:: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का आद्य वर्ण, ओनम का पहला अक्षर, दे. ओनम, बुन्देली में वर्णमाला को ओनम कहते हैं, इसका उच्चारण इस अक्षर की सहायता के बिना नहीं हो सकता इसीलिए वर्ण माला में क, ख, ग आदि वर्ण अकार संयुक्त लिखे और बोले जाते, हैं, एक अव्यय जो व्यंजन से प्रारंभ होने वाले शब्द के पहले उपसर्ग की तरह आकर नकार, अभाव, वैपरीत्य आदि का अर्थ देता है, जैसे- अंजान, अकारथ, अकाज, अकाल आदि। कहीं-कहीं यह बुन्देली में हिन्दी की तरह ही अतिशयता या आधिक्य का बोध भी कराता है, जैसे अलोप, अघोर, अमोल, अतोल आदि।

अ. :: क्रोध, सन्ताप आदि सूचक शब्द।

अ. :: (सं. पु.) कामदेव, गणेश, सन्ताप आदि सूचक शब्द।

अइ :: (नि.) स्त्रियों में प्रचलित चौंकने का शब्द, संबो अरी, स्त्रियों के लिये प्रायः हीनता बोधक संबोधन शब्द।

अइगई :: (क्रि.) आना-जाना लकड़ी जिसमें लोहे की फारं लगायी जाती है।

अइना :: (सं. पु.) आईन, दर्पण।

अइया :: (सं. स्त्री.) आर्या, आजी, सास की सास (अजिया सास) दासी, बच्चे को देखने वाली स्त्री, आया।

अइयो :: (क्रि.) आना।

अइहइ :: (क्रि. वि.) ऐसे।

अईर :: (सं. स्त्री.) अहीर एक जाति जो प्रमुखताः दूध घी का धन्धा करती है, प्राचीन शब्द आभीर, आजकल यादव का भी पर्यायवाची, घोसी।

अईरन :: (सं. स्त्री.) अहीर जाति की स्त्री।

अउ :: (अव्य.) और।

अउअल :: (वि.) अव्वल, श्रेष्ठ, उत्तम, प्रथम।

अउअल :: (कहा.) अउअल फजली - तारतम्यहीन, गप्पें, बढ़ा चढ़ाकर की जाने वाली बातें।

अउझक :: (क्रि. वि.) औचक।

अउठन :: (सं. पु.) बढ़ई के काम करने की जगह जहाँ लकड़ी का डूँठ खड़ा होता है, काम करने का निश्चित या विशेष स्थान, जहां लकड़ी का कुन्दा गड़ा रहता है, यह कुन्दा अउठन कहलाता है।

अउठन :: (वि.) मूर्ख नासमझ।

अँउँठा :: (सं. पु.) अँगूठा।

अउधू :: (सं. पु.) अवधूत।

अंक :: (सं. पु.) संख्यावाची आकृतियाँ, चिन्ह, निशान, संख्या सूचक चिन्ह जैसे-१, २, ३, अक्षर।

अकउआ :: (सं. पु.) अर्क, आक एक दवा के काम आने वाला विषैला पौधा, इसके फूल शिवजी को चढ़ाते है।

अकछत :: (सं.) अखण्डित चावल।

अकटा :: (सं. पु.) दीपक रखने का स्थान।

अँकटा :: (सं. पु.) छोटा कंकड़, कंकड़ का टुकड़ा।

अकड़ :: (सं. स्त्री.) अकड़ने अथवा ऐंठने की क्रिया या भाव, तनाव, ऐंठ, अभिमान, शेखी, धृष्टता, ढिठाई।

अकड़ना :: (क्रि. स.) कड़े होने या सूखने के कारण खिचना या तनना, ऐंठना, अभिमान या घंमड दिखाना, इतराना, अभिमान, मूर्खता आदि के कारण दुराग्रह या धृष्टता करना।

अकड़बाई :: (सं. स्त्री.) एक बात रोग जिसमें तन जाती है और शरीर में पीड़ा होने लगती है।

अकड़बाज :: (वि.) अकड़ अथवा ऐंठ दिखाने वाला, घमंडी, लड़ाका, हेकड़ी दिखाने वाला।

अकड़म :: (सं. पु.) एक प्रकार का तांत्रिक चक्र, तंत्र।

अकड़ा :: (सं. पु.) चौपायों को होने वाला छूत का एक रोग, विशेष उसे धनुष्टंकार रोग भी कहते हैं, इसमें अंगों में खिंचाव या तनाव होता है।

अकड़ा :: (सं. पु.) जंगली सुअर, गोड़ी।

अकड़ा :: (सं. स्त्री.) साँप पकड़ने की लोहे की छड़ जिसका एक सिरा दुफाड़ होता है तथा उनके बीच में एक कोंण बना रहता है।

अकड़ा :: (सं. स्त्री.) साँप पकड़ने की लोहे की छड़ जिसका एक सिग दुफाड़ होता है तथा उनके बीच में एक कोंण बना रहता है।

अकड़ाव :: (सं. पु.) अकड़ने की क्रिया या भाव।

अंकड़ी :: (सं. स्त्री.) कांटा, काँटे की तरह मुड़ा हुआ लोहे का टुकड़ा साँप पकड़ने का औजार।

अकडू :: (सं. पु.) अकड़बाज, अभिमानी।

अकड़ैत :: (वि.) अकड़बाज, अभिमानी।

अकता :: (वि.) पहले से।

अकतां :: (सं.) पहले से।

अकतिया :: (सं. पु.) अकती बाबा।

अकधक :: (सं. पु.) आगा पीछा, सोच विचार, आशंका, डर, भय, शक, संदेह, जल्दबाजी करना।

अंकन :: (क्रि. वि.) अक्षरों में जैसे अंकन दस, २०, अंकों में लिखा हुआ, विशेषकर रूपयों के लेखन में प्रयुक्त।

अकनिया :: (सं. स्त्री.) भुट्टों को कूटकर निकाली गयी ज्वार।

अकबक :: (सं. स्त्री.) अनाप शनाप, निरर्थक बातें, घबराहट।

अकबक :: (वि.) चकित, भौचक्का।

अकबकाई :: (सं. स्त्री.) घबराहट, ऊब।

अकबकात :: (वि.) घबराहट हुआ।

अकबकाना :: (क्रि.) अकबक या व्यर्थ की बातें करना, चकित या भौचक्का होना, घबराना।

अकबकाबौ :: (क्रि.) घबराया हुआ।

अकबर साई :: (सं. पु.) आदेश देकर कार्य कराना।

अकरकड़ा :: (सं. पु.) एक पौधा जिसकी जड़ दवा के काम आती है, अकरकरहा।

अकरन :: (वि.) अकारण, बिना प्रयोजन के।

अकरमी :: (वि.) दुष्कर्म करने वाला।

अकरा :: (वि.) जो मंहगा अथवा आर्थिक मूल्य का होने से मोल लेने योग्य न हो, कीमती, आर्थिक मूल्य का, मंहगा, अच्छा, बढ़िया, श्रेष्ठ।

अकरा :: (सं. पु.) बोने के बाद बिना पानी बरसे जमना।

अँकरां :: (सं. पु.) बोने के बाद बिना पानी बरसे जमना।

अकराट :: (सं. स्त्री.) थोड़ी सी कडुवाहट।

अकरांद :: (सं. स्त्री.) आटा बहुत दिन तक रखा रहने पर उसका स्वाद खराब हो जाता है, थोड़ी सी कडुवाहट।

अकराबो :: (क्रि.) आटे आदि का खराब हो जाना, स्वाद में थोड़ी कडुवाहट महसूस होना।

अकरिया :: (सं. स्त्री.) दे. अकनिया।

अकरी :: (सं. स्त्री.) गेहूँ की बजाय घास या कूड़ा उगता है, हल में लगा चोंगा जिससे बीज बोये जाते हैं।

अकरी :: (वि.) अत्यधिक, एक पतली लता।

अकरूचबौ :: (क्रि.) कुरेदना।

अकरूर :: (सं. पु.) अक्रूर।

अकरो :: (वि.) मँहगा।

अकल :: (सं.) बुद्धि।

अकवार :: (सं. स्त्री.) दोनों भुजाओं का घेरा, छाती से लगाकर भेंटने की मुद्रा, गोद, बाहुपाश।

अँकवार :: (सं. स्त्री.) वक्षस्थल, हदय, गोद।

अँकवार :: (पु.) दोनों भुजाओं को फै लाकर मिलाने से बना घेरा, बाहु पाश, गोद।

अँकवार :: (मुहा.) अँकवार भरवो-आलिंगन, भेंटना।

अँकवारना :: (सं. स्त्री.) गले लगाना, आलिंगन करना, अँकवार भरवो-आलिंगन करना, भेंटना।

अकसना :: (सं. स्त्री.) संकोच, किसी के प्रति मन में शालती हुई बात के कारण मन में मैल।

अकसना :: (वि.) द्वेष।

अकसर :: (क्रि. वि.) बहुधा, प्रायः।

अकसीर :: (सं. स्त्री.) दे. पारा आदि की वह भस्म जो ताम्र आदि धातुओं का सुवर्ण बना दें, रसायन, औषधि।

अकस्मात् :: (क्रि. वि. अ.) सहसा, अचानक, भाग्य से दैवयोग से।

अकह :: (क्रि.) बिना कहे हुए।

अंका :: (सं. पु.) अक्षर, निशान, जैसे-'मिटे नहिं विधि के अंका', वे निशान जिन्हें कोरी लोग कपड़ा बुनते समय उसकी माप ठीक रखने के लिए बारह-बारह गिरह की दूरी पर लगाते हैं।

अंकाई :: (सं. स्त्री.) आँकने की क्रिया या भाव, अंकन, आंकने का अंकन करने का पारिश्रमिक, फसल में से जमींदार और काश्तकार के हिस्से का ठहराव, दानाबंदी, कूत, अंदाज, परख।

अंकाबो :: (क्रि. स.) किसी दूसरे से किसी वस्तु के मूल्य या वजन का अंदाज लगवाना।

अकामी :: (वि.) जिसके मन में किसी प्रकार की कामना या वासना न हो, अकाम, जिसमें काम वासना न हो या न रह गई हो।

अँकायबों :: (सं. पु.) परखवाना।

अकार :: (सं. पु.) आकृति, स्वरूप, आकार, शुद्ध रूप, अक्षर या उसकी उच्चारण ध्वनि।

अकारथ :: (वि.) जिसका कोई अच्छा फल या परिणाम न हो, बिना फायदा के, जैसे सारा परिश्रम अकारथ गया, व्यर्थ, जिसका उपयोग न हो सका हो, निष्फल।

अकाल :: (सं. पु.) दुर्भिक्ष, कुसमय, घाटा और हानि, ऐसा काम या समय जो किसी विशिष्ट कार्य के लिये उपयुक्त न हो, ऐसा समय जिसमें अन्न बहुत कम और बहुत कठिनता से मिलता हो, दुर्भिक्ष, किसी चीज की बहुत अधिक कमी या अभाव, जैसे कपड़े या नमक का अकाल।

अकाल :: (वि.) जिसका काल न आ सके अथवा मृत्यु न हो सके, अविनाशी, जो उचित या उपयुक्त समय पर न हो, असामाजिक जैसे अकाल मृत्यु, अकाल वृष्टि।

अकाली :: (सं. पु.) सिक्खों का एक संप्रदाय विशेष, उक्त संप्रदाय का अनुयायी जिसका संबंध उक्त संम्प्रदाय से हो।

अकासबानी :: (सं. स्त्री.) देव वाणी, आकाशवाणी।

अंकुड़ा :: (सं. पु.) कोई चीज निकालने या फँसाने के लिये बना हुआ टेढा कांटा, हुक, गाय बैल के पेट में होने वाला मरोड़, रेशमी कपड़ा बुनने वाला एक औजार।

अंकुड़ी :: (सं. स्त्री.) अंकुशनुमा।

अकुताना :: (क्रि. अ.) ऊबना, बेचैन होना, जल्दी करना।

अंकुर :: (सं. पु.) गुठली, बीज आदि में से नया डंठल जिसमें छोटी-छोटी पत्तियाँ लगी होती हैं, पौधों, वृक्षों आदि की जड़, डाल या तने में से उगने वाला नया पत्ता।

अँकुरना :: (क्रि. स.) अंकुर निकालना या फूटना।

अँकुरा :: (सं. पु.) कुरा, कोंपल, कल्ला, अंकुर (बहुवचन), जैसे अँकुरा निकर आये।

अँकुराबो :: (क्रि. स.) कुरा फूटना, अंकुर फूटना, अंकुरित होना।

अकुरावो :: (क्रि.) अंकुर आना।

अंकुरित :: (सं. पु.) अंकुर के रूप में निकला या फूटा हुआ, उत्पन्न, अद्भुत जिसमें से अंकुर निकले हों।

अकुरिया :: (सं. स्त्री.) हल के नीचे की लकड़ी या टेढ़ा भाग जिसमें फाल लगा रहता है।

अकुरियाँ :: (वि.) गट्ठे।

अँकुरी :: (सं. स्त्री.) अन्न के दाने जिसमें अंकुर या गाभ निकले हुए हों, इस प्रकार अन्न की घुँघनी।

अकुलाबौ :: (क्रि. अ.) आकुल होना, घबराना, जल्दी-जल्दी मचाना, ऊबना, उकताना।

अकुलाहट :: (सं. स्त्री.) आकुल या विकल होने की अवस्था या भाव।

अंकुस :: (सं. पु.) वश, काबू, अधिकार, हाथी के हाँकने की नुकीली साँग।

अंकुस :: (मुहा.) अंकुस राखबो-काबू में रखना, भय दिखाते रहना।

अंकुस :: (मुहा.) अंकुश न मानबौ-ढीटपन देना।

अंकुस :: (सं. पु.) भाले की तरह का वह दो मुँहा अंकुड़ा या कांटा, जिससे हाथी चलाया और वश में किया जाता है, गजवाग, वह अधिकार तत्व या शक्ति जिसमें किसी को अधिकार पूर्वक किसी कार्य के लिये अग्रसर किया जा सके अथवा रोका जा सके, नियंत्रण या वश में रखने की क्रिया भाव, दबाव, नियंत्रण या रोक।

अंकुसी :: (सं. स्त्री.) अंकुश के आकार की कोई छोटी चीज, कोई चीज टांगने या फँसाने का छोटा अंकुड़ा या कांटा, चूल्हे आदि में से कोयला या राख निकालने की छोटी टेड़ी छड़, पेड़ से फल तोड़ने की लग्गी।

अकूत :: (वि.) बहुत, अनुमान से परे, अपार, अधिक।

अकूती :: (वि.) अनमोल।

अकूतो :: (वि.) बेहिसाब।

अकेला :: (वि.) एकाकी, निस्संग साथी विहीन, अकेला, भूनने की क्रिया।

अकोरबौ :: (क्रि. स.) थोड़ी सी चिकनाई डाल कर भूनना, आग में गरम करना, तलना।

अंकोल :: (सं. पु.) पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाला एक पेड़ जिसके पत्ते शरीफ के पेड़ के पत्तों के जैसे होते हैं और फल बेर के बराबर तथा काले होते हैं। इस पेड़ के फल तथा छाल कई रोगों के उपचार के काम आती है।

अकोला :: (सं. पु.) एक जंगली पौधा जिसमें काँटे होते है लकड़ी मजबूत और न सड़ने वाली होती है।

अकौआ :: (सं. पु.) आक का पौधा, मदार, अर्क, आक, मदार, गले के अन्दर का, कौआ (छोटी जिव्हा) या घंटी।

अंकौरिया :: (सं. स्त्री.) गोद, बाहु पाश, घास, लकड़ी बगैरह का उतना बोझ जितना दो फैली हुई भुजाओं में आ जाये, प्रयोग हमें अँकोरियाँ भर लकरियाँ चानें, अँकवार का लघु. रूप देखिये अँकवार।

अक्क-बक्क :: (क्रि. वि.) घबराहट में तारतम्यहीन बोलना।

अक्क-बक्क :: (क्रि. वि.) घबराहट में तारतम्यहीन।

अक्कल :: (सं. स्त्री.) मस्तिष्क, दिमाग, बुद्धि, अक्ल।

अक्कल :: (कहा.) अक्क्ल के पीछे लट्ठ लयें फिरत - अकल के पीछे लट्ठ लिये फिरते है, बुद्धि को तिलान्जलि दे रखी है, अक्ल बड़ी कै भैंस-बड़ा या बलवान होना ही सब कुछ नहीं, वरन् बुद्धि इन सबसे बड़ी वस्तु है।

अक्कल बहार :: (सं.) पौधा और फूल।

अक्की-बक्की :: (सं. स्त्री.) मस्तिष्क का संतुलन।

अक्खड़ :: (वि.) शिष्टता और सौजन्य का ध्यान छोड़कर मनमाना और अनियन्त्रित आचरण करने वाला, उद्धत और उदंड।

अक्खड़ता :: (सं. स्त्री.) अक्खड़पन के लिये प्रचलित, प्रसिद्ध रूप।

अक्खड़पन :: (सं. पु.) अक्खड़ होने की अवस्था या भाव।

अक्खो मक्खो :: (सं. पु.) दीपक की लौ तक हाथ ले जाकर बच्चे के मुँह पर अक्खो मक्खो हुए फेरना, एक प्रकार का खेल।

अक्ताँ :: (क्रि. वि.) पहले से।

अक्ताँ :: (प्र.) चार दिनां अक्ताँ आ जइओ।

अक्ती :: (सं. स्त्री.) अक्षय तृतीया, वैशाख शुक्ल तृतीया, उदाहरण-अक्ती खेलन कैसे जाउँ, बरा तरें मेले लिबौआ।

अक्स :: (क्रि.) नकल करना।

अखडा :: (सं. पु.) ताल के बीच का वह गड्डा जिसमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

अखड़ैत :: (सं. स्त्री.) बलवान।

अखण्ड :: (वि.) अनवरत, विरामहीन, बिना रूके, जिसके खंड या टुकडे न हुए हों अथवा न हो सकते हों, फलतः पूरा या समूचा, जैसे-अखंड भारत, जिसका क्रम बीच में न टूटे निरन्तर चलने वाला, जैसे-अखंड पाठ।

अखतियाऊ :: (वि.) अग्रिम।

अखत्तर :: (सं. पु.) बेशुमार।

अखत्तर :: (वि.) बेशुमार।

अखनी :: (सं. स्त्री.) उबाले हुए माँस का रसा।

अंखफुरी :: (क्रि.) आँख फोड़ने का काम।

अँखफुरौ :: (सं. पु.) ऐसा काम जिसमें विविश होकर रात भर जागना पड़े, ऐसा काम जिससे आँखों पर जोर पड़े, जैसे-कशीदाकारी या सिलाई का काम, बेकार जागरण।

अँखफोरा :: (सं. पु.) एक प्रकार का पतंगा, बु. टिड्डा, उदाहरण-कभऊँ खिलाबै पड़कुलिया, पकरै भौंरा अँख-फोरा, द्वारिकेश-बुँदेलन।

अखम :: (वि.) स्थायी, दीर्घ काल तक चलने वाला, खूब मजबूत।

अँखमिचनी :: (सं. स्त्री.) आँख मिचौंनी खेल, बु. उदाहरण-आँख मिच्चों खेल।

अखरना :: (क्रि. अ.) अप्रिय या बुरा लगना, खलना, कष्टदायक या दुःखदायी जान पड़ना, खटकना, अनुचित मालूम होना।

अखरबी :: (वि.) एबी, गलत काम करने वाला, एबी।

अखरबौ :: (क्रि.) सालना, खलना, चुभना, बुरा लगना।

अखरावट :: (सं. स्त्री.) वर्णमाला, लिखने का ढंग लिखावट, वह कविता जिसमें चरण या पद वर्णमाला के अक्षरों के क्रम से आरम्भ होते हैं।

अखरी-मद्दी :: (वि.) तेज, सस्ती।

अखरोट :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध वृक्ष का छोटा गोलफल जिसकी गिनती मेवों में होती है।

अखरौटी :: (सं. स्त्री.) सितार आदि वाद्य यंत्रों पर राम के बोल अलग अलग और साफ निकालने की क्रिया।

अखल-बखल :: (क्रि.) बौखलाहट।

अखवार :: (सं. पु.) समाचार पत्र।

अखाड़िया :: (वि.) अखाड़े में पहुंचकर कुश्ती लड़ने वाला, प्रतिद्वंदिता में बडे बड़ो का सामना करने और बहुतों को परास्त करने वाला, दंगली।

अखाड़िया :: (पु.) पहलवान।

अखाड़ो :: (सं. पु.) कुश्ती करने के लिए बनी जगह, व्यायाम शाला, साधुओं का स्थान या दल, तमाशे वालों का अड्डा, सभा शास्त्रार्थ या वाद विवाद करने का स्थान।

अखाद :: (वि.) अखाद्य, न खाने योग्य।

अखार :: (वि.) जो खरा या सच्चा न हो, झूठा या वनावटी।

अखितयार :: (सं. पु.) अधिकार।

अखितयार :: (वि.) अख्त्यार।

अँखिया :: (सं. स्त्री.) आँख, नकाशी करने की कलम।

अखीरी :: (सं. स्त्री.) मृत्यु का समय।

अखीरी :: (वि.) अन्तिम।

अखुआ :: (सं. पु.) पेड़ पौधों की डाल पर या आलू आदि कन्दों पर वह भाग जहां से पत्ते या टहनी निकलने के आसार होते हैं, गन्ने और बांस की जाति के पौधों की प्रत्येक गांठ पर अखुआ होता है।

अँखुआ :: (सं. पु.) अँकुराए देखिये. अंकुरा।

अंखुआ :: (वि.) पीका।

अँखुआना :: (अ. क्रि.) अँखुवा निकलना, अंकुरित होना, उगना।

अखुरा-पखुरा :: (क्रि.) किसी वस्तु का छिन्नभिन्न होना।

अखूट :: (वि.) जो जल्दी खत्म या समाप्त न हो, अखंड, अक्षुण्ण, उदाहरण-साधन भोग सजोगरज, मंडन आउ अखूट-चन्दवरदाई।

अखैतीज :: (सं. स्त्री.) अक्षय तृतीया।

अखैतीज :: दे. अक्ती।

अखोर :: (वि.) जिसमें कोई खोर या दोष न हो, अच्छा, भद्र, सज्जन, सुन्दर।

अखोह :: (सं. पु.) ऊबड़ खाबड़ जमीन, ऊँची नीची भूमि।

अखौटा :: (सं. पु.) कान में पहनने का गहना, उदाहरण-कान अखोटा जान जुगत को झूटणों, मीरा।

अख्यात :: (वि.) जो कहा न गया हो, जो ख्यात या प्रसिद्ध न हो, अपकीर्ति, बुराई, अपयश।

अंग :: (सं. पु.) शरीर, विशेष कर गुप्तांग, अपने अंग से उत्पन्न संतान, शरीर के अव्यव।

अगई :: (वि.) टेसू के फूलों को उबाल निकाला गया रंग जिसे कत्थो, लोहा और चूना मिलाकर बनाते हैं।

अँगछेटाँ :: (सं. पु.) आगे बढ़कर लेने या छेड़ने की क्रिया, आगे आकार छेड़ने वाला।

अंगछेटा :: (सं. स्त्री.) अंगिया, आगे से, छोड़ने वाला व्यक्ति।

अगड़ :: (सं. स्त्री.) किवाड़ की कुंडी।

अगड़ :: (वि.) बहुत मजबूत, गोल मटोल, बलवान, चर्बी से भरा मोटा ताजा-अगड़ धत्ता।

अगड़ :: (सं. स्त्री.) किवाड़ की कुंडी।

अगड़ धत्त :: (वि.) हठी, बेफ्रिक, अगड़धत्ता।

अगड़ धत्त :: (वि.) लम्बा तगड़ा।

अगड़ बगड़ :: (वि.) वे सिर पैर का, ऊलजलूल, जिसका कोई क्रम न हो, क्रम विहीन, निकम्मा, व्यर्थ का, स्त्री लिंग-वे सिर पैर की बात, ऐसा काम जिसका कोई क्रम निर्धारित न हो, व्यर्थ का प्रलाप या काम, अनुपयोगी कार्य।

अंगड-खँगड :: (वि.) टूटा फूटा सामान, गिरा पड़ा अथवा इधर उधर बिखरा हुआ, निरर्थक, उदाहरण-व्यर्थ की चीजें जो टूटी फूटी या इधर उधर बिखरी पड़ी हों, अनुपयोगी, रख रखाव की कमी में पड़ा हुआ अव्यवस्थित सामान, कबाड़।

अगड़बत्ता :: (वि.) बहुत ऊँचा, बड़ा या भारी।

अगड़म बगड़म :: (वि.) असंगत, अंडबंड, पचमेला।

अगड़म बगड़म :: (कहा.) अगड़म-बगड़म काठ कठंबर - फालतू चीजों का ढेर।

अगड़मट्टा :: (सं.) मौका।

अँगड़ाई :: (सं. पु.) आलस्य से शरीर का टूटना।

अँगड़ाबो :: (क्रि. अ.) आलस्य से शरीर के टूटने की क्रिया, ऐंठना, दम दिखाना।

अगति :: (सं. स्त्री.) गति का न होना ठहरा या रूका हुआ न होना, स्थिरता, अत्येष्टि, श्राद्ध आदि न होने के कारण मृतक की आत्मा की वह स्थिति जिसमें उसका मोक्ष नहीं होता और वह इधर उधर भटकती फिरती है, उचित दशा या स्थिति का अभाव, दुर्दशा।

अगत्तर :: (वि.) आगे आने वाला, भावी।

अगत्तर :: (क्रि. वि.) आगे या पहले से।

अगत्ती :: (सं. पु.) उपद्रवी।

अँगद :: (सं. पु.) भुजा का एक गहना, भुजबंद, रामायण में वर्णित बालि का पुत्र।

अंगद :: (सं. पु.) भुजा में पहनने का एक गहना।

अगन :: (सं. पु.) अग्राहण, अगहन, विक्रम संवत का नौवां महीना।

अगन :: (सं. स्त्री.) अग्नि।

अगन :: (सं. स्त्री.) अगन लग रई, जलन पड़ रही।

अगनउआ :: (सं. पु.) पुष्य नक्षत्र, २७ नक्षत्रों में से आठवाँ।

अगनमंद :: (सं. स्त्री.) मन्दाग्नि।

अगनवाद :: (वि.) घोड़े की एक बीमारी।

अँगना :: (सं. पु.) आँगन, उदाहरण-मोरे अँगना मची धूम।

अँगना :: (सं. स्त्री.) सुन्दर अंगो वाली स्त्री, घर के भीतर का खुला हिस्सा, अँगना, उदाहरण-मोरे अँगना आये राम।

अंगना :: (सं. पु.) आँगन।

अगनाई :: (सं. स्त्री.) आँगन उदाहरण-चढ़ के अटा घटा ना देखें बटा देओ अगनाई।

अँगनाई :: (सं. स्त्री.) आँगन का फर्स, आँगन उदाहरण-हरितमयी सोहत अँगनाई।

अंगनाई :: (सं.) अगड़ाई आना।

अगनियाँ :: (वि.) जिस लोंद की साल में दो कार्तिक पड़ते हैं, उसमें दूसरा कार्तिक अगनियाँ कार्तिक कहलाता है।

अगनोत्री :: (सं. पु.) अग्निहोत्री, अग्निहोत्र करने वाला, व्यंग्य में बहुत कर्मकाण्डी, पवित्रता का पाखण्ड करने वाला।

अगनौआ :: (सं. पु.) आग्नेय दिशा, पुष्य नक्षत्र, २७ नक्षत्रों में से आठवाँ, किसानों का एक नक्षत्र विशेष, इसके प्रारम्भ में पानी बरसना अशुभ मानते हैं।

अगम :: (क्रि.) गहरा।

अगम्म :: (वि.) अथाह।

अगयाना :: (क्रि.) किसी धातु या वस्तु को आग में गरम करना।

अगयानो :: (सं. स्त्री.) आग रखने का स्थान, अलाव।

अगयानो :: (वि.) आग रखने का स्थान।

अगयाबो :: (क्रि.) गरम करना।

अँगयाबो :: (क्रि. अ.) नेतृत्व करना, आगे होना, पहल करना, रास्ता दिखाना, अपनाना, शरण में लेना, अंगीकार करना।

अगयावौ :: (क्रि.) अग्नी में तपाकर पवित्र करना, गरम करना, धातु या गहने का आग में जई करना।

अगर :: (सं. पु.) अंगर, गाड़ी में आगे की ओर अधिक बोझ होना, एक प्रकार का वृक्ष जिसकी लकड़ी अत्यन्त सुगंधित होती है।

अगर :: (क्रि. वि.) अगर कोह टल्ले, न टल्ले फकीर-पहाड़ भले ही टल जाये पर फकीर नहीं टलता, वह भीख लेकर ही दरवाजा छोड़ता ह, हठीला व्यक्ति।

अगर :: (क्रि. वि.) यदि, जो।

अगर :: (कहा.) अगर कोह टल्ले, न टल्ले फकीर - पहाड़ भले ही टल जाये पर फकीर नहीं टलता, वह भीख लेकर ही दरवाजा छोड़ता है, हठीला व्यक्ति।

अंगर :: (वि.) वाहन के अग्रभाग में अधिक वजन होने के कारण असन्तुलित स्थिति।

अंगर-खंगर :: (सं. पु.) शब्द यग्म, टूटा फूटा सामान, बेकार सामान जो घर में एक ओर पड़ा रहता है।

अगर-पछर :: (क्रि.) आगे-पीछे।

अगर-बगर :: (क्रि. वि.) अगल-बगल।

अँगरखा :: (सं. पु.) पुरूषो का पुरानी चाल का पहिनावा जो घुटनों तक नीचा होता है और जिसमें बटनों की जगह तनी लगी हुई होती है, चोंगा, शेरवानी के नीचे का हिस्सा।

अंगरखा :: (सं. पु.) कुर्ता, स्त्री. कुर्ती।

अँगरखी :: (सं. स्त्री.) पूरी बाहों की तनीदार कुर्ती, मिरजई, अँगरखा का लघु रूप।

अगरचे :: (क्रि. वि. अ.) यद्यपि।

अगरना :: (क्रि. अ.) आगे बढ़ना।

अगरपार :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक जाति या शाखा।

अगरबत्ती :: (सं. स्त्री.) वह बत्ती जो सुगंध हेतु बनाई व जलाई जाती है।

अगरवाल :: (सं. पु.) वैश्यों की एक जाति, अग्रवाल।

अगरसार :: (सं. पु.) अगर नामक वृक्ष।

अगरा :: (सं. पु.) गाड़ी का हल आदि जोतने में आगे और पीछे जोते जाने वाला बैल।

अगरा :: (वि.) आगे चलने वाला आदमी।

अँगरा :: (सं. पु.) दहकते हुए कंडे या लकड़ी या कोयले का टुकड़ा।

अँगरा :: (वि.) जलते हुए कोयले की तरह लाल, गुस्से से आग की तरह लाल, जैसे अँगरा हो रय।

अंगरा :: (सं.) आग लगी हुई वस्तु का टुकड़ा, अंगारा, जलती हुई कण्डी का टुकड़ा।

अंगरा :: (वि.) अंगुल की माप।

अंगराग :: (सं. पु.) हनुमान जी को चढ़ने वाला सिंदूर का लाल चोला या भैरव जी को चढ़ाने वाला काला चोला।

अगराना :: (सं. पु.) दुलारना या प्यार से छूना, अधिक दुलार करके सिर चढ़ाना।

अगराने :: (वि.) खिले हुए।

अगरिया :: (सं. पु.) पण्डितों की एक जाति।

अँगरिया :: (सं. स्त्री.) सुलगते हुए कोयले या कंडे की आग का टुकड़ा, अँगरा का लघु रूप।

अंगरिया :: (वि.) कंडे की आग का छोटा टुकड़ा।

अगरी :: (सं.) उपलों की पंक्ति।

अगरू :: (सं. पु.) अगर नामक वृक्ष और उसकी सुगन्धित लकड़ी।

अँगरेज :: (सं. पु.) ब्रिटेन का मूल निवासी।

अँगरेज :: (कहा.) अंगरेज और बंदर का नचाना बराबर है।

अँगरेजियत :: (सं. स्त्री.) अंग्रेजी ढंग या चाल ढाल।

अंगरेजी :: (सं. स्त्री.) अंगरेजों की भाषा, इंगलिश, अंगरेजों का शासन, अँगरेजों के शासन का आतंक, जैसे-अँगरेजी परी गोरी गम खाने, लोकगीत।

अगल बगल :: (क्रि. वि.) इधर उधर, आसमपास, दोनों ओर।

अगलहिआ :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की चिड़िया।

अगला :: (वि.) जो सबसे आगे या पहले हो, आगे वाला, जैसे घर का अगला भाग, पिछला का विपर्याय, पहले या पूर्व का प्रथम, जैसे-पहला मकान उसका और अगला हमारा है।

अगला :: (कहा.) अगला करे, पिछले पर आवे - किसी काम की भलाई-बुराई उन लोगों पर ही आती है, जो उसे अंत में करते है, बड़ों की भूल छोटों को भुगतनी पड़ती है।

अगवाई :: (सं. स्त्री.) चूल्हे के सामने आग रोक रखने वाली मेंड।

अगवान :: (सं. पु.) आगे चलने वाला, पहल करने वाला, नेतृत्व करने वाला।

अंगवान :: (सं. पु.) आगे चलने वाला।

अगवान होबौ :: (क्रि.) किसी काम में पहल करने वाला।

अगवानी :: (सं. स्त्री.) आगे बढ़कर स्वागत करना, कन्या पक्ष के द्वारा आगे जाकर वर पक्ष के स्वागत की रिति, अगवानी।

अगवार :: (सं. पु.) खलिहानों में अनाज और भूसा अलग करते समय उड़ाने के स्थान पर बीच में बनायी जाने वाली अगवार, भूसे की लाइन।

अगसना :: (क्रि. अ.) अग्रसर होना, आगे बढ़ना।

अगहन :: (सं. पु.) अग्राहण मास।

अगहन :: दे. अगन, उदाहरण-अगहन के दिन अदहन की उबाल की तरह शीघ्र निकल जाते हैं, अर्थात छोटे होते हैं।

अगहुड :: (वि.) आगे चलने या होने वाला।

अगहुड :: (क्रि. वि.) अगले भाग में विछहुण का विपर्याय।

अँगा :: (सं. पु.) ऊँचे या बड़े घेर वाला कुर्ता, चोंगा, अँगरखे का नीचे का हिस्सा, शेरवानी के नीचे के हिस्से को अँगरखा कहते हैं, पुरूषों के द्वारा शरीर के ऊपर भाग में पहना जाने वाला वस्त्र जो घुटनों से थोड़ा ऊपर तक नीचा होता है।

अंगा :: (वि.) अंगरखे के नीचे का हिस्सा।

अँगाई :: (सं. स्त्री.) आगे, पेशगी, सामने का हिस्सा, सामना, अगाड़ी, शब्द युग्म. अंगाई-पछाई।

अगाउ :: (वि.) अग्रिम, वायदे का सौदा, सौदे के लिए प्रतीक रूप में दी जाने वाली अग्रिम धन राशि, बयाना।

अगाऊ :: (क्रि. वि.) आगे, पहले, सामने का।

अँगाऊ :: (क्रि. वि.) पहले, पहले के जमाने में, उदाहरण-अँगाई ऐसो नई होत तौ, आगे का हिस्सा।

अंगाटी :: (क्रि.) एक झीना वस्त्र।

अगाड़ी :: (क्रि. वि.) आगे, पहले, थान पर घोड़े को बाँधने की रस्सी जो उसके गले में डाल दी जाती है, बाँधना, डालना।

अंगापिच्छू :: (क्रि. वि.) एक के पीछे दूसरा, आगे पीछे के क्रम में, कुछ दूर पर, एक के पीछे एक, (यौगिक.शब्द.)।

अगार :: (क्रि. वि.) आगे पहले, उदाहरण-पूँछत पूँछत चले अगार।

अंगार :: (वि.) दहकता हुआ कोयला।

अंगार :: (सं. पु.) जलता हुआ कोयला या लकड़ी का टुकड़ा, गाड़ी के आगे का हिस्सा।

अगारा :: (सं. पु.) जब एक जोड़ी बैल गाड़ी न खींच सके तब दो जोड़ बैल और उनके आगे जोते जाते हैं।

अँगारी :: (क्रि. वि.) भविष्य में, सामने का भाग।

अंगारू :: (सं.) आगे, भविष्य।

अंगारौ :: (सं. पु.) कुहरा।

अंगारौ :: (कहा.) मेव के आँगे अंगारो और फौज के आगे डंगारौ।

अगाही :: (सं. स्त्री.) किसी बात के होने की पूर्व सूचना।

अगियाँ :: (सं. स्त्री.) एक वस्त्र जो बहुत जल्द सूख जाता है, चोली, कोदो के पौधों को लगने वाला रोग, यह रोग एक प्रकार के पौधे से होता है। यह पौधा एक सही एक बटे दो-दो बालिख लम्बा होता है, पत्ते इसके कुछ लम्बाई लिये छोटे-छोटे होते हैं इसमें सफेद फूल निकलते हैं जिस खेत में ये पौधे होते हैं उस खेत के कादों सूख जाते हैं इसके एक पौधे से दो गज चारों ओर की लम्बाई में कोदों सूख जाते हैं, इसके विषय में एक कहावत प्रसिद्ध है कोदन को अगियां लगे, वन को गे तुसार।

अंगिया :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के वक्ष स्थल का पहनावा जो स्तनों पर बिल्कुल ठीक और चुस्त आता हुआ विशेष रूप से तैयार किया जाता है, चोली, उदाहरण-वरन वरन अँगियां उर धरे, जी में लिखे पपीरा मोरें, ऐसी अंगिया तोरें लोकगीत।

अगिया कोइलिया :: (सं. पु.) लोक में उन दो बैतालों के कल्पित नाम जिनके संबंध में यह माना जाता है कि वे विक्रमादित्य के अनुचर थे।

अगियारी :: (वि.) जो अधिक देर तक जलने वाला हो या अधिक देर तक जले।

अंगियारी :: (सं. स्त्री.) चूल्हे का वह भाग जिसमें आग रहती है।

अगियासन :: (सं. पु.) एक पौधा जिसे छूने से शरीर में जलन होने लगती है।

अंगीकार :: (सं. पु.) स्वीकार, ग्रहण।

अगींठा :: (सं. पु.) आग जलाने के लिए बनाई गयी भट्टी।

अंगीठा :: (सं. पु.) एक कंद।

अँगीठाला :: (सं. पु.) एक वृक्ष और उसका फल।

अँगीठी :: (सं. स्त्री.) आग रखने का मिट्टी या लोहे का पात्र।

अगीत :: (सं. पु.) मकान के आगे का हिस्सा, अग्गा, सामना।

अंगीत :: (सं. स्त्री.) अग्रभित्ति, घर का अग्र भाग।

अगीत-पछीत :: (क्रि. वि.) आगे-पीछे, अगवाड़े-पिछवाड़े।

अगुआ :: (क्रि. वि.) आगे चलने वाला, वह जो दुसरों के आगे चले, वह जिसके पीछे और लोग चलें, उदाहरण-अगुआ भयउ शेख बुरहाना, दूसरों का पथ प्रदर्शन करने वाला, वह जो सबसे आगे बढ़कर किसी काम में हाथ बढ़ाये, वह जो औरों का प्रतिनिधित्व करे, नेता, सरदार, नायक।

अँगुआ :: (वि.) आगे चलने वाला बैल, तेज बैल।

अंगुआ :: (वि.) बैल।

अगुआई :: (सं. स्त्री.) आगे होने या आगे चलने या भाव, पथ प्रदर्शन करने की क्रिया या भाव, मुखियापन।

अँगुरयाबो :: (क्रि. स.) उंगली से इशारा करना, किसी को बहुत परेशान करना, चिढ़ाना।

अँगुरा :: (सं. पु.) अँगूठा, एक छोटी नाप जो उँगली की चौड़ाई के बराबर होती है, एक बालिख का बारहवाँ हिस्सा, परिमाण बताने के लिए इसमें प्रायः प्रत्यय लगा देते हैं। जैसे-अँगुरा भर।

अंगुरा :: (क्रि.) छोटा माप।

अँगुरिया :: (सं. स्त्री.) उँगली।

अँगुरी :: (सं. स्त्री.) कवच, जिरह, आदि, गोह के चमड़े का दस्ताना, जो धनुष चलाते समय हाथ में पहिना जाता था।

अँगुल :: (सं. पु.) उंगली, एक नाप जो उँगली की चौड़ाई के बराबर होती है, नक्षत्र का बारहवाँ भाग।

अंगुस्तानों :: (सं. स्त्री.) उँगली में सुई चुभने से बचने के लिए पहनी जाने वाली धातु या चमड़े की टोपी।

अगूठना :: (क्रि. स.) चारों ओर से घेरना, घेरा डालना।

अँगूठा :: (सं. पु.) हाथ या पैर की बड़ी उँगली।

अँगूठा :: (मुहा.) अँगूठा दिखावो-नाहि कर देना, टरका देना-मूर्ख बनाना।

अँगूठी :: (सं. स्त्री.) हाथ की उँगली में पहिनने का गोलाकार गहना, आभूषण, मुद्रिका, मुंदरी।

अंगूठी :: (सं. स्त्री.) हाथ की उंगलियों में पहनने का आभूषण।

अंगूठी :: (सं. स्त्री.) हाथ की उंगलियों में पहनने का आभूषण।

अँगूर :: (सं. पु.) प्रसिद्ध रसीला फल, जिसे सुखाकर किसमिस या दाख बनती है, द्राक्षा।

अंगूर :: (सं. पु.) द्राक्षाफल।

अंगूरी :: (सं. पु.) एक रंग जो पीले ओर नीले रंग की मिलावट से बनता है, अंगूर के रंग से मिलते जुलते रंग का, ये केले के हरे पत्ते के रंग जैसा होता है।

अंगूरी :: (वि.) अंगूर के रस से बनी शराब।

अंगूरी :: (वि.) अंगरेजी शराब, हल्का पीला रंग।

अँगेजना :: (सं. पु.) अपने ऊपर लेना, गृहण या स्वीकार करना, सहन करना, झेलना, उदाहरण-मैं तो बाबा की दुलारी दरद कैसे अंगेजब हो, ग्राम गीत, कब्जा जमाना।

अंगेजबो :: (क्रि. स.) समेटना, स्वीकार करना, झेलना, किसी राज की जिम्मेवारी लेना।

अंगै :: (क्रि. वि.) बच्चों का प्रेम के कारण किसी विशेष व्यक्ति के प्रति अधिक आकर्षित रहना, प्रयोग जौ मोंड़ा आजी के भौत अंगे लगो।

अँगैबो :: (क्रि. अ.) अंग से अंग लगाना, लिपटना उदाहरण-कंज से कोमल अंग अँगैहै, ठाकुर।

अगोचर :: (वि.) जो इन्द्रियों के द्वारा न जाना जा सके, इन्द्रियातीत, जैसे-आत्मा, ईश्वर आदि, जो अस्तित्व में होने पर भी देखा, सुना या समझा जा सके।

अँगोछना :: (क्रि. अ.) कपड़े या अंगोछे से शरीर पोंछना।

अँगोछबो :: (क्रि. अ.) अंग पोंछना, गीले कपड़े से शरीर रगड़ना, बीमारों की शारीरिक सफाई इसी प्रकार की जाती है।

अंगोछबौ :: (क्रि.) किसी बीमारी में शरीर की सफाई गीले वस्त्र से करना।

अँगोछा :: (सं. पु.) छोटे बच्चों की धोती, पटका, तौलिया, बच्चों के पहनने योग्य छोटी धोती।

अंगोछा :: (सं. पु.) दुपट्टा, तौलिया।

अंगोछी :: (सं. स्त्री.) पतली तौलिया जिसे लोग कन्धे पर डाले रहते हैं, यह शीत लहर या गर्म लू से बचाने के काम आती है, पुराना महाजनी पोशाक का हिस्सा, देव मूर्तियों के अंग प्रक्षालन का वस्त्र, चिलम के धुंए को छानने के लिए उसके नीचे लगाया जाने वाला गीला कपड़ा।

अगोट :: (सं. पु.) प्रातः कालीन शिकार जो प्रायः जलाशयों के किनारे खेला जाता है, ओट, आड़, आधार।

अगोटब :: (क्रि.) कब्जा जमाना, अधिकार कर लेना, उदाहरण-सबरो घर अगोट लओ।

अँगोटबौं :: (क्रि. अ.) रोकना, छेड़ना, पकड़ना।

अंगोटबौ :: (क्रि.) कब्जे में करना।

अंगोटबौ :: (क्रि.) कब्जे में करना।

अगोनिया :: (सं. पु.) आतिशबाजी चलाने वाले, अगवानी करने वाले।

अगोनी :: (वि.) बुआई का समय प्रारम्भ होते ही बोई जाने वाली फसलें, जल्दबाजी।

अगोर :: (सं. स्त्री.) आगे की भूमि।

अगोराई :: (सं. स्त्री.) अगोरने की क्रिया या भाव, अगोरने के बदले में मिलने वाला पारिश्रमिक।

अगोरी :: (वि.) शैवमत के अघोर सम्प्रदायको मानने वाला साधु, गन्दा रहने वाला, स्वच्छता संबंधी आचार विचार को न मानने वाला, अघोरी।

अगोही :: (सं. पु.) ऐसा बैल जिसके सींग आगे निकले हुए हों।

अगौनी :: (सं. स्त्री.) बारात स्वागत के समय आतिशबाजी।

अँगौरिया :: (सं. पु.) वह हलवाहा जो मजदूरी के बदलें में किसान से हल बैल लेकर अपना खेत जोतता है।

अग्गापिच्छू :: (सं.) आगे-पीछे।

अग्गासबौ :: (क्रि.) बैलगाड़ी आदि के अगले भाग को उपर उठाकर पिछले भाग को नीचा करना या उस पर टिकाना, गाड़ी के पीछे हिस्से में अधिक बोझ होने के कारण गाड़ी का यकायक ऊपर उठ जाना।

अग्गासबौ :: (प्र.) गाड़ी अग्गास गई-गाड़ी ऊपर गई।

अग्गासिया :: (सं. पु.) आकाशदीप, कार्तिक महीने में आकाशदीप जलाना एक हिन्दू धार्मिक कृत्य है।

अग्याँ :: (सं. स्त्री.) आज्ञा, आदेश।

अघट :: (वि.) जो न हो सके, असम्भव, कठिन, असंगत, बेमेल।

अँघड़ा :: (सं. पु.) पैर अंगूठे मं पहनने का कांसे का छल्ला।

अघाकें :: (क्रि.) सांस लेना, आह भरना।

अघात :: (सं. पु.) अघात।

अघात :: (वि.) पेट भर, बहुत अधिक।

अघाती :: (वि.) घात या प्रहार न करने वाला।

अघाना :: (क्रि. अ.) तृप्त होना, छकना, पेट भर जाना, संतुष्ट होना, अघाना बगुला, पोठिया तीत बगुले का पेट भरा है, इसलिए उसे सब मछलियाँ कड़वी लग रही हैं, भरा पेट होने पर कोई वस्तु अच्छी नहीं लगती है।

अघावो :: (क्रि.) अघाजावो, भोजन करके तृप्त होना दे. अगाबौ।

अघासुर :: (सं. पु.) पाप, अधर्म, दोष, अघासुर कंस का सेनापति जिसे श्री कृष्ण ने मारा था, बकासुर इसकी ज्येष्ठ बहिन थी।

अघोरा :: (सं. पु.) अघोर पंथ का अनुयायी।

अघोरी :: (सं. पु.) वह व्यक्ति जिसने अत्याधिक पाप किये हों।

अघोरी :: दे. अगोरी, घृणित।

अचक :: (क्रि. वि.) अचानक, संपन्न, खूब कमी नहीं।

अंचक :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल जिसमें थोड़ी मिट्टी इकट्ठी करके उसमें पैसे कंकड़ आदि छिपाते है और दूसरा लड़का ढूढ़ता है, गँगरे जुआ।

अंचक :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल जिसमें थोड़ी मिट्टी इकट्ठी करके उसमें पैसे कंकड़ आदि छिपाते है और दूसरा लड़का ढूढ़ता है, गँगरे जुआ।

अचकचाबौ :: (क्रि.) हिचकना, बातचीत का तारतम्य न बिठा पाना।

अचकन :: (सं. पु.) अंगे या अंगरखे की तरह का एक लंबा पहनावा।

अचकबौ :: (क्रि.) पढ़ने में हिचकना, अटक-अटक कर पढ़ना।

अचक्क :: (वि.) खूब।

अचक्का :: (सं. पु.) अचानक होने की स्थिति का भाव।

अचंबो :: (वि.) अचानक, चुपचाप, आश्चर्य, अचंभा।

अचर :: (वि.) जो चर न हो, न चलने वाला, जो चल न सकता हो।

अचरज :: (सं. पु.) आर्श्चय, किसी बात या वस्तु के अप्रत्याशित रूप से या सहसा होने पर मन में होने वाला कौतुहल जनक भाव, आश्चर्य चकित करने वाली कोई विलक्षण बात या वस्तु।

अचरा :: (सं. पु.) आँचल, साड़ी का पल्लू।

अँचरा :: (सं. पु.) स्त्रियों की धोती का छोरा, आँचर, अंचल।

अचरी :: (सं. स्त्री.) एक देवी गीत।

अचरीदार :: (सं. पु.) ऐंठी का पैजना, एक डिजाइन का नाम।

अचला :: (सं. पु.) फकीराना ककड़ा जो पिंडली तक लम्बा रहता है, बाहें आधी रहतीहैं, किसी-किसी में बाहें नहीं होती हैं।

अँचला :: (सं. पु.) कमर में धोती का स्थान पर लपेटा जाने वाला कपड़े का कपड़ा।

अचवन :: (सं. पु.) आचमन, भोजन के उपरांत कुल्ला करने की क्रिया या भाव।

अचवना :: (क्रि. स.) आचमन करना, पी जाना, उदाहरण-भोजन के उपरांत हाथ मुँह धुलाना तथा कुल्ला कराना।

अँचवना :: (क्रि. अ. (सं. आचमन)) आचमन करना, भोजन के बाद मुँह हाथ धोना, कुल्ला करना।

अचवाना :: (क्रि. स.) दूसरे को आचमन कराना, भोजन किये हुए व्यक्ति का हाँथ मुँह धुलाना तथा कुल्ला कराना।

अचहंड-पचहंड :: (सं.) दायजा हंडा, पीतल के बर्तन आदि।

अँचाचँक :: (क्रि. वि.) अचानक।

अचार :: (सं. पु.) एक वृक्ष इसके फलों की गुठली तोड़कर चिरौंजी निकाली जाती है।

अचार :: दे. अथानों।

अचारी :: (सं. स्त्री.) मसालों के साथ रखा हुआ आम आदि का फल, मीठा अचार।

अचीती :: (वि.) अचानक।

अचीतो :: (वि.) अचानक।

अचीनी :: (सं. स्त्री.) अनजानी।

अचेत :: (वि.) संज्ञा रहित।

अचेवो :: (क्रि.) खाना खाने के बाद हाथ धोना।

अचैउन :: (सं. पु.) हाथ मुंह धोने से गिरा हुआ तथा बचा हुआ जल।

अचैबो :: (क्रि.) भोजन के पश्चात हाथ मुँह धोना तथा जल पीना।

अच्छत :: (सं. पु.) देवता पर चढ़ाये जाने वाले चावल के दाने, बिना टूटा हुआ।

अच्छर :: (सं. पु.) अक्षर, वर्ण।

अच्छाई :: (सं. स्त्री.) अच्छे होने की अवस्था या भाव, अच्छापन, विशेषता, खूबी, सुन्दरता, लाभ फायदा।

अच्छीतरा :: (सं.) अच्छी तरह।

अच्छौ :: (वि.) अच्छा, सुन्दर, भला, काम के योग्य, जो अपन वर्ग में उपकारिता, उपयोगिता, गुण पूर्णता आदि के विचार से औरों से बढ़कर और फलतः प्रशंसा या स्तुति के योग्य हो, जैसे अच्छा आचरण, अच्छा उपदेश अच्छा लड़का, अच्छा स्वभाव आदि।

अछक :: (वि.) जिसने भर पेट भोजन न किया हो, भूखा, जो तृप्त न हुआ हो।

अछकना :: (क्रि. अ.) तृप्त या संतुष्ट न होना, अभाव ग्रस्त रहना।

अछंग :: (सं. स्त्री.) बगैर किसी सहारे के।

अछंगा :: (वि.) बिना किसी सहारे के बिना कुछ पकड़े हुए, उदाहरण-चली अछंगा जाय दुहतू, हौरे डोर पधैया, लक्ष्मीनारायण वत्स।

अछनाधर :: (क्रि.) धुंआधार वारिश।

अछबन्ना :: (सं. पु.) वह बांस जिस पर करघे की लंबाई से बढ़ा हुआ ताने का सूत लपेटा जाता है।

अछयाउन :: (सं. पु.) निथारन कि बाद निकला हुआ द्रव, तलछट, पदार्थ।

अछयावो :: (क्रि.) पानी अछयावो, निथारना, अघुलनशील पदार्थ को स्थिर होने पर पदार्थ से पृथक करना।

अछरी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का बुंदेलखण्ड का गीत।

अछरूमाता :: (सं. स्त्री.) निवाड़ी से मड़िया ग्राम तक बस से फिर पैदल एक कुं है जिसकी थाह नहीं मिलती।

अछरौटी :: (सं. स्त्री.) अखरौटी।

अछवाई :: (सं. स्त्री.) अच्छापन।

अछवाना :: (क्रि. स.) साफ या स्वच्छ करना, संवारना तथा संजाना।

अछवानी :: (सं. स्त्री.) प्रसूत स्त्रियों को पिलाने के लिये तैयार किया एक प्रकार का शक्तिवर्धक तरल पदार्थ जिसमें अजवायन सौंठ आदि मसाले पड़े रहते हैं।

अछाई :: (सं. स्त्री.) साँप काटने पर झाड़ने के मंत्र।

अछियाबौ :: (क्रि.) निथारना।

अछियार :: (वि.) जो देखने में अच्छा भला या प्रिय लगे, अच्छे रूप रंग वाला।

अछीकर :: (सं. स्त्री.) शुद्ध, पवित्र।

अछीत :: (वि.) अक्षय।

अछुछर :: (सं. पु.) लौटकर आने पर लोग पूजा करते हां, उदाहरण-अछुछर उतारबो।

अछुतयाऊ :: (सं. स्त्री.) अछूता लेने वाली कन्या।

अछुतयाऊ :: दे. अछूता।

अछूज्जात :: (सं. पु.) अछूत जाति में उत्पन्न, अस्पृश्य।

अछूत :: (वि.) जो छुआ न जा सकता हो, जो छुये जाने के याग्य न माना जाता हो, जिसे स्पर्श करना विर्जित हो।

अछूता :: (वि.) जिसे अभी तक छुआ न गया हो जिसका अभी तक कोई उपयोग न हुआ हो, काम में न लाया हुआ, वह पकवान जो पूजा के समय कुंवारी कन्या अथवा गाय के लिये निकालकर रखा गया हो।

अछूतौ :: (सं. पु.) पहली रोटी बना कर रख देते हैं वह गाय या ब्राह्मण कन्या को दी जाती हैं, निर्देष विशेषण।

अजगर :: (सं. पु.) एक मोटी का साँप यह शरीर के मोटेपन के लिये प्रसिद्ध है, आलसी अजगर की तरह अधिक खाने और सुस्त पड़े रहने वाला, उदाहरण-अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न काम, दास मलूका कह गये सब के दाता राम-चाहे कोई काम करे या न करे, पर ईश्वर सब को खाने को देता, आलसी और संतोषी मनुष्य की उक्ति।

अजगरी :: (सं. स्त्री.) मादा अजगरी के सामान बिना परिश्रम का जीवन या वृत्ति, अजगर की तरह अधिक खाने और सुस्त पड़े रहने वाला सुस्त।

अजड़ :: (वि.) जो जड़ न हो अर्थात, चेतन।

अंजन :: (सं. पु.) आँख का सुरमा, काजल, रेलगाड़ी के आगे का इंजन, स्याही, लेप।

अंजन :: (सं. पु.) आँख का सुरमा, काजल, रेलगाड़ी के आगे का इंजन, स्याही, लेप।

अजनबी :: (वि.) जो स्थान आदि से परिचित न हो अथवा जिससे लोग परिचित न हों।

अजब :: (वि.) विचित्र, विलक्षण, अद्भुत, अनूठा, अनोखा, आश्चर्य युक्त, उदाहरण-अजब तेरी कुदरत, अजब तेरा खेल, छछूंदर भी डाले चमेली का तेल-जब किसी मनुष्य को संयोग से कोई ऐसी वस्तु काम में लाने के लिए मिल जाये, जो अपने जीवन में उसने कभी न देखी हो, अथवा जिसके वह बिल्कुल योग्य न हो।

अजमत :: (सं.) चमत्कार।

अजमाना :: (क्रि. स.) परीक्षा लेना, इसका शुद्ध रूप है आजमाना।

अजमाबौ :: (क्रि.) प्रयोग करने देखना, अनुभव से सिद्ध करना।

अंजर-खंजर :: (सं. पु.) बेकार सामान।

अंजर-खंजर :: (सं. पु.) बेकार सामान।

अंजर-पंजर :: (सं. पु.) शरीर के अंग या जोड़।

अंजर-पंजर :: (मुहा.) अंजर-पंजर ढीले होना। झटके, श्रम आदि के कारण सब अंगों और जोड़ों का हिलकर शिथिल हो जाना, ठठरी, पसली।

अंजर-पंजर :: (सं. पु.) शरीर के अंग या जोड़।

अंजर-पंजर :: (मुहा.) अंजर-पंजर ढीले होना। झटके, श्रम आदि के कारण सब अंगों और जोड़ों का हिलकर शिथिल हो जाना, ठठरी, पसली।

अजरई :: (वि.) कमी।

अजरा :: (वि.) बिना जुता बैल।

अँजरी :: (सं. स्त्री.) अंजलि, चैत की फसल की बुआई के समय भिक्षकों को अंजलि भरकर दिया जाने वाला अनाज, विवाह में बधू के हाथ से बटवाये जाने वाले बताशों की अंजलि।

अँजरों :: (वि.) बिना जुता जवान बैल।

अंजल :: (सं. पु.) अन्न जल, दाना-पानी।

अंजल :: (सं. पु.) अन्न जल, दाना-पानी।

अंजलि- :: (सं. स्त्री.) हथेली का वह रूप जो उँगलियों को कुछ ऊपर उठाने से बनता है, दोनों हथेलियों को उक्त रूप में एक साथ मिलाने से बनने वाला गड्डा, जिसमें भरकर कुछ दिया या लिया जा सकता है, अंजलि में आया या रखा हुआ प्राप्त या हस्तगत किया हुआ, खोबा।

अंजलि- :: (प्र.) खोबा में भर लो।

अंजलि- :: (सं. स्त्री.) हथेली का वह रूप जो उँगलियों को कुछ ऊपर उठाने से बनता है, दोनों हथेलियों को उक्त रूप में एक साथ मिलाने से बनने वाला गड्डा, जिसमें भरकर कुछ दिया या लिया जा सकता है, अंजलि में आया या रखा हुआ प्राप्त या हस्तगत किया हुआ, खोबा।

अंजलि- :: (प्र.) खोबा में भर लो।

अंजवाना :: (क्रि.) आंजना, आँख में काजल या सुरमा लगवाना।

अजवायन :: (सं. स्त्री.) मसाले तथा वातनाशक और हाजमें की दवा के काम आने वाले बीज।

अंजवार :: (सं. पु.) एक पौधे की जड़ जिसे हकीम लोग दवा के काम में लाते है।

अजस :: (सं. पु.) बुराई, बदनाम, अकीर्ति, कलंक।

अजा :: (सं. पु.) पितामह, पिता का पिता दादा।

अजा-पालक :: (सं. पु.) बकरियाँ पालने वाला।

अजान :: (वि.) अज्ञान, अनजान।

अजान :: (सं. स्त्री.) नमाज के पूर्व समय की चेतावनी देने हेतु ऊँचे स्थान से उच्च स्वर में कुरान की आयतों का पवित्र पाठ।

अजान :: (सं.) एक पेड़।

अजान :: (सं.) एक पेड़।

अजानपन :: (सं. पु.) ज्ञान न होने की अवस्था का भाव।

अजाने :: (वि.) अपरिचित, जिनके विषय में कुछ पता न हो।

अजामल-अजामिल :: (सं. पु.) एक पापी ब्राह्मण का नाम जो मरते समय अपने पुत्र नारायण का नाम लेने मात्र से तर गया।

अजायब :: (सं. पु.) अजब का बहुवचन, विलक्षण बातों या पदार्थो का वर्ग या समूह, उदाहरण-अजायब खाना, अजायबघर।

अजार :: (सं. पु.) रोग, बीमारी, शुद्ध रूप अजार।

अजिया :: (वि.) दादा. दादी का विशेषण वाचक शब्द, अजिया सास, अजिया ससुर।

अजी :: (अव्य.) सम्बोधन का शब्द, ऐ जी का संक्षिप्त रूप।

अजीज :: (वि.) जिससे प्रेम हो, प्रिय, जो निज का या अपना हो, आली, समीपी, निकट संबंधी, रिश्तेदार।

अजीब :: (वि.) जो अपनी सामान्य स्थिति से चकित कर दे, विलक्षण, जिसे देखकर आश्चर्य भी हो और प्रसन्नता भी, अद्भुत।

अजीरन :: (सं. पु.) अजीर्ण, अपच, कुपच अधिक भोजन के कारण उत्पन्न पेट सम्बन्धी व्याधि, उदाहरण-अजीरन को अजीरन ही ठेले, नही तो सिर चौहट्टे खेले-जो जैसा है उसका मुकाबला वैसा ही आदमी कर सकता है, यदि कोई दूसरा करे, तो हानि उठानि पड़ती है।

अजुध्या :: (सं. स्त्री.) श्रीराम का जन्म स्थान, अयोध्या नगर।

अजुर :: (वि.) न मिल सकने वाली।

अँजुरी :: (सं. स्त्री.) अंजलि।

अँजुरी :: दे. अंजरी।

अंजुरी :: (सं. स्त्री.) अंजुली।

अजुर्द :: (सं. पु.) यज्ञ का एक पद, अध्वर्यु।

अजू :: (संबो. अव्य.) दे. अजी (ब्रज और बुन्दली)।

अजूबा :: (वि.) आश्रर्य जनक, विचित्र।

अजैपाल :: (वि.) एक देवता।

अजोता :: (सं. पु.) चैत की पूर्णिमा, इस दिन बैलों को नही जोतते या नाधते।

अँजोर :: (सं. पु.) (सं. उज्जवल) उजाला।

अंजोरा :: (सं. स्त्री.) सूत निकालने को अंजोरा कहते हैं।

अंजोरी :: (सं. स्त्री.) चन्द्रमा की चांदनी, चांदनी रात, उजाला, प्रकाश, आभा, चमक-दमक, दीप्ति।

अज्जाझारौ :: (सं. पु.) अपामार्ग, एक पौधा जिसमें कँटीली लम्बी बाल होती है, ये तांत्रिक पूजन तथा मलेरिया की दवा के काम आता है।

अंझा :: (सं. पु.) लोप, बीच में पड़ने वाला अभावात्मक अन्तर, नागा, अवकाश, छुट्टी, उदाहरण-अंझासी दिन की भई।

अट :: (सं. स्त्री.) शर्त, अटक, प्रतिबन्ध, रोग।

अंट :: (सं. पु.) गोलियां खेलते समय अंगूठे को जमीन पर टेकर गोली को चोट लगाने की उँगलियों की विशेष मुद्रा।

अट-खट :: (वि.) अटपट, गड़बड़, टूटा हुआ, बिखरा हुआ।

अट-पट :: (वि.) वे सिर पैर का, बेडौल, बेढंगा।

अट-सट :: (वि.) इधर उधर का अनावश्यक अथवा निरर्थक।

अटक :: (क्रि.) अटक कर पढ़ना।

अटक :: (सं. स्त्री.) आवश्यकता, रूकावट, अवरोध।

अटककें :: (क्रि. वि.) विशेषकर, खसतौर से, रुककर।

अटकन-चटकन :: (सं. पु.) एक प्रकार का छोटे बालकों का खेल।

अटकना :: (क्रि. स.) रोकना, विध्न डालना, विलंब करना, छेकना।

अटकना :: (क्रि. अ.) चलते चलते अथवा कोई काम करते रूकना या ठहरना।

अटकर :: (सं. पु.) अनुमान, अंदाज, अटकरयाव।

अटकरपच्चूँ :: (क्रि. वि.) अनुमान से, अन्दाज, अन्दाजा, कल्पना, विचार, ख्याल।

अटकल :: (सं. स्त्री.) अनुमान, अंदाज, अटकल पच्चू गैर मुकर्रर-एक अनिश्चित अथवा केवल अनुमान पर आधारित बात।

अटका :: (सं. पु.) दीपक रखने के लिये दीवार में लगा पत्थर, इसके थोड़ा ऊपर एक मिट्टी का पारा लटका रहता है जिससे कालख ठाट में न लगकर उसी में इकट्टी होती रहै, जगन्नाथ पुरी में चढ़ाया गया भात और धन, अटका बनिया सौदा दे-जब कोई आदमी विवश होकर किसी के लिए कुछ करता है, पहेली।

अटकाना :: (क्रि. स.) रोकना, विध्न डालना, विलंब करना, छेकना, अटकल लगाना, अंदाज या अनुमान करना।

अटकाबौ :: (क्रि.) रूकावट डालना, उलझना, किवाड़ बन्द करना।

अटकार :: (सं. पु.) रोक, रूकावट, बाधा, विध्न।

अटकीली :: (सं. स्त्री.) रूकने वाले, बाधा डालने वाली वस्तु।

अटके खागे :: (वि.) कभी-कभी।

अटकौआ :: (वि.) गरजमंद।

अटखबो :: (क्रि.) देखना।

अटन :: (सं. पु.) धूमना, फिरना, चलनास यात्रा भ्रमण।

अटना :: (क्रि. अ.) समाना, भर जाना।

अंटना :: (क्रि. अ.) व्यवधान रूकावट, करना या समाना, पूरा पड़ना, यथेष्ट होना, उपयोग में आने के कारण समाप्त होना, अटकना, किसी वस्तु का भीतर आना।

अटपटाना :: (क्रि. अ.) अटकना, लड़खड़ाना।

अटपटी :: (वि.) टेढ़ा-मेढ़ा, कठिन, उल्टा सीधा।

अंटबँधा :: (क्रि. वि.) वह लकड़ी जिसमें कपड़ा बुनते समय आट बाँध देते हैं।

अटबाटी-खटवाटी :: (सं. स्त्री.) गृहस्थी का सामान, जैसे-खाट बिस्तर आदि।

अटब्बर :: (सं. पु.) घर के सब लोग, परिवार।

अटमबम :: (सं. पु.) दे. अणुबम।

अटर :: (सं. स्त्री.) जटिलतायुक्त कार्य करने में अनुभव होने वाला मानसिक बोझ, टेढ़ी-मेढ़ी प्रक्रिया, शारीरिक और मानसिक मिला जुला परिश्रम।

अटरिया :: (सं. स्त्री.) दे. अटारी।

अटल :: (वि.) अचल, द्दढ़, जो टल न सके, स्थिर, नित्य, ध्रुव, पक्का, चिर स्थायी।

अटवाँ :: (क्रि.) रुकावट आना।

अंटसंट :: (वि.) अंडबंड, अनाप शनाप, अनर्गल, दे. अंडबंड।

अटा :: (सं. पु.) बहुमंजिली इमारत की उपरी छत, उपरी मंजिल।

अंटा :: (सं. पु.) चित्त और पट्ट, औंधे और सीधे के बीच की स्थिति।

अंटा :: (कहा.) चित्त मोरी, पट्ट मोरी, पट्ट मोरी, अंटा पै लड़ाई, बड़ी कौड़ी, सूत रेशम का लच्छा, एक प्रकार का खेल, उदाहरण - चित्त मोरी वह मोरी अंटा, अंटा में धरे सुरक्षित है, अंटा-ऐसा कौड़ा जो चित्त में हो न पट्ट में, अंटा खोलना, बांधना, फंदा, अंटा बीद गओ।

अटाई :: (सं. स्त्री.) छत के उपर के खण्ड पर बनी हुई कोठरी।

अंटागुडगुड :: (वि.) नशे में चूर या बेसुध, अचेत, मूर्छा, बेहोश।

अंटाचित :: (क्रि. वि.) पीठ के बल पड़ा या लेटा हुआ, पूरी तरह से हारा हुआ, पराजित, स्तब्ध, स्तंभित, नशै आदि के कारण अचेत या बेसुध पड़ा हुआ, जो शक्ति आदि से रहित योग्य न रह गया हो।

अंटाचित :: (मुहा.) अंटाचित होना-सन्न हो जाना, अवाक् होना।

अँटाना :: (क्रि. स.) अवकाश या स्थान निकालकर किसी को उसमें भरना, रखना या लेना, ऐसा काम करना कि कोई चीज यथेष्ट हो जाय।

अटारी :: (सं. स्त्री.) भूमितल से उपर किसी भी तल का कमरा।

अटाल :: (सं. पु.) घरहरा, मीनार, बुर्जस, अटाला।

अटाला :: (सं. पु.) राशि, ढ़ेर, समूह, सामान, सामग्री, असबाब कसाईयों की बस्ती।

अटाव :: (सं. पु.) द्वेष, बैमनस्य, दुष्टता, पाजीपन, अंटने या समाने की क्रिया या भाव।

अटिया :: (सं. स्त्री.) झोपड़ी, पर्णकुटी, मड़ैया, छोटा मकान।

अंटिया :: (सं. स्त्री.) सूत की लच्छी।

अंटियाना :: (क्रि.) अंटी में रखना या लेना, छिपाना, गायब करना, गठियाना।

अटी :: (सं. स्त्री.) टिटहरी की जाति की बहुत तेज उड़ने वाली एक चिड़िया।

अंटी :: (सं. स्त्री.) धोती की कमर की लपेटन, गाँठ, धोती के फेंटा की दुपट, खेलने की छोटी गोली, रस्सी की ऐसी लपेट की वह आधार वस्तु पर से खिसके नहीं।

अटूट :: (वि.) न टूटने योग्य, द्दढ़, पुष्ट, मजबूत, अजेय, अखंड, सम्पूर्ण, बहुत, अधिक।

अटे-धरे :: (सं.) इकट्ठे सामान का ढेर।

अटे-पटे :: (सं. पु.) चुकता हुए, ली हुई चीज, पैसा आदि वापिस लेना।

अटेपरे :: (वि.) भरे हुए।

अटेरन :: (सं. पु.) नये घोड़े की सवारी के लिए एक विशेष प्रकार की तालीम का नाम, लकड़ी की बनी हुयी सूत लपेटने की तख्ती, एक विशेष प्रकार का पटिया।

अटेरना :: (सं. स्त्री.) सूत की लच्छी बनाना।

अटेरबो :: (क्रि. अ.) तकुए पर से उतार कर लच्छी या गुण्डी बनाने के लिये एक विशेष आकार के पटिये पर लपेटना।

अटोक :: (वि.) बिना रोक टोक का।

अटौरी :: (सं. स्त्री.) बांस का बना हुआ उथला और चौड़ा बर्तन जिसकी तली दुहरी होती है दोरिया।

अट्टपार :: (सं. पु.) अष्ट प्रहर, आठों याम, कभी भी, जब चाहे तब, किसी भी समय।

अट्टसट्ट :: (सं. पु.) व्यर्थ की बात, अनापशनाप, बिना प्रमाण का।

अट्टसट्ट :: (वि.) व्यर्थ, बिना सोचा या अनुमान किया हुआ।

अट्टहास :: (सं. पु.) खिल खिलाकर हंसना, कहकहा मारना।

अट्टा :: (सं. पु.) मकान का उपरी भाग, मचान, लपेटकर बनाया हुआ सूत का बड़ा लच्छा, बड़ी अटी।

अट्टाइसवाँ :: (वि.) गिनती में जिसका स्थान सत्ताइसवें के बाद और उन्तीसवें के पहले हो।

अट्टाचन्दा :: (सं. पु.) खेल, बच्चों का खेल जिसमें कौड़ियों से पासे डालते है, आठ घर (खाने) की डिजाइन बनाकर खेला जाने वाला खेल।

अट्टाल :: (सं. पु.) अटारी, घरहरा, बुर्ज, महल।

अट्टी :: (सं. स्त्री.) अटेरन पर लपेटकर तैयार किया हुआ सूत या ऊन का लच्छा।

अट्ठा :: (सं. पु.) आठ बूटियों बाला ताश का पत्ता, आठ की इकाई, चौपड़ के खेल में आठ अंक का पाँसा, आठ अंक।

अट्ठाइसा :: सेर, यह अट्ठाइस टका वाला इससे दाल आटा आदि तोलते हैं, यह ८२ कलदार का होता है।

अठइसी :: (सं. स्त्री.) फलों की गिनती का वह प्रकार जिसमें अठाईस गाहियों अर्थात १४० का सैकड़ा माना जाता है।

अठई :: (वि.) आठ का वह संक्षिम रूप जो उसे यौगिक शब्दों के आरम्भ में लगाने पर प्राप्त होता है, जैसे अठ पहला, अठ मासा, अष्ठमीं, आठवीं आदि।

अँठई :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कीड़ा जो साधारणतया कुत्ते और गाय, बैल के शरीर में पाया जाता है, चौपायों के शरीर पर चिपटने वाले कीड़े जिनके आठ पैर होते हैं, चिचड़ी, किलनी, अष्टपदी।

अठकरी :: (सं. स्त्री.) वह पालकी जिसे आठ कहार ढोते हैं।

अठकलियाँ :: (वि.) आठ कलियों वाला।

अठखेली :: (वि.) अठखेलियाँ करने वाला।

अठखेली :: (सं. स्त्री.) अल्हड़पन मस्ती और विनोद से भरी चंचलता, चुलबुलापन, चंचलता के कारण दूसरों से की जाने वाली छेड़छाड़, चोचलापन।

अठत्तर :: (वि.) सत्तर तथा आठ के योग की संख्या।

अठन्नी :: (सं. स्त्री.) आठ आने मूल्य का छोटा सिक्का, आधे रूपये का सिक्का, पुराने बत्तीस पैसे, नये पचास पैसे का सिक्का, आधा तौले का वजन।

अठपतिया :: (वि.) आठ पत्तों या पत्तियों वाला।

अठपहिया :: (वि.) जो आठ पहियों वाला हो जिसके आठ पहिये हों।

अठमासा :: (वि.) अठमाह सन्तान, माँ के गर्भ से आठवों माह जन्म लेने वाला, आठ मास का, सीमान्तोपनयन संस्कार।

अठयाव :: (सं. पु.) उपद्रव, ऊधम, शरारत, चुहलपना।

अठलाना :: (क्रि. अ.) अठखेलियाँ करना, चौंचले दिखाना, इतराना, जान बूझकर अनजान बनना या खिलबाड़ करना, ऐंठ या शेखी दिखाना, गर्व करना, मस्ती करना।

अठवना :: (क्रि. अ.) आगे बढ़ना, इकट्ठा या जमा होना, ठानना।

अठवाई :: (सं. स्त्री.) पूजा या प्रसाद के लिये बनाई जाने वाली छोटी-छोटी पूड़ी।

अठवारी :: (सं. स्त्री.) वह प्रथा जिसमें असामी को प्रति आठवें दिन अपना हल बैंल जमींदार को खेत जोतने के लिये देना पड़ता है।

अठहत्तर :: (वि.) जो गिनती में सत्तर और आठ हो।

अठहत्तर :: (सं. पु.) उक्त की सूचक संख्या।

अठाई :: (सं. पु.) उपद्रवी, उत्पाती।

अठाना :: (क्रि. स.) सताना, दुख देना।

अठारहवाँ :: (वि.) क्रम या गिनती में १८ के स्थान पर पड़ने वाला।

अठारा :: (वि. पु.) अठारह, दस धन आठ की संख्या।

अठावन :: (वि.) जो गिनती में पचास और आठ हों।

अठासिवाँ :: (वि.) क्रम या गिनती में ८८ के स्थन पर पड़ने वाला।

अठासी :: (वि.) ८८ की संख्या, अस्सी धन आठ की संख्या।

अठिलाना :: (क्रि. अ.) इठलाना, ऐंठ दिखाना, गर्व करना।

अठींडी :: (सं. पु.) चौपायों के शरीर में लगने वाला एक प्रकार का कीड़ा, जिसके आठ पैर होते हैं।

अठेठाँ :: (वि.) अचानक, अनदाज से, अटकल लगाना।

अठेली :: (वि.) जो ठेला अर्थात आगे बढ़ाया या हटाया न जा सके।

अठैन :: (सं. स्त्री.) अशुभ, ऐसी वस्तु देख लेना जिससे कार्य पूर्ण न हो।

अठोकर सौ :: (वि.) एक सौ आठ।

अठोंगर :: (सं. पु.) व्याह की एक रस्म जिसमें वर तथा अन्य सात व्यक्ति एक साथ मूसल पकड़कर धान कूटते हैं उदाहरण-धरिअउ मूसर सम्हारि, अठोंगर विध भारी है, लोकगीत।

अठोतरी :: (वि.) एक सौ आठ दानों की माला।

अठौरा :: (सं. पु.) एक पत्ते में बंधे हुए पान के आठ बीड़े।

अठ्ठाईस :: (वि.) जो गिनती में बीस से आठ अधिक हो।

अठ्ठानवे :: (वि.) जो गिनती में ९० से ८ अधिक हो।

अड़ :: (सं. स्त्री.) हठ, जिद, रूकावट, विध्न, हठ से विरोध।

अंड :: (सं. पु.) पक्षयों आदि का अंडा, अण्डकोश, वीर्य, विश्व, ब्रह्मांड, उदाहरण-अंड अनेक अमल जस छाबा, मृग की नाभि जिसमें कस्तूरी रहती है, कामदेव।

अंड चमंडो :: (वि.) बेढ़ग का काम।

अड़इया :: (सं. पु.) ढाई का पहाड़ा, ढाई दिन का उपवास, अढ़ाई सेर।

अड़की :: (सं. स्त्री.) लेन देन की एक पुरानी बहुत छोटी इकाई, कहावत है अड़की ऊँट लगो, पै अड़की तो होय हाथ में।

अड़कै :: (क्रि. वि.) हटकर, जोर जबरदस्ती से, अड़कर।

अंडकोश :: (सं. पु.) पोता, पंच आवरण, दूध पीकर पलने वाली जीवों, नरों या पुरूष इन्द्रिय के नीचे की थैली जिसमें दो गुगलियाँ होती हैं, सारा विश्व, अण्ड कटाह, फल का ऊपरी छिलका।

अडग :: (वि.) न डिगने वाली, स्थिर।

अड़ंग-बड़ंग :: (वि.) क्रम रहित और बेढंगा, अंड-बंड, अनावश्यक अनुचित व्यर्थ।

अड़गड़ :: (सं.) अता-पता।

अड़गड़ा :: (सं. पु.) बैल गाड़ियों के ठहरने का स्थान, पशुओं की बिक्री का स्थान, अता पता।

अड़ंगा :: (सं. पु.) बाधा, अर्गला, अबरोध, व्यवधान, किवाड़ों के बन्द करने की लकड़ी।

अड़ंगा :: (सं. पु.) रूकावट, विध्न, व्यवधान, ऐतराज।

अड़ंगा :: (वि.) व्यवधान।

अड़ंगेबाजी :: (सं. पु.) वह जो दूसरों के कार्यों में अडंगा लगाने का क्रिया भाव।

अड़गोड़ा :: (सं. पु.) एक लकड़ी का टुकड़ा जो नटखट पशुओं के गले में बाँध देते हैं जिससे पशु अधिक दूर नहीं भाग सकता, ठेंकुर, डेंगना, डेंगुर।

अड़चन :: (सं. स्त्री.) रूकावट, बाधा, विध्न, कठिनता, दिक्कत।

अड़चबो :: (वि.) जबरदस्ती करना।

अंडज :: (वि.) अंडे से जन्म लेने वाला, अंडे से उत्पन्न जीव।

अड़डंडा :: (सं. पु.) लकड़ी या बांस का वह डंडा जिसके दोनों सिरों पर लट्ट रहते हैं और जिनकी सहायता से मस्तूल पर पाल बांधे जाते हैं।

अड़ड़पोपो :: (सं. पु.) सामुद्रिक विद्या का ज्ञात, सामुद्रिक शास्त्री, पाखण्डी, आडंबरी, बकवादी।

अड़तला :: (वि.) आश्रय, शरण देने वाला, रक्षक।

अड़तालीस :: (वि.) ४८ की संख्या, चालीस और आठ के योग की संख्या।

अड़तीस :: (वि.) ३८ की संख्या, तीस और आठ के योग की संख्या।

अड़न :: (सं. स्त्री.) अड़ने की क्रिया या भाव, जिद, हट, खडे होने, बैठने आदि की स्थिति।

अड़ना :: (क्रि. अ.) रूकना, ठहरना, हठ करना, आगे न बढ़ना।

अड़ना :: (सं. पु.) बीच में कोई चीज इस प्रकार फँसाना या लगाना कि किसी की गति या मार्ग रूक जाय, फँसाने या रोकने के लिए बीच में कुछ लगाना, बाधा या विध्न उपस्थित करना, उलाहना, गिरती हुई चीज रोकने के लिए उसके नीचे टेक लगाना।

अड़पंचा :: (सं. पु.) अवरोध, व्यवधान, किसी कार्य की गति में व्यवधान पैदा करने वाला प्रसंग।

अड़पना :: (सं. पु.) बाधा, विध्न, अडबंग।

अड़बंग :: (वि.) विचित्र, टेढ़ा-मेढ़ा, ऊँचा नीचा, दुर्गम, कठिन, विलक्षण।

अंडबंड :: (वि.) असम्बद्ध प्रलाप, अनापशनाप, गाली-गलौज, व्यर्थ का, बेसिर पैर का, भद्दा, अनुचित, इधर उधर का, अनावश्यक या अनुपयुक्त, दो उंगलियों के बीच की जगह।

अंडबंड :: (मुहा.) अंटी मारना, जुआ खेलते समय (बेइमानी से) उंगलियों में कौड़ी छिपा रखना, चालाकी से की चीज छिपा या दबा लेना, वह मुद्रा जिसमें हाथ की उंगली पर दूसरी उंगली चढ़ी हो, कमर पर पड़ने वाली धोती की लपेट जिसमें लोग रूपये पैसे रखते हैं, सूत आदि की लच्छी, मन में पड़ने वाली गाँठ-आंट, कुश्ती का एक पेंच।

अंडबंड :: (मुहा.) अंटी देना या मारना, प्रतिद्वन्दी को गिराना या हराना, आँय बाँय।

अड़बंध :: (सं. पु.) लंगोटा, कोपीन।

अड़ंबर :: (सं. पु.) सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों के कारण बादलों में दिखाई देने वाली जाली।

अंडबिजौरो :: (सं. स्त्री.) पपीता, फल।

अड़बौ :: (क्रि. अ.) अटकना, हठ करना, हठ करके किसी बात पर आरूढ़ होना।

अड़म्बार :: (सं. पु.) आडम्बर, असंगत वस्तुओं का जमाव।

अड़यावौ :: (क्रि. अ.) आड़ा होना, जहाँ बैठे वही लेट जाना।

अडर :: (वि.) निर्भय निडर।

अंडरना :: (क्रि. अ.) धान के पौधे में बाल निकलना।

अंडस :: (सं. स्त्री.) असुविधा, कठिनाई होना, कष्ट पाना, ऐसी कठिन परिस्थिति जिसमें से सहज में निकलना न हो सके, दुख मय जीवन बिताना।

अड़सट्टा :: (सं. पु.) अचानक, अंदाज से।

अड़सठ :: (वि.) ६८ की संख्या।

अड़सठवाँ :: (वि.) जो क्रम से सड़सठवे के उपरांत हो।

अंडसना :: (क्रि. अ.) बीच में, इस प्रकार अटकना या फलना कि चारों ओर से दबाव पड़ने के कारण सहज में न निकल सके।

अड़हुल :: (सं. पु.) जया पुष्प।

अंडा :: (सं. पु.) कुछ विशिष्ट मादा जीवों के गर्भाशय से निकलने वाला वह गोल या लम्बोतरा पिण्ड जिसमें से उनके बच्चे जन्म लेते हैं जैसे चिड़ियाँ, मुर्गी या साँप का अंडा।

अड़ा-अड़ी :: (सं. स्त्री.) आपस में एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयत्न, होड़।

अड़ाई :: (वि.) ढाई, दो धन आधे की संख्या।

अंडाकार :: (वि.) अंडे के आकार का लम्बोतरा गोल।

अड़ाड़ :: (सं. पु.) अड़ने की अवस्था या भाव, अड़ने, ठहरने या रूकने का स्थान पड़ाव।

अड़ानी :: (सं. स्त्री.) वह चीज जो किसी को रोकने के लिये उसके मार्ग में रखी या लगाई जाये, लकड़ी की वह गुल्ली जो खिड़कियों दरवाजों आदि को बन्द होने से रोकने के लिए चौखट और पल्ले की बीच में लगाई जाती है कुश्ती का अडंगा व दाव या पेंच।

अड़ार :: (वि.) टेढ़ा, तिरछा।

अड़ार :: (सं. पु.) समूह, ढेर, विक्री के लिए रखा हुआ ईधन का ढेर, लकड़ी या ईधन की दुकान, टाल।

अड़ास :: (सं. पु.) टिकने के लिए कोई सहारा, रोक, किसी वस्तु के स्वतंत्र चालन में अवरोध।

अड़ास :: (सं. स्त्री.) टिकने के लिए कोई सहारा, रोक, किसी वस्त्र के स्वतंत्र चालन में अवरोध।

अडिग :: (वि.) जो अपने से डिगे या हिले नहीं, अचल, अपनी प्रतिज्ञा या प्रण से पीछे न हटने वाला।

अंडिनी :: (सं. स्त्री.) स्त्री में होने वाला एक रोग।

अड़ियल :: (वि.) जिद्दी, ऋजुताहीन, किसी की बात न मानने वाला, चलते समय बीच में रह रह के अड़ने या रूकने वाला, जैसे अड़ियल घोड़ा वह घोड़ा जो चलते या चलने के पहले रूके और आगे बढ़ने से मुँह मोड़े और जी चुराये, अड़ियल बैल-गाड़ी खींचने से जी चुराने और एक जगह जमकर खड़े हो जाने वाला बैल।

अड़ियां :: (सं. स्त्री.) सूत की पिंडी, एक कंद जिसका अचार रखते हैं, घुटने की नीचे और टखने के ऊपर का पैर का भाग।

अंडिया :: (सं. पु.) बाजरे की पकी हुई वाली, सूत की पिंडी, पैर के घुटनों वा पंजों का भाग, स्त्री गांठें और घूंटे का सम्मिलित हिस्सा, अटेरन जिस पर सूत लपेटते हैं, अंडिया सूत की गुत्थी जो तकुवा पर सूत कात कर लपेटी जाती है।

अड़ी :: (सं. स्त्री.) ऐसी स्थिति जिसमें आगे बढ़ना कठिन हो, अड़ी कौ पासौ-चौपर के खेल में गोट मारने के लिए विषम संख्याओं वाले पाँसे, अड़ी के पाँसे कहलाते है, दो आदमियों के बीच बेढ़ंग तरीके से कोई बात अटक जाने पर प्रयुक्त।

अंडी :: (सं. स्त्री.) एरण्ड, रेंड का वृक्ष, फल या बीज, एक प्रकार का मोटा रेशम, इस रेशम की बनी चादर या कपड़ा।

अड़ीधत्त :: (वि.) बिना अधिक सोच विचार के की काम पर जुट जाने तथा उससे पीछे न हटने वाला (अड़ीधक्क)।

अड़ीबंब :: (वि.) बलवान।

अडीयाँ :: (सं. स्त्री.) सूत की पिंडी, टाँगों का ऊपरी भाग।

अडुआ :: (सं. पु.) मूर्ख, व्यवधान, रोक, पत्थर या लकड़ी काटने की बड़ी छैनी।

अंडुआ :: (सं. पु.) वह बैल जिसमें आंड़ न निकाले गये हो, जो बधिया न किया गया हो, साँड़ लाक्षणिक-सुस्त आदमी।

अडुवा :: (सं. पु.) व्यवधान, रोक, पत्थर या लकड़ी फाड़ने की बड़ी छैनी।

अडुवा :: (वि.) नौसिखिया, गंवार। जबरदस्ती के मेहमान।

अडुवा :: (प्र.) उडुवा नाती पडुवा गोत।

अँडुवारी :: (सं. स्त्री. सं.) (अणु-छोटा टुकड़ा) एक प्रकार की छोटी मछली।

अडूलना :: (सं. स्त्री.) जल आदि उड़ेलना, गिराना या डालना।

अडूसबौ :: (क्रि.) कब्जे में करना।

अडूसा :: (सं. पु.) एक प्रकार का पौधा और उसका फल।

अडूसौ :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु को लुढ़कने या ढड़कने से बचाने के लिये रोक।

अड़ेंच :: (वि.) बाधा।

अड़ैया :: (सं. पु.) अढ़ाई सेर की तौल, ढाई गुणे का पहाड़ा।

अड़ैल :: (वि.) दे. अड़ियल।

अँडैल :: (सं. स्त्री.) (हि. अंडा) मादा जन्तु जिसके पेट में अंडे हों, अंडूसवो।

अड़ोल :: (वि.) न डोलने वाला, अटल, स्थिर, द्दढ़।

अड़ोसी-पड़ोसी :: (सं. पु.) अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले।

अड्डन :: (सं. पु.) ढाल।

अड्डबो :: (क्रि.) गोलियों के खेल में चाल के लिये स्थान ग्रहण करना, बाजी लगाना।

अड्डबो :: (प्र.) प्रान अड्डबौ-प्राणों की बाजी लगाना।

अड्डा :: (सं. पु.) किसी विशिष्ट कार्य के लिये नियत स्थान (अधिकांश हीन अर्थ में प्रयुक्त )।

अड्डारो :: (सं. स्त्री.) नदी नाले की ऊँची नीची जगह, अड्डा ढर्रो।

अड्डी :: (सं. स्त्री.) देशी जूते का अगला हिस्सा।

अढ़ :: (सं. स्त्री.) अड़।

अढ़ाई :: (सं. पु.) अड़ाई, ढाई, दो और आधा, दो सही एक बटे दो, ढीठ, जबरजस्त, जो संख्या में दो और आधा हो-ढ़ाई, उदाहरण-अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज-हनहोनी बात, दूर की हाँकना।

अढ़ितया :: (सं. पु.) वह व्यापारी जो दूसरों का माल अपने यहां बिक्री के लिये अमानत के रूप में रखता और बिक जाने पर उसका दाम चुकाता हो।

अढुर :: (वि.) ढीठ, जबरदस्त।

अढ़ैया :: (सं. पु.) अढाई सेर।

अत :: (सं. स्त्री.) अति उत्पात, असामाजिक व्यवहार, अमर्यादित कार्य, सीमाहीन।

अंत :: (सं. पु.) इति, शेष, वह स्थान जहाँ किसी चीज या बात के अस्तित्व विस्तार आदि का अवसान या समाप्ति होती हो, कोई अन्य, छोर, सिरा, मृत्यु, नाश, परिणाम, फ ल, नतीजा, प्रलय।

अंत :: (क्रि. वि.) अन्तिम अवस्था या दशा में, आखिरकार, उदाहरण-उघरेहि अंत न होहि निबाहू-तुलसी, वक्ता के स्थान से अलग या दूर, दूसरी जगह पर, उदाहरण-गोप सखन संग खेलत रहौं, ब्रज तजि अंत न जैहों।

अंत :: (पु.) अन्तः करण, हदय, भेद, रहस्य आदि की थाह।

अंत :: (मुहा.) किसी का अन्त लेना, यह पता लगाना कि किसी के मन में क्या बात है, या किसी विषय में उसकी कितनी जानकारी है।

अतंक :: (सं. पु.) अतंक।

अंतक :: (वि.) अन्त या नाश करने वाला।

अतकारो :: (सं. पु.) अतिरिक्त।

अतगत :: (वि.) अति तक पहुँचा हुआ, बहुत अधिक।

अंतड़ी :: (सं. स्त्री.) आँत।

अंतड़ी :: (मुहा.) किसी की अंतड़ी टटोलना-भीतरी बातों की थाह लेने या पता लगाने का प्रयत्न करना, अँतड़ी जलना-भूख के मारे बुरा हाल होना, अँतड़ियों के बल खोलना-बहुत दिन बाद भोजन मिलने पर तृप्त होकर खाना।

अतंत :: (वि.) अत्यंत।

अतपई :: (सं. स्त्री.) आधापाव का बांट।

अतपर :: (सं. स्त्री.) बिना सहारे के, बीच में।

अतर :: (सं. स्त्री.) इत्र, उदाहरण-मन्दिर भरो सुगन्धित चन्दन, अतर बहत पनारो, लोकगीत।

अंतर :: (सं. पु.) फर्क, अलगाव, किसी वस्तु का भीतरी भाग, बीच, मध्य, दो वस्तुओं के बीच की दूरी, दो घटनाओं के बीच का समय, दो वस्तुओं को आपस में पृथक या भिन्न करने वाला तत्व या बात, भेद, फटक, दो वस्तुओं के बीच रहने वाला आवरण, आड़, ओट, छिद्र, आत्मा, परमात्मा, वस्त्र, कपड़ा, अन्तः करण, हदय।

अतरछल :: (सं. स्त्री.) पेड़ की सूखी छाल के नीचे की गीली छाल।

अतरदान :: (सं. पु.) वह पात्र जिसमें अतर रखे जाते हैं, इत्र रखने की डिब्बी, पत्थर की वह पटिया जिससे छज्जा पाटते हैं।

अतरन :: (सं. स्त्री.) खम्मे की कुर्सी के ऊपर रखी हुई पत्थर की छत्ती।

अतरयाकें :: (सं. पु.) एक दिन छोड़ के।

अतरयाव :: (क्रि. वि.) एक-एक दिन के अन्तर पर करना या होना, एक-एक दिन का दुष्क्रमत्व।

अँतरयाव :: (सं. स्त्री.) एक दिन के बाद के क्रम से।

अँतरा :: (सं. पु.) पारी देकर आने वाला ज्वर, कोना।

अंतरा :: (सं. पु.) बीच का अवकाश, अन्तर, अन्तराल, कोना, किसी गीत के पहले पद या टेक को छोड़कर दूसरा पद या चरण।

अतराई :: (सं. स्त्री.) आकुलता, बैचेनी, उदाहरण-नैननि की अतुराई, बैनन की चतुराई, गात की गुराई, न दुरति दुति चाल की, रसिक प्रिय।

अतरारी :: (सं. स्त्री.) खपरैल छप्पर में बड़ैरे के समानान्तर पलानी के बीचोंबीच लगने वाली बल्ली।

अतरिख :: (सं. स्त्री.) अंतरिक्ष।

अंतरिच्छ :: (सं. पु.) अंतरिक्ष, आकाश।

अँतरिया :: (सं. पु.) अंतरा नामक ज्वर, आँते।

अँतरुआ :: (सं. पु.) एक-एक दिन के अन्तर पर आने वाला ज्वर, पारी का बुखार।

अँतरुआ :: (वि.) बीच में एक छोड़कर दूसरा।

अतरूआ :: (सं. पु.) एक दिन छोड़कर पारी में आने वाला ज्वर, म्यादी बुखार।

अतरेफी :: (वि.) बाहरी।

अतरौंटा :: (वि.) एक दिन के अन्तर से आने वाला।

अंतरौटा :: (सं. पु.) अंतर्पट कपड़े का वह छोटा टुकड़ा जो ब्रज में स्त्रियाँ प्रायः चोली आदि के ऊपर पेट और पेडू पर लपेटती हैं, उदाहरण-श्री भामिनि कौ ले अंतरौटा मोहन शीघ्र ओढ़ायो-गोविन्द स्वामी।

अतरौंर :: (सं. स्त्री.) अनाज रखने के भाण्डों की श्रृंखला।

अतर्क :: (सं. पु.) तर्क का अभाव, कुतर्क बुरा तर्क, कुतर्क रहित, बिना, तर्क के अनुचित या बुरे तर्क से युक्त।

अंतस :: (वि.) हृदय से।

अता :: (सं. पु.) नाम, दानपत्र, बख्शीशनामा।

अता-पता :: (सं. पु.) ऐसा चिन्ह, पता या लक्षण जिससे कोई बात जानी जा सके या किसी तक पहुँचा जा सके।

अताई :: (वि.) जो अपनी प्रतिभा से कोई काम सीख ले, बिना शिक्षक की सहायता से काम करने वाला, उद्यमी।

अति :: (अव्य.) चरम सीमा पर पहुँचा हुआ, बहुत अधिक।

अतिकाय :: (वि.) स्थूल, मोटा, बडे और मोटे शरीर बाला, लंबा चौड़ा।

अतिथि :: (सं. पु.) अतिथ, अभ्यागत, मेहमान, मुनि, जैन साधु।

अतिवाद :: (सं. पु.) कठोर वचन, झिड़कना, फटकार, भला बुरा कहना।

अतिवादी :: (सं. पु.) अधिक बोलने वाला, वाचाल, अभिमानी, झूठा।

अतिविकट :: (वि.) अति भयानक, भयावह, डरावना, दुष्ट हाथी।

अतीचार :: (सं. पु.) मर्यादा या सीमा का उल्लंघन, विशेषण देखिये अतिचार।

अतीतना :: (अ.) गुजरना, बीतना, व्यतीत करना, बिताना, छोड़ना, त्यागना।

अतीस :: (सं. स्त्री.) एक पौधा जिसकी जड़ दवा के काम आती है।

अतीसार :: (सं. पु.) एक रोग जिसमें पतले दस्त लगते हैं।

अतुराई :: (सं. स्त्री.) आकुलता, जल्दी, चंचलता, घबराहट।

अतुराना :: (क्रि. अ.) अकुलाना, घबराना।

अतूत :: (सं. स्त्री.) एक विशेष प्रकार का पेड़ इसमें छोटे-छोटे फल भी लगते हैं।

अतें :: (वि.) इतना, बहुत अधिक, उदाहरण-अतें रूप मूरति परगटी, पुनउ ससि सो खीन होई घटी। जायसी।

अंतेर-खोंतरे :: (वि.) इधर उधर या किसी कोने में, कभी कभी।

अतोला :: (सं.) अंदाज से।

अत्त :: (सं. पु.) अति, उत्पात, असामाजिक व्यवहार, अमर्यादित कार्य।

अत्ती :: (सं. स्त्री.) दे. अति।

अत्पइया :: (सं. स्त्री.) आधी पाई।

अत्पउवा :: (सं. पु.) आधा पाव।

अत्पर :: (क्रि.) बीच में अधर।

अथउँ :: (सं. पु.) वह भोजन जो जैन लोग सूर्यास्त से पहले करते हैं।

अंथउ :: (सं. पु.) सूर्यास्त के कुछ पहले का समय जब कि जैनी लोग भोजन करते हैं।

अथँए-अथर :: (सं.) संध्या, अस्त होने पर।

अथक :: (वि.) जो न थके, अश्रान्त, परिश्रमी।

अथक :: (क्रि. वि.) बिना थके हुए, अविराम, लगतार।

अथनयाँ :: (वि.) अचार डालने का, (पात्र)अचार डालने योग्य, ( आम ) वह हाथ जिसके द्वारा डाला गया अचार खराब नहीं होता।

अंथय :: (सं. पु.) शाम का समय, सूर्यास्त।

अथरा :: (सं. पु.) मिट्टी का चौड़े मुँह का खुला बर्तन, नांद, बड़ा कूंडा।

अथवा :: (संयो. अ.) जो कई पदों या वाक्यों में से एक का ग्रहण कराता है, पक्षान्तर।

अथाई :: (सं. स्त्री.) ग्राम में बैठने का सार्वजनिक स्थान, पंचायत की पुरानी पद्धति में पंचायत का स्थान, बैठने की जगह, चबूतरा, घर की बाहरी चौपाल, बैठक, उदाहरण-अथाई की बातें, अथाई के लोग टिड़कना और नकटा नाऊ-जब किसी आदमी को देखकर चिढ़ लगती हो, पंरतु उससे पिण्ड न छुड़ाया जा सके तब कहते हैं।

अथान :: (वि.) स्थान रहित, वे ठिकाने, यह अस्थान का अपभ्रंश है।

अथाना :: (सं. पु.) थाह लेना, गाहराई नापना, ढूढ़ना।

अथानो :: (सं. पु.) अचार, फेरा।

अथाँय :: (वि.) अथाह, जल के भराव की ऐसी गहराई जिसमें तल का पता न लगाया जा सके, बहुत गहरा, अगाध, अपार।

अथाह :: (सं. पु.) बैठने की सार्वजनिक जगह, जमाव, उदाहरण-कहे पद्माकर अथाइन कोत जितनी।

अथाह :: (वि.) बहुत गहरा।

अथिर :: (वि.) अस्थिर।

अथैं :: (सं. पु.) शाम को।

अथोर :: (वि.) अधिक, बहुत।

अथोरी :: (सं. स्त्री.) शाम का समय, उदाहरण-अथोरी बेरा हो गई।

अथौली :: (वि.) बेला, समय के लिये, संध्या सूचक।

अथौली :: (प्र.) अथौली जोर-दोपहर के बाद का समय उदाहरण-होरी खेले ब्रिज की तिरिया, बनमाली अथौली बिरियन मे। (लोक गीत.)।

अद :: (उप.) अर्द्ध, आधे का अर्थबोधक उपसर्ग प्रयोग अदबीच, अदफर आदि।

अदउँआ :: (सं. पु.) एक विशेष प्रकार का चीनी का बर्तन जिसके मुँह पर कोर नहीं बनती, डाहर का छोटा रूप।

अदउँटो-अदोंटा :: (वि.) आधा गर्म किया हुआ पदार्थ, जल, दूध आदि, जो उबलते-उबलते आधा रह जाये।

अदकचरो :: (सं. पु.) आधा कुचला हुआ।

अदकन :: (सं. स्त्री.) चारपाई में लगी रस्सी।

अदकानैचो :: (क्रि. वि.) ऊँची नीची जमीन।

अदकारौ :: (वि.) आवश्यकता से अधिक।

अदकुचलो :: (क्रि.) बुरी तरह मारपीट करना, उदाहरण अदकुचले साँप-ऐसा दुष्ट व्यक्ति जिसे पूरा दंड दिये बिना छोड़ दिया गया हो।

अदक्का :: (वि.) अचानक।

अदंची :: (सं. स्त्री.) दे. अकेला।

अदचुरी :: (वि.) अधपका।

अदच्छ :: (वि.) जिसनें गुरू दीक्षा न ली हो, ऐसा माना जाता है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा की गयी पूजा-अर्चना फलदायक नहीं होती है।

अदद :: (सं. स्त्री.) संख्या, सामान।

अदन :: (सं. पु.) दाल-चावल पकाने के लिए आँच पर चढ़ाया जाने वाला पानी।

अदनमदूना :: (सं. पु.) खेल बच्चों का।

अदन्त :: (वि.) बिना दाँतों का बिना दाढ़ों का बछड़ा जो जोतने योग्य नहीं होता।

अदन्ना :: (सं. पु.) आधा आने का ताँबें का बड़ा सिक्क जो पुराने कल्दार (एक रूपये का सिक्का) के बराबर आकार और तौल का होता था, दो पैसे का सिक्का जो पहले चलता था।

अदन्नी :: (सं. स्त्री.) आधा आने का छोटा सिक्का जो बाद में चला था।

अदपई :: (सं. स्त्री.) आधा पाव या दस तोले का बांट।

अदपको :: (वि.) आधा कच्चा आधा पका फल।

अदपेटाँ :: (वि.) आवश्यकता से कम आहार किये हुए।

अदफर :: (क्रि. वि.) बीच में, अधर में, न इधर न उधर।

अदब :: (वि.) कायदा, मान, उदाहरण अपनी अदब से रओ गिरधारी, सम्मान के साथ साहित्य।

अदबद :: (वि.) अद्भुत, अनाकर्षक एवं असन्तुलित डील-डौल वाला, बैडोल।

अदबदाकें :: (क्रि.) घबराकर।

अदबैरिया :: (सं. पु.) पहिनने की आधी कुरती।

अदभवों :: (वि.) आधा मथा हुआ दही।

अदमुआ :: (वि.) बिना मुँह का घड़ा।

अँदयाई :: (वि.) अंधेरा, मुँह अँधेर, ऊषा काल के पूर्व का समय।

अँदयाबो :: (क्रि.) बादलों का ऐसा उमड़ना जिससे अँधेरा छा जाय।

अँदयारी :: (वि.) दे. अँदयाई।

अंदर :: (क्रि. वि.) भीतर भाग में, भीतर की ओर।

अंदर कुक्क :: (सं. पु.) घोर अंघेरा जिसमें कुछ भी आभास न हो (अंदर खुक्ख)।

अंदरगुच्च :: (वि.) ऐसा अंधा जिसको थोड़ा किन्तु सही न दिखता हो।

अदरत्ता :: (सं. पु.) आधी रात का समय।

अदरबो :: (क्रि.) अरूचि होना।

अदरस :: (सं. स्त्री.) अदरख और गुड़ का शर्बत।

अदरस :: (सं.) अदरक और गुड़ का रस।

अंदरसा :: (सं. पु.) पिसे हुए चावल से बनी हुई एक प्रकार की मिठाई अनारसा, इंदरसा।

अँदरसुट :: (सं. स्त्री.) अन्दाज से।

अंदरा :: (सं. पु. वि.) अंधा, तिरस्कारवाची प्रयोग।

अंदरा :: (कहा.) अँदरा बाँटे रेवड़ी चीन चीन कै देय - किसी वस्तु को बाँटते समय हेर फेर कर अपने जान-पहचान वालों को ही देना।

अंदरी :: (वि.) अंदर या भीतर का, भीतरी जिसका संबंध अन्दर से हो।

अदरोख :: (वि.) दोष, अपराध।

अदला-बतली :: (सं. स्त्री.) वस्तुओं को आपस में बदलने की क्रिया, एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु के लेन-देन करने की क्रिया।

अदलैड़ों :: (सं. पु.) एक जानवर, लकड़बग्घा इसके शरीर का अगला भाग ऊँचा होता है, यह प्रायः बछड़ो और कुत्तों का शिकार करता है।

अदवओ :: (सं. पु.) आधी बुबाई की गयी।

अदवान :: (सं. स्त्री.) चारपाई के पैरों की तरफ वाली कसी हुई रस्सी, रस्सी की बुनी खटिया की झोल को समाप्त करने के लिए ओर लगायी जाने वाली रस्सी।

अदवार :: (सं. स्त्री.) आधा हिस्सा, एक ही परिवार की दो जगह रहने की व्यवस्था जिसमें आवश्यकता पड़ने पर कभी भी कहीं भी रहा जा सके।

अँदवार :: (सं. पु.) दे. अंधड़, चारपाई के पैर तरफ कसने वाली डोरी।

अदवैंया :: (वि.) आधी बाँह की कुर्ती।

अदा :: (सं. स्त्री.) भंगिमा, हाव-भाव।

अदा :: (वि.) चुकता बेबाक।

अदाअदौ :: (सं. पु.) किसी लम्बाई का मध्य बिन्दु, आधा आधा करके बांटने की क्रिया।

अदाउट :: (सं. स्त्री.) वैमनस्य, शत्रुता।

अंदाकुप्प :: (वि.) घना अंधेरा।

अदाग :: (वि.) जिसमें दाग न लगा हो, निष्कलंक, वेदाग, पवित्र, उदाहरण जीवन अदाग बीत जाये।

अंदाजन :: (क्रि. वि.) अन्दाज से, अटकल से, अनुमानत, प्रायः, लगभग, अंदाज, अनुमानतः।

अँदाधुन्द :: (वि.) जहां आँखें मीचकर अविवेक पूर्ण ढंग से और मनमाना कार्य होता हो, जहाँ कोई जांच पड़ताल न हो, उदाहरण-अंदाधुन्द दरबार में गदा पंजीरी खाय, अराजकता, किसी के वैध अधिकार को स्वीकार न किये जाने की स्थिति।

अदान :: (वि.) धोखे में।

अदालत :: (सं. स्त्री.) न्यायालय।

अदालती :: (वि.) आलसी, न्यायालय संबंधी।

अदावटी :: (वि.) दुश्मनी रखने वाला।

अँदासी :: (सं. स्त्री.) अँधोनी, एक तरफ का सिर-माथा दर्द होना।

अदिन :: (सं. स्त्री.) बुरे दिन।

अदिया :: (सं. स्त्री.) कृषि भूमि को उपज का आधा हिस्सा लेने की शर्त पर दूसरों की खेती के लिये देने की पद्धति, अदिया बटिया का संक्षिप्त रूप, कड़ही के आकार का वह बरतन जिसमें मजदूर गारा, चूना आदि ढोते हैं।

अदियाँ :: (सं. पु.) आधा, आधे में, उदाहरण अँदिया आप घर, अँदिया सब घर-पूरे में से आधा अपने लिये और आधा सब घर के लिए, लालची व्यक्ति के लिए, अदिया-बटिया पर खेत देना।

अदिया-बटिया :: (सं. स्त्री.) आधा बाँटना, कृषि भूमि को उपज का आधा हिस्सा लेने की शर्त पर दूसरों को खेती के लिए देने की पद्धति।

अदीउ :: (वि.) बिना देखा हुआ, अदृष्ट, छिपा हुआ, गुप्त।

अदुआरत्रा :: (सं. पु.) आधी रात का समय।

अदुँवा :: (सं. पु.) लोहे का पट्टा जो भौरा मैं चढ़ाया जाता है, अन्धा जिसको कम दिखता हो।

अँदुवा :: (सं. पु.) अन्धा, जिसको कम दिखता हो, अंधे के समान, देखभाल कर काम न करने वाला।

अँदूरौ :: (सं. पु.) धूल भरी आँधी।

अंदेर मचाबो :: (क्रि. स.) अत्याचार करना।

अदेला :: (सं. पु.) आधे पैसे का सिक्का, रूपया का एक सौ अट्ठाईसवाँ भाग, जो अब चलन में नही है।

अंदेसो :: (सं. पु.) आशंका, नकारात्मक संभावना, खटका, सोच, चिंता, दुविधा गोमगो।

अदौखा :: (सं. पु.) आधा टुकड़ा।

अदौटा :: (वि.) उबलते उबलते आधा रह जाये।

अदौरी :: (सं. स्त्री.) किसी जानवर का पूरा कच्चा चमड़ा, अथवा पका हुआ चमड़ा।

अद्छनो :: (वि.) आधा छना हुआ।

अद्दा :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु का आधा टुकड़ा, आधे गेहूँ और आधे जवा का मिश्रित अनाज।

अद्दाझारौ :: (सं. पु.) अपामार्ग देखिये अज्जाझारौ।

अद्दी :: (वि.) आधी बोतल, दो चौथाई, दस।

अद्दी :: (सं. पु.) आधा सेर समाई की बोतल, प्रायः शराब की बोतल और चार सेर की कुपिया के लिए प्रयुक्त, आधा तोला सोने की छोटी मुहर।

अंध :: (वि.) नयन ज्योति से रहित, विचार और विवेक से रहित, अविवेकी, जो आँख मूंदकर किया गया हो, आँख बन्द करके किया हुआ, जैसे अंध अनुकरण, अन्ध परम्परा, आगा पीछा या भला कुछ भी दिखाई न दे, जो असमंजस में पड़ा हो, मूर्ख, नासमझ।

अंध :: (पु.) वह जिसे दिखाई न दे अन्धा आदमी।

अंध :: (कहा.) अँधे पीसे कुत्ते खायें - जब कोई अपने परिश्रम से पैदा की गई किसी वस्तु का स्वयं उपयोग न कर सके और दूसरे उसका मजा लूटें।

अधकचरा :: (वि.) आधा कच्चा, अधूरा, अकुशल।

अधकछार :: (सं. पु.) पहाड़ी हरी भरी भूमि, पहाड़ी उपजाऊभूमि।

अधकपरी :: (सं. स्त्री.) आधे सिर का दर्द, उदाहरण आधे सीसी का दर्द।

अधकार :: (सं. पु.) अधिकार, मालिकाना हक।

अधकारौ :: (वि.) दे. अदकारौ।

अधक्का :: (सं. पु.) असावधान, अवस्था, एकाएक अप्रत्याशित।

अधक्यार :: (सं. पु.) अधिकार (संभवतः अधिकार और अख्यतार का मिश्रित रूप)।

अंधड़ :: (सं. पु.) बेगवती वायु, तूफान, आंधी।

अंधधुंध :: (क्रि. वि.) अंधाधुंध।

अधन्न :: (सं. पु.) दे. अदन्न।

अधपई :: (सं. स्त्री.) आधापाव की तौल या बांट, दो छटांक।

अधपेटा :: (वि.) आवश्यकता से कम आहार किये हुए।

अधबर :: (सं. पु.) आधा मार्ग, आधा रास्ता, बीच मध्य भाग।

अधबैया :: (वि.) आधी बाँह का सिला हुआ कपड़ा।

अधम :: (वि.) नीच पापी, दुष्ट, निकृष्ट।

अधम :: (सं. पु.) जार, किसी स्त्री का उपपति।

अधमई :: (सं. स्त्री.) नीचता, दुष्टता।

अधमता :: (सं. स्त्री.) नीचता, खोटापन, अधम का भाव।

अधमरो :: (वि.) आधा मरा हुआ, मृत प्राय, शक्तहीन।

अधमुआँ :: (वि.) अधमरा, शक्तिहीन, मृतप्राय।

अधयाबो :: (क्रि.) किसी वस्तु के दो हिस्से।

अधर :: (वि.) धड़रहित, आधार रहित, निराधार, जो पकड़ में न आवे।

अधरता :: (सं. स्त्री.) आधी रात, रात्रि जागरण, उदाहहरण अधरतुआ-नई अधरतुआ डूबो चन्दा चार घरी लों।

अधरम :: (सं. पु.) अधर्म, पाप कर्म, अनिति, मर्यादा के विरूद्ध।

अंधरयाबौ :: (वि.) अंधे बनकर, बिना देखे काम करना।

अंधरयावो :: (सं. पु.) अंधे होने की तरह क्रियायें करना, उदाहरण-अंधरया के चलत, जानबूझ कर अन्धे के समान काम करने वाला।

अंधरसट्टा :: (सं. पु.) बिना बिचारे।

अधरूआ :: (वि.) अंधा।

अधरैनी :: (वि.) चने एवं गेहूँ के आटे को मिलाकर बनाई गई सामग्री।

अधवेवरो :: (वि.) बेडौल, बदसूरत।

अधसेरा :: (सं. पु.) आधा सेर, कि तौल या बाँट।

अधार :: (सं. पु.) आधार, साधन, आजीविका का साधन, सम्बल।

अधारी :: (सं. स्त्री.) अंग्रेजी के टी अक्षर की आकृति की कलात्मक लकड़ी, साधू लोग बैठ कर इस पर प्रायः हाथ टिका लेते हैं और उस हाथ से माला जपते रहते हैं।

अधासी :: (वि.) आधे सिर का दर्द।

अधिआं :: (वि.) आधे में, खेत की फसल का आधाहिस्सा।

अधिकमास :: (सं. पु.) मलमास, लौंद का महीना।

अधिकाई :: (सं. स्त्री.) बड़ाई, महिमा, संख्या में अधिक होना।

अधिकाधिक :: (क्रि. वि.) बहुत अधिक।

अधिंची :: (सं. स्त्री.) दे. अदंची।

अधीन :: (क्रि. वि.) वशीभूत, वश में, आश्रित, सहारे।

अधीन :: (सं. पु.) सेवक, नियंत्रण में, कब्जे में, आश्रित।

अधूत :: (सं. पु.) निर्भय, निडर, ढ़ीट, उद्दंड, उचक्का, निडर।

अधूम :: (वि.) अपूर्ण, आधा, जो पूरा न हो, जो अनुभवी न हो।

अधूरौ :: (वि.) अपूर्ण।

अंधूरौ :: (सं. पु.) अधूरा, धूल भरी आँधी।

अधेड़ :: (वि.) लगभग चालीस पचास वर्ष के बीच की उम्र वाला व्यक्ति।

अंधेर :: (सं. पु.) ऐसी व्यवस्था, स्थिति या शासन जिसमें औचित्य, न्याय आदि का कुछ भी विचार न होता हो, अंशाति या बिलम्ब की स्थिति, उदाहरण-अंधेर गरदी, अँधेर खाता, कुप्रबंध, गड़बडी।

अंधेर :: (कहा.) अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा - जहाँ शासन में कोई विधि-व्यवस्था न हो वहाँ कहते हैं।

अंधेरी :: (सं. स्त्री.) अंधयारी।

अंधेरो :: (सं. पु.) अंधकार, अँधेरा, बहुत ही मनमाना व्यवहार या अंधेर करना, निराशा, कृष्ण पक्ष।

अधेलचीं :: (सं.) सिक्का।

अधेला :: (सं.) आधे पैसे का सिक्का।

अधेला :: (सं. पु.) एक पैसे का आधा हिस्सा, कहावत-अधेला न दे, अधेली दे-जब जहां देना चाहे वहाँ न दे, पर व्यर्थ में अधेली दे दे।

अधेली :: (सं. स्त्री.) अठन्नी, आठआना, अठाना का सिक्का।

अंधौ :: (सं. स्त्री.) घोड़ों, बैलों आदि की आँखों पर बांधा जाने वाला कपड़ा।

अधौरी :: (सं. पु.) दे. अदौरी।

अधौरी :: (सं. स्त्री.) चमड़ा पकाने की नांद, मवेशियों के ऊपर की खाल।

अनइत :: (क्रि. वि.) दूसरी जगह, उदाहरण ओ अनइते जाई, विद्यापति।

अनक :: (सं. स्त्री.) हल्की बुराई।

अनकर :: (सं. पु.) पराया दुसरे का, कहावत-अनकर खेती अनकर गाय, वह पापी जो मारन जाय-पराया खेत परायी गाय, हमें मतलब क्या जो भगाने जाए।

अनकहा :: (वि.) जो कहा न गया हो, बिना कहा हुआ, जो कहना न मानता हो।

अनकहो :: (वि.) जो पहले कभी न कहीं गई हो, मुहावरा-अनकही देना, चुपचाप रहना, न कहने योग्य, फलतः अनुचित या अश्लील।

अनख :: (वि.) ईर्ष्या।

अनखा :: (सं. पु.) जिसके नाखून न हो, मन मं छिपा हुआ हलका क्रोध या गुस्सा, नाराजगी, खिन्नता के कारण होने वाली उदासीनता, ईर्ष्या, झंझट, डिठौला, हल्की बुराई।

अनखातला :: (वि.) न खाने वाला।

अनखुला :: (वि.) जो खुला न हो, बंद, जिसका कारण या रहस्य प्रगट न हो, फलतः गम्भीर या गहन।

अनखोहां :: (वि.) क्रोध से भरा हुआ, कुपित, जल्दी बगड़ जाने वाला, गुस्सैल और चिड़चिड़ा, अनुचित, बुरा, अनखौही।

अनखोहां :: (वि.) अनदेखी।

अनगड़ :: (वि.) जो अभी अपने प्रकृत या मूल रूप में हो, गढ़ा छीला या तरासा हुआ न हो जैसे अनगढ पत्थर लकड़ी का कुन्दा।

अनगन :: (वि.) अनगिनत।

अनगनना :: (क्रि. अ.) जान बूझकर या टालने के लिए किसी काम में देर लगाना, बिलंब करना, उदाहरण मुंह धोती एड़ी घसति, हंसति अनगवति नारि बिहारी।

अनगाना :: (क्रि. अ.) देर लगाना, बिलंब करना, टाल मटोल करना, संवारना या सुलझाना।

अनगार :: (वि.) जिसके पास घर न हो, गृहहीन, जो घर बनाकर न रहे, बराबर घूमता फिरता रहने वाला।

अनगाँव :: (सं. पु.) अपरिचित अथवा दूसरा गाँव।

अनगिना :: (वि.) जो गिना न गया हो, अनगिनत बहुत अधिक।

अनगुना :: (वि.) जो सोचा, समझा या जाना न गया हो, जिस पर विचार न किया गया हो।

अनगुना :: (वि.) सब गुणों से रहित, निर्गुण।

अनगुने :: (क्रि. वि.) सूर्य निकलने से पूर्व, तड़के।

अनचखा- :: (वि.) जिसे चखा न गया।

अनचाई :: (वि.) बिना चाहा गया, जिसकी चाहत न हो, बगैर सोचे समझे।

अनचाहत :: (वि.) न चाहने वाला, जो न चाहे, जिसे चाहा न गया हो।

अनचाहत :: (स्त्री.) चाह या प्रेम का न होना।

अनचाहा :: (वि.) जिसकी चाह या इच्छा न की गई हो, अवांछित।

अनचाही :: (क्रि.) बिना चाहे, बिना शर्त के कोई वस्तु मिलना।

अनचिनार :: (सं. पु.) अपरिचित, न पहचानना।

अनचिन्हार :: (वि.) जिसे पहले से न जानते हों, अपरिचित, जिसकी चिन्हार न हुई हो, अनचिनारू।

अनचीता- :: (वि.) जिसके संबंध में पहले से कुछ सोचा न गया हो, अचानक या सहसा होने वाला, अनचाहा।

अनचैन :: (सं. स्त्री.) चैन या शांति न होने की अवस्था या भाव, बचैनी, घबराहट, विकलांगता।

अनजान :: (वि.) जैसे किसी प्रकार का ज्ञान न हो, जो किसी विषय विशेष का जानकार न हो, जिसके संबंध में अभी जानकारी प्राप्त न हुई हो।

अनजान :: (पु.) एक प्रकार की लंबी घास जिसे प्रायः भैसें ही खाती हैं, अजान नामक वृक्ष, अज्ञान, उदाहरण अनजान की मिट्टी खराब-अज्ञान कष्ट का कारण होता है और उसका काम नहीं बनता।

अनजाने :: (क्रि. वि.) बिना जाने या समझे हुए, अनजाने में, बिना जान पहचान के।

अनजाने :: (सं. पु.) अज्ञानतावश, गैर जानकारी में।

अनजाने :: (सं. स्त्री.) अनजानी।

अनजोखा :: (वि.) जिसकी तौल या वजन न किया गया हो, जिसकी जांच या पड़ताल न की गई हो।

अनट :: (सं. पु.) झूठ, अन्याय, उपद्रव, अत्याचार, झंझट, बखेड़ा।

अनडौला :: (वि.) बेढंगा।

अनंत चौदस :: (सं. स्त्री.) अनन्त चतुर्दशी।

अनथऊ :: (वि.) संध्या भोजन।

अनदेखे :: (सं. क्रि.) बिना देखे, उदाहरण-अनदेखा चोर बाप बराबर-जिस चोर की चोरी पकड़ी नहीं गई, उसे साहूकार ही माना जाएगा।

अनन्तचउदस :: (सं. स्त्री.) अनन्त चर्तुदशी।

अनन्ता :: (सं. पु.) अनन्त चतुर्दशी को विष्णु पूजा के पश्चात् भुजा पर बाँधा जाने वाला चौदह गाँठों वाला गड़ा, आटे की चौदह तली हुई गोलियाँ, जिनको पूजा के समय दूध में डालकर इधर उधर किया जाता है, जो समुद्र मंथन का प्रतीक है।

अनन्तिय :: (सं. स्त्री.) अनन्त चतुर्दशी का कम सजावट वाला छोटा गण्डा।

अनन्यभाव :: (सं. पु.) एक निष्क भक्ति या साधना।

अनन्यभाव :: (वि.) जिसका भाव या भक्ति एक ही के प्रति हो, किसी दूसरे के प्रति न हो।

अनप :: (सं. पु.) भोजन न पचने की दशा या रोग, अजीर्ण, बदहजमी।

अनपढ़ :: (वि.) जो कुछ पढ़ा लिखा न हो, अशिक्षित।

अनपर :: (वि.) जिसकी बराबरी का कोई न हो अकेला, एक मात्र।

अनपराध :: (वि.) जिसने कोई अपराध न किया हो, निरपराध।

अनपराधी :: (वि.) जिसने अपराध न किया हो, बेकसूर।

अनपान :: (सं. पु.) अनुपान औषधि खाने की विधि और उसके साथ ली जाने वाली वस्तु दूध, शहद, ठण्डा या गर्म पानी आदि।

अनबन :: (वि.) जो साथ वाले के मेल का न हो, अनमेल, दूसरे प्रकार का, भिन्न।

अनबन :: (सं. स्त्री.) मनमुटाव।

अनबन :: (स्त्री.) मनमुटाव।

अनबव :: (वि.) बिना बोये पैदा हुआ अनाज, कभी-कभी।

अनबितरक :: (सं. पु.) जिसके कोई वृति न हो, बिन जजमानी के, भूखा।

अनबितरक :: (कहा.) अनबितरक बिरत घमलोंर बजाई - ऐसा ब्राम्हण जिसके कोई जजमानी नही होती, झूठ मूठ का घंटा बजाता है।

अनबिधा :: (वि.) न बेधा या छेद किया हुआ जैसे-अनविधा मोती।

अनबूझा :: (वि.) असमझ, मूर्ख, निर्बुद्धि।

अनबोलना :: (वि.) न बोलने वाला, मौन, जो अपना सुख दुख न कह सके, बेजान, गूंगा।

अनबोलना :: (वि.) कहने योग या अनुचित बात, आपस में न बोलने की अवस्था या भाव, अनबोला।

अनबोलनों :: (सं. पु.) संवादहीनता की स्थिति।

अनबोला :: (पु.) आपस की लड़ाई, झगड़ा आदि के कारण किसी से बोलचाल या बातचीत बंद करना।

अनबोला :: (वि.) जो न बोलता हो, चुप, मौन।

अनभल :: (सं. पु.) बुराई, हानि, अहित।

अनभाय- :: (वि.) न भाने वाला, अप्रिय, अरूचिकर।

अनभाय- :: (पु.) आपस का बैर, विरोध या द्वेष।

अनभिज्ञ :: (वि.) अज्ञान, अज्ञ, मूर्ख, अबोध, अपरिचित।

अनभेदी- :: (वि.) जो भेद या रहस्य न जाने, पराया।

अनभोरी- :: (सं. स्त्री.) भुलावा, चकमा।

अनभौ :: (सं. पु.) अनुभव, अनभै रूप भी पाया जाता है।

अनमनें :: (वि.) उदासीन, सुस्त।

अनमनों :: (वि.) उदास अन्यमनस्क, हताश, खिन्न या अप्रसन्न होना।

अनमान :: (सं. पु.) अनुमान, अंदाज।

अनमिल :: (वि.) स्वभावतः जो किसी से मिल न सकता हो, वेमेल, जिसका किसी से जोड़ या मेल न बैठता हो।

अनमेल :: (वि.) जिसका किसी से मेल या जोड़ न बैठे, बेमेल।

अनमोल :: (वि.) जिसका मूल्य इतना अधिक हो की उसकी कल्पना न हो सके।

अनमोल :: (क्रि. वि.) बिना माल लिये बिन माल दिये, मुफ्त में।

अनयाव :: (सं. पु.) अन्याय, अनीति, विरूद्धकारी।

अनयास :: (क्रि.) अनायास।

अनरमनर :: (सं. स्त्री.) आधे मन से इन्कार, बहाना बनाना।

अनरयाव :: (सं. पु.) अनाड़ीपन।

अनरसा :: (सं. पु.) चावल को पीस कर मीठा मिलाकर, घी में पकाया हुआ खाद्य पदार्थ।

अनरितु :: (सं. स्त्री.) प्राकृतिक कारणों से वातावरण का ऐसा विपार्याय जिसमें किसी ऋतु में किसी दूसरी ऋतु की स्थिति का भान हो, जैसे जाड़े में बहुत पानी बरसना या गरमी में अधिक सरदी पड़ना।

अनरितु :: (वि.) जो अपनी उपर्युक्त ऋतु में न होकर उससे पहले या पीछे हो।

अनरीता :: (वि.) जो भरा हुआ न हो, उदाहरण रीते अनरीते करे भरे विगारत दीठ-रहीम।

अनरीति :: (सं. स्त्री.) रिति या नियम विरूद्ध आचरण या व्यवहार।

अनरूचि :: (वि.) जो रूचता न हो अच्छा न लगने वाला, रूचि या प्रवृति का अभाव, अरूचि, अनिच्छा।

अनरूप :: (वि.) जिसका कोई रूप न हो, अरूप, जिसका रूप अच्छा न हो, कुरूप।

अनर्गल :: (वि.) भाव, अनर्गलता, जिसमें अर्गल या रूकावट न हो, जिसमें किसी प्रकार की बाधा न हो।

अनर्थ :: (सं. पु.) अर्थ का अभाव, अनुचित या विपरीत अर्थ, अनुचित काम या अशुभ घटना।

अनर्थ :: (वि.) अर्थ का अभाव, अनुचित या विपरीत अर्थ, अनुचित काम या अशुभ घटना।

अनर्थ :: (वि.) जिसका कोई अर्थ न हो।

अनर्थक :: (वि.) अनर्थ या खराबी करने ला, अर्थ रहित, निरर्थक, व्यर्थ, बेफायदा।

अनर्थकारी :: (वि.) उलटा या विपरीत कार्य करने वाला, बहुत बड़ी हानि या खराबी करने वाला, जैसे अनर्थकारी-भूंकप।

अनलायक :: (वि.) जो लायक न हो, अयोग्य, नालायक।

अनलेखा :: (सं. पु.) जिसका लेखा या हिसाब न हो सके, अनगिनत, असंख्य, उदाहरण साधन पुंज परे अनलेखे, घनानंद।

अनवट :: (सं. पु.) पैर के अंगूठे में पहनने का छल्ला, बिछिया, कोल्हू के बैल की आँखो के ढक्कन, ढोका।

अनवारी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की मछली।

अनवासना :: (क्रि. स.) नये वर्तन को पहले पहल काम में लाना।

अनवासबो :: (क्रि.) नये वस्त्रों का पहले पहल उपयोग करना या नई वस्तुओं को प्रथमतः उपयोग में लाना।

अनवासा :: (सं. पु.) कटी हुई फसल, गेहूँ आदि का मुठ्ठा या फला, औंसा।

अनवासी :: (सं. स्त्री.) विस्वासी का वीसवां भाग, एक विस्वे का १/४०० भाग।

अनव्याहा :: (वि.) जिसका ब्याह न हुआ हो, अविवाहित।

अनसखरी :: (सं. स्त्री.) पक्की रसोई घी आदि में पका हुआ भोजन।

अनसमझे :: (वि.) बिना समझे हुए।

अनसुना :: (वि.) जो कहा जाने पर सुना न गया हो या जिस पर ध्यान न दिया गया हो।

अनसुना :: (मुहा.) अनसुनो करना-सुनके भी न सुने के समान आचरण। करना, उदाहरण-कैसे अनसुनी करी, . चातक पुकार हैं, घनानंद।

अनसुया :: (सं. स्त्री.) अत्रि मुनि की स्त्री, यह दक्ष प्रजापति की कन्या थी, इसकी माता का नाम प्रसूति था।

अनहक :: (सं.) नाहक।

अनहदनाद :: (सं. पु.) शब्द योग में वह शब्द जो दोनों हाथों से कान बंद करने पर सुनाई देता है, हठयोग में शरीर के छः चक्रों में एक, इसका शुद्ध रूप है अनाहत नाद।

अनहित :: (सं. पु.) अहित, बुराई।

अनहित :: (वि.) जो हित न करे, द्वेषी, बुराई करने वाला।

अनहोता :: (वि.) दरिद्र गरीब, अलौकिक, आश्चर्य का।

अनहोनी :: (सं. स्त्री.) दुखप्रद घटना, अप्रत्याशित, अनहोनी, असामयिक मृत्यु, उदाहरण-अनहोनी होती नही, होनी होवनहार-जो होना है वह होकर रहता है, जो नही होना वह नहीं होगा।

अनहौरी :: (सं. स्त्री.) गरमी में होने वाली छोटी-छोटी फुंसिया।

अनाक चीटाँ :: (क्रि. वि.) आकस्मिक रूप से, अनायास, अप्रत्याशित रूप से।

अनाथ :: (वि.) संरक्षणविहीन, आश्रयहीन।

अनाबो :: (स. क्रि.) स्वच्छ करना, सिर धोना, किसी त्यौहार व्रत को मनाना, दा. कार्तिक अनाबो।

अनार :: (सं. पु.) दाड़िम, एक फल।

अनारी :: (वि.) अनाड़ी, मूर्ख, अकुशल, उदाहरण-अनाड़ी क सोना बाराबानी-मूर्ख का सोना हमेशा चोखा, क्योंकि उसे खरे खोटे की पहचान नहीं होती है।

अनियाई :: (वि.) अन्याय करने वाला, शरारती।

अनी :: (सं. स्त्री.) संकट की घड़ी, तलवार की धार, पके चावल के बीच में कच्चे कण।

अनी :: (कहा.) अनी चूकें हजार वर्ष की उम्मर होत।

अनीत :: (सं. स्त्री.) अनीति।

अनीदार :: (वि.) नुकीला, नोंकदार।

अनुआँ :: (वि.) दोष, लांछन, आरोप।

अनुष्ठान :: (सं. पु.) किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु निश्चित विधि से संकल्पूर्वक की गयी पूजा-अर्चना।

अनूकौ :: (वि.) अनौखा।

अनूठो :: (वि.) अनोखा, जो जूठा न हो।

अनूतरें :: (सं. स्त्री.) ऐसे आरोप जिनका कोई उत्तर न हो, कडुवी बातें, अपशब्द, गालियाँ।

अनैसी :: (सं. स्त्री.) अमंगल कारी, बुरा, अहितकारी।

अनोई :: (क्रि.) कर्मशील।

अनोई :: (वि.) उद्योग, कार्यकुशल।

अनोंखा :: (सं. पु.) स्त्रियों का पैरों में पहनने का एक आभूषण, कलात्मक गोल पट्टी, जिसमें बोरे भी लगे रहते हैं, ये लच्छों के साथ पहिने जाते थे।

अनोंखे :: (वि.) अद्वितीय, विचित्र।

अनोंटा :: (सं. पु.) स्त्रियों का पैर के अँगूठे और छिंगुली में पहिनने का एक संयुक्त आभूषण इसमें अंगूठे और छिंगली के कलात्मक छल्ले एक साँकलो की पट्टी से जुड़े रहते हैं।

अनोव :: (सं. पु.) उपाय, व्यवस्था, अनोप, अनोय।

अनौठा :: (सं. पु.) स्त्रियों के पैर में पहनने का आभूषण।

अनौरा :: (सं. पु.) पैर के अँगूठों का गहना।

अनौरी :: दे. कुरोरू, गर्मी के कारण शरीर पर छोटी फुंसी।

अन् :: (उप. अव्य.) निषेध अर्थ सूचक अव्य., जो स्वरादि शब्दों से पूर्व अन् के रूप में आता है जैसे-अनादि, अनन्त आदि।

अन्त :: (सं. पु.) छोर, परिणाम, मृत्यु, अन्यत्र, दूसरी जगह।

अन्तर :: (सं. पु.) कर्क, दूरी, फासला, हदय।

अन्तस :: (सं. पु.) हदय।

अन्ताकछरी :: (सं. स्त्री.) अन्त्याक्षरी, पद्य पाठ की वह प्रतियोगिता जिसमें पढ़े हुए पद्य के अंतिम अक्षर से आरंभ होने वाला पद्य पढ़ना होता है।

अन्दा :: (सं. पु.) चक्के की धुरी पर घूमने वाले भाग को ऊपरी भाग से जोड़ने वाली खड़ी पट्टियाँ।

अन्देखी :: (सं. स्त्री.) उपेक्षा।

अन्देर :: (सं. पु.) अराजकता, अनुशासनहीनता, मनमाना आचरण, अव्यवस्था।

अन्न :: (सं. पु.) अनाज के दाने।

अन्न :: (मुहा.) अन्न पानी छोंड़वो, अन्न के मुँहताज, अन्न धन अनेक धन, सोना रूपा कितेक धन-अन्न ही सबसे बड़ा धन है, सोना चाँदी उसके सामने कुछ नहीं।

अन्नक वन्नक :: (सं. पु.) नई तरह की चीजें।

अन्नकूट :: (सं. पु.) हिन्दुओं के विशेष त्यौहार पर बनने वाला भोजन।

अन्ना :: (सं. पु.) बर्तन जोड़ने की जगह जहाँ पर एक छोटी भट्टी सी बनी होती है और उसमें थोंकनी से हवा पहुँचाई जाती है।

अन्याई :: (वि.) अन्याय करने वाला।

अन्याव :: (क्रि.) दुर्व्यवहार।

अन्होने :: (वि.) निराले, अनौके।

अपच :: (सं. पु.) भोजन हजम न होने के कारण उत्पन्न पेट की बीमारी, बदहजमी।

अपछरा :: (सं. पु.) अप्सरा।

अपछरा :: (सं. स्त्री.) अप्सरा, स्वर्गलोक की नारी, अधिकांशतः लोक साहित्य में प्रयुक्त।

अपजस :: (सं. पु.) अपयश, बदनामी, अपकीर्ति।

अपढ़ :: (वि.) अनपढ़, बिना पढ़ा लिखा, मूर्ख।

अपन :: (सर्व.) हम लोग, आप, मानक बुन्देली में आदरवाची एकवचन।

अपनयाबौ :: (क्रि.) अपनापन दिखाना, आत्मीयता प्रदर्शत, ममत्व प्रदर्शन, अपुनयाई।

अपनयाबौ :: (सं.) स्वार्थपन।

अपनों :: (वि.) अपना, ग्रामीण प्रयोग, इसमें ( अकर्मक ) का लोप रहता है।

अपनों :: (कहा.) अपनों खा लँवँ, पराव खा लँवँ तौ का दँवँ, उदाहरण - अपना-अपना घोलो, अपना-अपना पिओ-स्वयं अपना प्रबंध करो, हम किसी की जिम्मेदारी नहीं ले सकते, अपनी विपत्ति स्वयं भुगतो।

अपनो अपनी :: (सर्व.) हम सब, अपनो तुपनो, अलग-अलग करके बताना, अपनी बाई, अपनी दार को, अपनी-सी करबो, अपनो सो समझबो, अपनाबो, अपनापन, अपनपौ, अपनई।

अपमान :: (सं. पु.) किसी की स्थापित छवि को खण्डित करन की क्रिया।

अपरंच :: (वि.) आगामी, आगे, पत्रों में प्रयुक्त शब्द।

अपरम्पार :: (वि.) अपार, असीमित, अनन्त।

अपराध :: (सं. पु.) विधि, नीति विरूद्ध कार्य।

अपलच्छ :: (वि.) कलंक।

अपुन :: (सर्व.) हम सब, उदाहरण-अपुन तपुन-हम लोग, अपुनपौ-अहंकार ममता, आत्मशक्ति ज्ञान, अपुनयी अपुन-हम सभी लोग, अपुनयावी-अपुनयाव-अपनापन दिखाना, आत्मीयता प्रदर्शन, ममत्व।

अफरा :: (सं. पु.) वायु रूकने के कारण पेट फूलने का रोग, पशुओं का रोग।

अफरातफरी :: (क्रि.) भागदौड़।

अफरो :: (क्रि.) जो भूखा न हो, भोजन करके तृप्त होना, पेट भर जाना, पेट फूलना।

अफसर :: (सं. पु.) सरकारी अधिकारी, हाकिम।

अफसरी :: (सं. स्त्री.) आज्ञा का स्वर, ठाठवाट का प्रदर्शन।

अफसोस :: (सं. पु.) चिन्ता, उदाहरण-अफसोस दिल गड्ढ़े में-मनचाही न कर पाना।

अफीमची :: (वि.) अफीम का सेवन करने वाला।

अब :: (क्रि. वि.) इस समय, आगे से, अबई, अभी, इसी समय, अब की, अबकूँ-अब कभी, उदाहरण-अब की बार बेड़ा पार-यानी थोड़ी कसर और है, बस हिम्मत करो, काम बन गया।

अबढारे :: (क्रि. वि.) अपने आप, स्वतः, बिना प्रेरणा या प्रयास के।

अबध :: (सं. स्त्री.) अयोध्या, अवध क्षेत्र, अयोध्या नगर।

अंबर-डबर :: (सं. पु.) सूर्यास्त के समय पश्चिम दिशा में दिखाई पड़ने वाली लाली, उदाहरण-अंबर-डबर सांझ के, ज्यों बालू की भीत।

अबरक :: (सं. पु.) अभ्रक (औषिधि विशेष)।

अबरा :: (सं. पु.) गरीब, कमजोर।

अँबराई :: (सं. स्त्री.) अमराई।

अबलक :: (सं. पु.) वह घोड़ा जिसके चारों पैर सफेद हो और माथे पर टीका हो, दो रंगा घोड़ा जो आमतौर से काले व सफेद रंग का होता है, बाल सफेद व काले को भी कहते हैं।

अबला :: (सं. स्त्री.) निराश्रित स्त्री. असहाय स्त्री, अनाथ स्त्री।

अबलाखा :: (सं. स्त्री.) अभिलाषा, हार्दिक इच्छा, चिरसंचित कामना।

अबा :: (सं. पु.) मिट्टी के बर्तन, खपरा व ईंट पकाने का भट्टा, आवा।

अबाई :: (सं. पु.) आने की सूचना।

अबाज :: (सं. स्त्री.) आवाज, स्वर, ध्वनि, पुकार, ध्यान, संकेत।

अंबिका :: (सं. स्त्री.) माता, माँ, दुर्गा, पार्वती, जैनियों की एक देवी, काशी के राजा की कन्या जिसे भीष्म पितामह हर ले गये थे और जिसके गर्भ से धृतराष्ट्रा उत्पन्न हुए थे, कुटकी नाम का पौधा।

अबीर :: (सं. स्त्री.) गुलाल, रंग।

अबूज :: (सं. पु.) जो बूजने योग्य न हो, नासमझ।

अबेरा :: (सं. पु.) परेशानी, आफत, शीघ्र का कार्य, उदाहरण-ऐसी का अबेरा परी, मची, बिना समय के कार्य करना।

अबेरीबेरा :: (सं. पु.) संध्या का समय।

अबै :: (सर्व.) अभी उदाहरण-अबैनो-अभी तक।

अबोलबो :: (सं. पु.) बिना बातचीत के रहना, संवाद हीनता की स्थिति।

अभमन्नु :: (सं. पु.) अर्जुन का पुत्र, महाभारत का पात्र।

अभर :: (वि.) गर्व।

अंभर :: (सं. पु.) अंबर।

अभागो :: (वि.) अज्ञानी, बुद्धिहीन, भाग्यहीन, एक गाली।

अभार :: (सं.) आभार।

अभिनय :: (क्रि.) नाटक, बरगावौ, दिखाना, स्वांग।

अभिमानी :: (वि.) घमण्डी।

अमकटा :: (सं. पु.) कच्चे आम को काटने का सरौता।

अमचुर :: (सं. पु.) आम्रचूर्ण, आम को सुखाकर बनाया गया चूर्ण, आम की सूखी कलियाँ।

अमिया :: (सं. स्त्री.) छोटे-छोटे आम।

अमौआ :: (वि.) कच्चे आम जैसा गहरा हरा, श्यामल हरा।

अयाने :: (क्रि.) बुद्धिहीन।

अयानो :: (वि.) मूर्ख।

अरई :: (सं. स्त्री.) लोहे का नोंक जो लाठी में लगा लेते हैं, बैलों के हांकने का वह डंडा जिसमें एक नुकीली कील लगी होती है, बैल की रफ्तार को तेज करने के ले उसके पुट्ठों को चुभाई जाती है, मुहावर. चलत बैल खों अरई गुच्चना, चुभोना।

अरक :: (सं.) सारतत्व।

अरग :: (सं.) अर्क।

अरगनी :: (सं. स्त्री.) कपड़े टांगने हेतु लगाया गया बाँस।

अरगाकें :: (क्रि. वि.) अलग होकर, अलग करके, अरगावो।

अरगाकें :: (क्रि.) पहले जाना।

अरगो :: (सं. पु.) एक दूस्तूर, अरगनो-विवाह के समय एक दस्तूर जिसमें लड़की के ससुराल से आये वस्त्र पहनाये जाते हैं और पंचो का निमन्त्रण होता है यह टीका के एक दिन पहले होता है।

अरगौना :: (सं. पु.) किसी भी वस्तु के ऊपर कोई द्रव्य पदार्थ अथवा पानी बहकर पतली पतली धारियों में होकर आने से बने चिन्ह।

अरघ :: (वि.) पूजन के समय देवता को अर्पित करने वाला जल।

अरघाती :: (वि.) बदचलन।

अरज :: (सं. स्त्री.) अर्ज, विनती, निवेदन, प्रार्थना।

अरजी :: (सं.) प्रार्थना पत्र।

अरदब :: (सं. स्त्री.) कंकट के बीच फंसने की स्थिति।

अरदाव :: (वि.) खली-चूनी।

अरदास :: (सं.) प्रार्थना।

अरन :: (सं.) आला।

अरना :: (सं. पु.) भैंसा।

अरपन :: (सं. पु.) अर्पण।

अरबराबौ :: (क्रि.) जल्दीवाजी करना।

अरबरी :: (क्रि.) जल्दी।

अरबसया :: (वि.) जिस काम को रोका जाये उसी काम को करने वाला ढ्ठ।

अरबी :: (सं. स्त्री.) घुईयां।

अरयात :: (सं. पु.) हठलाना, अरे, करके बोलना।

अरयाबो :: (क्रि.) अभद्रता पूर्वक बातचीत करना।

अरयाबौ :: (क्रि.) इठलाना।

अरसट :: (सं. स्त्री.) धौंस धमकी।

अरसठ :: साठ और आठ की संख्या।

अरसिया :: (सं. पु.) अलसी का तेल, अलसी के फूलों जैसा रंग।

अरसी :: (सं. स्त्री.) अलसी का बीज।

अरा :: (सं. पु.) रहट का भोंरा जिसमें अठारह घेरों का अरा होता है, लकड़ी चीरने का आरा।

अराई सराई :: (सं. पु.) गड़ी के पहिये में आड़े सीधे जड़े हुए नग।

अराबों :: (सं.) तोपखाना।

अरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सा दीवाल का तम्का या स्थान, सामान रखने का आला, देशी जूतों में टाँका लगाने की कटारी, छोटे दाँतो की आरी।

अरी :: (अव्य.) संबो. जिसका प्रयोग प्रायः स्त्रियों के लिये होता है।

अरीठा :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

अरूबा :: (सं. पु.) उल्लू पक्षी।

अरूलबौ :: (क्रि. स.) नोंचना, छीलना, उदाहरण-उल्लू अरूलबो।

अरे :: (संबो.) आश्चर्य, दुख, चिन्ता, क्रोध इत्यादि सूचक उद्गार।

अरेर :: (क्रि.) जोश में होना।

अरैबो :: (क्रि. स.) गिराना, डालना, लटकाना जैसे-घड़े अथवा किसी अन्य चीज को कुए में डालना।

अरोदरो :: (वि.) फालतू काम, उदाहरण अरे दरे खो गुपला नउआ, ऐरे गैरे काम।

अरौ :: (सं. पु.) उपद्रव, झगड़े का काम।

अरौने :: (सं. पु.) बना नमक का, बेस्वाद, उदाहरण अरौनी पूड़ी, अरौना भोजन जिसमें नमक न हो।

अर्राटौ :: (क्रि.) वस्तुओं के गिरने की ध्वनि मकान या पेड़ गिरने की आवाज।

अर्राबो :: (क्रि.) आसक्त होना।

अलअलाबो :: (क्रि.) बेमतलब की आवाज।

अलकतरा :: (सं.) डामर।

अलखार :: (सं. स्त्री.) साधुओं के पहनने का एक वस्त्रा।

अलग :: (वि.) अलहदा।

अलगरजी :: (वि.) लापरवाह, स्वार्थी।

अलगा :: (सं.) दही मथने की मथानी।

अलगीर :: (सं.) घोड़े की पीठ पर सवारी करने के लिए उपयोगी नरम गद्दे।

अलगोजा :: (सं. स्त्री.) दो बाँसुरी जो एक साथ बजायी जाती है।

अलच्छ :: (वि.) आरोप।

अलप :: (पु.) कष्ट योग।

अलफ :: (सं. पु.) संकट की घड़ी, अकाल मृत्यु, उदाहरण उदना विधना अलफ बचाये, जिदना पटियाँ पारें, ईसुरी।

अलफ :: (वि.) संकटकाल।

अलफतया :: (वि. ब. पु.) मृत।

अलफतियाँ :: (वि.) आवारा, लापरवाह, उदाहरण-अलफतियाँ-जबान।

अलफा :: (सं. पु.) कुर्ता, कटनदार, चूड़ीदार, बांगाली, पंजाबी, बगल के गले का, बन्द गले का, रूमालीदार, पट्टीदार।

अलफा :: (सं. पु.) कुर्ता।

अलबछेरा :: (वि.) अल्हड़, जवान।

अलबेली :: (वि. स्त्री.) निराली।

अलबेलो :: (वि. ए.) निराला।

अलबैलो :: (सं. पु.) अनौखा, कजीब, आश्चर्यजनक, उदाहरण-अलबेली ने पकाई खीर, दूध की जगह डाला नीर-किसी अनोखी औरत ने खीर बनाई, और उसमें दूध की जगह जगह पानी डाल दिया।

अलभेजा :: (सं. पु.) बांसुरी का जोड़ा, अलगोजा।

अलमस्त :: (वि.) मस्त मौला।

अलमारी :: (सं.) आलमारी।

अलरयाव :: (सं. पु.) अनाड़ीपन का काम।

अलरिया :: (क्रि.) मूर्ख।

अलल टप्पू- :: (वि.) आवारा।

अललटप्पू :: (सं.) अन्दाजन।

अललटप्पू :: (वि.) बिना सिर पैर के।

अललबेला :: (सं. पु.) हुक्के की मुलायम लम्बी नली जो ऊपर से जरी या कपड़े और जरी के काम से सजी रहती है।

