:: पुं [य] तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष, अन्तस्थ यकार (प्राप्र; प्रामा)।

 :: अ [च] १ हेतु-सुचक अव्यय (धर्मसं ३८५)। २ देखो च=अ (ठा ३, १; ८; पउम ९, ८४; १५, २; श्रा १२; आचा; रंभा; कम्म २, ३३; ४, ९; १०; देवेन्द्र ११; प्रासू २७)।

°य :: देखो °ज (आचा)।

°य :: वि [°द] देनेवाला (औप; राय; जीव ३)।

यउणा :: देखो जँउणा (संक्षि ७)।

°यंच :: सक [अञ्च्] १ गमन करना। २ पूजा करना। संकृ. °यंचिय (ठा ५, १ — पत्र ३००)।

°यंत :: वि [यत] प्रयत्‍नशील, उद्योगी; 'अ-यंते' (सूअ २, २, ६३)।

°यंद :: देखो चंद (सुपा २२९)।

°यक्क :: देखो चक्क; 'दिसा-यक्कं' (पउम ९, ७१)।

°यड :: देखो तड=तट (गउड)।

°यण :: देखो जण=जन (सुर १, १२१)।

यणद्दण :: (अप) देखो जणद्दण; 'तो वि ण देउ यणद्दणउ गोअरीहोइ मणस्सु' (पि १४ टि)।

°यण्ण :: देखो कण्ण=कर्ण (पउम ६९, २८)।

°यत्तिअ :: वि [यात्रिक] यात्रा करनेवाला, भ्रमण करनेवाला; 'सगडसएहि दिसायत्तिएहि' (उवा; बृह १)।

यदावि :: अ [यद्यपि] अभ्युपगम-सूचक अव्यय, स्वीकार-द्योतक निपात (पंचा १४, ३९)।

यन्नोवइय :: देखो जण्णोवईय (उप ६४८ टी)।

यम :: देखो जम=यम; 'दो अस्सा दो यमा' (ठा २, ३ — पत्र ७७)।

°यर :: देखो कर=कर (गउड)।

°यल :: देखो तल=तल (उवा)।

या :: देखो जा=या; 'सुरनारगा य सम्मद्दिट्ठी जं यंति सुरमणुएसु' (विसे ४३१; कुमा ८, ८)।

याण :: सक [ज्ञा] जानना। याणइ, याणाइ, याणेइ, याणंति, याणामो, याणिमो (पि ५१०; उव; भग; वर्मवि १७; वै ६३; प्रासू १०२)।

याण :: देखो जाण=यान (सम २)।

°याल :: देखो काल (पउम ६, २४३)।

याव :: (अप) देखो जाव=यावत् (कुमा)।

°यावदट्ठ :: वि [यावदर्थ] यथेष्ट, जितने की आवश्यकता हो उतना (दस ५, २, २)।

°युत्त :: देखो जुत्त=युक्त; 'एयम् अयुत्तं जम्हा' (अज्झ १६७; रंभा)।

येव, येव्व :: (पै. मा) देखो एव (पि ९०; ९५)।

य्‌चिण, य्‌चिश्‍च :: /?/(मा) (पै) देखो चिठ्ठ=स्था। य्‌चि- शदि (शाकारी भाषा) (प्राकृ १०५)। य्‌चिश्तदि (पै) (प्राकृ १२६)।[]

य्येव :: (शौ) देखो एव (हे ४, २८०)।

य्येव्व :: देखो येव (पि ९५)।

 :: पुं [र] मूर्ध-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष (सिरि १९६; पिंग)। °गण पुं [°गण] छन्दः शास्त्र-प्रसिद्ध मध्य-लघु अक्षरवाले तीन स्वरों का समुदाय (पिंग)।

 :: अ. पाद-पूरक अव्यय (हे २, २१७; कुमा)।

 :: अ [दे] निश्चय-सूचक अव्यय (दसनि १, १५२)।

रइ :: स्त्री [रति] १ काम-क्रीड़ा, सुरत, मैथुन (से १, ३२; कुमा)। २ कामदेव की स्त्री (कुमा)। ३ प्रीति, प्रेम, अनुराग (कुमा; सुपा ५११)। ४ कर्म-विशेष (कम्म २, १०)। ५ भगवान् पद्मप्रभ की मुख्य शिष्या (पव ८)। ६ पुं. भूतानन्द नामक इन्द्र का एक सेनापति (इक)। °अर, °कर वि [°कर] १ रति-जनक (गा ३२६)। २ पुं. पर्वत- विशेष (पण्ह १, ५; ठा १०; महा)। °कीला स्त्री [°क्रीडा] काम-क्रीडा (महा)। °केलि स्त्री [°केलि] वही अर्थ (काप्र २०१)। °घर न [°गृह] सुरत-मन्दिर, विलास-गृह (पि ३६६ ए)। °णाह, °नाह पुं [°नाथ] कामदेव (कुमा; सुर ६, ३१)। °पहु पुं [°प्रभु] वही अर्थ (कुमा)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] किन्नर नामक इन्द्र की एक अग्र- महिषी (इक; ठा ४, १ — पत्र २०४)। °प्पिय पुं [°प्रिय] १ कामदेव (सुपा ७५)। २ एक इन्द्र। ३ किन्नर देवों की एक जाति (राज)। °प्पिया स्त्री [°प्रिया] वानव्यन्तरों के इन्द्र-विशेष की एक अग्र-महिषी (णाया २ — पत्र २५२)। °भवण न [°भवन] कामक्रीडा-गृह (महा)। °मंत वि [°मत्] १ राग-जनक। २ पुं. कागदेव, कन्दर्प (तंदु ४६)। °मंदिर न [°मन्दिर] शयन- गृह (पाअ)। °रमण पुं [°रमण] कामदेव (सुपा ४; २८९; कप्पू)। °लंभ पुं [°लम्भ] १ सुरत की प्राप्ति। २ कामदेव (से ११, ८)। °वइ पुं [°पति] कामदेव (कुमा; सुपा २९२)। °।वद्धि स्त्री [°वृद्धि] विद्या-विशेष (पउम ७, १४४)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] एक राज-कन्या (उप ७२८ टी)। °सूहव पुं [°सुभग] कामदेव (कुमा)। °सेणा स्त्री [°सेना] किन्नरेन्द्र की एक अग्र-महिषी (इक; ठा ४, १ — पत्र २०४)। °हर न [°गृह] शयन-गृह, सुरतमन्दिर (उप ६४८ टी, महा)।

रइ :: पुं [रवि] सूर्य, सूरज (गा ३४; से १, १४; ३२; कप्पू)।

रइअ :: वि [रचित] बनाया हुआ, निमिंत (सुर ४, २४४; कुमा; औप; कप्प)।

रइअ :: वि [रचित] महल आदि की पीठ- भित्ति (अणु १५४)।

रइआव :: सक [रचय्] बनवाना। संकृ. रइआविअ (ती ३)।

रइगेल्ल :: वि [दे] अभिलषित (दे ७, ३)।

रइगेल्ली :: स्त्री [दे] रति-तृष्णा (दे ७, ३)।

रइज्जंत :: देखो रय=रचय्।

रइलक्ख :: न [दे] जघन, नितम्ब (दे ७, १३; षड्)।

रइलक्ख :: न [दे.रतिलक्ष] रति-संयोग, मैथुन (दे ७, १३)।

रइल्लिय :: वि [रजस्वल] रज से युक्त, रजवाला (पि ५९५)।

रइवाडिया :: देखो राय-वाडिआ; 'सामिय रइवाडियासमओ' (सिरि १०९)।

रईसर :: पुं [रतीश्वर] कामदेव, कन्दर्प (कुमा)।

रउताणिया :: स्त्री [दे] रोग-विशेष, पामा, खुजली (सिरि ३०९)।

रउद्द :: देखो रोद्द=रौद्र; 'रउद्दखुद्देहिं अखोह- णिज्जो' (यति ४२; भवि)।

रउरव :: वि [रौरव] भयंकर, घोर। °काल पुं [°काल] माता के उदर में पसार किया जाता समय-विशेष; 'नवमासहिं नियकुक्खहिं धरियउ पुणु रउरवकालहो नीसरियउ' (भवि)।

रउस्सल :: वि [रजस्वल] रजो-युक्त, धुलि-युक्त (भग ७, ७ — पत्र ३०५)।

रओं :: देखो रय=रजस् (पिंड ६ टी; सण)।

रंक :: वि [रङ्क] गरीब, दीन (पिंग)।

रंखोल :: अक [दोलय्] १ झूलना। १ हिलना, चलना, काँपना। रंखोलइ (हे ४, ४८; वज्जा ६४)।

रंखोलिय :: वि [दोलित] कम्पित (गउड)।

रंखोलिर :: वि [दोलितृ] झूलनेवाला (गउड; कुमा; पाअ)।

रंग :: अक [रङ्ग्] इधर-उधर चलना । वकृ. रंगंत (कप्प; पउम १०, ३१, पण्ह १, ३ — पत्र ५५)।

रंग :: सक [रङ्गय्] रँगना। कर्म. रंगिज्जइ (संबोध १७)। वकृ. 'रायगिहं वरनयरं वर- नय-रंगत-मंदिरं अत्थि' (कुम्मा १८)।

रंग :: वि [राङ्ग] रँगा हुआ, रंग कर बनाया हुआ (दसनि २, १७)।

रंग :: न [दे] राँग, राँगा, धातु-विशेष, सीसा (दे ७, १; से २, २९)।

रंग :: पुं [रङ्ग] १ राग, प्रेम (सिरि ५१५)। २ नाट्यशाला, प्रेक्षा-भूमि (पाअ; सुपा १, कुमा)। ३ युद्ध-मण्डप, जय-भूमि (धर्मसं ७८३)। ४ संग्राम, लड़ाई (पिंग)। ५ रक्त वर्ण, लाली (से २, २९)। ६ वर्ण, रँग (भवि)। ७ रँगना, रंजन, रँग चढाना (गउड)। °अ वि [°द] कुतृहल-जनक (से ९, ४२)। °।वलि स्त्री [°आवलि] रंगोली (चउप्पन्‍न° पत्र ३२९ गा ७१४)।

रंगण :: न [रङ्गन] १ राग, रँगना। २ पुं. जीव, आत्मा (भग २०, २ — पत्र ७७६)।

रंगिर :: वि [रङ्गितृ] चलनेवाला (सुपा ३)।

रंगिल्ल :: वि [रङ्गवत्] रँगवाला (उर ६, २)।

रंज :: सक [रञ्जय्] १ रँग लगाना। २ खुशी करना। रंजए, रंजेइ (वज्जा १३६; हे ४, ४९)। कर्म. रंजिज्जइ (महा)। वकृ.रंजंत (संवे ३)। संकृ. रंजिऊण (पि ५८६)। कृ. रंजियव्व (आत्महि ६)।

रंजग :: वि [रञ्जक] रञ्‍जन करनेवाला (रंभा)।

रंजण :: न [रञ्जन] १ रँगना (विसे २९६१)। २ खुशी करना; 'परचित्तरंजणे' (उप ९८६ टी; संवे ५)। ३ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)। ४ वि. खुशी करनेवाला, रागजनक (कुमा)।

रंजण :: पुं [दे] १ घड़ा, कुम्भ (दे ७, ३)। २ कुण्डा, पात्र-विशेष (दे ७, ३, पाअ)।

रंजविय, रंजिअ :: वि [रञ्जित] राग-युक्त किया हुआ (सण; से ६; ४८; गउड; महा; हेका २७२)।

रंडा :: स्त्री [रण्डा] राँड़, विधवा (उप पृ ३१३, वज्जा ४४, कप्पू, पिंग)।

रंढुअ :: न [दे] रज्जु, रस्सी; गुजराती में 'राढवु' (दे ७, ३)।

रंध :: सक [रध, राधय्] राँधना, पकाना। 'रंधो राधयते: स्मृत; ' रंधइ (प्राकृ ७०), रंधेहि (स २४९)। वकृ. रंधंत (णाया १, ७ — पत्र ११७)। संकृ. रंधिऊण (कुप्र २०५)।

रंध :: न [रन्ध्र] छिद्र, विवर (गा ९५२; रंभा; भवि)।

रंधण :: न [रन्धन, राधन] रांधना; पचन, पाक (गा १४; पव ३८; सूअनि १२१ टीं, सुपा १२; ४०१)। °घर न [°गृह] पाक- गृह (रयण ३१)।

रंधण :: न [रन्धन] पाक-गृह, रसोईघर (आचा २, १०, १४)।

रंप :: सक [तक्ष्] छिलना, पतला करना। रंपइ (हे ४, १९४; प्राकृ ६५; षड्)।

रंपण :: न [तक्षण] तनू-करण, पतला करना (कुमा)।

रंफ :: देखो रंप। रंफइ, रंफए (हे ४, १९४; षड्)।

रंफण :: देखो रंपण (कुमा)।

रंभ :: सक [गम्] जाना, गति करना। रंभइ (हे ४, १६२), रंभंति (कुमा)।

रंभ :: देखो रंफ। रंभइ (धात्वा १४९)।

रंभ :: सक [आ+रभ्] आरम्भ करना। रंभइ (षड्)।

रंभ :: पुं [दे] अन्दोलन-फलक, हिडोले का तख्ता (दे ७, १)।

रंभा :: स्त्री [रम्भा] १ कदली, केला का गाछ (सुपा २५४; ६०५; कुप्र ११७; पाअ)। २ देवांगना-विशेष, एक अप्सरा (सुपा २५४; रयण ५)। ३ वैरोचन नामक बलीन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ५, १ — पत्र ३०२; णाया २ — पत्र २५१)। ४ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, ८)।

रक्ख :: सक [रक्ष्] रक्षण करना, पालन करना। रक्खइ (उव; महा)। भूका. रक्खीअ (कुमा)। वकृ. रक्खंत (गा ३८; औप; मा ३७)। कवकृ. रक्खीअमाण (नाट — मालती २८)। कृ. रक्ख, रक्खणिज्ज, रक्खियव्व, रक्खेयव्व (से ३, ५; सार्ध १००; गउड; सुपा २४०)।

रक्ख :: पुंन [रक्षस] राक्षस (पाअ; कुप्र ११३; सुपा १३०, सट्ठि ९ टी; संबोध ४४)।

रक्ख :: वि [रक्ष] १ रक्षक, रक्षा करनेवाला (उप पृ ३६८; कप्प)। २ पुं. एक जैन मुनि (कप्प)।

रक्ख :: देखो रक्ख=रक्ष्।

रक्खअ, रक्खग :: वि [रक्षक] रक्षण-कर्ता (नाट — मालवि ५३; रंभा; कुप्र २३३; सार्ध ९९)।

रक्खण :: न [रक्षण] रक्षा, पालन (सुर १३, १६७; गउड, प्रासू २३)।

रक्खणा :: स्त्री [रक्षणा] ऊपर देखो (उप ८५०; स ९९)।

रक्खणिया :: स्त्री [दे] रखी हुई स्त्री, रखेलिन, रखनी, रखात (सुपा ३८३)।

रक्खवाल :: वि [दे] रखवाला, रक्षा करनेवाला (महा)।

रक्खस :: पुं [राक्षस] १ देवों की एक जाति (पण्ह १, ४ — पत्र ६८)। २ विद्याधर-मनुष्यों का एक वंश (पउम ५, २५२)। ३ वंश-विशेष में उत्पन्न मनुष्य, एक विद्याधरजाति; 'तेणं चिय खयराणं रक्खसनामं कयं लोए' (पउम ५, २५७)। ४ निशाचर, क्रव्याद (से १५, १७; नाट — मृच्छ १३२)। ५ अहोरात्र की तीसवाँ मुहूर्त्त (सम ५१; सुज्ज १०, १३)। °उरी स्त्री [°पुरी] लंका नगरी (से १२, ८४)। °णअरी स्त्री [°नगरी] वही अर्थ (से १२, ७८)। °णाह पुं [°नाथ] राक्षसों का राजा (से ८, १०४)। °त्थ न [°।स्त्र] अस्त्र-विशेष (पउम ७१, ६३)। °दीव पुं [°द्वीप] सिंहल द्वीप (पउम ५, १२६)। °नाह देखो °णाह (पउम ९, ३६)। °वइ पुं [°पति] राक्षसों का मुखिया (पउम ५, १२३; से ११, १)। °।हिव पुं [°।धिप] वही अर्थ (से १५, ७८; ९१)।

रक्खसिंद :: पुं [राक्षसेन्द्र] राक्षसों का राजा (पउम १२, ४)।

रक्खसी :: स्त्री [राक्षसी] १ राक्षस की स्त्री (नाट — मृच्छ २३८)। २ लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

रक्खसेंद :: देखो रक्खसिंद (से १२, ७७)।

रक्खा :: स्त्री [रक्षा] १ रक्षण, पालन (श्रा १०; सूपा १०३; ११३)। २ राख, भस्म; 'सो चंदणं रक्खकए दहिज्जा' (सत्त २८; सुपा ६५७)।

रक्खिअ :: वि [रक्षित] १ पालित (गउड; गा ३३३)। २ पुं. एक प्रसिद्ध जैन महर्षि (कप्प; विसे २२८८)।

रक्खिआ :: देखो रक्खसी (रंभा १७)।

रक्खी :: स्त्री [रक्षी] भगवान् अरनाथ की मुख्य साध्वी (सम १५२; पव ८)।

रक्खोवग :: वि [रक्षोपग] रक्षण में तत्पर (राय ११३)।

रगिल्ल :: [दे] देखो रइगेल्ल (षड्)।

रग्ग :: देखो रत्त=रक्त (हे २, १०; ८९; षड्)।

रग्गय :: न [दे] कुसुम्भ-वस्त्र (दे ७, ३, पाअ; गउड)।

रघुस :: पुं [रघुष] हरिवंश का एक राजा (पउम २२, ९९)।

रच्च :: अक [दे. रञ्ज‍्] राचना, आसक्त होना, अनुराग करना। रच्चइ, रच्‍चंति, रच्‍चेह (कुमा; वज्जा ११२)। कर्म. 'रत्ते रच्‍चिज्जए जम्हा' (कुप्र १३२)। वकृ. रच्चंत (भवि)। प्रयो. रच्‍चावंति (वज्जा ११२)।

रच्चण :: न [दे. रञ्जन] १ अनुराग। २ वि. अनुराग करनेवाला, राचनेवाला (कुमा)।

रच्चिर :: वि [दे. रञ्जितृ] राचनेवाला (कुमा)।

रच्छा :: देखो रक्खा (रंभा १६)।

रच्छा :: स्त्री [रथ्या] मुहल्ला (गा ११९; औप; कस)।

रच्छामय :: पु [दे. रथ्यामृग] णवान, कुत्ता (दे ७, ४)।

रज :: देखो रय = रजस् (कुमा)।

रजक, रजग :: पुंस्त्री [रजक] धोबी, कपड़ा धोने का धन्धा करनेवाला (श्रा १२; दे ५, ३२) । स्त्री. ° की (दे १, ११४)।

रजय :: देखो रयय = रजत (इक)।

रज्ज :: अक [रञ्ज‍्] १ अनुराग करना, आसक्त होना । २ रँगाना, रँग-युक्त होना । रज्‍जइ (आचा; उव), रज्‍जह (णाया १, ८ — पत्र १४८)। भवि. रज्‍जिहिति (औप) । वकृ. रज्जंत, रज्जमाण (से १०, २०; णाया १, १७; उत्त २९, ३) । कृ. रज्जियव्व (पण्ह २. ५ — पत्र १४९)।

रज्ज :: न [राज्य] १ राज, राजा का अधिकृत देश । २ शासन, हुकूमत (णाया १, ८; कुमा; दं ४७; भग, प्रारू) । °पालिया स्त्री [°पालिका] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)। °वइ पुं [°पति] राजा (कप्प) । °सिरी स्त्री [°श्री] राज्य-लक्ष्मी (महा) । °।हिसेय पुं [°।भिषेक] राजगद्दी पर बैठाने का उत्सव (पउम ७७, ३६)।

रज्जव :: पुंन. नीचे देखो; ‘खररज्‍जवेसु बद्धा’ (पउम ३९, ११३)।

रज्‍जु :: स्त्री [रज्‍जु] १ रस्सी (पाअ; उवा) । २ एक प्रकार की नाप; ‘चउदसरज्‍जू लोगो’ (पव १४३)।

रज्‍जु :: वि [दे] लेखक, लिखने का काम करनेवाला (कप्प) । °सभा स्त्री [°सभा] १ लेखक-गृह । २ शुल्क-गृह, चूँगी-घर ; ‘हत्थि- पालस्स रन्नो रज्‍जुसभाए’ (कप्प)।

रज्झिय :: देखो रहिअ = रहित; ‘अरज्झिया- भितावा तहवी तविति’ (सूअ १, ५, १, १७)।

रट्ठ :: न [राष्ट्र] देश, जनपद (सुपा ३०७; महा)। °उड, °कूड पुं [°कूट] राज-नियुक्त प्रतिनिधि, सूबेदार (विपा १, १ टी — पत्र ११; विपा १, १ — पत्र ११)।

रट्ठिअ :: वि [राष्ट्रिय] १ देश-सम्बन्धी । २ पुं. नाटक की भाषा में राजा का साला (अभि १९४)।

रट्ठिअ :: पुं [राष्ट्रिक] देश की चिन्ता के लिए नियुक्त राज-प्रतिनिधि, सूबेदार (पण्ह १, ५ — पत्र ९४)।

रड :: अक [रट्] १ रोना। २ चिल्लाना। रडइ (भवि)। वकृ. रडंत (हे ४, ४४५; भवि)।

रडण :: न [रटन] चिल्लाहट, चीख (पिंड २२५)।

रडिय :: न [रटित] १ रुदन, रोना (पण्ह २, ५)। २ आवाज करना, शब्द-करण; 'परहुय- वहूय रडियं कुहूकुहूमहु रसद्देण' (रंभा)। ३ चिल्लाना, चीख (णाया १, १-पत्र ६३)। ४ वि. कलहायित, झगड़ालू, झगड़ाखोर; 'कलहाइअं रडिअं' (पाअ)।

रडरडिय :: न [रटरटित] शब्द-विशेष, वाद्य- विशेष की आवाज (सुपा ५०)।

रड्ड :: वि [दे] खिसक कर गिरा हुआ, गुजराती में 'रडेलुं' (कुप्र ४५६)।

रड्डा :: स्त्री [रड्डा] छन्द-विशेष (पिंग)।

रण :: पुंन [रण] १ संग्राम, लड़ाई (कुमा; पाअ)। २ पुं. शब्द, आवाज (पाअ)। °खंभउर न [°स्तम्भपुर] अजमेर के समीप का एक प्राचीन नगर; 'रणखंभउरजिणहरे चडाविया कणयमयकलसा' (मुणि १०९०१)।

रणक्कार :: पुं [रणत्कार] शब्द-विशेष (गउड)।

रणझण :: अक [रणझणाय्] 'रन् झन्' आवाज करना। रणझणइ (वज्जा १२८)। वकृ. रणझणंत (भवि)।

रणझणिर :: वि [रणझणायितृ] 'रन् झन्' आवाज करनेवाला (सुपा ६४१; धर्मवि ८८)।

रणरण :: अक [रणरणाय्] 'रन् रन्' आवाज करना। वकृ. रणरणंत (पिंग)।

रणरण, रणरणय :: पुं [दे. रणरणक] १ निःश्‍वास, नीसास; 'अइउण्हा रणरणया दुप्पेच्छा दूसहा दुरालोया' (वज्जा ७८)। २ उद्वेग, पीड़ा, अधृति; 'गरुयपियसंगमासा- भंससमुच्छलियरणरणाइन्‍नं' (सुर ४, २३०; पाअ)। ३ उत्कण्ठा, औत्सुक्य (दे १, १३६; गउड; रुक्मि ४८; संवे २)।

रणरणाय :: देखो रणरण=रणरणाय्। वकृ. रणरणायंत (पउम ९४, ३९)।

रणिअ :: न [रणित] शब्द, आवाज (सुर १, २४८)।

रणिर :: वि [रणितृ] आवाज करनेवाला (सुपा ३२७; गउड)।

रण्ण :: न [अरण्य] जंगल, अटवी (हे १, ६६; प्राप्र; औप)।

रत्त :: पुं [रक्त] १ लाल वर्ण, लाल रंग। २ कुसुंभ। ३ वृक्ष-विशेष, हिज्जल का पेड़ (हे २, १०)। ४ न. कुंकुम। ५ ताम्र, ताँबा। ६ सिंदूर। ७ हिंगुल। ८ खून, रुधिर। ९ राग (प्राप्र)। १० वि. रँगा हुआ (हेका २७२)। ११ लाल रँगवाला (पाअ)। १२ अनुराग-युक्त (ओघ ७५७; प्रासू १५५; १६०)। °कंबला स्त्री [°कम्बला] मेरु पर्वत के पण्डक वन में स्थित एक शिला, जिसपर जिनदेवों का अभिषेक किया जाता है (ठा २, ३ — पत्र ८०)। °कूड न [°कूट] शिखर-विशेष (राज)। °कोरिंटय पुं [°कुरण्टक] वृक्ष-विशेष (पउम ५३, ७९)। °क्ख, °च्छ वि [°।क्ष] १ लाल आँखवाला (राज; सुर २, ६)। स्त्री. °च्छी (ओघभा २२ टी)। २ पुं. महिष, भैंसा (दे ७, १३)। °ट्ठ पुं [°।र्थ] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४४)। °धाउ पुं [°धातु] कुण्डल पर्वत का एक शिखर (दीव)। °पड पुं [°पट] परिव्राजक, संन्यासी (णाया १, १५ — पत्र १९३)। °प्पवाय पुं [°प्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७३)। °प्पह पुं [°प्रभ] कुण्डल-पर्वत का एक शिखर (दीव)। °रयण न [°रत्न] रत्न की एक जाति; पद्म-राग मणि (औप)। °वई स्त्री [°वती] एक नदी (सम २७; ४३; इक)। °वड देखो °पड (सुख ८, १३)। °सुभद्दा स्त्री [°सुभद्रा] श्रीकृष्ण की एक भगिनी (पण्ह १, ४ — पत्र ८५)। °।सोग, °।सोय पुं [°।शोक] लाल अशोक का पेड़ (णाया १, १; महा)।

°रत्त :: पुं [°रात्र] रात, निशा (जी ३४)।

रत्तग :: देखो रत्त=रक्त (महा)।

रत्तंदण :: न [रक्तचन्दन] लाल चन्दन (सुपा १८१)।

रत्तक्खर :: न [दे] सीधु, मद्य-विशेष (दे ७, ४)।

रत्तच्छ :: पुं [दे] १ हंस। २ व्याघ्र (७, १३)।

रत्तडि :: (अप) देखो रत्ति=रात्रि (पि ५९९)।

रत्तय :: न [दे. रक्तक] बन्घूक वृक्ष का फूल (दे ७, ३)।

रत्ता :: स्त्री [रक्ता] एक नदी (सम २७; ४३, इक)। °वइप्पवाय पुं [°वतीप्रपात] द्रह- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७३)।

रत्ति :: स्त्री [दे] आज्ञा. हुकुम (दे ७, १)।

रत्ति :: स्त्री [रात्रि] रात, निशा (हे २, ७९; कुमा; प्रासू ९०)। °अंधय वि [°अन्धक] रात को नहों देख सकनेवाला (गा ६६७; हेका २६)। °अर वि [°चर] १ रात में विहरनेवाला। २ पुं. राक्षस (षड्)। °दिवह न [°दिवस] रात-दिन, अहर्निश (पि ८८)। देखो राइ=रात्रि।

रत्तिंचर :: देखो रत्ति=अर (धर्मवि ७२)।

रत्तिंदिअह :: न [रात्रिदिवस] रात-दिन, अहनिश, निरन्तर (अच्चु ७८)।

रत्तिंदिय, रत्तिंदिव :: न [रात्रिन्दिव] ऊपर देखो (पउम ८, १६४; ७५, ८५)।

रत्तिंध :: वि [रात्र्यन्ध] जो रात में न देख सकता हो वह (प्रासू १७५)।

रत्तीअ :: पुं [दे] नापित, हजाम (दे ७, २; पाअ)।

रत्तुप्पल :: न [रक्तोत्पाल] लाल कमल (पण्ह १, ४)।

रत्तोआ :: स्त्री [रक्तोदा] एक नदी (इक)।

रत्तोप्पल :: देखो रत्तुप्पल (नाट — मृच्छ १४५)।

रत्था :: देखो रच्छा (गा ४०; अंत १२; सुर १, ६६)।

रद्ध :: वि [रद्ध, राद्ध] राँधा हुआ, पक्‍व (पिंड १६५; सुपा ६३६)।

रद्धि :: वि [दे] प्रधान, श्रेष्ठ (दे ७, २)।

रन्न :: वि रण्ण (सुपा ४०१; कुमा)।

रप्प :: सक [आ+क्रम्] आक्रमण करना। रप्पइ (प्राकृ ७३)।

रप्फ :: पुं [दे] वल्मीक, गुजराती में 'राफडो' (दे ७, १; पाअ)। २ रोग-विशेष; 'करि कंपु पायमूलिसु रप्फय' (सण)।

रप्फडिआ :: स्त्री [दे] गोधा, गोह (दे ७, ४)।

रब्बा :: वि [दे] राब, यवागू (श्रा १४; उर २, १२; धर्मवि ४२)।

रभस :: देखो रहस=रभस (गा ८७२; ८९४; ९३४)।

रम :: अक [रम्] १ क्रीड़ा करना। २ संभोग करना। रमइ, रमए, रमंते, रमिज्ज, रमेज्जा (कुमा)। भवि. रमिस्सदि, रमिहिइ (कुमा)। कर्म. रमिज्जइ (कुमा)। वकृ. रमंत, रम- माण (गा ४४; कुमा)। संकृ. रमिअ, रमिउं, रमिऊण, रंतूण (हे २, १४६, ३, १३६; महा; पि ३१२), रमेप्पि, रम्मेप्पिणु, रमेवि (अप) (पि ५८८)। हेकृ. रमिउं (उप पृ ३८)। कृ. रमिअव्व (गा ४६१), देखो रमणिज्ज, रमणीअ, रम्म। प्रयो. रमावेंति (पि ५५२)।

रमण :: न [रमण] १ क्रीडा, क्रीडन। २ सुरत, संभोग, रति-क्रीड़ा (पव ३८; कुमा; उप पृ १८७)। ३ स्मर-कूपिका, योनि (कुमा)। ४ पुं. जघन, नितम्ब (पाअ)। ५ पति, वर, स्वामी (पउम ५१, १६; पिंग)। ६ छन्द-विशेष (पिंग)।

रमणिज्ज :: वि [रमणीय] १ सुन्दर; मनोहर, रम्य (प्राप्र; पाअ; अभि २००)। २ न. एक देव-विमान (सम १७)। ३ पुं. नन्दीश्‍वर द्वीप के मध्य में उत्तर दिशा की ओर स्थित एक अञ्‍जन-गिरि (पव २६९ टी)। ४ एक विजय, प्रान्त-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)।

रमणी :: स्त्री [रमणी] १ नारी, स्त्री (पाअ; उप पृ १८७; प्रासू १५५; १८०)। २ एक पुष्करिंणी (इक)।

रमणीअ :: वि [रमणीय] रम्य, मनोरम (प्राप्र; स्वप्‍न ४०; गउड; सुपा २५५; भवि)।

रमा :: स्त्री [रमा] लक्ष्मी; श्री (कुम्मा ३)।

रमिअ :: देखो रम।

रमिअ :: वि [रत] १ क्रीडित, जिसने क्रीडा की हो वह (कुमा ४, ५०)। २ न. रमण, क्रीड़ा (णाया १, ९ — पत्र १६५; कुमा; सुपा ३७६; प्रासू ६५)।

रमिअ :: वि [रमित] रमाया हुआ (कुमा ३, ८९)।

रमिर :: वि [रन्तृ] रमण करनेवाला (कुमा)।

रम्म :: वि [रम्य] १ मनोरम, रमणीय, सुन्दर (पाअ; से ९, ४७; सुर १, ६९; प्रासू ७१)। २ पुं. विजय-विशेष, एक प्रान्त (ठा २, ३ — पत्र ८०)। ३ चम्पक का गाछ (से ९, ४७)। ४ न. एक देव-विमान (सम १७)।

रम्मग, रम्मय :: पुं [रम्यक] १ एक विजय, प्रान्त- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)। २ एक युगलिक-क्षेत्र, जंबू-द्वीप का वर्ष-विशेष (सम १२; ठा २, ३ — पत्र ६७; इक)। ३ न. एक देव-विमान (सम १७)। ४ पर्वत- विशेष का एक कूट (जं ४)।

रम्ह :: देखो रंफ। रम्हइ (प्राकृ ६५)।

रय :: सक [रज्] रँगना, 'नो धोएजा, नो रएज्जा, नो धोयरत्ताइं वत्थाइं धारेज्जा' (आचा)।

रय :: सक [रचय्] बनाना, निर्माण करना। रयइ, रएइ (हे ४, ९४; षड्; महा)। कवकृ. रइज्जंत (से ८, ८७)।

रय :: पुंन [रजस्] १ रेणु, धूल (औप; पाअ; कुप्र २१)। २ पराग, पुष्प-रज (से ३, ४८)। ३ सांख्य-दर्शन में उक्त प्रकृति का एक गुण (कुप्र २१)। ४ बव्यमान कर्म (कुमा ७, ५८; चेइय ६२२; उव)। °त्ताण न [°त्राण] जैन मुनि का एक उपकरण (ओघ ६६८; पण्ह २, ५ — पत्र १४८)। °स्सला स्त्री [°स्वला] ऋतुमती स्त्रो (दे १, १२५)। °हर पुंन [°हर] जैन मुनि का एक उपकरण (संबोध १५)। °हरण न [°हरण] वही अर्थ (णाया १, १; कस)।

रय :: वि [रत] १ अनुरक्त, आसक्त (औप; उव; सुर १, १२; सुपा ३०६; प्रासू १६६)। २ स्थित (से ९, ४२)। ३ न. रति-कर्म, मैथुन (सम १५; उव; गा १५५; स १८०; वज्जा १००; सुपा ४०३)।

रय :: पुं [रय] वेग (कुमा; से २, ७; सण)।

रय :: देखो रव (पउम ११४, १७)।

रयग :: देखो रयय=रजक (श्रा १२; सुपा ५८८)।

रयण :: न [रजन] रँगना; रँग-युक्त करना (सूअ १, ९, १२)।

रयण :: वि [रचन] करनेवाला, निर्माता; ‘चेडीसचितारयणु’ (सण)।

रयण :: पुं [रदन] दाँत, दशन (उप ९८६ टी; पाअ; काप्र १७२; नाट शकु १३)।

रयण :: पुंन [रत्‍न] १ माणिय आदि बहुमूल्य पत्थर, मणि; ‘दुवे रयणा समुप्पन्ना’ (निर १, १; उप ५६३; णाया १, १; सुपा १४७; जी ३; कुमा; हे २, १०१) २ श्रेष्ठ, स्वजाति में उत्तम (राग २६; कुमा ३, ४७); ‘तहवि हु चद-सरिच्छा विरला रय- णायरे रयणा’ (वज्‍जा १५६) ३ छ छन्द-विशेषन्द- विशेष (पिंग) ४ द्वीप-विशेष ( णाया १, ९; पउम ५५, १७) ५ पर्वत-विशेष का एक कूट (ठा ४, २; ८) ६ पुं. ब. रत्‍न- द्वीप का निवासी (पउम ५५, १७) °उर न [°पुर] नगर-विशेष (सण)। °चित्त पुं [°चित्र] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, १५)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप- विशेष (णाया १, ९ — पत्र १६५) । °निहि पुं [°निधि] समुद्र, सागर (सुपा ७, १२९)। °पुढवी स्त्री [°पृथिवी] पहली नरक-भूमि, रत्‍नप्रभा नामक नरक-पृथिवी (स १३२)। °पुर देखो °उर (कुप्र ६; महा; सण)। °प्पभा, °प्पहा स्त्री [°प्रभा] १ पहली नरक-भूमि (ठा ७ — पत्र ३८८; औप; भग) २ भीम नामक राक्षसेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ रत्‍न का तेज (स १३३) °मय वि [°मय] रत्‍नों का बना हुआ (महा) । °माला स्त्री [°माला] छन्द-विशेष (अजि २४) । °मालि पुं [°मालिन्] विद्याधर-वंश में उत्पन्न नमि- राज का एक पुत्र (पउम ५, १४) । °मुस वि [°मुप्] रत्‍नों को चुरानेवाला (षड्)। °रह पुं [°रथ] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, १४) । °रासि पुं [°राशि] समुद्र (प्रारू) । °वइ पुं [°पति] रत्‍नों का मालिक, धनी, श्रीमंत (सुपा २९९) । °वई स्त्री [°वती] एक रानी (रयण ३) । °वज्‍ज पुं [°वज्र] विद्याधर-वंशीय एक राजा (पउम ५, १४) । °वह वि [°वह] रत्‍न-धारक (गउड १०७१)। °संचय न [°संचय] १ रुचक पर्वत का कूट (इक) २ एक नगर (इक; सुर ३, २०) °संचया स्त्री [°संचया] १ मंगलावती नामक विजय की राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०) २ ईशा- नेन्द्र की वसुन्धरा-नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (इक) °समया स्त्री [°समया] मंगलावती नामक विजय की एक राजधानी (इक)। °सार पुं [°सार] १ एक राजा (राज) २ एक शेठ का नाम (उप ७२८ टी) °सिंह पुं [°सिंह] एक जैन आचार्य, संवेगचूलिकाकुलक कर्त्ता (संवे १२) । °सिंह पुं [°शिख] एक राजा (उप १०३१ टी) । °सेहर पुं [°शेखर] १ एक राजा (रयण ३) २ विक्रम की पनरहवीं शताब्दी में विद्यमान एक जैन आचार्य और ग्रंथकार (सिरि १३४०) °।अर, °।गर पुं [°।कर] १ रत्‍न की खान (षड्) २ समुद्र (पाअ; सुपा ३७; प्रासू ६७; णाया १, १७ — पत्र २२८) °।भा स्त्री [°।भा] देखो °प्पभा (उत्त ३६, १५७) । °।मय देखो °मय (महा; औप) °।यरसुअ पुं [°।करसुत] १ चन्द्रमा । २ एक वणिक्-पुत्र (श्रा १६) °।वलि, °।वली स्त्री [°।वलि, °।वली] १ रत्‍नों का हार (सम्म २२) २ तप-विशेष अंत २५) । ३ ग्रन्थ-विशेष (दे ८, ७७) ४ एक विद्याधर-राजकन्या (पउम ९, ५२) °।वह न [°।वह] नगर-विशेष (महा)। °।सव पुं [°।स्रव] रावण का पिता (पउम ७, ५९; ७१) °।सवसुअ पुं [°स्रवसुत] रावण (पउम ८, २२१) । °।हिय वि [°।धिक] ज्‍येष्ठ, अवस्था में बड़ा (राज)।

रयणप्पभिय :: वि [रात्‍नप्रभिक] रत्‍नप्रभा- संबन्धी (पंच २, ६९)।

रयणा :: स्त्री [रचना] निर्माण, कृति (उत्त १५, १८; चेइय ८६६; सुपा ३०४; रंभा)।

रयणा :: स्त्री [रत्‍ना] रत्‍नप्रभा नामक नरक- भूमि (पव १७५)।

रयणि :: पुंस्त्री [रत्‍नि] एक हाथ की नाप, बद्ध- मुष्टि हाथ का परिमाण (कस; पव ५८; १७६)।

रयणि :: स्त्री [रजनि] देखो रयणी = रजनी (णाया १, २ — पत्र ७९; कप्प) । °अर पुं [°चर] १ राक्षस (से १०, ६६; पाअ) °अर, °कर पुं [°कर] चन्द्रमा (हे १, ८ टि; कप्प) । °णाह, °नाह पुं [°नाथ] चन्द्रमा (पाअ; सुपा ३३) । °भत्त न [°भक्त] रात्रि में खाना (सुपा ४९५)। °रमण पुं [°रमण] चन्द्रमा (सण)। °रमण पुं [°वल्लभ] चन्द्रमा (कप्पू)। °विराम पुं [°विराम] प्रातःकाल, सुबह (पाअ)।

रयणिंद :: पुं [रजनीन्द्र] चन्द्रमा (सण)।

रयणिद्धय :: न [दे] कुमुद, कमल (दे ७, ४; षड्)।

रयणी :: स्त्री [रत्‍नी] देखो रयणि = रत्‍नि (ठा १; सम १२; जीवस १७७; जी ३३; औप)

रयणी :: स्त्री [रजनी] १ रात्रि, रात (पाअ; प्रासू १३६; कुमा) २ ईशानेन्द्र के लोकपाल की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ चमरेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ५, १ — पत्र ३०२) ४ मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७ — पत्र ३९३) ५ षड्ज ग्राम की एक मुर्च्छना; ‘मंगी कोरव्वीया हरी य रय- तणी (? सणी) सारकंता य’ (ठा ७ — पत्र ३९३) °भोअण न [°भोजन] रात में खाना (श्रा २०) । °सार न [°सार] सुरत, मैथुन (से ३, ४८)। देखो रयणि = रजनि (हे १, ८)।

रयणी :: स्त्री [रजनी] औषधि-विशेष — १ पिंडदारु । २ हरिद्रा, हलदी (उत्तनि ३)

रयणुच्यय, रयणोच्चय :: पुं [रत्‍नोच्चय] १ मेरु-पर्वत (सुज्ज ५ टी — पत्र ७७; इक) २ कूट-विशेष (इक)

रयणोच्चया :: स्त्री [रत्‍नेच्चया] वसुगुप्ता नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (इक)

रयत, रयद, रयय :: न [रजत] १ रूप्य, चाँदी (णाया १, १ — पत्र ६६; प्राकृ १२; प्राप्र; पाअ; उवा; औप) २ एक देव- विमान (देवेन्द्र १३१) ३ हाथी का दाँत । ४ हार, माला । ५ सुवर्ण, सोना । ६ रुधिर, खून । ७ शैल, पर्वत । ८ धवल वर्ण । ९ शिखर-विशेष । १० वि. सफेद. वर्णवाला, श्वेत (प्राकृ १२; प्राप्र; हे १; १७७; १८०; २०९) °गिरि पुं [°गिरि] पर्वत-विशेष (णाया १, १; औप) । °वत्त न [°पात्र] चाँदी का बरतन (गउड)। °।मय वि [°मय] चाँदी का बना हुआ (णाया १, १ — पत्र ५४; पि ७०)

रयय :: पुं [रजक] धोबी (स २८६; पाअ)।

रयवली :: स्त्री [दे] शिशत्व, बाल्य (दे ७, ३)।

रयवाडी :: देखो राय-वाडिआ (सिरि ७५८)।

रयाव :: सक [रचय्] बनवाना, निर्मण कराना । रयावेइ, रयाविति, रयावेह (कप्प)। संकृ. रयावेत्ता (कप्प)।

रयाविय :: वि [रचित] बनवाया हुआ (स ४३५)।

रल्‍ला :: स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकाँगनी (दे ७, १)।

रल्लि :: पुंस्त्री [दे] लम्बा मधुर शब्द (माल ९०)।

रव :: सक [रु] १ कहना, बोलना । २ वघ करना । ३ गति करना । ४ अक. रोना । ५ शब्द करना; ‘सुद्धं रवति परिसाए’ (सूअ १, ४, १, १८), रवइ (हे ४, २३३; संक्षि ३३)। वकृ. रवंत, रवेंत (णाया १, १ — पत्र ६५; पिंग; औप)

रव :: सक [रावय्] बुलवाना, आह्‍वान करना । वकृ. रवेंत (औप)।

रव :: सक [दे] आर्द्र करना। भवि — रवेहिइ (णंदि)।

रव :: पुं [रव] १ शब्द, आवाज (कप्प; महा; सण; भवि) २ वि. मधुर शब्दवाला; ‘रवं अलसं कलमंजुलं’ (पाअ)

रव :: /?/(अप) देखो रय = रजस् (भवि)।

रवँण, रवण :: (अप) देखो रमण (भवि)।

रवण :: न [रवण] आवाज करना, ‘पच्चासन्ने य करेणुया सया रवणसीला आसी’ (महा)।

रवण्ण, रवन्न :: (अप) देखो रम्म = रम्य (हे ४, ४२२; भवि)।

रवय :: पुं [दे] मन्थान-दण्ड, विलोने की लकड़ी. गुजराती में ‘रवैयो’ (दे ७, ३)।

रवरव :: अक [रोरूय्] १ खूब आवाज करना । २ बारंबार आवाज करना । वकृ. रवरवंत (औप)

रवि :: वि [रविन्] आवाज करनेवाला (से २, २९)।

रवि :: न [रवि] १ सूर्य, सुरज (से २, २९; गउड; सण) २ राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६२) ३ श्रर्क वृक्ष, आक का पेड़ (हे १, १७२) °तेअ पुं [°तेजस्] १ इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ४) २ राक्षस वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, २६५) °तेया स्त्री [°तेजा] एक विद्या (पउम ७, १५१)। °नंदण पु [°नन्दन] शनि-ग्रह (श्रा १२)। °प्पभ पुं [°प्रभ] वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ६८) । °भत्ता स्त्री [°भक्ता] एक महौषधि (ती ५) । °भास पुं [°भास] खड्ग-विशेष, सूर्यहास खड्ग (पउम ५५, २६) । °वार पुं [°वार] दिन-विशेष, रविवार (कुप्र ४११) । °सुअ पुं [°सुत] १ शनिश्चर ग्रह (से ८, २८; सुपा ३९) २ रामचन्द्र का एक सेनापति, सुग्रीव (से १५, ५९) °हास पुं [°हास] सूर्यहास खड्ग (पउम ५३, २७)।

रविगय :: न [रविगत] जिसपर सूर्य हो वह नक्षत्र (वव १)।

रविय :: वि [दे] आर्द्र किया हुआ, भिजाया हुआ (विसे (१४५६)।

रव्वारिअ :: पुं [दे] दूत, संदेश-हारक, ‘जेण अवज्झो रव्वारिओ त्ति’ (सुपा ४२८)।

रस :: सक [रस्] चिल्लाना, आवाज करना । रसइ (गा ४३६) । वकृ. रसंत (सुर २, ७४; सुपा २७६)।

रस :: पुंन [रस] १ जिह्वा का विषय — मधुर, तिक्त आदि; ‘एगे रसे’, ‘एवं गंधाइं रसाइं फासाइं’ (ठा १०-पत्र ४७१; प्रासू १७४) २ स्वभाव, प्रकृति (से ४, ३२) ३ साहित्य- शास्त्र-प्रसिद्ध श्रंगार आदि नव रस (उत्त १४, ३२; धर्मवि १३; सिरि ३९) ४ जल, पानी (से २, २७; धर्मवि १३) ५ सुख (उत्त १४, ३१) ६ आसक्ति, दिलचस्पी (सत्त ५३; गउड) ७ अनुराग, प्रेम (पाअ) ८ सद्य आदि द्रव पदार्थ (पराह १, १; कुमा) ९ पारद, पारा (निचू १३) १० भुक्त अन्न का प्रथम परिणाम, शरीरस्थ धातु-विशेष (गउड) ११ कर्म-विशेष (कम्म २, ३१) १२ छन्दःशास्त्र-प्रसिद्ध प्रस्तार- विशेष (पिंग) १३ माधुर्य आदि रसवाला पदार्थ (सम ११; नव २८)। °नाम न [°नामन्] कर्म-विशेष (सम ६७)। °न्न वि [°ज्ञ] रस का जानकार (सुपा २६१)। °भेइ वि [°भेदिन्] रसवाली चीजों का भेल-सेल करनेवाला (पउम ७५, ५२)। °मंत वि [°वत्] रस-युक्त (भग, ठा ५, ३ — पत्र ३३३)। °वई स्त्री [°वती] रसोई (सुपा ११)। °।ल, °।लु वि [°वत्] रसवाला (हे २, १५९; सुख ३, १)। °।वण पुं [°।पण] मद्य की दूकान (पव ११२)

रस :: पुंन [रस] निष्यन्द, निचोड़, सार (दसनि ३, १९)।

रसण :: न [रसन] जिह्वा, जीभ (पण्ह १, १ — पत्र १३; आचा)।

रसणा :: स्त्री [रसना] १ मेखला, कांची (पाअ; गउड; से १, १८) २ जिह्वा, जीभ (पाअ)। °ल वि [°वत्] रसनावाला (सुपा ५५६)

रसद्द :: न [दे] चुल्ली-मूल, चूल्हे का मूल भाग (दे ७, २)।

रसा :: स्त्री [रसा] पृथिवी, घरती (हे १, १७७; १८०; कुमा)।

रसाउ :: पुं [दे. रसायुष्] भ्रमर, भौंरा (दे ७, २; पाअ)।

रसाय :: पुं [दे] ऊपर देखो (दे ७, २)।

रसायण :: न [रसायन] वैद्यक-प्रसिद्ध औषध- विशेष (विपा १, ७; प्रासू १६२; भवि)।

रसाल :: पुं [रसाल] आम्र-वृक्ष, आम का गाछ (सम्मत्त १७३)।

रसाला :: स्त्री [दे. रसाला] मार्जिता, पेय- विशेष (दे ७, २; पाअ)।

रसालु :: पुं [दे.रसालु] मज्जिका, राज- योग्य पाक-विशेष-दो पल घी, एक पल मधु, आधा आढक दही, बीस मिरचा तथा दस पल चीनी या गुड़ से बनता पाक (ठा ३, १ — पत्र ११८; सुज्ज २० टी; पव २५९)।

रसि :: देखो रस्सि (प्राकृ २६)।

रसिअ :: वि [रसिक] १ रसज्ञ, रसिया, शौकीन (से १, ९) २ रस-युक्त, रसवाला (सुपा २६; २१७; पउम ३१, ४६)

रसिअ :: वि [रसित] १ रस-युक्त, रसवाला (पव २) २ न. शब्द, आवाज (गउड; पण्ह १, १)

रसिआ :: स्त्री [दे.रसिका] १ पूय, पीब, व्रण से निकलता गंदा सफेद खून, गुजराती में 'रसी' (श्रा १२; विपा १, ७; पण्ह १, १) २ छन्द-विशेष (पिंग)

रसिंद :: पुं [रसेन्द्र] पारद, पारा (जी ३; श्रु १५८)।

रसिग :: देखो रसिअ=रसिक (पंचा २, ३४)।

रसिर :: वि [रसितृ] आवाज करनेवाला (सण)।

रसोइ :: (अप) देखो रस-वई (भवि)।

रस्सि :: पुंस्त्री [रश्मि] १ किरण, 'भरहं समा- सियाओ आइच्चं चेव रस्सीओ' (पउम ८०, ६४; पाअ; प्राप्र) २ रस्सी, रज्जु (प्रासू ११७)

रह :: अक [दे] रहना। रहइ, रहए, रहेइ (पिंग; महा; सिरि ८६३), रहसु, रहह (सिरि ३५५; ३५३)।

रह :: सक [रह्] त्यागना, छोड़ना (कप्पू; पिंग)।

रह :: पुं [रभस] उत्साह, 'पुणो पुणो ते स-रहं दुहेंति' (सूअ १, ५, १, १८)। देखो रहस=रभस।

रह :: पुंन [रहस्] १ एकान्त, निर्जन; 'तत्थ रहो ति आगच्छ' (कुप्र ८२), 'लहु मे रहं देसु' (सुपा १७४; वज्जा १५२) २ प्रच्छन्न, गोप्य (ठा ३, ४)

रह :: पुंन [रथ] १ यान-विशेष, स्यन्दन; 'धम्मस्स निव्वाणपहे रहाणि' (सत्त १८, पाअ; कुमा) २ पुं. एक जैन महर्षि (कप्प)। °कार पुं [°कार] रथ-निर्माता, वर्धकि, बढ़ई (सुपा ४४४; कुप्र १०४; उव)। °चरिया स्त्री [°चर्या] रथ को हाँकना; 'ईसत्थसत्थरहचरियाकुसलो' (महा)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] उत्सव-विशेष (सुपा ५४१; सुर १६, १९; सिरि ११७५)। °णेउर न [°नूपुर] नगर-विशेष (पउम २८, ७; इक)। °णेउरचक्कवाल न [°नूपुर- चक्रवाल] वैताढ्य पर्वत पर स्थित एक नगर (पउम ५, ६४; इक)। °नेमि पुं [°नेमि] भगवान् नेमिनाथ का भाई (उत्त २२, ३९)। °नेमिज्ज न [°नेमीय] उत्तरा- घ्ययन सूत्र का बाइसवाँ अध्ययन (उत्त २२)। °मुसल पुं [°मुसल] भारतवर्ष की एक प्राचीन लड़ाई, राजा कोणिक और राजा चेटक का संग्राम (भग ७, ९)। °यार देखो °कार (पाअ)। °रेणु पुं [°रेणु] एक नाप, आठ त्रसरेणु का एक परिमाण (इक)। °वीरउर, °वीरपुर न [°वीरपुर] एक नगर (राज; विसे २५५०)

रहइं :: अ [रभसा] वेग से (स ७६२)।

रहंग :: पुंस्त्री [रथाङ्ग] १ चक्रवाक पक्षी, चकवा (पाअ; सुर ३, २४७, कुमा)। स्त्री. °गी (सुपा ४६८; सुर १०, १८५, कुमा) २ न. चक्र, पहिया (पाअ)

रहट्ट :: देखो अरहट्ट (गा ४९०; पि १४२)।

रहण :: न [दे] रहना, स्थिति, निवास (धर्मवि २१; रयण ६)।

रहण :: न [रहन] १ त्याग। २ विरति, विराम; 'रसरहणं' (पिंग)

रहमाण :: पुं [दे] १ यवन मत का एक तत्त्व-वेत्ता (मोह १००) २ खुदा, अल्ला, परमेश्‍वर (ती १५)

रहस :: पुं [रभस] १ औत्सुक्य, उत्कण्ठा (कुमा) २ वेग। ३ हर्ष। ४ पूर्वापर का अविचार (संक्षि ७; गउड)

रहस :: देखो रहस्स=रहस्य; 'रहसाभक्खाणे' (उवा, संबोध ४२; सुपा ४५४)।

रहसा :: अ [रभसा] वेग से (गउड)।

रहस्स :: वि [रहस्य] १ गुह्य, गोपनीय (पाअ; सुपा ३१८) २ एकान्त में उत्पन्‍न, एकान्त का (हे २, २०४) ३ न. तत्त्व, तात्पर्य, भावार्थ (ओघ ७६०; रंभा १९) ४ अपवाद- स्थान (बृह ६)

रहस्स :: वि [ह्नस्व] १ लघु, छोटा (विपा १, ८ — पत्र ८३) २ एक मात्रावाला स्वर (उत्त २९, ७२)

रहस्स :: न [ह्नास्व] १ लाघव, छोटाई। °मंत वि [°वत्] लघु, छोटा (सूअ २, १, १३)

रहस्सिय :: वि [राहसिक] प्रच्छन्‍न, गुप्त (विपा १, १ — पत्र ५)।

रहाविअ :: वि [दे] स्थापित, रखवाया हुआ (हम्मीर १३)।

रहि :: वि [रथिन्] १ रथ से लड़नेवाला योद्धा (उप ७२८ टी) २ रथ को हाँकनेवाला (कुप्र २८७; ४६०; धर्मवि १११)

रहिअ :: वि [रथिक] उपर देखो, 'रहिएहि महारहिणो' (उप ७२८ टी; पण्ह २, ४ — पत्र १३०; धर्मवि २०)।

रहिअ :: वि [रहित] परित्यक्त, वर्जित, शून्य (उवा, दं ३२)।

रहिअ :: वि [रहित] एकाकी, अकेला (वव १)।

रहिअ :: वि [दे] रहा हुआ, स्थित (धर्मवि २२)।

रहु :: पुं [रघु] १ सूर्य वंश का एक स्वनाम-ख्यात राजा (उत्तर ५०) २ पुं. ब. रघु- र्वश में उत्पन्‍न क्षत्रिय (से ४, १६) ३ पुं. श्रीरामचन्द्र; 'ताहे कयंतसरिसी देइ रहु रिवुबले दिठ्ठी' (पउम ११३, २१) ४ कालिदास-प्रणीत एक संस्कृत काव्य-ग्रन्थ (गउड) °आर पुं [°कार] रघुवंश नामक संस्कृत काव्य-ग्रन्थ का कर्त्ता, कवि कालिदास (गउड)। °णाह पुं [°नाथ] १ श्रीरामचन्द्र (से १४, १६; पउम ११३, ५५) २ लक्ष्मण (से १४, ६२) °तणय पुं [°तनय] वही अर्थ (से २, १; १४, २६)। °तिलय पुं [°तिलक] श्रीरामचन्द्र (सुपा २०४)। °त्तम पुं [°उत्तम] वही अर्थ (पउम १०२, १७९)। °पुंगव पुं [°पुङ्गव] वही (से ३, ५; हे २, १८८; ३, ७०)। °सुअ पुं [°सुत] वही (से ५, १६)।

रहो° :: देखो रह=रहस् (कप्प; औप)। °कम्म न [°कर्मन्] एकान्त-व्यापार (ठा ९ — पत्र ४६०)।

रा :: सक [रा] देना, दान करना। राइ (धात्वा (१४९)।

रा :: अक [रै] शब्द करना, आवाज करना। राइ (प्राकृ ६६)।

रा :: अक [ली] श्‍लेष करना, चिपकना। राइ (षड्)।

राअला :: स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकाँगनी (दे ७, १)।

राइ :: देखो रत्ति (हे २, ८८; काप्र १८९; महा; षड्)। २ चमरेन्द्र की एक अग्र- महिषी (ठा ५, १ — पत्र ३०२) ३ ईशानेन्द्र के सोम लोकपाल की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) °भत्त न [°भक्त] रात्रि-भोजन, रात में खाना (सुपा ४८५)। °भोअण न [°भोजन] वही अर्थ (सम ३९; कस)। देखो राई=रात्रि।

राइ :: स्त्री [राजि] पंक्ति, श्रेणी (पाअ; औप)। २ रेखा, लकीर (कम्म १, १९, सुपा १९७) ३ राई, राज-संर्षप, एक प्रकार का मसाला (दे ६, ८८)

राइ :: वि [रागिन्] राग-युक्त, रागवाला (दसा ६)। स्त्री. °णी (महा)।

राइ :: वि [राजिन्] शोभनेवाला (निचू १६)।

राइ° :: देखो राय=राजन् (हे २, १४८; ३, ५२; ५३; कुमा)।

राइअ :: वि [राजित] शोभित (से १, ५६; कुमा, ६, ६३)।

राइअ :: वि [रात्रिक] रात्रि-सम्बन्धी (उत्त २६, ४९; औप; पडि)।

राइआ :: स्त्री [राजिका] राई का गाछ, 'गोलाणईअ कच्छे चक्खंतो राइआइ पत्ताइं' (गा १७१ अ)। देखो राइगा।

राइंद :: पुं [राजेन्द्र] बड़ा राजा (कुमा)।

राइंदिअ :: पुं [रात्रिन्दिव] रात-दिन, अहोरात्र (भग; आचा; कप्प; पव ७८; सम २१)।

राइक्क :: वि [राजकीय] राज-सम्बन्धी (हे २, १४८; कुमा)।

राइगा :: स्त्री [राजिका] राई, राज-सरसों (कुप्र ४५)।

राइणिअ :: वि [रात्‍निक] १ चारित्रवाला, संयमी (पंचा १२, ६) २ पर्याय से ज्येष्ठ, साधुत्व-प्राप्‍ति की अवस्था से बड़ा (सम ३७; ५८; कप्प)

राइणिअ :: वि [राजकल्प] राजा के समान वैभववाला, श्रीमन्त (सूअ १, २, ३, ३)।

राइण्ण, राइन्न :: पुं [राजन्य] राजवंशीय, क्षत्रिय (सम १५१; कप्प; औप; भग)।

राइलेऊण :: संकृ. चीरकर (नंदीटिप्पनक ग्रं थिम पादलिप्‍तकथा वैनयिकी बुद्धि विषयक)।

राइल्ल :: वि [रागिन्] राग-युक्त (देवेन्द्र २७८)।

राई :: स्त्री [राजी] राइ=राजि (गउड; सुपा ३४; प्रासू ६२; पव २५९)।

राई :: स्त्री [रात्रि] देखो राइ=रात्रि (पाअ; णाया २ — पत्र १५०; औप; सुपा ४९१; कस)। °दिवस न [°दिवस] रात्रिदिवस, अहर्निश (सुपा १२७)।

राईमई :: स्त्री [राजीमती] राजा उग्रसेन की पुत्री और भगवान् नेमिनाथ की पत्‍नी (पडि)।

राईव :: न [राजीव] कमल, पद्म (पाअ; हे १, १८०)।

राईसर :: पुं [राजेश्वर] १ राजाओं के मालिक, महाराज। २ युवराज (औप; उवा; कप्प)

राउत्त :: पुं [राजपुत्र] राजपूत, क्षत्रिय (प्राकृ ३०)।

राउल :: पुं [राजकुल] १ राजाओं का यूथ, राज-समूह (कुमा; हे १, २६७; प्राप्र) २ राजा का वंश (षड्) ३ राज-गृह, दरबार; 'णं ईदिसस्स राउलस्स दूरेण पणाणो कीरदि, जत्थ बंभणावि एवं विडंबिज्जंति' (मोह ११)। देखो राओल।

