। दूसरों की वस्तुओं, ट्रेडमार्क आदि की नंकल करके अपनी चीजें बेचने वाला।

नक्काल :: (कहा.) नक्कालों से सावधान।

नक्की :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी का अग्रभाग, हिसाब किताब की चुकता बैलगाड़ी का अग्रभाग, हिसाब किताब की चुकता स्थिति, पक्का, पूर्ण। जैसे नक्की सौ रूपया।

नक्कू :: (वि.) नाक वाले, इज्जतदार (व्यंग्यात्मक प्रयोग नक्कू खाँ)।

नक्को :: (वि.) नक्कू का स्त्री. लिंग, नाम वाली (व्यंग्य अर्थ.)।

नख :: (सं. पु.) नाखून, विशेष कर जानवरों-शेर या उल्लू के नाखून जो सोने-चाँदी में जड़ कर बच्चों के गले में पहिनाये जाते हैं।

नखत :: (सं. पु.) नक्षत्र।

नखरया :: (वि.) नखरे करने वाला।

नखरे :: (सं. पु.) इच्छा होते हुए भी अनिच्छा को दिखावा, हर बात में मीन-मेख की आदत, मनुहार करवाने की आदत।

नखाँनों :: (सं. पु.) कुल, खानदान, वंश परम्परा।

नखाँनों :: (सं. पु.) जंगली या हिंसक पशु।

नखै :: (सं. स्त्री.) दे. नखी।

नखौ :: (सं. पु.) किसी समतल सतह पर नोकदार उभार।

नग :: (सं. पु.) रत्न, आभूषणों में जड़े जाने वाले असली या कृत्रिम, रत्न, अदद, नगीना।

नँग :: (सं. पु.) इकाई।

नँग :: (प्र.) चार नग भैंस हतीं।

नगड़दम्म :: (वि.) जिसका घर परिवार या आगे पीछे कोई न हो।

नगड़ा-नगाड़ौ :: (पु.) नगाड़ा, धौसा, डंका।

नगड़िया :: (सं. स्त्री.) छोटा नगाड़ा, चमड़े से मढा हुआ गहरा गोल पात्र।

नगद :: (क्रि. वि.) मौद्रिक रूप में (प्रदाय)।

नगदानगद :: (क्रि. वि.) नगद का बलवाची प्रयोग।

नगदी :: (सं. स्त्री.) धन जो मुद्रा के रूप में हो।

नगनओ, नगनया :: (पु.) अशंकुनी बैल, व्यक्ति जिसकी पीठ पर नागिन का आकार हो।

नँगयाबो :: (क्रि.) छीनना।

नगयाबौ :: (क्रि.) नंगा करना, सब कुछ छीन लेना, धीरे-धीरे वित्तहीन करना।

नगरिया :: (सं. पु.) गहोई वैश्यों का एक उपसर्ग।

नगरिया :: (सं. स्त्री.) नगड़िया।

नगवेल :: (सं. स्त्री.) नागवल्ली, पान की बेल (लोक गीत में प्रयुक्त)।

नँगा :: (वि.) नग्र, जिसके शरीर पर वस्त्र न हो, निर्लज्ज, जिसके पास कुछ न हो किन्तु अहम्-तुष्टि के लिए प्रयत्नशील हो एक गाली।

नँगा :: (कहा.) नंगू के गड़ई भई, बेर बेर हगन गई।

नँगा झोरी :: (सं. स्त्री.) खाना तलाशी।

नगाड़ौ :: (सं. पु.) चमड़ा मढ़ी लोहे की बड़ी नाद, नक्कारा।

नगारखानों :: (सं. पु.) महलों हवेलियों आदि के दरवाजों के घूँघट (बाहरी महराब) में दोनों ओर बने छोटे-छोटे चबूतरे जिन पर नगाड़े रखे जाते थे।

नगारथानों :: (सं. पु.) दे. नगारखानों, छोटा चबूतरा।

नगारो :: (सं. पु.) डुगडुगी की तरह का एक बड़ा बाजा डंका धौंसा।

नगार्ची :: (सं. पु.) नगाड़ा बजाने वाला।

नँगोइँ :: (सं. स्त्री.) अश्लील बातें और व्यवहार।

नगोसड़ :: (वि.) जिसके शरीर पर कोई वस्त्र न हो, नंगा, निर्लज्जा।

नँगौ :: (वि.) नग्र जिसके शरीर पर वस्त्र न हों।

नचइया :: (सं. पु.) नचउआ, नचवा, नाचने वाला, नचाने वाला।

नचनिया :: (सं. स्त्री.) नाचने वाली, नृत्य करने वाली।

नचनी :: (सं. स्त्री.) ऊपर की दो लकड़ी की छोटी सी तीलियाँ जिसमें बै बंधी रहती है और बै ऊपर नीचे उठने से नाचती है।

नचपचबौ :: (क्रि.) परिस्थितियों के अनुकूल ढ़लना, किसी समाज में भली-भाँति खप जाना।

नँचबो :: (अ. क्रि.) नाचना, नृत्य करना।

नचबौ :: (क्रि.) नाचना, नृत्य करना।

नचीटबो :: (क्रि.) पानी पूरी तरह उलीचना।

नचोड़ :: (सं. पु.) सार, सारांश (कथन का तात्पर्य)।

नछत्तर :: (सं. पु.) नक्षत्र, तारा।

नछत्तरी :: (वि.) भाग्यवान।

नछीलबौ :: (क्रि.) नाखूनों की सहायता से छिलके उतारना।

नजर :: (सं. स्त्री.) दृष्टि, कुदृष्टि, दीठ राजाओं को कोई वस्तु भेंट करने की क्रिया।

नजरबौ :: (क्रि.) देखना, दृष्टि डालना।

नजरयाबौ :: (क्रि.) किसी कुदृष्टि से हानि होना।

नजरानों :: (सं. पु.) किसी भूमि के मूल्य स्वरूप सरकार में जमा की जाने वाली राशि, भेंट की जाने वाली राशि या वस्तु, उपहार।

नजाई :: (सं. स्त्री.) अनाज की मण्डी।

नजीक :: (सं. पु.) समीप, पास, नजदीक।

नट :: (सं. पु.) शरीर के करतब दिखाने वाला, एक जरायम पेश जाति।

नटबौ :: (क्रि.) दिये हुए वचन से पलटना।

नटवा :: (सं. पु.) बड़ा बछड़ा जो जुतने के योग्य हो गया हो।

नटा-गटा :: (सं. पु.) छल छन्द, प्रयास, प्रयत्न।

नँटाई :: (सं. पु.) पैरों में बाँस बाँधकर चलने वाला (नट)।

नटेरबो :: (सं. पु.) अस्वाभाविक ढंग से आँखें फैलाकर आँखों से क्रोध प्रदर्शन करना, पुतली चढ़ जाना।

नट्इया :: (सं.) नटन, नाटा, ठिगना।

नठबौ :: (क्रि.) दे. नटबौ।

नठया :: (वि.) नाश करने वाला, वंश का अन्तिम व्यक्ति जिससे आगे वंश चलने की आशा समाप्त हो चुकी हो।

नतबऊ :: (सं. स्त्री.) पौत्र बधु, लड़के के लड़के की पत्नी (यौगिक शब्द.)।

नतीजा :: (सं. पु.) संबंधी, रिश्तेदार, परिणाम।

नतैती :: (सं. स्त्री.) रिश्तेदारी।

नथ :: (सं. स्त्री.) नाक में पहना जाने वाला आभूषण बड़ा बाला।

नथना-नथरा :: (सं. पु.) पुशु आदि की नाक के छेद।

नथू :: (सं. पु.) वह पुरूष जिसकी नाक छिदी हो, एक नाम।

नदन :: (सं. स्त्री.) गाड़ी में जुआँ बाँधने की रस्सी।

नदनबन :: (सं. पु.) कपास।

नदबौ :: (क्रि.) जमकर रहना, शान्ति पूर्वक दूसरों के साथ रहना, खटना, किसी के साथ निर्वाह करना।

नदला :: (सं. पु.) कटोरे, के आकार का एक मिट्टी का बर्तन।

नँदवार :: (सं. स्त्री.) चावल की किस्म।

नदापरो :: (सं. स्त्री.) निर्वाह करना।

नदाबरौ :: (सं. पु.) परिवारिक सौमनस्य के साथ रहने की स्थिति।

नँदारौ :: (सं. स्त्री.) नँदायरो-निर्वाह।

नदिया :: (सं. स्त्री.) छोटी नदी।

नदी :: (सं. स्त्री.) बड़ी नदी।

नँदी :: (सं. पु.) शंकर जी का बैल।

नदुलिया :: (वि.) छोटे आकार की नाँद।

नँदेऊ :: (सं. पु.) नंनद का पति, नंदोई।

नँदोला :: (सं. पु.) एक प्रकार की छोटी नाँद।

नदौला :: (सं. पु.) मिट्टी की नाँद की आकृति का चौड़े मुँह का बरतन।

नद्दी :: (सं. स्त्री.) नदी (बलवाची प्रयोग)।

ननआवरो :: (सं. पु.) ननिहाल, नाना का घर।

ननखर :: (वि.) किसी वस्तु के छोटे-छोटे टुकड़े (मोटा चूरा) जो बड़े टुकड़ो की आपसी रगड़ से झर जाता है।

ननज्याई :: (सं. पु.) लोभ का काम, छोटापन, बारीकी करना।

ननद :: (सं. स्त्री.) ननदी, पति की बहन।

ननदुनिया :: (सं. स्त्री.) छोटी ननद।

नननइँयाँ :: (ससं. पु.) छोटी उम्र का बालक, पुत्र।

ननयाबरौ :: (सं. पु.) ननिहाल, माता के पिता का वासस्थानं।

ननसार :: (सं. पु.) ननिहाल।

ननियाँ :: (वि.) नाना से संबंधित।

ननियाँ :: (प्र.) ननियाँ ससुर, ननियाँ सास, दोनों से संबंधित।

ननुआँ :: (वि.) आकार में छोटा, ऐसा अनाज जिसके दाने आकार में छोटे-छोटे हों।

नन्द :: (सं. स्त्री.) पति की बहिन ननद।

नन्दी :: (सं. पु.) भगवान शिव का बाहन बैल जो उनका गुण भी है, शिव मन्दिरों में मूर्ति या लिंग के समक्ष स्थापित पत्थर का बैल।

नन्देउ :: (सं. पु.) पति की बहिन का पति।

नन्ना :: (सं. पु.) पिता, काका, बड़े भाई आदि के लिए सम्बोधन शब्द।

नन्नी :: (वि.) नन्हीं, छोटी, लघु।

नन्नों :: (वि.) छोटा, लघु, जिसका आकार या उम्र बड़ी न हो।

नन्नों :: (सं. पु.) बालक।

नपना :: (सं. पु.) नापने वाला पात्र।

नपबो :: (अ. क्रि.) नापा जाना, मापा जाना।

नपाई :: (सं. स्त्री.) नापने की अथवा किसी वस्तु की मात्रा को इकाईयों में ज्ञात करने की क्रिया।

नपीटबौ :: (क्रि.) किसी तरल को बूँद बूँद कर निकालना, माँ के दूध को तब तक पीना जब तक कि स्तनों में पीड़ा न होने लगे।

नपुंसक :: (वि.) पुंसत्वहीन, कायर, चुनौती से पीछे हटने वाला, अत्याचार सहन करने वाला। अन्तिम तीन लाक्षणिक अर्थ।

नप्पबौ :: (क्रि.) नापना।

नफरत :: (सं. स्त्री.) घृणा, वितृष्णा, अरूचि।

नफा :: (सं. पु.) व्यापार में प्राप्त लाभ।

नबदा :: (सं. पु.) बड़प्पन का बोझ जो दूसरों पर डाला जाए।

नबनी :: (सं. स्त्री.) बाँस को सीधा करने का एक उपकरण।

नबबौ :: (क्रि.) झकना, माथो बाबुल जी को जब नबै जब साजन आवेद्वार (बु.ग्रा.गीत) नम्र होना, टेढ़ा होना।

नबरा :: (सं. पु.) खेत जुताई की एक सामाजिक पद्धति जिसमें बहुत से हलवाहों को अपना खेत जोतने लिए आमंत्रित किया जाता है और उसके बदले में मजदूरी नहीं दी जाती है, बल्कि रात को भोजन कराया जाता है, जुताई के लिए एक सहयोगी स्वरूप।

नँबरी :: (सं. स्त्री.) बदमाश।

नबा-कबा :: (सं. पु.) प्रबन्ध, किसी कार्य के साधनों को जुटाने की क्रिया (यौगिक शब्द)।

नबाबी :: (सं. स्त्री.) मुसलमानी रियासत, रौब जमाने की क्रिया।

नबाबो :: (क्रि.) झुकाना।

नबारौ :: (सं. स्त्री.) बड़ी चाव।

नबाव :: (सं. पु.) मुसलमानी रियासत का शासक बनठन कर घमने और किसी कृतित्व के बिना रौब जमाने वाला व्यक्ति (व्यंग्यार्थ)।

नबासी :: (वि.) अस्सी और नौ के योग का संख्यांक।

नबाह :: (सं. पु.) नौ दिन विशेष रूप से नवदूर्गा में पूरा किया जाने वाला रामचरित्र मानस का परायण।

नबीस :: (वि.) लिखने वाला (अर्जीनबीस, नकलनबीस आदि में प्रयुक्त)।

नबेरम :: (क्रि.) छाँटना, ढेर में से अच्छी वस्तु चुनना।

नबेरा :: (सं. पु.) छाँट कर शेष वस्तु को निम्न स्तर की करने की क्रिया, पशुओं का छोटा झुंड।

नबेली :: (सं. स्त्री.) अलबेली।

नब्बै :: (वि.) दस गुणित नौ की संख्या।

नमएँ :: (वि.) ९ वें, नवें नम्बर के क्रम में।

नमदा :: (सं. पु.) दाब लगाना, एक प्रकार का कपड़ा।

नमबौ :: (क्रि.) झुकना, नम्र होना, किसी के सम्भ्रम में प्रभावित होना, टेढ़ा होना।

नमबौ :: दे. नबबौ।

नमस्कार :: (सं. स्त्री.) झुककर या हाथ जोड़कर अभिवादन, अलविदा (व्यंग्यार्थ)।

नमांज :: (सं. स्त्री.) मुसलमानों द्वारा की जाने वाली ईश्वर की प्रार्थना, निबाज, निमाज़।

नमें :: (सं. स्त्री.) नवमी, पखवाड़े की नौमी तिथि।

नम्बर :: (सं. पु.) क्रम, अंक अंकों में लिखे संकेत।

नम्बरी :: (वि.) चालाक, बदमाश, ऐसा व्यक्ति जिसका पुलिस में रिकार्ड हो (दस नम्बरी, आठ नम्बरी)।

नम्मर :: (सं. पु.) दे. नम्बर।

नर :: (सं. स्त्री.) पेट (व्यंग्यार्थ), पुरूष, किसी भी प्राणी समूह का पुल्लिंग।

नरइया :: (सं. स्त्री.) बरसाती पानी के बहाव के कारण बना कटान, छोटा बरसाती नाला।

नरई :: (सं. स्त्री.) एक घास।

नरक :: (सं. पु.) नर्क, अत्यंत गन्दगी वाला स्थान, मैला की गन्दगी।

नरकउ :: (वि.) मैला खाने वाली (गाय)।

नरकउ :: (कहा.) नरकउ गइया कुड़िया बरेदी।

नरकचौदस :: (सं. पु.) कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौदस को यम की पूजा की जाती है।

नरकुल :: (वि.) बाँसुरी की एक किस्म रामबाँस, रामसिर।

नरदा :: (सं. पु.) नाबदान, मुहरी।

नरदा :: (मुहा.) नरदा की विन्तवारी करन गए बखरी हार आये।

नरदूआनों :: (सं.) दे. नरदा।

नरपत :: (सं. पु.) राजा, नृपित, महाराज।

नरबदा :: (सं. स्त्री.) नर्मदा, मैकलसुता, अमरकंटक से निकलने वाली पवित्र नदी जिसके किनारे साधना करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है, एक नाम, रेवा।

नरबल :: (सं. पु.) देवता की पूजा के निमित्त के जाने वाली मनुष्य की हत्या, नरबलि।

नरम :: (वि.) कोमल।

नरमदा :: (सं. स्त्री.) अमरकंटक से निकलने वाली एक प्रसिद्ध नदी।

नरमा :: (सं. पु.) एक प्रकार का कपड़ा।

नरमाई :: (सं. स्त्री.) स्वभाव की कोमलता।

नरवा :: (सं. पु.) बड़ा नाला।

नरवाँ :: (सं. पु.) भट्टी को मुँह से फूँकने की नली जिसके एक छोर पर छोटा छेद होता है।

नरवारी :: (सं. स्त्री.) फसल काटने के बाद खेत में लगे रहने वाले गेंहूँ, जौ आदि के डण्ठल।

नरवारी :: (मुहा.) ठिकाने लगबो-गाय-भैंस का गर्भ धारण करना।

नरसों :: (अव्य.) परसों के बाद आने वाला दिन।

नरहा :: (सं. पु.) चरवाहा, ग्वाला।

नरा :: (सं. पु.) नाल, वह नली जिससे गर्भस्थ शिशु माँ के साथ जुड़ा रहा है, इसी नली के द्वारा भ्रूण का पोषण होता है।

नरिया :: (सं. स्त्री.) दे नरइया, अर्द्ध गोलाकार नाली की आकृति का खपड़ा, छोटा जवान बैल।

नरूआ :: (सं. पु.) गेहूँ, जौ, धान आदि डण्ठल पत्ते का डण्ठल, जिससे वह टहनी से जुड़ा रहता है।

नरेटी-नरेली :: (सं. स्त्री.) नरियल का ऊपरी खोल या उसका आधा भाग जो कटोरी के आकार का हो।

नरों :: (सर्व.) अगला या पिछला तीसरा दिन।

नरौ :: (सं. पु.) घुटने और पंजे के बीच पैर का अग्रभाग।

नरौंहा :: (सं. पु.) आग तेज करने के लिए मुँह से हवा देने का उपकरण, फुँकनी।

नर्दवानों :: (सं. पु.) दे. नरदुवानों नावदान, मुहरी।

नर्दा :: (सं. पु.) दे. नरदा, नावदान।

नर्रयाटो :: (सं. पु.) मर्णान्तक पीड़ा से चिल्लाहट।

नर्राबो :: (स. क्रि.) जोर से चिल्लाना, दहाड़ना, गरजना।

नल :: (सं. पु.) पानी का बम्बा, गले का अग्रभाग जिसके पीछे श्वास एवं भोजन नली होती है, आँत।

नली :: (सं. स्त्री.) वाहिका।

नव :: (वि.) नया, नवीन।

नवतो :: (वि.) अधिक (तौल आदि में) उरैतो।

नस :: (सं. स्त्री.) तन्तु जिनसे माँसपेशियाँ जुड़ी रहती हैं, पत्तों के पृष्ठ भाग पर उभरे हुए तन्तु जो डण्ठल से पत्ते के हर भाग में खुराक पहुँचाते हैं।

नसबर :: (सं. स्त्री.) तम्बाकू का बारीक चूर्ण जिसको नाक में सूँघकर छींके ली जाती हैं, उड़द-मूँग की दाँय के बाद बचे उसके पौधों और पत्तों का अवशेष जो अधिक बारीक न हो सके। पौधों और पत्तों का अवशेष जो अधिक बारीक न हो सके।

नसबौ :: (अ. क्रि.) नष्ट होना, विनिष्ट होना, शराब होना, बिगड़ना।

नसाजार :: (सं. पु.) नसों का जाल।

नसीली :: (वि.) नशीली, जिसका प्रभाव बुद्धि को भ्रमित करने वाला हो।

नसेंनी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की स्थानान्तरित करने योग्य सीढ़ी।

नसैलची :: (वि.) नशा करने की आदत वाला।

नहकटा :: (सं. स्त्री.) तबे के आकार की एक बाँस की वस्तु जिस पर वर-वधू के नाखून काटकर रखे जाते हैं।

नहनी-गहनी :: (सं. स्त्री.) नहरानी नाखून काटने का उपकरण, निहन्नी।

नहन्नी :: (सं. स्त्री.) नाखून काटने का एक उपकरण।

नहरिया :: (सं. स्त्री.) शेरनी।

नहरिया :: (पु.) नाहर।

नहरूबा :: (सं. पु.) एक रोग।

नहल्ला :: (सं. पु.) छोटी कन्नी, महीन काम करने वाली कन्नी।

नहाँ :: (सं. पु.) नौ अंकों वाला ताश का पत्ता।

नहियाँ :: (अव्य.) नहीं है।

नहियाँ :: (बु.) नँइयाँ।

ना :: निषेधवाची निपात।

नाँ :: (अव्य.) यहाँ, इधर, इस ओर।

नाँई :: (सं. पु.) नाँही, अस्वीकृति, असहमति।

नाउ :: (सं. पु.) नाई बाल काटने का धंधा करने वाली एक जाति।

नाउ :: (मुहा.) नाऊ की बारात में तिपारौ को धरै-समान स्तर वालों में कोई छोटे कार्य को नहीं करना चाहता।

नाउ :: (सं. पु.) नाऊके बार अगाड़ी आउत।

नाउ :: (कहा.) सच्चाई का शीघ्र पता चल जाता है।

नाँए की माँय :: (सर्व.) इधर की उधर।

नाओनकसा :: (वि.) शान शौकत।

नाँक :: (सं. स्त्री.) नासिका, शरीर का घ्राण अंग किसी बीज का वह भाग जहाँ से अंकुर फूटता है, इज्जत, (भावार्थ मुहा, नाक कटबौ-इज्जत जाना, लज्जित होना)।

नाक घिसबो :: (क्रि.) बहुत गिड़गिड़ाना, अनुनय विनय करना।

नाक छिदाउन गई कान छिदा के आ गई :: (सं. स्त्री. कहा.) जिस कार्य को जाये उसको न करके अन्य कार्य करके लौट आना, नासिका, साँस लेने और सूँघने की इंद्रिय।

नाककटबो :: (क्रि.) प्रतिष्ठा का नष्ट होना।

नाकपुरी :: (वि.) नागपुर की बनी या उत्पन्न वस्तु (साड़ी, संतरा आदि)।

नाकबो :: (क्रि.) उल्लंघन करना, लाँघना।

नाँकबौ :: (क्रि.) लाँघना, पार करना, उछल कर लाँघना।

नाका :: (सं. पु.) मगर की जाति २0 फीट तक लम्बा।

नाकाम :: (वि.) असफल, बेकार, अनुपयोग कार्य करने या काम में लेने के लिए अयोग्य।

नाकारा :: (वि.) निष्क्रिय, बेकार, निर्बुद्धि होनै कारण किसी भी कार्य को करने के लिए अयोग्य, निठल्ला।

नाकी :: (सं. स्त्री.) घोड़े को बिना लगाम ले जाने के लिए उसके मुँह पर बाँधने वाली चमड़े की पट्टी या रस्सी।

नाके :: (सं. पु.) प्रवेश द्वार।

नाँको :: (सं. पु.) कर आदि वसूल करने के लिए मार्ग में बनाया गया कार्यालय, सुई में धागा डालने के लिए छेद।

नाकौ :: (सं. स्त्री.) चौकी।

नाखूना :: (सं. पु.) एक जंगली बूटी जो बाज रोगों की दवा बनाने के काम आती है।

नाँग :: (सं. पु.) काला सर्प जिसके सिर पर पछन बने रहते हैं यह अधिक लम्बा नहीं होता है और सबसे अधिक विषैला होता है।

नागन :: (सं. स्त्री.) साँप की माँदा, सर्पिणी दुष्टा, निष्ठुर स्त्री।

नाँगन :: (सं. स्त्री.) छोटे सर्पो की एक महाभयानक जाति जो उछलकर काटती है, ऐसी मान्यता है कि वह नाग की मादा होती है मादा नाग अण्डों से निकालकर अपने बच्चों को खा जाती है एक गाली वह स्त्री जो अपने बच्चों और पति की मीत न हो (लाक्षणिक अर्थ.)।

नागनटापू :: (सं. पु.) एक खेल।

नागपांचें :: (सं. स्त्री.) नागपंचमी।

नागफनी :: (वि.) काँटेदार पौधा।

नागरमोंथा :: (सं. पु.) नदी नालों की रेत में पैदा होने वाली एक घास गोंदरा की जड़ जो औषधियों और गन्ध द्रव्यों को बनाने के काम आती है।

नाँगल :: (सं. पु.) अहीरों की एक उपजाति।

नागा :: (वि.) नग-नंगे रहने वाले, खाली, रीता, अनुपस्थित व्यतिक्रम।

नाँगा :: (सं. पु.) व्यतिक्रम, अनुपस्थिति, संन्यासियों का एक वर्ग, जो निर्वस्त्र रहता है।

नागौरी :: (वि.) पान की किस्म, बिल्कुल हरा छोटा, नागौरी प्रान्त का बैल देखने में खूबसूरत तथा चलने में तेज है।

नाच :: (सं. पु.) नृत्य, बिना विराम के इधर से उधर की जाने वाली दौड़-धूप (लाक्षणिक अर्थ.)।

नाँच :: (सं. पु.) नृत्य, नाच।

नाचबो :: (अ. क्रि.) नाचना, नृत्य करना।

नाँचबो :: (क्रि.) नृत्य करना, नाचना।

नाज :: (सं. पु.) अनाज।

नाँज :: (सं. पु.) अनाज, अन्न।

नाजर :: (सं. स्त्री.) नाजिर पद की नौकरी, वैश्याओं की दलाली।

नाजुक :: (वि.) कोमल (पतरी कमर नाजुक बँईयाँ) लोक गीत।

नाट :: (सं. स्त्री.) बड़ेरे पर रक्खी जाने वाली लकड़ी।

नाँट :: (वि.) निःसंतान, परिवार में कोई व्यक्ति न रहना।

नाटक :: (सं. पु.) रूपक, मंच पर किया जाने वाला अभिनय, अनावश्यक औपचारिकताएँ, अनावश्यक कार्यकलाप।

नाटा :: (सं. पु.) छोटे डील वाला बैल जो खेती के काम का नहीं।

नाठ :: (सं. स्त्री.) वंश की समाप्ति, ठाट में बड़ैर के बोझ को बाँटने के लिए उसके समानान्तर लगायी जाने वाली लकड़ी।

नातन-नातनी :: (सं. स्त्री.) पौत्री, लड़के या लड़की की लड़की।

नातर :: (अव्य.) नहीं तो।

नाँतर :: (अ.) नहीं तो।

नाती :: (सं. पु.) पौत्र, पुत्र का पुत्र, बेटी का पुत्र।

नाँते :: (सर्व.) यहां से।

नातेदार :: (सं. पु.) सम्बंधी, निश्तेदार।

नातेदारी :: (सं. स्त्री.) वैवाहिक आधार पर जो संबंध।

नातौ :: (सं. पु.) नाता संबंध, वैवाहिक संबंध रिश्ता।

नाथ :: (सं. पु.) स्वामी, मालिक, नियन्ता, पालनहार, बहुत आदरवाची संबोधन।

नाँथ :: (सं. स्त्री.) बैलों के नथुनों में डालने वाली रस्सी, साँप पकड़ने वाली एक जाति, स्वामी।

नाथबौ :: (क्रि.) नाथ डालने की क्रिया।

नाँद :: (सं. स्त्री.) धातु या मिट्टी का चौड़े मुँह का बड़ा पात्र।

नाँदाँन :: (वि.) अबोध, कम आयु के कारण ना समझ।

नादिया :: (सं. पु.) नदी नाँदिया (बुँ), शिव का वाहन नंदी।

नाँदिया :: (सं. स्त्री.) शिव का वाहन बैल, नन्दी।

नाँदी :: (सं. स्त्री.) बहुत बड़े आकार की नाँद।

नादौरी :: (सं. स्त्री.) एक तलवार।

नान :: (सं. स्त्री.) नाई की स्त्री, विवाह में वधू की परिचायिका, बैलगाड़ी से जुआँरी का बंधन।

नाँन :: (सं. स्त्री.) रहट में लगायी जाने वाली रस्सी, नाई की स्त्री।

नाँननी :: (सं. पु.) नाखून काटने एक औजार।

नाना :: (सं. पु.) माँ का पिता, हल में बाँधे जाने वाली रस्सी, अनेक प्रकार का।

नाना :: (सं. पु.) माता का पिता, एक खास नाप की रस्सी जो हल जोतते समय बैलों को नियंत्रण में रखने के काम आती है।

नानें :: (अ.) के लिए, लाने।

नानों :: (वि.) बारीक, छोटा।

नाँनो :: (वि.) पतला, छोटा।

नान्नी :: (सं. स्त्री.) दे. नहन्नी।

नाप :: (सं. पु.) माप, लम्बाई, चौड़ाई समाई आदि की इकाई।

नापबौ :: (क्रि.) लम्बाई, चौड़ाई, समाई आदि की इकाई ज्ञात करना।

नाबते :: (सं. पु.) वह पुरूष जिसके सिर पर देवता आते हो, २0 दिन में सौ सौ बार नावते भाव भगत बैठार (फाग)।

नाबतौ :: (सं. पु.) ग्राम देवताओं का पुजारी जिसको उस देवता का आवेश आता है।

नाबसाब :: (सं. पु.) नायब साहब छोटा साहब प्रायः नायब तहसीलदार के लिए प्रयुक्त।

नामता :: (सं. स्त्री.) यादगार, नाम याद करने के लिए कोई प्रतीक।

नामदेव :: (सं. पु.) दर्जियों की जाति द्वारा धारित उपनाम क्योंकि संत नामदेव दर्जी जाति में पैदा हुए।

नामी :: (वि.) विख्यात या कुख्यात, दोनों अर्थों में प्रयुक्त।

नामें :: (क्रि. वि.) खर्च खाते में डालना, किसी के नाम पर दर्ज करना।

नामौसी :: (सं. स्त्री.) निन्दा, बुराई, बदनामी।

नाय :: (अव्य.) इधर, यहाँ, इस ओर।

नाँय :: (सर्व.) इस तरफ।

नायक :: (सं. पु.) ब्राह्मणों तथा असादी वैश्यों में प्रचलित एक उपनाम, नेता, मुखिया, दलपति।

नायका :: (सं. स्त्री.) नायिका, रूप गुण, सम्पन्न स्त्री।

नार :: (सं. स्त्री.) नारी।

नार :: (स्त्री.) बैलगाड़ी या रथ के पहिए का वह भाग जो धुरी पर घूमता है नाहर, शेर ईटों के भट्टे का बीचों बीच छोड़ा गया पोला भाग जहाँ से धुआँ निकल सके।

नारक :: (सं. स्त्री.) पुरानी चीज को नई बनाने की क्रिया।

नारंगी :: (वि.) संतरे जैसा पीला तथा लालामी लिए हुए रंग।

नारंगी :: (पु.) संतरा।

नारद :: (सं. पु.) एक महर्षि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र इधर की बात उधर तथा उधर की बात इधर करने वाला चुगलखोर (ला.य.)।

नारदान :: (सं. पु.) फाग।

नारदोंकनी :: (सं. पु.) एक बाजा जो पीतल की गगरी को बनाया जाता है इसके किसान खेत की रक्षार्थ रात को बजाते हैं।

नाराज :: (वि.) थोड़े से क्रोध में बुरा माने हुए, अर्मषयुक्त, अप्रसन्न, नसखुश।

नाराजी :: (सं. स्त्री.) हल्का क्रोध, बुरा मानने का भाव, अमर्ष, अनख।

नारायण :: (सं. पु.) कवि. जन्म १८८0।

नारायण :: (वि.) षट ऋतु वर्णन, नायिका भेद वर्णन, गंगाजी का वर्णन, विष्णु भगवान।

नारियल :: (सं. पु.) नारिकेल, नारियल, एक फल जो समुद्र किनारे पैदा होती है किन्तु पूरे भारत में हिन्दु पूजा विधान में उसका महत्वपूर्ण स्थान है, यह शुभ है और आशीष का प्रतीक माना जाता है।

नारी :: (सं. स्त्री.) नाड़ी कब्ज, कलाई पर रक्तचाप की धड़कन स्त्री. चरसा खींचने की मोटी तथा बड़ी रस्सी बाँस की एक लम्बी नली जिसकी सहायता से गहरी बुआई की जाती है, नर का विलोम नारी, औरत।

नारूआ :: (सं. पु.) एक विशेष प्रकार का फोड़ा जिसमें से एक सूत जैसा कीड़ा निकलता है, नारू, नहरूआ।

नारेसुअटा :: (वि.) नौरता।

नारौ :: (सं. पु.) नाला।

नाल :: (सं. पु.) घोड़ों के पैरों तथा जूतों की ऐंड़ियों में उन्हीं के आकार की ठोंकी जाने वाली लोहे की पट्टियां, जुए के खेल में जुए के प्रबंध में लगने वाली राशि के लिए जिया जाने वाला अशंदान, गाँवों में ढोलक के आकार का एक बड़ा पत्थर जिसमें तराश कर हैंडिल बनाया जाता है।

नालस-नालिस :: (सं. पु.) दीवानी दावा।

नाल्ला :: (सं. पु.) कारीगरों का एक औजार।

नाव :: (सं. स्त्री.) किश्ती, जलवाहन, नाम।

नाँव :: (सं. पु.) नाव संज्ञा, यश, कीर्ति किसी को सम्बोधनार्थ दिया गया शब्द।

नाँव :: (सं. स्त्री.) जल का सामान्य वाहन।

नावचार :: (सं. पु.) मात्र, कहने के लिए उदाहरण-।

नावडुबाबों :: (सं. स्त्री.) बदनामी।

नास :: (सं. पु.) नासिका, हल की नोंक, वंश, नाश, नष्ट होने की क्रिया, नाक में बुलबुलाहट पैदा करने वाली तम्बाकू की भस या मिर्च जलने का तीक्ष्य धुआँ।

नाँस :: (सं. पु.) मिर्च आदि का धुँआ, नाश।

नाँस मिट्टो :: (सं. स्त्री.) एक गाली।

नासक :: (सं. पु.) नींव के कोंनों पर लगाये जाने वाले पत्थर जिसकी सहायता से दीवार की सीध मिलाई जाती है।

नाँसे :: (सर्व.) यहाँ से, इस जगह से, इधर से, (उदाहरण-लो गऔ दूददई की दौनी, उठा हमाएँ नाँसे) (ईसुरी प्रयोग)।

नाँह :: (अ.) नहीं।

नाहक :: (क्रि. वि.) व्यर्थ।

नाहक्क :: (क्रि. वि.) व्यर्थ का बलवाची प्रयोग।

नाहर :: (सं. पु.) शेर ताजियों के जलूस में शेर का मुखौटा लगाकर तथा उसी के समान शरीर को रंग कर पैसा माँगने तथा मनोरंजन करने वाले लोग।

नाहरहोबो :: (सं. पु.) निर्भय और धृष्ट होना।

नाहरू :: (सं. पु.) गेहूँ के डंठल।

नाँहो :: (सर्व.) यहाँ होकर।

नि :: (उप.) नकारात्मक अर्थबोध कराने वाला उपसर्ग।

निअत :: (सं. स्त्री.) नीयत, मंशा।

निअत :: दे. नियत।

निअरौ :: (क्रि.) निकट, नजदीक, कम फासले पर।

निआनो :: (सं. पु.) लकड़ी में चौखूटें छेद करने वाला एक धारदार उपकरण।

निआब :: (सं. स्त्री.) लड़ाई।

निआरौ :: (वि.) पृथक, अलग।

निउरन :: (वि.) झुकने का ढंग।

निउरबो :: (क्रि.) झुकना।

निओरबो :: (क्रि.) सुलझना।

निओरा :: (क्रि. वि.) निहोरा।

निक :: (वि.) थोड़ा स्वल्प।

निकबनै :: (अ. क्रि.) ढीला पड़ना, खिसकना।

निकम्मों :: (वि.) निष्क्रियता के स्वभाव वाला।

निकरी :: (सं. स्त्री.) बचना चाहा।

निकसान :: (सं. पु.) नुकसान, हानि, अप्रभाव।

निकाई :: (सं. स्त्री.) अच्छापन, सुंदरता, खूबसूरती।

निकाबो :: (क्रि.) अनाज का कूड़ा, कंकड़ साफ करना।

निकारबौ :: (क्रि.) निकलना, उदा, जबई बजाई बाँसुरी निकारौ करिया नाग।

निकारबौ :: (क्रि.) निकालना, जवान हुए बछड़ो को जोतने का प्रशिक्षण देना।

निकारौ :: (सं. पु.) निकालने की क्रिया।

निकारौ :: (प्र.) देश निकारा, निष्कासन।

निकाव :: (सं. पु.) निकाह, मुसलमानों की विवाह पद्धति।

निकास :: (सं. पु.) निकलने के लिए स्थान।

निकासबो :: (क्रि.) काम में लाना।

निकासी :: (सं. स्त्री.) निकलने की क्रिया, निकलने का आदेश, निकलने की औपचारिकता (बारात के लिए दूला निकासी) माल निकालने का कर।

निकोर :: (वि.) साफ, जिस पर छोटी सी लकीर भी नहो।

निखचौं :: (वि.) बिना खर्च के शुद्ध लाभ।

निखटठू :: (वि.) ऐसा पति जिसके पास पत्नी न टिक सके, बुरे और नीरस स्वभाव वाला।

निखत :: (वि.) खाद हीन, उर्वरताविहीन, ऐसी भूमि जिसमें जैविक तत्व का अभाव हो।

निखद्द :: (वि.) निषिद, निम्न कोटि का।

निखद्दें :: (क्रि. वि.) बेखटक, निःसन्देह, निश्चिन्त।

निखन्नों :: (वि.) बिन पत्तों का पेड़, निखन्नों-बिना लिपी टोकरी, बिना बिस्तर की खटिया।

निखरबौ :: (क्रि.) स्वच्छ होना, मलहीन होना।

निखरारी :: (वि.) बिना बिस्तर बिछी खटिया।

निखार :: (सं. स्त्री.) सफाई।

निखारबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु की सफाई करते समय अन्तिम धुलाई करना।

निखालस :: (वि.) खालिश, जिसमें किसी प्रकार की मिलावट न हो, चलन के कारण कहा जाता है अन्यथा निखालिस का अर्थ अशुद्ध और मिलावटी होता है। क्यों खालिस का अर्थ है शुद्ध। निखालिस उसका विरुद्धार्थ हुआ अर्थात अशुद्ध। यहाँ लेखक ने चलन को मान्यता दी है, शब्दार्थ को नहीं।

निखोट :: (वि.) दोष रहित।

निगइया :: (सं. पु.) चलने वाला।

निगत-निगत :: (क्रि. वि.) चलते चलते।

निगन :: (सं. स्त्री.) चाल, चलने का ढंग।

निगबौ :: (क्रि.) चलना।

निगरबौ :: (क्रि.) वृक्ष पर से फल समाप्त हो जाना।

निगरानी :: (सं. स्त्री.) देखभाल, संरक्षण, पुलिस की नजर, कैद।

निगा :: (सं. स्त्री.) निगाह, नजर, दृष्टि।

निगुरा :: (वि.) अदक्ष, जिसने गुरू दीक्षा न ली हो।

निगुरे :: (क्रि. वि.) कुन्न रहना।

निगूती :: (सं. स्त्री.) छिद्रान्वेषण, दोषारोपण।

निगोत :: (सं. पु.) हरे चने के दाने।

निगोंना :: (सं. पु.) घेंटियों से निकले हुए हरे चने।

निगोबो :: (क्रि.) वस्तु के ऊपर का छिलका निकालना।

निगोलबो :: (क्रि.) हरी फलियों या घेंटियों के दाने निकालना।

निचरबो :: (क्रि.) वस्तु से पानी या रस का निकलना, निचुड़ना।

निचाट :: (वि.) ऐसी बात जिसमें चाटुकारिता का पुट न हो, बिना लाग लपेट के कोरा यथार्थ।

निचायरो :: (सं. पु.) निचाई, नीचापन।

निचारे :: (सं. पु.) निचोड़, सार, सारंश।

निचुरत :: (वि.) कोई वस्तु इतनी गीली कि उसमें से भिगोने वाला तरल पदार्थ टपक या निचुड़ रहा हो।

निचोबौ-निचोरबो :: (क्रि.) निचोड़ना, शक्ति से किसी पदार्थ या पात्र में से तरल पदार्थ निकालना।

निच्चे :: (क्रि. वि.) निश्चय, संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त लगभग संकल्प के अर्थ में।

निछक्का :: (सं. पु.) निस्तब्धता।

निछक्कौ :: (वि.) ऐसा समय या स्थान जहाँ भीड़भाड़ या किसी प्रकार की बाधा न हो।

निछाउर :: (सं. स्त्री.) किसी की मंगल कामना हेतु उसके ऊपर से फेर कर दान किया जाने वाला द्रव्य, उत्सर्ग।

निछोई :: (वि.) बेलाज, बेलिहाज, किसी मर्यादा की चिन्ता किए बिना, स्पष्ट।

निज :: (वि.) रक्त वैवाहिक आधार पर संबंधित खास रिश्तेदार।

निजाबौ :: (क्रि.) शांत होना, कहा, खता फूटो पीपे निसानो।

निजाम :: (सं. स्त्री.) नमाज, मुसलमानों का दैनिक धार्मिक आचार प्रबन्ध, व्यवस्था।

निजार :: (वि.) उजाड़।

निजू :: (वि.) निजी, स्वयंका।

निजोंना :: (सं. पु.) हल की हरींस के अग्रभाग में लगी छोटी सी आड़ी डण्डी जिससे जुँए को योजित किया जाता है।

निटुअँई :: (वि.) बिल्कुल।

निट्ठअँइँ :: (वि.) अत्यंत, रंचमात्र, थोड़ी सी मात्रा, बलवाची प्रयोग।

निठुर :: (वि.) बेदरदी उदाहरण-ऐसे भए निठुर के पीर ही प्यारे नंदजू के लला (बु.लोक गीत.)।

निडर :: (वि.) भय रहित दे निट्ठुअँइँ।

निढार :: (वि.) समतल जिसमें ढाल न हो।

नित :: (अव्य.) प्रतिदिन, सदा नित्य।

नित्त :: (क्रि. वि.) नित्य, प्रतिदिन।

निथरबो :: (अ. क्रि.) किसी तरल पदार्थ या पानी का रिसना होना जिससे मिट्टी या मैल नीचे बैठ जाए पानी छन जाए।

निथारबो :: (सं. क्रि.) किसी तरल पदार्थ में स्थित जिसमें मैल इत्यादि नीचे बैठ जाए, निराना।

निदइया :: (सं. पु.) खेत से खरपतवार निकालने वाला, निराई करने वाला।

निदरबौ :: (क्रि.) अनादर करना, निन्दा करना।

निदाई :: (सं. स्त्री.) निराई खेत से खरपतवार निकालने की क्रिया, निराई करने का पारिश्रमिक।

निनबारबो :: (क्रि.) सुलझाना, प्रकरण के तथ्यों की विवेचना करना।

निनवारौ :: (सं. पु.) निर्णय, फैसला, अलग करना।

निनुरबो :: (अ. क्रि.) सुलझना, उलझन का दूर होना, प्रसव आसानी से होना।

निनोरबो :: (सं. स्त्री.) सुलझाना, उलझन को दूर करना।

निन्ती :: (सं. स्त्री.) सावन में भौंरा घुमाने के लिए प्रयुक्त डोरी, डोर।

निन्दा :: (सं. स्त्री.) निन्दा, बुराइयों का बखान।

निन्नयाबे :: (क्रि. वि.) बिल्कुल।

निन्नयाम :: (अव्य.) बिलकुल पूरा पूरा आदि से अन्त तक।

निन्नें :: (वि.) सुबह से बिना खाये पिये।

निन्नों :: (सं. पु.) विवरण।

निन्नों छिन्नों :: (सं. पु.) छानवीन।

निन्याननबे :: (वि.) एक कम सौ की संख्या।

निपकबौ :: (क्रि.) ढीले बन्धन के कारण बिना गाँठ खुले किसी वस्त्र का उतर जाना, बड़ी चुड़िया का कलाई पर से अपने आप निकल जाना।

निपटबौ :: (क्रि.) किसी काम को पूर्ण करना आपसी सुलह समझौता करना, किसी से निवृत्त होना।

निपरी :: (सं. पु.) मुसलमानों का लिंग।

निपसबौ :: (क्रि.) पाश ढीलाहोने से रस्सी के बन्धन से बरतन का अलग होना या करना, अनाज की बालियों का गबोट गर्भ से बाहर निकलना।

निपुन :: (वि.) निपुण, होशियार, कार्य विशेष में निष्णात।

निपूता :: (वि.) पुत्रहीन, एक गाली।

निपोच :: (सं. पु.) आचार-विचार का आडम्बर करने वाला।

निपोची :: (वि.) आडम्बरी।

निपोर :: (सं. पु.) झझंट, उलझन।

निपोरबो :: (क्रि.) अशिष्ट ढंग से प्रदर्शित करना।

निपोरबो :: (मुहा.) दाँत निपोरबो।

निपोरा :: (वि.) हीन व्यक्ति वाला जो दूसरों को हर बात का हँसहँस कर समर्थन जताता है।

निफुल्ल :: (सं. पु.) बंदूक का वह स्थान जिस पर टोपी रखी जाती है।

निब :: (सं. पु.) कलम के अग्रभाग में लगा धातु का लेखन उपकरण (अकर्मक.)।

निबकनै :: (अ. क्रि.) ढीला, फिसलना।

निबकबौ :: (क्रि.) दे. निपकबौ।

निबरबो :: (अ. क्रि.) अलग होना, टूटना।

निबरिया :: (सं. स्त्री.) चमेली से मिलती जुलती सुगन्धित फूलों वाली एक लता।

निबाओ :: (क्रि. वि.) निर्वाह।

निबागरौ :: (वि.) पृथक, जिसमें किसी का हिस्सा न हो।

निबाज :: (सं. पु.) मुसलमानों की ईश्वरीय प्रार्थना, नबाज, नमाज, उपकार करने वाला जैसे गरीब निबाज माने गरीबों पर उपकार करने वाला (प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त)।

निबाबे :: (क्रि.) निबहना, निर्वाह होना, गुजारा होना।

निबाबौ :: (क्रि.) निर्वाह करना, सामंजस्य बनाये रखना।

निबार :: (सं. स्त्री.) पलंग बनाने के लिए सूत की बुनी पट्टी, कुँए के बँधान के नीचे बनायी जाने वाली नींव।

निबारौ :: (सं. पु.) मछली के बच्चों का झुण्ड जो माँ के आस पास उसी के संरक्षण में तैरता है।

निबाव :: (सं. पु.) निवाह, निर्वाह, गुजारा, निस्तार।

निबावरौ :: (सं. पु.) निर्वाह, निवाह, गुजारा, निस्तार, सौमनस्य पूर्ण, सहअस्तित्व।

निबुआ :: (सं. पु.) नीबू, निम्बू।

निबेरबो :: (क्रि.) छाँटना, बीनना, निर्णय करना।

निबोला :: (सं. पु.) नीम का छोटा पेड़।

निबौरया :: (वि.) निबौरी नीम के फल से निकाला गया तेल।

निबौरी :: (सं. स्त्री.) नीम का फल।

निबौरी :: (पु.) निबौला।

निभद्दो :: (सं. पु.) निर्जन स्थान जहाँ वृक्षादि न हों, एकान्त स्थान।

निभाऊँ :: (क्रि. वि.) एकदम, निभाऊँहते उगरारे, दुर्गेश।

निभाव :: (क्रि. वि.) भरण पोषण, निभाना, निबाह।

निमनियाँ :: (वि.) शुद्ध, धरती के नीचे का जल।

निमान :: (वि.) गहराई, वास्तविक बात।

निमित्त :: (सं. पु.) माध्यम, साधन, कारण।

निमुआँ :: (सं. पु.) नींबू।

निमूना :: (सं. पु.) नमूना, प्रदर्श, समाकृति संरचना।

निमौना :: (सं. पु.) हरी मटर चने के दानों को पीसकर बनायी हुई सब्जी।

नियत :: (सं. स्त्री.) मंशा, खाने-पीने के प्रति लगी रहने वाली लौ, खाने पीने की वस्तुओं पर लगी लाघव दृष्ठि।

नियरो :: (अव्य.) पास, निकट, समीप।

नियानों :: (सं. पु.) दे. निआनों।

नियाब :: (सं. पु.) झगड़ा, न्याय।

नियारबो :: (क्रि.) धातु का शोधन करना, सुनार।

नियारा :: (सं. स्त्री.) ऐसी मिट्टी या रेनु जिसमें सोने चाँदी के कण शामिल हों।

नियारी :: (सं. स्त्री.) निहारी, चाँदी सोना कूटने का औजार जिस पर चाँदी आदि रखकर बढ़ाते हैं सुनार।

नियारो :: (सं. पु.) अलग।

नियाव :: (सं. स्त्री.) दे. निआव।

निरख :: (सं. पु.) बाजार में वस्तुओं का मूल्य एवं स्तर निर्धारण करने की क्रिया।

निरखबौ :: (क्रि.) गौर से देखना।

निरगिरी :: (सं. स्त्री.) नली, पिडली की हड्डी।

निरगुड़ी :: (सं. पु.) स्पष्ट करनाँ।

निरदई :: (वि.) निर्दय क्रूर, दुष्ट।

निरदोखल :: (वि.) दोषों को दूर करने वाली, दोष रहित।

निरधार :: (सं. पु.) निर्धारण, आर्थिक विवाद का निर्णय।

निरनें :: (सं. पु.) निर्णय, फैसला।

निरप :: (सं. पु.) राजा, नरपति, नृपति।

निरपअमान की मूँछ :: (क्रि. वि.) प्रतिष्ठा की रक्षा करना।

निरपत :: (सं. पु.) राजा, नरपति, नृपति।

निरपनिया :: (वि.) निपनिया, बिना पानी का खालिस।

निरपराध :: (वि.) जिसने कोई अपराध न किया हो।

निरबत्ति :: (वि.) निवृत्त, कार्य विशेष से फुरसत।

निरबल :: (वि.) निर्बल, बलहीन, कमजोर, दुर्बल।

निरबारबो :: (क्रि.) बंधन मुक्त करना, सुलझाना, निपटाना।

निरभै :: (वि.) निर्भय, निडर, अभय।

निरमुन्द :: (वि.) बिलकुल बन्द, पूर्णतः अन्धी आँख।

निरमोई :: (वि.) निर्मोही, बेदरदी।

निरवारबौ :: (क्रि.) दे. निनवारबौ, सुलझाना।

निरस :: (वि.) रसहीन, सूखा हुआ।

निरसई :: (सं. स्त्री.) कमजोरी, दुर्बलता, शक्तिहीन।

निराई :: (सं. स्त्री.) निराने का काम, निराने की मजदूरी, निदाई।

निराट :: (वि.) विल्कुल, पूर्ण रूपेण, यर्थाथपरक स्पष्ट।

निराधार :: (वि.) आधार हीन।

निराबो :: (क्रि.) बार-बार दिखना (वस्तु)।

निरालौ :: (वि.) सबसे अलग।

निरावनो-निरोंना :: (सं. पु.) अपनी सुन्दर वस्तु का प्रदर्शन।

निरास :: (वि.) निराश, आशा छोड़े हुए।

निरासा :: (सं. स्त्री.) आशा के विपरीत स्थिति।

निराहार :: (वि.) बिना भोजन किए।

निरूख :: (सं. पु.) बिना पेड़ों का स्थान, स्त्रिग्धता पूर्ण कभी कभी स्पष्ट बात के लिए प्रयुक्त जैसे निरुख उत्तर।

निरूँगौ :: (वि.) अछूता, अप्रभावित।

निरूत्तर :: (वि.) जो कोई उत्तर देने की स्थिति में न रहे।

निरै :: (वि.) बिलकुल पूर्णरूपेण।

निरैबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु के स्वामित्व प्रदर्शन के लिए उसको बार बार दिखलाना।

निरोगी :: (वि.) निरोगी, जिसे कोई रोग न हो, नीरोग।

निरोंना :: (सं. पु.) बार बार प्रदर्शित की जाने वाली वस्तु।

निर्गुड़ौ :: (वि.) सरल हृदय, जो मन में कोई गाँठ न रखे।

निर्जला :: (वि.) बिना जल के निर्जला ग्यारस में प्रयुक्त।

निर्दइ-निर्दादी :: (वि.) दयाहीन, दुष्ट।

निर्धार :: (सं. पु.) दे. निरधार।

निर्धूम :: (वि.) धुँआ रहित (अग्नि )।

निर्भे :: (वि.) निर्भय।

निर्मल :: (वि.) मलहीन, स्वच्छ, साफ सुथरा, पारदर्शी (जल)।

निर्मोही :: (वि.) मोह मुक्त।

निर्लज्ज :: (वि.) निर्लज्य, जिसे लाज शरम न हो।

निस :: (सं. स्त्री.) रात (निस दिन-रोज के अर्थ में प्रयुक्त)।

निसंक :: (वि.) शंकारहित।

निसकपट :: (वि.) कपटहीन, खुले दिलवाला।

निसतार :: (सं. पु.) छुटकारा, उद्धार, गुजारा।

निसरी :: (सं. स्त्री.) मिसरी, शक्कर की रबा पर जमाई डली।

निसाचर :: (सं. पु.) राक्षस, आचार-विचार में गन्दा, खूब सोने वाला।

निसान :: (सं. पु.) चिन्ह, राजाओं या महन्तों के प्रतीक चिन्ह जो एक लम्बे बाँस पर कपड़े का खोल पहनाकर उस पर प्रदर्शित किये जाते हैं।

निसान :: (प्र.) बना के आँगें तलब निसान, पतुरिया छमछम नाचें जू (लोक गीत.)।

निसानची :: (सं. पु.) वह व्यक्ति जो किसी राजा के दल या सेना के आगे झण्डा लेकर चलता हो।

निसानी :: (सं. पु.) तीर बन्दूक आदि का लक्ष्य।

निसाब :: (सं. पु.) पर्तदार पत्थर।

निसूमधूम :: (सं. पु.) घोड़े का एक रंग।

निसोच :: (वि.) निश्चिन्त।

निस्कारन :: (क्रि. वि.) अकारण।

निस्तार :: (सं. पु.) काम आने की क्रिया, पाखाने जाने की क्रिया।

निस्तारौ :: (सं. पु.) गुजर, निर्वाह।

निस्पत :: (अव्य.) निस्बत, संबंध।

निस्फिकर :: (वि.) निश्चिन्त।

निस्वारथ :: (वि.) निस्वार्थ।

निस्सन्तान :: (वि.) सन्तानहीन।

निस्सहास :: (वि.) असहाय।

निहत्ता :: (वि.) जिसके हाथ न हो। जिसके हाथ में कोई अस्त्र न हो, निहत्था।

निहत्तौ :: (वि.) बिना किसी हथियार के, खाली हाथ।

निहन्नों :: (सं. पु.) लकड़ी में चौकोर छेद बनाने का औजार।

निहाई :: (सं. स्त्री.) लोहे के काम से संबधित एक औजार जिस पर रखकर लोहे को पीट कर बढाया जाता है।

निहारिया :: (सं. पु.) सुनारों की दुकान के कचरे और राख से सोना चाँदी अलग करने वाला।

निहारी :: (सं. स्त्री.) स्वल्पाहार, अल्पाहार। निहारी।

निहारी :: (सं. स्त्री.) धातुओं को हथौड़े से पीटने के लिए लोहे का आधार।

निहाल :: (वि.) गदगद प्रसन्न, नफल मनोरथ, कृतकृत्य।

निहुअइँ :: (वि.) दे. निटुठअई सामान्य प्रयोग।

निहूँ :: (वि.) नम्रता पूर्वक, नम्रता धारण किए हुए।

निहोर :: (सं. पु.) नम्रता, प्रदर्शन के उपाय, गिड़गिड़ा कर की गयी प्रार्थना।

निहोरबो :: (अ. क्रि.) प्रार्थना या विनती करना, एहसान मानना, गौर से देखना।

नीं. :: (सं. स्त्री.) नींव, भवन का भूमिगत आधार।

नींकौ :: (वि.) अच्छा, सुहावना, सुन्दर।

नीखरा :: (वि.) शुद्ध, जिसमें कोई मिलावट न हो, गहोई वैश्यों का एक उपवर्ग (संज्ञा)।

नींगुर :: (सं. स्त्री.) खाली, बिना बेंट की कुलहाड़ी।

नीच :: (वि.) जाति, कर्म, गुण आदि या किसी दूसरी बात से घटकर तुच्छ अधम बुरा। जाति से नीचा, कर्म से नीचा, विचारों से नीचा।

नीचट :: (वि.) कठोर, अच्छी तरह।

नींचट :: (वि.) ठोस, मजबूत।

नीचता :: (सं. स्त्री.) नीच होने का भाव, क्षुद्रता।

नीचूँ :: (क्रि. वि.) निम्नतल की ओर, अधोभाग में नीचें।

नीचें :: (क्रि. वि.) निम्नतल की ओर, अधोभाग से नीचे।

नीचो :: (वि.) निम्नतल की ओर, अधोभाग में।

नींछर :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जहाँ रहँट या पम्प का पानी गिरता हो, हौद।

नीत :: (सं. स्त्री.) आचार, पद्धति, नीति।

नींत :: (सं. स्त्री.) निद्रा, सुसुप्ति।

नीदबो :: (सं. पु.) निराई, नीदना।

नींदबौ :: (क्रि.) खेतों से खर-पतवार उखाड़ना।

नींदा :: (सं. पु.) खेतों में फसलों के साथ उगा खर पतवार।

नीबर :: (वि.) शुद्ध (धातु)।

नीबू :: (सं. पु.) एक पेड़ जिसका फल, गोल छोटा और खट्टा होता है।

नीम :: (सं. पु.) निम्ब, एक प्रसिद्ध औषधिक गुणों वाला वृक्ष।

नीयत :: (सं. स्त्री.) उद्देश्य।

नीयरी :: (वि.) करीब पास, नजदीक।

नीर :: (सं. पु.) जल (लोक साहित्य. में प्रयुक्त)।

नीरौ :: (वि.) निकट, कम दूरी पर।

नीलम :: (वि.) स्वच्छ एवम् पारदर्शी नीला जल।

नीलम :: (सं. पु.) एक रत्न, नीलमणि।

नुकता :: (वि.) कलंक, दोष, बिन्दी (अक्षरों की)।

नुकता चीनी :: (सं. स्त्री.) दोष निकालने का काम।

नुकाबो :: (क्रि.) अनाज आदि का कूड़ा कर्कट साफ होना सूपा की सहायता से अनाज साफ करना।

नुकावनों :: (सं. पु.) साफ किया जाने के लिए रखा गया अनाज।

नुक्कड़ :: (सं. पु.) छोर, नोक, सिरा।

नुक्स :: (सं. पु.) दोष, त्रुटि।

नुगइया :: (सं. स्त्री.) उँगली।

नुँगरिया :: (सं. स्त्री.) उँगली, अँगुली।

नुगरो :: (सं. स्त्री.) वह वस्त्र जिसे स्त्रियाँ लहँगा के ऊपर ओढ़ती हैं।

नुँगरौ :: (सं. पु.) एक तरह की ओढ़नी, लांगा नंगरौ।

नुते :: (वि.) जिसे निमंत्रण दिया गया हो निमंत्रित।

नुनखरौ :: (वि.) कुछ कुछ नमकीन स्वाद वाला।

नुना :: (सं. पु.) सीलन वाले स्थानों पर ईटों में होने वाला क्षरण, लोंना।

नुन्नूँ :: (सं. स्त्री.) छोटे बच्चों की मूत्र नालिका।

नुमाइश :: (सं. स्त्री.) प्रदर्शनी, प्रदर्शन।

नुसखा :: (सं. पु.) लिखा हुआ कागज, रोगी, के लिए हकीम वैद्य आदि का लिखा औषधिपत्रि।

नूरा :: (वि.) तेजस्वी।

नें :: सम्बन्ध कारक परसर्ग भूतकालिक सकर्मक क्रिया के कर्त्ता का कारक चिन्ह, सगरामऊ। बुन्देली खटोला में नहीं, के अर्थ में प्रयुक्त।

नें आनो :: (सं. पु.) दे. निआनों, नियानों।

नेंआरौ :: (वि.) पृथक अलग।

नेउरबौ :: (क्रि.) कमर से झुकना।

नेउरबौ :: (कहा.) ऊँट की चोरी नेउरें नेउरे नइँ होत।

नेंकबौ :: (क्रि.) किसी काम को करते समय झटके से जोर लगाना, टट्टी उतारने के लिए साँस रोक कर जोर लगाना।

नेकी :: (सं. स्त्री.) भलाई, उपकार कहा, नेकी करतन बदी होत।

नेंग :: (सं. पु.) रस्म, रीति, वर या वधू को शादी आदि विशेष अवसरों पर मिलने वाली भेंट, दस्तूरी।

नेंगचार :: (सं. पु.) शादी विवाह में होने वाली रूढ़िगत रीतियों और आचारों का पालन।

नेंचान :: (सं. स्त्री.) निचाई।

नेंचे :: (क्रि. वि.) नीचे।

नेंचौ :: (वि.) नीच, तुलना में काम उँचाई का।

नेठम :: (क्रि. वि.) अवश्य, निश्चय करके।

नेंत :: (सं. पु.) किसी विशेष उद्देश्य से की गयी नाप-जोख।

नेता :: (सं. पु.) अगुवा, किसी दल का नेतृत्व करने वाला।

नेतागिरी :: (सं. स्त्री.) किसी वर्ग के अगुवा की हैसियत से किया गया कार्य।

नेथनो :: (सं. पु.) मट्ठा भाने की रस्सी।

नेंना :: (सं. पु.) नयन, बड़ी बड़ी आँखे (लो.गी)।

नेंनू :: (सं. पु.) नवनीत, मक्खन, मट्ठे से ताजा पृथक किया हुआ घी।

नेफा :: (सं. पु.) अधोवस्त्र में नाड़ा डालने के लिए बनाया गया स्थान।

नेबा :: (सं. पु.) कट्टु, काशीफल, छीताफल (लुधाँती प्रयोग)। सीता फल, शरीफा।

नेंबाव :: (सं. स्त्री.) दे. निआव, नियाव।

नेंबौ :: (क्रि.) झुकना, टेढा होना, नम्र होना।

नेंम :: (सं. पु.) नियम, एक जैन तीर्थकर नेमिनाथ।

नेव :: (सं. स्त्री.) स्नेह (नेह)।

नेंवतबौ :: (क्रि.) आमन्त्रित करना।

नेंवतार :: (सं. पु.) आमन्त्रित लोग।

नेवतौ :: (सं. पु.) निमन्त्रण बुलावा।

नेंवतौ :: (सं. पु.) निमन्त्रण, भोजन के लिए आमंत्रण।

नेवरा :: (सं. पु.) नकुल नेवला।

नेवारी :: (सं. स्त्री.) एक प्राचीन परगना जो ओरछा के राजा रूद्र प्रताप को जागीर में मिला था।

नेह :: (सं. पु.) प्रेम, स्नेह।

नेंहर :: (सं. स्त्री.) नहर, पानी ले जाने के लिए वाहिका।

नेंहाई :: (सं. स्त्री.) नेहाई।

नैं :: (अव्य.) एक निषेध सूचक अव्य., नहीं है।

नैक :: (वि. अव्य.) जरा, थोड़ा अल्प, तनिक।

नैंक :: (वि.) थोड़ा (पश्चिमोत्तर बुन्देली में प्रयुक्त)।

नैंगई :: (सं. स्त्री.) झुक गई।

नैंचे :: (क्रि. वि.) नीचे।की ओर, अधोतल की ओर, छोटा, बुरा।

नैचो :: (वि.) जो गहराई पर हो, झुका हुआ।

नैठम :: (क्रि. वि.) निश्चय करके, अवश्य।

नैंत :: (सं. पु.) बढ़इयों के काम का एक उपकरण जो पहिए की गोलाई बनाने के काम आती है।

नैनउआ :: (सं. पु.) एक प्रकार की मछली।

नैनूँ :: (सं. स्त्री.) मक्खन।

नैम :: (सं. स्त्री.) आचार विचार, नियम।

नैंया :: (अव्य.) निषेध या अस्वीकृत वाचक शब्द. न नहीं।

नैयौतिनी :: (सं. स्त्री.) मैंदे की पतली पूड़ी।

नों :: (वि. अव्य.) पास समीप, अधिकार में नाखून।

नों :: (पु.) चार और पाँच के योग की संख्या विशेषण।

नोंई :: (यौ. श.) नहीं है।

नोंक :: (सं. स्त्री.) पेना सिरा निकला हुआ कोना।

नोकझोंक :: (सं. स्त्री.) ठाढ-बाढ, तपाक, चुभने वाली बात, छेड़छाड़।

नोकड़ा :: (सं. पु.) एक प्रकार का खेल जिसकी दोनों पालियों में १७ ककड़ों का उपयोग होता है।

नोकयारौ :: (वि.) नोंकदार, जिसमें नोक हो।

नोंकरी :: (सं. स्त्री.) आजीविका के लिए वेतन लेकर किया जाने वाला काम।

नोंका :: (सं. स्त्री.) नाव।

नोकाबो :: (स. क्रि.) अनाज बीनना, अन्न में से मिट्टी आदि साफ करना।

नोंगरी नोंगरे :: (सं. स्त्री.) बाजुओं में पहनने का एक प्रकार का आभूषण जिसकी कलश के आकार की नुकीली पट्टी होती है।

नोच :: (सं. स्त्री.) नोचने की क्रिया या भाव, छीनना।

नोच-खसोट :: (सं. स्त्री.) छीना-झपटी, लूट।

नोचबिल्ला :: (सं. पु.) झगड़ा।

नोचबो :: (क्रि.) नोचना, उखाड़ना, खरोचना, अलग करना।

नोंचबो :: (क्रि.) नाखूनों में चमड़ी या कोई अन्य वस्तु खरोंचना।

नोट :: (सं. पु.) मुद्रा, कागजी, मुद्रा, लिखना।

नोंटंकी :: (सं. स्त्री.) उत्तरप्रदेश को एक लोक नाट्य।

नोटाठी :: (सं. पु.) विवाह में कन्या पक्ष की ओर से भेजा गया जनवासे का सामान।

नोटिस :: (सं. पु.) नोटिस अदालत में हाजिर होने का आदेश।

नोंतौ :: (क्रि. वि.) बाँटो की तौल से थोड़ा अधिक तौला जाना।

नोंदुर्गा :: (सं. स्त्री.) नवदुर्गा।

नोंन :: (सं. पु.) नमक।

नोंनियाँ :: (सं. पु.) एक भाजी जिसके पत्ते मोटे, लम्बे तथा गोल होते हैं।

नोनी :: (वि.) सुन्दर।

नोने, नोनो :: (वि.) भला अच्छा।

नोंनों :: (वि.) अच्छा भला सुन्दर।

नोरतन :: (सं. पु.) मोती, पन्ना, मानिक, गोमद, हीरा, आदि।

नोरता :: (सं. पु.) आश्विन मास की नवरात्रि के दिनों में कुमारी कन्याएँ लीप पोतकर निश्चित स्थान पर चौक पूरती है तथा गौरी पूजन करती है।

नोरता :: (सं. पु.) नवरात्र एक प्रकार का त्यौहार जिसमें कुमारी लड़कियाँ गौरी या दुर्गा की पूजा करती हैं।

नोंरपा :: (सं. पु.) एक भाजी, नयी रोपीं हुई ईख।

नोंरा :: (सं. पु.) नेवला, नोंरिया।

नोंरा :: (सं.) दे. नवरा भी।

नोंलखा :: (वि.) कीमती हार, नौ लाख रूपये वाला कीमती हार (लोक साहित्य.)।

नोंसादर :: (सं. पु.) एक रसायन जो दवा के काम आता है।

नौ दुर्गा :: (सं. पु.) नवरात्रि, चैत्रमास एवम क्वार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी की जाने वाली विशेष दुर्गा पूजा।

नौंकर :: (सं. पु.) सेवक, विशेषकर सरकारी कर्मचारी।

नौगरई :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के हाथों का आभूषण।

नौना :: (सं. पु.) नमक का वह अंश जो पुरानी दीवारों या नमी वाली जमीन पर मिलता है।

नौनिया :: (सं. पु.) एक भाजी, लौनिया।

नौने :: (क्रि. वि.) अच्छी तरह से।

नौबद :: (सं. पु.) शहनाई, मंगल सूचक वाद्य, नौबत का रूप।

नौबूंदा :: (सं. पु.) एक कीड़ा जिसकी पीठ पर नौ बिन्दियाँ होती हैं।

नौरस :: (सं. पु.) काव्य के श्रंगारादि नौरस।

नौलख :: (वि.) नौ लाख का बहुमूल्य जड़ाउ हार।

नौसर :: (सं. पु.) तास का एक खेल।

नौसिखिया :: (वि.) नया सीखा हुआ।

न्याउ :: (सं. पु.) नियम के अनुकलू बात, निर्णय, ठीक, उचित बात।

न्याय :: (सं. पु.) इंसाफ, एक राजा करें सौ न्याय।

न्यारक न्यारौ :: (सं. पु.) गृह विभाजन, बँटवारा।

न्यारिया :: (सं. पु.) सुनारों या जौहरियों की दुकान के कूड़ा करकट को धोकर सोना चाँदी निकालने वाला।

न्यारें :: (वि.) अलग, निराले।

न्यारो :: (वि.) अलग, जुदा, दूर, अन्य, निराला, अनौखा।

न्याव :: (सं. स्त्री.) लड़ाई।

न्योंतर :: (सं. पु.) दे. नेंवतार।

न्योंतो :: (सं. पु.) दे. नेंवतौ।

न्यौतना :: (क्रि. स.) निमंत्रित करना।

 :: हिन्दी वर्णमाना देवनागारी लिपि के प वर्ग का प्रथम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान ओष्ट्य है।

पइ :: (सं. स्त्री.) ठाट के ऊपर खपड़ों की कतार, घुन।

पइया :: (सं. पु.) यंत्रों का संतुलन चक्र, पहिया।

पइयाँ :: (सं. स्त्री.) छोटे और सुन्दर पैर, बच्चों के संदर्भ में प्रयुक्त।

पँइयाँ :: (सं. स्त्री.) चरण, पैर, उदाहरण-सब तज मानिक तुमें गहाँ प्रभु, देव दरस परूँ पइयाँ (मानिक जू) उदाहरण-पँइयाँ परबो-चरण छूना।

पइसा :: (सं. पु.) ताँबे की मुद्रा, दशमलव प्रणाली में रूपया का सौवाँ भाग, इसके पूर्व रुपया का चौसठवाँ भाग मुद्रा।

पइसा :: (कहा.) पइसा आई, पइसा बाई, पइ बिन ना होय सगाई - माँ पैसे से ही सब कुछ होता है।

पइसा :: (कहा.) पइसा की डुकरो टका मुड़ाई - जितने की तौ असल वस्तु नहीं, उतने से अधिक उस पर खर्च।

पइसा :: (कहा.) पइसा की भाजी, टका कौ बगार - बघार, मिर्च, मसाले आदि का छौंक।

पइसा :: (कहा.) पइसा के लानें सबरे करम करनें परत - पैसे के लिए सब कर्म करने पड़ते है।

पइसा :: (कहा.) पइसा के लानें सरगें थींगरा लगाउत - पैसे के लिए आकाश में थींगरा लगाते हैं, अर्थात संभव-असंभव सभी कार्य आदमी करता है।

पइसा :: (कहा.) पइसा सें पइसा आऊत - पैसे से पैसा आता है, पैसे को पैसा खींचता है।

पइसा :: (कहा.) पइसा हात कौ मैल है - पैसा हाथ का मैल है, उसके आने का कोई सुख या जाने का रंज नहीं करना चाहिए।

पउआ :: (सं. पु.) चौथाई भाग, सेर या ग्राम का चौथाई भाग, चौपड़ के पाँसे पर एक का प्रतीक अंक, कहीं पर जमा हुआ प्रभाव।

पऊत :: (क्रि.) बनाना, सेंकना।

पऊत :: (कहा.) पऊत पऊत की कच्चीं अथवा खोटी - रोटियाँ तैयार होते-होते भी खाने को मिलेंगी इसका विश्वास नहीं।

पऊत :: (कहा.) पऊत बरा, कै पीलऊँ तेल - बरा बनाते हो, या पी लूँ तेल, जो मिलै वही सही, अथवा मेरा काम नहीं करते हो तो जो मन में आयेगा करूँगा।

पकबौ :: (क्रि.) परिपाक होना, विकास की पूर्णावस्था को प्राप्त होना, चौपड़ के खेल में गोट का लाल होने के निकट पहुँचना, फोड़े में मवाद पड़ना।

पकर :: (सं.) प्रकृष्ट पकड़ने की क्रिया, पकड़ने का ढंग, द्वन्द्व युद्ध में एक दूसरे की पकड़, समझ।

पकरबो :: (सं. क्रि.) किसी वस्तु को इस ढंग से हाथ में लेना या दबाना कि वह इधर-उधर न हट सके ग्रहण करना।

पकवान :: (सं. पु.) पकवान, तले हुए विविध भोज्य पदार्थ जो अन्न से बने हों।

पकाई :: (सं. स्त्री.) पकने की क्रिया।

पकाबौ :: (क्रि.) ईंटों या मिट्टी के बरतनों को भट्ठी में तेज आँच देकर मजबूत करना, किसी योजना को पक्का करना, किसी वस्तु को बेचकर पैसे खड़े करना।

पकी :: (वि.) जो कच्ची न हो, जो आग पर पकाया गया हो, अनुभवी, मजबूत।

पकी :: (कहा.) पके पै निबौरी मिठात - पकने पर निबौरी भी मीठी लगती है।

पकुँआँ :: (वि.) कमजोर, जिसका शरीर रोग से या मिथ्याचार से पीला पड़ गया हो।

पकौरी :: (सं. स्त्री.) पकौड़ी, बेसन के गाढ़े घोल को गरम तेल की कड़ाही में टपका कर बनाया जाने वाला पकवान जिसका प्रयोग प्रायः कढ़ी में डालने में किया जाता है।

पक्कयात :: (सं. स्त्री.) शादी के लिए वर को पक्का करने के लिए चढ़ाया जाने वाला तिलक।

पक्की :: (वि.) मजबूत, तेज असरवाली ओवर प्रूफ शराब।

पक्की :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त उदाहरण-पक्की धुलाई-भट्टी पर गरम करके की गयी धुलाई।

पक्कौ :: (वि.) मजबूत, पूरी तरह, किसी काम में पूर्णता प्राप्त व्यक्ति।

पक्खा :: (सं. पु.) घर की चौड़ाई वाली दीवारें जिन पर ठाट की बीच वाली लकड़ी (बड़ेरौ) रखी जाती है।

पख :: (सं. स्त्री.) आपत्ति, आक्षेप, अड़ंगा, ऐसी शर्त जिससे काम में बाधा पड़े।

पँख :: (सं. पु.) पतिंगों के झड़े हुये पंख, पक्षियों के डेंने।

पँखउआ :: (सं. पु.) पक्षी आदि के पंख या पर।

पखउआ-पखना :: (सं. पु.) पंख, पक्षियों के डैनें।

पखंड :: (सं. पु.) (सं. पाखण्डी) ठोंग, आडम्बर, विरूद्ध आचरण, छल, धोखा।

पखंडी :: (वि.) (सं. पाखण्डी) ठोंग, आडम्बर करने वाला, वेद विरूद्ध आचरण करने वाला, धोखेबाज।

पखदोरो :: (सं. पु.) पक्खा में बनाया गया दरवाजा।

पखना :: (सं. पु.) पतिंगा।

पखबतियाँ :: (सं. पु.) एक प्रकार का बाजा जो प्रायः माता के भजनों में बजाया जाता है।

पखबारो :: (सं. पु.) पखवाड़ा, महीने का आधा भाग, पक्ष, पन्द्रह दिन की इकाई।

पखरई :: (सं. स्त्री.) धोने या पखारने का काम, ब्याह की एक रस्म जिसमें वर और दुलहन के पैर धोये जाते है।

पखराबो :: (क्रि.) धोने का काम करवाना।

पखरी :: (सं. स्त्री.) पंखुड़ी, फूके दल।

पँखरी :: (सं. स्त्री.) पुष्पदल।

पखा :: (सं. पु.) दाढ़ी के बड़े-बड़े बाल जो किसी चलन के अंतर्गत रख जाते हैं, छोटी-छोटी पंखियाँ।

पखा :: (कहा.) ऊमर फोरौ न पखा उड़ाव।

पंखा :: (सं. पु.) विद्युत मोटर से चलने वाला पंखा, पानी खींचने का यंत्र।

पखाउजी :: (सं. पु.) पखावज बजाने वाला।

पखाउन :: (सं. पु.) पखावज, मृदंग।

पखान :: (सं. पु.) पत्थर, पाषाण।

पखारबो :: (क्रि.) धोना, पाँव पखारबौ, पैरों को आदरर्पूवक धोना, कन्या के विवाह में एक रीति।

पखारी :: (सं. स्त्री.) टाट की बनी एक विशाल थैली।

पखावची :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का मृदंग जो आकार में थोड़ा छोटा होता है।

पखिया :: (सं. स्त्री.) गाड़ी के ऊपर छाया के लिए लगायी जाने वाली लकड़ियाँ।

पँखी :: (सं. स्त्री.) छोटा पतिंगा।

पखील :: (सं. स्त्री.) लोहे का एक तार जो नरा के एक सिरे पर केंड़ा को ऊपर उठाने से रोके रहता है कोरी।

पखेरू :: (सं. पु.) पक्षी, चिड़िया, उड़ने वाले कीड़े।

पँखेरू :: (सं. पु.) पखेरू, पक्षी।

पखौ :: (सं. पु.) पक्ष।

पखौआ :: (सं. पु.) पंख।

पग :: (सं. पु.) डग, पैर।

पग :: (प्र.) जबसे ऊके ई घर में पग परे तब से सब झलाझल है, पग धरबो-पैर रखना।

पगइया :: (सं. स्त्री.) एक पतला रस्सा जो बैलों को गाड़ी में जोतने के काम आता है।

पगड़ी :: (सं. स्त्री.) साफा, पाग।

पंगत :: (सं. पु.) भोजन करने वालों की पंक्ति, पच-पथ्य।

पँगत-पँगती :: (सं. स्त्री.) पंक्ति भोजन के लिए बैठे हुए लोगों की कतार, भोज।

पगबो :: (सं. क्रि.) रस में डूबना, अधिक अनुरक्त होना।

पगरैत :: (वि.) जिसके घर विवाह हो वह।

पगरैतिन :: (सं. स्त्री.) वह स्त्री जो विवाह में तेल चढ़ते समय लड़के या लड़की के सर पर अपने आँचल को छोर डाल कर पीछे खड़ी होती है।

पगला :: (वि.) पागल, विक्षिप्त, जिसकी बातों का कोई ठिकाना न हो।

पगा :: (सं. पु.) दे. पगइया, बड़ी पगही।

पंगा :: (वि.) जिसके पैर असंतुलित हों और चलते समय जमाने में काँपते हों।

पगाड़ :: (सं. पु.) बड़ी पगड़ी, व्यंग्यात्मक प्रयोग।

पगिया :: (सं. स्त्री.) सुरूचिपूर्ण ढेग से बँधी हुई पगड़ी।

पगी :: (वि.) मढ़ी हुई वेष्ठित।

पगी :: (प्र.) शक्कर की पगी मूँगफली।

पगुराबो :: (क्रि.) रौंथ करना।

पगैया :: (सं. स्त्री.) रस्सी, उदाहरण-बच्छा कूदै नौ नौ हात डोर पगैया मोरे हात।

पँगोल :: (सं. पु.) भाग, ठटेरे का एक भाग।

पच :: (सं. पु.) प्रसव के बाद पहली बार स्त्री को दिया जाने वाला भोजन, जो प्रायः मूँग की दाल और पुराने चावलों का भात होता है, प्रथम पुत्र पैदा होने पर मायके से आने वाला घी, गुड़, मूंग की दाल, पुराने चावल और जच्चा-बच्चा के लिए कपड़े तथा बच्चे के लिए आभूषण और खिलौने आदि, लंघनो के बाद मरीज को दिया जाने वाला तथ्य।

पंच :: (सं. पु.) निर्णायक, किसी शाल में कसने के लिए ठोकी जाने वाली पतली और चौड़ी लकड़ी बाँस की चपटी सींक, न्यायकर्ता।

पचउअर :: (सं. पु.) पाँच पर्त।

पचकनी :: (सं. पु.) पाँच अनाजों का मिश्रण।

पचकल्यान :: (सं. पु.) घोड़ों की एक किस्म, एक प्रकार की चिड़िया।

पंचकें :: (सं. स्त्री.) ज्योतिष के अनुसार एक योग धनिष्ठा से रेवती तक के पाँच नक्षत्र जिनमें प्रेत कर्म निषिद्ध माना जाता है।

पंचक्की :: (सं. स्त्री.) आटा पीसने की यंत्र चलित चक्की।

पंचगोल :: (सं. पु.) पंचक्रोल, पाँच औषधियों का काढ़ा जो लघनों के बाद प्रथम पथ्य के रूप में दिया जाता है।

पंचडेरा :: (सं. पु.) विवाह की एक रस्म जिसमें कन्या पक्ष के लोग बारात के डेरा में जाकर बारातियों के बड़प्पन और सद्व्यवहार आदि की प्रशंसा करके उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं तथा बाराती उन्हें धन्यवाद देते हैं तथा आदर सत्कार करते हैं।

पचड़ौर :: (सं. पु.) व्यर्थ का जमाव।

पचतोरिया :: (सं. पु.) एक तरह का कपड़ा।

पचदुआ :: (सं. पु.) दो हिस्से भूमि के स्वामी को तथा तीन हिस्से बँटाई पर लेने वाले को मिलते हैं।

पंचदुआ :: (सं. पु.) खेती को बँटाई पर देने की एक पद्धति जिसमें पैदावार के पाँच हिस्से किये जाते हैं।

पचपच :: (सं. पु.) पच-पच शब्द होने या करने की क्रिया या भाव, कीच।

पचपचाबो :: (अ. क्रि.) किसी वस्तु का बहुत गीला होना।

पचपचो :: (वि.) जिसका पानी जज्ब न हुआ हो।

पचपतियाँ :: (सं. पु.) ताश का एक खेल।

पंचपाद :: (सं. पु.) पंचपात्र, मंदिर में ठाकुर जी का चरणामृत रखने का पात्र।

पचबन :: (वि.) पचास और पाँच के योग की।

पचबन्नी :: (सं. स्त्री.) पाँच प्रकार की (मिठाई इत्यादि)।

पंचबन्नी :: (सं. स्त्री.) पांच प्रकार की मिठाई।

पचबौ :: (क्रि.) भोजन हजम हो जाना या बैठ जाना, दूसरे का धन हड़प लेना, आग की तेजी समाप्त होकर राख में दब जाना।

पचभींके :: (सं. स्त्री.) कार्तिक स्नान में शुक्ल दशमी या एकादशी से पूर्णमासी तक का समय।

पचमनिया :: (सं. पु.) गर्भिणी स्त्री का एक संस्कार।

पचमेल :: (सं. पु.) दे. पचबन्नी।

पंचयात :: (सं. स्त्री.) पंचायत, किसी समस्या पर विचार करने हेतु जुड़े हुए लोगों का समूह, ग्राम की एक संस्था जिसमें चुने हुए लोग होते हैं, पंचायत।

पंचयाती :: (वि.) सार्वजानिक।

पंचर :: (सं. पु.) ट्यूब, फुटबाल आदि में हुआ छेंद।

पचरंगो :: (वि.) पाँच रंगो वाला।

पचरा :: (सं. पु.) गाड़ी की जुआँरी में बैलों के गले को निश्चित स्थान पर रखने के लिए भीतर की तरफ लगयी जाने वाली चपटी सैल, असाटी वैश्यों का एक उपवर्गीय नाम।

पचरियादार :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की चकिया।

पचरीदार :: (सं. पु.) ऐंठ का तिकौना, बिन्दीदार पत्ती शोभा के लिये लगाते हैं, सुनार।

पंचरोंस :: (सं. पु.) पंचो की रीति से।

पंचलकड़ी :: (सं. स्त्री.) शव-दाह के समय की रस्म जिसमें शवयात्रा में जाने वाले लोग चिता में लकड़ी डालकर परिक्रमा करते हैं तथा मृतक को अन्तिम विदा देते हैं। शवदाह में सामाजिक योगदान (यौगिक शब्द.)।

पचलरी :: (सं. स्त्री.) पाँच लड़ियों वाली माला जैसा एक गहना।

पंचलरी :: (सं. स्त्री.) पांच लरों की गले की माला, पंचलड़ी।

पचहँड़ :: (सं. स्त्री.) दायजा, दहेज।

पचहत्तर :: (वि.) पचहत्तर, सत्तर और पाँच के योग की संख्या, सत्तर से पाँच अधिक।

पचा :: (सं. पु.) भूसा समेंटने की लकड़ी का एक प्रकार का फावड़ा जिसमें लकड़ी की पाँच नोंकदार खूँटियाँ नीचे की ओर लगी रहती है।

पंचा :: (सं. पु.) पाँच हाथ लम्बी पुरूषों की छोटी धोती।

पंचाई :: (सं. स्त्री.) बाँस की चपटी सींक जूएँ में लगी भीतर की ओर की चपटी सैल।

पंचाउनबै :: (वि.) नौं दहाइयों और पाँच का योग, पाँच कम सौ।

पंचामिर्त :: (सं. पु.) पंचामृत, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल जिससे ठाकुर जी को स्नान कराया जाता है।

पचारी :: (सं. स्त्री.) जुआँ में लगने वाली चपटी सी लकड़ी।

पंचारी :: (सं. स्त्री.) जुँआ की वह लकड़ी जो बैल के कंधे के पास होती है।

पचास :: (वि.) दस और पाँच की गुणन संख्या।

पचासा :: (सं. पु.) पचास छन्दों में लिखी गयी कोई रचना।

पचासी :: (वि.) अस्सी और पाँच के योग की संख्या।

पंची :: (सं. स्त्री.) साँचे में कड़ियों को एक सूत्र में बाँधने की पत्ती।

पंचुवा :: (सं. पु.) बिना गुठली पड़े छोटे-छोटे आमों का अस्थायी अचार जिसमें तेल नहीं डाला जाता है।

पचेउस :: (सं. पु.) पाँचवा वर्ष।

पंचोकरसौ :: (सं. पु.) पहाड़े की संख्या, एक सौ पांच।

पंचोटा :: (सं. पु.) बाँस की चपटी सींक जिससे गुलेल की तरह कंकड़ फेंक कर चोट लगायी जाती है।

पचौबर :: (सं. पु.) पाँच तह वाला।

पच्चर :: (सं. पु.) पत्थर, कारीगरों का एक औजार, पच्चड़ा।

पच्ची :: (वि.) पचा हुआ (दिमाक पच्ची में प्रयुक्त), निष्क्रिय या थका हुआ दिमाग।

पच्चीस :: (वि.) बीस और पाँच के योग की संख्या।

पच्छिम :: (वि.) पश्चिम दिशा।

पच्छिम :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

पच्छी :: (सं. पु.) चिड़िया, पक्षी, पक्ष ग्रहण करने वाला।

पच्छी :: (कहा.) पक्षे चोरी, पक्षे न्याय, पक्ष बिना सो मारो जाय - दुनिया में सब काम दूसरों के बल सा तरफदारी से ही होते हैं पक्षपात करने वाला।

पंच्यात :: (वि.) पंचायत का, जिस पर बहुतों का अधिकार हो, जनता का।

पंच्यानबे :: (वि.) नब्बे से पाँच अधिक।

पंच्यानबे :: (पु.) पंचानबे की संख्या।

पछइयों :: (वि.) पश्चिम दिशा का।

पछताबौ :: (क्रि.) पश्चाताप करना।

पछताव :: (सं. पु.) पश्चाताप, पछतावा किसी कार्य को करने या न कर सकने के बाद होने वाला दुख।

पछत्तर :: (वि.) सत्तर से पाँच अधिक।

पछत्तर :: (सं. पु.) सत्तर से पाँच अधिक तक संख।

पछयाउर :: (सं. स्त्री.) मट्ठे में गुड मिलाकर बनाया गया रस, भोजन को पचाने की दृष्टि से खायी जाने वाली पेय खाद्य सामग्री।

पछयाबो :: (क्रि. वि.) पीछे-पीछे जाना।

पछयाँयते :: (क्रि. वि.) पश्चिम की तरफ होना, पीछे होना।

पछयाँयते :: (मुहा.) अछयाँयते पछयाँयते-किसी को गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए गुप्त रूप से उसके आगे पीछे लगे रहना।

पछर :: (सं. पु.) गाड़ी में पीछे की ओर अधिक वजन होना।

पछरेंट, पछरेंडा :: (सं. पु.) गाड़ी के पीछे लगने वाली रस्सी।

पछलबो :: (क्रि. वि.) पीछे रह जाना।

पछलवा :: (सं. पु.) कलाई में पहनने का एक पोला और चिकना गहना।

पछाई :: (सं. स्त्री.) पीछे।

पछाँउँ :: (क्रि. वि.) पीछे।

पछाउद :: (सं. स्त्री.) छाछ आदि का बना हुआ एक पेय।

पछाड़बौ, पछारबौ :: (क्रि.) कुश्ती में हराना, हराना, प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ देना।

पछारी :: (सं. स्त्री.) पीठ, पिछला भाग, बैलगाड़ी की झाँजियों में पीछे पूरा गया रस्से का जाल ताकि सामान न गिरे।

पछिया :: (सं. स्त्री.) चमड़े हिस्सा जो जूते की पुस्त के पीछे लगाता है चमार।

पंछी :: (सं. पु.) पक्षी (लोक साहित्य.में प्रयुक्त)।

पंछी :: (कहा.) पंछियन के पियें समुद हिलोरें नई घटती - पक्षियों के पीने से समुद्र का जल कम नहीं होता।

पछीत :: (सं. स्त्री.) मकान का पिछबाड़ा, पीछे की तरफ।

पछील :: (सं. स्त्री.) पीछे की कील।

पंछीली :: (सं. स्त्री.) छरहरे या इकहरे बदन की स्त्री।

पंछीलौ :: (वि.) इकहरे शरीर वाला।

पछुआ :: (सं. पु.) हवा, पश्चिम से बहने वाली हवा।

पछेलबौ :: (क्रि.) पीछे ढकेलना, किसी निश्चय को आगे के लिए स्थगित करना।

पछेला :: (सं. पु.) पुरुषों द्वारा बड़े बाल रखना जैसे स्त्रियाँ रखती हैं। उन्हीं बालों को पछेला कहा जाता है।

पछेलाँ :: (वि.) हल के पीछे-पीछे चल कर की जाने वाली बोंनी।

पछोंनी :: (वि.) फसल बोने के निर्धारित मौसम के बाद की जाने वाली बोंनी की फसल।

पछोरन :: (सं. स्त्री.) फटकने से बचा अनाज।

पछोरबो :: (क्रि.) फटकना।

पज :: (सं. स्त्री.) कृषि, उपज, उदाहरण-पजइया-पाईदा करने वाला।

पंजगोरा :: (सं. पु.) पत्थर का रोड़ या कंकड़ उठाने या समेटने का पंजे के आकार का फावड़ा।

पजबाबौ :: (क्रि.) धारदार वस्तु की धार के पिछले भाग को गरम करके पिटवा कर पतला करवाना।

पजबौ :: (क्रि.) पैदा होना, फसल पैदा होना।

पंजर :: (सं. पु.) अस्थिपंजर, हड्डियों का ढाँचा।

पंजा :: (सं. पु.) हाथ का अग्रभाग, हथेली और उँगलियों वाला भाग, पांच की इकाई, आशीष।

पंजाबी :: (वि.) पंजाबी, विशेषकर सिख (सं.रूप में भी प्रयुक्त)।

पजाबौ :: (क्रि.) पजाना, पीटना (लाक्षणिक अर्थ.)।

पजामा :: (सं. पु.) पायजामा, पजामा।

पँजारबौ :: (क्रि.) दीवाली पर दीपक जलाना, विशेष रूप से दीवाली के दिये जलाने के लिए, जैनियों में प्रचलित।

पंजीरी :: (सं. स्त्री.) चीनी, मेवा इत्यादि मिला भुना हुआ सूखा आटा जिसका प्रयोग प्रायः नैवेद्य के लिए करते हैं।

पजूनें पूने :: (सं. स्त्री.) चैत्र मास की पूर्णिमा, श्री हनुमान जयंती (यौगिक शब्द.)।

पजै :: (सं. पु.) उत्पन्न हो।

पजै :: (कहा.) पजे कपूत, कबूतर पाले, आदे गोरे, आदे कारे - निकम्मे लड़के के लिए।

पजोखौ :: (सं. पु.) किसी के मारने पर उसके परिवारजनों के प्रति प्रकट की जाने वाली संवेदना का औपचारिक रूप।

पजोरबो :: (क्रि.) मातम पुरसी किसी के यहाँ गमी होने पर बैठने जाना।

पजौ पजाव :: (सं. पु.) तैयार।

पट :: (सं. पु.) निज मंदिर (जिस कक्ष में देवमूर्ति स्थापित हो) के किवाड़ उदाहरण-पट बन्द होबो-मंदिर का द्वार बन्द होना।

पटक :: (सं. पु.) गट्ठा।

पटकनी :: (सं. स्त्री.) कुश्ती में प्रतिद्वन्दी को गिराने की क्रिया, प्रतिद्वन्दी को मात देना या नीचा दिखाना भावार्थ।

पटकबाबो :: (क्रि.) पटकने का कार्य करवाना।

पटकबौ :: (क्रि.) गिराना।

पटका :: (सं. पु.) कपड़े का टुकड़, तांत्रिक पूजन में वह कपड़ा जिस पर यंत्र बनाये जाते हैं, बड़ा मोगरा, धातु के बर्तन पर चोट के कारण दबने का निशान।

पटका-पटकी :: (क्रि. वि.) आपसी लड़ाई में नीचे ऊपर होना।

पटकुइया :: (सं. स्त्री.) कुएँ की तली में बनाया जाने वाला गड्डा।

पटकुली :: (सं. स्त्री.) कत्थई रंग का पत्थर जो लोहे का अयस्क होता है।

पटतर :: (सं. स्त्री.) उदाहरण, अपनी बात के समर्थन में दिया जाने वाला उदाहरण।

पटना :: (सं. क्रि.) गड्ढे आदि का भरकर बराबर हो जाना, छत बनाना, सींचा जाना, मन मिलना, तय हो जाना।

पटनैं :: (क्रि.) निभाना, निर्वाह होना।

पटनोंर :: (सं. स्त्री.) छत या दूसरी मंजिल के लिए कड़ियों के बीच के स्थान में पड़े हुए पटियों का सामूहिक नाम।

पटपटाबो :: (क्रि.) अपने आप बोलते रहने की क्रिया, कष्ठ से छटपटाना, कब्जा पाना, पटपट शब्द होना, शोक करना।

पटपरा :: (वि.) जमीन जिस पर पपटी हो, चौरस, बराबर, अत्यंत उजाड़ स्थान।

पटपरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी सी पहाड़ी नुमा भूमि जिसमें मिट्टी और पत्थर हों।

पटबाबो :: (सं. स्त्री.) छोटी सी पहाड़ी नुमा भूमि जिसमें मिट्टी और पत्थर हों।

पटबाबो :: (सं. क्रि.) पीटने का काम कराना, भरवाकर बराबर कराना, छत तैयार कराना।

पटबीजना :: (सं. पु.) जुगनू।

पटबेंत :: (सं. पु.) श्री जगन्नाथ जी की यात्र से लाये जाने वाले बेंत, इनकी पूजा की जाती है ये उसी गोंदरा के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से अभिमानी और उन्मत्त यादवों का संहार हुआ था। (यौगिक शब्द.)।

पटबो :: (अ. क्रि.) पाटा जाना, भरा जाना, मेल खाना, तै होना, ऋण पूरा अदा किया जाना।

पटमा :: (सं. पु.) घर की छत को कड़ी डालकर लकड़ियों या पत्थरों से पाटा जाना। तैयार छत को पटमा कहा जाता है। पुराने समय में प्रायः लकड़ी के पटियों से पटाव किया जाता था। गर्मी के दिनों में उस कमरे में ठंडक रहती है।

पटमा :: (कहा.) पटमा, नारी, कूप जल, इनको एक सुभायँ। गर्मी में सर्दी करें, सर्दी में गरमायँ।

पटरा :: (सं. पु.) कपड़े की एक किस्म जो झिरझिरा किन्तु कलफ के कारण कड़ा होता है यह प्रायः लाल रंग का होता है, तख्ता। पटरा बिठाना -बड़ा नुकसान करना, पटरा बैठना -बड़ा नुकसान होना।

पटरानी :: (सं. पु.) पट्टमहिषी महारानी।

पटली :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी में भोंरा के ऊपर लगी चपटी लकड़ी, नापने की लकड़ी या प्लास्टिक की एक फुट लम्बी चपटी पट्टी, रेल की पटरी।

पटवाँ :: (सं. पु.) दे. पटनोंर।

पटवाँ :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

पटवाँ :: (सं. पु.) आभूषणों को धागे से गूँथने, राखी डोर, छुटियाँ, चोटियाँ आदि बेचने वाली एक जाति।

पटवारी :: (सं. पु.) पाल विभाग का एक कर्मचारी जो ग्राम की जमीन तथा फसल आदि का हिसाब रखता है।

पटवारौ :: (सं. पु.) लिखा-पढ़ी, पटवारीगिरी।

पटा :: (सं. पु.) सीधी लचीली तलवार, एक ही उपजाति के अर्न्तगत वह समूह जिसमें आपसी खानपान का चलन हो, लकड़ी का पटिया जो आसन के काम आता है, पीढ़ा।

पटाँ :: (क्रि. वि.) चित्त तथा हाथ पैर शिथिल करके पड़े रहना, निढाल।

पटा-पटी :: (वि.) आपस में वस्तुओं का बदलना।

पटाई :: (सं. स्त्री.) पटाने का कार्य या मजदूरी।

पटाक :: (सं. पु.) किसी छोटी चीज के गिरने का शब्द।

पटाकसारे :: (सं. पु.) साले के साले (यौगिक शब्द)।

पटाका :: (सं. पु.) पोटास आदि विस्फोटक पदार्थ से बना सामान जिसके फोड़ने से आवाज हो।

पटेरे :: (सं. पु.) पेट का कृमि।

पटेल :: (सं. स्त्री.) पत्थर का चौरस, शहतीर।

पटेला :: (सं. पु.) स्त्रियों का कलाई पर पहिनने वाला आभूषण जिसके दोनों किनारे उभरे हुए रहते हैं तथा बीच में गहराई होती है खेतों की मिट्टी को एक सा करने की मोटी लकड़ी।

पटैल :: (सं. पु.) तेली तथा काछी के लिए आदरवाची सम्बोधन, ग्राम का मुखिया।

पटोख :: (सं. पु.) पटाका।

पटोरी :: (सं. स्त्री.) रेशमी चादर या साड़ी।

पटोरे :: (सं. पु.) रेशमी वस्त्र, पाटके वस्त्र, अधिकतर लोक गीत. और लोक कथाओं में प्रयुक्त।

पटोरे :: (मुहा.) लहरपटोरें।

पटौ :: (सं. पु.) पट्टा, भूमि जोतने का सरकार या जमींदार की तरफ से प्राप्त अधिकार पत्र।

पट्ठा :: (वि.) स्वस्थ और मजबूत काठी का जवान।

पठला :: (सं. पु.) पत्थर, चट्टान, भूमि पर उभरी हुई पत्थर की प्राकृतिक चट्टान।

पठला :: दे. पठा।

पठवा :: (सं. पु.) सुअर का छः माह से बड़ा बच्चा।

पठवाबो :: (क्रि.) भेजना, भिजवाना।

पठा :: (सं. पु.) नदी में उभरी हुई पत्थर की प्राकृतिक चट्टान।

पठाठनों :: (सं. पु.) भेजने की क्रिया।

पठाठनों :: (मुहा.) लुआवनों-पठावनो।

पठान :: (सं. पु.) काबुल, कन्धार के रहने वाले जो हींग, मेवा बेचने का, कर्ज देने का काम करते थे।

पठानी :: (वि.) सख्ती से की जाने वाली वसूली, सलवार कमीज, जाकिट तथा साफे की पोशाक, जूतों और जाकिट की एक विशेष प्रकार की बनावट।

पठैबो :: (क्रि.) भेजना, विदा करना।

पठोंनी :: (सं. स्त्री.) विदा करने के साथ दी जाने वाली भेंट की सामग्री।

पठोरिया :: (सं. स्त्री.) पत्थर की कटोरी।

पठौता :: (सं. पु.) पत्थर का कटोरा जैसा पात्र।

पड़इया :: (वि.) बैलों की एक किस्म, पढ़ने वाला, विद्यार्थी।

पड़इया :: (कहा.) पढ़िये भैय्या सोई, जामें हँड़िया खुदबुद होई - वही पढ़ो जिसमें रोटी खाने को मिले।

पड़गाबौ :: (क्रि.) आहार के लिए निकले जैन मुनियों को मंत्रोच्चार के साथ अन्नजल शुद्ध है, कहकर भोजन के लिए आमंत्रित करना।

पड़घेरा :: (सं. पु.) कत्थई रंग के कंकड़ चीलबटा (बु.)।

पड़ंत :: (सं. स्त्री.) पढ़ने का ढंग, वाचन का स्वर, मृदंग, पखावज, आदि ताल वाद्यों के बोल जिन्हें बजाने के पूर्व बोला जाता है।

पड़ंत :: (सं. स्त्री.) पड़े सुआ बिलइयन खाये -कोरे अक्षर-ज्ञान से क्या होता है, यदि उसके साथ बुद्धि विवेक न हो, तोता इतना पढ़ता है फिर भी उसे बिल्ली खा जाती है।

पड़ंता :: (सं. पु.) पढ़ने वाला।

पड़ंता :: (कहा.) (व्यंग्य प्रयोग) पढ़े - लिखे की चार आँखें होतीं-पढ़ा-लिखा आदमी अधिक समझदार होता है।

पड़ंता :: (कहा.) पड़ों तौ है, पै गुनो नइयाँ - केवल किताबी ज्ञान रखने वाले के लिए प्रयुक्त।

पड़बौ :: (अ. क्रि.) पढ़ना, अध्ययन करना, किसी वस्तु को अभिमंत्रित करना।

पँडब्बा :: (सं. पु.) पान का डब्बा।

पड़यारी :: (सं. स्त्री.) वह थैली जिसमें नाई अपने उपकरण रखता है।

पड़रिया :: (सं. स्त्री.) छत के जल का निकास मार्ग।

पड़वा :: (सं. पु.) भैंस का बच्चा।

पंडवा :: (सं. पु.) पांडव।

पड़वाबो :: (क्रि.) बचवाना, अभिमंत्रित करवाना।

पड़वार :: (सं. पु.) दे. पड़ोरा।

पंडवाहा :: (सं. पु.) एक प्राकृतिक स्थल जहाँ विशाल शिलाखंडों से एक झरना निकला है।

पड़ा :: (सं. पु.) भैंसा, एक गाली जो मोटे-तोजे किन्तु निकम्मे व्यक्ति को दी जाती है (लाक्षणिक अर्थ.)।

पँडा :: (सं. पु.) खाना बनाने वाला, तीर्थ मंदिर या घाट पर धर्म कृत्य कराने वाला ब्राह्मण, तीर्थ का पुजारी, रसोईया।

पड़ाक :: (सं. पु.) किसी वस्तु के गिरने का शब्द, उदाहरण-पड़ाक दीना-तुंरत।

पड़ाछिकउअल :: (सं. पु.) एक खेल जिसमें एक दूसरे, खिलाड़ी की गोट मारने और चाल बंद करने का प्रयास किया जाता है।

पड़ान :: (सं. स्त्री.) पाँडे की स्त्री, पाँडे जाति की स्त्री।

पड़ाबो :: (सं. क्रि.) शिक्षा देना, शिक्षित बनाना।

पंडित :: (सं. पु.) विद्वान, ब्राह्मण।

पड़िया :: (सं. स्त्री.) भैंस का मादा बच्चा, भैंस की बच्ची उदाहरण-पड़िया परबो-स्त्री का अधिक मोटा होना।

पड़ियार :: (सं. पु.) एक राजपूत जाति, हर्ष वर्धन के समय इसका राज्य दक्षिणी बुन्देलखण्ड में था।

पड़ीन :: (वि.) भूमि की एक किस्म, इसमें पीले रंग की रेहवाली मिट्टी होती है, एक मछली का नाम।

पंडुवा :: (सं. पु.) कुछ पीले रंग की मिट्टी।

पडूलो-पडूलो :: (वि.) भूरे रंग का पानी, उदा गंगा के पडूले नीर, जमना कैसें मिलन गई गंगा में, फाग साहित्य।

पडूलौ :: (वि.) मिट्टी की मिलावट के कारण थोड़ा मैला रंग।

पड़ेरू :: (सं. पु.) भैंस का बच्चा।

पड़ोर :: (सं. पु.) एक किस्म की भाजी।

पड़ोरा :: (सं. पु.) ककोरा, एक जंगली फल जो शाक बनाने के काम आता है, इसकी सतह पर हरे छोटे-छोटे काँटे से उभरे रहते हैं।

पड़ोस :: (सं. पु.) सान्निध्य, प्रतिवेश, आस-पास के घर, आस-पास का स्थान।

पण्डत :: (सं. पु.) पण्डित, ब्राह्ममण, आचार्य, अध्यापक, शुद्ध आचरण वाला (विशेषण लाक्षणिक अर्थ.)।

पण्डताई :: (सं. स्त्री.) आचार्य वृत्ति, कथावाचक, पूजा पाठ करने वाले पण्डितों का कार्य।

पण्डवा :: (सं. पु.) पाण्डव (युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव) मराठी प्रयोग के पन्ना जिले में एक प्रसिद्ध जल प्रपात, बुन्देलखण्ड में महाभारत गाथा गायन की एक प्राचीन शैली जो अब लुप्तप्राय है।

पण्डा :: (सं. पु.) तीर्थो में धार्मिक कृत्य कराने वाला, हरदौल तथा देवी मंदिरों के पुजारी।

पत :: (सं. स्त्री.) लाज (मोरी पत राखौ गिरधारी) विश्वास, इज्जत, उदाहरण-पतराखबो-प्रतिष्ठा की रक्षा करना।

पतउआ :: (सं. पु.) पत्ता।

पतंग :: (सं. स्त्री.) कागज का खिलौना जो धागे से बाँधकर आकाश में उड़ाया जाता है।

पतंगी :: (वि.) पतला (कागज)।

पतछीनी :: (वि.) पतली।

पतझर :: (सं. स्त्री.) पतझड़।

पतबौ :: (क्रि.) पतझड़ के बाद वृक्षों में नयी कोंपले आना, हथेलियों और पैर के तलुओं की खाल मरकर झड़ना।

पतयाबौ :: (क्रि.) विश्वास करना, मान्यता देना।

पतयारो :: (सं. पु.) रहम।

पतर :: (वि.) पतली, उदाहरण-पतर घिचिया-पतली गर्दन वाला।

पतरईयाँ :: (वि.) दुबला-पतला, उदाहरण-काटत-काटत मैं बची पतरइयाँ बलम के भाग (बुं.ग्रा.गी.)।

पतरी :: (सं. स्त्री.) पत्तल, पत्तों की बनी हुई थाली।

पतरी :: (कहा.) पतरी चाटत फिरौ - जूँठन-खाते फिरोगे, बुरी गती होगी।

पतरौ :: (वि.) पतला।

पतरौल :: (सं. पु.) नहरी पानी का प्रबन्ध एवं देखभाल करने वाला सिंचाई विभाग का सरकारी कर्मचारी, पेट्रोल (अकर्मक.)।

पतलून :: (सं. पु.) पैतलून एक अंग्रेजी ढंग का पहनावा, फुलपैण्ट।

पतलूम :: (सं. स्त्री.) पतलूम, फुलपैण्ट।

पंतवंती :: (सं. स्त्री.) पुत्रवती।

पतवार :: (सं. स्त्री.) वह तिकोनी लकड़ी जिसके द्वारा नाव को चलाते है, कर्ण।

पता :: (सं. पु.) पता, जानकारी (लुघाँती में प्रयुक्त)।

पताका :: (सं. पु.) मंदिर के ऊपर लगाने वाला झंडा, राजाओं का विशेष रंग तथा चिन्ह वाला झंडा।

पतापत :: (क्रि. वि.) पंक्तिबद्ध।

पतारौ :: (सं. पु.) प्रस्तार, किसी बात का आद्योपान्त विवरण।

पतिव्रता :: (वि.) पतिपरायणा।

पती :: (सं. पु.) भर्ता, कांत, शौहर, पति, स्वामी, मालिक।

पंती :: (सं. पु. (स्त्री.)) (स्त्पतिन) पौत्र का पुत्र।

पतींगा :: (सं. पु.) पतिंगा, उड़ने वाले कीड़े।

पतीलबौ :: (क्रि.) ज्वार के पौधों से भुट्टे-काट कर अलग करना।

पतुरिया :: (सं. स्त्री.) नर्तकी, वेश्या, रंडी।

पतुरिया :: (प्र.) बना के आँगे तबल निसान पतुरियाँ छम छम नाचें जू (लोक गीत.)।

पतेली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की बटलोई, पतीली।

पतोखी :: (सं. स्त्री.) एक चिड़िया।

पतोर :: (सं. पु.) झड़े हुए सूखे पत्तों का समूह।

पतोरौ :: (सं. पु.) पेड़ की काट-छाँट में निकले पत्ते तथा छोटी टहनियाँ, ईख को साफ करने और पत्ते काटने से निकले पत्ते।

पतोला :: (सं. पु.) पतली, एक प्रकार की मछली।

पतौ :: (सं. पु.) ठिकाना, जानकारी खोज।

पतौ :: दे. पता।

पत्तरा :: (सं. पु.) पत्र, पंचांग, पन्ना, तिथि तथा ग्रह नक्षत्रों का वार्षिक पत्रक। उदाहरण-पत्तरा खरकबो-आशंका होना। उदाहरण-पत्तरा न हिलबो-जरा भी हवा न चलना।

पत्ता :: (सं. पु.) पौधों अथवा पेड़ों का पत्ता, ताश का पत्ता, पत्तल।

पत्ताल :: (सं. पु.) पाताल (वलवाची प्रयोग) घोड़े की पीठ पर डालने का वस्त्र।

पत्ती :: (सं. स्त्री.) लोहे की पतली पट्टी, पौधों-पेड़ों के पत्ते, सेफ्टीरेजर का ब्लेड, किसी व्यापार में साझेदारी।

पत्तौ :: (सं. पु.) नकद राशि (गानों पत्तौं मुहावरा में प्रयुक्त)।

पत्थ :: (सं. पु.) बीमारी के दौरान या बाद में दिया जाने वाला हल्का आहार, बीमार को लंघनों के पश्चात दिया जाने वाला भोजन, पथ्य।

पत्री :: (सं. स्त्री.) पत्र लिखित संदेश (चिट्ठी पत्रों में प्रयुक्त)।

पथउअल :: (वि.) हाथों से थोप कर बनाये जाने वाले कण्डे।

पथनवारों :: (सं. पु.) कंडे थापने का स्थान।

पथनारी :: (सं. स्त्री.) कंड़े पाथने वाली।

पथरया :: (वि.) पथरीला।

पथरया :: (कहा.) पथरा से ईंट कोंरी होत - पत्थर से ईट मुलायम होती है, दो हानिकर वस्तुओं में से जिससे कम हानि होने वाली हो, उसको ही स्वीकार कर लेना चाहिए।

पथरयाऊ :: (वि.) पथरीली भूमि, बन्दूक जिसमें चकमक पत्थर से चिनगारी दी जाती है।

पथरयाब :: (सं. पु.) पत्थर फेंक-फेंक कर मारने की क्रिया।

पथरयाबौ :: (क्रि.) पत्थर फेंक कर मारना।

पथरा :: (सं. स्त्री.) छोटा पत्थर।

पथरा :: (कहा.) पथरा का पसीजे - पत्थर क्या पसीजेगा, अत्यंत कठोर चित्त से दया या कंजूस से दान की आशा नहीं की जा सकती।

पथरा :: (कहा.) पथरा कों जोंक नई लगत - इसलिए कि उससे कुछ मिलने की आशा नहीं होती।

पथरा :: (कहा.) पथरा पै नाव चलावो - असंभव या अनहोना कार्य करना।

पथरा :: (कहा.) पथरा से मूँड़ मारबो - असंभव कार्य को करने का प्रयत्न करना।

पथरी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का पत्थर जिससे चकमक द्वारा आग निकाली जाती है, एक प्रकार का उदरस्थ रोग, शरीर के आंतरिक अंग यकृत, गुर्दा आदि में जम गया कैल्सियम।

पथरौटा :: (सं. पु.) पत्थर का बड़े आकार का कटोरा।

पथरौटिया :: (सं. स्त्री.) पत्थर की छोटी कटोरी।

पथरौंड़ :: (सं. पु.) कंडा पाथने का स्थान।

पथरौंड़ा :: (सं. पु.) पथरौंड़ी, पथरीला स्थान।

पथवो :: (अ. क्रि.) गढ़ना, ठोक पीटकर सुड़ौल बनाना, साँचे में दबाकर टिकिया आदि बनाना।

पथारी :: (सं. स्त्री.) वह लकड़ी जो जुइया में भीतरी तरफ छेदों में लगी रहती है।

पथावो :: (सं. पु.) परिवार या शासन में प्राप्त स्थिति, मरणोपरान्त प्रेत कर्म त्रयोदशी में दिये जाने वाले पात्र।

पदक :: (सं. पु.) किसी देवता के पद चिन्ह, प्रतिष्ठा, तमगा।

पदबी :: (सं. स्त्री.) पदवी, श्रेष्ठ कार्य करने के उपलक्ष्य में शासन, संस्था या समाज द्वारा दी जाने वाली उपाधि।

पदबौ :: (क्रि.) एक पैर से उछल कर चलना, व्यर्थ की भाग दौड़ करना, खेल में दूसरे पक्ष को खिलाना, ऐसी भागदौड़ जिसके फलस्वरूप कोई उपलब्धि न हो, जैसे क्रिकेट में फील्डिंग करना।

पदम :: (सं. पु.) हाथों पैरों की उंगलियों में पद्य के चिन्ह, सौ की संख्या, कमल का फूल या पौधा, नील विष्णु का एक आयुध।

पदा :: (वि.) पादने की आदत वाला, जिसकी अपानवायु अधिक निष्कसित होती हो।

पदानोन :: (सं. पु.) काला नमक।

पदाबो :: (क्रि.) खेल में दौड़ाना।

पदारथ :: (सं. पु.) श्रेष्ठ वस्तु, उत्तम खाद्य सामग्री।

पदारपन :: (सं. पु.) पदार्पण, आगमन, (उच्चअर्थो में)।

पदास :: (सं. स्त्री.) अपानवायु निष्कासन की इच्छा।

पदासो :: (वि.) जिसे पदास लगी हो।

पदीलबो :: (सं. पु.) चाँटा, मारना।

पदू :: (वि.) पादने की आदत वाली।

पदू :: (स्त्री.) गाली।

पदू :: (मुहा.) जनम की पदू चनन खाँ हात पसारै, बिना आवश्यकता वस्तु संग्रह।

पदौ :: (सं. पु.) रटने के लिए दिया गया सबक।

पद्द :: (क्रि. वि.) ओंधा, मुँह के बल, ब्याज, भाड़ा बराबर की शर्त पर मकान या भूमि गिरवी रखना।

पद्दी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की स्लेट जिस पर घुली हुई खड़िया और कलम से लिखा जाता है, तालाब की सीढ़ी, कपड़े या कागज का कम चौड़ा और लंबा टुकड़ा, कोई सीख, अधिकांश हीन अर्थ में प्रयुक्त, (पोल पट्टी) रहस्य खोलना।

पद्दे :: (सं. पु.) दे. पटौ।

पद्देस :: (सं. पु.) परदेश (भदावरी बुन्देली)।

पधरबो :: (अ. क्रि.) पधारना, आना।

पधराबो :: (सं. क्रि.) आदर के साथ लिवा जाना, स्थापित करना।

पधारबौ :: (क्रि.) आगमन (उच्चअर्थो में प्रयुक्त)।

पन :: (उप.) पानी का अर्थ बोधक उपसर्ग।

पन :: प्रत्यय, भाव, अवस्था तथा पाँच का अर्थद्योतक।

पनइँयाँ :: (सं. पु.) पैर के जूते।

पनइँयाँ :: (कहा.) पनइयन साँप मारबो - किसी संकट या दुष्ट से छुटकारा पाने के लिए अपर्याप्त साधन से काम लेना, घाव पर बाँधने का पानी से तर कपड़ा।

पनगरौ :: (वि.) जिसमें पानी के प्रबल स्त्रोत हों, अधिक पानी देने वाला कुँआ।

पनघट :: (सं. पु.) पानी भरने का घाट।

पनघटो :: (सं. पु.) अपमान, कुओं का पाट।

पनघोरा :: (सं. पु.) वह खाद्य पदार्थ जिसमें पानी की मात्रा अधिक हो गई हो जिसे पिया जा सके।

पनचक्की :: (सं. स्त्री.) आटा पीसने का यंत्र, यंत्र चलित चक्की।

पनचर :: (सं. पु.) छिद्र, टयूबों के संदर्भ में।

पनचाई :: (सं. स्त्री.) बाँस की खपच्ची, ऐसी खपच्चयों से टूटी हुई हड्डी को बाँधकर स्थिर किया जाता है।

पनचुआ :: (सं. पु.) छोटे और नये पैदा हुए आमों का बिना तेल का अस्थायी अचार।

पनचोटा :: (सं. पु.) बाँस की पतली पट्टी जिसकी सहायता से कंकड़ फेंककर निशाना लगाया जाता है।

पनछीलो :: (वि.) पनीला, पानी मिला हुआ।

पनटूटा :: (सं. पु.) बरसाती पानी गिरने से या बहने से हुआ कटाव या गड्ढा।

पनडब :: (सं. पु.) पानी में उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की घास।

पनडुब्बा :: (सं. पु.) पानी में डूबने वाला।

पनढर :: (वि.) ढालू जमीन जिस पर से पानी वह जाये।

पनपथूँ :: (वि.) हाथों से थोप-थोप कर बनायी जाने वाली रोटी।

पनपना :: (सं. पु.) अर्थ अज्ञात संभवतः अस्मिता या अस्तित्व बोध।

पनपना :: (मुहा.) पनपना कपबौ-आकस्मिक भय से सिहर उठना।

पनपबौ :: (क्रि.) बढ़ना, प्रगति करना।

पनफत :: (वि.) पानी लगाकर पथी गयी रोटी।

पनबुड़ी :: (सं. स्त्री.) एक जलचर पक्षी।

पनबेला :: (सं. पु.) खेत में पानी देने वाला।

पनमेसुर :: (सं. पु.) परमेश्वर।

पनया :: (वि.) पानी में रहने वाला साँप।

पनयाई :: (सं. पु.) जूते चलना।

पनयाउन :: (सं. स्त्री.) नहर के पानी का कर।

पनयाब :: (क्रि.) जूतों से पीटना, खटाई देख कर या वमन की इच्छा से मुँह में पानी आना, गीले कपड़े से बर्तन साफ करना।

पनयारी :: (सं. स्त्री.) पानी भरने वाली स्त्री।

पनरधर-पनरधरै :: (सं. पु.) रहँट का पनरा रखने के लिए लकड़ी।

पनरा :: (सं. पु.) वह पनाली जिसमें घरियों का पानी गिरता है रहँट का एक भाग।

पनरिया :: (सं. स्त्री.) ठाट के ऊपर पानी का बहाव बनाने के लिए लगायी गयी खपड़ों की पंक्ति।

पनवां :: (सं. पु.) ढोरों को पानी देना।

पनवारौ :: (सं. पु.) पत्तल, भोजन परोसी हुई पत्तल।

पनवास :: (सं. पु.) वन्य जल स्थान।

पनसावा :: (सं. पु.) मसाल, पलीता।

पनसावा :: (मुहा.) पनसाला बड़ाबो-चले जाना।

पनसोता :: (सं. स्त्री.) छोटी पानी धार।

पनहारा :: (सं. पु.) दूसरों के यहाँ पानी भरने वाला नौकर।

पना :: (सं. पु.) जन्मष्ठीमी के पूजन के लिए चित्र जिस पर श्रीकृष्ण से संबंधित कुछ घटनाएँ चित्रित रहती हैं दीपावली पूजन के लिए लक्ष्मी जी का चित्र, (बलवाची प्रयोग) कपड़े का अर्ज, आम को भूनकर शक्कर या गुड़ मिलाकर बनाया गया शर्बत।

पनाबो :: (क्रि.) फैलना, खिंच कर लम्बा होना।

पनारी :: (सं. स्त्री.) रहँट की पनाली जिसमें होकर पानी नीचे तक आता है।

पनारौ :: (सं. पु.) नाली।

पनाह :: (सं. स्त्री.) शरण, आश्रय, डाकुओं को आश्रय।

पनिया :: (सं. स्त्री.) पानी।

पनियाढार :: (सं. पु.) पानी की तरह।

पनिहारिन :: (सं. स्त्री.) पानी वाली, कुए से पानी भरने वाली।

पनी :: (सं. स्त्री.) सफेद चमकीली धातु का पतला पत्तर, अपनी का संक्षिप्त रूप जो ग्राम्य बुन्देली में चलता है (सर्व.)।

पनीलौ :: (वि.) शर्बत आदि पेय में पानी की अधिकता या फलों में कम मिठास के कारण पानी जैसा स्वाद।

पनेठी :: (सं. स्त्री.) लाठी।

पनैयाँ :: (सं. स्त्री.) जूता, पनही।

पनों :: (सं. पु.) कच्चे आम को भूनकर बनाया जाने वाला या इमली का शर्बत, अपना का संक्षिप्त ग्राम्य रूप (विशेषण.)।

पनौछा :: (सं. पु.) मूँग की दाल के बड़े के टुकड़े जो कढ़ी में डाले जाते हैं।

पन्तिन :: (सं. स्त्री.) पनातिन, प्रपौत्री, पुत्र के पुत्र की लड़की।

पन्ती :: (सं. पु.) पनती, प्रपौत्र, पुत्र के पुत्र का पुत्र।

पन्थ :: (सं. पु.) ठिकाना।

पन्थ :: (प्र.) अबै कउँ पन्थ नई परौ।

पन्थोला :: (सं. पु.) नोंरता के खेल में गौर की मूर्ति के साथ पूजन के लिए मिट्टी का शिवलिंग।

पन्द्रइया :: (सं. स्त्री.) पन्द्रह दिन की इकाई, पखवाड़।

पन्द्रा :: (वि.) पन्द्रह, दिस और पाँच के योग की संख्या।

पन्ना :: (सं. पु.) हरे रंग का एक रत्न, कापी या पुस्तक का पृष्ठ, पत्तरा।

पन्नास :: (सं. स्त्री.) प्रणाम, बड़े लोगों के लिए आदर सूचक अभिवादन।

पन्नों :: (सं. पु.) व्रत में एक बार किया जाने वाला भोजन, उपवास के दूसरे दिन का भोजन।

पंप :: (सं. पु.) पानी खींचने का यंत्र, हवा भरने का यंत्र।

पपटयाबौ :: (क्रि.) ऊपर से सूखना, खुश्की की कारण ऊपरी पतली पर्त जो रखड़ गयी हो।

पपटा :: (सं. पु.) पलस्तर का उखड़ा हुआ बड़ा टुकड़ा।

पपटी :: (सं. स्त्री.) रोटी की पतली पर्त, पीपट, कोई भी ऊपर पतली पर्त जो उखड़ गयी हो।

पपरयाबो :: (अ. क्रि.) पपड़ी, पड़ना।

पपरिया :: (सं. स्त्री.) बेसन की पतली कुरकुरी पूड़ी।

पपरौटा :: (सं. पु.) पापड़ बनाने के लिए गुँथा हुआ आटा या बिना गूँथा हुआ आटा।

पपीआ :: (सं. पु.) एक पक्षी, पपीहा।

पपीआ :: (सं. पु.) एरंड, चिर्मिट, पपैया।

पपीरा :: (सं. पु.) पपीहा पक्षी, ऐसा लोक विश्वास है इसकी गर्दन में छेद होता है जिसके कारण वह स्वाति जल के अतिरिक्त पानी नहीं पी पाता है इसी विश्वास के आधार पर सूरदास ने उसे ग्रीवारंध कहा है, बजाने की सीटी।

पपोलबौ :: (क्रि.) दन्तहीन मुख को चबाने जैसी क्रिया करना, मीठी मीठी बातें करके तथा हर बात में प्रशंसात्मक रूख दिखाकर चापलूसी करना।

पपौरा :: (सं. पु.) टीकमगढ़ जिले में स्थित प्रसिद्ध जैन तीर्थ जहाँ लगभग अस्सी मन्दिरों का संकुल है।

पप्पा :: (सं. पु.) पानी (बच्चों की बोली में)।

पबई :: (सं. स्त्री.) एक पक्षी।

पबनेरी-पबनारी :: (सं. स्त्री.) त्यौहारों पर शाम को प्रसाद या पकवान लेने आने वाली कमीन (कमानेवाली-नाई, ढीमर, धोबन, बसोरन, मेहतरानी आदि) स्त्री।

पबरबो :: (सं. पु.) बलात् किसी वस्तु को देना, अनिच्छा से हटाना।

पबाई :: (सं. पु.) कई लड़ियों वाली जंजीर, आभूषण।

पबाबो :: (क्रि.) रोटी बनाना।

पँबार :: (सं. पु.) परमार, एक प्रकार का पौधा।

पबारबौ :: (क्रि.) प्रबारना, अनिच्छापूर्वक किसी काम को टालू ढंग से करना, तंग आकर या विवश होकर किसी वस्तु को अनिच्छापूर्वक देना।

पबारौ :: (सं. पु.) अनिच्छा पूर्वक बुरे ढंग से किया गया कार्य।

पबारौ :: (मुहा.) भारे कौ पबारौ।

पबिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का पात्र।

पबेदौ :: (सं. पु.) डेढ दो हाथ लम्बा लकड़ी का टुकड़ा जो पेड़ से फल गिराने के काम लाया जाये।

पबोदो :: (सं. पु.) एक प्रकार की भाजी जो पान की बाड़ी में होती है।

पब्बी :: (सं. स्त्री.) आवारा फिरने वाला।

पमार :: (सं. पु.) परमार, तीन कुरी (पमार धँदेरे और बुन्देला) के क्षत्रियों में से एक उपवर्ग।

पँमार :: (सं. पु.) पमार (राजपूतों का एक भेद) एक प्रकार का पौधा जिसकी फली दाद रोग के उपयोग में लायी जाती है।

पमारो :: (सं. पु.) एक प्रकार की लोक रागनी, एक प्रकार का लोकगीत।

पम्प :: (सं. पु.) जलाशय से पानी खींचने का यंत्र, तेल खींचने का यंत्र, हवा भरने का यंत्र।

पया :: (सं. पु.) एक माप, उस माप का पात्र।

पयादे :: (सं. पु.) पैदल चले पयादे देखन मुनि कौ।

पयाँर :: (सं. पु.) कोदों की घास।

पयोसी :: (सं. स्त्री.) तेली, गाय, भैंस, बकरी की।

पर :: (वि.) उप अगला, पिछला, पराया आदि का अर्थद्योतक उपसर्ग दूसरा भिन्न दर। उदाहरण-परसाल पिछले या अगले साल, परदेसी दूसरे देश का प्रवासी।

पर :: (कहा.) पर घर कूँदे मूसरचंद - बिना बुलाये किसी के यहाँ जाना या किसी के काम में हस्तक्षेप करना मूर्खता है।

परइया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का तश्तरी नुमा बर्तन, लेटने वाला चौकीदार।

परई :: (सं. स्त्री.) दिए के आकार का मिट्टी का बर्तन।

परओ :: (सं. पु.) चरस का पानी, आग का तिलगा।

परकम्पा-परकम्मा :: (सं. स्त्री.) परिक्रमा करने की क्रिया, परिक्रमा का मार्ग।

परकार-परकाल :: (सं. पु.) एक यंत्र जो गोलाई बनाने के काम आता है।

परकास :: (सं. पु.) प्रकाश।

परख :: (सं. स्त्री.) जाँच करने की क्रिया, परीक्षण।

परखइया :: (सं. पु.) परीक्षण करने वाला, देखभाल करने वाला।

परखबौ :: (क्रि.) जाँच करना।

परखी :: (सं. स्त्री.) बोरों में से जाँच करने के लिए अनाज निकालने की लोहे की नोंकदार पनाली।

परखैया :: (सं. पु.) परखने वाला, वह जिसमें परखने की शक्ति है।

परगट :: (सं. पु.) प्रगट होने की क्रिया।

परचना :: (क्रि.) सुलगना।

परचबौ :: (क्रि.) आग का सुलगना, परिचित होना।

परचा :: (सं. पु.) डॉक्टर के द्वारा लिखी गयी दवाओं का कागज, इश्तिहार, परीक्षा का प्रश्न-पत्र।

परचाबौ :: (क्रि.) आग सुलगना।

परचारी :: (सं. पु.) पुजारी का सहायक जो पूजा का प्रबंध करता है।

परचून :: (सं. पु.) आटा चावल आदि भोजन की सामग्री।

परचूनी :: (सं. स्त्री.) आटे, दाल आदि खाद्य वस्तुओं की दुकान, केवल दुकान के संदर्भ में ही इसका प्रयोग होता है।

परचै :: (सं. पु.) परिचय, सम्पर्क, पारस्परिक जानकारी।

परचौ :: (पु. सं.) आहार के लिए आवश्यक सामग्री, सौदा सामान।

परचौ :: (मुहा.) देवी काटें अपने दिन पण्डा कय मोय परचौ दैं।

परछटी :: (सं. स्त्री.) छोटी और पतली दीवाल।

परछा :: (सं. पु.) मिट्टी का घड़ा।

परछाई :: (सं. स्त्री.) प्रतिच्छाया-परछाई से डरबो-मामूली बात से भी डरना, बहुत अधिक डरना।

परछिया :: (सं. स्त्री.) घड़े से बड़ा मिट्टी का पात्र, मटकी।

परजबौ :: (क्रि.) पैदा करना।

परजात :: (सं. स्त्री.) अपने से भिन्न जाति।

परजापत :: (सं. पु.) प्रजापति, कुम्हार के लिए आदरवाची सम्बोधन।

परजै :: (सं. पु.) लुघरयाउ, बन्दूक में लगने वाली एक प्रकार की पीतल की पटरी।

परजौट :: (सं. पु.) कर, महसूल।

परत :: (सं. स्त्री.) पर्त, किसी सतह पर अन्य वस्तु धूल मैल आदि की सतह।

परतच्छ :: (क्रि. वि.) प्रत्यक्ष, आखों के सामने।

परतन :: (क्रि.) लेटते ही।

परतर :: (सं. स्त्री.) दे. पत्तर।

परता :: (सं. पु.) व्यापारिक लाभ।

परताप :: (सं. पु.) तेज, महिमा, प्रताप, वीरता की धाक।

परतारबो :: (क्रि.) किसी विशेष समाई के बर्तन लीटर आदि के नाम कर दूसरे सामान्य बर्तन के समतुल्य करना।

परतिज्ञा :: (सं. स्त्री.) प्रतिज्ञा, दृढ़ निश्चय, दृढ़ संकल्प।

परतिष्ठा :: (सं. स्त्री.) देवमूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा का कर्मकाण्ड।

परती :: (वि.) बिना जुती जमीन जिसमें खेती न होती हो।

परतीत :: (सं. स्त्री.) विश्वास।

परथन :: (सं. पु.) पलेथन, रोटी बनाते समय रोटी को उर्सा बेलन से चिपकने से बचाने के लिए लगाया जाने वाला सूखा, आटा।

परथनयाउ :: (सं. स्त्री.) परथन लगाकर बनाई गयी रोटी।

परथनिया :: (सं. स्त्री.) विवाह मण्डप में अग्नि रखने का पात्र।

परदनियाँ :: (वि.) परदनी।

परदनियाँ :: (सं. स्त्री.) मर्दानी धोती।

परदा :: (सं. पु.) स्त्रियों का गैर मर्दो और अपने से बड़े मर्दो के सामने मुँह पर घूँघट डालने की प्रथा, दरवाजे पर ओट के लिए पड़ा हुआ कपड़ा।

परदान :: (सं. पु.) प्रधान, प्रायः कायस्थों के लिए प्रयुक्त शब्द।

परदारन :: (सं. स्त्री.) पर्दे में रहने वाली स्त्री में।

परदारन :: (वि.) रूप में प्रयुक्त।

परदिया :: (सं. स्त्री.) पर्दे के लिए बनायी गयी दीवार।

परदेस :: (सं. पु.) अपने नगर ग्राम से दूर का प्रदेश जहाँ के लोगों की भाषा आदि में अन्तर हो।

परदेस :: (कहा.) परदेस कलेस नरेसन कों - घर से बाहर निकलने पर राजाओं को भी कष्ट होता है।

परदेसी :: (वि.) अपने गाँव में दूरस्थ से आने वाला।

परदोष :: (सं. पु.) शिवजी का व्रत जो त्रयोदशी को पड़ता है, संध्या को शिव पूजा की जाती है, प्रदोष।

परना :: (सं. पु.) पन्ना नगर का पुराना नाम।

परना :: दे. पन्ना।

परनाना :: (सं. पु.) माता के पिता के पिता।

परनाम :: (सं. पु.) नमस्कार।

परनै :: (क्रि.) लेवना, पड़ना।

परपक्क :: (वि.) परिपक्व, पूर्णतः प्रवीण, पका हुआ।

परपंच :: (सं. पु.) प्रपंच, झमेला, धोखा देने के लिए यहाँ वहाँ की जोड़-तोड़।

परपराटो :: (सं. पु.) आतंक किसी का ऐसा भय जिससे सामान्य लोगों का मस्तिष्क आक्रान्त रहे।

परपाटी :: (सं. स्त्री.) परिपाटी, चलन, रूढ़ि।

परब :: (सं. पु.) चर्सा, कुँए से पानी निकालने का चमड़े का बड़ा पात्र जिसे बैल खींचते हैं।

परबत :: (सं. पु.) पहाड़, ऊँची पर्वत श्रृंखलाएँ (प्रायः लोक गीत. में प्रयुक्त)।

परबतिया :: (वि.) चने की एक किस्म जिसका दाना छोटा और सफेद होता है।

परबन्द :: (सं. पु.) प्रबन्ध, व्यवस्था, कार्य विशेष की तैयारी।

परबर्तन :: (सं. पु.) बदलाव, स्थानान्तरण।

परबल :: (सं. पु.) शाक के काम आने वाला फल, (परमल सागर जिले में)।

परबस्त :: (सं. पु.) पालन, पोषण।

परबस्ती :: (सं. स्त्री.) मदद।

परबा :: (सं. पु.) पतले तने का एक घास जिसे पशु अधिक पसन्द करते हैं।

परबाई :: (सं. स्त्री.) कुश, गुड्ढा खोदने का लोहे का हथियार।

परबानगी :: (सं. स्त्री.) अनुमति।

परबानों :: (सं. पु.) अनुमति-पत्र, आज्ञा पत्र।

परबायरे :: (सं. पु.) एक ओर, अतिरिक्त।

परबायरे-परबायरौ :: (क्रि. वि.) अलग से, दूर से, हेतु विशेष के लिए, पृथक से सुरक्षित।

परबार :: (सं. पु.) परिवार, जैनियों की एक उपजाति।

परबारी, परबाही :: (सं. स्त्री.) कुश, गुड्ढा खोदने का लिए प्रयुक्त होने वाला लोहे का हथियार, खन्ती।

परबेस :: (सं. पु.) उपलब्धि, प्राप्ति, स्पर्श, प्रवेश।

परबेस :: (मुहा.) इतै तौ गुठली से परवेश नइँयाँ।

परबो :: (क्रि.) लेटना, आराम करना।

परभा :: (सं. स्त्री.) परवाह, फ्रिक।

परभाती :: (सं. स्त्री.) प्रभाती, प्रातः काल गाये जाने वाले ऐसे भजन जिनमें प्रायः प्रभात का वर्णन होता है।

परभो :: (सं. पु.) परवाह।

परमट :: (सं. पु.) निकाल की आज्ञा का आदेश-पत्र।

परमटा :: (सं. पु.) मोटा काला कपड़ा जो थोड़ा चिकना होता है।

परमा :: (सं. स्त्री.) परिका, प्रतिपदा, पखवड़े की पहली तिथी।

परमाच :: (सं. स्त्री.) वर्णमाला, खड़ियाँ, गिनती, पहाड़ों को याद करने के लिए छात्रों द्वारा सामूहिक रूप से दुहराए जाने की क्रिया।

परमात्मा :: (सं. पु.) परमेश्वर, परमपिता।

परमान :: (सं. पु.) प्रमाण।

परमार :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक उपजाति।

परमारथ :: (सं. पु.) परमार्थ, दूसरों के हित में किया गया कार्य, धार्मिक भावना से किया जाने वाला काम।

परमेसर :: (सं. पु.) ईश्वर, ब्रह्मा, शिव, विष्णु, महेश, परमेश्वर, परमात्मा।

परमेसरी :: (सं. स्त्री.) दूर्गा।

परलै :: (सं. स्त्री.) प्रलय, महाजल, प्लावन।

परसद :: (सं. स्त्री.) परिषद, सलाहकारों की मण्डली (व्यंग्य अर्थ.)।

परसन्द :: (सं. स्त्री.) पसन्द, रूचि।

परसन्द :: (कहा.) परसन भई भवानीं, कौरन लागीं खान - भवानी प्रसन्न हुई तौ जूठे टुकड़ों से ही पेट भरने लगीं, मौज में आकर ओछे से ओछा काम भी कर डालना।

परसबौ :: (क्रि.) परिवेषण, परोसना, भोजन या भोजन हेतु पत्तलें प्रस्तुत करना।

परसा :: (सं. पु.) परोसने वाले, परशु, फर्सा।

परसाद :: (सं. पु.) प्रसाद, देवों को अपर्ण किया हुआ नैवेद्य।

परसादी :: (सं. स्त्री.) देव प्रसाद के लिए तैयार किया गया भोजन (अधिकतर साधुओं द्वारा प्रयुक्त)।

परसाबो :: (स. क्रि.) भोज्य वस्तु सामने रखवाना, स्पर्श कराना।

परसाल :: (सं. पु.) पिछली या आगामी वर्ष।

परसूत :: (सं. पु.) प्रसूति, बच्चा जनने तथा उसके बाद की चार-पाँच दिन चलने वाली प्रक्रिया।

परसूत :: (मुहा.) परसूत कौ मूड़ पिराबौ-प्रसूतिकाल में होने वाला सिरसर्द जो प्रायः सदैव बना रहता है, इसे परसूत लगता भी कहा जाता है।

परसोजी :: (सं. पु.) भोंसले, एक मराठा सरदार।

परसोत्तम :: (सं. पु.) पुरूषोत्तम, अधिक मांस, लोंड़ का महीना।

परसोनयाँ :: (वि.) रिसने वाला (पानी) जो स्त्रोतो से नहीं आता है बल्कि पूरी सतह से रिसता है।

परसौ :: (सं. पु.) पंक्ति में बैठ कर भोजन न करने वाले को घर के लिए दिया जाने वाला भोजन।

परस्थान :: (सं. पु.) प्रस्थान, किसी शुभ दिन आवश्यक यात्रा करने के एक दिन पूर्व यात्रा का कुछ रास्ता मे, पड़ने वाले दूसरे घर मे रहने की प्रथा। इस सामान को यात्रा के दिन उठाकर साथ में ले लिया जाता है।

परस्वारथ :: (सं. पु.) दूसरों के हित में किया जाने वाला काम।

परहार :: (सं. पु.) दोष निवारण के लिए किया जाने वाला काम।

पराई :: (वि.) दूसरे की, उदाहरण-पराई उरिया सेबो-दूसरों के सहारे रहना।

पराई :: (कहा.) पराई आसा, मरै उपासा - दूसरों की आशा में रह कर भूखों मरना पड़ता है।

पराई :: (कहा.) पराई पतरी कौ बड़ौ बरा - दूसरे के हिस्से में आयी हुई वस्तु सदैव अच्छी लगती है।

पराई :: (कहा.) पराओ मूँड़ पसेरी सो - किसी दूसरे के दुख-दर्द या पैसे की कोई परवाह न करना।

पराई :: (कहा.) पराये कँदा पै होकें बंदूक घालबो - दूसरों की ओट लेकर काम करना, टट्टी की ओट शिकार।

पराई :: (कहा.) पराये पूतन की आसा - दूसरे के लड़के से सहायता की आशा व्यर्थ है।

पराजा :: (सं. पु.) पिता के पिता का पिता, परदादा।

पराजी :: (सं. स्त्री.) पिता के पिता की माता, परदादी।

पराँट :: (वि.) ऐसे (खेत) जो बहुत बरसों से जुते न हों।

पराँत :: (सं. स्त्री.) ऊँचे ओंठों की बड़ी थाली जो आटा गूँथने के काम आती है।

पराव :: (वि.) दूसरे का, उदाहरण-पराव मूँड़ पसेरी सौ-दूसरे का कार्य करने में बड़ा कष्ट का अनुभव होता है।

परावपन :: (सं. पु.) अलगाव की भावना।

पराविछत :: (सं. पु.) प्रायश्चित, पश्चाताप निवारण हेतु किया जाने वाला काम, पापकर्म से मुक्त होने के लिए किया जाने वाला काम।

परिया :: (सं. स्त्री.) भेली, अर्ध्द गोलाकार जमाया हुआ गुड़।

परी :: (क्रि.) लेटना।

परी :: (कहा.) परी बिछौना फूहर सोवे, राँघो खाये कुत्ता - निक्कमी और आलसी स्त्री के लिए।

परी :: (सं. स्त्री.) काल्पनिक स्त्री जो अत्यन्त सुन्दर और पंखों वाली होती है, गुलमोहर का पेड़।

परी :: (क्रि. वि.) पड़ना।

परी :: (कहा.) परी गरज मन और है, सरी गरज मन और - गरज पड़ने पर आदमी का मन जैसा रहता है वैसा गरज पूरी होने पर नहीं रहता। घी निकालने के लिए एक अंकुशाकार खड़ी चम्मच।