अलवान :: (पु. अ.) एक तरह का ऊनी शाल।

अलसेट :: (सं. पु.) ढीलढाल, व्यर्थ देर, बाधा, अड़चन, टालमटूल।

अलसेट :: (स्त्री.) अड़चन, अड़ंगा।

अलसेट :: (सं.) बाधा।

अला :: (वि.) आल्हा गाने वाले।

अलाई :: (वि.) आलसी।

अलानों :: (सं. पु.) बंधन।

अलाय-बलाय- :: (सं. स्त्री.) आपदा, विपत्ति।

अलायचो :: (सं.) एक प्रकार का कपड़ा।

अलाल :: (वि.) मूर्ख, आलसी, उदाहरण अलाले बैठना, अलरिया, अलरयाव-मूर्खता पूर्ण कार्य।

अलाल :: (वि.) अकर्मण्य, आलसी।

अलाल :: (वि. तृ. ए. पु.) आलसी, सुस्त।

अलाली :: (सं. स्त्री.) आलस्य।

अलाव :: (सं. पु.) जाड़े के दिनों में बैठकर तापने का वह स्थान जहाँ एक चौड़े अड्डे में आग जलती रहती है।

अलीकौ :: (सं.) खजाना।

अलोंनो :: (वि.) बिना नमक का।

अलोप :: (वि.) अदृश्य।

अलोप :: (वि.) लुप्त होना।

अलोप :: (क्रि.) लुप्त होना।

अलोपा दाई :: (सं.) एक देवी।

अलौआ :: (सं. स्त्री.) आले का छोटा रूप, आल्हा गाने की कला।

अल्लबो :: (क्रि.) जोर से चिल्लाना।

अवइयां :: (क्रि.) आने को।

अवक्षर :: (सं.) अक्षर।

अवध :: (सं. स्त्री.) अयोध्या, अवधी।

अवधूत :: (सं. पु.) खूब मोटा, निश्चिंत रहने, खाने और सोने वाला।

अवसकें :: (वि.) अवश्य।

अवस्था :: (सं. स्त्री.) आयु, उम्र, शारीरिक स्थिति।

अवस्स :: (क्रि. वि.) अवश्य, जरूर।

अवा :: (सं.) मिट्टी के बर्तन पकाने का भट्टा।

अवाइ :: (क्रि.) आगमन।

अवाज :: (सं.) ध्वनि।

अवान :: (वि.) कटकर खाली पड़े खेत।

अवार :: (सं.) सौंपना।

अवारौ :: (सं.) देना।

अविरथा :: (सं.) व्यर्थ।

अवैके :: (सं.) अबके, इस बार क।

अवैनो :: (वि.) अभी तक।

अष्टांगी :: (वि.) आठ दवाओं से बना चूर्ण।

अंस :: (सं. पु.) अंश, किसी वस्तु का कुछ भाग, संतान में पिता की आत्मा और शारीरिक अवयवों की उपस्थिति, कंधा।

असंख :: (वि.) असंख्य, गणित से परे।

असगन :: (सं. पु.) अश्वगन्ध, असगन्ध, एवं औषधिक जड़ी, अपशकुन, किसी यात्रा या अभियान के पूर्व अशुभ दृश्य उपस्थित होने की क्रिया।

असगन :: (सं. पु.) अँश्वगन्ध, एक औषधि।

असगुन :: (सं.) अपशकुन।

असंट :: (वि.) बेतुका।

असते :: (क्रि.) आहिस्ता, धीरे से।

असफेर :: (वि.) आसपास।

असमंजस :: (सं. पु.) दुविधा, विश्वास की डाँवाडोल स्थिति।

असर :: (सं. पु.) प्रभाव।

असरेऊ :: (वि.) आश्रित।

असरेऊ :: (वि.) आश्रित।

असल :: (वि.) असली. वास्तविक, यथार्थ।

असला :: (सं. पु.) शस्त्र व उसे चलाने की सामग्री, बारूद, कारतूस आदि।

असलाह :: (वि.) हथियार।

असलेखा :: (सं. स्त्री.) अश्लेषा नवाँ नक्षत्र।

असलो-बसलो :: (सं.) गृहस्थी का सब सामान।

असवार :: (सं. पु.) सवार।

असहाय :: (वि. सं.) जिसका कोई साथी न हो।

असाटी :: (वि.) वैश्यों की एक जाति।

असाड़ :: (सं. पु.) एक हिन्दू माह।

असाड़- :: (सं. स्त्री.) अषाढ़ विक्रम संवत का चौथा महीना।

असाड़ी :: (वि.) आषाढ़ में बोई जाने वाली फसल, वर्षा मंगल के लिए आषाढ़ में की जाने वाली देवताओं और ग्राम देवताओं की पूजा।

असाढ़ी पूजा :: (क्रि.) आषाढ़ के महीनें में की जाने वाली पूजा-अर्चना।

असाध :: (वि.) असाध्य, ऐसा रोग जो किसी उपचार से ठीक न हो मरणासन्न, स्थिति।

असास होवौ :: (क्रि.) शमन करना, सोना।

असासई :: (वि.) अचानक।

असील :: (वि.) असल, वास्तविक।

असील :: (वि.) असल।

असीलजादे :: (वि.) आलसी व्यक्ति।

असीली :: (सं. स्त्री.) किसी को खानदानी होने की चुनौती देकर उत्तेजित करने की क्रिया।

असीली :: (प्र.) असल बाप के हौ तो..., इसे असीली धरना कहा जाता है।

असीली धराना :: (क्रि.) उत्तेजित करने हेतु चुनौती देना।

असीलीधरावौ :: (क्रि.) सौगन्ध देना।

असीस :: (सं. स्त्री.) आशीर्वाद, आशीष।

असीस- :: (सं. स्त्री.) आशीष अपने से छोटों की मंगलकामना।

असीसबौ :: (क्रि.) आशीष देना वाचिक रूप से मंगलकामना करना।

अँसुआ :: (सं. पु.) आँसू।

अँसुआ :: (कहा.) अँसुवा न मसुआ, भैंस कैसे नकुआ - व्यर्थ रूठने और नाक फुलाने वाले बच्चों के लिए कहते हैं।

असुआ- :: (सं. स्त्री.) आँसू।

असुद्ध :: (वि.) रजस्वला स्थिति में, अशुद्ध, अपवित्रि, गन्दा, सार या सूतक की स्थिति में।

असुभ :: (वि.) अशुभ अमंगलकारी।

असुर :: (सं. पु.) राक्षस, बेखबर सोने वाला।

असेंसा :: (वि.) अचानक।

असोक :: (सं. पु.) अशोक वृक्ष, इसकी छाल अनेक स्त्री रोगों की दवा के काम आती है।

अस्टा :: (सं. पं.) आठ की इकाई, चौपड़ और चंगला आदि के पाँसों या कौड़ियों को पारने पर प्राप्त आठ का अंक।

अस्तर :: (सं. पु.) पोशाक में मजबूती के लिए भीतर की ओर लगाया जाने वाला वस्त्र।

अस्तर :: (सं. तृ. ए. पु.) भीतरी कपड़ा।

अस्त्रान :: (क्रि.) स्त्रान।

अस्पताल :: (सं. स्त्री.) औषधालय, चिकित्सालय।

अस्ली :: (वि.) मौलिक, अकृत्रिम, सच्चा, शुद्ध जो नकली न हो।

अस्वनी :: (सं. पु.) एक नक्षत्र सत्ताईस में से प्रथम।

अस्सी :: (वि.) आठ दहाईयों या चा बिसी का योग।

अस्सेरा :: (सं. पु.) आधा सेर, चालीस तोला का बाँट।

अस्सेरी :: (सं. स्त्री.) एक प्रथा जिसके अंतर्गत निराश्रितों को आधा सेर अनाज प्रतिदिन के हिसाब से बंधान दिया जाता था, ओरछा राज्य की यह प्रथा आज भी मध्य प्रदेश शासन द्वारा ओरछा राज्य की विलय शर्तों के अनुसार दो रूपया मासिक देकर चालू है, (सन ९०-९१ से ६० रूपये मासिक मिलने लगे हैं) यह मूल्यांकन उस समय का है जब सोलह से बीस सेर तक गेहूँ का मूल्य एक रूपया होता था।

अहंकार :: (सं. पु.) अत्यधिक घमण्ड जो बात बात में प्रकट होता हो।

अहम :: (सं. पु.) घमण्ड, वह घमण्ड जो व्यक्ति के गंभीर और अपने आप को औरों से अलग समझने की प्रवृत्ति से प्रकट होता है।

अहानो :: (सं. पु.) कहावत, लोकोक्ति को स्पष्ट करने वाली कहानी।

अहार :: (सं. पु.) आहार, भोजन की वह मात्रा जो एक व्यक्ति एक बार में खाता है, टीकमगढ़ जिले में स्थित एक प्रसिद्ध व प्राचीन जैन तीर्थ।

अहारी :: (वि.) ग्रहण करने वाला, खाने वाला, अधिक भोजन करने वाला।

अहित :: (सं. पु.) हानि, नुकसान।

अहिबात :: (सं.) सौभाग्य।

अहीर :: (सं. पु.) आभीर, एक जाति जो अब यादव की पर्याय हो गयी है, उदाहरण-अहीर की दहेंड़ी मटिया सुर्खरू-अहीर की मथानी और मटकी हमेशा चिकनी-चुपड़ी रहती है, क्योंकि घी-दूध के संपर्क में रहती है, देखिये अईर।

अहेरौ :: (सं. पु.) शिकार, आखेट।

अहो :: (सं. स्त्री.) प्रशंसा, वाहवाही।

अहोई आठें :: (सं. स्त्री.) क्वाँर वदी अष्टमी इस दिन दीवाल पर चित्र बनाया जाता, चन्द्रमा की पूजा व अर्द्ध दिया जाता।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का दूसरा स्वर वर्ण, यह अ का दीर्घ रूप है, अकर्मक. स्वीकार, अनुकम्पा, दया, वाक्य समुच्चय, अल्प, सीमा, हद्द, व्याप्ति और अतिक्रमण आदि अर्थ-सूचक अव्य. शब्द, (उपसर्ग) क्रिया से पूर्व प्रयुक्त होने पर-पास, ओर, चारों ओर, आदि अर्थो को प्रकट करता है, गत्यर्थक धातुओं से पूर्व प्रयुक्त होने पर धात्वर्थ को उलट देता है जैसे-गमन, देना, लेना इत्यादि।

 :: (सं. पु.) पितामह, शिव आदि।

आइ :: (संबो.) आर्या-सास के लिए सम्बोधन आवभगत नाम बनाने वाला प्रत्यय।

आउँन :: (सं. पु.) पहिये की लकड़ी की नार के छेद में लगाया जाने वाला लोहे की पट्टी का गोल छल्ला जिससे लकड़ी कटे नहीं।

आउँन-जाउँन :: शब्द युग्म आना-जाना, जन्म-मरण।

आँक :: (सं. पु.) अंक, प्रायः अंक के लिए प्रयुक्त शब्द।

आकछीं :: (सं. पु.) छींकने पर होने वाला शब्द।

आँकड़ा :: (सं. पु.) हिसाब करते समय जोड़ी घटाई जाने वाली संख्या, हंसिया के आकार की मुड़ी हुई नोंकदार छड़, जिसके एक ओर मुठिया लगी रहती है यह भरे हुए बोरे उठाने में सहायक होता है।

आँकड़ी :: (सं. स्त्री.) कांटा, अंकुशी, जंजीर, सर्प पकड़ने की लोहे की छड़ जिसके एक सिरे पर अंग्रेजी अक्षर की तरह की दो शाखाएँ बनी रहती है जिससे सर्प को फन के पास दबाकर पकड़ लिया जाता है।

आँकना :: (सं. पु.) परखना, परीक्षा करना, चिन्हित करना, अनुमान करना, अंदाज करना, इसका शुद्ध रूप है अंकन।

आँकने :: (सं. पु.) गहोई वैश्यों के स्थान आधारित या कुलीन उपनाम।

आकन्न :: (सं. स्त्री.) आकर्ण होने की स्थिति, कान देने की स्थिति, उदाहरण-कीखों होय आकन्न कछू तो करौ उपाय है, ध्यान देकर सुनने की स्थिति, मर्यादा, पर्दा।

आँकबों :: (क्रि.) अंकित करना, आकृति बनाना, तरल रंग से अल्पना बनाना, मूल्यांकन करना, आकलन करना।

आँकर :: (वि.) गहरा, अधिक, मंहगा।

आँकरी :: (वि.) गहरी, अधिक, महँगी, अंकुश, वाण की नोंक।

आकरौ :: (वि.) तेज चलने वाला हाँकने से शीघ्र प्रभावित होने वाला बैल, किसी काम का बढ़ा-चढ़ कर होने वाला दुष्परिणाम।

आकरौ :: (प्र.) जुआँनी के ऐब बुड़ापे में आके कड़े।

आँका :: (सं. पु.) चिन्ह, संख्या, अदद, अक्षर रेखा, इसका शुद्ध रूप है अंक।

आकुर्त :: (सं. स्त्री.) तृष्णा, अधिक खा लेने की लालसा।

आँकुस :: (सं. पु.) हाथी को हाँकने का अंकुश, नियन्त्रण देखिये. इसका शुद्ध रूप अंकुश।

आँख :: (सं. स्त्री.) नेत्र, आँखन देखत, आँख भेदकें, आँखन हित, आँख भरकें देखा, आँख-आँख भटकावो, आँख-टैया सी आँखे।

आँख की किरकिरी :: (वि.) कोमल संबंध में ददार।

आँख के अंधे :: (वि.) गाली।

आँख जुड़ाबौ :: (क्रि.) किसी को देखकर आत्मिक आनन्द प्राप्त होना।

आँख दिखावौ :: (क्रि.) धमकाना, आँखों के इशारों से मना करना।

आँख नटेरबौ :: (क्रि.) आँखे पाड़-फाड़कर देखना, पलकों का बंद हो जाना, पलकें न झपकना।

आँख मुदबो :: (क्रि.) आँख बंद होना।

आँख लगबौ :: (क्रि.) नींद आ जाना सो जाना।

आँख सेंकना :: (क्रि.) सुन्दर स्त्रयों को देखकर आनन्द लेना।

आँखन झूलबौ :: (क्रि.) किसी मार्मिक दृश्य का बार-बार स्मरण आना, मन पर छा जाना।

आँखफोड़ा :: (सं. पु.) एक प्रकार का हरा कीड़ा जो बहुत उछलता है और इसलिये कभी-कभी आँख पर चोट पहुँचा देता है।

आँखमिचौनी, आँख मिचौली :: (सं. स्त्री.) बच्चों का एक खेल जिसमें एक बच्चे की आँख बन्द करके सब छिप जाते हैं, फिर वह बच्चा सब को खोजता है और छूता है जो बच्चा छू जाता है उसे दहाई कहते हैं और फिर उसकी आँख बन्द की जाती है, उदाहरण-आँख में धूल झोंकना, आँखे खुलना-आँखें निकारवो-आँख-आँख मूदवो, आँख चेंथरी पै।

आखर :: (सं. पु.) अक्षर, वर्ण।

आखरकार :: (क्रि. वि.) अन्तः।

आखवौ :: (क्रि.) छलनी से छानना, पतली छलनी से कोई चीज छानना।

आखी :: (सं. स्त्री.) मैदा छानने की बारीक छन्नी।

आखीर :: (सं. पु.) अन्त समय, मृत्यु बेला।

आखीर :: आखिरी।

आँखें खुलबौ :: (क्रि.) असलियत जान लेना, भ्रम दूर हो जाना।

आँखें चुराना :: (क्रि.) कतराना।

आँखे छिपाना :: (क्रि.) लज्जित होना।

आँखें मटकाना :: (क्रि.) चंचलता।

आँखें मूंदना :: (क्रि.) स्नेह प्रकट करना, उदासीन होना, मृत्यु होना।

आखौती :: (सं. स्त्री.) अन्न जो नाई ढीमर आदि को विशेष अवसर पर दिया जाता है, मूलतः चावल की भेटे ही देते हैं, बाँयनों लाने वाली खवासिन को भेंट स्वरूप दिया जाने वाला अनाज।

आख्ता :: (सं. पु.) हल में अकुरिया और फरैतौ तथा हरींस के संयोजन स्थान पर लगायी जाने वाली पच्चड़।

आग :: (सं. स्त्री.) अग्नि, जलन, ईर्ष्या।

आँग :: (सं. पु.) अवयव, शरीर इसका शुद्ध रूप है अंग, शरीर का बाह्रय भाग, शरीर का गुप्तांग वाला भाग, उदाहरण-आँग गिरवो-गर्भपात होना।

आगड़ :: (सं. स्त्री.) दरबाजा बन्द करने की लोहे की छड़, किसी वस्तु की बहुतायत से मिलने का स्थान, घर की रक्षा के लये किवाड़ों में लगी लकड़ी, अर्गला।

आगड़े :: शर्म।

आँगन :: (सं. पु.) प्रांगण, मकान के अन्दर का खुला भाग।

आगन्नो :: (सं. पु.) प्रथम प्रसव के पूर्व गर्भ के आठवें महीने में होने वाला संस्कार एवं आयोजन, जिसमें लड़की के मायके से वस्त्र आभूषण पकवान आदि भेजे जाते हैं।

आगरी :: (सं. स्त्री.) चतुर, अधिक।

आँगलें :: (क्रि. वि.) आगे की ओर।

आगी :: (सं. स्त्री.) अग्नि, आग, अगन।

आँगी :: (सं. स्त्री.) अंगिया, चोली, कुरती।

आँगुर :: (सं. पु.) अंगुल का माप, देखिये. अँगुरा।

आँगुरी :: (सं. स्त्री.) देखो इसका शुद्ध रूप अंगुली।

आँगू :: (वि.) आगे, सामने, सम्मुख।

आँगे :: (क्रि. वि.) आगे, भविष्य में।

आँगे :: दे. आँगू, अँगाऊँ।

आँगे देना :: तौल ठीक न होने पर अगर कम वजन के बाँट नहीं है और माल कम है तब सामान वाले पलड़े पर वजन पूरा करने के लिए कोई और चीज रख लेना।

आँगो :: (सं. पु.) भविष्य, आने वाला समय, अगलाप भाग। प्रयोग आँगो चेतौ-भविष्य की सोचो।

आगोंनी :: (सं. स्त्री.) अतिशबाजी।

आगौनी :: (सं. स्त्री.) लड़के की शादी में ले जाने वाली बारूद।

आग्याँ :: (सं. स्त्री.) आज्ञा।

आग्याँ :: दे. अग्याँ।

आँच :: (सं. स्त्री.) भाग, आग की लौ, गरमी, जलन, चोट, हानि, ऊष्मा, दुष्प्रभाव।

आचमन :: (सं. पु.) पूजा के पूर्व आन्तरित तथा बाह्य शुद्धि हेतु की जाने वाली एक क्रिया जिसमें ईश्वर को नमस्कार करते हुये एक-एक माशा जल मुँह में डाला जाता है।

आचमनी :: (सं. स्त्री.) आचमन के लिये जल लेने या पूजा में जल छोड़ने के लिये छोटी चम्मच।

आँचर :: (सं. पु.) साड़ी या दुपट्टे का छोर, किनारा, पल्ला, इसका शुद्ध रूप है अंचल, ओढ़नी का वह भाग जो सामने छाती पर रहता है स्तन, दूध।

आँचर कौ :: (वि. स्त्री.) का चार-छह माह का शिशु।

आँचरी :: (सं. स्त्री.) देवी गायन, गीत।

आचार :: (सं. पु.) आचरण, आचार-विचार, प्रेरणार्थक क्रिया. पण्डित लोग आचार विचार जानते हैं।

आचार :: (क्रि.) आचरण, आचार-विचार, प्रेरणार्थक क्रिया. पण्डित लोग आचार विचार जानते हैं।

आचारजी :: (सं. पु.) आचार्य जी, धार्मिक कृत्य कराने वाला ब्राह्मण।

आज :: (सर्व.) अद्य, वर्तमान दिवस, समय, वर्तमान दिवस, आजई-सर्व. आज ही, आजऊँ-सर्व. आज ही, अभी।

आँजन :: (सं. पु.) अंजन, आँखों में लगाने की औषधि।

आजनम :: (सं. पु.) आजन्म।

आँजबौ :: (क्रि.) आंखों में आँजन या औषधि लगाना।

आजा :: (क्रि.) आने की क्रिया का आज्ञावाची रूप जो प्रायः बच्चों के लिये पुनरूक्ति पूर्वक प्रयुक्त होता है, (स्नेह भाव में), दादा, पितामह।

आजार :: (सं.) एक रोग।

आजी :: (सं. स्त्री.) दादी, पितामही, पिता की माता।

आजुल :: (सं. पु.) पितामह, दादा, पिता का पिता लोक गीतों में प्रयुक्त।

आजू-बाजू :: (श. यु.) अगल-बगल, आस-पास।

आँट :: (सं. पु.) तारों को जोड़ने के लिए मरोड़ी आधी गाँठ लगाने को आँट कहते हैं।

आँट :: (सं. स्त्री.) गाँठ तर्जनी, अंगुली और अँगूठे के बीच का स्थान, विरोध, द्वेष, दाव पेंच, बैर, लाग, डाट, ऐंठन।

आँट-साँट :: (सं. स्त्री.) मेल, बन्धन, सांझा, हिस्सेदारी।

आटक :: (सं. पु.) खेतों में कटे हुए पेड़ों के ठूँट या मोटी जड़ें जो जुताई में परेशानी पैदा करती है।

आटना :: (क्रि.) तोपना, ढ़ंक देना।

आँटना :: (क्रि. अ.) समाना, भरना।

आँटी :: (सं. स्त्री.) घास का छोटा गट्ठा, सूत की अच्छी धोती की गिरह, दही बलोते समय मट्ठे पर तैरने वाले मक्खन के छोटे-छोटे कण।

आटौ :: (सं. पु.) पीसे हुए आनाज का चूर्ण, आटो सामान-भोजन बनाने के लिए समस्त आवश्यक सामग्री, समास में प्रयुक्त।

आठ :: (वि.) चार और चार के योग की संख्या।

आठ :: (वि.) आठक-आँठवा, आठँइँ।

आठ :: (स्त्री.) आठें।

आठ :: (सं. स्त्री.) अष्टमी पखवाड़े की आठवीं तिथि, उदाहरण-आठ काठ का बना मथनिया, कदम पत्र के दौना, आठहु गाँठ-सब प्रकार से।

आठिया :: (सं.) एक जाति।

आँठी :: (सं. स्त्री.) गुठिली गाँठ, थक्का, थकिया।

आठें :: (सं. स्त्री.) अष्टमी, चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी (या कृष्ण पक्ष की) इसमें कुल देवता की पूजा होती है, क्वॉर की शुक्ल पक्ष को देवी की पूजा होती है।

आड़ :: (सं. स्त्री.) ओट, लिहाज, अन्त्येष्टि के समय कपाल क्रिया करने का बाँस या लकड़ी।

आड़ :: (वि.) शर्म, मर्यादा, माथे की रकील, टिपकी के नीचे।

आड़ :: (प्र.) नेचें आड़ लगी सेंदुर की।

आँड़ :: (सं. पु.) अण्डकोष, एक नर अंग।

आँड़ :: (मुहा.) आंड़न पै हो मूतबों-आराम तलबी का प्रदर्शन करना।

आड़त :: (सं. पु.) आढ़त, व्यापार, गल्ले का रोजगार।

आड़तिया :: (सं. पु.) व्यापार में बिचौलियों का धन्धा करने वाला।

आड़बन्द :: (सं. पु.) मियानी, पाजामों के नीचे का हिस्सा।

आड़र :: (सं. पु.) ऑर्डर, (अंग्रेजी). आज्ञा, आदेश।

आड़वों :: (क्रि.) शरीर की लाज ढकने का उपाय करना, वस्त्र को उल्टा सीधा बेतरतीव ढंग से पहनना या ओढ़ना, नंगी भली कै मूसर आड़ौ।

आड़िया :: (वि.) बेड़ा, किवाड़ो के पीछे का सुरक्षा क्षेत्र।

आड़ी :: (सं. स्त्री.) मृदंग बजाने का एक ढंग, ओर, तरफ, आड़ी-कुश्ती का एक दाव, आड़ी गैल-राजमार्ग न हो वह रास्ता, आड़ो-तिरछा, सीधा न हो वह, हठीला, खोटा बोका, आड़ो-रेड़ो-उल्टा सुलटा, आड़ौ।

आड़ी :: (वि.) क्षैतिज, पड़ा हुआ।

आँडी :: (सं. पु.) पशुओं की पूँछ में बालों का स्थान।

आड़ी गैल :: (वि.) आड़ा छोटा रास्ता गली।

आँडू :: (सं. पु.) बिन बधिया किया बैल।

आड़े :: (वि.) जो बीच में आकर बाधा पहुँचाये।

आड़ों-ठाड़ौ :: (सं. पु.) सामने अड़ा हुआ, खड़ा।

आड़ौ :: (क्रि.) पड़ा हुआ, आड़े होवो, बीच बचाव करना, तुरत आन आड़ो भयौ, हाड़ा का दिल श्याम।

आँतर :: (सं. पु.) जोते समय बीच-बीच में जमीन छूट जाना, अन्तर, हल के जोतते समय कूंड़ी के बीच छूट जाने वाला बिना जुता भाग।

आँतरे :: (वि.) एक दिन छोड़कर, एक-एक के अन्तर से, (विशेष रूप से दिन के संदर्भ में प्रयुक्त)।

आताताई :: (वि.) शैतान, उपद्रवी, आतंक फैलाने वाला।

आतीपाती :: (सं. पु.) बुन्देलखण्ड का एक खेल।

आतुर :: (वि.) व्याकुल।

आतुर :: (क्रि.) शीघ्र।

आत्मा :: (सं. स्त्री.) मन बुद्धि चेतन तत्व, परमात्मा का शरीर में व्यास अंश, अत्यंत गंभीर, प्रसन्नता में संतान के लिए भी प्रयुक्त।

आद :: (सं. स्त्री.) आर्द्रता नमी, जब जमीन ऊपर सूखी रहती है और भीतर खेती योग्य रहती है तो उस भीगी जमीन को आद कहते हैं।

आद भुवानी :: (सं. स्त्री.) आदि शक्ति दुर्गा।

आदत :: (सं. स्त्री.) अभ्यास, टेब।

आदबाद :: (सं. स्त्री.) खेल में विराम, छूट, खेल में छोटे बच्चे को साथ खिलाने पर नियमों में दी जाने वाली छूट।

आदर :: (सं. पु.) सम्मान, श्रद्धा भाव, आव-आदर समास में प्रयुक्त।

आदराँ :: (सं. स्त्री.) आर्द्रा, सत्ताइसवां, नक्षत्र।

आँदरों :: (वि.) अन्धा।

आँदरों :: (कहा.) अँदरौ मूतै जगत्त्तर देखै।

आंदरौ :: (वि.) अन्धा।

आदा सीसी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का सिर, दर्द जो प्रायः सूरज निकलने के साथ बढ़ता जाता है और दोपहर बाद कम होने लगता है।

आँदी :: (सं. स्त्री.) आँधी, तेज, हवा जिसके साथ धूल-धक्कड़ उड़ता है, आधे सिर का दर्द।

आँदू :: (सं. पु.) मदान्ध, धनबल आदि किसी कारण से उत्पन्न उन्मत्तता, विवेकहीनता।

आँदू :: (प्र.) बड़ी उन्मतता छायी है उन्हें तो आजकल आंदू चड़े, उदाहरण-आँदू लगवो, आँदू सुनतन लगे लुगाइन आँदू।

आंदू :: (वि.) मदान्ध।

आंदू चढ़वौ :: (क्रि.) धन-बल आदि के मद के कारण विवेक हीन होना।

आदौ :: (सं. पु.) अदरक।

आदौ :: (वि.) आधा, दो भागों में एक भाग।

आधान :: (सं. पु.) गर्भवती होना, गर्भावस्था।

आधान :: (प्र.) बा आजकल आधान से है।

आधार :: (सं. पु.) ताकत, शक्ति का भरोसा।

आँधी :: (सं. पु.) तेज हवा अंधड़, झकड़, तूफान।

आँधी :: दे. आँदी।

आधीन :: (वि.) आश्रित, मातहत।

आधो :: (वि.) अर्द्ध।

आन :: (सं. पु.) इज्जत, सम्मान, मर्यादा, शपथ।

आँन :: (सं. स्त्री.) टेक, संकल्प, मर्यादा।

आँन :: (वि.) अन्य।

आँन :: (प्र.) आन मुलक, आन गाँव।

आँन :: (क्रि.) लाना, शुद्ध क्रिया, आज्ञावादी रूप में सहायक क्रिया दो जुड़ती है उदाहरण आँन दो।

आनगाँव :: (वि.) दूसरा गाँव।

आनन्द :: (सं. पु.) आत्मिक आनन्द, गहरी सुखानुभूति, मजा।

आनन्दी :: (सं. स्त्री.) सुख मय कार्य, मौजमस्ती।

आँना :: (सं. पु.) पुराने चार पैसों की इकाई, चार पैसे का सिक्का, सिक्कों की पुरानी व्यवस्था में रूपया का सोलहवां भाग।

आनाकानी :: यह ठानि वासौ मेरे हेय आनु तुम्है नन्द जूकी आनि आना कानी ना को, ना नुकर करना।

आँनाकानी :: (सं. स्त्री.) बहानोबाजी, टालम टोल, हीला-बहाना।

आनी :: (सं. स्त्री.) का एक प्रत्यय, उदाहरण-देवरानी, जिठानी।

आप :: (सर्व.) स्वंय अपने आप में प्रयुक्त, आपई आप-स्वयं।

आपर :: (वि.) अपरंच, आगे, पत्र में कुशल समाचार तथा अन्य शिष्टाचार लिखने के पश्चात् और अन्य समाचार लिखने के पूर्व लिखा जाने वाला रूढ़ शब्द, इसका प्रयोग केवल इसी सदर्भ में पाया जाता है, पुराने पत्रों की पुरानी शैली में।

आपस :: (सं. पु.) पारस्परिकता का भाव।

आपसदारी :: (सं. स्त्री.) पारस्परिक सद्भाव पूर्ण संबंध।

आपसी :: (वि.) अपने लोगो के बीच का, द्विपक्षीय निर्णय, विश्वास।

आपापोखी :: (वि.) केवल अपने खाने की चिन्ता में रहने वाला, भोजन के संबंध में स्वार्थी।

आपुस :: (सर्व.) आप से, संबंध, नाता, भाईचारा जैसे आपस वाले, एक दूसरे का संबंध।

आपुस :: (मुहा.) आपस का -इष्ट मित्र या भाई बन्धु के बीच का पारस्परिक।

आपुसदारी :: (सं. स्त्री.) दे. आपसदारी।

आपुसी :: (वि.) आपसी।

आपुसी :: (सं. स्त्री.) आपसदारी।

आपूर :: (सं. पु.) खूब संतुष्ट।

आपै :: (सर्व.) अपने को।

आपौ :: (सं. पु.) पदरूप आप आन्तारिक भाव का समाज के अनुकूल आत्म संवरण, आत्मानुशासन।

आपौ :: (प्र.) नशा में वे अपने आप में नँइँ रेत।

आफत :: (सं. स्त्री.) विपत्ति, विपरीत परिस्थिति, संकट।

आब :: (सं. स्त्री.) चेहरे की स्वाभाविक चमक, कान्ति, रत्नों की चमक, सामने।

आब :: (पु.) किसी काम के दौरान बीच में पानी।

आबड़ :: (सं. पु.) उलझन।

आबड़ :: (वि.) सामने, किसी काम के दौरान बीच में, प्रे जिदनइँ हमाई आबड़ में आ गए उदनइँ हम उनें उनकी हैसियत समजा देंय, जो काम आबड़ में आ जाए सब करने परत।

आबर जाबर :: (सं. स्त्री.) अनाप शनाप, कुछ भी, जो भी, चाहे विशेषण. रूप में भी प्रयुक्त।

आबरू :: (सं.) प्रतिष्ठा, इज्जत, लज्जा।

आँबरौ :: (सं. पु.) आँवला।

आबागमन :: (सं. पु.) जन्म-मृत्यु का चक्कर दार्शनिक सन्दर्भ में प्रयुक्त।

आबाजाई :: (सं. स्त्री.) आवागमन, आने जाने का क्रम।

आबारा :: (वि.) निरुद्धेस्य घूमने वाला, गैरजिम्मेदार, नियंत्रणहीन।

आबाहन :: (सं. पु.) आह्वान, पूजा-अर्चना में देवताओं से उपस्थित होने की प्रार्थना।

आबो :: (सं. पु.) आना, आगमन क्रियार्थक संज्ञा।

आबो :: (प्र.) अपनो आबौ कबै भव, शिष्ट प्रयोग, आबो जेबो।

आभा :: (वि.) चमक-दमक।

आम :: (सं. पु.) आम का वृक्ष, आम के कच्चे पकें फलों के लिए अलग शब्द।

आम :: (कहा.) आम फले तो नव चले, अरंड फले इतराय - सज्जन ऊँचे पद पर पहुंचकर विनम्र बनता है पर नीच इतराने लगता है, सामान्य।

आमटौ :: (वि.) खट्टा।

आमद :: (सं. पु.) आने की क्रिया।

आमदाँ :: (क्रि. वि.) अग्रिम राशि, अग्रिम भुगतान, आमदनी।

आमदानी :: (सं. स्त्री.) आय।

आमनो :: (सं. पु.) एक दूसरे के समक्ष होने की स्थिति।

आंमर खोंतर :: (सं. पु.) शब्द युग्म अन्दर का, भीतरी।

आमाझोर :: (वि.) तेज हवा।

आमीहरदी :: (सं. स्त्री.) आँवाहल्दी, एक प्रसिद्ध औषधि, आमी रंग।

आमें सामें :: (क्रि. वि.) आमने सामने।

आम्दा :: (सं. पु.) पेशगी।

आय :: (क्रि.) है।

आय :: (प्र.) अकेलो तो आय।

आय :: (कहा.) आय तो जाए कहां - व्यर्थ किसी एक बात के पीछे पड़ जाना।

आँय :: (क्रि.) हूँ, उत्त्तम पुरूष एक वचन के साथ प्रयुक्त, प्रयोग।

आँय :: (प्र.) मैं सोनू आँव।

आय हाय :: (श. यु.) ओ हो, वितर्क, आश्चर्य या आनन्द सूचक पद।

आँय-वाँय :: (सं. स्त्री.) अनापशनाप बोलना प्रलाप, अनाप शनाप, व्यर्थ की बात।

आँय-वाँय :: (वि.) व्यर्थ।

आयछू :: (क्रि.) गायब होना।

आयली बायली :: (सं. स्त्री.) अचेतावस्था में तारतम्यहीन बातचीत, प्रलाप।

आर :: (सं. स्त्री.) एक झाड़ी वाला पेड़ इसकी लकड़ी में छोटे-छोटी काँटे होते है।

आर-पार :: (सं. पु.) यह किनारा और वह किनारा।

आरजन :: (सं. पु.) आरजा, ज्योतिष की छन्द बद्ध रचना, फ लित ज्योतिष की छन्द बद्ध रचना, भविष्य कथन।

आरजौ :: (सं. पु.) बिमारी जो दीर्घ कालीन या स्थाई हो, जैसे दमा मर्ज।

आरती :: (सं. स्त्री.) नीरांजन करने के लिए विशेष रूप से बनाया गया दीपक जिसमें हत्था भी होता है, आरती करते समय उस दीपक को देवता के समक्ष ऊपर नीचे, अगल-बगल घुमाना, एक धार्मिक कृत्य जो पूजा के समय किया जाता है।

आरतौ :: (सं. पु.) विवाह के समय का एक दस्तूर।

आरबल :: (सं. पु.) आयुर्बल, आयु, उम्र।

आरसी :: (सं. स्त्री.) प्रायः गोलाकार का छोटा आईना।

आरा :: (प्रत्य.) वाला, तद्धित एवं कृदन्त प्रत्यय।

आराजी :: (सं. स्त्री.) स्वामित्व की कृषि भूमि।

आराम :: (सं. पु.) रोग के बाद का आरोग्य लाभ।

आरौ :: (सं. पु.) ताक, दीवार का एक आला जिसमें सामान रखते है, लकड़ी चीरने का आला जिसे दो व्यक्ति चलाते हैं।

आलकी-पालकी :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल।

आलन :: (सं. पु.) भाजी में डालने वाला आटा, दाल के साथ भाजी मिलाकर बनाते समय आटे को जल में घोल कर डालते हैं।

आलय :: (सं. पु.) संसार, समय, घर।

आलस :: (सं. पु.) आलस्य, शरीर की ऐसी दशा जिसमें कुछ करने की इच्छा न हो।

आला :: (सं. पु.) आल्हा, कवि जगनिक के महाकाव्य आल्हखण्ड का प्रमुख पात्र, महोबा के राजा परिमर्दिदेव चन्देल तथा पृथ्वीराज चौहान का समकालीन परिमर्दि देव का वीर सेनानी, लोक विश्वास है कि आला अमर है, जगनिक का महाकाव्य आल्ह, खण्ड, वीर गाथा गायन की एक विशेष शैली, वीर छन्द, डाक्टरों का स्टैथ स्कोप।

आलू :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध कन्द जो साग बनाने के काम आता है।

आल्हा :: (सं. पु.) सावन में गाया जान वाला गीत-आल्हा।

आल्हा :: (कहा.) आला गाऊँकै परमाला - मैं क्या क्या करूँ? वीर आल्हा के यश का गान करूँ या चन्देल राजा परमाल की गाथा का गान।

आव :: (क्रि.) आने का आज्ञावाची रूप, आओ, आव आदर-सम्मान हेतु प्रयुक्त, आव गओ-विपरीतार्थक।

आँव :: (सं. पु.) एक प्रकार का चिकना लसदार मल, आधा पचा हुआ अन्न, पेचिस।

आव आदर :: (सं.) मान-सम्मान।

आवक :: (सं. पु.) उत्पन्न, पैदायश।

आवट :: (सं. स्त्री.) अभ्यास, अंदाज।

आँवठ :: (सं. पु.) छोर, किनारा।

आवन :: (क्रि.) आगमन।

आवन हार :: (वि.) आने वाला, आने को।

आवर-जाबर :: (सं.) कूड़ा-करकट।

आँवरीनमे :: अक्षय नवमी स्त्रियों का एक व्रत जो तिथि शुक्ल नवमीं को होता है, उदाहरण-आँवा हरदी का प्रकार जो चोट आदि के काम आती है।

आँवरों :: (सं. पु.) एक खट्ठा गोलफ ल, एक वृक्ष, जिसका फल आँवला होता है, धात्रीफल, इसका शुद्ध रूप है आमलक।

आँवा :: (सं. पु.) मिट्टी के बर्तन पकाने का गढ्ढा या भट्टी।

आवौ-जावौ :: (क्रि. वि.) आना जाना।

आश्रय :: (सं. पु.) सहारा, भरोसा, पनाह, सहायता की आशा।

आस :: (सं. स्त्री.) दोज की पूजा में रूई की मोटी बत्ती पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर हल्दी और गुड़ लगाकर बनाई गयी बत्ती जो दरवाजे के दोनों ओर लगाई जाती है, आशा, किनारों में गुठी हुई मीठी पूड़ी, पुआ, आस-प्रत्यय, खटास, मिठास, उचास, हगास।

आँस :: (सं. स्त्री.) रेख, किशोर के मुख पर उगने वाली मूछे, गड़ने वाली उठी हुई वस्तु, सपाट सतह पर उभरी हुई नोंक, उदाहरण-पेट की आँस मर गयी।

आसन :: (सं. स्त्री.) बैठने की मुद्रा, बैठने का स्थान, योग की मुद्रा, उदाहरण-आसन-जमावो, आसन-डिगवो, आसन-डोलवो, आसन-मारकैं बैठना।

आसनाई :: (सं. स्त्री.) आसक्ति, अवैध संबंध।

आसनी :: (सं. स्त्री.) चटाई, पूजा स्थल पर बैठने का आसन।

आसमाई :: (सं. स्त्री.) एक देवी जिसकी पूजा क छोटे कुण्ड में की जाती है जो ग्रामों में देवी मंदिरों के साथ बना रहता है।

आसरम :: (सं. पु.) साधु-सन्यासियों द्वारा बनाया जाने वाला देवस्थान, निःशुल्क आवास, आश्रम।

आसरित :: (सं. स्त्री.) आश्रित, सहारा।

आसरो :: (सं. स्त्री.) सहारा, उदाहरण-आसरो-टूटवो, देवो, देखवो।

आँसवौ :: (क्रि.) अखरना, चुभना, खलना, किसी की बात लगना, उदाहरण-कड़वो आसत गेल गली को, सुगर नार पतरी को।

आसा :: (सं. स्त्री.) उम्मीद, अप्राप्य के पाने की इच्छा, कहावर. आशा से आसमान टँगो-आशा के बल पर ही आसमान टिका है।

आसा :: (सं. स्त्री.) आशा, उम्मीद।

आसामी :: (सं. स्त्री.) मनुष्य, कवि, देनदार, पैसेवाला, प्रतिष्ठित।

आसार :: (सं. पु.) लक्षण, दीवार की मोटाई।

आसीरवाद :: (सं. पु.) आशीर्वाद।

आँसूढार :: (सं. पु.) एक दोष बैल का।

आसें :: (सं. पु.) मीठी पूड़ी जो हर पूजा में बनती हैं एक प्रकार के पुआ गोंठकर बनते हैं।

आसेरू :: (सं. पु.) आश्रित।

आसैर :: (सं. पु.) दीवार की मोटाई।

आसों :: (वि. सर्व.) इस साल।

आहा :: (नि.) प्रसन्नता तथा व्यंग्यबोधक शब्द।

आहां :: (नि.) नहीं का बोधक शब्द।

आँहां :: (नि.) नहीं का अर्थ बोधक शब्द।

आहुती :: (सं. स्त्री.) आहुति, यज्ञ में देवार्पण किया जाने वाला।

 :: हिन्दी वर्णनाला देवनागरी लिपि का तीसरा स्वर वर्ण, इसका उच्चरण स्थान तालु है।

इँ :: (प्र.) प्रत्यय-बलवाची यह प्रायः उत्तम।

इँ :: (पु.) मध्यम।

इँ :: (पु.) के एकवचन तथा बहुवचन और अन्य पुरूष के बहुवचन के साथ कर्म कारक स्थिति में आता है।

इक :: (उप.) एक के अर्थ का द्योतक उपसर्ग जैसे इकन्नी, इकईस, इकतीस, इकता-तीस आदि।

इक :: (कहा.) इक लख पूत सवा लख नाती, तो रावन घर दिया न बाती - धन, यौवन और बड़े कुटुम्ब का गर्व नहीं करना चाहिए, ईश्वर का कोप होने पर सब पल भर में विलीन हो जाता है जैसे रावण का हुआ।

इकईस :: (वि.) इक्कीस, दस-दस और एक के योग की संख्या।

इकटक :: (वि.) टकटकी लगाकर देखना।

इकट्ठा :: (वि.) एक स्थान पर जमा किया या रखा हुआ, एकत्र किया हुआ, जैसे घर में कूड़ा करकट इकट्ठा करना।

इकट्ठो :: (वि.) एक साथ होना।

इकड़बौ :: (क्रि.) अकड़ाना, ऐंठना, क्रोध प्रदर्शन करना, ठंड से जड़ हो जाना।

इकतर :: (वि.) एकत्र।

इकतरा :: (सं. पु.) एक-एक दिन के अन्तर से आने वाला मलेरिया बुखार।

इकताई :: (सं. स्त्री.) एकता, एकांत-प्रियता।

इकतान :: (वि.) एक-सा, एक रस, शांत और स्थिर।

इकतार :: (वि.) एक-रस, एक-समान, निरंतर लगातार।

इकतारा :: (सं. पु.) सितार की तरह का एक बाजा जिसमें क ही तार रहता है, हाथ से बुना जाने वाला एक प्रकार का कपड़ा।

इकताला :: (सं. पु.) संगीत में एक प्रकार का ताल।

इकतालीस :: (वि.) चार दसकों तथा एक के योग की संख्या।

इकतीस :: (वि.) तीन दसकों तथा एक के योग की संख्या।

इकत्तर :: (वि.) इकत्तर, सत्तर और एक के योग की संख्या।

इकन्ना :: (सं. पु.) बड़ा पहाड़ा, गिरइया, सभी पहाड़ों का अन्त दहम् पर होता है, इकन्ना दहाई के आगे होता है, जैसे-गेरमगेर इकइसा सौ, गेर बार बतीसा सौ, इसी प्रकार आगे की।

इकन्नी :: (सं. स्त्री.) एक प्राचीन एक आने का सिक्का, इकन्नी।

इकन्नी :: (सं. स्त्री.) एक आने का सिक्का, रूपया का सोलवाँ भाग।

इकपरिया भारौ :: (सं. पु.) एक प्रकार का भाड़ जिसके एक ही ओर बैठकर भुनाई हो सकती है।

इकबारगी :: (अव्य.) एकबारगी।

इकबाल :: (वि.) अपराध स्वीकार किए हुए, एक प्रसिद्ध शायर।

इकयाऊ :: (अव्य.) बिलकुल।

इकरउअल :: (वि.) इकहरा, एक ही पर्त वाला।

इकरार :: (सं. पु.) वचनबद्धता, सहमति।

इकरार नामा :: (सं. पु.) अनुबंध-पत्र।

इकरौरौ :: (वि.) टालू।

इकल सुंगरा :: (वि.) अकेला सुअर, एकान्त पंसद करने वाला, असामाजिक स्वभाव वाला, रूखे स्वभाव वाला, अकेला सुअर इसका शब्दार्थ मात्र है, इस अर्थ में इसका प्रयोग न होकर शेष अर्थों में होता है।

इकलउअर :: (वि.) दे. इकहरा, इकरउअल।

इकला :: (वि.) एक अकेला।

इकलाई :: (सं. स्त्री.) छपी ही जनानी धोती जो जोड़े में नहीं होती।

इकलोई :: (वि.) एक सी।

इकलौता :: (वि.) जो अपने माँ-बाप का एक ही हो, अंर्थात् जिसके कोई भाई बहन न हो।

इकल्ला :: (वि.) अकेला इकहरा एक पर्तवाला।

इकवाई :: (सं. पु.) छोटी दीवार या परदिया, सुनारों का एक औजार जिस पर चूड़ियाँ बनाई जाती है।

इकवारी :: (सं. स्त्री.) आड़ या मकान के हिस्सा बाँट के लिए बनाई गई दीवार, इस पर मकान का कोई बोझ नहीं होता।

इकसट :: (वि.) साठ और एक के योग की संख्या, इकसठ।

इकसर :: (वि.) अकेला, एकसा, बराबर।

इकसार :: (वि.) बराबर, समान, सद्दश, समान ढंग से, एक ही क्रम से, एक-सा।

इकसूत :: (वि.) एक में मिला हुआ, एक साथ, एकत्र।

इकहरा :: (वि.) एक परत का।

इकाई :: (सं. स्त्री.) कई अंकों की संख्या में दायीं तरफ की पहली संख्या।

इकाउन्बै :: (वि.) नब्बे और एक के योग की संख्या, इकानबै।

इकाऊ :: (अव्य.) दे. इकयाउ।

इकाँग :: (वि.) आत्मकेन्द्रित, अधिकांश लोगों को नापसन्द करने वाला।

इकात :: (सं. पु.) एक बार भोजन करने का व्रत, उपवास।

इकाद :: (वि.) एकार्द्ध, एक या आधा-संश्लिष्ट शब्द।

इंकार :: (सं. पु.) नहीं, विशेषण. रूप में प्रयुक्त, उदाहरण-बे तो ई बात से इंकार है।

इकारी :: (वि.) एक परत की इकहरी, दुबली, उदाहरण-जुबन विसाल चाल मतवारी, पतरी कमर इकारी, लोकगीत।

इकारौ :: (वि.) इकहरा, पतला दुबला।

इकेरी :: (वि.) इकहरी, दुर्बल।

इकेला :: (वि.) अकेला।

इकौरा :: (सं. पु.) एक ही समय एक बार जैसे-हमाई भैंस इकौरा लगत।

इक्कर :: (वि.) एक ओर झुका हुआ, टेढ़ा, स्थित।

इक्का :: (सं. पु.) ताँगा, एक घोड़े से खींचा जाने वाला वाहन, क अंक वाला ताश का पत्ता, अकेला, अनौखा, निराला उदाहरण-अक्का-दुक्का।

इक्का दुक्का :: (वि.) अकेला दुकेला, एक या दो।

इक्काँई :: (क्रि. वि.) अकेले ही, बिना किसी के सहयोग के।

इक्कागोड़ी :: (क्रि. वि.) अकेले ही पैदल घूम-घूम कर, लगातार घूमते रहना।

इक्कावन :: (वि.) पचास और एक की संख्या, इक्यावन।

इक्की :: (सं. स्त्री.) ताश का वह पत्ता जिसमें केवल एक बूटी बनी हो, इक्का।

इक्कीस :: (वि.) बीस और एक।

इक्यान्बै :: (वि.) दे. इकाउन्बै।

इंक्यावन :: (वि.) पाँच दहाई और एक के योग की संख्या।

इक्यासी :: (वि.) आठ दहाई और एक की संख्या का योग।

इखट्टौ :: (क्रि. वि.) इकट्ठा, एक साथ।

इंग :: (सं. पु.) संकेत।

इंगनिस्तान :: (सं. पु.) इंगलैण्ड द्वीप।

इँगरौटी :: (सं. पु.) इंगुर, सैन्दुर रखने की डिबिया।

इंगल :: (सं. पु.) ऐंगिल, आयरन समकोण पर मुड़ी हुई लम्बी पत्त्ती, अंग्रेज।

इंगला :: (सं. स्त्री.) इड़ा नाड़ी का वह विकृत रूप जो रहस्य-सम्प्रदाय से योगियों के, साधूओं आदि में प्रचलित था, देखिये. इड़ा।

इंगुआ :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का वृक्ष इसकी लकड़ी आतिशबाजी के काम आती है।

इँगौटा :: (सं. पु.) एक जंगली वृक्ष, इसके फल से जो रस निकलता उससे घाव ठीक होता है। इंगुआ।

इंच :: (सं. पु.) एक फुट का बारहवाँ भाग, लगभग दो अंगुल माप की इकाई।

इंच खिचें :: (वि.) जिससे सब नाराज हों।

इंचना :: (क्रि. अ.) खिंचना, आकर्षित होना।

इंचबो :: (अ. क्रि.) खींचना।

इचले विचले :: (क्रि.) बेमतलब, आवारापन।

इच्छया :: (सं. स्त्री.) रक्षा (दैवी अर्थ में अधिक प्रयुक्त)।

इच्छा :: (सं. स्त्री.) एक मनोवृत्ति, कामना, अभिलाषा, चाह, लालसा।

इच्छाभोजन :: (सं. पु.) इच्छा के अनुकूल भोजन, यथेच्छ भोजन।

इच्छुक :: (वि.) चाहने वाला, अभिलाषी, आकांक्षी।

इछ्या :: (सं. स्त्री.) इच्छा चाह, कामना, रूचि, उदाहरण-तब राजा आनंदित कहै, इच्छा कहा तिहोर रहै, बीठल दास कृत सिंघासन बत्तीसी।

इंजन :: (सं. पु.) ऐंजिन, स्वचालित यंत्र।

इजरा :: (वि.) वसूली के लिये कानूनी ढंग से क्रियान्वित डिक्री, किताब का विमोचन।

इजलास :: (सं. स्त्री.) न्यायाधीश के बैठने का सथान, बिठाना, बैठाना।

इजहार :: (सं. पु.) बयान साक्षी, प्रकट करना कहना।

इजाजत :: (सं. स्त्री.) मंजूरी, स्वीकृति, सम्मति, आज्ञा, हुक्म।

इजारा :: (सं. पु.) ठेका, अधिकार, हक।

इजारो :: (सं. पु.) किसी वस्तु को उजरत पर देना।

इंजीनियर :: (सं. पु.) मशीनों को बनाने या चलाने वाला।

इज्जत :: (सं. स्त्री.) प्रतिष्ठा, बढ़ाई, मान, साख।

इज्जतदार :: (वि.) प्रतिष्ठत, सम्मानित।

इटर :: (वि.) ईंटों से बना हुआ।

इटौरा :: (सं. पु.) ईंट का टुकड़ा।

इंटौरा :: (सं. पु.) ईंट का टुकड़ा।

इँठबो :: (क्रि.) अकड़ना।

इठबौ :: (क्रि.) ऐंठ जाना, अकड़कर टेढ़ामेढ़ा होना।

इठलयाबौ :: (क्रि.) गर्वसूचक हाव-भाव, दिखाना, इतराना।

इठलाना :: (क्रि. अ.) अभिमान के कारण ऐंठ, ठसक या बड़प्पन दिखाना।

इठलाबौ :: (क्रि.) किसी की हँसी उड़ाते हुए अपनी श्रेष्ठता प्रकट करना।

इठलाहट :: (सं. स्त्री.) इठलाने की क्रया या भाव।

इँड़याबो :: (क्रि.) ऐंठना।

इत :: (क्रि. वि. अ.) इधर, एक ओर, यहाँ इसका शुद्ध रूप है संस्कृत शब्द हत।

इत :: (कहा.) इतके बराती, न उनके न्योतार - कहीं के भी नहीं।

इतई :: (क्रि. वि.) यहाँ ही, यहीं।

इतनों :: (सर्व. वि.) इस कदर, इतना, प्रस्तुत वास्तविक मात्रा के लिए।

इतनों :: (सर्व.) संकेतवाचक।

इतमीनान :: (सं. पु.) विश्वास, भरोसा, सन्तोष।

इतराज :: (सं. पु.) ऐतराज, शिकायत, विरोधजन्य रोष।

इतराजी :: (सं. स्त्री.) विरोध, द्वेष नाराजी।

इतराना :: (क्रि. अ.) इठलाना, मटकना, अभिमान करना।

इतराबौ :: (क्रि.) मन की प्रसन्नता या बड़प्पन प्रकट करने की आसामान्य चेष्टाएँ, अवांछित एवं असन्तुलित व्यवहार।

इतवार :: (सं. पु.) रविवार, आदित्यवार, ऐतवार।

इतहास :: (सं. पु.) इतिहास, इतिवृत, पुरातन कथा।

इतेक :: (वि.) इतना, इतने के लगभग।

इतै :: (सर्व.) इधर, इस ओर।

इतै :: (मुहा.) के भान इतै ऊबन लगे-असंभव भी सम्भव हो जाना, उदाहरण-इतै गिरौ तौ कुआ उतै गिरौ तो खाई-कठिन परिस्थिति, दो विपत्तियों के बीच, इतै भयें।

इतै :: (क्रि.) यहाँ होकर।

इत्तन :: (सर्व.) यहाँ तक, गहराई के सन्दर्भ में।

इत्तफाक :: (सं. पु.) मेल, संगठन, संयोग, मौका।

इत्तला :: (सं. पु.) सूचना, सन्देश, खबर, जानकारी।

इत्तान :: (सर्व.) इतना सारा।

इत्ते :: (अव्य.) इतना, इस मात्रा में।

इत्तो :: (वि.) इतना।

इत्तो :: (सर्व.) दे. इतनों।

इंद :: (सं. पु.) इन्द्र।

इंदयाँई :: (सं. पु.) सबेरा, मुँह अंधेरे, उषा पूर्व का प्रातः काल, देखिये. अंदयाँई।

इँदयारी :: (सं. स्त्री.) काली घटाओं के घटाटोप या पूर्ण सर्यग्रहण के कारण छा जाने वाला अंधेरा।

इंदर से :: (सं. पु.) चावल के आटे में गुड़ मिलाकर व घी में तल कर बनाया जाने वाला एक पकवान, एक प्रकार की मिठी मठरी, अनारसे।

इंदर से :: (सं. पु.) इन्द्र देवराज वर्षा का देवता, परी अप्सरा, अति सुन्दर स्त्री।

इंदर से :: (पु.) इंदराज।

इंदरानी :: (सं. स्त्री.) इन्द्र की पत्नी।

इँदवाँन :: (सं. पु.) एक जंगली पेड़ व फल, फल पशुओं के दवा के काम आती है।

इँद्री :: (सं. स्त्री.) इन्द्रिय, शरीर के पाँच अंग, मुँह, आँख, नाक, जीभ, त्वचा, योनि, लिंग।

इंधन :: (सं. पु.) प्रज्वलित करना, जलाना, वह चीज जो जलाने के काम आती है।

इधर :: (सर्व.) इस ओर, यहाँ, इस स्थान पर।

इंधरोड़ा :: (सं. पु.) इंधन रखने का स्थान।

इंन :: (सर्व.) संकेतवाची, इसका बहुवचन।

इनाम :: (सं. पु.) पुरस्कार, प्रोत्साहनार्थ कोई प्रतीक चिन्ह या राशि।

इन्तखाप :: (सं. पु.) खेत के नम्बर, रकबा, लगान आदि का अधिकृत विवरण पत्र।

इन्थयाउन :: (सं. पु.) इम्तिहान, परीक्षा।

इन्द :: (सं. पु.) देवताओं का राजा, जल बरसाने वाला देवता।

इन्दी :: (सं. स्त्री.) इन्द्रिय, आत्मा, लिंग।

इन्दी :: (प्र.) काऊकी इन्द्री कलपाबौ अच्छौ नई होत।

इन्दुलतलब :: (वि.) माँग किकये जाने पर चुकाये जाने वाले ऋण पत्र का विशेषण।

इन्द्रवान :: (सं. पु.) एक फल।

इन्द्रवान की जरें :: (सं.) अलभ्य वस्तु।

इन्नी :: (सं. स्त्री.) मध्यम आकार का एक पेड़ जिसके सफेद और सुगन्धित फूल होते हैं, लकड़ी कमजोर होती है।

इफरात :: (सं. स्त्री.) अधिकता, प्रचुरता, बहुतायत।

इबारत :: (सं. स्त्री.) किसी लेख का यथावत पाठ, श्रुतलेख।

इबारती :: (वि.) इबारत युक्त गणित के प्रश्न।

इंबिली :: (सं. स्त्री.) इमली, एक खट्टा फल।

इब्बक-दुब्बक :: (सं.) बालकों का खेल।

इमरत :: (सं. पु.) अमृत उदाहरण-दुदुवन सीचों मइया बेला हो चमेली, इमरत से लाल अनार हो माय-माता के भजन।

इमरतला :: (सं. पु.) एक प्रकार का वृक्ष और उसके पत्ते।

इमरती :: (सं. स्त्री.) उड़द की दाल की पिट्टी से बनाई जाने वाली जलेबी से मिलती जुलती एक मिठाई, हाथ-पैर के आभूषणों का विशेष डिजायन।

इमला :: (सं. पु.) इमली के बहुत बड़ा पुराना झाड़, श्रुतलेख।

इमलिया :: (सं. स्त्री.) एक कड़ी की बनी किवाड़ियों में लगाई जाने वाली साँकल।

इमली :: (सं. स्त्री.) इमली का औसत बड़ा पेड़, इमली के फल अम्लिका।

इमलौरो :: (सं. पु.) एक जड़ी।

इमारत :: (सं. स्त्री.) बड़ा भवन।

इमारती :: (वि.) भवन निर्माण में काम आने वाला लकड़ी आदि सामान।

इम्तहान :: (सं. पु.) परीक्षा, जांच।

इया :: (प्र.) अपत्यवाची, हीनतावाची, स्त्रियों के सन्दर्भ में प्रत्यय।

इयै :: (सं.) ई का कर्म और संप्रदान कारक का रूप इसे।

इरख्या :: (वि.) ईष्या करने वाला स्वभाव।

इराकी :: (वि.) अरब के इराक प्रदेश का, घोड़ों की एक जाति।

इरादा :: (सं. पु.) विचार, संकल्प, मंशा।

इर्द-गिर्द :: (क्रि. वि.) चारों ओर, आसपास।

इलकइयाँ :: (सं. पु.) छोटा बच्चा, हलकइयँन बच्चों के लिए सामान्य प्रयोग।

इलम :: (सं. पु.) जीविका कमाने योग्य गुण, तंत्र मंत्र सम्बन्धी विद्या, मुक्ति, जानकारी, इल्म, ज्ञान।

इलयागिलयाकें :: (क्रि.) हिला डुलाकर, किसी प्रकार से।

इलाकौ :: (सं. पु.) रियासत, क्षेत्र विशेष, क्षेत्र जिसके लोग अनेक रूपों में एक समान हो या कई रूपों में संबंधित हो।

इलाज :: (सं. पु.) दवा, दवा करना, चिकित्सा, उपाय।

इलायची :: (सं. स्त्री.) एक सदाबहार सुगन्धित फलदार वृक्ष, इसका फल।

इलायचीदाना :: (सं. पु.) एक प्रकार की मिठाई।

इल्लत :: (सं. स्त्री.) थोपा हुआ, अन चाहा काम, सामान्य क्रम में बाधक काम।

इल्ला :: (सं. पु.) छोटी कड़ी फुंसी, मस्सा।

इल्ली :: (सं. स्त्री.) गेहूँ फल सब्जी आदि में पड़ने वाले सफेद या हरे रंग के लम्बे मुलायम चमड़ी के रेंगने वाले कीडे।

इष्ट :: (सं. पु.) जन्म के समय की लग्न, वह देवता जिसकी कोई व्यक्ति प्रदान रूप से पूजा करता है।

इष्टकाल :: (सं. पु.) जन्मकुण्डली, जन्माक्षर।

इसकरो :: (सं. स्त्री.) तिन्नी मारकर धोती पहिनना।

इसकारो :: (सं. स्त्री.) डाह करना, जलना, ईर्ष्या जन्य प्रेरणा।

इसलौस :: (सं. स्त्री.) पकी ही ककड़ी इसका स्वाद खट्टा और छिलका भूरा खुरदुरा हो जाता है, ये शाक बनाने और बीज रखने के काम आता है, इमलौसा के रूप में भी प्रयुक्त।

इंसाफ :: (सं. पु.) विवादात्मक विषय में होने वाला उचित निर्णय, न्याय।

इसार :: (सं.) पेशगी।

इसारौ :: (सं. पु.) संकेत, इशारा।

इस्क :: (सं.) प्रेम।

इस्कौं :: (सं. पु.) ईर्ष्याजन्य प्रेरणा।

इस्कौं :: दे. इस्कारौं।

इस्तहार :: (सं. पु.) इश्तिहार, प्रचार या सार्वजनिक सूचना के लिए बांटा जाने वाला पर्चा, विज्ञापन।

इस्तिरी :: (सं. स्त्री.) धोबियों या दर्जियों का कपड़े की सिल्वट मिटाने और तल बैठाने का औजार।

इस्तीफा :: (सं. पु.) त्यागपत्र, इस्तिफा।

इस्तेमाल :: (सं. पु.) प्रयोग उपयोग।

इस्पंज :: (सं. पु.) छोटी कीड़ों से बना रूई कासा एक समुद्री पदार्थ जो पानी बहुत सोखती है।

इह :: (अ. क्रि.) इस जगह, यहाँ।

इहलोक :: (सं. पु.) यहाँ का लोक संसार, भूलोक।

इहा :: (क्रि. वि.) यहाँ, इस जगह।

इहै :: (क्रि. वि.) यहाँ ही।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का चौथा स्वर वर्ण, इस का उच्चारम स्थान तालु है, प्रयोग बलवाची प्रत्यय, बुन्देली के मध्य तथा पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में प्रयुक्त होता है, कुछ क्षेत्रों में ( ऊ ) का प्रयोग होता है, यह। अव्य. ही है।

ईक, ईख :: (सं. स्त्री.) गन्ना, ऊख।

ईंग :: (सं. पु.) सुअर के सींग।

ईंगुर :: (सं. पु.) रोली, मांग भरने और बिंदी लगाने का सिंदूर।

ईंचना :: (क्रि.) खींचना।

ईंचबो :: (क्रि.) ऐंचना, खींचना, तानना।

ईंचा-तानी :: (सं. स्त्री.) खींचा तानी।

ईछा :: (सं. स्त्री.) चाह, कामना, लालसा।

ईंट :: (सं. स्त्री.) ईंट का एक टुकड़ा, एक हथियार, ईंटा चुनबो-ईंटों को जोड़कर दीवार बनाना, ईंटा पथबो-गीली मिट्टी को साँचे में डालकर ईंट का आकार देना।

ईंडरी, ईंडुरी :: (सं. स्त्री.) गेंडुरी।

ईद :: (सं. पु.) इस्लाम धर्म का पवित्र पर्व, ईद उल जुहा और ईद उल फिजा, खुशी।

ईदगाह :: (सं. स्त्री.) वह मैदान जहाँ ईद के दिन बहुत से मुसलमान इकट्ठे होकर नमाज पड़ते हैं।

ईंदन :: (सं. पु.) ईधन, जलाने के काम आने वाली वस्तुएं, ऊर्जा स्त्रोत, जलाऊ लकड़ी, कन्डे-उपले, उदाहरण-ईंदन कड़बो-एक गाली जिसका अभिप्राय मरना है।

ईंधन :: (सं. पु.) जलावन, जलाने की लकड़ी, उपला आदि।

ईमादारी :: (सं. स्त्री.) विश्वसनीयता का भाव।

ईमान :: (सं. पु.) धर्मविश्वास, धर्म, सच्चाई, खरापन, नीयत, अपने आदर्शो और विश्वासों के प्रति समर्पण भाव, उदाहरण-ईमान की कैबो-सच कहना, सच्ची बात कहना, ईमान को सौदा-खरा व्यवहार, ईमान डिगबो-नीयत में खामी आना, ईमान बिगरबो-नीयत बिगड़ना।

ईमानदार :: (वि.) अपने आदर्शों और विश्वासों पर समर्पित भाव से चलने वाला, लेनदेन में साफ-सुथरा, विश्वसनीय, धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ, सदा सच्चाई का व्यवहार करने वाला।

ईरखा :: (सं. स्त्री.) ईर्ष्या किसी की सफ लता या समृद्धि के प्रति जलन का भाव।

ईरस्या :: (सं. स्त्री.) ईर्ष्या दूसरे की बढ़ती न देख सकना, डाह जलन।

ईरान :: (सं. पु.) फारस देश।

ईलंग :: (वि.) इस ओर।

ईस :: (पु.) दे. ईश।

ईस :: (वि.) ऐश्वर्य शाली।

ईसकौ :: (सं.) ईर्ष्या, बराबरी, हवस।

ईसबगोल :: (सं. पु.) एक लुआबदार दाना जो अतिसार आदि रोगों में दिया जाता है।

ईसा :: (सं. पु.) ईसाई धर्म के प्रर्वतक ईसामसीह।

ईसाई :: (सं. पु. वि.) मसीहा धर्म को मानने वाला, ईशु को प्रभु मानने वाला।

ईसाई :: (वि.) ऐश्वर्य शाली।

ईसुर :: (सं. पु.) ईश्वर, भगवान, परमपिता, जगत् नियन्ता, परमात्मा।

ईसुरी :: (वि.) देवी, देवताओं से सम्बन्धित।

ईसुरी :: (सं. पु.) बुन्देलखंड के सुप्रसिद्ध कवि जिनकी फागें बेजोड़ हैं।

ईसें :: (सर्व.) इससे।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का पाँचवा स्वर, इसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है, सर्व. प्रश्न का निपात, बलवाची प्रत्यय, प्रयोग हमउँ तौ ठाँडे ते उतै, किसी की बात ठीक से सुन या समझ न पाने पर पुनरावृत्ति हेतु निवेदन का निपात।

उअबो :: (क्रि.) उगना, सूरज उअबो।

उआरबौं :: (क्रि.) उँगली से इशारा करना, पार लगाना, मुक्ति दिलाना, उबारना, उद्धार करना, लाठी या किसी शस्त्र को मारने की मुद्रा में उपर उठाना।

उआरें :: (क्रि. वि.) पूरा पड़ना, निपटना, सफल होना, सम्पन्न होना।

उआरें :: (प्र.) ऐसे उआरें न जै है।

उआरौ :: (सं. पु.) लाभ, फायदा, सुविधा।

उएँ :: (क्रि. वि.) उगें, उदय, उगने पर, सूर्य या चन्द्रोदय होने पर।

उकटा :: (सं. पु.) अंगूठा।

उकटा साँटे :: (सं. पु.) उकसाने वाली बातें, व्यंग्य कथन, लड़ाई के उद्देश्य से किसी के काम में मीन-मेख निकालने वाली बातें।

उकठा :: (सं. पु.) फसल का एक रोग, खेत जिसमें पानी की व्यवस्था न हो।

उकताना :: (क्रि. स.) बैठे-बैठे या कोई काम करते-करते जी घबरा जाना, ऊबना।

उकताबौ :: (क्रि. स.) अकुलाहट पैदा होना, उतावली करना, आतुर होना, उदाहरण-कहि ठाकुर क्यों उकताव लला-ठा.।

उकताहट :: (सं. स्त्री.) अकुलाहट, ऊब के कारण उत्पन्न शीघ्रता का भाव।

उकतैला :: (वि.) जल्दबाज, जल्दी ही ऊबना वाला।

उकराबौ :: (क्रि.) गोबर या मैल आदि का नमी के योग से फूल कर उभरना।

उकरींडबो :: (क्रि. स.) खोदना।

उकरूँ :: (क्रि. वि.) घुटनों को छाती के पास लगाकर बैठने की स्थिति में।

उकलबौ :: (क्रि.) चमड़ी जलकर निकल जाना, भाज या लपट का खुलना।

उकलाई :: (सं. स्त्री.) उगलने की क्रिया या भाव, उल्टी, कै।

उकलाई :: (स्त्री.) उकलने या उकेलने की क्रिया, भाव या मजदूरी।

उकलाना :: (क्रि. स.) उगलना, उल्टी करना, कै करना।

उकलाबौ :: (क्रि.) आतुर होना।

उकलाबौ :: दे. उकताबौ।

उकलाहट :: (सं. स्त्री.) अकुलाहट।

उकलाहट :: दे. उकताट।

उकलो :: (क्रि. वि.) अलग-अलग होना या करना।

उकवत :: (सं. पु.) एक प्रकार का चर्म रोग जिसमें छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते है और बहुत खुजली तथा पीड़ा होती है।

उकसना :: (क्रि. स.) नीचे से ऊ पर को आना, उभरना, निकलना, अंकुरित होना, उगला, ऊपर होन के ले उचकना।

उकसा :: (सं. पु.) फसल के आने के पहले कच्चे पौधों के सूखने का रोग।

उकसाई :: (सं. स्त्री.) उकसाने की क्रया, भाव या मजबूरी।

उकसाबौ :: (क्रि.) प्रेरित करना अधिकांश हीन उद्देश्य के लिये प्रेरित करने के लिए प्रयुक्त।

उकाइ :: (सं. स्त्री.) वमन की क्रयॉ।

उकाइ :: दे. उल्टी।

उकाबो :: (क्रि. स.) कै करना, अकुलाना, व्याकुल होना।

उकास :: (सं. पु.) अवकाश, फुर्सत, गुंजाइश, दो वस्तुओं के बीच थोड़ा स्थान, बढ़ई जाति।

उकासबौ :: (क्रि.) स्थान देना, अवकाश देना, किसी जमी हुई वस्तु को ऊपर उठा देना।

उकासलौ :: (वि.) फुर्सत में रहने वाला।

उकिल्याट :: (क्रि. स.) खोलना, उधेड़ना, उदाहरण-टोरत प्रीत पैल से जोरी, काए उकेलत बुनकें, लोकगीत।

उकेरना :: (क्रि. स.) पत्थर, लकड़ी, लोहे आदि कड़ी चीजों पर छेनी आदि से नक्कासी करना या बेल बूटे बनाना।

उकेरबौ :: (क्रि.) उत्कीर्ण करना, किसी ठोस आधार पर गहरी रेखाएं बनाना।

उकेरी :: (सं. स्त्री.) उकेरने की कला या विद्या, उकेरने या खोदकर बेल बूटे बनाने का काम, नक्काशी।

उकेलना :: (क्रि.) लपेटी ही चीज का खोलना जैसे धागा।

उकौना :: (सं. पु.) गर्भवती स्त्री के तीन चार मास में गर्भ धारण करने पर जी मचलाना।

उखटना :: (क्रि. स.) लड़खड़ाकर गिरना या लड़खड़ाना, कुतरना, खोंटना।

उखटबौ :: (क्रि.) वृक्षों का अपने आप बिना ज्ञात कारण के सूख कर मरना, उदाहरण-उखटे बाग लगावत जैहे लोकगीत।

उखटा :: (सं. पु.) गेहूँ की फसल का एक रोग।

उखड़ना :: (क्रि. स.) ऐसी चीजों का अपने मूल आधार या स्थान से हट कर अलग होना जिनकी जड़ या नीचे वाला भाग जमीन के अन्दर कुछ दूर तक गड़ा जमा या फैला हो।

उखड़बौ :: (क्रि.) थोड़े से कारण से क्रोध में आकर बड़बड़ाना।

उखड़वाना :: (क्रि. स.) किसी का कुछ या कोई चीज उखाड़ने में प्रवृत करना, उखाड़ने का काम किसी से करना।

उखर :: (सं. पु.) ऊख बोने के बाल हल पूजने की रिति, जिसे हर-पुजी भी कहते हं।

उखरत बूड़त :: (सं. पु.) ऊपर नीचे आना।

उखरबो :: (क्रि. स.) जमीं, गर्द या जड़ी हुई चीज का उपर आ जाना, अपनी जगह से हटना।

उखरबो :: (सं. क्रि.) उखड़ना, तितर-बितर कर देना, नष्ट करना।

उखरबौ :: (क्रि.) उखड़ना, पानी से बाहर निकलना, चीटियों का बड़ी तादाद में निकलना, बरसात में कीट-पतंगों का बहुत तादाद में एकाएक पैदा होना, टुड्डी दल का आना।

उखरिया :: (सं. स्त्री.) ओखली, उखली।

उखरी :: (सं. स्त्री.) धान, दालें आदि कुटने के लिए जमीन में बनी ओखली, उदाहरण-घर में उखरी, घर में मूसर, बायरे कूँटन जाबें लोकगीत।

उखरी :: (कहा.) उखरी में मूँड़दओ, तौ मूसरन कौ का डर - जब कोई भला या बुरा काम करने पर उतारू ही हुए तो फिर डर किस बात का।

उखरैया :: (वि.) उखाड़ने वाला, उदाहरण-भूमि के हरैया, उखरैया भूमि घराने के, तुलसी।

उखाड़-पछाड़ :: (सं. स्त्री.) कहीं किसी को उखाड़ने और कहीं किसी को पछाड़ने की क्रिया या भाव।

उखारबौ :: (क्रि.) उखाड़ना, जमीन से बाहर निकालना।

उखारी :: (सं. स्त्री.) वह खेत जिसमें ऊख बोया हुआ हो, उदाहरण-बीच उखारा रम-सरा रस काहे न होत, कबीर।

उँखारी :: (सं. स्त्री.) ईख का खेत।

उखालिया :: (सं. पु.) व्रत आरंभ करने से पहले रात के पिछले पहर में किया जाने वाला अल्पाहार, सरगही।

उखीताँ :: (क्रि. वि.) अनुमानित मूल्य पर पूरी वस्तु का सौदा करना, अनाज की निश्चित मात्रा या रूपया लेकर जमीन पर कृषि करने का अनुबंध करना।

उखेरबौ :: (क्रि.) दे. उखारबौ।

उखौं :: (सर्व.) ऊ का कर्म और सम्प्रदान कारक का रूप उसे उनको, उसका।

उँगइया :: (सं. स्त्री.) अंगुली, उँगली, उँगइया उठाबौ-बदनाम करना, लाँछन लगाना, उँगइया करबो-परेशान करना, सताना, उँगइया चटकाबो-उँगलियों से चट-चट शब्द करना, उँगइया पकर के पोंचा पकरबो-थोड़ा पाकर अधिक पाने का प्रयत्न करना।

उँगई :: (सं. स्त्री.) ऊँघने की क्रिया, झपकी।

उँगठा :: (सं. पु.) अँगूठा, हाथ पैर की सबसे मोटी उँगली।

उँगठौना :: (सं. पु.) अंगुस्ताना, हाथ के अंगूठे में पहना जाने वाला चौड़ी पट्टी का एक छल्ला।

उँगयानो :: (वि.) उनींदा, जिसे नींद आ रही हो।

उँगयाबो :: (क्रि.) उनींदा होना, नींद के झौकें आना।

उँगरकटा :: (सं. पु.) एक लम्बा कीड़ा जिसके मुंड के पास दो काँतरें होती हैं।

उँगरकटा :: (कहा.) उँगरकटा नाव धर दओ - उँगली काट खाने वाला नाम रख दिया, व्यर्थ बदनाम कर दिया।

उँगरयाबो :: (क्रि.) उंगली से इशारा करना।

उँगरिया :: (सं. स्त्री.) उँगली, जैसे, तुमाई उंगरिया में का भओ, कहावत-उँगरिया पकर कें कौंचा पकरबो-उँगली पकड़ कर पहुंचा पकड़ना, थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना।

उगलन :: (सं. पु.) उचिष्ट, मुंह से बाहर निकाला हुआ कौर, अधिक भरने से गिरा हा पदार्थ।

उगलबौ :: (क्रि.) मुँह में खाये हे कौर को बाहर निकालना, पात्र को पूरा भरने के बाद पदार्थ का बाहर गिरना।

उँगस्थानौ :: (सं. पु.) स्त्रियों की उंगलियों का एक गहना।

उगाई :: (सं. स्त्री.) किसी लेनदारी की वसूली की क्रिया।

उगाना :: (क्रि. स.) जमाना, पैदा करना।

उगाबौ :: (क्रि.) वसूली करना, इकट्टा करना।

उगार :: (सं. पु.) कुआँ खोदने या साफ करने से निकली मिट्टी आदि।

उगारबौ :: (क्रि.) उघाड़ना, पात्र पर से ढक्कन हटाना, कुँए के तल में जमें मिट्टी, कचड़ा आदि को बाहर निकालना।

उगारौ :: (वि.) उघाड़ा, निर्वस्त्र, बिना ढका हुआ।

उगाल :: (सं. पु.) थूक, पीक।

उगालदान :: (सं. पु.) पीकदान, थूक आदि के लिये बर्तन।

उगाहना :: (क्रि. स.) बसूल करना, इकट्ठा करना।

उगेरबौ :: (क्रि.) आग पर से राख हटाना।

उघटना :: (क्रि. अ.) उपकार के ताने के रूप में कहना, ताल देना, दबी बात का उठना।

उघटवाना :: (क्रि. स.) उपकार की किसी से कहलाना।

उघटा :: (वि.) उपकार को जताने वाला, दबी या भूली हुई बातें कहकर भेद या रहस्य खोलने वाला।

उघटा पुराण :: (सं. पु.) आपस में एक दोनों के पुराने दोषों और अपने किये हुए पुराने उपकारों का बार-बार अथवा विस्तार पूर्वक किया जाने वाला उल्लेख या कथन।

उघड़ना, उघरना :: (क्रि. अ.) खुल जाना, भंडा फूटना नंगा होना।

उघन्नी :: (सं. स्त्री.) (सं. उद्घाटिनी) चाबी-ताली।

उघरनी :: (वि.) जिस पर कोई आवरण न हो, खुला हुआ, जो बन्द न हो।

उघाड़ना :: (वि. स.) नंगा करना, खोलना, भेद खोलना, गुप्त बात का कहना।

उघार :: (सं. पु.) उघारने की क्रिया या भाव।

उघारबौ :: (क्रि.) दे. उगारबौ।

उघारा :: (वि.) जिस पर कोई आवरण या पर्दा न हो, खुला हुआ, जिसके शरीर पर कोई वस्त्र न हो।

उघारी :: (वि.) खुली हुई, नंगी या पर्दा हटाना।

उघारौ :: (वि.) दे. उगारौ।

उघेड़ना :: (सं.) खोलना, चिपकी, लगी या सटी हुई चीज कहीं से हटाना ऊपर उठाना। उधारना।

उघेलना :: (क्रि. स.) आगे पड़ा हुआ आवरण या पर्दा उठाना।

उचक :: (सं. स्त्री.) थकान या रोग के कारण शरीर का दर्द।

उचकन :: (वि.) हाथ पैर में दर्द होना।

उचकना :: (अ. क्रि.) एड़ी उठाकर थोड़ा उछलकर या पंजों के बल खड़े होकर कोई ऊँची चीज देखने या पकड़ने का प्रयत्न करना।

उचकबो :: (अ. क्रि.) ऐड़ी के बल खड़ा होना की चीज को पाने या देखने के लिए ऊपर उठना, उछलना, उखड़ना हट जाना।

उचकबौ :: (क्रि.) उछलता, अपने नीचे दबे वस्त्र, फर्श आदि को मुक्त करना।

उचका :: (अव्य.) औचक।

उचकाना :: (क्रि.) कोई चीज ऊपर की ओर उठाना, ऊँचा करना।

उचकाबो :: (क्रि.) ऊपर उठाना, उचकाना, उखड़ना, खूँटा जमीन में गड़ी हुई लकड़ी आदि को निकालने के लिए प्रयुक्त, उछालना।

उचकौ :: (क्रि.) उखड़ा हुआ।

उचकौ :: (क्रि. वि.) पैरों के नीचे दबी किसी वस्तु को छोड़ने या उछलने के लिए आज्ञावाची क्रिया।

उचक्कपन :: (सं. पु.) अशालीन और फूहड़पन की आदत।

उचक्का :: (सं. पु. वि.) अशालीन और फूहड़ व्यवहार करने वाला, चीज छीनकर उठाकर ले जाने वाला, उठाईगीरा।

उचटइयाँ :: उचटने वाला।

उचटना :: (क्रि.) ऐसा काम करना जिससे लगी हुई चीज कहीं से उचटे, उखाड़ना, ऐसा उपाय या प्रयत्न करना जिससे किसी का मन कहीं से किसी ओर हटे।

उचटबो :: (अ. क्रि.) अलग होना, छूटना, मन का हट जाना।

उचटबौ :: (क्रि.) भय क्रोध के कारण उछल पड़ना, दुधारू पशु का दुहे जाते समय उछल कर अलग हो जाना, किसी तरल पदार्थ पर आघात के कारण उसके छीटे उछलना, नींद खुल जाने के बाद फिर न आना।

उचटाबो :: (स. क्रि.) अलग करना, छुड़ाना, विरक्त करना।

उचटाबौ :: (क्रि.) अपनी किसी क्रिया द्वारा छींटे उछालना, उँगली की ताकत से किसी छोटी वस्तु या कीड़ा आदि को दूर हटाना।

उचट्टा :: (सं. पु.) टिड्डा।

उचट्टा :: दे. हतिया।

उचट्टा :: (सं. पु.) टिड्डा।

उचड़ना :: (अ.) उचटना, उखड़ना।

उचला :: (सं. पु.) कुत्त्तों का एक रोग जिसमें शरीर पर चकत्त्ते हो जाते हैं।

उचला चालौ :: (सं. पु.) उथल-पुथल, उठा पटक।

उचाट :: (सं. पु.) उच्चाट विरत्ति, उदासी, जी न लगना।

उचाट :: (वि.) उचटा हुआ।

उचाटना :: (क्रि. स.) उदास करना, मन हटाना।

उचाटी :: (सं. स्त्री.) मन उचटने की क्रिया या भाव।

उचाड़ना :: (क्रि. स.) अलग करना, मिली हुई चीज को अलग करना।

उँचान :: (सं. स्त्री.) ऊँचाई वाला स्थान।

उचाना :: (क्रि. स.) उठाना, ऊँचा।

उचार :: (सं. पु.) देखो इसका शुद्ध रूप उच्चाट।

उचारना :: (क्रि. स.) उच्चारण करना कहना।

उँचाव :: (वि.) ऊँचाई का नाप।

उँचास :: (वि.) उनचास, चालीस और नौ की संख्या।

उँचाहटौ :: (सं. पु.) ऊँचे स्थान का खलियान।

उचेलनो :: (सं. पु.) उच्चाटन।

उचेलबो :: रोटी आदि का तबा पर पलटना, हटाना, उखाड़ना।

उचेलबौ :: (क्रि.) सेंकते समय तबों पर रोटी पलटना।

उच्छू :: (सं. स्त्री.) गले में पानी या साँस के रूकने से आने वाली खाँसी।

उछकना :: (क्रि. स.) नशा उतरना, होश में आना, चौंकना, विस्मित होना।

उछरन :: (सं. पु.) वमन किया हुआ पदार्थ, अक्स उतरना, छाप छोड़ना।

उछरबौ :: (क्रि.) वमन करना।

उछलकूट :: (सं. स्त्री.) खेलकूद, हलचल।

उछलना :: (क्रि. अ.) कूदना उछाल मारना, प्रसन्न होना।

उछाबरौ :: (सं. पु.) उत्साह, कामुकता विशेष रूप से पशुओं के विशेष संदर्भ में।

उछारना :: (क्रि. स.) उछालन।

उछावरौ :: (सं. पु.) गाय, भैंस आदि जब मद पर आती है वह दशा।

उछावा :: (सं. पु.) उत्साह, जोश कामुकता के विशेष संदर्भ में।

उछीनों :: (वि.) अपर्याय, ओछा, संकीर्ण।

उजग्गर :: (सं. पु.) प्रकट निर्दोष।

उजड़ना :: (क्रि. स.) उखड़ना, गिरना, नष्ट होना।

उजड़वाना :: (क्रि. स.) उखाड़ना या नष्ट करने की प्रेरणा करना।

उजड् र्डोइँ :: (सं. स्त्री.) लड़ाकूपन।

उजड्ड :: (वि.) लड़ाकू स्वभाव वाला।

उजड्ड :: (वि.) उद्दंड, असभ्य, वज्र मूर्ख।

उजड्डपन :: (सं. पु.) उद्दंडता, असभ्यता।

उजबक :: (वि.) विचित्र वेष-भूषा में रहने वाला, विचित्र कार्य करने वाला, मूर्ख उजड्ड।

उँजयार :: (सं. पु.) उजाला, प्रकाश।

उँजयार :: (वि.) उजला, सफेद, चमकता हुआ प्रकाश।

उजयारबौ :: (क्रि.) प्रदीप्त करना, दीपक जलाना, आभूषणों को तपा कर साफ करना।

उजयारी :: (वि.) चाँदनी रात, उजली रात।

उजयारी :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

उँजयारो :: (सं. पु.) उजाला प्रकाश, उजाला, रोशनी।

उजयारौ :: (सं. पु.) प्रकाश।

उजर-उजरदारी :: (सं. स्त्री.) आपत्ति।

उजरई :: (क्रि.) साफसफाई।

उजरऊ :: (वि.) उजाड़ने वाली, असभ्य, गँवार।

उजरत :: (सं. स्त्री.) मजदूरी, किराया।

उजरबो :: (क्रि. स.) नष्ट होना।

उजरयाबौ :: (क्रि. स.) दीपक इत्यादि जलाना।

उजरा :: (वि.) उजड़ना, उजाड़ करने वाले, दूसरो की खेती पर अनाधिकार चेष्टा करने वाले, खेतों में चरने वाले पशु।

उजराई :: (क्रि.) उजाड़ने की क्रिया या मजबूरी।

उजरावौ :: (क्रि. स.) साफ करवाना, नष्ट करना।

उजला :: (वि.) स्वच्छ सफेद, श्वेत।

उजागर :: (वि.) प्रकाशित, भेद या रहस्य जो सार्वजनिक रूप से उद्घाटित हो।

उजागर :: (वि.) प्रकाशित, भेद या रहस्य सार्वजनिक रूप से उद्घाटित हो, स्पष्ट।

उजाड़ :: (वि.) उजड़ा हुआ, निर्जल।

उजाड़ :: (सं. पु.) उजड़ा हुआ स्थान, निर्जन स्थान।

उजाड़ना :: (क्रि. स.) नष्ट करना।

उजाडू :: (वि.) उजाड़ने वाला, बुरी तरह से नष्ट या बरबाद करने वाला।

उजार :: (सं. पु.) पशुओं द्वारा फसलों को पहुंचाई जाने वाली क्षति।

उजार :: (वि.) दे. उजाड़।

उजार :: (कहा.) उजेर गाँव में अरंडई रूख जहां कोई वृक्ष नही होता वहाँ अरंड को ही बड़ा वृक्ष मानते है।

उजार :: (पु.) पशुओं द्वारा फसलों को पहुँचाई जाने वाली क्षती।

उजारबो :: (क्रि. स.) उज्जवल गहने आदि का मैल साफ करना, निखारना, चमकाना।

उजालना :: (क्रि. स.) चमकाना, निखारना, स्वच्छ करना, आकाशित करना, जलाना।

उजाला :: (सं. पु.) प्रकाश।

उजाला :: (वि.) प्रकाश युक्त।

उजाली :: (सं. स्त्री.) चांदनी।

उजास :: (सं. पु.) प्रकाश।

उजास :: (सं. पु.) चमक प्रकाश।

उजियारा :: (सं. पु.) प्रकाश, उजाला।

उजियारा :: (सं. स्त्री.) चांदनी।

उजेरो :: (सं. पु.) उजेला, प्रकाश, रोशनी।

उजेरौ :: (सं. पु.) उजेरा, रोशनी, प्रकाश।

उजेला :: (सं. पु.) प्रकाश, चांदनी।

उजेला :: (वि.) प्रकाश युक्त।

उजैना :: (सं. पु.) पकवान जो विशेष कर नौरता पूजन के ले बनाये जाते हैं।

उजैबो :: (सं. पु.) व्रत का उद्यापन करना, लाठी तानना, उदरस्थ शिशु का गायब हो जाना, किसी व्रत की संकल्प पूर्ति पर विशेष पूजा का आयोजन करना।

उज्जल :: (क्रि. वि.) नदी के चढ़ाव की ओर।

उझना :: (क्रि.) उलझना।

उझा :: (सं. स्त्री.) प्रवृत्ति, विचार, मन का किसी विषय की ओर झुकाव, उदाहरण-उझा न बैठे जी न लगै, कोनऊ अनोय करबे में, द्वारिकेश बुँदेलन।

उझाँकना :: (क्रि.) झाँकना।

उटग्गरी :: (वि.) अनुभवहीन, अपरिचित, अनभिज्ञ।

उटला :: (सं. पु.) ऊँट जैसे-अपने बलम खों उटला सज देव।

उटेरौ :: (सं. पु.) ऊँटों की साज-संभाल करने वाला, ऊँट वाला, ऊँच का सवार।

उट्टी :: (सं. स्त्री.) मित्रता त्याग की स्थिति।

उट्टी :: (सं. स्त्री.) शत्रुता, छोटे बच्चों का आपस में झगड़ा करने पर दोस्ती तोड़ देने की क्रिया उदाहरण-उट्टी करबो-मेल छोड़कर, बैर कर लेना।

उठइया :: (वि.) उठाने योग्य।

उठउअन :: (क्रि. वि.) हाथों हाथ, हाथों-हाथों पर ले जाना।

उठउआ :: (वि.) उठने योग्य।

उठउल :: (वि.) उठा कर स्थानान्तरित करने योग्य।

उठंगन :: (सं. पु.) टेक, आश्रम, आड़, बैठने में पीठ को आराम देने वाली वस्तु किबाड़ बन्द करना।

उठंगा :: (सं. पु.) उठाने वाला जैसे चुक-चुक चंगा पूंछ उठंगा, पहेली।

उठना :: (क्रि. अ.) ऊँचा होना, खड़ा होना, जागना, उगना, उमड़ना, उफनना काम बन्द होना, खर्च होना।

उठना :: (कहा.) उठते पाँव दुनिया तकत - पदच्युत होते हुए व्यक्ति पर सबकी दृष्टि रहती है, सब उसकी संकटापन्न स्थिति से लाभ उठाना चाहते हैं।

उठबो :: (अ. क्रि.) ऊपर की ओर जाना, उठना, लेटे हुए का बैठना, जागना, मन में उपजा विचार।

उठबो :: (कहा.) उठाई जीब तरूआ से दै मारी - जो मन में आया सो कह दिया।

उठबौ :: (क्रि.) उठना, समाप्त होना, जागना, विस्तर छोड़ना, पशुओं का गर्भाधान होना, गर्भ धारण करना।

उठल्ला, उठल्लू :: एक स्थान पर जाकर न रहने वाला। जो कहीं टिके नहीं, उचक्का।

उठाईगीरा :: उचक्का।

उठान :: (सं. स्त्री.) विकास की प्रारंभिक अवस्था, उठने की क्रिया, उठना, उन्नति, वृद्धि, खर्च।

उठाना :: (क्रि. स.) लेटे हुए को बैठना, खड़ा करना, ऊँचा करना, जगाना, आरम्भ करना, खर्च कर देना, नीचे से ऊपर ले जाना, लेटे हुए को बैठना, जगाना, छेड़ना।

उठाबौ :: (क्रि.) उठाना, सामूहिक गान में गाने की पहल करना, खर्च करना, नीचे से ऊपर ले जाना, लेटे हुए को बैठना, जगाना, छेड़ना।

उँठी :: अँगुली पर अँगुली चढ़ना।

उठौआ :: (वि.) जो किसी एक स्थान पर निश्चित रूप से न रहे।

उठौनी :: (सं. स्त्री.) उठाने की क्रिया, उठाने की मजदूरी, पेशगी, दिया हुआ रूपया, उधार का लेन-देन।

उड़उअल :: (वि.) हवाई बातें, अफवाहें, बिना सिर पैर की बातें।

उड़उअल :: (कहा.) उठौवल चूल्हो - ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो।

उड़उवा :: (सं. पु.) खलिहान में भूसा उड़ाकर अनाज साफ करने का कार्य में प्रकार की टोकरी।

उड़को :: (सं. पु.) सहारा, आश्रय।

उड़न :: (उप.) उड़ने का अर्थ द्योतक उपसर्ग जैसे-उड़न पंक्षी-उड़ने वाला पंक्षी, उदाहरण-गौरी तोरे छैला उड़न पंक्षी भये हो, लोकगीत।

उड़न छू :: (वि.) गायब, चंपत।

उड़नखटोला :: (सं. पु.) उड़ने वाला खटोला, विमान, हवाई जहाज।

उड़ना :: (क्रि. अ.) आकाशमार्ग से जाना, भागना, लापता होना, फहराना, खर्च होना, धीमा होना, फीका पड़ना।

उड़निया :: (सं. स्त्री.) ओड़नी।

उड़नी :: (वि.) उड़ने वाली, उड़कर फैलने वाली।

उड़बो :: (सं. क्रि.) उड़ना, लुप्त होना।

उड़बो :: (मुहा.) उड़ो चून पुरखन के नाव-नष्ट होती वस्तु किसी को देकर अहसान करना।

उड़ला :: (सं. पु.) पहली बार दले हुए चने या उड़द, इनमें बड़े-बड़े दाने दले हुए छोटे दाने बिना दले रहते है इनको पुनः दला जाता है।

उड़वाना :: (क्रि. स.) उड़ाने में किसी को लगाना।

उड़ाऊ :: (वि.) उड़ने वाला, खर्च करने वाला, खर्चीला।

उड़ान :: (सं. स्त्री.) उड़ने की क्रिया, छलांग, कूद, गीत में स्वर की एक गति।

उड़ाबौ :: (क्रि.) उड़ाना, हवा में लहराना, अफवाह फैलाना चुरा लेना, अपहरण करना, हवा की सहायता से अनाज को भूसे से अलग करना।

उड़ावनी :: (सं. स्त्री.) दायें किये हुए गल्ले को हवा में उड़ाना, अनाज को भूस से पृथक करने की क्रिया।

उड़ास :: (सं. पु.) उड़ने की इच्छा।

उड़ास :: (सं. पु.) उड़त चिरइयाँ परखत-उड़ती चिड़िया परखता है अर्थात् बहुत होशियार है।

उड़ी :: (क्रि. वि.) गुलाट लगाना, हाथों के बल खड़ा होकर दूसरी तरफ गिरना।

उड़ेलबो :: (क्रि.) डालना, किसी पदार्थ को एक पात्र से दूसरे में या नीचे गिराना, बुं. कुड़ैलबौ।

उड़ेलबो :: (बुं.) कुड़ैलबौ।

उड़ोना :: (सं. पु.) ओढ़ने का वस्त्र।

उड़ौनिया :: (सं. स्त्री.) खलिहान से भूसा उड़ाकर अनाज साफ करने के कार्य में प्रयोग की जाने वाली एक प्रकार की टोकरी।

उड़ौहाँ :: (वि.) उड़ने की प्रवृत्त्ति रखने सा, प्रायः उड़ता रहने वाला।

उढ़कन :: (सं. पु.) वह चीज जो किसी दूसरी चीज को गिरने या लुढ़कने से रोकने के लिये उसके साथ लगाई जाय।

उढ़कना :: (क्रि.) पीठ की तरफ टेक या सहारा लगाकर बैठना, मार्ग में चलते समय ठोकर खाना।

उढ़काना :: (क्रि. स.) किसी वस्तु को किसी दूसरी वस्तु के सहारे खड़ा करना।

उढ़री :: (सं. स्त्री.) भगाकर लाई हुई स्त्री, रखैल।

उतईं :: (सर्व.) उधर, उसी तरफ, उदाहरण-उतई हुन-उधर होकर।

उतनों :: (सर्व.) उतना, उस मात्रा में।

उतरन :: (सं. स्त्री.) उतारना, पुराने कपड़े।

उतरबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु का तरल की सतह पर तैरना, नीचे जाना।

उतराई :: (सं. स्त्री.) ढाल, नदी के पार उतरने का भाड़ा, पुल का महसूल, उतरने की क्रिया।

उतराना :: (क्रि. स.) पानी के ऊपर तैरना, पानी के ऊपर आना, उफान खाना।

उतराबो :: (क्रि. स.) पानी के ऊपर रहना, बहना, उफ-नाना, हर जगह देख पड़ना, उदाहरण-हिम्मत हिरान लगी, आसा उतरान लगी, देह दुबरान लगी, देन लाये फेरी है।

उताँय :: (सर्व. अव्य.) उधर, वहाँ, उस ओर।

उतार :: (सं. पु.) ढलान, प्रतिलिपि, अन्त की ओर, जन्त्र-मन्त्र में किसी के ऊपर से फिराई हुई, वस्तु, अनाज, पैसा आदि।

उतारन :: (सं. पु.) उपयोग के पश्चात दूसरे को दिये वाले वस्त्र।

उतारबौ :: (क्रि.) कपड़े आभूषण आदि को शरीर से अलग करना, आरती उतारना, राईनौन उतारना, नजर उतारना, नदी घाट पार कराना, वाष्पीकृत करके अर्क उतारना, किसी की प्रतिष्ठा के विरूद्ध बोलकर इज्जत उतारना।

उतारूँ :: (वि.) उद्यत, द्दढ़ निश्चय युक्त।

उतारौ :: (सं. पु.) टोना-टोटका के लिये किसी वस्तु को सिर पर घुमाने की क्रिया।

उतेक, उतेकई :: (वि.) उतना ही।

उतै :: (सर्व. अव्य.) उस ओर, वहाँ, उधर, उदाहरण-इतै अथाह उते नृप को डर, यह दुख कौन हरे, उतैहुन-वहाँ होकर।

उत्तन :: (सर्व.) उतने तक, पानी की गहराई के लिये प्रयुक्त।

उत्तू :: (सं. स्त्री.) शान, चमक-दमक, होश, चेतना, त्वरित बुद्धि।

उत्तू :: (प्र.) शेर देख के उनकी उत्त्तू भूल गई।

उत्तौ :: (सर्व.) दे. उतनों।

उत्पात :: (सं. पु.) उपद्रव, ऊधम, आकस्मिक घटना।

उथल पुथल :: (सं. स्त्री.) उलट-पुलट।

उथलवो :: (क्रि. स.) उलट जाना, उलट देना।

उथलो :: (वि.) छिदला, कम गहरा।

उदकना :: (क्रि. स.) उचकना कूदना।

उदकबौ :: (क्रि. स.) सोते हुए से चौंकना, उदाहरण-उदक परी कच्ची निंदिया सों।

उदना :: (सर्व. अव्य.) उस दिन, उस दिवस, उदाहरण-जिदना पैदा ईसुरी, उदना मौत न आई, फाग।

उदमयाँ :: (वि.) ऊधम मचाने वाला।

उदमाबौ :: (क्रि. अ.) ऊधम करना, मस्त होना, जोश में आना।

उदरबाबो :: (क्रि.) उधेड़ने का काम करवाना।

उदरबौ :: (क्रि.) उधाड़ना, सिलाई टूटना, चमड़ी छिलना, ऊतरी पर्त का अलग होना।

उदरया :: (वि.) उधार लेने वाला, उधार लिया हुआ।

उदराँ :: (सं. पु.) गुदरा, फटे पुराने वस्त्र, गूदड़, उधारी पड़ा हुआ पैसा।

उदरा गुदरा :: (सं. पु.) फटे पुराने वस्त्र, गूदड़।

उदाँऊँ :: (वि.) आतुर, उद्यत, प्रयत्न में।

उदार :: (क्रि. वि.) उधार साख पर लेना, बाद में देना।

उदारता :: (सं. स्त्री.) दानशीलता, सरलता।

उदास :: (वि.) चिंतायुक्त, दुखी, भावशून्य, उत्साहहीनता, निष्क्रिय।

उदासी :: (सं. स्त्री.) निष्क्रिय और दुःखद वातावरण।

उदासीन :: (वि.) विरक्त तटस्थ, निष्पक्ष, निरपेक्ष, प्रेमशून्य, उदासीनता।

उदेरबो :: (क्रि.) उधेड़ना बुनाई या सिलाई खोलना, बलपूर्वक छिलका उतारना।

उदै :: (सं. पु.) उदय होने की क्रिया, सूर्य चन्द्र के उदय होने की क्रिया।

उद्गार :: (सं. पु.) डकार, वमन, कै, थूक उबाल, कथन, वचन।

उद्गीति :: (सं. स्त्री.) आयछन्द का एक भेद।

उद्दण्ड, उद्दंड :: (वि.) अक्खड़, उद्धत, प्रचण्ड।

उद्दण्डता, उद्दंडता :: (सं. स्त्री.) अक्खड़पन, उद्धतभाव, प्रचंडता।

उद्दाम :: (वि.) बन्धनरहित, निरंकुश, स्वतंत्र, प्रचंड।

उद्धत :: (वि.) उठाया हुआ, अन्य स्थान स्थान से लिया हुआ, उगला हुआ।

उद्धार :: (सं. पु.) पाप मुक्त होने की क्रिया।

उद्धार :: (सं. पु.) मुक्ति, छुटकारा, सुधार, उन्नति।

उद्धारना :: (क्रि. स.) उद्धार करना।

उधड़ना :: (क्रि. अ.) खुलना, ऊपर की पर्त उचलना।

उधमयाना :: (क्रि. अ.) ऊधम मचाना, तितर बितर करना।

उधर :: (क्रि. वि.) उस ओर।

उधरना :: (क्रि. अ.) उधड़ना, छूटना इसका शुद्ध रूप है। उद्धरना।

उधार :: (सं. पु.) ऋण, कर्ज, संगनी।

उधार :: (कहा.) उधार कौ खाबो और फूस कौ तापबौ - उधार का खाना और फूस का तापना बराबर होता है, जैसे फूस की आग अधिक देर नहीं ठहरती वैसे ही उधार लेकर खाना भी बहुत दिनों नहीं चल सकता।

उधारक :: (सं. पु.) दे. उद्धारक।

उधारन :: (वि.) उद्धार करने वाला, उद्धारक के अंत में, जैसे-विपत्ति उधारन।

उधारना :: (क्रि.) किसी को विपत्ति या संकट से निकालना या मुक्त करना, उद्धार करना।

उधारी :: (सं. स्त्री.) दे. उदरा।

उधारौ :: (वि.) उद्धार करने वाला।

उधारौ :: (स्त्री.) उधार, मांगने वाला।

उधियाना :: (क्रि. अ.) बहुत उत्पात करना या ऊधम करना मचाना।

उधियाना :: (अ.) उधड़ना, उधेड़ना।

उधेड़ना :: (क्रि. स.) उचालना, परत अलग करना, सिलाई खोलना।

उधेड़बुन :: (सं. पु.) सोच विचार तर्क-वितर्क।

उधेरबो :: (क्रि.) उकेलना, अलग-अलग करना।

उन :: (सर्व. वे, प्र.) उननें करो जौ काम, उन खों, उन से।

उन :: (उप.) एक काम के अर्थ का बोधक उपसर्ग उदाहरण-उनईस, उनतीस।

उनई :: (क्रि.) उमड़ छाई हुई, उदाहरण-सरद जुनैया सी बारी ननद की चमक रई उनई।

उनईस :: (वि.) एक कम बीस की संख्या, उन्नीस।

उनकों :: (सर्व.) ऊ का कर्म और संप्रदान कारक का रूप उन्हें।

उनकौ :: (सर्व.) सम्बम्ध कारक का रूप।

उनकौ :: (प्र.) उनको ठाड़ौ हमाऔ आड़ै।

उनखें :: (सर्व.) उनको।

उनखों :: (सर्व.) उनको।

उनजस :: (वि.) समान, सदृश, अनुरूप।

उनतीस :: (वि.) बीस और नौ।

उनत्त्तर :: (वि.) एक कम सत्तर की संख्या उनहत्तर।

उनन्चास :: (वि.) एक कम पचास के संख्या।

उनमद :: (वि.) देखो शुद्ध रूप उन्मत्त।

उनमान :: (सं. पु.) नाप, समानता।

उनमान :: (वि.) समान, अनुमान, तुल्य।

उनमानना :: (क्रि. स.) अनुमान करना, अन्दाज करना।

उनमूलन :: (सं. पु.) देखो शुद्ध रूप उन्मूलन।

उनरना :: (क्रि. अ.) उठना, उचक-उचक कर चलना, कूद-कूद कर चलना।

उनरिया :: (सं. स्त्री.) उन्हारी की फसल का खेल।

उनसट :: (वि.) एक कम साठ।

उनहत्तर :: (वि.) सद्दश, समान, साठ और नौ।

उनहार :: (वि.) सद्दश, समान।

उनहार :: (सं. पु.) समानता इसका शुद्ध रूप है, अनुहार।

उनहारि :: (वि.) समान, सद्दश, इसका शुद्ध रूप है अनुहारी।

उनहारि :: (स्त्री.) समानता।

उनाइ :: (सं. स्त्री.) उपमा देने योग्य।

उनार :: (वि.) वैत में तैयार होने वाली फसल उन्हीर।

उनारना :: (क्रि. स.) ऊपर की ओर उठाना, आगे बढ़ाना, देखो उनाना।

उनारबो :: (क्रि.) बराबरी करना, तुलना करना।

उनारी :: (सं. स्त्री.) (हिदीं. उन्हौला) उन्हारी।

उनारे :: (वि.) (स. अनुहार) उपमा देने योग्य तुलनीय।

उनींद :: (सं. स्त्री.) बहुत अधिक निद्रा आने या नींद से भरे होने की अवस्था।

उनींदा :: (वि.) आँखे जिसमें नींद भरी हो, जिसे नींद आ रही हो, ऊँघता हुआ, उदाहरण-आजु उनीदे आए मुरारी-तुलसी, नींद के कारण अलसाया हुआ।

उनें :: (सर्व.) ऊ का कर्ता कारक का रूप उसने।

उन्जस :: (सं. स्त्री.) अनुहार, नाक नक्शे आदि की समानता।

उन्तालिस :: (वि.) एक कम चालीस की संख्या।

उन्तीस :: (वि.) एक कम तीस की संख्या।

उन्नयाँद :: (सं. स्त्री.) कपड़ा जलने की गंध।

उन्ना :: (सं. पु.) कपड़ा वस्त्र, ऊर्णा।

उन्नासी :: (वि.) सत्तर और नौ।

उन्नीस :: (वि.) उन्नीस, दस और नौ की संख्या, कम, छोटा।

उन्नीसवाँ :: (वि.) जो गिनती में उन्नीस के स्थान पर पड़ता हो। अठारवें के बाद का।

उन्ने :: (सर्व.) ऊ कर्ता कारक का रूप उन्होंने, उदाहरण-उन्ने अनाओ जिदना बार धोए फटकारे।

उन्यासी :: (वि.) एक कम अस्सी की संख्या।

उन्सार :: (सं. पु.) पूर्व लक्षण, फोड़े की उठान।

उन्हार :: (वि.) पहिचान, अनुहार, समान, अनुरूप।

उन्हारी :: (सं. स्त्री.) देखो. उनारी।

उपचार :: (सं. पु.) उपाय, सेवा, पूजा, सत्कार, दिखावा, चिकित्सा, औषध, व्यवहार साधन।

उपज :: (सं. स्त्री.) पैदावार, विशेष रूप से कृषि पैदावार।

उपजना :: (क्रि. अ.) उत्पन्न होना, पैदा होना।

उपजाऊ :: (वि.) जिसमें अच्छी उपज हो, उर्वर।

उपटनों :: (सं. पु.) उबटन, शरीर कोमल और स्वच्छ बनाने के लिये हल्दी बेसन, तेल आदि से बनी लुग्दी जिसको शरीर पर मला जाता है, उबटन लगाने की क्रिया।

उपटबौ :: (क्रि.) उधड़ना, पतली-पतली पर्ते उधड़ना।

उपटा :: (सं. पु.) ठोकर चलते हुए पैर में लगने वाली गड़ी हुई वस्तु।

उपटाबौ :: (क्रि.) ऐड़ी ऊपर उठा कर पैरों के बल खड़ा होना।

उपतकें :: (क्रि. वि.) अपने आप।

उपद्दरी :: (सं. पु.) ऊधमी, उपद्रव करने वाला।

उपद्रौ :: (सं. पु.) उपद्रव, अवांछित और अकरणीय कार्य।

उपनए :: (वि.) उपानहहीन, नंगे पैर।

उपनये :: (सं. पु.) नंगे पैर, बिना चप्पल के।

उपरकना :: (सं. पु.) कान के ऊपरी भाग में बगलियां छेदने की क्रिया कान का ऊपरी भाग।

उपरफट :: (वि.) ऊपरफट्टू, यों ही, इधर-उधर या ऊपर से आया हुआ, फालतू।

उपरफट्टी :: (वि.) दिखावटी, बनावटी, अनात्मीय बातें और व्यवहार।

उपरियाँ :: (सं. स्त्री.) उपले जमीन पर थोप कर बनाए जाने वाले गोल कण्डे।

उपरौद :: (सं. स्त्री.) जूते का ऊपरी हिस्सा।

उपल्ला :: (सं. पु.) ऊपर का भाग ऊपर का पर्त।

उपल्ला :: (सं. स्त्री.) उपल्ली।

उपसबौ :: (क्रि.) रस्सी की पाश को ढीला करके उसमें बंधी हुई वस्तु को निकालना।

उपाटबो :: (स. क्रि.) उखाड़ना।

उपाय :: (सं. पु.) उपाय, युक्ति, इलाज।

उपाव :: (सं. पु.) तरकीब, विधि, प्रयत्न।

उपास :: (सं. पु.) उपवास, फाका।

उपासौ :: (वि.) जिसने उपास किया हो, निराहार, पूजा, भक्ति, सेवा, आराधना।

उपेक्षा :: (सं. स्त्री.) देखना, देखते हुए भी ध्यान न देना, उचित ध्यान न देना।

उफ :: (अ.) आह, ओह, अफसोस।

उफनबौ :: (अ. क्रि.) उबलना, जोश खाना।

उफनान :: (सं. पु.) उबाल उठाने के कारण ऊपर उठा फेन।

उफनाबौ :: (क्रि.) उबाल या उफान आना, उफन कर पात्र के बाहर द्रव का गिरना, क्रोध में नाक-मुँह फुलाना, उबाल।

उबकना :: (क्रि. अ.) कै करना, वमन करना।

उबका :: (सं. पु.) डोरी या रस्सी का वह फन्दा जिसमें लोटे गगरे आदि का मुँह बाँधकर कुएं आदि से जल निकालने के लिये लटकाया जाता है।

उबकाई :: (सं. स्त्री.) कै, वमन।

उबछना :: (क्रि.) कपड़ा पछाड़ कर धोना।

उबटन :: (सं. पु.) शरीर पर मलने के लिये सरसों का तेल, आटा, हल्दी आदि का लेप।

उबटना :: (क्रि. अ.) उबटन, मलना।

उबटनो :: (सं. पु.) उबटन, उपटन।

उबना :: (क्रि.) उगना, फलना-फूलना, उन्मति करना, बढ़ना।

उबनारों :: (वि.) उद्दण्ड, उछृंखल, दूसरों की कठिनाईयाँ पैदा करने में सक्रिय।

उबरना :: (क्रि. अ.) उद्धार पाना, शेष रहना।

उबराबो :: (क्रि.) उछृंखल, व्यवहार करना, बन्दनमुक्त होने के लिये छटपटाना।

उबलना :: (क्रि. अ.) उफनाना, उफनकर बाहर निकलना।

उबाँड़ी छिरैटा :: (सं. पु.) एक जंगली बेल जो वृक्षों पर उलटी चढ़ती है, यह तांत्रिक प्रयोग में काम आती है।

उबाँद :: (सं. स्त्री.) उकताहट, अकुलाहट, ऊबने का भाव।

उबाँद :: दे. उब।

उबार :: (सं. पु.) कपड़े का बना खोल।

उबारना :: (क्रि. स.) उद्धार करना, बचाना छुड़ाना।

उबारबो :: (सं. क्रि.) छुटकारा, बचाना, उद्धार करना, उद्धार करना, दुर्गति से बचना।

उबारौ :: (सं. पु.) सुविधा, लाभ, सुभीता।

उबासी :: (सं. स्त्री.) जँभाई, उदास, फीका।

उबेर :: (सं. स्त्री.) प्रातः चरने जाने के पूर्व पशुओं का ग्राम के बाहर इकट्टे होने का स्थान चरने जाते हुए पशुओं का समूह।

उबेलबो :: (क्रि.) कच्ची वस्तु का पकाना।

उभरबो :: (अ. क्रि.) ऊपर उठना, ऊँचा होना, प्रकट होना।

उभाड़ना :: (क्रि. स.) उकसाना, उत्तेजित करना।

उभार :: (सं. पु.) उभरने की क्रिया या भाव।

उभारदार :: (वि.) उभरा या उठा हुआ।

उभारबो :: (क्रि. अ.) उछालना।

उमक :: (सं. स्त्री.) उमंग, उत्साह।

उमकना :: (क्रि. स.) उखाड़ना, नष्ट करना।

उमगबो :: (अ. क्रि.) उमंग में आना, उल्लसित होना।

उमजबो :: (क्रि.) स्मरण होना, नवीन विचारों का उत्पन्न होना, स्वतः प्रेरणा होना।

उमझबो :: (अ. क्रि.) समझ में आना।

उमठा :: (सं. पु.) अँगूठा।

उमठी :: (सं. स्त्री.) अनामिका उंगली पर मध्यमा को चढ़ाकर बनाई गई मुद्रा, बच्चे ऐसा मानते थे कि इस मुद्रा से छूत नहीं लगत, चाँदी के तारों को ऐंठ कर बनाये जाने वाले कंगन।

उमड़बो :: (अ. क्रि.) बढ़कर फैलना, वह चलना।

उमदा :: (वि.) अच्छा, बढ़िया, उत्तम।

उमयाबौ :: (क्रि.) नमी के प्रभाव से कड़क वस्तु का चीमड़ होना।

उमराव गिरि :: (सं. पु.) हिम्मत, बहादुरी।

उमस :: (सं. स्त्री.) वर्षा के मौसम की नमी युक्त गर्मी।

उमानो :: (सं. पु.) नाप, माप, उदाहरण-सइयाँ बिसा सौत के लानें अंगिया ल्याये उमाने, ईसुरी प्रयोग।

उमेंठबो :: (क्रि.) ऐंठना, लपेटना, उमेठने से पड़ी हुई ऐंठन या बल।

उमेठी :: (सं. स्त्री.) उमेठने की क्रिया या भाव, दंड देने के लिये किसी का कान पकड़कर उसे जोर से उमेठने की क्रिया, जैसे-एक उमेठी देंगे, उभी सीधे हो जाओगे।

उमेदौ :: (सं. पु.) उम्मीद, सम्भावना।

उमेदौ :: (प्र.) पानी बरसने को उमेदौं दिखात।

उम्दगी :: (सं. स्त्री.) अच्छाई, खूबी, भलापन।

उम्दा :: (वि.) अच्छा, बढ़िया।

उम्मत :: (सं. स्त्री.) जमाअत, समुदाय, समूह।

उम्मीद, उम्मेद :: (सं. स्त्री.) आशा, भरोसा, आसरा।

उयें :: (सं. पु.) उदित होने पर।

उयै :: (सर्व.) ऊ का कर्म और सम्प्रदान कारक का रूप उसे।

उर :: (सं. पु.) छाती, वक्षस्थल, हृदय मुख्य स्थान।

उरँइँयाँ :: (सं. स्त्री.) शीतकाल में प्रातः कालीन कोमल धूप।

उरई :: (सं. स्त्री.) एक घास जिसकी जड़ की खस होती है।

उरग :: (सं. स्त्री.) सर्प, साँप, भुजंग।

उरगठी :: (सं. पु.) आँवले का सूखा अचार।

उरगना :: (क्रि. स.) बात को सहना, स्वीकार करना।

उरज :: (सं. पु.) स्तन, कुच, इसका शुद्ध रूप है उरोज।

उरजंटी, उरजबो :: (अ. क्रि.) उलझना, लिपटना, झगड़ा करना, तकरार करना।

उरजट्टा :: (वि.) झगड़ा मोल लेने के लिये पहल करने वाला।

उरजट्टौ :: (सं. पु.) झगड़ा मोल लेने की पहल या प्रयास।

उरजबो :: (स. क्रि.) उलझाना, लिपटाना।

उरजबौ :: (क्रि.) उलझना काम में व्यस्त रहना, व्यर्थ की बातों में उलझना, धागे का उलझना, किसी कठिन समस्या को सुलझाने में सिर खपाना।

उरझना :: (क्रि. अ.) उलझना, अटकना, फंसना, लड़ना झगड़ना।

उरतिया :: (सं. स्त्री.) छप्पर का छोर जहाँ से वर्षा का पानी जमीन पर गिरता है।

उरद :: (सं. पु.) एक प्रकार का पौधा जिसकी फलियों के दानें की दाल बनती है।

उरदा :: (सं. पु.) उरद, उड़द।

उरदुवा :: (सं. पु.) एक काले रंग का कीड़ा जो उड़द के बराबर होता है यह बिली की शेशनी में अधिक दिकलाई देता है।

उरदो :: (सं. स्त्री.) छोटा उरद का दाना।

उरबत्तियाँ :: (सं. स्त्री.) खपरेल-छप्पर से बरसात में गिरने वाली पानी की धारा या बूंदे खपरैल-छप्पर का अग्रभाग।

उरबत्तियाँ :: (कहा.) उरबतिया कौ पानी मँगरी नई चड़त - छप्पर के ढाल का आगे का हिस्सा जिससे वर्षा का जल नीचे टपकता है, ओलती छप्पर के ऊपर का हिस्सा, ओलती।

उरमतो :: (वि.) लटकता हुआ झूलता हा, उदाहरण-सीके बाँधति उरमते श्रम न होइ दधि लेत, राज.।

उरमबो :: (अ. क्रि.) झूलना, लटकना।

उरमाना :: (क्रि. स.) लटकाना।

उरमिला :: (सं. स्त्री.) देखो शुद्ध रूप उर्मिला।

उरवसी :: (सं. स्त्री.) देखो शुद्ध रूप उर्वशी।

उरसा :: (सं. पु.) लकड़ी या पत्थर का गोलाकार पटा जिस पर रोटी या पूड़ी बेली जाती है।

उरसिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सा उरसा जिस पर चंदन घिसा जाता है।

उरहना :: (सं. पु.) उलाहना।

उरानो :: (सं. पु.) उलाहना, शिकायत, उदाहरण-ईसुर ठाड़ी रात दुआरे रोजउँ देत उराने, उदाहरण-देत उरानों जसोदा के चलबी सो काय री जसोदा तैने छलिया लरका जाओ री। (कार्तिक गीत)।

उराव चुकबो :: (क्रि. अ.) यथा स्थान पैर न पड़ना।

उराहना :: (सं. पु.) उलाहना, उलाहना देना, उरायनो।

उरिन :: (वि.) उऋण, ऋणमुक्त।

उरिन :: दे. उन।

उरियाँ :: (सं. स्त्री.) दे. उरबतियाँ, उदाहरण-मइया की उरिया सेइयो बहिनियां करियो मती जन की आस, (राछरे) वस्त्र हीनता।

उरू बुरू :: (सं. पु.) सम्मुख, जो सामने हो, जो आँखों के सामने मौजूद हो।

उरेखना :: (क्रि.) दे. अबरेखना, चित्र बनाना या अंकित करना।

उरेतौं :: (वि.) एक ओर झुका हुआ।

उरेंन :: (सं. पु.) आवासीय भवन के मुख्य द्वार से लगा हुआ भू भाग, शुभ दनों और मांगलिक अवसरों तथा त्यौहारों पर इसे गोबर से लीप कर चौक पूरा जाता है, इसे उरेंन डारबौ कहा जाता है।

उरेब :: (वि.) टेढ़ा, तिरछा, छलपूर्ण।

उरेब :: (पु.) छल-कपट, धूर्तता।

उरैड़ना :: (क्रि. स.) उँडेलना, गिराना।

उरैतों :: (वि.) एक ओर का झुका हुआ, थोड़ा टेढ़ा, ( थोड़ा अधिक)।

उरैन :: (सं. स्त्री.) सूर्योदय पर गोबर द्वारा लीपी गई देहली, उदाहरण-उरैन डारबौ-द्वार के सामने लीपना।

उरैया :: (सं. स्त्री.) प्रातः रश्मियाँ, प्रातकालीन, सूर्य का प्रकाश।

उरौना :: (क्रि.) डोर, रस्सी, लौटा डोर में फाँसने से इसका मुँह टेड़ा हो जाता है इसलिये लोटे के गले में रस्सी के साथ एक डोर फँसा देते हैं, वह।

उर्जबो :: (क्रि.) देखो उरजबौ।

उर्दयानों :: (सं. पु.) वह खेत जिसमें से उड़द की फसल काटी गई हो।

उर्दा :: (सं. पु.) उड़द, एक दलहन।

उर्दिया :: (सं. पु.) उड़द के अकार की बुँदकियों वाला एक विषैला सर्प, एक प्रकार का पत्थर।

उर्राबो :: (अ. क्रि.) उमड़ना, स्तनों में दूध की धार का उमड़ना, गिरना, उदाहरण-उर्राबै दूद न सिसु खों लखबा माय नई लोकगीत।

उर्सा :: (सं. पु.) रोटी बेलने का पाटा, चकला।

उर्सिया :: (सं. स्त्री.) चंदन घिसने का छोटा शिला खंड, रोटी, बेलने का छोटा पाटा या शिला।

उलकाँ :: (क्रि. वि.) ओझल, पर्दे में चुपचाप।

उलगबो :: (क्रि.) किसी बरतन इत्यादि के पूरा भरने पर वस्तु का बाहर निकलना, फलना।

उलछारबौ :: (क्रि.) उकेरना, उछाल कर अचार को नीचे ऊपर करना, धुँधले लेख या चित्र पर पुनः रेखांकन करना, कुत्ते को किसी पर भोंकने के लिये प्रेरित करना, किसी वस्तु को ऊपर को फेंकना, पलटना, स्पष्ट करना।

उलझन :: (सं. स्त्री.) गाँठ, चक्कर, परेशानी।

उलझना :: (क्रि. अ.) फँसना, झगड़ना, अटकना।

उलझेड़ा :: (सं. पु.) उलझन या उलझाव।

उलझौहाँ :: (वि.) किसी प्रकार अपने साथ उलझाकर रखने वाला।

उलट-पलट :: (सं. स्त्री.) अदल-बदल, गड़बड़ी।

उलट-पुलटा :: (वि.) उलटा-पलटा, परिवर्तन।

उलटना :: (क्रि. अ.) पलटना।

उलटफेर :: (सं. स्त्री.) परिवर्तन।

उलटाबौ :: (क्रि. स.) लौटाना, फेरना, अदल-बदल, फेरफार, परिवर्तन।

उलटी :: (सं. स्त्री.) वमन, कै।

उलटौ :: (वि.) औंधा, वरूद्ध, क्रम विरूद्ध।

उलटौ :: (कहा.) उल्टो चोर गुसैये डाँटे - अपराध करके स्वयं उसी मनुष्य को झिड़कना जिसका नुकसान हुआ हो।

उलथना :: (क्रि. अ.) ऊपर नीचे होना, उथल-पुथल होना, उलटना पलटना।

उलदाबौ :: (क्रि.) भारी वस्तु को उलटा करना, लुढ़काना।

उलरनौ :: (क्रि. अ.) कूदना, उदकना, लोटना, सोना।

उलरबौ :: (क्रि.) निश्चित सीमा से बाहर लटकना।

उलरोंकूँ :: (वि.) पर्दे वाली।

उलरोंकूँ :: (कहा.) दिन के नामा, रात के उलरौंकूँ (पर्दे में)।

उलवारौ :: (सं. पु.) ओट के लिये बाँधा गया वस्त्र, पर्दा।

उलसनौ :: (क्रि. अ.) शोभित होना इसका शुद्ध रूप है बिलसना।

उलायत :: (क्रि. अ.) जल्दी, अविलंब, सत्त्तवर, शीघ्र।

उलायती :: (सं. स्त्री.) शीघ्रता, जल्दी, क्षिप्रता।

उलायतौ :: (वि.) जल्दबाज, धैर्य की कमी वाला।

उलार :: (वि.) जो असंतुलित भार के कारण पीछे या किसी ओर झुकाहो।

उलिया :: (सं. स्त्री.) ओली, गोदी, उदाहरण-मोरी उन उलियन की सौगंद जिनमें पलों दुलार लोकगीत।

उलीचना :: (क्रि. स.) किसी बड़े आधार या पात्र में जल भर जाने पर उसे खाली करने के लिए उसमें का जल बरतन या हाथ से बाहर निकालना या फें कना, जैसे नाव में का पानी उलीचना।

उलीचबो :: (क्रि.) भरे हुए पानी को हाथों में भर-भर कर खाली करना।

उल्टो :: (वि.) जो स्वाभाविक स्थिति में न होकर विपरीत स्थिति में हो, औंधा, असमान, विपरीत।

उल्टो :: (कहा.) उल्टे छुरा से मूड़बो - बुरी तह ठगना उल्लू बनाकर अपना काम निकालना।

उल्लपन :: (वि.) बेवकूफी।

उल्लू :: (सं. पु.) उलूक।

उल्लू :: (वि.) मूर्ख बनाना बेवकूफ बनाना, मूर्ख बनाकर स्वार्थ सिद्ध करना, उल्लू बोलबो-उजाड़ होना।

उस :: (सर्व.) विभक्ति लगने पर वह शँद के स्थान पर उस होता है।

उसकाना :: (क्रि. स.) उत्तेजित करना।

उसकेरबा :: (क्रि.) उकसाना, दीप की बत्त्ती आगे बढ़ान, आग तेज करने के लिए लकड़ियों को आगे खिसकाना, उत्तेजित करन, उसकेरना।

उसटबौ :: (क्रि.) स्थान से हटना, अलग होना।

उसटापुस्टी :: (क्रि. वि.) आगे पीछे जाना, उल्टा-पल्टी करना।

उसटाबौ :: (क्रि.) स्थान से हटाना, मुहूर्त को स्थगित कर आगे बढ़ाना, अलग करना, हटाना।

उसनना :: (क्रि. स.) गूँथना, मिलाना।

उसनींद :: (सं. स्त्री.) उन्निद्रावस्था, अर्द्ध-सुप्तावस्था।

उसनींदौ :: (वि.) उन्निद्र, जिसे नींद के झोंके आ रहे हों, जो पूरी नींद होने के पूर्व जगाया जाने के कारण ठीक से चैतन्य न हुआ हो।

उसरना :: (क्रि. अ.) टलना, हटना।

उसरा :: (सं. पु.) घर के सामने बनी हुई बन्द छप्पड़ी, दालान।

उसरिया :: (सं. स्त्री.) बिना ब्याई हुई जवान भैंस।

उसरी :: (सं. स्त्री.) बारी-बारी से पारी।

उसरेंडो :: (सं. पु.) अनाज उड़ाने का डला।

उसानना :: (क्रि. स.) उबालना।

उसार :: (सं. पु.) कामकाज, घर का चौका बर्तन, झाडू इत्यादि कार्य, व्यवस्थित कार्य करना।

उसारबो :: (क्रि.) ऊपर करना, किसी के ऊपर से कोई चीज फेरना, उदाहरण-नजर उसारबौ।

उसारौ :: (सं. पु.) दरवाजे के बाहर की दालान, उदाहरण-सबने जुरकें ठाँड़ौं कर लओ, बीसक होत उसारो।

उसालना :: (सं. पु.) उखाड़ना, दूर करना, हटाना भागना, टालना।

उसाँस :: (सं. पु.) उसास, हाय साँस।

उसाँसना :: (क्रि. अ.) गहरी या ठंडी साँस लेना, खिसकना, टलना।

उसाँसबौ :: (क्रि.) किसी जमीं हुई वस्तु को थोड़ा ऊपर उठाकर उसके नीचे स्थान बनाना।

उसासी :: (सं. स्त्री.) दम लेने की फरसत, अवकाश छुट्टी।

उसाँसें :: (सं. स्त्री.) सन्धियों के बीच की खाली जगह उसाँस का बहुवचन।

उसिनना :: (क्रि.) उबलना।

उसीसें :: (क्रि. वि.) सिरहाना।

उसीसौ :: (सं. पु.) तकिया, सिरहाना।

उसूर :: (सं. पु.) सिद्धान्त।

उसूर :: (वि.) वसूल।

उसेरेटबौ :: (क्रि.) तृष्णा के कारण आवश्यकता से अधिक भोजन करना।

उसेलबौ :: (क्रि.) वस्तुओं के किसी बने हुए क्रम को मिटाना, दीवार से ईटें हटा-हटा कर उसे मिटाना, स्थान से हटाना।

उसैड़ा :: (सं. पु.) एक टोकरी में बिना उड़ाये हे अनाज को उड़ाने के लिए भर देना।

उसैबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को पानी में उबालकर पकाना।

उस्तरा :: (सं. पु.) बाल मूँडने का छुरा।

उस्ताद :: (सं. पु.) वह जो किसी विषय में बहुत अधिक दक्ष या निपुन हो।

उस्तादी :: (सं. स्त्री.) उस्ताद होने की अवस्था या भाव, शिक्षक की वृत्ति, दक्षता।

उहदा :: (सं. पु.) देखो, ओहदा।

उहाँ :: (क्रि. वि.) वहाँ।

उहार :: (सं. पु.) साधुओं के पहनने का कड़ा।

उही :: (सर्व.) वह ही, उसी को।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का छठवाँ स्वर वर्ण, इसका उच्चारण स्थान ओष्ठय है, सर्व. उस, प्रत्यय बलवाची प्रत्यय, ही भी।

ऊकना :: (क्रि. स.) भूल जाना, जलाना।

ऊके :: ऊ का सम्बन्ध कारक का रूप उसके (पश्च. हमीरपुर, जालौन झाँसी, टीकमगढ़, पन्ना छतरपुर)।

ऊक्खल :: (सं. पु.) सिवनी, छिंदवाड़ा, ओखली।

ऊख :: (सं. पु.) ईख।

ऊँख :: ईख, गन्ना।

ऊखड़ :: (सं. पु.) पहाड़ के नीचे की सूखी जमीन।

ऊखर :: (सं. पु.) एक प्रकार की घास।

ऊखरा :: (सं. पु.) वह जमीन जो बंजर हो।

ऊखरौ :: (सं. पु.) पत्थर या काठ का वह पात्र जिसमें अन्नादि कूटते हैं, ओखली।

ऊखल :: (सं. पु.) ओखली।

ऊखली :: (सं. पु.) ओखली।

ऊखली :: (मुहा.) ऊखली में मूड़ देबौ-जान बूझकर झंझट में फँसना, कष्ट या हानि सहने को तत्पर रहना।

ऊँग :: (सं. स्त्री.) नींद।

ऊगड़ :: (वि.) पट्टे के बाहर की अनधिकृत भूमि, उपयोग के अतिरिक्त।

ऊगड़खरी :: (सं. पु.) पटवारियों का वह कागज जिसमें कृषक का प्रतिवर्ष अपना अधिकार दर्ज करते हैं उसी को पटवारी नापकर इस कागज पर लिख लेता है।

ऊँगतोंय :: (सं. पु.) सूरज निकलने की तरफ पूर्व की ओर।

ऊँगना :: (सं. पु.) चौपायों की एक बीमारी जिसमे उनका शरीर ठंडा हो जाता है, कान बहने लगते है।

ऊँगना :: दे. उगना।

ऊगबो :: (अ. क्रि.) उगना, उदय होना, जमना, उपजना।

ऊँगबो :: (क्रि.) उदय होना, ऊँगना, नींद के झोंके आना।

ऊँगबो :: (कहा.) ऊंगत ते और बिछा पाई।

ऊगरना :: (क्रि.) उगलना।

ऊँगा :: (सं. पु.) चिचड़ा।

ऊँघ :: (सं. स्त्री.) उँगने की क्रिया या भाव, ऊँघाई, अर्ध निद्रा, झपकी।

ऊँघना :: (क्रि.) बैठे-बैठे झपकी आने पर आँखे बन्द होना, और सिर का बार-बार झुकना।

ऊँच :: (सं. पु.) वह जो उत्तम जाति या कुल का हो, कुलीन, उदाहरण-दानव-देव ऊँच अरू नीचू तुलसी।

ऊँचाई :: (सं. स्त्री.) ऊँचान, उन्नति, श्रेष्ठता, गौरव।

ऊँचे :: (क्रि. वि.) ऊपर की ओर, ऊँचाई पर, कहने बोलने आदि के सम्बन्ध में, जोर से।

ऊचो :: (क्रि. स. वि.) ऊपर की ओर, अधिक उठा हुआ, बड़ा श्रेष्ठ, ऊँचो-नीचो।

ऊचो :: (वि.) ऊबड़-खाबड़, भला-बुरा।

ऊँचो :: (वि.) ऊँचास बड़ा, कुलीन, ऊँची जाति का।

ऊँचो :: (कहा.) ऊँची दुकान फीको पकवान - दिखावट तो बहुत पर तत्व कुछ नहीं।

ऊचो सुनवो :: केवल जोर से कहीं हुई बात ही सुन सकना, अर्द्ध बधिर होना।

ऊँचौ :: (मुहा.) ऊँचौ पूरौ ज्वान, ऊँचौ खेरौ-ऊँची भूमि।

ऊँछना :: (क्रि. स.) बाल झाड़ना, बालों में कंघी करना।

ऊँछबो :: (सं. क्रि.) कंघी करना।

ऊँछबौ :: (सं. क्रि.) बालों की कंघा आदि से सुलझाना संवारना।

ऊछर :: (सं. पु.) शर्त वस्तु वापिसी की शर्त पर।

ऊजर :: (वि.) उजाड़ जहाँ कोई रहता न हो ओर जिसकी कोई देखभाल न हो।

ऊजरा :: (वि.) उजला।

ऊजरो :: (वि.) निर्मल, उजला, पवित्र, निरख उजरे अंग सब, नैन उजरे होत। सब ओम।

ऊँट :: (सं. पु.) उष्ट्र, ऊँट, ऊँचे-लम्बे।

ऊँट :: (कहा.) ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे - बड़े काम चोरी छिपे नहीं होत।

ऊँट :: (कहा.) ऊँट के मों में जीरो - बहुत खाने वाले को थोड़ी वस्तु देना।

ऊँट :: (कहा.) ऊँट का चूमा ऊँटई लेत - बड़ों का काम बड़ों से ही सटता है।

ऊँट :: (कहा.) खेती नई होत - ऊँटों से खेती नहीं होती। हर काम के लिए उपयुक्त की आवश्यकता होती है।

ऊँट :: (कहा.) ऊँट पै चढ़के सबै मलक आउत - ऊँट पर चढ़के सभी को मलकना आ जाता है, उच्च पद प्राप्त होने पर सभी का गर्व हो जाता है।

ऊँटकटारौ :: (सं. पु.) पीले फूल की कटाई।

ऊँटकटास :: (सं. पु.) एक प्रकार की कटीली झाड़ी या पौधा।

ऊटना :: (क्रि. अ.) उमंग में आना, उत्साहित होना, जोश में आना।

ऊँटनी :: (सं. स्त्री.) साँड़िनी।

ऊटपटाँग :: (वि.) बेतुका, असंगत, बे सिर पैर का, निरर्थक।

ऊँटपटाँग :: (वि.) अटपटी, असंगहीन, तारतम्यहीन, असम्बद्ध।

ऊँटबान :: (सं. पु.) ऊँट हाँकने और चलाने वाला।

ऊँठा :: (सं. पु.) अंगूठा।

ऊड़ा :: (सं. पु.) विवाहित स्त्री, वह परकीया नायिका जो विवाहित पति का छोड़कर अन्य किसी से प्रेम करें।

ऊड़ी :: (सं. स्त्री.) पनडुँबी नाम की चिड़िया, लक्ष्य निशाना, एक प्रकार की चरखी।

ऊढ़ :: (वि.) विवाहिता स्त्री जिसका विवाह हो गया हो।

ऊढ़ना :: (क्रि. अ.) सोच-विचार करना, अनुमान या तर्क करना।

ऊत :: (वि.) वह खलाड़ी, मूर्ख, सन्तान रहित, निर्वश।

ऊतर :: (सं. पु.) उत्त्तर, जवाब, ऐसी झूठी या बनावटी बात जो अपन बचाव करने के लिये उत्त्तर के रूप में कही जा सके, बहाना।

ऊतरी :: (सं. स्त्री.) जब किसी को साँप काट लेता है, और झाड़ने वाले से ठीक नहीं होता तो वह कांस की रस्सी से गाँठ लगाकर पीड़ित व्यक्ति के गले में बांध कर प्रभाव को स्थगित कर देता है, यह स्थागन अस्थायी होता है, यही रस्सी का अभिमंत्रित गण्डा, ऊतरी कहलाता है।

ऊतला :: (वि.) तेज, बेगवान, चंचल।

ऊतांताई :: (वि.) ना समझ मूर्ख।

ऊथलो :: (वि.) कम गहरा।

ऊद :: (सं. पु.) अगर नामक वृक्ष या उसकी लकड़ी एक प्रकार का बाजास।

ऊद :: (पु.) ऊदविलाव (जन्तु)।

ऊद बिलाओ :: (सं. पु.) नेबले की शक्ल का एक उभयचर जन्तु।

ऊद बिलाओ :: (वि.) मूर्ख बुद्ध।

ऊदबत्त्ती :: (सं. स्त्री.) एक तरह की अगरबत्त्ती।

ऊदम :: (सं. पु.) शोरगुल, हंगामा, उत्पात।

ऊदमी :: (वि.) ऊधम मचाने वाला, उत्पाती।

ऊदल :: (सं. पु.) हिमालय में होने वाला एक प्रकार का पेड़, आल्हा लोक काव्य का एक पात्र।

ऊदो :: (सं. पु.) उद्भव ऊधो।

ऊधम :: (सं. पु.) झगड़ा, उत्पात, उपद्रव।

ऊधम धौरो :: गड़बड़ी।

ऊधमया :: (वि.) उत्पाती।

ऊधमी :: (वि.) उपद्रवी, उत्पाती।

ऊधस :: (सं. पु.) थन, अथन, थन का ऊपरी भाग जिसमें दूध भरा होता है।

ऊँधा :: (सं. पु.) जलाशय का वह ठालुआँ किनारा, जहाँ से पशु नहाने और पानी पीने आते जाते हैं।

ऊँधा :: (वि.) औँधा।

ऊन :: (सं. पु.) भेड़ आदि का कोमल बाल जिसका कपड़ा बनता है उसका बनाया हुआ धागा।

ऊँन :: (सं. पु.) भेड़ का कोमल बाल जिसका कपड़ा बनता है, उसका बनाया धागा।

ऊनापूर :: (सं. पु.) एक प्रकार का खेल कोड़ियों या पैसों के माध्यम से ऊने पूरे की शर्त लगाकर खेला जाता है।

ऊनी :: (वि.) ऊन का बना हुआ।

ऊँनी :: (वि.) दो से अविभाज्य (संख्याएँ) रूढ़ (संख्याएँ), ऊन से बने वस्त्र।

ऊँनी :: (सं. स्त्री.) ऊँन का बना पशमीनारी गरम कपड़े।

ऊनें :: (सर्व.) का कर्ता कारक का रूप, उसने, ऊसें-उससे ऊमें-उसमें, ऊकौ-उसका आदि।

ऊँनो :: (क्रि. वि.) बुरा (मानना, लगना)।

ऊँनो :: (प्र.) उनने तौ हमाई बात को ऊँनौ मानो।

ऊनौ :: (वि. (स.ऊ न)) न्यून, थोड़ा, छोटा, घटिया, क्रम, अल्प, उदास, सुस्त विषय मात्रा में।

ऊपर :: (वि. अ.) ऊँचाई परस छत पर, आकाश की ओर, सिर परस जिम्मेदारी।

ऊपर :: (वि.) अतिरिक्त।

ऊपर :: (मुहा.) ऊपर की आमदनी-वेतन आदि के अतिरिक्त आय।

ऊपर :: (प्र.) ऊप चकौड़ा सौ फरौ और नैचें गुरूलाय का है बताब, (मूंगफ ली)।

ऊपर :: (मुहा.) ऊपरै लैबो-सिर पर जिम्मेवारी लेना।

ऊपर :: (मुहा.) ऊपर की आमदनी-वेतन आदि के अतिरिक्त आय।

ऊपर :: (प्र.) ऊप चकौड़ा सौ फरौ और नैचें गुरूलाय का है बताब, (मूंगफ ली)।

ऊपर :: (मुहा.) ऊपरै लैबो-सिर पर जिम्मेवारी लेना।

ऊपरी :: (वि.) ऊपर का बाहरी, दिखावटी।

ऊपरी जग्हा :: (सं. पु.) अपरिचित स्थान।

ऊब :: (सं. स्त्री.) घबराहट, उदासी, अकुलाहट।

ऊबट :: (वि.) कठिन, ऊँचा नीचा, अगम।

ऊबड़खाबड़ :: (वि.) ऊँचा नीचा, कठिन।

ऊबतोंय :: सूर्य निकलने की दिशा, पूर्व दिशा।

ऊबना :: (क्रि. अ.) चित्त न लगना, घबराना उकताना।

ऊबनी :: (सं. पु.) (कन्या पक्ष के) द्वार की शोभा बढ़ाने की रस्म, द्वार चाल।

ऊबबो :: (अ. क्रि.) उकता जाना, घबराना, ऊबना, शाभित होना, जैसे राम लखन दूला बनै ऊबै जनक की पौर (बुँ ग्रा. गी.)।

ऊबबौ :: (क्रि.) निष्क्रियता या प्रतीक्षा के कारण मन का बेचैन होना।

ऊबरबो :: (अ. क्रि.) (हिदीं. उबरना) उबरना, बचना, छुटकारा पाना, बाकी बचना।

ऊभ :: (वि.) ऊँचा उठा हुआ।

ऊभ :: (स्त्री.) मन में उत्पन्न होने वाली उमंग, ऊब, ऊमस।

ऊभ-चूभ :: (सं. स्त्री.) डूबने उतरने की क्रिया (मन में कभी आशा और कभी निराशा होने की अवस्था का भाव)।

ऊभना :: (क्रि. अ.) ऊपर की ओर उठना, खड़ा होना।

ऊभना :: (अ.) ऊबना।

ऊमटबो :: (अ. क्रि.) उमड़ना।

ऊमर :: (सं. पु.) उदम्बर, गूलर।

ऊमर :: (कहा.) ऊमर फौरौ न पँखेरू उड़ाव।

ऊमस :: (सं. स्त्री.) हवा न चलने से मालूस होने वाली गरमी, बरसात की गरमी।

ऊमें :: (सर्व.) ऊ, का अधिकरण कारक का रूप उसमें।

ऊरन :: (वि.) ऋणमुक्त, उऋण।

ऊरन :: दे. ऋणउरिन।

ऊरबो :: निकलना (सूर्य) जैसे-सूरज उरबे में कितेक देर है।

ऊरबौ :: (क्रि.) चक्की के मुंह में अनाज का कौर डालना, चक्की चलाना, प्रारम्भ करना।

ऊरू :: (सं. पु.) जंघा।

ऊर्जे :: (सं. पु.) बल, शक्ति, तेज, कार्तिक, मास।

ऊल :: (स्त्री. स.) चूल्हे की फालतू आंच का उपयोग करने के लिये उसके पीछे बनाया जाने वाला मुँह।

ऊल-जलूल :: (वि.) जिसका कोई ठीक-ठिकाना या सिर पैर न हो।

ऊलई-ऊले :: (अ.) इसी तरफ, ऊलई पार, उस पार।

ऊलक :: (सं. पु.) एक प्रकार का वन-मानुष जो असम की पहाड़ियों में होता है।

ऊलना :: (क्रि. अ.) प्रसन्न या उल्लसित होना, उछलना, मर्यादा का उल्लंघन करना, मन माना, आचरण करना, आतुर होना।

ऊलर :: (क्रि. वि.) वाहन की लम्बाई-चौड़ाई के बाहर निकला हुआ (वजन) ऊलर वजन हल्की वस्तु का वजन कम होने के कारण लम्बाई-चौड़ाई से बाहर तक भर दिया जाता है।

ऊलर :: (वि.) ऊलर भरी क्रियाविशेषण।

ऊस :: (सं. स्त्री.) कठिनाई, खलबली।

ऊस :: (प्र.) उतै तौ मौंड़ी मोड़न के मारें बैटतन ऊस परी।

ऊसँइँ :: (क्रि. वि.) वैसे ही, अकारण फालतू।

ऊसई :: (सर्व. अ.) अकारण वैसे ही।

ऊसटौ :: (सं. पु.) नस पर किसी फौड़े या चोट के कारण नस से सम्बन्धी किसी दूसरे स्थान पर सूजन या गाँठ।

ऊसर ऊसरा :: (सं. पु.) वह जमीन जिसमें रेत हो और कुछ पैदा न हो, बंजर।

ऊसै :: (सं. सर्व.) उससे।

ऊसौ :: (वि.) वैसा, तरह का, उदाहरण-कयै प्रकाश फल ऊसौ मिलतइ, जैसो बीजा बोतई। ओम।

ऊह :: (अ.) ओह, दुख या विस्मय सूचक शब्द।

ऊह :: (सं. पु.) बुद्धि, तर्क, अनुमान।

ऊहा :: (सं. स्त्री.) परीक्षा करके निश्चय करना।

ऊहापोह :: (सं. पु.) तर्क वितर्क, वाद विवाद, बहस।

ऊँहूँ :: (नि.) नहीं का द्योतक निपात, अस्वीकृति बोधक निपात।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का नवाँ स्वर वर्ण, इसका उच्चारण स्थान कण्ठ्य व तालु है, सर्व. यह का अपभ्रंश, एई-यही, एई सें-इसी सें-एखौं-इसको, एकें-एक ही, एकें आंय एकें जाएं, इसे, सम्बो. बुलाना आदि अर्थों में प्रयुक्त, प्र. ए भइया।

एई :: (सर्व.) इसको, यही।

एक :: (वि.) पहला, प्रथम, अद्वितीय, मुख्य, अन्य कोई, केवल, प्रथम संख्या, एकईदार-एक ही बार, एकठौ-एक ही वस्तु, एकठौआ-एक ही चाज, एकठौल-एक ही ही वस्तु, एकठौआ-एक ही चीज, एकठौल-एक ही के लिए, एकतरफा-एक ही तरफ, एकाध-एक या आधा, एकऊ-एक ही, एक रस-एक सा।

एक :: (कहा.) एक अहारी सदा व्रती - एक बार भोजन करने वाला संयमी ही माना जाता है।

एक :: (कहा.) एक लठिया सें सबै हाँकत - एक लाठी से सबको हाँकते हैं।

एक :: (कहा.) एकई साधें सब सधे सब साधें सब जाय - एक बार में एक काम ही करना चाहिए, किसी काम के लिए एक आदमी का आश्रय ग्रहण करना ही ठीक होता है।

एक :: (कहा.) एक कओ, न दो सुनो - किसी से न एक बुरी बात कहो, न दो सुनो।

एक :: (कहा.) एक कान से सुनीं दूसरे से निकार दई - किसी बात पर ध्यान न देना।

एक :: (कहा.) एक के पुत्र से सबरो गाँव तर जात - एक आदमी के अच्छे काम का सब पर प्रभाव पड़ता है।

एक :: (कहा.) एक घड़ी कौ बुरआसन जनम भरे कौ सुक्ख - बुराई, नहीं करने से कोई बुरा मान जाय तो मान जाय, पर हमेशा के ले बला तो टल जाती है।

एक :: (कहा.) एक जनें से दो भले - कहीं यात्रा में जाना हो तो एक से दो अच्छे।

एक :: (कहा.) एक तबा की रोटी, का छोटी का मोंटी - समान वस्तुओं में छोटी-बड़ी का क्या प्रश्न।

एक :: (कहा.) एक तो गड़ेरिन और लासन खायें - गड़रिया की स्त्री गंदगी में और भी गंदगी।

एक :: (कहा.) एक थेलिया के चट्टा - बट्टा-सब एक से, कोई घट-बढ़ नहीं।

एक :: (कहा.) एक दाँतकौ मोल करौ, बत्त्तीसऊ खोल दये - व्यर्थ दाँत निकालने प्रयुक्त।

एक :: (कहा.) एक नारी सदा ब्रह्मचारी - एक स्त्री वाला भी सदा ब्रह्मचारी ही माना जाता है।