राउलिय :: वि [राजकुलिक] राजकुल-सम्बन्धी (सुख २, ७)।

राउल्ल :: देखो राइक्क (प्राकृ ३५)।

राएसि :: र्पु [राजर्षि] १ श्रेष्ठ राजा। २ ऋषि-तुल्य राजा, संयतात्मा भूपति (अभि ३९; विक्र ६८; मोह ३)

राओ :: अ [रात्रौ] रात में (णाया १, १ — पत्र ६१; सुपा ४९७; कप्प)।

राओल :: देखो राउल; 'तो किंपि धणं सयणेहि विलसियं किपि वाणिपुत्तेहि। किंपि गयं राओले एस अपुत्तति भणिऊण।। (धर्मवि १४०)।

राग :: देखो राय=राग (कप्प; सुपा २४१)।

रागि :: देखो राइ=रागिन् (पउम ११७, ४१)।

राघव :: देखो राहव। °घरिणी स्त्री [°गृहिणी] सीता, जानकी (पउम ४६, ५७)।

राच, राचि° :: [चूपै. पै] देखो राय=राजन् (हे ४, ३२५; ३०४; प्राप्र)।

राज :: देखो राय=राजन् (हे ४, २६७; पि १६८)।

राजस :: वि [राजस] रजो-गुण-प्रघान, 'राज- सचितस्स पुरस्स' (कुप्र ४२८)।

राडि :: स्त्री [राटि] बूम, चिल्लाहट (सुख २, १५)।

राडि :: स्त्री [दे.राटि] संग्राम, लड़ाई (दे ७, ४)।

राढा :: स्त्री [राढा] १ विभूषा (धर्मसं १०१८; कप्पू) २ भव्यता (वज्जा १८) ३ बंगाल का एक प्रान्त। ४ बगाल देश का एक नगरी (कप्पू)। °इत्त वि [°वत्] भव्य आत्मा; 'गंजणरहिओ धम्मो राढाइत्ताण संपडइ' (वज्जा १८)। °मणि पुं [°मणि] काच-मणि (उत्त २०, ४२)

राण :: सक [वि+नम्] विशेष नमना। रामाइ (?) (धात्वा १४९)।

राण :: पुं [राजन्] राणा, राजा (चंड; सिरि ११४)।

राणय :: पुं [राजक] १ राणा, राजा (ती १५; सिरि १२३; १२५) २ छोटा राजा (सिरि ९८६; १०४०)

राणिआ, राणी :: स्त्री [राज्ञिका, °ज्ञी] रानी, राज- पत्‍नी (कुमा ३; श्रावक ९३ टी; सिरि १२५; २६७)।

राम :: सक [रमय्] रमण कराना। कृ. रामेयव्य (भत्त ८५)।

राम :: पुं [राम] १ श्री रामचन्द्र, राजा दशरथ का बड़ा पुत्र (गा ३५; उप पृ ३७५; कुमा) २ परशूराम (कुमा १, ३१) ३ क्षत्रिय परिव्राजक-विशेष (औप) ४ बलदेव, बलभद्र, वासुदेव का बड़ा भाई (पाअ) ५ वि. रमनेवाला (उप पू ३७५)। °कण्ह पुं [°कृष्ण] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (राज)। °कण्हा स्त्री [°कृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५)। °गिरि पुं [°गिरि] पर्वत- विशेष (पउम ४०, १६)। °गुत्त पुं [°गुप्त] एक राजर्षि (सूअ १, ३, ४, २)। °देव पुं [°देव] श्रीरामचन्द्र (पउम ४५, २९)। °पुत्त पुं [°पुत्र] एक जैन मुनि (अनु २)। °पुरी स्त्री [°पुरो] अयोव्या नमरी (ती ११)। °रक्खिआ स्त्री [रक्षिता] ईशानेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९; इक)

रामणिज्जअ :: न [रामणीयक] रमणीयता, सौन्दर्य (विक्र २८)।

रामा :: स्त्री [रामा] १ स्त्री, महिला, नारी (तंदु ५०; कुमा; पाअ; वज्जा १०६; उप ३५७ टी) २ नववें जिनदेव की माता (सम १५१) ३ ईशानेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९; इक) ४ छन्द-विशेष (पिंग)

रामायण :: न [रामायण] १ वाल्मीकि-कृत एक संस्कत काव्यग्रन्थ (पउम २, ११६; महा) २ रामचन्द्र तथा रावण की लड़ाई (पउम १०५, १६)

रामिअ :: वि [रमित] रमण कराया हुआ (गा ५६; पउम ८०, १९)।

रामेसर :: पुं [रामेश्र्चर] दाक्षिण भारत का एक हिन्दू-तीर्थ (सम्मत्‍त ५४)।

राय :: अक [राज्] चमकना, शोभना । रायइ (हे ४, १००) । वकृ. राय°, रायमाण (कप्प)।

राय :: देखो रा = रै । राअइ (प्राकृ ६६)।

राय :: पुं [राग] १ प्रेम, प्रीति (प्रासू १८०) २ मत्सर, द्वेष; 'न पेमराइल्ला' (देवेन्द्र २७८) ३ रँगना, रंजन। ४ वर्णन। ५ अनुराग। ६ राजा, नरपति। ७ चन्द्र, चाँद। ८ लाल वर्ण। ९ लाल रँगवाली वस्तु। १० वसन्त आदि स्वर (हे १, ६८)

राय :: पुं [राजन्] १ राजा, नर-पति, नरेश (आचा; उवा; श्रा २७; सुपा १०३) २ चन्द्र, चन्द्रमा (श्रा २७, हम्मीर ३; धर्मवि ३) ३ एक महाग्रह (सुज्ज २०) ४ इन्द्र। ५ क्षत्रिय। ६ यक्ष। ७ शुचि, पवित्र। ८ श्रेष्ठ, उत्तम (हे ३, ४९; ५०) ९ इच्छा, अभिलाषा (से १, ९) १० छन्द-विशेष (पिंग) °इअ वि [°कीय] राज-संबन्धी (प्राकृ ३५)। °उत्त पुं [°पुत्र] राज-पूत, राज कुमार (सुर ३; १९५)। °उल देखो राउल (हे १, २६७; कुमा; षड्; प्राप्र; अभि १०४)। °कीअ देखो °ईअ (नाट — शकु १०४)। °कुल देखो °उल (महा)। °केर, °क्क वि [°कीय] राज-संबन्धी (हे २, १४८; कुमा; षड्)। °गिह न [°गृह] मगध देश की प्राचीन राजधानी, जो आजकल 'राजगीर' नाम से प्रसिद्ध है (ठा १० — पत्र ४७७; उवा; अंत)। °गिहि स्त्री [°गृही] वही अर्थ (ती ३)। °चंपय पुं [°चम्पक] वृक्ष-विशेष, उत्तम चम्पक-वृक्ष (श्रा १२)। °धम्म पुं [°धर्म] राजा का कर्तव्य (नाट — उत्तर ४१)। °धाणी स्त्री [°धानी] राज- नगर, राजा का मुख्य नगर, जहां राजा रहता हो (नाट — चैत १३२)। °पत्ती स्त्री [°पत्‍नी] रानी (सुर १३, ५; सुपा ३७५)। °पसेणीय वि [°प्रश्‍नीय] एक जैन आगम- ग्रन्थ (राय)। °पह पुं [°पथ] राज-मार्ग (महा; नाट — चैत १३०)। °पिंड पुं [°पिण्ड] राजा के घर की भिक्षा — आहार (सम ३९)। °पुत्त देखो °उत्त (गउड)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (पउम १, ८)। °पुरिस पुं [°पुरुष] राजा का आदमी, राज-कर्मचारी (पउम २८, ४)। °मग्ग पुं [°मार्ग] राजपथ, सड़क (औप; महा)। °मास पुं [°माष] धान्य-विशेष, बरबटी (श्रा १८, संबोध ४३)। °राय पुं [°राज] राजाओं का राजा, राजेश्‍वर (सुपा १०७)। °रिसि देखो राएसि (णाया १, ५ — पत्र १११; उप ७२८ टी; कुमा; सण)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] वृक्ष-विशेष (औप)। °लच्छी स्त्री [°लक्ष्मी] राज-वैभव (अभि १३१; महा)। °ललिय पुं [°ललित] आठवें बलदेव के पूर्व जन्म का नाम (सम १५३)। °वट्टय न [°वार्तक] राज-संबंधी वार्त्ता-समूह (हे २, ३०)। °वल्ली स्त्री [°वल्ली] लता-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३६)। °वाडिआ, °वाडी स्त्री [°पाटिका, °पाटी] चतुरंग सैन्य-श्रम- करण, राजा की चतुर्विध सेना के साथ सवारी (कुमा; कुप्र ११९; १२०; सुपा २२२)। °सद्दूल पुं [°शार्दूल] चक्रवर्त्ती राजा, श्रेष्ठ राजा (सम १५२)। °सिट्ठि पुं [°श्रेष्ठिन्] नगर-सेठ (भवि)। °सिरी स्त्री [°श्री] राज-लक्ष्मी (से १, १३)। °सुअ पुं [°सुत] राजकुमार (कप्पू; उप ७२८ टी)। °सुअ पुं [°शुक] उत्तम तोता (उप ७२८ टी)। °सुअ पुं [°सूय] यज्ञ-विशेष; 'पिइमे- हमाइमेहे रायसुए आसमेहपसुमेहे' (पउम ११, ४२)। °सेण पुं [°सेन] छन्द-विशेष (पिंग)। °सेहर पुं [°शेखर] १ महादेव, शिव। २ एक राजा (सुपा ५२९) ३ एक कवि, कर्पूरमंजरी का कर्त्ता (कप्पू) °हंस पुंस्‍त्री [°हंस] १ उत्तम हंस पक्षी। २ श्रेष्ठ राजा (सुर १२, ३४; गा ६२४; गउड; सुपा १३६; रंभा; भवि)। स्त्री. °सी (सुपा ३३४, नाट — रत्‍ना २३) °हर न [°गृह] राजा का महल (पउम ८२, ८९; हे २, १४४)। °हाणी देखो °धाणी; (सम ८०, पउम २०, ८)। °हिराय, °।हिराय पुं [°अधिराज] राजाओं का राजा, चक्रवर्त्ती राजा (काल; सुपा १०५)। °।हिव पुं [°।घिप] वही अर्थ (सुपा १०५)।

राय :: देखो राव=राव (से ९, ७२)।

राय :: पुं [दे] चटक, गौरैया पक्षी (दे ७, ४)।

राय :: पुं [रात्र] रात्रि, रात (आचा)।

रायं :: देखो राय=राज्।

रायंछुअ, रायंबु :: पुंन [दे] १ वेतस या बेंत का पेड़ (पाअ; दे ७, १४) २ पुं. शरभ (दे ७, १४)

रायंस :: पुं [राजांस] राज-यक्ष्मा, क्षय का व्याधि (आचा)।

रायंसि :: वि [राजांसिन्] राजयक्ष्मावाला, क्षय का रोगी (आचा)।

रायगइ :: स्‍त्री [दे] जलौका, जोंक (दे ७, ५)।

रायग्गल :: पुं [राजार्गल] ज्योतिष्क ग्रह- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८)।

रायणिअ :: देखो राइणिअ=रात्‍निक (उव, ओघभा २२३)।

रायणी :: स्‍त्री [राजादनी] खिन्नी, खिरनी का पेड़ (पउम ५३, ७९)।

रायण्ण :: देखो राइण्ण (ठा ३, १ — पत्र ११४; उप ३५६ टी)।

रायनीइ :: स्‍त्री [राजनीति] राजा की शासन करने की रीति (राय ११७)।

रायमइया :: स्‍त्री [राजीमतिका] देखो राई- मई (कुप्र १)।

रायस :: देखो राजस (स ३; से ३, १५)।

रायाण :: देखो राय=राजन्; (हे ३, ५६; षड्)।

राल, रालग, रालय :: पुंन [राल, °क] घान्य-विशेष, एक प्रकार की कंगु (सूअ २, २, ११; ठा ७ — पत्र ४०५; पिंड १६२; वज्जा ३४)।

राला :: स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकाँगनी (दे ७, १)।

राव :: सक [दे] आर्द्र करना। भवि. रावेहिति (विसे २४९ टी)।

राव :: देखो रंज=रज्जय्। रावेइ (हे ४, ४९)। हेकृ. राविउं (कुमा)।

राव :: सक [रावय] पुकारना, आह्वान करना। वकृ. रावेंत (औप)।

राव :: पुं [राव] १ रोला, कलकल (पाअ) २ पुकार, आवाज (सुपा ३४८; कुमा)

रावण :: पुं [रावण] १ एक स्वनाम प्रसिद्ध लंका-पति (पि ३६०) २ गुल्म-विशेष (पण्ण १ — पत्र १२)

राविअ :: वि [रञ्जित] रँगा हुआ (दे ७, ५)।

राविअ :: वि [दे] आस्वादित (दे ७, ५)।

रास, रासग :: पुं [रास, °क] एक प्रकार का नृत्य, जिसमें एक दूसरे का हाथ पकड़कर नाचते-नाचते और गान करते-करते मंडलाकार फिरना होता है (दे २, ३८; पाअ; वज्जा १२२; सम्मत्त १४१; घर्मवि ८१)।

रासभ :: देखो रासइ (सुर २, १०२)।

रासय :: देखो रासग (सुर १, ४९; सुपा ५०; ४३३)।

रासह :: पुंस्त्री [रासभ] गर्दभ, गदहा (पाअ; प्राप्र; रंभा)। स्त्री. °ही (काल)।

रासाणंदिअय :: न [रासानन्दितक] छन्द-विशेष (अजि १२)।

रासालुद्धय :: पुं [रासालुब्धक] छन्द-विशेष (अजि १०)।

रासि :: देखो रस्सि (संक्षि १७)।

रासि :: पुं स्त्री [राशि] १ समूह, ढग, ढेर (ओघ ४०७; औप; सुर २, ५; कुमा) २ ज्योतिष्क-प्रसिद्ध मेष आदि बारह राशि (विचार १०६) ३ गणित-विशेष (ठा ४, ३)

राह :: पुं [राध] १ वैशाख मास। २ वसन्त ऋतु (से १, १३) ३ एक जैन आचार्य (उप २८५; सुख २, १५)

राह :: पुं [दे] १ दयित, प्रिय। २ वि. निरन्तर। ३ शोभित। ४ सनाथ। ५ पलित, सफेद केशवाला (दे ७, १३) ६ रुचिर, सुन्दर (पाअ)

राहअ, राहव :: पुं [राघव] १ रघुवंश में उत्पन्न (उत्तर २०) २ श्रीरामचन्द्र (से १२, २२; १, १३, ४७)

राहा :: स्त्री [राधा] १ वृन्दावन की एक प्रधान गोपी, श्रीकृष्ण की पत्‍नी (वज्जा १२२; पिंग) २ राधावेध में रखी जाती पुतली (उप पृ १३०) ३ शक्ति-विशेष। ४ कर्ण का पालन करनेवाली माता (प्राकृ ४२) °मंडव पुं [°मण्डप] जहाँ पर राधावेध किया जाय वह स्थान (सुपा २६९)। °वेह पुं [°वेध] एक तरह की वेध-क्रिया, जिसमें चक्राकार घूमती पुतली की वाम चक्षु बींधी जाती है (उप ९३५; सुपा २५५)।

राहिआ, राही :: स्त्री [राधिका] ऊपर देखो (गा ८९; हे ४, ४४२; प्राकृ ४२)।

राहु :: पुं [राहु] १ ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८; पाअ) २ कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज २०) ३ विक्रम की पहली शताब्दी के एक जैन आचार्य (पउम ११८, ११७)

राहुहय :: न [राहुहत] जिसमें सूर्य और चन्द्र का ग्रहण हो वह नक्षत्र (वव १)।

राहेअ :: पुं [राधेय] राधा-पुत्र, कर्ण (गउड)।

रि :: अ [रे] संभाषण-सूचक अब्यय (तंदु ५०; ५२ टी)।

रि :: सक [ऋ] गमन करना। कर्म. अज्जए (विसे १३६९)।

रिअ :: सक [री] गमन करना। रियइ, रियंति, रिए (सूअ २, २, २०; सुपा ४४५; उत २४, ४)। वकृ. रियंत (पउम २८, ४)।

रिअ :: सक [प्र+विश्] प्रवेश करना, पैठना। रिअइ (हे ४, १८३; कुमा)।

रिअ :: न [ऋत] १ गमन, 'पुरओ रियं सोह- माणे' (भग) २ सत्य (भग ८, ७)

रिअ :: वि [दे] लून, काटा हुआ (षड्)

रिउ :: देखो उउ (हे १, १४१; कुमा; पव १४१)।

रिउ :: वि [ऋजु] १ सरल, सीघा (सुपा ३४६) २ न. विशेष पदार्थ, सामान्य-भिन्न वस्तु (पव २७०) °सुत्त पुं [°सूत्र] नय-विशेष (विसे २२३१; २९०८)। देखो उज्जु।

रिउ :: पुं [रिपु] शत्रु, वैरी, दूश्मन (सुर २, ६९; कुमा)। °महण पुं [°मथन] राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६३)।

रिउ :: स्त्री [ऋच्] वेद का नियत अक्षर-पादवाला अंश। °व्वेय पुं [°वेद] एक वेद-ग्रंथ (णाया १, ५; कप्प)।

रिंखण :: न [रिङ्खण] सर्पण, गति, चाल (पउम २५, १२)।

रिंखि :: वि [रिङ्खिन्] चलनेवाला, 'गिद्धाव- रंखि हद्दन्नए (?गिद्धु व्व रिंखी हदन्नए)' (पिंड ४७१)।

रिंग :: देखो रिग। रिंगइ, रिंगए (हे ४, २५९ टि; षड्; पिंग)। वकृ. रिंगत (हास्य १४६)।

रिंगण :: न [रिङ्गण] चलना, सर्पण (पव २)।

रिंगणी :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, कण्टकारिका, गुजराती में 'रिंगणी' (दे २, ४; उर २, ८)।

रिंगिअ :: न [दे] भ्रमण (दे ७, ६)।

रिंगिअ :: न [रिङ्गित] १ रेंगना, कच्छप की तरह हाथ के बल चलना। २ गुरु-वन्दन का एक दोष (गुभा २४)

रिंगिसिया :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राज)।

रिंछ :: (अप) देखो रिच्छ=ऋक्ष (भवि)।

रिंछोली :: स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणी (दे ७, ७; सुर ३, ३१; विसे १४३९ टी; पाअ, चेइय ४४; सम्मत्त १८८; धर्मवि ३७; भवि)।

रिंडी :: स्त्री [दे] कन्थाप्राय, कन्था की तरह का फटा-टूटा आच्छादन-वस्त्र (दे ७, ५)।

रिक्क :: वि [दे] स्तोक, थोड़ा (दे ७, ६)।

रिक्क :: देखो रित्त=रिक्त (आचा; पाअ; पउम ८, ११८; सुपा ४२२; चउ ३९)।

रिक्किअ :: वि [दे] शटित, सड़ा हुआ (दे ७, ७)।

रिक्ख :: अक [रिङ्ख्] चलना। वकृ. 'गिरिव्व अच्छिन्मपक्खो अंतरिक्खे रिक्खंतो लक्खिज्जइ' (कुप्र ६७)।

रिक्ख :: वि [दे] १ वृद्ध, बूढ़ा। २ पुं. वय:- परिणाम, वृद्धता (दे ७, ६)

रिक्ख :: पुं [ऋक्ष] १ भालू, श्‍वापद प्राणि- विशेष (हे २, १६) २ न. नक्षत्र (पाअ; सुर ३, २६; ८, ११९)। °पह पुं [°पथ] आकाश (सुर ११, १७१)। °राय पुं [°राज] वानर-वंश का एक राजा (पउम ८, २३४)

रिक्खण :: न [दे] १ उपलम्भ, अधिगम। २ कथम (दे ७, १४)

रिक्खा :: देखो रेहा=रेखा (ओघ १७९)।

रिग, रिग्ग :: अक [रिङग्] १ रेंगना, धीरे-धीरे और जमीन से रगड़ खाते हुए चलना। २ प्रवेश करना। रिगइ, रिग्गइ (हे ४, २५९; टि)

रिग्ग :: पुं [दे] प्रवेश (दे ७, ५)।

रिच :: स्त्रीन. देखो रिउ=ऋच् (पि ५६; ३१८)। स्त्री. °चा (नाट — -रत्‍ना ३८)।

रिच्छ :: वि [दे] वृद्ध, बूढ़ा (दे ७, ६)।

रिच्छ :: देखो रिक्ख=ऋक्ष (हे १, १४०; २, १९; पाअ)। °।हिव पुं [°।धिप] जाम्बवान्, राम का एक सेनापति (से ४, १८; ४५)।

रिच्छभल्ल :: पुं [दे] भालू, रीछ (दे ७, ७)।

रिजु :: देखो रिउ=ऋच् (भग)।

रिजु :: देखो रिउ=ऋजु (विसे ७८४)।

रिज्ज :: देखो रिअ=री। रिज्जइ (आचा)।

रिज्जु :: देखो रिउ=ऋजु (हे १, १४१; संक्षि १७; कुमा)।

रिज्झ :: अक [ऋध्] १ बढ़ना। २ रीझना, खुशी होना। रिज्झइ (भवि)

रिट्ठ :: पुं [दे. अरिष्ट] १ अरिष्ट, दुरित (षड्; पि १४२) २ दैत्य-विशेष (षड्; से १, ३) ३ काक, कौआ (दे ७, ६; णाया १, १ — -पत्र ६३; षड्; पाअ)। °नेमि पुं [°नेमि] बाईसवें जिनदेव (पि १४२)

रिट्ठ :: पुं [रिष्ट] १ देव-विशेष, रिष्ट नामक विमान का निवासी देव (णाया १, ८ — -पत्र १५१। २ वेलम्ब और प्रभ- ञ्‍जन नामक इन्द्रों के लोकपाल (ठा ४, १ — -पत्र १९८) ३ एक दृप्‍त साँढ, जिसको श्रीकृष्ण ने मारा या (पण्ह १, ४ — -पत्र ७२) ४ पक्षि-विशेष (पउम ७, १७) ५ न. रत्‍न-विशेष (चेइय ६१५; औप; णाया १, १ टी) ६ एक देव-विमान (सम ३५) ७ पुंन. फल-विशेष, रीठा (उत्त ३४, ४; सुख ३४, ४)। °पुरी स्त्री [°पुरी] कच्छावती-विजय की राजधानी (ठा २, ३ — - पत्र ८०; इक)। °मणि पुं [°मणि] श्याम रत्‍न-विशेष (सिरि ११९०)

रिट्ठा :: स्त्री [रिष्टा] १ महाकच्छ विजय की राजधानी (ठा २, ३ — -पत्र ८०; इक) २ पाँचवीं नरक-भूमि (ठा ७ — -पत्र ३८८) ३ मदिरा, दारू (राज)

रिट्ठाभ :: न [रिष्टाभ] १ एक देव-विमान (सम १४) २ लोकान्तिक देवों का एक विमान (पव २६७)

रिट्ठि :: स्त्री [रिष्टि] १ खड्ग, तलवार (दे ७, ६) २ अशूभ। ३ पुं. रन्ध्र, विवर (संक्षि ३)

रिड :: सक [मण्डय्] विभूषित करना। रिडइ (षड्)।

रिण :: न [ऋण] १ करजा या कर्ज, उधार लिया हुआ धन (गा ११३; कुमा; प्रासू ७७) २ जल, पानी। ३ दुर्ग, किला। ४ दुर्ग भूमि। ५ आवश्यक कार्य, फरज। ६ कर्म (हे १, १४१; प्राप्र)। देखो अण=ऋण।

रिणिअ :: वि [ऋणित] करजदार, अधमर्ण (कुप्र ४३६)।

रिते :: अ [ऋते] सिवाय, बिना (पिंड ३७०)।

रित्त :: वि [रिक्त] १ खाली, शून्य (से ७, ११; गा ४९०; घर्मवि ६; ओघभा १६६) २ न. विरेक, अभाव (उत्त २८, ३३)

रित्तूडिअ :: वि [दे] शातित, झड़वाया हुआ (६, ७, ८)।

रित्थ :: न [रिक्थ] घन, द्रव्य (उप ५२०; पाअ; स ९०; सुख ४, ६; महा)।

रिद्ध :: वि [ऋद्ध] ऋद्धि-संपन्‍न (णाया १, १; उवा; औप)।

रिद्ध :: वि [दे] पक्व, पक्‍का (दे ७, ६)।

रिद्धि :: पुंस्त्री [दे] समूह, राशि (दे ७, ६)।

रिद्धि :: स्त्री [ऋद्धि] १ संपत्ति, समृद्धि, वैभव (पाअ; विपा २, १; कुमा; सुर २, १९८; प्रासू १२; ६२) २ वृद्धि। ३ देव-विशेष। ४ ओषधि-विशेष (हे १, १२८; २, ४१; पंचा ८) ५ छन्द-विशेष (पिंग) °म, °ल्ल वि [°मत्] समूद्ध, ऋद्धि-सम्पन्‍न (ओघ ६८४; पउम ५, ५६; सुर २, ६८; सुपा २२३)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] एक वणिक्-कन्या (उप ७२८ टी)।

रिपु :: देखो रिवु (कप्प)।

रिप्प :: न [दे] पृष्ठ, पीठ (दे ७, ५)।

रिभिय :: न [रिभित] १ एक प्रकार का नाटय (ठा ४, ४ — -पत्र २८५) २ स्वर का घोलन। ३ वि. स्वर-घोलना से युक्त (राज; णाया १, १ — -पत्र १३)

रिमिण :: वि [दे] रोने की आदतवाला (दे ७, ७; षड्)।

रिरंसा :: स्त्री [रिरंसा] रमण की चाह, मैथुनेच्छा (अज्झ ७९)।

रिरिअ :: वि [दे] लीन (दे ७, ७)।

रिल्ल :: अक [दे] शोभना। वकृ. रिल्‍लंत (भवि)।

रिवु :: देखो रिउ=रिपु (पउम १२, ४१; ४४, ५०; स १३८; उप पृ ३२१)।

रिसभ, रिसह :: पुं [ऋषभ] १ स्वर-विशेष (ठा ७ — -पत्र ३९३) २ अहोरात्र का अठाइसवाँ मुहूर्त्त (सम ५१; सूज्ज १०, १३) ३ संहत अस्थि-द्वय के ऊपर का वलयाकार वेष्टन-पट्ट; 'रिसहो य होइ पट्टो' (जीवस ४९)। देखो उसभ (औप; हे १, १४१; सम १४९; कम्म २, १९; सुपा २६०)

°रिसह :: पुं [°ऋषभ] श्रेष्ठ, उत्तम (कुमा)।

रिसि :: पुं [ऋषि] मुनि, संत, साधु (औप; कुमा; सुपा ३१; अवि १०१; उप ७६८ टी)। °घाय पुं [°घात] मुनि-हत्या (उप ४६६)।

रिह :: सक [प्र+विश्] प्रवेश करना, पैठना। रिहइ (षड्)।

री, रीअ :: अक [री] जाना, चलना। रीयइ, रीयए, रीयंते, रीइज्जा (आचा; सूअ १, २, २, ५; उत्त २४, ७)। भूका, रीइत्था (आचा)। वकृ. रीयंत, रीयमाण (आचा)।

रीइ :: स्त्री [रीति] प्रकार, ढंग, पद्धति; 'तं जणं विडंबंति निच्चं नवनवरीईइ' (घर्मवि ३२; कप्पू)।

रिड :: सक [मण्डय्] अलंकृत करना । रीडइ (हे ४, ११५)।

रीडण :: न [मण्डन] अलंकरणा (कुमा)।

रीढ :: स्त्रीन [दे] अवगणन, अनादर (दे ७, ८) । स्त्री. °ढा (पाअ; धम्म ११ टी; पंचा २, ८; बृह १)।

रीण :: त्रि [रीण] १ क्षरित, स्‍नुत । २ पीडित (भत्त २)

रीर :: अक [राज्] शोभना, चमकना, दीपना । रीरइ (हे ४, १००)।

रीरिअ :: वि [राजित] शोभित (कुमा)।

रीरी :: स्त्री [रीरी] धातु-विशेष, पीतल (कुप्र ११; सुपा १४२)।

रु :: स्त्री [रुज्] रोग, बीमारी; ‘अरु (? रू) उवसग्गो’ (तंदु ४६)।

रुअ :: अक [रुद्] रोना । रुअइ (षड् ; संक्षि ३६; प्राकृ ६८; महा)। भवि. रोज्छं (हे ३, १७१) । वकृ. रुअ°, रुअंत, रुयमाण (गा २१६; ३७९; ४००; सुर २; ९९; ११२; ४, १२९)। संकृ. रोत्तूण (कुमा; प्राकृ ३४)। हेकृ. रोत्तुं (प्राकृ ३४) । कृ. रोत्तव्व (हे ४, २१२; से ११, ९२) । प्रयो. रुयावेइ (महा), रुआवंति (पुप्फ ४४७)।

रुअ :: न [रुत] शब्द, आवाज (से १, २८; णाया १, १३; पव ७३ टी )।

रुअ :: देखो रूअ = रूप (इक)।

रुअ :: देखो रूअ = (दे) (औप)।

रुअंती :: स्त्री [रुदती] वल्‍ली-विशेष (संबोध ४७)।

रुअंस :: देखो रूअंस (इक)।

रुअग :: पुं [रुचक] १ कान्ति प्रभा (पण्ह १, ४ — पत्र ७८; औप) २ पर्वत-विशेष; ‘नगुत्तमो होइ पव्वओ रुयगो’ (दीव) ३ द्वीप-विशेष (दीव) ४ एक समुद्र (सुज्ज १९) ५ एक विमानावास — देव-विमान (देवेन्द्र १३२) ६ न. इन्द्रों का एक आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३) ७ रत्‍न- विशेष (उत्त ३६, ७६, सुख ३६, ७६) ८ रुचक पर्वत का पाँचवाँ कूट (दीप) ९ निषध पर्वत का आठवाँ कूट (इक) । °प्पभ न [°प्रभ] महाहिमवंत पर्वत का एक कूट (ठा २, ३) °पर पुं [°वर] १ द्वीप- विशेष (सुज्ज १९) २ पर्वत-विशेष (पण्ह २, ४ — पत्र १३०) ३ समुद्र-विशेष । ४ रुचकवर समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३ — पत्र ३६७) °वरभद्द पुं [°वरभद्र] रुचकवर द्वीप का अधिष्ठायक एक देव (जीव ३ — पत्र ३६६)। °वरमहाभद्द पुं [°वर- महाभद्र] वही अर्थ (जीव ३) । °वरमहावर पुं [°वरमहावर] रुचकवर समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) । °वरावभास पुं [°वरावभास] १ द्वीप-विशेष । २ समुद्र- विेशेष (जीव ३) °वरावभासभद्द पुं [°वरावभासभद्र] रुचकवरावभास द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) । °वरावभास- महाभद्द पुं [°वरारभासमहाभद्र] वही अर्थ (जीव ३) । °वरावभासमहावर पुं [°वरावभासमहावर] रुचकवरावभास नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) । °वरावभासवर पुं [°वरावभासवर] वही अर्थ (जीव ३ — पत्र ३६७) । °वरीद पुं [°वरोद] समुद्र-विशेष (सुज्ज १९)। °वरोभास देखो °वरावभास (सुज्ज १९)। °।वई स्त्री [°।वती] एक इन्द्राणी (णाया २ — पत्र २५२) । °।द पुं [°।द] समुद्र- विशेष (जीव ३ — पत्र ३६६)।

रुअगिंद :: पुं [रुचकेन्द्र] पर्वत-विशेष (सम ३३)।

रुअगुत्तम :: न [रुचकोत्तम] कूट-विशेष (इक)।

रुअण :: न [रोदन] रुदन, रोना (संबोध ४)।

रुअय :: देखो रुअग (सम ९२) ।

रुअरुइआ :: स्त्री [दे] उत्कण्ठा (दे ७, ८)।

रुआ :: स्त्री [रुज्] रोग, बीमारी (उव, धर्मसं ५६८)।

रुआविअ :: वि [रोदित] रुलाया हुआ (गा ३८६)।

रुइ :: स्त्री [रुचि] १ कान्ति, प्रभा, तेज (सुर ७, ४; कुमा) २ अनुराग, प्रेम (जो ५१) ३ आसक्ति (प्रासू १६९) ४ स्पृहा, अभि- लाष । ५ शोभा । ६ बुभुक्षा, खाने की इच्छा । ७ गोरोचना (षड्)

रुइअ :: वि [रुचित] १ अभीष्ठ, पसंद (सुर ७, २४३; महा) २ पुंन. विमानावास-विशेष, एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२)

रुइअ :: देखो रुण्ण = रुदित (स १२०)

रुइर :: वि [रुचिर] १ सुन्दर, मनोरम (पाअ) २ दीप्र, कान्ति-युक्त (तंदु २०) ३ पुंत. एक विमानेन्द्रक, देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १३१)

रुइर :: वि [रोदितृ] रोनेवाला । स्त्री. °री (पि ५९६, गा २१६ अ)।

रुइल :: वि [°रुचिर, °ल] १ शोभन, सुन्दर (औप; णाया १. १ टी; तंदु २०) । २ दीप्त, चमकता हुआ (पण्ह १, ४ — पत्र ७८; सुअ २, १, ३) ३ पुंन. एक देव-विमान (सम ३८)

रुइल्‍ल :: न [रुचिर, रुचिमत्] एक देव- विमान (सम १५)। °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम १५) । °कूड न [°कूट] एक देव-विमान (सम १५) । °ज्झय न [°ध्वज] देवविमान-विशेष (सम १५)। °प्पभ न [°प्रभ] एक देवविमान (सम १५) । °लेस न [°लेश्य] एक देवविमान (सम १५) । °वण्ण न [°वर्ण] देवविमान-विशेष (सम १५)। °सिग न [°श्रृङ्‍ग] एक देवविमान (सम १५) । °सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देवविमान (सम १५)। °।वत्त न [°।वर्त्त] एक देवविमान (सम १५)।

रुइल्लुत्तरवडिंसग :: न [रुचिरोत्तरावतंक] एक देवविमान (सम १५)।

रुंच :: सक [रुञ्‍च्] रुई से उसके बीज को अलग करने की क्रिया करना । वकृय रुंचत (पिंड ५७४)।

रुंचण :: न [रुञ्चन] रुई से कपास को अलग करने की क्रिया (पिंड ५८८)।

रुंचणी :: स्त्री [दे] घरट्टी, दलने का पत्थर-यन्त्र (दे ७, ८)।

रुंज :: अक [रु] आवाज करना । रुंजइ (हे ४, ५७; षड्)।

रुंजग :: पुं [दे. रुञ्चक] वृक्ष, पेड़, गाछ; ‘कुहा महीरुहा वच्छा रोवगा रुंजगाई अ’ (दसनि १)।

रुंजिय :: न [रवण] शब्द, आवाज, गर्जना (स ४२०)।

रुंट :: देखो सेज । रुंदइ (हे ४, ५७; षड्) । वकृ. रुंटंत्त (स ६२; पउम १०५, ५५; गउड)।

रुंटणया :: स्त्री [दे] अवज्ञा, अनादर (पिंड २१०)।

रुंटणिया :: स्त्री [दे रवणिका] रोदन-क्रिया (णाया १, १६ — पत्र २०२)।

रुंटिअ :: न [रुन] गुज्जर, श्रावाज; ‘रुंटिअं अलिविरुअं’ (पाअ; कुमा)।

रुंड :: पुंन [रुण्ड] बिना सिर का घड़, कबन्ध; ‘पडिया य मुंडरुंडा’ (कुप्र १३५; गउड; भवि; सण)।

रुंढ :: पुं [दे] आक्षिक, कितव, जूआड़ी (दे ७, ८)।

रुंदिअ :: वि [दे] सफल (दे ७, ८)।

रुंद :: वि [दे] १ विपुल, प्रचुर (दे ७, १४; गा ४०२; सुपा २९३; वज्जा १२८; १६२) २ विशाल, विस्तीर्ण (विसे ७१०; स ७०२; पव ६१; औप) ३ स्थूल, मोटा, पीन (पाअ) ४ मुखर, वाचाल (दे ७, १४)

रुंदी :: स्त्री [दे] विस्तीर्णता, लम्बाई (वज्जा १६४)।

रुंध :: सक [रुध्] रोकना, अटकाना । रुंधइ (हे ४, १३३; २१८) । कर्म. रुंधिज्जइ, रुब्भइ, रुब्भए (हे ४, २४५; कुमा) । वकृ. रुंधंत (कुमा) । कवकृ. रुब्भंत, रुब्भमाण, रुज्झंत (पउम ७३, २६; से ४, १७; भवि)। कृ. रुंघिअव्व (अभि ५०)।

रुंधिअ :: वि [रुद्ध] रोका हुआ (कुमा)।

रुंप :: पुंन [दे] १ त्वचा, सूक्ष्म छाल (गा ११९; १२०; वज्जा ४२) २ उल्‍लिखन वज्जा ४२)।

रुंपण :: न [रोपण] रोपाना, वपन कराना, वापन (पिंड १६२)।

रुंक :: देखो रुंप (पि २०८)।

रुंभ :: देखो रुंध। रुंभइ (हे ४, २१८; प्राप्र)। वकृ. रुंभंत (पि ५३५)। कृ. रुभिअव्व (से ९, ३)।

रुंभण :: न [रोधन] रोक, अटकाव, अवरोध (पण्ह १, १; कुप्र ३७७; गा ६९०)।

रुंभय :: वि [रोधक] रोकनेवाला (स ३८१)।

रुंभाविअ :: वि [रोधित] रुकवाया हुआ, बँद किया हुआ (श्रा २७)।

रुंभिअ :: वि [रुद्ध] रोका हुआ (हेका ९९; सुपा १२७)।

रुक्क :: न [दे] बैल आदि की तरह शब्द करना (अणु २९)।

रुक्किणी :: देखो रुप्पिणी (पि २७७)।

रुक्ख :: पुंन [वृक्ष] पेड़, गाछ, पादप (णाया १, १; हे २, १२७; प्राप्र; उव; कुमा; जी २७; प्रति ६; प्रासू १६८); 'रुक्खाइं, रुक्खाणि' (पि ३५८)। २ संयम, विरति (सूअ १, ४, १, २५) °मूल न [°मूल] पेड़ की जड़ (कस)। °मूलिय पुं [°मूलिक] वृक्ष के मूल में रहनेवाला वानप्रस्थ (औप)। °सत्थ न [°शास्त्र] वनस्पति-शास्‍त्र (स ३११)। °।उवेद पुं [°।युर्वेद] वही अर्थ (विसे १७७५)।

रुक्खल्ल :: ऊपर देखो (षड्)।

रुग्ग :: वि [रुग्ण] भग्‍न, भाँगा हुआ (पाअ; गउड; ५६१)।

रुच, रुच्च :: सक [दे] पीसना। रुचंति, रुच्‍चंति; भूका. रुचिसु, रुच्‍चिंसु; भवि. रुचिस्संति, रुच्चिस्संति (आचा २, १, ६, ५)।

रुचिर :: देखो रुइर (दे १, १४९)।

रुच्च :: अक [रुच्] रुचना, पसन्द पड़ना। रुच्चइ, रुच्चए (वज्जा १०६; महा; सिरि १०६; भवि। वकृ. रुच्‍चंत, रुच्‍चमाण (भवि; उप १४३ टी)।

रुच्च :: सक [दे] व्रीहि आदि को यन्त्र में निस्तुष करना। वकृ. रुच्‍चंत (णाया १, ७ — पत्र ११७)।

रुच्‍चि :: देखो रुइ=रुचि (कप्पू)।

रुच्छ :: देखो रुक्ख (संक्षि १५)।

रुच्मि :: देखो रुप्पि (हे २, ५२; कुमा)।

रुज्ज :: न [रोदन] रुदन, रोना; 'दीहुण्हा णीसासा, रणरणओ, रुज्जगग्गिरं गेअं' (गा ८४३)।

रुज्झ :: देखो रुंध। रुज्झइ (हे ४, २१८)।

रुज्झ° :: देखो रुह=रुह्।

रुज्झंत :: देखो रुंध।

रुज्भिअ :: वि [रुद्ध] रोका हुआ (कुमा)।

रुट्टिया :: स्त्री [दे] रोटी (सट्ठि ३९)।

रुट्ठ :: वि [रुष्ट] रोष-युक्त (उवा; सुर २, १२१)। २ पुं. नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २८)

रुणरुण :: न [दे] करुण क्रन्दन (भवि)।

रुणरुण :: अक [दे] करुण क्रन्दन करना। रुणरुणइ (वज्जा ५०; भवि)। वकृ. रुणरुणंत (भवि)।

रुणुरुण :: देखो रुणरुण (पउम १०५, ५८)।

रुणुरुणिय :: वि [दे] करुण क्रन्दनवाला (पउम १०५, ५८)।

रुण्ण :: न [रुदित] रोदन, रोना (हे १, २०९; प्राप्र; गा १८)।

रुते :: देखो रिते (वव ४)।

रुत्थिणी :: देखो रुप्पिणी (षड्)।

रुदिअ :: देखो रुण्ण (नाट — मालती १०६)।

रुद्द :: पुं [रुद्र] १ महादेव, शिव (सम्मत्त १४५; हेका ५६) २ शिव-मूर्त्ति-विशेष (णाया १, १ — पत्र ३९) ३ जिन देव, जिन भगवान् (पउम १०९, १२) ४ पर- माधार्मिक देवों की एक जाति (सम २८) ५ नृप-विशेष, एक वासुदेव का पिता (पउम २०, १८२; सम १५२) ६ ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७; सुज्ज १०, १२) ७ अंग-विद्या का जानकार पुरुष (विचार ४८४) ८ वि. भयंकर, भय-जनक (सम्मत्त १४५)। देखो रोद्द=रुद्र।

रुद्द :: देखो रोद्द=रौद्र (सम ९)।

रुद्दक्ख :: पुं [रुद्राक्ष] वृक्ष-विशेष (पउम ५३, ७९)।

रुद्दाणी :: स्त्री [रुद्राणी] शिव-पत्‍नी, दुर्गा (समु १५४)।

रुद्ध :: वि [रुद्ध] रोका हुआ (कुमा)।

रुद्र :: देखो रुद्द (हे २, ८०)।

रुन्न :: देखो रुण्ण (सुर २, १२६)।

रुप्प :: सक [रोपय्] रोपना, बोना; 'सहयार- भरियदेसे रुप्पसि धत्तूरयं तुमं वच्छे' (धर्मवि ६७)।

रुप्प :: न [रुक्म] १ काञ्‍चन, सोना। २ लोहा । ३ धत्तूरा। ४ नागकेसर (प्राप्र) ५ चांदी, रजत (जं ४)

रुप्प :: न [रूप्य] चाँदी, रजत (औप; सुर ३, ९; कप्पू)। °कूड पुं [°कूट] रुक्मि पर्वत का एक कूट (राज)। °कूलप्पवाय पुं [°कूलप्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७३)। °कूला स्त्री [°कूला] १ एक महानदी (ठा २, ३ — पत्र ७२; ८०; सम २७; इक) २ एक देवी। ३ रुक्मि पर्वत का एक कूट (जं ४) °मय वि [°मय] चाँदी का बना हुआ (णाया १, १ — पत्र ५२; कुमा)। °।भास पुं [°।भास] एक ज्योतिष्क महा-ग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८)।

रुप्प :: वि [रौप्य] रूपा का, चाँदी का (णाया १, १ — पत्र २४; उर ८, ४)।

रुप्पय :: देखो रुप्प=रूप्य; 'रुप्पयं रययं' (पाअ; महा)।

रुप्पि :: पुं [रुक्मिन्] १ कौण्डिन्य नगर का एक राजा, रुक्मिणी का भाई (णाया १, १६ — पत्र २०६; कुमा; रुक्मि ४२) २ कुणाल देश का एक राजा (णाया १, ८ — पत्र १४०) ३ एक वर्षधर-पर्वत (ठा २, ३ — पत्र ६८; सम १२; ७२) ४ एक ज्योतिष्क महा-ग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८) ५ देव-विशेष (जं ४) ६ रुक्मि पर्वत का एक कूट (जं ४) ७ वि. सुवर्णवाला। ८ चाँदी वाला (हे २, ५२; ८९)। °कूड पुंन [°कूट] रुक्मि पर्वत का एक कूट (ठा २, ३; सम ६३)

रुप्पिणी :: स्त्री [रुक्मिणी] १ द्वितीय वासुदेव की एक पटरानी (पउम २०, १८६) २ श्रीकृष्ण वासुदेव की एक अग्र-महिषी (पउम २०, १८७; पडि) ३ एक श्रेष्ठि-पत्‍नी (सुपा ३३४)

रुप्पोभास :: पुं [रूप्यावभास] १ एक महाग्रह (सुज्ज २०) २ वि. रजत की तरह चमकता (जं ४)

रुब्भंत, रुब्भमाण :: देखो रुंध।

रुम्मिणी :: देखो रुप्पिणी (षड्)।

रुम्ह :: सक [म्लापय्] म्लान करना, मलिन करना। 'प-रुम्हाइ जसं' (से ३, ४)।

रुरु :: पुं [रुरु] १ मृग-विशेष (पउम ९, ५९; पण्ह १, १ — पत्र ७) २ वनस्पति-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३५) ३ एक अनार्य देश। ४ एक अनार्य मनुष्य-जाति (पण्ह १, १ — पत्र १४)

रुरुव :: अक [रोरूय्] १ खूब आवाज करना। २ बारंबार चिल्लाना। वकृ. रुरुवेंत (स २१३)

रुल :: अक [लुठ्] लेटना। वकृ. रुलंत, रुलिंत (पण्ह १, ३ — पत्र ४५, 'पडियगय- घडतुरयं रुलंतवरसुहडधडसयाइन्‍नं' (धर्मवि ८०)।

रुलुघुल :: अक [दे] नीचे सांस लेना, निःश्‍वास डालना। वकृ. रुलुघुलंत (भवि)।

रुव :: देखो रुअ=रुद्। रुवइ (हे ४, २२६; प्राकृ ६८; संक्षि ३६; भवि; महा), रुवामि (कुप्र ६९)। कर्म. रुव्वइ, रुविज्जइ (हे ४, २४९)।

रुवण :: न [रोदन] रोना (उप ३३५)।

रुवणा :: स्त्री ऊपर देखो (ओघभा ३०)।

रुवणा :: स्त्री [रोवणा] आरोपणा, प्रायश्‍चित्त का एक भेद (वव १)।

रुविल :: देखो रुइल (औप)।

रुव्व :: देखो रुअ=रुद्‍। रुव्वइ (संक्षि ३६; प्राकृ ६८)।

रुसा :: स्त्री [रोष ] रोष, गुस्सा (कुमा)।

रुसिय :: देखो रूसिअ (पउम ५५, १५)।

रुह :: अक [रुह्] १ उत्पन्‍न होना। २ सक. घाव को सुखाना। रुहइ (नाट)। कर्म. 'जेण विदारियट्ठीवि खग्गाइपहारो इमीए पक्खालणोयएणंपि पणट्ठवेयणं तक्खणा चेव रुज्झइ त्ति' (स ४१३)

रुह :: वि [रुह] उत्पन्‍न होनेवाला (आचा)।

रुहण :: न [रोधन] निवारण (वव १)।

रुहरुह :: अक [दे] मन्द मन्द बहना, 'वामंगि सुत्ति रुहरुहइ वाउ' (भवि)।

रुहुरुहय :: पुं [दे] उत्कण्ठा (भवि)।

रूअ :: न [दे. रूत] रुई, तूल (दे ७, ९, कप्प; पव ८४; देवेन्द्र ३३२; घर्मसं ९८०; भग; संबोध ३१)।

रूअ :: पुं [रूप] १-२ पूर्णभद्र और विशिष्ट नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७) ३ आकृति, आकार (गा १३२) ४ वि. सदृश, तुल्य (दे ६; ४६) °कंत पुं [°कान्त] १-२ पूर्णभव और विशिष्ट नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १) °कंता स्त्री [°कान्ता] १ भूतानन्द नामक इन्द्र को एक अग्र-महिषी (णाया २- पत्र २५२) २ एक दिक्कुमारी-महत्तरिका (राज) °प्पभ पुं [°प्रभ] पूर्णभद्र और विशिष्ट नामक एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७; १९८)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] १ भूतानन्द इन्द्र की एक अग्र-महिषी [णाया २ — पत्र २५२) २ एक दिक्कुमारी देवी (ठा ६ — पत्र ३६१)। देखो रूव=रूप (गउड)

रूअंस :: पुं [रूपांश] १-२ पूर्णभद्र और विशिष्ट इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७; १९८)

रूअंसा :: स्त्री [रूपांशा] १ भूतानन्द्र इन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २ — पत्र २५२) २ एक दिक्कुमारी देवी (ठा६ — पत्र ३६१)

रूअग, रूअय :: पुंन [रूपक] १ रूपया (हे ४, ४२२) २ पुं. एक गृहस्थ (णाया २- प्रत्र २५२) ३ रूपा देवी का सिंहासन (णाया २ — पत्र २५२)। °वडिंसय न [°।वतंसक] रूपा देवी का भवन (णाया २)। °सिरी स्त्री [°श्री] एक गृहस्थ स्त्री (णाया २)। °।वई स्त्री [°वती] भूतानन्द नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २)। देखो रूवय=रूपक।

रूअरूइआ :: [दे] देखो रुअरुइआ (षड्)।

रूआ :: स्त्री [रूपा] १ भूतानन्द इन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २ — पत्र २५२) २ एक दिक्कुमारी देवी (ठा ४, १ — पत्र १९८)

रूआमाला :: स्त्री [रूपमाला] छन्द-विशेष (पिंग)।

रूआर :: वि [रूपकार] मूर्त्ति बनानेवाला, 'मोत्तुमजोग्गं जोग्गे दलिए रूवं करेइ रूआरो' (विसे १११०)।

रूआवई :: स्त्री [रूपवती] एक दिक्कुमारी देवी (ठा ४, १ — पत्र १९८)।

रूढ :: वि [रूढ] १ परंपरागत, रूढि-सिद्ध। २ प्रसिद्ध; 'रूढक्‍कमेण सव्वे नराहिवा तत्थ उवविट्ठा' (उप ६४८ टी) ३ प्रगुण, तंदुरुस्त (पाअ)

रूढ :: वि [रूढ] अगा हुआ, उत्पन्‍न (दस ७, ३५)।

रूढि :: स्त्री [रूढि] परम्परा से चली आती प्रसिद्धि, 'पोसहसद्दोरूढीए एत्थ पव्वाणुवायओ भणिओ' (सुपा ६१९; कप्पू)।

रूप :: पुं [रूप] पशु, जानवर (मृच्छ २००)। रूअ=रूप (ठा ६ — पत्र ३६१)।

रूपि :: पुं [रूपिन्] सौनिक, कसाई (मुच्छ २००)।

रूरुइय :: न [दे] उत्सुकता, रणरणक (पाअ)।

रूव :: पुंन [रूप] १ आकृति, आकार (णाया १, १; पाअ) २ सौन्दर्य, सुन्दरता (कुमा; ठा ४, २; प्रासू ४७; ७१) ३ वर्ण, शुक्ल आदि रँग (औप; ठा १; २, ३) ४ मूर्त्ति (विसे १११०) ५ स्वभाव (ठा ९) ६ शब्द, नाम। ७ श्‍लोक। ८ नाटक आदि दृश्य काव्य (हे १, १४२) ९ एक की संख्या, एक (कम्म ४, ७७; ७८; ७९; ८०; ८१) १०-११ रूपवाला, वर्णवाला (हे १, १४२) १२ — देखो रूअ, रूप=रूप। °कंता देखो रूअ-कंता (ठा ६ — पत्र ३६१; इक)। °जक्ख पुं [°यक्ष] धर्मपाठक (व्यव० भा० गा० ९१४)। °धार वि [°धार] रूप-धारी; 'जलयरमज्झगएणं अणे- गमच्छाइरूवधारेणं' (खा ९)। °प्पभा देखो रूअ-प्पभा (इक)। °मंत देखो °वंत (पउम १२, ५७; ९१, २६)। °वई स्त्री [°वती] १ भूतानन्द नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ६ — पत्र ३६१) २ सुरूप नामक भूतेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ एक दिक्कुमारी महतरिका (ठा ६)। °वंत, °स्सि वि [°वत्] रूपवाला, सुरूप (श्रा १०; उवा; उप पृ ३३२; सुपा ४७४; उव)

रूवग :: पुंन [रूपक] १ रुपया (उप पृ २८०; धम्म ८ टी; कुप्र ४१४) २ साहित्य-प्रसिद्ध एक अलंकार (सुर १, २९; विसे ९९९ टी)। देखो रूअग=रूपक।

रूवमिणी :: स्त्री [दे] रूपवती स्त्री (दे ७, ९)।

रूवय :: देखो रूवग (कुप्र १२३; ४१३; भास ३४)।

रूवसिणी :: देखो रूवमिणी (षड्)।

रूवा :: देखो रूआ (इक)।

रूवि :: वि [रूपिन्] रूपवाला (आचा; भग; स ८३)।

रूवि :: पुंस्त्री [दे] गुच्छ-विशेष, अर्क-वृक्ष, आक का पेड़ (पण्ण १ — पत्र ३२; दे ७, ९)।

रूस :: अक [रूष्] गुस्सा करना। रूसइ, रूसए (उव; कुमा; हे ४, २३६; प्राकृ ६८; षड्)। कर्म. रूसिज्जइ (हे ४, ४१८)। हेकृ. रूसिउं, रूसेउं (हे ३, १४१; पि ५७३)। कृ. रूसिअव्व, रूसेयव्व (गा ४६६; पण्ह २, ५ — पत्र १५०; सुर १६, ९४)। प्रयो., संकृ. रूसविअ (कुमा)।

रूसण :: न [रोषण] १ रोष, गुस्सा (गा ६७५; हे ४, ४१८) २ वि. गुस्साखोर, रोष करनेवाला (सुख १, १४; संबोध ४८)

रूसिअ :: वि [रुष्ट] रोष-युक्त (सुख १, १३; १६)।

रे :: अ [रे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ परिहास। २ अधिक्षेप (संक्षि ४७) ३ संभाषण (हे २, २०१; कुमा) ४ आक्षेप (संक्षि ३८) ५ तिरस्कार (पव ३८)

रेअ :: पुं [रेतस्] वीर्य, शुक्र (राज)।

रेअव :: सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना। रेअ- वइ (हे ४, ९१)।

रेअविअ :: वि [मुक्त] छोड़ा हुआ, त्यक्त (कुमा; दे ७, ११)।

रेअविअ :: वि [दे. रेचित] क्षणीकृत, शून्य किया हुआ, खाली किया हुआ (दे ७, ११; पाअ; से ११, २)।

रेआ :: स्त्री [रै] १ धन । २ सुवर्ण, सोना (षड्)

रेइअ :: वि [रेचित] रिक्त किया हुआ (से ७, ३१)।

रेंकिअ :: वि [दे] १ आक्षिप्त। २ लोन। ३ व्रीडित, लज्जित (दे ७, १४)

रेकार :: पुं [रेकार] 'रे' शब्द, 'रे' की आवाज (पव ३८)।

रेट्ठि :: देखो रिट्ठि (संक्षि ३)।

रेणा :: स्त्री [रेणा] महर्षि स्थूलभद्र की एक भगिनी, एक जैन साघ्वी (कप्प; पडि)।

रेणि :: पुंस्त्री [दे] पङ्क, कर्दम (दे ७, ९)।

रेणु :: पुंस्त्री [रेणु] १ रज, घूली (कुमा) २ पराग (स्वप्‍न ७६)

रेणुया :: स्त्री [रेणुका] ओषधि-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३६)।

रेभ :: पुं [रेफ] १ 'र' अक्षर, रकार (कुमा) २ वि. दुष्ट। ३ अधम, नीच। ४ क्रूर, निर्दय। ५ कृपण, गरीब (हे १, २३६; षड्)

रेरिज्ज :: अक [राराज्य्] अतिशय शोभना। वकृ. रेरिज्जमाण (णाया १, २ — पत्र ७८; १, ११ — पत्र १७१)।

रेल्ल :: सक [प्लावय्] सराबोर करना। वकृ. रेल्लंत (कुमा)।

रेल्लि :: स्त्री [दे] रेल, स्रोत, प्रवाह (राज)।

रेवइनक्खत्त :: पुं [रेवतीनक्षत्र] आर्य नाग- हस्ती के शिष्य एक जैन मुनि (णंदि ५१)।

रेवइय :: पुं [रैवतिक] स्वर-विशेष, रैवत स्वर (अणु १२८)।

रेवइय :: न [रेवतिक] एक उद्यान का नाम (कप्प)।

रेवइआ :: स्त्री [रेवतिका] भूत-ग्रह विशेष (सुख २, १९)।

रेवई :: स्त्री [रेवती] १ बलदेव की स्त्री (कुमा) २ एक श्राविका का नाम (ठा ९ — पत्र ४५५; सम १५४) ३ एक नक्षत्र (सम ५७)

रेवई :: स्त्री [दे. रेवती] मातृका, देवी (दे ७, १०)।

रेवंत :: पुं [रेवन्त] सूर्य का एक पुत्र, देव- विशेष; 'रेवंततणुभवा इव अस्सकिसोरा सुलक्खणिणो' (धर्मवि १४२; सुपा ५९)।

रेवज्जिअ :: वि [दे] उपालब्ध (दे ७, १०)।

रेवण :: पुं [रेवण] व्यक्ति-वाचक नाम, एक साधारण काव्य-ग्रंथ का कर्त्ता (धर्मवि १४२)।

रेवय :: न [दे] प्रणाम, नमस्कार (दे ७, ९)।

रेवय :: पुं [रैवत] गिरनार पर्वत (णाया १, ५ — पत्र ९९; अंत; कुप्र १८)।

रेवय :: पुं [रैवत] स्वर-विशेष (अणु १२७)।

रेवलिआ :: स्त्री [दे] वालुकावर्त्त, घूल का आवर्त (दे ७, १०)।

रेवा :: स्त्री [रेवा] नदी-विशेष, नर्मदा (गा ५७८; पाअ; कुमा; प्रासू ६७)।

रेसणिआ, रेसणी :: स्त्री [दे] १ करोटिका, एक प्रकार का कांस्य-भाजन (पाअ; दे ७, १५) २ अक्षि-निकोच (दे ७, १५)

रेसम्मि :: देखो रेसम्मि, ‘जो उण सद्धा-रहिओ दाणं देइ जसकित्तिरेसम्मि’ (स १५७) ।

रेसि :: /?/(अप) देखो रेसिं (हे ४, ४२५; सण)।

रेसिअ :: वि [दे] छित्र, काटा हुआ (दे ७, ९)।

रेसिं :: /?/(अप) नीचे देखो (हे ४, ४२५)।

रेसिम्मि :: अ. निमित्त, लिए, वास्ते; ‘दंसण- नाणचरित्ताण एस रेसिम्मि सुपसत्थो’ (पंचा १९, ४०)।

रेह :: अक [राज्] दीपना, शोभना, चमकना । रेहइ, रेहए (हे ४, १००; धात्वा १५०; महा) । वकृ. रेहंत (कप्प)।

रेहा :: स्त्री [रेखा] १ चिह्‍न-विशेष, लकीर (औघ ४८९; गउड; सुपा ४१; वज्जा ६४) २ पंक्ति, श्रेणि (कप्पू) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

रेहा :: स्त्री [राजना] शोभा, दीप्ति (कप्पू)

रेहिअ :: न [दे] छित्र पुच्छ, कटी हुई पूँछ (दे ७, १०)।

रेहिअ :: वि [राजित] शोभित (सुर १०, १८६)।

रेहिर :: वि [रेखावत्] रेखावाला (हे २, १५९)।

रेहिर, रेहिल्ल :: वि [राजितृ] शोभनेवाला (सुर १, ५०; सुपा ५९), ‘नयरे नयरे- हिल्ले’ (उप ७२८ टी)।

रेहिल्ल :: देखो रेहिर = रेखावत् (उप ७२८ टी)।

रोअ :: देखो रुअ = रुद् । रोअइ (संक्षि ३६; प्राकृ ३८) । वकृ. रोअंत, रोयमाण (गा ५४७; उप पृ १२८; सुर २, २२९) । हेकृ. रोउं (संक्षि ३७) । कृ रोअत्तअ, रोइअव्व (से ३, ४८; गा ३४८; हेका ३३)।

रोअ :: देखो रुच्च = रुच् । रोयइ, रोयए (भग; उव), ‘रोएइ जं पहूणं तं चेव कुणंति सेवगा निच्‍चं’ (रंभा) । वकृ. रोयंत (श्रा६)।

रोअ :: सक [रोचय्] १ रुचि करना । २ पसन्द करना, चाहना । रोयइ, रोएमि, रोएहि (उत्त १८, ३३; भग) । संकृ. रोयइत्ता (उत्त २९, १)

रोअ :: सक [रोचय्] निर्णय करना । रोअए (दस ५, १, ७७)।

रोअ :: पुं [रोच] रुचि, ‘दुक्‍कररोया विउसा बाला भणियेपि मेव बुज्झंति । तो मज्झिमबुद्धीणं हियत्थमेसो पयासो मे’ (चेइय २६०)।

