विक्षनरी:बघेली-हिन्दी शब्दकोश
संकेत
- संज्ञा—(सं.)
- सर्वनाम—(सर्व.)
- क्रिया—(क्रि.)
- विशेषण—(वि.)
- अव्यय—(अव्य.)
- क्रिया विशेषण—(क्रि.वि.)
- योजक—(यो.)
- सहायक क्रिया—(स.क्रि.)
- पुलिंग—(पुं.)
- स्त्रीलिंग—(स्त्री.)
- बघेली मुहावरा—(ब.मु.)
- अइसन—(अव्य) इस प्रकार, इस प्रकार से, इस प्रकार का, ऐसा।
- अइसा—(अव्य) ऐसा, इस प्रकार ।
- अइसै—(अव्य) यों ही, ऐसे ही, बिना उद्देष्य विषेष के।
- अइँचड़—(विषे.) दबंग, शक्ति सम्पन्न, जोरदार, समर्थवान।
- अइँडाब—(क्रिया) अकारण अकड़ना, लड़ने-झगड़े को उद्धृत होना, शरीर तोड़ना।
- अइढ़ब—(क्रि.वि.) इधर कहने पर उधर जाना, टाल-मटोल कर चमकते हुए चल देना।
- अइना—(संज्ञा) आयना, दर्पण, शीषा।
- अइहेय—(क्रि.भवि.) आओगे, क्या आयेंगें।
- अइहैं—(क्रिया) आयेंगे। फिर आयेंगे ?
- अइहौं—(क्रि.भवि.)आऊँगा, आऊँगी।
- अइहीं—(क्रि.भवि.) आयेंगी, आयेगा, सुनिष्चिता बोधक।
- अइठब—(क्रि.वि.) झटका मारकर लूटना, धोका देकर ले लेना।
- अइँठी—(सं.स्त्री.) एक प्रकार की घुमावदार स्प्रिंग की तरह की वनस्पति।
- अइर—(क्रिया) फसल कटने पर पषुओं का स्वतंत्र विचरण, स्वच्छन्द।
- अइरहा—(सं.पु.) आवारा पषु, ऐसा पषु जिसके मालिक का पता न हो।
- अइलाब—(क्रिया) कुम्हला जाना, मुरझाना।
- अइलान—(विषे.) कुम्हलाई हुई, कुछ सूखा हुआ।
- अइली—(सं.सी) एक वनौषधि पौध।
- अइन-अइन—(विषे.) अच्छा - अच्छा, सुन्दर-सुन्दर, पुष्ट - पुष्ट, उपयोगी - उपयोगी।
- अई—(क्रिया) आयेगा, आइए, आगमन हो, अईराम की जयी लगोदा, बघेली मुहावरा।
- अइसनै—(अव्य.) ऐसे ही, यों ही, बिना प्रयोजन, सहजतः, ऐसा ही।
- अइरी-गइरी—(अव्य) टाल-मटोल, आना- कानी, बहानेबाजी।
- अइरा-गइरा—(अव्य) ऐसा-वैसा, अस्तित्व विहीन, बघेली मुहावरा।
- अइसा-ओइसा- अइसा-ओइसा—(अव्य) ऐसा-वैसा, गया- गुजरा, यों-त्यों।
- अइहू—(क्रि.भवि.) आओगी, आओगी तो, क्या आओगी ?
- अइँचब—(क्रिया) निकाल लेना, खींचना, अपनी ओर कर लेना।
- अइरौ-मइरौ—(अव्य.) यों ही, अकारण, बिना उद्देष्य के, ऐसे ही!
- अउचट—(विषे.) जोरदार, बहुत तेज, आवष्यकता से ज्यादा।
- अउ—(अव्य) और, और कुछ।
- अउरब—(क्रिया) कार्य के लिए विवेक, जागृत होना, त्वरित उपाय सूझना।
- अउर—(अव्य) और, और अधिक, अन्य या अलग।
- अउसर—(सं.पु.) उत्सव, मांगलिक कार्य, आयोजन।
- अउसरहा—(विषे.) जिस घर में उत्सव हो रहा हो, कार्यक्रम वाला घर।
- अउसेर—(सं.पु.) विलम्ब, समय बीत जाना, समय सीमा निकल जाना।
- अउँजब—(क्रिया) घड़ा झुकाकर पात्र में पानी गिराना।
- अउँछाब—(क्रिया) निद्रा आना, सोने की स्थिति बनना, आँखों का अलसाना।
- अउँखब—(क्रिया) बिना गाँठ लगाये खूटें में रस्सी बाँधना, सरफंदी लगाकर बाँधना।
- अउझड़ी—(विषे.) मूडी व्यक्ति, झक्की किस्म का, जो सुर आये वही करने वाला।
- अउटब—(क्रिया) ओटना, मर्दन करना, तरल को पकाकर गाढ़ा करना।
- अउटबाई—(क्रिया) औटने के बदले प्राप्त लाभांष, पारिश्रमिक या परितोषिक।
- अउटबाउब—(क्रिया) औटवाना, औटने में सहयोग करना।
- अउरेब—(विषे.) कमी, कमजोरी, दुर्गुण, कमियाँ।
- अउँघहटा—(विषे.) सोते हुए, अर्द्ध निद्रा में ग्रसित व्यक्ति।
- अउलट—(विषे.) आँखों से दूर, अदृष्य, आँख के ओट में।
- अउना—(सं.पु.) मिट्टी के पात्र या बखार में रखा गया निचला क्षिद्र।
- अउनब—(क्रिया) कपड़े से बन्द बखार के क्षिद्र को खोलना।
- अउँध—(विषे.) जमीन पर रखी अधोमुख वस्तु, मुँह के बल।
- अउँधाउब—(क्रि.वि.) जमीन पर वस्तु को मुख के बल रखना।
- अउरी—(सं.पु.) समय निकल जाना, अवधि बीत जाना, मौक चूक जाना।
- अउचड़—(विषे.) बहुत तेज, आवष्यकता से अधिक, जोरदार।
- अउँठा—(सं.पु.) हाथ या पैर का अँगूठा, स्त्री.लिंग ‘अउँठी’।
- अउटा—(सं.पु.) दीवाल से सटा ऊँचा अमठ, आँगन के समानान्तर का दीवाल से जुड़ा अमठ।
- अउटी—(सं.स्त्री.) दूध हल्दी गुड़ से पका हुआ काढ़ा, सर्दी की औषधि।
- अउन-पउन—(क्रिया) जुगाड़ बनाना, इधर का उधर करना, आपस में भिड़ा देना, कानाफूसी करना।
- अउब—(क्रि.भवि.) आउँगा, आउँगी।
- अउबै—(क्रि.भवि.) आयेंगे ? आओगे ?
- अउबैकरब—(क्रिया) आऊँगा ही, आऊँंगी ही, निष्चय बोधक।
- अउतै रहेन—(क्रिया) आता ही था, आ ही रहा था।
- अउतै हैन—(क्रिया) आता ही हूँ, आती ही हूँ।
- अउँखा—(सं.पु.) कामर का एक पहलू, कामर का एक हिस्सा।
- अउतै रहिगें—(क्रिया) आते ही रह गये, आते ही रहे, आना लगा ही रहा।
- अउतै रहिगै—(क्रिया) आती ही रही, आती ही रह गयी, आना लगा ही रहा।
- अउतै आवत—(अव्य) आते ही आते, जैसे ही आये वैसे ही।
- अउता—(अव्य) और तो, नहीं तो
- अऊ—(विषे.) और अधिक, कुछ और मात्रा और आगे।
- अकरास—(सं.पु.) आहार से अधिक खा लेने पर उत्पन्न बेचैनी, कष्ट, तकलीफ, खहाल।
- अकरासब—(क्रिया) बेचैनी होना, तकलीफ होना, कष्ट होना, खल जाना।
- अकबकाबा—(क्रिया) अटपटा लगना, बेचैनी होना, प्राण छटपटाना, घबड़ाना।
- अकारथ—(विषे.) जो किसी काम लायक न हो, जो अनुपयोगी हो, व्यर्थ की वस्तु।
- अकना—(सं.पु.) दाने रहित मक्के के बीच का डंठल।
- अकताब—(क्रिया) कार्य के लिए आतुर होना, जल्दी बाजी मचाना, कार्य के लिए छटपटाना।
- अकताई—(विषे.) आतुरता, तत्परता, चौकन्ना, छटपटाहट।
- अँकड़ी—(सं.स्त्री.) गेहूँ चना की फसल के साथ उगने वाली एक घास विषेष।
- अँकड़ा—(सं.पु.) बन्दरों के समूह का मुखिया।
- अँकुरब—(क्रिया) अंकुरित होना, प्रस्फुटित होना, ऊपर उगना।
- अकहुर—(विषे.) दोनों पहलुओं का असमान वजन, छोटा-बड़ा की स्थिति।
- अकहुरब—(क्रि.वि.) कामर का भार कम अधिक के कारण इधर-उधर झुकना।
- अकबकाई—(विषे.) बेचैनी की अनुभूति, घबड़ाहट लगना, व्याकुलता, छटपटाहट।
- अकनइया—(सं.स्त्री.) मक्का के फल का दाना रहित डंठल।
- अकबार—(स.पु.) दोवाह के बीच की जगह, अकबार लेना व. मु.।
- अक्तिआर—(सं.पु.) अधिकार या साहस, हिम्मत और दायित्व।
- अकोर—(सं.पु.) घूँस, लाँच, अनुचित साधन से कमाया गया धन।
- अकोरी—(विषे.) लोभी-लालची, घूँस लेने की प्रवृत्ति वाला, बिना लिये कार्य न करने वाला।
- अखम्भ—(विषे.) बहुत मेहनती, जो थके नहीं, खंभे की भाँति खड़ा रहने वाला।
- अखइनी—(सं.स्त्री.) बाँस की हुकदार कृषि कार्य की लकड़ी।
- अखरब—(क्रिया) खल जाना या खलना, हृदय में घाव हो जाना।
- अखुँआ—(सं.पु.) बाँस या गन्ना के तना की गाँठ से स्त्री.लिंग ‘अंखिया’। पौधे में अंकुरित आँख।
- अखरा—(सं.पु.) अक्षर, आवाज, वाणी, बोल।
- अँखमुंद—(क्रि.वि.) आँख मींचकर, सिर नीचे किये हुए, आँख मुदी गति।
- अखइबर—(विषे.) जो कभी न मरे, जो कभी न हटे, अजर-अमर, अखइबर होना, बघेली मुहावरा।
- अगता—(विषे.) आगे से, समय से पहले, पूर्व से ही।
- अगउढ़ी—(विषे.) कार्य के पूर्व लिया गया अग्रिम अनाज, अनुबंध अग्रिम।
- अगुयै—(विषे.) पहले ही, आगे से ही, समय से पूर्व ही।
- अगॉकर—(सं.स्त्री.) आग के मन्द आँच से पकाई गई रोटी।
- अगाध—(सं.पु.) उलाहना, गाली, दोषारोपण।
- अगहर—(विषे.) अग्र सोची, आगे से, समय रहते, समय से पूर्व।
- अगरासन—(विषे.) भोजन करने से पहले निकाला गया अंष, अग्र-राषन।
- अगिया बइताल—(सं.पु.) बात-बात पर आग उगलने वाला, लड़ाकू एवं झगड़ालू प्रवृत्ति वाला, ब.मु.।
- अगिया कोइलिया—(विषे.) आगी की लपट की तरह लड़ने वाली, अति जहरीली, बघेली मुहावरा।
- अगिलब—(क्रिया) आगे की ओर चलना, चलकर आगे ले जाना।
- अगोछब—(क्रिया) जाते हुए को दौड़कर आगे से रोकना, पहले से रास्ता अवरूद्ध करना, आगे होकर रोक देना।
- अँगुरी—(क्रि.सं.स्त्री..) उँगुली, अंगुल।
- अगुँरिआउब—(क्रिया) उँगुली से संकेत करना, इषारा करना।
- अगरिया—(सं.पु.) आदिवासी की एक प्रजाति, लोहे का औजार बनाने वाली जाति।
- अगउॅछी—(सं.स्त्री.) बड़ी साफी, दो मीटर लम्बी रूमाल, तौलिया, टावल, पुलिंग ‘अंगउछा’।
- अगीठी—(सं.स्त्री.) आग जलाने हेतु निर्मित मिट्टी की थाल विषेष।
- अँगरा—(सं.पु.) आग का अंगार, आग के टुकड़े, स्त्री.लिंग ‘अँगरिया’।
- अगड़ान—(विषे.) दूध दुहने योग्य अकड़े हुए थन, दूध उतरा हुआ थन।
- अगड़ाउब—(क्रिया) दुधारू पषुओं के थन या बाल को दुहने लायक बनाना।
- अगहनी—(विषे.) अगहन या रवी की ऋतु, अगहन की फसलें।
- अगधर—(विषे.) पहले या आगे से ही, निर्धारित समय से पूर्व।
- अगोछा—(क्रिया) भागते हुए व्यक्ति को दौड़कर उसे आगे होकर घेरना।
- अगोछबाउब—(क्रिया) किसी को दौड़कर बढते हुए कदमों को रोकवा देना।
- अगत्ति—(विषे.) गयी-गुजरी, जीर्ण- षीर्ण, जो किसी काम लायक न रह गई हो वह।
- अगमदहार—(विषे.) बहुत गहरा, इतना गहरा कि थाह न मिले।
- अगुआ—(सं.पु.) आगे होकर कार्य करने वाला, कार्य का सबसे पहले दायित्व सम्हानले वाला।
- अगेला—(क्रिया) आगे की ओर गतिमान होना, सीधे सामने चलना।
- अगाह—(सं.पु.) चेतावनी, संकेत, सावधान, सूचित।
- अगुआनी—(सं.स्त्री.) अगुवानी, स्वागत के साथ किसी को लेना।
- अगनई—(सं.पु.) आँगन का भीतरी प्रक्षेत्र, आँगन की तरफ की जगह (अव्य)
- अगीत—(अव्य.) आगे का भाग, आन्तरिक पहलू, द्वार के ओर का भाग।
- अगरिया—(सं.पु.) लोहे का कार्य करने वाली जाति, लुहार गु्रप की जाति।
- अगनइया—(सं.स्त्री.) छोटा आँगन, आँगन का प्रक्षेत्र।
- अगीहा—(सं./वि.) वह व्यक्ति जो अग्निदाह किया हो, दाह संस्कार करने वाला।
- अगरधत्ता—(स.पु.) बिना जड़, पत्ता की एक लता।
- अघान—(विषे.) जिसका पेट भरा हो, भोजन से संतुष्ट।
- अघाब—(क्रि.वि.) पेट भर जाना, भूख मिट जाना।
- अघबाउब—(क्रिया) खिलाकर पेट भरवाना, मारने के लिए लाक्षणिकता।
- अघबा—(विषे.) मवाद भरा हुआ घाव, पका हुआ फोड़ा।
- अघट्ट—(सं.पु.) असत्य या अघटित, सरासर झूँठ।
- अँचउब—(क्रिया) खाना खाने के पष्चात् हाथ-मुँह धोना।
- अचबाउब—(क्रिया) जूठा हाथ-मुँह धुलवाना, धुलाने में मदद करना।
- अचरब—(क्रिया) न्यायोचित होना, शोभा देना, उचित प्रतीत होना।
- अँचरा—(सं.पु.) आँचल, साड़ी का एक पल्लू।
- अचकन—(सं.पु.) कमर में बाँधने वाला राजसी परंपरा का अंगौछा।
- अँचउबेय—(क्रिया) क्या जूठा हाथ मुँह अब धोओगे, आचमन करोगे ?
- अचरज—(अव्य) आष्चर्य, अकाल्पनिक, असंभावित।
- अजनास—(विषे.) आलसी एवं लापरवाह, लुंज-पुंज, ढीला-ढाला एवं अकर्मण्य।
- अजिआउर—(सं.स्त्री.) दादी का मायका, दादी की जन्मभूमि।
- अजमाइन—(सं.स्त्री.) एक मसाले का पौध, ग्राम्य-औषधि फल।
- अजलेम—(विषे.) असत्य, सरासर झूठ, निराधार एवं मिथ्या।
- अजार—(विषे.) अषुभ गाली, दैवी प्रकोप की अषुभ कामना, दरिद्र, ब.मु.।
- अजीरन—(ब.मु.) अजीर्ण, अपच, अजीरन हो, बघेली मुहावरा।
- अजुयै—(अव्य) आज ही।
- अँजुरी—(सं.स्त्री.) अँजुरी, वर-वधू के विवाह के समय संयुक्त अंजुली में भरा जाने वाला परम्परागत भुना अन्न, एक वैवाहिक लोकगीत।
- अजुरिहाई—(सं.स्त्री.) दुरागमन के समय धारित साड़ी विषेष।
- अजिगर—(सं.पु.) एक लम्बा-मोटा सर्प, अजिगर साही ब.मु.।
- अँजोर—(सं.पु.) प्रकाष, उजाला।
- अँजोरी—(विषे.) उजियाला, अँजोर, शुक्ल पक्ष।
- अँजबाउब—(क्रिया) आँख में काजल लगवाना, काजल लगवाने को तैयार होना।
- अँजमाउब—(क्रिया) अदांज करना, परीक्षण करना, थाह लेना, मन टटोलना।
- अँजान—(सं.स्त्री.) एक धान विषेष।
- अँटकर—(क्रिया) अंदाज करना, अवगत होना, जायजा लेना।
- अटकरपंचे—(विषे.) अन्दाजवष, अनुमान से, अनुभव से, अटकर पंचे वीसा सौ, बघेली मुहावरा।
- अटहर—(विषे.) अड़चन युक्त, असाधारण व्यवस्था, जटिल व्यवस्था।
- अट्टाटोर—(विषे.) एकदम नया, बहुत मजबूत, टिकाऊ।
- अट्टाचढ़ी—(क्रि.वि.) नहला पर दहला मारना, बढ़कर बोली लगाना, प्रतियोगिता पूर्ण बढ़ाव होना, बघेली मुहावरा।
- अटरिया—(सं.स्त्री.) अटारी, अटा, अटाल।
- अटम्मर—(विषे.) बहुत अधिक, बहुत ऊँचा, पर्याप्त, भरापूरा।
- अटब—(क्रिया) अड़जाना, रूक जाना, ऊपर ही टंगे रहना, समा जाना।
- अँटकब—(क्रिया) बीच में रूक जाना, ऊपर ही टंगे रहना, समा जाना।
- अँटकाउब—(क्रिया) उलझा देना, लफड़ा में फँसाना, गिल्ली अटकाउब, ब. मु.।
- अटइढ़ब—(क्रिया) अकड़ना, आवेषित होना, लड़ने को उद्धत होना, शरीर दिखाना।
- अट्टढ़ब—(क्रिया) आक्रोषवस मुकर जाना, अकड़ जाना, कथन को अनसुनी करके अनुचित करार करना।
- अटाला—(सं.पु.) घर-गृहस्थी में संग्रहीत सामग्री, भार, धन-वैभव।
- अटर्र—(विषे.) मिश्रित, अषुद्ध, दागयुक्त, परिवर्तित, गुणवत्ता युक्त।
- अटपट—(विषे.) बहुत तेज, दु्रतगति, विलक्षण, अजीब।
- अट्ठासी—(विषे.) अकाल व अभाव, बहुत अधिक कमी, अट्ठासी पड़ब, बघेली मुहा.।
- अठन्नी—(विषे.) आठ आने, रूपया का आधा, आधा।
- अठमाइन—(सं.स्त्री.) अष्टमी तिथि को देवी को समर्पित व्यंजन-प्रसाद।
- अठरही—(विषे.) उन्नीस, अनाज नापते समय की शुभ गिनती।
- अडारन—(विषे.) अस्तित्व विहीन, मूल्य विहीन, अनुपयोगी, बेकार।
- अढ़बा—(सं.पु.) आदेषित कार्य, किसी द्वारा कहा गया, पर कथन या कार्य।
- अढ़उब—(क्रिया) कार्य करने के लिए आदेषित करना या कहना।
- अढु़़कब—(क्रिया) रूक जाना, ठहरना, थम जाना, रूकावट होना।
- अढ़बइया—(सं.पु.) काम के लिए कहने वाला, निर्देषक या आदेषकर्ता।
- अढ़मल्ल—(विषे.) जो किसी की न सुनता हो, जो किसी का कहना न मानता हो, अडिग प्रवृत्ति किन्तु घमण्ड वष।
- अढ़इया—(सं.पु.) ढाई दिन तक रहने वाला बुखार, ढाई का पहाड़ा।
- अढ़ाई—(विषे.) ढाई, दो और आधा, दो दसमलव पाँच।
- अढ़हरिया—(सं.पु.) अरहर के घने पौधों से आच्छादित खेत।
- अड़उसा—(सं.पु.) गिरती वस्तु को रोकने वाली वस्तु, साहस या शहादत।
- अड़ाब—(क्रिया) जमीन पर गिरना, वर्तन से तरल का जमीन पर गिरना।
- अड़ाउब—(क्रिया) गिराना, ओट लगाना, रोकना, किसी के सहारे टिकाना, हाथ रोपना।
- अड़भक्का—(विषे.) अचानक, अनायास, बिना सूचना के, अप्रत्याषित।
- अड़पेंचा—(क्रि.वि.) पेंचीदा रूकावट, अड़चन आना, दबाव पड़ना, अवरोध उत्पन्न होना।
- अड़इया—(स.पु.) आड़ने वाला, रोपने वाला, गिराने वाला।
- अडुआ—(विषे.) बिना मर्दन अण्डकोष वाला वयस्क बैल, अवरोधक तथ्य।
- अतरहन—(अव्य) इतना सुंदर, इस प्रकार का, इतना अच्छा।
- अँतरा—(सं.पु.) अन्तर, दो वस्तुओं के बीच का गैप, वस्तु के नीचे की पोलाई।
- अँतरी—(सं.स्त्री.) दो घर के बीच की पतली गैल, एक दिन के अन्तर में आने वाली बुखार।
- अँतर—(सं.पु.) इत्र, सुगन्धित तेल।
- अँतरहाई—(सं.स्त्री.) इत्रदान, इत्र रखने वाला बैग।
- अँतर-अँतर—(अव्य) छोड़-छोड़कर, अंतर दे देकर, गैप दे-देकर।
- अथाई—(विषे.) पलथी मारकर स्थिर रूप से आषन लगाकर बैठा हुआ।
- अथैय—(अव्य) दोपहर और शाम के मध्य का समय, अपरान्ह।
- अदराब—(क्रिया) मन होने के बाद भी भरपूर अनुरोध करा लेना फिर तैयार होना।
- अदरब—(क्रिया) खाने के लिए व्यंग्य, ढीले खूँटे को न हिलने लायक करना।
- अदहन—(सं.पु.) चावल या दाल पकाने के लिए प्रयुक्त गर्म पानी।
- अदहरा—(सं.पु.) कण्डे का अग्नि समूह, पृथक से की गई भोजन व्यवस्था।
- अदरउटा—(क्रिया.) इच्छा होते हुए भी कार्य न करने का प्रदर्षन करना।
- अधमरा—(विषे.) अति दुर्बल, मरणासन्न, आधा मरा सा स्त्री.लिंग अधमरी।
- अधबाउर—(विषे.) कम चतुर-चालाक, अर्द्धपागल, बघेली मुहावरा।
- अधबइकल—(विषे.) आधा पागल, अर्द्ध विक्षिप्त, कुछ कम होषियार।
- अधभेसड़—(विषे.) न होषियार न मूर्ख, मन्द बुद्धिवाला।
- अधवाई—(सं.स्त्री.) कच्चे घर में लगने वाली आड़ी लकड़ी।
- अधकपारी—(सं.स्त्री.) आधे सिर में दर्दवाला एक रोग।
- अधारी—(सं.स्त्री.) भिखारी की दो पहलू वाली झोली।
- अधिअरहा—(सं.पु.) हिस्सेदार, साझीदार, बराबर का हिस्सेदार।
- अँधिया—(सं.पु.) आधे की साझेदारी, बराबर का मालिकाना हक।
- अँधिअरा—(विषे.) आधे का हिस्सेदार, बराबर का मालिक।
- अधीहा—(सं.पु.) आधे का मालिक, आधे का हिस्सेदार।
- अधमाधूह—(विषे.) बहुत अधिक फसल की उपज, बहुत मोटा-तगड़ा।
- अधबा—(विषे.) मवाद भरा पका घाव या फोड़े, बहता हुआ घाव।
- अधरम—(विषे.) अधर्म, धर्म के विरूद्ध क्रियाकलाप।
- अधविलोरा—(विषे.) आधे-अधूरे में, अपरिपक्व व अपूर्ण, न इधर का न उधर का।
- अँधरिआब—(क्रिया) अंधा हो जाना, देखकर आँखें मिच जाना, दीवाना हो जाना।
- अँधियार—(सं.पु.) अंधकार, अंधेरा, असंभव, उपाय न सूझना।
- अधबेरिया—(अव्य) दोपहर, मध्यावकाष, लन्च का समय।
- अधिआउब—(क्रिया) आधा करना, हिस्साबांट देना, अलग कर देना।
- अधमधाउब—(क्रिया) जोर-जोर से पीटना, जोर की वर्षा का होना।
- अँधरझटका—(क्रि.वि.) आँख मूँदकर कर डालना, अन्दाजवष कार्य करना।
- अनवनित—(विषे.) बेडौल, विकृत संरचना, बिगड़ा हुआ आकार, असुंदर, अनगढ़।
- अनहट—(क्रिया) अनायास झगड़ा, आष्चर्य युक्त लड़ाई, अप्रिय घटना।
- अनकब—(क्रिया) कान लगाकर गौर से आवाज व आहट को सुनना।
- अनसोहित—(विषे.) अषोभनीय, अनुचित, अच्छा न लगने वाला।
- अनटागुड़गुड़—(क्रि.वि.) किसी वस्तु का लुढ़क- लुढ़क करके गिरना, बना कार्य बिगड़ जाना, बघेली मुहावरा।
- अनटीमारब—(क्रिया) बीच में टाँग अड़ाकर काम बिगाड़ देना, भ्रमित करके मतभेद उत्पन्न कर देना, अंटी मारब, बघेली मुहावरा।
- अन्नियाव—(क्रिया) अन्याय, अनुचित व्यवहार, अभद्र क्रियाकलाप।
- अनमिल—(विषे.) अषोभनीय, तर्क रहित, अलग-थलग, मेल न खाना।
- अनभल—(विषे.) बुरा कार्य, नुकसान पहुँचाना, अशुभ मानना।
- अनगँइया—(विषे.) जो कभी आया-गया न हो, एकदम नया अपरचित।
- अनबुझझ—(विषे.) जिसके पास सही गलत समझने की समझ न हो।
- अनोय—(विषे.) बाधा रहित, झंझट विहीन, सुख-षांति युक्त।
- अनियार—(विषे.) जिसकी आँख नयी हो, विषिष्ट दृष्टि।
- अनमासब—(क्रिया) नई वस्तु को प्रयोग में लेना, कार्य में उपयोग हेतु प्रयोग करना।
- अन्तस—(सं.पु.) हृदय, आत्मा, दिल, भीतर से।
- अन्तरा—(सं.पु.) गीत का मुखड़ा, दोहराने वाली प्रमुख पंक्तियाँ।
- अनबँइता—(विषे.) विकलांग, चाल चलते समय पाँव का तितिर-बितर पड़ना।
- अनमन—(विषे.) हताष एवं निराष, गिरा हुआ मन, अप्रसन्न।
- अनझब—(क्रिया) अन्तराल होना, गैप होना, एक दिन न बीतने पाना।
- अनूठ—(विषे.) अच्छा, एकदम नया, जूठा रहित।
- अनुहारब—(विषे.) किसी के रूप की किसी से तुलना, अनुरूपता का आकलन करना।
- अनुहार—(विषे.) बनावट, समतुल्य, उनकी तरह या जैसा अनुरूप।
- अन्न—(सं.पु.) अनाज, अन्न-दाना।
- अनारब—(क्रिया) अन्याय, गलत कार्य, नुकषानदायी गतिविधि।
- अनखाब—(क्रिया) गलत कार्य से नाराज होना, डाँटना-फटकारना वरोकना।
- अनचिन्हार—(विषे.) अपरिचित, अज्ञात, जिससे जान-पहिचान न हो।
- अनहोनी—(क्रिया) अप्रत्याषित घटना, दैवी विपत्ति, अपूर्णनीय क्षति।
- अनजब्बू—(विषे.) वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ एवं अपरचित, अनजान व अबूझ।
- अनूतर—(क्रि.वि.) गाली-गलौज, दुर्वचन, बुरा-भला, उलाहना।
- अनजान—(विषे.) नादान व अबोध, ज्ञान रहित, जिसे अच्छे-बुरे की समझ न हो।
- अनरीत—(क्रिया) अन्याय व अत्याचार, नीति के प्रतिकूल कार्य, रीति-नीति एवं परम्परा के विरूद्ध काम।
- अपकिआब—(क्रिया) प्राण भड़भड़ाना, बेचैनी लगना, घुटन होना।
- अपजस—(विषे.) अपयष, दोषारोपण, कलंक।
- अपरोजिक—(विषे.) आलसी एवं कामचोर, अकर्मण्य एवं अकर्ता, सुस्त।
- अपनपौ—(सं.पु.) अपनापन, अगाध लगाव एवं झुकाव, अपनत्वता।
- अपरस—(सं.पु.) गदेली या तलवे में होने वाला एक चर्मरोग।
- अपनाउब—(क्रिया) स्वीकार करना, अपना बना लेना, ग्रहण करना।
- अपना—(सर्व) आप, तुम।
- अपनौ—(सर्व) आप भी, तुम भी।
- अपना पचे—(सर्व) आप लोग, आप सब।
- अपन-तुपन—(अव्य) आप और हम, हम-तुम, हम दोनों।
- अफॅदिआब—(क्रि.वि.) अन्दर ही अन्दर अकुलाहट होना, आंतरिक छटपटाहट होना।
- अफरब—(क्रि.वि.) खाने से पेट भर जाना, पूर्ण संतुष्ट होना।
- अबहिनै—(अव्य) अभी, अभी-अभी, इसी वक्त
- अबइया—(सं.पु.) मेहमान, अतिथि, आने वाले लोग।
- अबा—(अव्य) अभी, अभी ही।
- अबेर—(अन्य) विलम्ब, देर, मौका बीते।
- अबड़-दबड अबड़-दबड़—(क्रि.वि.)वक्त-वेवक्त, अव्बे- तव्वे, दर-दापट।
- अवाई—(क्रिया) आगवन, पदार्पण होना।
- अभ्यामन—(विषे.) भयावह, रूप का कुरूप, आष्चर्यनुमा स्वरूप।
- अभाबट—(ब.मु.) आष्चर्यनुमा अजूबा, अभावट होइगा, ब.मु.।
- अभिरब—(क्रिया) भिड़ना, लड़ने के लिए लिपट पड़ना।
- अभिराउब—(क्रिया) किसी को किसी से लड़ा देना।
- अभुआब—(क्रिया) लटछोर कर कूदना- फँदना, सवारी आने पर थिरकना।
- अभरन—(सं.पु.) अमूल्य वस्तु, अमृत तुल्य पदार्थ, बहुमूल्य प्रतीक।
- अभिटब—(क्रिया) टकराकर फिसल जाना, भिड़कर गिर पड़ना।
- अमल्लक—(विषे.) पूर्णतः या बिल्कुल, निर्दाग एवं निर्विवाद, एकदम।
- अमावट—(सं.पु.) पूड़ी की तरह सुखाया गया आम्ररस, मामा खाय अमावट, बघेली मुहावरा।
- अमिलहा—(सं.पु.) खट्टापन खाद्य पदार्थ, मषालेदार खट्टी तरकारी।
- अमलास—(सं.पु.) नषा की तलब, व्यसन की आवष्यकता, नषा करने का मन बनना।
- अमलिआब—(क्रिया) नषा करने का मन होना, नषा के बिना व्याकुल होना।
- अमचोहिल—(विषे.) आम का खट्टा-मीठा स्वाद।
- अमचुर—(सं.पु.) आम का चूर्ण, अमचुर कस खाये, ब.मु.।
- अमकोरिया—(सं.स्त्री.) बिना जाली के आम्रफल की सूखी टुकड़ियाँ।
- अमिली—(सं.पु.) इमली, बीड़ी पीने का शौकीन व आदी व्यक्ति।
- अमिसब—(क्रिया) मिलावट करना, सम्मिलित करना, दो की बात में तीसरी बात साजना, सहभागिता निभाना।
- अमाबस—(सं.स्त्री.) अमावस्या की तिथि, कालिमा या अंधेरा।
- अमरा—(सं.पु.) आँवला, औषधि फल।
- अमारख—(विषे.) बहुत अधिक, सीमा से ज्यादा, बहुत जोर।
- अमरउती—(सं.स्त्री.) जो अमरता प्रदान करे, जो अजर-अमर बनाये, जो अमृत पिला दे।
- अमिरती—(सं.स्त्री.) एक विषेष प्रकार की जलेबी।
- अमठ—(सं.पु.) बर्तन का मुखौटा, बर्तन का किनारा, घाट, नदी का तट।
- अमान—(सं.पु.) ऐतिहासिक राजा का नाम, उजड़़ा हुआ खेत, पषुओं का फसल कटनें पर विचरण।
- अमानी—(सं.पु.) ठेका का कार्य, दैनिक मजदूरी वाला काम।
- अमारी—(सं.स्त्री.) एक पौध जिसके छिलके से रस्सी बनायी जाती है।
- अमरइया—(सं.पु.) अमराई, आम के पौधों का समूह स्थल।
- अमसइया—(सं.पु.) मिश्रित करने वाला व्यक्ति, मिलावट में सहभागी।
- अमिस-खमिस—(अव्य) एक दूसरे से मिलाना- जुलाना या मिश्रित करना।
- अये—(क्रिया) आना, आइएगा।
- अरगासन—(सं.पु.) अग्रासन, अनूठा भोजन जो गाय के लिए खाने से पूर्व निकाला जाता है।
- अरहरिया—(सं.पु.वि.) अरहर के पौध का खेत, जहाँ सघन अरहर लगी हो।
- अरगासी—(सं.स्त्री.) चन्द्रमा उगने के पूर्व आकाषीय पूर्वाभाष।
- अरगासब—(क्रिया) चन्द्रमा निकलने की स्थिति का दिखना।
- अरगसनी—(सं.स्त्री.) झूले की तरह छप्पर से लटकायी गई बाँस की वह लकड़ी जिसमें घरेलू कपड़ें टाँगें जाते है।
- अरौ—(क्रिया) लड़ाई-झगड़ा, लड़ाई करने लायक कार्य, अरौ ब.मु.।
- अरछाउब—(क्रिया) बर्तन में भरे तरल पदार्थ के ऊपरी हिस्से को अलग कर लेने की क्रिया।
- अरबा—(सं.पु.) दीवाल पर रखने के लिए बनाया गया स्थान, स्त्री.लिंग अरिया।
- अरोरब—(क्रिया) अच्छा एवं बड़ा बड़ा छॉटना, रूपया, पैसा समेटना।
- अर्रा—(क्रिया) अकारण लड़ाई रोपना, विवाद के लिए स्थिति निर्मित करना।
- अरझुराब—(क्रिया) अड़चन में फॅस जाना, किसी वस्तु का लिपट जाना।
- अराररा—(अव्य) आष्चर्य बोधक चीख, वेदना युक्त स्वर।
- अर्राब—(क्रिया) वेदनात्मक चीख भरना, हारी मान लेना, विवषता की कराह।
- अरझब—(क्रिया) किसी से लिपट जाना, जिद करना, कपड़े पर झाड़ी का लिपट जाना।
- अरथिती—(सं.पु.) विष्वसनीय, जवावदार, जिम्मेदार।
- अरई—(सं.स्त्री.) हलवाह की लाठी में लगी हुई नुकीली कील, अरई गड़ाउब ब.मु।
- अरसी—(सं.स्त्री.) अलसी तिलहन।
- अरहरा—(सं.पु.) अरहर का डंठल, बड़ी दाने वाली अरहर।
- अरी—(सं.स्त्री.) ग्रामीण चक्की पर प्रयुक्त होने वाली काष्ठ का उपकरण।
- अरचन—(विषे.) अड़चन, दिक्कत, कठिनाई।
- अरी-जोती—(सं.स्त्री.) पत्थर की ग्रामीण चक्की में प्रयुक्त होने वाली पतली रस्सी एवं छोटी सी नल लकड़ी।
- अरथुत—(विषे.) आवष्यक रूप से, निषि्ंचत हो।
- अरूआ—(सं.पु.) एक कौए की विषेष किस्म, अरूआकस ब.मु.।
- अरा—(अव्य) आष्चर्य बोधक आह, ओह।
- अलबुद्दा—(विषे.) पर्याप्त मात्रा, भरा-पूरा, आवष्यकता से अधिक।
- अलफी—(सं.स्त्री.) पुराने शैली की हाफ कमीज।
- अलबी तलबी—(ब.मु.) अलवी-तलवी मारना, बघेली मुहावरा।
- अलसेट—(क्रिया) आलस्य, विलम्ब, लेट- लपेट, हीला हवाला।
- अलहन—(ब.मु.) दऊ के अलहन, बघेली मुहावरा, आष्चर्य चकित।
- अलाटप्पू—(विषे.) बिना योजना व रूपरेखा, बिना अनुभव, बिना सूचना, बिना सोचे-विचारे, अन्दाज बस।
- अलथकलथ—(क्रि.वि.) उलट-पुलट, बार-बार, घूम-फिरकर, वही-वही कार्य।
- अलहदे—(विषे.) बिल्कुल अलग, बिना दबाव व अंकुष से।
- अल्होरब—(क्रिया) सूप के सहारे अनाज के दाने छाँटने की क्रिया।
- अलमजार—(सं.पु.) कूड़ा-कर्कट व घास- फूस का ढेर, सूखी लताएॅ।
- अलियार—(सं.पु.) कूड़ा कर्कट एवं सूखी लताओं का ढेर।
- अलगा—(सं.पु.) कंधे पर वक्ष स्थल ढककर रखा गया साड़ी का एक पल्लू।
- अलोन—(विषे.) बिना नमक का खाद्य पदार्थ, आवष्यकता से कम नमक पड़ा हुआ स्वाद।
- अलबार—(सं.पु.) षिषुओं का चोचाल, माता- पिता के प्रति षिषुओं का प्रेम।
- असकहा—(विषे.) अकस्मात, अचानक, ऐसा लगा कि।
- अस—(अव्य) ऐसा, इधर, इस ओर, समतुल्य।
- असरफी—(सं.नंपु) आभूषण या सोना, बहुमूल्य धातु, दुर्लभ व वस्तु।
- असढ़िया—(सं.पु.) लम्बा मोटा सर्प, एक सर्प विषेष का नाम।
- असाख—(सं.पु.वि.) असत्य बोलना, सरासर झूठ बोलना।
- असन्ती—(विषे.) जिसका खाने से पेट ही न भरता हो, जिसको कभी संतुष्टि न होती हो।
- असाढ़ी—(अव्य) अषाढ़ महीने का कार्य, अषाढ़ में बोयी जाने वाली फसलें।
- असमै—(अव्य) इसी वर्ष, इसी सत्र में।
- असमौं—(अव्य) इस वर्ष भी, इस सत्र में भी।
- असील—(विषे.) असल, असली, सही-सही का, असली बाय का, ब.मु.।
- अस ओस—(ब.मु.) इधर की उधर, उधर की इधर, इस ओर भी उस ओर भी।
- अहटोटब—(क्रिया) मन लेना, मनोदषा जानना, तलाष करना, ठौर- ठिकाना की खोज, तथ्य की जानकारी लेना।
- अहॅदब—(क्रिया) किसी को पैरों से कुचलना, मारने-पीटने का प्रतीक, खाना-खाने के लिए व्यंग्य।
- अँहणा—(सं.पु.) एक बर्तन के नाप का दूसरा बर्तन, उसी तौल या माप का बनाया गया अस्थायी नपना या बाट।
- अँहड़ब—(क्रिया) किसी बाट की तौल का कृत्रिम बाट बनाना।
- अहिना—(अव्य) इस प्रकार, ऐसा, इस भाँति, इस तरह का।
- अहिबाती—(सं.सी.वि) सौभाग्यवती नारी, ऐसी नारी जिसका पति जीवित हो।
- अहिरान—(सं.पु.) अहीरों का मुहल्ला, अहीरों की बस्ती विषेष।
- अँहदोरब—(क्रिया) जी मिचलाना, अन्दर से उलटी का लगना, जी घूमना।
- अहिमक—(विषे.) बहुत अधिक, जोरदार, तेज-तर्राट, बहुत मात्रा।
- अहरा—(सं.पु.) रोटी बनाने के लिए लगी कण्डे की आग।
- अहरी—(सं.स्त्री.) घर से दूर सहायक घर, मवेषियों के रखने का घर।
- अहा—(अव्य) ओह! कितना बढ़िया, कितना अच्छा।
- अहेर—(क्रिया) हाँका खेलना, षिकार करना, वन्य प्राणियों पर निषाना साधना।
- अहुरा-बहुरी—(क्रि.वि.) जाना और तुरन्त लौटना, बहुत जल्दी, वापसी डॉक।
- अहारब—(क्रिया) मन मुताबिक मारना, मनचाहा उलाहना सुनाना। आ
- आउब—(क्रिया) आयेंगें ? आऊँगा, आऊँगी।
- आकर—(विषे.) असमान वजन, असंतुलित ऊँचाई, छोटा-बड़ा, ऊँची-नीची स्थिति।
- आकर दोहर—(अन्य) एक के ऊपर दूसरा, आगे-पीछे, नीचे-ऊपर।
- आँकुर—(विषे.) कड़ुबा या अरूचिकर, जहरीला स्वाद, आकुर लागै, बघेली मुहावरा।
- आँकब—(क्रिया) किसी की कीमत अंदाज से बोलना, मूल्य निर्धारण करना।
- आँक—(स.पु.) एक निष्चित मूल्यांक, कीमत या मूल्य।
- आकरन—(सं.पु.) मर्यादा एवं सीमा, सम्मानयुक्त संकोच।
- आँखा—(सं.पु.) कामर का एक पहलू, दोनों हाथ से उठाई गई फसल, डंठल।
- आखत—(सं.पु.) अक्षत, षिषु जन्म के
- समय आषीषयुक्त अन्नांष, ब.मु.आखर—(विषे.) एकदम नयी वस्तु, जो बिल्कुल प्रयोग में न लाई गई हो।
- आगा—(सं.पु.) गन्ना के अग्रभाग का कोमल भाग।
- आँगुर—(सं.पु.) अंगुल, एक अंगुल का प्रक्षेत्र या दूरी।
- आगू-पाछू—(अव्य) आगे-पीछे, एक के बाद दूसरा, आगू-पाछू बागब, ब.मु.।
- आगी के पुंज—(ब.मु.) अति लड़ाकू, अति नाराज होने वाला, बघेली मुहावरा।
- आगी—(सं.स्त्री.) आग, अग्नि।
- आँच—(सं.पु.) आग की ऊष्मा, क्षति, कुप्रभाव, दुष्परिणाम।
- आँजब—(क्रिया) अंजन लगाना, सजाना- संवारना।
- आजै—(अव्य) आज ही, आज के दिन ही।
- आजी—(सं.स्त्री.) दादी, दाई, पुलिंग ‘आजा’।
- आँटी—(सं.स्त्री.) गिल्ली- डंडा, एक ग्रामीण खेल।
- आँटब—(क्रिया) प्रहार को रोकना, आड़ लेना, रोकना।
- आँठी—(सं.स्त्री.) तरल पदार्थ के जमने से एक टुकड़ा का नाम।
- आड़र—(विषे.) बिना धुला, एकदम नया कपड़ा, अनूठा वस्त्र।
- आड़—(अव्य) बहाना, ओट, बहाना का माध्यम।
- आँड़ा—(सं.पु.) अण्डाणु, बेंड़ा स्थिति, रोको या रोकिये, एक नग या मात्रा (विषे.)
- आँड़ब—(क्रिया) बचाव करना, गिरते को थांहना, हाथ लगाकर रोक लेना।
- आडे़—(विषे.) किसी के बहाने, कारण का कारक।
- आँतर बाँह—(अव्य) बिरल ढंग से हुई खेत की जुताई, दो कुड़ों के बीच छूटी हुई भूमि।
- आँती—(सं.स्त्री.) आँत, हिम्मत या क्षमता, साहस।
- आती कोंइया—(सं.स्त्री.) आँत का ऑत से जुड़ा पेट का प्रकोष्ठ, आती कोइया मुरूरै, बघेली मुहावरा।
- आद—(सं.पु.) अदरक, एक औषधीय कन्दमूल आदि, बघेली मुहावरा।
- आँधर—(विषे.) अंधा, लाभ-हानि न समझने वाला।
- आन—(विषे.) दूसरा, पराया, अन्य आदमी, वंष परिवार से भिन्न, बाहरी।
- आने कइत—(अव्य) दूसरे तरफ, विपरीत दिषा में, अन्यत्र।
- आनतरा—(अव्य) दूसरे प्रकार का नहीं, परायापन, असंभव नहीं।
- आपरूभ—(सर्व.) अपने आप, बिना कारण के, बिना घटना के।
- आपुन—(सर्व.) स्वयं, आप, खुद, पत्नी द्वारा पति के लिए संकेत।
- आपुसमां—(सर्व.) आपस में, मित्र-मण्डली में।
- आबा—(क्रिया) आइए, आओ, मिट्टी का बर्तन पकाने वाली भट्ठी।
- आबा हो—(क्रिया) आओ, आइए, आ जाओ।
- आबा-जाही—(क्रि.वि.) आना-जाना, जीना- मरना, आमदनी- खर्च।
- आमा गोही—(विषे.) किसी वस्तु का मध्य मोटा और दोनों किनारे ढालदार।
- आमर—(सं.स्त्री.) प्रजनन पष्चात् गर्भाषय से उत्सर्जित माँस की रस्सी एवं तरल पदार्थ।
- आमछे-आमछे—(अव्य) कबड्डी के खिलाड़ी द्वारा प्रयुक्त श्वांस साधक शब्द।
- आमिल—(विषे.) खट्टा स्वाद, खटाई से परिपूर्ण, आमिल-गुरूतुल करना’, बघेली मुहावरा।
- आँय—(योज.) हैं, है, पुनर्श्रवण का तकिया कलाम, हाँ।
- आये—(क्रिया) आ गये, आ चुके।
- आये-वाये—(अव्य) ऐसा-वैसा व्यक्ति, बेडौल व्यक्ति, ऐरा-गैरा।
- आय तो—(क्रि.वि.) ठीक कहते हो, ऐसा ही है, सही तो है।
- आये ता—(क्रि.वि.) आये तो, आ तो गये, आना तो हुआ।
- आये-गये—(अव्य) आने-जाने से, परिचय बढ़ाने से, व्यवहार बनने पर।
- आर—(सं.पु.) दो खेतों की सीमा रेखा, स्त्री लिंग आरि।
- आलन—(सं.पु.) व्यंजन में पड़ने वाला अतिरिक्त मषाला।
- आलाविक्ख—(विषे.) बहुत कड़वा, एकदम जहरीला, आलाविक्ख, बघेली मुहावरा।
- आलर—(विषे.) मुलायम या कोमल, ढीली चूड़ी।
- आलगुलूगुल—(ब.मु.) अस्पष्ट, अनाप-सनाप, अस्पष्ट, बघेली मुहावरा।
- आँव—(स.पु.) पेचिस, पतला दस्त, टट्टी के साथ लाल-सफेद मवाद।
- आसँउ—(अव्य) वर्तमान वर्ष, इस साल, इस ऋतु या मौसम में।
- आसरा—(स.पु.) सहारायुक्त भरोसा, आषा व आकांक्षा।
- आँसब—(क्रिया) आस जाना, खल जाना, खटकना, कष्ट महसूस होना।
- आहीं—(स.क्रि.) हैं, हाँ, यही हैं।
- आहे—(स.क्रि.) हो, हाँ, । इ
- इआ—(सर्व.) यह, ये, अमुक।
- इआ मेर—(अव्य) इस प्रकार का, इस भाँति का, ऐसा ।
- इड्ड—(सं.स्त्री.) जिद, संकल्प, प्रतिज्ञा, हठ, इड्ड करब’ बघेली मुहावरा।
- इड्डिआब—(क्रिया) जिद करना, अपनी बात में अड़ जाना, हठ कर देना।
- इड्डी—(विषे.) जिद्दी प्रवृत्ति का व्यक्ति, हठधर्मी।
- इचँउआ—(क्रि.वि.) एकदम खींचतें हुए शैली में।
- इतराज—(सं.पु.) नाराजगी, आपत्ति, असहमति, अप्रसन्नता।
- इत्त—(विषे.) अति, सीमा लांघा हुआ, असहनीय।
- इतिनिया—(विषे.) इतनी कम, इतनी सी, इतनी ही।
- इँदरहर—(सं.स्त्री.) बेसन से निर्मित ग्राम्य व्यंजन।
- इदँरामन—(सं.स्त्री.) एक पीले रंग का सुंदर किन्तु जहरीला फल।
- इनखा—(सर्व) इनको, इसको, इसे।
- इनहीं—(पर्व) इन्हें, इनको, इसको, इसे।
- इनहित—(सर्व.) यही, इन्होंने ही, इन्हीं के।
- इन्तकाल—(क्रिया) स्वर्गवास या देहान्त।
- इन्तहान—(सं.स्त्री.) परीक्षा, इम्तहान, कसौटी, परीक्षण।
- इनमहा—(सं.पु.) ईनाम से पाई हुई वस्तु, पुरस्कार वाली चीज।
- इरखा—(विषे.) इर्ष्या, द्वेष, देखकर जलन होने का गुण।
- इलिम—(सं.स्त्री.) प्रक्रिया या विधि, दावपेंच, उपाय, तौर-तरीका।
- इलिलविलिल—(क्रि.वि.) अब्बे-तव्वे, आना- कानी, टाल-मटोल।
- इस्सर—(सं.पु.) ईष्वर, भगवान, अल्ला, परमेष्वर।
- इस्कूल—(सं.स्त्री.) विद्यालय, मदरसा, शाला, स्कूल।
- इसाब—(क्रिया) ईष्या करना, पराई प्रगति न देख सकना।
- इहैं—(अव्य) यहीं पर, यही ही, यहाँ ही।
- इहाँ—(अव्य) यहाँ, यहाँ पर, इस जगह में।
- इहैं—(सर्व) यही, यह ही। ई
- ईं—(सर्व.) यें, यह, अमुक (आदर सूचक)
- ईं—(सर्व) यह, अमुक (अनादर सूचक)
- ईं-ऊँ—(सर्व) ये और वो, यह और वह, ये औ वो।
- ईंचब—(क्रिया) खींचना, निकालना, अन्दर से बाहर करना, डूबते को पानी से खींच लेना।
- ईंछब—(क्रिया) फल का छिलका अलग करना, कंघी करना।
- ईं पचे—(सर्व) ये लोग, ये सब, लोग-बाग।
- ईं आँय—(सर्व) यह है, ये हैं, अमुक व्यक्ति।
- ईस—(सं.पु.) ईर्ष्या, जलन, द्वेष-विद्वेष। उ
- उआ—(सर्व) वह, वो, अनादर सूचक सर्वनाम।
- उइॅ—(सर्व) वह, वो, आदरसूचक सर्वनाम।
- उक्खान—(सं.पु.) उप आख्यान, कहावत या मुहावरे, लोकोक्ति।
- उक्साउब—(क्रिया) उत्प्रेरित करना, पानी चढ़ाना, कार्य के लिए खोदना।
- उक्सुर-पुक्सुर—(ब.मु.) करवट बदलना, अनिद्रा से बिस्तर में इधर-उधर हरकत।
- उकरीध—(सं.पु.) मन का ऊब जाना, कष्ट की अनुभूति, अरूचिकर।
- उँकेलब—(क्रिया) मष्तक, पषु की चमड़ी छीलना, मारना-पीटना, चिपकी वस्तु को अलग करना।
- उकरूँ—(अव्य) दोनों घुटने मोड़कर तलबे के बल बैठने का ढंग।
- उकॉव—(स.पु.) अनाज की संचित राषि, डंठल का ऊंचा ढेर
- उकठा—(विषे.) जिसका मौलिक रंग उड़ गया हो, फीका रंग वाला।
- उकसब—(क्रिया) व्यवस्थित को अस्त- व्यस्त करना, छप्पर की लकड़ी खपड़ा निकालना, रस्सी या धागे की लड़ी अलग- अलग करना।
- उकबीत—(विषे.) गर्मी के कारण पषीने से उत्पन्न बेचैनी।
- उकिठब—(क्रि.वि.) रंग का उड़ जाना, रंग-बेदरंग होना, मन्द रंग हो जाना।
- उखरब—(क्रिया) उखड़ जाना, अपने आप नष्ट होना, जड़ से अलग होगा।
- उखारब—(क्रिया) उखाड़ना, गड़ी को बाहर करना, जड़ समेत निकाल लेना।
- उखरबइया—(सं.पु.) उखाड़ने वाला व्यक्ति।
- उखेखब—(क्रिया) दबाव देकर किसी कार्य के लिए कहना, कार्य के लिए जोर लगाना।
- उखार—(सं.पु.) प्रगति, उपलब्धि, कमाई, उखार करना, बघेली मुहावरा।
- उखरबाउब—(क्रि.) दूसरे से उखड़वाना, उखाड़ने में सहयोग करना।
- उखिआरब—(क्रिया) गड़ी या दबी वस्तु को उखाड़ना, पुरानी बात को उछालना।
- उखिल—(विषे.) गिरवी वस्तु कब्जे में वापस आना, बिना बच्चे की गाय-भैंस, खेत का पानी से खुला हुआ भाग।
- उगहता—(सं.पु.) उगाहने का कार्य करने वाला, उधारी वसूलने वाला।
- उगहबइया—(सं.पु.) उधारी वसूलने का कार्य करने वाला।
- उगाहब—(क्रि.) उगाही करना, उधारी वसूलना, माँगकर संचित करना।
- उगहबाउब—(क्रि.) इकठ्ठा करवाना, वसूलने में सहभागिता निभाना।
- उगिलब—(क्रि.) उगलना, पेट में न पचना, मुख से बाहर करना, रहस्य या भेद खोलना।
- उगिलन—(सं.पु.) खाकर मुँह से उगला हुआ पदार्थ विषेष।
- उगिलबाउब—(क्रिया) मुँह के अंदर से बाहर कराना, भीतर की बात का बयान करा लेना, उगलवाने में योगदान करना।
- उगिलबइया—(क्रिया) उगलने वाला, रहस्य या भेद खोलने वाला।
- उघरब—(क्रिया) खुलना, पर्दा का हट जाना, पोल खुल जाना।
- उघरबाउब—(क्रिया) खुलवाना, खोलने में सहयोग करना, नंगा कर देना।
- उघारब—(क्रिया) बन्द वस्तु को खोलना, पोल-पट्टी खुलना, नग्न करना।
- उघँरबइया—(सं.पु.) खोलने वाला, बेइज्जत करने वाला।
- उघन्नी—(सं.स्त्री.) चाभी, ताला खोलने वाला उपक्रम।
- उघाँर—(विषे.) बिना वस्त्र या पर्दा की, नग्न वदन, एकदम खुली।
- उँचहन—(विषे.) मोटी जमीन का खेत, वन-बगार की भूमि, जल्दी पकने वाली फसल।
- उचट्टा—(विषे.) कूदते-फाँदते हुए, गतिमान होने की विधि, तेज चाल।
- उचिटब—(क्रिया) कूदना, मन का ऊब जाना, बिगड़ जाना, उछलना।
- उचक्का—(सं.पु.) अभद्र या उदण्ड पुरूष, बड़ बोला, स्त्री.लिंग उचक्की।
- उचाउब—(क्रिया) उठाना, भार वाहन करना, ऊपर उठाना।
- उचिटाउब—(क्रिया) वस्तु को उछलवाना, कुदवाना। ऊ
- ऊचबासे—(विषे.) ऊँचे स्थान पर, बहुत उँचाई में, पहुँच से ऊपर।
- उछलब—(क्रिया) बर्तन के ऊपर से पानी का उछल जाना, अधिक पानी का बहना।
- उछाल—(सं.पु.) खेत में अधिक पानी निकलने के लिए बनाई गई नाली।
- उछिन्न—(विषे.) सीमा से परे, अग्राह्य व्यवहार, रीति-नीति विरूद्ध कार्य।
- उज्जर—(विषे.) सफेद, साफ सुथरा, धुला हुआ, पवित्र, उज्जवल।
- उजरइती—(विषे.) वेतपना, बड़प्पननुमा।
- उजिआर—(विषे.) उजाला या प्रकाष, सुबह, अँजोर, अंधकार रहित।
- उजिआरी—(विषे.) उजाला पाख, अजोरी वाली।
- उज्जरई—(विषे.) उजलापन, बड़पन्ननुमा प्रदर्षन।
- उजबुक—(सं.पु.) झक्की मिजाज का, अर्धपागल, अस्थिर मानसिकता का।
- उजरन्त—(सं.पु.) उजार का समूह, अनुपयोगी घास की टुकड़ियाँ।
- उजार—(सं.पु.) सूखे घास के तिनके, नुकसान या हानि।
- उजारब—(क्रिया) उजाड़ना, सार्वजनिक करना, नुकषान पहुँचाना, घर-द्वार बरबाद करना।
- उजरबाउब—(क्रिया) उजड़वाना, उजाड़ने में मदद करना।
- उटक्कर—(विषे.) सुस्पष्ट, एकदम अलग, सुवाच्य सुलेख।
- उटन्ग—(विषे.) सिले कपड़े का छोटा पड़ जाना, अंग से ओछा वस्त्र।
- उटपटाँग—(विषे.) औचित्यहीन कार्य, जिसका कोई महत्व न हो, तथ्यहीन।
- उटपटाँगी—(स.पु.) हमेषा बुरी हरकत करने वाली प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- उटनी—(सं.स्त्री.) मादा ऊँट, नारी के लिए एक गाली।
- उटकटार—(सं.स्त्री.) काँटेदार छोटे कद की कटीली झाड़ियाँ या फल।
- उठब—(क्रिया) उठना, खड़े होना, सोकर जगना, गाय का ऋतुमती होना।
- उठाउब—(क्रिया) सोते को जगाना, ऊपर उठाना, पड़ी वस्तु को ले लेना।
- उठबाउब—(क्रिया) उठाने में सहयोग करना, उठवाना।
- उठबइया—(सं.पु.) उठाने वाला, ले लेने वाला, जगाने वाला।
- उठाई गीर—(वि.स.पु.) जो अमानत से खयानत करता हो, धरोहर को भी खर्च कर देने वाला व्यक्ति।
- उठाउठउहल—(ब.मु.) सभा विसर्जन, चला- चली, बघेली मुहावरा।
- उठबेय—(क्रि.भवि.)उठोगे, उठोगी, खड़े होओगे।
- उठइहेय—(क्रि.भवि.) उठाओगे, उठायेंगे ?
- उढ़री—(सं.स्त्री.) रखैल औरत, बिना व्याही बीबी, एक गाली।
- उढ़रब—(क्रिया) व्याहा पति छोड़कर दूसरा पति कर लेना।
- उड़न्की—(सं.स्त्री.) अफवाह, बदनाम करने की हवा, कृत्रिम दोष।
- उड़िला—(सं.पु.) गर्मी के दिनों में पषुओं का स्वछन्द विचरण, उड़िला होना, बघेली मुहावरा।
- उड़िलाउब—(क्रिया) कुत्ते को काटने हेतु उत्प्रेरित करना, प्रोत्साहित करना।
- उड़ासब—(क्रिया) बिछा बिस्तर उठाना, बिछौना निकालना, सभा विसर्जन।
- उड़ाउब—(क्रिया) उड़ाना, भूसा से अनाज अलग करना।
- उड़ेलब—(क्रिया) मोटी धार से पानी गिराना, एक बारगी पानी डालना।
- उड़िलाब—(क्रिया) स्वच्छन्द होना, सार्वजनिक होना, आवारा हो जाना।
- उड़बाई—(सं.पु.) भूसा से अनाज अलग करने का मेहनताना, मजदूरी।
- उतर—(क्रिया) नीचे उतरो, जमीन पर आओ, उतरो।
- उतरब—(क्रिया) ऊपर से नीचे होना, पार उतरना।
- उतारब—(क्रिया) पहना हुआ वस्त्र शरीर से निकालना, उतारना।
- उतरबाउब—(क्रिया) उतरवा लेना, पहनी हुई वस्तु को ले लेना।
- उतरवाई—(सं.पु.) पार उतारने के बदले प्राप्त पारिश्रमिक, मेहनताना।
- उत्तरायन—(विषे.) उत्तर दिषा में सूर्य या चन्द्र का होना, उत्तर दिषा की ओर।
- उतजोग—(अव्य) उपाय या उक्ति, प्रक्रिया एवं विधि।
- उतरबइया—(सं.पु.) पार लगाने वाला, जो वस्त्र तन से निकलवा लिया हो।
- उतारा—(सं.पु.) नये घर के प्रवेष पूर्व का पूजा-पाठ, रीति एवं परम्परा।
- उतारन—(विषे.) पहना हुआ या पहनकर फेंका गया जूठन वस्त्र।
- उतान—(अव्य) घमण्डी, सीना उभारकर चलना, पीठ के बल जमीन पर लेटा हुआ।
- उतन्ना—(सं.पु.) कान के ऊपर हिस्से में धारित वाला।
- उतराब—(क्रिया) पानी के ऊपर तैरना, ऊपर-ऊपर रहना।
- उतरूआ—(विषे.) समाज या परिवार से तिरस्कृत व्यक्ति।
- उत्तरहा—(विषे.) उत्तर दिषा का निवासी।
- उतिनब—(क्रिया) सजावट को उखाड़ना, बने घर की सामग्री अलग करना।
- उतिनबाउब—(क्रिया) घर की लकड़ी- खप्पड़ सब निकलवाना व सहयोग करना।
- उतिनइया—(स.पु.) घर की ईमारती लकड़ी छप्पर खोलने वाला।
- उतुहब—(क्रि.वि.) गर्भवती गाय-भैंस का गर्भपात हो जाना।
- उत्तू—(ब.मु.) खुल जाना उत्तू होइ जई, बघेली मुहावरा।
- उताउब—(क्रिया)मिट्टी से बन्द पात्र को पुनः खोलना।
- उदकब—(क्रि.वि.) उछलकर ऊपर होना, ऊपर की ओर उठना।
- उदकाउब—(क्रिया) ऊपर की ओर उछालना।
- उदुआ—(सं.पु.) जल का सूखा पड़ना, गाँव के जलाषयों का सूख जाना।
- उदुआब—(क्रिया) जलाषय का पानी सूख जाना।
- उदुआन—(विषे.) बिना पानी का नदी- तालाब व कुँआ, सूखा जलाषय।
- उदई—(सं.पु.) बिल्कुल मूर्ख, मूर्खता का एक प्रतीक।
- उदन्त—(विषे.) ऐसा बैल जिसके सभी दाँत टूट चुके हों।
- उदिरब—(क्रिया) खोलना, किवाड़ खोलवाना, खोलवाने में मदद करना।
- उदिरबइया—(सं.पु.) किबाड़ा खोलने वाला।
- उद्दियान—(ब.मु.) अकर्ण प्रिय लगना, देखने- सुनने में अच्छा न लगना।
- उधराब—(क्रिया) आँख मींचकर रूचिपूर्वक कार्य हेतु उद्धत होना।
- उधराउब—(क्रिया) काटने के लिए कुत्ते को उत्प्रेरित करना।
- उधिन—(क्रि.वि.) शरीर में असहनीय पीड़ा उठना, हाथ-पाँव में फाटन होना।
- उधिना—(अव्य) उस दिन, उस तारीख को।
- उधाब—(क्रिया) पीछे पड़ जाना, कार्य के लिए मन बना लेना।
- उधिरा—(विषे.) खरोंच लगा हुआ, चमड़ी का छिला हुआ।
- उधिरब—(क्रि.) चमड़ी का छिल जाना, चमड़ी में खरोंच लगना।
- उधेरब—(क्रिया) माँस से चमड़ी छीलना, किसी को पीटना।
- उधेरबाउब—(क्रिया) चमड़ी या छिलका अलग करवाना।
- उधेरबइया—(सं.पु.) उधेड़ने वाला, मारने- पीटने वाला।
- उधिरबाइ उधिरबाई—(सं.पु.) चमड़ी निकलने का मेहनताना या मजदूरी।
- उधुँआ—(सं.पु.) अनुमान व अंदाज बस, अचानक बिना योजना के
- उधरहा—(सं.पु.) उधार में दी गई या ली गई वस्तु।
- उधुम—(क्रिया) अत्याचार, झगड़ा- फसाद।
- उधिनै—(सर्व.) उसी दिन, उस दिन ही, उसी रोज।
- उनहिन—(सर्व.) वही, उन्हीं, वे ही
- उनहूँ—(सर्व.) उनको भी, उन्हें भी, वो भी।
- उनहीं—(सर्व.) उनको, उसको
- उन्हारी—(सं.स्त्री.) रबी की फसलें
- उनरब—(क्रिया) मुँह खुलना, परत हटना, फटना।
- उनसे—(सर्व.) उससे, उस व्यक्ति से।
- उनखे—(सर्व) उनके यहाँ, उस व्यक्ति के
- उनखा—(सर्व.) उनको, उसको।
- उपहकाज—(सं.पु.) मनगढ़त, अपने मन से अनुमान बस।
- उपराजिल—(विषे.) उपजाऊ, क्षमता युक्त।
- उपराज—(सं.पु.) उपज, होती, पैदा हुआ अनाज।
- उपराजब—(क्रि.सक.) उत्पन्न करना, पैदा करना, जन्माना, निर्माण करना।
- उपन्ना—(सं.पु.) पीले रंग का एक गमछा।
- उपटब—(क्रिया) उभर आना, चिन्ह बन जाना, स्पष्ट दिखना।
- उपटाउब—(क्रि.) उभारना, चिन्ह बनाना, सुपष्ट करना।
- उपरँहगा—(सं.पु.) ओढ़ने वाला वस्त्र, ऊपर का पहलू, रजाई-गद्दे की खोली।
- उपरउझा—(क्रिया) किसी का पक्ष कहना, तरफदारी करना।
- उपरेहित—(सं.पु.) परम्परागत संस्कार कराने वाले पुरोहित।
- उपरचढ़ी—(सं.स्त्री.) बढ़ चढ़कर, अधिक बोली लगाना, प्रतिस्पर्धा।
- उपरी—(सं.स्त्री.) गोबर की गोल उप्पली या उप्पल।
- उपड़उरा—(सं.पु.) उप्पल का ढेर लगाने वाली जगह विषेष।
- उपरफट्ट—(अव्य) दिखावटी या बनावटी, औपचारिक, ऊपर ही ऊपर।
- उपरचुपर—(अव्य) लेपननुमा व्यवहार, दिखावटी एवं बनावटी व्यवहार।
- उपचीर—(क्रि.वि.) मन को खिन्न कर देने वाली वार्ता, खराब कार्य ।
- उपासब—(क्रिया) उपवास करना या व्रत रहना, फलाहारी होना।
- उपासन—(विषे.) जिसके मुँह में बीमारी के कारण दाना-पानी न गया हो।
- उपास—(क्रिया) व्रत या उपवास, अन्न त्याग संकल्प।
- उपसहा—(विषे.) उपवास रहने वाला व्यक्ति, बहुत दिनों से बीमार।
- उप्प-उप्प—(अव्य) बन्दरों के बोलने की एक विषेष आवाज।
- उपखर—(क्रिया) वर्षा के पष्चात् आकाष का खुलना, हल्की धूप का निकलना।
- उफिनब—(क्रिया) रस्सी का फंदा बिना गाँठ खोले घड़े के गले से निकालना।
- उफनाब—(क्रिया) उफान आना, आवेषित एवं आक्रोषित होना।
- उबाब—(क्रिया) किसी की याद सताना, याद में उदास होना, स्मरण आना।
- उबांत—(सं.स्त्री.) कय, बमन, उलटी होना, जी मिचलाना।
- उबाउब—(क्रिया) किसी को मारने के लिए हाथ उमाहना, मारने को हाथ भर उठाना।
- उबेने—(विषे.) नंगे पाव, बिना कपड़ा पहने हुये।
- उबिठब—(क्रिया) खाते-खाते हिच जाना, अरूचि हो जाना, मन से ऊब जाना।
- उबजियाब—(क्रिया) मन ऊब जाना, मन भर जाने से अरूचि हो जाना।
- उमहब—(क्रिया) कार्य करने का मन बनाना, मानसिकता का बनना, खुलना या सामने आना।
- उमाहब—(क्रिया) किसी को पीटने के लिए हाथ ऊपर उठाना।
- उमिर—(सं.स्त्री.) उम्र, आयु, पन, जीवन का चरण।
- उरझेटब—(क्रिया) सींग से वस्तु को तितर-बितर कर देना।
- उरिन—(क्रिया) उऋण, ऋण मुक्त होना, कर्ज या भार से छुटकारा मिलना।
- उरदा—(सं.पु.) उड़द, एक खरीफ की फसल या दलहन।
- उरदहा—(विषे.) उड़द की फसल बोया हुआ खेत विषेष।
- उरई—(सं.स्त्री.) कास समूह का एक विषेष छाँस।
- उराव—(सं.पु.) शौक, उत्साह, मन का बनना, दिल हो आना।
- उरायल—(सं.पु.) शौक या उत्साहपूर्ण करने के लिए भाव-विभोर, उत्साहित,
- उरेहब—(क्रिया) श्यामपट पर अक्षर की आकृति बनाना, लकीर खींचना, चाक से लिखना।
- उलहब—(क्रिया) प्रस्फुटित होना, विकसित होना, पुनर्रपल्लवित होना।
- उल्ली—(सं.पु.) खिझाने वाला एक शब्द, हँसी-मजाक उड़ाने का प्रतीक।
- उलर—(विषे.) कच्ची उम्र, असमान्य स्थिति, तुलना में छोटा दिखना।
- उलिचब—(क्रिया) चुल्लू से पानी फेंकना, अंजुली से पानी हटाना।
- उललाउब—(क्रिया) किसी की मजाक उड़ाना, हँसी करके तिरस्कृत करना।
- उलेला—(क्रि.वि.) पानी की बहुत छोटी धार, एकदम पानी सिमटकर बहना।
- उलउब—(क्रिया) वंष या परिवार को रेखांकित करके बुरा-भला कहना, पूरे परिवार को चुनौती देना।
- उलटी—(क्रिया) कय होना, पेट का भोजन मुख द्वार से निकल आना।
- उलटब—(क्रिया) सिर के बल पलटी मारना, मवेषी का गर्भ न ठहरना।
- उलटाउब—(क्रिया) पलटवाना या पलटाना, पलटने में सहयोग करना।
- उलटमाँसी—(सं.स्त्री.) विपरीतार्थी, वक्रोक्ति युक्त कथ्य, व्यग्यात्मक अभिव्यक्ति।
- उलटा पल्ला—(क्रि.वि.) साड़ी का पल्लू कंघे व वक्ष से घुमाकर सिर पर रखना।
- उलटा पुलटा—(अव्य) गलत-सलत, जैसा चाहिए उसका ठीक उल्टा।
- उलट-पलट—(अव्य) पुनरावृत्ति, बार-बार, सघन रूप से निरीक्षण।
- उलझारब—(क्रिया) घडे़ में भरे पदार्थ को हिलाना-डुलाना, हिलाकर ऊपर नीचे करने की क्रिया।
- उलटहाबव—(क्रिया) प्रतिउत्तर, सवाल का जवाब, प्रष्न का तुरंत जवाब।
- उसलब—(क्रिया) उखड़ना, बैठे पषु का खड़ा होना, घर उजाड़कर चले जाना।
- उसिना—(सं.पु.) उबाला हुआ खाद्य पदार्थ, दाल की पीठी का ग्रामीण व्यंजन।
- उसिनब—(क्रिया) भाप से उबालना, भाप के सहारे पकाना।
- उसाँसी—(क्रिया) प्रोत्साहन, हाथ लगाना, ऊपर उठने के लिए सम्बल देना।
- उसुआब—(क्रिया) सूखे घाव का पुनः आना, घाव में मवाद भरने से सूज आना।
- उसुआन—(विषे.) घाव का पका हुआ, पके घाव में आया हुआ सूजन।
- उसलूहुड़—(विषे.) बर्तन के मुहाड़े के ऊपर का भरा पदार्थ, एकदम भरा हुआ।
- उसनीद—(विषे.) अनिद्रा, नींद लगने की अनुभूति, जागरण।
- उसट्ट—(क्रिया) कार्यक्रम का स्थगन होना, निरस्त होना, पक्का कार्य निरस्त हो जाना, लगा विवाह बदल जाना।
- उसढ़ढल—(विषे.) अपरिपक्व व अनिष्चित, ढीला कार्य, परिवर्तनीय एवं स्थगन योग्य।
- उसरहा—(सं.पु.) ऊसर मिट्टी वाला बाँध या खेत का नाम।
- उसालब—(क्रिया) जड़ से उखाड़ना, किसी का घर उजाड़ना, पैर आगे बढाना, रोमा उसालब, बघेली मुहावरा।
- उहाँ—(अव्य) वहाँ, वहाँ पर, उस जगह।
- उहै—(सर्व.) वही, वह ही।
- उहौ—(सर्व.) वह भी, वो भी। ऊ
- ऊन्ख—(सं.स्त्री.) गन्ना, गन्ना का पौधा।
- ऊॅंद—(विषे.) निर्बल क्षमता वाला, जल्दी निर्णय न ले सकने वाला।
- ऊप-ऊप—(अव्य) बन्दरों के बोलनें की आवाज।
- ऊब—(सं.स्त्री.) किसी की याद आना, किसी के देखने या मिलने की मनःस्थिति।
- ऊबट—(सं.पु.) ऊँचा-नीचा, अनुभव से, अनुमानवष, अंदाज से।
- ऊम—(सं.पु.) अनुमान, स्मरण, समाधान की सूझ।
- ऊमर—(सं.पु.) एक वनस्पति वृक्ष, ऊमर केर फूल, बघेली मुहावरा।
- ऊर—(विषे.) जो अपूर्ण हो, रूढ़ संख्या।
- ऊरधरे—(स.पु.) कुत्ते को गतिमान करने का एक विषेष शब्द।
- ऊरा—(सं.पु.) बिच्छू का डंक, नुकीली चीज, व्यंग्य वाणी।
- ऊसर—(सं.पु.) लावण्य मिश्रित अनुपजाऊ जमीन।
- ऊल्लादच्ची—(क्रिया) किसी का झूठा संदेष बताकर ठग लेना, झूठ व पाखण्ड का सहारा लेकर अपना कार्य सिद्ध कर लेना, ऊलादच्ची मारना, ब.मु.।
- ऊलाडाबर—(सं.स्त्री.) ऊँचा-खाली स्थान, ऊबड़-खाबड़ सतह, असमतल गढ्ढानुमा।
- ऊलिहे—(अव्यय) कुत्ते को उत्तेजित करने वाला विषेष शब्द। ए/ऐ
- ए!ऐ!—(सम्बो.) सम्बोधन एवं चेतावनी सूचक शब्द।
- एइन—(सर्व.) यही, यही हो, यही ही।
- एईं—(सर्व.) यही, ये ही।
- एऊँ—(सर्व.) यह भी, ये भी।
- एकठा—(विषे.) अकेले एक, अखण्डित, एकहरा।
- एकसर—(विषे.) दुबले-पतले शरीर का, जिसका एकहरी बनावट हो।
- एक रंग—(विषे.) एक ही रंग का, समान गुण का, एक ही प्रकार।
- एक्का-दुक्का—(विषे.) एक-दो, छुटपुट, विरलरूप, भूले-भटके।
- एकठउरा—(विषे.) एक ही नग, एक ही स्थान में, संयुक्त रूप से।
- एकाध—(विषे.) नाममात्र का, गिने चुने, एक या एक से भी कम।
- एकड्डी—(विषे.) एक रटवाला, नितान्त जिद्दी, दृढ़ संकल्पी।
- एकुयै—(विषे.) एक ही, अभिन्न, समान गुण-धर्म वाले।
- एकैठे—(विषे.) मात्र एक ही नग, एक ही, सिर्फ एक।
- एकर—(सर्व.) इसका, इसकी, अनादर सूचक।
- एकैमेर—(विषे.) एक ही प्रकार का, एक ही गुण-रूप का।
- एकैकइत—(अव्य) एक ही दिषा में, एक ही ओर, एक तरफा।
- एक्का—(सं.पु.) एक घोड़े वाली गाड़ी, एक्का कस घोड़, बघेली मुहावरा, एक बिन्दी वाली तास की पत्ती।
- एकंगी—(विषे.) एकांगी, एक दिषा विषेष में झुका हुआ।
- एकबेरी—(विषे.) एकबार, एक दौर, एक चरण, मात्र एक बार।
- एकघान—(विषे.) एक बार में पीसी जाने वाली वस्तु या अनाज की मात्रा।
- एकझने—(विषे.) कोई एक व्यक्ति, एक ही व्यक्ति।
- एकटक्क—(विषे.) अपलक, सघन दृष्टि।
- एकबले—(अव्य) एक ओर, एक ही तरफ, एक ही दिषा में।
- एखर—(सर्व.) इसका, इसकी, अनादर सूचक।
- एखा—(सर्व.) इसे, इसको, अनादर सूचक।
- एगर—(अव्य.) पास में, गाँठ में, नजदीक, अंग में।
- एगसिया—(सं.स्त्री.) एकादषी को जन्मीं नारी का नाम।
- एगास—(सं.स्त्री.) एकादषी की तिथि।
- एँघ्घा—(अव्य) इस ओर, इस दिषा में इस जगह में।
- एँघरी—(अव्य) इस समय, इस अवधि में इस अवसर पर।
- एँड़ा—(सं.पु.) घुटने की गाँठ, एड़ा लगाना, बघेली मुहावरा।
- एड़िआउब—(क्रि.) एड़ा लगाकर किसी को दबाना या मारना।
- एँड़बेड़—(विषे.) अला-भला, तिरछा- आड़ा, बेडौल, बलखाया हुआ, काम चलाऊ, एड़-बेड़, ब.मु.।
- एतना—(विषे.) इतना, इतना अधिक, स्त्री.लिंग एतनिया एवं एतनी।
- एत्ता—(विषे.) इतना, इतना ज्यादा, स्त्री.लिंग एन्ती।
- एतू—(विषे.) इतनी, इतनी ही, इतना ही।
- एत्तै—(विषे.) इतना ही, स्त्री.लिंग ‘एत्तिन’।
- एत्तीदार—(अव्य) इतनी देर, इतने समय बाद, इस समय में।
- एतान—(अव्य) इस प्रकार, इस विधि से, इस भाँति।
- एत्ते का—(अव्य) इतने के लिए, इतने भर को।
- एदा—(यो.) यह, ये, यहाँ।
- एदॉर—(अव्य) इस बार, इस दौर में, अवकीवार, स्त्री.लिंग एदॉरी।
- एनका—(सर्व.) इनको, इन्हें, आदर सूचक।
- एनहिन—(सर्व.) यही, यही ही, इन्हीं।
- एनठे—(अव्य) यहाँ पर, इस जगह में, इस स्थान में।
- एँपर—(अव्य) इस पर, इसके ऊपर, इसमें।
- एँपल्ला—(अव्य) इस पार, इस तरफ, यह भाग, इस ओर।
- एँपलाट—(अव्य) इस हिस्से, इस भाग, इस तरफ।
- एँबेर—(अव्य) इस बार, इस दौर में, स्त्री.लिंग एँवेरी।
- एँबेरा—(अव्य) इस समय, इतनी देर।
- एँबले—(अव्य) इस तरफ, इस पहलू, इस दिषा।
- एँमा—(सर्व) इस पर, इसमें, इसके ऊपर, इस जगह में।
- एँय-एँय—(अव्य) बच्चों के रोने की ध्वनि विषेष।
- एरी—(अव्य) ऐ री! ए जी, ऐ जी! सम्बोधन सूचक।
- ए रे—(सम्बो.) छोटे के लिए स्नेहित सम्बोधन, बड़ों के लिए अनादर सूचक।
- एँलटा—(अव्य) इस दिषा को, इधर को, इस तरफ, इस हिस्सा में।
- एसे—(अव्य) इस कारण से, इसलिए, इससे, इस व्यक्ति से।
- एँसता—(अव्य) इस समय, इन दिनों, इस मौके पर।
- ए ही—(सर्व) इसे, इसको, यही, इसे ही।
- एँहसे—(अव्य) इसलिए, इस वजह से, इस विचार से।
- एहीं से—(अव्य) इसीलिए, इसी उद्देष्य से, इसी नियत से।
- एँह—(अव्य) अहा, अरे, वक्रोक्ति सूचक, पष्चाताप सूचक।
- एहदे—(अव्य) यह देखो, ये देखो, ये है, यहाँ पर है।
- एहूका—(सर्व.) इसको भी, इनको भी, इसे भी।
- ऐह-ऐह—(अव्य) गाय या बछड़े को बुलाने वाला विषेष शब्द।
- ऐहा—(अव्य) दूध दुहने के लिए गाय को प्रसन्न करने हेतु विषेष शब्द। ओ
- ओइन—(सर्व.) वही, वह ही, वे ही, वो ही!
- ओइरा—(सं.पु.) खेत में अनाज बोने हेतु हल में प्रयुक्त काष्ठ पात्र विषेष।
- ओइरब—(क्रिया) घूँस में पैसा देना, चक्की में अन्न डालना।
- ओइसे—(अव्य) यो हीं, यों तो, मेरी मर्जी।
- ओइसै—(अव्य) वैसे ही, यों हीं, बिना उद्देष्य या प्रयोजन के।
- ओइसन—(अव्य) वैसे, वैसे तो।
- ओइझा—(अव्य) उधर, उस तरफ, उस ओर!