एक :: (कहा.) एक पाख दो गहना, राजा मरै के सहना - शहना।

एक :: (अ.) शिहनः शासक, कोतवाल. कर-संग्रह करने वाला। ग्रहण के संबंध में लोक-विश्वास यदि एक पखवाले में दो ग्रहण पड़े तो राजा मरे या शासक।

एक :: (कहा.) एक पै एक ग्यारा - एक स्थान पर दो आदमी मिल जायें तो बड़ा काम कर सकते हैं। संगठन में बड़ी शक्ति होती है।

एक :: (कहा.) एक बिछौना सोओ और आँग से आँग लगै नई - कोई काम करो भी और उसके परिणाम से भी बचना चाहो, ये दोनों संभव नहीं।

एक :: (कहा.) एक बेर जोगी, दो बेर भोगी, तीन बेर रोगी - योगी दिन में एक बेर जोगी, दो बेर भोगी, तीन बेर रोगी-योगी दिन में एक बार, और भोगी दो बार शौच जाता है, इससे अधिक बार जाय तो उसे रोगी समझना चाहिए।

एक :: (कहा.) एक म्यान में दो तरवारें नई रतीं - किसी एक ही वस्तु पर दो का अधिकार नहीं हो सकता।

एक :: (कहा.) एक हात की तारी नई बजत - झगड़ा कभी एक ओर से नहीं होता। दो मनुष्यों में यदि एक लड़ाकू न हो तो कभी लड़ाई नहीं हो सकती।

एकचित :: (वि.) एक ही बात को सोचने वाला।

एकड़ :: (सं. पु.) पृथ्वी की एक माप, एक सही तीन बटा पाँच बीघा-एक एक एकड़।

एकतरफा :: (क्रि.) पक्षपाती, एक ओर का।

एकतरा :: (सं. पु.) एक दिन छोड़कर आने वाला ज्वर, तिजारी।

एकता :: (सं. स्त्री.) मेल, समानता, एक होना।

एकन्ना :: (सं. पु.) एक का पहाड़।

एकन्नी :: (सं. स्त्री.) एक आना मूल्य का सिक्का, चार पैसे या बारह पई-एक आना।

एकमई :: (सं. स्त्री.) जहाँ जाति-पाति, खान-पान, का कोई भेद न हो।

एकलया :: (वि.) अकेला।

एकलाई :: (सं. स्त्री.) ओढ़नी, चादर, अकेली धोती।

एकवार :: (क्रि. वि.) केवल एक समय, अचानक, एकदफ।

एकसठ :: (वि.) एक और साठ संख्या।

एकसा :: (वि.) समान, बराबर, समतल।

एकसार :: (वि.) समान, एकसा।

एकहत्त्तर :: (वि.) सत्तर और एक की संख्या।

एकहत्था :: (वि.) अकेला, एक ही हाथ से काम करने वाला।

एकहरा :: (वि.) एक तह या परत का पतला।

एकहायन :: (वि.) एक वर्ष का।

एका :: (सं. पु.) एकता, संगठन।

एकाएक :: (क्रि. वि.) अचानक, सहसा।

एकाकार :: (सं. पु.) एक रूप होना, भेद रहित होना।

एकांती :: (सं. पु.) ऐसा भक्त जो सबसे अलग होकर या निर्जन स्थान में बैठकर एकाग्रचित से अपनी देवी या देवता का भजन करता हो।

एकांती :: (कहा.) एकांत बासा, झगड़ा न झाँसा - अकेला रहना सबसे अच्छा।

एकान्त :: (वि.) अकेला, सुनसान।

एकामेक :: (सं. पु.) सब कुछ मिला-मिलू कर गड्ड-मड्ड करने की स्थिति, भ्रष्ट व्यवस्था।

एकाला :: (वि.) अकेला।

एक्का :: (वि.) अकेला।

एक्काबान :: (सं. पु.) इक्का गाड़ी हाँकने वाला।

एक्काहार :: (सं. पु.) कोई एक चीज ही खाकर रहने की प्रतिज्ञा या व्रत, दिन रात में एक ही बार भोजन करने का नियम या व्रत।

एँगुर :: (सं. पु.) ईगुर।

एँच पेंच :: (सं. पु.) घुमाव-फिराब, हेर-फे र, उलझन, टेढ़ी-तिरछी चाल या युक्ति।

एँच पेंच :: दे. दाँव-पेंच, मरोड़, उलझन।

एँचना :: (क्रि. स.) खींचना।

एँजिन :: (सं. पु.) कल यन्त्र रेलवे में गाड़ियों का भाप से खीचने वाली या कारखानों में सब मशीनों को भाप से चलाने वाली कल।

एँजीनियर :: (सं. पु.) कलों को चलाने, बनाने या जानने वाला, वह अफ सर जा कारखानों और इमारतों इत्यादि को बनाने का निरीक्षण करता है।

एजू :: (संबो.) अरे भाई, पति द्वारा पत्नि अथवा एक दूसरे को बुलाने हेतु सम्बोधन।

एँडावेंडा :: (वि.) उल्टा-सीधा, तिरछ।

एड़ी :: (सं. स्त्री.) पैर के पीछे का भाग, टाँग का सबसे नीचे का पिछला गद्दीदार भाग, जूते के तले का वह उठा हुआ भाग जो एड़ी के नीचे रहता है।

एँडी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का रेशम का कीड़ा।

एँडुआ :: (सं. पु.) गेंडुरी।

एतना :: (सर्व.) इतना।

एन :: (क्रि. वि.) निश्चय करके, जरूर, अधिक यथेष्ट।

एनई :: (क्रि. वि.) भली भाँति, खूब, बिलकुल।

एबज :: (सं. पु.) प्रतिफल, परिवर्तन।

एबाती :: (सं. स्त्री.) सौबाग्यवती, अहिवाती।

एरंड :: (सं. पु.) रेंडी, अंडी।

एरन :: (सं. पु.) सागर जिले क एक ग्राम, यहाँ के राजा को समुद्रगुप्त ने ४३।

एरन :: (वि.) के लगाभग परास्त किया था।

एरे :: (संबो. अ.) अरे ? हे ?।

एलक :: (सं. स्त्री.) मैदा छानने की बारीक छेंदो वाली छलनी।

एलान :: (सं. पु.) ऐलान, घोषणा।

एहसान :: (सं. पु.) उपकार, भलाई।

एहसानमंद :: (वि.) उपकार को मानने वाला।

एहो :: (संबो.) अ.हे.ए।

 :: हिन्दी वर्णमाला दे.ना.लि. का अष्ठम स्वर इसका उच्चारण स्थान कण्ठ तालु है, कर्म कारक प्रत्यय, प्र. बाए, उऐ।

ऐं :: प्रश्नवाचक निपात, किसी कथन को सुन या समझ न पाने के कारण या अपनी बात की सामने वाले से पुष्टि कराने हेतु किया जाने वाला प्रश्न।

ऐंकबौ :: (क्रि.) तृप्ति के बाद भी भोजन करने के कारण अरूचि होना।

ऐंगर :: (क्रि. वि.) नजदीक, निकट, पास में।

ऐंच :: (सं. स्त्री.) ऐंचने या खींचने की क्रिया या भाव।

ऐंचक-बेंचक :: (सं. पु.) टेढ़ा-मेढ़ा।

ऐंचक-बेंचक :: (प्र.) ऐंचक बेंचा।

ऐंचकतानों :: (वि.) विरूपाक्ष, जिसकी आँखों की पुतलियों की स्थिति कर्णोंन्मुखी हो।

ऐंचना :: (क्रि. स.) जोर से बल पूर्वक कोई चीज अपनी ओर खींचना या लाना।

ऐंचबौ :: (क्रि.) खींचना, निकलना।

ऐंचर :: (सं. पु.) जवान साँड गर्भधान के लिए रखा गया हो।

ऐचरौं :: (सं. पु.) गुस्सा, क्रोध।

ऐंचरौ :: (वि.) शीघ्र क्रोध में आने वाला।

ऐंचरौ :: (प्र.) वे तनक-तनक में ऐंचरे आउत।

ऐंचा :: (वि.) देखने में जिसके आंख की पुतली दूसरी ओर खिचे, भेंगा या भेंड़ा।

ऐंचातान :: (सं. स्त्री.) खींचा खाँची, अपनी-अपनी ओर खींचना।

ऐंचातानी :: (सं. स्त्री.) किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिये दो में एक दूसरे के विरूद्ध उद्योग, खींचतान।

ऐंचो :: (सं. पु.) एक प्रकार की हरी बेलें जो जानवरों की कुटी में मिलाई जाती हैं।

ऐंछना :: (क्रि. स.) झाड़ना, साफ करना, कंघी करना।

ऐजक :: (सं. पु.) उलझन।

ऐजारौ :: (सं. पु.) अवांछित एवं अनियंत्रित पेड़ पौधे।

ऐंठ :: (सं. स्त्री.) लपेट, पेच, गर्व, अकड़, उदाहरण-कोई पाग लपेट बाँधे, कोई फेंट ऐंठे।

ऐंठन :: (क्रि. स.) बटना, मरोड़ना, अकड़ना, मरोड़ना, गर्व करना, तेज होना, क्रोध या गर्व में ऊँचे स्वर में बोलना।

ऐंठनी :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के पैर का एक गहना।

ऐंठबौ :: (क्रि.) अकड़ना, सस्सी की भाँज में भाँज मिला कर तिहरी करना, मरोड़, घुमाव, धोखा देकर या भय दिखाकर ले लेना, बल खाना, टर्राना, मरना।

ऐंठा :: (सं. पु.) रस्सी का पेंच, मरोड़।

ऐंठाँद :: (सं. पु.) जीभ को अकड़ा देने वाला स्वाद जैसा कच्चे आँवले का होता है।

ऐंठाँन :: (सं. पु.) वस्तु रखने का निश्चित या उचित स्थान।

ऐंठाबो :: (क्रि. स.) ऐंठने के काम में लगाना।

ऐंठायँदौ :: (वि.) खट्टा, जीभ को अकड़ा देने वाला स्वाद।

ऐंठी :: (सं. स्त्री.) मरोड़ फली, एक फलिया जो आँव की दवा के काम आती है।

ऐंठू :: (वि.) घमण्डी, अकड़बाज।

ऐंड़ :: (सं. पु.) ऐंठ, शान, गर्व।

ऐंड-बेंड :: (वि.) टेढ़ा-तिरछा।

ऐंड़बो :: (क्रि. स.) ऐंठना, अकड़ना, इतराना, सूखकर कड़ा हो जाना, लचीलापन समाप्त हो जाना।

ऐंड़ा :: (वि.) टेढ़ा, तिरछा, ऐंठा हुआ।

ऐंड़ा-बेड़ा :: (वि.) बैढंगे या विकृत आकार वाला, तिरछा, अंड बंड, ऊट पटांग।

ऐंड़ाई :: (सं. स्त्री.) अँगड़ाई।

ऐंड़ामुरी :: (वि.) घमण्ड, अभिमान।

ऐंडू :: (वि.) अक्डू स्वभाव वाला।

ऐड़ौ :: (सं. पु.) बरसात में खाली खेतों में उगने वाला खरपतवार।

ऐंढ़ना-बेढ़ाना :: (क्रि. अ.) अँगड़ाई लेना।

ऐंतवार :: (सं. पु.) इतवार, रविवार।

ऐंतौ :: (सं. पु.) एक बहुत बड़ी मजबूत बेल, इसकी, पतली बेले रैहट की घरियाँ बांधने तथा पत्तियाँ बकरियों को खिलाने के काम आती है।

ऐंदा :: (सं. पु.) भट्टी के ऊपर का भाग, बड़े आकार की गन्ने के पकाने की कड़ाही।

ऐंन :: (क्रि. वि.) अवश्य, अच्छी बात, खूब, उदाहरण-ऐनतो, समझ।

ऐंन :: (प्र.) जा बात तौ उनके ऐन में हो कड़ गई।

ऐनक :: (सं. स्त्री.) उपनेत्र, आँख में लगाने का चश्मा।

ऐनबखत :: (सं. पु.) इसी वक्त, इसी समय।

ऐंनस :: (सं. पु.) दुश्मनी, शत्रुता।

ऐंना :: (सं. पु.) आईना, दर्पण।

ऐंपन :: (सं. पु.) चावलों को पानी के साथ पीस कर बनाया जाने वाला गाढ़ा घोल जो पूजा की अल्पना बनाने के काम आता है।

ऐब :: (सं. पु.) दोष, खोट, बुराई, धब्बा, लांछन, कमी, दुष्कर्म।

ऐबात :: (सं. पु.) सौभाग्य, अहिवात, स्त्री की सधवावस्था।

ऐबाती :: (वि.) सौभाग्यवती, उदाहरण-देत असी व्यास गंगाधर बनी रहो ऐबाती, गंगाधर व्यास।

ऐबी :: (वि.) जिसमें कोई ऐब या दोष हो, विकलांग, कुकर्मी, दुसरों को परेशानी में डालने के काम करने वाला।

ऐबौ :: (क्रि. अ.) आना, आईये।

ऐयासी :: (सं. स्त्री.) विषय, भोग विलास।

ऐरच :: (सं. पु.) झाँसी से ४४ दूर बेतवा नदी के तट पर अवस्थित प्राचीन स्थल जो हिरणाकश्यप की राजधानी कही जाती है।

ऐरन :: (सं. पु.) कान का आभूषण।

ऐरा-गैरा :: (वि.) इधर-उधर का बाहरी नगण्य।

ऐरा-गैरा :: (मुहा.) ऐरा गेरा नत्थू खैरा, साधारण-तुच्छ।

ऐरापत :: (सं. पु.) इन्द्र का हाथी, उत्तम हाथी।

ऐराबौ :: (क्रि.) जमीन को जोतने योग्य बनाने के लिये सींचना।

ऐरावनी :: (सं. स्त्री.) ऐराने की क्रिया।

ऐरावनी :: दे. ऐरबौ।

ऐरें :: (सर्व. अ.) स्वयं की प्रेरणा से अपने आप।

ऐरें :: (प्र.) वे तौ अपने ऐरें लगे रात, चकत रत।

ऐरौ :: (सं. पु.) आवाज, आहट, टोह, उदाहरण-ऐरौ लये परी पलका पै काउ पछीते टेरी, लोकगीत।

ऐरौ-चारौ :: (सं. पु.) बातचीत या पद चालन की आहट।

ऐलयाबौ :: (क्रि.) अधिक तृप्ति प्रकट करने वाला, घमण्ड युक्त व्यवहार करना।

ऐला :: (प्रत्य.) शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय, कमैला, पिटैला, जुटैला, कुटैला, रखैला।

ऐलाट :: (सं. पु.) भोजन या धन से अधिक तृप्त होने के कारण उपेक्षा एवं घमण्ड युक्त व्यवहार करना।

ऐलानों :: (वि.) भरपूर साधन होने के कारण घमण्डी।

ऐले :: (सर्व.) इधर के।

ऐलेपार :: (सं. पु.) उस पार, नदी को उस तरफ।

ऐसँई ऐसैं :: (क्रि. वि.) इसी तरह, ऐसई-ऐसे ही।

ऐसान :: (सं. पु.) अहसान, आभार, कृतज्ञता।

ऐसी :: (वि.) इस प्रकार की, स तरह की, उदाहरण-सी मिजाजिन दाई लाला को नरा न छीने लोकगीत।

ऐसी :: (मुहा.) ऐसी होती कातन हारी, तौ काए खौ फिरती आँग उधारी-आलसी व्यक्ति को दुख मिलता है।

ऐसें :: (सर्व.) इस प्रकार, इस ढंग, उदाहरण-ऐसे एसें एक राजा हते, उदाहरण-ऐसई खेलत हँसत बोलतन केतनउ दिना बितानै, द्वारिकेश।

ऐसौ :: (वि.) इस तरह का, ऐसौ-वेसो, साधारणतुच्छ, किसी की ऐसी-तेसी, गाली, ऐसी तैसी में जाय-भाड़ में जाय, खींज या उपेक्षा के अर्थ में, उदाहरण-एसौ खाली रचो बैठका कंचन कलश धराई, फाग।

ऐहिक :: (वि.) इस स्थान का, इस संसार का, लौकिक, सांसिक, स्थानिक।

 :: हिन्दी वर्णमाला दे.ना.लि. का नवम् स्वर वर्ण, सम्बो, आकर्ण करने के लिये सम्बोधन सहायक प्र. ओ भइया, सर्व. उस।

ओं :: (सं. पु.) परमब्रह्म का वाचक शब्द, प्रणाव मंत्र।

ओक :: (सं. स्त्री.) किवाड़ो-पटियों, पर्दो आदि के बीच झिरी जिसमें से झाँका जा सके, हाथ से पानी पीने के लिए बनाया दोंनों हाथों की चुल्लू।

ओंक :: (सं. पु.) अघाव, तुप्ति।

ओकना :: (क्रि. अनु.) औ ओ करते हुए कै या वमन करना, भैंस आदि की तरह चिल्लाना।

ओकबौ :: (क्रि.) वमन करना, उल्टी करना, कै करना।

ओंकबौ :: (क्रि.) भोजन को तृप्ति के बाद खाने से या लगातार एक सा भोजन कते रहने से अरूचि या वितृष्णा होना।

ओंकबौ :: दे. ऐंकबो।

ओकाई :: (सं. स्त्री.) ओकने या ओकाने की क्रिया भाव, कै करने को जी चाहना, जी मिचलाना, मितली होना, कै, वमन।

ओकार :: (सं. पु.) (ओ) स्वर वर्ण या उसकी ध्वनि, ओ की सूचक मात्रा। ओकारान्त, ओकारंत।

ओकार :: (वि.) जिस के अन्त में ओ हो।

ओंकार :: (सं. पु.) परमात्मा सूचक शब्द ओंउम।

ओके :: (सर्व.) उसके, ओमें-उसमें, ओसें-उससे।

ओखद :: (सं. स्त्री.) औषधि, दवा।

ओखरी :: (सं. स्त्री.) दे. उखरी।

ओखल :: (सं. स्त्री.) ऊखलस।

ओखल :: (पु.) परती भूमि।

ओखली :: (सं. स्त्री.) दे. ऊखल।

ओखौ :: (सं. पु.) बुरा, खराब।

ओंगन :: (सं. पु.) गाड़ी की धुरी में दिया जाने वाला तेल।

ओगना :: (सं. पु.) ओगन रखने का पात्र।

ओंगना :: (स.) गाड़ी की घुरी में तेल देना, लकड़ी का एक चौखटा बर्तन, गेहूँ के अंदर मिले चना या बटरा के दाने।

ओगरबो :: (अ. क्रि.) वस्त्रहीन होना, खुलना, खुदाई होना, (कुँआ आदि)।

ओगारना :: (क्रि. स.) टपकाना, जल या कोई तरल वस्तु उलीचकर बाहर, निकालना या फेंकना।

ओगारबो :: (सं. क्रि.) खोलना कुँए को साफ करने के लिये गंदा पानी बाहर निकालना।

ओंछबो :: (स. क्रि.) ऊँछना, कंघी करना।

ओछा :: (वि.) तुच्छ, हीन जिसमें गंभीरता या प्रौढ़ता न हो, जिसमें छिछलापन हो, जैसे-ओछा व्यक्ति, ओछी बातचीत।

ओछाई :: (सं. स्त्री.) ओछापन।

ओछापन :: (सं. पु.) ओछे होने की अवस्था या भाव।

ओछो :: (वि.) गंभीरता रहित, छिछोरा, क्षुद्र, खोटा, नाप से कम।

ओछौ :: (वि.) आवश्यक से कम माप का संकीर्ण, संकीर्ण विचारों वाली।

ओंजनै :: (सं. क्रि.) सम्हालना।

ओंजबो :: (क्रि. अ.) उड़ेलना।

ओझल :: (सं. पु.) ओट, छिपाव, आड़, कूड़ा करकट, उलझन, कठिनता।

ओझल :: (वि.) पेचीदा, कठिन।

ओझल :: (वि.) पेचीदा, कठिन।

ओझा :: (सं. पु.) मानत्रिक, भूतप्रेत झाड़ने वाला, जादूटोना करने वाला, सरयूपारीय मैथिली, गुजराती, आदि ब्राह्मणों की एक जाति या वर्ग।

ओझाई :: (सं. स्त्री.) ओझा का काम, पद या वृत्ति, भूत प्रेत आदि झाड़ने का काम आवृत्ति।

ओट :: (सं. स्त्री.) बाड़, छिपाव, पक्ष, तरफदारी।

ओंट :: (सं. पु.) ओष्ठ, होंठ।

ओट करना :: (क्रि. स.) छिपाना, पक्ष करना।

ओट पाय :: (सं. पु.) औटपाव।

ओट होना :: (क्रि. अ.) छिपना।

ओट-पाई :: (सं. स्त्री.) औटपाव।

ओटना :: (क्रि. स.) चरखी के द्वारा रूई से बिनौआ निकालना, अपनी बात कहना, अपना ही काम करना।

ओटनी, ओटी :: (सं. स्त्री.) कपास ओटने की चरखी, रूई से बिनौआ अलग करने का यंत्र।

ओंटबो :: (सं. क्रि.) कपास के बिनौले को अलग करना, पकाना, उदाहरण-विधि से विधि ताकों दयो सब सुहाग को कंचन तन धन संत जन ओटति बिना उपाय, राज।

ओंटबौ :: (क्रि.) खौलना, उबालना।

ओटी :: (सं. स्त्री.) ओटनी (चरखी)।

ओंटी :: (सं. पु.) गुड़ मिलाकर ओंटकर पकाया दूध।

ओठ :: (सं. पु.) ओंठ।

ओंठ :: (सं. पु.) होंठ, ओंठ।

ओंठ :: (कहा.) ओंठ चटबो - औठों पर जीभ फेरना, स्वाद की लालसा रह जाना ; ओंठ पपरयाबो - ओंठो पर की चमड़ी का सूख जाना।

ओड़ :: (सं. पु.) ओड़ छोड़ में= आदि अन्त में प्रयुक्त।

ओड़न :: (सं. पु.) गधों, बैलों आदि पर माल ढोने का काम या व्यवसाय, इस प्रकार ढोकर पहुंचाना जानेवाला माल या सामान।

ओड़ना :: (सं. पु.) आद्यात या प्रहार रोकने या सहने के लिये बीच में कोई आड़ या ओट खड़ी करना या कोई चीज आगे बढ़ाना।

ओड़नी :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों का लहंगा के साथ ओढ़ने वाला वस्त्र, चुनरिया।

ओड़बो :: (स. क्रि.) ऊपर लेना, हाथ पसारना किसी कपड़े खाल आदि से बदन ढकना।

ओड़बौ :: (क्रि.) शरीर को चादर आदि से ढंकना।

ओड़ाबो :: (स. क्रि.) किसी के ऊपर वस्त्र डालना या रखना, ढांकना।

ओड़ो :: (सं. पु.) गड्ढा सेंध।

ओंड़ो :: (वि.) गहरा।

ओंड़ो :: (पु.) गड्ढा, सेंध, बड़ा छेद जिसमें से व्यक्ति निकल सके।

ओढ़ :: (वि.) जो पास लाया गया हो।

ओढ़न :: ओढ़ने की चादर, ओढ़ना।

ओढ़ना :: (क्रि. स.) पहिनना, अपने ऊपर लेना, अंक या अंगों को अच्छी तरह से ढकने के लिये शरीर पर कोई वस्त्र रखना या लपेटना।

ओढ़नी :: (सं. पु.) स्त्रियों के ओढ़ने का कपड़ा।

ओढ़र :: बहाना।

ओढ़वाना :: (स.) ओढ़ाने का काम किसी से कराना।

ओढ़ाना :: (स.) किसी के ऊपर वस्र डालना या रखना, किसी के चारों ओर वस्त्र आदि लपेटना, ढाँकना।

ओत :: (सं. स्त्री.) कार्य के बीच लिया जाने वाला विश्राम।

ओतबोत :: कार्तिक शुक्ल एकादशी को काँस को जलाकर शरीर के चारों तरफ फेरने की प्रथा।

ओद :: (सं. पु.) कमरे की दो दीवारों के बीच की दूरी।

ओद-बोद :: (सं. स्त्री.) देवोत्थानी एकादशी को किसान लोग काँस के पूले के एक सिरे पर आग लगा कर उसे अपने चारों ओर घुमाकर पैरों के नीचे से निकाल कर खेलते हैं, यही खेल ओद बोद है।

ओंदक नीचो :: (वि.) असमतल, ऊँची-नीचा।

ओदकनीचो :: (सं. पु.) नीचा ऊँचा।

ओदन :: (सं. पु.) पका हुआ भात।

ओंदनी :: (सं. स्त्री.) यह लकड़ी या लोहे का बना कपड़ा बुनने के काम में आने वाला एक यंत्र।

ओंदबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु पर झुककर देखना, झुकना, घटाओ का उमड़ना, मुंह के बल होना।

ओदरना :: (क्रि. अ.) फट जाना, पपड़ी उचलजाना, विकीर्ण होना।

ओंदा :: (सं. पु.) खपरैल पर उल्टे छाये जाने वाले खपड़े।

ओदारना :: (क्रि. स.) फाड़देना, पपड़ी उखाड़देना, विदीर्म करना।

ओंदी :: (सं. स्त्री.) एक कंटीली बेल जो पुराने किलों और चूने के भवनों पर उगती है।

ओंदौ :: (वि.) उल्टा मुँह को बल।

ओनामासी :: (सं. स्त्री.) (ॐ नमः सिद्धम्) अक्षर आरंभ, शरू।

ओने :: (सर्व.) उसने।

ओंनों :: (सं. पु.) कुठिया में से अनाज निकालने का छेद।

ओन्हें :: (सर्व.) उसने।

ओप :: (सं. स्त्री.) पतिपत्नि का शयनागार।

ओमदा :: (वि.) उमदा, अच्छा, बढ़िया, उत्तम।

ओमें :: (सर्व.) उसमें।

ओय :: (नि.) हाँ पुकारे जाने पर आकर्ण होने की स्वीकृति का निपात, जानवरों को पानी पिलाते समय दुहरा-दुहरा कर कहा जाने वाला शब्द।

ओय :: (अ.) दुःख का आश्चर्य सूचक शब्द।

ओयहोय :: (अ.) हर्ष या आश्चर्य सूचक शब्द।

ओर :: (सं. पु.) प्ररम्भ, पहला सिरा, पूर्वकाल।

ओरतप्रोत :: (वि.) लंबाई चौड़ाई में बुना हुआ, बहुत मिला हुआ।

ओरन-खोरन :: (सं. पु.) गली और कूचा, गली-गली, उदाहरण-ओरन खोरन फि रे जगतारन, ( माता का भजन)।

ओरबो :: पीसने के लिये चक्की में अनाज डालना।

ओरमा :: (सं. पु.) इकहरी सिलाई।

ओरहना :: (सं. पु.) उलाहना, शिकायता।

ओरा :: (सं. पु.) ओला बर्फ का गोला जो जाड़े की वर्षा में कभी-कभी गिरता है, उपल, उदाहरण-खेतन काए गिरा रए ओरा भूँजत छाती होरा।

ओंरा :: (सं. पु.) दे. आँवला (फल, अमरा)।

ओराधार :: (सं. स्त्री.) लगातार तेज धार। (वर्षा)।

ओंरिया :: (सं. पु.) मट्ठे के बजाय सूखे आँवले के चूर्ण से बनाई गयी कढ़ी।

ओरी :: (संबो.) किन्ही-किन्ही लोगों में माँ और सास सम्बोधन।

ओरे :: (संबो.) किन्ही-किन्ही लोगों में पिता का सम्बोधन।

ओरे :: (सं. पु.) उपल, ओले, आसमान से बरसने वाले वर्फ के गोल टुकड़े।

ओरो :: (सं. पु.) वर्फ का गोला जो जाड़े की वर्षा में कभी-कभी गिरता है, ओला, वर्फ।

ओरो :: (वि.) बहुत ठंडा।

ओलम :: (सं. पु.) वर्णमाला।

ओलम सें :: (अ.) प्रारम्भ से।

ओली :: (सं. स्त्री.) गोदी।

ओली :: (मुहा.) ओली-लैबो-किसी का पुत्र दत्तक बनाने के लिये दूसरे को देना।

ओली आबो :: (सं. स्त्री.) स्त्री के प्रथम बच्चे के जन्म के पश्चात् उसके मायके के सामान आने की प्रथा।

ओलौ जोलौ :: (सं. पु.) कठिनाई से तथा कभी-कभी होने वाली पूर्ति।

ओस :: (सं. स्त्री.) ओस बिन्दु, हिम कण, ओस परबो।

ओसरा :: (सं. पु.) बारी, पाली दाव।

ओसरिया :: (सं. स्त्री.) जवान भैंस।

ओसरी :: (सं. स्त्री.) अवसर, बारी, यथा क्रम, अवसर पारी।

ओसार :: (सं. पु.) फैलाव, बड़ा स्थान, दालान।

ओसारा :: (सं. पु.) दालान, बरामदा।

ओसारी :: छोटी दालान।

ओह :: (अ.) आश्चर्य, दुःख आदि का सूचक।

ओहदा :: (सं. पु.) पद।

ओहदेदार :: (सं. पु.) पदाधिकारी।

ओहार :: (सं. पु.) परदा, रथ या पालकी का परदा।

ओहो :: (अ.) हर्ष, आश्चर्य या आनन्द का सूचक।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का दशम् स्वर वर्ण, इसका उच्चारण स्थान ओण्ठ्य है।

औआ-बौआ :: (वि.) बे सिर-पैर का, अंड-बंड।

औक दोदसी :: (सं. पु.) भाद्रपद शुक्ल द्वादशी, जिस दिन गाय के बछड़े की पूजा होती है।

औकन :: (सं. स्त्री.) राशि, समुदाय, ढेर।

औकात :: (सं. पु.) हिम्मत, हैसियत।

औखद :: (सं. स्त्री.) औषद, दवा, जड़ीबूटी।

औखदी :: (सं. स्त्री.) औषद वनस्पति, जड़ी-बूटी।

औगड़ :: (वि.) सदामस्त और प्रसन्न रहने वाला, उदार आत्मलीन।

औगड़दानी :: (सं. पु.) भगवान शंकर आत्मलीन, सदा प्रसन्न आशुतोष, कुछ भी दान करने की क्षमता रखने वाले।

औगड़बाबा :: (सं. पु.) भगवान शंकर आत्मलीन, सदा प्रसन्न आशुतोष, कुछ भी दान करने की क्षमता रखने वाले।

औगन :: (सं. पु.) दोष, ऐब, बुराई, उदाहरण-पापिन कों, सुरलोक दियौं गुन औगुन ना हिय माँय विचारौ।

औंगन-औंगन :: (सं. पु.) गाड़ी की धुरी में दिया जाने वाला तेल।

औगनी :: (वि.) दोषी, अवगुणी, बुरा।

औगरया :: (वि.) समान्य क्रम से हट कर काम करने वाला, अनपेक्षित कार्य करने वाला।

औंगा :: (वि.) गूँगा, चुप्पा, मौन।

औगाबो :: (क्रि.) अवगाहना, ऊँघना।

औंगी :: (सं. स्त्री.) गूंगापन-चुप्पी।

औंगी :: (स्त्री.) जंगली जानवर फँसाने के लिये जमीन में खोदा जाने वाला गड्ढा, हँसिया जिससे घास काटी जाती है।

औगुन :: (सं. पु.) अवगुण।

औघट :: (वि.) असामान्य ( घाट ) जो ( घाट ) चलता न हो, खराब ( घाट )।

औघाई :: (सं. स्त्री.) ऊँघाई, झपकी, नींद।

औंघाई :: (सं. स्त्री.) झपकी, निद्रा।

औचक :: (क्रि. वि.) अकस्मात्, अचानक सहसा।

औज :: (सं. स्त्री.) समझ, विचार।

औज :: (कहा.) औज बड़ी कै फौज।

औंजना :: (क्रि. स.) अकुलाना, ऊब जाना, उलटना, उलेड़ना, ढालना।

औजनौ :: (क्रि.) सम्हालना, सुरक्षा करना, लेना।

औजपा :: (सं. पु.) विचित्र या चमत्कार युक्त वस्तु।

औजबो :: (क्रि.) सूझना, मस्तिष्क में विचार आना।

औजबो :: दे. उमजबौ।

औंजबो :: (क्रि.) उड़ेलना, गाँड़ी की धुरी में तेल लगाना।

औजयाबौ :: (क्रि.) प्रेरित करना, किसी विशेष दिशा में प्रेरित करना।

औजार :: (सं. पु.) किसी कार्य करने के यान्त्रिक साधन।

औझड़ :: (सं. पु.) धक्का, खोंच।

औंटत :: (सं. पु.) औढ़ने की क्रिया या भाव।

औंटन :: (स. क्रि.) कपास से बिनोले अलग करना औंटना, उबालना, खौलना।

औटना :: (क्रि. अ.) उबलना, खोलना।

औटनी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की कलछी जिससे उबलता हुआ तरल पर्दा चलाया या हिलाया जाता है।

औटपाई :: (सं. पु.) धूर्तता, शरारत, उपद्रव, उपाय।

औटपाय :: (सं. पु.) नटखटी, पाजीपन, शरारत।

औटबो :: (सं. क्रि.) दूध रस आदि को आँच देकर गाढ़ा करना, देर तक उबालना खौलाना, कपास से विनौले अलग अलग औटना।

औटबो :: (स. क्रि.) औटना, आँच देकर गाढ़ा करना, खोलाना।

औंटा :: (सं. पु.) दरवाजे के बाहर बना छोटा चबूतरा छोटी वस्तु रखने के लिये दीवाल में बनाया गया छोटा सा समतल उभार।

औटाना :: (स.) किसी तरल पदार्थ को इस प्रकार गरम करना कि वह उबल या खौलकर गाढ़ा होने लगे।

औटी :: (सं. स्त्री.) वह पुष्टई जो गाय को ब्याने पर दी जाती है। औटाकर पकाया हुआ किसी चीज का रस।

औंठ :: (सं. स्त्री.) परती पड़ा हुआ किनारा, छोर, परती पड़ा हुआ खेत।

औंठ :: दे. आँवठ।

औंड़ :: (सं. पु.) बेलदार, फावड़े से काम करने वाला मजदूर।

औंड़ :: (वि.) गहरा, अथाह।

औढ़नी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की कलछी जिससे उबलता हुआ तरल पदार्थ चलाया या हिलाया जाता है।

औढ़र :: (वि.) स्वच्छन्द, मनमौजी, विचित्र, बिना विचारे काम करना।

औतार :: (सं. पु.) अवतार, किसी आत्मा की शरीर धारण करने की क्रिया।

औतारी :: (वि.) विशेष व्यक्तित्व वाला, चमत्कारी व्यक्तित्व वाला, विचित्र किन्तु रचनात्मक कार्य करने वाला।

औथरा :: (वि.) छिछला, उथला, कम गहरा।

औथारना :: (स.) इधर उधर हिलाना डुलाना जैसे चँवर औधारना।

औथारना :: (स.) अबधारना।

औदक :: (वि.) उदक या जल से सम्बन्ध रखने वाला, जलीय।

औदक नैचो :: (सं. पु.) नीचा ऊँचा जो समतल न हो।

औदकना :: (क्रि. अ.) चौकना।

औंदबो :: (अ. क्रि.) उलट देना, नीचा या उलटा करना।

औंदबो :: (स. क्रि.) उलट जाना ओंधा होना।

औंदाना :: (क्रि. स.) चिंतित और व्याकुल करना।

औंदाना :: (अ.) औंदना।

औंदो :: (वि.) अधोमुख, जिसका मुँह नीचे की ओर हो उल्टा।

औंधा :: (वि.) जिसका मुँह या सिर नीचे की ओर हो गया हो।

औधान :: (सं. पु.) धारण करना, धारण किया हुआ गर्भ उदाहरण-जस औधान पूर होई तासू, दिन दिन हिएँ होई पर गासू, जायसी।

औंधाना :: (क्रि. स.) उलट देना, नीचे को मुँह कर देना।

औंधी :: (वि. स्त्री.) उलटी, नीचे का मुँह किये हुए, इसका पुल्लिंग हैं औंधा।

औधूत :: (सं. पु.) अवधूत।

औना-पौना :: (वि.) तीन चौथाई या उससे भी कुछ कम आधा-तिहाई।

औनि :: (सं. स्त्री.) अवनि, पृथ्वी, धरती।

औने-पौने :: (क्रि. वि.) कुछ कम दामों पर, घाटा उठाकर।

औने-पौने :: (मुहा.) औने-पौन करबो-घाटा उठाकर बेचना।

और :: (वि.) अन्य, दुसरा, कोई और कोई अधिक विशेष।

औरआबो :: (क्रि. अ.) विचार उत्पन्न होना कुछ सूझना।

औरओ :: (क्रि.) दुसरा, भिन्नता का भाव।

औरत :: (सं. स्त्री.) स्त्री, नारी।

औरबो :: (क्रि. स.) विचार या समझ में आना।

औरव :: (वि.) दूसरा कोई, इसके स्थआन पर दुसरा बदल कर।

औरस :: (सं. पु.) निजसन्तान, अपना पैदा किया हुआ पुत्र या पुत्री।

औरसा :: (सं. पु.) चंदन घिसने का पत्थर, रोटी बेलने का पाटा, चकला, उलसा।

औंरा :: (सं. पु.) आँवला।

औरेब :: (सं. पु.) तिरछापन, टेढ़ापन, कपड़े की तिरछी काट।

औल :: (सं. पु.) कुँए की बँधान की ईंटे खिसकने से कुँए की दीवार में बना गड्ढा।

औलट :: (वि.) ओझल द्दष्टि से परे, दुर।

औलना :: (अ.) तृप्त होना, जलना।

औला :: (प्र.) एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अन्त में लगकर उनके आरम्भिक या छोटे रूप का वाचक होता है।

औला-दौला :: (वि.) जिसे किसी बात की चिन्ता या ध्यान न हो, लापरवाह।

औलाद :: (सं. स्त्री.) संतान, बेटा, बेटी, वंशज।

औलि :: (सं. स्त्री.) वह अन्न जा नई फसल में से पहली बार काटा गया हो।

औलिया :: (सं. पु.) मुसलमानी धर्म के अनुसार बहुत बड़े भक्त या पहुँचे हुए फकीर।

औलेई :: (सं. स्त्री.) चाटने योग्य औषधि अवलेह औषधि।

औवल :: (वि.) पहला मुख्या, सर्वश्रेष्ठ, उत्त्तम।

औसत :: (स.) बराबर के हिसाब का परता।

औंसना :: (क्रि. अ.) उमस होना।

औसर :: (सं. पु.) अवसर।

औसरकाज :: (सं. पु.) विशेष अवसरों के लिए सामान्य शब्द।

औसान :: (सं. पु.) परिणाम अन्त, समाप्ति, इसका शुद्ध रूप है अवसान।

औसान :: (सं. पु.) चेतना, बोध, सुध-बुध।

औसाँन :: (सं. पु.) हिम्मत, अवसान।

औसाँन बीबी :: (सं. स्त्री.) कोई लोक देवी, कुछ स्त्रियाँ इनकी पूजा करती है। (स्त्री.श.)।

औंहर :: (सं. स्त्री.) बाधा, रूकावट।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का प्रथम व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान कण्ठ्य है, हीन अर्थद्योतक उपसर्ग-कपूत।

 :: (सं. पु.) ब्रहमा, विष्णु, सूर्य, कामदेव, किरण, रूद्र, मन, काल, शरीर, धन प्रकाश, शब्द आदि।

क करावाली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की पुंगरिया, नाक में पहनने का आभूषण।

कइओ :: (क्रि.) कहना।

कइया :: (सं. पु.) रांगे का टाँका लगाने का एक औजार।

कइयाँ :: (सं. स्त्री.) गोद।

कँइया :: (सं. पु.) गोद उदाहरण-जसोदा जू कँइया लये ब्रज राज।

कइलौ :: (सं. पु.) रोटी सेंकने के लिऐ मिट्टी का तबा।

कई :: (सं. स्त्री.) गोल दानों की फली वाली एक बेल जो गेंहू का साथ नींदा के रूप में पैदा हो जाती है, कोई पानी के निरन्तर सम्पर्क के कारण उगने वाली एक प्रकार की वनस्पति, कही हुई बात, कथन, परामर्श, सलाह।

कई-कई :: (वि.) अनेक।

कई-कई :: (क्रि.) कहबो-व्यर्थ चिल्लाना।

कईइक :: (वि.) कई, अनेक, एकाधिक, कुछ चंद उदाहरण-इन फागन पै फाग न आवै कई इक करो अनोई।

कईरा :: (सं. पु.) एक जंगली बेल, जिसका फल घर में टांगने से सांप नहीं आता।

कउँ :: (सर्व.) कहीं, दूसरी जगह।

कउँ :: (कहा.) कऊँ की ईट कऊँ कौ रोरा, भानमती ने कुनबा जोरा - इधर-उधर की वस्तु इकट्ठी करके कोई चीज तैयार करना।

कउआ :: (सं. पु.) कौआ।

कउर :: (सं. पु.) सिंचाई करने का एक प्रकार का यंत्र।

कओ :: (सं. पु.) सलाह, आदेश, कहना, कथन।

कंक :: (सं. पु.) सफेद रंग की चील, बगुला।

ककइया :: (सं. पु.) चाचा, कंघी, उदाहरण-नैनन कजरा दओ जब से नेंक न ककई घाली।

ककई :: (सं. स्त्री.) कंघी, ककही।

कंकट :: (सं. पु.) कवच, अंकुश, सीमा, हद।

ककड़ारी :: (सं. स्त्री.) काँखरी में होने वाला फोड़ा।

कंकड़ीला :: (वि.) जिसमें कंकड़ पड़े या बिछे हुए हों, कंकड़ों से भरा स्थान।

ककना :: (सं. पु.) कलाई में पहनने का एक आभूषण, कंकन, उदाहरण-जो मोरे ललना कौ पालना झुलावै, उये पैराउ ककना (कार्तिक गीता)।

ककनी :: (सं. स्त्री.) दाँतेदार गरारी पृथक से उठी हुई कोई दाँतेदार पंक्ति।

ककयावते :: (सं. स्त्री.) चचेरा, चाचा का लड़का।

कंकर :: (सं. पु.) पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े, जो छतें, सड़कें आदि बनाने के काम आते है।

ककरयाबो :: (क्रि.) कंकड की तरह कड़ा हो जाना।

ककरा :: (सं. पु.) पत्थर का छोटा टुकड़ा, रेत का कण, उदाहरण-ऐसा ककरा मारियो जी मैं घर के ना जग पायं. लोकगीत।

ककरा :: (कहा.) ककरा से गाड़ी अटक - गई-नाम मात्र की बाधा से कार्य की प्रगति रूक गयी।

ककरा पथरा :: (सं. पु.) कूड़ा करकट, रद्दी चीजें।

ककराली :: (सं. स्त्री.) बगल का फोड़ा।

ककरिजिया :: (सं. स्त्री.) कांकरेजी, बैंगनी रंग की धोती।

ककरी :: (सं. स्त्री.) ककड़ी, एक प्रकार की जटकारी, जिसे कच्चा काट कर खाते है।

कंकरी :: (सं. स्त्री.) कंकड़, छोटे पत्थर।

ककरीलौ :: (वि.) कंकड़ मिला हुआ, जिसमें कंकड़ अधिक हो, कंकड़ीला।

ककरूंकू :: (सं. पु.) मुरगों के बोलने का शब्द।

ककरेजी :: (सं. स्त्री.) बैंगनी रंग।

कंकरेत :: (वि.) दे. कंकड़ीला।

ककरौंदा :: (सं. पु.) छोटा औषधि का पौधा विशेष।

ककवा :: (सं. पु.) कंघा, एक प्रकार की लकड़ी की कंघी, बुनाई के समय के सूत को धांसने वाला एक उपकरण, कक्का, कक्कू।

ककवा :: (पु.) चाचा, काका।

ककहरा :: (सं. पु.) क से ह तक वर्णमाला।

ककही :: (सं. स्त्री.) कंघी. एक प्रकार की कपास।

कका :: (सं. पु.) काका।

कंकाजू :: (सं. पु.) संबो. काका का संबोधन।

कंकाल :: (सं. पु.) सारे शरीर की हड्डियों का ढाँचा, ठठरी।

ककिया :: (सं. पु.) सास-ससुर, चचेरे।

ककुनेठ :: (सं. पु.) काकुन के सूखे पौधे।

ककुरे :: (वि.) सिकुड़े, मुरझाये।

कँकेर :: (सं. पु.) एक प्रकार का पान जिसमें कुछ कडुवापन होता है।

कंकेरो :: (सं. पु.) कंघी बनाने वाला।

ककोरबो :: (क्रि.) खरोंचना, सिकोड़ना।

ककोरा :: (सं. पु.) जंगली फल जिनक ऊपर भाग हरा और कंटीला सा होता है, शाक बनाने के काम आता है पड़ोरा उदाहरण-जी के मारे सिकुर-सिकुर हो हो जात ककोरा-मित्र।

ककौरया :: (सं. स्त्री.) ईंट या पत्थर का छोटा टुकड़ा।

ककौरिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी के बर्तन या खपड़ा।

ककौरी :: (सं. स्त्री.) कुरोरू अन्हौरी, अन्हौरी गर्मी के कारण त्वचा पर उठने वाले दाने, कांखरी, में उठने वाले फोड़े।

कँखना :: (क्रि. स.) किसी बात की इच्छा या कामना होना, काँखना।

कँखबाई :: (सं. स्त्री.) कँखारी, काँख का फोड़ा, काँख।

कखयावो :: (अ. क्रि.) बगल में दबाना, कांख में दबाना, उदाहरण-दो मटका धरे मूड़ पै एक कांख कखयाएं, लोकगीत।

कखरी :: (सं. पु.) काँख, बगल।

कखरी :: (कहा.) कखरी लरका गाँव गुहार - घर में वस्तु रखी रहने पर भी बाहर तलाश करना।

कँखवारी :: (सं. स्त्री.) कंखौरी।

कखौरी :: (सं. स्त्री.) काँख का फोड़ा।

कगदीगर :: (सं. पु.) कुटीर उद्योग में कागज बनाने वाला।

कंगन :: (सं. पु.) विवाह के पहले वर कन्या के हाथ में बाँधा जाने वाला धागा, विवाह सूत्र, कलाई में पहनने का एक आभूषण, कंगन, उदाहरण-जबई हम छोरे कंगन लाड़ले, लेलें मन चाव नेंग, मोरे लाल।

कगर :: (सं. पु.) किनारा, नदी या किसी उँचे स्थान का किनारा।

कंगला :: (सं. पु.) कंकाल, भिखारी, भिक्षुक, निर्धन।

कंगा :: (सं. स्त्री.) कंघा, कंघी।

कगारा :: (सं. स्त्री.) उँचा किनारा, करारा टीला।

कंगाली :: (वि.) निर्धनता, गरीबी।

कंगी :: (सं. स्त्री.) छोटा कंघा, बाल झाड़ने की कंघी।

कंगीर :: (सं. पु.) गरीब, भिखारी, भुकमरा।

कंगुरिया :: (सं. स्त्री.) कानी उंगली।

कंगूरा :: (सं. पु.) चोटी, शिखर, पुरानी इमारत की चहार दीवारों में बने हुए छोटे-छोटे बुर्ज, जिसमें खड़े होकर सिपाही आक्रमण कारियों से लड़ते हैं।

कंगूरेदार :: (वि.) जिसमें कंगूरे या शिखर बने हों।

कंघनी :: (सं. स्त्री.) करधनी, कमर में पहनने का स्त्रियों का आभूषण।

कंघा :: (सं. पु.) बड़ी कंघी, जुलाहों का एक यंत्र जिससे वे तागों को कसते हैं।

कंघी :: (सं. स्त्री.) सींग आदि का बना हुआ लंबे दांतों वाला एक उपकरण जिससे सिर के बाल झाड़े तथा संवारे जाते है।

कघेरा :: (सं. पु.) कंघा बनाने वाला।

कंघेरा :: (सं. पु.) वह व्यक्ति जो कंघी बनाता हो, कंघी बनाने वाला कारीगर।

कंचई :: (वि.) हल्का नीला, निर्मल, स्वच्छ।

कचक :: (सं. स्त्री.) कुचल जाने की चोट, दब जाने से गड्ढ़ा पड़ जाना।

कचकच :: (सं. स्त्री.) बकवाद, झगड़, बकझक।

कचकचाना :: (क्रि. अ.) दांत पीसना, खूब जोर लगाना।

कचकोयलो :: (वि.) बादलों के छा जाने से होने वाला अंधकार।

कचण्टा :: (सं. पु.) कांच की गोली।

कंचन :: (सं. पु.) कांचन, सोना, धन, दौलत।

कचनार :: (सं. पु.) एक पेड़ जिसमें सुन्दर फूल लगते हैं।

कंचनी :: (सं. स्त्री.) कंचन जाति की जो प्रायः वेश्वृयाति करती है।

कचपच :: (सं. पु.) गिचपिच, भीड़भाड़, गुत्थमगुत्था।

कचपची :: (सं. स्त्री.) नक्षत्र चमकीले बुन्दे, स्त्रियों के माथे में लगाने की चमकीली टिकुली।

कचपेंदिया :: (वि.) बात का कच्चा, कच्ची पेदी का अस्थिर विचार का, ऊँटपटांग बोलने वाला।

कचयांध :: (सं. स्त्री.) कच्चेपन की महक, गन्ध।

कचयाबौ :: (क्रि.) हिम्मत हारना।

कचर-कचर :: (सं. पु.) कच्चे फल के खाने का शब्द, बकवाद।

कचरबो :: (क्रि.) बार बार आघात करके कुचलना, विशेषकर दाँतो से कुचलता।

कचरा :: (सं. पु.) कूड़ा करकट।

कचरिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कड़वा फल, ककड़ी की जाति की एक लता।

कंचरिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कचनार।

कंचरिया :: (वि.) कंचनिया-सोने से बना हुआ।

कचरी :: (सं. स्त्री.) कंचरी के फल, कचरिया।

कचरेंटुआ :: (सं. पु.) बिल्कुल कच्चे फल, कटाई के फल, भटाकरारी के फल।

कंचा :: (सं. स्त्री.) कांच की गोली।

कचाई :: (सं. स्त्री.) कच्चापन, अजीर्ण।

कचांद :: (सं. स्त्री.) किसी भुनी हुई वस्तु में कच्चेपन का स्वाद।

कचार :: (सं. स्त्री.) कच्चीपन, नदी के किनारे का छिछला पानी।

कचारना :: (क्रि. स.) कपड़ा धोना।

कचारा :: (सं. पु.) कांच की काली चूड़ी।

कचारो :: (सं. पु.) एक प्रकार का कटोरा-उदाहरण-पांच पान का बीरा लगाये, घबराबे कचारन मांझ।

कचालू :: (सं. पु.) एक प्रकार की अरूई. बंड़ा, मसाला डालकर बनाये हुये आलू, एक प्रकार की चाट।

कचिया :: (वि.) तेल जो निकाल कर गरम नहीं किया जाता विशेषण।

कचियाना :: (क्रि. अ.) हिचकना, हतोत्साह होना।

कचुल्ला :: (सं. पु.) कलात्मक ढ़ग से बना हुआ काँसे का कटोरा।

कचूमर :: (सं. पु.) कुचलकर बनाया हुआ अचार, कुचली हुई वस्तु, उदाहरण-कचूमर निकालना-खूब पीटना, कूटना, कुचलना।

कचूर :: (सं. पु.) सुगन्धित कन्द विशेष, हल्दी की जाति का एक पौधा जो दवा के काम आता है।

कचेरौ :: (सं. पु.) कांच की चूडियाँ बनाने वाला या बेचने वाला, कचेरा।

कचेला :: (वि.) कच्चे फल, बिना पके मिट्टी के वर्तन तथा ईंटें।

कचेलोंदा :: (सं. पु.) लोई, कच्चे आटे का लौंदा, साने हुए आटे की लोई।

कचेहरी :: (सं. स्त्री.) सभा, न्यायालय, दरबार, राजसभा।

कचैरी :: (सं. स्त्री.) कचहरी हवेलियाँ या बड़े मकानों में बाहरी बैठक का कमरा।

कचोड़ी :: (सं. स्त्री.) उडद की पीठीं में मसाला भरकर और मैदा या आटे की लोई के भीतर रखकर बनाई गई पूड़ी।

कचौनिया :: (सं. स्त्री.) कांच के गुरिये।

कच्च :: (सं. पु.) कटने की आवाज, धवन्यात्मक शब्द।

कच्चौ :: (वि.) अधपका, जिसके पकने में कसर हो, हरा कच्चा।

कच्चौ :: (स्त्री.) कच्ची।

कच्चौ :: (मुहा.) कच्ची करना-सिलाई के पहले कपड़े में हाथ से टांके लगाना, कच्ची खावौ-हिम्मत हारना, कच्ची गैल चलबौ-कच्चा काम करना, कच्ची गोली खेलबो-असफल काम करना, कच्ची छाती कौ-कमजोर दिल का, कच्ची छत एकसी छत जो चूने की न बनी हो, कच्चौ पर बौ-पीछे हटना, झूठ ठहरना, कच्ची पंगत-ऐसी पंगत जिसमें केवल रोटी, दाल भात आदि परोसा जाए, कच्ची बात-अनिश्चित बात, कच्ची भीत-मिट्टी की बनी दीवार, कच्चा चिट्ठा-सही सही बात, गुप्त भेद, ठीक-ठीक बात, कच्चौ जाऊन-ऐसा जामन जिसमें दूध अच्छी तरह न जम सका हो, कच्चौ दई-अध जमा दही, ऐसा दही जो ठीक से न जमा हो, कच्चौ दूध-हाल का दुहा दूध, बिना औटाया दूध, कच्चौ जी करबौ, हिम्मत हारना. निराश होना, कच्चौ रंग-ऐसा रंग जो पानी में धोने से फीका पड़ जाये या धूप में उड़ जाय।

कच्छी :: (सं. स्त्री.) कछुई, छोटी वीणा, कच्छ देश में जन्म, घोड़े कि एक जाति।

कच्छुअई :: (सर्व.) कुछ भी।

कंछ :: (सं. पु.) पौधे का कल्ला, कौंपल।

कछयानों :: (सं. पु.) काछियों का मुहल्ला।

कछवारौ :: (सं. पु.) शाक भाजी के खेत।

कछवारौ :: (कहा.) कछवारे बगार नई लगत - जहाँ का काम वहाँ ही किया जाता है, बघार हंड़िया में ही लगता है कछुवारे में नहीं।

कछवाहा :: (सं. पु.) राजपूतों की एक जाति।

कछार :: (सं. पु.) नदी के किनारे की उपजाऊ भूमि।

कछु :: (वि.) कुछ थोड़ा, किसी उदाहरण-ईसुर कछु काम खां जाने-ईसुरी।

कछु :: (कहा.) कछु इन मूँछन की निभाओ - कुछ मेरी भी लाज रखो।

कछुआ :: (सं. पु.) कूर्म, कमल, कच्छप।

कंछेदना :: (क्रि.) कर्णवेध संस्कार।

कछोटी :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों द्वारा लगाई जाने वाली धोती की कांछ जो प्रायः कामकाजी औरतें लगाती हैं।

कछौटा :: (सं. पु.) स्त्रियों की धोती की कांछ, उदाहरण-कछौटा मारबौ, कांच लगाबौ।

कंछौरी :: (सं. स्त्री.) बछड़े की खाल में घास भरकर बनाया गया बछड़ा जिसे सामने रखकर गाय को दुहा जाता है।

कजई :: (सं. स्त्री.) लोहे का एक औजार जो घोड़े के मुँह में डाला जाता है, कजा और मृत्यु।

कंजई :: (वि.) कंजी के रंग का, धुएं के रंग का।

कंजड़ा :: (सं. पु.) एक घूमने वाली जाति, इस जाति के लोग रस्सा आदि बनाकर बेचते हैं, डरपोक मनुष्य, भड़वा।

कजन्त :: (अ.) यदि कहीं, कदाचित्, शायद मुहा, कजंत की दार-कदाचित्।

कजरा :: (सं. स्त्री.) कालिख, काजल जैसी, काजल लगी आँखें, कजराई-श्यामता, कालापन, कजरारा।

कजरा :: (वि.) कज्जलयुक्त आँखें।

कजराई :: (सं. स्त्री.) कालापन, श्यामता।

कजरारो :: (वि.) काजल लगा हुआ, अंजन युक्त काला।

कजरियाँ :: (सं. स्त्री.) सावन शुक्ल पूर्णिमा, एक त्यौहार जो श्रावण के उजाले पाख में पत्त्तों छोटे-छोटे दोनों या मिट्टी के बर्तनों में गेहू या जो उगाकर मनाया जाता है। ये पौधे अष्टमी को बोये जाकर पूर्णिमा के दिन नदी या तालाब में ले जाकर सीरा दिये जाते हैं, सिराने के पूर्व कुछ अंकुर खोंट लिये जाते हैं जिन को लोग आपस में बांटते और परस्पर गले मिलते हैं। लड़कियों द्वारा अपने भाईयों को इन अंकुरों के बाटे जाने का विशेष महत्व है।

कजरी :: (सं. स्त्री.) गाय जिसकी आँख के नीचे काजल की तरह रेख हो।

कजरौटा :: (सं. पु.) काजल रखने की डाड़ीदार डिबिया काजल रखने का पात्र।

कजरौटी :: (सं. स्त्री.) काजल रखने की डिबिया।

कजलाना :: (क्रि. अ.) काला पड़ना, आँजना, बुझना, काजल लगाना।

कजलियाँ :: (सं. स्त्री.) देवी की आराधना के लिए श्रावण शुक्ल नवमीं को जवारों की तरहनौ दोनों में गेंहू बोकर पूजा की जाती है।

कजली :: (सं. स्त्री.) कलिख, बरसाती गीत विशेष, पारा और गंधक पीसकर बनाई गई बुकनी, काली आँख की गाय, भादों की तीज का त्यौहार।

कजा :: (सं. स्त्री.) मौत, मृत्यु।

कंजा :: (सं. पु.) कंजी आँखों वाला, एक प्रकार की कटीली झाड़ी, ज्वर, वमन आदि में प्रयुक्त होने वाली एक जड़ी।

कजात :: (अव्य.) कदाचित्, कहीं, यदि। उदाहरण-कजात की बेरां, कजात कें।

कंजी :: (सं. स्त्री.) करंज, इसके बीजों का तेल कीटनाशकर होता है, एक वृक्ष और उसका फल।

कंजूस :: (वि.) ऐसा व्यक्ति जो पास में धन होने पर भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिये उसका उपभोग न करता हो।

कंजूसी :: (सं. स्त्री.) कंजूस होने की अवस्था, गुण या भाव, कृपणता।

कट :: (सं. पु.) वृक्षों की बोनी जाति, कटा हुआ, जैसे-कट जामुन।

कट :: (कहा.) कटे पै नोंन मिर्च भुरकबो - जले को और भी जलाना।

कंट :: (वि.) कंटीला, कांटा।

कटइया :: (सं. पु.) काटने वाला, कटनारी।

कटक :: (सं. स्त्री.) दांते के बनाने का शब्द कलह, लड़ाई, सेना, पहाड़ के बीच का स्थान, उड़ीसा प्रान्त का एक पुराना शहर।

कटकई :: (सं. स्त्री.) दे. कटक।

कटकटाना :: (क्रि. अ.) दांत पीसना, क्रोध प्रकट करना।

कटकारौ :: (वि.) कम चुरी हुई वस्तु, अच्छे स्वास्थ्य वाले अधबूड़े लोग।

कटकोला :: (सं. पु.) पेड़ के तने में छेद कर घोंसलाबनाने वाली लम्बी चोंच का पक्षी, इसे बुन्देली में बाढ़ई तथा बउआ भी कहते हैं।

कटखना :: (वि.) काट खाने वाला, काट छाँट।

कटंगी :: (वि.) मोटे बाँस जो सामयानों के पाए तथा पालकी के डाँड़े बनाने के काम आते हैं।

कटघरा :: (सं. पु.) लकड़ी का घेरा, काठ का बना घर, बड़ा पिंजड़ा।

कटछनें की :: (सं. पु.) निर्णायक लड़ाई या बातचीत।

कटटू :: (सं. स्त्री.) घी शक्कर चुपड़कर लपेटी ही रोटी जिसे बच्चे दांतो से काट काटकर प्राय खेलते हुए खाते हैं।

कटड़ा :: (सं. पु.) भैंस का नर बच्चा, पँडवा।

कटन :: (सं. पु.) कोरियों का एक औजार इससे बुना हुआ कपड़ा काटा और साफ किया जाता है कटा हुआ सूत।

कटनी :: (सं. स्त्री.) कतरनी, कतरनी, कटाई, तिरछी दौड़।

कटन्नी :: (सं. स्त्री.) चमड़े की सिलाई करने का एक औजार जिसकी नोक बगल में कटी रहती है।

कटबाबो :: (सं. क्रि.) कटाना, काटने की क्रिया दूसरे से कराना।

कंटबाँस :: (सं. पु.) एक तरह का अधिक कांटों वाला बाँस।

कटबो :: (अ. क्रि.) कटना, मर जाना, समाप्त होना।

कटर-कटर :: (वि.) ऊँचे स्वर से, बलपूर्वक, अंड-बंड।

कटरा :: (सं. पु.) छोटा चौकोर हाट, भैंस का पँड़वा।

कटरिया :: (सं. स्त्री.) एक हथियार, एक प्रकार की धान।

कटरूआ :: (सं. पु.) एक काला पदार्थ जिससे चमार जूतों को काला रंगते हैं।

कटरेती :: (सं. स्त्री.) लकड़ी रेतने का एक अस्त्र।

कटल्लू :: (सं. पु.) व्याध, माँस बेचने वाला।

कटवां :: (सं. पु.) मारकाट, काट कर फेंकना, कटवां बकरियों का एक रोग।

कटसेरूवा :: (सं. पु.) नारंगी रंग के कोमल फूलों का पौधा।

कटहल :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसमें काँटेदार मोटे फल लगाते हैं।

कटा :: (सं. पु.) मार काट, फसल को लगने वाला एक रोग, छिपा का धन रखा हुआ, चूहों द्वारा खड़ी फसल का काट कर नष्ट किया जाना।

कटा :: (प्र.) कटा लगना।

कटा-करबो :: (क्रि. अ.) मारकाट करना, निर्दयता पूर्वक मारना, भरे हुए खेत से पानी निकालना।

कटाई :: (सं. स्त्री.) काटने का काम, काटने की मजदूरी, एक जड़ी, कटीले पत्रों वाला एक पौधा, अन्न।

कटाकट :: (सं. पु.) कट कट का शब्द, लड़ाई, झगड़ा, काटा जाना।

कटाकटी :: (सं. स्त्री.) मारकाट, वध, लड़ाई, झगड़ा।

कटाक्ष :: (सं. पु.) तिरछी नजर, व्यंग्य, आक्षेप, एक प्रकार का वन विलाव।

कटाछनी :: (सं. स्त्री.) मारकाट, युद्ध, वध तर्क।

कटान :: (सं. स्त्री.) बरसाती पानी के बहाव के कारण मिट्टी के कटने से बने छोटे नाले इन्हें कटन भी कहते हैं।

कटाबो :: (सं. क्रि.) काटने की क्रिया दूसरे से करवाना, डसवाना, गाड़ीआदि को बगल से घुमाकर ले जाना।

कटार :: (सं. स्त्री.) एक दुधारा हथियार, खंजर, म्यानदार लगभग एक बालिश्त की तलवार जो सीधी और दुधारी होती है।

कटारनी :: (सं. स्त्री.) चमारों का एक औजार, चमड़ा सीने का सूजा।

कटारी :: (सं. स्त्री.) छोटी कटार।

कटारो :: (सं. पु.) हल में लगने वाली एक लकड़ी।

कटारौ :: (सं. पु.) कंटीले पत्रों वाला एक पौधा, इसमें पीले सुन्दर फूल आते हैं।

कटाव :: (सं. पु.) आभूषणों या पत्थर आदि पर छील या काट कर बनायी गई डिजाइन।

कटावदार :: (सं. पु.) जिस पर बेलबूटे तराश कर बनाए गये हों।

कटावनी :: (सं. स्त्री.) फसल काटने की क्रिया, संज्ञार्थक क्रिया।

कटिया :: (सं. स्त्री.) सोना चांदी तौलने की छोटी तराजू, पशुओं का चारा काट कर छोटे-छोटे टुकड़े किये हुए ज्वार के डण्ठल जो पशुओं को खिलाए जाते हैं।

कंटिया :: (सं. स्त्री.) एक छोटी कील, तौलने का छोटा कांटा, मछली मारने का यंत्र।

कटीरा :: (सं. पु.) मछली फँसाने का काँटा, एक वृक्ष की गोद, कतीरा।

कटीला :: (सं. पु.) कांटे से उभरे हुए दाने वाली लकड़ी, बछड़ों के मुंह से बांधने वाली एक कांटेदार वस्तु, एक रोग जो जानवरों की जीभ में होता है।

कंटीला :: (सं. स्त्री.) कांटेदार, कंटीला जिसमें कांटे अधिक हो।

कटीलो :: (वि.) कांटेदार, नुकीला, पैना, तेज।

कटु :: (वि.) चटपटा, कडुवा, कसैला, अप्रिय।

कटुआ :: (सं. पु.) कट्ट, कुम्हड़ा, एक प्रकार का फल साग, छोटा खीरा, छोटी लकड़ी।

कटुआ :: (वि.) कटा हुआ।

कटुआ :: (वि.) कटा हुआ।

कटुरिया :: (सं. स्त्री.) कटोरी, धातु का छोटा कटोरा।

कंटू :: (वि.) एक आँख वाली स्त्री।

कटैल :: (सं. पु.) एक जाति का बाँस।

कंटोपा :: (सं. पु.) टोपा, सिर तथा कानों को ढाँकनें की एक प्रकार की टोपी।

कटोरदान :: (सं. पु.) कटोरा, ढक्कनदार डिब्बा।

कटोरा :: (सं. पु.) खुले मुँह चौड़ी पैदी का एक बर्तन।

कटौती :: (सं. स्त्री.) किसी धन से कुछ निश्चित भाग निकाल देना, काट कर निकाली जाने वाली वस्तु।

कट्टआ :: (सं. पु.) बहुत अधिक कंजूस।

कट्टर :: (वि.) न घबराने वाला, हिम्मत दार, अन्ध विश्वासी एक दूसरे की बात को न मानने वाला।

कट्टा :: (सं. पु.) आधा भरा बोरा, आधा कटा हुआ कनस्टर, आधी बाँह की क्मीज, सुपाड़ी के टुकड़े, देशी पिस्तौल, बीड़ी का बंडल।

कट्टी :: (सं. स्त्री.) बच्चों में दोस्ती तोड़ने की क्रिया, झगड़े की प्रारम्भिक अवस्था।

कठ :: (वि.) काठ का जंगलीदार घेरा, बड़ा पिजरा, यजुर्वेद का एक उपनिषद्, ब्राहमण देवता, एक प्राचीन बाजा, काठ से बना हुआ।

कंठ :: (वि.) कंठस्थ, याद, गला, हलक, स्वर, आवाज, उदाहरण-माथे में बल अनओ मोरी माता से कंठन लेत बसेरी, लोकगीत।

कठउआ :: (सं. पु.) लकड़ी का कटोरा, लकड़ी का पात्र, कमण्डल।

कठचंदन :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके पत्ते मेंहदी के पत्त्ते की तरह होते है।

कठन :: (वि.) कठिन, तेज और जिद्दी स्वभाव आसानी से न समझा जाने वाला व्यक्ति, द्दढ़, कड़ा, कठोर, निष्ठर, तीक्षण, दुस्सह।

कठनाई :: (सं. स्त्री.) दुस्साध्य होना, कष्ट, संकट, झंझट।

कठनार :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी जड़ को पीसकर फोड़े पर पर रखने से लाभ होता हैं।

कठपारा :: (सं. पु.) एक चिड़िया जो अपनी चोंच से पेड़ों की छाल छेदकर उसके नीचे के कीड़ो को खाती है।

कठपुतरिया :: (सं. स्त्री.) काठ की पुतली, दूसरे के इशारे पर काम करने वाला व्यक्ति।

कठपुतरी :: (सं. पु.) एक तमाशा जिसमें कठपुतलियों का नाच दिखाया जाता है।

कठबर :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसके पत्त्ते उपर के पत्तों की तरह होते है इसकी लकड़ी की गाड़ी की टली बनती है।

कठमलिया :: (सं. पु.) काठ की माला पहनने वाला, पाखण्डी पुरूष, वैष्णव, बनावटी साधु।

कंठमाला :: (सं. स्त्री.) गले में होने वाला एक प्रकार का रोग, जिसमें जगह जगह गिलटियाँ निकल आती हैं।

कठमुल्ला :: (सं. पु.) कम पढ़ा मुल्ला या मौलवी।

कठयाबो :: (क्रि.) न निकल पाने के कारण फोड़े में पीप का लाल तथा गाढ़ा हो जाना, कड़ा होना, सूखना, काठ बन जाना, अकड़ना।

कठरया :: (सं. पु.) परचून की दुकान करने वाला।

कठरिया :: (सं. पु.) देशी दवाईयाँ बेचने वाला।

कठला :: (सं. पु.) बड़े गुरियों वाली माला, बच्चों के पहनने का गले का एक आभूषण जो अधिकाधिक सुरक्षा करता है।

कँठला :: (सं. पु.) बच्चों के गले में पहिनाने का एक आभूषण।

कठवा :: (सं. पु.) काठ का एक पात्र, काठ की, लकड़ी कठोर।

कठवा :: (कहा.) कठवा की हँड़िया एकई बेर चढ़त है काठ की हाँड़ी एक ही बार चढ़ती है।

कंठहरिया :: (सं. स्त्री.) कंठी, स्त्रियों के गले का आभूषण।

कंठा :: (सं. पु.) बड़े मनकों की माला जो गले से सटी होती है। सुआ आदि पक्षियों के गले की रंगीन रेखाएँ।

कठारा :: (सं. पु.) लकड़ी का पिंजड़ा शरीर भावात्मक अर्थ नदी या तालाब का किनारा, कछार।

कठारी :: (सं. स्त्री.) ऊँट पर बैठने के लिये रखा जाने वाला लकड़ी का साधन, संक्राति को पकवान से भरी वाली थैलियाँ, जों वंसत पंचमी को खुलती है।

कठिन :: (वि.) कड़ा, दुष्कर।

कठिन :: दे. कठन।

कठिनता :: (सं. स्त्री.) कठोरता, मुश्कल।

कठिया :: (वि.) गेंहूँ की एक विशेष जाति का विशेषण, कांच आदि के गुरियों से पिरोयी माला।

कठिया :: (वि.) कड़े छिलके वाला कठोर।

कठियाना :: (क्रि. अ.) कड़ा हो जाना।

कठियावो :: (सं. पु.) नाराज होने की अवस्था, जंगली गूलर।

कंठी :: (सं. स्त्री.) तुलसी के दानों की छोटी माला जो वैष्णव धारण करते हैं, उदाहरण-कंठी देना-दीक्षा देना, वैष्णव धर्मावलम्बी बनना।

कठूमर :: (सं. पु.) नदी पार करने के लिये लकड़ी का विशेष आकृति का कन्दा।

कठेंगर :: (सं. पु.) काठ की तरह, भारी।

कठेल :: (सं. पु.) कटहल, कटहर, पनस।

कठोटी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की परांत।

कठोर :: (वि.) कठिन, निर्दय।

कठौता :: (सं. पु.) काठ का चौड़ा बड़ा बर्तन।

कठौती :: (सं. स्त्री.) काठ का वह छिल्ला बरतन जिसमें प्रायः खाने का सामान रखा जाता है।

कड़क :: (सं. स्त्री.) बहुत कड़ी और डरावनी आवाज बिजली चमकने की आवाज, झाँसी के किले में रखी एक बंदूक का नाम कठोर शब्द, तड़प, रूक रूक कर होने वाली पीड़ा, कड़पन, कठोरता।

कड़कड़ :: (सं. पु.) कड़ी चीज के टूटने, टिन आदि की चद्दर पर किसी चीज के जोर से गिरने की आवाज।

कड़कड़ :: (कहा.) कड़ाकड़ बजें थोथे बाँस - निकम्मे और बातूनी आदमी के लिए कहते हैं।

कड़कड़ावे :: (अ. क्रि.) कड़कड़ना, कड़कबो, तड़कना घी, तेल को खूब तपाना, गरम करना।

कड़कड़ाहट :: (क्रि. अ.) कड़कड़ की आवाज, कर्कश शब्द कठोर शब्द, गरज।

कड़कना :: (क्रि. अ.) गरजना, डाटना।

कड़कनाना :: (क्रि. स.) घी आदि को खूब तपाना।

कड़कबो :: (क्रि.) बिजली कड़कना।

कड़का :: (सं. पु.) रूई का गोल चपटा फाहा जो पानी से भिगो और निचोड़ कर घी में कड़काया जाता है तथ फोड़े पर चिपकाया जाता है इससे घाव शीघ्रता से भरता है, अभाव की स्थिति, मुफलिसी।

कड़काबो :: (क्रि.) घी को साफ करने के लिये गरम करके पानी में छीटे मार कर उसमें मिला मट्ठा आदि जलाना।

कड़कें :: (क्रि. वि.) बढ़कर।

कड़बू :: (क्रि.) निकाल कर, जाने के अर्थ में।

कड़बो :: (अ. क्रि.) निकलना, खिचना, उदय होना उदाहरण-कड़ जाओ झपट मारग में टेक न ठानो-श्याम कृत काव्य।

कड़बो :: (मुहा.) कड़जाबो-किसी स्त्री का किसी के साथ निकल जाना, उदाहरण-कड़बो औसत गैल गली का, कड़ आओ-निकल आओ।

कड़यारो :: (वि.) खट्टा, कढ़ी के साथ पकाया हुआ।

कंडरा :: (सं. पु.) मूली, सरसों आदि, गौहरौरा डंठल जो तरकारी बनाकर खाया जाता है।

कड़वारौ :: (सं. पु.) उधार लेकर काम करना, कर्जा लेना।

कड़वारौ :: (कहा.) कड़वारे के कोदों खायँ, ठसक के मारे मरी जायें - उधार लेकर कोदों खाती हैं, फिर भी ठसक के मारे मरी जाती है।

कड़ा :: (सं. पु.) पैरों और हाथों में पहनने के चाँदी और सोने के आभूषण, लोहे के गोल छल्ले।

कंडा :: (सं. पु.) भैस, गाय, आदि का सूखा या सुखाया हुआ गोबर, उदाहरण-कंडा होना, सूख जाना मर जाना।

कड़ाई :: (सं. स्त्री.) कठोरता।

कड़ाको :: (सं. पु.) कड़ी वस्तु के टूटने का शब्द, फांका, उपवास, लंघन।

कड़ाको :: (मुहा.) कड़ाको लगबो-भूखे रहने अथवा किसी और कारण से सहसा अस्वस्थ हो जाना, कड़ाके कौ जाड़ौ-विकट सर्दी।

कड़ाबीन :: (सं. पु.) बहुत जोर की आवाज करने वाला पटाका, पुराने ढंग की एक बंदूक।

कड़ाबो :: (सं. क्रि.) निकालना, बाहर करना।

कड़ार :: (सं. स्त्री.) बर्तनों पर लोहे की कलम से की गई नक्काशी।

कड़ार :: (मुहा.) कड़ार करबौ-बर्तनों पर नक्काशी करना।

कंडारी :: (सं. पु.) नाव चलाने वाला, माँझी।

कंडाल :: (सं. पु.) एक प्राचीन पीतल या तांबे का वाद्य यंत्र, तुरही, पानी रखने का बड़ा पात्र जिसका मुँह खुला होता है।

कड़ाह :: (सं. पु.) लोहे का खुले मुँह का चौड़ा गोल पात्र।

कड़ी :: (सं. स्त्री.) जंजीर आदि का छल्ला, कढ़ी, मठ्टा में बेसन घोल कर बनाया जाने सालन, भोजन का एक पदार्थ।

कड़ी :: (मुहा.) कड़ी मुराई न मुरे, बरिन को हाथ पसारै अर्थात कड़ी तो निगलते नहीं बनती पकौड़ियाँ खाने का शौक करते हैं।

कड़ी :: (मुहा.) कड़ी सौ-कड़ी जैसा गाढ़ा।

कंडी :: (सं. स्त्री.) जलाने का छोटा कंडा, कंडा।

कंडी :: (कहा.) कंडी-कंडी जोरें बिटा जुरत - थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करके बहुत होता है।

कड़ी नाम :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसका पत्ता, नीम से मिलता जुलता प्रतीत होता है।

कंडील :: (सं. स्त्री.) लालटेन, दीया, बाट, प्रकाश गृह, ऊँचा घरहरा।

कंडु :: (सं. पु.) खाज, कंडुवा रोग-अभौं का रोग।

कडुआ :: (सं. पु.) कर्ज देखिए कटवारौ, कडुआ।

कडुआ :: (वि.) कटु, क्रोधी, कडुवा तेल-सरसों का तेल।

कड़ुआना :: (क्रि.) कडुवा लगना।

कडुरबौ :: (क्रि. अ.) घसिटना।

कड़े :: (सं. पु.) पैर का एक आभूषण।

कड़े :: (ब. व.) हाथ या पैर में पहिनने के चूरे, कड़ा।

कंडेरा :: (सं. पु.) एक प्राचीन जाति जो तीर कमान बनाती थी पर अब रूई एवं आतिशबाजी का काम करती है, कण्डार, बांसों की सफाई व सिकाई करके उनसे डंडे, लाठी आदि बनाने का धंधा करने वाला व्यक्ति।

कड़ेरो :: (सं. पु.) लकड़ी के चकरी भोरा तथा खिलौने बनाने वाला, बाँस की लाठियों का काम करने वाली एक जाति।

कड़ेरो :: (कहा.) कोरी के बियाव, कड़ोरो हाथ जोरत फिरै।

कड़ैनियाँ :: (सं. स्त्री.) मथानी चलाने की रस्सी जिनके दोंनो सिरों पर पकड़ने के लिये लकड़ी की मुठियाँ रहती है, भेड़ों की एक किस्म।

कडोड़पति :: (वि.) एक करोड़ या उससे अधिक।

कड़ोरबो :: (क्रि.) घिसटना।

कड़ोरी :: (सं. पु.) रोकड़िया, खजानची।

कंडोल :: (सं. पु.) बांस आदि का बना हुआ टोकरा।

कंडौरा :: (सं. पु.) कंडा पाथने का स्थान, कंडों का ढेर।

कड्डाई :: (सं. स्त्री.) पेट में अम्लता के कारण छाती में जलन।

कड्डोरा :: (सं. स्त्री.) कमर में बाँधने का आभूषण देखिये करदोनीं।

कढ़ना :: (क्रि. अ.) निकलना, बाहर आना।

कढ़न्ना :: (सं. पु.) संकरा, गहरा और चौकोर छेद बनाने के काम आने वाला औजार।

कढ़ाई :: (सं. स्त्री.) छोटा कढ़ाव, कपड़े पर बेल बूटे काढ़ना, बेलबूटे काढ़ने की क्रिया।

कढ़ाव :: (सं. पु.) कसीदे का काम।

कढ़ैया :: (सं. स्त्री.) कड़ाही।

कढोरना :: (क्रि. अ.) खींचना।

कण्टा :: (सं. पु.) चौपड़ या चंगल के खेल में एक का अंक, काना।

कण्टान :: (सं. स्त्री.) बुरे स्वभाव वाली निर्मम स्त्री, चुड़ैल विशेषण. रूप में भी प्रयुक्त।

कण्टू :: (सं. स्त्री.) कानी स्त्री, गाली के रूप में प्रयुक्त।

कण्ठ :: (सं. पु.) गला कुछ विशेष संदर्भो में।

कण्ठमाला :: (सं. पु.) गले के चारों ओर फोड़े होने का रोग।

कण्ठा :: (सं. पु.) गले में पहनने की रत्नों का माला।

कण्ठी :: (सं. स्त्री.) गले में पहनने की तुलसी अथवा चंदन की गुरियों की माला।

कण्डा :: (सं. पु.) गोबर के उपले जो खड़े पाथे जाते हैं और ईधन के काम आते हैं।

कण्डाई :: (सं. स्त्री.) अम्लता के कारण पेट या छाती में जलन।

कण्डाई :: (मुहा.) कड्डाई परबो-जलन होना, दुख, सन्ताप, पश्चाताप।

कण्डी :: (सं. स्त्री.) खेतों या जंगलों में प्राकृतिक अवस्था में पड़ा गोबर।

कत :: (अव्य.) क्यों, किसलिये।

कतइया :: (सं. स्त्री.) सलूका, आधी बाहों की तनीदार कुर्ती, झंगी।

कतई :: (अ.) बिलकुल।

कतउ :: (अव्य.) कहीं, किसी जगह।

कतकइ :: (सं. स्त्री.) कार्तिक में पकने वाली फसल खरीफ।

कतकऊ :: (वि.) कार्तिक में होने वाली फसल।

कतकारी :: (सं. स्त्री.) कतख्यारी, कार्तिकी व्रत, कार्तिक स्नान करने वाली महिलायें और उनके द्वारा कृष्ण के गीतों की एक किस्म।

कतकी :: (सं. स्त्री.) कार्तिक की फसल।

कतकी :: (कहा.) कतकी कोंरीं टटोउत की कर्री - व्यवहार में मधुर पर ह्दय की कठोर।

कतनारी :: (सं. स्त्री.) सूत काटने वाली।

कतन्नी :: (सं. पु.) ऊधमी, कतरने का साधन, कैंची।

कतन्नी :: (कहा.) कतन्नी सी जीब चलत - बहुत बातूनी।

कतर-कतर :: (क्रि. वि.) बीच में अधिक बोलना, उदाहरण-कतर-कतर करबो।

कतरन :: (सं. पु.) कपड़े कागज आदि के काटने का औजार कैंची।

कतरनी :: (क्रि. स्त्री.) कपड़ा, कागज आदि काटने का औजार कैंची।

कतरबो :: (क्रि.) काटना, सिरोंते या कैंची से काटना।

कतरँयोंत :: (सं. स्त्री.) कपड़े की नाप और काट छांट नुक्ताचीनी तर्ककरना, उलटफेर, उधेड़बुन।

कतरा-गतरा :: (सं. पु.) कटा हुआ टुकड़ा।

कतराबौ :: (सं. स्त्री.) मुँह बनाकर असंगत बातें करना, बड़े बच्चीं का ऊधम मचाना।

कतरियाँ :: (सं. स्त्री.) बहुवचन कटे हुए छोटे टुकड़े, बर्फी के टुकड़े।

कतरैल :: (सं. पु.) किसी वस्तु को काटने के पीछे बचे हुये छेटे टुकड़े।

कतल :: (सं. पु.) कत्ल, हत्या, जान से मार डालना, कतल की रात-मुहर्रम की दसवीं रात।

कतला :: (सं. पु.) मछली की एक जाति जो कम लम्बी, उँची और चपटी होती है।

कतवार :: (सं. पु.) कूड़ा करकट।

कताई :: (सं. स्त्री.) काटने की क्रिया, काटने की मजदूरी।

कताई :: (मुहा.) सेर में पानी कतबौ-बहुत कम काम करना।

कताउ :: (वि.) कटनी के लिये तैयार।

कताना :: (क्रि. स.) कातने का काम कराना।

कताबो :: (सं. क्रि.) कातने को प्रेरित करना, कातने का काम दूसरे से कराना।

कतार :: (सं. स्त्री.) पंक्ति, समूह।

कतेक :: (वि.) कितना, थोड़ा बहुत।

कतैया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की कमीज, एक प्रकार का पहनने का वस्त्र।

कत्तल :: (सं. स्त्री.) पत्थर के छोटे पतले, अनगढ़ टुकड़े।

कत्ता :: (सं. स्त्री.) चाकू, कतरनी।

कत्त्तल :: (सं. पु.) पत्थर का छोटा टुकड़ा।

कत्थई :: (वि.) कत्थे के रंग का, खैर के रंग का।

कत्थर गुछर :: (सं. पु.) फटे पुराने कपड़े।

कत्था :: (सं. पु.) खैर की लकड़ियों का सुखाया हुआ काढ़ा।

कथक्कड़ :: (सं. पु.) बहुत कथा कहने वाला।

कंथना :: (सं. पु.) कंथा या कथरी पहनना।

कथनी :: (सं. स्त्री.) कथन।

कथनी :: (मुहा.) कथनी और करनी।

कथनी :: (कहा.) कथनी से करनी बड़ी - कहने की अपेक्षा काम करना अच्छा।

कथरी :: (सं. स्त्री.) कई वस्त्रों में चिथड़े सिलकर बनाई जाने वाली बिछावन, फटे पुराने कपड़ों को जोड़कर बनाया गया बिछावन।

कथरी :: (कहा.) कथरी कौ मुड़ायछौ बाँदे, गुलाल खाँ ठिनके फिरें - किसी वस्तु के पाने का उपयुक्त अधिकारी न होने पर भी उसकी माँग करना।

कंथरी :: (सं. स्त्री.) फटे पुराने कपड़ों को सींकर बनाया हा ओड़ना, गुदड़ी।

कथा :: (सं. स्त्री.) धार्मिक आख्यान, इतिवृत्त विस्तृत विवरण, प्रसंग, समाचार, कहानी, इतिहास की चर्च।

कंथी :: (सं. पु.) गुदड़ी ओढ़ने या पहनने वाला साधु, भिखमंगा।

कथुलिया :: (सं. स्त्री.) कथरी, कथूला।

कथुलिया :: (सं. पु.) फटी पुरानी कथरी, फटा पुराना रूई भरा ऊनी वस्त्र, ढीला फटा कपड़ा।

कथेरा :: (सं. पु.) कथा कहने का पेशा कहने का पेशा कहने वाला पुराण बांचने वाला।

कद :: (सं. पु.) शरीर का माप।

कंद :: (सं. पु.) पौधों का वह गूदेदार और बिना रेशों का तना जो जमीन पर फैला हुआ और छिपा हुआ प्रायः खाने के काम आता है, गूदेदार जड़।

कंदइयाँ :: (सं. स्त्री.) बच्चों को कंधे पर बिठालने की क्रिया।

कंदकंद :: (सं. पु.) गूदेदार, बिना रेशे की जड़, जैसे शकरकंद, सूरन।

कदम :: (सं. पु.) एक सुन्दर पेड़ जिसमें गोल पीले फूल लगते हैं, एक वृक्ष, पैर, पग।

कदर-कदर :: (क्रि. वि.) धीरे-धीरे, कद्र, सम्मान।

कदर-कदर :: (मुहा.) कदर करबौ आन्तरिक व्यक्तित्व का उजागर होना, मान बढ़ाई।

कदर-कदर :: (मुहा.) कदर खुल जाबो-भेद खुल जाना।

कदरदान :: (वि.) आदर करने वाला।

कदराई :: (सं. स्त्री.) कायरता।

कदराना :: (क्रि. अ.) कायर बनाना, डरना।

कंदराना :: (क्रि. स.) कीचड़ की तरह गंदा और मैला होना।

कदर्थता :: (सं. स्त्री.) दुर्दशा।

कदली :: (सं. स्त्री.) केला के पत्त्ते।

कंदली :: (सं. स्त्री.) एक पौधा, जिसमें सफेद रंग के फूल लगते हैं एक प्रकार का हिरन, कमलगटा, केला।

कंदा :: (सं. पु.) कंद, कंधा, घास की जड़ों पर कल्लों का समूह।

कदाचार :: (सं. पु.) बुरी चाल, दुराचार।

कदाचित :: (अ.) अभी, शायद।

कंदिया :: (सं. स्त्री.) दूब का फर्श, छोटी छोटी हरी घास जो धरती पर फर्श जैसी लगे।

कंदुआ :: (सं. पु.) एक रोग जिससे गेहूँ, जौ, धान आदि की बालों पर काली भुकड़ी जम जाती है, उदाहरण-फसल पै कंदुआ फिर गओ।

कंदूरी :: (सं. स्त्री.) कंदुरू, बिंबाफल, मुसलमानों में वह भोजन जिसे सामने रखकर फातिहा पढ़ा जाता है और जो बाद में बांटा जाता है।

कंदेला :: (सं. पु.) आंचल का छोर जिसे कंधे पर डाला जाता है, कुवारी लड़कियाँ इस तरह आंचल को डालती थी।

कंदैल :: (वि.) कीचड़ से भरा हुआ, गंदा, मलिन।

कंदोलिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की भैंस जो कम दूध देती है।

कदौ :: (सं. पु.) रंहट की घरी का आधा प्याला नुमा भाग।

कदौना :: (सं. पु.) बांस की टोकरी।

कँदौरा :: (सं. पु.) एक कन्द जो शाक बनाने के काम आता है, रतालू।

कद्दूकस :: (सं. पु.) कद्दू आदि के लच्छे बनाने के यंत्र।

कंधा :: (सं. पु.) मनुष्य के शरीर की बाँह का वह ऊपरी भाग या जोड़ जो गले के नीचे धड़ से जुड़ा रहता है।

कंधार :: (सं. पु.) अफगानिस्तान के एक प्रदेश और उसकी राजधानी का नाम।

कंधारी :: (वि.) जिसका संबंध कंधार देश से हो, कंधार दे का घोड़ा।

कंधेला :: (सं. पु.) धोती या साड़ी का वह भाग जो कंधे पर डलता है।

कंधेली :: (सं. स्त्री.) अंडाकार मेखला जो गाड़ी में जुते हुए घोड़े की गर्दन पर रखी जाती है।

कंधैया :: (सं. पु.) कन्हैया, बच्चों को कंधे पर बिठालना, उदाहरण-लुकन लगी वै दूर खेतन में लरका धरै कंधैया लोकगीत।

कन :: (सं. पु.) कण, अनाज, देवता का प्रसाद, कन।

कन :: दे. शुद्ध रूप कण।

कनक :: (सं. स्त्री.) गेंहू का आटा, सोना, स्वर्ण, कंचन।

कनकइया :: (सं. स्त्री.) पतंग।

कनकउआ :: (सं. पु.) एक प्रकार की भाजी जो बरसात में उत्पन्न होती है।

कनकजूरा :: (सं. पु.) गाजर, एक प्रकार का कीड़ा।

कनकटा :: (वि.) जिसका कान कटा हो, बूचा।

कनकटी :: (सं. स्त्री.) कान की जड़ में हो जाने वाला घाव।

कनकना :: (वि.) कन कन करने वाला, चुनचुनाने वाला।

कनकनाट :: (सं. स्त्री.) कनकनाने का भाव।

कनकनाना :: (क्रि. अ.) जलन के साथ चुभने की पीड़ा होना, चुन चुनाना।

कनकनाबो :: (क्रि. स.) नागवार लगना, चुनचुनाना, चौकन्ना होना।

कनकने :: (सं. पु.) गहोई वैश्यों का एक आँकना।

कनकनो :: (वि.) चिड़चिड़, तुनक मिजाज।

कनका :: (सं. पु.) अनाज का दाना, चावल आदि का बहुत छोटा टुकड़ा, रवा।

कनकी :: (सं. स्त्री.) दाल या चावल के टूटे कन, कण चावल दल कर साफ करने से निकलने वाला आटा जैसे कचड़ा इसमें चावलों की बहुत छोटे-छोटे कण भी होते हैं, इसे पशु आहार के रूप केवल गधों को खिलाया जाता है, कण से विकसित।

कनको :: (सं. स्त्री.) छोटा कण, किसी वस्तु का बहुत छोटा हिस्सा।

कनकौआ :: (सं. स्त्री.) एक भाजी जो बरसात में उत्पन्न होती है।

कनकौवा :: (सं. पु.) पतंग, गुड्डी।

कनखी :: (सं. स्त्री.) तिरछी नजर, आँख का इशारा, आँख का कोना।

कनखी :: (मुहा.) कनकी नयन से देखवो-दूसरों की नजर बचाकर देखना।

कनगुरिया :: (सं. स्त्री.) सबसे छोटी अंगुली।

कनचप :: (सं. पु.) माल भरे हुए बर्तन को माल समेत तौलकर फिर पीछे से माल निकालकर परी तौल में बर्तन का वजन कम करने तौलने की क्रिया।

कनचप्पी :: (सं. स्त्री.) कान ऐंठना।

कनछेदन :: (सं. पु.) बच्चों के कान छेदने का संस्कार, कर्णवेधन संस्कार।

कनछोरी :: (सं. स्त्री.) दूध देती हुई गाय का बछड़ा मर जाने पर उसके चमड़े को उतारकर बनाया गया ढाँचा जो गाय को दुहते समय उसके सामने रख दिया जाता है जिससे वह पल उठती है। कहीं कहीं इसे खंचारी कहते है।

कनछोरी :: दे. खंचारी।

कनटुआ :: (सं. स्त्री.) एक जाति की मछली।

कनटोप :: (सं. पु.) कान तक लम्बी टोपी।

कनतेली :: (सं. स्त्री.) एक छोटी जाति की मधुमक्खी।

कनपटी :: (सं. स्त्री.) कान और आँख के बीच का स्थान, कर्णपट, गाल और कान के बीच का भाग।

कनपट्टा :: (सं. पु.) कानों पर लपेटा जाने वाला कपड़ा।

कनफरा :: (सं. पु.) कनफटा जोगी।

कनफोर :: (सं. पु.) कान फोड़ देने वाला झापड़, थप्पड़।

कनबज :: (सं. पु.) कान्यकुब्ज, प्रदेश, कन्नौज, आल्हा में प्रयुक्त।

कनबजिया :: (सं. पु.) कान्यकुब्ज ब्राह्मण, ब्राह्मणों का एक वर्ग।

कनबतियाँ :: (सं. स्त्री.) प्रेम प्रसंगों की धीरे धीरे होने वाली बातें।

कनबहरी :: (सं. स्त्री.) अनसुनी।

कनबूजरो (कनबूजो) :: (सं. पु.) कर्ण पटल, गडस्थल, कनपटी, कान के नीचे का भाग।

कनमनाना :: (क्रि. अ.) सोते में आहट पाकर हिलना, विरोध में कुछ कहना।

कनरस :: (सं. पु.) गाना आदि सुनने का आनंद।

कनरसिया :: (सं. पु.) गाना बजाना, सुनने का प्रेमी, दूसरों के वार्तालाप में रस लेने वाला रसिक।

कनलौ :: (क्रि. वि.) कहाँ तक, जैसे-जा सड़क कनलौ गई।

कनवतू :: (सं. स्त्री.) कान में सुनाई जाने वाली बात।

कनवाँ :: (सं. पु.) एकाक्ष, काना, कनवाँ।

कनवाँ :: (मुहा.) कनवाँ से कनवाँ कहो तुरत जै है रूठ, चौपड़, चंगला के खेल में एक का अंक।

कनसार :: (सं. पु.) ताम्रपत्र पर खोद कर लिखने वाला।

कनसुई :: (सं. स्त्री.) आहट।

कनसुरौ :: (सं. पु.) साज के एक सुर के बराबर दूसरा उतरा हुआ सुर जाना।

कनसें :: (क्रि. वि.) कहां से।

कनस्तर :: (सं. पु.) कनस्तर।

कनहार :: (सं. पु.) मल्हार इसका शुद्ध रूप में कर्णधार।

कंना :: (सं. पु.) चकिया का कीला।

कनाई :: (सं. पु.) श्रीकृष्ण, बच्चों के नाल की जड़।

कनाएँ :: (सर्व.) तरफ, किनारे।

कनागत :: (सं. पु.) पितृपक्ष।

कनात :: (सं. स्त्री.) मोटे कपड़े की दीवार जिसे तम्बू में आड़ के लिये लगाते हैं, पर्दा, तम्बू।

कनाय :: (क्रि. वि.) एक ओर, जैसे-एक कनाय हो जाओ।

कँनाये :: (सर्व.) एक तरफ, किनारे।

कनारी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का एक लम्बा बर्तन।

कनारी :: (सं. पु.) गर्भाशय से जुड़ा रहने वाला नाल का वह हिस्सा जो बच्चा पैदा होने पर बाद में बाहर निकलता है, कमल।

कनाव :: (सं. पु.) किनारा, किसी से बच कर निकलना।

कनाव :: (सं. पु.) कनाव काटवौ-किसी वस्तु या मनुष्य से बचकर निकलना, आँख मूँदना, उपेक्षा करना।

कनासी :: (सं. स्त्री.) आरी के दाँतों को तेज करने का औजार, छोटी रेती।

कनियाँ :: (सं. स्त्री.) कणिकाएं, आभूषणों पर उठी हुई छोटी छोटी कर्णिकाएं, कानी स्त्री।

कनी :: (सं. स्त्री.) कणिका, हीरे की कनी, अधपके चावल के अंदर का बिना पका कड़ाभाग, छोटा टुकड़ा, उदाहरण-चांवरन की कनी और भाला की अनी अर्थात चावल की कच्ची कनी पेट में पहुंचकर भाला की नोंक की तरह दुखदायी होती है।

कनीनिका :: (सं. स्त्री.) आंख की पुतली।

कनूका :: (सं. पु.) अनाज का दाना, भीख।

कनेउ :: (सं. स्त्री.) कान मरोरना।

कनेंर :: (सं. पु.) एक सुन्दर फूलका वृक्ष, कनेर कई रंग के फूल तथा दो तीन जातियों का होता है।

कनैया :: (सं. पु.) कृष्ण कन्हैया।

कनोंटा :: (सं. पु.) कानों में पहनने का एक आभूषण, वजन साधने के लिऐ सांकलो सहित कर्णफूल।

कनोठ :: (सं. पु.) बर्तन का ओंठ, किनारा, कोना, थाली आदि की किनार।

कनोडो :: (वि.) लज्जित, एहसानमंद, कीतदास।

कनोंरा :: (सं. पु.) विवाह के समय दुल्हा दुल्हन के लिए पहनने के जूते, चप्पल, जो चमड़े पर लाल कपड़ा मढ़कर बनाये जाते हैं, प्रायः कामदार होते हैं।

कनौटी :: (सं. स्त्री.) गाय बैल की ब्रिकी का कर, पशुओं के कानों के बीच का हिस्सा।

कनौठो :: (सं. पु.) गले तक की नाप।

कनौड़बो :: (अ. क्रि.) दबना, एहसान मानना उदाहरण-कहु की कानि कनौडत के को।

कनौड़ी :: (सं. स्त्री.) दासी।

कन्त :: (वि.) तेज काटने वाला या वली।

कन्दरा :: (सं. स्त्री.) गुफा।

कन्नफूल :: (सं. पु.) कान में पहनने का एक गहना, करण फूल उदाहरण-सांकर कन्नफूल की होते, इन मुतियन के कोते, ईसुरी।

कन्ना :: (सं. पु.) पतंग को छेद कर त्रिकोणाकृति में धागा बांधा जाता है।

कन्नी :: (सं. स्त्री.) करनी, करतूत, कमाई, पतंग को संतुलित करने के लिये उसके दायें या बायें कोने पर बांधा जाने वाला चिथड़ा, धजी, मिट्टी या सीमेंट की छाप करने के काम आने वाला लोहे का औजार।

कन्नी :: (मुहा.) कन्नी खाबौ-पतंग का किसी एक ओर का झुकना, कन्नी काटबो-किनारा काटना, किसी काम से बचना।

कन्या :: (सं. स्त्री.) अविवाहित लड़की, किसी पूजा पर्व के अवसर पर न्योती जाने वाली पाँच अविवाहित लड़कियाँ।

कन्यारासी :: (सं. पु.) विवाह में वर को कन्या सौंपने की रीति।

कन्हैया आठे :: (सं. पु.) कृष्ण जन्माष्टमी।

कप :: (सं. पु.) प्याला।

कपकपाबो :: (क्रि.) कांपना।

कपकपी :: (सं. स्त्री.) कांपने की क्रिया।

कंपकपी :: (सं. स्त्री.) भयभीत आदि के कारण शरीर में हाने वाला कंपन या थरथराहट।

कपट :: (सं. पु.) दुरावपूर्ण व्यवहार, बनावटी व्यवहार, छल, धोखा, मन के भआव को छिपाना, दुराव।

कपटबो :: (क्रि. स.) खोटना, रूपये पैसे, रकम मे से कुछ भाग निकाल लेना।

कपटी :: (वि.) छल कपट करने वाला, धोखा देने वाला, कपटपूर्ण व्यवहार करने वाला।

कपड़छन :: (सं. पु.) पिसी हुई बुकनी का चूर्ण को कपड़े से छानना।

कपड़छन :: (मुहा.) कपड़छन करबौ-खूब जांच पड़ताल करना, कपड़े से होकर किसी चूर्ण का छानने की क्रिया।

कपड़ा :: (सं. पु.) वस्त्र, कपड़ा, अधिकतर थान या नये, बिना सिले कपड़े के लिये प्रयुक्त।

कपड़ा :: (मुहा.) कपड़न से होबो-रजस्वला होना, कपड़ा मिलाबो, धुलाई के कपड़ों की गिनती करना।

कपड़ा :: (कहा.) कपड़ा पैरे जग भाता, खाना खैये मन भाता - वस्त्र दूसरे की रूचि का पहने और भोजन अपनी रूचि का करे।

कपड़ा :: (कहा.) कपड़ा पैरे तीन बार, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्रवार - नया वस्त्र पहिनने के संबंध में व्यवस्था।

कपड़ा लत्त्ता :: (यौ.) पहिनने ओढ़ने के कपड़े।

कंपन :: (सं. पु.) काँपने थर्राने की क्रिया या भाव।

कंपना :: (क्रि.) कंपित होना, थरथराना।

कपबौ :: (क्रि.) दे. कपकपावौ।

कपरयाई :: (सं. स्त्री.) बजाजी, कपड़े का व्यवसाय।

कपरिया :: (सं. स्त्री.) रहट का एक हिस्सा।

कपला :: (सं. स्त्री.) भूरे या सफेद रंग की गाय, सीधी गाय।

कपला :: (वि.) सीधा सादा, भोला, डरपोक।

कपसटी :: (सं. स्त्री.) कपास का पेड़।

कपाई :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कांस इससे खटिया बुनने की रस्सी बनाई जाती है।

कपाट :: (सं. पु.) मंदिर का किवाड़।

कपार :: (सं. पु.) खोपड़ी, मस्तक, भाग्य, लेख।

कपार :: (कहा.) मूड़ न सई कपार सई, कपार पै सनीचर चढ़बो - दुर्भाग्य का विषय होना, कपार में आग लगबो-बुरा समय आना।

कपास :: (सं. पु.) रूई।

कपास :: (सं. पु.) कपास तौ ओंटबेई को बनो-कपास तो ओटे जाने के लिए ही बना है, दीन-हीन तो पीड़ित होने के ले ही बने हैं।

कंपास :: (सं. स्त्री.) घड़ी के आकार प्रकार का एक यन्त्र, जो दिशाओं का ज्ञान कराता है।

कपासी :: (वि.) हलका पीला रंग, कपास के फू ल के रंग का।

कपिला :: (सं. स्त्री.) ऐसी गाय जिसके सींग हिलते हों।

कपिला :: दे. कपला।

कपीस :: (सं. पु.) बानर राज, सुग्रीव, हनुमान।

कंपू :: (सं. पु.) फौज की छावनी, पड़ाव, खेमा, शिविर, डेरा।

कपूत :: (सं. पु.) कुपुत्र, बुरे आचरण वाला पुत्र।

कपूत :: (कहा.) कपूत से तौ निपूतेई भले - कपूत से तो निपूते ही अच्छे।

कपूत :: (कहा.) कपूतन से पिंड की आस - अयोग्य पुत्र से सहायता की आशा व्यर्थ है।

कपूती :: (सं. स्त्री.) कुपुत्र की माता, एक गाली।

कपूरी :: (वि.) कपूर का, कपूर के रंग का हल्का पीला।

कपूरी :: (सं. पु.) हल्का पीला रंग, एक प्रकार का पान।

कपूरी :: (पु.) बकरे के अण्डकोशों के मांस।

कंपोटर :: (सं. पु.) कम्पाउन्डर, मलहम पट्टी करने वाला।

कंपोन्डरी :: (सं. स्त्री.) कंपाउन्डर का कार्य या पेशा।

कफ :: (सं. पु.) खाँसी का बलगम, शरीर के त्रिदोषी में से एक दोष।

कफड़वा :: (सं. पु.) आवारा।

कफन :: (सं. पु.) मुर्दे को ढ़कने के लिये वस्त्र।

कफनी :: (सं. पु.) लँगोटी, उदाहरण-राज सो लूट कें, मैन नरेश महेश कौ मानो दई कफनी।

कब :: (क्रि. वि.) किस समय।

कबइया :: (वि.) कहने वाले, उदाहरण-मिल जाती मन की कै लेते, जैसे हते कबइया, ई की कै लेते।

कंबखती :: (सं. स्त्री.) भाग्यहीनता, अभाग्य, दुर्भाग्य।

कबज :: (सं. पु.) कब्जा, दखल, अधिकार, पकड़, हाथ के ऊपर का मांसल भाग, उदाहरण-अड़ियाँ जबर मसीली जॉगें, कबजन कोद निहारो, ईसुरी।

कबजा :: (सं. पु.) मूठ, पकड़, चौखट और दरवाजे को जोड़ने, वाले कब्जा, कुन्दा।

कबड्डी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का खेल जो बनाकर खेला जाता है जिसमें एक दल का एक लड़का किसी एक लम्बी सी तुकबन्दी का इस प्रकार उच्चारण करता है कि उसकी साँस न टूटने पाये दूसरे दल की सीमा में प्रवेश करता है वह जाकर अपनी साँस को तोड़े बिना जितने खिलाड़ियों को छू लेता है उतने सब मारे या हारे हुए माने जात हैं और वे खेल के मैदान से अलग हो जाते हैं, इसके विपरीत यदि उसकी साँस टूट गयी और उस समय प्रतिपक्षी दल के किसी खिलाड़ी ने उसे छू लिया तो उसे स्वयं से प्रथक होना पड़ता है।

कबता :: (सं. स्त्री.) रसात्मक, छंदो बद्ध या अतुकांत रचना।

कबताई :: (सं. स्त्री.) कविता।

कबन्द :: (सं. पु.) बिना सिर का धड़, गुहा, गोह दीवार को जकड़कर पकड़ती है, पुराने जमाने के युद्धों में गुहाकी कमर में रस्सी बाँधकर किले की दीवारों पर फेंक कर इसको चिपका दिया जाता था और रस्सी के सहारे सहारे सैनिक चढ़ जाते थे, यह विधि कबन्द कहलाती है।

कबर :: (सं. स्त्री.) वह गड्डा जिसमें मुर्दा गाड़ा जाय, कब्र।

कबर :: (कहा.) अकेले हसन, रोबे कों कबर खोदें।

कबरस्तान :: (सं. पु.) वह स्थान जहां मुर्दे गाड़े जाए जहाँ बहुत सी कर्बें हों।

कबरा :: (वि.) जिसके देह पर दुरंगे धब्बे हो, दो रंग के धब्बों वाला, सफे द रंग पर काले, लाल, पीले रंग के दाग वाला चितला।

कंबल :: (सं. पु.) कमली, कमरी, एक प्रकार का बरसाती कीड़ा।

कबलिया :: (सं. पु.) कबायली, बलूची, पहले छुरी चाकू आदी बेचने आते थे।

कबा :: (सं. पु.) कवह, अर्जुन वृक्ष, भूमि के कटाव, को यह वृक्ष रोकता है। हदय रोगों के उपचार में इसकी छाल काम आती है।

कबाज :: (सं. स्त्री.) कवायद, परेड।

कबाड़ :: (सं. पु.) अंगड़ बंगड़, रद्दी चीज, टूटी फूटी, बेकार वस्तुओं कोढ़ेर।

कबाड़ी :: (सं. पु.) टूटी फूटी चीजें खरीदने, बेचने वाला।

कबाब :: (सं. पु.) लोहे की छड़ पर भुना मांस।

कबाबो :: (सं. क्रि.) कहलाना।

कबार :: (सं. पु.) काम, धन्धा, पेशा, उद्यम, रोजगार।

कबारी :: (सं. पु.) काम को सरल बनाने के लिये युक्तियाँ निकाल लेने वाला।

कबित्त :: (सं. पु.) कोई भी छन्दबद्ध छोटी रचना।

कबी :: (सं. पु.) कविता करने वाला शायर, भाट।

कबीर :: (सं. पु.) होली के अवसर कहे जाने वाले अश्लील, फूहड़ और खरे खोटे अर्थ वाले दोहे अथवा पद्य, प्रसिद्ध हिन्दी कवि, प्रसिद्ध भक्त कबीर द्वारा चलाया गया सम्प्रदाय, बड़ा, श्रेष्ठ।

कबीला :: (सं. स्त्री.) दवा जो फोड़ा फु न्सियों पर लगायी जाती है, बाल-बच्चे, कुटुम कबीला।

कबुलवाना :: (क्रि. स.) स्वीकार कराना, मनवाना।

कबूतर :: (सं. पु.) एक प्रसिद्ध पक्षी, जिसके पालतू और जंगली प्रमुख दो बेद होते हैं। कबूतर खानो।

कबूतर :: (पु.) कबूतर रखने का जगह, एक पालतू पक्षी, परेबा, कपोत।

कबूतरा :: (सं. पु.) एक जरायम पेशा जाति बुन्देलखण्ड में पायी जाती है, घुमक्कड़ जाति के लोग।

कबूतरी :: (सं. स्त्री.) कबूतर की मादा, कपोती, नर्तकी, सुन्दर स्त्री, कंजड़स्त्री।

कबूलत :: (वि.) स्वीकृति पत्र।

कबूलबो :: (क्रि.) स्वीकार करना।

कबै :: (सर्व.) कब, किस समय, समयार्थक प्रश्नवाचक।

कबै :: (कहा.) कबसें राजा ईसुर भये, कोदों के दिन बिसर बये - छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँच कर डींग मारने लगे तब कहते हैं।

कब्ज :: (सं. पु.) पेट साफ न होना।

कब्जियत :: (सं. स्त्री.) मलावरोध, दस्त साफ न आना।

कभउँ :: (सर्व.) कभी, किसी समय, कभऊँ नाव गाड़ी पै, कभऊँ गाड़ी नावपै-भिन्न-भिन्न प्रकार के दो मनुष्यों को भी आपस में एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

कभउँ :: (कहा.) कभऊँ सक्कर घना, कभऊँ मुट्ठक चना - कभी खूब शक्कर और कबी केवल मुट्ठी भर चने, संसार में सब दिन एक से नहीं जाते, ईश्वर जो कुछ दे उसी में संतोष करना चाहिए।

कम :: (वि.) थोड़ा।

कम :: (कहा.) कम कूबत, गुस्सा ज्यादा - कमजोर आदमी को गुस्सा अधिक आता है।

कमउआ :: (सं. पु.) धन का उर्पाजन करके परिवार का पोषण करने वाला।

कमखाल :: (वि.) सोने और चांदी के जड़े तारों की सघन कढ़ाई वाला कपड़ा।

कमखाल :: (सं.) रूप में भी प्रयुक्त।

कमची :: (सं. स्त्री.) बाँस की पतली खपच्ची पतंग में लगने वाली बाँस की धनुषाकृति सींक, छाते की टाने या तार।

कमठा :: (सं. पु.) धनुष, कमान।

कमठानो :: (सं. पु.) काम करने का स्थान जहां उपकरण हो, साज सामान, कवि ठाकुर. वाज।

कमठी :: (सं. स्त्री.) कुछई, बांस की पतली छड़ी।

कमण्डला :: (सं. पु.) मटका, कुल्हड़, सिर।

कमती :: (सं. स्त्री.) कमी।

कमती :: (वि.) कम।

कमनियाँ :: (सं. पु.) धनुष, कोह की बनी कमनियाँ, छोटी कमान।

कमनैत :: (सं. पु.) कमान बाँधने वाला, तीरंदाज, कमान चढ़ाने वाला।

कमनैती :: (सं. स्त्री.) तीरंदाजी।

कमबो :: (क्रि. अ.) कम होना।

कमर :: (सं. स्त्री.) शरीर का मध्य भाग कटि।

कमरख :: (सं. स्त्री.) खट्टे मीठे स्वाद वाला एक उठे हुए पालो वाला फ ल, अधिक आर्द्रता वाले स्थानों में पाया जाता है, इसकी चटनी बनती है, पाँकदार लम्बे खट्टे फल।

कमरगड़ा :: (सं. पु.) कुम्हार लोगों द्वारा मिट्टी लाने का स्थान।

कमरतोई :: (सं. स्त्री.) सलूका आदि में कमर के घेर में लगने वाली पट्टी जो अंगरखे की चोली के नीचे कमर के घेर मं लगती है।

कमरथा :: (सं. पु.) अहीरों की एक जाति।

कमरबन्द :: (सं. पु.) पेटी, इजारन्द, कमर कसे हुए तैयार।

कमरयानों :: (सं. पु.) कुम्हारों रा मुहल्ला।

कमरा :: (सं. पु.) कम्बल, कमरिया, कमरेलुआ वालों वाली इल्ली।

कमरा :: (कहा.) कमरा कमरा की गाँठ नई लगत - कम्बल कम्बल की गाँठ नहीं लगती, बड़ों में समझौता कराना कठिन होता है।

कमरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा कम्बल, वर्षा से बचने के लिये कम्बल का बना दुपर्ती खोल, कमरा कमरा की गाँठ नई लागत।

कमरूआ :: (सं. पु.) जानवरों के कमर के नीचे का एक रोग।

कमरेलुआ :: (सं. पु.) कामला, फसलों तथा बड़े वृक्षों पर लगने वाली एक बालों वाली इल्ली जो सब पत्ते खा जाती है।

कमल :: (सं. पु.) जलज, पुष्प, लक्ष्मी का आसन।

कमलगटा :: (सं. पु.) कमल के बीज जो खाये जाते हैं और लक्ष्मी के जाप के लिये इनकी माला बनाई जाती है।

कमलपत्री :: (वि.) कमल के पत्त्ते के रंग जैसा।

कमलपत्री :: (सं. पु.) एक हल्का हरा रंग।

कमला :: (सं. स्त्री.) लक्ष्मी, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सन्तरा।

कमली :: (सं. स्त्री.) छोटा कम्बल लोकगीत.में प्रयुक्त।

कमवाना :: (क्रि.) दूसरे से कमाने का काम करना।

कमसिन :: (वि.) कम उम्र का।

कमाई :: (सं. स्त्री.) कमाने का काम, व्यापार, कमाया हुआ धन, उपार्जित धन।

कमाउ :: (वि.) कमाने वाला, धन उपार्जन करने वाला।

कमाच :: (सं. पु.) सारंगी बजाने की कमान।

कमान :: (सं. स्त्री.) धनुष, धनुषाकार, आकृति का निर्माण, मेहराब।

कमाना :: (क्रि. स.) रूपया पैदा करना, मजदूरी करना, काम करना।

कमानी :: (सं. स्त्री.) लोहे आदि की लचीली पत्ता या पट्टी, धनुषाकार डाट, स्प्रिंग।

कमानीदार :: (सं. पु.) कमान की तरह टेढ़ा।

कमाबौ :: (क्रि.) धन अर्जन करना, कमाना, उपार्जन करना।

कमाल :: (सं. पु.) चतुरता, परिपूर्णता।

कमाल :: (वि.) पूरा, चतुर, श्रेष्ठ, अप्रत्याशित कार्य।

कमास्तू :: (वि.) कमाने वाला, व्यंग्यार्थ।

कमी :: (सं. स्त्री.) अल्पता, अभाव।

कमीच :: (सं. स्त्री.) शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला वस्त्र।

कमीन :: (सं. पु.) गंदे पेशों से कमाने वाला, नीच, लक्षणार्थ, सेवा कार्य करने वाले लोग जैसे-नाई, ढ़ीमर, बढ़ई आदि, उदाहरण-कमीन न्यौतबो, विवाह, शादी आदि के अवसर पर कमीनों को विशेष रूप से न्यौतना।

कमीसन :: (वि.) कम आजकल तेजी से प्रचलित अर्थ, हिस्सा।

कमेरा :: (सं. पु.) मजदूर।

कमेलौ :: (वि.) काम करने वाला, काम में व्यवस्त रहने वाला, कमाई करने वाला, लोकगीत. सासू को लरका बड़ो कमैलौ, व्यंगार्थ।

कमौकमाव :: (वि.) पहले से तैयार कार्य जैसे-जोता बखरा पड़ा।

कम्पोटर :: (सं. पु.) कम्पाउण्डर।

कम्मर :: (सं. स्त्री.) कमर, उदाहरण-कम्मरपेटी-करधनी, कम्मरकसबो-किसी काम के किये तैयार, पक्का इरादा करना, कम्मर टूटबौ-हिम्मत पस्त होना, दिल बैठ जाना, कम्मर सीदी करबो-थकावट मिटाना, सुस्ताना, लेटना।

कम्मांच :: (सं. पु.) सांरगी की तरह का एक बाजा।

कयाम :: (सं. पु.) ठहरने की अवधि, ठिकाना, यकीन।

कयाय :: (सर्व.) क्या, कहो।

कर :: (सं. पु.) कर, टैक्स।

करइया :: (सं. स्त्री.) कढ़ाई।

करइया :: (पु.) करने वाला।

करए :: (सं. पु.) उड़द के फूलों के गुच्छे, कड़वे।

करओ :: (वि.) कड़वा, कटु, उदाहरण-बड़ौ करओ नीम है महराज, करअये दिन-पितृपक्ष के पन्द्रह दिन।

करकट :: (सं. पु.) कचरा।

करकट :: (मुहा.) कूरा करकट।

करकराट :: (सं. पु.) करकर की आवाज होना।

करकराट :: (मुहा.) करकर होबो।

करकराबौ :: (क्रि. स.) किसी वस्तु का दाँतों के नीचे रेत की तरह किरकिराना।

करकरो :: (वि.) बिना खोट के, बिना घिसा हुआ, टटोलने में रबेदार, खूब सिका हुआ, मजबूत।

करकसा :: (वि.) कठोर वाणी और स्वभाव वाली स्त्री।

करकें :: (अव्य.) किनारे पर अलग जहाँ पर, कुआँ बावरी।

करकोचलो :: (क्रि. स.) खुरचना, वस्तु खुरच कर छुटाना।

करकौ :: (सं. पु.) किनारा, तट, तीर, छोर, ऊँचा किनारा नदी का किनारा सामीप्य।

करखा :: (सं. पु.) कालिख, दाँत से फँसा हुआ तिनका निकालने की लोहे चाँदी की लकड़ी।

करगुहा :: (सं. पु.) बड़ी संसी।

करगेंतवा :: (सं. पु.) बालकों की कमर में बाँधा जाने वाला होरा।

करघा :: (सं. पु.) कपड़ा बुनने का यंत्र।

करघा :: (कहा.) करघा छोड़ तमासें जाए, नाहक चोट जलाहा खाये।

करछल :: (सं. स्त्री.) कालीगाय, हिरन।

करछली :: (सं. स्त्री.) दाल, तकरारी आदि टालने और परोसने का पीतल का बड़ा चमचा।

करछा :: (सं. पु.) करछुली, कलछा, करदी।

करछिली :: (सं. स्त्री.) करछुल, परोसने की बड़ी चम्मच।

करछौंह :: (वि.) कालिमा लिये हुए, काली सी।

करजा :: (सं. पु.) ऋण, उधारदार।

करंजुआ :: (सं. पु.) काले रंग का लम्बी पूछ वाला एक पक्षी, ढ़ोरों के सीगों में होने वाला एक रोग, करंजुवा के सींग पर बैठने से यह रोग होता है, जो कौए की जाति का होता है, इसके विषय में मान्यता है कि इसका बच्चा पहली उडान में जिस पेड़ पर बैठ जाता है वह सूख जाता है।

करतब :: (वि.) करतूत, काम करना, कर्म, गुणवाला।

करतब :: (सं. पु.) कर्त्तव्य, मिलावट करना, कोई हीन काम चुपचाप करना।

करतब :: (कहा.) करतब की विद्या है - विद्या अभ्यास करने से आती है।

करता :: (सं. पु.) एक प्रकार की मछली, घोड़े पर बोझा लादने का एक विशेष प्रकार का बोरा जिसके दो टुकड़े होते हैं प्रत्येक के मुँह पर रस्सी के फुंदने लगे रहते हैं जिनमें एक डण्डा डालकर घोड़े की पीठ पर इस तरह लाद देते हैं कि दोनों टुकड़े दोनों बगलों में पड़े रहते हैं।

करतार :: (सं. पु.) संसार का कर्ता ईश्वर।

करताल :: (सं. पु.) ताली बजाना, मंजीरा।

करतूत-करतूती :: (सं. स्त्री.) कर्म, करनी, कला, गुण, सदैव व्यंग्य में प्रयुक्त प्रयोग-जा तुमाई करतूत है, यह तुम्हारी करनी है, कृतित्व।

करतूतले :: (वि.) काम करने वाला, व्यंग्यार्थ।

करतूतलो :: (वि.) कर्म करने वाला।

करदोंनी :: (सं. स्त्री.) करधनी, कमर में पहिनने का आभूषण।

करदोंनी :: दे. कड्डोरा।

करधई :: (सं. स्त्री.) एक कटीला झाड़ीदार वृक्ष जिसके पत्त्ते चमड़ा रंगने के काम आते है।

करधनी :: (सं. स्त्री.) करधनी, करधौनी, कमर का एक आभूषण।

करन :: (सं. पु.) कर्ण, महाभारत का महादानी महारथी योद्ध।

करनी :: (सं. पु.) कर्म जीवन को उज्जवल या मलिन बनाने वाले काम।

करपा :: (सं. पु.) खेतों में उतनी फसल के ढेर जितनी एक जगह बैठे-बैठे कट जाती है।

करबरों :: (वि.) ऐसी वस्तु जो सूख कर कुछ मुलायम तथा कुछ कड़ी होकर आकार में विकृत हो जाती है।

करबी :: (सं. स्त्री.) दे. करब ज्वार की, कर्बी पशुओं के चारे के काम में लाई जाती है।

करबौ :: (क्रि.) करना संज्ञार्थक क्रिया।

करबौ :: (प्र.) ऊ ने कसम कर लऔ।

करबौ :: (कहा.) करिये मन की, सुनिये सब की - बात सबकी सुननी चाहिये, परन्तु करनी मन की चाहिये।

करम :: (सं. पु.) कर्म, भाग्य, भाग्य लेख वाला स्थान अर्थात ललाट।

करम :: (मुहा.) करम करबो, कार्य करना, करम ठोकबो, करम फू टबो-भाग्य का मन्द होना, करम या करमदण्ड भोगवो-किये का फल भोगना, करमन खौं कोसवो-भाग्य का दोष देना, करमन खौं रोबो-किये करमो के लिये पछताना, करम के ओछे या खोटे, अभागी, करमन के मारेभाग्य के सताये, करमन खाई, जिसे भाग्य ने नष्ट कर दिया हो स्त्रियों की एक गाली करम कर्ता-कार्य अकार्य करने वाला, काम को बिगाड़ देने बाला।

करम कुण्डया :: (वि.) कुन्द कर्मवाला, अभागा, हीन कर्मो के कारण दुर्भाग्य को बुलाने वाला, भाग्य को कोसने वाला निकम्मा।

करम कुण्डया :: (कहा.) करमहीन खेती करै, बैल मरें कै सूखा परै - कर्महीन के कोई कार्य सफल नहीं होते।

करमकल्ला :: (सं. पु.) बन्द गोभी।

करमकारी :: (सं. स्त्री.) कलम से किया काम।

करमगड़ा :: (सं. पु.) समान मतों या भाग्य के आधार पर निर्णय करने के लिये फेंकी जाने वाली कागज की गोलियाँ।

करमुँआँ :: (वि.) काले मुँह वाला, काले मुँह का बन्दर।

करमुँहा :: (वि.) काले मुँह वाला, कलंकी।

करया :: (सं. पु.) कमर तथा पुटठों के बीच का वह भाग जहाँ धोती बाँधी जाती है, बुन्देली में कमर के लिए प्रयुक्त।

करयाई :: (सं. स्त्री.) पीठ के नीचे का भाग।

करव :: (वि.) कडुवा।

करवा :: (सं. पु.) मिट्टी का एक दो लीटर समाई का छोटा घड़ा, डबला।

करवाचौथ :: (सं. स्त्री.) कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, सौभाग्य हेतु स्त्रियों का व्रत।

करश्मा :: (सं. पु.) चमत्कार।

करसी :: (सं. स्त्री.) कंडों के टुकड़े य चूरा जलाने के लिए अंगींठी।

करा :: (सं. पु.) करने वाला, उद्दमी।

कराइत :: (सं. पु.) काला साँप।

कराई :: (सं. स्त्री.) उर्द आदि की भूसी।

करात :: (सं. पु.) चार जौ की एक तोल।

करांदिया :: (सं. स्त्री.) छोटा आरा, अरिया।

कराना :: (क्रि. स.) करने में लगाना।

कराबा :: (क्रि. स.) अर्कआदि रखने का शीशे का बड़ा बर्तन।

करामात :: (वि.) चमत्कार, विशिष्ट कार्य।

करार :: (सं. पु.) निश्चय, ठहरावा, धैर्य, संतोष, वादा, नदी की कगार, मैं तो श्याम-कों टेरत कालिन्दी के करार, एक बड़ा काँटेदार वृक्ष जिससे गोंद निकलती है, करारगम, भोंदू गिरे करार से कोऊ न पूछन हार, नदी का ऊँची किनारा टीला।

करारा :: (सं. पु.) तेज, कठोर।

करारो :: (वि.) टटका, ताजा, मजबूत, तीव्र, खूब भुना हुआ पदार्थ।

करारो :: (ब. व.) करारे।

करारो :: (स्त्री.) करारी, करारे।

कराल :: (वि.) भयंकर बड़े दाँत वाला।

कराव :: (सं. पु.) बड़ी कड़ाही, गुड़ बनाने की कड़ाही जिसकी तली सीधी होती है।

कराह :: (सं. स्त्री.) कराहने का शब्द यह शब्द पुल्लिंग भी प्रयुक्त होता है।

करिगा :: (सं. पु.) वीर काव्य आल्हा का एक पात्र, करिंगा राय।

करियल :: (वि.) काला, काला नाग।

करिया :: (सं. पु.) पतवार, मल्लाह, कर्णधार, नदी के बहाव को रोकने वाला, काला साँप, नाव खेने के डाँड़।

करिया :: (कहा.) करिया के आँगे दिया नई जरत - धूर्त व्यक्ति के सामने किसी की नहीं चलती, लोगों का विश्वास है कि काले सर्प के आगे दीपक बुझ जाता है।

करिया :: (कहा.) करिया कौ मंत्र मिल जै, पै गड़ेता को नई मिलत - अतः धोखे से दोहरी मार मारने वाले व्यक्ति के लिए कहावत का प्रयोग करते हैं।

करी :: (सं. स्त्री.) टपकने के पूर्व पेड़ पर लगे हुए महुए, इमारतों में लगने वाली कड़ी, लोहे के गोल छल्ले म्यार, मकान की छत पाटने की चौकोर लंबी लकड़ी।

करीना :: (सं. पु.) ढंग, रीति, तर्ज, तरीका, सामान करीने से रखो।

करीब :: (क्रि. वि.) समीप, लगभग।

करीम :: (वि.) दयालु, ईश्वर।

करीर :: (सं. पु.) झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कंटीला और बिना पत्त्तों का पेड़, करील।

करील :: (सं. पु.) टेंटी का पेड़ या उसके फूल, जिसका अचार बनाया जाता है उदाहरण-काबुल में मेवा दियो ब्रज में दियो करील।

करू :: (सं. पु.) एक जल पक्षी, स्लेटी रंग का जिसका मोटा शरीर व गर्दन लम्बी होती है।

करूडबो :: (क्रि.) नाखून से जमीन खरोंचना।

करूला :: (सं. पु.) कुल्ला, उदाहरण-करूला करबो-पानी से मुँह साफ करना।

करेउटी :: (सं. स्त्री.) काले रंग की एक मछली।

करेज :: (सं. पु.) एक बेल और उसकी फली, फली के लग जाने से बदन में खुजली होती है, इसके बीज खांसी की दवा के काम आते हैं।

करेजी :: (सं. स्त्री.) बकरे आदि के कलेजे का नरम हिस्सा।

करेजो :: (सं. पु.) प्राणियों का एक भीतरी अवयव जो सीने के अंदर बायीं ओर होता है, कलेजा, हिम्मत, दम।

करेजो :: (मुहा.) करेजो जलाबो-कष्ट पहुँचाना, करेजो ठंडो होबो-मन को शान्ति मिलना, करेजो निकार के रख देवे अतिप्रिय वस्तु अर्पण कर देना, जान दे देना, सारी शक्ति लगा देना, करेजो फट जाबो-किसी के दुख से ह्दय विदीर्ण होना, करेजे में-अपनी अंतरात्मा में, करेजे से लगावो-छाती से चिपटा लेना।

करेब :: (सं. पु.) बहुत बारीक एक ही रंग फूलों की बुनावट का सूती या रेशमी कपड़ा, जायदानी।

करेरो :: (वि.) दृढ़, कठोर, कठिन।

करेला :: (सं. पु.) एक प्रकार की बेल या उसका फल जिसका साक बनता है, करेला के आका र के माला के लंबे दाने या बेल बूटे।

करेला :: (कहा.) करेला और नीम चढ़ो - एक तो किसी मनुष्य का स्वभाव पहले से ही खराब हो और फिर कुसंगत में पड़ कर अथवा ऊँचा पद पाकर वह और भी खराब हो जाए तब कहते हैं।

करेली :: (सं. स्त्री.) छोटे फल का जंगली करेला।

करैंत :: (सं. पु.) काला साँप, एक जहरीला साँप जिस पर काली और सफेद अथवा काली और पीली धारियाँ होती है जो फ णधर से अधिक विषैला माना जाता है, गड़ैता।

करैया :: (सं. स्त्री.) कढ़ाही।

करैया :: दे. करइया।

करैल :: (सं. स्त्री.) तालाब की काली मिट्टी।

करोंटा :: (सं. स्त्री.) करवट।

करोंटा :: (मुहा.) करौटा लैबो-पलटना, बदलना करौंट खा जाबो-कही हुई बात से मुकर जाना, करौंट देबो-बदल जाना, धोखा देना, उदाहरण-अबकी दै गयी साल करौंटा, ई करौंटा न लैबो-चुप रहना, ध्यान न देना, सन्नाटा खींच लेना।

करोदना :: (क्रि. स.) खुरचना।

करोदयाउ :: (वि.) करौंदे के समान।

करोध :: (सं. पु.) कोप, गुस्सा।

करोधनी :: (सं. स्त्री.) करधनी, करधोनी।

करोधी :: (वि.) क्रोध करने वाला जिसे जल्द गुस्सा आ जाय, गुस्सैल।

करोर :: (वि. सौ.) लाख, करोड़, एक कोट।

करोरबो :: (क्रि.) खरोंचना।

करौ कराव :: (क्रि. वि.) किया हुआ।

करौ धरौ :: (क्रि. वि. यो.) क्रिया, कराया काम।

करौंदा :: (सं. पु.) एक छोटा और झाड़ीदार कँटीला वृक्ष, जिसके खट्टे फल अचार, मुरब्बा चटनी बनाने के काम आते हैं, एक जंगली झाड़ी जिसमें धुँधली बराबर काले रंग के फल लगते हैं, जो खाने में खटमिट्टे व स्वादिष्ट होते हैं, करौंदी।

करौंदी :: (सं. स्त्री.) एक जंगली झाड़ी।

करौंदी :: दे. करौंदा।

करौला :: (सं. पु.) दुर्गा की एक अधिक उपासक जाति, उदाहरण-करौला माई।

करौली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की छुरी।

कर्जा :: (सं. पु.) कर्ज, उधार लिया हा द्रव्य।

कर्रयाबो :: (क्रि. अ.) कड़ा पड़ना, नाराज होना, कुड़कुड़ाना।

कर्रा :: (सं. पु.) बड़े दानों की कई की एक जाति, जाड़े में खेतों में जम जाने वाली ओस जो प्रातः सफेद दिखती है ऐसी स्थिति में हवा चल जाती है तो फसल को पाला मार जाता है।

कर्रा-कौरी :: (सं. स्त्री.) सख्त मुलायम बातचीत, मैं-मैं, तू-तू।

कर्रा-कौरी :: (मुहा.) कर्रा कौरी होबो-वार्तालाप में झगड़े की नौबत आजाना।

कर्री :: (वि.) ठोस, मजूबत, सख्त।

कर्री :: (सं. स्त्री.) हिम्मत।

कर्री :: (मुहा.) कर्री करबो-साहस से काम लेना, कर्री खाबो-कड़ी ठोकर खा जाना, कर्री कैबो-खरी खोटी कहना।

कर्रे :: (क्रि. वि.) जोर से कड़ाई के साथ।

कर्रो :: (वि.) ठोस, मजबूत निर्दयी, कठोर।

कल :: (सं. पु.) चैन, आराम, सुख, उदाहरण-कल न परत दिन राती-सूर, उदाहरण-कल न परत काल को ढूँढ़त-ईसुरी, कल न लैबो-धैर्य धारण न करना, कल न लैन दै बो-चैन न लेने देना।

कलइया :: (सं. स्त्री.) दाव, कुश्ती में कला, गोटे की लड़, कुलॉट, कलाबाजी।

कलई :: (सं. स्त्री.) ऊपरी चमक, पोल।

कलई :: (मुहा.) कलई खुलबौ, रांगे का मुलम्मा जो तांबे या पीतल के बर्तनों पर किया जाता है, पॉलिस, चूना, बर्तन इत्यादि पर लगाया जाने वाला राँगे और सीसे का मिश्रित लेप, बाहरी चमक-दमक, चूना, चूने का लेप, सफे दी।

कलई :: (मुहा.) कलई खुलबो, उधरबो-असली बात सामने आ जाना, पुराने महल पै कलई करबौ-जीर्ण शीर्ण वस्तु को नई बनाने की चेष्टा करना।

कलईदार :: (वि.) कलई किया हुआ।

कलक :: (सं. पु.) मानसिक कष्ट, ममता या विवेकजन्य पश्चाताप, बैचेनी, उदाहरण-कलकान करबो-परेशान करना।

कलंक :: (सं. पु.) दोष।

कलंकी :: (वि.) जिसे कलंक लगा हो, काले मुँह वाला, कलमुँहा।

कलगी :: (सं. स्त्री.) साफे पर लगाई जाने वाली रत्न जड़ित कलगी, घोड़े के सिर पर शोभा के लिये लगाई जाने वाली पंखो की कलगी, ख्याल गायन में एक पक्ष, रकाल कहने की एक तर्ज।

कलछा :: (सं. पु.) बड़ी चम्मच या बड़ी कलछी।

कलछुरी :: (सं. स्त्री.) दे. करछली।

कलजुग :: (सं. पु.) कलियुग, कलिकाल, कृतयुग।

कलट्टर :: (सं. पु.) जिले में माल का सबसे बड़ा अफसर, कलक्टर।

कलंडर :: (सं. पु.) अँग्रेजी तिथि पत्र।

कलंदरा :: (सं. पु.) एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।

कलदार :: (सं. पु.) रूपया जो ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाया गया।

कलधोत :: (वि.) स्वच्छ सुन्दर घुला हुआ।

कलन :: (सं. पु.) पूजा के लिए पानी भरकर रकबा बर्तन।

कलपबो :: (क्रि.) मानसिक कष्ट के कारण तड़पना, विलाप करना, दुख करना, अटकल लगाना, काट-छाँट करना, बिसूरना, दुख पाना, आह भरना, बिलखना, उदाहरण-करमहीन कलपत रहे कल्पवृक्ष की छाँय-तुलसीदास।

कलपावो :: (स. क्रि.) सताना, रूलाना, दुख देना, तरसाना।

कलफ :: (सं. पु.) कपड़ों में लगायी जाने वाली मांड़ी कलफी, मांड़ी लगा कपड़ा, चॉवल या अरारोट के पतले लेप से तैयार कपड़ा।

कलबता :: (सं. पु.) लकड़ी का वह साँचा जिससे जूते का आकार ठीक करते हैं।

कलबाँस :: (सं. स्त्री.) मछली की एक जाति।

कलम :: (सं. स्त्री.) सुलेख के लिये बर्रू की लेखनी, कूची सोने चांदी पर छिलाई करने के लिये बारीक छेनी, नया पौधा बनाने के लिये किसी पौधे की डाल जैसे गुलाब आदि की कलम करना, काटना, कलम से तैयार किया हुआ पौधा, कलम काड़बौ-कलम बनाना, चितेरो की रंग भरने की कूंची, कलम करबौ-सिर धड़ से अलग करना, कलम कसाई-कलम से अन्याय करने वाला, पढ़ लिखकर हानि पहुँचाने वाले मुन्शी आदि, कलम दान-दबात आदि रखने का डिब्बा।

कलमकसाई :: (सं. पु.) कलम से कसाई का काम करने वाला, पढ़ लिख कर दूसरों को हानि पहुँचाने वाला।

कलयारौ :: (वि.) कलियोंदार, विशेषकर अच्छी तरह जले हुए लूघर का विशेषण।

कलरिया :: (सं. स्त्री.) कलार जाति की स्त्री।

कलवल :: (सं. पु.) यंत्र आदि का बल, उपाय।

कलस :: (सं. पु.) घट, घड़ा, कलसा, मंदिर आदि का शिखर।

कलसा :: (सं. पु.) लोहे पीतल आदि का घड़ा।

कलसिया :: (सं. स्त्री.) छोटा घड़ा, गगरा, छोटा कंगूरा का कलस।

कलही :: (वि. स्त्री.) चन्द्रमा का सोलहवां अंश शिल्प आदि की विद्या, हुनर, गुण, शोभा, खेल, तेज।

कला :: (सं. स्त्री.) चन्द्रमा की सोलह कलायें, शिल्प, कारीगरी, अंश, सूद, ब्याज, नटों का काम, चौंसठ कलायें, मल्ल युद्ध आदि।

कलाँ :: (वि.) बड़ा, अधिकतर एक नाम के दो ग्रामों में भेद करने के ले प्रयुक्त।

कलाई :: (सं. स्त्री.) हाथ का पहुँचा, सूत की लच्छी, हाथी के गले का डोरा, हाथ और भुजा का मिलन स्थल, कलइया ( लोकगीत )।

कलाउत :: (सं. पु.) कलावन्त रण्डियों के गाने के साथ वाद्ययंत्र बजाने वाले साजिन्दे।

कलाकन्द :: (सं. पु.) खोए की बर्फी।

कलार :: (सं. पु.) शराब का धन्धा करने वाला।

कलारबौ :: (क्रि.) शारीरिक पीड़ा के कारण निःश्वास के साथ ऊँ या हूँ, की लम्बित ध्वनि निकालना।

कलारौ :: (सं. स्त्री.) शराब की दुकान।

कलावन्ती :: (सं. स्त्री.) चतुर स्त्री प्रायः व्यंग्य में कहते हैं, झगड़ालू औरत।

कलावा :: (सं. पु.) सूत का लच्छा, पूजन, विवाहादि, शुभ अवसर पर पीला रंगा हुआ हाथ में बाँधने का सूत का डोरा, हाथी की गरदन।

कलासी :: (सं. स्त्री.) गाड़ी के पहिये की गोलाई. पहिये की गोलाई को ठीक करने का औजार।

कलिआ :: (सं. पु.) गोश्त।

कली :: (सं. स्त्री.) फूल की पंखुड़ी, आम की फाँक एक चिलम के योग्य गाँजे का भाग, लहँगे के घुमाव के खण्ड, त्रिकोणाकृति वस्त्र खण्ड।

कली :: (मुहा.) कली डारबो, जोरबो, लगाबो, कलियाँ डालकर सीना।

कलींदा :: (सं. पु.) तरबूज।

कलुआ :: (वि.) काले रंग का।

कलुरवा :: (सं. पु.) गाय का जवान बछड़ा।

कलुरिया :: (सं. स्त्री.) ऐसी जवान गाय जो ग्याभन न हुई हो, व्यंग्य में जवान स्त्री को भी कहते हैं।

कलूट :: (वि.) काला व्यंग्यार्थ।

कलूट :: (स्त्री.) कलूटी, कलूटा-बहुत काले रंग का।

कलेऊ :: (सं. पु.) कलेवा, विवाह के समय वर का भोजन।

कलेजी :: (सं. पु.) पशु के ह्दय का माँस।

कलेना :: (सं. पु.) एक वनस्पति।

कलेस :: (सं. पु.) क्लेश, कष्ट, पीड़ा।

कलेस :: (कहा.) पदरेस कलेस नरेसन खों।

कलैबो :: (क्रि. स.) अचार रखना।

कलैबो :: (प्र.) आम कलैलौ-आम का आचार रख लो।

कलैया :: (सं. स्त्री.) दे. कलइया।

कलोर :: (सं. स्त्री.) दे. कलुरिया।

कल्थवो :: (क्रि. अ.) बैचेन होकर करवट बदलना।

कल्दार :: (सं. पु.) चाँदी का रूपया।

कल्यान :: (सं. पु.) कल्याण, चौपट करने के व्यंग्यार्थ में भी प्रयुक्त।

कल्ल :: (सर्व.) जलन, चिनमिनाहट, संताप।

कल्लाबौ :: (क्रि. अ.) किसी स्थान पर छुल जाने से चिनमिनाहट होना, चोट का दर्द होना, दुख होना।

कल्लू :: (वि.) काला।

कल्लौ :: (सं. पु.) मिट्टी का तबा, बिना मुँह का कच्चा घड़ा जो मॉडे बनाने के काम आता है।

कल्लौट :: (सं. पु.) प्रलय, महानाश।

कल्लौनिया :: (सं. स्त्री.) चिन्ता, फिक्र।

कल्स :: (सं. पु.) कलश, तरके ऊपर घड़ा, मंदिर का सिरोभग पर लगाया जाने वाला सोने, चांदी अथवा पीतल का शंकु।

कल्हारबौ :: (वि.) दे. कलारबौ।

कवैया :: (सं. पु.) कहने को दिखिये-कबइया।

कस :: (सं. पु.) कष्ट।

कंस :: (सं. पु.) श्री कृष्ण का मामा, मथुरा के राजा उग्रसेन का बेटा, दुष्ट मामा, व्यंग्यार्थ।

कंस :: (मुहा.) कंस-कड़ोरन-बुरी तरह घसीटा जाना।

कसई :: (सं. स्त्री.) पानी में पैदा होने वाली मजबूत और छोटे-छोटे पत्त्तों वाली बेलें।

कसक-कलकन :: (सं. स्त्री.) हल्की पीड़ा, टीस।

कसकना :: (क्रि. अ.) मन्द पीड़ा होना, दुखना, बुरा लगना, रह-रहकर पीड़ा होना।

कसकवंत :: (वि.) दूसरों का दुख अनुभव करने वाला, रूपवंत आदमी कसकवंत होतो कहूँ, ठाकुर।

कसका :: (सं. पु.) मकान की कुर्सी के किनारों का वह भाग जिसे छोड़कर दीवार बनायी जाती है।

कसकुट :: (सं. पु.) काँसे की एक किस्म जो कम वजन की होती है। एक धातु।

कसकौ :: (सं. पु.) नाप से छोटा, कसंता हुआ।

कसगर :: (सं. पु.) मिट्टी के खिलौने तथा अतिशबाजी बनाने वाली एक जाति।

कसन :: (सं. स्त्री.) गाड़ी पर घास आदि बांधने के लिये बड़ा रस्सा।

कसना :: (क्रि.) बाँधते समय रस्सी आदि को खींचना, तानना, जकड़ना, दबाना, घोड़े हाथी को सुसज्जित करना, सोने को कसोटी पर घिसना। कसना।

कसना :: (सं. पु.) कसन से अधिक मोटा तथा मजबूत रस्सा।

कसब :: (सं. पु.) एक प्रकार कर रेशमी वस्त्र।

कसबा :: (सं. पु.) बड़ा ग्राम।

कसबी :: (सं. पु.) सोने के तार लगा कपड़ा जरकसी।

कसम :: (सं. स्त्री.) शपथ, दुहाई।

कसमखावो :: (क्रि.) किसी बात के करने या न करने की प्रतिज्ञा करना।

कसमसाना :: (क्रि. अ.) खलबलाना, व्याकुल होना बुलबुलाना।

कसमसाहट :: (सं. स्त्री.) व्यग्राता, घबड़ाहट।

कसमीरा :: (सं. पु.) सूती ताने और ऊनी बाने का बुना हुआ मोटा किस्म का कपड़ा।

कसयाबो :: (क्रि.) कांसे के बर्तन में घी तेल या खट्टा पदार्थ रखने पर उसमें धातु की प्रतिक्रिया से स्वाद बिगड़ना।

कसर :: (सं. स्त्री.) कमी।

कसरत :: (सं. स्त्री.) शरीर को पुष्ट बलवान बनाने वाली क्रियाएँ।

कसरती :: (वि.) परिश्रमी, व्यायाम करने वाला।

कंसरा-कंसला :: (सं. पु.) कनस्टर, टीन का पीपा।

कसला :: (सं. पु.) कटोरे के आकार का मिट्टी का बर्तन।

कंसहड़ी :: (सं. स्त्री.) देगची या बटलोही के आकार का एक बर्तन।

कसाई :: (सं. पु.) पशु वध कर मांस का धन्धा करने वाला दुष्ट निर्मम, घातक, निष्ठुर, निर्दय, क्रूरह्दय, लक्षणार्थ।

कसाई :: (कहा.) कसाई को सुकैनों और पड़ा खा जाए - कसाई का धूप में सूखने डाला गया अनाज जानवर खा जाए, यह कैसे संभव है ? टेढ़े आदमी का अनिष्ट करने से सब डरते हैं।

कसाई :: (कहा.) कसाई को सुकैनों और पड़ा खा जाए - कसाई का धूप में सूखने डाला गया अनाज जानवर खा जाए, यह कैसे संभव है ? टेढ़े आदमी का अनिष्ट करने से सब डरते हैं।

कसाईपन :: (सं. पु.) दुष्टता, क्रूरता।

कसाना :: (क्रि. अ.) कसैला हो जाना, बिगड़ जाना।

कसाबट :: (सं. स्त्री.) खिचावट।

कसार :: (सं. पु.) घी में भुँजा तथा शक्कर या गुड़ मिलाया हुआ आटा।

कसालौ :: (सं. पु.) काम करने से होने वाला कष्ट।

कंसिया :: (सं. स्त्री.) दाना निकला हुआ मक्के का भुट्टा।

कंसुआ :: (सं. पु.) कांसे के रंग का एक कीड़ा जो ईख, ज्वार, बाजरे आदि की फसल को हानि पहुँचाता है।

कंसुर :: (वि.) बेसुरी, जिसके स्वर ठीक न निकलते हों।

कंसुला :: (सं. पु.) काँसे का गड्ढा किया हुआ पासा जिसमें ठोंक कर सुनार घुंघरू आदि बनाते हैं, कंजुली, छोटी कंसुला।

कसूड़वो :: (क्रि.) कांस की गूंजी से रगड़कर मिट्टी के बर्तन को अंदर से साफ करना।

कसूर :: (सं. पु.) कसूर, अपराध।

कंसेड़िया :: (सं. स्त्री.) पीतल का एक प्रकार का बड़ा कलसा।

कसेरा :: (सं. पु.) धातु के बर्तन बेचने वाला, कांस के बर्तन बनाने वाला।

कसेरूआ :: (सं. पु.) तालाबों की जमीन में होने वाले छोटे छोटे कन्द मीठे स्वादिष्ट और तासीर में ठंडे होते हैं।

कसैड़िया :: (सं. स्त्री.) काँसे या पीतल का मझोले आकार का घड़ा।

कसैला :: (वि.) कषाय स्वाद का, जीभ को ऐंठने वाला, काँसे के बर्तन में रखे हुए पदार्थ में काँसे की गंध।

कसौटी :: (सं. स्त्री.) एक काला पत्थर जिस पर सोना घिसकर परखा जाता है, परख जाँच।

कसौरी :: (सं. स्त्री.) कांस का घूला।

कसौली :: (सं. स्त्री.) कांस की बनी डलिया।

कस्तवार :: (सं. पु.) गहोई वैश्यों का एक उपजातीय वर्ग।

कस्तूरी :: (सं. स्त्री.) हिरण की नाभि से प्राप्त होने वाला सुंगन्धित पदार्थ।

कहउआ :: (सं. पु.) बुलावा, सन्देश, सन्देशवाहक।

कहरवा :: (सं. पु.) संगीत का एक ताल, दादरा।

कहलकारी :: (वि.) झगड़ालू।

कहानियाँ :: (सं. स्त्री.) कहानी, कथा, आख्यायिका, कहानी का बुहवचन।

कहाँय :: (सर्व. अव्य.) कहाँ, किधर, किस जगह।

कहार :: (सं. पु.) एक हिन्दू जाति जो प्रायः डोली ढ़ोने, पानी भरने आदि के काम करती है, कहार।

कहास :: (सं. पु.) खबर, आज्ञा।

कहूँ :: (सर्व.) कहीं, कऊँ।

कंहूँ :: (सर्व.) कहीं, अधिकांश खटोली उपबोली में प्रयुक्त।

कहे :: (सर्व. अव्य.) क्यों, किस, कारण।

का :: (सर्व.) क्या, का है, क्या है।

काँ :: (सर्व. अव्य.) किस जगह, कहाँ, किधर।

काँ :: (कहा.) काँ राजा भोज, काँ ठूँठा तेली - कहाँ राजा भोज, कहाँ डूँठा तेली, उदाहरण-काँ राम राम काँ टें टें-जहाँ दो बातों की कोई तुलना न की जा सके, एक अधिक अच्छी और दूसरी नितान्त बुरी हो।

काँ को :: (सर्व.) कैसा, व्यर्थ का।

काइया :: (सं. पु.) बैंतदार लोहे का गज हथौड़ी लगा औजार, जड़ाई करने में रांगे को पिघलाने के काम आता है।