परीच्छा :: (सं. स्त्री.) दे. परिच्छा, पढ़ाई का मूल्यांकन।

परीछित :: (सं. पु.) राजा परीक्षित।

परीत :: (सं. पु.) प्रेत, ऐसी अतृप्त आत्मा जो वायु तत्व में भटक रही हो, भूत-परीत शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

परू :: (सं. स्त्री.) अधिकतर लेटे रहना पसन्द करने वाला, आलसी, ऐसा व्यक्ति जो जहाँ जाये वहाँ का होकर रह जाये, निठल्ला।

परेई :: (सं. स्त्री.) मादा परेवा, कबूतरी।

परेग :: (सं. स्त्री.) छोटी पतली कील जो जूते बनाने के काम आती है।

परेज :: (सं. पु.) परहेज, पथ्य, चिकित्सक द्वारा निर्धारित आहार।

परेजा :: (सं. स्त्री.) प्रज्ञा, रैयत, आश्रितजन, नाई, धोबी, इत्यादि।

परेट :: (सं. स्त्री.) परेड, अनुशासित ढंग से समूह में चलने-मुड़ने आदि की क्रिया।

परेंटी :: (सं. स्त्री.) जानवरों के पैरों से कुचला हुआ गोबर, भूसा आदि का कचरा।

परेत :: (सं. पु.) प्रेत।

परेत :: दे. परीत।

परेथो :: (सं. पु.) हल में लगाने वाली टेढ़ी लकड़ी।

परेंना :: (सं. पु.) लम्बी लाठी जिसके एक सिरे पर कील लगी रहती है। इसे हल बखर में बैलों के पुट्ठे पर चुभों कर हाँका जाता है।

परेबो :: (सं. पु.) तल, उड़ने वाला एक पक्षी, कबूतर, उदाहरण-सूने के ऊपर होंय, जहाँ पलैत परेबा रतियन सौय मेघदूत।

परेबो :: (कहा.) परेवा की सोर - कबूतर अंडे देती रहती है, उसी प्रकार किसी घर में जब निरंतर बच्चे पैदा होते रहते हों, और कोई न कोई स्त्री सोहर में पड़ी रहती हो तब प्रयुक्त।

परेसान :: (वि.) मन की अस्त-व्यस्तता, किंकर्त्तव्यता।

परैना :: (सं. पु.) बैल हांकने की लकड़ी।

परैया :: (सं. पु.) एक सेर का नाप।

परैला :: (सं. पु.) लेट जाने वाला।

परों :: (सर्व.) गत या आने वाला तीसरा दिन।

परोजन :: (सं. पु.) प्रयोजन, मकसद, उद्देश्य।

परोंनी :: (वि.) विमाता का विशेषण, दूसरी (माता) जन्म देने वाली माँ की मृत्यु हो जाने पर पिता के दूसरा विवाह कर लेने पर आने वाली (माता)।

परोरबौ :: (क्रि.) पानी में तैराकर अनाज से कूड़ा-करकट साफ करना अथवा थाली में चावलों को पानी के साथ बहा कर एक तरफ करना ताकि कंकड़ पीछे रह जाये।

परौ :: (सं. पु.) स्फुलिंग, चिनगारी।

परौ देबौ :: तपते-तपते लोहे का लगभग पिघलने की स्थिति में आ जाना।

परौस :: (सं. पु.) पड़ौस, अपने आवास के आस-पास का क्षेत्र।

परौसी :: (सं. पु.) अपने आवास के आस-पास रहने वाले लोग।

पर्ज :: (सं. पु.) एक प्रकार की तलवार।

पर्थन :: (सं. स्त्री.) परोथन, रोटी बनाते समय प्रयोग किया जाने वाला सूखा आटा, पलेथन।

पर्रो :: (सं. पु.) ढोरों का एक रोग।

पर्सबो :: (क्रि.) पाँच सेर की तौल या उसका बाँट।

पल :: (सं. पु.) समय की एक इकाई जो चौबीस सेकिण्ड या ६० पल के बराबर होती है, अत्यन्त थोड़ा समय।

पल :: (कहा.) पल में परलय होय - पल में प्रलय होती है, क्षण भर में न जाने क्या से क्या हो सकता है।

पलई :: (सं. स्त्री.) अनाज भरने का कोठा।

पलउआ पटिया :: (ससं. पु.) रहट में लगने वाली लकड़ी।

पलक :: (सं. स्त्री.) आँख का ढक्कन।

पलक :: (मुहा.) पलकन पै राखबौ-आँखों में रहना, में प्रयुक्त।

पलकबौ :: (क्रि.) पेड़-पौधों के कटे हुए ठूँटों से नयी कोंपले फूटना (निकलना)।

पलका :: (सं. पु.) सजावटी ढंग से बनी हुई चारपाई, पलँग, पर्यंक।

पलकाचार :: (सं. पु.) भाँवर के दूसरे दिन वधु को पलंग पर बैठाकर पाँव पखारते हैं।

पलकिया :: (सं. स्त्री.) छोटा पलँग, हिंडोरे की लटकी हुई खटोली।

पलटखनी :: (क्रि.) खेत को दुबारा जोतना।

पलटन :: (सं. स्त्री.) अँग्रेजी सेना, अँग्रेजी ढंग की सेना, किसी व्यक्ति से सम्बन्धित अनेक लोगों का समूह (व्यंग्य प्रयोग)।

पलटबौ :: (क्रि.) बदल पड़ना, नीचे वाले भाग को ऊपर करना, उलटा करना।

पलटा :: (सं. पु.) उत्तर, पत्रोत्तर, तवे पर रोटी सेकने, पराठा सेकने के लिए लोहे का कौंचा जो रोटी को दोनों तरफ जो रोटी को दोनों तरफ सेकने के लिए अलट पलट करता है। उसे पलटा कहा जाता है।

पलटाबो :: (क्रि.) उलटा करना, फेरना।

पलटी :: (सं. स्त्री.) माल का वाहन या बरदाना बदलने की क्रिया।

पलटो :: (सं. पु.) बदला।

पलथा, पल्था :: (सं. पु.) पालथी मारकर जल में कूदने की एक मुद्रा।

पलना :: (सं. पु.) पालना।

पलपट :: (वि.) बिना दानों की (फलियाँ)।

पलबो :: (सं. पु.) पालन-पोषण होना।

पलवा :: (सं. पु.) तराजू का पलड़ा, ढक्कन, कुँजड़ों की उथली चौड़ी टोकरी।

पलस्तर :: (सं. पु.) पलस्तर सीमेंट, चूना या मिट्टी की छाप।

पला :: (सं. पु.) दे. पलवा।

पलाट :: (सं. पु.) भूखण्ड (अंग्रेजी.)।

पलान :: (सं. पु.) योजना।

पलान :: (मुहा.) टाट-पलान-समाज-सम्मान (अंग्रेजी.)।

पलानी :: (सं. स्त्री.) छप्पर के बड़ैरे के एक तरफ का ढालू भाग।

पलानीदार :: (सं. पु.) ढालू का स्थान, खलयान।

पलाबौ :: (क्रि.) गया-भैंस का अपने बच्चे को देखकर स्तनों में दूध उतारना, दुही जाने के लिए तैयार होना।

पलिया :: (सं. स्त्री.) शीशी या डिबिया के मुँह के बाहर से लगाया जाने वाला ढक्कन, तरपलिया-बैलगाड़ी के चाक और उसको निकलने से रोकने वाली कील के बीच लगाया जाने वाला लकड़ी का बासर।

पलिरायाँ :: (सं. स्त्री.) पसलियों का स्थान, पलरियाँ चलना-निमोनियों में साँस लेने में कठिनाई के कारण पसलियों का उठना-गिरना।

पलीत :: (वि.) प्रेत, गन्दा, अस्वच्छ।

पलीता :: (सं. स्त्री.) मशाल, तोप की तरैया पर आग लगाने का बाँस में बँधा बोंड़ा।

पलूटी :: (सं. स्त्री.) पतली और जल्द सूखने वाली घास।

पले :: (अव्य.) पहले।

पलेंचा :: (सं. पु.) घोड़े की जीन।

पलेट :: (सं. स्त्री.) तश्तरी, रकाबी, पानी पर उठने वाली बड़ी लहर।

पलेटनी :: (सं. स्त्री.) करघा में लगाया जाने वाला एक उपकरण।

पलेटफारम :: (सं. पु. अं.) रेलवे स्टेशन का मैदान या चबूतरा जहाँ रेलगाड़ी आकर खड़ी होती है (यौगिक शब्द.)।

पलेंत :: (वि.) शान के लिए पाले जाने वाले मोटे-ताजे घोड़े और गुण्डे।

पलेथनी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का पराँत जैसा पात्र, इसके दो खण्ड होते हैं और कन्या के विवाह में बनाया जाता है तथा किसी लौकिक आचार में काम आता है।

पलैंचा :: (सं. पु.) घोड़े पर कसने की जीन।

पलैंत :: (सं. पु.) पालतू।

पलैया :: (सं. स्त्री.) दे. पलिया।

पलैर :: (वि.) पालतू।

पलोइया :: (वि.) गहोई वैश्यों का एक वर्ग जो बुन्देलखण्ड एक क्षेत्र विशेष ललितपुर जिले में रहता है।

पलौर :: (सं. पु.) झरबेरी की कोमल डालों और पत्तियों का कटिया कर बनाया गया भैंसों का चारा, पेड़ का पत्तियों वाला भाग।

पल्टन :: (सं. स्त्री.) दे. पलटन।

पल्टा :: (सं. पु.) प्रतिक्रिया स्वरूप किया जाने वाला कार्य, प्रत्युत्तर, उत्तर, पत्रोत्तर।

पल्टा :: दे. पलटा।

पल्टी :: (सं. स्त्री.) एक वाहन या बोरे में से माल को निकाल कर दूसरे में रखने की क्रिया।

पल्टी :: दे. पलटी।

पल्टौ :: (सं. पु.) बदला, प्रतिकार।

पल्था :: (सं. पु.) पालथी मारकर पानी में तैरना।

पल्लाँ :: (सं. पु.) पालना, बच्चों को लिटाकर झुलाने की छोटी रेलिंगदार खटोली।

पल्ली :: (सं. स्त्री.) रजाई जिसमें ऊपर का कपड़ा छींट आदि का रंगीन और डिजाइनदार होता है।

पल्लू :: (सं. स्त्री.) छोर।

पल्लें :: (वि.) पास में, दूर।

पल्लो :: (सं. पु.) अनाज की गौर।

पल्लौ :: (क्रि. वि.) दूर, दूरस्थ।

पल्लौ :: (प्र.) पल्लौ है, पल्लौ पररू पल्लौ जानें, साड़ी का डिजाइनदार छोर जो आँचल की तरह आगे या पीछे लटकता रहता है, वह कपड़ा जिसमें हम्माल, अनाज आदि बाँधकर ढोते हैं, बास्ता, मुकाबला।

पवनई :: (सं. स्त्री.) त्योहार या पावन पर मिष्ठान्न देना।

पवारी :: (सं. स्त्री.) बुन्देली की एक उपबोली जो मध्यप्रदेश के दतिया जिले के कुछ भाग तथा शिवपुरी और गुना जिले में बोली जाती है।

पसइ :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का जंगली घास।

पसंगा :: (सं. पु.) तराजू को संतुलित करने तथा उसकी डण्डी को क्षैतिज रखने के लिए एक तरफ बाँधा जाने वाला वजन।

पसजिउ :: (सं. पु.) ऐसे प्राणी जो बोल न सकते हों पशुजीव।

पसताबौ :: (क्रि.) पश्चात्ताप करना, अपने किये पर दुःखी होना।

पसताव :: (सं. पु.) पश्चात्ताप, पछतावा।

पसतूसरिया :: (सं. स्त्री.) जरी की ओढ़नी।

पसन्द :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति सद्भाव आकर्षण या शुभ कामनापूर्ण आकर्षण, खाने-पहिनने, देखने या अन्य किसी प्रकार बर्ताव में लाने में अच्छा लगने का भाव।

पसम :: (सं. पु.) रोम, कोमल बाल, गुप्तस्थान में बाल।

पसमीना :: (सं. पु.) भेड़ के बच्चों की ऊन से बनाया गया वस्त्र।

पसर :: (सं. पु.) विस्तार, प्रसार, फैलाव, रात के समय पशुओं को चराने का काम, आक्रमण, चढ़ाई।

पसरट :: (सं. पु.) किराना का सामान।

पसरपबारे :: (सं. पु.) रात्रि में भैंस चराने वाले, उदाहरण-पसरन वारे आये पसर से, हरवारे गए हार खों (लोक गीत.)।

पसरबौ :: (अ. क्रि.) फैलना, आगे बढ़ना हाथ फैलाकर सोना, विस्तार हो जाना, चौड़ा होना।

पसराई :: (सं. स्त्री.) अठभैया जागीर की एक छोटी जागीर जो सन् १८४८।

पसराई :: (वि.) में स्वतंत्र जागीर बनी थी इसके पूर्व यह बड़ागाँव के अंतर्गत थी।

पसरी :: (सं. स्त्री.) पसली।

पसरेंड़ौ :: (सं. पु.) शरीर का वह भाग जिसमें पसलियाँ अवस्थित रहती है।

पसाई :: (सं. स्त्री.) धान की किस्म जो घास की तरह अपने आप पैदा होती है।

पसाबौ :: (क्रि.) उबले हुए चावलों में से अतिरिक्त जल को निकालना।

पसार :: (सं. पु.) फैलाव।

पसारबौ :: (क्रि.) विस्तार करना, फैलाना, पर्तें खोलना।

पंसारिन :: (सं. स्त्री.) पान बेचने वाली।

पसारी :: (सं. पु.) नमक मसाले आदि बेचने वाला बनिया।

पंसारी :: (सं. पु.) हल्दी, मिर्च आदि मसाले या औषधियाँ बेचने वाला, बनिया या दुकानदार, बेचने वाला।

पसारो :: (सं. पु.) प्रसार, फैलाव, विस्तार।

पसारौ :: (सं. पु.) फैलाव, आडम्बर, किसी योजना का क्रियात्मक विस्तार।

पसी :: (सं. स्त्री.) पसीना, सारे शरीर में एक साथ आने वाला हल्का पसीना।

पसी :: (मुहा.) पसी निचोय कौ पइसा-मेहनत का पैसा।

पसीजबौ :: (क्रि.) पूरे शरीर में हलका पसीना आना, मिट्टी के बर्तन में से पानी का इतना कम झिरना कि उसका बाहरी भाग गीला मात्र दिखे, नमक या अन्य क्षारीय पदार्थ का वायु मण्डल में से नमी ग्रहण करना, द्रवित होना।

पसीजबौ :: (मुहा.) हियौ पसीजबौ-हृदय द्रवित होना।

पसींजर :: (सं. स्त्री.) वह रेलगाड़ी जो हर स्टेशन पर रूकती है (अंग्रेजी.)।

पसीना :: (सं. पु.) श्रमजल, परिश्रम या गर्मी के कारण रोम कूपों से निकलने वाला शरीर का अन्तर्जल।

पसीना :: (कहा.) पसीना निचोय कौ पइसा - परिश्रम की कमाई।

पंसुइयाँ :: (सं. स्त्री.) पसली।

पसुरिया :: (सं. स्त्री.) पसली, शरीर के वक्ष भाग की पतली हड्डी।

पसूपेस :: (सं. पु.) पशोपेश, भोजन कराना।

पसेउ :: (सं. पु.) प्रस्वेद, पसीना।

पसेनियाँ :: (सं. स्त्री.) भात पसाने की बाँस आदि की वस्तु।

पसेरी :: (सं. स्त्री.) पाँच सै की तौल की बाँट।

पसेरी :: (कहा.) पसेरी उठे ना, ब्याई कों मूँड़ मारें - पसेरी तो उठती नहीं, फिर भी तौलाई को ठेका लेना चाहते हैं, काम की सामर्थ्य न होने पर भी उसके लिए हठ करना।

पसेरी :: (कहा.) पसेरी भर कौ मूँड़ तौ हलाउत, पइसा भर की जीव नई हला पाउत - जब कोई आदमी, विशेषकर कोई छोटा लड़का, किसी बात के उत्तर में केवल अपना सिर हिला देता है और स्पष्ट से हाँ या ना कुछ नहीं कहता तब कहते हैं।

पँसेरी :: (सं. स्त्री.) पंसेरी, पांच सेर का एक तौल।

पसेरीक :: (वि.) लगभग एक पसेरी।

पसैना, पसैनिया, पसौनियाँ :: (सं. स्त्री.) भात पसाने की तबे के आकार की एक प्रकार की टोकनी।

पसैना, पसैनिया, पसौनियाँ :: (वि.) पूरी सतह से धीरे-धीरे रिसने वाला पानी जो किसी खास झिर से आता हो बल्कि रिसाव से इकट्ठा होता हो।

पस्त :: (वि.) परास्त, हार माना हुआ, किंकर्त्तव्यता की स्थिति को प्राप्त, थका हुआ।

पस्ताव :: (सं. पु.) दे. पसताव।

पहरिया :: (सं. स्त्री.) पहाड़ी।

पहरूआ :: (सं. पु.) पहरेदार।

पहलऊँ :: (वि.) पहले ही।

पहलैं :: (अव्य.) पहले।

पहाड़िया :: (सं. पु.) पहाड़ सम्बन्धी वस्तु, पहाड़ पर होने या रहने वाला व्यक्ति, छोटा पहाड़।

पहाड़ौ :: (सं. पु.) संख्याओं का दो से दस तक गुणनक्रम।

पहार :: (सं. पु.) पहाड़, पर्वत।

पहेलबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक भेजना, किसी को समझा-बुझाकर भेजना या किसी स्थान विशेष से हटाना।

पहौली :: (सं. स्त्री.) अनाज नापने का सबसे छोटा पात्र जिसमें लगभग आधा पाव अनाज आता है।

पा :: (उप.) पाँव का अर्थद्योतक उपसर्ग, जैसे-पालागन, पाजेब। इसमें कभी-कभी अनुनासिकता का आगम हो जाता है जैसे पायतन-पैरों की तरफ।

पाई :: (सं. स्त्री.) पुराने रूपये का १/१९२ भाग।

पाई पुरिया :: (सं. पु.) बातें बनाना।

पाई पुरिया :: (कहा.) पाई-पुरिया सो पूरत फिरत - किसी एक स्थान पर बार-बार इधर से उधर निकलने और काम में अड़चन डालने वाले ऊधमी लड़के के लिए प्रयुक्त।

पाउने :: (सं. पु.) पाहुना, मेहमान।

पाओ :: (सं. पु.) मेज-कुर्सी, तख्त आदि निर्जीव वस्तु का पैर, वट-वृक्ष की हवाई जड़ जो शाखाओं से लटक कर भूमि पर जम जाती है तथा सहायक तने का रूप लेती है।

पाकर :: (सं. पु.) प्राप्त करना। पीपल की तरह का एक बड़ा वृक्ष।

पाख :: (सं. पु.) पक्ष, चन्द्रमाँस का अँधेरा और उजेला पक्ष, पन्द्रह दिन की इकाई, पखवारा।

पाँख :: (सं. पु.) पंख, उदाहरण-पाँख परेबा-बात का बतंगड़ बनाना, उदाहरण-गंगाधर ब्रज की ब्रजनारी पाँख परेबा करती (फाग), उदाहरण-पाँख बोलबो-वर्षा के पूर्व वायु में होने वाला शब्द।

पाँख :: (कहा.) पाँख कौ परेबा करबौ - बात का बतंगड़ बनाना।

पाखट :: (वि.) मजबूत।

पाखण्ड :: (सं. पु.) आडम्बर, कृत्रिम व्यवहार।

पाखर :: (सं. पु.) पीपल से मिलता-जुलता एक वृक्ष इसमें वट वृक्ष के समान हवाई जड़ें निकलती हैं, इसकी लकड़ी पवित्र मानी जाती है और अष्ट समिंधाओं में से एक यह भी होती है।

पाखरी :: (सं. स्त्री.) टाटा की बनी एक बड़ी थैली।

पाखान :: (सं. पु.) पाषाण, पत्थर, पत्थरखा।

पाँखी :: (सं. पु.) तालाब या बाँध में से अतिरिक्त पानी निकलने का स्थान।

पाखुरी :: (सं. स्त्री.) पंखड़ी, पुँखुड़ी।

पाखौ :: (सं. पु.) कमरे की चौड़ाई वाली दीवार, खपरैल छप्पर वाले कमरे में पंचकोण होती है।

पाग :: (सं. स्त्री.) पगड़ी, साफा, मिसरी के साथ दवाओं को पकाकर बनने वाले लड्डू, गुड़ या शक्कर की चाशनी, मान।

पाग :: (कहा.) पगड़ी, साफा, मिसरी के साथ दवाओं को पकाकर बनने पान खाने और पाग राखने मान्यता का प्रतीक।

पागबौ :: (क्रि.) चिरौंजी, मूँगफली, इलायची के दाने-खुर्मी आदि शक्कर की चासनी-चढ़ा पकवान।

पाँगुर :: (सं. पु.) लूले।

पाँच :: (वि.) दो और तीन के योग की संख्या।

पाँचऊ :: (वि.) पाँचों।

पाँचऊ :: (कहा.) पाँचऊ उँगरियाँ एक सी नई होतीं - सब मनुष्य समान नहीं होते।

पाँचऊ :: (कहा.) पाँचऊ घी में - पाँचों उँगली घी में, जिसके खूब छक्के-पंजे उड़ रहे हों उसके लिए।

पाँचऊ :: (कहा.) पाँचें मित्र, पचासे ठाकुर, सौ मे सगो, उर एकें चाकर - पाँच रुपये में मित्र पचास रुपये में जमीदार, सौ में दामाद और एक रुपये में नौकर संतुष्ट हो जाता है।

पाचक :: (वि.) पाचन क्रिया को तेज करने वाला।

पाँचक :: (वि.) पाँच के लगभग।

पाचन :: (सं. पु.) पाचन क्रिया को ठीक करने वाला चूर्ण।

पाँचे :: (सं. स्त्री.) पंचमी, महीन या पखवाड़े की पाँचवीं तिथी।

पाछलौं :: (वि.) पिछला।

पाछलौं :: (कहा.) पाछलो रोटी खायें पाछली बुद्ध होत - तवे पर जो सबसे अंत में रोटी सिंकती है वह बच्चों को खाने को नहीं दी जाती, लोक-विश्वास है कि उसके खाने से बुद्धि मंद होती है।

पाछूँ :: (क्रि. वि.) पीछे।

पाछें :: (क्रि. वि.) पीछे, बाद में।

पाँजर :: (सं. पु.) बगल और कटि के बीच पसलियों वाला भाग, हड्डियों का ढाँचा।

पाजी :: (वि.) बदमाश, शरारती, दूसरों का मजाक उड़ाने वाला, एक गाली।

पाट :: (सं. पु.) रेशम, नदी की चौड़ाई, कुँए के किनारे, कुँएकी थोड़ी-सी गोलाई को ढँककर रखा जाने वाला पत्थर या लकड़ी जिस पर रस्सा खिसकाकर पानी खींचा जा सके, चक्की के ऊपर-नीचे के पत्थर, कच्चा बिना बटा सूत।

पाट महादे :: (सं. पु.) बीर, बहूटी, एक कीड़ा जो लाल रंग का और मखमल जैसा होता है।

पाटबौ :: (क्रि.) पटिया डाल कर बन्द करना, ढँकना।

पाटा :: (सं. पु.) खेत से ढेले तोड़ने के लिए लकड़ी का बना एक उपकरण।

पाटी :: (सं. स्त्री.) लिखने के लिए लकड़ी की तख्ती, खटिया के चौखटे की बगल वाली लम्बी लकड़ी।

पाटे बजुल्ला :: (सं. पु.) सोने के पत्तर को ठथा में ठोक कर बनाया गया एक आभूषण।

पाटो दैबो :: (सं. पु.) खेतादि में पटेला देना।

पाटौ :: (सं. पु.) विशेष विधान से की जाने वाली नवदूर्गा की पूजा, यह पूजा पाटौ भरबौ कहलाती है।

पाठ :: (सं. पु.) वाचन की क्रिया, धर्म-ग्रन्थों का संकल्पित या नैमित्तिक पारायण, पढ़ाया गया अंश, एक विषय पर लिखा गया अंश, नाटक में किसी पात्र का अभिनय वचन।

पाठक :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का आस्पद, पढ़ने वाला।

पाठिया, पठुलिया, पठोला :: (सं. स्त्री.) भरे पूरे देहवाली साँवली सलोनी स्त्री (व्यंग्य प्रयोग), जवान भैंस (विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त), भूमि पर उभरी हुई छोटी प्राकृतिक चट्टान।

पाठौ :: (सं. पु.) भूमि के बाहर निकला हुआ प्राकृतिक और कुछ समतल पत्थर।

पाठौ :: (कहा.) पाठे की जर पाठो जानें, दूर तक फैली हुई चौड़ी चट्टान, जिस आदमी की कठिनाई वही जानता है।

पाँड़ई :: (सं. स्त्री.) हिरन की मादा, एक प्रकार का इत्र।

पाड़त :: (वि.) चतुर, जादूगर।

पाड़ना :: (क्रि.) काना दुआ के खेल में मुट्ठी में हिलाकर पांसे फेकना। ये कौड़ी या इमली के बीज के बने होते है।

पाँडर :: (सं. पु.) एक पेड़ जिसमें एक हाथ लम्बी फलियाँ निकलती है।

पाँडरी :: (सं. स्त्री.) चन्दन का तेल, चन्दन का इत्र।

पाँड़े :: (सं. पु.) अध्यायन करने वाला, शिक्षक।

पाँड़े :: (कहा.) पाँडेजू पछतेयँ, बेई चनन की खेयँ - हार-कर वही काम करना जो पहिले बहुत मनाने पर भी न किया हो।

पाँड़ेन :: (सं. स्त्री.) अध्यापक की स्त्री, पाण्डेय की पत्नी।

पाँत :: (सं. स्त्री.) पंक्ति, भोजन के निमित्त पंक्तिबद्ध बैठे हुए लोग, भोज, पंक्ति, भोजन के निमित पंक्तिबद्ध बैठे हुए लोग, भोज, धातु की पतली पट्टी, रेल की पटरी।

पाँत :: (कहा.) पाँत दुभाँत करबो - किसी समाज में लोगों से अलग-अलग तरह का व्यवहार करना।

पातर :: (सं. स्त्री.) भोजन करने के लिए कई पत्तें-सीकों से जोड़कर बनाया गयी पत्तल, एक बहुपाद जल-जन्तु।

पाताल :: (सं. पु.) एक पौराणिक लोक जो पृथ्वी के नीचे माना जाता है, अतल।

पाताली :: (वि.) पाताल लोक का, बहुत अधिक गहरा, उदाहरण-पाताली कुँआ-अक्षय स्त्रोत वाला गहरा कुँआ।

पाती :: (सं. स्त्री.) पत्र, चिट्टी, लिखित सन्देश, शब्द, युग्म, चिट्ठी-पाती में प्रयुक्त।

पाँते :: (सं. स्त्री.) पैर की उंगलियों में पहनने का गहना।

पातो :: (सं. पु.) पाता, चके का।

पाथबौ :: (क्रि.) हाथों से थोपना, गोबर को कण्डों का आकार देने के लिए हथेलियों से थोपना।

पाथर कछार :: (सं. पु.) बरौंडा कालिजर से दस मील दूर स्थित एक प्राचीन रियासत यहाँ पर राजवंशी राजपूतों का राज्य रहा।

पाद :: (सं. पु.) अपानवायु, गुदा मार्ग से निकलने वाली दूषित वायु।

पादड़ी :: (सं. पु.) गिरजाघर का पुजारी, पादरी।

पादबौ :: (क्रि.) अपानवायु निष्कासन करना।

पादारक :: (सं. पु.) वह जमीन जो नौकरी को माफी में लगाई जाती थी, उदाहरण-पादारक हमकों दियो मथुरा मंडल आय (केशव)।

पान :: (सं. पु.) एक लता जिसके पत्ते सुपारी कत्था आदि के साथ मुख शुद्धि के लिए खाये जाते हैं, इस लता का पत्ता, पान के आकार के ताबीज, एक प्रकार का ताश का पत्ता, जिस पर पान की लाल-लाल आकृतियाँ बनी रहती हैं।

पान :: (कहा.) पान-फल हो रये - सुकुमार व्यक्ति के लिए।

पाँन :: (सं. पु.) नागवल्ली, एक पत्ता जिस पर चूना, कत्था लगाकर तथा सुपाड़ी, लौंग, इलायची डालकर मुख शुद्धि या शौक के लिए खाया जाता है, यह आदर सम्मान का प्रतीक भी है, पूजन के काम भी आता है, खान-पान शब्द युग्म में प्रयुक्त।

पाँन पखरी :: (सं. स्त्री.) पूजा की न्यूनतम सामग्री (यौगिक शब्द.)।

पान पत्ता :: (सं. पु.) मान-सम्मान की सामग्री (यौगिक शब्द.)।

पाँन फूल :: (सं. पु.) पूजा की न्यनतम सामग्री (यौगिक शब्द.)।

पाँनदान :: (सं. पु.) पान तथा उससे संबंधित सामग्री रखने का डिब्बा (यौगिक शब्द.)।

पाननो :: (सं. पु.) व्रत इत्यादि का पारायण।

पानी :: (सं. पु.) जल, नीर, फलों का रस, पानी, आब मान-मर्यादा, उदाहरण-पानी आबो-वर्षा होना, पानी-पानी-बेइज्जती होना, अंडबुद्धि होना, पानी के मोल-बहुत सस्ता, पानी टूटबो-कुँए ताल आदि के पानी का बहुत कम हो जाना, पानी दिखाबो-पशुओं के सामने पीने कि लिए पानी रखना, पानी दैबो-तर्पण करना, सींचना, पानी न माँगबो-तत्काल मर जाना, पानी पड़बो-जल को अभिमंत्रित करना, पानी-पानी होबो-बहुत अधिक लज्जित होना, कहा, पानी उतर गओ-इज्जत आबरू चली गयी।

पानी :: (कहा.) पानी कौ डूबो सूकौ नई कड़त - किसी बुरे काम में पड़ने से उसका कुछ न कुछ परिणाम भोगना ही पड़ता है।

पानी :: (कहा.) पानी धरबो - उत्तेजित करना, उकसाना।

पानी :: (कहा.) पानी पीजे छान कें, गुरू कीजे जान कें - पानी छान कर पीना चाहिए और गुरू देखभाल कर करना चाहिए।

पानी :: (कहा.) पानी पी पी कोसबो - मन ही मन शाप देना।

पानी :: (कहा.) पानी में आग लगाबो - जहाँ झगड़ा संभव न हो वहाँ झगड़ा करा देना, पानी से पतरो का-माँगने पर पानी भी न मिले तब प्रयुक्त।

पाँनी :: (सं. पु.) जल, रस, तरल, इज्जत, आभा, तलवार की धार का पैनापन, पानी धरबौ-लोहे को गरम करके पानी में डुबाकर कड़ा करना, उत्तेजित करना।

पानू :: (सं. पु.) पानी।

पानू :: (मुहा.) पानू को हगो ऊपर उतरात, सत्य छुपाने से छुप नहीं सकता।

पानेंट :: (सं. पु.) कुँए पर बीचों-बीच रखी जाने वाली मोटी लकड़ी जिस पर रहँट की भोंरी चलती हैं, भैंसा।

पाप :: (सं. पु.) धर्म और नीति के विरूद्ध आचरण, उदाहरण-पाप कटबो-प्रायश्चित आदि से पाप का अन्त होना, बाँध आदि दूर होना, पाप फल।

पाप :: (वि.) बुरे परिणाम वाला, पाप लगबो-पाप का भागी होना।

पाप :: (कहा.) पाप-पुन्न कौ कोऊ भागी नई होत - पाप-पुण्य का फल अपने ही को मिलता है।

पापर :: (सं. पु.) उड़द या मूँग की दाल के आटे से बनायी जाने वाली पतली पपड़िया जो आग पर भूनकर या तलकर खायी जाती है।

पापिन :: (सं. स्त्री. वि.) पाप कर्म करने वाली, कपटी।

पापी :: (वि.) धर्म और नीति के विरूद्ध आचरण करने वाला।

पापी :: (कहा.) पापी कौ धन अकारथ जाय - बुरी कमाई व्यर्थ जाती है।

पापी :: (कहा.) पापी पेट सब कराउत - पेट के लिए सब करना पड़ता है।

पाबन :: (सं. पु.) पवित्र दिन, त्यौहार के दिन नाई, ढीमर, धोबी, मेहतर, बसोर को दिया जाने वाला पकवान जो बन्धान के रूप में दिया जाता है। उदाहरण-पाबन उगाबो-त्यौहार के दिन कुम्हार, जमादार इत्यादि जाति के लोगों को किसानों के यहाँ से पकवान लाना। पाबन गये भसावन-उपयुक्त समय निकल जाने के बाद किया गया कार्य व्यर्थ है।

पाबौ :: (क्रि.) प्राप्त करना, ऊँचाई पर पहुँच में आना।

पाम :: (सं. स्त्री.) तिली के पौधे पक जाने पर उनसे झड़ी पत्तियों का सामूहिक नाम।

पामरी :: (सं. स्त्री.) दुपट्टा, उपरना, उत्तरीय।

पाँयचौ :: (सं. पु.) पायजामा या पतलून का एक पैर के ढकने वाला भाग।

पायजेब :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के पैर का एक आभूषण।

पाँयतन :: (सं. पु.) पाँयतौ, बिस्तर का वह भाग जहाँ लेटते समय पैर रहते हैं।

पाँयतो :: (सं. पु.) खाट या बिस्तर जहाँ पर पैर रहते हैं।

पायल :: (सं. स्त्री.) पैरों में पहना जाने वाला आभूषण, नूपुर।

पायली :: (सं. स्त्री.) अनाज नापने की पाई।

पार :: (सं. पु.) पहार, तालाब, नदी या कुँए का किनारा, जुँए का वह भाग जो जोतते समय बैलों की गर्दन पर रखा जाता है। गाड़ी के दोनों चकों में फँसी आड़ी लकड़ी, उदाहरण-पार पाबो-किसी वस्तु के अन्त तक पहुँचना, पार लगबो-किनारे पहुँचना, पार लगाबो-निर्वाह करना, पार होबो-दूसरे, किनारे या उस पार पहुँचना, काम पूरा कर लेना।

पार :: (कहा.) पार भये तौ पार हैं, डूब गये तौ पार - परिणाम हर हालत में अच्छा होगा, यह सोच कर किसी काम को करने का निश्चय करना।

पारक :: (सं. पु.) पार्क, वाटिका (अकर्मक.)।

पारखत :: (सं. पु.) पूजा के काम आने वाले बर्तन तथा अन्य धातु निर्मित सामान, पार्षद, हाँ-में-हाँ मिलाने वाले, दरबारों की किस्म के लोग।

पारखी :: (वि.) परखने वाला, सूक्ष्म दृष्टि वाला।

पारछौ :: (सं. पु.) पार्श्व क्षेत्र, किसी नाम के साथ जुड़ा भूभाग।

पारदिन :: (वि.) प्रहर भर दिन।

पारबती :: (सं. स्त्री.) पार्वती, हिमांचल की पुत्री, भगवान शंकर की पत्नी।

पारबौ :: (क्रि.) लिटाना, पाँसे या कोंड़ी फेंकना।

पारबौ :: (सं. पु.) पर्वत।

पारबौ :: (कहा.) पारवा दूर केई सुहावने लगत - पहाड़ दूर के ही सुहावने लगते हैं, ईंट या खपड़ा बनाना, काजल के लिए तेल आदि आवश्यक वस्तुओं की कालिख इकट्ठी करना।

पारस :: (सं. पु.) एक काल्पनिक पत्थर या मणि जिसके विषय में ऐसा विश्वास है कि उसके स्पर्श से लोह सोना बन जाता है।

पारसी :: (सं. स्त्री.) फारसी भाषा, दुरूह भाषा, मण्डला जिले में गोणों की भाषा को पारसी कहते हैं (लाक्षणिक अर्थ.)।

पारसी :: (कहा.) पड़े पारसी बेंचे तेल जे देखौ करमन के खेल।

पारा :: (सं. पु.) जमा हुआ गुड़।

पाराकर्मी :: (वि.) परक्रमी, जो बुद्धि बल के आधार पर किसी काम में हार नहीं मानता और अपनी कल्पना को साकार करने के लिए प्रयोग और सतत प्रयास करता है।

पारासर :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों का एक आस्पद, एख महाभारत कालीन ऋषि।

पारियाँ :: (सं. स्त्री.) पहाड़ियाँ।

पारी :: (सं. स्त्री.) बारी, खेल में दाँव, जुए का वह भाग जो बैल के कन्धे पर रखा जाता है, गुड़ की अर्द्ध गोलाकार भेली, जमा हुआ गुड़।

पारीछत :: (सं. पु.) परीक्षित, एक भरतवंशी राजा, जो पाण्डबों के प्रपौत्र थे, इन्हीं के समय में कलयुग का प्रवेश हुआ था, एक नाम।

पारूआ :: (सं. पु.) पहरेदार, पहरुआ।

पारेल :: (सं. पु.) परहेज, खान-पान में अनुमत और निषिद्ध का विवेक।

पारौ :: (सं. पु.) पारा, एक तरल धातु, पारद, हण्डी का ढक्कन, पहरा, किसी स्थान या वस्तु की सुरक्षा हेतु सुरक्षा व्यवस्था।

पारौ :: (कहा.) पारे से खटको नई होत - पारा, बर्तन ढकने की मिट्टी की तश्तरी, पूर्ण निस्तब्धता है, लड़ाई झगड़ा शान्त है।

पार्सल :: (सं. स्त्री.) डाक या रेलगाड़ी से भेजी जाने वाली वस्तु की सुरक्षार्थ बनाया गया डिब्बा या पैकिट, एक ट्रेन जिसमें कुछ यात्री तथा कुछ माल के डिब्बे लगे रहते हैं।

पाल :: (सं. पु.) तम्बू, फलों को पकाने के लिए पत्तों से ढकने की क्रिया।

पालक :: (सं. स्त्री.) एक भाजी।

पालकी :: (सं. स्त्री.) शिविका, मनुष्य के कन्धों पर ढोया जाने वाला एक वाहन।

पालथी :: (सं. स्त्री.) एक पर दूसरा पैर चढ़ाकर बैठने की एक मुद्रा।

पालन :: (सं. पु.) अन्न-पानी से जीवित रखने की क्रिया।

पालनो :: (सं. पु.) झूला।

पालबौ :: (क्रि.) अन्न-पानी से जीवित रखना, अपने शौक या उपयोग के लिए जानवरों को रखना।

पाला :: (सं. पु.) इस्तेमाल की हुई रूई जो गद्दों या रजाइयों में से बाहर निकाल दी गई हो।

पालागन :: (सं. स्त्री.) पैरों से लगने की क्रिया, प्रणाम, बड़ों के लिए प्रणाम या नमन का शब्द।

पालागे :: (सं. पु.) चरण स्पर्श, प्रणाम।

पाली :: (सं. स्त्री.) पान के बरेजों में पान की बेलों की कतार, पानों के लिए प्रसिद्ध बुन्देलखण्ड का एक स्थान, खेल के मैदान का आधा भाग जो एक दल के पास रहता है, खेल में एक दल।

पालो :: (सं. पु.) हवा में मिले हुए भाग के सूक्ष्म कण जो अधिक ठंडक पड़ने पर सफेद तह के रूप में जमीन पर जम जाते हैं, हिम, तुषार।

पालौ :: (सं. पु.) खेल के मैदान का आधा भाग जो प्रतिस्पर्धी दल के पास रहता है, सामना, मुकाबला।

पाल्टी :: (सं. स्त्री.) पार्टी, दल, गोट, सम्मानार्थ या प्रसन्नता व्यक्त करने हेतु दिया जाने वाला स्वल्पाहार।

पाल्ती :: (सं. स्त्री.) बैठने का एक आसन जिसमें दाहने और बाये पैरों के पंजे क्रम से बायीं ओर दायीं जाँघ के नीचे दबे रहते हैं।

पाव :: (सं. पु.) पाया, कुर्सी, टेबल, खटिया आदि का पैर, गोड़ा, आधार स्तम्भ।

पाव :: दे. पाऔ।

पाँव :: (सं. पु.) पैर, पाँव अर्थबोधक उपसर्ग।

पाँव :: (कहा.) पाँवन में का माँउदी रचायें - पैरों में क्या मेंहदी रचाये हो जो इतना सुस्त चलते हो, शीघ्र काम न करने पर प्रयुक्त।

पाँव :: (कहा.) पाँव में भौंरी है - ऐसे आदमी के लिए कहते हैं जो किसी एक स्थान पर जम कर न बैठ सके।

पाँव :: (कहा.) पाँव में सनीचर है - एक स्थान पर सुखपूर्वक न बैठ सकना, घूमते ही रहना।

पाँव :: (सं. पु.) पैर, चरण, उदाहरण-पाँव परबो-चरनों पर गिरना, दैन्य भाव से विनय करना, पाँव पखरई-विवाह में वह-वधू के पैर धोने की रीति, पाँव पोस-पैरों के पंजों की ऊपरी भाग की सज्जा के लिए एक आभूषण, पैर के तलुओं या जूतों के तल्लों आदि की धूल साफ करने के लिए दरवाजे में पड़ी हुई चटाई, फट्टी आदि, पाँव भारी होबो-गर्भवती होना।

पाँवगाड़ी :: (सं. पु.) साईकिल, रिक्शा।

पावडर :: (सं. पु.) चूरा, सुन्दरता बढ़ाने के लिए चेहरे आदि पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का सफेद चूरा।

पाँवड़ी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की खड़ाऊँ, लकड़ी की चप्पलें।

पाँवड़ौ :: (सं. पु.) किसी सम्मानार्थ उसके चलने के लिए विशेष रूप से बिछाया जाने वाला कपड़ा।

पावती :: (सं. स्त्री.) प्राप्ति का प्रमाण, रसीद।

पावन :: (सं. पु.) त्यौहार, पर्व, उत्सव।

पावन :: (कहा.) पावन गयें भसावन सैरो गयें बसंत - बे अवसर का काम, समय के बाद पर्व नहीं मिलता, सैरा बसंत के बाद अच्छा नहीं लगता।

पावना :: (सं. पु.) लेना, कर्ज।

पाँवनी :: (सं. स्त्री.) महिला मेहमान।

पावने :: (सं. पु.) दीपावली पर दूसरे के घर जलाकर भेजा जाने वाला दीपक।

पावनों :: (सं. पु.) नौकरों को दिया जाने वाला भोजन।

पाँवनो :: (सं. पु.) मेहमान, प्राप्तव्य, लेनदारी।

पास :: (अव्य.) समीप, निकट उदाहरण-पास जाबो समागम करना, पास बैठबो-साथ करना, पास बैठबेबारौ-साथी, सहवासी।

पाँस :: (सं. स्त्री.) ऐसा फन्दा जो खिसका कर छोटा-बड़ा किया जा सके, बखर में लगायी जाने वाली लोहे की धारदार पटरी।

पाँस बिसी :: (वि.) सौ।

पासई :: (क्रि. वि.) समीप ही।

पासंग :: (सं. पु.) तराजू के पलड़ों का असन्तुलन, उस असंतुलन को ठीक करने के लिए बाँधा जाने वाला वजन।

पासनी :: (सं. स्त्री.) अन्नप्रासन, बच्चों को सर्वप्रथम अन्न खिलाने का संस्कार।

पासवान :: (सं. पु.) सईस, सेवक।

पाँसा :: (सं. पु.) दे. पाटला।

पासी :: (सं. पु.) एक जाति जो पक्षी पकड़ते हैं।

पाँसे :: (सं. पु.) चौपड़ खेलने के लिए सींग के बने लम्बे चौकोर टुकड़े जिसके चारों पालों के ऊपर अंक या अंकसूचक चिन्ह बने रहते हैं।

पाँसे :: (कहा.) पाँसो परै, अनाड़ी जीते - पाँसा ठीक पड़ने से अनाड़ी भी जीतता है, भाग्य अनुकूल होने से ही कार्यसिद्धि होती है।

पाँसौ :: (सं. पु.) सफेद मिट्टी का बना लम्बा चौकोर टुकड़ा जो घिस कर तिलक लगाने के काम आता है, पैर की उँगलियों के आभूषण में नीचे जुड़ा छल्ला।

पासौर :: (सं. स्त्री.) दाँय करते समय मेंड़ी से दूर बैल जोतने का अन्तिम स्थान, रहँट में बैल जोतने का बाहरी स्थान।

पाहल :: (सं. पु.) पायल, आभूषण।

पिअरा :: (सं. स्त्री.) पीले रंग की एक चिड़िया।

पिअरी पिअरौ :: (वि.) पीला।

पिंआँ :: (सं. पु.) बच्चों को दी जाने वाली दवा की घुट्टी।

पिंआँ :: दे. पियाँ।

पिआउ :: (सं. स्त्री.) पौसरा पानी का।

पिआज :: (सं. पु.) पर्तोवाला तिक्त स्वाद का कन्द जो शाक भाजी में मसाले के रूप में काम आता है इसके उच्चारण में पी की मिश्रित ध्वनि होती है।

पिआजी :: (वि.) गुलाबी हल्का लाल रंग जो सफेदी लिये हुए हो।

पिआबौ :: (क्रि.) पिलाना, तरल पदार्थ को खाली संधो या रंध्रों में भरना।

पिआँर :: (सं. पु.) पुआल, धान, कोदों, समां, फिकरा के कुचले हुए डण्ठल।

पिंआर :: (सं. पु.) चावल के पौधे के सूखे डंठल।

पिकबौ :: (क्रि.) दे . पिलकबौ कटे हुए वृक्ष के ठूंठ से कोंपलें निकलना।

पिगलबो :: (सं. क्रि.) गरमी पहुँचाकर किसी ठोस पदार्थ को तरल बनाना, दया से आर्द्र करना।

पिंगलबो :: (अ. क्रि.) पिघलना, दया से आर्द्र होना, पसीजना।

पिचक :: (सं. स्त्री.) पिचकारी, प्लास्टिक की थैली या शीशी जिसमें रंग या पानी भरकर डालते हैं।

पिचकबौ :: (क्रि.) हवा या अन्य वस्तु के निकल जाने से सिकुड़ कर छोड़ा या झुर्रियोंदार हो जाना।

पिचकारी :: (सं. स्त्री.) दे. पिचक।

पिचत्तर :: (वि.) सत्तर और पाँच की संख्या।

पिचन :: (सं. स्त्री.) गीली मुलायम जमीन जहाँ थोड़ा-थोड़ा पानी और कीचड़ रहता हो, बाँध आदि की मिट्टी कटने से बचाने को पत्थरों की जमावट।

पिचपिचौ :: (वि.) पानी आदि गिरने से भूमि का गीला होकर कुछ-कुछ कीचड़ जैसा रूख, अत्याधिक पके या सड़े फल।

पिचलबो :: (सं. क्रि.) कुचलना।

पिंचिस :: (सं. स्त्री.) लोहे का टेड़ी नोक का संसीनुमा औजार जिसमें चमड़ा घोंचकर बढ़ाया जाता है चमार।

पिच्च-पिच्छ :: (सं. पु.) झटके से पिचकने की ध्वनि पिचकारी से निकलने की ध्वनि, पक्ष लेने की क्रिया।

पिछम्मो :: (क्रि.) पीछा करना।

पिछलबौ :: (क्रि.) पीछे हटना।

पिछाई :: (सं. स्त्री.) पीछे का भाग, कारण।

पिछाड़ी :: (सं. स्त्री.) पृष्ठभाग, पीछे का भाग, कारण।

पिछारे :: (वि.) पीछे की ओर।

पिछौनी :: (वि.) पीछे की हुई।

पिछौरबो :: (क्रि.) झकझोरना।

पिछौरा :: (सं. पु.) चद्दर, ओढ़ने का चद्दरा।

पिछौरिया :: (सं. स्त्री.) उत्तरीय टुपट्टा, पलती तौलिया, छोटी चादर, मोटी सूत वाली खद्दर की चादर।

पिंजरा :: (सं. पु.) पिंजड़ा पक्षियों या खतरनाक जानवरों को रखने का सलाखों से बना कटघरा।

पिंजरा :: (कहा.) पिंजरा के पंछी नाई फरफरा रये - बहुत व्याकुल।

पिंजाड़ौ :: (सं. पु.) शरीर को आकार देने वाला हड्डियों का ढाचाँ।

पिटठू :: (सं. स्त्री.) टोकरी या छोटे मुँह का बर्तन जो अरहर की टहनियों का बनता है।

पिटबो :: (क्रि.) मार खाना।

पिटरी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का एक पात्र।

पिटरौ :: (सं. पु.) ब्याह शादी में दाल, कढ़ी बनाने का मिट्टी का मटका।

पिटरौल :: (सं. पु.) पेट्रोल, तीव्र दहनशील खनिज तेल।

पिटाई :: (सं. स्त्री.) पीटने की क्रिया, मारने की क्रिया।

पिटाको :: (क्रि. वि.) बहुत तेज पानी बरसने का विशेषण जिसमें ऐसा लगे कि बूंदें जमीन को पीट रहीं हो।

पिटार :: (सं. पु.) जानवरों का पेटवाला भाग, मटके आदि का बीच का भाग।

पिटारी :: (सं. स्त्री.) साँप रखने की बाँस की बनी गोल ढक्कनदार टोकनी, पुराने जमाने में कपड़ा रखने की टोकरी।

पिटारौ :: (सं. पु.) बाँस की बड़ी ढक्कनदार टोकरी जिसमें विवाह के समय कन्या के साथ पकवान भर कर भेजे जाते हैं।

पिटैला :: (वि.) पिट्टू, पिटने का अभ्यासी।

पिट्टा :: (वि.) उभरे हुए पेट वाला।

पिठँइयाँ :: (सं. स्त्री.) बच्चों को पीठ पर लादकर चलने की क्रिया।

पिठियाँ :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल।

पिठी :: (सं. स्त्री.) फुला कर बाँटी, पीसी गयी दाल की लुगदी।

पिठी :: (कहा.) पिठो सी बाँटबो - किसी को खूब मारना, मरम्मत करना।

पिंड :: (वि. सं.) ठोस, गोला, किसी द्रव्य का ठोस गोला, पके हुए चावल, तिल आदि का गोला जिसे श्राद्ध में पितरों को अर्पित करते हैं, शरीर, देह, उदाहरण-पिंड पड़बो-पीछे पड़ना।

पिंड :: (कहा.) पिंड में सो ब्रम्हाण्ड में - मनुष्य के शरीर में जो ईश्वर निवास करता है वही ब्रम्हाण्ड में व्याप्त है।

पिड़बौ :: (क्रि.) घुसना, अन्दर होना, प्रवेश करना।

पिड़री :: (सं. स्त्री.) घुटने से नीचे पैर का पिछला माँसल भाग।

पिंडरी :: (सं. स्त्री.) पिंडली।

पिड़रौ :: (सं. पु.) बाँस की बनी काफी बड़ी टोकरी, भोजन पकाने का बड़ा मटका।

पिंडा :: (सं. पु.) गोला, ठोस या गीले पदार्थ का गोला, पके हुए चावल, तिल आदि का हाथ से गढ़ा हुआ गोला जिसे पितरों को श्राद्ध में अर्पित करते हैं।

पिंडिया :: (सं. स्त्री.) गीली वस्तु का पिंड लपेटे हुए सूत या रस्सी को गोला।

पिड़ी :: (सं. स्त्री.) बैठने की बिना झेका की छोटी चौकी जिसकी बैठक मूँज आदि की रस्सी से बुनी जाती है।

पिंडी :: (सं. स्त्री.) माड़े हेतु मैदा का बनाया लसदार पिंड, गीली वस्तु का पिण्ड, (शिव की पिण्डी)।

पिंडोला :: (सं. पु.) पिंडली।

पिड़ौरा :: (सं. पु.) मजबूत टोकरी।

पिण्ड :: (सं. पु.) मृतक के हिन्दू संस्कार में काम आने वाले जौ के कच्चे आटे के लड्डू।

पिण्डा :: (सं. पु.) रस्से का गोल लपेट कर बनाया गया गोला।

पिण्डिया :: (सं. स्त्री.) धागे को लपेट कर बनायी गयी लम्बी गोली।

पिण्डी :: (सं. स्त्री.) लम्बी गोल आकृति, छोटा शिवलिंग।

पिण्ड्डलिया :: (सं. स्त्री.) दे. पिण्डिया।

पितरयाबौ :: (क्रि.) पीतल के बर्तन में खट्टी वस्तु रखने से उसमें पीतल का विषैला तथा कसैला स्वाद उतरता है।

पितराँद :: (सं. स्त्री.) पीतल की वस्तु में खटाई रखने पर विषेला और कसैला स्वाद।

पितराबौ :: (सं. पु.) पीतर की कसावट आना।

पितराँयदौ :: (वि.) खट्टी वस्तु में उतरा पीतल के कसैले स्वाद वाला।

पिता :: (सं. पु.) बाप, जन्मदाता, जनक।

पित्त :: (सं. पु.) शरीर के तीन दोष, बात, पित्त और कफ में से एक दोष, यकृत से स्नबित होने वाला स्नाव।

पित्त :: (कहा.) पित्त उबलबो - पित्त गरम होता, शीघ्र क्रुद्ध हो उठने की प्रवृत्ति होना।

पिथौरा :: (सं. पु.) दिल्ली के अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान।

पिथौराराय :: (सं. पु.) पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अन्तिम हिन्दू सम्राट आल्हखंड प्रयुक्त।

पिंदोला :: (वि.) स्त्रियों जैसे स्वभाव वाला, स्त्रियों के सम्पर्क में अधिक रहने वाला।

पिंदोलोंइँ :: (सं. स्त्री.) पिंदोलो जैसे क्रिया कलाप।

पिद्दी :: (सं. स्त्री.) गुल्ली डण्डा के खेल में अंकों की निर्धारित इकाई।

पिनक :: (सं. स्त्री.) सनक, मस्तिष्क का एकांकीपन, मस्तिष्क में कुछ-कुछ अन्तरालों केबाद उठने वाला चुतना के दौर, अफीमची को आने वाला अस्थायी होश।

पिनकबौ :: (क्रि.) एकाएक क्रोध में आकर बकना।

पिनपिनाबौ :: (क्रि.) थोड़ा-थोड़ा बिना आँसुओं के रोते रहना, रूआँसे स्वर में बोलना।

पिन्दोलपन :: (वि.) जनानी आदतें पुरूषों की।

पिन्दोला :: (वि.) जनानी आदतों वाला, हिजड़ा।

पिन्न-पिन्न :: (सं. स्त्री.) रूआँसा स्वर।

पिन्ना :: (वि.) जरा सी बात पर रोने वाला।

पिपरदसा :: (सं. पु.) चैत्र शुक्ल दशमी को पीपल की पूजा, पिपरदसा की कहानी, लड़कों वाली माताऐं व्रत रखती है।

पियर :: (सं. स्त्री.) दे. पिअर।

पियराई :: (वि.) पीलापन।

पियराबो :: (वि.) पीलापन।

पियरो :: (वि.) पीला।

पिया :: (सं. पु.) प्रिय, प्रियतम।

पिया :: दे. पिआ लोक साहित्य. में प्रयुक्त।

पियाँ :: (सं. पु.) बच्चों को दी जाने वाली दवा की घुट्टी दे.पिआँ।

पियाबाँसो :: (सं. पु.) एक सुनहला फूल, जाड़े की सुबह फूलता है।

पिरकिती :: (सं. स्त्री.) प्रकृति, स्वभाव।

पिरकिया :: (सं. स्त्री.) छोटी सी फुंसी।

पिरगट :: (सं. पु.) प्रकट, दैवी शक्ति से उत्पन्न होने की क्रिया, प्रत्यक्ष, प्रकट भू. का. क्रि. प्रकट हुए।

पिरचण्ड :: (सं. पु.) बेग के साथ प्रकट होने की क्रिया, भय कारक ढंग से प्रकट होना।

पिरचार :: (सं. पु.) प्रचार बात या विचार की जन व्याप्ति।

पिरतिग्या :: (सं. स्त्री.) प्रण, दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा।

पिरथा :: (सं. स्त्री.) पृथा, रीति।

पिरथी :: (सं. स्त्री.) पृथ्वी, धरती।

पिरन :: (सं. पु.) प्रण, दृढ़ निश्चय।

पिरन :: (प्र.) पिरन ठानबो।

पिरबो :: (क्रि.) अधिक काम का बोझ।

पिरभाव :: (सं. पु.) प्रभाव।

पिरभू :: (सं. पु.) प्रसव वेदना।

पिरवाबौ :: (क्रि.) तिलहन का तेल या ईख का यंत्र द्वारा रस निकलवाना।

पिरसन्न :: (वि.) प्रसन्न, खुश।

पिरा :: (सं. पु.) बाँस की बड़ी टोकरी जो ऊपर से नीचे तक लगभग एक ही व्यास की होती है।

पिराग :: (सं. पु.) प्रयागराज, गंगा यमुना और सरस्वती का संगम तीर्थ, तीर्थ।

पिराग :: (कहा.) कुतियाँ पिरागे जेय, तौ हँड़िया को चाटे।

पिरागराज :: (सं. पु.) दे. पिराग।

पिरांजन :: (सं. पु.) दे. प्रयोजन।

पिरान :: (सं. पु.) प्राण।

पिरानै पिरानौं :: (क्रि.) दर्द होना।

पिराबो :: (सं. पु.) बीमारी, लम्बी बीमारी, महामारी।

पिराबौ :: (क्रि.) पीड़ा होना, दुखना, बीमारी, लम्बी बीमारी, महामारी।

पिरिया :: (सं. स्त्री.) बाँस की मझोला आकार की टोकरी।

पिरीत :: (सं. स्त्री.) प्रीति, मधुर संबंध, स्नेह भाव।

पिरोउा :: (सं. पु.) पीले रँग की भूमि।

पिलकबौ :: (क्रि.) नयी कोमलें आना, पल्लवित होना।

पिलगबौ :: (क्रि.) पिघलना, द्रविता होना।

पिलना :: (क्रि.) लकड़ियों में फँसी हुई एक प्रकार को जाली जिसमें उथले पानी में मछली पकड़ते हैं।

पिलपिलोबो :: (स. क्रि.) चारों ओर से इस प्रकार दबाना कि भीतर का रस या गूदा बाहर निकल पड़े।

पिलपिलौ :: (वि.) जो थोड़े से दवाब से दबे।

पिलबौ :: (क्रि.) हल्ला बोल कर कहीं घुस पड़ना पूरे निश्चय के साथ किसी कार्य में जुट जाना।

पिलाबो :: (क्रि.) खेलों में गोटों को लक्ष्य स्थान में प्रवेश कराना, स्थानीय खेलों में कंचों, कोंड़ियों पैसों आदि को छोटें, गड्डे या निश्चित घर में प्रवेश कराना।

पिलूँजरी :: (सं. स्त्री.) तिली के पौधों के सूखे हुए डण्डल, जिनसे तिली झार ली गयी हो।

पिलेंन :: (वि. अ.) शब्द प्लेन का अपभ्रंश, बिना दाग धब्बे या डिजाइन का कपड़ा सपाट।

पिलोंजरो :: (सं. पु.) तिली के पीछे के सूखे डंठल।

पिल्लउँआ :: (सं. पु.) मछली पकड़ने का जाल।

पिल्ला :: (सं. पु.) कुत्ते का बच्चा, उदाहरण-पिल्ला परबो-भरी हुई रूई का टूटकर विभिन्न खण्डों मे जगह-जगह सिमट जाना।

पिल्लिया :: (सं. स्त्री.) कुत्ते की बच्ची।

पिल्लू :: (सं. स्त्री.) जमीन में छोटा से गड्डा।

पिंसन :: (सं. स्त्री.) पेंसन, सेवा से अवकाश ग्रहण के पश्चात मिलने वाली मासिक राशि।

पिसना :: (सं. पु.) पिसने के लिए तैयार साफ किया हुआ अनाज, खीझ की स्थिति में प्रयुक्त।

पिसनारी :: (वि.) पीसने वाली।

पिसनोट :: (सं. पु.) पिसने के लिए तैयार साफ किया हुआ अनाज।

पिसबाबौ :: (सं. क्रि.) पीसने में प्रवृत्त करना।

पिसबो :: (अ. क्रि.) पीसा जाना, पूर्ण किया जाना, बहुत अधिक कष्ट पाना।

पिंसल :: (सं. स्त्री.) स्लेट पर लिखने की बत्ती, सीस पेंसिल।

पिसवाच :: (सं. पु.) नाचते समय पहना जाने वाला लम्बे घेर का ऊँचा घाँगरा।

पिसाई :: (सं. स्त्री.) पीसने की क्रिया या भाव, आटा पीसने का पेशा या मजदूरी, घोर परिश्रम, कहा, पीसवे कों चल्लोसन, गावे कों सीता हरन-दिखावट तो बहुत, परंतु सार कुछ नहीं।

पिसान :: (सं. पु.) दे. पिसना, पिसनोट।

पिसाबो :: (स. क्रि.) पीसने का काम कराना।

पिसिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का छोटे दाने का लाल गेंहू।

पिसी :: (सं. स्त्री.) गेंहू की एक जाति जिसका आटा रबेदार नहीं होता, सामान्यतः सभी प्रकार के गेंहू के लिए प्रयुक्त।

पिसुआ :: (सं. पु.) पिस्सू, गायों, चूहों, कुत्तों को लगने वाली बहुत छोटी पंखी प्लेग के रोगाणुओं को फैलाने की इसमें सबसे अधिक शक्ति होती है।

पिसौनी :: (सं. स्त्री.) पिसनोट।

पिस्तई :: (सं. स्त्री.) रंग हल्के रहे पिस्ता जैसे रंग का।

पीक :: (सं. स्त्री.) छोटे मुँह के बर्तन में कोई द्रव भरने का शंकु के आकार का साधन उदाहरण-पान-तम्बाखू मिश्रित थूक।

पीकदान :: (सं. पु.) तंबाकू थूकने का पात्र।

पीका :: (सं. पु.) पीकने से निकला वह डंठल जिस पर कोंपले लगती है।

पीचौ :: (सं. पु.) किसी वस्तु के कुचल जाने से उसके अन्दर से निकलने वाला पदार्थ।

पीछू :: (अव्य.) पीछे, कारण।

पीछें :: (अव्य.) पीठ की ओर, अनंतर, बाद, उदाहरण-पीछें परबो किसी वस्तु का मिटा देने के लिए तुल जाना।

पीछो :: (सं. पु.) पीछे भाग, पीछा करने की क्रिया, बाद का परिणाम उदाहरण-पीछौ छुड़ाबौ-किसी अप्रिय व्यक्ति या वस्तु से पिंड छुड़ाना।

पींजन :: (सं. पु.) रूई घुनने का देशी यंत्र।

पींजरा :: (सं. पु.) दे. पिंजरा।

पीटबौ :: (क्रि.) धातु को हथौड़े की चोटे मार मार कर फैलना।

पीठ :: (सं. स्त्री.) किसी प्राणी के शरीर का कमर से लेकर गरदन तक का पीछे का भाग जिसके बीचों बीच रीढ़ रहती है। पीठ उदाहरण-पीठ ठोंकबो-प्रशंसा करके बढ़ावा देना उदाहरण-पीठ दिखाबो-भाग खड़ा होना। पीठ पीछे-अनुपस्थित में। पीठ पै होबौ-मदद देने के लिए कोई होना।

पीठ :: (कहा.) पीठ पाछें कछू होबे - पीठे पीछे कुछ भी होता रहे, हमें, क्या।

पीठ :: (कहा.) पीठे में लट्ठ भवानी करें, सबरो घर पूजा कों चले - आपत्ति आने पर ही लोग भगवान का स्मरण करते हैं।

पींठ :: (सं. स्त्री.) पीठ, शरीर का पिछला भाग, पृष्ठ भाग।

पींठको :: (वि.) किसी बडे बहिन भाई के दूसरे क्रम पर पैदा हुआ कारक युक्त योग रूढ शब्द।

पींड :: (सं. पु.) मधुमक्खी का छत्ता।

पीड़नों :: (सं. पु.) गुँदा हुआ बहुत सा आटा, गुँदे हुए आटे का बड़ा पिण्डा। (पींड़नों)।

पीड़री :: (सं. स्त्री.) टाँगे पीटना, मारना।

पींडा :: (सं. पु.) किसी भी गाढ़ी लुग्दी का बड़ा गोला या पिण्ड।

पीतर :: (सं. पु.) पीतल पीले रंग की एक धातु जिसमें ताँबे और जस्ते का योग रहता है उदाहरण-काँसो पीतल बिलसबे खाँ दिइयो कार्तिक गीत।

पीताम्बर :: (सं. पु.) पीला वस्त्र, श्रीराम या श्री कृष्ण का अधोवस्त्र धोती।

पीतौ :: (सं. पु.) संवेदना, दूसरे के कष्ट से होने वाला दुख।

पींदा :: (वि.) दे. पिंदोला।

पीनस :: (सं. स्त्री.) डिब्बे जैसी बन्द परदेदार डोनी।

पीप :: (सं. स्त्री.) मवाद, फोड़े फुन्सी में से निकलने वाला पीले भूरे रंग का पदार्थ।

पीपर :: (सं. स्त्री.) पिप्पली एक लम्बा पतला तथा, दानेदार फल जो अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में काम आता है।

पीपर-पीपरा :: (सं. पु.) अश्वत्थ वृक्ष, पीपल, पीपल के फल।

पीपरामूर :: (सं. पु.) पीपरामूल, एक जड़ जो आयुर्वोदिक दवाओं के काम आती है तथा प्रसव के बाद स्त्रियों को इसका काढ़ा पिलाया जाता है।

पीपरामूर :: (मुहा.) पीपरमूर की जरे दुर्लभ वस्तु।

पीपरामूर :: (कहा.) पीपरामूर की जर हो गये - कोई आत्मीयजन या घनिष्ठ मित्र जब बहुत कम दिखायी दे तब प्रयुक्त।

पीपा :: (सं. पु.) कनस्टर, लकड़ी के पटियों से बना शराब रखने का ड्रम, अस्थायी पुल बनाने के लिए लोहे के बंद ड्रम।

पीबौ :: (क्रि.) तरल पदार्थ को मुँह से ग्रहण करना तरल पदार्थ का सूखे पदार्थ में सोखना।

पीर :: (सं. पु.) मुसलमानों के देवता, मुस्लिम सिद्ध पुरुष की समाधि।

पीरा :: (सं. स्त्री.) पीड़ा, दर्द, पष्ट।

पीराई :: (वि.) पीलापन।

पीरिया :: (सं. पु.) मवेशियों की एक बीमारी।

पीरौ :: (वि.) पीला।

पीलगाँव :: (सं. पु.) हाथी पाँव, फाइलेरिया के रोग से मोटा हुआ पैर।

पीलपाव :: (सं. पु.) दहलान आदि का गोल खम्भा।

पीलबान :: (सं. पु.) हाथी का महावत, हाथी की देख रेख करने वाला।

पीव :: (सं. स्त्री.) पीपीहे का स्वर।

पीसबौ :: (क्रि.) चक्की से अनाज का चूर्ण बनाना, किसी भी पदार्थ को सिल लौढ़े से बारीक करना, किसी भारी वस्तु को सब्बल या साँगे लगाकर खिसकाना। उदाहरण-पीसनो-पिसा अनाज।

पीसा :: (वि.) बारीक की हुई।

पीसा :: (प्र.) पीसा शक्कर, बारीक शक्कर के लिए ही इसका प्रयोग पाया जाता है।

पीसौरी :: (वि.) पेशावरी, जूतों का एक प्रकार।

पुआ :: (सं. पु.) गुड़ या शक्कर डालकर बनायी गयी मीठी पूँड़ी।

पुआ :: (कहा.) पुआ पकाबो - मन के लड्डू खाना।

पुआँर :: (सं. पु.) चकौड़ा, एक पौधा जो बेकार पड़ी जमीन पर बरसात में अपने आप पैदा होता है इसकी लम्बी पतली फली तथा गोल कुद लम्बे चिकने पत्ते होते हैं जो सूर्यास्त होने पर बन्द हो जाते हैं फूल पीला और छोटा होता है कुछ देशी दवाओं के काम आता है एक पौधा जिसमें फलियाँ लगती हैं।

पुआस :: (सं. पु.) उपवास, अनाहार या एक बार आहार का ब्रत।

पुआसे :: (वि.) उपवास किये हुए।

पुकार :: (सं. स्त्री.) टेर, बुलाने का स्वर, कष्ट निवेदन।

पुक्ख :: (सं. पु.) पुष्य, एक नक्षत्र।

पुक्खन-पुक्खन :: (मुहा.) धीरे-धीरे क्रम से।

पुक्खन-पुक्खन :: (क्रि. वि.) के रूप में प्रयुक्त (सामासिक शब्द.)।

पुखता :: (वि.) मजदूर।

पुखबो :: (स. क्रि.) मजबूत होना।

पुखरा :: (सं. पु.) पोखर, तालाब।

पुखराज :: (सं. पु.) पुष्यपराग मणि, एक पीले रंग का रत्न।

पुखरिया :: (सं. स्त्री.) थोड़ा बड़ा सा गड्डा जहाँ बरसाती पानी भरा हो।

पुँगरा :: (सं. पु.) नाक का गहना।

पुँगरिया :: (सं. स्त्री.) बाँस की छोटी नली, नाक में पहना जाने वाला फूल की आकृति का आभूषण, बाँस या धातु की नली पोंगली।

पुंगा :: (वि.) फूहड, अवारा, एक गाली।

पुंगी :: (सं. पु.) कागज की बनी।

पुंगू :: (सं. स्त्री.) पतली नली।

पुचकबौ :: (क्रि.) दे. पिचकबो।

पुचकार :: (सं. स्त्री.) किसी को शांत करने या समझाने के लिए चुंबन लेने की क्रिया।

पुचकारबो :: (क्रि.) अपने से किसी छोटे को शान्ति या धैर्य धारण कराने या समझाने के लिए दूर से चुम्बन लेने जैसी क्रिया करना।

पुचाँड़ा :: (सं. पु.) सफाई करने के लिए पानी में भिगोया हुआ वस्त्र।

पुच्चौ :: (वि.) जिसके अन्दर कुछ न हो, पुच्ची बिना दाने के फलियाँ।

पुच्छौया :: (सं. पु.) पूछने वाला, खोज खबर लेने वाला।

पुछइया :: (सं. पु.) पूछने वाला, देखरेख करने वाला, पोंछने वाला।

पुछना :: (सं. पु.) झाड़ना, पोंछने का कपड़ा।

पुछना :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

पुछरेंटबौ :: (क्रि.) पूँछ मरोड़कर जानवरों को हाँकना, काम को कराने के लिए किसी को निरन्तर टोकते रहना (लाक्षणिक अर्थ.)।

पुंछलौ :: (सं. पु.) पतंग के नीचे वाले कोने पर बाँधी जानेवाली कपड़े की धजी या कागज की कम चौड़ी पट्टी।

पुछल्ला :: (सं. पु.) पीछे लगा रहने वाला, विशेषण रूप में भी प्रयुक्त।

पुछाँड़ा :: (सं. पु.) दे. पुचाँड़ा।

पुछापुछ :: (सं. स्त्री.) टोका टाकी अनेक प्रश्नों का सामना करना।

पुछार :: (सं. पु.) लम्बी पूँछ।

पुंछार :: (सं. पु.) बेगार का काम।

पुजबाबो :: (स. क्रि.) किसी से पूजने का काम करवाना, पूजा कराना, अपनी आवभगत कराना।

पुजबौ :: (अ. क्रि.) पूजित होना, पूजा जाना, पूरा होना लोकमान्यता प्राप्त होना।

पुँजयाबो :: (क्रि.) पूँजी इकट्ठी होना।

पुजापौ :: (सं. पु.) परिवार में प्रचलित विशेष पूजा परम्परा।

पुजारी :: (सं. पु.) मन्दिर में पूजा करने वाला कर्मचारी जो नियमित पूजा करता है।

पुँजिया :: (सं. स्त्री.) पूँजी, लुँजिया, पुंजिया मुहावरे में प्रयुक्त।

पुंजी :: (सं. स्त्री.) पूँजी।

पुंजी :: (मुहा.) पुंजी पसारौ पूंजी ओर पुंजी लगाया हुआ माल।

पुजेरी :: (सं. पु.) दे. पुजारी।

पुजेरू :: (वि.) पूजित, पूज्य, किसी कल या वर्ग के पूज्य।

पुजैया :: (वि.) पूजा करने वाला।

पुट :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु के साथ अन्य वस्तु का हल्का मिश्रण करने की क्रिया, विनोदपूर्ण गप्प।

पुटकरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी सी पोटली।

पुटठौ :: (सं. पु.) पुट्ठा, मोटा और कड़ा कागज, दफ्ती, कमर और नितम्ब के बीच का मांसल भाग।

पुटपुरी :: (सं. स्त्री.) पहलवानों को मेहनत के बाद आराम पहुँचाने के लिए शरीर पर धीरे-धीरे मारे जाने वाले मुक्के, मुक्की, अपना उल्लू सीधा करने के लिए की जाने वाली मीठी-मीठी बातें।

पुटयाबौ :: (क्रि.) मीठी-मीठी बातें करके किसी को कुछ देने या करने के लिए तैयार करना बच्चों को समझा बुझाकर जिद से विमुख करना।

पुटरया :: (सं. पु.) पोटली में कपड़ा लेकर तथा गली-गली घूमकर बेचने वाले अनाज की मण्डी में बेचने के लिए पोटलियों में अर्थात थोड़ी मात्रा में अनाज लाने वाला।

पुटरिया :: (सं. स्त्री.) पोटली, पूँजी, जोड़ी हुई रकम।

पुटास :: (सं. पु.) पोटास एक उर्वरक, बारूद बनाने या आतिशबाजी बनाने का एक अवयव।

पुटैल :: (सं. पु.) दामों के पुटैल और बातों के पुटैल कवि रामचन्द्र।

पुट्ठा :: (सं. पु.) कमर और नितम्ब के बीच का माँसल भाग।

पुठी :: (सं. पु.) लकड़ी का आंशिक वृत्ताकार टुकड़ा, इस प्रकार के अनेक टुकड़ों को जोड़कर बैलगाड़ी आदि के पहिये बनते हैं।

पुड़ा :: (सं. पु.) बड़ी पुड़िया, बंडल।

पुड़ी :: (सं. स्त्री.) पूरी, सुहारी पुड़िया।

पुतनयाँ :: (सं. पु.) पोतने का कार्य। लिपना पुतना शब्द युग्म.में प्रयुक्त।

पुतबो :: (क्रि.) पुतना, रंग इत्यादि होना।

पुतरा :: (सं. पु.) पुतला, पुरुषाकृति खिलौना, पुत्र, बालकों के लिए प्यार भरा सम्बोधन शब्द।

पुतरिया :: (सं. स्त्री.) पुत्री का, स्त्रीआकृति, पुत्री बालिकाओं के लिए प्यार भरा सम्बोधन।

पुंतरिया :: (सं. स्त्री.) छोटे बच्चों के नीचे बिछाने का कपड़ा।

पुतहू :: (सं. स्त्री.) बहू, पुत्र की पत्नि।

पुताँड़ी :: (सं. स्त्री.) चौका, पोतने के लिए पोतनी रखे जाने का पात्र।

पुथन्ना :: (सं. पु.) बड़ी भारी किताब।

पुद्दा :: (सं. पु.) पेड़ के तने पर पैर जमाने के लिए बनाये गये गहरे स्थान कीचड़ पर से निकलने के लिए बनाये गये ठोस स्थान।

पुन-पुन :: (क्रि. वि.) पुनःपुनः, बार-बार।

पुन-पुन :: (कहा.) पुन चंदन पुन पानी, सालिगराम घुर गये तब जानी - किसी काम का बार-बार करके अंत में उसे बिगाड़ देना।

पुनछनिया, पुरछालो :: (सं. स्त्री.) पूछ।

पुनर :: (वि.) दूसरा, पुनर व्याव (विशेषकर स्त्रियों की दूसरी शादी के लिये प्रयुक्त)।

पुनीत :: (वि.) पवित्र, पुष्य दाय।

पुन्तरिया :: (सं. स्त्री.) पोतड़ा, बहुत छोटे बच्चों के मल मूत्र से बिस्तर को बचाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के टुकड़े।

पुन्तरू पुन्थरू :: (सं. स्त्री.) बन्दूक की नाल साफ करने के लिए एक तार जिसके एक कपड़ा तार जिसके एक सिरे पर कपड़ा बंधा रहता है।

पुन्नई :: (सं. पु.) पुण्य, आत्मा को पवित्र करने वाला कार्य, निष्काम भाव से किया गया परोपकार, पवित्र कार्य, धर्मार्थ दिया जाने वाला दान।

पुन्नई :: (कहा.) पुन्नई आड़ें आऊत - पुण्य ही समय पर मनुष्य की रक्षा करता है।

पुन्नई :: (कहा.) पुन्न की जर पताल नों - पुण्य की जड़ गहरी होती है, किया हुआ सत्कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।

पुपला :: (वि.) जिसके मुँह में दाँत न हो।

पुमार :: (सं. पु.) दे. पुआँर, तीन कुटी के क्षत्रियों का एक उपवर्ग, परमार।

पुरइया :: (सं. पु.) पत्तों की झोपड़ी।

पुरखा :: (सं. पु.) पूर्वज, पितृगण, पितृपक्ष।

पुरखिन :: (वि.) बड़ी बूड़ी।

पुरखौंट :: (सं. स्त्री.) बच्चों के मुँह से बुजुर्गों जैसी बातें।

पुरजा :: (सं. पु.) घटक, अंग, प्रत्यंग, कागज पर लिखी सूची या स्मरणार्थ कुछ लेख।

पुरजी :: (सं. स्त्री.) कागज की छोटी पर्ची जिस पर कुछ लिखा गया हो।

पुरबाई :: (सं. स्त्री.) पूरब की ओर से चलने वाली वायु पुखइया।

पुरबिया :: (वि.) पूर्वी उत्तरप्रदेश में रहने वाले।

पुरबो :: (क्रि.) भरना।

पुरवा :: (सं. पु.) बहुत छोटा गाँव, पाराग्राम उपग्राम।

पुरसारथ :: (सं. पु.) पुरूषार्थ, पुरुषोचित कार्य उद्दिष्ट कार्य को करने की क्षमता।

पुरा :: (सं. पु.) मोहल्ला, ग्राम या नगर का एक भाग।

पुराओ :: (सं. पु.) भरैल स्थान।

पुरान :: (सं. पु.) पुराण, विशेष रूप से भागवत, महा पुराण।

पुरानों :: (वि.) प्राचीन पुल्लिंग।

पुरानों :: (कहा.) पुराने मठ पै कलई करबो - किसी पुरानी वस्तु को नयी बनाने का वृथा प्रयास करना, बुढ़ाये में जवान बनने की चेष्ट, उदाहरण-पुराने पापी-ऐसा आदमी जो दुनिया के सब रंग-ढंग देख चुका हो, किसी विषय में जिसका अनुभव बहुत दिनों का हो।

पुराब :: (सं. पु.) भराव मिट्टी या रोड़े से पटाव।

पुरिया :: (सं. स्त्री.) पुड़िया, पत्तों की छतरी, कपड़ा बनाने के लिए कोरियों द्वारा डाला जाने वाला ताना।

पुरी :: (सं. स्त्री.) संन्यासियों का एक वर्ग, मैदा की पूड़ी।

पुरेत :: (सं. पु.) पुरोहित, राजाओं के यहाँ धार्मिक संस्कारों एवं अनुष्ठानों की व्यवस्था करने वाला ब्राह्मण।

पुरेंन :: (सं. स्त्री.) कमल के पत्ते, कमल का सम्पूर्ण पौधा।

पुरैया :: (सं. पु.) पत्तों की खोइया।

पुर्त :: (सं. पु.) परत, तह।

पुर्तेल :: (सं. स्त्री.) परतदार।

पुर्स :: (सं. पु.) गहराई का एक माप जो किसी पुरुष के तलुवों तक होती हुए हाथों को उंगलियों से पैर के तलुवों तक होती है।

पुर्सांयतौ :: (क्रि. वि.) एक पुर्स या दसने अधिक की गहराई वाला।

पुलखर :: (वि.) पोली।

पुलंगिया :: (सं. पु.) बाँसी की छोटी नली।

पुलटस :: (सं. स्त्री.) फोड़े को पकाने के लिए बाँधी जाने वाली आटा, गुड़ तेल या तिली की गरम की हुई पिट्ठी या लुग्दी।

पुलंदा :: (सं. पु.) बँधा हुआ बिस्तर या बँध हुए कागज।

पुलपुलौ :: (वि.) गीला गोबर या मिट्टी जो हाथो से उठाने पर बहे।

पुलस :: (सं. स्त्री.) पुलिस, आरक्षी, न्याय व्यवस्था के रखवाले।

पुलिया :: (सं. स्त्री.) छोटा पुल।

पुल्टिस :: (सं. स्त्री.) गाढ़े घोल को पकाकर बनायी गयी औषधि।

पुसाबौ :: (क्रि.) पसंद आ, रासआना, वितृष्णा नहीं होना।

पुसैला :: (सं. पु.) पोसा हुआ।

पुस्टई :: (सं. स्त्री.) शारीरिक पुष्टि, शरीर का भराव।

पुस्त :: (सं. स्त्री.) पीढ़ी।

पुस्तीवान :: (सं. पु.) दीवार को सहारा देने के लिए उसके पास की कुछ उँचाई तक बनायी जाने वाली ढलवाँ दीवार।

पुहाबो :: (स. क्रि.) गुँथवाना, पिरोने का काम कराना।

पूँछ :: (सं. स्त्री.) पुच्छ, दुम, आदर भाव।

पूँछबौ :: (क्रि.) पूछना, प्रश्न करना, जानकारी लेना।

पूँछबौ :: (कहा.) पूँछना नर पंडित - दूसरों से पूछ कर काम करे वही पंडित है, पूछने से ही आदमी का ज्ञान बढ़ता है।

पूँछा :: (सं. पु.) तालाब या पहाड़ का छोर।

पूँछाझार :: (सं. पु.) वह बैल जिसकी पूंछ लम्बी हो।

पूजन :: (सं. स्त्री.) दे. पूजा।

पूजन :: (क्रि. वि.) पूजने के लिए।

पूजा :: (सं. स्त्री.) देवता के प्रति निष्टा और भक्ति को प्रदर्शित करने तथा भाव को प्रगाढ़ करते रहने के लिए किया जाने वाला कर्त्तव्य।

पूजारचा :: (वि.) पूजने योग्य, मान्य।

पूठो :: (सं. पु.) पुठ्ठा, गता।

पूत :: (सं. पु.) पुत्र, व्यंग्य प्रयोग।

पूत :: (कहा.) पूत के पाँव पलना में दिखा परत - लड़कपन के आचरणों से ही इसका पता चल जाता है कि आगे चल कर लड़का कैसा निकलेगा, किसी कार्य के लक्षण पहिले ही से दिखायी पड़ जाते हैं।

पूत :: (कहा.) पूत के नाव पुताँड़ी भली - लड़का चाहे जैसा बुरा हो, परंतु नरोत्तम कवि. होने से तो अच्छा।

पूतन :: (क्रि. वि.) पुत्रों से दूधन नहाव पूतन फलौ।

पूतन :: (मुहा.) में प्रयुक्त।

पूतना :: (सं. स्त्री.) श्री कृष्ण को विष लोपित स्तनपान कराने वाली राक्षसी बच्चों का एक दैवी रोग, ग्राम देवी जो बच्चों के लिए अनिष्टकारी होती है, बच्चों की रक्षा के लिए इसकी मनौती की जाती है।

पूतरा :: (सं. पु.) पुतला, पुत्र, बेटा।

पूनी :: (वि.) सम संख्या, जो दो से कटने योग्य हो।

पूनें :: (सं. स्त्री.) शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि पूर्णिमा।

पूनें :: (मुहा.) अमाउस पूनें कभी-कभी।

पूर :: (सं. स्त्री.) गेंहूँ आदि के कटे हुए पौधों का छोटा बोझा या पूला।

पूरती :: (सं. स्त्री.) पूर्ति, पूरा करने की क्रिया, पूर्ण होने की अवस्था।

पूरन :: (वि.) पूर्ण, तृप्त।

पूरब :: (सं. स्त्री.) पूर्व दिशा, प्राचीन काल।

पूरब :: (कहा.) पूरब के भान पच्छिम में उगन लगें - किसी काम को न करने अथवा किसी के आगे न झुकने की प्रतिज्ञा।

पूरब :: (कहा.) पूरब जनम के फल भोग रये - पूर्व जन्म के फल भोग रहे हैं, प्रायः बीमार कहता है।

पूरबी :: (वि.) पूर्व का, पूर्व से संबंधित।

पूरबो :: (क्रि.) पाटना, भरना, उदाहरण-चौक पूरबो अल्पना बनाना, पुरिया पूरबौ-कपड़ा बुनने के लिए ताना डालना।

पूरबो :: (मुहा.) पुरिया पूरबो-एक ही जगह बार बार जाना आना।

पूरा :: (सं. पु.) आठ दसमुट्ठी घास का गट्ठा, पूजा।

पूरौ :: (वि.) पूर्ण, सम्पूर्ण जो अधूरा न हो।

पूरौ :: (कहा.) पूरी बिजत्तर - विकट स्त्री।

पूरौ :: (कहा.) पूरे गुरूघंटाल - बहुत बड़ा चालाक।

पूरौ :: (कहा.) पूरौ परबो - पूरा पड़ना, कार्य पूर्ण हो जाना, सत्यानाश हो जाना।

पूर्वा :: (सं. स्त्री.) सत्ताईस में से ग्यारहवाँ नक्षत्र।

पूलबौ :: (क्रि.) पूजा करना, मान्यता देना, अत्यंत आदर भाव रखना। पूरा पड़ना, पूर्ति होना।

पूस :: (सं. पु.) पौष, विक्रम संबंत का दसवाँ महीना।

पूस :: (कहा.) पूस जाड़ो न माव जाड़ो, जबै पानी तबई जाड़ो - सर्दी न तो पूस में पड़ती है न माघ में, जब पानी बरसे तभी समझो सर्दी।

पूस :: (कहा.) पूस बोवे, पीस खावे - पूस में कोई अनाज बोने की अपेक्षा यह है कि उसे पीस कर खा ले।

पें :: (उप.) पाँच का अर्थद्योतक उपसर्ग-पैंतीस, पैंतालीस आदि।

पेआउ :: (सं. स्त्री.) पौसरा, धर्मार्थ जल पिलाने का स्थान।

पेई :: (सं. स्त्री.) खण्डदार मिट्टी की अलमारी।

पेंच :: (सं. पु.) साफे की लपेट, हुक्के की लंबी लचीली नली, चालाकी, चक्कर, घुमाव, लकड़ी में कसी जाने वाली चक्करदार कीलें।

पेचक :: (सं. स्त्री.) सिलाई करने का या पंतग उड़ाने का पतला धागा।

पेजना :: (सं. पु.) स्त्रियों का पैरों में पहिना जाने वाला भारी वजन का आभूषण जो एक पैर का लगभग आधा किलो का होता है।

पेट :: (सं. पु.) उदर, शरीर के मध्य का अगला भाग, गर्भ।

पेट :: (मुहा.) पेट से गर्भवती उदाहरण-पेट काटबो-भरपेट भोजन न देना।

पेट :: (कहा.) पेट की आग पेटई जानत - पेट की आग पेट ही जानता है, भूखे का कष्ट भूखा ही जानता है।

पेट :: (कहा.) पेट की आसा सब करत - पेट के लिए ही सब काम किया जाता है, जब किसी नौकर या मजदूर को मेहनताना कम मिलता है तब।

पेट :: (कहा.) पेट में उरदा से चुर गये - पेट में उर्द से पक रहे हैं, अनिष्ट की आशंका से घबराना, बहुत चिन्तित होना।

पेट :: (कहा.) पेट में रई सी फिर रई - पेट में मथानी सी फिर रही है, हृदय धड़क रहा है, घबराहट हो रही है।

पेट :: (कहा.) पेट से होबो - गर्भ से होना।

पेट :: (कहा.) पेट सब कराउत - पेट के लिए अच्छे-बुरे सब कर्म करने पड़ते हैं।

पेट :: (कहा.) पेट सबकें लगौ - पेट की चिन्ता सबको करनी पड़ती है।

पेट :: (कहा.) पेट फूलबो - पेट में वायु का प्रकोप होना।

पेट :: (कहा.) पेट कौधंदो - जीविका उपार्जन को कार्य।

पेट :: (कहा.) पेट गिरबो - गर्भपात होना।

पेट :: (कहा.) पेट में बिलैया लड़बो - बहुत भूख लगना।

पेट :: (कहा.) पेट पै लात मारबो - रोटी छीनना।

पेटिया :: (सं. पु.) मन ही मन।

पेटी :: (सं. स्त्री.) सन्दूक, हारमोनियम, कमर कसने का बैल्ट, कारतूस लगाने का बैल्ट।

पेटीकोट :: (सं. पु.) साड़ी के नीचे पहिनने का अन्तर्वस्त्र, कम घेर का घाँघरा।

पेटू :: (वि.) अधिक खाने वाला।

पेटो :: (सं. पु.) पतंग की डोरी में पड़ने वाली गोलाईदार ढील, कागजात की उपेक्षित पूर्ति, इकठ्ठी हुई धनराशि।

पेठा :: (सं. पु.) भूरे कद्दू से बनने वाली एक मिठाई।

पेठाई :: (सं. स्त्री.) कन्या के विवाह में द्वारचार टीका और इस समय होने वाले समस्त क्रिया कलाप।

पेठिया :: (सं. स्त्री.) चार बजे सबेरे पशु चराने वाला।

पेंड :: (सं. पु.) अत्यंत आभार प्रदर्शन के हेतु दुर्गा पूजन के लिए औरतें घर से मंदिर तक पूरे मार्ग को साष्टाँग प्रणाम करती हुई तय करती है यही प्रणाम मुद्रा पेंड़ कहलाती है इस प्रकार मार्ग तय करने को पेड़ भरना कहते हैं।

पेंड़बो :: (क्रि.) अन्दर करना, घुसाना।

पेड़ा :: (सं. पु.) दूध के खोये से बनने वाली मिठाई।

पेंड़ा :: (सं. पु.) घोड़े बाँधने का स्थान, अस्तबल।

पेड़ी :: (सं. स्त्री.) किसी लता का सबसे नीचे अर्थात भूमि के पास वाला तना, ईख को बोकर तैयार की हुई फसल।

पेंड़ें :: (क्रि. वि.) पीछे पड़ना, कमी निकालने की सतर्क दृष्टि से पीछे लगे रहना।

पेड़ौ :: (सं. पु.) पेड़, वृक्ष, वृक्ष का तना।

पेंड़ौ :: (सं. पु.) पाला, प्रतिद्वन्द्विता, मुकाबला संघर्षपूर्ण सम्मुखता।

पेण्ट :: फूल पैण्ट, पतलून, हाफ पैण्ट।

पेंतड़ा :: (सं. पु.) पेंतरा लाठी या शस्त्र चालन में पग चालन, कुटिलतापूर्ण व्यवहार, चालाकी भरा व्यवहार।

पेंता :: (सं. पु.) धसान के किनारे की ओर बेकार भूमि को कहते हैं।

पेंता :: (सं. पु.) नयी निकली शाखाएँ या उपशाखाएँ।

पेंतालीस :: (वि.) चालीस और पाँच के योग की संख्या।

पेंती :: (सं. स्त्री.) कुश की पवित्री जो यज्ञ या आनुष्ठानिक पूजन में अनामिका उँगलियों में धारण की जाती है।

पेंती :: (सं. स्त्री.) उँगली में पहनने का गहना, कुश की छाल, अँगुली।

पेंतीस :: (वि.) तीस और पाँच के योग की संख्या।

पेंतीसा :: (क्रि. वि.) जिसके ऊपर पेंतीस हो पहाड़ों में प्रयुक्त पेंतीसा सौ एक सौ पेंतीस।

पेदा :: (वि.) उत्पन्न, प्रकट हुआ या प्रादुर्भाव, कमाया हुआ, उपार्जित।

पेंन :: (सं. पु.) ऐसी लेखनी जिसमें स्याही भरी रहती है।

पेंनयाबौ :: (क्रि.) धार तेज करना, पेंना करना, बाँस की छलनी द्वारा भात से माँड़ अलग करना।

पेंना :: (सं. पु.) बहुत मात्रा में बने भात से मांड निकालने के लिए पात्र के मुँह पर लगायी जाने वाली बाँस की छलनी।

पेंनों :: (वि.) तेज धारवाला।

पेन्ना-पेरना :: (सं. स्त्री.) कार्य करने की जटिल, उबाऊ और थकान पैदा करने वाली स्थिति, पस्त करने वाला काम।

पेरबो :: (क्रि.) तिलहन से तेल निकालना, ईख से रस निकालना, किसी को थकाने या उबाने वाला जटिल काम करवाना, परेशान करना।

पेरा :: (सं. पु.) दे. पेड़ा।

पेराख :: (सं. स्त्री.) लगभग एक एक डेढ़ डेढ़ किलो वजन की गुलियाँ जिनको मेवों से सजाकर बनाया जाता है ये लगुनयों के साथ वर पक्ष पी ओर से कन्या पक्ष की ओर भेजी जाने वाली दिखनी में भेजी जाती हैं इसी प्रकार अन्य मिठाईयाँ बड़ी बड़ी भेजी जाती है।

पेलबो :: (क्रि.) बलपूर्वक आगे बढ़ाना जैसे दण्ड पेलना, पूरी तरह से बलपूर्वक भरना।

पेलर :: (सं. पु.) अण्डकोस।

पेलां :: (सं. पु.) आक्रमण, छुट्टा।

पेलापेल :: (क्रि. वि.) भरपूर।

पेवसी :: (सं. स्त्री.) तेली का बना पदार्थ।

पेस :: (सं. पु.) प्रस्तुत करने की क्रिया, बराबरी करने की क्रिया।

पेस :: (प्र.) वे उसके पेश नई पा सकता।

पेसादार :: (सं. पु.) निजी सेवक, गन्दी सेवायें करने वाले सेवक, मेहतर।

पेसादारी :: (सं. स्त्री.) गुलामी के स्तर की सेवा, निजी सेवा, गन्दी सेवा।

पेसाब :: (सं. स्त्री.) मूत्र।

पेसौरी :: (सं. पु.) देशी जूता।

पेस्तर :: (क्रि. वि.) पहले, पूर्वकाल।

पेस्तर :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

पै :: (अव्य.) अव्य. परन्तु, ऊपर, पास।

पैकरा :: (सं. पु.) पैकड़ा, कैदियों के पैरों में डाली जाने वाली बेड़ी।

पैजनियाँ :: (सं. स्त्री.) बच्चों को पहिनाये जाने वाले हल्के बजन के पैजना जिसमें प्रायः कंकड़ आदि डाल दिये जाते हैं ताकि बच्चों के चलते समय वे बजें।

पैठ :: (सं. स्त्री.) मान्यता, परिचय की गहनता, साख, प्रतिष्ठा बनाये रखने की क्रिया, पहुँच।

पैंड :: (सं. पु.) शरीर के आठों अंगों की लम्बाई तक का स्थान, साष्टांग दण्डवत के समय उदाहरण-पैंड भरबो-साष्टांग नमस्कार करते हुए जाना उदाहरण-विंध्य निवासनी पैंड भरौ दोउ पावन पंकज सीस नवाऊँ।

पैड़ी :: (सं. स्त्री.) तालाब की सीढ़ी, पीढ़ी।

पैड़ौ :: (सं. पु.) दे. पेड़ो।

पैण्टर :: (सं. पु. अं.) रंग साज, पैण्ट से लिखने वाला या चित्र बनाने वाला।

पैदर, पैदल :: (क्रि. वि.) पैरों से चलना, संज्ञा तथा विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त।

पैदावार :: (सं. स्त्री.) उपज, कृषि से उत्पन्न।

पैदास :: (सं. स्त्री.) पैदाइश, उत्पत्ति, जन्म।

पैबो :: (क्रि.) रोटी को हाथ या बेलन से बनाना।

पैमास :: (सं. स्त्री.) भूमि नापने की क्रिया।

पैर :: (सं. पु.) दाँये के लिए वृत्ताकार फैलाये गये अनाज के सूखे पौधे, जिन्हे बैलों के पैरों से कुचलवा कर अनाज अलग किया जाता है।

पैरइया :: (सं. पु.) तैरने वाला।

पैरन :: (सं. पु.) अण्डकोश, शिष्ट भाषा में प्रयुक्त ब.ब. में ही प्रयोग होता है।

पैरबी :: (सं. स्त्री.) वकालत, किसी के पक्ष में तर्क देने की क्रिया।

पैरबो :: (क्रि.) तैरना।

पैरा :: (सं. पु.) सुनारों के औजार रखने का डिब्बा।

पैराउन :: (सं. स्त्री.) कन्या के विवाह में बारातियों को वस्त्र के रूप में दिया जाने वाला उपहार, देने की क्रिया।

पैराव :: (सं. पु.) पहिनावा, कपड़े पहिनने का तरीका, तैरने का तरीका।

पैरी :: (सं. स्त्री.) दे. पैड़ी।

पैरी :: (कहा.) पैरी ओढ़ी धन दिपै, लिपौ पुतौ घर खिलै - गहने-कपड़ों से सजी स्त्री शोभा देती है, लिपा-पुता घर अच्छा लगता है।

पैरो देबो :: (स. क्रि.) रखवाली करना।

पैरोकर :: (सं. पु.) पैरवी करने वाला, थाने का वह सिपाही जो प्रकरणों के अदालती कागजात तैयार करत है।

पैल :: (वि.) पहले, पूर्व काल।

पैल :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

पैलँउँ :: (वि.) दे. पैल, पहले, सर्वप्रथम।

पैलवान :: (सं. पु.) पहलवान, शक्तिशाली, कुने वाला, कसरत करने वाला।

पैलवानी :: (सं. स्त्री.) शक्ति प्रदर्शन के लिए व्यंग्य रूप में प्रयुक्त।

पैला :: (सं. पु.) अनाज नापने का बर्तन जिसकी समाई लगभग दस किलो अनाज की होती है।

पैलाँ :: (वि.) दे. पैल, पैलउँ।

पैलियाँ पैली :: (सं. स्त्री.) दे. पैला।

पैले :: (वि.) दूसरे से आगे।

पैलो :: (वि.) पहला, प्रथम।

पैलो :: (कहा.) पैली छेरी, दुसरी गाय, तिसरी भैंस दुही न जाय - बकरी पहले ब्यान में, गाय दूसरे में, और भैंस तीसरे में अच्छा दूध देती है।

पैलो :: (कहा.) पैलें घर, पाछें बाहर - पहिले अपना घर सँभाले, फिर बाहर।

पैलो :: (कहा.) पैलें मार, पीछें सँभार - पहिले आगे बढ़ कर दुश्मन पर हाथ जमा देना चाहिए, बाद में अपने को सँभालना चाहिए।

पैलो :: (कहा.) पैलेई कौर माछी परी - पहिले कौर में ही मख्की पड़ी, कार्य के प्रारंभ में ही विघ्न हुआ।

पैलो :: (कहा.) पैलेई चूमा गाल काट खाये - किसी अवसर से अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए ऐसी हड़बड़ी करना कि सारा काम ही चौपट हो जाय तब।

पैलो :: (कहा.) पैले दिना कौ पाउनो, दूसरे दिना कौ पई, तीसरे दिना रये तौ बेसरम सई - किसी के घर एक दिन रहने वाला ही पाहुना कहलाता है, दो दिन रहे वह पथिक है और तीन दिन रहने वाले को तो पक्का बेशरम समझना चाहिए।

पैलो :: (कहा.) पैलो गाहक परमेश्वर बिरोबर होत - पहिला ग्राहक परमेश्वर के समान होता है, दुकानदारों का विश्वास।

पैलो :: (कहा.) पैलो सुक्ख निरोगी काया, दूजो सुक्ख होय घर माया, तीजो सुक्ख पुत्र अधिकारी, चौथी सुक्ख पतिव्रता नारी - पहिला सुख शरीर का नीरोग रहना, दूसरा घर में धन-संपत्ति का होना, तीसरा योग्य पुत्र का होना और चौथा पतिव्रता स्त्री का पाना है।

पैलोड़ी :: (वि.) प्रथम प्रसव करने वाली।

पैसा :: (सं. पु.) रुपये का एक बहुत छोटा भाग।

पोइया :: (सं. पु.) ज्वार का मक्का के पौधों का ऊपरी भाग जहाँ हरे और मुलायम पत्ते होते हैं।

पोई :: (सं. स्त्री.) बरेजों में पैदा होने वाली भाजी, इसकी बेल होती है।

पोंक :: (सं. स्त्री.) पतली पुट्टी की दबाव के साथ आने वाली तेज धार।

पोंकबौ :: (क्रि.) जानवरों को दस्त लगना।

पोखरी :: (सं. स्त्री.) कपड़ा बुनने वाले के बैठने की जगह।

पोंगरा :: (सं. पु.) नल के समान लोटा हुआ कागज आदि, मोटे व्यास की नली।

पोंगा :: (वि.) मूर्ख, रहन सहन में भद्र किन्तु मूर्ख।

पोच :: (क्रि.) तुच्छ, नीच।

पोंच :: (सं. पु.) पहुँच, पँहुचने की क्रिया।

पोंचबो :: (क्रि.) पहुँचना।

पोंचयाबो :: (क्रि.) महुए पर गुच्छों में फूल आना।

पोंचा :: (सं. पु.) साढ़े तीन का पहाड़ा, महुए के फूलों का गुच्छा।

पोंचियाँ :: (सं. स्त्री.) सफेद पोत की कई लड़ियाँ गूंथ कर बनाये जाने वाले छोटे बच्चों की कलाई के आभूषण, सोने के बड़े गुरियों को धागों में गूँथकर बनाये जाने वाले स्त्री कलाइयों के आभूषण।

पोचे :: (वि.) धनहीन, रिक्त, ओछे स्वभाव वाला।

पोंछन :: (सं. पु.) पोंछने से निकला हुआ पदार्थ।

पोंछनया :: (वि.) पोंछने वाला, पोंछने वाला वस्त्र।

पोंछबो :: (क्रि.) कपड़े आदि से रगड़ से साफ करना।

पोटबो :: दे. पुटयाबो।

पोटा :: (वि.) मीठी मीठी बातें करके स्वार्थ सिद्ध करने वाला।

पोटा :: (सं. पु.) गोबर का छोटा चेंबटा।

पोंडबौ :: (क्रि.) लेटना, भगवान या राजाओं आदि के संदर्भ में प्रयुक्त।

पोंड़ा :: (सं. पु.) गन्ना, सर्प का बच्चा।

पोत :: (सं. पु.) सूत, कपड़े में सूत की घसाई, बुनावट काँच के छोटे मोती, मलियाँ की माला का बर्तन।

पोतनी :: (सं. स्त्री.) सफेद मिट्टी जिससे दीवारें आदि पोती जाती हैं।

पोतबौ :: (क्रि.) दीवारों पर सफेदी करना, रंगना हलके हाथ से लेप करना।

पोतला :: (सं. पु.) गोल पेंदी की चपटी सुराही।

पोता :: (सं. पु.) पोतने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़।

पोती :: (सं. स्त्री.) बर्तन पर चिकनाई लाने वाला कपड़ा।

पोती :: (सं. स्त्री.) लगभग दो ढाई सौ ग्राम अनाज की समाई का नापने का धातु या लकड़ी का बर्तन, खोखली, स्त्री.वणिक प्रिया।

पोते :: (सं. पु.) अण्डकोष, फोते।

पोतौ :: (सं. पु.) वसूली आदि से जमा राशि, कोष में जमा धन राशि।

पोथी :: (सं. स्त्री.) पुस्तक, लहसुन का दाना।

पोंद :: (सं. पु.) नितम्ब, चूतड़।

पोंदयाबो :: (क्रि.) नितम्बों से धक्का देना, किसी का हर बात के लिए टोकते रहना, किसी का मनोबल गिराने के लिए उसके पीछे पड़े रहना।

पोंन :: (वि.) तीन बटे चार।

पोंनई :: (सं. स्त्री.) मेहमानी, पहुनाई।

पोंना :: (सं. पु.) तीन बटे चार का पहाड़ा।

पोंनार :: (सं. स्त्री.) मेहमानों, समूह।

पोंनार :: (प्र.) आज कल घर में पोनारपरी।

पोंनी :: (सं. स्त्री.) सूत कातने के लिए बनाई जाने वाली रूई की वर्तिका।

पोंनी :: (कहा.) राँटा कतै न पोनी, देखत की बउ नोनी।

पोनें :: (क्रि. वि.) किसी भी संख्या का तीन बटे चार।

पोबौ :: (क्रि.) सूई या मनकों में धागा पिरोना।

पोया-पोथना :: (सं. पु.) मोटी तथा बड़ी पुस्तक।

पोर :: (सं. स्त्री.) ईख की या उँगलियों की दो गाँठों के बीच का भाग।

पोरा :: (सं. पु.) उँगली की दो गाँठों के बीच का भाग।

पोल :: (सं. स्त्री.) ठोस वस्तुओ के बीच में खाली जगह, कमी कोई, गुप्त भेद।

पोलका :: (सं. पु.) स्त्रियों की कुर्ती, ब्लाउस।

पोला :: (सं. पु.) खेतों में पैदा होने वाला एक खरपत्तवार जो एक पाला डण्डल मात्र होता है।

पोस :: (सं. पु.) पोषण पाल पोस समास में प्रयुक्त।

पोसाग :: (सं. स्त्री.) पोशाक, स्त्री या पुरुष के सिले हुए पूरे वस्त्र।

पोस्ट :: (सं. स्त्री.) डाकखाने का स्थान, सेवा का पद।

पोस्ता :: (सं. पु.) अफीम का फल।

पोहिया :: (सं. पु.) एक शिकारी पक्षी पुट्टी।

पौ :: (सं. स्त्री.) नदी की बाढ़, उषा पूर्व का पूर्व दिशा में प्रकाश, पौ फटबौ पड़आ एक।

पौ :: (प्र.) पौबारा तेरह।

पौकबो :: (क्रि.) वेग के साथ मल त्याग।

पौंचिया :: (सं. पु.) हाथ का गहना।

पौंछबो :: (क्रि.) पोंछना, साफ करना।

पौठो :: (सं. पु.) दे. पैठाई।

पौद :: (सं. स्त्री.) पौध, बीजों से तैयार किये गये छोटे पौधे।

पौदा :: (सं. पु.) पेड़ पर चढ़ने के ऊपर पैर जमाने के लिए बनाये गये स्थान, सुतली का टुकड़ा।

पौदीना :: (सं. पु.) मसाले के काम आने वाला मैंथोलजाति का एक पौधा।

पौधा :: (सं. पु.) पौधा छोटे आकार का उद्भिज जीव।

पौन :: (वि.) दे. पोंन।

पौनकरौ :: (वि.) दे. पोनकरौ।

पौंनकरौ :: (वि.) लगभग तीन चौथाई।

पौनी :: (वि.) मुलायम, कोमल।

पौनी :: (कहा.) पौनी सौ पेट, बऊ मार गई जेट - पेट तौ पोनी की तरह मुलायम परन्तु रोटियों का ढेर का ढेर बऊ ने खा लिया।

पौबारा :: (सं. पु.) चौपड़ के खेल में तेरह का अंक, सुखदायी स्थित, आवश्यक वस्तुओं की आवश्यकता से अधिक पूर्ति की स्थित।

पौबारा :: (कहा.) पौ बारा हैं - लाभ का अवसर मिलना, जीत होना, चौपर के खेल में पौ बारा का दावें बहुत अच्छा माना जाता है।

पौर :: (सं. स्त्री.) घर का पहला कमरा आँगन के इस पार का कमरा जिसमें प्रवेश द्वार होता है तथा बैठक के रूप में काम आता है बाहरी दरवाजे के सामने अन्दर चबूतर होता है।

पौरा :: (सं. पु.) पनाला, बरसाती पानी का बहाव, बरसात में पानी के बहाव से बने कटान।

पौरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी पौर जिसमें प्रायः चबूतरा नहीं होता।

पौलबौ :: (क्रि.) किसी कोमल वस्तु को हँसिया से काट कर टुकड़े करना।

पौली :: (सं. स्त्री.) अनाज नापने का सबसे छोटा पात्र जो लगभग आधा पाव का होता है उदाहरण-पोली अनाज-नापने का बर्तन।

पौलौ :: (वि.) खोखला, कहा पोली भरे कोदों, मिरजापुर की हाट-छोटे काम का बड़ा आयोजन।

प्याउ :: (सं. स्त्री.) दे. पेआउ, पौसरा, धर्मार्थ।

प्याज :: (सं. पु.) दे. पिआज।

प्यादौ :: (सं. पु.) पैदल, सैनिक, शतरंज का एक मुहरा।

प्यादौ :: (कहा.) प्यादे तें फरजी भयौ, टेड़ौ टेड़ौ जाय।

प्याबौ :: (वि.) पिलाना, तरल पदार्थ को सन्धियों या रन्ध्रों में भरना।

प्यार :: (सं. पु.) प्रेम, मुहब्बत।

प्याँर :: (सं. पु.) दे. पिआँर।

प्यासा :: (सं. स्त्री.) जल पीने की इच्छा, ऋषा।

प्रकोप :: (सं. पु.) दैवी अनकृपा।

प्रगटबौ :: (क्रि.) प्रकट होना।

प्रचण्ड :: (सं. पु.) दे. पिरचण्ड।

प्रचार :: (सं. पु.) दे. पिरचार।

प्रतच्छ :: (क्रि. वि.) प्रत्यक्ष, आँखों के सामने।

प्रतबन्द :: (सं. पु.) प्रतिबन्ध, निषेध, रोक, मनाही।

प्रतमा :: (सं. स्त्री.) प्रतिमा, देवमूर्ति।

प्रतवादी :: (सं. पु.) प्रतिवादी, मुकदमे का बचाव पक्ष।

प्रतिष्ठा :: (सं. स्त्री.) देवमूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की आनुष्ठानिक क्रिया।

प्रधान :: (वि.) मुख्य, प्रमुख।

प्रधान :: (सं. पु.) ग्राम प्रधान, सरपंच।

प्रन :: (सं. पु.) दे. पिरन, प्रण।

प्रनामी :: (सं. पु.) स्वामी प्राणनाथ जी के सम्प्रदान का नाम जिसमें श्रीकृष्ण की मूर्ति का पूजन न कर के उसकी मुरली व मुकुट का पूजन किया जाता है।

प्रनामी :: (सं. स्त्री.) गुरू को प्रणाम करके दी जाने वाली भेंट।

प्रबचन :: (सं. पु.) प्रवचन, उपदेश परक भाषण, धार्मिक व्याख्यान।

प्रस्न :: (सं. पु.) प्रश्न, सवाल, समस्या।

प्राइवेट :: (सं. स्त्री.) निजी, गोपनीय।

प्रान :: (सं. पु.) प्राण।

प्रानी :: (सं. पु.) जीवधारी।

प्राप्ती :: (सं. स्त्री.) प्राप्ति, जो मिला हो।

प्रार्थना :: (सं. स्त्री.) प्रार्थना, स्तुति, निवेदन।

प्रीत :: (कहा.) प्रीत करे कौ जौ फल पाओ, अपुन थूके और हमें थुकाओ - प्रेम करने का यह फल की स्वयं भी बदनाम हुए और हमें भी बदनाम कराया।

प्रीत :: (सं. स्त्री.) प्रिति, प्रेम।

प्रेम :: (वि.) प्रेम, मुहब्बत, लगाव।

प्रेमी :: (सं. पु.) प्रेम करने वाला, मुहब्बत करने वाला, लगाव रखने वाला, अच्छे स्वभाव वाला, स्निग्ध व्यवहार करने वाला।

प्लेक :: (सं. स्त्री.) प्लेग, एक रोग जिसमें शरीर में गिल्टियाँ उठती है यह पिस्सुओं और चूहों से महामारी के रूप में फैलता है।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के प वर्ग का दूसरा वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान ओष्ठ्य हैं।

फक :: (क्रि. वि.) सफेद, अधिक सफेद, क्रिया विशेषण. के रूप में भी प्रयुत।

फकत :: (सं. पु.) बीच से काटी गई किसी वस्तु का एक पतला हिस्सा।

फकत :: (वि.) बस, केवल।

फकफकाबो :: (क्रि. अ.) फक-फक जैसी आवाज होना, घबराना।

फकबौ :: (क्रि.) तेज धार से बिना अधिक पीड़ा के कट जाना।

फका :: (सं. पु.) किसी वस्तु को फाड़ने से पृथक हुआ भाग, दातून को चीर कर जीभ साफ करने को बनायी गयी जीभी।

फंका :: (सं. पु.) फाँकने की क्रिया, किसी वस्तु की एक बार में फाँकी जाने वाली मात्रा।

फंका :: (सं. पु.) फांकने की क्रिया, किसी वस्तु की एक बार में फाँकी जाने वाली मात्रा।

फकिया :: (सं. स्त्री.) फल आदि का पतला टुकड़ा, आम का फकिया।

फँकी :: (सं. स्त्री.) चूर्ण को खाने की क्रिया।

फँकी :: (प्र.) फंकी लगाबौ।

फकीर :: (सं. पु.) मुस्लिम साधु, धनहीन किन्तु उदात्त भावना वाला।

फकीरन :: (सं. स्त्री.) फकीर की स्त्री, फकीर का बहुवचन।

फकीरी :: (सं. स्त्री.) गरीबी।

फक्क :: (वि.) दे. पुक बलवाची प्रयोग।

फक्कड़ :: (वि.) धनहीन किन्तु धन के लिए चिन्तित न रहकर मस्ती का जीवन जीने वाला।

फक्की-फक्कौ :: (सं. स्त्री.) सूखे चूर्णित पदार्थ की वह मात्रा जो हथेली पर रखकर खायी जा सके।

फंग :: (सं. पु.) फंदा।

फगवाबौ :: (क्रि.) होली के दिनों जैसा मन होना, फाल्गुन जैसी हवा चलना।

फगवारौ :: (सं. पु.) होली खेलने वाला।

फँगसा :: (सं. पु.) ऐसी लकड़ी जिसमें दो शाखऎं फूटी हों, दो शाखा।

फगुवा-फगुआ :: (सं. पु.) फाग खेलने के उपलक्ष्य में दी जाने वाली मिठाई।

फंच :: (सं. स्त्री.) लकड़ी या बाँस की छिपट।

फचारबौ-फचीटबो :: (क्रि.) कपड़े को लम्बा करके और खड़े-खड़े पत्थर पर पटक-पटक कर धोने की क्रिया।

फजीता-फजीतौ :: (सं. पु.) तू-तू, मैं-मैं, एक दूसरे की पोलें खोलते हुए लड़ने की क्रिया, हास्यास्पद स्थिति।

फजीयत :: (सं. स्त्री.) बदनामी, दुर्दशा, दुर्गति।

फजूल :: (वि.) व्यर्थ, बेकार, बेमतलब, फिजूल।

फट :: (क्रि. वि.) शीघ्रता से।

फटकन :: (सं. पु.) सूपा की सहायता से पृथक किया गया हलका अनाज तथा हलका कूड़ा करकट।

फटकबौ :: (क्रि.) सूपा की सहायता से अनाज से हल्का कचरा अलग करना, किसी के पास क्षण भर को रुकना।

फटकरी :: (सं. स्त्री.) फिटकरी, एक रसायन।

फटकार :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु आदि को ऊर्ध्वाधर गति से झटकारने की क्रिया, वमन, कै, उल्टी डाँट।

फटकारबौ :: (क्रि.) कपड़े आदि को फटकारना, डाँटना, किसी के द्वारा किये गये अनुचित और अबांछित कार्य के लिए उसे बुरा भला कहकर लज्जित करना।

फटकिया :: (सं. स्त्री.) किसी छोटे दरवाजे के लिए एक ही किवड़िया।

फटकी :: (सं. स्त्री.) पक्षियों को पकड़ने का पिंजरा।

फटकी :: (मुहा.) फटकी सी रोपबौ-इधर-उधर प्रयास करते हुए भटकना।

फटफट :: (सं. स्त्री.) मोटर साइकिल की फट-फट आवाज।

फटफट :: (क्रि.) फट-फट शब्द होना।

फटफटाबौ :: (क्रि.) व्याकुल होना, उदाहरण-फटफटाट रैजाबो-प्रयत्न में असफल होकर रह जाना, फतफतात फिरबो-परेशान करना, हाथ पैर मारना।

फटफटिया :: (सं. स्त्री.) दे. फटफट।

फटा :: (सं. पु.) किसी वस्तु का छोटा सा टुकड़ा।

फटाक :: (वि.) तुरन्त।

फटाका :: (सं. पु.) फटाके की आवाज, पटाखा, फटाक की आवाज करने वाली आतिशबाजी।

फटाव :: (सं. पु.) चौड़ी दरार, फटने से बना अन्तर।

फटिक :: (सं. पु.) स्फटिक, शुभ्र पत्थर, फटिक सिला, चित्रकूट की स्फटिक शिला।

फटियाँ :: (वि.) फटेहाल, आगे नाथ न पिछै पगहा की स्थति के कारण सामाजिक शील से मुक्त।

फटीचरा :: (वि.) फटा पुराना वस्त्र।

फटुआ :: (सं. पु.) फटा डंडा।

फटो :: (वि.) फटा हुआ दरार वाला, विकृत अवस्था वाला।

फटोंई :: (सं. पु.) फाड़ने वाला।

फट्ट :: (सं. पु.) बैलगाड़ी में अनाज भरने के लिए बैलगाड़ी के बराबर आकार का सन की रस्सी से बना चौड़ा बोरा।

फट्टा :: (सं. पु.) जूट का एक बोरा जो भरने के काम का न रहा हो किन्तु बिछाने के काम आता है, खुली जगह पर दुकान लगाने का सरंजाम एवं बिछावन।

फट्टा :: (मुहा.) फट्टा लौटबौ-व्यापार में होने वाला ऐसा घाटा जिससे समूची व्यापारिक व्यवस्था गड़बड़ा जाये।

फट्टी :: (सं. स्त्री.) जूट के पतले धागे से बुना हुआ एक प्रकार का कपड़ा, पाठशाला में बालकों की लम्बी बिछावन।

फड़ :: (सं. पु.) मोर्चा, जवाब-सवाल वाली प्रतिस्पर्धा, ख्याल गायकी का मंच, खुले में लगी दुकान, वह अड्डा जहाँ जुआ खेला जा रहा हो, बीड़ी पत्ती एकत्रित किये जाने का स्थान।

फड़क :: (सं. पु.) फर्क, अन्तर वैष्मय, फड़कने की क्रिया या भाव।

फड़कबौ :: (क्रि.) किसी भी अंग में अनचाही हरकत होना, छिटक कर समूह से अलग गिरना।

फड़फड़ाबौ :: (क्रि.) व्याकुल हाना, छपटाना, पक्षियों को पर मारना।

फड़रा :: (सं. पु.) दीवार के सहारे लगी सीढ़ियों में लगने वाला खड़ा पत्थर।

फड़ी :: (सं. स्त्री.) एक सौ घन फुट मिट्टी या गिट्टी का नाप।

फड़ी गतका :: (सं. स्त्री.) ढाल तलवार चलाने का खेल जिसमें तलवार के स्थान पर छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।

फड़ैरा :: (सं. पु.) दे. फड़रा।

फतबा :: (सं. पु.) व्यवस्था, धार्मिक निर्णय।

फतरा :: (सं. पु.) पत्थर।

फतुइँ-फतूमा-फतूरी :: (सं. स्त्री.) कुर्ती, छोटी कमीज, सामने से बटन लगी कपड़े की सिली हुई बनयान जैसी ग्रामीण पोशाक।

फतूम :: (सं. स्त्री.) बनयान।

फतै :: (सं. स्त्री.) फतह, विजय, जीत, सफलता।

फत्तर :: (सं. पु.) पत्थर ओला, उदाहरण-फत्तर की छाती-मजबूत दिल, फत्तर की लकीर-न मिटने वाली वस्तु, फत्तर परबो-ओले पड़ना, चौपट होना, फत्तर पै दूब जमाबो, अनहोनी का होना।

फंद :: (सं. पु.) छल, धोखा, चालबाजी।

फदक :: (सं. स्त्री.) फदकुली, गिलकी, सपाट सतह वाली तरोंई, एक फल जो हरा और लम्बा होता है तथा शाक के काम आता है।

फदकबौ :: (क्रि.) गाढ़ी वस्तु का फद फद की ध्वनि करते हुए चुरना, छोटी-छोटी और पास-पास फुंसियों का होना।

फँदकबौ :: (क्रि.) दबे हुए क्रोध को स्फुट शब्दों और काम-काज में उठा-पटक के द्वारा प्रकट करना, चकरी की समान्य गति के बीच क्षणिक बाधा होना।

फदका :: (सं. पु.) मोच या चोट पर लेप करने के लिए आग पर पकाई हुई औषधियों की लेई।

फदकौरा :: (सं. पु.) फदकुली, गिलकी के पतले टुकड़ों को बेसन के गाढ़े घोल में लपेठ कर तथा तेल में तल कर बनाये जाने वाले पकौड़े।

फंदना :: (सं. पु.) पत्थर फेंकने का गुथना।

फदफदाबौ :: (क्रि.) गाढ़ी वस्तु का फद-फद की आवाज करने चुरना।

फँदबो :: (क्रि.) सम्भोगरत होना, विशेषकर पशुओं का।

फँदा :: (सं. पु.) फन्दा, जाल के छेद।

फदाल :: (सं. पु.) असत्य, अर्द्ध सत्य बातों का जाल।

फदाली :: (वि.) झूठी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर कहने वाला।

फंदो :: (सं. पु.) जाल।

फद्द :: (वि.) ओंधा, अगला भाग नीचे और पिछला ऊपर की स्थिति में।

फद्द :: (कहा.) चित्त मोरी, पट्ट मोरी, अण्टा पै लड़ाई।

फद्दा :: (वि.) जो शरीर से पुष्ट दिखता हो, किन्तु उसमें शक्ति और फूर्ती न हो।

फन :: (सं. पु.) सर्प के मुख के थोड़े पीछे का भाग जिसे वह कभी-कभी चौड़ा करके अपने शरीर के अग्रभाग को ऊँचा उठा लेता है, यह काल सर्प की कुछ जातियों में होता है भाले की नोंक तीर की नोंक।

फनफनाबौ :: (क्रि.) क्रोध प्रकट करने के लिए धीरे धीरे बड़बड़ाना।

फनयारौ :: (वि.) फन वाला सर्प।

फना :: (क्रि. वि.) धोती को घुटने के ऊपर करना।

फनूना :: (सं. पु.) कोदों या जुंआर की रोटी के ऊपर की पतली पर्त निकाल कर तथा मोटी पर्त पर तेल चुपड़ कर और नमक डालकर आग पर गर्म किया जाता है उस समय रोटी पर चुरने से उठने वाले छोटे-छोटे बुलबुले।

फन्द :: (सं. पु.) दुख, तकलीफ का बहाना।

फन्दया :: (वि.) दुख तकलीफ को झूठा दिखावा करने वाला।

फन्दा :: (सं. पु.) दे. फँदा।

फपूँड़बौ :: (क्रि.) फफूँदी लग जाना।

फपूला :: (सं. स्त्री.) छाला।

फफूड़बौ :: (क्रि.) दे. फपूँड़बौ।

फफूँड़ा :: (सं.) फफूँदी लगना, चमड़ी का रूक्ष तथा भूरा होना।

फफोला :: (सं. पु.) छाला, छलका।

फबकनो :: (क्रि.) फूट-फूटकर रोना।

फबकबौ :: (क्रि.) छोटी-छोटी घनी फुंसियाँ होना, सिसकना।

फबती :: (सं. स्त्री.) व्यंग्य, चुटकी, ताना, हँसी की बात जो किसी पर घटती हो।

फबदबौ :: (क्रि.) छोटी-छोटी फुंसियाँ होना।

फबनो :: (वि.) शोभा देना।

फबबौ :: (क्रि.) किसी बात या श्रृँगार का एकदम सटीक लगना।

फबाबो :: (स. क्रि.) ठीक बैठाना, शोभा बढ़ाना।

फबीलो :: (वि.) फबने वाला, सजने वाला।

फब्वारौ :: (सं. पु.) फुहारा, बलवाची प्रयोग।

फर :: (सं. पु.) दे. फड़।

फर :: (प्र.) फर में फतै बुंदेलन पाई छत्र प्रकाश।

फरइया :: (सं. स्त्री.) लगभग डेढ़ फुट लम्बी लकड़ी, फाड़ने वाला।

फरक :: (सं. स्त्री.) दे. फड़क, बीच का अन्तर या दूरी।

फरकती :: (सं. स्त्री.) हिसाब का चुकता होना।

फरकबौ :: (क्रि.) दे. फड़कबौ।

फरकबौ :: (क्रि.) किसी सूखी वस्तु को खरल में पीसते समय अधिक महीन पिस जाने पर मूसली के बगल के आघात से खरल के बाहर उछल जाना।

फरचट :: (वि.) चालाक, बदमाश, कुटिल।

फरज :: (सं. पु.) फर्ज, कर्त्तव्य।

फरजण्ट :: (वि.) दे. फरचट, तेज तर्रार।

फरजण्टी :: (सं. स्त्री.) फौजी ढंग का सैल्यूट।

फरजाद :: (सं. स्त्री.) फरयाद, शिकायत।

फरजी :: (वि.) नकली, झूठी, बनावटी, शतरंज का एक मोहरा।

फरफन्द :: (सं. पु.) दे. फन्द।

फरफराबौ :: (क्रि.) दे. फड़फड़ाबो।

फरबौ :: (क्रि.) फलना, फलयुक्त होना, पशुओं का गर्भधारण करना।

फरमा :: (सं. पु.) आकार और नाप की अनुरूपता रखने के लिए साँचा, जूतें बनाने के लिए लकड़ी का ढाँचा जिसके ऊपर चमड़ा लगाकर जूतों का निर्माण किया जाता है, बीड़ी की पत्ती को काटने के लिए उसके मानक नाप का टीन का टुकड़ा।

फरमान :: (सं. पु.) आज्ञा-पत्र।

फरयाद :: (सं. स्त्री.) दे. फरजाद।

फरयो :: (वि.) फला हुआ।

फरवन :: (क्रि. वि.) पैर के पंजों तक, (गहरा), कारक युक्त शब्द।

फरवा :: (सं. पु.) पैर के पंजों का ऊपरी भाग।

फरवाँ :: (सं. पु.) अँगुली में पहनने का एक प्रकार का छल्ला जिसकी डंडी में तीन फेरे रहते है।

फरस :: (सं. पु.) फर्स, बिछावन, बड़ी दरी, मिट्टी या सीमेन्ट से पक्की और समतल की हुई भूमि।

फरसा :: (सं. पु.) परशु, अर्द्धचन्द्राकार कुल्हाड़ी।

फरसी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का हुक्का जिसमें चिलम रखने का बसीटा और धुँआँ खींचने की नली एक छेद से निकलती है।

फरा :: (सं. पु.) घी-तेल के बजाय पानी में उबाली पूड़ी, खौलते पानी में सेकी रोटी।

फराकत :: (क्रि. वि.) फरागत, निवृत्त उत्तरदायित्व से मुक्त, किसी कार्य से फुरसत।

फरार :: (वि.) कानून से बचकर गायब हुआ व्यक्ति।

फरार :: (सं. पु.) फलाहार, ऐसा आहार जिसमें अन्न का समावेश न हो।

फरारा :: (सं. पु.) मौर का एक हिस्सा, माली, ध्वजा, पताका।

फरारी :: (वि.) ऐसी वस्तु जो दूध दही, फल आदि से निर्मित हो तथा अन्नमय न हो, ऐसा व्यक्ति जो अन्न का आहार न लेकर फलाहार करता हो, कानून से भागे रहने की दशा।

फरारू :: (वि.) अन्नहीन, दूध, दही तथा फलों का आहार।

फरारो :: (वि.) विस्तार युक्त, फैलाव वाला, उदाहरण-देश की रक्षा हित सब, मिलकर करने हाथ फरारे।

फरारौ :: (वि.) वर्षा का ऐसा समय जब वर्षा कुछ कम हो गयी हो, ऐसा घाव जो थोड़ा सा ठीक हो गया हो।

फरिया :: (सं. स्त्री.) बच्चियों की घँगरिया के साथ ओढ़ी जाने वाली ओढ़नी दुपट्टा।

फरिया :: (कहा.) फरिया न सारी, बड़ी शोभा हमारी - पहिनने को न तो फरिया है न साड़ी, फिर भी अपने को बहुत सुन्दर समझती है।

फरीक :: (सं. पु.) वादी अथवा प्रतिवादी पक्ष का व्यक्ति।

फरूआ :: (सं. पु.) फडुआ, फावड़ा।

फरूरी :: (सं. स्त्री.) सिहरन।

फरेस :: (वि.) फ्रैश, ताजा, नया, अक्षत।

फरैतौ :: (सं. पु.) हल का वह भाग जिसमें उसे थामने की मुठिया लगी रहती हैं।

फरैया :: (सं. पु.) चमारों का एक औजार जिस पर चमड़ा रखकर छीला जाता है।

फरौ :: (वि.) फैला हुआ, यत्र तत्र, (फरौ फरौ में प्रयुक्त)।

फरौ-फरौ :: (क्रि. वि.) यत्र तत्र (देखना) उड़ती नजर से (देखना)।

फर्जी :: (वि.) दे. फरजी।

फर्द :: (सं. स्त्री.) सूची।

फर्रका :: (सं. पु.) दीवार से खुर्स पर लगाया हुआ पत्थर, ऐसा लंगोटा जिसका चूतड़ों पर रहने वाला भाग तिकोना होता है।

फर्रा :: (सं. पु.) दे. फर्रका।

फर्राउन :: (सं. स्त्री.) बिना गड़ार की चक्की जो जमीन में लगायी जाती है, इसके नीचे का पाट प्रायः मिट्टी का बना होता है, इससे कोदों, धान, समा, का भूसा अलग किया जाता है।

फर्राओ :: (सं. पु.) वेग, तेजी, खर्राटा।

फल :: (सं. पु.) परिणाम, निष्कर्ष, वृक्षों, बेलों, पौधों पर पैदा होने वाला फल जिसमें गूदा और बीज हो।

फलक :: (सं. पु.) फोड़ा।

फलकन :: (सं. पु.) फलक पर गिरा हुआ पदार्थ।

फलकन :: दे. फलकबौ।

फलकबौ :: (क्रि.) कपड़े को अपनी जगह पर पटक-पटक कर साफ करना, कपड़े धोने का एक तरीका।

फलका :: (सं. पु.) फलक।

फलबौ :: (क्रि.) फलीभूत होना, किसी वस्तु के प्राप्त होने पर उससे सम्बन्धित और असम्बन्धित शुभ ही शुभ होना।

फलाँग :: (सं. स्त्री.) उछाल, लाँघने के लिए लिया गया उछाल।

फलानों :: (वि.) अमुक, बिना नाम लिए किसी व्यक्ति का संकेत।

फलानों :: (मुहा.) फलाने-ढिकाने-व्यक्ति नामों के साथ इत्यादि अर्थद्योतक, ऊब भरा प्रयोग।

फलानों :: (कहा.) फलाने की मताई ने मुंस करो, बुरओ करो, कई छोड़ दओ, और बुरओ करो - दे. तुमाई मताई।

फलाबौ :: (क्रि.) सिक्का आदि उछाल कर उसके चित्त पट्ट से किसी काम की सफलता असफलता का अनुमान लगाना।

फलार :: (सं. पु.) फलाहर, अन्न के अतिरिक्त फलों या दुग्ध पदार्थों का भोजन जो उपवास में किया जाता है।

फलारी :: (सं. स्त्री.) फलाहार के योग्य वस्तु (फल-फलारी समास में प्रयुक्त)।

फलास :: (सं. स्त्री.) फ्लैश, जुए का एक खेल जो तीन पत्तों से खेला जाता है।

फलिधा :: (सं. स्त्री.) प्राप्ति, प्रायः ऐसी प्राप्ति जो दान दक्षिणा या भेंट स्वरूप प्राप्त हो।

फलियत :: (सं. स्त्री.) फजीहत, बदनामी, हँसाई, हास्यास्पद स्थिति।

फलिया :: (सं. स्त्री.) ऐसा लम्बा फल जिसमें एक कतार में दाने हों, खरबूज का छोटा फल।

फल्लाँग :: (सं. पु.) फलाँग, दूरी नापने का एक अँगरेजी माप, दो सौ बीस गज की दूरी, मील का आठवाँ भाग।

फसकड़-फसकौआ :: (सं. पु.) टाँगे पसारकर बैठना।

फसकल :: (सं. स्त्री.) पसर कर बैठने की स्थिति जमकर निश्चिन्त भाव से फैलकर बैठने की स्थिति।

फसकल :: (प्र.) वे आये और फसलकल मार के बैठ गये।

फसकुरयाबौ :: (क्रि.) फेन उठना, झाग उठना, बनी हुई दाल आदि के सड़ने से उसके ऊपर फेन सा उठना।

फसफसाबौ :: (क्रि.) धीरे-धीरे फुसक-फुसक कर रोना, क्रुद्ध बैल का जोर-जोर से साँस लेना, साँप का हलकी फुंकार करना।

फँसबो :: (स. क्रि.) बंधन में पड़ना, पकड़ाजाना, अटकना, उलझना।

फसबौ :: (क्रि.) अटकना, अवैध शारीरिक संबंध होना।

फसल :: (सं. स्त्री.) खेतों में खड़ा अनाज।

फसलबौ :: (क्रि.) फसकल मार कर बैठना।

फसलबौ :: दे. फसकल।

फसली :: (वि.) मौसमी, रबी की बुआई से लेकर खरीफ की कटाई तक की अवधि का विशेषण।

फसली :: (प्र.) फसली साल।

फँसाबो :: (स. क्रि.) फंदे में पकड़ना, चक्कर में डालना, प्रेम में फँसाना।

फसाबौ :: (क्रि.) आबद्ध करना, ढीले बन्धन से जोड़ना, किसी दुर्भावना से फुसला कर अपने अनुकूल करना।

फसिया :: (सं. पु.) बहेलिया।

फँसिया :: (सं. पु.) जानवरों को फाँसने वाला।

फसील :: (सं. स्त्री.) किले के परकोटे की दीवार।

फसूकर :: (सं. पु.) झाग, फेन।

फस्सी :: (वि.) पिछड़ा हुआ।

फाइल :: (सं. स्त्री.) किसी प्रकरण से संबंधित पत्रादि।

फाँक :: (सं. स्त्री.) किसी गोल फल का आधे से कम टुकड़ा।

फाँकबौ :: (क्रि.) सूखी एवं पिसी वस्तु को हथेली पर रख रखकर मुँह में डालना, झूठी बातें बढ़ा-चढ़ा कर करना।

फाँके :: (सं. स्त्री.) पके हुए कद्दू के बड़े टुकड़े जो भाप पर पकाकर फलाहार में खाये जाते हैं।

फाँकौ :: (सं. पु.) विवशता में होने वाला अनाहार, बिना भोजन के दिन कटने की स्थिति।

फाग :: (सं. स्त्री.) होली रंग, गुलाल का उत्सव एक दूसरे पर रंग-गुलाल डालने की क्रिया, फागुन में गया जाने वाला बुन्देली लोकगीत एवं छन्दबद्ध गीत छन्दयाउ फागें।

फाग :: (कहा.) फाग की फाग खेल लई और आँग बचा लओ - अपना काम बना कर चुपचाप अलग हो जाना और दूसरों को आलोचना का अवसर न देना।

फाग :: (कहा.) फाग के कुटे और दिवारी के लुटे को कोऊ नई पूँछत - होली के हुल्लड़ में यदि कोई पिट जाय और दिवाली में जुए में हार जाय तो उसके लिए कौन चिन्ता करता है।

फाँग :: (सं. स्त्री.) एक भाजी जो बेलों में होती है।

फाँग :: (मुहा.) फाँग सी रूलत-काम में जल्दबाजी।

फागुन :: (सं. पु.) फाल्गुन का महीना, विक्रम संवत् का बारहवाँ महीना।

फाँगे :: (सं. स्त्री.) होली के अवसर पर गाये जाने वाले बुन्देली लोकगीत एवं छन्दबद्ध गीत।

फाजू :: (सं. स्त्री.) बुआजी का संक्षिप्त रूप (बुन्देला क्षत्रियों में प्रचलित)।

फाँट :: (सं. पु.) परिवार की सम्पति का बँटवारा, न्यारक न्यारा।

फाटक :: (सं. पु.) परकोटे आदि में लगा हुआ बड़ा दरवाजा।

फाड़बो :: (सं. क्रि.) फाड़ना, तोड़ना, फैलाना, बढ़ाना, आँखे फाड़ना।

फाँद :: (सं. पु.) चूड़ी आदि वृत्ताकार वस्तु का व्यास।

फाँदबौ :: (क्रि.) लाँघकर पार करना, दीवार पर चढ़कर लाँघना।

फाँदी :: (सं. पु.) बड़े छेदों की रस्सी की जाली।

फाँदौ :: (सं. पु.) फन्दा जाल, खरगोश आदि छोटे जानवरों को पकड़ने का फन्दा।

फाँनूस :: (सं. पु.) कमरों की सजावट के लिए छत से टाँगे जाने वाले काँच के सजावटी झूमर।

फापस :: (सं. स्त्री.) पतला, पच्चड़।

फाय :: (सं. पु.) बहुत कष्ट होने का बनावटी प्रदर्शन।

फायदा :: (सं. पु.) लाभ।

फार :: (सं. पु.) फाल, हल की नोंक पर लगायी जाने वाली लोहे की नोंकदार पट्टी।

फारकती :: (सं. स्त्री.) एक दूसरे से फुरसत पा जाने की स्थिति पृथक-पृथक हो जाने का निपटारा, तलाक।

फारग :: (वि.) फारिग, फुरसत, निबटकर।

फारदा :: (सं. पु.) दे. फायदा।

फारबौ :: (सं. पु.) फाड़ना।

फारम :: (सं. पु.) यांत्रिक कृषि क्षेत्र, उद्देश्य विशेष के लिए निर्धारित रूप रेखा का कागज।

फारवी :: (सं. स्त्री.) खेतों में पानी आगे ले जाने के लिए मिट्टी के ढेलों को एक तरफ करने के लिए लकड़ी का लम्बे हत्थे का छोटा फावड़ा।

फारसा :: (वि.) फाहिशा, पुंश्चली, दुश्चरित्र (स्त्री)।

फारसी :: (सं. स्त्री.) पारस्य (ईरान) की भाषा, मण्डला (मराठी भाषा प्रयोग) के गोड़ों की भाषा को भी अन्य लोग फारसी या पारसी नाम से उसकी दुरूहता के कारण पुकारते हैं।

फारसी :: (कहा.) पढ़े फारसी बेंचें तेल जे देखौ करमन के खेल।

फाराउन :: (सं. स्त्री.) कोदों दरने के लिए एक प्रकार की चक्की जिसका ऊपर का पाट पतले पत्थर का तथा नीचे की कच्ची मिट्टी का होता है।

फाराबौ :: (क्रि.) फहराना।

फाल :: (सं. पु.) डग, फाल बिगर गओ।

फालतू :: (वि.) असम्बद्ध, अपनी आवश्यकता के अतिरिक्त।

फाँस :: (सं. स्त्री.) बाँस या लकड़ी का पतला किन्तु मजबूत रेशा जो काँटे की तरह चुभ जाये, खिसका कर छोटा बड़ा किया जाने योग्य फन्दा।

फाँसबौ :: (क्रि.) फँसाना, बुरी नियत से अपने वश में करना।

फासलौ :: (सं. स्त्री.) दूरी, दूर विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त।

फाँसी :: (सं. स्त्री.) गले में फन्दा डालकर मृत्यु दण्ड देने का तरीका, कोई दुर्निवार संकट।

फिकर :: (सं. स्त्री.) चिन्ता।

फिकर :: (कहा.) फिकर फकीर खाय - चिन्ता तो फकीर को भी खा जाती है।

फिकरा-फिकरेटौ :: (सं. पु.) कोदों की सतह का एक छोटा अनाज।

फिकवाबौ :: (क्रि.) फिकवाना।

फिकार :: (सं. पु.) दे. फिकरा।

फिकारबो :: (क्रि.) सिर खोलना।

फिचउँ-पनइयाँ :: (सं. पु.) देशी जूता, दतिया साई जूता।

फिचवाबौ :: (क्रि.) कपड़ों को धुलवाना।

फिचा :: (सं. पु.) टूटा जूता।

फिट :: (वि.) सही, जमा हुआ, नाप के अनुकूल, तंग।

फिटकरी :: (सं. स्त्री.) फिटकरी, फटकरी, बुँ।

फिटफिट :: (सं. पु.) मोटर साइकिल।

फिटियाँ :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के बाल गूँथने की एक शैली में कानों के ऊपर से गोई जाने वाली बालों की पट्टियाँ जो पीछे की मुख्य चोट के साथ गूँथी जाती है, उदाहरण-फिटियाँ गोबो-चोटी गुहना।

फितरत :: (सं. स्त्री.) अपना काम सिद्ध करने के लिए भिड़ायी जाने वाली उचित-अनुचित युक्तियाँ, मन मुटाव।

फितरती :: (वि.) किसी भी उपाय से अपना काम निकालने वाला, झूठ-मुठ बातें करके मनमुटाव करवा देने वाला।

फितूर :: (सं. पु.) दुर्भावना।

फिदकबौ :: (सं. स्त्री.) छोटी-छोटी सघन की मुद्रा, चक्कर।

फिफयाबो :: (क्रि.) रो-रोकर कहना।

फिर :: अव्य. इसके बाद, अतएव।

फिरकइया :: (सं. स्त्री.) नृत्य में घूमने की मुद्रा, चक्कर।

फिरकनी :: (सं. स्त्री.) हवा से घूमने वाली चर्खी।

फिरकिनी :: (सं. स्त्री.) दे. फिरकनी।

फिरकी :: (सं. स्त्री.) दे. फिरकनी, अगली बार, अगले चक्कर में।

फिरकैया :: (सं. स्त्री.) घूमने या चक्कर लगाने की क्रिया या भाव।

फिरत :: आफत मचाना।

फिरत :: (कहा.) सरग तरैयाँ टोरबो - आकाश के तारे तोड़ना असंभव कार्य करना, किसी कार्य में अपनी पूरी शक्ति लगाना।