- ओईं—(सर्व.) वहीं, वह ही,
- ओंऊँ—(सर्व.) वो भी, वह भी, वे भी।
- ओकलाई—(क्रि.वि.) उलटी आना, कय की अनुभूति।
- ओकब—(क्रिया) कय करना, उलटी होने की क्रिया।
- ओकरब—(क्रिया) करना, क्रिया विषेष, मैथुन करना।
- ओका—(सर्व.) उसको, उसे, उस वस्तु को, उस व्यक्ति को।
- ओके—(सर्व.) उसके, उसके यहाँ, उस व्यक्ति के।
- ओकी—(सं.स्त्री.) उलटी कय, उलटी हेतु घृणा।
- ओकरबाउब—(क्रि.) कार्य करवाना, करवाने में सहयोग करना, मैथुन करवाना।
- ओखर—(सर्व.) उसका, उस व्यक्ति का।
- ओखा—(सर्व.) उस व्यक्ति को, उसे, उसको।
- ओगरब—(क्रिया) अपने आप पैदा होना, जल का निकलते रहना, निःसक्त होना।
- ओगार—(विषे.) एकदम ठोस, पूर्ण परिपक्व, मोटी लकड़ी के बीच का पका अंष।
- ओघ्घा—(अव्य) उस तरफ, उस दिषा में।
- ओछरब—(क्रिया) कय वमन करना, अन्दर का उगल देना।
- ओछराई—(क्रि.वि.) उलटी या कय लगने की अनुभूति।
- ओछराउब—(क्रिया) उलटी करवाना, अन्दर का निकलवा लेना।
- ओछरन—(विषे.) उल्टी या कय में गिरा हुआ पदार्थ या अन्नांष।
- ओछबढ़—(विषे.) छोटा-बड़ा होना, एक छोर बड़ा दूसरा छोटा, असामान्य।
- ओछाहिल—(विषे.) समय से पूर्व जन्मा अपरिपक्व षिषु।
- ओछात—(विषे.) अस्पष्ट व आंषिक रूप से, अकस्मात् जरा सा दिख जाना।
- ओछ—(विषे.) कपड़े का छोटा पड़ जाना, संकीर्ण सोच व मानसिकता।
- ओछीकानी—(विषे.) गाय या बछड़े का वयस्क होने का एक दाँतीय संकेत।
- ओक्ष्क्षा—(सं.पु.) सवारी चढ़ने पर मुख से निकला शब्द या दुहाई।
- ओछ्छाब—(क्रि.वि.) पण्डे का सवारी आने पर कूदना-फाँदना।
- ओझरि—(सं.स्त्री.) आँत, आँत प्रक्षेत्र की माँस पेषी, उदर।
- ओठर—(सं.पु.) बहाना, कामचोरी, जी चुराना।
- ओठरिहा—(सं.पु.) बहानेबाज, वह जो बहाना बनाये हुए हो।
- ओठी—(सं.पु.) हल में संलग्न दाहिना बैल का प्रतीक।
- ओढ़ना—(सं.पु.) वस्त्र, कपड़ा, रजाई या चादर, ओढ़ने वाला कपड़ा।
- ओढ़ब—(क्रिया) ढकना, ओढ़ना।
- ओढ़बाउब—(क्रिया) स्वयं न ढककर दूसरे से ढकवाना, ओढ़वाना।
- ओढ़कब—(क्रिया) सहारा लेकर टिकना।
- ओढ़काउब—(क्रिया) किसी वस्तु के सहारे दूसरी वस्तु टिकाना, दूसरे के सिर पर मढ़ना।
- ओढ़निया—(सं.स्त्री.) सिर ढकने वाला वस्त्र, घूँघट का कपड़ा।
- ओंड़ब—(क्रिया) घुटने से दबाना, एड़ा लगाकर मर्दन करना।
- ओड़चब—(क्रिया) ताकत लगा-लगाकर मर्दन करना, मैथुन करना।
- ओड़िआउब—(क्रिया) जमीन पर पटककर एड़ा से दबाना।
- ओड़चबाउब—(क्रिया) किसी से मर्दन करवाना, मैथुन क्रिया करवाना।
- ओत—(विषे.) दवा खाने पर आराम लगना, आलस्य या देर, छूट मिलना,सस्ता।
- ओती—(सं.पु.) आलसी, देर दराज, प्रवृत्ति का।
- ओताब—(क्रिया) विलम्ब करना, आलस्य करना।
- ओंतान—(अव्य) उस प्रकार, उस तरीके से।
- ओत्ता—(विषे.) उतना, उतना ज्यादा, स्त्री.लिंग ‘ओत्ती’।
- ओद—(विषे.) गीला, अषुष्क, आर्द्र।
- ओदी—(सं.स्त्री.) गीलापन, नमीयुक्त।
- ओदिआउब—(क्रिया) गीला करना, पानी से नम बनाना।
- ओदार—(विषे.) उदार, दानी, देनदार प्रवृत्ति।
- ओदार—(अव्य) उस बार, उस दौर में, दूसरे चरण में, स्त्री.लिंग ओंदारी।
- ओदरब—(क्रिया) चिटक जाना, फट जाना, धराषायी हो जाना।
- ओदारब—(क्रिया) गिराना, फाड़ना, खण्डवत करना।
- ओदरबाउब—(क्रिया) किसी से फड़वाना, गिराने में सहयोग करना।
- ओधा—(अव्य) ओट, आड़, अदृष्य।
- ओधसब—(क्रिया) धराषायी होना, किसी पर किसी का गिरना, टकराकर भिड़ना।
- ओधासब—(क्रिया) गिराना, नष्ट करना।
- ओधउटे—(विषे.) ओट में, आड़ में, छाया में।
- ओन्हा—(सं.पु.) कपड़ा, वस्त्र।
- ओनउब—(क्रिया) गाय-भैंस के प्रजनन के पूर्व का विषेष दृष्य।
- ओनामासी—(सं.स्त्री.) श्रीगणेष, पढ़ाई के प्रारंभ का शुभ संकेत।
- ओनइस—(विषे.) उन्नीस, एक कम बीस की संख्या, बघेली मुहावरा।
- ओनखा—(सर्व.) उनको, उन्हें।
- ओनहनें—(सर्व.) वही लोग, वे लोग ही, वही सब।
- ओनहिनका—(सर्व) उन्हीं को, उन्हीं लोगों को।
- ओपलझा—(अव्य) उस ओर, उस पहलू, उस तरफ।
- ओमां—(अव्यय) उस पर, उसमें, उस स्थान में।
- ओय—(सं.पु.) वही, पति के लिए प्रतीक, पुकारने पर हाँ स्वीकारोक्ति।
- ओय-ओय—(अव्य) रोते बच्चों को पुचकारने का विषेष शब्द।
- ओंय-ओंय—(अव्य) भैंस के मुख की ध्वनि विषेष।
- ओयन—(सं.पु.) गाय का दुग्ध प्रक्षेत्र का सूजा हुआ संकेत।
- ओर—(सं.पु.) बर्फ, वर्षा के रूप में गिरा ओला, एकदम ठंड।
- ओरा—(विषे.) छूट, सस्ता, आराम, लाभ, सहूलियत।
- ओराब—(क्रि.वि.) काम का कुछ कम होना, उपसंहार की ओर पहुँचना।
- ओरगब—(क्रि.) रूकना या ठहरना, प्रतीक्षा करना।
- ओरमाउब—(क्रिया) आश्रित होना, मुँह लटकाना।
- ओरगा—(सं.पु.) किसानों एवं (बढ़ई, लुहार, नाई) प्रजा के बीच की संविदा।
- ओरहन—(सं.पु.) षिकायत, उलाहना, दोषारोपण।
- ओरगहरू—(सं.पु.) जो सेवक विषेष ही सेवा के लिए निर्धारित हो।
- ओरचामन—(सं.स्त्री.) चारपाई के बिनाव को कसने वाली पतली रस्सी।
- ओरी—(सं.स्त्री.) छप्पर का अग्रभाग, आँगन की ओर वाला छप्पर।
- ओरमानी—(सं.स्त्री.) दीवाल से आगे निकला हुआ छप्पर का अग्रभाग।
- ओरिआउब—(क्रिया) षिषु जन्म की सूचना बतौर गाँव के आँगनों में चौखुट गोबर का चित्र बनाने की परम्परा।
- ओलब—(क्रिया) ठंड लगने पर आग से षिषु को सेंकना, देषी औषधि का लेपन।
- ओलबाउब—(क्रिया) लेपन लगवाना, ताप से सेंकवाना।
- ओलिआउब—(क्रिया) घुसेड़ देना, ओली बना लेना, नीचे की धोती ऊपर मोड़ लेना।
- ओला—(सं.पु.) बर्फ, पाला, ओस कण।
- ओली ओली—(अव्य) पषुओं को घर के अन्दर होने के निर्देष शब्द।
- ओलिया—(सं.स्त्री.) ओली, घोती को ऊपर की ओर झोलीदार बनाकर मोड़ाव।
- ओलियाब—(क्रिया.) घुस जाना, अन्दर होना, किसी के घर में घुस पड़ना।
- ओसहा—(सं.पु.) देषी औषधि, घरेलू जड़ी-बूटी की चिकित्सा।
- ओसबाउब—(क्रिया) किसी से भूसा उड़वाकर अनाज के दाने अलग करवाना।
- ओसाउब—(क्रिया) भूसे से अनाज के दाने अलग करने की क्रिया।
- ओस—(अव्य) उधर, उस ओर, उस तरफ को।
- ओसटब—(क्रिया) बूड़े के पानी का कम होना, नदी के बाढ़ के पानी का कम होना।
- ओसइली—(सं.स्त्री.) भूरे रंग की तिल विषेष।
- ओसरी—(अव्य) बारी, बारी, क्रम।
- ओसरी पहरा—(अव्य) एक के बाद एक, क्रम-क्रम से, बारी-बारी।
- ओसारी—(सं.स्त्री.) घर के सामने का बरामदा, पुलिंग ‘ओसार’।
- ओसर—(सं.स्त्री.) पहली बार प्रजनित भैंस, गर्भधारण योग्य भैंस की बच्ची।
- ओंसता—(अव्य) उस समय, उस समय पर, उस वक्त में, उन दिनों।
- ओहटी—(सं.स्त्री.) किसी कार्य का एक चरण, एक पारी विषेष।
- ओहदा—(सं.पु.) पद, औकात, धारित पदवी, श्रेणी।
- ओहार—(विषे.) निकली हुई चेचक का कम होना या ठीक होना।
- ओहब—(क्रिया) मवेषी के सामने आवष्यकता से अधिक घास डालना।
- ओही—(सर्व) उसे, उसको, उस व्यक्ति को।
- ओहमओह—(विषे.) उदार मन से, पर्याप्त, बहुत-बहुत मात्रा।
- ओहिनबेर—(अव्य.) उसी बार, उसी दौर में, उस समय ही। क
- कइअक—(विशे.) कई, बहुत, अनेक, विभिन्न।
- कइठे—(विषे.) कितने, कितनी संख्या, कितना।
- कइझन—(विषे.) कितने लोग, कितनी संख्या।
- कइतिआब—(क्रिया) किनारा काटना, अलग होना, रास्ता छोड़ना।
- कइत—(अव्य.) एक तरफ, एकान्त, दूर, पृथक, किनारे।
- कइथा—(सं.पु.) कैथा, एक प्रकार का फल।
- कइली—(सं.स्त्री..) गले पर चित्ती पड़ी सर्पणी। कइसनौ - - किसी भी प्रकार की, ऐन-केन -प्रकारणेन।
- कउखन—(विषे.) कितना जल्दी, शीघ्रता, किस प्रकार से।
- कँउस—(सं.) शरीर में पसीना चलना, गर्मी लगना।
- कउड़िआरा—(सं.पु.) एक प्रकार का सर्प जिसके पीठ पर कौड़ी हो।
- कउन—(अव्य.) कौन, कौन सा।
- कउनौ—(अव्य.) कोई भी, कोई।
- कउआब—(क्रिया) बेचैन होना, छटपटाना, यादबस आतुर होना।
- कउँफब—(क्रिया) आवेषित होना, क्रोधबस बुरा भला कहना।
- कउलब—(क्रिया) अन्दाज लगाना, मन लेना, मन ही मन तौलना।
- कउरा—(सं.पु.) टुकड़ा, रोटी की टुकड़ी, रोटी की भीख।
- कउरहा—(सं.पु.) कंकड़ की गोट से खेला जाने वाला खेल, भिखारी प्रवृत्ति का, रोटी के टुकड़ों पर आश्रित, निर्लज्ज, लोभी।
- कउर—(सं.पु.) निवाला, कौर।
- कउआ—(सं.पु.) कौआ, मुण्डन में रखीगई चोटी।
- कउआ टोंटी—(सं.पु.) कंकड़ की गोट से खेला जाने वाला खेल।
- कउड़ी—(सं.स्त्री..) सिंघाड़े का सूखा फल, खेली जाने वाली कौड़ी।
- कउड़ा—(सं.पु.) अलाव, तापने वाली आग।
- कउहरी—(सं.स्त्री..) एक प्रकार का औषधीय वन-फल।
- कउहट—(क्रि.वि.) शोरगुल, हलचल, झंझट, उलझन।
- कउरी—(सं.स्त्री..) कामर, दो पहलू वाली सेहरी।
- कका—(सं.पु.) चाचा, पिताजी के छोटे भाई।
- ककनिया—(सं.स्त्री..) गुड़ और आटे का बना बतासा, कुँए के अन्दर लगी ईंट, नारियों के हाथ का गहना।
- ककिया—(सं.स्त्री..) चचेरी।
- कँकरिया—(विषे.) ठंड के कारण दाँतों में कम्पन।
- कक्कू—(सं.पु.) चाचा, पिताजी के रिश्ते का भाई।
- ककई—(सं.स्त्री..) काठ की कंघी, कंघी पुलिंग ककबा।
- कँकरी—(सं.स्त्री..) ककड़ी, छोटी कंकड़ी।
- कँखरब—(क्रिया) कराहना, कराह का होना।
- कखउरी—(सं.स्त्री..) काँख की फुंसी, पुलिंग कखरेखा।
- कँखरिआउब—(क्रिया) काँख से दबाना।
- कँखरी—(सं.स्त्री..) कंधा एवं बाँह के जोड़ के नीचे का भाग, काँख।
- कँखना—(क्रि.वि.) हमेषा कराहते रहने का एक रोग।
- कगर—(अव्य.) एक किनारे, एकान्त, अलग, एक ओर।
- कगरिआउब—(क्रिया) किनारे करना, अलग करना, बाँट देना।
- कगरिआब—(क्रिया) किनारे होना, किनारा काट लेना।
- कगदहाई—(सं.स्त्री..) कागजात रखने वाला बस्ता विषेष।
- कचकचाब—(क्रिया) आवेषित होकर बुरा- भला बकना,शोर-षराबा।
- कचकचायके—(क्रि.वि.) पूरी ताकत के साथ दबाना, पूर्ण सामर्थ्य से।
- कचाइध—(विषे.) अधकच्चा की स्थिति की अनुभूति होना।
- कचेनिया—(सं.स्त्री..) चूड़ी पहिचानने वाली, कचेर की पत्नी।
- कच्चकच्च—(क्रि.वि.) दीवाल पर सिर पटकने से उत्पन्न ध्वनि।
- कचउँधी—(विषे.) अपच के कारण खट्टी डकार।
- कचेरब—(क्रिया) उठाकर पटक देना, दीवाल पर सिर पटकना।
- कचक—(सं.पु.) दबाव के कारण खून जम जाना, अपच।
- कचरपचर—(अव्य.) शोर-गुल, अषांति, कोलाहल पूर्ण वातावरण।
- कचरब—(क्रिया) कुचलना, पैरों तले दबाना, पैरों से मारना।
- कचराउब—(क्रिया) स्वेच्छा से पैर से दबवाना, किसी को पिटवाना।
- कच्चा बच्चा—(सं.पु.) षिषु एवं माँ, ब. मु.।
- कचकुचहिली—(विषे.) अनाज के दाने के मध्य का कच्चा कण।
- कचरबइया—(सं.पु.) कुचलने वाला, पाँव से पाँव दबाने वाला।
- कचोटब—(क्रिया) देने में पछताना, पष्चाताप करना।
- कछिया—(सं.पु.) कुषवाहा, बागवान, स्त्री.कछिनिया।
- कछिअउरा—(सं.पु.) सब्जी-भाजी की बगिया।
- कछोटा—(सं.पु.) काँछ लगाकर साड़ी का पहनावा।
- कछनी—(सं.स्त्री..) धोती या साड़ी की कच्छ, कछनी।
- कछलम्पट—(सं.स्त्री..) बदचलन नारी, एक गाली।
- कजरउटी—(सं.स्त्री..) काजलदानी, काजल वाली डिब्बी, पुलिंग कजरउटा।
- कजबा ाइक—(सं.पु.) विवाह खोजने वाला, ब्याह का पहलकर्ता।
- कजहा—(विषे.) कन्यापक्ष से शादी हेतु आये लोग, शादी होने वाले लड़के के लिये विषेषण विषेष।
- कजही नाउन—(बघे.मुहा.) बार-बार अनावष्यक आना-जाना।
- कजानी—(अव्य.) शादी के लिये आतुर, शायद, क्या जानूँ, संभवतः नहीं मालूम।
- कजात—(अव्य.) शायद, सम्भवतः, या कि, हो सकता है।
- कजरिया—(विषे.) जिसकी आँखों में काजल सा लगा हो।
- कटइया—(विषे.) फसल काटने वाले, सुकोमल षिषु, ककड़ी।
- कटराब—(क्रिया) पके व्यंजन खीर का बर्तन में लिपटकर सूख जाना।
- कटिया—(सं.स्त्री..) मवेषी को खिलाने वाला कटा आहार, खीरा।
- कटाँइध—(विषे.) कशैली स्वाद, हल्का कड़वा।
- कटुक—(विषे.) हलका कड़वा, कसैला स्वाद।
- कटँउही—(विषे.) फसल काटने के बदले प्राप्त मजदूरी।
- कटबा—(सं.पु.) नारियों के गले का एक आभूषण।
- कटेरुआ—(सं.पु.) दूध पीते पशु के बच्चों की टट्टी।
- कट्टहा—(सं.पु.) महापात्र, महाब्राम्हण, एक गाली।
- कटकटउहन—(विषे.) दाँत पीसकर पूरी ताकत से काटना।
- कटनबार—(सं.पु.) चौकोर गीली मिट्टी काटने का काष्ठ औजार।
- कटघोड़वा—(सं.पु.) काठ का बना घोड़ा, बच्चों का खिलौना।
- कटमटाब—(क्रिया) वनस्पति के रोये लगाने से शरीर पर खुजली होना।
- कटहरि—(सं.स्त्री..) एक सब्जी का फल, हल मे लगने वाली लोहे की मुदरी।
- कटइली—(विषे.) कटकर रहने वाली, तिरस्कृत नारी, आधा कटा हुआ फल।
- कठँगरा—(सं.पु.) काष्ठ से निर्मित अंगारा।
- कठमेहर—(सं.पु.) औरतों के बीच में बैठने वाला पुरूष।
- कठउती—(सं.स्त्री..) पत्थर या काष्ठ की बनी टोकनी का पात्र, पुलिंग कठउता।
- कठबा—(सं.पु.) काठ, काठ की भाँति जड़ आदमी।
- कठेस—(विषे.) अधपका फल, जो अभी कुछ ठोस हो।
- कठुला—(सं.पु.) कण्ठ का एक आभूषण, दुर्लभ वस्तु।
- कठखोलनी—(सं.स्त्री..) चोंच से काठ को खोलने वाली चिड़िया।
- कठबइठा—(विषे.) मनोविनोदी या लाड़ प्यार की गाली, स्त्री.लिंग कठबइठी।
- कठूमर—(सं.पु.) ऊमर से छोटी, ऊमर का फल या वृक्ष।
- कठँगरी—(सं.स्त्री.) मोटी लकड़ी से टूटे प्रज्जवलित अंगार।
- कढ़ब—(क्रिया) भीतर से बाहर निकलना।
- कढ़ी—(सं.स्त्री..) मठा एवं बेसन से बना काढ़ा, ग्राम्य व्यंजन।
- कढ़बाउब—(क्रिया) निकलवाना, भीतर से बाहर करवाना।
- कढाउब—(क्रिया) सुरक्षित निकालकर किसी को राह पकड़वाना, निकलवाना।
- कढीहा—(विषे.) कढ़ी खाने के विषेष चर्चित व मशहूर।
- कड़ँबा—(सं.पु.) छोटे कद का आम्रवृक्ष, कलमी आम।
- कड़िया—(सं.स्त्री..) बाँस की टहनियाँ, बारी का रूधन।
- कड़बार—(सं.स्त्री..) खेत की बारी रुधन हेतु प्रयुक्त सूखी झाड़ियाँ।
- कडुला—(सं.पु.) छापक फलदार वृक्ष, कलमी पौध।
- कड़बाउब—(क्रिया) दूसरे से अन्न कुटवाना, किसी से किसी को पिटवाना।
- कँड़रब—(क्रिया) स्वयं पिट जाना, किसी द्वारा पीटा जाना।
- कतनी—(विषे.) कितनी, कितने नग, कितनी मात्रा।
- कतकीदार—(अव्य.) किस समय, कितनी देर।
- कतका—(विषे.) कितना, कितनी मात्रा।
- कताहुर—(सं.पु.) सूखा कूड़ा कर्कट, धूल मिश्रित कचरा।
- कतरा—(सं.पु.) जमाये गये दूध का ठोस टुकड़ा, काची व्यंजन।
- कतन्नी—(सं.स्त्री.) कैंची, इसका पुलिंग कतन्ना।
- कतरी—(सं.स्त्री..) कोल्हू की वह पटरी जिस पर बैठकर कोल्हू चलाता है।
- कतरब—(क्रिया) टुकड़े-टुकड़े करना, टुकडे़ में काटना, अनाज से कंकड़ अलग करना।
- कतेक—(विषे.) कितने, कितने लोग, कितना, कई लोग।
- कथरिआउब—(क्रिया) कथरी को हाथ से सिलाई करना।
- कथरी—(सं.स्त्री..) फटे पुराने कपड़ों से निर्मित गद्दा।
- कँदुआ—(सं.पु.) हलवाई, मिठाई बनाने वाला।
- कँदरी—(सं.स्त्री..) पाँव की उँगुलियों के बीच सड़न का रोग।
- कँदरिआब—(क्रिया) जी मिचलाना, उलटी सी लगना।
- कँदिआउब—(क्रिया) चिकनी-चुपड़ी करके मिलाना-पटाना।
- कँउही—(सं.स्त्री..) काँदौ-कीच से सनी हुई, कीचड़युक्त।
- कँधइया—(सं.पु.) कृष्ण, कन्धा, कन्धे में किसी को उठाना।
- कँधेला—(सं.पु.) साड़ी के एक छोर से वक्षस्थल ढकना एवं सिर खुला करना।
- कनटाइन—(विषे.) कशैला, कड़वा, कटु स्वाद।
- कनटोप—(सं.पु.) कान ढकने वाला ऊनी टोपा।
- कनकनाब—(क्रिया) आवेषित होकर कर्कष वाणी में बड़-बड़ाना।
- कनिखा—(सं.पु.) पेड़ की शाखाओं की टहनियाँ, उपषाखायें।
- कनबहिरी—(विषे.) अनसुनी करना, कान से बहरा होना।
- कनझान—(विषे.) अंगार को बुझाकर मन्द हुई स्थिति।
- कनइल—(सं.पु.) कनैल का पौध, एक विषेष फूल।
- कन्डा—(सं.पु.) गोबर का उप्पल, सूखी हुई उपली, ईंधन।
- कना—(सं.पु.) चावल के वाह्य पर्त का चूर्ण कण।
- कनेबा—(सं.पु.) कोल्हू का जुॅआ और लाठ से जुड़ी लकड़ी।
- कनुआब—(क्रिया) निरर्थक अकड़ना, लड़ने को उद्धत होना।
- कनेमन—(सं.पु.) अचार का सूखा मषाला, मषाला का चूर्ण।
- कनिगा—(सं.स्त्री..) लाल चावल वाली एक धान विषेष।
- कनिहा—(सं.स्त्री..) कमर, कमर के बल षिषु को उठाना।
- कनकटिया—(विषे.) जिसका थोड़ा सा कान कटा हो।
- कनछेदन—(सं.पु.) बच्चों का कर्ण भेदन संस्कार।
- कनउब—(क्रिया) मिलाना-पटाना, खुश करके पक्ष में करना।
- कनहरी—(सं.स्त्री..) गर्भाषय एवं षिषु की नाभि से जुड़ा माँस का नाड़ा।
- कन्छई—(सं.स्त्री..) कान के अन्दर की फोड़िया- फुंसी।
- कनफोरबा—(सं.पु.) कान भरने वाला, दोनों का मन फोड़ने वाला।
- कनकउआ—(सं.पु.) एक प्रकार की घास, सब्जी, वनस्पति।
- कनई—(सं.स्त्री..) बाँस की पतली-पतली टहनिया।
- कनछरियाब—(क्रिया) कट-छंटकर रहना, तिरछी नजर रखना।
- कन्डाब—(क्रिया) भूखे-प्यासे, सूखी स्थिति, भूॅख से ब्याकुल होना।
- कनगजीर—(सं.स्त्री..) पतले चावल वाली एक धान।
- कन्डान—(विषे.) भूखे-प्यासे की स्थिति, अस्तित्व विहीन।
- कन्नी—(सं.स्त्री..) दीवाल जोड़ने का एक औजार, गोंद।
- कन्हीहा—(विषे.) जो हमेषा गोद मे रहने का आदी हो चुका हो।
- कन्डम—(विषे.) घटिया, खराब, जीर्ण- षीर्ण, अनुपयोगी।
- कनसुर—(विशे.) ऊँचा सुनाई देना, ऊँचा- नीचा सुनना, अमेल एवं अप्रिय सुर।
- कनेखा—(सं.पु.) व्यंग्य बाण, बात का बतंगड़ बनाना।
- कनस्टर—(सं.पु.) खाली पुराना घी-तेल का टीना।
- कपरकपर—(अव्य.) कर्णकटुवार्ता, जल्दी- जल्दी बोलना।
- कपटब—(क्रिया) टुकड़े-टुकड़े काटना, सिर उतार लेना।
- कपार—(सं.पु.) सिर, खोपड़ी, मस्तिष्क, ब्रम्हाण्ड।
- कपड़छन—(सं.पु.) कपड़े से छानना, पतले कपड़े से आटा झोलना।
- कपच्छई—(सं.) एक प्रकार का रोग, उल्टी- दस्त का रोग।
- कपसा—(सं.स्त्री.) एकदम सफेद, गौर वर्ण, कपास या रुई।
- कपिला—(विषे.) एक गाय विषेष, निर्दाग, दूध का धुला।
- कबउ-कबउ—(अव्य.) कभी भी, यदा-कदा।
- कबहूँ-- (अव्य.) कभी-कभी नहीं, किसी सूरत में।
- कबार—(सं.पु.) दिन-रात, खेत-बगार में कार्य, लोहे या काँच के टुकड़े।
- कबेलबा—(सं.पु.) तुरन्त का जन्मा कौए का बच्चा।
- कबरिया—(विषे.) दो रंगों वाली, सफेद चित्ती वाली, भदरंगी/पुलिंग कबरबा।
- कबै—(योजक) कब, किसदिन, किस समय।
- कमरी—(सं.स्त्री.) कामरि।
- कमरेड़ा—(सं.स्त्री..) कामर लटकाने वाला बाँस का लठ्ठा।
- कमटी—(सं.स्त्री..) बॉस की लम्बवत फाड़ी गयी टुकड़ियाँ।
- कमिया—(सं.पु.) काम करने वाला, मेहनत कष।
- कमरिहा—(विषे.सं.) कामरि ढोने वाला- व्यक्ति विषेष।
- कमरिया—(सं.स्त्री..) छोटा सा कम्बल, कामरिनुमा खिलौना, पुलिंग कमरा।
- कम्मल—(सं.स्त्री..) मवेषियों के गले की झूलदार चमड़ी।
- कमरा—(सं.पु.) रोयेंदार काले रंग का कीड़ा, कम्बल।
- करकस—(विषे.) कटुवाणी, अप्रिय, खराब लगना।
- करकसा—(सं.स्त्री..) कर्कष वाणी बोलने वाली, कटुभाषी।
- करबी—(सं.स्त्री.) ज्वार का डंठल टुकड़ों में काटना।
- करबर—(विषे.) रबेदार, खुरदुरा, चिकनाहट रहित।
- करासन—(सं.पु.) दो पहाड़ियों के बीच का प्रक्षेत्र, पहाड़ का ऊपरी षिखर।
- करमोउब—(क्रिया) भात को थोड़े से दूध से नाम मात्र का मोवन करना।
- करूआ—(विषे./सं.)काले रंग की चूड़ी, करुआदेव का नाम।
- करू—(विषे.) कड़वा, कषैला, जहरीला, कड़वी।
- करेंगवा—(सं.पु.) काले सर्प का सपोला, हाथी का षिषु, बच्चा।
- करोउब—(क्रिया) खरोचना, नाखून से गीली मिट्टी निकालना।
- करंज—(सं.पु.) कंजी का एक वृक्ष।
- करिआरी—(सं.स्त्री.) घोड़े के मुँह में लगायी जाने वाली लोहे की साँकली।
- करधन—(सं.स्त्री..) कमर की साँकल, कमर में धारित धागा।
- करमबली—(विषे.) सौभाग्यषाली, प्रखर कर्म वाला।
- करतूति—(विषे.) पुरूषार्थ, कार्य का प्रतिफल।
- करइली—(सं.स्त्री..) छोटे आकार का करेला, पषु के पूँछ का मांशल भाग, कलेजा या दिल।
- करहिया—(सं.स्त्री..) छोटे आकार की कड़ाही, पुलिंग कराहा।
- करी—(सं.स्त्री..) भगाकर लायी हुई स्त्री., मोटी-मोटी नमकीन, गाटर की तरह, ईमारती लकड़ी।
- करोनी—(सं.स्त्री..) खुरचन, करोचन, खुरचने का पात्र।
- करई—(सं.स्त्री..) लोटे की आकृति का मिट्टी का पात्र।
- करहुला—(सं.पु.) कम उम्र की हाथी का बच्चा।
- करेजा—(सं.पु.) कलेजा, हिम्मत, प्राण-मित्र।
- कराइँध—(विषे.) पककर अत्याधिक सूखी स्थिति, खर हुआ डंठल।
- कर्रा—(विषे.) कड़ा, कठोर, सख्त, कसा हुआ, बहुत जोर से।
- कर्र-कर्र—(क्रि.वि.) ककड़ी या फल खाने पर उत्पन्न ध्वनि।
- करब-कथब—(ब.मुहा.) मरने पर कर्म क्रिया, कार्य की व्यवस्था।
- करँउटा—(सं.स्त्री..) करवट, पाला बदलना।
- करेनिया—(विषे.) काले रंग वाली वस्तु।
- करिहौं—(क्रि.भवि.) करुँगा, करुँगी, करना है।
- करबै करब—(क्रि.भवि.) करुँगा ही, करना ही करना है।
- करत रहेन—(क्रिया) करता था, करता रहा, करता रहा था।
- करिस—(क्रिया) किया, किया गया।
- करइहौं—(क्रि.भवि.) कराऊँगा, कराऊँगी।
- करेउँतै—(क्रि.भू.) किया था, की थी, किया तो था।
- करबइया—(विषे.) कार्य करने वाला।
- करबाउब—(क्रिया) कार्य करवाना, काम कराना।
- कलछर—(विषे.) हल्की काली, हल्का काला रंग।
- कलपबास—(सं.पु.) तीर्थ-प्रवास, तीर्थ स्थान में तपस्या।
- कल्हरब—(क्रिया) चीखना, पीड़ा के कारण कराहना।
- कलमस—(विषे.) खोट, मिलावट, मिश्रित व अषुद्ध, दाल में काला।
- कलथब—(क्रिया) पलटना, बदल जाना, एक पात्र से दूसरे में करना।
- कलबलाब—(क्रि.वि.) जीभ में खुजलाहट, जीभ में बेचैनी।
- कलेबा—(सं.पु.) नाष्ता, सुबह का जल-पान।
- कल्लाब—(क्रिया) बाल उखाड़ने से पीड़ा होना, घर्षण से दर्द होना।
- कलउब—(क्रि.) फल को हल्का उबालना, वाष्पित करना।
- कलँउ-कलँउ—(अव्य.) भूख से याकुल, खाने की आतुरता।
- कल्ला—(सं.पु.) हरे बाँस का टुकड़ा, प्रस्फुटित नवोदित बाँस।
- कलकुतिया—(विषे.) अत्याधिक लालषा, मिलने की प्रबल पिपाषा,
- कलट्टर—(सं.पु.) जिलाधीष, कलेक्टर।
- कलभुँजरा—(विषे.) काला, चितकबरा, घृणित काला रंग।
- कलपाउब—(क्रिया) तरसाना, दुःखी करना, रुलाना।
- कलौं-कलौं—(अव्य.) भूख के कारण कराहना, अति भूख की ध्वनि।
- कलपडाह—(विषे.) तड़पनयुक्त दयनीय दषा, कष्टप्रद परिद श्य।
- कलोर—(विषे.) जवान बछिया, बिना व्यायी गाय।
- कलऊ—(अव्य.) कलयुग, कलऊ लग गया बघेली मुहावरा।
- कलकरा—(क्रिया) धैर्य धारण करो, इंतजार कीजिए।
- कलबली—(क्रि.वि.) खुजली होना, कामुक स्थिति होना।
- कलेउहा—(सं./वि.) कलेवा करने योग्य षिषु विषेष।
- कलम—(सं.पु.) लकड़ी की लेखनी, दाढ़ी वाले कान के बगल के बाल, पौधे से पौध तैयार करना।
- कलमुही—(विषे.) जिसका मुँह काला हो, एक गाली विषष्े।
- कसत—(अव्य.) किस प्रकार, कैसे, कैसा, किधर।
- कसाई—(सं.पु.) बकरा काटने वाला, निर्दयी व्यक्ति, एक जाति।
- कन्सरा—(सं.पु.) तेल का खाली टीना।
- कसनी—(सं.स्त्री.) अनाज का डंठल या घास बाँधने वाली रस्सी।
- कसान—(विषे.) कषैलापन का स्वाद, आम्लीयता रहित।
- कसनहट—(सं.स्त्री..) पषुओं के गले में बाँधी जाने वाली कलात्मक रस्सी, हल-जुआ का मोटा रस्सा।
- कँसब—(क्रिया) खरा-खोटा का परीक्षण करना, कसौटी में फसना, जमकर बाँधना, मानक पैमाने में तौलना।
- कसकुट—(सं.पु.) कई धातुओं के मिश्रण से बनी धातु का नाम।
- कसाँइध—(विषे.) कसौलापन की गंध, कसैला बर्तन का स्वाद।
- कसन—(सं.स्त्री..) हल एवं जुआ को कसने वाला मोटा रस्सा।
- कसिके—(सं.पु.) कैसे, किस प्रकार से, जकड़कर बाँधना।
- कसाला—(सं.पु.) मन में मलाल, कमी, खाम्ही, गड़बड़ी।
- कसमसाब—(क्रिया) भीतर ही भीतर आक्रोष से जलना, अंदरूनी भीतर ही भीतर गुस्से से, आक्रोष एवं वेदना सहकर चुप रहना।
- कसकब—(क्रिया) रह-रहकर घाव का काटना, दिन में चुभना।
- कसरि—(विषे.) कोर कसर, कमी रह जाना, कमजोरी करना।
- कस—(अव्य.) कहाँ, किधर, किस ओर, किधर को, किस प्रकार।
- कसो—(सं.पु.) कहो, हुँकारी भराने का एक शब्द।
- कहल—(सं.पु.) गरमी की उमस, तापयुक्त कष्ट।
- कहलब—(क्रिया) गरमी लगना, पसीना- पसीना होना।
- कहनूति—(सं.स्त्री.) कहावत, कही गई उक्ति, वादा।
- कहुलब—(क्रिया) कड़ाह में अनाज के दाने भूनना, मारना-पीटना।
- कहँउ—(अव्य.) कहीं, कहीं भी, कहीं पर, कह दूँ, कहें।
- कहा—(क्रिया) कथनानुसार किया गया कार्य, कहिए या कहो, निर्देश पालन।
- कहूँ-- (अव्य.) किसी जगह, कहीं, कहीं भी, कहीं पर।
- कहिया—(अव्य.) कब, किस दिन, किस समय।
- कही—(क्रिया) कहिए, कह दीजिए।
- कहिदेई—(क्रिया) कह दें? कह दीजिए, कह दो।
- कहा-सुनी—(क्रि.वि.) बातचीत, मषविरा, सल्लाह, गाली-गलौज।
- कहब—(क्रिया) कहना, कहेंगे, कहूँगा।
- कहबाउब—(क्रिया) बुरा-भला सुनना, किसी से संदेष कहना, दूसरे के मुख से कहलवाना, मुख से कहलवाना।
- कहिहौं—(क्रि.वि.) कहूँगा, कह दूँगा, कहेंगे, कहूँगी।
- कहियौ—(अव्य.) कभी भी, किसी दिन, किसी भी समय।
- कहिना—(अव्य.) कब, किस दिन, क्यों, कैसा, किस समय।
- कही कहा—(क्रि.वि.) वाद-विवाद, आपसी शर्तनुमा संविदा, पक्की बात हो जाना।
- कहा करब—(क्रिया) किसी का कहना मानकर कार्य करना।
- कहे-कहे—(अव्य.) कहने-कहने पर, किसी की प्रेरणा से।
- कहबइया—(विषे.) कहने वाला, कह बताकर कार्य करने वाला।
- कहिस—(क्रि.भू.) कहा था, कहा गया।
- कहिनतै—(क्रि.भू.) कहा था, कहे थे, कहा गया था।
- कहत रहेन—(क्रिया) कहता था, कह रहा था, बताया था।
- कही ता—(क्रिया) कहिये तो, कहकर देखिए, कहें तो।
- कहत रहें—(क्रिया) कह रहे थे, कहते थे, कहता था।
- कहबै करब—(क्रिया) कहेंगे ही, कहूँगा ही।
- कहेन—(क्रि.सं.) कहा आपने? एक सम्बोधन एवं तकिया कलाम।
- कहि-कहि—(अव्य.) कह-कह करके, कहकर कोई कार्य, स्मरण में लाना। कहबररै (क्रिया)- - नहीं कहा जाता, कहने की हिम्मत नही पड़ती। का
- काड—(सर्व.) क्या? स्त्री.लिंग ’की’ कौन?
- काइ काई—(सं.स्त्री..) जल मे होने वाली एक घास।
- काँइया—(विषे.) दुष्ट प्रवृत्ति का आदमी, कारणी व्यक्ति।
- काकी—(सं.स्त्री..) चाची, पिताजी के छोटे भाई की पत्नी।
- काकू—(सं.पु.) चाचा, पिता जी के अनुज।
- काँकर—(सं.पु.) कंकड़, पत्थरों का सूक्ष्म अंष।
- का-का—(अव्य.) क्या-क्या? कौन-कौन सी चीज?
- काँखब—(क्रिया) पीड़ा के कारण कराहना, हार मान लेना।
- कागद—(सं.पु.) कागज।
- कागदी—(सं.पु.) एक विषेष प्रकार की नींबू की किस्म।
- काँड़ब—(क्रिया) काँड़ी में अनाज कूटना, किसी को पीटना।
- काँड़ी—(सं.स्त्री..) पत्थर का पात्र जिसमें अनाज मूसल से काँड़ा जाता है, ओखली।
- काटब—(क्रिया) बहते पानी का छल्लेदार होना। काटना, टुकड़े-टुकड़े करना, काट खाना, दॉत गड़ा देना।
- कॉठी—(सं.स्त्री..) डील-डौल, कद, ढाँचा, शारीरिक गठन।
- काठ—(सं.पु.) काठ, मोटी ईमारती की लकड़ी।
- काढ़ब—(क्रिया) निकालना, कर्ज लेना, घर से बाहर करना।
- काढ़ा—(सं.पु.) कर्ज, तरल पदार्थ का गाढ़ा रूप, ऋण बतौर लिया गया उधारी रुपया-पैसा, या अनाज।
- काचर—(विषे.) गाय-भैंस के स्तन प्रक्षेत्र में दुग्ध की उभार सूचक स्थिति।
- काची—(सं.स्त्री..) महुआ एवं चावल से बना बघेली व्यंजन।
- काँछब—(क्रिया) उँगलियों से बर्तन में लिपटे पदार्थ को पोंछना।
- काछी—(सं.पु.) कुशवाहा, बागवान, साग भाजी उगाने वाली जाति।
- काज—(सं.पु.) विवाह, शादी, कार्य या काम।
- कातब—(क्रिया) कपास से सूत बनाना, सूत या रस्सी कातना।
- काँद—(सं.स्त्री..) चकत्तेदार घास, गठीली घास, जोतन की घास।
- काँदा—(सं.पु.) कन्दमूल, कीचड़ एक तरकारी का नाम। काँँ ँ
- दौ—(सं.पु.) बरसात का कीचड़ पानी- मिट्टी का उभार।
- काँधा—(सं.पु.) कन्धा।
- काँन—(सं.पु.) इज्जत, मर्यादा, सीमा मानना, कान मानब, बघेली मुहावरा।
- कानी—(सं.स्त्री../विषे.) रस्सी का वह भाग जो मवेषी के गले में बाँधी जाती है, आँख से विकलांग।
- कानीहउद—(सं.पु.) कांजी हाउस, आवारा पषुओं का जेलखाना।
- कापा—(सं.पु.) खेत का हिस्सा या टुकड़ा।
- कापू—(सं.पु.) जलाषय के तल पर जमी मिट्टी की मोटी तह।
- काँपब—(क्रिया) कम्पन करना, भय या ठंड से शरीर हिलना।
- कामरि—(सं.स्त्री..) तराजूनुमा कमरी, देवताओं को समर्पित कामर।
- काँमा—(सं.पु.) कोपर के दोनों किनारे, प्रतिकूल परिस्थिति।
- कॉयठ—(विषे.) हलका कड़वा, खाने में कसैला लगना।
- कायली—(सं.स्त्री..) शर्म, संकोज, शर्मिन्दगी, ग्लानि।
- काँय-काँय—(क्रि.वि.) कर्कष आवाज के साथ बातें करना, काँय-काँय करना, बघेली मुहावरा।
- कारनी—(विषे.) घटिया किस्म का व्यक्ति, दिल में द्वेष रखने वाला।
- कारकुन्नी—(ब.मु.) करामात, कारगुजारी, कार्यवाही, सरारत पूर्णकार्य।
- कारी—(विषे.) काली, श्यामवर्ण, काले रंग वाली।
- कारोबार—(सं.पु.) घरेलू स्थिति, उद्यम व्यापार, आर्थिक स्थिति।
- कारछ—(विषे.) हल्की कालिमायुक्त, कालापन लिये हुये रंग।
- काला भुसुंड़—(विषे.) एकदम काला, काला एवं भयावह।
- काल्हु—(अव्य.) आने वाला कल, बीता हुआ कल।
- काँसि—(सं.स्त्री..) एक प्रकार की लम्बी घास।
- काही—(अव्य.) किसे, किसको, किस व्यक्ति को।
- काहू—(सर्व.) किसी को, कोई।
- काँहीं—(अव्य.) को, का, लिए।
- काह काहे—(अव्य.) क्यों, किसलिए, किस कारण, इसलिये कि।
- काहूका—(सर्व.) किसी को, किसी को भी, अन्य को।
- काहे से कि—(अव्य.) क्योंकि, इसलिए, इस कारण। कि
- किकिआब—(क्रिया) भय के कारण चीखना, सोते-सोते कूद उठना।
- किकिरी कोंढा—(सं.पु.) छोटे-छोटे बच्चों की बहुतायत।
- किचकिचाब—(क्रिया) दाँत पीसकर बोलना, पूरी ताकत लगाकर कहना।
- किच्च—(विषे.) कोचिया, कृपण, मितव्ययी।
- किच्चपिच्च—(क्रि.विषे.) आनाकानी, देने-लेने में बकवास करना।
- किचिर-पिचिर—(विषे.) रिमझिम पानी से उत्पन्न हल्का कीचड़।
- किट्ट-किट्ट—(क्रि.वि.) दाँतो से दाँत लड़ने से उत्पन्न ध्वनि, भोजन में कंकड़ मिल जाने पर उत्पन्न ध्वनि।
- किटकिटाव—(क्रिया) कंकड़ मिल जाना, खाते समय दाँत में कंकड़ आने से किट-किट होना।
- किटकिरी—(सं.स्त्री..) आँख में पड़ी धूल, धूल का कण, आँख में चुभनेवाली।
- किधिनौ—(अव्य.) किसी दिन, किसी भी दिन।
- किधिना—(अव्य.) किस दिन? कब? किस समय।
- किन्हा—(अव्य.) किस दिन, कब?
- किन्नर—(क्रि.वि.) बात-बात में तर्क-वितर्क पूर्ण पूछताछ।
- किन्नरहा—(सं.पु.) कार्य के समय या देते-लेते समय पंचायत रोपने वाला।
- किनकी—(सं.स्त्री..) चावल से टूटे हुये छोटे- छोटे कण समूह।
- किनरिहाई—(विषे.) किनारीदार धोती या टोकनी विषेष।
- किरमिचाब—(क्रिया) मुष्किल से बिना मन के कोई चीज देना, देने में।
- किरिथ्थान—(विषे.) छूत-अछूत वस्तुओं का आपस में मिल जाना, अपवित्र हो जाना, जमीन पर जूठा भोजन बिखर जाना।
- किरबा—(सं.पु.) कीड़ा, सर्प, कीड़े-मकोड़े।
- किरचा—(सं.पु.) किसी वस्तु या पदार्थ का एक अंष या कण।
- किरकिराब—(क्रिया) लिखते समय निब का कागज काटना, धूल के कारण आँख में दर्द होना।
- किरहाव—(सं.पु.) घाव में डाली जाने वाली कीटनाशक दवा।
- किरहा—(विषे.) घाव में कीड़े पड़ जाना, किड़ाया हुआ व्यक्ति।
- किरिया—(सं.स्त्री..) कसम, सौगन्ध, चुनौती।
- किलकिल—(सं.स्त्री..) वाद-विवाद, झगड़ा, बात-बात मे बहस।
- किलनी—(सं.स्त्री..) मवेषियों की चमड़ी पर लिपटा रहने वाला कीड़ा, जुंआ।
- किलबा—(सं.पु.) वह लकड़ी जिसके सहारे जांत घूमता है।
- किलिप—(सं.स्त्री..) पेन के ढक्कन की क्लिप, औरतों के बाल वाली क्लिप।
- किल्ल पों—(क्रि.वि.) शोरगुल करना, हीला हवाली करना।
- किस्सा—(सं.स्त्री..) कथा, बीती बातें, कहानी, लोक कथा।
- किसनिया—(सं.स्त्री..) मालकिन, किसान की पत्नी।
- किहिन—(क्रिया) किये, किया, कर डाले, कर चुके।
- किहिनी—(सं.स्त्री..) पहेली, बुझउअल, जनउहल, कहानी। की
- कीक—(सं.स्त्री..) जोर से चीखना, चीख- चीत्कार।
- की-की—(सर्व.) कौन-कौन? रोते समय की ध्वनि विषेष।
- कीट—(सं.स्त्री..) अति मैला, तेल रखने वाले बर्तन के तल पर जमा कचरा, दाँतों में जमा हुआ दाग।
- कीचर—(सं.पु.) आँखों से निकलने वाला श्वेत कचरा।
- कीन—(क्रिया) किया हुआ, किया।
- कीन्हिन—(क्रि.भू.) किये हैं, किया है, की गई क्रिया।
- कीरब—(क्रिया) लिखकर काटना, कर्ज पर पावती लगाना, माचिस की सलाई जलाना, आग लगाना, नष्ट करना।
- कु कुइँट—(सं.स्त्री..) दाने निकलने के बाद बचे अलसी के डंठल।
- कुईनी—(सं.स्त्री..) तालाब में रात को फूलने वाला एक श्वेत पुष्प।
- कुँई-कुँई—(क्रि.वि.) मैथुन हेतु बैल के मुख से निकली ध्वनि।
- कुकरम—(सं.पु.) कुकर्म, बुरा कार्य, निन्दनीय काम।
- कुकाम—(सं.पु.) काम का नुकसान, कार्य में व्यवधान होना।
- कुंकुँधब—(क्रिया) मुक्का से जमकर पीटना, कुचलकर पीटना।
- कुकुरदँती—(विषे.) कुत्ते की भाँति दाँत वाली, सामने के दाँत जिसके आगे-पीछे हो, पुलिंग कुकुरदता।
- कुकुरिया—(सं.स्त्री..) कुतिया के लिये एक गाली, पुलिंग कुकुरा।
- कुकुरमुँहा—(विषे.) कुत्ते की तरह मुँह हो जिसका, एक गाली।
- कुचरब—(क्रिया) कुचलना, कूटना-पीटना, दातून चबाना।
- कुचुहिली—(विषे.) दलहन के तुचके हुये अपुष्ट दानें।
- कुड़िया—(सं.स्त्री..) पत्थर या चीनी मिट्टी का कटोरानुमा बड़ा पात्र।
- कुड़ि—(सं.स्त्री..) खेत जोतते समय हल से बनने वाली लकीर।
- कुढ़िआउब—(क्रिया) संचित करके रखना, वस्तु का ढेर लगाना।
- कुढ़ब—(क्रिया) ईर्ष्या द्वेष करना, प्रगति देखकर जी जलना।
- कुतकुताउब—(क्रिया) शरीर पर उँगली का घर्षण करके हँसाना।
- कुतकुती—(सं.स्त्री..) शरीर को उँगुलियों से सहलाने पर उत्पन्न आनन्ददायी अनुभूति, हँसाने की प्रक्रिया।
- कुतक्क—(सं./कि.वि.) ठेंगा, हाथ का अँगूठा दिखाना, कुछ नहीं के अर्थ में।
- कुतरक—(विषे.) दैनिक दिनचर्या बिगड़ने से उत्पन्न व्याधि।
- कुतुरब—(क्रिया) दाँत से रोटी काटना, रोटी काट लेना।
- कुदराब—(क्रिया) उछलना-कूदना, कूदना- फाँदना, दौड़ दौड़कर चलना।
- कुदँउआ—(क्रि.वि.) कूदते-फाँदते या उछलते हुये चलना।
- कुदरूप—(विषे.) रूप से भद्दा, गन्दा चेहरे वाला।
- कुदाउब—(क्रिया) कुदाना, उछालना, उभारना।
- कुदरिया—(सं.स्त्री..) छोटे आकर की कुदाली, पुलिंग कुदारा।
- कुँदुरू—(सं.स्त्री..) परवल समूह का एक फल, तरकारी विषेष।
- कुधुँलब—(क्रिया) मारना-पीटना, कुचल डालना।
- कुनाई—(सं.पु.) भूसे से महीन भूसे का आटा जैसा निकला कण।
- कुचाहिल—(सं.पु.) अधमरा, पिटा हुआ, घायल शरीर वाला।
- कुजँड़ा—(सं.पु.) नारियों का दरबार में बैठने का आदी पुरुष।
- कुजुनिया—(अव्य.) खाना-खाने की बेला, सोने का समय, सूर्य डूबते समय की बेला, अनुपयुक्त समय।
- कुजाति—(सं.स्त्री..) जात-विरादरी से तिरष्कृत व्यक्ति, असमान जाति का, छूत व्यक्ति।
- कुजोर—(विषे.) काम का नुकसान, समय का नष्ट हो जाना।
- कुजोग—(सं.पु.) दुर्भाग्यपूर्ण समय, बुरा वक्त, दुर्दिन, कुसमय।
- कुछू—(विषे.) कुछ, कुछ भी, कोई चीज।
- कुटकुर—(विषे.) गीली जमीन का हलका- हलका सूख जाना।
- कुटुल्ली—(क्रि.वि.) निरर्थक बातें करना, बाते भिड़ाना, कुटुल्ली काटना, ब.मु.।
- कुटुर-कुटुर—(अव्य.) जल्दी-जल्दी बोलना, तोतली बोली, निर्भीकता पूर्ण बोली।
- कुटइलहा—(विषे.) हमेषा मार खाते रहने वाला, कुटेंव वाला।
- कुट्टी—(सं.स्त्री.) बोलचाल बन्द हो जाना, बीड़ी की अधजली टुकड़ी।
- कुटकी—(सं.स्त्री..) कण के आकार का महीन कीट, एक खरीफ फसल।
- कुठुली—(सं.स्त्री..) अनाज रखने वाला मिट्टी का पात्र, पुलिंग कुठिला।
- कुठाँव—(सं.पु.) कुत्सित स्थान, अनुचित ठौर, संवेदनषील अंग।
- कुठाहिर—(सं.पु.) अनुपयुक्त जगह, मुलायम या नाजुक स्थान-अंग।
- कुनू-कुनू—(विषे.) बहुत छोटा-छोटा, थोड़ा- थोड़ा, अति अल्प।
- कुनेत—(विषे.) बुरी नियत, दो वस्तुओं की असमान ऊँचाई, जिसका रिष्ता बोलने या छूने का न हो।
- कुन्नियाव—(विषे.) अन्याययुक्त कार्य, अनैतिक- अनमिल काम।
- कुनकुन—(विषे.) हलका गर्म, बहुत कम गरम जल की स्थिति।
- कुनकुनाब—(क्रिया) उत्तेजित होना, हल्का- हल्का गर्म होना, मन ही मन नाराज होना, पहले से चैतन्य होना।
- कुबरा—(सं.पु.) जिसका कूबड़ निकला हुआ हो, स्त्री.लिंग कुबरी।
- कुमरगह—(विषे.) क्वांरापन का दाग मिटना, बुढ़ापे में विवाह।
- कुमार—(सं.पु.) क्वांरा, अनव्याहा, क्वार महीना।
- कुमारगी—(विषे.) बुरे मार्ग मे चलने वाला, चाल चलन से गंदा व्यक्ति।
- कुरिया—(सं.स्त्री..) कुटी, छोटा सा घर, घास-फूस की झोपड़ी।
- कुरधन—(सं.स्त्री..) मथानी में लगी रस्सी विषेष।
- कुरकुर—(क्रि.वि.) भुने पापड़ को तोड़ने से होने वाली आवाज, रोटी का अधिक भुन जाना, पिल्ले को बुलाने वाला एक शब्द।
- कुरसंती—(विषे.) बदमासीनुमा शैली में अन्याय पूर्ण व्यवहार, संविदा से मुकर जाना, धोखा-धड़ी युक्त क्रिया कलाप।
- कुरकुटिहा—(विषे.) चिथड़े पहने हुये, दरिद्र वेष भूषा, अति दीन-हीन।
- कुरुरमुरुर—(क्रि.वि.) थोड़ा, बहुत कम, काम चलाऊ मात्रा, ऐन-केन प्रकारेण
- कुरुर-कुरुर—(क्रि.वि.) फल या पापड़ खाने पर होने वाली एक ध्वनि।
- कुरुआ—(सं.पु.) एक पाव की क्षमता का मापन पात्र। कुरउब - - राषि लगाना, जमीन पर रखना, संचयन क्रिया।
- कुरई—(सं.स्त्री..) अनाज नापने का एक पुराने प्रचलन का पात्र।
- कुरइली—(सं.स्त्री..) अनाज गहाई में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी का कृषि औजार।
- कुरेंदब—(क्रिया) मिट्टी की ऊपरी परत छीलना, गड़ी बात को उखाड़ना, भूली बात को खोदकर जागृत करना।
- कुलकब—(क्रिया) अति प्रसन्न होना, किलकारी मारना।
- कुलुलबुलुल—(क्रि.वि.) मन्दगति से हरकत या हलचल करना, छोटी-छोटी अनगिनत वस्तुए, पिल्ले समूह की प्रवृत्तिगत हरकत।
- कुलाँच—(सं.पु.) उलाहना, बुरा-भला शब्द, गाली-गलौज।
- कुलच्छी—(विषे.) बुरे लक्षणों का, दुर्गुणी, बुरी प्रवृत्ति वाला।
- कुलुनिया—(सं.स्त्री..) कोल की पत्नी, कोल जाति की नारी।
- कुलपुज्ज—(विषे.) कुल का पूज्य, परिवार के लिये पूजित पुरोहित।
- कुल्ल—(विषे.) सम्पूर्ण या योग, बहुत अधिक, पर्याप्त मात्रा।
- कुलबोरन—(विषे.) वंष परिवार की मर्यादा डुबाने वाला।
- कुल्लू—(सं.पु.) एक जंगली वृक्ष, कान के बगल का दाढ़ी की ओर झुका बाल।
- कुसगुन—(सं.पु.) अपषगुन, बुरा संकेत, अशगुन।
- कुसी—(सं.स्त्री..) गेहूँ के दाने को ढके रहने वाला छिलका, गहाई के बाद की डंठल की गठीली टुकड़ियाँ।
- कुसा—(सं.पु.) घास या काँस की जड़, पूजा-पाठ का उपकरण।
- कुसिया—(सं.स्त्री..) हल में प्रयुक्त होने वाली एक लकड़ी।
- कुसिआरी—(सं.स्त्री..) हल का फाल, एक कीड़े द्वारा बनाया गया घर, चने के आकार की घास की जड़।
- कुसाइत—(स.पु.) बुरा समय, कष्टप्रद दिन, प्रतिकूल परिस्थिति।
- कुसुली—(सं.स्त्री..) गुझिया।
- कुहब—(क्रिया) जमकर मारना- पीटना, खेत में अत्याधिक अनाज का उग आना, जोर से वर्षा होना।
- कुहकुहाब—(क्रिया) पिल्ले की वेदनायुक्त आवाज का निकलना।
- कुहार—(सं.पु.) कुम्हार, कुंभकार जाति, स्त्री.लिंग कुहारिन।
- कुहिराब—(क्रिया) धुँआ छा जाना, धूल दूषित आसमानी वातावरण।
- कूकीं—(क्रि.वि.) बच्चों का छिपा- छिपउहल वाला एक खेल, लुका-छिपी।
- कुकुर—(सं.पु.) कुत्ता, कुत्ते की तरह आदमी। कू
- कूचब—(क्रिया) कुचलना, किसी वस्तु को कूटना, मारना-पीटना।
- कूँची—(सं.स्त्री..) गहना साफ करने वाला ब्रस, दातून की कूँच।
- कूँचा—(सं.पु.) झाड़ू, बढ़नी।
- कूँची—(सं.स्त्री..) छोटे आकार की झाडू़, महुए का फूल ढकने वाला डंठल, दीवाल पोतने का एक ब्रस।
- कूढ़ा—(सं.पु.) कूड़ा कर्कट का ढेर, अनाज का ऊँचा गड्ढा।
- कूता—(सं.पु.) ठेके का काम, बिना नाप-तौल के अन्दाज, नजर अन्दाज से मूल्यांकन।
- कूतब—(क्रिया) अन्दाज लगाना, अनुमान से मूल्यांकन करना।
- कूदा-फाँदी—(क्रि.वि.) भाग-दौड़ करना, किसी कार्य के लिये अतिरिक्त प्रयास करना, हाथ-पाँव पटकना, अथक परिश्रम करना।
- कूर—(सं.स्त्री..) गुझिया के भीतर का मसाला, पिल्ले को बुलाने का शब्द।
- कूरी—(सं.स्त्री..) पूजा के समय चावल से जमीन पर बना नवग्रह।
- कूरा—(सं.पु.) कूड़ा-कर्कट, धूल-घास के कण, घास मिट्टी का ढेर।
- कूल—(सं.स्त्री..) कमर के दोनों बगल की हड़्डियाँ व माँस पेषी।
- कूहा—(सं.पु.) बड़ा सा ढेर, अधिक मात्रा में संचित वस्तु समूह। के
- के—(सर्व.) कौन?
- के-के—(सर्व.) कौन-कौन?
- केऊ—(सर्व.) कोई, कोई भी।
- केकँरा—(सं.पु.) केकड़ा, गीली मिट्टी में रहने वाला एक कीड़ा।
- केखर—(सर्व.) किसका, (पुलिंग) केखरि (स्त्री.लिंग)
- केखा—(सर्व.) किसको, किसे, किस व्यक्ति को।
- केखे—(सर्व.) किसके यहाँ, किसके।
- केंधा—(अव्य.) किधर, किस ओर, किस तरफ, कहाँ।
- केचुर—(सं.पु.) सर्प के पेट से उत्सर्जित पुरानी चमड़ी।
- केंचब—(कि.वि.) पटक-पटक कर पीटना, खूब जमकर खाना।
- केत्तव—(विषे.) कितना भी।
- केतका—(विषे.) कितनी मात्रा, कितना नग, स्त्री.लिंग केतनी।
- केतू—(विषे.) कितनी, कितना, कितनी संख्या।
- केत्ते जने—(विषे.) कितने लोग, कितने जन, कितने।
- केत्तीदार—(अव्य.) किस समय, कितनी देर।
- केबा—(क्रिया) परेषानी, उलझन, झंझट, आफत।
- केबादा—(सं.पु.) परेषानी के कारण दुर्गति, दुखदायी उलझन।
- केमरिया—(सं.स्त्री..) खिड़की में छोटे साइज की किवाड़िया।
- केंमाचि—(सं.स्त्री..) एक प्रकार की रोयेदार सेम, तरकारी वाला फल।
- केमाँ—(अव्य.) किसमें, किस पर, किसके ऊपर।
- केमरा—(सं.पु.) किवाड़ा, फाटक।
- केरकेर—(क्रि.वि.) पषुओं को अन्दर करने का सांकेतिक शब्द।
- केरि—(अव्य.) की, आपकी, स्त्री.लिंग शब्द।
- केर—(अव्य.) का, आपका, पुलिंग शब्द।
- केि रिआउब—(क्रिया) मवेषियों को भीतर करना, घर के अन्दर कर लेना।
- केराई—(सं.स्त्री..) धुलते समय निकला हुआ दाल का छिलका।
- केरबार—(सं.पु.) नाव खेने वाला लकड़ी का लठ्ठा।
- केसे—(सर्व.) किससे, किस व्यक्ति से।
- केहरा—(सं.पु.) अहीरों का एक नृत्य, चारों ओर नाचकर फिरना।
- केहौं-केहा केहौं-केहौं—(क्रि.वि.) षिषु रुदन की एक विषेष ध्वनि।
- केहीं—(सर्व.) किसे, किसको। को
- को—(सर्व.)कौन।
- कोइली—(सं.स्त्री..) आम के फल में पड़ी काली बिंदी, कोयल।
- कोइलियार—(सं.पु.) काले रंग का एक सर्प, कजरारी आँख।
- कोंइदा—(विषे.) बिल्कुल कच्चा फल, फल की बतिया।
- कोऊ—(सर्व.) कोई भी, भी, कोई।
- कोऊ से—(सर्व.) किसी से, किसी भी से।
- कोस—(सं.पु.) कौआ, एक नजर, गड़ाकर देखना।
- को केत्ता—(विषे.) कौन कितना, कौन कितनी दूर तक।
- को केखर—(अव्य.) कौन किसका, किसने किसका।
- को केही—(अव्य.) कौन किसे, कौन किसकी।
- कोख—(सं.स्त्री..) पेट, गोद, गर्भाषय।
- कोगदा—(सं.पु.) लकड़ी के बीच का अपुष्ट भाग।
- कोगी—(सं.पु.) दरिद्री पेटवाला, जिसका कभी पेट न भरे।
- कोचइन—(सं.स्त्री..) चें-चे करने वाली चिड़िया, शोरगुल करने वाली नारी।
- कोचट—(विषे.) कंजूस या कृपण।
- कोचरा—(विषे.) कीचड़ लगी आँख वाला, बार-बार पलकें पटपटाने वाला।
- कोटहाई—(विषे.) कोटे से खरीदी गई सस्ती चीजें।
- कोट—(क्रिया) तास के खेल में सौ बार हारने का प्रतीक शब्द।
- कोटर्रकोटर्र—(क्रि.वि.) मेढ़क के बोलने की एक विषेष ध्वनि।
- कोठा—(सं.पु.) मकान का एक कमरा, पेट के दोनों बगल के प्रकोष्ठ।
- कोठरिया—(सं.स्त्री..) कच्चे घर की छोटी सी कोठरी।
- कोंढ़ा—(सं.पु.) छप्पर रहित बाड़ा, मवेषियों का घरौंदा।
- कोड़ान—(विषे.) कीड़े लगे फल या दाँत।
- कोड़हा—(विषे.) जिसके कोढ़ हो, सफेद दाग वाला, एक गाली।
- कोड़बाउब—(क्रिया.) जमीन गोड़वाना, गोड़ में मदद करना।
- कोड़ब—(क्रिया) जमीन की ऊपरी परत निकालना, हल्की खुदाई।
- कोतरा—(सं.पु.) आलमारी के नीचे की जगह, बहुत अन्दर वाली जगह।
- कोंथब—(क्रिया) नाखून से चमड़ी खीचना या गड़ाना, चिहुँटी काटना।
- कोथबाउब—(सं.पु.) चिहुँटी कटवाना, अँगुली गड़वाने में सहयोग करना।
- कोथबइया—(सं.पु.) चिहुँटी काटने वाला व्यक्ति।
- कोदई—(सं.स्त्री..) छिलका रहित कोदौ का दाना।
- कोदइली—(सं.स्त्री..) कोदा अनाज से छोटी खरीफ की फसल।
- कोनमां—(सं.पु.) घर या पलक का एक कोन, खेत का एक हिस्सा।
- कोनइता—(सं.पु.) धान दलने वाली मिट्टी की ग्रामीण चक्की।
- कोनी-कोना—(अव्य.) चारो ओर, कोनी कोना बोलना, बघेली मुहावरा।
- कोनिया—(सं.स्त्री..) घर के छप्पर का कोना, मस्तक के बगल वालों से बना कोन।
- कोनातू—(विषे.) टेढ़ी स्थिति, कोणेदार जगह, तिरछी दृष्टि।
- कोपराउब—(क्रिया) जुते हुये खेत को कोपर से समतल करना।
- कोपरहा—(सं.पु.) कोपर में प्रयुक्त सांकल व बैल।
- कोंपर—(सं.पु.) खेत की मिट्टी समतल करने वाली पटरी।
- कोबा—(सं.स्त्री..) कटहल या सीताफल के दाने को ढकने वाला गबूझा।
- कोमराउब—(क्रिया) मक्खन पालिस करना, प्रसन्न करना, मर्दन करके कठोर वस्तु को कोमल करना।
- कोमरई—(विषे.) कोमलपन, विनम्रता, नमनीयता।
- कोमरी—(सं.स्त्री..) नवीन कोपलें, अति मुलायम पत्ते।
- कोमरि—(विषे.) मुलायम, सुकुमार, अरूढ़।
- कोरा—(सं.स्त्री..) माँ की गोद, बाँस की तरह काठ की पतली लकड़ी।
- कोरइया—(सं.स्त्री..) पतले बाँस के लठ्ठे, षिषु का माँ की गोद में पाँव में पाँव फँसाकर पड़ना।
- कोरिखा—(विषे.) कोयला, कालिख, कलंक का टीका।
- कोराव—(क्रि.वि.) प्रजनन पूर्व गाय-भैंस के जनांग से तरल पदार्थ निकलना।
- कोरकसर—(सं.स्त्री..) कमी, न्यूनता, काँट- छाँट।
- कोरउहा—(सं.पु.) दुधमुहा षिषु, माँ की गोद में रहने वाला षिषु।
- कोरिखऊँ-- (विषे.) बक्रदृष्टि, तिरछी नजर से देखना।
- कोरभर—(क्रि.वि.) किसी वस्तु का नोक के बल गिरना, व्यंग्यात्मक कथन।
- कोरचा—(सं.पु.) चोरी से अपने गाँठ से संचित रूपया-पैसा।
- कोल्ह कोल्हू—(सं.पु.)तेल निकालने वाला लकड़ी का चरखा।
- कोलान—(सं.पु.) कोलों की बस्ती, आदिवासी मुहल्ला।
- कोलदहका—(सं.पु.) कोल प्रजा पति का चर्चित लोक गीत।
- कोलीहा—(विषे.) जो दूसरे की जमीन में आकर बसा हुआ हो।
- कोलिया—(सं.स्त्री..) घर के पीछे लगी जमीन का खेत, बगिया।
- कोलिन—(सं.स्त्री..) कोल की पत्नी, पुलिंग कोल।
- कोस—(सं.पु.) दो मील की दूरी, लम्बाई माप का पुराना पैमाना।
- कोंहड़ा—(सं.पु.) श्वेत कद्दू, लाल कद्दू, एक फल तरकारी, स्त्री.. कोहड़िया।
- कोहरी—(सं.स्त्री..) उवाली गई ज्वार-दाने, गेहूँ के उबले दाने, पुलिंग कोहरा।
- कोहबर—(सं.पु.) गृह देवता वाला कमरा, पति-पत्नी का प्रथम प्रवेष कर पूजा करने का स्थल विषेष।
- कोहू—(सर्व.) कोई, कोई भी, किसी भी की।
- कोहराब—(क्रिया) गाय-भैंस के मूत्रांग से श्वेत पदार्थ का उत्सर्जन होना।
- कोहड़उरी—(सं.स्त्री..) कोहड़े एवं दाल से बनी हुई पकौड़ीनुमा बरी। ख
- खई—(क्रिया) खालें, खायें, खाइए, खाओं, खा लूँ।
- खइहौं—(क्रिया) खाऊगा, खाऊँगी।
- खँइचब—(क्रिया) खींचना, निकालना, लाइन खींचना।
- खइरबार—(सं.पु.) एक जाति, ऐरा-गैरा लोग, खाने वाले।
- खउटाब—(क्रिया) रंग उड़ जाना, शरीर की चमक चली जाना।
- खउटहा—(सं.पु.) एक गाली, मैल की पपड़ीयुक्त चमड़ी धारित आदमी।
- खउरि—(क्रिया) सींग से जमीन खोदना, कार्य हेतु अति उत्तेजित होना।
- खउरा—(विषे.) मैल की पपड़ी, एक प्रकार का रोग, आर्थिक तंगी, खउरा लगना, बघेली मुहावरा।
- खउनहर—(सं.पु.) खाना खाने वाला, खाना के लिये प्रतीक्षारत लोग।
- खउनहाई बेरा—(विषे.) खाना खाने का समय, दोपहर या रात की बेला।
- खउँदब—(क्रिया) पाँव से कुचलना, पाँव से शरीर का मर्दन करना, किसी को पैरों से मारना-पीटना।
- खउरिआन—(विषे.) धूल-धूसरित, चर्म रोग से ग्रसित, उड़ी हुई चमक।
- खउदि—(सं.स्त्री..) जुताई वाले बैलों के पुठ्ठे पर बना चिन्ह्।
- खउटान—(विषे.) जिसका रंग उड़ा हो, खउटा लगा हुआ।
- खक्खा—(सं.पु.) जोर की हँसी, हँसी का ठहाका, अट्टहास।
- खखलब—(क्रिया) दाँत से काटकर खून निकाल लेना, जमकर पिटाई करना।
- खखरी—(सं.स्त्री..) पानी निकलने का कच्चा पुल, मीठा पापड़।
- खखार—(सं.पु.) गाढ़ा कफ या थूक, बलगम।
- खखरिया—(सं.स्त्री..) बेसन की बनी गुड़ के सिरेयुक्त पपड़ी।
- खँचब—(क्रिया) गीली जमीन में पाँव का धंस जाना।
- खँचन—(सं.पु.) ऐसी जमीन जहाँ पाँव रखने पर धँस जाते हों।
- खचाड़ा—(विषे.) टूटी-फूटी स्थिति, जीर्ण- षीर्ण हालत।
- खजुरी—(सं.स्त्री..) खुजली, एक रोग विषेष।
- खजुआउब—(क्रिया) खुजलाना, खजुआ देना, बघेली मुहावरा।
- खजुलँइया—(सं.स्त्री..) एक त्यौहार, कजली, रक्षा बन्धन का दूसरा दिवस।
- खँझनी—(सं.स्त्री..) झाँझ या मजीरा, धातु का एक वाद्य यंत्र।
- खँझझी—(सं.स्त्री..) जलाषय में होने वाली एक घास विषष।
- खटिया—(सं.स्त्री..) चारपाई, लकड़ी का शयन पात्र।
- खटकरब—(क्रिया) टिक पाना, रह पाना, पार हो जाना।
- खटोलबा—(सं.पु.) बच्चों के लिये छोटे आकार की चारपाई।
- खटरस—(विषे.) खट्टा एवं मीठा स्वाद का मिश्रण युक्त।
- खट्ट-खट्ट—(सु.पु.) खटखट की आवाज, जल्दी-जल्दी बिना रुके हुये
- खटकिल्ली—(सं.स्त्री..) लकड़ी की कील।
- खटिक—(विषे.) अत्यन्त कंजूस आदत का कृपण, खटिक होना, ब.मु.।
- खटाइॅध—(विषे.) हल्का खट्टा, खटाई युक्त फल का स्वाद।
- खटाका—(विषे.) तत्काल, तुरन्त, बिना रूके हुये, निर्भीक होकर।
- खटर-पटर—(क्रि.वि.) चलते समय जूते से उत्पन्न आवाज, शोर-गुल।
- खटमिठ्ठी—(विषे.) कुछ खट्टा कुछ मीठा स्वाद हो जिसमें।
- खटखटाउब—(क्रिया) खटखटाने की आवाज करना, संकेत करना।
- खटबाउब—(क्रिया) बहुत दिनों तक चलाना, काफी दिनों तक प्रयोग योग्य बनाये रखना, इफाजत के साथ उपयोग करना।
- खटाऊ—(विषे.) टिकाऊ, मजबूत, अधिक दिनों तक चलने वाली।
- खढ़ोरब—(क्रिया) भट्टी में चना भूनना, हल्का भूनना।
- खढ़ढलान - - जिस कार्य मे अधिक दिक्कत हो, कष्ट एवं व्यवधान युक्त।
- खता—(सं.पु.) फोड़ा, बड़ा सा घाव, स्त्री.लिंग खतिया।
- खतउनी—(सं.स्त्री..) जमीन का हिसाब वाला रिकार्ड, पटवारी का जमीनी गोषवारा।
- खतहा—(विषे.) जिसके सिर पर फोड़ा- फुन्सी हो, स्त्री.लिंग खतही।
- खदलेंहड़—(विषे.) खाने भर के लिये छोटे- छोटे बच्चे जो कार्य योग्य न हो।
- खदुगर—(विषे.) खादयुक्त मिट्टी, उर्बर भूमि।
- खधाई—(सं.पु.) खेत के बीच-बीच की घास चराने वाला व्यक्ति।
- खधँउब—(क्रिया) छींद लेना, वर्गीकृत करना, वर्ग में बाँटना, कब्जा करना।
- खँधब—(क्रिया) बीच में रुक जाना, ठहर जाना, सोच-विचार कर चुप रह जाना।
- खन्ती—(सं.स्त्री..) खदान, छोटी खदान, पुलिंग ‘खन्ता’।
- खनतरिया—(सं.स्त्री..) चमड़े का टूटा हुआ जूता, जूते के अन्दर की तक्ती।
- खनखनाउब—(क्रिया) खन-खन की आवाज करना, बजाना।
- खनीमा—(सं.पु.) एक प्रकार का कन्दमूल, एक तरकारी।
- खनखजूर—(सं.पु.) दस पैरों वाला एक जहरीला कीड़ा।
- खनपात—(क्रि.वि.) खोदना-पाटना, खनपात बराबर बघेली मुहावरा।
- खनतीखोटिया—(सं.स्त्री..) दोनों टाँगों पर बच्चों को बिठाकर लेटे-लेटे झुलाना।
- खन्न-खन्न—(सं.पु.) जमीन पर थाली गिरने से उत्पन्न आवाज, सिक्के से सिक्का बजाने की ध्वनि।
- खनखोदरा—(विषे.) खुरदरा चेहरे वाला, चेचक के गहरे दाग वाला मुख।
- खन्धा—(सं.पु.) घर का एक कमरा, खेत का एक टुकड़ा, खाना, वर्गीकृत।
- खनब—(क्रिया) खोदना, अनभल मनाना, खुदाई करना।
- खनबइया—(विषे.) खोदने वाला, उत्प्रेरित करने वाला।
- खनाउब—(क्रिया) खुदाई करवाना, खोंदवाना।
- खनबेय—(क्रिया) खोदोगे, खोदेंगे, खोदोगी।
- खनेनतै—(क्रि.भू.) खोदा था, खोदी थी।
- खपब—(क्रिया) माँग के अनुसार पूर्ति होना, खर्च हो जाना।
- खपउब—(क्रिया) अपने आप को तपाना, खर्च कर देना।
- खपबाउब—(क्रिया) औंधा करके रखना, अधोमुख वस्तु करना।
- खपकउँआ—(अव्य.) जमीन पर सटाकर रखने की विधि।
- खपटी—(सं.स्त्री..) पापड़ की तरह पतली पत्थर की परत, खपड़े की टुकड़ी, खपटी खुजलाना बघेली मुहावरा।
- खपड़ा—(सं.पु.) छप्पर छाने का उपकरण, मिट्टी के बने खपड़े।
- खपड़हा—(विषे.) खपड़े से छायी हुई छप्पर, खपरैल घर।
- खपड़ी—(सं.स्त्री..) चना भूनने के लिये प्रयुक्त घड़ा, एक मिट्टी का पात्र।
- खप्पर—(सं.पु.) खेल तमाशे में प्रयुक्त आगयुक्त पेंदीवाला अर्ध घड़ा।
- खपचड़ी—(सं.स्त्री..) बैल की सीग मे बँधी पटरी एवं कपड़ा।
- खबीस—(सं.पु.) इस्लामी भूत पिषाच या राक्षस।
- खबाउब—(क्रिया) खिलाना, खिलवाना, खिलाने में सहयोग करना।
- खबइया—(सं.पु.) खाने वाले लोग, भोज हेतु आमंत्रित जन।
- खबड़ीहिल—(विषे.) उबड़-खाबड़, ऊँची- नीची, खुरदुरी भूमि।
- खबर्रा—(सं.पु.) खूब खाने वाला, स्त्री.लिंग- ‘खबर्री’ पेटारथू।
- खबच्चड़—(विषे.) अधिक खाने वाला, दूसरे का हक भी खा लेने वाला।
- खब्बड़—(सं.पु.) खाने-पीने में आगे रहने वाला, बघेली मुहावरा।
- खभार—(सं.पु.) घर गृहस्थी का भार, गृहस्थी का कार्य।
- खभुआउब—(क्रिया) सिर में बालों को तितिर- बितिर फैलाना, कंघी बिहीन केष।
- खमखर—(विषे.) जलवृष्टि बाद धूप का निकालना, गीली जमीन का सूख जाना, वातावरण का खुल जाना।
- खम्हार—(सं.पु.) एक वनौषधि।
- खये—(क्रिया) खाना, खा लेना, खाना?
- खयरात—(विषे.) खाने के बाद भाग जाने वाले, ऐसे-वैसे लोग।
- खर—(विषे.) तेज-तर्राट, कंठस्थ या रट डालना, सामान्य से अधिक पका हुआ।
- खरके—(क्रि.वि.) सुस्पृष्ठ ढंग से, ठीक से, जोर देकर, पूरे मन से।
- खरकउनी—(सं.स्त्री..) पषुओं के एकत्र होने का विषेष स्थल, पषुओं का अखाड़ा।
- खरकरब—(क्रिया) कंठस्थ करना, पूर्णता प्रदान करना, मजबूत बनाना।
- खरी—(सं.स्त्री..) खली, खरी-बेनउरी,ब.मु.।
- खररि—(सं.स्त्री..) अनाज के डंठल बाँधने वाली रस्सी।
- खरचिन्हा—(सं.पु.) जमीन पर बनाया गया चिन्ह्, खींची गई जमीन पर रेखा।
- खरभोंटब—(क्रिया) दोनों हाथ से खाना, झटका मारकर छुड़ा लेना, जल्दी- जल्दी दोनों हाथ से संग्रह करने की क्रिया।
- खरिका—(सं.पु.) बहुत अधिक, पषुओं के इकट्ठा होने वाली जगह।
- खरखसील—(विषे.) खुरदुरापन, दानेदार या रबेदार, चिकनाहट रहित।
- खरिहान—(सं.पु.) खलिहान, खरिहान करना बघेली मुहावरा।
- खरकब—(क्रिया) आगे बढ़ना, खिसक कर आगे होना।
- खरही—(सं.स्त्री..) फसल कटाई के समय सेवकों को दिया जाने वाला अनाज का डंठल।
- खर-खर—(विषे.) दो टूक, सही-सही, पर्याप्त पकी हुई।
- खरिया—(सं.स्त्री..) गुप्ता जाति का गोत्र, रस्सी का जालीदार बँधना।
- खरहा—(सं.पु.) खरगोष। खरहा
- कुँदाव—(विषे.) थोड़ा सा, छोटा-नीचा ढेर, बघेली मुहावरा।
- खरखराब—(क्रिया) खड़खड़ाना, खड़खड़ाहट होना, सूखे पत्तों की आवाज।
- खरकाउब—(क्रिया) खिसका देना, खिसका लेना, हटाना, दूर करना।
- खर्रा—(सं.पु.) ठंडी में घास पर जमी तुषार, घास की जड़ से बना ब्रस।
- खरचा—(सं.पु.) दाँत खोदने वाली सीक, हलवाहे का पारिश्रमिक खर्च।
- खरपटबा—(सं.पु.) स्वाभिमानी, लेनदेन में खरा, समर्थ एवं सक्षम पुरुषार्थी।
- खरखोड़ब—(क्रिया) जमीन से घास छीलना, पूर्णतः समेट लेना।
- खरफुर—(क्रि.) सत्यापन करना, पक्का करना, सत्य-असत्य का परीक्षण करना।
- खरहँट—(सं.स्त्री..) बिछौना रहित चारपाई, खाली चारपाई।
- खरधरिआब—(क्रिया) कार्य के लिये तत्पर होना, पूर्ण मन बनाकर करना।
- खरहरा—(सं.पु.) झाड़ू के विकल्प में प्रयुक्त अरहल के डंठल-समूह।
- खरउब—(क्रिया) खरा करना, घी को खूब पकाना, भूख को जगाना।
- खरान—(विषे.) पक कर सूखा हुआ, अधिक पकी हुई रोटी की स्थिति।
- खराउब—(क्रिया) नदी नाले की तेज धारा, तीव्रगति से बहाव।
- खरेदब—(क्रिया) पीछा करना, दूर भगाना, घर से निकालना, हटाना।
- खरी के ढेपरा—(सं.पु.) खली का टुकड़ा, ब. मु.।
- खरचब—(क्रिया) खर्च करना, सींक से पत्तल बनाने की क्रिया।
- खलल—(सं.स्त्री..) विग्रह, बाधा-व्यवधान, आपसी मतभेद, रुकावट।
- खलँइता—(सं.पु.) हवा देने हेतु चमड़े की धौकनी, ढीले-ढीले जूते।
- खलबट्टा—(सं.पु.) खड़ा मषाला कूटने वाला लोहे का कटोरानुमा पात्र।
- खलाउब—(क्रिया) नीचे करना, नीचे की ओर झुकाना, पेट का धसा होना।
- खलरी—(सं.स्त्री..) चमड़ी, खाल, वाह्य आवरण।
- खलीसा—(सं.पु.) जेब, पाकेट।
- खलास—(विषे.) खाली हो जाना, चुक जाना।
- खलखलाउब—(क्रिया उदार होकर झोली भरना, खूब दे देना।
- खसट्टा—(विषे.) सस्ता, कमजोर, घटिया किस्म, असुंदर।
- खँसिलब—(क्रिया) जमीन पर पड़े-पड़े खिसकना, फिसलना।
- खँसिलाउब—(क्रिया) आगे बढ़ाना, पीछे खींचना, घसीटना।
- खसकब—(क्रिया) बढ़ना, खिसकना, बैठे-पड़े इधर-उधर होना।
- खँसेलब—(क्रिया घसीटना, जमीन पर घिसलाना।
- खहराउब—(क्रिया) जूठी गिलास पानी डालकर धोना, दोहनी साफ करना। खा
- खाँड़ी—(विषे.) बीस कुरई की मात्रा का एक मापक शब्द।
- खाँचब—(क्रिया) आगे पैर बढ़ाना, लंगोटी की काछ लगाना।
- खादा—(सं.पु.) खाद, रसायन, गोबर का सड़ा समूह।
- खाँधव—(क्रिया) वर्गीकृत करना, पार्टीशन करना।
- खाखाखइया—(सं.पु.) बघेली जनउहल, एक प्रकार का खेल।
- खाखी—(विषे.) भूरे मटमैले रंग का, कपड़ा का रंग।
- खाब—(क्रिया) खायेंगे, खाऊँगा, खाऊँगी।
- खाम्हीं—(विषे.) कमी, कमजोरी, कोर- कसर, गड़बड़ी।
- खाये?—( सं.पु.) खा लिये? खा लिया?