रोअ :: पुं [रोग] आमय, बीमारी (पाअ)।

रेअग :: वि [रोचक] १ रुचि-जनक । २ न. सम्यक्त्व का एक भेद (संबोध ३५; सुपा ५५१)

रोअण :: न [रोदन] रोना, रुदन (दे ५, १०; कुप्र २३५; २८९)।

रोअण :: पुं [रोचन] १ एक दिग्‌हस्ति-कूट (इक) २ न. गोरोचन (गउड)

रोअणा :: स्त्री [रोचना] गोरोचन (से ११, ४५; गउड)।

रोअणिआ :: स्त्री [दे] डाकिनी, डाइन (दे ७, १२; पाअ)।

रोअत्तअ :: देखो रोअ = रुद ।

रोआविअ :: वि [रोदित] रुलाया हुआ (गा ३६७; सुपा ३१७)।

रोइ :: वि [रोगिन्] रोगवाला, बीमार (गउड)।

रोइ :: देखो रुइ = रुचि; ‘अवि सुंदरेवि दिणणे दुक्‍कररोई कलहमाई’ (पिंड ३२१)।

रोइअ :: वि [रोचित] १ पसंद आया हुआ (भग) २ चिकीर्षित (ठा ६ — पत्र ३५५)

रोइर :: वि [रोदितृ] रोनेवाला (गा ३८९; षड्)।

रोंकण :: वि [दे] रंक, गरीब (दे ७, ११)।

रोंच :: सक [पिष्] पीसना । रोंचइ, (हे ४, १८५)।

रोक्कअ :: वि [दे] प्रोक्षित, अति सिक्त (षड्)।

रोक्कणि, रोक्कणिअ :: वि [दे] १ श्रृंगी, श्रृंगवाला । २ नृशंस, निर्दय (दे ७, १६)

रोग :: पुं [रोग] १ बीमारी, व्याधि (उवा; पण्ह १, ४) २ एक ब्राह्मण-जातीय श्रावक (उप ५३६)

रोगि :: वि [रोगिन्] बीमार (सुपा ५७६)।

रोगिअ :: वि [रोगिक, °त] ऊपर देखो (सुख १, १४)।

रोगिणिआ :: स्त्री [रोगिणिका] रोग के कारण ली जाती दीक्षा (ठा १० — पत्र ४७६)।

रोगिल्‍ल :: देखो रोगि (प्रामा)।

रोघस :: वि [दे] रंक, गरीब (दे ७, ११)।

रोच्च :: देखो रोंच । रोच्‍चइ (षड्)।

रोज्झ :: पुं [दे] ऋश्य, पशु-विशेष; गुजराती में ‘रोभ्झ’ (दे ७, १२; विपा १, ४; पाअ)।

रेट्ट :: पुंन [दे] १ तंदुल-पिष्ट, चावल आदि का आटा, पिसान, गुजरातो में ‘लोट’ (दे ७, ११; ओघ ३६३; ३७४; पिंड ४४; बृह १)

रोट्टग :: पुं [दे] रोटी, रोट (महा)।

रोड :: सक [दे] १ रोकना, श्रटकाना । २ अनादर करना । ३ हैरान करना । रोडिसि (स ५७५) । कवकृ. रोडिज्जंत (उप पृ १३३)

रोड :: न [दे] घर का मान, गृह-प्रमाण (दे ७, ११)।

रोडी :: स्त्री [दे] १ इच्छा, अभिलाषा । २ व्रणी की शिबिका (दे ७, १५)

रोत्तव्व :: दोखो रुअ = रुद् ।

रोद्द :: पुं [रौद्र] १ अहोरात्र का पहला मुहूर्त्त (सम ५१) २ एक नृपति, तृतीय बलदेव और वासुदेव का पिता (ठा ९ — पत्र ४४७) ३ अलंकार-शास्त्र-प्रसिद्ध नव रसों में एक रस (अण) ४ वि. दारुण, भयंकर, भीषण (ठा ४, ४; महा) ५ न. घ्यान-विशेष, हिसा आदि क्रूर कर्म का चिन्तन (औप)

रोद्द :: पुं [रुद्र] अहोरात्र का पहला मुहूर्त (सुज्‍ज १०, १३)। देखो रुद्द = रुद्र ।

रोद्ध :: वि [दे] १ कूणिताक्ष । २ न. मल (दे ७, १५)

रोम :: पुंन [रोमन्] लोम, बाल, रोंआ (औप; पाअ; गउड) । °कूव पुं [°कूप] लोम का छिद्र (णाया १, १ — पत्र १३; सुर २, १०१)।

रोम :: न [रोम] खान में होता लवण (दस ३, ८)।

रोमंच :: पुं [रोमाञ्च] रोंओं का खड़ा होना, भय या हर्ष से रोंओं का उठ जाना, पुलक (कुमा; काल, भवि; सण)।

रोमंचइअ, रोमंचिअ :: वि [रोमाञ्चित] पुलकित, जिसके रोम खड़े हुए हों वह (पउम ३, १०४; १०२, २०३; पाअ; भवि)।

रोमंथ :: पुं [रोमन्थ] पगुराना, चबाई हुई वस्तु का पुनः चबाना, पागुर (से ९, ८७; पाअ; सण)।

रोमंथ, रोमंथाअ :: अक [रोमन्थय्] चबाई हुई चीज का फिर से चबाना, पगु- राना, जुगाली करना । रोमंथइ (हे ४, ४३)। वकृ. रोमंथाअमाण (चारु ७)।

रोमग, रोमय :: पुं [रोमक] १ अनार्य देश-विशेष, रोम देश (पव २७४) २ रोम देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (पण्ह १, १ — पत्र १४)

रोमय :: पुं [रोमज] पक्षि-विशेष, रोम की पाँखवाला पक्षी (जी २२)।

रोमराइ :: स्त्री [दे] जघन, नितम्ब (दे ७, १२)।

रोमलयासय :: न [दे] पेट, उदर (दे ७, १२)।

रोमय :: वि [रोमश] रोम-युक्त, रोमवाला (दे ३, ११, पाअ)।

रोमूसल :: न [दे] जघन, नितम्ब (दे ७, १२)।

रोर :: पुं [रोर] चौथी नरक-भूमि का एक नरकावास (ठा ४, ४ — पत्र २६५)।

रोर :: वि [दे] रंक, गरीब, निर्धन (दे ७, ११; पाअ; सुर २, १०५; सुपा २९९)।

रोरु :: पुं [रोरु] सातवीं नरक-पृथिवी का एक नरकावास (देवेन्द्र २४; इक)।

रोरुअ :: पुं [रोरुक, रौरव] १ रत्‍नप्रभा नरक- पृथिवी का दूसरा नरकेन्द्रक — नरकावास- विशेष (देवेन्द्र ३) २ रत्‍नप्रभा का तेरहवाँ नरकेन्द्रक (देवेन्द्र ५) ३ सातवीं नरक पृथिवी का एक नरकावास — नरक-स्थान (ठा ५, ३ — पत्र ३४१; सम ५८; इक) ५ चौथी नरक-भूमि का एक नरकावास (ठा ४, ४ — पत्र २६५)

रोल :: पुं [दे] १ कलह, झगड़ा (दे ७, १५) २ रव, कोलाहल, कलकल आवाज (दे ७, १५; पाअ, कुमा; सुपा ५७६; चेइय १८४; मोह ५)

रोलंब :: पुं [दो. रोलम्ब] भ्रमर; मधुकर (दे ७, २; कुप्र ५८)।

रोला :: स्त्री [रोला] छन्द-विदेष (पिंग)।

रोव :: देखो रुअ=रुद् । रोवइ (हे ४, २२६; संक्षि ३६; प्राकृ ६८; षड् ; महा ; सुर १०, १७१; भवि) । वकृ. रोवंत, रोवमाण (पउम १७, ३७; सुर २, १२४; ६, २३५; पउम ११०, ३५)। संकृ. रोविऊण (पि ५८६)। हेकृ. रोविउं (स १००)।

रोव :: पुं [दे.रोप] पौधा, गुजराती में 'रोपो' (सम्मत्त १४४)।

रोवण :: न [रोदन] रोना (सुर ९, ७६)।

रोवण :: न [रोपण] वपन, बीज बोना (वव १)।

रोवाविअ :: देखो रोआविअ (वज्जा ९२)।

रोविअ :: वि [रोपित] १ बोया हुआ। २ स्थापित (से १३, ३०)

रोविंदय :: न [दे] गेय-विशेष, एक प्रकार का गान (ठा ४, ४ — पत्र २८५)।

रोविर :: देखो रोइर (दे ७, ७, कुमा; हे २, १४५)।

रोविर :: वि [रोपयितृ] बोनेवाला (हे २, १४५)।

रोस :: देखो रूस। रोसइ (?) (धात्वा १५०)।

रोस :: पुं [रोष] गुस्सा, क्रोध (हे २, १९०; १९१)। °इत्त, °।इंत वि [°वत्] रोष- (संक्षि २०; प्राप्र)।

रोसण :: वि [रोषण] रोष करनेवाला, गुस्साखोर (उप १४७ टी; सुख १, १३)।

रोसविअ :: वि [रोषित] कोपित, कुपित किया हुआ (पउम ११०, १३)।

रोसाण :: सक [मृज्] मार्जन करना, शुद्ध करना। रोसाणइ (हे १, १०५; प्राकृ ६६; षड्)।

रोसाणिअ :: वि [मृष्ट] शुद्ध किया हुआ, मार्जित (पाअ; कुमा; पिंग)।

रोसिअ :: देखो रोसविअ (पउम ९९, ११; भवि)।

रोह :: अक [रुह्] उत्पन्न होना। रोहंति (गउड)।

रोह :: देखो रुंध। संकृ. रोहिऊण, रोहेउं (काल; बृह ३)।

रोह :: पुं [रोध] १ घेरा, नगर आदि का सैन्य से वेष्टन (णाया १, ८ — पत्र १४६; उप पृ ८४; कुप्र १५८) २ रुकावट, रोक, अटकाव (कुप्र १; द्रव्य ४६) ३ कैद (पुप्फ १८६)

रोह :: पुं [रोधस्] तद, किनारा (पाअ)।

रोह :: पुं [रोह] १ एक जैन मुनि (भग) २ प्ररोह, व्रण आदि का सूख जाना (दे ६, ६५) ३ वि. रोहक, रोहण-कर्त्ता (भवि)

रोह :: पुं [दे] १ प्रमाण। २ नमन। ३ मार्गण (दे ७, १६)

रोहग :: वि [रोधक] घेरा डालनेवाला, अटकाव करनेवाला; 'रोहगसंजुतीए रोहिओ कुमारेण' (स ६३५); 'रोहगसंजुत्ती उण कीरउ' (सुर १२, १०१)।

रोहग :: देखो रोह=रोध (स ६३५; सुर १२, १०१)।

रोहग :: पुं [रोहक] एक नट-कुमार (उप पृ २१५)।

रोहगुत्त :: पुं [रोहगुप्त] १ एक जैन मुनि (कप्प) २ त्रैराशिक मत का प्रवर्तक एक आचार्य (विसे २४५२)

रोहण :: न [रोधन] १ अटकाव (आरा ७२) २ वि. रोकनेवाला (द्रव्य ३४)

रोहण :: व [रोहण] १ चढ़ना, आरोहण (सुपा ४३८; कुप्र ३९९) २ उत्पत्ति (विसे १७५३) ३ पुं. पर्वत-विशेष (सुपा ३२; कुप्र, ६) ४ एक दिग्हस्ति-कूट; (इक)

रोहिअ :: [दे] देखो रोज्झ (दे ७, १२; पाअ; पण्ह १, १ — पत्र ७)।

रोहिअ :: वि [रोधित] धेरा हुआ, 'रोहियं पाडलिपुरं तेण' (धर्मवि ४२; कुप्र ३६९; स ६३५)।

रोहिअ :: वि [रोहित] १ सुखाया हुआ (घाव) (उप पृ ७६) २ पुं. द्वीप-विशेष (जं ४) ३ पुं. मत्स्य-विशेष (स २५७) ४ न. तृण- विशेष (पण्ण १ — पत्र ३३) ५ कूट- विशेष (ठा २, ३; ८)

रोहिअंस :: पुं [रीहितांश] एक द्वीप (जं ४)।

रोहिअंस°, रोहिअंसा :: स्त्री [रोहितांशा] एक नदी (सम २७; इक)। °पवाय पुं [°प्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३; जं ४)।

रोहिअप्पवाय :: पुं [रोहिताप्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७२)।

रोहिआ :: स्त्री [रोहित्, रोहिता] एक नदी (सम २७; इक; ठा २, ३ — पत्र ७२; ८०)।

रोहिंसा :: स्त्री [रोहिदंशा] एक नदी (इक)।

रोहिणिअ :: पुं [रौहिणेय] एक प्रसिद्ध चोर का नाम (श्रा २७)।

रोहिणी :: स्त्री [रोहिणी] १ नक्षत्र-विशेष (सम १०) २ चन्द्र की पत्‍नी (श्रा १६) ३ ओषघि-विशेष (उत्त ३४, १०; सुर १०, २२३) ४ भविष्य में भारतवर्ष में तीर्थंकर होनेवाली एक श्राविका (सम १५४) ५ नववें बलदेव का माता का नाम (सम १५२) ६ एक विद्या देवी (संति ५) ७ शक्रेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९) ८ सत्पुरुष नामक किंपुरुषेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ९ शक्रेन्द्र के एक लोकपाल की पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) १० तप-विशेष (पव २७१, पंचा १९ २३) ११ गो, गैया (पाअ) °रमण पुं [°रमण] चन्द्रमा (पाअ)। रोहीडग न [रोहीतक] नगर- विशेष (संथा ६८)।

 :: पुं [ल] मूर्ध-स्थानीय अन्तस्थ व्यञ्‍जन वर्ण-विशेष (प्राप्र)।

लइ :: अ. ले, अच्छा, ठीक (भवि)।

लइ :: देखो लय=ला।

लइअ :: वि [दे. लगित] १ परिहित, पहना हुआ। २ अंग में पिनद्ध (दे ७, १८; पिंड ५९१; भवि)

लइअल्ल :: पुं [दे] वृषभ, बैल (दे ७, १९)।

लइआ :: स्त्री [लतिका, लता] देखो लया (नाट — रत्‍ना ७; गउड; उप ७६८ टी)।

लइणा, लइणी :: स्त्री [दे] लता, वल्ली (षड्; दे ७, १८)।

लउअ :: पुं [लकुच] वृक्ष-विशेष, बड़हल का गाछ (औप; पि ३६८)।

लउड, लउल :: पुं [लकुट] लकड़ी, लाठी, डंडा, लउर, यष्टि (दे ७, १९; सुर २, ८; औप)।

लउस, लउसय :: पुं [लकुश] १ अनार्य देश-विशेष (पव २७४; इक) २ पुंस्त्री. लकुश देश का निवासी मनुष्य। स्त्री. °सिया (णाया १, १ — पत्र ३७; औप; इक)

लंका :: स्त्री [लङ्का] नगरी-विशेष, सिंहलद्वीप की राजधानी (से ३, ६२; पउम ४६, १९; कप्पू)। °लय वि [°लय] लंका-निवासी (वज्जा १३०)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] हनूमान की एक पत्‍नी (पउम ५२, २१)। °सोग पुं [°शोक] राक्षस वंश का एक राजा (पउम ५, २६५)। °हिव पुं [°धिप] लंका का राजा (उप पृ ३७५)। °हिवइ पुं [°धिपति] वही अर्थ (पउम ४६, १७)।

लंका :: स्त्री [दे] शाखा (वज्जा १३०)।

लंख, लंखग :: पुंस्त्री [लङ्ख] बड़े बाँस के ऊपर खेल करनेवाली एक नट-जाति (णाया १, १ — पत्र २, पण्ह २, ५ — पत्र १६२; औप; कप्प)। स्त्री. °खिणा (उप १०१४)।

लंगल :: न [लाङ्गल] हल, 'खित्तेसु वहंति लंगलाण सया' (धर्मवि २४; हे १, २५६, षड् ८०)।

लंगलि :: पुं [लाङ्गलिन्] बलभद्र, बलदेव (कुमा)।

लंगलि°, लंगली :: स्त्री [लाङ्गली] वल्ली-विशेष, शारदी लता (कुमा)।

लंगिम :: पुंस्त्री [दे] १ जवानी, यौवन। २ ताजापन, नवीनता; 'पिसुणइ तणुलट्ठी लंगिमं चंगिमं च' (कप्पू)

लंगूल :: न [लाङ्गूल] पुच्छ, पूँछ (हे १, २५६; पाअ; कप्प; कुमा)।

लंगूलि :: वि [लाङ्गूलिन्] पुच्छवाला, पशु (कुमा)।

लंगोल :: देखो लंगूल (सुज्ज १०, ८)।

लंघ :: सक [लङ्घ्, लङ्घय्] १ लाँधना, अतिक्रमण करना। २ भोजन नहीं करना। लंघइ, लंघेइ (महा; भवि)। कर्म. लंघिज्जइ (कुमा)। वकृ. लंघंत, लंघयंत (सुपा २७१; पउम ६७, २१)। संकृ. लंघित्ता, लंघिऊण (महा)। हेकृ. लंघेउं (पि ५७३)। कृ. लंघणिज्ज (से २, ४४), लंघ (कुमा १, १७)

लंघण :: न [लङ्घन] १ अतिक्रमण (सुर ५, १९२) २ अ-भोजन (उप १३५ टी)

लंघि :: वि [लङ्घिन्] लंघन करनेवाला (कप्पू)।

लंघिअ :: वि [लङ्घित] जिसका लंघन किया गया हो वह (गउड)।

लंच :: पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा (दे ७, १७)।

लंचा :: स्त्री [लञ्चा] घूस, रिश्‍वत, उत्कोच (पाअ; पण्ह १, ३ — पत्र ५३; दे १, ९२; ७, १७; सुपा ३०८)।

लंचिल्ल :: वि [लाञ्चिक] घूसखोर, रिश्‍वत ले कर काम करनेवाला (वव १)।

लंछ :: सक [लञ्छ] १ भाँगना, तोड़ना। २ कलंकित करना। कर्म. लंछिज्जइ (दसनि ८, १४)

लंछ :: पुं [लञ्छ] चोरों की एक जाति (विपा १, १ — पत्र ११)।

लंछण :: न [लाञ्छन] १ चिह्न, निशानी (पाअ) २ नाम। ३ अंकन, चिह्न करना (हे १, २५; ३०)

लंछणा :: स्त्री [लाञ्छना] चिह्न करना (उप ५२२)।

लंछिअ :: वि [लाञ्छित] चिह्नित, कृत-चिह्न (पव १५४; णाया १, २ — पत्र ८६; ठा ३, १; कस; कप्पू)।

लंडुअ :: वि [दे. लण्डित] उत्क्षिप्त, 'चंडप्प- वादलंडुओ विअ वरंडो पव्वदादो दूरं आरो- विअ पाडिदो म्हि' (चारु ३)।

लंतक, लंतग, लंतय :: पुं [लान्तक] १ एक देवलोक, छठवाँ देवलोक (भग; औप; अंत; इक) २ एक देवविमान (सम २७; देवेन्द्र १३४) ३ षष्ठ देवलोक के निवासी देव। ४ षष्ठ देवलोक का इन्द्र (राज; ठा २, ३ — पत्र ८५)

लंद :: पुंन [लन्द] काल, समय (कप्प; पव) ७०)।

लंदय :: पुंन [दे] कलिन्दक, गो आदि का खादन-पात्र (पव २)।

लंपड :: वि [लम्पट] लोलुप, लालची, लुब्ध (पाअ; सुपा १०७; ५६९; सुर ३, १०)।

लंपाग :: पुं [लम्पाक] देश-विशेष (पउम ९८, ५९)।

लंपिक्ख :: पुं [दे] चोर, तस्कर (दे ७, १९)।

लंब :: सक [लम्ब्] १ सहारा लेना, आलम्बन करना। २ अक. लटकना। लंबेइ (महा)। वकृ. लंबंत, लंबमाण (औप; सुर ३, ७१; ४, २४२; कप्प; वसु)। संकृ. लंबिऊण (महा)

लंब :: वि [लम्ब] लम्बा, दीर्घ; 'उट्ठा उट्ठस्स चेव लंबा' (उवा; णाया १, ८ — पत्र १३३)।

लंब :: पुं [दे] गोवाट, गो-बाड़ा (दे ७, २६)।

लंबअ :: न [लम्बक] ललन्तिका, नाभि-पर्यन्त लटकती माला आदि (स्वप्‍न ६३)।

लंबणा :: स्त्री [लम्बना] रज्जु, रस्सी (स १०१)।

लंबा :: स्त्री [दे] १ वल्लरी, लता (षड्) २ केश, बाल (षड्; दे ७, २६)

लंबाली :: स्त्री [दे] पुष्प-विशेष (दे ७, १९)।

लंबि :: वि [लम्बिन्] लटकता (गउड)।

लंबिअ, लंबिअय :: वि [लम्बित] १ लटकता हुआ (गा ५३२; सुर ३, ७०) २ पुं वानप्रस्थ का एक भेद (औप)

लंबिर :: वि [लम्बितृ] लटकनेवाला (कुमा; गउड)।

लंबुअ :: वि [लम्बुक] १ लम्बी लकड़ी के अन्त भाग में बँधा हुआ मिट्टी का ढेला। २ भींत में लगा हुआ ईंटों का समूह (मृच्छ ६)

लंबुत्तर :: पुंन [लम्बोत्तर] कायोत्सर्ग का एक दोष, चोलपट्टे को नाभि-मंडल से ऊपर रख- कर और जानु को चोलपट्ट से नीचे रख कर कायोत्सर्ग करना (चेइय ४८४)।

लंबूस :: पुंन [दे. लम्बूष] कन्दुक के आकार का एक आभरण, 'छत्तं चमर-पडाया दप्पण- लंबूसया वियाणं च' (पउम ३२, ७६; ६६, १२)।

लंबोदर, लंबोयर :: वि [लम्बोदर] १ बड़ा पेटवाला (सुख १, १४; उवा) २ पुं. गणपति, गणेश (श्रा १२; कुप्र ६७)

लंभ :: सक [लभ्] प्राप्‍त करना, 'अज्जेवाहं न लंभामि अवि लाभो सुए सिया' (उत्त २, ३१)। भवि. लंभिस्सं (पि ५२५)। कर्म. लंभीअदि, लंभीआमो (शौ) (पि ५४१)। संकृ. लंभिअ, लंभित्ता (मा १९; नाट — चैत ९१; ठा ३, २)।

लंभ :: सक [लम्भय्] प्राप्‍त करना। संकृ. लंभिअ (नाट — चैत ४४)। कृ लंभइदव्व (शौ), लंभणिज्ज, लंभणीअ (मा ५१; नाट — मालती ३६, चैत १२५)।

लंभ :: पुं [लाभ] प्राप्‍ति (पउम १००, ४३; से ११, ३१; गउड; सिरि ८२२; सुपा ३९४)। देखो लाह=लाभ।

लंभण :: पुं [लम्भन] मत्स्य की एक जाति (विपा १, ८ टी — पत्र ८४)।

लंभिअ :: देखो लंभ=लभ्, लम्भय्।

लंभिअ :: वि [लब्ध] प्राप्‍त (नाट — चैत १२५)।

लंभिअ :: वि [लम्भित] प्राप्‍त कराया हुआ, प्रापित (सूअ २, ७, ३७; स ३१०; अच्चु ७१)।

लक्कुड :: न [दे. लकुट] लकड़ी, यष्टि, छड़ी, लाठी (दे ७, १९, पाअ)।

लक्ख :: सक [लक्षय्] १ जानना। २ पहचानना। ३ देखना। लक्खइ (महा)। कर्म. लक्खिज्जए, लक्खीयसि (विसे २१४९; महा; काल)। कवकृ. लक्खिज्जंत (से ११, ४५)। कृ. लक्खणीअ (नाट — शकु २४), देखो लक्ख=लक्ष्य।

लक्ख :: पुंन [दे] काय, शरीर, देह (दे ७, १७)।

लक्ख :: पुंन [लक्ष] संख्या-विशेष, लाख, सौ हजार (जी ४५; सुपा १०३; २४८; कुमा; प्रासू ९९)। °पाग पुं [°पाक] लाख रुपयों के व्यय से बनता एक तरह का पाक (ठा ९)।

लक्ख :: वि [लक्ष्य] १ पहचानने योग्य; 'चिर- लक्खगो' (पउम ८२, ८४) २ जिससे जाना जाय वह, लक्षण, प्रकाशक; 'भुअदप्पबी- अलक्खं चावं' (से ५, १७) ३ वेघ्य, निशाना; 'लक्खविंधण — ' (घर्मवि ५२; दे २, २६; कुमा)

लक्ख° :: देखो लक्खा (पडि)।

लक्खग :: वि [लक्षक] पहचाननेवाला (पउम ८२, ८४; कुप्र ३००)।

लक्खण :: पुंन [लक्षण] १ इतर से भेद का बोधक चिह्न। २ वस्तु-स्वरूप (ठा ३, ३; ४, १; जी ११; विसे २१४६; २१४७; २१४८) ३ चिह्न; 'लक्खणपुर्ण्ण' (कुमा) ४ व्याकरण-शास्त्र; 'लक्खणसाहित्तपमाण- जोइसाईणि सा पढइ' (सुपा १४१; ६५७) ५ व्याकरण आदि का सूत्र। ६ प्रतिपाद्य, विषय (हे २, ३) ७ पुं. लक्ष्मण। ८ सारस पक्षी; 'लक्खणो' (प्राकृ २२) °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-विशेष (सुज्ज १०, २०)।

लक्खण :: पुं [लक्ष्मण] श्रीराम का छोटा भाई (से १, ४८)। देखो लखमण।

लक्खण :: न [लक्षण] कारण, हेतु (दसनि १, १४)।

लक्खणा :: स्त्री [लक्षणा] १ शब्द-वृत्ति विशेष, शब्द की एक शक्ति, जिससे मुख्य अर्थ के बाध होने पर भिन्न अर्थ की प्रतीति होती है (दे १, ३) २ एक महौषधि (ती ५)

लक्खणा :: स्त्री [लक्ष्मणा] १ आठवें जिनदेव की माता (सम १५१) २ उसी जन्म में मुक्ति पानेवाली श्रीकृष्ण की एक पत्‍नी (अंत १५) ३ एक अमात्य की स्त्री (उप ७२८ टी)

लक्खणिय :: वि [लाक्षणिक, लाक्षण्य] १ लक्षणों का जानकार। २ लक्षण-युक्त (सुपा १३६)

लक्खमाण, लखमण :: पुं [लक्ष्मण] विक्रम की बार- हवीं शताब्दी का एक जैन मुनि और ग्रंथाकार (सुपा ६५८)।

लक्खा :: स्त्री [लाक्षा्] लाख, लाह, जतु, चपड़ा (णाया १, १ — पत्र २४; पणह २, ५)। °रुणिय वि [°रुणित] लाख से रँगा हुआ (पाअ)।

लक्खिअ :: वि [लक्षित] १ जाना हुआ। २ पहचाना हुआ। ३ देखा हुआ (गउड; नाट — रत्‍ना १४)

लग :: न [दे] निकट, पास (पिंग)।

लगंड :: न [लगण्ड] वक्र काष्ठ (पंचा १८, १६; स ५९९)। °साइ वि [°शायिन्] वक्र काष्ठ की तरह सोनेवाला (पणह २, १ — पत्र १००; औप; कस; पंचा १८, १६; ठा ५, १ — पत्र २९६)। °सण न [°सन] आसन-विशेष (सुपा ८५)।

लगुड :: देखो लउड (कुप्र ३८९)।

लग्ग :: सक [लग्] लगना, संग करना, संबंध करना। लग्गइ (हे ४, २३०; ४२०; ४२२; प्राकृ ६८; प्राप्र; उव )। भवि. लग्गिस्सं, लग्गिहिइ (पि ५२७)। लग्गंत, लग्गमाण (चेइय ११२; उप ६६६; गा १०५)। संकृ. लग्गूण (कुप्र ६६), लग्गिवि (अप) (हे ४, ३३९)। कृ. लग्गिअव्व (सुर १०, ११२)।

लग्ग :: न [दे] १ चिह्न। २ वि. अघटमान, असम्बद्ध (दे ७, १७)

लग्ग :: न [लग्‍न] १ मेष आदि राशि का उदय (सुर २, १७०; मोह १०१) २ वि. संसक्त, संबद्ध (पाअ; कुमा; सुर २, ५६) ३ पुं. स्तुति-पाठक (हे २, ६८)

लग्गण :: न [लगन] संग, संबन्ध; 'वडपाय- वसाहालग्गणेण' (सुर १५, १४; उप १३४; ५३८)।

लग्गणय :: पुं [लग्‍नक] प्रतिभू, जमानत करनेवाला, जामीन (पाअ)।

लग्गूण :: देखो लग्ग = लग्।

लघिम :: पुंस्त्री [लघिमन्] १ लघुता, लाघव। २ योग की एक सिद्धि, जिसके प्रभाव से मनुष्य छोटा बन सकता है; 'लंघिज्ज लघिमणुणओ अनिलस्सवि लाघवं साहू' (कुप्र २७७) ३ विद्या-विशेष (पउम ७, १३६)

लचय :: न [दे] तृण-विशेष, गण्डुत् तृण (दे ७, १७)।

लच्छ :: देखो लख्ख = लक्ष्य (नाट)।

लच्छ° :: देखो लभ।

लच्छण :: देखो लक्खण = लक्षण (सुपा ९४; प्राकृ २२; नाट — चैत ५५)।

लच्छि°, लच्छी :: स्त्री [लक्ष्मी] १ संपत्ति, वैभव। २ धन, द्रव्य। ३ कान्ति। ४ औषध- विशेषे। ५ फलिनी वृक्ष। ६ स्थल-पद्मिनी। ७ हरिद्रा। ८ मुक्ता, मोती। ९ शटी नामक ओषधि (कुमा; प्राकृ ३०; हे २, १७) १० शोभा (से २, ११) ११ विष्णु-पत्‍नी (पाअ; से २, ११) १२ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, १०) १३ षष्ठ वासुदेव की माता (पउम २०, १८४) १४ पुंडरीक द्रह की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३ — -पत्र ७२) १५ देव-प्रतिमा विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३) १६ छन्द-विशेष (पिंग) १७ एक वणिक्- पत्‍नी (७२८ टी) १८ शिखरी पर्वंत का एक कूट (इक) °निलय पुं [°निलय] वासुदेव (पउम ३७, ३७)। °मई स्त्री [°मती] १ छटवें वासुदेव की माता (सम १५२) २ ग्यारहवें चक्रवर्तीं का स्त्री-रत्‍न (सम १५२) °मंदिर न [°मन्दिर] नगर-विशेष (सुपा ६३२)। °वइ पुं [°पति] लक्ष्मी का स्वामी, श्रीकृष्ण (प्राकृ ३०)। °वई स्त्री [°वती] दक्षिण रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक)। °हर पुं [°धर] १ वासुदेव (पउम ३८, ३४) २ छ छन्द-विशेषन्द- विशेष (पिंग) ३ न. नगर-विशेष (इक)

लजुक :: (अशो) देखो रज्जु = (दे) (कप्प; — रज्जु)।

लज्ज :: अक [लस्ज्] शरमाना। लज्जइ (उव; महा)। कर्मं. लज्जिज्जइ (हे ४, ४१९)। वकृ. लज्जंत, लज्जमाण (उप पृ ५५; महा; आचा)। कृ. लज्जणिज्ज (से ११, २९, णाया १, ८ — पत्र १४३)।

लज्जण, लज्जणय :: न [लज्जन] १ शरम, लाज (सा ८; राज) २ वि. लज्जा- कारक; 'कि्ं एत्तो लज्जणयं. . . . . . जं पह- रिज्जइ दीणे पलायमाणे पमत्ते वा' (सुपा २१५; भवि)

लज्जा :: स्त्री [लज्जा] १ लाज, शरम (औप; कुमा; प्रासू ६६; गा ६१०) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ संयम (भग २, ५; औप)

लज्जापइत्तअ :: (शौ) वि [लज्जयितृ] लजानेवाला; 'जुवइवेसलज्जापइत्तअं' (मा ४२)।

लज्जालु :: वि [लज्जालु] लज्जावान्, शरमिंदा (उप १७९ ठी)।

लज्जालु, लज्जालुआ, लज्जालुँइणी :: स्त्री [लज्जालु] १ लता-विशेष, लाजवंती, लजवनी, छुईमुई (षड्; हे २, १५९; १७४) २ लज्जावाली स्त्री षड्; हे २, १५९, १७४; सुर २, १५९; गा १२७; प्राकृ ३५)

लज्जालुइणी :: स्त्री [दे] कलह-कारिणी स्त्री (षड्)।

लज्जालुइर, लज्जालुर :: वि [लज्जालु] लज्जाशील, शरमिंदा। स्त्री. °री (गा ४८२; ६१२ अ)।

लज्जाव :: सक [लज्जय्] शरमिंदा बनाना, लजवाना। लज्जावेदि (शौ) नाट — मृच्छ ११०)। कृ. लज्जावणिज्ज (स ३६८; भवि)।

लज्जावण :: वि [लज्जन] शरमिन्दा करनेवाला (पणह १, ३ — पत्र ५४)।

लज्जाविय :: वि [लज्जित] लजवाया हुआ (पणह १; ३ — पत्र ५४)।

लज्जिअ :: वि [लज्जित] १ लज्जायुक्त (पाअ) २ न. लज्जा, शरम; 'न लज्जिअं अप्पणोवि पलिआणं' (श्रा १४)

लज्जिर :: वि [लज्जितृ] लज्जा-शील (हे २, १४५; गा १५०; कुमा; वज्जा ८; भवि)। स्त्री. °री (पि ५९६)।

लज्जु :: स्त्री [रज्जु] १ रस्सी, लजुरी, लेजुरी या लेजुर। २ वि. रस्सी की तरह सरल, सीधा; 'चाई लज्जू धन्‍ने तवस्सी' (पणह २, ५ — पत्र १४९; भग)

लज्जु :: वि [लज्जावत्] लज्जावाला; 'एसणा- समिओ लज्जू गामेो अनियओ चरे' (उत्त ६, १७)।

लज्जु :: देखो रिज्जु = ऋजु (भग)।

लज्झ° :: देखो लभ।

लट्ट, लट्टय :: न [दे] १ खसखस आदि का तेल (पभा ३१) २ कुसुम्भ; 'लट्टयव- सणा' (दे ७, १७)

लट्टा :: स्त्री [दे. लट्टा] धान्य-विशेष, कुसुम्भ धान्य (पव १५४)।

लट्टा :: स्त्री [लट्‍वा] १ वृक्ष-विशेष (कुमा) २ कुसुम्भ (बृह १) ३ गौरैया, पक्षि- विशेष। ४ भ्रमर, भौंरा। ५ वाद्य-विशेष (दे २, ५५)

लट्ठ :: वि [दे] १ अन्यासक्त (दे ७, २६) २ मनोहर, सुन्दर, रम्य (दे ७, २६; पाअ; णाया १, १; पणह १, ४; सुर १, २९; कुप्र ११, श्रु ९; पुप्फ ३४; सार्ध २१; धण ५; सुपा १५९) ३ प्रियंवद, प्रिय-भाषी (दे ७, २६) ४ प्रधान, मुख्य; 'खमियव्वो अवराहो ममावि पाविट्ठलट्ठस्स' (उप ७२८ टी) °दंत पुं [°दन्त] १ जैन मुनि (अनु १) २ द्वीप-विशेष, एक अन्तर्द्वीप। ३ द्वीप-विशेष में रहनेवाला मनुष्य (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक)

लट्ठरी :: स्त्री [दे] सुन्दर, रमणीय (कुप्र २१०)।

लट्ठि :: स्त्री [यष्टि] लाठी, छड़ी (औप; कुमा)।

लट्ठिअ :: न [दे] खाद्य-विशेष; 'जेट्ठाहिं लट्टिएणं भोच्चा कज्जं साहिंति' (सुज्ज १०, १७)।

लड़ह :: वि [दे] १ रम्य, सुन्दर (७, १७; सुपा ६; सिरि ४७; ८७५; गउड; औप; कप्प; कुमा, हेका २६५; सण; भवि) २ सुकुमार, कोमल (काप्र ७६५; भवि) ३ विदग्ध, चतुर (दे ७, १७) ४ प्रधान, मुख्य (कुमा)

लडहक्खमिअ :: वि [दे] विघटित, वियुक्त (दे ७, २०)।

लडहा :: स्त्री [दे] विलासवती स्त्री षड्)।

लडाल :: देखो णडाल (प्राकृ ३७; पि २६०)।

लड्डिय :: न [दे] लाड़, छोह, प्यार (भवि)।

लडडुअ, लडडुग :: पुं [लडडुक] लड्डु, मोदक (गा ६४१; प्रयौ ८३; कुप्र २०९; भवि; पउम ८४, ४; पिंड ३७७)।

लड्‍डुयार :: वि [लड्‍ड्रककार] लड्‍डु बनानेवाला, हलवाई (कुप्र २०९)।

लढ :: सक [स्मृ] स्मरण करना, याद करना। लढइ (हे ४, ७४)। वकृ. लढंत (कुमा)।

लढिअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ (पाअ)।

लण्ह :: वि [श्लक्ष्ण] १ चिकना, मसृण (सम १३७; ठा ४, २; औप; कप्पू) २ अल्प, थोड़ा। ३ न. लोहा, धातु-विशेष (हे २, ७७; प्राकृ १८)

लत्त :: वि [लप्त, लपित] उक्त, कथित (सुपा २३४)।

लत्ता, लत्तिआ :: स्त्री [दे] १ लात, पार्ष्णि-प्रहार (सुपा २३८; ठा २, ३ — पत्र ६३) २ आतोद्य-विशेष (ठा २, ३; आचा २, ११, ३)

लदण, लदन :: (मा) देखो रयण = रत्‍न (अभि १८४; प्राकृ १०२)।

लद्द :: सक [दे] भार भरना, बोझ डालना, लादना, गुजराती में 'लादवुं'। हेकृ. लद्देउं (सुपा २७५)।

लद्दाण :: न [दे] भार-क्षेप लादना (स ५३७)।

लद्दी :: स्त्री [दे] हाथी आदि की विष्ठा, गुजराती में 'लीद' (सुपा १३७)।

लद्ध :: वि [लब्ध] प्राप्त (भग; उवा; औप, हे ३, २३)।

लद्धि :: स्त्री [लब्धि] १ क्षयोपशम, ज्ञान आदि के आवरक कर्मों का विनाश और उपशान्ति (विसे २९९७) २ सामर्थ्यं-विशेष, योग आदि से प्राप्त होती विशिष्ट शक्ति (पव २७०; संबोध २८) ३ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९) ४ प्राप्ति, लाभ (भग ८, २) ५ इन्द्रिय और मन से होनेवाला विज्ञान, श्रुत ज्ञान का उपयोग (विसे ४६६) ६ योग्यता (अणु)। °पुलाअ पुं [°पुलाक] लब्धि-विशेष-संपन्न मुनि; 'संघाइयाण लद्धीइ जुओ लद्धिपुलाओ' (संबोध २८)। लद्धिअ वि [लब्ध] प्राप्त (वै ६९)

लद्धिल्ल :: वि [लब्धिमत्] लब्धि-युक्त (पंच १, ७)।

लद्‍धुं, लद्धूण :: देखो लभ।

लप्पसिया :: स्त्री [दे] लपसी, एक प्रकार की पक्वान्न (पव ४)।

लब्भ :: नीचे देखो।

लभ :: सक [लभ्] प्राप्त करना। लभइ, लभए (आचा; कस, विसे १२१५)। भवि. लच्छिसि, लभिस्सं, लभिस्सामि (उव; महा; पि ५२५)। कर्मं. लज्जइ, लब्भइ (महा ६०, १६; हे १, १८७; ४, २४९; कुमा)। संकृ. लभिय, लदधुं, लद्धुण (पंच ५, १६४; आचा; काल)। हेकृ. लद्‍धुं (काल)। कृ. लब्भ (पणह २, १; विसे २८३७; सुपा ११; २३३, स १७५; सण)।

लय :: सक [ला] ग्रहण करना। लएइ, लयंति (उव)। कर्मं — लइज्जइ, लिज्जइ (भवि; सिरि ९९३)। वकृ. लयंत (वज्जा २८; महा; सिरिं ३७५)। संकृ. लइ, लएवि, लएविणु (अप) (पिंग; भवि)। देखो ले = ला।

लय :: न [दे] नव-दम्पति का आपस में नाम लेने का उत्सव (दे ७, १६)।

लय :: देखो लव = लव (गउड; से ५, १४)।

लय :: पुं [लय] १ श्लेष। २ मन की साम्या- वस्था (कुमा) ३ लीनता, तल्लीनता। ४ तिरोभाव (विसे २६६६) ५ संगीत का एक अंग, स्वर-विशेष (स ७०४; हास्य १२३)

लय° :: देखो लया। °हरय न [°गृहक] लता- गृह (सुपा ३८१)।

लय :: पुं [लय] तन्त्री का स्वन — ध्वनि-विशेष। °सम न [°सम] गेय काव्य का एक भेद (दसनि २, २३)।

लयंग :: न [लताङ्ग] संख्या-विशेष, चौरासी लाख पूर्वं; 'पुव्वाण सयसहस्सं चुलसीइगुणं लयंगमिह होइ' (जो २)।

लयण :: वि [दे] १ तनु, कृश, क्षाम (दे ७, २७; पाअ) २ मृदु, कोमल। ३ न वल्ली, लता (दे ७, २७)

लयण :: न [लयन] १ तिरोभाव, छिपना (विसे २८१७; दे ७, २४) २ अवस्थान (सुर ३, २०६) ३ देखो लेण (राज)

लयणी :: स्त्री [दे] लता, वल्ली (पाअ; षड्)।

लया :: स्त्री [लता] १ वल्ली, वल्लरी (पणण १; गा २८; काप्र ७२३; कुमा; कप्प) २ प्रकार, भेद; संघाडो त्ति वा लय त्ति वा पगारो त्ति वा एगट्ठा' (बृह १) ३ तप- विशेष (पव २७१) ४ संख्या-विशेष, चौरासी लाख लतांग-परिमित संख्या (जो २) ५ कम्बा, छड़, यष्टि; 'कसप्पहारे य लयप्पहारे य छिवापहारे य' (णाया १, २ — पत्र ८६; विपा १, ६ — पत्र ६६)। °जुद्ध न [°युद्ध] लड़ने की एक कला, एक तरह का युद्ध (औप)

लयापुरिस :: पुं [दे] वह स्थान, जहाँ पद्म-हस्त स्त्री का चित्रण किया जाय; 'पउमकरा जत्थ वहू लिहिज्जए सो लयपुरिसो' (दे ७, २०)।

लल :: अक [ल्ल, लङ्] १ विलास करना, मौज करना। २ झूलना। ललइ, ललेइ (प्राकृ ७३; सण; महा; सुपा ४०३)। वकृ. ललंत, ललमाण (गा ४४६; सुर २, २३७; भवि; औप; सुपा १८१; १८७)

ललणा :: स्त्री [ललना] स्त्री, महिला, नारी (तंदु ५०; सुपा ४६७)।

ललाड :: देखो णडाल (औप; पि २६०)।

ललाम :: न [ललामन्] प्रधान, नायक (अभि ९५)।

ललिअ :: न [ललित] १ विलास, मौज, लीला (पाअ; पव १६९; औप) २ अंग-विन्साय- विशेष (पणह १, ४) ३ प्रसन्नता, प्रसााद (विपा १, २ टी — पत्र २२) ४ वि. क्रीडा- प्रधान, मौजी (णाया १, १६ — पत्र २०५) ५ शोभा-युक्त, सुन्दर, मनोहर (णाया १, १; औप; राय) ६ मंजु, मधुर (पाअ) ७ ईप्‍सित, अभिलषित (णाया १, ९)। °मित्त पुं [°मित्र] सातवें वासुदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५३; पउम २०, १७१)। °वित्थरा स्त्री [°विस्तरा] आचार्यं श्रीहरिभद्रसूरि का बनाया हुआ एक जैन ग्रन्थ (चेइय २५९)

ललिअंग :: पुं [ललिताङ्ग] एक राज-कुमार (उप ९८६ टी)।

ललिअय :: न [ललितक] छन्द-विशेष (अजि १८)।

ललिआ :: स्त्री [ललिता] एक पुरोहित-स्त्री (उप ७२८ टी)।

लल्ल :: वि [दे] १ सस्पृह, स्पृहावाला। २ न्यून, अधूरा (दे ७, २६)

लल्ल :: वि [लल्ल] अव्यक्त आवाजवाला (पणह १, २)।

लल्क्क :: पुं [लल्लक्क] छठवीं नरक-पृथिवी का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र १२)।

लल्लक्क :: वि [दे] १ भीम, भयंकर (दे ७, १८; पाअ; सुर १६, १४८); 'लल्लक्कनरयविअणाओ' (भत्त ११०)। २ पुं. ललाकार, लड़ाई आदि के लिए आह्वान (उप ७६८ टी)

लल्लि :: स्त्री [दे] खुशामद (धर्मंवि ३८; जय १९)।

लल्लिरी :: स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल- विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।

लव :: सक [लू] काटना। संकृ. लविऊण। हेकृ. लविउं। कृ. लविअव्व (प्राकृ ६९)।

लव :: सक [लप्] बोलना, कहना। लवइ (कुमा; संबोध १८; सण), लवे (भास ९६)। वकृ. लवंत, लवमाण (सुपा २९७; सुर ३, ९१)।

लव :: सक [प्र + वर्तर्य] प्रवृत्ति कराना; 'णो विज्जू लवंति' (सुज्ज २०)।

लव :: वि [लप] वाचाट, बकवादी (सूअ २, ६, १५)।

लव :: पुं [लव] १ समय का एक सूक्ष्म परि- माण, सात स्तोक, मुहुर्त्तं का सतरहवाँ अंश (ठा २, ४ — पत्र ८६; सम ८५) २ लेश, अल्प, थोड़ा (पाअ; प्रासू ९९; ११८; सण) ३ न. कर्मं. (सूअ १, २, २, २०; २, ६, ६)। °सत्तम पुं [°सप्तम] अनुत्तरविमान निवासी देव, सर्वोत्तम देव-जाति (पणह २, ४; उव; सूअ १, ६, २४)

लवअ :: पुं [दे. लवक] गोंद, लासा, चेप, निर्याास; 'लवओ गुंदो' (पाअ)।

लवइअ :: वि [दे. लवकित] नूतन दल से युक्त, अंकुरित, पल्लवित (औप; भग; णाया १, १ टी — पत्र ५)।

लवंग :: पुंन [लवङ्ग] १ वृक्ष-विशेष, लौंग का पेड़ (पणण १ — पत्र ३४; कुप्र २४९) २ वृक्ष- विशेष का फूल, लौंग (णाया १, १ — पत्र १२; पणह २, ५)

लवण :: न [लवन] छेदन, काटना (विसे ३२०९)।

लवण :: न [लवण] १ लोन, नून, नोन, नमक (कुमा) २ पुं. रस-विशेष, क्षार रस (अणु) ३ समुद्र-विशेष (सम ६७; णाया १, ९; पउम ९९, १८) ४ सीता का एक पुत्र, लव (पउम ९७, १९) ५ मधुराज का एक पुत्र (पउम ८६, ४७)। °जल पुं [°जल] लवण समुद्र (पउम ५७, २७)। °य पुं [°दे] लवण समुद्र (पउम ६४, १३)। देखो लोण।

लवणिम :: पुंस्त्री [लवणिमन्] लावणय (कुमा)।

लवल :: न [लबल] पुष्प-विशेष (कुमा)।

लवली :: स्त्री [लवली] लता-विशेष (सुपा ३८; कुप्र २४९)।

लवव :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ (षड्)।

लविअ :: वि [लपित] उक्त, कथित (सूअ १, ९, ३५; कुमा; सुपा २९७)।

लवित्त :: न [लवित्र] दात्र, दाँती, हँसुआ या हँसिया, घास काटने का एक औजार (दे १, ८२)।

लविर :: वि [लपितृ] बोलनेवाला (सण)। स्त्री. °रा (कुमा)।

लस :: अक [लस्] १ श्लेष करना। २ चमकना। ३ क्रीडा करना। लसइ (प्राकृ ७२)। वकृ. लसंत (सण)

लसइ :: पुं [दे] काम, कन्दर्पं (दे ७, १८)।

लसक :: न [दे] तरु-क्षीर, पेड़ का दूध (दे ७, १८)।

लसण :: देखो लसुण (सूअ १, ७, १३)।

लसिर :: वि [लसितृ] १ श्लिष्ट होनेवाला। २ चमकनेवाला, दीप्र (से ८, ४४)

लसुअ :: न [दे] तैल, तेल (दे ७, १८)।

लसुण :: न [लशुन] लहसुन, कन्द-विशेष (श्रा २०)।

लह :: देखो लभ। लहइ, लहेइ, लहए (महा; पि ४५७)। भवि. लहिस्सामो (महा)। कर्मं. लहिज्जइ (हे ४, २४९)। वकृ लहंत (प्रारू)। संकृ. लहिउं, लहिऊण (कुप्र १; महा)। लहेप्पि, लहेप्पिणु, लहेवि (अप; पि ५८८)। कृ. लहणिज्ज, लहिअव्व (श्रा १४; सुर ६, ५३; सुपा ४२७)।

लहग :: पुं [दे] बासी अन्‍न में पैदा होनेवाला द्विन्द्रिय कीट-विशेष (जी १५)।

लहण :: न [लभन] १ लाभ, प्राप्ति। २ ग्रहण, स्वीकार (श्रा १४)

लहर :: पुं [लहर] एक वणिक्-पुत्र (सुपा ६१७)।

लहरि, लहरी :: स्त्री [लहरि, °क] तरंग, कल्लोल (सण; प्रासू ६९; कुमा)।

लहाविअ :: वि [लम्भित] प्राप्तित, प्राप्त कराया हुआ (२३२)।

लहिअ :: देखो लद्ध (कप्प; पिंग)।

लहिम :: देखो लघिम (षड्)।

लहु, लहुअ :: वि [लघु] १ छोटा, जघन्य (कुमा; सुपा ३६०; कम्म ४, ७२; महा) २ हलका (से ७, ४४; पाअ) ३ तुच्छ, निःसार (पणह १, २ — पत्र २८, पणह २, २ — पत्र ११९) ४ श्‍लाघनीय, प्रशंसनीय (से १२, ५३) ५ थोड़ा, अल्प (सुपा ३५४) ६ मनोहर सुन्दर (हे २, १२२)। स्त्री. °ई, °वी (षड्; प्राकृ २८; गउड; हे २, ११३) ७ न. कृष्णगुरु, सुगन्धि धूप- द्रव्य विशेष। ८ वीरण-मूल (हे २, १२२) ९ शीघ्र, जल्दी (द्र ४६; पणह २, २ — पत्र ११९) १० स्पर्श-विशेष (अणु) ११ लघुस्पर्श नामक एक कर्मंभेद (कम्म १, ४१)। १२ पुं. एक मात्रावाला अक्षर (हे ३, १३४)। °कम्म वि [°कर्मन्] जिसके अल्प ही कर्मं अवशिष्ट रहे हों, शीघ्र मुक्ति-गामी (सुपा ३५४)। °करण न [°करण] दक्षता, चातुरी (णाया १, ३ — पत्र ९२; उवा)। °परक्कम पुं [°पराक्रम] ईशानेन्द्र का एक पदाति-सेनापति (ठा ५, १ — पत्र ३०३; इक)। °संखिज्ज न [°संख्येय] संख्या-विशेष, जघन्य संख्यात (कम्म ४, ७२)

लहुअ :: सक [लघय्, लघु + कृ] लघु करना, छोटा करना। लहुअंति, लहुएसि (श्रा २०; गा ३४५)। वकृ. लहुअंत (से १५, २७)।

लहुअवड :: पुं [दे] न्यग्रोध वृक्ष, बरगद के पेड़ (दे ७, २०)।

लहुआइअ, लहुइअ :: वि [लघूकृत] लघु किया हुआ (से ६, ४; १२, ५४, स २०७; गउड)।

लहुई :: देखो लहु।

लहुग :: देखो लहु (कप्प; द्र ५८)।

लहुवी :: देखो लहु।

लाइअ :: वि [लागित] लगाया हुआ (से २, २६; वज्जा ५०)।

लाइअ :: वि [दे] १ गृहीत, स्वीकृत (दे ७, २७) २ घृष्ट (से २, २६) ३ न. भूषा, मण्डन (दे ७, २७) ४ भूमि को गोबर आदि से लीपना (सम १३७; कप्प, औघ; णाया १, १ टी — पत्र ३) ५ चर्मार्धं, आधा चमड़ा (दे ७, २७)

लाइअव्व :: देखो लाय = लावय्।

लाइज्जंत :: देखो लाय = लागय्।

लाइम :: वि [लव्य] काटने योग्य (दस ७, ३४)।

लाइम :: वि [दे] १ लाजा के योग्य, खोई के योग्य। २ रोपण के योग्य, बोने लायक (आचा २, ४, २, १५)

लाइल्ल :: पुं [दे] वृषभ, बैल (दे ७, १९)।

लाउ :: देखो अलाउ (हे १, ६६; भग; कस; औप)।

लाउल्लोइय :: न [दे] गोमय आदि से भूमि का लेपन और खड़ी आदि से भीत आदि का पोतना (राय ३५)।

लाऊ :: देखो अलाऊ (हे १, ६६; कुमा)।

लाख :: (अप) देखो लक्ख = लक्ष (पिंग)।

लाग :: पुं [दे] चुंगी, एक प्रकार का सरकारी कर; 'लगान, गुजराती में लागो' (सिरि ४३३, ४३४)।

लाघव :: न [लाघव] लघुता, छोटाई, लघुपन (भग; कप्प; सुपा १०३; कुप्र २७७; किरात १९)।

लाघवि :: वि [लाघविन्] लघुता-युक्त, लाघववाला (उत्त २९, ४२; आचा)।

लाघविअ :: न [लाघविक] लघुता, छोटापन, लाघव (ठा ५, ३ — पत्र ३४२; विसे ७ टी; सूअ २, १, ५७; भग)।

लाज :: देखो लाय = लाज (दे ५, १०)।

लाड :: पुं [लाट] देश-विशेष (सुपा ६५८; कुप्र २५४; सत्त ६७ टी; भवि; सण; इक)।

लाडी :: स्त्री [लाटी] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

लाढ :: पुं [लाढ] देश-विशेष, एक आर्यं देश (आचा; पव २७५; विचार ४९)।

लाढ :: वि [दे] १ निर्दोष आहार से आत्मा का निर्वाह करनेवाला, संयमी, आत्म-निग्रही (सूअ १, १०, ३; सुख २, १८) २ प्रधान, मुख्य (उत्त १५, २) ३ पुं. एक जैन आचार्यं (राज)

लाढ :: वि [दे] श्रेष्ठ, उत्तम (आचा २, ३, १, ५)।

लाण :: न [लान] ग्रहण, आदान (से ७, ६०)।

लावू :: देखो लाऊ (षड्)।

लाभ :: पुं [लाभ] १ नफा, फायदा (उव; सुख ८, १३) २ प्राप्रि (ठा ३, ४) ३ सूद, ब्याज (उप ९५७)

लभंतराइय :: न [लाभान्तरायिक] लाभ का प्रतिबन्धक कर्म (धर्मंसं ९४८)।

लाभिय, लाभिल्ल :: वि [लाभिक] लाभ-युक्त, लाभवाला (औप; कर्मं १७)।

लाम :: वि [दे] रम्य, सुन्दर (औप)।

लामंजय :: न [दे] तृण-विशेष, उशीर तृण, खस — गाँडर घास की जड़ (पाअ)।

लामा :: स्त्री [दे] डाकिनी, डाइन (दे ७, २१)।

लाय :: सक [लागय्] लगाना, जोड़ना। लाएसि (विसे ४२३)। वकृ. लायंत (भवि)। कवकृ. लाइज्जंत (से १३, १३)। संकृ. लाइवि (अप) (हे ४, ३३१; ३७८)।

लाय :: सक [लावय्] १ कटवाना। २ काटना, छेदना। कृ. लाइअव्व (से १५, ७५)

लाय :: देखो लाइअ = (दे); 'लाउल्लोइय' (ओप)।

लाय :: वि [लात] १ आत्त, स्वीकृत, गृहीत। २ न्यस्त, स्थापित (औप) ३ न. लग्‍न का एक दोष, 'लायाइदोसमुक्कं नरवर अइसोहणं लग्गं' (सुपा १०८)

लाय :: पुंस्त्री [लाज] १ आर्द्रं तण्डुल। २ ब. भ्रष्ट धान्य, भुँजा हुआ नाज, खोई (कप्पू)

लायण :: न [लागन] लगवाना (गा ४५८)।

लायण्ण :: न [लावण्य] १ शरीर-सौन्दर्यं-विशेष, शरीरकान्ति (पाअ; कुमा; सण, पि १८६) २ लवणत्व, क्षारत्व (हे १, १७७; १८०)

लाल :: सक [लालय्] स्‍नेह-पूर्वंक पालन करना। लालंति (तंदु ५०)। कवकृ. लालिज्जंत (सुर २, ७३; सुपा २४)।

लालंप :: अक [वि + लप्] विलाप करना, विकल होकर रोना। लालंपइ (प्राकृ ७३)।

लालंपिअ :: न [दे] १ प्रवाल। २ खलीन। ३ आक्रन्दित (दे ७, २७)

लालंभ :: देखो लालंप। लालंभइ(प्राकृ ७३)।

लालण :: न [लालन] स्‍नेह-पूर्वंक पालन (पउम २६, ८८)।

लालप्प :: देखो लालंप। लालप्पइ (प्राकृ ७३)।

लालप्प :: सक [लालप्य्] १ खूब बकना। २ बारबार बोलना। ३ गर्हित बोलना। लालप्पइ (सूअ १, १०, १९)। वकृ. लालप्पमाण (उत्त १४, १०; आचा)

लालप्पण :: न [लालपन] गर्हित जल्पन (पणह १, ३ — पत्र ४३)।

लालब्भ, लालम्ह :: देखो लालंप। लालब्भइ, लालम्हइ (प्राकृ ७३; धात्वा १५०)।

लालय :: न [लालक] लाला, लार (दे ५, १९)।

लालस :: वि [दे] १ मृदु, कोमल। २ स्त्रीन. इच्छा (दे ७, २१)

लालस :: वि [लालस] लम्पट, लोलुप (पाअ; हे ४, ४०१)।

लाला :: स्त्री [लाला] लार, मुँह से गिरता जल- लव (औप; गा ५५१; कुमा; सुपा २२६)।

लालिअ :: देखो ललिअ; 'कुसुमअहरिअंदण- कणयंदडपरिरंभलालिअंगीओ' (गउड)।

ललिअ :: वि [लालित] स्‍नेह-पूर्वंक पालित (भवि)।

लालिच :: (अप) पुं [नालिच] वृक्ष-विशेष (पिंग)।

लालिल्ल :: वि [लालावत्] लारवाला (सुपा ५३१)।

लाव :: सक [लापय्] बुलवाना, कहलाना। लावएज्जा (सूअ १, ७, २४)।

लाव :: देखो लावग (उप ५०७)।

लावंज :: न [दे] सुगन्धी तृण विशेष, उशीर, खस (दे ७, २१)।

लावक, लावग :: पुं [लावक] १ पक्षि-विशेष (विफा १, ७ — पत्र ७५; पणह १, १ — पत्र ८) २ वि. काटनेवाला (विसे ३२०९)

लावणिअ :: वि [लावणिक] लावण से संस्कृत (विपा १, २ — पत्र २७)।

लावण्ण, लावन्न :: देखो लायण्ण (औप; रंभा; काल; अभि ९२; भवि)।

लावय :: देखो लावग (उवा)।

लाविय :: (अप) वि [लात] लाया हुआ (भवि)।

लाविया :: स्त्री [दे] उपलोभन (सूअ १, २ १, १८)।

लाविर :: वि [लवितृ] काटनेवाला (गा ३५५)।

लाव :: सक [लासय्] नाचना। लासंति (राय १०१)।

लास :: न [लास्य] १ भरतशास्त्र-प्रसिद्ध गेयपद आदि (कुमा) २ नृत्य, नाच (पाअ) ३ स्त्री का नाच। ४ वाद्य, नृत्य और गीत का समुदाय (हे २, ९२)

लासक, लासग :: पुं [लासक] १ रास गानेवाला। २ जय शब्द बोलनेवाला, भाण्ड (णाय़ा १, १ टी — पत्र २; औप; पणह २, ४ — पत्र १३२; कप्प)

लासय :: पुं [लासक, ह्‍लासक] १ अनार्य देश-विशेष। २ पुंस्त्री. अनार्य देश-विशेष का रहनेवाला। स्त्री. °सिया (औप; णाया १, १ — पत्र ३७; इक; अंत)। देखो ल्हासिय।