फिरत :: (कहा.) सरग मूड़ पै धरें फिरत।

फिरत :: दे. सरग उठाये फिरत।

फिरतुआ :: (वि.) परम्परानुसार वापिस होना, धातुओं का पिघलना।

फिरतुआ :: (कहा.) फिरै तौ चरै - मैदान में चलने-फिरने ही से ढोर को चरने के लिए घास मिलती है, एक जगह बैठे रहने से पेट कैसे भर सकता है।

फिराक :: (सं. स्त्री.) बच्चियों के पहनने का एक घुटनों तक का वस्त्र, अनुकूल अवसर की तलाश की मानसिकता।

फिराद :: (सं. स्त्री.) फरियाद, अपने कष्ट या अपने प्रति हो रहे अन्याय के निवारणार्थ की जाने वाली प्रार्थना।

फिराबौ :: (क्रि.) घूमाना, चक्कर लगवाना, धातुओं को पिघलाना।

फिरारू :: (वि.) फिरता हुआ, घूमने वाला, वह माल जो फेरा जा सके।

फिरी :: (क्रि. वि.) मुफ्त में, मुफ्त।

फिरौती :: (सं. स्त्री.) डाकुओं द्वारा अपह्रत व्यक्ति की मुक्ति के बदले दिया जाने वाला धन।

फिलम :: (सं. स्त्री.) फिल्म, सिनेमा के चित्रों की पट्टी।

फिसड्डी :: (वि.) पीछे का सर्वशेष व्यक्ति।

फिसाद :: (सं. पु.) झगड़ा।

फीकौ :: (वि.) बिना शक्कर या कम शक्कर का स्वाद, अपेक्षित स्तर से गिरा हुआ प्रदर्शन, अशालीन व्यवहार।

फींच :: (सं. पु.) चाँदी का टुकड़ा जिसको मोड़कर छोटे आकार का बनाते हैं सुनार, उदाहरण-फींच बाँधवो-किसी गहने को तपाकर काटकर टुकड़े कर किसी टुकड़े को छिपा लेना, सुनार।

फींचबौ :: (क्रि.) कपड़े धोना, प्रायः बिना साबुन के धोना।

फीता :: (सं. पु.) नापने की पैमाने के निशानों वाली पट्टी, बाल बाँधने का रिबन या चोटी, जूते कसने के बुने डोरे।

फीस :: (सं. स्त्री.) शुल्क, टुकड़ा, पीस।

फुआ :: (सं. स्त्री.) बुआ पिता की बहिन।

फुआर :: (सं. स्त्री.) फुहार कृत्रिम साधन से या वर्षा के रूप में बरसने वाली छोटी-छोटी बूंदे।

फुआरौ :: (सं. पु.) फुहारा, तेज गति से क्रम विशेष में गिरने वाली बूंदें, क्रम विशेष में बूदें गिराने वाला यंत्र।

फुइया :: (सं. स्त्री.) झरबेरी के जारों (कटी हुई कटीली झाड़ियाँ) का एक छोटा समूह ये प्रायः गोल हो जाता है, रूई का छोटा फाहा।

फुई :: (सं. स्त्री.) बहुत धीरे-धीरे और बारीक बूंदों की वर्षा।

फुकइया :: (वि.) फूँकनेवाला, संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होता है।

फुकना :: (सं. पु.) फुग्गा।

फुँकना :: (सं. पु.) गुब्बारा।

फुकनी :: (सं. स्त्री.) आग को तेज करने के लिए हवा देने की नली।

फुँकनी :: (सं. स्त्री.) मुँह से आग में हवा छोड़ने की नाली।

फुकलबौ :: (क्रि.) ऐसी वस्तु को खाना जिसका छिलका पतला हो अनाज को खाकर भूसी में बदल देना।

फुकला :: (सं. पु.) छिलका।

फुकली :: (सं. स्त्री.) धान कोदों, आदि अनाजों की भूसी मूँगफली का छिलका दानों के ऊपर की पतली पर्त।

फुँकवाबो :: (क्रि.) फूँक लगवाना, भस्म करवाना।

फुकार :: (सं. स्त्री.) शंख की ध्वनि क्रोध में भरकर एकदम तेज बोलना (व्यंग्य प्रयोग) साँप की फुंकार।

फुँकारबो :: (क्रि.) क्रोध में साँप की तरह फुँकार कर बोलना।

फुक्क :: (वि.) खाली जेब, धनहीन आर्थिक दृष्टि से हीन दशा को प्राप्त हुआ, जुए या व्यवसाय में पूरा धन गवाँ देने वाला।

फुक्की :: (सं. स्त्री.) चिलम की एक फूक।

फुक्कू :: (सं. स्त्री.) गाँजे आदि नशीले पदार्थों का दम (व्यंग्य प्रयोग)।

फुट :: (सं. पु.) बारह इंच का माप (अंग्रेजी.)।

फुटकबौ :: (क्रि.) ज्वार, मक्का आदि अनाजों को गरम करने पर दानों के फूल कर खीलें बनाना, फुटफुटा करके भुँजना।

फुटकर :: (सं. स्त्री.) थोक या विपर्याय, फुटकल।

फुटका :: (सं. पु.) अनाज भूँज कर बनाये हुए खीले।

फुटकी :: (सं. स्त्री.) किसी तरल में घोले गये पदार्थ के अनघुले छोटे-छोटे अंश जो सतह पर तैर रहे हों, मक्खन निकालते समय दूध या मट्ठे की सतह पर तैरने वाले छोटे-छोटे कण।

फुटल्ला :: (वि.) फूटा हुआ, छेदोंवाला, (बरतन) बलवाची प्रयोग।

फुटा :: (वि.) फुट माप का, जैसे-दस फुटा, पाँच फुटा आदि।

फुटैल :: (वि.) अकेला, जोड़े हीन।

फुटैल-फटैला :: (वि.) फूटा हुआ।

फुट्ट :: (सं. पु.) दे. फुट।

फुट्टा :: (वि.) फूटा हुआ, बलवाची प्रयोग।

फुड़िया :: (सं. स्त्री.) छोटा फोड़ा।

फुदकबो :: (अ. क्रि.) उछलना-कूदना, प्रसन्न होना।

फुँदना :: (सं. पु.) डोली या झालर के सिरे पर सुन्दरता के लिए बना फूल जैसा गुच्छा, गाँठ, झब्बा, बच्चों के वस्त्रों की सुन्दरता के लिए लगाया जाने वाला धागे या अन्य रेशों से बनाया जाने वाला गोला।

फुदफदाबौ :: (क्रि.) दे. फदफदाना।

फुँदरया :: (सं. पु.) फूल की तरह।

फुँदरा :: (सं. पु.) दे. फुँदना।

फुँदरिया :: (सं. स्त्री.) फुँदना का छोटा रूप।

फुँदरी :: (सं. स्त्री.) दूल्हे के मौर में लगाने वाले फुँदने।

फुंदा :: (सं. पु.) फफूँदी।

फुँदी :: (सं. स्त्री.) हार, छुटिया आदि को अटकाने के लिए गुटिया डालने को दूसरे छोर पर बनाया गया धागे का एक काज जैसा छेद।

फुनगी :: (सं. स्त्री.) प्रशाखा, पेड़ा का एकदम ऊपरी भाग ऊपर का नुकीला भाग।

फुनगुनियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटा फोड़ा, फुड़िया उदाहरण-हो गओ फुनगुनियाँ सो फोरा, पैले हतौ ददौरा, ईसुरी कवि प्रयोग।

फुन्नाबौ :: (क्रि.) फनफनाबौ।

फुपकार :: (अनु.) फुंकार, फुफकारने की क्रिया या भाव, मुँह से निकाला जाने वाला फूँ-फूँ शब्द।

फुपकारबो :: (अ. क्रि.) फुंकारना, फुत्कार करना।

फुपैरो-फुफेरौ :: (वि.) बुआ का लड़का, (स्त्री) फुफेरी।

फुरकबौ :: (क्रि.) अधचबाई हुई चीज को हवा के दबाब के साथ मुँह के बाहर फूँक देना, घोड़े-गधे के मुँह से ओंठ फड़फड़ाते हुए हवा निकालना।

फुरती :: (क्रि. वि.) तेजी, शीघ्रता।

फुरतीलौ :: (वि.) शीघ्रता से कार्य करने वाला, चुस्त।

फुरफुरी :: (सं. स्त्री.) हलका जाड़ा जो रह-रह कर शरीर में रोमांच कर दे।

फुरबौ :: (क्रि.) मंत्र का प्रभाव प्रकट होना, फूटना, मुँह से शब्द निकालना।

फुरसत :: (सं. स्त्री.) अवकाश, कार्यहीनता की स्थिति।

फुरेरी :: (सं. स्त्री.) कँपकपी, सींक के सिरे पर दवा आदि लगयी हुई रूई, फुरहरी।

फुरोरू :: (सं. स्त्री.) दे. फरूरी, फरहरी।

फुलका :: (सं. पु.) गेहूँ की पतली तथा फूली हुई रोटी, फुलकिया।

फुलका :: (स्त्री.) छोटी रोटी जो फूली हुई हो।

फुलकी :: (सं. स्त्री.) छोटी पतली रोटी, चाट की फुलकी।

फुलजड़ी :: (सं. स्त्री.) एक पटाखा जिससे फूल जैसी चिनगारियाँ झड़ती है, फुलझड़ी, सुन्दरी।

फुलझड़ी-फुलझरी :: (सं. स्त्री.) आतिशबाजी की शलाका जिसको जलाने से फूल जैसे झड़ते हैं।

फुलबाद :: (सं. पु.) फूलदार, वृक्ष, ब्याह आदि में छोड़ी जाने वाली फूलदार आतिशबाजी।

फुलवरी :: (सं. स्त्री.) कढ़ी में पकोड़ियों क स्थान पर डाले जाने वाले बिना तले हुए सेव जो कढ़ी के साथ ही पक जाते है, उबले हुए चावलों को मसल कर तथा नमक मिर्च और मसाले मिला कर दी हुई बड़ियाँ जो तल कर नमकीन के रूप में खायी जाती है।

फुलाबो :: (स. क्रि.) अन्दर हवा भरना प्रसन्न करना, फुलाना।

फुलारा :: (सं. पु.) कुमुद के फूलों से बनाई हुई झुमर जो हर तालिका (तीजा) के दरबार में शंकर-पार्वती के ऊपर लटकायी जाती है।

फुली :: (सं. स्त्री.) आँख के काले गटा पर छाया हुआ सफेद उभार, काने होने का एक प्रकार, आँख की एक विकृति।

फुलेल :: (सं. पु.) सुगन्धित तेल, फूलों की गन्ध से युक्त तेल।

फुलैबो :: (क्रि.) फुलाना, हवा भर कर बढ़ाना, भिगोकर कोमल करना, फिटकरी या सुहागे को तपाकर फुलाना, प्रशंसा की बातें करके किसी को अपने व्यक्तित्व और क्षमता का वास्तविकता से अधिक आभास कराना।

फुलैरा :: (सं. पु.) दे. फुलारा।

फुलौरी :: (सं. स्त्री.) दे. फुलवारी।

फुल्टा :: (सं. पु.) अत्यल्प मात्रा, थोड़ी सी मात्रा।

फुल्टा :: (मुहा.) फुल्टा भर, बिल्कुल थोड़ा।

फुल्ली :: (सं. स्त्री.) फूल की आकृति की कील।

फुसकबौ :: (क्रि.) धीरे-धीरे रोना, बैल का क्रोध में भरकर फुफकारना।

फुसकरयानो :: (वि.) फेनिल, जिसमें फेन हो, झागयुक्त।

फुसकरी :: (सं. स्त्री.) सर्प की एक जाति जिसकी फुसकार शरीर पर लग जाने से सूजन आ जाती है, यह कम लम्बा सर्प होता है।

फुसकारबौ :: (क्रि.) आक्रमण की मुद्रा में क्रोध भरी साँस छोड़ना।

फुसकी :: (सं. स्त्री.) हलकी फुसकार दबा कर छोड़ी हुई अपान वायु।

फुसफुसाबौ :: (क्रि.) दे. फसफसाबौ, खुसर-फुसर करना।

फुसफुसौ :: (वि.) खस्ता, कण-कण में बिखर जाने योग्य।

फुसराँयदौ :: (वि.) रूखे स्वभाव वाला, जो सदा मुँह बिचकाए रहे।

फुसार :: (सं. स्त्री.) सोना--चाँदी काटते समय निकल जाने वाला अत्यन्त छोटा टुकड़ा।

फुँसी :: (सं. स्त्री.) शरीर पर निकलने वाले छोटे दाने छोटी फुड़िया फोरा-फुंसी शब्द युग्म में प्रयुक्त।

फुस्स :: (वि.) हवा निकलने से पिचका हुआ, अवरूद्ध।

फुस्स :: (सं. स्त्री.) हवा निकलने की ध्वनि।

फुस्सड़ :: (वि.) कमजोर, सड़ा हुआ, जीर्ण, ऊपर से कूद काठी ठीक होने पर भी अन्दर से कमजोर।

फुस्सौ :: (वि.) दे. फुस्सड़, जरा-सा जोर लगाते ही बिखर जाने योग्य।

फुहार :: (सं. स्त्री.) वर्षा की छोटी बूँदे, किसी तरल पदार्थ की छोटी बूँदें।

फूँक :: (सं. स्त्री.) हवा की मात्रा जो एक प्रश्वास में बलपूर्वक निकाली जाती है।

फूँक :: (मुहा.) हवा की मात्रा जो एक प्रश्वास में बलपूर्वक निकाली जाती है।

फूँक :: (मुहा.) फूँक सरकबौ-भयभीत होना।

फूँकबौ :: (क्रि.) मुँह से बँधी हुई श्वास निकालना, जलाकर भस्म बनाना।

फूँका :: (सं. पु.) फूँक से उड़ जाने योग्य, फफोला, फोड़ा, सोने का पोला गुरिया।

फूँका :: (मुहा.) फूँका के ज्वाँन-दुबला पतला किन्तु अपने आपको शक्तिशाली समझने वाला।

फूंकैया :: (सं. पु.) हवा फूंकने या फूँक मारने वाला व्यक्ति।

फूट :: (सं. स्त्री.) मनमुटाव, खरबूजे के समान एक फल, डँगरा।

फूटन :: (सं. स्त्री.) मनमुटाव, फूटने से हुए टुकड़े।

फूटबौ :: (क्रि.) टूटना, पृथक होना, अवरूद्ध, क्रोध या हँसी का प्रकट होना।

फूटो :: (वि.) टूटा हुआ, खराब, बुरा।

फूटो :: (कहा.) फूटी तौ सयें आँजी न सयें - आँख फूट जाय वह स्वीकार, परंतु अंजन का कष्ट सहना स्वीकार नहीं, थोड़े से खर्च या असुविधा के पीछे अपनी बड़ी हानि कर लेना।

फूटो :: (कहा.) फूटे ढोल - बकवादी आदमी।

फूटो :: (कहा.) फूटे बासन पै कलई करबो - पुरानी वस्तु को नयी बनाने का व्यर्थ प्रयत्न करना।

फूँद :: (सं. स्त्री.) फूँदी।

फूँदरा :: (सं. पु.) दे. फुँदना, फुँदरा।

फून :: (सं. पु.) टेलीफोन।

फूनग्लास :: (सं. पु.) ग्रामोफोन।

फूपा-फूफा :: (सं. पु.) पिता की बहिन का पति।

फूल :: (सं. पु.) सुमन, पुष्प, फूल जैसे बेलबूटे या आभूषण, शव दाह के पश्चात् बची हड्डियाँ, कोढ़ के दाग, मथानी का एक भाग।

फूल सिराबो :: मृतक की अस्थियाँ गंगा आदि में प्रवाहित करना।

फूलचौक :: (सं. पु.) छोटी उम्र की वधू के प्रथम रजोदर्शन के समय मनाया जाने वाला उत्सवपूर्ण संस्कार, यौगिक शब्द।

फूलन की सेज :: (सं. पु.) सरल तथा सुख दायक पदार्थ।

फूलना-फुलवा :: (सं. पु.) फूल, पुष्प, लोकगीत में प्रयुक्त।

फूलबगिया :: (सं. स्त्री.) फुलवाड़ी, फुलवारी।

फूलबो :: (क्रि.) फूल लगना, खिलना, हवा भरने से मोटा हो जाना, प्रसन्न होना, गर्व करना, हवा भरने या भीगने के कारण आकार बढ़ना।

फूलबो-फलबो :: (अ. क्रि.) फल और फूल वाला होना।

फूला :: (सं. पु.) फूल, पुष्प, धान, ज्वार-मक्का के भुने हुए दाने जो चटक कर फूल की तरह खिल जाते है।

फूस :: (सं. पु.) पौष माह, बेकार समझकर पृथक कर देना, विक्रम संवत् का दसवाँ महीना।

फूस :: (कहा.) फूस कौ तापबौ उधार कौ खाबौ - दे. उधार को खाबौ।

फूहर :: (वि.) मूर्ख, फूहड़।

फूहर :: (कहा.) फूहर कौ मैल फागुन में उतरत - फूहड़ का मै फागुन में उतरता है, रंग पड़ने पर उसे विवश होकर नहाना पड़ता है।

फेंक :: (सं. स्त्री.) दोलन क्रिया की सीमा, किसी वस्तु के फिकने की सीमा।

फेंकबौ :: (क्रि.) फेकना, बेकार समझकर पृथक कर देना।

फेंकरबौ :: (क्रि.) बूढ़े स्यार का बोलना।

फेंकाबो :: (सं. क्रि.) फेंकरने का कार्य करवाना।

फेंट :: (सं. स्त्री.) पुरानी वेषभूषा में कमर में बाँधा जाने वाला कपड़े का दुपट्टा जिससे कमर में थकान नहीं आती, कुश्ती का एक दाँव।

फेंटबौ :: (क्रि.) ताशों को गड्ड-मड्ड करना, गाढ़े घुले हुए बेसन को हथेली से रगड़-रगड़ कर अच्छी तरह मिलाना, दो तरल पदार्थों को भली-भाँति मिलाना।

फेंटा :: (सं. पु.) मर्दानी धोती का दूसरा छोर जो कमर से लपेटकर कसा जाता है।

फेंटो :: (सं. स्त्री.) कमर का घेरा, धोती का कमर पर लपेटा हुआ भाग, फेंट।

फेंन :: (सं. पु.) झाग।

फेंनी :: (सं. स्त्री.) अर्थ अज्ञात, सूतफेंनी और बताशा फेंनी मिठाइयों में प्रयुक्त।

फेंपड़ा :: (सं. पु.) श्वास लेने वाला शरीर का आन्तरिक अंग।

फेंपनो :: (सं. पु.) नाक का मवाद।

फेर :: (सं. पु.) भूत-प्रेत का व्यक्ति के ऊपर पड़ा प्रभाव अन्तर।

फेरबौ :: (क्रि.) वापिस करना, उलटना, पीछे की ओर घुमाना।

फेरबौ :: (कहा.) फेरफार चुटिया पै हात - घुमा-फिरा कर फिर वही बात।

फेरी :: (सं. स्त्री.) फेरा, भिक्षा के लिए घूमना, प्रदक्षिणा, माल बेचने के लिए चक्कर लगाना, चक्कर बारी।

फेरी :: (सं. पु.) चक्कर।

फेरी बालो :: (सं. पु.) घूम-घूम कर माल बेचने वाला।

फेरौ :: (सं. पु.) किसी की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिए की जाने वाली औपचारिकता या शिष्टाचार।

फेल :: (वि.) असफल।

फेल :: (अ.) अनुत्तीर्ण।

फेंसी :: (वि. अ.) बढ़िया, सुन्दर, अकर्मक।

फैर :: (सं. पु.) बन्दूक का फायर, अकर्मक।

फैराबौ :: (क्रि.) हवा में लहराना, फहराना।

फैल :: (सं. पु.) बुरी आदतें, असफल, अनुत्तीर्ण।

फैलबो :: (क्रि.) विस्तृत करना, पसारना, बिखेरना।

फैलाब :: (सं. पु.) विस्तार, प्रचार।

फैसन :: (सं. स्त्री. अ.) सज-धज, बनाव-श्रृंगार, प्रकार।

फैसल :: (वि.) निपटा हुआ (प्रकरण)।

फैसला :: (सं. पु.) निपटारा, निर्णय।

फोआ :: (सं. पु.) फाहा, चूड़ा।

फोक :: (सं. पु.) रस निकालने के बाद बचा हुआ ठोस पदार्थ।

फोंक :: (सं. स्त्री.) लकड़ी या पेड़ के तने पर निकला हुआ नुकीला भाग।

फोकट :: (कहा.) फोकट कौ मिलै तौ हमकों ल्याइयो - मुफ्त का माल हमको भी देना।

फोकट :: (सं. स्त्री.) मुफ्त, बिना परिश्रम के।

फोकलो :: (सं. पु.) किसी फल आदि का ऊपरी छिलका।

फोजकाँटों :: (सं. स्त्री.) सेनादि।

फोटू :: (सं. स्त्री. अ.) फोटो, चित्र।

फोड़बो :: (क्रि.) तोड़ना, भग्न करना, भेदभाव, उत्पन्न करना।

फोड़ा :: (सं. पु.) मवाद भरा हुआ शोध।

फोड़ारबो :: (स. क्रि.) फोड़ना, तोड़ना, नष्ट करना।

फोतला :: (सं. पु.) छिलका।

फोदा :: (सं. पु.) बजाकर किसी की बुराई।

फोंन :: (सं. पु.) दे. फून, टेलीफोन, दूरभाष, अकर्मक।

फोरबौ :: (क्रि.) भंजनशील पदार्थ को तोड़ना, फूली हुई वस्तु में छेदकर चिपका देना, पृथक करना।

फोरा :: (सं. पु.) फोला, आँवला, शरीर की पतली पर्त कर उभार।

फोराँ :: (क्रि. वि.) बरसात के जुते हुए खेतों में फिर से बिना जोते हुए अनाज की बोनी करना।

फोराँ :: (प्र.) फोरा बैख।

फौज :: (सं. स्त्री.) सेना, किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष से सम्बन्धित बहुत से लोग (व्यंग्य प्रयोग)।

फौजी :: (सं. पु.) सेना का आदमी, सैनिक, सैनिकों जैसा।

फौरन :: (क्रि. वि.) तुरन्त।

फ्री :: (क्रि. वि.) दे. फिरी।

फ्रेंम :: (सं. पु. अं.) चौखटा।

फ्वा :: (सं. पु.) फाहा. रूई का छोटा टुकड़ा।

फ्वार :: (सं. स्त्री.) दे. फुआर।

फ्वारौ :: (सं. पु.) दे. फुआरौ।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के प वर्ग का दूसरा वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान ओष्ठ्य हैं।

बइया :: (सं. स्त्री.) ननद के लिए सम्बोधन।

बइँया :: (सं. स्त्री.) बाँह, कलाई, भुजाएँ, गलबँइ.-गले में डाली बाहें।

बँइयाँ :: (सं. स्त्री.) बाँह, भुजाएँ, गलबँइयाँ-गले में डाली हुई बाँहे (लोक सहित्य.)।

बई :: (सं. स्त्री.) बही, हिसाब किताब लिखने की लम्बी कापी।

बई की :: (सर्व.) उसी की।

बईखों :: (सर्व.) उसी को।

बईपै :: (सर्व.) उसी पर।

बउ :: (सं. स्त्री.) बुढ्ढी औरत के लिए।

बउ :: (कहा.) बऊ आई तौ सबने जानीं - विशेष घटना घटित होने पर सब पर प्रकट हो जाती है।

बउआ :: (सं. पु.) महुआ, मधूक, महुए का फूल, महुए का वृक्ष।

बउआ जू :: (सं. स्त्री.) बुन्देला क्षत्रियों में दादी के लिए सम्बोधन (यौगिक शब्द.)।

बउधन :: (सं. स्त्री.) पुत्र वधु।

बउधन :: (कहा.) बऊ नौंनी कै बेगर - बहू अच्छी या बेगर, पैसा खर्च करने से ही काम अच्छा बनाता है, उसके लिए किसी को श्रेय देना व्यर्थ है।

बउधन :: (कहा.) बऊ सरम की, बिटिया करम की - बहु लज्जाशील और बेटी भाग्यवान अथवा कर्मठ अच्छी हाती है।

बक :: (सं. पु.) मुख से उच्चारित शब्द या वाक्य, जवान, वाणी, प्रलाप, बकबास।

बँक :: (वि.) टेढ़ा।

बँक :: (सं. स्त्री.) बैंक, अधिकोष।

बकचा :: (सं. स्त्री.) ढीली बँधी पोटली जिसको कन्धे पर लटकाया जा सके।

बकटौ :: (सं. पु.) फै ली हुई उँगलियों से भरी हुई मुट्ठी, बड़ी चिकोटी।

बकतर :: (सं. पु.) बखतर, कवच।

बँकनार :: (सं. स्त्री.) सुनारों की एक टेढ़ी पतली नली जो सोने के काम में लौ से आँच देने के काम आती है (यौगिक शब्द.)।

बकबक :: (सं. स्त्री.) व्यर्थ की बातें बकवास प्रलाप, व्यर्थवाद, बकने की क्रिया या भाव।

बकबकाबो :: (क्रि.) क्रोध में उग्रभाव से बकझक करना।

बकबाद :: (सं. स्त्री.) बकवास, झगड़ा, व्यर्थ की बात।

बकबाबो :: (क्रि.) किसी से बकवास कराना, कहने में विवश करना।

बकबौ :: (क्रि.) सारहीन या निरर्थक बातें करना।

बकरई :: (सं. स्त्री.) एक हाथों का आभूषण।

बकरम :: (सं. पु.) कपड़े के कालर आदि को कड़ा करने के लिए अंदर डाला जाने वाला मोटा कपड़ा।

बकरा :: (सं. पु.) बकरा।

बकरा :: (पु.) छिरिया।

बकला :: (सं. पु.) छिलका, छाल, ऊपरी आवरण।

बकवा :: (सं. स्त्री.) बहस के लिए बहस, बकवास।

बकवादी :: (वि.) बहुत बकबक करने वाला, बक्की।

बकस :: (सं. पु.) बाक्स, संदूक।

बकसबो :: (क्रि.) छोड़ना।

बकसीस :: (सं. स्त्री.) किसी को उपकृच करने के लिए कोई वस्तु दी जाने की क्रिया।

बका :: (सं. पु.) बाँस काटने छीलने का छुरा, माँस काटने का खाँड़ा जैसा हथियार।

बँका :: (वि.) टेड़ा, विकट, बंका, बलशाली।

बकान :: (सं. स्त्री.) महाँनीम, नीम का एक जाति।

बकाबो :: (क्रि.) चिढ़ाना, हाथी को चिढ़ाना।

बकासुर :: (सं. पु.) एक दैत्य जिसे कृष्ण ने मारा था।

बकिया :: (सं. स्त्री.) बाँस को फाड़ने और छीलने के लिए काम आने वाला एक औजार।

बकील :: (सं. पु.) अभिभाषक, अधिक तर्क करने वाला, व्यंग्य अर्थ., अधिवक्ता।

बकीलात :: (सं. पु.) बकील का पेशा, तर्क विर्तक।

बकुलाबो :: (स. क्रि.) जोर से दौड़ना।

बकोटबो :: (क्रि.) नाखूनों से नोंचना।

बकोटो :: (सं. पु.) पंजा भरना, मुट्ठी में वस्तु लेना।

बकोड़या :: (वि.) बकोड़ों से बनाया हुआ (रस्सा)।

बकोड़या :: दे. बकोंड़ो।

बकोंड़ौ :: (सं. पु.) पलाश की जड़ से निकाली जाने वाली रेशेदार पट्टियाँ।

बकौटौ :: (सं. पु.) दे. बकटौ।

बकौली :: (सं. स्त्री.) मौलसिरी का फल।

बक्करबौ :: (क्रि.) प्रेत आत्मा के आवेश में उस आत्मा की तरफ से बोलना, रहस्य खोल देना।

बक्कल :: (सं. पु.) छिलका, छाल।

बक्का :: (सं. पु.) किराने का सामान।

बक्की :: (वि.) अधिक बोलने वाला, फालतू बोलने वाला।

बक्सुआ :: (सं. पु.) चौकोर छुल्ला जिसमें काँटा लगा होता है जिसके सहारे किसी पट्टी को खिसकने से रोका जाता है।

बख :: (सं. पु.) खेतों में पानी ले जाने वाली नाली, रजबहा।

बखत :: (सं. पु.) वक्त, समय, उदाहरण-बखत-बेर-आपत्ति का समय, बखत हीन-भाग्यहीन।

बखत :: (कहा.) बखत परे की बात - भाग्य की बात।

बखयाबो :: (क्रि.) बखिया की सिलाई करना, एक प्रकारन की मजबूत और महीन सिलाई करना।

बखर :: (सं. पु.) खेत के खरपतवार तथा काँस निकालने का।

बखरबो :: (स. क्रि.) खेत में बखर चलाना।

बखरला :: (सं. पु.) एक प्रकार की चौड़ी जुताई करने वाला हल।

बखरी :: (सं. स्त्री.) बड़ा मकान।

बखरी :: (प्र.) बखरी दस द्वारे की हमें कौन उसारे की-ईसुरी।

बखा :: (सं. पु.) वक्ष, पसलियों वाला भाग।

बखान :: (सं. पु.) वर्णन, विवरण।

बखानबो :: (क्रि.) विशद विवरण देना।

बखिया :: (सं. स्त्री.) दोनों तरफ समान टाँकों वाली सिलाई उदाहरण-बखिया उघरबो-पोल खुलना, भण्डा फोड़ होना।

बखुरियाँ :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों द्वारा कुहनी से ऊपर पहिना जाने वाला, सोने-चाँदी के मोटे तारों को सर्पिल मोड़ देकर बनाया जाने वाला आभूषण (बहु वचन)।

बखौरा :: (सं. पु.) भुजा का कंधे और कुहनी की बीच का भाग।

बखौरियाँ :: (सं. स्त्री.) बखुरियाँ (बहु वचन.)।

बखौरो :: (सं. पु.) कंधे के नीचे का पिछला भाग।

बख्तर :: (सं. पु.) वर्म, कवच।

बँग :: (सं. स्त्री.) त्रुटि, कमी, नुक्स।

बगई :: (सं. स्त्री.) भूरे रंग की एक प्रकार की बड़ी मक्खी जो ढोरों और कुत्तों को लगती है।

बगडूरौ :: (सं. पु.) चक्र्वात, ग्रीष्म ऋतु में उठने वाली घुमावदार हवा, बवण्डर।

बगदबौ :: (क्रि.) एक तरफ लुड़कना।

बगदर :: (सं. पु.) मच्छर।

बगनखा :: (सं. पु.) बाघ के नख के समान एक हथियार, शेर का पंजा, एक हथियार जिसके दोनों तरफ दो छल्ले होते हैं, जिन्हें तर्जनी और छिगुली में डाल लिया जाता है तथा मध्यमा और अनामिका के नीचे अर्ध्द चन्द्राकार काँटे होते है, इसको पहिनकर मुट्ठी बन्द की जा सकती है, शिवाजी ने इसी हथियार से अफजल खाँ का पेट फाड़ दिया था।

बगनखू, बगनथू :: (सं. स्त्री.) एक झाड़ी के फल जो बाघ के नाखूनों के आकार के होते है जो जोड़ों के दर्द की दवा के काम आते है।

बगबगौ :: (वि.) बगुले के समान एकदम सफेद।

बगयानों-बगयाबौ :: (वि.) बगई मक्खियों से परेशान होकर क्रोधित हुआ (बैल)।

बगर :: (सं. पु.) वह स्थान जहाँ बहुत से पशु बँधते है, पशुओं के चरने जाने के पहले इकट्ठे होने का स्थान।

बगरबो, बगराबौ :: (अ. क्रि.) फैलना, बिखरन, क्रि बिखेरना, फैलाना।

बगरा :: (वि.) आवारा (पशु)।

बँगरी :: (सं. स्त्री.) कलाइयों में पहिनने का स्त्रियों के आभूषण।

बगल :: (सं. स्त्री.) काँखरी, एक तरफ, शरीर का पसलियों वाला भाग।

बगलवण्डी :: (सं. स्त्री.) शरीर पर पहिना जाने वाला रुई भरा वस्त्र इसके दोनों पल्ले छाती और पेट तरफ ऊपर आते हैं तथा बगल में तनी बाँधीं जाती हैं। (यौगिक शब्द.)।

बंगला :: (सं. पु.) बँगला, बगिया आदि के साथ बना हुआ भवन, घर का दलहान नुमा खुला हुआ बाहरी भाग जो आम तौर पर बैठक के काम आता है।

बगला भगत :: (वि.) कपटी साधु।

बगला भगत :: (सं. पु.) वक, बकुल, एक पक्षी जो जल के किनारे रहता है।

बगला भगत :: (मुहा.) बगला ध्यान।

बँगलिया :: (सं. स्त्री.) कलाई में पहिने जाने वाले स्त्री आभूषण।

बगलियाना :: (क्रि.) बगल से होकर जाना, हठकर चलना।

बगलियाना :: (स. क्रि.) अलग करना, बगल में लाना।

बगली :: (सं. स्त्री.) कुश्ती का एक दाव, चौकोर कपड़े चारों खूटों पर बाँध कर बनाई जाने वाली झूली जो कन्धे पर लटकायी जा सके, साधू लोग प्रायः ऐसी झोली रखते हैं।

बगलोंय :: (क्रि. वि.) एक तरफ।

बगवाँ :: (सं. पु.) बाघ के मुख वाले स्त्रियों की कलाई के आभूषण।

बगस, बगसा :: (सं. पु.) बौक्स, पेटी, संन्दूक (अकर्मक.)।

बगसबौ :: (क्रि.) देना, अभयदान देना, प्रसन्न होकर देना।

बँगा :: (सं. पु.) कि सी गोल वस्तु के बड़े-बड़े टुकड़े प्रायः दो टुकड़े।

बगार :: (सं. पु.) तड़का, छोंक, जीरा आदि को तलकर चुरती हुई स्थिति में दाल-शाक में मिलाना, बघार, वह स्थान जहाँ गाय बाघीं जाती है, घाटी।

बगारना :: (क्रि.) फैलाना, बिखेरना।

बगारबौ :: (क्रि.) बघार देना।

बँगालन :: (सं. स्त्री.) बंगाली स्त्री जो जादू टोना करती है, इस शब्द का प्रयोग स्त्री गाली के रूप में किया जाता है।

बँगाली :: (वि.) बँगाल का निवासी स्त्री. बंगाल की भाषा, छेना की एक प्रकार की मिठाई।

बँगाले :: (सं. पु.) बंगाल, जादू टोंना का क्षेत्र।

बगिया :: (सं. स्त्री.) थोड़े से स्थान में लगाये गये फूल।

बगीचा :: (सं. पु.) बाग, सुन्दरा के लिए क्रम से लगाये गये पेड़-पौधों का स्थान, कुछ विशेष फलदार पेडों को क्रम से लगाया जाने वाला स्थान।

बगुरदा :: (सं. पु.) एक हथियार।

बगूला :: (सं. पु.) एक ही स्थान पर भँवर से घूमती हुई तेज वायु, बबंडर, अंधड़, झक्कड़।

बगौंहा :: (सं. पु.) कलाइयों में पहनने का एक पोला उमेठदार गहना।

बग्गी, बग्घी :: (सं. स्त्री.) घोड़े जोते जाने वाली रईसी सवारी, फिटन, टमटम, चार पहियों की घोड़ा गाड़ी।

बघार :: (सं. पु.) दे. बगार।

बघारना :: (क्रि.) छौंकना, अधिक बोलना, बड़बड़ कर बातें करना।

बच :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी जो दवाओं के काम विशेषकर कीट नाशक दवाओं के काम आती है।

बचका :: (सं. पु.) किराये की साम्रगी।

बचकानो :: (वि.) बच्चों के योग्य, बच्चों के पहनने या काम में आने वाला।

बचत :: (सं. स्त्री.) सुरक्षा, खर्च से बचाया हुआ धन।

बचन :: (सं. पु.) बोल, दृढ़ता के साथ कही हुई बात, सत्य निष्ठा से कही गई बात।

बचन :: (कहा.) बचनन की बाँधी लच्छमी - लक्ष्मी सत्य के वश में है।

बचनका :: (सं. स्त्री.) जैन धर्मावलम्बियों में शास्त्र-वाचन।

बचपनो :: (सं. पु.) बाल्यावस्था, लड़कपन।

बचबाबो :: (क्रि.) पढ़वाना, उदाहरण-रामायण बचवाबो।

बचबैया :: (सं. पु.) रक्षक, बचाने वाला।

बचबौ :: (क्रि.) शेष रहना, सुरक्षित रहना।

बचाबो :: (स. क्रि.) अलग रखना, छिपाना, खर्च न होने देना।

बचाव :: (सं. पु.) सुरक्षार्थ किया जाने वाला उपाय।

बचुका :: (सं. पु.) छोटी गठरी, बकचा।

बचैया :: (सं. पु.) बचाने वाला, कथा वाचक।

बच्चा :: (सं. पु.) बाल बच्चा शब्द युग्म में प्रयुक्त, बच्चा, गर्भवती के होने वाले बच्चे के विषय में सामान्य प्रयोग।

बच्छा :: (सं. पु.) गाय का बच्चा, बछड़ा, किसी पशु का बच्चा।

बच्छा :: (मुहा.) बच्छ कूदै नोंनों हात, डोर पगैया मोरे हात, वास्तविक कर्त्ता कोई और होना।

बछल :: (वि.) वत्सल।

बछवा :: (सं. पु.) गाय का बछड़ा, बछिया स्त्री. लि.।

बछियत :: (सं. पु.) ओवर सियर।

बछिया :: (सं. स्त्री.) निम्नश्रेणी में स्त्री की दूसरी शादी, गाय की बच्ची, बछड़ी मादा बछड़ा।

बछिया :: (कहा.) बछिया के ताऊ - मूर्ख।

बछेरा :: (सं. पु.) घोड़ी का बच्चा स्त्री लिग. बछेरी।

बछेरू :: (सं. स्त्री.) बछड़ा या बछिया सामान्य अर्थ में बछड़ा-बछियों के समूह का नाम।

बछेरू :: (कहा.) बछेरू सें लगै ना, खंचारी से लगा दै - मरे हुए बछड़े की खाल का बना ढाँचा जो दूध देने वाली गाय का बछड़ा मर जाने पर उसे दुहने के लिए काम में लाया जाता ह।

बछैटा :: (सं. पु.) बछेरू का चमड़ा।

बँज :: (सं. पु.) व्यापार, वाणिज्य।

बजई :: (सं. पु.) हठ पूर्वक।

बजन :: (सं. पु.) भार।

बजना :: (वि.) आवाज करने वाली निर्जीव वस्तु।

बजनूँ :: (वि.) बजने या बजाया जाने वाला।

बजन्त :: (क्रि. वि.) कुख्यात, बजा हुआ, जग जाहिर चोर, मूर्ख।

बजबजाऔ :: (क्रि.) सड़ने के कारण बुलबुले उठना।

बजबैया :: (सं. पु.) बाजा बजाने वाला।

बजबौ :: (क्रि.) वाद्ययंत्र का ध्वनित होना, ख्यात होना।

बजर :: (सं. पु.) बज्र।

बजर :: (प्र.) दै लए बजर किबार, ( लोक गीत विशषण.) टिकाऊ, अधिक।

बजर किबार :: (सं. पु.) मजबूत किवाड़।

बजरबट्टू :: (सं. स्त्री.) काँच की लम्बी सी गोल जिस पर सफेद धारियाँ होती हैं, ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस बच्चों के गले में पहिनाने से नजर नहीं लगती, कोई काल्पनिक पत्थर जिसके पास में होने से सभी इच्छित कार्य सिद्ध होते हैं।

बजरबौ :: (क्रि.) दे. बजड़बौ।

बजरा :: (सं. पु.) एक प्रकार की बड़ी और पटी हुई नाव, चौकोर नाव।

बजरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा काम चलाउ बाजार।

बजरी-बजरू :: (सं. स्त्री.) नदी की रेत, बालू दीवारों के ऊपर छोटा कंगूरा, कंकड़ी।

बजरौ :: (सं. पु.) बाजरा, एक अनाज।

बजाज :: (सं. पु.) कपड़े का दुकानदार।

बजाजी :: (सं. स्त्री.) कपड़े का धन्धा, कपड़े का बाजार।

बजाबौ :: (क्रि.) वाद्ययंत्र को ध्वनित करना।

बजाबौ :: (मुहा.) गाल बजाबौ -व्यर्थ बोलते रहना (लाक्षणिक अर्थ.)।

बजार :: (सं. पु. कहा.) बजार लगो नई, उचक्कन ने डेरा दओ-वस्तु तो तैयार नहीं, चाहने वाले पहिले से आ गये।

बँजारे :: (सं. पु.) टोलियों में दूर-दूर तक चलकर पशुओं आदि का व्यापार करने वाले।

बँजारों :: (सं. पु.) बैलों पर सामान लादकर जगह बेचने वाला व्यक्ति, व्यापारी, सौदागर।

बँजी :: (सं. स्त्री.) पीठ पर या घोड़े की पीठ पर दैनिक आवश्यकता का सामान लादकर गाँव गाँव जाकर किया जाने वाला व्यापार, शब्द युग्म. बंजी भोंरी।

बजुल्ला :: (सं. पु.) स्त्रियों द्वारा कोहनी के ऊपर बाजुओं मे पहना जाने वाला आभूषण।

बजेड़बौ :: (क्रि.) दे. बजड़बौ।

बजैबौ :: (क्रि.) दे. बजड़बौ।

बजैया :: (वि.) बजाने वाला।

बज्जरी :: (क्रि. वि.) बज्र के समान, अनमनीय (मूर्खढीठ)।

बज्जुर :: (सं. पु.) बज्र।

बज्जुर :: (वि.) कठिन, कठोर कठोरतम वस्तु।

बज्जुरवारी :: (सं. स्त्री.) तीन दिन के अन्तराल से चढ़ने वाला मलेरिया बुखार।

बंझट :: (वि. स्त्री.) बाँझ, बंझा।

बटइया :: (सं. पु.) बाँटने वाला, निश्चित हिस्से पर दूसरे की जमीन पर खेती करने वाला, हिस्सा बाँटने वाला।

बटन :: (सं. पु.) कोट-कमीज में लगाने के बटन, स्विच।

बटना :: (सं. पु.) दाल या मसाला पीसने का लम्बा गोल पत्थर, लोढ़ा।

बटबाबो :: (सं. क्रि.) बाँटने का काम किसी दूसरे से करवाना।

बटबो :: (स. क्रि.) डोरा आदि ऐंठकर मिलाना, दाल आदि बाँटी जाना।

बटमार :: (सं. पु.) राह में आकर माल छीन लेने वाला, ठग, डाकू।

बटमारी :: (सं. स्त्री.) ठगी, डकैती।

बटयाउर :: (सं. पु.) अपनी जमीन पर दूसरा व्यक्ति जो फसल का हिस्सा निश्चित कर खेती करता है।

बटयाबो :: (क्रि.) कपड़े की किनारों को मोड़कर सिलना।

बटरबो :: (अ. क्रि.) सिमटना, इकठ्टा होना, बटोरा जाना।

बटरा :: (सं. पु.) मटर की तरह का एक अनाज उड़द के आकार का एक दलहनी अनाज, डाक्टरों का मत है कि उसको अधिकतर खाते रहने से लैथरिज्म नाम का रोग हो जाता है, बटरा।

बटरी :: (सं. स्त्री.) धान की एक किस्म जिसका चावल कम लम्बा, चपटा और सुगन्धित होता है।

बटलोई :: (सं. स्त्री.) देगची, पतीला, बटली।

बटवारौ :: (सं. पु.) बाँटने का भाव या क्रिया विभाजन।

बटा :: (सं. पु.) हिस्सा बाँट में प्राप्त भाग, हिस्सा, नारियल का गरी वाला गोला।

बँटा :: (सं. पु.) खेलने की बड़ी गोली, लम्बी गर्दन का लोटा।

बँटा :: दे. बण्टा।

बटाई :: (सं. स्त्री.) बटने की क्रिया या भाव, बाँटने की मजदूरी।

बँटाई :: (क्रि.) बाँटने का काम, लगान के रूप में दिया जाने वाला पैदावार का भाग।

बटाउ :: (सं. पु.) राही, पथिक, बटोही, अपरिचित व्यक्ति।

बंटाडार :: (वि.) नाश।

बंटाढार :: (सं. पु.) सत्यानाश।

बटारबौ :: (क्रि.) वितरण करना।

बटिया :: (सं. पु.) बटाई पर भूमि दूसरे को देकर खेती करवाने की पद्धति।

बटिया :: (कहा.) बटिया खेती साँट सगाई, जामें नफा कौन ने पाई - ऐसा विवाह जिसमें कोई अपनी लड़की का संबंध किसी के यहाँ करे तो उसके बदले में उसकी लड़की के साथ अपने या अपने किसी निकट के रिश्तेदार के लड़के का संबंध करने को तैयार हो जाए।

बटी :: (सं. स्त्री.) गुड़ की छोटी पारी, कई औषधि को पीसकर बनी हुई गोलियाँ, पीसी हुई।

बटी :: (वि.) जैसे जीर बटी की गोली।

बटुआ :: (सं. पु.) रूपया पैसा या तम्बाकू-सुपाड़ी रखने की ऐसी थैली जिसके डोरे खींचने से मुँह बंद हो जाता है। दाल पकाने का काँसे का गोल पथा बजनी पात्र।

बटेर :: (सं. स्त्री.) तीतुर के समान किन्तु उसके छोटा पक्षी जिसे जल्दी सिखाया जा सकता है।

बटेर :: (कहा.) लंबा फँसे तीतुर फँसे तुम काँ फँसी बटेर।

बटैया :: (सं. पु.) गोल पत्थर, छोटा पत्थर।

बँटैया :: (वि.) बँटाने वाला।

बटोरन :: (सं. पु.) सफाई का ध्यान बिना रखे हुए समेटी हुई वस्तु।

बटोरबौ :: (क्रि.) इकट्ठा करना, समेटना, जुटाना।

बटोरा :: (सं. पु.) सब कुछ समेट लेने की क्रिया, समेटा (क्रियार्थक संज्ञा)।

बटोरी :: (सं. स्त्री.) सफाई की दृष्टि से समेटने की क्रिया, झारा-बटोरी शब्द युग्म में प्रयुक्त।

बठर :: (वि.) जो खस्ता न हो।

बठिया :: (सं. स्त्री.) कण्डों का गोल क्रम में जमाया हुआ ढेर।

बठिया :: दे. बिटा. लुघाँती उपबोली में प्रयुक्त।

बंड :: (सं. पु.) हथियार, गाँसी गुड़ी बंड को दड़ा ला.र.। (यौगिक) अंड बंड बकना-बकवास करना।

बड़ई :: (सं. पु.) वह कारीगर जो लकड़ी गढ़कर मेज कुर्सी आदि बनाता हो, बढ़ई।

बड़ईगीरी :: (सं. स्त्री.) बढ़ई का काम।

बड़गैया :: (सं. पु.) वैश्यों का एक गोत्र, कुरमी का भी।

बड़न :: (कहा.) बड़न की बड़ी बातें - बड़े आदमियों की सब बात अलग होती है।

बड़न :: (कहा.) बड़न की बात बड़े पहचाने - बड़ों की बात बड़े ही समझ सकते हैं, बड़े ही बड़ों की कद्र कर सकते हैं।

बड़न :: (सं. पु.) बड़े।

बड़पेटा :: (वि.) बड़े उदर या पेट वाला।

बड़बंगो :: (वि.) विचित्र।

बड़बो :: (क्रि.) वृद्धिको प्राप्त होना, नाप तौल आदि में अधिक होना, मूल्य योग्यता आदि में वृद्धि होना किसी स्थान से आगे चलना।

बड़भागी :: (वि.) भाग्यशाली।

बड़याल :: (वि.) स्त्रियों को दी जाने वाली एक गाली जो बहुत बड़प्पन बघारती हों।

बड़याव :: (वि.) तादाद, उम्र या आकार में बड़ा।

बड़र :: (सं. पु.) एक खटमिट्ठा फल, रामफल।

बड़रयाई :: (सं. स्त्री.) गायों को विष्ठा खाने की आदत (क्रिया संज्ञा)।

बड़रयाऊ :: (वि.) विष्ठा खाने वाली गाय।

बड़वार :: (सं. स्त्री.) फसल या शरीर में होने वाली वृद्धि।

बड़वारी :: (सं. स्त्री.) प्रशंसा, तारीफ।

बंडा :: (सं. पु.) अनाजगृह, अनाज रखने का बखार, अरूई की जाति की एक लता उक्त लता के कंद जिसकी तरकारी बनायी जाती है।

बड़ाबो :: (क्रि.) समाप्त होना, वृद्धि करना, बढ़ाना आगे करना, शुद्ध देना, रात को दुकान बंद करना, प्रेरित करना, उत्साहित करना।

बड़िया :: (वि.) उत्तम, अच्छा, बढ़िया।

बंडी :: (सं. स्त्री.) बिना आस्तीन की एक प्रकार की कुरती, फतूही, मिरजई।

बड़ी इलायची :: (सं. स्त्री.) बड़े दाने वाली इलायची जो गर्म मसाले में डाली जाती है।

बड़े भाग में होत है, दाद खाज डर राज :: (-- दाद और खाज के खुजलाने से बड़ा कष्ट होता है, और एक विशेष प्रकार का आनंद भी मिलता है, इसलिये इनके रोगी के लिए व्यंग्य में प्रयोग करते हैं।

बड़े सपूत करौ रुजगार, सोरा सै के करे हजार :: (-- लड़के के अनुभव हीनता से किसी काम में नुकसान हो जाने पर।

बड़ेदा :: (सं. पु.) बड़ा भाई अग्रज।

बड़ैया :: (वि.) बढ़ाने वाला, उन्नति करने वाला।

बड़ैरयाई :: (सं. स्त्री.) दे. बड़रयाई।

बड़ैरो :: (सं. पु.) छप्पर के दोनों ढलानों के बीच लगायी जाने वाली लम्बी बल्ली।

बड़ोत्तरी :: (सं. स्त्री.) धनसम्पदा या साधनों में वृद्धि।

बड़ौ :: (वि.) बड़ा।

बड़ौ :: (कहा.) बड़ी पातर कौ बड़ौ बरा - बड़े आदमी का अधिक आदर-सत्कार होता है।

बड़ौ लाड़ मौसी करें, छिनक छिनक दोऊ कौरे भरें :: (-- मेरी मौसी ने बड़ा लाड़-प्यार किया, तो छिनक-छिनक कर घर के दोनों कोने भर दिये, झूठा प्रेम करने पर।

बड़ौनी :: (सं. स्त्री.) ढीमरन।

बड्डौ :: (वि.) बड़ा (बलवाची प्रयोग)।

बढ़ई :: (सं. पु.) लकड़ी के उपकरण बनाने वाला कारीगर बाड़ई, बाढ़ई।

बढ़यानों :: (सं. पु.) बढ़ईयों का मुहल्ला।

बण्टा :: (सं. पु.) बच्चों के खेलने की बड़ी गोली, भाँग की बड़ी गोली, लम्बे आकार का लोटा, बर्तन में पानी निकालने की लम्बी हत्थे वाली लुटियाँ, लम्बे आकार का लोटा।

बण्डा :: (सं. पु.) पुराने समय में प्रचलित घुटनों तक का सिला हुआ वस्त्र जो प्रायः सम्भ्रान्त लोगों की पोशाक था, अनाज रखने का बखार या अनाज रखने का गोला स्थान।

बण्डी :: (सं. स्त्री.) छोटा बण्डा (देखिये.बण्डा) जो छाती पर दुहरा होता था तथा बगल में तनियों से बाँधा जाता था, रूई भरी जाकेट, छोटी छत।

बतकन्ना :: अधिक बात करने वाला।

बतकही :: (सं. स्त्री.) बातचीत, वाद-विवाद।

बतकाओ :: (सं. पु.) बतकही, बतकहाव, उदाहरण-लगौ रहत नाँय माँय से बतकाओ कौ डेरा (ईसुरी प्रयोग)।

बतकाव :: (सं. पु.) बतकही, बातचीत, तनावपूर्ण बातचीत।

बतंगड़ा :: (सं. पु.) बढ़ा चढ़ाकर कही जाने वाली बात जो अधिक चर्चित हो जाये।

बतन्ना :: (सं. पु.) बातचीत, बातें, बतकही, बतकहाव।

बतबौ :: (क्रि.) वात रोग से पीड़ित होना।

बतयाबो :: (क्रि.) बात कहना।

बतर :: (सं. पु.) सिंचे हुए खेतों की जुतने योग्य अवस्था।

बतरस :: (सं. पु.) बातचीत का आनन्द, बातों से मिलने वाला आनन्द।

बतराबौ :: (क्रि.) इठला-इठला कर बात करना।

बंता बनबो :: (स. क्रि.) उन्नति होना, काम बनना।

बताउन :: (सं. स्त्री.) पता ठिकाना, जानकारी, किसी के द्वारा बताई हुई बात।

बताबौ :: (क्रि.) दिखाना, प्रकट करना।

बतासफेंनी :: (सं. स्त्री.) मोइन दिये हुए रबादार आटे की पेड़ों जैसी चपटी थप्पियों को घी में तलकर तथा शक्कर में पाग कर बनायी हुई एक मिठाई, बड़े-बड़े बताशे।

बतासा :: (सं. पु.) चीनी का चासनी टपका कर बनाई हुई एक मिठाई, पानी पूरी, एक प्रकार की आतिशबाजी, बताशा।

बतियाँ :: (सं. स्त्री.) हाथ के भाँजे हुए बेसन के सेव, बातें (लोक गीत.)।

बतीसी :: (सं. स्त्री.) नीचे और ऊपर के सब दाँत, बत्तीस वस्तुओं का समूह, बत्तीसी, यह शब्द उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के सिंहासन से जोड़कर बोला जाता है।

बतेसा :: (सं. पु.) बताशा, एक मिठाई जो कड़ी चाशनी को घोंटकर तथा टपका कर बनायी हुई अन्दर छिद्रों भरी हुई टिकियाँ।

बत्तल :: (वि.) बजाय, एवज में किसी के स्थान पर कोई अन्य।

बत्ती :: (सं. स्त्री.) प्रकाश या यान्त्रिक साधन, गैस की लालटेन, दाँतों की पंक्ति।

बत्तीस :: (वि.) तीस तथा दो का योगफल।

बत्तीसी :: (सं. स्त्री.) दन्तावली, सम्पूर्ण दाँतों का समाहार।

बत्तीसी :: (कहा.) बत्तीस दाँतन में जैसे जीभ - बहुत सतर्क होकर चलना, (सिंहासन बत्तीसी) इस सिंहासन में बत्तीस पुतलियाँ लगी थी विक्रमादित्य के शौर्य, ईमानदानी, दानशीलता की गवाह थीं। जब राजा भोज को ये सिंहासन मिला तो उस पर बैठने के पूर्व सारी पुतलियों ने उन्हें एक एक कर के मना कर दिया, यह कहते हुए कि पहले विक्रम के बराबर बनो और हर एक ने उन्हें विदर्भ की कथा सुनाई।

बत्तू :: (सं. स्त्री.) बात, रहस्य की बात (अधिकाशं बच्चों की भाषा में प्रयुक्त)।

बथुआ :: (सं. पु.) एक भाजी जिसमें लौह तत्व अधिक होता है।

बद :: (सं. स्त्री.) जाँघ में उठने वाली गिल्टी।

बँद :: (सं. पु.) तालाब का बँधान, कपड़े की तनी।

बँदइया :: (सं. स्त्री.) बँदरिया, मादा मच्छर।

बँदइया :: (पु. सं.) बाँधने वाला।

बदक :: (सं. स्त्री.) बतख, जल और थल पर रहने वाला एक पक्षी।

बदकारी :: (वि.) बेईमानी।

बँदकें :: (क्रि. वि.) लगातार, नियमित।

बँदगोबी :: (सं. स्त्री.) पत्तों की तह वाली गोभी, कमर कल्ला, पात गोभी का पौधा उक्त पौधे का फ्ल।

बँदनवारौ :: (सं. पु.) शुभ अवसरों पर दरवाजों पर बाँधा जाने वाला आम्रपत्तों या अन्य शुभ वस्तुओं का तोरण।

बदना :: (क्रि.) निश्चित करना, बोलना, बढ़ना, कहना, दाव लगाना।

बँदना :: (सं. पु.) बाँधने के लिए रस्सी आदि का टुकड़ा।

बँदना :: (मुहा.) बँदना-बोरिया -किसी विशेष प्रयोजन के सभी साधन।

बदनी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का टोंटीदार लोटा।

बँदबाबो :: (स. क्रि.) बाँधने का काम करवाना, कैद करवाना।

बदबौ :: (क्रि.) बचनबद्ध होना, वंश में आना।

बदम्मा :: (सं. पु.) गाड़ी के पहियों में ओंगन देने की लोहे की पत्ती।

बदरई :: (सं. स्त्री.) हल्के बादल।

बँदरखलिया :: (वि.) गड़रियों का गोत्र।

बदरचटा :: (वि.) ऐसा बालक जिसके माँ-बाप बचपन में ही मर गये हों, इसके पीछे यह भावना रहती है कि बालक के पूर्व जन्म के पापों के फलस्वरूप ऐसा होते है। इस शब्द का प्रयोग गाली के रूप में होता है।

बदरफट्ट :: (सं. स्त्री.) कई दिन लगातार वर्षा से ऊब कर वर्षा को रोकने का एक टोंना, कहते हैं वर्षा रोकने के लिए स्त्री नग्न होकर आँगन आदि अकेले एकान्त में जलता हुआ लूघर आसमान की ओर करके बदरफट्ट कहती हुई उद्दाम नृत्य करती थी तो वर्षा रूक जाती थी।

बदरया :: (सं. पु.) घाम।

बदरा :: (वि.) बादलों में से छनकर आने वाला (घाम)।

बदरा :: (कहा.) बदरा घाम - बड़ा तेज होता है।

बँदरा :: (वि.) भूरे रंग का बैल जिसके नथुनों के बीच की जगह भी भूरे रंग की हो, ये सभी रंगों के गाय बैलों की काली होती है।

बँदरा :: (कहा.) बँदरा बैल जेठो पूत, जै बिर्रे कौ कड़े सपूत - भूरे रंग का बैल और जेठा लड़का जिस किसी का ही अच्छा निकलता है।

बँदरा घुरकी :: (सं. स्त्री.) झूठी धमकी।

बदराई :: (सं. स्त्री.) कुमार्ग।

बदरिया :: दे. बदरई।

बँदरिया :: (सं. स्त्री.) वानर, बन्दर का स्त्रीलिंग शब्द।

बँदरी :: (सं. स्त्री.) एक बीमारी, खपरी, एक तलवार।

बदरीधाम :: (सं. पु.) बद्रिकाधाम एवं उस क्षेत्र के अन्य तीर्थ स्थल (योगरूढ़ शब्द)।

बदरूखो :: (सं. पु.) जब आकाश में बादल छायें हों।

बदरौ :: (सं. पु.) वह दान जिसके अन्दर बीज नहीं होता है।

बदरौखौ :: (सं. पु.) बादलों के छाये होने का अंधकार, ऐसा मौसम जिसमें बादल छाये हों।

बदरौट :: (सं. स्त्री.) रहँट के खड़े घूमने वाले भौंरा को ऊपर सहारा देने वाली क्षैतिज रूप में थुमियों पर लगायी जाने वाली मोटी लकड़ी, सुअर की ऊपरी पतली चमड़ी के नीचे की चर्बी की मोटी पर्त।

बदरौटी :: (सं. स्त्री.) सुअर की खाल के, सुअर की चर्बी में तले हुए चुरमुरे टुकड़े (एक मांसाहारी व्यंजन)।

बदरौली :: (सं. स्त्री.) बादल की धूप।

बदलबाबो :: (स. क्रि.) बदलने का काम दूसरे से कराना।

बदलबौ :: (क्रि.) मुकर जाना, विरूद्ध हो जाना, भय या लिहाज छोड़कर एकाएक सामना करने के लिए तैयार हो जाना, एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु का लेन-देन करना, एक वस्तु को हटाकर दूसरी रखना।

बदला :: (सं. पु.) आपसी सहमति से वस्तुओं की अदला-बदली करने की क्रिया, प्रतिशोध।

बदलाई :: (सं. स्त्री.) बदलने की क्रिया या भाव, बदलने में लगने वाली रकम।

बदलौ :: (सं. पु.) प्रतिकार, प्रतिहिंसा, प्रतिशोध।

बदलौअल :: (सं. पु.) बदलने योग्य।

बँदस :: (सं. स्त्री.) बंधन।

बँदा :: (सं. पु.) बँधान का खेत।

बंदा :: (सं. पु.) बँधान का खेत।

बदाई :: (सं. स्त्री.) बधाई, बुद्धि, मंगल उत्सव, मंगलाचार, मुबारकबाद।

बदान :: (सं. पु.) तालाब का बाँध।

बँदान :: (सं. पु.) दे. बँद।

बदाव :: (सं. पु.) बँधावा, बधाई।

बदिक :: (सं. पु.) बध कने वाला, व्याघ्र, जल्लाद।

बदिया :: (वि.) बधिया, अण्डकोष निकाला हुआ (पशु) चमड़े की पट्टी, नपुंसक (बैलों को नपुंसक कर दिया जाता है ताकि उनका शरीर मजबूत रहे)।

बँदिया :: (सं. स्त्री.) खेत के चारों ओर की नाली, एक आभूषण, उदाहरण-झिलमिल होय बँदियाँ करने फूल छव छाई सके।

बँदिस :: (सं. स्त्री.) आगे होने वाली बात, षडयंत्र, बाँधने की क्रिया या भाव, रचना, योजना, उदाहरण-बाँदस बाँदबो-षडयंत्र की तैयारी करना।

बदी :: (वि.) बहुल दिवस, कृष्णपक्ष, विधाता द्वारा निर्धारित, वचन देकर पक्की की हुई।

बदी :: (मुहा.) कई-बदी लिखी-बदी, नेकी का विलोम।

बँदी :: (सं. स्त्री.) नियम के वस्तु देना बँधा हुआ क्रम, बंधन में, आपूर्ति की दैनिक सेवा, दूध अखवार आदि की बंदी।

बँदी :: (कहा.) बँदी मुठी लाख की - जब तक किसी के घर की असलियत लोगों पर प्रकट नहीं होती तब तक वह बड़ा आदमी ही माना जाता है।

बँदुआ :: (वि.) कैदी, जकड़ा हुआ वचन या किसी अन्य विवशता से बंधे हुआ।

बँदूक :: (सं. स्त्री.) गोली चलाने का अस्त्र।

बँदूकची :: (सं. पु.) बँदूक चलाने वाला सिपाही या व्यक्ति।

बँदेज :: (सं. पु.) प्रबंध।

बदेरौ :: (सं. पु.) पैर का जूता बनाने के लिए लिया जाने वाला नाम, चमार।

बँदेरौ :: (सं. पु.) चर्मकार, जूतों के तल्लों पर उपरौंद को व्यवस्थित ढंग से जमाने के लिए लगायी जाने वाली चमड़े की पट्टी जिसका भीतरी किनारा पतला होता है।

बँदोरा :: (सं. पु.) थान पर बँध-बँधे खाने वाले पशु।

बदौलत :: (सं. स्त्री.) उदार एवं कृपापूर्ण माध्यम।

बद्द :: (सं. स्त्री.) हथेली में पड़ी हुई ठट्ट, काम अधिक करने से हथेली पर उठ ने वाले उभार।

बद्दा :: (सं. पु.) नारियल की गरी का गोला, घाटा।

बद्दाठियौ :: (वि.) अव्यवस्था के कारण जिस वस्तु के रखे जाने का पता न हो, बट्टाठिई।

बद्दी :: (सं. स्त्री.) चौकार टिकिया, अधिकांश साबुन की टिकियाँ के लिए प्रयुक्त।

बद्दौ :: (सं. पु.) किसी वस्तु के घटिया होने के कारण उसके मूल्य में होने वाली कमी।

बद्दौ :: (कहा.) बट्टे खाते परबौ अथवा जावो किये हुए प्रयत्न का व्यर्थ जाना, खटाई में पड़ना, रकम वसूल होने की उम्मीद न होने पर उसे बट्टे खाते डालना या पड़ना कहते है।

बध :: (सं. पु.) मार डालने की क्रिया (धार्मिक प्रसंग में प्रयुक्त)।

बँध :: (सं. पु.) चाँदी की पतली दानेदार चूँड़ियाँ।

बँधना :: (क्रि.) बाँधने की रस्सी, कैद होना।

बधाई :: (सं. स्त्री.) किसी के आनन्द पूर्ण अवसर पर अपनी ओर से प्रकट किया जाने वाला आनन्द, मंगलवृद्धि की कामना।

बँधाई :: (सं. स्त्री.) बँधाने का काम या मजदूरी।

बँधान :: (सं. पु.) नियम, परिपाटी, किसी बात को नियम से बँधकर करना, वाद्य संगीत में ताल का समा।

बँधाबो :: (क्रि.) बाँधने का काम करना।

बधाये :: (सं. स्त्री.) बधाई।

बधाव :: (सं. पु.) मांगलिक अवसर पर दूसरों के द्वारा प्रस्तुत उपहार, ऐसे अवसर पर किया जाने वाला नाच-गान या उत्सव।

बधिया :: (सं. स्त्री.) दतियासाई जूता में जारो के ऊपर का भाग, चमार, रस्सी।

बधियाबो :: (क्रि.) बैल के अंडकोष निकालना।

बँधुआ :: (सं. पु.) कैदी, बन्दी।

बधैया :: (सं. स्त्री.) बधाई।

बधैया :: (पु.) बधिक, बधावा।

बन :: (सं. पु.) वन, जंगल, चेचक की फुड़ियों का समूह जो फैलकर एक हो गयी हो।

बन :: (कहा.) रत ते बन में, रखाउत ते चारौ जैसई जेठमास जैसई बसकारौ।

बन :: (कहा.) बन जाये, बनई में नईं रत - वन में पैदा हुए वन में ही नहीं रहते, आदमी के दिन सदा एक से नहीं रहते।

बनउ :: (वि.) सम्बोधन बनियाँ के लिए व्यंग्यात्मक सम्बोधन।

बनउअल :: (वि.) नकली, बनावटी, जो असली न हो।

बनक :: (सं. स्त्री.) बनावट, आकार-प्रकार एवं रचना की शैली तथा सन्तुलन।

बनक :: (कहा.) बनतन देरलगत, बिगरतन देर नई लगत।

बनक :: (कहा.) बनी बनी के सब साथी - अच्छे समय के सब साथी होते हैं, बुरे का कोई नहीं, बनकें-एकदम।

बनखरो :: (सं. पु.) कपास वाला खेत।

बनज :: (सं. पु.) वाणिज्य, व्यापार, धंधा, वन सम्पदा।

बनजबो :: (सं. पु.) व्यापार करना, मोल लेना।

बनजारे :: (सं. पु.) समूहों में घूम-फिर कर कुछ विशेष वस्तुओं का व्यापार करने वाले।

बनजी :: (सं. पु.) व्यापार।

बनजुआ :: (सं. पु.) व्यापार करने वाला।

बनझारी :: (सं. पु.) पानी रखने का पात्र विशेष।

बनट्टा :: (सं. पु.) वैश्य के लिए अपमान सूचक शब्द।

बनथोरा :: (सं. पु.) एक प्राचीन जागीर महाराज छत्रसाल के पुत्र भारती चंद यहाँ के जमींदार थे।

बनबारी :: (सं. पु.) श्रीकृष्ण।

बनबैया :: (सं. पु.) बनाने वाला।

बनबौ :: (क्रि.) तैयार होना, रचा जाना, काम आने योग्य, एकरूप से बदलकर अन्य रूप मेंहो जाना, उन्नत दशा को प्राप्त होना, मरम्मत होना, सुअवसर मिलना।

बनया :: (वि.) बनियों जैसे स्वभाव वाला, सहनशील।

बनया :: (कहा.) बनया, बाँमन, पनया साँप, उनमें विष न इनमें साँच।

बनयाई :: (सं. स्त्री.) हिसाब-किताब तथा व्यवहार में अत्यधिक बारीकी, चतुराई, सहनशीलता।

बनयाँत :: (सं. स्त्री.) वैश्यों के रहने का मुहल्ला।

बनरा :: (सं. पु.) दुल्हा, लड़के के विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले लोक गीतों की शैली (लोक गीत.)।

बनसट, बनसटी :: (सं. पु.) वन की लकड़ी।

बनसी :: (सं. स्त्री.) बाँसुरी, मछली, पकड़ने का काँटा।

बना :: (सं. पु.) बनरा, दूल्हा, लड़के के विवाह में गाये जाने वाले लोक गीतों की शैली (लोक गीत) प्रयोग-बना के आँगे तबल निसान पुतरियाँ छपछम नाचें जू।

बनात :: (सं. पु.) ऊनी चादर।

बनाफर :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक उपजाति, आल्हा-ऊदल इसी उपजाति के थे। बनाफरराय महोबा के प्रसिद्ध वीर आल्हा।

बनाफरी :: (सं. स्त्री.) बुन्देली की एक उपबोली जो बाँदा, हमीरपुर तथा आंशिक और मिश्रित रूप में पन्ना तथा छतरपुर जिलों में बोली जाती है।

बनाबौ :: (क्रि.) बनाना, निर्माण करना, सफल करना, बेवकूफ बनाना।

बनारसी :: (वि.) बनारस की बनी (साड़ी), बनारस की शिल्प वस्तुऐं, बनारस की।

बनाव :: (सं. पु.) दे. बनक।

बनावनहार :: (सं. पु.) बनानेवाला, सृष्टि की रचना करने वाला, ईश्वर।

बनासपाती :: (सं. स्त्री.) वनस्पति।

बनिआँ :: (सं. पु.) व्यापारी, वैश्य, बनिया (बुँ.)।

बनी :: (सं. स्त्री.) दुल्हान (लोक गीत.) कीँले फलों की झाड़ी, गाड़रमार।

बनैठी, बनैती :: (सं. स्त्री.) एक लाठी जिसके दोनों सिरों पर लट्टू लगे रहते है।

बनैल :: (सं. पु.) जंगली पशु।

बनोक :: (सं. पु.) बनावट, रचना, प्रकार।

बनोबास :: (सं. पु.) वनबास।

बनौआ :: (वि.) बनावट, कृत्रिम, नकली।

बन्ता :: (सं. पु.) उन्नति।

बन्द :: (वि.) प्रचलन से बाहर, निष्क्रिय, बन्धु (भाई-बन्द) शब्द युग्म में प्रयुक्त (संज्ञ पुल्लिंग.)। जो खुला न हो।

बन्दनबारौ :: (सं. पु.) बन्दनवार, मांगलिक अवसर पर दरवाजे पर बाँधी जाने वाली आम के पत्तों या अन्य सजावटी सामान की बेल।

बन्दना :: (सं. स्त्री.) प्रार्थना, स्तुति, देव-दर्शन एवं स्तुति, जैन धर्मालम्बियों में प्रयुक्त।

बन्दियाँ :: (सं. स्त्री.) माँग (सीमान्त) से लेकर कानों तक बालों के किनारे पहनी जाने सोने-चाँदी की पट्टियों का आभूषण (बहुवचन)।

बन्दुकया :: (सं. पु.) बन्दूकधारी।

बन्दूक :: (सं. पु.) एक आग्नेयास्त्र।

बन्देज :: (सं. पु.) सुरक्षा का प्रबन्ध।

बन्देजाँ :: (क्रि. वि.) नियमित।

बन्दौ :: (सं. पु.) जानवरों का चारा दाना।

बन्धान :: (सं. पु.) धर्मार्थ दिया जाने वाला नियमित दान।

बन्न :: (सं. पु.) वर्ण, रूप, रंग, प्रकार।

बन्नक :: (सं. पु.) नमूना।

बन्ना। :: (सं. पु.) दुल्हा।

बन्ना। :: (स्त्री.) बन्नी।

बपचटा :: (वि.) जिसका बाप बचपन में मर गया हो, इसके पीछे यह धारण है कि उसके पापों के फलस्वरूप ही इसे बचपन से पितृविहीनता का दुख भोगना पड़ रहा है (यौगिक शब्द.)।

बपौती :: (सं. स्त्री.) बाप-दादों की सम्पत्ति जो दाय के रूप में प्राप्त हुई हों, मीरास।

बफयाबौ :: (क्रि.) भाप से थोड़ा पकाना, हलका उबालना।

बफाबो :: (क्रि.) भाप में पकाना।

बफारौ :: (सं. पु.) औषधियों को जलाकर उनके धुँए से सेंक करने की क्रिया।

बफौरी :: (सं. स्त्री.) कढ़ी में चुरते समय डाले जाने वाले बच्चे सेव जो कढ़ी के साथ ही पक जाते हैं, पकौड़ियों के विकल्प के रूप में प्रयुक्त।

बबकबो :: (स. क्रि.) उत्तेजना में बोलना।

बबरबौ :: (क्रि.) लकड़ी के कटने से उठे खुरदरेपन को छीलना।

बबरा :: (सं. पु.) चीला, एक प्रकार का मालपुआ जो पराठों की तरह सेका जाता है।

बबास :: (सं. पु.) एक मछली।

बबासीर, बबेसी :: (सं. स्त्री.) एक रोग जिसमें गुदा में मस्से हो जाते है अर्श, बबासीर के मस्से, बवासीर।

बबुआ :: (सं. पु.) रबर या प्लास्टिक का पुतला।

बबूल :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष, छाल जो दवाई के काम आती है, गोंद निकलती है, फली दवा के काम आती है। इसके काँटे लम्बे होते हैं।

बब्बा :: (सं. स्त्री.) पिता का पिता, बुड्ढा व्यक्ति।

बम :: (निपात) शंकर भगवान के साथ उनके जयकारे के रूप में प्रयुक्त।

बम :: (प्र.) बम भोले।

बमकबौ :: (क्रि.) कूदना, उछलना।

बमछार :: (सं. स्त्री.) उछाल, उछलने की स्थिति।

बमना :: (सं. पु.) ब्राह्मण के लिए अनादरवाची शब्द।

बमनोत्री :: (सं. स्त्री.) ब्राम्हण समाज, ब्राह्मणत्व।

बमबुलियाँ :: (सं. स्त्री.) बाबा के गीत, लमेरा, रमटेरा, मकर संक्रान्ति के अवसर पर गाये जाने वाले गीत, इनका छन्द बहुत छोटा होता है।

बमबुलियाँ :: (प्र.) गनेश देव गजरा खों बिरजे, कै भोरइ से ठाँड़े मलिनियाँ के दोर (लोक गीत.)।

बमाबौ :: (क्रि.) किसी बन्द स्थान पर दुर्गन्ध पैदा होकर वहीं भरी रहने से वहाँ की हर चीज में दुर्गन्ध का बस जाना।

बमीठौ :: (सं. पु.) बाल्मीक, दीमक के द्वारा बनाये गये मन्दिर के आकार का घर इसके अन्दर बहुत गहरे तक जाने वाले छोटे-बड़े छिद्र होते है।

बमील :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की मछली।

बमीसी :: (सं. स्त्री.) बबासीर।

बमुरयाई :: (सं. स्त्री.) बबूल का जंगल।

बमूरा :: (सं. पु.) बबूल का वृक्ष।

बम्म :: (सं. पु.) बम, बौम्ब, विस्फोटक पदार्थो से बनाया गया गोला जो शस्त्र के रूप में काम लाया जाता है, आतिशबाजी का गोला।

बम्मन :: (सं. पु.) ब्राह्मण (लोक साहित्या.)।

बम्मन :: (कहा.) हमाब तुमाब का साथ, हम बम्मन तुम भाट।

बम्मा :: (सं. पु.) नाली।

बम्हँन :: (सं. पु.) ब्राह्मण, बाँमन (बुँ)।

बयरा :: (सं. पु.) झाडू।

बयरौ :: (सं. पु.) बहेरे का वृक्ष, बहेरे के फल जो प्रसिद्ध औषधि त्रिफला का एक घटक है।

बया :: (सं. पु.) अनाज तौलने वाला, एक पक्षी।

बयाई :: (सं. स्त्री.) अन्नादि तौलने की मजदूरी, तौलाई।

बयाँन :: (सं. पु.) दे. बिआँन, बयान, स्टेटमेंट।

बर :: (सं. पु.) वट वृक्ष के फल।

बरइ :: (सं. पु.) तम्बोली, पान की खेती एवं व्यापार करने वाली एक जाति।

बरइ :: (सं. स्त्री.) बरेन।

बरइया :: (सं. स्त्री.) लगभग एक किलोग्राम गेहूँ की समाई वाला नापने का बर्तन।

बरउआ :: (सं. पु.) पानी भरने वाला, ढीमर (सगरया बुन्देली में प्रयुक्त)।

बरओ :: (सं. पु.) खेतों में सिचाई करने हेतु बनी नाली।

बरक :: (सं. पु.) सोने-चाँदी की अत्यन्त पतली पन्नी।

बरकबौ :: (क्रि.) बचना, हटकर निकलना, पैसा या कोई वस्तु भविष्य को ध्यान में रखकर बचाना।

बरकाबौ :: (क्रि.) बचाना, झगड़े से दूर करना, भविष्य के लिए जोड़ना।

बरकाव :: (सं. पु.) बीच-बीच, बचाव, किनारा करने की क्रिया।

बरकिया :: (सं. स्त्री.) बकरी का बच्चा।

बरक्कत :: (सं. स्त्री.) बचत, लाभ, बरकत।

बरख :: (सं. पु.) साल, बरस वर्ष।

बरखबो :: (अ. क्रि.) पानी बरसना, वर्षा होना।

बरखा :: (सं. स्त्री.) (सं. वर्ष) मेंह बरसना, वृष्टि, वर्षा ऋतु।

बरखाबो :: (स. क्रि.) बरसाना, अधिक देना, ऊपर से छितराकर वर्षा के समान गिराना।

बरखास :: (वि.) (वरखास्त फारसी भाषा.) नौकरी से हटाया हुआ, जिसकी बैठक विसर्जित हो गयी हो (क्रियार्थक संज्ञा)।

बरग :: (सं. पु.) वर्ग, समभाव, समाचरण, व्यवहार, समानता।

बरगा :: (सं. पु.) अटारी पाटने के लिए पटिया।

बरछ बारे बाबा :: (सं. पु.) चमार जाति के देव।

बरछा :: (सं. पु.) एक प्रकार का शस्त्र।

बरछी :: (सं. स्त्री.) कटार, वर्षी, वार्षिक श्राद्ध।

बरजबौ :: (क्रि.) रोकना, किसी काम के लिए मना करना।

बरजी :: (सं. स्त्री.) मनाई की।

बरजोर :: (वि.) अत्याचार, बल, बलप्रयोग।

बरजोर :: (क्रि. वि.) बलपूर्वक बलात्।

बरजोरी :: (सं. स्त्री.) अत्याचार, बल, बलप्रयोग।

बरजोरी :: (क्रि. वि.) बलपूर्वक बलात्।

बरण्डी :: (सं. स्त्री.) ब्राण्डी, अँग्रेजी शराब की एक किस्म।

बरतन :: (सं. पु.) बर्तन, बर्तन, पात्र (थाली, लोटा आदि)।

बरतबौ :: (क्रि.) उपयोग में लाना, व्यवहार करना।

बरतया :: (सं. पु.) बराती, बारात में सम्मिलित लोग।

बरताबो :: (स. क्रि.) बारी-बारी से कोई वस्तु बाँटना, काम में लगवाना, देना।

बरताव :: (सं. पु.) उपयोग, व्यवहार।

बरती :: (सं. स्त्री.) वर्तिका, स्लेट पर लिखने की लेखनी।

बरतौर :: (सं. पु.) वह फुंसी या फोड़ा जो बाल उखड़ने के कारण हो, बालतोड़।

बरदा :: (सं. पु.) बरधा, बैल।

बरदिया :: (सं. स्त्री.) कुम्हारों की एक उपजाति।

बरद्दास :: (सं. स्त्री.) बरदाश्त, सहन करने की क्रिया, सेवा सँभार।

बरन :: (सं. पु.) वर्ण, रंग।

बरनन :: (सं. पु.) वर्णन, किसी बात को यथातथ्य प्रस्तुति।

बरना :: (संयोजक) चेतावनी का संयोजक अव्य.।

बरफ :: (सं. पु.) जमा हुआ पानी, बर्फ।

बरफी :: (सं. स्त्री.) जमाये हुए खोये तथा शक्कर के चौकोर टुकड़ों के रूप में एक मिठाई।

बरबर :: (सं. पु. (अनु.)) व्यर्थ की बातें, बर्बर बकवास। (1) क्रूर और जगली।

बरबराबौ :: (क्रि.) दे. बड़बड़ाबौ।

बरबरी :: (वि.) बकरियों की एक उन्नत जाति।

बरबरीक :: (सं. पु.) पांडव भीम का नाती, घटोत्कच का लड़का।

बरबाद :: (वि.) नष्ट-भ्रष्ट होने की क्रिया।

बरबादी :: (सं. स्त्री.) नष्ट-भ्रष्ट, होने की क्रिया।

बरबूला :: (सं. पु. पु.) बबूला, गोबर की बनी बड़े के आकार की वस्तु जो होली में जलायी जाती है।

बरबौ :: (क्रि.) जलना, ईर्ष्या करना, गुरियों आदि के संयोजन से बनने वाले आभूषणों को धागों में गूँथना।

बरमसंकर :: (वि.) वर्णसंकर, अकुलीन, जिसके शरीर में दो वर्णो का रक्त हो।

बरमा :: (सं. पु.) छेद करने का एक औजार पूर्वकाल में क्षत्रियों का वर्णसूचक उपनाम, वर्तमान में कोई भी लिखता है।

बरमान :: (सं. पु.) ब्रह्माण्ड घाट, सागर तथा नरसिंहपुर के बीच नर्मदा नदी के तट पर स्थित एक तीर्थ।

बरम्बू :: (वि.) कृपालु, इच्छित फल के दाता।

बरया, बरयावट :: (क्रि. वि.) कठिन प्रयास, अधिक परिश्रम से।

बरया, बरयावट :: (प्र.) बरया के, बरयाबट के भव जौ काम, इनके साथ ये शब्द अवश्य लगता है।

बरयाई :: (सं. स्त्री.) जबरदस्ती, बलप्रयोग, अव्य, बलपूर्वक, विवशता के कारण।

बरयानो :: (सं. पु.) ऊधम करना।

बरयाबौ :: (क्रि.) जिसके लिए रोका जाए वही करना।

बरस :: (सं. पु.) वर्ष, साल।

बरसगाँठ :: (सं. स्त्री.) जन्मदिन, साल गिरह, जन्म दिन का उत्सव।

बरसबौ :: (क्रि.) पानी का बरसना।

बरसबौ :: (कहा.) बरसो राम झड़ाझड़ियाँ, खाये किसान मरै बनियाँ - वर्षा ऋतु आरंभ होने पर लड़के कहा करते हैं।

बरसाऊ :: (वि.) जो अभी-अभी बरसने वाला हो (बादल)।

बरसात :: (सं. स्त्री.) वर्षा ऋतु, वर्षा काल, वर्षा।

बरसाती :: (वि.) जो पानी से फूलें नहीं-बरसाती जूते आदि, पॉलीथिन की चादर, बरसात से बचने का कोट।

बरसाबो :: (सं. क्रि.) वर्षा करना, वर्षा के जल के समान इधर-उधर से बहुत सा गिरना।

बरसी :: (सं. स्त्री.) मृतक के निमित्त किया जाने वाला वार्षिक श्राद्ध।

बरहाई :: (सं. स्त्री.) ईख की फसल।

बरा :: (सं. पु.) दे. बख, उड़द की दाल के बड़ा जो गंजी में गलाये जाते हैं, कुहनी के ऊपर बाँह में पहिने जाने वाले स्त्रियों के आभूषण।

बराई :: (सं. स्त्री.) ईख, गन्ने की एक जाति।

बराए :: (अ.) वास्ते के लिए जैसे-बराए खुदा-ईश्वर के लिए।

बराजोरी :: (क्रि. वि.) बलपूर्वक, जबरदस्ती।

बराजोरी :: (सं. पु.) वरयात्री।

बराजोरी :: दे. बरतया।

बराजोरी :: (कहा.) बराती तौ अपने अपने घरै चले जेयँ, काम दूल्हा दुलैया सें परै - फलातू आदमी काम में अड़ंगा डालकर अलग हो जाते है।

बरात :: (सं. स्त्री.) विवाह के लिए जैसे-बराए खुदा-ईश्वर के लिए।

बरांद :: (सं. पु.) जलने की गंध।

बरानकोट :: (सं. पु.) ढीला-ढीला घुटनों तक लम्बा गरम कोट।

बराबरसात :: (सं. पु.) जेठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या।

बराबौ :: (क्रि.) खेतों में आवश्यकता के स्थान पर बहाकर पानी ले जाना, ओलों को मंत्र-बल से जंगल की ओर मोड़ना।

बरामद :: (क्रि.) चोरी का माल पकड़ा जाना।

बरामदा :: (सं. पु.) दालान, बरांडा।

बराये :: (सं. पु.) बहला दिए, वास्ते।

बरार :: (सं. पु.) बसोर जाति के लिए आदरवाची।

बरारू :: (सं. पु.) मोटी रस्सी जिससे कुयें से भारी बर्तन खींचा जाता है।

बरारौ :: (सं. पु.) चर्सा खींचने का मोटा लम्बा रस्सा, हल के जुए से बंधी रस्सी।

बराव :: (सं. पु.) निवारण, परहेज।

बराही :: (सं. स्त्री.) ईख की फसल।

बरिया :: (वि.) दोष मुक्त (अकर्मक.)।

बरियाई :: (क्रि.) जबरदस्ती, बलपूर्वक।

बरियाबो :: (क्रि.) उपद्रव करने पर उतारू होना।

बरियार :: (वि.) बलवान।

बरी :: (वि.) दोष मुक्त (अकर्मक.)।

बरूआ :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों का एक वर्ग जो सनाढ्यों में लगभग भाटों जैसा काम करते हैं तथा सनाढ्यों से खान-पान का सम्बन्ध होने पर भी वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होता है।

बरूआसन :: (सं. पु.) रंज, दुःख।

बरूलबौ :: (क्रि.) लता को मुट्ठी में भरकर खीचना ताकि पत्ते टूट-कर मुट्ठी में आते जायें (रूल-बरूल शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

बरूला :: (सं. पु.) होली में जलाने को गोबर की विशेष आकृतियाँ जो कीप के ऊपरी भाग के समान होती है।

बरेजा :: (सं. पु.) (सं. वाटिका) पान का भीटा।

बरेजों :: (सं. पु.) पान के छप्परदार तथा चारों ओर से बन्द खेत।

बरेठा :: (सं. पु.) धोबी के लिए आदरवाची शब्द।

बरेदी :: (सं. पु.) गाय-भैसों को चराने के लिए ले जाने वाला, चरवाहा।

बरेंन :: (सं. स्त्री.) तम्बोली जाति की स्त्री, पान बेचने वाली महिला।

बरै :: (क्रि.) किसी वस्तु के जलने की इच्छा प्रकट करना, इस शब्द को कुछ स्त्रियाँ तकियाकलाम के रूप में निरर्थक प्रयोग करती है।

बरैतया :: (सं. पु.) दे. बरतया, बराती।

बरैया सेर :: (सं. पु.) बारह टका भर।

बरोठा :: (सं. पु.) द्वार पर दालान, ड्योढ़ी, बैठक।

बरोंनी :: (सं. स्त्री.) घरों में पानी भरने का काम करने वाली स्त्री के लिए आदरसूचक शब्द, आँख के पपोटों के बाल।

बरोसी :: (सं. स्त्री.) अग्नि भरने का मिट्टी का कूँड़ा, पात्र, बोरसी, अँगीटी, इस शब्द का प्रयोग प्रायः जाड़े की ऋतु के बाद किया जाता है, जाड़े में जब यह उपयोग में रहती है तब गुरसी कहा जाता है।

बरोंसी :: (सं. स्त्री.) सिगड़ी।

बरौ :: (वि.) लोधान्ती) बड़ा, ज्येष्ठ।

बरौआ :: (सं. पु.) खेत की क्यारियों में पानी खोदने वाला।

बरौंटी :: (सं. स्त्री.) स्वप्नावस्था।

बरौंड़ा :: (सं. पु.) (पाथर कछार) कालिंजर से दस मील दूर एक प्राचीन रियासत।

बर्खा :: (सं. स्त्री.) वर्षा, पानी बरसने की क्रिया।

बर्गा :: (सं. पु.) दे. बरगा।

बर्छी :: (सं. स्त्री.) दे. बरछी।

बर्तना :: कलम।

बर्ती :: (सं. स्त्री.) दे. बरती।

बर्नी :: (सं. स्त्री.) काँच या चीनी मिट्टी का आचार या मुरब्बा रखने का बर्तन, मर्तबान।

बर्फी :: (सं. स्त्री.) दे. बरफी।

बर्मा :: (सं. पु.) दे. बरमा।

बर्र :: (सं. स्त्री.) भिड़, चीटे की-सी बनावट वाले किन्तु आकार में बड़े लाल और पीले रंग के कीड़े जो डंक मारते हैं।

बर्र :: (कहा.) बर्रन के छत्ता में हात डारबो - भिड़ों के छते में हाथ डालना, जान-बूझ कर विपत्ति मोल लेना।

बर्राट :: (सं. पु.) दे. स्वप्न।

बर्राटन :: (क्रि. वि.) स्वप्न में (कारकयुक्त शब्द जो प्रयोग में क्रियाविशेषण. जैसा काम करता है।)।

बर्राबौ :: (क्रि.) स्वप्नदेखना, स्वप्न में बड़-बड़ाना, नींद में बोलना।

बर्रू :: (सं. स्त्री.) घास की जाति का कुछ बड़ा पौधा जिसकी कलम बनती है।

बर्स :: (सं. स्त्री.) बरस, बारह माह का समय।

बर्स :: (मुहा.) बर्स दिनाँ कौ दिन-वर्ष में एक दिन आने वाला त्यौहार या पवित्र दिन, पश्चात्ताप या दुःख प्रकट करने की मनः स्थिति में प्रयुक्त।

बर्सी :: (सं. स्त्री.) वार्षिक श्राद्ध।

बल :: (सं. पु.) शक्ति, फर्क, झुकाव, प्रोत्साहन।

बलइयाँ :: (सं. स्त्री.) बलाय अपने ऊपर लेने की क्रिया, स्त्रियाँ बच्चे के ऊपर दोनों हाथ फिरा कर उल्टी उँगलियाँ अपनी कनपटियों के ऊपर रखकर दबाने की क्रिया करती है, इसी को बलइयाँ लेना कहते हैं।

बलदान :: (सं. पु.) निछावर होने की क्रिया, पशु को देवार्पणा करने के नाम पर विधानपूर्वक मारना।

बलब :: (सं. पु.) बिजली का लट्टू, बल्ब (अंग्रेजी.)।

बलबलाबौ :: (क्रि.) ऊँट का बोलना, ऊँची आवाज में उत्तेजनापूर्वक बोलना (लोक अकर्मक.)।

बलबूजा :: (सं. पु.) बुलबुला, बलबूला (सागर तरफ)।

बलम, बलमा :: (सं.) (बल्लभ) प्रियतम, पति, नायक।

बलहारबो :: (क्रि. स.) निछावर करना, चढ़ा देना।

बलहारी :: (सं. स्त्री.) निछावर होने की क्रिया, बलिहारी, अधिकतर व्यंग्यात्मक प्रयोग होता है।

बलाबल :: (वि.) शतरंज के खेल का एक प्रकार जिसमें ऐसे मुहरे को मारना वर्जित होता है जिसमें पीछे बल हो।

बलाय :: (सं. स्त्री.) प्रेत बाधा।

बली :: (सं. पु.) पीर, मुस्लिम सन्त जिनका शरीरान्त हो गया हो किन्तु जिनकी दरगाह प्रभावशील हो।

बलूला :: (सं. पु.) पानी का बुलबुला, गोबर का बरूला।

बलैंया :: (सं. स्त्री.) बला, बलाय, आपत्ति।

बल्दा :: (सं. पु.) वस्तु को वस्तु से बदलने की क्रिया, अदला-बदली।

बल्दी :: (सं. स्त्री.) बदली, स्थानान्तरण, एक स्थान से दूसरे स्थान पर तैनात होने की क्रिया।

बल्दोरी :: (सं. स्त्री.) सब्जी के बदले मिलने वाली वस्तु अनाज आदि।

बल्लम :: (सं. पु.) भाला।

बल्ला :: (सं. पु.) गेंद खेलने का बल्ला।

बल्ली :: (सं. स्त्री.) मध्यम मोटाई का लम्बा लट्ठा, डोंडा चलाने का बाँस।

बवनी :: (सं. स्त्री.) बीज बोने की क्रिया।

बस :: (निपात) रोकने का अव्य.।

बंस :: (सं. पु.) कुल, कुटुम्ब, एक ही मूल के लोगों का समूह, वंश, खानदान, (बाँस का लघु)।

बसउआ :: (वि.) खेत की रखवाली के लिए रात में खेत में जाने वाला, रात में ठहरने वाला।

बसकरया :: (वि.) बरसाती, बरसात में पैदा होने वाला।

बसकारौ :: (सं. पु.) वर्षा ऋतु।

बसकारौ :: (कहा.) बसकारे के आँदरे कों हरोई हरो सूजत - जो वर्षाऋतु में अंधा हो जाता है उसे केवल एक हरे रंग की स्मृति रह जाती है, ओर उसे चारों और हरा ही हरा समझता है।

बसत :: (सं. स्त्री.) वस्तु। (चीज-बसत शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

बसनवार :: (सं. पु.) खेतों की रखवाली के लिए खेतों पर सोने वाला।

बसना :: (सं. पु.) पान लपेटने का कपड़ा।

बसनी :: (सं. स्त्री.) कपड़े की थैली नुमा दोहरी पट्टी जो रूपये रखकर यात्रा के समय कमर में बाँध ली जाती है।

बसन्त :: (सं. स्त्री.) वसन्त ऋतु, बसन्त पंचमी।

बसन्ता :: (सं. पु.) वसन्त ऋतु में पैदा होने वाला, एक पुरूष नाम।

बसन्ती :: (वि.) नींबू या कपास के फूलों की तरह पीला रंग।

बंसपती :: (सं. स्त्री.) वनस्पति।

बसबौ :: (क्रि.) खेतों पर सोना, कहीं पर स्थाई रूप में रह जाना।

बसयाउर :: (सं. स्त्री.) बासी बची हुई भोजन सामग्री।

बसातफेंनी :: (सं. स्त्री.) दे. बसातफेंनी।

बसाँद :: (सं. स्त्री.) गन्ध, (अधिकतर दुर्गन्ध के लिए प्रयुक्त)।

बसाबौ :: (क्रि.) गन्ध देना, बास देना, मनुष्यों का आवास करना।

बसाव :: (सं. पु.) बसाहट।

बसिया :: (सं. पु.) कोदों की एक किस्म।

बंसी :: (सं. स्त्री.) बाँसुरी श्री कृष्णा के संदर्भ में, मछली पकडे जाने का काँटा।

बसीकत :: (सं. स्त्री.) बस्ती।

बसीकरन :: (वि.) वश में करने का (मंत्र)।

बसीट :: (सं. स्त्री.) दूती, अधिकतर स्त्री-पुरूष के संबंध करवाने वाली दलाल स्त्री, एक गाली।

बसीटा :: (सं. पु.) हुक्के का लकड़ी का वह भाग जो खड़ा रहता है और जिसके ऊपर चिलम रखी जाती है।

बसुरयानों :: (सं. पु.) बसोरो का मुहल्ला।

बसूलबौ :: (क्रि.) लेनदारी को बलपूर्वक उगाहना।

बसूला :: (सं. पु.) बढ़ई की ऐसी कुल्हाड़ी जिसकी धार दायें से बायें होती है, लकड़ी छीलने और गढ़ने का औजार।

बसूला :: (कहा.) बसूला ज्ञान - बसूले से जितनी भी लकड़ी छीली जाती है वह सब उसके आगे गिरती है उसी प्रकार का स्वार्थमय ज्ञान।

बसूला :: (कहा.) बसूला कौ छोलन - निकम्मा आदमी।

बसूली :: (सं. स्त्री.) लेनदारी को बलपूर्वक उगाहने की क्रिया, वसूली, उगाही।

बसेंड़याऊ :: (वि.) फाग का एक प्रकार जिसमें एक चिकनी लम्बी बल्ली को जमीन पर गाड़कर उसके ऊपर गुड़ की पारी बाँधी जाती है तथा बल्ली को उबली हुई अर्बी लपेटकर फिसलना कर दिया जाता है ताकि चढ़ने वाला चढ़ न सके, लोग बल्ली पर चढ़कर गुड़ की पारी तोड़ने का प्रयास करते हैं तथा औरतें चढ़ने वाले को बाँसों से मारती हैं, दूसरे पक्ष के लोग पिचकारियों से रंग मारकर चढ़ने वाले को परेशान करते हैं तथा बल्ली को गीला रखते हैं ताकि चढ़ने वाला चढ़ न सकें (फाग)।

बसेड़ा :: (सं. पु.) बाँस का लट्ठा।

बसेड़िये :: (सं. स्त्री.) लम्बे बाँस।

बसेता :: (सं. पु.) दे. बतेसा (बताशा )।

बसेरौ :: (सं. पु.) रात्रि में रूकने का अस्थायी स्थान, रात में खेतों पर रहने की क्रिया।

बसैला :: (वि.) गन्धयुक्त।

बसोड़, बसोर :: (सं. पु.) बाँस का काम करने वाली एक हरिजन जाति, इस जाति की स्त्रियाँ बच्चा पैदा होने के समय दायी का काम भी करती है, बसोर बाजे का कार्य भी करते हैं।

बसोरन :: (सं. स्त्री.) बसोर जाती की स्त्री. ये दायी का काम भी करती है।

बस्ता :: (सं. पु.) अध्ययन की सामग्री, अध्ययन की सामग्री रखने का थैला या छोटा सन्दूक, पटवारी का दफ्तर जो पोटली में बाँधा हुआ उसके साथ ही चलता है।

बस्ती :: (सं. स्त्री.) ग्राम, आबादी, मुहल्ला, बसाहट।

बस्स :: ((निपात) दे.) बस, मना करने का बलवाची निपात।

बहँगी :: (सं. स्त्री.) भार ढोने का एक प्रकार का उपकरण जिसमें एक लम्बे बाँस के टुकड़े के दोनों ओर छीकें लटका दिये जाते है।

बहत्तर :: (वि.) सात दहाइयों तथा दो के योग की संख्या।

बहनेऊ :: (सं. पु.) बहिन का पति।

बहरा :: (सं. पु.) बारा, झू, खजूर के पत्तों की झाडू।

बहरिया :: (सं. स्त्री.) सीकों से बनी लम्बी झाडू।

बहरूपिया :: (वि.) अनेक प्रकार के रूपों वाला अनेक प्रकार के रूप धारण करने वाला।

बहरो :: (वि.) जिसे कानों से सुनाई न पड़ता हो, किसी की बात पर ध्यान न देने वाला।

बहलिया :: (सं. स्त्री.) डिब्बे की तरह बन्द बैलगाड़ी, रथ की तरह।

बहादरा :: (सं. पु.) खराद लगने का औजार।

बहादुर :: (वि.) वीर, निर्भोक।

बहादुरी :: (सं. स्त्री.) प्रशंसा योग्य कार्य, वीरता, निर्भोकता।

बहानेबाजी :: (सं. स्त्री.) बहाना लेकर टालने की आदत।

बहानों :: (सं. पु.) माध्यम, किसी काम को टालने के लिए प्रस्तुत किया जाने वाला कारण।

बहाबौ :: (क्रि.) गति देना, तरल पदार्थ को उड़ेलना, व्यर्थ में खर्च करना।

बहारबौ :: (क्रि.) झाडू से साफ करना, झाड़ा बुहारी शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

बही :: (सं. स्त्री.) हिसाब-किताब लिखने की लम्बी, किताब।

बहीखाते :: (सं. पु.) हिसाब किताब की पुस्तकें बहियाँ खाते आदि।

बहुरबौ :: (क्रि.) बापिस होना, लौटना।

बहुरिया :: (सं. स्त्री.) नई बहु, बहू।

बहुरी :: (सं. स्त्री.) भुने चनो का चबोंना (लुधाँती में प्रयुक्त)।

बहेरौ :: (सं. पु.) एक प्रकार का वृक्ष और उसका फल जो कफ, पित्त और कृमि रोग नष्ट करने वाला माना जाता है।

बहेरौ :: दे. बयरौ।

बहोरबौ :: (क्रि.) दुहराना, पुनिर्स्मरण करना।

बहोरबौ :: (मुहा.) बाप की बहोरबौ पिता से प्राप्त अनुभवजन्य ज्ञान को प्रयोग करना।

बा :: (सर्व.) वह (सं.स्त्री) आपत्ति जनक निपात, इसमें स्वर लम्बा होता है।

बा :: (प्र.) बा तुमने खूब कई।

बाइसिकल :: (सं. स्त्री.) साइकिल।

बाई :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के लिए एक आदर सूचक शब्द, माता, माँ (लड़कियों का सामान्य सम्बोधन शब्द वही बलवाची वह)।

बाई हांड़े :: (सं. पु.) बहियात।

बाईस :: (वि.) बीस और दो के योग की संख्या।

बाईस पसेरी :: जहाँ अच्छे और बुरे, मुर्ख और पंजित, न्याय और अन्याय का कोई विचार न हो वहाँ कहते हैं।

बाउट :: (सं. स्त्री.) पेट के अन्दर का एक अवयव-तिल्ली इसमें (उ) का उच्चारण हस्व (ओ) की तरह होता है।

बाउँन :: (वि.) पचास और दो के योग की संख्या, बोना जिसका शरीर उसकी आयु के हिसाब से पूर्ण विकसित हो किन्तु हाथ-पैर अपेक्षाकृत बहुत छोटे हों।

बाउनबै :: (वि.) नौ दहाइयों और दो के योग की संख्या, आठ कम सौ।

बाए :: (सर्व.) उसे।

बाओट :: (सं. स्त्री.) दे. बाउट।

बाँक :: (सं. स्त्री.) शिकंजा विशेष प्रकार का सजावटदार लच्छा (स्त्रियों के पैरों का आभूषण) भुजा पर बाँधने का एक आभूषण।

बाँकड़ा :: (सं. पु.) कुहनी के ऊपर का एक प्रकार का गोलाकार आभूषण।

बाँका :: (वि.) टेढ़ा, तिरछा, अनोखा, छैला, बहादुर।

बाँकी :: (सं. स्त्री.) शेष, गणित की चार मौलिक क्रियाओं में से एक, घटाने की क्रिया।

बाके :: (सर्व.) उसके।

बाको :: (सर्व.) उसका, उदाहरण-कैसो बाकौ रूप है सुनौ भूप सिर मौर।

बाँकौ :: (वि.) निराला, बहुत ही विशेष।

बाख :: (वि.) बारहवाँ।

बाख :: (सं. स्त्री.) पसलियों के नीचे पेट के बगल का भाग, वक्ष।

बाखर :: (सं. स्त्री.) दे. बखरी।

बाखरी, बाखिरी :: (वि.) बहुत दिनों की ब्याई भैंस जिसका दूध गाढ़ा होता है।

बाग :: (सं. पु.) उपवन, घोड़े का मोड़ना।

बागड़ :: (सं. स्त्री.) बारी, बिरवारी, खेतों की रक्षा के लिए काँटों की रोक।

बागडोर :: (सं. पु.) लगाम का एक छोर छल्ले में बाँध कर कानों के ऊपर से निकलकर कर दूसरी ओर छल्ले में होकर निकलने वाली रस्सी।

बागन :: (सं. स्त्री.) शेरनी।

बाँगर :: (वि.) बंजर, जो (भूमि) कृषि के काम न ली जा रही हो, अवारा (पशु) नासमझ, एक जाति (बाँगड़)।

बागरबेड़ा :: (वि.) अस्त-व्यस्त तथा असुरक्षित पड़ा हुआ।

बागी :: (वि.) विद्रोही, तत्कालीन, कानून को न मानने वाला, डाकू।

बाँगी :: (सं. स्त्री.) किसी की देखा-देखी कोई वस्तु प्राप्त करने की तीव्र इच्छा।

बागैला :: (सं. पु.) गड़रिया।

बागौ :: (सं. पु.) विवाह में वर के द्वारा पहिना जाने वाला मुगल सम्राटों जैसा लाल रंग का गोटे की सजावट वाला पैरों तक नीचा चोंगा।

बागौ :: (कहा.) हगा लड़इया छींट कौ बागौ - औकात से अधिक ऊँची वस्तु को धारण करना या अपनी स्थिति से अधिक ऊँची वस्तु की कामना करना।

बागौर :: (सं. स्त्री.) छोटे-जानवरों-खरगोश आदि को फँसाने का जाल।

बाघैन :: (सं. स्त्री.) नदी, यह पन्ना के कोहारी गाँव के निकट के एक पहाड़ से निकली है और कमसिन तहसील बाँदा के विलास गाँव यमुना से मिलती है।

बाचक :: (सं. पु.) पढ़ने वाला।

बाँचबौ :: (क्रि.) वाचन करना, पढ़ना।

बाचा :: (सं. पु.) वचन, वचनबद्धता, वचनों में बाँधने की क्रिया।

बाच्छा :: (सं. पु.) बादशाह।

बाँछबौ :: (क्रि.) भाववाचक क्रिया समुदायात्मक वस्तुओं से विशेष वस्तुओं को अलग करना।

बाछा :: (सं. पु.) बच्छा।

बाज :: (सं. पु.) एक शिकारी पक्षी।

बाज :: (प्र.) बाज पराये पानि परि तू पच्छीन न मार-बिहारी।

बाँज (झ) :: (वि.) बन्ध्या, जिसके बच्चे न होते हों।

बाजदार :: (सं. पु.) गाने-बजाने वाले लोग।

बाँजर :: (वि.) बंजर (भूमि) जिस पर फसल न होती हो।

बाजरा :: (सं. पु.) एक छोटे दाने का खरीफ की फसल में पैदा होने वाला अनाज।

बाजरो :: (सं. पु.) बजड़ा, बाजरा।

बाजार :: (सं. पु.) व्यापार और क्रय विक्रय का स्थान।

बाजी :: (सं. स्त्री.) एक मछली, वाह जी।

बाजू :: (सं. स्त्री.) बाजी, खेल का एक दौर।

बाजूबन्द :: (सं. पु.) स्त्रियों को कुहनी से ऊपरी भुजाओं पर धारण किया जाने वाला आभूषण।

बाजौ :: (सर्व.) कइयों में से एकाध, बाजा।

बाजौ :: (सं. पु.) वाद्ययन्त्र।

बाजौर :: (सर्व.) उस समय।

बाट :: (सं. स्त्री.) राह, रास्ता।

बाट :: (प्र.) बाट हेरबौ-रास्ता देखना, प्रतीक्षा करना।

बाँट :: (सं. पु.) तौल करने के मानक वजन के लोहे के वजन अंकित ढले हुए टुकड़े, विभाजित करने की क्रिया।

बाँटन :: (सं. स्त्री.) बँटवारे के फलस्वरूप प्राप्त हिस्सा, बँटवारे की क्रिया।

बाँटबौ :: (क्रि.) सिल-लोढ़े से पीसना, वितरण करना।

बाटियाँ, बाटी :: (सं. स्त्री.) मोइन देकर बनायी हुई आटे की गोल-ल लोइयाँ जिनको मध्यम आँच पर रखकर या कण्डों की अधबुझी आग में दबाकर सेंका जाता है।

बाटौ :: (सं. पु.) कोर, किनारे का भाग।

बाड़ :: (सं. स्त्री.) वृद्धि, बढ़ने की स्थिति।

बाँड़ :: (सं. स्त्री.) लहँगे के लिए विशेष रूप से बनाया जाने वाला हथकरघा का कपड़ा।

बाड़ई :: (सं. पु.) बढ़ई, लकड़ी का काम करने वाली एक जाति।

बाड़बौ :: (क्रि.) हाथ ना, उपलब्ध होना।

बाड़बौ :: (प्र.) हमें ई काम में भगबो बाड़ौ।

बाड़र :: (सं. पु.) जनानी धोती की रंगीन या फूलदार किनार (अंग्रेजी.) बार्डर।

बाँड़ा :: (वि.) जिसकी पूँछ कटी हो।

बाड़ी :: (सं. स्त्री.) एक पद्धति जिसके अंतर्गत साहूकार किसान को बोने के लिए अनाज देता है और फसल आने पर उससे सवाया लेता है, खेतों के चारों ओर रक्षा के लिए बनाई गई झाड़ियों की दीवार।

बाड़ू :: (वि.) अधिक।

बाड़ौ :: (सं. पु.) चारों तरफ से घिर हुआ भूभाग, एक बड़े सामूहिक आँग के साथ बे हुए अनेक पृथक आवास।

बाढ़ :: (सं. स्त्री.) बढ़ाव, नदी आदि के जल का बहुत बढ़ना, सैलाब, तलवार आदि की धार, सान, काँट-छाँट।

बात :: (सं. पु.) एक रोग जिसमें हड्डियों के जोड़ों में सूजन और दर्द हो जाता है।

बात :: (सं. स्त्री.) वचन, सन्देश, जानकारी, रहस्यपूर्ण जानकारी, सार्थक शब्द या वाक्य कथन, वाणी, उदाहरण-बात बदलबो-पहले एक बात कहकर फिर उसके विरूद्ध दूसरी बात कहना, बात गिरबो-काम बिगाड़ना।

बात :: (सं. स्त्री.) वचन, संदेश, जानकारी, रहस्यपूर्ण जानकारी, सार्थक शब्द या वाक्य कथन, वाणी उदाहरण-बात बदलबो-बदले एक बात कहकर फिर उसके विरूद्ध दूसरी बात कहना, बात बिगारबो-काम बिगाड़ना, उदाहरण-बात कौ बतंगड़-थोड़ी बात को बढ़ाकर कहना।

बात :: (कहा.) बातन में फूल झरत - बातों में फूल झरते हैं, मधुरभाषी के लिए।

बात :: (कहा.) बातन में फूल झरत - बातों में फूल झरते हैं, मधुरभाषी के लिए।

बाती :: (सं. स्त्री.) वर्तिका, बत्ती।

बाती :: (वि.) वाचाल, बहुत बात करने वाला।

बातें :: (सं. स्त्री.) क्रोध या झुँझलाहट के कारण डाँट-फटकार, बुरी भली बे-लिहाज बातें, बातचीत।

बातैरी :: (सं. स्त्री.) बालतोड़, फोड़ा।

बातौ :: (सं. पु.) घास-पुआल आदि का यह सिलसिला जिसके सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आग फैल जाती है।

बाथुर :: (सं. पु.) दे. बथुआ, एक भाजी।

बाद :: (वि.) अमान्य, पीछें, पश्चात् आद-बाद जो ध्यान देने योग्य न हो।

बाद :: (सं. स्त्री.) सेल के क्रम में किसी के लिए नियमों में शिथिलता।

बाँद :: (सं. पु.) बाँध, पानी को रोकने के लिए बनायी जाने वाली मिट्टी की मोटी दीवार।

बाँदबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को नियमित रूप से खरीदने के लिए किसी से अनुबन्ध करना, एकजुट करना, बन्धन में करना, गाँठ लगाना।

बादर :: (सं. पु.) बादल, मेघ, आकाश।

बाँदर :: (सं. पु.) बन्दर।

बाँदर :: (मुहा.) बाँदर कैसो खता-बन्दर जैसा फोड़ा-बन्दर अपने फोड़े को बार-बार देखता है।

बादा :: (सं. पु.) दिया हुआ वचन, बाधा, व्यवधान।

बाँदा :: (सं. पु.) बन्देलखण्डका एक नगर जहां महाकवि में पद्याकर कुछ दिन रहे थे।

बादाम :: (वि.) पीला रूख लिए भूरा रंग।

बादी :: (सं. स्त्री.) मनुष्य का शक्तिहीन मुटापा।

बाँदी :: (सं. स्त्री.) राजा की वह सेविका जिसके साथ उसके यौन सम्बन्ध भी हों, रखैल स्त्री, दासी।

बाँदों :: (सं. पु.) वृक्ष की शाखाओं पर बन जाने वाली गाँठ। यह वृक्ष का एक प्रकार का रोग होता है।

बादौ :: (सं. पु.) दे. बादा।

बाधा :: (सं. स्त्री.) बाधा, व्यवधान, अडंगा, अवरोध।

बान :: (सं. पु.) ऊपरी पर्त, बाण, तीर, बाँस के ऊपर का कड़ा छिलका।

बानक :: (सं. स्त्री.) बाणी, भाषा, बोल, शब्द युग्म बोली-बानी, वेश भूषा।

बानगी :: (सं. स्त्री.) नमूना सैम्पल।

बानिया :: (सं. पु.) व्यापार करने वाला, व्यापारी, वैश्य आटा दाल बेचने वाला।

बानियां :: (सं. पु.) वैश्य, व्यापार करने वाली जाति, ओढ़ने में पैरों के नीचे पलटकर दबायी दबायी जाने वाली रजाई या चादर ताकि पैर बाहर न निकलें।

बानी :: (सं. स्त्री.) वाणी, भाषा, बोल, शब्द युग्म बोली-बनी।

बाप :: (सं. पु.) पिता।

बाप :: (कहा.) बाप की कमाई पै तागड़धिन्न - बाप की कमाई पर मौज उड़ाना।

बाप :: (कहा.) बाप की मरन और काल की परन - विपत्ति।

बाप :: (कहा.) बाप न मारी लोखड़ी, बेटा तीरंदाज - जो लंबी चौड़ी डींग हाँके उससे व्यंग्य में।

बापौती :: (सं. स्त्री.) दे. बापौती।

बाफ :: (सं. स्त्री.) भाप, वाष्प।

बाब :: (कहा.) बाबा के कान - किसी एक व्यक्ति के कान में धीरे से कही गयी बात जब दूसरा सुन ले तब कहते हैं कि इसके बाबा के कान हैं।

बाबनी :: (सं. स्त्री.) बाबा की स्त्री।

बाबर :: (सं. पु.) एक मिठाई, मैदा की छिद्रदार खस्ता टिकिया जिसे घी में सेककर कड़ी चासनी में से निकाला जाता है पच्चड़। (इतिहास में अकबर का दादा )।

बाबा :: (सं. पु.) साधु धनहीन व्यक्ति, भयानक, व्यक्ति जिसके नाम से बच्चों को डर दिखाया जाता है ग्राम देवताओं के नामों के साथ लगाया जाने वाला आदरवाची शब्द, पितामह, दादा।

बाबाजू :: (सं. पु.) ब्राह्मण के लिए आदरवाची सम्बोधन (समास)।

बाबाजू :: (कहा.) बाबा बैठें ई घर में, पाँव पसारें ऊ घर में - जब कोई आदमी व्यर्थ अपने लिए बहुत सी जगह घेर रखे, अथवा जबर्दस्ती दूसरे के काम में जाकर हस्तक्षेप करे तब।

बाबुल :: (सं. पु.) पिता (लोक गीत.)।

बाबू :: (सं. पु.) क्लर्क, पिता के लिए सम्बोधन सुरूचिपूर्ण वेशभूषा में बना ठना व्यक्ति।

बाबौ :: (क्रि.) खोला।

बाबौ :: (प्र.) मो बाव-मुँह खोलो।

बाभा :: (सं. स्त्री.) प्रशंसा, प्रशंसा सूचक निपात।

बाम :: (सं. स्त्री.) मछली की एक जाति जो लम्बी तथा पतली होती है इसमें काँटा बहुत कम होता है, बायाँ या प्रतिकूल (सीमित प्रयोग)।

बाम :: (प्र.) जब विधाता बात होय तौ कोई का कर सकत।

बामन :: (सं. पु.) ब्राह्मण।

बामन :: (कहा.) बाँमन कुत्ता नाउ, जात देख गुर्रात।

बाँमन :: (सं. पु.) एक प्रकार की मछली।

बाँमन :: (सं. पु.) विप्र, ब्राह्मण, बामन, ब्राम्मन (बुँ.) उदाहरण-बाँमन भोजन-धार्मिक विचार से कराया हुआ ब्राह्मणों का भोजन।

बाँमनी :: (सं. स्त्री.) ब्राह्मण जाति की स्त्री, एक प्रकार का जन्तु।

बामी :: (सं. स्त्री.) वाल्मीकि, बमीठा, सर्प इसी सर्प के घर के अर्थ में कहा जाता है इसलिए जब कहा जाता है कि सामान्य अर्थ में बमीठौ कहलाता है।

बामी :: (कहा.) बामी ढिंगा मरे, साँप कौ नाव - साँप के बिल के पास कोई मरे तो उससे सांप का ही नाम होता है कि उसने उसे काटा।

बाँमी :: (सं. स्त्री.) दीमकों का बनाया हुआ मिट्टी क भीटा, सर्प का घर।

बामें :: (सर्व.) उसमें।

बाय :: (सं. स्त्री.) सन्निपात रोग जिसमें मनुष्य अंट-शंट बकने लगता है, शीत बातजन्य एक रोग जिसमें हाथों पैरों की उंगलियों में क्षणिक दर्द और अकड़न पैदा होती है, किसी की देखा देखी किसी वस्तु की प्राप्त करने की तीव्र इच्छा।

बाँय :: (सं. स्त्री.) बाहु, भुजा, सिले हुए ऊपरी वस्त्र का वह खोल जो भुजा पर रहता है।

बायजू :: (सं. स्त्री.) ननद, ननद के लिए आदरवाची सम्बोधन, क्षत्रियों तथा उच्च वर्ग में अधिकतर प्रचलित।

बाँयनों :: (सं. पु.) लड़की या बहू के मायके या सासरे से आने वाला पकवान और मिठाई जो पड़ोसियों तथा विरादरी में भेजी जाती है, यही भेजा जाने वाला पकवान आदि बायनों कहलाता है।

बायनौ :: (सं. पु.) बहु आदि के आने पर उसके मायके से आया पकवान जिसका वितरण किया जाता है उत्सव आदि के उपलक्ष्य मे इष्ट मित्रों के यहाँ भेजी जाने वाली मिठाई आदि, भेंट।

बायरें :: (वि.) बाहर की ओर झुका हुआ।

बायलीं :: (वि.) तारतम्यहीन (आयली-बायली-अष्ट-शष्ट में प्रयुक्त)।

बाँयवर :: (सं. स्त्री.) विवाह में द्वारचार के पश्चात् कन्या की माँ के द्वारा वर को हाथ पकड़ कर अन्दर ले जाने की रस्म, हथलोई।

बायविरंग :: (सं. स्त्री.) काली मिर्च के समान फल जो अनेक औषधियों के काम आते हैं।

बार :: (सं. पु.) दिन, बाल, बाहर, आक्रमण।

बार :: (कहा.) बार उखारें मुरदा हलको नई होत - नाममात्र के सहारे से कोई बड़ा काम पूरा नहीं होता।

बारकसी :: (सं. स्त्री.) बालों की बटी हुई रस्सी जिसमें कुछ कोड़ियाँ भी बटते समय पिरो दी जाती है ये नवजात बछड़ों के गले में पहिना दी जाती है ताकि उन्हें नजर न लगे जले के रोगी के पैर में भी डाली जाती है ताकि जले के समय किसी अन्य प्रकार का संक्रमण न हो सके।

बारगा :: (सं. स्त्री.) बैरक, लम्बी, दहलान जिसके पीछे कमरे हों।

बारजो :: (सं. पु.) बरामदा, छज्जा, अटारी, कोठी, दालान।

बारबौ :: (क्रि.) नष्ट करना, जलाना, अग्रि में लौ उत्पन्न करना।

बारबौ :: (कहा.) बाराबाट होबो - बरबाद होना।

बारस :: (सं. स्त्री.) द्वादशी, विक्रम सम्वत् के माह की बारहवीं तिथि।

बारा :: (वि.) बारह दस और दो की संख्या का योग।

बारा :: (कहा.) बारा घाट कौ पानी पियें हैं - अर्थात बहुत अनुभवी हैं, दुनिया देखे हुए हैं।

बारा :: (कहा.) बारा माइना की गैल चलै, छः मइना की न चलै - बारह महीने का रास्ता चलै, छः महीने का नहीं, उतावली ठीक नहीं, सब काम धीरज से करना चाहिए।

बारा :: खजूर के पत्तों से बनी झाडू।

बारा :: दे. बहरा।

बाराजीत :: (सं. पु.) द्वादश आदित्य (यौगिक शब्द) कुछ परिवारों में इनकी विशेष पूजा होती है।

बारिया :: (सं. स्त्री.) सीकों से बनी खड़ी झाडू, धूम्र केतु।

बारी :: (वि.) छोटी उम्र, नादान अवस्था।

बारी :: (सं. स्त्री.) नाक-कान में पहिनी जाने वाली तार से बनी वाली, नाक-कान का आभूषण, बागड़ खेतों को रक्षार्थ लागायी लाने वाली कँटीली, झाड़ियों की बाढ़ एक स्त्री प्रत्यय यथा करने वाली, नीली साड़ी वाली, नाई के समकक्ष की एक जाति जो राजाओं के यहाँ जूठन उठाती है।

बारीक :: (वि.) महीन, पतला।

बारू :: (सं. स्त्री.) नदी की रेत जो सीमेंट में मिलाई जाती है।

बारूद :: (सं. स्त्री.) दे. दारू (बन्दूक, तोप, पठाखों के संदर्भ में दारू तथा सुरंग के संदर्भ में बारूद कहा जाता है)।

बारौ :: (वि.) छोटी उम्र का नादान, बारे बहु वचन. शब्द युग्म लरका बारे बाल बच्चे।

बारौदो :: (सं. पु.) खेत के चारों तरफ की बारी।

बाल :: (सं. स्त्री.) गेहूँ आदि की बाली।

बाल :: (सं. पु.) बालक, बाल बच्चा शब्द युग्म.में प्रयुक्त, केश, बार।

बाला :: (सं. पु.) कान का आभूषण, कानों मे पहिनने की बड़ी बाली।

बालाखानों :: (सं. पु.) महराबदार दरवाजे के ऊपर बनायी जाने वाली छोटी सी अटारी जिसमें से झाँक कर बाहर को देखा जा सके।

बालापन :: (सं. पु.) बाल्यावस्था, बचपन।

बालाबन्द :: (सं. पु.) जरी का साफा।

बालार सेंम :: (सं. पु.) एक प्रकार की सेम।

बालिस्टर :: (सं. पु.) बड़ा वकील, बात-बात में तर्क करने वाला, विशेषण कवि हरिदास व्यास अकर्मक।

बालूसाई :: (सं. स्त्री.) एक मिठाई।

बाव :: (सं. पु.) हवा का रूख, अपान वायु, एक रोग जिसमें नीचे के ओंठ से लेकर डाढ़ी तक फंसियां हो जाती है जो आसानी से नहीं मिटती है।

बावरी :: (सं. स्त्री.) बापी, बावड़ी, सीढ़ियोंदार कुँआ।

बास :: (अं.) बार्निश, बानिस, बानिश।

बास :: (सं. पु.) रहने की क्रिया।

बास :: (सं. स्त्री.) गन्ध।

बाँस :: (सं. पु.) बाँस का झाड़, बाँस का लम्बा लट्ठा।

बाँस :: (कहा.) बाँस कौ खूँट बाँस - बाँस में से बाँस का ही अंकुर निकलता है।

बासक देव :: (सं. पु.) शेषनाग।

बासकट :: (सं. स्त्री.) वेस्ट कोट, एक प्रकार की जाकिट।

बासट :: (वि.) छह दहाइयों और दो के योग की संख्या।

बासन :: (सं. पु.) दैनिक उपयोग के बर्तन।

बासमती :: (सं. स्त्री.) चावल की एक सुगन्धित किस्म।

बाँसरी :: (सं. स्त्री.) बंशी, बाँसुरी।

बासी :: (वि. सं.) बासी देर का पका हुआ भोजन, खाद्य पदार्थ कई दिन पहले का पका हुआ, जो एक या अनेक दिन पहले पेड़ से तोड़ा गया हो, उदाहरण-बासी तिवासी-बहुत दिनों का, बासी मों।

बासी :: (वि.) सुबह जिसनें कुछ खाया न हो।

बाँसी :: (सं.) वंशज।

बाँसी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की ईख जिसका पौधा पतला छिलका नरम गुड़ मीठा होता है।

बासीसाज :: (सं. स्त्री.) प्रातः काल कुछ खाने पीने के पूर्व होने वाली, कै, वमन, जिसको बासीसाज हो जाती है वह पूरे दिन लंघन करता है।

बासेरो :: (सं. पु.) शीतला अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाया जाता है इसलिए सप्तमी को रात्रि में स्त्रान करके कच्चा पक्का भोजन बनाया जाता है अष्टमी को उसी का भोग लगता है तथा दिन भर यह बासी भोजन किया जाता है इसी बास्ते भोजन को बासेरो कहते हैं।

बासौ :: (वि.) पिछले कल का पकाया हुआ भोजन तोड़ा हुआ फल, भरा हुआ जल, जो ताजा न हो।

बासौ :: (मुहा.) बासौ-कूसौ।

बासौ :: (कहा.) बासी बचै न कुत्ते खायें - रोज कमाना और रोज खाना।

बासौ :: (कहा.) बासे भात में खुदा कौ का साजौ - बासी भात तो किसी प्रकार भी खाने प्राप्त किया जा सकता है, उसमें भगवान का क्या एहसान।

बाँसौ :: (सं. पु.) नाक का पिछला कठोर भाग।

बास्सा :: (सं. पु.) दे. बाच्छा, बादशाह, ताश का तेरहबें क्रम का पत्ता।

बाहर बाहर :: (अव्य.) दूर-दूर, ऊपर-ऊपर।

बाँहाँ जोरी :: (सं. पु.) हाथ जोड़ना, हाथापाई।

बिआँकी :: (सं. स्त्री.) रूपया का अंक प्रदर्शित करने के लिए अंक की दायीं बगल से अर्द्ध गोलाई लिए हुए तथा अंक के नीचे बायीं तरफ तिर्यक ढंग से खीचीं हुई रेखा।

बिआँन :: (सं. पु.) बच्चा पैदा होने की क्रिया, शब्द युग्म होंन बियाँन में प्रयुक्त स्टेटमेंट।

बिआनो :: (सं. पु.) किसी सौदे के पक्का हे पर पक्का होने के प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली कुछ अग्रिम राशि।

बिआबौ :: (क्रि.) पशुओं का बच्चा होना, शादी करना।

बिआरी :: (सं. स्त्री.) रात्रि कालीन भोज।

बिआरी :: (कहा.) बिआरी कभउँ न छोड़िए, बिआरी से बल जाए जौ बिआरी औगु करैं दुपरै थोरौ खाय।

बिआव :: (वि.) विवाहित शब्द युग्म. बिआव-ठिआव।

बिआव :: (पु.) बिआई ठिआई स्त्री.।

बिआव :: (पु.) बिआई ठिआई।

बिआव :: (सं. पु.) विवाह, शादी।

बिआवता :: (वि.) जिसकी किसी के साथ विवाह हुआ हो, विवाहित पत्नी।

बिकट :: (वि.) कठिन, भयंकर, अत्यंत (क्रियाविशेषण.)।

बिकबौ :: (क्रि.) विक्रय होना, मूल्य के बदले दिया जाना।

बिकरमाजीत :: (सं. पु.) विक्रमादित्य, भारत का प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट तथा अनेक लोक आख्यानों का नायक।

बिकलई :: (सं. स्त्री.) घबराहट।

बिकलाने :: (सं. स्त्री.) घबराये।

बिकसबो :: (क्रि.) फूटकर बिकर जाना, गलकर बिखर जाना, खिलना।

बिकाउ :: (वि.) बेचने के लिए घोषित।

बिकातो :: (सं. पु.) विक्रय की स्थिति, विशेष रूप से महँगी बिक्री, महँगाई।

बिकार :: (सं. पु.) दोष, अवगुण, हानिकारक तत्व।

बिकारी :: (वि.) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक।

बिक्री :: (सं. स्त्री.) बेचने की क्रिया, विक्रय, बेच की रकम।

बिख :: (सं. स्त्री.) विष, जहर।

बिखाद :: (सं. पु.) विषाद, दुख।

बिखारी :: (सं. स्त्री.) खेतों की रक्षा के लिए काँटों की रोक।

बिखारी :: दे. बागड़।

बिगड़बो :: (क्रि. अ.) खराब होना, बुरी दशा में प्राप्त होना, चाल चलन अच्छा न होना क्रुद्ध होना व्यर्थ होना, अधिकार से बाहर हो जाना।

बिगड़ैल :: (वि.) थोड़े से कारण से विचलने वाला घोड़ा, क्रोधी स्वभाव का, दुश्चरित्र बुरी आदतों वाला।

बिगन :: (सं. पु.) विघ्न, रूकावट, व्याघात।

बिगना :: (सं. पु.) भेड़िया।

बिगना :: (कहा.) बिगनन अँसुआ नई आऊ त - भेड़ियों को आँसू नहीं आते, कठोर हृदय मनुष्य को दया नहीं आती।

बिगन्द :: (सं. स्त्री.) दुर्गन्ध, बदबू।

बिगर :: (क्रि. वि.) अव्वय बिना अभाव में।

बिगरबो :: (क्रि.) खराब होना, शीलभंग होना।

बिगरैल :: (वि.) क्रोधी स्वभाव का, हठी, जिद्दी।

बिगसबौ :: (क्रि.) दे. बिकसबौ।

बिगार :: (सं. पु.) बेगार, बिना पारिश्रमिक दिये हुए करवाया गया काम, बिगाड़, बुराई, वैमनस्य।

बिगार :: (कहा.) बिगरी बात बनें नहीं, लाख करौ किन कोय, बिच्छू कौ काटो रोवे, साँप कौ काटौ सोवे - दुष्ट की मार बुरी होती है।

बिगुरूदा :: (सं. पु.) एक हथियार।

बिगुल :: (सं. स्त्री.) धातु की नली को कई मोड़ देकर बनाया गया तथा फूँक से बजने वाला बाजा, पुरे जमाने में देशी राज्यों में सूर्योदय-सूर्यास्त का संकेत देने के लिए बिगुल का स्वर एक खिलौना जो छोटी बिगुल होती है।

बिगूचन :: (सं. स्त्री.) असमंजस, कठिनता, दिक्कत।

बिघना :: (सं. पु.) भेड़िया।

बिचकबौ :: (क्रि.) विचलित होना, पशुओं का भड़कना।

बिचत्तर :: (वि.) विचित्र, अनोखा।

बिचलबौ :: (क्रि.) मुकरना।

बिचाबिच :: (क्रि. वि.) बीचों बीच।

बिचार :: (सं. पु.) सोच, मत।

बिचारबौ :: (क्रि.) किसी विषय पर चिन्तन करना।

बिचारौ :: (वि.) बेचारा, निरीह, दयनीय।

बिचित्तर :: (वि.) विचित्र, उसके विषय में अनुमान लगाना कठिन हो, असामान्य।

बिचोनाँ-बिचौलिया :: (सं. पु.) मध्यस्थ।

बिचौली :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों का गले में पहिनने का आभूषण जिसमें गुरियों की कई कतारें एक साथ सटी हुई रहती है।

बिच्छु :: (सं. पु.) एक जहरीला जन्तु जिसका पिछता भाग पूँछ की तरह लम्बा होता है तथा उसके अंत में डंक होता है।

बिच्छु :: (कहा.) बिच्छू कौ मंतुर जानें नई, साँप के बिले में हात डारें - बिच्छू का तो मंत्र नहीं जानते साँप के बिल में हाथ डालते हैं।

बिछना :: (सं. पु.) बिछावन।

बिछबो :: (क्रि.) फैलना, गिरना।

बिछाँत :: (सं. स्त्री.) बिछावन, जमीन पर बैठने के लिए बिछाया जाने वाला फर्श आदि।

बिछाबौ :: (क्रि.) जमीन पर फैलाना, खटिया, तख्त आदि पर बिस्तर फैलाना।

बिछुआ :: (सं. पु.) बिच्छु (लोक गीत मे) करधनी, स्त्रियों का कमर में पहिनने का आभूषण।

बिड़िया :: (सं. स्त्री.) काँटे के तारों से घिरा हुआ खुला स्थान, घरों के पास बना छोटा बेड़ा जहाँ पशु बाँधे जाते हैं या शाक-भाजी उगा ली जाती है।

बिड़ैया :: (वि.) बन्द करने वाला कैद करने वाला, बंदी बनाने वाला।

बिण्डल :: (सं. पु.) बण्डल, बीड़ियों की निश्चित संख्या को बाँधकर बनाया गया गट्ठा, लपेटकर बाँधा हुआ बिस्तर।

बित्त :: (सं. पु.) शक्ति, सामर्थ्य, आर्थिक साधन।

बित्ता :: (सं. पु.) बालिश्त, बेतिया, फैलाये हुए पंजे का अँगूठे से छिंगुली तक का माप।

बिथा :: (सं. स्त्री.) व्यथा, मन की पीड़ा, राम कहानी।

बिथारबो :: (क्रि.) फैलाना।

बिथुलबो :: (वि.) अलग-अलग होना, सोचा गया काम पूरा न होना।

बिथोंलबौ :: (क्रि.) व्यवस्था भंग कर देना, दुष्क्रमत्व करना।

बिथोला :: (सं. पु.) व्यवधान।

बिद :: (सं. स्त्री.) सत्यनारायण आदि की विशेष पूजन की सामग्री।

बिदबा :: (वि.) जिसका पति मर गया हो, विधवा।

बिदबाबो :: (सं. क्रि.) फँसाना, छेद कराना, मिलाना, झगड़ा कराना।

बिदबौ :: (क्रि.) फँसना, उलझना।

बिदरी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की ओढ़नी जिसकी सफेद जमीन पर लाल चौक होते है इसका प्रयोग ढीमर आदि जातियाँ विवाह में करती है।

बिदली :: (सं. स्त्री.) बहुत छोटे फूल वाले बिछिया।

बिदली :: दे. बिछिया।

बिदा :: (सं. स्त्री.) प्रस्थान, गमन, भावुकतापूर्ण वातावरण में प्रस्थना, विधि, व्यवस्था।

बिदुआ :: (वि.) वेद पाठ करने वाला, ब्राह्मणों का गोत्र।

बिदूबौ :: (क्रि.) मुँह बिगाड़ना, होंठों का ऐसा कम्पन होना जिससे रोने के पूर्व स्थिति का आभास हो।

बिदेस :: (सं. पु.) विदेश, परदेश।

बिदेसी :: (वि.) विदेशी, परदेशी।

बिद्दक :: (सं. स्त्री.) उलझन।

बिद्दया :: (सं. स्त्री.) विद्या, ज्ञान।

बिध :: (सं. स्त्री.) तरह, प्रकार।

बिधना :: (सं. पु.) विधाता (अधिकतर लोक साहित्या. में प्रयुक्त)।

बिधाता :: (सं. पु.) भाग्य, लेख लिखने वाला, ब्रह्मा।

बिधान :: (सं. पु.) विधाता का लेख, किसी कार्य की निर्धारित पद्धति, पूजा पद्धति, जैन अनुष्ठान।

बिन :: (उप.) बिना, अभाव में, बगैर।

बिन :: (कहा.) बिन देखो चोर साव बिरोबर - चोर को जब तक चोरी करते पकड़ न लिया जाय तब तक वह ईमानदार ही समझा जाता है।

बिनई :: (अव्य.) बिनाही (यौगिक शब्द) बिना ही।

बिनउअल :: (वि.) बीनकर इकट्ठा की हुई।

बिनगुत :: (सं. पु.) अर्थहीन।

बिनती :: (सं. स्त्री.) प्रार्थना, निवेदन, विनय।

बिनने :: (सर्व.) उन्होंने।

बिनबाबो :: (स. क्रि.) बुनने, छाँटकर अलग करना, बुनना।

बिनबो :: (क्रि.) चुनना, छाँटकर अलग करना, बुनना।

बिनवारी :: (सं. स्त्री.) विनती, प्रार्थना, निवेदन।

बिनवासी :: (सं. स्त्री.) ग्याभन, प्रसव करने वाली (गाय इत्यादि)।

बिनसबो :: (क्रि.) बिगड़ना।

बिना :: (सं. स्त्री.) बहिन, लड़की, बहिन-लकड़ी के लिए सम्बोधन, बगैर (अव्य.)।

बिना :: (मुहा.) बिना पेंदी का लोटा-गम्भीरता रहित।

बिना :: (कहा.) बिना दूल्हा की बारात - बिना मालिक की फौज।

बिना :: (कहा.) बिना पेंदी के लोटा - बे सिद्धांत का आदमी।

बिना :: (सं. पु.) देवमूर्तियों की शोभायात्रा का वाहन जो मनुष्यों द्वारा कन्धों पर ढोंया जाता है।

बिनाई :: (सं. स्त्री.) बुनने का कार्य या मजदूरी।

बिनासबो :: (स. क्रि.) विनष्ट या बरबाद करना, संहार करना।

बिनें. :: (सं. स्त्री.) विनय, प्रार्थना।

बिनेंकया :: (वि.) अकुलीन, जैन समाज में प्रयुक्त।

बिनेंका :: (सं. पु.) बैलगाड़ी के ऊपरी भाग को पहियों की धुरी से संयुक्त करने वाली लोहे की मजबूत खूँटी।

बिनेंका :: दे. ठेल।

बिनेंकावार :: (वि.) दे. बिनेंकया।

बिनै :: (सं. स्त्री.) दे. बिनें।

बिनोंरया :: (वि.) बिनोंले का (तेल)।

बिनोंरा :: (सं. पु.) बिनोंला, कपास का बीज।

बिन्तवार :: (सं. पु.) विनय करने के लिए प्रत्याशी।

बिन्तवारी :: (सं. स्त्री.) विनय, अर्ज।

बिन्ती :: (सं. स्त्री.) दे. बिनें।

बिन्तें :: (सर्व.) (तिरहारी) उनसे।

बिन्दयाचल :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध पर्वत, मिर्जापुर के निकट विन्ध्यवासिनी देवी का प्रमुख मन्दिर।

बिन्दी :: (सं. स्त्री.) बिन्दु, शून्य, स्त्रियों के माथे का टीका।

बिन्द्रावन :: (सं. पु.) वृन्दावन, कृष्ण-भक्ति का प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ।

बिन्ना, बिन्नी, बिन्नू :: (सं. स्त्री.) दे. बिना।

बिन्नायकी, विन्नारीकी :: (सं. स्त्री.) लड़के की शादी में बारात जाने से पूर्व दूल्हा बाजों तथा महिलाओं के साथ मन्दिरों में तथा बिरादरी और व्यवहारियों के यहाँ आशीर्वाद लेने जाता है, बिरादरी और व्यवहारी उसे टीका कर मुद्रा आदि भेंट करते हैं।

बिपत, विपद, बिपदा :: (सं. स्त्री.) विपत्ति, कष्टप्रद स्थिति।

बिबचन :: (सं. स्त्री.) बाधा, रूकावट।

बिबाई, बिबाइ :: (सं. स्त्री.) पैर के तलवे में चमड़ी फटने का रोग।

बिबिया :: (सं. स्त्री.) ताश का बारहवाँ पत्ता, बेगम, रानी।

बिबूचन :: (सं. स्त्री.) उलझन, चलते हुए साधारण क्रम में आया हुआ आवश्यक कार्य।

बिबूचबौ :: (क्रि.) चलते हुए कार्यों में से ध्यान बटाने का प्रयास करना।

बिभचारी :: (वि.) व्यभिचारी, दुश्चरित्र।

बिभीसन :: (सं. पु.) रावण का भाई विभीषण जो श्रीराम से जा मिला था, चुगली करने वाला, अपनों का भेद दूसरों पर प्रकट करने वाला।

बिमाई :: (सं. स्त्री.) बिबाई, ठण्डी हवा के प्रभाव से हाथों-पैरों की चमड़ी में पड़ने वाली दरारें।

बिमाई :: (कहा.) जी के पाँव न फटी बिमाई, बौ का जानें पीर पराई।

बिमूचबो :: (क्रि.) असमंजस में पड़ना, दबाया जाना दबोचना।

बिम्मा :: (सं. पु.) ब्रह्म, विधाता।

बियाँ :: (सं. स्त्री.) सिवइयाँ, मैदा के सूत जैसे बनाकर सुखाये हुए लच्छे जिन्हें थोड़े घी में भूनकर फिर चावलों की तरह उबाल कर दूध या घी शक्कर के साथ खाया जाता है।

बियाद :: (सं. स्त्री.) दे. बिआद।

बियार :: (सं. स्त्री.) बयार, हवा।

बियारू :: (सं. स्त्री.) रात का भोजन, ब्यालू।

बियावौ :: (क्रि.) दे. बिआबौ।

बियास :: (सं. पु.) विश्वासघात, बिना आशा के।

बियाहता :: (सं. स्त्री.) विवाहित, ब्याहता।

बिरक :: (सं. पु.) वाहन को रोकने का यान्त्रिक साधन, ब्रेक।

बिरख :: (सं. पु.) वृक्ष, शब्द युग्म. रूख-बिरख में प्रयुक्त।

बिरंच :: (सं. स्त्री.) बैंच, बैठने की लम्बी चौकी।

बिरंची, बिरंजी :: (सं. स्त्री.) छोटी कील।

बिरछा :: (सं. पु.) वृक्ष, पौधा, कम आयु का वृक्ष (अधिकंश लोक साहित्य. में प्रयुक्त)।

बिरज :: (सं. पु.) ब्रजक्षेत्र, भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि।

बिरज :: (प्र.) मैं तौ भई ना बिरज की मोर (लोक गीत)।

बिरजबौ :: (क्रि.) मचलना, किसी वस्तु के लिए हठ करना।

बिरजिस :: (सं. स्त्री.) कमर के नीचे पहिनने का एक वस्त्र जो ऊपर से घुटनों तक पैण्ट जैसा होता है तथा टखनों पर एक दम चुस्त होता है, ये घुड़सवारी की विशेष पोशाक है।