- खारी—( (सं.स्त्री..) चने के पौध पर चिपका खट्टा चिपचिपा पदार्थ।
- खाले—(अव्य.) तरी, नीचे, खा लीजिए, खा लो। खाँँ ँ
- वचबाँव—(ब.मु.) कर्कष एवं अप्रिय वाणी के साथ खाने को बढ़ना। खाँँँ
- व-खाँव—(अव्य.) अति भूखी मानषिकता एवं भूखी हरकत।
- खासा—(विषे.) बहुत अधिक, पर्याप्त, भरपूर, बहुत अच्छा, बहुत सुन्दर, स्त्री.. खासी। खि
- खिआब—(क्रि.वि.) घिसकर घट जाना, छोटा या कम हो जाना।
- खिखिरी—(सं.स्त्री..) बाँस की बनी बिना लेपन की टोकनी, पुलिंग-खिखिरा।
- खिखीखिखी—(क्रि.वि.) अर्द्ध-हँसी, वेमतलब हसते रहना, बघेली मुहावरा।
- खिरब—(क्रिया) कपड़े का घिसकर पतला हो जाना, भैंस या गाय के मूत्रांग से श्वेत पदार्थ का उत्सर्जन होना।
- खिरकी—(सं.स्त्री..) खिड़की, घर के पीछे का निकास द्वार।
- खिरझिआब—(क्रिया) जिदबस किसी कार्य के पीछे पड़ जाना।
- खिरामा—(सं.पु.) कम खट्टा आम, एक विषेष आम।
- खिसनिपोर—(विषे.) जिसकी खीस बाहर हो, हमेशा अनावश्यक हँसते रहने वाला।
- खिसपादन—(विषे.) बात-बात में चिढ़ने वाला, चिढ़ने वाली प्रवृत्ति।
- खिसखिस—(क्रि.वि.) गन्दगी के कारण घृणा, कीचड़ का फैल जाना।
- खिसकटहा—(विषे.) जो हमेषा निरर्थक खीस निकालता हो, स्त्री.लिंग- खिसकढ़ी।
- खिसिर खिसिर—(क्रि.वि.) बिना प्रयोजन के अविरल हँसना, निरर्थक दाँत निकालना।
- खिसिबाउब—(क्रिया) किसी को चिढ़ाना, परेषान करना।
- खिसिअउनी—(सं.स्त्री..) नाराजगी का ताव, नाराजगी का आवेग। खी
- खीखिर—(विषे.) पतला, पारदर्षी, घिसा हुआ, झिल्लीदार।
- खींचब—(क्रिया) खींचना, निकालना, आक श्ट करना, बढ़ाना।
- खीरा—(सं.पु.) मौसमी फल, एक ककड़ी विषेष।
- खीलब—(क्रिया) कंघी से बाल सम्हालना, मंत्र द्वारा विष बंद करना।
- खीला—(सं.पु.) बड़ा सा कील, मषीन के पुर्जे।
- खीस—(सं.स्त्री..) दाँत के मसूड़े, दुरूपयोग, नष्ट उजाड़ होना (विषे.)।
- खींसा—(सं.पु.) वस्त्र में लगे हुये जेब, पाकेट। खु
- खुआर—(विषे.) धन-सम्पत्ति नष्ट करना, व्यर्थ में पूँजी गँवाना।
- खुआ—(सं.पु.) अन्याय, शरारत, झगड़े के बहाना खोजना।
- खुइती—(सं.स्त्री..) शरारत, आगे से लड़ाई के वातावरण बनाना।
- खुइला—(सं.पु.) लकड़ी का नुकीला कीला।
- खुइलब—(क्रिया) खोदना, गड़ी बात को उखाड़ना।
- खुई—(सं.स्त्री..) झगड़ेलू वातावरण की पृष्ठभूमि।
- खुक्ख—(विषे.) जलकर खाक हुआ, बिल्कुल खाली, एकदम नष्ट।
- खुखसब—(क्रिया) कोसना, दबाव देना, कमजोरी की आड़ में डाँटना।
- खुखुआउब—(क्रिया) जलती आग को प्रज्जवलित करना, बुझी आग को जगाना।
- खुचुर—(सं.स्त्री..) चर्चा, बिन्दु विषेष का विवेचन।
- खुटखुटाउब—(क्रिया) खुट-खुट की आवाज करना, खुटखुटाना।
- खुट्टई—(सं.स्त्री..) किसी की बुराई, कुबड़ाई, विरोध चर्चा।
- खुँटिया—(सं.स्त्री..) छोटी कील, छोटे कद का आदमी, नाक का गहना।
- खुटुर-खुटुर—(अव्य.) बच्चों के चलने पर पाँव की आहट।
- खुढ़्ढी—(सं.स्त्री..) खेत में फसल की नुकीली डंठल।
- खुथ्था—(सं.पु.) जमीन में जड़ सहित लगा डंठल।
- खुथबा—(सं.पु.) काटेदार घास का एक फल।
- खुदबिर्री—(सं.स्त्री..) शरारत पूर्ण हरकत, झगड़े का बहाना उत्पन्न करना।
- खुदरा—(सं.पु.) फुटकर, खुल्ला, क्षुद्र वस्तु।
- खुधिके—(अव्य.) जिदबस, रुख पूर्वक, पीछे पड़कर।
- खुधब—(क्रिया) जान-बूझकर करना, किसी के पीछे पड़ जाना।
- खुन्स—(सं.स्त्री..) सदमा, आघात, चिन्ता या सोच।
- खुनिहाई—(सं.स्त्री..) गमी के कारण त्यौहार न मनाना, जिस त्यौहार को कोई गमी पड़ गई हो।
- खुनिआउब—(क्रिया) किसी को खून खच्चड़ करना, सिर फोड़ डालना।
- खुनिआब—(क्रिया) लहूलुहान होना, खून से लथपथ होना।
- खुरचपहा—(विषे.) मवेषियों की खुर से निर्मित नुकली मिट्टी।
- खुरुहुरी—(सं.स्त्री..) नारियल की गरी।
- खुरपी—(सं.स्त्री..) घास छीलने का लौह कृषि यंत्र, पुलिंग खुरपा।
- खुरखुन्द—(क्रिया) बार-बार आना-जाना, परेषान कर डालना, आतुरता का प्रदर्षन करना।
- खुरपब—(क्रिया) खुरपा से घॉस की छिलाई करना, पौध पर गोड़ा चढ़ाना।
- खुरी—(सं.स्त्री..) पषुओं की खुर।
- खुरमा—(सं.पु.) आटे-गुड़ से बना एक बघेली व्यंजन।
- खुरचब—(क्रिया) खरोचना, कुरेदना, हलके हाथ से छीलना, दही मथना।
- खुरथेलब—(क्रिया) पाँव से रजाई को अस्त-व्यस्त करना।
- खुराग—(सं.स्त्री..) आहार, भोजन, खाना-खर्चा, व्यय पूर्ति।
- खुर्राट—(विषे.) अनुभवी, चतुर चालाक, घोटा-पिटा, बड़ा-बूढ़ा।
- खुसुर खुसुर—(क्रि.वि.) कानाफूसी करना, कान में सलाह करना।
- खुसुर पुसुर—(क्रि.वि.) हलचल होना, हरकत करना, चुपके-चुपके बोलना।
- खुसरँजाय—(विषे.) स्वेच्छा से, अपनी खुशी से, सहजतः अपने मन से।
- खुसकब—(क्रिया) चुपके से वस्तु देना, चोरी-चुपके से वस्तु देना।
- खुसड़ा—(सं.पु.) दिनभर खीस काढ़ने वाला, औरतों की भाँति बातें करने वाला।
- खुसिअन—(विषे.) अपनी राजी-खुशी से, बिना किसी दबाव के। खू
- खूँट—(सं.पु.) कान के अन्दर का मैल, पषुओं का एक रोग।
- खूँटा—(सं.पु.) पषु बाँधने के लिये जमीन पर गड़ा छोटा लठ्ठा।
- खूँटीदतेर—(सं.पु.) जड़ से नष्ट हो जाना, एकदम साफ होना।
- खूँथब—(क्रिया) पूँजी नष्ट करना, सब्जी को पकाते समय कुचलना, किसी को चुपचाप कोसना।
- खूँथी—(सं.स्त्री..) पूँजी, सम्पत्ति, नाभि का नाड़ा, बाप-बबा की पूँजी।
- खूसड़—(सं.पु.) एक पक्षी विषेष का नाम, खीस निकालने वाला। खे
- खेढ़ी—(सं.स्त्री..) प्रजनन के पष्चात् गर्भाषय से निकलने वाला प्ररस एवं माँस का नाड़ा।
- खेतबाई—(सं.पु.) खेतों का भ्रमण, फसल का जायजा, खेत की देख-भाल।
- खेदब—(क्रिया) दूर भगाना, पास से हटाना, दौड़कर पीछा करना।
- खेदबा भैरमा—(ब.मु.) यैरे-गैरे लोग, बिना रिष्ते के, खानाबदोस लोग।
- खेदा—(विषे.) विवाह के साथ व्रतबन्ध होना, व्रतबंध की परंपरा।
- खेप—(सं.स्त्री..) एक दौर में उतारा गया सामान, एक चरण में।
- खेर—(सं.पु.) खेत-गाँव की सीमा, पूर्वजों की प्रथम जन्म स्थली।
- खेरमाई—(सं.स्त्री..) ग्राम्य देवी, गाँव की सीमावर्ती विषेष देवी।
- खेलउँहा—(सं.पु.) खड़े आम का मषाला भरा एक अचार की किस्म।
- खेलबउर—(सं.पु.) खिलवाड़, हँसी-मजाक। खो
- खोक्खा—(सं.पु.) खाली दियासलाई, बिल्कुल खाली।
- खोकसा—(विषे.) सड़ा या अठोस अंष, अपुष्ट लकड़ी।
- खोकसब—(क्रिया) बुरी तरह काट खाना, दाँत से काट देना।
- खोंखब—(क्रिया) खाँसना, खाँसी आने की आवाज आना।
- खोंखी—(सं.पु.) खाँसी, खाँसी का एक मर्ज।
- खोंग—(सं.पु.) लकड़ी में फँसकर वस्त्र का फट जाना।
- खोंचब—(क्रिया) खोंचना, गूलना, उत्तेजित करना।
- खोचना के मारे—(सं.पु.) औरतों द्वारा दी जाने वाली मनोविनोदी गाली।
- खोंची—(सं.स्त्री..) सामान क्रय करते समय प्राप्त की गई एक अतिरिक्त वस्तु, वितरण में बचायी गई मात्रा।
- खोजाबर—(सं.पु.) कई पीढ़ी की संतानें, वंष परिवार की वृद्धि के लोग।
- खोझरी—(सं.स्त्री..) प्रजनन के 3-4 दिन बाद का जमने योग्य दूध।
- खोंटब—(क्रिया) पौध की कोपल काट देना, बाढ़ मारना।
- खोंटलइँया—(सं.स्त्री..) तरकारी वाली एक ग्राम्य-लता।
- खोड़इसा—(सं.पु.) लड़ने के लिये, रुखपूर्वक परिस्थिति बनाना, खोड़इसा रोपना, बघेली मुहावरा।
- खोढ़—(विषे.) खराब शुरूआत, कुशगुन, टोक देना, वृक्ष में पोली खुली जगह।
- खोतड़ी—(सं.स्त्री..) सिर, खोपड़ी, ललाट, मस्तिष्क।
- खोथइला—(सं.पु.) पक्षियों का घास फूस का घोसला।
- खोदरा—(सं.पु.) चेचक के दागों से युक्त खुरदुरा चेहरा वाला व्यक्ति।
- खोंधरी—(सं.स्त्री..) झोपड़ी, घास फूस की छोटी सी कुटिया।
- खोन्नस—(सं.पु.) लड़ाई-झगड़े से उत्पन्न करने के लिये वातावरण बनाना।
- खोंपहर—(सं.पु.) तीन दीवालों से बना एक घर विषेष।
- खोपड़़इया—(सं.स्त्री..) सिर, खोपड़ी, माँस रहित हड्डी-पेंषी।
- खोंपा—(सं.पु.) घर के चौड़ाई प्रक्षेत्र का छप्पर, खोंपा उतिनना ब.मु.।
- खोभा—(सं.पु.) जमीन में जड़ समेत गड़ा पैना-पौध का डंठल।
- खोम्हरा—(सं.पु.) बाँस व पत्ते से बना बड़ा टोप, बड़े-बड़े बालों का सूचक व्यंग्य।
- खोम्हरी—(सं.स्त्री..) पत्ते एवं बाँस की बनी एक ग्राम्य टोपी।
- खोरसब—(क्रिया) जलती लकड़ी से शरीर को स्पर्ष करना, मुँह में आग डालना।
- खोरबा—(सं.पु.) कटोरा, खोरा, स्त्री.लिंग, खोरिया या कटोरी।
- खोर्र-खोर्र—(सं.पु.) खाँसते समय की ध्वनि, खोर्र-खोर्र करना ब.मु.।
- खोर—(सं.पु.) रास्ता-ढर्रा, सँकरा मार्ग, स्त्री.लिंग खोरि।
- खोल—(सं.पु.) दो पहाड़ियों के बीच की जगह, रजाई का कवर, स्त्री खोली।
- खोलकी—(सं.स्त्री..) दीवाल व छप्पर की संधि, बारी का क्षिद्रनुमा भाग।
- खोसकब—(क्रि.) चुपचाप किसी को दे देना।
- खोसना—(सं.पु.) वस्तु में लगी क्लिप, पेन का ढक्कन।
- खोंसबा ढरकुलिया—(सं.स्त्री..) नारियों के कान का पुराना प्रचलित आभूषण।
- खोह—(सं.पु.) अंधकार युक्त पहाड़ी जगह, कंदरा। ग
- गइ—(क्रिया) गयी, गयीं।
- गइल—(सं.स्त्री..) गैल, आम रास्ता, सँकरी निकाय।
- गइलहरा—(सं.पु.) घर के भीतर का आने- जाने का पतला रास्ता।
- गइताल—(विषे.) आलसी, निकम्मा, कामचोर, निष्क्रिय।
- गइधुरिया—(स्त्री..) गोधूलि, सूर्यास्त की बेला, सायंकाल।
- गइरी—(सं.स्त्री..) घासयुक्त गीली मिट्टी जिससे कच्ची दीवाल बनती है।
- गइहौं—(कि.भवि.)गाऊँगी, गाऊँगा।
- गइल-घाट—(अव्य.) नदी-तालाब का रास्ता, बघेली मुहावरा।
- गउँसट—(सं.पु.) उपकार, सहयोग, परमार्थ, मदद, भलाई।
- गउँपबा—(सं.पु.) जिसे इनाम में गाँव मिला हो, एक-दो गाँव का राजा।
- गउँटिया—(सं.पु.) कोल जाति, गांँव का मुखिया, स्त्री.लिंग-गउॅटिन।
- गउँहार—(सं.पु.) ग्रामवासी, गाँॅव के रहवासी, ग्राम्य-जन।
- गउँतरी—(विषे.) महिमानदारी, रिष्तेदारी का प्रवास।
- गउरिमिन्ट—(सं.स्त्री..) सरकार, शासन, गवर्मेन्ट।
- गउरिआब—(क्रिया) आम में बौर आना, बौर लगना, आम का पुष्पित होना।
- गउरिआन—(विषे.) बौर लगा हुआ, बौराया हुआ आम्र-वृक्ष।
- गउरि—(सं.स्त्री..) आम की बौर, पूजा- पाठ में प्रयुक्त गोबर का पिण्ड।
- गउसाला—(सं.पु.) गोषाला, गौ सेवा-स्थल।
- गउँहेड़—(सं.पु.) गाँव का गाँव, गाँव के सभी निवासीगण।
- गउँचब—(क्रिया) लम्बी-चौड़ी कोरी बात करना, बड़ी-बड़ी बातें करना।
- गऊ—(सं.स्त्री..) गाय, गाय की तरह सीधी-साधी प्रवृत्ति।
- गउ के—(सं.पु.) गो माता की एक कसम, गाय की सौंगन्ध।
- गघरी—(सं.स्त्री..) मिट्टी का घड़ा, छोटे आकार का घड़ा।
- गच्च-गच्च—(अव्य) दीवाल में सिर पटकनें से उत्पन्न एक ध्वनि।
- गचर्रब—(क्रिया) गप्प मारना, डींग हाकना, निरर्थक बैठे-बैठे कोरी बातें फेंकना।
- गचर-पचर—(अव्य.) अस्पष्ट बात, अनिर्णायक स्थिति, शोर-गुल।
- गचकब—(क्रिया) जी भर के खाना, मैथुन करना किसी को पीटना।
- गचगचायके—(विषे.) पूरी ताकत के साथ, पूर्ण दाबयुक्त, दाँत पीसकर लगाया गया बल, बघेली मुहावरा।
- गचापेल—(विषे.) अच्छी मोटी-तगड़ी, देखने सुनने लायक, अति सुन्दर, मैथुन योग्य पूर्ण समर्थ।
- गज्ज-बिज्ज—(अव्य.) अपच स्थिति, पेट में अजीर्ण होना।
- गजर-बजर—(अव्य.) कमजोर, ऐसा-वैसा, गोल-माल, अनाप-सनाप, गजर-वजर होना, बघेली मुहावरा।
- गजान—(विषे.) कीचड़ से मटमैला हुआ पानी, गंदा हुआ जल।
- गँजार—(स.पु.) थूक एवं कफयुक्त तरल पदार्थ, बलगम, खखार।
- गजाँउब—(क्रिया) साफ पानी को जलाषय में घुसकर मटमैला करना, पानी को गँदला करना।
- गटउरी—(सं.स्त्री..) षिषुओं का अण्डकोष, खेतों की छोटी-छोटी क्यारी।
- गटरमाला—(सं.स्त्री..) बड़े-बड़े दानों का माला, रुद्राक्ष का बड़ा माला।
- गटारन—(सं.स्त्री..) कटीले फल वाली एक वनस्पति, वनौषधि, गटाइन।
- गट्ट-गट्ट—(सं.पु.) पानी पीने पर होने वाली गले की आवाज विशेष।
- गँठबा—(सं.पु.) घास की गुच्छेदार जड़, गठीली जड़ें।
- गठजोराब—(क्रिया) गाँठ का जुड़ना, वैवाहिक सूत्र बन्धन में बँधना।
- गठरी—(सं.स्त्री..) छोटा गठ्ठा, पोटली, पुलिंग गठरा।
- गठिआउब—(क्रिया) पोटली बाँधना, पोटली में गाँठ लगाना, बाँधना।
- गठिल्ला—(सं.पु.) गाँठदार वस्तु, अत्याधिक गाठों वाला बाँस। गड्ड-विड्ड- - एक दूसरे में मिला देना, मिला- जुला, मिश्रित।
- गड्डाब—(क्रिया) लुढ़कना, लुढ़ककर आगे बढ़ जाना, ठोकर लग जाना।
- गड्डाउब—(क्रिया) लुढ़काकर चलाना, पहिए जैसा घुमाना।
- गढ़हा—(सं.पु.) छोटा गढ्ढ़ा, उथला गढ्ढ़ा।
- गढागेंद—(सं.पु.) गेंद एवं डंडे पर केन्द्रित एक ग्रामीण खेल।
- गढहिन—(सं.स्त्री..) बरसात का पानी भर गढ्ढ़ा।
- गड़ास—(सं.स्त्री..) कृषि औजार, घास काटने वाली लोहे का पैना औजार।
- गड़ेचब—(क्रिया) किसी का सिर जमीन पर दबाये रहना, पटककर पीटना, जमीन पर दबोचना।
- गड़ाइन—(सं.स्त्री..) कई मवेषियों के गले को बाँधा जाने वाला एक विषेष गेंरमा।
- गड़ारा—(सं.पु.) नमक-पानी से गले की सिंकाई करना।
- गड़ेर—(विषे.) गले की मोटी आवाज, मोटा स्वर, असुरीली बोल।
- गड़गड़ान—(विषे.) यौवन से परिपूर्ण, जवानी से भरी, व्याह योग्य।
- गतिया—(सं.स्त्री..) ठंड से बचने के लिये शरीर पर बधी फटी-पुरानी धोती की टुकड़ियाँ।
- गति-विपति—(अव्य) दुख-कष्ट, आकस्मिक आपत्ति, आपत्ति-बिपत्ति।
- गदिया—(सं.स्त्री..) गदेली, हथेली।
- गदेला—(सं.पु.) कम उम्र के बच्चे, छोटी सी कुदाल, बच्चों का छोटा गद्दा।
- गदेलबा—(सं.पु.) रुआ भरा गद्दा, मोटा बिछावन।
- गदराब—(क्रि.वि.) पकने के समीप पहुॅची स्थिति का होना, अंगों का जवानी से भरना।
- गद्द-गद्द—(सं.पु.) भूसे पर लाठी पटकने से उत्पन्न ध्वनि।
- गदे—(सं.पु.) आदत में सुमार, आदी होना, गदे पड़ना, बघेली मुहावरा।
- गधारब—(क्रिया) बुरा-भला कहना, गाली देना, उलाहना सुनाना।
- गन्जा—(सं.पु.) चौडे़ मुख का बड़ा पात्र, बिना बाल का सिर।
- गन्तरा—(सं.पु.) षिषुओं के उत्सर्जन अंग के नीचे बिछाया जाने वाला कपड़े का टुकड़ा, स्त्री.लिंग गन्तरिया।
- गन्धइली—(सं.स्त्री..) बाड़ी बनाने की एक वनस्पति, झाड़ी।
- गनगनाब—(क्रिया) नींद में मस्त होना, ध् यानमग्न होना, फिरंगी की तरह तीव्र गति से घूमना।
- गनी-गरीब—(अव्य.) दीन-हीन, छोट-मोटे, निर्धनजन।
- गन्ना—(सं.पु.) चिन्ता, परवाह, झरने का संचित पानी।
- गनब-गूफब—(अव्य.) गणना करना, हिसाब- किताब करना, बघेली मुहावरा।
- गनब—(क्रिया) गिनती करना, ध्यान में बैठा लेना, गणना करना।
- गपकब—(क्रिया) लपककर खा लेना, हड़प लेना, निगल जाना।
- गपर-गपर—(अव्य.) बिना सोचे-बिचारे जो भी मन आये बोलना।
- गपुआब—(क्रिया) मौन हो जाना, मुँह फुला लेना, नाराजगी से न बोलना।
- गपुआ—(सं.पु.) कम बोलने वाला, गाल फुलाये रहने वाला।
- गपोड़ा—(विषे.) सदैव गप्प मारने वाला, डींग हाँकने वाला।
- गपोड़संख—(विषे.) एक बघेली मुहावरा, गप्प मारने में सिद्धहस्त।
- गफ—(विषे.) सघन सूतवाला वस्त्र, मोटे सूत का कपड़ा।
- गबर्रा—(सं.पु.) गाते ही रहने वाला, खूब गाने वाला।
- गबइया—(सं.पु.) गाने-बजाने वाला, गायक।
- गभुआर—(विषे.) नादान, अबोध, दुधमुँहा, अन्जान।
- गभेलुआ—(सं.पु.) दोनों गाल का आंतरिक भाग, मुँह का जबड़ा।
- गभिनाब—(क्रिया) पषुओं का गर्भधारण करना, पषुओं का गर्भ ठहराना, ऋतुमती होना।
- गभिनाउब—(क्रिया) गर्भवती कराना, पषुओं को प्रजनन योग्य बनाना।
- गमइॅहा—(सं.पु./विषे.) गाँव में रहने वाला, ग्रामीण रहन-सहन वाला।
- गमरदल—(सं.स्त्री..) गँवार प्रवृत्ति के लोग।
- गमनहाई—(सं.स्त्री..) गवने में आई नारी, वह नारी जिसका गवना होने वाला हो।
- गमनहा—(सं.पु.) जिसका दुरागमन हुआ हो, जिसका दुरागमन होना हो।
- गमराब—(क्रिया) बात-बात में अकड़कर बोलना, भाव बढ़ जाना, लडाकू भाषा ऐठ कर बोलना।
- गमरगट्ट—(विषे.) गँवार प्रवृत्ति वाला, जिसे मारने या पिट जाने की शर्म न हो।
- गय—(क्रिया) गई, चली गई, मर गई।
- गयौंते—(क्रि.भू.) गया था, गई थी, मर गया था।
- गरी—(सं.स्त्री..) खेत का गहरा भाग, नारियल की गरी।
- गरियार—(विषे.) जी चुराने वाला, हल में न चलने वाला बैल।
- गर—(सं.पु.) गला, गर्दन।
- गरहा—(सं.पु.) घाव के कारण अंग पर बना गढ्ढा, पाँव के अँगूठे का फटा तल।
- गरहन—(सं.पु.) ग्रहण, ग्रहण का काल।
- गरेंठ—(विषे.) पात्र के गले तक भरा हुआ पदार्थ की मात्रा।
- गरहनिया—(विषे.) ग्रहण से बाधित अंगवाला, ग्रहण के कारण विकलांगता।
- गरिआउब—(क्रिया) गाली देना, उलाहना सुनाना।
- गरफाँसी—(सं.स्त्री..) गले का फंदा, गले की फाँसी।
- गरगटी—(सं.स्त्री..) पाँव की उँगुलियों के चिन्हों का फटाव, एक रोग विषेष।
- गरजुआन—(क्रिया) गरजमन्द होना, गर्ज के वषीभूत होना।
- गर्रान—(विषे.) यौवनापन का नषा, ताकत का घमण्ड़।
- गर्रबा—(सं.पु.) एक विषेष पक्षी, गर्रबा राजा, बघेली मुहावरा।
- गर्रइया—(सं.स्त्री..) एक विषेष किष्म की चिड़िया, गौरैया।
- गर्राब—(क्रिया) गुर्राना, कड़ी आवाज में बोलना, अकड़कर बोलना।
- गरू—(विषे.) भारी, वजनी, वजनदार, गंभीर, प्रतिष्ठित।
- गरूर—(सं.पु.) गर्व, घमण्ड, अभिमान।
- गरओरमाउब—(क्रिया) हीनता-दीनता के कारण किसी के दरवाजे पर प्रलोभनवष बैठना, गरओरमाउब, बघेली मुहावरा।
- गरग—(सं.पु.) गर्ग गोत्री एक ब्राम्हण, शुक्ल ब्राम्हण।
- गरदा—(सं.पु.) धूल, घास-धूल के कण, ढोलकनुमा तकिया।
- गलेथब—(क्रिया) धान की बाली निकलने के पूर्व की स्थिति होना।
- गलबेला—(क्रि.विषे.)चहल-पहल, शोर- गुल, खींचातानी, हो-हल्ला।
- गलब—(क्रिया) ठंड लगना, ठंड से सिकुड़ना, वस्तु में घटाव होना।
- गलाउब—(क्रिया) किसी वस्तु को ताप में तपाना, पचा डालना।
- गलकब—(क्रिया) बिना परिश्रम के पा जाना, किसी वस्तु को लूट लेना।
- गलगाप—(क्रिया) लापता, देखते ही देखते गुम जाना, लुप्त होना।
- गलमदरी—(सं.स्त्री..) बड़े-बड़े गालों वाली, जिसके गाल फूले हों ऐसी नारी।
- गल्लइया—(सं.स्त्री..) गलर-गलर करने वाली एक चिड़िया विषेष।
- गलरी—(सं.स्त्री..) पोड़की नामक एक चिड़िया।
- गल्ला—(सं.पु.) हल्ला, शोर-गुल, अनाज।
- गलका—(सं.पु.) गदेली में पड़ा हुआ फफोला, एक ब्याधि।
- गलभारब—(क्रिया) उलाहना एवं आवेष के साथ बोलना, जोर-जोर से चिल्लाना, दहकना, चुनौती देकर बातें करना।
- गलिआउब—(क्रिया) खाकर गले के भीतर दबाना, गाल में दबाये रहना।
- गलगलाब—(क्रिया) अस्पष्ट, भीतर ही भीतर स्वरों का रहना।
- गला—(सं.पु.) सुआ, शुक पक्षी।
- गलदा—(सं.पु.) माँस से लदा हुआ, किसी व्यक्ति का नाम।
- गलदहा—(सं.पु.) कीचड़युक्त स्थल, पाँव धंसने वाली गीली जमीन।
- गलथर—(विषे.) बढ़े एवं बड़े गाल, फूले गालों वाली नारी।
- गलुआ—(सं.पु.) गाल, कपोल।
- गली—(सं.स्त्री..) गैल, रास्ता, छोटी खोर।
- गलँइचा—(सं.) धागे की बनी मोटी बड़ी दरी, गलीचा।
- गलारा—(सं.पु.) बोलने की कर्कष आवाज, जोर का स्वर।
- गसॅबाउब—(क्रिया) गुंथवाना, गहना धागे से कसवाना, मैथुन कराना।
- गॅसबइया—(सं.पु.) गूंथने वाला, मैथुन करने वाला, कसने वाला।
- गहबाउब—(क्रिया) पैरों से कुचलवाना, फसल की गहाई कराना।
- गहिहौं—(कि.भ.) गहाई करुँगा,गहाई करुँगी, गाहूँगा।
- गहिर—(विषे.) गहरा, वजनी, वजनदार।
- गहदान—(विषे.) यौवनायुक्त, हरा-भरा, रसील, पकने के पास की स्थिति।
- गहदाब—(क्रिया) पकना, परिपक्व होना, जवान होना, रस से भर जाना।
- गहमागहमी—(विषे.) काँटे का टक्कर, मार- काट, जोषोखरोसमय।
- गहिराउब—(क्रिया) गहरा करना, खुदी जगह को और खोदना।
- गहदेला—(सं.पु.) छोटी कुदाल। गा
- गाष्ठज—(सं.स्त्री..) तड़ित बिजली, उलका पात, गाज गिरब, बघेली मुहावरा।
- गाँजब—(क्रिया) वस्तु के ऊपर वस्तु दबाकर रखना, अन्दर रखना या भरना।
- गाट—(सं.स्त्री..) हाथ से प्रसारित छोटी किन्तु गुदार पूड़ी।
- गाँठी—(सं.स्त्री..) छोटी गाँठ, हाथ-पाँव की गाँठ, गाँठी लगाउब, ब.मु.।
- गाता—(सं.पु.) पुस्तक का गत्ता, वाह्य आवरण।
- गाती—(सं.स्त्री..) पुराने कपड़े की टुकड़ी जिसे ठंड में शाल के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
- गाते—(सं.पु.) दोनों टाँग के बीच का पोला भाग।
- गाथब—(क्रिया) गुत्थीदार बनाना, गूँथना व कसना, वस्तु में वस्तु गूँथना।
- गाद—(सं.स्त्री..) जलाषय की एक घास, गोंद।
- गादा—(सं.पु.) ज्वार या गेहूँ के अधपके दाने, भुने हुये।
- गादी—(सं.पु.) हमउम्र जोड़ी, बेल, समतुल्य जोड़ बराबरी की बेल।
- गादर—(विषे.) अधपका, पकापन के समीप की स्थिति, यौवनावस्था।
- गाप—(सं.पु.) खेत का वह अंष जिसको जोता जा रहा हो।
- गाबा—(स.पु.) खेत का थोड़ा सा भाग, किसान का पैमाना, दो उँगुलियों के मध्य का स्थान।
- गाभिन—(विषे.) गर्भधारण किये हुये, गर्भवती गाय या भैंस।
- गामय के—(अव्य.) गाँव के ही, अपने ही ग्राम के।
- गारब—(क्रिया) बुरादानुमा फल का गबूझा निकालना।
- गारी—(सं.स्त्री..) गाली, बघेली लोक गीत।
- गारी-गुप्ता—(सं.स्त्री..) परस्पर गाली देना, दुवर्चन का आदान-प्रदान, गारी गुप्ता, बघेली मुहावरा।
- गाल-गूल—(ब.मु.) गाल-गूल करना, ब.मु.बहलाकर अनदेखी करना, अस्पष्ट।
- गाला—(सं.पु.) गले की आवाज, गाल बजाना, कर्कष भाषा-बोली।
- गाली—(सं.स्त्री..) मवेषी के गले से बँधी गेरमा की गाँठ विषेष।
- गाँस—(सं.स्त्री..) बैर-विरोध, ईर्ष्या एवं प्रतिषोध, द्वेष पाले रहना।
- गाँसब—(क्रिया) संधारण करना, एक सूत्र में पिरोना, दबाव बनाना, दमंगी, जताकर धमकी देना।
- गाहब—(क्रिया) फसल की गहाई करना, बिछावन को पैरों से गन्दा करना।
- गिच्च-पिच्च—(अव्य) आना-कानी, लेन-देन में हीला-हवाली करना।
- गिंजरब—(क्रिया) कमजोरी पकड़कर घोंसना, उपहास करना, किसी की हँसी उड़ाना, व्यंग्य करना एवं दबाना।
- गिजगिज—(विषे.) अति मुलायम, लुंज- पुंज, अठोस, लोचदार।
- गिट्ट—(विषे.) छोटे कद, सामान्य से कम ऊँचाई।
- गिट्टी—(सं.स्त्री..) पत्थर की छोटी- छोटी कंकड़ी, ठिगनी, पुलिंग गिट्टा।
- गिधरोमन—(सं.पु.) नवजात षिषु, हाल साल का जन्मा षिषु।
- गिनगिनी—(क्रिया) एक ही परिधि में तेज से घूमना, झूले की घुमाव क्रिया।
- गिनगिनाब—(क्रि.वि.) बहुत वेग से, बहुत गति से घूमना।
- गिप्पी—(सं.स्त्री..) एक ग्रामीण खेल, जो खपड़े की टुकड़ियों में केन्द्रित होता है।
- गिरब—(क्रिया) गिर पड़ना, पथभ्रष्ट होना, ऊपर से टपकना।
- गिराउब—(क्रिया) किसी को पटकना, ऊपर से ढकेल देना, नीचा दिखाना।
- गिरगोदब—(क्रिया) लिखकर काटना, निरर्थक कागज खराब करना।
- गिरदान—(सं.स्त्री..) गिरगिट, छिपकली।
- गिलाब—(सं.स्त्री..) मिट्टी का गारा, ईंट-जुड़ाई में प्रयुक्त मसाला।
- गिल्ली—(सं.स्त्री..) तीव्र गति से पेड़ पर चढ़ने वाला जन्तु, गिल्ली कस दौड़ना बघेली मुहावरा।
- गिलटी—(सं.स्त्री..) गले के बगल में निकली गुलथी, नष की निकली गाँठ।
- गिलिट—(सं.स्त्री..) आल्मूनियम, एक मिश्रित धातु।
- गिलगोंचब—(क्रि.वि.) हाथ से दबा-दबाकर बच्चों को खिलाना, स्नेहिल उँगुलियों से षिषु-अंग दबाना।
- गिल्ला—(सं.स्त्री..) बुराई, उपहास, छोटपन, कुबड़ाई।
- गिलपोच्चा—(विषे.) अति गीला, असमान्य गीला, कम आटा अधिक पानी।
- गिलबिल—(सं.पु.) अस्पष्ट, ऐसी बोली जो समझ में न आयें। गु
- गुइँत—(सं.स्त्री..) माँस की गाँठ, घाव का सूखकर सिकुड़ जाना।
- गुखुरू—(सं.स्त्री..) घास का कांटेदार फल, कांटा चुभा पाँव का घाव, नुकीली मिट्टी।
- गुगुड़ा—(सं.पु.) फल की शैषवास्था, जिस फल से फूल न झड़ा हो, एक गूगुड़ वनौषधि।
- गँगुआब—(क्रिया) सुलगना, धुँआ छोड़ना, न जलना न बुझना, ब.मुहा.।
- गुच्चिआउब—(क्रि.वि.) लाठी के पेंदा से प्रहार करना।
- गुचुर पंचाइत—(अव्य.) निरर्थक बातें, वही-वहीं बात बार-बार पूछना- बताना, ब. मु.।
- गुच्चा—(सं.पु.) लाठी का निचला भाग, गाँठनुमा छड़ी का भाग।
- गुचकब—(क्रिया) लाठी से किसी के शरीर में खोदना, लाठी चुभाना।
- गुचुरामन—(क्रि.वि.) बहस एवं वार्ता, बिना अर्थ की बातें।
- गुजरब—(क्रिया) मर जाना, बीत जाना, चला जाना।
- गुजारा—(सं.पु.) जीविकोपार्जन, काम चलाना, निर्वाह होना।
- गुझिना—(सं.पु.) फल की सूखी जाली, रेरूआ फल का कंकाल।
- गुझिनब—(क्रिया) गुझिना द्वारा बर्तन साफ करना।
- गुझार—(विषे.) गबूझेदार, पर्याप्त गुदायुक्त।
- गुटकब—(क्रिया) बिना चबाये लील लेना, निगलना, पी लेना।
- गुटँरूँ गूँ—(ब.मु.) मुर्गे की बोली, ब. मु.।
- गुटकाउब—(क्रिया) किसी से निगलवाना, बिना चबाये अन्दर कर लेना।
- गुठुरी—(सं.स्त्री..) फल की गुठली, भूसे में डंठल की गाँठ।
- गुठुआ—(सं.पु.) घुटना, पाँव के ऊपर की गाँठ वाला भाग।
- गुड्डी—(सं.स्त्री..) छोटे मुख वाला छोटा सा लोटा, लोटिया।
- गुढा़—(सं.पु.) जिस नाड़े से भैंस के दोनों पीछे के पाँव बाँधे गये हों।
- गुडुमतान—(विषे.) जोड़ना-तगोड़ना, जुगाड़ बनाना, सही-झूठ बोलकर काम निकालने वाली व्यवस्था।
- गुड़गुड़ी—(क्रि.वि.) लुढ़ककर आगे होना, लुढ़कते हुये धक्के से दूर तक हो जाना।
- गुड़न्तब—(क्रिया) लुढ़ककर गिरना, (बघेली मुहावरा), गिर जाना या फेल हो जाना।
- गुड़गुड़ाउब—(क्रिया) हुक्का की भाँति आवाज निकालना, पानी पी लेना।
- गुड़ गोबर—(ब.मु.) बना बनाया काम बिगड़ जाना, सत्यानाष होना।
- गुड़मुड़ी—(क्रि.वि.) लोटपोट होना, लुढक- लुढ़ककर सिर के बल बढ़ जाना।
- गुडेरी—(सं.स्त्री..) पतली रस्सी का बन्डल, जो भीतर ईर्ष्या द्वेष पाले हो।
- गुथरब—(क्रिया) सम्बद्ध होना, अति सघन होना, पिरोना या गुथ जाना, एक दूसरे में मिला होना।
- गुथीमा—(सं.स्त्री..) एक-दूसरे एवं तीसरे से संलग्न वस्तु, गुंथी हुई वस्तु।
- गुदाम—(सं.स्त्री..) बटन।
- गुदार—(विषे.) गबूझेदार वस्तु, माँसपेषियों से भरपूर, दलदार रोटी।
- गुदामिल—(विषे.) खटमिठ्ठा स्वाद।
- गुदरी—(सं.स्त्री..) फटे पुराने कपड़े का बिछावन, गुदड़ी, गुदड़ी मा लाल, बघेली मुहावरा।
- गुधुनाब—(क्रिया) नाराज होकर बोलना, अन्दर ही अन्दर जलकर अस्पष्ट स्वर निकालना, नाक के बल मन्द स्वर से बोलना।
- गुनब—(क्रिया) विचार करना, गुणा- भाग मन में लगाना, सीमा मानना।
- गुनब-धुनब—(अव्य.) अति मंथन करना, खूब सोचना-विचारना, ब.मुहा.।
- गुन काढ़ब—(ब.मु.) अपने दुर्गुणों का होषियारी के रूप में प्रदर्षन करना।
- गुनमान—(विषे.) गुणवान, गुणों से भरा हुआ, बड़ा गुणवान व्यंग्यात्मक, बघेली मुहावरा।
- गुनिया—(विषे.) झाड़-फूँक करने वाला, गुणी।
- गुनियाउब—(क्रिया) सुधारते-सुधारते और बिगाड़ देना, बघेली मुहावरा।
- गुफ्फा—(सं.पु.) आष्चर्ययुक्त बातें, हवाई फायर, बातों का अजूबा।
- गुमकी—(सं.क्रि.) ढोलक या तबले की थाप, ओठ से ओठ पटककर ताल मिलाना।
- गुर के बाप—(ब.मु.) काले कारनामों की जड़, दुगुर्णो का खजाना, गुर के बाप कोल्हूँ, व्यंग्य मुहावरा।
- गुर—(सं.पु.) गुड़, गुरखाय, गुलगुला से परहेज, बघेली मुहावरा।
- गुरेर—(क्रि.वि.) बैर, मन मोटाव, ईर्ष्या-द्वेष पाल लेना।
- गुरूआइन—(सं.स्त्री..) गुरू की पत्नी, षिक्षा देने वाली, पुलिंग गुरूबाबा।
- गुरगुदा—(विषे.) अति फटा पुराना, जीर्ण- शीर्ण वस्त्र।
- गुरमेटब—(क्रिया) लपेटना, अस्त-व्यस्त को समेटना।
- गुरिद—(क्रिया) वंष-परिवार का विनाश, वारिस न बचना, चौपड़ खेल में सभी गोटों का पिट जाना।
- गुरिजा—(सं.पु.) दो मंजिला कच्चा घर, एक औषधीय वृक्ष का नाम।
- गुरिया—(सं.स्त्री..) मनका, माला का एक भाग, सब्जी की एक टुकड़ी, माले का एक मूँगा।
- गुरतुल—(विषे.) मीठा, मिठासयुक्त स्वाद, मधुर।
- गुरदा—(सं.पु.) कपड़े का गुर्रीदार कोड़ा, पेट का एक भाग, मांष पेषी।
- गुरी-गुरी—(अव्य.) टुकड़े-टुकड़े, छोटे- छोटे भाग, गुरी-गुरी काटना, बघेली मुहावरा।
- गुराम—(सं.पु.) आम का रस, गुड़ आटा का पकाया गया घोल, व्यंजन।
- गुर्रा—(सं.पु.) पुरुष धोती का काछदार एवं मरोड़दार एक पहनावा।
- गुर्राब—(क्रिया) कुत्ते की तरह बोलना, अकड़कर बोलना, नाक के बल बोलना।
- गुरुघंटाल—(ब.मु.) तिकड़म बाज, माहिर, चतुर-चालाक, घोटा- पिटा, अनुभवी।
- गुल्ला—(सं.पु.) षिकार करने का औजार, दीवाल में गड़ी लकड़ी की मोटी कील।
- गुल्ली—(सं.स्त्री..) ग्रामीण खेल की एक लकड़ी विषेष।
- गुल्ली-डंडा—(सं.स्त्री..) ग्रामीण चरवाहों का दो लकड़ियों वाला खेल।
- गुलगुल—(विषे.) ठोस रहित, पिलपिला, जो दबाने से दब जाय गेंद की भाँति।
- गुलगुला—(सं.पु.) आटा एवं गुड़ से बना ग्रामीण व्यंजन।
- गुलथी—(सं.स्त्री..) माँंसपेषियों की गाँठ, आटे का न घुला अंष, मन में फर्क।
- गुलूबन्द—(सं.पु.) गलाबन्द, कान की पट्टी, मफलर।
- गुलेल—(क्रि.वि.) लोचदार, धनुषाकार होना, संकोच से झुककर अर्द्धगोलाकर हो जाना, एम ग्राम्य धनुष (संज्ञा)
- गुलरा—(सं.पु.) मेढ़क, गूलर स्त्री.लिंग गुलरिया।
- गुलमगट्ट—(विषे.) पराई औरतों के चक्कर में रहने वाला, गुलाम प्रवृत्तिवाला, पत्नी का वषीभूत, स्त्री.लिंग गुलमगट्टी।
- गुलुर-गुलुर—(अव्य.) तोतली बोली, षिषुओं की बोलने वाली प्रिय शैली।
- गुलमेहंदी—(सं.स्त्री..) एक वन फूल।
- गुस्सइला—(विषे.) क्रोधी, बात-बात में नाराज होने वाला।
- गुस्साब—(क्रिया) नाराज होना, आवेषित होना।
- गुहब—(क्रिया) क्रमबद्ध गूंथना, माला की तरह पिरोना।
- गुहु—(सं.पु.) मैला, टट्टी, कुछ नहीं, न के बराबर, गुहु, बघेली मुहावरा।
- गुहु लकड़िया—(ब.मु.) गड़ी बात को बार-बार उखाड़ना व प्रकाष में लाना।
- गुहइया—(विषे.) गहने को धागे से गूंथने वाला, माला पिरोने वाला। गू
- गूगुड़—(सं.पु.) एक वनौषधि, एक वनस्पति।
- गूझा—(सं.पु.) गवूझा, फल का मांसल, गूझा काढ़ना, ब.मुहा.।
- गूदी—(ब.मु.) नाभि, पेट की बोड़री, फल का गबूझा।
- गूना—(ब.मु.) गूना गोठना (ब.मु.), घड़े की गोवबंर एवं चने से कढ़ाई।
- गूरा—(सं.पु.) कमर की हड्डी, कूल की हड्डी, पत्थर का टुकड़ा।
- गूलर—(सं.पु.) मेढ़क, ऊमर का एक वृक्ष।
- गूलब—(क्रिया) चुभाना, कार्य के लिये प्रेरित करना, स्मरण कराना। गे
- गेदुर—(सं.पु.) एक स्तनधारी जन्तु, जमगादड़।
- गेरमा—(सं.पु.) खूँटे से पषु को बाँधने वाली रस्सी, स्त्री.लिंग गेराई।
- गेरब—(क्रिया) घेरना, घेराव करना, घेर लेना।
- गेलभ—(क्रि.वि.) फिजूल की बातों में फँसाकर समय नष्ट करना, दारुखोर की बोली भाषा।
- गेल्हराब—(क्रिया) जानबूझकर अन्जान बनना, अज्ञात की कला। गो
- गोंई—(सं.स्त्री..) सखी, सहेली, मित्र, एक तकिया कलाम।
- गोइआरो—(सं.पु.) दोस्ती, दोस्ती का रिष्ता, मित्रता।
- गोचंदर—(सं.स्त्री..) व्यर्थ की वार्ता, आपसी वाद-विवाद, तर्क वितर्क।
- गोंच-पोंच—(अव्य.) संदिग्ध, विवादित, उलट फेर, इधर का उधर।
- गोजहरा—(सं.पु.) अन्दर डाल देना, डाल देना, छिपा देना।
- गोंजब—(क्रिया) जौ का अनाज, चना एवं जौ मिश्रित फसल।
- गोटँइया पारब—(ब.मु.) दूर से ही पूछ-ताछ करते रहना, अनावष्यक बातों में समय नष्ट करना।
- गोटई—(सं.स्त्री..) गोटी पत्थर की टुकड़ी, गोटई बैठाना, (ब.मु.) पुलिंग गोटबा।
- गोट्टी—(विषे.) गोरी, गौरवर्ण की, गोरे रंग की, पुलिंग गोट्टा।
- गोटईटार—(ब.मु.) नाम मात्र का, बहानेबाज, कामचोर।
- गोठब—(क्रिया) आटे से कसीदाकारी करना, कलात्मक खुदाई करना।
- गोठबाउब—(क्रिया) आटे की कसीदाकारी में सहयोग करना।
- गोंठबाई—(सं.पु.) गोठने का पारिश्रमिक, कार्य का लाभांष।
- गोठाब—(क्रिया) खट्टापन के कारण दाँतों का निष्क्रिय हो जाना।
- गोंठबइया—(सं.पु.) खूब बातें बतानें वाला, गोठने का कार्य करने वाला।
- गोड्ड़ाब—(क्रिया) लड़खड़ा जाना, लड़खड़ाकर उछल जाना, रास्ते से भटक जाना।
- गोढ़री—(सं.स्त्री..) सिर पर भार रखने के लिये सिर पर कपड़े का छल्ला।
- गोड़ब—(क्रिया) गुड़ाई या खुदाई करना, जमीन को ढीलेदार बनाना।
- गोड़—(सं.पु.) पाँव, पैर, एक आदिवासी जाति।
- गोंड़ा—(सं.पु.) पौधे में चढ़ाई गई मिट्टी, कुर्सी टेबिल का पावा, घर की सीमा।
- गोड़चल—(विषे.) चलते-फिरते रहने वाला, मजबूत हाथ-पाँव वाला।
- गोड़धोई—(सं.स्त्री..) पाँव धुलाई की रस्म, एक बघेली परम्परा।
- गोड़हरा—(सं.पु.) पाँव में धारित चाँदी का आभूषण, पाँव का बड़ा मोटा चूड़ा।
- गोड़उस—(अव्य.) चारपाई के पैर की ओर, सिरहाने से विपरीत हिस्सा।
- गोती—(सं.स्त्री..) परिवार का व्यक्ति, पट्टेदार या हिस्सेदार।
- गोदब—(क्रिया) हाँथ में गोदना, कागज खराब करना।
- गोदबइया—(सं.पु.) गोदने वाला, जिसने कागज खराब किया।
- गोदबाउब—(क्रिया) हाथ में चित्र बनवाना, फूल बैठवाना।
- गोदा—(सं.पु.)पौधे में चढ़ी मिट्टी, प्रस्फुटित पौध की कोपलें।
- गोनिया—(सं.स्त्री..) घोडे़ के पीठ का दोनों पहलू के बोरे, पटवारी का पैमाना।
- गोप्सहर—(सं.पु.) परोपकारी, कृत्रिम मददगार, दिखावटी सहयोगी।
- गोपालगाँठ—(ब.मु.) जोड़-तगोड़, लाग- वाग, जुगाड़, जोड़-गॉठ।
- गोफना—(सं.पु.) रस्सी का एक युक्तिपूर्ण पत्थर फेंकनें की वस्तु।
- गोफरी—(सं.स्त्री..) पौध की नवीन कोपलें, नये-नये कोमल पत्ते।
- गोबरइला—(सं.पु.) गोबर में रहने वाला एक विषेष काला कीड़ा।
- गोबरउटब—(क्रिया) गोबर से घर की पुताई- लिपाई करना।
- गोबरकरी—(सं.स्त्री..) गोबर उठाने वाली मजदूरनी।
- गोभव—(क्रिया) नुकीली वस्तु आर-पार करना, सुई चुभाना।
- गोमट—(विषे.) नमीयुक्त, हल्का गीला, पूरा जो न सूखा हो।
- गोमा—(सं.पु.) सखी-सहेली का पति, नारी का पुरुष मित्र।
- गोरि—(विषे.) गौर वर्ण, गोरी, पुलिंग गौर।
- गोरकिया—(सं.स्त्री..) गौरवर्ण वाली नारी।
- गोराब—(क्रिया) गौर वर्ण का हो जाना, साफ रंग का होना।
- गोराई—(विषे.) रूप-रंग एवं सौन्दर्य, गोरापन।
- गोरू—(सं.पु.) मवेषी, पषु।
- गोरूआरी—(क्रिया) पषुओं का बाँधने- छोड़ने व घास खिलाने का कार्य।
- गोरसी—(सं.स्त्री..) आग जलाने के लिये बनी मिट्टी की टोकनीनुमा पात्र इसका पुलिंग गोरसा।
- गोलिआउब—(क्रि.वि.) गोला आकार प्रदान करना, पिण्ड रूप में बनाना।
- गोलमाल—(ब.मु.) विषय बदलना, सन्दर्भ घुमाना, गायब करना, छिपा देना, कुछ का कुछ कर देना।
- गोलकिया—(विषे.) जो गोली हो, गोल वाली वस्तु।
- गोलहथी—(सं.स्त्री..) नये चावल की खिचड़ी, सिर के बल जमीन पर पलटना (क्रि.वि.)
- गोलम्बर—(सं.पु.) गोलाईदार चौराहा।
- गोला—(सं.पु.) लकड़ी का बड़ा ईमारती लठ्ठा।
- गोलियामटरा—(सं.पु.) मटरफली, गोला मटर।
- गोसट—(सं.पु.) परोपकार, लाभ, गोसट देना, ब.मुहा.।
- गोसँइया—(सं.पु.) संरक्षक, मालिक, स्वामी, पालनकर्ता।
- गोस—(सं.पु.) माँस, गोस्त।
- गोहटी—(सं.स्त्री..) एक मादा जन्तु जो विषैली होती है, पुलिंग गोह।
- गोही—(सं.स्त्री..) फल की बीजा, महुआ का बीजा, जंघा में उगी मांषपेषी-गाँठ।
- गोहागर—(ब.मु.) नाम गोहागर मुहु कुकुर कस, बघेली मुहावरा।
- गोहराउब—(क्रिया) आवाज देकर बुलाना, लौटने के लिये आग्रह स्वर।
- गोहूँहा—(सं.पु.) जिस खेत में गेंहूँ बोया हो, गेंहूँ की फसल का बाँध।
- गोह—(सं.पु.) एक विषैला जन्तु, जो छिपकली से बहुत बड़ा होता है।
- गोहार—(क्रि.वि.) संकट के समय तेजी आवाज से पुकार, गोहार मारना, बघेली मुहावरा।
- गोहूँ—(सं.पु.) गेंहूँ का पौध, गेंहूँ।
- गोहमना—(सं.पु.) गेंहुआ रंग, एक वनस्पति, सर्प की एक प्रजाति।
- गोहरबइया—(सं.पु.) बुलाने वाला, पुकारने वाला। घ
- घइरब—(क्रिया) कमर हिलाते हुये चलना, बन-ठन के गतिमान होना।
- घइला—(सं.पु.) मिट्टी या धातु का घड़ा, स्त्री.लिंग घइली।
- घइया—(सं.स्त्री..) बतासा, बतासा बनाने का पात्र।
- घउघई—(अव्य.) समय, क्षण, अवधि, काल, अवसर।
- घउदा—(सं.पु.) फलों का गुच्छा, फलों का झोंथ।
- घँघरिया—(सं.स्त्री..) छोटा लहँगा, घेरदार चमकीला लहँगा।
- घँघोउब—(क्रिया) पानी को हिलोर कर मटमैला करना।
- घघोमन—(विषे.) मैल धोया हुआ पानी, हिलोर कर गन्दा किया गया पानी।
- घघोटब—(क्रिया) काटने जैसा दौड़ना, बाज जैसा टूट पड़ना।
- घटबढ़—(विषे.) कम-अधिक, कमी-वेषी।
- घट्टिहा—(विषे.) घृणित, गन्दा आचरण वाला, एक गाली विषेष।
- घटबा—(सं.पु.) जलाषय का घाट, स्नान करने का निर्धारित स्थल।
- घटनउक—(विषे.) कमाने लायक, घटने योग्य, कम होने लायक।
- घटघटाउब—(क्रि.वि.) पानी जैसा पीना, घट्घट करके पी लेना।
- घटब—(क्रिया) कम होना, कम पड़ जाना, घटना, घट जाना।
- घटउब—(क्रिया) इज्जत कम करना, घटवा देना, घटा लेना।
- घटरमाला—(सं.पु.) बड़े-बड़े मनका या मूंगे का बना हुआ माला।
- घठ्ठा—(सं.पु.) रगड़ लगने से गदेली पर उभरे ठेंठा या चिन्ह्।
- घच्च-घच्च—(अव्य.) जमीन पर सिर पटकने से उत्पन्न ध्वनि, नुकीली चीज घुसने की आवाज।
- घत—(ब.मु.) दाव लगाना, घात लगाना, लाग बैठाना।
- घतिआउब—(क्रिया) पकड़ में कर लेना, अपनी पहुँच में करवा लेना।
- घन्ट—(ब.मु.) कुछ नहीं, पुरुष मूत्रांग।
- घनिआउब—(क्रिया) सघन करना, घन से पीटकर प्रसारित करना।
- घनघनाउब—(क्रिया) जोर से घण्टी बजाना।
- घमउरी—(सं.स्त्री..) पषीने से हुई शरीर पर रबेदार फुन्सी-फोड़िया।
- घमसान—(सं.पु.) गोंड जाति का एक पूज्य देवता।
- घमछाहिर—(विषे.) घाम एवं छाँव, आधी धूप एवं आधी छाँव।
- घमान—(विषे.) धूप से ग्रसित या व्याकुल, कड़ी धूप से त्रस्त।
- घमाका—(सं.पु.) मुष्ठिका, मुष्ठिका का प्रहार।
- घमाघम—(विशे.) धूप की धूप, बादल ही बादल, बरसात के पूर्व गर्जन।
- घमघबाउब—(क्रिया) बाजा बजवा लेना, उत्सव या आयोजन बाजे-गाजे के साथ करना।
- घमचुरहा—(क्रि.वि.) धूप में पीला हुआ फल।
- घम्मा—(सं.पु.) सदैव गाल फुलाये रहने वाला व्यक्ति विषेष का नाम।
- घमिरा—(सं.पु.) एक घास, एक वनौषधि।
- घम्म-घम्म—(सं.पु.) मुष्ठिका प्रहार से उत्पन्न ध्वनि, दही मथने की आवाज, दूध दुहते समय की आवाज।
- घरक्का—(सं.पु.) मरने के पूर्व की श्वॉस, सोते समय की सांस-ध्वनि।
- घरसठ—(क्रि.वि.) घरोबा, घरेलू सम्बंध, ताल-मेल, घुल-मिल जाना।
- घरहा—(सं.पु.) घर-परिवार का, आपसी या घरेलू व्यक्ति।
- घर-घुसना—(सं.पु.) घर के भीतर रहे आने वाला, पराई औरत के पीछे पड़े रहने वाला, बघेली मुहावरा।
- घरी—(सं.स्त्री..) एक घण्टा समय, चूल्हे का वह भाग जिसके किनारे रोटी सेंक रही हो।
- घरइहा—(सं.पु.) पति, गृहस्वामी, घरवाला, घरेलू सदस्य।
- घरफोरवा—(विषे.) घर-परिवार में कलह उत्पन्न करने वाला, मिया-बीबी को लड़ा देने वाला।
- घराती—(सं.पु.) कन्या पक्ष के लोग, कन्या पक्ष के स्वागताकांक्षी।
- घरिया—(सं.पु.) छप्पर का झुकावदार खपड़ा जो ऊपर रहता है।
- घरीघरी—(अव्य.) बार-बार-, उलट-पलट, फिर-फिर से।
- घरबइठा—(सं.पु.) विवाह के बाद जो पत्नी के मायके में ही रहने लगा हो।
- घरघराब—(क्रिया) बादलों की गर्जना, गाड़ी मोटर की आवाज होना।
- घरुहा—(सं.पु.) बटन डालने के लिये, वस्त्र पर बना क्षिद्र या कज।
- घलाय—((योजक) सहित, समेट, भी।
- घली—((क्रिया) मार पडे़गी, मार पड़ी, बजी।
- घलाघली—((क्रि.वि.) एक दूसरे पर मार-पीट, झगड़ा।
- घलघलाब—((क्रि.वि.) पेट के पानी हिलने- डुलने की ध्वनि होना, पेट का गुड़-गुड़ाना।
- घलब—(क्रिया) मार पड़ना, मार खाना, सिर पर संकट या प्रहार पड़ना।
- घँसब—(क्रिया) घिसना, घर्षण करना, अनसुनी करना, मालिष करना, मैल छुड़ाना, लेपन करना, घँसि डारब, बघेली मुहावरा।
- घसिआरी—(क्रि.वि.) मवेषियों को सुबह-शाम घास खिलाने का कार्य करना और लाभांष से दूर रहना।
- घँसबाउब—(क्रिया) घिसवाना, घर्षण करवाना, स्वयं झसवाना।
- घँसनीठ—(विषे.) जिस पर गाली-मार का असर न होता हो, जो मार खाते रहने पर भी मार-गाली की परवा न करता हो, निर्भीक।
- घसोंटब—(क्रिया) धूल में घसीटना, घसीट कर गन्दा करना, रोज-रोज पहनना।
- घँसिलब—(क्रिया) घिसट-घिसट कर चलना, काम चलाऊ गति।
- घसिलाउब—(क्रिया) घसीटना, घसीटते हुये खीचना, काम न करके लटकाये रहना।
- घसबरब—(क्रिया) घिसल जाना, जमीन पर फिसल जाना, पिस जाना।
- घसरभसर—(ब.मु.) ऐसा-वैसा, कमजोर, लापरवाही, कामचोर, हीला-हवाली।
- घसबइया—(सं.पु.) घिसने वाला तेल लगाने वाला, मैल रगड़ने वाला, रगड़-रगड़ कर तेल का लेपन करने वाला। घा
- घाउर घुप्प—(विषे.) एकदम गुप्प, चुप, मौन, मुहबन्द, बघेली मुहावरा।
- घाघ—(विषे.) घोटा-पिटा, जानकार, चतुर-चालाक।
- घाठ—(सं.स्त्री..) दलिया, गेहूँ की खिचड़ी, गेंहूँ व ज्वार का भात।
- घाती—(सं.पु.) हृदय का काला, धोखेबाज, घात करने वाला।
- घानी—(सं.स्त्री..) तेल के बदले दिया गया तिलहन, घानी निकारब, ब.मु.।
- घाम—(सं.पु.) धूप, सूर्य की ऊष्मा।
- घालब—(क्रिया) उक्ति या आख्यान कहना, सुनाना, छोड़ना।
- घाल—(योजक) सहित, समेत।
- घिआर—(विषे.) अधिक घी देने वाली, जिसके दूध में घी मात्रा अधिक हो। घि
- घिउ—(सं.पु.) घी, घृत।
- घिउहाई—(सं.स्त्री..) घी से युक्त, घी रखने वाला पात्र, घी से बना व्यंजन।
- घिघ्घी—(सं.स्त्री..) आवाक हो जाना, सब कुछ सुध-बुध खोना, होष उड़ जाना, चेतना शून्य होना, घिघ्घी बंधना, ब.मु.।
- घिघिआब—(क्रिया) दाँत गड़ा देना, पुरुजोर प्रयास के साथ निवेदन करना।
- घिंचरब—(क्रिया) खिंच जाना, आकष्श्ट होना, खिंचाव के कारण घिसलना।
- घिंचमरा—(सं.पु.) एक गाली, कमजोर गर्दन वाला, पतली गर्दन वाला।
- घिंचबइठा—(विषे.) छोटी गर्दन वाला, जिसकी गर्दन बैठी हो, स्त्री.लिंग घिंचबइठी।
- घिंचाउब—(क्रिया) खिंचवाना, खींचने में मदद करना, निकलवाना।
- घिन—(सं.पु.) घृणा, निन्दा, अरुचि, जी मचलाना।
- घिनघिनाब—(क्रिया) मन भिनकना, घृणा लगना, नफरत होना।
- घिनाब—(क्रिया) घृणा लगना, मन मिचलाना, गन्दगी के कारण अरुचि होना।
- घिनउची—(सं.स्त्री..) वह स्थान जहाँ पानी से भरा घड़ा नियमित रखा रहता हो।
- घिनउनी—(सं.स्त्री..) हाथ में होने वाली मवाददार व्याधि, एक गाली।
- घिनहा—(सं.पु.) गन्दा व्यक्ति, घृणित कार्य करने वाली, स्त्री.लिंग घिनही।
- घिनहाई—(सं.स्त्री..) अभद्र कार्य, निन्दनीय क्रिया, कमीयुक्त कार्य।
- घिर्रा—(सं.पु.) घर्षण, घिसाब-चिन्ह्, रस्सी के घर्षण का चिन्ह्। घी
- घींच—(सं.स्त्री..) गर्दन, लेवाड़ी, घीच कुटाना, बघेली मुहावरा।
- घींचब—(क्रिया) निकाल लेना, खींचना, चुरा लेना।
- घींच मराउब—(ब.मु.) व्यर्थ में कार्य करना, फोकट में प्राण लगाकर काम करना। घु
- घुआ—(सं.पु.) किवाड़ के ऊपर-नीचे का नुकीला भाग, मक्का की रेषेदार बलरी।
- घुइरब—(क्रिया) घूरकर देखना, कड़ी नजर से देखना, एकटक देखना, आँख दिखाना।
- घुइँस—(सं.पु.) धमकीयुक्त दबाव, दबावबस कोसना।
- घुघुँरी—(सं.स्त्री..) उबले हुये हरे ज्वार के दानें, उबले हुये गेंहूँ के दानें।
- घुघुँची—(सं.स्त्री..) एक रंगीन फल वाली वनस्पति, एकरती माप का फल, घुघुँची अपनें रंग बाउर, ब.मु।
- घुघुआर—(सं.पु.) मैला-कुचैला व्यक्ति, कूड़े- कर्कट की तरह अस्तित्वहीन।
- घुटकी—(सं.स्त्री..) गला, गर्दन, गले की मांसल गाँठ।
- घुटुआ—( (सं.पु.) पैर मुड़ने के स्थल की गॉठ, पैर की कटोरीनुमा कटोरी।
- घुटघुट दोहनी—(विषे.) दोहनी के गले तक भरा हुआ माप का पदार्थ।
- घुटकब—(क्रिया) निगलना, पानी-पीना, निवाला गले से अन्दर करना।
- घुनहा—(वि./सं.पु.) घुन लगा हुआ एक कोमल पत्थर।
- घुनब—(क्रिया) घुन जाना, कीड़े से अनाज का अपुष्ट हो जाना।
- घुनघुना—(सं.पु.) बच्चों का खिलौना, बच्चों का बाजा।
- घुपब—(क्रिया) चारों तरफ से बादलों का घिर आना, अंधकारमय होना।
- घुमइया—(सं.पु.) घूमने वाला, घुमक्कड़, चलते-फिरते रहने वाला।
- घुमड़ब—(क्रिया) बादलों का घिर आना, बादलों का अच्छादन।
- घुरब—(क्रिया) घुलना, एकात्म होना, ताल-मेल बैठ जाना, घुट-घुट करमरना।
- घुरउब—(क्रिया) किसी को घुट-घुट कर मरने लायक कर देना।
- घुरूर-घुरूर—(अव्य.) गाड़ी या बस की आवाज, चक्की की ध्वनि।
- घुरबा ा—(सं.पु.) कूड़ा कर्कट रखने का स्थल, आँख गड़ाये रखने वाला।
- घुघुरी—(सं.स्त्री..) उबले ज्वार या गेंहूँ के खड़े दाने।
- घुर्राब—(क्रिया) घुर-घुराहट होना, बस गाड़ी की आवाज होना।
- घुरहगना—(ब.मु.) अस्तित्वविहीन, घर की मुरगी दाल बराबर।
- घुल्ला—(सं.पु.) कपड़ा या वस्तु टांगने की लकड़ी, खूंटी।
- घुल्ला ाब—(क्रिया) पेट का घुल-घुलाना, पेट में घुल्ल-घुल्ल होना।
- घुल्लघुल्ल—(सं.पु.) घड़े से पानी निकालते समय की आवाज, पेट के अन्दर की आवाज।
- घुसेरब—(क्रिया) अन्दर डालना, पिरोना।
- घुसबाउब—(क्रिया) अन्दर डलवाना, डलवाने में सहयोग करना।
- घुँसहा—(सं.पु.) जो घूँस लेकर काम करता हो, घूँसखोर।
- घुसेरबइया—(सं.पु.) जो डालने का कार्य करता हो, पिरोने वाला।
- घुसुरब—(क्रिया) किसी से चिपकना, आधीन होना, जबरिया ठंसना। घू
- घूँचा—(सं.पु.) मुस्ठिका, मुस्ठिका से प्रहार।
- घूर—(सं.पु.) सड़ा-गला कूड़ा कर्कट, घूर होइगा, बघेली मुहावरा।
- घूँटी—(सं.स्त्री..) षिषुओं को पिलाने बड़ी जड़ी-बूटी, एक औषधि। घे े
- घेंचा—(सं.पु.) हाथ मोड़ने पर निकली हड्डी या गाँठ।
- घेचिआउब—(क्रिया) घेंचें के बल किसी को मारना-पीटना।
- घेटब—(क्रिया) घिसना, घिसकर चिकना करना, रगड़ना।
- घेट्टा—(सं.पु.) घिसकर चिकना करने वाला पत्थर।
- घेंटी—(सं.स्त्री..) छिलकायुक्त फली।
- घेतल—(विषे.) मन्द बुद्धिवाला, हकलाकर बोलने वाला।
- घेमन—(सं.पु.) परेषानी, दुगर्ति, विडम्बना।
- घेर—(सं.पु.) केले के फल का एक गुच्छा, कपड़े की चौड़ाई।
- घोक्की—(विषे.) घिरी हुई, आकाष की भाँति झुकी हुई वस्तु स्थिति।
- घोखब—(क्रिया) रटना, याद करना, कंठस्थ करना, स्मरण करना।
- घोखबाउब—(क्रिया) किसी से याद करवाना, कंठस्थ करवाना।
- घोखबइया—(सं.पु.) रटने वाला, पुनर्रावृत्तिकर्ता।
- घोंघी—(सं.स्त्री..) गर्दन या गला, शंख की आकृति का कीड़ा, पुलिंग घोघा।
- घोंघा—(सं.पु.) गर्दन, कण्ठ, गला, गले की आवाज।
- घोंघाब—(क्रिया) जोर-जोर से बोलना, गला फाड़कर चिल्लाना।
- घोटहर—(सं.पु.) बड़े-बड़े मनका से बना बड़ा माला।
- घोट्ठा—(सं.पु.) तर्क पर तर्क करना, काष्ठ पर रगड़कर चिन्ह्।
- घा ोट्ठब—(क्रिया) परेषान होना, बार-बार आना-जाना, दौड़-धूप करना।
- घोटब—(क्रिया) घिसना, मथना, महीन करना, कंठस्थ करना, घिसाई करना।
- घोटघोटाउब—(क्रि.वि.) पानी जैसा पीना, बिना रूके एक साँस में पी जाना।
- घोटाउब—(क्रिया) घिसवाना, घोटाई करना, परेषान करना, सिर मुड़वाना।
- घोट्घोट—(सं.पु.) पानी पीते समय की एक ध्वनि।
- घोटन्ना—(सं.पु.) हुकदार छड़ी या बेंत, स्त्री.लिंग घोटन्नी।
- घोटा—(सं.पु.) पषुओं को तरल दवा पिलाने वाली बाँस की पोंगली।
- घोड़मुहा—(विषे.) घोड़े के मुँह की तरह वाला व्यक्ति, एक गाड़ी।
- घोड़सार—(सं.पु.) घोड़ा बाँधने वाला स्थल, घुड़षाल।
- घोड़ाब—(क्रिया) घोड़ी का गर्भवती होने की क्रिया।
- घोड़ग्घर—(सं.पु.) बड़ा एवं वयस्क, घोडग्धर आय, बघेली मुहावरा।
- घोड़दउर—(क्रि.वि.) घोड़े की दौड़, घोड़े की भाँति आदमी की दौड़।
- घोड़िया—(सं.स्त्री..) घोड़ी, सयानी नारी के लिये अपमानजन्य संकेत।
- घोडिबाउब—(क्रिया) घोड़ी को गर्भधारण करवाना।
- घोड़चढ़ा—(ब.मु.) बहुत बड़ा आदमी, घोड़चढ़ा आबै बघेली मुहावरा।
- घोड़चरा—(सं.पु.) एक घास विषेष, घोड़े की चरी हुई घास।
- घोड़हा—(सं.पु.) घोड़ रखने वाला, घोड़ चढ़ने वाला, घोड़ खरीदने व बेचने वाला, गुप्त जाति का गोत्र।
- घोन्नस—(सं.पु.) घुटना की मोटी हड्डी, घुटना।
- घोरब—(क्रिया) घोलना, दही मथना, माठा सा घोरब, बघेली मुहावरा।
- घोरबाउब—(क्रिया) किसी से घुलवाना, दही मथवाना।
- घोराउब—(क्रिया) किसी को आवाज देकर बुलाना एवं बुलवाना।
- घोराघारी—(ब.मु.) टाल-मटोल, अस्पष्ट व अनिर्णय, संदिग्ध बातें।
- घोल घोलब—(क्रिया) बड़े बर्तन के क्षिद्र से पानी निकलना, खेत की मेंड़ से पानी बहना।
- घोंसमन—(सं.पु.) दबावयुक्त उलाहना, धमकी भरा दबाव, कोसने का कार्य।
- घोंसनहर—(सं.पु.) सदा घोंसने या कोसने वाला व्यक्ति।
- चइली—(सं.स्त्री.) छोटी पतली लकड़ी की टुकड़ी, रोटी का छिलका, गरम मशाले की पतली लकड़ी, पुलिंग चइला।
- चसेला—(सं.पु.) ज्वार को मक्का के आटे से बनी घी-तेल से छनी पूड़ी।
- चउपट—(विशे.) आँख का फूट जाना, अत्यधिक क्षति का होना।
- चउमासा—(सं.पु.) चउमासा कटना (बघेली, मुहावरा), चतुर्मासी पत्रिका
- चउपटा नन्द—(ब.मु.) नाम, चार महीने का शिशु, एकदम सर्वनास, सत्यानाश की स्थिति।
- चउम्ही—(सं.पु.) कृषि कार्य सम्बन्धी हल मे संलग्न एक लकड़ी।
- चउम्ह—(सं.पु.) मुख के दोनों जबड़ा।
- चउगोलबा—(सं.पु.) कवितानुमा चारों पदो ंकी कहावत।
- चउकी—(सं.पु.) रोटी बेलने के लिये काष्ठ या पत्थर का बना वृत्ताकार पात्र, पुलिस स्टेशन या थाना वनरक्षक नाका।
- चउगाब—(क्रिया) आश्चर्य चकित होना, देखकर आश्चर्य मे पड़ना।
- चउगान—(सं.पु.) घर के सामने का आरक्षित स्थल, आश्चर्य चकित, मन।
- चउपाल—(सं.पु.) प्रमुख प्रवेश द्वार के पास बना बैठका, आकाशवाणी के एक कार्यक्रम का नाम।
- चउबिआन—(सं.पु.) चौबे लोगो की बस्ती, चौबे के नाम से जाना जाने वाला मुहल्ला।
- चउकठ—(सं.पु.) दरवाजे पर लगने वाले लोहे या काष्ठ का बना फ्रेम।
- चउमास—(विशे.) वर्षा ऋतु के चारमास, बरसात।
- चउमसही—(सं.स्त्री..) बरसात ऋतु से होने वाली साग-सब्जी फल, बरसात से धारित की जाने वाली वस्तु।
- चउकब—(क्रिया) अकस्मात उछल पड़ना, भय से कूदना, भौचक्का।
- चउक—(सं.स्त्री.) घर के बाहर चौक, पूजा हेतु आटे से निर्मित स्थल।
- चउथि—(सं.स्त्री.) महीने की चतुर्थी तिथि का नाम।
- चउथिया—( (सं.विशे) चार दिन के अन्तराल में चढ़ने वाला बुखार।
- चउरा—(सं.पु.) किसी की स्मृति मे बना चबूतरा, झाड़-फूँक का स्थल।
- चउगिरदा—(विशे.) चारों ओर या चतुर्दिक, चारों ओर से घिरा हुआ।
- चउखुट—(विशे.) जिसके चारों कोण बराबर हो, चौकोर वस्तुस्थिति।
- चउपरतब—( (क्रिया) कपड़ों को मोड़कर व्यवस्थित ढंग से रखना।
- चउहद्दी—(विशे.) खेत के चारों दिशाओं की सीमा, सीमांकन या सीमारेखा।
- चउथइया—(सं.स्त्री.) एक पाँव की चौथाई नाप का बना, काष्ठ का पात्र।
- चउथी—(सं.स्त्री.) कक्षा चार, पर्व के चौथे दिन का परंपरागत कार्यक्रम।
- चउरी—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का चबूतरा, देवी का देवालय।
- चउथेरा—(सं.पु.) तमाचा या हाथ की चपत, गदेली से गाल पर प्रहार।
- चउंड़रा—(सं.विशे.) झुकी सींग वाला बैल, किसी बैल विशेष का नाम, अंग प्रदर्शित करने वाली, बदचलन औरत।
- चउधरा—(विशे.) जवानी न सम्भाल पाने वाली पूर्ण वयस्क बालिका।
- चउकी—(सं.स्त्री.) घर के सामने के आरक्षित जगह, पूजा पाठ के पूर्व जमीन पर बना रेखा चित्र।
- चउपहल—(विशे.) चारों ओर से कोन निकली एवं चिकनी स्थिति, गाटर की भाँति स्थिति।
- चउपलही—(सं.पु.) चौकोर वस्तु, ऐसी जो चारों ओर से चीरकर चौकोर हो।
- चउँसी—(सं.स्त्री.) माघ-पूस की रात में ओस का जमीन में सफेद जम जाना।
- चउकस—(सं.पु.) साही माप या माप स्थिति, शरीर में फिट बैठना, मनमुताबिक हो जाना।
- चउकसी—(विशे.) चतुराई या चलाकी, बदमाशी एवं बेईमानीनुमा होशियारी।
- चउरासी—(सं.पु.) घुँघरूनुमा चाँदी का आभूषण, नारियों द्वारा कमर में धारण करने वाली सँकली।
- चउपर—(सं.पु.) चौपर का एक खेल।
- चउगुन—(विशे.) चारगुना, किसी वस्तु को चार मोड़ में मोड़ना।
- चउहानी—(ब.मु.) अपना कार्य अपने हाथ कर लेने में लघुता नहीं के अर्थ पर केन्द्रित (बघेली मुहावरा), भाजी खाये चौहानी नहीं घटे।
- चट्टी—(ब.मु.) द्विग भ्रमित करने के अर्थ में चट्टी (बघेली मुहावरा), दूसरे के कहने-सुनने में पड़ना।
- चकराउब—(क्रिया) मुँह चौड़ा करके फैलाना, मुँह फैलाकर बात करना।
- चकराब—(क्रिया) मुँहफाड़कर बातें करना, मुँह चमकाना, मुँह बनाकर लम्बी- चौड़ी मारना।
- चकल्लस—(सं.स्त्री.) व्यर्थ की झंझट, उलझनयुक्त वस्तुस्थिति, निरर्थक पंचायत।
- चकत्ती—(सं.स्त्री.) शरीर पर चकत्तेदार चर्मरोग, चपटा शुष्क घाव।
- चकरपेहदिया—(विशे.) छोटे कद का मोटा व्यक्ति, असमान्य ढंग से मोटा।
- चकचक—(विशे.) एकदम से गीला, घी-तेल में डूबी हुई।
- चकाचक्क—(विशे.) प्रत्येक दृष्टि से परिपूर्ण एवं सम्पन्न व्यवस्था।
- चकरान—(विशे.) हृष्ट-पुष्ट युक्त, मोटाई युक्त, चौड़ाई से ओतप्रोत।
- चकेठ्ठा—(विशे.) लम्बा कम मोटा अधिक, दोहरा वदन, स्त्री.. चकेठ्ठी।
- चकरा—(सं.पु.) मिट्टी का दो पाट वाला पात्र, मिट्टी की चक्की।
- चकरी—(सं.स्त्री.) पत्थर की बनी दो पाट वाली चक्की।
- चकलई—(विशे.) किसी वस्तु या व्यक्ति की चौड़ाई या मोटाई।
- चकलाउब—(क्रिया) विस्तृत करना, चौड़ा करना, फैलाना।
- चकउड़ा—(सं.पु.) उड़द के फल सा एक घास का पौधा।
- चकबार—(सं.पु.) लकड़ी का औजार- जिससे चौकोर गीली मिट्टी काटी जाती है।
- चकदण्ड—(सं.पु.) कष्ट, परेशानी मुक्त संकट, उलझनयुक्त।
- चकरिहा—(सं.पु.) नौकरी करने वाला कर्मचारी या नौकरी में संलग्न व्यक्ति।
- चकरहा—(सं.पु.) वह स्थान जहाँ मिट्टी की बनी चक्की गड़ी हो।
- चकुनिआब—(क्रिया विशे.) शर्म के कारण सिकुड़ना, लज्जा के कारण मुख छिपाना, संकोच करना।
- चगड़ब—(क्रिया) दौड़कर पीछा करना, गतिमान कर दूर भगाना, दौड़कर भगाना।
- चगड़वइया—(सं.पु.) पीछा करने वाला व्यक्ति, मवेशी दौड़कर भगाने वाले।
- चँछरब—(क्रिया) छिल जाना, छिलका का निकल जाना, चमड़ी का छिल जाना।
- चँछउआ—(विशे.) छीलते हुए शैली में कार्य करना।
- चँछवइया—( (सं.पु.) छीलने वाला, लकड़ी को सुडौल बनाने वाला व्यक्ति।
- चॅछवाई—(सं.पु.) लकड़ी को सुडौल बनाने के बदले में प्राप्त मेहनताना।
- चटपटी—(सं.पु.) चटपट करने वाली काष्ठ की चप्पल।
- चट्टी चढ़ाना—(ब.मु.) दिक्भ्रमित करके कार्य के लिए उद्धत करना।
- चटकनिआउब—(क्रिया) तमाचे से पीटना, तमाचा जड़ देना।
- चटबइया—(सं.पु.) चटवाने वाला व्यक्ति, स्वाद लेने वाला।
- चटुआ—(सं.पु.) बार-बार अपमानित होने पर भी जो उसी के पीछे चले।
- चटकब—(क्रिया) फट जाना, विदीर्ण हो जाना, दो भागों में खण्डित हो जाना, दरार आ जाना।
- चट्ट चट्ट—(सं.पु.) सूखी लकड़ी को हाथ से तोड़ने पर होने वाली ध्वनि।
- चटपट—(विशे.) तुरन्त, तत्काल, जल्द
- चढ़ाव—(सं.पु.) विवाह के समय वर द्वारा मण्डप के तले कन्या को अर्पित होने वाले आभूषण, श्रृँगारयुक्त कन्या की एक रस्म।
- चढ़बइया—(सं.पु.) सहारा लेकर ऊपर चढ़ाने वाला, चढ़ने में मदद करने वाला।
- चढ़ईया—(विशे.) रास्ते की उच्च भूमि, समतल से ऊँचा।
- चढ़ब—(क्रिया) चढ़ाई करना, सवार होना, चढ़ना या चढ़ जाना।
- चढ़बाइक—(सं.पु.) विवाह की मध्यस्थता करने वाला व्यक्ति विशेष।
- चढ़ाउब—(क्रिया) सहारा देकर ऊपर उठाना, ऊपर करना, चढ़ाना अर्पित करना।
- चढ़बाउब—(क्रिया) अपने ऊपर चढ़वाना, चढ़वाने में सहयोग करना।
- चढ़बाई—(क्रिया) चढ़वाने के बदले प्राप्त पारितोषिक, भाड़ा उठाने की मजदूरी।
- चतुरबइकल—(सं.स्त्री.) जो जान बूझकर पागल बना हो अपना स्वार्थ सिद्व करने के लिए चटक-मटक, आकर्षक वेशभूषा, श्रृँगार, चमक-दमक।
- चथ्थ-चथ्थ—(सं.सी.) माँसपेशी पर गदेली से प्रहार करने पर उत्पन्न ध्वनि।
- चदउरे—(सं.पु.) सिर के चाँद पर, ब. मु.।
- चदिया—(विशे.) पाँव के तलबे पर बने चिकने चिन्ह, तलबे के ठेठे। चँँ ँ
- दिहाई—(सं.सी.) चाँदी की धातु से बनी हुई वस्तु।
- चनचनाव—(क्रि.) कर्कश वाणीयुक्त वार्ता की क्रिया, आवेशित होकर अनाप सनाप बोलना।
- चनफन—(विशे.) चंचल एवं चैतन्य, कर्मठ एवं सक्रिय, होशियार एवं तत्पर।
- चन्नाब—(क्रि.) बालों के खींचने से दर्द का होना।
- चन्नावाउब—(क्रि.) बाल उखाड़कर पीड़ा की अनुभूति करवाना।
- चन्टई—(विशे.) तेजाई या टटकापन, फुर्ती, सजगता एवं सर्तकता।
- चपरास—(सं.पु.) पुलिस या कोटवार के कमर का शासकीय बेल्ट।
- चपटब—(क्रि.) चिपकना, किसी वस्तु का दबाव से चपटा हो जाना।
- चपटाउब—(क्रि.) वस्तु को चपटी करना, गोंद से चिपकाना।
- चपटवइया—(सं.पु.) चिपकाने वाला व्यक्ति, वस्तु को चपटी करने वाला।
- चपेट—(सं.स्त्री..) भारी पत्थर के नीचे हाथ दब जाना, किसी का दबाव किसी व्यक्ति पर पड़ना, दबाव से लगी चोट।
- चपेठब—(क्रि.) किसी को घेरकर किसी कार्य हेतु दबाव देना।
- चपकउली—(सं.स्त्री.) चपटी आकृति वाली वस्तु-जूती की तरह चपटी, चिपका हुआ गाल या मुँह।
- चपका—(सं.पु.) कोड़ा, चमड़े का अस्त्र।
- चपरपेल—(सं.पु.) गलत बात को भी जबरिया सही सिद्ध करना।
- चपरपेली—(क्रि.) जबरिया, जबरदस्ती, मनमानीपूर्ण कार्य करना।
- चपउआ—(सं.पु.) दबे पाँव, दबाकर चलने की शैली।
- चपबइया—(सं.पु.) दबाव देकर, दबाने वाला, दबाये रहने वाला व्यक्ति।
- चपाउब—(क्रि.) दबाना, शक्ति लगाकर दबाव देना।
- चपबाउब—(क्रि.) दबवाना, ताकत लगवाना, मालिश करवाना।
- चपटिआउब—(क्रि.) किसी वस्तु को चपटी आकृति में करना।
- चपटा—(सं.पु.) चपटे आकृति की वस्तु, चिपकी हुई।
- चपर—(अव्यय) बेबुनियाद जिदपूर्ण वाली बातों विहीन वार्तालाप।
- चबइना—(सं.पु.) चबेना, भुना चना, मक्का का फूटा, फसल काटते समय दिया जाने वाले अतिरिक्त बोनस।
- चबरिआउब—(क्रि.) तमाचा से मारना, गाल पर गदेली से प्रहार करना।
- चबाउब—(क्रिया) दाँतों से कटवाना किसी वस्तु को दाँतों से चबाना।
- चबइया—(सं.पु.) चबाने वाला व्यक्ति, चबेना चाभने वाला, काट खाने वाला।
- चबरा—(सं.पु.) तमाचा, उँगुलियों सहित हथेली प्रक्षेत्र।
- चबनहा—(सं.पु.) काट खाने वाला जानवर, विषैला जानवर, दाँत से पकड़ने का आदी जानवर।
- चबडिढ़—(विशे.) बात भिड़ाने में तेज, तर्क-वितर्क मे समर्थ, बात करने में निर्भीक बहस में जल्दी न मानने वाला।
- चभराब—(विशे.) ओंठ पर ओंठ जोर-जोर से पटकर बात करने की शैली।
- चभोक्का—(ब.मु.) तरल पदार्थ का किसी वस्तु पर भरपूर लेपन तेल या घी में डूबी हुई रोटी की स्थिति।
- चभर-चभर—(अव्यय) समाज में गाल बजाना, योग्य समुदाय के मध्य निरर्थक राग अलापना, मुँह बना बनाकर कृत्रिम बातें करना।
- चमकइया—(सं.पु.) चमकने वाला, आँख चमकाने वाला व्यक्ति।
- चमाचम्म—(विशे.) हर दृष्टि से भरपूर एवं सम्पन्न, जोर से चमचमाता हुआ।
- चमकब—(क्रिया) चमकना, किसी को खिझाने के लिए मुँह बनाना, इधर-उधर अंग हिलाना, किसी के सामने बनना-ठनना।
- चमका—(सं.पु.) धता पढ़ाने वाली शब्दवलियाँ, उलटा-सीधा बताने वाली बातें बहानाबाजी या विलोमअर्थी प्रस्तुति।
- चमकुल—(विशे.) बदचलन प्रवृत्ति की नारी, अंग प्रदर्शन करने वाली।
- चम्पई—(विशे.) पीला गहरा, चंपा के रंगका।
- चमर—(सं.पु.) देवी-देवताओं को या राजसी पुरुषों को हवा करने वाला घोड़े के बाल का बना एक विशेष वस्तु या पात्र।
- चमरहाई—(विशे.) निकृष्ट व्यवहार, अतिघृणित क्रिया-कलाप।
- चमरडोभा—(क्रिया) विरल सिलाई, दूर-दूर सुई की सिलाई।
- चमकाउब—(क्रिया) चिढ़ाने के लिए मुँह की आकृति विकृत बनाना, किसी की हँसी उड़ाना, दूसरे को संकेत करके नकल उतारना।
- चमराई—(सं.स्त्री.) बड़े पत्तों वाली साग की एक किस्म।
- चरहा—(सं.पु.) आरक्षित घास का मैदान, घास की कटाई करने वाले।
- चरचरी—(विशे.) किसी भी कार्य की अधिकता, फसल कटाई का समय।
- चरमुट—(विशे.) धन-धान्य से सम्पन्न, स्वस्थ्य एवं शक्तिवान, शरीर हृष्ट एवं पुष्ट, लम्बा-चौड़ा, नया जवान।
- चरवाह—(सं.पु.) पशुओं को वन में चराने वाला, पशुओं की सेवा सुश्रुसा करने के लिए संलग्न व्यक्ति।