काँइया :: (वि.) चालाक, भाँपने वाला, बदमाश, अर्थ का अनर्थ लगाने वाला, चालाक।

काइल :: (वि.) लल्जित, समर्पित, शर्मिन्द।

काई :: (सं. स्त्री.) पानी या झील में रहने वाली पत्थर आदि पर जमने वाली बारीक रेशे जैसी घास।

काउ :: (सर्व.) किसी, कोई।

काउ :: (कहा.) काउ की ऐसी तैसी - किसी को गाली देना।

काउ :: (कहा.) काउ की बउ कोउ बरा बदलावै - बुरी नियत से परायी जिम्मेदारी वहन करना।

काउ :: (कहा.) काउ के लाने जीउ देबो - किसी को अत्याधिक स्नेह करना।

काउ :: (कहा.) काउ के संगै मौ कारो करबो - किसी के साथ व्यभिचार करना।

काउ :: (कहा.) काउ के सिरे देवता आबो - किसी पर देवता या प्रेत का प्रभाव होना।

काउ :: (कहा.) काउ के हातन बिकबो - किसी के वश में होना।

काउ :: (कहा.) काउ सों परबो - रूप प्रकृति में किसी की तरह होना।

काउ :: (कहा.) काऊ की बऊ कोऊ बरा बदलावे।

काउतरा :: (सर्व.) किसी प्रकार।

काउनी :: (सं. स्त्री.) एक अनाज इसका दाना छोटा पीले रंग का होता है जो कूट कर चावल निकालकर खाते, काकुन।

काँउर :: (सं. स्त्री.) काँवर, कंधे पर बोझ ढोने का तराजूनुमा साधन।

काँउर काठी :: (सं. पु.) स्त्रियों का आभूषण।

काए :: (सर्व.) क्यों, किसलिये।

काकई :: (सर्व.) क्या कहा, क्या बोला।

काँकरे :: (सं. पु.) खैर की छिपटियाँ जो प्रसूता के पीने के पानी में डालकर पिलाई जाती है।

काँकरेजू :: (वि.) एक रंग जो कत्थई से तोड़ा और अधिक गहरा होता है, लाल और नीला रंग मिला हुआ।

काका :: (सं. पु.) काकुल, चाचा, उदाहरण-बना के काकुल को बड़ो परवार सजत बेरा हो रई महाहाज, बन्ना।

काकी :: (सं. स्त्री.) चाची, काका की पत्नी।

काँके :: (सं. पु.) खैर वृक्ष की छोटी पतली लकड़ियाँ।

काकेर :: (सं. पु.) पान की किस्म।

काकौं :: (सर्व.) किसकी-बहिन कौन की काकौं भाई।

काँख :: (सं. स्त्री.) शरीर से भुजा के जोड़ का भीतरी भाग।

काँख :: (मुहा.) काँख में लरका गाँव में टेर।

काँखरी :: (सं. स्त्री.) काँख शरीर से भुजा के जोड़ का भीतरी भाग, हाथ के जोड़ की नीचे की जगह।

काँखवो :: (क्रि.) पीड़ा के कारण निः श्वास के साथ अंह उँह की ध्वनि निकलना, कराहना।

काँखें :: (सं. स्त्री.) जब बच्चा पैदा होता है तब स्त्रियों को कुछ दिन तक पनी के स्थान पर एक काढ़ा पिलाया जाता है, इसमें डाली जाने वाली खैर की सार की छिपटियाँ।

कागज :: (सं. पु.) सन, रूई आदि का सड़ाकर बनाई हुई पत्त्ती जिस पर लिखते हैं।

कागजात :: (सं. पु.) कागज पत्र, दस्तावेज फाइल।

कागद :: (सं. पु.) कागज, लेख, प्रमाण पत्र।

कागदी :: (वि.) कागज संबंधी, पतले छिलके वाला।

कागर :: (सं. पु.) कागज, चिड़ियों के मुलायम पर, पतले छिलके वाला।

कागा :: (सं. पु.) कौवा, उदाहरण-काग बिडारबो-कौआ भगाना।

कागौर :: (सं. स्त्री.) पितृपक्ष में पितरों को समर्पित की जाने वाली बलि का अन्न।

काचबो :: (स. क्रि.) अलग करना, तराशना, टुकड़े करना, हटाना, कम कर देना, काटना, विच्छेद करना, विभाजित करना।

काछ :: (सं. पु.) जाँघ के जोड, धोती की लाग।

काछना :: (क्रि. स.) काछ लगाना, धोती बाँधना।

काछनी :: (सं. स्त्री.) दोनों टांगों की पीछे खोंस कर पहनी हुई धोती।

काछया :: (सं. पु.) काछी जाति।

काछी :: (सं. पु.) शाकभाजी बोने और बेचने वाली जाति, कुशवाह।

काजर :: (सं. पु.) काजल, नेत्र शोभा के लिये विशेष विधि से बनाया जाने वाला काला पदार्थ, मित्रों के आरोग्य में भी सहायक माना जाता है, उदाहरण-काजर पारबो-दिये की लौ पर कोई पात्र रखकर कालिख जमा करना।

काजी :: (सं. पु.) मुसलमान धर्म के पंच।

काट :: (सं. पु.) किसी बात को काटने वाला, तर्क, आभूषणों पर छिलाई, ताश की तुरूप, काटने का तरीका, डिजाइन।

काटन :: (सं. पु.) खेतों में झाड़ झंखाड़ काटने से एकत्रित कचरा, काटने के फलस्वरूप कचरा।

काटना :: (क्रि. स.) किसी वस्तु के दो-दो भाग करना, कम करना, बध करना।

कांटा :: (सं. पु.) कंटक, खाट, कुंए में गिरे हुए बर्तन निकालने की अंकड़ी, तराजू, तौल बताने की सुई, पाश्चात्य लोगों के खाना खाने का औजार, कसौटी, कोई नुकीली वस्तु।

काँटे :: (सं. पु.) बक्सुआ, लटकाने या पकड़ने की वस्तु।

काँटेदार :: (वि.) काँटा लगा हुआ।

काँटौ :: (सं. पु.) काँटा मछली पकड़ने की करिआ अंकुसो का समूह जिसमें कुए में गिरी हुयी वस्तु को निकालते हैं, तराजू-काँटो।

काठ :: (सं. पु.) लकड़ी।

काठिया :: (सं. पु.) घोड़े की एक जाति।

काठी :: (सं. स्त्री.) शरीर का गठन, जीना, ऊँट पर कसी जाने वाली जीन।

काँठी :: (सं. स्त्री.) ऊँट की पीठ पर बैठने के लिये रखा जाने वाला लकड़ी का ढाँचा, शरीर का ढाँचा।

काँठो :: (सं. पु.) जहाँ से पूँछ आरम्भ होती है, कांठ में पूछ नइयाँ चेरया नाव।

काड़नी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी का एक औजार इससे बांस सीधा किया जाता है।

काड़बो :: (क्रि. स.) निकालना, बाहर लाना, बेल बूटे बनाना, ऋण लेना, नये बैल को जुतने के योग्य प्रशिक्षण देना एवं अभ्यास कराना।

काँडरे :: (सं. स्त्री.) मूली के पौधे का डण्ठल।

काँडा :: (सं. पु.) एक विशेष नृत्य जो धोबियों की शादी में दुल्हा का फूफा या कोई अन्य मान्य व्यक्ति मध्य युगीन पोशाक पहनकर कर केंकड़िया बजाता हुआ नाचता है।

काड़ौ :: (सं. पु.) क्वाथ, काढ़ा, जड़ी बूटियों को उबाल कर बनायी हुयी पेय दवा।

काढ़ना :: (क्रि. स.) निकालना, बाहर करना, अलग करना, बेलबूटे बनाना, उधार लेना काढ़ा बनाना, पकाना।

काढ़ा :: (सं. पु.) औषधि डालकर उबाला हुआ पानी काथ, क्वाथ।

कात :: (क्रि.) कहना।

कांत :: (सं. पु.) चर्मरोगों का एक औजार जो चमड़ा लोकने के काम आता है।

कातक :: (सं. पु.) कार्तिक मास, कार्तिक माह।

कातबो :: (क्रि. स.) चरखे या तकली पर रूई या ऊन इत्यादि के धागे निकालना, सूत बनाना, या रस्सी, बनाने के लिये सन आदि कातना।

कातर :: (वि.) पश्चाताप, दैन्य, विवशता के कारण हीनावस्था।

कातरना :: (सं. स्त्री.) भीरूता, डरपोक, अधीरता दीनता।

काँतरे :: (सं. स्त्री.) कीड़ा, काँतर के कँटीले पैर जो संख्या में बहुत होते है।

कातिल :: (वि.) घातक।

काँद :: (सं. पु.) प्याज की तरह बनावट की एक वस्तु जो कोरियों के काम आती है।

कांद :: (सं. पु.) घास या गेहूँ धान आदि के पौधे को जड़ों को कंधे पर लेना।

कांदी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की घास, दूब, घास।

काँदो :: (सं. पु.) दल-दल, रतालू प्याज, कोई भी कन्द।

काँदौर :: (सं. स्त्री.) बैलों की पीठ के अग्रभाग का उठा हुआ भाग, डीला।

कान :: (सं. पु.) सुनने की इन्द्रिय, इसका शुद्ध रूप है कर्ण, कान ऐठवो-दण्ड या चेतावनी देने के लिये कान मरोड़ना, कान काटवो-आगे बढ़ जाना, कान को कच्चो-जो कुछ सुने उस पर बिना विचार किये विश्वास कर लेना, कान खजूरो-एक कीड़ा जो प्रायः कान में घुसता है, कान खुलबो-सजग होना, कान देबो-ध्यान से सुनना, कान पकरबो-तोबा करना, आगे के लिये सचेत हो जाना, कान फूँकबो-दीक्षा देना, गुरू मंत्र देना, कान भरना, कान भरबो-किसी के विषय में किसी की धारणा बिगाड़देना, कान मरोड़बो-कान पकड़ना, काने में तेल डारबो-सुनकर भी ध्यान न देना।

कान :: (कहा.) कान छिदाय सो गुर खाय - जो कष्ट उठायेगा उसे आराम भी मिलेगा।

कान :: (कहा.) कान में ठेंठे लगा लये - अर्थात किसी की बात नहीं सुनना। अथवा सब ओर से तटस्थ हैं।

कान :: (कहा.) कान में ठेंठे लगा लये - अर्थात किसी की बात नहीं सुनना। अथवा सब ओर से तटस्थ हैं।

काँन :: (सं. पु.) कर्ण, श्रवण अंग, कपड़े के अर्ज की तिरछी स्थिति।

कानखजूरौ :: (सं. पु.) लगभग आधा इंच का एक कीड़ा जिसके बहुत से पैर होते हैं ऐसा विश्वास है कि जमीन पर लेटने में घुस जाता है।

कानखजूरौ :: (कहा.) कानखूजरे कौ एक गोड़ो टूट जाये ता लूलौ नई हो जात - कानखजूरे का एक पैर टूट जाय तो वह लँगड़ा नहीं हो जाता बड़े आदमी का यदि थोड़ा बहुत नुकसान हो जाय तो वह उसे नहीं अखरता।

कांनची :: (सं. पु.) काना।

कानन :: (सं. पु.) वन, जंगल, एकान्त में बना घर।

काँनस :: (सं. स्त्री.) कार्निस दीवार की सतह पर उठा हुआ भाग।

काना :: (वि.) एक आँख वाला, कीड़ों से खाया हुआ इसका शुभ रूप, कण।

काना :: (कहा.) कानी अपनो टेंट तौ निहारै नई, औरन की फुली पर पर झांके, आँख पर एक उभरा मांस - पिंड, आँख पर का सफेद धब्बा जो चोट लगने अथवा चेचक में आँख के नष्ट होने पर पैदा हो जाता है। कानी-अपना टेंट तो देखती नहीं, दूसरे की फुली लेट लेट कर झाँकती है। स्वयं अपना दोष न देख कर दूसरे की साधारण त्रुटि को देखते फिरना।

काना :: (कहा.) कानी के ब्याव में सौ जोखों जिस कार्य के पूरा होने में शंका हो उसमें विध्न भी बहुत पड़ते हैं।।

काना :: (कहा.) कानी खों कानोई प्यारो, रानी खों राजा प्यारो - अपना आदमी सबको प्यारा होता है।

कांना :: (सं. पु.) कृष्ण, कन्हैया, एकाक्ष, काना।

कानाउत :: (सं. स्त्री.) लोकोक्तियाँ, कहावत।

कानाकानी :: (सं. स्त्री.) धीरे से कान से कही बात, गुप्त वार्ता।

कानाबाती :: (सं. स्त्री.) कान में कही जाने वाली बात, बच्चों को हँसाने के लिये उनके कान में कानाबाती करना।

कांनियाँ :: (सं. स्त्री.) कहानी, किस्सा।

काँनी भौत :: (सं. स्त्री.) कांजी हाउस, पशुओं का बन्दीगृह।

कानून :: (सं. पु.) विधि, राजनियम, आईना।

कानूनगो :: (सं. पु.) माल के विभाग का एक कर्मचारी जो पटवारियों के काम जांच करता है।

कानूनी :: (वि.) कानून का, अदालती, कानून जानने वाला, बकवादी।

काँनो :: (वि.) काना जिसकी एक आँख फूटी हो।

काँनो :: (सं. पु.) चंगला या चौपड़ के खेल में एक का अंक, कहाँ तक, आ की मात्रा।

काँनो :: दे. कनवां।

काँप :: (सं. स्त्री.) बांस की पहली लचीली तीली, कान का एक जेवर सुअर का दांत।

कांपना :: (क्रि. अ.) हिलना, डरना।

काँपें :: (सं. स्त्री.) छोते की कमचियाँ।

काबर :: (वि.) एक प्रकार की काली मिट्टी वाली जमीन, हल्की मोटी मिट्टी।

काबली :: (वि.) काबुल का, काबुल में उत्पन्न।

काबा :: (सं. पु.) अरब के मक्के शहर का एक मुसलमानी तीर्थ स्थान।

काबिल :: (वि.) योग्य।

काबिलियत :: (सं. स्त्री.) योग्यता।

काबुल :: (सं. पु.) अफगानिस्तान की राजधानी।

काबुल :: (कहा.) काबुल में का गधानी नई होत - काबुल में क्या गधे नहीं होते, जानकारों में भी मूर्खों की कमी नहीं होती।

काबू :: (सं. पु.) वश, अधिकार, जोर, नियत्रंण।

कामचोर :: (वि.) काम से जी चुराने वाला, आलसी।

कामचोर :: (कहा.) काम परे कुछ और है काम सरे कछु और - तुलसी भाँवर के परे नदी सिरावत मौर-काम निकल जाने पर आदमी का रूख बदल जाता है।

कामदार :: (सं. पु.) जागीरदारों, जमीदारों का मुख्य कर्मचारी, कारन्दा, जड़ाऊ।

कामधेनु :: (सं. स्त्री.) स्वर्ग की गाय जो सब कामनाओं का पूरा करने वाली मानी गयी है।

कामयाब :: (वि.) कामयाबी।

कामयाब :: (सं. स्त्री.) कामयाबी।

कामरी :: (सं. स्त्री.) कम्बल, कमली।

कामरो :: (सं. पु.) गाय बैल के गर्दन के निचे लटकते हे मांस की झालर।

काय :: (सर्व.) अव्य, क्यों, किसलिए, उदाहरण-कायखौं, काय सें।

काँय :: (सं. स्त्री.) नौरता के खेल में कन्याएँ अपने भाइयों के नाम लेकर नौरता के गीत गाती हैं, इसे काँय डालना कहते हैं उदाहरण-अजय भैया की कुंअर लड़ायती नारे सुआटा, लोकगीत।

काँय काँय :: (सं. पु.) कौवे का शब्द, निरर्थक वार्तालाप।

कायदा :: (सं. पु.) नियम, विधान, क्रम, मर्यादा, इज्जत।

कायदो :: (पु. सं.) कायदा, मर्यादा, रीति।

कायफर :: (सं. पु.) एक काष्ठज औषधि, शरीर ठण्डा हो जाने पर उसेक चूर्ण को शरीर पर मला जाता है।

कायफल :: (सं. पु.) एक पेड़ जिसकी छाल दबा के तौर पर काम लायी जाती है, कायफल।

कायम :: (वि.) ठहरा हुआ।

कायर :: (वि.) भीरू, डरपोक।

कायरता :: (सं. पु.) भीरूता, डरपोकपन।

कायल :: (वि.) मानने वाला।

कायस्थ :: (सं. पु.) एक जाति विशेष।

काया :: (सं. स्त्री.) शरीर, स्थूल शरीर।

काया कल्प :: (सं. पु.) औषधि के प्रभाव से वृद्ध के शरीर को फिर युवावस्था की तरह शक्तिशाली बनाने की क्रिया, उलटफेर, परिवर्तन।

कारकुन :: (सं. पु.) कारिन्दा, प्रबंधक।

कारखाना :: (सं. पु.) जहाँ कोई वस्तु व्यापार के लिये बनाई जाये वह स्थान।

कारगर :: (वि.) उपयोगी, प्रभावजनक।

कारज :: (सं. पु.) कार्य, बड़ा काम. उत्सव।

कारन :: (सं. पु.) कारण।

कारन्दा :: (सं. पु.) जमीदारों, जागीरदारों के प्रमुख कर्मचारी।

कारबार :: (सं. पु.) काम धन्धा।

कारवाही :: (सं. स्त्री.) कार्य विवरण, कार्य।

कारस देव :: (सं. पु.) पालतू पशुओं के देवता।

कारस्तानी :: (सं. स्त्री.) काम पूरा करने की युक्ति।

कारा :: (सं. स्त्री.) बन्धन, कैद।

कारिख :: (सं. स्त्री.) कालिमा कलंक।

कारीगर :: (सं. पु.) शिल्पी, भवन निर्माण करने वाला, अन्य शिल्पों के विशेषज्ञ।

कारीगिरी :: (सं. स्त्री.) काम करने की कला, सुन्दर रचना।

कारेकोसन :: (क्रि. वि.) बहुत दूर।

कारोंच :: (सं. स्त्री.) कालिख, काला चूर्ण।

कारोदा :: (सं. पु.) एक मछली।

काल :: (सं. पु.) मृत्यु, समय।

काल :: (मुहा.) काल की फेरी।

काल :: (सर्व.) बीता हुआ समय, आने वाला समय।

काल :: (कहा.) काल की कीनें जानी - कल क्या होने वाला है इसे कौन जान सकता है।

काल :: (कहा.) काल कौ भरोसा आज नइयाँ - कल क्या होगा इसका आज भी ठीक निश्चिय नहीं किया जा सकता, फिर पहिले से उसका निश्चिय तो और भी कठिन है।

कालका :: (सं. स्त्री.) दुर्गा का एक विशेष रूप, जिनकी बुन्देलखण्ड के अनेक भागों में तेल के हलुआ तथा पकवान का प्रसाद लगाकर पूजा की जाती है, कालकन कौ सवैया।

कालकोठरी :: (सं. स्त्री.) जेलखाने की अंधेरी छोटी कोठरी।

कालपी :: (सं. स्त्री.) यमुना नदी के किनारे बसा पुराण एवं इतिहास प्रसिद्ध नगर।

कालबेलिया :: (सं. पु.) सर्प, बिष उतारने वाला, बिषवैध, राजस्थान का एक नृत्य।

कालभैरव :: (सं. पु.) शिव का एक मुख्य गण।

काला :: (वि.) काले रंग का, बुरा।

कालाचोर :: (सं. पु.) बड़ा चोर, दुष्ट पुरूष।

कालानमक :: (सं. पु.) सज्जी के योग से बना एक नमक।

कालापानी :: (सं. पु.) बुरे जल वाला देश, अंडमान आदि द्वीप, देश निकाले का दण्ड जिसमें कैदी उक्त द्वीपों में भेजे जाते हैं, मंदिरा।

कालिख :: (सं. स्त्री.) कालौंच, स्याही, काला रंग।

कालिदास :: (सं. पु.) स्वनाम प्रसिद्ध कवि, संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित।

कालीदह :: (सं. पु.) वृन्दावन में एक दह या कुण्ड जहाँ श्री कृष्ण जी ने काली नाग को जीता था।

काँलो :: (सर्व.) कहाँ तक।

कालोनी :: (सं. स्त्री.) चने की दला, कड़ी, भात, बरा, मगौरा, घी तथा बूरौ मिलाकर खाया जाने वाला मिश्रण।

काँवनी :: (सं. स्त्री.) एक छोटा अनाज जिसकी बाजरे जैसी बालें होती हैं।

काँवर :: (सं. पु.) यह लकड़ी की होती है इस पर घड़ा रखकर कहार पानी भरते हैं।

कांवरिया :: (सं. स्त्री.) काँवर लेकर चलने वाला तीर्थायत्री।

काँस :: (सं. पु.) कुश की एक जाति, यह खेतों में पैदा हो जाता है, तो, खेतों में कुछ भी पैदा नहीं होता है, इसका फूलना शरद ऋतु के आगमन का संकेत माना जाता है।

कांसकार :: (सं. पु.) काश्तकार, खेती करने वाला।

काँसला :: (सं. पु.) सुनारों का एक औजार, जिस पर पीट कर दाने उठाये जाते हैं।

काँसा :: (सं. पु.) कसकुट, ताँबा और जस्ता मिला हुआ, ताँबे और पीतल के मिश्रण की धातु।

कासी :: (सं. स्त्री.) वाराणसी, बनारस, काशी।

काँसे :: (सर्व.) कहाँ से।

काह :: (क्रि. वि.) क्या।

काह :: (सर्व.) किस, काहे-क्यों।

काहाँ :: (सर्व. अव्य.) कहाँ, किधर, किस जगह।

काहू :: (सं. पु.) गोभी की तरह का एक पौधा जिसके बीज दवा के काम आते हैं।

कि :: (क्रि. वि.) कैसे, किस प्रकार, क्या, एक संयोजक शब्द जो क्रियाओं के बाद प्रयुक्त होता है, अथवा, या, तत्क्षण, उदाहरण-कियै-किसको, किताँयें-किस तरफ कितऊँ-कहीं भी, कियाऊँ-कहीं भी।

किकयाबो :: (क्रि.) रोना, चिल्लाना, उदाहरण-रोयौ घोर महा किकिआय, कुत्तों के संदर्भ में आर्त स्वर, मनुष्य के संदर्भ में आक्रोशजन्य चिल्लाहट।

किचकिच :: (सं. स्त्री.) रोषपूर्ण वाद विवाद, झगड़ा, व्यर्थ की बकवाद।

किचकिची :: (सं. पु.) क्रोध।

किचकिन्दो :: (सं. पु.) कीचड़, कीचड़ भरी भूमि।

किचपिचिया :: (सं. पु.) नक्षत्र कृतिका।

किचर-पिचर :: (सं. स्त्री.) अव्यवस्थित सामान, गीली जमीन, अधिक लोगों के आवागमन के कारण असुविधा, उदाहरण-किच्च पिच्च।

किचरयाबो :: (क्रि. स.) आँखों में कीचड़ आना।

किचलेड़ :: (सं. पु.) बच्चों का समूह।

किंछवो :: (क्रि. स.) छिड़कना।

किटउआ :: (सं. पु.) तेल बेचने वाले का हाथ आदि पौंछने का वस्त्र, मैला कुचैला वस्त्र।

किटकिटा :: (सं. पु.) सोने चाँदी की अर्द्ध गोलाकार आकृतियाँ गढ़ने का साँचा या ठप्पा।

किटकिटाना :: (क्रि.) क्रोध से दाँत पीसना।

किटकिटाबौ :: (क्रि. स.) बन्दरों का बोलना।

किटकिटाबौ :: (मुहा.) दाँत पीसना।

किटकिन्आ :: (सं. पु.) छोटे छोटे बूंदका।

किटी :: (सं. स्त्री.) सीमेंट के फर्श को शुद्ध सीमेंट का लेप लगाकर चिकना करने की क्रिया।

किटुआ :: (सं. पु.) अपूर्ण विकसित छोटी ककड़ी।

किताब :: (सं. स्त्री.) पुस्तक, ग्रंथ।

कितै :: (क्रि. वि. अव्य.) किधर, किस ओर, कहाँ उदाहरण-कितँऊ-कहीं, किताँय-किधर, कहाँ, दिशा मूलक प्रश्न, कितेक-कितना, मात्रामूलक प्रश्न, कितनऊ-कितने ही, कित्त्तान-कहाँ तक, गहराई के लिए प्रश्न, कितना सारा।

किदना :: (सर्व. अव्य.) किस दिन, किस दिवस।

किन :: (सर्व.) किस, किनैं-किसे, किनका-किसका, किन्नै-किसने।

किनका :: (सं. पु.) कणिका, भोजन का एक कण।

किनरमिनर :: (सं. पु.) नाक भों सिकोड़ने, ला हवाला करने का भाव।

किंनरी :: (सं. स्त्री.) सारंगी, एक किन्नर जाति की स्त्री।

किना :: (वि.) केन नदी के किनारे के बैल।

किनार :: (सं. स्त्री.) वस्त्र का किनारी वाला भाग, किनारा, धोती, दुपट्टा, साड़ी आदि की किनार, बार्डर।

किनावनों :: (सं. पु.) सूखे मेवे।

किन्छा :: (सं. पु.) छींटा।

किफायत :: (सं. स्त्री.) कमखर्ची, मितव्ययिता।

किबार :: (सं. पु.) किबाड़, एक ही चौड़ा किवाड़, द्वार पल्ला।

कियट :: (सं. स्त्री.) कीट, तेल जो धीरे धीरे जम जाता है।

कियट :: दे. काट कीट।

कियाऊँ :: (सर्व.) कहीं, किये-किसे।

कियान :: (सं. पु.) लकड़ी का फावड़ा।

कियारी :: (सं. स्त्री.) क्यारी।

किरऊ :: (वि.) कीड़ा लगे हुए, कीड़ा लगी।

किरकउंवा :: (सं. पु.) ईट, गुम्मों का बारीक टुकड़न, ईटों का चूरा।

किरका :: (सं. पु.) कंकड़, किरकिरी, छोटा टुकड़ा, धातु का छोटा सा टुकड़ा, सुपारी का छोटा टुकड़ा।

किरकिच :: (सं. पु.) बेमतलब की बहस, झगड़ा।

किरकिचयाऊ :: (सं. पु.) एक प्रकार की लता, इसके फूल तूसी रंग के गुच्छेदार होते हैं, लोगों की धारणा हैं कि यदि कोई इस फू ल को दूसरे के में डाल दे तो उसके यहाँ झगड़ा अवश्य होता है।

किरकिटा :: (सं. पु.) ईटों का चूरा।

किरकिटी :: (सं. स्त्री.) किरकिरी, किसी चीज का छोटा कण जो आँख में पड़कर पीड़ा देता है।

किरकिरी :: (सं. स्त्री.) धूल या तिनके का छोटा टुकड़ा, अपमान, हेठी, सुनारी भाषा में बची हुई चाँदी को किरकिरी कहते हैं।

किरंच :: (सं. स्त्री.) काँच का पतला, नुकीला टुकड़ा।

किरंच :: दे. किरांच।

किरंट :: (सं. पु.) करेंण्ट, विद्युत प्रवाह।

किरबान :: (सं. स्त्री.) कृपाण, अमृत, ध्वनि आदि वीर रस युक्त छन्द।

किरमिच :: (सं. पु.) एक प्रकार का मोटा कपड़ा, जो जूते, परदे, थैले आदि बनाने के काम आता है।

किरमिजी :: (वि.) श्यामता लिये हुए गहरा लाल रंग, मटमैला।

किरमीदाना :: (सं. पु.) करौदिया रंग का लाख की जाति के एक प्रकार के कीड़े जिनसे लाल रंग बनता हैं, जो किरमिजी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

किरराबो :: (क्रि. स.) सूप की सहायता से अलग किया हुआ पतला और टूटा अनाज।

किरवाई :: (सं. पु.) रैहट की रस्सी में बँधी लकड़ियां जिनमें धरियाँ बंधी रहती हैं।

किरवारी :: (सं. स्त्री.) अमलतास की कोंस, रैंहट की रस्सी में लगने वाली छोटी छोटी लकड़ियां जिसके दोनों किरे अलग-अलग रस्सियों में फंसे रहते हैं।

किरा :: (सं. पु.) धातु का कटा हुआ टुकड़ा, टटिया, कीड़ा लगा फ ल, सब्जी।

किरानों :: (सं. पु.) मिर्च मसाले, सूखे मेवे।

किरार :: (सं. पु.) एक जाति।

किरारी :: (सं. स्त्री.) बुन्देली की एक उपबोली।

किरिया :: (सं. स्त्री.) सौगन्ध, किरिया करम, प्रक्रिया, प्रेत कर्म।

किरी :: (सं. स्त्री.) बिनौले के छोटे छोटे टुकड़े जो रूई में मिले रहते हैं, ये मोटे कपड़े पर भी आ जाते हैं।

किरौ :: (सं. पु.) गाड़ी, भूसा या खाद ढोने बड़ी टोकनी, बाँस की खपच्चियों से बनी हुई टटिया।

किर्रा :: (सं. पु.) चावल बोने योग्य भूमि, दाँतेदार छोटी गरारी।

किर्राबो :: (क्रि. स.) चिड़चिड़ाना, दाँत पीसना, क्रोध करना।

किलक :: (सं. पु.) प्रसन्नता, खुशी, हँसी।

किलकिल :: (सं. स्त्री.) झगड़ा, विवाद, कलह, मौखिक झगड़ा।

किलकिला :: (सं. पु.) एक पक्षी, जो शिकार के लिए पानी में चौंच के बल सीधा गिरता है, जिसे किलकिला कौड़ियाला कहते हैं, पानी में कूदने का एक ढंग।

किलकिलाबो :: (क्रि. स.) जोर जोर से बोलना।

किलकोटे :: (सं. स्त्री.) कुत्तों की प्रेम पूर्वक एक दूसरे से लिपड़ झिपड़ लड़ने का अभिनय, लाक्षणिक अर्थ में मनुष्यों के लिये भी व्यवह्नत।

किलपबौ :: (क्रि. अ.) व्याकुल होना, दुखी होना।

किलपाबौ :: (क्रि. अ.) दुखित होना।

किलबिलाना :: (क्रि.) कुलबुलाना, धीरे धीरे रेंगना, इधर ऊधर डोलना।

किलवाना :: (क्रि.) छेद करना, घर की चौखट पर लोहे की कील लगवाना।

किलोल :: (सं. पु.) खुशी, प्रसन्नता।

किलौ :: (सं. पु.) दुर्ग, सैनिक सुरक्षा से युक्त राजसी आवास।

किल्लत :: (सं. पु.) कमी तंगी।

किल्लबिल्ल :: (सं. पु.) बच्चों का शोरगुल।

किल्लयांद :: (वि.) किल्ली नाम के कीड़े की जलने की दर्गन्ध।

किल्ला :: (सं. पु.) गेहूँ आदि के पौधे के सहजात तने, एक परजीवी कीड़ा जो पशुओं से चिपक जाता है तथा उनका रक्त चूंसता है।

किल्ली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कीड़ा जो जानवरों के शरीर से चिपक कर उनका खून पीता है।

किल्लुआ :: (सं. पु.) एक छोटे पौधे की चपटे आलू की तहर मीठी जड़।

किवरियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटे किवाड़।

किसकिसाट :: (सं. स्त्री.) किसकिसाहट, कंकड़युक्त अनाज के पिसने से रोटी आदि में पैदा हो जाने वाला दोष।

किसकिसाट :: (क्रि.) उदाहरण-किसकिसाबौ।

किसकिसाट :: (वि.) किसकिसो।

किसनया :: (वि.) कृषिकर्म से संबंधित।

किसनी :: (सं. स्त्री.) नारियल, लौकी, गजर आदि के पतले लम्बे टुकड़े निकालने का उपकरण।

किसनी :: (क्रि.) किसबौ।

किसरूआ :: (सं. पु.) कमल की कोमल और पतली जड़ें।

किसवार :: (सं. स्त्री.) घोड़े की गर्दन के बाल।

किसा :: (सं. स्त्री.) कथा, वृतांत, कहानी।

किसान :: (सं. पु.) कृषक, छोटे या गन्दे पेशों से कमान वालों के आसामी, किसानी, खेतिहार, काश्तकार।

कीक :: (सं. स्त्री.) चीख, चीत्कार।

कीक :: (क्रि.) कीकना।

कीकी :: (सर्व.) कीका उदाहरण-कीकौ-किसका, कीखौं-किसकौं, कीने-किसने, कीनों-किसके पास, कीपै-किस पर।

कीच-कीचा :: (सं. पु.) कीचड़।

कीचर :: (सं. पु.) आँख का कीचड़, कीच, पंक, आँखों का मैल।

कीट :: (सं. स्त्री.) मैल, तेल का पुराना जमा हुआ मैल, सुनारी भाषा में जस्ता कहते हैं।

कीनें :: (सर्व.) किसन।

कीनें :: (कहा.) कीनें अपनी मताई कौ दूद पिऔ - किसने अपनी मां का दूध पिया है, कौन इतना बहादुर है।

कीनें :: (कहा.) कीनें तुमें पीरे चाँवर दये ते - तुम्हें पीले चावल किसने दिये थे, अर्थात तुम्हें यहाँ कौन बुलाने गया था, ब्याह आदि में पील चावल और हल्दी की गाँठ देकर सगे-सम्बन्धियों को न्योतने की प्रथा बुन्देलखंड में प्रचलित है, उसी से कहावत बनी जब कोई अनाधिकृत रूप से दुसरे के काम में हस्तक्षेप करने पहुँच जाय और मना करने पर भी न माने तब कहते हैं।

कीरा :: (सं. पु.) सर्प, कीड़ा, कुछ लोग अंधविश्वास से प्रेरित होकर साँप का नाम नहीं लेते उसे कीरा कहते हैं।

कीरा :: (मुहा.) कीरा उठवो, कीरा परबौ।

कील :: (सं. स्त्री.) नुकीली सीधी आकृति की छोटी खूंटी, नाक की छोटी पुंगरिया।

कीलबौ :: (क्रि. स.) साँप या प्रेतों से रक्षार्थ की जाने वाली तांत्रिक क्रिया करना, विशेष प्रकार के कंघे से बालों में चिपके हुए जूँ के अण्डे निकालना।

कीला :: (सं. पु.) कुम्हार का चका, धुरी, कीला, लोहे की बड़ी कील।

कु :: उपसर्ग बुरा हीनार्थक उपसर्ग।

कु :: (प्र.) कुपुत्र, कुकर्म।

कुँअर :: (सं. पु.) कुमार यह शब्द संदर्भ के अनुसार।

कुँअर :: (पु.) अथवा।

कुँअर :: (स्त्री.) होता है, नामों के प्रत्यय में लड़के-लड़कियों के नामों में आता है यथा रामकुँअर, मानकुँअर, कुँअर गोविन्द सिंह।

कुआँ :: (सं. पु.) कूप खोदकर बनाया गया जलस्त्रोत।

कुआँ :: (मुहा.) कुआँ में डारबो, कुआँ में ढकेलबो, कुँआ पुजाई, कुआँ में गिरबो।

कुआँ :: (कहा.) कुअन में बाँस डारबो - कुओं में बाँस डालना, किसी वस्तु की गहरी छानबीन करना।

कुआँ :: (कहा.) कुआ की माटी कुअई खों नई होत - कुआँ खोदने पर जो मिट्टी निकलती है वह कुएँ में ही लग जाती है, जहाँ का पैसा वहीं खर्च है।

कुआँ :: (कहा.) कुआ के मेंदरे - कुएँ का मेढ़क, अनुभवहीन व्यक्ति।

कुआबो :: (क्रि. स.) कहलवाना।

कुँआर :: (सं. पु.) आश्विन विक्रम संवत का सातवाँ महीना।

कुँआरो :: (वि.) अविवाहित।

कुँआरो :: (स्त्री.) कुँआरी।

कुँआरो :: (पु.) कुँआरो, कुँआरेपन का दोष, ऐसा विश्वास किया जाता है कि कुंआरे मरने से पितृ ऋण से मोक्ष नहीं मिलता है इस कारण जिसका विवाह नहीं होता उसका बेसन की पुतली से विवाह करके दोष मुक्त होने का संस्कार होता है।

कुइया :: (सं. स्त्री.) छोटे मुँह का कुँआ।

कुकड़ना :: (क्रि. अ.) सिमटजाना, ठंड लगना।

कुकरखाँसी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की सूखी खाँसी।

कुकरबो :: (क्रि.) सिकुड़ना, ठंड लगना, सिमटजाना।

कुकरम :: (सं. पु.) बुरा काम, पाप, दुष्टता पूर्ण कार्य।

कुकरमुत्त्ता :: (सं. पु.) छत्रक, एक प्रकार की वनस्पति जो चीजों के सड़ने, गलने के स्थान पर पैदा हो जाती है, कोमल और छत्रकार होती है।

कुकरा :: (सं. पु.) मुर्गा, मिर्च का एक रोग जिसमें पत्त्ते सिकुड़ जाते हैं।

कुकरी :: (सं. स्त्री.) कटे हुए तिली के पौधों के पूरे खलिहान में सूखने के लिये खड़े कर दिये जाते हैं ताकि घैटिया चिटकाने से तिली नीचे न गिरे इन्हें कुकरी कहते है।

कुकलौरूआ :: (सं. पु.) गड़रियों का एक रोग।

कुकाबो :: (क्रि. स.) खुजलाना।

कुकू तुसार :: (वि.) दुबला पतला।

कुगत :: (सं. स्त्री.) दुर्दशा, कुगति।

कुचइया :: (सं. स्त्री.) छोटी सी रोटी या इसी आकृति की अन्य पदार्थ से बनी रचना।

कुचबंदिया :: (सं. पु.) एक घमन्तु जाति जो रस्सी तथा इससे बनी कृषि उपयोगी वस्तुओँ बनाकर बेचती है।

कुचयाबो :: (क्रि. स.) उगलियों की सहायता से उगलियों के फैलाव के माप के अन्दर घड़ी करना उदाहरण-धोती कुचयाबो, कुचया कर बनायी घड़ी, संकोच करना, हिम्मत हारना, रोटी की लोई को हाथ से बड़ा करना।

कुचरा :: (सं. पु.) कूटना, कुचलना, उदाहरण-अधकुचरो, तिलहन जिसमें तेल न छूटा हो।

कुचला :: (सं. पु.) एक विष इसका फल गोल टिकिया के आकार का होता है। ये अनेक औषधियों में काम आता है।

कुचली :: (सं. स्त्री.) कुचरने की क्रिया, निर्मम पिटाई।

कुचलेंड़ :: (सं. पु.) साँप के हाल के निकले बच्चे।

कुचाल :: (सं. स्त्री.) बुरी चाल, कुरीति।

कुचालो :: (सं. पु.) कुमार्गी, उपद्रवी।

कुचिया :: (सं. स्त्री.) उर्द की दाल की टिकिया।

कुची :: (सं. स्त्री.) ब्रुश, झाडू, चाबी कलई करेत समय वर्तन या जेवर को कुची से साफ करना, सुनार।

कुचैया :: (सं. स्त्री.) दे. कुचइया।

कुजँऊआ :: (सं. पु.) पींदा, हिजड़ा।

कुँजयाबौ :: (क्रि.) निढ़ाल होना, भूख प्यास से मुरझा जाना, कुम्हलाना।

कुँजरयानों :: (सं. पु.) कुजड़ों का मुहल्ला, शाक-भॉजी का बाजार, और शोरशराबे का स्थान।

कुँजरयाव :: (सं. पु.) बात-बात पर झगड़ा तथा शोरगुल।

कुजात :: (वि.) अवैध संसर्ग से उत्पन्न, बुरी जाति, ऐसी धारणा है कि कुछ जातियों के लोगों का प्रातः मुँह देखना अशुभ होता है और कुछ का अन्न ग्रहण करना हानि कर होता है, ऐसी जातियों के लिए रूढ़ शब्द, एक गाली।

कुजाने :: (उप.) को जाने, कौन जाने।

कुँजावती :: (सं. स्त्री.) बुन्देखण्ड के प्रसिद्ध लोक देवता हरदौल की बहिन का नाम।

कुजुआपें :: (सं. स्त्री.) बुरे उत्त्तर, क्रोध में ऐसी फूहड़ और अश्लील बातें जिनका उत्त्तर न दिया जा सकें।

कुटकबौ :: (क्रि. स.) खाना, उदाहरण-बासी हलुवा तिबासे लडुआ कुटकट कुटकत आये।

कुटकी :: (सं. स्त्री.) धान, एक छोटा अनाज, मच्छर की जाति।

कुटना :: (सं. पु.) कूटने की मोगरी, जो मार खाता हो, वेश्याओं का दलाल।

कुटनी :: (सं. स्त्री.) कुटना का स्त्रीलिंग।

कुटबा :: कुल्हड़।

कुटबौ :: (क्रि. स.) किसी चीज को तोड़ने या साफ करने के लिए मोगरी से चोट करना जैसे मिर्चे कूटबो, दार कूटबो, मारना, पीसना कुचलना।

कुटम :: (सं. पु.) कुटुम, कबीला।

कुटवार :: (सं. पु.) ग्राम का चौकीदार, जमींदार का चपरासी।

कुटा की दार :: (सं. पु. यो.) कूट कर छिलका अलग की गई दाल, इसे बनाने के लिए दाल को पहले घी और पानी में मौ देते हैं तत्पश्चात ओखली में कूटते हैं, कूटा की दार के विपरीत धोबा की दार होती है जिसका छिलका पानी में भिगोकर निकाला जाता है।

कुटी :: (सं. स्त्री.) साधुओं के रहने की झोपड़ी, छोटी सी कोठरी।

कुटी :: (कहा.) कुटी सी काटवौ।

कुटेक :: (सं. स्त्री.) बुरी हट, बुरी आदत।

कुटेला :: (वि.) पिटने का आदी, बेशर्म।

कुट्टी :: (सं. स्त्री.) दे. कट्टी।

कुठरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा कमरा, कोठरी।

कुठार :: (सं. पु.) बुरा साज, बुरा प्रबंध, फरसा, परशु।

कुठारी :: (सं. पु.) मंदिरों, मठों के भंडार प्रबंधक, मजबूत हड्डी तथा बड़े पेट वाला बैल।

कुठाँव :: (सं. स्त्री.) उपसर्ग युक्त शब्द, मर्मस्थल, ठाँव, कुठाँव, युग्म।

कुठाँव :: (प्र.) कऊ ठाँव कुठाँव लग जैहे तो आफत हुइयै।

कुठिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का बनाया हुआ अनाज रखने का कोठा, अनाज भंडारप के लिए कच्ची मिट्टी का पात्र।

कुठिया :: (कहा.) कुठिया धोएँ काँदो हात - अनाज रखने का मिट्टी का कुठीला, कुठिया धोने से केवल कीचड़ हाथ आती है, छोटे आदमी को तंग करने से कोई लाभ नहीं होता।

कुठीला :: (सं. पु.) छोटी कुठिया।

कुठौल :: (सं. स्त्री.) मर्मस्थल।

कुठौल :: दे. कुठाँव।

कुँड :: (सं. पु.) छोटा तालाब, हवन की अग्नि, जल संचय के लिये खोदा गया गड्ढ़ा।

कुँड़ई :: (सं. स्त्री.) गोल पेंदी के बर्तन को स्थिर रखने के लिए रस्सी से बनाया गोल चप्टा आधार।

कुँड़ई :: दे. कुनई कुँनरी।

कुड़कवो :: (क्रि. वि.) चटकना, भजनशील वस्तु का टूटना, मुर्गी का अण्डे देना।

कुड़की :: (सं. स्त्री.) सरकारी वसूली के लिये घर का सामान आदि जप्त या नीलाम करना, बंद करना।

कुड़कोरबौ :: (क्रि.) किसी नुकीली वस्तु से खुरचना।

कुड़मूता :: (वि.) चक्कर लगाकर मूतने वाला, असंगत कार्य करने वाला, खुराफाती।

कुँडयाबो :: (क्रि. स.) गहने अथवा सोने चाँदी की सतह पर बारीक लकीरों से फूल पत्त्ते कच्चे करना।

कुड़रबौ :: (क्रि.) बच्चों का घुटनों के बल चलना।

कुड़रिया :: (सं. स्त्री.) छोटे आकार का चक्कर, वृत्त्त।

कुड़री :: (सं. स्त्री.) साँप की कुंडली मार कर बैठने की स्थिति, घड़ें के नीचे रखने वाला रस्सी का मोटा घेरा।

कुँडरी :: (सं. स्त्री.) कुंडी।

कुँडल :: (सं. पु.) कान में पहनने का एक आभूषण, भैंस जिसके सींग इठ कर गोल हो जाते हैं।

कुँडली :: (सं. स्त्री.) जन्मपत्री, सिकुड़कर अथवा घेरा बनाकर बैठना।

कुड़वारो :: (सं. पु.) अक्षय तृतीया को होने वाले पूजन में भरे जाने वाले पाँच मिट्टी के घड़ों का समूह, भरे बर्तनों का समूह।

कुड़सर :: (क्रि. वि.) जिस दिशा में पहले से खेत जुता हो उसी दिशा में की गई जुताई।

कुड़िया :: (वि.) कोढ़ी, एक गाली, आग तापने का मिट्टी का छोटा पात्र।

कुड़ी :: (सं. स्त्री.) पत्थर में खोदकर बनाई गयी ओखली।

कुँड़ीमार :: (सं. स्त्री.) बच्चों का खेल।

कुड़ेलबों :: (क्रि.) बर्तन में से पदार्थ को दुसरे बर्तन में गिराना।

कुडौल :: (वि.) भद्दा, कुरूप।

कुड्डबौ :: (क्रि.) कोसना, कुढ़ना, अशुभ कामना करना।

कुड्डबौ :: (वि.) कुड्।

कुड्डा :: (सं. पु.) मछली की एक जाति जो कम लम्बी तथा मोटी होती है।

कुण्ड :: (सं. पु.) प्राकृतिक या कृतिम गड्डा जिसमें जल संग्रहित हो।

कुण्डल :: (सं. पु.) कानों में पहिनने का बड़ा बाला जिनका बोझ सँभालने के लिए साँकने जुड़ी रहती है। जो कानों के ऊपर से डाली जाती हैं।

कुण्डली :: (सं. स्त्री.) जन्मपत्री, तरके के ऊपर कई घेरों की।

कुण्डवा :: (सं. पु.) गेहूँ तथा ज्वार की खड़ी फसल में रोग लग जाने के कारण दोनों में काला चूर्ण-सा भुन जाता है और वे फूट जाते है, इसी रोग कुण्डवा कहते हैं।

कुण्डी :: (सं. स्त्री.) पत्थर बनी कटोरी।

कुतका :: (सं. पु.) अँगूठा, अँगूठे का इशारा, डंड़ा, उदाहरण-धरैं फिरें कुतका पै सबकों बातें करें बड़न में, ठेंगा, अँगूठा।

कुतक्का :: (सं. पु.) नकारात्मक संकेत के रूप में दिखाया जाता है।

कुतिया :: (सं. स्त्री.) कुत्ती, एक गाली, कुत्त्ता का स्त्री.।

कुतिया :: (मुहा.) कुतिया के छिनारे में परबो।

कुतिया :: (कहा.) कुतियाँ प्रागै जेयँ तौ हँड़िया को चाट - कुतियाँ प्रयागे जायेगी तो फिर हाँडी कौन चाटेगा, यदि छोटे आदमी बड़ा काम करने लगे तो फिर छोटो का काम कौन देखेगा।

कुतों :: (सं. स्त्री.) सबसे छोटे जाति की मधुमक्खी, कोटरों छत्त्ता लगाती है।

कुत्ता :: (कहा.) कुत्ता की चाल जाओ, बिलैया की चाल आओ - शीघ्र जाओ, शीघ्र आओ।

कुत्ता :: (कहा.) कुत्ता की पूंछ बारा बरसें पुँगरिया में राखी, जब निकरी तब टेड़ी की टेड़ी - कुत्त्ते की पूँछ बारह वर्ष तक नली में रखी गयी, परंतु जब निकली तब टेढ़ी की टेढ़ी, किसी मनुष्य की बुरी आदत कठिनाई से छूटती है।

कुत्त्तवाल :: (सं. पु.) कोतवाल, पुलिस का नगर अधिकारी।

कुत्त्ता :: (सं. पु.) स्वान, कूकर, एक पालतू पशु जो बहुत वफादार होता है, एक विशेष प्रकार की संसी जो पहियों पर हाल चढ़ाने में काम आती है, बंदूक की लिबलिबी, उदाहरण-कुत्त्ता घसीटी में परबो-व्यर्थ की झंझट में फँस जाना।

कुँदइया :: (वि.) कूदने वाला।

कुदई :: (सं. स्त्री.) एक मोटा अनाज, कोदो, कुटकी, फिकरा के चावल।

कुँदकबौ :: (क्रि.) कूदने वाला।

कुँदक्याबो :: (क्रि. स.) उचकना, शैतानी करना।

कुदरा :: (सं. पु.) कुदाल।

कुदरा :: (स्त्री.) कुदरिया, मिट्टी खोदने का एक उपकरण।

कुँदरू :: (सं. स्त्री.) परबल की तरह बेलों पर लगने वाले फल, ये पान के साथ बरेजों में होते हैं।

कुँदरू :: (ब. व.) कदू-सर्पो की माता।

कुदवाली :: (सं. स्त्री.) कोदों का खेत।

कुँदा :: (सं. पु.) पैजना तथा अन्य गहनों में दो टुकड़ों को जोड़ने का साधन, पेड़ा बनाने के लिये भूना गया खोया, कुँदावो।

कुदाँऊँ :: (सं. स्त्री.) तरफ पक्ष में।

कुदारी :: (सं. स्त्री.) कुदाल, दो फल वाला मिट्टी खोदने का उपकरण जो दोनों हाथ से चलाया जाता है।

कुँदुआ :: (सं. पु.) कटी ज्वार का मय डंठल का ढेर।

कुँदेरो :: (सं. पु.) एक जाति विशेष, उदाहरण-कड़ेरें के ब्याव, कुँदेरो पाँव परै। कुँदेरौ।

कुँदेरो :: (सं. पु.) खराद की सहायता से लकड़ी के खिलौने तथा बेलन आदि बनाने वाला।

कुँदेरो :: (कहा.) कुँदेरे खौं आँदरौ मिल जात।

कुद्दूप :: (वि.) बुरा, विकृत।

कुनई :: (सं. स्त्री.) गोल पेंदी वाले बर्तनों को सिर पर या भूमि पर स्थिर रखने के लिए रस्सी आदि से बनाया गया चक्का या कुण्डली।

कुनई :: दे. कुँड़ई, कुँनरी।

कुनकुनों :: (वि.) गुनगुना, थोड़ा गरम, शरीर के ताप से थोड़ा सा अधिक गरम।

कुनघुसूँ :: (सं. स्त्री.) आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गृहबधुओं का पूजन।

कुनमुनाबो :: (क्रि. स.) अच्छी नींद न आन के कारण हल्की छुटपुटाहट, असन्तोष के कारण मुँह में ही कुछ कहना, अस्फुट शब्द।

कुनयाव :: (सं. पु.) अन्याय।

कुनैतौं :: (सं. पु.) ऊँचे ओठों वाले पत्थर के ऊपरी पाट तथा नीचे के मिट्टी के पाट वाली धान दलने की चक्की।

कुन्द :: (वि.) कुण्ठित, मन्द, बन्द।

कुन्दन :: (सं. पु.) शुद्धतम सोना।

कुन्दया :: (वि.) जिसका एक अण्डकोश सूजने की प्रकृति हो ऐसा विश्वास है कि छोटे बच्चे को लात का स्पर्श करने से यह रोग हो जाता है।

कुन्दा :: (सं. पु.) साँकल अटका कर ताल लगाने के लिये गोल छेद वाला साधन, बोरे डालने के लिए आभूषणों में जुड़े तार के छल्ले बन्दूक का लकड़ी का भार, हाथ के बने कपड़े सूत को बिठालने के लिए इस्तेमाल होने वाला लकड़ी का गोल छोटा और मोटा लट्ठा पेड़े बनाने के लेए गरम खोबे और शक्कर की पिटठी।

कुन्दी :: (क्रि.) नये बने कपड़े का मुँगरी से ठोक कर सूत बिठालना, पहलवानों के शरीर पर धीरे-धीरे मुक्के मार कर थकान मिटाना।

कुन्नयाबौ :: (क्रि.) भूख के कारण आंतों में गैस की हलचल से कुन्न-कुन्न की आवाज होना।

कुन्नस :: (सं. स्त्री.) कोर्निश, बहुत हीन होकर प्रार्थना करना।

कुपच :: (सं. पु.) अपच, अन्न के पाचन न होने की स्थिति।

कुपथ :: (सं. पु.) अपथ्य, अहितकर भोजन।

कुपनिया :: (सं. स्त्री.) कोपीन, छोटी लंगोटी जो साधु पहनते हैं, लंगोट।

कुपरा :: (सं. पु.) विशेष अवसरों पर आटा माड़ने, मिठाई बनाने आदि के काम आने वाला बड़ा थाल, कोपर।

कुपरिया :: (सं. स्त्री.) ऊँचे ओंठों की थाली।

कुपिया :: (सं. स्त्री.) छोटा पीपा।

कुपूत :: (सं. पु.) बुरा पुत्र, इसका शुद्ध रूप है कुपुत्र।

कुप्पी :: (सं. स्त्री.) ऊँट की खाल से बनी शीशी, मिट्टी तेल से जलने वाला दीया, तेल आदि रखने का डिब्बा जिसका मुँह छोटा हो, कुपिया दोनों हाथों की ऊँगलियों को आपस में फँसा कर बनाई गई पकड़।

कुप्पी :: दे. गुप्पी।

कुफैल :: (सं. पु.) बुरे व्यसन, बुरे कर्म।

कुबरया :: (वि.) कुबड़ा, जिसकी पीठ पर कूबड़ उठी हो, कुबरयाऊ।

कुमकुमा :: (सं. पु.) गुलाल से भरा हुआ पतले चमड़े का गोला।

कुमरगढ़ा :: (सं. पु.) कुम्हार द्वारा मिट्टी लाने का स्थान।

कुमलयाबौ :: (क्रि.) कुम्हलाना। कुमलयाबौ।

कुमलयाबौ :: (सं. पु.) कद्दू।

कुमेर :: (सं. पु.) यक्षराज कुबेर, विपुल संपत्त्ति के स्वामी।

कुमैता :: (सं. पु.) स्याही, लाल रंग, इसी रंग का घोड़ा जो बड़ा तेज दौड़ता है, चतुर, चालाक, धूर्त।

कुम्हलाबों :: (क्रि. स.) मुरझाना, प्रभाहीन होना।

कुम्हार :: (सं. पु.) मिट्टी के बर्तन बनाने वाला।

कुरइयाँ :: (सं. स्त्री.) खपरैल छप्पर में पाटने के लिये पतली सीधी लकड़ियाँ, अनाज नापने की एक इकाई लगभग १० किला, घर में छप्पर हेतु लगाई जाने वाली लकड़ी, उदाहरण-घरई की कुरइया से आँख फूटत, घर के आदमी से ही हानि पहुँचती है।

कुरकन :: (सं. पु.) कुरकबो, भंजनशील वस्तु के टुकड़े।

कुरकुटा :: (सं. पु.) रोटी का टुकड़ा, किसी चीज का छोटा टुकड़ा।

कुरकुटियाब :: (क्रि.) नौकरी करना और चापलूसी करना।

कुरकुराबो :: (क्रि.) चिड़चिड़ाना।

कुरकुरो :: (वि.) जिसके खाने से कुरकुर की आवाज हो।

कुरच :: (सं. पु.) क्रौंच पक्षी।

कुरता :: (सं. पु.) एक प्रकार का सिला हुआ पहनने का कपड़ा।

कुरती :: (सं. स्त्री.) अंगिया के साथ पहनने का एक विशेष प्रकार का सिला हुआ कुरता जो औरतें पहनती है, स्त्रियों का अंग वस्त्र।

कुरदनी :: (सं. स्त्री.) नक्काशी करने की लोहे की कुरैया, छप्पर में लगाई जाने वाली लकड़ी।

कुरदनी :: दे. कुरइया।

कुरमा :: (सं. पु.) बड़ा कुटुम्ब, खानदान।

कुरमियानों :: (सं. पु.) कुर्मियों की विरादरी का मुहल्ला, भली जाति।

कुरमी :: (सं. पु.) एक जाति विशेष, कृषक।

कुरया :: (वि.) कोरा कपड़ा, कोरी के हाथ का बना कपड़ा।

कुरयांद :: (वि.) मिट्टी के कोरे बर्तन की गंध।

कुरयानों :: (सं. पु.) कोरियों का मुहल्ला।

कुरयावों :: (क्रि. स.) अंकुरित होना।

कुररी :: (सं. पु.) क्रौंच पक्षी।

कुरवा :: (सं. पु.) दे. कुरइया, कुरवा-१० सेर अनाज ऊना की नाप तौल करने का पात्र, काष्ट निर्मित पात्र जिसमें लगभग १/४ से अनाज समाता है।

कुरसी :: (सं. स्त्री.) आसन, भवन की आधार भूमि।

कुरा :: (सं. पु.) अंकुर, पीका।

कुराबो :: (क्रि.) अंकुरित होना।

कुरिआ :: (सं. पु.) कोरी के लिए अवज्ञा सूचक शब्द।

कुरित :: (सं. पु.) मौसम, शाक-भाजियों के लिए असंगत मौसम।

कुरी :: (सं. स्त्री.) वंश, क्षत्रियों के जातीय उपवर्गो के नाम तीन, तेरह, छत्त्तीस।

कुरीना :: (सं. पु.) छोटे-छोटे ढेर।

कुरैवो :: (क्रि.) डालना, उड़ेलना।

कुरोरू :: (सं. स्त्री.) अन्हौरी, ग्रीष्मऋतु में उमस से उत्पन्न होने वाली फुन्सियाँ, घमौरी।

कुरौरा :: (सं. पु.) लोहे के छोटे छोटे कड़े जो दतुआ या पासें में फंसाये जाते हैं, हल, बखर में पाँस और दतुआ का सिरा जोड़ने के लिये बनाया जाने वाला छल्ला।

कुरौरौ :: (सं. पु.) घोड़ों क खुलजाने का उपकरण।

कुर्रू :: (सं. पु.) दौड़, दुबले पतले व्यक्ति द्वारा दौड़ना, उदाहरण-कुर्रूलगावो।

कुल :: (सं. स्त्री.) वंश, खानदान।

कुलकबो :: (क्रि. स.) किलकना, प्रसन्न होना, पुलक, रोमांस, गुदगुदी अनुभव करना।

कुलकलावो :: (क्रि.) अस्थिर होना चंचल होना, पसलियों पर उंगलियाँ लगाकर गुदगुदी पैदा करना।

कुलकुली :: (सं. स्त्री.) गुदगुदी अनुभव। कुलकुली।

कुलकुली :: (सं. स्त्री.) गुदगुदाना, गुदगुदी।

कुलंग :: (सं. स्त्री.) एक बीमारी जिसमें कूल्हें से पंजे तक पैर की नस तड़कती है, एक जड़।

कुलघुसा :: (वि.) घर में घुसा रहने वाला।

कुलच्छी :: (वि.) बुरे आचरण वाला, बुरे लक्षणों वाला।

कुलटा :: (सं. स्त्री.) व्यभिचारिणी, छिनाल, स्त्री के लिए प्रयुक्त।

कुलडि :: (सं. पु.) घोड़ों को खुलजाने का उपकरण।

कुलथी :: (सं. स्त्री.) एक मोटा अन्न, अनाज।

कुलबुलाबो :: (क्रि.) हिलाना डोलना, चंचल होना।

कुलबुलाबो :: (स्त्री.) कुलबुलाहट।

कुलबोर :: (वि.) कुल का नाश करने वाला।

कुलबोर :: (प्र.) कुलबोरन।

कुलबोर :: (सं. स्त्री.) कुल या वंश का नाश करने वाला।

कुलयाबो :: (क्रि. स.) खोदना, धीरे-धीरे खोदकर छेद करना, उंगली से छेड़ना।

कुलरा :: (सं. पु.) बड़ी कुल्हाड़ी।

कुलरिया :: (सं. स्त्री.) कुल्हाड़ी, लकड़ी काटने का उपकरण।

कुलसार :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जहाँ तेल पेरा जाता है, तेली के घर का वह स्थान जहाँ कोल्हू लगा रहता है।

कुलाग :: (क्रि. वि.) अव्यवस्थित ढंग से रखी हुई वस्तु जिस पर कार्य करना कठिन हो।

कुलाँच :: (सं. स्त्री.) छलाँग।

कुलाँच :: (मुहा.) कुलाचें भरबो-तेज दौड़ना, हिरन आदि।

कुलाँट :: (सं. स्त्री.) दोनों हाथों को सामने रखकर सिर के बल लोट जाने की क्रिया, सिर या हाथ के बल उलटा होकर कूंदने की क्रिया।

कुलार :: (सं. पु.) बढ़ई की बड़ी कुल्हाड़ी।

कुलिया :: (सं. स्त्री.) छोटी पतली गली, पान दान की डिबिया जिसमें कत्था, चूना आदि रखा जाता है।

कुली :: (सं. स्त्री.) नितंबों के ऊपर कमर के पास का हिस्सा।

कुली :: (पु.) रेलवे स्टेशन पर भार ढोने वाले।

कुलीन :: (वि.) अच्छे खानदान में उत्पन्न।

कुल्टथाबौ :: (क्रि.) बड़ी लकड़ी या पत्थर को जोर लगाकर उसके बगल वाले भाग को नीचे कर देना।

कुल्थबौ :: (क्रि.) बेचैली के कारण करवटें बदलना।

कुल्ल :: (वि.) पर्याप्त, सारा, बहुत सारा, खातन खा लई कुललाकी याद।

कुल्ल :: (सं. पु.) दुख, बेचैनी का भाव।

कुल्ल :: (मुहा.) कुल्ल-कुल्ल करबो-पश्चाताप करना, दुखी होना, जी कुल्ल-कुल्ल हो वो-मन दुखी होना।

कुल्लन :: (वि.) अनगिनत।

कुल्लयाबो :: (क्रि. स.) मन ही मन दुखी होना।

कुल्ला :: (सं. पु.) कुल्ला, एक सटके में होने वाला वमन, एक जंगली वृक्ष, मुख शुद्धि के लिए पानी भरके फेंकने की क्रिया, कुल्ला बुखारी।

कुँवर-कलेवा :: (सं. पु.) कलैवा, यौगिक शब्द.कुँवर कलेऊ-विवाह में वर को कराया जाने वाला कलेवा, व।

कुँवर-कलेवा :: (मुहा.) कलेऊ की बेरा-सूर्योदय के बाद लगभग ८ बजे का समय।

कुस :: (सं. पु.) कुश, सब्बल, पानी में सिर के बल कूदने की मुद्रा, रेसे वाली घास जिसकी रस्सी बनती है, जमीन में गड्ढ़ा करने का औजार। स्त्री की योनी।

कुसगुन :: (सं. पु.) अपशकुन, उदाहरण-आलसी निगैया कुसगुन की बाट हेरे।

कुसमानी :: (सं. पु.) एक हलका पीला रंग जो कुसुम के फूलों से बनता है।

कुसर :: (सं. स्त्री.) कुशल।

कुसलाई :: (सं. स्त्री.) कुशल-क्षेम।

कुसली :: (सं. स्त्री.) छोटी कुस।

कुसा :: (सं. पु.) कुश नामक घास, पितरों को पानी देने के लिए कुश, अनुष्ठान आदि धार्मिक कार्यों में जल छोड़नें के लिए कुश।

कुसाइत :: (सं. स्त्री.) बुरा मुहूर्त, कुसमय।

कुसिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सब्बल।

कुसैरो :: (सं. पु.) रेशम का कीड़ा, कोसा के कीड़े का खोल, कोकून।

कुहर-कौर :: (सं. पु.) कुहरा चरसा।

कुहर-कौर :: (मुहा.) कौर चलाबो चरसे से पानी खींचना।

कूकबौ :: (क्रि. सं. पु.) कू की लंबी आवाज का संकेत।

कूकरा :: (सं. पु.) विवाह में स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला एक गीत, विशेष रूप से वर पक्ष के यहाँ ?।

कूँख :: (सं. स्त्री.) कोख, उदर, स्त्री का जननांग, गर्भाशय, उदाहरण-बार-बार नई जनमत ईसुर कूँख आपनी माँ के।

कूँखबों :: (क्रि. स.) कराहना।

कूच :: (सं. पु.) जेबर साफ करने का ब्रश।

कूचबौ :: (क्रि.) कुचलना थकान को दूर करने के लिए शरीर को पैरों से धीरे कुचलना।

कूचा :: (सं. पु.) अधकुचली, चँप कर चपटी हुई वस्तु।

कूँजरौ :: (सं. पु.) शाक भाजी का व्यापार करने वाली मुस्लिम जाति का व्यक्ति।

कूटबौ :: (क्रि. स.) मूसल या मूँगरी से आघात करना किसी चीज को तोड़ने या साफ करने के लिए मोंगरी से चोट करना जैसे-मिर्च कूटबो, दार कूटबो, मारना, पीसना, कुचलना।

कूटबौ :: (कहा.) कूटी दबाई और मुड़ो सन्यासी - पिसी दवा और मुड़ा सन्यासी इनको पहिचानना कठिन है।

कूठला :: (सं. पु.) रत्नों का हार, कई प्रकार के दानों तथा ताबीज से बना हार।

कूँड़ौ :: (सं. पु.) बड़ें मुँह का कम गहरा कड़ाही के आकार का मिट्टी का बर्तन, जो प्रायः आग तापने के काम आता है।

कूँढ़ :: (क्रि.) अपनी जगह पर उछलना, ऊपर से नीचे उछल कर आना, कूदना।

कूत :: (सं. स्त्री.) अंदाज, अनुमान, पता, ठिकाना।

कूत :: (मुहा.) कूत परबो-पता पड़ना, अक्ल ठिकाने लगना या-कूत-खाँद।

कूतबौ :: (क्रि. स.) अंदाज लगाना, परखना, जाँचना।

कूता :: (सं. पु.) खेत को नींदने, काटने आदि के लिए निश्चित की गई मजदूरी।

कूप :: (सं. पु.) जंगल का परिसीमित भाग जो कटाई के लिए ठेके पर दिया जाता था।

कूपर :: (सं. पु.) कर्पूर श्वेत, सुगन्ध द्रव्य।

कूबत :: (सं. पु.) शक्ति, बल।

कूबर :: (सं. पु.) पीठ पर उठा हुआ उभार, कूबड़, इसी प्रकार के उभारों के लिए उपमा।

कूरा :: (सं. पु.) कूड़ा, एक नाम।

कूलबौ :: (क्रि.) पीड़ा के कारण ऊँ का स्वर जो साँस के साथ बार-बार निकलता है।

कूले :: (सं. पु. ब. व.) कमर में पेट के ऊपर दोनों पैरों की हड्डियाँ, कूल्हे।

कूले :: (मुहा.) कूले मटकावो, स्त्री जैसा भाव दिखाना, मटक-मटक कर चलना।

कूले :: (ए. व.) कूलौ उतर जाबो-कमर हड्डी का स्थानच्युत होना।

कूले :: (स्त्री.) कुली।

कूले :: (सं. पु.) कूल्हे, नितम्बों और कमर के बीच के पार्श्व भाग, एकवचन में कूलौ तथा कुली दोनों का क्रमशः पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग में प्रयोग होता है।

कें नाउत :: (सं. स्त्री. कहा.) लोकोक्ति, दे. काँनाउत कैबात।

कें नों :: (सं. पु.) शाक-भाजी या किसी वस्तु के बदले दिया जाने वाला थोड़ा अनाज।

केंकइ :: (सं. स्त्री.) कैकई भरत की माता, एक चिड़िया जो बहुत बोलती है, उग्र स्वभाव वाली।

केंकइ :: (वि.) और सन्तानों से द्वेष करने वाली विमाता।

केंकड़िया :: (सं. स्त्री.) नारियल की नरेटी पर बना हा छोटा तारवाद्य।

केंकरौ :: (सं. पु.) केकड़ा, पानी के किनारे भूमि में छेद कर रहने तथा काँतरों वाला जलजीव।

केंकरौ :: (कहा.) कैंकरे कौ जाव माटी कुकेरत - केंकड़े का बच्चा पैदा होते ही मिट्टी कुरेदता है, जिसका जो जन्मगत स्वभाव होता है वह नहीं छूटता।

केंचुआ :: (सं. पु.) केंचुआ, गीली मिट्टी में रहने वाला सर्पाकृति-चिकनी चमड़ी वाला चार-छह इंच का लंबा जीव।

केड़ा :: (सं. पु.) दे. केड़ा।

केड़ेदार :: (वि.) चालाक, चतुर, ऐसी वस्तु जिसके बनाने में वशेष चतुराई प्रदर्शित की गई हो।

केंथ-केथा :: (सं. पु.) कपिस्थ, कबीठ, एक फल जो चटनी बनाने के काम आता है।

केंथोरी :: (सं. स्त्री.) कैथ के गूदे की नमक मिर्च आदि मिलाकर बनाई गयी टिकिया जो चटनी के काम आती है और सुखाकर रखी जाती है।

केन :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड की एक नदी जो जबलपुर जिले के पश्चिम कैमूर पर्वत से निकलकर चिल्ला घाट पर यमुना से मिलती है।

केन :: (वि.) किना, किनवरिया, केन की तलहठी का बैल जो मजबूती के लिए प्रसिद्ध है।

केंनक :: अव्य. या तो, केंना रूप भी पाया जाता है।

केबट :: (सं. पु.) मल्लाह।

केंम :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसकी लकड़ी सफाई के काम आती है, मजबूत लकड़ी का बड़ा जंगली वृक्ष, जिसकी कंघी बनती है।

केया :: (सं. स्त्री.) दूध, घी, तेल आदि नापने की मिट्टी की डबुलिया जो नाप में चार टका भर होती है।

केर :: (सं. स्त्री.) केला का पेड़।

केर बेर :: (सं. पु.) केर-बेर की संगति का भाव, शत्रुता, मनमुटाव।

केरा :: (सं. स्त्री.) केला, केले का फल।

केरिया :: (सं. स्त्री.) तम्बाकू रखने की छोटी थैली, कपड़े के चौकोर टुकड़े के तीन कोणों से मोड़ कर सी दिया जाता है, एक कोंण पर तनी लगी रहती है जो उसे बाँधने के काम आती है।

केरी :: (सं. स्त्री.) केले के समान एक छोटा पौधा जिस पर लाल पीले फूल लगते हैं।

केवड़ा :: (सं. पु.) केवड़ा नाम का प्रसिद्ध पौधा और उसका सुगन्धित फूल।

केवला :: (सं. पु.) जली हुई लकड़ी का बुझा हुआ अंगारा जो बहुत काला होता है, उदाहरण-लकड़ी जर कोयला भई, उदाहरण-अपुन तो कारी केवला सी बिटिया जाई पटोला सी-(पहेली) कढाही में तली पूड़ी।

केंवाच :: (सं. पु.) एक जंगली वृक्ष, कपकिच्छु, इसकी फली के छू जाने से बदन में खुजली होती है और इसके बीज औषधि के काम आते हैं।

केस :: (सं. पु.) साधुओं के बाल, महिलाओं के बाल लोकसाहित्य।

केसर :: (सं. स्त्री.) केशर।

केसरिया :: (सं. पु.) पीलाहट लिये हुए लाल रंग, केसर के रंग की पोशाक।

केसरें :: (सं. स्त्री.) कमल की कोमल और पतली जड़ें।

केसरें :: दे. विसरूआ, कोंसरें।

कै :: (वि.) कितने, कई, कितने ही, उदाहरण-केऊदार-कई बार।

कै :: विकल्पवाची योजक शब्द, वमन, उलटी, कितने, कित्त्ते, उदाहरण-के ठौआ।

कै :: (कहा.) कै हंसा मोती चुगे, कैलंघन कर मर जाय - बड़े आदमी अपनी आन-बान को नहीं छोड़ते।

कै :: (सर्व.) कितने, या अथवा, कैऊ -कई, कैत-कहते, कैदई-कह दिया, कैना-कहना, कैसो-किस तरह, कैसें।

कैउ :: (सर्व.) कई।

कैचबो :: (क्रि. स.) चुभाना।

कैंचबों :: (क्रि. स.) चुभाना।

कैचा :: (सं. पु.) वह बैल जिसका एक सींग खड़ा और लटका हो।

कैंचा :: (सं. पु.) वह बैल जिसका एक सींग खड़ा और लटका हो।

कैंड़ा :: (सं. पु.) नली में लिपटी ही डोर की पिंडी जिसमें कोरी कपड़ा बुनते हैं।

कैंड़ी :: (सं. स्त्री.) आँख का दोष, तिरछा देखना।

कैत-कैथ :: (सं. पु.) प्रसिद्ध वृक्ष उसका फल खट्टा होता है।

कैंत-कैथा :: (सं. पु.) प्रसिद्ध वृक्ष उसका फल कपित्थ, कैथ।

कैथीरी :: (सं. पु.) कैथ के सूखे टुकड़े।

कैथोरी :: (सं. स्त्री.) केथ के गूदे की नमक मिर्च आदि मिलाकर बनाई गई टिकिया जो चटनी के काम आती है, और सुखा कर रखी जाती है।

कैना :: (क्रि.) कहना बोलना के बदकै-जताकर शर्त लगाकर खोलकर, कैबो सुनवो-बातचीत करना बहस करना।

कैना :: (सं. पु.) कथन, आज्ञ, अनुरोध, कैबे-के देवी, कह देना।

कैनात् :: (सं. पु.) कहावत।

कैनात् :: (क्रि.) कहना बोलना कैबदकै, जताकर, शर्त लगाकर, खोल कर।

कैनो :: (सं. पु.) साग, भाजी आदि खरीदने के लिए बदले में दिया जाने वाला अनाज।

कैबदला :: (क्रि. वि.) किसी बात को कह कर मुकर जाना।

कैबो :: (क्रि. स.) कहना, उक्ति संज्ञार्थक क्रिया, कैबो सुनबो-बातचीत बहस करना।

कैबो :: (सं. पु.) कथन, आज्ञा अनुरोध कैबे कान राधका जूको, ई. रैना चूक परौ का कइये, कै देवी, कह देना।

कैबो :: (सं. पु.) कहना, उक्ति, संज्ञार्थक क्रिया।

कैम :: (सं. पु.) मजबूत लकड़ी का एक बड़ा जंगली वृक्ष जिसकी कंघी बनती है।

कैमा :: (सं. पु.) कदम्ब।

कैयक :: (वि.) कई एक, कैयक-सहसा अचानक आये।

कैया :: (सं. स्त्री.) दूध, घी. तेल आदि नापने की मिट्टी की डबुलिया जो नाप में चटका भर होती है।

कैया :: (सं. स्त्री.) गोद।

कैंया :: (सं. स्त्री.) गोद, हंस लिपटाय सबी से बोलत चन्द्र जै यत तै कैया।

कैर बैर :: (सं. पु.) शत्रुता।

कैर-बैर :: (यो. स.) केर-बेर की संगति का भाव, शत्रुता, मनमुटाव।

कैरउवाज :: (सं. स्त्री.) सूखी खुजली।

कैरा :: (वि.) भूरी आँखों वाला।

कैरा :: (कहा.) कैरा बुद्धि बिनासी, करै बाप की हाँसी।

कैल :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की लंपीसी घास।

कैल :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की घास, इसको खाकर पशु अधिक दूध देते हैं।

कैलगा :: (सं. पु.) दूसरों के कहने पर चलने वाला।

कैला :: (सं. पु.) मिटटी का तबा।

कैला :: (स्त्री.) कैलिया कल्लो।

कैला, कैलौ :: (सं. पु.) मिट्टी का तबा।

कैला, कैलौ :: (स्त्री.) के लिया।

कैली :: झिल्ली एक कीड़ा जो पके चने खाता है, कड़ी में डाली गई मूंग की बड़ी।

कैषत :: (सं. स्त्री. कहा.) लोकोक्ति, दे. कनाँउत।

को :: (सर्व.) कौन, को आ, को आय, कौन है, कौन रहे, माते जमीदार को आओ बुलौआ, को आ करत सहाई।

को :: (कहा.) कौऊ कौ घर जरै, कोऊ तापै - किसी की तो हानि हो और कोई दूसरा उससे लाभ उठाये।

को :: (कहा.) कोऊ मताई के पेट सें सीक कें नई आऊत - कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता, अर्थात् करने से ही सब काम आता है।

को :: (कहा.) कोऊमरै काऊ कौ घर भरे - किसी की हानि से किसी को लाभ होना।

कोइल :: (सं. स्त्री.) कोयल।

कोंई :: (सं. पु.) ज्वार के गेहूँ के उबले हुए दाने।

कोए :: (सं. पु.) आँख की कोर जहाँ काजल लगाया जाता है।

कोंच याबो :: महुआ में फूलों की कलियाँ तैयार होना।

कोंचर :: (वि.) वह बैंल या लदाऊ जानवर जो चलते बैठ जाये।

कोंचा :: (सं. पु.) कलाई के नीचे का हाथ।

कोंची :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के धोती पहिनने में वह अग्रभाग जिसको उंगलियों पर घड़ी करके खुर्सा जाता है।

कोंछर :: (सं. स्त्री.) कुक्षि, पशुओं की पिछली टांगों के बीच में ऊपरी भाग, स्त्रियों का कुक्षि प्रदेश।

कोट :: (सं. पु.) ढ़ेर, परकोटा, कोट वस्त्र, किला, चार दिवार, कोटिया।

कोठा :: (सं. पु.) पेट, आँत, कमरा, वह स्थान जिसमें बारूद गोली आदि भरी जाती है।

कोंठा :: (सं. पु.) आन्तरिक पेट।

कोठी :: (सं. स्त्री.) सुन्दर घर, बंगला, ऐसा भवन जो कोट से घिरा हो, भव्य भवन।

कोड़ :: (सं. पु.) एक रोग जिसमें शरीर के अंग गलने लगते हैं।

कोड़ :: (वि.) कोड़ी।

कोड़ :: (कहा.) कोढ़ में खाज - विपत्ति में और विपत्ति।

कोंडरा :: (सं. पु.) घेरा, चक्कर, तांत्रिक विधियों में अभिमंत्रित रक्षा क्षेत्र।

कोड़रिया :: (सं. स्त्री.) कोडेंरी. गोल घेरां।

कोड़रिया :: (मुहा.) कोड़ेरी मारके बैठबो, गोल चक्कर बनाकर बैठना, कोडरियन मूतबो, चक्राकार मूतना, उपद्रव करना।

कोड़ा जमालसाही :: (सं. पु.) एक खेल।

कोंड़िया :: (वि.) लोभान की एक किस्म, साँप की एक जाति।

कोंड़ी :: (सं. स्त्री.) कपर्दिका, कैल्सियम की एक प्राकृतिक संरचना जो पहले लेन-देन के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होती थी।

कोंड़ीला :: (सं. पु.) खंजन पक्षी जो शरद ऋतु में दिखलाई पड़ता है, बैल जिसके सींग में ऐंठन हो।

कोंड़ेरा :: (सं. पु.) पशुओं के लिये बनाया गया बाड़ा।

कोताई :: (सं. स्त्री.) कमी।

कोते :: (क्रि. वि.) बदले में, बजाय, स्थान पर।

कोद :: (क्रि. वि.) तरफ. पक्ष।

कोंदलौ :: (सं. पु.) शीतकाल में बादल होने के कारण धूप रहित मौसम।

कोदे :: (सं. पु.) एक छोटा अनाज, इस पर कई पत्त्तों का छिलका होता है।

कोंन :: (सर्व.) कौन, प्रश्नवाचक शब्द।

कोप :: (सं. पु.) दैवी क्रोध।

कोंपें :: (सं. स्त्री.) कोपलें, नये पत्त्ते, बौंड़ी, कली।

कोंमर-कोमल :: (वि.) कोमल।

कोंमर-कोमल :: दे. कौमल, कौमर।

कोय :: (सं. स्त्री.) आँख का किनारा।

कोयलो :: (सं. स्त्री.) शीत और वर्षा।

कोर :: (सं. पु.) किनारा।

कोर :: (सं. स्त्री.) धोती, दुपट्टे आदि की किनार।

कोरबो :: (क्रि.) दे. झकझोरबौ, हाथ पकड़ कर झटकना।

कोरा :: (सं. पु.) विवाह के अवसर पर आमंत्रित स्त्रियों को बाँटा जाने वाला खाद्य पदार्थ।

कोराँत :: (सं. स्त्री.) बारात को दिया जाने वाला कच्चा भोजन रोटी, दाल, कढ़ी, भात, बरा, मगौरा, बूरौ और पर्याप्त से अधिक मात्रा में घी का आयोजनमय भोज।

कोरी :: (सं. स्त्री.) हिन्दू जुलाहा, कपड़े बुनने का व्यापार करन वाली जाति।

कोरी :: कोरी की बिटिया केसर कौ तिलक-हैसियत के विरूद्ध काम, कोरी कौ सुआ का पढ़ै-तगा पौनी-कोरी का तोता क्या पढ़ता है, सूत और पौनी, जो जिसका धंधा होता है उसके घर में उसी की चर्चा रहती है।

कोरी :: (सं. पु.) विवाह के अवसर पर आमंत्रित स्त्रियों को बांटा जाता, जैसे तुमई कोसे ऊसे हमाये गीत।

कोंरी :: (वि.) मुलायम।

कोंरी :: (स्त्री.) कोमल।

कोंरी :: (पु.) कोरौ।

कोलबो :: (क्रि. स.) छेद करना।

कोलू :: (सं. पु.) कोल्हू, तेल निकालने, पेरने का यंत्र।

कोस :: (सं. पु.) १ कोस-९००० गज। ८०६९ कौटिल्य के अनुसार, खजाना।

कोस :: (सं. पु.) दूरी का एक स्थानीय माप, कहीं दो मील के कहीं तीन मील के बराबर माना जाता है।

कोस :: (कहा.) कोस कोस पै पानी बदले, बारा कोस पै बानी - कोस-कोस पर पानी और बारह कोस पर भाषा बदल जाती है।

कोंस :: (सं. स्त्री.) मटर, सेम आदि की फली।

कोंस :: (व. ब.) कोसें।

कोंसकिया :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक गोत्र।

कोंसंयरो :: (वि.) कोस जैसा मुलायम और पतली स्त्री कोंसयारी।

कोंसरें :: (सं. स्त्री.) केसरें।

कोंसरें :: (ब. व.) प्रयुक्त।

कोसवो :: (क्रि. स.) किसी की अहित कामना करना, अपनी गलतियों का दूसरे को उत्तरदायी ठहराते रहना।

कोसा :: (सं. पु.) एक तरह का रेशम।

कोंसें :: (सं. स्त्री.) फलियाँ, प्रायः लम्बे आकार की फलियों के प्रयुक्त।

कोहबर :: (सं. पु.) वह स्थान या घर जहां कुल देवता स्थापित रहते हैं।

कौ :: (सर्व.) कर्म और सम्प्रदाय कारक, कौनें-किसने, किसे, कौलों-कब तक।

कौंचयाबो :: (क्रि.) महुआ में फूलों की कलियाँ तैयार होना।

कौद :: (सं. पु.) बैल की पीठ पर वह निशान जो अरई गुच्चने से बन जाता है।

कौनिया :: (सं. पु.) कौना, कौने आंतर।

कौर :: (सं. पु.) कुहरा, निवाला, झौंक, उदाहरण-कोर दबवो, कोर चलाबो, चरस द्वारा पानी देना, चक्की (चकिया) के मुँह में एक बार डाला जाने वाला अनाज, औंक।

कौरया :: (वि.) टुकड़खोर।

कौरा :: (सं. पु.) रोटी का टुकड़ा, ग्राफ।

कौरिया :: (सं. पु.) छिपने का स्थान, छिपकर बैठना।

कौरे :: (वि.) मुलायम, नई चीज, कौरो।

कौरो :: (सं. पु.) द्वार के दोनों ओर का वह भाग जिससे खुलने पर किबाड़ सटे रहते हैं, उदाहरण-कौरे से लगबो टिकबो-दरबाजे के पास किसी की प्रतीक्षा के या कोई बात सुनने के लिए छिप कर कड़ा होना, उदाहरण-भीतर काम-दंद और टिकी राज कोरे सें।

कौरौ :: (वि.) बिना धुला हुआ वस्त्र, बिना लिखा हुआ कागज बिना ज्ञान और संस्कार का व्यक्ति, मुलायम।

कौरौ :: (सं. पु.) दरवाजे से सँटा हुआ दीवार का भाग, घूँघटदार दरवाजे पार्श्वकोण।

कौल :: (सं. पु.) शपथ, प्रतिज्ञा, वादा।

कौल :: (मुहा.) कौल करवो-शपथ खाकर प्रतिज्ञा करना, कौल देबो या लैबो-खेत काटने आदि का ठेका देना या लेना, कौल कटाबो-सौगंध कराना।

कौल :: (मुहा.) कोल, करार।

कौहान :: (सं. पु.) ऊँट की पीठ पर बीच में उठीं हुई जगह।

क्यारी :: (सं. स्त्री.) खेत में मेड़ बनाकर बनाये गये छोटे-छोटे विभाग, साक भाजी की खेतों में क्यारियाँ बनाई जाती हैं।

क्रूर :: (वि.) क्रूर, दुष्ट, निर्मम।

क्रूर :: (सं. पु.) बड़ी मछली का शिकार करने के लिए विशेष प्रकार की नोकों वाला त्रिशूल जो रस्सी में बाँध कर चलाया जाता है।

क्वाँ-कबा :: (सं. पु.) अर्जुन वृक्ष।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के 'क वर्ग' का द्वितीय व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान कण्ठ्य है।

खई :: (सं. स्त्री.) मैल, मुर्चा, जंग, लड़ाई।

खउआ :: (वि.) अधिक खाने वाला, रिश्वत खोर, उधारी न लौटाने वाला।

खंक :: (वि.) खाली, पोला।

खँकड़ा :: (सं. पु.) सूखकर भंजनशील हो गयी पतली वस्तु आटे की बनी कुरकुरी पूड़ी (बड़ी)।

खकरियाँ :: (सं. स्त्री.) आटे की बहुत पतली पपड़िया।

खकार :: (सं. पु.) खाँसी का बलगम।

खँकार :: (सं. पु.) खँखार, गले का थूक।

खकारबौ :: (क्रि.) गला साफ करना।

खकेटबौ :: (क्रि.) पीछे भाग कर तेजी से खदेड़ना।

खकेटौ :: (संज्ञार्थक क्रि.) खकेटने की क्रिया।

खकोबौ :: (क्रि.) किसी समाप्त हुई वस्तु को बर्तन से खरोंच कर निकालना।

खँख :: (सं. पु.) रिक्त, खाली, निर्जन।

खखारना :: (क्रि.) गले से आवाज करना, अटका हा थूक निकालना।

खखेटा :: (सं. पु.) खटका, शंका, पीछा।

खखेटा :: (मुहा.) खखेटा धरबो-दौड़कर, पीछा करना।

खखोबो :: (क्रि.) ढूँढ़ना, तलाश करना।

खँगड़ :: (सं. पु.) अनुपयोगी टूटी-फूटी वस्तुएँ। अंगड़-खंगड़ शब्द युग्म में प्रयुक्त।

खगपति :: (सं. पु.) सूर्य, गरूड़।

खँगबारौ :: (सं. पु.) किसी वस्तु के चारों ओर लगी वृताकार पट्टी, भारी वजन की खँगौरिया, हँसली, गले का आभूषण।

खगबो :: (क्रि.) चुभना, गड़ना, लिप्त होना, अटकना, चित्त पर असर करना, खड़े रहना।

खँगबो :: (क्रि.) अटकना, अड़ना, किसी बात पर डट जाना, किसी कमी के कारण अवरोध होना, जमना, अड़ना पीछे को न हटना, कम होना।

खँगरबो :: (अ. क्रि.) खेत की मिट्टी के उपजाऊ अंश का बह जाना।

खँगरौला :: (सं. पु.) खँगारों का मुहल्ला।

खँगसबौ :: (क्रि.) किसी पोली वस्तु में दूसरी वस्तु का फँस जाना।

खँगहा :: (वि.) निकले हुए दाँत वाला।

खँगहा :: (सं. पु.) गैंड़ा।

खँगाबौ :: (क्रि.) किई शर्त लगाकर चालू काम में अवरोध उत्पन्न करना।

खँगार :: (सं. पु.) एक जाति, इसने बुन्देलखण्ड के प्रसिद्ध दुर्ग कुण्डार को चन्देलों से छीनकर खँगार राजवंश की स्थापना की थी जिसे कालान्तर में बुन्देलों ने समाप्त कर दिया था।

खंगारन :: (सं. पु.) खँगारने से निकला पानी।

खंगारन :: (सं. स्त्री.) खँगार जाति की स्त्री।

खँगारबो :: (सं. क्रि.) कपड़ा-बर्तन आदि धोना, किसी वस्तु को साफ करने में अन्तिम धुलाई करना, खँगालना।

खँगालना :: (स. क्रि.) थोड़े पानी से साफ करना, खाली करना, सब कुछ उठा ले जाना या चुराना, खोजना, जाँच पड़ताल करना।

खगौरा :: (सं. पु.) गले का एक आभूषण, हँसली। उदाहरण-सोने ही को गरे खगौंरा, मनहुँ खरी गनपत की गौरा (लाक गीत)।

खँगौरिया :: (सं. स्त्री.) हँसुली, सुतिया, गले का सोन या चाँदी का ठोस आभूषण, इसका अगला भाग मोटा चौकोर और कलात्मक होता है, पिछला गोल और पतला होता है।

खचखचौ :: (सं. पु.) पानी पड़ने से जमीन पर हुआ हल्का कीचड़।

खचन :: (सं. स्त्री.) दलदली भूमि, अंकित करना, जोड़ने या बाँधने की क्रिया।

खँचना :: (क्रि.) निशान पड़ना, चिह्न पड़ना, चिंच जाना, कीचड़ या दल दली भूमि।

खचबौ :: (क्रि.) कीचड़ में फँसना या धँसना।

खचरा :: (वि.) कीचड़, दलदल, दोगला, दुष्ट।

खचा :: (सं. पु.) गड्ढा जिसमें पतला कीचड़ भरा हो।

खचाखच :: (वि.) सघन भीड़, भरा, ठसाठस, वेग के साथ।

खँचाना :: (क्रि. स.) खींचना, निशान बनाना।

खचाबौ :: (क्रि.) गारा या चपड़ा में कोई वस्तु जमाना।

खचोरबो :: (क्रि.) घसीटना।

खचोरबो :: (बुं.) कड़ोरना।

खच्चर :: (सं. पु.) गधे और घोड़े के बीच की एक नस्ल, जो व्यक्ति ऊँचा पूरा और मोटा ताजा हो किन्तु फुर्तीला न हो।

खजई :: (सं. स्त्री.) पानी के ऊपर तैरने वाली बहुत छोटे पत्तों की एक वनस्पति।

खँजड़ी :: (सं. स्त्री.) एक ओर खुला तथा एक ओर चमड़े से मढ़ा लकड़ी का ताला, वाद्य।

खँजड़ी :: (कहा.) बजा न आवे खंजडी, मृदंग की साई लेत।

खँजन :: (सं. पु.) एक पक्षी जिसके नेत्र सुन्दर होते हैं।

खजरा :: (सं. पु.) खजला, खाजा, मिठाई।

खँजरा :: (सं. पु.) मजबूती के लिए आड़ी ईटों की चिनाई।

खँजरा :: दे. खड़ंजा।

खजरिया :: (सं. स्त्री.) खजूर का फल।

खजरी :: (सं. स्त्री.) खजूर का पेड़, खजूर के फल, छिन्द, ज्वार की दाँय से निकला चूर्ण, इसके शरीर पर लगने से खुजली होती है।

खजवा :: (सं. पु.) खाज का रोगी, भूरा कुम्हड़ा जिसाक पेठा बनता है।

खजा :: (वि.) जिसको खुजली का रोग हो, गाली के रूप में प्रयुक्त।

खंजा बाबा :: (सं. पु.) काछियों के एक ग्राम देवता।

खजानची :: (सं. पु.) खजाने में मुद्रा का हिसाब किताब रखने वाला।

खजाना :: (सं. पु.) कोष, धनागर, धन या वस्तुओं का संग्रह स्थान।

खजानो :: (सं. पु.) मुद्रा कोष, चिलम का वह भाग जहाँ तम्बाकू रखी जाती है।

खजी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी जिसके छूने से बदन खुजलाने लगता है, एक जल घास।

खजुरया :: (वि.) खजूर के पत्तों की आकृति वाला।

खजुराहो :: (सं. पु.) चन्देलों का प्रसिद्ध कलातीर्थ जो म. प्र. के छतरपु जिले में स्थित है।

खजुरियाँ :: (सं. स्त्री.) खजूर के फल, चावल के आटे और गुड़ से बना पकवान।

खजूर :: (सं. स्त्री.) पिंड खजूर।

खट :: (सं. पु.) टूटने, टकराने या ठोकने पीटने का शब्द।

खटक :: (सं. स्त्री.) खटकने की क्रिया या भाव, खटका, आशंका, चिन्ता।

खटकना :: (क्रि. अ.) झगड़ा होना, खलना, पीड़ा होना, संदेह होना, चिन्ता होना, खटखट होना।

खटकना :: (अ. क्रि.) चुभना, गड़ना, उदाहरण-खटक रये मायके के छैल करेजे में।

खटकबो :: (अ. क्रि.) खटखट शब्द होना, रह-रह कर दुखना या हल्की पीड़ा होना।

खटकबौ :: (अ. क्रि.) अखरना, असहमति के कारण विरोध, झगड़ होना।

खटकयानो :: (सं. पु.) खटीकों का मुहल्ला।

खटकरम :: (सं. पु.) षटकर्म, किसी कार्य के सम्पादन में होने वाली विविध प्रक्रियाएँ।

खटका :: (सं. पु.) खट होने वाले शब्द, चिंता, फिकर, किवाड़ की सटकनी, आहट होना, आशंका, कपड़ा बुनने का करघा, (अकर्मक.) स्विच।

खटकाबो :: (सं. क्रि.) खटखट शब्द उत्पन्न करना, शंका उत्पन्न करना, अनबन करना, बिगाड़ कराना।

खटकीड़ा :: (सं. पु.) खटमल, एक प्रकार की खाट आदि में होने वाला कीड़ा।

खटखट :: (सं. स्त्री.) ठोकने-पीटने का शब्द, झंझट, लड़ाई, झगड़ा, झमेला।

खटखटाना :: (क्रि. स.) खड़खड़ना, ठोकना, खटखट करके होशियार करना।

खटखटाबो :: (सं. क्रि.) किसी चीज को पीटकर, हिलाकर खट-खट की आवाज निकालना, याद दिलाना, टोकना, द्वार पर दस्तक देना, प्रेरित करना, सम्पर्क करना।

खटना :: (क्रि. अ.) ठहरना, टिकना, काम लगना।

खटपट :: (सं. स्त्री.) झगड़ा, अनबन, वैमनस्य।

खटपटी :: (वि.) प्रयासी, प्रयत्नशील, तिकड़मी, विरोधी रूख, अनबन।

खटपाटी :: (सं. स्त्री.) चारपाई की पाटी, खाट की पट्टिका, उदाहरण-खटपाटी लेबो-।

खटपाटी :: (क्रि.) रूठकर चुपचाप कहीं बैठ या लेट जाना, उदाहरण-जो पिय वियोग में खटपाटी लयँ परी घरै, संजई से खटपाटी लैलई करी न संजावाती।

खटपाटी :: (कहा.) खटपाटी लयें परे - खटपाटी लेकर पड़े हैं, किसी विषय पर अप्रसन्न होकर अथवा किसी से रूठ कर घर के किसी एकान्त-स्थान में चारपाई पर चुपचाप करवट लेकर लेट जाने और बात न करने को खटपाटी लेकर पड़ना कहते हैं।

खटमल :: (सं. पु.) खाट में पड़ने वाला एक कीड़ा, खटकीड़ा।

खटमिट्ठा :: (वि.) खट्टा और मीठा।

खटराग :: (सं. पु.) षट्राग, विविधतापूर्ण लम्बी प्रक्रिया।

खटला :: (सं. पु.) स्त्री बच्चे आदि, परिवार।

खटा चूपरौ :: (वि.) खटमिट्ठा।

खटाई :: (सं. स्त्री.) खट्टेपन का गुण, कोई भी खट्टी वस्तु जिसे भोजन के साथ खाया जा सके।

खटाखट :: (सं. पु.) खटखट का शब्द लगातार होना, खटसे-।

खटाखट :: (क्रि. वि.) तत्परता से, सरलता से।

खटाँद :: (सं. स्त्री.) खट्टी बास, खट्टी खुशबू आना।

खटाना :: (सं. क्रि.) निर्वाह होना, गुजारा होना, ठहरना, टिकना।

खटापटी :: (सं. स्त्री.) अनबन, झगड़ा।

खटाबौ :: (क्रि.) रूकना, ठहरना।

खटास :: (सं. स्त्री.) खट्टापन, खटाई।

खटिया :: (सं. स्त्री.) छोटी खाट, चारपाई, खटोली।

खटीक :: (सं. पु.) एक जाति जो माँस का धन्धा करती है।

खटुआ :: (सं. पु.) भाजी जिसके पत्ते खट्टे होते है, नीबू की जाति का मोटे छिलके का एक बड़ा फल।

खटुलिया :: (सं. स्त्री.) बच्चों को सुलाने की छोटी खटिया।

खटेटी :: (वि.) जिस पर बिछौना न हो।

खटोलना :: (सं. पु.) पालना। (लोक गीत)।

खटोला :: (सं. पु.) छोटी खाट।

खटोला :: (स्त्री.) (खटोली) पालना।

खटोला :: (सं. स्त्री.) बुन्देली की एक उपबोली जो म.प्र. के छतरपुर, दमोह, पन्ना आदि जिलों में बोली जाती है।

खट्टया :: (वि.) जिसके सिर में खट्टें हो, एक गाली।

खट्टा :: (वि.) अम्ल।

खट्टा :: (स्त्री.) खट्टी।

खट्टू :: (सं. पु.) कमाने वाला, मजदूर, नौकर।

खट्टौ :: (वि.) खट्टा।

खट्टौ :: (मुहा.) खट्टौ खाबो-बुरे परिणाम भोगना।

खंड :: (सं. पु.) भाग, टुकड़ा।

खड़खड़ाना :: (अ. क्रि.) खड़खड़ शब्द होना, कड़ी वस्तुओं के टकराने का शब्द होना।

खड़खड़ाना :: (स. क्रि.) खड़खड़ शब्द करना।

खड़खड़िया :: (सं. स्त्री.) पालकी, डोली, पीनस, खड़खड़ कर चलने वाली छोटी गाड़ी।

खड़ग :: (सं. पु.) तलवार।

खड़गराय :: (सं. पु.) राजा चंपतराय के पिता।

खड़जंग :: (सं. स्त्री.) आपसी लड़ाई टकराव।

खड़ंजा :: (सं. पु.) मजबूती के लिए आड़ी ईटों की चिनाई।

खंडता :: (सं. स्त्री.) वह नायिका जिसका पति या नायक रात को किसी अन्य स्त्री के पास रहकर सबेरे उसके पास आये, खंडिता।

खड़तालें :: (सं. स्त्री.) कीर्तन आदि के समय बजायी जाने वाली लकड़ी की करतालें।

खँडन :: (सं. पु.) तोड़ना, भंजन, काटना।

खड़पुरी :: (सं. स्त्री.) शक्कर के बड़े बताशे।

खड़बड़ :: (सं. स्त्री.) खड़बड़ का शब्द, उलटफेर।

खड़बड़ाना :: (क्रि. स.) खड़बड़ शब्द करना।

खड़बड़ाना :: (क्रि. अ.) खड़बड़ शब्द होना।

खड़बड़ाबौ :: (क्रि.) वस्तुओं को इधर-उधर करने से खड़बड़ की आवाज करना या होना।

खंडरबो :: (अ. क्रि.) मिट्टी के उपजाऊ अंश का बह जाना।

खँडसारी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की खांड, देशी शक्कर।

खड़ा-खड़िया :: (सं. पु.) पेड़ की पतली डालों का इकड़ा, अरहर के डण्डल।

खड़ाँउ :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की चप्पलें, प्रायः साधू पहनते हैं।

खड़ास्टक :: (सं. पु.) कुण्डली मिलान में ग्रहों की विरोधी दसा, विरोधी स्थिति, खड़ाखपर न मिलबो-द्रव्यहीन होना, दरिद्र हो जाना।

खँडित :: (वि.) टूटा हुआ अपूर्ण।

खड़िया :: (सं. स्त्री.) एक तहर की सफेद मिट्ट, छुही, चाक, छोटी मछली।

खड़ीबोली :: (सं. स्त्री.) बोलचाल की हिन्दी, वर्तमान हिन्दी गद्य भाषा।

खडुआ :: (सं. पु.) बाँस की बड़ी टोकरी जिसमें २० सेर अनाज आता है।

खँडेरा :: (सं. पु.) खण्डहर, ध्वस्त भवन।

खड़ेलुआ :: (सं. पु.) बैलगाड़ी में घास आदि भरते समय बगल में लगाये जाने वाले छह डण्डे।

खडैरयउ :: (सं. पु.) वह नगर जिसमें खण्डहर अधिक हों।

खड़ैरा :: (सं. पु.) खण्डहर, ध्वस्त भवन, उदाहरण-डरी खड़ैरा बाखर, धुलुआ नए खेरे बारे की (लोकगीत.) टूटा-फूटा भवन।

खड़ैलुआ :: (सं. पु.) गाड़ी में लगने वाली खड़ी लकड़ी जो वस्तु को गिरने से बचाती है।

खड्ड :: (सं. पु.) गड्ढा।

खड्डियाँ :: (सं. स्त्री.) छोटी-छोटी मछलियाँ, मछली मारने के संदर्भ में प्रयुक्त।

खण्ड :: (सं. पु.) इमारत की मंजिल, खाने, घरा, मसाला आदि रखने डिब्बे के भाव।

खण्डा :: (सं. पु.) पत्थर के लगभग घनाकार टुकड़े जो भवनों की कुर्सी अथवा भवन बनाने के काम आते हैं। टूटे चावल (टुटी)।

खण्डित :: (वि.) टूटी हुई मूर्तियों के लिये तथा गर्भपात होने के लिये केवल।

खत :: (सं. पु.) होल्डर, लेखनी, कान के सामने के बाल, घाव।

खतना :: (सं. पु.) सुन्नत, मुसलमानी।

खतबौ :: (क्रि.) लकड़ी आदि का बहुत पुरानी होने या सीलन के प्रभाव से भुरभुरा होना।

खतम :: (सं. पु.) भय, डर।

खतयाबो :: (स. क्रि.) रोकड़ से खाते में विषय क्रम के हिसाब से लिखना, खतियाना, उधारी आदि को व्यक्तिगत खातों में डालना।

खतरा :: (सं. पु.) भय, डर।

खता :: (सं. पु.) फोड़ा।

खता :: (सं. पु.) कसूर, अपराध, दोष।

खता :: (कहा.) खता मिट जात पै गूद बनी रत - क्षत, फोड़ा, घाव, फोड़ा भर जाता है परंतु उसका चिन्ह बना रहता है, मन में चुभी बात कभी दूर नहीं होती।

खता :: (कहा.) खता में खता, ढका में ढका - पीड़ा के स्थान में और भी पीड़ा आकर उत्पन्न होती है, हानि में और भी हानि भी होती है।

खतिया :: (सं. स्त्री.) फुंसी, फुड़िया।

खतौंनी :: (सं. स्त्री.) माल विभाग की पूंजी जिसमें पैदावार लिखी जाती है, उधारी को व्यक्तिवार छाँटने की क्रिया।

खत्ती :: (सं. स्त्री.) गड्ढा, तलघर जिसमें अनाज रखा जाए।

खत्री :: (सं. पु.) हिन्दुओं में एक जाति विशेष।

खत्री :: (सं. स्त्री.) खत्रानी, खतरानी।

खदकबौ :: (क्रि.) किसी गाढ़ी वस्तु का खद-खद की आवाज करके चुरना।

खँदका :: (सं. पु.) दीवार आदि में बड़ा छेद।

खदनियाँ :: (सं. स्त्री.) मिट्टी निकालने की छोटी खदान।

खदबदाना-खदखदाना :: (क्रि. अ.) उबालना, उबलने का शब्द होना।

खदरा :: (सं. पु.) गड्ढा।

खदरी :: (सं. स्त्री.) काली मिट्टी की वह भूमि जिसमें बहुत दिन से जुताई-बुबाई न होने के कारण छोटे-छोटे गड्ढे हो गये हों।

खदा :: (सं. पु.) हाथ की बुनी धोती जो कन्या के विवाह में उसका मामा लाता है और उसको पहन कर कुछ वैवाहिक क्रि यायें सम्पन्न होती हैं।

खँदा :: (सं. पु.) दीवार में व्यक्ति के निकलने लायक छेद।

खँदा :: दे. खँदका।

खदान :: (सं. स्त्री.) पत्थर या मिट्टी निकलने की बहुत बड़ी खदान जहाँ प्रायः ठेकेदों या बड़े स्तर पर काम चलता है।

खँदिया :: (सं. स्त्री.) पहाड़ियों के बीच से पारकृतिक या काटकर बनाया हुआ रास्ता।

खदेड़ना-खदेरना :: (क्रि. स.) भगाना, दूर करना।

खदेरबौ :: (क्रि.) खदेड़ना, पीछा करके भगाना।

खदैरौ :: (सं. पु.) खदेड़ने की क्रिया।

खद्दर-खद्दड़ :: (सं. पु.) खादी, गाढा।

खन :: (सं. पु.) खण्ड, साड़ी के साथ जुड़ा हुआ ब्लाउज का टुकड़ा, डिब्बे के अन्दर का पृथक भाग।

खनक :: (सं. स्त्री.) चूड़ियों या सिक्कों की आवाज।

खनकबो :: (अ. क्रि.) खन-खन शब्द होना, खन-खन की ध्वनि निकलना।

खनकाबौ :: (क्रि.) उक्त वस्तुओं को हिलाकर आवाज करना।

खनता :: (सं. पु.) कुदाल, फावड़ी।

खनवाहौ :: (सं. पु.) पत्थर फोड़ने की छोटी खदान, गोबर और कचड़ा डालने के लिये पृथक-पृथक गड्ढों का समूह।

खन्ती :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का चौकोर और समतल खदान जिनका माप किया जा सके, ये प्रायः एक सौ घन फुट की होती है।

खन्दक, खंदक :: (सं. स्त्री.) खाई, बड़ा गड्ढा।

खन्ना :: (सं. पु.) खलिहान।

खपचा :: (सं. पु.) पान के डंठल या बीड़ी के लिए पत्तों को काटने की कैंचीं।

खपची :: (सं. स्त्री.) बांस की पतली और चौड़ी लकड़ी या बीड़ी पत्तों को काटने की कैंची।

खपटया कीरा :: (सं. पु.) एक काले रंग का कीड़ा।

खपटा :: (सं. पु.) लकड़ी फाड़ने से निकला चौड़ा और पतला टुकड़ा।

खपड़िया :: (सं. स्त्री.) खोपड़ी, सिर, मस्तिष्क।

खपड़ी :: (सं. स्त्री.) लकड़ी या ईंट के गोल टुकड़े जो सत खपड़ी नामक गेंद में जमाऐ जाते हैं।

खपड़ैल :: (सं. पु.) देखो खपरैल।

खपत-खपती :: (सं. स्त्री.) समाई, माल की ब्रिकी।

खपना :: (क्रि. अ.) निभना, बिक्री होना, काम में आना।

खपबौ :: (क्रि.) कीचड़ में पैरों का चलते समय धँसना, घटिया माल का बिक जाना।

खपरछेंका :: (सं. पु.) छप्पर के अग्र भाग में लगने वाली आड़ी लकड़ी।

खपरफुरू :: (सं. पु.) एक जड़ी जो दाँतों को मजबूत करती है।

खपरा :: (सं. पु.) छप्पर के ऊपर छाने के लिये मिट्टी के चपटे लम्बे टुकड़े जिनके दो तरफ किनार होती है इनको एक दूसरे के साथ जमा कर नाली बन जाती है, कबेलू, गागर फोड़ कर उसके नीचे के भाग से बनाया गया नाद जैसा बर्तन।

खपरिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी के बरतनों या खपरों के छोटे टुकड़े, सिर की हड्डी।

खपरी :: (सं. स्त्री.) एक रोग जो ककड़ी आदि में लगता है।

खपरैल :: (सं. स्त्री.) खपड़े का छाजन, नरिया का बना छाजन।

खपाना :: (क्रि. स.) काम में लाना, निभाना, ब्रिकी करना।

खप्पर :: देवी के सामने धूप जलाने के ले गागर फोड़ कर उसके नीचे के भाग से बनाया गया पात्र, इसी प्रकार बनाया गया जवारे बोने का पात्र।

खप्पर :: (सं. पु.) कपाल, खोपड़ी, या तसले के आकार का पात्र, साधुओं का पात्र।

खफा :: (वि.) अप्रसन्न, क्रुद्ध, रूष्ट।

खबइया :: (सं. पु.) खाने वाला।

खबना :: (सं. पु.) खजूर के पत्तों का डण्ठल जिसके दोनों ओर क्रम से पत्ते लगे रहते हैं, दलदल।

खबनिया :: (सं. पु.) बाँस इत्यादि की चिरी हुई लकड़ी।

खबनें :: (क्रि.) कीचड़ में फँसना, पँक में धसना।

खबर :: (सं. स्त्री.) समाचार, हाल, होश, चेत, पता।

खबरदार :: (क्रि.) होशयार, सावधान रहने की चेतावनी, सोच-समझ कर काम करने की चेतावनी देना, आगाह करना।

खबरदार :: (वि.) होशियार, सावधान।

खबरदार :: (वि.) होशियार, सचेत, सावधान।

खबरदारी :: (सं. स्त्री.) होशियारी, सावधानी, देखरेख।

खँबा :: (सं. पु.) स्तम्भ, आश्रय, आधार।

खबाकैं :: (स. क्रि.) खिलाकर।

खबाना :: (सं. पु.) खिदमत गार, सेवक।

खबाना :: (सं. स्त्री.) खबासिन।

खबाबो :: (स. क्रि.) भोजन कराना, खिलाना।

खबास :: (सं. पु.) नाई का आदरवाची सम्बोधन, खास बरदार।

खबासन, खबासिन :: (सं. स्त्री.) खास, खितमतगार महिला, नाइन।

खबीस :: (सं. पु.) दुष्ट और भंयकर पुरूष शैतान।

खबैया :: (सं. पु.) खाने वाला, भोजन करने वाला, नष्ट करने वाला, वध करने वाला।

खबौ :: (क्रि.) नाव चलाना।

खब्बा :: (वि.) अधिक खाने वाला, पेटू।

खब्बू :: (वि.) अधिक खाने वाला, खब्बा, पेट्ट।

खमीर :: (सं. पु.) किसी वस्तु का सड़कर उफनना, किसी वस्तु का सड़ा डुआ भाग सड़ना, सड़ाव, कीड़े पैदा हो जाना।

खमीरा :: (सं. पु.) गुड़ और सुगन्ध मिली ध्रूमपान की तम्बाकू।

खम्मा :: (सं. पु.) खम्भा, स्तम्भ।

खर :: (सं. पु.) खली, खल।

खर :: (मुहा.) खर खायँ दही की डकारें लेयँ।

खर चीलो :: (वि.) बहुत अधिक खर्च करने वाला, व्यर्थ खर्च करने वाला।

खरउआ :: (सं. पु.) वह भूमि जहाँ स्त्रियों और बच्चे शौच को जाते हैं।

खरकना :: (क्रि. अ.) खड़कना, सरकना।

खरकबौ :: (क्रि.) पत्तों के आपस में हवा के कारण टकराने की आवाज।

खरका :: (सं. पु.) गाँव का एक भाग जो उससे थोड़ी दूर बसा हो, दाँत साफ कटने का औजार।

खरखरी :: (सं. स्त्री.) पत्थरों को जमा कर बनायी गयी परकोटे जैसी दीवार।

खरगोश :: (सं. पु.) खरहा।

खरचना :: (क्रि. स.) व्यय करना, काम में लाना।

खरचबो :: (स. क्रि.) व्यय करना, खर्च करना, काम में लाना।

खरचा :: (सं. पु.) खर्चा, खर्च व्यय।

खरतल :: (वि.) खरा साफ, स्पष्टवादी, साफ दिल का।

खरबाँचों :: (सं. पु.) जुकाम के कारण गले की खराश।

खरबूजा :: (सं. पु.) लकड़ी की जाति का एक गोल फल।

खरभराना :: (क्रि. स.) खरभर शब्द करना, शोर करना।

खरभराना :: (अ. क्रि.) घबराना, व्याकुल होना।

खरमास :: (सं. पु.) पूस और चैत का महीना जब सूर्य धनु और मीन का होता है इसमें मांगलिक कार्य करने का निषेध होता है।

खरयाट :: (सं. पु.) उत्पात, परेशानी, पैदा करने वाली हरकतें, उत्पात मचाना।

खरयान :: (सं. पु.) खलिहान, जहाँ दाँय के लिये कटी फसल इकट्ठी की जाती है।

खरयाबौ :: (क्रि.) उत्पात करना, परेशानी पैदा करना।

खरा :: (सं. पु.) खरगोश, शशक।

खरा :: (वि.) तेज, तीखा, अच्छा उत्त्तम, काड़ा, अच्छी तरह सेंक कर कड़ा किया हुआ, सच्चा (खोटा का विरोधार्थी।

खराई :: (सं. स्त्री.) खरापन।

खराई :: (सं. पु.) खरापन।

खराँच :: (सं. स्त्री.) किसी सतह पर नोंकदार वस्तु से खुरच कर बनाई गई रेखा।

खराँचबौ :: (क्रि.) खरोंचे करना।

खराद :: (सं. पु.) एक औजार जिस पर लकड़ी धातु आदि चिकनी और सुडौल की जाती है।

खराद :: (सं. स्त्री.) खराद से गढ़ना, खराद का काम, लोहे की गोलाई में छीलने का यंत्र।

खरादना :: (क्रि. स.) खराद पर किसी चीज को साफ करना, काँट-छाँट कर ठीक करना।

खरादबौ :: (क्रि.) गोलाई में लकड़ी या धातु को यंत्र की सहायता से छीलना।

खरादी :: (सं. पु.) खराद करने वाला।

खरापन :: (सं. पु.) खरा होना, सत्यता।

खराब :: (वि.) बुरा, अनुपयोगी, विकृत।

खराबी :: (सं. स्त्री.) बुराई।

खरारी :: (वि.) बिना बिछौने की (खटिया)।

खरिक :: (सं. पु.) गाय भैंस बाँधने का स्थान, चरागाह।

खरिया :: (सं. स्त्री.) खड़िया मिट्टी, रस्सी की बनी जाली जिसमें भूसा आदि बाँधकर ले जाते है, लिखने या पोतने की सफेद मुलायम मिट्टी।

खरियान :: (सं. पु.) खेतों में फसल काट कर रखीं जातीं हैं खलिहान कहते हैं।

खरियाना :: (सं. क्रि.) झोली में रखना, हाथ में लेना, अधिकार में करना।

खरी :: (वि.) सत्य।

खरी :: (मुहा.) खरी खोटी सुनाबो-बुराई करना, सच्ची बात कहना, खली, (खोटी का विरोधी)।

खरी मजदूरी चोखो काम :: नगद मजदूरी देने से काम अच्छा होता है, खरी सुनाबो सच्ची बात कहना।

खरी सुनाबो :: सच्ची बात कहना।

खरीता :: (सं. पु.) शाही आदेश या सन्देश का पत्र।

खरीदबो :: (स. क्रि.) मोल लेना, क्रय करना, दाम लेकर खरीदना।

खरीपटा :: (सं. पु.) बच्चे के जन्म के दूसरे दिन होने वाला उत्सव जब पुरोहित से बच्चे की जन्म पत्री बनवायी जाती है।

खरे :: (सं. पु.) कायस्थ जाति का एक भेद।

खरे :: (वि.) खरा शब्द का बहुवचन रूप।

खरेऊ-खुरोरू :: नारियल की गरी।

खरेंना :: (सं. पु.) खलिहान, देखिये खरयान, खन्ना।

खरोंच-खरोल :: (सं. स्त्री.) छिलने का चिन्ह, खुरसट, खराश, खुरचने से बनी रेखा।

खरोंचना :: (क्रि. स.) छीलना।

खरोंचबौ :: खरोलबौ-।

खरोंचबौ :: (क्रि.) अव्यवस्थित ढंग से खुरचना।

खरौ :: (वि.) तेज, शुद्ध, स्पष्ट, हल की नोंक का कम तिरछा होना ताकि अधिक गहरी जा सके, तेज आँच से पकाया हुआ।

खर्च :: (सं. पु.) व्यय।

खर्चबौ :: (क्रि.) व्यय करना।

खर्चा :: (सं. पु.) खर्च करने के लिये मुद्रा।

खर्चा :: (क्रि.) दाँतों में से सींक की सहायता से अन्न आदि के कण निकालना (खिरचा) खिर्चा।

खर्रा :: (सं. पु.) लम्बा लेख, (व्यंग्यार्थ) फसलों पर पड़ी ओस जो अधिक ठण्ड में जम कर प्रातः काल सफेद दिखती है, पाला, तुषार।

खल :: (वि.) खाली, रिक्त, धातु रूप, दुष्ट।

खलउआ :: (सं. पु.) पत्तों का दोना, बड़े आकार का दोना।

खलक :: (सं. पु.) दुनिया, संसार, सृष्टि (खल्क)।

खलखलाबो :: (क्रि.) किसी बर्तन में कम पानी डालकर खूब हिलाना।

खलता :: (सं. स्त्री.) दुष्टता, धूर्तता, क्रूरता।

खलता :: (सं. पु.) झोला।

खलना :: (क्रि. अ.) बुरा लगना, अखरना।

खलबल :: (सं. स्त्री.) रूकावट।

खलबलाना :: (क्रि. अ.) खौलना, विचलित होना।

खलबलाबो :: (क्रि.) उबलने के कारण बुलबुले उठना, खौलना, विचलित होना।

खलबली :: (सं. स्त्री.) मूहगत, व्याकुलता, हलचल, घबराहट।

खलयाबौ :: (क्रि.) खाली करना, बर्तन का थोड़ा सा खाली करना।

खलरिया :: (सं. स्त्री.) पशु का पूरा कच्चा चमड़ा, खाल, निकला हुआ चमड़ा।

खलल :: (सं. पु.) रोक, बाधा, रूकावट।

खलाँत :: (सं. स्त्री.) भट्टी को हवा देने की धौंकनी में लगा हुआ चमड़ा।

खलास :: (वि.) छूटा हुआ, समाप्त, खतम।

खलासी :: (सं. स्त्री.) मुक्ति, छुटकारा, छुट्टी।

खलासी :: (सं. पु.) जहाज पर का नौका, कुली।

खलियान :: (सं. पु.) फसल काटकर रखने और साफ करने का स्थान।

खली :: (सं. स्त्री.) तेल निकालने पर बची हुई तिल आदि की सीठी।

खलीता :: (सं. पु.) जेब, पैसा रखने का स्थान, थैला खीसा (कीसा)।

खलीती :: (सं. स्त्री.) छोटी जेब।

खलीपा :: (सं. पु.) अधिकारी, बूढ़ा व्यक्ति।

खलीफा :: (सं. पु.) फोड़ो का इलाज एवं शल्य क्रिया करने वाला मुसलमान बैद्य।

खलेल :: (सं. स्त्री.) पानी के प्रवाह का बल, तर्खा।

खलेलबौ :: (क्रि.) प्रवाह की तेजी के कारण लगने वाला बल।

खलौआ :: (सं. पु.) दोने के अन्दर पान रखकर उस पर चूना से स्वास्तिक चिन्ह बनाकर प्रसूता को देने का शुभ छेवले का पात्र।

खल्ता :: (सं. पु.) थैला।

खल्ती :: (सं. स्त्री.) जेब।

खल्ल-खल्लर :: (सं. पु.) खरल, मसाले, दवा आदि कूटने की पत्थर की कुण्डी।

खल्लड़ :: (सं. पु.) औषधि कूटने का खरल, चमड़ा।

खवासी :: (सं. स्त्री.) सेवा, खिदमतगारी, नौकरी।

खवैया :: (सं. स्त्री.) खाने वाला।

खस :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की घास की सुगन्धित जड़, गाँडर की जड़ा।

खसकना :: (क्रि.) सरकाना, टरकना।

खसकाना :: (क्रि. स.) सरकाना, हटाना।

खसखस :: (सं. पु.) पोस्ता का दाना, रेतीली भूमि खाकसदानों।

खसखसा :: (वि.) भुरभुरा, जल्दी टूटने वाला, खस्ता।

खँसना :: (अ. क्रि.) गिरना, खसकना।

खसम :: (सं. पु.) पति, स्वामी।

खसम :: (कहा.) थोरी पूँजी खसमें खाय।

खसमानों :: (सं. पु.) स्वामित्व, पति की सम्पत्ति होने कारण उस पर पत्नी को प्राप्त स्वामित्व (व्यंग्य में प्रयुक्त)।

खसया :: (सं. पु.) पीठ पर अनाज ले जाने वाला पल्लेदार।

खसरा :: (सं. पु.) कच्ची बही, पटवारी का खेतों का लेखा, बच्चों का एक रोग।

खसलक :: (सं. स्त्री.) प्रकृति स्वभाव।

खसिया :: (सं. पु.) जनखा, हिंजड़ा स्त्रियों जैसे स्वभाव वाला पुरूष या पुरूषों जैसे स्वभाव वाली स्त्री (लक्षणार्थ)।

खसोट :: (सं. स्त्री.) नोंचना, छीन-झपट।

खसोटना :: (क्रि. सं. स्त्री.) नोंचना, अन्याय से धन लेना, छीनना।

खस्ता :: (सं. पु.) बकरा।

खस्ता :: (वि.) नपुंसक किया हुआ बधिया।

खस्ता :: (वि.) नट या बोल्ट जिसकी चूड़ियाँ मरी हों।

खस्ता :: (वि.) नपुंसक किया हुआ बधिया।

खस्ती :: (सं. पु.) नट या बोल्ट जिसकी चूड़ियाँ मरी हों।

खाँ :: को सम्प्रदान, (कारक विभक्ति) बुन्देली की खटोला उपहोली में प्रयुक्त।

खाई :: (सं. स्त्री.) किले या खाई परकोटे के चारों ओर रक्षार्थ खोदी हुई नहर, खंदक।

खाऊ :: (वि.) बहुत खाने वाला, किसी का धन या अंश हड़पने वाला, घूस लेने वाला।

खाऊ :: (कहा.) खाई गकरियाँ गाये गीत, जे चले चैतुआ मीत - हात की बनी छोटे बनी छोटे आकार की मोटी रोटी, बाटी, चैत की फसल काटने वाले मजदूर, जो फसल के दिनों में झुंड के बाहर निकलते हैं, जहाँ तक काटने के लिए खड़ी फसल मिलती है आगे बढ़ते जाते हैं और कटाई का काम समाप्त हो जाने पर फिर घरों को लौट जाते हैं, स्वार्थी अथवा निर्मोही व्यक्ति के लिए प्रयुक्त।

खाऊ :: (कहा.) खाकें पर रइये, मार कें भग जइये - खाकर लेट जाय, मार के भाग जाय।

खाक :: (सं. स्त्री.) मिट्टी, धूल, राख, भस्म।

खाँकरा :: (सं. पु.) विवाह आदि के अवसर पर बनने वाली बड़ी पतली और कुरकुरी पूड़ी।

खाका :: (सं. पु.) रूपरेखा।

खाकी :: (वि.) मटमैला रंग।

खाग :: (सं. पु.) सींग, नुकीली वस्तु।

खाँग :: (सं. पु.) काँटा नुकीला वस्तु, बड़ा दाँत।

खाँग :: (सं. स्त्री.) त्रुटि, कमी।

खाँगना :: (क्रि. अ.) घटना, कम होना।

खाँगी :: (सं. स्त्री.) कमी, न्यूनता।

खाँगो :: (वि.) विकलाँग, किसी अवयव का अभाव।

खाँच :: (सं. स्त्री.) जोड़, सन्धि, खींचकर बनाया चिन्ह।

खाँचबौ :: (क्रि.) लकीर खींचना।

खाँची :: (सं. स्त्री.) निर्माण कार्य के लिये तैयार चूने को रखने का हौद जैसा स्थान।

खाँचौ :: (सं. पु.) किसी वस्तु के ठीक से जमाने के लिये तदनुरूप बनाया गया स्थान।

खाज :: (सं. स्त्री.) खुजली, एक चर्म रोग जिसमें शरीर पर छोटी फुं सिया और खुजली होती हैं।

खाजा :: (सं. पु.) एक तरह की मैदे की बनी मिठीई, खस्ता और मीठी पूड़ियाँ।

खाट :: (सं. स्त्री.) चारपाई, खटिया, उदाहरण-लऔ हियै संताप खाट परौ।

खाड़ :: (सं. पु.) अरहर के डंठल।

खाँड :: (सं. स्त्री.) देशी शक्कर, किसी माप या तौल का भाग, जैसे-खेर, खाँड अथवा खण्ड, लगभग खण्ड के अर्थ में स्वतंत्र प्रयोग नहीं पाया जाता है।

खाँड :: (कहा.) खाँड बिना सब राँड़ रसोई - शक्कर के बिना भोजन किसी काम का नहीं।

खाँडना :: (क्रि. स.) तोड़ना, छिलके अलग करना, चबाना।

खाँडा :: (सं. पु.) चौड़ी तलवार।

खाड़ी :: (सं. स्त्री.) छप्पर के ऊपर और खपड़ों के बीच की सतह को समतल बनाने के लिए जमाये जाने वाले झकड़ा।

खाडू :: (सं. पु.) एक ही दम्पत्ति के अधिक बच्चों का समूह (व्यंग्य में प्रयुक्त)।

खाँडो :: (सं. पु.) खंग, सीधी और कुछ चौड़ी तलवार, भाग खण्डा।

खात :: (सं. पु.) खाद, उर्वरक, भूमि को उपजाऊ बनाने वाला जैविक या रासायनिक पदार्थ।

खातमा :: (सं. पु.) अन्त, समाप्ति, मृत्यु।

खातरी :: (सं. स्त्री.) विश्वास, आदर।

खातिर :: (सं. स्त्री.) मान, प्रतिष्ठा, आदर।

खातिर दारी :: (सं. स्त्री.) मान, प्रतिष्ठा, आदर।

खातीबाबा :: (सं. पु.) एक ग्राम देवता।

खातो :: (सं. पु.) वह बही, जिसमें प्रत्येक ग्राहक आसामी आदि का अलग अलग हिसाब लिखा जाय, खाता बही। खातो बई।

खातो :: (सं. स्त्री.) दे. खातो। खातौ।

खातो :: (सं. पु.) वह पंजी जिसमें भूमि या लेन-देन का व्यक्तिगत अभिलेख रखा जाता है।

खाद :: (सं. पु.) उर्वरक, देखिए खात।

खाँद :: (सं. पु.) चौड़ी तलवार, पशुओं के पद चिन्ह।

खादक :: (वि.) खाने वाला।

खाँदनी :: (सं. स्त्री.) खेत बोने के लिये तैयार करने में अन्तिम जुताई।

खादी :: (सं. स्त्री.) हाथ का कता बुना वस्त्र, मोटा वस्त्र।

खान :: (सं. पु.) पठान, सख्ती से वसूली करने वाला (लक्षणार्थ)।

खानखाना :: (वि.) माँ बाप को बहुत अधिक परेशान करने वाला।

खानगी :: (सं. स्त्री.) खयानत, गबन, कुलटा स्त्री।

खानदान :: (सं. पु.) वंशाकुल।

खानदानी :: (वि.) अच्छे या ऊँचे वंश का, कुलीन, पुशतैनी परम्परागत।

खानसामा :: (सं. पु.) राजाओं के मांसाहार बनाने वाले मुसलमान या ईसाई रसोइये, पायजामा पहनने वाले (पुराना अर्थ)।

खाना :: (क्रि. स.) भोजन करना।

खानागांन :: (सं. पु.) परिवार का भली-भाँति भरण-पोषण।

खानातलाशी :: (सं. स्त्री.) मकान की तलाशी।

खानी :: पिंजरा-गजर-दो से अधिक अनाजों का ढेर।

खानी :: (वि.) खाने की (युग्म खानी-पीनी चीज)।

खानों :: (सं. पु.) डिब्बे के खण्ड, शंतरज या किसी फर्शी खेल के घरा, दीवार या कागज पर खींची गयी चौकोर आकृतियाँ।

खाप :: (सं. स्त्री.) एक लकड़ी को दूसरी में बिठालने के लिए पारस्परिक अनुरूपता के अनुसार काटे गये खाँचे, कमर में कम चौड़ा और नीचे अधिक चौड़ा लँहगा बनाने के लिए कपड़े की उतारदार कलियाँ।

खाप :: (कहा.) तीन खाप कौ लाँगा पैरें तोई पै जाँग उगारी।

खाब :: (सं. पु.) स्वप्न।

खाबड़ :: (सं. पु.) ऊँच नीच।

खाबौं :: (क्रि.) खाना, केवल खाबौ प्रायः मांस खाने के लिए प्रयुक्त, मुँह में डालना, विषैले कीड़े का ऐसा काटना जिससे प्राणान्त हो सकता है।

खाबौं :: (कहा.) खाबे कों मौआ, पैरवे कों अमौआ - एक प्रकार का खाकी रंग जो आम के पत्त्तों से बनता है, आम के पत्तों से बने हुए रंग में रँगा कपड़ा, खाने को महुआ, पहिनने को अमोआ, संतोषी का कथन।

खाँभ :: (सं. पु.) खम्भा।

खाम :: (सं. पु.) स्तम्भ, विवाह मण्डप में गाड़ा जाने वाला पलाश का कलात्मक छोटा खम्भा, स्तम्भ।

खाम बाबा :: (सं. पु.) विदिशा के निकट बेसनगर में कौत्स भागमद्र के दरबार में यूनानी राजपूत है, हेलियोदर द्वारा वैष्णव धर्म ग्रहण करने के उपलक्ष्य में स्थापित विष्णुध्वज।

खामरवाह :: (क्रि. वि.) व्यर्थ।

खामी :: (सं. स्त्री.) कमी, चूक।

खाँमुँखाँ :: (क्रि. वि.) ख्वाम-ख्वाह, व्यर्थ में, निष्प्रयोजन।

खामोस :: (वि.) चुप, मौन।

खामोसी :: (सं. स्त्री.) मौन, चुप, चुप्पी।

खार :: (सं. पु.) क्षार, पापड़ बनाने के लिए, तिली तथा अपामार्ग के डण्ठल अथवा केले की धार के डण्ठल जला कर बनाया जाने वाला क्षार।

खारक :: (सं. स्त्री.) छुहारे।

खारकें :: (सं. पु.) छुहारे, एक सूखा फल।

खारज :: (क्रि.) खारिज, निरस्त, अमान्य, रद्द किया हुआ, अलग किया हुआ, बेकार, जिस मुकदमे की सुनाई न हो।

खारी :: जिसमें खार हो, जिसमें नमक अधिक हो, खारा।

खारूबा :: (सं. पु.) एक प्रकार का लाल रंग से रंगा हुआ एक प्रकार का मोटा कपड़ा।

खारो :: (वि.) नमक के स्वाद का, जिसमें नमक अधिक हो, अप्रिय, खारा, नमकीन, अपेक्षित मात्रा से अधिक नमक युक्त।

खाल :: (सं. स्त्री.) त्वचा, चमड़ी, मरे पशु का सम्पूर्ण चमड़ा।

खालसौ :: (सं. पु.) सरकारी कृषि या वनभूमि।

खाली :: (वि.) रीता, रिक्त, शून्य, रहित, व्यर्थ।

खाली :: (क्रि. वि.) केवल, सिर्फ आंशिक रिक्त।

खालें :: (वि.) नीचे, बुन्देली की खटोला, उपबोली में प्रयुक्त जैसे-घटिया खालें।

खास :: (सं. स्त्री.) घोड़े पर वजन लादने के लिए दोनों ओर लटकाया जाने योग्य, दो मुँह वाला थैला, विशेष।

खाँसना :: (क्रि.) अव्य, कफ आदि को निकालने के लिये शब्द के साथ वायु को मुख से बाहर निकालना, खो-खो करना।

खासबरदार :: (सं. पु.) राजाओं के ऐसे सेवक जो उनकी आज्ञाओं को उपयुक्त सेवकों तक भेजते हैं।

खाँसबौ :: (क्रि.) खाँसना, बार-बार खाँसी आने की क्रिया।

खासा :: (वि.) अच्छा, उत्तम, सुन्दर, पूरा, स्त्री, खासी।

खासियत :: (सं. स्त्री.) स्वभाव, गुण, विशेषता, सिफत।

खाँसी :: (सं. स्त्री.) खाँसने की क्रिया, गले और फेंफड़ों का एक कफज रोग।

खिचऊँ :: (वि.) देशी जूतों का एक प्रकार जिसके पिछले भाग में चपड़ा उठा रहता है। इसको पकड़कर खींचकर जूता चढ़ाया जाता है।

खिचड़ा :: (सं. पु.) ताजियों के समय बाँटी जाने वाली खिचड़ी।

खिचड़ी :: (सं. स्त्री.) मिलाकर पकाया गया भोज्य पदार्थ, दाल और चावल दो प्रकार के पदार्थो का संयोग।

खिंचना :: (क्रि. अ.) तनना, घसीटना, किसी ओर मन का झुकना।

खिचरी :: (सं. स्त्री.) मूँग की दाल और चावल को पकाकर बनाया गया खाद्य पदार्थ, मिलावट।

खिचरी फरा :: (सं. पु.) नयी ब्याही बहू जब प्रथम बार भोजन बनाकर अपने ज्येष्ठ लोगों को परोसती हैं तो उसे उनकी ओर से भेंट दी जाती है, इसी आयोजन का नाम (सामासिक शब्द.)।

खिँचवाना :: (क्रि. स.) किसी दुसरे से खींचने की मजदूरी।

खिँचाई :: (सं. स्त्री.) खींचने की क्रिया, खींचने की मजदूरी।

खिचाव :: (सं. पु.) तनाव, कुएँ की गहराई।

खिच्च-खिच्चायाट :: (सं. स्त्री.) हलका क्रोध, अमर्ष।

खिच्चा :: (सं. पु. (स. क्रि.)) पतंग लड़ाने में पतंग काटने की युक्ति न लगाकर अपनी पतंग फँसाकर दुसरी की खींचने की क्रिया।

खिच्चायाबौ :: (क्रि.) हलके क्रोध की मौखिक अभिव्यक्ति करना।

खिजमत :: (सं. स्त्री.) खिदमत, सेवा।

खिजलाना :: (क्रि. अ.) चिढ़ना, नाराज होना।

खिजाप :: (सं. पु.) बाल काले या भूरे लाल करने का रासायनिक रंग, खिजाब।

खिजाबौ-खिजयाबौ :: (क्रि.) खिझाना, चिढ़ाना, तंग करना, खींजना, झुँझलाना।

खिझाना :: (क्रि. स.) चिढ़ाना, नाराज होना।

खिटक :: (सं. स्त्री.) ग्राम से कुछ बसे हुए एक दो घरों का समूह।

खिड़की :: (सं. स्त्री.) झरोखा।

खिंडाना :: (क्रि. स.) छितराना, फैलनाना।

खिड्ड-विड्ड :: (वि.) क्रमबद्ध न होना, पंक्ति बद्ध न होना।

खिताब :: (सं. पु.) पदवी।

खिदगौर :: (सं. स्त्री.) अस्त-व्यस्त स्थिति में पड़े हुए कागज या कपड़ों के चिथड़े।

खिदमत :: (सं. स्त्री.) सेवा।

खिदमतगार :: (सं. स्त्री.) सेवक।

खिदरौल :: (सं. स्त्री.) बच्चों का अव्यवस्थित समूह। (व्यंग्य अर्थ)।

खिन्न :: (वि.) मन ही मन नाराज।

खिन्नी :: (सं. स्त्री.) नीम के फलों की आकृति के मीठे फल, खिन्नी का वृक्ष।

खिबड़ा :: (वि.) कई जातियों को मिला हुआ अनाज, मिश्रित।

खिरउँआ :: (वि.) छोटे से गाँव का रहने वाला असंस्कृत।

खिरउँआ :: (स.) रूप मे भी प्रयुक्त।

खिरकबो :: (क्रि.) गिरना, खो जाना, खिरका-गौठाना।

खिरकिया :: (सं. स्त्री.) छोटी खिड़की।

खिरकी :: (सं. स्त्री.) खिड़की।

खिरखिरौ :: (वि.) विरल बना हुआ कपड़ा।

खिरण्टा :: (वि.) असंस्कृत ग्रामीण, देखिए खिरउँआ (हीनार्थक शब्द, गाली के रूप में प्रयुक्त) संज्ञार्थक विश्लेषण।

खिरनी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का फल और उसका वृक्ष, खिन्नी।

खिरबौ :: (क्रि.) झड़ना (सुन्दरतामूलक अर्थ में नहीं) बालों का झड़ना, जीर्ण भवन की ईटों आदि का क्षरण होना।

खिरयान :: (सं. स्त्री.) खलिहान।

खिरयाबो :: (क्रि.) अनाज उड़ाने की क्रिया।

खिरिया :: (सं. स्त्री.) गाँव, खेड़े की छोटी बस्ती जो विरली बसी हो।

खिरी :: (सं. स्त्री.) चक्कर, संकट, प्र-खिरीखाना संकटापन्न स्थिति से न उबर पाना।

खिर्चा :: (सं. पु.) दाँतों में से भोजन के कण निकालने की क्रिया (संज्ञार्थक क्रिया)।

खिलइया :: (सं. पु.) खेलने वाला, खिलाने वाला।

खिलकट :: (वि.) जिसके कल-पुर्जे ढाले हों, अर्द्धविक्षिप्त (लक्षणार्थ)।

खिलखिलाबौ :: (क्रि.) उन्मुक्त रूप से हँसना, हासविलास की उन्मुक्त हँसी।

खिलंदड़ :: (सं. पु.) खिलाड़ी खेलों का शौकीन और उनमें दक्ष।

खिलबो :: (अ. क्रि.) कली का विकसित होना, फूल बनना, भला लगना, प्रसन्न होना, पकना, फट जाना।

खिलवाड़ :: (सं. पु.) खेल, तमाशा।

खिलवाना :: (क्रि. स.) दूसरे से भोजन करवाना, प्रसन्न कराना।

खिलाड़ी :: (वि.) खेलने के स्वभाव वाला।

खिलाना :: (क्रि. स.) भोजन कराना, दुसरे को खिलना, सिखाना या खेलने देना, खेल करना, कली को फूँक आदि से खिलने देना, विकसित करना।

खिलाफ :: (वि.) विरूद्ध, प्रतिकूल, दुसरी ओर।

खिलाबौ :: (क्रि.) बच्चों को बहलाना।

खिलौना :: (सं. पु.) बच्चों के खेलने का उपकरण।

खिल्ली :: (सं. स्त्री.) खील।

खिल्ली :: (वि.) खिली हुई, उपहास करना (बुन्देली प्रयोग खिल्ली करी)।

खिसकना :: (क्रि. अ.) सरकना।

खिसयाट :: (सं. स्त्री.) खीझ।

खिसयाबौ :: (क्रि.) खीझ प्रकट करना।

खिसलबौ :: (क्रि.) दीवार या कुँए का बाँध धसकना।

खिसलबौ :: (मुहा.) मलखिसकबौ-मृत्यु के पूर्व पाखाने में काले गोटे निकल जाना।

खिसियाना :: (क्रि. अ.) लजाना, शरमाना, कुद्ध होना, नाराज होना।

खिसौंहा :: (वि.) लज्जित, शरमाया हुआ, चिढ़ा हुआ।

खिहकयाबौ :: (क्रि.) क्रोध या घबराहट में बन्दरों का सामूहिक रूप से बोलना।

खींच :: (सं. पु.) चावल के आटे में मिर्च-मसाले तथा खार मिलाकर बनायी गयी लपसी जिसके पापड़ बनाये जाते है।

खींच :: (सं. स्त्री.) खींचने की क्रिया।

खींचतान :: (सं. स्त्री.) अपनी-अपनी ओर खींचना।

खींचना :: (क्रि. स.) घसीटना, आकर्षित करना, तस्वीर उतारना।

खीचला :: (सं. पु.) खींच के पापड़।

खींचातानी :: (सं. स्त्री.) खींचतान।

खीजना :: (क्रि. अ.) झुँझलाना, क्रोधित होना।

खीझ :: (सं. स्त्री.) देखो खीज, खीझना।

खीर :: (सं. स्त्री.) दूध, शक्कर और चावल से बनाये जाने वाला खाद्य पदार्थ।

खीरा :: (सं. पु.) ककड़ी जो अन्दर पीली होती है, जिसमें बीज बड़े होते है आकार में भी बड़ा होता है।

खील :: (सं. स्त्री.) लावा, भाड़ में भुने चावल।

खीलें :: (सं. स्त्री.) कीलें, गायों-भैसों के ब्याने पर उनके थनों में जमा हुआ प्रथम दूध।

खीस :: (सं. पु.) हाथी के दाँत जो बाहर निकले रहते है।

खीसा :: (सं. पु.) जेब, कीसा।

खीसें :: (सं. स्त्री.) हाथी के बाहरी दाँत, सुअर के बाहरी दाँत, हीन भाव के कारण बात-बात पर हँसने वाले व्यक्ति के दाँत (व्यंग्य में)।

खीसें :: (मुहा.) खींसे निपोरबौ।

खुआई :: (सं. स्त्री.) खाने या खिलाने की संज्ञार्थक क्रिया।

खुआबौ :: (क्रि.) खिलाना।

खुइया :: (सं. स्त्री.) देसी कम्बल की बनी हुई आयताकार बरसाती, कमरिया, चरवाहे और किसान इसका उपयोग करते है।

खुकलाबौ :: (क्रि.) किसी छिद्र या खाली जगह से निकलना या गिरना।

खुकायबौ :: (क्रि.) अनाज को कीड़ों द्वारा खाकर खोखला करना।

खुक्क :: (वि.) ऐसा व्यक्ति जिसके पास खर्च करने के लिए कुछ भी न बचा हो।

खुचड़ :: (सं. स्त्री.) अनावश्यक आपत्तियाँ, कुतर्क, किसी बात या काम के सम्बन्ध में अप्रत्याशित सम्भावनाएँ।

खुजलाना :: (क्रि. स.) खुजली मिटाने के लिए नख आदि को शरीर पर फे रना, सहलाना।

खुजलाना :: (क्रि. अ.) किसी अंग में खुजली मालूम होना।

खुजलाहट :: (सं. स्त्री.) खुजली, सुरसुरी, खाज।

खुजाबौ :: (क्रि.) कुकाबौ।

खुजाबौ :: (क्रि.) किसी अंग पर खुजली अनुभव होने पर उसे शान्त करने के लिये नाखूँनों या खुरदुरी वस्तु से रगड़ना, खुजलाना।

खुजिया :: (सं. स्त्री.) एक हथियार।

खुजौरा :: (सं. स्त्री.) सुअर का छोटा बच्चा।

खुजौरौ :: (सं. पु.) घोड़ो के शरीर को खुजलाने के लिये लोहे की चद्दर का बना हत्था।

खुजौरौ :: दे. कुरौरौ।

खुटक-खुटका :: (सं. स्त्री.) खटका, डर, सन्देह, चिन्ता।

खुटकना :: (क्रि. स.) किसी वस्तु को ऊपर से नीचे लाना। नाखूनों के सहारे किसी चीज के छोटे टुकड़े करना।

खुटचाल :: (सं. स्त्री.) दुष्टता, नीचता, दुर्व्यवहार, बुरी चाल।

खुटपाँय :: (सं. स्त्री.) अड़ंगेबाजी, अशकुन।

खुटबो :: (स. क्रि.) नीचा जाना, तोड़ा जाना।

खुटर :: (सं. पु.) वह भूमि जहाँ भूतादि से अनिष्ट का भय हो।

खुटला :: (सं. पु.) एक नीला फूल जो एक प्रकार की बेल में होता है करन फूल।

खुटा :: (सं. पु.) दीवार पर दीपक आदि रखने के लिये लगा हुआ पत्थर या लकड़ी का पटिया।

खुटाई :: (सं. स्त्री.) खोटापन, बुराई, दोष।

खुटिया :: (सं. स्त्री.) खूँटी।

खुटी :: (सं. स्त्री.) बालों की जड़, अण्डी, दीवार की सतह से अलग उठाया हुआ भाग, खुटी खुर्सना-धोती के घुटनों को ऊपर पलट कर कमर के फेंटा में खुर्सना।

खुड़खुड़िया :: (सं. पु.) एक झरना। पुरानी जर्जर गाड़ी।

खुड़िया :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी की झाँजी (बगल की रोक) के आड़े बाँसों को फँसाने के लिये लकड़ी के छेददार खूँटे, टट्टी में मल त्याग करने हेतु बनाये गये कदमचे।

खुड्डी :: (सं. स्त्री.) मल त्याग के लिये कदमचे।

खुतलबो :: (क्रि.) दाँतों या अन्य मोंथरी वस्तु से कुचल कुचल कर किसी वस्तु के टुकड़े करना, खुतलन।

खुतैला :: (वि.) झगड़ालू, ऊधमी। उधम के कारण पिटने वाला।

खुतैलू :: (स्त्री (वि.)) उधम के कारण पिटने वाली।

खुद :: (सर्व. वि.) स्वयं।

खुदखुदियाँ :: (सं. स्त्री.) पशुओं के खुरों से बने हुये छोटे-छोटे गड्ढे।

खुदना :: (क्रि. अ.) खोदा जाना, खोदने का औजार।

खुदबाबो :: (स. क्रि.) खोदने के काम दूसरे से कराना, खुदाई करवाना।

खुँदबो :: (स. क्रि.) दबना।

खुदयाबो :: (क्रि.) छेड़ना, उकसाना, प्रेरित करना।

खुदवाई :: (सं. स्त्री.) खुदवाने का काम या उसकी मजदूरी।

खुदवाना :: (क्रि. स.) खोदने का काम करना।

खुदा :: (सं. पु.) मुसलमान धर्म में ईश्वर का नाम, परमपिता परमेश्वर।

खुदाई :: (सं. स्त्री.) खोदने का काम या मजदूरी, खुदाई का गुण या काम।

खुद्रौ :: (सं. पु.) लड़ने के लिये उकसावो।

खुनक :: (सं. स्त्री.) हल्की गर्मी का आभास। कहीं-कहीं शीतलता के लिए प्रयुक्त होता है जैसे -खुनक पानी याने शीतल जल।

खुनखुना :: (सं. पु.) झुनझुना, बच्चों का खिलौना।

खुनस :: (सं. स्त्री.) क्रोध।

खुन्ता :: (सं. पु.) लोहे की चपटी फल लगी हुई लकड़ी जो जड़े खोदने के काम आती है।

खुन्स :: (सं. स्त्री.) खुन्नस, क्रोध मिजाज की गर्मी।

खुन्स :: (कहा.) जब खुन्स पे मुन्स नई मिलो तो अब का चूले में देंने।

खुन्सयाबौ :: (क्रि.) क्रोधित होना, डाँटना।

खुपटबौ :: (क्रि.) जूठा करना, पैर के स्पर्श से पानी को अपवित्र करना ऐसा लोगविश्वास है कि खुपटा हुआ पानी पीने से गले में दर्द हो जाता है।

खुपड़िया :: (सं. स्त्री.) दे. खपड़िया, सिर, मस्तिष्क, खोपड़ी।

खुपरो :: खेत की रखवाली के लिये बना झोपड़ा।

खुफिया :: (वि.) गुप्त, छिपा हुआ।

खुबबो :: (सं. क्रि.) चुभना।

खुमान :: (वि.) आयुष्मान, एक नाम।

खुमारी :: (सं. स्त्री.) नशा जो थोड़ा सा बाकी रह गया हो नींद के बाद की वह दशा जिसमें व्यक्ति पूर्णतः सामान्य नहीं होता।

खुर :: (सं. पु.) गाय, भैंस आदि के पैरों का नीचे का कठोर भाग।

खुर खुराबौ :: (क्रि.) पैसे खर्च करने की उत्सुकता, प्रकट करना।

खुर खुराबौ :: (कहा.) हाथ न मुठी खुरखुरा उठी।

खुरखुर :: (सं. पु.) खुरखुर का शब्द।

खुरखुरा :: (वि.) खुरदरा, जो चिकना न हो।

खुरचन :: (सं.) दूध की कड़ाई में किनारों पर जमें हुए दूध और मलाई की एक मिठाई, सिक्कों की चिल्लर।

खुरचना :: (स. क्रि.) करोना, ऊपर से छीलना।

खुरचप :: (वि.) बरसात में गोचारण के कारण ठोस हो जाने वाली भूमि के लिये विशेषण।

खुरचबौ :: (क्रि.) किसी नुकीली वस्तु से चिकनी सतह पर निशान बनाना।

खुरजंटो :: (वि.) लड़ाई, झगड़ा, उरजंटो।

खुरजबो :: (वि.) उलझना, लड़ना।

खुरजी :: घोड़े की पीठ पर लादे जान वाला दोनों ओर लटकने वाला झोला।

खुरदरौ :: (वि.) जो सतह चिकनी न हो।

खुरदाँय :: (सं. स्त्री.) खलिहान की जमीन को मजबूत करने के लिए गीला करके बैलों को चलाने की क्रिया।