लासयविहय :: पुं [दे. लासकविहग] मयूर, मोर (दे ७, २१)।

लाह :: सक [श्लाघ्] प्रशंला करना। लाहइ (हे १, १८७)।

लाह :: देखो लाभ (उव; हे ४, ३९०; श्रा १२; णाया १, ९)।

लाहण :: न [दे] भोज्य-भेद, खाद्य वस्तु की भेंट (दे ७, २१; ६, ७३; सट्ठि ७८ टी; रंभा १३)।

लाहल :: देखो णाहल (से १, २५६; कुमा)।

लाहव :: देखो लाघव (किरात १७)।

लाहवि :: देखो लाघवि (भवि)।

लाहविय :: देखो लाघविअआ (राज)।

लिअ :: सक [लिप्] लेपन करना, लीपना। लिअइ (प्राकृ ७१)।

लिअ :: वि [लिप्त] १ लीपा हुआ (गा ५२८) २ न. लेप (प्राकृ ७७)

लिआर :: पुं [लृकार] 'लृ' वर्णं (प्राकृ ९)।

लिंक :: पुं [दे] बाल, लड़का (दे ७, २२)।

लिंकिअ :: वि [दे] १ आक्षिप्‍त। २ लीन (दे ७, २८)

लिंखय :: देखो लंख (सुपा ३५९)।

लिंग :: सक [लिंङग्] १ जानना। २ गति करना। ३ आलिंगन करना। कर्मं. लिगिंज्जइ (संबोध ५१)

लिंग :: न [लिङ्गं] १ चिह्न, निशानी (प्रासू २४; गउड) २ दार्शंनिकों का वेष-धारण साधु का अपने धर्म के अनुसार वेष (कुमा; ' विसे १५८५; टि; ठा ५, १ — पत्र ३०३) ३ अनुमान प्रमाण का साधक हेतु (विसे १५५०) ४ पुंश्चिह्न, पुरुष का असाधारण चिह्न (गउड) ५ शब्द का धर्मं-विेशेष, पुंलिंग आदि (कुमा, राज)। °द्धय पुं [°ध्वज] वेषधारी साधु (उप ४८६)। °जीव पुं [°जीव] वही अर्थं (ठा ५, १)

लिंगि :: वि [लिङ्गिन्] १ साध्य, हेतु से जानी जाती वस्तु (विसे १५५०) २ किसी धर्मं के विष को धारण करनेवाला, साधु, संन्यासी (पउम २२, ३; सुर २, १३०)। स्त्री. °णी (पुप्फ ४५४)

लिंगिय :: वि [लैङ्गिक] १ अनुमान प्रमाण (विसे ९५) २ किसी धर्मं के विष को धारण करनेवाला साधु, संन्यासी (मोह १०१)

लिंछ :: न [दे] १ चुल्ली-स्थान, चुल्हा का आश्रय। २ अग्‍नि-विशेष (ठा ८ टी — पत्र ४१९)। देखो लिच्छ।

लिंड :: न [दे] १ हाथी आदि की विष्ठा; गुजराती में 'लीद' (णाया १, १ — पत्र ६३; उप २६४ टी; ती २) २ शैवल-रहित पुराना पानी (पणह २, ५ — पत्र १५१)

लिंडिया :: स्त्री [दे] अज-बकरा आदि की विष्ठा, लोंड़ी, गुजराती में 'लिंडी' (उप पृ २३७)।

लिंत :: देखो ले = ला।

लिंप :: सक [लिप्] लीपना, लेप करना। लिंपइ (हे ४, १४९; प्राकृ ७१)। कर्मं. लिप्पइ (आचा)। वकृ. लिंपेमाण (णाया १, ६)। कवकृ. लिप्पंत, लिप्पमाण (ओघभा १९५; रयण २९)।

लिंपण :: न [लेपन] लेप, लीपना (पिंड २४६; सुपा ६१९)।

लिंपाविय :: वि [लेपित] लेप कराया हुआ (कुप्र १४०)।

लिंपिय :: वि [लिप्‍त] लीपा हुआ (कुमा)।

लिंब :: पुं [निम्ब] वृक्ष-विशेष, नीम का पेड़, मराठी में 'लिंब' (हे १, २३०; कुमा; स ३५)।

लिंब :: वि [दे] १ कोमल। २ नम्र (राय ३५)। लिंब पुं [दे. लिम्ब] आस्तरण-विशेष (णाया १, १ — पत्र १३)

लिंबड :: (अप) देखो लिंब = निम्ब; गुजराती में 'लिंबडो' (हे ४, ३८७; परि २४७)।

लिंबोहली :: स्त्री [दे] निम्ब-फल (सूक्त ८९)।

लिकार :: देखो लिआर (पि ५९)।

लिक्क :: अक [नि + ली] छिपाना। लिक्कइ (हे ४, ५५; षड्)। वकृ. लिक्कंत (कुमा)।

लिक्ख :: न [लेख्य] लेखा, हिसाब; 'लिक्खं गणिऊण चिंतए सिट्ठी' (सिरि ४१८; सुपा ४२५)। देखो लेक्ख।

लिक्ख :: स्त्रीन [दे] छोटा स्रोत (दे ७, २१)। स्त्री. °क्खा (दे ७ २१)।

लिक्खा :: स्त्री [लिक्षा] १ लघु यूका, छोटा जूँ, लीख — सर के बालों में होता कीड़ा (दे ८, ६६; सं ९७) २ परिमाण-विशेष (इक)

लिखाप :: (अशो) सक [लेखय्] लिखवाना। भवि. लिखापयिस्सं (पि ७)।

लिखापित :: (अशो) वि [लेखित] लिखवाया हुआ (पि ७)।

लिच्छ :: सक [लिप्स्] प्राप्‍त करने को चाहना। लिच्छइ (हे २, २१)।

लिच्छ :: देखो लिंछ (ठा ८ — पत्र ४३७)।

लिच्छवि :: देखो लेच्छइ = लेच्छकि (अंत)।

लिच्छा :: स्त्री [लिप्सा] लाभ की इच्छा (उफ ९३०; प्राकृ २३)।

लिच्छु :: वि [लिप्सु] लाभ की चाहवाला (सुख ६, १; कुमा)।

लिज्जिअ :: (अप) वि [लात] गृहीत (पिंग)।

लिट्टिअ :: न [दे] १ चाटु, खुशामद (दे ७, २२) २ वि. लम्पट, लोलुप (सुपा ५९३)

लिट्‍ठु :: देखो लेट्‍ठु (वसु)।

लित्त :: वि [लिप्त] १ लेप-युक्त, लिपा हुआ (हे १, ६; कुमा; भवि) २ संवेष्टित (सूअ १, ३, ३, १३)

लित्ति :: पुंस्त्री [दे] खङ्ग् आदि का दोष (दे ७, २२)।

लिप्प :: देखो लित्त (गा ५१९; गउड)।

लिप्प :: देखो लेप्प (कुप्र ३८४)।

लिप्पंत, लिप्पमाण :: देखो लिंप।

लिप्पासण :: न [लिप्यासन] मसी-भाजन, दोत, दोआत, दावात (राय ९६)।

लिब्भंत :: देखो लिह = लिह्।

लिल्लिर :: वि [दे] १ हरा, आर्द्रं। २ हरा रँगवाला; 'अइलिल्लिरपट्टवंधणमिसेण चोरसु पट्टबंधं व जो फुंडं तत्थ उव्वहइ' (धर्मंवि ७३)

लिवि, लिवी :: स्त्री [लिपि, °पी] अक्षर-लेखन-प्रक्रिया (सम ३५; भग)।

लिस :: अक [स्वप्] सोना, सूतना, शयन करना। लिसइ (हे ४, १४६)।

लिस :: सक [श्लिष्] आलिंगन करना। भवि. लिसिस्सामो (सूअ २, ७, १०)।

लिसय :: वि [दे] तनूकृत, क्षीण (दे ७, २२)।

लिस्स :: देखो लिस = श्लिष्। लिस्संति (सूअ १, ४, १, २)।

लिह :: सक [लिख्] १ लिखना। २ रेखा करना। लिहइ (हे १, १८७; प्राकृ ७०)। कर्म. लिक्खइ (उव)। प्रयो. लिहावेइ, लिहावंति (कुप्र ३४८; सिरि १२७८)

लहि :: सक [लिह्] चाटना। लिहइ (कुमा; प्राकृ ७०)। कर्म. लिहिज्जइ, लिब्भइ (हे ४, २४५)। वकृ. लिहंत (भत्त १४२)। कवकृ. लिब्भंत (से ९, ४१)। कृ. लेज्झ (णाया १, १७ — पत्र २३२)।

लिहण :: न [लेहन] चाटन (उर १, ८; षड्; रंभा १६)।

लिहण :: न [लेखन] १ लिखना, लेख (कुप्र ३६८) २ रेखा-करण (तंदु ५०) ३ लिखवाना; 'पवयणलिहणं सहस्से लक्खे जिणभवणकारवणं' (संबोध ३६)

लिहा :: स्त्री [लेखा] देखो रेहा = रेखा; 'इक्क च्चिय मह भइणी मयणा धन्‍नाण धू (? धु) रि लहइ लिहं' (सिरि ९७७)।

लिहावण :: न [लेखन] लिखवाना (उप ७२४)।

लिहाविय :: वि [लेखित] लिखवाया हुआ (स ९०)।

लिहिअ :: वि [लिखित] १ लिखा हुआ (प्रासू ५८) २ उल्लिखित (उवा) ३ रेखा किया हुआ, चित्रित (कुमा)

लिह्‌णअ :: (अप) वि [लात] लिया हुआ, गृहीत (पिंग)।

लीढ :: वि [लीढ] १ चाटा हुआ (सुपा ६५१) २ स्पृष्ट; 'नरिंदसिरि (? सिर) कुसुमलीढपायवीढं' (कुप्र ५) ३ युक्त (पव १२५)

लीण :: वि [लीन] लय-युक्त (कुमा)।

लील :: पुं [दे] यज्ञ (दे ७, २३)।

लीला :: स्त्री [लोला] १ विलास, मौज। २ क्रीड़ा (कुमा; पाअ; प्रासू ९१) ६ छन्द-विशेष (पिंग) °वई स्त्री [°वती] १ विलास- वती स्त्री प्रासू ९१) २ छन्द-विशेष (पिंग)। °वह वि [°वह] लीला-वाहक (गउड)

लीलाइअ :: न [लीलायित] १ क्रीड़ा, 'केलि (कप्पू) २ प्रभाव; 'धम्मस्स लीलाइयं' (उप १०३१ टी)

लीलाय :: सक [लीलाय्] लीला करना। वकृ. लीलायंत (णाया १, १ — पत्र १३; कप्प)। कृ. लीलाइयव्व (गउड)।

लीव :: पुं [दे] बाल, बालक (दे ७, २२, सुर १५, २१८)।

लीहा :: देखो लिहा (णाया १, ८ — पत्र १४५; कुमा; भवि; सुपा १०९; १२४)।

लुअ :: सक [लू] छेदना, काटना। लुएज्जा (पि ४७३)।

लुअ :: दखो लुंप। लुअइ (प्राकृ ७१)।

लुअ :: वि [लून] काटा हुआ, छिन्न (हे ४, २५८; गा ८; से ३, ४२; दे ७, २३; सुर १३, १७५; सुपा ५२४)।

लुअ :: वि [लुप्त] १ जिसका लोप किया गया हो वह। २ न. लोप (प्राकृ ७७)

लुअंत :: वि [लूनवत्] जिसने छेदन किया हो वह (धात्वा १५१)।

लुंक :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ (दे ७, २३)।

लुंकणी :: स्त्री [दे] लुकना, छिपना (दे ७, २४)।

लुंख :: पुं [दे] नियम (दे ७, २३)।

लुंखाय :: पुं [दे] निर्णंय (दे ७, २३)।

लुंखिअ :: वि [दे] कलुष, मलिन (से १५, ४२)।

लुंच :: सक [लुञ्‍च] १ बाल उखाड़ना। २ अपनयन करना, दूर करना। लुंचइ (भवि)। भूका. लुंचिंसु (आचा)

लुंचिअ :: वि [लुञ्चित] केश-रहित किया हुआ, मुण्डित (कुप्र २९२; सुपा ६४१)।

लुंछ :: सक [मृज्, प्र + उञ्‍छ्] मार्जंन करना, पोंछना। लुंछइ (हे ४, १०५; प्राकृ ६७; धात्वा १५१)। वकृ. लुंछंत (कुमा)।

लुंट :: सक [लुण्ट्] लूटना। लुंटंति (सुपा ३५२)। वकृ. लुंटंत (धर्मंवि ११३)। कवकृ. लुंटिज्जंत (सुर २, १४)।

लुंटण :: न [लुण्टन] लूट (सुर २, ४९; कुमा)।

लुंटाक :: वि [लुण्टाक] लूटनेवाला, लुटेरा (धर्मंवि १२३)।

लुंठग :: वि [लुण्ठक] खल, दुर्जंन; 'चडवंद- वेढिआ उवहसिज्जमाणा लुंठगलसोएण, अणुः कंपिज्जंती धम्मिअजणेण' (सुख २, ९)।

लुंठिअ :: वि [लुण्ठित] बलाद् गृहीत, जबर- दस्ती से लिया हुआ (पिंग)।

लुंप :: सक [लुप्] १ लोप करना, विनाश करना। २ उत्पीड़न करना। लुंपइ, लुंपहा (प्राकृ ७१; सूअ १, ३, ४, ७)। कर्म. लुप्पइ (अचा), लुप्पए (सूअ १, २, १, १३)। कवकृ. लुपंत, लुप्पमाण (पि (पि ५४२; उवा)। संकृ. लुंपित्ता (पि ५८२)

लंपुइत्तु :: वि [लोपयितृ] लोप करनेवाला (आचा; सूअ २, २, ६)।

लुंपणा :: स्त्री [लोपना] विनाश (पणह १, १ — पत्र ६)।

लुंपित्तु :: वि [लोप्‍तृ] लोप करनेवाला (आचा)।

लुंबी :: स्त्री [दे. लुम्बी] १ स्तबक, फलों का गुच्छा (दे ७, २८; कुमा; गा ३२२; कुप्र ४६०) २ लता, वल्ली (दे ७, २८)

लुक्क :: अक [नि + ली] लुकना, छिपना। लुक्कइ (हे ४, ५५; षड्)। वकृ. लक्कंत (कुमा; वज्जा ५६)।

लुक्क :: अक [तुड्] टूटना। लुक्कइ (हे ४, ११६)।

लुक्क :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ (षड्)।

लुक्क :: वि [नीलीन] लुका हुआ, छिपा हुआ (गा ४९; ५५८; पिंग)।

लुक्क :: वि [रुग्ण] १ भग्‍न (कुमा) २ बीमार, रोगी (हे २, २)

लुक्क :: वि [लुञ्चित] मुण्डित, केश-रहित (कप्प; पिंड २१७)।

लुक्कमाण :: देखो लोअ = लोक्।

लुक्किअ :: वि [तुडित] टूटा हुआ, खण्डित (कुमा)।

लुक्किअ :: वि [निलीन] लुका हुआ, छुपा हुआ (पिंग)।

लुक्ख :: पुं [रुक्ष्] १ स्पर्शं विशेष, लूखा स्पर्शं (ठा १, सम ४१) २ वि. रुक्ष स्पर्शवाला, स्‍नेह रहित, लूखा, रूखा (णाया १, १ — पत्र ७३; कप्प; औप)। देखो लूह = रूक्ष।

लुग्ग :: वि [दे. रुग्ण] १ भग्‍न, भाँगा हुआ (दे ७, २३; हे २, २; ४, २५८) २ रोगी, बीमार (हे २, २; ४, २५८ षड्)

लुच्छ :: देखो लुंछ = मृज्। लुच्छइ (षड्)।

लुट्ट :: सक [लुण्ट्] लूटना। लुट्टइ (षड्)।

लुट्ट :: देखो लोट्ट = स्वप्। लुट्टइ (कुमा ६, १००)।

लुट्ठ :: वि [लुण्टित] लूटा गया (धर्मवि ७)।

लुट्ठ :: पुं [लोष्ट] रोड़ा, ढेला, ईंट आदि का टुकड़ा (दे ७, २९)।

लुड्‍ढ :: देखो लुद्ध (प्राकृ २१)।

लुढ :: अक [लुठ्] लुढ़कना, लेटना। वकृ. लुढमाण (स २५४)।

लुढिअ :: वि [लुठित] लेटा हुआ (सुपा ५०३; स ३६९)।

लुण :: देखो लुअ = लू। लुणइ (हे ४, २४१)। कर्मं. लुणिज्जइ, लुव्वइ (प्राप्र, हे ४, २४२)। संकृ. लुणिऊण, लुणेऊण (प्राकृ ६९; षड्), लुणेप्पि (अप) (पि ५८८)।

लुणिअ :: वि [लून] काटा हुआ (धर्मंवि १२९; सिरि ४०४)।

लुत्त :: वि [लुप्त] लोप-प्राप्त; 'करेइ लुत्तो इकारो त्थ' (चेइय ६७७)।

लुत्त :: न [लोप्त्र] चोरी का माले (श्रावक ९३ टी)।

लुद्ध :: पुं [लुब्ध] १ व्याध (पणह १, २; निचू ४) २ वि. लोलुप, लम्पट (पाअ; विपा १, ७ — पत्र ७७; प्रासू ७६) ३ न. लोभ (बृह ३)

लुद्ध :: न [लोध्र] गन्ध-द्रव्य-विशेष; 'सिणाणं अदुवा कक्कं लुद्धं पउमगाणि अ' (दस ६, ६४)। देखो लोद्ध = लोध्र।

लुद्ध :: पुंन [लोध्र] क्षार-विशेष (आचा २, १३, १)।

लुप्पंत, लुप्पमाण :: देखो लुंप।

लुब्भ, लुम :: अक [लुभ्] १ लोभ करना। २ आसक्ति करना। लुब्भइ, लुब्भसि (हे ४, १५३; कुमा), लुभइ (षड्)। कृ. लुभियव्व (पणह २, ५ — पत्र १४९)

लुभ :: देखो लुह = मृज्। लुभइ (संक्षि ३५)।

लुरणी :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (दे ७, २४)।

लुल :: देखो लुढ। लुलइ (पिंग)। वकृ. लुलंत, लुलमाण (सुपा ११७; सुर १०, २३१)।

लुलिअ :: वि [लुठित] लेटा हुआ (सुर ४, ६८)।

लुलिअ :: वि [लुलित] घुर्णित, चलित (उवा; कुमा; काप्र ८६३)।

लुब :: देखो लुअ = लू। लुवइ (धात्वा १५१)।

लुव्व° :: देखो लुण।

लुह :: सक [मज्] मार्जंन करना, पोंछना। लुहइ (हे ४, १०५; षड्; प्राकृ ६६; भवि)।

लुहण :: न [मार्जन] शुद्धि (कुमा)।

लूअ :: देखो लूअ = लून (षड्)।

लूआ :: स्त्री [दे] मृग-तृष्णा, सूर्यं-किरण में जल की भ्रान्ति (दे ७, २४)।

लूआ :: स्त्री [लूता] १ वातिक रोग-विशेष (पंचा १८, २७; सुपा १४७; लहुअ १५) २ जाल वनानेवाला, कृमि, मकड़ी (ओघ ३२३; दे)

लूड :: [लण्ट्] लूटना, चोरी करना। लूडइ, लूडेइ, लूडेह (धर्मंवि ८०; संवेग २६; कुप्र ५९)। हेकृ. लूडेउं (सुपा ३०७; धर्मंवि १२४)। प्रयो., वकृ. लृड़ावंत (सुपा ३५२)।

लूड :: वि [लुण्ट] लूटनेवाला। स्त्री. °डी; 'सो नत्थि एत्थ गामे जो एयं महमहंतलायणणं। तरुणाण हिययलूडिं परिसक्कंर्तिं निवारेइ।। (हेका २९०; काप्र ९१७)।

लूडण :: न [लुण्टन] लूट, चोरी (स ४४१)।

लूडिअ :: वि [लुण्टित] लूटा हुआ (स ५३९; पउम ३०, ६२; सुपा ३०७)।

लूण :: देखो लूअ = लून (दे ७, २३; सुपा ५२२; कुमा)।

लूण :: न [लवण] १ लून, नून, नोन, नमक (जी ४) २ पुं. वनस्पति-विशेष (श्रा २०; धर्मं २)। देखो लवण।

लूण :: न [लवण] लावण्य, सुन्दरता, शरीर- कान्ति (सुपा २९३)।

लूर :: सक [छिद्] काटना। लूरइ (हे ४, १२४)।

लूरिअ :: वि [छिन्न] काटा हुआ (कुमा ६, ८३)।

लूस :: सक [लूषय्] १ वध करना, मार डालना। २ पीड़ना, कदर्थंन करना, हैरान् करना। ३ दूषित करना। ४ चोरी करना। ५ विनाश करना। ६ अनादर करना। ७ तोड़ना। ८ छोटे को बड़ा और बड़े को छोटा करना। लूसंति, लूसयति, लूसएज्जा (सूअ १, ३, १, १४; १, ७, २१; १, १४, १९; १, १४, २५)। भूका. लूसिंसु (आचा)। संकृ. लूसिउं (श्रा १२)

लूसअ, लूसग :: वि [लूषक] १ हिंसक, हिंसा करनेवाला। २ विनाशक (सूअ २, १, ५०; १, २, ३, ९) ३ प्रकृति-क्रूर निर्दय। ४ भक्षक (सूअ १, ३, १, ८) ५ दूषित करनेवाला (सूअ १, १४, २६) ६ विरा- धक, आज्ञा नहीं मानेनेवाला (सूअ १, २, २, ६, आचा) ७ हेतु-विशेष (ठा ४, ३ — पत्र २५४)

लूसण :: वि [लूषण] ऊपर देखो (आचा; औप)।

लूसय :: वि [लषक] १ परिताप-कर्ता (आचा २, १, ६, ४) २ चोर, तस्कर (वव ४)

लूसिअ :: वि [लूषित] १ लुण्टित, लुटा गया (श्रा १२) २ उपद्रुत, पीड़ित (सम्मत्त १७५) ३ विनाशित (संबोध १०) ४ हिंसित (आचा)

लूह :: सक [मृज्, रुक्षय्] पोंछना। लूहेइ, लूहेंति (राय; णाया १, १ — पत्र ५३)। संकृ. लूहित्ता (पि २५७)।

लूह :: पुं [रुक्ष्] मुनि, साधु, श्रमण (दसनि २, ९)।

लूह :: वि [रूक्ष्] १ लूखा, रूखा, स्‍नेह-रहति आचा; पिंड; २६, उव)। २ पुं. संयम, विरति, चारित्र (सूअ १, ३, १, ३) ३ न. तप- विशेष निर्विकृतिक तप (संबोध ५८)। देखो लुक्ख।

लूहिय :: वि [रुक्षित] पोंछा हुआ (णाया १, १ — पत्र १९; कप्प; औप)।

ले :: सक [लेना] ग्रहण करना। लेइ (हे ४, २३८; कुमा)। वकृ. लिंत (सुपा २५२; पिंग)। संकृ. लेवि (अप) (हे ४, ४४०)। हेकृ. लेविणु (अप) (हे ४, ४४१)।

लेक्ख :: न [लेख्य] १ व्यवहार, व्यापार (सुपा ४२४) २ लेखा, हिसाब (कुप्र २३८)

लेक्खा :: देखो लिहा (गउड)।

लेख :: देखो लेह = लेख (सम ३५)।

लेखपित :: देखो लिखापित (पि ७)।

लेच्छइ :: पुं [लेच्छकि] १ क्षत्रिय-विशेष। २ एक प्रसिद्ध राज-वंश (सूअ १, १३, १०; भग; कप्प; औप; अंत)

लेच्छइ :: पुं [लिप्सुक, लेच्छकि] १ वणिक्, वैश्य। २ एक वणिग्-जाति (सूअ २, १, १३)

लेच्छारिय :: वि [दे] खरण्टित, लिप्त (पिंड २१०)।

लेज्झ :: देखो लिह = लिह्।

लेट्‍ठु :: पुंन [लेष्टु] रोड़ा, ईंट, पत्थर आदि का टुकड़ा (विसे २४९६; औप; उव, कप्प; महा)।

लेडु, लेडुअ :: पुंन [दे. लेष्‍टु] ऊपर देखो (पाअ, दे ७, २४)।

लेडुक्क :: पुं [दे] १ रोड़ा, लोष्ट। २ वि. लम्पट (दे ७, २९)

लेढिअ :: न [दे] स्मरण, स्मृति (दे ७, २५)।

लेढुक्क :: पुं [दे] रोड़ा, लोष्ट (दे ७, २४; पाअ)।

लेण :: न [लयन] १ गिरि-वर्त्ती पाषाण-गृह (णाया १, २ — पत्र ७९) २ बिल, जन्तु- गृह (कप्प)। °विहि पुंस्त्री [°विधि] कला- विशेष (औप)। देखो लयण = लयन।

लेप्प :: न [लेप्य] भित्ति, भीत (धर्मंसं २९; कुप्र ३००)।

लेप्पकार :: पुं [लेप्यकार] शिल्पी-विशेष, राज, राजगीर (अणु १४९)।

लेप्पा :: स्त्री [लेप्या] लेपन-क्रिया (उत्त १९, ६५)।

लेलु :: देखो लेडु (आचा; सूअ २, २, १८; पिंड ३४९)।

लेव :: पुं [लेप] १ लेपन (सम ३९; पउम २, २८) २ नाभि-प्रमाण जल (ओघभा ३४) ३ पुं. भगवान् महावीर के समय का नालंदा- निवासी एक गृहस्थ (सूअ २, ७, २)। °कड, °ड वि [°कृत] लेप-मिश्रित (ओघ ५६५; पत्र ४ टी — पत्र ४९; पडि)

लेवण :: न [लेपन] लेप-करण (पव १३३)।

लेवाड :: वि [लेपकृत्] लेप कारक (वव १)।

लेस :: पुं [लेश्] १ अल्प, स्तोक, लव, थोड़ा (पाअ; दे ७, २८) २ संक्षेप (दं १)

लेस :: वि [दे] १ लिखित। २ आश्वस्त। ३ निःशब्द, शब्द-रहित। ४ पुं. निद्रा (दे ७, २८)

लेस :: पुं [श्लेष] संश्लेष, संबन्ध मिलान (राय)।

लेसण :: न [श्लेषण] ऊपर देखो (विसे ३००७)।

लेसणया, लेसणा :: स्त्री [श्लेषणा] ऊपर देखो (औप; ठा ४, ४ — पत्र २८०; राज)। लेसणी स्त्री [श्‍लेषणी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७; णाया १, १६ — पत्र २१३)।

लेसा :: स्त्री [लेश्या] १ तेज, दीप्ति। २ मंडल, बिम्ब; 'चंदस्स लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठइ' (सम २९) ३ किरण (सुज्ज १९) ४ देह- सौन्दर्यं (राज) ५ आत्मा का परिणाम- विशेष, कृष्णादि द्रव्यों के सांनिध्य से उत्पन्न होनेवाला आत्मा का शुभ या अशुभ परिणाम। ६ आत्मा के शुभ या अशुभ परिणाम की उत्पत्ति में निमित्त-भूत कृष्णादि द्रव्य (भग; उवा; औप; पव १५२; जीवस ७४; संबोध ४८; पणण १७; कम्म ४, १; ३१)

लेसा :: स्त्री [लेश्या] ज्वाला (राय ५६; ५७)।

लेसिय :: वि [श्‍लेषित] श्‍लेष-युक्त (स ७६२)।

लेसुरुडयतरु :: पुं [दे] लसोड़ा; गु° गूँदा (चउप्पन्न° पत्र २४३)।

लेस्सा :: देखो लेसा (भग)।

लेह :: देखो लिह = लिख्। लेहइ (प्राकृ ७०)।

लेह :: देखो लिह = लिह्। लेहइ (प्राकृ ७०)।

लेह :: (अप) देखो लह = लभ्। लेहइ (पिंग)।

लेह :: पुं [लेह] अवलेह, चाटन (पउम २, २८)।

लेह :: पुं [लेख] १ लिखना, लेखन, अक्षर- विन्यास (गा २४४; उवा) २ पत्र, चिट्ठी (कप्पू) ३ देव, देवता। ४ लिपि। ५ वि. लेख्य, जो लिखा जाय (हे २, १८९) ६ लेखक, लिखनेवाला; 'अज्जवि लेहत्तणे तण्हा' (वज्जा १००)। °वाह वि [°वाह] चिट्ठी ले जानेवाला, पत्र-वाहक (पउम ३१, १; सुपा ५१९)। °वाहग, °वाहय वि [°वाहक] वही अर्थं (सुपा ३३१; ३३२)। °साला स्त्री [°शाला] पाठशाला (उप ७२८ टी)। °रिय पुं [°चार्य] उपाध्याय, शिक्षक (महा)

लेहड :: वि [दे] लम्पट, लुब्ध (दे ७, २५; उव)।

लेहण :: न [लेहन] चाटन, आस्वादन (पउम ३, १०७)।

लेहणी :: स्त्री [लेखनी] कलम, लेखनी (पउम २६, ५; गा २४४)।

लेहल :: देखो लहड (गा ४६१)।

लेहा :: देखो लिहा (औप; कप्प; कप्पू; कुप्र ३६९; स्वप्‍न ५२)।

लेहिय :: वि [लेखित] लिखवाया हुआ (ती ७)।

लेहुड :: पुं [दे] लोष्ठ, रोड़ा, ढेला (दे ७, २४)।

लोअ :: देखो रोअ = रोचय्। संकृ. लोएया (कस)।

लोअ :: सक [लोक्, लोकय्] देखना। वकृ. लोअअंत (नाट)। कवकृ. लुक्कमाण (उप १४२ टी)। संकृ. लोइउं (कुप्र ३)।

लोअ :: पुं [लोक] १ धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का आधार-भूत आकाश-क्षेत्र, जगत्, संसार, भुवन। २ जीव, अजीव आदि द्रव्य। ३ समय, आवलिका आदि काल। ४ गुण, पर्याय, धर्म। ५ जन, मनुष्य आदि प्राणि- वर्गं (ठा १ — -पत्र १३; टी — पत्र १४; हे १, १८०; कुमा जी १४; प्रासू ५२; ७१; उव; सुर १, ९६) ६ आलोक, प्रकाश (वज्जा १०६) °ग्ग न [°ग्र] १ ईषत्प्राग्भारा नामक पृथिवी, मुक्त-स्थान (णाया १, ५ — पत्र १०५; इख) २ मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण (पाअ)। °ग्गथूभिआ स्त्री [°ग्रस्तूपिका] मुक्त-स्थान, ईषत्भाग्भारा पृथिवी (इक)। °ग्गपडिबुज्झणा स्त्री [°ग्रपतिबोधना] वही अर्थं (इक)। °णाभि पुं [°नाभि] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५)। °प्पवाय पुं [°प्रवाद] जन-श्रुति, कहावत (सुर २, ४७)। °मज्झ पुं [°मध्य] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५)। °वाय पुं [°वाद] जन-श्रुति, लोकोक्ति (स २६०; मा ४८)। °ग्गास पुं [°काश] लोक-क्षेत्र, आलोक-भिन्न आकाश (भग)। °हणय न [°भाणक] कहावत, लोकोक्ति (भवि)। देखो लोग।

लोअ :: पुं [लोच] लुञ्चन, नोंचना केशों का उत्पाटन, उखाड़ना, (सुपा ६४१; कुप्र १७३; णाया १, १ — पत्र ६०; औप, उव)।

लोअ :: पुं [लोप] अदर्शन, विध्वंस (चेइय ६९१)।

लोअंतिय :: पुं [लोकान्तिक] एक देव-जाति (कप्प)।

लोअग :: न [दे. लोचक] गुण-रहित अन्न, खराब नाज (कस)।

लोअडी :: (अप) स्त्री [लोमपटी] कम्बल (हे ४, ४२३)।

लोअण :: पुंन [लोचन] आँख, चक्षु, नेत्र (हे १, ३३; २, १८४; कुमा; पाअ; सुर २, २२२)। °वत्त न [°पत्र] अक्षि लोम, बरवनी, पक्ष्म (से ६, ६८)।

लोअणिल्ल :: वि [लोचनवत्] आँखवाला (सुपा २००)।

लोआणी :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)।

लोइअ :: वि [लोकित] निरीक्षित, दृष्ट (गा २७१; स ७१३)।

लोइअ :: वि [लौकिक] लोक, संबंन्धी, सांसारिक (आचा; विपा १, २ — पत्र ३०; णाया १, ९ — पत्र १६६)।

लोउत्तर :: वि [लोकोत्तर] लोक-प्रधान, लोक- श्रेष्ठ, असाधारण, 'लोउत्तरं चरिअं' (श्रा १६; विसे ८७०)। देखो लोगुत्तर।

लोउत्तरिय :: वि [लोकोत्तरिक] ऊपर देखो (श्रा १)।

लोंक :: वि [दे] गुप्त, सोया हुआ (दे ७, २३)।

लोग :: पुं [लोक] मान-विशेष, श्रेणी से गुणित प्रतर (अणु १७३)। °यत देखो °यय (अणु ३६)।

लोग :: देखो लोअ = लोक (ठा ३, २; ३, ३ — पत्र १४२; कप्प; कुमा; सुर १, ७९; हे १, १७७; प्रासू २५; ४७)। ७ न. एक देव-विमान (सम २५)। °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम २५)। °कूड न [°कूट] एक देव-विमान (सम २५)। °ग्गचूलिआ स्त्री [°ग्रचूलिका] मुक्त-स्थान, सिद्धि-शिला (सम २२)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] लोक-व्यवहार, रोजी (णाया १, २ — पत्र ८८)। °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] लोक- व्यवस्था (ठा ३, ३)। °दव्व न [°द्रव्य] जीव, अजीव आदि पदार्थं-समूह (भग)। °नाभि पुं [°नाभि] मेरु पवत (सुज्ज ५ टी — पत्र ७७)। °नाह पुं [°नाथ] जगत् का स्वामी, परमेश्वर (सम १; भग)। °परिपूरणा स्त्री [°परिपूरणा] ईषत्प्राग्भारा पृथिवी, मुक्त-स्थान (सम २२)। °पाल पुं [°पाल] इन्द्रों के दिक्पाल, देव-विशेष (ठा ३, १; औप)। °प्पभ पुं [°प्रभ] एक देव- विमान (सम २५)। °बिंदुसार पुंन [°बिन्दुसार] चौदहवाँ पूर्वं-ग्रन्थ (सम ४४)। °मज्झावसिअ पुंन [°मध्यावसित] अभिनय-विशेष (ठा ४, ४ — पत्र २८५)। °मज्झावसाणिअ पुंन [°मध्यावसानिक] वही अर्थं (राय)। °रूव न [°रूप] एक देव-विमान (सम २५)। °लेस न [°लेश्य] एक देव-विमान (सम २५)। °वण्ण न [°वर्ण] एक देव-विमान (सम २५)। °वाल देखो °पाल (कुप्र १३५)। °वीर पुं [°वीर] भगवान् महावीर (उव)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] एक देव-विमान (सम २५)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम २५)। °हअ न [°हित] एक देव-विमान (सम २५)। °यय न [°यत] नास्तिक- प्रणीत शास्त्र, चार्वाक-दर्शन (णंदि)। °लोग पुंन [°लोक] परिपूर्णं आकाश-क्षेत्र, संपूर्णं जगत् (उव; पि २०२)। °वत्त न [°वर्त्त] एक देव-विमान (सम २५)। °हाण न [°ख्यान] लोकोक्ति, जन-श्रुति (उप ५३० टी)। लोगंतिय देखो लोअंतिय (पि ४६३)।

लोगिग :: देखो लोइअ = लौकिक (धर्मंसं १२४८)।

लोगुत्तर :: देखो लोउत्तर। °वडिंसय न [°वतंसक] एक देव-विमान (सम २५)।

लोगुत्तर :: पुं [लोकोत्तर] मुनि, साधु। २ जिन-शासन, जैन सिद्धान्त (अणु २६)

लोगुत्तरिअ :: वि [लोककोत्तरिक] १ साधु का। २ जिन शासन का (अणु २६)

लोगुत्तरिय :: देखो लोउत्तरिय (ओघ ७६५)।

लोट्ट :: अक [स्वप्] लोटना, सोना। लोट्टइ (हे ४, १४६)। वकृ. लोट्टय° (पाअ)।

लोट्ट :: अक [लुठ्] १ लेटना। २ प्रवृत्त होना। लोट्टइ, लोट्टती (प्राकृ ७२; सूअ १, १५, १४)। वकृ. लोट्टंत (सुपा ४६९)

लोट्ट, लोट्टय :: पुं [दे] १ कच्चा चावल (निचू (४) २ पुंस्त्री. हाथी की छोटा वच्चा (णाया १, १ — पत्र ६३), स्त्री. °ट्टिया (णाया १, १)

लोट्टिअ :: वि [दे] उपविष्ट (दे ७, २५)।

लोट्ठ :: वि [दे] स्मृत (षड्)।

लोट्ठ :: पुं [लोष्ट] रोड़ा, ढेला (दे ७, २४।

लोडाविअ :: वि [लोटित] घुमाया हुआ (गा ७९६)।

लोढ :: सक [दे] कपास निकालना, लोढ़ना; गुजराती में 'लोढवुं'। वकृ. लोढयंत (राज)।

लोढ :: पुं [दे] १ लोढा, शिलापुत्रक, पीसने का पत्थर (दसा ५, १, ४५; उवा) २ ओषधि-विशेष, पद्मिनीकन्द (पव ४; श्रा २०; संबोध ४४) ३ वि. स्मृत। ४ शयित (दे ७, ७२६)

लोढय :: पुं [दे. लोठक] कपास के बीज निकालने का यन्त्र (गउड)।

लोढिअ :: वि [लोठित] लेटवाया हुआ, सुलाया हुआ (पउम ६१, ६७)।

लोण :: न [लवण] १ लून, नमक। २ लावण्य, शरीर-कान्ति (गा ३१६; कुमा) ३ पुं. वृक्ष-विशेष (पउम ४२, ७; श्रा २०; पव ४) ४ — देखो लवण (हे १, १७१; प्राप्र; गउड; औप)

लोणिय :: वि [लावणिक] लवण-युक्त, लवण- सम्बन्धी (ओघ ७६६)।

लोण्ण :: न [लावण्य] शरीर-कान्ति (प्राकृ ५)।

लोत्त :: न [लोप्‍त्र] चोरी का माल (स १७३)।

लोद्ध :: पुं [लोध्र] वृक्ष-विशेष (णाया १, १ — पत्र ६५; पणण १; , सूअ १, ४, २, ७; औप; कुमा)। देखो लुद्ध = लोध्र।

लोद्ध :: देखो लुद्ध = लुब्ध (पाअ; सुर ३, ४७, १०, २२३; प्राप्र)।

लोप्प :: देखो लुंप; 'जो एगं वायं लोप्पइ सो तिन्निवि लोप्पयंतो किं केणावि धरिउं पारीयइ' (स ४६२)।

लोभ :: सक [लोभय्] लुभाना, लालच देना। कवकृ. लोभिज्जंत (सुपा ९१)।

लोभ :: पुं [लोभ] लालच, तृष्णा (आचा; कप्प; औप; उव; ठा ३, ४)। २ वि. लोभ- युक्त (पडि)।

लोभणय :: वि [लोभनक] लोभी, लालची (आचा २, १५, ५)।

लोभि, लोभिल्ल :: व [लोभिन्] लोभवाला (कम्म ४, ४०; पउम ४, ४९)।

लोम :: पुंन [लोम] रोम, रोंआँ, रूँगटा (उवा)। °पक्खि पुं [°पक्षिन्] रोम के पँखवाला पक्षी (ठा ४, ४ — पत्र २७१)। °स वि [°श] लोम-युक्त (गउड)। °हत्थ पुं [°हस्त] पींछी, रोमों का बना हुआ झाड़ू (विपा १, ७ — पत्र ७८; औप; णाया १, २)। °हरिस पुं [°हर्ष] १ नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २७)। २ रोमाञ्‌च, रोमों का खड़ा होना (उत्त ५, ३१)। °हार पुं [°हार] मार कर धन लूटनेवाला चोर (उत्त ९, २८)। °हार पुं [°हार] रूँगटों से लिया जाता आहार, त्वचा से ली जाती खुराक (भग; सूअनि १७१)।

लोमंथिअ :: पुं [दे] तट (नंदि टिप्पण वैनयिक बुद्धिगत १३ वाँ कथानक)।

लोमसी :: स्त्री [दे] १ ककड़ी, खीरा (उप पृ २५२) २ वल्ली-विशेष, ककड़ी का गाछ (वव १)

लोय :: न [दे] सुन्दर भोजन, मिष्टान्‍न (आचा २, १, ४, ३)।

लोर :: पुंन [दे] १ नेत्र, आँख। २ अश्रु, आँसु (पिंग)

लोल :: अक [लुठ्] १ लेटना। २ सक विलोडन करना। लोलइ (पिंड ४२२; पिंग), 'लोलेइ रक्खसबलं' (पउम ७१, ४०)। वकृ. लोलंत; लोलमाण (कप्प; पिंग; पउम ५३, ७९)

लोल :: सक [लोठय्] लेटाना। लोलेइ, लोलेमि (उवा)।

लोल :: वि [लोल] १ लम्पट, लुब्ध, आसक्त (णाया १, १ टी — पत्र ५; औप; पाअ; कप्प; सुपा ३९५) २ पुं. रत्‍न-प्रभा नरक का एक नरकावास (ठा ६ — पत्र ३६५; देवेन्द्र ३०) ३ शर्कंराप्रभा नामक द्वितीय नरक- पृथिवी का नववाँ नरकेन्द्रक — नरक-स्थान (देवेन्द्र ७)। °मज्झ पुं [°मध्य] नरकावास- विशेष (ठा ६ टी — पत्र ३६७)। °सिट्ठ पुं [°शिष्ट] नरकावास-विशेष (ठा ६ टी)। °वत्त पुं [°वर्त्त] नरकावास-विशेष (ठा ६ टी; देवेन्द्र ७)

लोलंठिअ :: न [दे] चाटु, खुशामद (दे ७, २२)।

लोलण :: न [लोठन] १ लेटना, घोलन (सूअ १, ५, १, १७) २ लेटवाना (उप ५१०)

लोलपच्छ :: पुं [लोलपाक्ष्] नरक-स्थान-विशेष (देवेन्द्र ३०)।

लोलिक्क :: न [लौल्य] लम्पटना, लोलुपता (पणह १, ३ — पत्र ४३)।

लोलिम :: पुंस्त्री [लोलत्व] उपर देखो (कुमा)।

लोलुअ :: वि [लोलुप] १ लम्पट, लुब्ध (पउम १, ३०; २६, ४७; पाअ; सुर १४, ३३) २ पुं. रत्‍नप्रभा नरक का एक नरकावास (ठा ६ — पत्र ३६५)। °च्चुअ पुं [°च्युत] रत्‍नप्रभा-नरक का एक नरक-स्थान (उवा)

लोलुंचाविअ :: वि [दे] रचित-तृष्ण, जिसने तृष्णा की हो वह (दे ७, २५)।

लोलुव :: देखो लोलुअ (सूअ २, ६, ४४)।

लोव :: सक [लोपय्] लोप करना, विध्वंस करना। लोबेइ (महा)।

लोव :: पुंन [लोप] विध्वंस, विनाश, अदर्शंन; 'कम-लोवकारया' (कुप्र ४), 'आ दुट्ठे जासु बहिं लोवं व तुमं अदंसणा होमु' (धर्मंवि १३३)।

लोह :: देखो लोभ = लोभ (कुमा; प्रासू १७६)।

लोह :: पुंन [लोह] १ धातु-विशेष, लोहा (विपा १, ६ — पत्र ६६; पाअ; कुमा) २ धातु, कोई भी धातु; 'जह लोहाण सुवन्‍नं तणाण धन्‍नं घणाण रयणाइं' (सुपा ६३६) °कार पुं [°कार] लोहार (कुप्र १८८)। °जंघ पुं [°जङ्ग] १ भारत में उत्पन्‍न द्वितीय प्रतिवासुदेव राजा (सम १५४) २ राजा चण्डप्रद्योत का एक दूत (महा)। °जंघवण न [°जङ्गवन] मथुरा के समीप का एक वन (ती ७)

लोह :: वि [लौह] लोहे का, लोह-निर्मित (से १४, २०)।

लोहंगिणी :: स्त्री [लोहाङ्गिनी] छन्द-विशेष (पिंग)।

लोहल :: पुं [लोहल] शब्द-विशेष, अव्यक्त शब्द (षड्)।

लोहार :: पुं [लोहकार] लोहार, लोहे का काम करनेवाला शिल्पी (दे ८, ७१; ठा ८ — पत्र ४१७)।

लोहि°, लोहिअ° :: देखो लोही; 'कुंभीसु य पयणेसु य लोहीयसु य कंदुलोहिकुंभीसु' (सूअनि ८०; ७६)।

लोहिअ :: पुं [लोहित] १ लाल रँग, रक्त- वर्णं। २ वि. रक्त वर्णंवाला, लाल (से २, ४; उवा) ३ न. रुधिर, खून (पउम ५, ७६) ४ गोत्र-विशेष, जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है (ठा ७ — पत्र ३९०)

लोहिअंक :: पुं [लोहित्यक, लोहिताङ्क] अठासी महाग्रहों में तीसरा महाग्रह (सुज्ज २०)।

लोहिअक्ख :: पुं [लोहिताक्ष्] १ एक महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७७) २ चमरेन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक) ३ रत्म‍न की एक जाति (णाया १, १ — पत्र ३१; कप्प; उत्त ३६, ७६) ४ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२; १४४) ५ रत्‍नप्रभा पृथिवी का एक काण्ड (सम १०४) ६ एक पर्वंत-कूट (इक)

लोहिआ, लोहिआअ :: अक [लोहिताय्] लाल होना। लोहिआइ, ओहिआअइ (हे ३, १३८; कुमा)।

लोहिआमुह :: पुं [लोहितामुख] रत्‍नप्रभा का एक नरकावास (स ८८)।

लोहिच्च :: पुं [लोहित्य] आचार्यं भूतदिन्‍न के शिष्य एक जैन मुनि (णंदि ५३)।

लोहिच्च, लोहिच्चायण :: न [लौहित्यायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६ टी; इक; सुज्ज १०, १६)।

लोहिणी, लोहिणीहू :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, कन्द- विशेष (पणण १ — पत्र ३५), 'लोहिणीहू य थीहु य' (उत्त ३६, ९९; सुख ३६, ९९)।

लोहिल्ल :: वि [दे. लोभिन्] लम्पट, लुब्ध (दे ७, २५; पउम ८, १०७; गा ४४४)।

लोही :: स्त्री [लौही] लोहे का बना हुआ भाजन-विशेष, कराह (उप ८३३; चारु १)।

लहस :: देखो लस = लस्। ल्हसइ (प्राकृ ७२)।

ल्हस :: अक [स्रंस्] खिसकना, सरकना, गिर पड़ना। ल्हसइ (हे ४, १९७; षड्)। वकृ. ल्हसंत (वज्जा ९०)।

ल्हसण :: न [स्रंसन] खिसकना, पतन (सुपा ५५)।

ल्हसाव :: सक [स्रंसय्] खिसकाना। संकृ. ल्हसाविअ (सुपा ३०८)।

ल्हसाविअ :: वि [स्रंसित] खिसकाया हुआ (कुमा)।

ल्हसिअ :: वि [स्रस्त] खिसक कर गिरा हुआ (कुप्र १८७; वज्जा ८४)।

ल्हसिअ :: वि [दे] हर्षित (चंड)।

ल्हसुण :: देखो लसुण (पणण १ — पत्र ४०; पि २१०)।

ल्हादि :: स्त्री [ह‌लदि] आह्लाद, प्रमोद, खुशी (राज)।

ल्हाय :: पुं [ह्‌लाद] ऊपर देखो (धर्मंसं २१६)।

ल्हासिय :: पुं [ल्हासिक] एक अनार्यं मनुष्य- जाति (पणह १, १ — पत्र १४)।

ल्हिक्क :: अक [नि + ली] छिपना। ल्हिक्कइ (हे ४, ५५; षड् २०९)। वकृ. ल्हिक्कंत (कुमा)।

ल्हिक्क :: वि [दे] १ नष्ट (हे ४, २५८) २ गत (षड्)

 :: पुं [व] १ अन्तस्थ व्यञ्जन वर्णं-विशेष, जिसका उच्चारणस्थान दन्त और ओष्ठ हैं (प्राप्र; प्रामा) २ पुंन. वरुण (से १, १; २, ११)

 :: अ [व] देखो इव (से २, ११; गा १८; ६३; ६४; ७९; कुमा; हे २, १८२; प्रासू २)।

 :: देखो वा = अ (हे १, ६७; गा ४२; १६४; कुमा; प्राकृ २६; भवि)।

°व :: देखो वाया = वाच्। °क्खेवअ वि [°क्षेपक] वचन का निरसन — खण्डन (गा १४२ अ)। °प्पइराय पुं [°पतिराज] एक प्राचीन कवि, 'गउडवहो' काव्य का कर्त्ता (गउड)।

वअणीआ :: स्त्री [दे] १ उन्मत्त स्त्री। २ दुःशील स्त्री (षड्)

वअल :: अक [प्र + सृ] पसरना, फैलना। वअलइ (षड्)।

वआड :: देखो वायाड = वाचाट (संक्षि २)।

वइ :: अ [वै] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवधारण, निश्चय (विसे १८००) २ अनुनय। ३ संबोधन। ४ पादपूर्त्ति (चंड)

वइ :: अ [दे] बदि, कृष्ण, पक्ष; 'फग्गुणवइ- छट्ठीए' (सुपा ८६)।

वइ :: वि [व्रतिन्] व्रतवाता, संयमी (उव; सुपा ४३९)। स्त्री. °णी (उप ५७१)।

वइ :: स्त्री [वाच्] वाणी, वचन (सम २५; कप्प; उप ६०४; श्रा ३१; सुपा १८४; कम्म ४, २४; २७; २८)। °गुत्त वि [°गुप्त] वाणी का संयमवाला (आचा; उप ६०४)। °गुत्ति स्त्री [°गुप्ति] वाणी का संयम (आचा)। °जोअ, °जोग पुं [°योग] वचन-व्यापार (भग; पणह १ २)। °जोगि वि [°योगिन्] वचन-व्यापारवाला (भग)। °मंत वि [°मत्] वचनवाला (आचा २, १, ९, १)। °मेत्त न [°मात्र] निरर्थंक वचन (धर्मंसं २८४; २८५; ८४४)। देखो वई।

वइ :: स्त्री [वृति] बाड़, काँटे आदि से बनाई जाती स्थानपरिधि, घेरा; 'धन्‍नाणं रक्खट्ठा कीरंति वईओ' (श्रा १०; गउड; गा ९६; उप ६४८; पउम १०३, १११; वज्जा ८६), 'उच्छू वोलंति वइं' (धर्मंवि ५३; संबोध ४२)।

°वइ :: देखो पइ = पति (गा ६६; से ४, ३४; कप्प; कुमा)।

वइ° :: देखो वय = वद्।

वइ° :: देखो वय =व्रज्।

वइअ :: वि [दे] १ पीत, जिसका पान किया गया हो वह (दे ७, ३४) २ आच्छादित, ढका हुआ; 'पच्छाइअनूमिआइं वइआइं' (पाअ)

वइअ :: वि [व्ययित] जिसका व्यय किया गया हो वह, 'किमिह दव्वेण वइएणं बहुएणं' (सुपा ५७८; ७३; ४१०)।

वइअब्भ :: पुं [वैदर्भ] १ विरर्भ देश का राजा। २ वि. विदर्भ देश में उत्पन्‍न (षड्)

वइअर :: पुं [व्यतिकर] प्रसङ्ग, प्रस्ताव (सुर ४, १३६; महा)।

वइअव्व :: देखो वय = व्रज्।

वइआ :: स्त्री [व्रजिका] छोटा गोकुल (पिंड ३०९; सुख २, ५; ओघ ८४)।

वइआलिअ :: वि [वैतालिक] मंगल-स्तुति आदि से राजा को जगानेवाला मागध आदि (हे १, १५२)।

वइआलीअ :: पुन [वैतालीय] छन्द-विशेष (हे (हे १, १५१)।

वइएस :: वि [वैदेश] विदेश-संबन्धी, परदेशी (पउम ३३, २४; हे १, १५१; प्राकृ ९)।

वइएह :: पुं [वैदेह] १ वणिक्, वैश्य। २ शूद्र पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्‍न जाति- विशेष। ३ राजा जनक। ४ वि. देह-रहित से संबन्ध रखनेवाला। ५ मिथिला देश का (हे १, १५१; प्राकृ ९)

वइंगण :: न [दे] बैगन, वृन्ताक, भंटा (दे ६, १००)।

वइकच्छ :: पुं [वैक्क्ष्] उत्तरासंग (औप)।

वइकलिअ :: न [वैकल्य] विकलता (पाअ)।

वइकुंठ :: पुं [वैकुण्ठ] १ उपेन्द्र, विष्णु (पाअ) २ लोक-विशेष, विष्णु का धाम (उप १०३१ टी)

वइक्कंत :: वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत, गुजरा हुआ (पउम २, ७४; उवा; पडि)।

वइक्कम :: पुं [व्यतिक्रम] विशेष उल्लंघन, व्रत-दोष-विशेष (ठा ३, ४ — पत्र १५९; पव ६, टी; पउम ३१, ९१)।

वइगरणिय :: पुं [वैकरणिक] राज-कर्मचारि- विशेष (सुपा ५४८)।

वइगा :: देखो वइआ (सुख २, ५; बृह ३)।

वइगुण्ण :: न [वैगुण्य] १ वैकल्य, अपरि- पूर्णता, असंपन्‍नता (धर्मंसं ८८४) २ विप- रीतपन, विपर्यंय (राज)

वइचित्त :: न [वैचित्र्य] विचित्रता (विसे ३११; धर्मंसं ६५)।

वइजवण :: वि [वैजवन] गोत्र शेष में उत्पन्न (हे १, १५१)।

वइणी :: देखो वइ = व्रतिन्।

वइतलिय :: वि [वैतुलिक] तुल्यता-रहित (निचू ११)।

वइत्तए, वइत्ता :: देखो वय =वद्।

वइत्ता :: देखो वय = वच्।

वइत्तु :: वि [वदितृ] बोलनेवाला, 'मुसं वइत्ता भवति' (ठा ७ — पत्र ३८९)।

वइदब्भ :: देखो वइअब्भ (हे १, १५१)।

वइदिस :: पुं [वैदिश] १ अवन्ती देश, मालव देश; 'वइदिस उज्जेणीए जियपडिमा एलगच्छं च' (उप २०२) २ वि. विदिशा-संबन्धी (बृह ६)

वइदेस :: देखो वइएस (प्राप्र)।

वइदेसिअ :: वि [वैदेशिक] विदेशीय, परदेशी (संक्षि ५; कुप्र ३८०; सिरि ३९३; पि ६१)।

वइदेह :: देखो वइएह (प्राप्र)।

वइदेही :: स्त्री [वैदेही] १ राजा जनक की स्त्री, सीता की माता (पउम २६, ७५) २ जन- कात्मजा, सीता। ३ हरिद्रा, हल्दी। ४ पिप्पली, पीपल। वणिक्-स्त्री (संक्षि ५)

वइधम्म :: न [वैधर्म्य] विरुद्धधर्मंता, विपरीतृ पन (विसे ३२२८)।

वइमिस्स :: वि [व्यतिमिश्र] संमिलित (आचा २, १, ३, २)।

वइर :: देखो वेर = वैर (हे १, १५२)।

वइर :: पुंन [वज्र] १ रत्‍न-विशेष, हीरक, हीरा (सम ६३; औप; कप्प; भग; कुमा) २ इन्द्र का अस्त्र (षड्) ३ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३३; सम २५) ४ विद्युत्, बिजली (कुमा) ५ पुं. एक सुप्रसिद्ध जैन महर्षि (कप्प; हे १, ६; कुमा) ६ कोकिलाक्ष वृक्ष। ७ श्‍वेत कुशा। ८ श्रीकृष्ण का एक प्रपौत्र। ९ न. बालक, शिशु। १० धात्री। ११ काँजी। १२ वज्रपुष्प। १३ एक प्रकार का लोहा। १४ अभ्र-विशेष। १५ ज्योतिष- प्रसिद्ध एक योग (हे २, १०५) १६ कीलिका, छोटी कील (सम १४९) °कंड न [°काण्ड] रत्‍तप्रभा पृथिवी का एक वज्ररत्‍न-मय काण्ड (राज)। °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम २५)। °कूड न [°कूट] १ एक देव-विमान (सम २५) २ देवी-विशेष का आवासभूत एक शिखर (राज) °जंघ पुं [°जङ्घ] १ भरत- क्षेत्र में उत्पन्‍न तृतीय प्रतिवासुदेव (सम १५४) २ पुष्कलावती विजय के लोहार्गल नगर का एक राजा (आव)। °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम २५)। °मज्झा स्त्री [°मध्या] प्रतिमा-विशेष, एक प्रकार का व्रत (ठा ४, १ — पत्र १९५)। °रूव न [°रूप] एक देव-विमान (सम २५)। °लेस न [°लेश्य] एक देव विमान (सम २५)। °वण्ण न [°वर्ण] देवविमान-विशेष (सम २५)। °सिंग न [°श्रृङ्गं] एक देव-विमान का नाम (सम २५)। °सिंह पुं [°सिंह] एक राजा (काल; पि ४००)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम २५)। °सीह देखो सिंह (काल)। °सेण पुं [°सेन] एक प्राचीन जैन महर्षि, जो वज्रस्वामी के शिष्य थे (कप्प)। °सेणा स्त्री [°सेना] १ एक इन्द्राणी, दाक्षिणत्य वानव्यन्तरेन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २ — पत्र २५२) २ एक दिक्कुमारी देवी (इक)। °हर पुं [°धर] इन्द्र (षड्)। °मय वि [°मय] वज्र रत्‍नों का बना हुआ (सम ६३; औप; पि ७०; १३५), स्त्री. °मई, °मती (जीव ३; पि २०३ टि ४)। °वत्त, न [°वर्त्त] एक देव-विमान (सम २५)। °सभनाराय न [°ऋषभनाराच] संहनन-विशेष (सम १४९; भग)। देखो वज्ज = वज्र।

वइरा :: स्त्री [वज्रा] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)।

वइराग :: न [वैराग्य] बिरक्ति, उदासीनता (पउम २६, २०)।

वइराड :: पुं [वैराट] १ एक आर्यं देश। २ न. प्राचीन भारतीय नगर-विशेष, जो मत्स्य देश की राजधानी थी; 'वइराड मच्छ वरुणा अच्छा' (पव २७५)

वइराय :: देखो वइराग (भवि)।

वइरि, वइरिअ :: वि [वैरिन्] दुश्‍मन्, रिपु (सुर १, ७; काल; प्रासू १७४)।

वइरिक्क :: न [दे] विजन, एकान्त स्थान; देखो पइरिक्क; 'अहिअं सुणणाइ निरंजणाइ वइरिक्कणणपुसिआइ' (गा ८७०)।

वइरित्त :: वि [व्यतिरिक्त] भिन्न, अलग (सुर १२, ४४; चेइय ५९४)।

वइरी :: स्त्री [वज्रा] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)।

वइरुट्टा :: स्त्री [वैरोट्या] १ एक विद्या — देवी (संति ६) २ भगवान् मल्लिनाथजी की शासन-देवी (संति १०)

वइरुत्तरवडिंसग :: न [वज्रोत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम २५)।

वइरेअ, वइरेग :: पुं [व्यतिरेक] १ अभाव (धर्मंसं ११२) २ साध्य के अभाव में हेतु का नितान्त अभाव (धर्मंसं ३९२; उप ४१३; विसे २९०; २२०४)

वइरोअण :: पुं [वैरोचन] १ अग्‍नि, वह्नि (सूअ १, ६, ६) २ बलि नामक इन्द्र (देवेन्द्र ३०७) ३ उत्तर दिशा में रहनेवाले असुर- निकाय के देव (भग ३, १; सम ७४) ४ पुंन. एक लोकान्तिक देव-विमान (पव २६७; सम १४)

वइरोअण :: पुं [दे] बुद्ध देव (दे ७, ५१)।

वइरोड :: पुं [दे] जार, उपपति (दे ७, ४२)।

वइवलय :: पुं [दे] साँप की एक जाति, दुन्दुभ सर्पं (दे ७, ५१)।

वइवाय :: पुं [व्यतीपात] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक योग (राज)।

वइवेला :: स्त्री [दे] सीमा (दे ७, ३१)।

वइस :: देखो वइस्स = वैश्य; 'वाणिज्जकरिसणाइगोरक्खणपालणेसु उज्जुता। ते होंति वइसनामा वावारपरायणा धीरा' (पउम ३, ११६)।