- चरवाहिन—(सं.स्त्री.) पशु चराने वाली नारी।
- चरागन—(सं.पु.) जहाँ पर खूब चारा उगा हुआ हो वह प्रक्षेत्र।
- चराउब—(क्रिया) घास खिलाने का कार्य, पशुओं को चरवाना।
- चरबाउब—(क्रिया) मवेशी चरवाना, चरवाने में सहयोग करना।
- चरबइया—(सं.पु.) चरवाहा, पशुओं को चराने वाला।
- चरचराउब—(क्रिया) ओर-छोर फाड़ देना, लकड़ी की डाली या नया कपड़ा फाड़ने से उत्पन्न ध्वनि होना।
- चरु—(सं.पु.) दुधारु पशुओं के छोटे-छोटे बच्चे, चिड़िओं के बच्चे।
- चरेर—(विशे.) कड़ा या सख्त, अधिक उम्र या वयस्क, परिपक्व अवस्था।
- चरचराब—(क्रिया) पेड़ की डाली टूटने से होने वाली एक विशेष ध्वनि, आवश्यकता से अधिक तेज आवाज के साथ बोलना।
- चरगोड़ा—(विशे.) चार पाँव वाली वस्तु-चार पैर का जीवधारी।
- चरब—(क्रिया) पशुओं द्वारा घास चरना, चुन लेना या खा डालना।
- चरोहन—(सं.पु.) चावल धोने के बाद निकला हुआ श्वेत पानी।
- चरसा—(सं.पु.) गाय, भैंस का चमड़ा।
- चरसी—(सं.स्त्री.) चमड़ी, खलरी चरसी खीचंब, बघेली मुहावरा।
- चरपर—(विशे.) तिक्त या कड़वा स्वाद, मिर्चा के स्वाद का आधिक्य।
- चरउही—(सं.स्त्री.) मवेशी चराने की मजदूरी।
- चर्राउब—(क्रिया) किसी कपड़े को ओरा- छोरा फाड़ना।
- चरपरहा—(सं.पु.) गाँव में प्रचलित आटे की मसालेदार सब्जी।
- चरन्नी—(सं.स्त्री.) रुपये का चौथा भाग, चौथाई मूल्य का प्रचलित सिक्का।
- चरचरी—(विशे.) कृषि कार्य की अधिकता या जोर की स्थिति।
- चरु—(सं.पु.) जंगल में पशुओं को प्रवेश देने के लिए वन विभाग द्वारा लिए जाने वाला शासकीय शुल्क।
- चरहा—(सं.पु.) जहाँ बड़ी बड़ी घास उगी हो वह आरिक्षत जगह।
- चराई—(सं.स्त्री.) मवेशी चराने की मजदूरी, चरवाही का मेहनताना।
- चरनन—(सं.पु.) पाँव के बल पैदा हुआ बालक, प्राण लेवा शिशु, खराब चरण में।
- चलनी—(सं.स्त्री.) आटे के छिलके को अलग करने हेतु लोहे का बना जालीदार एक पात्र, पुलिंग ’चलना’।
- चलबइया—(सं.पु.) आटा चलाने वाला व्यक्ति, चलने वाला राहगीर।
- चलबाउब—(क्रिया) आटा चलवाना, पकड़कर चलना सिखाना, आटा चालने में सहयोग करना।
- चलना—(सं.स्त्री.) अनाज और कंकड़ को अलग करने वाला जालीदारी पात्र।
- चलाचली—(सं.स्त्री.) प्रस्थान की बेला, विदाई समारोह।
- चलबली—(सं.स्त्री.) गाल का मध्य भाग, हवा फूंकते समय फूलने वाला गाल।
- चलब—(क्रिया) चलना, साथ मे जाना, गतिमान होना, चलेंगे, चलूँंगा।
- चलाउब—(क्रिया) सहारा देकर चलने हेतु प्रोत्साहित करना आटा चालने में मदद करना।
- चलक्चिल—(विशे.) अपने स्थान से हटा हुआ, बेठिकाने व अव्यवस्थित, बिरादरी से गिरा हुआ, हेरा-फेरी।
- चहली—(सं.स्त्री.) पानी भरने के लिए जमीन पर भरा गया चौकोर स्थल।
- चहलब—(क्रिया) किसी को जमीन पर पटककर पाँव से कुचलना, गीली मिट्टी में घास डालकर पाँव चलाना व मिश्रित करना।
- चलन—(क्रिया) चाल, प्रचलन, चलने की शैली, रीति-रिवाज।
- चहला—(सं.पु.) सतह पर पानी से कीचड़ उठ जाना, पानी-मिट्टी मिश्रित कीचड़नुमा स्थिति।
- चहड़ार—(विशे.) जो अकारण मारपीट करने का आदी हो, आये दिन लड़ने- भिड़ने वाले के लिए व्यग्ंय बोधक।
- चहका—(सं.पु.) किसी पर कीचड़ उछालना, हँसी उड़ाना और चर्चा करना।
- चहवोर—(विशे.) तरल पदार्थ में डूबी हुई वस्तु, लेपन से ओत-प्रोत।
- चहचिड़बा—(सं.पु.) बरसाती सब्जी का फल जो लम्बे गुब्बारे की तरह फलता है।
- चहकारब—(क्रिया) किसी के बोलते ही उसके ऊपर चढ़ बैठना, पानी चढ़ाना।
- चहकब—(क्रिया) चिल्लाकर उलाहनायुक्त बातें कहना, गुस्सा बुझाने की क्रिया, चीख-चीख कर व्यग्ंय वर्षा।
- चहलाउब—(क्रिया) किसी को किसी से पिटवाना, छोटे बच्चे से पाँव द्वारा अपना शरीर कुचलवाना।
- चहॅंदर—(सं.पु.) भोजन स्थल में थाली से अन्नांश पानी गिराकर गंदा कर देने का परिदृश्य।
- चहेटब—(क्रिया) पीछे से खदेड़ना, किसी का पीछा करना, किसी को दौड़कर पकड़ने का प्रयास करना।
- चहेड़ब—(क्रिया) गले तक खाने के लिए बघेली मुहावरा।
- चहेड़िआउब—(क्रिया) मनोविनोद की दृष्टि से किसी को चिढ़ाना।
- चहबोकब—(क्रिया) पर्याप्त मात्रा मे तरल पदार्थ का लेपन करना।
- चहकाउब—(क्रिया) जी खोलकर किसी को पेटभर खिलवाना।
- चहलबइया—(क्रिया) पाँव से कुचल-कुचलकर मारने-पीटने वाला, गीली मिट्टी में घास डालकर पाँव से मिश्रित करने वाला व्यक्ति।
- चहटबइया—(सं.पु.) दौड़कर मवेशी को दूर भगाने वाला, दौड़कर पीछा करने वाला।
- चहहा—(सं.पु.) चाय सना बर्तन, चाय पीने वाले लोग। चा
- चाइचुआ—(सं.पु.) चकते की शैली में सिर के बाल झड़ने का रोग। चाँँ ँ
- ईमाई—(क्रिया) फिरंगी जैसा भ्रमण करने की क्रिया, वृत्ताकार घूमना।
- चाउर—(सं.पु.) चावल।
- चाकल—(विशे.) चौड़ा या चौड़ी, अधिक चौड़ाई वाली वस्तु या रास्ता।
- चाकर—(सं.पु.) नौकर, अधीनस्थ शासकीय कर्मचारी, अनुबंधित व्यक्ति।
- चाकी—(सं.स्त्री.) चक्की, चाकी पड़ना, बघेली मुहावरा।
- चाँचर—(क्रिया) खाना खाते समय जमीन पर चारों तरफ भोजन बिखरना।
- चाँछब—(क्रिया) छीलना ऊपरी छिलका निकालने की क्रिया, चाँचर मचाना, (बघेली मुहावरा) व्यर्थ की बकवास करना।
- चाटब—(क्रिया) चाटने की क्रिया, जीभ से चाटना।
- चाँड़—(विशे.) बहुत तेज, जोरदार, तेज- तर्राट।
- चाड़े—(विशे.) जोर-जोर से, ऊँचे स्वर में, खुलेआम या खुलासा।
- चापब—(क्रिया) पाँव दवाना किसी वस्तु को ढंकना, दबाव देना या दबाना।
- चापट—(सं.पु.) चपटे आकार का या चपटी आकृति।
- चाबर—(सं.पु.) तमाचा, गदेली का समग्र भाग।
- चाबब—(क्रिया) किसी को दाँत से काटना, दाँत से चना चबाना।
- चाबुक—(सं.पु.) सवार होने के समय घोड़े के मुख में लगाई जाने वाली लोहे की एक साँकल।
- चाभ—(सं.पु.) मुख का जबड़ा, जबड़े का गतिमान होना, आवाज फूटना।
- चाम—(सं.पु.) पशुओं की मृत चमड़ी, चमड़ा।
- चाँय-चाँय—(अव्यय) कर्कश स्वर में बोलना, अप्रिय भाषा-बोली एवं आवाज।
- चार—(सं.पु.) एक वनफल का नाम।
- चारा—(सं.पु.) घास, पशुओं का आहार।
- चारखाना—(सं.पु.) ऐसा कपड़ा जिसमे चौड़ी पट्टी की खड़ी रेखा हो।
- चालब—(क्रिया) किसी की चर्चा चलाना, चलना से मिश्रित को अलग- अलग करना, अनाज से कंकड़ अलग करना।
- चालबाजी—(सं.पु.) चाल-चलकर चतुराई, चतुरना, धोखा, बदमासी।
- चाहब—(क्रिया) चाहना, चाहत किसी को पसन्द करना।
- चाही—(अव्यय) चाहिए, लेंगे, आवश्यकता है, अपेक्षा है।
- चाहे—(अव्यय) होवे तो, या तो, इच्छा हो, मन आवे। चि
- चिआंचिया—(विशे.) थोड़ा-थोड़ा करके देना या लेना, फुटकर कार्य, कईबार में किसी कार्य को पूरा करना, खण्ड-खण्ड रुप।
- चिकचिकाब—(विशे.) रोटी-घी का भरपूर लेपन का उभर आना।
- चिकचिकान—(विशे.) चिकनई में डूबा हुआ, घी में डुबाकर निकाल ली गई स्थिति।
- चिआर—(सं.पु.) घर का मध्य, माथा, छप्पर का ऊपरी भाग।
- चिकनिया—(सं.पु.) शौकीन, सौन्दर्य प्रेमी, स्वच्छता सफाई वाला।
- चिकनई—(विशे.) चिकनाहट, तेल या घी के लेपन की स्थिति।
- चिकचोधरा—(विशे.) बालों की छोटी-बड़ी छटाई की स्थिति।
- चिकुनगुंडा—(सं.पु.) खाने-पहनने का शौकीन व्यक्ति, सौन्दर्य प्रेमी।
- चिकचिक—(सं.पु.) वाद-विवाद, मन-मोटाव, उलझनयुक्त बातचीत, किसी वस्तु पर तरल पदार्थ का भरपूर लेपन की स्थिति।
- चिकनाउब—(क्रिया) चिकनी करना, तेल मालिस लगाना, खुशामद करना, लेपन करना।
- चिकनाब—(क्रिया) चिकनाहट से ओत-प्रोत होना, पौष्टिक आहार से मजबूत होना, चर्बी चढ़ आना।
- चिकटब—(क्रिया) कपड़े का तेल में खूब सना होना, हाथ में तेलयुक्त कपड़े का चिपकना।
- चिकचिकहा—(सं.पु.) ऐसा व्यक्ति जो चिकचिकबाजी करता हो।
- चिखना—(सं.पु.) सलाद, चटनी, दारु पीते समय प्रयुक्त सामग्री।
- चिखबाउब—(क्रिया) चिखलाना, स्वाद का परीक्षण करवाना, खा करके स्वाद जानना, जानने।
- चिखरब—(क्रिया) स्वाद के लिए चखाई होना।
- चिखइया—(सं.पु.) चीखने या स्वाद लेने वाला व्यक्ति।
- चिखना—(सं.पु.) स्वाद बदलाव के लिए प्रयुक्त पदार्थ, चटनी, सलाद आदि।
- चिगिड्डा—(सं.पु.) चिड्डा की भाँति दौड़कर कार्य करने वाला, पतले ढांचे का व्यक्ति।
- चिगुरब—(क्रिया) जकड़ना, नस का संकुचित होना।
- चिचिरी—(सं.पु.) तेंद का दातून, तेंद का एक पौधा, वनौषधि पौधा।
- चिटका—(सं.पु.) चिता, अग्निदाह क्रियास्थल, चिटका फोरब (गाली)।
- चिटकबरा—(सं.पु.) रंग-बिरंगा, कबरा, चिटकबरा, चिटकबरी।
- चिट्ट—(सं.पु.) वसूल हो जाना, पक जाना, उपलब्धियाँ, लाभ, पीठ के बल जमीन पर गिरना, चिट्ट होना या चिट्ट करना, बघेली मुहावरा।
- चिटकहनी—(सं.स्त्री.) मरघट, जहाँ चिता जलाया जाता हो।
- चिटकब—(क्रिया) तिड़कना, शीशे का टूटना, आक्रोश के कारण कूदना- उछलना।
- चिटा—(सं.पु.) चौकोर चाक से बनाया गया जमीन पर चिन्ह, ग्रामीण खेल के लिए वर्गीकृत रचना।
- चिटापटी—(विशे.) रंग-बिरंगी, भाँति-भाँति के छापे रचना।
- चिट्टी—(सं.स्त्री.) चमड़ी पर पड़ी हुई चित्ती, सफेद दाग से चकतीदार चमड़ी
- चिड्डा—(सं.पु.) हरे रंग का एक कीड़ा अति दुबले पतले व्यक्ति।
- चिड़चिड़ाब—(क्रिया) बात-बात में आवेशित होना, खीझ उठना।
- चिडचिडहा—(सं.स्त्री.) चिड़चिड़ाने की प्रवृत्ति का आदमी।
- चितावर—(सं.पु.) औषधीय एक वनस्पति व लकड़ी का विशेष।
- चिथरा—(सं.पु.) फटा-पुराना, जीर्ण-शीर्ण कपड़े के टुकड़े।
- चिन्हारी—(सं.स्त्री.) जान-पहिचान, एक दूसरे को भली प्रकार जानना।
- चिथरब—(क्रिया) सड़ी वस्तु का खींचने से टुकड़े-टुकड़े हो जाना।
- चिनी मिट्टी—(सं.स्त्री.) मिट्टी मिश्रित एक धातु का नाम, बर्तन बनाने वाली एक विशेष धातु।
- चिन्धी—(सं.स्त्री.) फटे-पुराने वस्त्र का कई जगह से फूट जाना, जीर्ण-शीर्ण कपड़े का अवशेष।
- चिन्हबाउब—(क्रिया) किसी को पहचनवाना पहिचान कराना, परीक्षण करना।
- चिन्हाउब—(क्रिया) परीक्षण करना, परिचय कराना, पहेली बुझाना।
- चिन्हार—(सं.पु.) जाना-पहचाना व्यक्ति, परचित व्यक्ति।
- चिन्हइया—(सं.पु.) देखकर पहचान जाने वाला, परिचयकर्ता, जानकार या भिज्ञ, सबको जानने-समझने वाला।
- चिन्हबया—(सं.पु.) पहचानने वाला, जानने वाला, परिचय पूछने वाला।
- चिनगा—(सं.पु.) मछली के छोटे-छोटे शिशु, स्त्री.लिंग चिनगी वाला, इधर को उधर करने की प्रवृत्ति वाला।
- चिपुरा—(विशे.) जो आँखें चिपचिपाता रहता हो, जिसकी आँखें प्रायः कीचड़ सनी हो।
- चिपुराब—(क्रिया) आँखों की पलकों का आपस में चिपक जाना, आँखे पटपटा कर देखना।
- चिपुराउब—(क्रिया) बार-बार पलकों को पटकना।
- चिपोटा—(सं.पु.) छोटे बच्चे, संकुचन या सिकुड़न, माँसपेशियों को खींचना।
- चिपोंग—(विशे.) चीपों, गदहा की भांति भाड़ा ढोने वाला व्यक्ति, बुद्धिहीन, अकल रहित।
- चिविल्ला—(सं.पु.) नुकसान करने वाला, हरकत करने की प्रवृत्ति वाला, लड़का, स्त्री.लिंग चिबिल्ली।
- चिबुलखी—(सं.स्त्री.) चंचलमन वाली नारी, बदचलन और चरित्रहीन सी।
- चिभऊ—(अव्यय) बिना रुचि के खाना, खाने की शैली।
- चिमनी—(सं.स्त्री.) दीपक व लालटेन, धुआँ निकलने का खम्भा।
- चिमान—(सं.पु.) शांत या चुपकी स्थिति, मुँहबंद या वार्ता बंद।
- चिमाब—(क्रिया) चुप एवं शांत हो जाना, एकदम चुप होना।
- चिमाउब—(क्रिया) रोते हुए या बोलते हुए को समझाकर चुप करा देना।
- चिमटा—(सं.स्त्री.) लोहे की पतली पटरी जो बीच से बराबर मुड़ी हो।
- चिमटी—(सं.स्त्री.) औरतों द्वारा बालों में धारित चिमटी गहना।
- चिमटिआउब—(क्रिया) चिमटे से पिटाई करना, छप्पर को नीचे ऊपर लकड़ी से बंधन द्वारा बाँधना।
- चिमराब—(क्रिया) पानी में भिगोकर लचीला बन जाना, आर्द्रयुक्त हो जाना।
- चिमरान—(विशे.) नमी से अशुष्क हुई वस्तु, लोचदार स्थिति।
- चियाचिया—(विशे.) वस्तु की थोड़ी-थोड़ी सी कई दौर में दी गई अलग-अलग मात्रा।
- चिरिया—(सं.पु.) चीरने वाला, चीड़-फाड़ करने वाली।
- चिरइया—(सं.स्त्री.) चिड़िया, गले में उठी हड्डी, लकड़ी या लोहे की बनी घर के माथ की महत्वपूर्ण एक लकड़ी।
- चिरंजू—(विशे.) चिरंजीवी या दीर्घायु होने के लिये शुभाशीश शब्द।
- चिरकोटी—(क्रिया) हाथ के अँगूठे और तर्जनी के दबाव से शरीर की चमड़ी खींचना या काटना।
- चिरीमा—(सं.पु.) चीरी हुई इमारती लकड़ी, फाड़ी हुई लकड़ी।
- चिरंउजी—(सं.स्त्री.) चार नामक फल का बीज, बेर या कद्दू का बीज।
- चिरई—(सं.स्त्री.) चिड़िया, पक्षी।
- चिरकब—(क्रिया) पतला दस्त पड़ना, लिखकर गन्दा सा कर देना।
- चिरभोंट—(सं.पु.) कटीली वस्तु के स्पर्श से शरीर में रेख बन जाना, चमड़ी छिलने से बनी लकीर।
- चिरबाई—(सं.पु.) लकड़ी फाड़ने की मजदूरी, आप्रेशन शुल्क।
- चिरबइया—(सं.पु.) आप्रेशन करने वाला सर्जन, लकड़ी चीरने वाला।
- चिरपिर—(विशे.) बहुत तीखा, तिक्त स्वाद, कषैला।
- चिराइध—(विशे.) चमड़ी को जलाने से उत्पन्न दुर्गन्ध।
- चिराउब—(क्रिया) चीड़-फाड़ करवाना, लकड़ी की चिराई करवाना।
- चिरबिर—(क्रि.विशे.) बच्चों जैसी हरकत, नादान जैसी बात-व्यवहार, चिढ़ाने वाली गतिविधियाँ।
- चिरकुटिया—(सं.स्त्री.) सूखी लकड़ियों की पतली-पतली टहनियाँ।
- चिरकुटिहा—(सं.पु.) फटे-पुराने चीथड़े कपड़े पहने हुये व्यक्ति, निर्धन या हीन।
- चिर्री—(सं.स्त्री.) बिजली गिरना, उल्कापात होना, आग का अंगार।
- चिरचिरी—(सं.स्त्री.) तेंदू का छिलका, तेंदू का पौधा, एक औषधीय पौध।
- चिल्फी—(सं.स्त्री.) लकड़ी का छोटा छिलका, रोटी की पतली पर्त, पुलिंग चिल्फा।
- चिल्हार—(क्रि.विशे.) लम्बी चीख-जोर से दर्दयुक्त आवाज, करुण पुकार।
- चिलचिलाब—(क्रिया) चमकता हुआ, चमकदार, जेठ मास की दोपहरी।
- चिल्लवा—(विशे.) शोरगुल करना, जोर-जोर से आवाज करना, क्रन्दन करना।
- चिलकनहा—(सं.पु.) जो चमकता हो ऐसी वस्तु।
- चिल्होंट—(सं.पु.) नवजात शिशु, दुग्धमुहा, अबोध बालक।
- चिल्ला—(सं.पु.) गहाई किया हुआ बीज रहित अलसी का डंठल, मसूर से बनने वाला एक ग्राम्य व्यंजन विशेष।
- चिल्लबाउब—(क्रिया) जोर-जोर से चिल्लाने के लिए विवश कर देना, चिल्लवाना।
- चिल्लाब—(क्रिया) जोर-जोर से चिल्लाना या चीखना, रोटी पर जली चिट्टियाँ पड़ जाना, अलसी के पौधा में फूल के बाद फल न लगना।
- चिल्लवइया—(सु.पु.) गला फाड़कर चिल्लाने वाला, जोरदार आवाज से पुकारने वाला, गुहार लगाने वाला।
- चिलकब—(क्रिया) चमकीला दिखना, किसी वस्तु का चमचमाना,घाव का काटना, माँसपेंशियों में दर्द उठना।
- चिल्लर—(सं.पु.) खुदरा पैसे, फुटकर सिक्के, छोटे-छोटे बच्चे, चिल्लर पार्टी।
- चिहुटी—(सं.स्त्री.) अंगुली से त्वचा खींचना या दबाना, चुटकी काटना।
- चिहुटा—(सं.पु.) काले रंग का चींटा, अति छोटा काला कीड़ा।
- चिहराब—(क्रिया) किसी वस्तु में और दरार पड़ जाना, फट जाना।
- चिहिराउब—(क्रिया) किसी वस्तु में दरार कर देना, किसी वस्तु को फोड़ देना, दरारयुक्त वस्तु को करना।
- चिहिरान—(विशे.) दरारयुक्त, फटी हुई व खण्डित। ची
- चीकट—(विशे.) ऐसी वस्तु जिसे हाथ से छूने पर हाथ चिपके, बहुत मैला।
- चीकन—(विशे.) चिकना, महीन या बारीक, अच्छा एवं सुन्दर कार्य।
- चीखब—(क्रिया) खाकर स्वाद का परीक्षण करना, वस्तु स्थिति से अवगत होना।
- चीटीपोटा—(अव्यय) घर के छोटे मोटे सभी उम्र के बच्चे।
- चीड़ा—(सं.पु.) तरल पदार्थ का ठोस रूप, दही का जमा अंश।
- चीथब—(क्रिया) शरीर की चमड़ी को अंगुली से खींचना, कपड़ा फाड़ना।
- चीन्ह—(क्रिया) चिन्ह या निशान, किसी प्रकार का दाग पहिचान।
- चीन्हब—(क्रिया) पहिचानना, परीक्षण करना, अवगत होना, जानना, समझना।
- चीभब—(क्रि.वि.) बिना रुचि या बिना भूख के खाना-खाना।
- चीमर—(विशे.) गीली लकड़ी जो तोड़ने पर टूटने के बजाय लटक जाय।
- चीरब—(सं.पु.) चीड़ना या फाड़ना, फाड़कर दो टुकड़े करना, चीरा लगाना।
- चीरा—(सं.पु.) तेल में डूबा हुआ कपड़ा, अत्यन्त मैला कपड़ा, चीरकर बनाया हुआ घाव, शरीर पर बनाई गई जगह।
- चीलर—(सं.पु.) गन्दगी पसीने से उत्पन्न होने वाले जूं. या जुंआ।
- चील्ह—(सं.स्त्री.) एक प्रकार का शिकारी पक्षी जो मृत पशु को खाते हैं। चु
- चुअना—(सं.पु.) छप्पर फाड़कर वर्षा का पानी जहाँ से टपकता हो।
- चुअब—(क्रिया) छप्पर से पानी गिरना, टपकना।
- चुआउब—(क्रिया) बूंद-बूंद टपकना, ऊपर से पानी टपकाना।
- चुक्का—(सं.पु.) समय या अवसर गंवाना, चूककर जाना।
- चुकब—(क्रि) काम खत्म हो जाना, किसी का मर जाना, वस्तु का नष्ट होना।
- चुकाउब—(क्रि.) खतम कराना, समाप्त करवाना, मार डालना।
- चुकाब—(अव्यय) बिल्कुल खत्म या समाप्त हो जाना।
- चुकरी—(सं.स्त्री.) मिट्टी का बना दवात के समतुल्य छोटा सा पात्र, चुकरी कस मुँह, बघेली मुहावरा।
- चुकड़िया—(सं.स्त्री.) मिट्टी का दवात की भाँति पात्र पुलिंग चुकड़ा।
- चुकिया—(सं.स्त्री.) मिट्टी का बना पात्र जो दवात के आकार का हों।
- चुक्खा—(सं.पु.) कलम के बड़े-बड़े बाल के लिए व्यंग्य बोधक शब्द।
- चुक्ख—(सं.पु.) कान के पास के लम्बे बाल, ओंठों की मुस्कान।
- चुकिगा—(क्रि.पु.) खतम हो गया, समाप्त हो गया, मर गया।
- चुचुआउब—(क्रि.) मारकर सिर से खून गिरा लेना, पानी का टपकाना।
- चुट्ट,पुट्ट—(अव्यय.) किसी प्रकार की हरकत न होना, छोटे-छोटे फुटकर कार्य, छोटे-छोटे सामान।
- चुचुआन—(विशे.) लहूलुहान, पानी से लथपथ।
- चुटू—(विशे.) थोड़ा सा, छोटा सा, अति न्यून मात्रा, एक तकिया कलाम।
- चुट्ट-चुट्ट—(विशे.) सूखी लकड़ी, चूड़ी को तोड़ने की आवाज।
- चुटपुट—(विशे.) तिक्तपन, तीखा स्वाद, कड़वापन,हरकत होना।
- चुटकवैदिया—(सं.पु.) हल्की-फुल्की जड़ी-बूटी की दवाई।
- चुँदिआउब—(क्रिया) किसी की शिखा पकड़ना, किसी को पकड़कर लाना, किसी को अपनी मुट्टी में करना।
- चुदई—(सं.स्त्री.) शीर्ष की चोटी या प्रमुख शिखा, सिर के बाल।
- चुनी—(सं.स्त्री.) दाल दलते समय निकलने वाले दाल के छोटे-छोटे कण।
- चुनूगून—(सं.पु.) चिड़ियों पर आश्रित छोटे-छोटे बच्चे।
- चुपकइया—(अव्यय) धीरे से लुके-छिपे, चोरी-चोरी गोपनीय ही।
- चुप्पे—(अव्यय) गुप्त रुप से, धीरे से, बिना किसी को बताए, मौन रहना।
- चुपाब—(क्रिया) चुप हो जाना, शांत एवं स्थिर होना, मुँह बंद कर लेना।
- चुपरब—(क्रिया) हाँ मे हाँ मिलाना, रोटी में घी का लेपन करना।
- चुप्पा—(विशे.) कम बोलनेवाला, जो किसी बात का उत्तर जल्दी न दे।
- चुपारे—(अव्यय) चुपचाप बिना शोरगुल किये, धीरे से, गोपनीय ढंग।
- चुपाई—(सं.स्त्री.) जागते हुये भी सोते जैसा बन जाना, मौन साध लेना।
- चुमा-चुम्म—(सं.पु.) न अधिक न कम की मात्रा, ठीक नाप के अनुरूप।
- चुरुआ—(सं.पु.) चुल्लू, दोनों गदलियों की कटोरीनुमा बनी आकृति।
- चुरबा—(सं.पु.) चूड़ा, नारियों द्वारा कलाई में पहना जाने वाला एक आभूषण, पकाया हुआ पदार्थ।
- चुरइल—(सं.स्त्री.) चुड़ैल एक प्रेत, प्रेत योनी की नारी, इसी प्रवृत्ति वाली नारी।
- चुरिहार—(सं.पु.) चूड़ी बेचने वाला, चूड़ी पहनाने वाला व्यक्ति।
- चुरिया—(सं.स्त्री.) चूड़ी, चुरिया केर आड़, बघेली मुहावरा।
- चुर—(सं.स्त्री.) शेर का गुफा, शेर का विश्राम स्थल, छोटा सा घर।
- चुरब—(क्रिया) आग मे पदार्थ का पक जाना, धूप के कारण फल का तुचकना।
- चुन्न पुन्न—(अव्यय) धीरे-धीरे छूने से ही खर्च हो जाना, फुटकर रुप में वस्तु।
- चुनचुनाव—(क्रि.विशे.) पानी में चूना बुझाने से होने वाली बलक की क्रिया, घाव में चुनचुनाहट का होना।
- चुन्नी—(सं.स्त्री.) चुनावदार साड़ी का पहनावा, नाभि के नीचे कमर में साड़ी का परतदार खोंसी हुई स्थिति।
- चुनब—(क्रिया) चुग लेना, चुनाव कर लेना, प्राण ले लेना।
- चुनिआउब—(क्रि.वि.) साड़ी या धोती को चुनावदार शैली में समेटना, किसी के चूना लगाना, किसी को ठग लेना, मूर्ख बना देना।
- चुनकी—(सं.स्त्री.) बाँस की बनी छोटे आकार की टोकनी।
- चुनिया—(सं.पु.) बिना कत्था का सिर्फ चूना लगा पान।
- चुनरी—(सं.पु.) चूनर, देवी-देवताओं को चढ़ने वाला रुमाल के समतुल्य रंगीन कपड़ा, विवाह के समय कन्या के सिर पर रखा जाने वाला वस्त्र।
- चुन्नू—(विशे.) थोड़ा सा, नाम मात्र के लिये, आकार में अति छोटा।
- चुनहरा—(सं.पु.) वह बड़ा घड़ा जिसमें थोक मात्रा में चूना रखा जाता है।
- चुनहाई—(सं.स्त्री.) चूना रखने वाला घड़ा, धातु का बना चूना वाला पात्र।
- चुन्ना—(सं.पु.) हुक वर्ण श्वेत कीड़े जो पेट से मल के साथ निकलते हैं।
- चुनमरदा—(सं.पु.) खाली चूना तम्बाकू, बिना सुपाड़ी की तम्बाकू।
- चुरउब—(क्रिया) कच्ची वस्तु को ताप में पकाना, भोजन पकाना।
- चुरबाउब—(क्रिया) पकवाना, बनवाना, पक्का करवाना।
- चुरचुराब—(विशे.) टूटती हुई चारपाई की प्रतिध्वनि चुड़पुड़ाहट।
- चुरकुट—(विशे.) टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाना, पूर्णतः नष्ट हो जाना, अरमान पूर्ण हो जाना।
- चुरबइया—(सं.पु.) भोजन पकाने वाला व्यक्ति।
- चुरुर-चुरुर—(अव्यय) विरल रुप से हल्की- फुल्की पकी फसल के लिये प्रतीक, देशी जूते पहनकर चलने से उत्पन्न ध्वनि, झूला या कोल्हू को गतिशील करने से होने वाली एक विशेष आवाज।
- चुरकी—(सं.स्त्री.) बाँस की बनी कटोरी के समतुल्य टोकनी।
- चुरमन—(सं.पु.) तरल पदार्थ घी या तेल।
- चुलुक—(सं.पु.) एक विशेष प्रकार की उत्सुकता, शौकनुमा, आतुरता।
- चुलबुलाब—(क्रि.वि.) हरकत होना, शरीर को धीरे-धीरे हिलाना-डुलाना।
- चुलचुलाब—(क्रिया) हिलने-डुलने की हरकत करना, जाहिर होना।
- चुलचुलान—(क्रि.वि.) पराकाष्ठा पर पहुँची हुई शौक, यौवन में उतरी हुई इच्छा।
- चुलभा—(सं.पु.) चूल्हा या मिट्टी के बने चूल्हे।
- चुल्हइया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का चूल्हा।
- चुहब—(क्रिया) चूसना, गन्ना चूसना- चूसने की क्रिया।
- चुहाउब—(क्रिया) गन्ने का रस चुसवाना।
- चुहुरुक-चुहुरुक—(अव्यय) कंधे में वजनदार कामर लेकर चलने से होने वाली आवाज, चारपाई को दबाकर हिलाने से उत्पन्न आवाज।
- चुहुकब—(क्रिया) खून पीना, किसी का शोषण करना, किसी को चूस खाना।
- चुहचुइया—(सं.स्त्री.) चुह-चुह की आवाज करने वाला पक्षी।
- चुहुकबाउब—(क्रिया) चुसवाना, शोषण कराना, पिलाना।
- चुहुकबइया—(सं.पु.) चूसने वाला, शोषण कर्ता, खून पीने वाला। चे
- चेकब—(क्रिया) किसी से कतराना, किसी से कटकर रहना या चलना।
- चेघलाब—(क्रिया) जानते हुये अन्जान बनना, जानकर किसी बात को जानना।
- चेचुरा—(सं.पु.) बाँह, हाथ का ऊपरी हिस्सा, कंधे के नीचे की स्थिति।
- चेंच—(सं.पु.) एक वनस्पति, एक पौधा विशेष का नाम।
- चेचर—(सं.पु.) मन्दबुद्धि वाला, चेचर प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- चेंचे—(सं.स्त्री.) कमजोरी जाहिर कर हँसी उड़ाना, चिड़िया के बोलने का शब्द।
- चेंटक—(सं.पु.) बहाना, कौतुक, जादू का खेल।
- चेचरा—(सं.पु.) मन्दबुद्धि वाला, जो औरतें की भाँति बोलता हो।
- चेड़ा—(सं.पु.) हृष्ट-पुष्ट एवं जवान लड़का, नौजवान या वयस्क व्यक्ति।
- चेपू—(सं.पु.) जबरिया चिपकने वाला, लिपटने के गुण वाला।
- चेरउरी—(क्रिया) दैन्यतापूर्ण विनती, दोनों हाथ जोड़कर निवेदन करना।
- चेलाने—(सं.पु.) शिष्यों की बस्ती या घर-गाँव, शिष्यों के घरों में।
- चेलाइन—(सं.स्त्री.) शिष्यायों, सेविका, सेवा करने वाली।
- चेलान—(सं.पु.) शिष्यवृत्ति का स्थान या चेलों का घर।
- चेहेड़िआउब—(क्रिया) किसी की बात को दुहरा-दुहराकर उसे बोर करना, कमजोरी उध्द्वत कर हंसी उड़ाना, समाज में किसी को लज्जित करना। चू
- चूरन—(सं.पु.) चूर्ण, महीन, पीसा हुआ।
- चूकब—(क्रिया) चूक जाना, पीछे रह जाना।
- चूसब—(क्रिया) चूसना, किसी का शोषण करना।
- चूँतिया—(विशे.) मूर्ख, बेवकूफ, मन्द अक्ल। चो े
- चोकरा—(सं.पु.) आटा पीसने से निकला अनाज का वाह्य आवरण।
- चोक्क-चोक्क—(अव्यय) पश्चाताप करते समय मुँह से निकली ध्वनि।
- चोकरब—(क्रिया) उदारतापूर्वक देना, वापसी देना।
- चोखलाउब—(क्रिया) दोनों ओंठ जोड़कर नुकीली आकृति बना लेना, किसी वस्तु को छीलकर नुकीली करना।
- चोंख—(विशे.) पैना, धारदार, नुकीला, उत्कृष्ट प्रजाति या गोत्र।
- चोंगी—(सं.स्त्री.) चिलम, तेल डालने वाला संकीर्ण क्षिद्र का पात्र, कुप्पी।
- चोंगा—(सं.पु.) लाउडस्पीकर, धतूरा बाद्य, चोंगी या चिलम के लिये व्यंग्य।
- चोरदन्त—(सं.पु.) वह दाँत जो बत्तीस दाँत के अतिरिक्त निकलता हों।
- चोचाल—(सं.पु.) प्रिया या स्नेहिल, लाड़- प्यार, वात्सल्यमय सम्वाद।
- चोला—(सं.पु.) शरीर, सम्पूर्ण जीवन, शारीरिक ढाँचा।
- चोचलाब—(क्रिया) प्यार-दुलार युक्तवार्ता, अपनत्व पूर्ण, वात्सल्यमय क्रिया- कलाप, तोतलवाणी में ठुनकना।
- चोटलग—(सं.पु.) जरुरत से अधिक चतुर चालाक बनने वाला, एकलौता।
- चोट्टा—(सं.पु.) चोर, कामचोर, जी चुराने वाला, कार्य मे कमजोरी करने वाला।
- चोटाहिल—(विशे.) घायल, चोंट खाया हुआ।
- चोटइया—(सं.स्त्री.) चोटी, सिर का शिखा, छोटे- छोटे बच्चों के सिर केबाल।
- चोटिला—(सं.पु.) बाल समेटने वाला नारियों के जूड़े का बन्धन विशेष, बाल गुंथने वाली चोटी।
- चोट्टी—(सं.स्त्री.) चोर नारी के लिये गाली, चोरी करने वाली।
- चोंता—(विशे.) गोबर की वह मात्रा जो पाँचों अँगुली से एकबार में उठाई जा सके।
- चोंथब—(क्रिया) किसी के शरीर की खाल पकड़कर उगुलियों से अपनी ओर खींचना, चुटकी काटना, शरीर में नाखून गड़ाना।
- चोथवाउब—(क्रिया) चुटकी कटवाना, खाल खिंचवाना।
- चोंथबइया—(सं.पु.) चुटकी काटने वाला, खाल खींचने वाला।
- चोदड़-उर—(सं.पु.) छोटे-छोटे बच्चों का समूह, बच्चों की अधिक संख्या।
- चोदरबंगी—(विशे.) मूर्खता पूर्ण कार्य, बचपना युक्त कार्य, जिस कार्य का कोई अर्थ न हो।
- चोदरा—(सं.पु.) एक गाली विशेष, जिसका पानी उतर चुका हो।
- चोरतलिया—(सं.स्त्री.) ऐसी ताली जो पेचीले ढंग से खुलती बंद होती हो।
- चोरक्कब—(क्रिया) भैंस की आवाज विशेष, उदारवादी दृष्टिकोण।
- चोरीमा—(अव्यय) गोपनीय ढंग से बिना मूल्य की वस्तु, चोरी से प्राप्त।
- चोरउधहा—(अव्यय) लुके स्थित का कार्य, गोपनीय ढंग से किया गया कार्य।
- चोरकट—(सं.पु.) चोर बदमास, धोखेबाज, बेईमान, उचक्का।
- चोला—(सं.पु.) शरीर का ढाँचा, श्वासयुक्त शरीर। छ
- छइहा—(सं.पु.) जो हर तरह से परेशान होकर हार मान लिया हो।
- छइरब—(क्रिया) मन मुताबिक घूमना- बागना, कुसमय घूमना।
- छई—(सं.स्त्री..) कष्टकारी या हानिकारक सिर दर्द लेना, अवांछित बोझ।
- छँउकब—(क्रिया) साग-सब्जी बनाते समय पात्र में रखे गर्म तेल में मिर्च मशाला डालकर भुनने की क्रिया करना।
- छँउकबाउब—(विशे.) तेल में मशाला भुनवाना, तलवाने में सहयोग करना।
- छँउकबइया—(सं.पु.) मशाला बघारने वाला व्यक्ति।
- छउनी—(सं.पु.) बकरी का बच्चा, दूधपिया बच्चा पुलिंग ‘छउना’, छौना।
- छकलब—(क्रिया) मनमाने ढंग से घूमना, मन पसंद कार्य करना।
- छकउड़ी—(सं.पु.) किसी व्यक्ति विशेष का नाम।
- छकड़ा—(सं.पु.) छः पहिये वाली लकड़ी की गाड़ी, बच्चों का खिलौना।
- छकतीरब—(क्रिया) कार्य को करने के पश्चात् उपलब्धि पूर्ण करना।
- छकउब—(क्रिया) धोखाधड़ी युक्त क्रिया, भ्रम में डाल देना, किसी को मूर्ख बना देना।
- छकलिया—(सं.स्त्री.) पुरुषों द्वारा ऊपर धारण किया जाने वाला वस्त्र जिसमें बटन के स्थान पर कपड़े की 6 रस्सी लगी रहती है।
- छकाउब—(क्रिया) किसी को मूर्ख बनाना, धोखा देना।
- छकब—(क्रिया) भ्रमित हो जाना, खाकर हिचजाना, मूर्ख बन जाना, धोखा खा जाना।
- छछुन्दर—(सं.स्त्री.) चूहे के आकार का एक जीवधारी जिसका मुँह लम्बा व पतला होता है, ‘छछुन्दर कस मुहु’ बघेली मुहावरा।
- छछलब—(क्रिया) जमीन पर लताओं का फैलना, बच्चों द्वारा किसी माँग को लेकर माँ से हठधर्मिता करने की क्रिया।
- छछोरा—(सं.स्त्री.) बदचलन बालिका, नटखट युवती, इधर-उधर घूमते रहने वाली।
- छछकालन—(सं.पु.) कुकृत्य एवं घटना को स्मरण करके हाँनि पहुँचाने की स्थिति में उसके नाम से रोते रहना।
- छज्जा—(सं.पु.) द्वार के ऊपर की पटिया जो बाहर की ओर निकली रहती है।
- छटिलाउब—(क्रिया) फिसलाना, आगे-पीछे करना।
- छटिलब—(क्रिया) फिसलना, जमीन पर पाँव फिसलने की क्रिया।
- छटाँक—(सं.स्त्री.) एक तौल के पैमाने की मात्रा का नाम, जिसका वजन 100 ग्राम होता है, 100 ग्राम का पुराना बाट।
- छटन—(सं.पु.) हाथ से समय संयोग व सुअवसर का चूकते रहना।
- छटपटाब—(क्रिया) तड़पना, हाथ-पैर पटकना, चिन्तित होना।
- छटकब—(क्रिया) बंधन से मुक्त होना, हाथ से छूट जाना, फिसलकर दूर होना, वक्त को छोड़ देना, जेल से छूटना, छटपटाना।
- छटकाउब—(क्रिया) घर मे बँधे पशुओं को बन्धन मुक्त करना, स्वतंत्र छोड़ना, घर से बाहर निकालना।
- छठमासा—(सु.पु.) जो माँं के गर्भ से छठवें महीने में ही जन्म ले लिया हो।
- छठी—(सं.स्त्री.) बालक के जन्म के छठवें दिन होने वाला एक संस्कार।
- छड़ाउब—(क्रिया) छुड़ाना, दो व्यक्तियों या वस्तुओं का अलग-अलग करना, बंदी को स्वतंत्र कराना, बंद मुट्ठी खोल देना।
- छड़ा—(सं.पु.) नारियों द्वारा पाँव में पहने जाने वाला चाँदी का आभूषण।
- छड़बाउब—(क्रिया) किसी बंदी को छुड़वाना, लड़ते हुये को अलग करना।
- छतीसा—(सं.पु.) चतुर, चालाक एवं तिकड़मबाज, अति बदमास, नाई।
- छतोदरा—(सं.पु.) छाती फट जाये भाव पर केन्द्रित एक गाली।
- छदर-विदिर—(अव्यय) यत्र-तत्र बिखरना, दूर-दूर हो जाना, तितर-बितर की क्रिया, इधर-उधर फैला हुआ।
- छदॉम—(सं.पु.) तावे की धातु का पैसा, छिद्रदार एक पैसे का सिक्का।
- छनहर—(विशे.) सुगठित एवं सुन्दर शरीर, मध्यम कद।
- छनकब—(क्रि.वि.) आग की ताप में पानी भरा बर्तन देर तक गर्म करने से पानी के कम हो जाने की क्रिया।
- छनन—(सं.पु.) छन-छन की ध्वनि करना।
- छनिहर—(सं.पु.) ऐसा कच्चा घर जिसकी छप्पर मे खपड़े छाये हुये हों।
- छन्गा—(सं.स्त्री.) छः अंगुलियाँ जिसके एक हाथ में हो।
- छन्नी—(सं.स्त्री.) पानी या अन्य पदार्थ छानने वाला बारीक क्षिद्रनुमा पात्र, बाँस की छोटी सी टोकनी।
- छपकब—(क्रिया) चिपकना, चिपककर छिपना, दब जाना।
- छपछप—(विशे.) अनाज भरकर पात्र के मुखड़ा को समतल की गई मात्रा।
- छपटब—(क्रिया) चिपकना, जमीन से चिपककर पड़ना, किसी को देखकर छिप जाना।
- छपबिइया—(सं.पु.) छपवाने वाला, प्रकाशित कराने वाला, प्लास्टर करवाने वाला।
- छपबाउब—(क्रि.) छपवाना, दीवाल पर प्लास्टर कराना।
- छपइया—(सं.पु.) छापने वाला, प्लास्टर करने वाला, छपाई का कार्य करने वाला।
- छपास—(सं.पु.) छपने की लालशा, प्रकाशित होने की पिपाशा।
- छपरा—(सं.पु.) कच्चे घर के ऊपर की लकड़ी का भाग या छप्पर।
- छपकब—(क्रि.) किसी की ओट में छिपना, शरीर से लिपट जाना, कागज पर गोंद लगाकर चस्पा होना।
- छबाउब—(क्रि.) छप्पर सुधरवाने का कार्य कराना, छप्पर में खपड़े चढ़वाना।
- छबइया—(सं.पु.) छप्पर छाने वाला, छाया बनाने वाला व्यक्ति।
- छबुँदिया—(सं.स्त्री.) छःबिन्दी का भौरे के रंग का एक जहरीला कीड़ा।
- छबाई—(क्रि.) घर की छप्पर छाने का चल रहा कार्य, छाने की मजदूरी।
- छमछमऊहन—(क्रि.वि.) आतुरता के साथ, नृत्य सा करते हुए, बिना अवरोध के उछलते हुए, आने की स्थिति।
- छमासी—(ब.मु.) छमासी घेरना, (बघेली मुहावरा), देर तक सोना।
- छरहर—(विशे.) फुर्तीला किन्तु एकहरा, सुगठित वदन वाला व्यक्ति, सुन्दर एवं सुडौल।
- छरिहाब—(क्रि.वि.) जमीन पर गिरना, टुकड़े- टुकड़े हो जाना, पदार्थ का कण में बिखरना।
- छरछर—(सं.पु) बुरा लगना, कष्टकारी बातें, अभद्र वार्ता,मनोदशा के विपरीत बातें, अप्रिय व्यवहार की अनुभूति।
- छरकब—(सं.पु.) किसी घटना या कारण अथवा भय विशेष के कारण किसी से कटते-छंटते व बचकर सतर्क रहने की क्रिया।
- छरदू—(सं.पु.) ठोस वस्तु का चूर्ण।
- छरछन्द्र—(सं.पु.) भिन्न-भिन्न समय में भिन्न- भिन्न प्रकार की बातें बताना।
- छरबाउब—(क्रि.) चावल का क्षरण करवाना।
- छरब—(क्रि.) काँड़ी एवं मूसल के सहयोग से चावल का क्षरण करना।
- छरहा—(सं.पु.) एक पद के लिए सम्बोधन, किसी गीत का एक बन्द।
- छरछराब—(क्रि.) शरीर के कटे हुए भाग में टिन्चर लगाने या घाव में नमक छिड़कने से होने वाली वेदनात्मक अनुभूति।
- छरबाई—(सं.पु.) छरण करने के बदले मेहनताना, मजदूरी।
- छरबइया—(सं.पु.) चावल का क्षरण करके साफ बनाने वाला व्यक्ति।
- छल्ला—(सं.पु.) उँगलियों में पहने जाने वाली मुंदरी या मुद्रिका।
- छल्लिआउब—(क्रि.) अनाज से भरे बोरों को क्रमशः एक के ऊपर एक को रखना।
- छल्ली—(सं.स्त्री.) बोरों के ऊपर एक दूसरे पर ऊँची रखी ढेरी।
- छल्लिवइया—(सं.पु.) छल्ली लगाने वाले मजदूर विशेष।
- छल्लिबाइ छल्लिबाई—(सं.पु.) छल्ली लगाने की ली गई मजदूरी या पारिश्रमिक।
- छाउब—(क्रि.) छाया के निमित्त, कच्चे घर की छप्पर पर खपरा आदि छाने की क्रिया, छा जाना या छाया करना, छाया बनाना।
- छाटबं—(क्रि.) किसी वस्तु की छटनी करना, किसी वस्तु का अलग करना।
- छाटन—(सं.पु.) अनुपयोगी या छटा हुआ अंश, अनाज से निकला अपुष्ट अनाज या कूड़ा कर्कट।
- छाँड़ब—(क्रि.) छोड़ना या छोड़ देना, किसी को बिरादरी से अलग कर देना, चर्चा बन्दकर देना, बंदी को मुक्त करना।
- छाड़न-छूड़न—(अव्यय) प्रयोग के पश्चात् बचा हुआ अंश, खाने के बाद अवशेष, छोटी हुई अनुपयोगी मात्रा।
- छाती के पीपर—(ब.मु.) एक बघेली मुहावरा, व्यंग्य बोधक, वक्षस्थल के बासुदेव।
- छाता—(सं.पु.) छत्ता, धूप एवं वर्षा से बचाने वाला पात्र।
- छात—(सं.पु.) बर्र या मधु के कीड़ों द्वारा बनाया जाने वाला छत्ता।
- छाती छोलन—(ब.मु.) परेशान करने वाले व्यक्ति पर केन्द्रित बघेली मुहावरा।
- छापब—(क्रि.) पतली मिट्टी से दीवाल या फर्स की चिकनी छपाई या लेपन की क्रिया, प्रिन्टिग करना, कागज पर चित्र बनाना।
- छापा—(सं.पु.) चित्र,चौकोर, रेखा, छपाई किया हुआ, चित्रकारी।
- छाली—(सं.स्त्री.) किसी वृक्ष के वाह्य आवरण का छिलका, छाल।
- छाहिर—(सं.पु.) छाया, वृक्ष की छाया का प्रतिबिम्ब का जमीन पर पड़ना।
- छाये—(क्रि.) छवाई कर दिये, छप्पर छा दिये। छि
- छिउलहनी—(सं.स्त्री.) पलास के वृक्षों वाले वन या जगह विशेष।
- छिकँरबाउब—(क्रि.) नाक से प्ररस या पानी निकलवाना।
- छिकइया—(सं.पु.) छीकने वाला व्यक्ति विशेष।
- छिकरबइया—(सं.पु.) नाक से प्ररस निकालकर नाक साफ करने वाला व्यक्ति।
- छिउला—(सं.पु.) पलास नामक वृक्ष जो वन-बगार में उगता है।
- छिकरब—(क्रि.) नाक से प्ररस निकालना, प्ररस को नाक से अलग करना।
- छिछिआउब—(क्रि.) किसी को अपमानित करके अस्तित्व विहीन बनाना, अनुपयोगी मानकर दुतकारते रहना, हँसी उड़ाना।
- छिटबा—(सं.पु.) तीज-त्यौहार के अवसर पर दिया जाने वाला बाँस का पात्र।
- छिटकब—(क्रि.) फैलना प्रकाश या किसी चर्चा का फैलना विस्तार करना।
- छिटिकबइया—(क्रि.) चारों ओर फैलाना, प्रचारित व प्रसारित कर देना।
- छिटकाउब—(क्रि.) प्रचारित-प्रसारित करने वाला व्यक्ति।
- छिटुआ—(क्रि.वि.) छिटाई करके बोया गया बीज वाला खेत।
- छिटकी—(विशे.) छोटे वाली, जिस धोती मे छीट हो।
- छिटिक-कंरउदा—(ब.मु.) स्वच्छन्द विचरण, ब. मु.।
- छितरिया—(सं.स्त्री.) टूटी हुई टोंकनी, टूटी टोकनी का हिस्सा।
- छितराउब—(क्रि.) जमीन पर फैलाना, फेंककर फैलाना, तितिर-बितिर करना।
- छितराब—(क्रि.) जमीन पर गिरने से टुकड़े-टुकडे़ रूप में विभक्त होने की क्रिया, फैल जाना।
- छितरान—(विशे.) अव्यवस्थित रूप से चारों ओर फैला या बिखरा हुआ।
- छितरबइया—(सं.पु.) वस्तु को तितिर-बितिर करने वाला व्यक्ति।
- छिदिक्का—(सं.पु.) पानी का कीचड़ से उछलकर पड़ने वाली बूँद।
- छिनमाँ-- (क्रि.) क्षण भर में, थोड़,े समय में, देखते-देखते।
- छिनार—(सं.स्त्री.) चरित्रहीन नारी, कई पति साजने वाली।
- छिरब—(क्रि.) वस्त्र का फट जाना, किसी नारी का भग जाना।
- छिनबुद्वी—(सं.पु.) छड़भर में बदल जाने वाला व्यक्ति।
- छिन्गी—(सं.स्त्री.) हाथों की सबसे छोटी वाली उँगुली।
- छिकिल्ली—(सं.स्त्री.) गिरदान की आकृति का छप्पर वाला एक जीव-जन्तु।
- छिबुलकी—(सं.स्त्री.) बदचलन नारी, कोसी जाने वाली एक अश्लील गाली।
- छिमाबा—(क्रि.) क्षमा करना, पानी की बूँद बिरल होना।
- छिरहा—(सं.पु.) जिसके नाक में गुस्सा हो, क्षणभर में नाराज होने वाला।
- छिलनी—(सं.स्त्री.) फल या सब्जी छीलने का औजार।
- छिलइया—(सं.पु.) छीलने का कार्य करने वाला व्यक्ति विशेष। छी
- छीकब—(क्रि.) छींकना, किसी कार्य का करने के लिए असगुन होना।
- छीछन—(सं.पु.) नाक से निकलने वाला चिपचिपा तरल प्ररस।
- छीछिल—(विशे.) उथल या उथला, ऊपर का मुहाड़ा फैली हुई अवस्था।
- छीट—(सं.स्त्री.) किसी साड़ी या कपड़े में बने हुए छापा या चित्र।
- छीटब—(क्रि.) बिखराना, इधर-उधर फैलाना, छिटाई करना।
- छीद—(सं.स्त्री.) एक प्रकार की वनस्पति जिसकी पत्तियों से झाडू बनता है, पशुओं को स्वच्छन्द दौड़ने की सूचना।
- छीदब—(क्रि.) व्यक्ति को आगे जाने से रोकना, मवेशियों की रखवाली करना।
- छीना—(सं.स्त्री.) घड़े का टुकड़ा, फूटा हुआ घड़ा।
- छीलन—(सं.स्त्री.) सब्जी का निकला हुआ छिलका। छु
- छुअबाउब—(क्रि.) स्वयं स्पर्श करवाना।
- छुअब—(क्रि.) किसी को स्पर्श करना, छूने की क्रिया।
- छुआउब—(क्रि.) स्पर्श करना, छुआने की क्रिया।
- छुअउहल—(सं.पु.) गाँव का एक खेल जिसमें एक खिलाड़ी छिपता या भागता है तथा प्रतिद्वन्दी उसे छूने का प्रयास करता है।
- छुइला—(सं.पु.) पलास, पलास के वृक्ष।
- छुइलहनी—(सं.स्त्री.) जहाँ पलास के पौधों की अधिकता हो वह प्रक्षेत्र।
- छुछुइ छुछुई—(सं.स्त्री.) हबूब फैलाना एक प्रकार का पटाखा, छुछुई छोड़ब ब.मु.।
- छुछुआब—(क्रि.) बिना प्रयोजन के इसके उसके- घर आना-जाना।
- छुछन्द—(विशे.) हृदय से साफ-सुथरा पेट, पीठ न मारने वाला।
- छुट्ट—(विशे.) बिना लगाम, अंकुश विहीन संकोच रहित, खुलेआम।
- छुट्टा—(विशे.) मुक्त, खुल्ला, जो न बांधा हो, जो खुले रूप में रहता है।
- छुटबिटार—(सं.पु.) अशुद्वि फैलाना, गन्दगी फैलाना, अछूत को छूना, छुआछूत हो जाना।
- छुटकब—(क्रि.) बंधनमुक्त होना, छूट आना, फिसल जाना।
- छुटकाऊब—(क्रि.) बंधी गाँठ खोलना, किसी बंदी व्यक्ति को मुक्त कराना, खूँटे से बँधे पशु को छोड़ना।
- छुतिहर—(सं.स्त्री.) चरित्रहीन एवं कर्कश तथा झगड़ने वाली नारी।
- छुतिहरा—(सं. स्त्री.) न छूने योग्य, घड़ा, अशुद्वियुक्त, पुराना कड़ा।
- छुतिहाइ छुतिहाई—(सं.स्त्री.) छूत चढ़ना, अछूत कार्य का दोष लगाना।
- छुन्ना—(सं.पु.) कच्चे आम का छिलका, छुन्ना, चाछना।
- छुन्नी—(सं.स्त्री.) छोटे शिशुओं का पुलिंग, मूत्रांग।
- छुनछुनाब—(क्रि.) छुन-छुन की आवाज होना, घुँधुरु की ध्वनि।
- छुनन-मुनुन—(सं.पु.) बच्चे के पैर के आभूषण का चलने से उत्पन्न शब्द है।
- छुनुन-मुनुन—(सं.पु.) कमर में धारित घुँघरू या पाँव की पायल की ध्वनि।
- छुपकब—(क्रि.) किसी व्यक्ति से किसी व्यक्ति का चिपकना, स्वयं आलिंगन करना, बच्चों का माँ की गोद में छिपकना।
- छुपुकबइया—(सं.पु.) सीने से लगाने वाला, छाती से चिपका लेने वाला व्यक्ति।
- छुपकाऊब—(क्रि.) सीने से लगाना, छाती से चिपकाना, शरीर से सटा लेना।
- छुरूरब—(क्रि.) हाथ द्वारा अनाज की बालें निकालना।
- छुरूर-छुरूर—(अव्यय) उँचाई में रखे हुए बोरों से चावल का जमीन पर गिरना व गिरते हुए समय में एक ध्वनि विशेष का होना।
- छुरछुराब—(क्रि.) उँचाई से जमीन पर अनाज गिरने की ध्वनि।
- छुर—(सं.स्त्री.) बिल्ली, बिल्ली को आगे बढ़ने से रोकने के लिए संकेत।
- छुल-छुल—(सं.पु.) छोटा सा प्यारा सा बच्चा जिनको लोग चूमते-चाटते हैं।
- छुल्ल-छुल्ल—(अव्यय) रूक-रूक कर जल का निकलना, पेशाब करते समय निकलने वाली ध्वनि।
- छुलछुलाउब—(क्रि.) पेशाब करने की क्रिया, बघेली मुहावरा।
- छुही—(सं.स्त्री.) सफेद रंग की मिट्टी जिससे दीवाल की पुताई की जाती है।
- छुहिया—(सं.स्त्री.) ऐसी घटिया जिसमें सफेद पत्थर अधिक-अधिक मात्रा में हो।
- छुहिआउब—(क्रि.) सफेद मिट्टी से पोताई करना, दीवाल पर छूही चढ़ाना। छू
- छूछ—(विशे.) खाली, सूखा, सूनी, कोख, बिना बछडे़ की गाय।
- छूछूमाई—(सं.स्त्री.) हास्य, विनोद की दृष्टि से किया गया कार्य, सहजतः कार्य।
- छूछै—(विशे.) यों ही, वैसे ही, बिना मतलब के ही।
- छूँछी—(सं.स्त्री.) जिसके पास कुछ न हो, धन वैभव रहित।
- छूँछ छरीदा—(ब.मु.) संतान रहित, एकदम स्वतंत्र, बिल्कुल अकेले, खाली हाथ। छे
- छेऊ—(सं.पु.) चेतावनी देना, किसी को गलत कार्य से रोकना, समझाइस।
- छेउका—(सं.पु.) छिद्र, अन्तराल, प्रक्रिया, बारी के बीच का क्षिद्र।
- छेक्क—(सं.पु.) छींकते समय निकलने वाली नाक की ध्वनि।
- छेकब—(क्रि.) किसी की राह रोकना, न जाने देना, छुपकर किसी को आगे बढ़ने से रोकना।
- छेकबाउब—(क्रि.) रास्ता बंद करवाना, चलते व्यक्ति को रास्ते में रोकवाना।
- छेका—(सं.पु.) दीवाल या खेत की सीमा पर लगी बारी का बीच से टूटा होना।
- छेदा—(सं.पु.) क्षिद्र, पोल, छेदा होब, ब.मु.।
- छेदब—(क्रि.) क्षिद्र करना, नुकीली चीज आर-पार करना, सुई चुभाना।
- छेदिया—(सं.स्त्री.) खेत की बारी में आदमी के निकलने को बना क्षिद्र।
- छेदबइया—(सं.पु.) क्षिद्र करने वाला, कर्णवेधन कर्ता, सुई चुभाने वाला।
- छेदबाउब—(क्रि.) सुई चुभवाना, क्षिद्र करवाना, भेदन करवाना।
- छेदवाइ छेदवाई—(सं.पु.) कर्ण भेदन करने के बदले दिया गया पारितोषिक।
- छेनी—(सं.स्त्री.) लोहे को काटने वाला औजार।
- छेमन—(सं.पु.) कहीं कुछ कहना, कभी कुछ कहना, अस्थिर मानसिकता।
- छेरिया—(सं.स्त्री.) बकरी, अज।
- छेरीहा—(सं.पु.) बकरी चराने वाले लोग, बकरी रखने वाले व्यक्ति।
- छेरिअऊँ-- (विशे.) बकरी की तरह हरकत, बकरी की गतिविधि की भाँति।
- छेहर—(सं.पु.) शिशु, महिलाएँ, बच्चियों का समूह। छो
- छोकला—(सं.पु.) किसी वस्तु का वाह्य आवरण या छिलका।
- छोकड़ा—(सं.पु.) युवक, लड़का, नृत्य करने वाला व्यक्ति, खिलौना।
- छोकता—(सं.पु.) छाँछ, निस्सार अंश, स्याही, शोषित करने वाला कागज।
- छोकताउब—(क्रि.) कागज से अधिक स्याही को शोषित कराना।
- छोछट—(क्रि.) वात्सल्य व स्नेहयुक्त शिशु के साथ माँ का व्यवहार।
- छोछटही—(सं.स्त्री.) जो वात्सल्य दिखावा की दृष्टि से स्नेह करती हो।
- छोटनरेबा—(सं.पु.) छोटे उम्र का शिशु जिसमें बचपना हो, बच्चों जैसी गतिविधियों वाला।
- छोटकीबा—(सं.स्त्री.) छोटकानी, छोटी औरत, छोटी लड़की को सम्बोधन।
- छोटकबा—(सं.पु.) छोटा छोटबा, छोटकइला, छोटबादा, छोटकाऊ, छोटकू आदि।
- छोड़ब—(क्रि.) छोड़ना, निश्चित स्थान में पहुँचाना, त्याग देना।
- छोडबाउब—(क्रि.) पहुँचवाना, त्याग करवाना, प्रेरित करके छोड़वाना।
- छोड़बइया—( (सं.पु.) त्यागने वाला, पहुँचाने वाला।
- छोडान—(विशे.) छूटी हुई, जो दूध पिलाना बन्द कर दी हो, बिना दूध देती, अलगता गाय भैंस।
- छोपा—(सं.पु.) पानी भरे खेत के खुले भाग में धान की बोनी।
- छोपब—( (क्रि.) किसी वस्तु को किसी वस्तु से ढकना।
- छोरबाउब—(क्रि.) बंधी गाँठ खुलवाना, बंधे व्यक्ति को स्वतंत्र करवाना।
- छोरब—(क्रि.) मुक्त करना, गाँठ खोलना, किसी बँधी वस्तु को खोलना।
- छोरबइया—(सं.पु.) गाँठ को खोलने वाला व्यक्ति।
- छोरलगाउब—(ब.मु.) निष्कर्ष निकालना, अंतिम छोर तक पहुँचना।
- छोर—(सं.पु.) किसी वस्तु का किनारा अंत का भाग।
- छोलरब—(क्रि.) चोट से चमड़ी छिल जाना, घास की छिलाई हो जाना।
- छोलब—(क्रि.) छोलना, घास छीलना, घास निकालकर चिकना करना।
- छोलइया—(सं.पु.) छीलने वाली घास की छिलाई करने वाला।
- छोलबाउब—(क्रि.) छिलवाना, घास छिलवाने में योगदान करना।
- छोहलग—(विशे.) आकर्षक, सौन्दर्य, सुन्दर एवं सुगंधित शरीर वाला व्यक्ति।
- छोहगइला—(सं.पु.) काठ का पुतला जो विवाह के समय वर के हाथ में रहता है।
- छोहराइली—(सं.स्त्री.) काठ की पुतली जो विवाह के समय कन्या के हाथ में रहती हो।
- छोडकीबा—(सं.स्त्री.) छोटकानी, छोटी औरत, छोटी लड़की को सम्बोधन।
- छोहारा—(सं.पु.) छुहाड़ा, पौष्टिक सूखा फल।
- छोहाब—(क्रि.) पश्चाताप के साथ कोई वस्तु किसी को देना।
- छोहातू—(विशे.) अकस्मात्, विरल दृष्टि से, अर्ध अवलोकन, आंशिक रूप से।
- छोहदियाब—(क्रि.) बढ़ते मन का रूक जाना, पश्चाताप करते हुए कार्य करना, डरते-डरते कार्य करना। ज
- जइसन—(अव्य.) जैसा, जो, जिस प्रकार, जिस तरह आदि।
- जइसनक जइसनके—(अव्य.) जिस प्रकार से, जिस विधि से, जिस तरीके से।
- जइलबार—(विशे.) अधिक, पर्याप्त मात्रा, आकार में बहुत बड़ा, भरपूर।
- जइकल—(विशे.) चकित होकर किसी वस्तु को देखे और देखता ही रहे।
- जइहा जइहौ—(क्रि.वि.) जाऊँगा, जाऊँगी।
- जइसेने—(अव्य.) जैसे ही, जैसा, पूर्व की भाँति, आदि अर्थ देने वाला शब्द।
- जइहेय—(क्रि.भ.वि.) जाओगे, जायेंगे, क्या जाओगे।
- जइह जइहैं—(क्रि.) जायेंगे, जाना है, आदर सूचक शब्द या कथन।
- जई—(क्रि.) जाइये, जाओ, जायें।
- जइल क जइल के—(विशे.) पर्याप्त मात्रा में, अधिकता बोधक शब्द।
- जउआल—(सं.पु.) आपत्ति एवं अड़चन युक्त कार्य, तबाह करने वाला वातावरण एवं परिस्थिति।
- जउहर—(सं.पु.) अनहोनी कार्य, लड़ाई-झगड़ा, आश्चर्य चकित कर देने वाला गाली- गलौज, वाद-विवाद।
- जउन—(अव्य.) जो देखने लायक हो, सुन्दर।
- जउने—(अव्य.) जिसे, जिससे, जिसको।
- जउॅकबइया—(सं.पु.) कार्य करने के लिए हिम्मत करने वाला, देखताक कर मन बनाने वाला।
- जऊॅ—(विशे.) अच्छी, सुन्दर,देखने योग्य,जो कि, जो कार्य, अन्य।
- जऊकब—(क्रि.) किसी कार्य को करने के पूर्व अनुमान लगाना, विचार करना, देखकर मन बनाना, करने के लिए साहस जुटाना।
- जक्क-जिक्क—(अव्यय) अस्वाभाविक एवं हास्यास्पद, चितमन, अचेत अवस्था में पागलों की भाँति, इधर-उधर देखने की क्रिया।
- जकब—(क्रि.) दबना, भय लगने की क्रिया, संकोच के कारण भयभीत होना।
- जकीरा—(सं.पु.) राजा-रजवाड़ों का घर- राजी हवेली।
- जकड़ब—(सं.पु.) विक्षिप्त मानसिकता का व्यक्ति, सहमी-सहमी प्रवृत्ति का विवेक शून्य व्यक्ति।
- जकला—(क्रि.) किसी को रस्सी में बॉधना, किसी को मारना-पीटना, शरीर में या किसी अंग में ऐंठन या शिथिलता।
- जक्किआब—(क्रि.) जक्का मार जाना, आश्चर्य चकित होना।
- जक्का—( (ब.मु.) कुछ न समझना, विवेकशून्य स्थिति, जहाँ का तहाँ, ज्यों का त्यों स्थिति में खडे़ रह जाना।
- जग्ग—( (सं.पु.) यज्ञ, अनुष्ठान आदि कार्य।
- जगबाउब—(क्रि.) सोते हुए को जगवाना, निन्द्रा भंग करवाना।
- जग्गपुरूष—(सं.पु.) यज्ञ के समय काष्ठ का बनाया जाने वाला प्रतीक पुरुष।
- जगहर—(क्रि.वि.) जागरण, अनिद्रा, जागते रहने की स्थिति।
- जग्गशाला—(सं.पु.) यज्ञ के लिए बनी पर्णकुटी, यज्ञशाला।
- जगबइया—(सं.पु.) जागते रहने वाला जागरण कर्ता, किसी को जगाने वाला आदमी, जन जागरण में संलग्न व्यक्ति।
- जजकब—(क्रि.) भय या स्वप्न के कारण बिस्तर से उछलना या कूदना, भयभीत होकर किसी को दबाना या काटना-छांटना।
- जजकाउब—(क्रि.) डराकर उछलवा देना, किसी को डराते रहना, भयभीत करना।
- जधिया—(सं.वि.) चड्डी, पज्जी, जाँघिया।
- जघेला—(सं.पु.) जाँघ का ऊपरी हिस्सा।
- जजकबइया—(सं.पु.) भयभीत करने वाला व्यक्ति, घबड़ाहट व डर पैदा कर देने वाला।
- जजरब—(क्रि.) निशाना लगाकर किसी को हाथ से जोर से मारना।
- जजमान—(सं.पु.) चेला, शिष्य समुदाय, शिष्यों का संगठन।
- जटबइया—(सं.पु.) ठग, धोखा देकर ठग लेने वाला व्यक्ति।
- जटब—(क्रि.) प्रलोभन देकर किसी को फुसलाना, धोखा देकर काम साधना।
- जटर-मटर—(अव्यय) किसी निश्चित स्थान से किसी वस्तु को इधर-उधर हटा देना, अनाप-सनाप या कृत्रिम प्रतिउत्तर, हेरा-फेरी।
- जटा-जूट—(सं.पु.) लम्बे-लम्बे-केश एवं डाढी के लिए प्रतीक।
- जटा—(सं.पु.) बडे़-बडे़ बाल, नारियल का छिलके से सलग्न रेशे।
- जट्ठा—(सं.पु.) अधजला हुआ व्यक्ति या वस्तु।
- जड्ड—(विशे.) अति कठोर वस्तु, कठोर प्रवृत्ति वाला व्यक्ति।
- जड़बोग—(विशे.) जो बाँस की तरह पूर्णतः जड़ हो, मोटी बुद्वि या जड़ प्रवृत्ति का।
- जड़कार—(सं.पु.) ठण्ड का महीना, शीत ऋतु या जाडे़ का मौसम।
- जड़मुठ्ठ—(विशे.) ऐसा व्यक्ति जो काष्ठ की तरह जड़ हो, पूर्ण-रूपेण मूर्ख।
- जड़ाबर—(सं.पु.) रबी एवं खरीफ की ऋतुओं में किसान द्वारा हलवाहे या चरवाहे को दिया जाने वाला उपहार।
- जड़ाब—(क्रि.) ठंड लगने का एहसास होना, ठंड का लगना।
- जड़ान—(विशे.) ठंडी के कारण ग्रसित एवं सिकुडा हुआ।
- जड़हा—(सं.पु.) जाडे़ के बस, जाडे़ के ऋतु वाला फल, ठंड वाली वस्तु।
- जड़ब—(क्रि.) कृत्रिम बातें साज देना, किसी को मार-पीट देना, जड़ देना।
- जताकता—(अव्यय) यत्र-तत्र, कहीं- कहीं, विरल रूप से, यदा-कदा।
- जथारथ—(सं.पु.) यथार्थ एवं न्याययुक्त बात, विश्वसनीय व्यक्ति।
- जनाब—(क्रि.) जिससे जानकारी हो, महसूस करना, मालूम पड़ना, एहसास होना।
- जनगाँथी—(सं.पु.) कुम्हड़ा जो प्रायः बरसात में फलता है।
- जनबहा—(सं.पु.) जानकार, जानने वाला, जानकारी रखने वाला, विज्ञ, भिज्ञ।
- जनबही—(सं.पु.) जानकारी, किसी विशेष विषय का ज्ञान, पूर्व सूचना।
- जनउहल—(सं.पु.) कहानी, पहेली, पहेली की भाँति पूँछे, गये प्रश्न, ज्ञान वर्द्धक परीक्षा।
- जनउक—(विशे.) जानने-समझने लायक, परिपक्व व्यक्ति, वयस्क व्यक्ति।
- जनमांस—(सं.पु.) घरात पक्ष द्वारा दिये जाने वाला रात्रिकालीन प्रवास स्थल, जीवन या दिनचर्या।
- जनबाउब—(क्रि.) अवगत करवाना, यथार्थ बोध करा देना, जानकारी दे देना।
- जनाउब—(क्रि.) ज्ञात कराना, बुझाना, पहेली बुझाना, बताना।
- जनीजन जनीजने—(क्रि.) एक-एक व्यक्ति,बारी-बारी से हर व्यक्ति।
- जनबुध—(विशे.) जानने-समझने एवं निर्णय लेने योग्य, परिपक्व अवस्था।
- जन्नाब—(क्रि.वि.) आँख निकालना व लड़ने के लिए तत्पर होना, किसी व्यक्ति से अकड़ना, झगड़ा करने के लिए शरीर को तोड़ना-मरोड़ना।
- जनकतनी—(सं.स्त्री.) पत्थर या लकड़ी की बनी हुई फिरंगी या लट्टू।
- जनाउर—(सं.पु.) हिंसक वन्य प्राणी, निगल लेने वाला बड़े मुँहवाला जंगली जानवर, शेर-चीता।
- जना—(अव्यय) संदिग्ध अवस्था, शायद, संभवतः, लगता है।
- जनेऊ—(सं.स्त्री.) यज्ञोपवीत।
- जन जने—(सं.स्त्री.) व्यक्ति, जन, आदमी, प्राणी, आदि अर्थों में प्रचलित।
- जपब—(क्रि.) जाप करना, जपना, स्मरण करना।
- जपबाउब—(क्रि.) जाप करना, जाप करवाने में सहयोग करना।
- जपबइया—(सं.पु.) जाप करने वाला, जापकर्ता।
- जबा—(सं.पु.) जौ, एक प्रकार का अनाज, लहसुन का एक दाना, आदिवासियों का परम्परागत पर्व एवं मान्यता।
- जबऊआ—(क्रि.वि.) जाने की मनःस्थिति, प्रस्थान करने वाला।
- जकीरा—(सं.पु.) राजा, रजवाड़ों का सहायक घर, मनोरंजन स्थल।
- जबइया—(सं.पु.) प्रस्थान करने वाला, चले जाने वाले व्यक्ति।
- जबरवार—(विशे.) भारी भरकम व्यक्ति, वजनी एवं मोटा तगड़ा, बड़ा एवं सम्पन्न।
- जबरिआन—(विशे.) अक्खड़पन के कारण जिद रोपे हुए, ताकत के बल अड़ा।
- जबरिआब—(क्रि.) जबरदस्ती ठसे रहना या अड़ जाना, मनमानी करना।
- जबरइ जबरई—(अव्यय) बिना स्वीकृति या सहमति के जबरिया, दबंगी के बल पर।
- जबरा—(विशे.) जो शक्तिशाली एवं समर्थ हो, मनचाहा कार्य करने में समर्थ।
- जबर—(विशे.) जो भारी हो, जो बहुत बड़ा हो,जो अति मोटा-ताजा या धन-धान्य से सम्पन्न हो, बड़ा श्रेष्ठ।
- जबरपेली—(अव्यय) उचित-अनुचित का विचार किये बिना अपनी मर्जी से कार्य करने की प्रकृति या प्रवृत्ति।
- जब जबै—(अव्यय) जब, जिस समय, जैसे ही, जब ही।
- जबऊँ-- (क्रि.वि.) जो जाने की स्थिति में हो, मरने लायक।
- जबाई—(क्रि.) किसी स्थान से प्रस्थान करना, विदाई।
- जमहा—(सं.पु.) लगान लेकर भूमि स्वामी द्वारा कृषि कार्य हेतु दिया गया खेत।
- जम्फर—(सं.स्त्री.) लड़कियों द्वारा कमर के नीचे धारण किये जाने वाला घाघरानुमा विशेष वस्त्र।
- जमाइन—(सं.स्त्री.) एक प्रकार के मसाले का पौध।
- जमकल जमकला—(सं.पु.) जनसमूह की बैठक, निरर्थक भीड़ हो, जलामयी दृश्य।
- जमजमाब—(क्रि.) किसी स्थान में डटे रहना, इत्मिनान से आसन लगा लेना।
- जमानी—(सं.स्त्री.) यौवन, मौखिक रूप से कथन आदि।
- जमान—(विशे.) नौजवान, वयस्क व्यक्ति, वाणी,शब्द या स्वर, जीभ।
- जमना—(सं.पु.) बिना बोये-लगाये उगने वाली घास।
- जमा—(सं.पु.) खेत का लगान, कृषि कार्य का किनारा, तरल का ठोस हुआ।
- जमोकब—(सं.पु.) किसी कथन को गवाह द्वारा कहने वाले के समक्ष सत्यापित करना या कराना, किसी कही गई बात को पूछना, पुछवाने का कार्य।
- जमोकबाउब—(क्रि.) आमने-सामने कथन की पुष्टि कर देना, कथन को सत्यापित करवा देना।
- जमती—(सं.स्त्री.) जामुन का फल, जामुन का पेड़।
- जमर जमरे—(सं.पु.) पास में, किसी से चिपक कर बैठने की स्थिति, बगल में।
- जमोकब—(क्रि.) साक्ष्य द्वारा किसी बात का सत्यापन कराने की क्रिया, आमने-सामने, यथार्थ वस्तुस्थिति, पूछताछ।
- जये—(क्रि.) चले जाना, जाना, जाइएगा, जाना ही।
- जरबइय जरबइया—(सं.पु.) जलाने वाला, भूनने वाला, जला देने वाला व्यक्ति।
- जरजॉती—(विशे.) ईर्ष्यायुक्त कार्य, ईर्ष्या के कारण किया गया कार्य, ऐसे कार्य जो पूर्णतः अनुचित-अव्यवहारिक एवं अशोभनीय हो।
- जरफरात—(विशे.) खौलता हुआ तरल पदार्थ, तुरंत निकाली गई वस्तु।
- जरबेरिया—(सं.स्त्री.) वन में फलने वाली मौसमी बेर की छोटी-छोटी झाड़ियाँ।
- जरबाउब—(क्रि.) जलवाना, जलाने का कार्य करवाना।
- जराउब—(क्रि.) स्वंय जलाना, जला देना, भून देना।
- जरब—(क्रि.) आग में जलना, ईर्ष्या के कारण जलना, द्वेश भावना का पनपना।
- जरंसा—(सं.स्त्री.) बुखार की अनुभूति होना, ऐसा लगना मानो बुखार है।
- जर—(सं.पु.) जड़, इसे बरिजरी भी कहा जाता है, पास,बगल,पुरूष।
- जरै—(विशे.) जले, जलने की अनुभूति, तपना, जलन होने की अनुभूति।
- जरतुअ जरतुआ—(सं.पु.) जो परायी विभूति देखकर ईर्ष्या द्वेष के कारण जलता हो।
- जहरबात—(सं.पु.) एक प्रकार का जहरीला बात का रोग।
- जरमेटब—(सं.पु.) सभी वस्तु को समेट कर खा लेना, लाक्षणिक अर्थ बाँह से बाँध लेने की क्रिया।
- जरेठ—(सं.पु.) किसी पौधे का जड़ वाला भाग, जड़ सहित डंठल।
- जरकुट—(सं.पु.) किसी पौधे के जड़ की पतली-पतली शाखायें, जड़ सहित पौध का पतला तना के टुकड़े, झाडियों की सूखी जड़ें।
- जलीहा—(सं.पु.) जाली वाला आम का फल।
- जलिआन—(विशे.) ऐसा फल जिसमें जाली पड़ गयी हो, जालीयुक्त।
- जल्ल-बिल्ल—(विशे.) अव्यवस्थित रूप से वस्तु को फैलाकर रखना, पागलों जैसा इधर-उधर देखना, अस्थिर कृत्य एवं गतिविधियाँ।
- जलिआब—(क्रि.) फल में जाली का आना या पड़ना, फल का पुष्ट होना।
- जलजलाब—(क्रि.) जलने के बाद पड़ा हुआ फफोला, जलती दोपहरी।
- जलजला—(सं.पु.) बोल-बाला, मान्यता एवं अस्तित्व, दबदबा एवं प्रतिष्ठा।
- जल्लाधि—(सं.पु.) कसाई की एक जाति, बिना मोह ममता एवं दया का व्यक्ति, कठोर दिल वाला प्राणी।
- जलामल्ल—(विशे.) थलभाग में जहाँ-जहाँ जल ही जल भरा हो, जलामय दृश्य।
- जलकेशर—(सं.स्त्री.) एक धान की विशेष प्रकार की प्रजाति।
- जलाहल—(विशे.) बहुत ही भयावह एवं खतरनाक, प्रखर, जहरीला।
- जलहली—(सं.स्त्री.) देवताओं की मूर्ति विराजने का जालीदार पात्र।
- जस का तस—(अव्यय) ज्यों का त्यों, जैसा का तैसा, कोई किसी से कम नहीं।
- जसी—(क्रि.) जिसे बिना श्रम के यश मिल जाय, यश लूटने वाला।
- जस—(सं.पु.) यश,कीर्ति, श्रेय, जिधर, जहाँ, जिस ओर।
- जसका—(अव्यय) जैसे कि, जिस प्रकार का, जैसा का आदि अर्थों वाला।
- जहिराब—(क्रि.) जानकारी देना, दिखाई पड़ना, विदित कराना।
- जहिया—(अव्यय) जिस दिन, जिस समय, जब। जा
- जाँगर—(सं.पु.) पौरुष या शारीरिक क्षमता- दक्षता, क्रियाशीलता, तत्परता।
- जाघा—(सं.स्त्री.) जमीन, खेत, अचल भूमि, स्थान, जगह।
- जाड़ी—(क्रि.वि.) बिना क्रम टूटे, सधन रूप से चल रहा कार्य, जरूरी कार्यं।
- जाता—(सं.पु.) पत्थर की चक्की, जिसमें आटा पीसा जाता है, जाओ तो।
- जानपाडे़—(सं.पु.) मनोविनोदी (बघेली लोकोक्ति) जो सबमर्म को जान लेता हो।
- जानुक—(सं.पु.) जानने-समझने वाली उम्र का वयस्क बालक या व्यक्ति।
- जानमान—(अव्यय) किसी के स्वरूप का ज्यों का त्यों दूसरे व्यक्ति का होना।
- जाब—(क्रि.) जायेंगे, जाना है, जाने का मन करता है।
- जाबय—(क्रि.) जाऊँगा, जाना है, जाना चाहते हो, प्रश्नवाची शब्द?।
- जानागोंइया—(विशे.) जाना-पहिचाना साथी, पूर्व से पूर्ण परिचित।
- जामन—(सं.पु.) दही के लिए दूध में डाला जाने वाला मठा या खटाई।
- जामाजोड़ जामाजोड़ा—(सं.पु.) दूल्हे का विवाह के समय का विशेष वस्त्र।
- जामा—(सं.पु.) अंकुर के लिए भिगोया हुआ बीज, फल-फूल या धान।
- जारब—(क्रि.) जलाना,भूनाना, जला देना, दाग देना।
- जाहिर—(सं.पु.) सूचना देना, सबको बताकर, दिखाकर खुलेआम। जि
- जिआन—(सं.पु.) पौरुष, जी, जीवन, जिआन होब, बघेली मुहावरा।
- जिआउब—(क्रिया) जिलाना, जिन्दा करना, जिन्दा रखना, पालना- पोषना।
- जिअब—(क्रिया) जीना, जिन्दा रहना, जीवित होना।
- जिअनी—(सं.स्त्री.) ऐसी गाय जो किसी के द्वारा किसी व्यक्ति को पालने पोषने या जिलाने के लिये निःशुल्क दान रुप मे दी गई हो।
- जिऊ—(सं.पु.) जीव, जीवन, जान, प्राण आदि अर्थों वाला शब्द।
- जिउचल—(विशे.) कठिन परिश्रम करने में सक्षम या समर्थ, बलवान या हृष्ट-पुष्ट।
- जिउलेन—(सं.पु.) जीवन ले लेने वाला, हत्यारा, प्राणघाती।
- जिउमार—(सं.पु.) हत्या करने वाला, दूसरे प्राणी का वध करने वाला।
- जिउजामा—(अव्यय) शारीरिक क्षमता एवं दक्षता, स्वास्थ्य शारीरिक कुशलता।
- जिउजुड़ाब—(ब.मु.) आत्मा को संतोष होना, जलता मन ठंडा होना।
- जिउना—(सं.पु.) जीव, प्राण, जान, शरीर।
- जिकिर—(सं.पु.) किसी बिन्दु विशेष की चर्चा, जिक्र करना।
- जिगरा—(सं.पु.) सिर के बाल या बड़े-बड़े रोम आदि।
- जिगरी—(सं.पु.) बाल फैलाये रहने वाली नारी, पुलिंग जिगरहा।
- जिड्डी—(सं.पु.) जिद या हठधर्मिता की प्रवृत्ति।
- जिताउब—(क्रिया) जिताना, जिता देना, जीत हासिल कराना।
- जितबाउब—(क्रिया) प्रयासोपरान्त जीतने में सहयोग करना, विजयी बनवाना।
- जितबइयाँ-- (सं.पु.) विजय दिलाने वाला, विजयी बना देने वाला।
- जितँऊ—(विशे.) जीतने योग्य, जीत दर्ज करने लायक।
- जितनहा—(सं.पु.) जो हमेशा जीत जाता हो, हारी न मानने वाला।
- जिन्ती—(विशे.) जितनी, जितनी संख्या यामात्रा।
- जितार—(सं.पु.) जो सबसे लड़ता-झगड़ता व मारपीट करता रहता हो।
- जिन्नगी—(सं.स्त्री.) जिन्दगी या जीवन के लिये संज्ञावाची शब्द।
- जिन्नार—(सं.पु.) चौड़े फन वाला सर्प, जहरीला बड़ा एवं भयावह कीड़ा।
- जिन्हा—(अव्यय) जिस दिन, जिस रोज, जब, जिस समय।
- जिरहानान—(सं.पु.) जीरायुक्त मशालेदार नमक।
- जिलकन—(विशे.) जलाशय के नीचे का वह खेत जहाँ हमेशा पानी की कमी बनी रहती हो। पानी के कारण सदैव गीला रहना।
- जिल्ला—( (सं.पु.) जलाशय की मेड़ के नीचे पानी का निकलते रहना या झरना की भाँति शनैः-शनैः पानी का संचित होना।
- जिल्लान—(विशे.) जिल्ला खाया हुआ, जल से आच्छादित हुआ।