बिरत :: (सं. पु.) व्रत, उपवास, संकल्प, क्षत्रियों यहाँ विवाह की एक रस्म जिसमें कन्या पक्ष का पण्डित और नाई वर-पक्ष के यहाँ तिलक चढ़ाने जाता है वो वर-पक्ष वाले एक थाली में रूपया भरकर नाई के सामने रखकर उसमें से रु पये उठाने को कहते हैं नाई जितने रुपये उठाता है उतने हजार की शादी का संकेत होता है, यह रुपया उठाकर शादी की रूपरेखा देने की क्रिया बिरत उठाना कहलाती है, (शब्द युग्म.) तीरथ-बिरत-तीर्थाटन आदि पुण्य कार्य।

बिरतिया :: (सं. पु.) बिरत उठाने वाला, दे बिरत, नाई के लिए आदरवाची सम्बोधन।

बिरतौ :: (सं. पु.) सामर्थ्य।

बिरथा :: (सं. स्त्री.) छोटा पौधा, वृक्ष, पौधा।

बिरथाँ :: (क्रि. वि.) व्यर्थ में बेकार, बिना किसी उपलब्धि के।

बिरन :: (सं. पु.) भाई (लोक गीत) बीरन, वीर, बीरों।

बिरबाई :: (सं. स्त्री.) छोटे पौधे का समूह, वह स्थान जहाँ बहुत से छोटे पौधे हों।

बिरबारौ :: (सं. पु.) एक प्रकार का जंगली पेड़ जिसमें मुनगा से अधिक लम्बी मोटी फलियाँ निकलती है।

बिरबे :: (वि.) वनखण्ड बिरबे में प्रयुक्त संभवतः इसका अर्थ विशेष है लोक कथाओं में इसका अधिकतर प्रयोग होता है।

बिरमचारी :: (सं. पु.) जो ब्रह्मचर्य व्रत धारण किये हो, स्त्री संसर्ग आदि से अलग विद्याध्ययन करने वाला पुरुष।

बिरमपूरी :: (सं. स्त्री.) ब्राह्मण समाज, ब्राहमणों का मुहल्ला।

बिरमबो :: (क्रि.) ठहरना, भरमाना।

बिरमभोज :: (सं. पु.) ब्राहमणों को भोजन कराने का कर्म, ब्राह्मण भोजन।

बिरमहत्या :: (सं. स्त्री.) ब्राह्मण को मार डालने का पाप।

बिरमा :: (सं. पु.) विधाता, सृष्टिकर्ता।

बिरमाण्ड :: (सं. पु.) ब्रह्माण्ड, पृथ्वी-आकाश में दिखने वाली अतिरिक्त ईश्वरीय सृष्टि।

बिरमिदा :: (सं. पु.) छोटा किन्तु बुद्धिमान और शरारती स्वभाव का बालक।

बिरमिदी :: (सं. स्त्री.) दे. बिंदली।

बिरमिदे :: (सं. पु.) ब्रह्मदेव, एक ग्राम देवता, जो ब्राह्मण प्रेत योनि में हो, ये बहुत कठिन किन्तु दयालु होते है।

बिरमी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी।

बिरम्मा :: (सं. पु.) ब्रह्मा, सृष्टिकर्ता।

बिरम्मी :: (सं. स्त्री.) एक बूटी जिसके सेवन से बुद्धि तेज होती है, ब्राह्मी।

बिरय :: (सं. पु.) बिरहा, वियोग।

बिरवा :: (सं. पु.) छोटा कोमल पौधा।

बिरस्पत :: (सं. स्त्री.) ब्रहस्पतिवार, गुरूवार।

बिराजबौ :: (क्रि.) आदरपूर्वक बैठना, शोभायमान होना।

बिरादरी :: (सं. स्त्री.) उपजातीय समूह।

बिरानों :: (वि.) दूसरों का, जो अपना न हो।

बिराबौ :: (क्रि.) बिरल करना, ज्वार की छोटी फसल में हल चलाकर गुड़ाई करना।

बिराम :: (सं. पु.) बहुत छोटा-सा टुकड़ा।

बिरामनी :: (सं. स्त्री.) छिपकली से मिलती-जुलती चिकनी चमड़ीवाला एक जन्तु।

बिराम्हँन :: (सं. पु.) ब्राह्मण, विप्र।

बिरावनी :: (सं. स्त्री.) ज्वार की हल से गुड़ाई क रने की क्रिया।

बिरावनी :: दे. बिराबौ।

बिरियाँ :: (सं. स्त्री.) बेला में, समय में (कारक युक्त शब्द)।

बिरियाँ :: (कहा.) बिरिया सी हला लई - बेरा के वृक्ष को हिलाने से जिस प्रकार सब पके फल एक साथ नीचे गिर पड़ते हैं उसी प्रकार किसी को मारपीट कर सब कपड़े-लत्ते आदि छीन लेना।

बिरी :: (सं. स्त्री.) तम्बाकू, की वह मात्रा जो एक बार में खायी जाये।

बिरोंनी :: (सं. स्त्री.) आँख की पलकों के किनारे उगे बाल।

बिरोबर :: (क्रि. वि.) बराबर।

बिरोबरी :: (क्रि. वि.) बराबरी, होड़, तुलना।

बिरौं :: (वि.) विरल, जो सघन न हो, बेगरौ, झिरझिरा।

बिरौल :: (सं. स्त्री.) सिंचाई के लिए पानी ले जाने के लिए ऊँची नहर।

बिर्जबौ :: (क्रि.) दे. बिरजबौ।

बिर्रा :: (सं. पु.) गेहूँ और चने का मिश्रित अनाज।

बिल :: (सं. पु.) चूहों तथा अन्य प्राणियों का भूमि में छेदकर बनाया हुआ घर।

बिल :: (कहा.) बिले में हात तुम डारौ, मंतुर हम पड़त - साँप पकड़ने के लिए बिल में हाथ तुम डालो, मंत्र हम पढ़ते हैं, स्वयं अलग रहकर दूसरों को विपत्ति में डालना।

बिलइया :: (सं. स्त्री.) बिल्ली, किसनी।

बिलइया :: (कहा.) बिलइया के भाग्गन छींको टूटो - संयोग से कोई काम बन जाना।

बिलइया :: (कहा.) बिलइया डंडौतें करबो - झूठा सम्मान करना, विवश होकर किसी के हाथ पैर जोड़ते फिरना।

बिलउआ :: (सं. पु.) एक प्रकार की मछली।

बिलकबो :: (अ. क्रि.) विलाप करना, रोना, दुखी होना।

बिलकुआ :: (सं. पु.) एकाध किलो अनाज की समाई की छोटी-सी टोकरी।

बिलकुल :: (वि.) एकदम, छोटी-सी, मात्रा भी।

बिलकुल्लई :: (वि.) सब का सब पूरा।

बिलखबो :: (अ. क्रि.) विलाप करना, रोना, दुखी होना।

बिलखाबो :: (स. क्रि.) रूलाना, दुखी करना।

बिलगबो, बिलगाबो :: (अ. क्रि.) अलग करना, पृथक होना, अलग होना, चुनना।

बिलच्छन :: (वि.) विलक्षण, विचित्र, जिसको समझना कठिन हो।

बिलना :: (सं. पु.) बेलन, बिल्ला (बुँ.)।

बिलनियाँ :: (सं. स्त्री.) पापड़ बेलने का छोटा बेलन।

बिलबिलाबौ :: (क्रि.) व्याकुलता प्रदर्शित करने की हरकतें करना, पीड़ा से विचलित होना, जीवित कीड़ों से भरा होना।

बिलम :: (क्रि. वि.) बिलंब, देर।

बिलमबौ :: (क्रि.) अटकना, विलम्ब करना, व्यतीत करना।

बिलमाबों :: (क्रि.) बातों में बहलाकर रोके रखना, व्यतीत करना।

बिलरया, बिलरहया, बिलरहयाऊ :: (वि.) बिल्ली की सी आँखों वाला।

बिलरा :: (वि.) बिलार, भूरी आँखों वाला (पुरूष)।

बिलवारी :: (सं. स्त्री.) बुन्देली लोक गीतों की एक शैली।

बिलहरा :: (सं. पु.) पान रखने का बाँस की पत्तियों का बना डिब्बा।

बिला :: (सं. पु.) फुलाकर तेल में तले हुए चने।

बिलात :: (वि.) बहुत, अधिक मात्रा में।

बिलानें :: (क्रि. वि.) माँग कर (लाया हुआ)।

बिलाप :: (सं. पु.) बिछड़े हुए व्यक्ति के साथ के सुखद प्रसंगों का स्मरण कर-करके रोने की क्रिया।

बिलाबौ :: (क्रि.) ओझल होना, देखत-देखते गायब होना।

बिलिया :: (सं. स्त्री.) छोटी कटोरी।

बिलुरबो :: (क्रि.) भूल जाना।

बिलू, बिलूरा, बिलैया :: (सं. स्त्री.) बिल्ली, सटकनी, गहोई वैश्यों का गोत्र।

बिलैड :: (सं. पु.) सेफटी रेजर की पत्ती (अकर्मक.)।

बिलोबो :: (क्रि.) दूध, दही आदि मथना, घँघोलना।

बिलोरा :: (सं. पु.) व्यवधान।

बिलौटा :: (सं. पु.) बिल्ली का नर।

बिलौटिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की मछली, बिल्ली का बच्चा।

बिलौरबौ :: (क्रि.) अव्यवस्थित करना।

बिल्कुल :: (वि.) दे. बिलकुल का बलवाची प्रयोग।

बिल्टबौ :: (क्रि.) उलटना, असफल होना, नष्ट होना, मरना (लाक्षणिक अर्थ.)।

बिल्ल :: (सं. पु.) बिल देयक, किसी वस्तु के खरीदने पर उसके मूल्य का माँग पत्रक (अंग्रेजी.)।

बिल्लाँ :: (सं. पु.) रोटी बेलने का बेलन।

बिल्लौर :: (सं. पु.) एक प्रकार का पारदर्शक पत्थर, स्वच्छ शीशा जिसकी चूड़ियाँ आदि बनती है।

बिल्लौरी :: (वि.) बिल्लौर का बना हुआ (जेवर चूड़ी आदि) बिल्लौर के समान स्वच्छ।

बिस :: (सं. पु.) जहर।

बिस :: (कहा.) बिस कौ कीरा बिसई में मानत - विष का कीड़ा विष में ही प्रसन्न रहता है।

बिसकबौ :: (क्रि.) दरारें पड़कर दबाब से बिखर कर नष्ट हो जाना।

बिसकरम :: (वि.) अवगुण।

बिसकुट :: (सं. पु.) बिस्कुट।

बिसकुटी :: (सं. स्त्री.) उँगली की नोंक पर होने वाला फोड़ा जो बहुत कष्टदायक होता है तथा उँगली की आकृति को खराब कर देता है।

बिसखायर :: (सं. पु.) एक जहरीला जानवर।

बिसतुइया :: (सं. स्त्री.) छिपकली।

बिसन :: (सं. पु.) विष्णु भगवान्।

बिसबास :: (सं. पु.) विश्वास, भरोस, निष्ठा, आस्था, प्रतीत।

बिसबास :: (कहा.) बिसबास घातकी महा पातकी - विश्वासघात से बढ़ कर पाप नहीं।

बिसबासन :: (वि.) जिस पर विश्वास न हो, विश्वास घातिनी।

बिसरबौ :: (स. क्रि.) विस्मृत करना, भूलाना, विस्मरण होना, भूलना।

बिसरा :: (वि.) जिसकी स्मरण शक्ति कमजोर हो।

बिसरा :: (सं. पु.) पाचन क्रिया में चलता हुआ भोजन।

बिसर्जन :: (सं. पु.) पूजा या कथा की समाप्ति की क्रिया मृण्मय देवमूर्तियों को जलाशय में तिरोहित करना।

बिसवा :: (सं. पु.) भूमि के नाप की एक इकाई, एक एकड़ का चालीसवाँ भाग। कहीं-कहीं पचासवाँ भाग।

बिसवार :: (सं. पु.) वह पेटी जिसमें नाई हजामत का सामान रखता है, प्रसव के पश्चात स्त्री की गुड़ के साथ खिलाई जाने वाली सोंठ पीपरामूर आदि औषधियाँ।

बिसाखा :: (सं. पु.) एक नक्षत्र, भगवान कृष्ण की एक सखी।

बिसात :: (सं. स्त्री.) सामर्थ्य, खरीदने की सामर्थ्य, क्रय-शक्ति।

बिसातखानो :: (सं. पु.) खिलौना, श्रृंगार सामग्री आदि विभिन्न वस्तुएँ जो विक्रय हेतु दुकान में हो।

बिसाती :: (सं. पु.) बिसातखाने का सामान बेचने वाले गाँवों की हाटों में बिसातखाने की दुकानें लगाने वाले।

बिसाबौ :: (क्रि.) खरीदना, मोल लेना, मोल लेने की क्रिया, बिसाहना।

बिसासी :: (वि.) विश्वासघाती, धोखेबाज, कपटी।

बिसी :: (सं. स्त्री.) बीस की इकाई, कोड़ी।

बिसुन :: (सं. पु.) विष्णु भगवान।

बिसूरबौ :: (क्रि.) विलाप करना।

बिसूरबौ :: दे. बिलाप।

बिसेख :: (वि.) विशेष।

बिसेखता :: (सं. स्त्री.) विशेषता।

बिसैबो :: (क्रि.) क्रय करना, मोल लेना, जानबूझकर अपने साथ लगाना जैसे-काउ से बै बिसाबो।

बिसैलो :: (वि.) विषयुक्त, जहरीली प्रकृति।

बिसों :: (सं. पु.) हल्की सम्भावना, बीस में एक संभावना।

बिसौतिया :: (सं. स्त्री.) एक बेल जिसके पत्ते पान की तरह होते हैं।

बिस्तरा :: (सं. पु.) बिछोना, ओढ़न-बिछाने के कपड़ों का बण्डल।

बिस्तार :: (सं. पु.) फैलाव।

बिस्तारबौ :: (क्रि.) फैलाना, पूजा सामग्री को पूजा हेतु यथास्थान पूजा स्थल पर रखना।

बिस्तारौ :: (सं. पु.) फैलाव।

बिस्तारौ :: दे. विस्तार।

बिस्त्राम :: (सं. पु.) पाहुनों के रूकने का समय, लम्बी कथा का वह स्थल जहाँ उसे अगले समय पुनः प्रारंभ करने के लिए रोका जाए, आराम।

बिस्नू :: (सं. पु.) विष्णु भगवान।

बिस्पत :: (सं. पु.) देवताओं के गुरू का नाम, गुरूवर।

बिस्वा :: (सं. पु.) एक बीघे का बीसवाँ भाग।

बिस्वा :: (सं. स्त्री.) वेश्या।

बिह :: (सं. पु.) ब्रह्मा, विधि।

बिहाअता :: (वि.) विवाहिता, रखेली से भिन्न।

बिहारी :: (सं. पु.) श्रीकृष्ण भगवान।

बिही :: (सं. स्त्री.) अमरूद।

बिहूँनों :: (सं. पु.) किसी के अभाव में लगने वाला सूनापन, रिक्तता।

बीं :: (सं. स्त्री.) बिही, अमरूद, अव्य.. भी, तक, पर्यन्त, यथा-बानै कछू कऔ भी नई।

बींग :: (सं. स्त्री.) त्रुटि, कमी, गलती।

बीगा :: (सं. पु.) भूमि, खेत का नाप जो बीस विस्बे का होता है, बीघा।

बीच :: (सर्व.) मध्य भाग, मध्य, उदाहरण-बीच में कूदबो-अनावशयक हस्तक्षेप करना, बीच में परबो-झगड़ा निपटाने के लिए पंच बनाना।

बीच, बीचौ :: (सं. पु.) किसी पदार्थ का मध्या भाग, बीच का अन्तर, अवकाश, अवसर, अन्तर।

बीज :: (सं. पु.) दाना जो अंकुरित हो सके बोने के लिए अनाज, फल के अन्दर निकलने वाले दाने, वीर्य, एक स्त्री आभूषण जो माँथे पर माँग (सीमान्त की) के छोर पर धारण किया जाता है, यह शंकु के आकार का होता है।

बीजक :: (सं. पु.) गड़े हुए धन का संकेत देने वाला शिला या ताम्रपत्र लेख, बेचे गये माल के मूल्य का विवरण सहित माँग पत्र।

बीजना :: (सं. पु.) पंखा, बिजना, उदाहरण-कय मित्र हू तीनऊँ बैरे सुगन्ध के बीजना लैके डुलायबे आउती (लोक गीत.)।

बीजरी :: (सं. स्त्री.) बिजली, विद्युत, चपला।

बीजा :: (सं. पु.) फल के अन्दर निकलने वाले दाने जो अंकुरित होकर उसी फल का पौधा उगा सके।

बीजासेन :: (सं. स्त्री.) पाटौ एक विशेष दुर्गापूजा जो विवाह-शादी आदि शुभ अवसरों के पश्चात तथा तीन वर्ष की अवधि में कम से कम एक बार अवश्य की जाती है, इसका प्रसाद जो कोई ग्रहण करता है, उसके परिवार में भी यह पूजा अनिवार्य हो जाती है, इस पूजा को पाटौ भरना कहते हैं।

बीजौ :: (सं. पु.) शाल वृक्ष की एक जाति, इसकी लकड़ी से ढोलक बनते हैं।

बीझलदेव :: (सं. पु.) बुंदेलों के एक पूर्वज।

बीट :: (वि.) बहादुर, उत्साही, निर्भय।

बीतबौ :: (क्रि.) व्यतीत होना, गत होना, अशेष होना।

बीता :: (सं. पु.) बालिश्त।

बीता :: दे. बित्ता।

बीदन :: (सं. स्त्री.) उलझन, व्यवस्तता।

बीदबौ :: (क्रि.) उलझना, फँसना, व्यस्त होना।

बीदबौ :: (कहा.) बीदो बानिया देय उदार - दबा हुआ बनिया उधार देता है।

बीदौरियाँ :: (सं. पु.) विवाह के कार्य।

बीन :: (सं. स्त्री.) सपेरों का तूमड़ी से बनाया जाने वाला बाजा जिसके एक ओर फूँकने के लिए और दूसरी और स्वर संधान के लिए छिद्रदार नली लगी रहती है।

बीनबौ :: (क्रि.) अँगूठे और तर्जनी से एक एक दाना उठाकर इकट्ठा करना, अनाज में से कंकड़ आदि निकालकर साफ करना।

बीना :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड की एक छोटी नदी जिसके किनारे एरन में हूँड़ों द्वारा बनवाये गये भवनों आदि के अवशेष है इस नदी के किनारे बसा एक नगर जो मध्य रेलवे का जंगसन है संज्ञा पुल्लिंग।

बीनार :: (वि.) आसन्न प्रसवा, ऐसी गर्भवती जो कुछ ही समय बाद बच्चा देने वाली हो (यह शब्द प्रायः गाय-भैंस के लिए प्रयुक्त होता है)।

बीबौ :: (क्रि.) बच्चा देने (जानवरों के लिए प्रयुक्त)।

बीर :: (सं. पु.) लोक गीत. सोज बारे बीर, बीर की बलैया लै हों जमुना के तीर।

बीर :: (सं. स्त्री.) बीड़ी, कान का आभूषण।

बीरज :: (सं. पु.) बीर्य, बल।

बीरन :: (सं. पु.) भाई बीरेन्द्र का अपभ्रंश।

बीरन :: दे. बिरन।

बीरा :: (सं. पु.) दे. बीड़ा, बीरा उठाबो-कोई काम करने का भार लेना।

बीरो :: (सं. पु.) भाई का सम्बोधन रूप।

बीस :: (वि.) दस-दस की दो इकाईयों के योग की संख्या।

बीसबिसै :: (अव्य.) निश्चय पूर्वक बहुत करके।

बीसा :: (वि.) वह कुत्ता जिसके बीस नाखून हो, कुछ के अठारह होते हैं अग्रवाल बैश्यों में एक उपसर्ग।

बीहर :: (वि.) घनघोर जंगल टूटा-फूटा अव्यवस्थित और सुनसान भवन।

बुआई :: (सं. स्त्री.) बीज बोने की क्रिया।

बुआबौ :: (सं. स्त्री.) बहा देना, बीज बुआना।

बुई :: (सं. स्त्री.) एक पद्धति जिसमें चारे पानी की उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण बैल दूसरे किसी व्यक्ति को निश्चित समय के लिए इस शर्त के साथ दे दिया जाता है कि वह उसे खिलाये पिलाये तथा जोते, ऐसी स्थिति में लोग उसे खिलाते पिलाते कम हैं और जोतते अधिक है।

बुई :: (मुहा.) बुई कैसो बैल जोत रए।

बुकडेरू :: (सं. पु.) बकरी का बच्चा।

बुकनू :: (सं. स्त्री.) चूर्णित पदार्थ, मैथी धना, मिर्च आदि को मिलाकर पीसा हुआ नमक।

बुकरबौ :: (क्रि.) कै करना, उल्टी करना, वमन करना, निन्दामुलक प्रयोग।

बुकरा :: (सं. पु.) बुकरा, बकरा चंचल अधिक होता है तथा काम चेष्टा करता रहता है।

बुकरिया :: (सं. स्त्री.) बकरी।

बुकरेलू :: (सं. पु.) बकरी का छोटा बच्चा।

बुकलयाबौ :: (सं. क्रि.) इठलाना, दौड़ते फिरना बीज के लिए अर्थात्, बकरियों को गर्भधारण कराने के लिए छोटे बकरें की तरह उच्छृंखल आचरण करना।

बुखार :: (सं. पु.) ज्वर, ताप, बुखार शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

बुगलबौ :: (क्रि.) अशिष्ट ढंग से जल्दी जल्दी खाना।

बुचकबौ :: (क्रि.) नाक में बलगम के कारण अवरोध होना, अवरोध के कारण सहज निष्कासन रूकना।

बुचकाँयदो :: (वि.) जिसके बुद्धि बुची हुई हो, मन्द बुद्धि।

बुचबौ :: (क्रि.) नाक या कान में वाली आदि आभूषण पहिनने के छेद आभूषण न पहिनने के कारण भरना।

बुजइया :: (सं. पु.) बुझाने वाला।

बुजउल :: (वि.) बुझउअल पूंछी जाने वाली पहेलियाँ इसका संज्ञा रूप में भी प्रयोग पाया जाता है।

बुजक्कर :: (वि.) समझदार, ज्ञानवान।

बुजक्कर :: (प्र.) जान बूझकर बुज्जकें और न बुज्जौ कोय, पाँव में चक्की बाँद के हिरना कुददों होय।

बुजना :: (सं. पु.) स्त्रियों की अशुद्धता के समय का कपड़ा।

बुजरग :: (वि.) बुजुर्ग, आयु, बृद्ध, बड़ी उम्र होने के कारण अनुभवी, संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त।

बुजाबौ :: (क्रि.) सामना करना, अग्नि बुझाना, दाल के बड़ो को कांजी में भिगोना।

बुजुर्गी :: (सं. स्त्री.) आयुवृद्धि के लक्षण।

बुझबो :: (सं. क्रि.) आग का आप से आप शांत हो जाना, ठंडा होना, मन का आवेग शांत होना, मिटना।

बुझाबो :: (सं. क्रि.) अग्नि को शान्त करना, तपी हुई वस्तु को जलाकर ठंडा करना, ज्ञात करना, सांत्वना देना।

बुझौअल :: (सं. स्त्री.) पहेली।

बुटरिया :: (सं. स्त्री.) उँगलियों की पोरों का मांसल भाग।

बुटी :: (सं. स्त्री.) बुटी ऐसी औषधि जो पत्तों से बनी हो।

बुड़कइया :: (सं. स्त्री.) डुबकी।

बुड़की :: (सं. स्त्री.) डुबकी डुबकी लेने का त्यौहार मकर संक्रान्ति।

बुडयाबो :: (क्रि.) बुड्डा होने के लक्षण प्रकट होना।

बुड़ापौ :: (सं. पु.) बृद्धावस्था उदा, बुढ़ापौ, वृद्धापन उदाहरण-आव बुढापों थकत मेई देइया, सो लठिया ले पछता तें बु.गी.।

बुड्डो :: (सं. पु. स.) बृद्ध, बुड्डा।

बुतौ :: (सं. पु.) सामर्थ्य, क्षमता।

बुत्ता :: (सं. पु.) भागने का बहाना।

बुथबौ :: (क्रि.) आमद अधिक और बहाव कम होने के कारण पानी आदि तरल का भराव बढ़ना, शरीर में रोग का चरम स्थिति में हो जाना।

बुँदका :: (सं. पु.) बड़ी बुंदकी, बड़ी बिन्दी।

बुँदकियनदार :: (वि.) जिस पर बुँदकी बनी या लगी हो, बुँदकी वाला।

बुँदकिया :: (सं. स्त्री.) छोटी बिन्दी, छोटी बुँदकी उदाहरण-हरी हरी बुँदकिया सुन्दर है हरे जड़ाव, बिन्दी, छोटा गोल निशान।

बुदबुदबो :: (सं. स्त्री.) ढोर आदि हाँकने के लिए ली जाने वाली साधारण लकड़ी।

बुँदी :: (सं. स्त्री.) बूँदी, बेसन के गाढ़े घोल की छोटी-छोटी पकौड़ी जो घी में तलकर गरम-गरम शक्कर की चाशनी में डाली जाती है।

बुदुआ :: (सं. पु.) आशय।

बुद्दबारौ :: (सं. पु.) क्षति हानि, जेब खाली कर देने का खर्च।

बुद्दवार :: (सं. पु.) मंगल और बृहस्पतिवार की बीच का दिन, बुधवार।

बुद्दवारी :: (वि.) जो तिथि बुधवार को पड़े।

बुद्दू :: (वि.) बुद्दू या बुद्द के अनुयाई बुद्धिमान व्यंग्य अर्थ।

बुद्धि :: (सं. स्त्री.) सोचने समझने की शक्ति, समझ, बुद्धि समझदारी।

बुधा :: (सं. पु.) एक छोटी मछली जो पानी में डूबती नहीं।

बुधौरिया :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों का एक गोत्र।

बुनकर :: (सं. पु.) कपड़ा बुनने वाली एक हिन्दू जाति जो कोरियों या कोष्टियों से भिन्न है।

बुनकर :: (स्त्री.) बुनकर।

बुनकरयानो :: (सं. पु.) बुनकरों का मुहल्ला।

बुनकारी :: (सं. स्त्री.) बुनाई की शैली।

बुनबौ :: (क्रि.) कपड़ा बुनना, खटियों में रस्सी भरना।

बुनाई :: (सं. स्त्री.) बुनने की क्रिया।

बुन्देलखण्ड :: (सं. पु.) मध्यप्रदेश के सागर, जबलपुर, उत्तरप्रदेश के झाँसी सम्भाग का भूभाग।

बुन्देलखण्डी :: (सं. स्त्री.) बुन्देखण्ड क्षेत्र की भाषा।

बुन्देलखण्डी :: (सं. पु.) इसके अतिरिक्त भी यह मैनपुरी तथा इटावा के ब्रजभाषा के क्षेत्र तता नागपुर और भण्डारा के मराठी भाषी क्षेत्र में अपने विभिन्न रूपों में बोली जाती है यह एक श्रुति मधुर भाषा है बुन्देलखण्ड का रहने वाला।

बुन्देला :: (सं. पु.) महरवार क्षत्रियों की एक उपशाखा।

बुन्देली :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड की भाषा, बुन्देलखंड से संबंधित।

बुर :: (सं. स्त्री.) योनि, हीनार्थ में प्रयुक्त।

बुरओ भलो :: (सं. पु.) अच्छाई बुराई अपशब्द।

बुरका :: (सं. पु.) मुस्लिम स्त्रियों द्वारा पर्दा के लिए पहिना जाने वाला प्रायः काले रंग का वस्त्र जिसमें चेहरा समेत पूरा शरीर ढँक जाता है।

बुरबो :: (वि.) जो अच्छा न हो, मंद।

बुरव :: (वि.) बुरा, रद्दी, खराब।

बुराई :: (सं. स्त्री.) खराबी, वैमनस्य।

बुरादा :: (सं. पु.) लकड़ी चीरने से निकला हुआ लकड़ी का चूर्ण।

बुरान :: (सं. पु.) चमकीला चूर्ण जो सजावट के काम आता है, विशेष रूप से ताजियों की की सजावट के काम में आता है।

बुलउआ :: (सं. पु.) बुलाबा, विवाह-शादी या अन्य शुभ अवसरों पर मुहल्ला पड़ौस की स्त्रियों का इकट्ठे होकर गाना बजाना, आने के लिए दी जाने वाली सूचना।

बुलकबौ :: (क्रि.) मुँह में पानी आदि तल पदार्थ को लेकर भरकर हवा का दवाब देकर बाहर निकालना।

बुलकिया :: (सं. पु.) मिट्टी के खिलौना बनाने वाला।

बुलबुला :: (सं. पु.) बुदबुद, बुल्ला, क्षण भंगुर वस्तु।

बुलबुलाबौ :: (क्रि.) मुँह में पानी भरकर इधर-उधर करना जिससे बुलबुल की आवाज हो।

बुलयानों :: (सं. पु.) हँसी मजाक करना।

बुलयाबौ :: (क्रि.) हँसी-मजाक करना, व्यंग्य करना, काट छाँट की बातें करना।

बुलयाबौ :: (कहा.) कलौ काल ऐसौ बरयानों, आजी से नाती बुलयानों।

बुलाई :: (सं. स्त्री.) बुलाने की क्रिया, टेरा बुलाई शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

बुलाक :: (सं. पु.) नथ में का लंबोतरा मोती, नासा द्वारों के बीच की दीवाल को छेदकर पहना जाने वाला आभूषण।

बुलाबौ :: (सं. क्रि.) बुलाना, पुकारना, किसी को पास आने के कहना, किसी को बोलने में प्रवृत्त करना।

बुलाबौ :: (सं. पु.) निमंत्रण बुलाने का भाव।

बुलौआ :: (सं. पु.) बुलौवा, आवाहन, निमंत्रण, उदाहरण-मेला ठेला ब्याह, बुलौआ मौ कों नेंक न भानें, ओम।

बुल्लाक :: (सं. स्त्री.) नाक के नथुनों के बीच की उपस्थित को छेदकर पहिना जाने वाला मोती या साने का गुरिया, बेसर।

बुसबौ :: (क्रि.) सड़ने के कारण फफूँदी उठना।

बुसौ :: (वि.) सड़ा हुआ, बदबुदार।

बुहारी :: (सं. स्त्री.) झाडू लगाकर साफ करने की क्रिया।

बूच :: (प्र.) जान बूच (झ) कें ऐसी गलत करौ।

बूच (झ) :: (क्रि. वि.) ज्ञानपूर्वक, समझते हुए।

बूचा :: (वि.) जिसका कान कटा हो।

बूजबौ :: (क्रि.) समझना, पूछना।

बूझ :: (सं. स्त्री.) समझ, बुद्धि, अकल, ज्ञान।

बूँट :: (सं. पु.) विदेशी ढंग से भारी जूते, मिलिटरी या पुलिस के जूते, चने के हरे पौधे जिनमें से चुन-चुनकर चने खाये जाते हैं।

बूटन :: (सं. स्त्री.) सिलाई मशीन का एक अंग जो कपड़े को दबाने और उसे आगे बढ़ाने का काम करता है।

बूटी :: (सं. स्त्री.) बुटी, कपड़े पर कढ़ाई में निकाली जाने वाली पत्तियाँ, भाँग, भंग।

बूटी :: दे. पत्तों से बनी औषधि।

बूठा :: (वि.) कद में ठिगना।

बूड़बौ :: (क्रि.) डूबना।

बूड़ा :: (वि.) ऐसी (धरती) जो तालाब के भराव में डूब जाती हो तथा रबी की फसल के समय तक निकल आती हो, ऐसी भूमि उखरा-बूड़ा की धरती कहलाती है डूबकी।

बूड़ी दूबा :: (सं. पु.) एक जड़ी।

बूड़ी दूबा :: (कहा.) बूड़ी गैया बमने जाय, पुत्र होय और टरे बलाय - बूढ़ी गाय ब्राह्मण को देने से दुहरा लाभ, पुण्य का पुण्य और बला भी टले।

बूड़ी दूबा :: (कहा.) बूड़ी घुरिया लाल लगाम - बेमेल काम।

बूता :: (सं. पु.) बल, पराक्रम, शक्ति, सामर्थ्य।

बूतौ :: (सं. पु.) सामर्थ्य।

बूतौ :: दे. बुतौ, बितौ (बुल-बूतौ शब्द युग्म. में प्रयुक्त)।

बूँद :: (सं. स्त्री.) तरल पदार्थ का उतना अंश जो थोड़ा-थोड़ा जमा होकर एक बार में टपक पड़ता है।

बूँदा :: (सं. पु.) दे. बूँद, स्त्रियों द्वारा माथे पर लगायी जाने वाली काँच की छोटी टिकुली।

बूँदा-बाँदी :: (क्रि. वि.) थोड़ा पानी बरस कर रूक जाना।

बूँदी :: (सं. स्त्री.) राजस्थान का एक ऐतिहासिक नगर। बुन्देलखण्ड में एक लोक प्रसिद्ध-नरवर चढ़ै न बेड़नी, बूँदी छपै न छींट, गुदनोंटा भोजन नहीं, एंरच पकै न ईट।

बूरौ :: (सं. पु.) शक्कर की चासनी कड़ी करके और उसे घौंटकर बनायी जाने वाली बिना दाने की शक्कर।

बूलरा :: (सं. पु.) ज्वार के भुट्टे का वह भाग जिसमें दाना फंसा रहता है।

बूसा :: (सं. पु.) जुँवारी के दोनों सिरे।

बें :: (सर्व.) वह का बहुवचन बिना अभाव सूचक फारसी उपसर्ग जो हिन्दी बोलियों में आत्मसात हो गया हो।

बेई :: (सर्व.) वही, वे ही।

बेईमान :: (वि.) जिसका कोई ईमान न हो, अविश्यसनीय नीयत खराब होने के कारण अपन बात से मुकरने वाला।

बेईमानी :: (सं. स्त्री.) नीयत खराब होने के कारण अपने वचन या नैतिक नियम ये मुकरने की क्रिया।

बेउ :: (सर्व.) वह वे भी।

बेऔसर :: (अव्य.) कुसमय, असमय, बेवक्त।

बेंक :: (सं. पु.) उपजातीय नाम, कुल नाम, खिताब।

बेंकबौ :: (क्रि.) बहकना, विचलित होकर चलना, एकदमसे क्रोधित होना।

बेकल :: (सं. स्त्री.) एक कँटीली झाड़ी जिसके काँटे दो दो फँगसों वाले होते हैं तथा पत्ते मोटे और छोटे होते है।

बेकाम :: (वि.) बेकार, व्यर्थ।

बेकार :: (वि.) व्यर्थ, कार्य के लिए अक्षम, काम के लिए अनुपयोगी।

बेकुंठी चौदस :: (सं. पु.) कार्तिक शुक्ल की चर्तुदशी।

बेंगड़ा, बेंघड़ा :: (सं. स्त्री.) जल के बहाव की धारा गिरने से बनी बड़ी खंदक।

बेगधनी :: (क्रि. वि.) शीघ्रता से।

बेगम :: (सं. स्त्री.) मुसलमान सम्राट की पत्नी, ताश के पत्तों में बारहबे क्रम पत्ता, दे बिबिया।

बेगर :: (सं. पु.) अचार का मसाला।

बेगरजू :: (वि.) बिना गर्ज।

बेगरौ :: (वि.) बिरल, जो घना न हो।

बेगार :: (सं. स्त्री.) बिना मजदूरी दिये जबरदस्ती लिया जाने वाला, काम।

बेगार :: (कहा.) बेगार कौ काम - मुफ्त का काम।

बेगारी :: (सं. स्त्री.) बेगार करने वाला।

बेंगी :: (सं. स्त्री.) काँवर, कन्धे पर बोझ ढ़ोने का एक साधन जिसमें एक लचीली लकड़ी के दोनों तरफ झूलों में बज रखकर लकड़ी कन्धे पर रखी जाती है।

बेगूना :: (वि.) बेगुनाह।

बेघरया :: (वि.) जिसका घर न हो।

बेंचबौ :: (क्रि.) बेचना, विक्रय करना, मूल्य में मुद्रा लेकर वस्तु देना।

बेचैन :: (वि. फा.) व्याकुल, विकल जिसके चैन न हो।

बेजरया :: (सं. पु.) बीमार व्यक्ति।

बेजरो :: (सं. पु.) जौ मिला हुआ गेंहूँ।

बेजाँ :: (वि.) (फारसी भाषा) जो किसी बात से बहुत तंग आ गया हो, बीमार दुखी उदाहरण-हरदम बने रात बेजाँ रोजउ करत रात तकरार बु. ग्रा. गी।

बेजारी :: (सं. स्त्री.) बीमारी, रोगग्रस्तता।

बेझर :: (सं. पु.) दे. बेजरो।

बेझो :: (सं. पु.) लक्ष्य।

बेंट :: (सं. पु.) कुदाल, फावड़े आदि का हत्था।

बेटन :: (सं. पु.) बेष्टन वह वस्त्र जो बस्तु की सुरक्षा के लिए वस्तु पर लपेटा जाता है।

बेटा :: (सं. पु.) लड़के के लिए प्रेमपूर्ण सम्बोधन।

बेटा :: (कहा.) बेटा से बेटी भली जो कुलवंती होय, बेटा है तौ बउएँ भौत आ जेयँ - लड़का है तो बहुएँ बहुत आ जायेंगी, साधन है तो काम भी हो जायेगा।

बेंटा :: (सं.) बैंट, मुठिया।

बेटी :: (सं. स्त्री.) पुत्री, राजाओं या क्षत्रियों की पुत्री के लिए विशेष रूप में प्रयुक्त, लड़कियों के लिए प्रेम पूर्ण सम्बोधन।

बेंटी :: (सं. स्त्री.) छुरी, चाकू आदि का छोटा हत्था।

बेठका :: (सं. पु.) घर में स्वागत कक्ष, बाहरी लोगों को बिठालने का बाहरी कक्ष।

बेठाबो :: (सं. क्रि.) स्थिर करना बैठने के लिए कहना, पद पर नियुक्त करना।

बेड़ :: (सं. स्त्री.) कैदी भाग न सकें इसके लिए उनके पैरों में डाले जाने वाले लोहे की छड़ के कड़े। इनमें एक एक लम्बी लोहे की छड़ डली रहती है जो जाँघों के बीच में कड़े से जुड़ी और कमर से बँधी रहती है।

बेड़नी :: (सं. स्त्री.) ग्रामीण वेश्या, वेश्या जो प्रेतनी हो गयी हो ऐसी प्रेतनी को स्त्रियाँ ग्राम देवी के रूप में पूजती है।

बेड़बौ :: (क्रि.) चारों तरफ से घेर कर बारी बाड़ लगाना।

बेड़वानों :: (सं. पु.) किबाड़ तोड़कर भी सरलता से न खोले जा सकें। इसके लिए किबाड़ों के पीछे दीवार में जाने वाले छेद जिनमें होकर बन्द किबाड़ों के पीछ दीवार में जाने वाले छेद जिनमें होकर बन्द किबाड़ों के पीछे एक मोटी लकड़ी डाली जाती है।

बेड़िया :: (सं. पु.) बेड़नी का नौकर।

बेंड़ी :: (सं. पु.) विचित्र।

बेंड़ौ :: (सं. वि.) तिरछा, तिर्यक, कर्णवत।

बेंड़ौरा :: (सं. पु.) खायी हुई वस्तु जिसके मुँह पर लिपटी हो, गन्दा बर्तन जिसके अन्दर रखी हुई वस्तु उसके ऊपर भी लिपटी हो, गन्दा और बेढब (विशेषण.)।

बेढ़ौरी जाघा :: (सं. स्त्री.) जंगली जमीन।

बेंत :: (सं. पु.) बेंत, जगन्नाथ जी के बेंत, यादवी संघर्ष के शस्त्रों के प्रतीक स्वरूप जगन्नाथपूरी की तीर्थ यात्रा से लाये जाते हैं और लाकर उनकी पूजा की जाती है। घर में इनके रहने से पारिवारिक संघर्ष का शमन होता है।

बेतराँ :: (वि.) बुरी तरह।

बेतवा :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखंण्ड की प्रसिद्ध नदी जो भोपाल के पास मण्डीदीप के निकट से निकलती है और हमीरपुर उत्तरप्रदेश के निकट यमुना नदी से मिलती है बुन्देलखण्ड में इसे काली गंगा माना जाता है इसके किनारे बिदिशा, बेगमगंज, बामोरा, ओरछा आदि अनेक ऐतिहासिक एवं तीर्थ स्थल स्थित है।

बेता :: (सं. पु.) बालिश्त (भर)।

बेतिया :: (सं. पु.) बालिश्त।

बेतिया :: दे. बित्ता।

बेद :: (सं. पु.) वेद जिन्हें अपौरूषेय रचना माना जाता है हिन्दुओं के चार ऋग्वेद, युजर्वेद, सामवेद, अथर्वेद महान ग्रन्थ उच्चकोटि के ज्ञान का साधन है।

बेदरा :: (सं. पु.) ज्वार की किस्म, पीला हल्का दाना।

बेदला :: दे. कबड्डी।

बेंदा :: (सं. पु.) माँग के सामने माथे के ऊपर पहिना जाने वाला-स्त्री आभूषण।

बेंदी :: (सं. स्त्री.) हवन कुण्ड, चण्डी यज्ञ।

बेंदुला :: (सं. पु.) आल्हखण्ड के नायक आल्हा के भाई ऊदल का घोड़ा।

बेदौ :: (सं. पु.) सुराख मोती या अन्य कृत्रिम गुरियों में धागा डालने के लिए बारीक छेद।

बेधरमा :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की पुरानी बन्दूक जिसके कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी लगती थी।

बेंन :: (सं. स्त्री.) बहिन, लड़कियों को पुकारने का सामान्य सम्बोधन।

बेनई बैने :: (सं. स्त्री.) बहिन-बहिन।

बेंना :: (सं. पु.) रूई धुनकने तथा गद्दा रजाई भरने वाली एक मुस्लिम जाति, धुनका, धुनाँ।

बेनाथ :: (वि.) वह बैल जिसकी नाक न छिदी हो।

बेंनी :: (सं. स्त्री.) दोनों किवाड़ों के बीच की संधि, बन्द वाली लकड़ी की पट्टी।

बेंनेउ :: (सं. पु.) बहनोई, बहिन का पति।

बेंनोंता :: (सं. पु. स्त्री.) की बहिन का पुत्र उसकी पत्नी बेंनोत बहू कहलाती है।

बेंनोतिया :: (सं. पु.) स्त्री की बहिन की पुत्री इस शब्द का प्रयोग केवल स्त्री संदर्भ में ही होता है पुरूष की बहिन का पुत्र भानेज कहलाता है।

बेपरखा :: (वि.) बेफिक्र, मनमौजी।

बेपार :: (सं. पु.) व्यापार।

बेपारी :: (सं. पु.) कच्चा माल अनाज आदि उत्पन्न कर बेचने के लिए मण्डियों में आने वाले किसान या अन्य लोग, व्यापार करने वाले, लोग, खरीद फरोख्त करने वाले लोग।

बेपीर :: (वि.) निर्मम, दयाहीन।

बेबड़ा :: (सं. स्त्री.) घड़ा, गगरी, गागर।

बेबन्देज :: (वि.) बिना बन्धन या रूकावट।

बेबला :: (सं. पु.) मुसीबत, तकलीफ।

बेबस :: (वि. फा.) पराधीन, परवश, लाचार।

बेबा :: (वि.) विधवा।

बेबाँडाँ :: (वि.) अव्यवस्थित।

बेबार :: (सं. पु.) व्यवहार, पारस्परिक संबंध, विवाह शादि आदि वर्ग कार्यो में आदान-प्रदान की भावना से किया जाने वाला सहयोग, बर्ताव।

बेबारी :: (सं. स्त्री.) व्यवहारी।

बेबूज :: (वि.) नासमझ, मूर्ख।

बेबे :: (सर्व.) ऐसे-ऐसे।

बेभार :: (सं. पु.) दे. बेबार।

बेंमटे :: (सं. पु.) पेड़ों के ऊपर होने वाले लाल चींटे, ये कुछ पत्तों को इकट्ठा कर टहनियों पर ही डिब्बे जैसा घर बना लेते है।

बेंमटे :: (सं. पु.) चींटो की जाति।

बेंमा :: (सं. पु.) फैलाये हुए दोनों हाथ और छाती की लम्बाई का माप, लगभग साढे चार हाथ का माप, बेंमा छाँटबो सीधे हाथ मार कर तैरना।

बेमाभर :: (वि.) दोनों हाथों की बाजुओं में तानने पर जितनी लंबाई होती है।

बेर :: (सं. स्त्री.) बावड़ी, सीढ़ी दार कुआँ।

बेरई :: (सं. स्त्री.) बड़े सींगों वाली गाय।

बेरमबेर :: (क्रि. वि.) बार-बार।

बेराँ :: (सं. पु. यौ. श.) बेला में, समय में, अवसर पर।

बेरी :: (सं. स्त्री.) बेर का वृक्ष।

बेरीं :: (सं. स्त्री.) शादी के समय कन्या पक्ष के मण्डप के नीचे रखे जाने वाले सात या नो डबला (मिट्टी के मध्यम आकार के पात्र)।

बेल :: (सं. स्त्री.) दे. लता, रस्सा बनाने के लिए एक भाँज की रस्सी, इसी प्रकार की रस्सा बनाया जाता है, बिल्व पत्र, बिल्व वृक्ष।

बेल :: (सं. पु. कहा.) बेल मँड़वे चड़ गई-बेल मंडप पर चढ़ गयी, अर्थात् किसी प्रकार काम बन गया।

बेलगाँठ :: (सं. पु.) लोटा।

बेलचा :: (सं. पु.) कुदाल।

बेलचूड़ी :: (सं. स्त्री.) सोने की बनी हुई चौड़ी पत्तीदार चूड़ी।

बेलदार :: (सं. पु.) पुरूष मजदूर, गिट्टी फोड़ने ईटें बनाने आदि का काम करने वाले वे कुम्हार जो गधे पालते हैं, गौड़ बाबा के चोतरा के साथ बनाई जाने वाली चौतरियाँ जो गौड़बाबा के सेवक बेलदार नामक ग्राम देवता की होती है।

बेलदारी :: (सं. स्त्री.) फावड़ा चलाने, भूमि खोदने का काम।

बेलन :: (सं. पु.) भूमि पर डाली गयी मिट्टी खोदने का काम।

बेलन :: (सं. पु.) भूमि पर डाली गयी मिट्टी को दबाने के लिए चलाया जाने वाला लोहे का चौड़ा पहिया, रोलर।

बेलपत्ती :: (सं. स्त्री.) बेलपत्र।

बेला :: (सं. पु.) चमेली के समान सुगन्ध बाला एक पौधा।

बेला :: (पु.) कटोरा, एक वाद्ययंत्र।

बेलिया :: (वि.) समय बदल बदल कर चढ़ने वाला इकतारा-एक दिन छोड़कर चढ़ने वाला मलेरिया।

बेली :: (सं. स्त्री.) गाय भैंस के जननाग का भीतरी भाग जो कभी कभी प्रजनन के समय बछड़े के साथ बाहर निकल आता है।

बेलौस :: (वि.) बेहिसाब।

बेवहरिया :: (सं. पु.) लेनदेन करने वाला।

बेसक :: (क्रि. वि.) निसन्देह।

बेसन :: (सं. पु.) चने की दाल का आटा।

बेसर :: (सं. स्त्री.) दे. बुल्लाक।

बेसरम :: (वि.) निर्लज्ज, जिसको शर्म न हो, जिस पर भले बुरे का प्रभाव न पड़े, जो लोकापवाद से न डरता हो।

बेसरम :: (कहा.) बेसरम की नाक कटी, हात भर रोज बढ़ी - निर्लज्ज के लिए।

बेसा :: (सं. स्त्री.) वेश्या, रंडी।

बेसांदुर :: (सं. पु.) आग।

बेसी :: (सं. स्त्री.) अधिकता।

बेसुद :: (वि. फा. बु.) बेसुध, अचेत।

बेसुरो :: (वि.) जो नियमित स्वर में न हो संगीत।

बेसौ :: (सं. पु.) एक झाड़ी जो नदी नालों के किनारे होती है इसके पत्ते तथा लकड़ी जामुन की तरह होती है।

बेहत्तर :: (वि.) अच्छा।

बेहद :: (वि.) असीम।

बेहया :: (वि.) निर्लज्ज।

बेहर :: (सं. पु.) रूपये उधार देने का काम।

बेहरो :: (सं. पु.) सूद पर रूपये के लेनदेन करने वाला।

बेहार :: (सं. पु.) दे. बेबार, बेभार।

बेहूदा :: (वि.) अशिष्ट, असभ्य।

बेहोस :: (वि. फा.) बेहोश, मूर्च्छित, बेसुध।

बेहोसी :: (सं. स्त्री. फा.) बेहोशी, मूर्च्छा, अचेतनता।

बै :: (सं. स्त्री.) वय, आयु, बैमाता आयुरूपों या जीवन देने वाली माता में प्रयुक्त।

बैकुंठी :: (सं. स्त्री.) कान में पहनने वाली छोटी वाली।

बैकुण्ठ :: (सं. पु.) भागवान विष्णु का लोक, स्वर्ग।

बैखरा :: (सं. पु.) पशुओं के खुरों में होने वाले घावों का एक रोग, खुरपका।

बैग :: (सं. पु. अं.) आधुनिक किस्म का थैला।

बैंगा :: (सं. पु.) बैल, उदाहरण-आठ बिसी में दोउ बैंगा ठाँडे मोल बिकाने, द्वारिकेश बुन्देलन।

बैचाँदी :: (सं. स्त्री.) जंगली पैदावार।

बैजनी :: (सं. स्त्री.) एक बैंगनी रंग।

बैंजन्ती :: (सं. स्त्री.) बैजयन्ती का पुष्प जिसके केला के समानपत्ते तथा लाल पीले चिट्ठेदार पुष्प होते हैं।

बैजरा :: (सं. पु.) हवा के कारण अन्दर आने वाली वर्षा की बौछार।

बैटरी :: (सं. पु.) विद्युत सैलों से जलने वाली टार्च।

बैठक :: (सं. स्त्री.) गोष्ठी, समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए कुछ लोगों की मिलकर बैठने की क्रिया किसी ग्राम देवता के आवेश का आवाहन।

बैठकी :: (सं. स्त्री.) हाट में दुकान लगाने का कर।

बैठन :: (सं. स्त्री.) बैठने का तरीका, बैठने की मुद्रा, बैठने के लिए बिछाँत।

बैठबो :: (क्रि.) जमना, यथास्थान जमना, हिसाब किताब मिलना।

बैठारबो :: (क्रि.) दे. बैठाबो।

बैण्ड :: (सं. पु. अं.) अंग्रेजी बाजे बजाने वालों का दल।

बैतबन्ती :: (सं. स्त्री.) दे. बेतवा।

बैतरनी :: (सं. स्त्री.) बैतरणी।

बैद :: (सं. पु.) वैद्य, देशी आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करने वाला।

बैदगारौ :: (सं. पु.) बैद्यक का धंधा।

बैदल्ला :: (सं. पु.) तुआतार की तरह का एक खेल।

बैन :: (सं. पु.) वेणु, बाँसुरी, भगिनी, बहिन, बहन।

बैना :: (सं. स्त्री.) रूई धुनकनें वाली एक जाति।

बैनुउ :: (सं. पु.) बहनोई।

बैनोंता :: (सं. पु.) स्त्रियों की बहन का लड़का।

बैनोंता :: (स्त्री.) बैनोतिया।

बैबौ :: (सं. पु.) बीज बोना।

बैभरना :: (सं. पु.) जिससे बान आता है कोरी।

बैमटे :: (सं. पु.) चीटे।

बैमा :: (सं. पु.) दोनों हाथों को सीधा फैलाकर बनी हुई लंबाई बैमा।

बैमाता :: (सं. स्त्री.) आयु की देवी यौगिक शब्द।

बैया :: (सं. स्त्री.) ननद, दादी।

बैया :: दे. बइया।

बैयाँ :: (सं. पु.) हाथ, बाँह।

बैर :: (सं. पु.) शत्रुता, रंजिश, हवा उदाहरण-बैर भँजाबो-शत्रु से बदला लेना, बैर मोल लैबो-व्यर्थ शत्रुता करना।

बैरंग :: (वि.) डाकघर में बिना उचित मूल्य के टिकिट लगाया हुआ कार्ड या लिफाफा।

बैरगिया :: (सं. पु.) एक प्रकार का लोटा।

बैरा :: (वि.) बहरा व्यक्ति।

बैरा :: (स्त्री.) बैरू, होटलों में परोसने वाला बहरा जो, सुन न सके यह अनादरवाची सम्बोधनात्मक प्रयोग है सामान्य अर्थ में बैरो शब्द का प्रयोग पाया जाता है होटलो में परोसने वाला।

बैराग :: (सं. पु.) वैराग्य, मोहमाया आदि सांसारिक आकर्षण से मुक्ति।

बैरागी :: (वि.) जिसको सांसारिक मोह माया में कोई आसक्ति न हो।

बैरागी :: (पु. सं.) अनासक्त वैष्णव साधु।

बैरी :: (वि.) जो शत्रुता रखे, बैरी।

बैरी :: (पु.) शत्रु सू. बैरी कौ मत मानबो उर तिरिया की सीक, क्वार करे हरजोतनी तीनउ माँगे बीक, शत्रु, बैरियन।

बैरूपिया :: (सं. पु.) बहुरूपिया, अनेक रूप धार ण करने वाला।

बैरो :: (वि.) बहरा, जो सुन न सके।

बैरो :: दे. बैरा।

बैरोजा :: (सं. पु.) गन्दा बिरोजा, चीड़ वृक्ष की गोद जो दवा के काम आती है।

बैल :: (सं. पु.) बैल, गौ जाति की नर, बर्धा, ताकतवर मूर्ख।

बैलउ :: (वि.) वह गाय जो बाँझ हो, बैलों के साथ चरने वाली गाय।

बैलगाड़ी :: (सं. स्त्री.) वह गाड़ी जो बैलों द्वारा खींची जाती है।

बैलर :: (सं. पु.) घोड़े की एक जाति।

बैलवा बैला :: (सं. पु.) दे. बैल।

बैलाबो :: (क्रि.) बहलाना, बातों में टालना, फुसलाना।

बैस :: (सं. स्त्री.) आयु वहस क्षत्रियों का एक उपवर्ग।

बैसाक :: (सं. पु.) वैशाख, विक्रम संवत् का दूसरा महीना।

बैसाकी :: (सं. स्त्री.) लाठी या डंडा जिसे बगल के नीचे लगाकर लँगड़े लोग सहारा लेकर चलते हैं।

बैसान्दुर :: (सं. पु.) वैश्वानर, पूजा में होम लगाने के नीचे लगाकर लँगड़े लोग सहारा लेकर चलते हैं।

बैसे :: (वि.) उस प्रकार, विशेष युक्त सार्वजनिक प्रयोग का यौगिक, अव्यव।

बैसे :: (प्र.) बैसें तो कहू नँइयाँ।

बैसो :: (सर्व.) उस तरह का यौगिक।

बैहर :: (सं. स्त्री.) वायु हवा।

बो :: (सर्व.) वह संकेतवाची सर्वनाम।

बोई :: (सर्व.) वही उदाहरण-तुलसी कौ पत्र हरखाँ बोई चढ़ाउ, कार्तिक गीत।

बोक :: (सं. पु.) बीज के लिए छोड़ा गया बकरा जिसके द्वारा बकरियाँ गर्भ धारण कर सकें।

बोंकबो :: (क्रि.) किसी वस्तु को एक व्यक्ति से लेकर दूसरे का बढ़ा देना।

बोकर :: (सं. पु.) अंग्रेजी सेना के एक नायक जिन्हें रानी लक्ष्मीबाई ने भाँडेर में घायल करके धराशायी कर दिया था।

बोंग :: (सं. स्त्री.) दाँत उखड़ जाने के कारण दन्त पंक्ति में बना खाली स्थान।

बोंगना :: (सं. पु.) चौड़े मुँह का बरतन, तबेला।

बोंगा :: (वि.) जिसका दाँत उखड़ा या टूटा हो।

बोजबौ :: (क्रि.) बड़ों को फूलने के लिए कांजी में डालना।

बोट :: (सं. पु.) मतपत्र, श्यामपट लकड़ी का लिखने के लिए तखता।

बोंटा :: (सं. पु.) कुहनी के उपर भुजा में पहिना जाने वाला स्त्री आभूषण जो आकृति में पैर के पैजना जैसा होता है।

बोटी :: (सं. स्त्री.) माँस का टुकड़ा।

बोंड़ :: (सं. स्त्री.) दीपक की बत्ती का जला हुआ भाग।

बोंड़बौ :: (क्रि.) दे. बोंकबौ।

बोंड़ा :: (सं. पु.) तोप की तरैया पर रखी बारूद में आग लगाने के लिए सुलगती हुई रस्सी।

बोंड़ार :: (सं. स्त्री.) विवाह में भेंट के रूप में लायी गयी साड़ी।

बोंड़ी :: (सं. स्त्री.) कली, खिलने की पूर्व स्थित में फूल, स्तन का अग्रभाग।

बोतल :: (सं. स्त्री.) बड़ी शीशी।

बोदा :: (वि.) जिसकी बुद्धि में कोई बात सरलता से प्रवेश न करें।

बोदौ :: (वि.) ठोकने से दबी घुटी सी आवाज देने धातु या बर्तन या चाँदी का सिक्का जो खोटा होने के कारण टंकार कर नहीं बोलता।

बोध :: (सं. पु.) आभास, ज्ञान, अनुभूति।

बोनी :: (सं. स्त्री.) बीज बोने की क्रिया, दिन की प्रथम बिक्री।

बोर :: (उपसर्ग) छोटे, बारे से।

बोरका :: (सं. पु.) पाटी पर लिखने के लिए खड़ियाँ घोलने की दबात।

बोरबौ :: (क्रि.) डुबाना।

बोरा :: (सं. पु.) जूट का बड़ा लगभग एक क्विटल समाई को थैला, आभूषणों में लगाने के लिए छोटी गोल घण्टी।

बोल :: (सं. पु.) बचन, गीत की पंक्ति।

बोलचाल :: (सं. स्त्री.) बातचीत, साधारण बोलने का विशेष ढंग।

बोलनहारो :: (वि.) बोलने वाला।

बोलनहारो :: (पु.) आत्मा जिससे बोलने की शक्ति प्राप्त होती है।

बोलना :: (सं. स्त्री.) देवता को साक्षी मानकर अभीष्ट कार्य सिद्ध होने पर पुण्य कार्य करने का संकल्प शब्द युग्म. बोलना।

बोलबाला :: (सं. पु.) चलावा, नाम की ख्याति, वर्चस्व।

बोलबौ :: (क्रि.) वाणी का उच्चारण करना, देवता के सामने संकल्प करना।

बोलयाबो :: बेलों का बढ़ना, फैलना।

बोलाचाली :: (सं. स्त्री.) बोलचाल, आपस में बात करने का व्यवहार।

बोलावानी :: (सं. स्त्री.) तमीज, शिष्टाचार।

बोली :: (सं. स्त्री.) भाषा, स्वर, बाणी, बोलने की शैली।

बोल्ती :: (सं. स्त्री.) बोलने की क्रिया।

बोल्ती :: (मुहा.) बोलती बन्द होबौ।

बोंहनी :: (सं. स्त्री.) दे. बोंनी।

बौकन :: (क्रि. वि.) हल के कूंड में मनुष्य के द्वारा बीज बोना।

बौका :: (सं. पु.) हल के पीछे-पीछे बीज बोने वाला व्यक्ति।

बौखल :: (वि.) पागल।

बौछयाबो :: (क्रि.) नजर लगना।

बौछार :: (सं. स्त्री.) हवा के झोकें से आने वाली झड़ी, किसी वस्तु का अधिक मात्रा या संख्या में आकर गिरना।

बौजारा :: (सं. पु.) दे. बैजरा।

बौजो :: (सं. पु.) बोझा, सिर पर ढोने के लिए बनाया गया गट्ठा।

बौटा :: (सं. पु.) हाथ में पहनने का गहना।

बौड़ार :: (सं. पु.) भाँजी के विवाह में मामा द्वार दी जाने वाली साड़ी वस्त्र आदि, वड़हार।

बौत :: (वि.) बहुत, अधिक, ज्यादा।

बौना-बौनो :: (सं. पु.) बामन बहुत ठिगना आदमी नाटा मनुष्य, रवी की फसलों का बीज बोने की नली वाला मोटा पोला बाँस।

बौनी :: (सं. स्त्री.) दे. बोंनी, बोहनी।

बौर :: (सं. पु.) आम की मंजरी, मौर।

बौरा :: (वि.) मूक, जो सुन और बोल न सके अनादरवाची प्रयोग।

बौराबो :: (क्रि.) किसी चीज के घमण्ड में मतवाला होना, पागल होना, किसी भी प्रकार का मानसिक विक्षेप होना।

बौरिया :: (सं. स्त्री.) नव विवाहित स्त्री।

बौरी :: (सं. स्त्री.) बावली।

बौरेटन :: (सं. स्त्री.) गाड़ी के भोंरा से कसी जाने वाली रस्सी।

बौरो :: (वि.) मूक सामान्य प्रयोग खेतों में नींदा के रूप में पैदा होने वाली एक झाड़ी।

बौल :: (सं. स्त्री.) बेल, लता, गेंद।

बौलवगइया :: (सं. स्त्री.) एक जंगली जड़ी खाई जाती है।

बौला :: (सं. पु.) कोयल, बेल, मूँग का पौधा।

बौलें :: (सं. पु.) रँहट का एक हिस्सा।

बौसाब :: (सं. पु.) व्यवसाय, पौरुष।

ब्या :: (सं. पु.) ब्या पक्षी जो बहुत ही कलात्मक घोंसले बुनकर रहता है, अनाज तौलने की मजदूरी करने वाला।

ब्याई :: (सं. स्त्री.) अनाज इत्यादि तौलने का कर।

ब्याउता :: (सं. पु.) विवाहित।

ब्याउर :: (सं. स्त्री.) प्रसूतिका।

ब्याज :: (सं. पु.) रूपया उधार देने पर उसके साथ वापिस लेते समय लिया जाने वाला सूद।

ब्याजू :: (वि.) ब्याज पर लिया गया रूपया।

ब्यात :: (वि.) ब्याई हुई, प्रजनन की हुई।

ब्याद-ब्याध :: (सं. स्त्री.) ब्याधि।

ब्याद-ब्याध :: दे. बिआद।

ब्यानों :: (सं. पु.) पेशगी।

ब्यापबौ :: (क्रि.) आभास होना।

ब्याबौ :: (क्रि.) दे. बआबौ, बियागबौ।

ब्यायबो :: (क्रि.) किसी पुरूष का किसी स्त्री के साथ विधिवत् विवाह करना, ब्याहना।

ब्यार :: (सं. स्त्री.) बयार, हवा।

ब्यार :: दे. बैर।

ब्यारी :: (सं. स्त्री.) रात्रि का भोजन।

ब्यारी :: दे. बिअरी, बियारी।

ब्यारौ :: (सं. पु. सं. स्त्री.) कथावाचक का आसन (समास)।

ब्यासी :: (वि.) आठ दहाई और दो के योग की संख्या।

ब्योंत :: (सं. पु.) कपड़ा सिलने कि लिए लिया जाने वाला नाप।

ब्योंतबो :: (स. क्रि.) नाम के अनुसार दर्जी से कपड़ा कटवाना।

ब्योपार :: (सं. पु.) व्यापारी।

ब्योपार :: दे. बेपार।

ब्योपारी :: (सं. पु.) व्यापारी।

ब्योपारी :: दे. बेपार।

ब्योरौ :: (सं. पु.) विवरण।

ब्योहार :: (सं. पु.) व्यवहर, दे. बेहार, बेभार।

ब्रेक :: (सं. पु.) साईकिल, मोटर आदि वाहन को रोकने का यांत्रिक साधन।

ब्रेक :: दे. बिरक।

ब्लाउस :: (सं. पु.) पोलका, आधुनिक किस्म की चोली।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के प वर्ग का दूसरा वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान ओष्ठ्य हैं।

भइया :: (सं. पु.) भाई।

भई :: (सं. स्त्री.) हुई।

भई :: (कहा.) भई गत साँप छछूदर केरी किसी काम को न करते बनता न छोड़ते।

भउआ :: (सं. पु.) बहनोई (अधिकतर जैन और वैश्यों में प्रचलित)।

भऊँ-भऊँ :: (सं. पु.) कुत्ते का शब्द।

भकबो :: (क्रि.) बुरी तरह यह अशिष्ट ढंग से खाना, खाना निगलना।

भकभकाबो :: (क्रि.) धधकना, रह रह कर तेजी से प्रज्जवलित होना, हृदय में दबे हुए दुख का रह-रह कर शब्दों में प्रकट होना।

भकराँयदौ :: (वि.) घुने या सड़ेपन की गन्धवाला अन्न।

भकरूँड़ा :: (सं. पु.) अम्लीयता के कारण पेट में होने वाली जलन का वेग जो थोड़ी थोड़ी देर में अधिक बढ़ता है, आन्तरिक दुख के कारण उठने वाली हूक।

भकल्ला :: (वि.) बड़ा छेद।

भकसी :: (सं. पु.) चूरन।

भँकाराद :: (सं. स्त्री.) घुने हुए अन्न की गंध, जो रोटियों में आती है, सड़ते हुए अन्न की गंध।

भकुआ :: (वि.) बहुत खाने वाला, खाने की टोह में रहने वाला।

भकुरबौ :: (क्रि.) कुद्ध होकर चुप हो जाना किन्तु आचरण से क्रोध प्रकट करते रहना या मुँह बिगाड़ कर बैठ जाना।

भकोसनो :: (क्रि. वि.) मुँह में भरना।

भकोसबो :: (स. क्रि.) भक्षण करना, जल्दी-जल्दी खाने वाला।

भक्काटौ :: (सं. पु.) तेज प्रकाश का विस्तार।

भक्कू :: (सं. स्त्री.) पत्ते भरने का जादू की पट्ट का बड़ा बोरा, नारियाल भरने का बोरा।

भक्ती :: (सं. स्त्री.) भक्ति, भक्त।

भक्ती :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

भक्तें :: (सं. स्त्री.) भक्ति गीतों की टोली बनाकर गाने की क्रिया, (विशेषकर देवी गीत गायन) बहुवचन में प्रयुक्त।

भखन :: (क्रि. वि.) जलन।

भग :: (सं. स्त्री.) योनि, गुदा।

भंग :: (सं. स्त्री.) व्याघात उत्पन्न करने को क्रियार्थक संज्ञा, भाँग (विशेषण रूप में भी प्रयुक्त) प्रयोग-भजन में भंग।

भंग घुटना :: (सं. पु.) भाँग घोंटने का सोंटा।

भगत :: (वि.) भक्त।

भगत-बछल :: (वि.) जो भक्तों पर कृपा और स्नेह रखता हो।

भगती :: (सं. स्त्री.) दे. भक्ती।

भगतें :: (वि.) माता के भजन।

भगदर :: (सं. स्त्री.) बहुत से लोगों का डरकर भागना।

भगनवाँ :: (सं. पु.) भाग दौड़, आने जाने की निष्फल क्रिया।

भगन्दर :: (सं. पु.) गुदा के बगल में होने वाला फोड़ा, इसका विस्तार अन्दर की तरफ होता है।

भगबौ :: (क्रि.) भागना, दौड़ना, दूर होना।

भँगयाई :: (सं. स्त्री.) बिना आड़ मर्यादा के कहे जाने वाले अश्लील अपवावक्य।

भगवती :: (सं. स्त्री.) देवी, दुर्गा।

भगवाँ :: (सं. पु.) एक रंग, काषाय, इस में रंगा हुआ वस्त्र।

भगवान :: (वि.) भाग्यवान।

भगाई :: (सं. स्त्री.) भागने की क्रिया या भाव, भगदड़।

भगाई :: (कहा.) भगत तौ भौत बैकुंठ सकरो - जब किसी जगह लोगों के बैठने के लिए स्थान की कमी हो तब।

भगाबो :: (सं. क्रि.) डरा धमकाकर भागने को विवश करना, दूर करना, हटाना।

भगाभगी :: (सं. स्त्री.) भाग दौड़, अतिशीघ्र, स्थान छोड़कर जाने की तैयारी, योगिक शब्द।

भंगार :: (सं. स्त्री.) कूड़ा-करकट, मैल।

भँगिया :: (सं. स्त्री.) भंग, लोक गीत।

भंगी :: (सं. पु.) कूड़ा-करकट की सफाई करने वाली एक अछूत जाति का व्यक्ति, भँगेडी।

भंगी :: (वि.) भाँग पीने का आदी, बहुत भाँग पीने वाला सफाई, कामगार, मेहतर।

भँगेड़ी :: (वि.) भंग के नशे का आदी।

भगेलुआ :: (वि.) भागने वाले।

भगैला :: (वि.) भागा हुआ, रण भूमि से भागने वाला, डरपोक।

भगैला :: (कहा.) भगे भूत को लंगोटी भौत - जिससे कुछ भी मिलने की आशा न हो उससे थोड़ा भी मिल जाये तो बहुत समझो।

भगैलू :: (वि.) भागा हुआ, कायर।

भगोड़ा :: (सं. पु.) भाग जाने वाला पुरूष।

भगोड़ा :: (सं. स्त्री.) भगोड़ी, एक पति या प्रेमी।

भगोंना :: (सं. पु.) चौड़ा मुँह वाला एक प्रकार का धातु का पात्र बड़ा तबेला, चौड़े मुँह का नीचे से ऊपर तक लगभग एक सी चौड़ाई का बरतन।

भगोंनियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटी तबेली।

भगोंप :: (सं. पु.) भागने को तैयार।

भगौटा :: (सं. पु.) लाठी।

भगौती :: (सं. स्त्री.) भगवती दुर्गा, लक्ष्मी, देवी।

भगौना :: (सं. पु.) बर्तन, बड़ा तबेला।

भग्गू :: (वि.) भगोड़ा, डरपोक, भागा हुआ।

भच्चक :: (वि.) भोजन करने वाला, खादक, खा जाने वाला।

भच्चबो :: (स. क्रि.) खाना, भक्षण करना।

भच्छन :: (सं. पु.) भक्षण, बुरी तरह खाने की क्रिया, (संज्ञार्थक क्रिया)।

भजन :: (सं. पु.) देवताओं की स्तुति के गीत, देव स्मरण, जप।

भजनपूजन :: (सं. पु.) पूजा, उपासना।

भजनयाँ :: (सं. पु.) टोलीबद्ध होकर भजन गाने वाले।

भजनान्दी :: (वि.) भक्त, ईश्वर आराधना में लीन रहने वाला।

भजनियाँ :: (सं. पु.) दे. भजनयाँ।

भँजनी :: (सं. स्त्री.) तार की बटाई करने का उपकरण।

भँजबो :: (अ. क्रि.) भँजाया जाना, भाँजा जाना, बटा जाना, रूपये आदि का चिल्लर होना।

भजबौ :: (क्रि.) ईश्व र का स्मरण करना, जप करना, पूजा पाठ से ईश्वर आराधना करना, प्रहार करना।

भजयाउर :: (सं. पु.) भाजी की दही मिली तरकारी।

भँजाई :: (सं. स्त्री.) भाँजने की क्रिया, भाँजने की उजरत, नोट आदि भुनाने के लिए दी जाने वाली रकम।

भँजाबौ :: (क्रि.) किसी कही बात को पूरा करना, भँजने का काम करवाना, बदला लेना, बड़े सिक्के को देकर सममूल्य के छोटे सिक्के लेना, स्वेच्छिक सेवा का अवसर पड़ने पर लाभ ले लेना, (लाक्षणार्थ)।

भँजाव :: (सं. पु.) बड़े सिक्के के बदले प्राप्त सममूल्य के छोटे सिक्के।

भजिया :: (सं. पु.) भाजी और बेसन के पकौड़े।

भँजूरा-भँजूरी :: (सं. पु.) एक प्रकार की घास।

भजेड़बौ :: (क्रि.) पूरे बल के साथ प्रहार करना।

भँजोरा :: (सं. पु.) भाँजने वाला, बैल या पड़ा।

भज्जा :: (सं. पु.) भाई।

भट :: (सं. पु.) योद्धा, सैनिक, मल्ल।

भटअँदरा :: (वि.) जिसको अच्छी तरह दिखता न हो।

भटकटइया-भटकटाई :: (सं. स्त्री.) कंटकारी, एक पौधा जिसके पत्तों पर भी काँटे होते हैं तथा नीले फूल और पीले गोल फल होते हैं, यह दवा के काम आती है।

भटकना :: (सं. स्त्री.) व्यर्थ चलने-फिरने की क्रिया, निष्फल भागदौड़।

भटकबौ :: (क्रि.) व्यर्थ चलना-फिरना, चलने-फिरने का परिश्रम करना, विपथ होना, भूले-भटके शब्द युग्म में प्रयुक्त।

भटकवा :: (सं. स्त्री.) दे. भटकना।

भटकाबौ :: (स. क्रि.) गलत रास्ता बताना, बहकाना।

भटकुवाय :: (सं. पु.) दौड़ धूप।

भटकैया :: (सं. पु.) भटकने वाला, भटकाने वाला।

भटतीतुर :: (सं. पु.) एक पक्षी।

भटंधरा :: (वि.) जिसे कम दिखता है।

भटभेरे :: (क्रि. वि.) धक्का, ठोकर, उद्देश्य हीन भटकना।

भटभेरो :: अचानक, मुलाकात।

भटयारखानों :: (सं. पु.) ऐसी स्थिति जहाँ खान-पान में पवित्र-अपवित्र, जात-पाँत, जूठ-मीठ की कोई मर्यादा न हो।

भटयारौ :: (सं. पु.) पुराने जमाने में साधारण लोगों के ठहरने की सराँय की देखभाल करने वाला (ऐसी सराय प्रायः रियासतों में होती थी)।

भटरा :: (सं. पु.) भाट, (अनादरवाची प्रयोग)।

भटा :: (सं. पु.) बैंगन।

भटा :: (कहा.) खाव भटन से न खाव भटन से - खाने पीने का एक मात्र तथा अपेक्षापूर्ण साधन होना।

भटिया :: (सं. स्त्री.) आधा जमीन में खोदकर तथा आधा जमीन के ऊपर बनाया जाने वाला चूल्हा।

भटी :: (सं. स्त्री.) बाटियाँ आदि सेंकने के लिए कण्डियों के ढेर को जलाकर बनाया जाने वाला साधन।

भटुइया :: (सं. स्त्री.) पानी गर्म करने या मठ्ठा रखने के काम आने वाला छोटा घड़ा।

भटू :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के संबोधन के लिए एक आदर सूचक शब्द, सखी, सहेली।

भटोई :: (सं. स्त्री.) शाक-भजी का खेत।

भट्ट :: (सं. पु.) भाट (आदरवाची प्रयोग)।

भँड़ऊ :: (वि.) चोर, गाय, दूध चढ़ा लेने वाली गाय, भैस।

भड़क :: (सं. स्त्री.) ऐसी गर्मी जिससे घबराहट हो।

भड़कबौ :: (क्रि.) एकाएक क्रोध में आना, आग का तेजी से प्रज्जवलित हो उठना, बन्द किवाड़ों को भड़भड़ाना।

भड़काबो :: (स. क्रि.) आग का तेज करना, बढ़ावा देना, बहकाना।

भड़कैला :: (सं. पु.) भड़कने वाला बैल।

भड़फोर :: (सं. स्त्री.) छोटे बड़े उन मिट्टी के बरतनों का समूह जिनमें अनाज आदि का भण्डारण किया जाता है।

भड़फोरू :: (सं. स्त्री.) भंडा फोर करने वाली स्त्री।

भड़बूँजा :: (सं. पु.) एक हिन्दू जाति जो दाना भूनने और भाड़ झोंकने का काम करती है, भड़भूजा।

भड़भड़ाबौ :: (क्रि.) भड़-भड़ की आवाज करना, घबराना, आन्तरिक दुख का रह-रह कर स्फुट शब्दों में प्रकट होना, दुख से घबराना।

भड़भड़िया :: (वि.) जो क्रोध को दबा न सके और थोड़ी सी ही उत्तेजना में बकझक करने या बड़बड़ाने लगे।

भड़भड़िया :: (कहा.) भड़भड़िया अच्छो, पेट पापी बुरओ - जिसके पेट में कोई भी बात न रहे वह अच्छा, परंतु मन में कपट रखनेवाला बुरा।

भँड़या :: (सं. पु.) चोर, आँख बचाकर चुरा लेने वाला, इसका विशेषण रूप में प्रयोग होता है।

भँड़याई :: (सं. स्त्री.) चोरी।

भड़रिया :: (सं. स्त्री.) एक जाति।

भड़सरौ :: (वि.) लम्बे समय तक अनुपयोगी रखे रहने के कारण ऊपर से ठीक-ठाक दिखनें पर भी कमजोर हो जाने वाला कपड़ा, कपड़ा, कागज आदि।

भड़सार :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जहाँ अन्न को संग्रह किया जाता है, वस्तु संग्रह करने का कार्य।

भँडसार :: (सं. स्त्री.) खत्ती, अनाज भरने का स्थान।

भँडा :: (सं. पु.) चोर, बर्तन, संपत्ति।

भँड़ार :: (सं. पु.) बर्तन व सामान रखने का घर, पाकशाला, खजाना।

भड़ारी :: (सं. पु.) भण्डारी, महन्ती वाले बड़े मंदिरों में एक पद।

भंडारी :: (सं. पु.) भंडार का अध्यक्ष, रसोइया, खजांची।

भड़ारो :: (सं. पु.) भंडारा।

भंडारो :: (सं. पु.) साधुओं का भोज, बहुत लोगों का भोजन।

भड़ास :: (सं. स्त्री.) दिल से भरी हुई बातें, गुबार, एक उत्तेजना जो अन्दर न समाकर शब्दों में फूट पड़े।

भडुआ :: (सं. पु.) वेश्याओं के दलाल, वेश्याओं की सन्तान, गाने वाली वेश्याओं के साथ वाद्ययंत्र बजाने वाले।

भडूला :: (सं. पु.) बेड़ौल, भद्दा बना हुआ मकान।

भड़े :: (सं. स्त्री.) बेले, लताएँ (लुधाँती में प्रयोग)।

भँड़ौआ :: (सं. पु.) हास्य रस की भद्दी कविता, भाँड़ो के गाने का गीता।

भण्डरिया :: (सं. स्त्री.) जीने के नीचे या दीवार में बनायी जाने वाली छोटी अलमारी, छोटी अलमारी।

भण्डरी :: (वि.) खूब खाने वाला।

भण्डार :: (सं. पु.) किसी प्रयोजन-विशेष के लिए इकट्ठी की गयी सामग्री को रखने का स्थान, तालाब का वह स्थान जहाँ पानी भरा व सबसे अधिक हो।

भण्डार, भड्डरी :: ब्राह्मणों की एक (नीची) जाति जो भविष्य बतलाने का कार्य करती है, इस जाति का व्यक्ति।

भण्डारौ :: (सं. पु.) साधुओं द्वारा दिया जाने वाला भोज।

भतउ :: (सं. स्त्री.) बाँस की हत्थेदार टोकनी जो कड़ाही से भात निकालने के काम आती है।

भतयान :: (सं. पु.) स्त्री जननांग।

भतयान :: (कहा.) सुकयार बीबी भतयान कौ बोझ।

भतार :: (सं. पु.) पति, भर्ता (प्रायः व्यंग्य)।

भतीज :: (वि.) भतीजे का सम्बन्ध व्यक्त करने वाला उपसर्गीय विशेषण।

भतीज :: (प्र.) भतीज बहू, भतीज दमाद।

भतीजौ :: (सं. पु.) भाई या साले या साडू भाई का पुत्र, भतीजी स्त्री लिंग।

भतुआ :: (सं. पु.) जिसे अधिक भात या भात ही भात खाने की आदत हो, ऐसे लोग जो बारात आदि में भोजन को असली लक्ष्य बनाकर जाते हैं, व्यंग्य अर्थ।

भतेउर :: (सं. स्त्री.) विवाह में मामा के यहाँ से आये हुए चावलों को पकाकर मण्डप के दिन ज्योंनार के पूर्व मामा के द्वारा पूजा कर अर्पण करने की रस्म।

भतैतिया :: (वि.) भाँजी के विवाह में चीकट ले जाने वाला भाई, स्त्री भतैतिन।

भत्ता :: (सं. पु.) किसी कार्य विशेष के लिए दिया जाने वाला विशेष पारिश्रमिक, बच्चों की भाषा में भात।

भत्तार :: (सं. पु.) दे. भतार।

भत्यान :: (सं. पु.) पेट, उदर।

भदइँयाँ :: (वि.) भादों में होने वाली (फसल), भैंस आदि पशुओं को लगने वाला रोग, भादों में सम्पन्न होने वाला कार्य।

भँदई :: (सं. पु.) भादों में होने वाली।

भदभदाबो :: (सं. क्रि.) जल प्रपात से भदभद ध्वनि निकलना, किसी चीज से भदभद शब्द उत्पन्न होना।

भदर :: (वि.) ऐसी फसल जो पक तो गयी हो किन्तु दाने गीले हों।

भदरंग :: (वि.) मटमैला, जिसका रंग उड़ गया हो।

भदाउर :: (सं. स्त्री.) म.प्र. के भिण्ड, मुरैना जिले का क्षेत्र जहाँ भदौरिया क्षत्री अधिक रहते हैं।

भदाकरौ :: (वि.) बेडौल, शक्तिहीन, किन्तु मोटे शरीर वाला।

भदावरी :: (सं. स्त्री.) बन्देली की एक उपबोली जो भिण्ड मुरैना में बोली जाती है।

भदुआ :: (सं. पु.) कच्चा बाँस।

भदूँना :: (सं. पु.) मिट्टी या रेत का ढ़ेर, पैरों के पंजो पर गीली रेत थोप-थोप कर बनाया जाने वाला घरेंदा।

भदूँनो :: (सं. पु.) मिट्टी या कूड़ा का ढेर।

भदेंनू :: (वि.) भादों में पकने वाली, धान, तिली की फसलें।

भदेसल-भदेसरो :: (वि.) भद्दा, कुरूप।

भदैलू :: (सं. पु.) दे. भदइया।

भदोरिया :: (वि.) भदाउर में रहने वाले क्षत्रियों का एक उपवर्ग।

भदोंह :: (सं. पु.) भादों मास में होने वाला।

भदौरी :: (सं. स्त्री.) दे. भदावरी।

भद्द :: (सं. स्त्री.) पोल खुलने के कारण होने वाली हास्यास्पद स्थिति एवं अपमान।

भद्दरा :: (सं. पु.) पक्ष विशेष की द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी तिथियाँ।

भद्दा :: (सं. पु.) पकाने या चूना जलाने या लकड़ी जलाकर कोयला बनाने का साधन।

भद्दी :: (सं. स्त्री.) झगड़ा करने वाली स्त्री।

भद्रन :: (सं. स्त्री.) भद्रा नक्षत्र-शुभ कार्य के लिए वर्जित योग, प्र भद्रन के चले उतै पोंचे, काम काये खों होने तो।

भद्रा :: (सं. पु.) एक नक्षत्र।

भनक :: (सं. स्त्री.) आभास, हलकी आवाज जो अनुमान के लिए आधार बन सके।

भनभनाट :: (सं. स्त्री.) धीमी आवाज, गुंजार।

भनभनाबौ :: (क्रि.) मक्खियों का भिन-भिन कर उड़ना, क्रोध से व्याकुल होना।

भनेंज :: (सं. पु.) पुरूष की बहिन का पुत्र।

भन्ना :: (सं. पु.) बड़े सिक्के के बदले प्राप्त होने वाले छोटे सिक्के, माल को बेचने का हिसाब तथा मुद्रा भुगतान।

भन्नाटौ :: (सं. पु.) कानों में होने वाली सनसनाहट, किसी चोट का अनुवर्ती आभास, कीड़े आदि के डंक लगने के बाद की पीड़ा।

भन्नाबौ :: (क्रि.) कीड़े आदि के डंक मारने के बाद देर तक होने वाली पीड़ा का आभास, रूठ कर चुप हो जाना तथा मुँह बिगाड़ लेना।

भपका :: (सं. पु.) शराब या अन्य आसव बनाने का देशी यन्त्र, लालटेन में खराबी के कारण रह-रह कर उठने वाली तेज लौ, ऊपरी दिखावा या नकली टीमटाम।

भपकी :: (सं. स्त्री.) भयभीत करने के लिए दिखावटी क्रोध, झूठी चेतावनी।

भपाड़ा :: (सं. पु.) बे सिर-पैर की गप।

भबकबौ :: (क्रि.) फूट-फूट कर रोने की इच्छा को दबाने पर भी उसका बार-बार प्रकट हो उठना, रह-रह कर तेज लौ छोड़ते हुए जलना।

भबका :: (सं. पु.) अर्क खींचने का यन्त्र।

भबरयाबौ :: (क्रि.) हलकी सूजन का आभास होना।

भबाजू :: (सं. स्त्री.) घर की जेठी बड़ी महिला जिसका आदेश चलता हो, यौगिक शब्द।

भबूका :: (सं. पु.) तेज जलता हुआ लाल अंगारा जो अपनी तेजी के कारण कुछ सफेदी लिए हो, इसका प्रयोग इस अर्थ में कम पाया जाता है। इसे केवल अधिक गोरे रंग तथा अच्छे स्वास्थ्य के कारण लाल पड़ रहे बच्चों के लिए उपमा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

भबूत :: (सं. स्त्री.) विभूति, हवन कुण्ड की पवित्र राख।

भबूत रमाबो :: (क्रि. वि.) वैराग्य धारण करना, साधु हो जाना।

भबूदर :: (सं. स्त्री.) छोटे-छोटे अंगारे मिली हुई गर्म राख।

भबूदरा :: (सं. पु.) दे. भबूदर इसका प्रयोग भी गोरे के विशेषण के रूप में किया जाता ह।

भबूदरा :: दे. भबूका भी।

भब्बड़ :: (सं. स्त्री.) कुव्यवस्था, किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए अव्यवस्थित तथा अनुशासनहीन भीड़ के क्रिया कलाप।

भब्बा-भब्बी :: (सं. स्त्री.) माँ, भाभी।

भमकाबौ :: (क्रि.) पानी आदि तरल पदार्थ को एकदम से गिरा देना।

भमबो :: (क्रि.) दधि-मंधन, दही का मथा जाना।

भँमर :: (सं. पु.) भ्रमर, भौंरा, जलावर्त, उदाहरण-भँमरकली।

भँमर :: (सं. स्त्री.) कील में जड़ी हुई वह कड़ी जो सब ओर घूम सके, भँमर भीक।

भँमर :: (सं. स्त्री.) घूम फिरकर माँगी जाने वाली भीख, मधुकरी, भँमर में परबो-चक्कर बखेड़ों में पड़ना।

भमानी :: (सं. स्त्री.) दुर्गा, पार्वती।

भम्बो :: (सं. स्त्री.) चालाक, औरत।

भँय :: (क्रि. वि.) होकर, (अव्य.)।

भँय :: (प्र.) मँई भयँ चले आइयो।

भया :: (सं. स्त्री.) ननद।

भया :: (सं. पु.) भाई।

भयाउनो :: (वि.) डरावना।

भयाने :: (वि.) सबेरे, प्रातःकाल।

भर :: (उप.) भरा हुआ, पूरा का अर्थ द्योतक उपसर्ग।

भरइया :: (सं. पु.) खाट बीनने वाला।

भरका :: (सं. पु.) काली मिट्टी वाली जमीन में हो जाने वाला गड्ढा।

भरजोर :: (वि.) शक्ति।

भरत :: (सं. पु.) दशरथ नन्दन श्री राम के मझले भाई।

भरतल :: (वि.) बारूद भरकर चलायी जाने वाली बन्दूक।

भरता :: (सं. पु.) बैंगन आलू को पीसकर बनायी जाने वाली तरकारी।

भरतार :: (सं. पु.) पति।

भरतिया :: टूट-फूटे बर्तन रखने वाला।

भरती :: (सं. स्त्री.) प्रवेश कराने या सम्मिलित कराने की क्रिया, किसी माल का वजन बढ़ाने के लिए किसी समरूप पदार्थ की मिलावट करने की क्रिया।

भरदर :: (वि.) पूरा, सम्पूर्ण, भरपूर।

भरदुफरे :: (सं. पु.) मई-जून के महीने की तेज धूप।

भरन :: (सं. पु.) पेट भरने की या संभरण करने की क्रिया, भरन-पोषण शब्द युग्म में प्रयुक्त।

भरबौ :: (क्रि.) कर्ज की रकम चुकाना, पात्र की पूर्ति करना, पात्र में कोई वस्तु डालकर उसकी रिक्तता समाप्त करना, पूर्ति करना।

भरभराट :: (सं. स्त्री.) भरभराने की अवस्था, क्रिया या भाव घबड़ाना।

भरभराँत :: मकर संक्रान्ति के बाद का दिन, इस दिन न चक्की चलती है न ही मट्ठा भाँया जाता ह।

भरभराबौ :: (क्रि.) भर-भर की आवाज करना, या होना, भर-भर की आवाज के साथ दीवार आदि का गिरना।

भरभराबौ :: दे. भड़भड़ाबौ।

भरभूँजा :: (सं. पु.) भाड़ पर अनाज भूँजने का काम करने वाली एक जाति, भूर्जा, ये लोग कहीं-कहीं आतिशबाजी बनाने का काम भ करते है।

भरम :: (सं. पु.) भ्रम, गलत धारणा।

भरम :: (कहा.) भरम गओ तौ सब इज्जत - आबरू चली जाती है।

भरमबो :: (अ. क्रि.) फिरना, भटकना, बहकना।

भरमाबौं :: (क्रि.) भ्रमित करना, गलत आश्र्वासन देकर किसी को कुछ करने से रोकना, रूप आकर्षण से ऐसा आसक्त करना कि व्यक्ति अपना कर्त्तव्य भूल जाये।

भरमार :: (सं. स्त्री.) बहुतायत, अनियन्त्रित भीड़ बारूद भरकर चलायी जाने वाली बन्दूक, विशेषण।

भरमोंसरा :: (वि.) पर्याप्त से, अधिक मात्रा में।

भरवाँ :: (वि.) मसाला भरकर बनाये जाने वाले, (करेला, बैंगन, मुर्गा)।

भरवाई :: (सं. स्त्री.) भरवाने की क्रिया, भरवाने की उजरत।

भरवाबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु की आवश्यकता से थोड़ी अधिक प्राप्ति से घमण्डयुक्त और उपेक्षापूर्ण प्रदर्शन करना।

भराई :: (सं. स्त्री.) भरने की क्रिया, भरने की उजरत।

भराभर :: (सं. स्त्री.) भीड़भाड़ पूर्ण, वातावण में शीघ्रता, पूर्ण व्यवस्था, आने-जाने लोगों की भीड़।

भराव :: (सं. पु.) भरने की क्रिया, भरने की स्थिति, किसी रोग विशेषकर चेचक की चरम स्थिति।

भरेल भरेला :: (वि.) जहाँ पानी भरता हो ऐसे खेत।

भरैंतू :: (सं. पु.) किराये का।

भरैया :: (सं. पु.) भरने वाला, भरण करने वाला।

भरैरबो :: (वि.) गुस्से में रहना।

भरो :: (वि.) भरा हुआ, पूर्ण, आबाद, सम्पन्न।

भरो :: (कहा.) भरी गाड़ी में सूप भारू नी होत - भरी गाड़ी में सूप भारी नहीं होता। बहुत खर्चे में थोड़ा खर्चा आसानी से समा जाता है।

भरो :: (कहा.) भरे समुन्दर में घोंघा प्यासो भरोसे की भैंस पड़ा ब्यानी - मानों कोई विलक्षण बात हुई।

भरोसौ :: (सं. पु.) आशा, विश्वास, आश्रय, सहारा।

भरौ :: (वि.) भरा हुआ, पूरित, पुष्ट।

भरौनिया :: (सं. पु.) एक प्रकार की टोकनी जिसमें द्विरागमन के समय पुत्री को पकवान भरकर दिये जाते है।

भर्त :: (सं. पु.) बैंगन भूँज कर बनाया हुआ भुर्ता।

भर्ता :: (सं. पु.) दे. भर्त, भरतार, भरण-पोषण करने वाला, पति।

भर्ती :: (सं. स्त्री.) दे. भरती।

भर्राबौ :: (क्रि.) भर-भर की आवाज करना, हवा का तेज चलना जिससे भर्राहट की आवाज हो, खेत में खड़ी फसल का उस सीमा तक सूख जाना जिसमें काटते समय दाने झरने लगें, खड़ी घास का पककर सूखने लगना।

भर्रौ :: (सं. पु.) अव्यवस्था, ऐसी स्थिति जिसमें किसी नियम का पालन न हो।

भल :: (सं. पु.) बल, आधार।

भल :: (प्र.) हम से नँइँ टिकौं, अपने भल बैठों।

भल :: (क्रि. वि.) मौं के भल गिरो।

भलकाबौ भलभलाबौ :: (क्रि.) किसी तरल पदार्थ को इस तरह बिराना कि भल-भल की आवाज हो (ध्वन्यात्मक शब्द)।

भलमुंसयात :: (सं. स्त्री.) भलमनसाहत, भले मनुष्यों जैसा स्वभाव, भले लोगों की तरह इज्जत, भले लोगों का समूह या समाज।

भलमुंसयाती :: (वि.) भले मनुष्यों जैसा।

भलाँ-भलें :: (क्रि. वि. अ.) खूब अच्छा, वाह, खबरदार।

भलाई :: (सं. स्त्री.) कुशलचाहे, भले ही उपकार, दूसरों के हित का कार्य।

भलिया :: (सं. स्त्री.) छोटा भाला, भाला बनाने के लिए लाठी के सिरे पर लगाया जाने वाला लोहे का नुकीला फल।

भले :: (क्रि. वि. अव्यव) चाहे तो।

भले :: (प्र.) बौ भलेइ चलो जाय, में तौ न जेंव।

भले :: (कहा.) भले कौ जमानो नइयाँ - भले का जमाना नहीं।

भलौ :: (वि.) अच्छा, धनी, सत् उपकारी।

भलौ :: (कहा.) भली कतन का जात - भली बात कहने में क्या खर्च होता है।

भलौं बुरओ :: (वि.) अच्छा और बुरा।

भल्ला :: (वि.) खत्री गोत्र।

भव :: (क्रि.) हुआ।

भँवरिया :: (सं. स्त्री.) बीर बहूटी, लुधाँती में प्रयुक्त।

भवा :: (सं. स्त्री.) ननद, सास।

भस :: (सं. स्त्री.) बहुत बारीक धूल जो हवा के साथ प्रायः अद्दश्य रूप में उड़ती रहती है।

भसकबौ :: (क्रि.) सूखी और चूर्णित वस्तु पँजीरी आदि को बड़े-बड़े ग्रास लेकर खाना।

भसक्का :: (सं. पु.) सूखी चूर्णित वस्तु का मुँह में पूरा भरने की मात्रा में, मुँह में भर लेने की क्रिया।

भसम :: (सं. स्त्री.) भस्म, राख, पूर्ण रूप से जल चुकने के बाद का अवशेष।

भसूँड़ा :: (सं. पु.) नदी की बालू, बजरी रेत।

भस्मासुर :: (सं. पु.) एक राक्षस जिसको शंकर जी ने वरदान दिया था कि वह जिस पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जायेगा।

भाउ :: (सं. पु.) मन में उत्पन्न होने वाला भाव या विचार, प्रीति, प्रेम।

भाउत :: (क्रि.) पसन्द आता है।

भाउत :: (कहा.) मन में भावै, मूँड़ हलावै।

भाँउर :: (सं. स्त्री.) शादी की एक शास्त्रोक्त क्रिया, भाँवर, फेरे, पति-पत्नी को दाम्पत्य सूत्र में बाँधने वाला शास्त्रीय विधान।

भाएँ :: (क्रि. वि.) समझ में, बुद्धि के अनुसार।

भाकरो :: (वि.) स्वाद।

भाका :: (सं. स्त्री.) बोली।

भाखबौ :: (क्रि.) निर्णायक रूप से बोलना, घोषणा करना, मौन तोड़कर बोलना।

भाखा :: (सं. स्त्री.) भाषा।

भाग :: (सं. पु.) भाग्य, अंश, हिस्सा, निश्चित अंशों में बँटवारा करने की गणितीय क्रिया।

भाँग :: (वि.) भंग का पौधा, इसकी पत्तियाँ, इन पत्तियों द्वारा बना हुआ पेय पदार्थ।

भाँग खाबो :: (सं. स्त्री.) नशे में होने की सी बातें करना।

भाँग छानबो :: (क्रि.) भाँग पीना।

भागवती :: (वि.) भागवत कहने वाला पण्डित, भागवती एक स्त्री का नाम।

भागीरती :: (सं. स्त्री.) गंगा।

भागीरथ :: (सं. पु.) एक पौराणिक राजा जिनकी तपस्या से गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ, एक पुरुष का नाम।

भागोर :: (सं. पु.) भार्गव, महर्षि भृगु से उत्पन्न ब्राह्मण।

भागौरी :: (सं. स्त्री.) भार्गव ब्राह्मणों का समाज।

भाग्वान :: (वि.) दे. भगवान।

भाँज :: (सं. स्त्री.) रस्सी की ऐंठन, बड़े सिक्के के बदले लिए हुए सममुल्य के छोटे सिक्के।

भाँजबौ :: (क्रि.) रस्सी को ऐंठना या बटना।

भाजी :: (सं. स्त्री.) पत्तों से बनायी जाने वाली शाक।

भाँजी :: (सं. स्त्री.) किसी कार्य की सिद्धि में जानबूझ कर पैदा की जानी वाली बाधा।

भाँजो :: (वि.) भानजा।

भाट :: (सं. पु.) विरूदावली गाने वाली एक जाति।

भाटिया :: (सं. पु.) क्षत्रियों, खत्रियों आदि का एक वर्ग या जाति।

भाटौ :: (सं. पु.) ऐसी कृषि योग्य भूमि जिस पर कृषि नहीं की जा रही हो।

भाँड़ :: (सं. पु.) मसखरा, निर्लज्ज व्यक्ति, महफिलों में हँसी मजाक की नकलें करने का पेशा करने वाला, वेश्या सन्तानों की एक मुस्लिम जाति जो गाने बजाने तथा वेश्याओं की दलाली का काम करती है।

भाँड़ :: (कहा.) भाँड़न के घोड़े, खायें भौत चलें थोड़े - बड़े आदमियों के नौकरों के लिए कहते हैं।

भाँड़ :: (कहा.) भाँड़न के संग खेती करी, गा बजा के अपनी करी - लफंगों के साथ काम करना मूर्खता है।

भाँड़ :: (कहा.) भाँड़ी भई है तौ दो छावें और सई - बदनामी ही जब हुई है तो व्यर्थ खर्च क्यों किया जाय।

भाँड़ी :: (सं. स्त्री.) बदनामी।

भाँड़े :: (सं. पु.) बर्तन।

भाड़ो :: (सं. पु.) किराया, वस्तु इस्तेमाल या गाड़ी आदि का, भाड़ा।

भाँड़ौ :: (सं. पु.) भाण्ड, बड़े बर्तन, भण्डारण करने या भोजन बनाने के बरतन।

भात :: (सं. पु.) पके हुए चावल।

भात देबो :: (सं. पु.) विवाह की रस्म जिसमें भाँजी को मामा के द्वारा वस्त्रादि वस्तुएँ दी जाती है।

भात माँगवो :: (सं. पु.) शादी ब्याह में माँ अपने भाई को निमंत्रण देने जाती है, इस भात माँगना कहते हैं।

भातरौ :: (वि.) जो चबाने में कच्च-कच्च न होकर खसखसा लगे, स्वाद अच्छा हो।

भातिया :: (सं. पु.) चावल परोसने का पात्र।

भाँते :: (अव्य.) भरोसे (यौगिक शब्द.) इस शब्द का प्रयोग केवल इसी यौगिक रूप में पाया जाता है।

भादों :: (सं. पु.) भाद्रपद, विक्रम संवत् का छठवाँ महीना।

भान :: (सं. पु.) सूर्य, प्रभा, किरण।

भाँन :: (सं. पु.) भानु, सूर्य, आभास।

भानपटा :: (सं. स्त्री.) रहँट में लगने वाली एक लकड़ी।

भानेज :: (सं. पु.) भानेज, बहिन का पुत्र।

भाँनेज :: (सं. पु.) भग्निज, पुरुष की बहिन का पुत्र, भानेंजन-बहुवचन।

भाँनेज :: दे. भनेज।

भाँनेजन :: (सं. स्त्री.) भग्निजा, पुरुष की बहिन की पुत्री।

भाँनेजन :: (सं. पु.) बहुवचन जैसा।

भाप :: (सं. स्त्री.) वाष्प, गर्म करने पर गैस करने पर गैर के रूप में परिवर्तित द्रव।

भाँपबो :: (स. क्रि.) रंग ढंग से जान लेना, ताड़ना।

भाँपू :: (वि.) भाँप जाने वाला, ताड़ जाने वाला।

भाबई :: (सं. स्त्री.) विपत्ति, ऐसी कठिनाई जिसे भोगने की अनिवार्यता हो।

भाँबरे :: (वि.) शादी के समय सात फेरे लेना।

भाबी :: (सं. स्त्री.) बड़े भाई की पत्नी, भावज।

भाबौ :: (अ. क्रि.) रचना, अच्छा लगना, फबना, पसन्द आना, विशेष रूप से खाने में पसन्द आना।

भाँबौ :: (क्रि.) मंथन करना, बिलोना, मट्ठा भाँना, घुमाना, चकिया भाँना, रहट भाँना।

भामना :: (सं. स्त्री.) चिंतन, ध्यान, ख्याल, कल्पना।

भाँय :: (सं. स्त्री.) अनुभूति, भय की अनुभूति, आशंका।

भाँय-भाँय :: (सं. स्त्री.) भय पैदा करने वाला सन्नाटा।

भाययो :: (सं. पु.) भाई बंदी।

भार :: (सं. पु.) अनाज भूँजने का भाड़, वजन, उत्तरदायित्व।

भारइ :: (सं. स्त्री.) भारंगी, एक प्रकार का झींगुर, झिल्ली।

भारक :: (सं. स्त्री.) मोरपंख।

भारंगी :: (सं. स्त्री.) दे. भारद।

भारगो :: (वि.) भृगु के वंश में उत्पन्न, भृगु सम्बन्धी।

भारत :: (सं. पु.) भारत देश, लम्बी चलने वाली लड़ाई।

भारी :: (क्रि. वि.) बहुत।

भारी :: (कहा.) भारी ब्याज मूल को खाये - बहुत ब्याज के लोभ में मूल भी मारा जाता है।

भारी-भरकम :: (वि.) बड़े डील डौल का।

भारू :: (वि.) असहाय।

भारौ :: (वि.) भोला, जो दुनियाबी बातें नहीं जानता।

भारौ :: (सं. पु.) भाड़ा, किराया।

भार्गव :: (सं. पु.) दे. भागौर।

भाला :: (सं. पु.) कानों में पहिनने की बड़े आकार की बड़े आकार की बाली, बल्लम, लाठी जिसके सिरे पर लोहे का लम्बा नुकीला फल लगा हो।

भालू :: (सं. पु.) रीछ, भालू।

भाव :: (सं. पु.) वस्तु का विक्रय मूल्य, दैवी-आवेश, मन का विचार।

भाव खेलबो :: (सं. पु.) देवता का सिर आना।

भावगत :: (सं. स्त्री.) कृष्ण के चरित्र एवं भक्ति सम्बन्धी संस्कृत महाकाव्य।

भाँवना :: (सं. स्त्री.) भावना।

भावनो :: (स. क्रि.) रई लगाना, विलोना।

भाँवनों :: (सं. पु.) दही बिलोते समय मथानी को सीधा खड़ा रखने के लिए सहारे को गड़ी हुई लकड़ी, मथानी एक रस्सी से इससे संयुक्त रहती है ताकि वह घुमाने वाले की ओर न खिंचे।

भाँवर :: (सं. स्त्री.) दे. भुँर, परिक्रमा, विवाह के समय की जाने वाला अग्नि की परिक्रमा।

भाँस :: (सं. स्त्री.) वाणी, आवाज, स्वर, शब्द, कंठ-स्वर।

भाँस बैठवो :: (क्रि.) गला बैठना।

भिआउनी :: (वि.) भयानक, भयजनक, भयंकर, डरावनी।

भिंआँनों :: (सं. स्त्री.) भिक्षा माँगने वाली।

भिकनारी :: (सं. स्त्री.) भिक्षा माँगने वाली।

भिकारी :: (सं. पु.) भिखारी, भीख माँगने वाला।

भिंग :: (सं. स्त्री.) भ्रम, ग्लानि का कारण।

भिच्छया :: (सं. स्त्री.) भिक्षा, भीख।

भिजाबो :: (सं. पु.) भेजवाना, पठाना।

भिंजाबो-भिंजैबौ :: (क्रि.) भिगोना।

भिजैबौ :: (क्रि.) पानी से तर करना।

भिड़ंत :: (सं. स्त्री.) मुठभेड़, लड़ने वाला, इधर की उधर लगाने वाला।

भिंड़पाल :: (सं. पु.) एक हथियार।

भिड़बौ :: (क्रि.) आपस में गुथना, जुटना, छपना, लिपटना।

भिड़ा :: (सं. पु.) भेड़िया।

भिड़ाऊ :: (वि.) लड़ाई करने वाला, लड़ाने वाला, इधर की उधर लगाने वाला।

भिंडी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का पौधा और उसकी फली जिसकी तरकारी बनती है।

भिण्डू :: (वि.) ऐसी स्त्री जिसमें बुद्धि व्यवस्था तथा सुरूचि का अभाव हो।

भिण्डू :: (मुहा.) भिण्डू की कड़ी।

भितरिया :: (वि.) आने जाने वाला अंतरंग भीतर का।

भितल्लो :: (सं. पु.) कपड़े की भीतर का पल्ला, अस्तर।

भिदबौ :: (क्रि.) त्वचा या फल आदि पर किसी वस्तु का ऐसा प्रभाव पड़ना जो उसके अन्दर तक असर करे।

भिन-भिन :: (सं. स्त्री.) मक्खी आदि के परों की आवाज।

भिनकबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु पर मक्खियों का भिनभिनाना।

भिनकाँयदौ :: (वि.) गन्दा जिस पर गन्दगी के कारण मक्खियों बैठ रही हों या जिसे मक्खियों ने गन्दा कर दिया हो।

भिनभिना :: (सं. पु.) एक कीड़ा जो उड़ते समय अधिक भिनभिनाहट करता है।।

भिनभिनाट :: (सं. स्त्री.) भिनभिनाने की क्रिया या भाव भिन-भिन शब्द।

भिनभिनाबो :: (क्रि.) मक्खियों का किसी वस्तु के आस पास उड़ना।

भिन्न :: (सं. स्त्री.) अंकों के विभिन्न भागों की गणितीय क्रिया।

भिन्नाबो :: (क्रि.) रूठना।

भिभिरयानों :: (वि.) अर्द्ध विक्षिप्त।

भिंम :: (सं. पु.) कुन्ती पुत्र भीम, भीमसेन।

भिमयाबौ :: (क्रि.) जोर-जोर से रोना या रोने का बहाना करना।

भिम्मगजा :: (सं. पु.) भीम की गदा, बामोंरा मण्डी, जिला सागर मध्य प्रदेश के निकट बेतवा नदी के किनारे गड़ी एक लाट, जिसे लोग भीम की गदा कहते है।

भियाने :: (वि.) दूसरे दिन।

भियाँने :: (क्रि. वि.) दे. भिआँने।

भिंयाँबलार :: (सं. पु.) कार्तिक स्नान के बाद पूजा करने के लिए जलाशय के किनारे बनायी जाने वाली चोंतरियों के पास ही लेटी हुई राक्षस नरकासुर की मूर्ति।

भिंयायदौ :: (वि.) जिसको देखने से भय उत्पन्न हो, भयंकर, भयानक।

भियावनों :: (क्रि.) डरावना।

भिंयाँसबौ :: (क्रि.) आभास होना, पूर्वाभास होना।

भिरबौ :: (क्रि.) दे. भिड़बौ।

भिरम :: (सं. पु.) भ्रम।

भिरम :: दे. भरम।

भिरमाबौ :: दे. भरमाबौ।

भिरी :: (सं. स्त्री.) कटी हुई कँटीली झाड़ियों, जारों का गट्ठा।

भिरैल :: (सं. पु.) पेड़ों या अन्य स्थान से भिड़ने वाला बैल।

भिरौ :: (सं. पु.) झाड़ियों या बांसों का सघन समूह।

भिलगी :: (सं. स्त्री.) कुमुद के बीज।

भिलनी :: (सं. स्त्री.) श्री राम चरित मानस की प्रसिद्ध नारी पात्र भक्ति शबरी।

भिलमा :: (सं. पु.) एक बहुत तीव्र प्रभाव वाला फल, धोबी इसके रस से कपड़ों पर उनके मालिक के संकेत चिन्ह अंकित करते हैं यह औषधियों के काम भी आता है।

भिल्लनी :: (सं. स्त्री.) फूहड़ स्त्री।

भिल्सयाबौ :: (क्रि.) दिग्भ्रमित होना, भूल जाना, किंकर्त्तव्यविमूढ़ होना।

भिष्टा :: (सं. पु.) गू, मानव द्वारा उत्सर्जित मल, मैला।

भिसकबौ :: (क्रि.) किसी संरचना का थोड़े से बल से बिखर जाना।

भिसनयाऊ :: (सं. पु.) बेसन की रोटी, बेसन के साथ अन्य अनाज के आटे मिली रोटी।

भिस्ती :: (सं. पु.) चमड़े की मसक से पानी भरने वाला।

भीक :: (सं. स्त्री.) भीख।

भीक :: (कहा.) भीक छोड़ी, कुत्तन से बचे - एक हानि हुई, पर दूसरा लाभ तो हुआ।

भीकें :: (सं. स्त्री.) बालक के यज्ञोपवीत संस्कार के समय होने वाली एक रस्म जिसमें बालक ब्रह्मचारी रूप धारण कर उपस्थित महिलाओं से भिक्षा ग्रहण करता है, बहुवचन में प्रयुक्त।

भींगबो :: (अ. क्रि.) भींगना, आर्द्र होना।

भींजबो :: (अ. क्रि.) भींगना, स्नान करना, किसी बात पर मनन करने के पश्चात् उससे सम्बन्धित धारणा बनाना।

भींट :: (सं. स्त्री.) दीवार, भींत।

भीत :: (सं. स्त्री.) दीवार, भीत्ति।

भीत :: (कहा.) भींत भीतरी, कुआ बायरो - घरकी दीवार भीतर की ओर दबी हुई और कुएँ का घेरा बाहर की ओर फैला हुआ होना चाहिए, इससे वे मजबूत रहते हैं।

भींत :: (सं. स्त्री.) दीवाल।

भीतर :: (क्रि. वि.) अन्दर, उदाहरण-भीतर को बुलौआ मात्र स्त्रियों का बुलावा।

भीतरी :: (वि.) आन्तरिक।

भीतरौ :: (क्रि. वि.) अन्दर की ओर झुका हुआ।

भीम :: (सं. पु.) महाभारत का प्रसिद्ध पात्र युधिष्ठिर का मझला भाई जो बहुत बलशाली था, मोटा और शक्तिशाली, बड़ी डीलडौल का, विशेषण. रूप में प्रयुक्त।

भीमसेनी एकादशी :: (सं. स्त्री.) निर्जला एकादसी, जेठ माह की शुक्ल पक्ष का ग्यारहवाँ दिन या तिथि।

भीर :: (सं. स्त्री.) भीड़, अव्यवस्थित जनसमूह।

भील :: (सं. पु.) एक बनवासी जाति।

भीलनी :: (सं. स्त्री.) भील की स्त्री, शबरी।

भीसन :: (वि.) भीषण, भंयकर।

भीसम :: (सं. पु.) महाभारत प्रसिद्ध पात्र भीष्म पितामह।

भुअन :: (सं. पु.) भुवन, लोक, भवन।

भुआँ :: (सं. पु.) बहुत कोमल और बारीक रेशे।

भुआँ :: (मुहा.) लुआँ-भुआँ से लंय रत, हर बात में मीन मेख निकालना।

भुइँ :: (सं. स्त्री.) भूमि, जमीन।

भुइँयाँ :: (सं. पु.) भुमियाँ, भूमि पर बहुत पुराने समय से बसा हुआ, एक स्थान देवता जिसे उस स्थान का स्वामी माना जाता है।

भुंइया :: (सं. स्त्री.) भुई-पृथ्वी, जमीन।

भुंइहरा :: (सं. पु.) हखाना।

भुकड़ा :: (सं. पु.) तोप में बत्ती भरने का गज।

भुकभुकौ :: (सं. पु.) प्रातः काल की वह स्थिति जब थोड़ा थोड़ा अँधेरा रहता है।

भुकयाबौ :: (क्रि.) खूब भूखा हो जाना।

भुकर मैल :: (वि.) दिल का मैल।

भुकरबौ :: (क्रि.) दे. भुकरबौ।

भुकराँयदौ :: (वि.) कुद्ध होकर चुप्पी साधे तथा मुँह बिगड़े हुये।

भुकवा :: (सं. स्त्री.) चिल्लाने की क्रिया, अनचाही बातचीत।

भुंकाने :: (वि.) भूखे।

भुंकाबो :: (क्रि.) भूख लगना।

भुकाभुकौ :: (सं. पु.) दे. भुकभुकौ।

भुंकास :: (सं. स्त्री.) खाने की इच्छा।

भुकुन्ड :: (सं. स्त्री.) फँफूदी।

भुक्क :: (वि.) दे. भुकराँयदौ।

भुक्कड़ :: (वि.) इतना गरीब जिसके पास भोजन की भी व्यवस्था न हो।

भुक्त :: (वि.) बेहोश, नशे में चूर।

भुगतना :: (सं. स्त्री.) अनचाहा श्रम या स्थिति भोगने की क्रिया।

भुगतबौ :: (क्रि.) भोगना, सहन करना, कष्ट या हानि सहना।

भुगतान :: (सं. पु.) अदायगी, देय को चुकाने की क्रिया।

भुगरिया :: (सं. स्त्री.) दे. भबूदर।

भुगरिया :: (मुहा.) भुगरिया मूतबौ, अत्यन्त उत्पात मचाना, दूसरों के लिए कष्टदायक कार्य समझ बूझ कर करने की क्रिया।

भुगाबौ :: (स. क्रि.) भोग कराना, भोगवाना, भुगताना।

भुच्च :: (क्रि. वि.) शब्दार्थ काले रंग की सघना बताने के लिए प्रयुक्त जड़बुद्धि।

भुच्चड़ :: (सं. पु.) मूर्ख, अपढ़।

भुज :: (सं. पु.) बाहु, बाँह, भुजा, भुजबन्द, बाजूबंद।

भुजंग :: (क्रि. वि.) साँप की तरह काला।

भुजंग :: (सं. पु.) बड़ा भारी सर्प, काल सर्प, साँप, उरग।

भुंजबौ :: (क्रि.) जलना, भूनाजाना, आग पर सूखा सिकना, ईर्ष्या-अपमान, या आत्म क्लेश से जलना लाक्षणिक भावात्मक अर्थ।

भुजरियाँ :: (सं. स्त्री.) दे. कजलियाँ।

भुंजरिया :: (सं. स्त्री.) भुजरी, भुजरिया, जरई।

भुजा :: (सं. स्त्री.) बाँह, हाथ अधिकतर दैवी संदर्भ में प्रयुक्त।

भुजाई :: (सं. स्त्री.) भाभी, भाई की पत्नि।

भुंजाई :: (सं. स्त्री.) भूनने की क्रिया, भूनने का पारिश्रमिक।

भुंजाद :: (वि.) भुँजने की गंध।

भुजाली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की छुरी।

भुंजिया :: (वि.) धान को उबाल कर निकाल गया चावल।

भुजी :: (सं. स्त्री.) कद्दू या लौकी का शाक।

भुंजी :: (सं. स्त्री.) कद्दू, लौकी आदि का शाक।

भुंजेनों :: (सं. पु.) भुनने के लिए या भुना हुआ खड़ा अनाज।

भुजौना :: (सं. पु.) भूना हुआ अन्न।

भुज्जी :: (सं. स्त्री.) भाभी, भाभी सम्बोधन।

भुंटा :: (सं. पु.) भुट्टा, ज्वार, बाजरा आदि की बाल।

भुट्टोर परबो :: पेड़ों में अधिक भुट्टे निकलना।

भुण्टा :: (सं. पु.) ज्वार का भुट्टा।

भुण्टिया :: (सं. स्त्री.) छोटा भुट्टा, मक्का का भुट्टा।

भुतनियाँ :: (वि.) जहाँ भूतों का वास हो।

भुतनी :: (सं. स्त्री.) प्रेतनी, अशुभ वेषधारी स्त्री विकराल रूप वाली स्त्री।

भुतया :: (वि.) भुतहा।

भुतया :: दे. भुतनया।

भुतरयाबौ :: (क्रि.) बहाना बनाना।

भुतलाबो :: (क्रि.) डराना।

भुतैला :: (वि.) जहाँ भूतों का निवास हो घर।

भुनभुनाबौ :: (क्रि.) कुढ़ना, भुनभुन की आवाज करना।

भुनवाई :: (सं. स्त्री.) भुनाने के बदले में दी जाने वाली रकम भूनने की उजरत, भाँज।

भुनसारें :: (अव्य.) प्रातः काल सबेरा।

भुनसारौ :: (सं. पु.) प्रातः काल, सबेरा, भिनसार।

भुनाई :: (सं. स्त्री.) भुनाने के बदले में दी जाने वाली रकम भूनने मजदूरी, भूनने का काम।

भुनाबो :: (सं. स्त्री.) नोट को रुपयों या किसी बड़े सिक्के में बदलना, भुनने का काम कराना।

भुभरिया :: (क्रि. वि.) भुभरिया मूतबो, ज्यादा परेशान करना, उत्पात मचाना।

भुमबो :: (क्रि. वि.) चक्कर खाना।

भुमानी :: (सं. स्त्री.) भगवान शंकर की उर्द्धागिनी दुर्गा।

भुमियां :: (सं. पु.) दे. भुइयाँ, भूमि स्वामी।

भुम्मका :: (सं. स्त्री.) धरती माता, माता, मातृभाव सहित धरती।

भुरकन :: (सं. पु.) चूरन।

भुरकबौ :: (क्रि.) सूखी और बारीक पीसी हुई वस्तु को छिड़कना।

भुरकस :: (वि.) दबे पाँव।

भुरकाव :: (सं. पु.) भुरकने की क्रिया।

भुरभुरी :: (वि.) मुलायम।

भुरभुरौ :: (वि.) जो मसलने से चूर्ण हो जाय जिसके कण आपस में मजबूती से न जुड़े हो।

भुरिया :: (वि.) भूरे रंग की, मिट्टी के रंग की खाकी।

भुरू :: (सं. पु.) भूरे रंग का।

भुरूप :: (सं. पु.) घोड़े, रंग आदि का ब्रुश।

भुर्रा :: (सं. पु.) भुरभुरी वस्तु का चूर्ण।

भुलइया :: (सं. स्त्री.) ऐसा स्थान जहाँ भटक जाना संभव हो, भटकने की क्रिया, भुलावा भूल भुलइया में प्रयुक्त।

भुलभुल :: (सं. स्त्री.) बहुत बारीक धूल या मिट्टी जो नंगे पैर चलने पर उँगलियों के बीच से जुड़े।

भुलभुलाबौ :: (क्रि.) गर्म भुलभल से पैरों का जलना।

भुलभुलाबौ :: दे. भुलभुल।

भुलाबौ :: (सं. पु.) घमण्ड में भूले रहने की क्रिया, किसी विशेष बात का घमण्ड।

भुवा :: (सं. स्त्री.) सेमर आदि की रूई।

भुस :: (सं. पु.) जौ-गेंहूँ आदि अनाज का भूसा।

भुस :: (कहा.) भुस के मोल मलीदा - अंधेर की बात।

भुस :: (कहा.) भुस पै कौ लीपनो, चीकनो ना चाँदनो - निरर्थक कार्य।

भुसभुरौ :: (वि.) जो मसलने पर भूसे की तरह के कणों में बिखर जाये।

भुसा :: (सं. पु.) दे. भुस।

भुंसारे :: (वि.) प्रातःकाल।

भुंसारो :: (सं. पु.) सबेरा, प्रातः।

भुसी :: (सं. स्त्री.) दलहनों-धान या कोदों के छिलके।

भुसुंडी :: (सं. पु.) भुशुंड़ी, काक भुशुंडी।

भुसौरा :: (सं. पु.) भूसा रखने का घर, भूसा रखने का स्थान।

भूँइयन :: (संबो.) बड़े लोगों के बच्चों को सादर पुकारने का सम्बोधन, भइया का बहुवचन।

भूक :: (सं. स्त्री.) भूख।

भूक :: (कहा.) भूँक में चना चिरौंजी - भूख में चा भी चिरोंची जैसे स्वादिष्ट लगते हैं।

भूँक :: (सं. स्त्री.) भूख, बुभुक्षा, भोजन की इच्छा।

भूकबो :: (अ. क्रि.) कुत्तों का भूँ-भूँ या भौं-भौं शब्द करना, भूकबो, भौकना, झूठ-झूठ या व्यर्थ में किसी के विषय में बकते फिरना।

भूँकबो :: (अ. क्रि.) कुत्ते का भौं-भौं करना, व्यर्थ बकना।

भूको :: (वि.) जिसे भूख लगी हो, क्षुधित, उत्कृष्ट इच्छुक, दरिद्र उदाहरण-भूको नंगो-अन्न वस्त्र के कष्ट से पीड़ित दीन दरिद्र, उदाहरण-भूको प्यासो-जिसे भूख तथा प्यास लगी है।

भूँको :: (वि.) भूखा।

भूको रैब :: (क्रि.) उपवास करना, व्रत करना।

भूखन :: (सं. पु.) भूषण, बृज भूषण का संक्षिप्त संस्करण।

भूखा :: (सं. पु.) अनावृष्टि, एक खासी, लड़कों का एकरोग, भुखंडी।

भूगर :: (सं. स्त्री.) दे. भुगरिया।

भूगरा :: (सं. पु.) अंगार, दे. भुगरिया।

भूँजबौ :: (क्रि.) भूनना, भोगना, कष्ट झेलना।

भूँजा :: (सं. पु.) कढ़ी के साथ पका कर बनायी जाने वाली एक प्रकार की खिचड़ी।

भूड़ :: (सं. स्त्री.) धूल।

भूत :: (सं. पु.) मरे हुए व्यक्ति की भटकती हुई आत्मा, प्रेत।

भूत :: (कहा.) भूतन के घरै बराई, (और) खसियन के घरै लुगाई - भूतों के घर ऊख और हिजड़ों के घर लुगाई, असंभव बात।

भूत प्रेत :: (सं. पु.) प्रेतों के रहने का स्थान बेबाड़ा पड़ा हुआ मकान या स्थान जो भंयकर लगे, उदाहरण-भूत उतरबौ-प्रचण्ड क्रोध का शान्त होना।

भूतागती :: (सं. स्त्री.) ऐसी परिस्थिति जिसमें मस्तिस्क में सद्विचार न उठें तथा आसपास का वातावरण संदिग्ध, अनचाहा और भयावना लगे।

भूम :: (सं. स्त्री.) भूमि, जमीन।

भूँम :: (सं. स्त्री.) धरती, जमीन, स्थान।

भूँमिया :: (सं. पु.) भूमि का अधिकारी, जमींदार।

भूरसी :: (सं. स्त्री.) भूयसी, धार्मिक अनुष्ठान के बाद दिया जाने वाला दान।

भूरा :: (सं. पु.) भूरे-सफेद रंग का वह कद्दू जिससे पेठा बनता है, पेठा।

भूरौ :: (वि.) जिसका रंग स्पष्ट न हो बदरंग।

भूल :: (सं. स्त्री.) स्मरण न रहने के कारण हुई गलती भूल-चूक शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

भूल :: (कहा.) भूल गओ राग - रंग, भूल गई छकड़ी तीन चीज याद रई, नोंन तेल लकड़ी-गृहस्थी के चक्कर में पड़ना।

भूल :: (कहा.) भूल-चूक लेनी देनी - हिसाब चुकता करते समय कहते हैं।

भूल के नाम न लैबो :: (क्रि.) कभी याद न करना।

भूलकें :: (वि.) भूल से, गलती से।

भूलथाप :: (सं. पु.) चकमा।

भूलन :: (सं. स्त्री.) भूल हिसाब-किताब में होने वाली भूल।

भूलन :: (प्र.) हिसाब में चार रूपइया की झूलन पड़ गयी।

भूलबौ :: (क्रि.) भूलना, विस्मरण होना, मार्ग से भटकाना, चेतना का स्थिर न रहना।

भूलभुलइया :: (सं. स्त्री.) मनोरंजन के लिए जिसमें प्रवेश करने पर निकलने का रास्ता आसानी से न मिले।

भूलो भटके :: (सर्व.) कभी-कभी।

भूसंधा :: (सं. पु.) जमीन की जांच करने वाले।

भूसन :: (सं. पु.) आभूषण।

भूसा :: (सं. स्त्री.) श्रृंगार सजधज, सजावट।

भेक-मेख :: (सं. पु.) वेष वस्त्रों और आभूषणों की सहायता से बनाया हुआ रूप।

भेंगा :: (वि.) तिरछी, आँख वाला।

भेजबो :: (क्रि. स.) अन्य स्थान के लिए रवाना करना प्रेषण करना, प्रस्थान कराना।

भेजौ :: (सं. पु.) खोपड़ी, मस्तिष्क।

भेंट :: (सं. स्त्री.) मिलन, आलिंगन, उपहार।

भेंटक्वार :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों का स्त्रियों के लिए भेजा जाने वाला अभिवादन संदेश।

भेंटबौ :: (क्रि.) गले मिलना, सीने से लगाना।

भेंटोंनी :: (सं. स्त्री.) कुछ राजाओं ने ठगों और पिण्डारियों से ऐसा अनुबन्ध कर रखा था कि वे उनके राज्य में लूट पाट भले ही न करते हैं तो भी भेंट के रूप में कुछ धन देना पड़ेगा, यही धनराशि भेंटोंनी कहलाती है।

भेड़ :: (सं. स्त्री.) बकरी की जाति का एक चौपाया जो दूध, रोयें और मांस के ले भी पाला जाता है, सीधा बेबकूफ आदमी।

भेंड़ा :: (वि.) जिसकी आँखों की पुतलियों का झुकाव नाक की ओर है। भेंड़ा।

भेंड़ा :: (सं. पु.) भिण्डी की देशी किस्म जिस बैंल के सींग मुड़कर आँखों की तरफ आ गये हों।

भेद :: (सं. पु.) रहस्य, गोपनीय प्रसंग।

भेदन :: (क्रि.) छद्म करना, गुप्त लक्ष्य पर पहुँचना हृदय पर आघात करना।

भेदिया :: (सं. पु.) गुप्तचर भेद जानने वाला रहस्य को जानने का प्रयास करने वाला जासूस, गुप्तचर।

भेरो :: (सं. पु.) अचानक मुलाकात, संयोग।

भेरौं :: (सं. पु.) नगाड़ा, मुकाबला झटके से शक्ति लगाने के कारण आने वाली आन्तरिक चोट।

भेला :: (सं. पु.) नारियल की गरी का गोला।

भेली :: (सं. स्त्री.) गुड़ की छोटी पारी, गुड़ का बड़ा सा टुकड़ा।

भेलें :: (क्रि. वि.) सलाह में, नियंत्रण में, गुट में।

भेलौ :: (सं. पु.) मित्र मण्डली, समान विचार के लोगों का समूह।

भेंस :: (सं. स्त्री.) एक दुधारू पशु।

भेंसायदौ :: (वि.) गोबर की गन्ध वाला।

भेंसिया :: (सं. स्त्री.) दे. भेंस।

भै :: (सं. पु.) भय, डर, भय, शब्द युग्म-ड़र भै।

भैन-भैना :: (सं. स्त्री.) बहिन, भैन कुं.।

भैंबौ :: (क्रि.) चक्कर खाना।

भैम :: (सं. पु.) भ्रमण करने की अवस्था या भाव संदेह, संशय।

भैमी :: (वि.) संदेह करने वाला, संशय करने वाला।

भैया :: (सं. पु.) भाई, भ्राता, बराबर वाले छोटे का सम्बोधन।

भैया-चारो :: (सं. पु.) भाई चारा।

भैया-दोज :: (सं. स्त्री.) कार्तिक शुक्ल द्वितीय।

भैया-दोज :: (कहा.) भैय्या होय अबोलना तोऊ अपनी बाँह - भाई से बोलचाल न भी हो तो भी वह अपना भाई ही है।

भैरण्टा :: (वि.) जो इस प्रकार खाने के लिए सदा लालायित रहता हो या खाता हो जैसे कि उसे कभी खाने को न मिलता हो।

भैराट :: (सं. पु.) भुकमरों जैसी प्रवृत्ति।

भैरानों :: (वि.) भुखमरा, अच्छे स्वादों के लिए लालायित रहने वाला।

भैराबौ :: (क्रि.) भूखों मरना, भोजन के ले लालायित रहना।

भैंरो :: (सं. पु.) ढ़ोरो का एक रोग।

भैरौं :: (सं. पु.) भैरव शंकर जी के उग्र-अंश रूप देवता।

भैंस :: (सं. स्त्री.) भैंस, दूध देने वाला जानवर।

भैंस :: (कहा.) भैंस कुठारी, बैल छतारो - भैंस तो वह अच्छी होती है जिसका पीछे का हिस्सा चौड़ा हो और बैल वह जिसकी छाती चौड़ी हो।

भैंस :: (कहा.) भैंस को कोदों नई पचत - ओछे आदमी के पेट में कोई बात नहीं रहती।

भैंसा :: (सं. पु.) भैस का नर, लाक्षणिक अर्थ में हट्टा-कट्टा व्यक्ति।

भैंसा :: (कहा.) भैंसा भैंसन में कै कसाई के खूँटन में - बुरी संगत में पड़े आदमी के लिए कहते हैं।

भैंसा भारो :: (सं. पु.) एक प्रकार का बहुत बड़ा भाड़।

भैसावर :: (सं. पु.) एक जलपक्षी, रंग काला चोंच चौड़ी।

भैंसिया :: (सं. पु.) भैंस, महिषी, विशेषण. भैंस से सम्बन्धित।

भैंसोरी :: (सं. स्त्री.) भैंस की पकी हुई खाल।

भों :: (सं. स्त्री.) भूमि, धरती, जमीन।

भों-भों :: (सं. पु.) भूँकने की आवाज, कुत्तों के भौंकने का शब्द।

भोंअरों :: (सं. पु.) भूगृह।

भोई :: (सं. पु.) कहार।

भोंकना :: (सं. स्त्री.) भोकने वाला।

भोंकना :: (सं. स्त्री.) दे. भुकवा।

भोंकबौ :: (क्रि.) कुत्ते का बोना, व्यर्थ में चिल्लाना लाक्षणिक अर्थ।

भोग :: (सं. पु.) देवताओं को अर्पित किया हुआ भोज्य पदार्थ, गन्दी गाली।

भोगड़ा :: (सं. पु.) गन्दी तथा मोटी गाली, अश्लील शब्द।

भोंगड़ा :: (सं. पु.) बड़ा भारी छेद, गुफाद्वार।

भोगन :: (वि.) हल्के लाल रंग की गाय।

भोगना :: (सं. स्त्री.) बरबस किया जाने वाला कार्य, अनिच्छा पूर्वक, अनिवार्य रूप से किया जाने वाला कार्य।

भोगबौ :: (क्रि.) तनमन से सुख-दुख का अनुभव करना, अनिच्छापूर्वक कार्य करना।

भोंगा :: (सं. पु.) ऐसा नया पेड़ जिसका लम्बा पतला और शाखाहीन तना हों।

भोगी :: (वि.) भोग करने वाला, विषयासक्त भोग विलास में रत, सुखी।

भोंचक्कौ :: (वि.) किंकर्तव्यविमूढ़।

भोंचाल :: (सं. पु.) भूकम्प, भूडोल यौगिक शब्द।

भोज :: (सं. पु.) बड़ी संख्या में लोगों को दी जाने वाली दावत।

भोज :: (कहा.) भोजन के पिछारूँ और स्नान के अगारूँ - भोजन के बाद और स्नान के पहिले ठंड मालूम होती है, भोजनन-भोजन का बहुवचन आदर वाची विशिष्ट प्रयोग।

भोज :: (प्र.) महराज को भोजनन खों चलबौ होय।

भोंजाल :: (सं. पु.) भवजाल, मायाजाल, सांसारिक माया का बंधन यौगिक शब्द।

भोंड़-भोडर :: (सं. पु.) अभ्रक, बुक्का, भोडर, अबरक का चुरा।

भोंड़रौ :: (वि.) धूसरित, धूसर रंग का, धुंधलका।

भोंड़ौ-भौंड़ा :: (सं. पु.) जमी हुई ओस, पाला।

भोंडौल :: (सं. पु.) दे. भौंचाल यौ.श.।

भोत :: (वि.) बहुत ज्यादा।

भोंदा-भोंदू :: (वि.) शारीरिक आयु से कम मानसिक आयु वाला मूर्ख, बोदा।

भोंदा-भोंदू :: (कहा.) भोंदू भाव न जानें, पेट भरे में काम - मूर्ख को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता, उसे तो पेट भरने से काम।

भोंदू :: (वि.) बहुत ही सीधा साधा और बेवकूफ।

भोंन :: (सं. स्त्री.) रहँट में जुते हुए बैलों के घूमने की गोल जगह।

भोंनपटा :: (सं. पु.) भोंन को कुँए की तरफ चौड़ा करने के लिए कुँए के किनारे डाली जाने वाली पाटन।

भोंनपटा :: दे. भोंन।

भोंपू :: (सं. पु.) चोंगा, ध्वनि विस्तारक यंत्र, सायरन।

भोंय :: (सं. स्त्री. भ्रू.) भवें, आँख के ऊपर के बालों की पंक्ति।

भोंयरौ :: (सं. पु.) तलघर, तहखाना, भवन की भूमिगत मंजिल।

भोर :: (सं. स्त्री.) प्रातः काल, सबेरा।

भोंर :: (सं. स्त्री.) नदी के बहाव में पनी घूमने के स्थान पर पानी के तल पर पड़ने वाला गड्ढा, भँवर।

भोंरमछों :: (सं. स्त्री.) शहद की बड़ी मक्खी, इसकी शहद कुछ पतली होती है।

भोंरमार :: (सं. स्त्री.) दे. किरकिरयाऊ, एक झाड़ी।

भोंरयाबौ :: (क्रि.) भ्रमित करना, बहकाना किसी के विचारों को डाँवाडोल करना।

भोंरसली :: (सं. स्त्री.) मोलश्री।

भोंरसली :: दे. मोंरछली।

भोंरा :: (सं. पु.) भँवरा, भ्रंग, लट्टू, बैलगाड़ी के पहियों की धुरी, रहँट की ऊर्ध्वाधर घूमने वाली धुरी।

भोंरी :: (सं. स्त्री.) रहँट की क्षैतिज घूमने वाली धुरी जो भोंरे से कुँए के बीच पानेंट भैंसा तक जाती है और इसी पर धाकरयों की मार चलाने वाली ढाल चक्र लगी रहती है।

भोरें :: (सं. स्त्री.) एक ही स्थान पर शरीर के घूमने से आने वाले चक्कर बहुवचन में प्रयुक्त।

भोला-भोलानाथ :: (सं. पु.) आशुतोष, महादेव, भगवान, शंकर।

भोलो :: (वि.) सीधा, सरल, मूर्ख।

भोसड़ :: (वि.) सिलविल्ला, मोटी बुद्धि वाला, अधपगला (अपशब्द)।

भोसड़ा :: (सं. पु.) जननांग (विकृत अपरूप अपशब्द)।

भोसड़ी :: (सं. स्त्री.) जननांग (अपशब्द)।

भौं. :: (सं. स्त्री.) भुकुटी, भौंह, भौं चड़ाबौ-रोष प्रकट करना।

भौंकबो :: (क्रि. अ.) कुत्तों का भूँ-भूँ या भौं-भौं शब्द करना, भूकबो, भौकना, झूठ-झूठ या व्यर्थ में किसी के विषय में बकते फिरना।

भौंकबो :: (कहा.) भौंके ना दर्रायों, मसकऊँ काट खायँ - (चुपचाप) कपट का बर्ताव करने वाले के लिए।

भौकल :: (सं. पु.) अमर्यादित बातें।

भौजाई :: (सं. स्त्री.) भौजी-बड़े भाई की पत्नी, मातृजाया।

भौजाई :: दे. भुजाई, भुज्जी।

भौजाई :: (कहा.) भौजी की थैलिया, देवरा सराफी करे - घर के ही किसी आदमी का माल अपने काबू में आ गया हो तो खर्च करते क्या लगता है।

भौंड़ौ :: (सं. पु.) दे. भोंड़ा।

भौत :: (वि.) बहुत क्रियाविशेषण. रूप में भी प्रयुक्त, नव प्रवर्तन में आगत शब्द।

भौतकउ :: (वि.) बहुत ही बलवाची विशिष्ट पद रूप।

भौंतुआ :: (सं. पु.) नदी में तैरने वाला एक काला कीड़ा।

भौंतेरक :: (वि.) बहुत ज्यादा।

भौंतेरा :: (क्रि. वि.) चक्कर काटना।

भौतेरे :: (वि.) बहुत से (विशिष्ट पद रूप)।

भौन :: (सं. पु.) मकान, घर।

भौंन :: (सं. स्त्री.) वह जमीन जहाँ रँहट के बैल घूमते है।

भौंना :: (सं. पु.) बर्तन।

भौंपरो :: (क्रि. वि.) चक्कर काटना।

भौंर :: (सं. पु.) महों, पानी की भँवर, काला।

भौंरऊ :: (सं. स्त्री.) ऐसी गाय या भैंस जिसके माथे पर भौंरी है।

भौंरकली :: (सं. स्त्री.) भँवरकली।

भौरंटबौ :: (क्रि.) बैलगाड़ी के पहियों की धुरी को धुरार (ऊपरी भाग) से बाँधना।

भौरया :: (वि.) शरारती।

भौंरसिली :: दे. भौरसिरी।

भौंरा :: (सं. पु.) भ्रमर, मधुप, एक सिलौना, हिंडोले में ऊपर लगी हुई लकड़ी, एक प्रकार का रोग।

भौंरिया :: (सं. स्त्री.) डण्डीदार लट्टू सिर की चाँद के ऊपर घुमावदार उगे हुए बाल।

भौंसागर :: (सं. पु.) भवसागर।

भ्याजू :: (सं. पु.) भैयाजी (यादवों में प्रचलित सामासिक शब्द)।

भ्याँने :: (क्रि. वि.) दे. भिआँने।

भ्यारी :: (सं. पु.) बिहारी, श्रीकृष्ण।

भ्याँसबो :: (क्रि.) दे. भियाँसबौ।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के प वर्ग का दूसरा वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान ओष्ठ्य और नासिका हैं।

मइँ :: (अव्य.) वहीं, वहाँ।

मइअर :: (सं. पु.) घी का मैल, एक तीर्थ स्थल मैहर की देवी।

मइआ :: (सं. स्त्री.) माता, देवी माता के विशेष अर्थ में प्रयुक्त।

मइओ :: (सं. स्त्री.) माता, पश्चिमी बुन्देली में प्रयुक्त, पूर्वी बुन्देली में केवल गाली में प्रयुक्त।

मँइदार :: (सं. पु.) मासिक वेतन पर लगा हुआ कृषि मजदूर।

मँइना :: (सं. पु.) महीना, महीने का वेतन।

मइयत :: (सं. स्त्री.) मुसलमानों की शवयात्रा।

मइयर :: (सं. पु.) मक्खन गरम करने से जल पर आया हुआ मट्ठे का अंश।

मइयो :: (सं. स्त्री.) दे. मइओ।

मई :: (सं. स्त्री.) मट्ठा अँग्रेजी वर्ष का पाँचवा महीना, कहीं-कहीं युक्तता के अर्थ में प्रयुक्त प्रत्यय, जैसे एक मइ, एकामेव, भेदहीनता, गुआमई, सर्वत्र गन्दगी।

मईदार :: (सं. पु.) खेत रक्षक, खेत का रखवाला।

मउअर :: (सं. पु.) महुर सपेरों द्वारा बजाया जाने वाला तूमड़ी और बाँस की पोरों से बनाया गया खास बाद्य यंत्र।

मउआ :: (कहा.) मउअन के टपकें धरती नई फटक - किसी अत्यंत तुच्छ आदमी से बड़े काम की आशा व्यर्थ है।

मउआ :: (कहा.) मउआ मेवा बेर कलेवा गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गुड़ाने करो सगाई - महुए का मेवा, बेर का कलेवा और गुलगुच की मिठाई खाना चाहते हो।

मउखौ :: (सं. पु.) महूक पक्षी जो कौए के आकार का और थोड़ा-थोड़ा उसकी से मिलता जुलता होता है किन्तु इसका रंग भूरा लाल होता है, इसका दर्शन शुभ माना जाता है।

मकई :: (सं. स्त्री.) मक्का।

मकमकी :: (वि.) गुस्सा, क्रोध।

मकरजार :: (सं. पु.) मकड़ी का जाला, छलछंद, धोखा।

मकरजार :: (कहा.) मकर चकर की धानी, आदो तेल आदो पानी - धूर्त और कपटी व्यवसायी के लिए प्रयुक्त।

मकरजारौ :: (सं. पु.) मकड़ी का जाल।

मकरन्दो रानी :: (सं. पु.) लड़कियों का एक खेल जिसमें एक लड़की चोटी पकड़ती है चोटी पकड़ी हुई लड़की घूमती है।

मकरा :: (सं. पु.) बड़ी मकड़ी, मकरी-।

मकरा :: (सं. स्त्री.) मकड़ी, एक झाड़ी।

मकरांद :: (सं. स्त्री.) कम खट्टे मट्ठे के साथ नमक की अधिकता का स्वाद।

मका :: (सं. पु.) मक्का।

मकान :: (सं. पु.) पक्का मकान।

मकुइयाँ :: (सं. स्त्री.) टमाटर की जाति के छोटे-छोटै फल।

मकोय :: (सं. स्त्री.) मकुइयाँ का पौधा, इसके पत्तों का रस का लेप सूजन पर लाभकारी होता है।