वइसइअ :: वि [वैषयिक] विषय से उत्पन्न, विषय-संबन्धी (संक्षि ५)।

वइसंपायण :: पुं [वैशम्पायन] एक ऋषि, जो व्यास की शिष्य था (हे १, १५१; प्राप्र)।

वइसम्म :: पुंन [वैषम्य] विषमता, 'वइसम्मो' (संक्षि ५; पि ६१)।

वइसवण :: पुं [वैश्रवण] कुबेर (हे १, १५२; भवि)।

वइसम :: न [वैशस] रोमाञ्चकारी पाप-कृत्य (उप ५७५)।

वइसानर :: देखो वइसाणर (धम्म १२ टी)।

वइसाल :: देखो [वैशाल] विशाला में उत्पन्न (हे १, १५१)।

वइसाह :: पुं [वैशाख] १ मास-विशेष (सुर ४, १०१; भवि) २ मन्थन-दण्ड। ३ पुंन. योद्धा का स्थान-विशेष (हे १, १५१; प्राप्र)

वइसाही :: देखो वेसाही (राज)।

वइसिअ :: वि [वैशिक] वेष से जीविका उपार्जन करनेवाला (हे १, १५२; प्राप्र)।

वइसिट्ठ :: न [वैशिष्ट्य] विशिष्टता, भेद (धर्मंसं ६९)।

वइसेसिअ :: न [वैशेषिक] १ दर्शंन-विशेष, कणाद-दर्शंन (विसे २५०७) २ विशेष; 'जोएज्ज भावओ वा वइसेसियलक्खणं चउहा' (विसे २१७८)

वइस्स :: पुंस्त्री [वैश्य] वर्णं-विशेष, वणिक्, महाजन (विपा १, ५)।

वइस्स :: वि [द्वेष्य] अप्रीतिकर (उत्त ३२, १०३)।

वइस्सदेव :: पुं [वैश्वदेव] वैश्वानर, अग्‍नि (निर ३, १ )।

वइस्साणर :: पुं [वैश्वानर] १ वह्नि, अग्‍नि। ३ चित्रक वृक्ष। ३ सामवेद का अवयव- विशेष (हे १, १५१)

वई :: देखो वइ = वाच् (आचा)। °मय वि [°मय] वचनात्मक (दस ९, ३, ६)।

वईअ :: वि [व्यतीत] अतीत, गुजरा हुआ। °सोग पुं [°शोक] एक जैन मुनि (पउम २०, २०)।

वईवय :: सक [व्यति + व्रज्] जाना, गमन करना। वकृ. 'कोल्लयस्स संनिवेसस्स अदूर- सामंतेणं वईवयमाणे बहुजणसद्दं निसामेइ' (उवा)।

वईवाय :: देखो वइवाय (राज)।

वउ :: पुंस्त्री [दे] लावण्य, शरीर-कान्ति; 'वऊ अ लायणणे' (दे ७, ३०)।

वउ :: न [वपुष्] शरीर, देह (राज)।

वउलिअ :: वि [दे] शूल-प्रोत (दे ७, ४४)।

वएमाण :: देखो वय = वद्।

वओ° :: देखो वय = वचस् (आचा)। °मय न [°मय] वाङ्‌मय, शास्त्र (विसे ५५१)।

वओ° :: देखो वय = वयस् (पउम ४८, ११५)। वओवउप्फ वओवत्थ = पुंन [दे] विषुवत्, समान रात और दिनवाला काल (दे ७, ५०)।

°व :: देखो वाया = वाच्। °नियम पुं [°नियम] वाणी की मर्यादा (उप ७२८ टी)।

वंक :: वि [वङ्क, वक्र] १ बाँका, टेढ़ा, कुटिल (कुमा; सुपा १७२; पि ७४) २ नदी का बाँक (हे १, २६; प्राप्र)

वंक :: पुं [दे] कलंक, दाग (दे ७, ३०)।

°वंक :: देखो पंक (से ९, २९; गउड)।

°वंकचूल :: पुं [वङ्कचूल] एक प्रसिद्ध राज-कुमार (धर्मंवि ५२; पडि)।

वंकचूलि :: पुं [वङ्कचूलि] ऊपर देखो, तओ गया वंकचूलिणो गेहे' (धर्मंवि ५३; ५६; ६०)।

वंकण :: न [वङ्कन, वक्रण] वक्रीकरण, कुटिल बनाना (ठा २, १ — पत्र ४०)।

वंकिअ :: वि [वक्रित] बाँका किया हुआ (से ६, ५६)।

°वंकिअ :: वि [पङ्कित] पंक-युक्त (से ६, ५६)।

वंकिम :: पुंस्त्री [वक्रिमन्] वक्रता, कुटिलता (रि ७४; हे ४, ३४४; ४०१)।

वंकुड, वंकुण :: देखो वंक = वंक; 'विविहविसविड- विनिग्गयवंकुडतिक्खग्गकंटइए। एया- रिसम्मि य वणे' (स २५६; हे ४, ४१८; भवि; पि ७४)।

वंकुभ :: (शौ) ऊपर देखो (प्राकृ ९७)।

वंग :: न [दे] वृन्ताक, भंटा (दे ७, २९)।

वंग :: वि [व्यङ्गं] विकृत अंग, 'ववगय- वलीपलियवंगदुव्वन्‍नवाधिदोहग्गसोयमुक्काओ' (पणह १, ४ — पत्र ७९)।

वंगच्छ :: पुं [दे] प्रमथ, शिव का अनुचर-विशेष (दे ७, ३९)।

वंगण :: न [व्यङ्गन] क्षत (राज)।

वंगिय :: वि [व्यङ्गित] विकृत शरीरवाला (राज)।

वंगेवडु :: पुं [दे] सूकर, सूअर (दे ७, ४२)।

वंच :: सक [वञ्च्] ठगना। वंचइ (हे ४, ९३; षड; महा)। कर्म. वंचिज्जइ (भवि)। संकृ. वंचिऊण (महा)। कृ. वंचणीअ (प्राप्र)। प्रयो. वकृ. 'तो सो वंचाविंतो कुमरपहारं वएइ पुरबाहिं' (सुपा ५७२)।

वंच :: (अप) देखो वच्च = व्रज्। वंचइ (प्राकृ ११९)। संकृ. वंचिवि (भवि)।

वंच :: सक [उद् + नमय्] ऊँचा उठाना। वंचइ (?) (धात्वा १५१)।

वंच :: वि [वञ्च] ठगनेवाला, धूर्त्तं; 'कुडिलत्तणं च वंकत्तणं च वंचनणं असच्चं च' (वज्जा ११६; हे ४, ४१२)।

वंचअ, वंचग :: वि [वञ्चक] ऊपर देखो (नाट — मालवि; श्रा २८)।

वंचण :: न [वञ्चन] १ प्रतारण, ठगई (सम्मत्त २१७) २ वि. ठगनेवाला, ठग (संबोध ४१)। °चण वि [°चण] ठगने में चतुर (सम्मत्त २१७)

बंचणा :: स्त्री [वञ्चना] प्रतारणा (उव; कप्पू)।

वंचिअ :: वि [वञ्चित] १ प्रतारित (पाअ) २ रहित, वर्जित (गउड)

वंछा :: स्त्री [वाञ्छा] इच्छा, चाह (सुपा ४०४)।

वंज :: सक [वि + अञ्ज्] व्यक्त करना, प्रकट करना। कर्मं. वंजिज्जइ (विसे १९४; ४६३; धर्मंसं ५३)।

वंज :: देखो वंच = उद् + नमय्। वंजइ (? ) (धात्वा १५१)।

वंज :: देखो वंद = वन्द्।

वंजग :: देखो वंजय (राज)।

वंजण :: न [व्यञ्जन] १ वर्णं, अक्षर; 'अणक्खरं होज्ज वंजणक्खरओ' (विसे १७०), 'तो नत्थि अत्थभेओ वंजणरयणा परं भिन्‍ना' (चेइय ८६६) २ स्वर-भिन्‍न अक्षर, क से ह तक वर्ण (विसे ४६१; ४६२) ३ शब्द, पद; 'सो पुण समासओ चिअ वंजणनिअओ य अत्थनिअओ अ' (सम्म ३०; सूअनि ९; पडि; विसे १७०) ४ तरकारी, कढ़ी आदि रस-व्यञ्जक वस्तु (सुपा ६२३; ओघ ३५९) ५ शुक्र, वीर्य (विसे २२८) ६ शरीर का मसा आदि चिह्न (पव २५७; औप) ७ मसा आदि शरीर-चिह्नों के फल का उपदेशक शास्त्र (सम ४९) ८ कक्षा आदि के बाल (राज) ९ प्रकाशन, व्यक्तीकरण (विसे ४६१) १० श्रोत्रादि इन्द्रिय। ११ शब्द आदि द्रव्य। १२ द्रव्य और इंन्द्रिय का संबन्ध (णंदि, विसे २५०)। °वग्गह, °ग्गेह पुं [°वग्रह] ज्ञान-विशेष, चक्षु और मन को छोड़ कर अन्य इन्द्रियों से होनेवाला ज्ञान-विशेष (कम्म १, ४; ठा २, १)

वंजय :: वि [व्यञ्जक] व्यक्त करनेवाला (भास २९)।

वंजर :: पुं [मार्जार] बिल्ला, बिलार (हे २, १३२; कुमा)।

वंजर :: न [दे] नीवी, कटी-वस्त्र (दे ७, ४१)।

वंजिअ :: वि [व्यञ्जित] व्यक्त किया हुआ, प्रकटित (कुमा १, १८; २, ६९)।

वंजुल :: पुं [वञ्जुल] १ अशोक वृक्ष (गा ४२२; स १११) २ वेतस वृक्ष (पाअ); 'वंजुलसंगेण विसं व पन्‍नगो मुयइ सो पाबं' (धम्म ११ टी; वज्जा ९६; उप ७२८ टी) ३ पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)

वंजुलि :: वि [वञ्जुलिन्] वेतस वृक्षवाला। स्त्री. °णी (गउड)।

बंझ :: वि [वन्ध्य] शून्य, वर्जित (कुमा)।

वंझा :: स्त्री [वन्ध्या] बाँज स्त्री, अपुत्रवती स्त्री (पउम २६, ८३; सुपा ३२४)।

वंट :: न [वृन्त] फल या पत्तों का बन्धन (पिंड ४५)।

वंटग :: पुं [वण्टक] बाँट, विभाग (निचू १९)।

वंठ :: पुं [दे] १ अकृत-विवाह, अविवाहित, गुजराती में 'वांढो' (दे ७, ८३; ओघ २१८) २ खण्ड, टुकड़ा। ३ गण्ड (दे ७, ८३) ४ भृत्य, दास (दे ७, ८३; सुर २, १९८; रयण ८३; सिरि १११५) ५ वि. निःस्‍नेह, स्‍नेह-रहित (दे ७, ८३) ६ धूर्त, ठग (श्रा १२)

वंठ :: वि [वण्ठ] खर्वं, वामन. नाटा, बौना (हे ४, ४४७)।

वंठण :: (अप) न [वण्टन] बाँटना, विभाजन (पिंग)।

वंडइअ :: वि [दे] पीडित (षड्)।

°वंडु :: देखो पंडु (गा २९५)।

वंडुअ :: न [दे] राज्य (दे ७, ३६)।

°वंडुर :: देखो पंडुर (गा ३७४)।

वंढ :: पुं [दे] बन्ध (दे ७, २९)।

वंत :: वि [वान्त] पतित, गिरा हुआ (दस ३, १ टी)।

वंत :: पुं [वान्त] १ जिसाक वमन किया गया हो वह (उव) २ पुंन. वमन; 'वंते इ वा पित्ते इ वा' (भग)

वंतर :: पुं [व्यन्तर] एक देव-जाति (दं २७; महा)।

वंतारिअ :: पुं [व्यन्तरिक] ऊपर देखो (भग)।

वंतरिणी :: स्त्री [व्यन्तरी] व्यन्तर-जातीय देवी (सुपा ६१३)।

वंता :: देखो वम।

°वंति :: देखो पन्ति (गा २७८; ४६३)।

°वंथ :: देखो पन्थ (से १, १६; ३, ४२; १३, २०; पि ४०३)।

वंद :: सक [वन्द्] १ प्रणाम करना। २ स्तवन करना। वंदइ (उव; महा; कप्प)। वकृ. (ओघ १८; सं १०; अभि १७२)। कवकृ. वन्दिज्जमाण (उप ९८६ टी; प्रासू १६५)। संकृ. वन्दिअ, वन्दिओ, वन्दिऊण, वन्दित्ता, वन्दित्तु, वंदेवि (कम्म १, १; चंड; कप्प; षड्; हे ३, १४६; चंड)। हेकृ. वंदित्तए (उवा)। कृ. वंज, वंद, वंदणिज्ज, वंदणीअ, वंदिम (राज; अजि १४; द्रव्य १; णाया १, १; प्रासू १६२; नाट — मृच्छ १३०; दसचू १)

वंद :: न [वृन्द्] समूह, यूथ (पउम १, १; औप; प्राप्र)।

वंदअ, वंदग :: वि [वन्दक] वन्दन करनेवाला (पउम ६, ५८; १०१, ७३; महा; औप; सुख १, ३)।

वंदण :: न [वन्दन] १ प्रणमन, प्रणाम। २ स्तवन, स्तुति (कप्प; सुर ४, ६२; उव)। °कलस पुं [°कलश] मांगलिक घट (औप)। °घड पुं [°घट] वही अर्थं (औप)। °माला, °मालिआ स्त्री [°माला] घर के द्वार पर मंगल के लिए बँधी जाती पत्र-माला (सुपा ५४; सुर १०, ४; गा २६२)। °वडिआ, °वत्तिआ स्त्री [°प्रत्यय] वन्दन-हेतु (सुपा ४३२, पडि)

वंदणा :: स्त्री [वन्दना] १ प्रणाम। २ स्तवन (पंचा ३, २; पणह २, १ — पत्र १००; अंत)

वंदणिया :: स्त्री [दे] मोरी, नाला, पनाला; 'अत्थि कंबलो, गणियाए नेमि। मुक्को। तओ तीसे दिन्नो। तीए चं (? वं) दणियाए छुढो' (सुख २, १७)।

वंदर :: देखो वंद = वृन्द (प्राप्र)।

वंदाप :: (अशो) देखो वंदाव। वंदापयति (पि ७)।

वंदारय :: पुं [वृन्दारक] १ देव, देवता (पाअ; कुमा) २ वि. मनोहर (कुमा) ३ मुख्य, प्रधान (हे १, १३२)

वंदारु :: वि [वन्दारु] वन्दन करनेवाला (चेइय ६२१, लहुअ)।

वंदाव :: सक [वन्दय्] वन्दन करवाना। वंदावइ (उव)।

वंदावणग :: न [वन्दन] वन्दन, प्रणाम (श्रावक ३७४)।

वंदिअ :: देखो वंद = वन्द्।

वंदिअ :: वि [वन्दित] जिसको वन्दन किया गया हो (कप्प; उव)।

वंदिम :: देखो वंद = वन्द्।

वंदुरा :: स्त्री [मन्दुरा] वाजिशाला, घुड़साल, अस्तबल।

वंद्र :: न [वन्द्र] समूह, यूथ (हे १, ५३; २, ७९; पउम ११, १२०; स ६९९)।

वंध :: पुं [वन्ध्य] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव- विशेष (सुज्ज २०)।

वंफ :: सक [काङ्क्ष्] चाहना, अभिलाष करना। वंफइ, वंफए, वंफंति (हे ४, १९२; कुमा)।

वंफ :: अक [वल्] लौटना। वंफइ (हे ४, १७६; षड्)।

वंफि :: वि [वलिन्] १ लौटनेवाला। २ नीचे गिरनेवाला (कुमा)

वंफिअ :: वि [काङ्क्षित] अभिलषित (कुमा)।

वंफिअ :: वि [दे] भुक्त, खाया हुआ (दे ७, ३५; पाअ)।

वंस :: पुं [दे] कलंक, (दे ७, ३०)।

वंस :: पुं [वंश] १ बाँस, वेणु (पणह २, ५ — पत्र १४९; पाअ) २ वाद्य-विशेष; 'वाइओ वंसो' (कुमा २, ७०; राय) ३ कुल; 'चुलुगवंसदीवओ' (कुमा २, ९१) ४ सन्तान, संतति। ५ पृष्ठावयव, पीठ का भाग। ६ वर्ग। ७ इक्षु, ऊख। ८ वृक्ष-विशेष, सालवृक्ष (हे १, २६०)। °इरि पुं [°गिरि] पर्वंत- विशेष (पउम ३९, ४)। °करिल्ल, °गरिल्ल पुंन [°करील] वंशांकुर, बाँस का कोमल नवावयव (श्रा २०; पव ४)। °जाली, °याली स्त्री [°जाली] बाँसों का गहन घटा (सुर १२, २००; उप पृ ३६)। °रोअणा स्त्री [°रोचना] वंशलोचन (कप्पू)

वंसकवेल्लुय :: पुंन [दे. वंशकवेल्लुक] छत के नीचे दोनों तरफ तिरछा रखा जाता बाँस (जीव ३; राय)।

वंसग :: देखो वंसय (राज)।

वंसप्फाल :: वि [दे] १ प्रकट, व्यक्त। २ ऋजु, सरल (दे ७, ४८)

वंसय :: वि [व्यंसक] १ धूर्तं, ठग। २ पुं. दुष्ट हेतु-विशेष (ठा ४, ३ — पत्र २५४)

वंसा :: स्त्री [वंशा] द्वितीय नरक-पृथिवी (ठा ७ — पत्र ३८८; इक)।

वंसि° :: देखो वंसी = वंश (कम्म १, २०)।

वंसिअ :: वि [वांशिक] वंश-वाद्य बजानेवाला (हे १, ७०; कुमा)।

वंसिअ :: वि [व्यंसित] छलित, प्रतारित (राज)।

वंसी :: स्त्री [वांशी] १ सुरा-विशेष (बृह २) २ बाँस की जाली (ठा ३, १ — पत्र १२१)। °कलंका स्त्री [°कलङ्का] बाँस की जाली की बनी हुई बाड़ (विपा १, ३ — पत्र ३८)। °पत्तिया स्त्री [°पत्रिका] योनि-विशेष, वंशजाली के पत्र के आकार की योनि (ठा ३, १)

वंसी :: स्त्री [वंशी] वाद्य-विशेष, मुरली (बृह २)। °णहिया स्त्री [°नखिका] वनस्पति- विशेष (पणण १ — पत्र ३८)। °मुद्द पुं [°मुख] द्वीन्द्रिय जीव-विशेष (जीव १ टी — पत्र ३१)।

वंसी :: स्त्री [वंश] बाँस। °मूल न [°मूल] बाँस की जड़ (कस)।

वंसी :: स्त्री [दे] मस्तक पर स्थित माला (दे ७, ३०)।

वक्क :: न [वाक्य] पद-समुदाय, शब्द-समूह (उव; उप ८३३; ८५९)।

वक्क :: न [वल्क] त्वचा, छाल (उप ८३६; औप)। °बंध पुं [°वन्ध] वल्क-बन्ध (विपा १, ८)।

वक्क :: देखो वंक = वंक (णाया १, ८ — पत्र १३३; स ६११; धर्मंसं ३४८; ३४९)।

वक्क :: न [वक्त्र] मुख, मुँह (पउम १११, १७; गा १६४)।

वक्क :: न [दे] पिष्ट, पिसान, आटा (षड्)।

वक्कंत :: पुंन [वक्रान्त] प्रथम नरक-भूमि का दसवाँ नरकेन्द्रक — नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ५)।

वक्कंत :: वि [अवक्रान्त] उत्पन्‍न (कप्प; पि १४२)।

वक्कंति :: स्त्री [अवक्रान्ति] उत्पत्ति (कप्प; सम २; भग)।

वक्कड :: न [दे] १ दुर्दिन। २ निरन्तर वृष्टि (दे ७, ३५)

वक्कडबंध :: न [दे] कर्णाभरण, कान का आभूषण (दे ७, ५१)।

वक्कम :: अक [अव + क्रम्] उत्पन्‍न होना। वक्कमइ (भग; कप्प)। भूका. वक्कमिंसु (कप्प)। भवि. वक्कमिस्संति (कप्प)। वकृ. वक्कममाण (भग; णाया १, १ — पत्र २०)।

वक्कर :: (अप) देखो वक्क = बंक (भवि)।

वक्कल :: न [वल्कल] वृक्ष की छाल (प्राप्र; सुपा २५२; हे ४, ३४१; ४११; प्रति ५)। °चीरि पुं [°चीरिन्] एक महर्षि, जो राजा प्रसन्‍नचेन्द्र के छोटे भाई थे (कुप्र २८६)।

वक्कलि, वक्कलिण :: वि [वल्कलिन्] वृक्ष की छाल पहननेवाला (तापस), (कुमा; भत्त १००; संबोध २१; पउम ३९, ८४)।

वक्कल्लय :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (दे ७, ४६)।

वक्कस :: न [दे] १ पुराना धान का चावल। २ पुरातन सक्‍तु-पिण्ड। ३ बहुत दिनों का बासी गोरस। ४ गेहुँ का माँड (आचा १, ९, ४, १३)

वक्किद :: (शौ) देखो वंकिअ (पि ७४)।

वक्ख :: देखो वच्छ = वृक्ष (चंड; उप ८८५)।

वक्ख :: देखो वच्छ = वक्षस् (संक्षि १५; प्राकृ २२; नाट — मृच्छ १३३)।

°वक्ख :: देखो पक्ख (गा ४४२; से ३, ४२; ४, २३; स ६५१)।

वक्खमाण :: देखो वय = व्।

वक्खल :: वि [दे] आच्छादित, ढका हुआ (षड्)।

वक्खा :: सक [व्या + ख्या] १ विवरण करना। २ कहना। कृ. वक्खेय (विसे १३७०)

वक्खा :: स्त्री [व्याख्या] विवरण, विशद रूप से अर्थं प्ररूपण (विसे ९९४)।

वक्खाण :: न [व्याख्यान] १ ऊपर देखो (चेइय २७१; विसे ९६५) २ कथन (हे २, ९०)

वक्खाण :: सक [व्याख्यानय्] १ विवरण करना। २ कहना। वक्खाणइ (भवि)। भवि. वक्खाणइस्सं (शौ) (पि २७९)। कर्मं. वक्खाणिज्जइ (विसे ९८४)। वकृ. वक्खाणयंत (उवर ९८; रयण २१)। संकृ. वक्खाणेउं (विसे ११)। कृ. वक्खाणे- अव्व (राज)

वक्खाणि :: वि [व्याख्यानिन्] व्याख्यान-कर्त्ता (धर्मंसं १२६१)।

वक्खाणिय :: वि [व्याख्यितिन्] व्याख्यात (विसे १०८७)।

वक्खाणीअ :: (अप) ऊपर देखो (पिंग ५०६)।

वक्खाय :: वि [व्याख्यात] १ विवृत, वर्णित (स १३२; चेइय ७७१) २ पुं. मोक्ष, मुक्ति (आचा १, ५, ६, ८)

वक्खार :: पुं [दे] बखार, अन्न आदि रखने का मकान, गोदाम (उप १०३१ टी)।

वक्खार :: पुं [वक्षार, वक्षस्कार] १ पर्वंत- विशेष, गज-दन्त के आकार का पर्वंत (सम १०१; इक) २ भू-भाग, भू-प्रदेश (पउम २, ५४; ५५; ५६; ५८)

वक्खारय :: न [दे] १ रति-गृह। २ अन्तःपुर (दे ७, ४५)

वक्खाव :: सक [व्या + ख्यापय्] व्याख्यान कराना। वक्खावइ (प्राकृ ६१)।

वक्खित्त :: वि [व्याक्षिप्त] १ व्यग्र, व्याकुल (ओघ १३; कुप्र २७) २ किसी कार्यें में व्यापृत (पव २)

वक्खेये :: देखो वक्खा = व्या + ख्या।

वक्खेव :: पुं [व्याक्षेप] १ व्यग्रता, व्याकुलता (उवा; उप १३९ टी; १४०) २ कार्यं- बाहुल्य (सुख ३, १)

वक्खेव :: पुं [अवक्षेप] प्रतिषेध, खण्डन (गा २४२ अ)।

वक्खो° :: देखो वच्छ = वक्षस्। °रुह पुं [°रुह] स्तन, थन (सुपा ३८९)।

वक्‍नु :: (शौ) देखो वंक = वङ्क (प्राकृ ९७)।

वखाण :: (अप) देखो वक्खाण = व्याख्यानय्। बखाण (पिंग)।

वखाणिअ :: (अप) देखो वक्खाणिय (पिंग)।

वगडा :: स्त्री [दे] बाड़, परिक्षेप (कस; वव ९)।

वग्ग :: सक [वल्ग्] १ जाना, गति करना। २ कूदना। ३ बहु-भाषण करना। ४ अभिमान-सूचक शब्द करना, °खूँखारना। वग्गइ (भवि; सण; पि २९६), वग्गंति (सुपा २८८)। कर्मं. वग्गीअदि (शौ) (किरात १७)। वकृ. वग्गंत (स ३८३; सुपा ४९३; भवि)। संकृ. वग्गित्ता (पि २९६)

वग्ग :: पुं [वर्ग] १ सजातीय समूह (णंदि; सुर ३, ४; कुमा) २ गणित-विशेष, दो समान संख्या का परस्पर गुणन (ठा १० — पत्र ४९६) ३ ग्रन्थ-परिच्छेद, अध्ययन, सर्गं (हे १, १७७; २, ७९)। °मूल न [°मूल] गणित-विशेष, वह अंक जिसका वर्गं किया गया हो, जैसे ४ का वर्गं करने से १६ होता है, १६ का वर्गंमूल ४ होता है (जीवस १५७)। °वग्ग पुं [°वर्ग] गणित-विशेष, वर्गं से वर्गं का गुणन, जैसे २ का वर्गं ४, ४ का वर्गं १६, यह २ का वर्गंवर्गं कहलाता है (ठा १०)

वग्ग :: सक [वर्गय्] वर्ग करना, किसी अंक को समान अंक से गुणना। वग्गसु (कम्म ४, ८४)।

वग्ग :: वि [व्यग्र] व्याकुल (उत्त १५, ४; रयण ८०)।

वग्ग :: देखो वक्क = वल्क (विसे १५४)।

वग्ग :: देखो वक्क = वाक्य, 'मुद्धा भणंति अहलं बहु वग्गजालं' (रंभा)।

वग्ग :: वि [वाल्क] वृक्ष-त्वचा — छाल का बना हुआ (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।

वग्गंसिअ :: न [दे] युद्ध, लड़ाई (दे ७, ४६)।

वग्गचूलिआ :: स्त्री [वर्गचूलिका] एक प्राचीन जैन ग्रन्थ (णंदि २०२)।

वग्गण :: न [वल्गन] कूदना (औप; कुप्र १०७; कप्प; णाया १, १ — पत्र १९; प्राप)।

वग्गण :: न [वल्गन] बकवाद (रंभा)।

बग्गणा :: स्त्री [वर्गणा] सजातीय समूह (ठा १ — पत्र २७)।

वग्गय :: न [दे] वार्ता, बात (दे ७, ३८)।

वग्गा :: स्त्री [वल्गा] लगाम (उप ७३८ टी)।

वग्गावग्गिं :: अ. वर्गं रूप से (औप)।

वग्गि :: वि [वाग्मिन्] १ प्रशस्त वाक्य बोलनेवाला। २ पुं. बृहस्पति (प्राप्र; पि २७७)

वग्गिअ :: वि [वर्गित] वर्गं किया हुआ (कम्म ४, ८०)।

वग्गिअ :: न [वल्गित] १ बहु भाषण, बकवाद (सम्मत्त २२७) २ बड़ाई की आवाज (मोह ८७) ३ गति, चाल (सण)

वग्गिर :: वि [वल्गितृ] १ खूँखार आवाज करनेवाला। २ गति-विशेषवाला (सुर ११, १७१)

वग्गु :: देखो वाया = वाच्; 'वग्गूहिं' (औप; कप्प; सम ५०; कुम्मा १९)।

वग्गु :: देखो वग्ग = वर्गं; 'वग्गूहि' (औप)।

वग्गु :: वि [वल्गु] १ सुन्दर, शोभन (सूअ १, ४, २, ४) २ कल, मधुर (पाअ) ३ पुं. विजय-क्षेत्र, विशेष, प्रान्त-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०) ४ पुंन. एक देव-विमान, वैश्रमण लोकपाल का विमान (देवेन्द्र १३१; २७०)

वग्गुरा :: न [वागुरा] १ मृग-बन्धन, पशु फँसाने का जाल, फन्दा (पणह १, १, विपा १, २ — पत्र ३५) २ समूह, समुदाय; 'मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते' (उवा, प्राप)

वग्गुरिय :: वि [वागुरिक] १ मृग-जाल से जीविका निर्बाह करनेवाला, व्याध, पारधि (ओघ ७६६) २ पुं. नर्त्तंक-विशेष (राज)

वग्गुंलि :: पुंस्त्री [वल्गुलि] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८) २ रोग-विशेष (ओघभा २७७, श्रावक ९१ टी)

वग्गेज :: वि [दे] प्रचुर, प्रभूत (दे ७, ३८)।

बग्गोअ :: पुं [दे] नकुल, न्यौला (दे ७, ४०)।

वग्गोरमय :: वि [दे] रूक्ष, लूखा (दे ७, ५२)।

वग्गोल :: सक [रोमन्थय्] पगुराना, चबी हुई वस्तु का पुनः चबाना; गुजराती में 'वागोळवुं'। वग्गोलइ (हे ४, ४३)।

वग्गोलिर :: वि [रोमन्थयितृ] पगुरानेवाला (कुमा)।

वग्घ :: वि [वैयाघ्र] व्याघ्र-कर्मं का बना हुआ (आचा २, ५, १, ५)।

वग्घ :: पुं [व्याघ्र] १ बाघ, शेर (पाअ; स्वप्‍न ७०; सुपा ४६३) २ रक्त एरण्ड का पेड़। ३ करञ्ज वृक्ष (हे २, ९०) °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप। २ उसमें रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक)

वग्घाअ :: पुं [दे] १ साहाय्य, मदद। २ वि. विकसित, खिला हुआ (दे ७, ८६)

वग्घाडी :: स्त्री [दे] उपहास के लिये की जाती एक प्रकारी की आवाज; 'अप्पेगइया जग्घाडीओ करेंति' (णाया १, ८ — पत्र १४४)।

वग्घारिअ :: वि [व्याघारित] १ बघारा हुआ, छौंका हुआ (नाट — मृच्छ २२१) २ व्याप्त; 'सीतोदयवियडवग्घारियपाणिणा' (सम ३९) ३ पिघला हुआ (दश° वै° वृ° चू° अ° ३ नि° गा° १६७)

वग्घारिअ :: वि [दे] प्रलम्बित; 'पडिबद्धसरीर- वग्घारियसोणिसुत्तगमल्लदामकलावे' (सूअ २, २, ५५); 'वग्घारियपाणी' (णाया १, ८ — पत्र १५४; कप्प; औप; महा)।

वग्घावच्च :: न [व्याघ्रापत्य] एक गोत्र, जो वाशिष्ठ गोत्र की एक शाखा है (ठा ७ — पत्र ३९०; सुज्ज १०, १६; कप्प; इक)।

वग्घी :: स्त्री [व्याघ्री] १ बाघ की मादा (कुमा) २ एक विद्या (विसे २४५४)

वघाय :: देखो वाघाय; 'आउस्स कालाइचरं वघाए, लद्धाणुमाणे य परस्स अट्ठे' (सूअ १, १३, २०)।

वचा :: स्त्री [वचा] १ पृथिवी, धरती (से २, ११) २ ओषधि-विशेष, बच (मृच्छ १७०)। देखो वया = वचा।

वच्च :: सक [व्रज्] जाना, गमन करना। वच्चइ (हे ४, २२५; महा)। भवि. वच्चि- हिसि (महा)। वकृ. वच्चंत, वच्चमाण (सुर २, ७२; महा; गा १९)।

वच्च :: सक [काङ्क्ष्] चाहना, अभिलाष करना। वच्चइ, वच्चइ (हे ४, १९२; कुमा)।

वच्च :: देखो वय = वच्।

वच्च :: पुंन [वर्चस्] १ पुरीष, विष्ठा (पाअ; ओघ १९७; सुपा १७९; तंदु १४) २ कूड़ा-करकट; 'भोगो तंबोलाइ कुणंतो जिण- गिहे कुणइ वच्चं' (संबोध ४) ३ चौथा नरक का चौथा नरकेन्द्रक — नरकस्थान- विशेष (देवेन्द्र १०) ४ तेज, प्रभाव (णाया १, १ — पत्र ६)। °घर , °हर न [°गृह] पाखाना, टट्ठी (सूअ १, ४, २, १३; स ७४१)

वच्च :: देखो वय = वचस् (णाया १, १ — पत्र ६)।

वच्चंसि :: वि [वचस्विन्] प्रशस्त वचनवाला (णाया १, १ — पत्र ६)।

वच्चंसि :: वि [वर्चस्विन्] तेजस्वी (णाया १, १; सम १५२; औप; पि ७४)।

वच्चय :: पुं [व्यत्यय] विपयास, उलट-पुलट (उपपृ २६६; पव १०४)। देखो वत्तअ।

वच्चरा :: (अप) देखो वचा (भवि)।

वच्च। :: देखो वय = वच्।

वच्चमेलिय :: देखो विच्चामेलिय (विसे १४८१)।

वच्चास :: पुं [व्यत्यास] विपर्यास, विपर्यंय (ओघ २७१; कम्म ५, ८९)।

वच्चासिय :: वि [व्यत्यासित] उलटा किया हुआ (विसे ८५३)।

वच्चीसग :: पुं [वच्चीसक] वाद्य-विशेष (अनु)।

वच्चो° :: देखो वच्च = वर्चस् (सुर ९, २८)।

वच्छ :: न [दे] पार्श्‍व, समीप (दे ७, ३०)।

वच्छ :: पुंन [वक्षस्] छाती, सीना (हे २, १७; संक्षि १५; प्राप्र; गा १५१; कुमा)। °त्थल न [°स्थल] उरः-स्थल, छाती (कुमा, महा)। °सुत्त न [°सूत्र] आभूषण-विशेष, वक्षःस्थल में पहनने की सँकली — सिकड़ी या सिकरी (भग ९, ३३ टी — पत्र ४७७)।

वच्छ :: पुं [वृक्ष] पेड़, शाखी, द्रुम (प्राप्र; कुमा; हे २, १७; पाअ)।

वच्छ :: पुं [वत्स] १ बछड़ा (सुर २, ९५; पाअ) २ शिशु, बच्चा। ३ वत्सर, वर्ष। ४ वक्षःस्थल, छाती (प्राप्र) ५ ज्योतिशास्त्र-प्रसिद्ध एक चक्र (गण १९) ६ देश-विशेष (तो १०) ७ विजय-क्षेत्र- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०) ८ न. गोत्र- विशेष। ९ वि. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०; कप्प) °दर पुंस्त्री [°तर] क्षुद्र वत्स। २ दमनीय बछड़ा आदि। स्त्री. °री (प्राकृ २३) °मित्ता स्त्री [°मित्रा] १ अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमाकी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७; इक) २ ऊर्ध्वंलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (इक; राज)। °यर देखो °दर (दे २, ९; ७, ३७)। °राय पुं [°राज] एक राजा (ती १०)। °वाल पुंस्त्री [°पाल] गोप, ग्वाला (पाअ)। स्त्री. °ली (आवम)

वच्छ :: वि [वात्स्य] वात्स्य गोत्र का (णंदि ४८)।

वच्छगावई :: स्त्री [वत्सकावती] एक विजय- क्षेत्र (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)।

वच्छर :: पुंन [वत्सर] साल, वर्षं (प्राप्र; सिरि ९३५)।

वच्छल :: वि [वत्सल] स्‍नेही, स्‍नेह-युक्त (गा ३; कुमा; सुर ६, १३७)।

वच्छल्ल :: न [वात्सल्य] स्‍नेह, अनुराग, प्रेम (कुमा; पडि)।

वच्छा :: स्त्री [वत्सा] १ विजय-क्षेत्र विशेष। २ एक नगरी (इक) ३ लड़की (कप्पू)

बच्छाणं :: पुं [उक्षन्] बैल, बलीवर्दं; 'उक्खा वसहा य बच्छाणा' (पाअ)।

वच्छावई :: स्त्री [वत्सावती] विजय-क्षेत्र विशेष (जं ४)।

वच्छि° :: देखो वय = वच्।

वच्छिउड :: पुं [दे] गर्भाश्रय (दे ७, ४४ टी)।

वच्छिम :: पुंस्त्री [वृक्षत्व] वृक्षपन (षड्)।

वच्छिमय :: पुं [दे] गर्भ शय्या (दे ७, ४४)।

वच्छीउत्त :: पुं [दे] नापित, हजाम (दे ७, ४७; पाअ; स ७५)।

वच्छीव :: पुं [दे] गोप, ग्वाला (दे ७, ४१; पाअ)।

वच्छुद्धलिअ :: वि [दे] प्रत्युद्धत (षड्)।

वच्छोम :: न [वक्षोम] नगर-विशेष, कुन्तल देश की प्राचीन राजधानी (कप्पू)।

वच्छोमी :: स्त्री [दे] काव्य की एक रीति (कप्पू)।

वज्ज :: अक [त्रस्] डरना। वज्जइ, वज्जए (हे ४, १९८; प्राकृ ७५; धात्वा १५१)।

वज्ज :: देखो वच्च = व्रज्। वज्जइ (नाट — मृच्छ १९३), वज्जसि (पि ४८८)।

वज्ज :: सक [वर्जय्] त्याग करना। कवकृ. वज्जिज्जंत (पंचा १०, २७)। संकृ. वज्जिय, वज्जेवि, वज्जिऊण, वज्जेत्ता (महा; काल; पंचा १२, ६)। कृ. वज्ज, वज्जणिज्ज, वज्जेयव्व (पिंड ५९२; भग; पणह २, ४; सुपा ४८५; महा; पणह १, ४; सुपा ११०; उप १०३७)।

वज्ज :: अक [वद्] बजना, वाद्य आदि की आवाज होना। वज्जइ (हे ४, ४०६; सुपा ३३४)। वकृ. वज्जंत, वज्जमाण (सुर ३, ११५; सुपा ६५६)।

वज्ज :: न [वाद्य] बाजा, वादित्र (दे ३, ५८; गा ४२०)।

वज्ज :: वि [वर्य] श्रेष्ठ, उत्तम (सुर १०, २)। २ प्रधान, मुख्य (हे २, २४)

वज्ज :: वि [वर्ज] १ रहित, वर्जित; 'जिणवज- देवयाणं न नमइ जो तस्स तणुसुद्धी' (श्रा ६), 'सहजनिओगजवज्जा पायं न घडंति आगारी' (चेइय ४७१), 'लोयववहारवज्जा तुब्भे परमत्थमूढा य' (धर्मवि ८४५; विसे २८४७; श्रावक ३०७; सुर १४, ७८) २ न. छोड़कर, बिना, सिवाय (श्रा ६; दं १७; कम्म ४, ३४; ५३) ३ पुं. हिंसा, प्राणि-वध (पणह १, १ — पत्र ६)

वज्ज :: देखो अवज्ज (सूअ १, ४, २, १९; बृह १)।

वज्ज :: देखो वइर = वज्र (कुमा; सुर ४, १५२; गु ५; हे १, १७७; २, १०५; षड्; कम्म १, ३९; जीवस; ४९; सम २५)। १७ पुं. विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १६; १७; ८, १३३)। १८ हिंसा, प्राणि-वध (पणह १, १ — पत्र ६)। १९ कन्द-विशेष (पणण १ — पत्र ३६; उत्त, ३६, ९९)। २० न. कर्मं-विशेष, बँधाता हुआ कर्मं (सूअ २, २, ६५, ठा ४, १ — पत्र १९७)। २१ पाप (सूअ १, ४, २, १९)। °कंठ पुं [°कण्ठ] वानर-द्वीप का एक राजा (पउम ६, ६०)। °कंत न [°कान्त] एक देव- विमान (सम २५)। °कंद पुं [°कन्द] एक प्रकार का कन्द, वनस्पति-विशेष (श्रा २०)। °कूड न [°कूट] एक देव-विमान (सम २५)। °क्ख पुं [°क्ष] एक विद्याधर-वंशीय राजा (पउम ८, १३२)। °चूड पुं [°चूड] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४६)। °जंघ पुं [°जङ्घ] विद्याधर-वंशीय एक नरेश (पउम ५, १५)। °णाभ पुं [°नाभ] भगवान अभिनन्दन-स्वामी के प्रथम गणधर (सम १५२)। देखो °नाभ। °दत्त पुं [°दत्त] १ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १५)। २ एक जैन मुनि (पउम २०, १८)। °द्धय पुं [°ध्वज] एक विद्याधर- वंशीय राजा (पउम ५, १५)। °घऱ देखो °हर (पउम १०२, १५६; विचार १००)। °नागरी स्त्री [°नागरी] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)। °नाभ पुं [°नाभ] एक जैन मुनि (पउम २०, १९)। देखो °णाभ। °पाणि पुं [°पाणि] १ इन्द्र (उत्त ११, २३; देवेन्द्र २८३; उप २११ टी) २ एक विद्याधर-नरपति (पउम ५, १७) °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम २५)। °बाहु पुं [°बाहु] एक विद्याधर-वंशीय राजा (पउम ५, १६)। °भूमि स्त्री [°भूमि] लाट देश का एक प्रदेश (आचा १, ९, ३, २)। °म (अप) देखो मय (हे ४, ३९५)। °मज्झ पुं [°मध्य] १ राक्षस- वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, २६३) २ रावणाधीन एक सामन्त राजा (पउम ८, १३२) °मज्झा स्त्री [°मध्या] एक प्रतिमा, व्रत-विशेष (औप २४)। °मय वि [°मय] वज्र का बना हुआ (पउम ६२, १०)। स्त्री. °मई (नाट — उत्तर ४५)। °रिसहनाराय न [°ऋषभनाराच] संहनन-विशेष, शरीर का एक तरह का सर्वोतम बन्ध (कम्म १, ३८)। °रूव न [°रूप] एक देव-विमान (सम २५)। °लेस न [°लेश्य] एक देव-विमान (२५)। °वँ (अप) देखो °म (हे ४, ३९५)। °वण्ण न [°वर्ण] एक देव-विमान (सम २५)। °वेग पुं [°वेग] एक विद्याधर का नाम (महा)। °सिंखला स्त्री [°श्रृङ्खला] एक विद्या-देवी (संति ५)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] एक देव- विमान (सम २५)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम २५)। °सुन्दर पुं [°सुन्दर] विद्याधर-वंश में उत्पन्‍न एक राजा (पउम ५, १७)। °सुजणहु पुं [°सुजह् नु] विध्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १७)। °सेण पुं [°सेन] १ एक जैन मुनि, जो भगवान् ऋषभदेव के पूर्वं जन्म में गुरु थे (पउम २०, १७) २ विक्रम की चौदहवीं शताब्दी के एक जैन आचार्य (सिरि १३४९) °हर पुं [°धर] १ इन्द्र, देवराज (से १५, ४८; उव) २ वि. वज्र को धारण करनेवाला (सुपा ३३४) °उह पुं [°युध] १ इन्द्र (पउम ३, १३७; ५१, १८)। २ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १६)। °भ पुं [°भ] एक विद्याधर-वंशीय राजा (पउम ५, १६)। °वत्त न [°वर्त्त] एक देव-विमान (सम २५)। °स पुं [°श] एक विद्याधर-राजा (पउम ५, १७)

वज्जंक :: पुं [वज्राङ्क] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १६)।

वज्जंकुसी :: स्त्री [वज्राङ्कुशी] एक विद्या-देवी (संति ५)।

वज्जंत :: देखो वज्ज = वद्।

वज्जंधर :: पुं [वज्रन्धर] विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १६)।

वज्जघट्टित्ता :: स्त्री [दे] मन्द-भाग्य स्त्री (संक्षि ४७)।

वज्जण :: न [वर्जन] परित्याग, परिहार (सुर ४, ८२; स २७१; सुपा २४५; श्रु ६)।

वज्जणअ :: (अप) वि [वदितृ] बजनेवाला, 'पडहु वज्जणउ' (हे ४, ४४३)।

वज्जणया, वज्जणा :: स्त्री [वर्जना] परित्याग (सम ४४; उत्त १९, ३०; उव)।

वज्जमाण :: देखो वज्ज = वद्।

वज्जय :: वि [वर्जक] त्यागनेवाला (उवा)।

वज्जर :: सक [कथय्] कहना, बोलना। वज्जरइ, वज्जरेइ (हे ४, २; षड्; महा)। वकृ. वज्जरंत (हे ४, २, चेइय १४६)। संकृ. वज्जरिऊण (हे ४, २)। कृ. वज्जरि- अव्व (हे ४, २)।

वज्जर :: देखो वंजर = मार्जार (चंड)।

वज्जर :: पुं [वर्जर्] १ देश-विशेष। २ वि. देश-विशेष में उत्पन्‍न; 'परिवाहिया य तेणं बहवे वल्हीयतुरुक्कवज्जराइया आसा' (स १३)

वज्जरण :: न [कथन] उक्ति, वचन (हे ४, २)।

वज्जरा :: स्त्री [दे] तरंगिणी, नदी (दे ७, ३७)।

वज्जरिअ :: वि [कथित] कहा हुआ, उक्‍त (हे ४, २; सुर १, ३२; भवि)।

वज्जा :: स्त्री [दे] अधिकार, प्रस्ताव (दे ७, ३२; वज्जा २)।

वज्जाव :: (अप) सक [वाचय्] वचवाना, पढ़ाना। वज्जावइ (प्राकृ १२०)।

वज्जाव :: सक [वादय्] बजाना। वज्जावइ (भवि)।

वज्जाविय :: वि [वादित] बजाया हुआ (भवि)।

बज्जि :: पुं [वज्रिन्] इन्द्र (संबोध ८)।

वज्जिअ :: वि [दे] अवलोकित, दृष्ट (दे ७, ३९; महा)।

वज्जिअ :: वि [वादित] बजाया हुआ (सिरि ५२५)।

वज्जिअ :: वि [वर्जित] रहित (उवा; औप; महा; प्रासू ७९)।

वज्जियाव :: पुं [दे] शेलडी (व्यव° भाष्य°)।

वज्जियावग :: पुं [दे] इक्षु, ऊख (वव १)।

वज्जिर :: वि [वदितृ] बजनेवाला (सुर ११, १७२; सुपा ४५; ८७; सिरि १५५; सण), 'गहिख (? रव) ज्जिराउज्जगज्जिज्जरियबंभंडभंडो- यरो' (कुप्र २२४)।

वज्जुतरवडिंसग :: न [वज्रोत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम २५)।

वज्जोयरी :: स्त्री [वज्रोदरी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३८)।

वज्झ :: वि [वध्य] वध के योग्य (सुपा २४८; गा २९; ४९६; दे ८, ४९)। °नवेत्थिय वि [°नेपथ्यिक] मृत्यु-दंड-प्राप्त को पहनाया जाता वेष वाला (पणह १, ३ — पत्र ५४)। °माला स्त्री [°माला] वध्य को पहनाई जाती माला, कनेर के फूलों की माला (भत्त १२०)।

वज्झ :: वि [वाह्य] १ वहन करने योग्य (प्राप्र; उप १५० टी) २ न. अश्व आदि यान (स ६०३)। °खेड्ड न [°खेल] कला-विशेष, यान की सवारी का इल्म (स ६०३)

वज्झा :: स्त्री [हत्या] वध, घात (सुख ४, ६; महा)।

मज्झियायण :: न [वध्यायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६)।

वञ :: (अप) देखो वच्च = व्रज्। वञइ, वञदि (षड्)।

वट्ट :: सक [वृत्] १ वर्त्तंना, होना। २ आच- रण करना। वट्टइ, वट्टए, वट्टंति (सुर ३, ३९; उव; कप्प)। वकृ. वट्टंत, वट्टमाण (गा ४१०; कम्म ३, २०; चेइय ७१३; भवि; उवा; पडि; कप्प; पि ३५०)। हेकृ. वट्टेउं (चेइय ३६८)। कृ. वट्टियव्व (उव)

वट्ट :: सक [वर्त्तय्] १ बरतना। २ पिंड रूप से बाँधना। ३ परोसना। ४ ढकना, आच्छादन करना। वट्‍टंति (पिंड २३९)। कवकृ. वट्टिज्जमाण (औप)

वट्ट :: वि [वृत्त] १ वर्त्तुल, गोलाकार (सम ६३; औप; उवा) २ अतीत, गुजरा हुआ। ३ मृत। ४ संजात, उत्पन्न। ५ अधीन। ६ दृढ़। ७ पुं. कूर्मं, कछुआ (हे २, २९) ८ न. वर्तन, वृत्ति, प्रवृत्ति (सूअ १, ४, २, २)। °क्खुर, °खुर पुं [°खुर] श्रेष्ठ अश्व (ओघ ४३८; राज)। °खेड, खेड्ड स्त्रीन [खेल] कला-विशेष (णाया १, १ — पत्र ३८; स ६०३; अंत ३१ टि), देखो वत्थ- खेड्ड। देखो वत्त, वित्त = वृत्त। °वेयड्‍ढ पुं [°वैथाढ्य] पर्वंत-विशेष (ठा १०)

वट्ट :: पुंन [वर्त्मन्] बाट, मार्गं, रास्ता; 'पडि- सोएण पवट्टा चत्ता अणुसोअगामिणो वट्टा' (सार्धं ११८; सुर १०, ४; सुपा ३३०), 'वट्टं' (प्राकृ २०)। °वाडण न [°पातन] मुसा- फिरों को रास्ते में लुटना; 'परदोहवट्टवाडण- बंदग्गहखत्तखणणपमुहाइं' (कुप्र ११३), 'से वट्टपाडणेहि बंदग्गहणेहिं खत्तखणणेहिं' (धर्मंवि १२३)।

वट्ट :: पुंन [दे] १ प्याला, गुजराती में 'वोटको'; 'पढमधुंठम्मि खलिया जीहा, हत्थाउ निवडियं वट्टं' (सुपा ४९६) २ पुं. हानि, नुकसान, गुजराती में 'वट्टो'; 'अन्नह उवक्खएणवि मूला वट्टो इहं होहि' (सुपा ४४५) ३ लोट्टक, शिला-पुत्रक, लोढा; 'वट्टावरएणं' (भग १९, ३ — पत्र ७६६) ४ खाद्य-विशेष, गाढ़ी कढ़ी (पणह २, ५ — पत्र १४८)

वट्ट :: पुं [वर्त] देश-विशेष (सत्त ६७ टी)।

°वट्ट :: पुं [पट्ट] प्रवाह (कुमा)। देखो पट्ट (से ५, १४; भवि; गउड)।

वट्टंत :: देखो वट्ट = वृत्त।

वट्टक, वट्टग :: देखो वट्टय = वर्तंक (पणह १, १ — पत्र ८; विपा १, ७ — पत्र ७५; सूअ २, २, १०; २६; ४३)।

वट्टण :: देखो वत्तण (रंभा)।

वट्टणा :: देखो वत्तणा (राज)।

वट्टमग :: न [वर्त्मक] मार्गं, रास्ता (आचा; ओप)।

वट्टमाण :: देखो वट्ट = वृत्।

वट्टमाण :: न [दे] १ अंग, शरीर। २ गन्ध- द्रव्य का एक तरह का अधिवास (दे ७, ८६)

वट्टय :: देखो वट्ट = दे (पउम १०२, १२०)।

वट्टय :: पुं [वर्तक] १ पक्षि-विशेष, बटेर (सूअ १, २, १, २; उवा) २ बालकों को खेलने का एक तरह का चपड़े का बना हुआ गोल खिलौना (अनु ५; णाया १, १८ — पत्र २३५)

°वट्टय :: देखो पट्ट (गउड)।

वट्टा :: स्त्री [दे. वर्त्मन्] देखो वट्ट = वर्त्मंन् (दे ७, ३१)।

वट्टा :: स्त्री [वार्त्ता] बात, कथा (कुमा)।

वट्टाव :: सक [वर्तय्] बरताना, काम में लगाना। वट्टावेइ (उव)।

वट्टावण :: न [वर्तन] बरताना, कार्यं लगाना (उव)।

वट्टावय :: वि [वर्तक] बरतानेवाला, प्रवर्त्तंक (उव; णाया १, १४ — पत्र १८९)।

वट्टावय :: वि [वर्तक] प्रतिजागरक, श्रुश्रुषाकर्त्ता (वव १)।

वट्टि :: स्त्री [वर्ति] १ बत्ती, दीपक में जलनेवाली बाती। २ सलाई, आँख में सुरमा लगाने की सली या सलाई। ३ शरीर पर किया जाता एक तरह का लेप। ४ लेख, लिखना। ५ कलम, पीछी (हे २, ३०)। देखो वत्ति, वित्ति।

वट्टिअ :: वि [वर्त्तित] १ परिवर्त्तित (दे ५, २७) २ बलित (पव २१६ टी) ३ वर्तुल, गोल (पणह १, ४ — पत्र ७८; तंदु २०) ४ प्रवर्तित (भवि)

वट्टिआ :: स्त्री [वर्तिका] देखो वट्टि (अभि २१७; नाट — रत्‍ना २१; स २३९)।

वट्टिम :: वि [दे] अतिरिक्त (दे ७, ३४)।

वट्टिय :: वि [दे] चूर्ण किया हुआ, पिसा हुआ; गुजराती में 'वाटेलुं' 'पक्खित्तं साहिणवट्टियं लोणं' (स २६४)।

वट्टिव :: न [दे] पर-कार्य (दे ७, ४०)।

वट्टी :: स्त्री [वर्त्ती] देखो वट्टि (हे २, ३०)।

°वट्टी :: स्त्री [पट्टी] पट्टा; 'ताव य कडिवट्टीओ पडिया रयणावली झत्ति' (सुपा ३४४; १५४)।

वट्‌टु :: न [दे] पात्र-विशेष, (बृह १)। °कर पुं [°कर] यक्ष-विशेष (राज)। °करी स्त्री [°करी] विद्‌या-विशेष (राज)।

वट्‌टुल :: वि [वतुल] १ गोल, वृत्ताकार (पाअ) २ पुंन. पलाण्डु — प्याज के समान एक तरह का कन्द-मूल (हे २, ३०; प्रारू)

°वट्ठ :: देखो पट्ठ = पृष्ठ (गउड; गा १५०; हे १, ८४; १२९)।

°वट्ठि :: देखो सट्ठि, 'बा-वट्ठी' (सम ७५; पंच ५, १५; पि २६५; ४४६)।

वड :: पुं [दे] १ द्वार का एक देश, दरवाजे का एक भाग। २ क्षेत्र (दे ७, ८२) ३ मत्स्य की एक जाति (पणण १ — पत्र ४७) ४ विभाग (निचू २)। देखो वड्ड; 'वडसफर- पवहणाणं' (सिरि ३८२)

वड :: पुं [वट] १ वृक्ष-विशेष, बरगद, बड़ का पेड़ (पणण १ — पत्र ३१; गा ९४; कप्पू) २ न. वस्त्र-विशेष; 'वडजुगपट्टजुगाइं' (णाया १, १ टी — पत्र ४३) °नयर न [°नगर] नगर-विशेष (पउम १०५, ८८)। °वद्द न [°पद्र] १ गुजरात का एक नगर, जो आज कल 'बडौदा' नाम से प्रसिद्ध है (उप ५१६) २ एक गोकुल (उप ५९७ टी)। °सावित्ती स्त्री [°सावित्री] एक देवी (कप्पू)

वड :: देखो पड = पत्। वकृ. 'उअहिम्मि उण वडंता' (सं ७, ७)।

°वड :: देखो पड = पट; 'पवणाहयवडचंचलाओ लच्छीओ तह य मणुयाणं' (सुर ४, ७६; से १०, १९; सुर १, ६१; ३, ६७; गा ३२९)।

वडग :: न [वटक] खाद्‌य-विशेष, बड़ा (पिंड ६६७)।

वडग :: देखो वड़ = वट (अंत)।

°वडण :: देखो पडण (गा ५६७; गउड; महा)।

वडप्प :: न [दे] १ लता-गहन। २ निरन्तर वृष्टि (दे ७, ८४)

वडभ :: वि [वडभ] १ वामन, ह्रस्व (ओघभा ८२) २ जिसका पृष्ठ-भाग बाहर निकल आया हो वह (आचा) ३ नाभि के ऊपर का भाग जिसका टेढ़ा हो वह (पणह १, १ — पत्र २३) ४ पीछे का या आगे का अंग जिसका बाहर निकल आया हो वह (पव ११०) ५ जिसका पेट बड़ा होकर आगे निकल आया हो वह। स्त्री. °भी (णाया १, १ — पत्र ३७; औप; पि ३८७)

वडय :: देखो वडग = वटक (सुपा ४८५)।

°वडल :: देखो पडल (गउड)।

वडवग्गि :: पुं [वडवाग्‍नि] वडवानल, समुद्र के भीतर की आग (गा ४०३)।

वडवड :: अक [वि + लप्] विलाप करना। वडवडइ (हे ४, १४८), वडवडंति (कुमा)।

वडवा :: स्त्री [वडवा] घोड़ी (पाअ; धर्मवि १४५)। °णल, नल पुं [°नल] समुद्र के भीतर की आग, वडवाग्‍नि (पि २४०; श्रा १६)। °मुह न [°मुख] १ वही अर्थं (से १, ८) २ एक महा-पाताल (इक)। °हुआस पुं [°हुताश] वडवानल (समु १५४)

वडह :: देखो वडभ (आचा १, २, ३, २)।

वडह :: पुं [दे] पक्षि-विशेष (दे ७, ३३)।

°वडह :: देखो पडह (से १२, ४७)।

वडही :: देखो वलही (गउड)।

°वडाआ :: देखो पडाया (गा १२०)।

°वडालि :: स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणि (दे ७, ३६)।

°वडाहा :: देखो पडाया; धवलधयवडाहो' (महा)।

°वडिअ :: देखो पडिअ (से ५, १०; कुप्र १८१; उवा)।

वडिअ :: वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ (सुर १, १६९)।

वडिंस :: पुं [वतंस] १ मेरु पर्वंत (सुज्ज ५ टी — पत्र ७८) २ भूषण, 'रायकुलवडिंसगा वि मुणिवसभा' (उव, कप्प) ३ एख दिग्हस्ति-कूट (इक) ४ प्रधान, मुख्य। ५ श्रेष्ठ, उत्तम (कप्प; महा) ६ कर्णंपूर, कान का आभूषण (णाया १, १ — पत्र ३१)। देखो वडेंस, अवयंस।

वडिणाय :: पुं [दे] घर्धंर कण्ठ, बैठा हुआ गला (षड्)।

वडिया :: स्त्री [वृत्तिता] वर्त्तन, 'भयवंतदंसण- वडियाए' (स ६८३; आचा २, ७, १)।

°वडिया :: देखो पडिया = प्रतिज्ञा (आचा २, ७, १)।

वडिसर :: न [दे] चूल्ली-मूल, चूल्हे का मूल (दे ७, ४८)।

वडिवस्सअ :: वि [वरिवस्यक] पूजक, पूजा करनेवाला (चारु १)।

वडिसाअ :: वि [दे] स्त्रुत, टपका हुआ (षड्)।

वडी :: स्त्री [दे] बड़ी, एक प्रकार का खाद्य (पव ३८)।

वडुमग, वडूमग :: देखो वट्टमद (औप; आचा)।

वडेंस :: पुं [वतंस] शेखर, मुकुट (भग; णाया १, १ टी — पत्र ५)। देखो वडिंस।

वडेंसा :: स्त्री [वतंसा] किंनर नामक किन्नरेन्द्र की एक अग्रमहिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४; णाया २ — पत्र २५२)।

वडेंसिया :: स्त्री [वतंसिका] अवतंस की तरह करना, मुकुटस्थानापन्‍न करना; 'अट्ठारसवं- जणाउलं भोयणं भोयावेत्ता जावज्जीवं पिट्ठिव- डेंसियाए परिवहेज्जा' (ठा ३, १ — पत्र ११७)।

वड्ड :: वि [दे] बड़ा, महान् (दे ७, २९; तंदु ५५; सुपा १२४; णाया २ — पत्र २४८; सम्मत्त १७३; भवि; हे ४, ३६६; ३६७; ३७१)। °अत्थरग पुं [°आस्तरक] ऊँट की पीठ पर रखा जाता आसन (पव ८४ टी)। °त्तण न [°त्व] बड़प्पन, महत्ता (हे ४, ३८४; कप्पू)। °प्पण (अप) न [°त्व] वही (हे ४, ३६६; ४३७; पि ३००)। °यर वि [°तर] विशेष बड़ा (हे २, १७४)।

वड्डवास :: पुं [दे] मेघ, अभ्र (दे ७, ४७; कुमा)।

वड्डहुल्लि :: पुं [दे] मालाकार, माली (दे ७, ४२)।

वड्डार :: (अप) देखो वड्ड-यर (भवि)।

वड्डिम :: वि [दे] स्रुत, टपका हुआ (षड्)।

वड्डिल :: [दे] देखो वड्ड; 'नयणाण पडउ वज्जं अहवा बज्जस्स वड्डिलं किंपि। अमुणियजणेवि दिट्‍ठे अणुबंधं जाणि कुव्वंति' (सुर ४, २०; वज्जा ६२)।

वड्‌डुअर :: देखो वड्ड-यर (षड्)।

वड्‌ढ :: अक [वृध्] बढ़ना। वड्‍ढइ (हे ४, २२०; महा; काल)। भूका. वडि्इत्था (कप्प)। वकृ. वड्‍ढंत, वड्‍ढमाण (सुर १, ११९; महा; गा ११३)। हकृ. वाडे्ढउं (महा)।