- जिल्लाब—(क्रिया) खेत में सदैव पानी भरे रहने से खेत गीला रहना।
- जितारिया—(विशे.) सबको परास्त कर देने वाला, सबसे जीता हुआ। जु
- जुआ—(सं.पु.) गन्दगी के कारण सिर पर उत्पन्न होने वाला जूं, हल-जुआ।
- जुई—(सं.स्त्री.) भैंस या गाय का मूत्रांग विशेष।
- जुइती—(सं.स्त्री.) पशुओं के शरीर पर बालों के मध्य पड़ने वाले जूं, एवं स्वेत रंग के पेशुआ आदि।
- जुगाड़—(ब.मु.) जोड़-गाँठ करके व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया, उपाययुक्त निदान, युक्तियुक्त पहल।
- जुग—(सं.पु.) एक साथ, चौपड़ खेल की गोट, युग, काल, जमाना।
- जुगुति—(सं.स्त्री..) युक्ति या उपाय, समस्या के समाधान हेतु निकाला गया हल।
- जुगजुगाब—(सं.स्त्री.) धराशायी, व्यवस्था का थोड़ा-थोड़ा संभल जाना, आग का प्रज्जवलित होना।
- जुगुर-जुगुर—(अव्यय) आंशिक रूप से दीपक या आग का जलते रहना।
- जुगुल जोडी—(अव्यय) दाम्पत्य जोड़ी, दो व्यक्तियों की सुन्दर समरूपता।
- जुगराज—(सं.पु.) युवराज,राजा, महाराज के राजकुमारों के लिए आदर सूचक।
- जुज्झ—(सं.पु.) लड़ाई, झगड़ा, युद्ध।
- जुझाऊब—(क्रिया) प्रेरित करके किसी को लड़ा-भिड़ा देना।
- जुट्टा—(विशें.) ऐसा फल जो एक दूसरे से जुड़े हुए हों, या चिपके हुए हों, जोड़ीनुमा व्यक्ति का पैदा होना।
- जुठहाई—(क्रिया) जो व्यक्ति दूसरे का जूँठा भोजन करता हो, उसकी प्रवृत्तिगत प्रकृति के लिए उलाहना एवं आलोचना।
- जुठन्तर—(सं.पु.) भोजन के पश्चात् का जूँठा भोजन का कण यत्र-वत्र विखरे हुए हों, अपवित्र स्थल।
- जुड़ाइ जुड़ाई—(सं.स्त्री..) ठंडी के कारण शरीर पर चकत्तेदार ददोरे पड़ना।
- जुड़बाऊब—(क्रिया) गर्म पदार्थ को आग से दूर रखकर उसे ठण्डी अवस्था में लाना, जिउ जुड़बाउब ब.मु.।
- जुड़ाब—(क्रिया) ठंड होना,शीतल की अनुभूति, शान्ति की अनुभूति।
- जुतहाउ—(सं.स्त्री.) दो पक्षों के बीच जूते चलना, जूते की मार शुरू होना।
- जुमकब—(क्रिया) पास पहुँचना, सामर्थ्य का होना, नजदीक आना।
- जुम्मा—(सं.पु.) जिम्मेदारी या दायित्व, ठेका, जबावदारी आदि।
- जुर बटुरिक जुर बटुरिके—(अव्यय) जन समुदाय का विचार विमर्श के साथ कार्य विशेष के निमित्त एकत्रित या संगठित होने की क्रिया।
- जुरबइया—(क्रिया) जोडनेवाला, टूटे रिश्ते को बनाने वाला।
- जुरबाउब—(क्रिया) जोड़ने में सहयोग करना, एकत्र कराना।
- जुरब—(क्रिया) जुड़ना, जुड़ जाना, इकट्ठा होना, जोड़ होना।
- जुलुफ—(सं.पु.) केश, सिर के सुन्दर बाल, जुल्फ।
- जुल्ल—(सं.पु.) सफेद गप्प, जिसकी आदि- अन्त न हो, धुँआ में लठ मारने वाली बातों का प्रचार-प्रसार।
- जुहाब—(क्रिया) संचित होना, भीड़ लग जाना, अधिक मात्रा में संचयन।
- जुहबाउब—(क्रिया) एकत्रित करना, संचय करने की क्रिया, भीड़ इकट्ठी करना।
- जुहान—(विशे.) एकत्रित हुई स्थिति, इकट्ठा हुए लोग। जू
- जूक-कूप—(ब.मु.) किसी कार्य को सम्पन्न कराने के लिए जुटायी गई सहायक सामग्री।
- जूठन—(वि.सं.पु.) जूँठा भोजन या पदार्थ, खाने के पश्चात् बचा हुआ शेष अंश।
- जूड जूड़—(विशेष) ठंड,शीत का वातावरण, शीतलता की अनुभूति।
- जूड़ा—(सं.पु.) बालों की गाँठ, ठण्डी हो जाना।
- जूना—(अव्यय) सम्पूर्ण दिवस को दो भागों में विभक्त करने पर एक भाग की अवधि, समय।
- जूरी—(सं.स्त्री.) किसी व्यक्ति के मरने पर जलाशय के घाट पर एक स्थान पर गाड़ा हुआ कुशा। जे
- जे-ज जे-जे—(सर्व.) जो-जो, जो-जो लोग।
- जेई—(सर्व.) जिसने, जो।
- जेउनार—(सं.पु.) भोजन, व्यंजनयुक्त भोजन।
- जेऊरी—(सं.स्त्री.) पतली रस्सी।
- जेक जेके—(सर्व.) जिसके।
- जेखे—(सर्व.) जिसके।
- जेखर—(अव्यय) जिसका, जिनकी, अर्थ से प्रयुक्त होने वाला शब्द।
- जेंटा—(विशे.) अनाज को डंठल की जितनी मात्रा एक कखरी में दबाई या रखी जा सके।
- जेटिआउ जेटिआउब—(क्रिया) एक हाथ की कखरी में दबोच लेने की क्रिया।
- जेठऊत—(सं.पु.) पति के बडे़ भाई का पुत्र।
- जेठरी—(विशे.) दो या तीन पत्नी वाले पति की प्रथम पत्नी।
- जेठरऊ—(सं.पु.) किसी माँ-बाप का ज्येष्ठ पुत्र।
- जेठरिया—(सं.स्त्री.) ज्येष्ठ कन्या,बड़ी कुरई, बड़ी बहू या बड़ी भाभी।
- जेड़ी—(सं.स्त्री.) रक्षाबन्धन के अवसर पर दो लम्बे बाँस लेकर उसके मध्य में एक फीट लम्बा बाँस का टुकड़ा आड़ा बाँधकर और दोनो पैर उन्हीं में रखकर लोग रास्ता चलते हैं।
- जेतबा—(सं.पु.) पत्थर की चक्की जिसमें हाथ से घुमाकर आटा पीसा जाता हो।
- जेत्तीदार—(अव्यय) जिस समय, जितनी देर।
- जेन्ता—(विशे.) जितना, जितना अधिक
- जेनका—(अव्यय) जिनको।
- जेतने—(विशे.) जितने, जितने लोग।
- जेतू—(विशे.) जितना, जितनी।
- जेमन—(सं.पु.) रसोई पकाना, रसोई पकाने के पूर्व तैयारी या प्रबंध।
- जेरबा—(सं.पु.) काँटेदार वनस्पतियों की टहनियाँ, काँटेदार वृक्ष या पौधे की शाखाएँ।
- जेरा—(सं.पु.) खेत को घेरे हुए पतली लकड़ी, झाड़ियों की टहनी।
- जेसे—(सर्व.) जिससे।
- जेही—(अव्यय) जिसे, जिसके के लिए पर्यायवाची शब्द। जो
- जो—(अव्यय) अगर,यदि, जो बोलना, यदि बुलाओ।
- जोकड़—(अव्यय) जोकड़, मनोरंजन करने वाला व्यक्ति, हँसाने वाला जोकर, तास की एक पत्ती का नाम।
- जोकड़इ जोकड़ई—(क्रि.वि.) जोकर की तरह गतिविधियाँ एवं नाट्य करने की विशेषता।
- जोखब—(क्रिया) तौलना, नापना, मात्रा जानना।
- जोखइया—(सं.पु.) नाप-तौल करने वाला व्यक्ति, पंसारी,लेखा लगाने वाला।
- जोगिया—(सं.पु.) चींटे के आकार के लाल रंग वाले चीटे, योगियों का समूह।
- जोगा—(सं.पु.) छोटे बच्चों की भयभीत करने के लिए प्रयुक्त होने वाला।
- जोगउ जोगउब—(क्रिया) जुगाड़ बनाकर किसी काम को करना। मितव्यतता के साथ कार्य करना, हिसाब बैठाकर आय के अनुसार कार्य।
- जोग—(सं.पु.) संयोग लग जाना, योग साधना, योग, लग्न, योग्य।
- जोगन जोगनी—(सं.स्त्री.) शुभ मुहूर्त, संयोग का शुभ लग्न या शुभ घड़ी।
- जोगी—(सं.पु.) योगी, तपस्वी, योग साधना का साधक, सन्त-महात्मा।
- जोड़उरिह जोड़उरिहा—(विशे.) ऐसी संतान जो माँ के गर्भ से एक साथ क्रमशः (अल्पावधि के अन्तराल में उसी दिन) जन्म लिये हो।
- जोड़ीमा—(सं.पु.) दो फलों का एक साथ जुड़कर फलना, एक जोड़, एक साथ जन्मीं संतान।
- जोतब—(क्रिया) खेत की जुताई करना, हल चलाना।
- जोती—(सं.स्त्री.) ज्योति, जुताई की हुई भूमि, पत्थर की चक्की के ऊपर अरी में लगने वाली पतली रस्सी, प्रकाश।
- जोतबाउब—(क्रिया) किसी के खेत की जुतवाई करवाना।
- जोत—(सं.पु.) चमड़े के पट्टे जो हल के जुए में लगाकर बैल के गले में बाँधा जाता है।
- जोतवाइ जोतवाई—(सं.पु.) खेत जोतने के बदले में प्राप्त मजदूरी।
- जोतइया—(सं.पु.) हल चलाने वाला हलवाहा या खेत की जुताई करने वाले।
- जोतहरा—(सं.पु.) ऐसा खेत जिसकी जुताई हो चुकी हो।
- जोधँइया—(सं.स्त्री.) चन्द्रमा, जोधा माई।
- जोधा—(सं.पु.) योद्धा, शूरवीर, सूरमा, पराक्रमी, चन्द्रमा।
- जोधावली—(सं.पु.) योद्धा एवं शक्तिशाली, बलवान,किन्तु वक्रोक्ति के साथ।
- जोधामाई—(सं.स्त्री.) चन्द्रमा के लिए मातृत्वयुक्त सम्बोधन।
- जोन्हरी—(सं.स्त्री.) ज्वार, जो खरीफ की फसल में बोई जाती है।
- जोन्हरिह जोन्हरिहा—(सं.पु.) जिस खेत में ज्वार की फसल लगी हो।
- जोबाब—(सं.पु.) जवाब, उत्तर, प्रतिउत्तर के अर्थ में प्रचलित शब्द।
- जोरब—(क्रिया) जोड़ना, एकत्र करना, पूँजी बनाना, संग्रहण करना।
- जोरइ जोरई—(सं.स्त्री.) हरे रंग का कीड़ा, जो फसल एवं सब्जी के पौधे में लगते हैं तथा बुरी तरह से क्षिद्र करके नुकसान पहुँचाते हैं।
- जोरिआउब—(क्रिया) एक दूसरे में जोड़ना,एक सूत्र में बाँधना।
- जोरबइया—(सं.पु.) जोड़ने वाला,एक रस्सी में कई को बाँधने वाला।
- जोरगर—(विशे.) बहुत अधिक, बहुत शक्तिशाली।
- जोरतनिहा—(सं.स्त्री.) जोड़-गाँठ लगाकर तैयार की गई वस्तु।
- जोरतनी—(सं.स्त्री.) एक टुकड़े में कई टुकड़ों के जोड़ने की क्रिया।
- जोर-जुगत—(अव्यय) मनसा-वाचा-कर्मणा से किया गया या किया जा रहा अथक प्रयास, शक्ति एवं युक्ति मिश्रित कार्य।
- जोरन—(सं.पु.) दूध जमाने के लिए प्रयुक्त सहायक सामग्री, मठा।
- जोरा-तगोर जोरा-तगोरी—(अव्यय) विभिन्न प्रकार के प्रयासों से संग्रह की हुई।
- जोरी—(सं.स्त्री.) जोड़ी, जोडी हुई वस्तु जो पहले टूटी रही हो, जोड़ना।
- जोरू—(सं.स्त्री.) पत्नी, औरत के लिए संज्ञावाची शब्द।
- जोरे-बटोरे—(अव्यय) जोड़-बटोरकर परिश्रम के साथ किया गया।
- जोरगर—(विशे) जोरदार, ताकतवर, बहुत तेजी से।
- जोलाहल—(विशे) तहस-नहस, प्राणलेवा, तेज-तर्राट अथवा क्रोधप्रद।
- जोलहा—(सं.पु.) सूत कातने वाला, हाथ से कपड़ा बुनने वाला।
- जोला—(सं.पु.) तहस-नहस कर देने वाला, क्रोध, गुस्सा, आवेश।
- जोसभरा—(सं.पु.) आवेश या आक्रोशवस, अत्यधिक क्रोध से युक्त।
- जोसाब—(क्रि.वि.) क्रोधित होकर लाल- पीला होना, उत्तेजित होना।
- जोहब—(क्रिया) राह देखना, प्रतीक्षा करना, खोजना आदि अर्थों में प्रचलित।
- जोहारब—(क्रिया) पर्वात्सव के अवसर पर भाईचारे का व्यवहार निभाना।
- जोहार—(सं.स्त्री.) पयलगी, प्रणाम एवं अभिवादन आदि।
- जोहैसो—(सं.पु..) बात करते समय प्रयुक्त प्रवृत्तिगत तकिया कलाम।
- जोहाउब—(क्रिया) खोज करवाना, खोजवाना, पता लगवाना।
- जोहइया—(सं.पु.) पता लगाने वाला, खोजने वाला, खोजबीन करने वाला। झ
- झउआ—(सं.पु.) चौड़ी मुँहवाली बाँस की टोकनी जो क्रमशः पेंदा की ओर संकरी होती जाती है।
- झउड़ब—(क्रि.) ऊपर की ओर बढ़ना, लता के फैलने की क्रिया।
- झकलेट—(विशे.) मूड़ी एवं झक्की प्रवृत्ति वाला आदमी, सनकी, झक्की।
- झकाउब—(क्रिया) दिखवाना,झकवाना, प्रयास कराना।
- झकमराउब—(ब.मु.) विवश होना, मजबूर होकर कार्य करना।
- झकइया—(सं.पु.) झांकने-ताकने वाला व्यक्ति।
- झकिया—(सं.स्त्री.) दीवाल में बनाया जाने वाला रोशनदान, खिड़की।
- झगुंली—(सं.स्त्री..) ऐसी चारपाई जिसके रस्सी का बुनाव नीचे झूलता हो, ऐसा बच्चों का नीचे झूलने वाला फ्राक या फटा पुराना वस्त्र।
- झंझाब—(क्रि.वि.) गीले वस्त्र का लगभग सूख जाना।
- झझोरब—(क्रिया) बिना चिंता के भरपेट जी भर खाना, अच्छी खासी बिना श्रम के कमाई करना।
- झँझाउब—(क्रिया) हल्के रूप में सुखवाना, कपड़े का पानी सुखाना।
- झझझा—(सं.पु.) कुण्ड में गिरते समय पानी की आवाज।
- झटकब—(क्रिया) किसी वस्तु को छिपाकर या चुराकर प्राप्त करना, बिना परिश्रम के उपलब्धि, हाथ इधर-उधर फेंकना, आक्रोश के कारण किसी को धक्का देना।
- झटकारब—(क्रिया) दोनों हाथ से हवा में फटकारना ताकि पानी निकल जाय।
- झटकरबइया—(सं.पु.) छपटकर ले-लेने वाला, चोरी कर लेने वाला।
- झट्टी—(अव्यय) जल्दी, जल्दीबाजी, शीघ्रता आदि अर्थों हेतु।
- झटका—(सं.पु.) किसी को धोखा देना, उल्टी- सीधी बातें करना, धोखाधड़ी।
- झट्टिल्ला—(सं.पु.) पुरुष के लिए एक अश्लील गाली।
- झटुहा—(सं.पु.) पुरुष के लिए एक अभद्रगाली।
- झड़ास—(क्रिया) टट्टी की अनुभूति
- झन्ना—(सं.पु.) झरना, दस्त लगना या पतली टट्टी जाना।
- झन झने—(सं.पु.) लोग, जन समुदाय आदि अर्थों के लिए प्रयुक्त शब्द।
- झन-झन—(क्रि.वि.) ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की क्रिया, आक्रोश युक्त वाणी।
- झनझनाब—(क्रि.) बडे़ भवन में आवाज प्रतिध्वनित होना।
- झन्झी—(सं.स्त्री.) पैसे का बिल्कुल न होना, नाममात्र, बिल्कुल नहीं।
- झपब—(क्रिया) झेपना या दबना, संकोच या भय के कारण न बोलना, अदब करना, पलक बंद हो जाना।
- झपटब—(क्रिया) दौड़कर आतुरता के साथ कोई वस्तु छुड़ा लेना, पंजे से दौड़कर छोटे जीवधारी को दबोचना।
- झपट्टा—(सं.पु.) झटके से चलने में होने वाली वस्तु की ध्वनि।
- झब्बा—(सं.पु.) बड़े-बडे़ घुँघराले बाल वाला व्यक्ति, बालों से ढके मुखवाला कुत्ता, किसी कुत्ता या आदमी का नाम।
- झपड़ा—(सं.पु.) सघन पत्तियों वाला चारों ओर से तने को घेरने वाला पेड़।
- झम्म—(सं.पु.) कुँआ नदी या तालाब में उँचाई से कूदने पर हुई ध्वनि।
- झमाका—(सं.पु.) बिना रूके हुए पानी भरे स्थल पर ऊँचाई से कूदना।
- झमकाउब—(क्रिया) पशुओं द्वारा इधर-उधर सिर हिलाना-डुलाना।
- झमेला—(सं.पु.) अतिथियों की भीड़, झंझटनुमा, उलझाऊ स्थिति, जन समुदाय।
- झमब—(क्रिया) संतुलन के कारण शरीर का कँप उठना, जमीन में गिर पड़ने की क्रिया, चक्कर आना।
- झरका—(सं.पु.) लकड़ी में लाख लगा हुआ एक वस्तु जिसे स्त्रियाँ कान के छिद्र में पहनती हैं।
- झरहाई—(क्रि.वि.) ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति, द्वेशपूर्ण भावना।
- झरहा—(सं.पु.) देखि न सके पराय, विभूति वाली प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- झरब—(क्रिया) दस्त लगना, फूल या बाल का झड़ना, फलों का ऊपर से नीचे गिरना।
- झर्रहट—(ब.पु.) व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति के साथ कार्य की सफलता।
- झरबाउब—(क्रिया) झाड़-फूँक करवाना, कपड़े की धूल हटवाना।
- झरबइया—(सं.पु.) झाड़-फूँक करने वाला व्यक्ति या पण्डा।
- झरझराब—(क्रिया) किसी पर नाराज होना, भुनभुनाना।
- झलकब—(क्रि.वि.) झलकना, आंशिक रूप से दिखना, झलकी के रूप में दिखना।
- झलरा—(सं.पु.) शिशुओं के मुण्डन के पूर्व के बढ़ते बाल, झलरी।
- झलरिहा—(सं.पु.) ऐसा शिशु जिसका मुण्डन संस्कार न हुआ हो।
- झल्ला—(सं.पु.) बड़े-बडे़ बालों वाला व्यक्ति, मुण्डन संस्कार न हुए बालक, किसी व्यक्ति का नाम, झल्ली।
- झंलगा—(सं.पु.) बच्चों द्वारा धारण किया गया वह वस्त्र जो सामान्य स्थिति से बहुत बड़ा एवं ढीला हो।
- झलरी—(सं.स्त्री.) चवेना वाली एक ज्वार की किस्म, मुण्डन न हुई कन्या। झा
- झाँइ झाँई—(सं.स्त्री.) आँख की चमड़ी का काला होना,गाल पर चिन्ता का दाग।
- झाँकब—(क्रिया) छिपकर देखना, नीचे सिर करके गहराई झाँकना, झाँक- ताँक करना।
- झागा—(सं.पु.) उलझनयुक्त दृश्य,अड़चन एवं बहानामय परिस्थिति।
- झाँझर—(विशे.) पारदर्शी स्थिति के पत्ते, आर-पार दिखना, शरीर का माँस विहीन कोरा ढाँचा।
- झाड झाडे़—(सं.पु.) उत्सर्जन क्रिया,टट्टी करना या टट्टी करने जाना, दीर्घशंका।
- झापड झापड़—(सं.पु.) ऊँगुली खोलकर हथेली द्वारा प्रहार, तमाचा लगाना।
- झामर—(विशे.) भूख के कारण आँख से न दिखना, चलते समय शरीर में कम्पन का होना।
- झाँपी—(सं.स्त्री.) बाँस की एक सन्दूक, मन्दिरनुमा आकृति की बन्द टोकनी।
- झाँय-झाँय—(सं.स्त्री.) झनकर, सूनसान,वायु का शब्द,आवाज प्रतिध्वनित होना।
- झारब—(क्रिया) झाड़-फूँक करना, शरीर से धूल हटाना,खाना खाना, किसी पर प्रहार करना।
- झार—(सं.स्त्री.) ईर्ष्या, द्वेष भावना, आग में जलते मिर्च का धुआँ, किसी का धन वैभव न देख सकने की प्रवृत्ति।
- झारा—(सं.पु.) पूड़ी या व्यंजन झाड़ने वाला बड़ा करछुवा।
- झालर—(सं.पु.) बच्चों के सिर के जन्म के समय के बाल, बडे़-बडे़ बाल।
- झाला—(सं.पु.) लकड़ी के खम्भे पर घास का छप्पर, नारियों द्वारा कान में धारण करने वाला सोने का आभूषण। झि
- झिकनी—(सं.स्त्री.) चौड़े चूल्हे पर बर्तन के नीचे प्रयुक्त पत्थर की टुकड़ियाँ खपडे़ के नीचे खपडे़ की टुकड़ी।
- झिकबाउब—(क्रि.) किसी से कोई वस्तु निकलवाना, चुरवा लेना।
- झिकझोरब—(क्रि.) किसी को पकड़कर जोर से हिलाना, पीटने के लिए, आक्रोश में हाथ पकड़कर हिला देना।
- झिकँबइया—(सं.पु.) निकालने वाला, अपनी ओर खींचने वाला व्यक्ति।
- झिझिरी—(विशे.) विरल सलाई से बनी टोकनी, अनाज रखने वाली टोकनी।
- झिझकब—(क्रि.) हिम्मत न पड़ना, किसी कार्य में दिक्कत होना, झिझक।
- झिटकी—(सं.स्त्री.) भटकटैया, बारी बनाने हेतु झाड़ी का डंठल।
- झिटकब—(क्रि.) पकड़ने वाले को धक्का देना, झटका देकर अपना हाथ छुड़ाना, ताकत लगाकर बल पूर्वक फेंकना।
- झिंगा—(सं.पु.) छोटे-मोटे कीडे़-मकोडे़, टिड्डा नामक एक कीड़ा।
- झिमकब—(क्रि.) विरल रूप में मन्द-मन्द जल वृष्टि का होना।
- झिमिर-झिमिर—(अव्यय) मन्द फुहार पड़ना, अति विरल रूप में जल वृष्टि का होना।
- झिमाब—(क्रि.) शान्त स्थिति, पानी बरसने की गति का घटना, बच्चों का रोना कम हो जाना, नींद लग जाना।
- झिरकी—(सं.स्त्री.) विरल जल वृष्टि, पानी की बूँद, पानी की फुहार।
- झिरब—(क्रि.) टोकनी से अनाज का नीचे गिरना, झरने से जल निःसृत।
- झिरकुटिया—(सं.स्त्री.) छोटी-छोटी झाड़ियों की पतली-पतली सूखी टहनियाँ।
- झिरिया—(सं.स्त्री.) झरना के द्वारा बना हुआ गहरा कुण्ड।
- झिरा—(सं.पु.) आय के श्रोत, झरना झरने का स्थल, तल या सतह, चोंगी में डाला जाने वाले पत्तों का टुकडा।
- झिलँगी—(विशे.सं.स्त्री.) चारपाई से टूटे बन्धन का झूलदार हो जाना, जीर्ण-शीर्ण चारपाई।
- झिमान—(विशे.) थककर सोयी हुई स्थिति, निद्रा ग्रसित, मौन अवस्था। झी
- झीकब—(क्रि.) पक्ष कहना, अपना हाथ खींचना, किसी से अत्यधिक धन वसूल लेना, जेब से कुछ निकाल लेना, कोई संरचना।
- झीका-झपटी—(बं.पु.) लूट-खसोट, जबरिया छुड़ाना, विवाद या झगड़ा।
- झींगुर—(सं.पु.) पतली टाँग वाला एक विशेष कीड़ा-मकोड़ा।
- झीटी—(सं.स्त्री.) बाँस की पतली-पतली टहनियाँ। झु
- झुक्का—(सं.पु.) अचेत अवस्था में क्षण भर के लिये हो जाना।
- झुकाउब—(क्रि.) नतमस्तक कराना, किसी वस्तु को झुकाने की क्रिया।
- झुकुर—(क्रिया) किसी को देखने के लिए या मारने के लिए चारों ओर से घेर लेना, देखने को लगी गोलाईदार भीड़।
- झुठ्ठी—(सं.स्त्री.) सूखी व दुर्बल शरीर वाली नारी या कन्या पु. छुट्ठा।
- झुठिहा—(सं.स्त्री.) झूठ बोलने वाला व्यक्ति, असत्य बोलने की प्रवृत्तिवाला।
- झुनकी—(सं.स्त्री.) छोटे दाने वाली एक ज्वार।
- झुनझुनी—(सं.स्त्री.) पाँव में झुनझुनाहट हो जाना, शरीर का शून्य होना।
- झुमक झुमकी—(सं.स्त्री.) कानों की बाली, झूलदार कान का गहना,पु. झुमका।
- झुर झुर्र—(ब.मु.) वस्तु या पदार्थ का समग्रतः समाप्त हो जाना, उड़ जाना।
- झुरान—(विशे.) शुष्क अवस्था वाली वस्तु या पदार्थ, सूखे शरीर वाला व्यक्ति, सूखा हुआ अन्न, आर्द्रता रहित स्थिति।
- झुरिया—(सं.स्त्री.) सूखे ख्ेत में सूखे धान की बोवाई।
- झुरहा—(सं.पु.) जो शरीर से दुर्बल हो, सूखे शरीर वाला।
- झुरठ्ठा—(सं.स्त्री.) दुबला-पतला, दुर्बल एवं एकहरे शरीर का व्यक्ति।
- झुरमन—(सं.स्त्री.) आर्द्र पदार्थ को सुखाने से भार में होने वाली कमी।
- झुरबाउब—(क्रि.वि.) किसी वस्तु का सुखाना, नमी-आर्द्रता दूर करना, गीला कपड़ा धूप में या हवा में सुखाना।
- झुरझुरी—(सं.स्त्री.) कपकपी, कम्पन, बुखार आने की स्थिति में ठण्ड का लगना।
- झुर्रइया—(सं.स्त्री.) जल्दी-जल्दी कूदने-फुदकने वाली गौरैया।
- झुलइहेय—(क्रि.) झुलाओगे।
- झुलाय झुलाये—(क्रि.) झुलाइये, क्या झुलाये।
- झुलबे—(क्रि.) झूलोगे, झूलना होगा, हिलोगे।
- झुलबू—(क्रि.) झूला झूलेगी, झूलना होगा, हिलो डुलोगी।
- झुलरब—(क्रि.) किसी पेड़ की डाली में लटकना या झूलना।
- झुलना—(सं.पु.) झूला, झूलदार बच्चों का खिलौना।
- झुलनी—(सं.स्त्री.) झूला, झूलकर चलने वाली जिसका सिर प्रायः डोलता रहता हो, नाक की नथुनी।
- झुलनिया—(सं.स्त्री.) नाक में झूलने वाली बड़ी वृत्ताकार नथुनी।
- झुलउआ—(सं.पु.) झूमते- झामते सी चाल गति पुरूषों का एक वस्त्र विशेष।
- झुलबइया—(सं.पु.) झूला झुलाने वाला व्यक्ति, हिलाने-डुलाने वाला।
- झुलाऊब—(क्रि.) हिलाना-डुलाना, झूले में झुलाना, मानसिकता से अवगत होने के लिए मन जानना। झू
- झूमब—(क्रि.) झूलना, ताकत अजमाना, लगे रहना।
- झूर—(विशे.) सूखा, केवल, खाली, मात्रा, स्वार्थ, सूखा।
- झूरझार—(अव्यय) सिर्फ, निर्धारित, मजदूरी या आदेशित वस्तु।
- झूरा—(सं.पु.) सूखा या अकाल, बच्चों का शरीर सूखने वाला एक रोग, एक प्रकार का महुआ वालीशराब।
- झूर झूरै—(अव्यय) खाली-खाली।
- झूलाखाली—(अव्यय) सूर्यास्त का समय, हल्का अन्धेरा होना, सायंकालीन बेला, गोधूलि का समय।
- झूलब—(क्रि.) झूलना, हिलना-डुलना, झूमते रहना। झे
- झेहझेह—(अव्यय) ऊँचाई से जलाशय पर बार-बार कूदने पर होने वाली पानी की ध्वनि विशेष।
- झेहाका—(अव्यय) बिना रूकावट के पानी में ऊपर से कूदने की क्रिया, सीधे पानी में ऊपर कूदना।
- झोकब—(क्रि.) झोकना, अत्यधिक खाना, अतिसंयोक्ति बातें करना, किसी को ढकेलना।
- झोकबाइ झोकबाई—(सं.स्त्री.) झोंकने के बदले प्राप्त परिश्रामिक या शुल्क।
- झोकबाउब—(क्रि.) किसी से झोंकवाने का काम कराना।
- झोकइया—(सं.पु.) बढ़-बढ़कर बातें करने वाला अतिशयोक्ति बोलने वाला, बहुत अधिक खाने वाला।
- झोकाझोंक—(अव्यय) मुक्तहस्त से बिना चिन्ता किये हुए कोई वस्तु वितरित करना, स्वच्छन्द एवं चिन्ता रहित कार्य।
- झोंखरा—(सं.पु.) बडे़-बड़े एवं अव्यवस्थित बाल।
- झोझर—(सं.पु.) पेट के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द।
- झोझा—(सं.पु.) जालीदार रस्सी का बुनाव जो नीचे की ओर झूल गया हो।
- झोझी—(सं.स्त्री.) ऐसी चारपाई जो बीच में टूटकर नीचे की ओर झुकी हो।
- झोटिआउब—(क्रि.) चोटी पकड़कर मारना- पीटना, चोटी खींचना।
- झोटइया—(सं.स्त्री.) बडे़-बडे़ बालों को आक्रोश में कहा जाने वाला शब्द।
- झोथ—(विशे.) समूह, कई संख्याएँ, बहुतायत छत्ता।
- झोथा—(सं.पु.) गुच्छेदार शैली में फलों का फलना।
- झोप—(क्रि.वि.) चारों ओर से घेर लेना, चारों ओर से ढकी स्थिति।
- झोरब—(क्रि.) आम के फल या किसी वृक्ष में लगे फल में हाथ से पत्थर मारकर तोड़ने या जमीन में गिराने की क्रिया।
- झोरा—(सं.पु.) बडे़ आकार का झोला, पत्थर या लकड़ी की टुकडी फेंककर फल तोड़ने के लिए निर्देश, तोड़िये।
- झोरकट—(सं.पु.) झूठ बोलने वाला, लम्बी- चौड़ी झोकने वाला।
- झोर—(सं.स्त्री.) झोली, भिक्षा माँगने में प्रयुक्त होने वाली सैली।
- झोरीहा—(सं.पु.) ऐसा व्यक्ति जिसकी दिनचर्या झोली पर केन्द्रित हो।
- झोरइया—(सं.स्त्री.) किसी बात को बढ़ा- चढ़ाकर तिल का ताड़ बताकर बातें करने वाले, छोटे आकार की झोली या झोला।
- झोल—(ब.मु.) झोल खाना (बघेली मुहाबरा) जिसका अर्थ होता है पीछे हटना, धोखा होना, चक्कर आना।
- झोलइया—(अव्यय) श्रमिकों-मजदूरों स्त्री-पुरूषों द्वारा कार्य करते समय गाया जाने वाला बघेली लोकगीत।
- झोलबाउब—(क्रि.) छानने एवं छाँटने की क्रिया करवाना।
- झोलब—(क्रि.वि.) कपड़े से छानना, छाँटकर पदार्थ ग्रहण करना।
- झोला—(सं.पु.) दोपहर की कड़ी धूप के बाद नहाने में बुखार आना।
- झंझटि—(सं.स्त्री.) आपत्तिपूर्ण, बड़ी दिक्कतों से युक्त, दिक्कतनुमा, टंटा, बखेड़ा।
- झंगाझोरा—(विशे.) ढीला-ढाला, नीचे से ऊपर तक ढीला वस्त्र पहनना।
- टकर—(सं.स्त्री.) आदत, प्रवृत्ति, टेव।
- टकटकी—(सं.स्त्री.) एकटक देखना, पलक न गिरना, नजर गड़ाना।
- टकबाउब—(क्रि.) खुरदुरा करवाना, टाँका लगवाना।
- टकबाइ टकबाई—(सं.स्त्री.) टांकने की क्रिया, मजदूरी, शुल्क, टांकने का मेहनताना।
- टकिया—(सं.पु.) पत्थर टाँकने वाला, टंकन कर्ता।
- टका—(सं.पु.) सिक्का या रूपया, पैसा।
- टँगरी—(सं.स्त्री.) टाँग, टगरी, चीरना बघेली मुहावरा।
- टटेर—(सं.पु.) ज्वार के सूखे डंठल।
- टरकाउब—(क्रि.) एक स्थान से दूसरे स्थान में रख देना, टाल देना, टालमटोल करना, बहानेबाजी बता देना।
- टटस—(विशे.) ठोस, मजबूत, स्वास्थ्य एवं जवान, चलने-फिरने लायक।
- टटोहब—(क्रि.) टटोलना,किसी वस्तु को खोजना, हाथ से छूकर पता लगाना, थाह लगाना।
- टठुलिया—(सं.स्त्री.) छोटी सी थाली, प्लेट जैसी थाली।
- टठिया—(सं.स्त्री.) थाली, टाठी।
- टनमन—(विशे.) मजबूत, हृष्ट-पुष्ट, चलने योग्य, स्वस्थ्य, पहले से ठीक।
- टन्नाब—(क्रि.) रोते-रोते शांत, रूक जाना, रूदन में ड़ूब जाना।
- टनाटन—(सं.स्त्री.) नगद, चल सिक्का, त्वरित भुगतान, मूल्य देकर वस्तु लेना।
- टंटा-टोरब—(ब.मु.) नामोनिशान मिटा देना, काम तमाम करना, प्रकरण को समूल नष्ट करना, झंझट समाप्त करना।
- टंटनाउब—(क्रि.) टन-टन की क्रिया करना, घण्टी बजाना।
- टन्च—(विशे.) चंचल, तेज तर्राट, होशियार एवं फुर्तीला।
- टंटपाली—(क्रि.वि.) बचकानी हरकत, अनाप- सनाप कार्य, शरारतयुक्त क्रिया।
- टन्ट-घण्ट—(सं.पु.) दैनिक कार्य, वाह्य आडम्बर, टन्टघन्ट बजाकर पूजा का कार्य करना।
- टप्पा—(सं.पु.) खेतों-खलिहानों के गीत, मजदूरों का लोकगीत।
- टपरा—(सं.पु.) बाँस-फूस की झोपड़ी, अस्थायी लकड़ी वाला छोटा सा घर।
- टपाका—(विशे.) सुस्पष्ट आकार बहुत बड़ी बिन्दी, अलग-थलग दिखना।
- टम्ब—(सं.पु.) तास खेलते समय तुरूप का निर्धारण।
- टरबाटारब—(ब.मु.) घर छोड़कर कुछ समय के लिए बाहर निकल जाना, टाल-मटोल करके टाल देना, पिण्ड छुड़ाना।
- टरब—(क्रि.) किसी स्थान से चले जाना, घटना का टल जाना, अदृश्य होना।
- टरकाउब—(क्रि.) एक स्थान से दूसरे स्थान में रख देना, टाल देना, टाल-मटोल करना, बहानेबाजी बता देना।
- टर्राब—(क्रि.) अकड़कर बोलना, कुत्ते सा गुर्राना, कर्कश ध्वनि निकालना।
- टसमस—(सं.स्त्री.) एक स्थान से जरा भी न हिलना, न खिसकना।
- टहकारब—(क्रि.वि.) तेजी से बोलना, सशक्त स्वर।
- टहुआ—(सं.पु.) उबले आम का प्ररस, हल्का-फुल्का कार्य।
- टहूका—(सं.स्त्री.) छोटा-मोटा घरेलू काम, सेवा, काम धंधा।
- टहटी—(सं.स्त्री.) पीतल धातु। टा
- टांँकब—(क्रि.) टाँका लगाना, पत्थर में टंकन करना, खुरदुरा बनाना।
- टांँकी—(सं.स्त्री.) किसी वस्तु पर खुदाई करना, टंकन करने वाली लोहे की कील, टाँकीन लागी, ब. मु.।
- टाँंगब—(क्रि.) लटकाना, ऊपर उठाकर लेना, पकड़ से बाहर वस्तु को रखना, विलम्ब किये रहना, लालच में फंॅसाये रहना।
- टांँगर—(सं.पु.) टाँंग, जँघा।
- टाँगी—(सं.पं.) कुल्हाडी, लटकी हुई, टंँगी हुई।
- टाटक—(विशे.) तरोताजा, तुरन्त का बना हुआ, गर्मागर्म, खाद्य पदार्थ।
- टाँठ—(विशे.) ठोस, हल्का गीला।
- टाठी—(सं.स्त्री.) थाली।
- टाड़—(सं.पं.) परौहा ब्राम्हण की एक प्रजाति।
- टांड़ना—(सं.पु.) परेशानी, समस्या ग्रसित, दुर्गति, आफत, कष्टप्रद स्थिति।
- टापब—(क्रि.) आते-जाते रहना, चक्कर लगाना, सुन्दर अक्षर लिख देना। टाँँ ँ
- य-टाँंय—(सं.स्त्री.) अनावश्यक की वार्ता, टाँंय-टाँय फिस्स (बघेली मुहावरा), तोते की तरह एक साँस में बोलना, अप्रिय शब्द।
- टार बहिटआव—(सं.स्त्री.)टाल मटोल, अनसुनी करना, अनदेखी करना, बहाना बता के टाल देना, टार बहिटीयाब, ब.मु.।
- टार टहुआ—(सं.पु.) हल्का-फुल्का काम करना, इधर से उधर वस्तु को रखना।
- टारब—(क्रि.) टाल देना, दूर कर देना, पास से हटा देना, घर से बाहर कर देना।
- टाल—(सं.पु.) तेन्दूपत्ता का क्रय केन्द्र, लकड़ियों का संचयन स्थल। टि
- टिक्कड़—(सं.पु.) हाथ से बनी मोटी-मोटी रोटियाँं।
- टिकब—(क्रिया) बहुत दिनों तक किसी के यहाँं ठहरे रहना, किसी वस्तु का वस्तु पर टिकना, अति टिकाउपन होना, पाँव जम जाना।
- टिकउना—(सं.पु.) उपहार या पारतोषिक, टीका नामक परम्परागत व्यवहार।
- टिकुरा—(सं.पु.) उच्च भूमि, टीलानुमा, खेत, टीला।
- टिकुली—(सं.स्त्री.) बिन्दी, गोल आकार की नारी श्रृँगार वस्तु।
- टिकोरी—(सं.स्त्री.) आम के प्रारम्भिक फल, शिशु आम्रफल।
- टिटरीटी—(विशे.) चिड़चिड़ा व्यक्ति, अति दुर्बल एवं कमजोर।
- टिटिंगा—(विशे.) अति दुर्बल शरीर वाला, एकहरा शरीर का आदमी।
- टिपुर्रब—(क्रि.) किसी के ऊपर जल्दी ही बिगड़ जाना, बात-बात में नाखुश हो जाना।
- टिटिरिही—(सं.स्त्री.) अति दुर्बल, पतला शरीर, एक चिड़िया विशेष का नाम।
- टिटुरिआब—(क्रि.) सिकुडना, ठंण्ड या भय के कारण अंगों को सिकोड़ना।
- टिटिम्मा—(सं.पु.) आवश्यक औपचारिकता, परम्परागत कार्य, रूढ़िगत मान्यता।
- टिड़िन—(सं.पु.) तामस, बात-बात में बिगड़ने की प्रवृत्ति, जोश।
- टिपिर टिपिर—(अव्य) बिरल पानी की बूँदे, छप्पर पर बूँद गिरने से उत्पन्न ध्वनि, पानी की बूँदों सा बातें करना।
- टिपकी—(सं.स्त्री.) भाल की बिन्दी, शून्य आकार का चिन्ह।
- टिर्रा—(विशे.) अति दुर्बल, पतला, एकहरा शरीर, व्यक्ति का नाम।
- टिहुनी—(सं.स्त्री.) जहाँ से हाथ मुड़ता है वहाँं की गाँठ।
- टिहुनिआब—(क्रि.) घुटनों से मारना, घुटने से किसी का शरीर दबाना।
- टिहुनिआब—(क्रि.) घुटना मोड़कर जमीन पर बैठना।
- टिल्ल पो—(ब.मु.) बच्चों का शोरगुल, कार्य करने से आगे-पीछे होना। टी
- टी.टी.—(विशे.) जीर्ण-शीर्ण एवं चिड़चिड़ापन, अति दुर्बल एवं पतला।
- टीकुर—(सं.पु.) चोंट लगने से फोड़े की तरह किसी अंग में फूल आना।
- टीडी—(सं.स्त्री.) टिट्डी दल, टीड़ीकुस उतराब, बघेली मुहावरा।
- टीप—(सं.स्त्री.) लेन-देन वाला खाता, स्पर्श कर पाना, दस्तावेज।
- टीमटाम—(सं.स्त्री.) दिखावायुक्त सजावट, कृत्रिम सौंदर्य हेतु श्रृँगार।
- टीहड़—(सं.स्त्री.) कमर के नीचे हिप की गुटकेदार हड्डी, टीहड़ मराना, बघेली मुहावरा। टु
- टुकबा—(सं.पु.) पुराने कपडे का एक टुकड़ा।
- टुकुर टुकर—(अव्य) एकटक किसी को देखना, मौन रहकर चुपचाप देखते रहना, लाठी टेककर धीरे-धीरे चलना। (क्र.वि.)
- टुच्चा—(विशे.) बदमाश एवं घृणित व्यक्ति, ओछा कार्य करने वाला।
- टुच्चई—(क्रि.) बचकानी हरकत, निन्दनीय कार्य, अति छोटेपन, ओछा कार्य।
- टुटुआउब—(क्रि.) लालचवश, किसी के द्वार में खड़े रहना, किसी के घर में दुके रहना, किसी के द्वार में बार- बार बने रहना।
- टुटपॅुंजिहा—(विशे.) अल्प पूंँजी का व्यक्ति, कम पूँजी वाला।
- टुटाहिल—(ब.मु.) बचपन से ही पेट भर भोजन न पाने वाला, पैर से टूटा हुआ शरीर से कमजोर।
- टुटहा गोड़—(ब.मु.) कोई भी आदमी, कैसा भी व्यक्ति, बघेली मुहावरा।
- टुटुरिआन—(विशे.) ठंड के कारण, सिकुड़े हुये अंग, दबा मन रहना।
- टुडटुराउब—(क्रि.) चना चबाना, दाँत से चना चाबने की आवाज।
- टुनटुन—(सं.पु.) अति प्यारा एवं नटखट शिशु, किसी का नाम।
- टुनमुनाब—(क्रि.) दुर्बल व्यक्ति का स्वस्थ्य एवं चैतन्य हो आना, मरीज आदमी का चलने-फिरने लगना।
- टुनगुन—(विशे.) चंचल, स्वस्थ्य, गतिशील, नटखट।
- टुन—(क्रि.) आक्रोश के कारण नाराज होना, नाराज होकर शीर्ष में चढ़ना।
- टुप्प—(विशे.) बूँद, अति अल्प मात्रा।
- टेघरब—(क्रि.) पानी-पानी होना, अत्यधिक प्रभावित होकर भाव-विभोर हो जाना, सहृदय हो जाना, किसी वस्तु का पिघल जाना।
- टेधराउब—(क्रि.सं.) पिघलाना, सहृदय करना, प्रभावित एवं आकर्षित करना।
- टेटबा—(सं.पु.) घास-फूस एवं पत्तियों की परतीया बाड़ा, घास-फूस का दरवाजा।
- टेटमुहा—(वि.) घोड़े की तरह मुंँह वाला व्यक्ति, एक गाली।
- टेटुआ—(सं.पु.) घोड़ा, लादने वाला गदहा।
- टेंटर—(सं.स्त्री.) कमर के नीचे का भाग, आँख की फूली, टेंट।
- टेंट—(सं.स्त्री.) धोती का फेड, टेट भरा रहना, बघेली मुहावरा।
- टेडुआब—(क्रि.) आवेश में आकर अकड़ना, लड़ने के लिये उतावला होना, पुरूष मूत्रांग का उत्तेजित होना, मर जाना, या समाप्त हो जाना।
- टेढनउक—(विशे.) झुकी हुई, मुड़ी हुई, कुछ तिरछी सी, सर्पाकार आकृति।
- टेंढ—(विशे.) तिरछा या अशुद्व, वक्रोक्ति बात, बिल्कुल-टेढ़ा।
- टेंढंॅमुहा—(विशे) टेढ़े मुँह वाला व्यक्ति, तिरछे मुँहवाला।
- टेढबा—(विशे.) टेढ़ा चलने वाला व्यक्ति, टेढ़ी-मेढ़ी वस्तु, टेढ़े मुँह वाले।
- टेढई—(सं.पु.) टेढ़ी गर्दन बाला, तिरछे मुंॅहवाला, किसी का नाम।
- टेढबंॅइता—(विशे.) टेढा पाँव करके चलने वाला, तिरछे पाँव का व्यक्ति।
- टेना—(सं.पु.) बाँस की टहनियाँ, सूखे बाँस की उपशाखाएँ।
- टुपकब—(क्रि.) बूँद-बूँद कर गिरना, पानी टपकना, धरती पर चूकर गिरना।
- टुपकाउब—(क्रि.) बूँद-बूँद कर गिराना, टपकाना, तरल पदार्थ चुआना।
- टुपुर-टुपुर—(अव्य) अनावश्यक रूप से जल्दी बोलना, बिना अवसर का प्रयोजन विहीन बोलना, बघेली मुहावरा।
- टुमाँकी—(सं.पु.) बीच में बोलकर सबकों हँसा देना, बीच-बीच में कुछ कहकर ठहाका लगवाना।
- टुरूर टुरूर—(अव्य) अनाज का खूब सूख जाना, सूखे चना चाबने पर उत्पन्न आवाज। टू
- टूका—(सं.पु.) रोटी का एक टुकडा, आधा या आंशिक भाग।
- टूट—(विशे.) टूटी हुई वस्तु, बिना लगाम के बोलने वाला, निर्भीक एवं निर्लज्ज वक्ता।
- टूंटा—(सं.पु.) घाटा या घाटा का सौदा, नुकसान या हानि।
- टूरा—(सं.स्त्री.) प्रिय कन्या, प्रिय पुत्री, बिटिया। टे
- टेंउ—(सं.स्त्री.) आदत या प्रवृत्ति, प्रकृति या स्वभाव।
- टेउब—(क्रि.) पत्थर में घिसकर धार पैनी करना, मूँछ में ताव चढ़ाना।
- टेउनखरा—(सं.पु.) औजार की धार पैनी करने वाला पत्थर, धार पैनी करने वाली।
- टेकब—(क्रि.) चरण स्पर्श करना, पाँव पड़ना, जमीन पर टिकाना, टेक या सहारा लेना, चेचक के बाद टीका लगाकर विदा करना।
- टेपर—(विशे.) टेढ़ा-मेढ़ा, कुछ तिरछा सा, आँख की तिरछी चितवन।
- टेपुआब—(क्रि.) गुर्राना, मर जाना, अकड़ना एवं ऐंठना।
- टेम—(सं.स्त्री.) दीपक की लौ, दीपक की ज्योति।
- टेमरि—(सं.स्त्री.) पशुओं के पूछ का बाल, जवान या समर्थवान होना।
- टेंय टेंय—(ब.मु.) तोते की तरह बोलते रहना, बीच में अनावश्यक बोलना।
- टेरब—(क्रि.) किसी को पुकारना या बुलाना, आवाज देना।
- टेरी—(सं.स्त्री.) आम की टहनी।
- टोका—(सं.पु.) किसी पात्र का छिद्र, कपड़े में छेद हो जाना, टोंक दो, टोंकिए या टोंक दीजिये। टो
- टोंट—(सं.पु.) तोते की चोंच, पक्षियों का मुख।
- टोटका—(सं.पु.) तांत्रिक प्रयोग, तंत्र-मंत्र।
- टोड़क्का—(सं.पु.) सुपाड़ी का टुकड़ा, नामक की बड़ी सी डली, ठोस टुकड़ा।
- टोरही—(सं.स्त्री.) टोना जादू जानने वाली, टोना मारने वाली।
- टोनी—(सं.स्त्री.) हँसिया का नुकीला वाला भाग, औजार का पैना हिस्सा।
- टोनकब—(क्रि.) उँगली मोड़कर किसी के सिर पर मारना, बीच में टोंक देना, हँसिया की टोनी से प्रहार करना।
- टोपरी—(सं.स्त्री.) टोकनी, बाँस का बना पात्र।
- टोपरा—(सं.पु.) बड़े आकार की बाँस की टोकनी, बांँस का बड़ा सा पात्र।
- टोरइली—(सं.पु.) बचपना, बचकानी हरकत, बच्चों की गतिविधि।
- टोरब—(क्रि.) तोड़ना, मरोड़ना, सीमा उल्लंघन करना, रिश्ता खत्म कर देना, मवेशियों को काट खाना।
- टोरबा—(सं.पु.) छोटी उम्र का लड़का, छोटा सा बच्चा।
- टोरउना—(सं.पु.) कम उम्र का लड़का, कुछ तोड़ने का पारिश्रमिक।
- टोरइया—(विशे.) तोड़ने वाला।
- टोरिया—(सं.स्त्री.) बच्चा मर जाने के बाद भी दूध देते रहने वाली दुधारू गाय-भैंस छोटी उम्र की लड़की, बिटिया या पुत्री।
- टोर्रा—(सं.पु.) नमक का बड़ा सा टुकड़ा, सुपाड़ी की बड़ी-बड़ी टुकड़ियाँं।
- टोला—(सं.पु.) कुछ घरों का समूह, गांँव का एक मुहल्ला।
- टोहब—(क्रि.) खोजना या अन्वेषण करना, थाह लगाना, धीरे-धीरे चलना।
- टोहिटोहि—(अव्य) थाह लगा-लगाकर आगे बढ़ना, पांँव जमा-जमाकर जाना। ठ
- ठउर—(सं.स्त्री.) जगह, भोजन करने के लिए जमीन पोतना, ठौर, स्थान।
- ठउरि आउब—(क्रि.) भोजन स्थल को पानी से सींचना, पवित्र बनाना।
- ठउरिबइया—(सं.पु.) भोजन स्थल में ठउर लगाने वाला।
- ठउर ठिकाना—(ब.मु.) संभावना, सुव्यवस्थित, निशि्ंचतता।
- ठउँका—(सं.पु.) यथोचित अड्डा, निर्धारित जगह, निश्चित स्थान, ठिकाना।
- ठउकाउब—(क्रि.) ठिकाना लगाना, जगह खोजना, तय करना, पता लगाना।
- ठउँकइया—(सं.पु.) ठिकाना तय करने वाला, खोजकर तय करने वाला।
- ठउहा—(सं.पु.) ठिकाने लगाना, स्थिर होना, हार मानकर चुप होना, शांत हो जाना।
- ठक्कर—(क्रि.) ठोकर, धक्का।
- ठक्करिआउब—(क्रि.) ठोकर मारना, ठोकर देकर भगाना, दर किनार करना।
- ठक्काठाही—(ब.मु.) दो टूक, खरी-खरी, स्पष्ट, बिना दबाव संकोच के।
- ठकुर सोहाती—(ब.मु.) मुंँह देखकर व्यवहार, पक्षपात पूर्ण।
- ठगब—(क्रि.) ठगना, झटका मारकर लूट लेना।
- ठगाब—(क्रि.) ठग जाना, ठगी का शिकार होना, लुट जाना।
- ठगबाउब—(क्रि.) किसी से ठगवाना, ठगने में सहयोग करना।
- ठगबरब—(क्रि.) किसी द्वारा ठग जाना, लुट जाना, घाटा खा जाना।
- ठगुआ—(सं.पु.) ठगने वाला, जिसके ठगने की आदत पड़ गई हो।
- ठगइया—(सं.पु.) ठगने वाला, ठग लेने वाला, ठग।
- ठगनहर—(सं.पु.) जो हमेशा ठगता रहता हो।
- ठगबिद्या—(ब.मु.) ठगने के लिए अमल में लाई गई विधि व बुद्वि।
- ठगिहौं—(क्रि.) ठगूँगा, ठग लूँगी, ठग लूँगा।
- ठगेंवतै—(क्रि.) ठग लिया था, ठगा था, ठग ली थी।
- ठटरी—(सं.स्त्री.) शरीर का ढॉँचा, बिना माँस का शरीरिक ढाँचा पुलिंग ’ठटरा’।
- ठठाउब—(क्रि.) किसी को मारना-पीटना, अस्त्र से प्रहार करना।
- ठठुरब—(क्रि.) ठंड से ठिठुरना, ठंड से सिकुड़ना।
- ठठ्ठा—(क्रि.वि.) हँसी का ठहाका, ठठ्ठा मारना बघेली मुहावरा।
- ठठुरान—(विशे.) ठंड के कारण सिकुड़ा हुआ, हाथ या अंग।
- ठंठनाब—(क्रि.वि.) सूखकर अतिठोस होना, खाली घड़े का सूखा होना।
- ठंडाब—(क्रि.) ठंडा होना, ठंड लगना, शान्त होना, चुप हो जाना।
- ठढुकब—(क्रि.) चलते-चलते रूकना, रूक- रूक कर चलना, थोड़े समय हेतु खड़े हो जाना, रूककर प्रतीक्षा करना।
- ठंडवाउब—(क्रि.) ठंडी कराना, शीतल करवाना, ठंडा कराना।
- ठढेसुर—(सं.पु.) दरवाजे पर अड़े रहने वाला, प्रायः खड़े रहने वाला।
- ठंडवइया—(सं.पु.) ठंडा करने वाला व्यक्ति, मावला शांत कराने वाला।
- ठनठनाब—(क्रि.) सूखकर खरा होना, बातचीत में सामना करना।
- ठनकब—(क्रि.) सिर का ठनकना, धातु पर धातु पटकने से आवाज होना।
- ठनगन—(क्रि.) इच्छा होते हुए भी न करने का नाटक करना, बहाने बाजी।
- ठनबाउब—(क्रि.) लड़ाई छिड़वा देना, झगड़े हेतु पानी दे देना।
- ठनब—(क्रि.) दो पक्षों में लड़ाई छिड़ जाना।
- ठनठन गोपाल—(ब.मु.) शून्य उपलब्धि, शून्य मूल्य, कुछ नहीं।
- ठनठनाउब—(क्रि.) सूखा घड़ा सा बजाना।
- ठप्प—(सं.पु.) एकदम बन्द, निरस्त, बिल्कुल स्थगित।
- ठप्पा—(सं.पु.) मुहर, चिन्ह।
- ठर्रा—(सं.पु.) महुए से तैयार कच्ची शराब, चबेना के अप्रस्कुटित दाने।
- ठसब—(क्रि.) जबरिया चिपककर बैठना, अनामंत्रित के बाद भी प्रवेश लेना।
- ठसइया—(सं.पु.) जबरिया ठसने वाला, बिना बुलाये जम जाने वाला।
- ठस—(विशे.) ठोस एवं पुष्ट, शख्त एवं कठोर।
- ठसका—(सं.पु.) गले में पानी अड़ने से खाँसी आ जाना,गले में पानी अड़ना।
- ठसिके—(विशे.) ठीक से, जोर लगाकर, ठीक से, दो टूक शब्दों में।
- ठसिआउब—(विशे.) दबाव देकर कार्य करने हेतु विवश कर देना।
- ठहिक ठहिके—(अव्य.) आराम से, रूककर, इत्मिनान से, सोच-विचार के।
- ठहुरूक—(विशे.) ठीक ठाक, अच्छा या जोरदार, देखने योग्य।
- ठहाका—(सं.पु.) अट्टहास, जोर की हँसी।
- ठहरब—(क्रि.) रूकना, विश्राम करना, रूक जाना, रह जाना।
- ठहराउब—(क्रि.) रोकवाना, रूकने की व्यवस्था करना, ठहरवाना।
- ठहरबइया—(सं.पु.) ठहरने वाला, रूकने वाला, विश्राम कर्ता, ठहरवाने वाला।
- ठहनाव—(क्रि.) निर्भीकता पूर्वक अकड़ना, भय रहित उत्तर देना। ठा
- ठाढ—(विशे.) एकदम खड़ा, सीधा, दण्डाकार।
- ठाँय—(सं.स्त्री.) बन्दूक से गोली छूटने से उत्पन्न ध्वनि।
- ठारी—(सं.स्त्री.) कड़ाके की ठंडी, ठंडी के कारण जमी हुई ओस। ठाँँ ँ
- व-ठाँंव—(अव्य) शान्त एवं सन्नाटा, अपने- अपने स्थान में हो जाना।
- ठासब—(क्रि.) दबाव देकर बढ़ता कदम रोकना, चेतावनी देना।
- ठासा—(सं.पु.) घमण्ड, अहंकार, अपने गुमान में उतान।
- ठाहिर—(सं.स्त्री.) स्थिर या स्थायी, उपयुक्त एवं अच्छी, पुलिंग ’ठाहर’।
- ठास—(सं.पु.) ठेके पर कृषि हेतु किसी को दी गई जमीन। ठि
- ठिकधर—(विशे.) सुनिश्चित एवं सही, सही ठिकाना, व्यक्ति का सुधर जाना।
- ठिगना—(विशे.) नाटा कद का, छोटे कद का, स्त्री.लिंग ’ठिगनी’।
- ठिठुरब—(क्रि.) ठिठुरना, ठंड से सिकुड़ना। ठु
- ठुकसा—(सं.पु.) सूखी रोटी का टुकड़ा, खाली सूखी रोटी।
- ठुँठबा—(विशे.) बिना सींग का बैल, ऊँगली कटा आदमी, बिना डाली व पत्ते का वृक्ष।
- ठुँठिया—(विशे.) लूला व्यक्ति, छोटे कद वाला, बिना सींग का बैल।
- ठुनकब—(क्रि.) किसी वस्तु के पानी के लिए मचलना या जिद करना।
- ठुनकइया—(सं.पु.) मचलने वाला, जिद करने वाला व्यक्ति।
- ठुनकाउब—(क्रि.) मचलवाना या जिद करने के लिए उत्प्रेरित करना।
- ठुनकिहौं—(क्रि.) मचलूँगा, मचलूँगी, जिद करूँगा या करूँगी।
- ठुर्रू—(सं.पु.) भूनने पर न प्रस्फुटित हुए चबेना के दाने।
- ठुँठाब—(क्रि.) पत्ते झड़ जाना और ठूँंठा होना, सींग विहीन होना। ठू
- ठूंँठा—(सं.पु.) नग्न पेड़, बिना पत्ता के जड़ सहित कटा हुआ पेड़।
- ठूठी—(सं.स्त्री.) सींग विहीन गाय व भैंस, लूली महिला।
- ठॅूंठ—(सं.पु.) वृक्ष का जड़ से लगा छोटा तना, दो टूक बोलने वाला व्यक्ति।
- ठूमुक—(विशे.) नाटे कद का आदमी व बैल।
- ठूसब—(क्रि.) जबरिया डालना, दबा- दबाकर डालना, खूब खा लेना। ठे
- ठें—(अव्य) पर, ऊपर में।
- ठेउहा—(विशे) स्थिर व शान्त, पेट का पानी पच जाना, ठेउहा, ब. मु.।
- ठेउहाउब—(क्रि.) चेतावनी देकर ठिकाने लगा देना।
- ठेकब—(क्रि.) बालों की छटाई करना, बढ़ते कदम में अंकुश लगाना।
- ठेकबाउब—(क्रि.) अनुमानित मूल्यांकन करवाना, बालों को छँटवाना।
- ठेकबइया—(सं.पु.) बालों को छाँटने वाला, ठेका तय कराने वाला व्यक्ति।
- ठेक्कड—(सं.पु.) बराबरी करना, सामना करना, धक्का।
- ठेकहा—(सं.पु.) ऐसा कार्य जो ठेके में लिया गया हो, ठेके का कार्य।
- ठेकार—(सं.पु.) शरीर पर बड़े-बड़े निकले हुए चकत्ते।
- ठेकुरा—(सं.पु.) अवारा पशु के गले में अंकुश हेतु बँधी लकड़ी।
- ठेंगा—(सं.पु.) अँगूठा, कुछ नहीं का संकेत।
- ठेंघब—(क्रि.) कोई वस्तु ले लेना, टिकना, टेंकना, सहारा लेना।
- ठेंघबाउब—(क्रि.) भारा उठाने में सहारा लगवाना।
- ठेघबइया—(सं.पु.) पकड़कर वस्तु स्वीकारने वाला, सहारा देने वाला।
- ठेंघाउब—(क्रि.) किसी के हाथ में कुछ देना, ओट लगाना, सहारा लेकर टिकाना।
- ठेंघी—(सं.स्त्री.) तकिया कलाम, बोलने की टेक।
- ठेंघना—(सं.पु.) टेकने वाली वस्तु, सहारा लेने वाली छड़ी।
- ठेंठी—(विशे.) नाटे कद की नारी या गाय।
- ठेंठरी—(सं.स्त्री.) बेसन की ग्रामीण सलोनी, गाँव का एक व्यंजन।
- ठेंठ—(विशे.) निरा ग्रामीण, बिना किसी मिलावट के, अकृत्रिम या मौलिक।
- ठेंठा—(सं.पु.) गदेली में फोड़ों का ठोस रूप, गदेली के चिन्ह।
- ठेंठाब—(क्रि.) हाथों में फोड़ों का पड़ जाना, आदती हो जाना।
- ठेंठान—(विशे.) ठेठें पड़े हुए, ऐसी गदेली जिसमें ठेठें ही ठेठें हों।
- ठेपी—(सं.स्त्री.) शीशी का ढक्कन, कान में ऊँगली डालना, शीशी का काग।
- ठेलब—(क्रि.) ताकत लगाकर अन्दर कीओर डालना, सहारा देकर आगे बढ़ाना।
- ठेलबाउब—(क्रि.) धक्का देकर गतिमान करवाना, स्वयं डलवाना।
- ठेलबइया—(सं.पु.) धक्का लगाने वाला, जोर लगाकर आगे बढ़ाने वाला व्यक्ति।
- ठेला—(सं.पु.) लकड़ी की गोमती, ट्रक या भार वाहक।
- ठेलिया—(सं.स्त्री.) नारियों द्वारा पैर की उँगलियों में धारित छल्ला।
- ठेलिहौं—(क्रि.) ठेलूँगी, धक्का देकर बढ़ाउँगी, सहारा दूँगी।
- ठेलबइहौं—(क्रि.) किसी से डलवाउँगी, धक्का देकर गतिमान करूँगी।
- ठेलमठेल—(ब.मु.) खींचातानी की स्थिति, आपसी मतभेद का होना।
- ठेव—(सं.पु.) चेतावनी, अंकुश, हिदायत, रोक-थाम।
- ठेस—(सं.पु.) धक्का पहुँचना, उँगलियों में ठोकड़ से लगी चोट।
- ठेसब—(क्रि.) जबरिया ठूँस-ठूँस कर डालना, दबाव देकर घुसेड़ना।
- ठेहर—(विश.) मध्यम कद, न लम्बा न छोटा कद। ठो
- ठोंकब—(क्रि.) चोट मारकर कील धंसाना, ठोंकना, मारना-पीटना।
- ठोंकबाउब—(क्रि.) ठोंकवाना, किसी को पिटवाना।
- ठोंकबइया—(सं.पु.) प्रहार करने वाला, ठोकने वाला, पिटाई करने वाला।
- ठोकड़ा—(सं.स्त्री.) एक वर्ष पहले की जनित दुधारू गाय व भैंस।
- ठोकड़—(सं.स्त्री.) पैर में लगी चोट, चोट मारना, धक्का खाना।
- ठोकड़िआउब—(क्रि.) ठोकर मारकर हटा देना, ठुकरा देना, धक्का देकर भगा देना।
- ठोकड़िआब—(क्रि.) ठोकर खा जाना, धक्का खाना, ठुकरा दिया जाना।
- ठोंके ठहनाब—(ब.मु.) अकारन अकड़बाजी करना, चोरी और सीना जोरी करना, डंके की चोट पर बिना भय के बोलना।
- ठोक्कड़—(सं.पु.) मुकाबला या बराबरी, चोट या ठेस लगना।
- ठोंगा—(सं.पु.) मोटे-मोटे बास के 2-2 फीट के लम्बे टुकड़े।
- ठोर्रसइ ठोर्रसई—(सं.स्त्री.) हँसी-मजाक, मनोविनोदी बातें एवं वार्ता।
- ठोर्रसऊँ-- (विशे.) मजाकिया शैली में मनोविनोदी अंदाज में।
- ठोर्रसहा—(सं.पु.) हँसी-मजाक करते रहने वाले प्रवृत्ति का आदमी।
- ठोसब—(क्रि.) जबरिया डालना, ठूँस-ठूँस कर खाना।
- ठोसबाउब—(क्रि.) ठूँस-ठूँस कर डलवाना, प्रवेश करवाना, अन्दर करवाना।
- ठोसबइया—(सं.पु.) ठोंसने वाला, ठूँस-ठूँस कर डालने वाला।
- ठोसीमा—(विशे.) ठोस ढंग से बना, ठोस, मजबूत एवं ठोस युक्त। ड
- डउआ—(सं.पु.) लकड़ी का बना करछुल के विकल्प का पात्र।
- डउका—(सं.पु.) पुरुष, मर्द, स्त्री.लिंग ’डउकी’।
- डउरि—(सं.स्त्री.) ढाँचा, खाका, बनावट, शक्ल सूरत।
- डउरब—(क्रि.) ढाँचा बनाना, नमूना तैयार करना, खाका खींचना।
- डउड़िआब—(क्रि.) अकेलेपन की उदासी की अनुभूति करना, अकेलापन लगना।
- डउड़ी—(सं.स्त्री.) मुनादी, नगड़िया द्वारा सूचना, मुनादी पीटना, ब.मु.।
- डॅउकब—(क्रि.) ताक में रहना, घात लगाये रहना, इंतजार करना।
- डक—(सं.पु.) दोष, अशुभ, डक परब ब. मु.।
- डकार—(सं.पु.) मुख से गैस का उद्गार, पेट भरने का सूचक।
- डखना—(सं.पु.) पंख, उपशाखाएँ, परिवार या वंश के सदस्य।
- डगर—(सं.पु.) रास्ता, एक हिंशक जानवर।
- डगना—(सं.पु.) नाव खेने वाला लम्बा बाँस, स्त्री.लिंग डगनी।
- डगनी—(सं.स्त्री.) मिट्टी खुदाई का नपना, गन्ने का एक नग।
- डग—(सं.पु.) साइकल में कम्पन की स्थिति, दो पांँव के बीच की दूरी।
- डगर डिगिर—(ब.मु.) अति दुर्बल चाल, डगमगाते हुए चलना, पाँव का लड़खड़ाना।
- डगडगाव—(क्रि.वि.) डगमगाना या कँपना, लड़खड़ाकर चलना।
- डगडउआ—(सं.पु.) एक प्रकार की घास, किसी गाँव का नाम।
- डग्गा—(सं.पु.) फाग गीत का एक किश्म, उथले किस्म का खेत, चार पहिया भार वाहक।
- डड़हरा—(सं.पु.) करछुल की डण्डी, पकड़ने वाला हिस्सा, मूठ या हत्था।
- डड़उकी—(सं.स्त्री.) पतली सी छोटी छड़ी, छोटा बाँस का दो फीट का टुकड़ा, पुलिंग ’डड़उका’।
- डड़ार—(सं.पु.) मैदानी भू-भाग, वह खेत जो सदैव पड़ती पड़ा रहता हो।
- डड़बार—(सं.पु.) कभी न जोता बोया जाने वाला खेत, खाली मैदान।
- डड़ई—(सं.स्त्री.) पतली बाँस की छोटी सी छड़ी।
- डड़िया—(सं.स्त्री.) विवाह में वर पक्ष द्वारा ले जाई गई साड़ी विशेष, ऊँची भूमि वाला उचहन खेत।
- डड़िआउब—(क्रि.) धोती को फाड़कर दोनों छोर को फिर सिल देना।
- डड़ब—(क्रि.) घाटा होना, दण्डित हो जाना, नुकसान हो जाना।
- डड़बाउब—(क्रि.) घाटा बैठा देना, किसी को दण्डित करवाना।
- डढिल्ला—(सं.पु.) दाढ़ी वाला, लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति।
- डढ़ियल—(सं.पु.) जिसके बड़ी-बड़ी दाढ़ी उगी हो, दाढ़ी वाला व्यक्ति।
- डढेल—(सं.पु.) व्यंजन पकाने के पश्चात कड़ाही में बचा हुआ तेल या घी।
- डण्डाकार—(सं.पु.) दण्डवत, लम्बवत लेट जाना।
- डण्डकमंडल—(सं.पु.) अपना उपयोगी सामान, घर गृहस्थी का सामान ब. मु.।
- डण्डी—(सं.स्त्री.) छोटी सी बाँस की लकड़ी, पुलिंग ’डण्डा’।
- डफुला—(सं.पु.) एक ग्राम्य वाद्ययंत्र, स्त्री.लिंग ’डफुली’।
- डफल डफल—(अव्य) वाद्ययंत्र की बेसुरी आवाज।
- डबरा—(सं.पु.) पानी से भरा गढ्ढा, पानी भरे गढ्ढे में भैंस का पड़ना।
- डबिया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार की डिब्बी।
- डबुलिया—(सं.स्त्री.) मिट्टी की बनी सकरे मुखवाली मिट्टी की लोटिया, ’डबुलिया कस मुँह, बघेली मुहावरा, पुलिंग ’डबुला’।
- डब्बल—(सं.पु.) पुराने प्रचलन का एक पैसे का सिक्का।
- डब्बा—(सं.पु.) डिब्बा, शून्य उपलब्धि, शट्टे का पैसा डूबना।
- डब्बी—(सं.स्त्री.) डिबिया, दिया, सिंदूरदान, चिमनी।
- डभका—(सं.पु.) चावल पानी एक साथ डालकर पकाया गया भात।
- डम्फान—(सं.पु.) दिक्कतनुमा कार्य, अतिरिक्त व्यवस्था।
- डमाडोल—(विशे.) मुहाने तक भरा पानी, दयनीय स्थिति, संदिग्ध हालात।
- डमरिआउब—(क्रि.) डामर लगाना, डामर से पात्र में पुताई कराना।
- डमरिहा—(सं.पु.) जिस बर्तन में डामर लगा हो, डामर रखने का पात्र।
- डरिया—(सं.स्त्री.) डली, एक वस्तु की टुकड़ी, डिगलिया।
- डरइया—(सं.स्त्री.) वृक्ष की उपशाखाएँ, डाली।
- डरक्का—(सं.पु.) नमक की बड़ी सी डली।
- डरीमा—(सं.पु.) डाली में ही पका हुआ फल, डाल का पका फल।
- डरील—(विशे.) डाली वाला, जिसमें डालियाँ हो, डालियों से युक्त वृक्ष।
- डल—(विशे.) कमजोर, दयनीय, गिरी हुई स्थिति।
- डँंहकाउब—(क्रि.) घाटा खाना, लुट जाना, पिट जाना, गंवा देना।
- डहठान—(सं.पु.) शिशु जन्म के छठवें दिन का उत्सव विशेष, शिशु संस्कार।
- डहरब—(क्रि.) पशुओं का चलकर आगे अग्रसर होना।
- डहराउब—(क्रि.) पशुओं को गतिमान करना, पशुओं को गन्तव्य की ओर ले जाना।
- डहर डहर—(अव्य) पशुओं को अग्रसर करने का सांकेतिक शब्द। डा
- डाइन—(सं.स्त्री.) चुड़ैल, राक्षसिन, चुड़ैल प्रवृत्ति की नारी।
- डाँगर—(विशे.) वयोवृद्व, निर्बल व्यक्ति, बूढा एवं कमजोर।
- डाँगब—(क्रि.वि.) कूद कर पार होना, लाँघना।
- डाँटा—(सं.पु.) खुफिया लगना, छिपकर बातें सुनना।
- डाँटी—(सं.स्त्री.) डाटी टइया (बघेली मुहाबरा), दिक्कतें, उलझने, अशान्ति।
- डाँठ—(सं.पु.) शीशी का काग, गेंहूँ का डंठल।
- डाढ—(सं.पु.) गलफड़े के अंतिम मसूढ़े, जबड़े की माँसपेशी।
- डाढा—(सं.पु.) सब्जी बनाने हेतु प्रयुक्त तेल-मशाला, कुँए के अंदर पावदान, दीवाल में छोड़ी गई चौड़ाईनुमा खंधा।
- डाढीजार—(सं.पु.) एक मनोविनोदी नारियों द्वारा दी जाने वाली गाली।
- डाँड़ा—(सं.पु.) औजार का मूठ, करछुल का पृष्ठ भाग। डाँँँ
- ड़—(सं.पु.) हरजाना, जुर्माना, नुकसानी, घाटा। डाँड़
- बाँध—(ब.मु.) जुर्माने के रूप में दण्ड, कार्य करने के लिए विवश करना।
- डाँड़ी—(सं.स्त्री.) तराजू, तराजू में लगी डंडी, एक लाइन, ककरीली भूमि।
- डाबर—(अव्य) दबे पाँव चलने की शैली, चुपके-चुपके आना-जाना।
- डामर—(सं.स्त्री.) डामरि।
- डार—(सं.स्त्री.) डाली, पौधों की शाखाएँ, वंश की उपशाखाएँ।
- डारा—(सं.पु.) दो खम्भों में रखी लम्बवत लकड़ी या रस्सी।
- डारब—(क्रि.) डालना, घुसेड़ना, प्रवेश कराना, क्षिद्र में घुसेड़ना।
- डाला—(सं.पु.) ट्रक, भार वाहक, किसी गाँव का नाम।
- डाह—(सं.पु.) पाने की इच्छा, पाने का लोभ, लालसा व लालच।
- डाहिल—(विशे.) प्रगतिशील, वृद्वि योग्य, होनहार। डि
- डिगिलिया—(सं.स्त्री.) गुड़ या नमक की डली, एक ठोस टुकड़ी, मिट्टी की डली।
- डिग्गी डोला—(क्रि.वि.) एक व्यक्ति द्वारा सिर व दूसरे द्वारा पांँव पकड़कर चलने की शैली, दो आदमी द्वारा उठाकर चलने की विधि।
- डिठमन—(सं.पु.) जेठ मास की एकादशी का एकव्रत वाला त्यौहार।
- डिठिआर—(सं.पु.) जिसकी आँखों में अभी सब कुछ दिखता हो, मजबूत आंँखों वाला।
- डिठउरी—(सं.स्त्री.) छोटा सा डिठौना, डीठ से बचने हेतु एक टोटका।
- डिठिआउब—(क्रि.) देखकर नजर लगा देना, डीठ लगा देना।
- डिठोन—(सं.पु.) जेठ मास की एकादशी तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू त्यौहार।
- डिढ—(विशे.) मजबूत व पुष्ट, हृष्ट-पुष्ट, धनवान।
- डिढके—(विशे.) मजबूती के साथ, खूब जोर से, जमकर, पर्याप्त।
- डिढान—(विशे.) दानों की परिपक्वता, सख्त एवं पुष्ट दाने से युक्त।
- डिढबाउब—(क्रि.) पुष्ट एवं परिपक्व करवाना व कराना।
- डिढबइया—(सं.पु.) फल या दानों को पुष्ट व परिपक्व करवाने वाला।
- डिब्बा—(सं.पु.) पानी व अनाज नापने रखने का टीन का पात्र।
- डिबिया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का काजल व सिन्दूर रखने का पात्र।
- डिमारी—(सं.स्त्री.) डिमार या दीमक।
- डिमरिआन—(विशे.) दीमक का खाया हुआ, दीमक लगी हुई वस्तु।
- डिल्ल—(सं.स्त्री.) बैल के मध्यभाग में उठा माँस का गोला।
- डिलिया—(सं.स्त्री.) नमक गुड़ या मिट्टी की एक डली या टुकड़ी।
- डिलहा—(विशे.) खुदाई या कशीदादार किवाड़ा, ढीले से युक्त खेत।
- डिल्लारिया—(विशे.) बड़े-बड़े डिल्लों वाला बैल विशेष।
- डिलार—(सं.पु.) जोता हुआ खेत, जिस खेत में डीले ही डीले हों।
- डिलरहा—(सं.पु.) मिट्टी के ढेलों से परिपूर्ण खेत।
- डिलिआउब—(क्रि.) खेतों के डीले संचित करना, मिट्टी के ढेलों से प्रहार करना।
- डिहुला—(सं.पु.) मोटी एवं काले छिलके वाली एक धान की किस्म। डी
- डीठ—(सं.स्त्री.) नजर, आशंका का रोग, टोना-जादू।
- डीमी—(सं.स्त्री.) दीमक, दिमाक के कीड़े।
- डीला—(सं.पु.) मिट्टी के टुकड़े, ढेला।
- डीलि—(सं.स्त्री.) शारीरिक ढाँचा, शारीरिक बनावट, नाक-नक्श।
- डीह—(सं.स्त्री.) पुराने घर की जगह, गॉंव का देवता, गोत्र जाति का परिचय। डु
- डुग्गी—(सं.स्त्री.) छोटे आकार की नगड़िया, मुनादी या सूचना।
- डुराब—(क्रि.) हिल-डुल जाना, सत्य से चूक जाना, प्रण टूट जाना।
- डुगाउब—(क्रि.) हिला-डुला देना, हिलाना, ध्यान भंग कर देना।
- डुगबइया—(सं.पु.) ध्यान भंग करने वाला, डुलाने वाला।
- डुगुर डुगुर—(अव्य) शरीर डुलाते हुए चलना, ठंड की कंपकपी से शरीर हिलना।
- डॅुंठहा—(सं.पु.) बिना पत्ती का ठूंठ वृक्ष, डुठुरी युक्त अनाज।
- डॅुंठबा—(सं.पु.) एक हाथ से विकलांग व्यक्ति, सींग टूटा बैल।
- डुठुरू—(सं.पु.) अप्रस्फुटित चबेना के दाने।
- डुड़बा—(विशे.) टूटी सींग का पशु, बिना पत्ते शाखा का वृक्ष, काठ का मोटा सा टुकड़ा।
- डुड़बइठा—(सं.पु.) मर जाने की अशुभ कामना वाली एक गाली, स्त्री.लिंग डुड़बइठी।
- डुबाउब—(क्रि.) डुबाना, पानी में पूरी वस्तु को डालना।
- डुबाब—(क्रि.) डूब जाना, पानी के अन्दर समा जाना।
- डुबकँइया—(अव्य) डुबकी लगाते हुए जल में गतिमान होने की शैली।
- डुबकी—(सं.स्त्री.) गोता लगाना, पानी में डूबना और फिर उतराना।
- डुहकइया—(विशे.) अविरल अश्रुधार, अश्रुधार युक्त रूदन की शैली। डुहुक- डुहुक कर रोना, बघेली मुहावरा।
- डुहुराब—(क्रि.) किसी की ओर जाने का मन बनाना, धीरे-धीरे पहुँचना। डू ू
- डॅूठा—(सं.पु.) पत्ते विहीन, ठूँठ, जड़ से लगा छोटा तना।
- डॅूंड़ा—(सं.पु.) मोटी लकड़ी का टुकड़ा, जिसकी सींग टूटकर छोटी हो (विशेष)
- डूड़ी—(विश.) बिना सींग की गाय या भैंस, छोटी सींग वाली। डे
- डेउढा—(विशे.) डेढ़ गुना अधिक, एक सही एक बटे दो की मात्रा।
- डेचकी—(सं.स्त्री.) एल्यूमोनियम का छोटा सा पात्र, पुलिंग ’डेचका’।
- डेढहथा—(विशे.) डेढ़ हाथ की लम्बी लाठी, जिसके डेढ़ हाथ ही हो।
- डेड़हा—(सं.पु.) सर्प की एक प्रजाति।
- डेबर—(सं.पु.) लिखने-पढ़ने में जिसका बांया हाथ चलता हो, बांया हाथ।
- डेबरहा—(सं.पु.) बायें हाथ से लिखने व खाने वाला व्यक्ति।
- डेबा—(सं.पु.) बांया हाथ।
- डेरइया—(सं.स्त्री.) डाली, वृक्ष की शाखायें व उपशाखायें।
- डेलार—(सं.पु.) जुता हुआ खेत, जिस खेत में मिट्टी के ढीले हों।
- डेलहा—(सं.पु.) ऐसा खेत जो मिट्टी के ढीले से संतृप्त हो।
- डेला—(सं.पु.) मिट्टी की डली, मिट्टी के टुकड़े।
- डेलहरा—(सं.पु.) जिस खेत में बड़े-बड़े मिट्टी के डेले ही डेले हों।
- डेली—(सं.स्त्री.) मिट्टी की डली, पुलिंग डेला।
- डेहरी—(सं.स्त्री.) देहली, द्वार का निचला हिस्सा।
- डेहरउटा—(सं.पु.) द्वार के बाहर ओरमानी के नीचे बने पतले चबूतरे।
- डेहिरिआउब—(क्रि.) देहली को गोबर से पुताई- लिपाई करना। डो
- डोकलइया—(सं.स्त्री.) नारियल की खोपड़ी, खोपड़ी का कटोरानुमा आधा भाग।
- डोकिया—(सं.स्त्री.) नारियल की क्षिद्रनुमा आधी झुकावदार खोपड़ी।
- डोकरी—(सं.स्त्री.) बूढ़ी नारी, बुढ़ापे से झुकी हुई बुढ़िया।
- डोकरिया—(सं.स्त्री.) जो बुढ्ढी होकर एकदम झुक गई हो ऐसी नारी।
- डोकरा—(सं.पु.) बुढ्ढा व्यक्ति, झुकी कमर का वृद्व आदमी।
- डोंगा—(सं.पु.) महुए का तरोताजा फूल, देशी काठ की नाव।
- डोंगरिया—(सं.स्त्री.) छोटी पहाड़ी, झाड़ियों व पत्थरों से आच्छादित टीला।
- डोंगरा—(सं.पु.) बड़े आकार का पहाड़।
- डोंड़ा—(सं.पु.) इलायची की भाँंति मशाला, फल की गुठुली।
- डोंड़ी—(सं.स्त्री.) छोटी-सी नाव, फल की गुठुली।
- डोभी—(सं.स्त्री.) रबी की फसल में उगने वाली एक घास विशेष।
- डोभ—(क्रि.वि.) दो क्षिद्रों के बीच का सुई का धागा, सुई की सिलाई।
- डोभरी—(सं.स्त्री.) उबाला गया महुआ, महुए का ग्राम्य व्यंजन।
- डोमार—(सं.पु.) डोम की एक प्रजाति।
- डोमार पर डोमार परै—(ब.मु.) डोम पड़ जाये के आशय की गाली व बघेली मुहावरा।
- डोरा—(सं.पु.) धागा, सूत, संरचना।
- डोरिया—(सं.स्त्री.) नारी केश बाँधने वाला रेशे का धागा विशेष।
- डोरिआउब—(क्रि.) लम्बी रस्सी से पशु को बाँधना, पीछे-पीछे लिये रहना।
- डोरी—(सं.स्त्री.) डोर, रस्सी, महुए का फल- बीज, अटकी हुई श्वांस।
- डोर—(सं.स्त्री.) पतंग की रस्सी या धागा, लम्बी पंक्ति।
- डोल—(सं.स्त्री.) झूला या झाँकी, गोले आकार की बाल्टी, भू डोल।
- डोलची—(सं.स्त्री.) प्लास्टिक की डलिया, पानी भरने की चौड़ी बाल्टी।
- डोलडाल—(अव्य) टट्टी मैदान के लिए संकेत, नित्य क्र्रिया।
- डोलब—(क्रि.) हिलना-डुलना, डगमगाना, एक स्थान से हटना।
- डोलाउब—(क्रि.) हिलाना-डुलाना, इधर-उधर करना।
- डोलबइया—(सं.पु.) हिलाने वाला व्यक्ति, डुगाने व धक्का देने वाला।
- डोला—(सं.पु.) पालकी, आदमी को ढोने वाला विशेष चारपाई नुमा पात्र।
- डोलहा—(सं.पु.) पालकी या डोली उठाने वाले कहार।
- डोलिया—(सं.स्त्री.) खेत की छोटी क्यारियाँ, छोटे आकार की डोली।
- डोहर—(विशे.) हल्की-हल्की तरल पदार्थ की गर्म स्थिति, कुनकुना पानी यादूध।
- डोहरिआन—(विशे.) नाम मात्र का गर्म हुआ दूध व पानी, कुनकुना।
- ढकब—(क्रि.) ढकना, मूंँदना, छिपाना, ढक लेना व ढक देना।
- ढकबाउब—(क्रि.) किसी से ढकवाना, चारों ओर से छुपाना।
- ढकबइया—(सं.पु.) ढकने वाला, मूँदने या छिपाने वाला व्यक्ति।
- ढका मुदा—(ब.मु.) बनी हुई इज्जत, बना बनाया सम्मान।
- ढँखिया—(सं.स्त्री.) टहनियों युक्त सूखी झाड़ी, जो लताओं के लिपटने हेतु लगाई गई हो।
- ढट्ठा—(सं.पु.) कान तक बँधी कपड़े की पट्टी, मुरेठा, स्त्री.लिंग ’ढट्ठी’।
- ढठाब—(क्रि.) निर्भीक हो जाना, आदती बन जाना, घासामीसी होना।
- ढठाउब—(क्रि.) किसी को हथकड़ी लगवाकर बंद करवाना।
- ढनगब—(क्रि.) लुढ़क जाना, लुढ़क-लुढ़क कर बढ़ना, मृत्यु हो जाना।
- ढनगाउब—(क्रि.) किसी को लुढ़काना, मार डालना, अनभल मनाना।
- ढनगइया—(सं.पु.) लुढ़काने वाला व्यक्ति, हत्यारा व्यक्ति।
- ढनढनाब—(क्रि.) वस्तु का लुढककर आगे पहुँच जाना, लुढ़कना।
- ढपूसा—(सं.पु.) उलाहना, असंतोष ज्ञापन, बुरा-भला कथन।
- ढपोरसंख—(ब.मु.) बिना मतलब का बयान करते रहने वाला, झूठी एवं बड़ी-बड़ी घोषणाएँ करने वाला।
- ढपुरा—(सं.पु.) पत्तल के डंठल का ढेप।
- ढपरा—(सं.पु.) खली का टुकड़ा, सूखी रोटी के लिए प्रतीक।
- ढमढमउहन—(विशे.) ढमाढम बाजे-गाजे के साथ कार्य की सम्पन्नता।
- ढमढमाउब—(क्रि.) बाजा बजवाना, उत्सव मनाना, खुशी जाहिर करना।
- ढमढमाब—(क्रि.) ढमढम की आवाज होना, बाजे का बजना।
- ढमढबइया—(सं.पु.) उत्सव मनवाने वाला, ढमाढम बजाने वाला।
- ढरका—(सं.पु.) आँख के आँसू, आँख से पानी बहने वाला रोग।
- ढरकब—(क्रि.) गिर जाना, लुढ़क जाना, शनैः-शनैः आगे बढ़ना, किसी के घर आने-जाने लगना।