मकोर :: (सं. स्त्री.) एक कँटीली मजबूत झाड़ी जिसका तना मोटी बेल की तरह दूसरे वृक्ष के सहारे या आपस में उलझ कर बढता है इसका उपयोग लकड़ी के रहंट बनाने में होता है।

मकोरा :: (सं. पु.) मकोर के काले रंग के छोटे-छोटै मीठे फल।

मक्का :: (सं. पु.) मकई।

मक्खी :: (सं. स्त्री.) बन्दूक की नाल के अग्रभाग पर बना लक्ष्य से सीधे मिलाने का साधन, मक्षिका।

मखतूल :: (सं. पु.) काला रेशम, रेशम।

मखन :: (सं. पु.) मक्खन, नवनीत, नेनू बुँ।

मखनिया :: (सं. पु.) मक्खन बनाने वाला।

मखनिया :: (वि.) मक्खन निकाला हुआ दूध दही।

मखमरू :: (सं. स्त्री.) मक्खी मारने वाली (स्त्री)।

मखमली :: (वि.) स्पर्श में कोमल।

मखाकोयलें :: (वि.) उषाकाल, मुँह अँधरे प्रातः (खटोला उपबोली में प्रयुक्त)।

मखाखौरी :: (सं. पु.) प्रातः काल के कुछ पहले का समय।

मग :: (सं. पु.) विचार धारा।

मग :: (प्र.) उनकौ कछू मगई नँदूँ मिलत।

मगजी :: (सं. स्त्री.) रजाई के किनारे या अन्य पोशाकों में शोभा के लिए किनारे-किनारे लगायी जाने वाली गोट।

मँगनारी :: (सं. स्त्री.) माँगने वाली।

मँगनारी :: (सं. पु.) मँगवारो।

मगनारौ :: (सं. पु.) भिखारी, माँगने वाला।

मँगनी :: (वि.) जिसको हर चीज दूसरों से माँग कर काम चलाने की आदत हो।

मगर :: (वि.) मग्र, तल्लीन, आत्मनन्द में बाह्म स्थिति से बेखबर।

मगर :: (सं. पु.) मगर जल में रहने वाला जन्तु जो धरती पर भी आता है।

मगर :: (कहा.) मगरै बुड़कैया सिखाउत - मगर को डुबकी मारना सिखाते हैं। चालाक को चालाकी क्या सिखाना।

मँगर :: (सं. पु.) घड़याल, उदाहरण-मँगर को ताल-एक खेल।

मगरी :: (सं. स्त्री.) मगरे का वह भाग जहाँ से मगरौ दो दिशाओं में बंट जाता है जहाँ अगल-बगल दो सीधे और बीच में एक औंधे खपड़े (कबेलू) क्रम से जमे रहते है।

मगरी :: दे. मकरौ।

मगरैल-मगरौ :: (सं. पु.) खपरैल के ऊपर का वह शीर्ष भाग जहाँ छप्पर दो पलानियों में बँटता है।

मँगरौ :: (सं. पु.) खपरैल का वह ऊँचा भाग जहाँ से पानी बहकर नीचे चला जाता है।

मँगल :: (सं. पु.) सप्ताह का दूसरा दिन, मंगलवार एक ग्रह।

मंगल :: (सं. पु.) मंगलवार, हनुमान जी का विशेष दिन।

मंगल :: (कहा.) मंगलवारी परै दिवारी, मूँड़ धर रोवे बेपारी - लोक विश्वास है कि मंगलवार को दिवाली पड़े तो वह व्यापारियों के लिए शुभ नहीं होती।

मंगलया :: (वि.) जिस व्यक्ति का कुण्डली में जन्म स्थान से चौथे अथवा आठवे स्थान पर मंगल स्थित हो, मंगलयाउ।

मंगलया :: (सं. स्त्री. वि.) मंगली-वह जन्मपत्री जिनमें जन्म के स्थान से चौथे अथवा आठवें स्थान पर मंगल स्थित हो।

मंगली :: (वि.) वह जन्मपत्री जिसमें जन्म के स्थान से चौथे अथवा आठवे स्थान पर मंगल स्थित हो।

मगाँ :: (सं. स्त्री.) मघा (5 में से दसवाँ नक्षत्र)।

मँगूरा :: (सं. पु.) एक पक्षी।

मँगेतरा :: (सं. पु.) वह व्यक्ति जिसकी मँगनी हो चुकी हो, माँगी हुई (वस्तु) उदाहरण-।

मँगेतरा :: (सं. स्त्री.) मँगेतर-माँगी हुई लड़की।

मँगोरा, मँगोरी :: (सं. पु.) मूँग की दाल के पकवान।

मगौनयाँ :: (वि.) केवल इस्तेमाल के लिए माँग कर लाया गया सामान।

मगौरा :: (सं. पु.) मूंग की दाल की मोटी टिकियाँ जो पानी में गलाकर खायी जाती है मूंग की दाल के बड़े पकौड़े।

मगौरी :: (सं. स्त्री.) (पु. मंगौरी) मूंग, उर्द आदि दाल की बनी पकौड़ी।

मघई :: (सं. पु.) एक प्रकार का छोटेपत्ते का पान, वह भूमि जहाँ स्त्रियाँ और बच्चे शौच के लिए जाते है।

मघाँ :: (सं. स्त्री.) मघा एक नक्षत्र।

मघाँ :: दे. मगाँ।

मघाँ :: (कहा.) मघा न बरसे भरे न खेत। माता न परसे भरे न पेट - मघा में पानी बसरे बिना खेत नहीं भरते, और माता के परसे बिना पेट नहीं भरता है।

मचक :: (सं. स्त्री.) दाब, लचक।

मचकबौ :: (क्रि.) ले जाते समय क्रम-बद्ध ढंग से लचकना।

मचकाबौ :: (क्रि.) एक दूसरी वस्तु को मिलाकर बेकार करना, किसी प्रकरण को उलझा कर दूर्बोघ करना, बुरी तरह दुष्क्रमत्व करना, भोजन सामग्री को मिलाकर गन्दा करना, किसी प्रकरण को उलझाकर दुर्बोध कनरा।

मचकुन्द :: (सं. पु.) एक वृक्ष जो वंसत में फूलता है इसके फूलों की पंखुड़ियाँ मोटी होती है, पानी के साथ पीसकर सिरदर्द की दवा बनती है।

मचमचाबौ :: (क्रि.) किसी ढाँचे को पकड़ कर इस तरह हिलाना कि उसकी चूलें हिल जायें।

मचरबौ :: (क्रि.) किसी ढाँचे के कल-पुरजे ढीले हो जाना।

मचलबो :: (क्रि.) बच्चों का किसी वस्तु की जिद करके रोना तथा लोटना।

मचला :: (सं. पु.) लगे पान रखने का बांस की खपच्चियों से बना डिब्बा।

मचलाबो :: (क्रि.) मितली होना, कै करने की इच्छा होना।

मचली :: (सं. स्त्री.) मतली, वमन।

मचवा :: (सं. पु.) खाट या चौकी का पाया।

मचान :: (सं. पु.) खेती की रखवाली या शिकार खेलने के लिए ऊँची लकड़ियाँ गाड़कर उनके ऊपर बनाया गया बैठने का स्थान।

मचाबौ :: (क्रि.) पानी या किस तरल पदार्थ को तह में जमी हुई तलछट को बिलोकर या किसी प्रकार तरल में मिश्रित कर देना, जटिल करना उलझाना।

मचेरा :: (सं. पु.) ऊँचे बने घर में अधबीच में कड़ियाँ फंसाकर सामान रखने के लिए बनाया जाने वाला ढाट।

मचेला :: (सं. पु.) कीचड़।

मचोरबो :: (क्रि.) बिगाड़ना, गड़बड़ी करना।

मचौ :: (वि.) मैला, गन्दगी, उदाहरण-का मचौ है।

मचौंनो :: (सं. पु.) ऐसा प्रकरण जिसको उलझा दिया गया हो।

मच्छ :: (सं. पु.) बड़े आकार की मछली।

मच्छ :: (मुहा.) मगरमच्छ, भयंकर जल जन्तु।

मच्छर :: (सं. पु.) मच्छड़, डाह, द्वेष।

मच्छरदानी :: (सं. स्त्री.) मच्छरों से बचने के लिए लगाया जाने वाला जालीदार कपड़ा।

मच्छी :: (सं. स्त्री.) मछली।

मच्छी :: (मुहा.) माँस मच्छी में प्रयुक्त।

मछइया :: (सं. स्त्री.) मछली, पैर की उँगली का एक आभूषण।

मछयर :: (सं. स्त्री.) मक्खियों का झुण्ड, मक्खियों की बहुतायत।

मछयानों :: (वि.) मक्खियों से परेशान होकर विचलित तथा क्रुद्ध हुआ (पशु)।

मछयाबौ :: (क्रि.) पशुओं का मक्खियों के काटने से विचलित होना।

मछरयाई :: (सं. स्त्री.) मछली बाजार।

मछरयाँद :: (सं. स्त्री.) बर्तनों के अन्दर ठीक से न मँझने के कारण आने वाली काई या मछली जैसी गंध।

मछरा :: (सं. पु.) मच्छर।

मछरिया-मछरी :: (सं. स्त्री.) मछली।

मछरिया-मछरी :: (कहा.) मछरी के जाये, किन तैराये - मछली के बच्चों को तैरना कौन सिखाता है, जिसका जो स्वभाव है वह अपने आप आ जाता है।

मंछित :: (क्रि. वि.) चुपचाप, मन ही मन में सोचा हुआ कार्य।

मछुआ :: (सं. स्त्री.) एक तरह का पतला घास, मछली मारने वाला, मल्लाह, धीवर।

मछों :: (सं. स्त्री.) शहद की मक्खियाँ का समूह, शहद।

मछोदारी :: (सं. स्त्री.) मत्स्योदरी, जालोंन जिले की एक नदी जिसके किनारे महर्षि व्यास का आश्रम है।

मछौं :: (वि.) सस्ता, कम भाव का, मधुमक्खी।

मछौरी :: (सं. स्त्री.) वह घास जिसमें एक खास किस्म की गंध आती है।

मज :: (उप.) बीच का अर्थघोतक उपसर्ग।

मज :: (प्र.) मजधार, मजमेराँ। मजघरा।

मज :: (सं. पु.) बीच का घर, घर के मध्य भाग का कमरा। मजदार-।

मज :: (सं. स्त्री.) मझदार, किसी काम या बात के मध्य की स्थिति।

मंजन :: (सं. पु.) दाँत माँजने की सामग्री, माँजने की क्रिया धातु की देव-मूर्तियों को माँजने की क्रिया।

मँजना :: (सं. पु.) बर्तन माँजने का स्थान।

मंजनी :: (सं. स्त्री.) मंजरी, तुलसी की मंजरी।

मजनूँ :: (सं. पु.) अपने रहन-सहन के प्रति लापरवाह, आशिक मिजाज, आवारा।

मजबूत :: (वि.) सबल, शीघ्र न टूटने-फूटने वाला।

मजबून :: (सं. पु.) लेख का प्रारूप।

मजबूरी :: (सं. स्त्री.) विवशता।

मजबूरी :: (वि.) विवश।

मजबो :: (क्रि.) साफ होना।

मँजबो :: (अ. क्रि.) मंजन से साफ किया जाता (दाँतो को)।

मजमा :: (सं. पु. (अर.)) लोगों के जमा होने की जगह, भीड़ जमाव, विशेष लक्ष्य के प्रति उन्मुख भीड़।

मजमेरा :: (वि.) मझोला, औसत आकार का।

मँजयाबो :: (स. क्रि.) धूम लेना, मध्य से पार करना।

मजयाबौ :: (क्रि.) मार्ग तय करना, चलकर रास्ता तय करना।

मजयाबौ :: (प्र.) अबै तक दो कोस जॉगा मजया लइ होती।

मजरखा :: (सं. पु.) वह असहाय व्यक्ति जो सिर्फ भोजन पर ही नौकरी करता है।

मजरबौ :: (क्रि.) अवयवों का शिथिल होना, अधिक परिश्रम या परेशानियों के कारण शरीर का टूटना।

मजरबौ :: दे. मचचबौ।

मजरा :: (सं. पु.) ग्राम से दूर खेतों पर बने कुछ घरों का समूह, उपग्राम, पाराग्राम।

मजल :: (सं. स्त्री.) मंजिल, लक्ष्य का मार्ग।

मँजलो :: (वि.) मध्यक।

मजलौ :: (वि.) मझला, बीच का बड़े से छोटा और छोटे से बड़ा।

मजा :: (सं. पु.) आनन्द, रूचि, लगाव।

मंजा :: (सं. पु.) दे. माजा, पंतग उठाने की डोरी।

मँजाई :: (सं. स्त्री.) बीच में, बर्तन साफ करने का काम।

मजाक :: (सं. पु.) हास्य विनोद, आनन्द लेने के लिए किया जाने वाला व्यवहर या वार्तालाप।

मजाज :: (सं. पु.) घमण्ड, स्वभाव।

मजार :: (सं. पु.) मुस्लिम संत की समाधि।

मजार :: (सर्व.) बीच।

मजाल :: (सं. स्त्री.) शक्ति, सामर्थ्य।

मजिया :: (सं. पु.) रहट व चारपाई की रस्सी।

मजिया :: (सं. पु.) रहँट में बैलों के जुएँ से भौरा तक बाँधी जाने वाली रस्सी ताकि बैल निर्धारित पथ से बाहर न निकल सकें।

मजिल :: (सं. स्त्री.) मंजिल, पड़ाव।

मजिस्टेट :: (सं. पु.) मजिस्टेट, न्यायधीश (अकर्मक.)।

मजीरा :: (सं. पु.) काँसे की दो ढलवाँ कटोरियों की तरह की वस्तु जिनके बीच में छेद रहता है और दोनों को एक ढीली रस्सी से बाँध कर रखा जाता है तथा एक दूसरें से टकरा कर बजाया जाता है, मंजीरा।

मजूर :: (सं. पु.) मजदूर, श्रमिक, अकुशल श्रमिक।

मंजूरा :: (सं. पु.) एक घास, मुँह में दबाने से घुल जाती है।

मजूरी :: (सं. स्त्री.) मजदूरी, पारिश्रमिक।

मँजूरी :: (सं. स्त्री.) मजदूरी।

मजेदारी :: (वि.) कुशलता, आनन्द।

मंजोलो :: (वि.) मध्य का, बीच का, मझोला, मंजोटी, मझौटा।

मजौटौ :: (सं. पु.) आँगन के पार बने घर के सामने बनी छपड़ी।

मजौटौ :: (मुहा.) चले की खाँइँ मजोटे में कड़े-आराम से भोगी गयी सुविधा के बदले कभी उससे अधिक मूल्य का श्रम करना पड़ेगा।

मज्जाल :: (सं. स्त्री.) हिम्मत हैसियत, समर्थ्य औकात मजाल।

मज्जित :: (सं. स्त्री.) मस्जिद।

मझबू :: (सं. पु.) मजहब, धर्म सम्प्रदाय।

मझरखा :: (सं. पु.) रोटी खाने पर रखा हुआ नौकर।

मझोला :: (वि.) मध्यम आकार का।

मटइया :: (सं. स्त्री.) घोड़ा का एक रंग मिट्टी जैसे रंग का।

मटउ :: (वि.) मिटटी का मिट्टी के रंग का, उदाहरण-मटउ टौरिया-मिट्टी का पहाड़।

मटक :: (सं. स्त्री.) मटकने का भाव, नखरे का भाव, लचक।

मटकबौ :: (अ. क्रि.) चलने में हाथ, आँख, भौं आदि को अदा से हिलाना, इठलाकर चलना, हटना, किसी विशेष अदा के प्रदर्शन के लिए शरीर का संचालित करना, किसी वस्त्र आभूषण को पहिन कर शान का अनुभव करते हुए प्रदर्शन करना।

मटका :: (सं. पु.) चौड़े मुँह की मिट्टी का बड़ा घड़ा, रेशमी वस्त्र का एक प्रकार।

मटकाबो :: (सं. क्रि.) नखरे की अदा से हिलाना, चमकाना।

मटकिया :: (सं. स्त्री.) चौड़े मुँह का मिट्टी का बड़ा बर्तन, मटकी, शादी के बाद संक्राति के अवसर पर वरपक्ष की ओर से कन्यापक्ष के यहाँ शक्कर के खिलौने से भरी कलशी आदि।

मटकुल :: (सं. स्त्री.) एक छोटी चिड़िया जो बैठी रहने पर भी पूंछ को ऊपर नीचे करती रहती है, साज श्रृंगार किये तथा हाव भाव के साथ बात करके सौन्दर्य प्रदर्शन करने की इच्छुक रहने वाली स्त्री, मटक मटक कर चलने वाली स्त्री।

मटकौअल :: (क्रि.) मटक्का मटकने वाला, नाचने वाला।

मटना :: (सं. स्त्री.) चेचक की एक किस्म जिसमें शरीर पर बड़ी-बड़ी फुसियाँ उभर आती है।

मटमैलो :: (वि.) धूसर (रंग) भद्दा, मैला सा लगने वाला रंग।

मटयर :: (सं. स्त्री.) मिट्टी से छापने का काम।

मटयानौ :: (सं. पु.) विवाह की एक रस्म जिसमें गाँव से बाहर जाकर चूल्हा आदि बनाने के लिए मिट्टी लायी जाती है।

मटयाबौ :: (क्रि.) मिट्टी लगाकर साफ करना या माँझना।

मटयायनों :: (सं. पु.) शादी के समय चूल्हे तथा दुरेठी आदि बनाने के लिए मिट्टी लाने की रस्म, जिसमें स्त्रियाँ गाती-बजाती है, खदान पर जाकर भूमि पूजन करके मिट्टी लाती हैं।

मटयार :: (सं. स्त्री.) दाँय के बाद खलिहान साफ करने से निकली मिट्टी जिसमें बहुत सा अनाज मिला रहता है।

मटर :: (सं. स्त्री.) एक दलहनी अनाज।

मटरगस्ती :: (सं. स्त्री.) निरूद्देश्य घूमने की क्रिया, फालतू फिरना।

मटामर :: (सं. पु.) स्लेटी से रंग का बड़े आकार का बगुला, आलसी व्यक्ति असंवेदनशील व्यक्ति (लोक्षणिक अर्थ.)।

मटियामेंट :: (वि.) किसी वस्तु की मिटकर धूलिसाल होने की स्थिति, बुरी तरह बर्बाद। धूल धूसरित होना।

मटुकिया :: (सं. स्त्री.) दे. मटियामेंट, मटकी जैसा।

मटेल्ली :: (सं. स्त्री.) मिट्टी या कागज की लुगदी से बनी रोटियाँ रखने की डलिया बड़े आकार के लिए मटेल्ला शब्द पाया जाता है।

मट्ठौ :: (वि.) धीरे-धीरे चलने वाला (बैल)।

मठ :: (सं. पु.) सन्यासियों के रहने का स्थान।

मठन्ना :: (सं. पु.) बर्तन ठोकने की हथौड़ी, तमेरे।

मठरना :: (सं. स्त्री.) मठार करने की लम्बे मुँह वाली हथौड़ी, तमेरे।

मठरी :: (सं. स्त्री.) मैदा में मोइन डालकर बनाया जाने वाला नमकीन पकवान।

मठा :: (सं. पु.) मठठा, दही।

मठा :: (कहा.) मठा विचारा का बिगरें जब बिगरें तब दूद - किसी बात की हानि तो बड़े आदमियों की ही होती है गरीबों की क्या होगी।

मठागोठलें :: (वि.) कम खटाई, मट्ठा जैसी खटाई से खट्टे हुए (दाँत)।

मठार :: (सं. पु.) बर्तन में चमकदार बुंदके।

मठारबौ :: (क्रि.) किसी नुकीले सिरे को हथौड़े की चोटों से चपटा करना, रिपिट लगाकर चपटा करना ताकि यह निकल न सके।

मठिया :: (सं. स्त्री.) कनिष्ठा में पहनी जाने वाली एक रांग की छल्ली जो वैश्यों के यहाँ विवाह में चढ़ाया जाती है, छोठा मठ।

मठेला :: (क्रि. वि.) ठेलमठेला।

मठॉयद :: (वि.) मठठे की बू।

मठोलबौ :: (क्रि.) बातों में मिठास घोलना, मीठी-मीठी बातें करना।

मड़ :: (सं. पु.) प्राचीन मंदिर विशेषकर पत्थर से बना हुआ प्राचीन मंदिर।

मंड़इया :: (सं. पु.) खेत आदि की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया झोपड़ा।

मड़ई :: (सं. स्त्री.) लुहार की भट्टी।

मड़ईया :: (सं. स्त्री.) गोल छत की छोटी झोपड़ी।

मड़का :: (सं. पु.) गागर, मटकी, छोटा मटका।

मड़दाउ :: (सं. स्त्री.) विवाह मण्डप बनाने के लिए लकड़ी तथा पत्ते आदि, मण्डप दाऊ (यौगिक शब्द.)।

मंडपवा :: (सं. पु.) मांडे बनाने वाला व्यक्ति, मैदा की लोई को हाथों से बढ़ाकर बड़े आकार की रोटी बनाने वाला।

मंडपवा :: (कहा.) मँडपवा की नाक पोंछने परत - जिस आदमी से कोई काम लेना होता है उसकी सब तरह से खुशामद करनी पड़ती है।

मड़पोआ :: (सं. पु.) माड़े बनाने वाला।

मंडबो :: (क्रि.) आटा आदि का गूंथा जाना, ढोलक आदि पर खाल चढ़ाना।

मड़बौ :: (क्रि.) मण्डित करना, आवेष्ठित करना, लपेटना आरोपित करना, किसी खेल का चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर जमना, चित्र पर चौखटा लगाना जिल्द बाँधना।

मड़र :: (वि.) जल या चिकनाई के निरंतर सम्पर्क से मजबूत हुए मिट्टी के बर्तन।

मड़रा :: (सं. पु.) स्त्रियों के कूप पूजने के समय पूरा गया चौक।

मड़राबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु का लगभग मण्डलाकार स्थिति में घूमना, आस-पास चक्कर काटना।

मड़ला :: (सं. पु.) गढ़, मण्डल, महारानी दुर्गावती की राजधानी जो आजकल मराठी प्रयोग का एक जिला है, जबलपुर से पूर्व एक सौ किलोमीटर दूर स्थित है।

मड़वा :: (सं. पु.) मंडप, झोपड़ी।

मड़वा :: (सं. पु.) मण्डप, वैवाहिक संस्कार सम्पन्न करने के लिए जामुन के पत्तों से आच्छादित डेरा मण्डप।

मंड़वा :: (सं. पु.) मंडप, जो विवाह के समय बनाया जाता है।

मंड़वा :: (कहा.) मँड़वा बाँदबे सब आऊत, छोरबे कोऊ नई आऊत - मंडप बाँधने सब आते हैं, छोरने कोई नहीं आता। बने काम में सब साथ देते हैं।

मड़ा :: (सं. पु.) ऐसा कमरा जो कि प्रायः चारो तरफ से पूर्ण सुरक्षित हो, ये अधिकतर मूल्यवान वस्तुओं के सरंक्षण के काम आता है।

मड़ावरो :: (सं. पु.) चोटी।

मड़िया :: (सं. स्त्री.) छोटी सा एक कक्षीय मन्दिर।

मड़ी :: (सं. स्त्री.) छोटा मठ, छोटा मन्दिर, कुटी।

मड़ीलबो :: (क्रि.) हाथ से किसी वस्तु को मसल कर विकृत करना।

मडुआ :: (सं. पु.) एक निम्न कोटि का काले रंग का खरीफ की फसल का अनाज।

मडुलियाँ :: (सं. स्त्री.) बारात आने के एक दिन पहले बनी वे रोटियाँ जिन्हे दरवाजे पर बिछाया जाता है जिन्हें बुआ खाती है।

मड़ैया :: (सं. स्त्री.) झोपड़ी, कुटी।

मड़ैहा-मड़ैहा :: (सं. पु.) एक प्रकार का चूल्हा जिस पर माँडे बनाये जाते हैं।

मडोर :: (सं. पु.) दीवार का ऊपरी भाग।

मढ़िया-मढ़ी :: (सं. स्त्री.) छोटे आकार का मंदिर।

मण्डील :: (सं. पु.) साफे का एक प्रकार कुछ शताब्दियों पुर्व विवाह में लगुन के साथ आने वाले वस्त्रों में बागौ सेला तथा मण्डील आने आवश्यक थे।

मत :: (निपात) निषेधवाची निपात, इसका प्रयोग बुन्देली के पश्चिमी रूप में अधिक पाया जाता है।

मत :: (सं. पु.) समर्थन, विचार।

मतकी :: (वि.) मुतकी, बहुत, अत्यंत।

मतबर :: (वि.) गम्भीर रहने वाला, सोच समझकर नीति की बात करने वाला, घमण्डी।

मतबौ :: (क्रि.) मोटा होना, तन्दुरूस्त होना।

मंतर :: (सं. पु.) मंत्र।

मतलब :: (सं. पु.) तात्पर्य, आशय, प्रयोजन।

मतलबी :: (वि.) स्वार्थी।

मतवा :: (सं. स्त्री.) सुस्ती, हल्के से नशे जैसी स्थिति, मानसिक एवं शारीरिक शिथिलता की स्थिति।

मतवारौ :: (वि.) मत्त, नशे की हालत में किसी धुन में लीन रहने के कारम असहज व्यवहार करने वाला।

मताई :: (सं. स्त्री.) माता, माँ का सम्बोधन।

मतारी :: (सं. स्त्री.) माता महतारी, माँ का सम्बोधन।

मतावरौ :: (सं. पु.) मुटापा।

मतावरौ :: (प्र.) उनकी तो मती फिर गयी विपरीत बुद्धि हो गयी।

मती :: दे. (निपात) मत निषेधवाची निपात।

मतो :: (सं. स्त्री.) मति, विचार शक्ति, विवेक।

मतौ :: (सं. पु.) विचार, सोच।

मतौ :: (प्र.) उनकौ तो मतो नँइँ मिलत।

मत्था :: (सं. पु.) किसी उर्ध्वाधर आकृति का शीर्ष भाग, ऊपरी भाग।

मथनयाँ :: (सं. पु.) दही बिलौने की मथानी का डंडा।

मथनियाँ :: (सं. स्त्री.) मथानी, काठ का बना हुआ एक प्रकार का उपकरण जिसकी सहायता से दही विलोने की छोटी मथानी।

मथबौ :: (क्रि.) मंथन करना, किसी तरल के साथ किसी चूर्णित वस्तु को भली भांति मिलाना, किसी बात के प्रत्येक पक्ष कर विचार करना।

मथरा :: (सं. पु.) भगवान श्री कृष्ण की जन्म भूमि हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ।

मदरसेट :: (सं. पु.) मजिस्टेट, न्यायधीश (अकर्मक.)।

मदरास :: (सं. पु.) दक्षिण भारत का एक प्रमुख नगर।

मदरासी :: (सं. पु.) दक्षिण भारतीय लोग।

मदाँद :: (वि.) मदाँद, किसी चीज के घमण्ड के कारण कुण्ठित विवेक।

मदाँध :: (सं. स्त्री.) शराब जैसी गंध।

मदाँयदों :: (वि.) शराब जैसी गंध वाला।

मदार :: (सं. पु.) मन्दार, आक, अकउआ, विशेष रूप से सफेद फूलों का अकउआ जिसके पुष्प शंकर जी को विशेष प्रिय माने जाते हैं।

मदारी :: (सं. पु.) बाजीगर, नजरबन्दी, के खेल दिखाने वाला।

मदुलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी की बनी अनाज आदि रखने की छोटी कुठुलिया।

मदॉन :: (सं. स्त्री.) इन्द्रधनुष।

मदॉन :: दे. मदान।

मद्द :: (सं. स्त्री.) मद, शीर्षक, खाता।

मद्दत :: (सं. स्त्री.) निर्माण कार्य, सहायता।

मद्दित :: (सं. स्त्री.) भवन, निर्माण कार्य।

मद्दें :: (अव्य.) सम्बन्धित, विषय में।

मद्दो :: (वि.) कम, उदाहरण-मद्दी नजर, मद्दौ रंग।

मधुकर :: (सं. स्त्री.) भौंरा, भ्रमर।

मन :: (सं. पु.) ज्ञान, संवेदना, संकल्प आदि का साधनरूप, अतीन्द्रिय, चित्त, अन्तःकरण की संकल्प-विकल्प करने की शक्ति इच्छा, उदाहरण-मनकरबौ, इच्छा होना, मन के लडुआ-मन मादक, मनचाहा होना, मन कौ कच्चौ-कमजोर दिल का, मनचाई, मनचाहो, मनचाव, मनचाहा।

मन :: (कहा.) मन की मनई में गई - जो चाहते थे वह नहीं हुआ।

मन :: (कहा.) मन मन भावे, मूँड़ हलावे - किसी वस्तु को लेने की आंतरिक इच्छा होते हुए भी ऊपर से इंकार करना।

मन :: (कहा.) मन में उठी हुलक, तौ का खँजरी का ढुलक - किसी काम को करने की उमंग मन में उठे तो उसे कर ही डालना चाहिए।

मनउआ :: (सं. पु.) मानने की क्रिया।

मनउआ :: (कहा.) मनायँ मनायँ खीर न खाई, जूँटी पातर चाटन आई - अंत में हार कर वही काम करना जिसके लिए पहिले इंकार कर दिया।

मनउआ :: (कहा.) मनुवाँ जंजाली, तू कौन चिरैया पाली - गृहस्थी के जंजाल के लिए प्रयुक्त।

मनका :: (सं. पु.) माला का दाना, गुरिया।

मनंख :: (सं. पु.) मनुष्य, आदमी का शरीर, मर्द।

मनगनेश :: (सं. स्त्री.) गनेश की पूजा।

मनधर याबौ :: (क्रि.) शीघ्र निर्णय न कर पाना, द्विविधा में रहना।

मनधरया :: (वि.) द्विविधा में रहने वाला।

मनधरया :: (कहा.) मनधरया लोग और चटूनार, इनसे बचै तो पावै पार।

मनमौर :: (सं. स्त्री.) एक कन्द।

मनयारौ :: (वि.) मणिधर (सर्प)।

मनवाबौ :: (क्रि.) अपनी बात पर सहमत करना, उत्सव आदि सम्पन्न करवाना।

मनवावो :: (सं. क्रि.) मानने को प्रेरित करना, मनाने का काम कराना।

मनसई :: (सं. स्त्री.) पुरूषार्थ।

मनसा :: (वि.) मनुष्यों के समीप रहने की आदत वाला पशु।

मनसा :: (सं. स्त्री.) इच्छा मनाकामना पूरी करने वाली देवी, साँपो की देवी।

मनसिलया जोड़ा :: (सं. पु.) पुरूषों के जूते।

मनसुआ :: (क्रि. वि.) चुपचाप।

मनहार :: (सं. पु.) चूड़ी बनाने और बेचने वाला चूड़ी।

मनिहार :: (सं. पु.) दे. मनहार।

मनिहारी :: (सं. स्त्री.) बिसातखाने का धन्धा।

मनी :: (सं. स्त्री.) मणि काँच के चपटे तथा लम्बे गुरिया।

मनी :: (मुहा.) मनीसी उतरबौ-चिन्ता के कारण मुख की आभा का क्षीण होना।

मनीजर :: (सं. पु.) मैनेजर, व्यवस्थापक।

मनु :: (सं. पु.) ब्रह्मा के पुत्र जो मनुष्यों के मूल पुरूष माने जाते है।

मनु :: (अव्य.) मानो, मानें।

मनुआँ :: (संबो.) मन का सम्बोधन (लोक गीत)।

मनुहारी :: (सं. स्त्री.) खुशामद करना, मनाना।

मनें :: (सं. पु.) मना (करना)।

मनेसौ :: (सं. पु.) पाँच सौ मन तोल की अनाज की इकाई।

मनैया :: (सं. पु.) मानने वाला।

मनों :: (अव्य.) मानो मनु, सागर तरफ की बुन्देली में कभी क्रियावाची (अव्यव) तथा कभी लेकिन अव्यव के रूप में प्रयुक्त।

मनोरथ :: (सं. पु.) मन की इच्छा कामना।

मनोरा :: (सं. पु.) दीवाल पर बने गोबर के चित्र।

मनौटा :: (सं. पु.) एक मन का बाँट।

मनौती :: (सं. स्त्री.) किसी देवता के समक्ष प्रकट की गयी कोई इच्छा जिसकी पूर्ति पर कुछ पुण्य कार्य करने का संकल्प होता है, मन्नत।

मन्तक :: (अव्य.) वहाँ तक, जहाँ तक, इसको दुहरा कर प्रयोग किया जाता है, जैसे मन्तक-मन्तक तौ-जौ काम होई जैय (यौगिक शब्द.)।

मन्तर :: (सं. पु.) मंत्र।

मन्दर :: (सं. पु.) मन्दिर, देवालय।

मन्न :: (सं. पु.) मन।

मबाद :: (सं. पु.) फोड़े फुंसी में से निकलने वाली पीप आदि।

ममइँ गाँव :: (सं. पु.) ग्रामीण क्षेत्र।

ममता :: (सं. स्त्री.) ममत्व, प्रेमपूर्ण, आत्मीयता।

ममयाबरौ ममानो :: (सं. स्त्री.) माता का घर, मामा, नाना का घर।

ममियाँ :: (उप.) मामावाची विशेषण वाची उपसर्ग जैसे, ममिया ससुर पति या पत्नि के मामा।

मम्मा :: (सं. पु.) मामा, माँ का भाई।

मम्मी :: (सं. स्त्री.) माँ के लिए सम्बोधन अँग्रेजी प्रभाव से एकदम नव प्रवर्तित शब्द।

मयरी :: (सं. स्त्री.) मेहरी, मट्ठे में पकाई गयी चावल या कुदई की खीर।

मर पिटउअल :: (सं. पु.) एक खेल जिसमें रबर या कपड़े की गेंद एक दूसरे को मारी जाती है।

मरई :: (सं. स्त्री.) महामारी संक्रामण रोग के कारण मृत्यु की अधिकता।

मरकवार :: (वि.) मारने वाला, मारपीट की आदत वाला।

मरका :: (वि.) सींगो से मारने की आदत वाला पशु मरकू।

मरका :: (स्त्री. वि. कहा.) मरका बैल और टिमकुल जनी, इनके मारें रोवे धनी-जिस किसान का बैल मरकहा और स्त्री बनाव-श्रृंगार करने वाली होती है वह सदैव कष्ट भोगता है।

मरखना :: (वि.) मारने वाला बैल उदाहरण-मरखा बैल।

मरगटा :: (सं. पु.) मरघट, शमशान, मुर्दे जलाने का स्थान।

मरगटा :: (कहा.) मरघटा कौ गओ को लौटत - मरघट का गया कौन लौटता है गयी बात फिर हात नहीं आती।

मरगटिया मसान :: (सं. पु.) मर्घट में रहने वाला भूत।

मरघिल्ला-घिल्ली :: (वि.) कमजोर दुर्बल।

मरजाद :: (सं. स्त्री.) मर्यादा, किसी के पारिवारिक या अन्य पद के अनुसार व्यवहार।

मरजाद :: (मुहा.) आड़ मरजाद पर्दा और मर्यादा।

मरजादा :: (सं. स्त्री.) दे. मरजाद।

मरजी :: (सं. स्त्री.) आज्ञा, इच्छा, ऐसी इच्छा जिसका आज्ञा के समान पालन हो।

मरतुल्ला :: (वि.) दुबला-पतला, बीमार जैसा।

मरदानगी :: (सं. स्त्री.) पौरूष, पुरूषोचित साहस या कार्य।

मरदानों :: (वि.) वीर, पराक्रमी।

मरदार :: (सं. पु.) विवाह में मंडप के लिए लकड़ी बाँस आदि लाने की रस्म।

मरदुआ :: (सं. पु.) मर्द, आदमी।

मरदे :: (सं. पु.) मर्द, पति।

मरदे :: (कहा.) मरदे रोटी, बरदै काँस - मर्द को अच्छा खाना, और बैल को अच्छा घास चाहिए।

मरदे :: (कहा.) मर्द मुछारौं, बर्द पुछारौ - मर्द मूँछों वाला और बैल बड़ी पूँछ वाला अच्छा होता है।

मरन :: (सं. स्त्री.) मृत्यु इसका प्रयोग मृत्यु के अर्थ को सामान्यीकृत करने के लिए मौत शब्द के साथ शब्द युग्म बना कर किया जाता है, जैसे मरग मौत-मृत्य तथा तत्सम्बंधी अन्य संस्कार तथा सामाजिक कार्य।

मरन :: (कहा.) मर गई किल्ली काजर कों - किल्ली काजल को लगाने की अभिलाषा में मर गयी, जब कोई काली कलूटी स्त्री अपने को बहुत सुंदर बनाने की चेष्टा करे तब उसके लिए कहते हैं।

मरन :: (कहा.) मरबे की फुर्सत नइयाँ - अर्थात बहुत व्यस्त हैं।

मरन :: (कहा.) मरबे कों का हाती - घोड़ा जुतत-मरने का क्या ठीक समय आया मर गये।

मरन मरबौ :: (सं. पु.) मरने जैसी स्थिति, अत्यंत, लज्जास्पद स्थिति, उदाहरण-मरबो जीबो-जीवन मरण।

मरम :: (सं. पु.) मर्म, रहस्य, अन्तर्मन उदाहरण-मरमबो व्याप्त होना।

मरम्मत :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु का टूट-फूट का सुधार, पिटाई (लाक्षणिक अर्थ.)।

मरवाबौ :: (क्रि.) पिटवाना, हानि, पहुँचाना, मैथुन करवाना।

मरसान :: (सं. स्त्री.) हथियारों की धार तेज करने वाला यंत्र।

मरसिया :: (सं. पु.) शोक गीत, दुखड़ा जो गाकर प्रकट किया जाये ताजियों के समय गाये जाने वाले शोक-गीत।

मराबो :: (स. क्रि.) मरबाबो।

मरियल :: (वि.) बहुत दुबला।

मरियाँ :: (सं. पु.) गाय, बैलों का एक रोग जिसमें शरीर पर कहीं भी खून रिसने लगता है। दुबला पतला।

मरियाँ :: (कहा.) मरियाँ मुंस, घर में खुंस - दुबले पतले मरतुले, पति से स्त्री सदैव रूष्ट रहती है।

मरियाँ :: (कहा.) मरियाँ मुँस करम ढकना, कोदों की रोटी पिट भरना - कोदों की रोटी केवल पेट भरने के लिए होती है, उसी प्रकार मरतुला पति भी केवल सौभाग्य की रक्षा के लिए होता है।

मरूआँ :: (सं. पु.) तुलसी की जाति का एक पौधा जिसके पत्ते तथा फूल बैंगनी रंग के होते है मंजरी से सुगंध आती है।

मरूर :: (सं. स्त्री.) मरोड़, पेट में झटके से उठने वाला दर्द।

मरूवादौना :: (सं. पु.) एक सुगन्धित पुष्पों और डालों का पौधा।

मरेखू :: (सं. पु.) ऐसे कोदों जिनके अन्दर कुदई (चावल) न हो।

मरेल :: (वि.) दुबला-पतला, रूग्ण, जर्जर, (प्राणी)।

मरेला :: (सं. पु.) दे. मरेल।

मरैठा :: (सं. पु.) बड़ा तुर्रादार साफा।

मरैया :: (सं. पु.) मरणासन्न।

मरोय :: (वि.) मरणासन्न।

मरोर :: (सं. स्त्री.) दे. मरूर।

मरोरबौ :: (क्रि.) मरोड़ना, किसी वस्तु की दिशा बदलना।

मरोरा :: (क्रि.) काम बिगाड़ने वाला, ऐंठ कर चलने वाला।

मर्ज :: (सं. पु.) मर्ज, कोई विशेष रोग।

मर्जी :: (सं. स्त्री.) दे. मरजी।

मर्दन :: (सं. पु.) मसलना, मिटाना, भंग करना, (क्रियार्थक स.)।

मर्दन :: (प्र.) मान मर्दन-किसी के सम्मान की मर्यादा भंग करना।

मर्राबो :: (क्रि.) गलत ढंग से गाय-भैंस को दुहने के कारण थनों का खराब हो जाने के कारण दूध न निकलना।

मल :: (सं. पु.) आँत में स्थित मल जिसके कारण शरीर में आवश्यक ताप बना रहता है मल खिसकना, मृत्यु पूर्व इस प्रकार टट्टी उतरना जिसमें काला मल निकलता है जो मृत्यु के लक्षण माने जाते है।

मलइया :: (सं. पु.) मालवा के रहने वाले।

मलकइया :: (सं. स्त्री.) ऊँट की सवारी में ऊँट को चाल के साथ सवार की पीठ और कमर की लचक के तालमेल की क्रिया।

मलकइया :: (कहा.) ऊँट चड़े मलकइ या आउत।

मलकबौ :: (क्रि.) किसी चीज पर बैठ कर शरीर के ऊपरी भाग को ऊँचा नीचा करना, बैठने की शान का प्रदर्शन करने के लिए शरीर को बार-बार ऊपर उचकाना।

मलकी :: (सं. स्त्री.) चावल की किस्म।

मलखम्भ :: (सं. पु.) मलखम्भ, जमीन में गढ़ा हुआ मुग्दर की आकृति का लकड़ी का स्तम्भ जिससे व्यायाम किया जाता है।

मलंगा :: गाली के रूप में प्रयुक्त, गाली।

मलंगा :: (वि.) ऊँचा, पूरा, तथा मोटा-ताजा।

मलच्छी :: (वि.) म्लेच्छों जैसी आदतों वाला, गन्दी आदतों वाला, अस्वच्छ, अभक्ष्य खाने वाला, स्वास्थ्य नियमों के विरूद्ध आचरण करने वाला।

मलना :: (सं. स्त्री.) आल्ह खण्ड में महोबा के राजा परमाल की पत्नी।

मलबौ :: (क्रि.) शरीर पर तेल या अन्य चिकने तरल पदार्थ को हाथ का थोड़ा दबाब देकर लगाना।

मलम :: (सं. स्त्री.) मरहम, चिकनी स्निग्ध दवा जिसका घाव आदि रूग्ण स्थान पर लेप किया जाता है।

मलमल :: (सं. स्त्री.) बहुत पतला वस्त्र।

मलमलाबौ :: (क्रि.) हाथों का दवाव देकर शरीर को धीरे धीरे इस प्रकार हिलाना कि केवल मास हिले शरीर यथा स्थिति बना रहे, प्यार जताने के लिए शरीर को आराम से झकझोरना, मल्हाना।

मलमा :: (सं. पु.) कूड़ा करकट, गिरी हुई या टूटी हुई इमारत की ईंट, पत्थर, चूना आदि।

मलयागिरि :: (वि.) मलय पर्वत का (चन्दन)।

मलसिया :: (सं. पु.) एक प्रकार का मिट्टी का पात्र जिसमें मकर सक्रांति को खिचड़ी भरी जाती है।

मलाई :: (सं. स्त्री.) गर्म दूध के ठण्डा होने पर ऊपर जमने वाली दूध तथा घी की पर्त, रबड़ी।

मलामत :: (सं. स्त्री.) मबाद फोड़े-फुन्सी से निकलने वाला विकार।

मलार :: (सं. पु.) एक राग का नाम, एक गीत।

मलाल :: (सं. पु.) किसी के व्यवहार से उपजा विषाद।

मलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का बना बड़ा दीपक मल्सी।

मलीनता :: (सं. स्त्री.) मलिनता, कान्ति हीनता, उदासी।

मलेटरी :: (सं. स्त्री.) मिलिट्री, सेना, फौज।

मलोरा :: (वि.) जो बच्चा मलमलाने से रोता नहीं है।

मलोरा :: दे. मलमलाबौ।

मल्ला :: (वि.) मरतुल्ला, कमजोर, मृततृल्य।

मल्सी :: (सं. स्त्री.) बड़े आकार का मिट्टी का दिया।

मल्सी :: दे. मलिया।

मसक :: (सं. स्त्री.) जानवर की खाल से बना पानी ढोने का पात्र।

मसकई :: (क्रि. वि.) चुपचाप छिपकर।

मसकँउँ :: (क्रि. वि.) धीरे से, चुपचाप।

मसकबाजौ :: (सं. पु.) एक प्रकार की शहनाई इसमें शहनाई और साँस फूँकने की नली के बीच एक थैला होता है।

मसकबौ :: (अ. क्रि.) दबाब से दरकना, फटना।

मसकरया :: (वि.) मजाकिया, दिल्लगीबाज, मसखरा।

मसकरा :: (वि.) हँसोड़, परिहास, विदूषक।

मसकरी :: (सं. स्त्री.) आनन्द के लिये किया जाने वाला व्यंग्य विनोद।

मसकाँ :: (क्रि. वि.) दे. मसकँउँ।

मसकौअल :: (क्रि. वि.) छुपाके।

मसक्कत :: (वि.) मेहनत।

मसन्द :: (सं. स्त्री.) मसनद आराम से बैठने के लिए लगी हुई गद्दी, तक्की।

मंसया :: (वि.) वह जानवर जिसकी आदत मनुष्यों के आस-पास रहने की हो।

मसयाँद :: (सं. स्त्री.) किसी किसी के शरीर से आने वाली हल्की दुर्गन्ध।

मंसयांद :: (सं. स्त्री.) मनुष्य की गंध जिससे जानवर मनुष्य की उपस्थिति जान लेते हैं।

मसंरी :: (सं. स्त्री.) एक दलहन मसूर, नाक छिदने पर कभी-कभी किसी संक्रमण के कारण छिद्र के आस-पास हो जाने वाली छोटी गोल गाँठ।

मसल :: (सं. स्त्री.) उदाहरणार्थ कही जाने वाली कहावत।

मसलबौ :: (क्रि.) किसी कोमल वस्तु को हाथों से दबाकर विकृत करना।

मसा :: (सं. पु.) शरीर पर कहीं काले रंग का उभरा हुआ माँस का छोटा अना, मस्सा।

मंसा :: (सं. स्त्री.) इच्छा।

मंसादेवी :: (सं. स्त्री.) इच्छा पूरी करने वाली देवी, सर्पो कीदेवी।

मसान :: (सं. पु.) शव जलाने का स्थान, मरघट बाल प्रेत जो किसी प्रकार की आवाज नहीं करता है किन्तु अन्य प्रकार के छल दिखाकर भयभीत करती है।

मसान :: (मुहा.) मोंग मसान-चुप्पा चालाक, अधिकांश बातों का उत्तर दिये बिना बैठा रहने वाला।

मसालची :: (सं. पु.) मशाल हाथ में लेकर चलने वाला, उल्काधारी।

मसालची :: (कहा.) तैली को तेल जरै, मसालची की गाँड़ जरै, किसी की विभूति न देख सकना।

मसालौ :: (सं. पु.) शाक बनाने के समय शाक में डाली जाने वाली सामग्री हल्दी, धनिया, जीरा, मिर्च आदि का सामूहिक नाम, ताजियों के समय बिकने वाली गरी, छुहारे, मिसरी तथा अन्य सूखे मेवों का मिश्रण, दीवार में ईटों की जुड़ाई करने के लिए काम में आने वाला बजरी, सीमेण्ट या चुने का मिश्रण, पान का स्वाद बढ़ाने के लिए डाली जाने वाली सामग्री लौंग इलायची आदि, किसी भी वस्तु या बात को अधिक स्वादिष्ट या रोचक बनाने के लिए किया जाने वाला मिश्रण।

मसिया :: (सं. पु.) ईसाई मिशनरी।

मसीन :: (सं. स्त्री.) यंत्र।

मसींला :: (सं. पु.) एक पकवान मूंग की दाल को पीसकर घी शक्कर में भूनकर बनाया जाता है।

मसूकत :: (वि.) परेशानी, कठिनाई बड़ी मसूकत को पानी है।

मसूड़ौ :: (सं. पु.) मसूड़ा, दाँतों के जमने का आधार।

मसूर :: (सं. पु.) दाल के काम आने वाला एक अन्न।

मसूरो :: (सं. पु.) मसूड़ा।

मसूसबौ :: (क्रि.) मन के आवेग को दबाना तथा उस कारण मानसिक पीड़ा का अनुभव करना।

मसूसा :: (सं. पु.) पानी में फुलाकर तले हुए चने।

मसें :: (सं. पु.) मूछों के उगने का ऊपरी ओंठ और नाक के बीच का स्थान (बहुवचन में प्रयुक्त)।

मसेलबो :: दे. मसीलबो।

मसैरी :: (सं. स्त्री.) मसहरी, पंलग के सिरहाने झुक कर बैठने के लिए बनाया जाने वाला सजावटी पटिया, मच्छरदारी।

मसोय :: (क्रि. वि.) मनुष्यों की तरह।

मसोय :: (प्र.) (प्तनक मंसोय चलौ)।

मसोसबो :: (अ. क्रि.) मन को बरबस रोकना, मन ही मन कुढ़ना।

मसौ :: (सं. पु.) शरीर पर अप्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली खुरदरी पीड़ा हीन फुड़िया जो मिटती नहीं है काटी जाती है।

मसौरया :: (वि.) वेमन से धीरे दीरे तथा टालू ढंग से काम करने वाला, काम के लिए कहने पर अनसुनी करने का प्रयास करने अथवा सुनकर भी धीरे धीरे उठने तथा वेमन से काम में लगने वाला।

मसौरो :: (वि.) मंसीला स्थान।

मस्त :: (वि.) शरीर से मौटा किन्तु आदत से कमजोर, अपने मन का काम करने वाला, आज्ञा की अवहेलना करने वाला।

मस्तानों :: (वि.) किसी नियम मर्यादा की चिन्ता किये बिना स्वेच्छाचारिता करने वाला।

मस्ताबो :: (कि.) उच्छृंखलता करना तथा अमर्यादित व्यवाहर करना।

मस्तूरी :: (सं. स्त्री.) ईट व मिट्टी की भट्टी, जिसमें पीतल पिघलाई जाती है, तमेरे।

महतारी :: (सं. स्त्री.) माँ।

महतो :: (सं. पु.) किसी जाति का प्रमुख, मुखिया।

महरा :: (सं. पु.) खसुआ, पींदा।

महराज :: (सं. पु.) राजा, ब्राह्मण राजा का, ब्राह्मण के लिए सम्बोधन (यौगिक शब्द.)।

महरानी :: (सं. स्त्री.) रानी, राजा की पत्नी (यौगिक शब्द.)।

महाँ :: (क्रि. वि.) ऊँचे दर्जे का (अधिकतर व्यंग्यार्थ में प्रयुक्त) कभी-कभी विशेषण के पहले इसका प्रयोग होता है जैसे महाँबेईमान, महाँकुचाली कभी कभी प्रसंग से व्यंजित होने वाली विशेषता के लिए केवल इसी शब्द का उपयोग किया जाता है किन्तु यह रहता है -क्रियाविशेषण. रूप में ही जैसे-बौ महाआँधरो।

महाउत :: (सं. पु.) हाथी का हाँकने वाला।

महाउती :: (सं. पु.) वह हाथी को वश में रखने तथा उसकी चिकित्सा के अनेक गुर जानता है।

महाजन :: (सं. पु.) शिष्ट, गम्भीर स्वभाव वाला धनी, व्यक्ति, तेली और कलार के लिए आदरवाची शब्द।

महाजनी :: (सं. स्त्री.) साहूकारी गम्भीर (बात) विशेषण. रूप में प्रयुक्त होता है।

महातम :: (सं. पु.) परमार्थक महत्व, पुण्य।

महात्मा :: (सं. पु.) साधु।

महान :: (क्रि. वि.) दे. महा लोधी, जाति में कोई उपवर्ग।

महावीर :: (सं. पु.) हनुमानजी, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर।

महिपाल :: (सं. पु.) दे. मइयर, मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित शारदा देवी का प्रसिद्ध पी, प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का कार्यस्थल।

मही :: (सं. स्त्री.) धरती, कुछ दिव्य अर्थ में प्रयुक्त, मट्ठा।

महीन :: (वि.) बारीक, सूक्ष्म।

महीनदार :: (सं. पु.) मासिक बेतन पर खेती में काम करने वाला व्यक्ति।

महीना :: (सं. पु.) दे. मँइँना।

महेरी :: (सं. स्त्री.) दे. मयरी, मयरौ।

महेस :: (सं. पु.) भगवान शंकर एक पुरूष नाम।

महेसरी :: (सं. पु.) महेश्वरी बुन्देलखण्ड के कुछ भोगों में बसी हुई वैश्यों की एक जाती।

महोद :: (सं. पु.) महादेव, भगवान शंकर, शिव, शम्भू कैलाशपति।

माँ :: (सर्व.) वहाँ।

माँइ :: (सं. स्त्री.) मामी, मामा की पत्नि, माँ की भाभी।

माँइँ मरातन :: (सं. स्त्री.) ओरछा राज्य राजवंश के पास एक प्राचीन देवी प्रतिमा, जिसके अनेक खण्ड है और दशहरेके अवसर पर सात हाथियों पर इसके विभिन्न अंशों की सवारी निकलती थी।

माई :: (सं. स्त्री.) माता दुर्गा, देवी, उदाहरण-माई कौ लाल-सपूत साहसी, उदार दानी।

माँउ :: (सं. पु.) सरसों, मूली, सेम आदि में लगने वाली वर्षा।

माँउठ :: (सं. स्त्री.) माघवृष्टि जाड़े की ऋतु में होने वाली वर्षा।

माँउदी :: (सं. स्त्री.) मेंहदी, नाग केशर, सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रतीक, श्रृंगार, इसकी पत्ती को पीसकर हाथों पैरों में रचाती है, इसके बीच औषधि के काम आते हैं।

माँउर :: (सं. पु.) महावर, आल्ता स्त्रियों के पैरों के पंजो के चारों ओर लगा हुआ लाल रंग, शौभाग्यवती स्त्रियों का पैरों का श्रृंगार।

माँउरी :: (सं. स्त्री.) एक कन्द जिसको भून कर या उबालकर खाया जाता है।

माकबो :: (क्रि.) महकना, खुशबू देना।

माँकाबौ :: (क्रि.) महकना, सुगन्ध का विकीर्ण होना।

माँखन :: (सं. पु.) माखन विशेष रूप से श्रीकृष्ण के संदर्भ में प्रयुक्त।

माखी :: (सं. स्त्री.) मक्खी।

माँग :: (सं. स्त्री.) सीमान्त की, सिर के बालों की दो दिशाओं में विभाजित करने वाली रेखा, फसल काटते समय, काटने वालों के सामने की खेत की पट्टी, याचना, किसी वस्तु की चाहत।

माँग चूँग के :: (क्रि. वि.) इधर उधर से लेकर।

माँगने :: (सं. पु.) मांगना, याचना।

माँगबौ :: (क्रि.) स्वीकार करना, राजी होना, सहमत होना, सम्मान करना, श्रद्धा करना।

माँगवो :: (क्रि.) याचना करना, किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए कहना।

माँगवो :: (मुहा.) माँग जाँच के माँगमूँग कर किसी प्रकार।

माँगे :: (क्रि.) मांगना दूसरे से लेना।

माँगे :: (कहा.) माँग चूँग के करी तीजा, भोरई हो गओ बीदक - बीदा-जिससे पैसा उधार लिया था वह माँगने आ गया।

माँगे :: (कहा.) माँगे की बछिया, पर पर दाँत निहारें - मुफ्त की चीज का क्या देखना, उसे तो चुपचाप ले लेना चाहिए।

माँगे :: (कहा.) माँगे कौ मठा मोल बिरोबर - माँगी हुई वस्तु सदैव महँगी पड़ती है, अब्वल तो देने वाले के सौ नखरे सहने पड़ने हैं और फिर ऊपर से एहसान अलग।

माँगे :: (कहा.) माँगे मिलें न चार, पूरे पूरब पुन्न बिन, इक विद्या इक नार घर संपत, सरीर सुख, माँगे मौत नई मिलत - माँगने से कोई वस्तु नहीं मिलती।

माँगौ :: (वि.) महँगा, अधिक मूल्य का।

माँचस :: (सं. स्त्री.) दियासलाइयों की डिबिया।

माँची :: (सं. स्त्री.) मक्खी।

माछर :: (सं. पु.) मच्छर।

माछी :: (सं. स्त्री.) मक्खी।

माँछैर :: (सं. स्त्री.) दे. मछयर।

माँज मँजोटैं :: (क्रि. वि.) बीच में।

माँजन :: (सं. पु.) आग पर चढाते समय बर्तन की काला होने से बचाने के लिए तली पर तथा बगल में लपेटी जाने वाली राख या मिट्टी की पतली पर्त, उदाहरण-माँजन लगाबो-बर्तन के ऊपर मिट्टी की पतली तह चढ़ाना।

माँजबौ :: (क्रि.) मार्जन करना, बरतन साफ करना, धातु साफ करना।

माँजा :: (सं. पु.) पंतग चढ़ाने उड़ाने के धागे में दूसरे धागे को रगड़ से काटने की क्षमता बढाने के लिए लगाया जाने वाला काँच के चूरे और उबले हुए चाबलों की पट्टी का लेप।

माँजूफल :: (सं. पु.) एक फल जो दन्त मंजन बनाने तथा पानी के साथ घिस कर फुंसियों पर लगाने तथा अन्य औषधियों के काम आता है।

माजे :: (सं. स्त्री.) शामिल, शरीक।

माजौ :: (सं. पु.) जुवारी से बाँधी जाने वाली रस्सी इससे बैल इधर उधर नहीं जाते।

माँझ :: (वि.) मध्य, भौजी बैठी माँझ मँझोटे, लोक गीत।

माझा :: (सं. पु.) शरीर का मध्य भाग।

माटी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी, धूल, शरीर, शब उदाहरण-माटी करबो-नष्ट करना, बरबाद, करना, माटी के मोल-बहुत सस्ता बिकना।

माँटी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी अपने व्यापक अर्थ में जैसे-भौतिक अर्थ के अतिरिक्त, हे भगवान माँटी समेट लो, हे भगवान शारीरिक रूप से कष्ट भोग रहे मनुष्य को मृत्यु देकर मुक्त करो आदि।

माँठ :: (सं. पु.) मन के सुख संतोष का चेहरे पर प्रतिबिम्ब।

माँठ :: (प्र.) हमें साँची कनें से उनकौ माँठ बिगर जाने।

माड़ना :: (क्रि.) मसलना, गूँथना।

माँड़ने :: (सं. स्त्री.) जैन पूजा विधान में प्रयुक्त होने वाले कपड़े पर बने हुए यंत्र वणिक प्रिया. वचन।

माँड़बारी :: (सं. पु.) मारबाड़ी।

माँड़रे :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की रहँट की ढाल बाँधने के लिए मकोर की लचीली लकड़िया वणिक प्रिया वचन. में प्रयुक्त।

माँड़ी :: (सं. स्त्री.) कपड़े में कड़क पैदा करने के लिए लगाया जाने वाला कलफ।

माँड़ो :: (सं. पु.) आँख का जाला, फुली।

माड़ौ :: (सं. पु.) आँखों का एक रोग जिससे आँखों में धून्ध सी छाई रहती है।

माड़ौगड़ :: (सं. पु.) माण्डवगढ़, माण्डू, आल्हखण्ड में विशेष उल्लेख है।

मात :: (सं. स्त्री.) जननी, माता।

मातनो :: (सं. पु.) चन्द्रमा के आस पास का घेरा।

मातम :: (सं. पु.) मृत्युशोक।

मातवरी :: (सं. स्त्री.) अपने वजनदान व्यक्तित्व का सदा बना रहने वाला अहसास, नेतृत्व की भावना।

माता :: (सं. स्त्री.) माँ देवी के अर्थ में प्रयुक्त, सीतामाता, पार्वती माता, बैमाता आयु की देवी आदि।

माताबन :: (सं. पु.) चन्द्रमा के आस पास का घेरा।

माते :: (सं. पु.) गाँव के महत्वपूर्ण व्यक्ति, मुखिया, काछी, कहार आदि जाति का व्यक्ति।

मातें :: (सर्व.) वहाँ से।

मातेंन :: (सं. स्त्री.) माते की पत्नी कहारिन के लिए आदरवाची सम्बोधन।

मातैती :: (सं. स्त्री.) अन्तर्गत काम करने की स्थिति या क्रिया दूसरों की आज्ञानुसार कार्य करने की बाध्यता, मातहती।

मातैन :: (वि.) मातहत, अन्तर्गत काम करने वाला।

मातौन :: (सं. स्त्री.) ग्राम की महत्वपूर्ण स्थिति, काछी या कहार की स्त्री।

माथें :: (क्रि. वि.) माथे पर, अव्य, भरोसे मत्थे, माथै।

माँथो :: (सं. पु.) मस्तक, माथा सिर।

माथौ :: (सं. पु.) मस्तक, भाल, उदाहरण-माथै-घिसबो, अनुनय विनय करना, खुशामद करना, माथौ टेकबो-भूमि से सिर लगाकर प्रणाम करना, माथौ मारबौ-सिर मारना, माथा पच्ची करना।

माँद :: (सं. पु.) गुफा।

मादा :: (सं. स्त्री.) प्रजनन करने वाली स्त्री।

मादू :: (वि.) मत्त, उन्मत्त।

माँदेले :: (सं. पु.) महदेले, लोध जाति का एक उपवर्ग।

माँदो :: (वि.) बीमार, थका हुआ।

माद्दा :: (सं. पु.) अनुभवजन्य ज्ञान, अभ्यास।

माद्दिल :: (वि.) समशीतोष्ण।

माधो, माधो :: (सं. पु.) श्री कृष्ण।

मान :: (सं. पु.) सम्मान।

माँन :: (सं. पु.) सम्मान, मान्यता, रूठने की क्रिया, आत्मसम्मान, गर्व, हल्का सा घमण्ड।

माँनक :: (सं. पु.) माणिक्य, एक बैंगनी रंग का रत्न, बैगनी रंग का काँच का छह पाल का गुरिया।

माँनता :: (सं. स्त्री.) मान्यता, सम्मान।

मानबो :: (अ. क्रि.) मानना, स्वीकार करना, सहमत होना।

मानस :: (सं. पु.) आदमी पुरूष।

माना :: (वि.) दो मन की तौल।

मानी :: (सं. स्त्री.) अनाज नापने की एक इकाई जो पाँच मन या दो क्विंटल वजन की होती है चकिया के कीला कन्ना में लगने वाली एक छेददार लकड़ी जिससे पाट एक ही स्थति में रहे।

माँनी :: (सं. स्त्री.) चकिया के कीजा कन्ना में लगने वाली एक छेददार लकड़ी।

मानें :: (सं. पु.) अर्थ, तात्पर्य, बहु वचन.में प्रयुक्त।

मानों :: (अव्य.) मनो, मनु।

मान्त्री :: (वि.) विवाह में मण्डप की पूजा का विशेषण।

मान्धाता :: (सं. पु.) दानी, उदार अधिकतर, व्यंग्य अर्थ.में प्रयुक्त।

मान्स :: (सं. पु.) मनुष्य, मनुष्य जाति के व्यापक अर्थ में भी प्रयुक्त नर, आदमी।

मान्सखाना :: (वि.) निर्मम, अधिक तंग करने वाला, निर्दयी।

माफ :: (वि.) क्षमा, दोष मार्जन।

माफक-माफिक :: (वि.) अनुकूल, समान, अनुसार माफिक।

माफी :: (सं. स्त्री.) क्षमा दीपमार्जन की क्रिया, बिना लगान की जमीन जो किसी सेवा के बदले या पुरस्कार स्वरूप दी जाती है।

मामलौ :: (सं. पु.) प्रकरण मुकद्दमा।

मामा :: (सं. पु.) दे. मम्मा।

मामुलिया :: (सं. स्त्री.) बरसात के दिनों में छोटी लड़कियों का एक खेल, इसमें कॅटीली झाड़ी के अनेक रंग के फूलों से सजाकर गीत गाते हुये इसकी शोभा यात्रा निकाली जाती है, लड़कियों के विभिन्न दलों में मामुलिया सजाने की प्रतिस्पर्धा भी चलती है, गीत-मामुलिया के आये लिवउआ, झमक चली मोरी मामुलिया।

माँमूली :: (वि.) साधारण, सामान्य, कम महत्व की।

माँमोला :: (सं. पु.) मामुलिया के दुल्हा के रूप में सजायी जाने वाली दूसरी कँटीली झाड़ी इसका मामुलिया के साथ विवाह रचाया जाता है।

माँमोला :: दे. मामुलिया।

माय :: (सं. स्त्री.) माता, माँ, जननी।

माँय :: (सं. स्त्री.) मातृका पूजन के लिए बनाया गया एक पकवान, माई।

मायको :: (सं. पु.) मैहर, पीहर, पिता का घर।

माँयकौ :: (सं. पु.) विवाहित स्त्री के माता पिता का घर।

माँयने :: (सं. पु.) अर्थ, तात्पर्य।

माँयने :: दे. मानें।

माँयनों :: (सं. पु.) विवाह में मातृका पूजन का दिन मातृका पूजन की सामग्री।

माँयसे :: (सर्व.) वहाँ से, उधर से।

माया :: (सं. स्त्री.) धन, सम्पत्ति, रहस्य प्रपंच, किसी तथ्य के साथ जोड़ी गयी अनावश्यक जटिलता या रहस्यमयता।

मार :: (सं. स्त्री.) मारने की क्रिया, मारपीट।

माँर :: (सं. स्त्री.) रहँट में घरियों की माला, पिटाई, कठिन परिस्थितियों का दबाव।

मारक थ्री :: (वि.) तीन सौ, तीन बार की बन्दूक, संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त।

मारकरार :: (सं. पु.) एक पेड़।

मारकाट :: (सं. स्त्री.) युद्ध, खुरेजी।

मारकीन :: (सं. स्त्री.) एक मोटा कोरा कपड़ा।

माँरकीन :: (सं. स्त्री.) बिना धुले भूरे रंग के कपड़े की एक पतली किस्म।

मारग :: (सं. पु.) मार्ग, रास्ता, अधिकतर, लोक साहित्य. में प्रयुक्त।

मारजौ :: (सं. पु.) मार्जिन, बचत धन्धे में लागत मूल्य और विक्रय मूल्य का अन्तर।

माँरन :: (वि.) जान से मारने के मंत्र और प्रयोग।

माँरफत :: (सं. पु.) मार्फत, द्वारा, माध्यम से।

माँरफतिया :: (सं. पु.) दलाल, मध्यस्थ।

माँरबाड़ौ :: (सं. पु.) मारवाड़ के रहने वाले, राजस्थानी जो गाय बैलों के झुण्ड लेकर बेचने निकलते हैं।

मारबो :: (सं. क्रि.) पीटना, प्रहार करना, चोट पहुँचना, पटकना, पछाड़ना, हत्या करना, जीतना।

माँरबौ :: (सं. पु.) पीटना, हत्या करना, नष्ट करना।

माँरमरउआ :: (सं. पु.) रहट की मार को यथा स्थान रखने के लिए कुँए की आमने सामने की दीवारों पर टिकाई जाने वाली बल्ली।

मारमरूआ :: (सं. पु.) रहट में लगने वाली लकड़ी।

माँरामार :: (सं. स्त्री.) मार पीट, पारस्परिक पिटाई, ऐसी पिटाई जिसमें दो दल एक दूसरे को मार रहे हों, यौगिक शब्द।

मारूँ :: (वि.) जुझारू बाजें जो युद्ध के समय बजाए जाते थे गर्मी में पैदा होने वाले बड़े और गोल भट्टे।

मारूबाजा :: (सं. पु.) एक वाद्य।

मारे :: (क्रि.) अव्य., दबाव के कारण, मार का पद रूप दे. मारें।

मारैं :: (सं. पु.) दीवाल के बड़े छेद जो बचाव के लिए गोली चलाने के लिए बनाये जाते है।

मार्का :: (सं. पु.) पहचान का चिन्ह या संकेत शब्द।

मार्जो :: (सं. पु.) दे. मारजौ।

माल :: (सं. पु.) व्यापार से सम्बन्धित कोई भी वस्तु श्रेष्ठ भोजन, अच्छी वस्तु।

मालक :: (सं. पु.) मालिक स्वामी।

मालकँगुनी :: (सं. स्त्री.) एक लता जिसके बीजों से तेल निकाला जाता है।

मालकाँनो :: (सं. पु.) अधिकार, स्वामित्व, हक।

मालकाँवनी :: (सं. स्त्री.) एक झाड़ी जिसके पीले फल गुच्छों में होते हैं, ये औषधि तथा शंकर जी के अभिषेक के काम आते हैं, मालकांवनी।

मालकी :: (वि.) मालिक का पद और कर्त्तव्य।

मालगुजार :: (सं. पु.) प्रदेश के जमींदार, कमीशन पर लगान वसूल करने वाले अधिकार प्राप्त व्यक्ति।

मालगुजारी :: (सं. स्त्री.) कृषि भूमि का लगान।

मालती :: (सं. स्त्री.) एक सुगन्धित पुष्पों वाली लता, केवल स्त्री नाम में प्रयुक्त चमेली।

माँलदार :: (वि.) धनाढ्य, पैसे वाला।

मालन :: (सं. स्त्री.) मालिन, बागों की देखभाल करने वाले माली की पत्नी।

माँलन :: (सं. स्त्री.) माली की स्त्री, नाक के अन्दर होने वाली फुंसी।

माँलपुआ :: (सं. पु.) एक मीठा पकवान, जो खमीर हुई मैदा में गुड़ मिलाकर बनायी गयीपतली पिट्ठी को तइया मे डालकर घी मे तला जाता है, पतली पिट्ठी घी में डालने से ये फैलकर छिद्र पूड़ी जैसी बन जाती है।

मालव :: (सं. पु.) मालवा, बुन्देलखण्ड का वह भाग जहाँ अधिकांशं काली मिट्टी है और गेंहू की असिंचित फसल पैदा की जाती है, सागर जिले की खुरई तहसील तथा विदिशा जिला आदि।

माँलस :: (सं. पु.) मालिश तेल लगाकर शरीर को मलने की क्रिया।

माँला :: (सं. स्त्री.) भजन करने की तुलसी, चन्दन, मूँगा, स्फटिक रूद्राक्ष आदि की माला, सोने के षट्कोण गुरियों का दो लड़ियों का नाभि तक की नीचाई बाला हार।

माँलामाल :: (वि.) धन धान्य सम्पन्न।

माँलियत :: (सं. स्त्री.) सरकारी सूत्र के अनुसार कृषि भूमि का मूल्य जो लगान से एक सौ गुना होता है।

माँली :: (वि.) अधिक उपज देने वाली भूमि।

माँलूम :: (सं. स्त्री.) जानकारी।

माव :: (सं. पु.) माघ, विक्रम संवत का ग्यारहवाँ महीना।

मावठ :: (सं. स्त्री.) दे. माउँठ।

मावदी :: (सं. स्त्री.) मेंहदी।

माँवर :: (सं. पु.) महावर सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रतीक श्रृंगार, महावर स्त्रियों, पैरों में लगाती है।

मावरी :: (सं. स्त्री.) माँउरी।

मावली :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष।

मास :: (सं. पु.) मांस, माँस।

माँस :: (सं. पु.) आमिष, गोश्त, फल का गुदारा भाग उदाहरण-माँसखानी, गाली के रूप में प्रयुक्त।

माँसा :: (सं. पु.) आठा रत्ती या १/१२ तोला वजन की इकाई।

माँसी :: (वि.) महीना वाची विसेषण, जैसे बारामासी पूरनमासी आदि।

मासीर :: (सं. स्त्री.) मछली।

माँसूल :: (सं. पु.) महसूल, चुंगी या काँजी हाउस का कर।

माँसेरा :: (सं. पु.) एक प्रकार की बड़ी मछली।

मास्टर :: (सं. पु.) शिक्षक, कपड़े सीने वाला दर्जी।

मास्टरी :: (सं. स्त्री.) अध्यापकी, पढ़ाने वाला, किसी कार्य में दक्ष।

माहिल :: (सं. पु.) आल्हखण्ड का एक महत्वपूर्ण पात्र, परिमार्दिदेव चन्देल का साला, उरई के राजा ये चुगली करके इधर की उधर भिड़ाता रहता था इस कारण इस शब्द का प्रयोग चुगलखेर में होने लगा।

माँहुन :: (सर्व.) उस तरफ से।

माहुल :: (सं. स्त्री.) एक झाड़ी।

माहौर :: (सं. पु.) महावर, वैश्यों का एक गोत्र।

मिआँ :: (सं. पु.) मुसलमानों में प्रचलित आदरवाची सम्बोधन, मुसलमान।

मिआद :: (सं. स्त्री.) अवधि, समय सीमा।

मिआदी :: (वि.) निश्चित अवधि वाला, टाइफाइड बुखार।

मिआँन :: (सं. पु.) तलवार रखने का घरा, कवितावली. एक म्आँन में दो तरवारें नई सटतीं।

मिआँनों :: (सं. पु.) बन्द डिब्बे के आकार की पर्देदार पालकी।

मिआँरी :: (सं. स्त्री.) खपरैल छप्पर के आधार के लिए लगायी जाने वाली धनुषाकार कड़ी।

मिक्चर :: (सं. पु.) अनेक औषधियाँ मिलाकर बनायी जाने वाली पीने की अँग्रेजी दवा।

मिंगी :: (सं. स्त्री.) मींगी, गिरी, उदहरण. बादाम की मिंगी।

मिचकइया :: (क्रि. वि.) शरीर का हिलाना।

मिचकबो :: (क्रि.) मिंचना, मींजा जाना, बन्द करना।

मिचका :: (वि.) छोटी छोटी आँखों वाला, जिसकी आँखे बन्द सी दिखती है।

मिचकाबौ :: (क्रि.) आँखों की पलकें अस्वाभाविक ढंग से जल्दी-जल्दी खोलना और बन्द करना, संकेत करने के लिए आँखे बन्द करना तथा खोलना।

मिचकी :: (क्रि. वि.) झूला की दौड़।

मिंचकी :: (क्रि. वि.) झूला का एक बार का बाना।

मिचक्की :: (सं. स्त्री.) झूले की पैंग।

मिचबो :: (अ. क्रि.) बन्द होना, मीचा जाना।

मिचमिचाबौ :: (क्रि.) प्रकाशसहन न कर पाने या आँखों में तकलीफ होने के कारण आँखे बार बार खोलना तथा बन्द करना।

मिचवा-मिचावा :: (सं. पु.) चार पाई का पाया।

मिजमान :: (सं. पु.) मेहमान, घर आये हुए अतिथि।

मिजराब :: (सं. स्त्री.) तार वाद्य बजाने के लिए तर्जनी की नोंक पर लगाई जानें वाली तार की अँगूठी।

मिजवान :: (सं. पु.) दे. मिजमान।

मिजाज :: (सं. पु.) स्वभाव, घमण्ड।

मिजाजी :: (वि.) अपने आपको कुछ विशेष समझने वाला, घमण्डी।

मिटउअल :: (वि.) मिटाने वाली, मिटाने के लिए।

मिटबौ :: (क्रि.) बर्वाद होना, स्वाभाविक रूप से बिगड़ना, नष्ट होना, हैसियत खो देना, आर्थिक साधनों को नष्ट हो जाना।

मिटाबौ :: (क्रि.) तोड़ फोड़ करना, विकृत करना, नष्ट करना, निरस्त करना।

मिटोंनयाँ :: (वि.) तोड़ फोड़ करने की आदत वाला, चीजों की हिफाजत न करने वाला।

मिट्ठट्ठी :: (सं. स्त्री.) चुम्बन, चूँमा।

मिट्ठू :: (सं. पु.) तोता, किसी सिखाये अनुसार बोलने वाला।

मिठ :: (वि.) मीठो का समास में व्यवहृत लघुरूप।

मिठआ :: (वि.) मीठा, मिठुआपान, मिठुआआम।

मिठबोली :: (वि.) मधुरभाषी।

मिठया :: (सं. पु.) मिठाई बनाने अथवा बेचने वाला।

मिठयाई :: (सं. स्त्री.) मिठाई का बाजार।

मिठयाबौ :: (क्रि.) स्वाद ले ले कर खाना, किसी पदार्थ को खाने की सुरूचि बढ़ना, मीठे ढंग से बोलना, क्रियाविशेषण. रूप में प्रयुक्त।

मिठाई :: (सं. स्त्री.) मिठास युक्त पकवान।

मिठास :: (सं. पु.) मीठे होने का गुण, मीठापन।

मिड़बासौ :: (सं. पु.) वह छल्ला जो गड़ावन के पहले मेंड़ी में डाला जाता है।

मिड़ला :: (सं. पु.) भेड़ का छोटा बच्चा।

मिड़ाई :: (सं. स्त्री.) जोर जोर से मसलने या मालिश करने की क्रिया।

मिड़िँयाँ :: (क्रि. वि.) पीठ पर किसी को इस प्रकार लादना कि उसके घुटनों के नीचे से हाथ डालकर उसको संभाला जाये तथा वही बिठाने वाले वाली की गर्दन में हाथ डालकर संभला रहे।

मिड़िल :: (सं. स्त्री.) कक्षा आठ तक की पढ़ाई का स्तर।

मिडिलची :: (वि.) कक्षा आठ तक पड़े लोग, अल्प शिक्षित व्यंग्यार्थ।

मिडूला :: (सं. पु.) एक परजीवी कीड़ा जो कुत्तों तथा पशुओं को चिपक कर उसका खून चूसता रहता है य भूरे रंग का चिकनी सतह वाला होता है।

मिड़ैया :: (क्रि. वि.) पीठ पर बिठाना।

मिड़ौरया :: (सं. पु.) अपनी कृषि भूमि से लगी कृषि भूमि के कृषक।

मित :: (सं. स्त्री.) अवधि, समय सीमा।

मितरयानों :: (सं. पु.) मेहतरों का मुहल्ला।

मिताई :: (सं. स्त्री.) मित्रता, प्रेमभाव।

मिती :: (सं. स्त्री.) तिथि, समयावधि सूचक दिनाँक।

मिथला :: (सं. स्त्री.) सीता, स्त्री, नाम के रूप में प्रयुक्त।

मिथ्या :: (वि.) झूठ।

मिदरिया :: (सं. स्त्री.) मेंढ़की।

मिंदरिया :: (सं. स्त्री.) मादा मेंढक।

मिदुरसुल्ला :: (सं. पु.) नालियों आदि में रहने वाला इल्ली जैसा पूंछ वाला कीड़ा।

मिन मिन :: (अव्य.) अस्पष्ट तथ धीमें स्वर में।

मिनउँआ :: (सं. पु.) बिल्ली का बच्चा।

मिनट :: (सं. पु.) घण्टे का आठवाँ भाग, थोड़ा सा समय।

मिनमिनाबौ :: (क्रि.) संकोच सहित धीरे धीरे भयभीत सा होकर बोलना।

मिन्न :: (सं. पु.) मित्र, दोस्त।

मिन्नत :: (सं. स्त्री.) प्रसंशा करके प्रसन्न करने की क्रिया, अपनी दीनता दिखाकर अपनी बात मनवाने की क्रिया।

मिमयाँबो :: (अ. क्रि.) दबी जवान में चापलूसी करना, बकरी का बोलना।

मियाँ :: (सं. पु.) दे. मिआँ, मुसलमानों में प्रयुक्त संबो.।

मियाँद :: (सं. स्त्री.) अवधि, निर्धारित समय।

मियाँदी :: (वि.) समयावधि, समय सीमाबद्ध।

मियाँन :: (सं. पु.) दे. मिआँन।

मियाँनी :: (सं. स्त्री.) पायजामे के बीच लगायी जाने वाली कपड़े की पट्टी।

मियानों :: (सं. पु.) दे. मिआँनो, एक प्रकार की डोली।

मियार :: (सं. पु.) मकान के छप्पर के नीचे दो दीवालों में लगी प्रमुख लकड़ी।

मिरगछाला :: (सं. स्त्री.) हिरण अथवा शेर या तेंदूए की खाल से बनी आसनी जो चमड़े की बनी होने पर भी पवित्र मानी जाती है, यौगिक शब्द।

मिरगा :: (सं. स्त्री.) एक रोग जिसमें मनुष्य बेहोश होकर हाथ पैर फड़फड़ाने लगता है तथा मुँह पर झाग आ जाता है, अपस्मार।

मिरच :: (सं. स्त्री.) मिर्च।

मिरचुन :: (सं. पु.) सूखे बेर का चूर्ण।

मिरचुवा :: (सं. पु.) एक प्रकार का कीड़ा जो आँख में घूसने पर जलन पैदा करता है।

मिरचौन :: (सं. पु.) बरातियों को दिया जाने वाला शर्बत।

मिरजई :: (सं. स्त्री.) पुरानी चाल का तनीदार पहनावा।

मिरजाँइँ :: (सं. स्त्री.) नितम्बों तक की निचाई वाला अँगरखा।

मिरजाद :: (सं. स्त्री.) मर्यादा, व्यवहार, की व्यक्ति सापेक्षता।

मिरजापुरी :: (वि.) पंगत।

मिरदंग :: (सं. पु.) मृदंग, एक प्राचीन ताल वाद्य।

मिरदंग :: (कहा.) बजा न आवै खंजड़ी मिरदंग की साई लेत।

मिरमिराबौ :: (क्रि.) दाँत पीसते हुए स्फुट शब्दों के साथ क्रोध प्रदर्शित करना।

मिर्गी :: (सं. स्त्री.) दे. मिरगी।

मिर्च :: (सं. स्त्री.) दे. मिरच।

मिर्चवानी :: (सं. स्त्री.) दरवाजे से थोड़ी दूर जाकर उनके द्वारा बारातियों को शक्कर और काली मिर्च का शरबत पिलाकर स्वागत करने की रीति।

मिर्चुआ :: (सं. पु.) एक छोटा कीड़ा जिसके आँख में चले जाने पर मिर्च लगने जैसी जलन होती है।

मिर्जाद :: (सं. स्त्री.) मर्यादा।

मिर्जाद :: दे. मिरजाद।

मिलकाबो :: (क्रि.) आँखों का झपकना, दीपक का जलना।

मिलकियत :: (सं. स्त्री.) सम्पत्ति, जायजाद, जमीदारी।

मिलकै :: (सं. स्त्री.) बारात आगमन पर कन्या के दरवाजे से थोड़ी दूर जाकर कन्या के मामा तथा पिता द्वारा वर के मामा तथा अन्य समधियों से भेंट करने की रीति में प्रयुक्त।

मिलट्टरी :: (सं. स्त्री.) मिलेट्री, सेना, फौज।

मिलन :: (सं. पु.) दो नदियों का संगम स्थल।

मिलनी :: (सं. स्त्री.) दे. मिलकें।

मिलबौ :: (क्रि.) भेंट करना, मिलना, साक्षात्कर करना, सम्पर्क करना, मिश्रित होना एक साथ होना, उदाहरण-मिलबो-जुबलो, भेंट मुलाकात।

मिलमिलाबौ :: (क्रि.) जल्दी आँखे झपकना।

मिलाई :: (सं. स्त्री.) मिलाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।

मिलाजुरी :: (सं. स्त्री.) मिलने जुलने की क्रिया, यौगिक शब्द।

मिलान :: (सं. पु.) वर कन्या की कुण्डलियों को मिलाने की क्रिया।

मिलाप :: (सं. पु.) भेंट, प्रेमभाव, मेल मिलाप, शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

मिलाबो :: (क्रि.) कुण्डलियों का मिलाना, संयुक्त करना, मिश्रित करना, दो लोगों की भेंट करवाना।

मिलीभगत :: (सं. स्त्री.) प्रच्छन्न रूप से किसी एक व्यक्ति की आड़ में रहकर षड़यंत्र रचने की क्रिया, यौगिक शब्द।

मिलोंनी :: (सं. स्त्री.) दो अनाजों का मिश्रण, विशेष रूप से कोदों और गेंहू का मिश्रण।

मिलौंनी :: (वि.) भेंट, मिली हुई, भेंट ब्याह के समय।

मिल्कियत :: (सं. स्त्री.) स्वामित्व की सम्पत्ति, सम्पत्ति।

मिल्कें :: (सं. स्त्री.) दे. मिलकें, मिलनी।

मिस :: (सं. पु.) बहाना, परोक्ष क्रिया।

मिसनियाँ :: (सं. पु.) ईसाई मिसनरी।

मिसमिसाबौ :: (क्रि.) दाँत पीसना, दाँत पीसकर क्रोध प्रकट करना।

मिसर :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक आस्पद, मिश्र।

मिसरान :: (सं. स्त्री.) मिश्र की स्त्री।

मिसरी :: (सं. स्त्री.) विशेष प्रकार से थाल में जमाई हुई चीनी।

मिसल :: (सं. स्त्री.) व्यवस्था, किसी कार्य से सम्बधित तालमेल किसी प्रकरण की फाइल।

मिसिल :: (सं. स्त्री.) सिलसिला, क्रम।

मिस्त्री :: (सं. पु.) राज, कारीगर, बढ़ई, लुहार, मैकेनिक।

मिस्सी :: (सं. स्त्री.) दाँतों को बैगनी रंग से रँगने का प्रसाधन अब चलन में नही है।

मिहरवानी :: (सं. स्त्री.) कृपा।

मिहराव :: (सं. स्त्री.) छत और दरवाजे की आन्तरिक गोलाई डाट।

मिहिल :: (सं. पु.) महल, भव्य भवन, राजसी आवास।

मींग :: (सं. पु.) दाने का अंकुरित होने वाला भाग।

मीचबौ :: (क्रि.) आँखे बन्द करना।

मींजा :: (सं. पु.) एक पकवान।

मींजान :: (सं. पु.) जोड़ संख्याओं का योग, आय व्यय के हिसाब का मिलान, व्यय के अनुसार आय का प्रबन्ध।

मीटर :: (सं. पु.) किसी इकाई को दर्शाने वाली छड़, ३९.३ इंच लंबाई के नाप की इकाई (अकर्मक.)।

मीटिंग :: (सं. स्त्री.) सभा, प्रमुख रूप से राजनैतिक दलों की सभा।

मीठी :: (वि.) मधुर, गड़-शक्कर जैसे स्वाद वाली, स्वादिष्ट मधुरभाषी, कपट-भाषा बोलने वाली।

मीठो :: (वि.) जिसमें मिठास हो, मधुर रसवाला, प्रिय, उदाहरण-मीठो तेल-तिल का तेल, मीठो पानी-वह जल जिसमें खारापन न हो, कुँए का मधुर जल।

मीड़ :: (सं. स्त्री.) तबले या ढ़ोलक पर थाप की आवाज जिसमें थाप के स्वर को लम्बा करने के लिए हथेली को खिसका दिया जाता है।

मीड़बौ :: (क्रि.) मसलना, कड़े हाथों से मालिश करना।

मीड़ा :: (सं. पु.) पानी में बनायी गयी बेसन की कढ़ी।

मीत :: (सं. पु.) हितैषी, शुभचिन्तक, मित्र।

मीन :: (सं. स्त्री.) मछली, एक राशि।

मीन :: (कहा.) मीन भके सो सब भके, बचो न एकउ माँस।

मीना :: (सं. पु.) चाँदी के आभूषणों पर रासायनिक प्रक्रिया द्वारा की गयी रंग-साजी, एक जाति।

मीनार :: (सं. स्त्री.) मस्जिदों के साथ बने स्तम्भ।

मीर :: (सं. पु.) ताश में फोटो वाले (गुलाम, बेगम, बादशाह), पत्ते, सरदार।

मीरा :: (सं. पु.) प्रसिद्ध भक्त कवयित्री, प्रायः स्त्री नाम में प्रयुक्त, विशेषण. प्रथम, अगुआ।

मुआठो :: (सं. पु.) महुओं का कर।

मुँआबजौ :: (सं. पु.) प्रतिपूर्ति, क्षतिपूर्ति, किसी हानि के बदले दी जाने वाली राशि।

मुआँयनों :: (सं. पु.) निरीक्षण।

मुआरौ :: (सं. स्त्री.) महुआ बीनने वाला।

मुँआँसे :: (सं. पु.) मुहाँसे चेहरे पर होने वाली फुंसियाँ, जो तैलीय त्वचा और पेट की खराबी के कारण प्रायः युवावस्था में होती है।

मुई :: (सं. स्त्री.) एक मछली।

मुँई :: (सं. स्त्री.) घास की नोंक।

मुईयाँ :: (सं. स्त्री.) मुख, मुँह।

मुकट :: (सं. पु.) मुकुट।

मुकटऊ :: (वि.) जिस गाय के सींग मुकुट जैसे मुड़े हो।

मुकटा :: (सं. पु.) मुखौटा, नकली चेहरा।

मुकतास :: (सं. पु.) मुक्ताकाश, कार्य करने या रहने के लिए पर्याप्त स्थान।

मुकती :: (सं. स्त्री.) मुक्ति, जीवन-मरण के चक्कर से छुटकारा, किसी कार्य से निवृत्त, पर्याप्त मात्रा या संख्या में (विसेषण स्त्रीलिगं.)।

मुकद्दम :: (सं. पु.) मजदूरों की हाजिरी भरने वाला तथा उनसे काम लेने का उत्तरदायी व्यक्ति।

मुकद्दमा :: (सं. पु.) न्यायालय के समक्ष निर्णय हेतु विवाद प्रकरण।

मुकरबा :: (सं. पु.) अन्त्येष्ट स्थल पर बनाया गया स्मारक, मकबरा।

मुकरबौ :: (क्रि.) दिये हुए वचन या लिखे हुए उत्तरदायित्व का निर्वाह न करना।

मुकरमेल :: (वि.) दिए हुए आदेश की अनसुनी करने या उसके पालन करने को इंकार न करते हुए भी टाल-मटोल करने वाला।

मुकाबलौ :: (सं. पु.) सामना, प्रत्यक्ष, बातचीत, स्पर्धा।

मुकावला :: (सं. पु.) मता, बराबरी, तदरूपता, स्पर्धा।

मुक्की :: (सं. स्त्री.) पहलवानों द्वारा शरीर की थकान मिटाने के लिए शरीर पर लगवाये जाने वाले हलके-हलके मुक्के।

मुक्ख :: (वि.) मुक्ख, प्रमुख, प्राथमिकता प्राप्त।

मुक्त :: (वि.) जीवन-मरण से निवृत्त, किसी कार्य से निवृत्त।

मुक्ती :: (सं. स्त्री.) दे. मुकती।

मुखना :: (वि.) जिसकी दाढ़ी-मूँछ न आती हो।

मुखबर :: (सं. पु.) अपराधियों में से तह जो अपना अपराध स्वीकार कर कानून की सहायता करता है और अपने साथियों का अता-पता बताता है, मुखबिर।

मुखबरी :: (सं. स्त्री.) मुखबिर का कार्य, मिलकर रहस्य जानने का प्रयास।

मुखारी :: (सं. स्त्री.) प्रातः उठकर मुँह साफ करने की क्रिया, दातोंन।

मुखिया :: (सं. पु.) किसी जाति, कबीले या गाँव का प्रमुख व्यक्ति।

मुख्तयार :: (सं. पु.) मुख्तार, किसी जाति, कबीले या गाँव का प्रमुख व्यक्ति।

मुख्तयारनामा :: (सं. पु.) मुख्तयार नियुक्त करने का अधिकार पत्र।

मुख्तयारी :: (सं. स्त्री.) किसी की ओर से अपना उत्तरगदायित्व जताने का प्रयास, मुख्तयार का कार्य, प्रतिनिधत्व।

मुँगदर :: (सं. पु.) बाहुओं के व्यायाम के लिए लकड़ी के हत्थेदार तथा वजनी टुकड़े, जमीन को कूटकर समतल करने का एक उपकरण।

मुगरदम्मा :: (सं. पु.) बेवकूफ आदमी।

मुँगरा :: (सं. पु.) गोल मुठियादार लकड़ी जो ठोंकने पीटने के काम आती है।

मुँगरा :: (सं. पु.) एक पक्षी।

मुगरिया :: (सं. स्त्री.) गर्दन, तालाब का पानी, निकास की नाली, कपड़ा धोते समय कपड़ा कूटने के लिए प्रयोग किये जाने वाला डण्डा।

मुँगरिया :: (सं. स्त्री.) मूँगरी, कपड़ो या किसी अन्य वस्तु को कूटने के लिए हत्थेदार लकड़ी।

मुँगी :: (सं. स्त्री.) मूँगा के गोल तथा कुछ लम्बे गुरिया, पहले सौभाग्यवती स्त्रियाँ इन्हें काली पोत के साथ गुहकर मंगलसूत्र के रूप में गले में पहनती थी।

मुग्गा :: (सं. पु.) ऐसा व्यक्ति जिसकी सामाजिक पृष्ठभूमि तो कुछ भी न हो किन्तु हर बात में टाँग अड़ाने का शौक हो, व्यर्थ मुँह उठाये घूमने वाला, इस शब्द का अर्थ अस्थिर है।

मुचण्ड, मुचण्डा :: (वि.) मोटा, तगड़ा, मजबूत कद-काठी का।

मुचर्र :: (वि.) मुँहजोर, अमर्यादित, वाचाल, मजबूत कद-काठी वाला।

मुचर्रका, मुचलका :: (सं. पु.) अपनी ही सम्पत्ति की जमानत, न्यायालय में नियत तिथि पर उपस्थित न होने पर अपनी सम्मत्ति से नियत राशि वसूल करने का अधिकार पत्र।

मुच्चौ :: (सं. पु.) लाठी को नोंक से किया जाने वाला प्रहार।

मुच्छड़, मुछन्दर :: (वि.) बड़ी-बड़ी झबरी मूंछों वाला, संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त (व्यंग्य प्रयोग)।

मुछारिया :: (वि.) जवान या बड़ी उम्र का जिसकी मूँछे उग आयीं हो।

मुँज :: (सं. पु.) जोड़, उदाहरण-मुँजबो-जोड़ मिलाना।

मुजरा :: (सं. पु.) क्षत्रियों में प्रचलित अभिवादन की पद्धति, इसमें थोड़ा झुककर कहा जाता है-मुजरा पोंचै जू, रण्डी का नाच।

मुजलिस :: (सं. स्त्री.) भरपाया, किसी वस्तु के बदले प्राप्त होने वाली वस्तु या राशि, इसमें लेने वाले की अधिक रूचि रहती है।

मुञ्ज :: (सं. स्त्री.) पूँजी।

मुटयाबो :: (अ. क्रि.) मोटा होना, घमण्डी हो जाना।

मुटाई :: (सं. स्त्री.) मोटा होने का माप।

मुटापौ :: (सं. पु.) मोटापा, मोटापन।

मुटाबौ :: (क्रि.) मोटा होना।

मुटार :: (सं. स्त्री.) डुबकी, गोता।

मुट्टा :: (सं. पु.) बड़ी मुट्ठी, हत्था।

मुट्ठक :: (वि.) लगभग एक मुट्ठी।

मुट्ठक :: (कहा.) कभऊँ शक्कर घना, तौ कभऊँ मुट्ठक चना।

मुठखील :: (सं. स्त्री.) हलकी मुठिया को निकलने से रोकने के लिए लगायी जाने वाली लकड़ी की कीला।

मुठयाबो :: (सं. पु.) मुठी में लेना, गहने को मुठी में लेकर रेती से साफ करना, सुनार।

मुठिया :: (सं. स्त्री.) हल का हाथ में पकड़ने वाला भाग, हत्था, बेंत, मूंठ।

मुठी :: (सं. स्त्री.) मुट्ठी, बहुत छोटे बच्चों का लकड़ी का खिलौना जिसके दोनों तरफ लकड़ी की घुण्डियाँ बनी रहती है।

मुठौरा :: (सं. पु.) हस्तमैथुन।

मुड़चड़वा :: (सं. स्त्री.) व्यर्थ की बहस, बकबक, अधिक और फालतू बातें (यौगिक शब्द.)।

मुड़चड़ा :: (वि.) सिरचड़ा अपनी हैसियत से अधिक बढ़ावा दिया हुआ (व्यक्ति), उलझन भरा कार्य जिससे सिरदर्द हे लगे, बहस करके सिरदर्द पैदा कर देने वाला व्यक्ति, यौगिक शब्द।

मुड़चड़ी :: (सं. स्त्री.) दे. मुड़चड़वा, यौगिक शब्द।

मुड़चिरा, मुड़चीरा :: (वि.) अपनी बात मनवाने या जिद पूरी करवाने के लिए पीछे लगा रहने वाला, डराने-धमकाने पर अपनी जिद न छोड़ने वाला, यौगिक शब्द।

मुड़थपरी :: (क्रि.) एक खेल, सिर पर हल्की सी चपत लगा देना।

मुड़बौ :: (क्रि.) मुण्डन कराना, धोखा देना, सन्यास ग्रहण करना, धन का अव्य. हो जाना।

मुड़भेरो :: (सं. पु.) मुठभेड़, टक्कर, भेंट।

मुड़याबौ :: (क्रि.) सिर पर लेना, अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेना।

मुड़वारे :: (वि.) पक्की मोटी किनारों वाला।

मुड़वारे :: (प्र.) मुड़वारे कौ पिछौरा।

मुंडा :: (सं. पु.) झुके सींगों का बैल, सादा देशी जूता।

मुड़ाइ :: (सं. स्त्री.) मुड़ने की क्रिया।

मुड़ाइ :: दे. मुड़बौ, मुण्डन करवाने का पारिश्रमिक।

मुँड़ाई :: (सं. स्त्री.) मुँड़ने की क्रिया या भाव, मूँड़ने की मजदूरी।

मुड़ाबौ :: (क्रि.) सिर घुटवाना।

मुड़ाबौ :: (कहा.) गंगा गँयँ मुड़ाँयँसार है - गंगा किनारे जाकर मुण्डन कराना ही हितकर है।

मुड़ायछौ :: (सं. पु.) सिर ढ़कने के लिए बाँधा जाने वाला वस्त्र, साफा आदि।

मुड़िया :: (वि.) एडवर्ड सप्तम की छाप वाला रूपया।

मुड़िया :: (सं. स्त्री.) छत की पट्टी, मुड़ेर।

मुड़ी :: (सं. स्त्री.) सिर।

मुड़ी :: (वि.) गुड़ी-मुड़ी शब्द युग्म में प्रयुक्त, बुरी तरह मुड़ी हुई।

मुंडी :: (सं. स्त्री.) झुके सींगों की गाय।

मुड़ीसौ, मुड़ीछो :: (सं. पु.) सिरहाना, लेटते समय सिर की दिशा, तकिया, सिर के नीचे रखा जाने वाला आधार।

मुँडेर :: (सं. स्त्री.) मेड़, मुँड़ेरा, मकान की छत के चारों ओर कुछ-कुछ उठा हुआ ऊपरी भाग, चद्दरा की किनार।

मुड्ड :: (सं. पु.) समाज के प्रतिष्ठित एवं प्रमुख लोग।

मुण्डा :: (सं. पु.) गोल नोंक का जूता, घुटे हुए सिर वाला विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त।

मुण्डौ :: (सं. पु.) अनाज की दाँय के बाद बची हुई बालियों के अग्रभाग जिनके दाने कूट कर अलग करने पड़ते हैं या पृथक से दाँय करना पड़ती है।

मुतकौ :: (वि.) पर्याप्त मात्रा में, बहुत, मुतके-अधिक संख्या में।

मुतकौ :: (वि.) बहुत, अधिक।

मुतना :: (सं. पु.) अधिक मूतने वाला, अहीरों को दी जाने वाली एक गाली।

मुतराँद :: (सं. स्त्री.) पेशाब की दुर्गंध।

मुता :: (वि.) अधिक पेशाब करने वाला, कपड़ों में पेशाब कर लेने वाला, पेशाब करने वाला।

मुतान :: (सं. पु.) मूत्र संस्थान, मूत्र नलिका और उसके आसपास का स्थान तथा अण्डकोष।

मुतास :: (सं. स्त्री.) मूत्रत्याग की इच्छा, पेशाब करने की हाजत।

मुतासौ :: (वि.) जिसे पेशाब लगी हो।

मुतियाँ :: (सं. पु.) छोटे मोती, नकली मोती (बहुवचन में प्रयुक्त)।

मुतू :: (सं. स्त्री.) बच्चों की मूत्र त्याग की क्रिया (अप्रत्ययवाची प्रयोग)।

मुँदबो :: (क्रि.) बन्द होना, अवरूद्ध होना।

मुँदरी :: (सं. स्त्री.) मुद्रिका, अगूँठी।

मुदार :: (वि.) दे. मुरदार।

मुँदार :: (सं. स्त्री.) कुल्हाड़ी का पिछला भाग जो हथौड़े की तरह चपटा होता है।

मुँदारौ :: (वि.) मुदार की तरफ से (क्रियविशेषण. के रूप में भी प्रयुक्त)।

मुँदिया :: (सं. स्त्री.) पान, तेंदू या अन्य पत्तों की गिड्डी, एक सौ पत्तों की गिड्डी।

मुद्दइ :: (सं. पु.) अभियोग लगाने वाला, मुकदमा दायर करने वाला, दावा करने वाला।

मुद्दत :: (सं. पु.) लम्बा समय, अधिक समय, अतिकाल, अवधि।

मुद्दती :: (वि.) प्राचीन, दीर्घायु प्राप्त, बहुत पुराना।

मुनइँयाँ :: (सं. स्त्री.) लाल रंग की गौरईया जैसी चिड़िया, गौरईया।

मुनक्का :: (सं. स्त्री.) बड़ी दाख जिसमें बीज होते हैं।

मुनगा :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी लम्बी फलियाँ होती है, इनका शाक बनता है जो पेट के लिए लाभकारी माना है, मीठा सहजन।

मुनारौ :: (सं. पु.) कुँए का ऊपरी भाग (भूमि के समतल बँधान)।

मुनिया :: (सं. स्त्री.) हरी, लाल तेलिया।

मुनी :: (सं. पु.) तपस्वी, जैन साधुओं का एक स्तर।

मुनीम :: (सं. पु.) हिसाब -किताब रखने वाला कर्मचारी।

मुनीमी :: (सं. स्त्री.) हिसाब-किताब रखने की नौकरी।

मुन्तजिम :: (सं. पु.) जमींदारों के प्रबन्धक।

मुन्नयात :: (सं. पु.) सम्पत्ति, जायदाद।

मुन्नियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटी मथानी जो लस्सी आदि बनाने के लिए हथेलयों के बीच दबा कर घुमायी जाती है।

मुन्नू :: (सं. पु.) दे. मुन्ना, इसमें शैशव का भाव अधिक है।

मुफत :: (क्रि. वि.) मुफ्त, बिना लागत के, बिना मूल्य चुकाये, अकारण बिना प्रयास के।

मुबक्किल :: (सं. पु.) मुअक्किल, वकील का आसामी।

मुबलिग :: (क्रि. वि.) केवल, कुल, मात्र (रूक्का में रूपयों की संख्या के पूर्व लिखा जाता है)।

मुब्ब :: (सं. स्त्री.) ऐसी सुविधा जिसका मनमाना भोग किया जा सके और नियन्त्रण करने वाला कोई न हो। मुब्बा-बे रोक टोक।

मुरइया :: (वि.) ऊधमी, उपद्रवी।

मुरउअत :: (सं. स्त्री.) लिहाज, व्यवहार की कोमलता, संभ्रम।

मुरकबौ :: (क्रि.) मुड़ना, टूटना, आभूषणों आदि पर अलंकरण का झरना (थोड़ा-थोड़ा टूटना)।

मुरका :: (सं. पु.) भुने हुए महुओं और भुनी हुई तिली को कूटकर बनाया जाने वाला खाद्य पदार्थ।

मुरकाबो :: (सं. क्रि.) मोड़ना, फेरना, लौटाना।

मुरकी :: (सं. क्रि.) पुरूषों द्वारा पहिनी जाने वाली कानों की छोटी-छोटी बालियाँ, इनका ऊपरी भाग पतला तथा नीचे का भाग मोटा होता है।

मुरकैया :: (वि.) लौटने वाला, वापिस आने वाला।

मुरगा :: (सं. पु.) एक पक्षी, अरूणचूड़ जो बड़े सबेरे बोलता है और बहुत कम उड़ता है, प्रायः मांसाहार के काम आता है।

मुरचन :: (सं. पु.) बिरचुन, मिरचुन पीसकर बनाया हुआ बेर का चूर्ण।

मुरचा :: (सं. पु.) जंग।

मुरची :: (सं. स्त्री.) राँगा व सीसा मिला हुआ बारीक झूरन।

मुरज :: (सं. पु.) पूर्व काल में प्रचलित मुँह से बजाया जाने वाला लोक बाद्य, मुँहचंग, मुँह से तबले जैस बोल निकालने की क्रिया।

मुरज्याबौ :: (क्रि.) मुरझाना, कुम्हलाना, हतश्री होना, चेहरे पर थकान या भूख के लक्षण प्रकट होना।

मुरझाबो :: (क्रि.) मुरझाना।

मुरदा :: (सं. पु.) शव, मरी हुई देह विशेषण. रूप में भी प्रयुक्त।

मुरदार :: (वि.) आलसी ढीले-ढाले व्यक्तित्व वाला तथा काम को वे मन से करने वाला देखने से ही जो अशुभ लगे।

मुरबायतो :: (सं. पु.) मूली के पत्तों की सब्जी।

मुरब्बा :: (सं. पु.) शक्कर की चासनी में पकाया हुआ फल, क्षेत्र फल।

मुरमुरा :: (सं. पु.) मुलायम, लाई।

मुरली :: (सं. स्त्री.) वंशी, बाँसुरी, अधिकतर भगवान, श्री कृष्ण के संदर्भ में प्रयुक्त।

मुरहा :: (वि.) धृष्ट, शैतान।

मुराटा :: (वि.) जो बचपन में माँ बाप मर जाने के कारण अनुशासनहीन और उच्छृंखल हो गया हो, अत्याचारी।

मुराद :: (सं. स्त्री.) मनोरथ, हार्दिक इच्छा, अभिलाषा, अभिप्राय।

मुराबौ :: (क्रि.) चबाना।

मुरायछौ :: (सं. पु.) बड़ा तुर्रादार साफा।

मुरायछौ :: दे. मुरैठ।

मुरार :: (सं. पु.) मोटे कमल नाल जो शाक बनाने के काम आते हैं।

मुरारी :: (सं. पु.) भगवान श्री कृष्ण।

मुरेठा :: (सं. पु.) सिर पर कुछ रखकर ढोते समय बाँध लिया जाने वाला कपड़ा।

मुरेठी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की लता और उसकी जड़ जो दवा के काम आती है।

मुरेर :: (सं. स्त्री.) रास्ते का मोड़ा, छत की पट्टी (मुड़ेर)।

मुरेरबौ :: (क्रि.) मोड़ना, बात का रूख बदलना।

मुरैटा :: (वि.) दे. मुराटा।

मुरैला :: (वि.) मरणासन्न, मरा हुआ।

मुर्गा :: (सं. पु.) दे. मुरगा।

मुर्दा :: (सं. पु.) दे. मुरदा।

मुर्रा :: (वि.) भैंस की एक दुधारू जाति।

मुलक :: (सं. पु.) बहुत, अधिक मात्रा में।

मुलक :: (वि.) परदेश, देश।

मुलक बो :: (अ. क्रि.) मुस्काना, मुकुलित होना, पुलकित होना।

मुलजिम :: (सं. पु.) अभियुक्त।

मुलमियत :: (सं. स्त्री.) कोमलता।

मुलम्मा :: (सं. पु.) एक धातु पर चढ़ाया गया दूसरी धातु का पानी, नकली तड़क-भड़क झूठा व्यवहारा।

मुलयाबौ :: (क्रि.) मोल-भाव करना।

मुलाखात :: (सं. स्त्री.) भेंट, परिचय, मुलाकात।

मुलाखाती :: (सं. पु.) भेंट करने वाले, परिचित, कैदियों के सम्बन्धी जो जेल में मिलने जाते हैं।

मुलाजिम :: (सं. पु.) वेतन पर कार्य करने वाले सेवक, कर्मचारी।

मुलाम :: (वि.) मुलायम, कोमल।

मुलायजौ :: (सं. पु.) लिहाज, मर्यादा, संभ्रम, पूर्ण व्यवहार।

मुलिया :: (सं. स्त्री.) एक स्त्री. नाम (जो मूल नक्षत्र में पैदा हुई हो)।

मुलू :: (सं. पु.) एक पुरूष का नाम (जो मूल नक्षत्र में पैदा हुआ हो)।

मुलैठी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी औषधि, घुँगची की जड़ जो खाँसी की दवा के काम आती है तथा स्वाद में मीठी होती है।

मुल्ला :: (सं. पु.) नमाज की अजान लगाने वाला, मुसलमानों के धार्मिक संस्कार कराने वाला व्यक्ति।

मुल्ली :: (सं. स्त्री.) मुरली, वंशी, बाँसुरी, एक पुरूष का नाम।

मुँस :: (सं. पु.) पति।

मुँस :: (कहा.) खुंस पँ मुंस नँइँ मिलो तौ फिर का चूले में देने।

मुसकल :: (वि.) कठिन।

मुसकल/मुसक्कल :: (सं. स्त्री.) कठिनाई, विपत्ति।

मुसक्याट :: (सं. स्त्री.) मुस्कराहट, मंद हास्य, मुख पर फैला हुआ आंतरिक प्रसन्नता का भाव।

मुसक्याबौ :: (क्रि.) मुस्कराना।

मुसंडा :: (सं. स्त्री.) दे. मुसण्डा।

मुसण्डा :: (सं. पु.) ऐसे हृष्ट पुष्ट जवान जो अपनी शक्ति के प्रदर्शन के प्रति जागरूक रहते हैं, मुसण्डा।

मुसद्दी :: (सं. पु.) ऐसा चपरासी जो रजिस्टरों की मरम्मत करता है तथा डाक के लिए लिफाके बनाता है, रद्दी-मुसद्दी शब्द युग्म. में बेकार के अर्थ में प्रयुक्त।

मुसन्ना :: (सं. पु.) प्रमाण पत्र की द्वितीय प्रति (अब प्रचलित)।

मुँसफी :: (सं. स्त्री.) न्यायालय का एक स्तर, छोटी अदालत।

मुसब्बर :: (सं. पु.) एक काला पदार्थ (जो फोड़े की दवा की काम आता है।)।

मुसमुसौ :: (वि.) खस्ता, थोड़े से दबाब से भुरभुरा जाने वाला।

मुसयाल :: (सं. स्त्री.) घास की एक अच्छी किस्म।

मुसरया :: (वि.) अनाड़ी जो शक्ति के साथ बुद्धि का योग करके काम नहीं करता है।

मुसरयाई :: (सं. स्त्री.) अनाड़ीपन, अनाड़ीपन से किया हुआ कार्य।

मुसरिया :: (स्त्री. सं.) खरल में कूटने की मसूली।

मुसलमान :: (सं. पु.) मुहम्मद साहब द्वारा प्रवर्तित धर्म को मानने वाला (विशेषण. रूप में भी प्रयुक्त)।

मुसलमानी :: (वि.) मुसलमानों के ढंग का।

मुसलमानी :: (सं. स्त्री.) खतना, एक मुस्लिम संस्कार, सुन्नत।

मुसल्ला :: (सं. पु.) नमाज के लिए बिछाया जाने वाला आसन।

मुसाफर :: (सं. पु.) यात्री, मुसाफिर।

मुसाफरखानों :: (सं. पु.) यात्रियों के ठहरने का स्थान।

मुसाब :: (सं. पु.) मुसाहिब, राजा या जागीरदारों के साथ उठने बैठने और दिल बहलाने के लिए साथ-साथ रहने वाले सरदार।

मुँसी :: (सं. पु.) कर्मचारी जो लिखा पढ़ी करता है, क्लर्क।

मुसीका :: (सं. पु.) बैल चरने न पाये इसके लिए उनके मुँह पर बाँधी जाने वाली जाली की टोपी, मुसीका बाँदबो-अन्न जल का त्याग करना।

मुसीबत :: (सं. स्त्री.) विपत्ति, झंझट, कठिनाई।

मुँसेलू :: (सं. पु.) पुरूष, युवक।

मुस्कयाट :: (सं. स्त्री.) मुस्कराहट।

मुस्कयाट :: दे. मुसक्याट।

मुस्कयाबौ :: (क्रि.) मुस्काना।

मुस्कयाबौ :: दे. मुसक्याबौ।

मुस्कें :: (सं. स्त्री.) कलाइयाँ, मुस्कें बाँधना, कलाइयों को एक दूसरी पर रख कर बाँधना (बहु वचन. में प्रयुक्त)।

मुस्टका :: (सं. स्त्री.) मुस्टिका, गदा, बलराम जी, हनुमान जी, भीम और दुर्योधन का प्रिय अस्त्र।

मुस्ता :: (सं. पु.) खोंचे के प्रकार का बना लकड़ी का उपकरण जो शक्कर, बूरा या पेड़ों का क़ुन्दा (चासनी और खोया) घोंटने के काम आता है।

मुहब्बत :: (सं. स्त्री.) प्यार, प्रेम के सामान्य अर्थ में भी प्रयुक्त, प्यार विशेषकर स्त्री-पुरुष में लैंगिक आकर्षण के कारण बढ़ने वाली निकटता।

मुहर :: (सं. स्त्री.) पद-मुद्र सोने का एक तोला वजन का मुसलमान शासकों का एक सिक्का।

मुहर्रर :: (सं. पु.) वह सिपाही जो थाने में क्लर्क का काम करता है, काँजी हाउस का मुंशी।

मुहल्ला :: (सं. पु.) नगर का एक सीमित भाग जिसमें लगों के पारस्परिक सम्बन्ध अधिक होते हैं, मुहल्ला।

मुहामुही :: (सं. पु.) आमने सामने, प्रत्यक्षीकरण।

मुहार :: (वि.) अहीरों के एक जाति।

मुहाल :: (सं. पु.) खेतों का मुहल्ला।

मुहावरौ :: (सं. पु.) अभ्यास।

मुँहासे :: (सं. पु.) दे. मुआँसे।

मुहूरत :: (सं. पु.) दे. महूरत।

मूक :: (वि.) गूंगा, मौन, विवश, मूकबो।

मूक :: (क्रि.) डालना।

मूका :: (सं. पु.) धूसा, घमूका, मुक्का।

मूँग :: (सं. स्त्री.) एक दलहनी अनाज।

मूँगा :: (सं. पु.) लाल रंग का अपारदर्शी रत्न जो समुद्र में पाया जाता है तथा मंगल ग्रह की शांति हेतु धारण किया जाता है।

मूँगिया :: (वि.) कालिख लिए गहरा हरा रंग, मूँग जैसा रंग।

मूँछ :: (सं. स्त्री.) पुरूषों के ऊपरी ओंठ और नाक के बीच उगने वाले बाल, पुरूष के पौरूष और प्रतिष्ठा के प्रतीक, मूंछे उखारबो-घमंड चूर करना, मूंछन पै ताव दैवो, मूछों के सिरों को मरोड़ना, वीरता की अकड़ा दिखाना।

मूँछ मुड़बाबो :: (क्रि.) पुरूषत्व का दावा त्याग देना।

मूँछन बरे :: (वि.) गाली।

मूँज :: (सं. स्त्री.) काँस की जाति की एक घास जिससे खटिया बुनने की रस्सी बनती है।

मूँजौ :: (सं. पु.) गेहूँ आदि अनाज के एक पौधे में बहुत् से कल्लों का युद्ध।

मूँठ :: (सं. पु.) दस्ता, मुट्ठी, मुट्ठी भर चीज, एक प्रकार का तंत्र प्रयोग, मूँठ मारबो-मारने के लिए मंत्र पढ़कर शत्रु की ओर की चीज फेंकना।

मूँठ :: (सं. स्त्री.) तलवार का हत्था, एक तांत्रिक मारण अभिचार, मूँठ मारना।

मूठा :: (सं. स्त्री.) हत्था, दस्ता, बेंट, मुष्टि।

मूठा :: (सं. पु.) मोर पंखों का, दातुनों का।

मूँठा :: (सं. पु.) लंबी वस्तुओं का इतना गट्ठा जो एक हाथ की उँगलियों और अँगूठे के बीच समा सके।

मूड़ :: (सं. पु.) सिर।

मूँड़ :: (सं. स्त्री.) मुण्ड, सिर मूँड़नो-।

मूँड़ :: (सं. पु.) शिशु का जन्म के बाद प्रथम मुण्डन जो सोलह हिन्दू संस्कारो में से एक है।

मूँड़बौ :: (क्रि.) मुण्डन करना, किसी को बेवकू फ बनाकर ठगना, साधुओं द्वारा किसी को शिष्य बनाना।

मूड़ा :: (सं. पु.) खास रोटी का घर।

मूँड़ा :: (सं. पु.) बैठने के लिए गोल पीढ़ा।

मूँड़ौ :: छोर, कंधे का ऊपर उठा हुआ भाग (गाय का)।

मूत :: (सं. पु.) मूत्र, पेशाब।

मूँत :: (सं. पु.) मूत्र, औरस, शरीर की रचना के लिए डाला जाने वाला वीर्य।

मूतना :: (क्रि.) पेशाब करना।

मूँतबौ :: (क्रि.) मूत्र त्याग करना।

मूँद :: (सं. स्त्री.) कुल्हाड़ी का वह भाग जिसमें बेंट डालने के लिए एक छेद होता है, महुँओं को गर्मियों में खूब सुखाकर कूट कर डलियों में खूब दाब कर बंद करके रख देने के मूँद कहते हैं।

मूँदबौ :: (क्रि.) बंद करना, आँखे बंद करना, छिद्र बंद करना, अवरूद्ध होना।

मूँदा :: (वि.) बंजर, बिना जुती भूमि।

मूँर :: (सं. पु.) मूलधन।

मूँर :: (कहा.) ब्याज मूर से प्यारौ होत।

मूँर :: (सं. स्त्री.) जड़ (पीपरामूर, पैकमूर आदि)।

मूरख :: (वि.) मूर्ख, नासमझी।

मूँरख :: (वि.) मूर्ख, अज्ञान, निर्बुद्धि।

मूँरखताई :: (सं. स्त्री.) मूर्खता।

मूँरखागती :: (सं. स्त्री.) मूर्खता का वातावरण, मूर्खतापूर्ण स्थिति।

मूँरछा :: (सं. स्त्री.) मूर्छा, बेहोशी, संज्ञा शून्यता।

मूरत :: (सं. स्त्री.) मूर्ति, बिम्ब, विग्रह।

मूरा :: (सं. पु.) मूली।

मूरौ :: (सं. पु.) गायृभैंस का स्तन मण्डल।

मूल :: (सं. पु.) २७ वाँ नक्षत्र, जड़, असली भाग, छोड़ प्रथम भाग, पूँजी।

मूली :: (सं. स्त्री.) एक चरपरी मीठी जड़ वाला पौधा जिसकी जड़ वैसे ही खाते हैं और पत्तों का शाक बना के खाते हैं।

मूस :: (सं. पु.) चूहा, मूसक।

मूसबौ :: (क्रि.) चुराना।

मूसबौ :: (मुहा.) हर मूसकें, हरण करके, चोरी करके।

मूसर :: (सं. पु.) मूसल, धान कूटने का उपकरण, बलराम जी का अस्त्र।

मूसरा :: (वि.) स्वभाव, मूर्ख।

में :: (सर्व.) मैं, अहम, अधिकरण कारक चिन्ह।

मेई :: (सर्व.) मेरी, हमारी।

मेंओ :: (सं. पु.) (ओ का हस्व उच्चारण) जल मेघ।

मेकचा :: (सं. पु.) मवेशी बाँधने की लकड़ी, खूँट।

मेंकबो :: (क्रि.) फेंकना।

मेंकबौ :: (क्रि.) फेंकना।

मेका :: (सं. स्त्री.) गगरी, मटकी।

मेंकाकौ :: (क्रि. वि.) फेंककर (मारना)।

मेखा :: (सं. स्त्री.) १२ राशियों में से पहली-मेष।

मेखी :: (वि.) छिद्रदार, हजार मेखी कथरी के लिए प्रयुक्त।

मेघा :: (सं. पु.) बादल।

मेज :: (सं. स्त्री.) टेबिल (अंगरेजी)।

मेंजत :: (सं. स्त्री.) मस्जिद।

मेंजत :: दे. मज्जित।

मेंटनहार :: (सं. पु.) मिटाने या अमान्य करने वाला (पदरूप, विधि को लिखौ को मेंटनहार में प्रयुक्त)।

मेटबो :: (सं. क्रि.) मिटाना।

मेंटबो :: (क्रि.) मुकरना, वायदे से हटना, मिटाना, पूर्व निश्चित को अमान्य करना।

मेठ :: (सं. पु.) मेट (अंग्रेजी.) मजदूरों से काम करवाने वाला।

मेंड :: (सं. स्त्री.) खेत सीमा पर निकलने के लिए छोड़ी गयी बिना जुती जमीन, ऊँचा घेरा, मिट्टी।

मेड़या :: (सं. पु.) वह बैंल जिसके सींग मेढ़े की तरह मुंडे हों।

मेंडल :: (सं. पु.) तमगा, छाती पर लटकाया जाने वाला पुरस्कार प्रतीक (अंग्रेजी. मेंडल)।

मेंड़ा :: (सं. पु.) भेड का नर।

मेड़ाबाबा :: (सं. पु.) गाँव की खेत खलिहानों सहित सीमा पर रक्षा करने वाले ग्राम सीमांकन करने के लिए लगाया गया बड़ा पत्थर जिसको लोग इस नाम से पूजने लगे है यौगिक शब्द।

मेंड़िया :: (सं. पु.) खेतों के पड़ोसी, जिनके खेत अपने खेतों से लगे हों।

मेंड़िया :: दे. मिड़ौरया।

मेंड़ी :: (सं. स्त्री.) खलिहान के बीच में गाड़ी जाने वाली लकड़ी जिसके चारों ओर घूम-घूम कर बैल अनाज की दाँय करते हैं।

मेंड़ौ :: (सं. पु.) ग्राम की सीमा।

मेंड़ौ :: दे. मेंडा बाबा, नर भेड़।

मेंतर :: (सं. पु.) सफाई करने वाली एक जाति, मेहतर।

मेंतरानी :: (सं. स्त्री.) मेहतर जाति की स्त्री।

मेथी :: (सं. स्त्री.) एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी खेत होती है, उक्त पौधे के बीज।

मेंथी :: (सं. स्त्री.) मसाले के काम आने वाला एक बीज या दाना, यह बात-रोगों तथा उदर रोगों की दवा के काम में भी आती है।

मेंदना :: (सं. पु.) काम करने के लिए प्रशस्त स्थान मैदा।

मेंदा :: (सं. स्त्री.) विशेष विधि से बनाया गया गेहूँ का अत्यंत बारीक आटा।

मेंदान :: (सं. पु.) खेलकूद या सभा आदि के योग्य प्रशस्त भूमिखण्ड।

मेंन :: (सं. पु.) मधुमक्खी के छत्ते में निकलने वाला मोम।

मेनका :: (सं. स्त्री.) स्वर्ग की एक अप्सरा।

मेंनत :: (सं. स्त्री.) मेहनत, परिश्रम, व्यायाम, कसरत।

मेंनतानो :: (सं. पु.) मेहनताना, पारिश्रमिक, शारीरिक या मानसिक श्रम के बदले किया जाने वाला भुगतान।

मेनती :: (वि.) मेहनती परिश्रम करने वाला, पुष्ट।

मेंना :: (सं. स्त्री.) मीठा बोलने वाला एक पालतू पक्षी जो मनुष्य की बोली की नकल कर लेता है, मैना।

मेंनार :: (सं. पु.) एक वृक्ष का फल जो पेट दर्द में काम आता है।

मेंन्त :: (सं. स्त्री.) मेहनत, जीविका, उपार्जन के लिए किया जाने वाला शारीरिक श्रम, परिश्रम।

मेन्तानो :: (सं. पु.) दे. मेंनतानो।

मेंन्ती :: (वि.) परिश्रमी, व्यायाम से पुष्ट शरीर।

मेंन्ती :: (सं. पु.) परिश्रमी से जीविका उपार्जन करने वाला, मजदूर, श्रमिक।

मेर :: (सं. पु.) प्रेमभाव, मित्रता, निकट संपर्क, निकटता, समतुल्यता।

मेरिया :: (सं. पु.) मित्र मिलने-जुलने वाले, साथ उठने बैठने वाला।

मेरो :: (सर्व.) मै, का संबंध सूचक विभक्ति से युक्त सार्वनामिक विशेषण रूप।

मेरोई :: (सर्व.) मेरा ही।

मेल :: (सं. स्त्री.) खेत में पानी देने के लिए बनाये गये छोटे-छोटे भाग मिलने की क्रिया समतुल्यता, टूटी हुई बातचीत के व्यवहार के पुनः स्थापित होने की क्रिया, मित्रता।

मेलबो :: (सं. क्रि.) मिलना, डालना, रूकना, ठहरना।

मेला :: (सं. पु.) विशेष अवसर या स्थान पर लगने वाली बड़ी हाट, तीर्थयात्रा के लिए जाने वालों का समूह जो मिलकर प्रस्थान करते हैं और साथ रहकर यात्रा पूरी करते हैं।

मेलान :: (सं. पु.) जन्मपत्रियों को मिलाने की क्रिया।

मेलाबो :: (क्रि.) ठहराना।

मेलिया :: (वि.) मिलने वाला, मेली-दोस्त मिलने वाला।

मेव :: (सं. पु.) दे. मेओ, जल, मेघ।

मेव :: (मुहा.) मेव-बूँद की बेरा।

मेव :: (सं. पु.) राजपूताने की एक जाति।

मेंहक :: (सं. स्त्री.) महक, गन्ध, अधिकतर दुर्गन्ध के लिए प्रयुक्त।

मेंहमा :: (सं. स्त्री.) महिमा, आध्यात्मिक शक्ति, अर्न्तशक्ति।

मेंहमान :: (सं. पु.) अतिथि, स्वागत योग्य आगंतुक।

मेहरा :: (सं. पु.) नपुंसक, हिंजड़ा, खत्रियों का एक भेद।

मेंहराव :: (सं. स्त्री.) छत या दरवाजे बनाने के लिए खड़ी ईटों और चूना या सीमेंन्ट से बनायी जाने वाली गोलाई, डाट।

मैं :: (सर्व.) अव्य. मय, सहित, मइ या मय जैसा उच्चारण नहीं है, उत्तम पुरूष का कर्ता का रूप।

मैअर :: (सं. स्त्री.) घी का मैल।

मैआ :: (सं. स्त्री.) माता, माँ।

मैकासुर :: (सं. पु.) एक देवता।

मैंगो :: (वि.) मँहगा।

मैंच :: (सं. पु.) खेल की स्पर्धा, समतुल्यता, एक दूसरे के साथ फबने की क्रिया (अंग्रेजी.)।

मैजिद :: (सं. पु.) वह भवन या स्थान जहाँ मुसलमान नमाज पढ़ते है, मसजित।

मैंड़ :: (सं. पु.) सीमा।

मैंड़ा :: मठा नापने का बर्तन।

मैतर :: (सं. पु.) मेहतर, भंगी।

मैंतर :: (सं. पु.) भंगी जाति, डोस।

मैंतर :: (स्त्री.) मैंतरानी।

मैथोरी :: (सं. स्त्री.) मैथी की बनी वस्तु।

मैदना :: (सं. पु.) प्रशस्त स्थान, किसी कार्य के लिए निर्बाध स्थान।

मैंदरो :: (सं. पु.) मेंढक।

मैंदा :: (सं. पु.) बहुत बारीक आटा जिससे बढ़िया पकवान और मिठायाँ बनती है।

मैदान :: (सं. पु.) दे. मैदान, खुला स्थान।

मैंदान :: (सं. पु.) चौड़ी चकरी, समतल जमीन, रणक्षेत्र, अखाड़ा।

मैंनत :: (सं. स्त्री.) मेहनत, श्रम, परिश्रम।

मैना :: (सं. स्त्री.) एक पक्षी, सारिका, पार्वती की माँ।

मैंना :: (सं. पु.) एक चिड़िया जो अपनी बोली की मिठास के लिए प्रसिद्ध है सारिका, पार्वती की माता का नाम।

मैनिया :: (सं. स्त्री.) वह बैल जिसके सींग लटकते हो।

मैनोटी :: (सं. स्त्री.) मैन में इच्छानुसार कली काटने का औजार, सुनार।

मैर :: (सं. पं.) दे. मेंर।

मैरठी :: (सं. स्त्री.) आतंक और छीना झपटी का वातावरण, मध्य प्रदेश के गुना शिवपुरी जिलों का कुछ भाग, उक्त क्षेत्र की बुन्देली अस्वाभाविक ढंग से बोली जाने वाली मिश्रित बोली।

मैरठी :: (कहा.) मरै न माँचो देय - न तो मरता है और न चारपाई छोड़ता है, बूढे के लिए।

मैरा :: (सं. पु.) मचान।

मैल :: (सं. पु.) शरीर या वस्त्रों पर लगी गंदगी कान या नाक का सूखा हुआ मल, धूल।

मैला :: (सं. पु.) गू, मल, (शिष्ट प्रयोग)।

मैलौ :: (वि.) गंदा, उदाहरण-मैलो-कुचेलो विशेषण. बहुत मैला।

मैहर :: (सं. पु.) सतना जिले में स्थित शारदा माता का प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ, प्रसिद्ध संगीतज्ञ एवं सरोद वादक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का कार्यस्थल इनके द्वारा स्थापित संगीत महाविद्यालय भी यहाँ है, विवाह के अवसर पर दिये जाने वाले पात्र समूह।

मों :: (सं. पु.) मुँह, मुख, चेहरा।

मोंका :: (सं. पु.) अवसर।

मोंखाद :: (वि. क्रि. वि.) मुखाग्र, मुँहजबानी।

मोंगबौ :: (क्रि.) चुप होना, रोना बंद करना।

मोंगर :: (सं. स्त्री.) बड़ी तथा सुआपंखी रंग की मूंग (दलहन)।

मोंगरा :: (सं. पु.) देशी जूते बनाने का फार्मा, कपड़ा धोने की लकड़ी, एक प्रकार बड़िया बड़ा बेला (फूल)।

मोंगा :: (वि.) चुप्पा, अधिकतर चुप रहे।

मोंगाबो :: (क्रि.) चुपकराना।

मोंगामसान :: (वि.) चुपचाप खड़ा रहने वाला (मूँगा)।

मोंगे मोंगे :: (क्रि. वि.) चुपचाप (यौगिक शब्द.)।

मोंघा :: (सं. पु.) नहर का भाग जहाँ से खेत को पानी जाता है।

मोंच :: (सं. स्त्री.) मोच, माँस-पेशी मरूड़ जाने से आयी चोट, किसी अंग के जोड़ की नस का खिसक जाना।

मोंचबौ :: (क्रि.) माँस-पेशी का मरूड़ जाने के कारण पीड़ित होना।

मोंचाई :: (सं. स्त्री.) समय बिताने या ऊब मिटाने के लिए की जाने वाली बातचीत।

मोंचायनों :: (सं. पु.) विवाह के बाद प्रथम बार ससुराल आयी वधू का मुँह देखने और बात करने तथा परिचय करने की रस्म, मुँह दिखाई, इस अवसर पर वधू को कुछ भेंट दी जाती है।

मोंज :: (सं. स्त्री.) मन की लहर, आनंद भाव, आनंद।

मोंजूद :: (क्रि. वि.) उपस्थित प्रत्यक्ष।

मोंजूदगी :: (सं. स्त्री.) उपस्थिति, मौजूदी।

मोंजौ :: (सं. पु.) थोड़ी आबादी वाला गाँव कृषि भूमि का एक तरफ का क्षेत्र, गाँव की कृषि भूमि के मुहल्ले, मौजा।

मोंजौ :: दे. मुहाल।

मोंटर :: (सं. स्त्री.) बस, लाँरी, विद्युत, चलित शक्ति यंत्र अकर्मक।

मोंटौ :: (वि.) मोटा, काली मिट् वाली भूमि।

मोंठेला :: (वि.) मुँहजोर किसी संभ्रम न मान कर अपनी बात के समर्थन में तर्क कुतर्क देने वाला।

मोड़ :: (सं. पु.) घुमाव, ऐंठन, फेर।

मोंड़ा :: (सं. पु.) लड़का (सामान्य अर्थ में)।

मोंड़ी :: (सं. स्त्री.) लड़की (सामान्य अर्थ में )।

मोंत :: (सं. स्त्री.) मृत्यु मरना।

मोंतयानों :: (क्रि. वि.) मरने के लिए तैयार सा मरणोन्मुख (विशेषण)।

मोंताज :: (वि.) मुहताज, परमुखापेक्षी।

मोंतियाँबिन्दी :: (सं. पु.) आँखों का एक रोग जिसमें आँख के सामने एक झिल्ली पड़ जाती है जिससे दृष्टि अवरूद्ध हो जाती है।

मोंती :: (सं. पु.) मोती, समुद्र से उत्पन्न होने वाला एक रत्न।

मोंतीझरा/मोंतीझला :: (सं. पु.) मियादी बुखार, टायफाइड जो लगभग तीन हफ्ते तक बना रहता है।

मोंतॉयदौ :: (क्रि. वि.) दे. मोंतयानों।

मोंथरौ :: (वि.) मोंथरा, कुण्ठित, जिसकी धार तेज न हो।

मोंथा :: (सं. पु.) नागरमोंथा, जल में पैदा होने वाली एक घास (गोंदरा) की सुगंधित जड़ें जो औषधियों तथा सुगन्धियों के बनाने के काम आती है यह बुंदेलखंड के नदी-नालों में बहुतायत में पैदा होता है।

मोंदरा :: (सं. पु.) भोजन करते समय थाली रखने के लिए लकड़ी या मिट्टी का मूँडा ये अधिकांश जैनियों में इस्तेमाल किया जाता ह।

मोंदलौ :: (सं. पु.) भरपाया, किसी वस्त्र के बदले में दी जाने वाली सममूल्य की दूसरी वस्तु, मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से किया जाने वाला भुगतान।

मोंन :: (सं. पु.) मोइन, तले हुए पकवानों को खस्ता बनाने के लिए आटे में मिलाया जाने वाला घी-तेल, चुप्पी।

मोंनभोग :: (सं. पु.) अधिक घी में भूना हुआ आटा तथा बूरा मिलाकर बनाया गया मिष्ठान्न।

मोनियाँ :: (सं. पु.) मोंनिया नृत्य बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह दीपावली के दूसरे दिन ग्रामों के कुछ।

मोन्द :: (सं. पु.) छोटा घड़ा जो बाजे के रूप में व्यवहृत होता है।

मोंराईछट :: (सं. स्त्री.) विवाह के बाद आषाढ़ में पड़ने वाली षष्ठि जिस दिन गा-बजाकर मोंर तथा विवाह पूजन सामग्री आदि को नदी तालाब में विसर्जित किया जाता है, (यौगिक शब्द)।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का अन्त. स्थ वर्ण इसका उच्चारण स्थान तालु है।

याद :: (सं. स्त्री.) स्मरण, निमंत्रण आदि की की सूची।

यानों :: प्रत्यय मुहल्ला या बस्ती का सूचक जैसे गदरयानों, बसुरयानों, सोंरयानों, कुरयानों, मितरयानों आदि।

यार :: (सं. पु.) मित्र समवयस्क और मित्रों में बहुतायत से प्रयुक्त सम्बोधन।

यार :: (स्त्री.) पुरूष की मित्रता के सन्दर्भ में हीन अर्थ में प्रयुक्त, लगभग अवैध सम्बन्धों का पर्याय।

यारी :: (सं. स्त्री.) मित्रता, स्त्री-पूरूष की मित्रता के सन्दर्भ में हीन अर्थ में प्रयुक्त, लगभग अवैध सम्बन्धों का पर्याय।

यारौ :: (वि.) जिस पर प्रेम हो, जिसे देखकर, प्रेम उमड़े सुन्दर।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का र का स्पर्श और ऊष्म वर्ण के मध्य वर्ण के मध्य वर्ण इसका उच्चारण स्थान जीभ के अगले भाग की मूर्धा के साथ कुछ स्पर्श करने से होता है।

रइया :: (सं. स्त्री.) तालाबों की पिछोर-(पिछले भाग) में सिंचाई के लिए खोदा जाने वाला छोटा कुँआ जिसमें नाली के द्वारा पानी तालाब से आता रहता है और उसमें से रँहट या अन्य साधन द्वारा पानी निकाल कर सिंचाई की जाती है।

रइसत :: (सं. स्त्री.) प्रजा।

रई :: (सं. स्त्री.) मथानी, दही मथने की लकड़ी।

रई-रई :: (क्रि. वि.) रह-रहकर।

रईये :: (क्रि.) रहिये, रहना।

रईये :: (कहा.) रइये भुक्ख तौ रइये सुक्ख - पेट को थोड़ा खाली रखने से आदमी सुख में रहता है।

रईस :: (सं. पु.) राजा, नबाब, सरदार, सेनापति, हाकिम, अमीर, धनी।

रईसी :: (सं. स्त्री.) प्रभुता, स्वामित्व।

रउवा :: (सं. पु.) दूसरे के मकान में रहने वाला।

रओ :: (क्रि.) रहा, नमक और मट्ठा मिला पानी।

रकत :: (सं. पु.) रक्त, लहू, खून।

रकत बिहार :: (सं. पु.) एक झाड़ी।

रकतीजो :: (वि.) लाल रंग मिला हुआ, रकनार-लाल रंग वाला।

रकबा :: (सं. पु.) क्षेत्रफला।

रकम :: (सं. स्त्री.) द्रव्य, नगद, धनराशि, किस्म, भाँति।

रकसबो :: (क्रि.) मिट्टी सानना।

रकसा :: (सं. पु.) मीसन, कूड़ा-करकट।

रकाब :: (सं. स्त्री.) घोड़े की जनी में लटकने वाले लोहे के पायदान।

रकाबी :: (सं. स्त्री.) तश्तरी।

रकील :: (सं. स्त्री.) लकीर, रेखा।

रक्कस :: (सं. पु.) एक ग्राम देवता, जिन परिवारों में ये पूजित होते हैं उनमें इनकी विधिवत् पूजा करके बच्चों की कमर में डोरा पहनाया जाता है।

रखइया :: (सं. पु.) रक्षा करने वाला, अधिकांश दैवी अर्थ में प्रयुक्त।

रखत :: (सं. पु.) कृषि कार्य में काम आने वाले पशु बैल-भैसा आदि।

रखनवार :: (सं. पु.) रखनबारौ-फसलों या अन्य किसी वस्तु की रक्षा करने के लिए नियुक्त व्यक्ति, रक्षक।

रखनवारी :: (सं. स्त्री.) देख-रेख या रक्षा करने का उत्तरदायित्व वा काम।

रखबाबो :: (स. क्रि.) रखने का काम दूसरे से करवाना।

रखबो :: (स. क्रि.) धरना, टिकाना, रक्षा करना, निर्वाह करना, एकत्र करना।

रखरेंड़ौ :: (सं. पु.) ऐसा कचड़ा जिसमें राख बहुत मिली हो, जहाँ राख फैली पड़ी हो, कच्ची दीवारों को पुरानी लोच रहित मिट्टी जो राख की तरह हो गयी हो।

रखवाई :: (सं. स्त्री.) फसल की रक्षा करने के लिए दिया जाने वाला फसल का निश्चित भाग या नकद राशि।

रखा :: (सं. पु.) रक्षक का सामासिक रूप जैसे अंगरखा-अंगों की रक्षा करने वाली पोशाक।

रखाई :: (सं. स्त्री.) देखरेख (बुँ.) रखवाली, रखने की मजदूरी।

रखाबो :: (क्रि.) रक्षा करना।

रखैया :: (सं. पु.) रक्षा करने वाला, रखने वाला (बुँ.)।

रखैल :: (सं. स्त्री.) रखनी, रखेली, उप पत्नी (जो बिना विवाह किये घर में रखी जाय)।

रग :: (सं. स्त्री.) नस, शरीर के तन्तु।

रँग :: (सं. पु.) रंग, लाल-पीला-नीला आदि मौज, मन में उठने वाली आनन्द की लहर। उदाहरण-रँग खेलबो-एक मनुष्य का दूसरे पर रंग डालना, रँग बिरंग-।

रँग :: (वि.) अनेक रंगो वाला, भाँति-भाँति का, रँग भरबो-पेन्सिल आदि से बनाये हुए चित्र में रंग लगाना, रँग जमबो-प्रभाव पड़ना, रौब या धाक जमना, रँग चड़ाबो प्रभाव डालना, रँग भौन-।

रँग :: (सं. पु.) आमोद-प्रमोद, विलास-विहार का स्थान, रंगमहल, रँग रसिया-।

रँग :: (सं. पु.) मौजी, विलासी पुरूष, रंग बदलबो-रंग हल्का होना, रँग फीको होबो-रंग हल्का होना।

रँग :: (कहा.) रंग में आई कोसिया, कये खसम से मंसिया - लाड़ में आकर धृष्टता-पूर्ण बर्ताव करना, रंग में भंग-शुभकार्य में विघ्न।

रगड़बौ :: (क्रि.) जोर लगाकर घिसना, सामर्थ्य से अधिक काम लेना।

रगड़ा :: (सं. पु.) झंझट, जिससे निपटने में काफी श्रम करना पड़े।

रंगत :: (सं. स्त्री.) आभा, दीप्ति, दीवार बनाने के पूर्व नींव या कुर्सी पर समरूपता।

रगदा :: (सं. स्त्री.) बारीक धूल।

रँगदार :: (सं. पु.) गुण्डा, असामाजिक लोग।

रगद्दा :: (सं. पु.) घिच्चा, गर्दन पकड़कर दिया जाने वाला धक्का।

रँगना :: (क्रि.) रंग चढ़ाना।

रँगबाई :: (सं. स्त्री.) रंगाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक, रँगाई।

रँगबाबो :: (स. क्रि.) रंगने का काम किसी दूसरे से कराना, किसी को रंगने में प्रयुक्त करना, वस्त्रों आदि पर रंग करवाना।

रगबीर :: (सं. पु.) रघुवर, श्री राम।

रँगबो :: (स. क्रि.) रंगने का काम कराना, रँगवाना।

रँगबौ :: (क्रि.) रंग चढ़ाना, किसी बात को बातों में फुसलाकर सहमत कराना, प्रवृत्त करना।

रँगभूम :: (सं. स्त्री.) नाटकशाला, युद्ध क्षेत्र।

रँगरूट :: (सं. पु.) नई भर्ती का सिपाही या सैनिक, किसी काम में लगा नया अनुभवहीन व्यक्ति।