खुरपका :: (सं. पु.) एक रोग, इसमें पशुओं के खुरों में घाव हो जाते हैं।

खुरपका :: दे. वैखरा।

खुरपा :: (सं. पु.) छोटी घास छीलने या पौधों के गोंड़ने का उपकरण।

खुरफूटा :: (सं. पु.) जानवरों के पैरों का एक रोग।

खुरमा :: (सं. पु.) आटे या बेसन के तले हुए चौकोर टुकड़े, गुटगुटे।

खुरसबो :: (क्रि.) घोंसना।

खुरा :: (सं. पु.) बरसात में पैरों की उँगलियों के बीच हो जाने वाले घाव।

खुराक :: (सं. स्त्री.) भोजन या खाने की दवा की मात्रा।

खुराफात :: (सं. स्त्री.) गाली-गलौच, बुरी बात बकवास।

खुरी :: (सं. स्त्री.) खुर के दो भागों में से एक भाग।

खुरी करबो :: (सं. पु.) जल्दबाजी करना।

खुरोरू :: (सं. स्त्री.) नारियल की गरी।

खुरौरौ :: (सं. पु.) घोड़ों को खुजलाने का उपकरण, देखिये-खुजौरौ, कुरौरौ।

खुर्द :: (वि.) छोटा, छोटी, एक ही नाम के दो ग्रामों के नाम में अंतर करने के लिये छोटे को खुर्द तथा कलाँ लगाते है।

खुर्राट :: (वि.) बूढ़ा, अनुभवी, चालाक।

खुर्सबौ :: (क्रि.) दो वस्तुओं के बीच किसी तीसरी वस्तु को बलात् फँसाना, सही नाप के छेद में कील आदि बिना अधिक बल लगाये गाड़ना।

खुर्सेला :: (वि.) गड़रिया जाति में जब किसी व्यक्ति को बिरादरी को भोज देने का दण्ड दिया जाता था किन्तु उसकी सामर्थ्य भोज देने को नहीं होती थी तब वह पंक्ति में बैठे हुए बिरादरी के लोगों के साफों में रोटी का एक टुकड़ा खुर्सता जाता था। वह भोज का प्रतीक खुर्सेला की पंगत या खुर्सेला कहलाता था।

खुलकबौ :: (क्रि.) किसी छिद्र या खाली जगह से निकलना या गिरना।

खुलका :: (सं. पु.) बड़ा छेद।

खुलना :: (क्रि.) परदा हट जाना, प्रकट होना।

खुलबाबो :: (सं. क्रि.) खोलने का काम दूसरे से करवाना।

खुलबो :: (अ. क्रि.) आवरण का हटना, प्रकट होना, आरम्भ होना, रोक हटना।

खुलया :: (सं. पु.) बाँस की लाठी जिसके एक सिरे पर लोहे का चपटा फल लगा रहता है जो थोड़ा सा खोदने और जुताई के समय हल के फाल पर लगने वाली मिट्टी छुड़ाने के काम आता है, ये खुन्ता से अधिक लम्बा होता है।

खुलया :: दे. खुन्ता।

खुला :: (वि.) साफ, स्पष्ट, प्रकट, छूटा हुआ, आवरण हीन।

खुलासा :: (सं. पु.) स्पष्टीकरण किसी बात या लेख का व्याख्यायित अर्थ।

खुलासाँ :: (क्रि. वि.) सरे आम, प्रकट रूप से, निस्संकोच।

खुलो :: (वि.) जो बंधा न हो, जो ढका न हो, स्पष्ट, जाहिर।

खुल्लम-खुल्ला :: (क्रि. वि.) खुले आम, प्रकट रूप से, निडर होकर।

खुस :: (वि.) प्रसन्न, अच्छा, मुदित, प्रफुल्ल।

खुंस :: (सं. स्त्री.) गुस्सा, क्रोध।

खुसनियाँ :: (सं. स्त्री.) पाजामा, सलवार, कटि बाग से नीचे का मुसलमानी पहनावा।

खुंसयानी :: (स्त्री. वि.) नाराज महिला।

खुंसयानी :: (मुहा.) खुंसयानी बाई नोचें पुआर।

खुंसयानो :: (वि.) नाराज।

खुंसयाबो :: (क्रि.) गुस्सा होना।

खुसयाली :: (सं. स्त्री.) प्रसन्नता, द्योतक, क्रिया-कलाप या उत्सव।

खुसामद :: (सं. स्त्री.) सेवा, चापलूसी, मनुहार।

खुसामद :: (कहा.) खुसामद सें आमद है - खुशामद से ही पैसा मिलता है।

खुसी :: (वि.) प्रसन्न, धन-धान्य से सम्पन्न।

खुसी :: (सं. स्त्री.) इच्छा, प्रसन्नता।

खूकर :: (सं. स्त्री.) शैतानी करने में अत्यधिक बाग दौड़, पैरों से रौंदना।

खूँट :: (सं. पु.) (खँड), छोर, सिरा, कोना, ओर, भाग, कपड़ा, फर्श, कागज, नवरात्रि में कुलदेवी की पूजा (अष्टमी या नवमी) पर चढ़ाए हुए पूड़ी, नारियल आदि का प्रसाद जो कुल के व्यक्तियों को दिया जाता है। उदाहरण-खूँट निकालना आदि।

खूँटबौ :: (क्रि.) टोकना, बतलाना, तोड़ना, कम पड़ना, किसी साधना परक क्रिया में किसी के द्वारा टोकना।

खूँटा :: (सं. पु. (सं. स्त्री.)) (खूँटी) बड़ी मेख जिसमें रस्सी के द्वारा पशु बांधते हैं, दीवार या जमीन पर गड़ी लकड़ी या पत्थर की खूँटी।

खूँटी :: (सं. स्त्री.) छोटा खूँटा, छोटी गड़ी, लकड़ी।

खूँतबौ :: (क्रि.) जलती लकड़ी के अंगारे झराना, भूने हुए बैंगन, आलू आदि को उँगलियों से मसलना, पीटना।

खूद :: (सं. स्त्री.) मिट्टी निकलते रहने के कारण बना ऐसा गड्ढा जहाँ बरसाती पानी जमा होने लगा हो।

खूँद :: (सं. स्त्री.) खूँदने की क्रिया, कूदने का काम।

खूँदबौ :: (क्रि.) पैरों से कुचलना, रौंदना।

खूँदो :: (सं. पु.) झगड़ा, उपद्रव, ऊधम।

खून :: (सं. पु.) रक्त, लहू।

खूनी :: (वि.) हत्यारा, कातिल, रक्त युक्त।

खूब :: (क्रि. वि.) अधिक, अतिशय।

खूबसूरत :: (वि.) सुन्दर।

खूबसूरती :: (सं. स्त्री.) सुन्दरता।

खूबी :: (सं. स्त्री.) अच्छाई, भलाई, गुण।

खूसट :: (सं. पु.) उल्लू।

खूसट :: (वि.) मनहूस।

खें :: कर्मकाराक विभक्ति, को, (लुघाँती बुंदेली में प्रयुक्त)।

खें :: दे. खों. खाँ. को।

खेंक :: (सं. स्त्री.) धातु या लकड़ी की समतल सतह पर उठा नुकीला भाग।

खेंकरबो :: (क्रि.) स्याऊ, (बुड्ढा स्यार) की आवाज यह अशुभ मानी जाती है।

खेंकरबो :: दे. फेंकरबो।

खेंचबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को बलपूर्वक अपनी ओर लाना, रेखाएँ या आकृति बनाना, कुएँ से पानी निकालना।

खेंचातानी :: (सं. स्त्री.) अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धि की दृष्टि के कारण मत भिन्नता की स्थिति।

खेटा :: (सं. पु.) छेड़।

खेड़ा :: (सं. पु.) छोटा गाँव, इसका शुद्ध रुप है खेट।

खेत :: (सं. पु.) कृषि-क्षेत्र, रण-क्षेत्र।

खेतिहार :: (सं. पु.) वह जो खेती करे, किसान।

खेती :: (सं. स्त्री.) किसान का काम, किसानी, खेत की फसल।

खेतीबारी :: (सं. स्त्री.) किसानी।

खेद :: (सं. पु.) दुख, सन्ताप।

खेद :: (वि.) खेदित, खिन्न।

खेना :: (क्रि. स.) नाव चलाना, पार करना, बिताना, काटना।

खेप :: (सं. स्त्री.) माल या किसी वस्तु की लदान की एक बारी, भरे हुए घड़ों की एक के ऊपर दूसरी रखी हुई जोड़ी।

खेपबो :: (क्रि.) न बिकने वाले माल को किसी प्रकार बेचना या खपाना।

खेराती :: (वि.) धर्मार्थ, संचालित, सार्वजनिक।

खेरियत :: (सं. स्त्री.) कुशल, भलाई।

खेल :: (सं. पु.) क्रीड़ा, नाटक।

खेलबाड़ :: (सं. पु.) खेल, तमाशा।

खेलबौ :: (क्रि.) क्रीड़ा करना, नाटक करना।

खेलाड़ी :: (वि.) खेलने वाला, विनोदी।

खेलाड़ी :: (सं. पु.) वह जो खेले।

खैबौ :: (क्रि.) खाना, मुँह में डालकर चबाना।

खैर :: (सं. स्त्री.) कुशल, भलाई।

खैर :: (क्रि. वि.) अच्छा, कुछ चिन्ता नहीं।

खैर :: (सं. पु.) कत्था, खदिर।

खैरखाह :: (वि.) भलाई चाहने वाला, शुभ चिन्तक।

खैरखाह :: (सं.) खैरखाही।

खैराई :: (सं. स्त्री.) खैर के पेड़ों का वन।

खैरात :: (सं. स्त्री.) दान।

खैरात :: (वि.) खैराती।

खैरापति :: (सं. पु.) वह देवता जो गाँव का स्वामी मान जाय।

खैरी :: (वि.) अधिक ताप देने के कारण खरी सिकी हुई या पकी हुई (वस्तु)।

खैरूआ :: (सं. पु.) एक जाति जिसके लोग कत्था बनाने का काम करते हैं।

खैरों :: (सं. पु.) किसी ग्राम का छोटा सा पृथक उपग्राम।

खैरो-खेरौ :: (सं. पु. वि.) खैर या कत्थे के रंग का, कत्थई, खरा, करार।

खैरो-खेरौ :: (सं. पु. वि.) छोटा गाँव-खेड़ा।

खैला :: (सं. पु.) जवान बछड़ा जिसे अभी हल आदि में जोता न गया हो, बैल।

खो :: सम्प्रदान कारक सम्बन्ध कारक परसर्ग को, के लिये।

खों :: (कर्मकारकविभक्ति) को, परिनिष्ठित बुन्देली में प्रयुक्त, खोंड़िया।

खों :: (मुहा.) खों गाड़ के भूँकन मरत।

खोआ :: (सं. पु.) खोया, मावा।

खोंकरौ :: (सं. पु.) ज्वार के डंठलों या घास से बनायी गयी गोल झोपड़ी।

खोकलिया :: (सं. पु.) नारियल, नारिकेल।

खोका :: (सं. पु.) लकड़ी का डिब्बा।

खोको :: (सं. पु.) तकिये का खोल।

खोंखना :: (सं. पु.) खों-खों करना, खाँसना।

खोंखयाबौ :: (क्रि.) स्वर विकृत करके क्रोध प्रकट करना, खाँसना (व्यंग्य अर्थ.)।

खोखला :: (वि.) पोला, छूंछा, खाली।

खोंखी :: (सं. पु.) खाँसी।

खोंग :: (सं. स्त्री.) किसी अवयव की कमी, पोल, उथली गुफा।

खोंच :: (सं. स्त्री.) खरोंच, काँटे आदि में अटककर कपड़े का फट जाना।

खोंचा :: (सं. पु.) चिड़िया फँसाने का लम्बा बांस।

खोंची :: (सं. स्त्री.) बालों की जड़ों में होने वाली रूसी, घी की खरीद में मट्ठा आदि की मिलावट के लिए भरी जाने वाली तौल, अनाज के बाजारों में पानी पिलाने वालों को दिया जाने वाला खोंच भर अनाज। उदाहरण-खोंची माँगना-धर्मादा के लिए खोंची भर अनाज माँगना, दान दिया हुआ मुट्ठी भर अन्न।

खोज :: (सं. पु.) नामो-निशान, तलाश।

खोज :: (मुहा.) तारौ-तारौ खोज मिट जाय, (गाली), खोजमिटाबो नाम निशान मिटा देना।

खोजना :: (क्रि. स.) तलाश करना, टोह लगाना।

खोजी :: (सं. स्त्री.) झूला में बच्चों को लिटाने के लिये पालना की बजाय कपड़े की झोली जैसी बना दी जाती है।

खोजी :: दे. घोजी।

खोट :: (सं. स्त्री.) खोंना, नोंचना।

खोट :: (सं. स्त्री.) खोटापन, अकुलीनता, मिलावट, धातुओं में अपमिश्रण, बुराई।

खोंटबौ :: (क्रि.) नाखूनों से किसी वस्तु को कुतरना।

खोटा :: (वि.) दोषी, बुरा, ऐबी।

खोटाई :: (सं. स्त्री.) बुराई, दोष, ऐब।

खोटापन :: (सं. पु.) बुराई, नीचता।

खोटे :: लड़कों से व्यंग में।

खोटौ :: (वि.) मिलावटी, अकुलीन, नकली, बुरा।

खोड़रा :: (सं. पु.) पुराने पेड़ में गड्ढा या खोखला भाग।

खोंड़िया :: (सं. स्त्री.) अनाज रखने का भूमिगत, बखार, खौं, खत्ती।

खोंतरया :: (वि.) खुरदरी सतह वाला, उखड़े हुए रंग वाला।

खोदबो :: (स. क्रि.) गड्ढा करना, नक्कासी करना, खनन, खुरचना, कुरेदना, उकसाना।

खोदवाना-खोदान :: (क्रि. स.) खोदने का काम किसी दूसरे से कराना।

खोंप :: (सं. पु.) भय, दहशत, कपड़े का इंच दो इंच फटजाना, जिसे फिर सिल देते हैं। फटा हुआ भाग।

खोंप :: दे. खोंप।

खोपड़ा :: (सं. पु.) खोपड़ी, सिर, नारियल का गोला, नारियल की गिरी, बड़े आकार का सिर।

खोपड़ी :: (सं. स्त्री.) सिर।

खोब :: (सं. स्त्री.) नुकीली वस्तु में फँसने के कारण कोणाकर फटन।

खोबा :: (सं. पु.) दोनों हाथों की अंजली, दूध का खोआ।

खोबो :: (स. क्रि.) गँवाना, भूल से कोई वस्तु कहीं पर छोड़ देना, नष्ट या बरबाद करना।

खोभरो :: (सं. पु.) लकड़ी का उभरा हुआ भाग।

खोंमचा :: (सं. पु.) खाने-पीने के सामान की, दुकान जो सिर पर रखकर यहाँ-वहाँ ले जायी जाती है।

खोय :: (सं. स्त्री.) छोटी गुफा।

खोर :: (सं. पु.) गिलाफ, खोखला, दोहर, दोष, क्षौर, संकरी गली।

खोलना :: (क्रि. स.) ढक्कन हटाना, छेद करना।

खोलबो :: (क्रि.) आवरण हटाना, रहस्योद्घाटन करना, जारी करना, प्रारम्भ करना।

खोलबौ :: (क्रि.) बन्धन मुक्त करना, स्पष्ट करना।

खोलिया :: (सं. पु.) किसान का एक औजार जो लाठी में लगा रहता है यह हल चलाने में सहायता देता है।

खोली :: (सं. स्त्री.) चोंगी, गिलाफ, ढक्कन, झोपड़ी।

खोस :: (वि.) खुश, मुदित, प्रसन्न, अच्छा, भला।

खोंसबो :: (स. क्रि.) अटकाना, फँसाना।

खोंसबौ :: (क्रि.) दे. खुर्सना।

खौं :: (सं. स्त्री.) सम्प्रदान कारक परसर्ग को अनाज रखने का गड्ढा, खत्ती।

खौकलौ :: (वि.) अन्दर से पोला।

खौंग :: (सं. पु.) कुँआ की दीवाल जिसमें पक्षी रहते हैं।

खौंचो :: (सं. पु.) तीन नोंको वाला एक हथियार।

खौजबो :: (क्रि.) तालाश करना, परिनिष्ठित बुन्देली में खोज बीन मुहावरों में प्रयुक्त।

खौजबो :: (मुहा.) खोज मिटाउन-सत्यानाशी।

खौजयाबो :: (क्रि.) चिढ़ाना, लड़ने के लिए प्रेरित करने वाली बातें या व्यवहार करना।

खौंटबो :: (सं. क्रि.) किसी वस्तु से ऊपरी भाग को तोड़ना।

खौड़बौ :: (क्रि.) किसी वस्तु या व्यक्ति के पीछे पड़े रहना।

खौंप :: (सं. पु.) खौब. खौफ, भय, डर।

खौंपौ :: (सं. पु.) दीवार फोड़कर बनाया निकास मार्ग, दीवार का पक्खा।

खौंमचा :: (सं. पु.) मिठाई चाट आदि की अस्थायी चलती-फिरती टुकान, वह थाल जिसमें फेरी वाले खाने की वस्तु रखकर बेचते है।

खौंर :: (सं. स्त्री.) पूरे मस्तक पर तिलक, विवाह के समय दुल्हे को लगाया जाने वाला तिलक।

खौंर :: (प्र.) चन्दन खौरें काड़ौ राजा बनरे कीं (लोक गीत.)।

खौरना :: (क्रि. स.) टीका लगाना।

खौरहा :: (वि.) जिसके सिर पर बाल न हो, जिस पशु के खुजली हो।

खौरा :: (सं. पु.) खुजली का रोग।

खौरौ :: (क्रि. वि.) बुरा लगना।

खौरौ :: (सं. पु.) किसी कीड़े के द्वारा घास पर फैन जैसा जमा कर दिया जाता है, घास के साथ इसको खा लेने से पशु खाना-पीना बन्द कर देते हैं, टेढ़ा, तिरछा, खुरदुरा।

खौलाना :: (अ. क्रि.) उबालना, गरम करना।

ख्बाजा :: (सं. पु.) स्वामी, मालिक, पहुँचा हुआ मुसलमान फकीर। एक पदवी।

ख्बाव :: (सं. पु.) स्वप्न, नींद।

ख्यानत :: (सं. स्त्री.) गबन।

ख्याल :: (सं. पु.) गीत का एक प्रकार, गायन शैली का एक प्रकार, विचार।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के क वर्ग का तृतीय व्यंजन वर्ण इसका उच्चारण स्थान कण्ठ्य है।

गंइयर बाबा :: (सं. पु.) एक ग्राम देवता, जिनकी काछी जाति के लोग पूजा करते हैं।

गइया :: (सं. स्त्री.) गाय, गौ।

गंईगुवाँ :: (सं. पु.) देहात, गाँव।

गउ :: (सं. स्त्री.) गाय, गौ।

गँउअन :: (वि.) सीधा-साधा।

गउका :: (सं. पु.) छोटा काम।

गउदान :: (सं. पु.) ब्राह्मण को गाय दान देने की क्रिया।

गउबद :: (सं. पु.) गाय की हत्या।

गउमुख :: (सं. पु.) गौमुख।

गउसाला :: (सं. पु.) गायों के रहने का वह स्थान जहाँ दुधारू पशुओं को रखकर उनका दूध, मक्खन आदि बिक्री के लिये भेजा जाता है।

गऊरें :: (क्रि. वि.) उगने पर (सूरज ऊरें) चक्की चलाए हुए।

गओ-गऔ :: (क्रि.) जाने की क्रिया का भूत कालिक रूप।

गओ-गऔ :: (कहा.) गई परथन लैन, कुत्त्ता पींड़ लै गओ - गुँदे हे आटे की पिंडी, एक काम करने गये तब तक दूसरा चौपट हो गया।

गंकड़ा :: (सं. पु.) बड़ी गकरिया।

गकरिया :: (सं. स्त्री.) आटे की लोई जिसे कण्डे की आग पर सेंका जाता है, बाटी।

गक्कड़ा :: (सं. पु.) बड़े आकार की गकरिया, मोटी व बड़ी रोटी।

गँगई :: (सं. स्त्री.) मैना की जाति की एक चिड़िया।

गगरिया :: (सं. स्त्री.) ताँबे या पीतल का मझोले आकार का घड़ा, इसके ओंठ ऊपर को खड़े या थोड़े बाहर को झुके होते हैं।

गगरी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का छोटे मुँह का घड़ा, गागर।

गंगल :: (सं. पु.) मिट्टी का घड़ा, गंगाल।

गंगा :: (सं. स्त्री.) गंगा गये मुंडायें सिद्ध-सामने आ गये काम को पूरा कर डालने में ही समझदारी है।

गंगा :: (कहा.) गंगा नहाबो - झगड़े से छुट्टी पाना, किसी काम की जिम्मेदारी से मुक्त होना।

गंगा जमुनी :: (सं. पु.) सोने चाँदी का बर्तन।

गंगाजल :: (सं. पु.) गंगा का पवित्र जल, इसमें कभी कीड़े नहीं पड़ते है (सामासिक शब्द.)।

गंगाजली :: (सं. स्त्री.) गंगा जल लाने और रखने का पात्र, श्राद्ध कर्म का एक अंग, गंगा में अस्थि-विसर्जन के बाद गंगाजल घर लाया जाता है और उसका पूजन किया जाता है (सामासिक शब्द)।

गँगाबो :: (क्रि.) सड़ने के कारण किसी वस्तु का बदबू देने लगना, किसी बन्द स्थान का बदबू से भर जाना।

गंगाल :: (सं. स्त्री.) उठाने के लिये कड़े लगी हुई बड़ी नाद।

गँगावो :: (स. क्रि.) व्यर्थ चिल्लाना, बकना।

गंगासागर :: (सं. पु.) ताबें का टोंटीदार बड़ा लोटा, वह स्थान जहाँ गंगा नदी समुद्र में मिलती है।

गंगेठी :: (सं. स्त्री.) औषधि के उपयोग की एक बूटी।

गंगेरूआ :: एक बेल जिसमें मकोरा की तरह लाला फल लगते है जो दवा के काम आते है।

गँगेलुआ :: (सं. पु.) एक कंद।

गंगेले :: (सं. पु.) ब्राह्मणों का एक पटा, एक जाति।

गंगोछ :: (सं. पु.) गंगाजल।

गंगोटी :: (सं. स्त्री.) गंगा नदी की मिट्टी इसे चंदन की जगह लगाते हैं।

गंगोत्तरी :: (सं. स्त्री.) उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ जहाँ गंगा नदी ऊँ चे पहाड़ों से निकलती है।

गगोरा :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का कीड़ा।

गघरी :: (सं. स्त्री.) गागर, गगरी, गगारिया।

गच :: (सं. पु.) पक्का फर्श, चूने से पिटी भूमि, किसी कोमल वस्तु के धँसने का शब्द।

गचकबौ :: (सं. पु.) खाना।

गचपेंदा :: हिजड़ा।

गचर :: (सं. पु.) गप्प।

गचराँदो :: (सं. पु.) झूठी-सच्ची बातें करने वाला।

गचाका :: (सं. पु.) गिरने का शब्द।

गचागच :: (क्रि. वि.) जल्दी-जल्दी।

गच्च :: (सं. स्त्री.) दुष्पाच्य, भोजन करने के कारण हुई मन्द पाचन क्रिया।

गच्च :: (प्र.) पेट में गच्च जम गई, उनको तौ गच्च रई, ई सौदा में तो उनकी गच्च हो गयी, कौड़ियों का एक खेल, उदाहरण-गच्च बैठबो-मौका हाथ आना।

गच्चपच्च :: संकीर्ण स्थान, घनी लिखावट।

गच्ची :: (सं. स्त्री.) चूने की छत।

गच्ची :: (वि.) पीछे रह जाने वाला।

गच्चौ :: (सं. पु.) धोखा, हानि।

गज :: (सं. पु.) छत्तीस इंच का माप, भरतल बन्दूक धाँसने की छड़, सारंगी, बेला आदि तार वाद्य को रगड़ कर बजाने के लिए लकड़ी की छड़ और घोड़े की पूँछ के बालों से बना उपकरण।

गंज :: (सं. पु.) ढैर, समूह, हाट-बाजार, अनाज की मण्डी, गले का आभूषण, रोग जो सिर पर होता है।

गंज :: (सं. स्त्री.) भगौना या पतीली, तबेला, घुटी हुई, खोपड़ी।

गजक :: (सं. स्त्री.) तिली और गुड़ या शक्कर से बनी मिठाई की टिकिया।

गजट :: (सं. पु.) समाचार-पत्र सागर जिले और आस के क्षेत्र में व्यवह्लत।

गंजन :: (सं. पु.) अनादर उत्कर्ष, पीड़ा।

गंजना :: (सं. पु.) एक पात्र, तबेला।

गंजफा :: ताश की तरह एक खेल जो ६-६ पत्तों से खेला जाता है।

गजब :: (सं. पु.) अप्रत्याशित या चमत्कार पूर्ण कार्य, आश्चर्य जनक।

गजबजर :: (सं. पु.) अंडबंड, गोलमाल।

गँजबो :: सिलसिले से लगाना, इकट्ठा करना, ढेर।

गँजबौ :: (क्रि.) थोड़े स्थान में अधिक व्यक्तियों या पशुओं का सटकर खड़ा होना या बैठना, वस्तुओं को क्रम विहीन ढंग से एक साथ ठाँस जाना।

गजर :: (सं. स्त्री.) घण्टे की लगातार और सघन रूप से बजने की क्रिया, पहर-पहर पर घंटा बजने का शब्द, पारी।

गजरदम :: (सं. पु.) बड़े सबेरे।

गजरा :: (सं. पु.) फूलों का हार, हाथ में पहिना जाने वाला आभूषण।

गजरियाँ :: (सं. स्त्री.) हाथों में पहिने जाने वाले कंगनों का एक प्रकार।

गंजा :: (वि.) जिसको गंज रोग हो, जिसके सिर पर बाल न हो।

गंजिया :: (सं. स्त्री.) बाँस की पतली सींको से बनी मध्यम आकार की टोकरी, छोटी पतीली।

गंजी :: (सं. स्त्री.) घास या पुआल का छोटा गाँच, स्टील की छोटी पतीली।

गँजेड़ी :: (वि.) गाँजे की दम लगाने का आदी, गाँजा पीने वाला, नशा करने वाला।

गंजौ :: (सं. पु.) शौक, गंजा।

गंजौ :: (वि.) जिसकी खोपड़ी पर बाल न हो।

गटकबौ :: (क्रि.) गले के नीचे उतारना, हड़पना, अमानत को न लौटाना।

गटकलीला :: (वि.) बेईमान।

गटकौरा :: (सं. पु.) पत्थरों के छोटे टुकड़े।

गटगट :: (सं. पु.) निगलने या पानी आदि पीने में गले का शब्द, गट-गट का शब्द।

गटगेंट :: (क्रि. वि.) खाना, ठोकरों खाना।

गटपट :: (सं. स्त्री.) उलट-पुलट, मिलना, घनिष्ठता, सहवास मेल, मिलावट, संयोग।

गटरमाला :: (सं. स्त्री.) गहना, बड़े-बड़े दानों की माला।

गटा :: (सं. पु.) आँख का सफेद भाग, कन्द किस्म की जड़े।

गटागट :: (क्रि. वि.) शीघ्रता से गटगट की आवाज के साथ पीना।

गटान :: (सं. स्त्री.) एक बेल जिसमें कँटीली और चौड़ी फलियाँ लगती हैं उनके अन्दर एक दो चिकने मजबूत बेर के आकार के दानें होते हैं ये दवा के काम आते हैं।

गटी :: (सं. स्त्री.) बेसन को भूनते समय उसमें पैदा की जाने वाली गाँठे, बूरे की घुटाई में रह जाने वाली गाँठे, ग्रन्थि, गाँठ।

गट्ट :: (सं. पु.) अवरोध, कठिनाई से सुलझाने वाली समस्या।

गट्ट-पट्ट :: (सं. स्त्री.) मिलावट, मर्यादाहीनता, मर्यादाहीन व्यवहार, गुप्त वार्तालाप।

गट्टा :: (सं. पु.) अरबी घुइयाँ का मूल कन्द जिसके चारों ओर छुइयाँ लगती हैं, यह भी शाक बनाने के काम आता है।

गट्टी :: (सं. स्त्री.) गिट्टी, लकड़ी, पत्थर, धातु आदि के चौकोर टुकड़े, पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े, ताश का गड्डी।

गट्टौ :: (सं. पु.) शरीर पर या कहीं अन्यत्र गोल उभार, फोड़े के आस-पास का कड़ा क्षेत्र।

गट्ठा :: (सं. पु.) क्रम से जमाकर तथा बाँध कर एक जुट की हुई वस्तु।

गठ :: (सं. स्त्री.) समास में गाँठ का पद रूप।

गठ :: (प्र.) गठजौरौ, गठ बन्धन।

गँठकला :: (वि.) चोर, जेबकट, गिरहकट।

गँठजोरा :: (सं. पु.) विवाह का एक रीति, एक वस्त्र जिसको वर वधु के कपड़ों से बाँधा जाता है।

गठजोरो :: (सं. पु.) गाँठ जोड़ने का दस्तूर, विवाह के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन के ओढ़ने के वस्त्र के सिरे को मिलाकर बाँध देना।

गठन :: (सं. स्त्री.) बनावट, रचना।

गठना :: (अ. क्रि.) मिलना, सटना, एक जगह होना।

गठबौ :: (क्रि.) बिना प्रयास के मुफ्त में या अप्रत्याशित रूप से किसी वस्तु का प्राप्त होना।

गठयाँउन :: (सं. पु.) द्रव्य रखने का पर्स।

गँठयाँउन :: (सं. पु.) द्रव्य रखने का पर्स।

गँठयाबो :: (स. क्रि.) गाँठ लगना, गाँठ में बाँधना, अधिकार में करना।

गठयाबौ :: (क्रि.) कपटपूर्वक प्राप्त करना, गाँठ लगाकर बाँधना, गाँठ लगाना, गाँठ बाँधना।

गठरिया :: (सं. स्त्री.) पोटली।

गठरी :: (सं. स्त्री.) कपड़े में बाँधा हुआ सामान, बोझ, पोटली, उदाहरण-गठरी मारना-किसी का धन छल करके हर लेना।

गँठला :: (वि.) चोर, छोटे कद का, गिट्ठा।

गठिया :: (सं. स्त्री.) ओक रोग जिसमें जोड़ों में सूजन तथा पीड़ा होती है।

गठियाना :: (स. क्रि.) गाँठ लगाना, गाँठ बाँधन।

गठीला :: (वि.) गाँठों वाला, सख्त, चुस्त, सुढौल, दृढ़।

गठीलौ :: (वि.) उभरी हुई माँस पेशियों वाला, गठा हुआ, गाँठो वाली लकड़ी या रस्सी।

गठीलौ :: (सं. स्त्री.) गठीली।

गठुआ :: (सं. पु.) गेहूँ की बालें जो गेंहू से अधिक बजनी होने के कारण उड़ावनी में गेंहू के साथ ही गिरती हैं, गठुआ बात रोग जिसमें शरीर के जोड़ों में सूजन आ जाती है, रोग की विकसित स्थिति में हड्डियाँ टेढ़ी भी हो जाती है।

गठैलया :: (वि.) गाँठो से युक्त।

गठैलया :: (सं. स्त्री.) गठैलयाउ।

गठैला :: (वि.) दे. गठैलया।

गठैला :: (सं. स्त्री.) गठैलयाउ।

गठौला :: (सं. पु.) लकड़ियों का गट्ठा।

गँड :: (सं. पु.) पीतल का बड़ा बर्तन।

गंड :: (सं. पु.) चकिया को स्थापित करने का स्टैण्ड, आटा पीसने की हाथ-चक्की के चारों ओर इकट्ठा करने के लिए बना हुआ मिट्टी का घेरा।

गड़ (ढ़) :: (सं. पु.) सैनिक, दुर्ग, गतिविधियों का सुदृढ़केन्द्र।

गड़ कुंडार :: (सं. पु.) चंदेल राजा परमार्दिदेव के समय का क किला।

गँडकटा :: (वि.) डरपोक।

ग़डकील :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी की धुरी को भौंरा से संयुक्त करने के लिए बीच की लोहे की बड़ी कील।

गड़कुलया :: (वि.) गड्ढे वाला।

गड़कुलिया :: (सं. स्त्री.) छोटा सा गड्ढा।

गड़खानों :: (सं. पु.) गड़रियों का मुहल्ला।

गड़गड़ :: (सं. स्त्री.) गड़गड़ का शब्द, बादल गरजने, नगाड़े का शब्द।

गड़गड़ा :: (अ. क्रि.) गड़गड़ करने वाला, एक प्रकार का हुक्का।

गड़गड़ाट :: (सं. स्त्री.) गड़गड़ होने का शब्द या भाव।

गड़गड़ाना :: (क्रि.) गड़गड़ शब्द होना, गरजना।

गड़गड़ाबो :: (क्रि.) भ्रमित होना, अचकचाना।

गड़गड़ाबौ :: (क्रि.) गड़बड़ की आवाज होना, मरनासन्न रोगी के गले में अटके कफ की आवाज होना, बादल गरजना।

गँड़झप्पन :: (सं. पु.) बैल, बैल की एक जाति।

गड़ता :: (वि.) धातु को ठोक पीटकर बनाये हे आभूषण या बरतन।

गड़दार :: (सं. पु.) मस्त हाथी के साथ माला लेकर चलने वाला नौर।

गड़न :: (सं. स्त्री.) गड़रिया की पत्नि, भेड़ चराने वाले की स्त्री।

गड़ना :: (अ. क्रि.) धसना, चुभना, दर्द करना, अंदर रह जाना।

गड़पच्छयाउ :: (सं. पु.) एक खेल जिसमें कई व्यक्ति एक व्यक्ति को ऊँची जगह खड़ाकर गेंद चलवाते हैं जो गेंद पकड़ लेता है फिर वह चबूतरे पर चढ़कर गेंद फेंकता है।

गड़प्प :: (क्रि.) हड़पना, खा जाना, अमानत न लौटाना।

गड़फटा :: (वि.) डरपोक, एक गाली के रूप में प्रयुक्त।

गड़बड़ :: (सं. स्त्री.) अनुचित, असम्बद्ध, हैरा-फैरी, अंडबंड, अनियमित, ठीक समय पर न किया जाने वाला काम, दंगा, आपति, अव्यवस्था उदाहरण-गड़बड़झाला।

गड़बड़ाना :: (अ. क्रि.) गड़बड़ी में होना, भूल या भ्रम में पड़ना, गडबड़ी करना, चक्कर में आ जाना, अव्यवस्थित होना।

गड़बड़ी :: (सं. स्त्री.) गड़बड़।

गड़बांत :: (सं. पु.) गाड़ी का रास्ता।

गड़बांत :: (सं. स्त्री.) गाड़ियों के चलते रहने से बनी लीक।

गड़बाबो :: (स. क्रि.) गाड़ने का काम किसी से कराना, गाड़ने में लगाना।

गड़बाहो :: (सं. पु.) गाड़ी वाला, गाड़ी हाँकने वाला।

गड़बो :: (क्रि.) चुभना, धँसना, दफन होना।

गड़याउन :: (सं. स्त्री.) चूतड़।

गड़याबौ :: (क्रि.) किसी तरल पदार्थ का गाढ़ा होना।

गड़रबौ :: (क्रि.) नमी के अन्तः प्रभाव के कारण किसी वस्तु की यथावत आकृति, रटने पर भी कमजोर हो जाना, पसीने से वस्त्रों का कमजोर हो जाना, भीगने से चावलों में टूटने का गुण पैदा होना।

गड़रया :: (वि.) गड़रिया का बनाया हुआ कम्बल, उदाहरण-गड़रया कम्बल।

गड़रा :: (सं. पु.) किसी दबाब के कारण शरीर पर पड़ने वाले गडढे या लकीरें।

गड़रिया :: (सं. पु. (स्त्री.)) भेड़ पालने वाली एक जाति, गड़रिन।

गड़वा :: (सं. पु.) टोंटी लगा लोटा।

गड़वाँस :: (सं. पु.) बैलगाड़ी का मार्ग।

गड़ा :: (सं. पु.) गड्ढा, अभिमंत्रित करके गाँठे लगाकर बनाया हुआ सूत का गण्डा, पाँच के इकाई, पांच की गिड्डी।

गंडा :: (सं. पु.) भूत प्रेत की बाधा दूर करने के लिए मंत्र पढ़कर गाँठ लगाया हुआ धागा।

गड़ाई :: (सं. स्त्री.) गाढ़ने का काम या भाव।

गड़ाउँन :: (सं. स्त्री.) दाँय करते समय बैलों को कतार में जोतने के लिये कई जोत लगी रस्सी।

गड़ाना :: (क्रि.) गाड़ने का काम करना, चुभाना।

गड़ार :: (सं. पु.) चक्की के चारों तरफ बना मिट्टी का घेरा।

गड़ारी :: (सं. पु.) डरपोक, घुल्ला।

गड़ारी :: (सं. स्त्री.) मण्डलाकार रेखा, घेरा, घिरनी, कुँए से पानी खींचने वाली चरखी। उदाहरण-गड़ारीदार-जिस पर पास-पास अनेक धारियाँ पड़ी हो, घेरदार।

गड़ारीदार :: (वि.) जिस पर गोल घेरे या धारियाँ हों, घेरेदार।

गडाँसा :: (सं. पु.) कट्टी काटने या शस्त्र के रूप में काम में लाया जाने वाला एक प्रकार का फर्सा।

गड़ाँसा :: (सं. पु.) करबी (जानवरों को खिलाई जाने वाली घास) आदि काटने का हथियार, कट्टी काटने या शस्त्र के रूप में काम में लाया जाने वाला एक प्रकार का फर्सा।

गड़ासिया :: (सं. पु.) दे. गड़ासा।

गँडासो :: (सं. पु.) चारा काटने का हथियार।

गंड़ासो :: (सं. पु.) चारा काटने का हथियार।

गड़िया :: (सं. स्त्री.) किले की आकृति का छोटा भवन।

गड़ी :: (सं. स्त्री.) किले के समान आक्रमण एवं सुरक्षा की सुविधाओं से युक्त किले से छोटा भवन।

गड़ीत :: (सं. स्त्री.) हल, कृषि कार्य हेतु साधन।

गड़ीले :: (सं. स्त्री.) गड़ीलो-गड़ने वाले, गड़े हुए।

गडुआ :: (सं. पु.) बड़ा लोटा।

गडुआ :: (प्र.) सोने के गडुआ पानी गंगाजल, पीबें न राजा गोरी बिना, लोक गीत।

गडुआ :: (सं. पु.) पौधे रोपने के लिए बनाये गये गड्ढे।

गडूका :: (सं. पु.) गड्ढा।

गड़ेता :: (सं. पु.) सर्पों की एक जाति, करेंत, यह अधिक फुर्तील नहीं होता है किन्तु इसके काटने पर मेंर नहीं आती है, जहरीला सर्प।

गड़ेतो :: (सं. पु.) एक प्रकार का विषैला सर्प जिसका शरीर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा सा प्रतीत होता है।

गँड़ेतों :: (सं. पु.) एक प्रकार का विषैला सर्प जिसका शरीर छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटा सा प्रतीत होता हैं।

गड़ेंन :: (सं. स्त्री.) गड़रिया जाति की स्त्री।

गड़ेरी :: (सं. स्त्री.) गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े, जिन्हें मुँह में डालकर चूसा जा सके।

गँड़ेरी :: (सं. स्त्री.) ईख/गन्ना के छोटे-छोटे टुकड़े।

गंडेरी :: (सं. स्त्री.) ईख के छोटे-छोटे टुकड़े।

गड़ैया :: (वि.) गढ़ने का काम करने वाला।

गड़ैलू :: (सं. स्त्री.) लौकी।

गड़ोई :: (सं. पु.) गाड़ीवान, गाड़ी हाँकने वाला।

गंडोरा :: (सं. पु.) हरी तथा कच्ची खजूर।

गड्ड :: (सं. स्त्री.) समूह, भीड़ व्यक्तिगत भेद के बिना।

गड्डबड्ड :: (वि.) अस्थिर, भली भाँति मिला हुआ।

गड्डबड्ड :: (कहा.) गड्डम-गडढा दै करौ सो तन तन सबखों होय।

गड्डमड्ड :: (सं. पु.) घपला, कई चीजों का मिल जाना।

गड्डर :: (सं. पु.) गरूड़, पूजा के समय बजायी जाने वाली लग्बी मुठिया वाली घण्टी, जिसकी मुठिया के ऊपरी भाग पर गरूड़ की आकृति बनी रहती है।

गड्डी :: (सं. स्त्री.) एक के ऊपर दूसरी क्रम से रखी हुई वस्तुएँ, तह पर तह।

गड्डी :: (सं. स्त्री.) ढेर, जैसे रूपयों या ताश की गिड्डी।

गड्डीमिटउअल :: (सं. पु.) एक खेल।

गढ़ :: (सं. पु.) किला, दुर्ग, कोट, खाई।

गढ़ :: (सं. स्त्री.) गढ़ी।

गढ़न :: (सं. स्त्री.) बनावट, रचना।

गढ़ना :: (स. क्रि.) रचना, बनाना, सुधारना, बात बनाना, ठोंकना, मारना, कल्पना करना।

गढ़न्त :: (सं. स्त्री.) कल्पित वार्ता, बनावटी बात, उदाहरण-मनगढ़न्त बातें।

गढ़परबो :: (स. क्रि.) तै होना, अन्दाज, अनुमान।

गढ़ा :: (सं. पु.) गड्ढा।

गढ़ाना :: (क्रि. स.) गढ़वाना, गाढ़ा होना, कठिनता, हीनता, आपत्ति आना।

गढ़िया :: (सं. स्त्री.) कटोरे की शक्ल का एक मिट्टी का पात्र, किसी वस्तु को गढ़ कर बनाने वाला।

गण्ठा :: (सं. पु. वि.) ठिगने कद का।

गण्ठा :: (स्त्री. वि.) गुण्ठू।

गण्डोंई :: (सं. स्त्री.) गुण्डन।

गण्डोंई :: (सं. पु.) गुण्डों जैसा व्यवहार।

गत :: (सं. स्त्री.) गति, दुर्गति, दशा, दुर्दशा, गया हुआ, बीता हुआ, समाप्त।

गतकरबौ :: (सं. क्रि.) मवेशी का चमड़ा उतारना, मारना-पीटना, उदाहरण-बुरी गत कर दई।

गतका, गतको :: (सं. पु.) एक मीटर लम्बा चमड़े से मढा डंडा, घूंसा।

गतकौ :: (सं. पु.) मुक्का, घूंसा, प्रायः पीठ पर मारा जाता है।

गतरा :: (सं. पु.) टुकड़ा, शाक के लिये काटे गये टुकड़े, विशेष कर माँस के टुकड़े।

गतरो :: (सं. पु.) टुकड़ा, खण्ड, कतरा।

गंता :: (सं. पु.) बच्चा पैदा होने की खुशी में होने वाला गाना बजाना।

गतिया :: (सं. स्त्री.) छोटे बच्चों को ठण्ड से बचने के लिये सिर से कपड़ा उड़ाकर शरीर पर लपेट दिया जाता है तथा गले में लपेटते हुए गाँठ लगा दी जाती है, बच्चों के गले में बाँधने का रूमाल।

गंतेलो :: वह लकड़ी जो भौंरा के बीच में से निकाली जाती है इसके सिरे पर रस्सी बाँधकर बैलों को जुवारी से बाँध देती है।

गत्ता :: (सं. पु.) दफ्ती, कागज, के कई परतों को मिलाकर बनाया हुआ मोटे कागज का पट्टा।

गथवो :: (अ. क्रि.) आपस में गूंथना, मिलकर एक होना।

गथा :: (सं. पु.) एक ही तरह की वस्तुओं को एक रस्सी से बाँधकर बनाया गया गुच्छा, जैसे चूड़ियों का गथा।

गंद :: (सं. स्त्री.) महक, बास।

गदइया :: (सं. स्त्री.) ज्वार के कटे हुए पौधों को खड़ा करके बनाया गया छोटा ढेर, गधी।

गदइया :: (कहा.) गदइयाँ गुर हगन लगे तो बराई काय को पेरी जाय।

गंदक :: (सं. स्त्री.) एक जलने वाला खनिज पदार्थ जो पीले रंग का होता है जिसका प्रयोग रसायन और वैद्यक में होता है।

गदकारी :: (वि.) कोमल, गुलगुला, मांसल।

गदको :: लगभग एक मीटर लंबा चमड़े से मढ़ा डंडा, घूंसा।

गदकोंरी :: (सं. स्त्री.) (समास) ज्वार के भुने हुये भुट्टे के दानों को गुड़ और दूध के साथ उबाल कर बनायी गयी कोंरी खाद्यान्न।

गदगद :: (वि.) प्रसन्न होना, खुश होना।

गदबद :: (क्रि. वि.) तेज दौड़।

गदबद :: (सं. स्त्री.) मोटा आदमी दौड़ लगाते समय गदबद देता है।

गदबिसरा :: (वि.) भुलक्कड़।

गदर :: (सं. पु.) क्रांति, हलचल, बलवा।

गदरयानों :: गदेरों का मुहल्ला, गधे पालने वाले एवं कुम्हारों का मुहल्ला।

गदरयाबो :: (क्रि.) फलों या अनाज का पकना प्रारम्भ होना।

गदरा :: (वि.) अधूरे पके हुये।

गदरा :: दे. गादर।

गदराना :: (अ. क्रि.) फल आदि पकना।

गदराना :: (वि.) गदराया हुआ, माँसल।

गदराबो :: (अ. क्रि.) फल आदि का पकना, जवानी में अंगो का भरना।

गदरैल :: (वि.) परिपक्व, पका हुआ, लगभग पका हुआ।

गंदला :: (सं. पु.) एक पौधा, मलिन, मैला, अपवित्र।

गदा :: (सं. पु.) गधा, गदराये हे, ज्वार के भुट्टे, मुस्टिका, गधा, गदहा।

गदा :: (सं. स्त्री.) एक प्राचीन अस्त्र, कसरत के सामानों में एक, जुंड़ी के कच्चे दाने।

गदा :: (मुहा.) गदन खाव खेत पाप न पुन्य, अनाधिकारी पर व्यर्थ धन व्यय होना, उदाहरण-गदा पे चड़ाबो-अपमान करना, गदा गूमरो-बिना क्रम, गदा पचीसी-पच्चीस वर्ष तक की उम्र, गदादला-भारी गद्दा।

गदा :: (कहा.) गदन की बातें, लड़इयन की लातें - गधों की बातें और गीदड़ो की लातें, मूर्ख बेतुकी बात।

गदा :: (कहा.) गदन खाओ खेत पाप न पुन्न - मूर्खो को खिलाना-पिलाना व्यर्थ है।

गदा :: (कहा.) गदा गदइया सें जीते नई, रेंगटा के कान मरोरे।

गंदी :: (सं. पु.) इत्र फरोश, वैश्यों की एक जाति, गंदी-बास, इत्र।

गंदीगर :: (सं. पु.) इत्र बेचने वाला।

गदूल :: (सं. पु.) कुमुद, जल में पैदा होने वाला कमल की जाति का फूल जो चाँदनी में खिलता है।

गदूला :: (सं. पु.) ठण्ड से रक्षा करने के लिये पहना जाने वाला रूई भरा मोटा वस्त्र।

गदेरी :: (सं. स्त्री.) हथेली।

गदेरी :: दे. गदिया तथा हतेरी।

गदेरो :: (सं. पु.) ईंट बनाने वाले, गधे का मालिक कुम्हार, धोबी आदि।

गदेलबो :: परवाह न करना।

गँदेलबो :: (क्रि.) सम्भ्रम मानना।

गदेला :: (सं. पु.) मोटा गद्दा, छपे हुए सुन्दर कपड़े का गद्दा, फसल में लगने वाले रोग, रूई भरी बिछावन।

गदेलो :: (सं. पु.) रँहट की वह धनुषाकार लकड़ी जिसेस बैलों को खींच कर रँहट चलाया जाता है।

गद्द :: (सं. पु.) वह रचना जो छन्दोबद्ध न हो।

गद्दी :: (सं. स्त्री.) छोटा गद्दा किसी व्यवसायी के बैठने का स्थान, प्रतिष्ठित पद, राज्य सिंहासन, राज्याभिषेक।

गद्या तारो :: (सं. पु.) एक प्रकार का चपटा का ताला जिसका आकार हथेली की भाँति होता है।

गंध :: (सं. स्त्री.) सुगन्ध, महक, खुशबू, बास, बू.हवा।

गंधक :: (सं. पु.) एक पीला खनिज पदार्थ, एक रसायन जो बारूद बनाने तथा औषधियों के काम आता हैं।

गंधरव :: (सं. पु.) देवताओं का एक वर्ग जो गान विद्या से प्रवीण है।

गन :: (सं. पु.) समूह, वर्ण, श्रेणी, अनुचर, अनुयायी दूत, छन्द शास्त्र के अनुसार तीन वर्णों का समूह।

गनइ :: (सं. स्त्री.) खस्ता पुआ।

गनइ :: दे. गुनी।

गनका :: (सं. स्त्री.) वेश्या, सामान्य नायिका।

गनगिना :: (वि.) नाक के स्वर से बोलने वाला।

गनगौर :: (सं. स्त्री.) गणगौरी, वैशाख कृष्ण तृतीया को गौर पूजन, उत्सव एवं व्रत।

गनगौरा :: (सं. पु.) गनगौर पूजन के लिये बनाया जाने वाला विशेष पकवान, तली हुई आटे या बेसन की तीन चार इंच लम्बी पट्टियाँ या बतियाँ।

गनत :: (सं. पु.) गणित, हिसाब, गणित के अर्थ में।

गनत :: (सं. स्त्री.) में प्रयुक्त।

गनधरव :: (सं. पु.) गन्धर्व।

गनधारी :: (सं. स्त्री.) गान्धारी, धृतराष्ट्र की पत्नी तथा कौरवों की माता।

गनावनों :: (सं. पु.) विवाह में वर की तरफसे कन्या को आभूषण भेंट करने की क्रिया, केवल जैनों में प्रचलित शब्द।

गनेश :: (सं. पु.) शिवजी के पुत्र, हिन्दुओं के एक प्रधान देवता। गणपति, शंकर-पार्वती के पुत्र जिनका मुख हाथी जैसा है, प्रथम पूज्य देव।

गनेश :: (कहा.) गनेस जू खों चौक पूरो, मेंदरे जू आन बिराजे - किसी के स्थान पर कोई बैठ गया।

गनेस चौथ :: (सं. पु.) भादौं शुक्ल की चतुर्थी को गणेश पूजा।

गनेसी :: (सं. स्त्री.) गणेश पर आधारित।

गनेसी :: (सं. पु.) तथा।

गनेसी :: (सं. स्त्री.) नाम।

गन्ठयाउन :: (सं. स्त्री.) अपनी गाँठ में बँधी पूंजी, अपने हाथ की पूंजी।

गन्ठयाउन :: (मुहा.) गाँठ की गण्ठयाउन।

गन्ड :: (सं. पु.) हाथ चक्की के चारों ओर बनायी जाने वाली मिट्टी की कुंडी जिसमें आटा इकट्ठा होता है।

गन्डगोल :: (सं. पु.) गड़बड़, कुतर्क या झूठे साक्ष्यों में उलझे हुए तथ्य।

गन्ता :: (सं. पु.) लड़का पैदा होने की खुशी में होने वाला स्त्रियों का गाना बजाना।

गन्दीगर :: (सं. पु.) गन्धी, इत्र और सुगन्धित तेल बनाने वाले या बेचने वाले।

गन्न मसीन :: (सं. पु.) मशीन गन, बन्दूक।

गन्ना :: (सं. पु.) ईख, गलित कुण्ड रोग, मोटी जाति का ईख।

गन्नाटो :: (वि.) तेज आवाज।

गपइ :: (सं. स्त्री.) टूटे हुए मटके की खपड़िया का छोटा गोल टुकड़ा।

गँपई :: (सं. स्त्री.) गोल आकृति का मिट्टी आदि का टुकड़ा (खपरे का)।

गपकना :: (सं. क्रि.) जल्दी से निगल जाना।

गपकबो :: (क्रि.) इटपट तथा बड़े-बड़े कौर निगल कर खाना।

गपड़चौथ :: (सं. पु.) व्यर्थ की बकवास, जो चार लोग मिलकर करते हैं।

गपड़तान :: (सं. स्त्री.) दूसरे को अवसर दिये बिना बकवास।

गपड़तान :: (मुहा.) गपड़तान लगाबौ।

गपनी :: (सं. स्त्री.) चमड़े का वह भाग, जो जारौ के ऊपर जूता कसने के लिये लगाते है, चमार।

गपबौ :: (क्रि.) किसी कोमल वस्तु में दूसरी वस्तु का धँसना।

गपाचा :: (वि.) मूर्ख, बातूनी।

गपुआ :: (वि.) मूर्ख, झूठ बोलने वाला।

गपोड़ा :: (सं. पु.) गप्प, मिथ्या बात, डींग मारने वाला।

गपोड़ी :: (वि.) गप्पें हाँकने का आदी।

गपोलें :: (सं. स्त्री.) धीरे-धीरे जमा कर दी जाने वाली गप्पें।

गप्प :: (सं. स्त्री.) झूठी बातें, बढ़ा चढ़ाकर की जाने वाली बातें, उदाहरण-गप्प सड़ाका-व्यर्थ की गप्पें।

गप्पा :: (सं. पु.) दे. गपई, गोल आकृति में निर्मित वस्तु।

गप्पी :: (सं. पु.) झूठ बातें बनाने वाला।

गप्पी :: (मुहा.) गप्पाष्टकें छाँटबो।

गफ :: (वि.) घना, ठोस, घनी, बनावट का।

गफ्फल :: (सं. स्त्री.) असावधानी, भूल।

गबइया :: (वि.) गानेवाला, गवैया।

गँबइया :: (वि.) गाँव का, गँवार, देहाती, छोटा गाँव।

गबड़ी :: (सं. स्त्री.) कबड्डी का खेल।

गबडू :: (वि.) ऐसा नव युवक जिसके मानसिक विकास की तुलना में शारीरिक विकास अधिक हो।

गबड्डी :: (सं. स्त्री.) खूब सघन भीड़, रेलपेल, भीड़ के साथ गति का भाव।

गबदू जबान :: (वि.) हट्टा-कट्टा, गबरू।

गबन :: (सं. पु.) गमन, अपने संरक्षण में रखे धन पर निजी अधिकार जमाने की क्रिया।

गबनारी :: (वि.) गबनारू, गाने वाली स्त्री।

गबनी :: (सं. स्त्री.) नाव छेंदों को सन आदि से भरने की क्रिया।

गबरा :: (वि.) अहंकारी, घमण्डी।

गबरू :: (सं. वि.) हट्ट-कट्टा जवान।

गबरून :: (सं. पु.) एक मोटा कपड़ा।

गबवारौ :: (वि.) गर्भस्थ शिशु के समान कोमल देह वाला (बच्चा) पालने में झूलने कि आयु का शिशु, गाने वाला।

गबा :: (सं. पु.) एक जलचर जानवर।

गबाई :: (सं. स्त्री.) गवाही, साक्ष्य।

गँबाबो :: (क्रि.) गँबाना, खोना, बिसारना, भूलना, बिताना, काटना, व्यतीत करना।

गबाय :: (सं. पु.) साक्ष्य, साक्षी, गवाह।

गँबार :: (वि.) देहाती, ग्रामीण, असभ्य, मूर्ख।

गँबार :: (कहा.) गँवार की अक्कल चेंथरी में - गँवार पिटने से ही मानता है।

गबुआरे :: (क्रि.) नादान।

गबेलुआ :: (सं. पु.) गर्भ का बच्चा।

गबैया :: (वि.) गायक, गाने वाला, संगीतज्ञ।

गबोट :: (सं. स्त्री.) भुट्टे का प्रारम्भिक रूप, अनाज की बाली का गर्भ, प्रातः कालीन शिकार।

गबोटबौ :: (क्रि.) गेहूं आदि के पौधों के गर्भ में बाली का पैदा होना।

गम :: (सं. स्त्री.) पहुँच, प्रवेश, दुख, सोच, चिन्ता।

गमइँ :: (सं. स्त्री.) छोटा सा गाँव, शब्द युग्म, गमइँ गाँव में व्यवह्नत।

गमइँयाँ :: (वि.) छोटे से गाँव का रहने वाला, असभ्य और असंस्कृत।

गँमइयाँ :: (वि.) देहाती, ग्रामीण।

गमक :: (वि.) बोधक समझाने या बताने वाला, ढोलक, तबले आदि में बायें पल्ले में हाथ की रगड़ से उत्पन्न नाद।

गमकना :: (अ. क्रि.) महकना।

गमको :: (सं. पु.) घूंसा।

गमखाबो :: (सं. पु.) क्षमा करना, सह लेना।

गमखोर :: (वि.) सहनशील।

गमगमाबौ :: (क्रि.) किसी पदार्थ की सुगन्ध फैलाना।

गमन :: (सं. पु.) यात्रा, जाना, गति, मार्ग।

गमरगट्ट :: (वि.) बज्रमूर्ख।

गमरयाबौ :: (क्रि.) असभ्य आचरण करना, उच्छृंखल व्यवहार करना।

गमरोंई :: (सं. स्त्री.) असभ्य आचरण।

गमरोय :: (क्रि. वि.) अविवेक पूर्ण ढंग से काम करना।

गमला :: (सं. पु.) वह पात्र जिसमें पौधे लगाते हैं।

गमाबौ :: (क्रि.) गुमाना, खोना, दुरुपयोग करके सम्पत्ति नष्ट करना, जुआ में दाव हारना, चूकना।

गमार :: (वि.) असभ्य तथा असंस्कृत।

गमारपन :: (सं. पु.) असभ्य आचरण, अविवेकपूर्ण कार्य।

गमारफली :: (सं. स्त्री.) ग्वाँरफली, फलियाँ जिनकी साग बनती है।

गमारी :: (सं. स्त्री.) असभ्यता पूर्ण कार्य।

गमी :: (सं. स्त्री.) मृत्युशोक।

गम्भीर :: (वि.) गम्भीर, केवल नाम में प्रयुक्त, गहन।

गम्म :: (सं. स्त्री.) दुर्व्यहार की प्रतिक्रिया का शमन करने की शक्ति।

गम्म :: (प्र.) गम्म खाबौ।

गम्मखोर :: (वि.) क्षमाशील।

गम्मत :: (सं. स्त्री.) गायन-वादन की गोष्ठी।

गया :: (सं. पु.) बिहार का एक पुण्य स्थान जहाँ पिण्डदान किया जाता है, उदाहरण-गया करबो-गया में जाकर पिण्डदान आदि का करना।

गरई :: (वि.) भारी, वजनदार, गर्भवती।

गरज :: (सं. स्त्री.) प्रयोजन, जरूरत, इच्छा बहुत गम्भीर शब्द, चाह, अटक, गर्जन मेघों, सिंहों, समुद्र का स्वर, जोर से बोलना, प्रयोजन, जरूरत, इच्छा, बहुत गम्भीर शब्द।

गरज :: (कहा.) गरज परे पराई ताई सें मताई केंने परत - गरज पर दूसरे की माँ से माँ कहना पड़ता है।

गरजबो :: (क्रि.) गरजना, गम्भीरता, तथा घोर शब्द करना।

गरजबो :: (कहा.) गरजें सो बरसें का - गरजने वाले बादल बरसते नहीं, बकवादी आदमी से काम नहीं आता या होता।

गरजुआ, गरजू :: (वि.) जरूरत वाला, गरजमन्द, गरजने वाला, गर्जन करने वाला।

गरथनी :: वह रस्सी जो गाय बैल आदि के गले में बाँधी जाती है।

गरदना :: (सं. पु.) दीवार का अन्तिम ऊपरी भाग जिस पर उल्टी सीढ़ीनुमा ईंटों की तीन पर्ते लगाई जाती हैं ताकि छप्पर दीवार से आगे निकाला जा सके।

गरदा :: (सं. पु.) मिट्टी, धूल।

गरदानों :: (सं. पु.) गरदन के नीचे का माँस, खूब मोटी गर्दन, भीड़।

गरधना :: (सं. पु.) बकरी की गर्दन में लटकने वाली थनों की आकृति की खाल।

गरफन्द :: (सं. पु.) गले का फन्दा, संकट, झंझट, अवांछित उत्तरदायित्व (यौगिक शब्द.)।

गरब :: (सं. पु.) गर्व, घमण्ड।

गरबँदा :: (वि.) ऐसा फल जो डण्ठल के पास मोटा फिर पतला और फिर मोटा हो गया हो।

गरबबौ :: (क्रि.) घमण्ड करना।

गरबीलौ :: (वि.) घमण्डी अभिमानी, स्वाभिमानी, गर्वयुक्त।

गरबॉय :: गले में हाथ डालना, गलबँहियाँ।

गरम :: (वि.) तासीर में गर्म के अर्थ में प्रयुक्त।

गरम उन्ना :: (सं. पु.) ऊनी वस्त्र।

गरम मसालो :: (सं. पु.) भोजन के काम आने वाला मसाला जिसमें लौंग, इलायची, जीरा, कालीमिर्च आदि होती हैं।

गरमा गरमी :: (सं. स्त्री.) क्रोधपूर्ण वार्तालाप का आदान-प्रदान।

गरमाट :: (स्त्री.) गरमी, उष्णता, गरमाहट।

गरमी :: (सं. स्त्री.) उष्मा, गरम वस्तुओं या दवाओं के प्रयोग से या भूखे प्यासे काम करते रहने के कारण शरीर पर असामान्य प्रभाव, एक यौन रोग, क्रोध।

गरमेंयाबौ :: (क्रि.) गरम होना, क्रोध प्रदर्शन।

गरमेंला :: (सं. पु.) गर्मी के प्रभाव के कारण होने वाले फोड़े, गर्मिला।

गरय :: (वि.) बड़ा सम्मानीय।

गरया :: (वि.) गाली देने की आदत वाला।

गरयाट :: (वि.) मस्ती, गर्व।

गरयाल-गरयार :: (वि.) ऐसा बैल जो मारने पर भी नहीं चलता है।

गरर :: (सं. पु.) बैलों के गले में डालने वाली लकड़ी।

गरव :: (वि.) वजनी, लक्षणार्थ-धनी, गम्भीर।

गरवाट :: (सं. पु.) वजनी होने का गुण।

गरहाई :: (सं. स्त्री.) गहरापन।

गराबो :: (क्रि.) मिट्टी या मैले कपड़ों को पानी में डालकर फूलने के लिये रखना।

गराव :: (सं. पु.) ऐसी ठण्ड जिसमें अंग-प्रत्यंग जमने से लगें।

गराव :: (प्र.) गराव परबौ।

गरियाना :: (क्रि.) गाली देना।

गरीब :: (वि.) निर्धन, सीधा, सरल स्वभाव वाला।

गरीब :: (कहा.) गरीब की लुगाई, सब की भौजाई - गरीब को सब दबाते है।

गरीबी :: (सं. स्त्री.) निर्धनता, गरीब-एक नाम।

गरूआई :: (सं. स्त्री.) गरूता, भारीपन, गुरूरता।

गरून :: (सं. पु.) विष्णु का वाहन, एक पक्षी राज, गरूड़।

गरूर :: (सं. पु.) घमण्ड।

गरूरी :: (सं. स्त्री.) घमंडी, घमंड।

गरेंट :: (वि.) गल तक भरा हुआ (बरतन)।

गरेंटें :: (वि.) गले से भरा, कुछ खाली।

गरेबान :: (सं. पु.) कुरते आदि का गले का भाग।

गरेरना :: (क्रि. स.) घेरना।

गरो :: (सं. पु.) देह का वह भाग जो सिर को धड़ से जोड़ता है, कंठ, गरदन, कंठ का स्वर मुख के नीचे का भाग।

गरोए :: (सं. पु.) झुण्ड, समूह।

गरोह :: (सं. पु.) झुंड।

गरौ :: (सं. पु.) गला, बर्तन, पोशाक आदि के गले के व्यापक अर्थ में प्रयुक्त।

गर्ज :: (सं. स्त्री.) दे. गरज, अटक, गरजीलो, गरजुँआ।

गर्ज :: (वि.) गरजमंद।

गर्जबो :: (क्रि.) दे. गर्जबो।

गर्जबौ :: (क्रि.) गर्जना, विशेषकर तोपों और बादलों की गर्जना।

गर्दना :: (सं. पु.) दे. गरदना।

गर्दिश :: (सं. स्त्री.) चक्र, घुमाव, आपत्ति।

गर्रा :: (वि.) दे. गरयार, हाँकने पर भी न चलने वाला बैल, कुँए से पानी खींचने की बड़ी घिररी।

गर्राट :: (सं. पु.) उदण्ड व्यवहार, अशालीन व्यवहार।

गर्राबो :: (क्रि.) निश्चिन्तता से खुशी जीवन-यापन के साधन जुटते रहने के कारण उदण्ड एवं उच्छृंखला व्यवहार करना।

गर्राबो :: (कहा.) गर्रानी सो अर्रानो - बहुत घमंड करने वाला नष्ट होता है।

गल :: (सं. पु.) समास में गल का पद रूप।

गल :: (प्र.) गलबैंयां।

गलकट :: (वि.) गाल में काटने से बना चिन्ह।

गलगंज :: (सं. पु.) कोलाहल, शोलगुल।

गलगंदा :: (सं. पु.) गले में पड़ा हुआ अंर्तरीय मफलर गलगज्जबो इत झाँसी की भीर, उत काशी गलगज्जो। गलगन्दे उड़ा रए मौज-मजा।

गलगल :: (सं. पु.) मैना की जाति की चिड़िया।

गलगलदम्भे :: (वि.) मौज, मजा, गलगल दम्में।

गलगला :: (वि.) आर्द्र, भीगा हुआ।

गलगलाबो :: (क्रि.) उच्च स्वर में अपनी-अपनी बात कहना।

गलगलियाँ :: (सं. पु.) बैलों के गले में पहनने वाले पीतल का आभूषण, एक पक्षी, गलगोली-खेल।

गलत :: (वि.) अशुद्ध, असत्य।

गलत :: (सं. स्त्री.) गल्ती।

गलतकिया :: (सं. स्त्री.) गाल के नीचे रखने का तकिया।

गलतफहमी :: (सं. स्त्री.) भ्रम, भुलाबा, धोखा।

गलता :: (सं. पु.) रेशम और सूत से बना चिकना कपड़ा, जो प्रायः लंहगा बनाने के काम आता हैं।

गलताश :: छज्जा के नीचे बनी हुई बेल।

गलतिया :: (सं. स्त्री.) कारीगर द्वारा ईंटों के जोड़ों पर बनाई गई चूना की लाइन।

गलथना :: (सं. पु.) बकरियों के गर्दन के दोनों ओर लटकने ली थैलियाँ।

गलना :: (अ. क्रि.) पिघलना, घुलना, नरम होना, किसी पदार्थ के घनत्व का नष्ट होना, शीत से गिरना।

गलफ :: (सं. पु.) दे. गलता।

गलफ :: (मुहा.) गलता गैल-साफ, रास्ता।

गलफाँसी :: (सं. स्त्री.) गले की फांसी, जंजाल।

गलफोर :: (सं. स्त्री.) ऐसा चाँटा जिससे गाल फट जाये।

गलबइयाँ :: (सं. स्त्री.) गले में बाँहें डालना, आलिंगन, गले लगाना।

गलबलाबो :: (क्रि.) दे. गलगलाबो।

गलबलिया :: (वि.) अधिक और उच्च स्वर में बोलने वाला।

गलबहियाँ :: (सं. स्त्री.) एक दूसरे के गले में हाथ डालने की मुद्रा, लोक साहित्य।

गलबांही :: (सं. स्त्री.) गले में बाँहे डालना।

गलमुच्छा :: (सं. पु.) गालों पर बढ़ाये बाल।

गलयारा :: (सं. पु.) छोटी गली।

गलयारों :: (सं. पु.) रास्ता, सड़क।

गलवा :: (सं. पु.) गाल, कपोल।

गलसी :: (सं. स्त्री.) दे. गलसी। बच्चों का गिलास।

गलसुआ :: (सं. पु.) कान के नीचे का एक रोग।

गला :: (सं. पु.) गर्दन, कण्ठ, गले का स्वर, कुर्तें आदि के गले पर का भाग, ऊपर का भाग।

गलाना :: (स. क्रि.) पिघलना, द्रव्य करना, किसी वस्तु के संयोजक अणुओं को अलग करना।

गलाबो :: (क्रि.) मिट्टी, कागज, मैले कपड़े आदि को फुलाना, धातु पिघलाना, उपयोग या बिक्री के कारण किसी वस्तु का खर्च होना।

गलाव :: (सं. पु.) ऐसी ठण्ड जिसमें अंग-प्रत्यंग जमते से प्रतीत हों।

गलाव :: दे. गराब।

गली :: (सं. स्त्री.) छोटा मार्ग, कूचा।

गलीच :: (वि.) गलीच, गंदी आदतों वाला।

गलीचा :: (सं. पु.) कालीन।

गलीज :: (वि.) मैला।

गलेफ :: (सं. पु.) गिलाफ, रजाई।

गलेफना :: (सं. पु.) शीरा टारने या चलाने का बड़ा थेता, खोचा।

गल्ती :: (सं. स्त्री.) भूल, अशुद्धि।

गल्लन :: (वि.) बहुत अधिक, पर्याप्त।

गल्ला :: (सं. पु.) शोर, अनाज, खलिहान।

गल्लाँ :: (सं. पु.) पानी छानने का कपड़ा।

गवाह :: (सं. पु.) साक्षी, किसी घटना को आँखों से देखने वाला मनुष्य।

गवाही :: (सं. स्त्री.) साक्षी का कथन, गवाह का ब्यान या प्रमाण।

गवैया :: (सं. पु.) गायक, गाने वाला।

गस :: (सं. पु.) मूर्छा, ईर्ष्या, गाँठ।

गंस :: (सं. पु.) द्वेष, ताना, तीर की नोंक।

गसकें :: (क्रि. वि.) पास-पास।

गसना :: (क्रि. सर्व.) गाँठ न बाँधना, कसना।

गँसना :: (क्रि.) कसकर बाँधना, गठना, कसना, भरना, चुभना, छिदना, घुसना।

गसबा :: (सं. पु.) गसकर बनाई गई।

गँसबो :: (क्रि.) जकड़ना, कसकर बाँधना, बनावट में सूत को आस पास सटना, गठना, भरना, चुभना।

गसबौ :: (क्रि.) सघन होना, सटना, एक दूसरी वस्तु को आपस में मजबूती से सम्बद्ध करना, जकड़ जाना, जकड़न, फँसना।

गसाबौ :: (क्रि.) नष्ट होना या करना, बिगड़ना या बिगाड़ना।

गसारी :: (सं. पु.) एक भोड़ा।

गसीला :: (वि.) गठा हुआ, गफ, घना।

गंसीला :: (वि.) नोंकदार, चुभने वाला, धँस जाने वाला, ठोस, बिना छेद का।

गँसीली :: (वि.) तीर की तरह नौंक वाला, नुकीली, शत्रुता रखने वाला, मन में द्वेष रखने वाला।

गसीलो :: (वि.) गुँथा हुआ, कसा हुआ, जकड़ा हुआ।

गस्सा :: (सं. पु.) कौर, इसका शुद्ध रूप ग्रास, निवाला।

गहइया :: (सं. पु.) गीने की क्रिया करने वाला।

गहगहा :: (क्रि. अव्य.) आनन्द से फूलना, लहकना।

गहन :: (सं. पु.) ग्रहण, गहन रूप भी पाया जाता है।

गहना :: (सं. पु.) आभूषण, रेहन, गिरवी।

गहरवार :: (सं. पु.) एक क्षत्रीय जाति।

गहरा :: (वि.) जिसका विस्तार नीचे की अधिक हो, गंभीर, अधिक नीचा, अधिक गाढ़ा।

गहराब :: (सं. स्त्री.) गहराई।

गहरो :: (वि.) गहरा।

गहलौत :: (सं. पु.) एक क्षत्रिय वंश।

गहवो :: (सर्व. क्रि.) पकड़ना ग्रहण करना।

गहाई :: (सं. स्त्री.) पकड़, ग्रहण करना।

गहान :: (सं. पु.) ग्रहण।

गहाना :: (स. क्रि.) घराना, पकड़वाना।

गहाबौ :: (क्रि.) किसी दूसरे को अपने हाथ से दूसरे हाथ पकड़वाना।

गहेसो :: (सं. पु.) सहारा, आसरा, प्रश्रय।

गहैया :: (वि.) गहने या पकड़ने वाला, अंगीकार या स्वीकार।

गहोई :: (वि.) वैश्यों की एक उप जाति। संज्ञा रूप में भी प्रयुक्त।

गाई :: (स्त्री. स.) दो उँगरियों के जोड़ के बीच का स्थान (कोण) दो शाखाओं के बीच का कोंण।

गाउघप्प :: (वि.) दूसरे की वस्तु को अपनाने वाला।

गाक :: (सं. पु.) ग्राहक, खरीददार, लेने वाला।

गाक :: दे. गाहक।

गाँकर :: (सं. स्त्री.) कंड़ों या उपलों में सेकी जाने वाली एक तरह की बाटी, आटे की गोल चपटी और मोटी लोई जो आग पर सेंक कर खाई जाती है।

गाकरी :: (सं. स्त्री.) आग पर सेंकी हुई बाटी।

गाकरी :: (बु.) गकरिया।

गागड़ौ :: (वि.) गहरा(रंग) गागड्डी (भंग)।

गागर :: (सं. स्त्री.) छोटे मुँह का मिट्टी का घड़ा।

गागर :: दे. गागरी।

गाँगरो :: हल में लगने वाली लकड़ी जो ऊपरी भाग में ठोकी जाती है।

गागव :: (वि.) गहरा।

गागव :: दे. गागड्डौ।

गाँगौटीं :: (सं. स्त्री.) गंगा की रेत और मिट्टी की पेड़े जैसी आकृतियाँ, तीर्थ यात्री गंगा जी से अपने साथ लाते हैं, गंगाजल के अभाव में इन्हीं को पानी में डालकर पवित्र जल बना लिया जाता है, चंदन की तरह प्रयुक्त होती है।

गाज :: (सं. स्त्री.) गर्जन, बिजली की कड़क, बिजली, तड़ित विद्युत के वे स्फुलिंग जो पेड़ों भवनों आदि पर गिरकर उन्हें जला देते हैं।

गाँज :: (सं. पु.) घास का व्यवस्थित स्तूप जैसा ढेर।

गाजना :: (अ. क्रि.) गरजना, प्रसन्न होकर चिल्लाना।

गाजबो :: (अ. क्रि.) गरजना, तीव्र ध्वनि करना, प्रसन्न होना।

गाँजबौ :: (क्रि.) गोल आकृति में घास का ढेर बनाना।

गाजर :: (स्त्री.) एक मीठे कन्द का पौधा, एक खाद्य मूसली जड़।

गाँजर :: (सं. पु.) गाँजरगढ़-आल्हखण्ड में वर्णित एक किला एवं स्थान जहाँ ऊदल की ससुराल थी, न्वयतम शोधों के आधार पर यह स्थान पन्ना जिले में भग्नावस्था में स्थित है।

गाँजिया :: (सं. पु.) बाँस की पतली सींकों से बना टोकरा।

गाजी :: (सं. पु.) धर्म कि लिये युद्ध करने वाला वीर।

गाजें :: (सं. स्त्री.) गुच्छियाँ, मशरूम, कुकरमुत्ता, जिनका ऊपर का भाग गोली जैसा हो।

गाजे-बाजे :: (सं. पु.) वाद्य यंत्र, बैंड बाजा।

गाँजो :: (सं. पु.) भाँग की जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसके सूखे फूल चिलम में रखकर तम्बाकू की तरह पिये जाते हैं, एक नशीली वनस्पति जिसको चिलम में चला कर नशे के लिए धूम्रपान किया जाता है, मथानी का डण्डा जिसके नीचे दही बिलोने का फूल लगा रहता है।

गाटर :: (सं. पु. अ.) गर्डर, गिर्डर लोहे की दुहरी पनारी वाला शहतीर।

गाँठ :: (स्त्री. स.) ग्रन्थि, पौधों या शरीर के जोड़ों के उभार, कपड़े के छोर में बाँधकर लगाई गई गिरह, गाँठ की आकृति की जड़, गिल्ली, रसौली, मन में जमी हुई प्रतिहिंसा या बैर की जड़, विवाह में कन्या की विदा के समय उसको स्त्रियों द्वारा दी जाने वाली नगद भेंट की रस्म।

गाँठबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को छल कपट पूर्वक प्राप्त करना।

गाँठी :: (सं. पु.) ग्रन्थिका, ढोलक की आकृति का एक घुँघरूदार गहना जिसे आँचल के कोने में बाँधा जाता है।

गाँड़ :: (सं. स्त्री.) गुदा, पेंदी, तली।

गाड़र :: (सं. स्त्री.) भेड़।

गाँडर :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की घास।

गाँडा :: (सं. पु.) किसी पेड़ आदि का छोटा कटा टुकड़ा, ईख या गन्ने का छोटा टुकड़ा।

गाड़ापड़ा :: (सं. पु.) चारपाई बिछाने का ढंग।

गाड़ीवान :: (सं. पु.) कोचवान, गाड़ी चलाने वाला।

गाँडू :: (वि.) अप्राकृतिक मैथुन कराने का आदी, कमजोर दिल का निकम्मा, कायर, एक गाली।

गाड़ो :: (वि.) मोटा, घना, गाढा, कठिन।

गाढ़ :: (वि.) घना, अधिक, विकट।

गाढ़ :: (सं. पु.) कठिनता, आपत्ति कष्ट।

गाढ़ा :: (वि.) घना, ठस, मोटा, घनिष्ठ, कठिन।

गाढ़ा :: (सं. पु.) एक प्रकार का मोटा सूती कपड़ा।

गाढ़ी :: कभी-कभी खत्तियों में सैकड़ों मन अनाज सड़ जाता है वह अनाज काम करने वालों को मुफत बाँट दिया जाता है और बाँटने वाले उन व्यक्तियों पर अहसान चढ़ा रखते है। उसे गाढ़ी पीस खाना कहते हैं।

गाढ़े :: (वि.) संकट, विपत्ति, कठिन, समय।

गाढ़ौ :: (सं. पु.) तंग, जमा हुआ।

गातौ :: (सं. पु.) चक्की।

गाथबो :: (क्रि.) अच्छी तरह पकड़ना, पकड़ना, ग्रहण करना, गूँथना।

गाँथबो :: (स. क्रि.) गूँथना, गाँठना, उदाहरण-गाँथो डारबो-एक रस्सी में कई मवेशी बाँधना।

गाँथबौ :: (क्रि.) ग्रथित करना, पशु बिखरें न इसके लिये उन्हें आपस में बाँधना।

गाँथबौ :: (मुहा.) पड़ा बैल कौ गाँथो-बेमेल संग।

गाथा :: (सं. स्त्री.) पद्यात्मक कथा, आप बीती, विशद् विवरण।

गाथा :: (मुहा.) गाथागाबौ।

गाथो :: (सं. पु.) पशुओं को एक रस्सी में बाँधना।

गाद :: (स्त्री. स.) गोंद, नीम, बबूल, कर्रा आदि वृक्षों की मद।

गाद टुरैया :: (सं. पु.) गोंद तोड़ने वाला।

गादर :: (वि.) अधपका (फल)।

गादी :: (सं. स्त्री.) राजगद्दी, व्यापारियों में मालिक के बैठने का आसन, किसी प्रतिष्ठान या व्यापार संचालन का कार्यालय।

गान :: (सं. पु.) ग्रहण (सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण)।

गान :: (मुहा.) गान सौ दबौ-हतप्रभ होना।

गाँन :: (सं. पु.) ग्रहण।

गाना :: (क्रि. स.) ताल स्वर आदि के नियम से राग अलापना, राग छन्दों में वर्णन करना।

गाना :: (सं. पु.) गाने की क्रिया, गीत।

गानें :: (क्रि. वि.) गिरवी, रेंहन, नगद धन के बदले भूमि जेवर आदि को ऋण दाता के अधीन कर देना, मिट्टी के खिलौने के बर्तन आदि के नमूने जिन पर मैंन चढ़ाकर साँचा बनाते हैं।

गानेरू :: (वि.) ऐसी मान्यता है कि ग्रहण काल में यदि गर्भवती स्त्री बाहर निकलती है तो गर्भस्थ शिशु विकलांग हो जाता है इस परिप्रेक्ष्य में यदि कोई बच्चा विकलांग पैदा होता है तो उसे गानेरू कहा जाता है, पशुओं के साथ भी यही मान्यता है।

गानों :: (सं. पु.) गाने की क्रिया, गीत, गहना, आभूषण। गानो धरबो-आभूषण बंधक रहना, गहना गिरवी रखना।

गाँनों :: (सं. पु.) आभूषण, गहने।

गाबदी :: (सं. पु.) मूर्ख।

गाबो :: (क्रि.) गाना, गूदा, फसल काटकर घर लाना गाबौ।

गाबो :: (क्रि.) गाना गाना, अपनी बात को बार-बार कहते रहना। (व्यंग्य)।

गाँबो :: (स. क्रि.) लय के साथ अलापना, बखान करना, मधुर ध्वनि करना।

गाँबो :: (सं. पु.) गीत।

गाबौ (भौ) :: (सं. पु.) केले के तने का बीच का भाग, खजूर के तने के ऊपरी भाग का भीतरी भाग जिसे लोग खा लेते हैं।

गाभी :: (वि.) गहरी, गंभीर।

गाय :: (सं. स्त्री.) गो, धेनु।

गायकी :: (सं. स्त्री.) विक्रय, विक्री, गाह की गाने की क्रिया।

गायत्तरी :: (सं. स्त्री.) एक वैदिक मंत्र जो हिन्दू धर्म में सबसे पावन समझा जाता है, गायत्री मंत्र-हिन्दूओं का एक महामंत्र।

गायरौ :: (सं. पु.) शिकारी जानवरों द्वारा किया हुआ शिकार, शेर आदि को आकर्षित करने के लिये बाँधे जाने वाले बकरा आदि जानवर, मछली पकड़ने की बंसी पर लगाया जाने वाला आटा या केंचुए आदि।

गार :: (सं. स्त्री.) चिनाई करने या खपरा बनाने के लिये गलाई गई मिट्टी तथा उसका स्थान, गलाई।

गारद :: (सं. स्त्री.) गार्ड, सिपाहियों की किसी संख्या में इकाई।

गारन :: (सं. पु.) मैन के ऊपर मुलायम मिट्टी चढ़ाने की क्रिया।

गारबौ :: (क्रि.) किसी ठोस वस्तु को पानी या अन्य तरल के साथ घिसना जेसे चन्दन गारना।

गारा :: (सं. पु.) मिट्टी का गारा।

गारी :: (सं. स्त्री.) गाली, दुर्वचन, कलंकपूर्ण आरोप, विवाह के व्यंग्यपूर्ण गीत, लोकगीतों की एक शैली, उदाहरण-गारी दैबो-दुर्बचन कहना, गारी खाबो-दुर्बचन सुनना।

गारौ :: (सं. पु.) चिनाई के लिये तैयार की गयी मिट्टी।

गारौ :: दे. गिलाव, गिलारौ।

गाल :: (सं. पु.) मुख के दोनों ओर कानों के नीचे का भाग।

गालौ :: (सं. पु.) छत की कड़ियों के बीच की दूरी।

गाँव :: (सं. पु.) ग्राम।

गाँव :: (कहा.) गाँव कौ जोगी जोगिया आनगाँव कौ सिद्ध - आदमी की अपने घर में कद्र नहीं होती, अथवा अपरिचित स्थान में पहुँचने पर गुणहीन व्यक्ति भी विद्वान मान लिया जाता हैं।

गाँवटी :: (वि.) ग्रामीण, गाँवभर के सहयोग से।

गाँस :: (सं. स्त्री.) मन में छुपा हुआ क्रोध, क्रोध-बैर या प्रतिहिंसा का हल्का भाव।

गाँसबौ :: (क्रि.) मजबूती के लिये वस्तु को तारों या रस्सी से कसना, घेर कर विवश करना।

गाँसिया :: (सं. पु.) पलैंचा के ऊपर कसा जाने वाला कपड़ा। (लाक्षणिक अर्थ.)।

गाँसी :: (सं. स्त्री.) तीर या बरछी की नोंक, हथियार की नोंक, गाँठ।

गाहक :: (सं. पु.) ग्राहक, खरीददार।

गाहक :: दे. गाक।

गाहकी :: (क्रि.) बिक्री, खरीददारी।

गिगयाबौ :: (क्रि.) बहुत हीन होकर याचना या विनय करना।

गिंगलबौ :: (क्रि.) गलना, अधिक समय तक गीली रहने के कारण किसी वस्तु का विच्छेदित होना।

गिचड़याव :: (सं. पु.) द्विपक्षी या बहुपक्षी गिचर, बहस।

गिचपिच :: (सं. स्त्री.) अव्यवस्था एवं तज्जनित गन्दगी के कारण असुविधा।

गिचर :: (सं. स्त्री.) बहस, मोलभाव, छोटे कारण के लिये बड़ी बहस, बच्चों के जिज्ञासावश प्रश्न पर प्रश्न।

गिचर :: (सं. पु.) गिचड़याव (गचड़)।

गिचरबो :: (स. क्रि.) निरर्थक बहस करना।

गिच्चपिच्च :: (क्रि. वि.) दे. गिचपिच।

गिंजगिंजो :: (सं. पु.) गीली वस्तु।

गिजगिजौ :: (वि.) ऐसी गुलायम वस्तु जो दबाने पर दबी रह जाये जैसे गिजगिजी रोटी, कच्ची सिकने के कारण ऐसी रहती है।

गिंजबो :: (स. क्रि.) सिकुड़ना।

गिंजाई :: (सं. स्त्री.) इल्ली जैसा एक बरसाती कीड़ा जिसके प्रायः पैर लगे रहते है, इसको छूने पर यह अपनी लम्बाई का चक्र समेट लेता है। इसके सैकड़ों की संख्या में पैर होते हैं।

गिटपिट :: (क्रि. वि.) दुर्बोध, भाषा बोलने का।

गिट्टक :: (सं. स्त्री.) लकड़ी या सुड़ौल चौकोर टुकड़ा।

गिट्टा :: (सं. पु.) पत्थर का चौकोर प्रायः घनाकार टुकड़ा, जो मकान की कुर्सी बनाने के काम आता है।

गिड़गिड़ाट :: (सं. स्त्री.) गिड़गिड़ाने की क्रिया या भाव।

गिड़गिड़ाबो :: (अ. क्रि.) विनीत, प्रार्थना करना, मिन्नत करना, गिड़गिड़ाना।

गिड़वारी :: (सं. स्त्री.) लकड़ियों की बागड़, लकड़ियों की बागड़ लगाकर घेरा गया क्षेत्र।

गिण्ठा :: (वि.) ओछे कद का। (गिट्ठा) स्त्रीलिंग गिण्ठू या गिट्ठू-छोटे कद का।

गिण्डवार :: (सं. पु.) पशुओं के गले में होने वाला एक रोग।

गिण्डा :: (सं. पु.) पेड़ के तने या मोटी डाल का टुकड़ा।

गिण्डोल :: (सं. स्त्री.) ईख या ज्वार-मक्का आदि की हो गाँठों के बीच का टुकड़ा ईख का टुकड़ा।

गित्ता :: (सं. पु.) कागज का गोल टुकड़ा, इसे बच्चे खपड़िया पर रखकर ऊपर फेंक कर उड़ाने का खेल खेलते हैं।

गिंदउआ :: (सं. पु.) तौलिया या किसी कपड़े के लम्बे टुकड़े को भाँज कर बनाई गई एक प्रकार की मुँगरी, बच्चे कोंड़ा खेलते समय इसका उपयोग करते हैं, आक के फल जिनमें रूई जैसी भरी रहती है।

गिदन्नों-गदन्ना :: (सं. पु.) लड़का, लड़की, हमीरपुर।

गिदवारौ :: (सं. पु.) मृतक पशु के माँस पर गिद्दों का एकत्रित हुआ झुण्ड, किसी थोड़ी वस्तु पर छीना-झपटी करने वाली भीड़।

गिदवासिन :: (सं. स्त्री.) माता।

गिंदौरा :: (सं. पु.) बड़ी गेंद।

गिद्द :: (सं. पु.) एक पक्षी।

गिद्दी :: (सं. स्त्री.) दे. गिट्टीक, पत्थर के छोटे बैड़ौल किन्तु लगभग समान आयतन के टुकड़े।

गिनगिनाबो :: (क्रि.) अस्फुट शब्दों में बोलना।

गिनती :: (सं. स्त्री.) गिनने की एक क्रिया या भाव, गणना संख्या, एक से १०० तक की अंक माला।

गिनबाबो-गिनाबो :: (स. क्रि.) गिनने का काम कराना, गिनवाना, गणना कराना।

गिनबो :: (क्रि.) गणना करना, परिगणित करना।

गिन्ती :: (सं. स्त्री.) अंको का क्रम, गिनने की क्रिया।

गिन्नी :: (सं. स्त्री.) एक ब्रिटिश सिक्का जो सोने का होता है। भारत में अंग्रेजी राज्य के समय स्वर्ण बाजार में निश्चित मात्रा में मिलावट वाले सोने के रूप में इसकी मान्यता थी।

गियाँन :: (सं. पु.) ज्ञान, जानकारी।

गिर :: (सं. पु.) सन्यासियों का एक उपनाम या उपवर्ग, पर्वत।

गिरइया :: (सं. पु.) बड़ा पहाड़ा।

गिरइया :: (प्र.) गेरम गेर इकइसा सौ गेर बार बत्तीसा सौ आदि।

गिरँइँयाँ :: (सं. स्त्री.) बछड़ों आदि को बाँधने का छोटा गिरमा।

गिरगिटो :: (सं. पु.) गिरगिट, गिरगिटान।

गिरजा :: (सं. स्त्री.) हिमालय की पुत्री, पार्वती, भगवानशंकर की अर्द्धागिनी, एक नाम।

गिरजाघर :: (सं. पु.) ईसाईयों का उपासना गृह।

गिरंट :: (सं. पु.) रक्षित वन।

गिरण्ट :: (सं. पु.) रक्षित वन।

गिरदा :: (सं. पु.) (फा..गिर्द) मनुष्य के बढ़े हे बाल।

गिरदावर :: (सं. पु.) गर्दावर, कानूनगो-माल विभाग का एक अधिकारी।

गिरदेनों-गिरधनो :: (सं. पु.) गिरगिट, गिरगिटा, गिरगिटान।

गिरदौला :: (सं. पु.) गिरगिट।

गिरधन :: (वि.) गिरिधन पर्वत को धारण करने वाला (कृष्ण)। पहाड़ो का खजाना जैसे-जड़ीबूटी आदि।

गिरन :: (सं. पु.) ग्रहण (सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण)।

गिरन :: दे. गान, गहन।

गिरफदार :: गफ्तार।

गिरफदार :: (वि.) बन्धन में होना, पुलिस द्वारा पकड़ा जाना।

गिरबाबो :: (स. क्रि.) गिराने का काम दूसरे से करना, पतन करवाना, घटाना।

गिरबौ :: (क्रि.) ऊपर से नीचे आना, पतन।

गिरबौ :: (मुहा.) पेट गिरबो-गर्भपात, कम होना (लक्षणार्थ)।

गिरमा :: (सं. पु.) पशुओं को गले और खूँट से बाँधने की दुहरी रस्सी।

गिरमिट :: (सं. पु.) बढ़ईगिरी को गोल छेद करने का एक औजार।

गिरमिट :: दे. गिलमिट।

गिरस्त :: (वि.) जो गृहस्थी वाला हो।

गिरस्ती :: (सं. स्त्री.) गृहस्थी, घर-परिवार का आवश्यक सामान।

गिरह :: (सं. स्त्री.) घर, गृह, गाँठ (सामान्यतः इसका अर्थ गांठ समझा जाता है किन्तु प्रयोग से स्पष्ट है कि यह शब्द ग्रह से विकसित है और इसका अर्थ घर है)।

गिरह :: (प्र.) बे काय नई करत जौ काम, ई में उनके गिरह कौ का जात।

गिरा :: (सं. पु.) एक गज का सोलहवाँ भाग, सवा दो इंच का माप, ग्रह। (गिरा दशा में प्रयोग)।

गिराई :: (सं. स्त्री.) सैनिक, छावनी।

गिराण्डील :: (वि.) लम्बे-चौड़े डील-डौल वाला।

गिरानी :: (सं. स्त्री.) अभाव, अकाल।

गिराय :: (सं. पु.) (सं. ग्राह) ग्राह, मगर, मकर।

गिरास :: (सं. पु.) (ग्रास) कौर, कबल, ग्रहण।

गिरासबो :: (क्रि.) ग्रासना, ग्रहण लगना।

गिरी :: (सं. पु.) दे. गिर।

गिरीबाजू :: (वि.) हीन अवस्था, निर्धनता।

गिरूआ :: (सं. पु.) गेहूँ की फसल का एक रोग इसमें पौधे पर गेरू जैसा चूर्ण पैदा हो जाता है और फसल नष्ट हो जाती है।

गिरैया :: (वि.) (गिरबो) गिराने वाला, ठटाने वाला।

गिरैयाँ :: (सं. स्त्री.) रस्सी, जानवर बाँधने की एक रस्सी।

गिरोय :: ((ह.) सं. पु.) बदमाशों या डाकुओं का समूह, गिरोह।

गिर्दा :: (सं. पु.) बालों की विशेष प्रकार की काट, इसमें माथे के दोनों छोरों पर बालों को उस्तरे से कोणाकार साफकर दिया जाता है।

गिर्दां :: (वि.) किसी वस्तु के सब तरफा।

गिर्रा :: (सं. पु.) पतंग की डोर लपेटने के लिये पतली लकड़ी पर बनी कागज या लकड़ी की चौड़ी घिर्री, हुचका, कुएँ से पानी खींचने की घिर्री, (गिर्री)।

गिर्रिया :: (सं. स्त्री.) छोटी घिर्री।

गिर्रूआ :: (सं. पु.) दे. गिरूआ।

गिलकी :: (सं. स्त्री.) फतकुली, एक शाक।

गिलकुआ :: (सं. पु.) छोटी सी टोकरी।

गिलगिच :: एक झाड़ी।

गिलगिल फंदा :: (सं. पु.) परेशानी का चक्कर।

गिलगिलाबौ :: (क्रि.) पके फल को उँगलियों से दबा-दबा कर मुलायम करना।

गिलगिलो :: (वि.) मुलायम, उँगलियों से सरलता से दबने योग्य।

गिलट :: (सं. पु.) मिश्रित धातु जो नयी होने पर चाँदी जैसी दिखती है। एल्युमीनियम।

गिलटी :: (सं. स्त्री.) शरीर के अन्दर पड़ने वाली छोटी गांठ।

गिलप्फा :: (सं. पु.) गहरे तक मचा हुआ कीचड़।

गिलबिचयाँ :: (सं. स्त्री.) ढेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ।

गिलबिचयाबो :: (वि.) उलझन में पड़ना।

गिलबो :: (क्रि.) निगलना।

गिलमागोंची :: (सं. स्त्री.) ऐसी अव्यवस्था जिसमें किसी वस्तु या व्यक्ति की मर्यादा न रहे, एक ही संकीर्ण स्थान पर अनेक असंगत कार्य एक साथ होने की स्थिति, असुविधा पैदा करने वाली गन्दगी युक्त संकीर्णता, पास-पास लिखे अस्पष्ट अक्षरों की लिखावट, बेमेल वस्तुओं का मेल।

गिलयाबौ :: (क्रि.) गीला करना, विशेषकर सने हुए आटे को आवश्यकतानुसार पानी द्वारा मुलायम करना।

गिलरया :: (वि.) सफेद और काली धारियों के डिजायन वाला, गिलहरी के रंग जैसा।

गिलरिया :: (सं. स्त्री.) गिलहरी।

गिलसा :: (सं. पु.) ग्लास, पानी पीने का पात्र।

गिलसी :: (सं. स्त्री.) गले का एक रोग।

गिलहरया :: (सं. स्त्री.) गिलहरी, गिलारी (बु.)।

गिलाना-गिलानी :: (सं. स्त्री.) ग्लानि, घृणा।

गिलारी :: (सं. स्त्री.) गिलहरी, गिलहरया (बुँ.)।

गिलारौ :: गिलाव।

गिलारौ :: (सं. पु.) कीचड़, गीली मिट्टी, उदाहरण-काय की ईट काय का गिलारो, (बुँ.ग्रा.गी.) ईंटों की चिनाई के लिए तैयार की गयी मिट्टी, कीचड़।

गिलास :: (सं. पु.) पानी पीने का पेंदी से अधिक चौड़े मुँह का लम्बा सीधा बर्तन।

गिली :: (सं. स्त्री.) गुल्ली, माँसपेशी।

गिली डंडा :: (सं. पु.) (गिल्ली) एक खेल।

गिलैरी :: (सं. स्त्री.) गिलहरी, गिलारी (बुँ.)।

गिलोय :: (सं. स्त्री.) एक बेल दवा के काम आती है।

गिल्ली :: (सं. स्त्री.) दे. गिली।

गींजबौ :: (क्रि.) पैरों से रौंदना।

गीत :: (सं. पु.) वह जो गाया जाय, गाना।

गीता :: (सं. स्त्री.) उपदेशात्मक ज्ञान, श्रीमद्भगवद्-गीता, जीवन दर्शन और कर्मयोग की व्याख्या करने वाला महान् ग्रन्थ।

गीद :: (सं. पु.) गिद्ध।

गीलौ :: (वि.) भीगा हुआ, आवश्यकता से अधिक जलयुक्त।

गुअरी :: (सं. स्त्री.) गुहेरी, आँख की कोर पर होने वाली फुंसिया।

गुआँद :: (सं. स्त्री.) मैला जैसी दुर्गन्ध।

गुआमइ :: (सं. स्त्री.) ऐसी गन्दगी जहाँ स्थान-स्थान पर मैला पड़ा हो।

गुआँरी :: (सं. स्त्री.) असिंचित खेत।

गुइयरौ :: (वि.) मीठा।

गुइयाँ :: (सं. स्त्री.) सखी, सहेली।

गुँइयाँ :: (सं. स्त्री.) सखी, सहेली, मित्र, खेलों में दल के साझीदार, उदाहरण-कहि स्याम चलौ गुंइया पचकुँइया पानी।

गुँग :: (सं. स्त्री.) सघन धुएँ की गूढ़।

गुगली :: (वि.) पीली ज्वार।

गुँगाबो :: (क्रि.) बन्द जगह में धुँआ भरना, दुर्गन्ध भरना।

गुचका :: (सं. स्त्री.) कमर का धक्का।

गुंचू :: (सं. स्त्री.) धुँगची, गुँजाफल, रत्ती।

गुचेंद :: (सं. स्त्री.) अड़चन।

गुच्च :: (सं. स्त्री.) गुल्ली खेलने में उछालने के लिये छोटा सा लम्बा गड्ढा, नुकीली चीज से शरीर में चुभन।

गुच्चबौ :: (क्रि.) चुभाना।

गुच्चा :: (सं. पु.) किसी समतल सतह पर नोंकदार वस्तु साथ संलग्न रूप। गुच्चू-छोटा गड्ढा।

गुच्छा :: (सं. पु.) फलों, फूलों, चाबियों आदि का एक साथ संलग्न रूप।

गुंज :: (सं. स्त्री.) छूटा से मिलता-जुलता एक झूलने वाला गले का आभूषण। गुंज लगाबो-घास की पूलियाँ बाँदने की क्रिया।

गुँजगुँजाबो :: (अ. क्रि. (अनु.)) भौंरे का गुनगुनाना, भ्रमर, मक्खी आदि की सम्मिलित ध्वनि।

गुँजबो :: (स. क्रि.) भिड़ना।

गुजर :: (सं. पु.) निर्वाह, काम चलना।

गुजराँयती :: (सं. स्त्री.) लम्बा घर जिसमें विभाग करके कई कमरे निकाले जा सकें।

गुजरिया :: (सं. स्त्री.) गूजरी, ग्वालिन।

गुजरैटा :: (सं. पु.) कमर में खोंसा हुआ धोती का छोर।

गुँजा :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

गुँजारबो :: (क्रि.) आँखें गुंजारबो।

गुजारौ :: (सं. पु.) जीवन-यापन के लिये मिलने वाला धन, नर्वाह।

गुजिया :: (सं. स्त्री.) मैदा की बनी मिठाई जिसमें खोआ या भुना हुआ आटा, शक्कर और मेवे भरे जाते हैं।

गुँजी :: (सं. स्त्री.) घास के पूले की गाँठ, बर्तन माँजने के लिए काँस या नारियल के मुड़े हुए टुकड़े, जिससे बर्तन रगड़े जाते है।

गुजें :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों का एक गहना।

गुँजे :: (सं. पु.) स्त्रियों का एक गहना।

गुँजेली :: (सं. पु.) पुठियों को जोड़ने वाली लकड़ी की कीले जो पुठियों के बीच में पड़ी रहती है।

गुज्जा :: (सं. पु.) लकड़ी या बाँस की कीलें जो फर्नीचर को चूलें मजबूत करने के लिये लगायी जाती है।

गुटइया :: (सं. स्त्री.) छोटा ढेला।

गुटई :: (सं. स्त्री.) छोटे भाई की पत्नि।

गुटईं :: (सं. वि.) छोटे कद का, की।

गुटउआ :: (सं. पु.) बाँस की छोटी टोकरी जिसका प्रयोग प्रायः वस्तुएँ रखने के लिए किया जाता है, बुन्देलखण्ड के क्षत्रियों में पुराने जमाने में प्रचलित एक रिवाज, जिसमें बरातियों के किसी अशालीन व्यवहार से नाराज होकर या बारात के धनी की औकात परखने के लिये कन्या पक्ष की ओर से बारात को भोजन-पानी सब बन्द कर दिया जाता था, गाँव में उन्हें कुछ नहीं मिलता था। वर पक्ष यदि सामर्थ्यवान् होता था तो वह व्यवस्था करता था, अन्यथा बारात भूखों मरती थी, चपेटा, उदाहरण-गोरी चढ़ जा पहार, लैकें गुटउआ मउआ बीनबे (लोक गीत)।

गुटकबो :: (क्रि.) निगलना, गले के नीचे उतारना।

गुटका :: (सं. पु.) छोटे आकार की पुस्तक, लघु संस्करण, मुखशोधन हेतु लौंग, इलायची, सुपाड़ी, तम्बाकू आदि का मिश्रण, फेफड़ों में पानी चले जाने की क्रिया।

गुटगुटा :: (सं. पु.) कड़ा खुरमा, खुरमा।

गुटनियाँ :: (सं. स्त्री.) बहुत छोटी सी टोकरी, एक सिरे पर छोटी सी टेढ़वाली लकड़ी।

गुटपुट :: (क्रि. वि.) छिपकर सलाह करना।

गुटान :: (सं. स्त्री.) एक सिरे पर टेढ़ वाली लकड़ी जिसे प्रायः बुड्ढे लोग सहारे के लिये लेते हैं, छड़ी।

गुटिया :: (सं. स्त्री.) गोली, गुटिका, शरीर में पैदा हो जाने वाली गाँठ, इससे प्रायः दर्द नहीं होता।

गुटुआ :: (सं. पु.) एक प्रकार की छोटी टोकनी जिसका उपयोग प्रायः बेर बीनकर रखने के लिये किया जाता हैं, उदाहरण-बेर बेर जरिया लौ जाबै, गुटुअन बेर लियाबे (द्वारिकेश बुन्देलन)।

गुटौआ :: दे. गुटउआ।

गुट्टा :: (सं. स्त्री.) समस्या, कठिनाई, अवरोध, दुर्निवार समस्या, दल, गिरोह।

गुट्टी :: नवयुवती जिसके बच्चा न हा हो।

गुठनीं :: गोंठने का पात्र, गुझियों की गुठनीं।

गुठलयाबौ :: (क्रि.) हलुआ, लपसी आदि में गाँठे या गुठली सी बन जाना, मुँह बिचका कर अपने आप बकझक करना।

गुठला :: (सं. पु.) हलुआ, लपसी आदि में ठीक से चलाये न जाने के कारण पड़ने वाली गाँठे।

गुड़ :: (सं. पु.) ईख के रस को पकाकर बनाई हुई भेली, गुर (बुँ.)।

गुंड :: (सं. पु.) धातु का बड़ा घड़ा।

गुड़-गुड़ :: (सं. पु.) बंद जल में नली आदि द्वारा वायु प्रवेश होने का शब्द।

गुड़-गुराट :: (सं. स्त्री.) गुड़-गुड़ होने का भाव।

गुड़इया :: (सं. स्त्री.) गोल बाँध कर बैठने की स्थिति।

गुड़ई :: (सं. स्त्री.) भागने वाले जानवरों के पैरों तथा सींगों से बँधी हुई रस्सी।

गुड़कतान :: (सं. स्त्री.) दूसरे की बात की चिन्ता किये बिना अपनी ही बात कहने की क्रिया, साजिश पूर्वक अपनी गुप्त योजना बनाना।

गुड़गुड़ाबो :: (अ. क्रि.) गुड़-गुड़ शब्द का होना या करना।

गुड़गुड़ाबो :: (स. क्रि.) गुड़-गुड़ शब्द का उत्पन्न करना, हुक्का पीना।

गुड़गुड़िया :: (सं. पु.) बजने वाला मिट्टी का खिलौना जिस पर कागज मढ़ा रहता है, छोटे नारियल का बना हुक्का।

गुड़धानी :: (सं. पु.) भूँजे गये आटे में मिला हुआ गुड़।

गुड़मड़माबौ :: (क्रि.) अव्यवस्थित ढंग से मोड़ना।

गुड़याबौ :: (क्रि.) सिकुड़ना, सिकोड़ना, घड़ी करना, मोड़ना।

गुड़योटा :: (सं. पु.) पैरों से चलने का रहँट।

गुड़ला :: (सं. पु.) नमक डला हुआ नये चावलों का गीला भात।

गुड़ा :: (वि.) पायों वाला, गुड़ा चूलौ-पायेदार चूल्हा जो उठाकर किसी भी जगह रखा जा सके।

गुँडाई :: (सं. स्त्री.) अकारण लोगों से लड़ने, झगड़ने या मारपीट करने का काम, बदमाशी।

गुड़ाखू :: (सं. स्त्री.) गुड़ मिली खुशबूदार, धूम्रपान की तम्बाकू, दांतों एवं मसूड़ों पर घिसने की तम्बाकू की लुग्दी।

गुड़ान :: (सं. स्त्री.) अ की मात्रा, कहीं-कहीं उ की मात्रा जैसे क गुड़ान कू।

गुड़ी :: (सं. स्त्री.) सलवट, ज्वार के भुट्टे के वे छोटे-छोटे फूल जिस भाग पर दाने लगे रहते हैं।

गुड़ी-मुड़ी :: (वि.) टेढ़ा-मेढ़ा, सलवटों भरा।

गुड़ों :: वह कपास जो चकमक के साथ प्रयुक्त होता है।

गुड्डा :: (सं. पु.) कपड़ा का पुरूष आकृति का पुतरा।

गुड्डी :: (सं. स्त्री.) पतंग, कन कइया, पुतली, पुतरिया।

गुणा :: (सं. पु.) जोड़ की संक्षिप्त गणितीय प्रक्रिया।

गुण्ठ :: (पु. सं.) कौड़ियों के खेल में चोट लगाने वाली बड़ी कौड़ी।

गुण्ड :: (सं. स्त्री.) पानी भरने का पीतल आदि का चौड़े मुँह का पात्र।

गुण्डा :: (सं. पु. वि.) चिकना-चुपड़ा, शौकीन मिजाज, निठल्ला, वर्तमान अर्थ मारधाड़ करने वाला, धौंस-धमकी की दम पर जीवन-यापन करने वाला।

गुण्ड़ा :: (वि.) कुमार्गी, बदमाश, छैला।

गुत :: (सं. स्त्री.) गुदा।

गुँत :: (सं. पु.) गणित, विचार, उदाहरण-बिगरी सबरे गुंत राम रूठे फि र कीसों काते संक।

गुतकडू :: (वि.) एक चिड़िया का विशेषण जो रंग में काली होती है और उसका पैंदा लाल होता है।

गुत्थमगुत्था :: (सं. स्त्री.) भिड़न्त एक दूसरे से लिपटकर की जाने वाली लड़ाई।

गुथंदन :: (सं. स्त्री.) व्यर्थ का काम।

गुथना :: (सं. पु.) गोफ न, गुफना जिसमें मिट्टी का ढेला रख कर घुमाकर ज्वार, मक्का आदि फसलों पर चिड़िया उड़ाने के लिए फेंका जाता है।

गुथबौ :: (क्रि.) भिड़ना, एक दूसरे से लिपट कर लड़ना।

गुथयाबो :: (क्रि.) गुथी बनाबो।

गुथवाँ :: (वि.) गूँथकर बनाया गया, गूँथा हुआ।

गुथी :: (सं. स्त्री.) धागे की लच्छी।

गुद :: (सं. स्त्री.) गुदा, गुप्तांग।

गुदना :: (सं. पु.) सुई एवं किसी रसायन की सहायता से शरीर पर लेख अथवा कुछ आकृतियों का स्थायी रूपांकन।

गुदनारी :: (सं. स्त्री.) गोदना, गोदने वाली स्त्री।

गुदनौरा :: (सं. पु.) कार्तिक में गोबर धन की पूजा के बाद उस गोबर के कंडे बना लिये जाते है जिन्हें गुदनौटा कहते हैं।

गुदन्ती :: (वि.) बकवाद।

गुदयाबो :: (स. क्रि.) हलकी निराई करना, निराई करना।

गुँदर-गुँदरा :: (वि.) मिट्टी के गोंदो से बने कच्चे (घर)।

गुदरी :: (सं. स्त्री.) फटे पुराने वस्त्र का बना बिछौना।

गुँदरी :: (सं. स्त्री.) एक चौकोर जालीदार साधन जो फसल तथा भूसा आदि ढ़ोने के काम आता है, प्याज।

गुदलबौ :: (क्रि.) नोंकदार वस्तु से आघात करके क्षत-विक्षत करना।

गुदलबौ :: दे. खुतलबौ।

गुदली :: (सं. स्त्री.) बकवास, बच्चों का जिज्ञासावश बहुत बोलना।

गुदवाबौ :: (क्रि.) गुदना, गुदपवाना, अनावश्यक खर्च में फँसाना।

गुदाबो :: (क्रि.) गोदने की क्रिया करना, अंकित कराना।

गुदाम :: (सं. पु.) बटन, गोदाम (बु.)।

गुदारबौ :: (क्रि.) गुदेरबौ-आड़ी-टेढी रेखाएँ खींचकर कागज खराब करना।

गुदारौ :: (वि.) जिसमें गूदा अधिक हो, गूदेवाला मोटे दल का फल।

गुँदिया :: (सं. पु.) सनी हुई मिट्टी या आटे की लोई।

गुन :: (सं. पु.) गुण, लक्षण, तासीर, विद्या।

गुन :: (कहा.) गुन न हिरानो, गुन गाहक हिरानो है - संसार में गुण वालों की कमी नहीं, कमी है गुण ग्राहकों की।

गुनगुच :: (सं. पु.) एक प्रकार की मछली।

गुनछरौ :: (सं. पु.) गुनछेव-लगातार तेज बारिश के बीच वह समय जब पानी बरसना कुछ हल्का हो जाता है और प्रकाश बढ़ जाता है।

गुनताड़ों :: (वि.) हिसाब, तजबीज, उधेड़बुन, उपाय।

गुनबौ :: (क्रि.) विचार करना, मनन करना, प्राप्त ज्ञान को आत्मसात् करना, कुआँ खोंदने के लिये उपर्युक्त स्थान बताना।

गुनमार-गुनमेंटू :: (सं. स्त्री.) एक वनस्पति जिसमें चबाने के बाद बहुत देर तक मीठी वस्तु का स्वाद नहीं आता है यह शक्कर की बीमारी की दवा होती है।

गुनरिया :: (सं. स्त्री.) मोटे डण्ठल की घास इसके फूल भी बड़े होते हैं अधिक पक जाने पर पशु इसे खाना पसन्द नहीं करते हैं।

गुना :: (सं. पु.) चपटी चूड़ियों के आकार का बेसन का एक पकवान, गुणा (गणित की एक प्रक्रिया)।

गुनाबीदी :: (सं. स्त्री.) सोच विचार।

गुनाय :: (सं. पु.) पाप, दोष, अपराध, गुनाह।

गुनिया :: (सं. पु.) दैवी समस्याओं पर किसी दैवी शक्ति की सहायता से विचार करने वाला।

गुनी :: (वि.) गुणी, गुणवान, विशिष्ट विद्याओं से युक्त।

गुनी :: (सं. स्त्री.) खस्ता पुआ।

गुनेर :: घास।

गुनैल :: (सं. पु.) एक घास छप्पर छाने के काम आती है।

गुनों :: (वि.) गुणित, दुगनों, तिगुनों आदि।

गुपकबो :: (स. क्रि.) लपकना, हाथ में लेना ग्रहण करना।

गुपकलो :: (सं. क्रि.) लेना, पकड़ना, किसी वस्तु को फेंककर देना।

गुपचुप :: (सं. स्त्री.) चाट के बताशे, फुलकी, छिपकर।

गुपत :: (वि.) छिपा हुआ, गूढ़, रक्षित।

गुपती :: (सं. पु.) एक प्रकार की तलवार।

गुपबौ :: (क्रि.) नुकीली वस्तु का कोमल वस्तु में चुभना, गुपबौ-चुभाना।

गुप्त :: (सं. पु.) वैश्यों का वैदिक उपनाम।

गुप्त :: (वि.) छुपा हुआ।

गुप्तउअल :: (वि.) छुपे हुए ढंग से।

गुप्तउअल :: (क्रि. वि.) रूप में भी प्रयुक्त।

गुप्ती :: (सं. स्त्री.) एक हथियार, गुप्त रूप से घड़ी के अन्दर किरच या पतली तलवार।

गुफा :: (सं. स्त्री.) गुहा, पहाड़ी, खोह, शैलाश्रय।

गुफेंद :: (सं. स्त्री.) झंझट, समस्या, दुर्निवार समस्या।

गुबबो :: गुँथना।

गुबयाबो :: पहले से किसी बात का विचार।

गुबरछट :: (सं. स्त्री.) लिपी हुई जमीन पर से उधेड़ने वाली गोबर की पपटियाँ।

गुबरठिलू :: (सं. पु.) मवेशियों की एक बीमारी।

गुबरनी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी और गोबर से पोतना।

गुबरबो :: (सं. स्त्री.) लीपना।

गुबरा :: (सं. पु.) गोबर।

गुबराँद :: (वि.) गुबराँयदो-गोबर की गंध।

गुबरारी :: (सं. स्त्री.) गोबर उठाने वाली।

गुबरारी :: (पु.) गुबरारौ।

गुबरीला :: (सं. पु.) भ्रमर से मिलता-जुलता एक कीड़ा जो गोबर में रहना पसन्द करता है, गुबरैल।

गुबरैला :: (सं. पु.) गोबर का कीड़ा, गोबर में पड़ने वाला कीड़ा, गुबरीला।

गुबार :: (सं. स्त्री.) खाद्य के लिये खन्ती में या समतल भूमि पर इकट्ठा किया हुआ गोबर का ढेर।

गुमची :: (सं. स्त्री.) गुंजाफ, धुँगची।

गुमटी :: (स्त्री.) श्वेत रंग का एक वस्त्र जिस पर कुछ दाने उभरे रहते हैं।

गुमरिया :: (सं. स्त्री.) सूजन या फुन्सी उठाने के आसार के रूप में शरीर पर गाँठ जैसा उभार।

गुम्म-सुम्म :: (वि.) गूँगे के समान चुप।

गुम्मट :: (सं. स्त्री.) गुम्बज, भवन के उपर की गोलाकर रचना।

गुम्मा :: (सं. पु.) ईंटें।

गुर :: (सं. पु.) गुड़, सूत्र।

गुर :: (कहा.) गुर खाने और पाग राखने - अच्छा खा-पीकर भी अपनी इज्जत रखनी है।

गुर :: (कहा.) गुर खायें पुअन कौ नेम करें - दिखावटी परहेज करना।

गुर :: (कहा.) गुर डिंगरियन घी उँगरियन - गुड़ तो एक-एक डली करके ग्राहकों द्वारा उठाये जाने से नष्ट होता है और घी उँगलियों में लेने से।

गुर :: (कहा.) गुर भरौ हँसिया - ऐसी वस्तु जिसे न छोड़ते ही बने और न ही ग्रहण करते ही।

गुरइया :: (सं. पु.) एक ग्राम देवता, ग्राम या किले की शत्रुओं से रक्षा करने वाला देवता।

गुरखुरू :: (सं. स्त्री.) गोखरू, कुटज के पालदार कँटीले फल, मस्त हाथी को किसी दिशा विशेष में जाने से रोकने वाला लोहे की जंजीरों से बना जाल जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर लोहे के गोखरू फल जैसे लगे रहते हैं जिनके पैरों में चुभने के कारण हाथी उस तरफ नहीं जाता है।

गुरगोंउआँ :: (सं. पु.) गेंहू की फसल के साथ होने वाला एक नींदा जो पशुचारे के रूप में काम आता है।

गुरचटौ :: (वि.) खट्टा, मीठा मिश्रित स्वाद।

गुरज :: (सं. पु.) (फा.गुर्ज), गुम्बज।

गुरदन :: (सं. स्त्री.) गुरू पत्नि (गुरू धन) दन।

गुरदनबा :: (सं. स्त्री.) गुरू पत्नि होने के कारण माता सम्बोधन।

गुरन :: (सं. स्त्री.) एक स्त्री नाम, बुन्देली के प्रसिद्ध कवि ईसुरी की छोटी पुत्री जिसके यहाँ ईसुरी का निधन हुआ।

गुरबीलो :: (सं. पु.) गोबर का एक कीड़ा गुबरैल।

गुरबेल :: (सं. स्त्री.) गुरूची, एक कड़वे रस वाली बेल जो बुखार आदि अनेक रोगों की दवा के काम आती है।

गुरमाला :: (सं. पु.) लगभग एक फुट लम्बा चार इंच चौड़ा स्पात की चद्दर से बना औजार इसके ऊपर एक मुठिया लगी रहती है इसको सीमेंट के पलस्तर पर जोर जोर से रगड़कर मजबूत और चिकना किया जाता है।

गुरमें :: (सं. स्त्री.) दे गुरबेल।

गुरमेंटबौ :: (क्रि.) टेढा-मेढ़ा करके सिकोड़ना।

गुरम्बा :: (सं. पु.) गुड़ का सरबत, अधिक गुड़ डली पतली जो पूड़ियों के साथ शाक के तौर पर खायी जा सके। गुड़ मिलाकर बनाई हुई धूम्रपान की स्वादिष्ट तम्बाकू।

गुरयाई :: (सं. स्त्री.) मिठाई।

गुरयाट :: (सं. पु.) मिठास।

गुरयाबो :: (क्रि.) मिठास आना, स्वादिष्ट लगना।

गुरवा :: (वि.) गरीब, गरीब-गुरवा शब्द युग्म में प्रयुक्त, स्वतंत्र प्रयोग नहीं पाया जाता है।

गुरवा :: (सं. पु.) भेदिया, भेद लेने के लिये नियुक्त व्यक्ति, मरे हुए पशु का माँस खाने वाले एक प्रकार के गीध जिनकी गर्दन लम्बी टेढ़ी होती है।

गुरवा :: (मुहा.) गुरगन की अथाई, अवसर हाथ आते ही आपस में किसी को हानि पहुँचाने वालों का समूह।

गुरवानों :: (सं. पु.) सिंचित गेहूँ की फसल में बोने के बाद पहली सिंचाई जो बोने लगभग बीस दिन बाद होती है।

गुरा :: (सं. पु.) शरीर के जोड़ों, हथेली पंजों आदि की छोटी छोटी हड्डियाँ प्रत्यंग, अवयव पुर्जा, गुलेल में रखकर फेंका जाने वाला कंकड़, गुल्ला।

गुराई :: (सं. स्त्री.) गोरापन।

गुराखू :: दे. गुड़ाखू।

गुरायं :: (सं. पु.) रोज, नीलगाय।

गुरार :: (सं. स्त्री.) एक पेड़ जिसमें शीशम के समान मोटा सार होता है।

गुरिया :: (सं. पु.) माला का दाना, मनका, रीढ़ की हड्डी के कसेरू के अंग-प्रत्यंग।

गुरीरौ :: (वि.) गुड़ का मीठा, मीठा, उत्तम।

गुरू :: (सं. पु.) भेदिया।

गुरू :: दे. गुरगा, शिक्षक, उस्ताद।

गुरेंटबो :: (क्रि.) रस्सी की पकड़ को मजबूत करने के लिये लपेटा लगाना, गुर्रेटा।

गुरेंटबो :: (सं. पु.) दे. गुर्रा।

गुरौरया :: (वि.) हठी।

गुर्ज :: (सं. स्त्री.) किलों के बुर्ज पहलवानों की स्पर्धा में रखी जाने वाली बैजयन्ती (ट्राफ़ी) जो गदा के रूप में होती है।

गुर्जा :: (सं. पु.) किलों के बुर्ज, कटी फसल के नीचे से ऊपर तक एक ही व्यास के जमा कर रखे गये गोल ढ़ेर।

गुर्दा :: (सं. पु.) हिम्मत, शरीर का रक्त छानने वाला अंग। लकड़ी की गेंद जो कोंड़ियों से सजी रहती है बच्चों के पालने में खेलने के लिये लटकाई जाती है।

गुर्र :: (सं. स्त्री.) प्रतिशोध का भाव, बदले की भावना।

गुर्रा :: (सं. पु.) मजबूत पकड़ के लिये रस्सी की लपेट।

गुर्राख :: (सं. स्त्री.) हल की रस्सी जो हरीस को बाँधे रखती है, बुर्राक।

गुल :: (सं. पु.) काले धब्बे, चिलम की जली हुई तम्बाकू।

गुलअइयाँ :: (वि.) गुलगुला जैसा एक पकवान।

गुलकन्द :: (सं. पु.) गुलाब के फूलों का मुरब्बा।

गुलकबौ :: (क्रि.) आँख में उँगली आदि का आघात होना, किसी मोंथरी नोंक से आघात करना।

गुलका :: (सं. पु.) मोंथरी वस्तु की नोंक का आघात।

गुलखैरा :: (सं. पु.) एक फूल।

गुलगुच :: (सं. पु.) महुआ का पका हुआ।

गुलगुच :: (कहा.) मउआ मेवा, बेर कलेबा, गुलगुच बड़ी मिठाई, जे सब चीजें चाने होय तौ बुन्देलखण्ड में करौ सगाई।

गुलगुला :: (सं. पु.) गुड़ और आटे के गाढ़े घोल से बनाया जाने वाला मगौड़ों जैसा पकवान, शकरपारा।

गुलगुलाबौ :: (क्रि.) गाले पसलियों या पैर के तलुओं पर उँगली फिरा कर गुदगुदाना।

गुलगुलो :: (वि.) स्पर्श सुखद वस्तु, गुदगुदा कोमल।

गुलचा :: (सं. पु.) बाँधी हुई मुट्ठी से अँगूठे और तर्जनी की तरफ से गाल पर हलका प्यार भरा आघात।

गुलजार :: (वि.) चहल पहल युक्त रमणीक, सुरूचिपूर्ण ढंग से आबाद।

गुलटा :: (सं. पु.) ताश के पत्तों का गुलाम।

गुलटा :: दे. गुलमा।

गुलठा :: (सं. पु.) दे. गुठला।

गुलथेरिया :: (सं. स्त्री.) फूलों का एक बरसाती पौध।

गुलबौ :: (क्रि.) खेल में दाँव से बाहर होना।

गुलमा :: (सं. पु.) ताश के पत्तों का गुलाम।

गुलमा :: दे. गुलटा।

गुलमेख :: (सं. स्त्री.) गोल सिरेकी कील।

गुलमोहर :: (सं. पु.) लाल पुष्प का एक प्रकार का पेड़ और उसका फल।

गुलरया :: (सं. पु.) मन में गाली देना।

गुलसम :: (सं. पु.) सनारों का गोल हतौड़ा।

गुलाखरी :: (सं. पु.) गुलखैरा, एक फूल जो ठण्डाई में डाला जाता है।

गुलाँट :: (स्त्री.) कुलाँच, कुलाँट, चोकड़ी, छलाँग, उदाहरण-काम पसारे धरे सामने चित गुलाटें खाबैं।

गुलाब :: (सं. पु.) एक सुगन्धित फूल का पौधा।

गुलाब जामन :: (सं. पु.) एक प्रकार की मिठाई, रसगुल्ला जो मावा से बनाया जाता है।

गुलाबजल :: (सं. पु.) गुलाब के फूलों का अर्क।

गुलाबी :: (वि.) हलका लाल (रंग)।

गुलाम :: (सं. पु.) ताश का ग्यारहवें क्रम का पत्ता, दास।

गुलामी :: (सं. स्त्री.) दासता।

गुलाल :: (सं. स्त्री.) प्रायः गहरे लाल रंग का चूर्ण, एक प्रकार की कुमकुम जो होली खेलने और चौक पूरने के काम आती है।

गुलिया :: (वि.) गुल्ली का महुए का तेल महुए के फल से संबंधित।

गुलिया :: (वि.) महुए के फल से निकाला गया तेल।

गुली :: (सं. स्त्री.) महुए के बीज।

गुलीचनी :: (सं. स्त्री.) एक सफेद फूलों वाला वृक्ष।

गुलूबन्ध :: (सं. पु.) ठण्ड से बचने के लिये गले में लपेटा जाने वाला ऊनी या सूती वस्त्र, गले का सोने का एक आभूषण।

गुलेंदौ :: (सं. पु.) महुए का फल जिसमें एक या दो बीज (गुली) होते हैं।

गुलेंदौ :: दे. गुलगुच।

गुलेल :: (सं. स्त्री.) कंकड़ को फेंककर मारने का एक उपकरण, बहुत हल्के किस्म का एक अस्त्र।

गुलेला :: (सं. पु.) किसी कोमल वस्तु की गोली।

गुलेली :: (सं. स्त्री.) महावर के रंग में डूबा कपड़ा जिससे महावर लगाया जाता है।

गुल्थ :: (क्रि.) किसी वस्तु धरोवर या रकम की अमानत के विरूद्ध थोड़ा-थोड़ा लेते रहने के कारण हिसाब से उसका चूक जाना।

गुल्ल-गुल्लू :: (सं. स्त्री.) गोली या पैसे के खेल का छोटा सा गड्ढा।

गुल्लक :: (सं. स्त्री.) दुकानों पर बिक्री के पैसे डालने के लिये ढक्कन पर लम्बे छेद वाली पेटी, बच्चों का पैसे इकट्ठे करने का डिब्बा या मिट्टी का पात्र।

गुल्ला :: (सं. पु.) चार पाँच साल आयु का वृक्ष, नया पेड़, गुलेल में रखकर फेंका जाने वाला कंकड़ा।

गुल्ला :: दे. गुरा।

गुल्ली :: (सं. स्त्री.) बिजली की फिटिगं आदि के लिये दीवार में ठोंके जाने वाले पादर्थ के चौकोर टुकड़े।

गुल्वा :: (सं. पु.) दे. गुलचा।

गुवा :: एक जानवर।

गुँवारी :: (सं. स्त्री.) गेंबड़े और हार के बीच का खेत।

गुसाँई :: (सं. पु.) गोस्वामी, साधूओं की एक पदवी, ब्राह्मणों की एक पदवी।

गुसे :: पैजना के मिट्टी के साँचे जिन पर मैन चढाया जाता है।

गुस्सा :: (सं. पु.) क्रोध।

गुस्साँ :: (वि.) क्रोधित।

गुस्सैल :: (वि.) क्रोधी स्वभाव वाला।

गुहार :: (सं. स्त्री.) रक्षा के लिये गुहार, सम्बोधन।

गुहारबो :: (सं. क्रि.) रक्षा से निमित्त पुकार करना, पुकार लगाना संबोधित करना।

गू :: (सं. पु.) मैला विष्टा, गुदाद्वार से विसर्जित मल।

गूगटी :: (सं. स्त्री.) गन्दा स्थान जहाँ लोग टट्टी करते हों गूगटौरी शब्द भी पाय जाता है।

गूगर :: (सं. पु.) गुग्गल, गूगल, अगरू की गोंद जो जलाने पर सुगन्धित धुआँ देती है, पूजा तथा औषधि के काम आती है।

गूंगा :: (वि.) जो बोलने में असमर्थ हो, गूंगी स्त्री।

गूंगो :: (वि. फा.) गूँगा, गूंग जो बोल न सके मूक।

गूँज :: (सं. स्त्री.) बाली या नथुनी का वह छेद जिसमें दूसरा सिरा डाल कर ऐंठ दिया जाता है, प्रतिध्वनि।

गूँजबौ :: (क्रि.) प्रतिध्वनि होना, बाली या नथ को तार ऐंठ कर बन्द करना।

गूजर :: (सं. पु.) एक जाति। गूजरी।

गूजरगोंड :: (सं. पु.) गुर्जर गौड़, ब्राह्मणों का एक वर्ग।

गूजरी :: (सं. स्त्री.) पैरों का आभूषण, पैजना का एक प्रकार।

गूजा :: (सं. पु.) बड़ी गुझिया।

गूँजा :: (सं. पु.) थोड़ा सा टेढ़ा-मेढ़ा किया हुआ घास, जो बर्तन रगड़ने या आग जलाने के काम आता है।

गूँथबो :: (क्रि.) मोटी सिलाई करना।

गूँथबौ :: (क्रि.) फूहड़पन से उल्टे, सीधे टाँके डालना गूँथा जाना, पिरोया जाना।

गूद :: (सं. स्त्री.) फोड़े या चोट का ठीक होने पर बना रहने वाला चिन्ह।

गूदबौ :: (क्रि.) कागज पर आड़ी तिरछी रेखाएँ खींचकर गन्दा करना, नोंकदान वस्तु के आद्यातों से किसी सतह को खराब करना।

गूमटौ :: (सं. पु.) सिर या शरीर में चोट के कारण उठने वाला फोड़े जैसा उभार।

गूल :: (सं. पु.) नहर का पानी जाने की नाली।

गूलर :: (पु.) एक वृक्ष जिसके फल में छोटे छोटे कीड़े होते है इस वृक्ष जिसके फल में छोटे छोटे कीड़े होते है इस वृक्ष का फल। ऊमर।

गे :: (वि.) भविष्यवाची परसर्ग (पश्चिमी बुन्देली में प्रयुक्त)।

गें :: (सं. स्त्री.) दो कड़ियों के बीच का स्थान।

गेंउआँ :: (वि.) गेहूँ के रंग का।

गेंउआँ :: (पु.) गेहूँ के रंग का विशाल और विसैला सर्प।

गेऊँ :: (सं. पु.) एक प्रकार का अन्न गोधूम, गेंहू।

गेंग :: (सं. अ. स्त्री.) डाकुओं का दल, मजदूरों की टोली।

गेंगयाबो :: (क्रि.) नाक के स्वर से बोलना।

गेंगा :: (सं. पु.) एक खिलौना, इसमें कागज से मढ़े एक मिट्टी के दीया के बीच से घोड़े के बाल निकले रहते है जो एक बाँस की लकड़ी पर घूमने से गेंगे की आवाज निकालते है, एक पक्षी।

गेंठा :: (वि.) ठिगने कद का।

गेंठा :: दे. गिण्ठा।

गेड़ा :: (सं. पु.) बट या ऊपर की लकड़ी का टुकड़ा जिसे हाथी खाते है, गहोई वैश्यों का एक आँकने।

गेंड़ा :: (सं. पु.) गेंड़ा हाथी।

गेड़ी :: (सं. स्त्री.) कपड़े का गोल गोल छल्ला, लकड़ी का छोटा टुकड़ा। आदिवासियों द्वारा दो बाँस के डंडे जिन के बीच में पाँव रखने की लकड़ी लगी होती है। इन्हीं डंडों पर खड़े होकर दलदल पार की जाती है। इन्हीं आदिवासी नृत्य भी करते हैं जिसे गेड़ी नृत्य कहते हैं।

गेंड़ी :: (सं. स्त्री.) घोड़े के पलेंचा के नीचे रखा जाने वाला लम्बा तकिया, कर्णफूल के पीछे लगाई जाने वाली धागे या धजी से बनाई हुई कुनई ताकि कान से तरकुली निकल न सके।

गेडुआ :: (सं. स्त्री.) गेण्टुक, गोल तकिया, लोड़, तकिया लम्बा, गोल तकियी।

गेंत :: (सं. पु.) ज्वार की कटी फसल की छोटी गंजी।

गेंतबौ :: (क्रि.) किसी के घेरकर पकड़ना, गिरफ्तार करना।

गेंती :: (सं. स्त्री.) कुदाली।

गेंद :: (सं. स्त्री.) कन्दुक, खेलने के गेंद।

गेंदा :: (सं. पु.) पीले सुगन्धित फूलों का पौधा।

गेंदी :: (सं. स्त्री.) कत्थई फूलों तथा गहरे हरे रंग के पत्तों का पौधा।

गेदौ :: (सं. पु.) सूत्र।

गेदौ :: (प्र.) उनने तो एक गेदौ पकर लओ सो ओइ ओइ खो रटत रत।

गेबड़ौं :: (सं. पु.) गाँव के आस-पास की भूमि।

गेंम :: (सं. पु.) गेम, खेल की एक बाजी ताश का एक खेल जिसमें छह लोग खेलते है।

गेरउँगेर :: (वि.) चारों तरफ (बलवाची अर्थ)।

गेरकँ :: (वि.) चारों तरफ।

गेरगेर :: (वि.) चारों तरफ, चौतरफा।

गेरबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु के चारों ओर चक्कर काटना, घेरना, घिराव करना।

गेराँ :: (वि.) चारों तरफ, आस-पास, इर्द-गिर्द।

गेरूआ :: (वि.) गेवरी के रंग का, गैरिक।

गेरो :: (वि.) गहर, गम्भीर, बहुत गाढ़ा, गहरी, गम्भीर, बहुत गाढ़ी।

गेवरी :: (सं. स्त्री.) गेरू, गैरिक, लाल मिट्टी, गेरू।

गै :: (सं. पु.) ध्यान।

गै :: (प्र.) गै करके दैख लियो।

गैंठो-ठिनगा :: (सं. पु.) गेठूँ ढेर, नाटा, बौना।

गैतबो :: (क्रि.) ढेर लगाना।

गैदैं :: (सं. पु.) उंगलियों का आभूषण।

गैंनो :: (सं. पु.) गहना, आभूषण, आभरण।

गैबो :: (क्रि.) (स. ग्रहण प्रा. ग्रहन) पकना।

गैया :: (सं. स्त्री.) गाय, गौ।

गैर :: (वि.) अन्य दूसरे।

गैराई-गैराव :: (वि.) गहराई।

गैरी :: (वि.) गहरी, बहुत, गाढ़ी।

गैरो :: (वि.) गहरा।

गैल :: (सं. स्त्री.) रास्ता।

गैल :: (कहा.) गैल कौनऊँ जायें, बैल घरई के आयँ - किसी आदमी के बैल भटक गये, उसके साथी ने कहा-देखो, तुम्हारे बैल कहाँ जा रहे हैं, इस पर उसने उत्त्तर दिया-चिन्ता की बात नहीं, बैल घर के ही हैं, किसी रास्ते जायें, भूलेंगे नहीं, ढोरों की स्मरण शक्ति के सम्बन्ध में कहावत।

गैल :: (कहा.) गैल में ठाँड़े - अर्थात संसार का सब झगड़ा छोड़ चुके है, जाने को तैयार खड़े है, हमें किसी बात से क्या मतलब।

गैलारे :: (सं. पु.) राहगीर।

गैलारौ :: (सं. पु.) गलयारा, निकलने का स्थान।

गों :: (सं. स्त्री.) चित्त, मन ध्यान।

गों :: (प्र.) उनने जा बात गों में दैलई।

गोई :: (सं. पु.) आम की गुठली, आम की गुठली से बना उपकरण जिससे नाई सिर के बाल निकालते हैं।

गोईरा :: (सं. पु.) प्रेमिका, उदाहरण-कै गोइरा तुम बिन चैन परै न हो, बु.ग्रा.गी.।

गोकरन :: (सं. पु.) मालावार में स्थित शैवों का एक तीर्थ, इस स्थान पर स्थापित शिवमूर्ति।

गोकरन :: (सं.) गोकर्ण।

गोकरन :: (वि.) गाय के समान लंबे कान वाला।

गोकल :: (सं. पु.) मथुरा के पास का एक गाँव जिसे अब महावन कहते हैं, गोकुल।

गोख :: (सं. स्त्री.) वातायन, गवाक्ष, वायु के आवागमन के लिये खिड़की।

गोख :: (सं. पु.) बरामदा, दालान, बारजा।

गोंखर :: (सं. पु.) ढोरों का समूह, पशुओं का समूह।

गोंखरया :: (सं. पु.) ठलुआ, बेकार।

गोखरिया-गोखरया :: (सं. पु.) चरवाहा, चरवारा।

गोखरू :: (सं. पु.) एक छोटा कँटीला पौधा या फल हाथ का एक आभूषण।

गोंघात :: (सं. पु.) रओ एक सुर में गोघात अपनी अपनी।

गोंघाती :: (वि.) मन में पड़ी हुई किसी प्रतिशोध की भावना के आधार पर आघात पहुँचाने वाली, प्रतिशोध की भावना पालने वाला।

गोंच :: (सं. स्त्री.) जोंक, पानी का एक जन्तु जो शरीर से चिपककर खून चूस लेता है।

गोचा :: (सं. पु.) धोखा।

गोंची :: (सं. स्त्री.) मिट्टी की जमीन का गड्ढा।

गोंचे :: (सं. पु.) मवेशियों की एक बीमारी।

गोज :: (सं. पु.) लाठी।

गोंजई :: (सं. स्त्री.) गेंहूँ का मिश्रण।

गोंजन :: (सं. पु.) वह घास जिसे मवेशी चरने के बाद छोड़ देते हैं।

गोंजना :: (सं. स्त्री.) पशुओं द्वारा खाने से छोड़ी गयी या इधर उधर गिरा दी गयी घास से छूट कर अव्यवस्थित हो गयी घास।

गोंजबो :: (क्रि.) किन्ही वस्तुओं का अव्यवस्थित ढंग से ढेर लगाना।

गोजर :: (सं. पु.) कीड़ा कन खजूरा।

गोजा :: (सं. पु.) नया पीका।

गोंजी :: (सं. स्त्री.) जवा (यह शब्द गोन्जव शब्द से विकसित है इसका अर्थ गेहूँ और जवा का मिश्रित अनाज होना।

गोट :: (सं. स्त्री.) मगजी किनारा, गोष्ठी, चौपड़ आदि खेलने की गोटी, वन भोजन, पिकनिक, वस्त्र के किनारों पर मजबूती के लिए सिली हुई पट्टी या कपड़े को लौट कर सिली हुई पट्टी।

गोटपड़ा :: (सं. पु.) खेल-सोलह गोटी का।

गोटा :: (सं. पु.) वस्त्रों की सुन्दरता बढाने के लिये किनारे पर सिली जाने वाली सुनहरी या रूपहली पट्टी।

गोटानी :: (सं. स्त्री.) पत्नि, स्त्री।

गोटी :: (सं. स्त्री.) नरिकेल, नरियल।

गोटें :: (सं. पु.) अहीर जाति के गीत।

गोंठनी :: (सं. पु.) एक औजार।

गोठबो :: (स. क्रि.) गुझिया की कोर गोड़ना, मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खोदना।

गोंठबौ :: (क्रि.) गुजियों या आसों (किनारे गुठे हे पुए) के किनारों को कलात्मक ढ़ग भांज के आकार में मोड़ना, लकड़ी के सिरे को आधी मोटाई तक सिरे की ओर उर्ध्वकार तथा लम्बाई की ओर कर्णवत् काटना ताकि बाँधा जा सके।

गोंठले :: (वि.) खट्टे (दाँत), खटाई के प्रभाव से दातों का अस्थाई निष्क्रिय हो जाने का गुण।

गोंठा :: (सं. पु.) लकड़ी को गोंठने से बना खाँचा।

गोंड़ :: (सं. पु.) मध्य प्रदेश की एक जाति, गोंड़वाना प्रदेश का नाम इसी जाति का निवास स्थान होने के कारण पड़ा, गोंड़बाबा, गौंड़ जाति के एक देवता।

गोड़बौ :: (क्रि.) मिट्टी खोदकर उलटना, मोड़ना।

गोड़ा :: (सं. पु.) पलंग आदि के मचवा, (मिचवा)।

गोड़ी :: (सं. स्त्री.) लाभ प्राप्ती का आयोजन।

गोड़ों :: (सं. पु.) पैर, गौड़, चरण उदाहरण-चुरिया तक नइयाँ हातन में नंगे गोड़े डारे।

गोंडो :: (सं. पु.) बाड़ा घेरा हुआ (धान)।

गोत :: (सं. पु.) गोत्र, कुल, वंश, समूह, दल, गोतधाउ-बन्धु विशेष, गोतया-गोतिया, समान गोत्र वाला।

गोंत :: (सं. पु.) कीचड़, जमी हुई तलछट पानी के नीचे जमी गंदगी।

गोंत-गिलाऔ :: (सं. पु.) नावदान आदि की गन्दी कीच, नाबदान।

गोंतरी :: (सं. स्त्री.) पहुनाई, आतिथ्य, मेहमानी।

गोंद :: (सं. पु.) पेड़ के तनों से निकलने वाली एक लसदार वस्तु गाद।

गोदन :: (सं. पु.) गोबर्द्धन, दीवाली के दूसरे दिन गोबर्द्धन पूजा के लिये बनायी जाने वाली गोबर की आकृति, गोदन बाबा।

गोदबौ :: (क्रि.) रासायनिक एवं यांत्रिक प्रक्रिया से शरीर पर आकृतियाँ आँकना, नोंकदार वस्तुओं से किसी सतह पर गुद्द करना।

गोंदबौ :: (क्रि.) पैरें से कुचलना।

गोंदर :: (सं. स्त्री.) धान की एक जाति।

गोंदरा :: (सं. पु.) नाग मोथा का पौधा पानी में होने वाली एक घास।

गोंदरी :: (सं. स्त्री.) प्याज।

गोंदा :: (सं. पु.) दीवार बनाने के लिये तैयार मिट्टी के लगभग समान आकार के गोले।

गोदाम :: (सं. स्त्री.) बटन, व्यापारिक सामान के भण्डारण का स्थान।

गोन :: (स्त्री.) बैलों की पीठ पर लादने का दोहरा बोरा।

गोंन :: (सं. पु.) मानी (दो क्किंटल बजन की इकाई) गधे पर वजन भरने की रस्सी की जालीदार काँठी, मकर संक्रान्ति को पकवानों से भरी जाने वाली थैली जो बसंत पंचमी को खोली जाती है।

गोनहार :: (सं. स्त्री.) वधु के साथ उसके ससुराल जाने वाली स्त्री।

गोंनो :: (सं. पु.) उड़द मूँग का भूसा, नववधू का द्विरागमना।

गोप :: (सं. पु.) ग्वाल, भगवान कृष्ण के सखा।

गोपका :: (सं. स्त्री.) गोप की स्त्री ग्वालिन।

गोपाल :: (सं. पु.) श्री कृष्ण, गोपका स्त्री ग्वालिन, गौ को पालने वाला।

गोपी :: (सं. स्त्री.) चंदन।

गोपी :: (पु.) एक प्रकार की पीली मिट्टी जिसका वैष्णव लोग तिलक लगाते हैं श्री कृष्ण की सखी, पुरुषों द्वारा गले में पहिनने का सोने का आभूषण।

गोबर :: (सं. पु.) गाय भैंस का मल, खाद्य और ईधन तथा कच्चे घरों को लीपने के काम आता है।

गोबर :: (कहा.) गोबर के गनेस, जी पटा पै बैठत, बई खों नई फोर पाउत - गोबर-गनेस जिस पटे पर बैठते हैं, उसको ही तोड़ने की सामर्थ्य नहीं रखते।

गोबर :: (कहा.) गोबर गनेश - बुद्ध आदमी।

गोबी :: (सं. पु.) गोभी का फूल, शाक बनाने के काम आता है।

गोबो :: (क्रि.) गूँथना, माला गोबौ, चुटिया गोबो, किसी बात को मन में धारण करना।

गोय :: (सं. पु.) एक लम्बी पूंछ का चार पैर का विषैला जानवर। (छिपकली के आकार का, गोह)।

गोंयड़ :: बड़ा।

गोयरी :: (सं. स्त्री.) आँख के कोये में होने वाला एक रोग।

गोयरी :: (अ.) स्टाइ, गुहेरी।

गोयरौ :: (सं. पु.) गिरगिट से मिलता जुलता एक विषैला जन्तु (रैप्टाइल श्रेणी का)।

गोर :: (सं. पु.) कब्र। गोर गुरम्मा करबो।

गोर :: (स. क्रि.) बातों द्वारा उलझाना।

गोरखधन्धा :: (सं. पु.) ऐसा कार्य जिसका निष्पादन बहुत जटिल हों, लोहे के तारों से बनी कुछ आकृतियाँ जिनका एक दूसरे में फँसना या निकालना जटिल होता है, अंकों और रेखाकृतियों के गोरखधन्धे भी होते हैं।

गोरखनाथ :: (सं. पु.) नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत इनको शिव का अवतार माना जाता था, ये आल्हखंड के नायक आल्हा के गुरू थे, आल्हा अमर थे, चन्देलों की अन्तिम पराजय के समय जब इनके भाई ऊदल सहित सभी बीरगति को प्राप्त हुए तब आल्हा रण भूमि में बहुत दुखी हुए, उस समय गुरू गोरखनाथ प्रकट हे और आल्हा को अपने साथ ले गये।

गोरस :: (सं. पु.) गौ का दूध, दही, छाछ, इन्द्रियों के सुख भोग का आनन्द।

गोरा :: (सं. पु.) गोरी चमड़ी वाले विदेशी, उदाहरण-गोरी नारी-सुन्दर स्त्री।

गोरापान :: (सं. पु.) संगमरमर का पत्थर, सफेद पत्थर, गुलाबी पत्थर।

गोरियाँ :: (वि.) गोरे रूख, जिसका रंग थोड़ा थोड़ा गोरापन लिये हो, युवतियाँ।

गोरी :: (सं. स्त्री.) गौरवर्ण का आकर्षक अनामिका युवती।

गोरू :: (सं. पु.) गाय का बछड़ा।

गोरे-नारे :: (सं. पु.) सुन्दर पुरूष।

गोल :: (सं. स्त्री.) टोली, दल, सोने के तार का कई लपेटों वाला छल्ला-एक प्रकार का अँगूठी।

गोलक :: (सं. स्त्री.) दुकान पर बिक्री के पैसे रखने की पेटी।

गोलक :: दे. गुल्लक।

गोलन्दाज :: (सं. पु.) तोपों से गोल चलाने वाला, तोपची।

गोला :: (वि.) गोल आकृति का, गोलाकार।

गोला :: (सं. पु.) तोप के गोले।

गोली :: (सं. स्त्री.) बन्दूक में रखकर चलाये जाने वाले सीसे की गोली, बच्चों के खेलने की लोहे, पत्थर, चिनी या काँच की गोली, दवा की गोली, कोई भी छोटी गोल आकृति, उदाहरण-गोली चोट-एक खेल जिसमें गोलियों में चोट लगाई जाती है।

गोली :: (कहा.) गोली कौ घाव भर जात, पै बोली कौ नई भरत - गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं भरता।

गोस :: (सं. पु.) गोश्त।

गोसली :: (सं. स्त्री.) गऊओं को दुहने तथा उनको चारा आदि डालने की क्रिया।

गोंहर :: (सं. पु.) गेंहूँ पैदा होने वाली भूमि।

गोंहारी :: (सं. पु.) गेहूँ पैदा होने वाली खेती।

गौं :: (सं. पु.) स्वार्थ, मतलब।

गौं :: (सं. स्त्री.) गो, गाय।

गौखर :: (सं. पु.) जवान या पूरे जानवर का चमड़ा।

गौंजई :: (सं. पु.) गेंहूँ जौ का मिश्रण।

गौंठी :: (सं. पु.) बंजी।

गौंड़बाबा :: (सं. पु.) हरदौल, खास, सरदार गोविन्द सिंह गौड़।

गौदान :: (सं. पु.) मृत्यु पूर्व गऊका दान।

गौधान :: (सं. पु.) गाँव के समीप की भूमि।

गौन :: (सं. पु.) कंधे के या बैलों के दोनों ओर लादने वाला एक प्रकार का थैला।

गौंनी :: (सं. पु.) दाँय करते समय बैलों का गोबर।

गौनो :: (सं. पु.) गमन, द्विरागमन, उदाहरण-इक दिन होत सबई कौ गौनो होनों और अनहोंनो।

गौमुखी :: (सं. स्त्री.) माला जपने कोणाकार थैली।

गौमेद :: (सं. पु.) गौमूत्र के रंग का एक रत्न।

गौर :: (सं. स्त्री.) पार्वती की मृण्मयी मूर्ति नौरता और गणगौर के अवसर पर पूजी जाती है, क्षत्रियों का एक उपवर्ग।

गौरइया :: (सं. स्त्री.) गोरा पत्थर की कुण्डी, एक छोटी चिड़िया।

गौरइयाँ :: (सं. पु.) बरात चली जाने के बाद वर के घर सौभाग्यवती स्त्रियों का भोजन करवाने की प्रथा इसमें गीत गाये जाते हैं।

गौरमदान :: (सं. स्त्री.) इन्द्रधनुष।

गौरा :: (सं. पु.) एक प्रकार का सफेद चिकना पत्थर, गोरे रंग की स्त्री।

गौरा :: (स.) पार्वती भगवान शंकर की अर्द्धागिनी।

गौरिया :: माटी।

गौरिया :: (सं. स्त्री.) कुछ उजले रंग की मिट्टी।

गौरी :: (सं. स्त्री.) पार्वती, आठ वर्ष की कन्या।

गौरैया :: (सं. स्त्री.) एक काले रंग का जल पक्षी, चटक पक्षी, गोरापत्थर की बनी कटोरी।