- ढरकाउब—(क्रि.) तरल पदार्थ गिराकर बहा देना, पानी से भरा पात्र लुढ़काना। ढरीमा (विशे.) ढलाई किया हुआ आभूषण, कलात्मक गहना।
- ढरबाउब—(क्रि.) साँचे में ढलवाना, गढ़वाना, खुदाईनुमा गहना बनवाना।
- ढरबइया—(सं.पु.) ढालने वाला, खुदाई करके आभूषण बनाने वाला।
- ढरकुलिया—(सं.स्त्री.) नारियों के कान का पुराने चाल का गहना।
- ढर्रा—(सं.पु.) चौड़ा रास्ता, गाँव की गैल, सड़क, तौर तरीका।
- ढलब—(क्रि.) अस्त होना, वातावरण के साथ घुल-मिल जाना, ढल जाना।
- ढलबाउब—(क्रि.) किसी को परिस्थिति के अनुरूप मोड़ लेना।
- ढहब—(क्रि.) धराशायी होना, गिर जाना, गिरकर भूमिगत होना।
- ढहाउब—(क्रि.) खड़ी दीवाल या पेड़ को गिरा देना।
- ढहाब—(क्रि.) पेड़ या दीवाल का अपने आप गिर जाना। ढा
- ढाँकब—(क्रि.) ढकना, चारों ओर से छिपाना, ढक देना, छिपा लेना।
- ढाँखा—(सं.पु.) लताओं के लिपटने के लिए प्रयुक्त शुष्क झाड़ी।
- ढाँगी—(विशे.) काफी लम्बी नारी, ऊबड़-खाबड़ चेहरे वाली।
- ढाठर—(सं.पु.) पेट के प्रकोष्ठ, पेट के दोनों कोठे।
- ढाठी—(सं.स्त्री.) आदत पड़ जाना, अभ्यस्त हो जाना, आदत में परणित होना।
- ढाठब—(क्रि.) ताले के अन्दर बंद कर देना, संभोग क्रिया करना।
- ढाढस—(सं.पु.) धैर्य, साहस, हिम्मत, दृढता, सान्त्वना।
- ढारब—(क्रि.) ढाल देना, किसी के ऊपर मढ देना, अपना दोष दूसरे पर थोपना, देवता को जल चढ़ाना, अशगुन मनाना।
- ढालब—(क्रि.) ढालना, गढ़ना, ढलाई करना।
- ढालू—(विशे.) ढालनुमा स्थिति, ऊँचाई के बाद उतारनुमा जमीन। ढि
- ढिकुरब—(क्रि.) वृद्व होकर आगे की ओर झुक जाना।
- ढिकुरी—(सं.स्त्री.) ढीकुर।
- िंढग ढोरा—(विशे.) नग्न वदन, वस्त्र रहित, नंग-धड़ंग।
- िंढग्ग—(सं.स्त्री.) किनारी, धोती की बाट, कलात्मक लिपाई-पुताई।
- ढिंगही—(सं.स्त्री.) किनारीदार, सस्ती एवं मोटी सादी धोती।
- ढिगिआउब—(क्रि.) चित्रकारी युक्त कच्चे फर्श की लिपाई-पुताई करना।
- ढिठाब—(क्रि.) धीरे-धीरे आदत पड़ जाना, निर्भीक बन जाना, मुँह लगा बन जाना।
- ढिमनिया—(सं.स्त्री.) कहार की पत्नी, कहारिन।
- ढिमर ढिमरा—(सं.पु.) ढीमर या कहार, स्त्री.लिंग ’ढिमरिन’।
- ढिमरहाई—(सं.पु.) कहारों द्वारा गाया जाने वाला विशेष लोकगीत।
- ढिलरब—(क्रि.) खूँटे से छूटना, बाहर निकलना, बंधन मुक्त होना।
- ढिलबइया—(सं.पु.) घर के अन्दर से मवेशी को बाहर निकालने वाला।
- ढिलहर—(विशे.) अति ढीला-ढाला नाप का धारित वस्त्र।
- ढिलर मिलर—(अव्य) अव्यवस्थित एवं अनिश्चततापूर्ण।
- ढिलपोक्का—(विशे.) एकदम से ढीला बिना नाप का, लुंज-पुंज एवं सुस्त प्रवृत्ति, स्त्री.लिंग, ’ढिलपोक्की’। ढी
- ढीठ—(विशे.) हिम्मती, साहसी, निर्भीक, घुला-मिला, संकोच रहित।
- ढीसा—(सं.पु.) गुड़ का बड़ा सा ढेला या टुकड़ा।
- ढीलब—(क्रि.) खूँटे से मवेशी छुटकाना, क्यारी में पानी लगाना।
- ढील ढाल—(अव्य) सुस्त एवं लापरवाह, जबावदारीहीन, जो तटस्थ न हो ऐसी प्रवृत्ति।
- ढुकब—(क्रि.) लालचवश किसी के द्वार पर बैठे रहना।
- ढुकइया—(सं.पु.) पराये द्वार पर प्रायः अड़े रहने वाला।
- ढुकबू—(क्रि.) द्वार पर अड़ी रहोगी, मेरे मुख ताकोगी।
- ढुढबाउब—(क्रि.) किसी से चीज खोजवाना, गुम का पता लगाना।
- ढुढिया—(क्रि.वि.) झारा तलाशी, घर को छान डालना, खोजबीन।
- ढुढिआउब—(क्रि.) घर के सामान की एक तरफ से खोजबीन करना।
- ढुनढुनाब—(क्रि.) लुढ़कते हुए जमीन पर अग्रसर होना, फूल की ढुनढुनी लगना।
- ढुनढुनाउब—(क्रि.) वस्तु को लुढकाना, लुढकाते हुए आगे बढ़ा देना।
- ढुनढुनइया—(सं.पु.) लुढ़काते हुए वस्तु को अग्रसर करने वाला व्यक्ति।
- ढुनढुनी—(सं.स्त्री.) फूल की कली, अविकसित पुष्प।
- ढुनढुनियाब—(क्रि.) फूल में ढुनढुनी का लगना।
- ढुरब—(क्रि.) मन मिलने लगना, मेल मिलाप होने लगना, आना-जाना होना।
- ढुरकब—(क्रि.) धीरे-धीरे बढ़ना, दबे पाँव आना, चालू करना, राह गहना।
- ढुरकइया—(सं.पु.) धीरे-धीरे चलते रहने वाला, आना-जाना, चालू करने वाला। ढू
- ढूकब—(क्रि.) ललचायी आँख से किसी को देखना, एकटक घूरकर देखना।
- ढूढब—(क्रि.) खोजना, गुम का पता लगाना, अन्वेषण करना। ढूँँ
- ूँढी—(सं.स्त्री.) प्रजनन पश्चात् नारियों को दिया जाने वाला घी-गुड़ का लड्डू। ढे
- ढेक—(सं.पु.) जलाशय में रहने वाला बड़ी टांग का एक पक्षी विशेष।
- ढेकुर—(सं.पु.) ढीकुर, ढीकुर सा लम्बा व्यक्ति।
- ढेख—(सं.पु.) लम्बी टाँगों वाला आदमी, एक पक्षी का नाम।
- ढेचकब—(क्रि.) लंगड़ाते हुए चलना, असमान्य चलने की चाल।
- ढेढा—(सं.पु.) आँख की पुतली सहित सम्पूर्ण प्रक्षेत्र।
- ढेपरा—(सं.पु.) खली का बडा सा टुकड़ा, खली जैसा खुरदुरा पाँव।
- ढेपरी—(सं.स्त्री.) खली की टुकड़ी, पत्ते का डंठल।
- ढेप्पी—(सं.स्त्री.) शीशी का काग, शीशी का ढक्कन।
- ढेपुनी—(सं.स्त्री.) पेन का ढक्कन, पत्ता का डंठल का जुड़ाव बिन्दु।
- ढेबरी—(सं.स्त्री.) पत्ते के डंठल का वह बिन्दु जो डाली से संलग्न रहता है।
- ढेर—(सं.पु.) विलम्ब या देर, वस्तुओं की राशि, टाल-मटोल।
- ढेरिया—(सं.स्त्री.) औरतें, लडकियाँ या युवतियाँ।
- ढेरा—(सं.पु.) रस्सी कातने वाला काष्ठ का प्लस आकार का एक उपकरण।
- ढेला—(सं.पु.) गुड़ का डिगला, मिट्टी का ढेला।
- ढेलहा—(सं.पु.) ढेले से युक्त खेत, जो खेत जुता हो।
- ढेलहाब—(क्रि.वि.) ढेलों से प्रहार करके मारपीट करना। ढो
- ढोउब—(क्रि.) ढोना, ढुलाई करना, भारा लादकर पहुँचाना।
- ढोकब—(क्रि.) पानी पीना, गड़गड़ करके पानी पीना।
- ढोकास—(सं.पु.) प्यास, अधिक प्यास की इच्छा।
- ढोकबाउब—(क्रि.) गट्गट् पानी पिलवाना, मन पसार पिवाना।
- ढोकबइया—(सं.पु.) पानी-पीने वाला, जमकर पीने वाला।
- ढोक ढोका—(सं.पु.) गढे़ हुए चौकोर पत्थर, बड़े-बड़े पत्थर।
- ढोकहुर—(विशे.) बहुत बड़ा, प्रतिष्ठित, भारी भरकम।
- ढोग—(सं.पु.) बहाने बाजी, दिखावा, नाटक करना।
- ढोगी—(सं.पु.) नाटकबाज, बहाना बनाने वाला, दिखावा करने वाला।
- ढोढा—(सं.पु.) गला या गर्दन, बड़ा सा नाला, जमीन का लम्बा गढ्ढा।
- ढोढक—(सं.पु.) बहाना बनाना, नाटक करना, कृत्रिम प्रदर्शन, दिखावा।
- ढोढबा—(सं.पु.) बरसाती नाला, ऊबड़- खाबड़ गहरे कन्दरा, गला या गर्दन।
- ढोढ—(सं.पु.) खेतों का कंदरा, जमीन पर छोटे नाले।
- ढोबाई—(सं.स्त्री.) ढुलाई, ढुलाई का पारिश्रमिक, ढोने की मजदूरी।
- ढोबाउब—(क्रि.) भारा ढुलवाना, ढोने का कार्य कराना, ढुलाई में सहभागिता करना।
- ढोबइया—(सं.पु.) ढोने वाला, भारा उठाने वाला।
- ढोबा—(क्रि.) ढुलाई करो, ढुलाई कीजिए, दूसरे के घर से बनाया हुआ खाना लाना।
- ढोबरब—(क्रि.) ढुलाई होना, ढुल जाना।
- ढोलबा—(सं.पु.) बाँस का बना ढोला, स्त्री.लिंग ’ढोलिया’।
- ढोलकी—(सं.स्त्री.) ढोलक, छोटे आकार का ढोल।
- ढोलिया—(सं.पु.) बाँस की बनी छोटे आकार का ढोला।
- ढोलकिहा—(सं.पु.) ढोल बजाने वाला, जो ढोलक बजाने में प्रवीण हो।
- ढोर—(सं.पु.) पशु, जानवर, मवेशी।
- ढोरिअऊँ-- (विशे.) जानवर की तरह, पशुवत व्यवहार का होना।
- ढोरहा—(सं.पु.) मवेशी चराने वाले लोग, पशु का रखवाला।
- ढोरब—(क्रि.) क्यारी में पानी देना, नाली द्वारा खेत में पानी पहुँचाना।
- ढोसब—(क्रि.) धक्का देना, धक्का मारकर गिराना, ठेलना या अंदर करना।
- ढोसरब—(क्रि.) धराशायी होना, लड़खड़ाकर गिरना, किसी पर गिरना।
- ढोसबाउब—(क्रि.) धक्का दिलवाना, धक्का देने में मदत करना।
- ढोसिहौं—(क्रि.) धक्का लगाउँगा, धक्का लगाउँगी, धक्का दूँगी।
- ढोसबइहौं—(क्रि.) धक्का देकर बढ़वाउँगी, मैथुन करवाउँगी।
- ढोसबइया—(सं.पु.) धक्का लगाकर गतिमान करने वाला व्यक्ति। त
- तइ—(सर्व.) तुम, तू बड़ों के अनादर सूचक छोटे के लिए स्नेह ।
- तइगल—(विशे.) हिस्सा लेने में आगे हो जाने की प्रवृत्ति, लाभांश लेने में आगे।
- तइसन—(अव्य) जैसा, उसी प्रकार, जिस प्रकार,पूर्वानुसार ।
- तइँती—(सं.स्त्री.) ताबीज या डिठौना, एक प्रकार का आभूषण ।
- तइनब—(क्रिया) अपने पक्ष में करना, अपनी ओर खींचना ।
- तइनाउब—(क्रिया) अपनी ओर खिंचवाना, खींचने में सहयोग करना ।
- तइसा—(अव्य) जैसा चाहो, जैसा कहो, जैसी इच्छा हो, जो उचित हो।
- तऊ—(अव्य) फिर भी, उस पर भी, उतने पर भी, तो भी ।
- तँऊ—(अव्य) जो, जैसा, जहाँ का तहाँ, यथा स्थान ।
- तउने से—(अव्य)इसलिए, इस कारण से, किसी कार्य होने के कारण का कारक।
- तउनि कि—(अव्य)इसलिए कि, इस कारण से, तो, एक तकिया कलाम शब्द।
- तउलइया—(सं.पु.) तौलने वाला, मूल्यांकन व मापनकर्ता ।
- तउलब—(क्रिया) वजन करना, नाप-जोख करना, तौलने की क्रिया।
- तउलाउब—(क्रिया) तौलवाना, तौलने में सहयोग करना ।
- तउआब—(क्रिया) ताव में आना, गर्म मिजाज का होना, जोश में आना।
- तउलहा—(सं.पु.) आमंत्रित व्यक्ति को घर में भोजन न कराके उसके घर में भेजी गयी बिना पकी भोजन सामाग्री ।
- तउना—(सं.पु.) मिटटी से अनाज रखने का पात्र का मुख बंद करना, निकास बंद करना, पूर्णतः बंद करना ।
- तउहीनी—(सं. स्त्री.) बेइज्जती, अपमान, हँसी उड़ाना, कुबड़ाई करना ।
- तकइया—(सं.पु.) ताकने वाला, चरवाहा, रखववाली करने वाला ।
- तकथा—(सं.पु.) चौकोर, चारपाईनुमा काष्ठ का पात्र, तखता।
- तकबारी—(क्रि.) देखभाल करने की क्रिया, रख-रखाव संबंधी कार्य ।
- तकबाही—(सं. स्त्री.) देखभाल करने का दायित्वपूर्ण कार्य, किसी कार्य की जबावदेही ।
- तकबाउब—(क्रिया) प्रतीक्षा करवाना, इंतजार कराना, देख-रेख करवाना ।
- तकुआ—(सं.पु.) ताकने वाला, देखभाल करने वाला, चरवाहा।
- तकबार—(सं.पु.) रखवाली करने वाला, देखभाल करने वाला चरवाहा।
- तखरिया—(सं.स्त्री.) छोटे वनोपज को तौलने वाला तराजू, बाँस की लगी पलड़ी।
- तंगिआन—(सं. स्त्री.) परेशान, बीमार, दुख- तकलीफ में अर्थात् अभाव में।
- तंगइया—(सं.पु.) फटे-पुराने कपड़ों को हाथ की सुई से काम चलाऊ सिलने वाला, गद्दा-रजाई तागने वाला।
- तँगिआब—(क्रिया) बीमार पड़ जाना, परेशान हो जाना, अस्वस्थ्य पड़ना।
- तँगबाउब—(क्रिया) सिलवाना, धागे से गुंथवाना।
- तजबीजब—(क्रिया) अंदाज करना, निरूपण करना, नाप-माप एवं वजन का अनुमान लगाना।
- तड़बइया—(सं.पु.) ताड़ने वाला, बदमाशी पकड़ने वाला, चतुराई ताक लेने वाला, माप जाने वाला, समझ लेने वाला।
- तड़इया—(सं.पु.) निगरानी व देख-रेख करने वाला व्यक्ति।
- तड़ाउब—(क्रिया) देखने-ताकने का कार्य करवाना।
- तड़ातड तड़ातड़—(क्रि.वि.) अविरल गति से लाठी या हाथ से पीटने का प्रतीक।
- तड़तड़ाव—(क्रि.) आँख में आँसू भर आना, अविरल गति से आँख में आँसू का पदार्पण।
- तड़के—(सं.पु.) भोर में, प्रातःकाल, सूर्योदय के पूर्व का समय।
- तड़काव—(क्रि) तावबस उछलना, कूदना, आवेशित होकर चौकना, बिजली का चमकना, बादल की गर्जना ।
- तड़ाका—(सं.पू.) भोर का प्रथम पहर, तमाचा, तमाचा की ध्वनि।
- तड़ाक—(सं.पु.) तत्काल, गाल पर तमाचा मारने से उत्पन्न ध्वनि, बहुत जल्दी।
- तडं़ग—(वि.) पूर्ण जवान एवं हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति, पूर्ण परिपक्व बालक।
- तड़काउब—(क्रि) तड़ाक से मार देना, जमा कर प्राप्त कर लेना।
- तता ओठी—(अव्य) हल में संलग्न, बांया बैल तता, दांया बैल ओठी ।
- तंत के तार—(सं.पु.) आवश्यकता के अनुरूप, पहले की नाप दूसरी के बराबर।
- ततेरव—(क्रि) आँख दिखाना, जलती आग का लुआठा शरीर पर स्पर्श कराके जला देना, बिच्छू का डंक मार देना।
- ततकारब—(क्रिया) हल के बांये बैल को बढ़ने के लिए प्रेरित करना।
- तघड़—(वि.) तंदुरस्त, हृष्ट-पुष्ट, धनवान या संपन्नता की भावमयता।
- तनइया—(सं.पु.) खींचने वाला, खींचातानी करने वाला।
- तनतनाव—(क्रि.) कड़ा रूख अपनाना, खिंचाव की अनुमति, घाव या जख्म में चिलकन होना।
- तनधन—(वि.) पूर्णरूपेण तना हुआ, बिलकुल सीधा शरीर, उभरा सीना ।
- तनेन—(वि.) सावधान की स्थिति, पूर्णतः अकड़ा हुआ, सीना ताने हुए ।
- तन्नाब—(क्रि.) लड़ने के लिए किसी का रूख दिखाई पड़ना, अकड़ना।
- तनबाउब—(क्रि) नींव खोदवाना, आधारशिला रखवाना।
- तनबइया—(सं.पु.) खींचने वाला, खिंचाई के कार्य में सहयोग करने वाला।
- तनब—(क्रि) आधारशिला रखना, खिंचजाना, तन जाना।
- तपइया—(सं.पु.) तापने वाला, संपत्ति बर्बाद करने वाला, आग तापने वाला।
- तपक तउलिया—(बं.मु.) खुशमद, सीमा से अधिक सेवा भाव।
- तपिस्सा—(सं.पु.) तपस्या, तप, कठोर साधना, भूख प्यास, कठिन परिश्रम।
- तपाउव—(क्रि.) आग में आभूषण जलाकर खरे-खोटे का परीक्षण करना।
- तबल मंजनी—(क्रि.) चौका बरतन करने का कार्य, बर्तन साफ करने का कार्य।
- तबौ—(अव्य.) तो भी,तब भी, इतने पर भी, इसके बावजूद भी।
- तबहूं—(अव्य.) रोकने के बाद भी, इसके पश्चात भी, तो भी इतने पर भी।
- तबउ—(अव्य) तो भी, तो पर भी, इतने पर भी, उस पर भी।
- तबहिनै—(अव्य) उसी समय, बीते समय में ।
- तबहिन—(अव्य) उसी समय, उसी समय, तब।
- तबला—(सं.पु.) चौड़े मुख का अल्मोनियम की बटलोई।
- तषै—(अव्य.) तब के समय में, बीते समय में, पुराने जमाने में।
- तबेलिया—(सं.स्त्री.) छोटे से अल्मोनियम का काँस की बटलोई।
- तबाई—(क्रि) अनाज के बर्तन का निकासद्वार को मिटटी से बंद करने की क्रिया।
- तबइया—(सं.पु.) फूटे बर्तन या बर्तन के छिद्र को बंद करने वाला व्यक्ति।
- तबाउब—(क्रिया) बर्तन के छिद्र को पदार्थ से बंद करवाना ।
- तमेरबा—(सं.पु.) धातु के बर्तन बनाने वाली एक प्रजाति, बर्तन बेचने वाले
- तमूरा—(सं.पु.) गोले के आकार की लौकी के सूखे फल से निर्मित वाद्य यंत्र।
- तम्मा—(विशे.) तांबे की तरह बालों वाला, जिसके अधिकांश बाल भूरे हों।
- तम्मिआन—(विशे.) फल, फल का कुछ अंश कत्थई हो जाना, कड़ी धूप से आम का दागदार हो जाना ।
- तमाब—(क्रिया.) भूरा रंग होना, फल का तांबे रंग का हो जाना।
- तमोली—(सं.पु.) पान बेचने वाला, छोटे कद का आदमी।
- तमखुलहा—(स.पु.) तंबाकू का सेवन करने वाले, तंबाकू रखने वाले ।
- तमतभाव—(क्रि) किसी पर आवेशित होना, क्रोधित होकर लड़ने को तत्पर हो उठना, गुस्से से भर जाना ।
- तमखुलिआब—(क्रि) तम्बाकू खाने की अमल की अनूभूति होना।
- तमखुलहाई—(सं.पु.) तम्बाकू वाली, झोली तंबाकू की थैली।
- तमाखुल—(सं.पु.) सुर्ती, तंबाकू, संज्ञावाची शब्द।
- तमहाई—(सं.स्त्री.) तांबे की धातु से बनी हूई, ताम्रपात्र, दागयुक्त आम्रफल।
- तमासगीर—(संपु.) खेल-तमाशा देखने वाले एकत्रित लोग।
- तमकब—(क्रि.) तामस के कारण उछलना- कूदना, आवेशित होकर गुस्सा प्रदर्शित करना।
- तमोलिन—(सं.स्त्री.) पान बेचने वाली, बरई की पत्नी।
- तमान—(अव्य) हर जगह, सर्वत्र, प्रत्येक स्थान में।
- तयहा—(संपु.) पशुओं को पानी पीने के लिए प्रेरक संकेत।
- तँय—(सर्व) तुम, तू के पर्याय में, तुंकारी सुनिश्चित करना।
- तरछी—(सं.स्त्री.) दही पात्र, मठा रखे जाने वाला मिटटी का पात्र, पुलिंग तरछा।
- तरइना—(सं.पु.) आँख से भरे हुए अश्रु नीर, रोने से पूर्व दुखित आँख की दशा।
- तरई—(सं.स्त्री.) तारागण, आँख के मध्य की काली पुतली।
- तरक-मरक—(क्रि.वि.) चाल-ढाल क्रिया कलाप एवं गतिविधियाँ।
- तरवा—(सं.पु.) तलवा, पैर के नीचे का भाग।
- तरूआ—(सं.पु.) सिर का मध्य भाग, खोपड़ी, सिर।
- तरबोरिया—(वि.) तलवे डूबने भर के लिए संचित जल की गहराई।
- तरदब्बू—(वि.) जो दूसरे को पूर्ण दबाव में हो, प्रतिबंधित या एहसान से दबा हुआ, दूसरे के अधीन रहने वाला।
- तरफदारी—(सं.पु.) पक्षपात करना, अंध समर्थन करना, किसी का पक्ष गहना।
- तरी—(अ.) नीचे, निचला भाग, सब्जी या सिकार का मशालेदार रसा ।
- तरपन—(क्रि.) विशिष्ट हवन पूजन या धर्म कर्म-के कार्य-गाय दान या गो पूजन।
- तरउछी—(सं.स्त्री.) हल में चलने योग्य बनाने के लिए बैल के कंधे में रखे जाना वाला जुँए के विकल्प में काठा।
- तर्रोई—(सं.स्त्री.) हरी धारीयुक्त एक फिट लंबी सब्जी का फल।
- तरब—(क्रि) पार हो जाना, मुक्त हो जाना, मोक्ष मिलना, किसी वस्तु को तेल से तलना।
- तरबइया—(सं.पु.) मुक्त कराने वाला, नाप- जोख करने वाला, सब्जी तलने वाला।
- तरइली—(सं.स्त्री.) हल-जुँआ के छिद्र में नियंत्रण के लिए प्रयुक्त होने वाली लकड़ी की कील, नागदंती ।
- तरबोर—(वि.) तलवे डूबने भर के लिए संचित जल।
- तरेठ—(सं.पु.) कमर के नीचे का भाग- नाभि के नीचे का उठा हुआ प्रक्षेत्र।
- तरकी—(सं.स्त्री.) लाख की बनी चूड़ी, मोटी चूड़ी जो कलाई में रहती है।
- तरसइया—(सं.पु.) तरसने वाला, ललचाने वाला।
- तरसब—(क्रि) ललचाते रहना, ललचायी मनःस्थिति, लालायित रहना ।
- तरसाइब—(क्रि) ललचाना, प्रलोभन देकर पिपाशा प्रबल करना।
- तर ऊपर—(वि) एक दूसरे के कद, एक बर्तन पर दूसरा बर्तन रखना।
- तरहंगा—(सं.पु.) कमर से नीचे धारित वस्त्र, सबसे नीचे की वस्तु।
- तरिहौ—(कि.मवि.) नापूँगा, नाप करूँगा, नाप-जोख करूँगी, पहनकर देंखेगें।
- तरवेय—(कि.वि.) तारोगे, नाप जोख करोगे, नाप लोगे।
- तल्ले-मल्ले—(ब.मु.) भरपूर, जीभर उपयोग, मौज-मस्ती के साथ पर्याप्तता।
- तलातल्ला—(वि.) पर्याप्त मात्रा में तरल, भरपूर गीला होना।
- तलबा—(सं.पु.) तड़ा जलाशय, तालाब ।
- तल्ली—(सं.स्त्री.) छोटी सी कील,नाक या कान में पहने जाने के आभूषण में लगने वाली कील।
- तलसवइया—(सं.पु.) खोजबीन करने वाला, अन्वेषणकर्ता।
- तलासब—(क्रिया) तलाश करना,खोजबीन करना।
- तलसबाउब—(क्रि.) खोजवाना, अन्वेषण करवाना, खोजने में सहयोग करना।
- तल्हे—(अ.) तब तक, जब तक, निर्धारित समय के पूर्व, जबलौ।
- तलइया—(सं.स्त्री.) पुष्कर, छोटे आकार का तालाब, तालाबनुमा खेत ।
- तल्हे—(अ.) तब तक, तबलौ ।
- तलघे—(अ.) तब तक, तबलौ, जब तक, अमुक समय तक, अवधि।
- तल्लाब—(क्रि) तरल पदार्थ का बहाना, किसी बर्तन से तरल वस्तु का गिरना, धारनुमा शैली में बर्तन से पानी गिरकर बहना।
- तलतलउअन—(वि.) जलामयी सघन, पूर्णरूपेण भरा हुआ।
- तल्ला—(सं.पु.) पीछा, गहना, देखभाल या निगरानी करना, चर्चा, चिंता जूते के तल का टुकड़ा।
- तलफा—(सं.पु.) चाय की भाँति, पानी एवं दूध में हल्दी गुड़ नमक डालकर काढ़ा।
- तलफब—(कि.) तड़फड़ाना, बेदना से बेचैन होना, जीभ निकालकर लंबी सांस लेना।
- तसलिया—(सं.स्त्री.) पीतल या अल्मोनियम की बनी बटलोई ।
- तसला—(संपु.) अल्मोनियम या पीतल का चौड़े मुखवाला बर्तन।
- तहां—(अन्य) जहां, जिस स्थान में ।
- तहिना—(वि) जब, जहाँ, जैसे ही अर्थ में प्रयुक्त होने वाला शब्द ।
- तहस-नहस—(वि) सत्यानाश कर डालना, नष्ट-भ्रष्ट, तितर-बितर कर
- तहूंँ-- (सर्व) तू भी, तुम भी ।
- तहिआउब—(क्रि) तह लगाना, परत मोड़कर, सुरक्षित रखने की क्रिया ।
- तहबइया—(सं.पु.) तह लगाकर सुरक्षित रखने वाला व्यक्ति । ता
- ता—(योजक) तो क्या जैसे ’ ता का करी’ अर्थात् तो क्या करें ।
- ताई—(सं.स्त्री.) शरीर पर चोट या मार का नीला दाग, कष्ट सूचक चिन्ह
- ताउब—(क्रि) बंद करना, मुख या छिद्र बंद करना।
- ताकब—(क्रि) रखवाली करना, देखभाल करना, रख रखाव-करना ।
- ताका तूकी—(अ.) एक दूसरे की कमी को देखना, झांक-ताक, करने की प्रवृत्ति, ईर्ष्या युक्त निगरानी।
- ताके-ताके—(अव्य.) राह देखते, इंतजार करते- करते।
- ताकी—(क्रि) क्या देखते रहें? क्या देखभाल करें ? प्रतीक्षा करें।
- तागपार—(सं.पु.) विवाह के समय कन्या की कलाई में बांधा जाने वाला शुभ संकेत युक्त एक धागा विशेष ।
- तागब—(क्रि) विरल कार्य करना, विरल धागे से कपड़े की सिलाई ।
- ताड़व—(कि.वि.) किसी का पता लगाने के लिए छुपकर देखना, नजर गड़ाकर देखते रहना,पूर्णरूपेण परखकर समझना।
- तात—(वि.) तारोताजा, एकदम गर्म, ताप गुणवत्ता से युक्त स्थिति ।
- तांँत—(सं.पु.) पशुओं की माँसपेशी का तारनुमा धागा।
- तॅांतसाही—(विश्े.) अत्यंत दुबला-पतला, अति कमजोर धागे जैसा।
- ताना तूनी—(अ.) एक राय का न होना, अपनी- अपनी ओर खींचना।
- ताना—(सं.पु.) वक्रोक्ति, व्यंग्यात्मक उद्बोधन, व्यंग्य कसना या मारना
- तानव—(क्रि) अपनी ओर खींचना, लंबी अवधि बढ़ाना, खींचातानी की क्रिया।
- तापब—(क्रि) नष्ट करना, आग लगाकर जलाना।
- तापुन—(अन्य) तो फिर, निशि्ंचतता बोधक तकिया कलाम।
- तामझाम—(क्रि.वि. ) ऊपर से अधिक दिखावा, वाह्य आडंबर,कृत्रिम प्रदर्शन
- ताम—(सं.पु.) ताम्र धातु या तांबे की वस्तु, तांबा धातु।
- ताये—(वि) वशीभूत, किसी व्यक्ति के अधीनस्थ या आधिपत्य में होना।
- तार बेउत—(सं.पु.) व्यवस्था बनाना, लाग- बाग बैठाना, सविधा व्यवस्था ।
- तार-बार—(अन्य) घरेलू कारोबार, घरेलू स्थिति एवं परिस्थिति ।
- तार तुम्मा—(अन्य) योजना के अनुरूप व्यवस्था, कार्य या आयोजन के पूर्व साधन जुटाना ।
- तारब—(क्रि) पार करना, मोक्ष दे देना, पहलकर नापना-जोखना ।
- तारी—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का ताला, दोनों हथेलियों से उत्पन्न ध्वनि, नाप जोख, क्या कर लूँ? पहनकर नापे।
- तारा तूरी—(अ.) नाप लूँं जोख करने की क्रिया।
- तारौं—(क्रि) नाप लूँ, पहनकरण देख लूँ, क्या नाप जोख कर लूँ, तार लूं।
- तार—(सं.पु.) कारोबार, औकात, हिम्मत, घरेलू स्थिति, धन वैभव,कपड़े सिलने के लिए नाप, समय या व्यवस्था का होना।
- तालेबर—(सं.पु.) धन-धान्य से पूर्व सम्पन्न व्यक्ति, ऐश्वर्यवान या पूंजीपति।
- ताल मुकाम—(अ.) संगीत का सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान।
- ताली—(सं.स्त्री.) लय-धुन मात्रा पर आधारित संगीत गाने वाला, स्वर धुन।
- तासा—(विशे.) प्यासा होना, प्यास लग जाना, पानी-पीने की इच्छा।
- ताहम—(अन्य) उस पर भी, तो भी, इतने पर भी, इसके बावजूद भी।
- ताहीं—(अन्य) तब तो, तो फिर तो । ति
- तिआह—(वि) तीसरा विवाह, जिसका विवाह तीन बार हुआ हो।
- तिउराइन—(सं.स्त्री.) तिवारी की पत्नी, तिवारी जाति की नारी के लिए आदरसूचक संबोधन।
- तिकड़मी—(वि) जोड़-गाँठ करके अपना उल्लू सीधा करना।
- तिक्की—(वि) तीन चिन्हों वाली तास की तीसरी पत्ती।
- तिकड़म—(क्रि) दंद-फंद करना, अनाप- सनाप कार्य, बदमाशी एवं चतुराई।
- तिकड़ी—(सं.स्त्री.) तीन लोगों का गुट, झूठी बात सजाकर बाधा डालना, लाग-बांग।
- तिकोनियां—(वि) त्रिकोण, तीन कोने का ।
- तिकोन—(वि) टेढ़ा-मेढ़ा तीन कोण से अच्छादित, तीन कोने का ।
- तिकथी—(सं.स्त्री.) बनायी गई चिता पर संचित लकड़ी।
- तिकोन्ना—(वि.) तीन कोना, तीन कोण से घिरा क्षेत्र, त्रिभुजाकार स्थिति
- तिखरवइया—(सं.स्त्री.) बातों की पुष्टिकरण करने वाला व्यक्ति, जांचने परखने वाला तीसरा आदमी।
- तिघरा—(वि) जस स्थान विशेष में इकट्ठे तीन घर बने हों।
- तिजहाई—(वि.) तीजा के समय बनाया जाने वाला व्यंजन।
- तिड़कव—(क्रि) नाराज होकर कूदना, आक्रोश वश इधर-उधर करना ।
- तिड़िर-बिड़िर—(वि) अस्त-व्यस्त, छितराया हुआ, तितर-बितर।
- तिडी मारव—(ब.मु.) बने बनाये कार्य को बिगाड़ देना, होने वाले कार्य को अपने बयान से रोकवा देना।
- तितुरचरा—(वि)बालों की ऐसी असामान्य छंटाई जो छोटे बड़े-हों।
- तिती—(सं.स्त्री.) बकरियों को बुलाने के लिए आवाज संकेत।
- तितर वितर—(अ.) इधर-उधर होना, बिखर जाना, दूर-दूर होना, अव्यवस्थित होना।
- तिताला—(सं.पु.) वाद्य, राग का एक ढंग व तर्ज, तीन ताल पर केन्द्रित गीत।
- तिदनिया—(सं.स्त्री.) नारियों का एक आभूषण विशेष का नाम।
- तिघिना—(अ.) उस दिन, जिस दिन, पूर्व समय की ओर संकेत ।
- तिनहर—(सं.स्त्री.) घास-फूस छाया हुआ घर, तीन दीवालों वाला मकान।
- तिन्नी—(सं.स्त्री.) साड़ी व धोती का वह भाग जो पर्तदार मोड़कर नाभि के नीचे कमर के सहारे व्यवस्थित किया जाता है।
- तिनहूं—(विश्ेष) तीनों के तीनों लोग, तीनों आदमी ।
- तिनपरवा—(अ.) डेढ़ मास या पैंतालिस दिन की अवधि, तीन पक्ष।
- तिन्न-बिन्न—(अ.) तितर-बितर होना, मतभेद की स्थिति का उत्पन्न होना, इधर-उधर फैल जाना ।
- तिनबाउब—(क्रि) खिंचवाना, खींचने में सहयोग करना।
- तिनबइया—(सं.पु) भारा खींचने वाला, आकृष्टकर्ता।
- तिनपतिया—(वि) तीन पत्तियों से खेला जाने वाला तास का खेल, तीन पत्ती वाली वनस्पति औषधि ।
- तिनगव—(कि) आक्रोश के कारण आवेशित होना, नाराज होकर उछलना।
- तिनगा—(सं.पु.) आग कि चिनगारी, अंगार का एक टुकड़ा।
- तिगुनव—(क्रि) तीन गुना करना, तीन गुना बढ़ा लेना, एक का तीन करने की क्रिया, तीन बार बराबर-बराबर मोड़कर एक करना।
- तिनगुड्डी—(सं.स्त्री.) एक प्रकार का चर्मकार का एक लोह यंत्र।
- तिन्हा—(अ.) जिस दिन, जिस समय, उस दिन।
- तिनपहरा—(वि.) तीन पहर का समय, काम ।
- तिनहथी—(वि) तीन हाथ लंबी वस्तु, इसका पुलिंग तिनहथा।
- तिनबुंदिया—(सं.पु.) तीन सफेद बिंदुओं वाले काले रंग का बरसाती कीड़ा।
- तिनगी—(सं.स्त्री.) आग की छोटी सी चिनगारी।
- तिनघरवा—(वि)तीन के बीच में अदल-बदल कर विवाह करना।
- तिपबइया—(सं.पु.) तापयुक्त करने वाला, गर्म करने वाला व्यक्ति।
- तिपउब—(क्रि) गर्म करना, तपाना, धातु की शुद्धता का परीक्षण करना ।
- तिपबाउब—(क्रि) तापयुक्त करवाना, किसी से गर्म करवाना।
- तिपइहों—(क्रि.वि) गर्म करूँगा, धातु को आग में डालकर परीक्षण करूँगा।
- तिफरव—(क्रि.वि.) किसी वस्तु को तीन बर्तनों में डालना, तीन बराबर भाग में विभक्त करना।
- तिबरिआन—(सं.पु.) तिवारियों का मुहल्ला , एक गाँव का नाम।
- तिबारा—(वि.) तीसरी बार, तीन बार वही , तीसरे दौर में।
- तिबासी—(वि) तीन दिन पहले का बना भोजन, तीन पहर के पूर्व का।
- तिवाह—(वि) खेत की तीन बार जुताई करना।
- तिमड़ा—(सं.पु.) जिसका सिर तीन कोने का हो, गोल न होकर चपटा सिर, सही आँख होते हुए भी तिरछा या नीचे देखने वाला।
- तिमाही—(अ.) तीन माह का कार्यक्रम, तीन महीने के बाद की परीक्षा ।
- तिमासी—(वि.) तीन मास की उम्र वाला जो मात्र तीन महीने का हो।
- तिरपट—(वि.) बहुत अधिक, बहुत जोर, अत्यधिक तेज, तीव्र गति, तिरछापन।
- तिरछाउंआ—(वि) तिरछा होकर देखना या बैठना, टेढ़ी-मेढ़ी स्थिति।
- तिरमड्डा—(वि) तिराहा, तीन घर से होने वाले विवाह की व्यवस्था।
- तिरपाल—(सं.स्त्री.) धूप या वारिश से रक्षा करने में समर्थ मोटा कपड़ा ।
- तिरथहा—(संपु.) तीर्थ यात्रा में गये हुए लोग, तीर्थ स्नान करने जाने वाले।
- तिरबेनी—(सं.पु.) त्रिवेणी, किसी व्यक्ति विशेष का नाम, नदी का नाम ।
- तिरतिराउब—(क्रि) औपचारिक रूप से या नाम मात्र का किसी वस्तु का वितरण, विरल रूप से जमीन पर घास बिखेरना।
- तिरछंऊ—(वि.अ.) तिरछापन लिये हुए, तिरछी स्थिति, वक्रता से।
- तिरसूल—(सं.स्त्री.) त्रिशूल, तीन नोकवाला अस्त्र।
- तिल्ली—(सं.स्त्री.) चुनौती, सौगंध खिलाना, कसम देना।
- तिल—(सं.स्त्री.) एक अनाज विशेष जिससे तेल बनता है।
- तिलबड़िया—(सं.पु.) तिल से बनाया बड़ा, तेल में तला जाने वाले बड़ा।
- तिलमिलआउब—(क्रि) आँख की पलक बार-बार गिराना, आँख का चंकाचौंध होना।
- तिलाक—(सं.पु.) तलाक, एक चुनौती ।
- तिलबाचउथ—(सं.पु.) माघ मास के प्रथम चतुर्थी का परंपरागत त्यौहार।
- तिलबढ़वा—(सं.पु.) शनैः शनैः बढ़ने वाला, एक घास विशेष का नाम।
- तिलबा—(सं.पु.) तिल का लडडू, शरीर में काले तिल का निशान।
- तिलउरी—(सं.स्त्री.) तिल के दाने एवं सफेद कुम्हड़े से बनाया गया बड़ा।
- तिलेठ—(सं.पु.) तिल की लकड़ी, दाना रहित तिल का सुखा डंठल ।
- तिसरहा—(वि.) तीसरा व्यक्ति, पराया व्यक्ति, अपरचित एवं गैर आदमी।
- तिसरबार—(क्रि.वि.) मुण्डन संस्कार के तीसरे चरण का होना।
- तिसराउब—(क्रि.वि.) किसी कार्य को तीन बार करना।
- तिसरकम—(क्रि.वि.) एक काम को तीन बार करना, उसी-उसी काम को ।
- तिसरा—(वि.) तीसरा, तीन-तीन बार गर्भ धारित।
- तिसरहा—(सं.पु.) तीसरा व्यक्ति जो दो के बीच में आये, पराया व्यक्ति।
- तिहंती—(सं.स्त्री.) तीसरे घर की अपरचित नारी, परायी एवं अपरचित औरत ।
- तिहंता—(सं.पु.) तीन लोगों को मार डालने वाला, संबंधियों के अतिरिक्त तीसरा व्यक्ति, पराया या अपरिचित।
- तिहइया—(सं.स्त्री.) खेत की उपज का तीसरा भाग, तृतीयांश।
- तिहाव—(विशे.) किसी वस्तु का तीसरा भाग, एक बटे तीन। ती
- तीज—(सं.स्त्री.) महीने की तृतीय तिथि।
- तीत—(विशे.) तिक्त, चटपट खाद्य, तेज कडुआपन, मिर्च की स्वादानूभूति।
- तीतुर—(सं.पु.) तीतर, एक वेगगामी पक्षी ।
- तीनव—(क्रि.) पकड़कर अपनी ओर खींचने की क्रिया, किसी के हाथ से कोई वस्तु खींच लेना, अपने पक्ष में आकृष्ट करना।
- तीनतकड़म—(ब.मु.) झूठ-फरेब युक्त कार्य, बदमाशी, बेइमानी।
- तीन तिखार—(ब.मु.) बार-बार पूँछकर पक्का करना, तीन बार हाँ कहलाना।
- तीन पाँच—(ब.मु.) जोड़-गाँठ, बदमाशी या चालाकी, हाँ, ना, दंद-फंद ।
- तीरथ—(से.पु.) तीर्थ, तीर्थ स्थान तीर्थ यात्रा।
- तीरापाती—(सं.पु.) पंक्तिबद्ध स्थिति ।
- तीरूस—(ब.मु.) दो वर्ष पहले का वर्ष, दो वर्ष के बाद आने वाला वर्ष ।
- तीसमारी—(ब.मु.) बहादुरी का कार्य, विजय हासिल करना (व्यंग्योक्ति) ।
- तीसौदिन—(अ.) हमेशा, हरदम, प्रत्येक दिन। तु
- तुकबइया—(सं.पु.) निशाना लगाना, किसी के प्रति गलत सोचने वाला निशानेबाज।
- तुक्का—(ब.मु.) घात लग जाना, संयोग बस सिद्धि मिल जाना।
- तुकतोरा—(अ.ं) हिसाब-किताब समय- संयोग, धनात्मक समय का होना ।
- तुक तुक—(अ.) दो बैलों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित एवं उत्प्रेरित करने वाली ध्वनि, निशाना लगाकर स्पर्श करना।
- तुचुकब—(क्रि) दुबला होना, पचक जाना, दबकर चपटा होना ।
- तुड़की—(सं.स्त्री.) किसी चीज का छोटा टुकड़ा, बात-बात में चटकना।
- तुतुराव—(क्रि) तोतलाना, अस्पष्ट भाषा निकलना, हकलाना।
- तुतुई—(सं.स्त्री.) कुतिया की तरह अधिक संतान पैदा करने वाली।
- तुन्न—(ब.मु.) नाराजगी की चोटी पर चढ़ जाना, नाराज होकर आग बबूला होना।
- तुपक—(सं.स्त्री.) बंदूक, तोप ।
- तुबे तुबे—(सं.स्त्री.) एक खेल खेलते समय की विशेष ध्वनि या शब्दोच्चारण।
- तुम्मा—(सं.पु.) गोल आकृति की बड़ी लौकी, स्त्री.. तुम्मी ।
- तुमड़ी—(सं.स्त्री.) लौकी का सूखा फल का पात्र।
- तुमड़ा—(सं.पु.) बड़े आकार का लौकी का फल।
- तुरपब—(क्रि) हाथ से की जाने वाली सुंदर सिलाई, हैण्ड स्टीचिंग ।
- तुरपइया—(सं.पु.) हैण्ड स्टीचिंग करने वाला व्यक्ति।
- तुरइया—(सं.स्त्री.) तर्रोई प्रजाति की पतली छोटी नश्ल, एक सब्जी का नाम
- तुरूप—(सं.स्त्री.) तास के खेल का ट्रंप ।
- तुर्रान—(वि.) एकदम से लंबवत बढ़ाव, धूप से सूखकर सिकुड़ा हुआ।
- तुर्राब—(क्रि.) हरी सब्जी के फल का सूखकर तुचुक जाना।
- तुलुलुआ—(वि) अधिक मात्रा में पतली दस्त, बहुत अधिक तरल पदार्थ का बहना, बहुत अधिक पतला दस्त जाना।
- तुलतुलाब—(ंसं.पु.) किसी कार्य के लिए तुरंत तैयार हो जाने की प्रवृत्ति।
- तुलबुलिहा—(सं.पु.) आतुर हो उठने वाला व्यक्ति, गंभीरता विहीन प्रवृत्ति।
- तुल्ला—(क्रि.वि.) तीव्रगति से अति तरल रूप में किसी बर्तन या खेत से बहने की स्थिति, छिद्र से पानी का वेग से बहना।
- तुलुआइस—(क्रि) आवश्यकता से अधिक मक्खन पालिस करना, अत्यधिक सेवा भाव के साथ सम्मान एवं स्वागत करना।
- तुलुल-तुलुल—(अ.) अति चंचल एवं आतुरता युक्त क्रिया कलाप।
- तुल्लाब—(क्रि.वि.) बर्तन में पतली धार द्वारा पानी के नीचे बहना, खेत में भने पानी का निकल जाना ।
- तुह तुहूं—(सर्व.) तुम भी, आप भी ।
- तुहिन—(सर्व) तुम्ही, तुम ही, तू-तू ही। तू
- तू-त तू-तू—(सं.पु.) कुत्ते को बुलाने वाली प्रतीकात्मक ध्वनि।
- तूल—(ब.मु.) तिल का ताड़ बनाना, समस्या मूलक बना देना ।
- तूस—(सं.पू.) कत्थई रंग का पतला कपड़ा। ते
- तेउहार—(सं.पू.) त्यौहार, पर्व का दिन ।
- तेरव—(सं.पु.) ताव, नाराजगी युक्त क्रियाकलाप, तामस, उथलापन ।
- तेरवा—(अ.) जिसके, जिस ।
- तेगब—(क्रि) त्याग देना, सदा सर्वदा के लिए किसी को छोड़ देना ।
- तेमा—(अ.) उसमें, तो पर भी, उस पर भी, इतने पर भी, उतने पर भी ।
- तेरस—(सं.स्त्री.) महीने में होने वाली त्रयोदशी की तिथि।
- तेरहिया—(सं.पु.) तेरही, पुण्य तिथि में सम्मिलित होने वाले लोग ।
- तेरही—(सं.) तेरहवे दिन होने वाला मृतक संस्कार, तेरहवीं।
- तेरा—(वि.) तेरह संख्यावाची शब्द ।
- तोलिया—(सं.पु.) काले रंग का दुर्गन्धयुक्त बरसाती कीड़ा।
- तेलपनियार—(क्रि.वि.) आधातेल और आधा पानी मिलाकर लेपन करना।
- तेलमस—(वि.) तेल में डूबे हुई वस्तु, ऐसा कागज जिसमें तेल लगा हो ।
- तेलमसहा—(सं.पु.) तेल से सना हुआ कपड़ा ।
- तेलवाई—(सं.पु.) तेल लगाने का चलता हुआ दौर, विवाह के समय शरीर में तेल की प्रथा।
- तेलिआउब—(क्रि) चापलूसी करना या किसी के तेल लगाना, लाठी उठाकर किसी को मारने को उद्यृत होना।
- तेलहड़ी—(क्रि) नियमित रूप से तेल रखे जाने वाला मिटटी का पात्र।
- तेलिआन—(सं.पु.) तेली जाति के निवासियों की बस्ती एवं मुहल्ला।
- तेलहा—(वि.) तेल से सना हुआ, तेल से पकाया गया पदार्थ।
- तेलहड़ा—(सं.पु.) तेल रखने का बड़ा पात्र, स्त्री.. तेलहड़ी।
- तेलइया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का मिटटी का बना पात्र जिसमें तेल रखा जाता हो। तो/तौ
- तोका—(सर्व) तुझे, तेरे को, आक्रोश एवं अपमानयुक्त संबोधन।
- तोखा—(सर्व) तुझको तेरे को अनादर सूचक शब्द।
- तोखार—(वि) बहुत तेज, बड़ा ताकतवर, सबको जीतने वाला।
- तोतरा—(वि.) तोतली वाणी बोलने वाला, तोतला।
- तोतराब—(क्रि) तोतली भाषा बोलना, तुतलाना।
- तोपब—(क्रि) गड्ढे में डालकर ऊपर से मिटटी से ढंक देना।
- तोपान—(वि.) एकदम ढका हुआ, पूर्णतः ढका हुआ, बंद।
- तोपाउब—(क्रि) किसी दूसरे से चारों तरफ ढकवाना।
- तोपइया—(सं.पु.) वस्तु को गाड़ने वाला, वस्तु को चारों ओर से ढकने वाला।
- तोबरा—(सं.पु.) बैलों के मुख में लगाये जाने वाला रस्सी का टोप ।
- तोरा—(सं.स्त्री.) किसी की सेवा-सुश्रुषा, टहला, चाकरी।
- तोरंगा—(सं.स्त्री.) सेवा सत्कार, व्यवस्था के पर्याय में प्रयुक्त होने वाला व्यंग्यार्थ।
- तोर—(सं.प.ु) आम के नुरूआ का पानी, ऐसी भैंस जिसका पड़ेरू मर चुका हो।
- तोरहा—(सं.पु.) तोर, प्ररस से ओत-प्रोत आम।
- तोरइकिन—(सं.स्त्री.) सेवा-सुश्रुषा करने वाली, घर में भोजन बनाने वाली।
- तोसो—(सर्व) तुमसे, आपसे, अपनत्वपूर्ण संबोधन।
- तोहरौ—(सर्व) तुम्हारा भी, आपका भी ।
- तोहंरे—(सर्व) तुम्हारे, आपके, तुम्हारे यहाँ, आपके यहाँ।
- तोहंई—(सर्व) तुमको, तुझे, तुम्हें, आपको।
- तोहंसा तोहंसो—(सर्व) तुममें, आपसे, विश्वनीयता बोधक शब्द।
- तोहार—(सर्व) तुम्हारा, आपका ।
- तोही—(सर्व) तुमको, अपने से छोटे के लिए, स्नेहिल संबोधन।
- तोहारें—(सर्व) तुम्हारा भी, आपका भी ।
- तौ—(अ.) उस पर भी, हाँ-हाँ जी, ऐसा ही है, सही है। थ
- थइली—(सं.स्त्री.) छोटे आकार की थैली, सुपाड़ी-तंबाकू रखने वाली झोली।
- थकवाह—(सं.स्त्री.) थकावट से उत्पन्न शारीरिक शिथिलता, थकान की अनुभूति।
- थकान—(क्रि) थक जाना, परास्त होना ।
- थकबाउब—(क्रि) परास्त करना ।
- थकान—(सं.स्त्री.) मारना-पीटना, हथेली से पीठ पर प्रहार करना।
- थकउहा—(क्रि) थका-मांदा, कुछ थका हुआ, शिथिल।
- थक्का—(सं.पु.) तरल पदार्थ का जमकर ठोस रूप जैसे घी-दही ।
- थथल मथल—(अ.) टाल-मटोल, लेट-लतीफ करना।
- थनहरी—(सं.स्त्री.) माँ का स्तन, शिशु के दुग्धपान करने का दुग्धांग ।
- थन्ना—(सं.पु.) स्थान या जगह, अड्डा, सुनिश्चित या निर्धारित जगह।
- थपोकब—(क्रि) पर्याप्त मात्रा में सांगोपांग लेपन।
- थपकी—(क्रि) गदेली या चपटी चीज से थप-थप करना।
- थपरा—(सं.पु.) हथेली से अँगुलियों के सहारे पीटना, तमाचा।
- थपथेरब—(क्रि) थपकी द्वारा शरीर पर पिटाई करना, हाथ से जल्दी-जल्दी मारना- पीटना, हथेली से पीठ पर प्रहार करना।
- थपडिआउब—(क्रि) किसी को थप्पड़ लगाना, मार देना ।
- थम्हब—(क्रि) ठहर जाना या रूकना, पशुओं का गर्भवती हो जाना ।
- थमइया—(सं.पु) भार उठाने वाला, संभालने वाला व्यक्ति, गिरती वस्तु को गिरने से बचाने वाला।
- थमउना—(ब.मु.) नाम मात्र की प्राप्ति हेतु ब.मु।
- थम्हाउब—(क्रि) किसी को कोई वस्तु पकड़ाना, हाथ में दायित्व सौंपना।
- थरी—(सं.स्त्री.) मिट्टी से बनाये जाने वाली चक्की का निचला भाग।
- थरिया—(सं.स्त्री.) थाली, छोटे आकार का थाल।
- थरहब—(क्रि) बीजारोपण करना।
- थपथपाउब—(क्रि) अच्छे कार्य के बदले पीठ ठोंकना, धन्यवाद ज्ञापित करना
- थरथराब—(क्रि) शरीर का काँपना, घबराहट के कारण शरीर में कंपन।
- थलर थुलुर—(अ.) ढीले माँसपेशियों वाला वृद्ध व्यक्ति, ढीले कपड़े ।
- थलल मलल—(अ.) थुलथुल-ढुलढुल शरीर हुई मांँसपेशियों युक्त।
- थहाउब—(क्रि) थाह लगाना, थाह लेना, गहराई का पता लगाना ।
- थहबाउब—(क्रि) गहराई का पता लगवाना, किसी से मन लेना। था
- थाक—(सं.पु.) थकावट की अनुसूचित शिथिल हो जाना ।
- थाका—(सं.पु.) जिसकी संतान न हो उसकी संपत्ति घर में जाकर रह जाना।
- थाती—(सं.स्त्री.) धारोहर, जमा पूँजी, धन-अमानत।
- थान—(वि.) आभूषणो की संख्या गिनने का एक मानक, नग, अदद।
- थानमनंगा—(क्रि.वि.) बिना हाथ से पकड़े, बैलेंस बनाकर पतली रस्सी पर क्रमशः पाँव बढ़ाकर चलना।
- थाना बिरवाही—(सं.स्त्री.) सब्जी के पेड़-पौधे आदि।
- थाने पमाने—(ब.मु.) स्थायी स्थान, पूर्व स्थान, यथास्थान, अपने नियत स्थान।
- थायब—(क्रि) स्थापित करना, हथेली से चपटा आकार बनाना।
- थार—(सं.पु.) थाली में तरल व्यंजन फैलाकर उसको सूखने के बाद टुकड़ों -टुकड़ों में विभक्त करना ।
- थारी—(सं.स्त्री.) बड़े आकार की थाली ।
- थाह—(सं.स्त्री.) गहराई की सीमा, यथार्थ स्थिति का परीक्षण।
- थाम्हा—(सं.पु.) खंभा, भार रोपने वाली लकड़ी विश्ेष, संभाल।
- थाम्हब—(क्रि) थाम लेना, गिरते को संभालना, भार उठा लेना । थि/थी
- थिर—(वि) स्थिर, अटल, ठहरा हुआ, निर्मल, शांत।
- थिरकब—(क्रि) नृत्य करने की क्रिया, वृत्ताकार फिरना, स्थिर न रहना ।
- थिराब—(क्रि) स्वच्छ जल जो हिलता- डुलता न हो, स्थायी स्थिति ।
- थिरकाउब—(सं.पु.) थिरकने वाला, नाचने वाला, नचइया।
- थिरकउआ—(वि.) नाचते-थिरकते हुए चलने की शैली।
- थीम्हब—(क्रि) संभालना, रोकना, थाम्हना । थु
- थुंकनी—(सं.स्त्री.) पीकदान, थूकने का पात्र विश्ेष।
- थुकइया—(सं.पु.) पीक मारने वाला, थूकने वाला व्यक्ति।
- थुंकिआउब—(क्रि) मूर्ख बनाना, चूना लगाना, किसी को ठग लेना, थूक लगाना
- थुथुआब—(क्रि) मुँह फुलाकर मौन हो जाना ।
- थुथुराब—(क्रि) मारना-पीटना, मारते-मारते मुँह की आकृति बिगाड़ देना ।
- थुथ्थ—(वि.) सूजन हो आना, घाव का सूज आना।
- थुथुना—(सं.पु.) मुँह के लिए व्यंग्यात्मक संबोधन।
- थुथुआन—(वि) फूला हुआ व्यक्ति, माँस से लदा हुआ अत्यंत मोटा तगड़ा व्यक्ति, मोटापन की भयावह स्थिति।
- थुनिहर—(सं.पु.) लकड़ी के लट्ठे से बनाया गया घर व छप्पर।
- थुनिहा—(सं.स्त्री.) दो मुख वाला खंभा ।
- थुरबाउब—(क्रि) दूसरे से दूसरे को मरवाना- पिटवाना ।
- थुरव—(क्रि) मारना, पीटना, कूटना ।
- थुरबइया—(सं.पु.) जमकर पिटाई करने वाला व्यक्ति।
- थुलुर-थुलुर—(अ.) दुल-दुल एवं माँसल माँसपेशियों का हिलना-डुलना। थू
- थू-थू—(अ.) घृणा करने का प्रतीक, मुख की एक ध्वनि।
- थोपव—(क्रि) दोषारोपण करना, दूसरे के सिर पर दोष मढ़ना, मोटी-मोटी रोटी बनाने की क्रिया हेतु व्यंग्यात्मक उद्बोधन।
- थोपबाउब—(क्रि) मोटी-मोटी रोटी बनवाना, शरीर पर मोटा लेपन चढ़वाना।
- थोमराव—(क्रि) गुस्से के कारण मुँह फुला लेना, गाल फुला लेना।
- थेभरिआन—(वि) नाराज होकर मुँह फुलाये मौन स्थिति।
- थोभर—(सं.पु.) मुँह फुलायी हुई मुख की स्थिति, फूला हुआ मुख ।
- थेर—(वि) थोड़ा, अल्पांश, कम, न्यून मात्रा।
- थेरहत—(वि) थोड़ा ही, कम ही, अल्पांश ही, नाम मात्र का ही।
- थोरका—(वि) थोड़ा सा, नाम मात्र का, अल्पांश मात्रा, थोडे समय का।
- थोरू—(वि) थोड़ा सा, जरा सा । द
- दहमरा—(संपु.) पटक दीजिए, फेंक दीजिए, छोटों के लिए प्रिय गाली।
- दइजा—(सं.पु.) दहेज, दइया ।
- दइया—(अ.) आश्चर्यबोधक संबोधन, कथन का तकिया कलाम, ध्यानाकर्षण का विशेष शब्द दहेज।
- दइया नाहर—(ब.मु.) बहुत बड़ा शरीर वाला, आश्चर्यजनक, भयभीत करने वाली वस्तु।
- दहवा—(सं.स्त्री.) दादी के लिए अनुरागात्मक संबोधन ।
- दउरी—(सं.स्त्री.) बाँस की बनी एक टोकनी जिसमें चावल धोया जाता है।
- थूकब—(क्रि) थूक-थूकने की क्रिया, किसी को निंदनीय सिद्ध करना।
- थूथून—(सं.पु.) मुँह का दोनों ओठो वाला प्रदेश, मवेशियों के मुख का अग्रभाग।
- थून—(सं.स्त्री.) नया घर बनाने के लिए शिलान्यास।
- थूहा—(सं.पु.) बड़ा ढेर, मिट्टी की राशि ।
- थून्ही—(सं.स्त्री.) लकड़ी का पतला लट्ठा जो दो मुँही हो। थे
- थेगरी—(सं.स्त्री.) फटे कपड़े में कपड़े की लगी हुई पट्टी।
- थेगरिआउब—(क्रि) फटे पुराने कपड़े पर कपड़े की पटटी सिलाई करने की क्रिया।
- थेगरिहा—(वि) थेगरी लगा हुआ, जोरा तगोरा हुआ।
- थेलउरा—(सं.पु.) गोबर की बड़ी मात्रा में संचित स्थिति।
- थेला—(सं.पु.) तरल पदार्थ की संचित स्थिति, मवेशी या आदमी का माल।
- थेपइया—(सं.पु.) शरीर पर लेपन लगाने वाला व्यक्ति। थो
- थो-थो—(वि.) थेड़ा-थेड़ा, कम-कम
- थेथवा—(सं.पु.) फूला शरीर वाला व्यक्ति ।
- थोंथी—(सं.स्त्री.) ऐसी नारी जो देखने में अधिक मोटी हो किंतु मांसपेशी ढीली हो।
- थोथा—(सं.पु.) ज्वार का बड़ा सा फल दाने वाला पूर्ण क्षेत्र।
- दउरब—(क्रि.) दौड़ना, श्रम करना, घर के भीर अशांतिपूर्ण वातावरण, घर के लोगों को परेशान करते रहना। दउदहन - - अकारण समस्या बन जाना, परेशानी मूलक दायित्व , बिना मतलब की समस्या, तबाह करने वाली परिस्थति।
- दउगरा—(संपु.) अत्यधिक जल वृष्टि का एक दौर।
- दक्खिन—(सं.पु.) दक्षिण दिशा , उत्तर की विपरीत स्थिति।
- दक्खिनहा—(सं.पु.) दक्षिण दिशा में निवास करने वाला , दक्षिण क्षेत्र का निवासी।
- दक्खिनायन—(अ.) दक्षिण दिशा की ओर किसी एक वस्तु व्यक्ति की स्थिति।
- दकाई—(क्रि.वि.) दमरी हाँकने के कार्य की मजदूरी।
- दकबाउब—(क्रि) किसी को डंटवाना, बुरा- भला सुनवाना।
- दगाबाजी—(सं.स्त्री.) बदमाशी एवं बेइमानी, चतुराई एवं चालाकी, विश्वासघात।
- दगाबाज—(वि.) धोखा करने या धोखा देने वाला, अविश्वासनीय प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- दगाब—(क्रि) दाग लग जाना , फल में सड़न का चिन्ह बनना।
- दगान—(वि.) कलंक या दाग लगा हुआ , सड़न या दाग से युक्त ।
- दगा—(सं.स्त्री.) धोखाधड़ी, बेइमानी, बदमाशी, पीठ पीछे कर लेना।
- दगबाउब—(क्रि) किसी को गर्म लोहे की छड़ी से दागने में योगदान करना।
- दगइला—(सं.पु.) कलंकित व्यक्ति, दाग लगा हुआ फल, खानदानी दोष युक्त आदमी, समाज से तिरस्कृत व्यक्ति।
- दगबइया—(सं.पु.) दागने वाला व्यक्ति , जलाने वाला आदमी विशेष।
- दगला—(सं.पु.) अत्यंत मुलायम , पुरानी रूई या कपास।
- दगदग—(वि.) हरा-भरा चेहरा , चैतन्य मन , प्रसन्नचित मुख, चरक मन।
- दच्च-दच्च—(सं.पु.) बार-बार धक्का लगना, किसी वस्तु पर सिर पटकने से उत्पन्न ध्वनि।
- दच्चा—(सं.पु.) धक्का खाना , धक्का लगना, ठोकर।
- दक्षिनायन—(वि.) दक्षिण दिशा में सूर्य-चन्द्रमा की स्थिति।
- दंतनिपेर—(सं.पु.) बात-बात में निरर्थक दाँत निकालकर हंसने वाला, समय पर कुसमय की बात करने वाला।
- दंतब—(क्रि) बैलों के वे दांत का आना जिससे उसकी अवस्था का पता चलता है, प्रलोभन के कारण देर तक बैठे रहना।
- दताउब—(क्रि) किसी के शरीर पर कोई वस्तु स्पर्श कराना, सटाकर रखना या सांट देना, अड़ा देना या छुआ देना।
- दंतकढ़ा—(वि) जिसके सदैव दाँत बाहर ही निकले रहते हों।
- दंतबिजुरा—(सं.पु.) जिसके सामने के दाँत बेडौल हों, बड़े-बड़े दाँतों वाला ।
- दंतुरा—(वि.) जिसके दो दाँत ओंठ से बाहर निकले रहते हो।
- दंतुली—(सं.स्त्री.) शिशुओं के सुंदर-सुंदर दुधिया दाँत।
- दंतइया—(सं.स्त्री.) पीले रंग की बर्र, बर्र आकार का जहरीला कीड़ा ।
- ददूबा—(सं.पु.) दादाभाई साहब , पितातुल्य उद्बोधन, बड़ों के लिए आदर सूचक।
- ददुआई—(सं.पु.) समकक्ष आयु वाले के लिए प्यार भरा संबोधन।
- दनदनान—(क्रिवि.) बिना किसी रोक-टोक एवं हिचकिचाहट के एकदम से निर्भय रहित, सीधे गतिमान।
- दनादन—(अ.) एकदम सीधे-सीधे, बेहिचक, जल्दी-जल्दी।
- दन्द—(वि) गर्मी के कारण अकुलाहट, ऊष्मा, ऊष्मता।
- दंदबइया—(सं.पु.) किसी को गर्माहट देने वाला व्यक्ति।
- दंदबाउब—(क्रि) कपड़े से ढँककर किसी को ऊष्मायुक्त करना।
- दंद-फंद—(ब.मु.) झूठ का जाल,मिथ्याजाल, बदमाशी एवं बेइमानीयुक्त।
- दंदकब—(क्रि) सेते-सेते उछल पड़ना,भय या डर से कूद पड़ना।
- ददोर—(संपु.) शरीर में पड़े हुए चकता खुजलीयुक्त शारीरिक चर्म रोग।
- ददहा—(सं.पु.) दाद-खाज वाला व्यक्ति,दाद के रोग से ग्रसित व्यक्ति।
- दंदाब—(क्रि) गर्म होना, ओढ़ ढांककर शरीर को गर्म करना।
- दनाई—(सं.स्त्री.) एक प्रकार का रोग।
- दपकब—(क्रि) छिपना, ओट में होना, शरीर चुराकर बैठने की क्रिया।
- दपकी—(सं.स्त्री.) चपटा पात्र जिसमें पानी गर्मी में भी ठंड रहता है।
- दपकाउब—(क्रि) धमकी देना, डरवाना।
- दपकउना—(क्रि) एहसान जताकर किसी को दबाने की प्रक्रिया।
- दपटब—(क्रि) किसी को डांटना- फटकारना, उस पर नाराज होकर गलती एहसास कराना, भूल-सुधार की दृष्टि से डांटना।
- दपटा—(सं.पु.) एक के बाद दूसरा छोड़कर तीसरा दिन।
- दमनी—(क्रि.वि.) प्रशिक्षणरत बैल, हल में चलने के लिए बैल वाला प्रशिक्षण।
- दमकव—(क्रि.) दबाव के कारण कंपन,धरती का दमकना।
- दमटा—(सं.पु.) शरीर पर चकत्ते पड़ना, चौड़े आकार की फुड़िया-फुंसी ।
- दमरी—(सं.स्त्री.) अनाज की गहराई के लिए बैलों के समूह का एक परिधि में भ्रमण क्रिया, एक दाम विशेष के लिए पर्याय।
- दमदमाउब—(क्रि) पैरों से किसी वृक्ष की डाली को हिलाना।
- दमना—(सं.पु.) एक प्रकार की घास, घाव सुखाने की वनस्पति, औषधि ।
- दये—(क्रि) देना , दीजिएगा।
- दयामन—(सं.पु.) दयनीय चेहरे वाला, जिसे देखने पर तरस आये , दया का पात्र।
- दराइ दराई—(सं.स्त्री.) अनाज का छिलका , अनाज दरने के बाद निकला हुआ छिलका।
- दर्राव—(क्रि) दरार पड़ना , जमीन का फटना।
- दरकुचरब—(क्रि) ऐसे कुचलना कि दाल की तरह अन्न के दो-तीन टुकड़े ही हो।
- दरबाउब—(क्रि) दलने का कार्य करवाना, किसी से धान से चावल बनवाना
- दरबदया—(सं.पु.) दलने वाला मजदूर ।
- दरा—(सं.पु.) नियत या सुनिश्चित स्थान।
- दरबाई—(सं.स्त्री.) लट्ठा गाड़ने का निर्धारित छोटा गड्ढा।
- दर—(सं.पु.) किसी बदनाम व्यक्ति का बार- बार नाम आना, लकड़ी गाड़ने के लिए जमीन पर खोदा गया गड्ढा।
- दरबरिहा—(सं.पु.) दरबार में बैठने वाला , सदैव बराबर करने वाला, बराबरी ।
- दर्रा—(सं.पु.) गड्ढा, जमीन का फटना ।
- दरदापट—(क्रि) तामझाम के साथ भयभीत करना , डराकर किसी को भागना।
- दरदर—(वि.) खुरदुरायुक्त, चिकनाहट रहित, द्वार-द्वार भटकना।
- दरकचरब—(क्रि) पत्थर से अनाज के बड़े-बड़े टुकड़े कर देना।
- दरब—(क्रि) दलना,अनाज को दो टुकड़ों में कर देना, जमीन खोदना ।
- दरिया—(सं.स्त्री.) दलिया, एक काम चलाऊ भोजन।
- दलका—(क्रि) माघ-पूस की विकराल ठंडी से शरीर का काँपना, ठंडी देकर बुखार चढ़ना।
- दरेरब—(क्रि) किसी चीज से कोई चीज रगड़ना या घिसना, घिर्रा मारना।
- दलथम्मन—(सं.पु.) दल को संभालने वाला, किसी दल या संगठन का मुखिया, मोटा-तगड़ा शरीरकाय व्यक्ति, वीर-बहादुर।
- दलदली—(सं.स्त्री.) माघ-पूस की शरीर कंपाने वाली ठंडक, ठंड देकर चढ़ने वाली बुखार।
- दलेला—(स.पु.) मोटा तगड़ा एवं सबसे जीत जाने वाला बैल।
- दलबलियाउब—(क्रि) डर-डपट देकर भयभीत करना, डरवाना।
- दसराहा—(सं.पु.) दशहरा त्यौहार, दशहरा का पर्व।
- दसइया—(संपु.) दशवीं तिथि को जन्मा व्यक्ति, किसी व्यक्ति का नाम ।
- दसदगाठ—(सं.पु.) शरीर की सुंदर एवं आकर्षक संरचना, सब प्रकार से ठीक-ठाक, सांगोपांग, सुडौल।
- दसमासा—(सं.पु.) दस महीने माँ के पेट रहकर जन्म लेने वाला,पुरूषार्थी।
- दसउ—(सं.पु.) दशगात्र का कर्म संस्कार, मृत्यु के दशवे दिन सम्पन्न होने वाला परंपरागत संस्कार ।
- दसकत—(सं.पु.) हस्ताक्षर , अपना नाम ।
- दसाउब—(क्रि) चारपाई या जमीन पर बिछौना बिछाना, कपड़ा फैलाना ।
- दसबाउब—(क्रि) बिस्तर लगवाना , बिस्तर में कपड़े विछवाना।
- दसबइया—(संपु.) बिस्तर लगाने वाला व्यक्ति।
- दसबाई—(सं.पु.) बिस्तर बिछाने की मजदूरी या पारिश्रमिक।
- दहिजार—(सं.पु.) औरतों द्वारा दी जाने वाली प्यार या आत्मीयता की गाली दहिमास -एक प्रकार का नशा जो गर्मी में पशुओं को मार देने से लगता, व्रत रहने के पश्चात् खाना खाने से लगने वाला नशा।
- दहचाल—(क्रि) घर के अंदर उत्पन्न हड़ताल, अशांतियुक्त वातावरण।
- दहिबरा—(सं.पु.) दही और बड़ा, ऐसा बड़ा जो दही में डूबा रहता है।
- दहपोंग—(सं.पु.) मनोविनोद स्वभाव वाला व्यक्ति, मसखरा या हँसोड व्यक्ति, सदैव हँसने-हँसाने वाला व्यक्ति।
- दहकब—(अ.) लड़ने की मन्शा से ओत-प्रोत बैल की आवाज।
- दहिजरा—(सं.पु.) छोटे एवं प्रिय व्यक्ति को आत्मीय गाली।
- दहार—(सं.पु.) अत्यंत गहरा जलकुण्ड, गहरा जलाशय।
- दहबोरब—(क्रि) पानी की धार में बार-बार डूबना , बार-बार पानी के नीचे करना ।
- दहपोंगी—(क्रि) हंसी-मजाक पूर्ण वार्ता करना, मजाकिया बातें । दा
- दाई-माइ दाई-माई—(ब.मु.) दाई-माई करना (मुहावरा), जिसका अर्थ गाली देकर बेइज्जत करना।
- दाईकेर माइक—(ब.मु.) बहुत पीछे या बहुत दूर तक की याद आ जाना।
- दाऊ—(सं.पु.) पिता जी, शिष्ट परिवार में पिता के लिए।
- दांकब—(क्रि) तेज आवाज में डाँटना, गलत कार्य के बदले डाँटना।
- दाख—(सं.पु.) मुनक्का, किसमिस, ड्राई फ्रूट।
- दागब—(क्रि) गर्म वस्तु से किसी के शरीर को दागने की क्रिया, गोली मारना, जलाना।
- दांता—(सं.पु.) घात के चारों ओर निकले माँसपेशियों के कांटे।
- दांती—(सं.स्त्री.) रोज-रोज का घरेलू वाद- विवाद, निशदिन की अशांति।
- दाद दादू—(सं.पु.) छोटे बच्चों के लिए स्नेहिल संबोधन।
- दादी—(सं.स्त्री.) अन्याय, बेइमानी या बदमाशी, कुन्याय करना।
- दादाभाई—(सं.पु.) बडा भाई , बड़े भाई के लिए आदरपूर्ण संबोधन।
- दाबब—(क्रि) दबाना,ऊपर उठने से रोकना, किसी घर में पर्दा डालना, गला दबाने की क्रिया।
- दांया—(विशे.) दाहिना, दांया अंग , दांया हाथ।
- दावा—(क्रि) दबाइए या दबा दो , घटना को लुप्त करने की क्रिया।
- दारा—(सं.पु.) नियत स्थान, सुनिश्चित जगह, वह स्थान जहाँ वह खड़ा था।
- दाय—(सं.पु.) समस्याजन्य स्थिति, कष्टदायी क्रिया, विपत्ति मूलक, आफत, उलझना।
- दार—(सं.स्त्री.) दाल-दलहन अनाज , कच्चीदाल।
- दारी—(अन्य) बारी या क्रम , आक्रोश में एक तकिया कलाम।
- दारि भात—(ब.मु.) पकी हुई दाल एवं चावल , अत्यंत सरल।
- दासन—(सं.पु.) सतह पर बिछाया जाने वाला वस्त्र। दि/दी
- दिड़कब—(क्रि) चटकने की क्रिया, बात- बात में खीझ जाना।
- दिदी—(स.स्त्री.) अम्मा, माँ, माता, गाँव की माताओं के संबोधन।
- दिनदहाड़े—(ब.मु.) खुलेआम, सबके सामने ।
- दिन देउसे—(अ.) दिन दहाड़े , दिन के उजाले में।
- दिनमान—(सं.पु.) दिन के प्रकाश में, दिवस में ।
- दिनांर—(सं.पु.) पुराना व्यक्ति,वह जो अधिक उम्र का हो और कम का दिखता हो।
- दिया—(सं.स्त्री.) दीपक, प्रकाश हेतु मिटटी का बर्तन।
- दियावंती—(सं.स्त्री.) दिया जलाने का काम ।
- दिहिराउब—(क्रि) तोड़कर दरार बना देना , दरार पड़ जाना।
- दिहिन—(क्रि) दिया, दी हुई ,दी गई स्थिति।
- दिनउधी—(सं.स्त्री.) आँख का वह रोग जिससे दिन में धुंधला दिखता है।
- दिहिराब—(क्रि) दरार पड़ जना, चिटक जाना।
- दिन परत—(अ.) आने वाले समय में, जैसे-जैसे समय आयेगा, और आगे।
- दीख—(सं.पु.) सुपरचित स्थान या जगह, देखा हुआ स्थल, जाना-पहचाना ।
- दीदा—(सं.पु.) दिल या आत्मा, इच्छा या मन, हिम्मत व साहस ।
- दीदी—(सं.स्त्री.) माता या अम्मा, ग्रामीण पुराना उद्बोधन माँ के लिए, भारत माता।
- दीन—(क्रि) दिया हुआ, बिना मूल्य के स्वेच्छा से प्राप्त किया हुआ । दु
- दुअरिया—(सं.स्त्री.) दरवाजे के आकार का छोटा सा संकरा निकास द्वार।
- दुआर—(सं.पु.) घर का द्वार, निकास स्थल या दरवाजा, घर का सामना।
- दुआरचार—(सं.पु.) द्वार पर बारात का लगना, द्वारचार।
- दुअरउठा—(सं.पु.) घर के द्वार पर नीचे भाग में लगने वाली लकड़ी की चौखट।
- दुआस—(सं.स्त्री.) हिंदुओं की द्वादशी तिथि ।
- दुअरा—(सं.पु.) घर का निकास द्वार, दरवाजा या सामना।
- दुआर दुआरे—(सं.पु.) घर के दरवाजे का मैदान , द्वार के सामने का स्थल।
- दुआह—(विश्े.) जिसकी पत्नी मरने पर दुबारा विवाह हुआ हो।
- दुबराब—(क्रि) दुबला होना, कमजोर हो जाना, शरीर का सूख जाना।
- दुबराउब—(क्रि) किसी को दुबला एवं कमजोर करवाना।
- दुबराम—(विशे.) शरीर से दुबला-पतला एवं दुबराया हुआ।
- दुइबेरी—(वि.) दो बार , दो चक्र में, दो दौर, सुबह-शाम।
- दुइकलिया—(सं.स्त्री.) दो जगह से गाँठ लगने वाला पुरूषों का ऊपरी वस्त्र।
- दुइनली—(सं.स्त्री.) दो मुँहवाली वस्तु, दो नली बंदूक ।
- दुईजन—(वि.) दो व्यक्ति , दो जन।
- दुइलरी—(सं.स्त्री.) दो लड़ी से निर्मित वस्तु , ऐसा आभूषण या माला।
- दुईहंथी—(सं.स्त्री.) दोनों हाथ से पकड़कर लाठी से प्रहार करना, दो हाथ लंबी हड्डी, दो हाथ से लगने वाली।
- दुइकच्छी—(सं.स्त्री.) दो कांछ लगाने वाले धोती का एक विश्ेष पहनावा।
- दुइज—(सं.स्त्री.) द्वितीया , किसी पक्ष की दूसरी तिथि।
- दुकब—(क्रि) धोखा खा जाना, चूक जाना, पीछे रह जाना।
- दुकेल दुकेला—(वि) जो अकेला न हो, एक और साथ में साथी हो।
- दुक्की—(सं.स्त्री.) दो चिन्हों वाली तास की द्वितीय पत्ती, दो मुँह या दो खण्ड वाली वस्तु।
- दुकड़ा—(सं.पु.) दो कौड़ी, दो टका, दो कड़े वाली वस्तु, एक पैसे का चौथा अंश।
- दुखेभा—(सं.स्त्री.) दुःख का वृतांत, व्यथा कथा, दुखद चर्चा।
- दुखबइया—(सं.पु.) घाव में मारकाट, पुनः दर्द को उभार देने वाला ।
- दुखहाई—(सं.पु.) अभागिन,दुर्भाग्यशाली, नारी के लिए गाली।
- दुक्खम-सुक्खम—(अ.) दुख-सुख, हाल-समाचार, दिनचर्या संबंधी चर्चा।
- दुगधा—(सं.पु.) दुविधा या संदिग्धता, अनिश्चितता पूर्ण परिस्थिति।
- दुगुनब—(क्रि.वि.) एक का दो और दो का चार करना, सीधी दोगुना बढ़ा देना, किसी वस्तु को दो बराबर पर्त में मोड़ना।
- दुतिहा—(सं.पु.) दूती करने वाला, शिकायत पहुँचाने वाला।
- दुतिया—(सं.पु.) दूसरा प्राणी बोलने के लिए सहारा, दूसरा सहयोगी।
- दुदधू—(सं.पु.) दूध या थन, वात्सल्य बोधक।
- दुदहड़ी—(सं.स्त्री.) दूध रखने का मिटटी का पात्र।
- दुदुनुआ—(सं.पु.) व्यंग्य बोधक शब्द जिसका अर्थ होता है बहुत छोटा।
- दुदनिया—(सं.स्त्री.) एक फली में दो दाने वाली ज्वर, दो मनका वाली माला नारियों का चाँदी का आभूषण।
- दुधिया—(वि.) शिशु के छोटे-छोटे प्रारंभिक दाँत, दूध के रंग का सफेद।
- दुनबइया—(सं.पु.) कपड़ों को मोड़ने वाला,खेत की दो बार जुताई करने वाला।
- दुनबउबा—(क्रि) खेत की दो बार जुतवाई करवाना, कपड़ा फोल्ड करवाना।
- दुधारू—(सं.स्त्री.) पर्याप्त दूध देने वाली , गुणवान एवं लाभकारी भाव पर केन्द्रित।
- दुनपट—(क्रि.वि.) लचीली वस्तु को बीच से मोड़ देना दो परत करना।
- दुनउब—(क्रि) बीच में मोड़ देना,किसी को पकड़कर मसल देना।
- दुपहरिय दुपहरिया—(सं.स्त्री.) दोपहर का समय,मध्यान्ह।
- दुफसली—(वि.) दोनों फसलों में उत्पन्न होने वाला।
- दुफसिलिहा—(सं.पु.) ऐसा खेत जिसमें रबी एवं खरीफ की दोनों फसलें बोई जाती हों।
- दुफराउब—(क्रि) बराबर-बराबर दो पात्रों में पदार्थ डलवाना।
- दुफरब—(क्रि) किसी बर्तन के पदार्थ को दो पात्र में करना, एक से दूसरे पात्र में रखना, दो परत करना।
- दुफरबइया—(सं.पु.) एक बर्तन से दूसरे बर्तन में पदार्थ डालने वाला।
- दुबरटठा—(सं.पु.) नितांत दुर्बल व्यक्ति, दुबला-पतला एवं कमजोर शरीर।
- दुभतिहा—(सं.पु.) दो भाँति का व्यवहार करने वाला, मुँह देखी करने वाला।
- दुरघट—(वि.) दुर्लभ बड़े मुश्किल से मिलने वाली प्रियवस्तु या व्यक्ति।
- दुरदुर—(वि.) रवेदार चिकनाहट विहीन जो चिकना न हो ,खुरदुरी स्थिति, कुत्ते को दुतकारने वाला एक विश्ेष ध्वनि संकेत।
- दुरदुराउब—(क्रि) अपमानित करके घर से भगाना, अच्छा व्यवहार न करना।
- दुरूर दुरूर—(वि) हाथ से स्पर्श करने पर जो रवेदार हो , चिकनापन विहीन।
- दुर—(अ.) कुत्ते को हटाने का शब्द, दूर होने के अर्थ में।
- दुराव—(सं.पु.) कसी से गुप्त रखने का भाव, कपट हल।
- दुराभाव—(सं.पु.) मुनमुटाव, बुराभाव, परायापन का भाव, भेदयुक्त भाव।
- दुरबीन—(सं.स्त्री.) दूरबीन,दूर तक की चीज देखने वाला यंत्र विशेष।
- दुलहिन—(सं.स्त्री.) दुल्हन , तत्काल ससुराल आयी नयी औरत, पु.दुलहा।
- दुलरिया—(वि.) प्राणों से प्रिय बेटी, आज्ञाकारी बहू, लाड़-प्यार से पली लड़की।
- दुल्ली—(सं.स्त्री.) दुल्हन, कम उम्र की दुल्हन के लिए स्नेहिल संबोधन ।
- दुलराब—(क्रि) बच्चों द्वारा माँ बाप के साथ वात्सल्य मय वार्ता।
- दुलदुल—(सं.पु.) अपरचित या लगाव रहित आदमी,दूसरा आदमी, पराया व्यक्ति।
- दुसकरम—(क्रि) किसी कार्य को पुनः करना , एक ही काम को बार-बार करना।
- दुसरबार—(सं.पु.) मुण्डन संस्कार के बाद दूसरी बार सिर से बाल का घोटना।
- दुही पल्हान—(ब.मु.) थन या बाल से दूध दुह लिया गया या दुल्हन शेष।
- दुहबाउब—(क्रि) दोहन करवाना, दुहने में योगदान करना।
- दुहबइया—(सं.पु.) दूध दुहने वाला व्यक्ति विशेष।
- दुहब—(क्रि) शोषण करना,गाय-भैंस का दूध दोहन।
- दुना दुनौ—(वि) दोनों, दोनों जन, दोनों के दोनों।
- दूधपीमा—(वि.) दूध पीता शिशु, छोटा सा अंजान बच्चा, दुधमुँहा।
- दूसरा—(वि) कक्षा दो , दो नग, ऐसी गाय या भैंस जो दूसरी बार प्रजनन की हो।
- दूबर—(वि.) शारीरिक दृष्टि से कमजोर दुबला-पतला ।
- दूमब—(क्रि) निर्धारित स्थान से हिलाना- डुलाना, नियत स्थान से हटाना।
- दूम दड़ाका—(ब.मु.) लंबी चौड़ी बातें करना, अब्बे- तब्बे करना, बढ़ा-चढ़ाकर। दे
- देइ देई—(क्रि) दें, दूँ, दीजिए, दो, दे दो, दे दीजिए।
- देइहौं—(क्रि) दूँगी, देऊँगी,देऊँगा।
- देउनहर—(वि.) देनदार, तत्काल देने वाली प्रवृत्ति का उदारवादी व्यक्ति।
- देउता—(सं.पु.) देवता, देवतुल्य, पूजनीय व्यक्ति, देवता की प्रवृत्ति वाला।
- देउरानी—(सं.स्त्री.) छोटे भाई की पत्नी, छोटी बहू, देवर की पत्नी।
- देखा सिखी—(अ.) दूसरों को देखकर करने का भाव, नकल।
- देखाव—(क्रि) दिखना , दिखाई पड़ना।
- देखनउक—(वि.) देखने लायक, दर्शनीय देखने येग्य।
- देखबइया—(सं.पु.) देखने के लिए आये दिन आये हुए लोग, देखने वाले। देनहर दाई फटहा पइला (ब.मु.) जो उदारवाहिता के पर्याय में व्यग्यार्थ ।
- देखान—(विशेष) दिख गया , देख लिया, देखने में आ गया।
- देवाला—(सं.पु.) देवी-देवताओं का नियत स्थल, देवांगन, दिवालिया घोषित करना।
- देब देबै—(क्रि) दूँगा, देंगे, दिया जाएगा, आप देंगे ?