रँगरेंज :: (सं. पु.) कपड़ा रँगने का काम करने वाला।

रगवारौ :: (सं. पु.) रघुवंश, विवाह मे मंडप के नीचे रखा जाने वाला चित्रयुक्त लोटा इसमे धान भरी रहती है।

रँगाई :: (सं. स्त्री.) रँगने का काम या भाव, रंगने की मजदूरी।

रँगिया :: (वि.) छैला, रसिक स्वभाव वाला।

रंगीच :: (सं. स्त्री.) रेखा, लकीर।

रंगीन :: (वि.) रंगा हुआ, रसिक।

रंगीलों :: (वि. (स्त्री.)) (रंगीली) मौजी, सुन्दर, प्रेमी, रसिया।

रंगीलों :: दे. रँगिया।

रँगुआ :: (सं. पु.) फसल की एक बीमारी।

रँगूली :: (सं. स्त्री.) आधी, पोली का नाप।

रगेंटा :: (सं. पु.) गधे का बच्चा, दे, लेटा।

रगेंटा :: (कहा.) गदा से जीतें नंइँ रेंगटा के कान मरोरें।

रगेदबौ :: (क्रि.) खदेड़ना, भागना, पीछा करके दौड़ना।

रगेदौ :: (सं. पु.) पीछा करके दौड़ने की क्रिया।

रँगैया :: (सं. पु.) रँगने वाला।

रग्दा :: (सं. स्त्री.) बहुत बारीक धूल या मिट्टी।

रग्दा :: दे. भस, रगदा।

रंचक :: (वि.) थोड़ा, किंचित।

रचना :: (सं. स्त्री.) निर्माण करने की क्रिया, निर्माण की हुई वस्तु, विधि-विधान के नाम पर फैलाया जाने वाला आडम्बर।

रचनू :: (वि.) रचने वाली मेंहदी।

रचबौ :: (क्रि.) निर्माण करना, संयोजन करना, रंग चढ़ना जैसे पान या मेंहदी का रचना।

रचा :: (सं. स्त्री.) अर्चना, देवमूर्ति के समक्ष, वन्दन स्तवन, प्रार्थना, पूजा-रचा (शब्द युग्म.) में प्रयुक्त।

रचाना :: (क्रि.) मेंहदी आदि से हाथ पैर रंगना।

रचापचा :: (क्रि.) खतम करना।

रचाबौ :: (क्रि.) आरंजित करना, मेंहदी या पान रचाना, आयोजन करना, किसी को सहमत करना।

रचीक :: (वि.) थोड़ा।

रचूक :: (वि.) रंचमात्र, अत्यल्प।

रचो पचो :: (क्रि.) मिला हुआ।

रच्छक :: (सं. पु.) रक्षक, रक्षा करने वाला।

रज :: (सं. स्त्री.) पीले रंग की मिट्टी जो पोतने के काम आती है, बारीक धूल, पुष्पों के मादा अंग का पराग।

रज :: (प्र.) रज राजसु न उछारियौ नेह चीकनों चित्त-(केशवदास) मासिक रक्तस्त्राव।

रँज :: (सं. पु.) दुःख, आन्तरिक क्लेश।

रजऊ :: (सं. स्त्री.) राजपुत्र, ठाकुर का पुत्र। स्त्री के लिए प्रेम पूर्ण सम्बोधन।

रंजक :: (सं. स्त्री.) तोप चलाने के लिए तरइया पर रखी जाने वाली बारूद।

रंजगंज :: (सं. पु.) बड़े लोगों, राजाओं आदि की प्रतिष्ठा मूलक परिवेश।

रजगारों :: (सं. पु.) विविध सामग्री का ढेर।

रजगिरा :: (सं. पु.) एक काला दाना, रामदाना, कूटू जिसको फुलाकर (खीर बनाकर) फलाहार के रूप में खाया जाता है, सजगुरा।

रँजदारी :: (सं. स्त्री.) अवस्वस्थता।

रजधानी :: (सं. स्त्री.) राजधानी, राज्य का मुख्य स्थान जहाँ सरकार का मुख्य कार्यालय होता है।

रजपूत :: (सं. पु.) राजपूत, क्षत्री, क्षत्रियों के वर्ण में अग्निवंशी, क्षत्री, छत्तीस कुरी के क्षत्री।

रजबड़ौ, रजबारौ :: (सं. पु.) राजपूतो के रहने का स्थान, राजाओं का निवास।

रँजवा :: (वि.) परेशानी, दुख, खेद, शोक।

रजा :: (सं. स्त्री.) सम्पत्ति, सलाह, मर्जी, इच्छा।

रजाबन्दी :: (सं. स्त्री.) रजामंदी, सहमति।

रजामसी :: (वि.) राजाओं जैसा, राजसी।

रजिद्दरी :: (सं. स्त्री.) डाकघर में महसूल देकर पत्र आदि रजिस्टर में दर्ज कराकर भेजने का काम, रजिस्ट्रार के रजिस्टर में कोई बात दर्ज कराना।

रँजिया :: (सं. पु.) बर्तन आदि में राँगा, सीसा आदि का टाँका लगाने वाला।

रंजिस :: (सं. स्त्री.) अनबन, शत्रुता।

रजुआ :: (सं. स्त्री.) लड़कियों को पुकारने का सम्बोधन, प्रेमिका।

रजोला :: (सं. पु.) माशूक।

रँझाड़ी :: (वि.) अपने ढंग से अकेला खेलते रहने वाला (बालक)।

रट :: (सं. स्त्री.) शब्दों को बार-बार दुहराने की क्रिया।

रटना :: (सं. स्त्री.) ऐसी लगन जिसको बार-बार प्रकट किया जाता हो।

रटन्त :: (वि.) जो रटने से याद हो जैसे रटन्त विद्या।

रटबारौ :: (सं. पु.) रहँट हाँकने के लिए लगाया जाने वाला नौकर।

रटबौ :: (सं. स्त्री.) रटने की क्रिया, धुन, रट।

रटबौ :: (अ. क्रि.) बार-बार शब्द कराना।

रटवारी :: (सं. स्त्री.) रहँट हाँकने की क्रिया।

रठा :: (सं. पु.) कच्चा सोड़ा निकालने का स्थान।

रड़ :: (क्रि.) रोना।

रँड़का :: (सं. स्त्री.) रण्डी, वेश्या, स्त्रियों की एक गाली, बलवाची तथा व्यंग्य प्रयोग।

रड़ना :: (सं. स्त्री.) दे. रटना, विधवा जैसे अन्तहीन दुःख का बारम्बार बखान, विलापयुक्त बखान।

रड़बो :: (सं. क्रि.) रोना, रटना।

रड़रोनियाँ :: (सं. पु.) दे. रड़ना।

रंडरोवनो :: (सं. स्त्री.) जीवन भर का दुख।

रंडवा :: (वि.) विधुर।

रँडवाल :: (वि.) गाली, विधवा।

रड़ापौ :: (सं. पु.) दे. वैधव्य।

रँड़ापौ :: (सं. पु.) विधवापन।

रड़ी :: (सं. स्त्री.) वैधव्य के कारण दुःखी, राँड़-रड़ी समास में प्रयुक्त।

रँडी :: (सं. स्त्री.) नाचने गाने वाली, शहरी वेश्या।

रँड़ीबाज :: (सं. पु.) वेश्यागामी।

रडुआ :: (पु. सं. वि.) विधुर, ऐसा पुरूष जिसकी पत्नी मर गयी हो।

रँडुआ :: (सं. पु.) वह पुरूष जिसकी पत्नी मर गयी हो, विधुर।

रँडुआ :: (कहा.) रँडुआ की बिटिया और राँड़ कौ लरका (जो दोऊ बिगर जात) - इसलिए कि लड़की की देखभाल माँ ही कर सकती है और लड़के की पिता।

रढ़बो :: (क्रि.) रटना।

रत :: (सं. स्त्री.) रात, सामासिक शब्दों में प्रयुक्त जैसे रतजगौ।

रतजगा :: (वि.) रात्रि जागरण।

रतन :: (सं. पु.) रत्न, कीमती पत्थर हीरा, पन्ना, नीलम, पुखराज, माणिक आदि समुद्री उत्पाद मोती, मूँगा।

रतन :: (कहा.) रतनन के आँगे दिया नई बरत - रत्नों के आगे दीपक नहीं जलता।

रतनजोत :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी।

रतनारे :: (वि.) चमकीला।

रतनारो :: (सं. पु.) किंचित लाल, लाल।

रतयाई :: (वि.) रात में काम करना।

रतल :: (सं. पु.) अधिक वस्तु तौलने की बड़ी तराजू।

रतवा :: (सं. पु.) रात में टपकने वाला, गहना।

रतालू :: (सं. पु.) पिंडालू, बाराही कंद, जमींकन्द।

रती :: (सं. स्त्री.) घुँगची, घुँगची की तौल इकाई जो ढाई जौ या आठ चावल बराबर मानी जाती है, कामदेव की पत्नी।

रतीक :: (क्रि. वि.) रत्ती भर।

रतुल्ला :: (सं. स्त्री.) रेटू, एक लसदार फल।

रतेंद, रतोंदी :: (सं. स्त्री.) एक नेत्र रोग जिसमें रोगी को रात के समय नहीं सूझता, रतौंधी।

रतेवा :: (सं. पु.) पशुओं को रात में खाने के लिए डाला जाने वाला चारा।

रतोंद :: (सं. स्त्री.) रात्रि में न दिखने का रोग, रतोंदी जो विटामिन (ए) की कमी के कारण हो जाता है।

रत्ती :: (सं. स्त्री.) घुँगची की तौल की क इकाई।

रत्ती :: दे. रत्ती।

रत्ते :: (सं. पु.) रहते थे।

रथ :: (सं. पु.) प्राचीन काल में राजाओं की सवारी के काम आने वाला अश्वचालित वाहन।

रथजात्रा :: (सं. स्त्री.) आषाढ़, शुक्ल द्वितीया को निकाली जाने वाली भगवान कृष्ण की सवारी, राम मन्दिरों की रथ यात्रा भी निकाली जाती है।

रँदबो :: (स. क्रि.) रंदा चलाना या रंदे से लकड़ी की सतह चिकनाना।

रदा :: (सं. पु.) दीवार बनाते समय एक बार में रक्खा गया मिट्टी का उठाव।

रँदा :: (सं. पु.) (काटना) बढ़ईयों का एक औजार जिससे लकड़ी को चिकनी और सम बनाते हैं।

रदास :: (सं. पु.) बेढंगा ढेर।

रँदौनी :: (सं. स्त्री.) रसोई।

रद्दा :: (वि.) कण्ठस्थ करना।

रद्दा :: (सं. स्त्री.) अनुपयोगी कागज-पत्र, बेकार वस्तुएँ।

रद्दू :: (वि.) बिना समझे दुहरा-दुहरा कर याद करने वाला।

रद्दौ :: (सं. पु.) ऐसी झंझट जिससे बार-बार प्रयास करने पर छुटकारा पाया जा सके, बच्चों की ऐसी जिद जिसे वे रो-रो कर पूरा कराने के लिए पीछे पड़े रहते हैं।

रँधैनो :: (सं. पु.) पका हुआ चावल।

रँधोभात :: (सं. पु.) कच्ची बात या कच्ची वस्तु।

रँधोभात :: (कहा.) रँधो भात - रँधा भात शीघ्र बिगड़ जाता है और एक दिन के बाद ही खाने के योग्य नहीं रहता, अतः कहावत का प्रयोग ऐसी वस्तु के लिए होता है जो बहुत दिनों तक घर में न रखी जा सके, अथवा हजम न की जा सके, जैसे विवाह के योग्य सयानी लड़की अथवा पराई थाती।

रन :: (सं. पु.) रण, युद्ध।

रनदो :: (सं. क्रि.) रहने दो।

रनबन :: (सं. पु.) युद्ध क्षेत्र जैसी अस्त-व्यस्तता।

रनवाँस :: (सं. पु.) रनिवास, अन्तःपुर, महल में रानियों के रहने का स्थान।

रन्तभोंर :: (सं. स्त्री.) रणथम्भौर जैसा युद्ध, जोर की लड़ाई।

रन्दा :: (सं. पु.) दीवार में बाहर देखने के लिए बना बड़ा छेद।

रन्दूला :: (सं. पु.) युद्ध का प्रभारी सेनानायक।

रपट :: (सं. पु.) सरपटा, रिपटा, रिपोर्ट।

रपटबो :: (सं. क्रि.) सरकाना, फिसलना, रपटने को प्रेरित करना।

रपटबौ :: (क्रि.) किसी काम में सामर्थ्य से अधिक श्रम हो जाना।

रपटा :: (सं. पु.) नदी नाले का बना नीचा पुल।

रपद्दा :: (सं. पु.) फिसलन, चपेट, झपट्टा, दौड़, धूप।

रपरिया :: (सं. स्त्री.) एक घटिया भूमि (राठ)।

रपेटबौ :: (क्रि.) पीछा करते हुए खदेड़ना, सामर्थ्य से अधिक दौड़ाना या काम लेना, विरामहीन काम लेना।

रपेटा :: (कि. वि.) पीछा करना।

रपोट :: (सं. स्त्री.) रिपोर्ट, थाने में की जाने वाली शिकायत।

रपोटौ :: (सं. पु.) पीछ करते हुए खदेड़ने की क्रिया।

रप्पूँ रप्पूँ :: (सं. स्त्री.) थके हुए कदमों से धीर-धीरे घिसटकर चलने की क्रिया।

रफत :: (सं. स्त्री.) अभ्यास।

रफल्ला :: (सं. स्त्री.) बन्दूक।

रफू :: (सं. स्त्री.) कपड़ो में हुए छेदों को सफाई के साथ धागे से भरने की क्रिया।

रफूगिर :: (सं. पु.) रफू करने वाला कारीगर।

रफूचक्कर :: (सं. स्त्री.) किसी प्रकार आँख बचाकर निकल भागने की क्रिया।

रफै-रफै :: (सं. स्त्री.) किसी समस्या का किसी भी प्रकार से चुपचाप निपटारा होने की क्रिया।

रबइया :: (सं. पु.) व्यवहार, रूख, चलन।

रबड़ :: (सं. स्त्री.) रबर, एक लचीला पदार्थ।

रबड़ी :: (सं. स्त्री.) औटकर चाटने योग गाढ़ा किया हुआ दूध।

रबन्ना :: (सं. स्त्री.) महसूल पाने की रसीद।

रबा :: (सं. पु.) कण, दरदरा पिसा हुआ आटा जो हलुआ आदि बनाने के काम आता है, सूजी, गोंद।

रबा :: (कहा.) रबा धरबो - सोने-चाँदी के आभूषणों पर छोटा गोल कण जमाने को रवा रखना कहते हैं, उत्तेजित करना, उकसाना।

रबा :: (कहा.) रबा पै जवा धरबो - छोटी वस्तु पर बड़ी वस्तु जमाना, (किसी को और अधिक उत्तेजित करना)।

रबाज :: (सं. पु.) चलन, किसी रस्म व्यवहार या वस्तु की लोकप्रियता।

रबानगी :: (सं. स्त्री.) प्रस्थान की क्रिया।

रबाना :: (क्रि. वि.) चलने का विशेषण।

रबार :: (सं. पु.) आभूषणों के ऊपर जाने वाले धातु कण।

रबी :: (सं. स्त्री.) चैत्र-वैसाख में पकने वाली खेती।

रबीलो :: (वि.) दानेदार, रबायुक्त।

रब्बी :: (सं. स्त्री.) दे. रबी।

रब्बी बाजे :: (सं. पु.) लुधाँती क्षेत्र में प्रचलित बाजे जिनमें लम्बी तुरही तथा बड़े-बड़े ढ़ोल होते हैं (सामासिक शब्द)।

रँभबो :: (क्रि. वि.) रूकना, ठहरना।

रँभाबो :: (क्रि.) गाय का बोलना।

रमता :: (सं. पु.) गाँव में अस्थायी रूप से बसा व्यक्ति जो वहाँ की भूमि या समाज से जुड़ा न हो।

रमतूला :: (सं. पु.) फूँककर बजाया जाने वाला एक प्राचीन वाद्य जो दो स्थानों पर घुमावदार, अंग्रेजी वर्ण (एस) के आकार का होता है।

रमतूला :: (सं. पु.) रमतूला दैबो-तुरही की तरह का एक बाजा।) ढ़िढोरा पीटना, घोषणा करना।

रमन :: (सं. स्त्री.) ग्राम के एक ओर का कृषि क्षेत्र (एक प्रकार से खेतों का मुहल्ला) ग्राम का वह क्षेत्र जहाँ गाँव के किसी विशेष भाग के पशु चरने जाते हों।

रमन्ना :: (सं. पु.) शिकारगाह, रक्षित वन, ऐसी गोचर भूमि जो किसी व्यक्ति की निजी भूमि हो, ऐसे क्षेत्र में गोचारण या लकड़ी काटने की स्वीकृति-पत्र, ओरछा राज्य का एक लोकप्रिय खेल जिसमें हाथी को मसाला खिलाकर मस्त करके छोड़ दिया जाता था फिर उसको तंग करके उसकी हरकतों का आनन्द लिया जाता था।

रमबौ :: (क्रि.) टिके रहना, किसी स्थान पर मन लगना, हिलमिल जाना।

रमसिरा :: (सं. पु.) रामसर, रामबाँस, ईख के समान दिखने वाला एक बाँस की जाति का पौधा, नरकुल।

रमाँ :: (वि.) प्रवाहित, बहता हुआ, अभ्यस्त।

रमाना :: (क्रि. वि.) दे. रबाना।

रमाबौ :: (क्रि.) गाय या भैंस का बोलना।

रमेंती :: (सं. स्त्री.) कृषि में बदले के आधार पर किया जाने वाला सहयोग (लुँधाती उपबोली में प्रयुक्त)।

रमेला :: (वि.) रमने वाला, रहने वाला।

रमैती :: (सं. स्त्री.) व्यक्तियों के बारी-बारी से एक दूसरे के कार्य में सहयोग देने की एक प्रकार की पद्धति।

रम्मत :: (सं. स्त्री.) गा-बजाकर भीख माँगने वालों की एक ग्राम रूकने की अवधि।

रयबो :: (अ. क्रि.) रहना, स्थित होना, ठहरना।

रये :: (क्रि.) थे, रहना।

ररियाँ :: (वि.) हँसी, मजाक, मसखरी, विवाह में हंसी मजाक के गीत।

ररूलबो :: (क्रि.) नाखूनों से खरोंचना।

ररो :: (सं. स्त्री.) झगड़, टंटा।

ररोंटबो :: (क्रि.) नोंचना।

रँरोटबो :: (वि.) नोंचना।

ररोंटा :: (सं. पु.) नाखूनों से बने खरोंचने के निशान।

रँरोला :: (सं. पु.) खरोंच के निशान।

रव :: (सं. पु.) बरा बोझने (गलाने) के लिए बनायी जाने वाली कांजी।

रस :: (सं. पु.) फलों आदि में अन्तर्निहित जल, आनन्द, सुस्वाद।

रस :: (बु.) स्वाद, तत्वसार, विभाव, अनुभाव और संचारियों के योग द्वारा व्यंजित स्थायी भाव से उत्पन्न आनन्द (ये नौ प्रकार के माने गये हँ-श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, वीभत्स, रौद्र, भयानक, शान्त, अद्भुत) आनन्द, प्रेम, उमंग, रसा, शरबत, वीर्य, अमृत, विष।

रस :: (कहा.) रस में बिस घोर दओ - रंग में भंग कर दिया।

रसखीर :: (सं. स्त्री.) ईख के रस में पकाया हुआ चावल (सामासिक शब्द)।

रसगुल्ला :: (सं. पु.) छेना और खोवे से बनायी जाने वाली एक मिठाई।

रसढ़रा :: (सं. पु.) खलिहान में रास (अनाज की) नापने वाला।

रसद :: (सं. स्त्री.) सेना के लिए भोजन तथा अन्य सामग्री।

रसदार :: (वि.) जिसमें रस हो, रसवाला, स्वादिष्ट।

रसबो :: (अ. क्रि.) रसमग्र होना, प्रफुल्ल होना, धीर-धीरे बहना, टपकना।

रसम :: (सं. स्त्री.) फोंड़ा-फुंसी से निकलने वाला पानी जैसा मबाद, रस्म।

रसाई :: (सं. स्त्री.) मित्रता, प्रेमपूर्व व्यवहार, घनिष्ठता, सौहार्द्र्।

रसान :: (सं. स्त्री.) रसायन, भोजन बनाने वाले के हाथ की कला जिससे भोजन सुस्वाद बनता है।

रसाबौ :: (क्रि.) मीठी-मीठी बातें करके सहमत करना।

रसिक :: (वि.) रस, स्वाद लेने वाला, आनन्दी, मौजी, सुन्दर, मनोहर, सहृदय।

रसिया :: (सं. पु.) रसिक, बनठन कर रहने वाला, स्त्रियों की या स्त्रियों सम्बन्धी बातों में अधिक रुचि लेने वाला।

रसी :: (सं. स्त्री.) आम के डण्ठल के पास से निकलने वाला द्रव, एक प्रकार की सज्जी मिट्टी जिसमें क्षारीय गुण होता है। पहले यह कपड़े धोने के काम आती थी (कभी-कभी इसका प्रयोग विशेषण के रूप में भी होता है। जैसे रसी माटी।

रसीद :: (सं. स्त्री.) प्राप्ति की लिखित स्वीकृति का प्रमाण पत्र।

रसीदी :: (सं. स्त्री.) रसीद, रसीद पर लगने वाला टिकिट (विशेषण.)।

रसीली :: (वि.) रसयुक्त, सुन्दर स्त्री जो हँस-हँस कर मीठी -मीठी बातें करती है, रसेदार (शाक)।

रसीलो :: (वि.) रसयुक्त।

रसुइया :: (सं. पु.) रसोई बनाने वाला, सूपकार।

रसूली :: (वि.) ऐसी डाढ़ी जो केवल ठोड़ी पर रखी जाती है।

रसें-रसें :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे।

रसोई :: (सं. स्त्री.) पका हुआ भोजन, भोजन बनाने का कमरा।

रसोन :: (सं. स्त्री.) रसोई बनाने वाली स्त्री, भोजन पकाने के लिए महिला भृत्य।

रसौ :: (सं. पु.) पकी हुई शाक या गोश्त का झोल।

रस्ता :: (सं. पु.) रास्ता, मार्ग, उपाय।

रस्सा :: (सं. पु.) अनेक मोटे तागों से बनायी हुई मोटी रस्सी।

रस्सी :: (सं. स्त्री.) डोरी, रज्जु।

रहँट :: (सं. पु.) रहट।

रँहट :: (सं. पु.) अरघट्ट कुँए से पानी निकालने का पारम्परिक यंत्र या साधन।

रँहटा :: (सं. पु.) पुराने ढंग का चर्खा, पुराने समय में प्रायः हरेक घर की स्त्रियाँ चलाती थी।

रहनों :: (अ. क्रि.) रहना, स्थित होना।

रहब, रहबो :: (अ. क्रि.) रहना, ठहरना।

रहस :: (सं. पु.) भगवान कृष्ण की लीला संबंधी अभिनय, रासनृत्य।

रहस :: (सं. स्त्री.) रहने की स्थिति।

रहस :: (प्र.) अपनी रहस मजे में है-आप कुशल पूर्वक है।

रहाइ :: (सं. स्त्री.) सामान्य मनोदशा जिसमें व्यक्ति साधारणतः रहता है।

रहाइ :: (प्र.) ऊ के बिना तो मो खों छिन भर रहाइ नँइँ आउत।

रहाइसा, रहायस :: (सं. स्त्री.) दे. रहस।

रहीस :: (वि.) शान -शौकत से रहने वाला, उदार, धनवान।

रहीसी :: (सं. स्त्री.) शान, ठाट-बाट, उदारता।

रहुनियाँ :: (सं. पु.) जिस स्थान पर गाँव की चौपाटें बैठते हैं।

रहुवा :: (सं. पु.) मात्र भोजन पर रखा गया नौकर।

रहें :: (स. क्रि.) थे।

राँइदेनी :: (सं. स्त्री.) राँझ लगाने की लोहे की आंकड़ी, तमेरे।

राई :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य।

राई :: दे. रहाई, छोटा लाल सरसों जो कुछ काले रूख होता है, राहत, सरसों के दाने।

राई :: (क्रि. वि.) राई करबो-बिखराना, नष्ट करना।

राई भरो :: (सं. पु.) छोटे बच्चे के लिए सम्बोधन।

राउत :: (सं. पु.) जिझौतिया, ब्राह्मणों तथा गहोई वैश्यों का एक उपवर्गीय पद, शबर, सोंर, सहरिया।

राँउन :: (सं. स्त्री.) ढोरों का झुण्ड जो एक साथ चरने जाता है, रेबड़, लंकेश्वर रावण (राँउन सो गर्जत मुहावरा में प्रयुक्त)।

राउर :: (सं. स्त्री.) अन्तपुर, राजमहल का वह भाग जिसमें राकनयाँ रहती है।

राउर :: (कहा.) मोरें पीसै पिसनारी में राउर पीसन जाँव।

राँकड़ :: (सं. स्त्री.) कँकरील-पथरीली, अनुपजाऊ (भूमि)।

राकर :: (सं. स्त्री.) कँकरीली, निकृष्ट मिट्टी।

राक्छित :: (सं. पु.) राक्षस, गन्दी आदतों वाला व्यक्ति, भक्ष्य अभक्ष्य खाने वाला, असामान्य मात्रा में भोजन करने वाला व्यक्ति।

राख :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु के पूर्णरूपेण जल चुकने के बाद बचा हुआ अवशिष्ट, भस्म।

राखबौ :: (क्रि.) रखना, किसी आधार पर अवस्थित करना, बिना विवाह किये पुरूष के स्त्री से या स्त्री के पुरूष से दाम्पत्य सम्बन्ध स्थापित करना।

राखी :: (सं. स्त्री.) रक्षाबन्धन के त्यौहार पर बहिनों द्वारा भाई की कलाई पर बाँधा जाने वाला पाट या रेशम का सूत्र।

राग :: (सं. पु.) स्वर लय युक्त गायन।

राग :: (प्र.) हमाई तौ उनने सुनी नँइँया और आनों राग अलापन लगे (व्यंग्य अर्थ.) लगाव।

राँग :: (सं. पु.) एक कोमल सफेद धातु, राँगा।

राँग :: (मुहा.) राँग सौ ढड़काबौ-किसीं महत्वपूर्ण या चुटली बात को अत्यन्त सहज ढ़ग से कह देना।

राघौ :: (सं. पु.) राघव, श्रीराम।

राच्छस, राच्छिस :: (सं. पु.) दैत्य, निशाचर।

राच्छस, राच्छिस :: दे. राक्छित।

राछ :: (सं. पु.) कोरियों का कपड़ा बुनने का एक यन्त्र।

राछरी :: (सं. स्त्री.) विवाह के लिए बारात जाने के पूर्व वर को देवताओं तथा अन्य लोगों का आर्शीवाद लेने के लिए गाजे-बाजे तथा स्त्रियों के साथ ले जाने की क्रिया।

राछरौ :: (सं. पु.) बुन्देली लोकगीतों का एक प्रकार, इनमें वीरगाथाएँ गायी जाती है।

राछवदार :: (रौ) विवाह में जनवासे में वधू की गोद भरने और वधू के साथ आयी स्त्रियों का स्वागत करने की क्रिया, आजकल विवाह में समय की कमी होते जाने के कारण यह रस्म बन्द होती जा रही है।

राज :: (सं. पु.) राज्य, एक शासन के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र।

राज :: (कहा.) राज-काज - बड़े काम।

राज :: (कहा.) राज के लुटे और फागुन के कुटे कों कोऊ नई पूंछत - राजा के द्वारा लूट लिये गये और होली के अवसर पर पिट गये की कोन फिक्र करता है।

राज :: (कहा.) राजन की राजा कयें, बाच्छन की को कये - बड़ों की बात बड़े ही कह सकते हैं परन्तु जो बहुत बड़े हैं उनकी कौन कहे।

राज :: (कहा.) राज भरे की बातें - व्यर्थ की इधर-उधर की बातें।

राँज :: (सं. स्त्री.) बच्चों की सँवार करने में होने वाली परेशानी जिसमें चैन से बैठने के लिए थोड़ा भी समय नहीं मिलता है।

राज भरे की :: (सं. पु.) दुनिया भर की।

राजकन्या :: (सं. स्त्री.) राजपुत्री।

राजकाज :: (सं. पु.) राज्य सम्बन्धी कार्य।

राजकुँअर :: (सं. पु.) राजकुमार।

राजगद्दी :: (सं. स्त्री.) राजसिंहासन, राज्याधिकार।

राजनीति :: (सं. स्त्री.) राज्य की रक्षा और शासन को दृढ़ करने का उपाय बताने वाली नीति।

राजपूत :: (सं. पु.) राजपुत्र।

राजबो :: (अ. क्रि.) विराजना, रहना, शोभित होना।

राँजबो :: (क्रि.) अस्वस्थ या जिद्दी बच्चों द्वारा माँ को परेशान किया जाना।

राजमहल :: (सं. पु.) राजा का भवन।

राजमाता :: (सं. स्त्री.) राजा की माता।

राजवंश :: (सं. पु.) राजा का कुल।

राजवान :: (सं. पु.) चारपाई की बनावट।

राजवैद :: (सं. पु.) राजाओं के यहाँ रहने वाला वैद्य।

राजसभा :: (सं. स्त्री.) दरबार।

राजसेन :: (सं. पु.) बुन्देलों के एक पूर्वज।

राजा :: (सं. पु.) शासक।

राजा :: (कहा.) राजा करन की पारी - राजा कर्ण पहर, अर्थात् दान का समय, सूर्य अथवा चन्द्र-ग्रहण के समय भंगी बसोर दान माँगते समय कहते है।

राजा :: (कहा.) राजा कौ जी चेरी में, चेरी कौ जी महेरी में - हर आदमी को अपनी-अपनी पड़ी रहती है।

राजा :: (कहा.) राजा कौ धन तीन खायें रोरा, घोरा और दंत निपोरा - राजा का धन तीन बातों में खर्च होता है, इमारतें बनवानें में, फौज-फाँटा रखने में या खुशामदी दरबारियों में।

राजाग्या :: (सं. स्त्री.) राजा की आज्ञा।

राजी :: (सं. स्त्री.) सहमति, प्रसन्नता।

राजी :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

राजीनामा :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों की एक अल्ल या आस्पद।

राँझ :: (सं. स्त्री.) एक मिश्रित धातु जो जस्ता और पीतल को मिलाकर बनाई जाती है।

राँझबो :: (क्रि.) टांका लगाना।

राँट :: (सं. पु.) दे. रँहट।

राँटा :: (सं. पु.) दे. रँहटा, चर्खा। उदाहरण-राँटा राग-लापरवाही का काम।

राँटी :: (सं. स्त्री.) महावारी किस्त पर चुकाने की शर्त पर लिया गया ऋण।

राँटे :: (सं. स्त्री.) खैर के कटे पेड़ों के ठूँटो से निकाली गयी छिपटियाँ (चहली) जिनकी आँच बहुत तेज होती है।

राँटो :: (सं. पु.) रिक्त, वह थन जिसमें दूध न निकले, रहटा।

राठ :: (सं. पु.) राज्य, राजा।

राठौर :: (सं. पु.) राजस्थान का प्रसिद्ध राजवंश, राजपूतों की एक उपजाति उक्त वंश का क्षत्रिय।

राँड :: (सं. पु.) विधवा।

राँड :: दे. रड़रोंनियाँ, बार-बार उठाया जाने वाला प्रसंग (यौगिक शब्द.)।

राँड :: (कहा.) राँड़ के अँसुआ - दिखावटी रोना।

राँड :: (कहा.) राँड़ कौ रोबो बिरथा नई जात - राँड़ का रोना और पुरवाई का चलना व्यर्थ नहीं जाता।

राँड :: (कहा.) राँड़ कौ साँड़ - विधवा का लड़का, जो पिता के न होने से प्रायः उच्छृंखल बन जाता है।

राँड :: (कहा.) राँड़ें राँड़ें जुर मिलीं को किहि देय असीस - एक से दुःखी मिलें तो कौन किसका दुःख बटाये।

रात :: (सं. स्त्री.) रात्रि।

रात :: (मुहा.) रात-बिरात-रहताहै, रहते हुए।

रात :: (कहा.) रात थोरी, स्वाँग भौत - समय थोड़ा और काम बहुत।

रात :: (कहा.) रात भर पीसो, पारे से उठाओं - परिश्रम बहुत, लाभ थोड़ा।

रात :: (कहा.) रात रतेबा ना मिलै, छै मइना नों नोंन पूँछे चील चमार से वह बैल कौन सा है जिसे रात में चारा - दाना नहीं मिलता और छः छः महीने तक नमक, अभिप्राय यह कि ऐसा बैल बहुत दिनों जीवित नहीं रह सकता, मरे तो माँस खाया जाय।

रातब :: (सं. पु.) घोड़े का दाना।

राती :: (स. क्रि.) रहती।

रातै :: (वि.) रात को।

रातैल :: (सं. स्त्री.) एक बीमारी।

राँदनों :: (सं. पु.) ऐसा भोजन जो पानी, दूध या मट्ठे में पकाया जाये। जैसे भात, दलिया, खिचड़ी, खीर, महेरी आदि।

राँदबौ :: (क्रि.) राँदनों।

राँदबौ :: दे. चावल आदि पकाना।

राधका :: (सं. स्त्री.) राधा, वृषभानु की कन्या।

राधा :: (सं. स्त्री.) भगवान कृष्ण की आहलादिनी शक्ति, भगवान कृष्ण की प्रियतमा, एक स्त्री का नाम।

राधा बल्लभ :: (सं. पु.) कृष्ण।

रानबौ :: (क्रि.) स्वीकार करना।

राना :: (सं. पु.) राणा, राजा, बुन्देलखण्ड में भाट लोगों के लिए आदरवाची शब्द।

रानी :: (सं. स्त्री.) राजा की पत्नी।

रानी काजर :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का चावल।

राने :: (स. क्रि.) रहने।

रापट :: (सं. स्त्री.) चाँटा।

रापटौ :: (सं. पु.) चाँटे का भीषण रूप।

राँपो :: (सं. स्त्री.) थोड़ी-थोड़ी बात पर रोने और मचलने वाला (बालक)।

राब :: (सं. स्त्री.) उबाल कर शहद जैसा गाढ़ा किया हुआ ईख का रस, रखा रहने पर इसमें शक्कर जैसे दाने पड़ने लगते हैं।

राबत :: (सं. पु.) सामंत, छोटा राजा, वीर, सेनापति, ब्राह्मण-वैश्यों की एक उपजाति।

राबता :: (सं. पु.) निर्णय।

राबन :: (सं. पु.) लंका का राजा।

राबन :: दे. राँउन।

राबो :: (अ. क्रि.) रहना, ठहरना।

राम :: (सं. पु.) दशरथनन्दन श्रीराम, विष्णु भगवान के मर्यादा पुरूषोत्तम अवतार।

राम :: (कहा.) राम भरोसें खेती है - सब राम का भरोसा है।

राम :: (कहा.) राम राखे, कोऊ न चाखे - राम रक्षक है तो कोई क्या बिगाड़ सकता है।

राम :: (कहा.) राम राम कर कें दिन पार करबो - राम राम करके दिन काटना, कष्ट में रहना।

राम-रहीम :: (सं. स्त्री.) दुआ-सलाम, पारस्परिक अभिवादन (सामासिक पद)।

रामतरोई :: (सं. स्त्री.) भिंडी, साक का एक प्रकार।

रामदाना :: (सं. पु.) राजगिरा।

रामरचा :: (सं. स्त्री.) रामार्चन पूजा एवं यज्ञ।

रामरस :: (सं. पु.) नमक भोज आदि या अन्य धार्मिक आयोजनों में नमक कहना अशालीन माना जाता है अतः रामरस कहा जाता है।

रामलीला :: (सं. स्त्री.) भगवान राम के चरित्र को प्रकट करने के लिए किया जाने वाला अभिनय (सामासिक पद)।

रामसिर :: (सं. पु.) दे. रमसिरा।

रामा तुलसी :: (सं. स्त्री.) सफेद ड़ठल वाली तुलसी।

रामान :: (सं. स्त्री.) रामकथा, रामचरित मानस, तुलसी रचित।

रामेसुर :: (सं. पु.) दक्षिण के रामेश्वर नामक स्थान में स्थापित एक शिवलिंग जिसकी स्थापक राम कहे जाते है।

राम्ह :: (सं. पु.) रम्भाने की ध्वनि।

राय :: (सं. स्त्री.) गाने की लय, सम्मति, अँग्रजी सरकार द्वारा सरकार के हिन्दू पिट्टुओं को दी जाने वाली उपाधि, सामान्य चलन, राह, कँटीली झाड़ियों का झुण्ड।

राय करौंदा :: (सं. पु.) जामू।

रायतौ :: (सं. पु.) मट्टे या दही में बुँदी, कसा हुआ या उबला हुआ कद्दू, लौकी या ककड़ी डालकर तथा बघार लगाकर बनाया जाने वाला खाद्य पदार्थ।

रायबजीतौ :: (क्रि. वि.) सबकी आँखों के सामने, सबकी जानकारी में।

रायसौ :: (सं. पु.) किसी वीर पुरूष का इतिवृत्तात्मक चरित्र काव्य, रासौ।

रार :: (सं. स्त्री.) लड़ाई, राल (रैजिन), अरहर।

राल :: (सं. स्त्री.) लम्बा-चौड़ा कम्बल।

राली :: (सं. स्त्री.) एक छोटा कोदों आदि की जाति का अनाज।

राव :: (सं. पु.) छोटे राज्यों या जागीरों के शासक, बेरी के पेड़ों का झुरमुट।

रावत :: (सं. पु.) दे. राउत, ब्राह्मणों का पटा।

रावर :: (सं. पु.) रनिवास।

रावराजा :: (सं. पु.) सिंहासनारूढ़ राजा के छोटे भाईयों की उपाधि।

रावला :: (सं. पु.) एक बुन्देली लोकनृत्य।

रास :: (सं. स्त्री.) राशि, ढेर, रासनृत्य, श्रीकृष्ण लीला का अभिनय, आमोद-प्रमोद, आनन्द, उदाहरण-रास आबो-अनुकूल होना, रास मंडली-रासधारियों की टोली, रास मिलबो-मेल, मिलना, दो व्यक्तियों की एक राशि में उत्पन्न होना, रास लीला-क्रीड़ा, कृष्ण का गोपियों के साथ कृत नृत्य।

रासबधाव :: (सं. पु.) विवाह की एक रीति वर नववधू के, कम अंशवाली शराब, संधान किये हुए महुओं से तीसरी बार खींची हुई शराब।

राँसबौ :: (क्रि.) नये बैल (खैला) को राँसा में जोत कर जुतने का प्रशिक्षण देना।

राँसबौ :: दे. राँसा।

राँसा :: (सं. पु.) दो फँगसों वाली मोटी लकड़ी, इसके एक सिरे पर जुआँ बाँधकर खेतों को जोत कर दो शाखाओं वाले भाग को जमीन पर रगड़ते हुए खैलों से खिंचवाया जाता है। बच्चे भी पतली लकड़ी के राँसा से खेतले है।

रासी :: (सं. स्त्री.) घटिया किस्म की अल्कोहल के कम अंशवाली शराब, संधान किये हुए महुओं से तीसरी बार खीचीं हुई शराब।

राँसी :: (सं. स्त्री.) बखर।

रासैं :: (सं. पु.) लगाम।

राँसो :: (सं. पु.) बछवा निकालने के लिए काम आता है।

रासौ :: (सं. पु.) काव्यग्रंथ (इसमें किसी राजा का चरित्र, युद्ध वीरता, प्रेम विषयक वर्णन रहता है जैसे परमाल रासो, पृथ्वीराज रासो इत्यादि)।

रास्ती :: (सं. स्त्री.) सरल तरीका, समझाने बुझाने का सामान्यढंग।

राहर :: (सं. स्त्री.) अरहर, एक दलहनी अनाज।

राहिया :: (वि.) रहने वाला।

राही :: (सं. स्त्री.) चुंगी, पथिक।

राहू :: (सं. पु.) एक मछली, नौ ग्रहों में से एक।

राहू :: (कहा.) राहु ग्रसन ग्रास - ग्रहण, उपराग, सूर्य-चन्द्र का राहू द्वारा ग्रस्त होना, राहू एक क्रूर ग्रह, जिसकी कल्पना केवल सिर के रूप में है, ग्रहण के समय ये सूर्य-चन्द्र को अपने मुँह में डाल लेता है, ऐसी लोक मान्यता है।

रिंक :: (सं. पु.) ऋषि, रिग पाँचे-ऋषि पंचमी (समास में प्रयुक्त), भाद्र शुक्ली पंचमी।

रिकाट :: (सं. पु.) ग्रामों फोन पर बनाया जाने वाला, रिकार्ड, अभिलेख, पूर्व इतिहास।

रिखिया :: (सं. पु.) ऋषि की बहुवचन, ऋषि पंचमी को दीवार पर आँकी जाने वाली अल्पना में बनाये जाते है।

रिखी :: (सं. पु.) ऋषि।

रिंगत :: (वि.) चलताऊ।

रिंगबौ :: (क्रि.) निगबौ, चलना, पैदल चलना।

रिंगाबौ :: (स. क्रि.) धीरे-धीरे चलना, परिश्रम पूर्वक दौड़ना।

रिच्चयाबौ :: (क्रि.) खेल में अपने पक्ष के लिए झूठ बोलना, खेल में बेईमानी करना, हार को खेल भावना से स्वीकार न करना।

रिछा :: (सं. पु.) जिसके शरीर पर बडे बड़े बाल हों (विशेषण. के रूप में प्रयुक्त)।

रिछारिया :: (सं. पु.) जिझौतिया ब्राह्मणों का एक आस्पद।

रिजल्ट :: (सं. पु.) प्रायः परीक्षा परिणाम के रूप में प्रयुक्त परिणाम।

रिजवाल :: (सं. पु.) दुबला-पतला, रोने वाला बच्चा।

रिझवार, रिझबैया :: (सं. पु.) गुण, विशेषता, रूप आदि पर प्रसन्न होने वाला, अनुरागी प्रेमी।

रिझाबो :: (सं. क्रि.) अपने ऊपर किसी को प्रसन्न करना, लुभाना, मोहित करना।

रिटवाल :: (सं. पु.) रोने वाला, दुबला-पतला।

रिट्ट :: (वि.) जिद, हठ।

रिट्टी :: (वि.) हठी।

रित :: (सं. स्त्री.) ऋतु, मौसम।

रितऊ :: (सं. स्त्री.) रेतीली जमीन।

रितबो :: (अ. क्रि.) रिक्त या खाली होना।

रितयाबौ :: (क्रि.) पसन्द आना, खाने-पीने के लिए मन भावन वातावरण होना, मन का ग्लानि रहित होना।

रितिया :: (सं. स्त्री.) लोहे को समतल करने का औजार, रेती।

रितैबौ :: (क्रि.) रिक्त करना, खाली करना।

रिन :: (सं. पु.) ऋण, कर्ज, देनदारी, दूसरे से लिया हुआ उधार।

रिन :: (कहा.) गुनबारौ घर में रहै, तीन बात की हान, रिन बाड़ै उर गुर घटै, घर के कहें निकाम, उदाहरण - रिन चड़बो-कर्ज होना।

रिनियाँ :: (वि.) ऋण, कर्जदार, उपकृत (संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त)।

रिप :: (सं. पु.) रिपु, शत्रु जो भोजन पर या किसी विशेष खाद्य पदार्थ पर खाने के लिए शत्रु की तरह टूट कर गिरे।

रिप :: (प्र.) बरै मलाई के लानौ तो महाँ रिपु आ धरो।

रिपट :: (सं. पु.) रिपटा एक प्रकार की कच्ची कील।

रिपट :: (कहा.) रिपट परे पतोरन नई भरत - रीते कुए पत्तों से नहीं भरते, महत्वाकांक्षी थोड़े में संतुष्ट नहीं होता।

रिपटनो :: (सं. स्त्री.) चिकना स्थान।

रिपटा :: (सं. पु.) नदी-नाले पर बना हुआ बहुत नीचा पुल या बिना द्वारों का नदी के तल से थोड़ा ऊँची पत्थरों की चिनाई का मार्ग।

रिपटोंतौ, रिपटोंनो :: (वि.) फिसलनने वाला, चिकना।

रिबन :: (सं. पु.) फीता, चोटी बाँधने के लिए रेशमी कपड़े की पट्टी।

रिमझिम :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे पानी बरसना।

रिमझिम :: (सं. स्त्री.) धीरे होने वाली वर्षा।

रियाया :: (सं. स्त्री.) राज्य की प्रजा।

रियासत :: (सं. स्त्री.) देशी राजाओं का राज्य।

रिरकनो :: (सं. स्त्री.) ढाल, फिसलन का स्थान।

रिरकबौ :: (क्रि.) फिसलना, सरकना, ढाल के कारण खिसकना।

रिरके :: (क्रि.) खिसके।

रिरयाबौ :: (क्रि.) हीन होकर दीनतापूर्ण ढंग से बात करना।

रिरूआ :: (सं. पु.) तरोई, छुलनू।

रिलार :: (सं. पु.) भाग्य, मस्तक।

रिल्ल :: (सं. स्त्री.) जिद, झंझट।

रिल्लयात :: (सं. पु.) झंझट, ऐसी जो आसानी से न टाली जाने वाली जिद या स्थिति के कारण आ पड़ी हो।

रिल्ली :: (वि.) किसी जिद के कारण रोने-धोने वाला, जिद्दी।

रिस :: (सं. स्त्री.) भीतर ही भीतर पैदा होने वाला क्रोध जो उग्र न हो।

रिसकना, रिसकोंतौ :: (सं. पु.) दे. रिपटोंतौ, रिपटांनों, बच्चों के खेलने की रिसक पट्टी।

रिसकबौ :: (क्रि.) फिसलना।

रिसकबौ :: दे. रिरकबौ।

रिसबो :: (अ. क्रि.) नन्हें-नन्हें छेदों से तरल द्रव्य का निकलना।

रिसयाबौ :: (क्रि.) किसी घाव से पानी सा निकलने लगना, वर्षा ऋतु में गुड़ या नमक का नमी के कारण गीला सा होना।

रिसाबौ :: (क्रि.) कुद्ध होना, नाराजी के कारण चुप रहकर व्यवहार से नाराजी प्रकट करना।

रिसाल :: (सं. स्त्री.) कुछ समय पूर्व तक प्रचलित एक प्रथा जिसमें विवाह के बाद आमों की ऋतु में वर पक्ष की ओर से कन्या पक्ष को भेजी जाने वाली आमों तथा अन्य फलों की भेंट।

रिसालौ :: (सं. पु.) घुड़सवार, सैनिकों की टुकड़ी, सेना के घोड़े रखने का अस्तबल।

रिसी :: (सं. पु.) ऋषि।

रिस्पत, रिस्बत :: (सं. स्त्री.) किसी कर्त्तव्य के बदले या अकरणीय कार्य को करके भ्रष्ट तरीके से लिया जाने वाला धन।

रिहल :: (सं. स्त्री.) बड़ी पुस्तक को पढ़ने समय रखने के लिए लकड़ी की टूटदार, टिकटी।

रिहलिया :: (सं. स्त्री.) अटारी।

रिहा :: (वि.) बन्दीगृह से मुक्त।

रिहुँटासाई :: (सं. पु.) एक प्रकार का जाली सिक्का जो ब्रिटिश शासन काल में हमीरपुर जिले के रिहुँटा नाम ग्राम में निकला था।

री :: (संबो.) स्त्री सम्बोधन, संकेत वाची सर्वनाम।

रीछ :: (सं. पु.) रिक्ष, भालू।

रीज :: (सं. स्त्री.) समझ, रीझ-बूझ (शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

रीजन :: (सं. स्त्री.) समझ, ऋजुता।

रीजबो :: (अ. क्रि.) मुग्ध होना, किसी बात पर प्रसन्न होना।

रीझबो :: (क्रि.) किसी की किसी बात पर आकर्षित होकर समर्पित होना, मोहासक्त होना।

रीत :: (सं. स्त्री.) रीति, पद्धति, नैतिकता, सम्मत चलन।

रीतबौ :: (क्रि.) रिक्त होना, खाली होना।

रीता :: दे. कंड।

रीती :: (वि.) खाली।

रीतो :: (वि.) खाली, रिक्त।

रीनों :: (वि.) म्लान, उदास, निष्प्रभ, निस्तेज।

रुँ आँ :: (सं. पु.) बहुत बारीक, छोटा व कोमल रेशा।

रु आब :: (सं. पु.) दबदबा, धाक, आतंक, रौब।

रुँ आँयदौ :: (वि.) जो रोने जैसा मुँह बिगाड़े हो, रूँआसा।

रुँ दबौ :: (क्रि.) अवरूद्ध होना।

रुँइया :: (सं. पु.) हरिण की एक जाति जिसके सीगों पर खाल जैसे रेशे होतेहैं।

रुखान :: (सं. स्त्री.) चौकोर छेद बनाने का एक औजार।

रुँगाबौ :: (क्रि.) कोई वस्तु खरीदने पर थोड़ी और डालने के लिए कहना, प्राप्त वस्तु की थोड़ी-थोड़ी और माँग कर मात्रा बढ़ाना, लाभ लेना।

रुदबाबौ :: (क्रि.) खेत को बारी लगाकर सुरक्षित करवाना।

रूइ :: (सं. स्त्री.) कपास के रेशे।

रूकबाबौ :: (क्रि.) रूकवाना, रोक लगवाना।

रूँकबो :: (क्रि.) धुनियाँ झराने को रूँकना कहते है, धुनियाँ विशेष प्रकार की घास के बीजों को कहते हैं।

रूकबौ :: (क्रि.) ठहरना, विराम देना।

रूकमिन :: (सं. स्त्री.) रूकमणी, भगवान श्री कृष्ण की एक पत्नी।

रूकाँ :: (सं. पु.) सौर लोग नाना प्रकार के घास के बीजों को झराकर खाने के लिए एकत्र कर लेते है उसे रूँका या धुनियाँ कहते है।

रूकाउट :: (सं. स्त्री.) बाधा।

रूक्का :: (सं. पु.) ऋण लेने का प्रमाण पत्र।

रूख :: (सं. पु.) पेड़ (रूख-विरख शब्द युग्म में प्रयुक्त रूख शब्द से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका अर्थ सूखा पेड़ नहीं बल्कि यह पेड़ का पर्यायवाची है)।

रूखड़ :: (वि.) शुष्क, अनात्मीय, यांत्रक (व्यवहार), क्रोधी, नीरस।

रूखड़याबौ :: (क्रि.) रूखा पड़ना, खेत में से नमी उड़ जाना, रूखे स्वर में बोलना, ताजगी कम हो जाना।

रूखड़ो :: (सं. पु.) वृक्ष।

रूखण्ड :: (सं. स्त्री.) नमी के कारण ऊपरी पर्त, त्वचा या सिर पर हलकी सी सूखी दिखने वाली पर्त।

रूखण्डया :: (वि.) निस्तेज, निष्प्रभ, आकर्षण हीन, गन्दा सा।

रूखण्डयाबौ, रूखयाबौ :: (क्रि.) दे. रूखड़याबौ।

रूखरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी झाड़ी या अनाम वनस्पति जो किसी औषधि या रसायनिक काम में आती है।

रूखवा :: (सं. पु.) फीका भोजन।

रूखानी :: (सं. स्त्री.) छेंनी की तरह का बढ़ई गिरी का एक औजार।

रूखो-सूखो :: (वि.) बिना घी और मसाले का बना भोजन।

रूखो-सूखो :: (कहा.) रूखी-सूखी नोंन से, बाबाजी कयें कौन सें - रूखी-सूखी नमक से खा लेते हैं बाबाजी अपनी विपत्ति किससे कहें।

रूखौ :: (वि.) बिना शक भाजी के (भोजने केवल रोटी, चावल) रूखी-बिना घी लगी (रोटी) सूखा सा रूक्ष, बेस्वाद।

रूगत :: (सं. स्त्री.) मुखाकृति, शक्ल, मुख मुद्रा।

रूँगन :: (सं. पु.) रूँगाने से प्राप्त वस्तु, दे.रूँगाबौ।

रूगस :: (क्रि. वि.) रूगस-रूकते-रूकते, धीरे-धीरे।

रूगैलया :: (वि.) जो प्रायः बीमार रहता हो, जिसे कोई न कोई रोग घेरे रहता हो।

रूगौ :: (सं. पु.) सेंमल की रूई।

रूच :: (सं. स्त्री.) रूचि, लगाव, किसी विशेष पदार्थ को खाने की इच्छा।

रूच :: (कहा.) रूचै सो पचै - जो वस्तु खाने में अच्छी लगे वह आसानी से पचती भी है।

रूचक :: (सं. पु.) आडम्बर।

रूचका :: (सं. पु.) बीमारियों का वह मौसम जब लोग किसी रोग से पीड़ित हो जाते हैं।

रूचबौ :: (क्रि.) अच्छा लगना, लगाव पैदा होना।

रूचया :: (सं. पु.) रूचि या स्वाद से खाने वाला।

रूजगार :: (सं. पु.) रोजगार, नकद फसलों की खेती, शाक-भाजी की खेती।

रूजगारी :: (सं. पु.) व्यापारी, सौदागर।

रूझवा :: (सं. स्त्री.) नीलगाय।

रूटखवा :: (वि.) आत्म-सम्मानहीन व्यक्ति जो पेट भरने के लिए कहीं भी पड़ा रहे (सामासिक शब्द.)।

रूटनारी, रूटयारी :: (सं. स्त्री.) भोजन बनाने के लिए नौकर रखी गयी महिला।

रूटनारी, रूटयारी :: (सं. पु.) रूटयारो, रोटी बनाने वाला।

रूठबो :: (अ. क्रि.) असन्तुष्ट होना, रूष्ट होना।

रूँद :: (सं. पु.) सुरक्षित जंगल की चरोखर।

रूँद :: (सं. स्त्री.) घास काटने के लिए सुरक्षित किया खेत।

रूँदबो :: (क्रि.) सानना।

रूदबौ :: (क्रि.) रून्दा से छीलकर लकड़ी को चिकना करना।

रूँदबौ :: (क्रि.) अवरूद्ध करना, सुरक्षित करने के लिए बारी बागड़ लगाना, स्थान को घेरना।

रूदराच्छ, रूद्रास :: (सं. पु.) रूद्राक्ष।

रूद्र :: (सं. पु.) एक प्रकार के ग्यारह गण देवता, शिव का रूप विशेष।

रूनकबो :: (सं. स्त्री.) लटकना।

रूनझुन :: (सं. स्त्री.) नूपुर आदि की झनकार।

रूनयाबो :: (सं. स्त्री.) एक गहना जिसमें दाने-दाने जुड़े हो।

रूनयाबौ, रूनी :: (क्रि.) सूखे मेवे या आम, इमली आदि की में इल्ली लगना।

रूना :: (सं. पु.) दीवार में लगने वाला नोंना जो मिट्टी और ईंटों का भुरभुरा करके गिराता रहता है।

रून्दा :: (सं. पु.) लकड़ी को चिकना करने का औजार।

रूप :: (सं. पु.) सुन्दरता, आकृत, प्रतिष्ठा।

रूप :: (कहा.) रूप की रोवे, करम की हँसे - रूपवती लड़कियों को प्रायः अच्छा घर नहीं मिलता, और वे बैठ कर रोती हैं, परन्तु जिनका भाग्य प्रबल होता है वे अच्छे घर पहुँच कर सुख से जीवन व्यतीत करती हैं, भाग्य ही सब कुछ है, रूप कुछ नहीं।

रूपइया :: (सं. पु.) चाँदी की बनी एक मानक मुद्रा (अब चाँदी की नहीं बनती।)।

रूपक :: (सं. पु.) आडम्बर, किसी काम के साथ प्रदर्शन मात्र के लिए आयोजित अनावश्यक कार्यों का सम्मिलित रूप।

रूपबो :: (अ. क्रि.) जमना, लगाया जाना, गाड़ा जाना।

रूपाबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को हलके से सहारे पर टिकाना या ऐसी स्थिति पर लाना कि वह यथा स्थिति बनी रहे।

रूपै :: (क्रि.) रूके।

रूपैया :: (सं. पु.) भारत का सिक्का जो धातु या कागज से बनता है।

रूपौ :: (सं. पु.) चाँदी (लोक साहित्य.में व्यहृत)।

रूबण्टा :: (वि.) खेल में धाँधलपट्टी करने वाला, अधिक रोने वाला या थोड़ी-थोड़ी बात पर रोने लगने वाला।

रूबप्टयाइ :: (सं. स्त्री.) खेल में की जाने वाली धाँधलपट्टी।

रूमक :: (सं. पु.) लटक।

रूमकबो, रूमकाबो :: (क्रि.) लटकना, लटकाना।

रूमाल :: (सं. पु.) हाथ-मुँह पोंछने का छोटा चौकोर कपड़ा।

रूरकबो :: (क्रि.) अशोभन ढ़ंग से लटकना।

रूरौ :: (सं. पु.) कँटीली झाड़ियों का झुण्ड, चैत-वैशाख में कभी-कभी छा जाने वाली धुन्ध, ऐसी धुन्ध में फूलों की महक कम हो जाती है तथा महुआ और आम आदि के फूलों को हानि पहुँचती है।

रूलबौ :: (क्रि.) सीधी टहनी को मुट्ठी में दबाकर खींचना ताकि उसके सारे पत्ते टूट कर मुट्ठी में आ जायें, नाखूनों से त्वचा को आहत करना, नोंचना।

रूलबौ :: (मुहा.) फाँग-सी रूलत-जल्दी-जल्दी लापरवाही से काम करना।

रूला :: (सं. पु.) नोंचने से या अन्य प्रकार की रगड़ से पड़ी खरोंचे।

रूलें :: (सं. पु.) कलसादार पैजना।

रूष्ट :: (वि.) पुष्ट, हृष्ट-पुष्ट-विशेषण. तन्दुरुस्त।

रूसनों :: (क्रि. वि.) नाराज होना, हट करना।

रूसा :: (सं. पु.) कफ, सर्दी।

रूसौ :: (सं. पु.) अडूसा, बसाका, एक झाड़ी जिसके पत्ते खपँसी की दवा बनाने के काम आते हैं, इसके सफेद फूल गुच्छों में खिलते है, ये प्रायः कंकरीली-पथरीली जगह होता है।

रे :: (संबो.) पुल्लिंग सम्बोधन।

रेंआँट :: (सं. स्त्री.) नाक से निकलने वाला विकार (बलगम)।

रेंउत :: (सं. पु.) गन्दा, घिनौना व्यक्ति।

रेओ :: (सं. पु.) मिट्टी में मिले हुए सूक्ष्म रेत कण।

रेंकबौ :: (क्रि.) गधे का बोलना, बुरी तरह चिल्ल-चिल्लाकर रोना (लाक्षणिक अर्थ.)।

रेंका :: रोने वाला बच्चा।

रेख :: (सं. स्त्री.) मूंछो के स्थान पर उगने वाले प्रारम्भिक कोमल बाल।

रेख :: (कहा.) रेख में मेख मारबो - भाग्य से लड़ना।

रेगिया :: (सं. पु.) रोगी शारीरिक व्याधियुक्त व्यक्ति।

रेंच :: (सं. स्त्री.) किसी चौकोर आकृति में असमान भूजा के कारण पड़ने वाली टेढ़।

रेचक :: (वि.) दस्तावर, मल को ढीला करने वाला, मलावरोध रोकने वाला।

रेंचकुआ :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल जिसमें कमान की आकृति की एक लकड़ी के बीच में एक गड्ढा करके उसे जमीन में गड़े खूँटे पर टाँग कर उसके दोनों सिरों पर बैठकर बच्चे उसके घुमाते हैं।

रेंचड़ :: (सं. स्त्री.) टूटी फूटी वस्तु।

रेजगारी :: (सं. स्त्री.) छोटे सिक्के, रूपये के अंश रूप मे ढ़ले सिक्के।

रेजा :: (सं. पु.) विशेष प्रकार की चोली जिससे मात्र स्तन ढँकते है तथा पेट के ऊपर एक अंलकृत पट्टी लटकती रहती है, बालक या स्त्री मजदूर, चाँदी की छड़े ढ़ालने का पनालीदार साँचा।

रेजौ :: (सं. पु.) खेतों में पैदा होने वाला खरपतवार।

रेट :: (सं. पु.) वर, क्रय विक्रय का भाव (अकर्मक.)।

रेंट :: (सं. स्त्री.) दे. रेआँट, पानी बहने का निशान, बैला।

रेट की ढेर :: (सं. पु.) चीख पुकार।

रेडियो :: (सं. पु.) लाउडस्पीकर, ध्वनि विस्तारक विद्युत यंत्र।

रेंड़ी :: (सं. स्त्री.) अड़उआ का पेड़।

रेत :: (सं. स्त्री.) बालू।

रेतन :: (सं. पु.) रेती से छीलने से निकले धातु कण।

रेतबौ :: (क्रि.) रेती से छील कर धातु को समतल करना।

रेता :: (सं. स्त्री.) रेत, बजरी, बिना मिट्टी मिले पत्थर के कण।

रेंन :: (सं. स्त्री.) रात, प्रायः लोक गीत. में प्रयुक्त।

रेंनका :: (सं. स्त्री.) गंगाजी की रेत, भगवान परशुराम की माता, एक स्त्री नाम।

रेंनगंधा :: (सं. स्त्री.) रंजनीगंधा, रातरानी, रात्रि में सुगन्ध फैलाने वाले पुष्पों का पौधा, (यौगिक शब्द)।

रेंनी :: (सं. स्त्री.) रहन-सहन रहने का ढंग, विवाह की एक पूर्व प्रचलित रीति।

रेफ :: (सं. स्त्री.) नागरी वर्ण के ऊपर चढ़ाई जाने वाली रकार जो उस वर्ण के पूर्व उच्चरित हलन्त का रूप होती है।

रेबड़ी :: (सं. स्त्री.) शक्कर की कड़ी चाशनी से बनाये गये बादाम बराबर टुकड़े जिन पर तिली चढाई जाती है।

रेबो :: (अ. क्रि.) रहना, टिकना।

रेंम :: (सं. स्त्री.) ताँता।

रेंम :: (प्र.) मेला के लानें मान्सन की रेंम लगी।

रेरा :: (सं. पु.) रेला।

रेरें :: (सं. स्त्री.) बात बात पर या अकारण बच्चों के रोते रहने की आवाज।

रेल :: (सं. स्त्री.) ट्रेंन, रेलगाड़ी (अकर्मक.)।

रेलबौ :: (क्रि.) खिसकाना, साँगे (लीवर) लगाकर खिसकना, एकाएक अधिक मात्रा में मल त्यागकर देना (लाक्षणिक. अर्थ.)।

रेला :: (सं. पु.) धक्के के बल आगे बढ़ती हुई भीड़, भीड़ के द्वारा लगने वाला धक्का।

रेवँछो :: (सं. पु.) दाल के काम आने वाला एक द्विदल अन्न।

रेंवजा :: (सं. पु.) बबूल के समान एक काँटो बाला पेड़, इसका तना सफेद होता है काँटे भी सफेद होते हैं।

रेवता :: (सं. स्त्री.) दे. रेता।

रेवती-रेपती :: (सं. स्त्री.) रेवती, बलराम जी की पत्नी, एक स्त्री नाम, सत्ताइसबाँ नक्षत्र।

रेस :: (क्रि. वि.) तेज (अंग्रेजी रेस-दौड़ से विकसित अर्थ)।

रेसम :: (सं. स्त्री.) कीड़ों के द्वारा बनाया हुआ प्राकृतिक धागा।

रेसमी :: (वि.) रेशम से बना हुआ, चिकना, मुलायम रेशम जैसा।

रेह :: (सं. स्त्री.) मैली धातु, सुनार।

रेंहन :: (सं. स्त्री.) कर्ज की जमानत के रूप में कर्ज से अधिक मूल्य की वस्तु रखने की क्रिया, गिरवी।

रेंहन :: (क्रि. वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

रेंहन-सेंहन :: (सं. पु.) रहन-सहन, रहने का ढंग (शब्द युग्म)।

रेंहननामा :: (सं. पु.) गिरवी रखे जाने का प्रमाण पत्र (यौगिक शब्द.)।

रेहम :: (सं. पु.) रहम, दया।

रेहल :: (सं. स्त्री.) दे. रिहल।

रेहू :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार के दाँत, बच्चों की आँखों में रोह हो जाने पर इन दाँतो को मंत्रयुक्त करके गले में बाँधते हैं।

रैंक :: (सं. पु.) शौक।

रैकवार :: (सं. पु.) ठाकुरों की एक उपजाति।

रैगऔ :: (क्रि.) रह गया।

रैंजबौ :: (क्रि.) क्रोध, गुस्सा।

रैंजवा :: (सं. पु.) क्रोध।

रैदास :: (सं. पु.) चमार जातीय संत रैदास, चमारों के लिए आदरवाची शब्द।

रैन :: (सं. स्त्री.) चने की दाल का आटा।

रैनसैन :: (सं. स्त्री.) तौर तरीका, आचरण।

रैनी :: (सं. स्त्री.) लाल रंग की चुनरी।

रैनुका :: (सं. पु.) गंगा, जमुना की बालू।

रैनों :: (अ. क्रि.) रहना, ठहरना, टिकना।

रैबो :: (सं. पु.) रहने की क्रिया (संज्ञार्थक क्रिया।)।

रैम :: (सं. पु.) करूणा, दया कृपा।

रैयत :: (सं. पु.) प्रजा।

रैया :: (सं. पु.) छोटा कुँआ जो नदी नाले के पास खोदा जाता है।

रैला :: (वि.) सुस्त।

रैहल :: (सं. स्त्री.) दे. रिहल, रेहल।

रो :: संबंध कारण पर सर्ग जैसे तुमरो।

रोआँ :: (सं. पु.) रोयाँ, लोम, रोम।

रोई :: (क्रि.) रोना, विलाप करना।

रोई :: (कहा.) रोई काय कई - नंद ने देख लओ-रोई क्यों कहा-नंद ने देख लिया, कोई स्त्री अकेले में भले ही अपने पति के हाथ से नित्य पिटती रहे, परन्तु कोई यदि देख ले, विशेषकर देखने वाली ननद हो, तो वह रो पड़ेगी, दूसर के सामने अपमान बर्दाशत नहीं होता।

रोई :: (कहा.) रोउत हतीं और सासरे में मिली - बहाना मिलने पर मन चाहा काम करना, ससुराल में यदि मायके का कोई आदमी मिल जाय तो स्त्री को रूलाई आ जाती है।

रोई :: (कहा.) रोयँ बनें ना गायें, मातेजू मों बायें - कुछ करते धरते न बनना, अक्क-बक्क भूल जाना।

रोई :: (कहा.) रो-रो डुकरियन गीत गाये, लरकन खाँ आवे हाँसी - बुढियों ने रो-रो कर तो गीत गाये, लड़कों को हॅसी आती है, किसी के परिश्रम को न सराहना, बल्कि हँसना।

रोउआ :: (सं. पु.) मछली की एक जाति जो खाने में अधिक स्वादिष्ट मानी जाती है, रोहू।

रोंउन :: (वि.) रोती सी शक्ल बनाये रहने वाला।

रोए :: (सं. पु.) आँखों की पलकों के भीतरी भाग में सूजन होने का एक रोग (बहुवचन में प्रयुक्त)।

रोक :: (सं. स्त्री.) रूकावट बाधा (रोक-टोक शब्द युग्म. में प्रयुक्त) टिकोंना।

रोकड़ :: (सं. स्त्री.) किसी व्यापारिक संस्थान में जमा नगद धन राशि।

रोकड़या :: (सं. पु.) नगद राशि का लेनदेन करने तथा लेखा जोखा रखने वाला कर्मचारी।

रोकड़या :: दे. रोकड़।

रोका :: (सं. पु.) अवरोध, रूकावट।

रोंका :: (सं. पु.) सिलसिला।

रोंखबो :: (क्रि.) छोटा छोटा घास काटना।

रोग :: (सं. पु.) शारीरिक व्याधि।

रोगन :: (सं. पु.) चिकनाई, बार्निस।

रोगन :: (सं. पु.) माचिस की तीली पर लगा हुआ ज्वलनशील मसाला।

रोचक :: (सं. पु.) रूचि बढ़ाने वाला (विशेषण.) मन पसंद।

रोचना :: (सं. पु.) शादी का एक दस्तूर।

रोंचि :: (सं. पु.) दीप्ति।

रोज :: (सं. पु.) नीलगाय गाय से मिलता जुलता एक जंगली पशु, चित्र।

रोजऊँ :: (सं. पु. अव्य.) प्रतिदिन।

रोजगारी :: (सं. पु.) व्यापार।

रोजा :: (सं. पु.) मुसलमानों का उपवास व्रत जिसमें दिनमान रहते अन्न जल ग्रहण नहीं किया जाता।

रोजी :: (सं. स्त्री.) दैनिक पारिश्रमिक, दैनिक पारिश्रमिक का स्त्रोत, दैनिक आवश्यकताऐं।

रोजीना :: (सं. पु.) प्रतिदिन।

रोंजेरो :: (सं. पु.) झंझट।

रोजौ :: (सं. पु.) मछली पकड़ने के लिए नदी की धार में लगाये जाने वाले जारों कँटीली झाड़ियाँ की अड़वारी अवरोध जिसमें मछलियाँ फस जाती हैं।

रोट :: (सं. पु.) हनुमान जी का प्रसाद अर्पण करने के लिए बनाये जाने वाले बड़े बडे पाँच पुआ मीठीपुरी बहुत बड़ी या मोटी रोटी।

रोटका :: (सं. पु.) एक अनाज जो मसूर की तरह होता है।

रोटा :: (सं. पु.) रोड़, ईट, पत्थर, मिट्टी आदि का मलवा।

रोटी :: (सं. स्त्री.) आटे की चपाती, भोजन (विस्तृत अर्थ) उदाहरण-रोटी कमाबो-जीविका चलाना।

रोटी :: (कहा.) रोटियन कों रये, बई में ओले - झोले-रोटियों पर नौकर रहे, उसमें भी झोलझाल, कम मजदूरी पर काम करना और वह भी पूरी न मिलना।

रोटी :: (कहा.) रोटी ऊपर साग, मोरें तौ नितई फाग - घर में रोटी और साग खाने को हो क्या पूछा नित्य फाग दिवाली है।

रोटी :: (कहा.) रोटियन पै लात मारबो - रोजी को ठुकराना।

रोंठा :: (सं. पु.) बिल्कुल कच्चे फल, विशेषकर अमरूद के कच्चे फल जिनमें ऐठाँद के अतिरिक्त कोई स्वाद नहीं होता है।

रोण्ड :: (सं. पु.) राउण्ड, फेरी, चक्क (अकर्मक.)।

रोताई :: (सं. स्त्री.) शान, अकड़।

रोतेले :: (सं. पु.) ब्राह्मण।

रोथी :: (सं. स्त्री.) चमड़ा काटने का औजार, छेद करने का औजार।

रोंद :: (सं. स्त्री.) पशुओं या मनुष्यों की आवाजाही के कारण भूमि पर पड़ने वाला दबाब जिसके कारण मिट्टी ठोस हो जाती है।

रोंना :: (सं. पु.) घुँघरू, बोर।

रोंना :: (पु. सं.) सोने चाँदी के छोटे छोटे बोरा (छोटे छोटे) गोल कुन्दादार गुरिया जो आभूषण में झनकार के लिए लगाये जाते है।

रोनों :: (वि.) बिना नमक का, अलूना।

रोपतयाबो :: (वि.) जिद्द करना।

रोंपतयाबौ :: (क्रि.) जिस काम के लिए रोका जाए जानबूझकर वही करना।

रोपबौ :: (क्रि.) रचना या आयोजन करना, पौधा लगाना।

रोपा :: (सं. पु.) धान का पौधा।

रोबो पीटबो :: (क्रि.) चिल्लाकर छाती पीटकर रोना।

रोबौ :: (क्रि.) रोना, आँसू बहाना, अपने विरूद्ध किसी के व्यवहार को किसी से शिकायत करना।

रोंम :: (सं. पु.) लोम, शरीर पर उगने वाले बाल।

रोरबौ :: (क्रि.) किसी तरल पर तैरती हुई वस्तु के कणों को ऊपर ही ऊपर इकट्ठा करना, अनाज जैसी छोटे छोटे दानों या कणों वाली वस्तु के ऊपरी भाग को हल्के हाथ से बटोरना।

रोराबो :: (क्रि.) खुजलाने की तीव्र इच्छा।

रोरी :: (स्त्री.) रोली, ईंगुर तिलक लगाने की लाल बुकनी, गर्मी के प्रारम्भिक दिनों में आकाश में कभी कभी छा जाने वाली धुन्ध गिरूआ (गेंहू जौ की फसलों का एक रोग जिसमें बालों पर लाल रोली सी छा जाती है)।

रोस :: (सं. पु.) क्रोध।

रोसन :: (वि.) उजागर, उज्जवल, प्रकाशित।

रोसनाई :: (सं. स्त्री.) प्रातः काल तेल शब्द का उच्चारण माना जाता है। अतः आवश्यक होने पर तेल की रोसनाई कहा जाता है।

रोसनी :: (सं. स्त्री.) सजावट के लिए किया जाने वाला प्रकाश।

रोंसयाबौ :: (क्रि.) दे. रोयतयाबौ।

रोंसा :: (सं. पु.) लोबिया, लोबिया के बीज, रौंसा।

रोहनी :: (सं. स्त्री.) रोहिणी, बलराम जी की माता, सत्ताईस में से चौथा नक्षत्र।

रोहू :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की बड़ी मछली।

रौ :: (सं. पु.) झुकाव।

रौंकर :: (सं. पु.) सिलसिला।

रौगड़िया :: (सं. स्त्री.) रास्ता।

रौंजेरा :: (सं. पु.) झंझट।

रौतान :: (सं. स्त्री.) सोंर जातीय स्त्री।

रौंथ :: (क्रि.) जुगाली करना।

रौंथबो :: (क्रि.) जुगाली करना, चबाना, कुचलना।

रौंदबो :: (सं. क्रि.) पैरों से दबाकर विकृत करना।

रौंधा :: (सं. पु.) छेद करने का एक औजार जिसे रस्सी डालकर घुमाया जाता है।

रौना :: (सं. पु.) छोटा घँघुरू, बोर।

रौनीमार :: (सं. पु.) जमीन की हल्की किस्म।

रौंनो :: (वि.) बिना नमक का पदार्थ।

रौब :: (सं. पु.) चोगा।

रौंय :: (क्रि.) रोने का।

रौरब :: (सं. पु.) एक नर्क, भयंकर नर्क।

रौरबौ :: (क्रि.) शहद की मक्खियों को छत्ता छोड़कर मँडराने लगना।

रौराबौ :: (क्रि.) शरीर में खुजलाहट होना, मधुमक्खियों के छत्ते को छेड़ना जिससे वे छत्ता छोड़कर मँडराने लगती है।

रौरो :: (सं. पु.) एक भीषण नरक।

रौरोचारौ :: (सं. पु.) शोरगुल, चहल-पहल।

रौरोचारौ :: (कहा.) रौल-चौल होबो - चहल-पहल होना।

रौल :: (सं. स्त्री.) छोटा गोल डण्डा, लकीर, किसी पात्र का अभिनय (अकर्मक.)।

रौलौचालौ :: (सं. पु.) दे. रौरोचारौ।

रौंस :: (सं. स्त्री.) एक ही जाति की साग भाजी क्यारियों का समूह।

रौंसा :: (सं. पु.) लोबिया एक प्रकार की फली।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि काल व्यंजन वर्ण इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

लआ :: (सं. पु.) गेहूँ, जौ आदि की कटी फसल के बोझे बाँधने के लिए जूना (अस्थायी बँधना) बनाने के काम आने वाली एक घास जो पानी और दलदली भूमि में पैदा होती है।

लआ :: दे. पटेर।

लइया :: (सं. पु.) लोहे का गोला।

लई :: (क्रि.) ली।

लउआ :: (वि.) ठलुआ, मुफ्तखोर, उदाहरण-लउआ, नौकर, साथी।

लंक :: (सं. स्त्री.) पैर की टेढ़ी स्थिति जिसके कारण व्यक्ति सामान्य ढ़ग से न चल सके।

लकइया :: (सं. पु.) लकड़ियाँ।

लकड़याबौ :: (क्रि.) अकड़कर लकड़ी की तरह हो जाना।

लकड़हारो :: (सं.) जंगल आदि से लकड़ियाँ तोड़कर बेचने वाला।

लकड़ा :: (वि.) पत्तों को चपटा कर बनायी जाने वाली तम्बाकू की एक किस्म।

लकना :: (सं. स्त्री.) लगन, बलवती अभिलाषा।

लंकनी :: (सं. स्त्री.) एक राक्षसी जिसका वध हनुमान ने किया था।

लकपति :: (वि.) बहुत धनी।

लकरिया :: (सं. स्त्री.) लकड़ी।

लकलकाबौ :: (क्रि.) लकदक होना, चमक-दमक से चकाचौंध करना, आग का धकधकाना।

लंकलाट :: (सं. पु.) सफद माँड़ी लगा मोटा कपड़ा, लोंग क्लाँथ (अंग्रेजी.)।

लकवा :: (सं. स्त्री.) पक्षाघात, एक रोग जिसमें मुँह, हाथ, पैर या शरीर का दायाँ या बाँया पूरा भाग अल्प चेतन और लोचहीन हो जाता है, उदाहरण-लकबा मारबो-लकवा रोग से ग्रस्त होना।

लंका :: (सं. स्त्री.) रावण की राजधानी, स्वर्ण नगरी, वह बस्ती या मुहल्ला, जहाँ दुष्ट लोग बसते हों (लाक्षणिक अर्थ.)।

लंका :: (कहा.) लंका कों सोनों बताबो - लंका को सोना बताना, जहाँ जो वस्तु पहिले से प्रचुर मात्रा में मौजूद है वहाँ उसे ले जाने की हास्य जनक चेष्टा करना।

लकीर :: (सं. स्त्री.) कागज, स्लेट आदि पर खींचा हुआ लंबा निशान, लम्बी रेखा, गाड़ियों के पहिये का निशान, कतार, क्रम, उदाहरण-लकीर पीटबो-पुरानी प्रथाओं पर चलना।

लकीर :: (कहा.) लकीर के फकीर - पुरानी ही चाल पर चलने वाले।

लकुइया :: (सं. स्त्री.) रबी की फसल को फैलाने के लिए न्यूनकोण की आकृति वाला एक उपकरण।

लकैया :: (सं. स्त्री.) लकड़ी, शाखा, टहनी, ईधन, लाठी। उदाहरण-लकैया देबो-मुरदा जलाना, लकैया सो-बहुत पतला।

लक्का :: (सं. पु.) एक प्रकार का कबूतर।

लक्खी :: (वि.) जो ईंट पककर कत्थई लाल हो गई हो।

लख :: (वि.) लाख का सामासिक रूप, जैसे लखपति।

लख :: (कहा.) इकलख पूत सवालख नाती, जिन रावन के घर दिया न बाती।

लखन :: (सं. पु.) लक्ष्मण, अयोध्या के राजा दशरथ के तृतीय पुत्र।

लखपती :: (वि.) एक लाख मुद्राओं का स्वामी, लखेरे के लिए आदरवाची सम्बोधन।

लखबौ :: (स. क्रि.) देखना, समझना, जानना, ताड़ जाना, लक्ष्य करना, मन में भविष्य का अनुमान करना, परिस्थिति के परिणाम कर पूर्वाभास होना।

लखलखाबो :: (क्रि.) हिलाना।

लखाई :: (सं. पु.) एक कीड़ा जो दीवालों के कोनों में मिट्टी का घोंसला बनाकर रहता है।

लखाबो :: (अ. क्रि.) दिखाई देना, दिखाना, अनुमान कराना।

लखिया :: (वि.) पीले रंग का बैल।

लखूरो :: (सं. पु.) एक लाख रूपये की सम्पत्ति वाला खजाना।

लखूली :: (सं. स्त्री.) लाख की पतली चूड़ियाँ।

लखूलौ :: (सं. पु.) एक लाख या इससे अधिक रूपये जिस तिजोरी में रखे हों उसके पास घी की एक अखण्ड ज्योति जलनी चाहिए। ऐसी मान्यता थी, यही दीपक लखूलौ कहलाता है, एक लाख रूपये का भूमिगत खजाना।

लखेरौ :: (सं. पु.) लाख की चूड़ियाँ तथा कुमकुम बनाने तथा लाख संबंधी अन्य कार्य करने वाली एक जाति, लखेरा, लक्षकार।

लखैरी :: (सं. स्त्री.) बर्र (भिड़) से मिलता-जुलता एक भिनभिना जो दीवार, लकड़ी या कपड़ों पर मिट्टी का घर बनाता।

लखौटा :: (सं. पु.) एक प्रकार की लाख की चूड़ी।

लखौरी :: (सं. स्त्री.) दे. लखैरी।

लग :: (सं. स्त्री.) बाँस की लम्बी खपच्ची।

लगऊ :: (वि.) लगाने वाला।

लंगड़ :: (सं. पु.) धागे से बँधा पत्थर का टुकड़ा।

लँगड़याबौ :: (क्रि.) लँगड़ा कर चलना।

लँगड़ा :: (वि.) एक पैर वाला, लगड़ाकर चलने वाला।

लँगड़ा :: (कहा.) लँगड़े लूले गये बराते, आगौनी में खाई लातें - कहीं जाने पर अच्छी खातिर न होना।

लँगड़ा :: (वि.) जिसका पैर असामान्य हो, पैरों से विकलांग।

लँगड़ो :: (वि.) जिसका एक पैर टूटा, बेकार हो जिसका कोई पाया टूटा हो (पलंग आदि)।

लगन :: (सं. स्त्री.) लगाव, जुड़ाव, संलग्न रहने की इच्छा।

लगन :: दे. लकना।

लगन :: (कहा.) लग गओ तौ तीर नई तौ तुक्का - काम करने पर कुछ न कुछ तो होगा ही।

लगबो :: (क्रि.) चोट लगना, संलग्न होना, गाय-भैंस का दुहा जाना, मन में किसी बात का बार-बार खटकना, किसी बात का बुरा लगना।

लगबो :: (कहा.) लगन में विघ्न - शुभकार्य में विघ्न।।

लगर :: (सं. पु.) बसोर, एक जाति।

लँगर :: (सं. पु.) धागे से बँधा हुआ पत्थर का टुकड़ा, लड़ाकू स्वभाव का (विशेषण.)।

लगवार :: (सं. पु.) पिछलग्गू, (मान न मान मैं तेरा मेहमान)।

लगसर :: (वि.) एक सीध में लगातार।

लगा-तगा :: (सं. स्त्री.) संबंध।

लगान :: (सं. पु.) राजा, सरकार, जमींदार को मिलने वाला भूमिकर, राजस्व।

लगाबुजी :: (सं. पु.) झगड़ा।

लगाबो :: (क्रि.) संलग्न करना, स्पर्श करना, दूध दुहना, रोपना, चोट मारना।

लगाम :: (सं. स्त्री.) वल्गा, घोड़े को नियन्त्रित रखने का उपकरण जिसमें लोहे की एक छड़ घोड़े के मुँह में आड़ी पड़ी रहती है तथा रस्सी के सहारे उसका नियन्त्रण चालक (सवार) के हाथ में रहता है।

लगार :: (सं. स्त्री.) बर्तन में रखी हुई वस्तु को किंचित अवशेष, किसी कार्य की निन्तरता का क्रम।

लगालगी :: (सं. स्त्री.) प्रतिस्पर्धा, शत्रुता का ठण्डा क्रम जिसमें दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने की ताक में रहते हैं।

लगाव :: (सं. स्त्री.) संबंध, रिश्ता, स्नेह।

लगी :: (सं. स्त्री.) हृदय में चुभी हुई कोई बात।

लगी :: (कहा.) लगी बुरई होत - मन में की बात चुभ जाने पर चैन नहीं पड़ता।

लगुआ :: (सं. पु.) दे. लगवार।

लगुआ :: (मुहा.) लगुआ, अगुआ।

लँगुटया :: (वि.) जो लँगोटी लगाये हुए हो, अन्तरंग।

लँगुटया :: (प्र.) लँगुटया यार अंतरंग मित्र, बचपन का साथी।

लगुदिया :: (सं. स्त्री.) छड़ी, लकड़ी, टहनी।

लगुन :: (सं. स्त्री.) लग्न पत्रिका, कन्या पक्षा की ओर से भेजी जाने वाली वैवाहिक कार्यक्रम की विस्तृत सूचना, पत्रिका जिसका वर पक्ष के यहाँ उत्सव पूर्ण ढ़ग से ग्रहण एवं वाचन होता है।

लगुनयाँ :: (सं. पु.) लग्नपत्रिका लाने वाले लोग।

लँगुरा, लँगूर :: (सं. पु.) लंगूर बन्दर। वे छोटे बच्चे जो कन्या भोज के समय कन्याओं के साथ भोजन करते है। लम्बी पूँछ और काले मुँह का बन्दर।

लगे :: (अव्य.) निकट, समीप।

लगेठा :: (वि.) भोज या अन्य स्थान पर आमन्त्रित व्यक्ति के साथ जाने वाले अनामंत्रित बच्चे या अन्य लोग नौकर-चाकर आदि।

लगेठाँ :: (क्रि. वि.) लगेठा के रूप में (जाना)।

लगैया :: (वि.) लगाने वाला।

लँगोट :: (सं. पु.) कोपीन, कमर में बाँधने का एक वस्त्र जिसमें केवल उपस्थ ढका जाता है।

लँगोटा :: (सं. पु.) लँगोट, एक अधोवस्त्र जिससे नितम्ब और गुप्तांग ढकते हैं।

लँगौट :: (सं. स्त्री.) छोटा लँगोट, कोपीन, प्रायः साधु इसका इस्तेमाल करते है, पाँच-छह अंगुल चौड़े कपड़े की पट्टी जिससे आगे-पीछे के गुप्तांग ढकते हैं, उदाहरण-लँगोटी बाँद लेबो-दरिद्र होना, लँगोटी बाँदें फिरबो-गरीबी के कारण नंगा फिरना।

लँगौट :: (कहा.) लँगोटी में फाग खेलबो - थोड़ा खर्च करके अपना काम बना लेना, फाग केवल लँगोटी में नहीं खेली जाती, उसमें तो अच्छे कपड़े पहिने जाते हैं।

लगौत :: (वि.) वह गाय-भैंस जो दूध दे रही हो।

लगौरियार :: (वि.) धान की वह फसल जिसका रोपा लगाया गया हो।

लग्गत :: (सं. स्त्री.) धन की वह मात्रा जो किसी कार्य में लगायी गयी हो, निविष्ट पूंजी।

लग्गा :: (सं. पु.) क्रम, सिलसिला, कार्य प्रारम्भ करने की क्रिया।

लग्गार :: (क्रि. वि.) लगातार।

लग्गार :: दे. लगसर भी।

लग्गी :: (सं. स्त्री.) अनबन, शत्रुता, एक दूसरे को नीचा दिखाने की भावना, उथले पानी में नाव या डोंडा चलाने का बाँस।

लँघन :: (सं. स्त्री.) उपवास, व्रत।

लघुत्तम :: (सं. पु.) किन्हीं संख्याओं को समान रूप से विभाजित कर सकने वाली छोटी-छोटी संख्या निकालने की गणितीय क्रिया, लघुत्तम।

लच :: (सं. स्त्री.) दही के थक्के का छोटा टुकड़ा।

लचक :: (सं. पु.) लचकाने की क्रिया या भाव, नमनीयता, टेड़, चलने में एक ओर अधिक झुकाव लेने की क्रिया।

लचकबौ :: (क्रि.) लम्बी चीज का दवाब से झुकना, बच्चों की माँस-पोशियों में झटका लगना या मरूड़ जाना। हाथ-पैर कमर आदि अंगों पर असंतुलित बल लग जाने के कारण मोच आना।

लचका :: (सं. पु.) मट्ठे में पकाया हुआ ज्वार या मक्का का दलिया।

लचका :: (कहा.) पानी के लचका में परमेसुर की का थराई।

लचकाबो :: (स. क्रि.) झुकाना, लचाना।

लचलचौ :: (वि.) लोचदार।

लचलचौ :: दे. लच।

लचा :: (वि.) रिश्वत खोर।

लँचा :: (सं. पु.) लाँच लेने वाला।

लचारो :: (वि.) झुकने वाला, लचकदार।

लचीलो :: (वि.) लचकने वाला, जल्द बल खाने वाला, लचकदार।

लच्छन :: (सं. पु.) लक्षण, चारित्रिक विशेषताएँ, आरोप।

लच्छमी :: (सं. स्त्री.) लक्ष्मी, धन की देवी, भगवान विष्णु की पत्नी, धन-दौलत, भाग्यवती, सुलक्षणा, व्यंग्य में प्रयोग, गाली।

लच्छा :: (सं. पु.) चाँदी के तारों को ऐंठ कर बनाये जाने वाले पतले-पतले कड़े जो आठ-आठ-दस-दस संख्या में स्त्रियों द्वारा पैरों में पहिने जाते थे, गुच्छा।

लच्छी :: (सं. स्त्री.) क्रमबद्ध, ढंग से मोड़ी हुई धागे की गुच्छी, लच्छमी का संक्षिप्त रूप।

लछमन :: (सं. पु.) दे. लखन।

लछमी :: (सं. स्त्री.) दे. लखन।

लछारौ :: (वि.) लम्बी आकृति वाली (वस्तु)।

लछिया :: (सं. स्त्री.) दे. लच्छी, को हीन ढ़ग से पुकारने का शब्द।

लजनूँ :: (सं. स्त्री.) बेल इसका पत्ता बच्चों के सूखा रोग में उपयोगी होती है।

लजबाबो :: (स. क्रि.) दूसरे को लज्जित करवाना।

लजबो :: (सं. स्त्री.) लजाना, लज्जित होना।

लजयाबौ :: (क्रि.) झिझकना, झेंपना, शर्म लगना, संकोच करना।

लजवन्ती :: (चि.) लज्जाशील, लाजवन्ती, लता।

लजवन्ती :: (सं. स्त्री.) लाजवती।

लजाउन :: (वि.) लज्जित करवाने वाला।

लजाउन :: (मुहा.) खाउन लजाउन-वह जो अच्छा खाने-पीने पर भी अस्वस्थ या दुबला-पतला रहता है।

लजाबो :: (क्रि.) लज्जित कराना।

लंजिया :: (सं. स्त्री.) पुंजिया-धन सम्पत्ति साज सामान तथा नगद राशि।

लजोंनया :: (वि.) अपने रहन-सहन या व्यवहार से माता-पिता या पालकों को लज्जित करवाने वाला।

लजोर :: (सं. स्त्री.) अंखिया बड़ी लजोर।

लझूरा :: (सं. स्त्री.) झकोरे की हवा।

लट :: (सं. स्त्री.) कुछ बालों का झूलता हुआ समूह, लटकते हुए उलझे बालों का गुच्छा।

लट :: (कहा.) लटें छुटकार कें खेलबो - बेशरम बन काम करना।

लटकन :: (सं. स्त्री.) शोभा के लिए लटकायी जाने वाली वस्तु।

लटकनियाँ :: (वि.) झूम-झूमकर चलने वाले छैला (रसिया)।

लटकनियाँ :: दे. लटकन (स्त्री. स.)।

लटकबाबो :: (स. क्रि.) लटकाने का काम करना।

लटकबो :: (अ. क्रि.) ऊँची जगह से किसी चीज का आधार च्युत होकर झूलना, टँगना, काम पूरा न होना, देर होना।

लटका :: (सं. पु.) झूठा आश्वासन।

लटकाबौ :: (क्रि.) किसी सहारे पर टाँगना, हाथ में झुमाकर लेना, किसी झूठे आश्वासन पर अटकाना।

लटकारे :: (वि.) लंबे घूँघट।

लटकोरबो :: (क्रि.) वस्तु को धूल आधि में घसीटना।

लटकौआ :: (वि.) लटकने वाला, झुकने वाला।

लटपटाबो :: (अ. क्रि.) कमजोरी, नशे आदि के कारण सीधे न चल पाना, लड़खड़ाना, अस्थिर होना, आस्थिर होना, आसक्त होना।

लटपटो :: (वि.) गिरता पड़ता, ढीला-ढाला, सरका हुआ, अंट-संट, जो व्यवस्थित न हो।

लटपटो :: (कहा.) लटे-पटे दिन काटिये - बुरे दिन भी जैसे बने काटना चाहिए।

लटबूड़ :: (सं. पु.) एक बेल इसके पत्ते बाल बढ़ाने के काम आते हैं (पीसकर)।

लटबो :: (अ. क्रि.) थमकर गिरना, रोग आदि से कमजोर पड़ जाना, व्याकुल होना।

लटा :: (सं. पु.) महुओं को नारियल की गरी और चिरौंजी के साथ कूट कर बनायी जाने वाली थपिया (महुओं से बनी एक प्रकार की मिठाई)।

लटी :: (वि.) झगड़ालू स्वभाव की (स्त्री)।

लटुरबो :: (अ. क्रि.) लथरना, लथपथ होना।

लटो :: (वि.) दुबला, पतित, तुच्छ।

लटोरबौ :: (क्रि.) भूमि के बार-बार संस्पर्श से वस्त्रों या शरीर को धूम-धूमरित करना, धरती पर घसीटना।

लटौरिया :: (सं. पु.) जिझौतिया, ब्राह्मणों का एक आस्पद।

लट्ठ :: (सं. पु.) मोटी लाठी, इसकी मानक लम्बाई व्यक्ति की कान की लोंड़ी तक होती है। बाँदा, हमीरपुर तरफ सिर से थोड़ी ऊपर तक होती है।

लट्ठम-लट्ठा :: (सं. पु.) दोनों पक्षों द्वारा लाठियों का प्रहार करके की गयी लड़ाई (यौगिक शब्द.)।

लट्ठा :: (सं. पु.) कपड़े की एक किस्म जो मोटा और भूरा सफेद होता है।

लठयाई :: (सं. स्त्री.) लाठियों की मार।

लठा :: (सं. पु.) विमान या अन्य किसी संरचना में आधार रूप में लगायी जाने वाली पतली बल्ली, उदाहरण-लठा-पठा से-तन्दुरूस्त, जवान व्यक्ति।

लठायाबो :: (क्रि.) लाठी से मारना।

लठारा :: (सं. पु.) एक छोटा कोदों की जाति का अनाज, फिकरा या फिकरा।

लठिया :: (सं. स्त्री.) मानक ऊँची से कम लम्बी, लाठी, की भी छोटी लाठी, रीढ़, स्तंभ।

लठेंगर :: (सं. पु.) बहुत अधिक खाने वाला, अतिभोजी।

लठैंत :: (सं. पु.) लाठी से लड़ने वाला।

लठ्या :: (सं. पु.) लाठी देकर आक्रामक मुद्रा में घूमने वाला।

लंड :: (सं. पु.) लिंग शिशन पुरूष की जननेन्द्रिय।

लड़इया :: (सं. पु.) सियार, लड़ाकू यौद्धा।

लड़इया :: (प्र.) आला ऊदल बड़ लड़इया जिन से हार गई तरवार।

लड़इया :: (कहा.) लड़े न भिड़े, जिरा पैरें फिरें - व्यर्थ बहादुरी की डींग मारना।

लड़इया :: (कहा.) लड़ें साड़ बारी कौ भुरककन - दो बड़े आदमियों की लड़ाई में बीच के छोटे आदमी मारे जाते हैं।

लड़कदौंद :: (वि.) लड़कों का गुट, लड़कपन, लड़कों की जिद।

लड़कपचौर :: (सं. स्त्री.) लड़कों का झुण्ड, उच्छृंखल आचरण (सामासिक शब्द.)।

लड़कोरी :: (वि.) वह।

लड़कोरी :: (स्त्री.) जिसकी गोद में छोटा बच्चा हो।

लड़क्खू :: (वि.) झगड़ालू।

लड़गहरी :: (सं. स्त्री.) दुल्हन, वधू।

लड़नेद :: (सं. स्त्री.) वह लड़की जिसका विवाह होता है।

लड़न्त :: (सं. स्त्री.) कुश्ती, मल्ल युद्ध।

लड़न्त :: (कहा.) हगा लड़इया (डरपोक यौद्धा) छींट को बागौं।

लड़यानों :: (वि.) लाड़-प्यार के कारण कुछ बिगड़े हुए व्यवहार वाला।

लड़यानों :: (कहा.) लड़इयन में गोली खोबो - लड़कों के साथ मिल कर लड़कपन करना।

लड़याबौ :: (क्रि.) लाड़-प्यार के कारण मुँह लगाना, मुँह लगना।

लड़रया :: (सं. पु.) गीदड़ लड़ने वाला, एक प्रकार की घास।

लड़लड़ी :: (सं. स्त्री.) लड़, लर।

लड़ाबो :: (स. क्रि.) एक दूसरे से लड़ाई करना, फँसाना, उलजाना, प्यार दुलार करना।

लड़ाँयते :: (वि.) लाड़ले (लोक गीत. अमुक) जूके कुँअर लड़ाँयते, नारे सुआटा।

लड़िया :: (सं. पु.) चमारों के समकक्ष एक जाति।

लड़िया :: (सं. स्त्री.) छोटी गाड़ी।

लडुआ :: (सं. पु.) लड्डू मोदक।

लडुआ :: (मुहा.) लडुआ ढड़कबौ किसी मांगलिक अवसर पर मिठाई के भोजन होना, आपस में मधुर व्यवहार होना, उदाहरण-लडुआ ढड़कबो दावत होना, लडुआ बाँटबो-दावत होना।

लडुआ :: (कहा.) लडुआ ढँड़क रये - लड्डू लुढक रहे हैं। अर्थात् बड़े प्रेम की बातें हो रही हैं।

लडुआ, लदोंनयाँ :: (वि.) वजन ढोने वाला (जानवर)।

लड़ेत :: (सं. पु.) कुश्ती लड़ने वाले पहलवान।

लड़ेंते :: (वि.) लाड़ले।

लड़ेंते :: (प्र.) बे बड़े लड़ेते लाल है।

लड़ैया :: (सं. पु.) सियार, गीदड़।

लड़ोधरा :: (सं. पु.) दे. लड़यानों।

लड़ोधरा :: (मुहा.) लाड़े लड़ोधरा।

लढिया :: (सं. पु.) दीवाल बनाने वाला कारीगर।

लण्ड :: (सं. पु.) पुरूष गुप्तांग, शिश्न।

लण्डायबौ :: (क्रि.) किसी के साथ मैथुन करना, बलात्कार करना, अपवाक्यों में प्रयोग।

लत :: (सं. स्त्री.) खराब व्यसन, उदाहरण-लतखोरू-लातें खाने वाली स्त्री।

लतऊ :: (वि.) लात मारने वाली गाय।

लंतगबो :: (क्रि.) खदेड़ना।

लतबा :: दे. लतया।

लतबा :: दे. लतया।

लतया :: (वि.) लात मारने वाला बैल।

लतया :: (वि.) लात मारने वाला बैल।

लतयाबौ :: (क्रि.) लातों से मारना, लात के इशारे से एक ओर सरकाना, लात से ठोकर मारकर अपमानित करना।

लतरा :: (वि.) लातें खाने वाला।

लतरा :: (सं. पु.) टूटे पुराने जूते।

लतरियाँ :: (सं. स्त्री.) टूटे हुए जूते।

लतरी :: (सं. स्त्री.) जानवरों के खुरों से लगकर फैला हुआ गोबर, पैर से लग जाने के कारण यहाँ-वहाँ पोंछा हुआ मैला।

लतरोंदन, लतरोंदा :: (सं. पु.) दरवाजे में नीचे लगाया जाने वाला पत्थर, दरवाजे में पैर साफ करने के लिए बिछाया जाने वाला फट्टा आदि, चरणों में रहने वाला (लोक्षणिक अर्थ.)।

लता :: (वि.) जिस जानवर को लात मारने की आदत हो।

लतैलो :: (वि.) लात खाने वाला।

लत्ता :: (सं. पु.) कपड़े का छोटा टुकड़ा।

लत्ता-पत्ता :: (सं. पु.) लता और पत्ते, जड़ी-बूटी, निकम्मी और रद्दी चीजें।

लत्ती :: (सं. स्त्री.) दुहरे और मोटे कपड़े को सींकर बनाया हुआ रूमाल जैसा कपड़ा। इसके बीच में काज की तरह का एक गोल छेद होता है ये जलेबी बनाने के काम आता है।

लत्थ-पत्थ :: (वि.) लथपथ, सना हुआ, भीगा हुआ।

लथुरबो :: (सं. स्त्री.) धूल आदि में भिड़ जाना।

लथोरबौं :: (क्रि.) धरती पर गिरा कर घसीटना।

लदनयाँ :: (सं. पु.) लदने वाला।

लदना :: (सं. पु.) बोझ ऊपर रखना, लदने वाला।

लदबदा :: (वि.) बहुतायत से, अधिकता से।

लदबाबौ :: (स. क्रि.) लादने का काम कराना।

लदबौ :: (क्रि.) बोझिल होना, बोझ के कारण झुकना।

लदर फदर :: (वि.) अधिकता से।

लदाउ :: (वि.) डाट लगाकर बनायी हुई (छत)।

लदान :: (सं. स्त्री.) वाहन पर माल लादने की क्रिया।

लदाव :: (सं. पु.) किसी चीज पर रखा हुआ बोझ।

लद्दुर :: (सं. पु.) एक प्रकार की दाद, जिसमें शरीर पर गोल खुरदरा चकत्त-सा हो जाता है, अकौता।

लद्दू :: (वि.) दे. लदुआ, लदोंनयाँ।

लप :: (सं. पु.) खोबा भर।

लंप :: (सं. पु.) दे. लम्प।

लपक लपक :: (क्रि. वि.) बीच में बोलने की आदत।

लपकबौ :: (अ. क्रि.) झटपट चल पड़ना, टूट पड़ना, आक्रमण करना, कुछ बार-बार पाते रहने के कारण प्राप्ति स्थान बार-बार जाने का अभ्यास या धुन।

लपकबौ :: (कहा.) लपकी गाय गुलेंदे खाय, दौर - दौर मउआ तर जाय, किसी फेंक कर दी गयी वस्तु को हाथों में झेलना।

लपका :: (वि.) चंचल (व्यक्ति) शीघ्रता करने वाला कोई चीज पाने के लिए हाथ बढ़ाने वाला।

लपका :: (कहा.) लपकी गाय गुलेंदे खय, बेर बेर महुआ तर जाय - महुआ नामक वृक्ष का पका फल जो खाने में मीठा होता है, मुफ्त का माल खाने की आदत पड़ जाने पर बार बार उसी जगह जाना जहाँ खाने को मिलता है।

लपकौ :: (सं. पु.) किसी स्वाद को बार-बार लेने का अभ्यास, किसी स्वार्थ के बार-बार पूरा हो जाने के कारण विकसित आदत।

लपट :: (सं. स्त्री.) गीष्म ऋतु में दोपहर में चलने वाली गर्म हवा, लू।

लंपट :: (वि.) कामी लुच्चा।

लपटण्ट :: (सं. पु.) सेना का बड़ा अफसर, लैफ्टीनेंट (अंग्रेजी.)।

लपटबो :: (अ. क्रि.) आलिंगन करना, सटनाया घिरना, सूत आदि का लपेटा जाना।

लपटा :: (सं. पु.) कढ़ी की तरह का पदार्थ।

लपटें :: (सं. स्त्री.) ज्वालाएँ।

लपटौआ :: (वि.) लिपटने वाला, सटा हुआ।

लपबो :: (अ. क्रि.) बेंत या लचीली वस्तु का एक छोर दबाने पर इधर-उधर झुकना, लचना।

लपर :: (सं. स्त्री.) अधिक और दूसरों की बातों को बीच दबाने पर इधर-उधर झुकना, लचना।

लपलपाना :: (क्रि. अव्य.) लपना और बार-बार लचकना।

लपलपाबौ :: (क्रि.) हाँफने के कारण कुत्ते की जीभ का बाहर निकल कर हिलना, जीभ का स्थिर न रहना।

लपसी :: (सं. स्त्री.) पतला हलुआ, गुड़ का हलुआ, मसली हुई पूड़ियों के रवा और गुड़ से बनाया जाने वाला पतला हलुआ।

लपसी :: (कहा.) लपसी सी चाटत - किसी की बातचीत के बीच में बार-बार बोल उठने वाले के लिए कहते हैं।

लंपा :: (सं. पु.) दे. लम्पा।

लंपा :: (कहा.) लंपा कैसे ऐंठत - लंपा की तरह ऐंठते हैं, बहुत अकड़ते हैं, घमंड करते हैं, सीधे बात नहीं करते, लंपीले घास पर पानी डालने से वह एँठता है।

लपाटिया :: (वि.) बकवास करने वाला, झूठा।

लपाबो :: (स. क्रि.) लचने वाली चीज का तेजी से घुमाकर झुकाना, आगे बढ़ाना।

लपुरा :: (सं. पु.) उतावली करने वाला, झूठा, चंचल।

लंपू :: (वि.) दे. लंपू।

लपेटन :: (सं. स्त्री.) लपेट, घुमावा, फेरा, उलझन, ऐंठन।

लपेटबो :: (स. क्रि.) सूत कपड़े आदि को किसी चीच के चारों ओर बांधना, समेटना।

लपेटा :: (सं. पु.) किसी धागे या रस्सी से लपेटने की क्रिया में बना एक चक्कर।

लपेटौ :: (सं. पु.) चक्कर, बातों का चक्कर, झूठे प्रलोभन भरी बातें।

लपेड़बौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को किसी चीज से आवृत्त करना, फैले हुए बिस्तर आदि को गोल करना, धागे को किसी आधार पर चक्करों में अवस्थित करना।

लपेड़ा :: (सं. पु.) दे. लपेटा, लपेटौ।

लंपो :: (सं. स्त्री.) एक घास, लंपौरा, लंपा वाली घास।

लप्पड़ :: (सं. स्त्री.) थप्पड़ा, चाँटा, हथेली से किया गया प्रहार।

लफ :: (सं. स्त्री.) अंजलि (अनाज या अन्य शुष्क बारीक वस्तु का देशज माप)।

लफज :: (सं. पु.) लफ्ज, शब्द।

लफबौ :: (क्रि.) लचकना।

लफरयाबौ :: (क्रि.) निरर्थक, अप्रासंगिक और बहुत बात करना।

लफरयाबौ :: दे. लपर-लपर।

लफाड़ा :: (सं. पु.) आग की बड़ी लौ।

लफाड़े लेबो :: (क्रि.) तेजी से बढ़ना।

लबइया :: (सं. पु.) कुछ ही दिनों पूर्व जन्मा बछड़ा, (इस शब्द का प्रयोग लुधाँती तथा पूर्व की संक्रमणशील बुन्देली में पाया जाता है)।

लबक :: (सं. स्त्री.) दक. लपक, उदाहरण-लबक लौलइया-झुटपुट, संध्याकाल के बाद का समय।

लबकबौ :: (क्रि.) दे. लपकबौ।

लबड़ धोंधों :: (सं. स्त्री.) सब के साथ और ऊल-जुलूल बोने की क्रिया (यौगिक शब्द)।

लंबतडंग :: (वि.) ताड़ के समान, लंबा, बहुत लंबा, बहुत ऊँचा।

लबदो :: (सं. स्त्री.) उबले हुए बेर।

लंबर :: (सं. पु.) नम्बर।

लबरा :: (वि.) झूठ बोलने वाला।

लंबरी :: (वि.) बदमाश।

लबरोइँ :: (सं. स्त्री.) झूठी बातें।

लबा :: (सं. पु.) तीतुर के कुछ मिलता-जुलता एक पक्षी, इसको धूल में लोटने की आदत होती है।

लबा :: (कहा.) लबा फँस तीतर फँसे तुम काँ फँसी बटेर - अनापेक्षित और असंगत साथ।

लबा :: (मुहा.) लबा से लोटना।

लबा :: (प्र.) एक चाँटा में तौ लबासे लोटौ।

लंबान पुंछान :: (वि.) लम्बाई।

लबारी :: (सं. पु.) झूठ बोलना, गप्पी, झूठा।

लबालब :: (क्रि. वि.) पूरा भरा हुआ, किनारे तक भरा हुआ।

लबिया :: (सं. स्त्री.) लोहे की मोटी पत्ती।

लबुदिया :: (सं. स्त्री.) छोटी तथा पतली लकड़ी, सण्टी।

लबेंनी :: (सं. स्त्री.) तुरन्त की ब्यानी गाय।

लबेरूआ :: (सं. पु.) गाय या भैंस का छोटा बच्चा।

लँबो :: (वि.) लम्बा, ऊँचा अधिक विस्तार वाला।

लबोदा :: (सं. पु.) मध्यम आकार की अनघड़ लकड़ी, हाल की टूटी पतली छड़ी।

लबोदी :: (सं. स्त्री.) छोटा पतला डंडा।

लभेरो :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

लमकबो :: (अ. क्रि.) उत्सुक, उत्कंठित होना, लपकना।

लमगुरिया :: (सं. स्त्री.) एक चिड़िया जो प्रायः तालाब के निकट रहती है।

लमछर, लमछरी :: (वि.) लम्बी पतली तथा सुड़ौल देह वाली, तन्वंगी।

लमछारो :: (वि.) लम्बा, बड़ा।

लमछोंय :: (वि.) लम्बा (अधिकतर लम्बे चेहरे के लिए प्रयुक्त)।

लमथनूँ :: (वि.) लम्बे थनवाली।

लमयाके :: (अव्य.) आगे बढ़कर, आगे जाकर।

लमयाबौ :: (क्रि.) लंबा करना, खींचना, दूर निकल जाना, खिसक जाना।

लमाई :: (सं. स्त्री.) लम्बाई।

लमाउन :: (सं. स्त्री.) लंबी आकृति वाला खेत।

लमाना :: (सं. पु.) गुजरात और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों के आदिवासी (भील) जो पशुओं को बेचने का धन्धा करते हैं।

लमेंटा, लमेंटो :: (सं. पु.) रखैल स्त्री के साथ आने वाला लड़का।

लमेंठा :: (क्रि. वि.) बिना विवाह के रखी गयी स्त्री के पूर्व पति की सन्तान के नये पति के घर में आने का प्रकार और कारण।

लमेंठौ :: (सं. पु.) लमेंठाँ आया हुआ बच्चा।

लमेंठौ :: दे. लमेंठाँ।

लम्प :: (सं. स्त्री.) लैम्प, मिट्टी के तेल से जलाने वाला बन्द तेल कोष का दीपक।

लम्पा :: (सं. पु.) किसी-किसी प्रकार की घास के फूल के अंग के रूप में लगने वाला पतला तथा लम्बा काँटा। इसके मूल में बीज होता है।

लम्पा :: (मुहा.) मूत के लम्पा घाँई ऐंडत-ऐसे ऐठते हैं जैसे पेशाब से भीगने पर लम्पा ऐंठता है।

लम्पू :: (वि.) लम्पों वाला (घास) दुबला-पतला (मनुष्य)।

लम्पौरा :: (सं. पु.) घास की किस्म।

लम्बर :: (सं. पु.) नम्बर, अंक, मार्का, पहचान चिन्ह।

लम्बरी :: (वि.) बदमाश, अपराधी वृति का जिसका नाम पुलिस में अपराधी के रूप में लिखा हो।

लम्बान पुंछान :: (वि.) लंबा चौड़ा (यौगिक शब्द.)।

लम्बू :: (वि.) कद में औसत से अधिक लंबा।

लम्मर :: (सं. पु.) दे. लम्बर।

लम्मरदार :: (सं. पु.) जमींदार, लगान वसूल करने वाला, कैदियों में से ही कोई अच्छे आचरण के कारण सुविधा और अधिकार सम्पन्न कैदी (टण्डैल )।

लम्मरदारी :: (सं. स्त्री.) जमींदार, हुकूमत।

लम्मरी :: (वि.) दे. लम्बरी।

लर :: (सं. स्त्री.) आभूषणों में लटकायी जाने वाली जंजीर, जंजीर।

लरक सिलौरी :: (सं. पु.) लड़कपन, उदाहरण-जातें मानत नइयाँ गोरी, दै रए अपनी लरक सिलोरी (बु.ग्रा.गी.)।

लरकइयाँ :: (सं. पु.) लड़कपन।

लरकनी :: (सं. स्त्री.) लड़की, बालिका, पुत्री, बेटी।

लरका :: (सं. पु.) लड़का, पुत्र।

लरका :: (कहा.) लरका के भाग्गन लरकौरी जियत - पुत्र के भाग्य से पुत्रवती जीवित रहती है, एक के भाग्य से दूसरे का भाग्य लगा रहता है।

लरका :: (कहा.) लरका तौ अपनो व्याउत, इतै मूँछें की पै मरोड़ते हैं - कोई आदमी निःस्वार्थ भाव से किसी के काम में सहायता कर रहा हो परन्तु वह उल्टे उस पर नाराज हो पड़े, तब।

लरका :: (कहा.) लरका सीके नाऊ कौ, मूँड़ कटै किसान कौ - गाँव में नाई, धोबी आदि जिन लोगों के यहाँ नियमित रूप से काम करते हैं वे उनके किसान कहलाते हैं, कोई नौ सिखिया जर्बदस्ती दूसरे के काम में हाथ डाल कर उसे बिगाड़ दे तब।

लरकार :: (सं. स्त्री.) लड़ने के लिए प्रतिपक्षी को चुनौती देना, प्रताड़ना, डाँट।

लरकारबो :: (सं. क्रि.) विपक्षी को लड़ने की चुनौती देना, लड़ने का बढ़ावा देना, उभाड़ना, डाँटना, फटकारना।

लरकिनी :: (वि.) कम उम्र की, दुल्हन, बहू विशेष रूप से, बहू के साथ प्रयुक्त विशेषण।

लरकिया :: (सं. स्त्री.) दुल्हन, बहू।

लरकैया :: (सं. स्त्री.) लड़कपन, नादानी, नटखटपन।

लरकोंइँ :: (सं. स्त्री.) दे. लड़कोइँ।

लरकौरी :: (सं.) बच्चों वाली स्त्री, जिस स्त्री के बच्चे हो गये हों।

लरजबौ :: (क्रि.) लड़ना, झगड़ना।

लरम :: (वि.) नर्म, कमजोर, दुर्बल।

लराई :: (सं. स्त्री.) लड़ाई, झगड़ा, युद्ध।

लरासी :: (सं. स्त्री.) बारीक धूल की तरह गेहूँ आदि का भूसा।

लरी :: (सं. स्त्री.) लड़ी, मुकुट आदि की सजावट में लगाई जाने वाली सुनहरी स्प्रिगें।

लरौंया :: (सं. स्त्री.) लड़ने को तैयार।

लर्जबौ :: (क्रि.) दे. लरजबौ।

ललक :: (सं. स्त्री.) सदा बनी रहने वाली सद् इच्छा, अभिलाषा।

ललकबो :: (क्रि.) लालसा करना।

ललकार :: (सं. स्त्री.) डाँट, फटकार, क्रोधपूर्ण, आदेश चुनौती।

ललकारबो :: (क्रि.) डाँटना, चुनौती देना।

ललचाबो :: (क्रि.) किसी को कुछ पाने की आशा बाँधकर अधीर करना, व्यग्र, मोहित करना।

ललचाबो :: (अ. क्रि.) किसी अभिलाषित वस्तु की प्राप्ति के लिए उत्सुक होना, लालसा करना।

ललच्याबौ :: (क्रि.) लालच होना।

ललछोंय :: (क्रि.) कुछ-कुछ लाल रंगवाला, जिस पर कहीं-कहीं लाल रंग हो, लालसी लिए हुए।

ललता :: (सं. पु.) राधा की एक सखी।

ललथरयाबौ :: (क्रि.) लड़खड़ाना।

ललन :: (सं. पु.) लड़का, बच्चा, नायक के प्रति प्रेम व्यंजक शब्द।

ललना :: दे. ललन।

ललमुंड़िया :: (सं. पु.) जल पक्षी, सिर लाल, पेट सफेद पीठ काली।

लला :: (संबो.) देवर, बच्चा या अपने से छोटों के लिए पुरूषवाची प्यारभरा सम्बोधन (पूर्वी बुन्देली में अधिक प्रचलित)।

ललाई :: (वि.) लालामी।

ललाबौ :: (क्रि.) लालायित रहना।

ललामी :: (सं. स्त्री.) सुन्दरता, लाली।

ललिया :: (वि.) सुन्दर, सरल।

लली :: (सं. स्त्री.) लड़कियों का सम्बोधन, प्यार, दुलार से पत्नी, लड़की या नायिका के लिए प्रेम व्यंजक संबोधन।

ललू :: (सं.) लालायित रहने वाली।

ललू :: (स्त्री.) बच्चे यदि स्वयं कुछ पा जायँ और दूसरों को वह न मिल सके तो उसे चिढ़ाने के लिए कहते है लो ललू के लाला हमें (अमुक वस्तु) मिल गयी (मिल गयी पर बहुत बल देने के लिए उसे जता स्वर दिया जाता है केवली इसी मुहावरे में प्रयुक्त।

ललोंय :: (वि.) लालामी लिए हुए, लाल रूख बाला।

ललौंना :: (सं. पु.) (बनाफरी) लड़का।

लल्ता :: (सं. स्त्री.) ललिता, राधिका जी की एक सखी।

लल्लरी :: (सं. स्त्री.) पुराने ढ़ंग का एक स्त्री आभूषण, सोने के लाख भरे बड़े-बड़े गुरियों की माला जिसमें बीच में मुहर लटकी रहती है।

लल्ला :: (संबो. सं. पु.) लड़कों के लिए प्यार का संबोधन बड़े भाई, चाचा आदि के लिए आदर सूचक संबोधन।

लल्ला :: दे. लला।

लवा :: (सं. पु.) दे. लआँ।

लस :: (वि.) चिकनाहट।

लसगर :: (सं. पु.) लश्कर, सेना के सथ चलने वाली रसद, गोला, बारूद तथा उसकी सँभाल करने वाले लोग, ग्वालिन, नगर का मुख्य भाग।

लसबो :: (अ. क्रि.) चमकना, झलकना, दिखाई देना, विराजना।

लसलसो :: (वि.) चिपचिपा, गोंद की तरह चिपकने वाला, लसदार।

लसी :: (सं. स्त्री.) लस आकर्षण, आशा, दूध या दही वर्फ के मेल बना शरबत।

लसीलो :: (वि.) लसदार, आकर्षक, सुन्दर।

लसौ :: (सं. पु.) नये कपड़े पर लगी हुई माड़ी आदि तथा नये सूत के कारण कड़ापन।

लस्त :: (वि.) शिथिल, थकान या कमजोरी के कारण निष्क्रिय।

लस्सौ :: (सं. पु.) दे. लसौ, चिडियाँ फँसाने के लिए जाल पर लगाया जाने वाला चिपचिपा पदार्थ।

लँहकुरी :: (सं. स्त्री.) रबी की फसल को फैलाने के लिए न्यूनकोण की आकृति वाला एक उपकरण।

लहर :: (सं. स्त्री.) पानी पर हवा के दबाव के कारण पैदा होने वाले उतार-चढ़ाव, मन की मौज।

लहर पटौरे :: (सं. पु.) पाट रेशम से बने लहराने वाले वस्त्र (लोक साहित्या)।

लहरयाबौ :: (क्रि.) लहरा कर आगे बढ़ना, जैसे साँप का चलना, फहराना।

लहरा :: (सं. पु.) हारमोनियम की धुन।

लहराबो :: (अ. क्रि.) हवा के झोंको से हिलना-डुलना उमंग उल्लास में हो जाना, विराजना।

लहरिया :: (सं. पु.) टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं का समूह, गोटे आदि की लहरदार टकाई, रंगीन साड़ी, कपड़ा जिस पर रेखाएँ बनी हों।

लहरिया कौ जाड़ो :: (वि.) अधिक शीत।

लहुरी :: (सं. स्त्री.) छोटे भाई की पत्नी।

लाइया :: (वि.) लोहे का बना हुआ, रहँट।

लाई :: (सं. स्त्री.) चावल भूनकर बनाये जाने वाले खीला।

लाईट :: (सं. स्त्री.) प्रकाश, टार्च, बिजली चमक (अंग्रेजी.)।

लाउन :: (सं. स्त्री.) पहिनी हुई साड़ी का भाग जो टाँगों को घेरे रहता है।

लाँउन :: (वि.) लघु, छोटी, स्त्रियों की धोती का अन्दर का छोर।

लाक :: (वि.) लायक, योग्य, गुणवान, उपर्युक्त।

लाँक :: (सं. स्त्री.) खेतों से काटकर खलिहान में इकट्ठे किये गये अनाज के पौधे, लँगड़ा कर चलने की क्रिया।

लाँकड़ी :: (सं. स्त्री.) लाँक फैलाने का एक उपकरण जिसमें एक बाँस या लकड़ी पर अर्ध्द चन्द्राकार, लोई का कीला लगा रहता है, दे. लाँक।

लाँकबौ :: (क्रि.) लँगड़ा कर चलना।

लाँकरी :: (सं. स्त्री.) बाँस की फंसादार लकड़ी, लाक लौटाने के काम आती है।

लाँकुरी :: (सं. स्त्री.) रबी की फसल को फैलाने के लिए न्यून कोण की आकृति वाला एक उपकरण।

लाकौर, लाकौरी :: (सं. स्त्री.) बारात के जनवासे में दुल्हे को भोजन कराने के लिए गाजे-बाजे के साथ स्त्रियों द्वारा ले जायी जाने वाली भोजन सामग्री, पहले बारात तीन चार दिन रूकती थी और दुल्हा भाँवर पड़ने के पूर्व कन्या के घर नहीं जाता था, बारात की पंक्तियाँ कन्या के घर होती रहती थीं, दूल्हा जनवासे में ही भोजन करता था।

लाख :: (वि.) सौ हजार की संख्या।

लाख :: (सं. स्त्री.) पलाश के तने पर कुल्हाड़ीसे घाव करके निकाला जाने वाला रस जो सूख कर लाख बन जाता है, चपड़ा, उदाहरण-लाख टके की बात-बहुत उपयोगी बात, लाख से कोऊ लखेसुरू नईं बनत-नम मात्र को बड़ी वस्तु से व्यक्ति सम्पन्न नहीं बनता है।

लाख :: (कहा.) लाख जाय पै साख न जाय - भले ही धन चला जाय पर इज्जत न जाए।

लाख :: (कहा.) लाख बात की एक बात - सारांश की बात।

लाखबौ :: (क्रि.) लाख पिघलाकर मिट्टी के बर्तनों के छेद मूँदना, लाख चिपकाना या जोड़ना।

लाखबौ :: (क्रि.) लोबा लगाना।

लाखबौ :: दे. लोबा।

लाखापति :: (वि.) दे. लखपति।

लाखें :: (सं. स्त्री.) लाख से बने सुनहरे पत्ते चढ़े हुए कलात्मक कंगन, सावन में बहू-बेटियाँ इन्हें बड़े उत्साह से पहनती थीं।

लाग :: (सं. स्त्री.) किसी व्यक्ति या परिवार को एक निश्चित समय के लिए निश्चित मात्र में दी जाने वाली कच्ची खाद्य सामग्री, किसी कार्य को सुविधापूर्वक करने की युक्ति, लीवर, मारण अभिचार घात, युक्ति, सम्बन्ध, लगाव, प्रीति, होड़।

लाँग :: (सं. स्त्री.) कछौटा।

लाँग :: दे. लाउन।

लागत :: (सं. स्त्री.) लग्गत, किसी चीज के बनाने में लगा हुआ खर्च, लगी पूँजी।

लाँगन :: (सं. स्त्री.) लंघन, पूर्ण अनाहार की स्थिति।

लाँगा :: (सं. पु.) लहँगा, स्त्रियों की कमर में पहिना जाने वाला अधोवस्त्र, बुन्देलखण्ड में शुभ अवसरों पर स्त्रियाँ लाँगा-नुगरौ ही पहनती थी।

लाँगुरिया :: (सं. स्त्री.) लोकगीतों का एक प्रकार जिसमें टेक की पंक्ति में लाँगुरिया शब्द का प्रयोग किया जाता है।

लागू :: (वि.) लगने वाला, चरितार्थ होने वाला।

लाँगूटा :: (सं. पु.) गीष्म ऋतु में घूमती हुई ऊपर उठने वाली हवा।

लाँगो :: (वि.) भूखा, निराहार।

लाँगों :: (सं. पु.) लहँगा, घाघरा।

लाँच :: (सं. स्त्री.) ऊपरी भाग, आकस्मिक लाभ, माघवृष्टि, रिश्वत, घूँस।

लाचार :: (वि.) विवश, आर्थिक या शारीरिक कमजोरी के कारम विवश, मजबूर।

लाचारी :: (सं. स्त्री.) विवशता, असमर्थता।

लाचीदानें :: (सं. पु.) एक प्रकार की शक्कर की मिठाई, इलायची दाना।

लाँचौ :: (वि.) लम्बा।

लाँछन :: (सं. पु.) दोष, कलंक, धब्बा, चिन्ह।

लाछबो :: (क्रि.) मैन के एक टुकड़े को दूसरे से मिलाना।

लाज :: (सं. स्त्री.) लज्जा, शर्म।

लाज :: (कहा.) न अपनी जाँग उगरौ न लाजन मारौ। उदाहरण - लाज रखबो-आबरू बचाना। लाजवन्त-लज्जावान।

लाजवन्ती, लाजवती :: (सं. स्त्री.) लजालू।

लाँजी :: (सं. स्त्री.) धान की एक बढ़िया किस्म।

लाजें :: (अव्य.) लिये, वास्ते।

लाट :: (सं. पु.) गवर्नर, बड़ा भारी साहब।

लाट :: (सं. स्त्री.) तेल पेरने के कोल्हू में तिर्यक रूप में चलने वाली लकड़ी तिलहन को कुचलती हुई चलती है।

लाठी :: (सं. स्त्री.) डंडा, बाँस की लम्बी लकड़ी।

लाड़ :: (सं. पु.) प्यार का व्यवहार, उदाहरण-लाड़लड़ाबो-प्रेम प्रदर्शन।

लाँड :: (सं. पु.) पुरूष का गुप्तांग, शिशन।

लाड़ लड़ैतो :: (वि.) बड़े प्यार के साथ पला हुआ।

लाड़लौ :: (वि.) जिस पर लाड़ प्यार अधिक हो।

लाँड़ा :: (सं. पु.) दुमकटा बैल।

लाँडुआ :: (वि.) जिसमें स्त्री के गर्भिणी कर देने की शारीरिक क्षमता तो आ गयी हो किन्तु बौद्धिक गम्भीरता और स्थिरता का अभाव हो।

लाँडुवा :: (वि.) मूर्ख, निकम्मा।

लाडू :: (सं. पु.) भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर अर्पण किया जाने वाला लड्डू, ये अपनी सामर्थ्य के अनुसार छोटे-बड़े शक्कर के बनाये जाते हैं।

लात :: (सं. स्त्री.) पैर का निचला भाग।

लात :: (मुहा.) लात खाबो-मार खाना, लात मारबो-उपेक्षा, घृणा करना।

लात :: (कहा.) लातन के भूत बात नई मानते - नीच समझाने से नहीं मानता, पीटना ही उसका इलाज है।

लात :: (कहा.) लातन मारी बात फिरबो - किसी बात का तिरस्कार करना।

लाती :: (सं. स्त्री.) कपड़ों का गट्ठा, धोबियों की गठरी।

लातुर :: (सं. स्त्री.) छोटी उ की मात्रा जो वर्ण के नीचे दाँयी से बाँयी ओर लगायी जाती है।

लाद :: (सं. स्त्री.) छत की डाट।

लाद :: (कहा.) लाद देओ, लादउन देओ, लादनवारो संग दो - माल लाद दो, लादने की मजदूरी भी दो और लादने वाला भी साथ दो। एक के बाद एक करके जब कोई आदमी तमाम उचित अनुचित सुविधाएं माँगता है तब।

लादबौ :: (स. क्रि.) वजन चढ़ाना, अनेक चीजों को एक पर एक रखना, किसी पर जिम्मेदारी डालना।

लानें :: अव्य. लिये।

लानें :: दे. लाजें।

लाँने :: (सर्व.) वास्ते, उसके लिए।

लाब :: (सं. पु.) लाभ, प्राप्ति, लब्धि।

लाबर :: (वि.) झूठा, झूठ बोलने वाला।

लाबर :: (कहा.) साँचे पै फाँके परे लाबर लड्डू खाँय (सं. रूप में भी प्रयुक्त), लाबरी - झूठी बात।

लाबर :: (कहा.) लाबर बड़ौ के दोंदर - झूठ बड़ा या उपद्रवी, निःसंदेह उपद्रवी बड़ा होता है।

लाबरो :: (सं. पु.) गाय या भैंस का तीन महीने का बच्चा।

लाबारसी :: (वि.) लावारिस, जिसका कोई धनी या मालिकन हो।

लाम :: (सं. स्त्री.) युद्ध का मोर्चा।

लाम झुलाम :: (वि.) शरीर के नाम से बहुत बड़े ढीले-ढाले (वस्त्र)।

लाँम झुलाम :: (क्रि. वि.) ढीला-ढाला।

लामों :: (वि.) लम्बा।

लामों :: दे. लम्बौ, दूर, दूरस्थ, लम्बा।

लायकी :: (सं. स्त्री.) शिष्टिता, योग्यता, नम्रता, व्यवहार कुशलता।

लायची :: (सं. स्त्री.) इलायची।

लायची दानें :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की शक्कर की मिठाई।

लार :: (सं. स्त्री.) भोजन के समय मुँह में आने वाला स्त्राव।

लारी :: (सं. स्त्री.) बस यात्री ढोने वाली मोटर।

लारौ :: (सं. पु.) घण्टा के बीच लटकने वाला दोलक जो घण्टे की दीवारों से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करता है।

लाल :: (वि.) रक्त वर्ण।

लाल :: (सं. पु.) दे. लला (लोक गीत. में प्रयुक्त) लाल रंग का रत्न-मणिक, लाल रंग का गौरैया।

लाल कुठरिया :: (सं. स्त्री.) पहेली लाल कुठरिया देवलन भरी-मिर्च।

लाल बुझक्कड़ :: (सं. पु.) जानकार व्यक्ति।

लालए :: (वि.) कोमल तथा लाल रंग की कोंपलें।

लालच :: (सं. पु.) किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा से उत्पन्न आकर्षण।

लालच :: (कहा.) लालच बुरी बलाय - लालच बुरी बला है।

लालची :: (वि.) जिसके स्वभाव में लालच हो।

लालची :: दे. लालच, लोभी, लोलुप।

लालटेन :: (सं. स्त्री.) लैन्टर्न, हवा से लटकने योग्य मिट्टी के तले जलने वाला विकसित दीपक (अकर्मक.)।

लालमन बाबू :: (सं. पु.) एक ग्राम देवता।

लालमुथैया :: (सं. स्त्री.) एक पक्षी।

लालरी :: (सं. स्त्री.) लाली, सुर्खी।

लालसा :: (सं. स्त्री.) लालसा, निरन्तर इच्छा, तीव्रइच्छा।

लाला :: (सं. पु.) देवर के लिए सम्बोधन, कायस्थ के लिए आदरवाची शब्द।

लालामी, लाली :: (सं. स्त्री.) लालिमा, रक्तिम आभा।

लाले :: (सं. पु.) अभिलाषाएँ, उदाहरण-लाले परबो-अप्राप्य वस्तु के लिए बहुत अधिक तरसना।

लालौ :: (सं. पु.) शौक, प्रेमपूर्ण लगाव, आकर्षणमय इच्छा।

लाव :: (सं. पु.) गोला बारूद आदि विस्फोटक सामग्री, लाव लसगर (शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

लावनी :: (सं. स्त्री.) बुन्देली लोक गीतों की एक शैली।

लावरो :: (वि.) लघु, छोटा, घनिष्ठ।

लास :: (सं. स्त्री.) लाश, मृतदेह।

लासन :: (सं. पु.) लहसुन, त्वचा पर हल्के कत्थई रंग का धब्बा जिसका दाहिने अंग पर होना शुभ माना जाता है।

लासन :: (कहा.) तिल भौरी लासन मसौ, होय दाहिनों ग, जाय बसौ वनखण्ड में रहै लच्छमी संग।

लासा :: (सं. पु.) चेंप, लगवो।

लासी :: (सं. स्त्री.) जिस गाय के बदन पर लहसुन हो।

लासुन :: (सं. पु.) एक पौधा इसकी गंध प्याज की तरह उग्र होती है लहसुन।

लासुन :: (कहा.) लासुन खाओ और ब्याध न गई - अनुचित काम भी किया और कोई लाभ न हुआ।

लासुन :: (कहा.) लासुन घाई बसात - लहसुन की तरह गँधाते हैं अर्थात बुरे लगते हैं।

लिक्खाड़ :: (वि.) बहुत अधिक लिखने वाला, लिखइया-लिखने वाला।

लिखतम :: (सं. स्त्री.) लेख किसी बात का लिखित प्रमाण दस्तावेज।

लिखना :: (सं. पु.) वर्ण, अक्षर या अंक जो लिखे हों, लिपिबद्ध।

लिखनी :: (सं. स्त्री.) बच्चों द्वारा लेखन अभ्यास, के लिए प्रतिदिन गिनती, पहाड़े तथा वर्णमाला लिखने का कार्य।

लिखबाबो :: (क्रि.) लेखबद्ध करवाना, दर्ज करवाना, लिखने के लिए प्रेरित करना।

लिखबौ :: (क्रि.) कोई बात लिपिबद्ध करना, चित्र बनाना, ग्रन्थ, रचना।

लिखबौ :: (मुहा.) लिखबो पड़बो-अध्ययन करना, विद्योपार्जन करना।

लिखवाई :: (सं. स्त्री.) लिखने का पारिश्रमिक।

लिखापड़ी :: (सं. स्त्री.) अमौखिक अनुबंध का लैखिक प्रमाण योगिक शब्द।

लिखाबो :: (क्रि.) लिखाने का काम किसी अन्य से कराना, लिखवाई।

लिखित :: (क्रि. वि.) लिखित।

लिखैया :: (सं. पु.) लेखक, चित्रकार।

लिखौट :: (सं. स्त्री.) लिखावट, लेखन शैली, लिखतम।

लिगति आबौ :: (क्रि.) किसी लक्ष्य गन्तव्य का निकट पहुँचना।

लिगाँ :: (क्रि. वि.) निकट, पास में, हाथ में, जेब में, अधिकार में।

लिगाँ :: दे. ढिंगा।

लिंगी :: (सं. स्त्री.) पुरूष का प्रजनन अंग।

लिंगोंइँ :: (सं. स्त्री.) फूहड़ आचरण, छैल छबीला बन कर गलियों में घूमने वाला कामी स्वभाव का युवक।

लिंजुआ :: (सं. पु.) उड़द-मूग की दाँय के बाद बचे मोटे डण्ठल, इनको ऊपर से ऊपर उठाकर अलग कर दिया जाता है।

लिटयाबौ :: (क्रि.) चिपकना, लुग्दी का पिण्ड रूप में इकट्ठा होना।

लिट्टी :: (सं. स्त्री.) टिकिया।

लिड़मोर :: (सं. पु.) नर मोर।

लिड़याबौ :: (क्रि.) संकुचित होना, लज्जित होना।

लिड़यार :: (सं. पु.) बहुत से बाल बच्चे।

लिड़ाधार :: (सं. स्त्री.) बच्चों का समूह, ममत्वहीन और अपमान सूचक प्रयोग।

लिड़ोई :: (वि.) आँखे, झेंपी हुई।

लिड़ोंय :: (वि.) झेंपने का भाव।

लिड़ोरा :: (सं. पु.) मादा मोर जिसके बड़े-बड़े पंख नहीं होते हैं।

लिड़ौरी :: (सं. स्त्री.) भूसा भरने का स्थान।

लितंगरौ-लितंगौ :: (सं. पु.) पीछा करने की क्रिया, पीछे-पीछे भागते हुए खदेड़ने की क्रिया।

लिदरा :: (सं. पु.) एक घास।

लिदारौ :: (सं. पु.) पशु काटे जाने पर उसके अन्दर निकलने वाली अंतड़ियाँ तथा नसें आदि।

लिपटबो :: (अ. क्रि.) एक दूसरे से गुँथना।

लिपड़न्त :: (सं. स्त्री.) लिपड़ने की क्रिया, दो पहलवानों के आपस में गुथने की क्रिया।

लिपड़बौ :: (क्रि.) दो शरीरों का आलिंगन बद्ध होना, एक दूसरे से गुथना।

लिपड़ी :: (सं. स्त्री.) लेई की तरह गीला पदार्थ, फोड़े पर बाँधने की सामग्री।

लिपना :: (सं. पु.) लीपने का काम, शब्द युग्म. लिपना-पुतना।

लिपबाबो :: (सं. क्रि.) लीपने का काम कराना।

लिपबाबो :: (कहा.) लिपो-पुतो आँगन और पैरी-औढी नार - ये दोनों देखने में अच्छे लगते है।

लिपबो :: (अ. क्रि.) गीली चीज से पोता जाना, रंग आदि का फैल जाना।

लिपसुवा :: (वि.) ढीला ढाला।

लिपाई :: (सं. स्त्री.) लीपने की क्रिया, लीपने की मजदूरी।

लिपाबो :: (सं. क्रि.) लेप करवाना, गोबर मिट्टी आदि की तह चढाना।

लिप्सुआ :: (सं. पु.) रूप में भी प्रयुक्त।

लिप्सुआ :: (वि.) लिजलिजी वस्तु।

लिफापा :: (सं. पु.) कागज का बटुआ।

लिफाफिया :: (वि.) दुबला, पतला, कमजोर।

लिफूसा :: (वि.) कमजोर।

लिबइया :: (सं. पु.) किसी को साथ ले जाने के बहू बेटी की विदा के लिए आने वाले।

लिबड़-लिबड़ :: (सं. स्त्री.) दे. लपर-लपर, ज्यादा बोलना।

लिबड़ा :: (वि.) दूसरों की बात काट कर अपनी बात करने वाला अस्थिर चित्त वाला, न जानते हुए भी हर काम में दखल देने वाला, हल्के व्यक्तित्व वाला।

लिबड़ोई :: (सं. स्त्री.) आयु, स्थान, परिस्थिति के प्रतिकूल, चंचलता पूर्ण आचरण।

लिबलिबौ :: (वि.) लिजलिजा और चेंपयुक्त।

लिबाबो :: (क्रि.) ले जाना, लिवा लाना, उदाहरण-को तुमें बहिन लिबाउन जैहे, पठाउन जैहे (नौरता)।

लिंबू :: (सं. पु.) (बनाफरी) नीबू, निंबू।

लिबौआ :: (सं. पु.) लेने वाला, लाने वाला, लिवा ले जाने वाला उदाहरण-बारे बलम लिबौआ होके डोला संग सजाबै।

लियाबौ :: (क्रि.) लाना।

लिरउआ :: (सं. पु.) सद्यः प्रसूत बछड़ा अथवा बछिया, बछड़ा-बछिया जो केवल दूध पीता हो।

लिरखुरियाँ :: (क्रि. वि.) खुशामद।

लिरबिरयाबो :: (वि.) चिकनापन।

लिरबिरौ :: (वि.) चिकना और चिपचिपा, लिसलिसा।

लिलहार :: (सं. पु.) गुदना गोदने वाला, बन गये नंदलाल लिलहारी।

लिलाई :: (सं. स्त्री.) ढोरों की एक बीमारी।

लिलाबो :: (क्रि.) लालायित होना, लुभाना, उत्सुक होना।

लिलार :: (सं. पु.) ललाट, मस्तक माथा।

लिलारी :: (सं. स्त्री.) लोहे की एक पत्ती।

लिलो :: (वि.) नीला।

लिलोर :: (वि.) कोमलांगी, किशोरी, जो यौवन की दहलीज पर हो।

लिलोही :: (वि.) अति लोभी।

लिल्लयाबो :: (क्रि. वि.) गिड़गिड़ाना।

लिसबो :: (क्रि.) काम बनना।

लिसलिसौ :: (वि.) जो हाथों की पकड़ में चिकनाहट और लिजलिजा होने के कारण ठीक से न आता हो।

लिहरियाँ :: (सं. स्त्री.) लहरें, साँप के चलते समय उसके शरीर में पड़ने वाली टेड़ें, लहरें। लहरों वाला चित्र।

लिहाज :: (सं. पु.) साने वाले की मर्यादा के अनुरूप आचरण विनम्र और नमनीय आचरण।

लिहाजी :: (वि.) लिहाज करने वाला।

लीक :: (सं. स्त्री.) लंबी रेखा, पगडंडी, मर्यादा, जूँ का अंडा।

लीख :: (सं. स्त्री.) लीख से निकलने वाला छोटा बच्चा जूँ का अण्डा।

लीटा :: (वि.) टूटने में जो चीमड़ हो ऐसा गुड़।

लीतरा :: (सं. पु.) टूटे पुराने जूते।

लीतो :: (वि.) बुरो।

लीद :: (सं. स्त्री.) छोटे गधे का उत्सर्जित मल।

लीन :: (वि.) समाहित, मग्र।

लीपबो :: (क्रि.) सफाई, मग्र।

लीपबौ :: (क्रि.) मिट्टी के फर्श पर गोबर का लेप करना।

लीपापोती :: (सं. स्त्री.) लीप-पोतकर सफाई करने की क्रिया, किसी तथ्य को गलत तर्को और अप्रासंगिक संदर्भो में उलझा कर समाप्त करने की क्रिया, सामासिक शब्द।

लीम :: (सं. पु.) (बनाफरी) नीम।

लील :: (सं. पु.) सिर में चोट लगने से उभर आने वाला नीली सी झलक लिए हुए फोड़े जैसा उभार, गूमड़ा।

लील :: (कहा.) लील कौ टीका लग गओ - नीला रंग, नील, बदनाम हो गये।

लीलबौ :: (क्रि.) बिना चबाये सेंधा गुटकना।

लीलम :: (सं. स्त्री.) एक तलवार।

लीला :: (सं. स्त्री.) राम लीला, नाटय प्रदर्शन, माया।

लीलाफली :: (सं. स्त्री.) पैजना, खजूरा, पैंजना में ऊपर की पट्टी।

लीलामी :: (वि.) नीलामी, नीलाम में दिया हुआ मोल।

लीसड़ :: (वि.) कंजूस जो लेन देन में साफ न हो, खर्च से कतराने वाला।

लुआँद :: (सं. स्त्री.) लोहे के संसर्ग से खाने पीने की वस्तुओं में आने वाला विशेष स्वाद।