गौरौ :: (वि.) गौरवर्ण वाला, स्वच्छ।

गौहान :: (सं. पु.) गोधन।

ग्याँन :: (सं. पु.) ज्ञान, करणीय, अकरणीय का विवेक।

ग्याबन :: (सं. पु.) गर्भिणी, गाँव के समीप की भूमि।

ग्यारई :: (सं. पु.) मृतक स्त्री के ११ वे दिन का संस्कार।

ग्यारस :: (सं. पु.) एकादशी, ग्यास।

ग्यारा :: (वि.) ग्यारह, दस धन एक का योग।

ग्याँसौ :: (सं. पु.) ध्यान।

ग्वारपाठा :: (सं. पु.) एक कटीला पौधा जो दवा के काम आता है।

ग्वाँरफली :: (सं. पु.) एक प्रकार की फली जिसकी तरकारी बनाते हैं।

ग्वाँरी :: (सं. पु.) गेहूँ पैदा होने वाला खेत।

ग्वाल :: (सं. पु.) दूध बेचने वाला, अहीर, भगवान कृष्ण के सखा।

ग्वालन :: (सं. स्त्री.) ग्वालिन, दूध दही बेचने वाली महिला।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के क वर्ग का चतुर्थ वर्ण इसका उच्चारण स्थान कण्ठ्य है।

घई :: (सं. स्त्री.) गहरी भँवर।

घई :: (वि.) गहरी, जिसकी थाह न लगे।

घउटमुटइयन :: (क्रि. वि.) घुटनों और हाथों के बल चलना, घुटनों पर खड़े होना।

घँगरा :: (सं. पु.) लहंगा, घाँघरा, महिलाओं के पहिनने का अधोवस्त्र।

घँगरालो :: (वि.) बल खाया हुआ, छल्लेदार बाल।

घँगरिया :: (सं. पु.) बच्चियों के पहनने का लहंगा, पेटी कोट।

घगरी :: (सं. स्त्री.) गठारी, गागर।

घँगरी :: (सं. स्त्री.) दे. घुगरियाँ।

घंगरी :: (सं. स्त्री.) अधिकतर उंगलियों के जोड़ों पर होने वाला फफोला, इसमें पानी जैसा मवाद रहता है।

घँगरो :: (सं. पु.) घड़े का ऊपरी भाग, लंहगा।

घँगरौ :: (सं. पु.) घड़े के उपर का अलग किया गया खण्ड, गागर, मटका आदि का ऊपरी आधा भाग जो नीचे का खपरा निकाल देने बचना है।

घँगैया :: (सं. स्त्री.) साधारण सा लहँगा, छोटा लहँगा।

घँगोरन :: (सं. पु.) घोल।

घँगोरबो-घँघारबो :: (स. क्रि.) किसी पात्र में रखे हुए पानी को इसी प्रकार हिलाना कि नीचे जमी हुई वस्तु अच्छी तरह घुल जाय घँगोलना, घोलना किसी वस्तु को किसी घोलक में डालकर चलाना।

घँघरा :: (सं. पु.) लहँगा, घाँघरा महिलाओं के पहिनने का अधोवस्त्र।

घँघोलना :: (क्रि. स.) घोलना, मैला करना।

घचाघच :: (क्रि. वि.) ठसाठस, भरा हुआ।

घट :: (वि.) कम।

घट :: (सं.) शरीर, देह।

घँट :: (सं. पु.) मृतक क्रिया मे प्रयोग किया जाने वाला मिट्टी का घड़ा जो पीपल के वृक्ष पर टांगा जाता है।

घट बड़ :: (सं. स्त्री.) कमीबेशी, न्यूनाधिकता, परिवर्तन।

घटती :: (वि.) कमी, कम।

घटबाबो :: (स. क्रि.) घटाने का काम कराना, कम करवाना, छोटा करबाना बाकी निकलवाना।

घटबैया :: (वि.) घटाने वाला, कम करने वाला बाकी निकालने वाला।

घटबौ :: (क्रि.) कमी होना, कुछ हो जाना, किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु से समानता बैठना।

घटरूँदा :: (सं. पु.) पशुओं का एक रोग डिप्थीरिया जिसमें गला रुंध जाता है।

घटवारौ :: (सं. पु.) नदी घाट पर अस्थायी पुल का कर वसूलने वाला, नाव से नदी करने वाला चढ़ी हुई नदी में पुल पार पानी होने की दशा में पीठ पर लादकर नदी पार कराने वाला।

घटा :: (सं. स्त्री.) मेघमाला, समूह उमड़े हुए बादल।

घंटा :: (सं. पु.) धातु का एक बाजा जो केवल ध्वनि उत्पन्न करता है घड़ियाल, साठमिनिट का समय घंटा अँगूठा कुतका।

घंटाघर :: (सं. पु.) वह मीनार, जिसमें बड़ी घड़ी लगी होती है।

घटाटोप :: (सं. पु.) पर्दा आच्छान, मेघों की घटा का चारों ओर से घिर आना।

घटाबौ :: (क्रि.) कमी करना, बाकी करने की गणितीय क्रिया करना।

घँटाल :: (सं. पु.) बैलों के पहनने की घंटी।

घटासैटै :: (वि.) गरदन तक।

घटिया :: (वि.) अपेक्षाकृत, खराब या कम मोल की, तुच्छ, सस्ती, निकृष्ट।

घटी :: (सं. स्त्री.) नुकसान, कमी, हानि।

घंटी :: (सं. स्त्री.) पीतल या फूल की छोटी लुटिया, छोटा घंटा।

घटोइया :: (सं. पु.) घाटबाला, धोबी, को भी कहते है।

घटोत्कच :: (सं. पु.) भीम और हिडिम्बा से उत्पन्न पुत्र।

घटोरिया :: (सं. पु.) घाट के देवता, नदी घाटी पर स्थापित ग्राम देवता, धोबियों के देव।

घट्टबौ :: (क्रि.) घिसना, रगड़ना, काँच की चूड़ी के टुकड़े से लकड़ी की लिखने की पाटी को चमकाना।

घड़घड़ाट :: (सं. स्त्री.) घड़घड़ाने का शब्द, बादल गरजने का शब्द।

घड़घड़ाना :: (क्रि. अ.) घड़घड़ का शब्द करना, गरजना।

घड़घड़ाबों :: (क्रि.) घड़घड़ शब्द करना, बादल का घड़घड़ ध्वनि करना।

घड़चढा :: (सं. पु.) घोड़ी पर सवार।

घड़नई-घड़नैल :: (सं. स्त्री.) उल्टे घड़े बाँधकर बनाया ढाँचा जिससे नदी पार करते हैं।

घड़ला :: (सं. पु.) घड़ा, घोड़ा।

घड़ा :: (सं. पु.) पानी भरने का मिट्टी का घड़ा, बरतन, गागर।

घँडाई :: (सं. स्त्री.) चारों कोनों पर उल्टे घड़े बाँध कर तथा उनके ऊपर लटठे बांधकर बनाई चौखूंटी तथा समतल नाव लुघाँनी में प्रयुक्त।

घड़िया :: (सं. पु.) मिट्टी का छोटा बरतन, कुल्हिया, पुरवा।

घड़ी :: (सं. स्त्री.) समय सूचक यंत्र, २४ घंटे का समय समय पल।

घड़ी :: (सं. स्त्री.) कपड़े का गोल बटन, गोल गांठ।

घड़ौंची :: (सं. स्त्री.) पानी का घड़ा रखने की तिपाई का स्थान।

घण्टा :: (सं. पु.) साठ मिनिट की समय की इकाई, समय की सूचना के लिये बजने वाला घण्टा, विद्यालयों का समयांश, मन्दिरों और गिरजा घरों का घण्टा।

घण्टालें :: (सं. स्त्री.) हाथियों की झूल के साथ बंधे घण्टे जो हाथी की चाल के साथ बचते है।

घण्टी :: (सं. स्त्री.) पूजा के समय बजायी जाने वाली घण्टी, विद्यालयों में चेतावनी या छुट्टी की सूचना देने वाली घण्टी कार्यालयों में भृत्य को बुलाने वाली घण्टी, छोटी लुटिया जो प्रायः ढली हुई होती है।

घतयाबो :: (स. क्रि.) घात में लगना, छिपाना घात।

घता :: (वि.) चोरी की वस्तु का पता लगाने वाले मुखविर, चुगल, जासूस।

घतिया :: (सं. पु.) घात करने वाला।

घन :: (सं. पु.) बड़ा हथौड़ा, बादल घनघोर में प्रयुक्त।

घनघनाबो :: (अ. क्रि.) घण्टे की सी आवाज लेना घन घन शब्द करना।

घनघनाहट :: (सं. स्त्री.) घन घन का शब्द।

घनघाँई :: (सं. पु.) घन की तरह चोट।

घनघोर :: (सं. पु.) भीषण ध्वनि, बादल की ध्वनि, बहुत घना, भयावना।

घनचक्कर :: (सं. पु.) बिना दूसरा हाथ लगाए चकरी के लगातार चक्कर।

घनर घनर :: (क्रि. वि.) आवाज।

घना :: (सं. पु.) सूपा में एक बार में फटकने योग्य अनाज की मात्रा घान, एक बार में जितना सामान हाथ में या बर्तन में लिया जा सके।

घनाई :: (सं. स्त्री.) दो स्त्रियों का एक ही ओखली में एक साथ धान आदि का कूटना, एक वस्तु पर दो व्यक्तियों द्वारा बारी बारी से लगातार घन चलाना।

घने :: (वि.) बहुत से।

घने-घने :: (वि.) बार-बार, जल्दी-जल्दी।

घनेरा :: (वि.) अधिक, बहुत अधिक।

घनेरो :: (वि.) बहुत अधिक।

घनों :: (वि.) सघन, निकट निकट।

घन्नाटौ :: (सं. पु.) घूर्णन का स्वर।

घन्नाबौ :: (क्रि.) तीव्र घूर्णन की आवाज होना।

घप :: (सं. पु.) कुआँ, तालाब आदि के तल में पानी के नीचे रहने वाला कीचड़।

घप :: (कहा.) जो जामें जाने नहीं करन काए कों जाय, मूड घपे में घुस गई सारे गए पूँछ उठाँए।

घपनघोर :: (वि.) लस्त।

घपरा :: (सं. पु.) कंजी का फल।

घपलयाबो :: (क्रि.) भूख या थकान के कारण लस्त होना।

घपला :: (सं. पु.) गड़बड़, अव्यवस्था, हिसाब किताब में हेरा फेरी, गहरे तक मचा हुआ कीचड़।

घपुआ :: (क्रि.) बेवकूफ।

घबड़ाबौ :: (क्रि.) घबराना, भय या आसन्न समस्या के कारण किंकर्त्तव्यविमूढ होना।

घबड़ैला :: (वि.) घबराने वाला।

घबराट :: (सं. स्त्री.) व्याकुलता, हड़बड़ी, घबराहट।

घबराना :: (क्रि. स.) व्याकुल होना, जल्दबाजी के कारण होने वाली अकुलाहट।

घबराना :: (क्रि. अ.) व्याकुल होना, जल्दी करना, उतावला होना, मन की स्थिति सही न होना।

घमक :: (सं. स्त्री.) गरज, घूंसा, मारने की आवाज।

घमकना :: (क्रि. अ.) गरजना।

घमकना :: (क्रि. स.) घूंसा मारना।

घमका :: (सं. पु.) देखो घमक।

घमको :: (सं. पु.) जोर की आवाज।

घमघमाना :: (क्रि. अ.) घम घम शब्द होना।

घमघमाना :: (क्रि. स.) मारना, पिटना।

घमछँइँया :: (सं. स्त्री.) विरल पत्तों वाले वृक्ष की छाया।

घमण्ड :: (वि.) अभिमानी, अहंकारी।

घमर :: (सं. पु.) ढोल आदि का शब्द।

घमरा :: (सं. पु.) भृंगराज क वनस्पति जो अनेक दवाओं के काम आती है।

घमस :: (सं. स्त्री.) उमस, वायु का रुकना गर्मी।

घमसान :: (सं. पु.) भंयकर युद्ध, धक्कमधक्का पूर्ण भंयकर भीड़।

घमुकयाई :: (सं. पु.) घूँसों से मारना।

घमूँका :: (सं. पु.) मुक्का।

घमूँका :: (सं. पु.) घूँसा, मुक्का, मुठ्ठी का प्रहार।

घमैलया :: (वि.) जो फल धूप के कारण कोमल और पका सा हो गया हो।

घमोरी :: (सं. पु.) कुरोरू, धूप छाँव, गर्मी के कारण त्वचा पर होने वाली छोटी फुंसी, गर्मी दाने।

घर :: (सं. पु.) कमरा, निवास स्थान, आवास, किसी वस्तु को जमाने का खाँचा, शंतरज, चौपर आदि के खाने, अनुकूल स्थान, वह आवास जहाँ अपने परिजनों के साथ निवास किया जा सके।

घर :: (कहा.) घर आय नाग न पूजें, बाँमी पूजन जायें - अवसर से लाभ न उठाना।

घर :: (कहा.) घर की खाँड़ किरकिरी लागै, बाहर कौ गुर मीठो - घर की वस्तु की कद्र नहीं होती, घर की मुर्गी दाल बराबर, घर के पीरन खों गुर कौ मलीदा-घर के आदिवासियों की अपेक्षा बाहर वालों का अधिक आदर-सत्कार करना।

घर :: (कहा.) घर कों उसारो, लरकै सारो - घर में आँगन चाहिए और लड़के के साल, घर में गोड़ो निकारबो, इधर-उधर बहुत घूमना स्वेच्छाचार करना।

घरइया :: (सं. पु.) परिवार के सदस्य।

घरइया :: (कहा.) घरई की कुरइया से आँख फूटत - छप्पर के छावन में लगने वाली लकड़ी, यह प्रायः ओलती से बाहर निकली रहती है और ओलती यदि नीची हो तो उसके आँख में लगने का डर रहता है, घर के आदमी से ही अधिक हानि पहुंचती है।

घरगिरस्ती :: (सं. स्त्री.) घर का काम काज, घर और उसमें की सब सामग्री।

घरगूला :: (सं. पु.) बच्चों द्वारा बनाया मिट्टी का घर।

घरघन्दी :: (वि.) धूर्त, कपटी।

घरघराना :: (क्रि. अ.) घर्र घर्र शब्द होना।

घरघूला :: (क्रि.) घड़ी करना, तहकरना, बच्चों द्वारा बनाया गया मिट्टी आदि का घर। वे इससे खेलते हैं।

घरजमाई :: (सं. पु.) दामाद जिसे ससुराल वाले अपने पास रख ले, ससुराल में रहने वाला व्यक्ति।

घरफोरी :: (सं. पु.) घर में लड़ाई कराने वाली।

घरफोरी :: (पु.) घरफोरा।

घरबार :: (सं. पु.) देखो घरद्वार।

घरबारौ :: (सं. पु.) पति।

घरवारी :: (वि.) कुटुम्बी गृहस्थ।

घरवारी :: (सं. स्त्री.) पत्नी।

घरा :: (सं. पु.) शतरंज आदि के खाने के डिब्बे के खण्ड, किसी वस्तु को रखने का खोल जैसे चश्मे का घरा।

घराती :: (सं. पु. वि.) शादी में कन्या पक्ष के लोग।

घरानों :: (सं. पु.) खानदान, संगीत की विशेष शैलियों की शिष्य परम्परा, कुटुम्ब।

घरियक :: (क्रि. वि.) घड़ी भर, घरीक, थोड़ी देर में।

घरिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का प्याला, सोंना चाँदी गलाने का मिट्टी का पात्र, पनोली के आकार का खपड़ा।

घरियाल :: (सं. पु.) घंटा, घड़ियाल।

घरी :: (सं. स्त्री.) रहँट में पानी उपर लाने वाले पात्र, साढे बाईस मिनिट के समय की इकाई, घरीक लगभग एक घड़ी का समय।

घरीखांड :: (क्रि. वि.) थोड़ी देर, पलभर।

घरूला :: (सं. पु.) घरोंदा, छोटा सा घर।

घरेंनी :: (सं. स्त्री.) गृहणी पत्नि, गृह स्वामिनी।

घरेलू :: (वि.) घर का, घर के काम काज से सम्बन्धित।

घर्रा :: (सं. पु.) रगड़ा, अंजन, घबराहट का शब्द।

घर्राटो :: (सं. पु.) खर्राटा।

घलबो :: (क्रि.) चलना, बन्दूक आतिशबाजी, इत्यादि।

घलबौ :: (स. क्रि.) डालना, फेकना, बिगाड़ना मार डालना मारना, हथियार चलाना, गप्पें मारना।

घलाघलौ :: (सं. पु.) मारामार, मारपीट।

घलुआ :: (सं. पु.) खरीदार को तौल से अधिक दी जाने वाली वस्तु।

घलुआ :: (वि.) बिना मूल्य का, उरैतौ।

घल्ला :: (सं. पु.) कौड़ियों के खेल में चोट लगाने वाली कौड़ी।

घसयारो :: (सं. पु.) घास छीलकर बेचने वाली घसियारा।

घसिटना :: (क्रि. अ.) घसीटा जाना।

घसियाटा :: (सं. पु.) घास बेचने वाला।

घसीटबौ :: (स. क्रि.) रगड़ते हे खींचना जल्दी से लिखकर चलता करना, जबरदस्ती शामिल करना, जल्दी लिखना।

घसीटा :: (वि.) शीघ्रता से लिखे जाने के कारण दुर्बोध लेख।

घहराना :: (क्रि. अ.) गरजना।

घाइल :: (वि.) आहत, घायल।

घाई :: (सं. स्त्री.) दो वस्तुओं का मध्य स्थान, अंगुलियों के बीच की जगह।

घाई :: (वि.) समान, बराबर सा लगातार।

घाई :: (सं. स्त्री.) चोट, घाव, धोखा।

घाई :: (सं. स्त्री.) समस्यात्मक प्रतिप्रश्न, प्रतिपहेली।

घाई :: (प्र.) घाई डारबौ, पहेली न बुझापने की स्थिति में अपनी तरफ से एक पहेली पहले ही प्रस्तुत कर देना।

घाँई :: (वि.) संबंध जैसा, समान।

घाउघप :: (वि.) माल हजम करके चुप हो जाने वाला।

घाग :: (सं. स्त्री.) पुराना गहरा घाव।

घाग :: (वि.) अत्यंत चालाक।

घाँगड़ :: (सं. पु.) एक जाति।

घाघ :: (सं. पु.) चालाक, चतुर, एक चतुर अनुभवी कवि का नाम।

घाघरा :: (सं. पु.) लहँगा।

घाघरा :: (सं. पु.) घाघरी।

घाँघरी :: (सं. स्त्री.) एक फोड़ा।

घाट :: (सं. पु.) नदी का वह स्थान जहाँ से पार किया जा सके, तालाबों, नदियों पर स्नान योग्य बनाये गये स्थान, जलाशय का तट, तंगपहाड़ी मार्ग, घाट घाट को पानी पीबो-भांति भांति के कुकर्म करना।

घाटा :: (सं. पु.) हानि, घटी।

घाटा :: (वि.) कम।

घाटी :: (सं. स्त्री.) दो पहाड़ों के बीच का तंग रास्ता, दर्श, गला, गले के अन्दर का भाग, टेंटुआ।

घाटौ :: (सं. पु.) नुकसान, घटी, कमी, न्यूनता व्यापार में हानि, एक वृक्ष।

घाड़बो :: (सं. पु.) चोरी करना, आँख बचाकर उठा लेना।

घात :: (सं. स्त्री.) किसी कार्य को सिद्ध करने के लिये उपयुक्त अवसर, नाश, प्रहार, चोट, वध, छल।

घात लगाबो :: उपयुक्त अवसर की तलाश करना।

घातक :: (सं. पु.) हत्यारा।

घाती :: (वि.) नशा करने वाला, धोखे बाज, क्रूर।

घाती :: (सं. स्त्री.) घातिनी।

घाँदबौ :: (क्रि.) अपनी-अपनी चलाना, छोटी और कम हवादार जगह में बन्द करना, अपर्याप्त स्थान में कई लोगों को एक साथ रखना।

घान :: (सं. पु.) उतनी मात्रा जो कढ़ाई में एक बार में तली या भूनी या पकायी जा सके या पीसी जा सके।

घानी :: (सं. स्त्री.) तिलहन की उतनी मात्रा जो कोल्हू में एक बार में पेरी जा सके।

घाम :: (वि.) धूप गरमी।

घामा :: (सं. पु.) एक चमकीला नीला वस्त्र जो प्रकाश पड़ने पर और अधिक चमकता है।

घायल :: (वि.) जख्मी।

घार :: (सं. स्त्री.) केलों की छौद, केले का डण्ठल जिस पर सैकड़ों केले लगे हों, नदी का किनारा लुघाँती में प्रयुक्त।

घाराबो :: (क्रि.) गरजना।

घारौ :: (सं. पु.) ढोलक आदि का ढाँचा, ढोलक का लकड़ी का पोला भाग जिसके दोनो सिरों पर चमड़े की पल्ली लगाई जाती है। फिर बजने लायक होती है।

घाल :: (वि.) आहत, जख्मी, घायल घाल के संयोजक बल्कि।

घाल :: दे. घालक।

घालक :: (सं. पु.) जख्मी मारने वाला, नाश करने वाला।

घालक :: (सं. स्त्री.) घालका।

घालना :: (क्रि. स.) मारना, नाश करना, डालना, फेंकना, बिगाड़ना।

घालमेल :: (सं. पु.) मिलावट, गड्बड, गड्डबड्ड।

घाव :: (सं. पु.) व्रण चोट या फोड़े आदि से शरीर का क्षत भाग, लकड़ी फलों आदि पर क्रमशः कुल्हाड़ी छुरी आदि का निशान।

घाँसबौ :: (क्रि.) जानवरों का खाँसना, ठँस-ठूँस कर भरना।

घासलेट :: (सं. पु.) मिट्टी का तेल, वनस्पति।

घाँसलेट :: (सं. पु.) मिट्टी का तेल, वनस्पति घी।

घाँसलेटी :: (वि.) नकली, घटिया।

घिउ :: (सं. पु.) घी का पुराना, प्रयोग अब भी विरल प्रयोग पाया जाता है।

घिग्गी :: (सं. स्त्री.) बाक् शक्ति, घिग्गी बाँधबौ, वाक शक्ति का अवरूद्ध होना।

घिघियाना :: (क्रि. अ.) गिड़गिड़ाना।

घिची :: (सं. स्त्री.) गर्दन।

घिंची :: (सं. स्त्री.) गला, गर्दन।

घिच्च :: (सं. पु.) गर्दन पर हाथ से लगातार दिया जाने वाला धक्का, घिच्चा।

घिटला :: (सं. पु.) सुअर का नर बच्चा।

घिटलिया :: (सं. स्त्री.) सुअर का मादा बच्चा।

घिटिया :: सुअर का मादा बच्चा सुअर।

घिन :: (सं. स्त्री.) अरूचि, गंदी वस्तु को देखकर जी मिचलाना।

घिनयाट :: (सं. स्त्री.) घृणा, नफरत।

घिनयादौ :: (वि.) मैला, कुचैला, घृणा योग्य।

घिनयाबौ :: (क्रि.) घृणा करना, नाक भौं सिकोड़ना।

घिनयाँयदो :: (वि.) दरिद्र, घिनहा।

घिना :: (वि.) घृणित गन्दा रहने वाला, गन्दी आदतों वाला, कंजूस।

घिनाँद :: (सं. स्त्री.) घृणा।

घिनाना :: (क्रि.) घन करना, घृणा करना।

घिनाबो :: (अ. क्रि.) घृणा करना, नफरत करना।

घिनावना-घिनौना :: (वि.) जिसे देखकर घिन लगे।

घिनोंची :: (सं. स्त्री.) पीने का पानी रखने का स्थान पानी का घड़े रखने का स्थान।

घिनोंना :: (वि.) घृणा उत्पन्न करने वाला, घृणित।

घिनौची :: (सं. स्त्री.) पानी से भरे बर्तन रखने का स्थान।

घिया :: (सं. स्त्री.) लौकी, एक प्रकार की तरकारी।

घियाड़ी :: (सं. स्त्री.) घी रखने का मिट्टी का पात्र।

घियातुरई :: (सं. स्त्री.) एक शाक का नाम एक बेल जिसके फलों की तरकारी बनती है।

घियाँद :: (सं. स्त्री.) खराब घी जैसी गन्ध।

घिरनी :: (सं. स्त्री.) गरारी, चरखी।

घिरबौ :: (अ. क्रि.) घेरे में छाना, घिरना, चारों ओर से इकटठ्ठे होना, घिरना, चक्कर में आना।

घिराई :: (सं. स्त्री.) घेरने की क्रिया या भाव पशुओं को चराने का काम या मजदूरी।

घिराबो :: (स. क्रि.) घेरने का काम किसी से कराना, चरते चौपायों को इकट्ठा करना।

घिराव :: (सं. पु.) घेरना, या घिरना, घेरा।

घिर्रक :: (सं. स्त्री.) घर्षण, बच्चों द्वारा दोनों हाथों से पकड़ कर दूसरे के धागे पर रगड़ कर काटने की स्पर्धा करते हैं।

घिसघिस :: (सं. स्त्री.) काम में देरी या ढील, घिसघिस करबो-फिजूल, जिद।

घिसटबौ :: (क्रि.) घसिट घसिट कर चलना।

घिसना :: (क्रि. स.) रगड़ना, रगड़ खाकर कम होना।

घिसना :: (सं. पु.) हाथ पैरों का मैल साफ करने का पत्थर या खपड़िया या थकी सूखी गिलकी की जाली।

घिसबाबो :: (स. क्रि.) रगड़वाना, घिसवाना।

घिसबौ :: (अ. क्रि.) रगड़ना या रगड़, खाकर कम होना मैल छुटाना रगड़ना, चन्दन गारना।

घिसाई :: (सं. स्त्री.) घिसने का काम या भाव, घिसने की मजदूरी।

घिस्सा :: (सं. पु.) रगड़, रद्द, धक्का।

घी :: (सं. पु.) घृत, दूध, वसायुक्त सार।

घीउ :: (सं. पु.) घृत, घिउ।

घीउ :: दे. घी।

घीगट :: (सं. स्त्री.) चिकनाई लगते रहने के कारण गन्दगी की पर्त, किसी सतह पर लगी ही चिकनाई।

घींच :: (सं. स्त्री.) गर्दन।

घींच :: दे. घिची।

घुआ :: (सं. पु.) किबाड़ों को लगाने के छेद, चूल, छेदों, फँसाने के लिये किबाड़ों में बनाये गये खँट।

घुआरा :: (सं. पु.) उल्लू, एक पक्षी जिसको प्रकाश में दिखता नहीं है ये कई प्रकार से बोलता है लक्ष्मी का वाहन।

घुंइँयाँ :: (सं. स्त्री.) अरबी, अरई एक कन्द जो शाक के काम आता है।

घुकइया :: (सं. स्त्री.) छोटी टोकनी।

घुकवारों :: (सं. पु.) गोल तथा गहरे आकार की बाँस की टोकरी।

घुँगटा :: (सं. पु.) घूँघट, लोक गीत।

घुँगरारे :: (वि.) घुँघराले।

घुँगरिया :: (सं. स्त्री.) फल तोड़ने के लिये बाँस जिसके एक सिरे पर छोटी सी लकड़ी कर्णवत् बाँध कर आँकड़ा बनाया जाता है।

घुंगरियाँ :: (सं. स्त्री.) पैरों का एक आभूषण जिसमें चपटे घुँगरूओं की एक कतार होती है, अब अप्रचलित, उबले हुए गेहूँ और चना, कोंरी।

घुँगरूँ :: (सं. स्त्री.) नृत्य के समय पैरों में बाँधी जाने वाली चौड़ी पट्टियाँ जिसमें छोटी छोटी घटियाँ लगी रहती है।

घुगरूदार :: (वि.) जिसमें घुँघरू लग हों, घुँघरू वाला।

घुग्घू :: (सं. पु.) उल्लू की तरह का एक पक्षी।

घुंघराला :: (वि.) छल्लेदार बाल।

घुंघरू :: (सं. पु.) धातु की बनी गोल बजने वाली गुरिया या गोली।

घुघुआना :: (क्रि. अ.) घुग्घू की तरह बोलना, घूघू करना।

घुघुची :: (सं. स्त्री.) रत्ती, गंजा।

घुँघुँची :: (सं. स्त्री.) भिगोकर तला हुआ अन्न।

घुटउअन :: (सं. स्त्री.) घुटनों तक, घुटनों से।

घुटकी :: (सं. स्त्री.) गले का उठा भाग जिसके दबाने से आदमी मर जाता है, गर्दन का अग्रभाग प्रायः अच्छे अर्थ में प्रयुक्त नहीं होता है।

घुटनयाबौ :: (क्रि.) घुटनों के बल खड़ा होना, कमजोर पड़ जाना, ढीले पड़ जाना, हार मानना।

घुटना :: (सं. पु.) टांग और जाँघ की बीच की गाँठ।

घुटना :: (क्रि. अ.) साँस का रूकना, घोंटा जाना।

घुटन्ना :: (सं. पु.) घुटनों तक का पायजाना, पुरूषों की धोती के पैरों के सामने रहने वाले भाग।

घुटबाना :: (क्रि. अ.) घोंटने का काम कराना बाल मुंडवाना।

घुटबो :: (सं. पु.) साँस रुकना, घबरना, घबराहट।

घुटवाबो :: (स. क्रि.) घोंटने का काम कराना, बाल मुँडाना, पिसवाना, मुण्डन करवाना, सिर के बाल उस्तरे से कटवाना, किसी सतह को चमकवाना।

घुटाला :: (सं. पु.) गड़बड़ी, घपला।

घुटी :: (सं. स्त्री.) कुहनी या घुटने का आघात, बच्चों को पाचन के लिये पिलाई जाने वाली दवा।

घुट्टेरा :: (सं. पु.) इस्तेमाल के कारण बारीक हुआ पुआल।

घुड़कना :: (क्रि. स.) धमकाना, डाँटना।

घुड़कर :: (सं. स्त्री.) धमकी, फटकार।

घुड़की :: (सं. स्त्री. हि.) घुड़कना।

घुड़ला :: (सं. पु.) छोटा घोड़ा, घोड़ा लोकगीत।

घुड़सवार :: (सं. पु.) अश्वरोही घोड़े का सवार मौ.शब्द।

घुड़सवारी :: (सं. स्त्री.) घोड़े पर सवार होने का भाव।

घुड़सार :: (सं. स्त्री.) घुडसाल, घोड़े बाँधने का स्थान।

घुड़साल :: (सं. स्त्री.) अस्तबल घोड़ों के रहने का स्थान।

घुंडा :: (सं. पु.) गुरिया कला में लगाई जाती है।

घुड़िया :: (सं. स्त्री.) घोड़ी।

घुन :: (सं. पु.) लकड़ी या अनाज को छेदने वाला कीड़ा।

घुनगुनियाँ :: (सं. स्त्री.) फुन्सी, फुड़िया।

घुनचुटया :: (सं. पु.) कंजूस, कृपण, अनुदार।

घुनन :: (सं. पु.) घुन के द्वारा खाये जाने से बना लकड़ी या अनाज का चूर्ण।

घुनना :: (क्रि. अ.) घुन लगना।

घुनबौ :: (क्रि.) घुनना, घुन लगना।

घुनाँदी घुनाँयदी :: (वि.) घुन लगी दाल, घुन लगी।

घुनीता :: (सं. पु.) घुन, चिन्ता लक्ष्णार्थ।

घुनों :: (वि.) घुना हुआ।

घुन्ना :: (वि.) घुनने वाला, ऐसा पुरूष जो मौन दिखे पर बोले सौ की एक बात।

घुन्नू :: (वि.) घुलने वाली।

घुन्नू :: (स्त्री.) जो चुप रहे पर बोले तो सब आश्चर्य चकित हों।

घुन्सी :: (सं. स्त्री.) पैरों में पहना जाने वाला आभूषण, इन्हें प्रायः छोटी जाति की स्त्रियाँ पहनती थीं, ये प्रायः काँसे की बनती थीं, अब चलन से बाहर हैं।

घुप्प :: (वि.) अद्दश्य, विलीन, ओझल, सघन, अंधेरा।

घुमंटा :: (सं. पु.) जी घूमना, चक्कर आना।

घुमंड़ :: (सं. स्त्री.) बादलों का घिरना।

घुमड़बौ :: (अ. क्रि.) बादलों का छा जाना, मेघों का ध्वनि करना।

घुमबौ :: (क्रि.) चक्कर खाना, चक्कर आना।

घुमाबदार :: (वि.) चक्कर दार।

घुमाबो :: (स. क्रि.) घूमने में प्रवृत करना, चक्कर देना, घुमाना।

घुरकबौ :: (क्रि.) नींद में खर्राटें लेना।

घुरघुरा :: (सं. पु.) झींगुर।

घुरघुराना :: (क्रि. अ.) घुरघुर शब्द करना।

घुरचबा :: (सं. पु.) एक घास जिसे घोड़ा खाता है।

घुरदोर :: (सं. स्त्री.) हार जीत के विचार से की जाने वाली घोड़ों की दौड़, घुड़दौड़।

घुरना :: (क्रि. अ.) शब्द करना, घुलना।

घुरबो :: (अ. क्रि.) घुलना, पिघलना, शब्द होना या करना, रोग चिन्ता आदि में दुबला होना।

घुरमोरू :: (सं. पु.) फिकर में लगने वाला एक रोग।

घुरला, घुरवा :: (सं. पु.) घोड़ा।

घुरवा :: (सं. पु.) घोड़ा, घोड़े की आकृति की लकड़ी या पत्थर की खूँटी।

घुरसाल :: (सं. स्त्री.) अस्तबल, घुड़साल।

घुरिया :: (सं. स्त्री.) लोहे के रहँट का एक भाग जिसके नीचे भोंरी का दाँतेदार चक्का घूमता है, पत्थर या लकड़ी की घोड़े की आकृति की खूंटी, घोड़ी।

घुलना :: (क्रि. अ.) गलना, पिघलना, दुर्बल होना।

घुलवाना :: (क्रि. स.) गलवाना।

घुलाना :: (स. क्रि.) गलाना, पिघलना।

घुलावट :: (सं. स्त्री.) गलावट घुलने का काम।

घुल्ला :: (सं. पु.) बच्चों के खेलने का पीतल या लकड़ी घोड़ा।

घुसड़बौ :: (क्रि.) कहीं जबरन घुसना, ठसना, अवांछित प्रवेश।

घुसना :: (क्रि. अ.) भीतर जाना, बीच में आना।

घुसपेट :: (सं. स्त्री.) पहुँच, प्रवेश, घुसपैठ।

घुसबौ :: (अ. क्रि.) भीतर जाना, घँसना, बिना अधिकार कहीं पहुँचना।

घुसाना :: (क्रि. स.) भीतर, डालना, पैठाना, चुभाना।

घुसाबो :: (अ. क्रि.) भीतर घुसेड़ना, घँसाना, भीतर की ओर दबाना।

घुँसी :: (सं. स्त्री.) पैरों का एक प्रकार का आभूषण।

घुसैला :: (वि.) घुसा रहने वाला।

घूंगट :: (सं. पु.) घूँघट, अवगुण्ठन, दरवाजे के आगे निकली कलात्मक महराव, घूँगट उठाबो-मुँह पर परदा हटाना।

घूँगरबारे :: (वि.) घुंघराले, छल्लेदार, उदाहरण-पतली कमर लफ लफी घूँघर वारे बाल।

घूंगरा :: (सं. पु.) एक बजने वाली छोटी घंटी, घुंघरू।

घूंघट :: (सं. पु.) वस्त्र का वह भाग जिससे स्त्रियों का मुँह ढका रहता है, ओट।

घूँघरी :: (सं. स्त्री.) चना, ज्वार, गेंहू आदि के उबले दाने, पैरों का आभूषण।

घूँट :: (सं. पु.) पानी का घूंट पीना, तरल पदार्थ की एक बार में गुटकने योग्य मात्रा।

घूँटना :: (क्रि. स.) घूंट लेना, निगलना।

घूंटबो :: (अ. क्रि.) पीना, पान करना, गले से नीचे उतारना।

घूंटी :: (सं. स्त्री.) देखो घुटी।

घूँटो :: (सं. पु.) घूंटा, घुटना उदाहरण-घूंटो टेकबो-घुटनों के बल बैठना, हार मारना।

घूँटौ :: (सं. पु.) घुटना।

घूम :: (सं. स्त्री.) घूमने का भाव, घुमाव।

घूँम :: (सं. स्त्री.) लहँगे का घुमाव, घुमाव की गोलाई।

घूमना :: (क्रि. अ.) फिरना, चक्कर खाना, यात्रा करना, मुड़ना।

घूमन्तू :: (वि.) घुमक्कड़ घूमने फिरने वाला या वाली जाति।

घूरना :: (क्रि. स.) आँख गड़ाकर बुरे भाव से देखना।

घूरबौ :: (क्रि.) कुद्दष्टि से देखना, आँखें गड़ाकर देखना।

घूरौ :: (सं. पु.) कूड़ा करकट फेंकने का स्थान, यह प्रायः गड्ढे के रूप में होता है, ताकि कचड़ा सड़कर खाद बन जाये।

घूँस :: (सं. पु.) जंगली चूहा।

घूंसबौ :: (क्रि.) बल पूर्वक प्रवेश करना।

घूंसा :: (सं. पु.) मुक्का, मुठ्ठी का प्रहार।

घूंसा :: (बु.) घमूंका।

घेंगा :: (सं. पु.) गले का एक रोग, गलगण्ड।

घेंघा :: (सं. पु.) गले की नली, गले का एक रोग जिससे गाँठ निकलती है।

घेंच :: (सं. पु.) लम्बी, पतली गर्दन।

घेंट :: (सं. पु.) फोड़े में पीप की गाँठ, जब तक यह निकलती नही है मवाद बनना बन्द नहीं होता है, ढलाई के साँचों के मुँह में भरी धातु।

घेंटना :: (सं. पु.) तिली की फली।

घेंटी :: (सं. स्त्री.) चना की फली, चने का फल जिसमें एक या दो दाने होते हैं।

घेंड़िया :: (सं. स्त्री.) घी रखने का छोटा बर्तन।

घेर :: (सं. पु.) किसी वस्तु की वर्तुलाकार लम्बाई।

घेरघार :: (सं. स्त्री.) घेरने का काम।

घेरना :: (क्रि. स.) चारों ओर से घेरना, पीछे फिरना, खुशामद करना।

घेरा :: (सं. पु.) चारों ओर की सीमा, परिधि चारों ओर से घेरने का काम।

घेंवर :: (सं. पु.) एक प्रकार की मिठाई।

घेंसुआ :: (सं. पु.) घोंसला, पक्षियों का तिनकों से बना घर।

घैंगट करबो :: (स. क्रि.) साड़ी या धोती को खींचकर मुँह पर परदा करना।

घैर :: (सं. पु.) अपवाद बदनामी चुगली।

घैरबो :: (अ. क्रि.) गरजने का सा गम्भीर शब्द करना।

घैराबो :: (सं. क्रि.) गरजने को प्रेरित करना, घहराना, चिघाड़ना।

घैलयाबौ :: (क्रि.) भूख, थकान, आदि के कारण लुंज पुंज हो जाना।

घैला :: (सं. पु.) मिट्टी का घड़ा, घेला, मंझोले आकार की गागर।

घैलिया :: (सं. स्त्री.) बहुत छोटे आकार का घड़ा।

घोई :: (सं. स्त्री.) मददगार।

घोकबो :: (वि.) सोच विचार करना।

घोंगा :: (क्रि.) मूर्ख।

घोंघा :: (सं. पु.) छोटा शंख या उसका कीड़ा।

घोंघा :: (वि.) मूर्ख।

घोंच :: (सं. स्त्री.) देशी या पंजाबी जूते का अग्रभाग जिसकी नोंक उपर को मुड़ी रहती है।

घोंचपा :: (वि.) बहुत सीमित ढंग से सोचने वाला, मूर्ख।

घोजी :: (सं. स्त्री.) झूले में बहुत छोटे बच्चों के लिटाने की झोली जैसी।

घोजी :: दे. गोजी।

घोंट :: (सं. पु.) सेजे के फल जो चमड़ा पकाने के काम आते हैं।

घोटना :: (क्रि. स.) बार बार रगड़ना अभ्यास करना, रटना, गला दबाकर साँस रोकना।

घोटना :: (सं. पु.) घोटने का औजार।

घोंटबौ :: (क्रि.) खूब बारीक पीसना, दवा घोंटना, भंग घोंटना, बेबकूफ बनाना, गला घोंटना।

घोटवाना :: (क्रि. स.) घोटने का काम कराना।

घोटा :: (सं. पु.) टेड़ी मूठ की लकड़ी, वह वस्तु जिससे घोटा जाए।

घोंटा :: (सं. पु.) कम लम्बी किन्तु मोटी और मजबूत लाठी, घोंटी गई भाँग।

घोटाई :: (सं. स्त्री.) घोटने का काम या मजदूरी।

घोटाला :: (सं. पु.) घपला, गड़बड़।

घोड़ा :: (सं. पु.) भरतल बन्दूक की टोपी फोड़ने वाला उपकरण, घोटक।

घोड़ा मदान :: (सं. पु.) दे. मदान यौगरूढ शब्द।

घोड़ो पछार :: (स. क्रि.) पानी आदि द्रव्य पदार्थ में कोई वस्तु मिलाना, बच्चों का एक खेल।

घोंपना :: (क्रि. स.) घुसाना, चुभाना।

घोर :: (वि.) भयानक, विकट घना।

घोरूआ :: (सं. पु.) कोदों के आटे को मट्ठा में घोल कर एक प्रकार की गाढ़ी कड़ी या नमकीन लपसी।

घोलना :: (क्रि. स.) द्रव वस्तु में कोई वस्तु मिलाना, वह व्यक्ति जिसे किसी ग्राम्य देवता का आवेश आता है।

घोंसपा :: (सं. पु.) आतिश बाजी का अनारदान।

घोंसला :: (सं. पु.) घास फूंस से बना पक्षियों का घर, नीड़।

घोसी :: (सं. पु.) एक जाति, अहीरों के समकक्ष।

घोसुंआ :: (सं. पु.) घोंसला।

घोसुंआ :: दे. घेसुआ।

घौरा :: (सं. पु.) फलों की पत्तों सहित घौद, पत्तों का झोंका, झोंरा।

 :: हिन्दी वर्णमाला का प्रथम देवनागरी तालव्य वर्ण, इसका उच्चारण स्थान तालु है।

चइयाँ मइयाँ :: (सं. स्त्री.) बच्चों का चक्कर खाने का एक खेल, भाँवर, विवाह की परिक्रमा।

चँईयाँ :: (सं. पु.) आँख मिचौली का खेल, रोटी, उदाहरण-चँईयाँ-मइयाँ-एक खेल, ऊदम देत फिरत लरकन में खेलत चइयाँ। (बुँ.ग्रा.गी.)।

चउ :: (उप.) चार का उपसर्ग। चउअर।

चउ :: (वि.) चार गुना, चौहर, चौहरा, चार पर्तों वाला।

चउंअन :: (वि.) पचास और चार के योग की संख्या।

चउआ :: (सं. पु.) चार की इकाई, चार अंगुल की इकाई, जनेऊ के सूत का नाप करने का लगभग चार अंगुल चौड़ा पटिया, चार के मान वाला ताश का पत्ता। आजकल क्रिकेट में चौका लगाना।

चउदा :: (वि.) दस और चार का योग, चौदह।

चउर :: (सं. पु.) चावल, तंदुल।

चक :: (सं. पु.) खेतों का समूह।

चकई :: (सं. स्त्री.) चक्रवाक पक्षी की मादा।

चकचकौ :: (वि.) तर, बहुतायत से लगा हुआ तेल।

चकचोंदयाबौ :: (क्रि.) भ्रमित होना या करना।

चकड़ा :: (सं. पु.) उड़द की दाल के बरा।

चकती :: (सं. स्त्री.) दे. चकरी।

चकत्तरा :: (सं. पु.) शरीर पर अकौता या दाँतों के काटने से उभरे गोल निशान, दाद खाज के चकत्तरा।

चकनाचूर :: (वि.) टूटकर चूर-चूर हुआ।

चकमक :: (सं. पु.) पत्थर पर रगड़कर आग पैदा करने की लोहे की पट्टी।

चकमा :: (सं. पु.) भुलावा, छल।

चकराबो :: (क्रि.) चक्कर खाना, भ्रान्त होना, चकित होना या करना।

चकरी :: (सं. स्त्री.) बच्चों का एक खिलौना, घूमने वाली आतिशबाजी, उदाहरण-चकरी, भौंरा।

चकरौ :: (वि.) चौड़ा, विस्तृत।

चकवा :: (सं. पु.) चक्रवाक पक्षी का नर।

चका :: (सं. पु.) चाक, पहिया चकवा पक्षी चक्का, उदाहरण-मूंड के लेत ईसुरी भेद देत घर ही को।

चका चक :: (वि.) तृप्त, सन्तुष्ट, अघाया, भरपूर।

चका चोंदी :: (सं. स्त्री.) तेज प्रकाश में या रोग के कारण आँखों को देखने की क्षमता में कमी, चकाचौंध।

चकार :: (सं. स्त्री.) पुराना फोड़ा जो फैलकर चौड़ा हो जाता है।

चकिया :: (सं. स्त्री.) चक्की।

चकील :: (सं. स्त्री.) चक्के को धुरी पर रोके रखने के लिये लगाई जाने वाली कील, चके की खील।

चकुलिया :: (सं. स्त्री.) चकील और चक्के के बीच डाला जाने वाला लकड़ी का बासर, दीवाली में बच्चों द्वारा मिट्टी की छोटी चक्की जो खेलने के काम आती हैं।

चकेरो :: (सं. पु.) कुम्हार, कुम्भहार।

चकैंड़ी :: (सं. स्त्री.) बर्तन बनाते समय चाक के पास रखा जाने वाला बर्तन।

चकोट :: मैदे से बनी एक चपटी खाद्य वस्तु, चके का निशान।

चकोरी :: (सं. स्त्री.) मादा चकोर स्त्री, मैदे से बनी एक चपटी खाद्य वस्तु।

चकौट :: (सं. स्त्री.) चक्का चलने से बना निशान, भूमि पर गाड़ियों के चलने से बना रास्ता।

चकौट याउ :: (सं. पु.) एक पल्ले की पुंगरिया।

चकौटी :: (सं. स्त्री.) चौड़े आकार का एक बड़ा बाँस का पिटारा, खड़े और नीचे ओंठों (किनारा) वाला समतल तली वाला बाँस का बर्तन।

चकौंड़ो :: (सं. पु.) बर्तन बनाते समय चाक के पास रखा जाने वाला पानी का बर्तन।

चकौलें :: (सं. पु.) हँसी मजाक, नौक-झौंक।

चक्क :: (सं. स्त्री.) अनुकूल स्थिति, अतिरक्त संतोषजनक स्थिति, एक भू-स्वामी की एक साथ कृषि भूमि।

चक्क :: (वि.) चकित, प्रसन्न, बहुत बढ़िया।

चक्कर :: (सं. पु.) पहिये के समान गोल वस्तु, फेरा, हैरानी, बखेड़ा, सिर घुमाना, उदाहरण-चक्कर लगाबो-इधर-उधर फिरना, यात्रा करना, असामान्य स्थिति, आकस्मिक व्यवधान, जटिल समस्या, मस्तिष्क का घूम जाना, क्षणिक अचेतावस्था।

चक्का :: (सं. पु.) पहिया, पहिये के समान कोई गोल वस्तु।

चक्की :: (सं. स्त्री.) आटा पीसने का जाँता।

चक्कू :: (सं. पु.) चाकू।

चक्ती :: (सं. पु.) बर्फी, बर्फी का चाकौर टुकड़ा।

चखड़वा :: (सं. स्त्री.) बकवास, बहस।

चखबो :: (अ. क्रि.) चखना, स्वाद लेना।

चखेंड़ी :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष जिसकी टहनियाँ छप्पर बनाने के काम आती है।

चखेरो :: (सं. पु.) वह कुम्हार जो एक बड़े चाक के ऊपर बर्तन तैयार करता है।

चंग :: (सं. स्त्री.) पतंग, दो पंखुड़ियों वाली फिरकिनी, झेला लगी ढपली।

चंग :: (कहा.) चंग पै चढ़ावो - इधर-उधर की बात करके अपने अनुकूल बनाना, मिजाज बढ़ा देना।

चगड़बौ :: (क्रि.) चबा डालना, दाँतों से काट-काट कर आहत करना।

चगन मगन :: (वि.) गुलजार, घूमने की इतनी तीव्र गति कि स्थिर दिखने लगे।

चँगना :: (सं. पु.) चौक, उदाहरण-आव-आव अँगना को को पूजे चँगना। (नौरता)।

चगलबौ :: (क्रि.) चबाना (पान आदि चबाना) हीनार्थ में प्रयुक्त, धीरे-धीरे खाना।

चंगला :: (सं. पु.) एक वर्ग में पच्चीस खाने बनाकर गोटियों से खेला जाने वाला खेल, गोट को आगे बढ़ाने के लिए चार कोंड़ियाँ पार कर अंक निकाला जाता है।

चंगुल :: (सं. पु.) शिकारी चिड़ियों का पंजा, पकड़।

चंगुल :: (प्र.) जिदना हमाए चंगुल में फँसे हम न छोड़े, चंगुल, हथेली की पकड़।

चंगेर :: (सं. स्त्री.) झबला बड़ा डला, बच्चों को लिटाने की बाँस की बड़ी दौरिया, उथली टोकरी इसकी तली दो पर्त की होती है।

चगेल :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की बड़ी टोकरी यह बच्चे को लिटाकर ले जाने और पालना डालने के काम भी आती है।

चँगेल :: (सं. पु.) एक प्रकार का काफी गहरा और सजावट दार बाँस का टोकना, इसका प्रयोग वस्तु रखने तथा बच्चे को लिटाकर झुलाने के लिये किया जाता है।

चंगौ :: (वि.) स्वस्थ, सुन्दर, भलौ-चंगो, शब्द युग्म में प्रयुक्त।

चंचल :: (वि.) स्थिर न रहने वाला, चपल, चुलबुला, नटखट, प्रायः बच्चों के लिए प्रयुक्त।

चंचला :: (सं. स्त्री.) लक्ष्मी, बिजली, चंचल या नटखट बालिका।

चंचलाट :: (सं. स्त्री.) चंचलता, चंचलाई, नटखटपन।

चचिया :: (वि.) चाचा से उत्पन्न, चाचा संबंधी जैसे चचिया सास, चचिया ससुर।

चचेंड़बौ :: (क्रि.) रूक्षता के कारण चमड़ी या ताजे ठीक हे घाव में खिंचाव होना, अकड़ना, क्रोध जताना।

चचेंड़ा :: (सं. पु.) तरोई की जाति का लम्बा पतला सफेद फली जिसका शाक बनाया जाता है एक प्रकार की फली।

चंचोरबो :: (क्रि.) दाँतों से खाकर चूसना, चूसना।

चचोरबौ :: (क्रि.) मुँह में डालकर धीरे-धीरे घुलाना, चूसना।

चट :: (सं. स्त्री.) उतावली, हड़फूटन, रोग के कारण शरीर में दर्द।

चंट :: (वि.) चालाक, बदमाश, बोलने में तथा बुद्धि से तेज।

चट-पट्ट :: (क्रि. वि.) शीघ्रता से, झटपट, हाथों हाथ समाप्त होना।

चट-पट्ट :: (कहा.) चट्ट राँड पट्ट ऐबाती - किसी बात के लिए उतावली मचाने पर कहते हैं।

चटक :: (सं. स्त्री.) चमक-दमक, शोभा, तेजी, फुर्ती।

चटक मकट :: (सं. स्त्री.) बनाव-श्रृंगार, नाज-नखरा, चमक-दमक।

चटकदार :: (वि.) चटकीला, भड़कीला।

चटकनी :: (सं. स्त्री.) किवाड़ बन्द करने के लिये लोहे या पीतल का एक उपकरण सिटकनी।

चटकबौ :: (क्रि.) चट की आवाज के साथ टूटना दरार आ जाना।

चटका :: (सं. पु.) बच्चे, ददारी वस्तु बीच से टूटी हुई।

चटकाबो :: (क्रि.) तोड़ना उँगलियों के पोरे फोड़ना चट-चट शब्द करना।

चटकीलो :: (वि.) चमकदार, भड़कीला, चरपरा।

चटकुआर :: (वि.) फुर्तीला, फुर्तीली।

चटकुल :: (वि.) बनाव श्रृंगार करके रहने वाली चंचल (स्त्री)।

चटकें :: (सं. स्त्री.) व्यंग्य, दूसरे ढंग से बात करना, सीधे न कहकर, घुमाफिरा कर व्यंग्यात्मका कथन।

चटकोरबौ :: (क्रि.) किसी को प्रसन्न करने के लिये अपेक्षा से अधिक सम्मान देना तथा मीठी-मीठी बातें करना, चाटुकारिता करना।

चटकौआ :: (सं. पु.) ज्वार के सूखे डंठलों को छीलकर स्वयं तैयार किये जुंडी के दाने।

चटचटाबौ :: (क्रि.) चिटचिटाना, चिटचिट की आवाज करते तथा स्फुलिंग छोड़ेते हुए जलना।

चटन चटन :: (सं. स्त्री.) शैतान करना अपेक्षा से अधिक वाचालता तथा शैतानी।

चटनी :: (सं. स्त्री.) मिर्च मसालों के साथ पीसी हुई खटाई जो भोजन के स्वाद को रूचिकर बनाती है।

चटपट :: (क्रि. वि.) तुरन्त।

चटबाबो :: (स. क्रि.) चाटने में प्रवृत्त करना, तलवार, छुरी आदि पर सान चढ़वाना।

चटसाल, चटासार :: पाठशाला, विद्यालय, स्कूल।

चटा :: (वि.) जिसके बचपन में ही माँ बाप मर गये हों, एक गाली, खाने के ले हमेशा लालायित रहने वाला।

चटा :: (सं. पु.) व्यवस्था से रखा हुआ लकड़ियों या गुम्मों का ढेर ताकि उनके वजन और गिनती का क्रमशः अनुमान लगाया जा सके।

चटाई :: (सं. स्त्री.) चाटने की एक क्रिया या भाव, बिछाने की चाटई।

चटाका :: (सं. पु.) तेल मिर्च-मसालेदार पका गोश्त।

चटाचट :: (क्रि. वि.) चटाचट आवाज करने वाले चाँटे मारना, रूप में भी प्रयुक्त।

चटाबो :: (क्रि.) चटवाना, चटबावो (बुँ.)।

चटुआ :: (सं. पु.) खजूर के पत्तों का डण्डल जो पेड़ की तरफ चपटा और चौड़ा होता है, पान पर कत्था चूना लगाने की लकड़ी।

चटोंनयाँ :: (वि.) चटोरा, जिसका अपनी जीभ पर काबू न हो।

चटोनियाँ :: (सं. स्त्री.) चटोरेपन को तृप्त करने वाले खाद्य पदार्थ।

चट्टी :: (सं. स्त्री.) चप्पलें, पट्टी दार खड़ाउँ।

चट्टू :: (सं. पु.) चोरी करने वाली स्त्री, खाने की शौकीन, चोरी से खाने की आदत वाली।

चट्टू :: (कहा.) चटू कें ब्याव, भँड़ऊ (सागर तरफ चोट्टी स्त्री को कहते है) न्योतें आई - चटोर स्त्री के यहाँ ब्याह में चोट्टी न्योते आयी, जैसे के यहाँ तैसे ही आते हैं, अथवा जैसे को तैसे मिलते है।

चंडका, चंडी :: (सं. स्त्री.) दुर्गा, दुष्ट और कर्कशी स्त्री।

चड़न :: (सं. स्त्री.) चढ़ने की क्रिया या भाव।

चड़बौ :: (क्रि.) ऊपर जाना, सवार होना, रण में जाना, नदी में बाढ़ा आना, हावी होना।

चड़ा ऊपरी :: (सं. स्त्री.) होड़ प्रतियोगिता।

चड़ाई :: (सं. स्त्री.) चढ़ने के लिए ऊँचाई, युद्ध के लिये अभियान।

चड़ाबों :: (स. क्रि.) नीचे से ऊपर की ओर ले जाना, चढने में प्रवृत्त करना, उन्नति करना, देवताओं को अर्पण करना, सवार कराना, पकने के लिये आँच पर रखना।

चड़ार :: (सं. पु.) एक जाति, बुनकर।

चंडाल :: (वि.) दुष्ट स्वभाव वाला, निर्मम।

चंडाल :: (कहा.) चंडाल चौकड़ी - दुष्टों की जमानत।

चंडालन :: (वि.) दुष्ट स्वभाव वाली, निर्मम स्त्री।

चड़ाव :: (सं. पु.) विवाह की एक रस्म जिसमें वर पक्ष की ओर से मण्डप के नीचे कन्या को आभूषण पहिनाये जाते हैं, इस अवसर पर पहिनाये जाने वाले वस्त्र और आभूषण, कुम्भ, अर्द्धकुम्भ।

चड़ाव :: (कहा.) चढ़ाये की नान - बनी-ठनी-स्त्री जो किसी की संदेश वाहक बनकर आये।

चंडी :: (वि.) उग्र स्वभाव वाली, एक गाली।

चंडी :: (सं. स्त्री.) गाली के रूप में प्रयुक्त।

चंडूल :: (सं. स्त्री.) खाकी रंग की एक चिड़िया।

चंडूलन :: (वि.) दे. चंडालन।

चड़ैत :: (सं. पु.) सवार होने वाला, चढ़ाने वाला।

चड़ैया :: (वि.) चढ़ने वाला, ऊपर जाने वाला।

चड़ोत्तरी :: (सं. स्त्री.) देव स्थान या पूजा स्थल पर अर्पण किया अन्न और धन।

चण्ट :: (वि.) बोलने में तथा बुद्धि से तेज।

चण्डाल :: (वि.) दुष्ट स्वभाव वाला, निर्मम स्त्री, चण्डालन।

चण्डी :: (वि.) उग्र स्वभाव वाली, एक गाली, गाली के रूप में।

चण्डी :: (सं. स्त्री.) दुर्गा देवी का एक विकराल स्वरूप।

चतरई :: (सं. स्त्री.) चतुराई, कुशलता, होशियार।

चतरई :: (कहा.) चतुरई चूल्हें परी - कोई चतुराई काम नहीं आयी।

चतरंग :: (सं. पु.) सेना के चार अंग, हाथी, घोड़े, रथ और पैदल, चतुरंगणी सेना।

चतरंगा :: (वि.) चतुर (व्यंग्यार्थ)।

चतुर :: (वि.) बुद्धिमान, व्यवहार कुशल, निपुण, चालाक, धूर्त, होशियार, अपना हित अहित पहले सोचने वाला।

चतुर :: (कहा.) चतुर कों चौगुनी, मूरख कों सौगुरी - दूसरे की संपत्त्ति चतुर को चार गुनी और मूरख को सौगुनी प्रतीत होती है।

चतुरबेदी :: (सं. पु.) चारों वेदों का ज्ञाता, ब्राह्मणों की एक जाति, चतुर्वेदी।

चतुरभुज :: (वि.) चार भुजाओं वाला।

चतेउर :: (सं. स्त्री.) चित्रकारी।

चतेउरी :: (सं. पु.) चित्रकार।

चंद :: (सं. पु.) चन्द्र, चाँद, शशि, कुछ, थोड़े।

चंद बौरी :: (सं. स्त्री.) हंसी मजाक।

चंदका :: (सं. पु.) रंगाई पुताई या सिंचाई में बीच-बीच में छूटे खाली स्थान।

चंदग्रान :: (सं. पु.) (चन्द्रग्रहण) पृथ्वी की छाया से चन्द्र मण्डल का छिप जाना, पौराणिक मतानुसार द्वारा चन्द्रमा ग्रसन।

चंदन :: (सं. पु.) एक सुगंधित लकड़ी जो घिस कर तिलक लगाने के काम आती है। मलयज, मलय।

चंदना :: (सं. पु.) चबूतरा।

चंदना :: (बु.) चौंतरा।

चंदमनी :: (सं. स्त्री.) चन्द्र कांत, मणि।

चंदमुखी :: (वि.) चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख वाली सुन्दर स्त्री।

चँदरबो :: (वि.) बेवकूफ बनाना, जानते हुए भी अनजान बनना।

चदरा :: (सं. स्त्री.) चादरा, चादर, वस्त्र।

चंदलोक :: (सं. पु.) चन्द्रलोक, चन्द्रमा का लोक।

चंदवंस :: (सं. पु.) क्षत्रियों के दो प्रधान वंशों में से एक।

चंदहार :: (सं. पु.) एक प्रकार का कंठहार।

चंदा :: (सं. पु.) चन्द्रमा, शशि, गोल चद्दर का टुकड़ा, कई व्यक्तियों से थोड़ा-थोड़ा उगाया हुआ धन, अनुदान।

चँदिया :: (सं. स्त्री.) क्षेत्र विशेष, एक सीमित क्षेत्र।

चँदुआ :: (वि.) गंजा, खल्वाट, जिसकी चाँद के बाल झड़ गये हों।

चँदूली :: (सं. स्त्री.) एक भाजी जिसके पत्ते मैथी जैसे होते हैं।

चँदेबा :: (सं. पु.) टोपी के ऊपर का भाग, शामियाना, चाँदनी वितान, चँदोवा।

चँदेरी :: (सं. स्त्री.) चँदेलों की प्राचीन राजधानी।

चँदेलिन :: (सं. स्त्री.) चँदेल जाति की स्त्री।

चनकट :: (सं. स्त्री.) थप्पड़, हल्का सा चाँटा, प्यार से मार गया हल्का चाँटा।

चनखरो :: (सं. पु.) चने का खेत।

चना :: (सं. पु.) एक अनाज जिसका सबसे अधिक विधियों से उपयोग होता है, चणक।

चना :: (कहा.) चनन के धोकें कऊँ मिर्चे न चबा जइयो - चनों के धोखे कहीं मिर्चे मत खा जाना, अर्थात काम उतना आसान नहीं जितना समझ रखा है, समझ बूझ कर हाथ डालना।

चना :: (कहा.) चना चिरौंजी हो रये - चना चिरौंजी की तरह मँहगे हो रहे हैं, अथवा इतने दुष्प्राप्य है कि चिरौंजी की तरह मीठे लगते हैं, खाद्य-वस्तुओं के बहुत मँहगे होने पर कहते हैं।

चनी :: (सं. स्त्री.) वह चना जो पानी में फूलता नहीं है।

चन्दन :: (सं. पु.) एक सुगन्धित वृक्ष, गन्ध द्रव्य जो पूजा में तिलक लगाने के काम आता है। मलय, मलयज।

चन्दा :: (सं. पु.) चन्द्रमा, किसी कार्य के ले थोड़ा-थोड़ा धन एकत्र करना।

चन्देल :: (सं. पु.) कालिंजर और महोबा के इतिहास प्रसिद्ध शासक।

चन्नायके :: (सं. पु.) चाणक्य नीति के दोहे जो आधुनिक शिक्षा पद्धति लागू होने से पूर्व पाठयक्रम का अंग होते थे।

चन्नी :: (सं. स्त्री.) चलनी, छलनी।

चपटा :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की मछली, चपटी नाक वाला।

चपटुवा :: (सं. पु.) एक प्रकार की मटर, इसका चारा पशुओं के लिये पौष्टिक होता है।

चपटौ :: (वि.) दबाब के कारण गोल आकार का दबा रूप, ऊँचाई की तुलना में अधिक चौड़ी आकृति।

चपठुकौ :: (सं. पु.) व्यर्थ की बकवास, निरर्थक बहस, बहस के लिये बहस।

चँपत :: (क्रि. वि.) लुप्त हो जाना, छिप जाना।

चपबो :: (अ. क्रि.) कुचल जाना, दबना, चौपट होना।

चँपबो :: (क्रि.) दबना, लज्जित होना, उपकार से दबना।

चपर गट्ट :: (वि.) सत्यानाशी, अभागी।

चपरबो :: (क्रि.) चुपड़ना, चुपरना, गीली वस्तु से पोतना, दोष छिपाना।

चपरा :: (सं. पु.) चपड़ा, लाख।

चपरास :: (सं. स्त्री.) राजचिन्ह तथा विभाग के नाम से अंकित पट्टा जिसे चपरासी कन्धे से छाती पर पहिनते हैं, पीतल की एक छोटी पट्टी, आरा या आरी के दाँतों को एक छोड़कर एक फुकाना ताकि लकड़ी चलाते समय फँसे नहीं।

चपरासी :: (सं. पु.) सिपाही, प्यादा, कार्यालय के कागज, पत्र लाने ले जाने वाला नौकर, कार्यालय में पत्रवाहक, सन्देशवाहक या अन्य निर्देशित कार्य करने वाला कर्मचारी।

चपरी :: (सं. स्त्री.) वार्निश के काम आने वाले लाख, गेहूँ की नाक (अंकुरण स्थल), से खाना प्रारम्भ करने वाली छोटी इल्ली।

चपला :: (सं. पु.) बड़े आकार की चपिया, चौड़ी पिटार का कम ऊँचा डबला (मिट्टी का छोटा घड़ा) डबला-चपला शब्द युग्म में प्रयुक्त।

चपा :: (सं. पु.) अधदले चने जो थोड़ा पानी डालकर दवा दिये गये हो ताकि दूसरी दलाई में पूरा छिलका निकल सके।

चंपा :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसमें हलके पीले रंग के सुगन्धित फूल आते हैं, इसके पुष्प पर भौंरा नहीं बैठता।

चंपाकली :: (सं. पु.) गले में पहनने का एक गहना।

चपाबौ :: (क्रि.) दबाने का काम कराना, दबाना, चोरी की नियत से किसी वस्तु को चुपचाप रख लेना, किसी वस्तु को ढीला बहाना करेक न लौटाना।

चपिया :: (सं. स्त्री.) विशेष आकार का डबला, दे. चपला। प्रायः दूध, दही, घी रखने के लिए।

चंपू :: (सं. पु.) लोटा।

चपेटबौ :: (क्रि.) तेजी से पीछा करेक भगाना, सीने से लगाकर दबाना, किसी वस्तु को हजम कर लेना (न लौटाना)।

चपेटा :: (सं. पु.) लाख या पत्थरे के घनाकर गुटके जिससे लड़कियाँ सावन में खेलती हैं।

चपोलां :: (क्रि. वि.) जूतों के पिछले भाग को एड़ी के नीचे दबाकर चप्पल जैसा कर लेना, दबे पैरों लचना।

चंपोला :: (सं. पु.) चुपचाप, बिना आवाज किये।

चप्पबौ :: (क्रि.) किसी लेनदारी के न मिलने पर बदले में कोई वस्तु रख लेना।

चबड़-चबड़ :: (सं. स्त्री.) बक-बक अधिक बोलने की क्रिया, उबाने वाली बातें।

चबड़ी :: (सं. स्त्री.) बोलने ओर चबाने के अव्य. हीनार्थ में प्रयुक्त।

चबाई :: (सं. पु.) उपद्रवी, ऊधम करने वाला।

चबाबौ :: (क्रि.) दाँतों से चबाना, दाँतों से आहत करना।

चबालसौ :: (वि.) एक सौ चबालीस (पहाड़े की संख्या बारम्बार चवाल सौ)।

चबालीस :: (वि.) चालीस और चार के योग की संख्या।

चबालौ :: (सं. पु.) बड़ी दरी, फर्श, बिछावन।

चबुआ :: (सं. पु.) दे. चबड़ी, चबाने वाली हाड़ों के ऊपर के गाल, असुन्दर और अप्रीतकर अर्थ में प्रयुक्त।

चबेना :: (सं. पु.) नाश्ते के रूप में चबाने की सामग्री चना-चबेना, भाड़ में भुंजा अन्न चना आदि।

चबौरबौ :: (क्रि.) तर करना, गीली वस्तु पर सूखी वस्तु चिपकाना।

चमक :: (सं. स्त्री.) कोंध, बिजली की कोंध, प्रकाश का प्रत्यावर्तन, लज्जा, शर्म, संकोच, हिचक, झेंप।

चमकबौ :: (क्रि.) लाज लगना, संकोच होना, हिचक होना, कोंधना।

चमकाबौ :: (क्रि.) रगड़-रगड़ कर चमकीला बनाना, लल्जित करना, झेंपाना।

चमकी :: (सं. स्त्री.) सजावट के काम आने वाले चमकीले कण, बूरान।

चमकीलो :: (वि.) चमकदार, भड़कीला।

चमकुल :: (सं. स्त्री.) चमकने वाली स्थिति, अधिक बनाव श्रृंगार करने वाली स्त्री।

चमगादर :: (सं. पु.) एक उड़ने वाला जन्तु जिसकी आकृति चूहे के समान होती है चमगादड़।

चमचमात :: (वि.) चमकीला।

चमचा :: (सं. पु.) चम्मच, भोजन परोसने का एक उपकरण।

चमची :: (सं. स्त्री.) छोटी करछुल, आचमनी, गोल तल वाली चम्मच।

चमचोयलौ :: (वि.) चीमड़, जो मुलायम होते हुए भी टूटने या चबाने में कठिन हो।

चमचोयलौ :: (कहा.) चमचोल के बाप बकलफोर - ऐसी वस्तु जो मुलायम होते हुए भी कठिनाई से टूटे।

चमचोलो :: (वि.) मुलायम किसी कड़ी चीज (खाने की पापड़ आदि) का नमी के कारण मुलायम हो जाने की क्रिया।

चमतकार :: (सं. पु.) आश्चर्य, विस्मय, करामात, विचित्रता।

चमर :: (सं. पु.) चँबर, धूर्त, कंजूस।

चमरयाँद :: (सं. पु.) चमड़े की महक।

चमरयानो :: (सं. पु.) चमारों के रहने का स्थान।

चमरा :: (सं. पु.) चर्मकार, चमार, चमड़ा।

चमरा :: (कहा.) चमार के कोसे ढोर नहीं मरत।

चमरी :: (सं. स्त्री.) चमड़ा, खाल, त्वचा।

चमरौटा :: (सं. पु.) चमड़े के बने हुए पट्टे।

चमरौरा :: (सं. पु.) चमारों का मुहल्ला, एक जाति के लोगों की बस्ती।

चमरौला :: (सं. पु.) चमारों का मुहल्ला।

चमल :: (सं. पु.) एक नदी जो विन्ध्याचल पर्वत से निकलकर यमुना में मिलती है, चंबल।

चमलकठौ :: (सं. पु.) चम्बल नदी का काँठा चम्बल के आसपास का क्षेत्र।

चमाचम :: (वि.) खूब चमकता हुआ, प्रकाश करने वाला, झलक युक्त।

चमार :: (सं. पु.) एक जाति जो चर्म उद्योग करती है चर्मकार।

चमीट :: (सं. स्त्री.) दो कड़ी वस्तुओं के बीच किसी कोमल वस्तु के कड़ाई से दबने की क्रिया।

चमीटबौ :: (क्रि.) चमीट लगाना, दबाना।

चमीटा :: (सं. पु.) आग पकड़ने या किसी भी गर्म वस्तु को पकड़ने के लिये पाँत का बना उपकरण, चिमटा साधुओं का हथियार।

चमीटी :: (सं. स्त्री.) बारीक काम करने का छोटा सा नुकीले छोरों वाला चिमटा, चिमटी।

चमेलिया :: (वि.) चमेली के फूल के रंग का।

चमेली :: (सं. स्त्री.) माधवी लता, सुगन्धित पुष्पों वाली एक बेल।

चम्पई :: (वि.) हरीतिमा लिये हुए पीला रंग, चम्पा के पके पुष्प के समान (रंग) चम्पर्क वर्ण।

चम्पकली :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के गले का आभूषण।

चम्पत :: (क्रि.) गायब, कुछ लेकर या धोखा देकर भागना।

चम्पत :: (सं.) क्रियार्थक।

चम्पतरा :: (सं. पु.) पन्ना के प्रसिद्ध बुन्देली वीर छत्रसाल के पिता।

चम्पा :: (सं. पु.) एक सुगन्धित पुष्प, इसके पास भौंरा नहीं आता है।

चम्पा :: दे. चम्पा तोमे तीन गुण, रूप रंग अरूवास, अवगुन तो में एक है भ्रमर न आवत पास।

चम्बल :: (सं. स्त्री.) म.प्र. और राजस्थान की सीमा पर बहने वाली एक नदी, चर्मण्वती, चम्बल के बीहड़ों ने इतिहास को अनेक मोड़ दिये हैं।

चम्बू :: (सं. स्त्री.) खरबूजे की फँको के अनुरूप डिजायन वाला लोटा, चिमरया लोटा, बेद कालीन लोटे की डिजायन।

चम्बोदर :: (सं. स्त्री.) चमगादड़, स्तनपायी किन्तु पंखों वाला जानवर।

चम्मक :: (सं. स्त्री.) लकड़ी के दो अर्द्धवृत्ताकार छेदों वाले शहतीरों से बना, मनुष्य के पैरों को फँसा कर सजा देने वाला यंत्र।

चरइ :: (सं. स्त्री.) पशुओं को बाँट खिलाने या पानी पिलाने की लकड़ी या पत्थर की चौकार कुण्ड़ी।

चरकटा :: (सं. पु.) चारा काटने वाला व्यक्ति, तुच्छ व्यक्ति।

चरखरौ :: (सं. पु.) लकड़बग्घा।

चरखरौ :: दे. अदलेंड़ौ।

चरखा :: (सं. पु.) हाथ से सूत कातने का एक यंत्र, कुएँ से पानी निकालने का एक यंत्र, सूत कातने का समुन्नत यंत्र।

चरखा :: (कहा.) चरखा अब नई चलत - यह शरीर अब नहीं चलता।

चरखारी :: (सं. पु.) एक प्राचीन जागीर वह महाराज छत्रसाल के राज्य के विभाजन में जगराज को प्राप्त हुई थी।

चरखी :: (सं. स्त्री.) गन्ना पेरने का यंत्र, आतिशबाजी का एक प्रकार, घिरनी, छोटा चरखा।

चरचटया :: (वि.) शैतानी करने में बुद्धि का दुरूपयोग करने वाला, हर प्रकार की शैतानी करने वाला।

चरचराटौ :: (सं. पु.) आतंकपूर्ण प्रभाव, भयजन्य मान्यता।

चरचा :: (सं. पु.) जिक्र, वर्णन, वार्तालाप, अफवाह।

चरत्तर :: (सं. पु.) चरित्र, बुरा चरित्र, छल पूर्वक आचरण, नखरेबाजी (चिरत्तर)।

चरन :: (सं. पु.) पैर (पूज्य भाव युक्त प्रयोग) चन्नन, चरनन (बहुवचन)।

चरपट :: (सं. स्त्री.) भाग-दौड़, एक दूसरे का पीछा करके, वस्तुओं का रौंदा जाना।

चरपटया :: (वि.) भाग दौड़ कर शैतानी करने तथा वस्तुओं को नष्ट करने वाला।

चरपेट :: (सं. पु.) दे. दबाब।

चरपेटबौ :: (क्रि.) पीछा करके भगाना, विवश परिश्रम के लिये, स्थिति पैदा करना, सीने से लगाकर दबाना, सावधानी, और मजबूती से किसी वस्तु को अपने अधिकार में लेना।

चरपेटबौ :: दे. चपेटबौ।

चरपेटा :: (सं. पु.) बहुत अधिक (भूख)।

चरबाँक :: (वि.) ऋणम कृत्वा घृतम पिबेत, के सिद्धान्त को मानने वाले चार्बाक की तरह भोगवादी, खाने पीने और सुख भोग के लिये कुछ भी करने वाली, पुंश्चली (स्त्री) निर्लज्ज।

चरबी :: (सं. स्त्री.) बसा, माँस के ऊपर और चमड़ी के नीचे वाला चिकना पदार्थ, शरीर का एक आवश्यक अवयव।

चरबैया :: (वि.) चरने वाला, चराने वाला।

चरबौ :: (क्रि.) पशुओं का घास आदि खाना, मनुष्य का पशुओं की तरह खाना, अधिक खाना (व्यंग्यार्थ)।

चरमराबो :: (अ. क्रि.) चरमर शब्द होना या करना।

चरवदयाव :: (सं. स्त्री.) वाचालता, बकवास, अधिक बातें करना, बहस के ले बहस, सुनने वाले को उबाने वाली बातें।

चरस :: (सं. पु.) वह चमड़े का थैला जिससे सिंचाई करते है।

चरस :: (सं. स्त्री.) गाँजे के वृक्ष का गोंद जिसे नशेबाज पीते हैं, धूम्रपान करने का एक मादक पदार्थ।

चराई :: (सं. स्त्री.) खिलाई, पशु चराने के लिये दिया जाने वाला परिश्रमिक।

चराबौ :: (क्रि.) अपनी देखरेख या चरवाहे की देखरेख में पशुओं को चराना।

चरित्तर :: (सं. पु.) चरित्र, आचरण, व्यवहार, चालचलन, क्रिया कलाप।

चरी :: (सं. स्त्री.) हरी ज्वार का चारा, लकड़ी आदि लगाकर बनाया गया पशुओं का भूसा, चारा डालने का स्थान ताकि वे उसे फैला न सकें।

चरू :: (सं. स्त्री.) चारागाह, चराने का कर, पशुओं को चराने को सरकार या किसी को दिया जाने वाला कर।

चरूआ :: (सं. पु.) चौड़े मुंह का मिट्टी का पात्र जिसमें सद्यः प्रसूता के लिये औषधि युक्त पानी गरम करते हैं, उदाहरण-चरूआ धरबो-प्रसूता के लिये औषधि डालकर पान गरम करने की रीति।

चरेरू :: (सं. पु.) फसलों को हानि पहुँचे वाले पशु पक्षी (प्रायः पक्षियों के लिये प्रयुक्त)।

चरेरे :: (वि.) चरने वाला, चराने वाला, कठिन।

चरौखर :: (सं. स्त्री.) पशुओं को चराने के लिये भूमि।

चरौंटी :: (सं. स्त्री.) चलते समय चर्र-चर्र की आवाज करते है, ये जूते चरौटी दार जूते कहलाते हैं, देशी जूतों के तल्लों में कनुआ नाम के फल को कुचलकर भर दिया जाता है जिससे चलते समय चर्र-चर्र की आवाज करते हैं।

चर्चबौ :: (क्रि.) रहस्य का अनुमान करना, भेद का अनुमान लगाना, परिस्थितियों के आधार पर गुप्त वस्तु या बात का अनुमान लगाना।

चर्चा :: (सं. स्त्री.) वार्तालाप, ज्ञानचर्चा, अपवाद, बदनामी।

चर्बी :: (सं. स्त्री.) दे. चरबी, वसा।

चर्राबौ :: (क्रि.) खुश्की के कारण चमड़ी पर खिचाव का अनुभव होना।

चल :: (वि.) चलायमान, गतिशील, जंगम।

चल वैया :: (सं. पु.) चलने या चलाने वाला।

चलउआ :: (सं. पु.) गौना (द्विरागमन) की विदा करवाने वाले मेहमान।

चलती :: (सं. स्त्री.) प्रभाव, लोगों के मन पर की की व्यक्तिगत धनाढ्यता, शक्ति अधिकार या प्रतिष्ठा के कारण प्रभाव, मान्यता, अन्यथा काट-कबाड़ का ढेर है, ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त किसी बात लोग मानते हों अथवा।

चलती :: (कहा.) चलती रोजी पै लात मारत - मूर्खतावश बँधी-बँधायी नौकरी छोड़ते हैं।

चलती :: (कहा.) चलती का नाव गाड़ी गाड़ी जब तक चलती है तभी तक गाड़ी है।

चलती :: (कहा.) चलती का नाव गाड़ी गाड़ी जब तक चलती है तभी तक गाड़ी है।

चलतू :: (वि.) प्रचलित, काम चलाऊ।

चलन :: (सं. पु.) रिवाज, व्यवहार में रहना।

चलना :: (सं. पु.) गेंहू आदि अनाज छानने की बड़ी छन्नी।

चलनी :: (सं. स्त्री.) आटा छानने की छोटी छन्नी।

चलनी :: (कहा.) चलनी में दूद दोयें, कपारै खोर देयें - चलनी में दूध दुहते है, और दोष देते हैं भाग्य को।

चलबो :: (स. क्रि.) चलने में लगना, गति देना, जातिगत व्यवहार में लाना, मान्यता मिलना, गतिशील होना, व्यवहार में आना।

चलबो :: (कहा.) चलत बैल खों अरई गुच्चत - बैल हाँकने की लकड़ी जिसमें एक नुकीली कील और चमड़े की बधियाँ लगी रहती हैं, काम करते हुए आदमी को छेड़ते हैं।

चला :: (सं. पु.) दे. चलती, प्रभाव, रिवाज।

चलाचल :: (वि.) चराचर, जड़-जंगम।

चलाचली :: (सं. स्त्री.) चलने की तैयारी, मृत्युबेला।

चलाब :: (सं. पु.) दुलहन का पहली बार ससुराल आना, गौना, द्विरागमन।

चलाब :: (कहा.) चलौनयाऊ हो रई - गौने में आई हुई नववधू बहुत सजी-बजी स्त्री के लिए।

चलीसा :: (सं. पु.) चालीसा पद्यो का संग्रह, चालीसा, उदाहरण-हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा आदि।

चलैया :: (सं. पु.) चलने वाला।

चलोंनया :: (सं. पु.) दे. चलउआ।

चलोनयाउ :: (वि.) गौने में आयी वधू।

चलौआ :: (सं. पु.) दे. द्विरागमन में वर पक्ष वालों के साथ लड़की वालों के घर जाने वाला गौने से सम्बन्धित।

चलौनी :: (सं. स्त्री.) विदा करना, लड़की को द्विरागमन में ससुराल, भेजना।

चलौवा :: (सं. पु.) द्विरागमन में जाने वाला।

चल्लाँ :: (सं. पु.) दालें छानने का छन्ना।

चल्लीं :: (सं. स्त्री.) आटा छानने की छननी, चलनी।

चल्लीं :: दे. चलनी।

चल्लोंसन :: (सं. पु.) आटा छानने से बचा चोकर।

चव :: (सं. पु.) मिट्टी की कच्ची दीवार के लगभग डेढ़-डेढ़ फुट ऊँचाई के पर्त।

चसन :: (सं. स्त्री.) टकराव।

चस्का :: (सं. पु.) किसी वस्तु का स्वाद अच्छा लगने के कारण बार-बार उसको पाने की इच्छा, लत।

चस्मा :: (सं. पु.) दो कड़ियों के बीच की दूरी, देखने का उपकरण।

चँहचट :: (सं. स्त्री.) कूंडा।

चहल्लम :: (सं. पु.) मुहर्रम से चालीसवें दिन होने वाली एक रस्म, मरने के बाद का चालीसवाँ दिन एवं उसकी रस्म।

चहोतरा :: (सं. पु.) चबूतरा, चोंतरा (बुँ.)।

चाँइ-माँइँ :: (सं. स्त्री.) बच्चों का एक खेल जिसमें बच्चे फिरकियाँ खाते हैं।

चाई :: (सं. स्त्री.) खोपड़ी पर होने वाला एक प्रकार का चर्मरोग।

चाँउर :: (सं. पु.) तन्दुल, चावल, पके हुए चावल, भात।

चाँउर :: (कहा.) चाँउर परे चमार घर, सो दए मठा में बोर।

चाँए :: (अव्य.) चाहे, यदि इच्छा हो, यदि उचित हो।

चाँओर :: (सं. पु.) चावल, तन्दुल।

चाक :: (सं. स्त्री.) पवित्रता के लिए छोटा क्षेत्र निर्धारित करने के लिए खीचीं गयी राख की रेखा, पहिया, कुम्हार का पहिया, खड़िया।

चाकर :: (सं. पु.) नौकर, सेवक।

चाकरी :: (सं. स्त्री.) नौकरी, सेवा का दायित्व।

चाचर :: (सं. पु.) लगभग एक हाथ लम्बे लकड़ी के नौंकदार डण्डे जिनसे सैरो खेला जाता है, मोनियाँ नृत्य भी चाचर की ताल पर होता है।

चाट :: (सं. स्त्री.) नीचे स्थान से पानी उठाकर ऊँचे स्थान पर सिंचाई करने का एक साधन, खट्टे-चटपटे स्वाद वाले कुछ विशिष्ठ खाद्य सामग्री, चाट पकौड़ी।

चाँट :: (सं. पु.) लत, आदत।

चाटबो :: (क्रि.) जीभ फेरना, खा जाना, व्यंग्यार्थ।

चाटबो :: (प्र.) ऊनें हलकेइ में मताई बाप चाट लए ते, सर्वनाश करना, चाटना।

चाँटो :: (सं. पु.) थप्पड़, तमाचा।

चाड़ी :: (सं. स्त्री.) अनाज बोने की पोल लकड़ी।

चाँड़ौ :: (वि.) तेज, उतावला, खाने को सदा तत्पर।

चाँद :: (सं. पु.) चन्द्रमा, शशि, गंजी खोपड़ी का मध्य भाग, शरीर का शीर्ष भाग, सिंचित या जुते खेत में कहीं छूट गया भाग।

चाँदनी :: (सं. स्त्री.) चाँद का उजला, ज्योत्सना, कौमुदी, सफेद चादर जो छप्पर के नीचे सटाकर लगायी जाती है अथवा जमीन में बिछाई जाती है।

चाँदा :: अर्द्धवृत के आकार की एक प्रकार की पीतल आदि की पटरी जिससे भूमिति के लिए कोण आदि नापे जाते हैं।

चाँदी :: (सं. स्त्री.) रजत, एक कीमती सफेद धातु पैर में लगे हुए पुराने काँटे के चारों ओर बन जाने वाली गाँठ।

चाँदी :: दे. चाँइँ।

चाँदी :: (कहा.) चाँदी कौ जूता मारबो - पैसा खर्च करके काम बनाना।

चाँदो :: (सं. पु.) छत, ऊँचा स्थान।

चानक :: (सं. पु.) एक नीतिज्ञ जो सम्राट चन्द्रगुप्त का मंत्री था, कौटिल्य चाणक्य।

चानडार :: (सं. पु.) डोम, खपच, पतित, मनुष्य गाली, चाण्डाल।

चाँने :: (क्रि.) चाहिए।

चाप :: (सं. स्त्री.) दबाब, आहट।

चापचा :: (सं. पु.) भूमि में धन गाढ़ने की हौदी, कुँए की जगत पर दो त्रिभुजाकार दीवारों से बनाई गयी चरसा खींचने की हौदी।

चापबो :: (अ. क्रि.) दबाना, मींडना, चबाना।

चाँपबो :: (क्रि.) दबाना, चोरी से किसी वस्तु को रख लेना, किसी लेनदारी के विरूद्ध किसी की वस्तु को न लौटाना।

चापर :: (सं. पु.) मोटा चोकर जिसमें आटे का अंश अधिक हो।

चापलूस :: (वि.) चाटुकार, मिठबोला।

चापलूसी :: (सं. स्त्री.) चाटुकारिता।

चाब :: (सं. स्त्री.) चबाने का संस्थान दाँत, जबड़ा आदि।

चाबबो :: (क्रि.) दाँतों से कुचल कर खाना चबाना, खाना, खूब भोजन करना।

चाबी :: (सं. स्त्री.) ताली, कुंजी, चाभी, फनर भरने का यंत्र या उपकरण, कुंजी।

चाबुक :: (सं. स्त्री.) घोड़े को सिखाने और हाँकने की चाबुक जो फटकारने पर चटाक की आवाज करती है।

चाबो :: (सं. स्त्री.) चाब या उमंग में आना, चाहना, प्रेम करना, माँगना, देखना।

चाभे :: (सं. पु.) चमड़ा।

चामरो :: (सं. पु.) खाल, त्वचा, छाल, ऊपरी आवरण, उदाहरण-चामरो बिगारबो-अधिक मारपीट करना।

चामुख :: (वि.) चार मुखों वाला, चौमुखा।

चामुख :: (क्रि. वि.) चारों ओर।

चाय :: (सं. स्त्री.) इच्छा, अभिलाषा, प्रेम प्रीति, एक प्रकार का पौध तथा उसकी पत्तियों को उबालकर बनाया हुआ पेय।

चाँय-चाँय :: (सं. स्त्री.) बक बक, बकवास, व्यर्थ की बहस।

चार :: (वि.) दो और दो की योग की संख्या आचार, रीति सामासिक पदों में प्रयुक्त जैसे पलकाचर, नेंगचार, द्वारचार, लोकाचार आदि।

चार :: (कहा.) चार चोर, चौरासी बानिया, एक एक कें लूटे - चार चारों ने चौरासी बानियों को एक एक करके लूट लिया, एका न होने से हानि उठानी पड़ती है।

चार :: (कहा.) चार दिना तौ आयें नई भये, और सोंठ बिसाउन लगीं - अभी चार दिन तो ससुराल आये नहीं हुए, और सोंठ अभी से खरीद कर रखने लगीं, किसी अनश्चित कार्य का पहिले से सिलसिला बाँधना।

चारज :: (सं. पु.) देख-रेख, संरक्षण, सुपुर्दगी, जिम्मेदारी, कार्यभार।

चारन :: (सं. पु.) कीर्ति, गायक, भाट, एक जाति।

चारबाक :: (सं. पु.) एक विख्यात नास्तिक, तार्किक, दूसरा चलाया हुआ मत या दर्शन चार्वाक संत।

चारबाक :: (कहा.) चरमाक के चार हींसा - चालाक सदैव मुनाफे में रहताहै।

चारौ :: (सं. पु.) घास, वश, उपाय, चलना।

चाल :: (सं. स्त्री.) कुचक्र, कपट-व्यवहार, गति, चाल-चलन, चाल-ढाल, चलने का तरीका, चलन।

चालन :: (सं. पु.) चापड़।

चालबौ :: (क्रि.) छानने की क्रिया।

चालान :: (सं. पु.) चलने के लिये दूरी, प्रकरण की न्यायालय में प्रस्तुति। शासकीय कोष में नगद राशि जमा करने का प्रपत्र।

चाली :: (वि.) नटखट, ऊधमी, शैतान।

चालीस :: (वि.) दस और चार की गुणित संख्या।

चालीसा :: (सं. पु.) चालीस की इकाई, चालीस छन्दों का खण्डकाव्य, प्रशंसा की बातें। (वर्तमान में प्रचलित हो रहा अर्थ।

चालीसा :: (प्र.) वे जब देखों जब उनई कौ चालीसा पड़त तर)।

चाव :: (सं. पु.) उत्साह, शौक।

चासनी :: (सं. स्त्री.) शक्कर या गुड़ का सीरा, सोने के आभूषणों में प्रयुक्त सोने का नमूने के लिए दिया जाने वाला टुकड़ा।

चाँसबौ :: (क्रि.) लकड़ी को एक दूसरे के साथ मिलाने के लिये यहाँ वहाँ बहुत पतला छिलना किसी को बेवकूफ बनाकर उससे खर्च करवाना या कुछ ले लेना, एक दूसरे के साथ एकदम सटाकर रखना।

चाँसे :: (सं. स्त्री.) बहुत पतली पच्चड़ें।

चाँहना :: (सं. स्त्री.) चाह, प्रेम, चाहने की इच्छा।

चाँहना :: (क्रि.) चाहबौ।

चाहा :: (सं. पु.) एक जल चर पक्षी।

चाहा :: (बुँ.) सिकरवाउ चिरइया।

चिआ :: (सं. पु.) दे. चिआ, इमली, सीताफल आदि के बीज।

चिकचिक :: (सं. स्त्री.) झंझट झगड़ा।

चिकट :: (सं. स्त्री.) तेल के निरंतर सम्पर्क के कारण चिकने मैल की चिपचिपी पर्त।

चिकटबो :: (अ. क्रि.) (हि. चिकट) चिकने मैल की पर्त जमना, जमी हुई मैल के कारण चिपचिपा होना, तेल में मैल मिलकर चिपचिपा हो जाना, चिकट जमना।

चिकटहारो :: (सं. पु.) चीकट लाने वाला।

चिकटा :: (वि.) तनकर टूटने वाला, (गुड़) भीगने पर भुरभुरी न होने वाली काली, (मिट्टी) चिकटा मोटा।

चिकटाँद :: (सं. स्त्री.) चीकट की दुर्गंध।

चिकटाँद :: (वि.) चिकटाँयदों।

चिकन :: (सं. स्त्री.) छेदों वाली कढ़ाई की मलमल या अन्य पतला वस्त्र।

चिकनई :: (सं. स्त्री.) चिकनाई।

चिकनई :: (सं. स्त्री.) चिकनाहट, स्त्रिग्धता, चिकनापन।

चिकनपट्टी :: (सं. स्त्री.) बनाव-श्रृंगार, ऊपरी सज्जा।

चिकनयाबो :: (क्रि.) चिकना करना।

चिकना :: (वि.) घिसा हुआ कंजूस जिस पर ऐसी किसी बात का प्रभाव न पड़े जिससे पैसा खर्च हो।

चिकनाट :: (सं. स्त्री.) चिकना होने का भाव, चिकनाई स्निग्धता।

चिकनियाँ :: (वि.) छैला बाँका।

चिकनो :: (वि.) जो खुरदरा न हो, स्निग्ध खुसामदी।

चिकबो :: (अ. क्रि.) परेशान होना, हैरान होना, थक जाना, गरम चीज से जल जाना, आग से जलना, शाक, भाजी, चावल आदि का बरतन की तह में जलना।

चिकल्लस :: (सं. स्त्री.) वाद-विवाद तर्क-वितर्क।

चिकवा :: (सं. पु.) खटीक, माँस का धन्धा करने वाली एक हिन्दू जाति।

चिक्करबौ :: (क्रि.) किसी कार्य को करने में हार मा कर पीछे हटना।

चिक्कारबो :: (क्रि.) हाथी का चिंघाड़ना।

चिखना :: (सं. पु.) शराब के साथ खाने के लिये नमकीन चिटपिटा खाद्य पदार्थ।

चिखाई :: (सं. स्त्री.) चीखने की क्रिया या भाव, चँखने की उजरत।

चिखानों :: (सं. पु.) चिन्ह।

चिखोंनों :: (सं. पु.) किसी प्रिय स्वाद को बार-बार चखने की इच्छा।

चिगबौ :: (क्रि.) अपने स्थान से थोड़ा-सा हटाना।

चिगलबौ :: (क्रि.) अनिच्छापूर्वक धीरे-धीरे खान।

चिंगा :: (सं. पु.) एक प्रकार की धान इसके दाने का छिलका लाल होता है।

चिगाड़ :: (सं. स्त्री.) हाथी की बोली।

चिगारबो :: (अ. क्रि.) चिल्लाना, हाथी का चिल्लाना।

चिंगारी :: (सं. स्त्री.) चिनगारी, स्फुलिंग।

चिंगी :: (सं. स्त्री.) धान की एक मोटी किस्म, इसके चावल पर लाल पर्त होती है।

चिचयाट :: (सं. स्त्री.) चिल्लाहट।

चिचयाबो :: (क्रि.) चिल्लाना।

चिची :: (सं. स्त्री.) नव प्रस्फुटित स्तन किशोरी के स्तन।

चिट :: (सं. स्त्री.) चोट का निशान जो पक गया हो, रोटी पर थोड़ा सा जलने का निशान, कागज का छोटा टुकड़ा।

चिटक :: (सं. स्त्री.) नारियल की गिरी का टुकड़ा।

चिटकबौ :: (क्रि.) फलियों का सूखने के कारण अपने आप खुलना।

चिटाई :: (सं. स्त्री.) ताड़, खजूर, काँस या अन्य घास पात से बनी बिछावन।

चिटिया :: (सं. स्त्री.) चींटी।

चिटी :: (सं. पु.) साँप की एक जाति जो अजगर के बच्चे के समान होती है।

चिंटी :: (सं. पु.) चिंटा, चिंउटी, पिपीलिका।

चिंटी :: (मुहा.) खों लुलदोइ गाज है-निर्बल व्यक्ति को थोड़ा भार ही बहुत होता है।

चिंटी :: (कहा.) चिंटी कों कन, हाती खों मन - भगवान देता है।

चिंटी :: (कहा.) चिंटी होके घुसे, मूसर होकें कड़े बातें बनाकर अधिकार जमा लेना, और फिर मुश्किल से छोड़ना।

चिंटी :: (सं. पु.) चिंटा।

चिट्ट :: (सं. स्त्री.) रहन-सहन या शरीर की दिखावटी साज-सज्जा।

चिट्ठा :: (सं. पु.) वाणिज्य विषय में संपत्त्ति और देयता की स्थिति का विवरण। वेलेंसशीट।

चिठिया :: (सं. स्त्री.) खत, पत्र, पुरजा, रूक्का।

चिठ्ठा :: (सं. पु.) वेतन, समयबद्ध पारिश्रमिक।

चिठ्ठी :: (सं. स्त्री.) पत्र।

चिड़ :: (सं. स्त्री.) घृणा, विरक्ति, नफरत देखकर उत्पन्न क्रोध का भाव।

चिड़काँबनी :: (सं. स्त्री.) चिढ़ाने के ले कोई बात।

चिड़चिड़ाबों :: (अ. क्रि.) चिढ़ना, झुँझलाना, चिटकना, छोटी-छोटी बातों पर नाराजी प्रकट करना, क्रोध की मौखिक अभिव्यक्ति।

चिड़बाबो :: (स. क्रि.) चिड़ी का गुलाम-विचित्र रहन-सहन और व्यवहार करने वाला।

चिड़बाबो :: (मुहा.) दूसरे से चिढ़ाने का काम कराना, दूसरे से झुँजलाने का काम कराना।

चिड़ी :: (सं. स्त्री.) ताश का रंग, काला फूल, चिड़िया।

चिड़ीमार :: (सं. पु.) बहेलिया।

चिड़ैल :: (वि.) चिढ़ने वाला, चिढ़ने वाली।

चिण्टा :: (वि.) मिठाई खोर।

चिण्टा :: (सं. पु.) मिठाई पर आकर्षित होने वाली काली बड़ी चींटी।

चिण्टी :: (सं. स्त्री.) छोटी चींटी, पिपीलिका।

चितकबरा :: (वि.) एक रंग की पृष्ठभूमि पर दूसरे रंग के धब्बों वाला।

चितभंग :: (वि.) द्विविधापूर्ण स्थिति में विवेक शून्यता, विचलित विचार, कुछ सोचने और कुछ करने की स्थिति में न होना।

चितवन :: (सं. पु.) चिंतन। स्त्री के आखों एवं भौंहों द्वारा देखने की मुद्रा, दृष्टि।

चितसार :: (सं. पु.) चित्रसाला।

चिता :: (सं. स्त्री.) शव-दाह के लिए जमाई गयी लकड़ियाँ।

चिंता :: (सं. स्त्री.) चिंतन, सोच, फिकर, ध्यान।

चिंतामन :: (सं. पु.) सब मनोरथ पूर्ण करने वाला रत्न।

चिताँवनी :: (सं. स्त्री.) चेतावनी।

चितावर :: (सं. पु.) एक जड़ी।

चितुआ-कटुआ :: (सं. पु.) एक खेल।

चितेरो :: (सं. पु.) चित्रकार, चित्र बनाने वाला।

चितैबो :: (क्रि.) देखना, नहारना, अवलोकन, देखना, (आज्ञावादी क्रिया) चितव।

चितौना :: (सं. स्त्री.) देखने का ढंग, चितवन, दुष्टि।

चित्त :: (सं. पु.) ध्यान, आकाश की ओर मुंह किये पड़ा हुआ।

चित्त :: (कहा.) चित्त्तचँदेरी मन मालवे - अस्थिर चित्त।

चित्तकोट :: (सं. पु.) चित्रकूट एक प्रसिद्ध तीर्थ।

चित्रगुपित्त :: (सं. पु.) चित्रगुप्त।

चित्रनी :: (सं. स्त्री.) काम शास्त्र के नुसार स्त्रियों के चार भेदों में से एक।

चित्रपाल :: (सं. पु.) बुन्देलों के एक पूर्वज।

चिथबाबो :: (स. क्रि.) दाँतों से कटवाना।

चिथबो :: (क्रि.) दाँतो से काटा जाना।

चिथरिया :: (वि.) चिथड़े वाला, गूदड़िया।

चिंदरबौ :: (क्रि.) जानते हुए भी अनजान बनना, समझते हुए न समझने का प्रदर्शन करना।

चिंदी :: (सं. स्त्री.) बहुत छोटा टुकड़ा, कपड़े का छोटा टुकड़ा।

चिनक :: (सं. स्त्री.) एक रोग जिसमें थोड़ी-थोड़ी गरम पेशाब बार-बार आती है।

चिनकबो :: (सं. पु.) चिढ़ना।

चिनकाबौ :: (क्रि.) गोंद आदि से चिपकाना, छाती से लगाकर सान्त्वना देना, भयमुक्त करना, प्यार जताना।

चिनगाई :: (सं. स्त्री.) आग का छोटा कण या टुकड़ा, चिनगारी।

चिनगुटिया :: (सं. स्त्री.) छोटी-सी गोल आकृति।

चिनगुटिया :: (वि.) छोटी सी।

चिनचिनाबो :: (क्रि.) बात-बात पर बच्चों का रोना।

चिनचिनों :: (सं. पु.) बुरा लगना, किसी बात की कष्ट दायक प्रतिक्रिया।

चिनबौ :: (क्रि.) ईंट गिलारे आदि से दीवार बनाना।

चिनमिनाबौ :: (क्रि.) घाव पर किसी वस्तु की कष्टदायक प्रतिक्रिया।

चिनमिनी :: (सं. स्त्री.) मन में होने वाली कष्टदायक प्रतिक्रिया।

चिनमुंद :: (वि.) ईट-गारे से चिनकर बन्द किया हा, बिल्कुल अन्धा।

चिनाई :: (सं. स्त्री.) चिनने या दीवार बनाने की क्रिया।

चिनाबो :: (स. क्रि.) चुनबाना, पहचनवाना, परिचित कराना।

चिनार :: (सं. स्त्री.) पहचान।

चिनारी :: (सं. स्त्री.) चिन्न।

चिनारी :: (सं. पु.) निशान, पताका, दाग, धब्बा, चिन्हारी, परिचय, पहचान।

चिनारू :: (वि.) पहचान वाला।

चिनी :: (सं. स्त्री.) चीनी मिट्टी।

चिनूँना :: (सं. पु.) पेट में पैदा होने वाले कृमि।

चिनोंटी :: (सं. स्त्री.) चूना रखने की डिबिया, चूना तम्बाकू रखने की डिबिया।

चिन्ता :: (सं. स्त्री.) फिकर, सोच।

चिन्दी :: (सं. स्त्री.) कागज को नष्ट करने के उद्देश्य से फाड़ा हुआ टुकड़ा।

चिन्ना :: (वि.) रोने की आदत वाला बालक।

चिन्नाम्रित :: (सं. पु.) चरणामृत, पादोदक।

चिपकबौ :: (क्रि.) किसी लसदार वस्तु के माध्यम से दो वस्तुओं का जुड़ना, काफी निकट से सटना।

चिपचिपाबौ :: (क्रि.) चिपचिपाहट होना।

चिपचिपौ :: (वि.) चिपचिपाहट युक्त।

चिपटबौ :: (क्रि.) मजबूती से चिपकना, तल्लीन होकर काम करना।

चिपटी :: (सं. स्त्री.) जूँ के अण्डे।

चिपरबौ :: (क्रि.) रोटी पर घी चुपड़ाना या इसी प्रकार की कोई क्रिया।

चिपरी :: (वि.) चुपड़ी हुई, चपटी।

चिपरी :: (सं. स्त्री.) उल्लू की जाति का ठीक उसी के समान किन्तु आकार में छोटा एक पक्षी।

चिपरौ :: (वि.) चुपड़ा हुआ, चटपट।

चिपार :: झगड़ेल, उदाहरण-इ बउएँ बड़ी चिपार, सास से रोज लरै।

चिप्पी :: (सं. स्त्री.) चिपकाया हुआ कागज का छोटा सा टुकड़ा।

चिमटी :: (सं. स्त्री.) बालों के व्यवस्थइत रखने के लिये स्त्रियों के द्वारा बालों में खुर्सी जाने वाली चिमीटी, एक श्रृंगार साधन।

चिमन :: (सं. पु.) एक ऋषि, च्यवन ऋषि।

चिमनी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी के तेल से जलने वाला बन्द तेल, कोष का दीपक।

चिमरबौ :: (क्रि.) पैर के नीचे मैला, गोबर आदि पड़ जाने के कारण पैर गन्दा होना।

चिमरया :: (वि.) कलीदार, चीमरी, (खरबूजे) के आकार का लोटा गुरिया।

चिमाई :: (सं. स्त्री.) चुप्पी।

चिमानी :: (सं. स्त्री.) चुप्पी, कुम्हलाई।

चिमाबौ :: (क्रि.) चुप्पी साधना।

चिम्मस :: (सं. स्त्री.) अपने स्थान पर हिलना या न के बराबर खिसकना।

चियार :: (सं. पु.) खपरैल के नीचे के आधार रूप में ढाँचा।

चियोंटा :: (सं. पु.) गोबर का एक ढेला।

चिरइ :: (सं. स्त्री.) चिड़िया (लोक सासाहित्य) चिरइ चिरवा, चिरई-चुनधुनी।

चिरइया :: (सं. स्त्री.) चिड़िया।

चिरकबौ :: (क्रि.) थोड़ी-थोड़ी करके पतली टट्टी का अपान वायु के साथ या अपने आप आना।

चिरकाँद :: (सं. स्त्री.) तीखा स्वाद, अधिक बीजों वाले भेटों का स्वाद।

चिरकाँयदों :: (वि.) अधिक बीजों वाला तीखे स्वाद वाला भटा जिसका शाक खाने से मुँह फूल जाता है।

चिरचिटो :: एक घास जिसमें बड़ी-बड़ी बालें होती हैं।

चिरचिरो :: (वि.) जो जरा सी बात पर चिढ़ जाता है, चिड़चिड़ा।

चिरजीव :: (वि.) चिरजीवी, दीर्घजीवी।

चिरपरौ :: (वि.) चटपटा मिर्चो के स्वाद वाला।

चिरपिराट :: (सं. स्त्री.) स्वाद का तीखापन।

चिरबाई :: (सं. स्त्री.) चिरवाने का काम या मजदूरी।

चिरबाबो :: (सं. क्रि.) चीरने का काम करना।

चिरबो :: (अ. क्रि.) सीधे से कटना, लकीर के रूप में घाव होना, चिरना, फटना।

चिरबौ :: (क्रि.) सीधा फटना।

चिरवा :: (सं. पु.) घरों में रहने वाली एक नर चिड़िया, बम्मन चिरईया का नर।

चिरवाँ :: (वि.) आरे से चीर कर बनाया गया, कुल्हाड़ी से फाड़ी हुई लकड़ी।

चिरवाँसाई :: (सं. स्त्री.) दो टूक बात।

चिराई :: (सं. स्त्री.) लकड़ी चीरने की मजदूरी, चीरने की क्रिया।

चिराबौ :: (क्रि.) मुँह विकृत कर या अन्य शब्दों या हाव-भाव से दूसरे को चिढ़ाना, मुँह बिचकाना।

चिरायतौ :: (सं. पु.) एक पौधा जो मलेरिया की दवा के रूप में अनेक प्रकार से काम आता है।

चिरिया :: (सं. स्त्री.) चिड़िया, चिरई (बुँ.) वर्षा का नक्षत्र।

चिरी :: (सं. स्त्री.) चिड़िया, चिरिया, चिरई।

चिरी :: (कहा.) चिरई चौंके, न बाज फरके - घोर निस्तब्धता।

चिरीमार :: (सं. पु.) चिड़िया पकड़ने वाला, बहेलिया।

चिरैयन :: (सं. स्त्री.) चिड़िया, चिरी।

चिरैया :: (सं. स्त्री.) चिड़िया, चिरी, उदाहरण-गुथना खों फटकार उड़ावै गौरी खेत चिरैया।

चिरोंजी :: (सं. स्त्री.) अचार के फल की गुठली के अन्दर की गिरी, एक मेवा।

चिरोल :: (सं. पु.) चीरने वाला, चीड़ने वाला एक वृक्ष।

चिरौरी :: (सं. स्त्री.) अनुनय-विनय, खुशामद।

चिरौल :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष, इसका प्रयोग मलेरिया की दवा के रूप में होता ह।

चिलक :: (सं. स्त्री.) चमक।

चिलकना :: (वि.) चमकीला।

चिलकबौ :: (क्रि.) चमकना, प्रकाश का परावर्तन होना।

चिलकाबो :: (स. क्रि.) चमकाना, उजला करना निखारना।

चिलचिलाबौ :: (क्रि.) क्षीण लौ से दीपक का जलना, थोड़ा सा चमकना।

चिलबिलो :: (वि.) चपल, चंचल, नटखट।

चिलम :: (सं. स्त्री.) धूम्रपान के ले बनाया गया मिट्टी या धातु का उपकरण, चुंकी।

चिलमिलाबो :: (क्रि.) रुक रुक कर होने वाली हल्की सी चमक होना।

चिली :: (सं. स्त्री.) जली हुई रोटी, रहंट का एक लकड़ी का उपकरण।

चिलौ :: (सं. पु.) एक वृक्ष की छाल जो पीस कर दूध के साथ चुरौ कर मोच की दवा के काम आती है।

चिल्लपों :: (सं. स्त्री.) शोर गुल।

चिल्लबो :: (अ. क्रि.) हल्का करना, शोर मचाना, चीखना, कातर ध्वनि करना।

चिल्लर :: (सं. स्त्री.) छुट्टा या फुटकर पैसे।

चिल्लाट :: (सं. स्त्री. बुँ.) चिल्लाबो, चिल्लाने का भाव, कातर ध्वनि, हलका शोर।

चिल्लाटौ :: (सं. पु.) चिल्लाहट, चिल्लाटे कौ घाम (लक्षणार्थ) तेज धूप।

चिहार :: चीत्कार।

चीं :: (निपात) हार की स्वीकृति का निपात।

चीकट :: (सं. स्त्री.) भानजे या भानजी की शादी में बहिन-बहनोई के लिए कपड़े आभूषण आदि।

चीकनों :: (वि.) चिकना, फिसलन, भरा तैलीय पदार्थ में लिपटा हुआ, कंजूस।

चीकनों :: (कहा.) चीकने घैला - ऐसा बेशर्म आदमी जिस पर कोई उपदेश काम ही न करें।

चीकनों :: (कहा.) चीकनों मों करें फिरत - चिकना मुँह किये फिरते हैं, केवल अपना स्वार्थ देखते हैं, अथवा छैल-चिकनियाँ बने हैं।

चीखबौ :: (अ. क्रि.) चीखना, चखना।

चींखबौ :: (क्रि.) स्वाद लेना।

चीज :: (सं. स्त्री.) वस्तु, सोने चाँदी के आभूषण।

चीटा :: (सं. पु.) चिण्टा।

चींटा :: (सं. पु.) चिउँटा, चीटवा, चिंटा, बुँ. चीटां मारो पानी काड़ो-दुर्बल को सताने से क्या लाभ।

चीठा :: (सं. पु.) सुरक्षित स्थान, अपना निजी स्थान, चंगला के खेत में खिलाड़ियों की गोटों के स्थायी और सुरक्षित स्थान।

चीतराँ :: (सं. स्त्री.) चित्रा, पन्द्रवाँ नक्षत्र।

चीतल :: (सं. पु.) नीलगाय।

चीता :: (सं. पु.) गुलबाघ, शेर की जाति का काले धब्बों वाला जानवर।

चींथरा :: (सं. पु.) चिथड़ा, कपड़े का काम न आने योग्य टुकड़ा, फटा पुराना कपड़ा।

चींदरो :: (वि.) वह आईना, जिसके पीछे की कलई आंशिक रूप से उखड़ गयी हो।

चीनबौ :: (क्रि.) पहचानना।

चीनाँ :: (सं. पु.) कोदों के समान भूरा चमकीला एक अनाज।

चीनों :: (सं. पु.) चिन्ह, निशान।

चीप :: (सं. पु.) पुलिस का एक पद, चीफकांस्टेबिल, पत्थर की फर्शी, पत्थर का चपटा टुकड़ा।

चीपरौ :: (वि.) चटपटा, मिर्च के स्वाद वाला।

चीपा :: (सं. पु.) ऐसा स्वप्न जिसमें शरीर एवं वाणी निष्क्रिय हो जाती है।

चीबन :: (सं. स्त्री.) ऐसा दर्द जिसमें अंगो में ऐंठन पैदा हो।

चीबबौ :: (क्रि.) किसी अंग में ऐंठन जैसी पीड़ा होना।

चींभबौ :: (क्रि.) दाँतों से काटना, दाँतो या नाखूनों से फाड़ना, दाँतों से फाड़कर खाना।

चीमरी :: (सं. स्त्री.) खरबूजा।

चीया :: (सं. पु.) इमली का बीज।

चीर :: (सं. स्त्री.) बंजर भूमि पर पहली जोत, वस्त्र।

चीर :: (मुहा.) तेली कैसौ चीर।

चीर फार :: शल्य क्रिया।

चीरबौ :: (क्रि.) व्यवस्थित ढंग से फाड़ना, आरे से लकड़ी चीरन बंजर भूमि को जोतना, लम्बाई में फाड़ना।

चीरा :: (सं. पु.) चेचक का टीका, शल्य क्रिया चीरने से बना निशान, पत्थर का पटिया, चीराबन्दी-भूमि का सीमांकन।

चील :: (सं. स्त्री.) गिद्ध के समान एक माँस भोजी पक्षी जो बहुत ऊँचाई तक उड़ने में समर्थ है।

चील :: (कहा.) चील के घेंचुआ में माँस काँ - चील में घोंसले में माँस कहाँ, उड़ाऊ-खाऊ के पास पैसा कहाँ।

चील झपट्टा :: (सं. पु.) चील की तरह एकाएक झपट कर छीनने की क्रिया।

चीलगाड़ी :: (सं. स्त्री.) वायुयान, हवाई जहाज।

चीलघर :: (सं. पु.) चीड़घर, पोस्टमार्टम रूम, चीर फार।

चीलबटा :: (सं. पु.) नदियों से प्राप्त छोटे-छोटे चमकीले पत्थर।

चीलर :: (सं. पु.) एक स्वेदज जन्तु, वस्त्रों में होने वाले जूं।

चीला :: (सं. पु.) गुड़ से मिले आटे, बेसन या मूंग की पिसी हुई दाल के गाढ़े गोल को गरम तवा पर डालकर बनाया जाने वाला एक पकवान, एक प्रकार का डोसा, गेंहू या चने के आटे से बना एक खाद्यन्न।

चीस :: (वि.) कंजूस।

चुंअना :: (क्रि.) छप्पर से पानी टपकना।

चुआ :: (सं. पु.) संभावित अर्थ सुआ, यह शब्द केवल हरे रंग की समता दिखाने के लिए उदाहरण के रूप में पाया जाता है, हरौ चुआ सौ।

चुआन :: (सं. स्त्री.) नदी की रेत में खोद कर निकाले गये पानी का गड्डा।

चुआना :: (सं. पु.) खपरैल में से पानी टपकने का स्थान।

चुआबो :: (क्रि.) धीरे-धीरे पानी या तेल की धार छोड़ना।

चुक चुक जानी :: (सं. स्त्री.) एक खेल।

चुक-चुकाबो :: (अ. क्रि.) बच्चों के दूध पीने से निकलने वाली ध्वनि होना।

चुकटया :: (वि.) चुटकी-चुटकी आटे की भीख माँगकर गुजर करने वाला भिखारी।

चुकटा :: (सं. पु.) चुटकी, चुटकी भर आटा।

चुकटी :: (सं. स्त्री.) चुटकी, चुटकी भर आटा।

चुकता, चुकती :: (वि.) बेबाक, निः शेष, अदा।

चुकबाबो :: (स. क्रि.) चुकता या बेबाक कराना, अदा कराना, चुकवाना।

चुकराँद :: (सं. स्त्री.) कुपच।

चुकराँयदी :: (वि.) कुपच के कारण बदबूदार डकारें।

चुकला :: (सं. पु.) सुअर के बच्चों का समूह।

चुकाबरौ :: (सं. पु.) ऋण लौटाने की क्रिया या ऋण के बदले सामग्री, पशु आदि भरने की क्रिया।

चुकाबौ :: (क्रि.) ऋण शोध करना, वचन या स्थान से विचलित करना, भूल करवा देना।

चुकैबो :: (क्रि.) भूल करवा देना, वचन भंग करवा देना।

चुक्का :: (सं. पु.) चूक, नागा, व्यतिक्रम, बच्चों का एक खेल।

चुक्खें :: (सं. स्त्री.) कानों के सामने के बाल, कलमें।

चुखरा :: (सं. पु. स्त्री.) चुखइया चूहा, मूषक, चौखरो, उदाहरण-रातें चुखरा करत किलोलें।

चुखरिया :: (सं. स्त्री.) चुहिया, छोटा चूहा।

चुखरिया :: (कहा.) चुखरियाँ दुलत्त्तीं खेलतीं - चूहे दुलती खेलते है, घर में कुछ भी खाने को नहीं है, बहुत गरीबी का होना।

चुखरेंड :: (सं. पु.) चूहों के कई छोटे-छोटे बच्चे।

चुखाबो :: (क्रि.) दुहते समय बछड़े को दूध पिलाना, चोखाना।

चुखैला :: (सं. पु.) जिस बैंल ने गाय का खूब दूध पीया हो वह।

चुगड्डा :: (सं. पु.) दे. चौगड्डा, चौराहा।

चुगल :: (वि.) इधर की उधर कहने का आदी।

चुगल :: (कहा.) चुगल चुगली से नही चूकत - चुगलखोर चुगली से नही चूकता।

चुगलखोर :: (वि.) दे. चुगल।

चुगली :: (सं. स्त्री.) इधर की बात उधर, उधर की जाने की क्रिया।

चुगाबौ :: (क्रि.) थोड़ा-थोड़ा कर खिलाना, पक्षियों को दाना खिलाना, चुगाना।

चुंगी :: (सं. स्त्री.) नगरपालिका का कर वसूली नाका, माल के आयात पर लगने वाला कर।

चुग्गा :: (सं. पु.) सुनार का एक औजार जिसकी सहायता से वह चूरा पटेला बनाता है।

चुचनिया :: (सं. पु.) पुरूष की जननेन्द्रिय।

चुचाबौ :: (क्रि.) चूना, टपकना, तरल का रिसना।

चुटकी :: (सं. स्त्री.) मुट्ठी भर आटा या अन्न थोड़ा सा आटा।

चुटटू :: (सं. स्त्री.) चोरी करने वाला।

चुटबंद :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के सिर का एक आभूषण।

चुटयाबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को थोड़ा-थोड़ा करके ले भागना, बच्चे गुड़ या खोया को इसी प्रकार खाते है।

चुटयाल :: (वि.) चोट लगा हुआ, गिरने के कारण लगा हुआ आघात, बुरा।

चुटा :: (वि.) चोट लगने में कुशल, अच्छा निशाने बाज।

चुटिया :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के बालों की चोटी के साथ गूँथी जाने वाली झुमकेदार कृत्रिम चोटी।

चुटैल :: (वि.) जिसमें चोट लगी हो।

चुटैलया :: (वि.) चोट खाया हुआ, जिसके ऊपर चोट के निशान हों।

चुट्ट चुट्ट करबो :: (क्रि. वि.) नाखून से जूँए मारना, किसी छोटी वस्तुओं को तोड़ना।

चुट्टा :: (सं. पु.) धूम्रपान करने का पाइप।

चुट्टी :: (सं. स्त्री.) अर्थ अज्ञात, बच्चों की मित्रता छूटते समय कहे जाने वाले मुहावरे में प्रयुक्त उट्टी-चुट्टी चार चपेटा तेजी से दौड़ लगाना।

चुट्टी :: (प्र.) माँ से ऊने चुटटी दई और घरै पोंचो।

चुड़ैल :: (सं. स्त्री.) डायन प्रेतनी, कुरूपा स्त्री, क्रूर स्त्री।

चुदबौ :: (क्रि.) मैथुनरत होना।

चुदबौरी :: (सं. स्त्री.) मजाक, हँसी, व्यंग्य।

चुदास :: (सं. स्त्री.) तीव्र मैथुनेच्छा।

चुन :: (सं. पु.) पक्षियों को खिलाने का दाना, चीटियों या मछलियों को खिलाने हेतु आटा आदि।

चुनककरी :: (सं. स्त्री.) चूना के कंकड़।

चुनचुनाबो :: (अ. क्रि.) कुछ जल लिए हुए चुभने की सी पीड़ा होना।

चुनचुनार :: (सं. स्त्री.) शरीर पर कुछ जलन लिये चुभने के समय की पीड़ा, चुनचुनाहट।

चुनबौ :: (क्रि.) पक्षियों का खाना।

चुनयाबौ :: (क्रि.) एक निश्चित क्रम में एक ही दिशा में मोड़ना या घड़ी करना।

चुनरिया :: (सं. स्त्री.) चुनरी लहँगे के साथ ओढ़ी जाने वाली ओढ़नी।

चुनरी :: (सं. स्त्री.) बुंदकीदार, रंगीन वस्त्र चूनर।

चुनाटी :: (सं. स्त्री.) पान का चूना रखने की डिबिया, चूना रखने का पात्र।

चुनाँद :: (सं. स्त्री.) देखा-देखी से लगा शौक।

चुनाबो :: (क्रि.) पक्षियों को खिलाना, वन की चिरइया चुनाउत जेहैं।

चुनाव :: (सं. पु.) चुनने या चुने जाने की क्रिया या भाव, निर्वाचन।

चुनी :: (सं. स्त्री.) दालों के दरने से निकले भूसी और दाल के मिश्रित टुकड़े।

चुन्नट :: (सं. स्त्री.) कपड़े में गुड़ी डालकर सिलाई।

चुन्ना :: (सं. पु.) दान पुण्य के लिये संकल्पित खाद्य सामग्री।

चुन्नी :: (सं. स्त्री.) चुनौती।

चुप :: (वि.) खामोश, मौन, स्तब्ध, शांत।

चुपचाप :: (क्रि. वि.) मौन रहकर, गुप्त रूप से बिना विरोध में कुछ बोले।

चुपरबौ :: (क्रि.) चुपड़ना गीली वस्तु से पोतना, दोष छिपाना।

चुपरबौ :: दे. चिपरबौ।

चुपरबौ :: (कहा.) चुपर कें और चार ठउआ - वस्तु अच्छी भी माँगना और अधिक भी।

चुप्प :: (क्रि.) चुप रहने की आज्ञावाची क्रिया।

चुप्पा :: (वि.) चुप रहने वाला।

चुप्पा :: (क्रि. वि.) चुपचाप रहने वाला, बदमाश।

चुबरउअल :: (वि.) चार घड़ी किया हुआ, चार पर्तो में घड़ी किया हुआ।

चुमाचुम :: (वि.) एकदम सही नाप का।

चुरकन :: (सं. पु.) टुकड़े-टुकड़े होकर बारीक हो जाना।

चुरचुराबौ :: (अ. क्रि.) चुर-चुर शब्द करके टूट जाने वाला।

चुरचुरो :: (वि.) जरा से दबाव के कराण, चुर-चुर शब्द करके टूट जाने वाला।

चुरबाबो :: (सं. क्रि.) पकाने का काम करना, चोरी कराना।

चुरबौ :: (क्रि.) चुरना, पकना, उबलना, खौलना।

चुराबौ :: (क्रि.) चोरी करना।

चुरियनदार :: (वि.) जिसमें चूड़ी या छल्ले पड़े हों।

चुरिया :: (सं. स्त्री.) चूड़ी।

चुरिया :: (कहा.) चुरियाँ लादीं पाठें परीं। खाँड़ लादी दौ में परी - सब प्रकार से दुर्भाग्य।

चुँरिया :: (सं. स्त्री.) चूड़ी, चूरी, चुरियाँ पैरबो-स्त्रियों का काम करना, स्त्रियों का वेश धारण करना।

चुरू :: (सं. स्त्री.) अंजलि।

चुरेरौ :: (सं. पु.) चूड़ियाँ बेचने वाला।

चुरैबौ :: (क्रि.) खौलना, उबालना।

चुरैरिन :: (सं. पु.) चूड़ियाँ बेचने वाली।

चुल :: (सं. स्त्री.) शेर की माँद।

चुलबुलाट :: (वि.) चंचलता, चपलता, चुलबुलाहट।

चुलबुलाबो :: (क्रि.) चंचल होना, चपल होना।

चुलबुलो :: (वि.) चंचल, नटखट, चपल।

चुलाचुल :: (सं. स्त्री.) चूल से व्यवहार।

चुलाचुल :: दे. चूल।

चुलिया :: (सं. स्त्री.) आभूषण रखने की पिटारी, आभूषणों का सेट, बाँस की पिटारी, पान रखने की जालीदार टोकरी।

चुल्ला :: (सं. पु.) पैर में टखनों से काफी ऊपर सटाकर पहने जाने वाला एक आभूषण।

चुल्लू :: (सं. पु.) अंजली, चुरू बुँ.।

चुसनी :: (सं. पु.) बच्चों के चूसने का स्तनाग्र जैसा रबर का खिलौना, दूध पिलाने की शीशी।

चुसाबो :: (स. क्रि.) चुसने में प्रवृत्त करना, चुसाना, चुखाबो (बुँ.)।

चुसौअल :: (सं. स्त्री.) बार-बार या अधिक चूसने की क्रिया या भाव चुखौअल।

चुँहत्तर :: (वि.) सत्तर और चार का योग।

चुहल्ला :: (वि.) चौथे नम्बर का।

चूँ-चूँ :: (सं. पु.) चिड़िया की बोली।

चूआ :: (सं. पु.) मूसा, मूषक, चूहा, चौखरो बुँ.।

चूए दानी :: (सं. पु.) चूहों को फँसाने का पिंजड़ा।

चूक :: (सं. स्त्री.) कर्त्तव्य विमुखता, कर्त्तव्य निर्वाह या वचन निर्वाह न कर पाने की भूल।

चूकबौ :: (क्रि.) कर्त्तव्य का निर्वाह न कर पाना, स्थानच्युत होना, अवसर को पहचान पाने की भूल होना।

चूका :: (सं. पु.) सिलाई मशीन के स्थान छोड़-छाड़ कर पड़े टाँके, उचित अवसर पर उस कार्य का न होना।

चूड़ैलन :: (सं. स्त्री.) चुड़ैल, स्त्री प्रेत, दुष्ट स्वभाव वाली स्त्री (एक गाली)।

चूत :: (सं. स्त्री.) अक्षत, योनि, बालक को जन्म देने के पूर्व की योनि, सामान्यतः रतिद्वार के विस्तृत अर्थ में प्रयुक्त।

चूतयाँइ :: (सं. स्त्री.) गालियों जैसे प्रभाव वाली कटु बातें।

चूतयाँइ :: (सं. स्त्री.) चूतयाई -मूर्खता पूर्ण आचरण।

चूतिया :: (वि.) मूर्ख, अनुभवहीन।

चून-पानी :: (सं. पु.) आटा पानी, खाद्य सामग्री, चूर्ण, आटा प्रायः गेहूँ के अतिरिक्त अन्य अनाजों के आटे के लिए प्रयुक्त।

चून-पानी :: (कहा.) चून न मून, चाल कें दै पओ - झूठी भड़क दिखाना।

चूना :: (सं. पु.) पत्थर को जला कर तैयार किया पदार्थ जो पान में लगाने, पुताई करने तथा भवन निर्माण के लिये मजबूत गारा बनाने के काम आता है।

चूबो :: (सं. पु.) टपकना, रिसना।

चूँबौ :: (क्रि.) टपकना।

चूमबो :: (सं. क्रि.) चुम्मा लेना, चूमना।

चूमबो :: (कहा.) चूमचाट कें खा लओ - घर साफ कर दिया, सब खा लिया।

चूँमबौ :: (क्रि.) चुम्बन लेना।

चूमा :: (सं. पु.) चुम्बन, बोसा, चुम्मा।

चूँमा :: (सं. पु.) चुम्बन।

चूरन :: (सं. पु.) चूर्ण, चूरा, बुरादा, औषधि चूर्ण, बारीक पिसा हुआ पदार्थ।

चूरमा :: (सं. पु.) एक पकवान जो रोटी, बाटी या पूरी को कूटकर उसमें चीनी मिलाकर बनाते हैं।

चूरा :: (सं. पु.) वलय, सोने या चाँदी का गोल सपाट और ठोस हाथों और पैरों में पहिना जाने वाला आभूषण, मोटा-मोटा ऐसा चूर्ण जिसमें मूल वस्तु की पहचान बनी रहे।

चूल :: (सं. स्त्री.) सपरिवार भोजन क निमंत्रण के संदर्भ में, किसी वस्तु को दूसरी में बैठालने के लिए खाँचा।

चूला :: (सं. पु.) भोजन पकाने की भट्टी, चूल्हा, रोटी बनाने की विशेष प्रकार की अंगयारी।

चूलौ :: (सं. पु.) भोजन पकाने की भट्टी, चूल्हा।

चूलौ :: (कहा.) चूले की लकरियाँ चूलेई में जरतीं - चूल्हे की लकड़ी चूल्हे में ही जलती हैं, जहाँ की वस्तु वहीं काम आती है।

चूलौ :: (कहा.) चूले में मूँड दओ तौ लूगरन कौ का डर।

चूलौ :: दे. उखरी में मूँड।

चूसबो :: (क्रि.) धीरे-धीरे सुरक कर पीना, किसी वस्तु का सार भाग ले लेना खींच लेना, अनुचित रूप से धीरे-धीरे रुपया वसूल करना।

चेउआ :: (सं. पु.) इमली के कच्चे हरे फल।

चेंक :: (सं. पु.) चिढ़।

चेकबो :: (अ. क्रि.) पक्षियों का मधुर शब्द करना चहकना, उमंग में या प्रसन्न होकर अधिक बोलना।

चेंकबों :: (क्रि.) जलना।

चेंकबों :: दे. चिकबौ, किसी घर्षण या घूर्णन वाले स्थान पर चिकनाई की कमी के कारण चूं-चे की आवाज होना।

चेंग :: (सं. स्त्री.) चिढ़ने की आदत, चिढ़ाने का कोई मुहावरा।

चेंगबो :: (क्रि.) चिढ़ना।

चेंगायलों :: (वि.) स्वास्थ्य, प्रसन्नचित, स्फूर्तिवान।

चेंच :: (सं. स्त्री.) जन्मजात बालों का एक भाग जो विशेषकर चोटी के स्थान पर किसी विशेष स्थान पर मुण्डन संस्कार कराने के लिए सिर पर छोड़ दिया जाता है, एक भाजी, एक प्रकार की रोटी।

चेंचयाबौ :: (क्रि.) चहचहाना, चिड़ियों का बोलना।

चेंचारोरौ :: (सं. पु.) शोरगुल।

चेंचे :: (सं. पु.) चिड़ियों का शब्द।

चेटक :: (सं. पु.) आडम्बर, ढोंग, पाखण्ड।

चेटका :: (सं. पु.) वह स्थान जिस पर शवदाह किया गया हो।

चेटका :: (मुहा.) नाटक चेटका बताना अर्थात् चरित्र दिखाना।

चेटकी :: (सं. पु.) ढोंगी।

चेंटबौ :: (क्रि.) मजबूती से चिपकना, पीछे पड़ना।

चेंटवा :: (सं. पु.) पशु द्वारा विलर्जित किये जाने की प्राकृतिक अवस्था में पड़ा हुआ गोबर (चेंटा)।

चेंटीपेंटी :: छोटे-छोटे बच्चे।

चेंटुआ :: (सं. पु.) चिड़िया का बच्चा।

चेंटू :: (वि.) पीछे पड़ने वाला, बहुत बातें करके किसी को उलझाये रहने वाला।

चेत :: (सं. पु.) होश, संज्ञा।

चेतन्न :: (वि.) स्वस्थ सतर्क, साधन सम्पन्न, लक्षणार्थ।

चेताबौ :: (क्रि.) सचेत होना, सरर्क होना, स्वस्थ होना, अग्नि प्रज्वलित करना, प्ररित करना, आगाह करना।

चेंथरी :: (सं. पु.) सिर का पिछला नीचे का भाग।

चेंथरी :: (कहा.) चेथरी पै आँखे चड़ीं - अंधे बन कर काम करते हैं, भला-बुरा कुछ न सूझता।

चेंन :: (सं. पु.) आराम, कार्यों से निपटने के बाद की मानसिक शान्ति।

चेंनुआँ :: (सं. पु.) चिड़िया का बच्चा।

चेंप :: (सं. पु.) चिपकने का गुम, लसीलापन गन्ने की एक बीमारी।

चेंपला :: (सं. पु.) एक चिड़िया, अबाबील, काले सफेद परों वाली चिड़िया जो छतों के सहारे मिट्टी के घोंसले बनाती है।

चेरा :: (सं. पु.) सेवक, चेला, शिष्य।

चेरी :: (सं. स्त्री.) दासी।

चेरे :: (वि.) किसी व्यसन का गुलाम।

चेरे :: (सं. पु.) गुलाम दास।

चेलन :: (सं. स्त्री.) शिष्या।

चेला :: (सं. पु.) शिष्य।

चेस्टा :: (सं. पु.) कायिक व्यापार, जीवन के लक्षण, चेष्टा।

चेहल्लम :: (सं. पु.) मुईरम के चालीस दिन बाद निकलने वाला ताजिया, मुसलमानों में मृत्यु के चालीस दिन बाद के रीति रिवाज।

चैक :: (सं. पु.) बैंक का धनावेश पत्र, कपड़े का चौखाना डिजाइन।

चैंच :: (सं. पु.) मूंड़न में किसी देव स्थान पर मुड़ाने के निमित्त छोड़े गये कुछ बाल।

चैचाबो :: (क्रि.) पक्षियों का मधुर शब्द करना, चहकना।

चैत :: (सं. पु.) चेत्रमास, विक्रम संवत का प्रथम मास रबी की फसल।

चैत :: (कहा.) चैत सोबे रोगी, क्न्वार सोवे भोगी, चैते गुर बैसाखे तेल, जेठे महुआ, असाढ़े बेल।

चैतन :: (सं. स्त्री.) जीवात्मा, ज्ञान चेतना, सचेत।

चैती :: (सं. स्त्री.) गरदन, चैथरी, गर्दन के पीछे का भाग।

चैतुआ :: (सं. पु.) रबी की फसल काटने के लिये बाहर जाने वाले श्रमिक।

चैन :: (सं. पु.) सुख, आराम आनन्द, चैन से कटबो-सुख पूर्वख जीवन व्यतीत होना।

चैया :: (सं. पु.) रोटी (बच्ची की बोली में) चाय।

चैरा :: (सं. पु.) चेहरा, मुखौटा।

चैरिया :: (वि.) सफेद बाल।

चैरो :: (सं. पु.) मुखड़ा, बदन, मुख पर पहनने की कोई मुखाकृति, किसी वस्तु का अग्रभाग।

चैल-पैल :: (सं. स्त्री.) भीड़-भाड़ रौनक अधिक व्यक्तियों के इकट्ठे होने से उत्पन्न हुई सजीवता।

चोई :: (सं. स्त्री.) पानी में पैदा होने वाली बहुत छोटे पत्तों की बेल, ये मछली की पैकिंग के काम आती है, शैवाल।

चोए :: (सं. पु.) फूली हुई दाल को मसल कर निकाले गाये छिलके।

चोए :: दे. चौव।

चोकर :: (सं. पु.) आटे को छानने से निकले हे अनाज के मोटे छिलके जिनमें आटे का अंश रहता है।

चोंखरो :: (सं. पु.) चूहा, मूषक।

चोंखरो :: (कहा.) चोंकरे कौ जाव बिलई करकोरत - चूहे की संतान बिल ही खोदती है, जिसके घर में जो काम होता रहता है वह बचपन से उसकी को सीखता और करता है।

चोंगा :: (सं. पु.) शंकु के आकार की पोली आकृति।

चोंच :: (सं. स्त्री.) चंचु, पक्षियों के मुँह का कड़ा अग्रभाग।

चोंचयाबौ :: (क्रि.) चुटकी, चुटकी तोड़ कर किसी वस्तु को खाते रहना, चिहूँटिया ले-ले कर तंग करना, पक्षियों का कलरव करना, चर्चा प्रारम्भ करना।

चोंचलो :: (सं. पु.) हावभाव, नाज नखरा, चौंचला।

चोट :: (सं. स्त्री.) निशाना, बारी, आघात।

चोंटबो :: (क्रि.) चुटकी से तोड़ना।

चोंटयाबो :: (क्रि.) चुटकी-चुटकी तोड़कर किसी वस्तु को खाते रहना, ले-ले कर तंग करना चिहूँटिया।

चोटिया :: (सं. पु.) बैलों के श्रृंगार के लिये उनके सींगो और मस्तक पर पहिनाया जाने वाला कौड़ियों से सजा हुआ मोटा वस्त्र।

चोंटिया :: (सं. स्त्री.) चिकोटी।

चोंटिया :: (कहा.) चोंटिया लेओ, न बकौटो भरावो।

चोट्टा :: (वि.) आँखें बचा कर चीजें चुराने वाला, चोर।

चोंडा :: (सं. पु.) बुंदेलखण्ड के प्रसिद्ध महाकाव्य आल्हखण्ड का एक पात्र।

चोंड़ेर :: (सं. स्त्री.) राजाओं और सन्यासियों की अर्थी जिसमें शव को बिठालकर शमशान ले जाया जाता है।

चोंतरा :: (सं. पु.) चत्वाकरक, चबूतरा, पुराने जमाने के राज्यों में क्षेत्रीय व्यवस्था के कार्यालय।

चोंतीस :: (वि.) तीस और चार के योग की संख्या।

चोंद :: (सं. स्त्री.) पशुओं के मुख का अग्रभाग।

चोदबो :: (क्रि.) मैथुन करना।

चोंदयाबो :: (क्रि.) भ्रमित होना या करना, चका चौंध लगना।

चोप :: (सं. पु.) इच्छा, शौक, चाव, उत्साह, उमंग।

चोंप :: (सं. पु.) मवेशी, पशु।

चोपर :: (सं. स्त्री.) चौपड़, चौसर।

चोंपी :: (सं. स्त्री.) दो पटियों को मजबूती से एक साथ जोड़े रखने के लिये ठोकी जाने वाली दो कोणों वाली लोहे की मोटी पट्टी।

चोबदार :: (सं. पु.) राजाओं की सवारी में सोने चाँदी से मढ़े हे राजदण्डों को राजाओं के आगे-आगे लेकर चलने वाले सेवक।

चोर :: (सं. पु.) वस्तुओं का अपहर्ता।

चोर :: (कहा.) चोरन कुतिया मिल गई पहिरो कहु को देय - घर का आदमी ही यदि विरूद्ध हो जाय तो काम कैसे चले।

चोंर :: (सं. पु.) चँवर, सुरहित गउ (याक) की पूंछ के बालों का चाँदी सोने की मूँठ पर लगा हुआ समाहार, एक राज चिन्ह।

चोंरइ :: (सं. स्त्री.) एक भाजी, चौलाई।

चोंरबो :: (क्रि.) हलकी नोंक को नुकीला करना।

चोंरयाबो :: (क्रि.) चौड़ा करना।

चोंरिया :: (सं. स्त्री.) खजूर के चीरे हे पत्रों से बना छोटा चँवर जो मक्खियाँ उड़ाने के काम आता है।

चोरी :: (सं. स्त्री.) चुराने की क्रिया, चुपचाप या गोपनीय ढंग से ले जाने की क्रिया।

चोरी :: (कहा.) चोरी कर होरी धरी, छिन में हो गयी छार।

चोला :: (सं. पु.) शरीर, हनुमान जी, गणेश जी तथा भैरवजी को चढ़ाये जाने वाले अंगराग।

चोली :: (सं. स्त्री.) अँगिया, केवल स्तनों को ढकने तथा पीठ की ओर अधिकांश खुली अँगिया।

चोव :: (सं. पु.) चोए का एकवचन।

चोव :: दे. चोए।

चोंसट :: (वि.) साठ और चार के योग की संख्या।

चौ :: (उप.) चार का उपसर्ग, इसको उपसर्ग मानना चाहिए क्योंकि यह केवल सामाजिक शब्दों में ही पाया जाता है।

चौअर :: (वि.) चौहरा, चौगुना, चारगुना।

चौआ :: (सं. पु.) ताश का चार बूटियों वाला पत्ता।

चौक :: (सं. पु.) चौकोर भूमि आँगन, मंगल अवसर पर बनाया गया चौकोर क्षेत्र, चौराहा, अल्पना, माड़ने, रंग-बिरंगे चूर्णों से बनायी गयी आकृतियाँ।

चौंक :: (सं. स्त्री.) झिझक, चौंकाने की क्रिया या भाव।

चौक चलाव :: (सं. पु.) गोना, द्विरागमन।

चौकटा :: (सं. पु.) चार लकड़ियों का चौकोर ढाँचा।

चौकड़ी :: (सं. स्त्री.) हिरन की दौड़, छलाँग, एक तरह की बनावट।

चौकदार :: (वि.) जिसमें चौक बने हो।

चौंकबो :: (अ. क्रि.) सहसा भय आदि से काँप उठना, चौकन्ना रहना, चकित या भौचक्का होना।

चौकस :: (वि.) संतुलित, सतर्क।

चौका :: (सं. पु.) चौथाई टुकड़ा, भोजन बनाने और खाने के लिए नियत शुद्ध स्थान।

चौका :: (कहा.) चौका सो झार बैठे - सब पैसा साफ कर बैठे।

चौंकाबो :: (क्रि.) चौंकने के लिये प्रेरित करना।

चौकी :: (सं. स्त्री.) चार पैरों वाली लकड़ी का आसन, चौकसी रखने वाले रक्षकों का स्थान।

चौखट :: (सं. स्त्री.) दरवाजे के अन्दर चारों ओर लगाया जाने वाला लकड़ी का चौखटा जिसमें किवाड़ लगाये जाते हैं या जिसमें किवाड़ अटते हैं।

चौखटा :: (सं. पु.) चित्र या आईना आदि का फ्रेम।

चौखंडा :: (सं. पु.) चारखंड वाला मकान, चौमंजिले मकान का ऊपरी भाग, चार आँगन वाला मकान।

चौंखबो :: (क्रि.) चूसना, पशु के बच्चे का दूध पीना, पशु शावकों का स्तनपान करना।

चौखरी :: (सं. पु.) चूहा, चूहिया।

चौंखा :: एक जानवर जो वृक्ष पर चढ़ जाता है।

चौखाट :: (सं. पु.) गाँव की चौपाल लुधाँती में प्रयुक्त।

चौखूँटो :: (वि.) चौकाना, चौकोर।

चौखौ :: (वि.) शुद्ध बना मिलावट का।

चौगड़ा :: (सं. पु.) चौघड़ा, पान, इलायची आदि खाने का चार खानों वाली डिब्बी, मसाला, आदि रखने एवं परोसने के काम आने वाली मिट्टी आदि का चार खानों वाला बरतन।

चौगड्डा :: (सं. पु.) चौराहा।

चौगनो :: (वि.) चार गुना, बहुत अधिक।

चौगुनों :: (वि.) चार गुना।

चौचले :: (सं. पु.) नखरे, दिखाना, ढोंग आडम्बर।

चौज :: (सं. पु.) चमत्कार, असामान्य बात या काम।

चौड़ाबो :: (स. क्रि.) चौड़ा करना, फैलाना, विस्तार करना, बढ़ाना।

चौंतरया बाबा :: (सं. पु.) ग्रामों के बाहर के देवता।

चौंतरा :: (सं. पु.) चबूतरा।

चौंतरिया :: (सं. स्त्री.) चबूतरा।

चौथ :: (सं. स्त्री.) चतुर्थी, कर के रूप में लिया लाने वाला फसल का चौथा हिस्सा।

चौथयाव :: (वि.) चतुर्थाश, चौथाई।

चौथयाव :: (सं. पु.) प्रयोग।

चौथाई :: (वि.) चतुर्थाश चौथा भाग।

चौथो :: (वि.) चौथा, क्रम में तीन के बाद आने वाला।

चौंदबो :: (अ. क्रि.) ऐसा चमकना कि चका चौंध उत्पन्न हो, बहुत अधिक चमकना।

चौंदयाबो :: (सं. क्रि.) बहुत अधिक चमक या प्रकाश के सामने द्दष्टि स्थित न रह करना, कम दिखाई देना।

चौदरी :: (सं. पु.) किसी वर्ग का प्रधान मुखिया।

चौदस :: (सं. स्त्री.) किसी पक्ष की चौदहवीं तिथि, चुतर्दशी।

चौन्नी :: (सं. स्त्री.) चार आने का सिक्का, चवन्नी।

चौपट :: (वि.) नष्ट, भ्रष्ट, बरबाद।

चौपटया :: (वि.) तोड़-फोड़ करने के स्वभाव वाला।

चौपटा :: (सं. पु.) चौपट करने वाला, चौपटहा, नष्ट करने वाला।

चौपरा :: (सं. पु.) चौकोर कुँआ, जिसमें चारों तरफ पक्की सीढियाँ होती है।

चौपाँ :: (क्रि. वि.) चारों पैरों से बहुत तेज (भागना)।

चौपाई :: (सं. स्त्री.) १६-१६ मात्राओं के चार चरणों वाला एक छन्द, चार पैरों वाली टिकटी।

चौपाराँ :: (वि.) चार प्रहर वाला (दिन) दिन भर।

चौपाव :: (सं. पु.) चार पैरों वाला पशु।

चौफका :: (वि.) चार भागों में फाड़ा हुआ।

चौबगला :: (सं. पु.) कुरता आदि में बगल के नीचे ओर कली ऊपर का भाग।

चौबयानों :: (सं. पु.) चौबे लोगों का मुहल्ला बुन्देखण्ड का एक पुराना राज्य चित्रकूट।

चौबली बखरी :: वह मकान जिसके अन्दर चारों तरफ घर हो।

चौबा :: (सं. पु.) बिना माड़ निकाले हुए, पका चावल।

चौबा :: (संज्ञार्थक क्रि. प्र.) चौबा कौ भात, चौबें आबो-कुएँ में पानी न रहना।

चौबीस :: (वि.) बीस और चार का योग।

चौबे :: (सं. पु.) चतुर्वेदी, ब्राह्मणों की एक जाति।

चौमंजला :: (वि.) चार खण्ड या मंजिल वाला मकान।

चौमासौ :: (सं. पु.) वर्षा ऋतु चार माह सावन, भादों, क्वाँर, कार्तिक, इन महीनों को चौमासा कहा जाता है।

चौमुखौ :: (वि.) चार बत्तियों या ज्योतियों वाला दीपक।

चौंर :: (सं. पु.) सुरगाय की पूँछ या गुच्छा जिसे मूठ में डालकर देवमूर्ति या राजाओं पर हुलाते है, चँवर चावल।

चौर-बौर :: (सं. स्त्री.) चहल-पहल।

चौरंगा :: (वि.) चार रंगों वाला।

चौरयाबौ :: (क्रि.) हल की नोंकी को नुकीला करना, चौड़ा करना।

चौरयाबौ :: दे. चौरयाबौ।

चौरा :: (सं. पु.) चबूतरा, वेदी, वह चबूतरा जो किसी देवी देवता या सती आदि के स्थान पर हो।

चौराई :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का पत्तों वाला चौलाई नामक साग, फैलाव, विस्तार।

चौराउनबै :: (वि.) नब्बै और चार के योग की संख्या।

चौराओ :: (सं. स्त्री.) चौराहा, चौक।

चौराब :: (सं. पु.) चौराहा, खुली जगह।

चौंराव :: (वि.) चौड़ाई, चौराहा।

चौरासी :: (वि.) अस्सी और चार के योग की संख्या।

चौरी :: (सं. स्त्री.) लगभग सेर का एक माप आटा या अनाज नापने का लगभग आधा किलो का बर्तन।

चौरो :: (वि.) लम्बाई से भिन्न दिशा में, वस्तृत, चौड़ौ।

चौरौं :: (सं. पु.) कूल्हे के पास की कोई नस जिसके उतर जाने से लँगड़ापन आ जाता हैं।

चौरौं :: (प्र.) चोरौ चलो गओ।

चौलें :: (सं. स्त्री.) मसखरीं, दुअर्थी बातें, विनोद की बातें, चुहलें।

चौवन :: (वि.) जो गिनती में पचास से चार अधिक हो।

चौवन :: (सं. पु.) उक्त सूचक संख्या।

चौसर :: (सं. स्त्री.) एक खेल जो बिसात पर चार रंग की चार-चार गोटियों से खेला जाता है, चौपड़।

चौहद्दी :: (सं. स्त्री.) किसी स्थान या मकान आदि की चारों सीमाएँ।

चौहरी :: (सं. स्त्री.) लगभग पाव भर नापने वाला एक माप, चौथाई हिस्सा, साड़ी को एक चौथाई भाग में विभाजित करके रखना, उदाहरण-चौहरी घरी बनाना।

चौहान :: (सं. पु.) क्षत्रियों की एक शाख।

च्योंटा :: (सं. पु.) थोड़ा सा, गाय भैंस का थोड़ा गोबर, पशुओं द्वारा एक ही समय किया गोबर।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के च वर्ग का दूसरा व्यंजन इसका उच्चारण स्थान तालु है।

छइयाँ :: (सं. स्त्री.) छाया, उदाहरण-छइयाँ उतार।

छइयाँ :: (वि.) ढालू छिड़िया उतार।

छई :: (सं. स्त्री.) क्षय रोग।

छक पकाबो :: (अ. क्रि.) रेल के पहियों की छकपक ध्वनि होना।

छक-छक :: (सं. स्त्री.) इंजन की आवाज लड़कों के रेल का खेल।

छकछकाबो :: (क्रि. अ.) छकछक के जैसी आवाज करनी, कोई काम करने को बहुत उत्सुक होना।

छकड़ा :: (सं. पु.) एक जरह की गाड़ी, ऐसा वाहन जो बहुत खड़खड़ाता हो।

छकड़ी :: (सं. स्त्री.) छः का समूह, वह पालकी जिसमें छः कहार उठाते हैं, जुऐ के खेल में छः चित्त कौड़ियों का समूह, बोझा ढोने की गाड़ी।