वड्‌ढ :: सक [वर्धय] १ बढ़ाना, विस्तारना। २ बाधाई देना। वड्‍ढंति (उव)। वकृ. वड्‌ढअंत (नाट — मृच्छ १८)। कर्मं. वडि्ढज्जंति (सिरि ४२४)। देखो वद्ध = वर्धंय्।

वड्‍ढइ :: पुं [वर्धकि] बढ़ई, सुतार (सम २७; उप पृ १५३; पाअ; धर्मंसं ४८९; दे ७, ४४)।

वड्‌ढइअ :: पुं [दे] चर्मंकार, मोची (दे ७, ४४)।

वड्‍ढण :: न [वर्धन] १ वृद्धि, बढ़ाव (कप्पू) २ वि. वृद्धि-जनक (महा; सुर १३, १३९)

वड्‍ढणमिर :: वि [दे] पीन, पुष्ट (दे ७, ५१)।

वड्‍ढणसाल :: वि [दे] जिसकी पूँछ कट गई हो वह (दे ७, ४९)।

वड्‍ढमाण :: देखो वड्‍ढ = वृध्।

वड्‍ढमाण, वड्‍ढमाणय :: न [वर्धमान, °क] १ गुजरात का एक नगर, जो आजकल 'वढवाण' के नाम से प्रसिद्ध है; 'सिरिवड्‍ढमाणनयरं पत्ता गुज्जरघरावलयं' (सम्मत्त ७५) २ अवधिज्ञान का एक भेद, उत्तरोत्तर बढ़ता जाता एक प्रकार का परोक्ष रूपी द्रव्यों का ज्ञान (ठा ६ — पत्र ३७०; कम्म १, ८) ३ पुं. भगवान् महावीर (भवि)। देखो वद्धमाण।

वड्‍ढय :: देखो वट्ट = दे 'पाणभरियं वड्‍ढयं पियावयणसमप्पियं पीयमाणं पि तीए सुट्‍ठुयरं भरियमुंसुएहिं' (स ३८२)।

वड़्‍ढव :: सक [वर्धय्, वर्धापय्] १ बढ़ाना, वृद्धि करना। २ बधाई देना, अभ्युदय का निवेदन करना। वड्‍ढवइ (प्राकृ ६०)

वड्‍ढवअ :: वि [वर्धक] १ बढ़ानेवाला २ बधाई देनेवाला (प्राकृ ६१)

वड्‍ढवण :: न [दे] वस्त्र का आहरण (दे ७, ८७)।

वड्‍ढवण :: न [दे. वर्धापन] वधाई, अभ्युदय- निवेदन (दे ७, ८७)।

वड्‍ढविअ :: वि [वर्धित, वर्धापित] जिसको बधाई दी गई हो वह (दे ६, ७४)।

वड्‍ढार :: (अप) सक [वर्धय्] बढ़ाना, गुजराती में 'वधारवुं' । वड्‍ढारइ (भवि)।

वड्‍ढाव :: देखो वड्‍ढव। वड्‍ढावेमि (प्राकृ ६१; पि ५५२)।

वड्‍ढावअ :: देखो वड्‍ढावअ (प्राकृ ६१; कप्पू; उवा)।

वड्‍ढाविअ :: वि [दे] समापित, समाप्त किया हुआ (दे ७, ४५)।

वड्‍ढि :: वि [वर्धिन्] बढ़नेवाला (से १, १)।

वड्‍ढि :: स्त्री [वृद्धि] बढ़ती, बढ़ाव (उवा; देवेन्द्र ३६७; जीवस २७४)।

वड्‍ढिअ :: वि [वृद्ध] बढा हुआ (कुमा ७, ५८; गा ४१०; महा)।

वड्‍ढिअ :: वि [वधित] १ बढ़ाया हुआ; 'महीवीढे नइवडी्ढयनीरो उयहिव्व वित्थरइ' (सिरि ९२७) २ खण्डित किया हुआ, काटा हुआ (से १, १)

वडी्ढआ :: स्त्री [दे] कूपतुला, ढेंकुवा (दे ७, ३६)।

वडि्ढम :: पुंस्त्री [वृद्धिमन्] वृद्धि, बढ़ाव; 'पित्ता दिणं वडि्ढमा' (प्राकृ ३३; कप्पू)।

वढ :: देखो वड = वट (हे २, १७४; पि २०७)।

वढ :: वि [दे] मूक, वाक-शक्ति से रहित (संक्षि ३९)।

वढर, वढल :: पुं [बठर] १ मूर्खं छात्र। २ ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न संतान, अम्बष्ठ। ३ वि. शठ, धूर्त्तं। ४ मन्द, अलस (हे १, २५४; षड्)

वण :: सक [वन्] मांगना, याचना करना। वणेइ (पिंड़ ४४३)।

वण :: पुं [दे] १ अधिकार। २ श्वपच, चाँडाल (दे ७, ८२)

वण :: पुंन [व्रण] घाव, प्रहार, क्षत; 'जस्सेअ वणो तस्सेअ वेअणा (काप्र ८७१; गा ३८१; ४२७; पाअ)। °वट्ट पुं [°पट्ट] घाव पर बाँधी जाती पट्टी (गा ४५८)।

वण :: न [वन] १ अरण्य, जंगल (भग; पाअ; उवा; कुमा; प्रासू ६२; १४५) २ पानी, जल (पाअ; वज्जा ८८) ३ निवास। ४ आलय (हे ३, ८८; प्राप्र) ५ वनस्पति (कम्म ४, १०; १९; ३६; दं १३) ६ उद्यान, बगीचा (उप ९८६ टी) ७ पुं. देवों की एक जाति, बानव्यंतर देव (भग; कम्म ३, १०) ८ वृक्ष-विशेष (राय) °कम्म पुंन [°कर्मन्] जंगल को काटने या बेचने का काम (भग ८, ५ — -पत्र ३७०; पडि)। °कम्मंत न [°कर्मान्त] वनस्पति का कारखाना (आचा २, २, २, १०)। °गय पुं [°गज] जंगली हाथी (से ३, ६३)। °ग्गि पुं [°ग्‍नि] दावानल (पाअ)। °चर वि [°चर] वन में रहनेवाला, जंगली (पणह १, १ — पत्र १३)। स्त्री. °रा (रयण ६०); देखो °यर। °छिंद वि [°च्छिद्] जंगल काटनेवाला (कुप्र १०४)। °त्थली स्त्री [°स्थली] अरण्य-भूमि (से ३, ६३)। °दव पुं [°दव] दवानल (णाया १, १ — पत्र ६५)। °पव्वय पुंन [°पर्वत] वनस्पति से व्याप्त पर्वंत; 'वणाणि वा वणपव्वयाणि वा' (आचा २, ३; ३, २)। °बिराल पुं [°बिडाल] जंगली बिल्ला (सण)। °माल न [°माल] एक देव- विमान (सम ४१)। °माला स्त्री [°माला] १ पैर तक लटकनेवाली माला (औप; अच्चु ३६) २ एक राज-पत्‍नी (पउम ११, १४) ३ रावण की एक पत्नी (पउम ३६, ३२) °य वि [°ज] वन में उत्पन्न, जंगली (वज्जा १२८)। °यर वि [°चर] १ वन में रहनेवाला, बनैला (णाया १, १ — पत्र ६२; गउड) २ पुंस्त्री. व्यन्तर देव (विसे ७०७; पव १९०) स्त्री. °री (उप पृ ३३०)। °राइ स्त्री [°राजि] तरु-पंक्ति, वृक्ष-समूह (चंड; सुर ३, ४२; अभि ५५)। °राज, °राय पुं [°राज] १ विक्रम की आठवीं शताब्दी का गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा (मोह १०८) २ सिंह, केसरी (चंड) °लइया, °लया स्त्री [°लता] १ एक स्त्री का नाम (महा) २ वह वृक्ष जिसको एक ही शाखा हो (कप्प; राय)। °वाल वि [°पाल] उद्यान-पालक, माली (उप ९८६ टी)। °वास पुं [°वास] अरण्य में रहना (पि ३५१)। °वासी स्त्री [°वासी] नगरी-विशेष (राज)। °विदुग्ग न [°विदुर्ग] नानाविध वृक्षों का समूह (सूअ २, २, ८; भग)। °विरोहि पुं [°विरोहिन्] आषाढ मास (सुज्ज १०, १९)। °संड पुंन [°षण्ड़] अनेकविध वृक्षों की घटा — समूह (ठा २, ४; भग; णाया १, २; औप)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] जंगल का हाथी (से ८, ३६)। °लि, °लि स्त्री [°लि] वन-पंक्ति (गा ५७९; हे २, १७७)

वणइ :: स्त्री [दे] वन-राजि, वृक्ष-पंक्ति (दे ७, ३८; षड्)।

वणण :: न [वनन] बछड़े को उसकी माता से भिन्न दूसरी गाय से लगाना (पणह १, २ — पत्र २९)।

वणण :: न [दे. व्यान] बुनना। °साला स्त्री [°शाला] बुनने का कारखाना (दस १, १ टी)।

वणद्धि :: स्त्री [दे] गो-वृन्द, गो-समूह (दे ७, ३८)।

वणनत्तडिअ :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (षड्)।

वणपक्कसावअ :: पुं [दे] शरभ, श्वापद-विशेष (दे ७, ५२)।

वणप्फइ :: पुं [वनस्पति] १ वृक्ष-विशेष, फूल के बिना ही जिसमें फल लगता हो वह वृक्ष (हे २, ६९, कुमा) २ लता, गुल्म, वृक्ष आदि कोई भी गाछ, पेड़ मात्र (भग)। ३ न. फल (कुमा ३, २६)। °काइअ वि [°कायिक] वनस्पति का जीव (भग)

वणय :: पुं [वनक] दूसरी नरक-पृथिवी का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ६)।

वणरसि :: (अप) देखो वाणारसी (पिंग; पि ३५४)।

वणव :: पुं [दे] दावानल (दे ७, ३७)।

वणसवाई :: स्त्री [दे] कोकिला, कोयल (दे ७, ५२; पाअ)।

वणस्सइ :: देखो वणप्फइ (हे २, ६९; जी २; उव; पणण १)।

वणाय :: वि [दे] ब्याध से व्याप्त (दे ७, ३५)।

वणार :: पुं [दे] दमनीय बछड़़ा (दे ७, ३७)।

वणि :: वि [व्रणिन्] घाववाला, जिसको घाव हुआ हो वह (दे ६, ३९; पंचा १६, ११)। वणि वणिअ } पुं [वणिज्] बनिया, व्यापारी, वैश्य (औप; उप ७२८ टी; सुर १४, ९९; सुपा २७९; सुर १, ११३; प्रासू ८०; कुमा; महा)।

वणिअ :: वि [व्रणित] व्रण-युक्त, घाववाला (गा ४५८; ९४९; पउम; ७५, १३)।

वणिअ :: पुं [वनापक] भिक्षुक, भिखार; 'वणि जायणि त्ति वणिओ पायप्पाणं वणेइत्ति' (पिंड़ ४४३)।

वणिअ :: न [वणिज] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक करण (विसे ३३४८; सूआनि ११)।

वणिआ :: स्त्री [वनिका] वाटिका, बगीचा; 'असोयवणिआइ मज्झयारम्मि' (भाव ७; उवा)।

वणिआ :: स्त्री [वनिता] स्त्री, महिला, नारी (गा १७; कुमा; तंदु ५०; सम्मत्त १७५)।

वणिज :: देखो वणिअ = वणिज् (चारु ३४)।

वणिज, वणिज्ज :: न [वाणिज्य] व्यापार, बैपार; 'एत्तियकालं हट्टे जइ तं चिट्ठेसि वणिजकइ' (सुपा ५१०; २५२), 'उज्जेणी- आगओ वणिज्जेणं' (पउम ३३, ६६; स ४४३; सुर १, ६०; कुप्र ३६५, सुपा ३८४; प्रासू ८०; भवि; श्रा १२)। °रय वि [°कारक] ब्यापारी (सुपा ३४३, उप पृ १०४)।

वणिम, वणीमग :: देखो वणीमय (दस ५ १, ५१)। २ दरिद्र, निर्धंन (दस ५, २, १०)

वणी :: स्त्री [वनी] १ भीख से प्राप्त धन (ठा ५, ३ — पत्र ३४१) २ फली-विशेष, जिससे कपास निकलता है (राज)

वणीमग, वणीमय :: पुं [वनीपक] याचक, भिक्षुक, भिखारी (ठा ५, ३; सुपा १६८, सण; ओघ ४३६)।

वणे :: अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्चय (हे २, २०६; कुमा) २ विकल्प। ३ अनुकम्पनीय। ४ संभावना (हे २, २०६)

वणेचर :: देखो वण-यर (रयण ५९)।

वण्ण :: सक [वर्णय्] १ वर्णंन करना। २ प्रशंसा करना। ३ रँगना। वणणआमो (पि ४९०)। कर्मं. वणणिज्जइ (सिरि १२८८), वणणिअइ (अप) (हे ४, ३४५)। वकृ. वण्णंत (गा ३५०)। हेकृ. वण्णिउं (पि ५७३)। कृ. वण्णणिज्ज, वण्णेअव्व (हे ३, १७९; भग)

वण्ण :: पुं [वर्ण] १ प्रशंसा, श्लाघा (उफ ९०७) २ यश, कीर्त्ति (ओघ ६०) २ शुक्ल आदि रँग (भग; ठा ४, ४; उवा) ४ अकार आदि अक्षर। ५ ब्राह्ण, वैश्य आदि जाति। ६ गुण। ७ अंतराग। ८ सुवर्णं, सोना। ९ विलेपन की वस्तु। १० व्रत- विशेष। ११ वर्णंन। १२ विलेपन-क्रिया। १३ गीत का क्रम। १४ चित्र (हे १, १७७; प्राप्र) १५ कर्मं-विशेष, शुक्ल आदि वर्णं का कारण-भूत कर्म (कम्म १, २४) १६ संयम। १७ मोक्ष, मुक्ति (आचा) १८ न. कुंकुम (हे १, १४२)। °णाम, °नाम पुं [°नामन्] कर्मं-विशेष (राज; सम ६७)। °मंत वि [°वत्] प्रशस्त वर्णंवाला (भग)। °वाइ वि [°वादिन्] श्लाघा-कर्त्ता, प्रशंसक (वव १)। °वाय पुं [°वाद] प्रशंसा, श्लाघा (पंचा ९, २३)। °वास पुं [°वास] वर्णंन-प्रकरण, वर्णंन-पद्धति (जीव ३; उवा)। °वास पुं [°व्यास] वर्णंन- विस्तार (भग; उवा)

वण्ण :: पुं [वर्ण] पंचम आदि स्वर। °सम न [°सम] गेय काव्य का एक भेद (दसनि २, २३)।

वण्ण :: वि [दे] १ अच्छ, स्वच्छ। २ रक्त। (दे ७, ८३)

°वण्ण :: देखो पण्ण (गा ६०१; गउड)।

बज्जग :: देखो वण्णय (उवा; औप)।

वण्णय :: न [वर्णन्] १ श्लाघा, प्रशंसा (कप्पू) २ विवेचन, विवरण, निरूपण (रयण ४)

वण्णणा :: स्त्री [वर्णना] ऊपर देखो (दे १, २१; सार्धं ४५)।

वण्णय :: पुंन [दे. वर्णक] १ चन्दन, श्रीखण्ड (दे ७, ३७; पंचा ८, २३) २ पिष्टातक- चूर्णं, अंगराग (दे ७, ३७; स्वप्‍न ६१)

वण्णय :: पुं [वर्णक] वर्णंन-ग्रन्थ, वर्णंन-प्रकरण (विपा १, १, उवा; औप)।

वण्णिअ :: वि [वर्णित] जिसका वर्णंन किया गया हो वह (महा)।

वण्णिआ :: देखो वन्निआ (गा ६२०)।

वण्हि :: पुं [वृष्णि] १ एक राजा, जो अन्धक- वृष्णि नाम से प्रसिद्ध था; 'वण्हि पिया धारिणी माया' (अंत ३) २ एक अन्तकृद् महर्षि; 'अक्खोभ पसेणई वण्ही' (अंत) ३ अन्धकवृष्णि-वंश में उत्पन्न, यादव (णंदि)। °दसा स्त्री. ब. [°दशा] एक जैन आगम- ग्रन्थ (निर ५)। °पुंगव पुं [°पुंगव] यादव- श्रेष्ठ (उत्त २२, १३; णाया १, १६ — पत्र २११)

वण्हि :: पुं [वह्नि] १ अग्‍नि, आग (पाअ; महा) २ लोकान्तिक देवों की एक जाति (णाया १, ८ — पत्र १५१) ३ चित्रक वृक्ष। ४ भिलावाँ का पेड़। ५ नीबू का गाछ (हे २, ७५)

वत :: देखो वय = व्रत (चंड)।

वति :: देखो वइ = व्रतिन् (उप ३८१)।

वति :: देखो वइ = वृति (चंड़)।

वतु :: पुं [दे] निवह, समूह (दे ७, ३२)।

वत्त :: देखो वट्ट = वृत्। वत्तइ (भवि), वत्तदि (शौ) (स्वप्‍न ६०)।

वत्त :: देखो वट्ट = वर्तंय्। वत्तइ (भि)। वत्तेज्ज (आचा २, १५, ४२)। वत्तेजासि, वत्तेहामि (उवा; पि ५२८)।

वत्त :: न [वार्त्त] आरोग्य (उत्त १८, ३८)।

वत्त :: वि [व्याप्त] फैला हुआ, भरपूर (कप्प; विसे ३०३६)।

वत्त :: देखो वट्ट = वृत्त (स ३०८; महा; सुर १, १७८; ३, ७६, औप; हे १, १४५)।

वत्त :: वि [व्यक्त] प्रकट, खुला (धर्मंसं ५५५)।

वत्त :: न [वक्त्र] मुख, मुँह (हे १, १८; भवि)।

°वत्त :: देखो पत्त = पत्त (गा ६०४; हेका ५०; गउड)।

°वत्त :: देखो पत्त = पात्र (गउड; गा ३००)।

वत्त° :: देखो वत्ता (भवि)। °यार वि [°कार] वार्त्ता कहनेवाला (भवि)।

वत्तअ :: पुं [व्यत्यय] १ विपर्यंय, विपर्यास। २ व्यतिक्रम, उल्लंघन (प्राकृ २१)

वत्तए :: देखो वय = वच्।

वत्तडिआ, वत्तडी :: (अप) देखो वत्ता (कुमा; हे ४, ४३२; सण)।

वत्तण :: न [वर्त्तन] १ जीविका, निर्वाह; 'किं न तुमं मच्छएहिं कुडुंबवत्तणं करेसि' (कुप्र २८) २ आवृत्ति, परावर्तन (पंचा १२, ४३) ३ स्थिति। ४ स्थापन। ५ वर्तंन, होना। ६ वि. वृत्तिवाला। ७ रहनेवाला (संक्षि १०)

वत्तणा :: स्त्री [वर्त्तना] ऊपर देखो; 'वत्तणा- लक्खणो कालो' (उत्त २९, १०; आवम)।

वत्तणी :: स्त्री [वर्त्तनी] मार्ग, रास्ता (पणह १, ३ — पत्र ५४; विसे १२०७; सूअनि ६१ टी; सुपा ५१८)।

वत्तद्ध :: वि [दे] १ सुन्दर। २ बहु-शिक्षित (दे ७, ८५)

वत्तमाण :: पुं [वर्त्तमान] १ काल-विशेष, चलता काल (प्राप्र; संक्षि १०) २ वि. वर्त्तमान-कालीन, विद्यमान। ३ पुं. विद्या- मानता (धर्मंसं ५७३)

°वत्तरि :: देखो सत्तरि (सम ८३; प्रासू १२९; पि ४४६)।

वत्तव्व :: देखो वय = वच्।

वत्ता :: स्त्री [दे] सूत्र-वलनक, सूत्र-वेष्टन-यन्त्र (पणह १, ४ — पत्र ७८; तंदु २०)। देखो चत्ता = (दे)।

वत्ता :: स्त्री [वार्त्ता] १ बात, कथा (से ६, ३८; सुपा ३८७; प्रासू १; कुमा) २ वृत्तान्त, हकीकत (पाअ) ३ वृत्ति। ४ दुर्गा। ५ कृषि-कर्म, खेती। ६ जनश्रुति, किंवदन्ती। ७ गन्ध का अनुभव। ८ काल-कर्तृक भूत- नाश (हे २, ३०)। °लाव पुं [°लाप] वातचीत (सिरि २८२)

वत्तार :: वि [दे] गर्वित, गर्वं-युक्त (दे ७, ४१)।

वत्ति :: स्त्री [दे] सीमा (दे ७, ३१)।

वत्ति :: देखो वट्टि (गा २३२; ६५८; विसे १३९८)।

वत्ति :: वि [वर्त्तिन्] वर्तंनेवाला (महा)।

वत्ति :: स्त्री [वृत्ति] प्रवृत्ति (सूअ २, ४, २)। देखो वित्ति।

वत्ति :: स्त्री [व्यक्ति] अमुक एक वस्तु, एकाकी वस्तु। °पइट्ठा स्त्री [°प्रतिष्ठा] प्रतिष्ठा- विशेष, जिस समय में जो तीर्थंकर विद्यमान हो उसके बिम्ब की विधि-पूर्वक स्थापना (चेइय ३५)।

वत्तिअ :: वि [वात्तिक] कथाकार, 'वत्तिओ' (हे २, ३०)। २ पुंन. टीका की टीका (सम ४९; विसे १४२२) ३ ग्रंथ का टीका — व्याख्या (विसे १४८५)

वत्तिअ :: वि [वर्त्तित] १ वृत्त — गोल किया हुआ (णाया १, ७) २ आच्छादित (पडिं)

°वत्तिअ :: देखो पच्चय = प्रत्यय (औप)।

वत्तिआ :: देखो वट्टिआ (प्राप्र)।

वत्तिणी :: स्त्री [वर्त्तिनी] मार्गं, रास्ता (पाअ; स ४; सुर १२, १३९)।

°वत्ती :: देखो पत्ती = पत्‍नी (गा ७९; १०६; १७३)।

वत्तुं :: देखो वय = वच्।

वत्तुकाम :: वि [वक्‍तुकाम] बोलने की चाहवाला (स ३१८; अभि ४४; स्वप्‍न १०; नाट — विक्र ४०)।

वत्तुल :: देखो वट्‍टुल (राज)।

वत्थ :: पुंन [वस्त्र] कपड़ा (आचा २, १४, २२; उवा; पणह १, १; उप पृ ३३३; सुपा ७२; ४६१; कुमा; सुर ३, ७०)। °खेड्ड न [°खेल] कला विशेष (जं २ टी — पत्र १३७)। °धोव वि [°धाव] वस्त्र धोनेवाला (सूअ १, ४, २, १७)। °पूस पुं [°पुष्य] एक जैन मुनि (कुलक २२)। °पूसमित्त पुं [°पुष्यमित्र] एक जैन मुनि (ती ७)। °विज्जा स्त्री [विद्या] विद्या-विशेष, जिसके प्रभाव से वस्त्र स्पर्शं कराने से ही बीमार अच्छा हो जाय (वव ५)। °सोहग वि [°शोधक] वस्त्र धोनेवाला (स ४१)।

वत्थ :: वि [व्यस्त] पृथग्, भिन्‍न, जुदा (सुर १६, ५५)।

वत्थउड :: पुं [दे. वस्त्रपुट] तंबू, कपड़-कोट, वस्त्र-गृह (दे ७, ४५)।

वत्थए :: देखो वस = वस्।

वत्थंग :: पुं [वस्त्राङ्ग] कल्पवृक्ष की एक जाति, जो वस्त्र देने का काम करता है (पउम १०२, १२१)।

°वत्थर :: देखो पत्थर = प्रस्तर (गा ५५१)।

वत्थलिज्ज :: न [वस्त्रलिय] दो जैन मुनि-कुलों के नाम (कप्प)।

वत्थव्व :: वि [वास्तव्य] रहनेवाला, निवासी (पिंड ४२७; सुर ३, ६१; सुपा ३६५; महा)।

वत्थाणी :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

वत्थाणीअ :: पुंन [दे] खाद्य-विशेष, 'हत्थेण वत्थाणीएण भोच्चा कज्जं साधेंति' (सुज्ज १०, १७)।

वत्थि :: पुं [वस्ति] १ दृति, मसक (भग १, ६; १८, १०; णाया १, १८), 'वत्थिव्व वायपुरणो अत्तुक्करिसेण जहा तहा लवइ' (संबोध १८) २ अपान, गुदा; 'वत्थी अवाणं' (पाअ; पणह १, ३ — पत्र ५३) ४ छाते में शलाका — सली — सलाई बैठने का स्थान, छत्र का एक अवयव (औप) °कम्म न [°कर्मन्] १ सिर आदि में चर्मं-वेष्टन द्वारा किया जाता तैल आदि का पूरण। २ मल साफ करने के लिए गुदा में बत्ती आदि का किया जाता प्रक्षेप (विपा १, १ — पत्र १४; णाया १, १३)। °पुडग पुंन [°पुटक] पेट का भीतरी प्रदेश (निर १, १)

वत्थिय :: पुं [वास्त्रिक] वस्त्र बनानेवाला शिल्पी (अणु)।

वत्थी :: स्त्री [दे] उटज, तापसों की पर्णं-कुटी (दे ७, ३१)।

वत्थु :: न [वस्तु] १ पदार्थं, चीज (पाअ; उवा; सम्म ८; सुपा ४०१; प्रासू ३०; १६१; ठा ४, १ टी — पत्र १८८) २ पुंन. पूर्वं-ग्रन्थों का अध्ययन — प्रकररण, परिच्छेद (सम २५; णंदि; अणु; कम्म १, ७)। °पाल, °वाल पुं [°पाल] राजा वीरधवल का एक सुप्रसिद्ध जैन मंत्री (ती २; हम्मीर १२)

वत्थु :: न [वास्तु] १ गृह, घर; 'खेत्तवत्थुविहि- परिमाणं करेइ' (उवा) २ गृहादि-निर्माण- शास्त्र (णाया १, १३) ३ शाक-विशेष (उवा)। °पाढग वि [°पाठक] वास्तु- शास्त्र का अभ्यासी (णाया १, १३; धर्मंवि ३३)। °वज्जा स्त्री [°विद्या] गृह-निर्मांण- कला (औप; जं २)

वत्थुल :: पुं [वस्तुल] गुच्छ और हरित वनस्पति-विशेष, शाक-विशेष (पणण १ — पत्र ३२; ३४, पव २५९)।

वत्थूल :: पुं [वस्तूल] ऊपर देखो; 'वत्थु (? त्थू) ला थेगपल्लंका' (जी ९)।

वद :: देखो वय = वद्। वदसि, वदह (उवा; भग; कप्प)। भूका. वदासी (भग)। हेकृ. वदित्तए (कप्प)।

वद :: देखो वय = व्रत (प्राकृ १२; नाट — विक्र ५९)।

वदिंसा :: देखो वडेंसा (इक)।

वदिकलिअ :: वि [दे] वलित, लौटा हुआ (दे ७, ५०)।

वदूमग :: देखो वडुमग (आचा)।

वद्दल :: न [दे. वार्दल] १ बद्दल, बादल, मेघ- घटा, दुर्दिन (दे ७, ३५; हे ४, ४०१; सुपा ६५५; राय; आवम; ठा ३, ३ — पत्र १४१) २ पुं. छठवीं नरक का दूसरा नरकेन्द्रक — नरक-स्थान (देवेन्द्र १२)

वद्दलिया :: स्त्री [दे. वार्दलिका] बदली, छोटा बद्दल, दुर्दिन (भग ९, ३३ — पत्र ४६७, औप)।

वद्ध :: देखो वडढ = वर्धंय्। कर्मं. वद्धसि (सुपा ९०)।

वद्ध :: पुंन [वर्ध्र] चर्मं-रज्जु; 'वज्जो बद्धो (? बब्भो वद्धो)' (पाअ; दे ६, ८८; पव ८३; सम्मत्त १७४)।

वद्ध :: देखो बिद्ध = वृद्ध (प्राप्र; प्राकृ ७)।

वद्धण :: न [वर्धन] १ वृद्धि, बढ़ती (णाया १, १; कप्प) २ वि. बढ़ानेवाला (उप ६७३; महा)

वद्धणिआ, वद्धणी :: स्त्री [वर्धनिका, °नी] संमार्जनी, झाड़ू (दे ८, १७; ७, ४१ टी)।

वद्धमाण :: पुं [वर्धमान] १ भगवान् महावीर (आचा २, १५, १०; सम ४३; अंत; कप्प; पडि) २ एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं (सार्धं ६३; विचार ७६; ती १५; गु ८) ३ स्कन्धा रोपित पुरुष, कन्धे पर चढ़ाया हुआ पुरुष (अंत; औप) ४ एक शाश्वत जिन-देव। ५ एक शाश्वती जिन-प्रतिमा (पव ५९) ६ न. गृह-विशेष (उत्त ९, २४) ७ राजा रामचन्द्र का एक प्रेक्षा-गृह — नाट्य-शाला (पउम ८०, ५)। देखो वड्‍ढमाण।

वद्धमाणग, वद्धमाणय :: पुं [वर्धमानक] १ अठासी महाग्रहों में एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — ७८) २ एक देव- विमान (देवेन्द्र १४०) ३ न. पात्र-विशेष, शराव (णाया १, १ — पत्र ५४; पउम १०२, १२०) ४ पुं पुरुष पर आरूढ़ पुरुष, पुरुष के कन्धे पर चढ़ा हुआ पुरुष। ५ स्वस्तिक-पञ्चक। ६ प्रासाद-विशेष, एक तरह का महल (णाया १, १ — पत्र ५४; टी-पत्र ५७) ७ न. एक गाँव का नाम, अस्थिक ग्राम; अट्ठियगामस्स पढमं वद्धमाणयं ति नामं होत्था' (आवम) ८ वि. कृता- भिमान, अभिमानी, गर्वित (औप)

वद्धय :: वि [दे] प्रधान, मुख्य (दे ७, ३६)।

बद्धार :: सक [वर्धय्] बढ़ाना, गुजराती में 'वधारवुं'। वकृ. वद्धारत (सट्ठि १२; संबोध ४; द्र ८)।

वद्धारिय :: वि [वर्धित] बढ़ाया हुआ (भवि)।

वद्धाव :: सक [वर्धय्, वर्धापय्] बधाई देना। वद्धावेइ, वद्धावेंति (कप्प)। कर्मं. वद्धावीअसि (रंभा)। वकृ. वद्धाविंत (सुपा २२०)। संकृ. वद्धावित्ता (कप्प)।

वद्धावण :: न [वर्धन, वर्धापन] बधाई, अभ्युदय — निवेदन (भवि; सुर ३, २४, महा; सुपा १२२; १३४)।

वद्धावणिया :: स्त्री [वर्धनिका, वर्धापनिका] ऊपर देखो (सिरि १३१९)।

वद्धावय :: वि [वर्धक, वर्धापक] बधाई देनेवाला (सुर १५, ७६; स ५७०; सुपा ३६१)।

वद्दाविअ :: वि [वर्धित, वर्धापित] जिसको बधाई दी गई हो वह (सुपा १२२; १९५)।

वद्धिअ :: पुं [दे] १ षण्ढ, नपुंसक (दे ७, ३७) २ नपुंसक-विशष, छोटी उम्र में ही छेद दे कर जिसका अण्डकोष गलाया गया हो वह, बधिया (पव १०९ टी)

वद्धिअ :: देखो वडि्ढअ = वृद्ध (भवि)।

वद्धी :: स्त्री [दे] अवश्य-कृत्य, आवश्यक कर्त्तंव्य (दे ७, ३०)।

वद्धीसक, वद्धीसग :: पुंन [दे. वद्धीसक] वाद्य-विशेष, एक प्रकार का बाजा (पणह २, ५ — पत्र १४९; अनु ६)।

वध :: देखो वह = वध (कुमा)।

वधय :: देखो वहय (भग)।

वधू :: देखो वहू (औप)।

वन्न :: देखो वण्ण = वर्णंय्। वन्‍नेहि (कुमा; उव)। हेकृ. वन्निउं (कुमा)। कृ. वन्नणिज्ज (सुर २, ६७; रयण ५४)।

वन्न :: देखो वण्ण = वर्ण (भग; उव; सुपा १०३; सत्त ५९; कम्म ४, ४०; ठा ५, ३)।

वन्नग :: देखो वण्णय (कप्प; श्रा २३)।

वन्नण :: देखो वण्ण (उप ७६८ टी; सिरि ७२७)।

वन्नणा :: देखो वण्णणा (रंभा)।

वन्नय :: देखो वण्णय (पिंड ३०८; कप्प)।

वन्निअ :: देखो वण्णिअ (भग)।

वन्निआ :: स्त्री [वर्णिका] १ वानगी, नमूना; 'सग्गस्स वन्निया मिव नयरंइह अत्थि पाडली- पुत्तं (धर्मंवि ६४) २ लाल रँग की मिट्ठी (जी ३)

वन्हि :: देखो वण्हि = वृष्णि (उत्त २२, १३)।

वन्हि :: देखो वण्हि = वन्हि (चंड)।

वपु :: देखो वउ = वपुस् (वव १)।

वप्प :: सक [त्वच् ?] ढकना, आच्छादन करना। वप्पइ (धात्वा १५१)।

वप्प :: पुं [वप्र] १ विजयक्षेत्र-विशेष, जंबूद्वीप का एक प्रान्त, जिसकी राजधानी विजया है (ठा २, २ — पत्र ८०; जं ४) २ पुंन. किला, दुर्गं, कोट (ती ८) ३ केदार, खेत; 'केआरो वप्पिणं वप्पो' (पाअ; आचा २, १, ५, २; दे ७, ८३ टी) ४ तट, किनारा; 'रोहो वप्पो य तडो' (पाअ) ५ उन्‍नत भू- भाग, ऊँची — जीमन; 'वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा' (आचा २, १; ५, २)

वप्प :: वि [दे] १ तनु, कृश। २ बलवान्, बलिष्ठ। ३ भूत-गृहोत, भूताविष्ट (दे ७, ८३)

वप्पइराय :: देखो व-प्पइराय।

वप्पगा :: देखो वप्पा (राज)।

वप्पगावई :: स्त्री [वप्रकावती] जंबूद्वीप का एक विजय-क्षेत्र, जिसकी राजधानी का नाम अपराजिता है (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)।

वप्पा :: स्त्री [वप्र] उन्नत भू-भाग, टेकड़ा ऊँची जमीन (भग १५ — पत्र ६६९)।

वप्पा :: स्त्री [वप्रा] १ भगवान् नमिनाथजी की माता की नाम (सम १५१) २ दशवें चक्रवर्ती राजा हरिषेण की माता का नाम (पउम ८, १४४; सम १५२)

वप्पिअ :: पुं [दे] १ केदार, खेत (षड्) २ नपुंसक-विशेष (पुप्फ १२९) ३ वि. रक्त, राग-युक्त (षड्)

वप्पिण :: पुंन [दे] १ केदार, खेत (दे ७, ८५; औप; णाया १, १ टी — पत्र २; पाअ; पउम २, १२; पणह १, १; २, ५) २ वि. उषित, जिसने वास किया हो वह (दे ७, ८५)

वप्पिण :: पुंन [दे] १ केदारवाला देश। २ तटवाला देश (भग ५, ७ — पत्र २३८)

वप्पी :: देखो वप्पा = वप्र (भग १५ — पत्र ६६९)।

वप्पीअ :: पुं [दे] चातक पक्षी (दे ७, ३३)।

वप्पीडिअ :: न [दे] क्षेत्र, खेत (दे ७, ४८)।

वप्पीह :: पुं [दे] स्तूप, मिट्टी आदि का कूट (दे ७, ४०)।

वप्पु :: देखो वउ = वपुस् (भग १५ — पत्र ६६९)।

वप्पे :: अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ उपहास-युक्त उल्लापन। २ विस्मय, आश्चर्यं (संक्षि ४७)

वप्फाउल :: देखो बप्फाउल (दे ६, ९२ टी)।

वफर :: न [दे] शस्त्र-विशेष (सुर १३, १५६)।

वब्भ° :: देखो वह = वह्।

वब्भ :: पुं [वभ्र] पशु-विशेष (स ४३७)।

वब्भय :: न [दे] कमलोदर, कमल का मध्य भाग (दे ७, ३८)।

वभिचरिअ :: वि [व्य़भिचरित] व्यभिचार दोष से दूषित (श्रा १४)।

वभिचार :: देखो वहिचार (स ७११)।

वभिचारि :: वि [व्यभिचारिन्] १ न्याय- शास्त्रोक्त दोष-विशेष से दूषित, ऐकान्तिक (धर्मंसं १२२७; पंचा २, ३७) २ परस्त्री- लम्पट (वव ६; ७)

वभियार :: देखो वहिचार (उवर ७९)।

वम :: सक [वम्] उलटी करना, कै करना। वकृ. वमंत, वममाण (गउड; विपा १, ७)। संकृ. वंता (आचा; सूअ १, ६, २६)। कृ. वम्म (उर १, ७)।

वमग :: वि [वामक] उलटी करनेवाला (चेइय १०३)।

वमण :: न [वमन] उलटी, वान्ति, कै (आचा; णाया १, १३)।

वमाल :: सक [पुञ्जय्] १ इकट्ठा करना। २ विस्तारना। वमालइ (हे ४, १०२; षड्)

वमाल :: पुं [दे] कलकल, कोलाहल (दे ६, ९०; पाअ; स ४३५; ५२०; भवि)।

वमाल :: पुं [पुञ्ज] राशि, ढग (सण)।

वमालण :: न [पुञ्जन] १ इकट्ठा करना। २ विस्तार। ३ वि. इकट्ठा करनेवाला। ४ विस्तारनेवाला (कुमा)

वम्म :: पुंन [वर्मन्] कवच, संनाह, बख्तर (प्राप्र; कुमा)।

वम्म :: देखो वम।

वम्मथ, वम्मह :: पुं [मन्मथ] कामदेव, कंदर्पं (चंड; प्राप्र; हे १, २४२; २, ६१; पाअ)।

वम्मा :: देखो वामा (कप्प; पउम २०, ४९; सुख २३, १; पत्र ११)।

वम्मिअ :: वि [वर्मित] कवचित, संनाह-युक्त (बिपा १, २ — पत्र २३)।

वम्मिअ, वम्मीअ :: पुं [वल्मीक] कीट-विशेष-कृत मिट्टी का स्तूप, ढूह या भीटा, दीमकों के रहने की बाँबी (सूअ २, १, २६; हे १, १०१; षड्; पाअ; स १२३; सुपा ३१७)।

वम्मीह :: पुं [वाल्मीकि] एक प्रसिद्ध ऋषि, रामायण-कर्ता मुनि (उत्तर १०३)।

वम्मीसर :: पुं [दे] काम, कन्दर्पं (दे ७, ४२)।

वम्ह :: न [दे] वल्मीक (दे ७, ३१)।

वम्ह :: पुं [ब्रह्मन्] १ वृक्ष-विशेष, पलाश का पेड़; 'नग्गोहवम्हा तरू' (पउम ५३, ७९) २ देखो बंभ (प्राप्र)

वम्हल :: न [दे] केसर, किंजल्क (दे ७, ३३; हे २, १७४)।

वम्हाण :: देखो बंभण (कुमा)।

वय :: सक [वच्] बोलना, कहना। वअइ, वअए (षड्)। भवि. वच्छिहिइ, वच्छिइ, वच्छिहिंति, वच्छिंतिस वोच्छिइ, वोच्छिहिइ, वोच्छिंति, वोच्छिहिंति, वोच्छं (संक्षि ३२; षड्; हे ३, १७१; कुमा)। कर्मं. वुच्चइ (कुमा)। कर्मं. भवि. वकृ. वक्खमाण (विसे १०५३)। संकृ. वइत्ता, वच्चा, वोत्तूण (ठा ३, १ — पत्र १०८; सूअ २, १, ६; हे ४, २११; कुमा)। हेकृ. वत्तए, वत्तुं, वोत्तुं (आचा; अभि १७२; हे ४, २११; कुमा)। कृ. वच्च, वत्तव्व, वोत्तव्व (विसे २; उप १३६ टी; ६४८ टी; ७६८ टी; पिंड ८७; धर्मंसं ९२२; सुर ४, ९७; सुपा १५०; औप; उवा; हे ४, २११)। देखो वयणिज्ज।

वय :: सक [वद्] बोलना, कहना। वयइ, वयसि (कस; कप्प), वइज्जा, वएज्जा (कप्प)। भूका. वयासि, वयासी (औप; कप्प; भग; महा)। वकृ. वयंत, वयमाण, वएमाण (कप्प; काल; ठा ४, ४ — पत्र २७४; सम्म ९९; ठा ७)। संकृ. वइत्ता (आचा)। हेकृ. वइत्तए (कप्प)।

वय :: सक [व्रज्] जाना, गमन करना। वयइ (सुर १, २४८)। वयउ (महा), वइज्ज (गच्छ २, ६१)। कृ. वयंत (सुर ३, ३७; सुपा ४३२)। कृ. वइयव्व (राज)।

वय :: पुं [वृक] पशु-विशेष, भेड़िया (पउम ११८, ७)।

वय :: पुं [दे] गृध्र पक्षी (दे ७, २९; पाअ)।

वय :: पुं [वज] १ संस्कार-करण। २ गमन (श्रा २३)

वय :: पुं [व्रज] १ देश-विशेष (गा ११२) २ गोकुल, दस हजार गौओं का समूह (णाया १, १ टी — पत्र ४३; श्रा २३) ३ मार्गं, रास्ता। ४ संस्कार-करण। ५ गमन, गति (श्रा २३) ६ समूह, यूथ (श्रा २३; स २९७; सुपा २८८; ती ३)

वय :: पुं [व्यय] १ खर्चं (स ५०३) २ हानि, नुकसान (उव; प्रासू १८१)। देखो विअ = व्यय।

वय :: न [वचस्] वचन, उक्ति (सूअ १, १, २, २३; १, २, २, १३; सुपा १९४; भास ९१; दं २२)। °समिअ वि [°सामित] वचन का सयमी (भग)।

वय :: पुं [वद] कथन, उक्ति (श्रा २३)।

वय :: पुंन [व्रत] नियम, धार्मिक प्रतिज्ञा (भग; पंचा १०, ८; कुमा; उप २११ टी; ओघभा २; प्रासू १५४)। °मंत वि [°वत्] व्रती (आचा २, १, ९, १)।

वय :: पुंन [वयस्] १ उम्र, आयु (ठा ३, ३; ४, ४; गा २३२; उप पृ १८; कुमा; प्रासु ४८; श्रा १४) २ पक्षी (गउड; उप पृ १८)। °त्थ वि [°स्थ] तरुण, युवा (सुख १, १६)। °परिणाम पुं [°परिणाम] वृद्धता, बुढ़ापा (से ४, २३; पाअ)

°वय :: पुं [पच] पचन, पाक (श्रा २३)।

°वय :: देखो पय = पद (स ३४५ श्रा २३; गउड कप्पू; से १, २४)।

°वय :: देखो पय = पयस् (कुमा)।

वयंग :: न [दे] फल-विशेष (सिरि ११९८)।

वयंतरिअ :: वि [वृत्यन्तरित] बाड़ से तिरो- हित (दे २, ९३)।

वयंस :: पुं [वयस्य] समान उमरवाला मित्र (ठा ३, १ — पत्र ११४; हे १, २६; महा)।

वयंसि :: देखो वच्चंसि = वचस्विन् (राज)।

वयंसी :: स्त्री [वयस्या] सखी, सहेली (कप्पू)।

वयड :: पुं [दे] वाटिका, बगीचा (दे ७, ३५)।

वयण :: न [दे] १ मन्दिर, गृह। २ शय्या, बिछौना (दे ७, ८५)

वयण :: पुंन [वदन] १ मुख, मुँह; 'वअणो, वअणं' (प्राकृ ३३; पि ३५८; सुर २, २४३; ३, ४४; प्रासू ९२) २ न. कथन, उक्ति (विसे २७९४)

वयण :: पुंन [वचन] १ उक्ति, कथन; 'वयणा, वयणाइं' (हे १, ३३; पव २; सुर ३, ६४; प्रासू १४; १३४; १५०; कुमा) २ एकत्व आदि संख्या का बोधक व्याकरण-शास्त्रोक्त प्रत्य (पणह २, २ टी — पत्र ११८)

वयणिज्ज :: वि [वचनीय] १ वाच्य, कथनीय, अभिधेय; 'वत्थु दव्वट्ठिअस्स वयणिज्जं' (सम्म ८; सूअ २, १, ६०) २ निन्दनीय (सुपा ३००) ३ उपालम्भनीय, उलहना देने योग्य (कुप्र ३) ४ न. वचन, शब्द (से ४, १३; सम्म ५३; काप्र ८९६) ५ लोकापवाद, निन्दा (स ५३२)

वयर :: वि [दे] चूर्णित (दे ७, ३४)।

वयर :: देखो वइर = वज्र (कप्प; उव; ओघभा ८; सार्धं ३५; भग; औप)।

°वयर :: देखो पयर = प्रकर (से १, २२)।

वयराड :: देखो वइराड (सत्त ६७ टी)।

वयल :: वि [दे] १ विकसता, खिलता (दे ७, ८४) २ पुं. कलकल, कोलाहल (दे ७, ८४; पाअ)

वयली :: स्त्री [दे] लता-विशेष, निद्राकारी लता (दे ७, ३४; पाअ)।

°वयस :: देखो वय = वयस्; 'सवयसं' (आचा १, ८ २, २)।

वयस्स :: देखो वयंस (स ३१४; मोह ४७; अभि ५५; स्वप्‍न ७९)।

वया :: स्त्री [वपा] १ विवर, छिद्र। २ मेद, चरबी (श्रा २३)

वया :: स्त्री [वचा] १ ओषधि-विशेष। २ मैना, सारिका (श्रा २३)। देखो वचा।

वया :: स्त्री [व्यजा] १ मार्गं-विशेष, ऊष को खींचने के लिए रज्जुबद्ध घट आधि डालने का मार्गं। २ प्रेरण-दण्ड (श्रा २३)

वर :: सक [वृ] १ सगाई करना, संबन्ध करना। २ आच्छादन करना, ढकना। ३ याचना करना। ४ सेवा करना। वरइ (हे ४, २३४; सुज्ज १९; प्राप्र; षड्), 'वरं वरेहि' (कुप्र ८०), 'वरं वरसु इच्छिअं' (श्रा १२)। भवि. वरिस्सइ (सिरि ८१९)। कृ. वऱणीअ (पउम २८, १०४)

वर :: सक [वरय्] १ प्राप्त करने की इच्छा करना। २ संसृष्ट करना। वरइ, वरयति (भवि; सुज्ज ७); 'के सूरियं वरयते' (सुज्ज १, १)। वकृ. वरिंत (सुज्ज ७)

वर :: पुं [वर] १ पति, स्वामी, दुलहा (स ७८; स्वप्‍न ४१; गा ४०४; ४७९; भवि) २ वरदान, देव आदि का प्रसाद (कुमा; श्रा १२; २७; कुप्र ८०; भवि) ३ वि. श्रेष्ठ, उत्तम (कप्प; महा; कुमा; प्रासू ५२; १७५) ४ अभीष्ट (श्रा १२; कुप्र ८०) ५ न. कुछ अभीष्ट, अच्छा; 'वरं मे अप्पा दंतो' (उत्त १, १६; प्रासू २२; ३८; १०६) °दत्त पुं [°दत्त] १ भगवान् नेमिनाथजी का प्रथम शिष्य (सम १५२; कप्प) २ एक राज- कुमार (विपा २, १; १०)। °दाम न [°दामन्] एक तीर्थं (ठा ३, १ — पत्र १२२, इक; सण)। °धणु पुं [°धनुष्] एक मन्त्रिकुमार, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का बाल- मित्र (महा)। °पुरिस पुं [°पुरुष] वासुदेव (पणण १७ — पत्र ५२९; राय; अस्वम, जीव ३)। °माल पुं [°माल] एक देव- विमान (देवेन्द्र १३३)। °माला स्त्री [°माला] वर को पहनायी जाती माला, वरत्व-सूचक माला (कुप्र ४०७)। °रुह पुं [°रुचि] राजा नन्द के समय का एक विद्वान् ब्राह्मण (कुप्र ४४७)। °वरिया स्त्री [°वरिका] अभीष्ट वस्तु माँगने के लिए की जाती घोषणा, ईप्सित वस्तु के दान देने की घोषणा (णाया १, ८ — पत्र १५१; आवम; स ४०१; सुर १६, १८; सुपा ७२)। °सरक न [°सरक] खाद्य-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १४८)। °सिट्ठ पुंन [°शिष्ट] यम लोकपाल का एक विमान (भग ३, ७ — पत्र १९७; देवेन्द्र २७०)

वर :: देखो वार। °विलया स्त्री [°वनिता] वेश्या (कुमा)। °वर देखो पर; 'जीवाणम- भयदाणं जो देइ दयावरो नरो निच्चं' (कुप्र १८२)।

वरइअ :: वि [दे] धान्य-विशेष (दे ७, ४९)।

वरइत्त :: पुं [दे. वरयितृ] अभिनव वर, दुलहा (दे ७, ४४; षड्; भवि)।

वरई :: देखो वरय = वराक।

वरउप्फ :: वि [दे] मृत (दे ७, ४७)।

वरं :: देखो परं = परम्; 'अदो वरं विरुद्धमम्हाण इत्थ अवत्थाण' (मोह ९२; स्वप्‍न २०९)।

वरंड :: पुं [वरण्ड] १ दीर्घं काष्ठ; लम्बी लकड़ी। २ भित्ति, भीत (मृच्छ ६)

वरंड :: पुं [दे] १ तृण-पुञ्ज, तृण-संचय (चारु ३) २ प्राकार, किला (दे ७, ८६; षड्) ३ कपोतपाली, गाल पर लगाई जाती कस्तूरी आदि की छटा (दे ७, ८६) ४ समूह (गा ६३०)

वरंडिया :: स्त्री [दे] छोटा बरंडा, बरामदा, दालान (सुपा २०३)।

वरक्ख :: न [वराख्य] गन्ध-द्रव्य विशेष, सिल्हक (से ९, ४४)।

वरक्ख :: पुं [वराक्ष्] १ योगी। २ यक्ष। ३ वि. श्रेष्ठ इन्द्रियवाला (से ९, ४४)

वरक्खा :: स्त्री [वराख्या] त्रिफला (से ९, ४४)।

वरग :: न [वरक] महामूल्य पात्र, कीमती भाजन (आचा २, १, ११, ३)।

वरट्ट :: पुं [दे] धान्य-विशेष (पव १५४)।

वरडा, वरडी :: स्त्री [दे. वरटा] १ तैलाटी, कीट-विशेष, गंधोली। २ दंश-भ्रमर, जन्तु-विशेष (मृच्छ १२; दे ७, ८४)

वरण :: पू [वरण] १ सगाई, विवाह-संबन्ध (सुपा ३५४; सुर १, १२९; ४, १०। २ तट, किनारा (गउड) ३ पूल, सेतु (ओघ ३०) ४ प्राकार, किल (गा २४५) ५ स्वीकार, ग्रहण (राज)। देखो वीर-वरण। ६ पुं. देश-विशेष, एक आर्यं-देश; 'वइराड वच्छ वरणा अच्छा' (सूअनि ६६ टी; इक), देखो वरुण।

वरणय :: न [वरणक] तृण-विशेष (गउड)।

वरणसि :: (अप) देखो वारणसी (पि ३५४)।

वरणा :: स्त्री [वरणा] १ काशी की एक नदी, वरुणा (राज) २ अच्छ देश की प्राचीन राजधानी (सूअनि ६६ टी)। देखो वरुणा।

वरणीअ :: देखो वर = वृ।

वरत्त :: वि [दे] १ पीत। २ पतित। ३ पेटित, संहत (षड्)

वरत्ता :: स्त्री [वरत्रा] रज्जु, रस्सी, (पाअ; विपा १, ६; सुपा ५६२)।

वरय :: पुं [वरक] सगाई करनेवाला, विवाह का प्रार्थंक पुरुष (सुर ६, ११५)।

वरय :: पुं [दे] शालि-ेविशेष, एक तरह का धान्य (दे ७, ३६)।

वरय :: वि [वराक] दीन, गरीब, बेचारा, रंक (पाअ; सुर २, १३; ६, १९५; सुपा ९३, गा ५३३)। स्त्री. °रई (संक्षि २; पि ८०)।

वरला :: स्त्री [वरला] हंसी, हंसपक्षी की मादा (पाअ)।

वरसि :: देखो वरिसि (मोह ३०)।

वरहाड :: अक [निर + सृ] बाहर निकलना। वरहाडइ (हे ४, ७९)।

वरहाडिअ :: वि [निसृत] बाहर निकला हुआ, निर्गंत (कुमा)।

वराग :: देखो वराय (रंभा)।

वराड, वराडग, वराडय :: पुं [वराट, °क] १ दक्षिण का एक देश, जो आजकल भी 'बरार' नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र २५५; सुख १८, ३५; राज) २ कपर्दंक, कौड़ा — बड़ी कौड़ी (उत्त ३६, १३०; ओघ ३३४; श्रा १) ३ न. कौड़ियौं का जूआ जिसे बालक खेलते हैं (मोह ८६)

वराडिया :: स्त्री [वराटिका] करर्दिंका, कौड़ी (सुपा २०३)।

वराय :: देखो वरय = वराक (गा ९१; ९६; १४१; महा)। स्त्री. °राइआ, °राई (गा ४९२; पि ३५०)।

वरावड :: पुं. ब. [वरावट] देश-विशेष (पउम ९८, ६४)।

वराह :: पुं [वराह] १ शूकर, सूअर (पाअ) २ भगवान् सुविधिनाथ का प्रथम शिष्य (सम १५२)

वराही :: स्त्री [वराही] विद्या-विशेष (विसे २४५३)।

वरि :: अ [वरम्] अच्छा, ठीक; 'वरि मरणं मा विरहो, विरहो अइदूसहो म्ह पडिहाइ। वरि एक्कं चिय मरणं, जेण समप्पंति दुक्खाइं।।' (सुर ४, १८२; भवि)।

वरिअ :: देखो वज्ज = वर्य (हे २, १०७; षड्)।

वरिअ :: वि [वृत] १ स्वीकृत (से १२, ८८) २ सेवित (भवि) ३ जीसकी सगाई की गई हो वह (वसु; महा) ४ न. सगाई करना; 'सुवरियं ति' (उप ६४८ टी)

वरिट्ठ :: पुं [वरिष्ठ] १ भरत-क्षेत्र का भावी बारहवाँ चक्रवर्ती राजा (सम १५४) २ अति-श्रेष्ठ (औप, कप्प; उप पृ ३८४; सुपा ४०३; भवि)

वरिल्ल :: न [दे] वस्त्र-विशेष (कप्पू)।

वरिस :: सक [वृष्] बरसना, वृष्टि करना। वरिसइ (हे ४, २३५; प्राप्र)। वकृ. वरिसंत, वरिसमाण (सुपा ६२४; ६२३)। हेकृ. वरिसिउं (पि १३५)।

वरिस :: पुंन [वर्ष] १ वृष्टि, वर्षा (कुमा; कप्पू; भवि) २ संवत्सर, साल (कुमा; सुपा ४५२; नव ९; दं २७; कप्पू; कम्म १, १८। ३ जंबूद्वीप का अंश-विशेष, भारत आदि क्षेत्र। ५ मेघ (हे २, १०५) °अ वि [ज] वर्षा में उत्पन्‍न (षड्)। °कण्ह न [°कृष्ण] १ एक गोत्र। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)। °धर पुं [°धर] अन्तःपुर-रक्षक षण्ड-विशेष (णाया १, १ — पत्र ३७; कप्पू; औप ५५ टि)। °वर पुं [°वर] वही अनन्तरोक्त अर्थं (औप)। देखो वास = वर्षं।

वरिसविअ :: वि [वर्षित] बरसाया हुआ (सुपा २२३)।

वरिसा :: स्त्री [वर्षा] १ वृष्टि, पानी का बरसना (हे २, १०५) २ वर्षा-काल, श्रावण और भादो का महीना (प्रयौ ७४)। °काल पुं [°काल] वर्षा ऋतु, प्रावृट् (कुप्र ७५)। °रत्त पुं [°रात्र] वही अर्थ (ठा ६; णाया १, १ — पत्र ६३)। °ल देखो °काल (पव ८५; महा)। देखो वासा।

वरिसि :: वि [वर्षिन्] बरसनेवाला (वेणी १११)।

वरिसिणी :: स्त्री [वर्षिणी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४२)।

बरिसोलक :: पुं [दे. वर्षोलक] पक्कान्न-विशेष, एक प्रकार का खाद्य (पव ४ टी)।

°वरिहरिअ :: देखो परिहरिअ (से ७, ३८)।

वरु, वरुअ :: पुंन [दे] देखो बरुअ; 'चंपयतरुणो वरुणो फुल्लंति सुरहिजलसिच्चा (? त्ता)' (संबोध ४७)।

वरुंट :: पुं [वरुण्ट] एक शिल्पि-जाति (राज)।

वरुड :: पुं [वरुड] एक अन्त्यज-जाति (दे २, ८४)।

वरुण :: पुं [वरुण] १ चमर आदि इन्द्रों का पश्चिम दिशा का लोकापाल (ठा ४, १ — पत्र १९७; १९८; इक) २ बलि-आदि इन्द्रों का उत्तर दिशा का लोकपाल (ठा ४, १) ३ लोकान्तिक देवो की एक जाति (णाया १; ८ — पत्र १५१) ४ भगवान् मुनिसुव्रत् का शासनाधिष्ठायक यक्ष (संति ८) ५ शतभिषक् नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १०, १२) ६ एक देव विमान (देवेन्द्र १३१) ७ वृक्ष की एक जाति (पव ४) ८ अहोरात्र का पनरहवाँ मुहुर्तं (सुज्ज १०, १३; सम ५१) ९ एक विद्यधरनरपति (पउम ६, ४४; १६, १२) १० एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५५९) ११ छन्द-विशेष (पिंग) १२ वरुणवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३ — पत्र ३४८) १३ पुं. ब. एक आर्यं- देश (पव २७५) °काइय पुं [°कायिक] वरुण लोकपाल के भृत्य-स्थानीय देवों की एक जाति (भग ३, ७ — पत्र १९९)। °देवकाइय पुं [देवकायिक] वही अर्थँ (भग ३, ७)। °प्पभ पुं [°प्रभ] १ वरुणवर द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३ — पत्र ३४८) २ वरुण लोकपाल का उत्पात- पर्वंत (ठा १० — पत्र ४८२)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] वरुणप्रभ पर्वंत की दक्षिण दिशा में स्थित वरुण लोकपाल की एक राजधानी (दीव)। °वर पुं [°वर] एक द्वीप का नाम (जीव २ — पत्र ३४८; सुज्ज १९)

वरुणा :: स्त्री [वरुणा] १ अच्छ देश की प्राचीन राजधानी (पव २७५) २ वरुणप्रभ पर्वंत की पूर्वं दिशा में स्थित वरुण नामक लोक- पाल की एक राजधानी (दीव) ३ एक राज- पत्‍नी (पउम ७, ४४)

वरुणी :: स्त्री [वरुणी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४०)।

वरुणोअ, वरुणोद :: पुं [वरुणोद] एक समुद्र (ठा पत्र ४०५; इक; सुज्ज १९)।

वरुल :: पुं. ब. [वरुल] देश-विशेष (पउम ९८, ६४)।

वरुहिणी :: स्त्री [वरूथिनी] सेना, सैन्य (पाअ)।

वरेइत्थ :: न [दे] फल (दे ७, ४७)।

वल :: अक [वल्] १ लौटना, वापस आना। २ मुड़ना, टेढ़ा होना; गुजराती में 'वळुवुं'। ३ उत्पन्न होना। ४ सक, ढकना। ५ जाना, गमन करना। ६ साधना। वलइ (हे ४, १७६; षड्; गा ४४९; धात्वा १५२)। भवि. वलिस्सं (महा)। वकृ. वलंत, वलय, वलाय, वलमाण (हे ४, ४२२; गा २५; से ५, ४७; ५, ४२; औप; ठा २, ४; पव १५७)। कवकृ. वलिज्जंत (से ४, २६)। संकृ. वलिऊण (काल)। हेकृ. वलिउं (गा ४८४; पि ५७९)। कृ. वलियव्व (महा; सुपा ६०१)

वल :: सक [आ + रोपय्] ऊपर चढ़ाना। वलइ (दे ४, ४७; दे ७, ८६)।

वल :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। वलइ (हे ४, २०९; दे ७, ८६)। वलणिज्ज (कुमा)।

वल :: पुं [वल] रस्सी आदि को मजबूत करने के लिए जिया जाता बल (उत्त २६, २५)।

वलअंगी :: स्त्री [दे] वृतिवाली, बाड़वाली (दे ७, ४३)।

वलइय :: वि [वलयित] १ वलय — कंगन की तरह गोलाकार किया हुआ, वलय की तरह मुड़ा हुआ (पउम २८, १२४; कप्पू) २ वेष्टित (कप्पू)