लुआबौ :: (क्रि.) लिबा ले जाना।

लुआर :: (सं. पु.) लुहार, लोहे का सामान बनाने वाला।

लुआवनों :: (सं. पु.) विदा कराने की प्रक्रिया।

लुक लुकाबौ :: (क्रि.) चंचलता प्रदर्शित करना।

लुकबौ :: (क्रि.) छुपना।

लुकाछिपी :: (सं. स्त्री.) छिपकर बचते रहने की क्रिया।

लुकाबौ :: (क्रि.) छुपाना।

लुकार :: (सं. पु.) एक प्रकार का पेड़ा और उसके फल जो खट्टे मीठे होते है।

लुकालुकउल :: (सं. स्त्री.) छिपने और खोजने का खेल, जिसमें कुछ बालक छिप जाते हैं, एक बालक उन्हें ढूंढता है।

लुक्का :: (वि.) चंचल स्वभाव वाला, अस्थिर बुद्धि।

लुक्कू :: (वि.) गोपनीयता नष्ट करने वाली औरत।

लुखरगड़ :: (सं. पु.) लोमड़ी द्वारा बनाया हुआ गड्ढ़ा, बदमाशों की जमात।

लुखरयाउ :: (सं. स्त्री.) जमीन की किस्म।

लुखरयाबो :: (क्रि.) किसी प्रलोभन में किसी भी बहाने से आसपास चक्कर लगाना।

लुखरयाबो :: (कहा.) लुखरगड़े में फँस गये - लुखरगड़ा-लोमड़ी का बिल जो संकीर्ण और टेढ़ा -मेढ़ा होता है, अर्थात चक्कर में पड़ गये।

लुखरिया :: (सं. स्त्री.) सियारनी।

लुखरिया :: दे. मादा गीदड़, ईख काटने के लिए फ रसे जैसा एक औजार।

लुखरो :: (सं. स्त्री.) मादा सियार।

लुखरो :: (कहा.) टाँड़े में हो लुखरो कढ़ गइँ, सो नेंकन जू बजन लगीं - नाम मात्र का कोई काम करके, बढ़ा-चढ़ाकर उसका प्रचार करना।

लुखरो :: बाप ने मारी लोखरी बेटा तीरंदाज।

लुखालुखौ :: (सं. पु.) प्रातः काल का वह समय जब ठीक से दिखता नहीं है, ऊषा पूर्व का समय, मो अंदयारौ।

लुंगड़ा :: (सं. पु.) जनानी साड़ी ओढ़नी।

लुगया :: (वि.) स्त्रियों के साथ उठने बैठने वाला तथा बातचीत करने में अधिक रूचि लेने वाला, स्त्रियों के समान हावभाव दिखाकर बातें करने वाला।

लुगयाँइँ :: (वि.) स्त्रियों के समान बातें जिसमें दूसरों पर टीका टिप्पणी अधिक होती है।

लुगरया :: (वि.) जिसे आग के साथ छेड़छाड़ करने की आदत हो जिसे इधर की बात उधर भिड़ाकर करने की आदत हो।

लुगरया :: (कहा.) लुगरयाब लँगूरा बिजरी की लौंकन से डरात - जलती हुई लकड़ी दिखा कर भयभीत किया गया बंदर बिजली की चमक से डरता है, एक बार कोई कटु अनुभव हो जाने पर आदमी भविष्य में उस विषय में आवश्यकता से अधिक सावधानी बर्तता है।।

लुगरयाउ :: (वि.) पुराने ढंग की बन्दूक जिसकी तरइया पर बारूद कर तथा बोंडा (जलती हुई रस्सी) लगाकर चलायी जाती थी।

लुगरयाव :: (सं. पु.) आग से छेड़छाड़ करने की क्रिया।

लुगरा लुगरो :: (सं. पु.) ओढ़नी, छोटी चादर।

लुंगरो :: (सं. स्त्री.) ओढ़नी।

लुगवन घाट :: (सं. पु.) घाट, पुरूषों के स्नान करने का घाट।

लुगवा :: (सं. पु.) पति, लोग, व्यक्ति।

लुंगा :: (वि.) लोफर व्यक्ति, अवारा, लफंगा, बदमाश।

लुगाई :: (सं. स्त्री.) महिला, स्त्री, पत्नि, लुगाई।

लुंगी :: (सं. स्त्री.) वस्त्र विशेष पुरूषों के पहिनने का परिधान।

लुग्गा :: (सं. पु.) जिस बच्चे पर लोग होने का आरोप किया जाय, जैसे जो बच्चा पाँच छै वर्ष का हो और गोदी में चढ़कर खेलने की हट करे तो उसे डाँटने के लिए लुग्गा कहा जाता है।

लुघरिया :: (सं. स्त्री.) जलती हुई लकड़ी, लुआठ।

लुचइ-लुचई :: (सं. स्त्री.) मेदे या गेंहू के आटे से बनी पूड़ी।

लुचयाई :: (वि.) पूड़ी की तरह चिकनाई लगाकर बेली जाने वाली तथा केवल तबा पर सेंकी जाने वाली रोटी।

लुचयाउ रोटी :: (सं. स्त्री.) वह रोटी जिसे चिकना करके पूड़ी की तरह बनाया जाये।

लुंज :: (वि.) कमजोर।

लुंजपुंज :: (वि.) ढीले ढाले शरीर वाला।

लुजलुजौ :: (वि.) बहुत कोमल जिसे संभालने में कठिनाई हो।

लुंजा :: (वि.) जिसके हाथ पैर तथा अन्य शारीरिक अंगो पर कम नियंत्रण हो और अपने आप को संभालने में ठीक से समर्थ न हो।

लुंजिया-पुंजिया :: (सं. स्त्री.) धन सम्पत्ति, साज सामान तथा नगद राशि।

लुज्ज :: (वि.) ढीला ढाला।

लुटबौ :: (क्रि.) धन सम्पत्ति का जबरन छिन जाना।

लुटाबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु या धन सम्पत्ति को इस उदारता के साथ दान करना कि पात्र-अपात्र कोई भी ले जाये।

लुटिया :: (सं. स्त्री.) पान की क्यारियों को सींचने के लिए छोटे मुँह वाली बड़ी गागर, छोटा लोटा।

लुटेरो :: (वि.) बलात छीन कर ले जाने वाला।

लुड़कइया :: (सं. स्त्री.) भूमि पर लेटे हुए लुड़क कर घूम जाने की स्थिति।

लुड़कबौ :: (क्रि.) एक ओर झुक कर गिर जाना, तरल पदार्थ का बिखरना।

लुड़याबौ :: (क्रि.) पत्थर फेंक फेंक कर मारना।

लुड़िया :: (सं. स्त्री.) मुट्ठी में पकड़ा जाने योग्य आकार का पत्थर।

लुदयाँत :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखंड का राठ हमीरपुर का लोधी जाति बहुल क्षेत्र, बुन्देली की रठोय (लुधाँती) उपबोली का क्षेत्र लोधियों की बस्ती या मुहल्ला।

लुंदरयाबो :: (क्रि.) जवानी की उमंग में चंचल अथवा फूहड़ आचरण।

लुंदरा :: (वि.) जवानी की उमंग में चंचल अथवा फूहड़ आचरण करने वाला युवक।

लुंदरा :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

लुंदरिया :: (सं. स्त्री.) लुंदरा का स्त्री लिंग।

लुंदरिया :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

लुदिया :: (सं. स्त्री.) लोधी जाति।

लुधाँती :: (सं. स्त्री.) बुन्देली की एक उप बोली जो राठ हमीरपुर जिले के लोधी बाहुल्य क्षेत्र में बोली जाती है, इसके विच्छिन्न रूप नरसिंहपुर बालाघाट छिंदवाड़ा, भाण्डेर तथा नागपुर जिलों में पाए जाते हैं।

लुपड़ी :: (सं. स्त्री.) फोड़े को पकाने के लिए उस पर रखी जाने वाली पुल्टिस अलसी, गुड़, नमक, आटा, तेल आदि की लुग्दी।

लुप्प-लुप्प :: (क्रि. वि.) बार-बार फिर-फिर।

लुबाबो :: (सं. क्रि.) लुभाना, आकर्षित करना, मुग्ध करना, मोह में डालना, बहकाना।

लुरइया :: (सं. पु.) सद्य प्रसूत बछड़ा अथवा बछिया, बछड़ा-बछिया जो केवल दूध पीता हो।

लुरइया :: दे. लिरउआ।

लुरक :: (सं. स्त्री.) नथ में लटकने वाला गुच्छा।

लुरकी :: (सं. स्त्री.) कान का एक आभूषण, कान की वाली।

लुरी :: (वि.) ऐसी गाय भैंस जिसने थोड़े समय पूर्व हो प्रसव किया हो।

लुरूँ-लुरूँ :: (सं. स्त्री.) किसी प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली बातें, किसी के सम्भ्रम के आगे अपने आपको हीन मान कर की जाने वाली बातें, ब्रजभाषा में ऐसा स्थिति प्रकट करने के लिए लुरूँ-लुरूँ शब्द ही कहे जाते हैं, किन्तु बुंदेली में ऐसी बातें करने के ढंग का नाम लुरूँलुरूँ करना है।

लुरौ :: (वि.) कुछ ही दिन पूर्व व्यायी (प्रसव हुई) गाय भैंस का दूध।

लुलइँया :: (सं. स्त्री.) अर्थ अज्ञात, किन्तु कोई मोइन देकन बनाये जाने वाले घरेलू पकवान का अनुमान होता है।

लुलइँया :: (प्र.) उतैधरी लुलइयाँ, व्यंजनामूल प्रयोग अर्थात वहां कुछ नहीं रखा है।

लुलखरी :: (सं. स्त्री.) मात्र बातें करने के उद्देशय से की जाने वाली मीठी-मीठी बातें, किसी का समीप्य लाभ पाने के लिए की जाने वाली बातें।

लुलखरें :: (क्रि. वि.) बड़े सबेरे।

लुलखरौ :: (सं. पु.) दे. लुखालुखौ।

लुलाबौ :: (क्रि.) लँगड़ा कर चलना।

लुल्लू :: (सं. स्त्री.) बच्चों की लिंगी, मूत्रवाहिनी नलिका।

लुहलुट्टी :: (वि.) अति मुलायम।

लुहाँगी :: (सं. स्त्री.) वह लाठी जिसके एक सिरे पर लोहे के मोटे तार लिपटे हों या कलात्मक ढंग से तार लगाकर मजबूत तथा भारी किया गया हो जिसे उसकी मारक क्षमता बढ़ जाये।

लुहाँड़ी :: (सं. स्त्री.) लोहे की बनी हण्डीनुमा बाल्टी, डोल।

लुहाँद :: (वि.) दे. लुआँद।

लुहार :: (सं. पु.) दे. लुआर।

लुहारी :: (सं. स्त्री.) लोहार का काम या व्यवसाय।

लू लगबो :: (स. क्रि.) तप्त हवा लगने से ज्वर आदि हो जाना तपी हुई वायु या उसका झोंका।

लूका :: (सं. पु.) मछली पकड़ने का जाल।

लूंखरी :: (सं. स्त्री.) लोमड़ी (मादा) सियार (मादा)।

लूखरों :: (सं. पु.) लोमड़ी, नर सियार।

लूगर-लूघर :: (सं. पु.) जलती हुई लकड़ी।

लूगर-लूघर :: (कहा.) लूगरन भाँवरें पर रई, नेग कौ टका धरई दो - दूसरे की विपत्ति की परवाह न करके अपने ही मतलब की बात करना।

लूजँटो :: (सं. पु.) उलझे हुए धागे का गुच्छा, अनाज की इल्लियों द्वारा किसी लसीले स्राव से कुछ दाने चिपकाकर बनाया गया गुच्छा।

लूट :: (सं. स्त्री.) जिसके मन में जो आये उसे बलपूर्वक ले जाने की क्रिया।

लूट :: (कहा.) लूट कौ मूसरई भौत - मुफ्त में जो मिला वही अच्छा।

लूटबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक छीनना।

लूपा :: (सं. पु.) पानी बरसने पर जमने वाली घास।

लूम :: (सं. स्त्री.) किसी तनी हुई रस्सी, तार आदि में पड़ने वाली झोल, गिरती हुई वस्तु के बजन के कारण लगने वाली झोक।

लूमबौ :: (क्रि.) किसी सहारे को पकड़कर झूल जाना, किसी बजनी वस्तु के असन्तुलित होकर गिरने से संभालने वाले को ढ़का लगाना।

लूलौ :: (वि.) जिसका हाथ पैर टूटा हो, पंगु।

लेई :: (सं. स्त्री.) लपसी, चिपकाने के लिए आटे और पानी को उबालकर बनायी जाने वाली चेंपदार लुग्दी, झरबैरी की कटीली झाड़ियों का समूह।

लेखनहार :: (वि.) लिखने वाला, लेखक।

लेखबो :: (स. क्रि.) लिखना, हिसाब करना, समझना।

लेज :: (सं. स्त्री.) कुँए से पानी खींचने की रस्सी।

लेजम :: (सं. स्त्री.) एक हथियार, पाइप -प्लास्टिक का जो पानी भरने के काम आता हो।

लेजी :: (सं. स्त्री.) सुनारों का सफाई करने का औजार।

लेट :: (सं. स्त्री.) जोतते समय हल की अकुरिया पर चिपट जाने वाली मिट्टी।

लेटा :: (सं. पु.) गधे का बच्चा।

लेंड :: (सं. स्त्री.) कुत्ता कुत्तिया की संभोगावस्था में लिंग और योनि के बहुत देर तक संयुक्त रहने की अवस्था।

लेंड़गीदा :: (सं. पु.) कुत्ता कुतिया का फंसा हुआ घूमना।

लेंडा :: (सं. पु.) मल की गोल लम्बी आकृति, कुत्ता, डरपोक।

लेंडा :: (कहा.) लैड़ा हाथी घर (अकर्मक) ई की फौज मारत, कायर, निकम्मा, कायर आदमी घर का ही सत्यानाश करता है।

लेंडी :: (सं. स्त्री.) छोटे-छोटे दानों के रूप में उत्सर्जित मल, बकरी, चूहे आदि की लेंडी।

लेतौ :: (सं. पु.) दे. लितंगरौ, लितंगौ।

लेद :: (सं. स्त्री.) फागों का शास्त्रीय गायन, शैली का एक प्रकार।

लेंन :: (सं. स्त्री.) रेखा, रेल की पटरी, चाल-चलन का समायोजित ढंग।

लेंनदेन :: (सं. पु.) साहूकारी, ऋणी देने का धन्धा सामासिक शब्द।

लेंना :: (वि.) ऐसा बच्चा जिसे गोद में रहने की आदत पड़ गयी हो।

लेनी :: (सं. स्त्री.) खराद पर सफाई करने का औजार।

लेंनों-लैना :: (सं. पु.) उधारी जो वसूली जाना है।

लेंनों-लैना :: (कहा.) लैन गई परथन कुत्ता पींड़ उठा ले गओ - वह सूखा आटा जिसे रोटी बेलने के समय लोई पर लपेटते हैं, गुँदे हुए आटे की पिंडी, एक काम करने गये तब तक दूसरा चौपटा हो गया।

लेंनों-लैना :: (कहा.) लैना एक न देना दो - न किसी का एक लेना है न दो देना है, किसी से कोई प्रयोजन नहीं, लैना न देना ऊपर से तनैना, भौहें तानना, नाराज होना।

लेप :: (सं. पु.) पीड़ित स्थान पर लगायी जाने वाली दवा, लुग्दी जैसे पदार्थ से चढ़ायी गयी पर्त।

लेबा :: (सं. पं.) लेने वाला।

लेबा :: (कहा.) लेबा मरै चाय देबा, बल्देवा करै कलेबा, रोपा धान लगाने के लिए खेत में मचाई जाने वाली कीचड़।

लेबा देई :: (सं. स्त्री.) लेन-देन।

लेबार :: (वि.) लेने वाला, खरीदने वाला।

लेबो :: (सं. क्रि.) ग्रहण या प्राप्त करना।

लेर :: (सं. पु.) वीर्य।

लेवार :: (सं. पु.) लेने वाला।

लेस :: (वि.) चिकनापन।

लै :: (सं. स्त्री.) लय, गीत का स्वर, लहरी, धुन।

लैक :: (वि.) योग्य, गुणवान, उपर्युक्त, मुनासिब।

लैखौ :: (सं. पु.) हिसाब, लेंखे, हिसाब से।

लैंगदो :: (सं. पु.) रस्सी का छोटा टुकड़ा।

लैंडू :: (वि.) डरपोक।

लैन :: (क्रि. वि.) लेना।

लैनो :: (सं. पु.) कर्ज का रूपया।

लैपालक :: (सं. पु.) अनाथ बच्चे जिनको राज्य द्वारा पाला पोषा जाता था, सामासिक शब्द।

लैबार-लेबारसी :: (वि.) लेकर न लौटाने वाला, कुछ भी मुफ्त लेने के चक्कर में रहने वाला, यौगिक शब्द।

लैबो :: (स. क्रि.) ग्रहण या प्राप्त करना, लेना, आदान करना, गोद में उठाना, हस्तगत करना।

लैंयाँ-पैंयाँ :: (क्रि. वि.) बहुत शीघ्र, उतावली में।

लैलई :: (क्रि.) ले ली।

लैलो :: (क्रि.) लेना।

लैसंस :: (सं. पु.) विशेष अधिकार, प्रमाण पत्र, सनद।

लैसुनिया :: (सं. पु.) धूमिल रंग का एक कीमती पत्थर जा लाल, पीले और हरे रंग का होता है।

लों :: (अव्य.) तक, पर्यन्त।

लोइया :: (सं. पु.) लोहिया लोहे का व्यापार करने वाला।

लोई :: (सं. स्त्री.) गुँथे हुए आटे की गोल पिण्डी जिसको बेलकर रोटी, पूड़ी आदि बनायी जाती है, उबटन की सामग्री की पिण्डी जिससे बहुत छोटे बच्चों के शरीर को साफ किया जाता है।

लोउ-लोऊ :: (सं. पु.) लहू, रक्त, खून।

लोओ :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध धातु, हथियार।

लोंकनयाँ :: (वि.) दे. लुक्का।

लोंकबो :: (क्रि.) आकाश में बिजली चमकना, रह-रह कर तेज पीड़ा का आभास होना, दो लोगों की बात में बीच-बीच में अवांछित हस्तक्षेप करना।

लोंका :: (सं. पु.) महु आदि में लगने वाले रोग।

लोकाचार :: (सं. पु.) शिष्टाचार, शालीनता, समाज को दिखाने के लिए किया जाने वाला कार्य, लोक मर्यादा के अनुसार व्यवहार प्रदर्शन। सामासिक शब्द।

लोखर :: (सं. पु.) लोहे का कबाड़ा, लोव-लोखर समास में प्रयुक्त।

लोखरी :: (सं. स्त्री.) मादा सियार।

लोखरी :: (कहा.) बाप ने मारी लोखरी, उर (और) बेटा तीरन्दाज - जिनके बाप दोदों ने औछै काम किए हों, उनके शेखी बघारने पर किया जाने वाला व्यंग्य।

लोग :: (सं. पु.) पूरूष, पौरूष युक्त।

लोग :: (कहा.) लोग चले मोय हूमस लागी - पति, स्वामी, स्त्री जिस प्रकार अपने पति के वश में रहती है उसी प्रकार मनुष्य यदि किसी के वश में रहता है तो वह है ऋण है।

लोंग :: (सं. स्त्री.) लवंग, मुख शोधन-मसाले तथा औषधि के काम आने वाला पुष्प का निचला भाग, जो कलियाँ झड़ जाने पर बचा रहता है, फल का पूर्व रूप, नाक तथा कान में पहिना जाने वाला छोटा फूल के आकार का आभूषण।

लोगड़िया :: (सं. पु.) बैलगाड़ियों पर सारी गृहस्थी लिये भ्रमण करते हुए लोहे का काम करने वाली राजस्थान की एक घुमक्कड़ जाति, गड़िया लुहार।

लोच :: (सं. पु.) नमनीयता, चिकनापन।

लोंच :: (सं. स्त्री.) वृक्ष की उपशाखाओं और पत्तों वाला भाग।

लोंचबौ :: (क्रि.) नोंचना, नाखूनों से त्वचा को छीलना, टहनी के पत्तों को मुट्ठी में पकड़कर खींच कर तोड़ना।

लोंचयारौ :: (वि.) ऐसा वृक्ष जिसमें प्रशाखाएं और टहनियाँ अधिक हों।

लोंचरा :: (वि.) छोटी आयु का, कम आयु का।

लोंचा-चींथी :: (सं. स्त्री.) लूट-खसोट, नाखूनों तथा दाँतों से क्षत-विक्षत करने की क्रिया, सामासिक शब्द।

लोंचिया :: (सं. स्त्री.) नोंचने या चिकोटी लेने की क्रिया।

लोंजी :: (सं. स्त्री.) कच्चे आम का मीठा शाक।

लोट :: (सं. स्त्री.) शरीर के लिए तनाव मुक्त करने के लिए थोड़े समय के लिए लेटने की क्रिया।

लोट जाबो :: (क्रि.) लुढ़कना, संज्ञाहीन होना, मर जाना।

लोट लगाबो :: (क्रि.) लुढ़कना, लेट जाना, जिद करना।

लोट लेबो :: (अ. क्रि.) कार्य को रोककर आराम करना।

लोटबौ :: (अ. क्रि.) लुढ़कना, करवटें बदलना, आराम करना, लोटकर तथा करवटें बदलकर शरीर को तनाव मुक्त करना, गधे-घोड़े का भूमि पर लेट कर उल्टा सीधा होकर पैर फटफटा कर तनाव-मुक्त होना या थकान दूर करना।

लोटा :: (सं. पु.) जल रखने का छोटा पात्र, गड़ई (बु.) विशेष आकृति का लोटा जिस पर भगवान जगन्नाथ का चित्र तथा कुछ लीला प्रसंगों के चित्र अंकित रहते हैं, जगन्नाथी लोटा।

लोंड़ :: (वि.) अधिक मास वाला वर्ष, अधिक मास।

लोंड़बौ :: (क्रि.) लकड़ी के लम्बे कुन्दे को काट कर छोटे कुन्दे बनाना।

लोड़ा :: (सं. पु.) लम्बे कुन्दे से काटकर अलग किया गया छोटा कुन्दा, पुरूष लिंग।

लोड़ा :: (सं. पु.) दे. लुड़िया, लुड़िया का थोड़ा बड़ा रूप।

लोड़िया :: (सं. स्त्री.) बाहरी कान का निचला मांसल भाग जो लटकता रहता है।

लोथ :: (सं. स्त्री.) घावों से भरी मृत देह।

लोंथरा :: (सं. पु.) रक्त का थक्का।

लोदा :: (सं. पु.) गीली मिट्टी का गोला।

लोंदा :: (सं. पु.) जमें हुए घी या मिट्टी का पिण्ड।

लोदी :: (सं. स्त्री.) लोधी एक जाति जो अपने आपको क्षत्रियों के समक्ष मानती है।

लोप :: (वि.) ओझल, दृश्य, विलीन।

लोब-लोभ :: (सं. पु.) किसी वस्तु को प्राप्त करने की आकांक्षा, अपना धन खर्च न करने की प्रवृत्ति, कंजूसी।

लोबा :: (सं. पु.) उड़द मूँग को दलने से पूर्व चिकनाई लगाने की क्रिया।

लोबान :: (सं. पु.) एक राल जो जलाने पर सुगंधित धुँआ छोड़ती है, ये मुस्लिम पीरों की अर्चना-वन्दना के समय धूप की तरह सुगन्ध के लिए जलायी जाती है तथा औषधियों के काम आती है।

लोबान :: (कहा.) लोबान जरो और मुरदा चेतो - स्वार्थ की बात सुन कर आदमी सजग हो जाता है।

लोबिया :: (सं. पु.) एक प्रकार का पौधा जिसकी फलियों की तरकारी बनाते और बीजों से दाल और मोठ तैयार करते है।

लोबी-लोभी :: (वि.) कंजूस।

लोबी-लोभी :: (कहा.) लोबी कौ धन लाबर खाय, और बचे सरकारै जाए।

लोबी-लोभी :: (कहा.) लोभी गुरू, लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलमठेला - चाहे गुरू हों या चेला, लोभ करने से दोनों नरक में जाते है।

लोर :: (सं. पु.) मटमैले पानी के नीचे जम जाने वाली बहुत बारीक मिट्टी की तलछट, प्रेम ओर आनंद के कारण उमड़े हुए आँसू।

लोलइयार :: (सं. स्त्री.) सन्ध्या का वह समय जब अन्धकार छाने लगता है और प्राकृतिक प्रकाश काफी कम हो जाता है।

लोलक :: (सं. स्त्री.) कर्णफूल में लटकने वाला झुमका।

लोलकुचइया :: (सं. स्त्री.) एक गोल रोटी जो कार्तिक में बनाई जाती है, कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियाँ मास के अन्त में कार्तिक पूजन के ले जो पकवान बनाती हैं उसमें मोंइन देकर अँगूठे से भी मोटी, बड़ी, मीठी पूड़ी बनाकर उसको मध्यम आँच देकर कढ़ाई में तलती हैं, यही लोल कुचइया कहलाती है, सामासिक शब्द।

लोला :: (सं. पु.) चंचल, लालयित व्यक्ति।

लोला :: (वि.) स्वभाव की चंचलता के कारण अशालीन व्यवहर तथा उथली बातें करने वाला।

लोलापना :: (वि.) उचक्कपन, हँसी मजाक।

लोव :: (सं. पु.) लोहा।

लोहा चिक्कार :: (सं. स्त्री.) एक चिड़िया।

लोहाँगी :: (सं. स्त्री.) दे. लुहाँगी।

लोहार :: (सं. पु.) लोहे का काम करने वाली एक उपजाति।

लोहू :: (सं. पु.) रक्त लहू, खून।

लोहो :: (सं. पु.) लोहा नामक धातु, हथियार।

लौ :: (सं. स्त्री.) ज्वाला, लगाव, आकर्षण, लगन।

लौक :: (क्रि. वि.) धड़क, भय।

लौंकबो :: (अ. क्रि.) लौकना, चमकना, चकाचौंध होना, रह-ह कर दर्द होना, चमकना।

लौंका :: (पु. सं.) महुए में लगने वाला एक रोग।

लौंका :: (सं. पु.) महुए में लगने वाला एक रोग, बड़ी लौकी, एक प्रकार की लौकी।

लौगड़िया :: (सं. पु.) एक जाति।

लौंची :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की मछली।

लौंजी :: (सं. स्त्री.) आम की फाँक और उससे बनी हुई चटनी, आचार।

लौट :: (सं. स्त्री.) पीछे मुड़ने की क्रिया, स्थिति, विपरीत होने की क्रिया।

लौट पटा :: (सं. पु.) विवाह में वर-वधू के पटा, आसन बदलने की एक रस्म, सामासिक शब्द।

लौटबौ :: (क्रि.) वापिस करना, पलटना, लुड़कना।

लौटबौ :: (कहा.) लौटौ बराती और गुजरो गवाई - लौटा बराती और अदालत में गवाही देकर आया हुआ आदमी इन्हें फिर कोई नहीं पूछता।

लौटा फेरी :: (सं. स्त्री.) पुनःपुनः लेने और वापिस करने की क्रिया, सामासिक शब्द।

लौटाबो :: (स. क्रि.) वापस करना, फेरना, बदलना।

लौंड़ :: (सं. पु.) मलमास, पुरूषोत्तम मास।

लौड़ी :: (सं. स्त्री.) दासी, मजदूरनी, टहलनी।

लौणा :: (सं. पु.) गाय के पैर बाँधने की रस्सी।

लौद :: (सं. स्त्री.) नई कोंपलों का समूह, पत्तों का समूह।

लौंद :: (सं. स्त्री.) वह करछी जिसमें खँडसार का शीरा या पाग चलाया जाता।

लौंना :: (सं. स्त्री.) दूध दुहते समय गाय के पैरों में बांधने की रस्सी।

लौरबौ :: (सं. पु.) तैरना।

लौरा :: (सं. पु.) पुरूष लिंग, पुरूष गुप्तांग, अपवाक्यों में प्रयुक्त।

लौराई :: (वि.) कम अवस्था।

लौरी :: (वि.) आयु में छोटी, अपने से बाद में ब्याही आयी सौत, सौतेली माता।

लौरौ :: (वि.) आयु में छोटा।

लौलयाटौ :: (सं. पु.) संध्या समय प्रकाश और अंधकार का मिला-जुला प्रभाव, धुँधलका।

लौलीन :: (वि.) तल्लीन, संलग्र।

लौलैयाँ :: (अव्य.) संध्याकाल के बाद का समय।

ल्याबो :: (क्रि.) लाना।

ल्वाटा :: (सं. पु.) लोटा, गड़ई, बुँ.।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का अन्तस्थ व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण दन्त्य अथवा दन्त्यौष्ठ है।

वन्तक :: (सं. पु.) बनक।

विआद :: (सं. स्त्री.) व्याधि, झंझट, उलझन।

विखई :: (वि.) ऐबी, कुकर्मी।

विदीरन :: (वि.) विदीर्ण, फटना, अधिकांश भावात्मक अर्थ में प्रयुक्त।

विद्यन :: (सं. पु.) विन्ध, बाधा।

विसन :: (वि.) बीसों, बीस की कई इकाइयाँ।

व्याजी :: (वि.) दे. पिआजी।

व्यासौ :: (वि.) जिसे जल पीने की इच्छा हो, अमृत।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का ऊष्म वर्ग का वर्ण, इसका उच्चारण स्थान तालव्य है।

शर्राटा :: (सं. पु.) सोते समय गले और नाक से निकलने वाले शब्द।

शास्त्री :: (सं. पु.) विद्वान, पण्डित, धर्मशास्त्रों का ज्ञाता।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का स वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है।

सइँयाँ :: (सं. पु.) प्रियतम, पति।

सइँयाँ :: (प्र.) पींदा हैं जिनके सँइँयाँ रे वे तिरियाँ दबती नँइँयाँ।

सइँयाँ :: (कहा.) साइयों भये कुतवाल अब डर काये को।

सई :: (वि.) सच, सही, सुधरा हुआ।

सईस :: (सं. पु.) घोड़े की देखभाल करने वाला नौकर।

सऊर :: (सं. पु.) तमीज, ढग।

सक :: (सं. स्त्री.) श्वास की बीमारी, दमा।

सक :: (सं. पु.) शक, सन्देह।

संक :: (सं. पु.) शंख।

संक :: (मुहा.) शंख बजाबो-विजय प्राप्त करना।

सकचा :: (सं. पु.) एक जानवर जिसके तेरह मुँह होते हैं।

संकट :: (सं. पु.) दैवी विपत्ति के कारण विपत्ति या रोग।

संकट नासन :: (वि.) कष्ट दूर करने वाला।

संकट मोचन :: (सं. पु.) हनुमान, संकट दूर करने वाला व्यक्ति।

संकटा :: (सं. स्त्री.) एक प्रसिद्ध देवी।

सकत :: (अव्य.) सकना।

सकती :: (सं. स्त्री.) शक्ति, बल, सामर्थ्य, क्षमता, योग्यता, प्रभाव।

सकपक :: (सं. स्त्री.) हिचक, घबराहट।

सकपकाबौ :: (क्रि.) घबराना।

सकबौ :: (क्रि.) समर्थ होना, उद्यत होना।

संकर :: (सं. पु.) शंकर, शिव, महादेव, कैलाशपति, पार्वतीपति।

सकर को घुल्ला :: (सं. पु.) शर्मीला व्यक्ति।

सकर, गठा :: (सं. पु.) एक प्रकार की ईख जिसकी पोरें छोटी-छोटी किन्तु कड़ी होती है।

सकरन :: (सं. पु.) जूठन, कच्चे भोजन के कण।

सकरन :: (कहा.) सकरन फै लबो - दालभात आदि का जूठन फैलना।

सकरबौ :: (क्रि. अ.) स्वीकृत होना, भुगतान होना।

सकराँत :: (सं. स्त्री.) मकर संक्राति जब सूर्य मकर रेखा पर आता है, यह प्रायः १३ से १४ जनवरी को पड़ती है।

संकरात :: (सं. स्त्री.) सूर्य या किसी ग्रह की एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना, मकर संक्रान्ति का पर्व।

सकरो :: (सं. पु.) जूठन, बचा हुआ भोजन, जूठा।

सकरो :: (प्र.) सकरी कुइया सींक न जाय, हिन्ना पानी पी पी जाय (थन)।

सकरो :: (मुहा.) संकरे में समदयानों-संकीर्ण स्थान में काम करने की स्थिति।

सकरो :: (कहा.) सकरे में समदियानों दो समधियों या समधनों के परस्पर मिलने का दस्तूर, समधी के आगत स्वागत में होने वाला आयोजन, ज्योनार आदि समधौरा, छोटी जगह में कोई बड़ा काम फैलना।

संकरो :: (वि.) तंग, संकीर्ण।

संकरो :: (सं. पु.) संकट।

संकरो :: (मुहा.) सँकरे में परबो-कष्ट में पड़ना।

सकरौ :: (वि.) ओछा, कम चौड़ा, सकरा, संकट।

सकरौ :: (कहा.) सकरें देबी सुमरों तोय, मुकतें खबर बिसर गई मोय, संकट में, मुक्ति होने पर, संकट से छुटकारा पाने पर, विपत्ति में सब भगवान का स्मरण करते हैं, बाद में भूल जाते हैं।

सकरौंदा :: (सं. पु.) आवश्यकता से कम स्थान जहाँ चलने फिरने या काम काज में स्थान की संकीर्णता के कारण बाधा हो।

सकल :: (वि.) नाना प्रकार की वस्तुएँ।

संकलप :: (सं. पु.) संकल्प, मन में किया हुआ निश्चय।

संकलपबो :: (सं. क्रि.) संकल्प, इरादा करना।

सकला :: (सं. पु.) शकरकंद।

संकला :: (सं. स्त्री.) किसी कार्य विषयक सामग्री।

सकसा :: (सं. पु.) भविष्य में उपयोग करने के लिये सुखाकर रखा गया हरा शाक, सूखा हुआ चना का शाक।

सका :: (सं. पु.) साथी, संगी, मित्र सहयोगी।

संका :: (सं. स्त्री.) शंका, किसी विश्वास को विचलित करने वाला विचार।

संका :: (कहा.) संका हूली बन में फूली, सास भरी उर नंद झडूली, एक जंगली बूटी, शंखपुष्पी, झडूले बच्चे वाली, अर्थात् पुत्रवती, जिस बच्चे का मुंडन - संस्कार न हुआ हो उसे झडूला या झलरा कहते हैं, सास मरी और ननद के लड़का हुआ हिसाब फिर ज्यों का त्यों।

सकार :: (सं. स्त्री.) सूर्योदय के पहले का समय निर्धारित।

सकारबौ :: (क्रि. स.) स्वीकृत करना, हुण्डी का भुगतान करना, संभालना, सौंपना।

सकारूँ :: (वि.) समय से पूर्व।

सकारें :: (अ.) प्रातः काल तड़के सबेरे, नियत समय के कुछ पहले, आने वाले कल का प्रातः काल।

सकारौ :: (सं. पु.) सुबह, दुसरा आने वाला दिन।

संकिया :: (सं. पु.) एक बहुत तेज विष जो एक उपधातु है, संखिया।

सकिलबो :: (क्रि. अ.) इकट्ठा होना।

सकी (खी) :: (सं. स्त्री.) सखी, सहेली, भगवान कृष्ण की गोपिकाएँ।

सकीभाव :: (सं. पु.) अपने को उपास्य देव की पत्नि समझने का भाव।

संकीरन :: (वि.) संकीर्ण, आवश्यकता से कम, सँकरा।

संकीरनता :: (सं. स्त्री.) संकीर्णता, ओछापन, कमी।

सकुच-सकुची :: (सं. स्त्री.) संकोच।

सकुचबौ :: (क्रि.) संकोच करना, द्विविधा में पड़ना।

संकुलिया :: (सं. स्त्री.) नदियों में पाये जाने वाले छोटे शंख, मिट्टी का कटोरे नुमा पात्र।

सकुसिया :: (सं. स्त्री.) बांस एक चौकोर बर्तन।

सँकेलबो :: (स. क्रि.) समेटना, बटोरना, खींचकर इकट्ठा करना।

सकोच :: (सं. पु.) संकोच, लज्जा शीलता।

संकोच :: (सं. पु.) लज्जा, सिकुड़ना, भय।

संकोची :: (वि.) संकोच करने वाला, लज्जालु।

सकोरबो :: (क्रि.) सिकोड़ना।

सक्कर :: (सं. स्त्री.) शक्कर, खाँड, बूरा।

सक्ती :: (सं. स्त्री.) शक्ति, क्षमता, सामर्थ्य।

सक्सा :: (सं. पु.) चने की सूखी भाजी को पानी में गलाकर मसल कर निकाला गया रस, लू लगे हुए व्यक्ति के हाथों पैरों पर इसके मलने से लू का प्रकोप शान्त हो जाता है।

संख :: (सं. पु.) शंख, समुद्र में पाया जाने वाला किसी जीव का घर, इसका स्वर शुभता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।

संखजरात :: (सं. पु.) संगजराहत एक चिकना सफेद पत्थर जो मलहम बनाने के काम आता है।

संखा :: (सं. स्त्री.) शंका।

संखाहूली :: (सं. स्त्री.) शंखावली, एक बूटी जो मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों की दवा बनाने के काम आती है।

सखी :: (सं. स्त्री.) संगिनी, सहेली।

संग :: (सं. पु.) साथ, रोटी के साथ दाल-शाक आदि।

संगठन :: (सं. पु.) एका, घनिष्ठता, सूत्रबद्धता, उच्चारण में संग तथा ठन के बीच ईषत विराम् है।

सगड़ :: (वि.) मजबूत, मोटा, गठीला शरीर।

संगत :: (सं. स्त्री.) साथ रहने का भाव, साथ रहने वाले, गायन में वाद्य यंत्रों द्वारा साथ देने की क्रिया।

संगत :: (कहा.) संगत कीजे साधु की, बनत बनत बन जाए।

संगतया :: (सं. पु.) नाच गान में साच की आवाज के साथ लय मिलाने वाला।

सगनोंती :: (सं. स्त्री.) शकुन निकालने की क्रिया।

सगबग :: (क्रि. वि.) आर्द्रतर, जल्दी से।

सगबगाबो :: (अ. क्रि.) सकपकाना, घबड़ा जाना, तर होना।

सगभत्ता :: (सं. पु.) साग मिलाकर पकाया गया भात।

संगम :: (सं. पु.) समाज के लोगों या सम्बन्धियों का अनौपचारिक मिलन, एक ही अवसर पर एक साथ मिलने, नदियों का मिलन स्थल।

संगर :: (सं. पु.) युद्ध, मुकाबला।

सगरो :: (सर्व.) सब।

सगाई :: (सं. स्त्री.) वैवाहिक संबंध निश्चित करने की रस्म।

संगाती :: (सं. पु.) साथ रहने वाला, साथी, संगी, दोस्त।

संगाती :: (सं. पु.) साथी, संगी।

संगाती :: (कहा.) कोड़ी मरै, सँगाती जाय।

संगारबो :: (सं. क्रि.) नाश करना, वध करना।

संगी :: (सं. पु.) साथी, संगी।

सगुन :: (सं. पु.) शकुन, किसी कार्य को करने के पूर्व शुभ लक्षणों का आभास।

सगुनया :: (सं. पु.) शकुन विचारने वाला।

सगुनियाँ :: (सं. पु.) जो शकुन विचारने में निपुण हो प्रश्न के शुभाशुभ फल पर ज्योतिष या अन्य किसी आधार पर विचार कर उत्तर देने वाला।

सगुरा :: (सं. स्त्री.) जिसने गुरू से दीक्षा ली हो, निगुरा का विपर्याय।

सगेला :: (सं. पु.) साथी।

संगै :: (क्रि. वि.) साथ में।

सँगोबौ :: (क्रि.) भली-भाँति सुरक्षित करके रखना, कई चीजों को मिला-जुलाकर घुचमुच करना, कार्य विशेष के लिए आवश्यक सामग्री जुटा कर कार्यस्थल पर रखना।

संगोबौ :: (क्रि. स.) संभालना, ठीक करना।

सगौ :: (वि.) जिससे सीधा रक्त संबंध हो।

सगौतिया :: (सं. स्त्री.) अपने गोत्र का।

सगौना :: (सं. पु.) सागौन (वृक्ष)।

संग्राम :: (सं. पु.) भीषण लड़ाई (व्यंग्य प्रयोग)।

संग्रेनी :: (सं. स्त्री.) बिना हजम हुआ अन्न मल के रूप में निकालने का एक रोग, संग्रहणी।

संघार :: (सं. पु.) ध्वंस, नाश, प्रलय, संहार, किसी उच्च आदर्श के लिए दुष्ट या सेना को मारने की क्रिया (अधिकतर धार्मिक संदर्भ या लोक साहित्य. में प्रयुक्त)।

संचत :: (सं. पु.) संतान।

सचेत :: (वि.) सावधान।

संचै :: (सं. पु.) एकत्र राशि, ढेर।

सच्चऊँ :: (अव्य.) सचमुच।

सच्चो :: (वि.) त्रुटि रहित, सच बोलने वाला, सत्यवादी, प्रामाणिक।

सज :: (सं. स्त्री.) सज्जा, सजावट, सज-धज, शब्द युग्म. में प्रयुक्त।

सजधज :: (स. यौ.) सजावट।

सजन :: (सं. पु.) प्रियतम, पति, समधी।

सजनाई-सजबाई :: (सं. स्त्री.) सजवाने की क्रिया, सजवाने का पारिश्रमिक।

सजबौ :: (क्रि.) सजावट करना, स्वयं सजना, तैयार करना, प्रेरित करना।

संजम :: (सं. पु.) संयम, हरतालिका व्रत की पूर्व, संध्या पर रात्रि में स्त्रियों द्वारा महुए की दातुन करने तथा दूध-सिबइयों और ककड़ी का भोजन करने की क्रिया।

सजा :: (सं. स्त्री.) दण्ड, कैद।

संजा :: (सं. स्त्री.) संध्या, होने पर दीपक जलाकर ईश्वर को स्मरण करने की क्रिया, भगवान की संध्या आरती।

संजा बाती :: (सं. स्त्री.) सायंकाल दीपक जलाना।

सजाई :: (सं. स्त्री.) सजाने की क्रिया, सजाने की मजदूरी।

संजात :: (वि.) मिले-जुले, अविभाजित रूप में, एक ही परिवार के सदस्यों के रूप में।

संजाती :: (वि.) सबके सहयोग से होने वाला काम, सबके सहयोग से सार्वजनिक उपयोग की वस्तु या स्थान।

सजाबौ :: (क्रि.) सजाना।

सजीबर :: (वि.) प्रत्यक्ष, सजीव, संजम।

सजीबर :: (वि.) संयम।

संजीवन :: (सं. स्त्री.) एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि जो ज्वर, खाँसी आदि में काम आती है।

सजूगर :: (सं. पु.) साक्षात्, सम्पूर्ण।

संजूती :: (वि.) सौभाग्यवती।

संजूँती :: (सं. स्त्री.) सुहागिन।

संजै :: (सं. पु.) धृतराष्ट्र का एक सारथी जो उन्हें युद्ध का समाचार सुनाया करता था, धृतराष्ट का पुत्र संजय।

सँजोओ :: (सं. पु.) दे. सँजोव।

संजोग :: (सं. पु.) सुयोग, अनुकूल, अवसर, आकस्मिक, अवसर, दैव निर्धारित संबंध।

संजोगी :: (सं. पु.) एक जाति जिसके पूर्वज साधु और बाद में घर बसा कर गृहस्थ हो गये, विशेषण रूप में भी प्रयुक्त, जैसे संजोगी बाबा।

सँजोबौ :: (क्रि.) कार्य विशेष के लिये आवश्यक सामग्री को कार्य स्थल पर यथा स्थान रखना।

संजोव :: (सं. पु.) चक्की के नीचे के पाट में बीचों बीच लगा कीला जो ऊपरी पाट को घूमने की धुरी होता है।

संझले :: (वि.) मँझले से छोटा।

सट :: (वि.) शठ, दुष्ट, धूर्त, छली।

सटक :: (सं. स्त्री.) हुक्का की लम्बी लचीली निगाली, लम्बी पतली तथा लचीली लकड़ी।

सटकबो :: (अ. क्रि.) धीरे से खिसक जाना, रफू चक्कर होना, चल देना।

सटका :: (सं. पु.) ताजी हुई पतली तथा लचीली लकड़ी।

सटकापोंदी :: (सं. स्त्री.) इधर से उधर खिसकने की क्रिया, कार्य के लिए इनकार न करके टालाटूली करने की क्रिया, यौगिक शब्द।

सटकाबौ :: (क्रि.) माला की गुरियों को ऊँगली की सहायता से धीरे से बिना आवाज के खिसकना।

सटकारबौ :: (अ. क्रि.) छड़ी से मारना, गुप्त तरीके से रूक जाना, व्यग्य प्रयोग।

सटपटाबो :: (अ. क्रि.) संकोच करना, हिचकिचाना, भौचक्का होना, दब जाना, सटपट शब्द करना।

सटबो :: (क्रि.) संगत में चलना, तालमेल रहना।

सटयाबो :: (क्रि.) साठ वर्ष की आयु पार कर जाने के कारण मस्तिष्क का गड़बड़ हो जाना।

सटर-पटर :: (सं. स्त्री.) चंचलता प्रदर्शित करने वाली बात-चीत या हाव-भाव निजी उपयोग का सामान, यौगिक शब्द।

सटाबो :: (क्रि.) चलाना, निर्वाह करना।

सटाबो :: (प्र.) अबै हमाव काम सटा दो, फिर देखी जैय।

सटिया :: (वि.) साठ दिन में तैयार हो जाने वाली तथा ग्रीष्म ऋतु में पैदा होने वाली धान की एक मोटी किस्म, इसके चावल लाल होते हैं।

सटोरा :: (सं. पु.) सट्टा करने वाला।

सटौरिया :: (सं. पु.) सट्टा लगाने वाले, किसी काम के फलाफल पर दाव लगाने वाले जुआँरी।

सट्ट-पट्ट :: (सं. स्त्री.) दे. सटर-पटर।

सट्टा :: (सं. पु.) किसी काम के फलाफल पर दाँव लगाने की क्रिया।

सठयाबौ :: (क्रि.) दे. सटयाबौ।

सड़सड़ाबो :: (क्रि.) बहुत तेज जुकाम होना, गुस्से में बहुत तेजी से डाँट फटकार करना।

संडा :: (वि.) साँड़ के समान ताकत वाला, हष्ट-पुष्ट, स्त्री संड़ी।

संडा :: (वि.) कामुकता पूर्ण अशिष्ट आचरण करने वाला युवक।

संडा-मुसंडा :: (सं. पु.) बलवान और हष्ट-पुष्ट व्यक्ति या प्राणी।

सड़ाँद :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु की सड़ने की गंध।

सड़ासड़ :: (अव्य.) सड़सड़ शब्द के साथ, उदाहरण-सड़ासड़ मारबो-खूब मारना, बेंत आदि से।

सडेरे :: (सं. पु.) एक प्रकार की सीकें जो छप्पर के आगे लगाई जाती हैं।

सड़ेल :: (वि.) सड़ा हुआ जैसा, कमजोर, प्रभावहीन, रोगी जैसा दिखने वाला।

सडैरौ :: (सं. पु.) छिलका उतरा हुआ सन का डण्ठल।

सड़ोरयाई :: (सं. स्त्री.) आँख बचाकर की जाने वाली चोरी।

सड़ौरिया :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों का सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ वर्ग।

सण्ट :: (वि.) खूब खा पीकर मस्त हुआ, मोटा ताजा।

सण्टारबौ :: (क्रि.) तल्लीन होकर जल्दी जल्दी भोजन करना, व्यंग्य प्रयोग।

सण्डयाबो :: (क्रि.) यौवन की मस्ती में अशिष्ट एवं कामुकता पुरं आचरण करना उच्चशृंखलता दिखाना।

सत :: (उप.) सात का अर्थद्योतक उपसर्ग।

सतखंडा :: (सं. पु. वि.) सात खण्ड का मकान, मकान की सातवीं मंजिल घर का सबसे ऊँचा स्थान।

सतजत :: (वि.) सात जात की, एक गाली।

सतजुत :: (सं. पु.) सतयुग, कृतयुग।

संतत :: (सं. स्त्री.) सन्तान, संतति।

सतदानों :: (सं. पु.) गले में पहनने का तिदानें की तरह का सोने का आभूषण।

सतफरा :: (सं. पु.) एक जाति की खट्टी नारंगी।

सतबाँसौ :: (वि.) गर्भ के केवल सात महीने पूरे होने पर पैदा होने वाला।

सतमासौ :: (सं. पु.) गर्भिणी का सातवें महीने में होने वाला एक संस्कार।

सतमुन्सू :: (वि.) सात खसम वाली एक गाली।

सँतयाबो :: (सं. क्रि.) चमड़ा, कुचलना।

सतयोन :: (सं. पु.) सात जाति।

सतर :: (सं. स्त्री.) कतार, सतर्क।

सतरंज :: (सं. स्त्री.) शतरंज, शाही खेल।

सतरंजी :: (सं. स्त्री.) रंग बिरंगी दरी।

सतरा :: (वि.) दस और सात का योग सतरा।

सतरा :: (कहा.) सत्तरा बड़ैरे करिया करे - बड़ौरा, घर के छप्पर का ऊपरी हिस्सा, सत्तरह बड़ैरे काले किये अर्थात सत्तरह घर बदनाम किये, प्रायः दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहते हैं।

संतरा :: (सं. पु.) नारंगी।

सतराबो :: (क्रि. अ.) बुरा मानना, नाराज होना।

सतलड़ी :: (सं. स्त्री.) सात लड़ों की गले की माला।

सतलड़ौ :: (सं. पु.) प्रेम पूर्ण व्यवहार, आत्मीयता का प्रदर्शन, अधिक लाड़ प्यार।

सतसई :: (सं. स्त्री.) सात सौ पद्यों का संग्रह सप्तशती।

सता :: (सं. पु.) किनारे गुठे हुए सात पुओं की इकाई जो अनेक शुभ कार्यो के अवसर पर बनायी जाती है।

सताउर :: (सं. पु.) एक जड़ी, शताबरी का पौधा।

संताख :: (सं. पु.) तृप्ति, प्रसन्नता, जो मिले उसी से प्रसन्न रहने का भाव, धैर्य, हर्ष।

संतान :: (सं. स्त्री.) औलाद, संतति, कुल वंश।

सताप :: (सं. पु.) किसी को दुःख देने से मिलने वाला पाप।

सताबौ :: (क्रि.) दुःख देना, कष्ट पहुंचाना।

सतासी :: (वि.) अस्सी और सात के योग की संख्या।

सतिया :: (सं. स्त्री.) स्वास्तिक।

सतुआ :: (सं. पु.) भुने हुए चने तथा गेहूँ जौ का आटा जो गुड़ या शक्कर मिलाकर पानी में सानकर खाया जाता है।

संतोखी :: (वि.) संतुष्ट रहने वाला, सब्र करने वाला, जो मिले उसी में प्रसन्न रहने वाला।

सतोरा :: (सं. पु.) सुरई की तरह का कोड़ियों का एक खेल जो सोलह के स्थान पर सात कोड़ियों से खेला जाता है।

सत्घतु :: (वि.) सात धातुका।

सत्त :: (वि.) सात दहाइयों के योग की संख्या।

सत्तरया :: (वि.) शैतान ऊधमी।

सत्तरा :: (वि.) दस और सात की संख्या का योग।

सत्ता :: (सं. पु.) सात अंको वाला ताश का पत्ता।

सत्ताईस :: (वि.) बीस और सात के योग की संख्या।

सत्ती :: (सं. स्त्री.) उस नारी की दिव्य शक्ति जो अपने मृतक पति के सिर को गोद में लेकर जीवित जल जाती है।

सत्तुर :: (सं. पु.) शत्रु, दुश्मन।

सत्तुरया :: (वि.) ऐसा व्यक्ति जिसमे मस्तिष्क में दूसरों के प्रति सदा विरोध की भावना पैदा होती है, शत्रुतापूर्ण आचरण।

सत्यानास :: (सं. पु.) पूर्ण नष्ट होने की दशा।

सँद :: (सं. स्त्री.) सन्धि, दो वस्तुओं के बीच का स्थान, गुंजाइश।

सँदना :: (सं. पु.) घोड़े को जब चरने और घूमने को खुला छोड़ा जाता है तो उसके आगे के दोनों पैरों का थोड़ा सा अन्तर देकर बाँध दिया जाता है ताकि वह भाग न सके, इसी बन्धन को संधना कहते है।

संदबाबो :: (सं. क्रि.) चुनवाना।

संदबो :: (क्रि.) फफूदी लगना, फफूड़ना।

सदबौ :: (क्रि.) संतुलित रहना, टिके रहना, साधना करना।

सदर :: (वि.) जिले तहसील आदि का मुख्यालय प्रमुख।

सदरई :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की कुर्त्ती या बंडी, जाकेट।

सदरी :: (सं. स्त्री.) कपड़े की सिली हुई कंधों तक की बटनदार बनयान।

सदरौ :: (वि.) आवश्यकता से थोड़ा अधिक।

संदसयाऊ :: (सं. स्त्री.) संदेश लाने ले जाने वाली स्त्री।

संदसयाऊ :: (सं. पु.) सँदेसिया।

सदाँ :: (क्रि. वि.) सदा, हमेशा।

सदाँ :: (कहा.) सदा बेल हरयाय - सदा बेल हरयाती रहे, ब्राह्मणों की ओर से आशीर्वाद।

सदाबौ :: (क्रि.) किसी के कार्य में सहयोग करना, जानवरों को प्रशिक्षित करना।

सदासुहागिन :: (सं. स्त्री.) बारामासी एक प्रकार का पौधा और उसके पुष्प, जो सदा सुहागवती रहें।

संदी :: (सं. स्त्री.) सन्धि, मेल, संबंध, दोस्ती, समझौता।

संदीपन :: (सं. पु.) एक ऋषि, कृष्ण के गुरू।

संदूक :: (सं. पु.) लकड़ी या लोहे का बकसा जो कपड़े आदि रखने के काम आता है।

संदेई :: (सं. स्त्री.) अर्थी, ठठरी, मुर्दा को श्मशान ले जाने का साधन।

सदेबदे :: (वि.) पहले से सलाह किये हुए।

सँदैबो :: (क्रि.) संधान करना, औषधिक उपयोग की दृष्टि से औषधियों को किसी रस के साथ सड़ाना या पकाना।

संदैसा :: (सं. पु.) सन्देश, समाचार, जो किसी के पास किसी साधन के द्वारा भेजा जाता है।

संदैसा :: (कहा.) संदेशन खेती नई होत - खेती स्वयं देखनी पड़ती है, नौकरों या मजदूरों के भरोसे नहीं होती।

सदो सदाओ :: (वि.) सधा हुआ।

सद्द :: (वि.) सद्य, ताजा।

सद्दानों :: (सं. पु.) गले का एक आभूषण जो गले से सटाकर पहना जाता है, जिसको सात सात दानों का एक एक फल बनाकर तैयार किया जाता है।

सधाबौ :: (क्रि.) दे. सदाबौ।

सन :: (सं. पु.) एक पौधा जिसके छिलके से निकाले गये रेशे रस्सी बनाने के काम आते हैं, सन के रेशे अंग्रेजी सम्बत्।

सन :: (कहा.) सन घनो बनो (कपास) बैगरो, बइमत सोई सुजान।

सनई :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का सन।

सनक :: (सं. स्त्री.) झलक, विवेक शून्य विचार।

सनकबो :: (सं. क्रि.) किसी धुन में हो जाना, पगला जाना।

सनकयाबो :: (क्रि. अ.) पागल होना, सन चढ़ाना।

सनकरसा :: (सं. पु.) चावलों की एक जाति।

सनकारबो :: (क्रि. स.) इशारा करना।

सनकिया :: (सं. पु.) प्याली, शक करने वाला।

सनकुआ :: म.प्र. का एक प्राकृतिक स्थल।

सनकुटिया :: (सं. स्त्री.) रेश निकाले हुए सन के डंठल मड़ैरौ।

सनकुटिया :: (कहा.) हाँत-पाँव सन कुटिया, पेट मटुकिया।

सनछेप :: (सं. पु.) सारांश, विस्तार, हीन संस्करण।

सनद :: (सं. स्त्री.) प्रमाण पत्र।

सनपटा :: (सं. पु.) सन के परिष्कृत रेशों से बनाया गया वस्त्र।

सनमती :: (सं. स्त्री.) सन्मति, राय, सहमती।

सनमन्द :: (सं. पु.) सम्बन्ध, बास्ता, वैवाहिक सम्बन्ध।

सनमान :: (सं. पु.) सम्मान, आवभाव, आदर, आवभगत।

सनमुख :: (क्रि. वि.) सम्मुख, मुँह के सामने, आमने-सामने।

सनसनी :: (सं. स्त्री.) उत्तेजना।

सनाकत :: (सं. स्त्री.) शिनाख्त, पहचान, संकेत सूत्र।

सनाकौ :: (सं. पु.) सन्नाटा, ऐसी स्थिति जिसमें कुछ बोलने का साहस न हो आश्चर्य या भय के कारण निर्मित शून्य स्थिति, उदाहरण-सनाका में आइयो-अकेले में आना, सनाका खिंचजावों-सन्नाटा हो जाना, सनाढ्य।

सनाकौ :: (सं. पु.) गौण ब्राह्मणों की एक शाखा या वर्ग।

सनातन :: (सं. पु.) अति प्राचीन काल।

सनाय :: (सं. स्त्री.) दस्त बन्द करने की एक औषधि, सोनामुखी।

सँनिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का रेशमी वस्त्र जो प्रायः पूजा करते समय पहना जाता है।

सनीचर :: (सं. पु.) शनिश्चर ग्रह, शनिवार, उलझन में डालने वाला, लाक्षणिक अर्थ।

सनीमा :: (सं. पु.) सिनेमा, चलचित्र।

सनेव :: (वि.) सनेह, -स्नेह, प्रेम, सौहार्दपूर्ण व्यवहार।

सनोबर :: (सं. पु.) पान के बरेजो में टटियाँ बाँधने की सामग्री।

सनोरा :: (सं. पु.) सन का छिलका निकला हुआ डंठल यह बहुत मुलायम होता है औरआग लगने पर शीघ्र जल जाता है।

सनोरिया :: (सं. पु.) ललितपुर के प्रसिद्ध चोर एक अपराधी जाति या दल के लोग, ब्राह्मण की एकउपजाति जिसका उक्त चोर सनोरियों से कोई संबंध नहीं।

सनोंसर :: (क्रि. वि.) बिना छाँटे तय मूल्य पर (खरीदना)।

सन्त :: (सं. पु.) परोपकारी, अपने लिए कुछ न चाहने वाला, धर्मात्मा, साधु।

सन्तत :: (सं. स्त्री.) सन्तान श्रृंखला, भावी पीढ़ी।

सन्तरी :: (सं. पु.) पहरे पर खड़ा सिपाही।

सन्ताउन :: (वि.) पचास और सात के योग की संख्या।

सन्ताउनबै :: (वि.) नब्बे और सात की संख्या का योग।

सन्ताउनसाते :: (सं. स्त्री.) सन्तान सप्तमी, सामासिक शब्द।

सन्तान :: (सं. स्त्री.) पुत्र, पुत्री।

सन्तार :: (सं. पु.) नारंगी।

सन्ती :: (सं. पु.) प्रपौत्र का पुत्र।

सन्तोख :: (सं. पु.) सन्तोष उपलब्ध में ही तुष्टि की अनुभूति।

सन्नपात्र :: (सं. पु.) बात-पित्त और कफ, तीनों दोषों के साथ कुपित होने की स्थिति सन्निपात।

सन्नाटौ :: (सं. पु.) खामोशी, शब्द शून्यता, भयंकर शांन्ति, खूब चटपटा पतला रायता।

सन्नाबो :: (सं. क्रि.) अत्यंत इठलाना, तीब्र गति से पत्थर फेंकने की ध्वनि होना, यौवन के मद में मदमाता होकर आचरण करना।

सन्यास :: (सं. पु.) संसार से विरक्त होकर धर्माचरण की स्थिति।

सन्यासी :: (सं. पु.) चौथे आश्रम में जिसने दीक्षा ली हो।

संपत :: (सं. पु.) सम्पत्ति, धन।

संपत :: (कहा.) संपत होय तौ घर भलौ, नातर भलौ बिदेस। नहीं तो, अन्यथा।

सँपदा :: (सं. स्त्री.) धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य वैभव।

सपन-सपन :: (सं. स्त्री.) चंचलता।

सपनों :: (सं. पु.) स्वप्न, सुप्तावस्था में अवचेतन मन की भावनाओं की दृश्यानुभूति।

सपन्न, सवप्न :: (सं. पु.) नहाने का कमरा या स्थान।

सपरना :: (सं. पु.) सपरने का स्थान, स्नान गृह।

सपरनै-सपरबौ :: (अ. क्रि.) स्नान करना, नहाना, किसी काम का पूरा होना, निबटना।

सपराखोरी :: (सं. स्त्री.) जल स्पर्श एवं क्षौर कर्म, मृत्यु के बाद तीसरे दिन शुद्धता के अवसर पर मुण्डन एवं स्नान, यौगिक शब्द।

सपरेटा :: (सं. पु.) मक्खन निकला दूध।

सपाई :: (वि.) सफाई, स्वच्छता।

सपाटौ :: (सं. पु.) जोर से मारा जाने वाला, किसी कार्य में की जाने वाली शीघ्रता।

संपालिया :: (सं. पु.) साँप पकड़ने वाला, सँपेरा।

सपूत :: (सं. पु.) सुपुत्र (प्रायः व्यंग्यार्थ में प्रयुक्त)।

संपूरन :: (वि.) पूर्ण, सारा, अतिशय, पूरा किया हुआ।

सपेटो :: (सं. पु.) पीछे भाग कर खदेड़ने की क्रिया।

सपेत :: (वि.) उजला, श्वेत, गोरा।

सपेती :: (सं. स्त्री.) सफेदी, कलई की पुताई।

संपेरो :: (सं. पु.) साँप पकड़ने वाला या साँप का तमाशा दिखाने वाला।

सपेलुआ :: (सं. पु.) सांप का बच्चा।

सपैरो :: (सं. पु.) साँप पकड़कर उनका प्रदर्शन करने वाला, काल बेलिया।

सपोटबो :: (सं. क्रि.) खाना, जल्दी जल्दी खाना, चाटना।

सँपोला :: (सं. पु.) साँप का बच्चा, खतरनाक व्यक्ति।

सफड़ :: (सं. पु.) सफर, यात्रा।

सफल :: (वि.) कामयाब।

सफाई :: (सं. स्त्री.) स्वच्छता, किसी वस्तु को खा पीकर समाप्त कर देने की स्थिति, व्यंग्य अर्थ।

सफेद :: (वि.) श्वेत उजला, गोरा।

सफेदा :: (सं. पु.) जिंक आक्साइड तथा तारपीन के तेल की लुग्दी, सफेद बार्निस, पेण्ट।

सब :: (वि.) कुल, समस्त, सारा, सम्पूर्ण, पूरा, अशेष।

सब :: (कहा.) सबई किसानी हेटी, अगनइयाँ पानी जेठी - रबी की फसल को अगहन में पानी मिल जाय तो समझो बड़ा काम हुआ।

सब :: (कहा.) सब एकई थैलिया के चट्टा - बट्टा-सब एक से हैं, चालाकी में कोई कम नहीं।

सब धान बाईस पसेरी :: (कहा.) जहाँ अच्छे और बुरे, मुर्ख और पंडित, न्याय और अन्याय का कोई विचार न हो वहाँ कहते हैं।

सब बेटा के बाप :: (कहा.) जहाँ सब अपनी अपनी हुकूमत चलायें।

सब से भली, चुप :: (कहा.) चुप सबसे अच्छी।

सबइया :: (सं. पु.) सबा का पहाड़ा।

सबउ :: (सर्व.) सब ही।

सबक :: (सं. पु.) याद करने का अभ्यास करने के लिए दिया गया पाठ।

सबत्तर :: (अव्य.) सर्वत्र, सब जगह।

सबर :: (सं. स्त्री.) सब्र, धीरज, उत्तेजना या व्याकुल पर नियंत्रण।

सबरउ :: (सर्व.) सबही।

सँबरबो :: (सं. क्रि.) सज्जित होना, सजना।

सबरलील :: (वि.) खग्रास (ग्रहण) पूर्ण।

सबरा :: (सं. पु.) पीतल आदि के बर्तनों की पटक उठाने का उपकरण।

सबरा :: (वि.) सब, सम्पूर्ण।

सँबरिया :: (वि.) साँवला, श्याम रंग का।

सबरी निपुर गई :: (कहा.) सब कलई खुल गयी, बहुत चलायी पर एक नहीं चली।

सबरेहार :: (अव्य.) सर्वत्र, सब जगह।

सबरौ :: (वि.) सब, सम्पूर्ण, पूरा, तमाम, सब का सब बलवाची प्रयोग।

सबल :: (वि.) अधिक (तुलनात्मक प्रयोग क्रिय विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त)।

सबा :: (वि.) एक और चौथाई का योग।

सबाई :: (सं. स्त्री.) एक पद्धति जिसके अनुसार बोने के लिये जो बीज उधार दिया जाता है उसको फसल आने पर सबा गुना लौटाया जाता है किसी उपाधि पर सवागुने का विशेषण।

सबाद :: (सं. पु.) स्वाद।

सबायो :: (वि.) सबा गुना अधिक।

सबार :: (सं. पु.) घुड़सवार।

संबारबो :: (सं. क्रि.) सुगन्धित करना, ठीक करना, सजाना।

सबारी :: (सं. स्त्री.) वाहन शोभायात्रा, राजा या देव मूर्तियों की विशेष अवसरो पर निकाली जाने वाली प्रेक्षायात्रा।

सबासा :: (सं. पु.) विवाह में मुखिया जो प्रायः वर या बधू का मामा होता है।

सबिया :: (वि.) सभी तरह, सम्पूर्णतः।

सबूती :: (सं. स्त्री.) किसी बात को प्रमाणित करने की क्रिया।

सब्बरौ :: (वि.) पूरा का पूरा अशेष भाव से पूरा (विशेष बलवाची प्रयोग)।

सब्बल :: (सं. पु.) लोहे का मोटा सरिया जिसका एक सिरा चपटी धार वाला तथा दूसरा गोल नोंक वाला होता है, खोदने तथा पत्थर फोड़ने के काम आता है।

संभरबाबो :: (क्रि.) संभालने का काम करना।

सभा :: (सं. स्त्री.) सामान्य जन को एकत्रित कर उनके समक्ष विचार प्रस्तुत करने तथा विमर्श करने की क्रिया।

सभा :: (कहा.) सभा बिगारें तीन जन, चुगल, चबाई चोर - बातूनी।

संभारबो :: (क्रि. स.) संभालना।

सम :: (उप.) समस्त का अर्थ बोधक उपसर्ग।

समअ :: (सं. पु.) समय, अवसर, मौका।

समअ :: (कहा.) समय परे की बात बाज पै झपटे बगुला - भाग्य विपरीत होने पर दुर्बल भी सबल को सताता है।

समई :: (सं. स्त्री.) दीपदान।

समज :: (सं. स्त्री.) समझ, बुद्धि, विचार।

समजाबौ :: (क्रि.) समाधान करना, सहमत करना, प्रबुद्ध करना।

समझ :: (सं. स्त्री.) दे. समज।

समझया :: (सं. पु.) विशेष अवसर त्यौहार आदि पर होने वाला विशेष आयोजन या उत्सव।

समडैरा :: (सं. पु.) खाना बाँधने का कपड़ा।

संमत :: (सं. पु.) सन्, वर्ष विक्रम संवत्, संवत्सर।

समदन :: (सं. स्त्री.) समधिन, पुत्र बधु या दामाद की माता।

समदफेंन :: (सं. पु.) समुद्रफेन जो औषधियों में तथा काँच साफ करने के काम आता है, यौगिक युग्म।

समदयानों :: (सं. पु.) समधी का घर।

समदी :: (सं. पु.) पुत्रबधु का पिता या दामाद का पिता।

समदेला :: (वि.) समधी के परिवार का, समधी का पुत्र।

समदौरौ :: (सं. पु.) बुन्देलखंड में समधिनें आपस में मिलती नहीं है, जब उनको मिलना होता है तो पुत्र बधु की माता पुत्र की माता को साड़ी ब्लाउस आदि वस्त्र तथा कुछ नगद देकर पैर छूती है।

समधी :: (सं. पु.) दे. समदी।

समधै :: (सं. स्त्री.) समिधाएँ, हवन की अग्नि के लिए पलाश, आम, पीपल, पाखर, गूलर आदि की लकड़ियाँ, बहुवचन।

समरथ :: (वि.) समर्थ, समक्ष, योग्य।

समरपन :: (सं. स्त्री.) समर्पण, आदरपूर्ण प्रस्तुत करने या भेंट देने की क्रिया।

समरबौ :: (क्रि.) संभलना, संतुलन रखना, शरीर की साज सज्जा को ठीक ठाक करना।

समराबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु का उत्तरदायित्व पूर्ण ढंग से सौंपना।

समरौटी :: (सं. स्त्री.) बहू बेटी की विदा के समय उसके साथ भेजा जाने वाला पकवान।

समव :: (सं. पु.) समय।

समव :: दे. समआँ।

समा :: (सं. पु.) कोदों की जाति का एक अनाज, इसके चावलों का भात रोगियों को दिया जाता है।

समाई :: (सं. स्त्री.) दीपाधार, ऊँच दण्ड पर बना दीपक, एक धान की तरह का पौधा, जो खतों में बिना बोया पैदा होता है, इसके दाने कोदों की तरह होते हैं।

समागम :: (सं. पु.) साधु-सन्तों तथा सत्पुरूषों से मेल-मुलाकात तता विचार-विमर्श का अवसर।

समाचार :: (सं. पु.) खबर, हाल-चाल की सूचना।

समाज :: (सं. स्त्री.) जातीय वर्ग, क जाति या उद्देश्य वे मनुष्यों का समूह।

समाजी :: (सं. पु.) राम लीला में रामायण से कथा-सूत्र तथा संवाद सहायक अंशो का वाचन करने वाले ओर साथ में वाद्ययंत्र बजाने वाले।

समाधान :: (सं. पु.) मानसिक उद्वेलन का समझा कर शान्त करने की क्रिया, समस्या का निराकरण।

समाधी :: (सं. स्त्री.) समाधि, चिता-स्थल पर बनाया गया स्मारक।

समाबौ :: (क्रि.) विलीन होना।

समार :: (सं. स्त्री.) एक संस्कार जिसमें नवयुवक की डाढ़ी पर प्रथम बार उस्तरा फेरा जाता है तथा उसकी मूँछों को सँभाला जाता था, बारात जाने के पूर्व वर की डाढ़ी मूँछ तथा बालों को काट-छाँट कर ठीक करने की रस्म, देखभाल, संभालना।

सँमार :: (सं. पु.) रोक-थाम, देख-भाल, पालन-पोषण।

सँमारबो :: (क्रि. स.) रोकथाम करना, सहारा देना, रक्षा करना, याद करना।

समारबौ :: (क्रि.) सँभालना, सहारा देना, बिगड़ती बात बनाना।

समारी :: (सं. पु.) नाई बालों की सँभाल करने वाला, नाइयों द्वारा अपनाया गया नव प्रवर्तित उपनाम।

समासौ :: (सं. पु.) रात्रि का तीसरा पहर।

समुन्दर :: (सं. पु.) समुद्र।

समूदी :: (वि.) समस्त सह सामग्रियों से युक्त भोजन, रोटी-दाल-भात-कढ़ी-बरा-मगौरा-बूरौ-पापड़-अचार से युक्त भोजन समूदी रोटी कहलाती है।

समूदौ :: (सं. पु.) खटिया बुनने के लिए काँस की रस्सी की चार पिण्डियों का एक साथ बँधा हुआ समूह।

समेंटबौ :: (क्रि.) बिखरी हुई वस्तु को इकट्ठा करना।

समेंटाँ :: (क्रि. वि.) बिना छाँटा-बीनी किये सबको एक साथ ले जाना।

समेंटाँ :: (सं. पु.) समेटने की क्रिया।

समेत :: (संयोजक) सहित।

समैया :: (सं. पु.) काल, वक्त, समय, उपयुक्त, संकट की स्थिति।

समोंसा :: (सं. पु.) मैदा का तीन खूँट का पकवान जिसके अन्दर आलू भरे रहते हैं।

सम्पट सौरा :: (सं. पु.) सर्वनाश, पूर्णतः नष्ट होने की स्थिति, यौगिक शब्द।

सम्पत :: (सं. स्त्री.) सम्पत्ति, व्यंग्य अर्थ।

सम्पनया :: (वि.) चंचल, ऊधमी।

सम्पांफनी :: (वि.) थूहर की एक जाति जिसके पत्ते नाग के फन की तह होते हैं।

सम्पूरन :: (वि.) सम्पूर्ण, सर्वांगपूर्ण, सेंधा।

सम्बत् :: (सं. पु.) वर्ष, गणना का क्रम जो प्रायः किसी महापुरूष के जन्म से प्रारम्भ किया जाता है, विक्रम संवत्, शक संवत् आदि।

सम्बन्ध :: (सं. पु.) दे. सनमन्द।

सम्हार :: (सं. पु.) मदद, सहारा, सहाय।

सयानों :: (वि.) वयस्क, बुद्धिमान, समझदार, चालाक, कपटी, धूर्त।

सयामस :: (सं. पु.) एक बेल जो जड़ी के काम आती है।

सर :: (सं. स्त्री.) सोने के लम्बे तथा छैपाल के गुरियों की माला।

सरई :: (सं. स्त्री.) पाजामा।

सरकफूँद :: (वि.) खिसकने से कसने वाली गाँठ।

सरकबौ :: (क्रि.) खिसकना।

सरकार :: (सं. स्त्री.) प्रशासन, जागीरदारों या जमींदारों या अन्य शासकों के लिए आदरवाची, सरकार।

सरकारी :: (वि.) सरकार से स्वामित्व का, राजाओं के दासी पुत्रों का विशेषण।

सरग :: (सं. पु.) स्वर्ग, देवधाम, आकाश, सरग खों नसेनी लगाबों असम्भव कार्य करना।

सरग :: (कहा.) सरग उठायें।

सरगराजा :: (सं. पु.) मृतक, सामासिक शब्द।

सरज :: (सं. स्त्री.) पत्नि के भाई की पत्नि, सरहज, सलहज।

सरजा :: (सं. पु.) नथ का झुमका, सरदार, शिवाजी की उपाधि।

सरजू :: (सं. स्त्री.) सरयू नदी, राम कथा से जुड़ी हुई प्रसिद्ध नदी।

सरतार :: (सं. स्त्री.) फुर्सत, अवकाश।

सरद :: (सं. पु.) रस्सी की लड़।

सरद :: (सं. स्त्री.) शरद ऋतु।

सरद :: (वि.) सर्द।

सरदा :: (सं. पु.) ग्रीष्म ऋतु में नदी के रेतीले पाट में पैदा होने वाले खरबूज की एक किस्म, श्रद्धा।

सरदार :: (सं. पु.) दरबारी, राजा के मित्र।

सरदारी :: (वि.) शान शौकत वाली, ठाटदार।

सरदी :: (सं. स्त्री.) जुकाम, नाक से विकार बहने का रोग।

सरन :: (सं. स्त्री.) शरण, आश्रय।

सरपट :: (सं. स्त्री.) नदी-नाले पर बना बहुत नीचा पुल, तेज दौड़ना।

सरपोटबौ :: (क्रि.) मुँह के अन्दर की ओर हवा खींचकर उसके गाढ़े खाद्य पदार्थ को जल्दी-जल्दी मुँह से खींचकर खाना, अशिष्ट ढ़ंग से खाना, बहुत शीघ्रता से खाना।

सरपोटा :: (सं. पु.) सरपोटने की क्रिया, दे. सरपोटबौ।

सरफूद :: (सं. स्त्री.) सरकफूँद, सरकने वाली गाँठ।

सरफोंका :: (सं. पु.) एक पौधा जो औषधि के काम आता है।

सरबत :: (सं. पु.) शक्कर मिश्रित पानी या फलों का रस।

सरबती :: (वि.) हलका नारंगी।

सरबन :: (सं. पु.) श्रमण, अधंक मुनि के पुत्र श्रवण जो अपने माता पिता को एक बँहगी में बैठाकर ढ़ोया करते थे।

सरबस :: (सं. पु.) सर्वस्व, सबकुछ, अपने स्वामित्व का, सब कुछ।

सरबोर :: (वि.) पूर्ण रूप से भीग हुआ।

सरबौ :: (वि.) सड़ना, किसी व्सतु का विकृत या अवयबों में विच्छेदित होना।

सरम :: (सं. स्त्री.) संकोच, लज्जा।

सरमउआ-घुंड़ी :: (सं. स्त्री.) बटुआ आदि सरकन वाले नारों के किनारों की गाँठ, बटकर बनाई गयी बटुए की गोल घुंड़ी जिसके भीतर से दूसरी लर सरक सकती है।

सरमन :: (सं. पु.) श्रवण कुमार, माता-पिता की भक्ति का आदर्श, एक पौराणिक पात्र जिसकी राजा दशरथ के बाण से धोखे में मृत्यु हो गयी थी, मात्र-पित्र भक्त, विशेषण लोक अर्थ।

सरमन जान :: (सं. पु.) खाद्य, साकिल्य, भोजन सामग्री।

सरसट :: (वि.) साठ और सात के योग की संख्या।

सरसटे :: (सं. पु.) विपत्तियाँ (बु.व में प्रयुक्त)।

सरसदे :: (सं. पु.) कष्ट, आपत्ति।

सरसुँआँ :: (सं. पु.) सरसों, एक तिलहन जो मसालें के काम में भी आता है।

सरसुती :: (सं. स्त्री.) सरस्वती, बुद्धि की देवी।

सरा :: (सं. पु.) पहिया घूमने की लोहे की धुरी।

सराई :: (सं. स्त्री.) सकरी मुहरी का पजामा।

सरागोट :: (सं. स्त्री.) गुप्त मंत्रणा, गुप्त समझौता।

सराँद :: (सं. स्त्री.) सड़ने की दुर्गन्ध।

सराद-सराध :: (सं. पु.) श्राद्ध, पूर्वजों की स्मृति में उनकी आत्मशान्ति एवं सद्गति हेतु किये जाने वाले श्रद्ध, पूर्वजों की स्मृति में उनकी आत्मशान्ति एवं सद्गति हेतु किये जाने वाले श्रद्धापूर्ण कार्य।

सराप :: (सं. स्त्री.) शराब, मद्य, मादक, आसव।

सरापी :: (वि.) शराबी, शराब के नशे के आदी।

सराफ :: (सं. पु.) सोने चाँदी के आभूषणों का धन्धा करने वाला।

सराफा :: (सं. पु.) सराफों का बाजार।

सराफी :: (सं. पु.) सोने चाँदी के आभूषणों का धन्धा सराफों का बाजार।

सराबी :: (वि.) दे. सरापी।

सराबौ :: (सं. पु.) आभूषण की जंजीर में लगा आँकड़ा या हुक, गले के आभूषण में जंजीर के स्थान पर लगाया जाने वाला अलंकृत धागा या फीता।

सराँयँ :: (सं. स्त्री.) यात्रियों के ठहरने का स्थान।

सरायबो :: (सं. क्रि.) तारीफकरना, बड़ाई करना, प्रशंसा करना।

सरारौ :: (वि.) सीधा, बिना गाँठों वाला बाँस, लकड़ी आदि।

सरासेट :: (वि.) अथाह और विस्तृत जलराशि क्रिया विशेषण. रूप में भी प्रयुक्त।

सरिया :: (सं. पु.) लोहे की या अन्य किसी धातु की छड़।

सरियाँसर :: (क्रि. वि.) सरासर, प्रत्यक्ष रूप से।

सरी :: (सं. स्त्री.) हँसली विशेषण. सड़ी, गली, बेकार।

सरीक :: (सं. पु.) शत्रु।

सरीगत :: (सं. स्त्री.) बराबरी करने की क्रिया, किसी की समानता करने के लिए किया जाने वाला आचरण।

सरूँटबौ :: (क्रि.) श्वास के बग में मुँह या नाक के अन्दर किसी वस्तु को खींचना।

सरूँटा :: (सं. पु.) सरूँटने की क्रिया, दे सरूँटबौ भी।

सरूवा :: (सं. पु.) श्रुवा, यज्ञ में घी की आहुति डालने के लिए लकड़ी की चम्मच, गोश्त का रसा (झोल) शोरबा।

सरेट लगाबो :: (सं. क्रि.) पता लगाना।

सरेस :: (सं. पु.) जानवरों की ताजी हड्डियों, अँतड़ियों आदि को उबाल कर निकाला जाने वाला लिसलिसा पदार्थ जो अनेक कामो में आता है।

सरोंता :: (सं. पु.) सुपाड़ी, काटने का एक औजार, सरौंता।

सरोंदे :: (सं. स्त्री.) सुविधा के साथ, स्वरोदय।

सरोदौ :: (सं. पु.) धुन किसी विचार में संलग्रता।

सरौ :: (वि.) सड़ा हुआ।

सर्ज :: (सं. स्त्री.) पतला ऊनी कपड़ा।

सर्त :: (सं. स्त्री.) शर्त, किसी बिन्दु के निर्णय पर लगाया जाने वाला दाव।

सर्दी :: (सं. स्त्री.) दे. सरदी।

सर्दे :: (सं. स्त्री.) किसी ऊँची चीज को खड़ा सँभाले रखने के लिए चारों तरफ बाँधी जाने वाली रस्सियाँ।

सर्फा :: (सं. पु.) खर्च, मौद्रिक व्यय, अधिक खर्च।

सर्बत :: (सं. पु.) सरबत।

सर्रक :: (सं. स्त्री.) कम चौड़ा और अधिक लम्बा खेत।

सर्रा :: (वि.) कम और छोटी शाखाओं वाला लम्बा (पेड़)।

सर्राबौ :: (क्रि.) तेजी से ऊँचाई बढ़ना, सर्र की आवाज के साथ किसी दानेदार वस्तु का गिरना।

सलइया :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष जिसकी लकड़ी सूखी होने पर धुँधवा कर जलती है।

सलइया :: (कहा.) सूकी सलइया लाँगन करै, खैर, बमूर, तीते जरें - इसकी गीली लकड़ी जमीन में गाड़ देन पर पुनः हरी-भरी हो जाती है, रहँट का एक पूर्जा।

सलबौ :: (क्रि.) अनाहूत और अवांछित होने हुए भी घुसकर अपना स्थान बनाना, जबरन घुसना, धँसना।

सलमदरू :: (सं. स्त्री.) मोटी (स्त्री)।

सलरइ :: (सं. स्त्री.) लापरवाही, ढील-ढाल।

सलसलाबौ :: (क्रि.) अच्छे खान-पान के कारण शरीर पर अधिक माँस बढ़ जाना।

सला :: (सं. स्त्री.) सलाह, राय, गुप्त मंत्रणा।

सला :: (सं. पु.) सला-सूद।

सला, सलाय :: (सं. स्त्री.) सलाह, परामर्श, उदाहरण-सला सूत करबो-सलाह करके संगठित रहना।

सलाई :: (सं. स्त्री.) धातु की पतली नुकीली तीली।

सलाबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक प्रवेश कराना।

सलाम :: (सं. स्त्री.) मुसलमानी ढंग का अभिवादन।

सलामी :: (सं. स्त्री.) अभिवादन करने का सैनिक या राजाशाही तरीका जिसके अंतर्गत तोपें चलाकर या फौजी परेड करके अभिवादन ज्ञापित किया जाता है।

सलूका :: (सं. पु.) दुहरे कपड़े की या रूई भर कर बनायी जाने वाली बाँहदार बनयान।

सलूस :: (सं. पु.) तालाब से जल निकासी करने का यंत्र।

सलोंनों :: (वि.) सुन्दर।

सल्ल :: (सं. स्त्री.) मंत्रण सलाह, मशवरा, राय।

सवाल :: (सं. पु.) प्रश्न, गणित के प्रश्न।

सवेरो :: (सं. पु.) सूर्योदय काल, प्रातः काल।

ससकबौ :: (क्रि.) द्रव पदार्थ का भूमि या किसी अन्य अधर में समा जाना या विलीनत हो जाना।

संसकिरित :: (सं. स्त्री.) संस्कृत, देवभाषा, हिन्दुओं के धर्मशास्त्र की भाषा, श्रेष्ठ साहित्य सम्पन्न प्राचीन भारतीय भाषा।

ससत :: (वि.) अधमरा, मरणासन्न।

संसरार :: (सं. स्त्री.) पत्नी के पिता का घर, ससुराल।

संसरार :: (कहा.) ससरार कौ रैबी, गदा कौ चड़बो - ससुराल में बहुत दिनों रहने से अपमान होता है।

ससरो :: (सं. पु.) श्वसुर।

संसा :: (सं. पु.) सुनारों के उपयोग का लम्बा नोंकदार चिमटा।

ससाबौ :: (क्रि. वि.) दे. ससकबौ।

संसार :: (सं. पु.) आवागमन, जन्म मरण, दुनिया का माया जाल।

संसी :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु को दूर से पकड़ने का लीवरदार उपकरण।

ससींत :: (वि.) अधसूखा, जो पूर्ण रूप से सूखा न हो।

ससुर :: (सं. पु.) पति या पत्नी का पिता, ससुर खाँ परी हार फार की बऊ खाँ परी खगबार की, गले में पहिनने का चाँदी या सोने का आभूषण, खँगोरिया, हँसली, ससुर को तो हल-बखर की पड़ी है और बहू को इस बात की कब मेरी हँसली बने, सबको अपनी अपनी पड़ी रहती है।

ससुरार :: (सं. पु.) ससुराल।

ससेबन :: (क्रि. वि.) घुड़की, डर, उदाहरण-सास सससेवन मारै (नोंरता)।

संसै :: (सं. पु.) अनिश्चय, हिचक, संकट, कठिनाई, डाँवाडोल मनस्थिति।

ससोकबौ :: (क्रि.) सोखना।

संसौ :: (क्रि.) सन्देह।

संस्कार :: (सं. पु.) व्यक्ति से सम्बन्धित धार्मिक रीतियाँ, दैव निर्धारित, सुयोग।

सस्तौ :: (वि.) कम मूल्य का।

सहज :: (सं.) सामान्य स्थिति, विशेषण. होते हुए भी संज्ञ. रूप में प्रयुक्त।

संहमा :: (सं. पु.) दाव, बाजी।

सहर :: (सं. पु.) शहर, नगर, पुर।

सही :: (वि.) ठीक, जो गलत न हो, अनुमोदित।

सहीस :: (सं. पु.) साइस, घोड़े की देखभाल करने वाला।

सहूर :: (सं. पु.) शऊर, व्यवहर कुशलता, शिष्टाचारण, ढंग, सलीका।

सहेली :: (सं. स्त्री.) सखी, लड़की की समवयस्क साथ-साथ पढ़ने-खेलने वाली लड़की मित्र।

सहो :: (सं. स्त्री.) शह, प्रोत्साहन।

साँइँ :: (सं. पु.) मुस्लिम फकीर के लिए आदरवाची सम्बोधन।

साइकिल :: (सं. स्त्री.) बाइसिकल, दो पहियों का पैरों से चलाने वाला वाहन।

साइया :: (वि.) हरा या कम पका हुआ काटकर सुखाया गया (घास), बरसात में कई बार जोतकर कमाया हुआ (खेत)।

साई :: (सं. स्त्री.) किसी काम के अनुबन्ध स्वरूप दी जाने वाली प्रतीकात्मक अग्रिम राशि, मक्खी के अण्डे जो घाव पर रख देती है, तो कीड़े पड़ जाते है।

साई :: (मुहा.) मरतनईं साइ पर गई।

साँउँन :: (सं. पु.) श्रावण का महीना, विक्रम संवतः का पाँचवा महीना, रक्षाबन्धन का त्यौहार, उदाहरण-सॉउन सूकौ न भादौ हरौ-सदा एक ही दशा में रहना।

साऊकार :: (सं. पु.) रुपया और अनाज क्रमशः ब्याज और बाड़ी पर देने का धंधा करने वाला, कर्ज देने वाला साहूकार।

साऊकारी :: (सं. स्त्री.) साऊकार का धन्धा।

साऊकारी :: दे. साउकार भी।

साऊजू :: (सं. पु. (मौ.)) साहजी समधी, समधी के लिए संबोधन।

साक (ख) :: (सं. स्त्री.) साक्ष, साक भरायौ -साक्ष से प्रमाणित करना, सब्जी, भाजी।

साँकर :: (सं. स्त्री.) जंजीर।

साकल्ल :: (सं. पु.) हवन सामग्री, सहायक सामग्री, किसी प्रयोजन के निमित्त इकट्ठी की गयी आवश्यक सामग्री।

साके :: (सं. पु.) राज शालिवाहन द्वारा चलाया गया सम्वत् विशेषण स. से १३५ वर्ष पीछे चलता है।

साकोचार :: (सं. पु.) विवाह में भाँवरों के समय वैदिक संस्कारों के अतिरिक्त कन्या के पिता, पितामह, प्रतिपितामह तथा उनके गोत्र का वर्णन करके वर, वर के पिता, पितामह, प्रतिपितामह के गोत्र सहित नामोल्लेख करते हुए वर को कन्यादान करने की शाब्दिक घोषणा।

साकौ :: (सं. पु.) शौक, सुविधा, वीरों की वृत गाथा, नाम ख्याति।

साख :: (सं. स्त्री.) गवाही, साक्षी, लेनदेन और व्यवहार का विश्वास, पेड़ की टहनी।

साखा :: (सं. स्त्री.) खेत की खड़ी फसल।

साखा :: (कहा.) बारे पूत हरीरी साखा, इने देख जिन भूलो माता।

साग :: (सं. स्त्री.) शाक रोटी के साथ खाने के लिए फलों और कन्दों से बनायी जाने वाली तरकारी।

साँग :: (सं. पु.) एक प्रकार का अस्त्र जो प्रायः लोक-देवताओं के सम्बन्धित हथियार है, बीच की लम्बी नोंक वाला त्रिशूल जो कि रक्षा के निमित्त दुर्गा को अर्पित किया जाता है।

सागर :: (सं. पु.) बुन्देलखण्ड का प्रसिद्ध नगर।

साँगो :: (सं. पु.) उत्तेलक, लीवर, लीवर के सिद्धान्त से किसी वस्तु को ऊपर उठाने के लिए काम में लाया जाने वाला दण्ड।

सागौन :: (सं. पु.) एक पेड़ जिसकी लकड़ी, मेज कुर्सी आदि बनाने के काम आती है।

साँग्गीत :: (सं. पु.) नौटंकी की धुन पर पद्यबद्ध वीर-गाथा या प्रेम-गाथा।

साँच :: (सं. पु.) सत्य।

साँच :: (कहा.) साँच खों आँच कहाँ।

साँच :: (कहा.) साँचे कौ जमानो नइयाँ - सच्चे का जमाना नहीं, जब कोई सच कहे और उसकी बात न मानी जाय तब कहते हैं।

साँच-माँच :: (अव्य.) सचमुच।

साची :: (वि.) सच्ची, सच, सत्य।

साँची :: (वि.) सत्य (बात)।

साँचौ :: (सं. पु.) साँचा किसी आकृति को ढालने के लिए आधार, सत्याचरण करने वाला।

साँचौ :: (कहा.) साँचे पै फाँके परें, लाबर लड्डू खाय।

साज :: (सं. पु.) सज्जा, पानी की साज।

साज :: (सं. पु.) एक वृक्ष, घोड़े पर कसी जाने वाली रूपहली सुनहरी काठी, पति, प्रियतमा।

साँज :: (सं. स्त्री.) शाम, संध्या।

साँज :: (मुहा.) साँज फूलना-वर्षा ऋतु में संध्या समय सूर्य की किरणों के प्रभाव से सूर्यास्त के पश्चात एक विशेष प्रकार का लाल प्रकाश फैल जाना।

साजन :: (सं. पु.) समधी, पति।

साँजी :: (सं. स्त्री.) भूमि पर रंग चूर्णो से सजायी जाने वाली झाँकी।

साजौ :: (वि.) साबुत, बिना टूट-फू ट का, अच्छा।

साजौ :: (सं. स्त्री.) साजी।

साँझ :: (सं. स्त्री.) दे. साँज।

साँझी :: (सं. स्त्री.) दे. साँजी।

साँट :: (सं. स्त्री.) त्रिकोंण विवाह, जिसमें एक की बहिन दूसरे को, दूसरे की तीसरे को और तीसरे की पहले को ब्याही जाती है, चौकोर नोंक वाला भाला।

साँट बरदार :: (सं. पु.) मस्त हाथी को किसी विशेष दिशा में जाने से रोकने वाले भालाधारी घुड़सवार (सामासिक शब्द.)।

साँट सगाई :: (सं. स्त्री.) साँटे की सगाई विवाह का एक प्रकार का सौदा।

साटन :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।

साँटन :: (सं. स्त्री.) चिकनी सतह वाला चमकदार रेशमी कपड़ा, इसकी दूसरी सतह कम चिकनी तथा बिना चमक की होती है।

साँटबौ :: (क्रि.) मीठी-मीठी बातें करके अथवा अन्य अवैध तरीके से अपने अधिकार में लेना।

साटिया, साठिया :: (वि.) लगभग ६० हाथ की गहराई वाला (कुँआ)।

साटे-साँटे :: (क्रि.) बदले में।

साठ :: (वि.) छह और दस के गुणनफल की संख्या।

साँठ-गाँठ :: (क्रि. वि. (सं. मौ.)) अनुचित सौदा।

साठ-साठ :: (वि.) विनाश, मटिया मेट।

साठा :: (वि.) साठ वर्ष की अवस्था वाला।

साठिया :: (वि.) बहुत गहरा जो लगभग साठ हाथ गहरा हो (कुँआ)।

साठी :: (सं. पु.) एक प्रकार का धान जो साठ दिन में हो जाता है।

साठी :: (वि.) साठिया।

साँठी :: (सं. पु.) एक प्रकार के चावल।

साँड़ :: (सं. पु.) गाय-बैलों की नस्ल सुधारने के काम आने वाला उन्नत जाति का हष्ट-पुष्ट बैल, एक गाँव में खुला हुआ कहीं भी घूमता है इसी लक्षण के आधार पक दाँव में फालतू घूमने और कमजोरों को दबाने वाले को साँड कहकर गाली दी जाती है।

साँड़िया :: (सं.) स्त्री ऊँट।

साँड़िया :: (सं. स्त्री.) साँड़नी।

साडू :: (सं. पु.) पत्नी की बहिन का पति, साढू भाई।

साड़े :: (वि.) कोई भी संख्या जिसमें आधी इकाई जुड़ी हो।

साड़े साती :: (वि.) साड़े सात वर्ष तक रहने वाली शनि की दशा।

साड़ौ-गाड़ौ :: (सं. पु.) एक सरीसृप जाति का मगर से मिलता-जुलता जानवर जिसके शरीर पर हड्डी जैसी कड़ी वस्तु के शल्क खपड़ों जैसे छाये रहते हैं, खतरा महसूस करते ही यह अपने मुँह को अन्दर करके शरीर को गोल कर लेता है, इसके शल्क से बना बड़े बटन के आकार का ताबीज जो ढीमर लोग गले के सामने वाले हिस्से में सँटाकर बाँधते है, उनका मानना है कि कैसे भी ठण्ड में पानी में रहने पर भी इसके कारण ठण्ड का प्रभाव नहीं पड़ता है।

साड़ौरों :: (सं. पु.) सनाढ्य ब्राह्मणों की बस्ती।

साड़ौरों :: (मुहा.) साड़ोरो में नारायनदास तुमईं तौ आ हौ -इस प्रकार के क्या तुम्ही एक व्यक्ति हो।

सात :: (वि.) चार और तीन की संख्या का योग, उदाहरण-सात समुंदर पार।

सात :: (वि.) बहुत दूर (प्रायः कहानियों मे वर्णन आता है ), सात फेरे -विवाह मे पड़ने वाली भांवर, सात बेने -शीतला समेत चेचक की बीमारी की सात देवियाँ।

सातर :: (वि.) उधमी।

साता :: (सं. स्त्री.) शान्ति, चैन।

साँतिया :: (सं. पु.) स्वास्तिक, हिन्दुओं का एक शुभ चिन्ह।

सातें :: (सं. स्त्री.) सप्तमी, पखवारे की सातवीं तिथि।

सातौं :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे, शान्तिपूर्वक, धीरज के साथ।

साँतौ :: (वि.) शान्त जो ऊधम न करता हो।

सादबौ :: (क्रि.) सहारा देना, साधना करना, अनुकूल करना।

साँदबौ :: (क्रि.) मिलाकर एकममेक करना, पानी डालकर भली-भाँति मिलाना।

सादले :: (वि.) लाड़ल, साधना से प्राप्त (सन्तान)।

सादाँ :: (वि.) सादा, सरल, बिना सजावट का, बिना विशेषता का।

साँदा :: (सं. पु.) नहर से पानी लेने का कटा हुआ स्थान, मुकला।

साँदी :: (सं. स्त्री.) काले सोयाबीन का आटा और थोड़ा पानी डालकर बनाया जाने वाला पशु आहार।

सादू :: (सं. पु.) साधु।

सादें :: (सं. स्त्री.) प्रथम गर्भ के सातवें महीने में मनाया जाने वाला उत्सव।

साधन :: (सं. पु.) जरिया, माध्यम, उपकरण, अर्थोपार्जनर का उपाय।

साधू :: (सं. पु.) संसार में विरक्त ईश्वर आराधना करने वाला व्यक्ति।

सान :: (सं. स्त्री.) मादा पशु की भग, दबदबा, गौरव।

सानइयाँ :: (सं. पु.) शहनाई (बहु वचन.में प्रयुक्त)।

सानजू :: (सं. स्त्री.) समधिन, पुत्र या पुत्री की सास (वैश्यों में प्रचलित)।

सानबौ :: (क्रि.) चूर्णित पदार्थ को द्रव के साथ गूँथना।

सानसी :: (सं. स्त्री.) शहंशाहों जैसा व्यवहार, रईसी।

साना :: (सं. पु.) जमींदार या साहूकर का लठैत।

सानिया :: (सं. पु.) पूजा आदि धार्मिक कार्य करते समय पहिनने के लिए पवित्र कौशेय धोती।

सानी :: (सं. स्त्री.) दे. साँदी।

सान्ती :: (सं. स्त्री.) शान्ति, निःशब्दता, अचंचलता।

साप :: (वि.) स्वच्छ, निर्मल, उज्जवल, बेदाग, निर्दोष, उदाहरण-साप करबो-सफाई करना, धोना।

साँप :: (सं. पु.) सर्प, उदाहरण-साँप सूँग जाबो-साँप का काट लेना।

साँप :: (कहा.) साँप के गोड़े साँपई कों दिखात - साँप के पैर साँप को ही दिखायी देते है, अपनी विपत्ति आदमी आप की जानता है दूसरा नहीं जान सकता।

साँप :: (कहा.) साँप के बिले में हात डारबो - बैठे ठाले विपत्ति मोल लेना।

साँप :: (कहा.) साँप मरै न लाठी टूटे - साँप मर जाय, पर लाठी न टूटे, काम बन जाये और हानि भी न हो, युक्ति से काम लेना।

सापरतीत :: (सं. पु.) प्रत्यक्ष।

साँपरबौ :: (क्रि.) निबटना, कार्य को पूर्ण कर मुक्त होना, फर्सत होना।

साफ :: (वि.) स्वच्छि, अशेष स्थिति।

साफा :: (सं. पु.) सिर में लपेटने का कपड़ा, बड़ी पगड़ी।

साफी :: (सं. स्त्री.) अंगोछी, तौलिया।

साब :: (सं. पु.) साहब अफसरों या बड़े समझे जाने वालों के लिए आदरवाची सम्बोधन।

साबका :: (सं. पु.) वास्ता, व्यवहार करने या सम्पर्क में आने का अवसर।

साबन :: (सं. पु.) साबुन, कपड़े तथा शरीर साफ करने का रसायन निर्मित पदार्थ।

साबन :: (कहा.) साबुन सज्जी निबुआ नोंन, और दाद की ओखद कौन - साबुन, सज्जी, नीबू का रस तथा नमक इनको मिला कर लगाने से दाद अच्छी होती है।

साबर :: (अव्य.) खुश रहो, वाहवा, साधु-साधु।

साबुत :: (वि.) जो कहीं से फटा-टूटा न हो।

साम :: (सं. पु.) लाठी आदि की रक्षा के लिए उसे सिरे पर लगाया जावे वाला धातु का छल्ला।

सामदे :: (वि.) फुर्सत में, निबट कर युक्त।

सामनां :: (सं. पु.) मुकाबला, आमना-सामना।

सामनें :: (क्रि. वि.) सम्मुख, मुँह के सामने।

सामनों :: (क्रि. वि.) सम्मुख स्थिति।

सामनों :: (प्र.) सूरज समानों परत।

सामर :: (सं. पु.) एक जंगली शाकाहारी पशु जिसका चमड़ा बहुत मुलायम होता है, साँभर, सामर का चमड़ा।

सामरी :: (वि.) सामर के चमड़े का बना, साँभर झी का (नमक)।

सामलात :: (वि.) सम्मिलित, एक साथ।

सामलाती :: (वि.) पंचायती, जो सबके सहयोग से किया गया हो।

सामा :: (सं. स्त्री.) सामर्थ, सामर्थ्य।

सामान :: (सं. पु.) सामग्री, घरेलू उपयोग की वस्तुएँ।

सामी :: (वि.) सीधी, सामने की सम्मुख उपस्थित।

सामूँ :: (क्रि. वि.) सामने।

सामूदाने :: (सं. पु.) सँगोपाम के पेड़ से निकाले जाने वाले दाने, इनको दूध में उबालकर खीर बनती है, (आजकल अरारोट से नकली बनाये जाते हैं)।

सामें :: (क्रि. वि.) दे. सामनें।

सामों :: (सं. पु.) मुकाबला।

सामों :: (क्रि. वि.) सम्मुख स्थिति।

साम्हर :: (सं. पु.) खाने की वह सामग्री जो पुरूषों के लिए किसानों की स्त्रियाँ घर से खेतों पर ले जाती हैं।

साँय :: (सं. स्त्री.) पका हुआ चूसने योग्य आम।

साँयनों :: (सं. पु.) हल के कूँड़ की वहाँ तक की सीधी रेखा जहाँ से वह वापिस लौटता है।

साँयसट्ट :: (वि.) खर्च आदमनी की बराबर स्थिति में।

साया :: (सं. पु.) स्कर्ट, पेटीकोट, पतली साड़ी के नीचे पहिनने का अधोवस्त्र।

सार :: (सं. पु.) लकड़ी के बीच का पूर्ण पका हुआ भाग जो प्रायः कत्थई रंग का होता है और जिस पर पानी तथा किसी कीड़े का असर नहीं होता है, मुख्य अंश जो सारी बात का केन्द्र होता है, केन्द्रीय भाव।

सारँग :: (सं. स्त्री.) दे. सहारँग।

सारंगया :: (सं. पु.) सारंगी बजाने वाला। उदाहरण-सारंगा सदा वृक्ष-सावलंगा सदावत्स की प्रेमकथा जो बुन्देलखण्ड में बहुत प्रचलित है और जिसमें बीच-बीच में गद्य के साथ दोहे कहे जाते हैं।

सारँगी :: (सं. स्त्री.) एक तार वाद्य।

सारस :: (सं. स्त्री.) जल के किनारे रहने वाला लम्बी टाँगे और लम्बी गर्दन वाला पक्षी, ये सदा जोड़ी से रहता है, क्रौंच।

साराज :: (सं. स्त्री.) सलहज, साले की पत्नी।

साराज :: (कहा.) सारी न साराज सासई से रारी, पत्नी की बहिन, सलहज, साले की स्त्री, रली, हँसी मजाक साली और सलहज नहीं तो सास से ही मजाक, अपने से बड़े से हँसी मसखरी करने पर।

सारी :: (सं. स्त्री.) साड़ी, साली, पत्नि की बहिन, समता, बराबरी।

सारौ :: (सं. पु.) साला, पत्नी का भाई।

सारौट :: (सं. स्त्री.) गोड़ा लगा लकड़ी का पटा, भोजन करने के लिए बैठने या थाली रखने के काम आता है।

सारौट :: (सं. पु.) एक लकड़ी में बनाये गये छिद्र में दूसरी लकड़ी बैठालने के लिए छिद्र के अनुरूप काट-छील कर बनाया गया सिरा।

साल :: (सं. स्त्री.) वर्ष।

सालममिसरी :: (सं. स्त्री.) सुधा, मूसली, एक पुष्टिकारक जड़ी।

साला :: (सं. स्त्री.) संगति (साला-संगत शब्द युग्म में प्रयुक्त) धर्मशाला, पाठशाला का संक्षिप्त रूप, पत्नी का भाई।

सालिकराम :: (सं. पु.) शालिग्राम, गंगा व नर्मदा नदी में पायी जाने वाली गोल चिकनी काली बटियाँ जिन पर चक्र जैसे उभरे रहते हैं, इनको यज्ञोपवीत माना जाता है। ये भगवान् विष्णु की प्राकृकि प्रतिमा के रूप में पूजी जाती हैं, हर हिन्दू घर में तुलसी-शालिग्रम का होना आवश्यक माना जाता है, गंडक नदी के किनारे स्थित एक वैष्णव तीर्थ।

सालिम :: (वि.) पूरा, दृढ़।

सालें :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

सालोत्री :: (सं. पु.) शालिहोत्री, घोड़ों का चिकित्सक, पशु चिकित्सक।

सालौ गाड़ौ :: (सं. पु.) एक जंगली जानवर।

साव :: (सं. पु.) साहूकार, दुकानदार ओर सेठों के लिए एक आदरवाची सम्बोधन।

सावकरन :: (सं. पु.) श्यामकर्ण घोड़ा।

सावकास :: (सं. पु.) श्रावण का महीना, महीने की पूर्णमासी।

सावजू :: (सं. पु.) बहू के पिता, पुत्री के ससुर या बहिन के ससुर के लिए आदरवाची सम्बोधन (वैश्यों में प्रचलित)।

साँवटो-होबो :: (स. क्रि.) फुरसत पाना।

सावन :: (सं. पु.) एक त्यौहार।

साँवन :: (सं. पु.) दे. साँउन।

सावन तीज, सावनी :: (सं. स्त्री.) वह सामान जो वर के यहाँ से कन्या के यहाँ विवाह के प्रथम वर्ष सावन में भेजा जाता है।

साँवनी, सावनी :: (सं. स्त्री.) विवाह के बाद आने वाले पहले श्रावण मास में वरपक्ष की ओर से कन्या पक्ष के यहाँ भेजी जाने वाली रक्षाबन्धन की सामग्री तथा बच्चों के लिए कपड़े, खिलौने, मिठाई आदि।

साँवरौ :: (वि.) हलका काला, गहरा, गेहुँआ (रंग)।

सास :: (सं. स्त्री.) पति या पत्नी की माता।

सास :: (कहा.) सासे न भावे सो बऊए टिकावे - सास को जो वस्तु अच्छी नही लगती वह बहू को देती है, अपने को कोई चीज पसंद न आने पर उसे दूसरों के मत्थें मढ़ना।

साँस :: (सं. स्त्री.) श्वास, धातु के बर्तन में चोट लगने से होने वाले स्वर के बाद का अनुरणन, उदाहरण-साँस टूटबो-साँस का निकलना बन्द होना।

साँस फूलबो :: हाँफना।

साँस लैबो :: विश्राम करना, ठहरना।

साँसँउँ :: (क्रि. वि.) सचमुच, सत्य ही, वास्तव में (सच का पदरूप)।

साँसत :: (सं. स्त्री.) शान्ति, दमन, दबाव।

सासरौ :: (सं. पु.) पति का घर।

साँसी :: (वि.) सच।

साँसी :: (कहा.) साँसी कयँ मौसी कौ काजर होत - सच कहने पर मौसी की आँखों में आँखे डालकर देखने जैसा लांछन लगता है।

साँसी :: (कहा.) साँसी को रंग रूखो - सच बात रूखी होती है सुनने में अच्छी नहीं लगती।

साँसौ :: (सं. पु.) दे. साँचौ।

सास्त्र :: (सं. पु.) धार्मिक ग्रन्थ।

साहगोतिया :: (वि.) सहगोत्री।

साहब :: (सं. पु.) सम्पन्नता सूट-बूट में रहने वाला व्यक्ति।

साहित्त :: (सं. पु.) किसी विशेष प्रयोजन के निमित्त आवश्यक सामग्री।

साहिबी :: (सं. स्त्री.) रौब, अधिकार सम्पन्नता, शान-शौकत।

साही :: (वि.) सम्राटों, राजाओं जैसा (रहन-सहन, बातचीत, व्यवहार व्यक्तित्व आदि)।

साँहुँन :: (सं. पु.) श्रावण मास, रक्षाबन्धन का त्योहार।

साँहुँन :: दे. साँउन, साँवन।

साहुल :: (सं. स्त्री.) दीवाल की ऊँचाई की सीध बाँधने वाला उपकरण।

साहू :: (सं. पु.) तेली के लिए आदरवाची सम्बो धन।

सिंअन :: (सं. स्त्री.) सिलाई।

सिअरा आठें :: (सं. स्त्री.) शीतला अष्टमी (यौगिक शब्द.)।

सिअरो :: (वि.) ठंडा, जिसमें ताप कम हो।

सिआँना :: (सं. पु.) देशी जूता सीने के लिए चमड़े का पतला फीता।

सिआँनों :: (वि.) चतुर, नवयुवक जिसमें समझदारी विकसित हो गई हो।

सिऑन :: (सं. स्त्री.) चतुराई, स्वार्थ युक्त चतुराई।

सिक :: (सं. स्त्री.) द्रव के भराव का वह दल जो बर्तन के ओंठों (किनारों) से ऊपर दिखे, तरके ऊपर जमाकर रखने की क्रिया।

सिकंजी :: (सं. स्त्री.) शिकरणी, नींबू का मीठा शर्बता।

सिकत्तर :: (सं. पु.) सेक्रेटरी, सचित (अंग्रेजी.)।

सिकबौं :: (क्रि.) गरम होना, तपनाख भुनना, आग पर स्वरस में पकना।

सिंकमी :: (वि.) वह (कृषक) जिसको किसी जमीन को लम्बे समय से जोतते आ रहे होने के कारण यह अधिकार प्राप्त हो गया हो कि उसको उस पर से हटाया न जा सके।

सिकरवार :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक उपजाति।

सिकलीभर :: (सं. पु.) सान धरने वाला।

सिकात :: (सं. स्त्री.) शिकायत, नियत, विरूद्ध व्यवहार की सक्षम व्यक्ति को सूचना।

सिकाबो :: (सं. क्रि.) सीखने में प्रवृत्त करना, प्रशिक्षित करना।

सिकार :: (सं. पु.) आखेट, जंगली पशुओं को मारने का मनोरंजन, शिकार किये हुए पशु का माँस।

सिकारगा :: (सं. स्त्री.) शिकारगाह, शिकार के लिये बैठने का सुरक्षित स्थान, जंगल में बने विश्रामगृह।

सिकारी :: (सं. पु.) आखेटक, शिकार खेलने वाला।

सिकुउन :: (सं. स्त्री.) संकोच, शिकन, बल।

सिकुरबो, सिकुड़बो :: (अ. क्रि.) सिकुड़ना, संकुचित होना।

सिकैबौ :: (क्रि.) सिखाना, कान भरना।

सिकैबौ :: (कहा.) सिक ए पूत दरबारै नँइँ जात।

सिकोरबो, सिकोड़बो :: (सं. क्रि.) सकोड़ना, समेटना, संकुचित करना।

सिकौलिया :: (सं. स्त्री.) काँस आदि की बनी टोकनी।

सिकौली :: (सं. स्त्री.) काँस और खजूर की पत्तियों से बनी कलात्मक टोकरी।

सिक्का :: (सं. पु.) धातु निर्मित मुद्रा, प्रभाव, धाक।

सिक्ख :: (सं. पु.) सिख सम्प्रदाय के अनुयायी, गुरूनानक के अनुयायी, गुरू गोविन्द सिंह के द्वारा निर्धारित वेष-भूषा धारण करने वाला।

सिखबास :: (सं. पु.) चावल की एक जाति।

सिखर :: (सं. पु.) मन्दिर का शंकु आकार, ऊपरी भाग।

सिखापन :: (सं. पु.) शिक्षा, उपदेश।

सिखाबो :: (सं. पु.) सेज (अ.बा.)।

सिखाबो :: (क्रि.) सिखाना।

सिंगइ :: (सं. पु.) जैनों की उपाधि जो रथ चलवाने वालों को दी जाती है।

सिगड़ी :: (सं. स्त्री.) अँगीठी, सिगरी (बुँ.)।

सिगन्ती :: (वि.) सिगरो-सब, सम्पूर्ण, पूर्ण।

सिगरिट :: (सं. स्त्री.) कागज में तम्बाकू लपेट कर बनायी जाने वाली, धूम्रपान की वर्तिका, सिगरेट (अंग्रेजी.)।

सिंगल :: (वि.) एकाकी, अधूरा कम भरा हुआ, इकहरा (अंग्रेजी.)।

सिंगा :: (सं. पु.) सींग की बनी हुई तुरही।

सिंगाड़ो :: (सं. पु.) पानी में पैदा होने वाला एक तिकोना फल सिंघाड़ा।

सिंगार :: (सं. पु.) श्रृंगार, प्रसाधन युक्त, सज-धज।

सिंगारपाग :: (सं. पु.) सिंघाड़े के आटे की शक्कर में पगी बतियाँ।

सिंगारी :: (सं. स्त्री.) सिंघाडे की बेलें सिंघाड़ें का खेत जो तालाबों में जल की सतह पर फैला रहता है।

सिंगिसर :: (सं. पु.) एक विष, बात रोग का इलाज करने का एक अवैज्ञानिक उपकरण जिसका प्रयोग घुमन्तु दवा-दारू करने वाले लोग करते हैं।

सिंगेंन :: (सं. स्त्री.) सिंघई की पत्नी।

सिंगेंन :: दे. सिंगइ भी।

सिंगौटी :: (सं. स्त्री.) सीगों का जोड़ा।

सिंग्ग :: (सं. स्त्री.) तर के ऊपर वस्तुओं का क्रम या स्थिति।

सिंग्गमरमर :: (सं. पु.) संगमरमर, सफेद, सूक्ष्म दानेदार पत्थार, कैल्शियम कार्बोनेट की संरचना का मुलायम सफेद पत्थर।

सिंग्गार :: (सं. पु.) श्रंगार, सज्जा।

सिंग्गार :: दे. सिंगार।

सिंग्गारबौ :: (क्रि.) सुसज्जित करना।

सिंग्गासन :: (सं. स्त्री.) सिंहासन, मंदिर में देवी-देवताओं को आसीन करने का सीढ़ी दार आसन, राजाओं के बैठने की पीठिका या वैभवपूर्ण तख्त।

सिंघइ :: (सं. पु.) दे. सिंगइ।

सिचाई :: (सं. स्त्री.) खेतों को पानी देने की क्रिया।

सिंचित :: (वि.) जिस भूमि पर खेती करने में पानी देने की सुविधा हो।

सिच्छा :: (सं. स्त्री.) शिक्षा, उपदेश, मार्ग दर्शन।

सिछया :: (सं. स्त्री.) शिक्षा, उपदेश, सबक, कला, दण्ड।

सिजरा :: (सं. पु.) वंशवृक्ष, पीढ़ियों के किसी पूर्व पूरूष से आगे वंश-विस्तार का नामांकित रेखांकन।

सिज्या :: (सं. स्त्री.) रोज।

सिटपिटाबो :: (क्रि. अ.) घबराजाना।

सिट्ट-पिट्ट :: (सं. स्त्री.) उत्तर सोचने या समस्या का समाधान निकालने का सामर्थ्य, विवेक वाचालता।

सिट्ट-पिट्ट :: (प्र.) उनके सामने तौ उनकी सिट्ट-पिट्ट भूल जात (सामासिक शब्द.)।

सिट्टी :: (सं. स्त्री.) दे. सिट्ट-पिट्ट।

सिड़बिड़याबौ :: (क्रि.) विवेक शून्य होना, किंकर्त्तव्यविमूढ़ होना, घबरा कर बुद्धि कुण्ठित होना।

सिड्डकबौ :: (क्रि.) ठण्ड से काँपना, ठण्ड के कारण सिकुड़कर ठण्ड से बचने का प्रयास करना।

सितार :: (सं. पु.) एक शास्त्रीय तार, वाद्य वीणा।

सितारिया :: (वि.) सितार बजाने वाला।

सिंदौरा :: (सं. पु.) चौपढ़ की गोट जैसी लकड़ी की वस्तु जो विवाह में रगवारौ (रघुवंश) में डली रहती है तथा बारात की वापिसी के समय गाँव की सीमा पर फें क दी जाती है, सिन्दूर रखने का डिब्बा।

सिद्द :: (सं. पु.) जिसे कोई सिद्ध प्राप्त हो, साधक।

सिद्द :: (वि.) सिद्ध किया हुआ, सिद्धि प्राप्त, प्रमाणित।

सिद्दी :: (सं. स्त्री.) सिद्धि अध्यात्मिक उपलब्धि।

सिद्ध बाबा :: (सं. पु.) एक देवता इनके नाम पर चबूतरे मिलते हैं।

सिद्धांत :: (सं. पु.) उद्देश्य, विचारों की मान्यता।

सिधारबौ :: (क्रि.) परलोक गमन, मरना, साधु-सन्तों तथा बड़े लोगों के मरने के लिए प्रयुक्त।

सिनसार :: (ससं. पु.) संसार।

सिनसारी :: (सं. स्त्री.) लौकिक आचार, लौकिक माया, सांसारिक (विशेषण.)।

सिनौरा :: (सं. पु.) दे. सनौरा।

सिन्दुकिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सन्दूक।

सिन्दूक :: (सं. स्त्री.) सन्दूक, पेटी, सामान, सुरक्षित रखने की बन्द पेटी।

सिन्दूर :: (सं. पु.) सीरेन का ऑक्साइड, आक्सीकृत सीसा, एक नारंगी रंग का चूर्ण जिसको घी या चमेली के तेल में मथकर हनुमान जी की मूर्ति का लेपित किया जाता है तथा सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपनी माँग में सौभाग्य चिन्ह के रूप में भरती है।

सिन्दूरी :: (वि.) नारंगी (रंग)।

सिन्धन :: (सं. स्त्री.) सिन्धी महिला।

सिन्धी :: (सं. पु.) सिन्ध का रहने वाला।

सिन्नी :: (सं. स्त्री.) शीरनी, मिठाई, मिष्ठान्न।

सिपाई :: (सं. पु.) सिपाही, पुलिस या सेना का जवान।

सिपारी :: (सं. स्त्री.) सुपाड़ी, पुंगीफल।

सिंपारौ :: (सं. पु.) बैलगाड़ी की नक्की अग्रभाग जमीन पर न रहे इसके लिए उसके नीचे लगा टेका स्टैन्ड।

सिप्पा :: (सं. पु.) धाक, युक्ति।

सिप्पी :: (सं. स्त्री.) हुलिया।

सिफत :: (सं. स्त्री.) चतुराई पूर्ण युक्ति।

सिफरस :: (सं. स्त्री.) किसी दूसरे की कार्य सिद्धि हेतु किया जाने वाला आग्रह।

सिबजी :: (सं. पु.) भगवान शंकर, महादेव, देवाधिदेव।

सिबालौ :: (सं. पु.) केवल भगवान शंकर का मन्दिर, शंकरजी का ऐसी मंदिर जो किसी की चिता भूमि या समाधि पर बनाया जाये।

सिमइँया :: (सं. स्त्री.) आटे या मैदा की पतली सूत जैसी रचना जिनको दूध में उबाल कर घी शक्कर के साथ खाया जाता है।

सिमटबो :: (क्रि.) सिकुड़ना, एक जगह होना।

सिमण्ट :: (सं. पु.) सीमेंट, भवन, निर्माण में गारा बनाने के काम आने वाला यांत्रिक पद्धति से बनाया गया जले हुए चूना पत्थर का चूर्ण।

सिमरन :: (सं. स्त्री.) स्मरण।

सिमरनी :: (सं. स्त्री.) छोटी माला।

सिमाई :: (सं. स्त्री.) सिलाई करने की क्रिया, सिलाई का ढंग, सिलाई का पारिश्रमिक।

सिमाबौ :: (क्रि.) सिलाना।

सियरा :: (सं. पु.) सिअरा।

सियरौ :: (सं. पु.) दे. सिअरौ, शीतल, ठण्डा।

सिया :: (सं. स्त्री.) सीता जो भगवान श्री राम की पत्नी।

सिया :: (कहा.) बोई सिया को मायको, बी राम की गेल।

सियाई :: (सं. स्त्री.) स्याही।

सियाउ :: (सं. स्त्री.) बूढ़ी सियारनी, जिसका बोलना अशुभ माना जाता है उदाहरण-सियाउ फेकरबो-सियाउ का बोलना।

सियात :: (अव्य.) शायद, कदाचित।

सियान :: (वि.) चतुराई।

सियानो :: (वि.) चतुर।

सियाबड़ी :: (सं. स्त्री.) अपने से बड़ो और मान्य रिश्तेदार के यहाँ भेंट स्वरुप भेजा जाने वाला अनाज।

सियारी :: (सं. स्त्री.) खरीफ की फसल, हरसिंगार का पेड़।

सियारू :: (सं. स्त्री.) एक झाड़ीदार वृक्ष जिसकी पतली टहनियाँ छान छप्पर तथा टोकनी बनाने के काम आती है।

सियासा :: (सं. पु.) श्रीराम की तरह का बड़ा वृक्ष।

सियाहा :: आय-व्यय की बही।

सिर :: (सं. पु.) मस्तक, शरीर का ऊपरी धड़।

सिर :: (कहा.) सिर बड़ौ सरदार कौ, पाँव बड़ौ गँवार कौ - सिर बड़ा सपूत का पैर बड़ा कपूत का।

सिरकम :: (सं. स्त्री.) सवारी के लिए बन्द डिब्बानुमा बैलगाड़ी।

सिरका :: (सं. पु.) जामूँ या ईख के रस को उस सीमा तक सड़ाना कि फिर वह आगे न सड़ सके, इस प्रकार बनाया गया इसके योग से अन्य पदार्थ भी नहीं सड़ते हैं।

सिरकाउ :: (वि.) सरकारी, राजाओं के दासी पुत्रों और अन्य अवैध संतानों के लिए प्रयुक्त विशेषण।

सिरकार :: (सं. स्त्री.) सरकार, राजा रानियों के लिए सम्बोधन।

सिरगौर :: (वि.) शिरोमणि, सिरताज।

सिरजनहार :: (सं. पु.) सृष्टि का रचयिता ईश्वर।

सिरजबौ :: (क्रि.) निराधार बात खड़ी करना बनाने के लिए व्यंग्य प्रयोग।

सिरजाबो :: (क्रि.) किसी को लड़ाई झगड़े के लिए प्रेरित कर तत्पर करना।

सिरदा :: (सं. स्त्री.) श्रद्धा, शक्ति, सामर्थ्य।

सिरदार :: (सं. पु.) राजाओं के मित्र, दरबारी।

सिरधा :: (सं. स्त्री.) श्रद्धा, किसी को श्रेष्ठता के प्रति आदरभाव, क्षमता, सामर्थ्य।

सिरनामा :: (सं. पु.) विनयपत्र का सम्बोधन, शीर्षक।

सिरनौती :: (वि. स्त्री.) तराजू की वह स्थिति जिसमें पाल वाला पलड़ा अधिक झुकता हो।

सिरपेंच :: (सं. पु.) पगड़ी, साफे के ऊपर बाँधी जाने वाली पट्टी।

सिरपैंचा :: (सं. पु.) एक जड़ी सिर का एक आभूषण।

सिरफ :: (अव्य.) सिर्फ, केवल, मात्र क्रिया विशेषण. रूप में प्रयुक्त।

सिरम :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष जिसकी लकड़ी सीशम के समान होती है।

सिरयानों :: (सं. पु.) सिरहाना, लेटने में सिर का ऊँचा रखने के लिए सिर के नीचे रखी जाने वाली वस्तु, तकिया, लेवने में सिर की तरफ का भाग।

सिरस्तौ :: (सं. पु.) लेन-देन पारम्परिक व्यवस्था पारम्परिक रूप से मिलने वाली रिश्वत।

सिरानी :: (वि.) जो गर्म से ठंडी हो गयी हो।

सिराबौ :: (क्रि.) ठण्डा करना, ठण्डा होना, तपाई हुई वस्तु का ताप कम करना या होना।

सिरी :: (सं. स्त्री.) लाल रंग का चूर्ण, सौभाग्यवती स्त्रियों के माथे पर इसकी बिन्दी लगती है, कुमकुम, बकरे के भेजे, मस्तिष्क का गोश्त।

सिरें :: (वि.) श्रेष्ठ, सबसे अच्छा उदाहरण-सिरें आबो-किसी पर किसी देवी देवता का भूत प्रेत का प्रभाव होना।

सिरोपन :: (सं. पु.) सिर से पाँव तक का पहनावा जो राज दरबार के सम्मान के रूप में दिया जाता है, खिलअत।

सिरोपाव :: (सं. पु.) सिर पर धारण करने का साफा आदि, अंगवस्त्र, सम्मानार्थ भेंट किये जाने वाले वस्त्र।

सिरौ :: (सं. पु.) छोर, शीर्ष, सबसे काटने का यंत्र।

सिरौता :: (सं. पु.) सरौता, सिपाड़ी काटने का यंत्र।

सिर्रपन :: (सं. पु.) पागलपन।

सिर्रयानों :: (वि.) पागल हुआ किसी धुन के पीछे पागलों की तरह पीछे पड़ा हुआ।

सिर्रयाबो :: (क्रि.) पागल होना।

सिर्री :: (वि.) पागल, जिसके मस्तिक का सन्तुलन खो गया हो।

सिर्रोई :: (सं. स्त्री.) पागलपन जैसी बातें या आचरण।

सिर्स :: (सं. स्त्री.) दे. सिरस।

सिल :: (सं. स्त्री.) मसाला पीसने का पत्थर।

सिलक :: (सं. स्त्री.) सिल्क, दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान में वर्तमान नगद राशि।

सिलगबौ :: (क्रि.) धीरे धीरे जलना।

सिलगाबो :: (क्रि.) अग्नि को प्रज्वलित करना, लड़ाई झगड़े के लिए प्रेरित करना।

सिलगिलौ :: (सं. पु.) एक पक्षी इसका गोश्त बदबूदार होता है किन्तु इसको खाने से दमा का रोग ठीक हो जाता है।

सिलपट :: (वि.) चिकनी सतह वाला, जिसके सब उभार घिस गये हों।

सिलबट्टा :: (सं. पु.) सिल और बट्टा।

सिलबारौ-सिलारौ :: (सं. पु.) खेत कट चुकने पर उसमें जो अनाज की बालियाँ या दाने पड़े रहते हैं उनको बीनने बाला।

सिलबारौ-सिलारौ :: (कहा.) सिलवारे खो सिबारौ नई सुहात।

सिलबिलिया :: (वि.) बेशऊर, अनजान।

सिलबो :: (सं. स्त्री.) सिला. फसल, काटने के बाद खेत में गिरे हुए दाने।

सिलयाबौ :: (क्रि.) पत्थर की सिल्ली पर उस्तरे को तेज करना, किसी को मीठी मीठी बातें करके अपना स्वार्थ साधन करने के लिए सहयोगी बनाना।

सिला :: (सं. स्त्री.) शिला, पत्थर।

सिलाखानों :: (सं. पु.) शस्त्रागार, राजाओं का शस्त्र भण्डार।

सिलाँट :: (सं. स्त्री.) चट्टान।

सिलामिली :: (सं. स्त्री.) एक पौधा जिसकी अच्छी हरी खाद्य बनती है।

सिलारी :: (सं. स्त्री.) एक किस्त के बड़े खेत में दूसरी वस्तु बो देना।

सिलारो :: (वि.) सिला बीनने वाला, फसल काटने के समय खेत में गिरे हुए दानों को बीनने वाला।

सिली :: (सं. स्त्री.) उस्तरा तेज करने का कृत्रिम पत्थर।

सिलीसट्ट :: (वि.) खूब मोटा-ताजा जिसके अंगों को मुटापे के कारण सहज संचालन न हो सके।

सिलेट :: (सं. स्त्री.) लिखने के लिए पत्थर की पट्टी आजकल पुट्टे और चद्दर की भी स्लेटें बनती है।

सिलोर, सलार के धरबो :: (क्रि. वि.) आटे को बिना घोटे सान कर रख देना।

सिलौ :: (सं. पु.) अनाज काटते समय दूर दूर गिरी हुई बालें।

सिलौटा :: (सं. पु.) मसाला, पीसने का पत्थर।

सिलौरा, सिलौटिया :: (सं. स्त्री.) सिल, सिल और बट्टा।

सिल्ली :: (सं. स्त्री.) हथियार तेज करने का पत्थर, पत्थर की छोटी पटिया पटिया आदि चीरने के चारों पालों को चौरस बनाया हुआ लकड़ी का कुन्दा।

सिल्ली :: दे. सिली भी।

सिवरात्री :: (सं. स्त्री.) फाल्गुन वदी चतुर्दशी महाशिवरात्रि।

सिवाय :: (क्रि. वि.) अलावा।

सिवालो :: (सं. पु.) शिवालय।

सिसकबो :: (क्रि. अ.) सिसकना, भीतर ही भीतर रोना।

सिसकारबो :: (क्रि. अ.) सुसकारना।

सिसकारी :: (सं. स्त्री.) सिसकारने का शब्द मुहावरा सिकारी भरबो, गहरी साँस लेना।

सिसकी :: (सं. स्त्री.) खुलकर न रोने का शब्द, मुहावरा-सिसकी न समाबा-दबे दबे बुहत रोना।

सिसन :: (सं. स्त्री.) रोशन कोर्ट।

सिसरयाबौ :: (क्रि.) गीली लकड़ी जलने के कारण उसके दूसरे सिरे पर झाग निकलना डाँट फटकार के कारण बच्चे का कुण्ठित होकर चुपचाप रहना, सहमना।

सिंसार :: (सं. पु.) संसार, जग।

सिसिया :: (सं. स्त्री.) छोटी शीशी।

सिसियाबो :: (क्रि. अ.) भय से काँपना, चुप हो जाना।

सिसिरयाउन :: (सं. पु.) गीली लकड़ी जलने से दूसरे सिरे पर उठने वाला झाग।

सिसी :: (सं. स्त्री.) काँच की छोटी शीशी।

सिसु :: (सं. पु.) बच्चा, छोटा बालक।

सिसौ :: (क्रि.) सींचा हुआ।

सिहर :: (सं. पु.) नगर, शहर।

सिहाबो :: (क्रि. अ.) ललचाना, सन्तुष्ट या प्रसन्न होना।

सिहारू :: (सं. पु.) एक सुन्दर फूल का पेंड़ हरसिंगार।

सिहुवा :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके बीज का तेज निकाला जाता है।

सी :: (सं. पु.) जीवन की रक्षा करने वाला, ईश्वर।

सी :: (वि. स्त्री.) समान, तुल्य, बराबर।

सींक :: (सं. पु.) तीली बैलगाड़ी के आधर ढाँचे के बीच की पतली बल्ली, घास का डण्ठल।

सींक :: (कहा.) सींक होकें घुसे मूसर होकें कड़े - किसी जगह थोड़ी घुसपैठ करके पूरा अधिकार जमा लेना।

सींकचा :: (सं. पु.) खिड़की में लगी लोहे की शलाखें।

सीकबौ :: (क्रि.) सोखना, धरती या किसी अन्य वस्तु में तरल का विलीन होना।

सीका :: (सं. पु.) बच्चों को सर्दी लग जाने के कारण हाँफी चलने की बीमारी, दमा।

सीकिंया :: (वि.) दुबला पतला, सींक पर लगाकर पकाया गया, कबाब, धारीदार बुनाई वाला वस्त्र।

सींकुर :: (सं. पु.) गेंहू जौ आदि की बाल की उपरी नोंक जो कड़ी और खुरदरी होती है बाल के उपरी कच्चेदाने जो दाय में भी छिलके सहित रह जाते हैं।

सींको :: (सं. पु.) छींका, दूध दही या अन्न खाद्य सामग्री को सुरक्षित करके के लिए ठाट से लटकाने का झूला।

सीख :: (सं. स्त्री.) अनुभव से मिली शिक्षा, हानि उठाकर प्राप्त हुआ ज्ञान।

सीख :: (कहा.) सीखासीख परोसन को घर में सीख जिठानियाँ की - दूसरों की बातों में आना।

सींग :: (सं. पु.) श्रृंग, पशुओं के विषाप।

सींग :: (कहा.) सींग टोर बचेरूअन में मिलबों - सींग तोड़ कर बछड़ों में मिलना, जेठाई का ध्यान न रख कर लड़कों में उठना बैठना और हँसना।

सींगा :: (सं. पु.) आयव्यय की मदें, शीर्ष, हैड।

सींगों :: (सं. पु.) सफेद मिट्टी।

सींच :: (सं. स्त्री.) सिंचाई सरकारी जल स्त्रोत से सिंचाई करने का कर।

सींचबौ :: (क्रि.) सिंचाई करना, पौधों को पानी देना।

सीज बो :: (क्रि.) उबालकर मुलायम होना, गलना, गलना, गलकर बहना, गल कर क्षरण होना, मरना।

सीट :: (सं. स्त्री.) आसन, बैठने का स्थान।

सीटी रोटी :: (सं. स्त्री.) कम सिंकी रोटी।

सीटी रोटी :: (सं. स्त्री.) सँकरे मार्ग में दबावपूर्ण वायु के निकलने के कारण सी जैसी स्वर एक खिलौना जिसकी फूँकने से सी की तर्ज आवाज निकलती है कम मीठी और पनीली विशेषण।

सीटौ :: (वि.) कम मीठा और पनीला स्वाद।

सीठो :: नीरस फीका, खाद रहित स्त्री सीठी।

सींड :: (सं. स्त्री.) सीलन, भूमि की आर्द्रता।

सींड़बौ :: (क्रि.) नमी के कारण कुरकुरे पदार्थ का कोमल होना, भूमि का नमीयुक्त होना।

सीत :: (सं. पु.) पित्ती रोग, शरीर पर ददोरा उठने और उनमें खुजली होने का रोग, पके हुए चावल का दाना।

सीता :: (सं. स्त्री.) महाराज जनक की पुत्री, भूमजा, मिथला, भगवान श्री राम की पत्नी।

सीदोकरबो :: (सं. पु.) दण्ड देकर ठीक करना, प. सीदा सब खो नीर पिआउ उन्ही होकें दीन कहाउँ।

सीदौ :: (सं. पु.) भोजन के लिए बिना पकी कच्ची सामग्री।

सीधो :: (सं. पु.) सीदो।

सींबौ :: सिलाई करना।

सीर :: (सं. स्त्री.) लंबी खेती वह भूमि जिसके उसका मालिक आप जोतना हो, खुद काश्ती।

सीरा :: (सं. पु.) गुड़ या शक्कर की चाश्नी, गुड़ की पतली लपसी, खटिया की सिर और पैर तरफ की छोटी पाटी।

सीरी :: (वि.) अपेक्षित ताप से कम ताप वाली कढ़ाई।

सीरो पोता देबो :: (क्रि. वि.) मीठी बात करके टरका देना।

सीरो पोता देबो :: (सं. पु.) सूर्यास्त या प्रभात का शीतल समय।

सीरौ :: (सं. पु.) ग्रीष्म की दोपहरी ढलने का अपेक्षाकृत ठण्डा वातावरण।

सीरौ :: (मुहा.) सीरो तबा, ऐसा तबा जो पर्याप्त गरम न हुआ हो।

सील :: (सं. पु.) सर्यादा, व्यवहार की सीमा।

सीस :: (सं. पु.) सिर, देवी अर्थो में।

सीसफूल :: (सं. पु.) माथे पर बालों के किनारे किनारे पहिना जाने वाला स्त्री आभूषण सामासिक शब्द।

सीसा :: (सं. पु.) काँच की बड़ी बोतल।

सीसोंन :: (सं. स्त्री.) शीशम का वृक्ष।

सीसौ :: (सं. पु.) सीसा, एक कुछ मटमैली तथा शीघ्र पिघलने वाली मुलायम धातु।

सुअटा :: (वि.) सुआटा, नौरता, कारबेल।

सुअटा :: (सं. पु.) दे. नौरता, नौरता की कथा के आधार पर इसका अर्थ होता है।

सुअना :: (सं. स्त्री.) सुआ, तोता।

सुँअरा :: (सं. पु. सं.) शूकर, सूअर, बाराह।

सुअली :: (सं. स्त्री.) आलस्य।

सुआँग :: (सं. पु.) स्वाँग, नकली बेशभूषा, प्रहसन।

सुआँग :: (सं. पु.) तोता।

सुआटा :: (सं. पु.) नौरता का खेल।

सुआटा :: दे. नौरता-सुअटा।

सुआपंखी :: (वि.) तोता के पंख जैसे हरे रंग का।

सुआपा :: (सं. पु.) साफा।

सुआपी :: (सं. स्त्री.) पतली तौलिया चिलम का धुँआ छन कर अन्दर जाने के लिए चिलम के नीचे लगाया जाने वाला गीला कपड़ा।

सुँआस :: (सं. स्त्री.) श्वाँस, दम फूलने की बीमारी दमा।

सुँआँसा :: (सं. स्त्री.) श्वास, जीवन के लक्षण स्वरूप श्वसन की क्रिया।

सुँआँसा :: (कहा.) जब लो सुआसा, तब लो आस।

सुई :: (सं. स्त्री.) घड़ी का काँटा, इंजेक्शन।

सुकटा :: (वि.) दुबला पतला, जिसका शरीर सिकुड़ा सा हो।

सुकड़बौ :: (क्रि.) सिकुड़ना, लम्बाई चौड़ाई में कमी होना।

सुकड़ा सिकुड़ी :: (सं. स्त्री. मुहा.) छोटा जगह में अधिक किया थोड़े साधनों से अधिक काम चलाने का प्रयास करने की क्रिया यौ. श.।

सुकपाल :: (सं. पु.) पुरानी चाल की एक प्रकार की पालकी जिसका ऊपरी भाग शिवालय के शिखर सा होता है।

सुकबार :: (वि.) कोमल।

सुकयार :: (वि.) सुखों में पला, कठिन परिस्थिति को सहन न कर सकने वाला, कोमल शरीर वाला, आराम में रहने वाला कह सुकयार बीबी भतयान कौ बोझ।

सुकयारी :: (सं. स्त्री.) आराम से रहने की आदत।

सुकर पुकर :: (सं. स्त्री.) घबराहट, टालमटूल, संदेह।

सुकरयाबो :: (क्रि. अ.) दबना, भयभीत होना।

सुकरा :: (वि.) दुबल-पतला स्त्री. सुकरी, सुकटिया।

सुकराना :: (सं. पु.) मुकद्दमा जीतने पर वकील का पारिश्रमिक के अतिरिक्त दिया जाने वाला प्रसन्नता सूचक द्रव्य।

सुकल :: (वि.) चाँदनी वाला पक्ष पखवाड़ा।

सुकी :: (सं. स्त्री.) बच्चों को होने वाला सूखा रोग।

सुकेनों :: (सं. पु.) सुखाने के लिए फैलाया जाने वाला अनाज।

सुकैया :: (क्रि.) सुखाना, नमी रहित करना।

सुक्ख :: (सं. पु.) सुख, आराम।

सुक्र :: (सं. पु.) शुक्रवार।

सुक्र :: (कहा.) शुक्रवार की रात करै नई बात लोक विश्वास है कि शुक्रवार की रात को कोई काम की बात करने से वह सफल नहीं होती।

सुक्राचार्जो :: (सं. पु.) शुक्राचार्य ऋषि, काना व्यंग्य अर्थ।

सुखी :: (सं. स्त्री.) बच्चों का सूखा रोग, सुखेड़ी।

सुखेंन :: (सं. पु.) सुषेण, लंका के राजा रावण का वैद्य।

सुगंधरा :: (सं. पु.) मोटी सफेद और धनी पंखुड़ियों वाला एक सफेद पुष्प जिससे कोई गंध नहीं होती हैं।

सुगर :: (सं. पु.) सुअर एक जंगली तथा पालतू पशु जिसे माँस, चर्बी तथा बालों के लिए पाला जाता है।

सुगर :: (वि.) चतुर, सुरूचिपूर्ण एवं व्यवस्थित ढंग से काम करने वाली पुल्लिंग. में अधिकतर चतुर के लिए प्रयुक्त।

सुगरई :: (सं. स्त्री.) चतुराई।

सुँगरा :: (सं. पु.) सुअर, एक गाली जो निः संग रहने वाले और आत्म केन्द्रित व्यक्ति को दी जाती है, ये इकल सुंगरा।

सुँगरा :: (वि.) अकेला, सुअर का संक्षिप्त रूप है।

सुँगरिया :: (सं. स्त्री.) सुँगर तथा सुँगरा का स्त्री. लिंग घरेलू सुअरों के लिए प्रचलित सामान्य शब्द।

सुगरी :: (सं. स्त्री.) घड़ी, सुघड़ी।

सुँगाबो :: (क्रि.) सुंघाना, बास से परिचित कराना, किसी बात का चुपचाप संकेत दे देना।