छकना :: (क्रि.) तृप्त होना, खाकर अघाना, नशे में चूर होना, चक्कर में पड़ना, धोखा खाना, पेट भरना।

छकाछक :: (वि.) भरा हुआ, परिपूर्ण।

छकाछक :: (मुहा.) छकाछक मामला-खूब आनन्द।

छकाबो :: (स. क्रि.) खिला पिलाकर तृप्त करना, अचम्भे में डालना, मात करना चक्कर में डालना।

छक्क :: (सं. पु.) जुये का दाँब, दाव।

छक्क :: (मुहा.) छक्के पंजे की उड़बौ-खूब मौज मस्ती होना, होश, हवास।

छक्क :: (मुहा.) छक्कै छूट जावो-ह्तबुद्धि होना।

छक्का :: (सं. पु.) छह की इकाई, छह अंकों वाला ताश का पत्त्ता।

छक्के :: (सं. पु.) मन की निर्विकल्प शांति के आधार।

छक्के :: (मुहा.) छक्के छूटना में प्रयुक्त।

छगन :: (सं. पु.) छोटा बच्चा।

छगन मगन :: (सं. पु.) बच्चों का खेल कूद।

छगनियाँ :: (सं. स्त्री.) एक आभूषण, पुरूषों की जननेन्द्रियाँ।

छँगनिया :: (सं. स्त्री.) बच्चों की कमर में बाँधे जाने वाले काले डोरे में लटकाई जाने वाली चाँदी की उँगली जैसी अलंकृत वस्तु।

छँगा :: (वि.) जिसके किसी पंजे में छह उँगलियाँ हों, छंगा, छिंगा।

छँगू :: (सं. पु.) दे. छँगा।

छगोड़ों :: (वि.) जिसके छः पैर हो।

छचूंदर :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का चूल्हा।

छचूंदर :: दे. चुखड़ैर।

छचो :: (वि.) चोरी करने की नियत से इधर से उधर करने का काम उदाहरण-अलमारी में से का छचोरये।

छचोबा :: (सं. पु.) चुपके-चुपके कुछ खोजने की मंशा से बरतनों आदि की तलाशी।

छचोबा :: (क्रि.) छचौंबी।

छचोर :: (वि.) जाना माना चोर।

छछूंदर :: (सं. स्त्री.) दे. छचूंदर, एक प्रकार का चूहा।

छछूंदर :: (कहा.) छछूंदर छोड़बो - 1-एक छोटी आतिशबाजी जो आग लगने पर बहुत तेज चक्कर काटती हुई जमीन पर भागती है, ऐसी बात कह देना जिससे दो आदमियों में बैठे-ठाले झगड़ा हो जाय।

छछेरू :: (सं. पु.) उठाई गीर।

छजना :: (सं. पु.) दालों आदि का छन्ना।

छजिया :: (सं. स्त्री.) छज्जा, बारजा, छज्जी।

छज्जो :: (सं. पु.) छाजन या छत की दीवार से बाहर निकाल भाग।

छट :: (सं. पु.) षष्टि, पखवाड़े की छठवीं तिथि, आँख के तिल पर पड़ा हुआ सफेद छोटा सा धब्बा, चेचक के प्रकोप से ऐसा हो जाता है।

छट :: (कहा.) छट की सातें करें फिरत - छठ की सातें किये फिरते हैं, अनियमित काम करते हैं।

छटंकी :: (सं. स्त्री.) छटांक का बांट, बहुत छोटा और हल्का व्यक्ति।

छटटाटौ :: (वि.) दे. छटौ कारक युक्त शब्द।

छँटनी :: (सं. स्त्री.) छाँटने की क्रिया या भाव।

छटपटी :: (सं. स्त्री.) शीघ्रता, उतावली।

छँटबाना :: (क्रि. स.) कटवाना, चुनवाना।

छँटबाबो :: (स. क्रि.) किसी वस्तु का अनावश्यक बाग कटवा देना, चुनवाना, छिलवाना।

छँटबो :: (क्रि. अ.) कटकर अलग होना, दूर होना, चुना जाना, तितर वितर होना, कम किया जाना।

छटमों :: (वि.) छटवाँ।

छटवाँ :: (वि.) छटवाँ, छटा, चुना हुआ।

छटवाबौ :: (क्रि.) अनेक में से कुछ को चुनना, काट कर छोटा करवाना, पेड़ छटवाना, बाल छटवाना।

छटा :: (सं. स्त्री.) क्रांति, प्रभा, शोभा, सुन्दरता, प्रकाश।

छँटाई :: (सं. स्त्री.) छाँटने का काम, चुनने की क्रिया, साफ करने का काम, छाँटने की मजदूरी।

छटांक :: (सं. स्त्री.) सेर के सोलहवें भाग की एक तौल।

छटाँकक :: (वि.) लगभग एक छटाक, एक छटाक के करीब।

छटाछटो :: (सं. पु.) विवाह के लिए अनाज छानने बीनने की औपचारिक शुरूआत।

छँटाबो :: (स. क्रि.) छँटवाना, छिलवाना।

छटी :: (सं. स्त्री.) जन्म से छठे दिन का संस्कार, छठी।

छटी :: (मुहा.) छठी को दूध याद आवौ-बहुत हैरान या परेसान होना।

छँटी :: (वि.) छंटी हुई चालाक।

छँटी :: (सं. स्त्री.) छँटी हुई वस्तु।

छंटी :: (वि.) छंटी हुई चालाक।

छंटी :: (स्त्री.) छँटी हुई वस्तु।

छँटुआ :: (वि.) जिसमें से अच्छी वस्तुएँ छाँट कर निकाल ली गई हों, बचा-खुचा या रद्दी सामान।

छटूलो :: (सं. स्त्री.) दूध पीता बच्चा।

छटूलो :: (वि.) छोटा बच्चा।

छटे :: (वि.) चुने हुए, छाँट कर रखे हुए।

छटेलो :: (वि.) छोटा।

छटैल :: (वि.) छाँटा या चुना हुआ, धूर्त, चालाक।

छँटैल :: (वि.) चुना हुआ, खराव वस्तु जो अलग कर दी गयी ही, छटा हुआ।

छटौ :: (वि.) चुनिन्दा, अनेक में से छाँट कर निकाला हुआ एक, छटा हा बदमाश (प्रायः हीन अर्थ में प्रयुक्त, ) चालाक।

छँटौनी :: (सं. स्त्री.) छँटाई, छँटनी।

छट्टा :: (वि.) सुन्दर, सुशोभित।

छट्टा के :: (वि.) चुने हुए, छांटे गए, सुन्दर, अच्छे, जैसे छटा के जबाव।

छट्टाकौ :: (वि.) दे. छटौ कारक युक्त शब्द।

छड़ :: (सं. स्त्री.) धातु या लकड़ी आदि का लंबा पतला बड़ा टुकड़ा।

छड़इया :: (सं. स्त्री.) बाँस की शाखाओं से बनने वाली पतली छड़ी।

छड़काव :: (सं. स्त्री.) पानी छिड़कने की क्रिया।

छड़ा :: (सं. पु.) पैर में पहनने का एक गहना, जिस पर खाँचेदार डिजाइन होती है।

छड़ा :: (ब. व.) छड़ें, उदाहरण-सौ कड़े छड़ें।

छड़ी :: (सं. स्त्री.) अलंकृत या घुमावदार मूँठ वाला हाथ में लेकर चलने वाला बेंत, पतली लकड़ी।

छड़ी बरदार :: (सं. पु.) सरदारों के साथ चाँदी की छड़ी लेकर चलने वाला।

छत :: (सं. स्त्री.) घर का छाजन, पाटन, ऊपर का ढ़का भाग, घर की दीवारों पर बना पक्का फर्श।

छतना :: (सं. पु.) पत्तों का बना छत्ता, शहद की मक्खी का बना छत्ता।

छतनार :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

छतमरौ :: (सं. पु.) व्यर्थ परिश्रम का काम।

छतयाबो :: (सं. क्रि.) छाती से लगाना सटाना।

छतराबौ :: (स. क्रि.) बिखरना फैलना।

छतरी :: (सं. स्त्री.) राजाओं की चिता भूमि पर बना मकबरा, छोटा छाता।

छता :: (सं. पु.) छाता, मुधमक्खियों का छाता, बरो का छाता, महाराज छत्रसाल के लिए काव्य में प्रयुक्त नाम, छत्ता तोरे राज में धक धक धरती होय, जित जित घोड़ा पर धरें तित तित फत्तै होय।

छतिया :: (सं. स्त्री.) छाता-छाती, वक्षस्थल, हृदय।

छत्त :: (सं. स्त्री.) छत।

छत्ता :: (सं. पु.) छाता, छतरी, मधुमक्खियों का छाता, बर्रों का छाता, कमल के बीज कोश।

छत्ती :: (सं. स्त्री.) पत्थर का चौड़ा शहतीर जो भवनों की छतों के आधार के काम आता है।

छत्तीस :: (वि.) तीस और छह के योग का अंक।

छत्तीसा :: (सं. पु.) नाई की चलाकी के भाव पर बल देने के लिए नाई के लिए प्रयुक्त।

छत्तीसा :: (वि.) चतुर, धूर्त।

छत्तीसी :: (सं. पु.) छत्तीसापन, चालाकी, धूर्तता।

छत्र :: (सं. पु.) भगवान तथा राजा के ऊपर लगाया जाने वाला छाता, एक राज चिन्ह।

छत्री :: (सं. पु.) क्षत्री, वर्ण व्यवस्था का द्वितीय वर्ण, एक जाति।

छदाम :: (सं. पु.) रूपये का २५६ वां भाग।

छंदैं :: (सं. पु.) पद्य, छन्दशास्त्र, छल।

छन :: (सं. पु.) क्षण, अवसर, अवकाश।

छनइया :: (वि.) छानने वाला।

छनक :: (सं. स्त्री.) फुर्ती, तेजी।

छनकबौ :: (क्रि.) फुर्ती से काम करना, उबलते हुए पानी का वाष्पीकरण के कारण कम हो जाना।

छनकाबौ :: (क्रि. स.) ओंटाकर दूध पानी आदि की मात्रा को कम करना, उदाहरण-पानी और छनकालो-पानी को इतना गरम करो ताकि वह कम हो जाए।

छनकीली :: (वि.) काम में तेज, ऐसी जिसे तनिक भी आलस्य नहीं।

छनकीलौ :: (वि.) दे. छनकुआर, छनकीली स्त्री।

छनकुआर :: (वि.) तेज, चतुर, फुर्तीला, फुर्तीली।

छनछनाबों :: (अ. क्रि.) गर्म बर्तन पर पड़ने वाली पानी की ध्वनि।

छनना :: (अ. क्रि.) छोटे छोटे छिद्रों से होकर निकलना, छाना जाना।

छनयाबौ :: (क्रि.) निथारना, अघुलनशील पदार्थ का द्रव पदार्थ में नीचे बैठना।

छनीछनाई :: (वि.) छनी हुई।

छन्दयाउ :: (वि.) छन्दबद्ध फागें जैसे ईसुरी और गंगाधर व्यास की हैं।

छन्न :: (सं. पु.) खूब गरम तवे आदि पर पानी का छींटा पड़ने पर उत्पन्न हुई आवाज।

छन्न :: (मुहा.) छन्न बीदवो-छन्न की आवाज होना।

छन्न :: (यौ.) छन्न-छन्न होवो-रह रहकर हृदय का व्याकुल होना।

छन्ना :: (सं. पु.) छानने का कपड़ा, तौलिया, भोजन बनाने के समय तबा, बतरन आदि पोंछने का कपड़ा, अनाज छानने का बड़ा छन्ना, पानी छानने का वस्त्र।

छन्नी :: (सं. स्त्री.) दूध, चाय, आदि छानने की छन्नी, कलाई पर पहिना जाने वाला स्त्रियों का एक आभूषण।

छप :: (सं. स्त्री.) पानी में किसी वस्तु के गिरने का शब्द, छप की आवाज।

छपक :: (सं. पु.) तलवार आदि से कटने का शब्द, चाँदी का गोल घरूआ जिसमें टिकली चिपकायी जाती है, पानी में गिरने की ध्वनि।

छपकली :: (सं. स्त्री.) गृह गोधिका, छिपकली।

छपका :: (सं. पु.) धब्बा, ठप्पे का छापा हुआ बड़ा फूल आदि, पानी का बड़ा बूँद, एक पक्षी, ( अमृत ढोरों का एक रोग जिसमें उनकी आँख फूट जाती हैः उदाहरण-छपका मार जाबों-ढोरों की आँख में छपका नाम का रोग हो जाना।

छपछप :: (क्रि. वि.) छप-छप की आवाज करते हुए।

छपछपाबो :: (क्रि. अ.) पानी का हाथ या पैर से छप-छप शब्द करना।

छपछपौ :: (वि.) इतना उथला पानी कि उसमें केवल पैरों के पंजे डूब सकें, थोड़ा-थोड़ा, कीच।

छपनखू :: (वि.) इधर की उधर भिड़ाने वाली, हेराफेरी करने वाली।

छपनछुरी :: (वि.) चंचल स्वभाव वाली, विचित्र काम करने वाली, नाटकीय स्वाभाव करने वाली।

छपनछौर :: (सं. पु.) गड़बड़ी।

छपबाबो :: (स. क्रि.) छपाना, छपवाना।

छपबो :: (अ. क्रि.) छापा जाना, चिन्हित या अंकित होना, मुद्रित होना।

छपर छपर :: (सं. पु.) पानी पर हाथ पटकने जैसी आवाज।

छपरा :: (सं. पु.) छपार।

छपरा :: (सं. स्त्री.) दे. छपरी, छपरिया।

छपरी :: (सं. स्त्री.) मकान के सामने बना खपरैल का खुला बरामदा।

छपा :: (सं. पु.) कंधे का जोड़, जानवरों में पेट के निकट का वह स्थान जहाँ उनके पैर शुरू होते हैं।

छपाई :: (सं. स्त्री.) छापने का काम, छापने का ढंग, छापने की मजदूरी, कपड़ा छापने का काम।

छपाका :: (सं. पु.) पानी का जोर से गिरने का शब्द।

छपाका :: (मुहा.) छपाक बीदबौ-पानी या कीचड़ में गिरने की आवाज होना, ध्वन्यात्मक शब्द, छपाको-वस्तु के पानी आदि पर गिरने का शब्द।

छपाबौ :: (स. क्रि.) छपवाना, मुद्रित कराना, छिपाना, मिट्टी आदि लगवाना या लगाना।

छपीलौ :: (वि.) मजबूत, गठीला।

छपैया :: (सं. पु.) छापने वाला।

छप्पन :: (वि.) छह और पचास के योग का अंक।

छप्पन :: (मुहा.) छप्पन टका-बहुत से पैसे, उदाहरण-छप्पनभोग-नाना प्रकार के व्यंजन।

छप्पनयाँ :: (वि.) सन् 1856 के अकाल का विशेषण।

छप्पर :: (सं. पु.) मकान को वर्षा, धूप आदि से बचाने के लिए की गयी व्यवस्था।

छप्पा :: (वि.) छपणक से विकसित छपनख का संक्षिप्त रूप, इधर की उधर भिड़ाने वाला, ( लाक्षणिक अर्थ.) मध्य एशिया में बौद्ध धर्म का विस्तार हो जाने पर कुछ क्षपणकौ ने विदेशी छपणकों के साथ राजनैतिक गुप्तचरी की थी तभी से इनका चरित्र संदिग्ध माना जाने लगा।

छब :: (सं. स्त्री.) छवि, शोभा।

छबदाबौ :: (क्रि.) किसी गाढ़े पदार्थ को किसी सतह या शरीर पर अव्यवस्थित ढंग से लपेटना।

छबरी :: (सं. स्त्री.) मिठाई आदि रखने की टोकनी।

छबला :: (सं. पु.) बाँस की पतली सीकों से बनी बड़ी टोकरी।

छबला :: दे. गांजिया।

छबला :: (सं. स्त्री.) छबली, छुबुलिया।

छबाई :: (सं. स्त्री.) छाने की क्रिया, उसकी मजदूरी या भाव।

छबीला :: (सं. पु.) एक सुगन्धित वनस्पति जो गरम मसाले में डालते हैं, सजा बजा।

छबीली :: (वि.) शोभा युक्त, सुहावनी, सजी बजी, सुन्दर।

छबीलौ :: (सं. स्त्री.) छबीली, सुन्दर, सुडौल, सजीला, छविवाला, छवियुक्त, सुन्दर।

छबुलिया :: (सं. स्त्री.) टोकनी, बाँस की सीकों से बनी छोटी टोकरी।

छबैया :: (सं. पु.) छाने वाला, छाजन बनाने घर छाने वाला।

छबोदबो :: (क्रि. स.) लपेटना, थोपना।

छबोदयौ :: (क्रि.) दे. छबदावौ।

छब्बीस :: (वि.) बीस और छह के योग की संख्या।

छब्बीसासौ :: (वि.) एक सौ छब्बीस की संख्या।

छम :: (सं. स्त्री.) घुँघरू का शब्द, पानी बरसने का शब्द, उदाहरण-छम छम बाजै मोरी पायलिया।

छमक :: (सं. स्त्री.) छमकने की क्रिया या भाव, ठसक, ठाट-बाट, झनकार।

छमकबो :: (अ. क्रि.) घुँघरूओं या गहनों की झनकार होना, चमकना, सुन्दर वस्त्राभूषण पहनकर इधर-उधर इठलाते हुए फिरना।

छमछम :: (सं. स्त्री.) नुपूर, पायल आदि का बजने का शब्द, मेंह बरसने का शब्द।

छमछमाबो :: (अ. क्रि.) छमछम शब्द करना छम-छम शब्द करते हुए चलना।

छमसी :: (सं. स्त्री.) सौभाग्यवती स्त्रियों का मृत्यु के छः महीने पश्चात् किया जाने वाला श्राद्ध।

छमा :: (सं. स्त्री.) क्षमा, अपराध, मार्जन।

छमाई :: (सं. स्त्री.) छः महीनों का समय, छः महीनों बाद मिलने वाली अनुवृति क्षमा।

छमाकौ :: (सं. पु.) पायल या घुंघरू की आवाज जो कि तेज चलने से होती है, उदाहरण-एक ही छमाके में छमाके मन मोहि लेत (लोक गीत)।

छयाचट :: (वि.) छियासठ, छासट।

छयी :: (सं. पु.) क्षय रोग।

छयोंटबो :: (क्रि. अ.) कम होना।

छरअरा :: (सं. पु.) ढोरों का एक रोग जिसमें कि पेट फूल जाता है।

छरक :: (सं. स्त्री.) चिढ़, नफरत, अरूचि, उदाहरण-छरकना।

छरक :: (वि.) बिदकने वाला बैल, लोकोक्ति-बैल छरकना जोत में उर चमकीली नार। छरकबौ।

छरक :: (क्रि.) किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति घृणा का भाव प्रकट करना या उससे दूर रहने का प्रयास करना, बिदकना, बिचकना। छरकजाबो-किसी कटु अनुभव से आगे के लिए सीख ग्रहण कर लेना।

छरकजाबो :: (क्रि.) किसी कटु अनुभव से आगे के लिए सीख गृहण कर लेना।

छरकना :: (वि.) बिदकने वाला बैल।

छरकबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति घृणा का भाव प्रकट करना या उससे दूर रहने का प्रयास करना, बिदकना, बिचकाना।

छरछंद :: (सं. पु.) छल, छंद, छल, कपट, धोखा।

छरछंद :: (मुहा.) छरछन्द बगारबो-तरह-तरह की चालाकी करना, छरछन्दी।

छरछंद :: (मुहा.) धूर्त, कपटी।

छरछन्दिया :: (वि.) नाना प्रकार के छल कपट करने वाला।

छरछराट :: (सं. स्त्री.) घाव के छरछराने जैसी आवाज होना।

छरछरात :: (वि.) दिन डूबने के अन्तिम समय का विश्लेषण।

छरछरात :: (प्र.) तनक छरछरात दिन रै गऔ तौ।

छरछराबौ :: (अ. क्रि.) घाव में चुन चुनाहट या जलन होना, मुँह के अन्दर चिनमिनाहट होना, चूने आदि क्षारीय पदार्थ के प्रभाव से मुँह फटना।

छरबरा :: (सं. पु.) ढ़ोरों का एक रोग जिसमें कि पेट फूल जाता है। (टोक)।

छरबो :: (अ. क्रि.) अन्न को ओखली में कूटकर साफकरना।

छरमा :: (सं. पु.) नोंनिया भाजी का बेसन मिला साग।

छरा :: (सं. पु.) वे डोरियाँ जिनके खींचने से बटुआ का मुख खुलता बन्द होता है।

छरा फूँदना :: (सं. पु.) कलाई का फूँदनादार डोरा।

छराक :: (सं. पु.) तेजी से पिचकारी लगने की आवाज, उदाहरण-ऊँचे उरोजन ऊपर धार, सटाक दै लागी छराक (लोक गीत.)।

छराकूंदरना :: (सं. पु.) कलाई का फुदनोंदार डोरा।

छरारो :: (वि.) इकहरे बदन का, तेज, फुर्तीला।

छरिया :: (सं. पु.) मुरम, एक प्रकार की लाल कंकरीली मिट्टी।

छरी :: (सं. स्त्री.) गेहूँ आदि अनाज की उड़ावनी के समय अनाज पर से सींको की झाडू के झाड़ने की क्रिया-छरी लैबो।

छरीदां :: (क्रि. वि.) अकेले ही।

छरूँटा :: (सं. पु.) एक छोटे पौधे की टहनी, हरे चने का पौधा।

छरूलबो :: (अ. क्रि.) खरोंच लगने से छिल जाना।

छरे :: (वि.) अकेले, किसी साथी के बिना, छलकपट, धोखा-धड़ी, बा पापिन के ऐसे छरे।

छरे :: (मुहा.) छरे टिप्पने लगन दैबो किसी तरह से काबू में न आने देना। छरौ (छड़ो) बिन ब्याहा जवान।

छरोला :: (सं. पु.) खरोंज, छिल जाने से बना निशान।

छरौ :: (सं. पु.) एकान्त मन्त्रणा (राजाओं के संदर्भ में) महाराज ने दीवान से छरौ लओ (एकान्त वार्ता)।

छर्रा छर्रो :: (सं. पु.) छोटे कंकड़ या कण, लोहे या सीसे की छोटी गोलियाँ।

छर्रा छर्रो :: (वि.) छर्रादार।

छर्राबो :: (क्रि.) बिखेरना, दानेदार वस्तु या अनाज आदि का फेंक कर फैलाना।

छर्रे :: (सं. पु.) बन्दूक में डाले जाने वाले शीशे के छोटे-छोटे टुकड़े।

छल :: (सं. पु.) धोखा, बहाना, कपट, धोखे वाली, भूत प्रेत की माया।

छलकन :: (सं. पु.) छलका हुआ पदार्थ, छलकने की क्रिया।

छलकन :: (मुहा.) अधजल गगरी छलकत जाये, अधिक भरे हुए पात्र में से हिलने डुलने के कारण द्रव का गिरना।

छलकन :: (मुहा.) छलका हुआ पदार्थ, छलकने की क्रिया।

छलकबौ :: (क्रि.) अधजल गगरी छलकत जाये-अधिक भरे हुए पात्र में से हिलने डुलने के कारण द्रव का गिरना।

छलका बुलकी :: (सं. स्त्री.) थोड़े-थोड़े खाली बर्तनों को पूरा भरने की क्रिया।

छलकाबो :: (स. क्रि.) किसी भरे हुए पात्र के द्रव पदार्थ को हिलाकर बाहर गिराना।

छलछंद :: (सं. पु.) कपट का व्यवहार, धूर्तता।

छलछन्दी :: (सं. पु.) छलकपट करने वाला कपटी धूर्त।

छलछला आबो :: (क्रि. वि.) कुछ-कुछ पानी निकलना।

छलछलाबो :: (क्रि. अ.) छल-छल शब्द का होना, पानी आदि का थोड़ा-थोड़ा करके बाहर निकलना, जैसे-फूटे घड़े से पानी छलछलाबो, आँखन में अँसुआ छल छलाबो, माँ के स्तनो में दूध छलछलाबो, किसी स्थान पर छुल या कट जाने पर रक्त छलछलाबो।

छलछिद :: (सं. पु.) कपट, धोखेबाजी।

छलबट्टे :: (सं. स्त्री.) धोखेबाजी, कपट।

छलबो :: (सं. पु.) छलने का काम, धोखा, ठगना।

छला :: (सं. पु.) छल्ला, हाथ या पैर की उँगलियाँ में पहिनने की सादी अंगूठी।

छलिया :: (वि.) सुपारी के कटे हुए छोटे छोटे टुकड़े, छलिया।

छलोनी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की धान।

छलोनें :: (वि.) सलोने, सुन्दर, भाभियों द्वारा किसी देवर को पुकारने का शब्द, छलोने-विशेषण युक्त नामकरण जैसे छलोने लाला।

छलौनी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का धान।

छल्लनदार :: (वि.) जिसमें छल्ला लगे हों, छल्लेदार।

छल्ला :: (सं. पु.) दाल इत्यादि छानने की मध्यम आकार की चलनी, अँगूठी बिना नग आदि की।

छल्ली :: (सं. स्त्री.) क्रम से, एक के ऊपर एक रखे हुए बोरा की पंत्तियाँ, स्त्रियों के पैरों की उँगलियों में पहिनने के आभूषण।

छाँई :: (सं. स्त्री.) छाया, छायी हुई जगह, प्रतिबिंब, परछाई।

छाँओ :: (सं. पु.) छाया, छायी हुई जगह, परछाई।

छाक :: (सं. पु.) तृप्ति, मस्ती, दोपहर का खाना।

छाकटा :: (क्रि. वि.) छटा हुआ बदमाश।

छाकटा :: (वि.) बदमाश।

छाकड़ी :: (सं. पु.) सवारी के काम आने वाली डिब्बानुमा बैलगाड़ी, ताश का एक खेल जिसको छः लोग अड़तालीस पत्तों से खेलते हैं, दुक्कियाँ निकाल दी जाती हैं।

छागल :: (सं. पु.) छैलचूड़ी में घुँगरिया लगाकर बना पैर का आभूषण।

छागलें :: (सं. स्त्री.) पैरों में पहिनने की विशेष बनावट की पायलें, पानी ठण्डा करने की किरमिच की थैलियाँ।

छाँगुर :: (सं. पु.) छः उँगलियों वाला छंगा।

छाँच :: (सं. स्त्री.) छाछ, मट्टा, दही, छाँच।

छाँच :: (मुहा.) चुरूयन छाँछ प्याबो-किसी चीज के लिए तरसना।

छाछ :: (सं. स्त्री.) मट्ठा, मही।

छाज :: (सं. पु.) अनाज छानने फटकने का एक उपकरण, सूप छप्पर, अनाज छानने की लोहे की जाली का बना साधन, छान छप्पर।

छाजन रत्ती :: (सं.) एक चर्म रोग, अकौता।

छाजबो :: (क्रि. स.) दली हुई दाल को छनना।

छाजबो :: (क्रि. अ.) फबना, भला लगना।

छाजौ :: (सं. पु.) छज्जा, छत की पट्टी से नीचे दीवार की सुरक्षा हेतु निकलता हुआ भाग।

छाँट :: (सं. स्त्री.) काटने या करतने की क्रिया, जंगली पशुओं का झुण्ड।

छाँटन :: (सं. स्त्री.) छँटते-छँटते बचने वाली वस्तु।

छाँटबौ :: (स. क्रि.) काटकर अलग करना, काटना, कतरना, चुनना, दूर करना, हटाना, साफकरना, अनेक वस्तुओं में से कुछ को चुनना, किसी व्यवस्था के अनुसार पौधों या बालों के ऊपरी भागों को काटना।

छाँटी :: (सं. स्त्री.) हाथ का बुना हुआ मोटा वस्त्र।

छाँड़ी :: (वि.) छोड़ी हुई स्त्री।

छातन :: (क्रि. वि.) छाती तक गहरा।

छाता :: (सं. पु.) बड़ी छतरी।

छाती :: (सं. स्त्री.) शरीर का अग्र भाग, सीना, स्तन, वक्षस्थल छाती का वह स्थान जहाँ से दोनों ओर का पसलियाँ अलग हो जाती है।

छाती :: (कहा.) छाती पै हौरा भूँजबो - पास रहकर दुख देना, छाती ठोक के कैबो-प्रतिज्ञा करना विश्वास दिलाना, छाती भर आबौ-प्रेम या करुणा से हृदय गदगद हो जाना स्तन कुच, छाती फटबो-दुख का असह हो जाना, छाती बज्जुर की कर लैबो-दुख सहने को तैयार होना, छाती पै फतर धर लैबो-कोई भारी दुख सहने के लिए कड़ा करना, छाती चल्ली होबो-कलेश सहते ऊब जाना, छाती ठंडी होबो-जी की जलन मिटना, छाती फुलाबो-गर्व करना, इतराना, छाती से लगाबो-आलिंगन करना, गले लगाना, छाती पै कोदे दरबो-किसी को देखकर उसे जलाने वाली बात तरना, छाती पै धर के ले जाबो-मरने पर साथ ले जाना, छाती कूटबो-व्याकुल हो छाती पर बार बार हाथ पटकना।

छातो :: (सं. पु.) वर्षा, धूप से बचाव के लिए बनाया हुआ एक प्रसिद्ध आच्छादन, छाता।

छान :: (सं. स्त्री.) छाजन कच्चे मकाने का ऊपर का ढाँचा छावन उदाहरण-छान छप्पर घर के ऊपर का छप्पड़, छप्पर छाजन।

छानबो :: (क्रि.) तरल पदार्थ को छानना, गेहूँ आदि को बड़ी मात्रा में बड़े छन्ने से छानना।

छानबौ :: (सं. क्रि.) मिली जुली चीजों को अलग करना, बिलगाना, खोजना ढूँढना, जाँच पड़ताल करना, भंग घोंटना और पीना।

छानबौ :: (मुहा.) गैरी छानबो भंग का गहरा नशा करना।

छानी :: (सं. स्त्री.) छप्पर का भाग जो दीवार के आगे तक निकला रहता है घर का ऊपरी भाग, छावन।

छानो :: (सं. पु.) हिसाब, नंगा, फोरी।

छानो :: (व.) तलाशी छाने।

छाप :: (सं. स्त्री.) चित्र तस्वीर, अँगूठी जिस पर लगभग दो उँगलियों को ढकने योग्य अलंकृत या जड़ाऊगोला लगा है छबाई, या पलस्तर।

छापछोई :: (सं. स्त्री.) हर प्रकार की गन्दगी और अपवित्रता का वातावरण।

छापबो :: (सं. क्रि.) निशान डालना, अंकित करना, छापे की कला से मुद्रित करना।

छापबौ :: (क्रि.) मुद्रण करना, लकड़ी के ठप्पों से कपड़े पर बेलबूटे आदि छापना, हवाई या पलस्तर करना।

छापर :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार की भूमि जिसमें घास अधिक होती है असर भूमि, वह भूमि जहाँ छोटे छोटे स्नातों से पानी निकलता हो।

छापर :: (मुहा.) छापरलागबौ-प्रमाणिकता की मुहर लगाना, कवियों में अपना नाम देना।

छापा :: (सं. पु.) छपाई, मुद्रण का प्रकार, आकस्मिक घिराव।

छापा की :: (वि.) जो हाथ से लिखी न हो ऐसी कितावस।

छापाखानों :: (सं. पु.) मुद्रणालय, प्रेस यौगिक शब्द।

छापे :: (सं. पु.) ऊ सीताराम राधेश्याम के नामों वाली मुद्राओं को चन्दन लगाकर लगाये गये तिलक शब्द युग्म तिलक छापे।

छापो :: (सं. पु.) मुहर का चिन्ह या अक्षर, अचानक आक्रमण, धावा।

छापौ :: (सं. पु.) बड़ा ढेर।

छाबबौ :: (क्रि. स.) दीवार आदि पर पलस्तर करना, मिट्टी लगाकर समतल करना या बन्द करना।

छाबौ :: (क्रि.) छप्पर के उपर खपड़ा जमाना, बैलों का फैलना।

छाँयरी :: (सं. स्त्री.) किसी व्यक्ति या वस्तु की परछाँई।

छायरो :: (सं. पु.) छाया।

छाँयरो :: (सं. पु.) पेड़ आदि की छाया, वह स्थान जहाँ सूर्य का प्रकाश न पड़े, धूप आदि से बचने के लिए किया गया प्रबंध।

छार :: (सं. स्त्री.) गुड़, जलेबी, मंगौड़े, आदि के बचे हुए छोटे छोटे टुकड़े, किसी भी चीज का झरना, कंकरीली मिट्टी, राख भस्म।

छार छार :: (वि.) बहुत छोटे छोटे टुकड़ों में विभक्त।

छारकत :: (वि.) घोड़े, की तेज चाल।

छाल :: (सं. स्त्री.) वृक्ष के तने का वाह्य आवरण, हिरन आदि जानवरों का चमड़ा।

छालबो :: (सं. क्रि.) आटा, चूरन आदि को कपड़े या चलनी आदि में से निकालना।

छाला :: (सं. स्त्री.) वृक्षों की छाल चमड़ी ऐसौ काल परो तो कै मासन ने पेड़न की छाला उदेर खायी, मृगछाला।

छालौ :: (सं. पु.) फफोला।

छाव :: (सं. स्त्री.) छवाई, पलस्तर।

छावँ :: (सं. स्त्री.) छाँह, छाया।

छाँव :: (सं. स्त्री.) आश्रय, छाया काल।

छावन :: (सं. पु.) साबुन पुराने लोग और आदिवासियों द्वारा प्रयुक्त।

छाँवन :: (सं. स्त्री.) छाया के लिए की गयी व्यवस्था।

छावनी :: (सं. स्त्री.) डेरा, पड़ाव सेना के ठहरने का स्थान, छानें का काम।

छाँवनी :: (सं. स्त्री.) सैनिक शिविर फौजी अड्डा।

छाँह :: (सं. स्त्री.) छाया, परछाई।

छाही :: (सं. स्त्री.) छाया।

छि. :: घृणा सूचक निपात।

छिकइया :: (वि.) घेरने या छेकने वाला।

छिकबो :: (अ. क्रि.) रुकना, बन्द होना, घेरा जाना, घिरना, छेका जाना।

छिकरा :: (सं. पु.) छोटी जाति का हरिण, शिकारा।

छिकला :: (सं. पु.) छिलका फलों तरकारियों का ऊपरी खोल।

छिकवैया :: (सं. पु.) छेकने या रोकने वाला।

छिगनियाँ :: (सं. स्त्री.) छटवी उँगली, छँगनियाँ बच्चों का एक आभूषण।

छिंगर घँघोटे करबो :: (सं. क्रि.) हीला बहाना करना।

छिंगरिया :: (सं. स्त्री.) पंजे की सबसे छोटी उँगली।

छिगंरी :: (सं. स्त्री.) कनिष्टिका, छोटी उँगली।

छिगंरी :: (कहा.) छिंगुरी पकर कें कौंचा पकरबो - थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना।

छिंगरी :: (सं. स्त्री.) सबसे छोटी उँगरी।

छिंगा :: (वि.) जिसके हाथ में छह उँगलियाँ हो स्त्री. छिंगू, छः अगुलियों वाली।

छिंगा :: (स्त्री.) वह गाय जिसके छः थन हो।

छिगुनियाँ :: (सं. स्त्री.) छिंगुरी।

छिचड़ांद :: (सं. पु.) बाल माँस आदि जलने की बू।

छिचलबो :: (क्रि.) फैलना।

छिचलो :: (वि.) कम गहरा, उथला।

छिचोरा :: (वि.) ओछा, छुद्र।

छिच्ची :: (सं. स्त्री.) मल बच्चों के द्वारा बोलने में प्रयुक्त।

छिछराँद छिछरयाँद :: (सं. स्त्री.) बकरियों के शरीर की गंध, वह गन्ध जो कि प्रायः बकरी के दूध से आती है।

छिछलबो :: (क्रि. अ.) फैलना, छिछलना गई भुवन किरियान पर छिछल चाँदनी ल. बु. गीत।

छिछोरा :: (वि.) उठाई गिरी।

छिछोरापन :: (सं. पु.) ओछापन, नीचता।

छिटका :: (सं. पु.) बूँदे छींटा धब्बा।

छिटकां :: (क्रि. वि.) छिटक कर बोया हुआ अनाज।

छिटकाबो :: (क्रि.) चारों ओर फैलाना, बिखेरना।

छिटकाबौ :: (क्रि. अ.) बूंदे, अनाज या छोटे, दाने झटके से गिराना या फैराना।

छिटकी :: (सं. स्त्री.) बिना वस्तृत पूजा के देवताओं को समर्पित करने हेतु छिटका हुआ खाद्य पदार्थ नैवेद्य अर्पण की यह एक क्रिया है।

छिटिया :: (सं. स्त्री.) कम ऊँची दीवारों की बाँस की छोटी टोकरी।

छिटी :: (सं. स्त्री.) लीपने के पश्चात् बचा हुआ लोचहीन गोबर यौ. छिटाछिटीकर डारबो खंड कर डालना।

छिटी :: (यौ.) छिटाछिटीकर डारबो खंड कर डालना।

छिड़कबो :: (क्रि. स.) पानी आदि के छींटे डालना, न्यौछावर करना।

छिड़बों :: (अ. क्रि.) आरम्भ होना छेड़ा जाना।

छिड़यारौ :: (सं. पु.) सीढियों का समूह।

छिड़िया :: (सं. स्त्री.) छोटी और तंग गली, छीड़ी छत की।

छिड़ियाँ :: (सं. स्त्री.) जीना, सीढ़ियाँ, छोटी सँकरी गली।

छिड्डबौ :: (क्रि.) किसी ढुडकती हुई वस्तु को रोकना।

छितन्ना :: (सं. पु.) टोकनी।

छितरयाउ :: (वि.) फैली हुई, चौड़ी।

छितरिया :: (सं. स्त्री.) कम ऊँची दीवारों की बाँस की पतली सींकों से बनी टोकरी।

छितरिया, छितिया :: (सं. स्त्री.) टोकरी, छोटी टोकनी, कटजाय छितरियन माँस उदाहरण-मेहतर की मैला गलीजआदि रखने की टोकनी।

छिताँ :: (क्रि. वि. अ.) सामने, समझ।

छितिया :: (सं. स्त्री.) छोटी टोकनी।

छिदनयाँ :: (वि.) छेदों वाला।

छिदनाँ :: (सं. पु.) बर्रो का छत्ता, छेददार।

छिदनाँ :: (यौ.) छिदना छिदना, छेद ही छेद।

छिदबो :: (अ. क्रि.) छिदाना, छेददार होना, घायल होना, चुभना, धँसना छिदजाना।

छिदवाबो :: (स. क्रि.) छेदने का काम अन्य से कराना छेद करवाना, नाक-कान छिदवाना, जवारों में गाल में साँग छिदवाना।

छिदाबो :: (क्रि. स.) कान छिदवाना।

छिदाम :: (सं. पु.) पुराने पैसे का चौथा भाग, रूपया का एक सौछप्पवाँ भाग।

छिदाम :: (कहा.) छिदाम की हँड़िया ठोक बजा कें लेत - हर चीज देखभाल कर खरीदनी।

छिदाम पट्टा :: (सं. पु.) ताश का एक खेल।

छिद्ददा :: (वि.) छेददार, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद चलाये गये ताँबे के पैसे का विशेषण जो संज्ञा रूप में भी रूढ़ हो गया था।

छिन :: (सं. पु.) क्षण, छन।

छिन :: (कहा.) छिन सीरे, छिन ताते - घड़ी-घड़ी में मिजाज बदलना।

छिनकना :: (वि.) जो बार बार छिनके।

छिनकबो :: (क्रि. स.) नाक साफ करना, प्रश्वास का बल लगाकर बलगम निकालना।

छिनबो :: (क्रि.) काम में आते आते वस्त्र या रस्सी आदि का जीर्ण होना क्षीण होना।

छिनरंदो :: (सं. स्त्री.) कुलटा व्याभिचारी, छिनाल।

छिनरा :: (वि.) दुराचारी एक गाली।

छिनरिया, छिनार :: (वि. स्त्री. सं.) पुंश्चली, व्यभिचारीरिणी, वह तो बड़ी छिनारि सूर।

छिनारौ :: (सं. पु.) व्यभिचार छिनारौ लगाबौ।

छिनारौ :: (कहा.) छुअतन छिनारौ लगावै छनारौ अब भयौ सूर।

छिपकुली :: (सं. स्त्री.) छिपकली, दीवारों पर चिपका रहने वाला तथा कीड़े मकोड़े खाने वाला जन्तु पल्ली।

छिपट :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की पतली फंच।

छिपटियाँ :: (सं. स्त्री.) लकड़ी फाड़ते समय निकलने वाली छोटी छोटी चैली, चिल्फी।

छिपनी :: (सं. स्त्री.) सीप।

छिपिन :: (सं. स्त्री.) छिपी।

छिपिन :: (स्त्री.) दर्जिन।

छिपी :: (सं. पु.) कपड़े सीने वाला, दर्जी नामदेव।

छिपुटियाँ :: (सं. स्त्री.) लकड़ी की छिपटे।

छिपुरिया :: (सं. स्त्री.) लकड़ी का पतला चपटा टुकड़ा छिपट, खपच्च, सूकी देह, छिपुरिया हो रई।

छिबबौ :: (क्रि.) किसी व्यक्ति या वस्तु से छू जाना।

छिबा :: (सं. पु.) स्पर्श।

छिबा :: दे. छिबा छिबउअन।

छिबा :: (सं. पु.) छोटे बच्चों का एक दूसरे को छूने और जाने से बचने का खेल।

छिमा :: (सं. स्त्री.) माफी, सहनशीलता अपराध मार्जन।

छियत्तर :: (वि.) छह और सत्तर के योग की संख्या।

छियाँ :: (सं. स्त्री.) नाक से निकला हुआ बलगम।

छियाँ :: दे. नाँक, रेंट रेआँट।

छिया छोत :: (सं. पु.) अछूत के न छूने या उससे बचने का विचार या प्रथा।

छियाउन्बै :: (क्रि.) छह और नब्बे के योग की संख्या।

छियाछिटकी :: (सं. स्त्री.) छिटकी डालने की पद्धति देवी देवताओं या भूत प्रेतों को वस्तु का कुछ भाग, छोटा या कण अर्पण करने की प्रथा।

छियालीस :: (वि.) छह और चालीस के योग की संख्या।

छियासट :: (वि.) छह और साठ के योग की संख्या।

छियासी :: (वि.) छह और अस्सी के योग की संख्या।

छिरक :: (सं. स्त्री.) बुनाई के दोष के कारण कपड़े में किसी स्थान पर सूत की विरलता।

छिरकबौ :: (क्रि.) छिड़कना, आव छिटकाबती गुलाब गुल माला में।

छिरका :: (सं. पु.) छप्पर की विरलता के कारण ऐसे स्थान जहाँ से अन्दर धूप आती है।

छिरया दुपर :: (सं. स्त्री.) लगभग सायं ४ बजे का समय।

छिरयांद :: (सं. पु.) बकरी के शरीर की गन्ध, उसके दूध की गंध।

छिरयानों :: (सं. पु.) बकरियाँ बँधने का स्थान बकरियों के द्वारा फैलाई गयी गन्दगी से गन्दा स्थान।

छिरारू :: (सं. स्त्री.) खेतों में पैदा होने वाला एक पैधा जिसका लाल वाली जैसा लम्बा फूल होता है।

छिरिया :: (सं. स्त्री.) बकरी।

छिरिया :: (कहा.) छिरिया के गोड़े बुकरिया में बुकरिया के गोड़े छिरिया में - बकरी का बच्चा इधर की चीज उधर मिलना, ऊट-पटाँग काम करना।

छिरैटा :: (सं. पु.) एक वनस्पति।

छिर्द :: (क्रि. अ.) छींक लेना।

छिलका :: (सं. पु.) छिलका।

छींक :: (सं. स्त्री.) जुखाम आदि के कारण श्वास का नाक और मुँह से झटके से निकलना।

छींक :: (कहा.) बिना किसी अपराध के ही कंलक लगा, छींके की टूटन, बिलइया की लपकन - छींके का टूटना और बिल्ली का लपकना, संयोग से कोई अच्छा काम बन जाना।

छींकबो :: (क्रि.) छींक आना।

छींको :: (सं. पु.) वस्तुओं को रखने का वह गोल जाल जो रस्सियों का बना होता है और छत से लटका रहता है छींका जिस पर खआने पीने की चीजें रख दी जाती है।

छींचड़ा :: (सं. पु.) आँतों आदि का बेकाश गोश्त दे, लिदारौ।

छींछो :: (सं. पु.) पानी का छींटा।

छीज :: (सं. स्त्री.) कमी, छाटा, क्षय, हास, मिसन, चाँदी सोने का वह अंश जो उसे सोधने में कम हो जाता है।

छीजबो :: (अ. क्रि.) कम हेना, घटना, नष्ट होना, क्षीण होना, गलना, दाल चावल का पकना।

छीजबो :: दे. सीजबौ।

छींट :: (सं. स्त्री.) फूल पत्ती बेल बूटे आदि छपा हुआ कपड़ा एक प्रकार की रंगाई छपाई, रंगीन बेल बूटेदार कपड़ा।

छीटा :: (सं. पु.) एक प्रकार की टोकनी जिसमें भात परसाया जाता है।

छींटा :: (सं. पु.) बूदें, झटके से उछली या उछाली हुई जल अथवा द्रव पदार्थ की बूँदे, छीटदार कपड़ा।

छींटा :: (मुहा.) छींटा कसवो-ताना मारना।

छीतर :: (सं. पु.) बैल गाड़ी पर खाद्य ढोने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला बाँस या अन्य लचीली लकड़ियों से बनाया गया एक प्रकार का खुला हुआ डिब्बा भूसा ढ़ोने की टोकनी।

छीताफल :: (सं. पु.) सीताफल, शरीफा।

छीताफल :: (वि.) छीताफली छीताफल के छिलके जैसी बनावट का पैजना आदि।

छीनबो :: (सं. क्रि.) किन्न करना, काटकर अलग करना, ऐसी गरबीली नाइन लाल कौ नरा छीने लोक गीत दूसरे सी वस्तु जबरदस्ती ले लेना।

छीप :: (सं. स्त्री.) पूजा की सामग्री रखने का धातु अथवा लकड़ी का बना खानेदार पात्र, अक्षत, चन्दन रोली आदि रखने का पात्र।

छीपा :: (सं. पु.) एक जाति, कपड़ों पर छपाई करने वाला, छीटा छापने वाला।

छीबो :: (स. क्रि.) छूना, स्पर्श करना, पास पँहुचना।

छीर :: (सं. स्त्री.) शीर, निजी स्वामित्व की कृषि भूमि।

छीर बिलारौ :: (वि.) भदरंगा भद्दा और बेढंगा लिपा पुता हुआ, कैसे लीपौं कैसे पोतो छीर बिलारौ होत तौ लोक गीत।

छीरई :: (सं. पु.) चमार के लिए आदरवाची शब्द।

छीरौ :: (सं. पु.) कपड़े में बुनाई के दोष के कारण किसी स्थान पर सूत की विरलता कपड़ा बुनने के पश्चात् शेष रह जाता है अंत का छोर।

छील छिलाई :: (सं. स्त्री.) छील छिलौआ।

छील छिलाई :: (पु.) बच्चों का एक खेल।

छीलन :: (सं. पु.) भाजी के छिलके।

छीलबो :: (क्रि.) शाक या फलों के छिलके उतारना लकड़ी आदि को छीलकर साफ या पतला करना।

छीलबो :: (मुहा.) कलम छीलवो-कलम-बनाना।

छीलर :: (सं. पु.) छिचला गडढ़ा।

छीली :: (वि. कहा.) छीलकर साफ और पतली की गई छीली काम कमान सी का।

छुआ :: (सं. पु.) हल्का स्पर्श।

छुआ :: (मुहा.) छुआ लगबो-स्पर्श भर होना।

छुआ छुबौबल :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल, आँख मिचौनी।

छुआरा :: (सं. पु.) छुहारा, खारक।

छुआरे :: (सं. पु.) छुहारे, खारकें एक प्रकार के खजूर के फल (सूखे हुए)।

छुई :: (सं. स्त्री.) पोतने की सफेद मिट्टी।

छुई मुई :: (सं. स्त्री.) लज्जावती, बहुत नाजुक।

छुकर छुकर :: (सं. स्त्री.) बिना समझे किसी काम के करने में चंचलता दिखाने की क्रिया।

छुकरयाबो :: (क्रि.) किशोर बच्चों की मर्यादित हरकतें।

छुकरिया :: (सं. स्त्री.) वेश्यापुत्री, वेश्यावृत्ति की तैयारी में कम उम्र की लड़की।

छुकला :: (सं. पु.) उबले हुए कन्दों के छिलके।

छुक्क छुक्क :: (सं. स्त्री.) दे. छुकर छुकर।

छुक्क छुक्क :: (वि.) छ़क्का।

छुचकारबो :: (क्रि.) कुत्ते को भौंकने के लिए प्रेरित करना, अत्यंत हीन भाव से किसी को भगा देना।

छुचने :: (सं. पु.) रेशे।

छुचराँद :: (वि.) चिराँद, माँस चलने जैसी दुर्गन्ध।

छुंची :: (वि.) खाली।

छुच्चम :: (सं.) सूक्ष्म, बहुत थोड़ी मात्रा में।

छुच्छा :: (वि.) खाली बिना पैसे का।

छुछउ :: (वि.) जो खाने के लालच से घूमती फिरे।

छुछकारबो :: (क्रि. स.) इधर उधर घूमते हे लपरता प्रदर्शित करना।

छुछरौद :: (सं. पु.) बाल या मांस जलने की गंध।

छुटक :: (अ.) खूब मौज से खुली।

छुटकबों :: (क्रि.) किसी वस्तु को हिलने डुलने के ले स्वतंत्र रूप में लटकाना बालों को बिना बंधन के खुला रखना, घुटना अलग होना गिर पड़ना।

छुटपन :: (सं. पु.) बचपन, लड़कपन।

छुटाबो :: (क्रि. स.) छुड़ाना, गाय भैंस आदि का दूध देना बन्द करना।

छुटिया :: (सं. स्त्री.) काँच की पोत की गले में पहनने की लड़ी।

छुटी :: (सं. स्त्री.) मुक्ति, अवकाश चलने या जाने की अनुमति।

छुट्टर :: (वि.) छूटा हुआ बिना बन्धन का, जैसे ढोर का छुट्टर होना।

छुट्टा :: (क्रि. वि.) बिना किसी बाधा के एकाकी, अकेला।

छुड़बाबो :: (सं. क्रि.) छोड़ने के निमित्त प्रेरित या उद्यत कराना।

छुड़ाबौ :: (क्रि.) छीनना, मुक्त करना।

छुड़ैया :: (वि.) छुड़ाने वाला, बचाने वाला।

छुड़ौती :: (सं. स्त्री.) छुड़ाबो, बन्धन से मुक्त करने के निमित्त्त दियाजाने वाला धन।

छुतया :: (क्रि.) गन्दे स्पर्श के कारण हुआ अस्पृश्य, जिसे छूत लगी हो।

छुनक मुनइँया :: (वि.) बिना हाथ पकड़े सिर पर बोझ लेकर चलना।

छुनछुनाबो :: (वि.) गरम वस्तु पर पड़ने वाली तरल बूँदों का खौलकर सूखना।

छुपकली :: (सं. स्त्री.) छिपकली।

छुरक :: दे. छीरौ।

छुरा :: (सं. पु.) उस्तरा, छुरा, बड़ी छुरी, छुरा चारौ।

छुरा :: (वि.) एक घास जिसकी पत्तियों से चमड़ी कट जाती है।

छुरी :: (सं. स्त्री.) छोटा धार दार हथियार, शाक भाजी काटने का चाकू।

छुरी चलाबो :: (स. क्रि.) बहुत सताना कष्ट देना।

छुलकन :: थोड़ा।

छुलछुलाबो :: (क्रि. अ.) इतराना, जल्दी-जल्दी इधर-उधर फिरना उतावली होना।

छुलबो :: (क्रि. अ.) खरोंच लग जाना, छिल जाना।

छुलबो :: (क्रि. स.) किसी भी चीज को छीला जाना।

छुलाई :: (सं. स्त्री.) छीलने का काम चमड़ा साफ करने की एक प्रक्रिया।

छुलाटो :: (सं. पु.) एक वनस्पति इसके फलों से बैंजनी रंग बनता है।

छू :: (सं. पु.) मंत्र पढकर फूँक मारने का शब्द, छू मंतर हो बौ गायब हो जाना।

छू :: (क्रि.) एक दम से भागकर अदृश्य होना, अदृश्य हो जाना।

छू बोलबो :: भागजाना, कुत्ते को किसी के पीछे पड़ने के लिए उसका देने का उदगार।

छूँछ :: (वि.) खाली रोता, महुए का पेड़ जिसे उसके मालिक ने महुए के लिए यों ही दूसरे को दे दिया हो।

छूछनों :: (सं. पु.) फल या तरकारी का लम्बा रेशा, गन्ने की गड़ेरी का चूँस, चूस कर फेंका गया अंश।

छूछों :: (वि.) खाली, सारहीन, बिना पैसे का।

छूछों :: (कहा.) छूँछे काऊ न पूछे - धनहीन को कोई नहीं पूछता।

छूछों :: (कहा.) छूछो फटको उड़ जाय - मूर्ख के पास से कोई सार की बात पल्ले नहीं पड़ती, अथवा मूर्ख बड़ा घमंडी होता है।

छूट :: (सं. स्त्री.) छटने की क्रिया या भाव, छुटकारा, अवकाश।

छूटबो :: (अ. क्रि.) अलग होना, मुक्त होना, रवाना होना, भूल से रह जाना, बिछुड़ना, लगाव या संबंध न रहना, बन्धन आदि से ढीला पड़ना, छुटकारा पाना, बन्दूक की गोली आदि का ढीला पड़ना, छुटकारा पाना, बन्दूक की गोली आदि का चलना।

छूटबो :: (मुहा.) औसान छूटबो, होश गायब होना।

छूटा :: (सं. पु.) नीचे की ओर पूरी तरह झूलने का गले का आभूषण, एक प्रकार का गहना, पोत का तोड़ीदार कंठा बच्चों की कमर में बांधा जाने वाला धागा, डोर।

छूदा :: (सं. पु.) नाम मात्र के लिए किया जाने वाला काम, काम का बहाना, अपराध।

छूदा :: (मुहा.) छूदा भगाबौ-आरोप मुक्ति का उपाय करना।

छूबो :: (स. क्रि.) स्पर्श होना या करना, हाथ लगाना जाना, स्पर्श करना दौड़ या खेल में किसी को पकड़ना।

छूबो :: (मुहा.) हाथ से छूबो-व्यवहार में न लाना।

छूल छूलैया :: (सं. पु.) बच्चों का एक खेल जिसमें एक लड़का दूसरे को छू करके भागता है और दूसरा उसे पकड़ता है, (छई छिलोर)।

छेंउट :: (सं. स्त्री.) कमी।

छेंउटबौ :: (क्रि.) कमी पड़ना।

छेंक :: (सं. स्त्री.) छेंकने की क्रिया या भाव, रोक।

छेंकबो :: (क्रि.) रास्ता रोकना, बन्दी करना लिखे हुए को काटना।

छेंका :: (सं. पु.) अनाज का गोल ढेर।

छेंकुर :: (सं. पु.) एक वृक्ष जिसमें लम्बी कलियाँ लगती है, शमी वृक्ष विजया दशमी के दिन इसकी पूजा होती है, और लोग एक दूसरे को इसकी पत्ती बाँटते हैं, छेंकुर पूजबौ-दशहरे को छेंकुर वृक्ष का पूजा जाना।

छेंको :: (सं. पु.) खेतों के बीच का मार्ग।

छेपक :: (सं. पु.) अन्तर्कथा, प्रसंग को विस्तृत करने वाले वृतान्त।

छेबलो :: (सं. पु.) पलाश, टेसू।

छेबा :: (सं. पु.) सही का चिन्ह, चालू काम में व्यतिक्रम का कारण।

छेबूदा :: (सं. पु.) एक कीड़ा जिसके शरीर पर पीले रंग के छः बुदके होते हैं।

छेरबो :: (वि.) छहराना, चलते समय वस्त्र का भूमि पर खसीटना।

छेरबौ :: (क्रि.) अपान वायु के साथ पतला मलत्याग करना।

छेरो :: (सं. पु.) छाया।

छेल चिकनिया :: (सं. पु.) शौकीन, बना ठना आदमी।

छेव :: (सं. पु.) फासला, लुधांती।

छेवलार :: (सं. स्त्री.) पलाश वन।

छेवलौ :: (सं. पु.) पलास का बड़ा पेड़, ढाक, खाँकर।

छै :: (वि.) तीन की दो गुनी संख्या।

छैयाँ :: (सं. स्त्री.) छाया।

छैल :: (सं. पु.) दे. छैला।

छैल :: (सं. पु.) बनठन कर रहने वाला नवयुवक, छैल छबीले, शब्द युग्म लोक गीतों में प्रयुक्त।

छैल चूड़ी :: (सं. स्त्री.) पैर में पहनने का चाँदी का एक गहना जिसमें फूल पत्ती बनी रहती है।

छैल छबीली :: (सं. पु.) सजा बजा नौजवान।

छैल छबीलो :: (सं. पु.) बाँका, रंगीला पुरूष।

छैलबो :: (क्रि.) छितरना, बिखरना, छैरबो।

छैला :: (सं. पु.) सुन्दर सजील, बना ठना पुरूष।

छैला :: (सं. पु.) बनठन कर घूमने वाले युवक।

छैला :: (सं. पु.) छैल।

छोई :: (सं. स्त्री.) ईख के रखे निकले हुए डण्ठल, चूसकर निकाली गई आम की गुठली।

छोंक :: (सं. पु.) बधार।

छोंक :: (प्र.) दार जीरन से छोंक दी।

छोंकबौ :: (क्रि.) मसाले भुनने के बाद हण्डी या कढ़ाई में सब्जी डालकर भूनना।

छोंकबौ :: (मुहा.) तरइँया सी छोकबौ-हर काम में जल्दी जल्दी करना।

छोंकर :: (सं. पु.) शमी वृक्ष।

छोंका :: (सं. पु.) बघार, माथे पर पहना जाने वाला अर्द्धचन्द्राकार आभूषण, मुस्लिम महिलाओं में प्रचलित।

छोंचयाबो :: (क्रि. अ.) किसी वस्तु के लालच से चक्कर काटना।

छोंचायलौ :: (वि.) स्फूर्तिवान, तेज एवं निसंकोच।

छोंटा :: (सं. पु.) सोंटा, सावन में खिलौनों के साथ बिकने वाली लगभग एक गज लम्बी पतली रंगीन छड़ी।

छोटौ :: (वि.) कनिष्ठ, पद आयु या आकार में कम, मर्यादा में कम, महत्वपूर्ण साधारण या मामूली।

छोटौ :: (मुहा.) मन को छोटो संकीर्ण मन का होना, मन को छोटो करबो, निशान होना।

छोटौ :: (कहा.) छोटे-बड़े सब के दो कान - क्या छोटे, क्या बड़े, सब बराबर होते हैं, सबके दो कान हैं।

छोटौ :: (कहा.) छोटे मों ऐठे कान, जई बरद की है पहचान - अच्छे बैल की पहचान यही है उसका मुँह छोटा और कान ऐंठे हुए हों।

छोटौ :: (कहा.) छोटे मों ऐठे कान, जई बरद की है पहचान - अच्छे बैल की पहचान यही है उसका मुँह छोटा और कान ऐंठे हुए हों।

छोंड :: (सं. स्त्री.) देशी पद्धति से चमड़ा पकाने की मिट्टी की नाँद।

छोंड :: (वि.) किसी खाने पीने की वस्तु की आशा में इधर उधर ताकने अथवा टोह में रहने वाला, छोंनयाउ।

छोड़छुट्टी :: (सं. पु.) तलाक।

छोड़बौं :: (क्रि.) त्याग देना, मुक्त करना, भूल आना।

छोड़बौं :: (कहा.) छोड़े गाँव कौ नातौ का - जिस बात से कोई प्रयोजन नहीं उसकी चर्चा क्या।

छोत :: (सं. स्त्री.) छूत।

छोत :: (वि.) बुरी या घृणित स्त्री के लिए एक गाली।

छोतकौ :: (वि.) दे. छुतया अस्थायी रूप से अस्पृश्य।

छोंनयाँ :: (क्रि.) किसी खाने पीने की वस्तु की आशा में इधर उधर ताकने अथवा टोह में रहने वाला, छोंनयाउ।

छोंनयाबौ :: (वि.) खाने पीने की टोह में रहना।

छोंनयाबौ :: दे. छोंनयाँ।

छोंनर :: (सं. स्त्री.) छप्पर पर खपड़े जमाना, खपड़ों को ठीक करना।

छोबलौ :: (क्रि.) धारदार हथियार से छीलना।

छोंय :: (सं. स्त्री.) छोंह, काले खड़े धब्बे, शेर की खाल के काले धब्बे।

छोर :: (सं. पु.) दे. छोड़ तथा छोड़ा, किनारा।

छोर छुट्टी :: (सं. पु.) दे. छोड़ छुट्टी, त्याग करना।

छोरबौ :: (क्रि.) बन्धक मुक्त करना, बन्धन या अटकाव दूर करना, छुटकारा देना, छीनना।

छोरा :: (सं. पु.) लड़का।

छोलन :: (सं. पु.) छीलने से निकला पदार्थ एक गाली।

छोला :: (सं. पु.) छिलने से हुआ घाव, खराच, गन्ना छीलने वाला, काबुली चने का साग।

छौंक :: (सं. स्त्री.) बघार, तड़का।

छौंकबो :: (क्रि. स.) मसाले मिले हुए कड़कड़ाते घी में कच्ची तरकारी आदि पकने के लिए डालना, बघारना, छौंकना।

छौतकी :: (सं. पु.) अपवित्र।

छौनर :: (सं. पु.) छप्पड़।

छौना :: (सं. पु.) पशु का बच्चा, बच्चा, बालक।

छौरा :: (सं. पु.) लड़का कहीं कहीं बोलते है, छोरा।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के च वर्ग का तृतीय व्यंजन, वर्ण, इसका उच्चारण स्थान तालु है।

जई :: (सं. स्त्री.) एक पशु, चारा, एक पौधा जो अपामार्ग की जाति का होता है, जवा की जाति का अन्न।

जउ :: (अव्य.) यद्यपि, जब भी, इतने पर भी।

जउआ :: (सं. पु.) बहुत छोटी आयु का फल, छोटी ककड़ी।

जक :: (सं. स्त्री.) जिद, हठ, धुन, रट, भूत, प्रेत, कंजूस आदमी, उदाहरण-जक बँधना-धन लगना।

जकड़बौ :: (क्रि.) कसना, कस कर बाँधना।

जकबो :: (अ. क्रि.) भौंचक्का होना, व्यर्थ बकना।

जक्का :: (सं. पु.) हिचकने वाला, पराजित।

जखड्डी :: (वि.) आधा पागल, अनुभवी, चालाक, झगड़ालू।

जग :: (सं. पु.) संसार, दुनिया, जगत।

जग :: (सं. पु.) जग दरसन कौ मेला-संसार मे सबसे मिलजुल कर रहने का ही आनंद है।

जंग :: (सं. स्त्री.) लड़ाई, व्यापक या बड़ा यु।

जंग :: (कहा.) जंगी घोड़ा को भंगी असवार - जैसे को वैसा मिलने से ही काम चलता है।

जगजगात :: (क्रि. वि.) प्रकाश फैलती हुई।

जगजगार :: (सं. स्त्री.) चमक।

जगजगो :: (सं. पु.) चमक, प्रकाश।

जगजबाबो :: (क्रि. अ.) चमकना, जगमगाना।

जगड़डुआल :: (सं. पु.) आडम्बर।

जगत :: (सं. पु.) संसार, जग, दुनिया, विश्व।

जगतारन :: (सं. स्त्री.) जगदम्बा।

जगत्तर :: (सं. पु.) संसार, (बलवाची प्रयोग)।

जगदंमा :: (सं. स्त्री.) जगत की माता, दुर्गा।

जगन :: (सं. पु.) पिंगल में एक गण जिसमें मध्य का अक्षर लघु होते हैं।

जगनवार :: (सं. स्त्री.) जागरण।

जगनिक :: (सं. पु.) आल्हखण्ड का रचयिता।

जगन्नाथ :: (सं. पु.) ईश्वर, उड़ीसा राज्य के अन्तर्गत पुरी नामक स्थान पर विष्णु की एक मूर्ति का नाम।

जगन्नाथी :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का लोटा, मिट्टी की हँड़िया।

जगबाबो :: (स. क्रि.) जगवाने का कार्य दूसरे से करवाना।

जगबो :: (अ. क्रि.) नींद त्याग कर उठना, जगना, सचेत होना।

जंगम :: (वि.) जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सके, अस्थायी।

जगमगाट :: (सं. स्त्री.) चमक, जगमगाहट।

जगमगाबौ :: (अ. क्रि.) चमकना, दमकना, जगमगाना, प्रकाश की अधिकता से चमकना, चमचमाहट।

जगर-मगर :: (वि.) जगमगाता, चमकीला, प्रकाशित, प्रकाश में सुन्दर दिखता हुआ।

जगरो :: (सं. पु.) कँडों का ढेर।

जंगल :: (सं. पु.) वन।

जंगला :: (सं. पु.) खिड़की में लगाई जाने वाली छड़ें लगी चौखट।

जंगलास लगबो :: (सं. स्त्री.) पाखाने की खबर होना।

जंगली :: (वि.) जंगल के जानवर, असभ्य, असामाजिक।

जंगलै :: (क्रि. वि.) टट्टी जाना, मल त्याग करने जंगल में जाना।

जंगसन :: (सं. स्त्री.) जंकशन, रेलों के संगम वाला स्टेशन।

जगा :: (सं. स्त्री.) स्थान, जगह, पद, अवसर, मौका, एक घुमन्तू जाति।

जंगा :: (सं. पु.) जगह स्थान, नियत स्थान, गुंजाइश।

जगाजोत :: (सं. स्त्री.) अधिक प्रकाश, अत्यधिक प्रकाशित ज्योति, जगमगाहट।

जगात :: (सं. पु.) कर, महसूल।

जगाबौ :: (स. क्रि.) सोने से जगाना, सचेत करना, आग तेज करना, मंत्रों की सिद्धि करना, जागृति फैलाना।

जगार :: (सं. स्त्री.) जागरण, जागृति, प्रातः भगवान के मंदिरों के पटों का खुलना, राजओं के जागने को जगार हो गई कहा गया है।

जंगाल :: (सं. स्त्री.) जंग, लोहे पर पानी और आक्सीजन के प्रभाव से लोहे का क्षरित अंश।

जंगाली :: (सं. पु.) एक रंग।

जंगी :: (वि.) विशाल, सामान्य से काफी बड़ा।

जगेह :: (सं. स्त्री.) जगह स्थान, किसी वस्तु या व्यक्ति का नियत स्थान।

जगौ :: (सं. पु.) जागरण, रतजगौ समास में प्रयुक्त।

जग्ग :: (सं. पु.) यज्ञ।

जग्गसाला :: (सं. स्त्री.) यज्ञ स्थल, यज्ञ के लिए निर्मित विशेष स्थान।

जचबो :: (क्रि.) सुन्दर दिखना, औचित्य या तथ्य से सहमत होना।

जंचवो :: (क्रि. अ.) समझ में आना, ठीक जान पड़ना, जाँच में पूरा उतरना।

जचाई :: (सं. स्त्री.) परीक्षण करने की क्रिया।

जचाई :: (सं.) क्रियार्थक।

जच्चना, जचना :: (क्रि.) भेदिया।

जच्चा :: (सं. स्त्री.) सद्यः प्रसूता, जिस स्त्री को हाल ही में बच्चा पैदा हुआ हो।

जच्छ :: (सं. पु.) एक देवयोनि, कुबेर का सेवक, यक्ष।

जजमजरो :: (सं. पु.) दुबला, पतला, कमजोर।

जजमान :: (सं. पु.) यजमान, धार्मिक कार्य या अनुष्ठान करवाने वाला।

जजमानी :: (सं. स्त्री.) किसी पण्डित परोहित के यजमानों का क्षेत्र।

जंजर :: (वि.) जर्जर, टूटा-फूटा, अनेक जगह छेदों वाला।

जंजर-पंजर :: (वि.) जर्जर-पिजर, जीर्ण शरीर, कमजोर।

जँजरा :: (वि.) जर्जर, कई जगह से फूटा हुआ, (बर्तन)।

जँजरा :: दे. झँजरा।

जंजाल :: (सं. पु.) सांसारिक माया, आपत्ति, झंझट, बखेड़ा, उदाहरण-जंजाल में पड़ना-संकट में पड़ना।

जंजालिया :: (वि.) कवचधारी सिपाही।

जंजाली :: (वि.) मायाबी, दन्दी, फन्दी, उपद्रवी, झगड़ालू, बखेड़िया।

जंजीर :: (सं. स्त्री.) साँकर, साँकल।

जंजीरा :: (सं. पु.) मैन का ऐंठदार सूततार, जंजीर के समान सिलाई।

जंजो :: (वि.) जाँचा हुआ।

जज्ज :: (सं. पु.) जज, न्यायाधीश, कड़े।

जज्जी :: (सं. स्त्री.) विशेष स्तर का या जिला स्तर का न्यायालय।

जंट :: (वि.) सुट्टंढ, मजबूत, हृष्ट-पुष्ट।

जटबो :: (क्रि. स.) धोखा देकर कुछ ले लेना, ठग लेना।

जटा :: (सं. स्त्री.) लट के रूप में गुथे हुए सिर के बड़े बाल, वृक्ष के पतले सूत, झकरा, साधुओं की चिपकी हुई लटों वाले बाल, मोटे रेशे, नारियल के रेशे।

जटा जूट :: (सं. पु.) जटा का समूह, शिव की जटा।

जटाउ :: (सं. पु.) रामायण में वर्णित एक प्रसिद्ध गिद्ध, जिसने सीता को हरकर जाते हुए रावण से सीता को छुड़ाने के लिए युद्ध किया था, जटायु।

जटामासी :: (सं. स्त्री.) एक जड़ी, औषधि, जटाला जटावती।

जटिल :: (वि.) कठिन, दुरूह, जटिल, काफिया, टेढ़ा मामला।

जटैल :: (वि.) अधिक रेशों वाला (आम आदि)।

जट्ट :: (वि.) जड़, बुद्धि, फूहड़ व्यवहार करने वाला।

जठर :: (वि.) बूढ़ा, कठिन, उदररोग।

जड़कारौ :: (सं. पु.) जाड़े का मौसम।

जड़जड़ौ :: (सं. पु.) जाड़े के मौसम में लगातार ठण्ड का वातावरण, लगातार जाड़ा लगते रहने की स्थिति।

जड़बाबो :: (स. क्रि.) जड़ने का काम कराना।

जड़बो :: (स. क्रि.) मारना, ठोकना, चुगली करना, आभूषणों में नग लगाना, कीलें लगाकर मजबूत करना।

जड़माउर-जड़ाउर :: (सं. स्त्री.) जाड़े के गरम कपड़े, जो कन्या पक्ष की ओर से विवाह में लड़की को दिया जाता है।

जड़याउर :: (सं. स्त्री.) ठण्ड से बचने के लिए आवश्यक वस्त्रादि।

जड़याबो :: (क्रि. स.) जड़ने का काम करवाना।

जड़हन :: (सं. स्त्री.) अगहन की फसल।

जड़ाई :: (सं. स्त्री.) जड़ने का काम, जड़ने की मजदूरी, आभूषणों में नग बैठाने की क्रिया।

जड़ाबो :: (स. क्रि.) जड़वाना, जड़ाव करवाना।

जड़ाव :: (सं. पु.) जड़ाउ काम, नगों के जड़ने की विशेषता या कौशल।

जड़िया :: (सं. पु.) नग जड़ने का काम करने वाला, सुनारों की एक जाति, जरिया, नगों को आभूषणों में बैठाने का काम करने वाले।

जड़ी :: (सं. स्त्री.) औषधि के काम आने वाली जड़।

जड़ैया :: (सं. पु.) जड़िया।

जड़ैया :: (सं. स्त्री.) जाड़ा देकर आने वाला ज्वर, जूड़ी।

जण्ट :: (वि.) मजबूत।

जण्ट साब :: (सं. पु.) ज्वाइण्ट मजिस्ट्रेट। ( यौगिक शब्द)।

जण्ट-फण्ट :: (वि.) मजबूत और फुर्तीला।

जतन :: (सं. पु.) प्रयत्न, कोशिश, उपाय, यत्न, सावधानी।

जंतर-मंतर :: (सं. पु.) झाड़-फूँक, जादू-टोना।

जतरिया :: (सं. स्त्री.) दाल दलने की छोटी चक्की।

जतरी :: (सं. स्त्री.) कई छेदों वाला एक उपकरण।

जंतरी :: (सं. पु.) गहने की बदल लेने की क्रिया।

जतला :: (सं. पु.) जाँत, चक्की।

जताबौ :: (क्रि.) स्पष्ट करना, सचेत करना, सावधान करना।

जतिया :: (सं. स्त्री.) छोटी चक्की।

जती :: (सं. स्त्री.) चाँदी सोने के तार खींचने की लोहे की छेददार पटरी, साधु (जोगी-जती शब्द युग्म में प्रयुक्त)।

जंत्र :: (सं. पु.) यन्त्र, ताबीज।

जंत्री :: (सं. स्त्री.) मुसलमानी पंचांग।

जथा :: (अव्य.) जैसे, जिस प्रकार, जिस तरह।

जदराज :: (सं. पु.) श्री कृष्ण।

जदु :: (सं. पु.) यदु-कुल।

जदुबंसी :: (सं. पु.) यदुवंश का व्यक्ति, श्री कृष्ण।

जधा :: (क्रि. वि.) यथा, जत्था, भीड़, समूह।

जनईया :: (सं. स्त्री.) विद्वान, पैदा करने वाला।

जनकतनी :: (सं. स्त्री.) जनेउ का सूत कातने की तकली।

जनखा :: (सं. पु.) स्त्रियों की चाल-ढाल वाला पुरूष, नपुंसक पुरूष।

जनगत :: (क्रि. वि.) प्रत्येक व्यक्ति को।

जनतुर :: (सं. पु.) जंत्र मंत्र।

जनबा :: (वि.) जानवर, अनुभवी, प्रेत विद्या का जानकार।

जनबाई :: (सं. स्त्री.) जानकारी, विज्ञप्ति समाचार।

जनबाबो :: (स. क्रि.) प्रसब कराना, किसी दूसरे के द्वारा सूचित करवाना।

जनबौ :: (क्रि.) बच्चा पैदा करना।

जनम :: (सं. पु.) जन्म, जीवन।

जनम :: (प्र.) पजनम भर के लाने, बहुत पहले बीता हुआ समय, उदाहरण-जनम की बातें उखारे सै का फायदा।

जनम :: (कहा.) जनम के आँदरे, नाव नैनसुख - गुण के विपरीत नाम।

जनम :: (कहा.) जनम के कोढ़ी - सदा के रोगी, प्रायः गंदी आदतों वाले आदमी के लिए प्रयुक्त।

जनम :: (कहा.) जनम कौ कोड़ एक ऐंतवार में नई जात - कोई बुरी आदत एक दिन में नहीं छूटती, चर्मरोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और इतवार का व्रत रखते है, उसी से अभिप्राय है।

जनम जिन्दगी :: (मुहा.) जन्म से लेकर अभी तक का जीवन (यौगिक शब्द.)।

जनम पत्री :: (सं. स्त्री.) जन्म कुण्डली, जन्मांक, जन्म के समय का गृह योग।

जनमजात :: (क्रि. वि.) जन्मजात।

जनमबो :: (अ. क्रि.) जन्म लेना, अस्तित्व में आना, पैदा होना।

जनमोंदू :: (वि.) जन्म के समय से बहुत पुराना।

जनवरी :: (सं. स्त्री.) ईसवी सन् का पहला महीना।

जनवाँसो :: (सं. पु.) बारात के ठहरने का स्थान, डेरा।

जनवाँसो :: (मुहा.) जनवाँसे की चाल-धीरे-धीरे चलना।

जनाउर :: (सं. पु.) जंगली जानवर।

जनाऊ :: (क्रि. वि.) जनाजात-एक-एक करके।

जनाजात :: (क्रि. वि.) दे. जनगत।

जनाजो :: (सं. पु.) मृतक शरीर, अर्थी।

जनाबर :: (सं. पु.) जानवर, पशु, हिंसक पशु।

जनाबो :: (क्रि. वि.) बताना।

जनी :: (सं. स्त्री.) महिला विशेष प्रयोग में, पत्नि।

जनु :: (अव्य.) जानो, मानो।

जनून :: (सं. पु.) जुनून, उन्माद, पागलपन।

जनें :: (सं. पु.) व्यक्ति (एकवचन, बहुवचन)।

जनेऊ :: (सं. पु.) यज्ञोपवीत संस्कार, यज्ञोपवीत।

जनेवा :: (सं. पु.) उँगली का वह अग्रभाग जहाँ नाखून माँस को छोड़कर बढ़ता है, सख्त मुरम में कमजोर पत्थर या गिट्टी की पतली पर्त।

जनैया :: (वि.) जानवर, गुनिया।

जन्त्र :: (सं. पु.) यंत्र, भोजपत्र, या कागज पर बनाये हुए खानों में लिखे हे अंक या बीजाक्षर, ताबीज।

जन्न :: (सं. स्त्री.) पीर बाबा की भभूत (विभूति) लुहार की भट्टी की राख।

जप :: (सं. पु.) जाप, मन्त्र का पुनःपुनः उच्चारण।

जपबो :: (क्रि.) दैवी प्रसन्नता या सिद्धि की कामना से मन्त्र का पुनःपुनः उच्चारण करना, हड़पना।

जप्त :: (क्रि.) किसी की सम्पत्ति का राज्यसात होना।

जब :: (सर्व.) यदा, जिस समय।

जब :: (कहा.) जब नटनी बाँसे चढ़ी तब काहे की लाज - जब कोई काम करने ही लगे तो फिर उसमें संकोच क्या।

जबँइ :: (अव्य.) ज्योंही जिस समय ही, जब ही।

जबर :: (वि.) मोटा, शक्तिशाली, बलवान।

जबर :: (कहा.) जबर मारे रोउन न देय - जब लाद लाई तौ लाज काय की-जब बेशरमी ही लाद ली तो फिर शरम किस बात की जब ओढ़ लीनी लोई तो क्या करेगा कोई।

जबरई :: (सं. स्त्री.) परवश, जबरदस्ती, बलपूर्वक, बलात्कार, बलात्कार का प्रयत्न (योगरूढ़ शब्द) शालीन भाषा में प्रयुक्त।

जबरँई :: (क्रि. वि.) जबरदस्ती, बलपूर्वक, बलात्।

जबरजंग :: (वि.) मोटा-ताजा, आकार-प्रकार में बड़ा और शक्तिशाली।

जबरदस्ती :: (सं. स्त्री.) बल प्रयोग, अत्याचार, परवशता।

जबरन :: (क्रि. वि.) बलपूर्वक, जबरदस्ती।

जबरा :: (वि.) जबरदस्त, बलदान, शक्तिशाली, अत्याचारी।

जबरैल :: (वि.) जबरदस्त।

जबरौं :: (सं. पु.) जौ, चने का मिश्रण।

जबा :: (सं. पु.) जौ, जबा, यव, रबी में पैदा होने वाला एक पवित्र माना जाने वाला अनाज, इससे बियर और वार्ली वाटर बनाया जाता है।

जबाई :: (क्रि.) जाना।

जँबाई :: (सं. पु.) दामाद, जमाता, जमाई, आलस्य या निद्रा के कारण मुख खुलने की स्वाभाविक क्रिया।

जबान :: (सं. स्त्री.) जीभ, बात, प्रतिज्ञा।

जबानी :: (वि.) मौखिक जो कहा तो गया हो पर लिखित न हो, अलिखित।

जँबाबो :: (क्रि. अ.) जँभाना, जँभाई लेना, ऊँघना।

जबार :: (सं. पु.) रत्न, मणि, ज्वार।

जबारवार :: (सं. पु.) जौ के पौधों की राख से निकाला हुआ क्षार, एक औषधि।

जबारात :: (सं. पु.) जवाहर का बहुवचन, कई प्रकार के रत्न मणि।

जबारी :: (सं. स्त्री.) दत्ती, मुँह।

जबारे :: (सं. पु.) देवी की आराधना या अनुष्ठान के समय उगाये हुए गेहूँ या जवा के पौधे, युवांकुर चैत की नवदुर्गी में धार्मिक अनुष्ठान के रूप में बोये जाने वाले जौ, खपरों में बोये जाते हैं नवमी को इनकी शोभा यात्रा निकलती है और जल में विसर्जित किये जाते हैं।

जबासो :: (सं. पु.) एक प्रकार का कँटीला पौधा जो बरसात में पत्रहीन हो जाता है।

जबै :: (क्रि. वि.) जब, जिस समय।

जबैया :: (वि.) जाने वाला, गमन करने वाला।

जम :: (सं. पु.) यम, मृत्यु का देवता।

जमउअल :: (वि.) सच की तरह जमा कर हुआ झूठ, अपने आप जमें (पौधे)।

जमघटा :: (सं. पु.) जमाव, भीड़।

जमघट्ट :: (सं. पु.) जमघट, जमावड़ा मनुष्यों का समागम।

जमजुँआँ :: (सं. पु.) आँखों की बरौनियों या सिर के अतिरिक्त शरीर के अन्य भागों के बालों में पैदा होने वाले चपटे आकार के जूँ।

जमदुतिया :: (सं. स्त्री.) यमद्वितीया, दीपावली के बाद की दूज।

जमदूत :: (सं. पु.) यम के दूत, विश्वास के अनुसार ये मनुष्य के प्राण निकालकर ले जाते है।

जमना :: (सं. स्त्री.) यमुना, भारत की पवित्र नदी जो कृष्ण काव्य से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है, बुन्देलखण्ड की उत्तरी सीमा, उदाहरण-इत जमना उत नरबदा, इत चम्बल उत टोंस छत्रसाल सौ लरन की रही न काहू होंस (लाल कवि)।

जमबौ :: (क्रि.) अंकुरित, होना, ठीक से बैठना, तरल का गाढ़ा होना, दूध में जैविक क्रिया के कारण दही बनना।

जमरासी :: (सं. पु.) एक वृक्ष।

जमा :: (सं. पु.) अन्यत्र रोपने के लिए तैयार की गयी पौध।

जमाइ :: (सं. पु.) दामाद, जमाता, जमाई।

जमाखर्च :: (सं. पु.) आय-व्यय।

जमात :: (सं. स्त्री.) किसी महन्त के नेतृत्व में चलने वाला साधुओं का समूह।

जमादार :: (सं. पु.) सिपाहियों या पहरेदारों आदि का प्रधान, मेहतर।

जमानत :: (सं. स्त्री.) प्रतिभूति, अदालत में उपस्थित हेतु कानूनी उत्तरदायित्व।

जमानों :: (सं. पु.) समय, युग।

जमाब :: (सं. पु.) भीड़।

जमाबन्दी :: (सं. स्त्री.) लेखपालों का एक रजिस्टर जिसमें आसामीवार लगाम की रकम लिखी रहती है।

जमाबौ :: (क्रि.) भली भांति बैठाना, स्थापित करना, झूठ का सत्य के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करना।

जमाँमर्द :: (वि.) मुस्तैद, बहादुर, जवाँमर्द।

जमालगोटा :: (सं. पु.) एक तीव्र रेचक औषधि एक दस्तावर दबा।

जमावरो :: (सं. पु.) लोगों का समूह।

जमीकंद :: (सं. पु.) कंद विशेष, सूरन।

जमीदार :: (सं. स्त्री.) जमींदार, स्वत्व या अधिकार।

जमीन :: (सं. स्त्री.) पृथ्वी, भूमि, किसी चीज की सतह।

जमुंवा :: (सं. पु.) सुनारों का संसी की तरह का एक औजार।

जमूड़ा :: (सं. पु.) मदारी का शार्गिद, बाजीगर के साथ रहने वाला लड़का, (जमूरा)।

जमो :: (स. क्रि.) जमा हुआ।

जमौआ :: (वि.) जमाकर बनाया हुआ, जमने वाला।

जर :: (सं. स्त्री.) जड़, मूल, पशुओं के प्रसव के समय का वह आवरण जिसमें लिपटा हुआ बच्चा आता है, बच्चों के खेलों में सीमा-रेखा। सोना, (सोना)।

जरखोदा :: (वि.) किसी के आधार पर आघात करने वाला।

जरगदौ :: (सं. पु.) सम्पूर्ण जड़ जिसमें उसके सभी भाग-उपभाग जुड़े हों।

जरजरात :: (वि.) जरजरौ-चमचमाता हुआ, नकद, बहुत स्पष्ट, यह शब्द रूपयों के व्यर्थ मारे जाने के संबंध में प्रयुक्त होता है।

जरतार :: (सं. पु.) कपड़ों पर कढ़ाई के काम आने वाले रूपहले-सुनहरे तार।

जरद :: (वि.) पीला।

जरन :: (सं. स्त्री.) जलन, मनोव्यथा।

जरफरात :: (वि.) न छू सकने योग्य गर्म।

जरबाबौ :: (स. क्रि.) जलाने का काम दूसरे से करवाना।

जरबीली :: (वि.) तड़क भड़क दार।

जरबौ :: (अ. क्रि.) जलना, पीड़ा होना, द्वेष करना, जलन पड़ना, ईर्ष्या करना।

जरयानों :: (सं. पु.) झराबेरियों का जंगल।

जरा :: (वि.) थोड़ा, तनिक, थोड़ी देर के लिए।

जराँ :: (वि.) नजदीक, पास।

जराबौ :: (क्रि.) दीपक जलाना, जलाना, ऐसा दिखावा करना जिससे किसी के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो।

जरारू :: (सं. स्त्री.) जलहरी, शिवलिंग स्थापित करने की पीठिका, योनिरूप।

जरिया :: (सं. स्त्री.) बेर का एक पेड़, बेर की झाड़ी, झरबेरी, मछली पकड़ने के छोटे जाल, कटी हुई ईख की जड़ों से पनपने वाली ईख की फसल, जड़ाई का काम करने वाला, आजीविका का स्नोत।

जरियाठोका :: (सं. पु.) एक लोक देवता।

जरीदार :: (वि.) सोने-चाँदी के तारों से युक्त।

जरीब :: (सं. स्त्री.) सौ कड़ियों की छियासठ फीट लम्बी भूमि नापने की साँकल।

जरीबानों :: (सं. पु.) जुर्माना, अर्थदण्ड।

जरूआ :: (वि.) जलने वाला ईर्ष्यालु, जरूआ-बरूआ शब्द युग्म में प्रयुक्त।

जरूर :: (क्रि. वि.) अवश्य, स्वीकृति का निपात।

जरूरत :: (सं. स्त्री.) आवश्यकता।

जरें काटबो :: (स. क्रि.) समूल नष्ट करना, भारी हानि पहुँचना।

जरैंटा :: (वि.) झार, झंखाड़, ईर्ष्यालु व्यक्ति।

जरैला :: (वि.) दे. जरूआ।

जरौदा :: (सं. पु.) पेड़ की जड़ का हिस्सा, खेत के अन्दर जरिया या छेवले की जड़।

जर्दा :: (सं. पु.) खाने की तम्बाकू।

जल :: (सं. पु.) पानी, सलिल, नीर, देव मूर्तियों का स्नान कराया हुआ पानी, किसी पवित्रता अथवा आदर भाव के साथ होने वाला प्रयोग।

जल :: (कहा.) जल में खोट करम में कीरा, जाँ देखो ताँ कीरई कीरा - संसार में कोई वस्तु निर्दोष नहीं।

जल बिहार :: (सं. पु.) नदी तालाब आदि में नाव पर घूमकर सैर करना।

जलकउआ :: (सं. पु.) एक जलचर पक्षी।

जलघरा :: (सं. पु.) दीवाल में बना जल स्थान।

जलचादर :: (सं. पु.) प्रपात।

जलतुरई :: (सं. स्त्री.) मछली।

जलन :: (सं. स्त्री.) दाह, ईर्ष्या।

जलन :: (कहा.) जरे पै फोरा पारबो - दुःखी को और अधिक दुःख पहुँचाना।

जलपानी :: (सं. पु.) कलेवा, बारात के प्रथम स्वागत की एक रीति जिसमें बरातियों को शक्कर और काली मिर्च का शर्बत दिया जाता है (यौगिक शब्द.)।

जलभटा :: (सं. पु.) जल की एक घास।

जलम :: (सं. पु.) दे. जनम, बुन्देली के पुराने रूप में पाया जाता है।

जलसेम :: (सं. स्त्री.) मछली।

जलाऊ :: (वि.) जो जलाया जा सके, जो ईधन के रूप में प्रयुक्त हो सके।

जलापन :: (सं. पु.) ईर्ष्या, द्वेष।

जलामुखी :: (सं. स्त्री.) जलकुम्भी, पानी पर तैरने वाला एक पौधा।

जलूस :: (सं. पु.) शोभायात्रा, चल समारोह।

जलेब :: (सं. पु.) मालपुआ बनाने के लिए खमीर तथा गुड़ मिलाकर बनाया आटे का गाढ़ा घोल।

जलेबी :: (सं. स्त्री.) खमीर उठाये हुए मैदा के घोल से बनायी जाने वाली एक मिठाई जिसमें सीरा भरा रहता है।

जलोदर :: (सं. पु.) पेट में पानी भरने का एक रोग।

जल्दी :: (क्रि. वि.) शीघ्रता।

जल्फें :: (सं. स्त्री.) कटे छटे सँवारे हुए, फैशन के बाल।

जल्लाद :: (वि.) क्रूर, निर्दयी, दुष्ट।

जल्लाद :: (सं. पु.) क्रूर, निर्दयी, दुष्ट।

जल्लाद :: (सं. पु.) फाँसी पर चढ़ाने वाला।

जवा :: (सं. पु.) एक अनाज, जौ।

जवाई :: (सं. पु.) दामाद।

जवाँमर्द :: (वि.) शूरवीर।

जस :: (सं. पु.) यश, आभार, अहसान।

जस :: (प्र.) यारो इतनों जसकर लीजौ-ईसुरी।

जसकरनी :: (सं. स्त्री.) जुआ में जीता हुआ वह द्रव्य जो गरीबों में दान दिया जाय।

जसा :: (सं. पु.) नशा, मद, उन्माद, किसी वस्तु का बुद्धि को भ्रमित करने वाला प्रभाव।

जसीते :: (वि.) यशस्वी, कीर्तिवान, प्रसिद्ध।

जसोंद :: (सं. स्त्री.) गुड़हल।

जसोदा :: (सं. स्त्री.) भगवान कृष्ण की पालक माता, नन्दबाबा की पत्नी, एक महिला नाम, यशोदा।

जसोंदी :: (सं. स्त्री.) गायन-वादन में प्रवीण एक जाति।

जस्ता :: (सं. पु.) एक धातु जो ताँबे के साथ मिलाकर पीतल तथा काँसा बनाने के काम आती है।

जस्सो :: (सं. पु.) एक प्राचीन जागीर।

जहर :: (सं. पु.) विष, गरल।

जहर :: (वि.) घातक, बहुत हानि पहुँचाने वाला।

जहाज :: (सं. पु.) यान, जलयान, हवाई जहाज, वायुयान।

जा :: (सर्व.) यह, ये।

जा :: (कहा.) जा बात बा बात धर टका मोरे हात - बार बार अपने मतलब की ही बात करना।

जा :: (कहा.) जा बेरा न बा बेरा, गधे नोंन दै दो - बेवक्त काम करना।

जाँ :: (सर्व.) जहाँ।

जाँ :: (कहा.) जाँ की माटी उतई ठिकाने लगत - जहाँ मरना बदा होता है अंत समय आदमी वहीं खिंच कर पहुंचता है।

जाँ :: (कहा.) जाँ पंच ताँ परमेसुर - पंचों में परमेश्वर होते हैं।

जाँ :: (कहा.) जाँ मुरगा नई होत ताँ का भोर नई होत - किसी के बिना किसी का काम नहीं रुका रहता।

जाँ :: (कहा.) जाँ साठ, ताँ सत्त्तर - थोड़े खर्च के लिए काम बिगाड़ रहा हो तब प्रयुक्त कि और सही।

जाइदा :: (सं. पु.) औरत से उत्पन्न।

जाइदा :: (प्र.) असल के जाइदा होव तो करियो ऊ कौ सामनौ।

जाई :: (सं. स्त्री.) पुत्री, बेटी, तनया।

जाँउड़ :: (सं. पु.) सुँगरिया के बच्चों का समूह।

जाँउन :: (सं. पु.) जामन, दही जमाने के लिए दूध में डाला जाने वाला दही, मठा या कोई पदार्थ।

जाकट :: (सं. स्त्री.) कुर्त्ता, कमीज के ऊपर पहने जाने वाली बंद गले की बण्डी।

जाकें :: (सर्व.) जिसके, जिसके पास।

जाकें :: (कहा.) जाके पाँव न फटी बिंवाई, सो का जानें पीर पराई - जिसने स्वयं कभी कष्ट नहीं भोगा वह दूसरों के कष्ट का क्या अनुभव करेगा।

जाँग :: (सं. स्त्री.) जँघा, घुटने के ऊपर और कुल्हे के बीच का पैर का भाग।

जाँग :: (कहा.) सोरा हाथ की सारी पैरें, ओइ पै जाँघ उगारी।

जागन :: (सं. स्त्री.) जागरण देवी।

जाँगन-ताँगन :: (क्रि. वि.) जहाँ-तहाँ।

जाँगर :: (सं. पु.) शरीर का बल, बूता, देह।

जागरन :: (सं. पु.) जागरण उदबुद्ध होने की क्रिया, जागने की क्रिया।

जागरन :: (कहा.) जागै सो पावे, सोवे सो खोवे - सावधान रहने से ही लाभ होता है।

जाँगा :: (सं. स्त्री.) स्थान, पद, जगह, भूमि।

जाँगिया :: (सं. पु.) घुटने के ऊपर से पहने जाने वाला अधोवस्त्र, चड्डी।

जागीर :: (सं. स्त्री.) राज्य के ओर से प्राप्त भूमि या प्रदेश, किसी कार्य, वीरता या अन्य सेवा के उपलक्ष्य में दिये गये ग्रामों का आंशिक प्रशासन एवं आय।

जाँगीर :: (वि.) भारत का चौथा मुगल सम्राट जहाँगीर।

जागीरदार :: (सं. पु.) जागीर का स्वामी।

जाँघ :: (सं. स्त्री.) दे. जाँग।

जाँच :: (सं. स्त्री.) परीक्षा, परख, गवेषणा, खोज, परीक्षण, समझ, याचना।

जाचना :: (सं. स्त्री.) याचना।

जाँचवो :: (सं. क्रि.) याचना, परख, पता लगाना, परीक्षण करना।

जाजम :: (सं. स्त्री.) दरी के ऊपर बिछाने की चादर।

जाँजर :: (वि.) जर्जर अनेक छेदों वाला।

जाँजरी :: (सं. पु.) टूटी हुई आटा पीसने की बड़ी चक्की।

जाँजरो :: (वि.) जीर्ण, पुराना।

जाजाद :: (सं. स्त्री.) जगह, जमीन, सम्पत्ति।

जाट :: (सं. पु.) यष्टि अथवा यादव एवं प्रसिद्ध जाति।

जाटो :: (सं. पु.) चमारों की एक उपजाति।

जाड़ौं :: (सं. पु.) शीतकाल, सर्दी, ठंड, ठंड का मौसम।

जाड़ौं :: (कहा.) जाड़ों जाय रूई सें कै दुई सें - जाड़ा या तो रूई से जाता है या दो से।

जात :: (सं. स्त्री.) जाति।

जात :: (कहा.) जात से परजात भली - जाति वालों से दूसरी जाति वाले अच्छे।

जातना :: (सं. स्त्री.) यातना, कष्ट, पीड़ा।

जातों :: (सं. पु.) आटा पीसने की बड़ी चक्की, इसका मुँह काफी ऊँचा होता है चलाने की मुठिया भी विशेष ढंग से लगाई जाती है।

जात्रा :: (सं. स्त्री.) धार्मिक यात्रा, देवताओं की शोभा यात्रा।

जाद :: (सं. स्त्री.) स्मृति, स्मरण शक्ति।

जादती :: (सं. स्त्री.) अधिकता, अत्याचार।

जादव :: (सं. पु.) यदुवंशी।

जादाँ :: (वि.) अधिक।

जादू :: (सं. पु.) हाथ की सफाई, सम्मोहन, चमत्कारी कार्य।

जादूगर :: (सं. पु.) हाथ की सफाई दिखाने वाला, सम्मोहित या चमत्कृत करने वाला।

जादो :: (सं. पु.) यदु का वंशज, श्री कृष्ण।

जान :: (सं. स्त्री.) प्राण, उदाहरण-जान देवौ-अत्यधिक प्रेम करना, जान निकरवो-मर जाना, जान पहचान-परिचय, जान बचाबो-प्राण की रक्षा करना, जान में जान आवो-ढाँढस बाँधना, सांत्वना देना।

जान :: (कहा.) जान में जान आवो - ढाँढस बाँधना, सांत्वना देना।

जान :: (कहा.) जान न चिनार, चार मइना साझे में रै जान दो - बिना पूर्व परिचय के ही निकट का संबंध स्थापित करना।

जान :: (कहा.) जानहार बऊ, बड़ैरे खों खोर - होनहार के लिये दूसरे का दोष देना।

जान मान :: (क्रि. वि.) समझ बूझकर, प्रकट रूप से।

जानकी :: (सं. स्त्री.) राजा जनक की पुत्री।

जानवर :: (सं. पु.) प्राणी, पालतू पशु।

जानवो :: (स. क्रि.) जानना, पहचानना, अवगत होना।

जानहार :: (वि.) जाने वाली (खोने या मरने के गम्भीर अर्थ से प्रयुक्त)।

जानुआँ :: (सं. पु.) घोड़े का विशेष रोग जिसमें घुटने जकड़ जाते हैं।

जानें :: (अव्य.) जान या जानकारी नहीं, मालूम नहीं।

जानों :: (क्रि. वि.) जहाँ तक, जब तक, जानकरी में।

जानों मानों :: (वि.) विख्यात, देखा समझा, पहले से मालूम।

जाप :: (सं. पु.) दे. जप।

जाप :: (कहा.) जाप के बिरतें पाप - धर्म की ओट में बुरे काम करना।

जापट :: (वि.) नष्ट, निष्क्रिय, जख्मी।

जाँपनाँ :: (सं. पु.) सम्राट, बादशाह।

जाँपनाँ :: (वि.) दुनिया की रक्षा करने वाला।

जाबो :: (क्रि. अ.) जाना।

जाबो :: (क्रि. स.) पैदा करना।

जाम :: (सं. पु.) शराब का प्याला।

जामगी :: (सं. स्त्री.) ढाक की जड़ को कूटकर बनाई गई रस्सी।

जामन :: (सं. पु.) दूध को जमाने के लिए प्रयोग में आने वाला थोड़ी मात्रा में दही या अन्य खट्टा पदार्थ।

जामनी :: (वि.) पके जामुन जैसा, रात्री रंग, काला रंग।

जामफल :: (सं. पु.) अमरूद, बिही।

जामुन :: (सं. स्त्री.) जामुन का वृक्ष।

जामुन :: (पु.) जामुन का फल।

जाँमू :: (सं. पु.) जामुन का फल।

जाय :: (सर्व.) जिसे, जिसको, जिससे।

जायजाद :: (सं. स्त्री.) धन सम्पत्ति।

जायपत्री :: (सं. पु.) जावित्री, जायफल का फूल जो पान मसाला तथा औषधि के काम आता है।

जायफर :: (सं. पु.) औषधि तथा मसाले के काम आने वाला एक सुंगधित फल।

जायफर :: दे. जायपत्री।

जार :: (सं. पु.) काँटेदार झाड़ियाँ जो खेतों की बाड़ लगाने के लिए काटी गयी हों।

जारबो :: (स. क्रि.) जलाना, आग लगाना, नष्ट करना।

जारी :: (सं. स्त्री.) जाली आम गुठली का प्रारम्भिक रूप, तरोई, गिलकी में छिलके के नीचे नखों का सख्त जाल जो फल पकने पर पैदा होती है।

जारौ :: (सं. पु.) जाल (मकर जारौ), भूसा, कण्डा आदि से गाड़ी को ऊँचा भरने के ले लगाई जाने वाली जाली या फट्टी।

जारौं धौंसो :: (सं. पु.) मकानों की छत आदि का कूड़ा-करकट।

जाल :: (सं. पु.) मछली पकड़ने का जाल, मनुष्यकृत संकट व षड्यन्त्र।

जालदार :: (वि.) जिसमें जाल के समान छोटे छोटे छेद हो।

जालम :: (वि.) जालिम, क्रूर, अत्याचारी।

जाली :: (वि.) मायावी, धोखेबाज, फरेबी, नकली, षड्यंत्र रचने वाला।

जालो :: (सं. पु.) मकड़ी का जाल, आँख का एक रोग।

जासूस :: (सं. पु.) गुप्तचर भेद लने वाला, गुप्त बातों की जानकारी रखने वाला, भेदिया।

जासूसी :: (सं. स्त्री.) गुप्तचरी।

जासैं :: (सर्व.) इसलिए, इस कारण।

जाहर :: (वि.) प्रकट, विदित, स्पष्ट, ख्यात, ज्ञात।

जाहाँ :: (अव्य.) जहाँ, जिधर, जिस ओर।

जिअरा :: (सं. पु.) जीभ, हृदय।

जिआबो :: (स. क्रि.) जीवित करना, मरने से बचाना, पालना-पोसना।

जिआबो :: (कहा.) जिअत जिअत कौ नातो है, जिअत जिअत के सब सँगाती, मरे को कोऊ नइयाँ - जीते जी के ही सब नाते हैं।

जिआँय :: (सर्व.) जिस तरफ।

जिआली :: (वि.) जिद्दी, जो समझाने से समझता न हो, जिसमें ऋजुता की कमी हो।

जिउ :: (सं. पु.) मन, प्राण, जीव।

जिउका :: (सं. स्त्री.) जीविका।

जिउधारी :: (सं. पु.) जीवधारी।

जिकर :: (सं. स्त्री.) चर्चा।

जिकरा :: (सं. पु.) चर्चा।

जिक्की :: (सं. स्त्री.) झिक्की, जिद्दी।

जिगड़ी :: (वि.) जिगरी, दिली, पक्के दोस्त।

जिगनी :: (सं. स्त्री.) एक जागीर।

जिग्घा :: (सं. स्त्री.) जगह, स्थान।

जिच्च :: (सं. स्त्री.) चौपड़ के खेल में पराजय की वह स्थिति जिसमें गोटों की चाल बन्द हो जाती है।

जिजमान :: (सं. पु.) यजमान।

जिजिया :: (सं. स्त्री.) बड़ी बहिन (लोक गीत. में प्रयुक्त)। अँग्रेजों द्वारा लगाया गया एक कर (जिजिया कर)।

जिजी :: (सं. स्त्री.) बड़ी बहिन तथा जिठानी का सम्बोधन।

जिजौतयाइ :: (सं. स्त्री.) जिझौतिया ब्राहृमणों का समाज।

जिजौतिया :: (सं. पु.) जैजाक भुक्ति या जुझौती वर्तमान बुन्देलखण्ड के ब्राहृमणों का एक उपवर्ग।

जिज्जी :: (सं. स्त्री.) दे. जिजी।

जिठउ :: (वि.) जेठ संबंधी, जेठ की, जेठ में पकने या फूटने वाला कपास।

जिठप्पन :: (वि.) जेठापन, बड़प्पन।

जिठसास :: (सं. स्त्री.) पत्नि की बड़ी बहिन।

जिठानी :: (सं. स्त्री.) पति के बड़े भाई की पत्नि।

जिठेरे :: (वि.) बड़े, जेठे, उम्र में बड़े।

जिठौत :: (सं. पु.) जेठ-जिठानी का लड़का, जिठौत।

जिठौत :: (सं. स्त्री.) जिठोतन।

जित :: (अव्य.) जिधर, जिस ओर, जहाँ।

जितबार :: (वि.) विजयी, जितने वाला।

जिताबो :: (स. क्रि.) जीतने में सहायता देना, जीतने का कारण होना।

जितेक :: (वि.) जिस मात्रा या परिणाम का, जिस कदर।

जितै :: (अव्य.) जहाँ, जिधर, जिस ओर।

जितै :: (कहा.) जितै नइयाँ सुनवइया, उतै मरौ कहवइया - जहाँ कोई सुनने वाला नहीं वहाँ कहने वाला बेमौत मरता है।

जितैया :: (वि.) जीतने वाला, विजयी, विजेता।

जितौ :: (वि.) जिस मात्रा का, जितना, जिस कदर।

जित्तौ :: (वि.) जितना।

जिंद :: (सं. पु.) भूत, प्रेत।

जिंदगानी :: (सं. स्त्री.) जीवन, जिन्दगी।

जिदनां :: (अव्य.) जिस दिन।

जिंदा :: (वि.) जीवित, जीता हुआ, सजीव, हरा भरा।

जिद्द :: (सं. स्त्री.) हठ।

जिद्दी :: (वि.) हठीला, जिद्दन।

जिन :: (सं. पु.) जैनों के तीर्थकर, भूत प्रेत।

जिन :: (क्रि. वि.) नकारात्मक, शब्द, उदाहरण-ऐसौं जिन करौ।

जिना :: (सं. पु.) बलात्कार, बलात, यौनाचारी।

जिनी, जिनों :: (नि.) रोकने का निपात।

जिन्द :: (सं. पु.) मुसलमानी विश्वास के अनुसार शाक्तिशाली प्रेत।

जिन्दगानी :: (सं. स्त्री.) जिन्दगी, जीवन।

जिन्दा :: (वि.) जीवित।

जिबकड़ा :: (वि.) व्यर्थ हँसने वाला, जीभ निकालने वाला।

जिबचटा :: (वि.) नियत खोर, अच्छी अच्छी चीजें खाने के लिए लालायित।

जिबा :: (क्रि.) जिबह, गर्दन काटकर मारना।

जिबारी :: (वि.) जिलाने वाली, जीवन प्रदान करने वाली।

जिभ्या :: (सं. स्त्री.) जीभ, उच्च अर्थ में प्रयुक्त।

जिम :: (अव्य.) जैसे, यथा, जिस प्रकार।

जिमनहार :: (वि.) जीवित रहने वाला।

जिमरिया :: (सं. पु.) जमेरी नींबू।

जिमाई :: (सं. स्त्री.) जँभाई, उबासी।

जिमाबौ :: (क्रि.) जँभाई लेना, आदरपूर्वक भोजन कराना।

जिमी :: (सं. स्त्री.) जमीन, कृषि भूमि।

जिमीकन्द :: (सं. पु.) सूरन।

जिमींदार :: (सं. पु.) भूमिकर वसूल करने वाला, शासन का अभिकर्त्ता।

जिमुरिया :: (सं. स्त्री.) एक वृक्ष, एक जाति का नींबू।

जिम्मा :: (सं. पु.) भार, गृहण, सुपुर्दगी, संरक्षा देखरेख।

जी :: (सं. पु.) मन, प्राण दे जिउ, जिया, जियरा चारपाई की बनाई तिरछी लड़े, उदाहरण-जी सन्न होबो-स्तब्ध हो जाना, जी सांसत में परबो-संकट ग्रस्ट ग्रस्त होना, जी छोड़ना-घबराना।

जीउ :: (सं. पु.) जीव, जी, प्राण, उदाहरण-जीउधारी।

जीउ :: (सं. पु.) जीवधारी, जीउ पसीजबो-मन में दया करूणा आदि भावों का संचार होना।

जीजा :: (सं. पु.) बहनोई।

जीजी :: (सं. स्त्री.) बहिन, जिठानी।

जीत :: (सं. स्त्री.) विजय, प्रयत्न में सफलता।

जीतब :: (सं. पु.) जीवन।

जीतबो :: (क्रि.) विजय पाना, सफलता पाना, संकट पार करना।

जीन :: (सं. स्त्री.) घोड़े पर रखने का चमड़े का पलैंचा, एक विशेष बुनावट का कपड़ा।

जीब :: (सं. स्त्री.) जिहा, रसना, जिव्हा।

जीबका :: (सं. स्त्री.) आजीविका, जीवन निर्वाह का साधन।

जीबौ :: (क्रि.) जीवित रहना, जीवन धारण करना।

जीरन :: (वि.) जीर्ण, कमजोर।

जीरे :: (सं. पु.) मसाले के काम आने वाले दाने, औषधि के काम भी आते हैं।

जीरो :: (सं. पु.) एक पौधा जिसके सुगंधित छोटे पूल सुखा कर मसालों के काम में लाये जाते है।

जीलन :: (सं. स्त्री.) चमड़े के नीचे की बारीक झिल्ली।

जीव :: (सं. पु.) जीव, प्राणी।

जीवन :: (सं. पु.) शरीर में प्राण धारण की स्थिति।

जीवी (भी) :: (सं. स्त्री.) जीव साफ करने की धातु की पत्त्ती।

जुआ :: (सं. पु.) बाजी लगाकर खेला जाने वाला खेल, छल-कपट, धूर्तक्रीड़ा।

जुआँ :: (सं. पु.) बैल जोतने की लकड़ी।

जुँआँ :: (सं. पु.) हल में जोतने वाला उपकरण।

जुँआई :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी में बैंलों को जोतने का लकड़ी का उपकरण जो बैलों के कंधों पर रखा जाता हैं।

जुँआई :: दे. जुँआँ।

जुआजो :: (सर्व.) कोई-कोई, एकाध, कोई।

जुआन :: (वि.) जवान, युवा, वीर, वचन।

जुआन :: (सं. पु.) पुलिस तथा सेना के सैनिक।

जुआनी :: (सं. स्त्री.) जवानी, युवावस्था।

जुआप :: (सं. पु.) जवाब, उत्त्तर, प्रतिक्रिया।

जुआप वाई :: (सं. स्त्री.) राजमहलों के वह महिला कर्मचारी जो राज्य के अधिकारियों की बात रानी तक भेजती थी और रानी का उत्तर उनको देती थी (सामासिक शब्द.)।

जुआर :: (सं. स्त्री.) ज्वार, जड़ी, बेला, समय, जून, उदाहरण-शाम को कोई जुआर सवेरे।

जुँआर :: (सं. स्त्री.) एक मोटा अनाज ज्वार।

जुआरी :: (वि.) जुआ खेलने वाला, धूर्त क्रीड़ा करने वाला।

जुआव :: (सं. पु.) जवाब।

जुइया :: (सं. स्त्री.) औरत।

जुकाउ :: (सर्व.) जो कोई।

जुखाम :: (सं. पु.) एक रोग जिसमें नाक बहती है, ज्वर हो जाता है और सिर भारी हो जाता है, जुकाम।

जुग :: (सं. पु.) युग, युग्म, जोड़।

जुंग :: (सं. स्त्री.) सनक, विवेक हीनता, आकस्मिक विचार।

जुगजुगाबौ :: (क्रि.) थोड़ी सी लौ के साथ जलन, थोड़ी सी आग शेष रहना।

जुगत :: (सं. स्त्री.) युक्ति, तरकीब।

जुगनू :: (सं. स्त्री.) एक उड़ने वाला कीड़ा जो अंधेरे में चमकता है यह बरसात में या दलदली भूमि में अधिकतर पाया जाता है, पटबीजना।

जुगमाउ :: (वि.) जोगियों से संबंधित।

जुगया :: (वि.) गेरूआ रंग।

जुगयानों :: (सं. स्त्री.) योगी जाती का मुहल्ला।

जुगल :: (सं. पु.) जोड़ा, युग्म।

जुगल जोड़ी :: (सं. स्त्री.) सदा साथ रहने वाली जोड़ी।

जुगाड़ :: (सं. पु.) उपाय, प्रयत्न, तिकड़म।

जुगार :: (सं. स्त्री.) युक्ति, तरकीब, व्यवस्था।

जुगिया :: (सं. स्त्री.) बारात के चले जाने पर वर पक्ष की स्त्रियाँ, जब तक बारात लौट कर नहीं आती वेश बदलकर नृत्य गीत आदि करती है, (बाबा फिरना)।

जुज :: (सं. पु.) योग, मिलावट, मिश्रण के लिए थोड़ी-सी वस्तु।

जुजा-झा :: (वि.) युद्ध के लिए अभियान के समय बजाये जाने वाले उत्तेजक (बाजे)।

जुजाबौ :: (क्रि.) लड़ने के लिए प्ररित करना, लड़ाई के लिए उत्तेजित करने के लिए झूठी सच्ची बातें भिड़ाना।

जुज्जवाज :: (सं. पु.) ताश का एक खेल।

जुझाऊ :: (वि.) युद्ध सम्बन्धी, लड़ाका, वीर।

जुझाबौ :: (क्रि. स.) भिड़ाना, लड़ाई करवाना।

जुझाबौ :: दे. जुजबौ।

जुझार :: (सं. पु.) लड़ाका, वीर, युद्ध।

जुझारू :: (वि.) रण कुशल, युद्ध करने वाला।

जुझोतिया :: (सं. पु.) एक जाति के ब्राह्मण।

जुझौती :: (सं. पु.) बुन्देलखण्ड का एक प्राचीन नाम।

जुट :: (सं. पु.) किसी समानता के आधार पर एक सूत्र में बँधा हुआ समूह।

जुटबौ :: (क्रि.) एकत्रित होना, किसी काम पर पूर्ण तन्मयता के साथ लगना।

जुटाबौ :: (स. क्रि.) (हि. जुटना) दो या अधिक वस्तुओं को दृढ़ता पूर्वक जोड़ना, सटाना, भिड़ाना।

जुट्ट :: (सं. पु.) दे. जुट।

जुठ मिठार :: (सं. स्त्री.) जहाँ खाद्य सामग्री की पवित्रता का बन्धन न हो, जहाँ जूठ मीठ का भेद न हो।

जुठारबो :: (क्रि.) जूठा करना।

जुठेला :: (वि.) जूठा खाने वाला।

जुठौ :: (वि.) जूँठा किया हुआ भोजन, पानी, बर्तन आदि।

जुड़ई :: (सं. पु.) ज्वार।

जुड़बो :: (अ. क्रि.) सम्बद्ध होना, उपलब्ध होना, जुतना।

जुड़रया :: (सं. पु.) ज्वार वाला खेत, जुंडी का खेल।

जुड़वाँ :: (वि.) एक साथ पैदा होने वाला बच्चे।

जुड़ानी :: (क्रि.) शीतल हुई।

जुड़ाबो :: (सं. पु.) दो बैलों की जोड़ी, आगे पीछे।

जुण्डी :: (सं. स्त्री.) ज्वार, खरीफ की फसल में होने वाला एक अनाज।

जुतबाबौ :: (सं. क्रि.) दूसरे से जोतने का काम करना, जुतबाना, खेतों की जुताई करवाना, बैलों को हल या गाड़ी के साथ संलग्न करना।

जुतबौ :: (अ. क्रि.) किसी काम में पूरी ताकत के साथ लगना, जोता जाना, खेत में हल चलाया जाना, किसी काम में कठिन परिश्रम करना।

जुतयाबौ :: (स. क्रि.) जूतों से मारना, अपमानित करना।

जुताई :: (सं. स्त्री.) खेत जोतने की क्रिया या भाव, जोताई, जोतने की उजरत।

जुताबो :: (स. क्रि.) जोताना, जमीन को चीरना।

जुँदइया :: (सं. स्त्री.) चाँदनी।

जुँदइया :: (वि.) चाँदनी रात।

जुदौ :: (क्रि. वि.) प्रथक, अलग।

जुद्द :: (सं. पु.) युद्ध, लड़ाई, झगड़ा।

जुनई :: (सं. स्त्री.) दे. जुड़ी, जुनरी।

जुनारी :: (सं. स्त्री.) ज्वार, जुंड़ी।

जुबन, जुबना :: (सं. पु.) कुच, स्तन, यौवन।

जुबना :: (सं. पु.) नव प्रस्फुटित उरोज, लोकगीत-जुबना कड़ आये कर गलियाँ, सोने कैसी भलियाँ ईसुरी।

जुबना :: दे. जोवन।

जुबराज :: (सं. पु.) युवराज, राजा का उत्तराधिकारी पुत्र।

जुबाब :: (सं. पु.) जवाब, उत्तर।

जुमयाबौ :: (क्रि.) जँभाइयाँ लेना, आलस्य में होना, उनिद्र होना।

जुरबाँ :: (वि.) जोड़ा हुआ, एक साथ पैदा हुए बच्चे।

जुरबौ :: (क्रि.) इकट्ठे होना, मिलना।

जुरमानो :: (सं. पु.) अर्थ दण्ड, जुर्माना।

जुराई :: (सं. स्त्री.) बर्तन या जेवर आदि में जोड़ लगाने का काम, उस काम का भाव या मजदूरी।

जुराजुरौ :: (सं. पु.) आमना-सामना।

जुराबौ :: (क्रि.) लड़ने के लिए, उकसाने के लिए बढ़ा चढ़ाकर बातें करना, भिड़ाना।

जुरियाँ :: (सं. स्त्री.) लाख की चूड़ियों का सेट, सावन में स्त्रियाँ लाखें पहनती है (लाख की चूड़ियाँ)।

जुरी :: (सं. स्त्री.) पलाश की जड़ों में उधेड़े हुए केशों का उतना गड्डा जो एक पट्ठी में समा सके।

जुरूम :: (सं. पु.) जुर्म, अपराध।

जुरेलुआ :: (वि.) एक साथ पैदा हुए बच्चे।

जुर्बानों :: (सं. पु.) जुर्माना, अर्थदण्ड।

जुर्बानों :: दे. जरीबानो।

जुलफें :: (सं. स्त्री.) सिर के घुँघराले बाल।

जुलाई :: (सं. स्त्री.) ईसवी सन् का सातवाँ महीना, जुलाहे का काम।

जुलाब :: (सं. पु.) रेचक औषधि, दस्त लाने वाली दवा।

जुलुम :: (सं. पु.) जुल्म, अन्याय, अत्याचार।

जुलूस :: (सं. पु.) किसी मकसद से बड़ी संख्या में लोगों का इकट्ठा होकर जन-जन को जागरूक करना।

जुल्लाब :: (सं. पु.) दे. जुलाब।

जुवान :: (सं. स्त्री.) वचन।

जुवानी :: (क्रि. वि.) जवानी, मौखिक।

जुहार :: (सं. स्त्री.) नमस्कार, प्रणाम, अभिवादन।

जुहारबो :: (स. क्रि.) नमस्कार करना, सहायता माँगना, एहसान लेना।

जुही :: (सं. स्त्री.) सुगन्धित पुष्पों की एक बेल।

जू जू :: (सं. पु.) छोटे बच्चों को डराने के लिए एक काल्पनिक आकृति, जू-जू बाबा का प्रयोग भी होता है, कीड़ा, मकोड़ा।

जू देव :: (सं. पु.) प्राणनाथ।

जू. :: (सं. पु.) जी, एक आदर वाची शब्द।

जूज :: (सं. स्त्री.) लड़ाई, युद्ध।

जूजबो :: (अ. क्रि.) लड़ना, लड़कर मरना, टक्कर लेना, सामना करना, हिसाब किताब से संबंधित संख्याओं का समाधन होना।

जूँठन :: (सं. पु.) थाली में खाने से बचा हुआ भोजन।

जूँठे :: (वि.) भोजन के बाद बिना हाथ मुँह धोये तथा जल पिये हुए।

जूठो :: (सं. स्त्री.) जूठन, उच्छिष्ट भोजन, उदाहरण-जूठी पातरे चाटबों-मौलिकता की कमी के कारण दूसरों के भावों को अपनाना।

जूड़ैल :: (सं. स्त्री.) भूरा बिच्छू की गर्भवती मादा जो बहुत विषैली होती है।

जूड़ौ :: (सं. पु.) सिर, के बालों का लपेटकर बनाई हुई गाँठ, चोटी, कलगी।

जूड़ौ :: (वि.) ठण्डा।

जूता :: (सं. पु.) कारखानों के बने या अंग्रेजी डिजाइन के जूते।

जूती :: (सं. स्त्री.) हल्का फुल्का लखनवी जूता, नागरा सलीम शाही, जैपुरी आदि।

जून :: (सं. पु.) ईसवी सन् का छठवाँ महीना, पहर जैसे दो जून की रोटी याने सुबह का खाना।

जूंना :: (सं. पु.) घास या कटे हुए पौधों के गट्ठा बाँधने के लिए घास को बटकर बनायी मोटी रस्सी।

जूनाइ :: (सं. स्त्री.) चंद्रिका, चाँदनी, चन्द्रमा।

जूरौ :: (सं. पु.) सिर के बाल जो लपटेकर बाँध दिये गये हो, जूट, चोटी, स्त्रियों की लपेटकर बाँधे गये बाल।

जूही :: (सं. स्त्री.) एक प्रसिद्ध पौधा जिसके फूल चमेली से मिलते है, एक तरह की आतिशबाजी।

जे :: (सर्व.) ये, संकेत वाची, सर्वनाम।

जेइये :: (क्रि.) भोजन करिए।

जेई :: (सर्व.) यही बलवाची प्रत्यय सहित स्त्री लिंग)।

जेउ :: (सर्व.) यही बलवाची प्रत्यय सहित सं. पु. लि.।

जेउरा-जेवरा :: (सं. पु.) रस्सी।

जेउरिया :: (सं. पु.) छोटी रस्सी।

जेगरो :: (सं. पु.) गाय या भैंस का हाल का बिया बछड़ा।

जेंजम :: (सं. स्त्री.) बिछाने की टाट-फट्टी, पतली बिछात।

जेजा :: (सं. पु.) चंदेलों के एक पूर्वज।

जेजाक भुक्ति :: (सं. स्त्री.) बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम, यमुना और नर्मदा के बीच का स्थान।

जेज्जाक :: (सं. पु.) चन्देल वंश का प्रतापी राजा जिसके नाम से बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम जेजाक भुक्ति पड़ा।

जेट :: (सं. पु.) समूह राशि, रोटियों की तह, ज्येष्ठ, पति का बड़ा भाई।

जेठ :: (सं. पु.) विक्रम संवत की तीसरा महीना, पति का बड़ा भाई।

जेठन :: (सं. पु.) पूर्वज (बहुवचन ही चलता है)।

जेठमास :: (सं. पु.) ग्रीष्म ऋतु, उदाहरण-जेठमासन में।

जेठा :: (सं. पु.) एक जाति का चावल जिसकी फसल जल्दी आ जाती है।

जेठानी :: (सं. स्त्री.) पति के बड़े भाई की पत्नि, जेठानी।

जेठी :: (सं. स्त्री. वि.) जेष्ठ, आयु में बड़ी, पति की स्वर्गीय पूर्व पत्नी।

जेठे :: (वि.) आयु में बड़े, पूर्वज।

जेठे :: (सं. पु.) उदाहरण-जेठे बड़े-आयु, पद, ज्ञान आदि में बड़े पूर्वज।

जेठोत :: (सं. पु.) जेठ का बड़ा पुत्र।

जेठौ :: (वि.) ज्येष्ठ, अपने से बड़ा, (यौगिक शब्द.)।

जेड़बो :: (क्रि.) रोकना।

जेंड़ा :: (वि.) मन्दबुद्धि, अर्द्ध विक्षिप्त।

जेते, जेतो :: (वि.) जितना, जिस मात्रा का, जिस कदर।

जेंन :: (सं. पु.) एक सदाचार मूलक अनीश्वर वादी धर्म।

जेब :: (सं. स्त्री.) कुछ रखने के लिए वस्त्रों के साथ सिली थैली।

जेबड़ा :: (सं. पु.) रस्सा, डोर।

जेबनार :: (सं. स्त्री.) ज्योनार, रसोई।

जेबर :: (सं. पु.) आभूषण।

जेबरा :: (सं. पु.) रस्सा, पानी खींचने का रस्सा।

जेबरिया :: (सं. स्त्री.) खटिया बुनने आदि के काम आने वाली रस्सी, पानी की रस्सी।

जेबरी :: (सं. स्त्री.) छोटी रस्सी, रस्सी, डोरी, ज्योरा।

जेबा :: (सं. पु.) पंगत, भोजन।

जेबाखाई :: (सं. स्त्री.) खाना-पीना।

जेबो :: (स. क्रि.) जीमना, भोजन करना।

जेर :: (सं. स्त्री.) रहट में लगने वाली एक लकड़ी।

जेर बंद :: (सं. पु.) घोड़ की नक्की और लगाम के बीच बाँधा जाने वाला कपड़ा।

जेर, जेरी :: (सं. स्त्री.) बच्चा पैदा होने पर उसके साथ गिरने वाली झिल्ली, पाँव का एक जेवर।

जेरा :: (सं. पु.) बारी या काँटो की बाड़ में निकलने के लिए लगायी गायी दुफँसगी लकड़ी ताकि मनुष्य तो निकल सकें किन्तु पशु न निकल सके।

जेरी :: (सं. स्त्री.) लम्बी लकड़ी जिसके एक किनारे पर दो नोंकें होती है ताकि उसमें फंसाकर जार उठाये जा सकें।

जेरें :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के पैर का एक आभूषण।

जेल :: (सं. पु.) कारागार, बन्दीगृह, जंजाल, परेशानी।

जेलखानों :: (सं. पु.) कारगार।

जेलबो :: (क्रि.) खेत को एक बार जोतने के बाद दूसरी बार जोतना।

जेवनार :: (सं. पु.) पंगत, भोज।

जेंवनार :: (सं. स्त्री.) बारात या अन्य उत्सव पूर्ण कार्य के समय होने वाला सामूहिक भोजन।

जेवर :: (सं. पु.) गहना।

जेसटा :: (सं. पु.) अठारवां नक्षत्र, वह स्त्री जो औरों की अपेक्षा अपने पति को अधिक प्यारी है।

जेहर :: (सं. पु.) जहर, विष, ऐसी वस्तु जिसके खाने से मृत्यु हो जाए।

जेहर :: (सं. स्त्री.) पाजेब, गहना।

जेहल :: (सं. स्त्री.) जेल।

जेहार :: (अव्य.) जहाँ, जिस जगह।

जै :: (सं. स्त्री.) विजय, मंगलकामना का शब्द। उदाहरण-जैजैकार-जय जयकार, किसी की जय मनाने का शब्द।

जै माल :: (सं. स्त्री.) जैमाला, विजयी को पहनायी जाने वाली माला, जय माला कन्या द्वारा वर के गले में डाली जाने वाली माला।

जैत :: (सं. स्त्री.) विजय, जीत, एक छोटे आकार का वृक्ष।

जैनी :: (सं. पु.) जैन धर्म मानने वाले।

जैबौ :: (क्रि.) भोजन करना, आदर भाव युक्त शब्द।

जैबौ :: (क्रि.) (संज्ञार्थ क्रिया) बुन्देली के भद्र रूप में क्रियाओं के इसी प्रकार के रूपों के साथ होय का प्रयोग कर क्रिया सम्पन्न होने का आदेश नहीं होता बल्कि इच्छा व्यक्त की जाती है जैसे जैबो होय जाइए, भोजन करना के अर्थ में भी प्रयुक्त।

जैरीलो :: (वि.) विषाक्त जिसमें जहर हो, विष युक्त।

जैरो :: (क्रि. अ.) जाना।

जैसँई :: (सर्व.) (बलवाची प्रत्यय युक्त) जैसे ही, ज्यों ही।

जैसवार :: (वि.) पान की एक जाति।

जैसें तैसें :: (क्रि. वि.) मुश्किल से, किसी प्रकार।

जैसो :: (वि.) जिस प्रकार का, जितना, समान।

जैसो :: (क्रि. वि.) जितना, जिस परिणाम में तथा मात्रा में, सर्व, जैसा उदाहरण-जैसे को तैसा-जो जैसा हो उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना।

जैसो :: (कहा.) जैसी करनी, वैसी भरनी - कर्म का फल भोगना पड़ता है।

जैसो :: (कहा.) जैसी देखी गाँव की रीति - ऊसी उठाई अपनी भींत-लोकरीति के अनुसार काम करना पड़ता है।

जैहल :: (सं. पु.) जेल, कारागृह, बन्दीगृह।

जो :: (वि.) जैसे, जिस भाँति, यह, जो।

जो :: (क्रि. वि.) ज्यों जो।

जो :: (कहा.) जो मोरें है सो राजा कें नईयाँ - व्यर्थ गर्व करना।

जो :: (प्र.) जो करे सो भरे।

जोआड़ी :: (वि.) जुआ खेलने वाला।

जोआन :: (सं. पु.) जवान, युवक, वीर।

जोंआन :: (सं. पु.) युवक, वीर।

जोंक :: (सं. स्त्री.) पानी में रहने वाला जीव-जन्तु, कीड़ा जो शरीर में चिपक कर खू पीता है।

जोखबो :: (सं. पु.) अन्दाज लगाना।

जोखम :: (सं. पु.) खतरा, धन, रूपया, पैसा।

जोखो :: (सं. पु.) हानि, धक्का।

जोग :: (संबो.) योग्य, लायक, संयोग, जैसे जोग जुड़ो है अर्थ, संयोग हुआ हैं।

जोगड़ा :: (सं. पु.) जोगी के लिए अपमान जनक शब्द।

जोगता :: (सं. स्त्री.) योग्यता, क्षमता, सामर्थ्य।

जोगन :: (सं. स्त्री.) गेरूआ वस्त्र धारण करने वाली सन्यासिनी।

जोगनी :: (सं. स्त्री.) महामाया दुर्गा की ६४ उपशक्तियाँ।

जोगिन :: (सं. स्त्री.) जोगी की स्त्री।

जोगिया :: (वि.) जोग का, जोगी का, गेरू के रंग का भगवा वस्त्र।

जोगिरा :: (सं. पु.) योगी, एक प्रकार का भिक्षुक, एक जाति, जोगी।

जोगी :: (सं. पु.) एक जाति जो हिनदु और मुस्लिम दोनों धर्मो के अन्तर्गत पायी जाती है।

जोजन :: (सं. पु.) योजन, दूरी का मान विशेष (दो चार अथवा आठ कोष का)।

जोंजर :: (क्रि. वि.) बराबरी से, आयु, पद, गुण आदि का विचार किये बिना बराबरी से लड़ना।

जोड़ :: (सं. पु.) जोड़ने की क्रिया, योग फल, वह स्थान जहाँ उसे वस्तुएँ या दो टुकड़े जुड़ें, बराबरी, समता, एक गणितीय क्रिया, शरीर में अस्थियों का मिलन स्थल, योग, कुश्ती का अभ्यास।

जोड़ तोड़ :: (सं. पु.) विशेष उपाय, तरकीब, दावपेंच, छल, कपट।

जोड़ा :: (सं. पु.) एक प्रकार के दो पदार्थ, एक साथ पहने जाने वाले दो कपड़े, पैरों के जूते, वह जो बराबर का हो।

जोड़ी :: (सं. स्त्री.) दो का समूह।

जोड़ीदार :: (वि.) बराबरी का, जोड़ का।

जोडुवा :: (सं. पु.) स्त्रियों के पैर के अँगूठे का एक आभूषण।

जोत :: (सं. स्त्री.) ज्योति, दीप सिखा, कृषि भूमि, देखने की शक्ति, जुँए से बैलों के गले को संलग्न करने का पट्टा।

जोतकरा :: (सं. पु.) जोसी जाति के लिए आदरवाची शब्द।

जोतकी :: (सं. पु.) ज्योतिषी, ज्योतिष का शास्त्रार्थ।

जोतबो :: (क्रि.) भूमि पर हल चलाना, किसी से अनवरत परिश्रम कराना, बैलों को जुँए संलग्न करना।

जोतरा :: (वि.) जुता हुआ।

जोतस :: (सं. पु.) ज्योतिष, गृह नक्षत्रों से सम्बन्धित शास्त्र।

जोतसी :: (सं. पु.) दे. जातकी।

जोता :: (सं. पु.) गर्दन की पिछली नसें जो कन्धों की तरफ मिली रहती है, हल जोतने वाले।

जोतिकरा :: (सं. पु.) दे. जोतकरा।

जोतिसी :: (सं. स्त्री.) ज्योतिषी, दैवज।

जोती :: (सं. स्त्री.) तराजू के पलड़े लटकाने वाली रस्सी, नेत्र ज्योति, दीप शिखा, चमक।

जोदा जोधा :: (सं. पु.) वीर, लड़ाकू।

जोन :: (सं. स्त्री.) योनि, देह।

जोंन :: (सं. स्त्री.) योनि, प्राणियों की जाति।

जोंन :: (प्र.) मनुष्य की जोंन, जो।

जोंनो :: (संबो.) जब तक।

जोन्हाई-जोन्हैया :: (सं. स्त्री.) चाँदनी, ज्योत्सना।

जोबन :: (सं. पु.) उरोज, युवती के स्तन।

जोबो :: (स. क्रि.) देखना, खोजना, प्रतीक्षा करना।

जोंम :: (सं. स्त्री.) उमंग, घमण्ड, सनक।

जोर :: (सं. स्त्री.) बेला, समय।

जोर :: दे. जुआर, बल, शक्ति, चन्दा।

जोर :: (सं. पु.) सार्वजनिक कार्य के लिए जोड़ा हुआ धन।

जोर तोर :: (सं. पु.) उपाय, तदबीर।

जोरनी :: (सं. स्त्री.) चाँदी में टांका लगाने का मसाला।

जोरबो :: (क्रि.) जोड़ना, इकठ्ठा करना।

जोरबो :: (कहा.) जोर जोर मर जायेंगे माल जमाई खायेंगे - कंजूस के लिए प्रयुक्त।

जोरा :: (सं. पु.) धोतियों का जोड़ा, रस्सा।

जोरिया :: (सं. स्त्री.) डोरी।

जोरी :: (सं. स्त्री.) जोड़ी, जबरदस्ती।

जोरू :: (सं. स्त्री.) पत्नी।

जोरो :: (सं. पु.) एक सी या एक साथ काम में लायी जाने वाली दो चीजें, पूरा पहनावा, लहँगा और लँगुरा का जोड़ा।

जोस :: (सं. पु.) ताव, उत्साह, अस्थायी उत्तेजना।

जोसन :: (सं. पु.) बाँह में पहनने का एक गहना।

जोसिन :: (सं. स्त्री.) जोशी की स्त्री।

जोसी :: (सं. पु.) दे. जोतकरा।

जौ :: (सं. पु.) जवा, वह।

जौ :: (अव्य.) यदि, अगर, जब।

जौआ :: (सं. पु.) लौकी, कद्दू आदि बहुत छोटा फल।

जौखरा :: (सं. पु.) दे. जबा।

जौधैया :: (सं. स्त्री.) ज्योत्सना, चाँदनी, जुन्हाई।

जौन :: (सर्व.) जो, जो कोई।

जौन :: (कहा.) जौन नीम कौ कीरा, तौनई में मानत - जिस आदमी को जैसे वातावरण में रहने का अभ्यास पड़ जाता है वह उसी में सुखी रहता है।

जौबाजौ :: (सर्व.) दे. जुआजौ।

जौबाजौ :: (वि.) जो कोई, कोई।

जौबाबौ :: (सर्व.) दे. जुआऔ।

जौबांर :: (सं. स्त्री.) जुड़ी ज्वार।

जौम :: (सं. पु.) उमंग, जोश, उत्साह, ठसक, शेखी।

जौयरी :: (सं. पु.) रत्न परखने वाला गुण ग्राहक, गुण दोष पहचानने वाला, जौहरी।

जौर बिर्रो :: (वि.) कोई।

जौरो तोरो :: (सं. पु.) एक प्रकार की मोटी बेल जो चार कोण बनाती हुई बढ़ती है तथा बीज में गाँठ भी कुछ अन्तर से बन जाती है।

जौलों :: (सर्व.) जब तक।

जौवन :: (सं. पु.) यौवन, जवानी, तरूणाई, स्तन कुच।

जौहर :: (सं. पु.) रत्न, हुनर, गुण।

जौहार :: (सं. स्त्री.) जुहार, अभिवादन।

ज्यों :: (क्रि. वि.) जिस प्रकार, जैसे, ज्यों त्यों-जैसे ही, जिस तरह, जिस क्षण।

ज्योरा :: (सं. पु.) मोटी रस्सी, रस्सा।

ज्योरी :: (सं. स्त्री.) रस्सा, मोटी रस्सी।

ज्वानी :: (सं. स्त्री.) जवानी, यौवन, तरूणाई।

ज्वाप ज्वाप :: (सं. पु.) जवाब, उत्तर।

ज्वार :: (सं. स्त्री.) ज्वार, जुआर।

ज्वार :: (सं. स्त्री.) जुड़ी ज्वार।

ज्वारी :: (सं. पु.) जुआरी।

ज्वाला :: (सं. स्त्री.) आग की लपट।

ज्वाला मुखी :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जिससे ज्वाला निकलती है।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि के च वर्ग का चतुर्थ व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान तालु है।

झई :: (सं. स्त्री.) दे. झाँई।

झउआ :: (सं. पु.) टोकरा, खाँचा, झावा।

झक :: (सं. स्त्री.) सनक, आकस्मिक विचार के अनुरूप आकस्मिक ढंग से व्यवहार, झँझलाहट।

झक :: (प्र.) कै तोरी सास ननद झक बोलीं, कै तोरे राजा नें दइँगारीं (लोक गीत.)।

झंक :: (वि.) अर्थ अज्ञात संभावित अर्थ-झक्क का परिवर्तित रूप झंक बुड्ढो के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगा हो।

झंक :: (प्र.) झंक डुकरा।

झकइया :: (सं. स्त्री.) झलक, क्षणिक, उपस्थित।

झकझँकाटा :: (सं. स्त्री.) चमक-दमक।

झकझालरी :: (वि.) धनी, पीपरिया, झकझालरी (लोक गीत.)।

झकझोरबो :: (स. क्रि.) क्रोध में पकड़कर हिला डालना, जोर से झटका देकर हिलाना।

झकड़ा :: (सं. पु.) शाखाओं-प्रशाखओं सहित सूखे पौधे अथवा पेड़ की छोटी शाखा, सूखी प्रशाखाओं सहित।

झकड़ैल :: (वि.) झगड़ा करने वाला।

झकबौ :: (क्रि.) संकोच करना, झेंपना, निकट आना, झाँकबो।

झकमारबौ :: (क्रि.) शांत बैठकर क्रोध शांत करना, यह एक मुहावरा है और इसका अर्थ विवादास्पद है किन्तु इस लोकगीत से दिये अर्थ की पुष्टि होती है कै तोरी सास ननद झक बोलीं, के तोरे राजा ने दई गारीं।

झकर :: (सं. स्त्री.) हल्की लू, ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली हल्की गर्म हवा, गरम हवा का झोंका।

झकरा :: (सं. पु.) झाड़ियाँ, झाड़, झँखाड़।

झकाझक :: (क्रि. वि.) खूब साफ और चमकता हुआ, चमाचम, एकदम चमकीला, सफेद (संतोषपूर्ण से भी अच्छी स्थिति)।

झकाझक :: (सं. स्त्री.) उदाहरण-झकाझक होबो-खूब प्रकाश फैलना, मामले कौ झकाझक होबो।

झंकाड़ :: (सं. पु.) अव्यवस्थित रूप से उगी झाड़ियाँ (झाड़-झंकाड़, शब्द युग्म. में प्रयुक्त)।

झकुटया :: (सं. पु.) काँटेदार झाड़ी।

झकोरबो :: (अ. क्रि.) हवा का झोंको के साथ पेड़ो को झकझोरते हुए बहना, झकोरा मारना, हिलाना।

झकोरा :: (सं. पु.) लहराती हुई हवा का सुखद झोंका।

झकोला :: (वि.) ऐसी चारपाई जो ढीली हो गयी हो।

झक्क :: (वि.) दे. झक, साफ, उज्जवल, एकदम चमकदार।

झक्क :: (क्रि. वि. प्र.) झक्क सफेद।

झक्क :: (मुहा.) तबियत झक्क होबो-अक्ल ठिकाने लगना।

झक्क :: (सं. स्त्री.) धुन, सनक।

झक्काटों :: (सं. पु.) खूब तेज रोशनी, जोर की रौशनी, बहुत अधिक प्रकाश।

झक्काटों :: (मुहा.) झक्काटो होबो-किसी उग्र वस्तु के सेवन आदि से नेत्रों में चमक दौड़ जाना, झक्काटो छूटबो-यकायक प्रकाश होना।

झक्काँद :: (सं. स्त्री.) दुर्गन्ध की लहर।

झक्की :: (वि.) सनकी, बक्की, बहुत अधिक बोलने वाला, व्यर्थ की बकवास करने वाला, जो अपनी धुन में दूसरे की बात न सुने, सनकी, उदाहरण-झक्की खुलबो-होश आना, बोध होना।

झक्कू :: (सं. स्त्री.) पंतग का उड़ते हुए बिना झुकाये दायें-बायें झुकना, बेवकूफ बनाना।

झक्कू :: (क्रि. प्र.) झक्कु देना।

झखमारबौ :: (क्रि.) दे. झक मारबौ।

झगड़बो :: (क्रि. अ.) तकरार करना, लड़ना।

झगरयाउ :: (वि.) झगड़ालू झगड़ करने वाला, कलह प्रिय।

झगरा :: (सं. पु.) तकरार, बखेड़ा, झगड़ा तीखी तेज बातचीत, मार पीट, आरोप प्रत्यारोप।

झगला :: (सं. पु.) झबला बच्चों को पहिनाने का ढीला आरामदायक वस्त्र, ऊंट-पटाँग ढंग से सिला वस्त्र।

झंगला :: (सं. पु.) बच्चों का छोटा कुर्ता आदि।

झंगा :: (सं. पु.) बच्चों का ढीला कुरता, अंगरखा, झँगोला, झगा।

झँगुलिया :: (सं. स्त्री.) बच्चों का ढ़ीला कुरता, झँगोला बच्चों के शरीर के ऊपरी भाग में पहिनाने वाला वस्त्र, झबुला से भिन्न।

झँजट :: (सं. स्त्री.) झमेला, झगड़ा, कठिनाई, परेशानी।

झँजरा :: (वि.) अनेक छिद्रों वाला (बर्तन) जर्जर (लाक्षणिक अर्थ.)।

झँजरी :: (सं. स्त्री.) खिड़कियों पर लगायी जाने वाली पत्थर की जाली।

झँजरी :: (वि.) जर्जर।

झँजरो :: (वि.) छेददार, जीर्णशीर्ण।

झँजरो :: (कहा.) हम फूटे तुम झाँजरे, हरई कें भेंटियों।

झंजाबौ :: (क्रि.) वस्त्रों आदि का आंशिक रूप से सूखना।

झँजोरबो :: (स. क्रि.) पकड़कर झटका देना, झकझोरना, नोचना, हिलाना।

झंझट :: (वि.) विवाद या झगड़े करने वाला, आसानी से निपटने वाली समस्या, व्यवधान, बाधा, अप्रिय वार्तालाप।

झँझरिया :: (सं. स्त्री.) खिड़की, झरोखा, जालीदार खिड़की।

झँझरी :: (सं. स्त्री.) जाली, जालीदार खिड़की।

झँझाबो :: (क्रि.) सूखना।

झँझाबो :: दे. झँझाबो, झंड़ा।

झँझाबो :: (सं. पु.) ध्वज, पताका, उदाहरण-झंडा गाड़बो-कब्जा करना, अपने अधिकार की घोषणा करना।

झटकबौ :: (क्रि.) ढील देने के बाद आकस्मिक बल लगाकर अपनी ओर खींचना, धोखा देकर कुछ ले लेना, झटका देकर हिलाना।

झटकबौ :: (क्रि. अ.) दुर्बल हो जाना।

झटका :: (सं. पु.) झटकने की क्रिया, धोखा, खींचने से लगा धक्का।

झटका :: (मुहा.) झटका खा जाबो-किसी बड़े रोग शोक से क्षीण हो जाना।

झटकारबौ :: (क्रि.) स्त्रियों द्वारा अपने बालों से पानी झराना, फटकारना।

झटपट :: (क्रि. वि.) शीघ्रता से।

झटपटाबो :: (क्रि. अ.) झटपटाना।

झट्ट :: (क्रि. वि.) शीघ्र, यौगिक शब्द. झट्ट-झट्ट-तत्काल, आनन-फानन, झट्ट-झट्ट, जल्दी-जल्दी।

झट्टई :: (क्रि. वि.) तुरन्त ही, जल्दी से, यौगिक शब्द. झट्टई-झट्ट, जल्दी-जल्दी।

झड़प :: (सं. स्त्री.) डाटफटकार, तेजी डाँट-फटकार, क्रोध, झरपट, तेजी, उदाहरण-झड़प बताबो-गुस्सा जताना, यौगिक शब्द. झड़पा-झड़पी-छीन-झपटी।

झड़ला :: (वि.) बिना मूंडन का बच्चा।

झड़ाको :: (सं. पु.) झड़ोके की आवाज, सपाटा।

झड़ाझड़ :: (क्रि. वि.) एक के बाद एक का आवाज के साथ, (गिरना) लगातार, खूब, उदाहरण-बरसो राम झड़ाझड़ियाँ।

झड़ाझड़ी :: (सं. स्त्री.) तकरार, मैं मैं-तू तू।

झड़ास :: (सं. स्त्री.) मलत्याग की तीव्र इच्छी।

झँडूला :: जिसके सिर पर गर्भ के बाल हों, जिसका मुंडन हुआ हो, मुंडन संस्कार के पहले का।

झडूलो :: (वि.) छोटे बच्चे।

झडूलो :: (सं. स्त्री.) झडुल्ली, लड़का जिसका मुण्डन न हुआ हो।

झडूलौ :: (सं. पु. वि.) गोद का शिशु, लाड़ला शिशु।

झण्डा :: (सं. पु.) पताका, ध्वजा।

झण्डाल :: (सं. स्त्री.) अग्रि की बड़ी ज्वाला।

झण्डी :: (सं. स्त्री.) देवताओं को अर्पण की जाने वाली छोटे कपड़े की झण्डी, सजावट के लिये कागज की झण्डियाँ।

झदउआ :: (वि.) ऐसा कुँआ जो टूटा पड़ा हो, अधखुला कुआँ।

झंदउआ :: (सं. पु.) जल रहित गहरा कुँआ।

झंदा :: (सं. पु.) फिसल जाने से पुरा हुआ कुँए का अवशेष।

झनक :: (सं. स्त्री.) आभास, झनक, परोक्ष ढंग से प्राप्त अस्पष्ट जानकारी, झनझन की आवाज, झनकार।

झनकबो :: (अ. क्रि.) झनक होना, झुँझलाना, खीझना, झनकार करना।

झनकबो :: (प्रे.) रूप-झनकाबौ, झनकारबौ।

झनकार :: (सं. स्त्री.) झनझनाहट, झाँझ, पायल आदि के बजने से होने वाली ध्वनि, वीणा, सितार आदि की ध्वनि, आभूषणों के आपस में टकराने का स्वर।

झनकारबो :: (स. क्रि.) झन-झन आवाज करना, मधुर ध्वनि करना।

झनझन :: (सं. पु.) चिरपिराहट का असर।

झनझन :: (अनु.) पैर के गहने का शब्द, टकराने का शब्द।

झनझना :: (सं. स्त्री.) झन-झन की आवाज, झुनझुनी, झनझनाहट।

झनझनाटौ :: (सं. पु.) धातु के बर्तन गिरने की आवाज, किसी अंग विशेष में अनुभव होने वाली सनसनाहट।

झनझनाबौ :: (अ. क्रि.) किसी चोट के बाद पीड़ा का कुछ देर तक होता हुआ आभास, चिनमिनाना।

झनन :: (सं. स्त्री.) पायल या घुंघरू बजने जैसी आवाज, उदाहरण-झनन-झनन।

झन्ना :: (सं. पु.) चक्की में से आटा झाड़ने का कपड़ा, वस्तुओं की धूल झाड़ने का झाड़न।

झन्नाट :: (सं. स्त्री.) झनझनाहट, झुनझुनी।

झन्नाटो :: (सं. पु.) तीक्ष्ण स्वाद या स्पर्श के बाद का सनसनाहट भरा आभास।

झन्नाबो :: (अ. क्रि.) झनझनाना, झनझन की ध्वनि होना।

झन्नाबो :: (स. क्रि.) ध्वनि, भला-बुरा कहना।

झन्नोटा :: (सं. पु.) पीड़ा।

झपक :: (सं. स्त्री.) आँख की पलक बंद होना, क्षण मात्र का समय, यौगिक शब्द. लपक-झपक-भाग-दौड़।

झपकबौ :: (क्रि.) आँखों की पलकों का गिरना, झपकी आना।

झपका :: (वि.) जल्दी से, थोड़ी देर के लिए आने वाली नींद।

झपकी :: (सं. स्त्री.) नींद का क्षणिक प्रभाव।

झपटबो :: (क्रि.) आक्रमण करना, शीघ्रता से किसी वस्तु को उठाना, उदाहरण-झपट लेना-जबरदस्ती छीन लेना।

झपट्टा :: (सं. पु.) झटकने की क्रिया या मुद्रा।

झपट्टा :: (मुहा.) चील झपट्टा-चील की तरह टूट पड़ना, झपट्टा मारबौ-किसी वस्तु को छीनने के लिए सहसा दौड़ना।

झपट्टो :: (सं. पु.) झपटने की क्रिया, टूट पड़ने की क्रिया, उदाहरण-झपट्टो मारबो-चील आदि का किसी चीज पर टूटना।