- देबारी—(सं.स्त्री.) दीवाली, दीपावली का त्यौहार, दीप दान का अवसर।
- देवरब—(क्रि) कोई वस्तु देने की प्रवृत्ति , उदारवादी दृष्टिकोण।
- देबरबा—(सं.पु.) देवर के लिए स्नेहिल संबोधन, पति का छोटा भाई।
- देबरउत—(सं.पु.) देवर का पुत्र , पति के छोटे भाई की संतान।
- देवी कढ़त—(क्रि) चेचक निकलना , चेचक का प्रकोप होना।
- देविअन—(सं.स्त्री.) देवी का मंदिर, देवालय का परिसर, जहाँ देवी-देवता विराजे हों उस नियत जगह के लिए संबोधन।
- देबरब—(क्रि) कोई वस्तु देने का मन बनाना।
- देबइया—(सं.पु.) देने वाला, दाता , दानकर्ता ।
- देबरउतिन—(सं.स्त्री.) देवर की पुत्री।
- देवाइ देवाई—(क्रि.वि.) देने की शैली, देने की उदारवादिता, देने का ढंग या भाव।
- देसहा—(सं.पु.) अपने गाँव से उत्तर की दिशा में निवास करने वाला व्यक्ति, सुविकसित गाँव का निवासी।
- देसहाइ देसहाई—(सं.स्त्री.) गाँव की सीमा प्रतिस्थापित होने वाली ग्राम देवी।
- देसावरी—(सं.पु.) देशी वस्तु या सामान, देश के भीतर निर्मित,वस्तु।
- देही—(सं.पु.) आत्मा, शरीरी जीव जन्म।
- देहाती—(वि.) गाँव देहात का निवासी, ग्रामीण।
- देहंगर—(वि) शरीर से हृष्ट-पुष्ट, मोटा- तगड़ा व्यक्ति, पर्याप्त मजबूत। दो
- दोअपोंअ—(अ.) आनाकानी करना, वादा खिलाफी करना।
- दोऊ—(वि.) दोनों युगल, दोनों का दोनों।
- दोख—(सं.पु.) अशुभ,दोषयुक्त जिसे देखने से अनिष्ट हो अशुभ संकेत।
- दोखी—(सं.पु.) दोष आरोपित व्यक्ति, अशुभकारी व्यक्ति।
- दोख पाप—(अ.) भूल-चूक, शरीर के विविध दोष, कलंक का पाप शारीरिक व्याधि।
- दोगही—(सं.स्त्री.) घर के सामने का खुला ओसरा।
- दोगी—(सं.स्त्री.) पशुओं के गले में या छोटे बच्चों के गले।
- दोनिया—(सं.स्त्री.) पत्ते से बनायी जाने वाला कटोरीनुमा पात्र।
- दोमा—(वि.) दूसरी बार गर्भंवती हुई गाय या भैंस।
- दोसी—(सं.पु.) मित्र या दोस्त,प्रिय साथी, सहेली, दोषी।
- दोहरा—(सं.पु.) सुपाड़ी का छोटा सा टुकड़ा, एक साथ दो नारियल फोड़ना।
- दोह—(सं.पु.) पुनर्विवाह,जिसकी पत्नी मर चुकी हो।
- दोहनी—(सं.स्त्री.) दूध दुहने वाली मिटटी का पात्र, घी या मठा रखने वाला।
- दोहपन—(सं.पु.) दोष, किसी कार्य का दोषरोपण, कलंक।
- दोहराउब—(क्रि.वि.) एक घड़े के ऊपर दूसरा घड़ा रखना, पुनरावृत्ति करना। ध
- धइकार—(सं.पु.) बंसोर के समतुल्य एक जाति विशेष।
- धउपट—(संज्ञा) कठोर परिश्रम, आवश्यकता से अधिक दौड़ धूप।
- धउरब—(क्रि) दौड़ना , तीव्र गति से चलना।
- धउराई—(सं.स्त्री.) दौड़ने का प्रतिफल, मेहनत का परिणाम।
- धउरइया धउरइयां—(सं.पु.) दौड़ने वाला व्यक्ति, दौड़ लगाने वाला।
- धउरतिय धउरतियां—(अ.) दौड़ते हुए त्वरित एवं तीव्रगति से आना, तत्परता के साथ।
- धउकब—(क्रि) हवा देना या हवा देने की प्रक्रिया।
- धक्किआउब—(क्रि.वि.) धक्का देने की क्रिया, किसी को स्पर्श करना।
- धकाउब—(क्रि) बिना किसी अवरोध के जबरदस्ती कार्य कर लेना।
- धपकब—(क्रि) रूक-रूक कर चलना, लंगड़ाती हुई चाल।
- धजी—(सं.स्त्री.) फीते के आकार की पुरानी धोती का एक लंबा टुकड़ा।
- धड धड़—(सं.पु.) कमर के ऊपर का भाग, जड़ के ऊपर का तना भाग।
- धउधउ—(वि) उदार मनवाला, उदारवादिता, देने वाला।
- धड़ल्ले—(अ.) बिना अवरोध या भय बाधा के, वेग से, बेधड़क।
- धता—(सं.पु.) पाठ पढ़ाना, मूर्ख बनाना, झूठ बोलकर झटका मारना।
- धत—(अन्य) तिरस्कार के साथ मनाही का एक शब्द।
- धंधबइया—(सं.पु.) हथकड़ी लगवाने वाला, जेल में बंद करवाने वाला।
- धतुरहा—(सं.पु.) शांडिल्य गोत्री ब्राम्हण की एक प्रजाति।
- धतूर—(सं.पु.) कनक का एक पौधा, धतूरा।
- धंधउब—(क्रि) पुलिस द्वारा किसी को बंद कराना, बंधवाना या हथकड़ी डलवाना। धंधमल - - अनिश्चित, असमंजस युक्त।
- धंधोला—(सं.पु.) आग की लपट, होली, ज्वाला।
- धंधकब—(क्रि) जलती लौ निकालना, गर्म लगना।
- धन्नासेठ—(सं.पु.) प्रसिद्ध धनिक, बहुत धनवान व्यक्ति।
- धनाब—(क्रि) मवेशियों का गर्भवती होना ।
- धनखर—(स.पु.) धान बोई जाने वाले खेत, एक फसली जमीन।
- धन्नि—(वि.) धन्य है , धन्यवाद है।
- धन्ने—(सं.पु.) धरना, हड़ताल करना , हठपूर्वक किसी के द्वार पर बैठना।
- धनपनिया—(सं.स्त्री.) धान मे रूका हुआ पानी , धान के खेत में पानी का भरा रहना
- धनइत—(सं.पु.) बड़ा धनवान,धन का घमण्ड दिखाने वाले के लिए व्यंग्य बोधक।
- धनुकधारी—(सं.स्त्री.) धनुष-बाण धारण करने वाला, किसी व्यक्ति विशेष का नाम
- धन्नी—(सं.स्त्री.) गाटर के विकल्प रूप में प्रयुक्त होने वाली चौकोर इमारती लकड़ी।
- धवाई—(सं.स्त्री.) दौड़ने की चाल गति , दौड़ने की शैली।
- धबइया—(सं.पु.) दौड़-धूप करने वाला व्यक्ति।
- धबा—(सं.पु.) एक प्रकार की वनस्पति पौध, एक जंगली पेड़।
- धमधामाउब—(क्रि) किसी की पीठ पर मुष्टिका से जल्दी-जल्दी मारना।
- धम्म-धम्म—(अ.) पोलाईयुक्त सतह पर चलने से होने वाली धम्म-धम्म ध्वनि।
- धम्मन—(सं.पु.) हारमोनियम वाद्य का पर्दा, हवा देने वाला वाद्य का हिस्सा।
- धमाका—(सं.पु.) आघात, प्रहार, धमाका, घूँसा।
- धमधूसड़—(सं.पु.) असामान्य रूप से मोटा- तगड़ा, लेद निकला व्यक्ति।
- धमकब—(क्रि) खाना खाने के लिए व्यंग्यात्मक संबोधन, मारने के लिए प्रतीक, मैथुन करना।
- धमकाउब—(क्रि) धमकी देना, खानाखिलवाना।
- धरपकड धरपकड़—(क्रि) दो लड़ते हुए व्यक्ति के मध्य बीच-बचाव करना, पुलिस द्वारा अपराधी को पकड़ा जाना।
- धरमसंकट—(ब.मु.) अनिर्णात्मक स्थिति, निर्णय न ले पाना, बीच में लटका हुआ।
- धरनहर—(सं.वि.) अवसर या उत्सव विशेष में पहनी जाने वाली साड़ी या आभूषण, झगड़ा में बीच-बचाव करने वाली।
- घरबांधि—(अव्य) जबरिया किसी से कार्य करवाना , बिना मन के दबाव।
- धरबाउब—(क्रि) वस्तु को रखवाना, रखवा लेना, कुत्ते से कटवाना।
- धरबइया—(सं.पु.) वस्तु को रखने वाला, रखवा लेने वाला व्यक्ति।
- धरनउक—(विश्े) संभाल कर रखे रहने लायक।
- धराउब—(क्रि) किसी के हाथ में कोई वस्तु रख देना , वस्तु दे देना।
- धरभर—(क्रि.वि.) धार के बल , धार वाले हिस्से से प्रहार करना।
- धरब—(क्रि) काटना या काटकर खा जाना, मार डालना।
- धसब—(क्रि) पाँव धसना, अंदर हो जाना। धा
- धाई कमाइ धाई कमाई—(ब.मु.) कड़े परिश्रम की कमाई, दौड़-धूप करके की गई संचित संपति।
- धाउब—(क्रि) दौड़ना, किसी की पुकार सुनकर दौड़ पड़ना।
- धाकड धाकड़—(वि.) दबंग, दमदार , सरहग, सुविख्यात।
- धॉंधर—(सं.पु.) पेट का दोनों कोष्टक, पेट-पीठ के बीच का भाग।
- धाये तोरा—(अ.) जल्दी-जल्दी दौड़-धूप करके की गई त्वरित व्यवस्था।
- धाय-धाय—(अ.) तोप या बंदूक की ध्वनि, वायु उत्सर्जन पर होने वाली ध्वनि।
- धांय—(सं.स्त्री.) तोप बंदूक के छूटने का शब्द, ऊपर से वस्तु गिरने से उत्पन्न आवाज।
- धारी—(स.ंस्त्री.) लकीर, लंबवत रेखा जो वस्त्र और फल पर दिखे।
- धारीदार—(वि.) खड़ी लकीर युक्त वस्त्र या फल या वस्तु।
- धारा—(वि.) बर्तनों की संख्या , इतने नग या इतने बर्तन। धि
- धिकब—(क्रि) गर्म होना, पक जाना, तापयुक्त होना।
- धिकबइय धिकबइया—(सं.पु.) तपाने वाला, गर्म करने वाला।
- धासब—(क्रि) दबाव देकर जमीन के अंदर कर देना, खंभा गाड़कर गड्ढे की पोलाई को मिटटी से भरना।
- धिमाउब—(क्रि) रफ्तार को कम कर देना।
- धिमाब—(क्रि) तेज रफ्तार को कम कर देना।
- धिमान—(वि.) कराहते हुए शांति स्थिति में हुई स्थिति।
- धिरउब—(क्रि) किसी की हँसी उड़ाना, परेशान करना, खिसवाना।
- धिरबाउब—(क्रि) किसी से किसी को परेशान करवाना या हँसी उड़वाना।
- धिरबइया—(सं.पु.) खिसवाने वाला या हँसी उड़ाने वाला व्यक्ति। धु
- धुंइधी—(सं.स्त्री.) अपच की डकार, अजीर्ण होने पर उत्पन्न गैस।
- धुआस—(सं.स्त्री.) आटा की शैली में पीसने के लिए पानी से धुली व सूखी हुई उड़द की छिलका रहित दाल।
- धुआंदेव—(ब.मु.) कष्ट पहुँचाना, नुकसान करना, किसी कार्य का अति करना, सीमा तोड़कर चलना।
- धुइनी—(सं.स्त्री.) मोटी लकड़ी में लगाई गई आग जो बहुत दिनों तक न बुझे।
- धुकुर-धुकुर—(अ.) धू-धू करके दीपक की लौ जलना, अति मंदगति से नाड़ी चलना, सांस टूटती हुई धड़कन।
- धुकुर -पुकुर—(सं.पु.) दिल का धक-धक होना, जी-घबड़ाना, चित की अस्थिरता।
- धुकुरब—(क्रि) पिटाई करना, पीट देना, मार पीट देना।
- धुकब—(क्रि) धोखा खा जाना, चूक जाने की क्रिया, गति में रूकावट पड़ना
- धुकधुकी—(सं.स्त्री.) भय लगना या डर का बना रहना, हृदय की धड़कन।
- धुक—(सं.पु.) अमल का स्मरण , व्यसन की याद, नशा करने की इच्छा ।
- धुक्का—(सं.पु.) किसी आदत या व्यसन की इच्छा।
- धुधुरिआन—(वि.) धूल-धूसरित शरीर, धूल से सनी वस्तु।
- धुधुरिआब—(क्रि) धूल-धूसरित होना , धूल में सन जाना।
- धुधुंरूक—(सं.पु.) सूर्यास्त के समय का परिदृश्य, हल्का अंधेरा छा जाना ।
- धुधुआन—(विशे.) मस्त , मास से लदा हुआ , मोटा तगड़ा।
- धुधुरिआउब—(क्रि.वि.) किसी के धूल लगा देना, किसी को सस्ते में ठग लेना।
- धुड़ेहरी—(सं.स्त्री.) होली का दूसरा दिवस , फाग का दिन।
- धुतुरूआ—(सं.पु.) शहनाई की शैली का मुँह से बजने वाला बाजा।
- धुघ्धा—(सं.पु.) धूल या धूलयुक्त गर्दा, उड़ती हुई धूल।
- धुंधुआउब—(क्रि) व्यंग्य एवं आक्रोश में ही प्रयुक्त, आग लगाना , नष्ट करदेना।
- धुधुआब—(क्रि) खा-पीकर मोटा-तगड़ा होना, मोटापा से फूल जाना।
- धुन—(सं.पु.) एकाग्र मस्ती, स्थिर चित्त, लगन, अपनी गति में मस्त रहना।
- धुनकबइया—(सं.पु.) रूई ओटने वाला, मारपीट करने वाला।
- धुनकबाउब—(क्रि) रूई की धुनाई करवाना, भरवाना।
- धुनकब—(क्रि) रूई औटना, कपास की धुनाई करने की क्रिया।
- धुनब—(क्रि) जोर से सिर पर प्रहार करना, जोर से पिटाई करना।
- धुनाइ धुनाई—(क्रि.वि.) किसी की पिटाई, मरम्मत करना, रूई की ओटाई करना।
- धुपास धुपासे—(अन्य) भूखे-प्यासे रहकर कार्य करना, कड़ी धूप में।
- धुरब—(क्रि) चूर्ण का छिड़काव , मन रखना या बहलाना।
- धुरकब—(क्रि) घाव में पावडर छिड़कना ।
- धुरिआउब—(क्रि) धूल लपेटना , धूल लगाना।
- धुरचटटा—(स.पु.) एक तरफ से बिना अंतर के विशुद्ध झूठ या झूठ बोलने वाला।
- धुरमुस—(सं.पु.) लोहे का एक औजार जिससे गिट्टी की कुटाई की जाती है।
- धुसड़ा—(वि.) धूल से ओत-प्रोत, धूल की तरह रंग वाला।
- धुसड़ाव—(क्रि) धुल-धूसरित हो जाना, शरीर की चमक उड़ जाना।
- धूधूर—(सं.स्त्री.) धूल-धूल का संचित समूह , सूखी मिटटी के कण ।
- धूर—(सं.स्त्री.) धूल-धूल के कण, मिट्टी के महीन अंशों का समूह ।
- धूरि केरि जेड़री—(ब.मु.) सफेद गप्प मारना, झूठ का पुल बाँधना।
- धूसड धूसड़—(सं.पु.) धूल के रंग, धूल से सना हुआ। धो
- धोई धाई—(अ.) साफ सुथरी, पूर्ण पवित्र, निश्कलंक स्वच्छ छवि।
- धोउब—(क्रि) धोना या साफ सफाई करना।
- धोखिया—(सं.स्त्री.) धोखा देने वाली, जो धोखे से पैदा हो गई हो।
- धोखिआब—(क्रि) धोखा खा जाना, सही ढंग से न समझ पाना।
- धोगरव—(क्रि) मारना-पीटना, टुकड़े कर देना।
- धोंधा—(सं.पु.) बहुत बड़ा छिद्र, मोटा- ताजा एवं फूला व्यक्ति।
- धोधाव—(सं.पु.) मोटा-तगड़ा, इतनी अधिक मोटाई या असामान्य मोटापन।
- धोधवा—(क्रि) अच्छे मोटे-तगड़े लंबे-चौड़े आदमी के लिए मनोविनोदी उद्बोधन।
- धोबाउब—(क्रि) धुलवाना, साफ करवाना, धुलने में सहयोग करना।
- धोबइया—(सुं.पु.) धुलाई करने वाला, साफ करने वाला।
- धेमन—(सं.पु.) किसी वस्तु के धोने से शेष निकला पानी, मैल युक्त पानी।
- धोबान—(विशे.) धुला हुआ , धोया हुआ , साफ सुथरा।
- धोहा—(सं.पु.) भूसा में लट्ठ मारने से उत्पन्न ध्वनि, धेह की आवाज निकलना।
- धंधोला—(क्रि.वि.) लंबी लपट के साथ जलना, होली की भाँति लौ।
- धौ. विधौ.—(अ.) अनिश्चितता या अनिर्णयात्मकता की स्थिति शंका या संदेह। न
- नइब नइबा—(वि.) नवीन वस्तु, अनूठी या नयी नवेली , वाद में क्रय की गयी वस्तु।
- नइहर—(सं.स्त्री.) किसी नारी का मायका, मा-बाप का गाँव।
- नउगिरही—(सं.स्त्री.) नारियों का आभूषण।
- नउतिआन—(क्रि) भूत-प्रेत की झाड़-फूँक करते, जादू-टोना से मुक्ति दिलाना।
- नउबंधा—(सं.पु.) नया बाँध, किसी खेत विशेष का नाम, नवीन मेंड़ से युक्त बांध।
- नउलख नउलखा—(सं.पु.) नौ लाख के लागत का बना स्वर्ण आभूषण।
- नउपरहा—(सं.पु.) नया व्यक्ति, पूर्व से अपरिचित, जो नया-नया आया हो, जो पहले कभी भी न देखा हो।
- नउपर—(सं.पु.) नया खेत जो पहली बार जोता-बोया गया हो, वह व्यक्ति जो किसी कार्य को पहली बार कर रहा हो।
- नउतिहा—(सं.पु.) झाड़-फूँक करने वाला तांत्रिक विद्या का ज्ञाता।
- नउठट—(क्रि) नया पुराना करना, टूटी छप्पर में नए बाँस लगाना।
- नउआ—(सं.पु.) नाई नापित, स्त्री.लिंग नउनिया नाउन।
- नउआन—(सं.पुं.) नाई जाति के निवासियों की बस्ती या मुहल्ला।
- नउमी—(सं.स्त्री.) रामनवमी का पर्व, नवमी तिथि, कक्षा नौ किसी संख्या की नौ इकाई।
- नउधरामन—(वि.) मान-सम्मान में आघात पहुँचाने योग्य कार्य, प्रतिष्ठा दाँव, में लगाने लायक कार्य, ऊँगली उठने येग्य।
- नउसिखिया—(सं.पु.) नया कार्य का नया कर्ता, जो परिपक्व न हो, नया-नया, किसी कार्य का कर्ता, नया प्रशिक्षणार्थी।
- नउआनार—(ब.मु.) एक साथ दो काम , आम के आम गुठलियों के दाम ।
- नकनकाब—(क्रि) नाक के बल बोलना , अस्पष्ट बोलना।
- नकसुर—(क्रि) नाक के बल बोलने वाला या बात करने वाला।
- नकलोह नकलोहू—(सं.प्र.) कुछ रक्त कुछ पीप का एक साथ निकलना।
- नकुआब—(क्रि.वि.) नाक के बल स्वर निकलना, बात करते समय नाक से बोलना।
- नकटा—(सं.प्र.) बेशर्म आदमी, जिसे लाज- शर्म न महसूस हो।
- नकबेसर—(स.प्र.) नाक की नथुनी, वृत्ताकार आकृति में नाक में धारण करने वाला स्त्रियों का आभूषण।
- नकबेल—(सं.प्र.) नाक की नथुनी , बृत्ताकार आकृति में नाक में धारण करने वाला स्त्रियों का आभूषण।
- नकुआ—(सं.प्र.) नाक, सर्वोच्च वस्तु, सर्वोत्तम एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति, मुख्य भाग या प्रमुख व्यक्ति।
- नकुना—(सं.प्र.) नाक की तरह नुकीले आकृति का आम।
- नगेसड़—(स.प्र.) छोटा बच्चा जो बिना कपड़े पहने स्थिति में हो या जो दिगंबरी साधू-संत मुनि, नंग-धडंग रहने वाला व्यक्ति।
- नगड़ा—(सं.पु.) दुष्ट व्यक्ति, वस्त्र विहीन।
- नगरा—(स.पु.) काठ के बने हल का एक अंग, कृषि औजार का एक नाम, हल का कंट्रोलर पार्ट।
- नगरिया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का नगाड़ा, छोटी नगरी, चर्मकार जाति का वाद्ययंत्र।
- नगीचे—(अ.) नजदीक , समीपस्थ, पास में, आस-पास में।
- नगमाचै—(सं.पु.) नागपंचमी का पर्व, श्रावण मास की पंचमी तिथि, नाग देवता को दूध पिलाये जाने वाला दिवस।
- नगाड़ा—(सं.पु.) बहुत बड़े आकार का नगाड़ा, किसी गोपनीय वार्ता का प्रचार-प्रसार, नगाड़ा पीटना, बघेली मुहावरा।
- नगड़ई—(विशे.) नग्न प्रदर्शन, विधि विरूद्ध एवं अशिष्ट व्यवहार।
- नगाव—(क्रि) अस्वस्थ्य व्यक्ति, बीमार पशु, शिथिल मन, रोग-व्याधि ग्रसित
- नगद—(विशे.) अच्छा या मजबूत, नगद।
- नगिनिया—(सं.स्त्री.) नागिन नामक सर्पिणी, नग्न रहने वाली प्रजाति की साध्वी।
- नचाउब—(क्रि) नचाना, घुमाना,फिराना, नृत्य कराना।
- नचबाउब—(क्रि) नृत्य करवाना, किसी को परेशान करना।
- नचइया—(सं.पु.) नाचने-गाने वाला, नृत्य- गान पेशे में संलग्न व्यक्ति।
- नचउना—(सं.स्त्री.) मोजरा, नाचने का पारिश्रमिक, नृत्य क्रिया के बदले प्राप्त धन।
- नटबा—(सं.प्र.) छोटा बछड़ा, हल में न चला हुआ बैल।
- नटिया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का पतला नाटा बैल, कम उम्र का नया बछड़ा।
- नटब—(क्रि) कहकर बिलकुल बदल जाना, एक उत्तर में अड़े रहना।
- नटइ नटई—(सं.स्त्री.) राग या आवाज, कण्ठ या गला, कण्ठ का स्वर।
- नजरिआउब—(क्रि) नजर लगाना, डींठ लगाना।
- नतपतोह—(सं.स्त्री.) नाती पत्नी, पुत्र की बहुरानी, प्रपौत्र वधू।
- नतिनिया—(सं.स्त्री.) पुत्र की पुत्री, प्रपौत्री, बेटे की बेटी।
- नतिअउ—(सं.पु.) नाती, पुत्र का पुत्र, प्रपौत्र, स्नेहिल आम व्यक्ति।
- नतीबा—(सं.पु.) नाती, प्रपौत्र के लिए स्नेहिल संबोधन।
- नथिआ—(स.ंस्त्री.) नारियों के नाक का वृत्ताकार आभूषण।
- नथुना—(सं.पु.) नाक, बड़े आकार की नथुनी।
- नदबा—(सं.पु.) बटलोई के आकार का मिट्टी का पात्र।
- नदाब—(क्रि) शांत हो जाना, झगड़ा खतम हो जाना, नाराजगी का दूर होना।
- नधब—(क्रि) काम में संलग्न होना, निरंतर काम में लगे रहना।
- नधबाउब—(क्रि) खेत में हल चलवाना, हल जुआ में बैल को संलग्न कराना।
- नधबइया—(सं.पु.) नांधने वाला, बैल को हल जुआ में संलग्न करने वाला, हलवाहा।
- ननिआउर—(सं.पु.) नाना का घर, माता का मायका।
- ननदोई—(सं.पु.) पति का बहनोई, ननद का पति, ननदोय।
- नन्हिआउब—(क्रि.वि.) छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त करना, महीन या बारीक रूप में कटाई करना।
- ननद—(सं.स्त्री.) पति की बहन।
- नपिया—(सं.प्र.) जमीन नापने वाला, नाप- जोख करने वाला।
- नपउना—(सं.पु.) नापने की मजदूरी, नपाई शुल्क।
- नपाउब—(क्रि) नाप करवाना, सीमा का नाप-जोख कराना।
- नपबइया—(संपु.) नाप-जोख करने वाला, नापने वाला।
- नपना—(सं.पु.) जिससे नापने का कार्य किया गया हो, मापक यंत्र।
- नबेरब—(क्रि) छांटना, मनपंसद चयन करना, उपयुक्त छंटाई।
- नमाईन—(ब.मु.) बड़े मुश्किल में, नया-नया, नमाइन के तुपकदार मूड़े में गोरसी, लोकोक्ति।
- नमइंह नमइंहा—(सं.पु.) जो पहलीबार कोई चीज देखा हो, अंजान व अनभिज्ञ।
- नरइया—(सं.स्त्री.) नाले से छोटी आकार वाली जल प्रवाहिनी अनाज जैसे गेंहूँ का शेष डंठल, नाड़े के आकार की पतली रस्सी।
- नरबा—(सं.पु.) नाला, नाले के आकार की जमीन की आकृति।
- नरेहटी—(सं.पु.) गला या गर्दन, कण्ठ की उभरी हड्डी।
- नररब—(क्रि) किसी को अकारण परेशान करना,प्रताड़ित करना।
- नरिआब—(क्रि) जोर-जोर से चिल्लाना,गला फाड़कर आवाज निकालना।
- नरिबाउब—(क्रि) किसी को चिल्लाने के उत्प्रेरित कर देना।
- नरइ नरई—(सं.स्त्री.) फसल का डंठल।
- नरिअर—(सं.पु.) नारियल का फल, नारियल का पेड़, झुकावदार आकार के खपड़े के लिए संबोधन।
- नरिया—(सां.स्त्री.) छप्पर में छाया जाने वाला खपड़ा जो ऊपर भाग में रखा जाता है।
- नरिअरा—(सं.पु.) नालीनुमा शैली का खपड़ा, नारियल का पेड़।
- नर—(सं.पु.) कय एवं दस्त का एक साथ होना।
- नखा—(सं.पु.) वर्षा के पानी से निर्मित पतला नाला, छोटा मोटा नाला।
- नरघेहिआ—(सं.स्त्री.) पानी निकास की पतली नाली, बर्तन साफ करने का जल।
- नरदा—(सं.पु.) वह स्थान जहाँ निश्चित रूप से भोजन बनाने वाले बर्तनों को साफ किया जाता है।
- नलही—(सं.स्त्री.) लोहे की नाल लगी जूती, नाल ठोकी वस्तु।
- नसान—(विशे.) खराब प्रवृत्ति या बिगड़ी आदत, विधवा औरत।
- नसाब—(क्रि) वस्तु का खराब हो जाना, बिगड़ जाना, विकृत सरंचना।
- नसाउब—(क्रि) बने काम को बिगाड़ देना, बनाकर मिटा देना।
- नसतड़क—(क्रिवि.) नसों का इधर-उधर हो जाना, शरीर के किसी अंग में मोच का आ जाना, अपने नियत स्थान से नस का हट जाना।
- नसबइया—(सं.पु.) बिगाड़ देने वाला व्यक्ति , खराब करवाने वाला।
- नहकोट—(क्रि.वि.) नाखून से बना शरीर का चिन्ह, शरीर को नाखून का छिलाव, शरीर में नाखून की रेख।
- नंग धड़ंग—(विशे.) नंगा, वस्त्र विहीन, दिगंबर।
- नंघा—(विशे.) नग्न व्यक्ति, वस्त्र विहीन या निपर्दा व्यक्ति, दुष्ट प्रवृत्ति वाला व्यक्ति,मुँहफट्ट एवं बदनाम आदमी। ना
- नांई—( (अ.) समतुल्य, समान, तरह, भाँति, नापित।
- नाउब—(क्रि) डालना,किसी वस्तु में कोई वस्तु डालना।
- नाकब—(क्रि) लांघना, पार होना, ऐसा बैरियर जिसे कूदकर या लाँघकर पार हो सकें, पशुओं के प्रवेश निषेधक, अवरोधक।
- नागा—(सं.पु.) नंगे वदनवाले साधु, बीमार व्यक्ति या बुखार की वेदना, खराब कार्य।
- नाट—(सं.स्त्री.) पानी भरे बाँध से अतिरिक्त जल निकास का रास्ता, पानी का उछाल द्वार।
- नाटा—(सं.पु.) ठिगने कद का प्राणी,बछड़ा या यौवनायुक्त नया बैल।
- नाटर घुसुआ—(ब.मु.) इधर का उधर करना, भीतर का बाहर करना।
- नातर—(अ.) नहीं तो, अन्यथा या तो फिर, बल्कि, इसके बिना, नहीं तो, फिर वैसा, नहीं फिर ऐसा।
- नात—(सं.पु.) रिश्तेदार , संबंधी।
- नांद—(सं.पु.) मिटटी का बना हुआ टब, पानी भरने का पात्र।
- नादब—(क्रि) टिक पाना या किसी का किसी के पास रह पाना।
- नादिया—(सं.पु.) मंसा मुँहवाला बैल, महादेव के प्रतीक रूप में मान्यता प्राप्ति बैल।
- नाधब—(क्रि) बैलों को खेत जोतने के लिए हल में संलग्न करना।
- नापब—(क्रि) नापना, नाप-जोख करना, पैमाइश करना।
- नामी—(क्रि) नामजादी, मशहूर, नामधारी, माना-जाना नाम।
- नार—(सं.पु.) जोर से आवाज करना, पशुओं का अविरल गति से करूण क्रंदन, लताओं की उपलताएँ।
- नासब—(क्रि) काम को बिगाड़ देना, नष्ट करना, आशा में पानी फेरना।
- नान्ह—(वि.) छोटे-छोटे कण, महीन या बारीक, अतिसूक्ष्म या छोटा, बहुत छोटे-छोटे अंश।
- नाहर—(सं.पु.) शेर या बाघ, बहुत खतरनाक एवं भयावह कीड़ा।
- नाहक—(सं.पु.) बिना मतलब के, अकारण, व्यर्थ में । नि
- निकठउर निकठउरे—(सं.पु.) खुला मैदान, बिना छाया की जगह, खुले आसमान के तले उठने बैठने लायक सममतल भूमि।
- निकबर—(क्रि) विशुद्ध रूप से, पूर्णतया, शुद्ध, मिलावट रहित, एक ही राशि या प्रजाति का समूह।
- निकचाब—(क्रि) काम तमाम कर डालना, थोड़ा सा बचना, स्थान या उद्देश्यके करीब, कुछ नजदीक पहुँच जाना।
- निकूच—(वि.) आवश्यकता से अधिक कृपण, आवश्यक आवश्यकता के मद में भी न खर्च करने वाला।
- निकहा—(वि.) सुंदर एवं अच्छा, प्रशंसनीय, कल्याणकारी कार्य।
- निकाइ निकाई—(सं.पु.) भलाई, अच्छापन, सुंदरता, कुशलता।
- निकरबाउब—(क्रि) किसी को कहकर बाहर निकलवाना।
- निकरब—(क्रि) पकड़कर घर से बाहर करना, किसी को गाँव से निकाल देना, निकालना, बाहर करना।
- निकरबइया—(सं.पु.) बाहर निकालने वाला, निकाल लेने वाला।
- निकास—(सं.पु.) अंदाज, परीक्षण, सत्य का ज्ञान।
- निकार—(सं.पु.) निकलने का रास्ता, निकास द्वार, घर के दरवाजे एवं द्वार की दिशा,घर का सामान।
- निखिद्ध—(वि.) निकृष्टि वस्तु, विचारभाव मानसिकता, क्रियाकलाप, व्यवहार, भोजन, निंदनीय एवं घृणित व्यक्ति।
- निखोसा—(सं.पु.) जड़ या मूर्ख, मूल्य विहीन व्यक्ति, बिना सामर्थ्य का कार्य करने वाला, अनादर सूचक एक गाली।
- निखरा—(क्रि) अंतिम निर्णय, रहस्य जानना, विवरण लेना।
- निगहा—(सं.पु.) काले रंग का चीटा, एक कीड़ा-मकोड़ा विशेष।
- निगही—(सं.स्त्री.) स्त्री. वाचक, चींटी काले रंग का मटा।
- निघारब—(क्रि) चक्की से आटा एकदम निकाल लेना।
- निचोउब—(क्रि) दबाकर या ताकत लगाकर निचोड़ना, दूध दुहना, शोषण करना, रससार चूस लेना।
- निचोबइया—(सं.पु.) निचोड़ लेने वाला, निचोड़ने वाला।
- निचोमन—(सं.पु.) निचोड़ने से निकलने वाला तरल पदार्थ, कपड़े से निकला गंदा पानी।
- निचटटा—(वि.) बिलकुल या सामने, एकदम या एकबारगी, बिना बाधा-विघ्न के, बहुत दूर तक का दिखना।
- निचटबइया—(सं.पु.) एकदम से पानी पोंछकर साफ करने वाला।
- निचटब—(क्रि) बर्तन से पानी पोंछ सा लेना, जमीन से पानी साफ करना चाट सा लेना।
- निचटबाउब—(क्रि) पानी पोछवाना, पोछवाकर साफ करवाना।
- निचंदर—(वि.) खुला एवं निर्मल आकाशीय स्थिति, बादलरहित एवं प्रकाशयुक्त आकाश।
- निछला—(वि.) स्वतंत्र एवं स्वंच्छद, विशुद्ध वस्तु, वह अनाज जिसमें दूसरे अनाज के दाने न मिले हों।
- निछरब—(क्रि) फली के छिलके का अलग होकर दाना निकल आना, फट जाना।
- निछक्का—(क्रि.वि.) ऊपर ही ऊपर छलांग लगाना, एकदम से बिना शरीर का अंग स्पर्श हुए कूद जाना।
- निछरबाउब—(क्रि) फली के दाने अलग करवाना, कपड़े फड़वा देने में योगदान करना।
- निछरबइया—(सं.पु.) फली से दाने अलग करने वाला, कपड़े फाड़ने वाला व्यक्ति।
- निझरिगा—(क्रि.वि.) पौधे में लगे फल का पूर्णतः झड़ जाना,फल के पककर समाप्त हो जाने की स्थिति, चुकता हो जाना।
- निझररब—(क्रि) पेड़ में फले फल का खत्म हो जाना, फल पेड़ में न दिखना।
- निझारब—(क्रि) फल का झड़ जाना, समाप्त हो जाना।
- निझरबइया—(सं.पु.) पेड़ से फल तोड़कर पेड़ को खाली कर देने वाला।
- नितलबे—(वि) ऐसा कार्य जिसके उत्पादन में स्वयं का स्वामित्व हो , जिस व्यवस्था से किसी को लेना-देना न हो।
- निथारब—(क्रि) बर्तन से पानी निकाल लेना और एक बूँद भी न छोड़ना।
- निथरबइया—(सं.पु.) एक-एक बूँद पानी निथारने वाला व्यक्ति।
- निथरबाउब—(क्रि बर्तन से एक-एक बूँद पानी निथरवा लेना।
- निदाउब—(क्रि) खेत की निराई करना, अन्न के पौधे से घास निकालना।
- निदूहब—(क्रि) किसी का पूर्णरूपेण शोषण करना, किसी को ऐसे लूटना कि उसके पास कुछ न बचे।
- निदबाउब—(क्रि) किसी से खेत में घास की निरवाई करवाना।
- निदइया—(सं.पु.) निराई करने वाला व्यक्ति।
- निदाइ निदाई—(वि) निदाई की मजदूरी, मेहनताना।
- निधाँस—(वि.) बिलकुल खुला बदन, शरीर के ऊपरी भाग की नग्न स्थिति, खुली पीठ, खाली पेट, बिना कुछ खाये-पीये स्थिति।
- निनार—(वि.) अलग-थलग, रहन-सहन, पृथक भोजन व्यवस्था, आत्म निर्भर एवं बँटवारा करके पृथक व्यवस्था।
- निधुंआ—(वि) मंद आग, धुँआ रहित अंगार।
- निपटव—(वि.) काम से उबरना, किसी काम को कर लेना, किसी से झगड़ा करने की धमकी, प्रश्न के अनुरूप जबाव देने को तैयार रहना।
- निपटबइया—(सं.पु.) निपटारा करने वाला, निर्णय करके मामला समाप्त करने वाला।
- निपटारा—(क्रि.वि.) फैसला, निदान, निर्णय।
- निपोकनंगा—(ब.मु.) जिसके और कोई न हो, धन संपत्ति बिलकुल न हो ऐसा आदमी, दिवालिया हुआ सा व्यक्ति।
- निपटाउब—(क्रि) मामले का रफा-दफा करवाना, काम खत्म करवाना, निपटारा करवाना।
- निपरदा—(वि.) खुल्लम-खुल्ला, पूर्णतया नग्न,वस्त्र विहीन शरीर, शर्मनाक स्थिति।
- निपांग—(सं.पु.) जो पाँव से अपंग हो, संबल विहीन, चलने-फिरने में असमर्थ, साधन-सुविधा रहित।
- निपोरबा—(सं.पु.) नगण्य व्यक्ति, ऐरा-गैरा आदमी, अयोग्य एवं अस्तित्व विहीन, अपमान या उलाहना जन्य गाली।
- निपुरा—(सं.पु.) पुरूर्षो के लिए एक गाली, स्त्री.. निपुरी।
- निपुरचुपुर—(अ.) कार्य में आना-कानी करना, अस्पष्ट एवं संदिग्ध क्रियाकलाप।
- निपोरबाउब—(क्रि) किसी के द्वारा किसी को मरवा डालना, किसी से अपने मूत्रांग की चमड़ी खुलवाना।
- निपेचब—(क्रि) छिलके से दाना निकाल लेना, शान दिखाना नाव का सउखि निवोचब, बघेली मुहावरा।
- निपचब—(क्रि) पोल, जगह पाकर पुलक जाना, अस्त्र के मूठ का निकल जाना।
- निपचबइया—(सं.पु.) पोलाई से घुसकर आर-पार हो जाने वाला व्यक्ति।
- निपचाउब—(क्रि) पोलाई से निकलवाना।
- निपोरब—(क्रि) निकालना, दाँत काढ़ना, मूत्रांग की चमड़ी खोलना, मार डालना।
- निपोर—(क्रि) कुछ नहीं, बाँस का एक पोर , अपशब्द एवं अश्लील का पर्याय, अपशब्द, गाली (ब.मु.)।
- निफारब—(क्रि) कोई नुकीली वस्तु चुभाकर आर पार कर देना।
- निफरब—(क्रि) अनाज की बाल निकालना , इस पार से उस पार चुभकर निकलना।
- निबहब—(क्रि) उपयोग या उपभोग, गुजारा करना,कार्य में प्रयोग करना।
- निबाहब—(क्रि) अंत तक साथ निभाना, किसी का जीवन निर्वाह, दायित्व को अच्छे ढंग से पूरा करना।
- निबहिबइया—(सं.पु.) निभाने वाला , सामान का प्रयोग करने वाला, निबहि करने वाला।
- निबला—(सं.पु.) धन-दौलत से गरीबजन, प्राणी एवं शरीर से कमजोर जान।
- निबलाब—(क्रि) दिन-प्रतिदिन कमजोर होना, सूख जाना व रोग ग्रस्त होना।
- निबहुर—(विशे.) जो जाकर कभी वापस न आये।
- निबलइ निबलई—(सं.स्त्री.) निर्बलता, कमजोरी।
- निबलान—(वि.) जो अति दुर्बल हो गया हो , दुबला हुआ व्यक्ति।
- निमिया—(सं.स्त्री.) नीम का छोटा सा पेड़, किसी नारी विशेष का नाम, नीम की तरह कड़वी वाणी बोलने वाली।
- नियाउ—(सं.पु.) न्याय का निर्णय , विवादित विषय का न्यायिक निपटारा, उचित-अनुचित का फैसला।
- निरदंग—(सं.पु.) पूर्ण स्वतंत्र एवं स्वच्छंद , जिस पर किसी प्रकार का भार का दायित्व न हो।
- नियर—(अ.) नजदीक, समीप, पास।
- निरामन—(सं.पु.) खर-पतवार निकालकर रखा गया कचरा, खरीफ फसल के खेत से निकली घास।
- निरजल निरजला—(वि.) निर्जल,बिना पानी के , बिना पानी पिये व्रत।
- निरउही—(सं.स्त्री.) फसल से घास निकालने का पारिश्रमिक, खरीफ के पौध धान या कोदो समूह से निकली घास।
- निराइ निराई—(सं.स्त्री.) निरउहीं या निरमन, निदाई।
- निरहोर—(सं.पु.) घुटने और पाँव के बीच का हिस्सा, पेडूरी के ऊपरी भाग।
- निरभोटब—(क्रि) समूल रूप से पत्ती या फल तोड़ना, इस तरह किसी पौधे से फल तोड़ना कि उसमें कुछ न बचे।
- निरा—(वि) एकदम, बिलकुल, नितांत, बिना मिलावट के, विशुद्ध।
- निरदइ निरदई—(वि.) कठोर हृदय वाला, मोह ममता विहीन, जिसके दया-धर्म न हो।
- निरमा—(सं.पु.) बर्तन या कपड़ा साफ करने का साबुन, विकल्प वाला चूर्ण।
- निरबाह—(सं.पु.) जीवन-यापन, दैनिक दिनचर्या पूरी करना, गुजारा चलाना, पार लगाना या वचन निभाना।
- निरमोहिल—(वि) जिसके हृदय में मोह-ममता का अंश तक न हो।
- निरवंसी—(वि.) जिसके वंश में कोई न बचाहो।
- निरबारब—(क्रि) विवादित वस्तुस्थिति को सुलझा देना, जान से मार डालना, उलझन से मुक्त करना।
- निरबरबइया—(सं.पु.) उलझन से मुक्त कराने वाला, विवाद से सुलझाने वाला।
- निल्लोह—(वि) मुख में बिना दाना पानी डाले की स्थिति, पूर्णतः खाली पेट, सुध खबर न लेने वाला।
- निलज्ज—(वि.) जिसके लज्जा-शर्म न हो।
- निसोच—(वि.) बिना चिंता के सोच-विचार रहित, विघ्न-बाधा विहीन।
- निहुरइयां—(अ.) निहुरे’-निहुरे, झुके-झुके, लुके-लुके।
- निहाई—(संस्त्री.) लोहा पीटने वाला लोहार का लोहे का औजार, धार निकालने वाला लोह का गुटका।
- निहुरब—(क्रि) किसी के सामने किसी व्यक्ति का झुकना।
- निहुराउब—(क्रि) किसी वस्तु को अपनी ओर झुकाना, अपने आगे झुकाना, अपने अधीन या काबू में करना, अपनी ओर लटकाना।
- निहुरबइया—(अ.) हमेशा सामने झुक जाने वाला, किसी को झुकाने वाला।
- निहरबइया—(सं.पु.) देखने वाला, दूसरे को समझने व देखने वाला।
- निहारब—(क्रि) देखना, नजर टिकाये रखना, दृष्टि लगाना, मुँह ताकना।
- निहरबाउब—(क्रि किसी से दिखवाने के लिए दबाव बनाना। नी
- नीक—(वि) अच्छा या शुभलायक, उत्तम स्वभाव व उच्च विचार वाला हितकर, सुंदर तथा साफ-सुथरी छवि युक्त।
- नीक नागा—(ब.मु.) भला-भला, ऐन-केन प्रकारेण, अच्छा-बुरा जैसा बन पड़ा, (ब.मु.) किसी प्रकार से कोटा पूर्ति।
- नीक नीके—(अ.) अच्छे ढंग से स्वस्थ्य एवं सानंदपूर्वक, सकुशल एवं प्रसन्नचित, अच्छी तरह से।
- नीछब—(क्रि) छिलका छीलना, फली से दाने निकालना, पहने कपड़े फाड़ देना, रूई से बिनौला अलग करना।
- नीचे—(अ.) नीचे की ओर तले, घटकर, कम।
- नीदब—(क्रि) उगी फसल के पौधें से घास छीलना, खरपतवार निकलना।
- नउनाउब—(क्रि) किसी वस्तु को बनाते-बनाते या सजाते-संवारते समय बिगाड़ देना, व्यंग्य की दशा में प्रयोग। ने
- नेउन—(सं.पु.) गुणवान या जानकर, विशेषज्ञ या गुणी व्यक्ति।
- नेउतब—(क्रि) निमंत्रित करना, निमंत्रण देना, किसी विद्या विशेष में पारंगत।
- नउता—(सं.पु.) आमंत्रण, निमंत्रण।
- नेउतहरी—(सं.पु.) आमंत्रित या निमंत्रित व्यक्ति, अतिथि गण।
- नेगनहरी—(सं.स्त्री.) उत्सव विशेष में हक लेने वाली, विवाहोत्सव में पारंपरिक ढंग दायित्व विशेष के लिए निर्धारित नारीपात्र।
- नेग—(सं.पु.) किसी उत्सव विश्ेष में प्रचलित परंपरागत हक किसी दायित्व के बदले प्रोत्साहन अंश।
- नेबार—(सं.पु.) पलंग बुनने का सूत का पट्टा, नेवाड़।
- नेमी—(वि.) धर्म-कर्म करने वाला, नियम का पालन करने वाला।
- नेम—(स.पुं.) नियम दस्तूर परंपरा धर्म रीति रिवाज का पालन।
- नेमुआ—(सं.पु.) निब्बू, नींबू।
- नेबुआ अरापक—(ब.मु.) एकदम भूखे, दाना-पानी खाये बिना।
- नेरिआब—(कि.) जोर-जोर से चिल्लाना, गला फाड़-फाड़कर पुकारना, चीखना, चिल्लाना।
- नेरिबाउब—(क्रि) किसी के द्वारा जोर-जोर से चिल्लवाना।
- नेरा जोरा—(ब.मु.) हिसाब-किताब फैसला, पूर्ण निर्णय, बघेली मुहावरा।
- नेरिबइया—(सं.पु.) जोर-जोर से चिल्लाने वाला आदमी।
- नेरूआ—(सं.पु.) किसी फल को पौध के अंग से जोड़ने वाला डंठल, फल का वह निश्चित भाग जड़ा डंठल जुड़ा रहता है।
- नेरभर—(अ.) नजदीक तक पास तक, बहुत पास।
- नेर नेरे—(अ.) नजदीक या पास में, साथ में या करीब।
- नेरा—(सं.पु.) हरे बाँस की पतली लंबवत खपच्ची, हरे लंबे बाँस को पतले- पतले परत में विभक्त खण्ड विशेष।
- नेव—(सं.पु.) नींव या आधार, किसी वस्तु की बुनियाद। नो
- नोइ नोई—(सं.स्त्री.) पशु दोहन के समय पैरों में बाँधी जाने वाली रस्सी।
- नेउब—(क्रि रस्सी से गाय का पाँच दुहने हेतु बाँधना।
- नोकड़ी—(सं.पु.) नौकरी, मजदूरी, सेवा।
- नोकड नोकड़—(सं.पु.) नौकरी करने वाला, पराधीन व्यक्ति, अधीनस्थ या सेवक, नौकर।
- नोकड़िहा—(सं.पु.) नौकरी करने वाला व्यक्ति।
- नेकब—(क्रि) टोकना, चुनौती देना,पानी चढ़ाना, अशगुन करना।
- नोख नोखे—(सं.पु.) तेज या जोरदार , तेज व्यक्ति बनने की दशा में व्यंग्य बोधक, किसी व्यक्ति का नाम।
- नोकइया—(सं.पु.) रोकने-टोकने वाली प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- नोचइया—(सं.पु.) तोड़ने वाला या छीनने वाला, लूट-खसोट करने वाला।
- नोचब—(क्रि) तोड़ लेना, लपटकर छुड़ा लेना।
- नोचबाउब—(क्रि) किसी से तुड़वा लेना, चमड़ी निकलवा लेना।
- नोन—(सं.पु.) नमक, नोन, पानी केर कान, बघेली मुहावरा।
- नोनखर—(वि.) नमकीन स्वाद।
- नोनचा—(सं.पु.) नमक मिलाकर धूप में सुखाया गया आम का छिलका।
- नोनहा—(सं.पु.) खारा या नमकीन स्वाद का पदार्थ, नमक रखने वाला पात्र।
- नोय नोये—(ब.मु.) प्रतिबंधित या अनुबंधित।
- नोहर—(वि.) अच्छी एवं सुंदर वस्तु, स्वादिष्ट एवं ताजा पदार्थ। प
- पइना—(सं.पु.) चबेना भूनने वाला मिट्टी का बड़ा कटोरानुमा पात्र।
- पइजामा—(सं.पु.) पजामा।
- पइरब—(क्रि.) पानी पर तैरना, यहाँ-वहाँं मन दौड़ाना।
- पइराउब—(क्रि.) किसी कौ तैरवाना, तैरने के लिए प्रेरित करना।
- पइरा—(सं.पु.) पुआर, पिअरा, तैरा, तैरिए।
- पँइती—(सं.स्त्री.) पूजा-पाठ में धारित घाँस की अँगूठी, पैंती।
- पइनारी—(सं.स्त्री..) हलवाहे की कील लगी लाठी।
- पइसरम—(सं.पु.) परिश्रम, मेहनत, प्रयास।
- पइला—(सं.पु.) एक किलो की क्षमता का काष्ठ का पात्र।
- पइजनी—(सं.स्त्री..) घुँघुरू लगी बड़ी पायल।
- पइसुनी—(सं.स्त्री.) गंगा नदी, भव सागर।
- पइलगी—(सं.स्त्री.) दुआ-सलामी, चरण स्पर्श, अभिवादन।
- पइराँव—(विशे.) तैरने योग्य पानी की मात्रा या गहराई।
- पइरी—(सं.स्त्री.) नारियों के पाव का गहना, एक दौर में होने वाली गहाई की फसल डंठल।
- पइहेय—(क्रि.) पाओगे, पा लोगे, पा जाओगे।
- पइहौं—(क्र्रि.) पाऊँगा, पाऊँगी, पा जाउँगी।
- पइरबेय—(क्रि.) तैरोगे, तैरोगी, पहरोगी।
- पइरबू—(क्रि.) पहरोगी, तैरोगी।
- पइसा—(सं.पु.) पैसा, धन-सम्पत्ति।
- पउहाउब—(क्रि.) जलाशय में प्रवाहित करना, विसर्जन करना।
- पउठा—(सं.पु.) बरसात में पाँव रखने के लिए प्रयुक्त पत्थर के टुकड़े।
- पउनेआठ—(ब.मु.) पउने आठ होना अर्थात् न समझ या मंद अक्ल का।
- पउआ—(सं.पु.) एक पाव का बाट, एक पाव का बर्तन, पहुँच होना, शराब का प्रतीक, पउआ जमाउब, बघेली मुहावरा।
- पउनीपरजा—(सं.पु.) किसान के सहयोगी जैसे बढ़ई, लुहार, नाई, कुम्हार।
- पउलीबुडाँव—(विशे.) पाँव का तलवा डूबने भर के पानी की गहराई।
- पउतहा—(सं.पु.) कहीं से निशुल्क पाया हुआ, प्राप्त हुआ सामान, दान या दहेज में मिली वस्तु।
- पकब—(क्रि.) पकना, परिपक्व होना, समर्थ बनना, पक जाना।
- पकउब—(क्रि.) पकाना, परिपक्व बनाना।
- पकबाउब—(क्रि.) किसी से पकवाना, पूरा बनवाना।
- पका—(विशे.) पूर्ण परिपक्व, पका हुआ।
- पकरान—(विशे.) पका हुआ, पीलापन लिए हुए।
- पकपकाब—(क्रि.) घाव का पककर बहना, पानी से गीला होकर कीचड़ उभर आना, क्रोधित होकर वार्ता करना।
- पकऊँ—(विशे.) पकने योग्य स्थिति, पकने वाली स्थिति।
- पकबइया—(सं.पु.) परिपक्व बनाने वाला, पकाने वाला।
- पकरा—(विशे.) सूखी तम्बाकू-चूना, पके बालों वाला व्यक्ति।
- पकती—(सं.स्त्री..) पसुली, पीठ की पतली पसलियाँ।
- पकराब—(क्रि.) कुछ-कुछ पकना, पकने की स्थिति में आना या होना।
- पउठिआब—(क्रि.) वर्षा के बाद आँगन में पाँव रखने जगह की मिट्टी का ठोस हो जाना।
- पउन—(विशे.) एक चौथाई, कम मात्रा।
- पउठी—(सं.स्त्री.) आधा पाव का काष्ठ का नपना, पुराना ग्राम्य पैमाना।
- पउली—(सं.पु.) पाँव का तलवा।
- पउँद—(सं.स्त्री.) मण्डप के नीचे वर- कन्या के चलने के लिए बिछी धोती या वस्त्र।
- पउँदर—(सं.पु.) जमीन पर इधर-उधर अव्यवस्थित फैली हुई वस्तुस्थिति। ‘पउदर परब’ बघेली मुहावरा।
- पउसरा—(सं.पु.) निःशुल्क प्याऊ, ’पउसरा खुलब’ बघेली मुहावरा।
- पउलब—(क्रि.) टुकड़े-टुकड़े काटना, खण्डित करना।
- पउलबाउब—(क्रि.) किसी से टुकड़े-टुकडे़ कटवाना।
- पउलबइया—(सं.पु.) टुकड़े-टुकड़े काटने वाला व्यक्ति।
- पउलबाई—(सं.पु. ) काटने के बदले प्राप्त पारिश्रमिक, मेहनताना।
- पउढब—(क्रि.) पड़ना या सोना, समतल लेट जाना।
- पउढाउब—(क्रि..) किसी को पड़ाना या लेटाना।
- पउढबइया—(सं.पु.) किसी को पड़ाने या लेटाने वाला व्यक्ति, पड़ने या लेटने वाला।
- पउरूख—(सं.पु.) पौरूष, क्षमता, पुरूषार्थ।
- पउनिआउब—(क्रि.) किसी वस्तु का तीन भाग एक तरफ इकट्ठा कर देना।
- पकड़ब—(क्रि.) पकड़ना।
- पकड़ाउब—(क्रि.) किसी से पकड़वाना, किसी के हाथ में वस्तु देना।
- पकड़बाउब—(क्रि.) किसी से कोई वस्तु पकड़वाना, पकड़ने में सहयोग।
- पकड़बइया—(सं.पु.) पकड़ने वाला व्यक्ति।
- पकड़ँऊ—(विशे.) किसी वस्तु का पकड़ में आने योग्य स्थिति।
- पकउड़ी—(सं.स्त्री..) पकौड़ी, भजिया, व्यंजन।
- पक्खान—(ब.मु.) टसमस न होना, आसन जमाकर जम जाना।
- पख—(सं.स्त्री.) कमी, कलंक, दाग, कमजोरी, दोष, गड़बड़ी।
- पखउरा—(सं.पु.) भुजा का जोड़ स्थल, कधे के नीचे का पृष्ठ भाग।
- पखिआरी—(सं.स्त्री.) पतिंगा, बरसाती कीड़ा।
- पखुरी—(सं.स्त्री.) पंखुरी, फूल की कली, पतली हड्डी या पसली।
- पखना—(सं.पु.) पंख, पखना खोंसब, बघेली मुहावरा।
- पखारब—(क्रि.) पछारना, कपड़ा साफ करना, पाँव पूजना।
- पखरबाउब—(क्रि.) पछरवाना, कपड़ा धुलवाना, पाँव पुजवाना।
- पखरबइया—(सं.पु.) पछारने वाला, पाँव पूजने वाला, कपड़ा धुलने वाला।
- पखरबाई—(सं.स्त्री.) कपड़ा पछारने का पारिश्रमिक या मेहनताना।
- पखबरिया—(सं.पु.) पखवारा, पंद्रह दिवस का एक पक्ष।
- पगँब—(क्रि.) किसी के प्रति आकर्षित हो जाना, आसक्त होना।
- पगँउब—(क्रि.) किसी को अपनी ओर आकृष्ट कर लेना।
- पगॅंबाउब—(क्रि.) आकृष्ट करवाना।
- पॅंगबइया—(सं.पु.) आकर्षित कर लेने वाला व्यक्ति।
- पगड़ी—(सं.स्त्री.) सिर पर कपड़े की बॅंधी मुरेठी, पुलिंग ’पगड़ा’।
- पगहा—(सं.पु.) मेहमानी में साथ गया अतिरिक्त व्यक्ति।
- पगुराब—(क्रि.) पशुओं का प्रवृत्तिगत मुँह चलाना, पशुओं की पाचन प्रक्रिया।
- पगरइत—(सं.पु.) जिसके घर मांगलिक कार्य हो रहा हो वह मुखिया, स्त्री.लिंग ’पगर इतिन’।
- पगिया—(सं.स्त्री.) मौर को सिर पर कसने वाला पतला गमछा।
- पगडंडी—(सं.स्त्री.) आदमी के आने जाने हेतु गॉंव की पतली गैल, सँकरा रास्ता।
- पंगति—(सं.स्त्री.) भोजन के लिए पंक्तिबद्व बैठे लोग, पाँत।
- पगरा—(सं.पु.) बाउण्ड्री वाल, नग्न दीवाल।
- पगबाउब—(क्रि.) आटे के व्यंजन पर गुड़ या शक्कर का लेप चढ़वाना।
- पगबइया—(सं.पु.) पाग या शक्कर का लेप लगाने वाला व्यक्ति।
- पगड़िहा—(सं.पु.) जिसके सिर पर पगड़ी बंधी हो वह व्यक्ति।
- पच्छघात—(सं.पु.) शरीर के पृष्ठभाग का घाव, न दिखने वाला शरीर का फोड़ा।
- पच्छू—(अव्य.) पीछे की ओर, पश्चिम दिशा में, पृष्ठ भाग।
- पच्छिम—(अव्य.) पश्चिम दिशा, पाश्चात्य सभ्यता।
- पच्छिमायन—(अव्य.) पश्चिम दिशा में सूर्य के नक्षत्र की स्थिति, पश्चिम दिशा से बहने वाली हवा।
- पच्छिमही—(सं.स्त्री.) पश्चिम दिशा से चलने वाली एक हवा, पछुआ।
- पचड़ब—(क्रि.) पचड़ी से ढीली पोलाई कसना।
- पचड़ी—(सं.स्त्री.) कसाव के लिए प्रयुक्त लकड़ी की छोटी-छोटी टुकड़ियाँ, घाव की पट्टी।
- पचड़ा—(सं.पु.) माथा-पच्ची वाली उलझन, विवादित एवं समस्या मूलक वस्तु।
- पचड़िआउब—(क्रि.) लकड़ी की पचड़ी से कुल्हाड़ी के बेट को कसना।
- पचउरी—(सं.स्त्री.) बिना मतलब की पंचायत रोपना, अनावश्यक उत्प्रेरणा।
- पचपेंड़िया—(सं.स्त्री.) एक जगह पर लगे हुए पाँच पेड़, स्थान का नाम।
- पचकब—(क्रि.) तुचक जाना, फूली हुई वस्तु का तुचकना, मोटापा कम होना।
- पचब—(क्रि.) पच जाना, हजम हो जाना।
- पचकाउब—(क्रि.) सूजन कम कराना, फूली वस्तु का तुचकवाना।
- पचउब—(क्रि.) हजम कर लेना, पचा लेना।
- पचबाउब—(क्रि.) पचवाना, पाचन क्रिया ठीक करवाना, किसी का पानी पचवाना।
- पचबइया—(सं.पु.) पचाने वाला, जो हजम कर लिया हो।
- पचँहड—(सं.पु.) पाँच बर्तनों का समूह, दान के पाँच नग बर्तन विशेष।
- पचहँथी—(विशं.) अच्छी ऊँची पूरी वस्तु, पाँच हाथ की लम्बी।
- पचपचाब—(क्रि.वि.) पककर पिघल जाना, पके घाव का विकसना।
- पचपचान—(विशे.) पककर एकदम पिलपिली हुई, अति पकी हुई।
- पचक्का—(सं.पु.) थूँक की पिचकारी, उछला हुआ तरल का छींटा।
- पँचमासा—(विशे.) पाँच महीने में ही जन्मा हुआ, पाँच महीने।
- पच्च पच्च—(अव्य.) थूकने की ध्वनि विशेष, पाँव से निकला मवाद।
- पंचाइत—(सं.स्त्री.) पंचायत, निर्णय हेतु एक बैठक।
- पंचइतहा—(सं.पु.) समझौता करने वाले लोग, पंचायत कर्ता।
- पंचा—(सं.पु.) पाँच हाथ की धोती, धोती का आधा टुकड़ा।
- पछरब—(क्रि.) पीछे रह जाना, पिछल जाना, दूर रह जाना।
- पछहुत—(अव्य.) पीछे-पीछे पहुँच जाना, पीछे से प्रहार, पीछे की ओर।
- पछलग—(सं.पु.) आने के तुरंत बाद, पीछे-पीछे किसी का पहुँचना, पीछे लगे रहना।
- पछताब—(क्रि.) पश्चाताप करना, कार्य करके सोच-विचार करना।
- पछरबाउब—(क्रि.) किसी से कपड़े साफ करवाना, कपड़ा धुलवाना।
- पछारब—(क्रि.) पटककर कपड़ा धुलना, कपड़ा धोना व साफ करना।
- पछरबइया—(सं.पु.) कपड़ा साफ करने वाला, कपड़ा धुलने वाला।
- पछिआब—(क्रि.) किसी का पीछा करना, प्रश्रय लेकर बढ़ना, अनुकरण करना।
- पछिबाउब—(क्रि.) अपने पीछे-पीछे घुमवाना, पीछे पीछे चलवाना।
- पछिबइया—(सं.पु.) जो अपने पीछे-पीछे किसी को चलवाता हो, जिसके पीछे लोग रहे आते हों।
- पंछर—(विशे.) अति पतला तरल पदार्थ, दूध में पानी की अधिक मात्रा।
- पंछरिआब—(क्रि.) जी मिचलाना, जी घुमाना, मुँह में पानी आना।
- पंछरउँ—(विशे.) पतला एवं अस्वादिष्ट, स्वाद रहित, जिसका कोई स्वाद न हो।
- पछिलीखेड़ा—(अव्य.) सबसे पीछे, अंतिम दौर में, सबके बाद।
- पछेला—(अव्य.) उलटी गति, पीछे की ओर चलना, पीछे पॉंव बढाने की शैली।
- पछोरब—(क्रि.) सूप द्वारा अनाज से कूड़ा कर्कट अलग करना।
- पछिआन—(विशे.) पीछा किये हुए, पीछा रहे हुए।
- पछिलब—(क्रि.) पीछे हटना, शिथिल पड़ जाना, निष्क्रिय होना।
- पछेलब—(क्रि.) पीछे कर देना, प्रतिस्पर्धा में बढ़ जाना।
- पछोरबाउब—(क्रि.) किसी से अनाज साफ करवाना।
- पछोरबइया—(सं.पु.) सूप से अनाज और कंकड अलग-अलग करने वाला।
- पछलग्गू—(विशे.) पीछे-पीछे लगे रहने वाला, पीछे-पीछे रहकर कार्य करने वाला।
- पछाडब—(क्रि.) परास्त कर देना, जमीन पर उठाकर चारों खाना चित्त कर देना।
- पछूहा—(सं.पु.) पछलगा, अनुयायी, पीछे चलने या खाने वाला, जो पिछड़ जाये वह।
- पछितिया—(सं.स्त्री.) पछीत, पृष्ठ भाग, घर के पीछे का भाग।
- पछारी—(सं.पु.) पीछे का हिस्सा, पृष्ठ भाग, बाद का।
- पछिलबइया—(सं.पु.) वस्तु को पीछे हटाकर रखने वाला, दौड़कर पीछे कर देने वाला।
- पछारीदार—(विशे.) अन्त में, अन्तिम दौर में, सबके बाद में।
- पँजरब—(क्रि.) ताना मारना, हॅंसी उड़ाना, व्यंग्य कसना, उल्टमासी कथन।
- पजबाउब—(क्रि.) कन्दमूल पैदा करवाना, प्याज की पैदावार बढ़ाना।
- पजबइया—(सं.पु.) अधिक संतान पैदा करने वाला, कन्दमूल की पैदावार बढ़ाने वाला।
- पँजरबाउब—(क्रि.) किसी को किसी से व्यंग्य करवाना, ताना मरवाना।
- पँजरबइया—(सं.पु.) व्यंग्य या ताना मारने वाला व्यक्ति।
- पजाँन—(विशे.) पर्याप्त मात्रा में पैदा हुई स्थिति।
- पजाब—(क्रि.) प्याज की गाँठ का बड़ी- बड़ी पैदावार होना।
- पंजीरी—(सं.स्त्री.) गुड़ मिश्रित आटा भुना चूर्ण, पंजीरी बाँटना बघेली मुहावरा।
- पटउब—(क्रि.) कर्ज चुकाना, उधारी भरकर पूरा करना।
- पटपर—(सं.पु.) पथरीली व पड़ती भूमि, अपुष्ट दाने युक्त धान, कान के नीचे का कपोल प्रक्षेत्र, स्त्री.लिंग ’पटपरी’।
- पटदर—(सं.पु.) उपमा देना, दृष्टान्त देना, उदाहरण बताना, बराबरी।
- पट्ट—(विशे.) जमीन पर पेट के बल लेटा हुआ, दोनों आँख की अंधी स्थिति।
- पट्ट परब—(क्रि.वि.) जमीन पर पेट के बल पर पड़ना, आँखों का फट जाना।
- पटरा—(सं.पु.) चपटी आकृति वाली लकड़ी, चारों ओर पैर फैलाकर पशु की स्थिति।
- पटउँहा—(सं.पु.) पटावदार घर का कमरा, अटारीदार कक्ष।
- पटब—(क्रि.) तालमेल होना, निराकरण हो जाना, आपसी समझौता होना, उधारी समाप्त होना, कर्ज मुक्ति होना।
- पटाउब—(क्रि.) तालमेल बिठाना, मिलाना, पटाना।
- पटबाउब—(क्रि.) विवादित मामले का समझौता कर देना, गढ्ढे को पटवाना।
- पटाब—(क्रि.) समाप्त हो जाना, शान्त हो जाना, बन्द या दूर हो जाना।
- पटान—(विशे.) समाप्त हो चुका हुआ, समस्या से उबर जाना।
- पटोन्तरा—(सं.पु.) आपस में समझाइस हो जाना, मामला पट जाना।
- पटा—(सं.पु.) लकड़ी का पीढ़ा, बैठने का काष्ठ पात्र।
- पटउहल—(सं.पु.) आपसी समझौते से पटने योग्य मामला।
- पटिया—(सं.स्त्री..) लकड़ी या पत्थर की पटिया, खेत का चौकोर अंश।
- पटिआउब—(क्रि.) पाटी पारना, केश व्यवस्थित करना।
- पटाव—(सं.पु.) लकड़ी से पटा हुआ अटारीदार घर।
- पटपटाब—(क्रि.) आँखों का पूर्णतः फूट जाना, समूल नष्ट होना।
- पटपटाउब—(क्रि.) आँख तिलमिलाना, बार- बार अधिक पलक पटकना।
- पटोहा—(सं.पु.) छप्पर में प्रयुक्त बाँसनुमा पतली लकड़ी।
- पटइन—(क्रि.) पटाया, शान्त कराया, निपटारा करा दिये।
- पटहेरिया—(सं.स्त्री.) घर के अन्दर दीवाल पर डाली गई छोटी छत।
- पटबइया—(सं.पु.) पटोत्तरा कराने वाला, समझौता कराने वाले लोग।
- पट्टीदार—(सं.पु.) हिस्सेदार, परिवार के लोग, स्त्री.लिंग पट्टीदारिन।
- पट्टी—(सं.स्त्री.) प्रजाति विशेष का वंश, जातिगत पहिचान या गोत्रवंशज।
- पटाढा—(सं.पु.) पशुओं के मल में पड़ने वाले लम्बे श्वेत कृमि।
- पटनहा—(सं.पु.) पटना गाँव का निवासी, पटना से आकर बसा हुआ व्यक्ति, स्त्री.लिंग पटनहाईन’।
- पट—(सं.पु.) मंदिर के किवाड़, देवताओं के द्वार का परदा।
- पटुआ—(सं.पु.) अमारी या बकौड़ की एक लट।
- पटनई—(सं.स्त्री.) घर के कमरे का पटाव, कच्चे घर में बनी अटारी।
- पटपरा—(सं.पु.) छप्पर में प्रयुक्त समतलाकृति वाला खपड़ा।
- पटिअइत—(सं.पु.) वंश परिवार के जन, हिस्सेदार।
- पट्ट पट्ट—(अव्य.) शरीर पर पड़े प्रहार की ध्वनि, जल्दी-जल्दी।
- पठउब—(क्रि.) भेजना, विदा करना।
- पठबाउब—(क्रि.) भेजवाना, किसी से कोई वस्तु भेजना, दूर तक पहुँचाना।
- पठउनी—(सं.स्त्री.) मेहमान को दी गई विदाई की सामग्री, दुल्हन की तीसरी बार की विदाई।
- पठरिया—(सं.पु.) पठारी जाति का कोई व्यक्ति, किसी का नाम।
- पठबइया—(सं.पु.) भेजने वाला, भेजवाने वाला, विदा करने वाला।
- पठबाई—(सं.पु.) भेजने-भेजवाने के बदले प्राप्त मेहनताना।
- पठबउबे—(क्रि.) भेजोगे, भेजवाओगे।
- पठबायेउतै—(क्रि.) भेजा था, भेजवाया था, भेजवायी थी।
- पठबइहौं—(क्रि.) भेजवाऊँगा, भेजवाऊँगी, पहुँचाऊँगी।
- पढबाती—(सं.पु.) निरन्तर रट लगाये रहने वाला, पढबाती होब बघेली मुहावरा।
- पढब—(क्रि.) पढ़ना, लिखावट वाँचना, अध्ययन करना।
- पढबाउब—(क्रि.) दूसरे से पढ़वाने का कार्य कराना, पढ़वाने का कार्य कराना।
- पढइया—(सं.पु.) विद्यार्थी, पढ़ने-लिखने वाला छात्र।
- पढबइया—(सं.पु.) पढ़ाने-लिखाने वाला व्यक्ति, शिक्षक, पढ़वाने वाला।
- पढिना—(सं.स्त्री.) एक मछली विशेष का नाम, तंदुरूस्त युवती के लिए गाली।
- पढिहौं—(क्रि.) पढूँगी, पढूँगा।
- पढइहौं—(क्रि.) पढ़वाऊँगी, पढवाऊँगा, पढ़ाँऊँगी।
- पढनउक—(विशे.) पठनीय, पढ़ने लायक, पठन करने योग्य।
- पढोखर—(सं.स्त्री.) जवानी भरी लड़की के लिए अश्लील गाली।
- पड़िया—(सं.स्त्री.) भैंस की जवान बच्ची, पुलिंग ’पड़वा’।
- पड़ेरू—(सं.पु.) छोटे-छोटे भैंस के बच्चे।
- पड़ा—(सं.पु.) भैंस का नर बच्चा, स्त्री.लिंग ’पड़ी’।
- पड़ाक—(विशे.) गदेली का प्रहार, तत्काल।
- पड़ाका—(सं.पु.) पटाखा, सुन्दर युवती के लिए मनचलों का प्रतीक।
- पड़ोख—(क्रि.) अलसी का डंठल विष रहित करना।
- पड़ोरा—(सं.पु.) एक हरी वनस्पति जिसकी तरकारी बनाई जाती है।
- पतउखी—(सं.स्त्री.) पत्ते की कटोरी, दोना, पत्ते की चिलम।
- पतरोइ पतरोई—(सं.पु.) सूखी पत्तियों का समूह, बिखरी हुई सूखी पत्तियाँ।
- पतरइला—(विशे.) एकहरे वदन वाला, दुबली- पतली काया वाला, स्त्री.लिंग पतरइली।
- पतरसुट्टा—(विशे.) लम्बा एवं दुबला- पतला, स्त्री.लिंग ’पतरसुट्टी’।
- पतरिआब—(क्रि.) पतला होना, वर्षा की बूँदों का विरल हो जाना।
- पतरिआउब—(क्रि.) मोटी चीज को पतली करने की क्रिया।
- पतरिआन—(विशे.) वर्षा का कम हो जाना, बारिश का थम जाना।
- पतनिआब—(क्रि.) उलझनों के कारण परेशान हो जाना।
- पतनिआउब—(क्रि.) किसी को समस्याग्रसित करना, परेशान करना।
- पतनिआन—(विशे.) परेशान, समस्या ग्रसित, उलझा हुआ।
- पतरी—(सं.स्त्री.) पत्तल, पत्तल की थाली।
- पतरंघा—(विशे.) बिल्कुल दुबला-पतला अंगों वाला, स्त्री.लिंग पतरंघी।
- पतुआब—(क्रि.) हल्की वजन वाली वस्तु का हवा में डगमगाना, पीछा करना,।
- पतनि—(सं.स्त्री.) पतन, दुर्गति, परेशानी।
- पतीला—(सं.पु.) चौड़े मुख का गंजापात्र, स्त्री.लिंग पतीली।
- पतुरिया—(सं.स्त्री.) वेश्या, मनचली नारी।
- पतुरछेमन—(ब.मु.) कभी कुछ कभी कुछ बताना या कहना, नाटकबाज।
- पत्ताल—(सं.पु.) पाताल, धरती के नीचे की असीमित गहराई।
- पत्तुर—(सं.पु.) इसी लायक, इसी प्रकार के व्यवहार योग्य।
- पतरेगंबा—(सं.पु.) पत्तों में रहने वाला हरे रंग का एक कीड़ा।
- पतरमुही—(विशे.) जिसका मुँह पतला हो, पुलिंग ’पतरमुहा’।
- पथब—(क्रि.) पथ्य भोजन देना, स्वस्थ्य बनाने हेतु पौष्टिक आहार देना।
- पथबाउब—(क्रि.) पाथने का कार्य करवाना, पाथने में सहयोग करना।
- पथहा—(सं.पु.) जिसे बीमारी के बाद पथ्य भोजन दिया जाता हो।
- पथरी—(सं.स्त्री.) पत्थर की टुकडी, पत्थर का कटोरीनुमा पात्र, पथरी रोग।
- पथरिआउब—(क्रि.) पत्थर से मार करना, पत्थर फेंककर मारना।
- पथरिहाब—(क्रि.वि.) पत्थरों से मार का दौर, पत्थर से प्रहार होना।
- पथरा—(सं.पु.) पत्थर, एकदम सख्त व ठोस, बर्फ।
- पथरहा—(विशे.) पत्थरों से ओतप्रोत, जिस जमीन में कंकड पत्थर हों।
- पथ पथ—(अव्य.) बार-बार, समझा-समझा कर, निखार कर बताना।
- पथरील—(विशे.) पथरीली, ककड़ीली, पत्थरोंयुक्त।
- पथनउक—(विशे.) पथ देने योग्य, जो पथ्य लायक हो गया हो।
- पथरब—(क्रि.) प्रसारित होना, फैलना, फैल जाना, जुते खेत का पट जाना।
- पथरा पूजब—(ब.मु.) मनौती करना, देवी-देवताओं का पूजन करना।
- पदनी—(सं.स्त्री.) नारी के लिए एक अभद्र गाली।
- पदनों—(संम्बो.) नारी को इशारा या सम्बोधनयुक्त अश्लील गाली।
- पदरब—(क्रि.) परेशान हो जाना, वायु का उत्सर्जित हो आना।
- पदाउब—(क्रि.) अकारण परेशान करना, परास्त करना, खेल में खूब दौड़ाना।
- पदाब—(क्रि.) हिम्मत टूट जाना, दबाव के कारण वायु निकल आना।
- पदरक्का—(क्रि.वि.) जोर-जोर से दौड़ना, आँख मीचकर पूरी ताकत से दौड़ना।
- पदलेंहड़ी—(सं.पु.) छोटे-छोटे बच्चों का बहुतायत संख्या में समूह। पदरिआउब - (क्रि.) कार्य कराकर कृतज्ञ न होना, खाकर तत्काल भुला देना।
- पदनिआउब—(क्रि.) नारी वर्ग को बुरा भला कहना, नारी के लिए अश्लीलगाली।
- पदनहेठ—(सं.पु.) नारी के लिए सांकेतिक अश्लील गाली।
- पदर्रा—(सं.पु.) दिन भर पादते रहने वाला, बहुत अधिक पादने वाला।
- पदोड़ा—(सं.पु.) कार्य के बदले परिहास पाना, कार्य का उलटा प्रतिफल।
- पधारब—(क्रि.) पधारना, आगमन होना, बैठना।
- पधारी—(क्रि.) पधारिए, बैठिये, आइये।
- पदहिआइन—(विशे.) पादने की दुर्गंध की भाँति गन्ध, गैस जैसी गन्ध।
- पनपिआई—(सं.स्त्री.) गले की उभरी हुई गाँठ, गला, जलपानयुक्त स्वागत, वधू को प्रथम बार देवर द्वारा पानी पिलाने की एक रीति।
- पनचुचही—(विशे.) पतला एवं कम मीठा रस, पुलिंग ’पनचुचहा’।
- पनीहा—(सं.पु.) पानी में रहने वाला जन्तु, पानी, प्याला, एक अचार।
- पनघोट्टा—(विशे.) अति पतलारू, दाल या सब्जी में जरूरत से अधिक पानी का होना।
- पना—(सं.पु.) कच्चे आम का भुना हुआ रस, पना करब बघेली मुहावरा।
- पनही—(सं.पु.) जूती, देशी चमड़े के जूते।
- पनहिआव—(क्रि.वि.) जूतों से मार-पीट का होना या मारपीट का दौर।
- पनहिआउब—(क्रि.) किसी को जूते-चप्पल से पीटना।
- पनपना—(सं.पु.) पनपना काँपना (बघेली मुहावरा), हिम्मत या कलेजा।
- पनिआउब—(क्रि.वि.) खुशामदी करना, चापलूसी करके खुश करना।
- पनीहा—(सं.पु.) पानी वाली वस्तु, पानी में रहने वाले जन्तु-जीव।
- पन्नी—(सं.स्त्री..) चमकीला व चिकना एक विशेष किस्म का कागज।
- पन्निहा—(सं.पु.) पानी में रहने वाला सर्प, ब्राम्हण की एक प्रजाति।
- पनबिरिया—(सं.स्त्री..) पान, विकल्प में खाई जाने वाली एक पत्ती।
- पनघटी—(क्रि.वि.) पानी घट जाना, बेइज्जती होना, अपमानित हो जाना।
- पनिभरा—(सं.पु.) पानी भरने व पिलाने वाला घरेलू नौकर।
- पनहा—(सं.पु.) पान खाने व बेचने वाला, किसी कपड़े की चौड़ाई।
- पनसोख—(सं.पु.) अधिक या बार-बार प्यास लगने वाला एक रोग।
- पन—(सं.पु.) चरण, अवस्था का क्रम, उम्र का हिस्सा।
- पन्चा—(सं.पु.) पुरुष धोती का आधा टुकड़ा।
- पनारा—(सं.पु.) कमल फूल की जड़, कमल का पानी वाला डंठल।
- पनिहा—(सं.पु.) पानी में रहने वाला एक सर्प, पानी वाली वस्तु या अचार।
- पपड़ी—(सं.स्त्री.) पापड़, रोटी की ऊपरी परत, जमीन की ऊपरी पतली परत।
- पपिआब—(क्रि.) किसी पर शंका-संदेह करना, अविश्वास का होना।
- पपेला—(सं.पु.) पानी की बहती मोटी धार, अंदर ही अंदर पानी का बहाव।
- पपरी—(सं.स्त्री.) पतली, पापड़, पुलिंग ’पपरा’।
- पपड़िआब—(क्रि.) गीली जमीन या घाव का सूखकर पतली परत जम जाना।
- पबस्त—(सं.पु.) पौरुष, घरेलू व्यवस्था, हिम्मत, मजबूती व सम्पन्नता।
- पबाई—(सं.स्त्री.) शासनाधीन गाँव, एक पहलू, एक भाग।
- पबइया—(सं.पु.) पाने वाला, प्राप्तकर्ता, भोजन करने वाला, छू लेने वाला।
- पबरब—(क्रि.) प्राप्त कर लेना, प्रयास के कारण पा लेना।
- पबाउब—(क्रि.) भोजन कराना, प्रयास करके किसी वस्तु को किसी वस्तु तक पहुँचाना।
- पबरित—(सं.पु.) पवित्र, साफ सुथरा।
- पमान—(सं.पु.) जूते का तल्ला, चप्पल का तला।
- पमारा—(सं.पु.) विस्तृत वर्णन, अलग- अलग वर्णन, पूर्ण विवरण।
- पम्पा—(सं.पु.) हैण्डपम्प, पम्प, नल।
- पय—(यो.) किन्तु, पर, परंतु, कमी, खामी, कलंक, खोट।
- परसाल—(अव्य.) बीता वर्ष, आने वाला वर्ष।
- परसोरथ—(सं.पु.) परस्वार्थ, परोपकार, दूसरे का उपकार।
- परौं—(अव्य.) परसों, कल के बाद, कल के पहले।
- परसँउ—(अव्य.) बीते कल के पूर्व का दिन, आने वाले कल के बाद की तिथि।
- परिखाउब—(क्रि.) प्रतीक्षा कराना, इन्तजार करवाना, किसी को रोकवाना।
- परिखाव—(सं.पु.) प्रतीक्षा, इन्तजारी, ठहराव व रूकावट।
- परथन—(सं.पु.) रोटी प्रसारण में प्रयुक्त सूखा आटा, घूस का लॉंच, कार्य पूर्णता के लिए व्यय किया गया धन।
- परपंची—(सं.पु.) जो हमेशा बहानेबाजी बताता हो।
- परपन्च—(सं.पु.) प्रपंच, बहाना, भिड़ने- भिड़ाने वाली बातें।
- परब—(क्रि.) पड़ना, आराम करना, लेटना, सोना।
- पराउब—(क्रि.) पड़ाना, सुलाना, लेटाना।
- परबइया—(सं.पु.) सुलाने या लिटाने वाला व्यक्ति, पड़ाने वाला।
- परबरिस—(सं.पु.) परोपकार, मदद, सहयोग, असहाय की व्यवस्था।
- परेंठ—(सं.पु.) पडती भूमि, प्रजनन न करने वाले दुधारू पशु।
- परबन्ध—(सं.पु.) प्रबंध, देख-रेख, रख- रखाव, व्यवस्था।
- परदनी—(सं.स्त्री.) पुरुषों की धोती।
- परान—(सं.पु.) प्राण, प्राणप्रिय, पुत्र, जान।
- परेनुआ—(सं.पु.) प्राण पखेरू, प्राणों से प्यारा।
- परेबा—(सं.पु.) एक सुंदर पक्षी का नाम।
- परई—(सं.स्त्री.) मिट्टी की बड़ा सा दीया, घड़े का मुख ढ़कने वाला पात्र।
- परिखब—(क्रि.) प्रतीक्षा करना, इंतजार करना, राह देखना।
- परसाल—(अव्य.) बीते वर्ष, पिछले साल, अगले वर्ष।
- परेम—(सं.पु.) प्रेम, लगाव, प्यार, स्नेह।
- परेमी—(सं.पु.) प्रेमी, स्नेही, नेमी प्रेमी।
- परगापादन—(ब.मु.) तिकड़म करने में निपुण, दन्द-फंद बताने में सिद्ध।
- पराभंस—(सं.पु.) परहेज रहित, छुआछूत न मानने वाला, सबके घर सब कुछ खा लेने वाला।
- परसब—(क्रि.) परोसना, पारूस करना।
- परसाउब—(क्रि.) परोसवाना, पारूस करने में सहयोग करना।
- परसबइया—(सं.पु.) परोसने वाला, पारूस कर्ता।
- परछी—(सं.स्त्री..) कच्चे घर की ओसार, घर के सामने की दलान।
- परछन—(सं.पु.) वधू प्रवेश के समय पानी फेरने की परम्परागत रीति।
- परगसिया—(सं.स्त्री..) छोटे आकार की कड़ाही।
- परगासब—(क्रि.) चन्द्रोदय, चन्द्रमा निकलना, चन्द्रमा का प्रकाशित होना।
- परगासी—(क्रि.वि.) चन्द्रोदय की स्थिति, चन्द्रमा निकलने के पूर्व का वातावरण।
- परिया—(सं.स्त्री..) बगिया की क्यारी, लम्बे समय से बीमार व्यक्ति।
- परायठ—(सं.पु.) जो हमेशा पड़ती पड़ी रहती हो वह भूमि, जिस दुधारू पशु के कभी प्रजनन न हुआ हो।
- परपराब—(क्रि.वि.) कपड़ा फाड़ने पर होने वाली ध्वनि, पेड़ का कटना।
- परपराउब—(क्रि.) ओर-छोर फाड़ देना, दो टुकड़े फाड़कर कर देना।
- परती—(सं.स्त्री.) घास-फूस व पत्ते से बना टाट, पड़ती भूमि।
- परतब—(क्रि.) मोड़-मोड़ कर तह पर तह जमाना।
- परी—(सं.स्त्री.) तेल निकालने वाली लोहे की हुकदार कटोरी।
- परीबा—(सं.स्त्री.) पूर्णमासी के बाद की तिथि।
- परन्गत—(सं.पु.) हिम्मत टूटना, हौसला टिकना, पूर्णता पाना।
- परमान—(सं.पु.) प्रमाण, दृष्टान्त, सबूत, गवाह।
- परनाम—(सं.पु.) प्रणाम, नमस्कार, अभिवादन।
- परिनाम—(सं.पु.) परिणाम, प्रतिफल, निष्कर्ष।
- परसोतिया—(सं.पु.) बच्चों को होने वाला पीला रोग।
- परेत—(सं.पु.) प्रेत, भूत, डरावना प्रतीक, स्त्री.लिंग परेतिन।
- परेतहा—(सं.पु.) जो व्यक्ति प्रेत बाधा से ग्रसित हो, जहाँ पर प्रेत रहता हो वह जगह।
- पर्र पर्र—(क्रि.वि.) कपड़ा फाड़ने पर होने वाली ध्वनि, वायु उत्सर्जन के समय की आवाज, पर्र-पर्र करना, बघेली मुहावरा।
- पलगरिया—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का बच्चों वाला पलंग।
- पलथी—(सं.स्त्री.) दोनों पैर मोड़कर एक दूसरे पर रखी हुई स्थिति, आसन।
- पलथिआउब—(क्रि.) दोनों पैर मोड़कर आसन जमाकर बैठना।
- पलथिआन—(विशे.) पलथी मारकर बैठा हुआ, स्थायी रूप से जमा हुआ।
- पलथिआब—(क्रि.) पलथी मारकर बैठ जाना।
- पलानी—(सं.स्त्री.) मेड़ पर पीछे से चढ़ाई गई अतिरिक्त मिट्टी।
- पल्ली—(सं.स्त्री.) ओढ़ने पर पीछे से चढ़ाई गई अतिरिक्त मिट्टी।
- पलागों—(सं.पु.) अभिवादन, छोटों द्वारा बड़ों के लिए सम्मान सूचक प्रणाम।
- पलानब—(क्रि.) उलाहना से भर देना, गाली देना, घोडे़ पर सवार होना, घोड़े के पीठ पर।
- पलसाउब—(क्रि.) कृषि पौध को इधर-उधर करना।
- पलिया—(सं.स्त्री.) साग सब्जी के लिए बनाई गई क्यारी।
- पलिआब—(क्रि.) पाला व तुषार से कृषि का ग्रसित होना।
- पलिआन—(विशे.) खा-पीकर हृष्ट- पुष्ट एवं तैयार हुई नारी, मोटी तगड़ी।
- पलाब—(क्रि.) पाला मार जाना, पाला लग जाना, ठंड लगना।
- पलान—(सं.पु.) खा-पीकर हृष्ट-पुष्ट, पाला लगा हुआ खेत व कृषि।
- पलटव—(क्रि.) वाहन का दुर्घटना ग्रस्त होना, कहकर मुकर जाना, अदला-बदली करना, दिशा व स्थिति बदल कर वस्तु को रखना, पलटाना।
- पलटाउब—(क्रि.) पलट देना, जबाव दे देना, इधर से उधर कर देना।
- पलटा—(क्रि.वि.) अदल-बदल की क्रिया, बदलना, विनिमय।
- पलई—(सं.स्त्री.) पँसुली, शरीर की पतली हड्डियाँ, पलई चलना, ब.मु।
- पलपलाउब—(क्रि.) आवाज के साथ पतली टट्टी करना।
- पल्टबइया—(सं.पु.) बदला करने वाला, कहकर बदल जाने वाला, इधर से उधर-पलट देने वाला।
- पलझा—(अव्य.) इस ओर, इस तरफ, इस पहल।
- पल्ला—(क्रि.वि.) इस ओर, वस्तु का एक पहलू, दु्रतगति से दौड़ना, धोती का एक छोर।
- पल्हाब—(क्रि.) थनों का दूध-दुहने योग्य हो जाना।
- पल्हान—(विशे.) दूध-दुहने की स्थिति में थन का होना, दूध उतरा हुआ बाल।
- पल्हबाउब—(क्रि.) दूधारू मवेशी को दूध- दुहने योग्य बनाना।
- पल्हवइया—(सं.पु.) थनों को सहलाकर दुहने लायक करने वाला।
- पलहुआउब—(क्रि.) पिघलाकर खुश कर लेना, मिलाना, पटाना, मक्खन पालिश करना।
- पलटन—(सं.पु.) प्लाटून, फौज या सेना, अधिक संख्या में लोग।
- पलँइचा—(विशे.) मोटी तगड़ी, मोटापा पर केन्द्रित नारी हेतु गाली।
- पल्लेप—(सं.पु.) औपचारिकता, नाममात्र का, कोटापूर्ति, रस्म पूरी हो जाना।
- पलहा—(सं.पु.) बेर की पत्ती कूटने वाले लोग, पाल लगा हुआ खेत।
- पलटी—(क्रि.वि.) बदलने की क्रिया, विनिमय, अदल-बदल, बारी।
- पलरा—(सं.पु.) तराजू, तराजू के दोनों पहलू, पलड़ा।
- पलेबा—(सं.पु.) जुताई-बुवाई के पूर्व खेत में सींचा गया पानी।
- पसारब—(क्रि.) फैलाना, प्रसारित करना, विस्तृत करना।
- पसरबाउब—(क्रि.) फैलवाना, प्रसारित करवाना।
- पसरबइया—(सं.पु.) हाथ फैलाने वाला, मारकर जमीर पर गिरा देने वाला।
- पसरब—(क्रि.) जमीन पर ओर-छोर पड़ जाना, फैल जाना, विस्तृत होना।
- पसाउब—(क्रि.) चावल पकाकर माड़ अलग करना या निकालना।
- पसडबाउब—(क्रि.) पके चावल से अतिरिक्त पानी किसी से निकलवाना।
- पसबइया—(क्रि.) पके चावल से माड़ निकालने वाला व्यक्ति।
- पसंघा—(ब.मु.) असामान्य, अतुलनीय, तौल व वजन में बहुत कम।
- पसीझब—(क्रि.) पानी भरे घड़े के पेंदी से पानी या पसीना का झलकना, मन अनुरूप कर लेना।
- पसिनान—(विशे.) पसीने से सना हुआ, पसीने से लथपथ।
- पसिनहा—(सं.पु.) पसीने से गीला वस्त्र, पसीने से सना कपडा।
- पसनी—(सं.स्त्री.) शिशु का पुंसवन संस्कार, अन्न-प्रासन।
- पसनिहा—(सं.पु.) जिसका अन्न प्रासन हो रहा हो वह शिशु।
- पस—(सं.पु.) मवाद, पीप, घाव से निःसृत प्ररस।
- पसही—(सं.स्त्री.) अपने आप रेशे वाली एक धान विशेष।
- पसहिया—(सं.पु.) ऐसा खेत जिसमें पसही जमी हुई हो।
- पंसोख—(सं.पु.) बार-बार या अधिक पानी पीने वाला एक रोग।
- पसइहौं—(क्रि.) चावल से माड अलग करूँगी।
- पसट—(सं.पु.) हल एवं जुए में प्रयुक्त होने वाली एक रस्सी।
- पसोटा—(सं.पु.) कोड़ा, लोचदार मारने का उपकरण।
- पसोटब—(क्रि.) कोडे़ से मारना, जमकर पीटना।
- पसोटइया—(सं.पु.) कोडे़ से मार लगाने वाला व्यक्ति।
- पसोटिआउब—(क्रि.) किसी को पसोटे से मारपीट की क्रिया करवाना।
- पसुरी—(सं.स्त्री.) पंसुली, पतली हडिड्याँ।
- पसुहाई—(सं.स्त्री.) पशुओं के काम आने वाली, पशुओं का व्यापार।
- पसर—(सं.पु.) एक गदेली भर अनाज की मात्रा।
- पहल—(सं.पु.) पकने हेतु पलास के पत्तों से ढककर रखे गये आम।
- पहलब—(क्रि.) पत्तों के बीच में आम के फल रखकर पकाना।
- पहिलउठी—(विशे.) प्रथम बार, प्रथम दौर में, पहले पहल।
- पहिलेव—(अव्य.) पहले भी, पूर्व में भी, इसके पहले।
- पहला—(सं.पु.) रूआ, कपास, अति मुलायम (विशे.)