वलंगणिआ :: स्त्री [दे] बाड़वाली (दे ७, ४३)।

वलक्किअ :: वि [दे] उत्संगित, उत्संग-स्थित (षड् १८३)।

वलक्ख :: वि [वलक्ष्] श्वेत, सफेद (पाअ)।

वलकख :: न [वलाक्ष्] आभूषण-विशेष, एक तरह का गले में पहनने का गहना (औप)।

वलग्ग :: सक [आ + रुह्] आरोहण करना, चढ़ना। गुजराती में 'वळगवुं'। वलग्गइ (हे ४, २०६; षड्; भवि)।

वलग्ग :: वि [आरूढ] जिसने आरोहण किया हो वह, चढ़ा ङुआ (पाअ)।

वलग्गंगणी :: स्त्री [दे] वृति, बाड (दे ७, ४३)।

वलग्गिअ :: देखो वलग्ग = आरूढ़ (कुमा)।

वलण :: न [वलन] १ मोड़ना, वक्र करना (दे १, ४२) २ प्रत्यावर्तंन, पीछे लौटना (से ८, ९; गउड) ३ बाँक, वक्रता (हे ४, ४२२)

वलण :: (शौ, मा) देखो वरण (प्राकृ ८५; हे २९३)।

वलणा :: स्त्री [वलना] देखो वलण = वलन (गउड)।

वलत्थ :: वि [दे] पर्यंस्त (भवि)।

वलमय :: न [दे] शीघ्र, जल्दी; 'वच्च वलमयं तत्थं' (दे ७, ४८)।

वलय :: पुंन [वलय] १ कंकण, कड़ा (औप; गा १३३; कप्पू; हे ४, ३५२) २ पृथिवी- वेष्टन, घनवात आदि (ठा २, ४ — पत्र ८६) ३ वेष्टन, बेठन। ४ वर्तुल, गोलाकार (गउड; कप्पू; ठा ५, १) ५ नदी आदि के के बाँक से वेष्टित भू-भाग (सूअ २, २, ८; भग) ६ माया, प्रपंच (सूअ १, १२, २२; सम ७१) ७ असत्य वचन, मृषा, झूठ (पणह १, २ — पत्र २६) ८ बलयकार वृक्ष, नारि- केल, नारियल आदि (पणण १; उत्त ३६; ९६; सुख ३६, ९६)। °आर, °रिअ पुं [°कार, °कारक] कंकण बनानेवाला शिल्पी (दे ७, ५४)

वलय :: वि [वलक] मोडनेवाला; 'छगलग-गल- वलया' (पिंड ३१४)।

वलय :: न [दे] १ क्षेत्र, खेत। २ गृह, घर (दे ७, ८४)

वलय :: देखो वल = वल्। °मयग वि [°मृतक] १ संयम से भ्रष्ट होकर जिसका मरण हुआ हो वह। २ भूख आदि से तड़फता हुआ जो मरा हो वह (औप)। °मरण न [°मरण] संयम से च्युत होनेवाला का मरण (भग २, १)

वलयणी :: स्त्री [दे] वृति, बाड़ (दे ७, ४३)।

वलयबाहा, बलयबाहु :: स्त्री [दे] १ दीर्घं, काष्ठ, जिसपर ध्वजा आदि बाँधा जाता है वह लम्बा काष्ठ; 'संसारियासु बलयबाहासु ऊसिएसु सिएसु झयग्गेसु' (णाया १, ८ — पत्र १३३) २ हाथ का एक आभूषण, चूड़ा, कड़ा (दे ७, ५२; पाअ)

वलया :: देखो वडवा। °णल पुं [°नल] वड- वाग्‍नि (हे १, १७७; षड्)। °मुह न [°मुख] १ बडवानल (हे १, २०२; प्रारू; पि २४०) २ पुं. एक बड़ा पाताल-कलश (ठा ४, २ — पत्र २२६; टी — पत्र २२८; सम ७१)

वलया :: स्त्री [दे] वेला, समुद-फूल। °मुह न [°मुख] वेला का अग्र भाग; 'ति बलागमुहुम्मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामुहे। ति सत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे। एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्ठियघट्टणं। इच्छसि गलेण घेत्तुं, अहो ते अहिरीयया। (पिंड ६३२; ६३३)।

वलयाइअ :: वि [वलयायित] जो वलय की तरह गोल हुआ हो वह (कुमा)।

वलवट्टि :: [दे] देखो बलवट्टि (दे ६, ९१)।

वलवा :: देखो वडवा; 'गोमहिसिवलवपुणणो' (पउम २, २; दे ७, ४१; इक; पि २४०)।

वलवाडी :: स्त्री [दे] वृति, बाड़ (दे ७, ४३)।

वलविअ :: न [दे] शीघ्र, जल्दी (दे ७, ४८)।

वलहि :: स्त्री [दे] कर्पास, कपास (दे ७, ३२)।

वलहि, वलही :: स्त्री [वलभि, °भी] १ गृह-चूड़ा, छज्जा, बरामदा। २ महल का अग्रस्थ भाग (प्राप्र) ३ काठियावाड़ का एक प्राचीन नगर, जिसको आजकल 'वळा' कहते हैं (ती १५; सम्मत्त ११९)

वलाअ :: देखो पलाय = परा + अय्। वकृ. 'दीसइ वि वलाअंतो' (से ९; ८६)।

वलाअ :: देखो पलाव = प्रलाप (से ९, ४६)।

°वलाअ :: देको वल = वल्। °मरण देखो वलय-मरण; 'संजयजोग-विसन्‍ना मरंति जे तं वलायमरणं तु' (पव १५७; ठआ २, ४ — पत्र ९३)।

वलि :: स्त्री [वलि] १ पेट का अवयव-विशेष; 'उयरवलिमंसेहिं' (निर १, १) २ त्रिवलि, नाभि के ऊपर पेट की तीन रेखाएँ (गा ४२५; भवि) ३ जरा आदि से होती शिथिल चमड़ी (णाया १, १ — पत्र ६६)

वलिअ :: वि [दे] भुक्त, भक्षित (दे ७, ३५)।

वलिअ :: वि [वलित] १ मुड़ा हुआ (गा ६; २७०; औप) २ जिसको बल चढ़ाया गया हो वह (रस्सि आदि) (उत्त २६, २५)

वलिअ :: देखो विलिअ = व्यलीक (प्राप्र)।

वलिआ :: स्त्री [दे] ज्या, धनुष की डोरी (दे ७, ३४)।

°वलिच्छत्त :: देखो परिच्छन्न (औप)।

वलिज्जंत :: देखो वल = वल्।

°वलित्त :: देखो पलित्त (उप ७२८ टी)।

वलिमोडय :: पुं [वलिमोटक] वनस्पति में ग्रन्थि का चक्राकार वेष्टन (पणण १ — पत्र ४०)।

वलिर :: वि [वलितृ] लौटनेवाला (सुपा ५९)।

वली :: स्त्री [वली] देखो वलि (निर १, १)।

वलुण :: देखो वरुण (हे १, २५४)।

वले :: अ. संबोधन-सूचक अव्यय (प्राकृ ८०)। २ — ३ देखो बले (षड्)

वल्ल :: देखो वल = वल्। वल्लइ (धात्वा १५२)।

वल्ल :: अक [वल्ल्] चलना, हिलना (कुप्र ८४)।

वल्ल :: पुं [दे] शिशु, बालक (दे ७, ३१)।

वल्ल :: पुं [दे. वल्ल] अन्न-विशेष, निष्पाव, गुज- राती में 'वाल' (सुपा १३; ६३१; सम्मत्त ११८ सण)।

वल्लई :: स्त्री [वल्लवी] गोपी (दे ७, ३६ टी)।

वल्लई :: स्त्री [दे] गो, गैया (दे ७, ३६)।

वल्लई, वल्लकी :: स्त्री [वल्लकी] वोणा (पाअ; दे ७, ३६ टी; णाया १, १७ — पत्र २२९)।

वल्लट्ट :: वि [दे] पुनरुक्त, फिर से कहा हुआ (षड्)।

वल्लभ :: देखो वल्लह (गा ९०४)।

वल्लर :: न [दे. वल्लर] १ वन, गहन (दे ७, ८६; पाअ; उत्त १९, ८१) २ क्षेत्र, खेत (दे ७, ८६; पणह १, १ — पत्र १४) ३ अरण्य-क्षेत्र (पाअ) ४ वालुका-युक्त क्षेत्र (गा ८१२)

वल्लर :: न [दे] १ अरण्य अटवी। २ निर्जंल देश। ३ पुं. महिष, भैंसा; ४ समीर, पवन। ५ वि. युवा, तरुण (दे ७, ८६) ६ वेष्ठन- शील। ७ वेष्टित नामत आलिंगन-विशेष करने की आदत वाला। स्त्री. °री (गा ५३४)

वल्लरी :: स्त्री [वल्लरी] वल्ली, लता (पाअ; गउड; सुपा ५२९)।

वल्लरी :: स्त्री [दे] केश, बाल (दे ७, ३२)।

वल्लव :: पुंस्त्री [वल्लव] गोप, अहीर, ग्वाला (पाअ)। स्त्री. °वी (गा ८९)।

वल्लवाय :: पुं [दे] क्षेत्र, खेत (दे ६, २६)।

वल्लविअ :: वि [दे] लाक्षा से रँगा हुआ (षड्)।

वल्लह :: पुं [वल्लभ] १ दयित, पति, भर्त्ता, बालम (गउड; कप्पू; गा १२३; हे ४, ३८३) २ वि. प्रिय, स्‍नेह-पात्र; 'अहं जाया वल्लहा अईव पिऊणो' (महा; गा ४२; ९७; कुमा पउम १५, ७३; रयण ७९) °राय पुं [°राज] १ गुजरात का एक चौलुक्य-वंशीय राजा (कुप्र ४) २ दक्षिण के कुन्तल देश का एक राजा (कप्पू)

वल्लहा :: स्त्री [वल्लभा] दयिता, पत्‍नी (गा ७२)।

वल्लादय :: न [दे] आच्छादन, ढकने का वस्त्र (दे ७, ४५)।

वल्लाय :: पुं [दे] १ श्येन पक्षी। २ नकुल, न्यौला (दे ७, ८४)

वल्लि :: स्त्री [वल्लि] लता, बेल (कुमा)।

वल्लिर :: वि [वल्लितृ] हिलनेवाला; 'न विरायइ वल्लिरपल्लवा वि बल्लिव्व फलहीणा' (कुप्र ८४)।

वल्ली :: स्त्री [वल्ली] लता, बेल (कुमा; पि ३८७)।

वल्ली :: स्त्री [दे] केश, बाल (दे ७, ३२)।

वल्हीअ :: पुं [वाह्‍लीक] १ देश-विशेष (स १३; नाट) २ वि. वाह्लीक देश में उत्पन्‍न, वाह्लीक देश का (स १३)

वव :: सक [वप्] बोना; 'जे सत्तखित्तेसु ववंति वित्तं' (सत्त ७२)। वकृ. ववंत (आत्महि ७)। कवकृ. वविज्जंत (गा ३५८)।

वव :: सक [वप्] देना। ववइ (वव १)। कर्मं. उप्पइ (कुप्र ४१)।

ववइस :: सक [व्यप + दिश्] १ कहना, प्रतिपादन करना। २ व्यवहार करना। ववइसंति (धर्मंसं ४५२; सूअनि १४१)। अन्ने अकालमरणस्सभावओ वहनिवित्तिमो मोहा। वंझासुअपिसियासण- निवित्तितुल्लं ववइसंति।।' (श्रावक १९२)

ववएस :: पुं [व्यपदेश] १ कथन, प्रतिपादन। २ व्यवहार (से ३, २६) ३ कपट, बहाना। छल (महा)

ववगम :: पुं [व्यपगम] नाश (आवम)।

ववगय :: वि [व्यपगत] १ दूर किया हुआ (सुपा ४१) २ मृत (पणह २, ५ — पत्र १४८) ३ नाश-प्राप्‍त, नष्ट; 'ववगयविग्घा सिग्घं पत्ता हिअइच्छिअं ठाणं' (णमि ११; औप; कप्प)

ववट्ठंभ :: पुं [व्यवष्टम्भ] अवलम्बन, सहारा (से ४, ४६)।

ववट्ठावण :: देखो ववत्थावण (राज)।

ववट्ठिअ :: वि [व्यवस्थित] व्यवस्था-प्राप्‍त (से १२, ५२)।

ववण :: न [वपन] बोना (वव १; श्रु ९)।

ववण :: स्त्रीन [दे] कार्पास, तूला, रूई; 'पलही ववणं तूलो रूवो' (पाअ)। स्त्री. °णी (दे ६, ८२; ७, ३२)।

ववत्थंभ :: पुं [दे] बल, पराक्रम (दे ७, ४९)।

ववत्था :: स्त्री [व्यवस्था] १ मर्यादा, स्थिति (स १३; कुप्र ११४) २ प्रक्रिया, रीति। ३ इंतजाम, प्रबन्ध (सुपा ४१) ४ निर्णंय (स १३)। °पत्तय न [°पत्रक] दस्तावेज (स ४१०)

ववत्थावण :: न [व्यवस्थापन] व्यवस्था करना; 'जीवववत्थाबणादिणा' (धर्मंसं ५२०)।

ववत्थावणा :: न [व्यवस्थापना] ऊपर देखो (धर्मंसं ५२०)।

ववत्थिअ :: वि [व्यवस्थित] व्यवस्था-युक्त (स ४६; ७२७; सुर ७, २०५; सण)।

ववत्थिअ :: वि [व्यवत्थित] जिसने व्यवस्था की हो वह (दसनि ४, ३५)।

ववदेस :: देखो ववएस (उवा; स्वप्‍न १३२)।

ववदेसि :: वि [व्यपदेशिन्] व्यपदेश करनेवाला (नाट — शकु ९९)।

ववधाण :: न [व्यवधान] अन्तर, दो पदार्थों के बीच का अन्तर (अभि २२२)।

ववरोव :: सक [व्यप + रोपय्] विनाश करना, मार डालना। ववरोवेसि, ववरोवेजसि, ववरोवेज्जा (उवा)। कर्मं. ववरोविज्जसि (उवा)। संकृ. ववरोवित्ता (उवा)।

ववरोवण :: न [व्यपरोपण] विनाश, हिंसा (सण)।

ववरोविअ :: वि [व्यपरोपित] विनाशित, मार डाला गया; 'जीविआओ ववरोविआ' (पडि)।

ववस :: सक [व्यव + सो] १ करना। २ करने की इच्छा करना। ववसइ (राय १०८)

ववस :: सक [व्यय + सो] १ प्रयत्‍न-करना, चेष्टा करना। २ निर्णय करना। ववसइ (स २०२)। वकृ. ववसंत, ववसमाण (सुपा २३८; स ५६२)। संकृ. ववसिऊण (सुपा ३३९)। कवकृ. ववसिज्जमाण (पउम ५७, ३६)। हेकृ. ववसिदुं (शौ) (नाट — शकु ७१)

ववसाय :: पुं [व्यवसाय] १ निर्णंय, निश्चय। २ अनुष्ठान (ठा ३, ३ — पत्र १५१; णंदि) ३ उद्यम, प्रयत्‍न (से ३, १४; सुपा ३५२; स ६८३; हे ४, ३८५; ४२२; कुप्र २९) ४ व्यापार, कार्यं, काम (औप; राय)

ववसायसभा :: स्त्री [व्यवसायसभा] कार्यं करने का स्थान, कार्यालय (राय १०४)।

ववसिअ :: न [दे] बलात्कार (दे ७, ४२)।

ववसिअ, ववस्सिअ :: वि [व्यवसित] १ उद्यत, उद्यम-युक्त; 'सेणिओ नाम राया पयासुहे सुहं ववसिओ' (वसु; उत्त २२, ३०; उव) २ त्यक्त; 'अवि जीवियं ववसियं न चेव गुरुपरिभवो सहिओ' (उव) ३ निश्चयवाला। ४ पराक्रमी (ठा ४, १ — पत्र १७६) ५ न. व्यवसाय, कर्मं (णाया १, १ — पत्र ५०) ६ चेष्टित (स ७५६) ७ उद्यम, प्रयत्‍न (से ३, २२)

ववहर :: सक [व्यव + हृ] १ व्यापार करना। २ अक. वर्तना, आचरण करना। ववहरई, ववहरए (उत्त १७, १८; स १०८; विसे २२१२)। वकृ. ववहरंत, ववहरमाण (उत्त २१, २; ३; भग ८, ८; सुपा १५; ४४६)। हेकृ. ववहरिउं (स १०५)। कृ. ववहरणिज्ज, ववहरियव्व (उप २११ टी; वव १; सुपा ५८५)

ववहरग :: वि [व्यवहारक] व्यापार करनेवाला, व्यापारी (कुप्र २२४)।

बवहरण :: न [व्यवहरण] व्यवहार (णाया १, ८ — १३५; स ५८५; उप ५३० टी; सुपा ४६७; विसे २२१२)।

ववहरय :: देखो ववहरग (सुपा ५७८)।

ववहरियव्व :: देखो ववहर।

ववहार :: पुं [व्यवहार] १ वर्तन, आचरण (वव १; भग ८, ८; विसे २२१२; ठा ५, २; पव १२६) २ व्यापार, धन्धा, रोजगार (सुपा ३३४) ३ नय-विशेष, वस्तु-परीक्षा का एक दष्टिकोण (विस २२१२; ठा ७ — पत्र ३९०) ४ मुमुक्षु की प्रवृत्ति-निवृत्ति का कारण-भूत ज्ञान-विशेष (भग ८, ८ — पत्र ३८३; वव १; पव १२६; द्र ४९) ५ जैन आगम-ग्रंथ-विशेष (वव १) ६ दोष के नाशार्थं किया जाता प्रायश्चित; 'आयारे ववहारे पन्‍नत्ती चेव दिट्ठिवाए य' (दसनि ३) ७ विवाद, मामला, मुकद्दमा; 'ववहार- वियारणं कुणइ' (पउम १०५, १००, स ४६०; चेइय ५६०; उप ५९७ टी) ८ विवाद-निर्णंय, फैसला, चुकादा (उप पृ २८३) ९ व्यवस्था (सूअ २, ५, ३) १० काम काज (विसे २२१२; २२१४) ११ जीवराशि-विशेष (सक्खा ९)। °व वि [°वत्] व्यवहार-युक्त (द्र ४९)। °रासिय वि [°राशिक] जीवराशि-विशेष में स्थित (सिक्खा ९)

ववहार :: पुं [व्यवहार] १ पूर्वं-ग्रंथ। २ जीतकल्प सूत्र। ३ कल्पसूत्र। ४ मार्गं, रास्ता। ५ आचरण। ६ ईप्सितव्य (वव १)

ववहारि :: पुं [व्यवहारिन्] १ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्‍न एक जिन-देव (सम १५३) २ वि. व्यापारी, वणिक् (मोह ६४; श्रा १४; सुपा ३३४) ३ व्यवहार-क्रिया-प्रवर्तंक (वव १)

ववहारिअ :: वि [व्यावहारिक] व्यवहार- सम्बन्धी (ओघे २८१; अणु)।

ववहिअ :: वि [व्यवहित] व्यवधान-युक्त (अणु; आवम)।

ववहिअ :: वि [दे] मत्त, उन्मत्त (दे ७, ४१)।

ववाँल :: देखो वमाल (सण)।

वविअ :: वि [उप्त] बोया हुआ (उप ७२८ टी; प्रासू ६)।

वविज्जंत :: देखो वव।

ववेअ :: वि [व्यपेत] व्यपगत (सूअ २, १, ४७)।

ववेक्खा :: स्त्री [व्यपेक्षा्] विशेष अपेक्षा, परवाह (धर्मंसं ११९७)।

वव्वंय :: पुं [वल्वज] तृण-विशेष; 'मूययवक्क (? व्व) यपुप्फफल — ' (पणह २, ३ — पत्र १२३; कस २, ३०)।

वव्वर :: वि [वर्वर] १ पामर। २ मूर्त (कुमा)

वव्वा° :: देको वव्वय (कस २, ३०)।

वव्वाड :: पुं [दे] अर्थं, धन (दे ७, ३९)।

वव्वीस :: देखो वच्चीसग, वद्धीसक (पउम ११३, ११)।

वशधि :: (मा) देखो वसहि = वसति (प्राकृ १०१)।

वश्‍च :: (म) देखो वच्छ = वृक्ष (प्राकृ १०१)।

वस :: अक [वस्] १ वास करना, रहना। २ सक बाँधना। वसइ (कप्प; महा)। भूका. वसीय (उत्त १३, १८)। वकृ. वसंत, वसमाण (सुर २, २१९; ६, १२०; कुप्र १४; कप्प)। संकृ. वसित्ता, वसित्ताणं (आचा; कप्प; पि ५८३)। हेकृ. वत्थए वसिउं (कप्प; पि ५७८; राज)। कृ. वसियव्व (ठा ३, ३, सुर १४, ८७; सुपा ४३८)

वस :: वि [वश] १ आयत्त, अधीन (आचा; से २, ११) २ पुंन. अधीनता, परतन्त्रता (कुमा; कम्म १, ४४) ३ प्रभुत्व, स्वामित्व। ४ आज्ञा (कुमा) ५ बल, सामर्थ्ंयं (णाया १, १७; औप)। °अ, °ग वि [°ग] वशी- भूत, पराधीन (पउम ३०, २०; अच्चु ९१; सुर २, २३१; कुमा; सुपा २५७)। °ट्ट वि [°र्त] पराधिनता से पीड़ित, इन्द्रिय आदि की परवशता के कारण दुःखित (आचा; विपा १, १ — पत्र ८; औप)। °ट्टमरण न [°र्तमरण] इन्द्रियादि-परवश की मौत (ठा २, ४ — पत्र ९३; भग)। °वत्ति वि [°वर्तिन्] वशीभूत, अधीन (उप १३९ टी; सुपा २३८)। °इत्त वि [°यत्त] अधीन, परतंत्र (धर्मंवि ३१)। °णुग वि [°नुग] वही अर्थं (पउम १४, ११)

वस :: पुं [वृष] १ धर्म (चेइय ५४१) २ बैल, वृषभ (स ६५४; कम्म १, ४३)। देखो विस = वृष।

वसइ :: स्त्री [वसति] १ स्थान, आश्रय (कुमा) २ रात्रि, रात (दे ७, ४१) ३ गृह, घर (गा १६९) ४ वास, निवास (हे १, २१४)

वसंत :: देखो वस = वस्।

वसंत :: पुं [वसन्त] १ ऋतु-विशेष, चैत्र और वैशाख मास का समय (णाया १, १ — पत्र ६४; पाअ; सुर ३, ३९; कुमा; कप्पू; प्रासू ३४; ६२) २ चैत्र मास (सुज्ज १०, १९)। °उर न [°पुर] नगर-विशेष (महा)। °तिसअ पुं [°तिलक] १ हरिवंश में उत्पन्न एक राजा (पउम २२, ९८) २ न. एक उद्यान, जहाँ भगवान् ऋषभदेव ने दीक्षा ली थी (पउम ३, १३४)। °तिलआ स्त्री [°तिलका] छन्द-विशेष (पिंग)

वसंवय :: वि [वशंवद] निज को अधीन कहनेवाला (धर्मंवि ६)।

वसण :: न [वसन] १ वस्त्र, कपड़ा (पाअ; सुपा २४४; चेइय ४८२; धर्मंवि ९) २ निवास, रहना (कुप्र ४८)

वसण :: पुं [वृषण] अण्ड-कोष, पोता (सम १२५; भग; पणह १, ३; विपा १, २; औप; कुप्र ३६५)।

वसण :: न [व्यसन] १ कष्ट, विपत्ति, दुःख (पाअ; सुर ३, १६२; महा; प्रासू २३) २ राजादि-कृत उपद्रव (णाया १, २) ३ खराब आदत — द्यूत, मद्य-पान आदि खोटी आदत (बृह १)

वसणि :: वि [व्यसनिन्] खोटी आदतवाला (सुपा ४८८)।

वसभ :: पुं [वृषभ] १ ज्योतिष-प्रसिद्ध राशि- विशेष, वृष राशि (पउम १७, १०८) २ भगवान् ऋषभदेव (चेइय ५४१) ३ एक जैन मुनि, जो चतुर्थं बलदेव की पूर्वं जन्म में गुरु थे (पउम २०, १९२) ४ गीतार्थं मुनि, ज्ञानी साधु (बृह १; ३) ५ बैल, बलीवर्दं (उव) ६ उत्तम, श्रेष्ठ; 'मुणिवसभा' (उव)। °करण न [°करण] वह स्थान जहाँ बैल बाँधे जाते हों (आचा २, १०, १४)। °क्खेत्त न [°क्षेत्र] स्थान-विशेष, जहाँ पर वर्षा-काल में आचार्यं आदि रहते हों वह स्थान (वव १०; निचू १७)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष, कुत्सित देश में नगर-तुल्य गाँव; 'अत्ति हु वसभग्गामा कुदेसनगरोवमा सुहविहारा' (वव १०)। °णुजाय पुं [°नुजात] ज्योतिशास्त्र-प्रसिद्ध दश योगों में प्रथम योग, जिसमें चन्द्र, सूर्यं और नक्षत्र बैल के आकार से स्थित होते हैं (सुज्ज १२ — पत्र २३३)। देखो उसभ, रिसभ, वसह।

वसभुद्ध :: पुं [दे] काक, कौआ (दे ७, ४९)।

वसम :: देखो वसिम (महा)।

वसमाण :: देखो वस = वस्।

वसल :: वि [दे] दीर्धं, लम्बा (दे ७, ३३)।

वसह :: पुं [वृषभ] वैयावृत्त्य करनेवाला मुनि (ओघ १४०)। २ लक्ष्मण का एक पुत्र (पउम ९, २०) ३ बैल, साँढ़, साँड़ (पाअ) ४ काम का छिद्र। ५ औषध-विशेष (प्राप्र) °इंध पुं [°चिह् न] शंकर, महादेव (गउड)। °केउ पुं [°केतु] इक्ष्वाकु-वंश का एक राजा (पउम ५, ७)। °वाहण पुं [°वाहन] १ ईशान देवलोक का इन्द्र (जं २ — पत्र १५७) २ महादेव, शंकर (वज्जा ६०)। °वीहि स्त्री [°वीथी] शुक्र ग्रह का एक क्षेत्रभाग (ठा ९ — पत्र ४६८)

वसहि :: देखो वसइ (हे १, २१४; कुमा; गा ५८२; पि ३८७)।

वसा :: स्त्री [वसा] १ शरीरस्थ धातु-विशेष; 'मेयवसामंस — ' (पणह १, १ — पत्र १४; णाया १, १२) २ भेद, चरबी (आचा)

°वसारअ :: वि [प्रसारक] फैलानेवाला (से ९, ४०)।

°वसारअ :: देखो पसाहय (से ९, ४०)।

°वसाहा :: स्त्री [प्रसाधा] अलंकार, आभूषण (से १, १९)।

वसि :: देखो वसइ; 'जत्थ न नज्जइ पहि पहिं अडविवसिठाणयविसेसो' (सुर १, ५२)।

वसिअ :: वि [उषित] १ रहा हुआ, जिसने वास किया हो हो वह (पाअ; स २९५; सुपा ४२१; भत्त ११२; वै ७) २ बासी, पर्युषित; 'अवणेइ रयणिवसियं निम्मल्लं लोमहत्थेण' (संबोध ६)

वसिट्ठ :: पुं [वशिष्ठ] १ भगवान् पार्श्वंनाथ का एक गणधर (ठा ८ — पत्र ४२९; सम १३) २ एक ऋषि (नाट — उत्तर ८२)

वसिट्ठ :: पुं [वशिष्ट] द्वीपकुमार देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (इक)।

वसित्त :: न [वशित्व] योग की एक सिद्धि, योग-जन्य एक ऐश्वर्यं; 'साहुवसित्तगुणेणं पसमं कूरावि जंतुणो जंति' (कुप्र २७७)।

वसिम :: न [दे. वसिम] वसतिवाला स्थान (सुर १, ५२; सुपा १६४; कुप्र २२४; महा)।

वसियव्व :: देखो वस = वस्।

वसिर :: वि [वसितृ] वास करनेवाला, रहनेवाला (सुपा ६४७; सम्मत्त २१७)।

वसीकय :: वि [वशीकृत] वश में किया हुआ, अधीन किया हुआ (सुपा ५६०; महा)।

वसीकरण :: न [वशीकरण] वश में करने के लिए किया जाता मन्त्र आदि का प्रयोग (णाया १, १४; प्रासू १४; महा)।

वसीयरणी :: स्त्री [वशीकरणी] वशीकरण- विद्या (सुर १३, ८१)।

वसीहूअ :: वि [वशीभुत] जो अधीन हुआ हो बह (उप ९८६ टी)।

वसु :: न [वसु] १ धन, द्रव्य (आचा; सूअ १, १३, १८; कुमा) २ संयम, चारित्र (आचा; सूअ १, १३, १८) ३ पुं. जिनदेव। ४ वीतराग, राग-रहित। ५ संयत, संयमी, साधु (आचा १, ६, २, १) ६ आठ की संख्या (विवे १४४; पिंग) ७ धनिष्ठा नक्षत्र का अधिपति देव (ठा २, ३; सुज्ज १०, १२) ८ एक राजा का नाम (पउम ११, २१; भत्त १०१) ९ एक चतुर्दंश-पूर्वी जैन महर्षि (विसे २३३४) १० एक छन्द का नाम (पिंग) ११ स्त्री. ईशानेन्द्र की एक पटरानी (इक) १२ न. लोकान्तिक देवों का एक विमान (इक) १३ सुवर्णं, सोना (कप्प ९८; भग १५; उत्त १२, ३६) °गुत्ता स्त्री [°गुप्ता] ईशानेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९, इक, णाया २ — पत्र २५३)। °देव पुं [°देव] नववें वासुदेव श्रीकृष्ण और बलदेव का पिता (ठा ९; सम १५२; अंत; उव)। °नंदय पुं [°नन्दक] एक तरह की उत्तम तलवार (सुर २, २२; भवि)। °पुज्ज पुं [°पूज्य] एक राजा, भगवान् वासुपूज्य का पिता (सम १५१)। °बल पुं [°बल] इक्ष्वाकु-वंश में उत्पन्न एक राजा (पउम ५, ४)। °भाग पुं [°भाग] एक व्यक्ति-वाचक नाम (महा)। °भागा स्त्री [°भागा] ईशानेन्द्र की एक पटरानी (इक)। °भूइ पुं [°भूति] एक जैन मुनि का नाम (पउम २०, १७६; ' आवम)। °म, °मंत वि [°मत्] १ द्रव्यवान्, धनी, श्रीमंत (सूअ १, १३, ८; १, १५, ११; आचा) २ संयमी, साधु (सूअ १, १३, ८; आचा) °मित्ता स्त्री [°मित्रा] १ ईशानेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ८ — पत्र ४२९; णाया २; इक) °सद्द पुं [°शब्द] छन्द-विशेष (पिंग)। °हारा स्त्री [°धारा] १ आकाश से देव-कृत सुवर्णं- वृष्टि (भग १५; कप्प ९८; उत्त १२, ३६; विपा १, १०) २ एक श्रेष्ठिनी (उप ७२८ टी)

वसुआ, वसुआअ :: अक [उद् + वा] शुष्क होना, सूखना। वसुआइ, वसुआअइ (हे ४, ११; ३, १४५; प्राकृ ७४)। वकृ. वसुअंत (कुमा)। प्रयो., कवकृ. वसुआइज्ज- माण (गउड)।

वसुआअ :: वि [उद्वात] शुष्क (पाअ; से १, २०; गउड; प्राकृ ७७)।

वसुआइअ :: वि [उद्वापित] शुष्क किया गया, सुखाया गया (से ९; २५)।

वसुआइज्जमाण :: देखो वसुआ।

वसुंधर :: पुं [वसुन्धर] एक जैन मुनि (पउम २०, १९१)।

वसुंधरा :: स्त्री [वसुन्धरा] १ पृथिवी, धरती (पाअ; धर्मंवि ४१; प्रासू १४२) २ ईशा- नेन्द्र की एक अग्र-महीषी (ठा ८ — पत्र ४२९; णाया २; इक) ३ चमरेन्द्र के सोम आदि चारो लोकपालों की एक पटरानी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४; इक) ४ एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६; इक) ५ नववें चक्रवर्त्ती राजा की पटरानी (सम १५२) ६ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, १०) ७ एक श्रेष्ठि-पत्‍नी (उप ७२८ टी)। °वइ पुं [°पति] राजा, भूपति (सुपा २८८)

वसुधा :: (शौ) देखो वसुहा (स्वप्‍न ९८)।

वसुपुज्ज :: देखो वासुपुज्ज; 'वसुपुज्जमल्ली नेमी पासो वीरो कुमारपव्वइया' (विचार ११५; पंचा १९, १३; १७), 'वसुपुज्जजिणो जगु- त्तमो जाओ' (पव ३५)।

वसुमइ°, वसुमई :: स्त्री [वसुमती] १ पृथिवी, धरती (उप ७६८ टी; पाअ; सुपा २६०; ४७१) २ भीम नामक राक्षसेन्द्र की एक अग्र-महिषी, एक इन्द्राणी (ठा ४, १ — पत्र २०४; णाया २ — पत्र २५२; इक)। °णाह, °नाह पुं [°नाथ] राजा (उप ७६८ टी; पउम ७४, २९)। °भवण न [°भवन] भूमि-गृह, भोंघरा (सुख ४, ६)। °वइ पुं [°पति] राजा (पउम ६९, २)

वसुल :: पुंस्त्री [दे. वृषल] १ निष्‍ठुरता-बोधक आमन्त्रण-शब्द; 'होल त्ति वा गोलि त्ति वा वसुलि त्ति वा' (आचा २, ४, २, ३), 'तहेव होले गोलि त्ति साणे वा वसुलि त्ति य' (दस ७, १४) २ गौरव और कुत्सा-बोधक आमन्त्रण-शब्द, 'होल वसुल गोल णाह दइय पिय रमण' (णाया १, ९ — पत्र १६५)। स्त्री. °ली (दस ७, १६, आचा २, ४, २, ३)

वसुहा :: स्त्री [वसुधा] पृथिवी, धरती (पाअ; कुमा)। °हिव पुं [°धिप] राजा (सुपा ८७)।

वसू :: स्त्री [वसू] ईशानेन्द्र की एक पटरानी (ठा ८ — पत्र ४२९; इक; णाया २ — पत्र २५३)।

वसेरी :: स्त्री [दे] गवेषणा, खोज (सुपा ४७३)।

वस्स :: (शौ) देखो वरिस। वस्सादि (नाट — मृच्छ १५५)।

वस्स :: वि [वश्य] अधीन, आयत्त (विसे ८७५)।

वस्सोक :: न [दे] एक प्रकार की क्रीडा, 'अन्नया य वस्सोकेण रमंति' ऱाय (? या) णं राणियाउ पोत्तेण वाहिंति' (श्रावक ९३ टी)।

वह :: सक [वह्] १ पहुँचाना। २ धारण करना। ३ ले जाना, ढ़ोना। ४ अक. चलना; 'परिमलबहलो वहइ पवणो' (कुमा; उव; महा), 'गंगा वहइ पाडलं' (सुख २, ४५), वहसि (हे २, १९४)। कर्मं. वहिंज्जइ, वब्भइ, वुब्भइ (कुमा; धात्वा १५१; पि ५४१; हे ४, २४५)। वकृ. वहंत, वहमाण (महा, सुर ३, ११; औप)। कवकृ. वुज्झमाण (उत्त २३, ६५; ९८)। हेकृ. वहउं, वहित्तए, वोढुं (धात्वा १५२; कस; सा १५)। कृ. वहिअव्व, वोढव्व (धात्वा १५२; प्रवि ३)

वह :: सक [वध्, हन्] मार डालना। वहेइ, वहंति (उत्त १८, ३; ५; स ७२८; संबोध ४१)। कर्मं. वहिज्जंति (कुप्र २५)। वकृ. वहंत, वहमाण (पउम २६, ७७; सुपा ६५१; श्रावक १३९)। कवकृ. वहिज्जंत, वज्झमाण (पउम ४६, २०; आचा)। संकृ. वहिऊण (महा)।

वह :: सक [व्यथ्] १ पीड़ा करना। २ प्रहार करना। कृ. वहेयव्व (पणह २, १ — पत्र १००)

वह :: (अप) देखो वरिस = वृष्। वहदि (प्राकृ १२१)।

वह :: पुंस्त्री [वध] घात, हत्या (उवा; कुमा; हे ३, १३३; प्रासू १३९; १५३)। स्त्री. °हा (सुख १, ३; स २७)। °कारी स्त्री [°करी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)।

वह :: पुं [दे] १ कन्धे पर का व्रण। २ व्रण, घाव (दे ७, ३१)

वह :: पुं [वह] १ वृष-स्कन्ध, बैल का कन्धा (विपा १, २ — पत्र २७) २ परीवाह, पानी का प्रवाह (दे १, ५५)

वह :: पुं [व्यथ] लकुट आदि का प्रहार (सूअ १, ५, २, १४; उत्त १, १६)।

°वह :: देखो पह = पथिन् (से १, ६१; ३, १४; कुमा)।

वहइअ :: वि [दे] पर्याप्त (षड् १७७)।

वहग :: वि [वधक] घातक, हिंसक, मार डालनेवाला (उव; स २१३; सुपा ५६४; उप पृ ७०; श्रावक २१२; श्रा २३)।

वहग :: वि [व्यथक] ताड़ना करनेवाला (जं २)।

वहड :: पुं [दे] दमनीय वछड़ा (दे ७, ३७)।

वहढोल :: पुं [दे] वात्या, वात-समूह (दे ७, ४२)।

वहण :: न [वधन] वध, घात, हत्या; 'अजओ छज्जीवकायवहणम्मि' (सुपा ५२२; धर्मंवि १७; मोह १०१; महा; श्रावक १४४; २३७; उप पृ ३५७; सुपा १८४; पउम ४३, ४९)।

वहण :: न [वहन] १ ढोना (धर्मंवि ७२) २ पोत, जहाज, यानपात्र (पाअ; उप ५६६; कुम्मा १५) ३ शकट आदि वाहन (उत्त २७, २; सुपा १८२) ४ वि. वहन करनेवाला (से ३, ६; ती ३)

वहण :: (शौ) देखो पगय = प्रकृत (प्राकृ ९७)।

वहण :: (अप) देखो वसण = वसन (भवि)।

वहणया :: स्त्री [वहना] निर्वाह (णाया १, २ — पत्र ९०)।

वहणा :: स्त्री [वधना] वध, घात, हिंसा (पणह १, १ — पत्र ५)।

वहण्णु :: पुं [व्यधज्ञ] एक नरक-स्थान, 'उव्वे- यणए विज्जलविमुहे तह विच्छवी वि (? व) हणणू य' (देवेन्द्र २८)।

वहय :: देखो वहग = वधक (सूअ २, ४, ४; पउम २६, ४७; श्रावक २०८; सण)।

वहलीअ :: देखो बहलीय (इक)।

वहा :: देखो वह = वध।

वहाव :: सक [वाहय्] वहन कराना। कर्मं. वहाविज्जइ (श्रावत २५८ टी)।

वहाविअ :: वि [वधित] मरवाया हुआ (खा २४)।

°वहाविअ :: देखो पहाविअ (से ९, १)।

वहिअ :: वि [व्यथित] पीड़ित (पंचा ५, ४४)।

वहिअ :: वि [ऊढ] वहन किया हुआ (धात्वा १५२)।

वहिअ :: वि [वधित] जिसका वध किया गया हो वह (श्रावक १७०; पउम ५, १९५; विपा १, ५; उव; खा २३; २४)।

वहिअ :: वि [दे] अवलोकित, निरीक्षित; 'तेलोक्कबहियमहियपूइए' (उवा)।

वहिइअ :: देखो वहइअ (षड्)।

वहिचर :: अक [व्यभि + चर्] १ पर- पुरुष या पर-स्त्री से संभोग करना। २ सक. नियम-भंग करना। वकृ. वहिचरंत (स ७११)

वहिचार :: पुं [व्यभिचार] १ पर-स्त्री या पर-पुरुष से संभोग (स ७११) २ न्यायशास्त्र- प्रसिद्ध एक हेतु-दोष (धर्मसं ६३)

वहिज्जंत :: देखो वह = वध्।

वहिया :: स्त्री [दे] बही, हिसाब लिखने की किताब (सम्मत्त १४२; सुपा ३८५; ३८६; ३८७; ३९१)।

वहियाली :: देखो वहियाली; गुरुउज्जाण- तडिट्ठियवहियालिं नेइ तं निवइं' (धर्मंवि ४)।

वहिलग :: पुं [दे. वहिलक] ऊँट, बैल आदि पशु (राज)।

वहिल्ल :: वि [दे] शीघ्र, शीघ्रता-युक्त; गुजराती में 'वहेलो' (हे ४, ४२२; कुमा; वज्जा १२८)।

वहु :: पुंस्त्री [दे] चिविडा, गन्ध-द्रव्य-विशेष (दे ७, ३१)।

वहु° :: देखो वहू (हे १, ४; षड्; प्राप्र)।

वहुधारिणी :: स्त्री [दे] नवोढा, दुलहिन (दे ७, ५०)।

वहुण्णी :: स्त्री [दे] ज्येष्ठ-भार्या, पति के बड़े् भाई की बहू (दे ७, ४१)।

वहुमास :: पुं [दे] रमण-विशेष, क्रीड़ा-विशेष, जिसमें खेलता हुआ पति नवोढा के घर से बाहर नहीं निकलता है (दे ७, ४६)।

वहुरा :: स्त्री [दे] शिवा, सियारिन (दे ७, ४०)।

वहुलिआ :: (अप) स्त्री [वधूटिका] अल्प वय वाली स्त्री, बहुरिया (पिंग)।

वहुव्वा :: स्त्री [दे] छोटी सास (दे ७, ४०)।

वहुडाड़िणी :: स्त्री [दे] एक स्त्री के रहते हुए व्याही जाती दूसरी स्त्री (दे ७, ५०; षड्)।

वहू :: स्त्री [वधू] बहू, भार्या, नारी (स्वप्‍न ४२; पाअ; हे १, ४)।

वहोल :: पुं [दे] छोटा जल-प्रवाह, गुजराती में 'वहेळो' (दे ७, ३९)।

वहोलिया :: स्त्री [दे] देखो वहेल (चउप्पन्न; पत्र २१४)।

वा :: सक [वा] गति करना, चलना। वइ (से ६, ५२; गा ५४३; कुमा)।

वा :: अक [वै, म्लै] सूखना। बाइ (से ६, ५२; हे ४, १८)।

वा :: सक [व्ये] वुनना। कृ. वाइम; 'गंथिम- पूरिमवेढिमवाइमसंघाइमं छेज्जं' (दसनि २)।

वा :: अ [वा] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विकल्प, अथवा, या (आचा; कुमा) २ समुच्चय, और, तथा (उत्त ८, १२; सुख ५, १२) ३ अपि भी (कुमा; कप्प; सुख ५, २२) ४ अवधारण, निश्‍चय (ठा ८) ५ साद्दश्य, समानता (विसे १८९४) ६ उपमा; 'कप्पद्‍दुमं तणेणेव काणवड्डेण कामधेणु बा' (हि १७; १, ४, २, १५; सुख २, ९; वव १) ७ पाद-पूर्त्ति (उत्त २८, २८)

वाअड :: पुं [दे] शुक, तोता (षड्)।

वाअड :: देखो वावड = व्यापृत, 'रइवाअडा रुअंतं पिअंपि पुत्तं सवइ माआ' (गा ४००)।

वाइ :: वि [वादिन्] १ बोलनेवाला, वक्ता (आचा; भग; उव; ठा ४, ४) २ वाद- कर्त्ता, शास्त्रार्थं में पूर्वपक्ष का प्रतिपादन करनेवाला (सम १०२; विसे १७२१; कुप्र ४४०; चेइय १२८, सम्मत्त १४१; श्रा ६) ३ दार्शनिक, तीर्थिक, इतर धर्मं का अनुयायी (ठा ४, ४)

वाइ :: वि [वाचिन्] वाचक, अभिधायक, कहनेवाला (विसे ८७४)।

वइ :: देखो वाजि (राज)।

वाइअ :: वि [वाचिक] वचन-संबन्धी (औप; श्रा २४ पडि)।

वाइअ :: वि [वाचित] १ पाठित, पढ़ाया हुआ (उत्त २७, १४; विसे २३५८) २ पढ़ा हुआ; नामम्मि वाइए तत्थ' (सुपा २७०), 'अलाहि किं वाइएण लेहेण' (हे २, १८९)

वाइअ :: वि [वातिक] १ वात से उत्पन्न, वायु-जन्य (रोग आदि) (भग; णाया १, १ — पत्र ५०; तंदु १९) २ वायु से फूला हुआ, वात-रोगवाला (विसे २५७९ टी; पव ६१) ३ उत्कर्षवाला; 'सपरक्कमराउलवा- इएण सीसे पलीविए नियए' (उव), 'चिंतइ सूरी एसो निवमन्नो वाइउव्व दुट्ठमणो' (धर्मवि ७९) ४ पुं. नपुंसक का एक भेद (पुप्फ १२७; धर्मं ३)

वाइअ :: वि [वादित] १ बजाया हुआ (गा ५५७; कुमा २, ८; ६९; ७०) २ वन्दित, अभिवादित; चलणेसु निवडिऊणं वाइआ बंभणा (स २६०)

वाइअ :: न [वाद्य] १ बाजा, वादित्र (कप्प) २ बाजा बजाने की कला (सम ८३; औप)

वाइअ :: वि [वात] बहा हुआ, चला हुआ; 'मुचकुंदकुडयसंदियरयगब्भिणवाइयसमीरो' (सुर २, ७६)।

वाइंगण :: न [दे] बैंगन, वृन्ताक, भंटा (उफ ५९७ टी; दे ७; २९)।

वाइंगणी, वाइंगिणी :: स्त्री [दे] बैंगन का गाछ, वृन्ताकी (राज; पणण १७ — पत्र ५२७)।

वाइगा :: [दे] देखो बाइया (उप १०३१ टी)।

वाइज्जंत :: देखो वाए = वाचय्।

वाइज्जंत :: देखो वाए = वादय्।

वाइत्त :: न [वादित्र] वाद्य, बाजा (कुप्र ११०; भवि)।

वाइद्ध :: वि [व्याविद्ध] विपर्यय से उपन्यस्त, उलट-पुलट रखा हुआ (विसे ८५३)।

वाइद्ध :: वि [व्यादिग्ध] १ उपदिग्ध, उपलिप्त। २ वक्र, टेढ़ा (भग १६, ४ — पत्र ७०४)

वाइम :: देखो वा = व्ये।

वाइयव्व :: देखो वाय = वादय्।

वाईकरण :: देखो वाजीकरण (राज)।

वाउ :: पुं [वायु] १ पवन, वात (कुमा) २ वायु-शरीरवाला जीव (अणु; जी २; दं १३) ३ मुहूर्त्तं-विशेष (सम ५१) ४ सौधर्मेन्द्र के अश्व-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १ — पत्र ३०२) ५ नक्षत्र-देव-विशेष, स्वाति- नक्षत्र का अधिपति देवता (ठा २, ३ — पव ७७; सुज्ज १०, १२ टी) °आय पुं [°काय] १ प्रचण्ड पवन (ठा ३, ३ — पत्र १४१) २ वायु शरीरवाला जीव (भग) °काइय पुं [°कायिक] वायु शरीरावाला जीव (ठा ३, १ — पत्र १२३; पि ३५५)। °काय देखो °आय (जी ७; पि ३५५)। °कुमार पुं [°कुमार] १ एक देव-जाति, भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति (भग) २ हनूमान का पिता (पउम १६, २)। °क्कलिया स्त्री [°उत्कलिका] वायु-विशेष, नीचे बहनेवाला वायु (पणण १ — पत्र २९)। °क्काइय देखो °काइय (भग)। °क्काय देखो °आय (राज)। °त्तरवडिंसग पुंन [°उत्त- रावतंसक] एक देव-विमान (सम १०)। °पवेस पुं [°प्रवेश] गवाक्ष झरखा, वातायन (ओघभा ५८)। °प्पइट्ठाण वि [°प्रतिष्ठान] वायु के अधार से रहनेवाला (भग)। °भूइ पुं [°भूति] भगवान् महावीर का एक गणधर — मुख्य शिष्य (कप्प)

वाउ :: पुं [दे] इक्षु, ऊख (दे ७, ५३)।

°वाउड :: वि [प्रावृत] १ आच्छादित, ढका हुआ (भग २, १; पव ६१)। न. कपड़ा, वस्त्र (ठा ५, १ — पत्र २९६)

वाउत्त :: पुं [दे] १ विट। २ जार, उपपति (दे ७, ८८)

वाउप्पइया :: स्त्री [दे. वातोत्पतिका] भुज- परिसर्पं की एक जाति, हाथ से चलनेवाले जन्तु की एक जाति; 'णउलसरडजाहगमुगुसं- खाडहिलवाउप्पि (? प्पइ) यघीरोलियसिरीसि- वगणे य' (पणह १, १ — पत्र ८)।

वउब्भाम :: पुं [वातोद्‍भ्राम] अनवस्थित पवन, 'वाउज्झा (? ब्भा) मे बाउक्कलिया' (पणण १ — पत्र २९)।

वाउय :: वि [व्यापृत] किसी कार्यं में लगा हुआ (णाया १, ८ — पत्र १४६; औप)।

वाउरा :: स्त्री [वागुरा] मृग-बन्धन, पशु फँसाने का जाल, फन्दा (पउम ३३, ६७; हेका ३१; गा ९५७)। देखो वग्गुरा।

वाउरिय :: वि [वागुरिक] जाल में फँसाने का काम करनेवाला, व्याध (पणह १, १; विपा १, ५ — पत्र ६४)।

वाउल :: वि [व्याकुल] १ धबड़ाया हुआ (उव; उप पृ २२०; करु ३४; हे २, ९९) २ पुं. क्षोभ (पणह १, ३ — पत्र ४४)। °हूअ वि [°भूत] व्याकुल बना हुआ (उप २२० टी)

वाउल :: वि [वातूल] १ वात-रोगी, उन्मत्त। २ पुं. वातसमूह (हे १, १२१; प्राकृ ३०)

वाउलग्ग :: न [दे] सेवा, भक्ति; 'निच्‍चं चिय वाउलग्गं कुणंति' (राज)।

वाउलण :: न [ब्यापरण] व्यावृत-क्रिया, व्यापार (वव १)।

वाउलणा :: स्त्री [व्याकुलना] व्याकुल करना (वव ४)।

वाउलिअ :: वि [व्याकुलित] १ व्याकुल बना हुआ (सण) २ विलोलित, क्षोभ-प्राप्त (पणह १, ३ — पत्र ४५)

वाउलिआ :: स्त्री [दे] छोटी खाई (गा ६२६)।

वाउल्ल :: देखो वाउल = व्याकुल (हे २, ९९; षड्)।

वाउल्ल :: वि [दे. वातूल] वाचाट, प्रलाप-शील बकवादी (दे ७, ५६; पाअ; षड्)।

वाउल्लअ :: पुंन [दे] पूतला, गुजराती में 'बावलुं'; 'आलिहिअभित्तिवाउल्लओ व्व ण परम्मुहं ठाइ' (गा २१७), 'आलिहियभित्ति- वाउल्लयं व न परम्मुहं ठाइ' (वज्जा १४)।

वाउल्लआ, वाउल्ली :: स्त्री [दे] देखो बाउल्लया, बाउल्ली; 'आलिहिअभित्तिवाउ- ल्लअ व्व ण संमुहं ठाइ' (गा २१७ अ; दे ६, ९२)।

वाऊल :: देखो वाउल = वातूल; 'अभिवायण- वाऊलो हसिज्जए नयरलोएण' (धर्मंवि १११; प्राकृ ३०)।

वाऊल :: देखो वाउल = व्याकुल (प्राकृ ३०)।

वाऊलिअ :: वि [वातूलिन्] १ वातूल बना हुआ। २ नास्तिक (दसनि १, ६९)

वाए :: सक [वादय्] बजाना। वाएइ (महा)। वकृ. वाएंत (महा)। कवकृ. वाइज्जंत (कुप्र १९)। हेकृ. वाइउं (महा)।

वाए :: सक [वाचय्] १ पढ़ाना। २ पढ़ना। वाएइ, वाएंति (भग; कप्प)। कवकृ. वाइ- ज्जंत (सुपा ३३८; कुप्र १९)

वाएरिअ :: वि [वातेरित] पवन-प्रेरित, हवा से हिलाया या कँपाया हुआ (गा १७६)।

वाएसरी :: स्त्री [वागीश्वरी] सरस्वती देवी; 'वाएसरी पृत्थयवग्गहत्था' (पडि; सम्मत्त २१५)।

वाओलि, वाओली :: स्त्री [वातालि, °ली] पवन- समूह; 'किं अयलो चालिज्जइ पयंडवाउ (? ओ) लिसएहिंवि' (धर्मंवि २७; गउड; णाया १, १ — पत्र ६३)।

वाक, वाग :: देखो वक्क = वल्क (औप; विसे ९७; विपा १, ६ — पत्र ६६)।

वागड :: पुं [वागड] गुजरात का एक प्रान्त, जो आजकल भी 'वागड' नाम से ही प्रसिद्ध है (कुप्र ६)।

वागडिअ :: वि [व्याकृत] प्रकट किया हुआ (वव १)।

वागर :: सक [व्या + कृ] प्रतिपादन करना, कहना। वागरेइ, वागरेज्जा (कप्प; पि ५०९)। वकृ. वागरमाण, वागरेमाण (सुर ७, ४१; सुपा ५११; औप)। संकृ. वागरित्ता (सम ७२)। हेंकृ. वागरिउं, वागरित्तए (कुप्र २३८; उवा)।

वागरण :: न [व्याकरण] १ कथन, प्रतिपादन, उपदेश (विसे ५५०; कुप्र २; पणह १, १ टी) २ निर्वंचन, उत्तर (औप; उवा; कप्प) ३ शब्दशास्त्र (धर्मवि ३८; मोह २)

वागरणि :: वि [व्याकरणिन्] प्रातपादन करनेवाला (सम्म २)।

वागरणी :: स्त्री [व्याकरणी] भाषा का एक भेद, प्रश्‍न के उत्तर की भाषा, उत्तर रूप वचन (ठा ४, १ — पत्र १८३)।

वागरिय :: वि [व्याकृत] उक्त, कथित (उवा; अंत ६; उप १४२ टी; पव ७३ टी)। देखो वायड़ = व्याकृत।

वागल :: न [वल्कल] वृक्ष की छाल (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

वागल :: वि [वाल्कल] वृक्ष की त्वचा — छाल से बना हुआ; 'वागलवत्थनियत्थे' (भग ११, ९ — पत्र ५१६)।

वागली :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

वागिल्ल :: वि [वाग्मिन्] बहु-भाषी, वाचाल (वव ७)।

वागुर :: पुं [वागुरा] मृग-बन्धन, जाल, फन्दा; 'रे रे रएह वागुरे' (मोह ७६)।

वागुरि, वागुरिय :: वि [वागुरिन्, °रिक] देखो वाउरिय; 'गुजराती में 'वाघरी'; 'सकयपसयरोहिए य साहिंति वागुरा (? री) णं' (पणह १, २ — पत्र २९; सूअ २, २, ३६; विपा १, ८ — पत्र ८३)।

वाघाइय :: वि [व्याघातिक] व्याघात से उत्पन्न (जं ७ — पत्र ५३१)।

वाघाइम :: वि [व्याघातिम] व्याघात से होनेवाला (सुज्ज १८ — पत्र २६५)। २ न. मरण-विशेष — सिंह, दावानल आदि से हेने वाली मौत (औप)

वाघाय :: पुं [व्याघात] १ स्खलना (सुज्ज १८) २ विनाश (उव ६७९) ३ प्रतिबन्ध, रुकावट (भग; ओघभा १८)। ४ सिंह, दावानल आदि से अभइभव (औप)

वाघारिय :: वि [व्याघारित] प्रलम्ब, लम्बा (पंचा १८, १८; पव ६७)।

वाघुण्णिय :: वि [व्याघुर्णित] दोलायमान, डोलता (णाया १, १ — -पत्र ३१)।

वाघेल :: पुं [दे] एक क्षत्रिय-वंश (ती २६)।

वाच :: देखो वाय = वाचय्। कवकृ. वाचीअमाण (नाट — मालवि ६१)। संकृ. वाचिऊण (हम्मीर १७)।

वाचय :: देखो वायग = वाचक (द्रव्य ४९)।

वाचिय :: देखो वाइअ = वाचित (स ६२१)।

वाज :: देखो वाय = व्याज (कुप्र २०१)।

वाजि :: पुं [वाजिन्] अश्व, घोड़ा (विपा १, ७)।

वाजीकरण :: न [वाजीकरण] १ वीर्यं-वर्धंक औषध-विशेष। २ उसका प्रतिपादक शास्त्र; आयुर्वेद का एक अंग (विपा १, ७ — पत्र ७५)

वाड :: पुं [वाट] १ बाड, कंटक आदि से की जाती गृहादि की परिधि (उत्त २२, १४; माल १९५) २ बाड़ा; बाडवाली जगह; वृतिवाला स्थान; 'निव्वाणमहावाडं साहत्थिं संपावेइ' (उवा; गा २२७; दे ७, ५३ टी; गउड); 'अंते सो सोहूणं गोवाडनिरोहणं करेऊणं' (विचार ५०९) ३ वृति आदि से परिवेष्टित गृह-समूह, रथ्या, मुहल्ला (उत्त ३०, १८); 'अहो गणिआवाडस्स सस्सिरीअआ' (चारु ७९)

वाडंतरा :: स्त्री [दे] कुटीर, झोंपड़ा या झोंपड़ी (दे ७, ५८)।

वाडग :: देखो वाड (पिंड ३३४; विपा १, ४ — पत्र ५५; उप पृ २८९)।

°वाडण :: देखो पाडण; 'परदोहवट्टवाडणबंदग्ग- हखत्तखणणपमुहाइं' (कुप्र ११३)।

वाडव :: पुं [वाडव] वड़वानल, समुद्र-स्थित अग्‍नि (सण)।

वाडहाणग :: पुंन [वाटघानक] १ एक छोटा गाँव। २ वि. उस गाँव का निवासी; 'ताहे तेण वाडहाणगा हरिएसा धिज्जाइया कया' (सुख ९, १; महा)

वाडि° :: देखो वाडी = वाटी (गा ८; णाया १, ७ — पत्र ११६)।

वाडिआ :: स्त्री [वाटिका] बगीचा, उद्यान, 'सणवाडिआ' (गा ९; चारु ५९; दे ७, ३५; रंभा)।

वाडिम :: पुं [दे] पशु-विशेष, गण्डक, गेंड़ा (दे ७, ५७)।

वाडिल्ल :: पुं [दे] कृमि, कीट (दे ७, ५६)।

वाडी :: स्त्री [दे] वृति, बाड़; 'घरवारे कारिया कंटएहिं वाडी' (कुप्र २९, दे ७, ४३; ५८; षड्)।

वाडी :: स्त्री [वाटी] बगीचा, उद्यान (धर्मंसं ४१)।

वाढि, वाढिअ :: पुं [दे] वणिक्-सहाय, वैश्य-मित्र (दे ७, ५३)।

वाण :: सक [वि + नम्] विशेष नमना — नत होना। वाणइ (?) (धात्वा १५२)।

वाण :: वि [वान] वन में उत्पन्‍न, वन-संबन्धी (औप; सम १०३)। °पत्थ, °प्पत्थ पुं [°प्रस्थ] वन में रहनेवाला तापस, तृतीय आश्रय में स्थित पुरुष (औप; उप ३७७)। °मंत, °मंतर, °वंतर पुंस्त्री [°व्यन्तर] देवों की एक जाति (भग; ठा २, २; सुर १, १३७; औप; जी २४; महा; पि २५१)। स्त्री. °री (पणण १७ — पत्र ४९९; जीव २)। °वासिआ स्त्री [°वासिका] छन्द-विशेष (अजि ३३)।

°वाण :: देखो पाण = पान। °वत्त न [°पात्र] पीने का प्याला (से १, १८)।

वाणय :: पुं [दे] वलयकार, कंकण बनानेवाला शिल्पी (दे ७, ५४)।

वाणर :: पुंन [वानर] १ बन्दर, कपि, मर्कंट (पणह १, १; पाअ) २ विद्याधर मनुष्यों का एक वंश। ३ वानर-वंश में उत्पन्‍न मनुष्य (पउम ६, १)। °उरी स्त्री [°पुरी] किष्किंन्धा नामक एक भातरीय प्राचीन नगरी (से १४, ५०)। °केउ पुं [°केतु] वानर- वंश का कोई भी राजा (पउम ८९, २३५)। °दीव पुं [°द्वीप] एक द्वीप (पउम ६, ३४)। °द्धय पुं [°ध्वज] हनूमान (पउम ५३, ४३)। °वइ पुं [°पति] सुग्रीव, रामचन्द्र का एक सेनापाति (से २, ४१; ३, ५२)। देखो वानर।