झपनयाबो :: (क्रि. अ.) दे. झपबो।

झपनी :: (सं. स्त्री.) हल्का परदा, निद्रा आने का भाव।

झपनी :: (मुहा.) झपनी खोल दैबो-अक्ल दुरूस्त करना, झपनी डाटबो-बीमार का तन्द्रा ग्रस्त होना, चमड़े की वह मुकुटाकार टुकड़ी जो बुन्देलखण्डी जूतों में पंजों पर लगी रहती है।

झपबो, झपनयाबो :: (क्रि. अ.) आँख लगना, घिरना, घना होना।

झपबौ :: (क्रि.) निद्रा से प्रभावित होकर कच्ची नींद में सो जाना।

झपसट :: (सं. पु.) तेज चाल।

झपसट :: (सं. स्त्री.) झपसटी।

झपाई :: (सं. स्त्री.) रोगजन्य, दुर्बलता के कारण हल्की-सी अचेतावस्था।

झपाक :: (अव्य.) जल्दी से, शीघ्रता पूर्वक, तुरंत, तेजी से।

झंपान :: (सं. पु.) पहाड़ की चढ़ाई में काम आने वाली एक तरह की खुली डोली, ढ़ीला-ढ़ाला बेतरतीब पहिनावा।

झपाबौ :: (क्रि.) मिलावट करना, पदार्थ को उदारता पूर्वक उँड़ेलना, किसी पदार्थ को अपमिश्रित करने की दृष्टि से दूसरी वस्तु मिलाना।

झपी :: (सं. स्त्री.) दे. झपकी तथा झपाई, दोनों अर्थों में प्रयुक्त।

झपेटबो :: (क्रि. स.) झपट कर दबा लेना।

झपेटो :: (सं. पु.) झपट।

झप्ताल :: (सं. पु.) दस मात्राओं का एक ताल, झपताल।

झबरबो :: (सं. पु.) जानबूझकर, अनजान बनना।

झबरयाबो :: (स. क्रि.) बेबकूफ बनाना, भ्रम में डालना, भुलाना, झूठा बनाना, फुसलाना।

झबरा :: (वि.) बड़े बालों वाला, लम्बे और घने बालों वाला, (कुत्ता) वह बैल जिसके जबड़ों या कानों पर घने बाल हों।

झबरीले :: (वि.) चारों ओर बिखरा हुआ केश समूह, झबरो (बुँ.)।

झबरो :: (वि.) लंबे और सब ओर बिखरे हुए बालों वाला, बड़े बालों वाला।

झबा :: (सं. पु.) घने बालों का समूह, उदाहरण-पलकें अमोल तापै, बसनी झबा लसत (बुँ.गी.)।

झबुआ :: (वि.) दे. झबरो।

झब्बा :: (सं. पु.) लड़ियों आदि का झूमका हरने वाला गुच्छा, बुन्देलखण्डी देशी जूते का टखने के सामने रहने वाला अर्द्धगोलाकार या पान के आकार का सजावटी भाग-झब्बयाऊ पनइयाँ।

झब्बू :: (वि.) बड़े कान वाला, कुत्ता।

झब्बू :: (सं. पु.) गुच्छा।

झमक :: (सं. स्त्री.) भभक, तेज, ठुमक, उदाहरण-झमक चली मोरी मामुलिया (लोक गीत.)।

झमकबो :: (अ. क्रि.) पावों के गहनों की झनकार करते चलना, नाचना, झम-झम करते हुए तेजी से आगे बढ़ना।

झँमकाँ :: (क्रि. वि.) लगातार हलके ढंग से पानी बरसना।

झमकाबो :: (स. क्रि.) चमकना, मटकना, झन-झन की आवाज करना, युद्ध आदि में हथियार खट खटाना।

झमकारो :: (वि.) झम-झम करके बरसने वाला, झम-झम ध्वनि करने वाला आभूषण।

झमकीलो :: (वि.) चंचल, चमकीला।

झमको :: दिखाना, दिखावा।

झमझम :: (सं. स्त्री.) घुँघरूओं के बजने या जोर से वर्षा होने की आवाज, झम-झम।

झमझमाबो :: (अ. क्रि.) झम-झम, आवाज होना, चमकना, झम-झम ध्वनि उत्पन्न करना, चमकाना।

झमयाबो :: (क्रि.) गायों बैलों द्वारा सींग हिलाकर मारने जैसी मुद्रा बनाकर डराना।

झमाँ :: (सं. स्त्री.) मूर्च्छा, बेहोशी, अचेतना।

झँमा :: (सं. पु.) चक्कर।

झमाको :: (सं. पु.) झम-झम की आवाज, ठसक।

झमाझम :: (क्रि. वि.) अच्छी और एक गति से होने वाली।

झरझरबो :: (क्रि. अ.) दे. झरझराबो।

झर्फ राबो :: (क्रि. अ.) उतावली करना।

झामक झउआ :: (सं. पु.) बहुत ढीला-ढाला।

झार :: (क्रि. वि.) झराँ-झारके-सबको लेते हुए, जैसे-झरां गाँव न्योतो है-गाँव में सबका निमंत्रण है, तेजी प्याज या मिर्च की झार।

झार :: (मुहा.) झार लगबो-आँच लगना।

झार :: (सं. पु.) कुआँर में आने वाली धान, झाड़ी, कँटीला पेड़, कुआँर।

झार खण्ड :: (सं. पु.) जंगली क्षेत्र का प्रमुख मनोरम तीर्थ स्थान।

झार-पोंछ :: (सं. स्त्री.) सफाई आदि का काम।

झार-पोंछ :: (मुहा.) झार-पौंछ कै बैठबो-सब साफ कर बैठना, घर का सब पैसा खा डालना।

झारन :: (सं. पु.) झाड़ने से निकला हुआ कचरा या अन्य वस्तु।

झारबौ :: (क्रि.) क्रि झाडू लगाना, रोगी का मंत्रों द्वारा उपचार करना।

झारबौ :: (मुहा.) कनपटी झारबौ-गाल में कसकर थप्पड़ या कुछ और मारना, उदाहरण-दै रे सोंटा ऐसी मार, कान फोड़ कनपटी झार।

झारा-बटोरी :: (सं. स्त्री.) झाड़ पौंछ और कचरा उठाकर की गयी सफाई (सामासिक शब्द.)।

झारि :: (सं. स्त्री.) अमचुर, जीरा, नमक, आदि से बना खट्टा पदार्थ।

झारी :: (सं. स्त्री.) पानी परसने, हाथ, मुँह धुलाने आदि के लिए काम में लाये जाने वाला, टोंटीदार बरतन, गडुआ, झाड़ी।

झारूदार :: (सं. पु.) झाडू लगाने वाला।

झारें :: (सं. स्त्री.) संघनित भाप जो पारदर्शी होती है, गीली वस्तु जलने से उठने वाली पारदर्शी भाप।

झारौ :: (सं. पु.) पूड़ियाँ या अन्य तली हुई वस्तुओं का कढ़ाई से निकालने का छेददार हत्था।

झारौ-झौंसो :: (सं. पु.) कूड़ा करकट, जमीन पर पड़ा हुआ कचरा तथा छप्पर में लगा हुआ मकर जाला आदि।

झाल :: (सं. स्त्री.) नारियल भरने का बड़ा बोरा, बड़ी डलिया।

झालबौ :: (क्रि.) टाँका लगाना, धातु को रांगा आदि से जोड़ना।

झालर :: (सं. स्त्री.) किसी वस्त्र के किनारे सजावट के लिए लगाया चुन्नटदार कपड़ा, छोटे विद्युत बल्बौ की माला, बच्चे के पैदायशी बाल, मन्दिर में बजने वाले घड़याल।

झालौ :: (सं. पु.) हाथ हिलाकर दिया जाने वाला संकेत, धोखा, भूल।

झिक झिक :: (सं. स्त्री.) हुज्जत, तकरार, विवाद।

झिकइया :: (सं. पु.) चारपाई बुनने वाले का सहायक।

झिकबो :: (क्रि. स.) खिंचना, आकृष्ट होना।

झिक्क :: (सं. स्त्री.) सनक।

झिक्की :: (वि.) सनकी।

झिंगरा :: (सं. स्त्री.) एक जाति की छोटी मछली।

झिजक :: (सं. स्त्री.) हिचक, लज्जा जनित संकोच, झिझक।

झिजकबो :: (अ. क्रि.) भय या लज्जा के कारण कोई बात कहने करने में हिचकना, ठिठकना, बिचकना।

झिंजरया :: (वि.) जालीवाला, छोटे छेंदो वाला।

झिंजरी :: (सं. स्त्री.) दीवाल के बीच में लगायी जाने वाली बारीक जाली।

झिंजिया :: (सं. स्त्री.) वह घड़ा जिसमें बहुत से छेद होते हैं और जिसमें दिया जलाकर घुमाया जाता है।

झिझक :: (सं. पु.) आना-कानी, असमंजस, सोच-विचार।

झिंझरी :: (सं. स्त्री.) जालीदार खिड़की, उदाहरण-अच्छे काट कटे झिंझरी के, लगे कड़न के टाँके।

झिंझिया :: (सं. स्त्री.) लड़कियों का एक खेल जो सावन के महीने में खेला जाता है, लड़कियाँ छोटे छेदों वाला घट लेकर दीपक झिंझिया कैसो घट भयो, दिन ही में वन कुंज।

झिन :: (सं. स्त्री.) रूई के बारीक टुकड़े।

झिनका :: (सं. पु.) थोड़ा रूक, रूक कर पानी बरसना।

झिनझिनी :: (सं. स्त्री.) अवरूद्ध या मन्द रक्त चाप के कराण किसी अंग विशेष में शून्यता।

झिनवा :: (सं. पु.) बारीक चावलों वाला धान।

झिन्ना :: (सं. पु.) झरना, पानी का स्त्रोत।

झिन्ना :: (वि.) बारीक खिर-बिरा, झीना कपड़ा।

झिपली :: (सं. स्त्री.) छोटी टोकनी।

झिमका :: (सं. पु.) पानी की एक बार की थोड़ी बरसा।

झिमका :: (क्रि. वि.) झिमका थोड़ा रूक-रूक कर (पानी बरसना)।

झिमिड़ना :: (क्रि.) चारों तरफ से बादल इकट्ठे होना।

झिमिड़बो :: (क्रि. अ.) घिरना (बादलों का) सिमटना, एकत्र होना, उदाहरण-झिमिट आये घोर घन आकाश में।

झिर :: (सं. स्त्री.) लगातार होने वाली वर्षा, कुँए में जलस्रोत, बारीक रन्ध्र, धातु के पत्तल का बारीक छोटा टुकड़ा।

झिरझिरा :: (सं. पु.) पौधे के पत्तों को खाने वाला कीड़ा।

झिरझिरौ :: (वि.) विरल बुनाई वाला वस्त्र, झीना कपड़ा।

झिरना :: (सं. पु.) पानी का स्त्रोत, झरना।

झिरबो :: (क्रि. अ.) पानी का गिरना, रिसना, साबित हो छोटे रंध्रो में से किसी तरल का धीरे-धीरे बाहर निकलना, उदाहरण-नैना झिरत रात झिरना से (ईसुरी कवि.)।

झिरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा झरना तथा उसके पास बना कुण्ड।

झिरी :: (सं. स्त्री.) दो वस्तुओं के बीच की पतली खाली जगह, तुषार के पहले पड़ गये गेहूँ के दाने।

झिरी :: (मुहा.) झिरी परबौ-तुषार से गेहूँ का दाना पतला पड़ना।

झिरोंगौ :: (सं. पु.) अनेक दिनों से हो रही वर्षा का मौसम।

झिलकबौ :: (क्रि.) त्वचा के नीचे से रक्त का छलकना, किसी समूह पर तरल की अत्यंत कम मात्रा होना।

झिलझिलाबौ :: (क्रि.) पानी का कहीं इकट्ठा होना, रूककर आगे बहना, किसी गड्ढ़े में पानी का चमकना।

झिलपी :: (सं. स्त्री.) पतली लकड़ी।

झिलम :: (सं. पु.) लोहे का जालीदार टोप (यौगिक शब्द.) झिलम-टोप।

झिलम टोप :: (सं. पु.) लोहे की टोपी जो हथियार की चोट से सुरक्षित रखने के लिए लगायी जाती है।

झिलमिल :: (सं. स्त्री.) हिलती रह-रहकर चमकती हुई रोशनी, उदाहरण-झिलमिल-झिलमिल आरती महादेव जी की उतारती-जिसमें झिलमिलाती हुई रोशनी हो (लोक गीत.)।

झिलमिलाट :: (सं. स्त्री.) झिलमिलाने की क्रिया या भाव।

झिलमिलाबो :: (क्रि.) छोटी-छोटी वस्तुओं का अन्तर से चमकना।

झिलमिलो :: (वि.) जिसमें झिलमिलाती हुई रोशनी हो।

झिलवा :: (सं. पु.) लकड़ी का पतला टुकड़ा।

झिलाझिलौअल :: (सं. पु.) एक खेल।

झिलार :: (सं. स्त्री.) वह स्थान जहाँ पानी भर जाने के बाद आगे बहता है।

झिली :: (सं. स्त्री.) आस-पास जमुना, झिली परे आना, संध्या का समय, गोधूलि बेला।

झिल्ली :: (सं. स्त्री.) एक कीड़ा, पतला कागज।

झींक :: (सं. स्त्री.) खींच, शक्ति, जोर, झींकने का भाव, पछताबा।

झींकन :: (वि.) जो झींकता रहे, कुछ काम न करे।

झींकबौ :: (स. क्रि.) किसी वस्तु को अपनी ओर खींचना, किसी कार्य को करने की बात सोचते हुए निष्क्रिय बैठे रहना, व्यर्थ रो-रो कर समय काटना।

झींका :: (सं. पु.) बाजा।

झींगा :: (सं. पु.) मछली, एक छोटी मछली, जो सुखाकर रखी जाती है।

झींगुर :: (सं. पु.) एक कीड़ा जिसकी आवाज तेज होती है, झिल्ली-एक जन्तु जो काफी कर्ण कटु आवाज में लगातार बोलता है।

झींगुर :: (मुहा.) झींगुर सी टांगे-पतली टांगे।

झीनी :: (सं. स्त्री.) पतली, क्षीण।

झीनों :: (वि.) दे. झिरझिरौ, पतला, जीर्ण, खिरबिर्रा, बुना हुआ।

झीबा :: (सं. पु.) मुग्ध करना।

झींम :: (सं. स्त्री.) नींद, आलस्य।

झींमबो :: (अ. क्रि.) अर्द्धनिद्रा में झुक पड़ना, ऊँघना।

झील :: (सं. स्त्री.) नीची जमीन जहाँ बरसाती पानी इकट्ठा हो जाता है।

झुकबावो :: (स. क्रि.) झुकाने का काम कराना।

झुकबौ :: (अ. क्रि.) टेढ़ा होना, लटकना, मुड़ना, नीचा होना, दबाना, किसी ओर पक्षपात करना, मानना, क्रुद्ध होना, एक तरफ टेढ़ा होना, किसी के सामने समर्पण करना।

झुकबौ :: (मुहा.) झुक-झुक कें-आगे बढ़ बढ़कर, झुक-झुक परबौ-नशे या नींद से झींम-झींम जाना। (सामासिक शब्द.)।

झुकाई :: (सं. स्त्री.) झुकाने की क्रिया या भाव, झुकने की उजरत।

झुकाबो :: (स. क्रि.) टेढ़ा करना, लटकाना, मोड़ना, नीचा करना।

झुकामुकौ :: (सं. पु.) ऊषापूर्व का प्रातः काल जब थोड़ा सा प्रकाश होता है, झुकामुकी-कुछ-कुछ अँधेरा।

झुँगबो :: (अ. क्रि.) आग से झुलस जाना, जलना।

झुँगारबो :: (क्रि.) भूँजना।

झुँझयाट :: (सं. स्त्री.) झुँझलाट, खीज।

झुँझयाबो :: (अ. क्रि.) झुँझलाना, खीजना।

झुटकारबौ :: (क्रि. स.) झूठा बनाना।

झुटकुटियाँ :: (सं. स्त्री.) पतली-पतली, सूखी लकड़ियाँ।

झुटपुटौ :: (सं. पु.) प्रातः या संध्या का ऐसा समय जब प्रकाश बहुत कम हो जाता है।

झुटैला :: (वि.) झूठ बोलने वाला।

झुट्टा :: (वि.) झूठ बोलने वाला, प्रेम की एक गाली।

झुंड :: (सं. पु.) समूह, गिरोह, दल।

झुँडा :: (सं. पु.) बाल।

झुतरा :: (वि.) बड़े-बड़े अव्यवस्थित बालों वाला।

झुन-झुन :: (सं. पु.) नूपुर, पैंजनी आदि के बजने की आवाज।

झुनझुना :: (सं. पु.) छोटे बच्चों का खिलौना जो हिलने डुलने से झुनझुना की आवाज करता है।

झुनझुना :: दे. खुनखुना।

झुनझुनाबो :: (अ. क्रि.) झुन-झुन शब्द उत्पन्न होना।

झुनझुनिया :: (सं. स्त्री.) झुन-झुन शब्द करने वाला, एक गहना।

झुनझुनी :: (सं. स्त्री.) हाथ पांव के एक हालात में देर तक रहने या दबने से पैदा होने वाली सनसनाहट।

झुनझुनी :: दे. झिनझिनी।

झुनी :: (सं. स्त्री.) थोड़ी देर का समय।

झुन्न परबो :: (अनु.) सुन्न पड़ना।

झुपड़िया :: (सं. स्त्री.) पर्णकुटी, अपने मकान के लिये विनम्रता सूचक शब्द।

झुमक तुरइया :: (सं. पु.) एक प्रकार की तोरई।

झुमका :: (सं. पु.) कान का एक आभूषण जो कर्ण फूल की तरह से लटकता है।

झुँमकाँ :: (क्रि. वि.) दे. झँमकाँ।

झुमकिया :: गुच्छी।

झुमकी :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के कानों का आभूषण जो छोटे कर्णफूल की तरह नीचे लटकता है, गुच्छा।

झुमरिया :: (सं. स्त्री.) छोटा हतौड़ा, मुगरी।

झुमाबौ :: (क्रि.) लटकाना।

झुरकबो :: (अ. क्रि.) झुलसना, सूखना।

झुरकुटिया :: (सं. स्त्री.) पतली-पतली लकड़ी।

झुरझुरी :: (सं. स्त्री.) मलेरिया चढ़ने के प्रारम्भ में लगने वाली ठण्ड।

झुरझुरू :: (सं. स्त्री.) ज्वर की लहर, जूड़ी, बुखार की कंपकंपी।

झुरना :: (अ. क्रि.) सूखना, दुख या चिन्ता से क्षीण होना।

झुरपटौ :: (सं. पु.) संध्या अथवा प्रातः काल पौ फटने का समय।

झुरयांद :: (सं. स्त्री.) झुलसने की गंध।

झुरसबौ :: (क्रि.) झुलसना, ऐसा जलना जिसमें आकार-प्रकार यथावत बना रहे किन्तु वस्तु जल जाये।

झुरान :: (सं. पु.) सूखा।

झुर्सांद :: (सं. स्त्री.) जलाँध, जलने की गंध।

झुर्सांयदौ :: (वि.) जले का स्वाद वाला।

झुलउआ :: (सं. स्त्री.) नीचे की ओर ढीला कपड़ा।

झुलग :: (सं. पु.) पुरानी चारपाई का टूटा हुआ भराव।

झुलनियाँ :: (सं. पु.) एक प्रकार का नृत्य जो झुककर झूमकर और झूलकर गाते हुए किया जाता है।

झुलनी :: (सं. स्त्री.) कान का एक गहना, मनुष्य की देह।

झुलमा :: (सं. पु.) एक अनाज।

झुलमुली :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का लटकन।

झुलयाबौ :: (क्रि.) किसी के शरीर को कन्धे तथा पैर पकड़ कर दो लोगों द्वारा उठाना।

झुललिया :: (सं. स्त्री.) एक प्रकार का लटकन।

झुलसा :: (सं. पु.) फसलों का एक रोग जिसमें पत्तियाँ पीली पड़कर सूख जाती है।

झुलापुटौ :: (सं. पु.) झुटपुटौ, प्रातः काल का समय।

झुलाबौ :: (सं. क्रि.) झूले को हिलाना, लटकाकर हिलाना, अटकाये रखना, अधर अवस्था में यहाँ-वहाँ से हिलाना, लटकाना, झुलझुलाई।

झुली :: (सं. स्त्री.) संध्या का अंधेरा।

झुली :: (प्र.) झुली परें-संध्या का अधेरा होने पर।

झुलौआ :: (सं. पु.) स्त्रियों का कुरता, झूला झूलने का साधन।

झुलौआ :: (वि.) झूलने वाला।

झुल्ला :: (सं. पु.) स्त्रियों की एक प्रकार की बिना बाँह की कुर्ती।

झूँकना :: (सं. स्त्री.) किसी कार्य को करने की इच्छा रहते हुए भी किसी दुर्निवार समस्या के कारण असमर्थता।

झूँकना :: (सं. स्त्री.) किसी कार्य को करने की इच्छा रहते हुए भी किसी दुर्निवार समस्या के कारण असमर्थता।

झूँकबौ :: (क्रि.) झूँकने की स्थिति का सामना करना, इच्छा रहते हुए भी आलसवश किसी काम को टालना।

झूझर :: (सं. पु.) ऊँटों की कतार।

झूझर :: (सं. पु.) वह स्थान जहाँ बहता हुआ पानी ऊँचे चढ़कर फिर नीचे गिरता है।

झूट :: (वि.) जो सच न हो, असत्य।

झूट :: (कहा.) झूँठे ब्याव, साँचे न्याव - विवाह झूठ बोल होता है, न्याय में सत्य से काम लेना पड़ता है।

झूँटउँ :: (वि.) झूठमूठ।

झूँटउँ :: (कहा.) झूँठइ लेना, झूँठइ देना, झूँठइ भोजन, झूठ चबैना - झूठे व्यक्ति के लिए।

झूटमांट :: (क्रि. वि.) झूट-मूट, झूठ ही।

झूँटा :: (वि.) झूठा।

झूँटा :: (सं. पु.) बालों का समूह, झौंटा, झूठ बोलने वाला।

झूँटा :: (कहा.) झूँठन के बादसा - बहुत झूठा।

झूँटौ :: (वि.) किसी अंग का दबे रहने या अन्य कारण से निर्जीव-सा होना।

झूँड :: (सं. पु.) झुंड।

झूँड़बौ :: (क्रि.) किसी डण्डे या पत्थर से पेड़ से फल इस प्रकार गिराना कि कच्चे पके सभी फल गिर जायें।

झूतरा :: (सं. पु.) सिर के आगे के बढ़े हुए बाल।

झूना :: (सं. पु.) स्त्रियों की चोटी का झूमका।

झूनासारी :: (सं. स्त्री.) पतली साड़ी।

झूम :: (सं. स्त्री.) झूमने की क्रिया या भाव, ऊँघ।

झूमक :: (सं. पु.) झूमर, गुच्छा, साड़ी दुपट्टे माथे पर रहने वाले भाग पर टंका, (मोतियों का)।

झूमका :: (सं. पु.) गुच्छा, फूलों का गुच्छा, एक मिट्टी का जिसमें चार छोटे-छोटे पात्र तथा पकड़ने की मुठिया जुड़ी रहती है, इसे दीवाली के पूजन में खीलों से भरकर रखा जाता है, चार कटोंरों का गुच्छा पंक्तियों (भोजों) में परोसने के काम आता है।

झूमबौ :: (अ. क्रि.) इधर-उधर हिलना, झौंके खाना, लहराना, लटकना, नशे में पैरों का असन्तुलित ढंग से पड़ना।

झूमबौ :: (मुहा.) द्वारें होती झूमबो-खूब धन सम्पन्न होना।

झूमर :: (सं. स्त्री.) लड़का पैदा होने पर दर्जी और कुम्हारों द्वारा बाँधी जाने वाली एक सजावटी वस्तु, दर्जी की झूमर में एक तने हुए चौकोर कपड़े के बीच में कपड़े का एक घोड़ा तथा कोनों पर फूंदने आदि लटकते हैं, इसी प्रकार कुम्हार की झूमर मिट्टी की बनी होती है।

झूमर :: (सं. पु.) माथे का एक गहना।

झूमरा :: (सं. पु.) बड़ा हथौड़ा जो पत्थर तोड़ने के काम आता है, गीत का एक प्रकार।

झूमा-झटकी :: (सं. स्त्री.) छीना झपटी।

झूरन :: (सं. पु.) बरतन में बचे हे मिठाई आदि के टुकड़े और झरी हुई शक्कर खोआ आदि, धातु के बारीक कण जो रेतने से गिरते हैं।

झूरबो :: (अ. क्रि.) बिसूरना, तरसना, सूखना, दुबला होना।

झूरा :: (सं. पु.) बारीक चूर्ण।

झूरी :: (सं. स्त्री.) जूड़ी ताप।

झूल :: (सं. स्त्री.) हाथी घोड़े आदि की पीठ पर सजावट के लिए डाला जाने वाला कपड़ा, ढीला-ढाला भद्दा पहनावा।

झूलन :: (सं. पु.) झूलने का उत्सव, झूलने का ढंग।

झूलना :: (सं. पु.) फाग की किस्म।

झूलना :: (सं. पु.) झूला (लोक गीत में प्रयुक्त)।

झूलनी :: (सं. स्त्री.) झूलने वाली बैठक, (स्त्री) एक तरह की बैठक।

झूलबौ :: (अ. क्रि.) लटककर आगे-पीछे होना, पैग लेना, किसी आशा में लटके रहना, हिंड़ोलावाला।

झूला :: (सं. पु.) पेड़ की डाल या मकान की कड़ियों पर रस्सा बाँधकर तथा उसमें पटियाँ लगाकर बनाया जाने वाला साधन, रस्सियों से लटकाया हुआ पालना।

झेंद :: (सं. स्त्री.) कुएँ में से मिट्टी आदि निकालने की टोकनी।

झेंप :: (सं. स्त्री.) लज्जा, संकोच।

झेंपबौ :: (वि.) संकोच करने वाला।

झेमबो :: (अ. क्रि.) लजाना।

झेर :: (सं. स्त्री.) देर, विलम्ब।

झेलबौ :: (स. क्रि.) ऊपर से गिरती हुई वस्तु को बीच में ही पकड़ लेना, सामना करना।

झेला :: (सं. पु.) स्त्रियों के कान का आभूषण, बैलों के गले का आभूषण, एक बाजा।

झैंगदो :: (सं. पु.) पुरानी चारपाई का टूटा हुआ भराव।

झोक :: (सं. पु.) तरकारी का रसा।

झोक :: (सं. स्त्री.) दुर्गन्ध की लहर।

झोंक :: (सं. स्त्री.) सनक, एक हाथ की अंजलि, नाव की ईकाई के रूप में।

झोंक :: दे. खोंच।

झोंकबो :: (क्रि.) भाड़ या गुड़ की भट्टी में ईधन डालना, अपनी-अपनी बात बीच-बीच में चलाना, गप्पें मारना।

झोंकयाबौ :: (क्रि.) मुँह में दूर से फैंक-फैंक कर खाना, स्वाद लेने या चखने के बहाने खा डालना।

झोंका :: (सं. पु.) पेड़ पौधों की अंतिम प्रशाखा, पत्तों का टहनी समेत गुच्छा, हवा का झकोरा।

झोंकाबो :: (स. क्रि.) झोंकने का काम कराना।

झोंगर जाबो :: (अ. क्रि.) भुंज जाना, भुनना।

झोंगरबौ :: (अ. क्रि.) भुंजना।

झोंगरयाबो :: (अ. क्रि.) झुलसाना।

झोंट :: (सं. पु.) जंगली नेवला।

झोंटा :: (सं. पु.) बाल, बिखरे हुए रूखे मैले लम्बे बाल वाला।

झोंड़ :: (सं. स्त्री.) हल्की तकरार, वाद-विवाद, कहासुनी।

झोंतरा :: (सं. पु.) बड़े-बड़े अव्यस्थित बाल, दे. झुतरा।

झोंद-झोंदरौ :: (सं. पु.) पेट, अधिक खाने वाला (हीन अर्थ में प्रयुक्त)।

झोंपड़ा :: (सं. पु.) घास फूस से छाया हुआ कच्चा घर, कुटिया, मँड़ई।

झोंपड़ी :: (सं. स्त्री.) छोटा झोपड़ा।

झोंपबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु को पकड़ने के लिए रूख करना, शिशुओं द्वारा किसी की तरफ पकड़ने के प्रयास में झुकना।

झोंर :: (सं. पु.) पेड़ का तने के ऊपर का शाखाओं प्रशाखाओं तथा पत्तों वाला भाग, झबरी पूंछ वाली नेवले की एक जाति।

झोंरा :: (सं. पु.) पत्तों सहित टहनियों का गुच्छा।

झोंरा :: दे. झोंका।

झोल :: (सं. पु.) शाक, माँस आदि का रसा, जली हुई वस्तु।

झोलना :: (सं. पु.) झोला।

झोला :: (सं. पु.) थैला, ढीला ऊँचा कुर्त्ता।

झोली :: (सं. स्त्री.) कपड़े के चारों कोंनों को बाँध कर बनाया गया थैला, जो भीखे माँगने या हजारी माला जपने के काम आता है, देवताओं से आशीष माँगने के लिए फैलाया हुआ आँचल।

झोलो :: (सं. पु.) कमी।

झोंसौ :: (सं. पु.) मकड़ी का जाला आदि, मकरजारौ, (झारौ झोंसो में प्रयुक्त)।

झौंक :: (सं. पु.) कौर।

झौंका :: (सं. पु.) गुच्छा, हवा का झौंका, धक्का, झटका, हवा का थपेड़ा।

झौगारबौ :: (क्रि.) भुंजाना, ऊपर-ऊपर जला डालना और भीतर उष्मा के प्रभाव से वंचित रखना, जलाने या भूनने की गलत प्रक्रिया।

झौंजयाबौ :: (अ. क्रि.) चिढ़कर बोलना।

झौंजरयाबो :: (क्रि.) झुँझलाना, रूखे कड़े और निर्मम ढंग से बोलना, क्रोधित मुद्रा में बोलना।

झौंटा :: (सं. पु.) बिखरे हुए बाल।

झौंद-झौंधर :: (सं. पु.) पेट।

झौंर :: (सं. पु.) वृक्षों की सघनता।

झौरयाबो :: कम दिखना।

झौंरा :: (सं. पु.) पत्तों से लदी चोटी टहनी, फूलों आदि का गुच्छा, झौर।

झौवा :: (सं. पु.) टोकनी।

 :: हिन्दी वर्णमाला का देवनागरी लिपि का ट वर्ग का प्रथम व्यंजन वर्ण इसका उच्चारण स्थान मूर्द्धा है।

टइया :: (सं. पु.) खेलने वाली कौड़ी, (कलदार के लिए उपमा रूप में प्रयुक्त)।

टइया :: (प्र.) टइया से दस कलदार चले गये।

टउका :: (सं. पु.) छोटा-मोटा काम जो कहने पर किया जाये, (काम टउका शब्द युग्म में प्रयुक्त) किसी कहावत या मुहावरे से सम्बंधित छोटी कहानी।

टक :: (सं. स्त्री.) आदत, अभ्यास।

टककाबौ :: (स. क्रि.) खिसका देना, टाल देना, चलता करना, बहाना करके लौटा देना।

टकटकाबो :: (क्रि. अ.) मुँह देखते रहना।

टकटकी :: (सं. स्त्री.) निर्निमेष देखने की क्रिया, ट्टष्टि गड़ाकर देखने की क्रिया।

टकना :: (सं. पु.) पत्थर पर टाँकी से बनाया गया निशान।

टँकना :: (सं. पु.) एड़ी के ऊपर हड्डी की गाँठ।

टँकबो :: (वि. अ.) टाँकना, टाँका जाना, सिलना, लिखा जाना।

टकयाउर :: (सं. स्त्री.) चाँदी के रूपयों में कुन्दे जोड़कर बनाया जाने वाला हार, सोने की मोहरों से बनाया जाता है। टकार (सागर जिले में प्रचलित)।

टकर :: (सं. स्त्री.) आदत, वान।

टकराबौ :: (क्रि.) एक दूसरे से भिड़ना, सामना करना, हिसाब-किताब का मिलाना।

टकसार :: (सं. स्त्री.) टकसाल, वह स्थान, जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं।

टका :: (सं. पु.) दो पैसों के बराबर ताबें का सिक्का, अधन्ना, आधी छटांके की तौल।

टका :: (कहा.) टका धरौ पइसा उठाऔ - टका रखोगे और पैसा उठाओगे, उलझन आजकल बंगला देश की मुद्रा।

टकाई :: (सं. स्त्री.) सिलाई का क्रम।

टँकाई :: (सं. स्त्री.) टाँकने का काम, टाँकने की उजरत।

टकाउर :: (सं. स्त्री.) ताजगी, गले का आभूषण।

टँकाबो :: (क्रि. स.) टाँके लगवाना, सिल आदि टकवाना, याददाश्त के लिए लिखवा देना।

टँकारबो :: (सं. पु.) चीज उड़ा ले जाना।

टँकी :: (सं. स्त्री.) हौद।

टँकी :: (अं.) ड्रम।

टकूनों :: (सं. पु.) टखना।

टकैत :: (वि.) टके वाला, धनी, मालदार।

टकोर :: (सं. स्त्री.) टंकोर, डंके की चोट या शब्द, हल्की चोट।

टकोरा :: (सं. पु.) टंकार, पीड़ा का रह-रह कर होने वाला आघात।

टँकोरा :: (सं. पु.) लोहे या पीतल की आवाज दार घंटिया।

टक्कर :: (सं. स्त्री.) मुकाबला, समानता, बराबरी, भिड़न्त।

टँगड़ी :: (सं. स्त्री.) किसी को गिराने के लिए फँसाई जाने वाली टाँग।

टँगना :: (सं. पु.) टाँगे, टँगना बड़ाओ, चलते बने, (मुहावरे में प्रयुक्त) टाँगने या लटकाने के लिए बनाये जाने वाला साधन।

टँगपुँछिया :: (सं. पु.) ऐसा बैल जिसकी पूँछ टाँगो तक हो।

टँगपुँछिया :: (कहा.) टंगपुछिया और ओछे कान, हिरन पेटिया लगी मुतान, सींग अँगोइया चौंरी छाती, बैल न जानों बेटा हाती - ऐसा बैल जिसकी पूँछ टाँगों तक लटकती हो, कान छोटे हों, मूत्रस्थली हिरन के जैसी, पेट से चिपकी हो, सींग आगे को मुड़े हों, और छाती चौड़ी हो काम करने में हाथी की तरह मजबूत हो।

टँगबो :: (अ. क्रि.) लटकना, लटकाया जाना, फाँसी चढ़ना।

टँगयाकें :: (क्रि. वि.) लटकाकर, टाँगकर।

टगर :: (सं. स्त्री.) दूर का खेत, ऊँची जमीन, चढ़ाई।

टगरा :: (सं. पु.) ढ़ालू जगह।

टगराबो :: (क्रि.) रंभाना।

टँगू :: (वि.) ऊँचे कद का।

टग्गा :: (सं. पु.) टग्गी-डाँट, बड़ी कौड़ी, उदाहरण-टग्गा भर-जरा सो।

टँच :: (वि.) कृपण, तैयार, हृष्ट-पुष्ट, तन्दुरूस्त, अच्छी आर्थिक स्थिति में।

टँट-घँट :: (सं. पु.) पूजा का ढोंग, आडम्बर।

टटकरी :: (वि.) स्वस्थ, मजबूत।

टटका :: (वि.) ताजा भरा, कोरा, हाल का।

टटकाई :: (सं. स्त्री.) ताजगी, टटकी-ताजी।

टटको :: (वि.) तुरन्त, ताजा भरा पानी।

टटकोराँ :: (क्रि. वि.) टटोल-टटोल कर, (चलना) अन्दाज से।

टटकौ :: (वि.) स्पष्ट, नगद।

टटपांजरो :: घास-फूस का दरवाजा।

टटवा :: (सं. पु.) घास का दरवाजा।

टटवारौ :: (सं. पु.) दाँय, (दावन) में पौधों के डण्ठल जिनसे अनाज निकल गया हो।

टटा :: (सं. पु.) काँटों की बाड़ में बने निकास को अस्थायी रूप से बन्द करने के लिए झकड़ो को बाँधकर बनाया गया किबाड़।

टटाठेल :: (वि.) जबरदस्त।

टटाबो :: (अ. क्रि.) सूख जाना, सूखकर अकड़ना।

टटिया :: (सं. स्त्री.) बांस आदि की टट्टी, छोटा टट्टा, दावन करने के लिए बनाया गया काफी बड़ा टट्टा जिसको बैलों के द्वारा लाँक पर घसीट कर अनाज को पौधों से अलग किया जाता है।

टटीरी :: (सं. स्त्री.) कुररी।

टटुआ :: (सं. पु.) छोटा घोड़ा।

टटेरो :: (सं. पु.) जुंड़ी का सूखा तना।

टटोबौ :: (अ. क्रि.) टटोलना, हाथ के स्पर्श से पहचानने का प्रयास करना।

टटोरबो :: (स. क्रि.) टटोलना, उँगलियों से छूकर पता लगाना, दबाकर छूना, आजमाना।

टँटौ :: (सं. पु.) झगड़ा, फसाद, कलह।

टँटौ :: (कहा.) टँटौ मोल लै लओ - झगड़ा मोल ले लिया।

टट्टा :: (सं. पु.) तट-ऊँचा किनारा, सुतली का बोरा, बिछाने के काम आने वाला सन का बोरा, बड़ी फट्टी।

टट्टी :: (सं. स्त्री.) खस की टटिया, ओट के लिए बांस आदि की टट्टी, मलत्याग के लिए पर्देदार स्थान।

टट्टी :: (कहा.) टट्टी की ओट शिकार खेलते हैं - धोखा देते हैं, छिपकर बुरा काम करते हैं।

टट्टू :: (सं. पु.) छोटे कद का घोड़ा।

टट्टू :: (कहा.) टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा - मूर्ख मुश्किल से समझता है, समझदार इशारे से ही समझ जाता है।

टट्टोरबो :: (क्रि.) थथोलना, खोजना।

टठिया :: (सं. स्त्री.) थाली, मझोला थाली।

टठिया :: (कहा.) टठिया में खाओ, तौ कई खपरा में खेयें - थाली में खाओ, तो कहा, खप्पर में खायेगे, हित को कहने पर कोई उल्टा चले तब।

टठुलिया :: (सं. स्त्री.) बहुत छोटी थाली, रकाबी, तश्तरी, प्लेट।

टड़ा :: (सं. पु.) ऊनी कपड़ो को काटने वाला कीड़ा, एक प्रकार का दीमक, एक कस्बे का नाम (सागर जिले में)।

टँड़ा :: (सं. पु.) कपड़ों को खाने वाला एक कीड़ा।

टँड़ाजोर :: (सं. पु.) एक सी पंक्ति।

टँड़ियाँ :: (सं. पु.) बाजू में पहनने का गहना।

टण्टघण्ट :: (सं. पु.) किसी कार्य-विशेष के ले आवश्यक सामग्री (असफलता की स्थिति में प्रयुक्त)।

टण्टौ :: (सं. पु.) झगड़ा।

टण्डा :: (सं. पु.) दीवार में निकला हुआ पत्थर जो दीवार पर चढ़ने या कुछ रखने के काम आता है।

टण्डैल :: (सं. पु.) कैदियों का मुखिया, कैदियों के काम की देखभाल करने वाला पुराना विश्वस्त कैदी।

टनटनाबो :: (स. क्रि.) घंटा, धातु के बरतन या टुकड़ों से टन-टन की ध्वनि निकलना।

टना :: (सं. पु.) भगवान, स्त्री अंग का एक भाग।

टनाटन :: (वि.) टन-टन कर बजते हुए कलदार (अधिक जोर देने के लिए संज्ञा रूप से प्रयुक्त)।

टनियाँ :: (सं. पु.) दे. टना (लोक गीत. गारियों में प्रयुक्त)।

टन्नाटेदार :: (वि.) टन-टन कर बजने वाले चाँदी के कलदार।

टन्नाबौ :: (क्रि.) बच्चों का इस प्रकार रोना जिसमें कुछ देर तक साँस-प्रश्वास की क्रिया असामान्य हो जाती है।

टपक :: (सं. स्त्री.) टपकने की क्रिया या भाव।

टपकबो :: (क्रि.) ऊपर के नीचे बूंद-बूंद कर या एक-एक कर गिरना।

टपका :: (सं. पु.) खपरैल से पानी टपकने का स्थान, पककर गिरने वाले आमों का विशेषण।

टपरा :: (सं. पु.) लकड़ी के खम्भों पर बना चारों ओर से खुला छप्पर।

टपरियाँ :: (सं. स्त्री.) गाँव से थोड़ी दूर पर बनी खिरक, खेतों पर रहने का अस्थआयी आवास स्थल।

टपुआ :: (सं. पु.) टापू।

टपेरी :: (सं. पु.) एक झाड़ जिसमें बेर की तरह फल लगते हैं।

टपैया :: दे. टपरिया।

टप्पर :: (सं. पु.) छप्पर।

टप्पा :: (सं. पु.) उछलती हुई गेंद का भूमि पर गिर कर पुनः उछाल, भूमि के बन्दोबस्त की ट्टष्टि से निर्धारित एक क्षेत्र, कानूनगो क्षेत्र, एक पंजाबी गीता।

टप्पे :: (सं. पु.) फाग की किस्म।

टबकिया :: (सं. स्त्री.) बिन्दी, बुंदकी।

टब्बू :: (वि.) बड़ा।

टमटम :: (सं. स्त्री.) छोटी बग्घी।

टमटीलो :: (सं. पु.) ऊँची जमीन।

टमाटर :: (सं. पु.) शाक, भाजी और सलाद चटनी के काम आने वाला एक फल।

टया :: (वि.) झगड़ालू स्वभाव वाला।

टयाव :: (सं. पु.) दे. झंज (झ) ट झंझट।

टर-टर :: (सं. स्त्री.) कटु शब्द, मेंढक की बोली, अकड़, घमण्ड, बकवाद।

टरकबो :: (अ. क्रि.) खिसक जाना, चुपके से चले जाना।

टरटराबो :: (क्रि.) नाराज होना।

टरपल :: (वि.) कमजोर।

टरबौ :: (क्रि.) विचलित होना, टलना, स्थानच्युत होना, वचन से टरना।

टरबौ :: (मुहा.) पेट टरबो-नस टरना।

टरावनी :: (क्रि.) बरसात के पूर्व खपरैल को व्यवस्थित करना।

टर्रका :: (सं. पु.) लोहे का धुँआ।

टर्रू :: (सं. पु.) मेंढ़क।

टलवा :: (सं. पु.) बूढ़ा बैल।

टलाटली :: (सं. स्त्री.) टालमटोल।

टलिया :: (सं. पु.) गाय जिसका गर्भधारण बन्द हो गया हो।

टल्ला :: (सं. पु.) बैल।

टस से मस :: (मुहा.) अपने स्थान से हिलना, थोड़ा सा हटना।

टसर :: (सं. स्त्री.) एक मोटा रेशमी कपड़ा।

टहल :: (सं. स्त्री.) सेवा, सुश्रुषा, काम-काज, लीपा-पोती, टट्टी सफाई।

टहल :: (कहा.) टहल न टकोरी, लाओ मजूरी मोरी - काम कुछ न करना मुपत में माँगना।

टहलुआ :: (सं. पु.) घरू नौकर।

टहूका :: (सं. पु.) दे. टउका, छोटा काम।

टाई लगाबो :: (क्रि. वि.) किसी काम के पीछे पड़ना।

टाँक :: (सं. स्त्री.) आधी पाल्थी में भूमि के समतल सिकुड़ी हुई टाँग।

टाँकबौ :: (क्रि.) सीना, सिलाई करना, टाँके डालना।

टाँका :: (सं. पु.) बर्तन की छेद बन्द करने की क्रिया।

टाँका :: (कहा.) टाँका पानी मिल गया - समझौता हो गया, दो आदमियों में आपस का झगड़ा खत्म हो गया वे फिर मित्र बन गए।

टाँकी :: (सं. स्त्री.) पत्थर में गुद्दा बनाने या पत्थर को ठीक से बनाने, साफ करने आदि के लिए लोहे की कम चौड़े फल वाली छेनी।

टाँकी :: (कहा.) टाँकी बज रई - मकान शीघ्र बन रहा है व्यंग्य में।

टाँकोरा :: (सं. पु.) दे. टकोरा।

टाँकौ :: (सं. पु.) सिलाई का टाँका, धातु जोड़ने के लिए लगाया जाने वाला राँग आदि, धातु का टाँका, अकुलीनता का कलंक।

टाँग :: (सं. स्त्री.) पूरा पैर, (प्रायः अश्लील या क्रोध के भाव में प्रयुक्त)।

टाँग :: (कहा.) टाँग तरे हो निकर जें - हार मान लेगे, तुम्हारे चाकर बन जायेंगे।

टाँगबो :: (क्रि.) लटकाना।

टाँच :: (सं. पु.) सिलाई के टाँके, गाँठ, पूँजी लकड़ी की पच्चर।

टाँचबौ :: (क्रि.) सिलाई डालना, सिलकर एक दूसरे को संलग्न करना, हिसाब में लिखना।

टाँचरी :: (वि.) खोटा।

टाँचरे :: (वि.) जातिच्युत, जिसके व्यक्तिगत चरित्र अथवा परिवार के ऊपर जातिगत मर्यादा भंग का आरोप है।

टाँचरो :: (सं. पु.) कमजोर, जर्जर।

टाँची :: (सं. स्त्री.) लम्बी थैली जिसमें रुपयों के सिक्के भर कर कमर में लपेटकर बाँधा जाता था।

टाट :: (सं. पु.) बिछाने या परदों के काम आने वाले सन सा पटसन का मोटा कपड़ा, जूट या सन की सुतली की बिछाल।

टाट :: (कहा.) टाट कामले घर मां घाले, बाहर बताबे शाले दुशाले - झूठी शेखी बघारने वाले के लिए।

टाँट :: (सं. पु.) खोपड़ी घुटी हुई।

टाँटइयासों :: (वि.) एकदम दुबला।

टाँटबो :: (क्रि.) पतले दस्त लगना।

टाटर मूसर :: (वि.) रद्दी-सद्दी जोड़-जाड़ कर तैयार की हुई।

टाठी :: (सं. स्त्री.) थाली।

टाँड :: (सं. पु.) भुजाओं में पहनने का गहना, छत से कुछ नीचे सामान रखने का स्थान, दीवार में पत्थर लगाकर या सीमेंट से ढालकर बनाया गया सामान रखने का स्थान।

टाड़ी :: (सं. स्त्री.) टिड्डी दल।

टाँडौ :: (सं. पु.) व्यापारिक कारवाँ, बिक्री के लिए हाँका जाने वाला पशुओं का झुण्ड, लदाऊ पशुओं का झुण्ड।

टाँडौ :: (कहा.) लुखरों टाँडे में हो कड़ गई, टाँडे में से निकर गई सो टड़यानजू बजने लगीअर्थात मुश्किल हालत से निकल जाने वाले का विजयी श्रेय मिलना।

टान :: (सं. स्त्री.) तिनका, छाते की कमची, चने के पौधे की डाल।

टाप :: (सं. स्त्री.) घोड़े के पैर का सबसे निचला कड़ा भाग, घोड़े के पैरो की आवाज।

टापबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु का प्राप्त करने की आशा में रह जाना तथा प्राप्त न कर पाना।

टापा :: दे. खांचा, बड़ा पिंजड़ा।

टापौ :: (वि.) धोखा।

टामकटौआ :: (वि.) ढोंग।

टाँय-टाँय :: (सं. स्त्री.) बड़बड़ाहट, व्यर्थ बकवास, झगड़ा।

टाँय-टाँय :: (कहा.) टाँय-टाँय फिस्स - आडंबर तो बहुत, परंतु अन्त में काम कुछ नहीं।

टारनी :: (सं. स्त्री.) दे. टरावनी।

टारा-बटोरी :: (सं. स्त्री.) सामान को व्यवस्थित करने की क्रिया, सामान की निष्प्रयोजन उठा-पटक करना।

टाराबौ :: (क्रि.) हटाना, टालना, कढ़ी दाल आदि पकते समय चलाना, अपने स्थान से हटाना।

टारौ :: (सं. पु.) टालने की क्रिया।

टारौली :: (सं. स्त्री.) अठभैया जागीर की एक छोटी जागीर।

टाल :: (सं. स्त्री.) दे. टहल, लकड़ी, पत्थर, भूसा बेचने का स्थान।

टाल :: (कहा.) टाल बजा कर माँगे भीख, उसकी साधना तो व्यर्थ है।

टालबो :: (स. क्रि.) खिसकाना, टरकाना।

टाली :: (सं. स्त्री.) दे. टनिया।

टिआ :: (सं. पु.) वादा, कार्यपूर्ति के लिए दिया गया वचन।

टिकट :: (सं. पु.) कर, प्रवेश पत्र, शुल्क पत्र, टिकिट, किसी सेवा, यात्रा प्रदर्शन आदि के लिए अग्रिम जमा धन का प्रमाणक।

टिकटी :: (सं. स्त्री.) तिपाई, छलनी, नमकीन सेव बनाने की छेदवाली जाली।

टिकबौ :: (क्रि.) ठहरना।

टिकरिया :: (सं. स्त्री.) टिकिया, पैबन्द, थिगड़िया।

टिकरी :: (सं. स्त्री.) तीन लकड़ियों से बनी वस्तु।

टिकली :: (सं. स्त्री.) माथे पर पहना जाने वाला आभूषण, सोने का गोल टीका जो माँथे पर धागों से बाँधा जाता है।

टिकली :: (कहा.) टिकली सेंदुर से गये तौ का खाबे मेंई बज्जुर परै - सजावट की सामग्री से गये तो क्या पेट भर भोजन भी नही मिलेगा।

टिकाबौ :: (क्रि.) किसी ऊर्ध्वाधर आधार के सहारे किसी वस्तु को खड़ा करना।

टिकिया :: (सं. स्त्री.) ठोस पदार्थ का गोला, चिपटा, टुकड़ा, एक चाट।

टिकुली :: (सं. स्त्री.) टिकली, बिन्दी।

टिकैत :: (सं. पु.) युवराज, राजकुमार जो राजा के बाद तिलक का अधिकारी हो।

टिकोंना :: (सं. पु.) गोल वस्तु को लुढ़काने से रोकने के लिए लगायी जाने वाली रोक, किसी वस्तु को ऊँचा उठाने के लिए लगाया जाने वाला पत्थर आदि।

टिक्कड़ :: (सं. पु.) बड़ी, मोटी रोटी।

टिक्कस :: (सं. पु.) टैक्स, कर, शुल्क।

टिक्का :: (सं. पु.) स्मरण, ध्यान, याद।

टिक्को :: (सं. पु.) टीका।

टिचन :: (वि.) हष्ट-पुष्ट, सम्पन्न, समृद्ध।

टिटकरी :: (वि.) मसखरी।

टिटकारबौ :: (क्रि.) ढोर-बैलों का हाँकना।

टिटकारी :: (सं. स्त्री.) हाँकने का स्वर।

टिटरी :: (सं. स्त्री.) एक जलचर पक्षी।

टिटैरी :: (सं. स्त्री.) पानी के किनारे रहने वाली एक चिड़िया, टिटिहरी।

टिटोली :: (सं. स्त्री.) ठठोली।

टिड़कबौ :: (क्रि.) नाराज होना, गुस्सा होना, भिनक जाना, भकुर जाना।

टिड़पियाबौ :: (क्रि.) मोटे डण्डे से पीटना।

टिडुआ :: (सं. पु.) हल, बिच्छु, मोटे सेव (प्रायः व्यग्यार्थ में प्रयुक्त)।

टिड्डबौ :: (क्रि.) गुस्सा होना, किसी छोटी सी बात पर नाराज होना।

टिड्डा :: (सं. पु.) एक परदार कीड़ा।

टिड्डा :: (कहा.) टिड्डा का आना काल की निशानी - क्योंकि टिड्डा जहाँ जाता है वहाँ फलल नष्ट कर देता है।

टिनकबौ :: (क्रि.) कामातुर भैंस का रंभाना।

टिन्नाबौ :: (क्रि.) मन ही मन नाराज हो जाना।

टिपइअन, टिपइआक :: टोकनी भर, एक टोकनी।

टिपकिया :: (सं. स्त्री.) टिपकी उँगली आदि से रखी गयी बिन्दी, गोल तिलक।

टिपटरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी चौतरिया।

टिपन्ना :: (सं. पु.) पिटारा।

टिपरिआ :: (सं. स्त्री.) छोटा पिटारा, छोटी बाँस की टोकनी।

टिपरिया :: (सं. स्त्री.) टोकरी।

टिपरी :: (सं. पु.) क्रोधी।

टिपलौअल :: (सं. स्त्री.) अखाड़े में सीखने के लिए जोड़ करना।

टिपाबौ :: (क्रि.) घटिया वस्तु को किसी प्रकार खपा देना।

टिपारौ :: (सं. पु.) बाँस की कम ऊँची चौड़ी समतल तली की ढक्कनदार टोकरी, नव विवाहित कन्या के साथ भेजे जाने वाले पकवान जो इसी टोकरी में रखकर भेजे जाते हैं, बाँस की लकड़ी से बनी सामान रखने की टोकनी जो शादी-ब्याह में दी जाती है, जिसे टिपारौ कहते हैं।

टिपुआ :: (सं. पु.) टापू।

टिप्पस :: (सं. स्त्री.) युक्ति, विधि, उपाय, तिकड़म।

टिप्पे :: (सं. पु.) तीर्थ यात्रा से संबद्ध गीत, टिप्पे।

टिमकबौ :: (क्रि.) वर्षा में धीरे-धीरे और रूक-रूक कर बूँदा-बाँदी होना।

टिमटल्लौ :: (सं. पु.) ऊँचा उठा हुआ स्थान।

टिमटिमाबौ :: (क्रि.) हलकी लौ के साथ दीपक का जलना, रूक-रूक कर बूंदा-बाँदी होना।

टिमाक :: (सं. पु.) श्रृंगार।

टिमिर :: (सं. पु.) अक्षर साफ न दिखने का रोग।

टिया :: (सं. पु.) किसी कार्य पूर्ति के लिए दी गयी निश्चित अवधि।

टिया :: दे. टिआ।

टिरउआ :: (सं. पु.) बुलावा।

टिरक :: (सं. पु.) ट्रक, मोटर भार वाहक, ट्रक, हाथ की सफाई, चालबाजी।

टिरकउल :: (वि.) टालने वाली (बात)।

टिरकबौ :: (क्रि.) कमजोरी के कारण धीरे-धीरे चलना, मर जाना (लक्षणार्थ)।

टिरकाबौ :: (क्रि.) टालना, अवधि को बार-बार आगे बढ़ाना।

टिरबाबो :: (क्रि.) बुलवाना।

टिल्ले :: (सं. पु.) टाल मटोल की बातें।

टिल्ले :: (प्र.) टिल्ले टारबौ।

टिसकबौ :: (क्रि.) कठिनाई से खिसकना, थोड़ा सा खिसकना।

टिसका-पोंदी :: (सं. स्त्री.) काम न करके करने का प्रदर्शन मात्र, इधर-उधर खिसकने की क्रिया, यहाँ से वहाँ खिसकते रहने की क्रिया (सामासिक शब्द.)।

टिसुआ रंग :: (सं. पु.) पलाश के फूलों का रंग, स्त्रियों की जननेन्द्रिय का बाहरी तरफ की ओर उठा हुआ भाग।

टिहल :: (सं. स्त्री.) लीपा-पोती, काम-काज, टट्टी की सफाई।

टिहल :: दे. टहल।

टीक :: (सं. स्त्री.) मस्तक, कपाल, माथा।

टीकबौ :: (क्रि.) दरवाजे की देहरी या किसी देवता के नाम पर किसी स्थान पर टीका लगाना, टीका लगाना।

टीकमगढ़ :: (सं. पु.) इतिहास प्रसिद्ध ओरछा राज्य की अन्तिम राजधानी।

टीका :: (सं. पु.) तिलक, सिर का आभूषण।

टींका :: (सं. पु.) तिलक, विवाह पक्का करने की रस्म, विवाह में लड़की वाले के द्वार पर प्रथम बार पहुँचने पर दूल्हे के स्वागत की रीति।

टीकाटीक :: (वि.) सिर के ऊपर (धूप) अपनी पूर्णता की स्थिति में, (दोपहरी)।

टीकुल :: (सं. स्त्री.) एक जलचर पक्षी।

टीटई :: (सं. स्त्री.) टिटहरी, लम्बी टाँगों वाला जल के किनारे रहने वाला एक छोटा पक्षी।

टीन :: (सं. पु.) लोहे की चद्दर, लोहे की चद्दर से बना पीपा।

टीप :: (सं. स्त्री.) टिप्पणी, नोट, जुती हुई मिट्टी के ऊपर पानी पड़ने से जमी पर्त, ईंटों के बाहरी जोड़ों में चूने या सीमेंट का भराव, लिखान।

टीपना :: (सं. स्त्री.) जन्म कुण्डली, जन्मकाल में ग्रह नक्षत्रों का स्पष्टीकरण।

टीपबौ :: (क्रि.) लिखना, खाते मे लिखना।

टीमटाम :: (सं. पु.) तड़क-भड़क, कार्य-विशेष के लिए आवश्यक साज-सामान।

टीमटाम :: (कहा.) टीमटाम की पगड़ी बाँधी, वह भी सदका जोरू का, नेक पाक का चौका दीना, गोबर गाय गोरू का, जोरू का दहेज में से कपड़ा लेकर बाकी पगड़ी बाँध रखी है, गाय के गोबर से लीपकर जगह को पवित्र करते हैं।

टीमा :: (सं. पु.) उड़द, मूँग आदि दलने के पूर्व उसमें लगायी जाने वाली नमी, किसी भी वस्तु में पैदा की गयी हलकी आद्रता।

टीलौ :: (सं. पु.) टीला, समतल भूमि के बीच उठी हुई ऊँची भूमि।

टुँइँया :: (सं. स्त्री.) मुँह से गर्दन तक लाल तथा पीनी चोंच वाला हरा तोता।

टुकटुकाबो :: (क्रि.) सिलाई मशीन के निकलने वाली ध्वनि।

टुकना :: (सं. पु.) टोकना, उलटा।

टुकयाबौ :: (क्रि.) हलकी-हलकी ठोकर मारना।

टुकुर-मुकुर :: (क्रि. वि.) टकटकी लगाकर देखना।

टुक्का पिट्टी :: (सं. स्त्री.) मार पीट, ठोका-पिटी।

टुक्की :: (सं. पु.) स्त्रियों की अंगिया के बीच का कपड़ा।

टुँगाबौ :: (क्रि.) थोड़ा-थोड़ा करके देना, तृप्ति की मात्रा से कम, फिर देने की आशा के साथ देना।

टुचनया :: (वि.) किसी अहसान या दी हुई वस्तु या किये गये उपकार को बार-बार याद दिलाने वाला।

टुच्चबौ :: (क्रि.) किसी नोंकदार वस्तु को चुभाना।

टुच्चा :: (वि.) दे. टुचनया ओछी प्रवृत्ति वाला।

टुच्चा :: (सं. पु.) नोंकदार वस्तु झटके से चुभाने की क्रिया।

टुटकयाउ :: (वि.) टोना या जादू करने वाली स्त्री।

टुटपुँजिया :: (वि.) कम पूँजी वाला (यौगिक शब्द)।

टुटरूँटूँ :: (वि.) दुबला-पतला, निर्बल दिखाने वाला, एकल।

टुटरूँटैया :: (वि.) अकेला, अशक्त।

टुटवा :: (सं. पु.) घोड़ा।

टुटाँयतौ :: (वि.) आवश्यकता पूर्ति से कम मात्रा में (वस्तु)।

टुटी :: (सं. स्त्री.) चावलों के टुकड़े।

टुँटी :: (सं. स्त्री.) ताश का एक खेल, अनाजों के टूटे हुए कण।

टुटुबा :: (सं. पु.) गर्दन का आगे वाला भाग।

टुड़या :: (सं. पु.) डाकू।

टुड़ियाँ :: (सं. स्त्री.) मकान के सामने नाली के ऊपर या दीवार से आगे निकाल कर पत्थर का डज्जा लगाने के लिए दीवार में खुरसे जाने वाले पत्थर।

टुड़ी :: (सं. स्त्री.) नाभि, टुण्डी।

टुण्डा :: (वि.) जिसकी नाभि पेट की सतह से उभरी हुई हो।

टुनई :: (सं. स्त्री.) वृक्ष का शीर्ष भाग।

टुनंग :: (सं. स्त्री.) दे. टुनगी।

टुनगी :: (सं. स्त्री.) पेड़ का सबसे ऊँचा भाग।

टुनयाबौ :: (क्रि.) बच्चों को खिझाना।

टुपया :: (वि.) टोपी लगाने वाला, राजनैतिक दलों के लोग (व्यंग्यार्थ)।

टुपयाऊ :: (वि.) टोपीदार, भरतल (बन्दूक)।

टुपिया :: (सं. स्त्री.) छोटी टोपी।

टुरवा :: (सं. पु.) लड़का।

टुरिया :: (सं. स्त्री.) लड़की, छोटे बच्चों के लाड़ प्यार का नाम।

टुर्र :: (सं. स्त्री.) ठसक, घमण्ड, अकड़।

टुर्रा :: (सं. पु.) टुकड़ा, डली, रवा, कण, मोटे अनाज का दाना।

टुलको :: (सं. पु.) छोटा छेद।

टुल्ला :: (सं. पु.) लाठी की नोंक से मारा गया आघात।

टूक :: (सं. पु.) टुकड़े।

टूक :: दे. टिरक, चालबाजी भार वाहन।

टूका :: (सं. पु.) टुकड़ा, चतुर्थांश।

टूँका :: (सं. पु.) टुकड़ा।

टूटदार :: (वि.) जिसको मोड़ कर या खोल कर कम आकार का किया जा सके, फोल्डिंग।

टूटन :: (सं. स्त्री.) टूटने की क्रिया, टूटने के कारण हुए टुकड़े, टूटपरबौ।

टूटन :: (मुहा.) आक्रमण करना।

टूटबौ :: (क्रि.) टूटना, अलग होना, किसी चलते हुए क्रम का रूक जाना।

टूटो :: (वि.) खंडित, जीर्ण-शीर्ण।

टूँड़ा :: (वि.) दे. टुण्डा।

टूम :: (सं. स्त्री.) रागनी।

टूम :: (कहा.) टुम कपड़े जिस घर में पावें, एक छोड़ दस बइयर आवें - जहाँ पहिनने ओढ़ने को मिले, वहाँ एक क्या दस औरतें आ जाती हैं।

टूरा :: (सं. पु.) लड़का।

टूरी :: (सं. स्त्री.) लड़की।

टेउँना :: (सं. पु.) धार तेज करने वाला पत्थर, आधी बाँह की कुर्ती, फ तूम, कमीज।

टेउनी :: (सं. स्त्री.) कोहनी।

टेंउँनी :: (सं. स्त्री.) कुहनी, हाथ की बीच की मोड़ का पिछला भाग।

टेंउँनी :: (मुहा.) टेउँनी नीरी भलाँई, मोंय जाय कब।

टेक :: (सं. स्त्री.) गोल वस्तु को ढुलकने से रोकने के लिए लगाया जाने वाला पत्थर आदि, गीत की वह कड़ी जिसे बार-बार दुहराया जाता है, जिद।

टेक :: (कहा.) टेक उन्ही की रक्खे साईं, गरव, कपट नहीं जिनके माहीं - भगवान उन्हीं की सहायता करता है, जिनमें अहंकार और कपट नहीं होता।

टेकनी :: (सं. स्त्री.) वह चीज जिसका सहारा दिया या लिया जाए।

टेकबौ :: (क्रि.) सहारा लेना।

टेका :: (सं. पु.) झेका, पीठ टिकाने के लिए आधार।

टेका :: (प्र.) टेका की पिड़ी, देशी कुर्सी।

टेंगनू :: (सं. स्त्री.) एक मछली, इसके शरीर पर तीन बड़े-बड़ै काँटे होते हैं।

टेंगरा :: (सं. पु.) एक मछली।

टेंगुर :: (सं. पु.) टाँग।

टेंट :: (सं. पु.) अन्धी आँख का बाहर को निकला हुआ गटा, धोती के फेंटा की अण्टी।

टेंट :: (कहा.) टेंट आंख में, मुँह खुरदीला, कहे पिया मेरा छैल छबीला - कोई एक स्त्री दूसरी स्त्री के पति को लेकर ताना मार रही है, अपनी चीज की बहुत डींग हाँकना।

टेंट :: (कहा.) कानी अपनो टेंट निहारे नें दूसरे को पर पर कें देखे अर्थात् अपनी खोट न देखकर दूसरे की देखना।

टेटई :: (सं. स्त्री.) टिटहरी।

टेटई :: दे. टीटई।

टेंटरो :: (सं. पु.) आँख की पुतली।

टेंटा :: (सं. पु.) करील का फल।

टेंटी :: (सं. स्त्री.) करील का फल।

टेंटुआ :: (सं. पु.) गर्दन का अग्रभाग।

टेंटें :: (सं. स्त्री.) झगड़ा असन्तोषजन्य बकझक।

टेड़ :: (सं. स्त्री.) वह स्थल जहाँ कोई वस्तु मुड़ी हो, मोड़।

टेंडपा :: (सं. पु.) मोटी लाठी, लाठी के रूप में काम में ली जाने वाली अनगढ़ लकड़ी।

टेड़ौ :: (वि.) जिसमें मोड़ हो, कुटिल जटिल व्यक्तित्व वाला (व्यक्ति)।

टेंन :: (सं. स्त्री.) हिरणों का झुण्ड।

टेंनुवा :: (वि.) थोड़ा काम।

टेनैं :: (क्रि.) तेज करना।

टेबपड़बो :: (क्रि. वि.) आदत पड़ जाना।

टेबौ :: (क्रि.) हथियारों आदि की धार पत्थर पर घिस कर तेज करना।

टेंबौ :: (क्रि. वि.) कुल्हाड़ी, हँसिया आदि को पत्थर पर घिस कर धार तेज करना।

टेरबौ :: (क्रि.) पुकारना, बुलाना।

टेरी :: (सं. पु.) (टेहरी) टीकमगढ़ का पुराना नाम।

टेरी :: दे. टीकमगढ़।

टेलबौ :: (क्रि.) टहलना, घूमना।

टेलाबौ :: (क्रि.) टालना, झूठे आश्वासन देते रहना।

टेव :: (सं. स्त्री.) लत, आदत, स्वभाव।

टेंव :: (क्रि. वि.) आदत, लत।

टेवनी :: (सं. स्त्री.) कोहनी।

टेसू :: (सं. पु.) पलास का वृक्ष, लड़कों का एक खेल।

टेहरी :: (सं. स्त्री.) बुन्देलों की एक जागीर।

टेहुनी :: (सं. स्त्री.) कोहनी।

टैंक :: (सं. पु.) लम्बी चोंच और गर्दन वाला जल पक्षी।

टैंट :: (सं. पु.) बाहर की ओर निकला हुआ अक्षि गोलक।

टैंटुआ :: (सं. पु.) गला।

टैंटो :: (सं. पु.) धोती का किनारा जो कमर में कसा होता है इसे थोड़ा सा नीचे लौटाकर मोड़ के बीच में कभी-कभी पैसे खोंस ले जाते हैं।

टैम :: (सं. पु.) टाइम, समय।

टैया :: (सं. पु.) बड़ी कौड़ी, सिर पर लपेटा हुआ आँचल।

टैंया :: (क्रि. वि.) आँचल से सिर ढंकना।

टैलबो :: (क्रि.) टहलना, खिसकना।

टैलाबो :: (क्रि.) बहलाना।

टैंस :: (सं. स्त्री.) घमण्डयुक्त अँकड़ या उत्साह।

टैहलुआ :: (सं. पु.) घरू नौकर, टहल करने वाला।

टोक :: (सं. स्त्री.) रोक, पूछताछ।

टोकड़ी :: (सं. स्त्री.) गुम्बजाकार कर्ण फूलों में लटकने वाली झुमकी।

टोकबो :: (क्रि. स.) चलते समय यात्रा के विषय में पूछताछ करना, अशुद्धि पर बोल उठना, एतराज करना।

टोंकर :: (सं. स्त्री.) उँगली या चोंच का आघात।

टोका :: (सं. पु.) टोकने की क्रिया, कार्यारम्भ में अपशकुन।

टोंका :: (सं. पु.) अर्थ अज्ञात, शैतान लड़कों को दी जाने वाली हल्की गाली, छिद्र।

टोंकू :: (सं. स्त्री.) लड़की।

टोंकौ :: (सं. पु.) छेद।

टोंचन :: (सं. स्त्री.) बारीक कटन्नी जिससे गोट बाँधते है चमार।

टोंचनयाँ :: (वि.) अपने द्वारा किये गये अहसान के जताते रहना वाला।

टोंचनयाँ :: (कहा.) हगा को खइए, टोंचनया को न खइए।

टोंचना :: (सं. पु.) ताना, अपने द्वारा किये गये उपकार की याद दिलाने की क्रिया।

टोंचबौ :: (क्रि.) अहसान जताना, अखरना, किसी काम के लिए स्मरण दिलाते रहना।

टोंट :: (सं. स्त्री.) कुहनी की गाँठ।

टोटका :: (सं. पु.) अभिचार, तांत्रिक क्रिया।

टोंटयाउ :: (सं. पु.) कारतूस वाली बन्दूक।

टोंटा :: (सं. पु.) कारतूस।

टोंटी :: (सं. स्त्री.) नल से पानी की धार को नियन्त्रित करने का उपकरण।

टोटौ :: (सं. पु.) घाटा, व्यापार में होने वाली हानि।

टोटौ :: (कहा.) टोटे मारा बानिया, भर जोगी का भेस, हांडे भिक्षा मांगता घर - घर देस-बिदेस-बनिये को जब व्यापार में घाटा होता है, तो वह लोगों का रुपया देने के डर से साधु बन जाता है।

टोडल :: (सं. पु.) पैजना सा मोटा कौड़ीदार आभूषण।

टोडारबो :: (स. क्रि.) तोड़ डालना, नष्ट करना।

टोड़ी :: (सं. स्त्री.) धान के खेतों में होने वाला एक नींदा जिसका पौधा धान की तरह का होता है, छज्जा के नीचे की ओर लगे हे कटावदार पत्थर के खड़े टुकड़े।

टोंन :: (सं. स्त्री.) लकड़ी का पतला सिरा, टुनंग।

टोंन :: दे. दुनगी।

टोंनयाबो :: (क्रि.) दे. टुनयाबौ।

टोंना :: (सं. पु.) दे. टोटका।

टोंना :: (कहा.) टोना टामक टोटरू, छाने रहे न भूल, यूं परगट हो जगत मां, ज्यूं लश्कर की धूल - टोना-टोटका या जादू-मंत्र छिपे नहीं रहते।

टोने :: (सं. पु.) अग्रभाग।

टोन्ना :: (सं. पु.) टूटे हुऐ रस्से का टुकड़ा।

टोप :: (सं. पु.) अँग्ररेजी चाल की छज्जेदार टोपी।

टोपा :: (सं. पु.) सिर और कान ढक कर लगाई जाने वाली टोपी।

टोपी :: (सं. स्त्री.) सिर का पहनावा, भरतल बन्दूक में इसतेमाल होने वाली पोटासे की छोटी सी टोपी।

टोपे :: (सं. पु.) पलकें, आँखों के पपोटे।

टोर :: (सं. स्त्री.) बड़ा भारी पत्थर जो भूमि में कड़ा न हो।

टोर फोर :: (सं. स्त्री.) गिरवी रखी हुई वस्तु का दाम लगाकर ब्याज आदि को काट कर बाकी मूल्य का लेन देन करके हिसाब चुकता करने की क्रिया, यौगिक शब्द।

टोरदओ :: (क्रि.) तोड़ दिया।

टोरबो :: (क्रि.) तोड़ना, सम्बन्ध विच्छेद करना, आभूषण गला कर धातु बनाना।

टोराँ :: (वि.) तोड़ने के तरीके से स्पष्ट।

टोराँ :: (प्र.) टोराँ नाई कर दई।

टोरी :: (सं. पु.) मोहल्ला।

टोल :: (सं. पु.) खिरक, समूह, दल, झुंड़।

टोल :: (कहा.) टोलन मां घर टोल भला, सब बाजन में ढोल भला - सब मुहल्लों में घर का मुहल्ला ही अच्छा।

टोली :: (सं. स्त्री.) दल, इमारती, लकड़ी का कुन्दा।

टोंस :: (सं. स्त्री.) तमसा नदी।

टोंस :: (प्र.) इत जमना उत नरबदा, इत चम्बल उत टोंस, छत्रसाल सौं लरन की रही न काहू, होंस, लाल कवि।

टोह :: (सं. स्त्री.) खोज, तलाश।

टोहिया :: (वि.) गुप्त रूप से खबर लेने वाला।

टौंका :: (सं. पु.) शैतान लड़का।

टौंको :: (सं. पु.) छेद, सुराख।

टौंट :: (सं. पु.) उँगली का ऊपरी हिस्सा।

टौंड़ी :: (सं. स्त्री.) टुड्ढी।

टौंन :: (सं. पु.) सिरा, शीर्ष भाग, नोंक।

टौनया :: (वि.) उपद्रवी, टौनुआ-उपद्रव।

टौनयाबो :: (क्रि.) छेड़ना।

टौरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी पहाड़ी।

टौंस :: (सं. स्त्री.) एक नदी जिसका प्राचीन नाम तमसा है।

ट्रंक :: (सं. पु.) सन्दूक (अंग्रेजी.)।

ट्रानजिस्टर :: (सं. पु.) सचल रेडियो।

ट्रेक्टर :: (सं. पु.) ढुलाई तथा खेती में खींचने की मशीन।

 :: हिन्दी वर्णमाला का देवनागरी लिपि का ट वर्ग का प्रथम व्यंजन वर्ण इसका उच्चारण स्थान मूर्द्धा है।

ठंइयाँ :: (सं. पु.) ठंडा स्थान।

ठउअन :: (क्रि. वि.) जगह-जगह (लुघाँती में प्रयुक्त)।

ठउआ-ठइया :: (सं. पु.) चार ठइया बैल है, दो ठइयाँ गइयाँ है।

ठउआ-ठइया :: (प्र.) स्थान, संख्या, नग, इकाई, ठौ।

ठकठक :: (सं. स्त्री.) लकड़ी पर आघात की आवाज, टकराव, कहासुनी।

ठकठकाबो :: (क्रि. वि.) (अनुकरणात्मक.) कसेरे के बर्तन पीटने की ध्वनि।

ठकरान :: (सं. स्त्री.) ठकुराइन, क्षत्रिय जाति की स्त्री।

ठकरास :: (सं. स्त्री.) ठकुराई, ठाकुरों का मुहल्ला।

ठकुरसुहाती :: (सं. स्त्री.) चापलूसी, हाँ में हाँ मिलाना, मनपसन्द बात कहना, लल्लो-चप्पो, खुशामद।

ठक्की :: (वि.) टटकीं, बिना लाग लपेट के।

ठग :: (सं. पु.) धोखा देकर लूटने वाला, धोखे बाज आदमी, धूर्त।

ठग :: (कहा.) ठग न देखे, देखे कसाई, शेर न देखे, देखे बिलाई - इनकी प्रकृति एक-सी होती है, जैसा ठग वैसा कसाई, जैसा शेर बैसी बिल्ली।

ठगइया :: (सं. पु.) ठगने वाला।

ठगई :: (सं. स्त्री.) धोखेबाजी, ठगपना।

ठगन-ठगनू :: (सं. स्त्री.) ठगने वाली स्त्री, ठग की स्त्री।

ठगनिया :: (सं. स्त्री.) छल, प्रपंच।

ठगबाबो :: (स. क्रि.) किसी से ठगवाना।

ठगबौ :: (क्रि.) ठगा जाना, धोखा खाना, चकित होना, धोखा देकर लूटना, वस्तु का अधिक मूल्य लेना।

ठगी :: (सं. स्त्री.) धोखा देकर लूटने की क्रिया।

ठगैला :: (वि.) वस्तु का उचित से अधिक मूल्य लेने वाला, टगैलू-स्त्री।

ठगोई :: (सं. स्त्री.) मोहित कर देनेव वाली क्रिया, ठगपना जादू टोना।

ठगौरी :: (सं. स्त्री.) ठगाई, अनुचित मूल्य पर खरीददारी।

ठट :: (सं. पु.) तट, पवित्र नदी का किनारा।

ठटउआ :: (सं. पु.) मोटे अनाज की मोटी सूखी रोटी (हीनार्थ)।

ठटन :: (सं. स्त्री.) गाढ़े कीचड़ वाली भूमि, दलदल।

ठटबौ :: (क्रि.) दलदल में धंसना।

ठटरी-ठठरी :: (सं. स्त्री.) अर्थी, शव ने जाने का साधन।

ठटवार :: (सं. स्त्री.) जुआँर के कड़े डण्ठल जो पशुओं के चरने से बचे रहते हैं, अहीरों का एक कुलनाम।

ठटाबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक चुभाना, दलदल में फँसाना।

ठटुआ :: (सं. पु.) ज्वार या मक्का के खेतों में काटने के बाद बचे ठूँट।

ठटुरन :: (सं. स्त्री.) शरीर को अकड़ा देने वाली ठंड।

ठटुरबौ :: (क्रि.) ठण्ड से अकड़ना, ठिठुरना।

ठटेरौ :: (सं.) ज्वार या मक्का के डण्ठल।

ठटोली :: (सं. स्त्री.) हँसी-मजाक, परिहास।

ठट्ट :: (सं. पु.) दर्शकों का झुण्ड, तमाशबीनों का झुण्ड।

ठट्टा :: (सं. पु.) दूसरे की भावनाओं के साथ खिलवाड़, हँसी, ठट्टा शब्द युग्म में प्रयुक्त।

ठट्टो :: ((हि. ठठाना)) हँसी, अट्टहास, व्यंग्य करना।

ठठेरो :: (सं. पु.) बर्तन बेचने वाला।

ठठेरो :: (कहा.) ठठेरे-ठठेरे बदलाई - लेन देन के मामले में, एक ठठेरा आवश्यकता पड़ने पर दूसरे को बर्तन दे देता है और बदले में दूसरा बर्तन ले लेता है, मुनाफा नहीं लेता।

ठंड :: (सं. स्त्री.) सरदी, जाड़ा।

ठड़उअल :: (वि.) खड़ी, स्पष्ट, निःसंकोच, मर्यादा का साधन छोड़कर की जाने वाली बात।

ठडला :: (सं. पु.) मूँग की पूड़ी।

ठंडाई :: (सं. स्त्री.) पेय पदार्थ, बादाम, खसखस, कालीमिर्च आदि को घोंटकर बनाया गया दूध के साथ पीने योग्य पेय पदार्थ।

ठडारनी :: (सं. स्त्री.) जेठ के महीने में खेत का जाता जाना।

ठडूला :: (सं. पु.) उड़द के आटे के साथ ज्वार या गेंहू का आटा मिलाकर बनाई जाने वाली नमकीन पूड़ी।

ठड़ेल :: (सं. स्त्री.) खेत में भुट्टे कटे हुए खड़े ज्वार के पेड़ हरा चारा कुछ दिन अधिक प्राप्त करने के लिये किसान कभी-कभी भुट्टे काट कर पौधों को खतों में खड़ा रहने देत है तथा धीरे-धीरे काट कर पशुओं को चराते रहते है।

ठड़ेसुरी :: (सं. पु.) दिन रात खड़ा रहने वाला साधु।

ठंडो :: (वि.) सर्द, शीतल, बुझा हुआ, श्रीहत।

ठंडो :: (कहा.) ठंडो नहाय, तातौ खाय, ताकें बैद कबहुँ न जाय - नित्य ठंडे पानी से नहाने और गरम खाना खाने से कभी बैद्य की आवश्यकता नहीं पड़ती।

ठड्डा :: (सं. पु.) पतंग में लगी ऊर्ध्वाधर सींक।

ठण्ड :: (सं. स्त्री.) सर्दी, शीतलता का प्रभाव, जाड़ा।

ठण्डक :: (सं. स्त्री.) शीतलता।

ठण्डन :: (सं. स्त्री.) जाड़े की ऋतु।

ठण्डयाई :: (सं. स्त्री.) शीतलता, कालीमिर्च, बादाम तथा अन्य मसाले पीसकर दूध-शक्कर के साथ बनाया जाने वाला शर्बत।

ठण्डयाबौ :: (क्रि.) ठण्डा करना या होना, जलन शान्त होना।

ठण्डाई :: (सं. स्त्री.) शीतलता, कालीमिर्च, बादाम, दूध आदि का शर्बत।

ठण्डाई :: दे. ठण्डयाई।

ठण्डौ :: (वि.) जो गर्म न हो, जिसका सामान्य तापक्रम हो, नपुंसक।

ठनकबौ :: (क्रि.) हिलने-डुलने से फोड़े आदि में दर्द होना।

ठनका :: (सं. पु.) रूक-रूक कर जलन के साथ पेशाब आने का रोग।

ठनकाँ :: (वि.) एक मुश्त, पूर्ण रूप से।

ठनकाँ :: (प्र.) टनकाँ तै करो, आज तौ टनकाँ लाँगन भई।

ठनगन :: (सं. पु.) नखरे, दिखावा।

ठनगिन :: (सं. पु.) नेग पाने के लिए हठ करना, हठ, जिद आदि।

ठनठन :: (सं. स्त्री.) बतरनों आदि की आवाज, बच्चे के रोने की आवाज।

ठनठन :: (कहा.) ठनठनपाल मदनगोपल - रूपये-पैस से शून्य।

ठनठनाबो :: (क्रि. वि.) ठन-ठन शब्द निकालना।

ठनबौ :: (क्रि.) लड़ने की मुद्रा में दो लोगों का आमने-सामने आ जाना।

ठनाठन :: (वि.) ठन-ठन बजने वाली (कल्दार)।

ठन्नाबो :: (क्रि.) ठन्न की आवाज करके बजना, दाँतों में हवा या पानी या ठण्डी वस्तु के स्पर्श से पीड़ा होना, फोड़े में स्पर्श से पीड़ा होना।

ठपठपाबो :: (क्रि. वि.) ठोकने से निकलने वाली ध्वनि।

ठप्प :: (वि.) बन्द, निष्क्रिय।

ठप्पा :: (सं. पु.) मुहर, छापने का रबड़ या लकड़ी का ठप्पा, ठप्पा से छापी गयी आकृति, शान-शौकत।

ठबेरबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु से गला छुड़ाना, घटिया वस्तु को किसी प्रकार बेच देना या अहसान के साथ दे देना।

ठमकबौ :: (क्रि.) भय या अन्य किसी आकस्मिक कराण से एकाएक थम जाना।

ठमठमयाबो :: (क्रि. वि.) रूकना।

ठरक्याबौ :: (क्रि.) थोड़ा-सा सूखना।

ठरगजो :: (सं. पु.) अभद्र व्यवहार वाला, हिमायती।

ठरगजो :: (स्त्री.) ठरगजी।

ठर्र :: (सं. पु.) सख्त, कँकरीली-पथरीली भूमि।

ठर्रबो :: (क्रि.) खदेड़ना।

ठर्रा :: (सं. पु.) देशी शराब।

ठलबा :: (सं. पु.) बिना स्त्री का पुरुष।

ठलबाई :: (सं. स्त्री.) व्यर्थ के काम, बेकारी, फुरसत, खाली समय, अवकाश।

ठलमसे :: (सं. पु.) आडम्बर, पाखण्ड, दिखावा, किसी काम में देर करने के लिए व्यर्थ कामों का करना।

ठलुआ :: (वि.) ऐसे लोग जिनके पास करने को काम न हो।

ठल्ली :: (वि.) बेकार स्त्री।

ठल्ले :: (क्रि. वि.) अवकाश में. फुर्सत से।

ठस :: (वि.) कंजूस, भावना शून्य, मोटी बुद्धि वाला।

ठसक :: (सं. स्त्री.) शान-शौकत, घमण्ड।

ठसका :: (सं. पु.) श्वास नली के मुँह पर अन्न या पानी चले जाने के कारण उठने वाली खाँसी।

ठसा :: (सं. पु.) धातु के पत्तरों पर ठोक कर आकृतियाँ बनाने का साँचा।

ठसाठस :: (क्रि. वि.) ठूँस-ठूँस कर, (भरा हुआ)।

ठसियल :: (वि.) हर जगह वाला व्यक्ति, बिना बुलावे के अपनी जगह बनाने वाला।

ठसैल :: (सं. स्त्री.) वह भूमि जिसको किसान अपने उपभोग में लाने लगे और उस पर लगान लगाने लगे।

ठस्सा :: (सं. पु.) शान शौकत के प्रदर्शन के लिए बनाव श्रंगार, चाल-ढाल आदि।

ठाई :: (वि.) उपयुक्त, विश्वसनीय।

ठाई :: दे. ठाव।

ठांई :: (सं. स्त्री.) स्थान, प्रति ओर।

ठाकरन :: (सं. पु.) ठाकुर का बहुवचन।

ठाँका :: (सं. पु.) बन्दूक की आवाज।

ठाकुर :: (सं. पु.) भगवान, ऐश्वर्यवान व्यक्ति, क्षत्री।

ठाकुर :: (कहा.) ठाकुर हते सो गये, ठग रै गये - भले आदमी तो चले गये, केवल ठग रह गये।

ठाकुरजी :: (सं. पु.) ठाकुरबाबा, ईश्वर, भगवान, पूजा की मूर्तियाँ।

ठाट :: (सं. पु.) छप्पर डालने के लिए लकड़ी का ढाँचा, रहन-सहन का शान-शौकत वाला ढंग।

ठाँट :: (सं. पु.) दूध न देने वाली गाय।

ठाँटौ :: (वि.) खड़ी चढ़ाई वाला।

ठाँड़ी :: (वि.) खड़ी हुई, स्पष्ट तथा निःसंकोच बात।

ठाँड़ी :: (कहा.) ठाँड़ी खेती गाभिन गाय, तब जानों जब मों में जाय - खड़ी फसल के अनाज को घर में लाने और गाभिन गाय के दूध को प्राप्त करने के मार्ग में सैकड़ों बातें बाधक हो सकती है, अतः जब ये खाने को मिल जायँ तभी समझो कि वे वास्तव में उत्पन्न हुई।

ठाड़ो :: (वि.) ऊपर को उठा हुआ, ऊपर।

ठाँड़ौ :: (वि.) खड़ा हुआ, ऊर्ध्वाधर स्थिति।

ठाँड़ौ :: (कहा.) ठाँड़ौ बैलखूँदे सार - बेकार बँधा हुआ बैल अपने बँधने के स्थान को ही खोदता है, निठल्ले आदमी को व्यर्थ के उपद्रव सूझते हैं।

ठानबौ :: (क्रि.) दृढ़ निश्चय करना।

ठालें :: (क्रि. वि.) ठल्ले, बैठे-ठालें शब्द युग्म में प्रयुक्त।

ठालें :: (कहा.) ठाले से बेगार भली - आदमी को कुछ न कुछ करते रहना चाहिए।

ठाव :: (वि.) उपयुक्त, विश्वसनीय।

ठाव :: (क्रि. वि.) के रूप में भी प्रयुक्त।

ठाव :: (प्र.) ठाव धर दो।

ठाँव :: (सं. स्त्री.) स्थान, जगह।

ठाँव :: (कहा.) ठांव गुन काजल, ठांव गुन कालख - एक ही वस्तु, किसी एक स्थान पर अच्छी और दूसरे स्थान पर बुरी जान पड़ती है, जो धुआँ, धुँआँ काजल बनकर नेत्रों की शोभा बढ़ाता है, वही घर में जम जाने पर कालिख समझा जाता है और साफकर दिया जाता है।

ठाँस :: (सं. स्त्री.) दो दीवारों के बीच की दूरी, चूड़ी, कंगन आदि का व्यास।

ठाँसबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक घुसाना, अपनी बात या विचारों को जबरन लादने का प्रयास करना।

ठिएँ :: (सं. स्त्री.) घोड़े का रह-रहकर हिनहिनाना, फूहड़ हँसी के ठहाके।

ठिकाई :: (सं. स्त्री.) कपड़े पर बेलबूटों की छपाई।

ठिकानों :: (सं. पु.) स्थान, आश्रय, भरोसा, विश्वास।

ठिनकबौ :: (क्रि.) जिद करना तथा रोने के ढंग से बात करना, पैर पटककर रोना, किसी वस्तु को पाने के लिए बच्चों का मचलना, जिद करना तथा रोने के ढंग से बात करना।

ठिनगो :: (वि.) कम ऊँचा, छोटे कद का, नाटा।

ठिप्पी :: (सं. स्त्री.) शीशी के मुँह में घुसाकर लगाया जाने वाला कार्क, लकड़ी आदि का ढक्कन।

ठिप्पौ :: (सं. पु.) कनस्तर आदि के मुँह में लगाये जाने वाला लकड़ी आदि के ढक्कन।

ठिया :: (सं. पु.) स्थान, कार्य करने का स्थान, किसी वस्तु की जमाने के लिए उपयुक्त आधार।

ठिये :: (सं. पु.) ठिएँ, फूहड़ हँसी के ठहाके व्यंग्यार्थ।

ठियो :: (सं. पु.) ठिकाना, जगह।

ठिल :: (सं. पु.) खुलकर हँसी लाने वाली समवेत हँसी।

ठिल ठिलाबौ :: (क्रि.) खुलकर हँसना।

ठिलबो :: (क्रि.) मनुष्यों या जल प्रवाह रुक कर एक जगह पर इकट्ठे होते जाना, भीड़ का सघन होते जाना।

ठिलमस :: (सं. पु.) नखरा।

ठिलाठिल :: (वि.) सघन ठेलमठेल वाली भीड़, समाई की पूर्णता तक भरा हुआ।

ठिलुआ :: (वि.) निठल्ला, बेकार, जिसे कोई काम न हो।

ठीक :: (वि.) सही, उचित, उपयुक्त, अच्छा।

ठीक :: (कहा.) ठीक नहीं ठेके का काम, ठेका मत दो खोबो दाम - ठेके का काम अच्छा नहीं होता।

ठुकबाबो :: (अ. क्रि.) पिटवाना, मार खिलाना, हानि कराना।

ठुकबौ :: (क्रि.) पिटना।

ठुकाई :: (सं. स्त्री.) मार, पिटाई, चूने की छत को भली भाँति जमाने के लिए ठोकने की क्रिया।

ठुकियाँ :: (सं. स्त्री.) वयस्कों के सिर, दाढ़ी के छोटे-छोटे कड़े बाल।

ठुकैला :: (वि.) जिसे पिटने की आदत हो, जो बिना पिटे सही रास्ते पर चलता ही न हो।

ठुड़याबो :: (सं. क्रि.) पैर से ठोकर मारना।

ठुड्ड :: (सं. पु.) जाँघ।

ठुनकबो :: (क्रि.) दे. ठिनकबो, मन्द-मन्द रोना।

ठुमकबौ :: (क्रि.) बच्चों का डगमगा कर कदम रखना।

ठुमका :: (सं. पु.) नृत्य में एक मुद्रा।

ठुमकौ :: (वि.) ठिगना, कम लम्बा, औसत से कम ऊँचाई वाला।

ठुर्रस :: (सं. स्त्री.) अँकड़, ऐंठ, घमण्ड।

ठुर्रू :: (सं. स्त्री.) भुनी हुई ज्वार, मक्का, धान, चावल के बिना फूले हुए दाने।

ठुलियाँ :: (सं. स्त्री.) बैलौं के सीगों में जड़ी जाने वाली पीतल की नोंकदार कीलें।

ठुसका :: (सं. पु.) द्रुत गति से गुदा से वायु निकलने का शब्द, धीरे से छोड़ी गयी बदबूदार अपान वायु।

ठुसबौ :: (क्रि.) किसी उपाय से प्रवेश करना, अवांछित रूप में प्रवेश करना, भीड़ में बलपूर्वक धँसना।

ठुसाबो :: (सं. क्रि.) पेट भरकर खिलाना, दाब दाब कर भरवाना।

ठुसी :: (सं. स्त्री.) गले का एक आभूषण जो लगभग तिदाने जैसा होता है।

ठूँट :: (सं. पु.) कटे हे पेड़ का भूमि पर बचा हुआ भाग।

ठूँटा :: (सं. पु.) दे. ठूँट, जिसकी उँगलियाँ या हाथ कटा हो, जिस पर सभ्यता, संस्कृति या पारिवारिक प्रतिष्ठा का कोई प्रभाव न हो लक्षणार्थ।

ठूँसबौ :: (क्रि.) बलपूर्वक प्रवेश करना या कराना।

ठूँसमठूँस :: (क्रि. वि.) ठसाठस भरना।

ठूँसा :: (सं. पु.) सामने से बल लगाकर मारा जाने वाला घूँसा या लाठी का आघात।

ठेकबौ :: (क्रि.) कपड़े पर ठप्पे से बेलबूटे छापना।

ठेका :: (सं. पु.) अनुबंध, शराब की दुकान।

ठेंकें :: (क्रि. वि.) जान-बूझकर, उदाहरण-ठेंकरकें उसने ऐसा काम किया।

ठेकेदार :: (सं. पु.) अनुबंध के अनुसार काम करने वाला शराब का दुकानदार।

ठेंगा :: (सं. पु.) अगूँठा।

ठेंगा :: (मुहा.) ठेंगा दिखाबो-साफ इन्कार करना, निराश करना।

ठेंगा :: (कहा.) ठेंगा थाम, लबेदे हजार - मोटे डंडे को ही सँभालना चाहिए, पतले बेंत तो हजारों मिल जाएगें, मजबूत का सहारा लेना चाहिए।

ठेट :: (सं. पु.) निर्लेप, निरा, एकदम, बिना लाग लपेट के।

ठेंटरा :: (सं. पु.) रवेदार आटा में गुड़ या नमक मिलाकर पेड़ा के आकार का पकवान, महालक्ष्मी पूजन के दिन बनाये जाते हैं।

ठेंटा :: (सं. पु.) शीशी आदि के मुँह में ठूँस कर लगाया जाने वाला ढक्कन, कान का मैल। लक्षणार्थ।

ठेंठरा :: (सं. पु.) एक प्रकार के कड़े और मीठे गोल खुरमा, खुरमा।

ठेंन :: (सं. स्त्री.) अपशगुन, रुकावट।

ठेबा :: (सं. पु.) चलते समय पैर के सामने से लगने वाला आघात।

ठेबो :: (स. क्रि.) ठोकर।

ठेंमा :: (सं. पु.) मोटा और मजबूत खूँटा।

ठेरबो :: (अ. क्रि.) रुकना, टिकना, बना रहना।

ठेराबो :: (सं. क्रि.) रोकना, स्थिर करना, टिकाना, पक्का कराना।

ठेल :: (सं. पु.) दबाब।

ठेल :: (सं. स्त्री.) बैलगाड़ी की धुरार को धुरी के साथ संलग्र करने की लोहे की खूटी।

ठेलबो :: (क्रि.) बल लगातार आगे बढ़ाना।

ठेलमठेल :: (सं. स्त्री.) रेल पेल, सघन भीड़।

ठेला :: (सं. पु.) हाथ में धकेला जाने वाला भारवाहन, ट्रक।

ठेंस :: (सं. स्त्री.) मोटी फाँस, लकड़ी का टुकड़ा जो चुभ जाता है, मन में लगने वाला आघात-ठेस लक्षणार्थ।

ठेंस :: (कहा.) ठेंस लगे, बुद्धि बढ़े - नुकसान होने पर ही अक्ल आती है।

ठेंसबौ :: (क्रि.) ठूँस-ठूँस कर खना।

ठैर :: (सं. पु.) समझौते के आधार पर लिया गया निर्णय।

ठैर ठैराव :: (सं. पु.) शादी विवाह में लेन देन का निश्चय।

ठैरबो :: (क्रि.) रुकना, तय होना, गर्भ रहना।

ठैराबौ :: (क्रि.) अतिथि के रुकने की व्यवस्था करना, मूल्य तय करना।

ठोक बजाकर :: (सं. पु.) अच्छी तरह देख भालकर, कहा ठोक बजा ले वस्तु को, ठोक बजा दे दाम, बिगड़त नाहीं बालके, देखभाल का काम-हर चीज देखभाल कर लेनी चाहिए, और देखभाल कर ही दाम देने चाहिए।

ठोकबौ :: (क्रि.) पीटना, आघात देकर खूँटी आदि को दीवार में ठोकना।

ठोकर :: (सं. पु.) पैर का आघात, जूते का अग्रभाग, जूते के अग्रभाग में ठोकी जाने वाली लोहे की नाल।

ठोका :: (सं. पु.) ठोकने के ढंग से बलपूर्वक कही जाने वाली बात।

ठोका :: (प्र.) ऊनें अच्छी ठोका की सुनाई।

ठोड़ :: (क्रि. वि.) पैर की ठोकर।

ठोड़ी :: (सं. स्त्री.) ठूडडी।

ठोल :: (सं. स्त्री.) दे. ठोकर।

ठोस :: (वि.) ठोस, उदाहरण-जो कहीं पोला न हो।

ठौआ :: (वि.) तादाद, सूचक शब्द, उदाहरण-सौ ठौआ लड्डू चानें।

ठौंका :: (सं. पु.) जूते को अच्छी तरह उभारने के लिए उसके भीतर डाला जाने वाला एक उपकरण।

ठौर :: (सं. स्त्री.) स्थान, आश्रय।

ठौर :: (कहा.) तुमें ठौर नईं हमें और नई।

ठौल कौलें :: (सं. पु.) दे. ठइया, ठउआ।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का ट वर्ग का तृतीय व्यंजन वर्ण, इसका उच्चारण स्थान मूर्द्धा है।

डंक :: (सं. पु.) बिच्छू आदि का विष-प्रेषण अंग।

डंककारौ :: (सं. पु.) सेना के आगे चलने वाला डंका-निशान आदि का सामूहिक नाम।

डंकनी :: (सं. स्त्री.) चुड़ैल।

डकबौ :: (क्रि.) दूध, दाल आदि का पकते समय में जल कर बरतन की तली में लग जाना।

डकरयाबौ :: (क्रि.) पेट भरा होने के कारण डकार लेना।

डंका :: (सं. पु.) राजाओं की सवारी में आगे बजने वाले नगाड़े, युद्ध का उद्घोष, छोटी मुठिया का बड़ा तथा गहरा चमचा जो विशेषकर कढ़ी परोसने के काम आता है।

डंका :: (सं. स्त्री.) नगाड़ा, धौंसा।

डकारबौ :: (क्रि.) अनाधिकृत तथा अवांछित रूप से खा जाना, हजम कर लेना, हड़पना।

डंकी :: (वि.) घुना हुआ अनाज।

डकैती :: (सं. स्त्री.) डाका, किसी की सम्पत्ति को बलात् छीनने की क्रिया।

डखनउआ :: (सं. पु.) डेंना, पक्षियों के पर, छोटे बच्चों के हाथों के कंधों के पास वाले भाग, लक्षणार्थ।

डखना :: (सं. पु.) दे. डखनउआ।

डग :: (सं. स्त्री.) कदम, चलने में दोनों पैरों के बीच की दूरी।

डँगइया :: (सं. पु.) वृक्षों की डाल।

डगडगडोली :: (सं. स्त्री.) बच्चों का एक खेल, जिसमें छोटे बच्चों को दोनों पैरों के पन्जों पर बिठाकर हिलाया जाता है।

डगडगाबौ :: (क्रि.) हिलना, अपने स्थान पर रहते हुए इधर उधर झुकना।

डंगडोला :: (वि.) बेडौल तथा ऊँचा मकान।

डगबौ :: (क्रि.) दे. डकबौ।

डगमग :: (वि.) डाँवाडोल।

डगर :: (सं. पु.) पशु चौपाया।

डगर :: (सं. स्त्री.) रास्ता, डगर भेंट बारात की अगवानी के समय लड़की-लड़का के मामा की रास्ते में होने वाली भेंट की रस्म।

डँगरई :: (वि.) हल्का गुलाबी और कुछ पीला रुख लिये हुए।

डगरबौ :: (क्रि. अ.) चलना, मंद गति से चलना, हिलना।

डँगरा :: (सं. पु.) एक प्रकार का खरबूज, फूट।

डगरिया :: (सं. स्त्री.) डाल।

डंगा :: (सं. पु.) बैलों की एक किस्म।

डंगा :: (वि.) जंगली, बड़े बैल, गुना शिवपुरी क्षेत्र के बैल।

डंगाडोली :: (क्रि. वि.) दो लोगों द्वारा हाथों की डोली जैसी बना कर उस पर ले जाना।

डँगासरौ :: (सं. पु.) पेड़ों का ऐसा झुरमुट जो जंगलों जैसा आभास दे।

डगैन :: (सं. स्त्री.) मछली मारने की बंसी के धागे में लगी हुई हलकी लकड़ी जो तैरती रहती है, उसी से मछली फाँसने का पता चलता है।

डँगैरा :: (सं. पु.) जंगल में रहने वाला।

डटआई :: (सं. स्त्री.) डाटने की क्रिया, राँगे से पीपे का मुँह बन्द करने की क्रिया, डाट लगवाने का पारिश्रमिक।

डटइया :: (सं. पु.) डाँटने वाला।

डटबौ :: (क्रि.) दृढ़तापूर्वक सामना करना अड़ जाना।

डटवाबौ :: (क्रि.) पीपे के मुहँ पर चद्दर की टिकिया राँगे से जुड़वाना।

डटैया :: (सं. पु.) डाटने वाला फटकारने वाला।

डँटैया :: (वि.) डाटबौ, घुड़कने वाला, डांटने वाला।

डटो :: (वि.) अड़ा, सजा हुआ।

डठुआ :: (सं. पु.) भूमि पर खड़े कटे हुए पौधों के डण्ढल, भाजी या पत्तों के डण्ठल।

डठूला :: (सं. पु.) नजर से बचाने के लिए बच्चों के माथे पर बगल की तरह लगाया जाने वाला काजल का टीका, डिठोंना।

डंड :: (सं. पु.) डंडा, सोटा एक प्रकार का व्यायाम, दंड जुर्माना, चुगलखोर, सन्यासी, तराजू की लकड़ी जिसमें बांधे जाते हैं, ममठिया, हत्या, उदाहरण-मार, डंड।

डंड :: (वि.) जो कम सौदा तौले, डंडे करबो-चुगली करना।

डंडपेल :: (सं. पु.) कसरती पहलवान।

डडबौ :: (क्रि.) दण्डित होना, मकान के बँटवारे की सीमा पर दीवार बनाना।

डडयाबौ :: (क्रि.) कुहनी से नीचे भुजा के भाग पर टाँग कर ले जाना।

डँडरबो :: (क्रि. अ.) ढूँढना, खोजना।

डँडवा :: (सं. पु.) टीला लुधाँती में प्रयुक्त।

डडा :: (सं. पु.) हाथ चक्की पीसने की लकड़ी की मुठिया, चाचर खेलने के छोटे डण्डे, कुहनी और कोंचा के बीच का भुजा भाग।

डडाँद :: (सं. स्त्री.) दाल कडी, दूध आदि के उबलते समय जल जाने से उसके स्वाद के साथ आने वाली गंध।

डडाँयदो :: (वि.) दे. डड़ाँद, डड़ाँड की गंध वाला।

डड़ारा :: (सं. पु.) जुआर काटने के बाद खाली हुआ बिना जुता खेत।

डडारी :: (सं. स्त्री.) डाढ़ की जड़ों के पास गाल पर होने वाला फोड़ा।

डड़िया :: (सं. स्त्री.) गर्भवती सुँगरिया, सुअरी।

डडुआ :: (सं. पु.) कर्णफूल और नाक की पुँगरिया की डण्डी।

डड़ेल-डड़ेला :: (वि.) ऐसा घी या तेल जिसमें एक बार पकवान तले जा चुके हों।

डँड़ैला :: (सं. पु.) जिस तेल में कोई वस्तु तली जा चुकी हो वह तेल।

डँड़ोका :: (सं. पु.) लम्बा मोटा डंडा।

डँडौत :: (सं. पु.) साष्टांग प्रणाम, प्रणाम, खुशामद।

डण्ड :: (सं. पु.) दण्ड।

डण्डकमण्डल :: (सं. पु.) साज समान, डेरा डंगा, व्यक्तिगत उपयोग का सामान साधुओं द्वारा अपने हाथ में लिए रहने वाला दंड और कमंडल।

डण्डयाबौ :: (क्रि.) डण्डे से पीटना।

डण्डा :: (सं. पु.) लम्बाई में छोटी किन्तु मोटी लाठी, झण्डे का बाँस।

डण्डी :: (सं. स्त्री.) तराजू की डण्डी।

डण्डी :: (वि. सं.) दण्ड धारण करने वाले सन्यासी।

डण्डे :: (सं. पु.) चुगली, भिड़ाने वाली बातें, किसी की गुप्त बातें दूसरे को बतायी जायें।

डण्डे कुण्डे :: (सं. पु.) दे. डण्ड कमण्डल, व्यक्तिगत उपयोग का सामना वर्तन आदि।

डण्डौत :: (सं. स्त्री.) दण्डवत, प्रणाम, साष्टांग प्रणाम, ब्राहमणों में परस्पर अभिवादन के लिए प्रयुक्त शब्द।

डनउआ :: (सं. पु.) पक्षियों के पूरे पंख, बच्चों के हाथ, लाक्षणिक अर्थ।

डपका :: (सं. पु.) चिड़िया फसाने का एक तरीका इसमें एक लकड़ी लगाकर डलिया के नीचे दाना डाला जाता है।

डफाबौ :: (क्रि.) नम होना, भर आना (आँखे भर आना)।

डबरा :: (सं. पु.) पानी से भरे हुए छोटे गड्ढे।

डबरियाँ :: (सं. स्त्री.) आँखें, केवल अश्रुमय आँखों के लिए प्रयुक्त।

डबल :: (वि.) बड़ा, दुहरा, अंग्रेजी।

डबला :: (सं. पु.) मिट्टी का लोटे के आकार का पात्र।

डबा :: (सं. पु.) डिब्बा, रोटियाँ, आभूषण तथा पान सुपाड़ी का डिब्बा।

डबिया :: (सं. स्त्री.) डिबिया, अनाज काटने की मजदूरी में मिलने वाला कटे अनाज का बोझा, गट्ठ।

डबी :: (सं. स्त्री.) बच्चों का निमोनियाँ।

डबुलिया :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का छोटा सा लोटे के समान पात्र।

डबूका :: (सं. पु.) घोड़े के पुट्ठे का जेवर।

डबैयां-भरबौ :: (क्रि. अ.) आँसुओं का पलकों में झलक पड़ना।

डब्बल :: (सं. पु.) एक पैसे का भारत में चलने वाला ताँबे का अंगरेजी सिक्का।

डब्बू :: (सं. स्त्री.) दे. डबुलिया।

डभकौरी :: (सं. स्त्री.) उड़द की बरी।

डमइयाँ :: (सं. स्त्री.) बछड़ों के गले में शोभा के लिए पहिनाया जाने वाला रस्सी से बनाया गया एक प्रकार का पट्टा।

डमरू :: (सं. पु.) चमड़े से मढ़ा जाने वाला एक छोटा बाजा जो बीच में पतला होता है और हिलाने पर उसमें लगी घंटियों से वह बजता है।

डमरू :: (सं. स्त्री.) बीच में पतली एक हाथ से पकड़कर बजाई जाने वाली एक प्रकार की ढ़ोलक, डुगडुगी, शंकर जी का वाद्य।

डमा :: (सं. पु.) कुछ रोगों के उपचार के लिए ताँबे आदि धातु से शरीर को दागने की क्रिया।

डमा :: (प्र.) डमा लगाना, गर्म धातु के स्पर्श से जलने की क्रिया।

डम्पलाट :: (वि.) बहुत बड़ा, औसत आकार से काफी बड़ा।

डम्फान :: (सं. पु.) आडम्बर, दिखावा।

डम्बर :: (सं. पु.) आडम्बर, ढोंग।

डम्मर :: (सं. पु.) डामर, तारकोल।

डर :: (कहा.) डर न दहशत, उतार फिरी खिशतक - निर्लज्ज औरत।

डर :: (सं. पु.) भय आशंका।

डरइया :: (सं. स्त्री.) पेड़ की छोटी शाखा, वंशधर लाक्षणिक अर्थ।

डरवाबनों :: (वि.) भयंकर, जिसको देखने से भय पैदा हो।

डरवाबौ :: (क्रि.) भयभीत करना।

डराबौ :: (क्रि.) भयभीत होना। डरिया।

डराबौ :: (सं. स्त्री.) दे. डरइया, डली।

डरी :: (सं. स्त्री.) सोने, चाँदी, नमक आदि की डली।

डरैला :: (वि.) डरपोक।

डला :: (सं. पु.) उथली तथा चौड़ी टोकरी।

डलिया :: (सं. स्त्री.) सामान रख कर बेचने वाली टोकरी।

डसबौ :: (क्रि.) दंशन, डंक मारना, जहरीले कीड़े द्वारा काटा जाना (विशेष रूप से सर्प द्वारा)।

डसबौ-डहडहा :: (वि.) डहडहा हरा, भरा लहलहाता हुआ।

डहर-डहरिया :: (सं. स्त्री.) पानी या अनाज भरने की मिट्टी की पकी हुई ऊँची गोल कोठी।

डाइन :: (सं. स्त्री.) बच्चों को खा जाने वाली प्रेतनी, बच्चो या सौतेले बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार करने वाली स्त्री, लाक्षणिक अर्थ।

डाँक :: (सं. स्त्री.) चमकदार पन्नी, घोष विक्रय के लिए लगायी जाने वाली बोली, डाकखाने में आने वाले पत्रादि।

डाँकखानों :: (सं. पु.) डाकघर।

डाँकटर :: (सं. पु.) डाँकधर।

डाँकटर :: (सं. पु.) चिकित्सक।

डाँकन :: (सं. स्त्री.) डाँकिनी, क्रूर स्वभाव वाली स्त्री, लक्षणार्थ।

डाँकाबो :: (क्रि.) किसी को कोई वस्तु देने को बढ़ाना और जब वह लेने लगे तो पीछे हटा लेना, डहकाना।

डाँकिया :: (सं. पु.) डाकिया, डाक बाँटने वाला।

डाँकू :: (सं. पु.) बलात् धन अपहरण कर ले जाने वाला।

डाँकौ :: (सं. पु.) बलात् धन अपहरण करने की क्रिया।

डाँग :: (सं. स्त्री.) जंगल।

डाट :: (सं. स्त्री.) अवसर की ताक, चुन्नट, महराव, फटकार, शीशी आदि के मुँह के अंदर दबाव से लगाया जाने वाला ढक्कन।

डाँट :: (सं. पु.) नाव चलाने के चपटे सिरे वाले डण्डे, दण्ड विशेष रूप से अर्थदण्ड।

डाँटबौ :: (क्रि.) दुष्परिणामें के प्रति सचेत करना, फटकारना टकारते हुए भविष्य के लिए सतर्क करना।

डाड़ :: (सं. स्त्री.) चबाने के दाँत, डाढ़।

डाँड़बौ :: (क्रि.) दण्डित करना, मकान में बँटवारे की सीमा पर दीवार बनाना, फटी हुई धोती को बीच से फाड़ कर तथा फटा भाग अलग करके दोनों को एक साथ सिलना।

डाँडी :: (सं. स्त्री.) तराजू की डण्डी, बखर की लोड़ से जुआँ तक की लम्बी लकड़ियाँ, डाँडी मारबौ कम तौलना, डाँडीमार-कम तौलने वाला।

डाँडी :: (कहा.) डाँडी मारें कें साव कावें हर हाँकें सौ चोर, चुपर - चुपर कें बाबा खाबों, जिनकें ओर न छोर-तराजू की डंडी मार अर्थात् लोगों को धोखा देकर पैसा कमाने वाले साहूकार कहलाते हैं, साधु-सन्यासी, जिनके घरबार ठिकाना नहीं, घी चुपड़ी खाते हैं, और हल हाँकने वाला किसान, जो मेहनत की रोटी खाता हैं, चोर समझा जाता है।

डाँडौ :: (सं. पु.) होलिका दहन के लिए लकड़ियों के ढेर के बीच गाड़ा जाने वाला बाँस मकान के बँटवारे की सीमा पर बनी दीवार, मिट्टी बहने या खिसकने से रोकने के लिए बनी दीवार, पुँगरिया, स्त्रियों का नाक का आभूषण की डण्डी।

डान्नों :: (सं. पु.) जो प्रिय न हो।

डामल :: (सं. पु.) डामर, तारकोल, आभूषणों पर छिलाई का काम।

डायरी :: (सं. स्त्री.) दैनन्दिनी, छोटी सी कापी।

डार :: (सं. स्त्री.) वृक्ष की शाखा, डहर, मिटटी का ऊँचा गोल तली का पात्र।

डारबौ :: (क्रि.) गिराना, खोना।

डारिया :: (सं. स्त्री.) अनाज या पानी भरने के लिए मिट्टी का ऊँचा गोला तली का बर्तन डहर।

डाली :: (सं. स्त्री.) उपहार स्वरूप भेजे जाने वाले फल फूल, हाथी को खिलाने के लिए काट कर लायी गयी बरगद, पीपल, पाकर, ऊमर आदि को पतली शाखाएं।

डाँस :: (सं. पु.) जंगली मच्छर।

डिगडिगी :: (सं. स्त्री.) बाजीगर की डमरू।

डिगबौ :: (क्रि.) विचलित होना, प्रण या व्रत को छोड़ना।

डिंगरा :: (सं. पु.) गुड़ या भात आदि का जमा हुआ टुकड़ा, मिटटी का ढेला।

डिंगरिया :: (सं. स्त्री.) शुद्ध चाँदी की सिल्ली से काटा हुआ भाग, नमक की डली, गुड़ की ढेली।

डिठोंना :: (सं. पु.) दे. डठूला।

डिड़ :: (वि.) अविचल, मजबूत।

डिड़कबौ :: (क्रि.) भैंस का रँभाना, डकार लेना, व्यंग्यार्थ।

डिड़ौंका :: (सं. पु.) कम लम्बी मोटी लाठी, विकरालता बोधक प्रयोग।

डिबन्चा :: (सं. पु.) बायाँ हाथ अधिक सक्रिय होना।

डिबरी :: (सं. स्त्री.) मिट्टी का दीपक।

डिमरयारौ :: (वि.) बडे बड़े डीमों वाला।

डीग :: (सं. पु.) पौधों की कलम या डालों पर नये पत्तों का पूर्व रूप, टूटे या कटे पौधों से फटे हुए नये कल्ले।

डींग :: (सं. स्त्री.) शेखी, बढ़-चढ़ कर की जाने वाली बातें।

डीठ :: (सं. स्त्री.) नजर, कुदृष्टि जिसके पड़ने से बच्चे बीमार हो जाते हैं बनता काम बिगड़ जाता है।

डीम :: (सं. पु.) जिसमें मिट्टी या पत्थर के ढेले अधिक हों।

डीमा :: (सं. पु.) मिट्टी के बड़े ढेले जो जुताई से उखड़ते हैं।

डील :: (सं. पु.) शरीर, विशेषकर स्वस्थ और मजबूत शरीर, व्यक्तित्व।

डीलन :: (क्रि. वि.) स्वयं, खुद ब खुद।

डुकरयाबौ :: (क्रि.) बुढ़ापे के कारण शरीर का झुक जाना, वार्द्धक्य प्रकट होना।

डुकरा :: (सं. पु.) बुड्ढा।

डुकरिया :: (सं. पु.) बृद्धा, भावात्मक अर्थ में डुकरा-डुकरिया क्रमशः पिता और माता कि लिए प्रयुक्त।

डुगडुगाबौ :: (क्रि.) किसी वस्तु का ठीक से जमें न हाने के कारण हिलना, वृद्धावस्था में सिर का हिलना।

डुगडुगी :: (सं. स्त्री.) मुनादी डमरू।

डुँगरिया :: (सं. स्त्री.) छोटी पहाड़ी।

डुड़का :: (सं. पु.) अनाज में लगने वाला रोग।

डुड़िया :: (सं. स्त्री.) पेड़ की डाल का कटा हुआ कम लम्बा टुकड़ा, विशेष अर्थ के लिए।

डुड़िया :: दे. कठवा तथा चम्मच।

डुपट्टा :: (सं. पु.) ओढ़ने का चादर गले पर डालने का वस्त्र।

डुबकी :: (सं. स्त्री.) पानी में डूब कर नहाने की क्रिया, गोता, पानी में डूब कर लुप्त होना, गायब होना, लक्ष्यार्थ।

डुबरी :: (सं. स्त्री.) पानी या दूध में उबाल कर बनायी जाने वाली महुए की खीर, शौक से खाने के लिए महुए दूध में चुरोये जाते हैं तथा उनमें गरी, चिरोंजी आदि मसाले, मेवे भी डाले जाते हैं।

डुबैबौ :: (क्रि.) डुबाना, बाप दादों के नाम को बटटा लगाना।

डुब्बन-डुब्बाँ :: (वि.) मनुष्य के कद से अधिक गहराई।

डुमकुमिया :: (सं. स्त्री.) भाप या हवा के फूल कर लगभग गोल हुई आकृति।

डुरयाबौ :: (क्रि.) डोरा बाँधकर ले जाना, प्रेम जाल में बाँधने का प्रयत्न करना है।

डुरिया :: (सं. स्त्री.) स्त्रियों के बालों के जूड़ें में बाँधने की डोरी।

डुलाबौ :: (क्रि.) हिलाना, धीरे धीरे पंखा या पालना हिलाना।

डुलिया :: (क्रि. स्त्री.) शाक भाजी लाने की टोकरी, खलिहान में अनाज नापने की लगभग दस ग्यारह किलो समाई की टोकरी, लटका कर हाथ में जाने योग्य अरोंना लगी टोकरी।

डुलिया :: (सं. स्त्री.) डोली, एक बल्ली में चार पाई लटकाकर बनाई लाने वाली सवारी।

डूकबौ-डूगबौ :: (क्रि.) चपेटा खेलने में ऊपर फेंके हुए चपेटा को लपकने में असफल होना, किसी प्रणबद्ध बर्जना के निर्वाह में चूक जाना, चूकना।

डूँगर :: (वि.) टीला।

डूटी :: (सं. स्त्री.) ड्यूटी, कर्तव्य, भारित कार्य।

डूँठा :: (वि.) जिसकी उँगलियाँ या पंजा कटा हो।

डूँड :: (सं. पु.) ईंधन की अधिक मोटी लकड़ी।

डूँडा :: (वि.) टेढ़े-मेढ़े सींगों वाला बैल।

डूँडा :: (कहा.) डूँड़ा हरको न बखर को, दाँये को टायँ टायँ - डूँडा बैल न तो हल में जोतने के काम का होता है और न बखर में, दायें के लिए तो टायँ टायँ करता है, निकम्मे और बूढ़े आदमी के लिए।

डूबबौ :: (क्रि.) किसी तरल पदार्थ में किसी ठोस या अधिक घनत्व वाली वस्तु का तल में बैठना, ऋण का वसूल न होना, अस्त होना।

डूबा :: (सं. पु.) पानी में गोता लगाने की क्रिया।

डूबा :: (कहा.) डूबा साद कें रै गये डुबकी साद के रह गये, चुप्पी साध ली, ऐन मौके पर गायब हो गये।

डूबाँ :: (वि.) ऐसी गहराई जिसमें अपेक्षित वस्तु डूब सके, मनुष्य की ऊँचाई के माप की गहराई।

डेउआ :: (सं. पु.) कढ़ी, महेरी आदि टारने की लकडीकी लम्बी चम्मच।

डेउड़ :: (सं. स्त्री.) वस्तु की ऐसी पूर्ति कि पहले आयी हुई वस्तु समाप्त होने के पहले दुबारा आ जाये।

डेकची :: (सं. स्त्री.) शाक बनाने का छोटा बरतन।

डेंगुर :: (सं. पु.) उजार करने वाली गाय के गले में बाँधी जाने वाली लकडी जो कि चलते समय उसके अगले पैरों के बीच में जमीन पर घिसटती है, इससे गाय भाग नहीं पाती।

डेड़ :: (वि.) एक तथा आधे का योग।

डेंड़का :: (पा-सं. पु.) दे. डिड़ौंका।

डेंड़पा :: (सं. पु.) बढ़ा डंडा ढोर हाँकने का डंडा।

डेंड़वा :: (सं. पु.) पानी में रहने वाला सर्प।

डेंमल :: (सं. पु.) आभूषणों पर छिपाई का काम।

डेरा :: (सं. पु.) अस्थाई, आवास घर-गृहस्थी का आवश्यक सामान, शब्द युग्म-डेरा-टकोरा, डेरा-डंगा।

डेरा अकोरा-डेरा डंगा :: (श. यु.) घर गृहस्थी का आवश्यक सामान।

डेरौ :: (वि.) बायाँ।

डेल :: (सं. पु.) तिली बोने के लिए तैयार किये गये खेत।

डेला :: (सं. पु.) ईंटों के टुकड़े।

डेली :: (सं. स्त्री.) कार्तिक स्त्रान से लौटती हुई स्त्रियाँ किसी स्थान-विशेष पर पत्थर या ईट का एक ढेला डालती हैं और कहती हैं-डारें डेली उठे हवेली, उस ढेले को डेली तथा इस क्रिया को डेली डालना कहते हैं।

डेलीना :: (क्रि. वि.) रोज अँग्रेजी शब्द से रोजाना के वजन पर विकसित शब्द।

डेवड़ा :: (सं. स्त्री.) डेढ़ एक सही एक बटे दो का पहाड़ा।

डेवड़ौ :: (वि.) डेढ़ गुना।

डेवरी :: (सं. स्त्री.) पौर पुराने ढंग के बडे मकानों की पौ या प्रवेश कक्ष जिसमें दरवाजे के सामने एक चबूतरा होता है, जो गृह-स्वामी की मुख्य बैठक होता है, किलों या राजमहलों मं रनिवास का बाहरी कक्ष जहाँ कर्ता-कामदार बैठते हैं।

डोंकिया :: (सं. स्त्री.) कबूतर के आकार का एक पक्षी।

डोंगरौ :: (सं. पु.) ज्येष्ठ मास में यदा-कदा होने वाली वर्षा।

डोंडा :: (सं. पु.) एक ही लकड़ी की छील कर बनायी गयी लम्बी नाव, बडी इलायची।

डोंडी :: (सं. स्त्री.) सेंमल या कपास के फल, नीचे स्थान से पानी उठा कर ऊँचे स्थान पर सिंचाई करने का देशी साधन।

डोंडेरी :: (सं. स्त्री.) ढिंडोरा, मुनादी, मौखिक, सार्वजनिक सूचना।

डोब :: (सं. पु.) डुबकी।

डोम :: (सं. स्त्री.) एक नीच जाति जो सूप आदि बनाने का काम करती है।

डोम :: (कहा.) डोम डोली, पाठक प्यादा - जब किसी मूर्ख मालिक को समझदार नौकर मिल जाता है, एक अशोभनीय कार्य।

डोमकौआ :: (सं. पु.) बड़ाकाला कौआ।

डोर :: (सं. स्त्री.) पतंग उड़ाने का धागा, कुएँ में से लोटे से पानी खींचने की पतली रस्सी, जुते हुए बैलों को नियंत्रित करने की रास।

डोरा :: (सं. पु.) धागा, नाड़ा।

डोरिया :: (सं. पु.) देशी साधनों से बनायी जाने वाली दरी, इसको तीन चार पटिटयाँ जाड कर बनाया जाता है, साड़ी आदि की बुनाई में डाले गये आडे डिजाइन।

डोरी :: (सं. स्त्री.) बिजली को अस्थायी रूप से ले जाने के लिए तार की लाइन, कपास की पतली रस्सी।

डोरौ :: (सं. पु.) तारतम्य, क्रम, सिलसिला, प्रारंभिक कार्यवाही।

डोल :: (सं. पु.) ऊपर से नीचे तक एक सी गोलाई की लोहे की बाल्टी।

डोल-डाल :: (वि.) शौचादि, साधुओं द्वारा व्यवह्रत।

डोलची :: (सं. स्त्री.) सामान रखने का छोटा पात्र।

डोला :: (सं. पु.) विशेष प्रकार की पर्देदार पालकी।

डोली :: (सं. स्त्री.) दे. डोला, खटिया में रस्सी बाँध तथा बाँस पर लटका कर मरीज आदि को ले जाने का साधन।

डोली :: (कहा.) डोली न कहार, बीबी भई है तैयार कोई सवारी नही आई, कोई बुलाने नहीं आया, फिर भी बीबी जाने को तैयार, किसी के यहाँ बिना बुलाये जाना (पालकी)।

डौआ :: (सं. पु.) काठ का चमचा।

डौडी :: (सं. स्त्री.) ढिढोरा, मुनादी।

डौण्डौ :: (सं. पु.) दाँय करते समय गेहूँ के अधकुचले डण्ठल जिनमें से दाना निकल जाता है।

डौन :: (वि.) डाउन, अंग्रेजी. नीचा, नशे में घुत्त।

डौरा :: (सं. पु.) कटी हुई सुपाड़ी के बडे बडे टुकड़े।

डौरू :: (सं. स्त्री.) बीच में दबी डमरू के आकार की पीतल की ढोलक जिसको गड़रिया लोग गोंटें गाते समय बेत की लकड़ियों से बजाते हैं, धातु का बड़ा कटोरा जिसमें लकड़ी का खढ़ा हत्था लगा रहता है-हलवाईयों का कहाड़ी में से गरम तरल निकालने का उपकरण।

डौरौ :: (सं. पु.) दे. डोरौ।

डौल :: (सं. पु.) प्रबंध, व्यवस्था।

डौल :: (मुहा.) डौल-डाल।

डौलबौ :: (क्रि.) धीरे हिलना, फालतू घूमना, निरूद्देश्य इधर-उधर फिरना।

ड्योडी :: (सं. स्त्री.) दे. डेवडौ।

ड्योड़ौ :: (वि.) दे. डेवड़ी।

ड्रेस :: (सं. स्त्री.) निर्धारित पोशाक, वर्दी।

 :: हिन्दी वर्णमाला देवनागरी लिपि का ट वर्ग का चतुर्थ वर्ण, इसका उच्चारण स्थान मूर्धा है।

ढउआ :: (सं. पु.) बड़ी पतंग।

ढक :: (सं. पु.) ढक्कन।

ढकर-ढकर :: (क्रि. वि.) शिथिल, ढीला-ढाला।

ढकरयाबौ :: (क्रि.) बृद्धावस्था के कारण शरीर का शिथिल होकर ढीला पड़ना।

ढका :: (सं. पु.) ढक्का, स्पर्श।

ढका :: (मुहा.) टका में टका, ढका में ढका।

ढका :: (कहा.) ढका में ढका लगत धक्के में और धक्का लगता है, हानि में और हानि होती है।

ढकी :: (सं. स्त्री.) ढकी मुंदी, आवरण डला हुआ।

ढकेल :: (सं. स्त्री.) कुश्ती का एक दाँव।

ढकेलबो :: (क्रि.) धक्का देना।

ढकोसला :: (सं. पु.) प्रदर्शन, दिखाना, बेकार या बनावटी काम।

ढकौरा :: (सं. पु.) पलाश आदि के बडे पत्तों से युक्त पेड़ से कटी हुई प्रशाखा।

ढक्का :: (सं. पु.) धक्का।

ढंग :: (सं. पु.) शैली, पद्धति।

ढंग :: (मुहा.) रंग ढंग।

ढँगबो :: (क्रि.) नापने की एक क्रिया।

ढँगोय :: (क्रि. चि.) उचित ढंग से।

ढँगोसबो :: (क्रि.) अधिक मात्रा में और फूहड़ ढंग से पीना।

ढचरा :: (सं. पु.) खींचतान से चलती हुई पुरानी परम्परा।

ढचारा :: (सं. पु.) टूटी-फूटी अनुपयोगी दशा में।

ढच्चर :: (वि.) सुस्ती से काम करने वाला।

ढटिया :: (सं. स्त्री.) स्त्री बैल के मुँह पर बाँधी जाने वाली रस्सी या कपड़ा।

ढटींगर :: (वि.) मोटा व्यक्ति।

ढटींगर :: (सं. स्त्री.) ढटींगरा फालतू आदमी।

ढट्टा :: (सं. पु.) ढाटा, ढाट, ढक्कन।

ढड़क :: (सं. स्त्री.) ढलान।

ढड़क-चका :: (सं. पु.) बच्चों का लेटे लेटे लुड़कने का खेल।

ढड़कना :: (सं. पु.) ढाल, तरल पदार्त के बहने से बने ऊ र्ध्वाधर निशान।

ढँड़कबो :: (क्रि. वि.) आगे बढ़ना, चलना, घिसटना।

ढड़कबौ :: (क्रि.) लुढ़कना, मरना अनादरवाची प्रयोग।

ढड़का :: (सं. पु.) आँसू बहते रहने का रोग।

ढड़कान :: (सं. स्त्री.) ढाल, ऊँचाई से नीच की ओर आना।

ढड़कोंता :: (वि.) ढालू।

ढड़कोंना :: (सं. पु.) दे. ढड़कना।

ढड़ढड़ाबो :: (क्रि.) जीना आदि पर से गिर कर लुढकते जाना।

ढड़ंबेरबो :: (क्रि.) तलाश करना।

ढड़ाबो :: (क्रि.) तरसना, विशेषकर भोजन के लिए तरसना।

ढड़ोरबो :: (सं. क्रि.) पीसना, पतले गोबर से लीपना, अनन्त चतुर्दशी को आटे की तली हुई शंकु आकार की चौदह गुलेलियों को एक सात पकड़कर दूध में इधर उधर हिलाना।

ढढाबौ :: (सं. पु.) छत, ढकना।

ढँढोरबो :: (सं. क्रि.) ढँढ़ोरा पीटना, मुनादी कराना।

ढँढोरा :: (सं. पु.) डुग्गी नादी, ढूँढ, खोज।

ढँढोरा :: (सं. पु.) एक व्रत जो स्त्रियाँ अपनी संतान की सुख शांति के लिए करती हैं।

ढनढनाबौ :: (क्रि.) बरतनों आदि का गिरना, जिससे गिरने या लुढ़कने से आवाज हो।

ढप :: (सं. स्त्री.) जुए में बिना ताश देखे चली गयी चाल।

ढपला :: (सं. पु.) चमड़ा मढ़ा हुआ छिचली गोल पेंदी का बाजा, ताँसा।

ढपली :: (सं. स्त्री.) ढफली, बजाने का यंत्र।

ढपली :: (मुहा.) अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग।

ढपा :: (सं. पु.) ढाँकने वाला जैसे कनढपा टोपा।

ढपाल :: (वि.) भारी, बड़ा, विशाल।

ढपोलसंक :: (वि.) कृतित्वहीन, निकम्मा किन्तु बातूनी।

ढप्प :: (सं. स्त्री.) दे. ढप।

ढब :: (वि.) आदत, कायदा, जुएँ में दोहरी चाल चलना।

ढब :: (कहा.) ढब से खेती, ढब न्याव, ढब से होवे बूढ़े कौ ब्याव - तात्पर्य यह कि इन सब में चतुराई से काम लेना पड़ता है।

ढबरा :: (सं. पु.) मकान के ऊपर की छत, सबसे ऊपर बड़ी छत।

ढबिया :: (सं. स्त्री.) मकान के ऊपर की छोटी छत।

ढबीलौ :: (वि.) सुडौल।

ढबुआ :: (सं. पु.) पेड़ों पर बनी झोपड़ी, छोटी सी काम चलाऊँ जगह, उदाहरण-पान को ढबुआ आदि, खेत की रक्षा के लिए बनाया हुआ मचान पत्तों का गोलाकर घर।

ढमढम :: (सं. पु.) ढोल बजने की ध्वनि।

ढरकबो :: (क्रि.) ढड़कना।

ढरका :: (क्रि. वि.) आँसू बहना।

ढरकाबो :: (स. क्रि.) जल ढरकाय चली उनमाती ओ.।

ढरकियाँ :: (सं. स्त्री.) कानो में पहनी जाती है, फूलदार उठी हुई नीचे सांकर।

ढरबाबो :: (सं. क्रि.) ढालने का काम कराना।

ढरबाबो :: (अ. क्रि.) गिरना, ढाल कर बनाना।

ढरहरी :: (सं. स्त्री.) वह खेत जहाँ पानी न रुकता हो।

ढराइ-ढराई :: (सं. स्त्री.) ढालने का काम या भाव ढालने की मजदूरी ढलाई।

ढराव :: (सं. पु.) ढलने या ढलने की क्रिया, ढंग या भाव।

ढर्रा :: (सं. पु.) सिलसिला, रिवाज, परम्परायें।

ढलाचला :: (सं. पु.) चलती हुई रूढ़ि या परम्परा लोक गीत. चलौ जौ जान दो ढला चला, सन्यासी लला बैरागी लला।

ढाइ :: (वि.) दो और आधा, ढाई।

ढाँई :: (सं. स्त्री.) दहाई, दस इकाई, जो तौ दाँई की ढाँई रोटी खात, केवल इसी संदर्भ में प्रयुक्त।

ढाउढप्प :: (वि.) आकार में विशेष बड़ा।

ढाँक :: (सं. स्त्री.) गोटों में बजाई जाने वाली ढोलक।

ढाँक :: दे. डोरू गोटों में ढोल बजाने की शैली।

ढाँकबौ :: (क्रि.) ढकना, छुपाना।

ढाँग :: (सं. पु.) वह जिसमें आस पास तमाम पौधे हों और जमीन भी ऊँची नीची हो।

ढाँच ढाँचौ :: (सं. पु.) किसी वस्तु का बनाया हुआ प्रारंभिक स्थूल रूप अस्थि पंजर, ऊपरी नक्शा।

ढाट-ढाटौ :: (सं. पु.) शीशी के मुँह के अंदर लगाने वाला कॉर्क, ढक्कन।

ढाड़ :: (सं. स्त्री.) चीत्कार, चीख, चिग्घाड़।

ढाड़बो :: (क्रि.) रोना, जोर जोर से चिल्लाकर रोना।

ढाँड़बो :: (क्रि.) पशुओं को पतले दस्त होना, मनुष्य के साथ भी व्यंग्यार्थ में प्रयुक्त।

ढाँडा :: (सं. पु.) बूढ़ा बैल।

ढाँडू :: (वि.) शरीर से मोटा ताजा किन्तु शक्ति में कम।

ढाप-ढपली :: (सं. स्त्री.) एक खेल, बच्चे आपस में मिलकर किसी डिब्बे आदि को बजा कर ढाप-ढपली खेलते हैं।

ढाँपबो :: (सं. क्रि.) बंद करना, ढकना।

ढार :: (सं. पु.) किसी चोट पर किसी तरल दवा को बहाकर लगाने या बार बार तर करने की क्रिया, किसी बात को सीधे न कहकर दूसरे तरीके से कहना, उदाहरण-ढारकें बात कहना।

ढारबौ :: (क्रि.) शंकर जी, देवी आदि देवताओं पर जल चढ़ाना, खेतों में सिंचाई करना, साँचे में ढालना, व्यंग्योक्ति या अन्योक्ति करना।

ढारें :: (सं. स्त्री.) कान में पहनने का एक आभूषण।

ढाल :: (सं. स्त्री.) तलवार का वार छेड़ने के लिए एक हथियार, आगे की ओर क्रमशः नीचे होती गयी जमीन, उतार, जबारों के चल समारोह में एक ऊँचे बाँस पर हुए जबारे जिसको छेडा जाता है, कागज और मिट्टी की कुट्टी से बनायी गयी टोकरी।

ढाल :: (कहा.) ढाल तलवार सिरहाने, और चूतड़ बंदी खाने - कायर आदमी, हथियार तो पास मेें पर लड़ने की हिम्मत नहीं।

ढाँसबो :: (क्रि.) खाँसना।

ढिक :: (सं. स्त्री.) दीवार के किनारे किनारे जमीन पर पोती हुई पट्टी इसके बाद लीपा जाता है, धोती या दुपट्टे की किनार, किनारा (डिग भी है)।

ढिकरी :: (सं. स्त्री.) परीता रखने की थुमिया।

ढिकाँ :: (क्रि. वि.) पास, निकट, नजदीक।

ढिकौला :: (सं. पु.) बड़ी टोकनी, कागज को गला कर, कूटकर मुलतानी मिट्टी मिलाकर बनायी गयी टोकनी।

ढिकौली :: (सं. स्त्री.) कागज की टोकनी।

ढिग :: (वि.) अव्य, पास, समीप, नजदीक।

ढिग :: (सं. स्त्री.) रोटी की किनार, कपड़े का किनारा, तट।

ढिंग :: (क्रि. वि.) पास, नजदीक, उदाहरण-हमाए ढिंग आ जाओ।

ढिंगसार :: (सं. पु.) तैयारी करने में लगायी जाने वाली अनावश्यक देरी।

ढिंगा :: (क्रि. वि.) पास, निकट।

ढिंगा :: दे. ढिकाँ।

ढिंगा :: (कहा.) ढिंका मातनो दूर पानी, दूर मातनों ढिंगा पानी - वर्षा ऋतु में चन्द्रमा के चारो ओर बना प्रभा-मण्डल यदि आकार मे छोटा हो तो समझना चाहिए कि पानी देर से बरसेगा और बड़ा हो तो शीघ्र बरसेगा।

ढिंग्गा :: (सं. पु.) अभद्र पुरूष, समीप।

ढिटोंई :: (सं. स्त्री.) ढीटपन।

ढिड़ना, ढिंड़िया :: (वि.) आलसी।

ढिडिया :: (सं. स्त्री.) छोटी डली, टोकनी।

ढिड़ोई :: (सं. स्त्री.) अपशब्द।

ढिंडोरा :: (सं. पु.) मुनादी, डुग्गी बजाकर की गयी घोषणा।

ढिबरी :: (सं. स्त्री.) दीपक के काम आने वाली डब्बी, टेबरी, बोल्ट पर कसा जाने वाला नट, मिट्टी के तेल से जलने वाला बंद तेल कोष का दिया।

ढिमका :: (सर्व.) अमुक, फलाँ।

ढिमरया :: (वि.) ढीमरों का राग।

ढिमरिया :: (सं. स्त्री.) कहारिन. पानी लाने वाली।

ढिमरौरा :: (सं. पु.) ढीमरों का मोहल्ला।

ढिमरौला :: (वि.) ढीमरों का मुहल्ला।

ढिम्मा :: (सं. पु.) ढेला, मिट्टी आदि का जमा हुआ पिंड।

ढिरिया :: (सं. स्त्री.) सूत कातने का एक काष्ठ यंत्र, नौरता में दीपक जलाकर ले जाने वाला कई छेदों वाला घड़ा जिसके अंदर जलता हुआ दीपक रखकर नौरता के अंतिम दिन लड़कियाँ इसे मुहल्ला के हर दरवाजे के सामने ले जाती है, तथा आशीष गीत गाकर पैसा तथा अनाज लेती है, यही ढिरिया कहलाता है।

ढिरिया :: दे. नौरता।

ढिलकुस :: (सं. स्त्री.) पसलियों और कूल्हे के बीच का बाग।

ढिलबो :: (अ. क्रि.) झीला होना, खुलना, बंधन मुक्त होना।

ढिलमुतान :: (सं. पु.) लटकती हुई मुतौरू वाला बैल, यह चलने में अच्छा नहीं माना जाता है।

ढिलयाबौ :: (कि.) ढीला करना, तत्परता में कमी करना, शिथिल होना।

ढिलाबो :: (क्रि.) ढीला कराना, बंधन मुक्त कराना।

ढिलाव :: (सं. स्त्री.) ढीलापन।

ढिल्लौ :: (वि.) ढीला, शिथिल।

ढी :: (सं. स्त्री.) नदी का कगार, किनारा, तट।

ढीकी आँख :: (वि.) गीला।

ढीठ :: (वि.) बेशर्म जिस पर समझने या डाँटने का कोई प्रभाव न पड़े।

ढींडा :: (सं. पु.) टुकड़ा, गुड़ या मिट्टी या अन्य वस्तु का बंध कर बन गया ढेला।

ढीमर :: (सं. पु.) धीवर, पानी भरने वाली एक जाति।

ढील :: (सं. स्त्री.) शिथिलता, तनाव में कमी।

ढीलबौ :: (क्रि.) जानवरों को चरने के लिए छोड़ना, गाड़ी या रहँट आदि की जुताई से चरने और विश्राम के लिए मुक्त करना।

ढीलौ :: (वि.) दे. ढिल्लौ।

ढीह :: (सं. पु.) ऊँचा टीला।

ढुकासौ :: (क्रि. वि.) प्यासा।

ढुँगास :: (सं. स्त्री.) प्यास (व्यंग्यार्थ)।

ढुडउआ :: (सं. पु.) खोजने वाला।

ढुड़क :: (सं. स्त्री.) ढोलक।

ढुडकउआ :: (सं. स्त्री.) दरवाजे पर बने गेवरी के निशान।

ढुड़डुरू मिर्चे :: (वि.) संयुक्त कालीमिर्च सामासि शब्द।

ढुड़डो-ढुड़डी :: (सं. स्त्री.) बूढ़ा बूढ़ी।

ढुँड़बाबो :: (सं. क्रि.) खोजवाना, पता लगाना।

ढुड़ी :: (सं. स्त्री.) रीढ की हड्डी का सबसे निचला भाग।

ढुडैला :: (सं. पु.) मरा पशु।

ढुड्ड :: (सं. स्त्री.) पैर में फँसा कर गिरा देने की क्रिया तथा मुद्रा।

ढुनकाबो :: (क्रि.) गिराना, ऊपर से नीचे की ओर गिराना।

ढुबाई :: (सं. स्त्री.) यहाँ से वहाँ सामान ले जाने की क्रिया, ढुलाई, ढुलाई का पारिश्रमिक।

ढुबारी :: (सं. स्त्री.) पशुओं की, पशुओं के वापिस आने का समय।

ढुरऊ :: (सं. स्त्री.) पशु संबंधी, पशुओं की।

ढुरऊ बखरी :: (सं. स्त्री.) वह आँगन जहाँ पशु बाँधे जाएँ, जानवरों के रहने का स्थान।

ढुरकिया :: (सं. स्त्री.) ढोलक, छोटी ढोलक।

ढुरकी :: (सं. स्त्री.) पानी निकालने का साधन।

ढुरग सैर :: (सं. पु.) जानवरों के जाने का रास्ता।

ढुरबौ :: (क्रि.) गोल वस्तु का ढाल पर ढुड़कना, पक्ष में होना।

ढुराई :: (सं. स्त्री.) ढोने की क्रिया, ढुलाने की उजरत।

ढुराबो :: हाथ से हिलाना, हवा करना।

ढुर्रा :: (सं. पु.) पगडंडी गली।

ढुलकया :: (सं. स्त्री.) ढोल बजाने वाला।

ढुलकिया :: (सं. स्त्री.) छोटी ढोलक।

ढुलकी :: (सं. स्त्री.) छोटी ढोलक।

ढुलढुलौ :: (वि.) बहने योग्य, पतला।

ढुलना :: (सं. स्त्री.) बाँस का एक प्रकार का बर्तन जिसमें मछली पकड़ कर रखी जाती है।

ढुलनियाँ :: (सं. स्त्री.) गले की सांकल या धागे के बीच में पड़ा हुआ बड़ा तथा लम्बे आकार का सोने, चाँदी, काँच या चीनी मिट्टी का गुरिया, एक प्रकार की लौकिट।

ढुलाई :: (सं. स्त्री.) माल ढ़ोने का मेहनताना।

ढुलाबारौ :: (सं. पु.) शरीर की पसलियों वाले भाग की हड्डियों का काँच, मरे हुए पशु का अस्थि पंजर।

ढुलिया :: (सं. स्त्री.) दे. डलिया, पान रखने की बड़े बड़े छेदों वाली बाँस की टोकरी।

ढुलियाँ :: (सं. स्त्री.) बैलों के गले का जेवर, अनाज ढोने की टोकनी।

ढुल्ला :: (सं. पु.) रहँट में लगने वाली एक प्रकार की खूँटी।

ढूँकबो :: (क्रि.) झाँकना।

ढूँका :: (सं. पु.) कुछ देखने सुनने या किसी को पकडने आदि के लिए चुपचाप आड़ में छुपना।

ढूँड़बौ :: (सं. क्रि.) खोजना, तलाश करना।

ढूमा :: (वि.) भोली, मूर्खता की कोटि की सीधी।

ढूमा :: (सं. स्त्री.) में प्रयुक्त एक नाम।

ढेंक :: (सं. पु.) जल पक्षी, एक माँसाहारी पक्षी।

ढेकना :: (सं. पु.) खटमल।

ढेंकरी :: (सं. स्त्री.) सिंचाई का साधन, जिसे ढेंकी भी कहते है।

ढेंकली :: (सं. स्त्री.) नीचे स्थान से ऊँचाई पर पानी उठाने का एक पारम्परिक साधन या यंत्र।

ढेंकाढाई :: (सं. स्त्री.) किसी काम को एक दूसरे पर टालने की क्रिया।

ढेंगर :: (सं. पु.) गड़रियों का एक गोत्र।

ढेंच :: (सं. पु.) जलपक्षी, बड़े-बड़े लम्बे पक्षी जो मछली खाते हैं।

ढेड़का :: (सं. पु.) अर्थ अज्ञात, नंगे उघाड़े बच्चों के लिए उपमा के रूप प्रयुक्त ढीड़ का उच्चारण भी पाया जाता है।

ढेड़ा :: (सं. पु.) कौआ, एक आँख से देखने वाला या तिरछी आँखों से देखने वाला।

ढेंड़ा :: (सं. पु.) कपास या सेंमल की रूई के फ्ल।

ढेंढस :: (सं. स्त्री.) टिंडा, एक साग, तरकारी का प्रकार।

ढेर :: (सं. पु.) राशि, टाल, पुंज, उदाहरण-ढेर करबो-मार डालना, ढेर हो जाबो-मर जाना, ढेरन-बहुत सारी, पिगाह।

ढेरने :: केडा, दाबना।

ढेरबो :: (क्रि.) ढेरा पर रस्सी या दरी बनाने के लिए क्रमशः सन या रूई का मोटा सूत कातना।

ढेरबो :: (क्रि. वि.) तिरछो देखना।

ढेरा :: (सं. पु.) सन या मोटा सूत कातने का यंत्र जिसको तकली की तरह लटका कर चलाया जाता है।

ढेरो :: (सं. पु.) जिसकी आँखों की पुतलियाँ देखने में बराबर न रहती हो।

ढेलो :: (सं. पु.) मिट्टी, पत्थर आदि का टुकड़ा।

ढैंकली :: (सं. स्त्री.) कच्चे कुँआ से पानी निकलाने का एक उपकरण।

ढैया :: (सं. पु.) ढाई सेर का बाँट, ढाई गुने का पहाड़ा।

ढोंकर :: (सं. पु.) बैलगाड़ी के घुए में लगने वाली लकड़ी।

ढोका :: (सं. पु.) लकड़ी का टुकड़ा।

ढोंका :: (सं. पु.) लाँक का पूरा या पूला।

ढोंग :: (सं. पु.) ढकोसला, पाखण्ड, आडम्बर, नकली व्यवहार, उदाहरण-ढोंग धतूरो-बनावटी पन।

ढोंगा :: (सं. पु.) ऐसी ऊँची चौरस भूमि जिसके चारो तरफ नीची जमीन हो।

ढोंगी :: (वि.) ढोंग करने वाला, पाखण्डी।

ढोंचा :: (सं. पु.) साढे तीन का पहाड़ा।

ढोंचा :: (प्र.) एक ढोचें साढ़े तीन, दो ढोंचे सात आदि।

ढोंढेरा :: (सं. पु.) सबको सुनाकर चिल्ला-चिल्ला कर कहना।

ढोबा :: (सं. क्रि.) माल ढोने की क्रिया।

ढोबो :: (सं. क्रि.) ढोना, वहन करना।

ढोबौ :: (क्रि.) ढुलाई करना, उत्तरदायित्व का निर्वाह करना।

ढोर :: (सं. पु.) पालतू दुधारू पशुओं का सामूहिक नाम विशेष रूप से गायों के लिए प्रयुक्त।

ढोर :: (कहा.) ढेर से नर्रयात - ढोर की तरह चिल्लाते हैं, किसी के बुरी तरह चिल्लाने पर।

ढोरबौ :: (क्रि.) उड़द और मूँग को थाली में ढड़का-ढड़का कर साफ करना।

ढोरा :: (सं. पु.) दाल दलते समय जतरिया के मुँह में न जाकर ढड़क कर दाल में मिल जाने वाले साबुत दानें।

ढोल :: (सं. पु.) बडी ढोलक जो प्रायः शिकार के लिए की जाने वाली इकाई में बजायी जाती है।

ढोल :: (मुहा.) ढोल की पोल ऊपरी दिखावा मात्रा।

ढोल पीटबो :: (कि. वि.) चारों ओर कहते फिरना।

ढोलक :: (सं. स्त्री.) छोटा ढोल।

ढोलकिया :: (सं. पु.) ढोलक बजाने वाला।

ढोलकिया :: (सं. स्त्री.) छोटा ढोल।

ढोला पंड़वा :: (सं. पु.) बुन्देली लोकगीतों की एक शैली, इसमें महाभारत की कथाएँ गायी जाती हैं।

ढोला पंड़वा :: (सा. श.) दे. पण्डवा।

ढोली :: (सं. स्त्री.) सौ या दौ सौ पानों की गड्डी, पान के पत्तों की एक हजार की इकाई।

ढौंचा :: (सं. पु.) एक पहाड़ा जिसमें क्रम से अंकों की साढ़े चार गुनी संख्या होती है।

ढौर-वि. ढंग :: ढौरो, लक्षण, गुण, उदाहरण-कछू ढंग-ढौरो सीख लौ।