सुघाबो :: (क्रि.) सुँघाना।

सुचना :: (सं. स्त्री.) जानकारी।

सुचित्त :: (वि.) स्वच्छन्द, बिना रोक टोक के बाधाहीन क्रिया विशेषण।

सुजाक :: (सं. पु.) शुक्रकद पुरूषलिंग में होने वाला एक संक्रामक रोग।

सुजाबो :: (क्रि.) दिखाना, सुझाव देना।

सुजासुजो :: (क्रि. वि.) आमना-सामना, भेंट, मुलाकात।

सुजी :: (सं. स्त्री.) सुई, गेंहूँ काखादार आटा।

सुजोग :: (सं. पु.) सुयोग उचित अवसर, अच्छा मौका।

सुटई :: (सं. स्त्री.) सख्त हाथों से किया जाने वाली मालिश, पिटाई, तृष्णापूर्ण ढंग से खाने की क्रिया।

सुटकबौ :: (क्रि.) बिना चबाये निगलना, चिकनी वस्तु का हाथ से फि सलकर गिर पड़ना।

सुटकाबौ :: (क्रि. अ.) गिरा देना।

सुटयाबौ :: (क्रि.) किसी को फुसलाकर कोई वस्तु प्राप्त करना।

सुटाबौ :: (क्रि. वि.) सुरक्षित ढंग से रखना जहाँ पर आसानी से कोई खोज न सके, छुपा कर सुरक्षित करके रखना।

सुटौरा :: (सं. पु.) सद्य प्रसूता को खिलाने के लिए सौइ घी तथा मेवे डालकर तैयार किया गया पुराना गुड़।

सुट्ट :: (वि.) चुपचाप तथा बिना हिले-डुले (क्रिया विशेषण.भी)।

सुट्टा :: (सं. पु.) चिलम या बीड़ी, धुँए का कश।

सुड़याबौ, सुड़ी :: (क्रि.) आटे में सुड़ी (छोटी इल्ली)।

सुतकरा :: (सं. पु.) कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को भेजा जाने वाला वैवाहिक कार्यक्रम का औपचारिक पत्र।

सुतंतता :: (सं. स्त्री.) स्वाधीनता दिवस, आजादी।

सुतना :: (सं. पु.) सँकरी मुंहरी का पायजामा।

सुतनियाँ :: (सं. स्त्री.) मुस्लिम स्त्रियों का चूड़ीदार पायजामा।

सुतन्त :: (वि.) स्वतन्त्र, निर्वाध।

सुतन्ना :: (सं. पु.) दे. सलवार।

सुतरनाल :: (सं. पु.) ऊँटों द्वारा खीचें जाने वाली तोपें जो किसी समय युद्ध में काम आती थी।

सुतरा :: (सं. पु.) जूता या चमड़े का सामान, सीने का आँकड़ेदार सूजा।

सुतरी :: (सं. स्त्री.) सुतली।

सुतारी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी में बारीक चूल बनाने और सूक्ष्म कटाई खुदाई करने का औजार, नहान्नी।

सुतिया :: (सं. स्त्री.) गले में पहिनने का सोने-चाँदी का एक ठोस आभूषण, पतली खँगौरिया, पतली हँसली।

सुथना :: (सं. पु.) दे. सुतना।

सुथनियाँ :: (सं. स्त्री.) मुस्लिम स्त्रियों का चूड़ीदार पायजामा।

सुथन्ना :: (सं. स्त्री.) दे. सुतन्ना।

सुद :: (सं. स्त्री.) सुधि, स्मरण, होश।

सुदकरा :: (सं. पु.) कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष के यहाँ भेजे जाने वाला जिसमें विवाह का मुर्हुत आदि लिखा हो।

सुदबुद :: (सं. पु.) बुद्धि, स्मरण, याददास्त।

सुदबौ :: (क्रि.) चुपचाप निकल भागना, तेजी से दौड़ना।

सुदयाबौ :: (क्रि.) सीध बाँधना, लक्ष्य करना।

सुदरी :: (वि.) सुन्दर, सुधारी गयी।

सुदर्शन :: (सं. पु.) चिकित्सा दर्पण।

सुदाँ :: (वि.) सहित, युक्त।

सुंदाँद :: (सं. स्त्री.) सोंध गन्ध।

सुदाबो :: (सं. क्रि.) सुधवाना, शुद्ध कराना।

सुदी :: (वि.) शुक्ल पक्ष की।

सुदैबौ :: (क्रि.) दूध रखने का मिट्टी का पात्र या मिट्टी की हण्डी का उपयोग के बाद धोकर आग पर खाली चढ़ाकर थोड़ा गरम करना।

सुदो :: (वि.) सीधा।

सुद्द :: (वि.) शुद्द, पवित्र, जिसमें किसी प्रकार की असुचिता का योग न हो।

सुद्दता :: (सं. स्त्री.) मृत्यु के तीसरे दिन होने वाला शुद्धि कर्म जिसमें लीप-पोत कर कपड़े-लत्ते धोकर घर को शुद्ध किया जाता है तथा स्नान, क्षौर आदि से व्यक्ति शुद्द होते हैं।

सुद्दा :: (अव्य.) तक, सहित।

सुद्दाँ :: (क्रि. वि.) सहित, समेत, शामिल, करते हुए।

सुद्ध :: (वि.) दे. सुद्द।

सुद्धता :: (सं. स्त्री.) दे. सुद्दता।

सुध :: (सं. स्त्री.) दे. सुद।

सुनइया :: (सं. पु.) सुनने वाला।

सुनकबौ :: (क्रि.) श्वास के वेग के साथ नाक में किसी वस्तु का चढ़ाना।

सुनका :: (सं. पु.) पशुओं का एक रोग जिसमें पशु नथनों से सुन-सुन करता है। ऊपर को साँस खींचता है।

सुनकीरा :: (सं. पु.) बरसाती कीड़ा जो सुनहरे रंग का होता है।

सुनकुटिया :: (सं. स्त्री.) दे. सुनकुटियाँ, सुड़ैरौ।

सुनबहया :: (सं. पु.) सुनने की क्रिया या भाव।

सुनबैरा :: (सं. पु.) सुनीअनसुनी करने वाला।

सुनबौ :: (क्रि.) किसी ध्वनि को कानों द्वारा ग्रहण करना, ध्यान देना।

सुनबौ :: (कहा.) सुनिये सबकी करिये मन की - बात सबकी सुननी चाहिए परन्तु करना वही चाहिए जो उचित जाने पड़े।

सुनरयाई :: (सं. स्त्री.) स्वर्णकारों का बाजार।

सुनसान :: (वि.) निर्जन, जनशून्य, वीरान।

सुनसुनाबौ :: (क्रि.) सुन-सुन की आवाज करना।

सुना :: (सं. पु.) कभी-कभी नाखूँनों के आसपास उखड़ने वाले खाल के रेशे, जंगली कुत्ता (विशेषण)।

सुनाबौ :: (क्रि.) उच्चारण करके दूसरे को ग्राहना बनाना, खरी-खोटी कहना।

सुनार :: (सं. पु.) सोने-चाँदी के आभूषणों आदि बनाने का कार्य करने वाली जाति।

सुनारी :: (सं. स्त्री.) सुनारों का धन्धा।

सुन्दर :: (वि.) खूबसूरत, मन को भाने वाला, आकर्षक।

सुन्दरताई :: (सं. स्त्री.) सौन्दर्य, सुन्दरता।

सुन्न :: (सं. पु.) शून्य, अशेषता का प्रतीक, कुछ न होने की स्थिति, निस्तब्धता।

सुन्न :: (प्र.) उतै सुन्न परी ती।

सुन्न :: (वि.) निश्चेष्ट।

सुन्न :: (प्र.) सेर खों देखतनइँ हाँत-गोड़े सुना हो गए।

सुन्ननाँन :: (सं. स्त्री.) सन्नाटा, निस्तबद्धता (बलवाची प्रयोग)।

सुपड़ा :: (सं. पु.) साहस।

सुपतरियां :: (सं. स्त्री.) ग्रामीण स्त्रियों के पहनने की पुराने ढंग की चप्पलें।

सुपतरौ :: (सं. पु.) सुपतल्ला, जूते के अन्दर तल्ले पर डाला जाने वाला पतले चपड़े का तल्ला।

सुपरद :: (वि.) सुपुर्द, जिम्में, उत्तरदायित्व में, देखरेख में।

सुपरदी :: (सं. स्त्री.) सुपुर्दगी, जिम्मेदारी की स्थिति।

सुपरस :: (सं. पु.) सुपुर्द।

सुपरसीं :: (सं. स्त्री.) चापलूसी की मीठी-मीठी बातें, किसी के साथ किये गये भले का झूठा श्रेय लेने के प्रयास में की जाने वाली बातें।

सुपलाँइँ :: (सं. स्त्री.) दे. सुपरसीं।

सुपान :: (वि.) साफ और एकसा, एक से सूत का बना (वस्त्र)।

सुपुलिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सूप।

सुपेत :: (वि.) सफेद, दूधिया।

सुपेती :: (सं. स्त्री.) सफेदी, रजाई, पल्ली। सोंन-सुपेती-गद्दा पल्ली (लोक साहित्या.)।

सुपेद :: (वि.) सफेद, सुपेत (बुँ.)।

सुप्पा :: (सं. पु.) छोटी तोप जो उत्सवों आदि के अवसर पर केवल धमाके के लिए चलायी जाती थी, बड़े छेद की पिचकारी जिससे रंग फचाके के साथ गिरता था, सफ्ल पूर्ण काम।

सुप्पा :: (प्र.) उनको तौ उतै सुप्पा जम गव।

सुफल :: (वि.) सुफल, पूर्ण काम।

सुफलाई :: (सं. स्त्री.) चमक-दमक, सफलता।

सुबइया :: (सं. पु.) सोने वाला, बहुत सोने वाला।

सुबक :: (वि.) हल्का, सुन्दर।

सुबज :: (सं. पु.) टाँका लगाने का सामान।

सुबर :: (सं. स्त्री.) सब्र।

सुबर :: दे. सबर।

सुबरन :: (सं. पु.) अच्छा वर्ण, अच्छा रंग, सोना स्वर्ण।

सुबहया :: (सं. पु.) सोने वाला।

सुंबाबो :: (क्रि.) सिलाई करना।

सुबीतौ :: (सं. पु.) सुभीता, सुविधा।

सुबीदो :: (सं. पु.) सुविधा।

सुभ :: (वि.) कल्याणकारी, अच्छा फल देने का लक्षण, मांगलिक।

सुभाव :: (सं. पु.) स्वभाव, बोलचाल और व्यवहार का ढंग।

सुमन्तरा :: (सं. स्त्री.) सुमित्रा, लक्ष्मणजी की माता, राजा दशरथ की मझली रानी।

सुमन्नी :: (सं. पु.) सत्ताईस मनकों की जाप करने की छोटी माला।

सुमरन :: (सं. पु.) स्मरण, मन में याद करके प्रार्थना करने की क्रिया।

सुमरनी :: (सं. स्त्री.) दे. सुमन्नी।

सुमरबौ :: (क्रि.) प्रार्थना या रक्षा के लिए देवता का स्मरण करना।

सुमरूखा :: (सं. स्त्री.) सुश्रुषा, मानसिक सम्बल, साहस प्रदान करने वाली बातें, हिम्मत बाँधने वाली बातें चापलूसी, सेवा-सुसरूसा (शब्द युग्म), सुश्रुषा।

सुमाबौ :: (क्रि.) सिलाना।

सुमी :: (सं. स्त्री.) देखा-देखी, बराबरी, समानता।

सुमुड़िया :: (सं. स्त्री.) रस्सी की पिण्डी, समूदे की चार पिण्डियों में से एक (दे. समूदौ) मशाल में तेल डालते रहने के लिए लम्बी नोंक पर छेद वाली कुपिया।

सुमेर :: (सं. पु.) माला के सूत्र के दोनों सिरों के मिलाकर उस पर पोया (डाला) गया लम्बा गुरिया (मनका) देवताओं का सोने का पर्वत जाप करके समय उसका उल्लघन नहीं किया जाता है, वहाँ से माला लौटायी जाती है, देवताओं का सोने का पर्वत।

सुम्म :: (सं. पु.) घोड़े की टाप।

सुम्मवाँ :: (वि.) सोमवती (अमावस्या) सुम्मवाँ (अमाउस)।

सुम्मवार :: (सं. पु.) सोमवार सप्ताह का प्रथम दिवस।

सुम्मा :: (सं. पु.) धातु में छेद करने की लोहे की बड़ी नोंकदार छेनी।

सुम्मी :: (सं. स्त्री.) हल्के कामों के लिए छोटा सुम्मा।

सुर :: (सं. पु.) स्वर लयात्मक स्वर, आवाज, अन्तःकरण की आवाज, अन्तःकरण की आवाज नाक के नथुने से निकलने वाली वायु, मैल, सौहार्द।

सुरई :: (सं. स्त्री.) मन्दिर का शिखर, सोलह कौणियों से खेला जाने वाला जुए का खेल।

सुरक :: (सं. स्त्री.) ठण्डी हवा जो धीर-धीरे बहती है।

सुरका :: (सं. पु.) जिस जमीन में वर्षा ऋतु में पानी भरा रहता हो ऐसे तालाबों की पिछारे में पैदा होने वाला एक कन्द, इसे उबालकर या भूनकर खाया जाता है।

सुरकी :: (सं. स्त्री.) दे. सुरक।

सुरक्क :: (क्रि. वि.) सुर्ख गहरा लाल।

सुरक्क :: (प्र.) सुरक्क लाल।

सुरक्का :: (सं. पु.) नारंगी या लाल रंग की काँच की चूड़िया, चुभने जैसी लगने वाली बहुत ठण्डी हवा।

सुरखी :: (सं. स्त्री.) चूने के गारे में मिलाने के लिए ईटों का चूना, लालामी।

सुरंग :: (वि.) लाल रंग, लुभावने रंग में रँगी हुई, अच्छा, भींजत सुरंग चुनरिया (लो.गी.)।

सुरजन :: (सं. पु.) समस्या का निदान खोजने वाला (लोक.में प्रयुक्त)।

सुरजा :: (सं. स्त्री.) देवकन्या, अप्सरा-सी सुन्दर (विशेषण.) कोंन सखी मोरी सुरजा बेटी (नोंरता का लोक गीत.)।

सुरजाबौ, सुरझाबौ :: (क्रि.) सुलझाना, निवारण करना, हल निकालना।

सुरबुराबौ :: (क्रि.) पोपलें मुँह में चबाने जैसी क्रिया, धीरे-धीरे करना, दाँतों से चबाये बिना किसी चीज को मुँह में इधर-उधर करके स्वाद लेना।

सुरमई :: (वि.) सुरमा जैसा, स्लेटी, सफे दी, नीला, काला मिला हुआ।

सुरमा :: (सं. पु.) आँखों में लगाने का औषधिक अंजन।

सुरया :: (सं. पु.) झाड़ियाँ काटने के लिए लम्बी डण्डी का हँसिया।

सुररबो :: (क्रि. अ.) सीध मिलाना।

सुररबो :: (क्रि. स.) मारने के लिए लाठी या कोई हथियार सामने करना।

सुरसरी :: (सं. स्त्री.) सनसनाहट, सुगबुगाहट, हलकी उत्तेजना।

सुरसुराबौ :: (क्रि.) खटमल आदि शरीर पर इस तरह चलना कि उससे शरीर पर हल्की खुजली या बेचैनी का आभास हो।

सुरसुवाँ :: (सं. पु.) दे. सरसुँआँ।

सुरहिन :: (सं. स्त्री.) पहाड़ी गाय, मादा, याक, देवताओं की गऊ।

सुरा :: (सं. पु.) महालक्ष्मी पूजन के लिए बनाये जाने वाले छोटे-छोटी ठेंटरा भी।

सुराँचो :: (सं. पु.) बढ़ई का एक औजार जिस पर चढ़ा कर काठ गोल तथा साफ किया जाता है।

सुराज :: (सं. पु.) स्वराज्य, स्वतंत्रता।

सुराजी :: (सं. पु.) स्वतंत्रता के सेनानी काँग्रेसी (पुराना अर्थ)।

सुराँती :: (सं. स्त्री.) दीपावली पूजन के समय दीवार पर बनायी जाने वाली सोलह खण्डों की अल्पना जिसकी रेखाएँ धन के चिन्हों को जोड़कर बनायी जाती है।

सुरारी :: (सं. स्त्री.) एक छोटा कीड़ा जो जानवरों के शरीर से चिपक कर उनका रक्त चूसा करता है।

सुरियाँ :: (वि.) छोटी-छोटी आँखों वाला।

सुरू :: (सं. पु.) शुरूआत, प्रारम्भ, प्रारम्भिक स्थिति।

सुरूरा :: (सं. पु.) कुत्तो तथा गाय बैलों का रक्त पीने वाला एक परजीवी कीड़ा।

सुरूरा :: दे. मिडूला।

सुरेब :: (सं. पु.) कपड़े की एक प्रकार की सीधी काट, यौगिक. औरेब-सुरेब।

सुर्र :: (सं. स्त्री.) छड़ के आकार की एक आतिशबाजी जो सुर्र की आवाज के साथ एक ही दिशा में स्फुलिंग फेंकती है।

सुर्रक :: (सं. स्त्री.) दे. सुरक।

सुर्रा :: (सं. पु.) सादा टाँकों वाली मोटी सिलाई।

सुलफा :: (सं. पु.) चिलम में रखकर धूम्रपान करने की गुड़ और खमीरा मिली सुगन्धित तम्बाकू।

सुलयाबो :: (स. क्रि.) खुशामद करना।

सुलै :: (सं. स्त्री.) सुलह, राजीनामा, वैमनस्य को भुलाकर मित्रभाव की स्वीकृति।

सुसकारबौ :: (क्रि.) बहुत छोटे बच्चों को टट्टी-पेशाब के लिए सू-सू करके प्रेरित करना।

सुसाबौ :: (क्रि.) गहरी नींद में सोना, खर्राटे भरना, सोने के लिए व्यंग्यात्मक प्रयोग।

सुसाबौ :: (कहा.) तला तौ खुदो नइँयाँ, मगर सुसान लगे - योजना क्रियान्वित होने के पूर्व फल का उपभोग करने की तैयारी करना।

सुस्तई :: (सं. स्त्री.) फुरसत, अवकाश का समय।

सुस्ताबौ :: (क्रि.) क्षणिक विश्राम।

सुस्ती :: (वि.) निश्चिन्तता, फारिंग।

सुस्ती :: (सं. स्त्री.) सुस्ती।

सुहद्रा :: (सं. स्त्री.) श्रीकृष्ण की बहिन सुभद्रा।

सुहसव :: (सं. पु.) स्वभाव।

सुहसव :: दे. सुभाव।

सुहाग :: (सं. पु. स्त्री.) का सौभाग्य अहवात, पति के जीवित रहने की अवस्था, एक रसायन जो सोने-चाँदी पर टाँकि लगाने तथा औषधियों के काम आता है।

सुहागन, सुहागिल :: (वि.) सधवा, जिस स्त्री का पति जीवित हो, सौभाग्यवती।

सुहागलें :: (सं. स्त्री.) सौभाग्य की देवी (गौरी) का व्रत। व्रत करने वाली महिला अन्य सधवा स्त्रियों को प्रातः काल या पूर्व दिवस आमन्त्रित करती है वे भी उपवास रखती है और आमंत्रित महिला के घर आकर उसके साथ गौरी पूजन करती है, गौरी का प्रतीकात्मक चित्र पान या पीपल के पत्ते पर बनाया जाता है तथा उसके पूजन के समय पान, बूँदा, कुमकुम, रोली, हल्दी आदि सौभाग्य वस्तुँए उसको अर्पित की जाती हं, इन्हीं वस्तुओं से आमंत्रित सुहागनों का सत्कार कर भोजन कराया जाता है।

सुहागी :: (सं. स्त्री.) पत्थर की प्याली जिसमें सुनार सुहागा घोलकर रखते हैं।

सुहातो :: (वि.) अच्छा लगने वाला, सहने योग्य।

सुहाबौ :: (क्रि.) अच्छा लगना, पसन्द आना।

सुहार :: (सं. स्त्री.) चौखट के उतरंगे के ऊपर की लकड़ी या पत्थर की पट्टी जो पटाव के रूप में रक्खी जाती है, इसमें किवाड़ की ऊपर की चूल के छेद होते हैं।

सुहारी :: (सं. स्त्री.) पूड़ी।

सुहारी :: (कहा.) हाती कौ पेट सुहारिन से नइ भरत।

सुहावनों :: (वि.) शोभायमान, चित्ताकर्षक, मन को प्रफुल्लित करने वाला वातावरण।

सुहिरदी :: (सं. पु.) सुख-दुख के साथी मित्र, अभिन्न मित्र।

सूकड़ पापड़ :: (सं. स्त्री.) बासी, तिबासी, रोटी -पूड़ी या अन्य पकवान जो सूखकर कड़ा हो गया (यौगिक शब्द.)।

सूकबौ :: (क्रि.) सुखना, आर्द्रतामुक्त होना।

सूकर :: (सं. पु.) पेड़ के नीचे पड़े सूखे पत्ते आदि कूड़ा करकट ऐसी वस्तु जो सूखकर बेकार हो गई हो या सुकर -साकर।

सूका :: (सं. पु.) अनावृष्टि की दशा, अनावृष्टि के अकाल जैसी स्थिति, दुबले-पतले व्यक्ति के लिए विशेषण एक लक्षणामूलक नाम।

सूकौ :: (वि.) आर्द्रताहीन, नमी रहित, वर्षा अतिरिक्त मौसम।

सूकौ :: (कहा.) सूकौ-रूखौ लाड़ मोरी मौसी करें छिनक-छिनक दोई कौरे भरें।

सूकौ :: (कहा.) सूके आम पै टुइयाँ नई बैठत, तोता का बच्चा अथवा मादा तोता, सूखे आम पर टुइया नहीं बैठती, क्योंकि वहाँ कुछ खाने को नहीं मिलता।

सूँगा :: (सं. पु.) भेदिया, जासूस, थोड़े से संकेत से अनुमान लगाने वाला।

सूज :: (सं. स्त्री.) सई, सिलाई करने का साधन।

सूज छिनबो :: सुई का डोरा धारण करने वाला छेद टूट जाना।

सूजन :: (सं. स्त्री.) चोट या फोड़ा-फुन्सी के कारण शरीर पर हुआ उभार, शोध।

सूजबौ :: (क्रि.) सूजन होना, दिखना, भविष्य की दिशा समझ में आना।

सूजबौ :: (कहा.) सजै न सूजबै, आगोंनी दिखा लिआव।

सूजा :: (सं. पु.) बोरे आदि सीने की बड़ी सुई।

सूजापाट, पाटी :: (सं. पु.) चंदा पौवा की तरह का एक खेल जो बारह गोटो से खेला जाता है।

सूजी :: (सं. स्त्री.) इंडेक्शन, गेहूँ का रबा।

सूजौ :: (सं. पु.) दे. सूजा।

सूट :: (सं. पु.) कोट-पैण्ट।

सूँटँउ :: (क्रि. वि.) चुपचाप, दबे पाँव।

सूँटबौ :: (क्रि.) दबाब देकर मालिश करना, जमकर खाना, जमकर पीटना।

सूटर :: (सं. पु.) स्वेटर, ऊँनी बनयान जो कमीज के ऊपर पहिनी जाती बै।

सूँटाँ :: (क्रि. वि.) सूँटँऊँ, तुरन्त, चुपचाप।

सूँड़ :: (सं. स्त्री.) हाथी की लम्बी नाक, इसी आकृति की अन्य वस्तु के लिए भी प्रयुक्त।

सूँड़ा :: (सं. पु.) सूँड़ की आकृति की भूमि जो नदी या नदी की धार के बीच में हो।

सूँड़ाबौ :: (क्रि.) पीटना, आघात करना।

सूत :: (सं. पु.) कपास का पतला धागा।

सूत :: (कहा.) सूत पौनो, कोरी सें लठमलठा - बिना कारण लड़ाई।

सूतक :: (सं. पु.) अपवित्र समय, मृत्यु के बाद तेरह दिन का समय, ग्रहणपर्व का ज्योतिष के अनुसार कुछ समय।

सूतरी :: (सं. स्त्री.) जूट या सन की पतली रस्सी।

सूती :: (वि.) कपास के सूत का बना।

सूतौ :: (सं. पु.) दे. सूत।

सूद :: (सं. स्त्री.) सीध, क्रम, एकांगी चिन्तन।

सूदरौ :: (वि.) शान्त, जो ऊधम न मचाता हो।

सूदा :: (वि.) विवेकहीन, दूसरों की बातों में तुरन्त आ जाने वाला।

सूदे :: (वि.) अनुकूल, क्रि, वि, लगातार सामने की दिशा सीधे।

सूदौ :: (वि.) सीधा, जिसमें कोई आड़-टेड़ न हो, सुगम।

सूदौ :: (कहा.) सूदी उँगरियन घी नई निकरत - सीधी बातों से काम नहीं निकलता।

सूधो :: (वि.) सीधा, सरल।

सूनर :: (वि.) एकान्त, सन्नाटा, घर में किसी का न होना।

सूनर :: (मुहा.) सूनर परबो -निर्जनता हैना।

सूँनर :: (सं. स्त्री.) जनहीनता की स्थिति, सुनसान।

सूनों :: (वि.) जनहीन, जहाँ काई व्यकि न हो।

सूनों :: (कहा.) सूनों घर, भैड़यन कौ राज।

सूप, सूपा :: (सं. पु.) सूर्प, सूपा, अनाज फटकारने का बाँस का बना छिछला पात्र।

सूप, सूपा :: (कहा.) सूप में कऊँ सूरज ढकत हैं - सूप में भी कहीं सूर्य ढ़कता है।

सूप, सूपा :: (कहा.) सूप बोलै तो बोलै, चलनी का बोलै, जीमें बहत्तर छेद - जो स्वयं अवगुणों से भरा है वह भी दूसरों के दोष देखे तो यह हँसी की बात है।

सूबरी :: (सं. स्त्री.) घटिया मिलावट वाली चाँदी। खोटा सोना।

सूबा :: (सं. पु.) प्रदेश।

सूबी :: (सं. स्त्री.) ताँबे के मेल की चाँदी जो खनकदार और कड़ी होती है।

सूबेदार :: (सं. पु.) हैड कान्स्टेबिल से थोड़ा ऊँचा पुलिस का एक पद, सेना का एक नॉन-कमीशण्ड पद।

सूम :: (सं. पु.) कृपण, लोभी, जिसमें खर्च करने की हिम्मत न हो।

सूर :: (सं. पु.) पेट का तेज दर्द, उदरशूल, खेत की झाड़-झंकाड़ काटने की क्रिया, वीर।

सूरज :: (सं. पु.) सूर्य।

सूरज :: (कहा.) सूरज को दिया बताउत - सूर्य को दीपक बताते है।

सूरजमुखी :: (सं. स्त्री.) एक तेल-बीजों वाला बड़ा फूल जो पूर्व की ओर झुका रहता है।

सूरजमुखी :: (वि.) ऐसा व्यक्ति जिसकी चमड़ी तथा बाल आँख की बरोंनियों सहित सफेद होते हैं तथा वह सूर्य के प्रकाश में आँखें नहीं खोल पाता है।

सूरत :: (सं. स्त्री.) दिखावट, शक्ल, आकृति, बनक।

सूरती :: (सं. स्त्री.) तम्बाकू का सुखाया हुआ पत्ता, तम्बाकू।

सूरन :: (सं. पु.) एक जमी कन्द जिसका शाक एवं अचार बनता है जो उदर रोगों के लिए लाभकारी होता है।

सूरा :: (वि.) अन्धा।

सूरा :: (कहा.) सूरा खौदै काँदी बैर गिनें न आँदी।

सूर्त :: (सं. स्त्री.) दे. सुद, सुध।

सूल :: (सं. पु.) पेट की पीड़ा।

सूल :: (मुहा.) सूल उठबो -पेट में दर्द होना।

सूली :: (सं. स्त्री.) मृत्युदण्ड देने का पुराना साधन (सीमित एवं लोक साहित्य. में प्रयुक्त)।

सूसनी :: (सं. पु.) एक रंग जो लाल और नीले रंग की मिलावट से बनता है, कासनी रंग।

से :: (कारक) से करण कारक का चिन्ह।

सेंआँन :: (सं. पु.) स्वार्थपूर्ण, चतुराई।

सेंआँन :: दे. सिआँन।

सेंआनों :: (वि.) दे. सिंआँनों।

सेई :: (सं. स्त्री.) सेही एक जानवर जिसके शरीर पर लम्बे-लम्बे काँटे होते हैं, यह अपनी रक्षा के लिए इन काँटों के खड़ा कर लेती है सेउआ।

सेउआ :: (सं. पु.) एक चर्म रोग, इसमें चेहरे, गर्दन, छाती, पीठ आदि पर भूरे खुरदरे धब्बे हो जाते हैं और उसमें खुजली होती है।

सेउआ :: (कहा.) दाद, खाज, सेउआ, ऐ कोड़ जोउआ।

सेंउँआँ :: (सं. पु.) लाल सरसों की जाति का एक तेलबीज।

सेंउरौ-सेंवरा :: (वि.) कम पका हुआ मलिन।

सेंउरौ-सेंवरा :: (स्त्री.) सेंउरी सेंवरी।

सेंउरौ-सेंवरा :: (प्र.) रोटी सेंउरी है -रोटी अच्छी तरह सिकी नहीं, सेंअरो पर जाबो -चेहरे का रंग बिगड़ जाना।

सेओ :: (वि.) ऐसा (हल) जो जमीन में अधिक गहरा न चलता है।

सेंकबो :: (क्रि. वि.) आग पर या उसके सामने रखकर गरमी पहुँचाना।

सेंके :: (सं. पु.) शरीर को बाहरी साधन से दी जाने वाली ऊष्मा।

सेख :: (सं. पु.) मुसलमानों की एक उच्च जाति।

सेखी :: (सं. स्त्री.) स्वयं की बहादुरी की चर्चा (बहु वचन. में प्रयुक्त)।

सेंग :: (सं. पु.) बराबरी।

सेंगबों :: (सं. क्रि.) सेंध लगाना।

सेंगर :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक उपजाति।

सेंगरें :: (वि.) मूली की फलियाँ (बहु वचन. में प्रयुक्त)।

सेंगी :: (वि.) सम्पूर्ण, पूरी (वस्तु)।

सेंगौ :: (सं. स्त्री.) पूर्ण जिसके किसी भाग को अलग न किया गया हो।

सेज सँजूली :: (सं. स्त्री.) सुहागिन।

सेज सँजूली :: (सं. स्त्री.) राजाओं या देवताओं की शैया।

सेजवारी :: (सं. पु.) राजाओं की शैया बिछाने वाला।

सेजो :: (सं. पु.) सुभीता।

सेजो :: (मुहा.) सेजो लगाबो सुविधा पड़ना टी.।

सेजौ :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके फल घोंट चमड़ा पकाने के काम आते हैं, व्यवस्था, इन्तजाम।

सेट :: (सं. पु.) श्रेष्ठि, सेठ, वैश्यों के लिए आदरवाची सम्बोधन।

सेंट :: (क्रि.) थन से निकलने वाली दूध की धार।

सेंटबौ :: (वि.) मान्यता देने, किसी का सम्भ्रम स्वीकार करना।

सेंटा :: (सं. स्त्री.) मुफ्त में चलाने के प्रयास में रहने वाला।

सेठ :: (सं. पु.) दे. सेट, गहोई वैश्यों का एक आँकना।

सेंड़ :: (क्रि. वि.) एक प्रकार का कन्द।

सेंड़र :: (क्रि.) सिंचाई का पानी जाने की नली।

सेंड़िया :: (सं. पु.) लकड़ी के सार भाग के चारों तरफ की लकड़ी जिसका रंग सार से भिन्न होता है।

सेत :: (सं. पु.) पुल, बाँध, मर्यादा।

सेंत :: (वि.) मुफ्त में।

सेंत :: (कहा.) सेंत कौ चंदन घिस मोरे नन्दन।

सेंत :: दे. मुफ्त कौ चंदन।

सेंतबौ :: (क्रि. वि.) बहुत सुरक्षित रखना, बहुत समय तक बचाकर रखना।

सेंतमितउअल :: (सं. पु.) मुफ्त में होने वाला (काम)।

सेंतमेंत :: (सं. पु.) बिना मूल्य दिये, मुफ्त में।

सेंतयितौरा :: (सं. स्त्री.) मुफ्त -खोरा।

सेंतालीस :: (सं. पु.) चालीस और सात के योग की संख्या।

सेंती :: (सं. स्त्री.) बर्छी, भाला।

सेंतुआ :: (सं. क्रि.) मुफ्तखोरा, सेंटा।

सेंतो :: (वि.) एक वृक्षा।

सेंथी :: (सं. स्त्री.) दे. सेंती।

सेंद :: (सं. स्त्री.) चोरी करने के लिए दीवार चोड़कर बनाया हुआ छेद, सुरंग।

सेंदिया :: (वि.) सेंध लगाने वाला, दीवार में छेद करके चोरी करने वाला।

सेंदुर :: (सं. पु.) सिन्दूरी।

सेंदुरिया :: (सं. पु.) एक सदाबहार पौधा, एक प्रकार का आम जो पकने पर कुछ-कुछ लाल रंग का हो जाता है।

सेंदुरिया :: (वि.) लाल या सिन्दूर रंग का।

सेंदो :: (सं. पु.) खान में से निकलने वाला नमक, संधा।

सेंधों नोंन :: (सं. पु.) एक नमक।

सेंन :: (सं. स्त्री.) शयन, (देवताओं और राजाओं के लिए प्रयुक्त) सोने की क्रिया, कचरियों की एक बड़ी जाति, आँख का इशारा, आजकल नाई जाति के लोग सेंन को उपनाम के रूप में भी इस्तेमाल करने करने लगे है।

सेंन बोट :: (सं. पु.) साइनबोई, नाम फलक।

सेंनयाबौ :: (क्रि.) आँखों से संकेत करना।

सेंना :: (सं.) सेंना, फौज।

सेंनाकाँनी :: (सं.) इशारों से भावनाओं या विचारों का आदान-प्रदान करने की क्रिया (योगिक शाब्द.)।

सेंनोटी :: (सं. स्त्री.) पैजना बनाने का सुनारों का एक औंजार।

सेंपबौ :: (क्रि.) देर तक रोते रहने के बाद हिचकियाँ भरना।

सेब :: (सं. पु.) नाशपाती की तरह का एक प्रसिद्ध फल तथा उसका वृक्ष।

सेबक :: (सं. पु.) सेवा करने वाला, परिचर्चा करने वाला।

सेबती :: (सं. स्त्री.) सफेद गुलाब।

सेबार :: (सं. स्त्री.) शैवाल, जल में पैदा होने वाली एक घास।

सेबारे :: (सं. पु.) शिवहरे सेहारे कलारों की एक उपजाति जो बुन्देलखण्ड में वैश्यों के तुल्य मानी जाती थी।

सेबौ :: (क्रि.) सहन करना, बरदाश्त करना, शर्तबदना।

सेबौं :: (क्रि.) पक्षियों का अण्डों पर बैठकर अपने शरीर के ताप से उनके अंदर के बच्चों को पूर्णता प्रदान करना, सेवना करना, वर्द्धमान करना।

सेबौं :: (कहा.) जिन्दगी भर सेई कांसी, मरन गये मघा की पाठी।

सेंम :: (सं. स्त्री.) एक फलियाँ जिसकी शाक बनती है, जल सेमें -जल मछली।

सेंमयाबौ :: (क्रि.) किसी कुरकुरी वस्तु या नमी के प्रभाव से मुलायम हो जाना।

सेंमर :: (सं. पु.) सेंमल, शाल्मी, एक वृक्ष जिसकी लकड़ी माचिस की तीलियाँ बनाने के काम आती है।

सेंमा :: (सं. पु.) सेंम की बड़ी किस्म जिसमें बीज कम होते है।

सेय :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की फली जिसकी तरकारी बनती है।

सेयात :: (अव्य.) शायद, कदाचित।

सेर :: (सं. पु.) व्याघ्र, सिंह, वीर पुरूष, निडर व्यक्ति।

सेर :: (कहा.) सेर कों सवा से मिलई जात - सेर को सवा सेर मिल ही जाती है, चालाक के साथ उससे अधिक चालाकी करना वाला मौजूद रहता है।

सेरा :: (सं. पु.) वे फूलों की लड़ियाँ जो दूल्हे और दुल्हन के सिर पर बाँधी जाती है और मुँह पर लटकती रहती है सेहरा।

सेल :: (सं. पु.) एक प्रकार की खड़िया जिसे बारीक पीसकर और सफेद के साथ पानी में मिलाकर बर्तनों पर बेलबूटे बनाते है।

सेलखरी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकारी का अस्त्र, साँग, भाला।

सेली :: (सं. स्त्री.) दीवाली पूजन के बाद जो पूजा की जाती है और उनके गले में से सन की रंगीन लट का बना गण्डा बाँधा जाता है यह सेली कहलाता है बछड़ों के गलें में पहिनाया जाने वाला सन का बना सुन्दर पट्टा गले में पहिना जाने वाला सुनहरा, धागा।

सेव :: (सं. पु.) बेसन की बनी हुई तथा तेल में तली हुई बतियाँ, नमकीन पकवान।

सेंवरा :: (वि.) मलिन, ज्योतिहीन, कम पका हुआ।

सेंवरा :: (सं. स्त्री.) सवेरी।

सेंवरा :: (मुहा.) सेंवरो पर जाबो -चेहरे का रंग बिगड़ जाना।

सेंवरिया :: (वि.) सारहीन (रवेत) ऐसा खेत जिसे वर्षा की जुताई के पश्चात पानी न मिले।

सेवा :: (सं. स्त्री.) परिचर्चा।

सेवा :: (कहा.) सेवा करौ तो मेबा मिले।

सेस :: (सं. पु.) गणितीय क्रिया भाग के अंत में बची अविभाजित संख्या, बाकी नाग जिसके फ न पर धरती टिकी मानी जाती है बचा हुआ अंश।

सेस :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

सेहुआ :: (सं. पु.) दे. सेउआ।

सेंहुँआँ :: (सं. पु.) दे. सेंउँआ।

सै :: (सं. स्त्री.) शह, दूसरे के बल का सहारा, बढ़ावा, उत्तेजित करने की क्रिया, शतरंज के खेल में बादशाह पर मार की स्थिति।

सैं :: करण कारक अपादान कारक परसर्ग से।

सैंउर :: (सं. स्त्री.) खेत में पानी देने के लिए बनायी गई नाली।

सैकरयाँव :: (क्रि. वि.) सैकड़े की गिनती के हिसाब से।

सैकरा :: (वि.) एक सौ की इकाई, सैकड़ा।

सैंकरा :: (सं. पु.) सौ का ढेर।

सैंकरा :: (क्रि. वि.) सैकरयावँ।

सैका :: (सं. पु.) एक सौ बोझों का ढेर।

सैंगर :: (सं. पु.) बबूल की फली, सेम, मूली की फली क्षत्रियों की एक जाति।

सैंगरौ :: (सं. पु.) लँहगें का एक वस्त्र जो मउरानीपुर का प्रसिद्ध रहा है।

सैंगो :: (वि.) पूरी, सम्पूर्ण।

सैज :: (वि.) सहज, सामान्य, समय संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त।

सैजयाबो :: (क्रि. स.) उकसाना, कान भरना, बहकाना।

सैंटा :: (सं. पु.) स्वयं कभी न खिलाकर दूसरे का खाने वाला।

सैत :: (सं. पु.) एक घास।

सैंतबौ :: (सं. क्रि.) संचित करना, समेटना, सहेजना।

सैंतालीस :: (वि.) चालीस और सात।

सैंतालीस :: (पु.) चालीस और सात की संख्या।

सैंती :: (सं. स्त्री.) दे. सेंती।

सैंतीस :: (वि.) तीस और सात।

सैंतीस :: (पु.) तीस और सात की संख्या।

सैन, सैंन :: (सं. स्त्री.) मादा पशुओं की मूत्रस्थली, एक अच्छी किस्म की घास, संकेत, इशारा।

सैनभगत :: (सं. पु.) एक जाति।

सैनाकानी :: (सं. स्त्री.) इशारेबाजी।

सैनाकानी :: (सं. स्त्री.) इशारेबाजी।

सैनापत :: (सं. पु.) एक जाति।

सैनापत :: (सं. पु.) सेनापति, सेनानायक।

सैनार :: (सं. स्त्री.) सोने का कमरा, शयन कक्ष।

सैनैया :: (सं. स्त्री.) मुँह से फूँ ककर बजाया जाने वाला वाद्य, शहनाई, नफीरी।

सैयद :: (सं. पु.) आल्हा का एक पात्र।

सैंया :: (सं. पु.) स्वामी, पति, मालिक।

सैयाउ :: (सं. स्त्री.) दे. सियाउ।

सैयाउ :: (सं. स्त्री.) खटिया तथा पूरा बिस्तर जो किसी व्यक्ति की त्रयोदशी के समय दान किया जाता है।

सैर :: (सं. स्त्री.) दो खेतों की बारी, बाड़ के बीच से बनी हुई बैलगाड़ी निकालने योग्य रास्ता।

सैर :: (सं. पु.) शहर।

सैरयाबो :: (क्रि. अ.) पागलपन की बात करना।

सैरे :: (सं. पु.) एक प्रकार के वर्षा गीत।

सैरो :: (सं. पु.) चाचर से खेलते हुए नृत्य, एक बुन्देली लोक गीत।

सैरोट :: (सं. पु.) पागलपन।

सैल :: (सं. स्त्री.) जुँए से बैलों की गर्दन को बाहर निकलने से रोक रखने के लिए लगाई जाने वाली लकड़ी की डण्डी, बैटरी सैल।

सैल गस्ती :: (सं. स्त्री.) मन चला घूमने की क्रिया, फालतू घूमने की क्रिया।

सैलरी :: (सं. स्त्री.) सहेली, वेतन।

सैला :: (सं. पु.) दे. सनकुटिया, सड़ैरो।

सैला नाँच :: (सं. पु.) पुरूष नृत्य, जिसमें डंडियाँ लेकर नृत्य किया जाता है।

सैलानी :: (वि.) मनमाना घूमने फिरने वाला।

सैलाबो :: (क्रि.) कुछ मिलाकर मात्रा बढ़ा देना, किसी वस्तु से अपेक्षा से अधिक काम चल जाना, उच्छृंखल व्यवहार करना।

सैली :: (सं. स्त्री.) सहचर समवयस्क लोगों की मण्डली।

सैंहयी :: (सं. स्त्री.) बरछी, सैंती।

सो :: (सर्व.) वह।

सो :: (अव्य.) इसलिए।

सो :: (वि.) समान भाँति।

सों :: कारक-कर्मकारक का चिन्ह।

सोआबो :: (सं. क्रि.) सुलाना, सोने के लिए प्रेरित करना।

सोई :: (सर्व.) वही, सोही।

सोउ :: (अव्य.) भी, अवश्य।

सोउत :: (क्रि.) सोना, नींद आना।

सोउत :: (क्रि.) सोउत नार जगाउत-सोता हुआ नाहर जगाते हैं, बैठे बिठाये विपत्ति मोल लेते है, सोउत बरें जगाउत-सोती बर्रे जगाते हैं।

सोंक :: (सं. पु.) शौक, बनठन कर रहने की आदत किसी आदत के प्रति विशेष आकर्षण, सुरूचि।

सोंकारे :: (अव्य.) तड़के सबेरे, समय के कुछ पहले, जल्दी।

सोंकिया :: (वि.) शौक करने वाला, शौकीन, सुरूचि सम्पन्न।

सोकौ :: (सं. पु.) सूक्ष्म छिद्र।

सोंगरी :: (सं. स्त्री.) बराबरी।

सोगी :: (सं. स्त्री.) कन्या के दरवाजे बारात ले जाने के पूर्व कन्या के लिए वस्त्र, आभूषण तथा अन्य सहेलियों और सौभाग्यशाली स्त्रियों के लिए भेजी जाने वाली सौभाग्य सामग्री काजल, बिन्दी, महावर, कंघी आदि।

सोच :: (सं. पु.) चिन्ता, फिक्र।

सोचबो :: (क्रि.) चिन्तन करना, विचार करना।

सोंज :: (वि.) मिलकर, हिस्सेदारी की शर्त पर।

सोंज :: (कहा.) सोंज कौ बाप लड़इयन खाओं - साझे के बाप को सियार खाते हैं, अर्थात साझे का काम सदैव बिगड़ता है, साझे की हंडी चौराहे पर फूटे।

सोजनों :: (सं. पु.) सहजन का वृक्ष।

सोंजनो :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी फली की तरकारी बनती है, सहजन।

सोंजयाई :: (सं. स्त्री.) किसी के साथ हिस्सेदारी की शर्त के साथ काम करने की क्रिया।

सोंजिया :: (सं. पु.) साझेदार, सहभागी, हिस्सेदार।

सोंट :: (वि.) चुप निःशब्द रहने की स्थिति।

सोंट विसवार :: (क्रि.) सोंठ, पीपरामूर इत्यादि मिला हुआ आटा जो प्रसूता को खिलाया जाता है।

सोंटबौ :: (क्रि.) लकड़ी के उबड़-खाबड़ सिरे को कुल्हाड़ी या बसूला से काट कर समतल करना, पीटना, काटकर कम करना।

सोंटा :: (सं. पु.) लकड़ी का कम लम्बा मजबूत डण्डा।

सोंटा :: (कहा.) सोटा लँगोटा से - जैसे कोई हाथ में लकड़ी लेकर और लँगोट पहिन कर घूमता है उस तरह फक्कड़ बन घूमना, खाली हाथ फिरना।

सोंटोंइँ :: (सं. पु.) मुफ्तखोरी की आदतें।

सोंठ :: (सं. स्त्री.) दे. सोंठ।

सोंड़-लोड़ :: (वि.) एक सा, सामान।

सोड़र :: (वि.) बुद्धिहीन।

सोड़र :: (सं. पु.) मूर्ख जिसमें किसी बात को समझकर धारण करने की क्षमता न हो कपड़े धोने का सोड़ा।

सोंड़रौ :: (सं. पु.) सर्वनाश।

सोंडलोड़ :: (वि.) मोटापे के कारण जिसके शरीर की आकृति विकृत हो गयी हो यौगिक शब्द।

सोड़ा :: (सं. पु.) सोड़ा, सोडाबाइकार्बन, सोडियम कार्बोनेट, सोड़ा बाटर।

सोंडेरा :: (सं. पु.) दे. सौंड़रौ।

सोंड़ो :: (सं. पु.) नदी किनारे की बलुआर मिट्टी वाली उपजाऊ भूमि।

सोत :: (सं. पु.) नदी झरने आदि का उद्मगम स्थान, स्त्रोत, सोता, झरना।

सोता :: (सं. पु.) कहीं से निकलकर बराबर बहने वाली जल की छोटी धारा, झरना, नहर।

सोतौ :: (सं. पु.) विवाह की तिथियों के ज्योतिष सम्मत निर्णय की कन्या पक्ष की ओर से भेजी जाने वाली औपचारिक सूचना का पत्र।

सोदनी :: (सं. स्त्री.) मारण आदि अभिचार करने वाली स्त्री।

सोंदनी :: (सं. स्त्री.) रँहट की भोंरी और भौंरा को संयुक्त रूप से चलाने वाले सलइया पटिया घूमने के लिए गड्ढा।

सोंदबो :: (क्रि.) सोना, नींद लेना व्यंगात्मक प्रयोग।

सोदबौ :: (क्रि.) शोधन करना, छानबीन कर साफ करना, किसी अनाज में से कूड़ा कंकड़ निकालना, पंचाग देखकर किसी मांगलिक कार्य के लिए मुहूर्त निकलना।

सोदा :: (सं. पु.) खरीद, बेची, वाणिज्य वस्तु, माल उदाहरण-सोदा पटबो-भाव या दाम ठीक होना, क्रय विक्रय का मामला तय होना। सोदा पटाबो-भाव या दाम ठीक करना, क्रय विक्रय का।

सोधन :: (सं. पु.) दे. सोदन।

सोधनी :: (सं. स्त्री.) दे. सोदनी।

सोधबौ :: (क्रि.) दे. सोदबौ।

सोन :: (सं. पु.) सुन्ना सोन, स्वर्ण।

सोंन :: (सं. पु.) अक्ती, अक्षय तृतीया को अन्याओं के द्वारा बाँटा जाने वाला पलाश की कोंपलों या पानी और शक्कर के शर्बत में फु लाये हुए देवलों चने की दाल का प्रसाद, दशहरे को शुभकामना के प्रतीक स्वरूप परस्पर भेंट की जाने वाली समीवृक्ष की पत्तियाँ, जीना, सीढियाँ।

सोन हलुआ :: (सं. पु.) मेवे घी, चीनी, आदि के मेल से बनाई गयी एक प्रसिद्ध मिठाई।

सोनार :: (अ.) पूर्णतया, पूरा-पूरा।

सोंनारो :: (सं. पु.) सुहागरात का नेग।

सोनी :: (सं. पु.) सुनार।

सोंनी :: (सं. पु.) सुनार, स्वर्णकार, सुनार के लिए आदरवाची सम्बोधन।

सोनीकिया :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक पटा।

सोनो :: (सं. पु.) स्वर्ण, सोना, कंचन उदाहरण-सोनो बरसबो-बहुत अधिक धन प्राप्त होना, सोने की चिरैया-जिससे बहुत अधिक धन प्राप्त हो।

सोनो :: (कहा.) सोने में सुगंध - अच्छे में और अच्छाई।

सोनो :: (कहा.) सोने में सुहागा - अच्छा संयोग जुटना, सुहागा सोने को और उज्जवल बनाता है।

सोनो :: (कहा.) सोनों छुएँ माटी होत - अभागे कर्महीन के लिए कहते है।

सोनो :: (कहा.) सोनों बिगरो सुनार घर, बिटिया बिगरी बाप घर - सोना सुनार के घर जाने से बिगड़ जाता है, वह उसमें खोट मिलाये बिना नहीं रहता, उसी प्रकार लड़की भी बाप के घर रहने से बिगड़ती है, क्योंकि मायके में उस पर विशेष नियंत्रण नहीं रह पाता।

सोंनो :: (सं. पु.) सोना, स्वर्ण, एक बहुमूल्य धातु।

सोंन्नी :: (सं. पु.) सोंर जाति की स्त्री, सोंरनी का संक्षिप्त रूप।

सोंपबो :: (क्रि.) सुरक्षा के प्रति सचेत करते हुए हस्तातरित करना।

सोंफ :: (सं. स्त्री.) मुंह का स्वाद ठीक करने और मसाले के काम आने वाला एक बीज।

सोंफयारौं :: (वि.) सोंफ जैसी, सुगंध वाला आम।

सोफानी :: (वि.) देखने में मादा, परन्तु अतिप्रिय और सुन्दर।

सोबरन :: (वि.) सुवर्ण सुन्दर सोने जैसा रंग।

सोबा :: (सं. स्त्री.) शोभा, प्रभा कान्ति, चमक सौन्दर्य छवि।

सोबैया :: (वि.) सोने वाला, जिसे अधिक नींद आती है।

सोबौ :: (क्रि.) सोना, विश्राम के लिए नींद लेना, बेखबर रहना।

सोभा :: (सं. स्त्री.) शोभा, सुन्दरता।

सोमती अमास :: (सं. स्त्री.) सोमवती आमस्या सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या जो पुण्य तिथि मानी जाती है।

सोमवार :: (सं. पु.) सातो वारों में से एख जो रविवार और मंगल के मध्य पड़ता है चंद्रवार।

सोयरे :: (सं. पु.) सोहर, संतानोत्पत्ति के अवसर पर गाये जाने वाले मंगल गीत।

सोर :: (सं. स्त्री.) बच्चे के जन्म के कारण तीन चार दिन तक परिवार में माना जाने वाला अशौच।

सोंर :: (सं. पु.) शबर, एक आदिवासी जाति का पुरूष।

सोंरनी :: (सं. स्त्री.) सोंर स्त्री।

सोरा :: (वि.) सोलह, दस और छह के योग की संख्या।

सोरा :: (कहा.) सोरा हात की सारी, आदी जाँग उगारी - फूहड़ स्त्री के लिए।

सोरा :: (सं. पु.) एक रसायन जो बारूद बनाने में काम आता है इसको गर्म करने से आक्सीजन गैस निकलती है। अश्विन मास में महालक्ष्मी व्रत रखने वाली स्त्रियों द्वारा सोंलह लोटे दूर्वायुक्त जल से स्नान करने की क्रिया सोरा ढारबौ।

सोरासिंगार :: (सं. पु.) स्त्रियों का पूरा श्रृंगार जिसके अन्तर्गत शरीर में उबटन लगाना स्नान, सुन्दर वस्त्र बाल संभारना काजल आदि शामिल है।

सोंरिया :: (सं. पु.) दे. सौर।

सोला :: (सं. पु.) पवित्रता पूर्ण आचरण पूजा के समय पहिना जाने वाला रेशमी अधोवस्त्र।

सोलासारी :: (सं. स्त्री.) १६ कंकड़ों का एक खेल।

सोस :: (सं. पु.) दे. सोच चिन्ता, फिक्र दुख पश्चाताप।

सोंसनयाँ :: (वि.) शौच करने या आबदस्त लेने के काम आने वाला घड़ा या बायाँ हाथ।

सोंसबो :: (क्रि.) शौच करना, मलत्याग के पश्चात पानी से मलद्वार धोना।

सोसबौ :: (क्रि.) किसी विषय पर मन में कुछ विचार करना, चिन्ता या फिक्र करना दे. सोचबौ।

सोंसर :: (वि.) समतल।

सोसा :: (सं. पु.) स्त्रोत, अनुमान के लिए संकेत।

सोहबौ :: (क्रि.) शोभित होना, सुन्दर दिखना।

सोहरे :: (सं. पु.) बच्चों के जन्म के समय गाये जाने वाले गीत।

सोहाबटी :: (सं. स्त्री.) चौखट के उपर का भाग।

सौ :: (वि.) एक सौ की ईकाई पचास और दो के गुणनफल की संख्या, जैसा।

सौ :: (कहा.) सौ डंडी एक बुन्देलखंडी - सौ डंडेवालो अथवा कसरती जवानों की बराबरी एक बुंदेलखंडी करता है।

सौ :: (कहा.) सौ बक्का, एक लिक्खा - सौ बकवादी एक लिखनेवाले के बराबर होते है।

सौ :: (कहा.) सौ बातन की बात - अर्थात सारांश की बात।

सौ :: (कहा.) सौ बेर चोर की एक बेर साव की - चालाक आदमी कई बार अपराध करके भले ही बच जाय, परन्तु कभी न कभी पकड़ा ही जाता है और अपनी चालाकी का दंड पाता है।

सौ :: (कहा.) सौ मारें और एक न गिनें - निकम्मे के लिए।

सौ :: (कहा.) सौ सौ जूता खायें तमासी घुसके देखें - लड़ाई झगड़ों की परवा न करके जबर्दस्ती तमाशा देखने वालों पर व्यंग्य।

सौं :: (प्रत्य.) करण और अपादान कारक की विभक्ति, सों।

सौं :: (सं. स्त्री.) से द्वारा सोगन्ध।

सौक :: (सं. पु.) दे. सोंक।

सौंक :: (सं. पु.) शौक।

सौंक :: दे. सोंक।

सौकार :: (वि.) सुकाल, निर्धारित समय से पहिले प्रातः काल का समय।

सौकिया :: (वि.) दे. सोंकिया।

सौंकिया :: (सं. पु.) शौक करने वाला।

सौंगद :: (सं. स्त्री.) शपथ, कसम।

सौगी :: (सं. स्त्री.) दे. सोगी।

सौज :: (सं. स्त्री.) दे. सोंज।

सौंजनो :: (सं. स्त्री.) दे. सोजनों।

सौंजिया :: (सं. पु.) दे. सोंजिया, मिलकर काम करने वाले।

सौंडरा कर देबौ :: (क्रि.) सत्यानाश कर देना।

सौंड़ारा सौंडरो :: (सं. पु.) एकसा, बराबर, चौपट।

सौंडो :: (सं. पु.) तराई की भूमि।

सौत :: (सं. स्त्री.) सह पत्नी, पति की दूसरी पत्नी।

सौतन :: (सं. स्त्री.) सौत, संपत्ति।

सौतेला :: (वि.) सौत से उत्पन्न, जिसका संबंध सौत के रिश्ते से ही।

सौदा :: (सं. पु.) बाजार से खरीदी जाने वाली सामग्री।

सौंदो :: (वि.) सोंधा, सौन्धव, नमक।

सौंप :: (सं. स्त्री.) सौंफ।

सौंपबो :: (क्रि. स.) सौंपना।

सौंय :: (सं. स्त्री.) सौगन्ध, कसम, शपथ।

सौंर :: (सं. पु.) एक पिछड़ी जाति, जंगलीशिकारी।

सौराबो :: (सं. क्रि.) सहलाना, धीरे धीरे मलना, गुदगुदाना।

सौंरी :: (सं. स्त्री.) शबर जाति की स्त्री, रामायण में वर्णित शबर जाति की एक भक्त नारी शबरी।

सौहरो :: (सं. पु.) सन्तान होने पर गाये जाने वाले मंगल गीत, सोहर।

स्त्रावनी :: (सं. स्त्री.) श्रावण की पूर्णिमा को पंचगव्य ग्रहण करने की रीति।

स्त्रोती :: (सं. पु.) श्रेत्रिय, ब्राह्मणों का एक आस्पद।

स्बाँती :: (सं. स्त्री.) सत्ताईस नक्षत्रों में से पन्द्रहवाँ नक्षत्र।

स्याई :: (सं. स्त्री.) स्याही, लेखन द्रव।

स्याउ :: (सं. स्त्री.) दे. सिआउ, सैआउ।

स्यात् :: योजक स्याद, शायद।

स्यान :: (वि.) सिआँन, सेआन।

स्यानों :: (वि.) दे. सियानों, सेआनों।

स्याबासी :: (सं. स्त्री.) शाबासी, प्रोत्साहन वाक्य।

स्याम :: (सं. पु.) कृष्ण भगवान।

स्याम :: (सं. स्त्री.) लाठी के सिरे पर लपेटी जाने वाली धातु की पट्टी ताकि लाठी फटे नहीं खाम।

स्यामा :: (वि.) काली गाय, बैंगनी रंग की तुलसी।

स्यारी :: (सं. स्त्री.) दे. सियारी।

स्यों :: योजक सहित।

स्योंरौ :: (वि.) कम पका हुआ मिट्टी का बरतन, कम सिकी हुई रोटी पूड़ी आदि क्योंरी।

स्वाँग :: (सं. पु.) प्रहसन, किसी का वेष धारण करके विदूषक बनने की क्रिया, विचित्र वेशभूषा करने की क्रिया।

स्वामीजू :: (सं. पु.) जगन्नाथ जी सामासिक. शब्द।

स्वास्थ्य :: (सं. पु.) स्वार्थ, अपना हित, स्वारथ।

स्वाहा :: (वि.) जलकर राख हुआ, आहुति के बाद बोला जाने वाला शब्द।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का ऊष्म वर्ण, इसका उच्चारण कण्ठ्य है।

हआँ :: (नि.) स्वीकृति का निपात।

हउआ :: (सं. पु.) एक काल्पनिक राक्षस जो बच्चों को डराने के काम आता है।

हओ :: (अव्य.) हाँ।

हक :: (सं. पु.) अधिकार, दस्तूरी।

हकइया :: (सं. पु.) जानवरों को हाँकने वाला, शिकार में ढोल बजाकर तथा हल्ला-गुल्ला करके जानवरों को एक विशेष दिशा में भगाने के लिए विवश करने वाला, शिकारी के सहायक।

हकनी :: (सं. स्त्री.) डण्डा जिसके एक सिरे पर कील लगी रहती है या चमड़े की कई पट्टियाँ लगी रहतीं हैं जो बैलों को हाँकने के काम आता है, एक प्रकार का चाबुक।

हँकनी :: (सं. स्त्री.) हाँकने की लकड़ी।

हकबाबो :: (सं. क्रि.) हाँक लगाना, पुकारना, चौपायों को आवाज देकर हटबाना।

हँकबाबो :: (स. क्रि.) हाँकना, पुकारना, चौपायों को किसी के द्वारा भगवाना।

हँकबैसर :: (सं. पु.) हाँकने वाला व्यक्ति।

हकलकोरबो :: (सं. क्रि.) हिलाना, झकझोंरना।

हकलबो :: (अ. क्रि.) भगाना, हाँकना।

हकला :: (वि.) अचक-अचक कर बोलने वाला।

हकलाबो :: (क्रि.) अचक-अचक कर बोलना।

हँका :: (सं. पु.) शेर के शिकार में उसे घेर कर लाने वाला।

हकाई :: (सं. स्त्री.) शिकार में ढोल पीटकर और शोर मचाकर जानवरों को उस दिशा में भागने को विवश करने की क्रि या जिसमें शिकारी होते हैं।

हँकाई :: (सं. स्त्री.) हाँकने की क्रिया या भाव, हाँकने की मजदूरी।

हकीकत :: (सं. स्त्री.) असलियत।

हकीम :: (सं. पु.) युनानी पद्धति की दवा करने वाला वैद्य।

हक्क :: (सं. पु.) अधिकार, स्वत्व प्राप्त करने का कानूनी अधिकार, उपयोग।

हक्क :: (प्र.) कोऊ के हक्के तो लगै।

हक्क-बक्क :: (सं. स्त्री.) आश्चर्य चकित होने की क्रिया, भयभीत होने की क्रिया।

हक्क-बक्क :: (प्र.) ऊनें देखतनइँ ऊ की हक्क-बक्क भूल गयी।

हक्कनाक :: (क्रि. वि.) नाहक, व्यर्थ, जो किसी के काम न आ सके।

हगइया :: (सं. पु.) हगने वाला (एकवचन तथा बहुवचन), मलत्याग करने वाले।

हगनों :: (सं. पु.) दस्त लगने का रोग।

हगनोंट :: (सं. स्त्री.) हगाहगी, एक के बाद एक टट्टी जाने की क्रिया, गन्दी जगह जहाँ जगह-जगह मैला पड़ा हो।

हगनोंटी :: (सं. स्त्री.) दे. हगनोंट।

हगनौड़ा :: (सं. स्त्री.) वह भूमि जहाँ बच्चों की शौच कराया जाता है।

हँगबो :: (क्रि.) सौच करना, टट्टी करना, मल निष्कासित करना।

हगबौ :: (क्रि.) मलत्याग करना।

हगबौ :: (मुहा.) हग भरबौ-डर जाना (ला.क्षणिक अर्थ.)।

हगा :: (वि.) अधिक टट्टी जाने वाला, गन्दा, डरपोंक।

हगा :: (कहा.) हगा लड़इया (यौद्धा), छींट कौ बागौ।

हगाबौ :: (क्रि.) टट्टी कराना।

हगालुहार :: (वि.) एक राजधानी जाति।

हगास :: (सं. स्त्री.) मलत्याग की इच्छा, पाखाना जाने की हाजत।

हगासौ :: (वि.) जिसको मलत्याग की इच्छा हो।

हगासौ :: (मुहा.) हगासे से गये मुतासे से आये-बेमन से गये आये।

हगौड़ा :: (वि.) बहुत हगने वाला, बार-बार शौच जाने वाला।

हग्गू :: (सं. स्त्री.) टट्टी जाने की क्रिया, मैला, टट्टी जाने की इच्छा (बच्चों से कहने का शब्द)।

हजम :: (सं. पु.) भोजन के पचने की क्रिया, अन्याय से किया।

हजम्मों :: (सं. पु.) एक जगह जुड़ी हुई भीड़, हुजूम।

हजरत :: (सं. पु.) चालक (बुरा मनुष्य)।

हजार :: (वि.) सहस्त्र, सौ गुणे, दस का गुड़नफल।

हजारा :: (सं. पु.) फौबारा, छिड़काव करने का उपकरण एक हजार छन्दों या वस्तुओं का समूह।

हजारिया :: (वि.) बहुत सारी पंखुड़िया वाला (फूल)।

हजारी :: (वि.) हजारों (वर्षों) की (उम्र), बहुत पंखुड़ियों वाला फू ल)।

हजारो :: (सं. स्त्री.) बुरे चरित्र वाली स्त्री, एक गाली।

हजूर :: (सं. पु.) हुजूर, मालिक, स्वामी, श्रीमान आदि के अर्थ में प्रयुक्त।

हजूरी :: (सं. पु.) सदा साथ रहने वाला, व्यक्तिगत सेवक।

हजो :: (सं. स्त्री.) निन्दा, अपमान।

हज्ज :: (सं. पु.) मक्का-मदीना की यात्रा।

हज्जारन :: (वि.) हजारों (बलवाची प्रयोग)।

हट :: (सं. स्त्री.) जिद, तीव्र आग्रह, हठ।

हटक :: (सं. स्त्री.) रोक, बर्जन।

हटकाबौ :: (क्रि.) रोकना, मना करना, बरजना।

हटबारौ :: (सं. पु.) वह स्थान जहाँ पर हाट (अस्थायी बाजार) लगता हो।

हटबो :: (अ. क्रि.) हटना।

हटारे :: (सं. पु.) हाट में क्रय-विक्रय के लिए जाने वाले।

हटीलौ :: (वि.) जिद्दी, अपनी इच्छा पूर्ति के लिए अड़ जाने वाला, हठीला।

हट्टा :: (नि.) किसी की बात को झूठ मान कर भागने का आज्ञावाची निपात।

हट्टो-कट्टो :: (वि.) निरोग, हट्ट-कट्टा, बलवान।

हठ :: (सं. स्त्री.) दे. हट।

हठना :: (क्रि.) अड़ियल।

हठी :: (वि.) जिद्दी।

हठीलौ :: (वि.) दे. हटीलौ।

हड़ :: (सं. पु.) परेशान होने का भाव।

हड़ :: (मुहा.) हड़ जाबो, ऊब जाना।

हड़काबर :: (सं. पु.) एक प्रकार की काली मिट्टी जिसमें गेहूँ, चना इत्यादि होते हैं।

हड़गिल्ला :: (सं. पु.) बगले की जाति का एक पक्षी।

हड़जुरू :: (सं. स्त्री.) एक बेल जिसके पत्ते पीसकर टूटी हुई हड्डी पर लगाये जाते हैं।

हड़पबौ :: (क्रि.) किसी और की वस्तु को हजम कर जाना, किसी की वस्तु को अनाधिकार दबा लेना।

हड़फूटन :: (सं. स्त्री.) शरीर में होने वाला दर्द, शरीर में ऐंठन सी होने के कारण बैचेनी (यौगिक शब्द.)।

हड़बड़याबौ :: (क्रि.) उत्तेजना एवं घबराहट में जल्दबाजी करना।

हड़बड़ाबो :: (क्रि.) किसी उत्तेजना के कारण पूर्ण जल्दबाजी करना।

हड़बड़ी :: (सं. स्त्री.) उतावली।

हड़बो :: (अ. क्रि.) हैरान होना।

हड़रा :: (सं. पु.) हाड़।

हँडस :: (सं. स्त्री.) हठ।

हड़सबौ :: (क्रि.) प्रेमपूर्वक जिद करना, ठुनकना।

हड़सीलो, हड़सैला :: (वि.) हठी।

हड़ा :: (सं. पु.) पानी भरने का नीचे चौड़ा तथा ऊपर कम चौड़ा पीतल का पात्र।

हँड़ा :: (सं. पु.) पानी रखने का पीतल या ताँबे का बड़ा बर्तन, हड़ा।

हड़ारी :: (सं. स्त्री.) बैल जुता हुआ हल जो मिट्टी में धँसा रहने के कारण खड़ा हो, यदि वह गिर कर आड़ा हो जाए तो उसको हड़ारी कहा जाता है, इसको अशुभ माना जाता है, इस कारण उसके हलवाहे को नारियल फोड़कर, प्रायश्चित करना पड़ता है।

हँडिया :: (सं. स्त्री.) दाल आदि का पकाने का मिट्टी का बर्तन, छोटी हांड़ी।

हँड़िया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन, शीशे की झाड़-फानुस, भोजन पकाने का मिट्टी का पात्र, हण्डी।

हड़ीलौ :: (वि.) जिसके शरीर पर हड्डियों का उभार दिखता हो।

हडुआ :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी लकड़ी वजन में बहुत हल्की होती है।

हँड़ेरो, हँतेरौ, हैतेला :: (सं. पु.) हाथ से ही मिट्टी के बर्तनों को गढ़ने वाला कुम्हार।

हड़ौरा :: (सं. पु.) मरे हुए पशुओं की हड्डियाँ, हड्डियाँ (बलवाची प्रयोग)।

हड्डा :: (सं. पु.) दे. हड़ौरा।

हड्डी :: (सं. स्त्री.) शरीर का वह कड़ा भाग जिसमें उसका ढाँचा बनता है, उदाहरण-हड्डी गारबो-बहुत अधिक परिश्रम करना।

हण्टर :: (सं. पु.) चमड़े की पट्टियों में बुना कोड़ा, एक आतिशबाजी।

हण्डा :: (सं. पु.) तिपाई या खम्भों पर लटकाई जाने वाली गैस की लालटेन, जिसके ऊपर तेल की टंकी होती है।

हण्डी :: (सं. स्त्री.) गोश्त की हड्डी।

हण्डी :: (प्र.) उनके इतै आज तौ हण्डी पकरई।

हतक :: (सं. स्त्री.) बेइज्जती।

हतचलइ :: (सं. स्त्री.) आँख बचाकर चुरा लेने की क्रिया।

हतनाल :: (सं. स्त्री.) हाथी की मादा, हथिनी।

हतफ, हतपबू :: (वि.) हाथ की बनी रोटी।

हतफ, हतपबू :: (सं. पु.) वह रोटी जो हाथ से पथकर बनायी गयी हो।

हतफूल :: (सं. पु.) एक प्रकार का गहना, जो हथेली की पीठ पर पहना जाता है।

हतफेर, हतफेरा :: (सं. पु.) अदला-बदली, हत, उधार।

हतयाउन :: (सं. स्त्री.) छोटे रजबाड़ों में हाथी खरीदने के लिए लगाया जाने वाला विशेष कर।

हतयाबौ :: (क्रि.) कपटपूर्वक किसी विशेष वस्तु का अधिकार करना, हाथ में लेना।

हतयार :: (सं. पु.) हथियार, शस्त्र, औजार।

हतलोई :: (सं. स्त्री.) विवाह में टीका के बाद कन्या की माँ वर को लेने दरवाजे पर आकर उसे अँगूठी पहनाती है तथा घी शक्कर से भरी हुई कटोरी पर आटे की लोई जिसमें रूपया, अँगूठा आदि बीच में रखी रहती है, वर का हाथ पकड़कर कन्यादान के लिए ले जाती है, इसी रस्म को हतलोई कहा जाता है।

हता :: (सं. पु.) पशु, हाथ, सहारा।

हता :: (मुहा.) हता देबौ-सहारा देना।

हते :: (अ. क्रि.) होता का भूतकालिक रूप।

हतेली :: (सं. स्त्री.) हथेली, करतल।

हतो :: (अ. क्रि.) होना का भूतकालिक रूप थे।

हतोंनया :: (सं. पु.) प्रायः हाथ में रहने वाली वस्तु, (डण्डा, थैला आदि)।

हतोंनया :: (वि.) जिसे गोद या हाथों-हाथों रहने की आदत पड़ गई हो ऐसा (बच्चा)।

हतौ :: (क्रि.) दे. हतो, था (भूतकालिक सहायक क्रिया)।

हँतौड़ौ, हँतोरो :: (सं. पु.) धातु ईंट, लोहा आदि पीटनें, ठोकने के काम आने वाला लोहे का औजार, हथौड़ा।

हतौरा :: (सं. पु.) हथौड़ा, लोहा आदि धातुओं को आघात में चपटा करने का साधन।

हतौरिया :: (सं. स्त्री.) बारीक काम करने के लिए छोटा हथौड़ा।

हत्त :: (सं. पु.) हाथ, कर।

हत्ता :: (सं. पु.) किसी वस्तु (हथियार आदि) को पकड़ने वाला भाग, मुठिया।

हत्ता-चुट्टी :: (सं. स्त्री.) छीना-झपटी (यौगिक शब्द.)।

हत्ती :: (सं. पु.) हाथी (बलवाचक प्रयोग)।

हत्या :: (सं. स्त्री.) किसी को जान से मारने की क्रिया, जान से मारने का पाप, हत्या-हराम की कमाई, पाप कर्मो से उपार्जित धन।

हत्याई :: (सं. स्त्री.) हत्या, करने वाली स्त्री, हत्यारिन।

हत्यारौ :: (वि.) हत्या करने वाला, क्रूर, अत्यन्त दुखदायी।

हथलोई :: (सं. स्त्री.) दे. हतलोई।

हथा :: (सं. पु.) गीला भात, महेरी, खिचड़ी, दलिया आदि जिसे चबाने की आवश्यकता न हो।

हदबन्दी :: (सं. स्त्री.) सीमाकंन, खेतों की पत्थर गड्डी (सामासिक शब्द.)।

हद्द :: (सं. स्त्री.) हद, सीमा।

हननैं :: (सं. पु.) डंडे से मारना।

हनबौ :: (क्रि.) मारना, आघात करना।

हनबौ :: (प्र.) (दो लट हनतनइँ बे आड़े हो गये) अड़ना, डट जाना।

हनमान :: (सं. पु.) (सं.हनुमत) राम के एक परम भक्त और सुग्रीव के मंत्री हनुमान, महावीर।

हनाबौ :: (क्रि.) अड़ाना, कठिन, अवरोध खड़ा करना (भौतिक अर्थ)।

हनुमान :: (सं. पु.) अंजनेय, पवनसुत, बजरंगबली, किष्किन्धा के राजा सुग्रीव के मंत्री, बल के देवता, श्रीराम के दूत, सेवक तथा सीता जी का पता लगाने वाले।

हनेक :: (क्रि. वि.) जोर से, मजबूती से।

हपत :: (वि.) फ्लैश के जुए में अपने ताशों की गिड्डी पर रख कर बाजी से बाहर हुआ।

हपत :: (क्रि.) ताशों को चाल से बाहर करना।

हपाई :: (सं. स्त्री.) हाँफी, श्रम के कारण हुई श्वास की तीव्र क्रिया।

हपाबौ :: (क्रि.) असामान्य गति से साँस चलना।

हप्प :: (वि.) खाना, दूसरे के हिस्से का खाना, चुप रहने का निपात।

हप्पूँ :: (सं. स्त्री.) नोंरता के अंतिम दिन नवमी को रात में चौंकों (अल्पनाओं) पर बैठकर नोंरता खेलने वाली बालिकाएँ पकवान या मिष्ठान खाती है, उदाहरण-मोरी गौर कौ पेट पिराँनों सारे नउआ हप्पूँ, कहकर कौर मुँह में डालती है, इसी को हप्पू कहते है।

हबन :: (सं. पु.) तिल, जवा, चावल, घी तथा शक्कर तथा सुगन्ध औषधियाँ अग्रि में डालकर देवताओं को अर्पित करने की क्रिया।

हबर-हबर :: (क्रि. वि.) उतावली।

हबा लगाबो :: (क्रि.) प्रभाव पड़ना, प्रेताविष्ट होना।

हबा लगाबो :: (सं. स्त्री.) वायु, पवन, बयार, उकसावा।

हबा लगाबो :: (कहा.) हवा कौ रूख परखबो - समय की गति को देखना।

हबा लगाबो :: (कहा.) हवा से लड़बी - झगड़ालू प्रवृत्ति का होना।

हबाई :: (सं. स्त्री.) आभा, रौनक, चेहरे पर परिलक्षित भावनाएँ, आधारहीन बातें।

हबादार :: (वि.) जिसमें हवा आने-जाने के लिए खिड़कियाँ हों।

हबाल :: (सं. पु.) हाल, वर्णन (आल्हा गायकी की प्रसिद्ध पंक्ति) महा. इत की बातें इतँइँ छोड़कें, आँगे कौ तुम सुनों हबाल।

हबालती :: (सं. पु.) जेल में बन्द वे कैदी जिन पर मुकद्दमा चल रहा हो।

हबालदार :: (सं. पु.) सिपाहियों की छोटी टुकड़ी का प्रमुख, सफाई, कामगारों का मुखियां या मेट।

हबालात :: (सं. स्त्री.) थाने में बना अस्थायी कैदखाना।

हबालें :: (क्रि. वि.) उत्तरदायित्व में, जिम्मेवारी में।

हबालौ :: (सं. पु.) विवरण, संदर्भ, जो प्रामाणिकता के लिए दिया जाए।

हबेली :: (सं. स्त्री.) जागीरदार, जमींदार या साहूकारों के रहने का बड़ा आवास जिसका परिसर भी हो, जहाँ वाहन या जानवरों को रखने और आने-जाने वालों को पर्याप्त स्थान हो, बुन्देलखण्ड के उरई (जालौन) तथा हमीरपुर जिलों का क्षेत्र।

हबोकबौ :: (क्रि.) खाना, बुरी तरह से खाना, तृष्णापूर्वक बड़े-बड़े और अध चबायें कौर जल्दी-जल्दी खाना।

हब्बा-डब्बा :: (सं. पु.) बच्चों का एक रोग।

हम :: (सर्व.) ग्राम्य बुंदेली में (मैं) का बहुवचन, शिष्ट बुंदेली में (मैं) का पर्यावाची।

हम :: (कहा.) हम का गदा चराउत रय - हम क्या गधे चराते रहे अर्थात् हम क्या निरे मूर्ख हैं।

हम :: (कहा.) हम फूटे तुम जाँजरे हरई के भेंट लो - हम फूटे है और तुम जर्जर, धीरे से भेंट लो, किसी मामले में परस्पर झगड़ा न करने और आसानी से काम निकाल लेने के लिए कहते हैं।

हम :: (कहा.) हमें कौन तुमसें मूसर बदलवॉने - हमें तुमसे क्या मतलब, तुम्हरारे बिना हमारा कोई काम अटका नहीं रहेगा, विवाह में घर से चलते समय वर के सिर पर से मूसल निकालने की प्रथा बुन्देलखण्ड की सभी जातियों में प्रचलित है। कहावत उसी पर आधारित है, एक स्त्री दूल्हा के पीछे खड़ी हुई दूसरी स्त्री को सिर से मूसल देती है और वह फि र उसे लौटा देती है। इस प्रकार सात बार मूसल बदला जाता है।

हमओ :: (सर्व.) हमारा, हम का सम्बन्ध कारक रूप।

हमन :: (सर्व.) हम, मैं बहुवचन, हमलोग, हम औरे, मैं और अन्य।

हमल :: (सं. पु.) गर्भ, उदर में पल रही सन्तान। हमाऑ, हमाराँ, हमाव, हमाई-सर्व. हमारा, मेरा।

हमाए :: (सर्व.) हमारे, हम का संबंध कारक रूप।

हमेल :: (सं. स्त्री.) दे. टक्कयाउर, मुहरों या कलदारों में कुन्दा जोड़कर तथा डोरें में गूँथ कर बनाया जाने वाला गले का आभूषण।

हमेल :: (कहा.) नाक नंगी गरे हमेल।

हमेव :: (सर्व.) हम का सम्बन्ध कारक रूप हमारा।

हमेस :: (सं. पु.) हमेशा, सदा, वर हमेस ऐसोई देखत।

हम्माली :: (सं. स्त्री.) बोझ ढोने वाला, बोझ ढोने का काम, पल्लेदारी।

हयाँ :: सर्व यहाँ।

हर :: (सं. पु.) हल, भूमि को जोतने-बोने का यन्त्र, महादेव, शंकर।

हर :: (वि.) प्रत्येक।

हर :: (कहा.) हर हाँक भूकन मरें, बाबा लाडू खायँ - जी तोड़ परिश्रम करने वाले तो भूखो मरते हैं और निठल्ले मौज उड़ाते है।

हर जोतबो :: हल चलाने का काम करना।

हर ढीलबो :: बैलों को हल के जुए से मुक्त करना।

हरअओ, हरआ :: (वि.) हलका, कम बजनी।

हरइया :: (सं. स्त्री.) हल का कूँड़ निकालकर बाँटें गये खेत के लम्बे लगभग दस बारह हाथ चौड़े भाग।

हरई हरें :: (अव्य.) धीरे-धीरे, हरें-हरें।

हरकबौ :: (क्रि.) दूसरे की सुख-समृद्धि से ईर्ष्या करना, अन्तर के ईर्ष्या भाव का आह के रूप में प्रकट करना।

हरचट, हरछट :: (सं. स्त्री.) हरषष्ठि, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठि तिथि, बलराम का जन्मदिवस।

हरजाई :: (सं. स्त्री.) व्यभिचारिणी स्त्री, (एक गाली) कुल्टा, दुश्चरित्र, हड़जाई।

हरजानों :: (सं. पु.) क्षतिपूर्ति।

हरतान :: (सं. पु.) गंधक और संखिया मिलाकर बनाया जाने वाला पीला जलीय रंग तथा नाटक के पात्रों के मुँह पर लगायी जाने वाली पीली बुकनी, हड़ताल, कामबन्दी, अत्यन्त कडुआ स्वाद।

हरदम :: (सर्व.) सदा, हर समय, जब देखो तब।

हरदिया :: (सं. पु.) पीलिया रोग, कामला रोग जिसमें आँखें नाखून पीले पड़ जाते हैं तथा पाचन शक्ति कमजोर हो जातें है तथा पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और हल्दी की तरह पीली पेशाब आती है।

हरदी :: (सं. स्त्री.) हल्दी, एक जड़ जो मसाले और औषधियों के काम आती है।

हरदौल, हरदौर :: (सं. पु.) ओरछा के प्रसिद्ध राजा वीरसिंह देव के प्रथम पुत्र, बुंदेलखण्ड के गाँव-गाँव में इनको ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है, विवाह में हर प्रकार की मूर्ति के लिए इनकी मनौती की जाती है।

हरधर :: (सं. पु.) बलराम, हलधर।

हरन :: प्रत्यय इत्यादि का अर्थ द्योतक प्रत्यय (व्यक्तिवाचक संज्ञा के साथ (हरन) तथा।

हरन :: (सर्व.) के साथ (औरन) प्रत्यय का प्रयोग होता है।) जैसे-राम हरन लै हम औरन नें।

हरन :: (सं. पु.) चुरा लेने, दूर करने की क्रिया।

हरनाकस :: (सं. पु.) हिरण्यकश्यपु और अदिति का पुत्र और प्रसिद्ध भक्त पहलाद का पिता जिसे विष्णु ने नरसिंह रूप में खम्भे से प्रकट होकर मारा था।

हरनाच्छ :: (सं. पु.) हिरण्यकश्यपु का भाई जिसे विष्णु ने वराह का रूप धारण कर मारा था।

हरबाहा :: (वि.) हल जोतने वाला (सिक्के)।

हरबोला :: (सं. पु.) मध्ययुग का हिन्दू यौद्धा।

हरबोला :: (वि.) मराठा पुत्र के सैनिक हर-हर महादेव का नाद करते हुए युद्ध करते थे इसलिए वे हरबोला कहलाये, बुंदेलखण्ड के कुछ ग्रामों में बसी एक जाति जो वीरों की गाथा गा-गाकर भीख माँगती है, दाहिने हाथ में लोहे के पाँच-सात कड़े पहिने रहते है और उसी हाथ में ली हुई एक लकड़ी से उसको बजाते हुए गाते हैं।

हरमूस :: (मुहा.) चोरी करके या छीनकर किसी भी प्रकार (क्रियी विशेषण.) के रूप में प्रयुक्त (सामासिक मुहावरा)।

हरमोनियाँ :: (सं. पु.) हरमोनियम, एक विदेशी वाद्य यन्त्र।

हरयाई :: (सं. स्त्री.) हरियाली, हरीतिमा।

हरयाओ :: (वि.) हरे रंग का, प्रसन्न, पल्लवित।

हरयाबौ :: (क्रि.) हरा होना, पल्लवित होना।

हरयार :: (सं. स्त्री.) वर्षा होने के बाद जमीन पर उग आने वाली घास-पात।

हरव :: (सं. स्त्री.) हलका, कम बजन का।

हरव :: दे. हरआँ।

हरवा :: (सं. स्त्री.) थकान।

हरवारी :: (सं. स्त्री.) हल चलाने की क्रिया, हल चलाने का धन्धा, कृषि।

हरसंकरी :: (सं. स्त्री.) वह वृक्ष जिसमें नींम, बरगद और पीपल एक साथ हों, ऐसा वृक्ष अत्यन्त पवित्र माना जाता है (सामासिक शब्द.)।

हरसबो :: (क्रि.) आनन्दित होना, प्रफुल्लित होना, मन्द मुस्कान या हाव-भाव से आन्तरिक आनंद का प्रकट होना।

हरसिंगार :: (सं. पु.) हार-श्रृंगार।

हरसिंगार :: (सं. पु.) हरश्रृंगार, एक फूल पारिजात।

हरसोत :: (सं. स्त्री.) खेतों पर ले जाने के लिए जुँए पर उल्टा बँधा हुआ हल।

हरा :: (सं. पु.) हार, माला।

हराँ :: (क्रि. वि.) धीरे।

हराबौ :: (क्रि.) परास्त करना, थकाना।

हराम :: (सं. पु.) बिना परिश्रम की उपलब्धि, अवैध कमाई यौनाचार की कमाई, अवैध यौनाचार, वेश्यावृत्ति।

हराम :: (कहा.) हराम की कमाई हराम मे गई - अन्याय का पैसा व्यर्थ ही जाता है।

हरामखोर :: (सं. पु.) मुफ्त खाने वाला, धल लेकर भी काम न करने वाला।

हरामी :: (वि.) अज्ञात पिता की सन्तान, कुटिल, एक अपशब्द।

हरायतौ :: (सं. पु.) आषाढ़ मास में शुभ मुहूर्त के अनुसार कृषि कार्य प्रारंभ करने की औपचारिकता।

हरियल :: (सं. पु.) सौ रूपये का नोट।

हरियल :: (वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

हरिया :: (सं. पु.) खड़ी फसलों को खाकर नुकसान पहुँचाने वाले पक्षी।

हरी :: (सं. स्त्री.) किसी कृषक के सहयोग के लिए की जाने वाली सामूहिक जुताई, कृषक के आग्रह पर अन्य कृषक अपना-अपना हल बैल लेकर उसके खेत में हल चलाते हैं तथा रात्रि का भोजन उसी कृषक के यहाँ होता है, इसी प्रथा को हरा चलाना कहते हैं।

हरी :: (वि.) हरे रंग की।

हरी :: (कहा.) हरी खेती गाभन गाय, तब जानों जब मों में आय।

हरी :: दे. ठाँड़ी खेती।

हरीरा :: (सं. पु.) सद्यः प्रसूता स्त्री को पिलाया जाने वाला हल्दी और गुड़ डालकर उबाला हुआ दूध।

हरीरो :: (सं. पु.) हरे रंग का जच्चा को दिया जाने वाला पतला पदार्थ।

हरीरो :: (वि.) हरें रंग का, हरा।

हरीरौ :: (वि.) हरा, धानी (रंग), हरीरो।

हरीरौ :: (सं. स्त्री.) के साथ।

हरीरौ :: (कहा.) हरौ हरौ सूजत - सब काम आसान जान पड़ते हैं, पैसे की कद्र न करने पर प्रयुक्त।

हरीस :: (सं. स्त्री.) हल चलाने वाली लम्बी लकड़ी।

हरूप, हरूफ :: (सं. पु.) हर्फ, वर्ण, अक्षर।

हरें :: प्रत्यय इत्यादि का अर्थद्योतक (रहन) का कुछ कारकों में पद रूप।

हरें :: दे. हरन भी।

हरें-हरें :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे, शनैः-शनैः।

हरेंनी :: (सं. स्त्री.) हल की हरीस में लगी हुई आड़ी डण्डी जिसके सहारे हलको जुएँ के साथ बाँधा जाता है, तथा इसे आगे पीछे के छेदों में नोंक करके हल्की नोंक की गहराई की आवश्यकतानुसार सन्तुलित किया जाता है।

हरैना :: (सं. पु.) बैलगाड़ी के धुरों के छेदों में पड़ी हुई लकड़ी या लोहे की लकड़ी की मेख।

हरैया :: (सं. स्त्री.) दे. हरइया।

हरैला :: (वि.) हार में रहने वाला जंगली, वह जो हार गया हो, पराजित।

हरौ :: (वि.) दे. हरीरौ, हरी।

हरौ :: (सं. स्त्री.) के साथ।

हरौ-भरौ :: (वि.) जो सूखा न हो, हरे पेड़ पौधों से भरा हुआ।

हरौ-हरीरो :: (वि.) हरा, हरे रंग का जो सूखा न हो, प्रसन्न।

हरौ-हरौ :: (क्रि. वि.) खर्च की चिन्ता किए बिना सब आसान दिखना।

हरौ-हरौ :: (प्र.) उनैं तो सब हरौ-हरौ दिखात।

हरौनी शैला :: (सं. पु.) दो गाँव के लोगों द्वारा एक दूसरे को हराने की प्रवृत्ति से किया जाने वाला, शैला नृत्य।

हर्ज, हर्जा :: (सं. पु.) हानि, नुकसान।

हर्जानों :: (सं. पु.) हानि का भरपाया, क्षतिपूर्ति।

हर्दी :: (सं. स्त्री.) हल्दी, हलद, हरदी।

हर्र :: (सं. स्त्री.) हर्रा, हरीतिकी, हड़, हरड़, अभया, औषधियों के काम आने वाला एक छोटा फल।

हर्र :: (कहा.) हर्र बहेरौ आँवरों, घी, शक्कर से खाय।

हर्रइया :: (सं. स्त्री.) उमेंठदार और पोला गहना, (कलाई का) तटकर बनाई गई छोटी गोल घुंडी जिसके भीतर से (बटुहा की) दूसरी लर सरक सकती है।

हर्रबो :: (क्रि.) किसी वस्तु की नियमित या क्रमबद्ध चाल में किसी विशेष स्थान पर घर्षण या अटकाव होना।

हर्रा :: (सं. पु.) हरड़ की एक बड़ी जाति जो रंग बनाने तथा उसको पक्का करने के काम आती है।

हर्रा :: (कहा.) हर्र लगें न फटकरी, रँग चोखौ हो जाय।

हर्रे :: (सं. पु.) हड़, हर्रा।

हल :: (सं. पु.) दे. हर।

हलकंप :: (सं. पु.) हलचल, घबराहट, जम की जमाति हलकंपन हिलति है (यंग्य अर्थ.)।

हलका :: (सं. पु.) क्षेत्र, पटवारी, कानूनगो आदि का कार्यक्षेत्र।

हलकान :: (सं. पु.) परेशान।

हलकारा :: (सं. पु.) सन्देशवाहक, एक स्थान से दूसरे स्थान तक डाक ले जाने वाला।

हलकी :: (वि.) हलन देश की तलवार।

हलकुआट-हलकुवाट :: (वि.) ओछापन, अपनी मर्यादा के प्रतिकूल (प्रदर्शन)।

हलकुआट-हलकुवाट :: (कहा.) हलक से निकरी खलक में गई - बात मुँह से निकली और दुनिया में फैली।

हलकौ :: (वि.) छोटा, आयु में छोटा।

हलकौपन :: (सं. पु.) नीचता, तुच्छता।

हलदिया :: (वि.) हल्दी के रंग का।

हलन्त् :: (सं. पु.) स्वरहीन वर्ण के नीचे लगाया जाने वाला चिन्ह।

हलफलयाबौ :: (क्रि.) प्रसन्नता के अतिरेक में शारीरिक सन्तुलन में कमी होना।

हलबिलान :: (वि.) अदृश्य, ओझल।

हलबौ :: (क्रि.) हिलना, मजबूत न रहना।

हलहल :: (अव्य.) जोर से हिलते हुए।

हलहलाबौ :: (क्रि.) तेज बुखार या अन्य कारण से बुरी तरह काँपना।

हलहली :: (सं. स्त्री.) ज्वर की कंपकपी।

हला-हल :: (अव्य.) घोड़े की भर्त्सना देने का शक।

हलाबौ :: (क्रि.) हिलाना, झकझोरना।

हलाबौ-डुलाबौ :: (क्रि.) किसी सौदे में दाम कम कराने के प्रयास करना (शब्द युग्म)।

हलाली :: (सं. पु.) पशु को लिटाकर धीरे-धीरे गला काटने की पद्धति, शरई रीति से पशु वध।

हलाहल :: (वि.) तीव्र (विष तथा कडुआ का विशेषण)।

हलीसबो :: (क्रि.) झकझोरना।

हलुआ :: (सं. पु.) घी, शक्कर तथा आटे से बनायी गयी परिष्कृत लपसी।

हलूँबबौ :: (क्रि.) झकझोरना, पकड़कर आगे-पीछे हिलाना।

हलोर :: (सं. स्त्री.) तरंग, लहर।

हलोरबो :: (सं. क्रि.) पानी या अन्य तरल पदार्थ में लहर उत्पन्न करना, हलोरना, अनाज फटकना।

हलोरा :: (सं. पु.) लहर, तरंग, सिलोर।

हल्को :: (वि.) दे. हलकौ।

हल्ला :: (सं. पु.) शोरगुल, ख्याति, कुख्याति, बदनामी, गुप्त बात प्रकाशित हो जाने की क्रिया, सेना को आक्रमण का आदेश।

हंस :: (सं. पु. (सं. स्त्री.)) (हंसनी) बड़ी-बड़ी झीलों में रहने वाला एक सफेद जलपक्षी, कवि समय के अनुसार यह दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है, हंसा (बुं.), आत्मा, जीवन मुक्त।

हंस :: (कहा.) हंस की चाल टीटरी चली, गोड़े उठाकें भों में परी - दूसरों का अनुसरण करक चलने में हानि उठानी पड़ती है।

हँस बोला :: (वि.) हँकर बोलने वाला, मधुर भाषी।

हँसउआ :: (सं. पु.) हँसी, उदाहरण-कात ईसुरी गाँव भरे में कर रये लोग हँसउआ (फाग)।

हँसत-हँसत :: (क्रि. वि.) प्रसन्नता पूर्वक।

हँसन :: (सं. स्त्री.) हँसने का भाव।

हसनूँ :: (वि.) हसनें वाली (स्त्री)।

हँसबौ :: (अ. क्रि.) हँसना, परिहास करना, खुशी मनाना।

हँसली :: (सं. स्त्री.) गले में पहनने का चाँदी या सोने का बना ठोस स्त्री-आभूषण, कन्धे के साथ छाती की हड्डी, कॉलर बोन (अंग्रेजी.)।

हँसली उतरबो :: (सं. क्रि.) बच्चों के गले की नस का अपने स्थान से हट जाना।

हँसली उतरबो बैठारबो :: (सं. क्रि.) बच्चों की गले की अपने स्थान से हटी नस को उचित स्थान पर करना, उदाहरण-साउन बउआ छिन भर में उतरी हँसली बैठारे।

हँसा :: (वि.) भूरे रंग का बैल।

हँसा :: (सं. पु.) जीवात्मा (दार्शनिक प्रसंग में प्रयुक्त)।

हँसाई :: (सं. स्त्री.) हँसी, बदनामी, हलकी बदनामी।

हँसाबो :: (सं. क्रि.) किसी को हँसाने में प्रवृत्त करना, खुश करना।

हँसिया :: (सं. पु.) शाक-भाजी या चार-घास काटने का मुठियादार, अर्द्धचन्द्राकार चाकू।

हँसी :: (सं. स्त्री.) हास्य, हलकी बदनामी।

हँसी :: (कहा.) हँसी की हँसी और दूःख कौ दुःख - एक साथ हँसी और दुख की बात।

हँसुलिया :: (सं. स्त्री.) छोटा हँसिया, सिघाड़ें का छिलका काटने का छोटा हँसिया, इसकी धार बाहर की तरफ होती है।

हँसौआ :: (सं. पु.) हँसने का भाव, हास्य।

हस्ती :: (सं. स्त्री.) हैसियत, सामर्थ्य।

हस्तें :: (क्रि. वि.) हाथ द्वारा, माध्यम से।

हस्तोरा :: (वि.) हँसमुख, हँसते रहने वाला, हँसाने वाला।

हाँ :: ((नि.)) स्वीकृतिसूचक निपात।

हाँ :: (कहा.) हा-हा लों बिनती सौ लों गिनती - जैसे सौ तक गिनती की सीमा है उसी तरह कोई हा-हा खाकर ही बिनती कर सकता है। इससे अधिक क्या करे।

हाँ :: (सर्व.) वहाँ।

हाँइँ :: (सं. स्त्री.) स्वीकृति, हाँमी।

हाउ हप्प :: (वि.) भारी भरकम।

हाँक :: (सं. स्त्री.) ललकार, घोषपूर्वक दिया गया आदेश।

हाँकबौ :: (क्रि.) पशुओं को आगे बढ़ने के लिए ललकारना, उकसाना, प्रेरित करना।

हाकिम :: (सं. पु.) अफसर, सरकारी अधिकारी।

हाकिम :: (कहा.) हाकिमी गरम की, दुकानदारी नरम की, दलाली बेसरम की, सराफी भरम की, दौरत करम की, बात मरम की, और आढ़त धरम की - दुकान में कितनी पूँजी लगी है, अथवा कितना पैसा पास में है इस बात का खुल न पाना, मर्म सार।

हाकिया :: (सं. स्त्री.) हुकूमत।

हाजत :: (सं. स्त्री.) आवश्यकता, पखाना की खबर।

हाजमा :: (सं. पु.) पाचन की शक्ति या क्रिया।

हाजरी :: (सं. स्त्री.) उपस्थिति।

हाजिर, हाजिर :: (वि.) उपस्थित।

हाजिर, हाजिरी :: (कहा.) हाजिर में हुज्जत नई और गैर की तलास नई - जो वस्तु मौजूद है उसे देने में कोई आपत्ति नहीं और जो नहीं है उसे तलाश करने नहीं जायेगें, अथवा जो लोग मौजूद हैं उनका स्वागत है जो नहीं है उनकी तलाश क्या करनी।

हाजी :: कवि. जन्म, १७२०।

हाजी :: (वि.) नायिका, भेद, मीर।

हाट :: (सं. स्त्री.) नियमित अन्तराल के बाद लगने वाला अस्थायी बाजार।

हाड़ा :: (सं. पु.) कौआ, कउआ।

हाँड़ी :: (सं. स्त्री.) (सँ.हंड़ी) बटुलाई जैसी आकृति वाला मिट्टी का बर्तन।

हाड़ैल :: (सं. स्त्री.) हारिल, एक पक्षी जिसके विषय में यह लोक प्रसिद्धि है कि वह जमीन पर नहीं बैठता है, जमीन पर बैठने की सम्भावना के कारण वह अपने पंजे में सदैव एक लकड़ी दबाये रहता है।

हाड़ैल :: (सं. स्त्री.) हाड़ैल कैसी लकरिया एक ही बात पर अड़े रहना।

हात :: (सं. पु.) हस्त, हाथ, उदाहरण-हात न पैर करै दुनिया की सैर, (अक्षर) हात पसारबौ-मांगने को हाथ बड़ाना, हाँत-पाँव फटफटात रै जाबौ-उद्योग या प्रयत्न में निराश होकर बैठ जाना, हात लगाबो -सहायता के लिए हाथ बड़ाना, मदद करना, हात का मैल-तुच्छ पदार्थ, हात चलाबौ-मारना।

हात :: (कहा.) कोउ को हात चलै कोउ को मौ चले।

हात :: (कहा.) हात कंगन कों आरसी का - प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता।

हात :: (कहा.) हात कों हात नई सूजत - हाथ को हाथ सूझता, ऐसा घोर अंधकार है।

हात :: (कहा.) हात कौ सच्चौ - लेन-देन का सच्चा।

हात :: (कहा.) हातन पै आम जमाउत - हाथों पर आम जमाते हैं, जल्दी मचाते हैं, उतावली करते हैं।

हात :: (कहा.) हात न मुठी, खुरखुरा उठी - गाँव में तो पैसा नहीं परन्तु चीज खरीदने का शौक।

हात :: (कहा.) हात पाँव के कायले मों मूँछे जायँ, काहिल आलसी, इतने आलसी हैं कि अपनी मूंछों को नही सॉभाल सकते मूल कहावत इतनी है परन्तु किसी ने इसमें यह पंक्ति भी जोड़ रक्खी है मूँछ बिचारी का करे, हात न फेरो जाय।

हात :: (कहा.) हात पाँव सुटुकिया, पेट मटुकिया - दुबला पतला आदमी जिसका पेट बड़ा हो अथवा जो बहुत खाता हो।

हात :: (कहा.) हात भर लड़इया नौ गज पूँछ - सियार, गीदड़, छोटा आदमी बड़ा आडम्बर करे तब कहते हैं।

हात :: (कहा.) हात में कौरा, मूड़ में टोंकर - हाथ का कौर सिर में ले जाना, बेढंगा काम करना।

हात :: (कहा.) हात में नइयाँ कौड़ी गोरी नाक छिदावें, दे. हात न मुठी।

हात :: (कहा.) हात से पिल्ला छोड़कें कूर कूर करत - हाथ से पिल्ला छोड़ कर बुलाते हैं कि आजा आजा, हाथ में आयी हुई वस्तु को जान बूझ कर निकाल देना और बाद में उसे प्राप्त करने की चेष्टा करते फिरना।

हात :: (कहा.) हात हलाउत चले आये - हाथ हिलाते चले आये, अर्थात जिस काम को करने के लिए भेजा था वह करके नहीं आये, यों ही खाली हाथ वापिस आ गये।

हाँत :: (सं. पु.) हाथ, कुहनी के बीच की उँगली तक के माप की इकाई, उदाहरण-हाँत खाली-।

हाँत :: (वि.) विधवा, जिसके हाथ में काँच की चूड़ियाँ न हों (सामासिक शब्द.), हाँत पसारबो-कुछ माँगना, हाँत-पाँव ठंडे होबो-मरणासन्न होना, हाँत पीरे करबो-विवाह करना, हाँत फे रबो-उड़ा लेना, ले जाना, हाँत लगाबो-आरम्भ करना, किसी वस्तु को छूना, मारना-पीटना, हाँत से निकलबो-वश में न रहना, खर्च हो जाना।

हाँतन :: (सं. स्त्री.) हासिल, इकाई के जोड़ में आने वाली दहाई, दहाई के जोड़ में सैकड़ा तथा इसी प्रकार आगे भी उपलब्ध होने वाली संख्या।

हाता :: (सं. पु.) अहाता, रोक।

हाती :: (सं. पु.) हाथी, हस्ती, शतरंज की एक गोट।

हाती :: (कहा.) हाती कड़ गओ, पूँछ रे गई - किसी काम का बहुत सा अंश हो जाना और थोड़े में असमंजस रहना।

हाती :: (कहा.) हाती के दाँत दिखाउत के और, खात के और - जब कोई आदमी कहे कुछ और करे कुछ तब प्रयुक्त।

हाती :: (कहा.) हाथी के दाँत बायरें कड़े सो कड़े - एक बार कोई आदमी बदनाम हुआ सो हुआ, अथवा एक बार किसी का भेद खुला सौ खुला।

हाती :: (कहा.) हाती के पाँव में सब को पाँव समात - बड़ों के साथ छोटों का निर्वाह होता है।

हाती :: (कहा.) हाती को बोझा हाती (अ) ई उठाउत - हाथी का बोझ हाथी ही उठाता है, बड़ों के काम बड़ों से ही सँभलते हैं।

हाती :: (कहा.) हाती डुबकइयाँ खाय, बुकेरू पार पूँछे - दे. हाती घोड़ा बये जायेँ।

हाती :: (कहा.) हाती फिरै गाँव गाँव, जीको हाती बाको नाव - जिसकी जो वस्तु होती है वह उसी की कहलाती है फिर वह किसी भी जगह रहे।

हाँती :: (सं. पु.) हाथी।

हाती दाँत :: (सं. पु.) हाथी के मुँह के दोनों ओर निकले हुए दाँत जिनकी कई प्रकार की वस्तुएँ बनती है।

हाँती दाँत :: (सं. पु.) हाथी दाँत, हाथी की खीसें जो बहुत वजनी तथा कीमती होती है (सामासिक शब्द.)।

हाती बात :: (सं. पु.) महावत।

हाते :: (सं. पु.) दीवार पर हथेली के चिन्ह या छापे जो शुभ अवसर पर हल्दी से दीवार आदि पर लगाये जाते हैं।

हाँते :: (सं. पु.) ब्याह होने के पश्चात दूल्हा-दुलहिन द्वारा लगाये गये हल्दी के हाथ के चिन्ह जो लगाये जाते हैं देव स्थानों के द्वार एवं कुटुम्बीजनों के द्वार पर लगाये जाते हैं जो कि उनके लिए अपना कर्म समर्पित करने का प्रतीक होने है।

हाँतो :: (सं. पु.) आहता, घेरा।

हातौ :: (सं. पु.) अहाता, परिसर, भवन के आस-पास की चार दीवारी या अन्य प्रकार से घिरी जमीन।

हान :: (सं. पु.) हानि, क्षति, घाटा।

हाँन :: (सं. स्त्री.) हानि, नुकसान।

हाँन :: (कहा.) गये हान न मरें पसताव। गुनबारौ घर में रहै, तीन बात की हान, रिन बाड़ै अरू गुन घटै, घर की कहे निकाम।

हानलाब :: (सं. पु.) व्यापार आदि में होने वाला हानि-लाभ।

हाँनो :: (सं. पु.) कोई अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य।

हाँनो :: (प्र.) तुम कोंन बड़ौ हानों आ हन रए।

हाँप :: (सं. स्त्री.) तीव्र और क्षिप्र प्रवास।

हाँपबौ :: (क्रि.) अधिक श्रम के कार श्वास-निश्वास की गति तीव्र होना।

हापर-धूपर :: (सं. स्त्री.) किसी परोक्ष कार्य के लिए मन में जल्दबाजी लेकर सामने वाले काम में स्वतः आने वाली जल्दी (क्रिय विशेषण.के रूप में भी प्रयुक्त) शब्द युग्म।

हाँपी :: (सं. स्त्री.) दे. हपाई।

हापौ :: (सं. पु.) मछली पकड़ने या मछली का बीज (छोटे-छोटे बच्चे) उठाने के लिए त्रिकोण फ्रेम में फं सा जाल, नियन्त्रण, (भावात्मक अर्थ)।

हामड़ :: (सं. पु.) चमड़ा ठोकने का औजार।

हामा :: (सं. पु.) हाँ करने का भाव या स्वीकृति।

हामा :: (सं. स्त्री.) हामी।

हामा :: (मुहा.) हामी भरबो-स्वीकार या मंजूर करना, किसी काम को करने की आशा या विश्वास दिलाना, हामी-वादा, स्वीकारोक्ति।

हाँमी :: (सं. स्त्री.) दे. हाँईँ, उदाहरण-हाँमी भरबो-स्वीकार करना।

हाय-हाय :: (अव्य.) दुख, क्लेश या पीड़ा सूचक शब्द, उदाहरण-हाय करबो-शोक प्रकट करना।

हाय-हाय :: (कहा.) हाय हाय करतन जनम बीतो - जन्म भर संसार के झगड़ों में फँसे रहे।

हाय-हाय :: (सं. स्त्री.) नजर, कुदृष्टि, ईर्ष्या जन्य दुख के कारण मुँह से निकलने वाला दीर्घ निःश्वास, संवेदना सूचक निपात, उदाहरण-हाय की पुतरिया-एक प्रकार की ताबीज जिस पर देवी की आकृति बनी रहती है, जो बच्चे को हाय या नजर लगने के उद्देश्य से पहनायी जाती है, हाय साँस कष्टपूर्ण, साँस, हाय करके रै जावो-चुपचाप घोर कष्ट सहकर बैठ जाना।

हार-द्वार :: (वि.) विकीर्णिता, छितरी हुई बिखरी हुए।

हार-द्वार :: (कहा.) हारे को हरनाम - मनुष्य से जब कुछ और करते धरते नहीं बनता तब भगवान का भजन सूझता है।

हार-द्वार :: (सं. स्त्री.) पराजय, प्रयास की असफलता।

हारबो :: (क्रि.) थकना, पराजित होना, जुए में दाव चूकना।

हारल :: (सं. पु.) एक हरे रंग की चिड़िया जो प्रायः चंगुल में तिनका लिए रहती है, हारिल।

हारी :: (सं. स्त्री.) पराजय, शिकस्त।

हारी :: (मुहा.) हारी बोलबो-हार मान लेना।

हारो :: प्रत्यय वाला अर्थ सूचक एक प्रत्यय।

हाल :: (सर्व.) वर्तमान।

हाल :: (सं. पु.) स्थिति, उत्साह (हालफू ल में प्रयुक्त)।

हालउँठात :: (क्रि. वि.) तुरन्त ही, अभी हाल में।

हालत :: (सं. स्त्री.) अवस्था, दशा।

हालन :: (वि.) हिलने वाला।

हालन :: (मुहा.) हालन बैल-ऐसा बैल जो कि खूंटे से बँधा बराबर घूमता रहे, ऐसे बैल को अशुभ मानते हैं।

हालफूल :: (सं. स्त्री.) उत्साह एवं प्रसन्नता (सामासिक शब्द.)।

हालाँ :: योजक, यद्यापि, हाँलाकि।

हालौ :: (वि.) ताजा, अभी हाल का।

हावभाव :: (सं. पु.) आन्तरिक भाव प्रकट करने वाली मुखाकृति एवं शारीरिक चेष्टाएँ (सामासिक शब्द.)।

हाँसल :: (सं. स्त्री.) उपलब्दि, जोड़ आदि गणितीय क्रियाओं में आने वाली हासिल।

हाँसल :: दे. हाँतन।

हासिया :: (सं. पु.) किनारा, गोट, मगजी।

हाँसी :: (सं. स्त्री.) हँसी, मजाक।

हाँसी :: (कहा.) हाँसी की साँसी - हँसी में कही हुई बात का सच निकल आना।

हाहा :: (सं. पु.) किसी को मनाने के लिए हाथ जोड़कर पैर पकड़कर की जाने वाली मनुहार।

हिअ-हिआ :: (सं. पु.) हृदय, छाती, वृक्ष, घोड़े के पेट का भोंरी का चिन्ह जो अशुभ कहा जाता है, उदाहरण-हिआओ-हिम्मत, साहस, हिआव, हिआवो पटावो-हिम्मत होना।

हिकमत :: (सं. स्त्री.) तदबीर, चतुराई।

हिकमती :: (वि.) क्रिया, चतुर, चालाक।

हिकरबो :: (क्रि.) पास पटकना, क्षणिक रूप से भी निकट आना।

हिकला :: (वि.) जो हकला कर बोलता हो।

हिगण्टा :: (सं. पु.) बाधा, अड़चन, रूकावट।

हिंगलाज :: (सं. पु.) हिन्दुओं का एक महापीठ जो बलुचिस्तान में है और जहाँ पर काली देवी का मन्दिर है।

हिंगा :: (सं. पु.) हींग बेचने वाला।

हिगोटा :: (सं. पु.) एक जंगली वृक्ष और उसका फल, फलों से तेल निकलता है।

हिंगौरा :: (सं. पु.) बिना पकौड़ी की कढ़ी।

हिंघरू :: (सं. स्त्री.) एक बेलदार वनस्पति जो कि ढोरों को खिलाई जाती है।

हिंघोरा :: (सं. पु.) पानी में बेसन तथा थोड़ी हींग डालकर, बनायी जाने वाली कढ़ी।

हिचक :: (सं. स्त्री.) अचक, झेंप, लज्जा, झिझक।

हिचकबो :: (क्रि.) पढ़ने में हिचकना, शर्माना, झिझकना।

हिचकिचाबो :: (क्रि. अ.) हिचकना।

हिचकी :: (सं. स्त्री.) साँस में लगने वाला झटका, हिक्की रोग।

हिजगिरी :: (वि.) हितैषी, घनिष्ठ, प्रेमपात्र, अंतरंग।

हिजगिरौ :: (सं. पु.) आन्तरिक स्नेहभाव, अंतरंगता, प्रेमपात्र।

हिज्जे :: (सं. स्त्री.) पढ़ते समय वर्ण विवरण करने की क्रिया।

हिट्ट :: (सं. स्त्री.) लात का प्रहार, उदाहरण-हिट्ट के मिट्ट।

हिट्ट :: (मुहा.) अतिशय प्राप्त के बाद असफल होने की स्थिति, ऊखों समजा-समजा के हिट्ट के मिट्ट हो गये, पै ऊनें एकउ नँइँ मानीं।

हिंड़बौ :: (क्रि.) किसी प्रियजन के वियोग के कारण बच्चों के मन में उठने वाली अव्यक्त पीड़ा और उदासी के कारण बीमार होना।

हिंड़स :: (सं. पु.) हठ।

हिंड़ोरना :: (सं. पु.) हिंड़ोरा, हिंड़ोला, पालना, झूलना।

हिंड़ोरा-हिंड़ोलना :: (सं. पु.) हिंडोला, झूला जिसकी पलकियाँ ऊपर नीचे चक्राकार घूमती है, पलकियादार झूला।

हिण्डल :: (सं. पु.) मशीन घुमाने का हत्था, साइकिल का वह अग्रभाग, जिसको पकड़कर साइकिल को संभाला जाता है, निबदार कलम का ऊपरी भाग, होल्डर।

हित :: (सं. पु.) भलाई, पक्ष।

हिती हितू :: (वि.) भलाई चाहने वाला, मित्र नातेदार।

हितू :: (सं. पु.) हितैषी, रिश्तेदार, स्नेही मित्र, सखा।

हितूआ :: (वि.) भलाई चाहने वाला रिश्तेदार।

हिन :: (सं. स्त्री.) किसी को हीन समझने का भाव।

हिनयाबौ :: (क्रि.) किसी को कमजोरी, गरीबी, अकुलीनता आदि के कारण ही समझ कर उपेक्षा पूर्ण व्यवहार करना।

हिनहिनाबौ :: (क्रि.) घोड़े का बोलना, कामातुर घोड़ी का आवाज करना।

हिना :: (अव्य.) यहाँ, उदाहरण-ल्याओ लिवाय ललिता उन लाल कौ हिना (सैरन की बारामासी संस्थान)।

हिन्दी :: (सं. स्त्री.) उत्तर भारत की प्रमुख भाषा जिसकी ब्रज, अवधी, राजस्थानी, मैथली आदि अनेक विशेषताएँ है तथा अनेक बोलियाँ है।

हिन्दू :: (वि.) जो लोग वेद सम्मत धर्म और सम्प्रदायों को मानते या सनातन जीवन मूल्यों के अनुसार जीवन जीते हैं।

हिन्ना :: (सं. पु.) हिरन, मृग, बुझौअल-ठाँड़े हिन्नां किट किट करें अन्न खाँयें न पानी पिएँ, किबाड़।

हिन्नी :: (सं. स्त्री.) हिरनी, तारागणों का एक समूह।

हिब्बो :: (सं. स्त्री.) उलझन।

हिंमचल, हिमांचल :: (सं. पु.) हिमालय, पार्वती जी के पिता, लोक गीत. हिंमचल जू को कुँअर लडाँयतीं नारें सुआटा (नौरता गीत)।

हिमायत :: (सं. स्त्री.) पक्षपात।

हिमायती :: (वि.) सहायता देने वाला।

हिमार :: (सं. पु.) बर्फ (केवल अतिशय ठण्डे के लिए विशेषण रूप में प्रयुक्त)।

हिमार :: (प्र.) हिमार सौ ठण्डौ।

हिमाव :: (सं. पु.) हिम्मत, साहस।

हिम्मत :: (सं. स्त्री.) शक्ति, सामर्थ्य, साहस, साहसपूर्ण कार्य करने का मनोबल।

हिम्मती :: (वि.) साहसी, जिसका मनोबल ऊँचा हो।

हियाव :: (वि.) हिम्मत, साहस, शक्ति।

हियौ :: (सं. पु.) हृदय, अन्तःकरण।

हिरकाँ :: (क्रि. वि.) पास, निकट।

हिरकाबौ :: (सं. क्रि.) पास बुलाना, सटाना।

हिरदावल :: (सं. स्त्री.) घोड़े की छाती पर की भौरी जो अशुभ मानी जाती है।

हिरदै :: (सं. पु.) हृदय, अन्तःकरण।

हिरना :: (सं. पु.) हिरन, मृग, हिन्न, बुँ.।

हिरनाकुस :: हिरण्यकश्यप, प्रहलाद का पिता, एक असुर जिसे विष्णु भगवान ने नृसिंह रूप धारण कर मारा था।

हिरबाबो :: (क्रि.) सिर में से जुँए बिनबाना।

हिरमिजी :: (सं. स्त्री.) गहरे लाल रंग की एक प्रकार की मिट्टी जिसे फर्श पर रंग करने के लिए सीमेंट में मिलाया जाता है।

हिरस :: (सं. स्त्री.) ईर्ष्या, डाह।

हिराबो :: (क्रि.) खोजना, लापता हो जाना।

हिलकबो :: (क्रि.) सिसकियाँ ले लेकर रोना।

हिलकारबो :: (सं. क्रि.) पानी को हिलाकर तरंगे उत्पन्न करना।

हिलकी :: (सं. स्त्री.) हिचकी, सिसकने का शब्द, देर तक रोने के कारण बँधी हिचकी।

हिलकोरा :: (सं. पु.) हिलोर, तरंग, लहर, हिलकोर।

हिलगबो :: (क्रि.) अटकना, हलके से या कमजोर आधार पर टाँगना।

हिलबिलाबौ :: (वि.) देखते-देखते ही अदृश्य हो जाना, भीड़ में खो जाना।

हिलमिल :: (सं. स्त्री.) मेल जोल का भाव।

हिलहिलाबो :: (क्रि.) बात-बात पर ही-ही करके हँसना, आपस में ठिठोली कर करके हँसना।

हिलाई :: (सं. स्त्री.) ढोर को पालतू बनाने का काम या उसकी मजदूरी।

हिलाबो :: (क्रि. स.) हरकत देना, खिसकाना, हिलाना, धँसना।

हिलाबौ :: (क्रि.) वातावरण के अनुरूप ढ़ल जाना, नये परिवेश में खप जाना, अन्तःकरण से स्वीकार करना।

हिली मिली :: (वि.) मिलकर झूमती हुई एक दूसरे के प्रेम में आनन्दित।

हिलुरबो :: (अ. क्रि.) खेलना, आनन्द में झूमना, प्रसन्न होना, जल का तरंगित होना।

हिलोंनी :: (सं. स्त्री.) नये जानवर को जानवरों की राँउन (खेड़) में चरने का अभ्यस्त करने के लिए बरेदी (चरवाहे) को विशेष ध्यान देना पड़ता है, इस कारण उसको कुछ विशेष पारिश्रमिक दिया जाता है, यही हिलोनी कहलाता है।

हिलोर :: (सं. स्त्री.) लहर, हृदय में उठने वाली टीस।

हिलोरबो :: (क्रि.) किसी तरल को आलोड़ित करना, तरल की सतह का लहरें पैदा करना।

हिलोरा :: (सं. पु.) हिलकोरा, लहर।

हिल्लू :: (वि.) ढीली।

हिल्लौ :: (सं. पु.) आजीविका के साधन।

हिसाब :: (सं. पु.) लेनदेन का लेखा-जोखा, गणित का प्रश्न।

हिसाब :: (मुहा.) हिसाब करबो-अपना ऋण चुकता कर देना, हिसाब साफ कर देना-लेन देने के ब्यौरे का निर्णय करना, हिसाब से-संयम से युक्त पूर्वक, हिसाब किताब।

हिसाब :: (सं. पुु.) आय व्यय का ब्यौरा, चाल, ढंग और तरीका।

हिसाबी :: (वि.) आय व्यय के लेखे में चतुर।

हिस्सा :: (सं. पु.) खंड, अंश, भाग।

हिस्सेदार :: (सं. पु.) साझेदार।

हिस्सेदार :: (सं. स्त्री.) हिस्सेदार।

हिस्सो :: (सं. पु.) समष्टि या समूह का कोई अंश, अवयव, खण्ड, टुकड़ा, शरीर का कोई अंग।

ही-ही :: (सं. स्त्री.) हँसने का शब्द, उच्च हास्य ध्वनि, हीनता प्रदर्शित करते हुए हँसना।

हीउ :: (सं. पु.) हृदय, हिय, मन, वक्षस्थल, छाती, सीना।

हीक :: (सं. स्त्री.) किसी खाद्य वस्तु के प्रति अत्यंत अरूचि होने के कारण कै भरने जैसी इच्छा।

हींग :: (सं. स्त्री.) कश्मीर, लद्दाख आदि ठण्डे और ऊँचे स्थानों में होने वाले एक पौधे का दूध, जो दबाइयों और भोजन के मामले के काम आता है, उदाहरण-हींग से बसाबो-बुरा लगना, मन को न सुहाना।

हींग :: (कहा.) हींग घाँई बसात - हींग की तरह बसाते हैं। अर्थात बुरे लगते हैं, सुहाते नहीं।

हीटकौ :: (सं. पु.) छाती के बीच का भाग।

हींड़ :: (सं. पु.) वियोग या विछोह का दुःख।

हींड़ा :: (सं. पु.) हिस्सी-स्पर्धा।

हीन :: (वि.) तुच्छ, नीच, बुरा।

हींन :: (वि.) अकिंचन, अपदार्थ, विपन्न जिसका सामाजिक या आर्थिक अस्तित्व बहुत कम हो।

हीयरो :: (सं. पु.) हृदय, हिय, मन, वक्षस्थल, छाती, सीना।

हीरपीर :: (सं. स्त्री.) दया।

हीरा :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध सफेद रत्न जो अत्यंत कठोर होता है, ये कार्बन का शुद्धतम रूप होता है।

हीरा :: (कहा.) हीरा कों कीरा बिगारत - हीरे के भीतर पड़ी हुई लकीर जिससे हीरे का मोल कम हो जाता है इस साधारण दोष भी बड़े आदमियों की महत्ता को कम कर देता है।

हीरा :: (कहा.) हीरा मुख सें ना कहे लाख हमारी मोल - बड़े आदमी अपने मुँह से अपनी प्रशंसा नहीं करते।

हीलर :: (सं. पु.) कीचड़।

हीलौ :: (सं. पु.) बहाना, साधन, आजीविका का साधन, हीलौ हवालो।

हींस :: (सं. पु.) जंगली वृक्ष, प्रेम अनुराग।

हींसबो :: (क्रि.) पशुओं कामातुर होने पर विशेष प्रकार से साँस छोड़ना जैसे वह अपनी उपस्थिति जता रहा हो।

हींसा :: (सं. पु.) हिस्सा, भाग।

हुँ :: (निपात किसी बात को सुनने की पुष्टि का निपात, आकर्ण होने की संकेत ध्वनि)।

हुआ-हुआ :: (सं. पु.) सियारों के बोलने का स्वर अविवेकपूर्ण समर्थन का सामूहिक स्वर, व्यग्य अर्थ।

हुइए :: (क्रि.) होगा।

हुइहै :: (क्रि.) होगा।

हुकम :: (सं. पु.) आज्ञा, आदेश, फैसला, इज्जत अधिकार, उदाहरण-हुक म चलाबो-आज्ञा देना।

हुकार :: (सं. स्त्री.) बड़े जोर से भरी हुई हुंकार, जोर देकर हूँ कहने की क्रिया।

हुँकार :: (सं. पु.) ललकार, गर्जन, भयभीत करने के लिए जोर से किया गया शब्द, चीत्कार, ललकार।

हुकारबो :: (क्रि. अ.) गरजना, डाँटना।

हुँकारबो :: (अ. क्रि.) हुंकारना, गर्जन करना, चिग्घाड़ना, ललकारना।

हुकुम :: (सं. पु.) आज्ञा, आदेश।

हुकूमत :: (सं. स्त्री.) शासन, आज्ञा देने का अधिकार।

हुक्क :: (सं. पु.) हुक, आँकड़ा, धातु की मुड़ी हुई नोंक जिसमें कोई वस्तु फँसाई जा सके (अकर्मक.)।

हुक्का :: (सं. पु.) धूम्रपान करने का एक पुराना साधन जिसमें धुँआ पानी में होकर आता था और काफी अंशो में तम्बाकू का विष (निकोटिन) रहित हो जाता था।

हुक्का :: (मुहा.) हुक्का पानी बन्द होबौ-बिरादरी से अलग होना।

हुचका :: (सं. पु.) पतंग की डोर लपेटने का गिर्रा, अधिकांश पूर्वो बुन्देली में प्रयुक्त।

हुचकारबो :: (क्रि. स.) आवाज देकर भागना, खदेड़ना।

हुछो :: (सं. पु.) हूदा, हाथ का धक्का।

हुजूर :: (सं. पु.) बड़े अफसरों के लिए संबोधन का शब्द।

हुज्जत :: (सं. स्त्री.) विवाद झगड़ा।

हुज्जत :: (सं. स्त्री.) बहस, तर्क वितर्क करने की क्रिया, अपनी बात को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास।

हुंड़ :: (वि.) गँवार जिसे लोक व्यवहार का ज्ञान न हो, उद्दंड।

हुड़कात :: (सं. स्त्री.) किसी साहसिक कार्य को झटके से किया जाने वाला शाब्दिक प्रकटीकरण।

हुड़काबो :: (क्रि.) झिड़काना, हाँट कर भगाना।

हुड़काबो :: (क्रि. स.) ललकारना।

हुड़कुआ :: (सं. पु.) दंगा, फसाद, झगड़ा।

हुडडूबा :: (सं. पु.) एक खेल।

हुड़लुआ :: (सं. पु.) अव्यवस्था, लूट-पाट जैसी स्थिति।

हुड़हुड़ाबौ :: (क्रि.) सुअरों का बोलना।

हुड़ीता :: (सं. पु.) कबड्डी की तरह का खेल।

हुड्ड :: (वि.) दे. हुड़।

हुड्डे :: (सं. पु.) बड़ी हड्डियाँ।

हुण्डल :: (सं. पु.) स्याही में बोरकर लिखने वाली निबदार कलम, होल्डर (अंग्रेजी.)।

हुण्डी :: (सं. स्त्री.) भुगतान करने हेतु लिखा जाने वाला आदेश पत्र, व्यापारियों में साख के आधार पर चलने वाला साख-पत्र या डिमाण्ड ड्राफ्ट।

हुतेलबो-हुसेलबो :: (सं. क्रि.) हाथ से ढकेलना।

हुदका :: (क्रि. वि.) ठोकर, दचका।

हुदयाबौ :: (क्रि.) कन्धे या कूल्हे से धक्का देना, लाठी आदि से धक्का देना।

हुदरयाबो :: (सं. क्रि.) अनियंत्रित उपद्रव करना।

हुँदरयाबौ :: (क्रि.) आपस में छेड़छाड़ करके भाग दौड़ करना तथा हँसना जिससे अशान्ति और आस-पास काम करने में बाधा हो।

हुँदराबो :: (सं. क्रि.) उपद्रव करना, ऊधम करते हुए खेलना।

हुदौ :: (सं. पु.) गोल गहरा गड्डा।

हुद्दा :: (सं. पु.) लाठी या शरीर से दिया जाने वाला धक्का।

हुद्दा जिद्दी :: (सं. स्त्री.) कटुतापूर्ण होड़, कटुता पूर्ण बहस।

हुन :: (सर्व.) वहँ होकर (वहाँ से)।

हुनगारू :: (वि.) कद काठी में अपनी आयु से अधिक दिखने वाला (किशोर या बालक )।

हुनते :: (अव्य.) वहाँ से।

हुनर :: (सं. पु.) युक्ति, कला, कार्य विशेष में प्रवीणता।

हुनहुनाबौ :: (क्रि.) किसी जिद को पूरा कराने के लिए बच्चों का लगातार ठिनकते रहना।

हुना :: (अव्य.) वहाँ।

हुँना :: (अव्य.) वहाँ।

हुन्न :: (सं. पु.) स्वर्ण, सोना, स्वर्ण मुद्रा, सोने का सिक्का, उदाहरण-हुन्न बरसबो-धन की बहुत अधिकता होना।

हुन्नर :: (सं. पु.) दे. हुनर।

हुन्नरी :: (वि.) उद्यमी, जिसमें कोई कला हो, युक्ति सोचने वाला।

हुबकबौ :: (क्रि.) लपकना, अपने स्थान पर ही ऊँचा उछलना, ऊपर से आती हुई वस्तु को हाथों में पकड़ना।

हुब्ब :: (सं. पु.) प्रेम, स्नेह, आकांक्षा।

हुमक :: (सं. स्त्री.) कूदने का भाव।

हुमक :: (क्रि. वि.) हुमक्के-जोर से उछलकर।

हुमकबौ :: (क्रि.) हाथ या हाथ के हथियार के आघात को बल देने के लिए प्रहार के पूर्व उछलना।

हुमसनों :: बल लगातर उठाना, खड़ा करना, उखाड़ना मन में कामना, इच्छा विचार आदि उठाना।

हुँमसबो :: (अ. क्रि.) हृदय के भावों का उत्पन्न होना, उखड़ना, उपटना।

हुँमसाबो :: (स. क्रि.) ऊपर की ओर जोर से उठाना, उछालना, उखाड़ना।

हुमसाबौ :: (क्रि.) उखाड़ना, स्थानच्युत होना।

हुरक :: (सं. पु.) नाचने वाला।

हुरकनी :: (सं. स्त्री.) बेड़नी, वेश्या।

हुरकिनी :: (सं. स्त्री.) पुंश्चली स्त्री, वेश्या।

हुरकिनी :: (कहा.) माँ वामन्नी बाप कसाई, बेटा के ब्याँहुन हुरकिनी आयी - जैसों को तैसे मिल जाते हैं।

हुरंगा :: (सं. पु.) गाती बजाती टोलियों में आने वाली होली खेलने बालों को खिलाया जाने वाला पकवान तथा भेंट की जाने वाली नकद राशि, होली खेलने का नेग।

हुरदंगयाबौ :: (क्रि.) फूहड़, अशिष्ट, अशालीन व्यवहार करना।

हुरदंगा :: (सं. पु.) फूहड़, अशिष्ट, आशालीन व्यवहार करने वाला व्यक्ति (विशेषण रूप में भी प्रयुक्त)।

हुरमत :: (सं. स्त्री.) हिम्मत।

हुरयारौ :: (सं. पु.) होली के लिए ईधन उगाहने वाला, होली खेलने वाला, होली हुड़दंग करने वाला।

हुरैया :: (सं. स्त्री.) किसी शुभ अवसर पर आमंत्रित किये जाने वाली सधवा स्त्रियाँ।

हुर्रइयाँ :: (सं. स्त्री.) देवी पूजा की एक रीति जिसमें मनौती मानने वाली सधवा स्त्री अन्य सात सधवा स्त्रियों को आमंत्रित करती है, सब मिलकर पोतनी मिट्टी की सात डलियों को देवी का प्रतीक मानकर उनकी पूजा करती है, पूजा के समय तक सभी स्त्रियाँ उपवास रखती है पूजा के बाद आमंत्रित महिलाओं की गोद में डेढ़-डेढ़ पाव या ढाई-ढाई पाव मिठाई रखती है, इस व्रत को औसान बीबी का व्रत भी कहा जाता है।

हुर्रहुर्र :: (अव्य.) सुअरों की आवाज।

हुलकबो :: (अ. क्रि.) वमन करना, कै करना।

हुलकर, हुलकरदाई :: (सं. स्त्री.) महामारी की देवी।

हुलकारबौ :: (क्रि.) कुत्ते को आक्रमण करने के लिए उत्तेजित करना।

हुलकारबौ :: दे. उलछारबौ।

हुलकारबौ :: (सं. स्त्री.) उल्लास, हुलास, अति उत्साह एवं प्रसन्नता का आवेग।

हुलकी :: (सं. स्त्री.) महामारी, संक्रामक रोग का व्यापक प्रभाव।

हुलफुलाबो-हुड़बौ :: (क्रि.) अबांछित रूप से आस-पास जमे रहना।

हुलफुलाबो-हुड़बौ :: (प्र.) छिन भर खों तौ कउँ टरत नँइँया, हरदम छाती पै हुड़ै रत।

हुलसबो :: (क्रि. अ.) खूब प्रसन्न होना।

हुलहुलाट :: (सं. स्त्री.) उत्साहपूर्ण आतुरता।

हुलहुलाबौ :: (क्रि.) मन की प्रसन्नता के कारण किसी काम के लिए आतुर होना।

हुलास :: (सं. पु.) दे. हुलक।

हुलिया :: (सं. स्त्री.) सूरत, शक्ल, हुलिया कटाबौ-किसी भागे हुए व्यक्ति की सूरत शक्ल पुलिस में दर्ज कराना, ताकि उसे खोजने में सहायता मिल सके।

हुलिया :: (मुहा.) हुलिया तंग होना, हुलिया बैरंग होना-मुँह फीका पड़ना।

हुलेल :: (सं. स्त्री.) तेज बहाव के कारण पानी की ठेल, बहाव में पानी का रेला।

हुल्लड़ :: (सं. पु.) कोलाहल, हो हल्ला, उपद्रव।

हुसयारी :: (सं. स्त्री.) होशयारी, समझदारी, चालाकी।

हू :: (अव्य.) गीदड़ के बोलने का शब्द।

हूँ :: (निपात) गोल-मोल बातों मे से भी मर्म की बात समझ जाने का संकेत, इसमें स्वर लम्बा खिंचता है।

हूक :: (सं. स्त्री.) आन्तरिक पीड़ा की रह-रह कर होने वाली अनुभूति, टीस।

हूकबो :: (अ. क्रि.) शूल उठना, कसकना।

हूँकबो :: (अ. क्रि.) हुड़कना, हुकारना।

हूकस :: (अव्य.) कहानी सुनाते समय किया जाने वाला हूँ।

हूँका :: (सं. पु.) कहानी आदि सुनते समय श्रोता द्वारा आकर्ण होने के संकेत स्वरूप कहा जाने वाला निपात।

हूँका भरबो :: (सं. पु.) हामी भरवो।

हूँका भरबो :: (सं. पु.) छाती का दर्द, पीड़ा सन्ताप।

हूँटा :: (सं. पु.) साढे तीन का पहाड़ा।

हूदबो :: (सं. पु.) लाठी की नोंक या शरीर के अंग कन्धा आदि से दिया जाने वाला धक्का।

हूदबो :: दे. हुद्दा।

हूदा हूदो :: (सं. पु.) लाठी आदि से सिरे से मारी जाने वाली ठोकर।

हूबहू :: (वि.) पूर्ण रूप से मिलता जुलता सामान आकृति वाला।

हूम :: (सं. स्त्री.) उमस ऐसी गर्मी जिसमें हवा भी बन्द हो।

हूर :: (सं. स्त्री.) अप्सरा।

हूल :: (सं. स्त्री.) दे. हूक।

हूलगेंद :: (सं. पु.) गेद का एक खेल।

हूलफूल :: (सं. पु.) प्रसन्नता, खूशी।

हूलबौ :: (क्रि.) हवा में उछलती हुई वस्तु को हाथ में लपकना, छुरा, भाला आदि नोंकदार हथियार को भोंकना।

हूला चालौ :: (सं. पु.) बहुत से लोगों द्वारा अव्यवस्थित ढंग से मनचाहा आचरण करने की क्रिया।

हूलादच्ची :: (सं. स्त्री.) उठा-पटक।

हूस :: (वि.) मोटी अक्लवाला, मूर्ख।

हूसआर-हूसयार :: (वि.) होशयार, समझदार, कुछ करने धरने योग्य आयु को प्राप्त हुआ बालक।

हूहै :: (क्रि.) होगा, होगी।

हे :: (संबो.) ईश्वर को पुकारने का स्वर।

हें-हें टें-टें :: (सं. स्त्री.) विवाद, पक्ष-विपक्ष।

हेआव :: (सं. पु.) शारीरिक शक्ति को संचालित करने के लिये अपेक्षित शक्ति।

हेकड़ :: (वि.) गर्वीला, किसी के आगे न झुकने वाला।

हेकड़ी :: (सं. स्त्री.) घमण्ड, अँकड़।

हेटी :: (सं. स्त्री.) अपमान, अवमानना, छवि खराब होनेकी क्रिया।

हेटो :: (वि.) छोटा तुच्छ, कम उम्र का।

हेड़ :: (सं. स्त्री.) लहर, पशुओं को घूम-घूमकर बेचने वालों के साथ चलने वाला पशु-समूह।

हेड़ा :: (सं. पु.) बहुत ऊँची लहर, समुद्र की लहर।

हेत :: (सं. पु.) प्रेम, हित अन्तरंगता।

हेती बेहारी :: मित्रता, गोटी, सगे संबंधी।

हेरन :: (सं. स्त्री.) दृष्टि, हेरने का भाव।

हेरफेर :: (सं. पु.) परिवर्तन, बदलाव।

हेरबौ :: (क्रि.) देखना, खोजना।

हेरा :: (सं. पु.) एक खेल।

हेराफे री :: (सं. स्त्री.) इधर से उधर।

हेल :: (सं. स्त्री.) एक टोकरी भर गोबर की इकाई, गोबर या मैला भरी टोकरी।

हेंसा :: (सं. पु.) दे. हींसा।

हेंसियत :: (सं. स्त्री.) आर्थिक स्थिति, आर्थिक सामर्थ्य।

है :: (क्रि.) अस्तित्ववाची वर्तमान कालिक सहायक क्रिया।

हैज :: (सं. पु.) पशुओं का पारस्परिक प्रेम।

हैजयाबौ :: (क्रि.) पशुओं का प्रेम प्रदर्शन करने के लिए चाटना या धीरे से सींगो से ठेलना।

हैजा :: (सं. पु.) विसूचिका, एक अति संक्रामक रोग, जिसमें व्यक्ति को कै दस्त होते हैं और शरीर का तेजी से निर्जलीकरण होकर मृत्यु हो जाती है।

हैरान :: (वि.) परेशान, आश्चर्य चकित।

हैरानी :: (सं. स्त्री.) परेशानी, कार्य करने में कठिनाई।

हो :: (संबो.) पुकारने या किसी का ध्यान आकृष्ट करने का संकेत।

हो :: (प्र.) काए हो मोहन।

हों :: (क्रि.) एकवचन उत्तम पुरूष की अस्तित्ववाची वर्तमान कालिक सहायक क्रिया।

होए :: (क्रि.) होगा।

होकै :: (अव्य.) होकर से, जैसे -ऊपर, होकर।

होड़ :: (सं. स्त्री.) लागडाट, चढ़ा-ऊपरी, प्रतिस्पर्धा प्रति द्वन्द्विता, प्रतियोगिता, एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयास।

होंड़ :: (सं. स्त्री.) द्रोण, घड़ा, पेट व्यंग्यार्थ।

होड़ा हिचकी :: (सं. स्त्री.) किसी काम को एक दूसरे पर टालने की प्रवृति।

होड़ाहोड़ी :: (सं. स्त्री.) प्रतिस्पर्धा।

होड़ाहोड़ी :: दे. होड़।

होड़ाहोड़ी :: (क्रि. वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

होण्डल :: (सं. पु.) दे. हुण्डल (अकर्मक.)।

होती :: (सं. स्त्री.) होना, क्रिया का भाव जो घर में होवे वह धन संपत्ति।

होती :: (कहा.) होती के सब साथी, अनहोतीको कोऊ नइयाँ।

होती :: (कहा.) होती की धोती, अनहोती की लॅगोटी - मिल गयी तो धोती पहिन ली, नहीं तो लँगोटी से ही काम चला लिया।

होती :: (कहा.) होती के तीन नाम, परसू, परसा, परसराम - मनुष्य जिस हैसियत का होता है उसी के अनुसार उसकी इज्जत होने लगती है, उदाहरण-होते कौ बाप, अनहोते की माँ-सम्पत्ति में पिता और विपत्ति में माँ काम आती है।

होनहार :: (वि.) जो होकर रहे या जो होने को हो।

होंनहार :: (सं. स्त्री.) दे. होत, जिसके उज्जवल भविषय की आशा हो।

होंनहार :: (वि.) चतुर, मेहनत करने वाला।

होनहार-होनी :: (सं. स्त्री.) होनहार, पैदाइश।

होनहार-होनी :: (कहा.) होनहर बिरवान के होत चोकने पात - होनहार के लक्षण पहिले से ही दीख पड़ते हैं।

होनहार-होनी :: (कहा.) होनहार होकें रत - जो होना होता है वह टलता नहीं।

होंनार :: (वि.) पूर्ण गर्भवती (स्त्री)।

होंनी :: (सं. स्त्री.) दे. होतब, होंनहार।

होंनी :: (कहा.) होनी पै कीको बस - होनहार पर किसका वश।

होबौ :: (क्रि.) होना, बच्चा पैदा होना (वर्तमान काल)।

होंम :: (सं. पु.) अग्नि में दी जाने वाली आहुति।

होंम :: (कहा.) होंम करतन हात जरे - भलाई करते बुराई मिली।

होंम :: (कहा.) होम न धूप देबी हा हा - झूठा सम्मान करना।

होंमबौ :: (क्रि.) आहुति देना।

होय :: (क्रि.) भविष्य कालिक इच्छावाची सहायक क्रिया।

होरा :: (सं. पु.) होला, हरे चनों की भुनी हुई घेंटियाँ, भुने हुए सिंघाड़े, घासफूस में भूनी हुई मछलियाँ।

होरी :: (सं. स्त्री.) होलिका दहन का त्यौहार, होलिका दहन के लिए इकट्ठा लगाया हुआ ईधन का ढेर, होली के अवसर पर गाये जाने वाले फाग के वर्णन वाले गीत, होली का त्यौहर फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा से कृष्ण पक्ष दूज या रंग पंचमी तक मनाया जाता है।

होल :: (सं. पु.) होश, हवास, भय, डर।

होलरो :: (सं. पु.) व्यर्थ का तमाशा।

होंले-होंलें :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे।

होंले-होंलें :: (कहा.) काँने से काँनों कहें तुरतइ आबौ टूट, हौलें-हौलें पूछलो कैसे गई ती फूट।

होंस :: (सं. स्त्री.) उत्साह।

होंस :: (कहा.) होंस से डुकरिया मारी, चेतका हग भरो।

होंसयार :: (वि.) दे. हुसयार।

होंसयारी :: (सं. स्त्री.) दे. हुसयारी।

हौ :: (अव्य.) हाँ।

हौ :: (अ. क्रि.) होना का मध्यम पुरूष एक वर्तमान कालिक रूप हो।

हौं :: (क्रि.) होगा।

हौद :: (सं. पु.) जमीन में खोदकर बनायी गयी बड़ी टंकी।

हौदा :: (सं. पु.) औहदा, शासकीय पद, हाथी पर बैठने के लिए उसकी पीठ पर रखी जाने वाली पलकिया।

हौदी :: (सं. स्त्री.) जमीन के ऊपर ईट, चूना या सीमेंट से बनायी जाने वाली टंकी।

हौंस :: (सं. पु.) तृष्णा, लालसा।