- पहकब—(क्रि.) पानी से खेत का ढीलों का लथपथ हो जाना।
- पहिरब—(क्रि.) पहनना, वस्त्र धारण करना।
- पहिराउब—(क्रि.) पहनाना, वस्त्र धारित करवाना।
- परिहरबइया—(सं.पु.) पहनाने वाला व्यक्ति।
- पहिरबाई—(क्रि.वि.) पहनने का तौर- तरीका, पहनाने की मजदूरी।
- पहरहा—(सं.पु.) लकड़ी काटने पहाड़ जाने वाले लोग।
- पहरहाइ पहरहाई—(क्रि.वि.) जंगल जाकर कटाई करना और लकड़ी लाने का कार्य।
- पहरिया—(सं.स्त्री.) पहाड़ी, छोटी-छोटी पहाड़ियाँ।
- पहरूअ पहरूआ—(सं.पु.) पहाड़ में लकड़ी काटने आने-जाने वाले लोग।
- पहर—(अव्य.) दिन की एक अवधि, दोपहर या शाम।
- पहँसुल—(सं.स्त्री.) साग-सब्जी काटने की हँसिया।
- पहुँची—(सं.स्त्री.) शिशुओं के लिए धागे की चूड़ी।
- पहुना—(सं.पु.) दामाद, बेटी का पति।
- पहटब—(क्रि.) मवेशियों को पीटकर दूर भगाना।
- पहटा—(सं.पु.) ऐसी काठ की पटरी जिससे ढीले सपाट किये जाते हैं।
- पहटबाउब—(क्रि.) मवेशियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचवाना।
- पहिलौपहिल—(अव्य.) सबसे पहले, पहलीबार, सर्वप्रथम।
- पहटबइया—(सं.पु.) मवेशियों को दूर भगाने वाला व्यक्ति।
- पहटी—(सं.स्त्री.) जोता खेत समतल करने वाली चपटी पटरी।
- पहिरन—(सं.पु.) कमर के नीचे का भाग, पहनकर उतारा हुआ वस्त्र।
- पहुआ—(सं.पु.) मेहमान के साथ आने वाले अन्य लोग।
- पहीहा—(सं.पु.) मुख्य घर के बजाय सहायक घर आकर रहने वालाव्यक्ति। पा
- पाई—(सं.स्त्री.) चावल के कीडे़, मात्राएँ, रत्ती से छोटा पुराना पैमाना, मिली हुई, भोजन लीजिए।
- पाई पुरिया—(ब.मु.) इधर से उधर आना- जाना लगा रहना, यहॉं का संदेश वहाँ और वहाँ का यहाँ पहुँचाना।
- पाइक—(सं.पु.) क्षत्रिय की एक प्रजाति, चावल में पडे़ कीट।
- पाउब—(क्रि.) दौड़कर छू लेना, बराबरी करना, पा जाना, भोजन करना।
- पाकब—(क्रि.) पकना, घाव का पक जाना, परिपक्व होना।
- पाकठ—(विशे.) पका हुआ, अनुभवी, पुराना।
- पाका—(सं.पु.) मुँह का घाव, मुँह में फोड़ा।
- पाख—(सं.पु.) पखवारा, महीने का एक पक्ष, मेंड़ का पृष्ठ भाग, घर की छप्पर का चौड़ाई वाला प्रक्षेत्र।
- पाखा—(अव्य.) उस तरफ, दूसरा पहलू, उस पार, खेत का उच्च भाग।
- पाखर—(सं.सु.) खेत का उच्च वाला हिस्सा, खेत का ऊपरी छोर।
- पाग—(सं.पु.) शक्कर या गुड़ का सिरा, व्यंजन में चढ़ा शक्कर का लेपन।
- पागब—(क्रि.) आटे बनी वस्तु पर शक्कर का पारा चढ़ाना।
- पाँगब—(क्रि.) किसी को अपने बस में कर लेना, अपनी ओर किसी को आकर्षित कर लेना।
- पागुर—(सं.पु.) जुगाली, पशुओं द्वारा मुँह चलाने की पाचन प्रक्रिया।
- पागा—(सं.पु.) सिर में बंधी पगड़ी, लम्बा साफा।
- पाँच—(सर्व.) लोग बाग, समूह बोधक संख्या।
- पाँचा—(सं.पु.) पाँच कगूरे का कृषि औजार, बाँस का ग्राम्य कृषि उपकरण।
- पाँचउ—(विशे.) पाँचों के पाँचों, पाँच के पाँच, पाँच लोग।
- पाछू—(अव्य.) पीछे, बाद में, अन्त में, पश्चात्।
- पाछ—(सं.पु.) चले जाने के बाद का समय, मरने के बाद का समय, पीछा।
- पाछे—(अव्य.) पीछे, बाद में, अन्त में, उपसंहार में।
- पाछू पाछू—(ब.मु.) किसी के पीछे-पीछे दौड़ते रहने के भाव में।
- पाँजर—(सं.पु.) जंघा का प्रक्षेत्र, बिल्कुल बगल में।
- पाँजी—(विशे.) नदी में पाँव डूबने भर की जल स्थिति या जल स्तर।
- पाट—(सं.पु.) नदी का किनारा, नदी की चौड़ाई, विवाहोत्सव में प्रयुक्त काठ पर रखा पत्थर का पटरा।
- पाटब—(क्रि.) गढ्ढा भरना, मिट्टी से ढकना, उथल करना, जमीन में गाड़ना।
- पाटी—(सं.स्त्री.) खेत की छोटी सी टुकड़ी, काठ का स्लेट, बाल संभालना, चारपाई की लम्बवत् लकड़ी।
- पाटिस—(क्रि.) पाट दिया, ढक दिया, गढ्ढा भर दिया।
- पाठ—(सं.पु.) अपने गाँव से दक्षिण के गाँव, पारायण, पाठ पढाना, बघेली मुहावरा।
- पाढ़—(सं.पु.) कमर के पीछे की माँसपेशी, बाजी मार लेना।
- पाढ़ा—(सं.पु.) दाने रहित धान के पौध, अपुष्ट धान के दाने।
- पाढ़िन—(सं.स्त्री.) एक मछली विशेष, युवती के लिए गाली।
- पातर—(विशे.) पतली, दुबला-पतला, तरल में पानी की अधिकता।
- पातपुआ—(विशे.) एकदम पतला वस्त्र, बिल्कुल सड़ा हुआ पुराना वस्त्र।
- पाँत—(सं.पु.) पंगति, पंक्तियों में बैठने की शैली।
- पाथब—(क्रि.) हाथ से उखली बनाना, थपकी देकर गाली वस्तु को प्रसारित करना।
- पाद—(सं.पु.) गुदा द्वार से उत्सर्जित वायु।
- पादब—(क्रि.) पाद निकलना, हिम्मत छूट जाना।
- पापिठ्ठ—(विशे.) पापी एवं कुकर्मी, शंकालु एवं संदेह करने वाला।
- पापर—(सं.पु.) बेसन का पापड़।
- पापलीन—(सं.पु.) एक विशेष कपड़ा की किस्म।
- पाबा—(सं.पु.) चारपाई या कुर्सी का एक पहलू, पुल का एक खम्भा।
- पामन—(सं.पु.) हक में लगना, सेवकों द्वारा परम्परागत ढंग से त्यौहार में मांगे गये व्यंजन।
- पायेन—(क्रि.) पा गये, पा लिये, जो पाँव के बल जन्मा हो (वि.) प्राप्त कर लिया।
- पायगयेंब—(क्रि.वि.) प्राप्त कर लिया, पा चुकी, दौड़कर छू ली।
- पाँयलागी—(सं.पु.) प्रणाम सूचक अभिवादन विशेष।
- पार—(सं.पु./अव्य) किसी का पक्ष, वादा निभाकर पूरा करना, एक तरफ का पहलू, पार लगाना, एक छोर से दूसरे छोर।
- पारब—(क्रि.) पड़ाना या लेटाना, सुलाना, खपड़ा विकसित करना, पिण्डा पारब बघेली मुहावरा।
- पारूस—(क्रि.) पंगत में भोजन का परोसा जाना, भोजन परोसने का कार्य।
- पारन—(सं.पु.) उपवास के बाद प्रथम अन्न ग्रहण।
- पाल—(सं.पु.) टहनियों से अलग की गई बेर की पत्तियाँ।
- पालब—(क्रि.) पालना-पोषना, पाल लेना।
- पाला—(सं.पु.) ओस, तुषार, दबाव में फँस जाना, मैदान का आधा भाग, खेल की पाली, अधिक ठंड का होना।
- पालकी—(सं.स्त्री.) काठ की बनी स्थायी डोली।
- पालटी—(सं.स्त्री.) पार्टी, प्रीतभोज, दलबन्दी, विशेष समारोह।
- पालट—(क्रि.वि.) अदला-बदली, वस्तु विनिमय।
- पालस—(विशे.) जमीन की सतह पर पड़ाकर रखी हुई वस्तु की स्थिति।
- पाँसा—(सं.पु.) कुल्हाड़ी के धार का पिछला भाग, चौपर खेल, चंदन के चौकार टुकडों।
- पाही—(सं.स्त्री.) मुख्य घर छोड़कर जहाँ किसान दूसरे सहायक घर में रहता हो। पि
- पिअइहौ—(क्रि.) पिलाऊँगी, दुग्धपान करवाऊँगी।
- पिअउबे—(क्रि.) पिलाओगे, पिलाओगी, क्या पिलाओगी।
- पिअक्कड—(सं.पु.) खूब दारू-शराब पीने वाला, नसेड़ी, नसाखोर।
- पिअसहा—(सं.पु.) प्यासा, प्यास से ग्रसित व्यक्ति।
- पिआग—(सं.पु.) शराबी, नशाखोर, दारूबाज, दारूखोर।
- पिअरा—(सं.पु.) धान का दानेयुक्त डंठल, पुआल।
- पिआस—(सं.स्त्री.) प्यास, पानी-पीने की व्याकुलता।
- पिआसा पिआर- पिआसा पिआर—(विशे.) प्यासा, प्यास की चाहत वाला व्यक्ति, पिआसी।
- पिआर—(विशे.) प्यारा, अतिप्रिय, प्रिय लगने वाला, स्त्री.लिंग ’ पिआरी’।
- पिअर—(विशे.) पीला, पीले रंग का।
- पिअरई—(विशे.) पीलापन, पीले रंग से युक्त।
- पिअरिया पिआर—(विशे.) पीले वस्त्र धारण करने वाला विशेष व्यक्ति।
- पिअराब—(क्रि.) पीला होना, पीला पड़ जाना।
- पिअरी—(सं.स्त्री.) विवाह के समय धारित पीले रंग की धोती विशेष।
- पिअरिआन—(विशे.) पीली हुई, पीली पड़ी हुई, पीले रंग में तब्दील।
- पिअरियाबाबा—(विशे.) पीले वस्त्रों वाला सन्त या महात्मा।
- पिआज—(सं.पु.) प्याज।
- पिअब—(क्रि.) पीना, ग्रहण करना, चूसना, दुग्धपान करना।
- पिअतुआ—(सं.पु.) दुधपिया, दुधमुँहा, जो अभी दूध पर आश्रित हो।
- पिअनी—(सं.स्त्री.) मजदूरी के साथ दिया गया बोनस, प्रोत्साहन धन।
- पिअना—(सं.पु.) दूधारू पशुओं का आहार, खली।
- पिआगी—(सं.पु.) दारूखोर, शराब के नशे में धुत रहने वाला।
- पिआउब—(क्रि.) पिलाना, पिलवाना, दुग्धपान कराना।
- पिअबइया—(सं.पु.) पिलाने वाला, दुग्धपान कराने वाली।
- पिअइया—(सं.पु.) पीने वाला, दुग्धपान करने वाला।
- पिअइहैं—(क्रि.) पिलायेंगे, पिलायेंगी, जरूर पान करायेगी।
- पिआ—(आज्ञा.) पिओ, पी लो, पी लीजिए।
- पिकपिकाब—(क्रि.) बिना अर्थ का बड़बड़ाते रहना, निरर्थक बोलना।
- पिकपिकबइया- पिकपिकबइया—(सं.पु.) दिनभर बिना मतलब के बोलते रहने वाला।
- पिकपिकहा—(सं.पु.) हमेशा जो अस्पष्ट व्यर्थ की बाते बड़बड़ाता हो।
- पिच्ची—(सं.स्त्री.) कुचली हुई, दबकर जो कुचल गई हो, माथा पच्ची।
- पिचपिचाब—(क्रि.) पके घाव से पश या मवाद का बहना।
- पिचपिचान—(विशे.) घाव जो पककर मावाद से खूब भरा हो, सडे भोजन से द्रवित पानी।
- पिचक्का—(क्रि.वि.) घाव का छींटा, वेग के साथ फोड़े से निकला प्ररस।
- पिछलग्ग पिछलग्गू—(सं.पु.) पीछे-पीछे लगे रहने वाला व्यक्ति, अनुयायी।
- पिछउरा—(सं.पु.) विवाह के समय दाम्पत्य को गठबंधन करने वाला चादर।
- पिछउरी—(सं.स्त्री.) चादर, विस्तर पोश, बेड शीट।
- पिट्ट-पिट्ट—(अव्य) जल्दी-जल्दी आँख की पलकें पटकना।
- पिटबाउब—(क्रि.) किसी की पिटाई कराना, पिटवाना।
- पिटबइया—(सं.पु.) पीटने वाला, पिटाई करने वाला।
- पिटरब—(क्रि.) पिट जाना, मार खाना, पीछे हो जाना।
- पिटाई—(क्रि.वि.) मारने पीटने के कार्य का दौर।
- पिटपिटाउब—(क्रि.) आँख की पलक पिट्ट- पिट्ट करना।
- पिटइलहा—(सं.पु.) जो हमेशा मार खाता हो, मार खाने का आदती व्यक्ति।
- पिटउँआ—(विशे.) पीटने की शैली में प्रहार।
- पिठाँह—(सं.पु.) पीठ, पृष्ठ भाग।
- पिढ़बा—(सं.पु.) बैठने के लिए काष्ठ का पीढा या पटा।
- पिढ़इ पिढ़ई—(सं.स्त्री.) हल की एक पतली लकड़ी, लिखने वाली काष्ठ की स्लेट।
- पिण्डा पारब—(ब.मु.) पिण्डदान, एक गाली विशेष।
- पितरा—(सं.पु.) पितृ देव, पितृ देवता।
- पितरपख—(सं.पु.) पितृ पक्ष।
- पितरहाइन—(सं.स्त्री.) पितृ पक्ष के दिन, पितृ आगमन के दिवस।
- पितिआनी—(सं.स्त्री.) चाची, चाचा की पत्नी।
- पितिआउत—(सं.पु.) चचेरा, चचेरी।
- पिधुलब—(क्रि.) पिघला कर चटनी कर देना, घाव का पिस जाना।
- पिधुलरान—(विशे.) पके घाव का दबकर, पिघला हुआ।
- पिघलरा—(विशे.) पककर जो पिघल गया हो, मवाद युक्त घाव।
- पिन्ना—(विशे.) पिनपिनाकर बोलने वाला, नाक से बोलने वाला, स्त्री.. ’पिन्नी’।
- पिनपिनिहा—(सं.पु.) नाक के बल स्वर निकालने वाला व्यक्ति।
- पिनपिनाब—(क्रि.) नाक से बोलना, पिनापिनाकर बोलना, पिनपिनाना।
- पिनिन पिनिन—(अव्य.) रोवन प्रवृत्ति, नाक के बल बोलने का आदती।
- पिपिहिरी—(सं.स्त्री.) बाँसुरी, सीटी, सुरीला वाद्ययंत्र।
- पिबाउब—(क्रि.) पिलाना, पिलवाना, दुग्ध पान कराना।
- पिबइया—(सं.पु.) पिलाने वाला, दुग्धपान कराने वाला व्यक्ति।
- पिबायेन—(क्रि.) पिला दिये, पिला चुके, पिला लिये।
- पिबइहेय—(क्रि.) पिलाओगे, पिलाओगी, क्या दुग्ध पान कराओगे।
- पिबइहा पिबइहौं—(क्रि.) पिलाऊँगी, पिलाऊँगा, दुग्ध पान कराऊँगी।
- पिरकी—(सं.स्त्री.) दानेदार छोटी-छोटी फुड़िया या फुन्सी।
- पिरकिहा—(सं.पु.) जिसके दानेदार फुड़िया पड़ी हो वह व्यक्ति।
- पिराब—(क्रि.वि.) दर्द होना, पीड़ा करना, वेदना की अनुभूति होना।
- पिरबाउब—(क्रि.) पीड़ा पहुँचाना, दर्द उभारना।
- पिरबइया—(सं.पु.) दर्द देने वाला, पीड़ा बढ़ाने में सक्रिय व्यक्ति।
- पिरवाई—(विशे.) प्रसव की पीड़ा से ग्रसित।
- पिलबा—(सं.पु.) कुत्ते का बच्चा, पिल्ला, स्त्री.लिंग ’पिलइया’।
- पिल्ला—(सं.पु.) किसी वस्तु का एक पहलू, किवाड़े का एक भाग।
- पिलन्टा—(सं.पु.) छोटे कद का आदमी, किसी व्यक्ति का नाम।
- पिलउब—(क्रि.) गढ्ढे में गोट डालना, एक ग्रामीण खेल।
- पिलबाउब—(क्रि.) गढ्ढे में गोटी डलवाना।
- पिलबइया—(सं.पु.) गोट गढ्ढे में डालने या पिलाने वाला।
- पिलोरा—(सं.पु.) नवजात शिशु, छोटा सा बच्चा, अबोध बालक।
- पिल्होट—(सं.पु.) हाल का जन्मा शिशु, दुधमुँहा बच्चा, छोटा सा शिशु।
- पिलपिल—(विशे.) पककर अत्याधिक गुल-गुला हुआ फल।
- पिसान—(सं.पु.) आटे का चूर्ण, आटा।
- पिसना—(सं.पु.) पिसाई के निमित्त रखा हुआ अनाज, पिसाई का शुल्क।
- पिसबाउब—(क्रि.) पिसाई का कार्य करवाना, पीसने में मदद करना।
- पिसबइया—(सं.पु.) पीसने का कार्य करने वाला व्यक्ति, तास फेटने वाला।
- पिसरब—(क्रि.) कुचल जाना, पिस जाना, दबकर चूर्ण हो जाना।
- पिसाई—(सं.पु.) आटा पीसने की मजदूरी या मेहनताना।
- पिसाप—(सं.पु.) पेशाब, मूत्र।
- पिसापा—(विशे.) जिसे पेशाब लगी हो, पेशाब से ग्रसित व्यक्ति।
- पिसनही—(सं.स्त्री.) जिस पात्र में पिसान या आटा रखा जाता हो। पी
- पीका—(सं.पु.) बाँस से प्रस्फुटित नये पौध, पौध की जड़ से निकली कोपले।
- पीड़ा—(सं.पु.) प्रजनन के बाद घी-गुड़ से बना लड्डू।
- पीटब—(क्रि.) पीटना, पिटाई करना।
- पीठी—(सं.स्त्री.) पीसी हुई गीली दाल का समूह।
- पीढ़ा—(सं.पु.) बैठने के लिए बना काष्ठ का पात्र।
- पीती—(सं.पु.) बड़े पिता जी, चाचा, पिता के भाई।
- पीप—(सं.स्त्री.) मवाद, पके फोड़े का पानी।
- पीपर—(सं.स्त्री.) पीपल, पीपल औषधि, छाती के पीपर बघेली मुहावरा। पु
- पुकाँदूध—(विश.) बहुत अधिक खट्टा, अति खट्टा स्वाद।
- पुचपुची—(सं.स्त्री.) आँख में लगाई जाने वाली ट्यूब (दवाई), व्यर्थ की वार्ता।
- पुखा—(सं.पु.) बरसात का एक नक्षत्र।
- पुचुराब—(क्रि.) चुपके-चुपके बिना मतलब की बातें करना।
- पुचुरामन—(ब.मु.) एक ही बात को बार-बार बताना, बिना प्रयोजन के वही-वही कार्य करना।
- पुचुर पुचुर—(अव्य.) आँखों का मिचमिचाना, पककर अति ढीली एवं गीली स्थिति।
- पुचारब—(क्रि.) प्रोत्साहित करना, पानी चढ़ाना, चने के झाड़ में चढ़ाना।
- पुचकारब—(क्रि.) पुचकारना, रोते को स्नेह प्रदर्शित कर चुप कराना।
- पुचरबइया—(सं.पु.) पुकारने वाला, प्रोत्साहित व उत्प्रेरित करने वाला।
- पुचरबाउब—(पानी) पानी चढ़वाना, किसी को उत्प्रेरित करवाना।
- पुछइया—(सं.पु.) कही बात को पूछने वाला, प्रश्नकर्ता।
- पुछटेब—(क्रि.) दोनों टाँग से पीछे की ओर पूँछ करके पकड़ना, पीछा किये रहना।
- पुंजमनिया—(विशे.) वितरण की वह प्रणाली जिससे सबको मिल जाय, बहुत कम मात्रा, वस्तु की काम चलाऊ उपलब्धता।
- पुटकिआउब—(क्रि.) पोटली में खाद्यान्न को बॉंधना।
- पुटुर-पुटुर—(अव्य) बिना प्रयोजन के अनावश्यक मुंह चलाते रहना। पुट्ट-पुट्ट - - सूखी लकड़ी तोड़ने से होने वाली ध्वनि, अति कमजोर का प्रतीक।
- पुटिआउब—(क्रि.) मिला-जुलाकर किसी को अपने पक्ष में कर लेना।
- पुन—(अव्य) फिर से, पुनः, दुबारा, अनन्तर।
- पुनि—(अव्य) पुनः, फिर से, अगेन।
- पुन्न—(सं.पु.) पुण्य, कल्याणकारी।
- पुन्नेठ—(विशे.) छोटा मुँह बड़ी बातें, बड़ों जैसा बच्चों की वार्ता।
- पुनिया—(सं.स्त्री.) पिनपिनाते हुए बोलने वाली नारी, पूर्णिमा को जन्मी स्त्री.।
- पुन्नमासी—(सं.स्त्री.) पूर्णमासी।
- पुन्नियाइ पुन्नियाई—(सं.स्त्री.) पुण्यदायी, दान-पुण्य के निमित्त प्रदत्त।
- पुन्ना—(सं.पु.) पिनपिना कर बोलने वाला, पूर्णिमा को जन्मा बालक।
- पुन्नहा—(सं.पु.) दान-पुण्य में प्राप्त वस्तु, दान-पुण्य हेतु संचित वस्तु।
- पुतरिया—(सं.स्त्री.) पुतली, खिलौना, पुतली जैसी सुन्दर नारी।
- पुतरी—(सं.स्त्री.) आँख की पुतली, अतिप्रिय, गुड़िया का खिलौना।
- पुतउ—(सं.स्त्री.) पुत्र वधु, पतोहू।
- पुतहिया—(सं.स्त्री.) पतोहू, पुत्र वधू।
- पुतहुआब—(क्रि.) पुत्र वधू के आने की लालसा का होना।
- पुजमान—(सं.पु.) पूजनीय, जिसका पाँव पूज लिया गया हो।
- पुजरब—(क्रि.) अस्त्र से कट जाना, पूजा का हो जाना, पूरा पड़ जाना।
- पुजाउब—(क्रि.) माँग के अनुसार पूर्ति कर लेना, पाँव की पूजा करा लेना।
- पुजबाउब—(क्रि.) अपनी पूजा करवाना, पूर्ति करा लेना।
- पुजबइया—(सं.पु.) पूर्ति करने वाला, पूजा या पूजन कर्ता।
- पुजउब—(क्रि.) मात्रा पूरा करना, आवश्यकता के अनुसार पूरा कर देना।
- पुँजिगर—(विशे.) पूँजीपति या धनवान, पूंॅजी से समृद्व एवं मजबूत।
- पुँजिआब—(क्रि.) पूँजी संचित करना, पूँजी की दृष्टि से सम्पन्न होना।
- पुजहाई—(सं.स्त्री.) पूजा सामग्री वाली झोली, पूजालय।
- पुजाई—(क्रि.वि.) घर देवता या ग्राम्य देवता की परम्परागत पूजा।
- पुजिगा—(क्रि.वि.) पूर्ण हो गया, सबको मिल गया, पूरा पड़ गया।
- पुजेरी—(सं.पु.) पुजारी, मंदिर का पुजारी, पूजा-पाठ करने वाला।
- पुट्ठा—(सं.पु.) कापी-किताब का कवर, कमर के पीछे का माँसल भाग।
- पुट्ठ—(विशे.) पुष्ट, मजबूत, ताकतवर।
- पुट्ठाब—(क्रि.) पुष्ट होना, खाकर तन्दुरुस्त बनना।
- पुटपुर—(सं.पु.) ऊँची भूमि, कम उपजाऊ जमीन, कंकरीला-पथरीला खेत।
- पुटकी—(सं.स्त्री.) पोटली।
- पुटकिहा—(सं.पु.) पोटली बनाने वाला कपड़ा विशेष।
- पुतउहाई—(सं.स्त्री.) जिस नारी के घर पुत्र वधू आ चुकी हो, पुत्र वधू वाली नारी।
- पुपुआब—(क्रि.) प्रलोभन बस पीछे-पीछे घूमना, कह-कह कर प्रचारित करना।
- पुरइन—(सं.स्त्री.) जलाशय का फूल, पुरैन, बेसन का व्यंजन, दीवाल का चित्र।
- पुरहर—(सं.पु.) पूरी, ऊँची पूरी, पूर्ण परिपक्व, सार्मथ्यवान।
- पुरब—(क्रि.) गढ्ढा का भर जाना, घाव का भर जाना।
- पुरबाउब—(क्रि.) गढ्ढे को भरवाना व पूरा कराना।
- पुरायँठ—(सं.पु.) पूर्वजों की भाँति बातें करने वाला, पुराना व्यक्ति।
- पुरनमा—(सं.पु.) पुराना वस्त्र या घर, पुरानी वाली वस्तु, पुराना हीं।
- पुरनिहा—(सं.पु.) पुराने चाल-चलन व परम्परा का पोषक।
- पुरपुराब—(क्रि.) कागज या कपड़ा को फाड़ना, पुर-पुर की आवाज होना।
- पुरपुराउब—(क्रि.) पुर-पुर की आवाज कराते हुए फाड़ना।
- पुर पुर—(सं.पु.) वायु उत्सर्जन के समय की एक ध्वनि, फाड़ने से उत्पन्न ध्वनि।
- पुरखा—(सं.पु.) पूर्वज, पूर्व पुरूष, कुलवंश का बडा बूढा।
- पुरखातूॅं—(क्रि.वि.) छोटी मुँह बड़ी बातें करना, बच्चे द्वारा बूढ़ों जैसी बातें करना।
- पुरबइया—(सं.स्त्री.) पूर्व दिशा से बहने वाली हवा।
- पुरबायेन—(अव्य) पूर्व दिशा से आने वाली हवा विशेष, पूर्व की ओर।
- पुरबा—(सं.पु.) वर्षा का एक चरण, एक नक्षत्र।
- पुरचुल—(सं.पु.) अति दीन-हीन एवं दैन्यता प्रदर्शित करने वाला।
- पुरिया—(सं.स्त्री.) पुड़िया, जहर की पुड़िया, बघेली मुहावरा।
- पुरिहाव—(सं.पु.) पूड़ी बनने या खाने का दौर।
- पुरियानदंन—(ब.मु.) जहर का खजाना, गुड़ का बाप कोल्हू।
- पुरिआउब—(क्रि.) पुडिया बनाना, पुड़िया लगाना।
- पुलकब—(क्रि.वि.) संकीर्ण क्षिद्र से पार हो जाना, पोलेपन से प्रवेश कर निकल जाना, छूट जाना।
- पुलकाउब—(क्रि.) निकलवाना, पोलेपन से प्रवेश कराकर भगा देना।
- पुलुकबइया—(सं.पु.) संकीर्ण क्षिद्र से प्रवेश कर आगे निकल जाने वाला।
- पुल्ली—(सं.स्त्री.) हिस्सा बाँट का दस्तावेज, पेन का ढक्कन, आभूषण की कील, वंश विवरण पत्रिका।
- पुलुलुआ—(सं.पु.) एकदम पानी जैसी पतली टट्टी।
- पुल्लाउब—(क्रि.) खो-खो के खेल में खिलाड़ी को बढ़ाना व गतिमान करना।
- पुलपुलिया—(सं.स्त्री.) पतली टट्टी, कढ़ी जैसा पतला मैला।
- पुलइया—(सं.पु.) अतिप्रिय शिशु के लिए स्नेहिल उद्बोधन।
- पुसउल—(सं.पु.) पूस मास की परीवा की तिथि व त्यौहार।
- पुसपरीबा—(सं.पु.) पूस महीने की परीवा को होने वाला ग्राम्य त्यौहार। पू
- पूँक—(सं.स्त्री.) गुदा, गुदा द्वार की लाल माँसपेशी।
- पूकमारी—(सं.स्त्री.) गुदा पर केन्द्रित नारी के लिए अश्लील गाली।
- पूँछब—(क्रि.) पूछना, प्रश्नोत्तर करना, जानकारी लेना।
- पूँछी—(क्रि.) पूछिए, पूँछ लीजिए, पूँछ लो, पूछो।
- पूजब—(क्रि.) आवश्यकता की पूर्ति हो जाना, अस्त्र से गला उतार लेना।
- पूठी—(सं.स्त्री.) एक वनपौध जिसके छिलके से रस्सी बनती है।
- पूरब—(सं.पु.) पूर्व, पूर्व दिशा, घाव को भरना (कि.वि.)
- पूरा—(सं.पु.) ढोलक में मढ़ा चमड़ा, वधू विदाई में प्राप्त रीतिगत पूड़ियाँ मिष्ठान।
- पूरी—(सं.स्त्री.) दाल वाली पूडी, धान के ठंडलों का बॅंधा गठ्ठा।
- पूरपार—(विशे.) पूरी-पूरी मात्रा, आवश्यकता एवं पूर्ति एक बराबर, न कम न ज्यादा मात्रा।
- पूरन—(विशे.) सभी चीजों की पूर्णता व सम्पन्नता, पूर्णतः पूर्ति।
- पूरन पात—(सं.पु.) पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान में थाल में दिया गया आरती हेतु चावल। पे
- पें—(सं.पु.) रोते समय की एक ध्वनि विशेष।
- पेउँदी—(सं.स्त्री.) बड़े आकार की एक मीठी बेर की किस्म।
- पेउला—(सं.पु.) अनाज रखने का बडा सा मिट्टी का पात्र, कुठिला।
- पेंउसरी—(सं.स्त्री.) पेंउस, प्रजनन के बाद वाले दूध का जमाया गया व्यंजन।
- पेउहा—(सं.पु.) दुग्धपान के लिए भूखा शिशु, दुधपिहा बच्चा।
- पेंगा—(सं.स्त्री.) जबड़े तक फटे मुँह वाली एक चिड़िया, पेंगा कस मुँहु फाट, बघेली मुहावरा।
- पेंगल—(सं.पु.) पोंगा आदमी, दन्तविहीन बूढ़ा व्यक्ति।
- पेंच—(सं.पु.) दांव पेंच, मशीन के पुर्जें।
- पेंचहा—(सं.पु.) दांव पेंच व नियम कानून जानने वाला।
- पेज—(सं.पु.) प्याज।
- पेजहा—(सं.पु.) प्याज का खेत, प्याज खरीदने-बेचने वाला।
- पेज पानी—(ब.मु.) रूखा-सूखा भोजन।
- पेजहाई—(सं.स्त्री.) प्याज का व्यापार, प्याज वाली जमीन व पात्र।
- पेटभराँव—(अव्य) पेटभर, भरपेट, तृप्ति होने की मात्रा।
- पेटपकन—(ब.मु.) पेट का पानी पचा देने वाला, समस्या मूलक जन।
- पेटहा—(विशे.) जिसे मात्र अपने पेट की चिंता हो, दूसरे का हक छीनकर खाने वाला, स्त्री.लिंग ’पेटही’।
- पेटागिन—(सं.स्त्री.) भूखों मरने वाला, भूख के मारे चिपका हुआ पेट।
- पेटपोछना—(अव्य) अन्तिम संतान, जिसके जन्म के बाद संतानोपत्ति बन्द हो गई हो।
- पेटका—(अव्य) पेट के बल लेटा हुआ, पीठ ऊपर की ओर करके पड़ना।
- पेटकुँइया—(अव्य) जमीन पर पेट सटाकर पड़ने की स्थिति।
- पेटारथू—(ब.मु.) जो अपना पेट भरने के चक्कर में रहता हो।
- पेटुआ—(सं.पु.) बकौड़ा का रेशा, अमारी का छिलका।
- पेटलण्डी—(विशे.) आँख चुराकर खाने वाली, पुलिंग ’पेटलण्डा’।
- पेटबइठा—(विशे.) भूख के कारण पेट के प्रकोष्ठ जिसके बैठे ले।
- पेटकढ़ा—(विशे.) जिसका लेद निकल आया हो।
- पेडहरा—(सं.पु.) जड़वाला लकड़ी का हिस्सा।
- पेंडा—(सं.पु.) पौधे का जड़ वाला तना, नीचे का हिस्सा।
- पेडाब—(क्रि.) पेड़ से शाखाओं का फूटना, वृक्ष का मोटा होना, जेल में बंद होना, अन्दर होकर बन्द कर लेना।
- पेडान—(विशे.) पेड़ में प्रस्फुटित शाखायें, मोटा हुआ पेड़।
- पेढबा—(सं.पु.) पेड़, वृक्ष।
- पेंढा—(सं.पु.) वृक्ष का निचला भाग, पौध का जल वाला अंश।
- पेंदर—(सं.स्त्री.) नाभि के नीचे का उच्च भाग।
- पेंदरब—(क्रि.) मारना-पीटना।
- पेदराउब—(क्रि.) किसी से किसी कोमरवाना- पिटवाना।
- पेंदरइया—(सं.पु.) मारने-पीटने वाला व्यक्ति।
- पेंदी—(सं.स्त्री.) बर्तन का निचला वाह्य तल, वस्तु का निचला भाग।
- पेन्हाब—(क्रि.) गाय-भैंस के थनों का दुहने योग्य होना।
- पेन्हबाउब—(क्रि.) दुधारू पशु के बाल को दुहने लायक बनाना।
- पेन्हबइया—(सं.पु.) थनों में दूध उतारने वाला व्यक्ति।
- पेन्हान—(विशे.) थनों में दूध की उतरी हुई अवस्था।
- पेरब—(क्रि.) पेरना, रस निकालना, परेशान करना।
- पेरबाउब—(क्रि.) पेरने का कार्य करवाना।
- पेरबइया—(सं.पु.) रस निकालने वाला, पेरने वाला व्यक्ति।
- पेररब—(क्रि.) बीच में दबकर पिस जाना, दो पाटों के बीच फँसना।
- पेराब—(क्रि.) पिस जाना, तिलहन से तेल निकल आना।
- पेराई—(सं.पु.) पेरने के बदले प्राप्त मजदूरी, पेरने का दौर।
- पेरबाई—(सं.स्त्री.) पेराई का मेहनताना, तेल निकालने की मजदूरी।
- पेरँउसा—(सं.पु.) पुआल की भूसानुमा टुकड़ियाँ।
- पेरूआ—(सं.पु.) चारपाई के पावे, पेरूआ कस मुँहु, बघेली मुहावरा।
- पेलब—(क्रि.) ताकत लगाकर डाल देना, खाना खा लेना।
- पेलबाउब—(क्रि.) किसी से डलवाना, दूसरे से पेरने का कार्य करवाना।
- पेलइया—(सं.पु.) ताकत के साथ डालने वाला, खाने वाला।
- पेलाई—(सं.पु.) पेलने की मजदूरी, पेलने का दौर।
- पेलचब—(क्रि.) नुकीली कील डाल देना, जमकर डालना-निकालना।
- पेलचाउब—(क्रि.) किसी से डलवाना।
- पेलिपराब—(ब.मु.) प्राण बचाकर भागना, भयवश मैदान छोड़कर भाग जाना।
- पेल्हर—(सं.पु.) अण्ड-कोश।
- पेल्हउरी—(सं.स्त्री.) छोटे आकार का अण्डकोष, बच्चों का अण्ड- कोश।
- पेल्हड़ब—(क्रि.) अण्डकोश के प्रक्षेत्र में मार करना।
- पेल्ला—(सं.पु.) दिनभर खाने वाला, स्त्री.लिंग ’पेल्ली’।
- पेलिआब—(क्रि.) आँख मींचकर जबरिया घुस जाना।
- पेसब—(क्रि.) नुकीली कील चुभा देना, घुसेड़ना या चुभाना।
- पेसुआ—(सं.पु.) पशुओं के शरीर पर पड़ने वाले श्वेत जूँ।
- पेसुआब—(क्रि.) पशुओं के शरीर में जूँ का पड़ जाना।
- पेसुआन—(विशे.) जूँ पड़ा हुआ पशुओं का शरीर।
- पेहंटा—(सं.पु.) छोटेकद का आदमी, अबोध शिशु, स्त्री.लिंग ’पेहटी’। पो
- पोई—(सं.स्त्री.) एक प्रकार की भाजी, साग की एक विशेष पत्ती।
- पोइसा पोइस—(ब.मु.) बिना अर्थ के पीछे-पीछे घूमना, अनावश्यक चक्कर काटना, दौड़कर आना- जाना।
- पोइलहा—(सं.पु.) ब्राम्हण जाति का एक गोत्र विशेष।
- पोउब—(क्रि.) गदेली के सहारे रोटी बनाना, पोउब पाथब ब. मु।
- पोकबा—(सं.पु.) बाँस का एक मोटा सा डंडा।
- पोक्किआउब—(क्रि.) बाँस के मोटे डंडा से मार करना।
- पोक्का—(सं.पु.) बाल छोटा किया हुआ, चिकनी मुण्डी का।
- पोकहट—(सं.पु.) अतिवृद्व एवं जर्जर हुआ बूढ़ा व्यक्ति।
- पोंकब—(क्रि.) पतला दस्त जाना, पतली टट्टी करना।
- पोंकाउब—(क्रि.) पतला दस्त निकलवा लेना।
- पोकइया—(सं.पु.) पतली-पतली टट्टी या दस्त करने वाला।
- पोकना—(सं.पु.) दस्त के दौरान निकला हुआ तरलीय मैला।
- पोंकास—(सं.पु.) बार-बार दस्त आने की अनुभूति या इच्छा।
- पोंकासा—(विशे.) जिसे पतली टट्टी करने की इच्छा जागृति हो गई हो।
- पोकपोकाब—(क्रि.) बिना मतलब की बातें, बक-बकाते रहना।
- पोकनहा—(सं.पु.) जो हमेशा पतली टट्टी करता रहता हो।
- पोक्क-पोक्क—(अव्य) पोली चीज में धक्का देने से होने वाली आवाज।
- पोखरी—(सं.स्त्री.) पोखर, जलाशय।
- पोंग पोंगा—(सं.पु.) जिसे लाभ-हानि का ज्ञान न हो।
- पोगरी—(सं.स्त्री.) पोलदार बाँस की टुकड़ी, पोगड़ी खाद्य सामग्री।
- पोंगर—(सं.पु.) घुटने के नीचे की मोटी हड्डी वाला भाग।
- पोचहा—(सं.पु.) बिना बीज की फली, चना विहीन फली, लपोचड़ा किस्म का व्यक्ति, स्त्री.लिंग ’पोचही’।
- पोंछब—(क्रि.) पोंछना, पोछाई करना।
- पोंछबाउब—(क्रि.) किसी दूसरे से पोंछवाना, साफ करवाना।
- पोछना—(सं.पु.) पोछने वाला कपड़ा, पोंछा का कपड़ा।
- पोछबइया—(सं.पु.) पोंछने वाला, पोंछा लगाने वाला।
- पोछाब—(क्रि.) सफाई हो जाना, साफ- सुथरा बना देना।
- पोछान—(विशे.) पोंछकर बिल्कुल साफ- सुथरा किया हुआ।
- पोटा—(सं.पु.) नाक से निकला हुआ अधिक प्ररस, छोटे-छोटे बच्चे।
- पोटरी—(सं.स्त्री.) पोटली, कपड़े में बंधी अनाज की गठरी।
- पोड़र—(विशे.) पोलापन, पोलाईयुक्त, पोलनुमा, अठोस।
- पोड़िलाब—(क्रि.) गला फाड़कर जोर-जोर से चिल्लाना।
- पोड़िलाउब—(क्रि.) छिलाई करके लकड़ी के एक सिरे को नुकीला बनाना।
- पोड़िका—(सं.पु.) कृषि कार्य की संविदा, बैल और मजदूरों की साझेदारी।
- पोड़िकहरू—(सं.पु.) किसी के हल में अपना बैल संलग्न कर कृषि कार्य करने वाला।
- पोड़की—(सं.स्त्री.) एक विशेष चिड़िया की किस्म।
- पोता पोती—(ब.मु.) एकदम लीप-पोत देना, मिटा देना, चिन्ह नष्ट कर देना।
- पोतिआउब—(क्रि.) भोजन पकाने वाले बर्तन में मिट्टी का लेपन लगाना।
- पोतहड़ी—(सं.पु.) पोतने के लिए प्रयुक्त बड़ा पात्र विशेष।
- पोतब—(क्रि.) पोतना, पुताई करना।
- पोतबाउब—(क्रि.) किसी से पोतवाना, पुतवाई का कार्य कराना।
- पोताब—(क्रि.) पोतने का कार्य होना।
- पोतान—(विशे.) पुताई का हो चुकना, पोता हुआ साफ सुथरा।
- पोतबइया—(सं.पु.) पुताई का कार्य करने वाला।
- पोताई—(सं.पु.) पुताई का चलता हुआ कार्य, पोतने की मजदूरी।
- पोत्ता—(सं.पु.) स्लेट के अक्षर मिटाने वाला गीला कपड़ा।
- पोतना—(सं.पु.) फर्श की पुताई में प्रयुक्त गीला कपड़े की टुकड़ी।
- पोती—(सं.स्त्री.) भोजन पकाने के बर्तन में लगाया गया मिट्टी का लेप।
- पोत—(सं.पु.) धन-दौलत, सम्पत्ति या पूँजी, पूर्वज की पूँजी।
- पोथा—(सं.पु.) अण्डकोश।
- पोटरा—(सं.पु.) उँगुली के नाखूनों के ठीक नीचे का माँसल भाग।
- पोथी—(सं.स्त्री.) प्याज की एक गाँठ, लहसुन की गाँठ।
- पोथन्ना—(सं.पु.) बड़ी एवं भारी पुस्तक, पुस्तक के लिए व्यंग्य कथन।
- पोथीहा—(सं.पु.) पुस्तक लेकर चलने वाला, पुस्तक वाला कक्ष।
- पोंद—(सं.पु.) चूतड़, हिप।
- पोदासी—(सं.स्त्री.) बड़े-बड़े चूतड़ वाली नारी, नारी के लिए एक गाली।
- पोंदाड़िया—(सं.पु.) बड़े-बड़े पोंद वाला व्यक्ति, स्त्री.लिंग ’पोदाड़ी’।
- पोंदीपँइया—(क्रि.वि.) सहारा देकर ऊपर उठाना, प्रोत्साहन देकर बढ़ाना।
- पोदाइस—(क्रि.) किसी की खुशामदी पूर्ण व्यवस्था बनाना।
- पोंदासे—(का.) पोंद में, पोंद पर।
- पोन्डा—(विशे.) जो अठोस हो, पोलनुमा, स्त्री.लिंग पोन्डी।
- पोन्डहा—(सं.पु.) ऐसा पौध जिसका तना पोलाईयुक्त हो।
- पोपरी—(सं.स्त्री.) पपड़ी, बेसन का पापड़।
- पोबाउब—(क्रि.) गदेली के सहारे रोटी प्रसारित करवाना।
- पोबाब—(क्रि.) रोटी का बन जाना, रोटी का प्रसारित हो चुकना।
- पोबाई—(सं.स्त्री.) रोटी पोने का चल रहा कार्य, (कि.) रोटी बनाने का मेहनताना।
- पोबइया—(सं.पु.) रोटी बनाने वाला व्यक्ति विशेष।
- पोबउबेय—(क्रि.) रोटी बनवाओगी, पोने का कार्य कराओगी।
- पोबइहौं—(क्रि.) रोटी बनवाऊँगी, बनवाने में सहयोग करूँगी।
- पोमन—(सं.पु.) रोटी बनाने के पश्चात शेष बचा हुआ आटा।
- पोंय पोंय—(अव्य) भैंस के चिल्लाने की एक प्रवृत्तिगत आवाज, ध्वनि।
- पोर—(सं.पु.) दो गाँठों के बीच का बाँस का भाग।
- पोरसा—(सं.पु.) हाथ खड़ा करने पर नीचे से ऊपर तक की उँचाई का माप।
- पोरहा—(सं.पु.) पोर-पोर वाली लाठी या गन्ना का डंठल।
- पोलबा—(सं.पु.) छड़ी में बँधा हुआ धातु का छल्ला, पेन का ढक्कन।
- पोलखर—(विशे.) पोलाईयुक्त जगह, जिस वस्तु के नीचे पोलापन हो।
- पोलका—(सं.स्त्री.) पुराने प्रचलन की औरतों की ब्लाउज।
- पोलपट्टी—(ब.मु.) रहस्य, कमजोरी, गड़बड़ी, कमी, भेद।
- पोलिंदा—(सं.पु.) कागजों का लपेटा हुआ बन्डल या गट्ठा।
- पोलइया—(सं.पु.) शिशुओं के लिए स्नेहित सम्बोधन।
- पोसाब—(क्रि.) पसन्द आना, मन में अच्छा लगना, रूचि के अनुरूप।
- पोसता—(सं.पु.) किवाड़े के पल्लू में लगने वाली बेड़ी पटरी, एक ड्राई फ्रूट।
- पोस्मान—(सं.पु. ) किवाड़े में लम्बी लगी हुई मजबूती हेतु एक लकड़ी।
- पोहब—(क्रि.) पोली जगह में डाल देना, अन्दर कर देना।
- पोहबाउब—(क्रि.) किसी को भरपेट भोजन करवाना, डलवाना।
- पोहइया—(सं.पु.) डालने वाला, भोजन करने वाला।
- पोहानंदन—(ब.मु.) जो खाने-पीने में हमेशा आगे रहता हो।
- पोहगर—(सं.पु.) होशियार, चतुर चालाक, व्यंग्य प्रहार।
- पोहकड़—(सं.पु.) छोटे बच्चों के लिए मनोविनोदी सम्बोधन।
- पोहन्दा—(सं.पु.) खूब खाने वाला, बड़ी-बड़ी चूतड़वाला, स्त्री.लिंग ’पोहन्दी’। फ
- फइल—(विषे.) पर्याप्त जगह, विस्तृत स्थान।
- फइलबार—(विषे.) पर्याप्त स्थान, विस्तृत जगह।
- फइलब—(क्रिया) फैलना, प्रसारित होना, प्रचार हो जाना।
- फइलाउब—(क्रिया) फैलाना, प्रसारित कर देना, प्रचारित करना।
- फइलान—(विषे.) फैला हुआ, चारों तरफ जानकारी हुई स्थिति।
- फइलइया—(सं.पु.) प्रचार-प्रसार करने वाला, फैलाने वाला।
- फइलबाउब—(क्रिया) फैलवाना, फैलाने मे योगदान करना, प्रचार करवाना।
- फइले—(विषे.) किनारे, दूर, एकदम एकान्त, स्वतंत्र, अलग।
- फइसला—(सं.पु.) निर्णय, फैसला, निपटारा, निराकरण।
- फँइकब—(क्रिया) फेंकना, फेंक देना, घर से दूर कर देना।
- फँइकाउब—(क्रिया) किसी से फेंकवाना, फेंकने के लिये प्रेरित करना।
- फँइकबइया—(सं.पु.) फेंकने वाला, फेंकवाने वाला, दूर हटाने वाला।
- फउद—(सं.पु.) फौज या सेना, घर में बच्चों की अधिक संख्या।
- फउलेंद—(सं.पु.) अधिक संख्या में अनावष्यक बच्चे।
- फकइता—(सं.पु.) जमीन में गड़ी नुकीली कील, फसल का सख्त डंठल।
- फकरा—(सं.पु.) वर्षा के पानी की मन्द-मन्द फुहार।
- फक्क—(विषे.) स्वच्छ, सफेद, एकदम ध् ावल, साफ-सुथरा, निर्दाग।
- फँकिआउब—(क्रिया) गदेली द्वारा दूर से ही मुँह में डाल लेना।
- फकइया—(सं.पु.) फाँक कर खाने वाला, लम्बी- चौड़ी हांकने वाला।
- फँकिया—(सं.स्त्री..) कद्दू के उबाले हुये टुकड़े।
- फँकनी—(सं.स्त्री..) फाँक कर खाने वाली औषधि चूर्ण।
- फगुनहट—(सं.पु.) फाल्गुन मास के दिन या ऋतु।
- फगुना—(सं.पु.) फाल्गुन मास में जन्मा व्यक्ति विषेष।
- फगुआ—(सं.पु.) होली का त्यौहार, फाग, होली गीत।
- फगुआउब—(क्रिया) फाल्गुन का रंग चढ़ जाना, मजाकिया शैली में बोलना।
- फगुहार—(सं.पु.) फाग गाने वाले लोग, फाग की टोली।
- फटहा—(विषे.) फटा पुराना, फटा हुआ, स्त्री.लिंग फटही।
- फटाफट—(अव्य.) तत्काल, एकदम से, जल्दी-जल्दी।
- फटहाई—(विषे.) दूसरे की बुराई, दूसरे के खिलाफ अनाप-सनाप बयान।
- फटब—(क्रिया) फटना, फट जाना, दूध बिगड़ जाना, दिल फटना, दो टुकड़े होना।
- फटबाउब—(क्रिया) फड़वाना, फाड़ने में सहयोग करना।
- फटफटाब—(क्रिया) फट-फट की आवाज होना, घबड़ाहट युक्त आतुरता।
- फटफटाउब—(क्रिया) फट-फट की आवाज करना।
- फटर-फटर—(अव्य.) फट-फट की आवाज का निकलना या होना।
- फट्टी—(सं.स्त्री..) टाट या कपड़े की बैठकी, पुलिंग फट्टा।
- फटफटबइया—(सं.पु.) फट-फट की ध्वनि करने वाला व्यक्ति।
- फटिकब—(क्रिया) फेंकना, फेंक देना, अनाज पछोरना।
- फटिकाउब—(क्रिया) फेंकवाना, फेंकवा देना, पछोरवाना।
- फटकबइया—(सं.पु.) अन्न पछोरने का कार्य करने वाला।
- फटका—(सं.पु.) बाँस का बना फाटक, किवाड़ा, स्त्री.. फटकी।
- फटिकाब—(क्रिया) धक्का लगने से उछल कर दूर गिरना, दूर स्थानान्तरण।
- फटकदलाल—(ब.मु.) गैर जिम्मेदार, फक्कड़ी, जिसे कोई चिन्ता न हो।
- फटकारब—(क्रिया) डाँट-फटकार लगाना, अनाज का कूड़ा-कर्कट अलग करना, हाथ मार लेना, गीला कपड़ा झटकारना।
- फटकरबाउब—(क्रिया) दूसरे से डाँट-फटकार दिलवाना, पछोरवाना।
- फटकन—(सं.स्त्री..) फटक कर अन्न से निकाली गई भूसी व कचड़ा।
- फटनहा—(सं.पु.) जल्दी फट जाने वाला कमजोर वस्तु, स्त्री.. फटनही।
- फटकाई—(सं.पु.) पछोरने की मजदूरी, फटकने का मेहनताना।
- फड़फड़ाब—(क्रिया) पंख फड़फड़ाना, घबड़ाना, आतुर हो उठना।
- फड़फडाउब—(क्रिया) पंख का फड़-फड़ करना, किसी को घबड़वा देना।
- फड़फड़िहा—(सं.पु.) घबड़ा जाने वाला, आतुर होकर कार्य कर बैठने वाला।
- फड़मबाज—(सं.पु.) तिकड़मी व्यक्ति, बेइमानी व बदमानी बताकर कार्य सिद्ध करने वाला, नामाजादी धोखेबाज।
- फड़मबाजी—(क्रि.वि.) उलटी-सीधी बातें, धोखा- धड़ी पूर्ण, झटका मारने वाली बातें।
- फड़—(सं.पु.) तेंदूपत्ती का टाल, जुआ- तास का मजमा।
- फतँइया—(सं.पु.) फटेहाल स्थिति वाला, अस्तित्व विहीन, वक्त का मारा हुआ, फतइयाँ कस घोड़ी, ब.मु।
- फतांही—(सं.स्त्री..) पुराने चाल की कमीच, बिना बाँह की शर्ट।
- फदफदान—(विषे.) अव्यवस्थित ढंग से पूरे घर में फैला हुआ।
- फदफदाउब—(क्रिया) पूरे घर में बेतरकीब ढंग से फैला देना।
- फदफदइया—(सं.पु.) वस्तु को इधर-उधर फैला देने वाला व्यक्ति।
- फदफदाब—(क्रिया) वस्तु का अव्यवस्थित ढंग से फैला हुआ होना।
- फदर-फदर—(विषे.) फद्-फद् की आवाज करते हुये दौड़ की शैली।
- फद्द-फद्द—(अव्य.) गीली जमीन पर पाँव पटकने से उत्पन्न ध्वनि।
- फना—(सं.पु.) करछुल का चौड़ा मुखौटा, सर्प का फन।
- फन्नी—(सं.पु.) तामसी व स्वाभिमानी, ताव न सहने वाला।
- फन्ने खॉ—(ब.मु.) किसी की न सुनने व बातें न सहने वाले के लिये व्यंग्यार्थ सूचक।
- फनफनाब—(क्रिया) आवेषित होकर बोलना, नाराज होना, फन फैलाकर फुसकारना।
- फनफूटब—(ब.मु.) बुद्धि खुल जाना, गले में सरस्वती का बैठ जाना, स्वर निकालना।
- फफाब—(क्रिया) कोयलों से भरा हुआ, एकदम हरा-भरा, पत्तों से पौध का लद जाना।
- फब—(सं.पु.) स्मरण, याद, सुधि, दिमाक में युक्ति।
- फबब—(क्रिया) उचित लगना, शोभा देना, उपयुक्त होना।
- फम्फा—(विषे.) एकदम हलका, बहुत ही पतला, हवा में उड़ जाने लायक।
- फर—(सं.पु.) फल।
- फरब—(क्रिया) फलना, फल लगना, फल का फलना।
- फरी—(विषे.) फल से लदी हुई, पर्याप्त फल लगा हुआ।
- फरफराब—(क्रिया) फड़फड़ाना, पंख का फड़-फड़ होना।
- फरबाउब—(क्रिया) फड़वाना, किसी से फड़वा देना, दो टुकड़े करवाना।
- फरबइया—(सं.पु.) फाड़ने का कार्य करने वाला।
- फरुहा—(सं.पु.) फल, फावड़ा।
- फरुही—(सं.स्त्री..) जमकर फलने वाली, प्रतिवर्ष फल देने वाली।
- फरकाउब—(क्रिया) नाक फड़काना, नाक सिकोड़ना, नाक फरकाउब, ब.मु।
- फरकइया—(सं.पु.) नाक फरकाते रहने वाला आदमी।
- फरगब—(क्रिया) औजार को धारदार बनाना, पैनी धार बनाने हेतु माँजना।
- फरगाउब—(क्रिया) औजार को धारदार बनवाना, मुँह फरगाउब, ब.मु.।
- फरगबइया—(सं.पु.) औजार को धारदार बनाने वाला, औजार मंजवाने वाला।
- फरिका—(सं.पु.) दरवाजे के सामने की आरक्षित भूमि।
- फराँक—(सं.पु.वि.) फैला हुआ भू-भाग, विस्तृत क्षेत्र, पर्याप्त स्थान का होना। फराँँ ँ
- के—(अव्य.) दूर-दूर, एकान्त में, कट-कट कर।
- फरिया—(क्रिया) लड़कियों की फ्राक, फ्राक की तरह एक वस्त्र।
- फरफंद—(सं.पु.) दंद-फंद, बहाने बाजी, झूठ-फरेबयुक्त वार्ता।
- फरफंदी—(विषे.) हमेषा तीन-पाँच करने वाला, इधर-उधर की जोड़गाँठ करने वाला।
- फरा—(सं.पु.) महुए के रस से बनी खीर, गर्मी की दानेदार पड़ी फुड़िया।
- फरचंट—(विषे.) होषियार, तेज-तर्राक, चतुर चालाक।
- फरफरान—(विषे.) फहराती हुई, फड़फड़ाकर आती हुई।
- फरिआब—(क्रि.) दिखाई पड़ने लगना, हल्का- हल्का अंधकार का कम होना।
- फरेंदा—(सं.पु.) फाड़कर तैयार की गई जलाऊ लकड़ी, फलदार वृक्ष, फलदार वनस्पति।
- फरथाला—(सं.पु.) बीच से फाड़ी हुई वस्तु का एक टुकड़ा।
- फरहर—(विषे.) पके चावल का चावल से न चिपके रहने की स्थिति।
- फरकब—(क्रिया) फड़काना, विकार से अंग का कूदना।
- फर्र-फर्र—(विषे.) देखते-देखते उड़ जाना।
- फर्राब—(क्रिया) फरफराते हुये उड़ जाना, फर-फर की आवाज करना।
- फर्रउहन—(सं.पु.) फड़फड़ाते हुये शैली में।
- फरदा—(सं.पु.) बीच से फाड़कर दो टुकड़ा लकड़ी का एक हिस्सा।
- फरहार—(सं.पु.) व्रत में लिया गया फल, फलाहार।
- फराहारी—(सं.पु. फलहारी, जो फल का सेवन करता हो।
- फलाने—(सर्व.पु.) अमुक, एक तकिया कलाम।
- फलिहाउब—(क्रि.) भरे पानी में बर्तन या कपड़ा डालकर हिलोरना व साफ करना।
- फलिआउब—(क्रिया) किसी को उलाहना से बुरा-भला कहना।
- फलदान—(सं.पु.) वरीक्षा की एक रस्म, विवाह की संविदा।
- फलगट्टा—(सं.पु.) अति ढीला-ढाला, साया, चलते समय फट्फटाने वाला वस्त्र।
- फलब—(क्रिया) सूट करना, फलदायी होना, लाभदायक होना।
- फलनिया—(सर्व.स्त्री..) अमुक नारी, एक तकिया कलाम।
- फला—(सर्व.) अमुक, ये।
- फलनमा—(सर्व.) अमुक, ये।
- फसकब—(क्रिया) माँस लद जाना, मोटा होना जाना, माँस फूल आना।
- फसकाउब—(क्रिया) पदार्थ को फैला देना, भूसा को फैला देना।
- फँसब—(क्रिया) उलझ जाना, फँस जाना, चक्कर में पड़ जाना।
- फसबाउब—(क्रिया) किसी को फँसा देना, सहयोग करके फँसवाना।
- फसबइया—(सं.पु.) फसाने वाला, मामले में फँसा देने वाला।
- फँसा—(विषे.) किसी से संलग्न, किसी में फँसा हुआ।
- फँसाब—(क्रिया) अपने आप चक्कर में फँस जाना।
- फसही—(सं.स्त्री..) खेत में अपने आप उग आने वाली एक धान।
- फँसउहल—(सं.पु.) फँसने-फँसाने वाला प्रकरण।
- फसर्रब—(क्रिया) गहरी निद्रा में निशि्ंचत होकर सोना।
- फसफसान—(विषे.) उभर कर ऊपर दिखता हुआ, फैला व उभरा हुआ।
- फसिल—(सं.स्त्री..) फसल, अनाज का उत्पादन।
- फहराब—(क्रिया) फहरवाना, आरोहित कराना, उड़ जाना।
- फहरबइया—(सं.पु.) फहराने वाला, आरोहणकर्ता। फा
- फाँकब—(क्रिया) गदेली में उठाकर सीधे मुँह में फेंक लेना।
- फाँका—(सं.पु.) फल का एक आधा भाग, गदेली भर अनाज।
- फाँकी—(सं.स्त्री..) ककड़ी की एक टुकड़ी, फल का आधा हिस्सा।
- फाटन—(सं.पु.) हाथ-पाँव में कटने का दर्द, एक रोग।
- फाटब—(क्रिया) फटना, फट जाना, खण्डित होना।
- फाँदब—(क्रिया) लांघ जाना, कूद जाना, नये कार्य का शुभारंभ, किसी को फँसा लेना।
- फाफट—(ब.मु.) सक्रिय होने का दिखावा, हाथ-पाँव फड़फड़ाना, फाफट कूटना, ब.मु.।
- फाँफी—(सं.स्त्री..) भूसे का अनुपयोगी महीन कण, एकदम हलकाव, कमजोर।
- फार—(सं.स्त्री..) हल की लोहे की फाल।
- फारब—(क्रिया) फाड़ना, फाड़ देना, दो टुकड़े करना, फैलाना।
- फाँस—(सं.स्त्री..) बाँस या लकड़ी की पतला रेखा, फाँस ठोकना, ब.मु.।
- फाँसब—(क्रिया) किसी को फाँस लेना, बन्धनबद्ध करना। फि
- फिकिर—(सं.स्त्री..) फिक्र, चिन्ता, सोच, परवाह।
- फिचबाउब—(क्रिया) कपड़े पछरवाना, कपड़े धुलवाना।
- फिंचाब—(क्रिया) कपड़ों का धुल जाना, वस्त्र साफ होना।
- फिचान—(विषे.) धुले हुये कपड़े, साफ किये गये वस्त्र।
- फिचबइया—(सं.पु.) कपड़े धुलने वाला, कपड़ा साफ करने वाला।
- फिटिकब—(क्रिया) फेंकना, फेंक देना, उठाकर फेंक देना।
- फिटिकाउब—(क्रिया) फेंकवाना, किसी को फेंकने को प्रेरित करना।
- फिटकइया—(सं.पु.) दूर फेंकने वाला व्यक्ति।
- फिटिका—(विषे.) फेका हुआ, जमीन पर पड़ा हुआ।
- फिटिर-फिटिर—(अव्य.) फंटे बाँस के पटकने से उत्पन्न ध्वनि।
- फिटकिरी—(सं.स्त्री..) एक प्रकार की नमक के रंग की औषधि।
- फिट्ट-फिटान—(ब.मु.) आवष्यकता के अनुरूप, चाहत के अनुसार पूर्ति, बात तय हो जाना।
- फिन—(अव्य.) फन, फिर से।
- फिफिआब—(क्रिया) परेषान होकर भटकना, तलाष में इधर-उधर भटकना।
- फिफिआउब—(क्रिया) किसी को परेषान करके भटकवाना।
- फिरब—(क्रिया) घूमना, फेरी लगाना, चारों तरफ भ्रमण करना, चक्कर काटना।
- फिरबाउब—(क्रिया) घुमाना, चक्कर कटवाना, फेरी लगवाना।
- फिरबइया—(सं.पु.) फिराने वाला, घुमाने वाला, चक्कर लगाने वाला।
- फिराउब—(क्रिया) चारों तरफ घुमाना, चक्कर कटवाना।
- फिरंगी—(सं.स्त्री..) एक खिलौना, चक्कर काटने वाला लट्टू।
- फिटिहिरी—(क्रि.वि.) वेग के साथ चारों ओर वृत्ताकार भ्रमण।
- फिराक—(सं.स्त्री..) फ्रॉक, लड़कियों का वस्त्र, तलाष या खोज।
- फिरियाद—(सं.पु.) उलाहना से ओत-प्रोत षिकायत।
- फिरियादब—(क्रि.) उलाहना देकर षिकायत सुनाना।
- फिरता—(सं.पु.) वापस पैसा लेना, शेष वापसी, वस्तु की कीमत देखकर बच रहे शेष राषि को वापस लेना।
- फिरेबिल—(सं.स्त्री..) साइकल का एक पुरजा, फ्रेबिल।
- फिसड्डी—(विषे.) ऐसी-वैसी वस्तु, अस्तित्व विहीन व औचित्यहीन।
- फिंसमाफास—(ब.मु.) छोटी बात को बड़ी बनाना, तर्क में तर्क करना।
- फिस्स—(क्रि.वि.) खत्म करना, चर्चा का समाप्त हो जाना।
- फिसलब—(क्रिया) फिसलना, फिसल जाना, छूट जाना, सरक जाना।
- फिसलाउब—(क्रि.) फिसलाना, फिसलवाने में सहभागिता निभाना।
- फिसलइया—(सं.पु.) फिसलवाने का कार्य करने वाला। फु
- फुइया—(सं.स्त्री..) फुफू, बुआ, पिताजी की बहन।
- फुकबाउब—(क्रिया) फूँक मरवाना, झाड़-फूँक कराना, आभूषण कसवाना।
- फुकबइया—(सं.पु.) फूँकने वाला, नष्ट करने वाला व्यक्ति।
- फुकहाई—(ब.मु.) दिवालिया हो जाना, घर में कुछ न बचना।
- फुकनी—(सं.स्त्री..) हवा फूँकने वाली बाँस की पोलदार नली।
- फुकुर-फुकुर—(विषे.) मंद लव, कम प्रकाष देती हुई बाती के जलने का ढंग।
- फुचड़ा—(सं.पु.) कपड़े का फूल, नारी के केष के जूड़े का फूलवाला फीता।
- फुटकब—(क्रिया) प्रस्फुटित होना, अंकुरित होकर उग आना, सूखे घाव का फिर से पक आना।
- फुटफइल—(ब.मु.) दूर-दूर होना, विरोध के कारण अलग-अलग हो जाना।
- फुटहा—(सं.पु.) टूटा-फूटा बर्तन, फूटा हुआ खण्डित पात्र, स्त्री.. फुटही।
- फुटहाई—(सं.स्त्री..) विरोध, तोड़ने-फोड़ने वाली बातें, बुराई पूर्ण वार्ता।
- फुटबँधवा—(सं.पु.) फूटी मेड़ वाला बाँध, जिसकी मेड़ फूटी हुई हो वह बाँध।
- फुदुकब—(क्रिया) चुनना या चुगना, चिड़ियो द्वारा बाल से दाने चुगना।
- फुदुकबाउब—(क्रिया) चिड़ियों से दाने चुगवाना।
- फुदुकबइया—(सं.पु.) चिड़ियों को दाना चुगाने वाला, चुगने या चुनने वाला।
- फुदकँबइया—(क्रि.वि.) कूदते हुये चलना, हलके पाँव से उछल-उछल कर बढ़ना।
- फुदुर-फुदुर—(अव्य.) फुदुक-फुदुक कर चलना, मेढ़क सी चाल।
- फुनई—(सं.स्त्री..) वृक्ष की चोटी, किसी वस्तु का ऊपरी छोर।
- फुन्नी—(सं.स्त्री..) पौध का सर्वोच्च षिखर, फसल का बाल वाला हिस्सा।
- फुफ्फा—(सं.पु.) फूफा जी, पिता जी के जीजा, बुआ के पति।
- फुफुआउर—(सं.पु.) फूफा जी का गॉव-घर, बुआ की ससुराल।
- फुर—(सं.स्त्री..) सत्य, सही, सच्चाई, यथार्थ।
- फुरिन—(विषे.) एकदम सही, सच मायने में, वास्तव में।
- फुरिन-फुर—(अव्य.) सच-सच, सही-सही, एकदम सत्य, पूर्णतः सही।
- फुरकब—(क्रिया) अघुलित पदार्थ को जीभ के सहारे मुह से फेकना।
- फुरा जमोकी—(ब.मु.) यथार्थ सत्यापन, आमने- सामने प्रमाणित करना, गवाह द्वारा कथन को उसके मुख पर कहलवा देना।
- फुरफुरी—(सं.स्त्री..) बुखार आने के पूर्व ठंड की अनुभूति, रोमांचित स्थिति।
- फुरबाउब—(क्रिया) कथन का आमने-सामने पुष्ट करवाना, कथन को सत्यापित- प्रमाणित करवाना, कही बातें को फिर से कहलवाना।
- फुरबोलिया—(सं.पु.) सदा सत्य बोलने वाला, स्पष्ट व सही बोलने वाला।
- फुरहूँ-- (विषे.) सही-सही में, वास्तव में, सच मायने में।
- फुर्र-फुर्र—(सं.स्त्री..वि.) चिड़िया के पंख की उड़ते समय की आवाज, जल्दी- जल्दी।
- फुर्राब—(क्रिया) फुर्र-फुर्र करके उड़ जाना, नोटों को उड़ा देना।
- फुर्रा—(सं.पु.) बच्चों का एक ग्राम्य खेल, फुर्रा बोलबा, ब.मु.।
- फुर्राउब—(क्रिया) नोटों को हवा मे फुर्रा देना, फैलाना व उड़ाना।
- फुरसतिहा—(सं.पु.) जो काम से बिल्कुल फुरसत हो, एक दम खाली।
- फुलउब—(क्रिया) पानी में कपड़ा भिगोना, वस्त्र गीत करना।
- फुलबाउब—(क्रिया) कपड़े को पानी में गीला करवाना, भिगवाना।
- फुलाउब—(क्रिया) फुलाना, प्रषंसा करके प्रोत्साहित करना, झाड़ पर चढ़ाना।
- फुलबइया—(सं.पु.) फुलाने वाला या पानी चढ़ाने वाला।
- फुलइया—(सं.पु.) पानी से कपड़ों को भिगोने वाला व्यक्ति।
- फुलाब—(क्रिया) फूल लगना, फूल का विकसित होना, फूल जाना।
- फुलान—(विषे.) फूल लगा हुआ, फूला हुआ।
- फुलहा—(सं.पु.) फूल धातु से बने बर्तन, स्त्री.. फुलही, फूलों का बाग।
- फुलहाई—(सं.स्त्री..) काँस के धातु वाली थाली या कटोरी।
- फुलेहरा—(सं.पु.) फूलों से सजायी गई झाँकी, देवाला में बोया गया जौ-पौधा।
- फुलउरी—(सं.स्त्री..) मात्र बेसन की बनी अमिश्रित पकौड़ी या भजिया।
- फुलउटा—(ब.मु.) भ्रम पूर्ण घमण्ड, थोथा गर्व, फूला न समाना।
- फुलनी—(सं.स्त्री..) शरीर फूलने वाला एक रोग, फूलने वाली किन्तु न फलनें वाली।
- फुलिया—(सं.स्त्री..) नारी के नाक का आभूषण।
- फुलकब—(क्रिया) मुँह के पदार्थ को जीभ के सहारे उगल देना।
- फुलकँइया—(अव्य.) हलके पाँव, धीरे-धीरे चलना, दबे पाँव वाली चाल।
- फुलमन—(सं.पु.) भिगोने के लिये पानी में डाला गया अनाज।
- फुलझरिया—(सं.स्त्री..) फूल-फूलने वाली झाड़ियाँ, फूलने वाली वनस्पति।
- फुलउरिहाव—(क्रि.वि.) फुलउरी बनाने का दौर, फुलउरी।
- फुलेल—(सं.पु.) सुगंधित तेल, इत्र, अँतर, फूलों का प्ररस।
- फुलसुँघना—(ब.मु.) बहुत कम खाने के आर्थ में व्यंग्य बोधक, ब.मु.।
- फुलपन्ट—(सं.पु.) फुल पैण्ट, पैण्ट, पतलूम।
- फुलबा—(विषे.) पानी से गीला किया हुआ, भिगोया हुआ।
- फुसुन्नव—(क्रि.वि.) नाक से लम्बी साँस आवेषवस निकालना, लड़ने के लिये अकड़कर उद्यत होना, षिषकी भरकर रुदन करना।
- फुसलाउब—(क्रिया) पुचकार कर बहलाना, लेपन करके मिला-पटा लेना।
- फुहराउब—(क्रिया) गाली-गलौज करना, अष्लील गालियाँ देना।
- फुहरइया—(सं.पु.) अष्लील गाली देने वाला व्यक्ति।
- फुहुरान—(विषे.) सूखे बालों का तितिर- बितिर व अव्यवस्थित ढंग।
- फुहराब—(क्रिया) बालों का पूरे सिर में बेतरतीब फैलना।
- फुहउना—(सं.पु.) इत्र सना रुई का फूहा, कपास या रुई। फू ू
- फूँका परब—(ब.मु.) घर में धन-सम्पत्ति का शून्य हो जाना।
- फूँकब—(क्रिया) फूकना, नष्ट करना, बर्बाद होना, फूँक मारना।
- फूटा—(सं.पु.) भुना हुआ चबेना, ज्वार का प्रस्फुटित दाना।
- फूदा—(सं.पु.) घड़े के गले का फन्दा, मवेषी के गले में बधी रस्सी का गाँठ नुमा छोर।
- फूटब—(क्रिया) फूट जाना, टूट जाना, फल का विकसित होना, नयी कोपले उग आना।
- फूलब—(क्रिया) फूलना, फूल उठना, भीग जाना, सूजन हो आना।
- फूली—(सं.स्त्री..) आँख में पड़ी हुई फुड़िया, मोतिया बिन्दु से आँख में पड़ी गाँठ।
- फूल—(सं.पु.) काँसा धातु।
- फूली-फाली—(ब.मु.) एकदम मोटी-तगड़ी, गर्भवती।
- फूलब-फरब—(ब.मु.) पुष्पित एवं पल्लवित होना, विकास करना एवं बढ़ना।
- फूसड़—(सं.पु.) गुदा द्वारा बाहर निकली हुई लाल माँसपेषी, फूसड़ कढ़ब, (ब.मु.)।
- फूहर—(विषे.) बुरी-भली गाली, अष्लील एवं अभद्र, अषोभनीय एवं खराब।
- फूहा—(सं.पु.) कपास या रुई का अल्पांष, इत्रयुक्त फूहा। फे
- फेंकब—(क्रिया) फेंक देना, हटा देना, दूर भगा देना, फैला देना।
- फेंकबाउब—(क्रिया) फेंकवाना, फेकने के लिये प्रेरित करना।
- फेकइया—(सं.पु.) फेंकने वाला, फैला देने वाला।
- फेकाब—(क्रिया) धक्का से जाकर दूर गिरना।
- फेकँउआ—(विषे.) फेंकने योग्य वस्तु, फेंकते हुये शैली में।
- फेकरब—(क्रि.) स्याल का बोलना, स्याल की चीत्कार।
- फेकारे—(सं.पु.) नग्न सिर, खुले बाल, मूड़ फेकारे, ब.मु.।
- फेटा—(सं.पु.) कमर में बँधा पुरुष धोती का एक छोर, कमर में बँधा गमछा।
- फेटब—(क्रिया) तरल पदार्थों को मिलाना, फेंटकर एकाकार करना, मथ डालना।
- फेटबाउब—(क्रिया) मथवाना, फेंटकर आपस में मिलवा देना।
- फेटबइया—(सं.पु.) मथकर दो तरल पदार्थों को मिलाने वाला।
- फेटाब—(क्रि.) मिश्रित हो जाना, मथा जाना।
- फेंड़—(सं.पु.) कमर के चारों ओर का प्रक्षेत्र।
- फेनकुट—(सं.पु.) मुँह से निकला हुआ फेनदार थूक।
- फेन—(सं.पु.) दूध का फेन, पानी का फेन।
- फेनाब—(क्रिया) फेन का उभर आना, फेन उठ आना।
- फेनहा—(सं.पु.) फेन वाला दूध, जिसमें फेन उठ आया हो ऐसी वस्तु।
- फेनान—(विषे.) दूध में फेन का उभार।
- फेना—(सं.पु.) दूध, दूध का फेन, फेनयुक्त दूध।
- फेनिअर—(सं.पु.) फेनियल, फिनायल का तेल।
- फेफरी—(सं.स्त्री..) ओंठ में जमी सूखी पपड़ी, थूक सूखी स्थिति।
- फेफरिआन—(विषे.) सूखी पपड़ी जमे हुये ओंठ।
- फेफरिआब—(क्रिया) ओंठ पर फेफरी या सूखी परत का जम जाना।
- फेफरी लागब—(ब.मु.) अभाव के कारण मुँह में फेफरी जम जाना।
- फेफसा—(सं.पु.) अठोस लकड़ी, किसी वस्तु का छोटा सा कण।
- फेरब—(क्रिया) फिराना, घुमाना, लौटा देना, वापस करना, इधर से उधर कर लेना।
- फेरबाउब—(क्रि.वि.) घमवाना, लौटवाना, बदलवाना, वापस कराना, आभूषण को तपवाना।
- फेरबइया—(सं.पु.) बदलने वाला, वापस करने वाला।
- फेरि—(अव्य.) पुनः, फिर से, दुबारा।
- फेरमनिया—(क्रि.वि.) आंषिक फेर-बदल, खपड़ों का छप्पर में नया-पुराना करना।
- फेरबा—(सं.पु.) छल्लेदार सोने का एक आभूषण या अँगूठी।
- फेरी—(क्रि.वि.) दौरा, परिक्रमा, चक्कर, कई बार आना-जाना, पुनआर्गमन, पुलिंग फेरा।
- फेरीहा—(सं.पु.) फेरी करने वाला, दौरा में आने वाला।
- फेर—(अव्य.) बाद में, फिर से, पुनः।
- फेरिहौं—(क्रिया) लौटाऊँगी, बदलूँगी, वापस करूँगी। फो
- फोकला—(सं.पु.) रोटी की परत, लकड़ी का छिलका, दलहन की छिलका।
- फोकलइया—(सं.स्त्री..) दलहन की फोकली या छिलकी, दाने रहित फली।
- फोकट—(विषे.) निःषुल्क, बिना लागत की, बिना श्रम की, बिना मूल्य की।
- फोकटहा—(सं.पु.) बिना कीमत दिये वस्तु को मुफ्त में लेने वाले, अस्तित्व विहीन आदमी, निर्धन एवं दरिद्र व्यक्ति।
- फोक्का—(सं.पु.) कंघी की हुई बालों का उठाव, बालों में लगा फीते का फूल।
- फोक्क पचीस—(ब.मु.) खाली हाथ हो जाना, स्तर विहीन, शून्य उपलब्धि।
- फोक्कस—(सं.पु.) सजा-धजा बनावटी चेहरा, ताम-झाम नुमा सौन्दर्य।
- फोंका—(सं.पु.) एक गदेली भर अन्न की मात्रा, इस अवधि में।
- फोंकिआउब—(क्रिया) गदेली में अनाज लेकर मुँह में फाँक लगाना।
- फोंकिबइया—(सं.पु.) गदेली से अनाज का फाँका मारने वाला।
- फोदहटि—(सं.स्त्री..) परेषानी युक्त उलझन, आपत्ति युक्त कार्य।
- फोफली—(सं.स्त्री..) जिसके सारे दाँत टूट गये हों, पुलिंग फोफला।
- फोफलब—(सं.पु.) जिसके दाँत टूटने से गाल चिपक गये हों।
- फोर—(ब.मु.) दौड़-धूप करना, जोर कसना, अथक प्रयास करना।
- फोरब—(क्रिया) फोड़ना या तोड़ना, मन मोटाव करा देना, फूट डालना।
- फोरबाउब—(क्रिया) किसी से चोट पहुँचवाना, फोड़वाना।
- फोरबइया—(सं.पु.) फोड़ने वाला, मतभेद डालने वाला, फूट डालने वाला।
- फोरे-फारे—(अव्य.) तोड़ने-फोड़ने से, ऐन- केन-प्रकारेण ढंग से।
- फोरिया—(सं.स्त्री..) फुड़िया व फुंसी, पुलिंग फोरा।
- फोहा—(सं.पु.) खुली अँगुली की मुष्टिका।
- फोहाका—(सं.पु.) खुली अँगुली की गदेली- प्रहार से उत्पन्न ध्वनि।
- फोहकिआउब—(क्रिया) खुली हथेली से पीठ पर प्रहार करना।
- फोह-फोह—(अव्य.) जल्दी-जल्दी खुली हथेली के प्रहार से उत्पन्न आवाज। ब
- बइतब—(क्रिया) पाँव की नस का इधर-उधर हो जाना, पाँव का मोच जाना।
- बइहाब—(क्रिया) भाव-विभोर के कारण पगला जाना।
- बइहा—(सं.पु.) झक्की एवं मूडी मिजाज का व्यक्ति, अर्द्ध रूप से विक्षिप्त प्रवृत्ति वाला।
- बइहरा—(सं.स्त्री..) हवा, वायु, समीर, रीति एवं प्रचलन।
- बइठव—(क्रिया) आसन ग्रहण करना, बैठ जाना, दीवाल का धंस जाना, उभरे फोड़े का दब जाना, चुनाव में प्रत्याषी का निष्क्रिय हो जाना।
- बइठाउब—(क्रि.) किसी को बैठाना, मोचे पाँव की हड्डी को सही जगह कर देना।
- बइठइया—(सं.पु.) हमेषा बैठे रहने वाला, बैठने वाला आदमी।
- बइठोल—(सं.पु.) जो काम न करके हमेषा बैठा रहता हो, अपंग एवं असमर्थ, पत्नी के पास मायके में रहने-बसने वाला।
- बइगन—(सं.पु.) बन्टी फल वाले टमाटर के पौध, भाँटा।
- बइठकी—(सं.स्त्री..) बैठने की छोटी सी चटाई, छोटे आकार की आँसनी।
- बइरी—(सं.पु.) दुष्मन, बैर करने वाला, अनभल सोचने वाला।
- बइरबाछी—(सं.पु.) समस्या उत्पन्न कर देने वाला, अड़चन डालने वाला।
- बइर—(सं.स्त्री..) बेर, एक वनस्पति फल।
- बइकलाब—(क्रिया पगला जाना, पागल बन जाना, देखकर सुध-बुध खो देना।
- बइकल—(विषे. एकदम पागल, मूर्ख एवं पगला।
- बइकलान—(विषे.) पगलाया हुआ, पागलपन से ग्रसित।
- बइकलिया—(सं.स्त्री..) पगली या पागल नारी, पुलिंग बइकलहा।
- बइकलबाउब—(क्रिया) पगलवा देना, किसी को भ्रमित करवा देना।
- बइकलही—(ब.मु.) पागलपन सवार हो जाना, ना समझी का घेर लेना।
- बइँता—(सं.पु.) बायां हाथ, बांये हाथ से प्रमुख कार्य करने वाला।
- बइसखही—(सं.स्त्री..) बैसाख महीने में होने वाली ककड़ी या फल।
- बइना—(सं.पु.) विवाहोपरान्त विदाई में दी गई परम्परागत पूड़ी व मिठाई।
- बइला—(सं.पु.) बैल, बरदा।
- बइजहाइ बइजहाई—(सं.स्त्री..) गर्भवती नारी के मरने से तैयार पिषाचनी।
- बइया—(सं.स्त्री..) बड़ी बहन, बहन के लिये ग्राम्य उद्बोधन।
- बइपारी—(सं.पु.) व्यापरी, लाद-व्यापार करने वाला।
- बइझुकहा—(सं.पु.) अर्ध रूप से विक्षिप्त, झटका आने पर झूल जाने वाला।
- बइझुक—(सं.पु.) झक्की मिजाज का, मूड़ी एवं झक्की प्रवृत्ति का व्यक्ति।
- बइझुकाब—(क्रिया) अर्ध पागल सा होना, विक्षिप्त होना।
- बउरिआब—(क्रिया) पागल हो जाना, घमण्ड में चूर हो जाना।
- बउरिआन—(विषे.) पागलपना से ओत-प्रोत एवं ग्रसित।
- बउरही—(सं.स्त्री..) जो बाउर हो, जो गूंगी हो ऐसी नारी।
- बउराही—(सं.स्त्री..) पागलपन, पागलपना सवार हुई स्थिति।
- बउँकब—(क्रिया) हाथ बढ़ाकर पकड़ना, पकड़कर हाथ से ले लेना।
- बउकबाउब—(क्रिया) हाथ से बढ़ाकर किसी के हाथ में पकड़ाना या देना।
- बउकाँब—(सं.पु.) पहुँच या पकड़ में होना, नजदीक वस्तु का होना।
- बउकबइया—(सं.पु.) हाथ बढ़ाकर दूर रखी वस्तु को पकड़ने वाला।
- बउगरिआब—(क्रिया) गीली जमीन का हवा से हल्की-हल्की सूख जाना।
- बउसिआब—(क्रिया) प्रदर्षनकारी शौक-शान करना, शौक चढ़ना।
- बउराउब—(क्रिया) किसी को पगलवा देना, किसी को इतना भरना कि आतुर बना देना।
- बउरबइया—(सं.पु.) पगलवा देने वाले, मूर्ख बना देने वाले लोग।
- बउजड़—(विषे.) एकदम जड़ एवं सठ प्रवृत्ति का, किसी का कहना न मानने वाला।
- बउरी—(सं.स्त्री..) बाउर प्रवृत्ति की नारी, पुलिंग बउरा, जो न बोलता हो।
- बउराब—(क्रिया) पागल हो जाना, सुध-बुध खो देना, नषा चढ़ जाना।
- बँउड़ी—(सं.स्त्री..) वृक्षों में लिपटने वाली एक लता जो रस्सी के विकल्प में प्रयुक्त होती है।
- बउँड़ब—(क्रि.) गिल्ली की तरह कठिन पेड़ में भी चढ़ जाना, लिपट जाना।
- बउखर—(विषे.) जलवृष्टि के पष्चात् आकाषीय वातावरण का खुल जाना।
- बउगर—(विषे.) हवा में सूखी हुई गीली जमीन की स्थिति, चावल के पके दाने का अलग-अलग रहने की दषा।
- बउली—(सं.स्त्री..) बावड़ी, चौड़े आकार का कूप या जलाषय।
- बउछार—(सं.स्त्री..) वर्षा के पानी के छींटे।
- बउरि—(सं.स्त्री..) बौर, आम्र की बौर।
- बउड़ाउब—(क्रिया) लता को सहारा देकर अग्रेषित करवाना।
- बउड़बइया—(सं.पु.) पेड़ पर चढ़ने वाला आदमी, वृक्ष पर लिपटकर बढ़ने वाला।
- बउल—(सं.स्त्री..) बौर, लता।
- बक—(योजक) बल्कि, नहीं तो फिर, या तो फिर, या फिर।
- बकुरब—(क्रिया) बड़े मुष्किल से स्वर फूटना, दबी जुबान बोलना।
- बकसोठिल—(विषे.) कच्चे अमरूद का स्वाद, अरहर की पत्ती का स्वाद।
- बकसीस—(सं.स्त्री..) परितोषिक, आषीष के साथ प्रदत्त राषि या वस्तु।
- बकसाँइध—(सं.पु.) कसैलानुमा गन्ध आना।
- बकउड़ा—(सं.पु.) बकौड़, पलास की जड़ के रेषे।
- बकोटा—(सं.पु.) पाँचों उँगुलियों से एक बार में उठाई गई वस्तु की मात्रा।
- बकलेल—(विषे.) मन्द अकल वाला, कान न देखकर कौए के पीछे दौड़ने वाला।
- बकचोद—(विषे.) अक्ल से कमजोर, ना समझ, मूर्ख मिजाज का।
- बकचोदहा—(सं.पु.) जिसकी बुद्धि पथरायी हो, बिना दिमाग का आदमी।
- बकचोदी—(सं.स्त्री..) नारियों के लिये एक अभद्र गाली।
- बकटोंटब—(क्रिया) रोक-टोक करना, टोक देना।
- बकतब—(क्रिया) कलपते रहना, बड़बड़ाना, कलपना।
- बकचेंचर—(विषे.) कम चतुर चालाक, अर्ध बुद्धि वाला व्यक्ति।
- बकतन्नी—(सं.स्त्री..) टेढ़ी-मेढ़ी एवं मुड़ी हुई हंसिया।
- बकताउब—(सं.पु.) तड़फड़ाते हुये जीने वाला व्यक्ति।
- बक्कबिक्क—(अव्य.) निरर्थक बकवास, जो मुँह में आये बोलना।
- बकबकाब—(क्रिया) अनाप-सनाप बोलते रहना, निरर्थक बड़बड़ाना।
- बकबकइया—(सं.पु.) अपने आप अनावष्यक बातें बोलते रहनें वाला।
- बकबास—(क्रिया) अर्थहीन बहस, जिस चर्चा का कोई औचित्य न हो।
- बकचन्दी—(ब.मु.) दुर्भाग्य पूर्ण कुसमय का घेरा, बकचन्दी चढ़ब, ब.मु.।
- बकुला—(सं.पु.) तालाब में रहने वाला श्वेत पक्षी, बगुला।
- बकुली—(सं.स्त्री..) हुकदार छड़ी।
- बकसाब—(क्रिया) अरहर के पौध का अफलित होना, फूल व पत्तों का सिकुड़ जाना।
- बकरबिकिर—(अव्य.) जो मुँह में आये निरर्थक बातें बोलते रहना।
- बकाइन—(सं.स्त्री..) वह पौध जिसके छिलके से रस्सी बनाई जाती है।
- बकेन—(सं.स्त्री..) बच्चा विहीन लगती गाय व भैंस एक वर्ष पूर्व प्रजनित दुधारू पषु।
- बकसुआ—(सं.स्त्री..) बेल्ट में लगी हुई लोहे की क्लिप।
- बकी—(सं.स्त्री..) नोटों में लगने वाली एक दीमक, कागजों का घुन।
- बक्सा—(सं.पु.) पेटी, सन्दूक या बड़ा सा बाक्स।
- बखर—(सं.पु.) जुताई के बाद ढेलों को समतल व जुताई करने वाला कृषि उपकरण।
- बखोरब—(क्रिया) वार्ता के बीच में ही टोक देना, तर्क-वितर्क करना।
- बखरी—(सं.स्त्री..) किसान का चारों तरफ से बना कच्चा किन्तु बड़ा घर।
- बखारी—(सं.स्त्री..) घर के भीतर अनाज रखने का बनाया गया पात्र।
- बखिया—(सं.स्त्री..) सिलाई, के धागों, टाँका, दो टाँकों के बीच की दूरी।
- बखिआउब—(क्रिया कपड़े की सिलाई करना, सिलाई की बखिया चलाना।
- बखान—(क्रिया) यषोगान, बड़ाई, तारीफ, वर्णन एवं व्याख्या।
- बखेड़ा—(क्रि.वि.) झंझटनुमा वार्ता, आपत्तिदायी वार्ता या समस्या।
- बखरिहा—(सं.पु.) बड़ी बखरी में रहने वाला, जिसकी बखरी मषहूर हो।
- बखरबाउब—(क्रिया) खेत में बखर चलवाना, बखर से जुताई करवाना।
- बगराउब—(क्रिया) फैलाना, प्रचारित करना, शोर कर देना, फैला देना।
- बगरब—(क्रिया) फैल जाना, हवा उड़ जाना, बात का प्रचार-प्रसार हो जाना।
- बगबाउब—(क्रिया) घुमाना, बगवाना, रिष्तेदारों को साथ-साथ भ्रमण कराना।
- बगबइया—(सं.पु.) बागने-घूमने वाला, भ्रमण करते रहने वाला।
- बगाउब—(क्रिया) घुमाना, भ्रमण कराना, चक्कर कटवाना।
- बगबू—(क्रिया) घूमोगी, टहलोगी, भ्रमण करोगी, क्या घूमो-फिरोगी?
- बगजा—(सं.पु.) जलेबी के आकार का ग्राम्य व्यंजन, बिना फल की सिकुड़ी अरहर की फूल- पत्तियाँ।
- बगजाब—(क्रिया) अरहर की फूल-पत्तियों का सिकुड़कर फल न देना, बगजा खाने की इच्छा होना।
- बगजान—(विषे.) अरहर की खेती को अफलित हुर्ह स्थिति।
- बगनउरा—(क्रि.वि.) बिना मतलब की घुमाई, भ्रमण कार्य।
- बगई—(सं.स्त्री..) एक प्रका