वाणरिंद :: पुं [वानरेन्द्र] वानर-वंशीय पुरुषों का राजा, वाली (पउम ९, ४०)।

वाणवाल :: पुं [दे] इन्द्र, पुनर्दर (दे ७, ६०)।

वाणहा :: देखो पाणहा, वाहणा = उपानह् (पि १४१)।

वाणा :: देखो वायणा = वाचना। °यरिअ पुं [°चार्य] अध्यापन करनेवाला साधु, शिक्षक, 'एसो च्चिय ता कीरउ वाणायरिओ, तओ गुरू भणइ' (उप १४२ टी)।

वाणारसी :: स्त्री [वाराणसी] भारतवर्षं की एक प्राचीन नगरी, जो आज कल 'बनारस' नाम से प्रसिद्ध है (हे २, ११६; णाया १, ४; उवा; इक; उव; धर्मवि ५; पि ३८५)।

वाणि :: देखो वाणि = वणिज् (भवि)। °उत्त, °पुत्त पुं [°पुत्र] वैश्य-कुमार, बनिया का लड़का (कुप्र ३९; ८८; २२१; ४०४; सिरि ३८४; धर्मंवि १०४)।

वाणि :: स्त्री [वाणि] देखो वाणी (संति ४)।

वाणिअ :: पुं [वाणिज] १ बनिया, व्यापारी, वैश्य (श्रा १२; सुर १, २४८; १३, २९; नाट — मृच्छ ५५; वसु; सिरि ४०)। २ एक गाँव का नाम (उवा; अंत; विपा १, २)

वाणिअ :: (अप) देखो वाणिज्ज (सण)।

°वाणिअ :: देखो पाणिअ = पानीय (गा ९८२; सिरि ४०; सुपा २२९)।

वाणिअय :: पुं [वाणिजक] बनिया, वैश्य, व्यापारी (पाअ; काप्र ८६३; गा ९५१; उव; सुपा २२९; २७५; प्रासू १८१)।

वाणिज्ज :: न [वाणिज्य] १ व्यापार, बैपार (सुपा ३४३; पडि) २ एक जैन मुनि-कुल का नाम (कप्प)

वाणिज्जा :: स्त्री [वणिज्या] व्यापार; 'अहिच्छत्तं नगरं वाणिज्जाए गमित्तए' (णाया १, १५)।

वाणिज्जिय :: वि [वाणिजिक] वाणिज्य-कर्ता, व्यापारी (भवि)।

वाणी :: स्त्री [वाणी] १ वचन, वाक्य (पाअ) २ वाग्देवता, सरस्वती देवी (कुमा; संति ४) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

°वाणीअ :: देखो पाणीअ (काप्र ९२५)।

वाणीर :: पुं [दे] जम्बू वृक्ष, जामुन का पेड़ (दे ७, ५६)।

वाणीर :: पुं [वानीर] वेतस-वृक्ष, बेंत का पेड़ (पाअ; गा ५९९)।

वाणुंजुअ :: पुं [दे] वणिक्, वैश्य; 'एसो हला नवल्लो दीसइ वाणुं जुओ कोवि' (उफ ७२८ टी)।

वात :: देखो वाय = वात (ठा २, ४ — पत्र ८६)।

वातिक, वातिय :: देखो वाइअ = वातिक (पणह १, ३ — पत्र ५४; ओघ ७२२)।

वाद :: देखो वाय = वाद (राज)।

वादि :: देखो वाइ = वादिन् (उवा)।

वानर :: देखो वाणर (विपा १, २ — पत्र ३६; विसे ८६३; सुपा ६१८), 'पुव्वभववानराणि व ताइं विलसंति सिच्छाए' (धर्मंवि १३१)।

वापंफ :: देखो वावंफ। वापंफइ (षड्)।

वापिद :: (शौ) देखो वावड = व्यापृत (नाट — वेणी ६७)।

वाबाह :: स्त्री [व्याबाधा] विशेष पीड़ा (णाया १, ४; चेइय ३५५)।

वाम :: सक [वमय्] वमन कराना, कै कराना। वामेइ, वामेज्ज (भग; पिंड ६४६)। संकृ. वामेत्ता (भग; उवा)।

वाम :: वि [दे] १ मृत (दे ७, ४७) २ आक्रान्त (षड्)

वाम :: वि [वाम] १ सव्य, बाँया (ठा ४, २ — पत्र २१६; कुमा; सुर ४, ५; गउड) २ प्रतिकूल, अननुकूल (पाअ; पणह १, २ — पत्र २८; गउड ८८०; ९६४; कुमा) ३ सुन्दर, मनोहर; 'वामलोअणा' (पाअ) ४ न. सव्य पक्ष; 'वामत्थो (पउम ५५, ३१) ५ बाँया शरीर (गा ३०३)। °लोअणा स्त्री [°लोचना] सुंदर नेत्रवाली स्त्री, रमणी (पाअ)। °लोकवादि, °लोगवादि पुं [°लोकवादिन्] दार्शंनिक-विशेष, जगत् को असद् माननेवाले मत का प्रतिपादक दार्शंनिक (पणह १, २ — पत्र २८)। °वट्ट वि [°वर्त] प्रतिकूल आचरण करनेवाला (बृह १)। °वत्त वि [°वर्त] वही अर्थँ (ठा ४, २ — पत्र २१६)

वाम :: पुं [व्याम] परिमाण-विशेष, नीचे फैलाए हुए दोनों हाथों के बीच का अन्तराल (पव २१२; ओप)।

वामण :: पुंन [वामन] १ संस्थान-विशेष, शरीर का एक तरह का आकार, जिसमें हाथ, पैर आदि अवयव छोटे हों और छाती, पेट आदि पूर्णं या उन्‍नत हों वह शरीर (ठा ६ — पत्र ३५७; सम १४९; कम्म १, ४०) २ वि. उक्त आकार के शरीरवाला, ह्रस्व, खर्वं (पव ११०; से २, ९; पाअ)। स्त्री. °णी (औप; णाया १, १ — पत्र ३७) ३ पुं. श्रीकृष्ण का एक अवतार (से २, ९) ४ देव-विशेष, एक यक्ष-देवता (सिरि ६६७) ५ न. कर्मं.-विशेष, जिसके उदय से वामन शरीर की प्राप्‍ति हो वह कर्मं (कम्म १, ४०)। °थली स्त्री [°स्थली] देश-विशेष (ती १५)

वामणिअ :: वि [दे] नष्ट वस्तु — पलायित को फिर से ग्रहण करनेवाला (दे ७, ५९)।

वामणिआ :: स्त्री [दे] दीर्घं काष्ट की बाड (दे ७, ५८)।

वामद्दण :: न [व्यामर्दन] एक तरह का व्यायाम, हाथ आदि अंगों का एक दूसरे से मोड़ना (णाया १, १ — पत्र १९; कप्प; औप)।

वामरि :: पुं [दे] सिंह, मृगेन्द्र (दे ७, ५४)।

वामलूर :: पुं [वामलूर] वल्मीक, दीमक (पाअ, गउड)।

वामा :: स्त्री [वामा] भगवान् पार्श्‍वंनाथजी की माता का नाम (सम १५१)।

वामिस्स :: देखो वामीस (पउम ९३, ३९)।

वामी :: स्त्री [दे] स्त्री. महिल (दे ७, ५३)।

वामीस :: वि [व्यामिश्र] मिश्रित, युक्त, सहित (पउम ७२, ४, तंदु ४४)।

वामीसिय :: वि [व्यामिश्रित] ऊपर देखो (भवि)।

वामुत्तय :: वि [व्यामुक्तक] १ परिहित, पहना हुआ। २ प्रलम्बित, लटका हुआ (औप)

वामूढ :: वि [व्यामूढ] विमूढ़, भ्रान्त (सुर ९, १२९; १२, १४३; सुपा ७०)।

वामोह :: पुं [व्यामोह] मूढ़ता, भ्रान्ति (उप पृ ३२९; सुपा ९५; भवि)।

वामोहण :: वि [व्यामोहन] भ्रान्ति-जनक (भवि)।

वाय :: सक [वाचय्] १ पढ़ना। २ पढ़ाना। वाएइ, वाएसि (कुप्र ६९); 'सावक्का सुयजणणी पासत्थी गहिय वायए लेहं' (धर्मंवि ४७), 'सुत्तं वाए उवज्झाओ' (संबोध २५)। वकृ वायंत (सुपा २२३)। संकृ. वाइऊण (कुप्र १६९)। कृ. वायणिज्ज (ठा ३, ४)

वाय :: सक [वा] बहता, गति करना, चलना। वायंति (भग ५, २)। वकृ. वायंत (पिंड ८२; सुर ३, ४०; सुपा ४५०; दस ५, १, ८)।

वाय :: अक [वै, म्लै] सूखना। वाअइ (संक्षि ३६; प्राप्र)। वकृ. वायंत (गउड ११६५)।

वाय :: सक [वादय्] बजाना। वकृ, वायंत, वायमाण (सुपा २९३; ४३२)। कृ. वाइयव्व (स ३१४)।

वाय :: वि [वान] शुष्क, सूखा, म्लान (गउड; से ५, ५७; पाअ; प्राप्र; कुमा)।

वाय :: पुं [दे] १ वनस्पति-विशेष (सूअ २, ३, १६) २ न. गन्ध (दे ७, ५३)

वाय :: पुं [व्रात] समूह, संघ (श्रा २३; भवि)।

वाय :: वि [व्यातृ] संवरण करनेवाला (श्रा २३)।

वाय :: वि [व्यागस्] प्रकृष्ट अपराधी (श्रा २३)।

वाय :: पुं [वातृ] १ पवन, वायु। २ कपड़ा वुननेवाला, जुलाहा (श्रा २३)

वाय :: वि [व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला (श्रा २३)।

वाय :: पुं [वाक] ऋग्वेद आदि वाक्य (श्रा २३)।

वाय :: पुं [व्याय] १ गति, चाल। २ पवन, वायु। ३ पक्षी का आगमन। ४ विशिष्ट लाभ (श्रा २३)

वाय :: पुं [व्याच] वंचन, ठगाई (श्रा २३)।

वाय :: पुं [वाज] १ पक्ष, पँख। २ मुनि, ऋषि। ३ शब्द, आवाज। ४ वेग। ५ न. घृत, घी। ६ पानी जल। ७ यज्ञ का धान्य (श्रा २३)

वाय :: न [वाच] शुक्र-समूह (श्रा २३)।

वाय :: वि [वाज्] १ फेंकनेवाला। २ नाशक (श्रा २३)

वाय :: पुं [व्याज] १ कपट, माया। २ बहाना, छल। ३ विशिष्ट गति (श्रा २३)

वाय :: देखो वाग = वल्क (विपा १, ६ — पत्र ६६)।

वाय :: पुं [व्राय] विवाह, शादी (श्रा २३)।

वाय :: पुं [व्यात] विशिष्ट गमन (श्रा २३)।

वाय :: पुं [वाप] १ वपन, बोना। २ क्षेत्र, खेत (श्रा २३)

वाय :: पुं [वाय] गमन, गति। २ सूँघना। ३ जानना, ज्ञान। ४ इच्छा। ५ खाना, भक्षण। ६ परिणयन, विवाह (श्रा २३)

वाय :: वि [व्याद] विशेष ग्रहण करनेवाला (श्रा २३)।

वाय :: वि [वाच्] वक्ता, बोलनेवाला (श्रा २३)।

वाय :: पुं [वात] १ पवन, वायु (भग; णाया १, ११; जी ७; कुमा) २ उत्कर्ष (उव ५५ टि) ३ पुंन. एक देव-विमान (सम १०)। °कंत पुंन [°कान्त] एक देव-विमान (सम १०)। °कम्म न [°कर्मन्] अपान वायु का सरना, पादना, पाद, पर्दन (ओघ ६२२ टी)। °कूड पुंन [°कूट] एक देव-विमान (सम १०)। °खंध पुं [°स्कन्घ] धनवान आदि वायु (ठा २, ४ — पत्र ८६)। °ज्झय पुंन [°ध्वज] एक देव-विमान (सम १०)। °णिसग्ग पुं [°निसर्ग] अपान वायु का सरना, पर्दन (पडि)। °पलिक्खोभ पुं [परिक्षोभ] कृष्णराजि, काले पुद्गलों की रेखा (भग ६, ५ — पत्र २७१)। °प्पभ पुंन [°प्रभ] देव-विमान विशेष (सम १०)। °फलिह पुं [°परिध] कृष्णराजि (भग ६, ५)। °रुह पुं [°रुह] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)। °लेस्स पुंन [°लेश्य] एक देव-विमान (सम १०)। °वण्ण पुंन [°वर्ण] एक देव-विमान (सम १०)। °सिंग पुंन [°श्रृङ्ग] एक देव-विमान (सम १०)। °सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] एक देव- विमान (सम १०)। °वत्त पंन [°वर्त] एक देव-विमान (सम १०)

वाय :: पुं [वाद] १ तत्त्व-विचार, शास्त्रार्थं (ओघभा १७; धर्मंवि ८०; प्रासू ६३) २ उक्ति, बचन (औप) ३ नाम, आख्या; 'वल्लहवाएण अलं मम' (गा १२३) ४ बजाना; 'मद्दलवायचउप्फललोयं' (सिरि १५७) ५ स्थैर्य, स्थिरता (श्रा २३)। °त्थ पुं [°र्थ] तत्त्व-चर्चा; 'तेहि समं कुणइ वायत्थं' (पउम ४१, ५०)। °त्थि वि [°र्थिन्] शास्त्रार्थं की चाहवाला (पउम १०५, २६)

°वाय :: पुं [पाक] १ रसोई। २ बालक। ३ दैत्य, दानव (श्रा २३)। देखो पाग।

°वाय :: पुं [°पात] १ पतन (स ६५७; कुमा) २ गमन। ३ उत्पतन, कूदन (से १, ५५) ४ पक्षी। ५ न. पक्षि-समूह (श्रा २३)

°वाय :: वि [पातृ] १ रक्षा करनेवाला। २ पीनेवाला। ३ सूखनेवाला (श्रा २३)

°वाय :: देखो °वाय (श्रा २३)।

°वाय :: पुं [°पाद] १ पर्यंन्त। २ पर्वंत। ३ पूजा। ४ मूल। ५ किरण। ६ पैर। ७ चौथा भाग (श्रा २३)। देखो पाय = पाद।

°वाय :: देखो पाव = पाप (श्रा २३)।

°वाय :: पुं [पाय] १ रक्षा, रक्षण। २ वि. पीनेवाला (श्रा २३)

°वाय :: देखो अवाय = अपाय; 'बहुवायम्मि वि देहे विसुज्झमाणस्स वर मरणं' (उव)।

वायउत्त :: पुं [दे] १ विट, भँडुआ। २ जार, उपपति (दे ७, ८८)

वायंगण :: न [दे] बैगन, वृन्ताक, भंटा (श्रा २०; संबोध ४४; पव ४)।

वायंतिय :: वि [वागन्तिक] वचन-मात्र में नियमित (राज)।

वायग :: पुं [वाचक] १ अभिधायक, अभिधा- वृत्ति से अर्थं का प्रकाशक शब्द (सम्मत्त १४३) २ उपाध्याय, सूत्र-पाठक मुनि (गण ५; संबोध २५; सार्धं १४७) ३ पूर्वं-ग्रंन्थों का जानकार मुनि (पणण १ — पत्र ४; सम्मत्त १४१; पंचा ६, ४५) ४ एक प्राचीन जैन महर्षि और ग्रन्थकार, तत्त्वार्थं सूत्र का कर्ता श्री उमास्वातिजी (पंचा ६, ४५) ५ वि. कथक, कहनेवाला। ६ पढ़ानेवाला (गण ५)

वायग :: वि [वादक] बजानेवाला (कुमा ९; महा)।

वायग :: पुं [वायक] तन्तुवाय, जुलाहा (दे ६, ५६)।

वायगवंस :: पुं [वाचकवंश] एक जैन मुनि — वंश (णंदि ५०)।

वायड :: पुं [दे] एक श्रेष्ठि-वंश (कुप्र १४३)।

वायड :: वि [व्याकृत] स्पष्ट, प्रकट अर्थंवाला (दसनि ७)। देखो वागरिय।

वायडघड :: पुं [दे] वाद्य-विशेष, दुर्दुर नामक बाजा (दे ७, ६१)।

वायडाग :: पुं [दे] सर्प की एक जाति (पणण १ — पत्र ५१)।

वायण :: न [वाचन] देखो वायणा (नाट — रत्‍ना १०)।

वायण :: न [वादन] १ बजाना (सुपा १९; २९३; कुप्र ४१; महा; कप्पू) २ वि. बजानेवाला (दे ७, ६१ टी)

वायण :: न [दे] भोज्योपायन, खाद्य पदार्थं का बाँटा जाता उपहार, बायन (दे ७, ५७; पाअ)।

वायणया, वायणा :: स्त्री [वाचना] १ पठन, गुरु- समीपे अध्ययन (उप २९, १) २ अध्यापन, पढ़ाना (सम १०६; उव) ३ व्याख्यान (पव ६४) ४ सूत्र-पाठ (कप्प)

वायणिअ :: वि [वाचनिक] वचन-संबन्धी (नाट — विक्र ३५)।

वायय :: देखो वायग = वायक (दे ५, २८)।

वायरण :: देखो वागरण (हे १, २६८; कुमा; भवि; षड्)।

वायव :: वि [वायव] वायु रोगवाला, वात- रोगी (विपा १, १ — पत्र ५)।

°वायव :: देखो पायव (से ७, ६७)।

वायव्व :: वि [वायव्व] वायव्व कोण का (अणु २१५)।

वायव्व :: पुं [वायव्य] १ वायुदेवता-संबन्धी; 'वारुणवायव्वाइं पट्ठवियाइं कमेण सत्थाइं' (सुर ८, ४५; महा) २ न. गौ के खुर से उड़ी हुई धूलि — रज; 'वायव्वणहाणणहाया' (कुमा)

वायव्वा :: स्त्री [वायव्या] पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा, वायव्व कोण (ठा १० — पत्र ४७८; सुपा ९८; २९७)।

वायस :: पुं [वायस] १ काक, कौआ (उवा; प्रासू १६९; हे ४, ३५२) २ कायोत्सर्गं का एक दोष, कायोत्सर्गं में कौए की तरह दृष्टि को इधर-उधऱ घुमाना (पव ५)। °परिमंडल न [°परिमण्डल] विद्या-विशेष, कौए के स्वर और स्थान आदि से शुभाशुभ फल बतलानेवाली विद्या (सूअ २, २, २७)

वाया :: स्त्री [वाच्] १ वाचन, वाणी (पाअ; प्रासू ९; पडि; स ४६२; से १, ३७; गा ३२; ४०६) २ वाणी की अधिष्ठायिका देवी, सरस्वती (श्रा २३) ३ व्याकरण- शास्त्र (गउड ८०२)। देखो वइ = वाच्।

वायाड :: पुं [दे. वाचाट] शुक, तोता (दे ७, ५६)।

वायाड :: वि [वाचाट] वाचाल, बकवादी (सुपा ३९०; चेइय ११७; संक्षि २)।

वायाम :: पुं [व्यायाम] कसरत, शारीरिक श्रम (ठा १ — पत्र १९; णाया १, १ — पत्र १९; कप्प; औप; स्वप्‍न ३९)।

वायम :: सक [व्यायामय्] कसरत करना, शारिरीक श्रम करना। वकृ. 'सुट्‍ठु वि वायामेंतो कायं न करेइ किंचि गुणं' (उव)।

वायायण :: पुंन [वातायन] १ गवाक्ष, झरोखा (पउम ३९, ९१; स २४१; पाअ; महा) २ पुं. राम का एक सैनिक (पउम ६७, १०)

वायार :: पुं [दे] शिशिर-वात, गुजराती में 'वायरो' (दे ७, ५६)।

वायाल :: वि [वाचाल] मुखर, बकवादी (श्रा १२; पाअ; सुपा ११३)।

°वायाल :: देखो पायाल (से ५, ३७)।

वायाविअ :: वि [वादित] बजवाया हुआ (स ५२७; कुप्र १३६)।

वायु :: देखो वाउ = वायु (सुज्ज १०, १२; कुमा; सम १९)।

वार :: सक [वारय्] रोकना, निषेध करना। वारेइ (उव; महा)। वकृ. वारंत (सुपा १८३)। कवकृ. वारिज्जंत (काप्र १९१; महा)। हेकृ. वारेउं (सूअ १, ३, २, ७)। कृ. वारियव्व, वारेयव्व (सुपा ५५२; २७२)।

वार :: पुं [दे. वार] चषक, पान-पात्र (दे ७, ५४)।

वार :: पुं [वार] १ समूह, यूथ (सुपा २१४; सुर १४, २४; सार्धं ४९; कुमा; सम्मत्त १७५) २ अवसर, वेला, दफा (उप ६२८; सुपा ३९०; भवि) ३ सूर्य आदि ग्रह से अधिकृत दिन, जैसे रविवार, सोमवार आदि (गा २६१) ४ चौथा नरक का एक नरक- स्थान (ठा ६ — पत्र ३६५) ५ बारी, परिपाटी (उप ६४८ टी) ६ कुम्भ, घड़ा (दस ५, १, ४५) ७ वृक्ष-विशेष। ८ न. फल-विशेष (पणण १७ — पत्र ५३१)। °जुवइ स्त्री [°युवति] वारांगना, वेश्या (कुमा)। °जोव्वणी स्त्री [°यौवना] वही अर्थ (प्राकृ १४)। °तरुणी स्त्री [°तरुणी] वही (सण)। °वहू स्त्री [°वधू] वही अर्थं (कुप्र ४४३)। °विलया स्त्री [°वनिता] वही पूर्वोक्त अर्थ (कुमा; सुपा ७८; २००)। °विलासिणी स्त्री [°विला- सिनी] वही (कुमा; सुपा २००)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] वही अर्थं (सुपा ७६)

वार :: न [°द्वार] दरवाजा (प्राकृ २९; कुमा; गा ८८०)। °वई स्त्री [°वती] द्वारका नगरी (कुप्र ९३)। °वाल पुं [°पाल] दरवान, प्रतीहार (कुमा)।

वारंत :: देखो वार = वारय्।

वारंवार :: न [वारंवार] फिर फिर (से ६, ३२; गा २९४)।

वारग :: पुं [वारक] १ बारी, क्रम (उप ६४८ टी) २ छोटा घड़ा, लघु कलश (पिंड २७८) ३ वि. निवारक, निषेधक (कुप्र २६; धर्मंवि १३२)

वारडिय :: न [दे] रक्त वस्त्र, लाल कपड़ा (गच्छ २, ४९)।

वारड्ड :: वि [दे] अभिपीडित (षड्)।

वारण :: न [वारण] १ निषेध, रोक, अटकाव, निवारण (कुमा; ओघ ४४८) २ छत्र, छाता; 'वारणयचामेरेहिं नज्जंति फुडं महा- सुहडा' (सिरि १०२३) ३ वि. रोकनेवाला, निवारक (कुप्र ३१२) ४ पुं. हाथी (पाअ, कुमा; कुप्र ३१२) ५ छन्द का एक भेद (पिंग)

वारण :: देखो वागरण (हे १, २६८; कुमा; षड्)।

वारणा :: स्त्री [वारणा] निवारण, अटकाव (बृह १)।

वारत्त :: पुं [वारत्त] १ एक अन्तकृद् मुनि (अंत १८) २ एक ऋषि (उव) ३ एक अमात्य। ४ न. एक नगर (धम्म ९ टी)

वारबाण :: पुं [वारबाण] कञ्चुक, चोली (पाअ)।

वारय :: देखो वारग (रंभा, णाया १, १६ — पत्र १९६; उप पृ ३४२; उवा; अंत)।

वारसिआ :: स्त्री [दे] मल्लिका, पुष्प-विशेष (दे ७, ६०)।

वारसिय :: देखो वारिसिय; 'वारसियमहादाणं' (सुपा ७१)।

वारा :: स्त्री [वारा] १ देरी, विलम्ब; 'अम्मो किमज्ज कज्जं जं लग्गा एत्तिया वारा' (सुपा ४५६) २ वेला, दफा; 'तो पुणरवि निज्झायइ वाराओ दुन्निी तिन्नि वा जाव' (सट्ठि ९ टी), 'कहं महई वाराणिग्गयस्स' (विवुधानन्दं)

वारणसी :: देखो वाणारसी (अन्त; पि ३५४)।

वारविय :: वि [वारित] जिसका निवारण कराया गया हो वह (कुप्र १४०)।

वाराह :: पुं [वाराह] १ पाँचवें बलदेव का पूर्वंभवीय नाम (सम १५३) २ वि. शूकर के सदृश (उवा)

वाराही :: स्त्री [वाराही] १ विद्या-विशेष (पउम ७, १४१) २ वराहमिहिर का बनाया हुआ एक ज्योतिष-ग्रन्थ, वराह-संहिता (सम्मत्त १२१)

वारि :: न [वारि] १ पानी, जल (पाअ; कुमा; सण) २ स्त्री. हाती का फँसाने का स्थान; 'वारी करिधरणट्ठाणं' (पाअ; स १७७; ६७८) °भद्दग पुं [°भद्रक] भिक्षुक की एक जाति, शैवलाशी भिक्षुक (सूअनि ९०)। °मय वि [°मय] पानी का बना हुआ। स्त्री. °ई (हे १, ४; पि ७०)। °भुअ पुं [°मुच्] मेघ, जलधर (षड्)। °य पुं [°द] पानी देनेवाला भृत्य (स ७४१)। °रासि पुं [°राशि] समुद्र, सागर (सम्मत्त १६)। °वाह पुं [°वाह] मेघ, अभ्र (उप २६४ टी)। °सेण पुं [°षेण] १ एक अन्तकृद् महर्षि, जो राजा वासुदेव के पुत्र थे और जिन्होंने भगवान् अरिष्ठनेमि के पास दीक्षा ली थी (अन्त १४) २ एक अनुत्तर- गामी मुनि, जो राजाा श्रेणिक के पुत्र थे (अनु १) ३ ऐरवत वर्षं में उत्पन्न चौबीसर्वें जिनदेव (सम १५३) ४ एक शाश्वती जिन- प्रतिमा (पव ५९; महा) °सेणा स्त्री [°षेणा] १ एक शाश्वती जिन-प्रतिमा (ठा ४, २ — पत्र २३०) २ अघोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७; इक २३१ टि) ३ एक महानदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१; इक) ४ ऊर्ध्वंलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (इक २३२)। °हर पुं [°धर] मेघ (गउड)

वारिअ :: पुं [दे] हजाम, नापित (दे ७, ४७)।

वारिअ :: वि [वारित] १ निवारित, प्रतिषिद्ध (पाअ; से २, २३)। २ वेष्ठित (से २, २३)

वारिआ :: स्त्री [द्वारिका] छोटा दरवाजा, बारी (ती २), 'वप्पस्स चा (? वा) रियाए परिखित्तो खाइयामज्झे'। 'जो जलपूरियविट्ठाकूवाओ चा (? वा) रियाइ निक्कासो। सो उवचियगब्भाओ जोणीए निग्गमो इत्थ'। (धर्मंवि १४९)।

वारिज्ज :: पुंन [दे] विवाह, शादी (दे ७, ५५; पाअ; उप पृ ८०)।

वारिसा :: देखो वरिसा (विक्र १०१)।

वारिसिय :: वि [वार्षिक] १ वर्षं-संबन्धी (राज) २ वर्षा-संबन्धी; 'चिट्ठइ चउरो मासा वारिसिया विबुहपरिमहिओ' (पउम ८२, ९५)

वारी :: स्त्री [द्वारिका] बारी, छोटा दरवाजा (ती २)।

वारी :: स्त्री [वारी] देखो 'वारि' का दूसरा अर्थं; 'बद्धो वारीबंधे फासेण गओ निहणं' (सुर ८, १३९; ओघ ४४९ टी)।

वारी° :: न [वारि] जल पानी (हे १, ४; पि ७०)।

वारुअ :: न [दे] १ शीघ्र, जल्दी। २ वि. शीघ्रता-युक्त; 'ण वारुआ अम्हे' (दे ७, ४८)

वारुण :: न [वारुण] १ जल, पानी; 'निम्मल- वारुणमंडलमंडिअससिचारपाणसुपवेसे' (सिरि ३६१) २ वि. वरुण-संबन्धी (पउम १२, १२७; सुर ८, ४५; महा)। °त्थ न [°स्त्र] वरुणाधिष्ठित अस्त्र (महा)। °पुर न [पुर] नगर-विशेष (इक)

वारुणी :: स्त्री [वारुणी] १ मदिरा, सुरा, दारू (पाअ; से २, १७; सुर ३, ५५; पणह २, ५ — पत्र १५०) २ लता-विशेष, इन्द्र- वारुणी, इन्द्रायन (कुमा) ३ पश्चिम दिशा (ठा १० — पत्र ४७८; सुपा २५५) ४ भगवान् सुविधिनाथ की प्रथम शिष्या का नाम (सम १५२; पव ९) ५ एक दिक्कु- मारी देवी (इक) ६ कायोत्सर्गं का एक दोष — १ निष्पन्न होती मदिरा की तरह कायोत्सर्गं में 'बु़ड-बुड' आवाज करना। २ कायोत्सर्गं में मतवाला की तरह डोलते रहना (पव ५)

वारुया, वारूया :: स्त्री [दे] हस्तिनी, हथिनी (स ७३५; ९४)।

वारेज्ज :: देखो वारिज्ज (स ७३४)।

वारेयव्व :: देखो वार = वारय्।

वाल :: सक [वालय्] १ मोड़ना। २ वापस लौटाना। वालइ, वालेइ (हे ४, ३३०; भवि; सिरि ४४२)। कवकृ. वालिज्जंत (सुर ३, १३६)। संकृ. वालेऊण (महा)

वाल :: पुं [व्याल] १ सर्पं, साँप (गउड; णाया १, १ टी — पत्र ६; औप) २ दुष्ट हाथी (सुर १०, २१९; चेइय ५८) ३ हिंसक, पशु, श्वापद (णाया १, १ टी — पत्र ६; औप)। देखो विआल = व्याल।

वाल :: न [वाल] १ एक गोत्र, जो कश्यप-गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)

वाल :: देखो बाल = बाल (औप; पाअ)। °य वि [°ज] केशों से बना हुआ (पउम १०२, १२१)। °वायणी स्त्री [°वीजनी] १ चामर 'पंच रायकउहाइं; तं जहा — खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयाणिं' (औप) २ छोटा व्यजन-पंखा; 'सेयवामरवाल- वीयणीहिं वीइज्जडमाणी' (णाया १, १ — पत्र ३२; सूअ १, ९. १८)। °हि पुं [°धि] वही अर्थं (पाअ; सुपा २८१)

°वाल :: देखो पाल = पाल (काल; भवि; कुमा १, ६९)।

वालंफोस :: न [दे] कनक, सोना (दे ७, ६०)।

वालग :: न [वालक] पात्र-विशेष, गौ आदि के बालों का बना हुआ पात्र (आचा २, १, ८, १)।

वालगपोतिया, वालग्गपोइया :: स्त्री [दे] देखो बालग्ग- पोइआ (सुज्ज ४ — पत्र ७०; उत्त ९, २४; सुख ९, २४)।

वालण :: न [वालन] लौटाना (सुर १, २४६)।

वालप्प :: न [दे] पुच्छ, दुम, पूँछ (दे ७, ५७)।

वालय :: पुं [वालक] गन्ध-द्रव्य-विशेष (पाअ)।

वालवास :: पुं [दे] मस्तक का आभूषण (दे ५९)।

वालवि :: पुं [व्यालपिन्] मदारी, साँपों को पकड़ने आदि का व्यवसाय करनेवाला, सँपेरा (पणह १, २, — पत्र २९)।

वालहिल्ल :: पुं [वालखिल्य] क्रतु से उत्पन्‍न पुलस्त्य कन्या के साठ हजार पुत्र, जो अंगुष्ठ- पर्वं के देह-मानवाले थे (गउड)। देखो वालिखिल्ल।

वाला :: पुंस्त्री [वाला] कँगू, अन्‍न-विशेष; 'संपणणं वालावल्लरअं' (गा ८१२)।

वालि :: पुं [वालि] एक विद्याधर-राजा, कपिराज (पउम ९, ६; से १, १३)। °तणअ पुं [°तनय] राजा वालि का पुत्र, अंगद (से १३, ८३)। °सुअ पुं [°सुत] वही अर्थं (से ४, १२; १३, ९२)।

वालि :: वि [वालिन्] वक्र, टेढ़ा (से १, १३)।

वालि :: वि [वालिन्] १ केशवाला। २ पुं. कपिराज (अणु १४२)

वालिअ :: वि [वालित] मोड़ा हुआ (पाअ; स ३३७)।

वालिआफोस :: न [दे] कनक, सुवर्णं (दे ७, ६०)।

वलिंद :: पुं [वालीन्द्र] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४५)।

वालिखिल्ल :: पुं [वालिखिल्य] एक राजर्षि (पउम ३४, १८)। देखो वालिहिल्ल।

वालिहाण :: न [वालिधान] पुच्छ, पूँछ (णाया १, ३; उवा)।

वालिहिल्ल :: देखो वालहिल्ल (गउड ३२०)।

वाली :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, मुँह के पवन से बजाया जाता तृण वाद्य (दे ७, ५३)।

°वाली :: स्त्री [पाली] रचना-विशेष, गाल आदि पर की जाती कस्तूरी आदि की छटा (कप्पू)। देखो पाली।

वालुअ :: पुं [वालुक] १ परमाधार्मिक देवों की एक जाति, जो नरक-जीवों को तप्‍त वालुका — बालू में चने की तरह भुनते हैं (सम २९) २ धूली-सम्बन्धी (उप पृ २०५)

वालुअ°, वालुआ :: स्त्री [वालुका] धूलि, बालु, रेत, रज (गउड)। °पुढवी स्त्री [°पृथिवी] तीसरी नरक-पृथिवी (पउम ११८, २)। °प्पभा, °प्पहा स्त्री [°प्रभा] तीसरा नरक- भूमि (ठा ७ — पत्र ३८८; इक; अंत १५)। °भा स्त्री [°भा] वही अर्थं (उत्त ३६, १५७)।

वालुंक :: न [दे] पक्वान्‍न-विशेष, एक तरह का खाद्य; 'खीरदहिसूवकट्टरलंभे गुडसप्पिवडग- वालुंके' (पिंड ६३७)।

वालुंक :: न [वालुङ्क] ककड़ी, खीरा (अनु ६; कुप्र ५८)।

वालुंकी, वालुक्की :: स्त्री [वालुङ्की] ककड़ी का गाछ (गा १०; गा १० अ)।

वालुग° :: देखो वालुअ° (स १०२)।

वाव :: सक [वि + आप्] व्याप्‍त करना। वावेइ (हे ४, १४१)।

वाव :: अ [वाव] अथवा, या (विसे २०२०)।

वाव :: पुं [वाप] वपन, बोना (दे ६, १२६)।

वावइज्ज :: देखो वावज्ज। वावइज्जामि (स ७४१)।

वावंफ :: अक [कृ] श्रम करना। वावंफइ (हे ४, ६८)।

वावंफिर :: वि [परिष्णु] श्रम करनेवाला (कुमा)।

वावज्ज :: अक [व्या + पद्] मर जाना। वावज्जंति (भग)।

वावड :: पुं [दे] कुटुम्बी, किसान (दे ७, ५४)।

वावड :: वि [व्यापृत] १ व्याकुले (दे ७, ५४ टी) २ किसी कार्यं में लगा हुआ (हे १, २०६; प्राप्र; कस; सुर १, २९)

वावड :: वि [व्यावृत्त] लौटाया हुआ, वापस किया हुआ (उप ५३४)।

वावडय :: स्त्रीन [दे] विपरीत मैथुन (दे ७, ५८)। स्त्री. °या (पाअ)।

वावण :: न [व्यापन] व्याप्‍त करना (विसे ८९)।

वावणग :: वि [वामनक] ठिंगणो, ठिंगना, बौना, छोटे कद का (चउप्पन° पत्र १६१)।

वावणी :: स्त्री [दे] छिद्र, विवर (दे ७, ५५)।

वावण्ण :: देखो वावन्न (णाया १, १२)।

वावत्ति :: स्त्री [व्यापत्ति] विनाश, मरण (णाया १, ९ — पत्र १६६; उप ५०९; स ३६५; ४३२; धर्मंसं ६३४; ९७९)।

वावत्ति :: स्त्री [व्यापृति] व्यापार (उप ५०९)।

वावत्ति :: स्त्री [व्यावृत्ति] निवृत्ति (ठा ३, ४ — पत्र १७४)।

वावन्न :: वि [व्यापन्न] विनाश-प्राप्‍त (ठा ५, २ — पत्र ३१३, स २४१; सम्मत्त २८; सं ६०)।

वावय :: पुं [दे] आयुक्त, गाँव का मुखिया (धे ७, ५५)।

वावर :: अक [व्या + पृ] १ काम में लगना। २ सक. काम में लगाना। वावरेइ (हे ४, ८१), वावरइ (भवि); 'सयं गिहं परिच्चज्ज परिगिहम्मि वावरे' (उत्त १७, १८; सुख १७, १८)। वकृ. वावरंत (कुमा ६, ५१)। प्रयो., हेकृ. वावाराविउं (स ७६२)

वावरण :: न [व्यापरण] कार्यं में लगाना (भवि)।

वावल्ल :: देखो वावड़ = व्यापृत (उप पृ ८७)।

वावल्ल :: पुंन [दे. वावल्ल] शस्त्र-विशेष (सण)।

वावहारिअ :: वि [व्यावहारिक] व्यवहार से सम्बन्ध रखनेवाला (इक; विसे ९५९; जीवस ९५)।

वावाअ :: (?) अक [अव + काश्] अवकाश पाना, जगह प्राप्‍त करना। वावाअइ (धात्वा १५२)।

वावाअ :: सक [व्या + पादय्] मार डालना, विनाश करना। वावाएइ (स ३१; महा)। कर्मं. वावाइज्जइ, वावाईयइ (स ६७३), भवि. वावाइज्जिस्सइ (पि ५४९)। संकृ. वावाइऊण (स ७५५)। कृ. वावाइयव्व (स १३५)।

वावइअ :: वि [व्यापादित] मार डाला गया, विनाशित (सुपा २४१), 'अवावावि (? इ) ओ चेव विउत्तो खु एसो' (स ४११)।

वावयग :: वि [व्यापादक] हिंसक, विनाश- कर्ता (स २९७)।

वावायण :: न [व्यापादन] हिंसा, मार डालना, विनाश (स ३३; १०२; १०३; ६७५; सुर १२, २१६)।

वावायय :: देखो वावायग (स ७५०)।

वावार :: सक [व्या + पारय्] काम में लगाना। वकृ. वावारेंत (गउड २४४)। कृ. वावारियव्व (सुपा १९२)।

वावार :: पुं [व्यापार] व्यवसाय (ठा ३, १ टी — पत्र ११४; प्रासू ९१; १२१; नाट — विक्र १७)।

वावारण :: न [व्यापारण] कार्य में लगाना (विसे ३०७१; उप पृ ७१)।

वावारि :: वि [व्यापारिन्] व्यापारवाला (से १४, ६९; हम्मीर १३)।

वावारिद :: (शौ) वि [व्यापारित] कार्यं में लगाया हुआ (नाट — शकु १२०)।

वावि :: अ [वापि] १ अथवा, या (पव ६७) २ स्त्री. देखो वावी (पणह १, १ — पत्र ८)

वावि :: वि [व्यापित] व्यापक (विसे २१५, श्रा २८४; धर्मंस ५२५)।

वाविअ :: वि [दे] विस्तारित (दे ७, ५७)।

वाविअ :: वि [वापित] १ प्रापित, प्राप्‍त करवाया हुआ (से ६, ६२) २ बोया हुआ; गुजराती में 'वावेलुं'; 'जं आसी पुव्वभवे धम्मबीयं वावियं तए जीव' (आत्महि ८; दे ७, ८९)

वाविअ :: वि [व्याप्त] भरा हुआ (कुमा ६, ९५)।

वावित्त :: वि [व्यावृत्त] व्यावृत्तिवाला, निवृत्त (धर्मंसं ३२१)।

वावित्ति :: स्त्री [व्यावृत्ति] व्यावर्तंन, निवृत्ति (धर्मंसं १०५)।

वाविद्ध :: देखो वाइद्ध = व्यादिग्ध, व्याविद्ध (ठा ५, २ — पत्र ३१३)।

वाविर :: देखो वावर। वाविरइ (षड्)।

वावी :: स्त्री [वापी] चतुष्कोण जलाश्रय-विशेष (औप; गउड; प्रामा)।

वावुड, वाबुद :: (शौ) देखो वावड = व्यापृत (नाट — मृच्छ २०१; पि २१८; चारु ६)।

वावोणय :: न [दे] विकीर्णं, विखरा हुआ (दे ७, ५९)।

वाशू :: (मा) स्त्री [वासू] नाटक की भाषा में बाला (मृच्छ २७)।

वास :: देखो वरिस = वृष्। वासंति (भग)। भूका. वार्सिंपु (कप्प)। कृ. वासिउं (ठा ३, ३ — पत्र १४१; पि ६२; ५७७)।

वास :: एक [वाश्] १ तिर्यंचों का — पशु पक्षियों का बोलना। २ आह्वान करना; 'खीरदुमम्मि वासइ वामत्थो वायसो चलिय- पक्खो' (पउम ५५, ३१), वासइ, वासए (भवि; कुप्र २२३)। वकृ. वासंत (कुप्र २२३; ३८७)

वास :: अक [वासय्] १ संस्कार डालना। २ सुगन्धित करना। ३ वास करवाना। वासइ (भवि)। वकृ. वासंत, वासयंत (औप; कप्प)। कृ. वासणिज्ज (विसे १६७७; धर्मंसं ३२९)

वास :: देखो वरिस = वर्षं (सम २; कप्प, जी ३४; गउड, कुमा; भग ३, ६; सम १२; हे १, ४३; २, १०५; षड् ४९; सुपा ९७)। °त्ताण न [°त्राण] छत्र, छाता (धर्मं ३; ओघ ३०)। °धर, °हर पुं [°धर] पर्वत- विशेष (उवा ७४; २५३; ठा २, ३; सम १२; इक)।

वास :: पुं [वास] १ निवास, रहना (आचा; उप ४८६; कुमा; प्रासू ३८) २ सुगन्ध (कुमा; भवि) ३ सुगन्धी द्रव्य-विशेष (गउड) ४ सुगन्धी चूर्णं-विशेष; 'पणवन्न- वासवासं विहियं तोसाउ तियसेहिं' (सुपा ९७; दंस २) ५ द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४४)। °घर न [°गृह] शयन-गृह (णाया १, १६ — पत्र २०१)। °भवण न [°भवन] वही अर्थं (महा)। °रेणु पुं [°रेणु] सुगन्धी रज (औप)। °हर न [°गृह] शयन-गृह (सुर ९, २७; सुपा ३१२; भवि)

वास :: पुं [व्यास] १ ऋषि-विशेष, पुराण- कर्त्ता एक मुनि (हे १, ५; कप्पू) २ विस्तार (भग २, ८ टी)

वास :: न [वासस्] वस्त्र, कपड़ा (पाअ; वज्जा १६२; भवि)।

°वास :: देखो पास = पाश (गउड)।

°वास :: देखो पास = पार्श्‍वं (प्राकृ ३०; गउड)।

वासंग :: पुं [व्यासङ्ग] आसक्ति, तत्परता; 'ताहे य पडिबुद्धा विसं व मोत्तूण विसय- वासंगं' (उप १३१ टी; कुप्र ११८; उप पृ १२७)।

वासंठ, वासंत :: (अप) पुं [वसन्त] छन्द का एक भेद (पिंग १९३; १९३ टि)।

वासंत :: पुं [वर्षान्त] वर्षा-काल का अन्त- भाग (उप ४८८)।

वासंतिअ :: वि [वासन्तिक] वसन्त-सम्बन्धी (मै ३)।

वासंन्तिअ, वासंतिआ, वासंती :: स्त्री [वासन्तिका, °न्ती] लता- विशेष (औप; कप्प; कुमा; पणण १ — पत्र ३२; णाया १, ९ — पत्र १६०; पणह १, ४ — -पत्र ७९)।

वासंदी :: स्त्री [दे] कुन्द का पुष्प (दे ७, ५५)।

वासग :: वि [वासक] १ रहनेवाला (उप ७६८ टी) २ वासना-कर्ता, संस्काराधायक (धर्मंसं ३२९) ३ शब्द करनेवाला। ४ पुं. द्वीन्द्रिय आदि जन्तु (आचा)

वासण :: न [दे] पात्र, बरतन; गुजराती में 'वासण'; 'दिट्‍ठं च पयत्तट्ठावियं चंदणनामं- कियं हिरणणवासणं' (स ९१; ९२)।

वासण :: न [वासन] वासित करना (दसनि ३, ३)।

वासणा :: स्त्री [वासना] संस्कार (धर्मंसं ३२९)।

°वासणा :: स्त्री [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण (विस १६७७; उप ४९७)। देखो पासणया।

वासय :: देखो वासग। °सज्जा स्त्री [°सज्जा] नायिका का एक भेद, वह नायिका जो नायक की प्रतीक्षा में सज-धज कर वैठी हो (कुमा)।

वासर :: पुंन [वासर] दिवस, दिन (पाअ; गउड; महा)।

वासव :: पुं [वासव] १ इन्द्र, देव-पति (पाअ; सुपा ३०४; चेइय ५८०) २ एक राज-कुमार (विपा १, १ — पत्र १०३)। °केउ पुं [°केतु] हरिवश का एक राजा, राजा जनक का पिता (पउम २१, ३२)। °दत्त पुं [°दत्त] विजयपुर नगर का एक राजा (विपा २, ४)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] एक आख्यायिका (राज)। °धणु पुंन [धनुष्] इन्द्र-धनुष (कुप्र ४५९)। °नयर न [°नगर] अमरावती, इन्द्र-नगरी (सुपा ६०९)। °पुरी स्त्री [°पुरी] वही अर्थं (उप पृ १७९)। °सुअ पुं [°सुत] इन्द्र का पुत्र, जयन्त (पाअ)

वासवदत्ता :: स्त्री [वासवदत्ता] राजा चंड प्रद्योत की पुत्री और उदयन — वीणावत्सराज की पत्‍नी (उत्तनि ३)।

वासवार :: पुं [दे] १ तुरग, घोड़ा (दे ७, ५९) २ श्वान, कुत्ता; 'विट्टालिज्जइ गंगा कयाइ किं वासवारेहि' (चेइय १३४)

वासवाल :: पुं [दे] श्वान, कुत्ता (दे ७, ६०)।

वासस :: न [वासस्] वस्त्र, कपड़ा; 'कुभोयणा कुवाससा' (पणह १, २ — पत्र ४०)।

वासा :: देखो वरिसा (कुमा; पाअ; सुर २, ७८; गा २३१)। °रत्ति स्त्री. देखो वरिसा-रत्त (हे ४, ३९५)। °वास पुं [°वास] चतुर्मास में एक स्थान में किय जाता निवास (औप; काल; कप्प)। °वासिय वि [°वार्षिक] वर्षाकाल-संबन्धी (आचा २, २, २, ८; ९)। °हू पुं [°भू] भेक, मेढक (दे ७, ५७)।

वासाणिया :: स्त्री [दे. वासनिका] वनस्पति- विशेष (सूअ २, ३, १६)।

वासाणी :: स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे ७, ५५)।

वासि :: वि [वासिन्] १ निवास करनेवाला, रहनेवाला (सूअ १, ६, ९; उवा; सुपा ६१८; कुप्र ४९; औप) २ वासना-कारक, संस्कार- स्थापक (विसे १६७७)

वासि :: स्त्री [वासि] बसूला, बढई का एक अस्त्र — औजार; 'न हि वासिवड्‍ढईणं इहं अभेदो कहंचिदवि' (धर्मंसं ४८९)। देखो वासी।

वासिक, वासिक्क :: वि [वार्षिक] वर्षाकाल-भावी (सुज्ज १२ — पत्र २१९)।

वासिट्ठ :: न [वाशिष्ट] १ गोत्र-विशेष (ठा ७ — पत्र ३९०; कप्प; सुज्ज १०, १६) २ पुंस्त्री. वाशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न (ठा ७)। स्त्री. °ट्ठा, °ट्ठी (कप्प; उत्त १४, २९)

वासिट्ठिया :: स्त्री [वाशिष्ठिका] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प)।

वासित्तु :: वि [वर्षितृ] बरसनेवाला (ठा ४, ४ — पत्र २६९)।

वासिद, वासिय :: वि [वासित] १ बसाया हुआ, निवासित (मोह २१) २ बासी रखा हुआ (अन्न आदि) (सुपा १२; ५३२) ३ सुगन्धित किया हुआ (कप्प; पव १३३; महा) ४ भावित, संस्कारित (आव)

वासी :: स्त्री [वासी] बसूला, बढ़ई का एक अस्त्र (पणह १, १; पउम १४, ७८, कप्प; सुर १, २८; औप)। °मुह पुं [°मुख] बसूले के तुल्य मुँहवाला। एक तरह का कीट, द्वीद्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १३९)।

वासुइ, वासुगि :: पुं [वासुकि] एक महा-नाग, सर्पराज (से २, १३; गा ६९; गउड; ती ७; कुमा; सम्मत्त ७६)।

वासुदेव :: पुं [वासुदेव] १ श्रीकृष्ण, नारायण (पणह १, ४ — पत्र ७२) २ अर्ध-चक्रवर्त्ती राजा, त्रिखण्ड भूमि का अधीश (सम १७; १५२; १५३; अंत)

वासुपुज्ज :: पुं [वासुपूज्य] भारतवर्षं में उत्पन्न बारहवें जिन भगवान् (सम ४३; कप्प; पडि)।

वासुली :: स्त्री [दे] कुन्द का फूल (दे ७, ५५)।

वाह :: सक [वाहय्] वहन कराना, चलाना। वाहइ, वाहेइ (भवि; महा)। कवकृ. वाहिज्जमाण (महा)। हेकृ. वाहिउं (महा)। कृ. वाह, वाहिम (हे २, ७८; आचा २, ४, २, ९)।

वाह :: पुंस्त्री [व्याध] लुब्धक, बहेलिया (हे १, १८७; पाअ)। स्त्री. °ही (गा १२१; पि ३८५)।

वाह :: पुं [वाह] १ अश्व, घोड़ा (पाअ; सूअ १, २, ३, ५; उप ७२८ टी; कुप्र १४७; 'हम्मीर १८) २ जहाज, नौका; 'वाहोडुबाइ तरणं' (विसे १०२७) ३ भारवहन, बोझ ढ़ोना (सूअ १, ३, ४; ५) ४ परिमाण-विशेष, आठ सौ आढ़क का एक मान (तंदु २९) ४ शाकटिक, गाड़ी हाँकनेवाला (सूअ १, २, ३, ५)। °वाहिया स्त्री [°वाहिका] घुड़- सवारी (धर्मंवि ४)

वाहगण, वाहगणय :: पुं [दे] मन्त्री, अमात्य, प्रधान (दे ७, ६१)।

वाहड :: वि [दे] भृत, भरा हुआ; 'बहुवाहडा अगाहा' (दस ७, ३९)।

वाहडिआ :: स्त्री [दे] काँवर, बहँगी (उप पृ ३३७)।

वाहण :: पुंन [वाहन] १ रथ आदि यान; 'जह भिच्चवाहणा लोए' (गच्छ १, ३८; उवा, औप; कप्प) २ जहाज, नौका, यानपात्र; गुजराती में वहाण' (उवा; सिरि ४२३; कुम्मा १६) ३ न. चलाना; 'वाहवाहण- परिस्संतो' (कुप्र १४७) ४ शकट, बोझ आदि ढोआना, भार लाद कर चलाना (पणह १, २ — पत्र २९; द्र २९)। °साला स्त्री [°शला] यान रखने का घर (औप)

वाहणा :: स्त्री [वाहना] वहन कराना, बोझ आदि ढोआना (श्रावक २५८ टी)।

वाहणा :: स्त्री [दे] ग्रीवा, डोक, गला (दे ७ ५४)।

बाहणा :: स्त्री [उपानह्] जूता (औप; उवा; पि १४१)।

वाहणिय :: वि [वाहनिक] वाहन संबन्धी (उप ७२८ टी)।

वाहणिया :: स्त्री [वाहनिका] वहन कराना, चलाना; 'आसवाहिणियाए' (स ३००)।

वाहत्तुं :: देखो बाहर।

वाहय :: वि [वाहक] चलानेवाला, हाँकनेवाला (उत्त १, ३७)।

वाहय :: वि [व्याहत] व्याघात-प्राप्त (मोह १०७; उव)।

वाहर :: सक [व्या + हृ] १ बोलना, कहना। २ आह्वान करना। वाहरइ (हे ४, २५९; सुपा ३२२; महा)। कर्मं वाहिप्पइ, वाहरिज्जइ (हे ४, २५३); 'वाहिप्पंति पहाणा गारुडिया' (सुर १६, ६१)। कवकृ. वाहिप्पंत (कुमा)। वकृ. वाहरंत (गा ५०३; सुर ६, १६६)। संकृ. वाहरिउं (वव ४)। हेकृ. वाहत्तुं (से ११, ११६)

वाहरण :: न [व्याहरण] १ उक्ति, कथन (कुमा) २ आह्वान (स २५२; ५०९)

वाहराविय :: वि [व्याहारित] बुलवाया हुआ (कुप्र १५; महा)।

वाहरिअ :: देखो वाहित्त = व्याहृत (सुर १, १५०; ४, ६; सुपा १३२; महा)।

वाहलार :: वि [दे. वात्सल्यकार] १ स्‍नेही, अनुरागी। २ सगा; गुजराती में 'वाहलेसरी'; 'अह सत्थाहो तमन्नजायंपि। नियतणुजं मन्‍नंतो लालेइ वाहलारुव्वं' (धर्मंवि १२८)

वाहलिया, वाहली :: स्त्री [दे] क्षुद्र नदी, छोटा जल- प्रवाह (वज्जा २२; ५४; दे ७, ३९)।

वाहा :: स्त्री [दे] वालुका, रेत (दे ७, ५४)।

वाहाया :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष; 'सामिसंगलिया ति वा वाहायासंगलिया ति वा अगत्थिसंगलिया ति वा' (अनु ५)।

वाहाविय :: वि [वाहित] चलाया हुआ (महा)।

वाहि :: देखो वाहर। संकृ. वाहित्ता (आक ३८; पि ५८२)।

वाहि :: पुंस्त्री [व्याधि] रोग, बीमारी; 'चउव्विहे वाही पन्‍नत्ते' (ठा ४, ४ — पत्र २६५; पाअ; सुर ४, ७५; उवा; प्रासू १३३; महा); 'एयाओ सत्त वाहीओ दारुणाओ' (महा)।

वाहि :: वि [वाहिन्] वहन करनेवाला, ढोनेवाला; 'जहा खरो चंदणभारदाही' (उव)।

वाहिअ :: वि [वाहित] चलाया हुआ; 'वाहियं तम्मि वंसकुडंगे तं खग्गं' (महा); 'तो तेण तेण खग्गेण कोसखेत्तेण वाहिओ घाओ' (सुपा ५२७)।

वाहिअ :: देखो वाहित्त = व्याहृत (हे २, ९९; षड्; महा; णाया १, १ — पत्र ६३)।

वाहिअ :: वि [व्याधित] रोगी, बीमार (सिरि १०७८; णाया १, १३ — पत्र १७९; विपा १, ७ — पत्र ७५; पणह १, ३ — पत्र ५४; कस)।

वाहिणी :: स्त्री [वाहिनी] १ नही (धर्मंवि ३) २ सेना, लश्कर; 'सेणा वरूहिणी वारिणी अणीअं चमू सिन्‍नं' (पाअ) ३ सेना-विशेष, जिसमें ८१ हाथी, ८१ रथ, २४३ घोड़े और ४०५ प्यादें हों वह सैन्य (पउम ५६, ६)। °णाह पुं [°नाथ] सेना-पति (किरात १३)। °स पुं [°श] वही (किरात ११)

वाहित्त :: वि [व्याहृत] १ उक्‍त, कथित (हे १, १२८; २, ९९; प्राप्र) २ आहूत, शब्दित (पाअ; उत्त १, २०)

वाहित्ति :: स्त्री [व्याहृति] १ उक्ति, वचन। २ आह्वान (अच्चु २)

वाहिप्प° :: देखो वाहर।

वाहिम :: देखो वाह = वाहय्।

वाहियाली :: स्त्री [वाह्याली] अश्व खेलने की जगह (स १३; सुपा ३२७; महा)।

वाहिल्ल :: वि [व्याधिमत्] रोगो (धम्म ८ टी)।

वाही :: देखो वाह = व्याध।

वाहुडिअ :: वि [दे] गत, चलित; 'तो वाहुड़िउ जवेण' (कुप्र ४५८)। देखो बाहुडिअ।

वाहुय :: देखो वाहित्त = व्याहृत (औप)।

वि :: देखो अवि = अपि (हे २, २१८; कुमा, गा ११; १७; २३; कम्म ४, १६; ६०; ६९; रंभा)।

वि :: अ [वि] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विरोध, प्रतिपक्षता; 'विगहा', 'विओग' (ठा ४, २; गच्छ १, ११; सुर २, २१५)। २ विशेष; 'विउस्सिय' (सूअ १, १, २, २३; भग १, १ टी) ३ विविधता; 'वियक्खमाण', 'विउस्सग्ग' (ओघभा १८८; भग १ टी; आवम) ४ कुत्सा, खराबी; 'विरूव' (उप ७२८ टी) ५ अभाव; 'विइणह' (से २, १०) ६ महत्त्व; 'विएअ' (गउड) ७ भिन्नता; 'विएस' (महा) ८ ऊँचाई, ऊर्ध्वता; 'विक्खेव' (ओघभा १६३) ९ पादपू्र्त्ति (पउम १७, ९७) १० पुं. पक्षी (से १, १, सुर १३, ४३) ११ वि. उद्दीपक, उत्तेजक। १२ अवबोधक, ज्ञापक; 'सम्मं सम्मत्तवियासडं वरं दिसउ भवियाणं' (विवे १४३)

वि :: देखो बि = द्वि; 'ते पुण होज्ज विहत्था कुम्मापुत्तादओ जहन्‍नेणं' (विसे ३१६९)।

वि :: वि [विद्] जानकार, विज्र (आचा; विसे ५००)। °उच्छा स्त्री [°जुगुप्सा] विद्वान की निन्दा, साधु की निन्दा (श्रा ६ टी — पत्र ३०)।

वि° :: स्त्री [विष्] पुरुीष, विष्ठा (पणह २, १ — ९९; संति २, औप; विसे ७८१)।

विअ :: सक [विद्] जानना। वियसि (विसे १६००)। भवि. विच्छं, वेच्छं (पि ५२३; ५२६; प्राप्र; हे ३, १७१)। वकृ. विअंत (रंभा)। संकृ. विइत्ता, विइत्ताणं, विइत्त (आचा; दस १०, १४)।

विअ :: न [वियत्] आकाश, गगन (से ६, ४८)। °च्चर वि [°च्चर] आकाश-विहारी। °च्चरपुर न [°च्चरपुर] एक विद्याधर-नगर (इक)।

विअ :: वि [विद्] १ जानकार, विद्वान्; 'तं च भिक्खू परिन्नाय वियं तेसु न मुच्छए' (सूअ १, १, ४, २) २ विज्ञान, जानकारी (राज)

विअ :: देखो इव (हे २, १८२; प्राप्र; स्वप्‍न २७; कुमा; पउम ११, ८१; महा)।

विअ :: पुं [वृक] श्वापद जन्तु-विशेष, भेड़िया (नाट — उत्तर ७१)।

विअ :: पुं [व्यय] विगम, विनाश; 'पंचविहे छेयणे पन्नत्तें, तं जहा — उप्पाछेयणे वियच्छे- दणे' (ठा ५, ३-पत्र ३४६)।

विअ :: वि [विगत] विनष्ट, मृत। °च्चा स्त्री [°र्चा] मृत आत्मा का शरीर (ठा १ — पत्र १९)।

विअ :: देखो अविअ = अपिच (जीव १)।

विअइ :: वि [विजयिन्] जिसकी जीत हुई हो वह (मा २२)।

विअइ :: स्त्री [विगति] विगम, विनाश (ठा १ — पत्र १९)।

विअइत्ता :: देखो विअत्त = वि + वर्त्तंय्।

विअइल्ल :: पुं [विचकिल] १ पुष्प-वृक्ष विशेष। २ न. पुष्प-विशेष (हे १; १६६; कप्पू; वा २३; कुमा) ३ वि. विकच, विकसित (सण)

विअओलिअ :: वि [दे] मलिन (दे ७, ७२)।

विअंग :: सक [व्यङ्गय्] अंग से हीन करना — हाथ, कान आदि को काटना। वियंगेइ (णाया १, १४ — पत्र १८५)।

विअंग :: वि [व्यङ्गं] अंग-हीन; 'वियंगमंगा' (पणह १, १ — पत्र १८)।

विअंगिअ :: वि [दे] निन्दित (दे ७, ६९)।

विअंगिअ :: वि [व्यङ्गित] खण्डित, छिन्‍न (पणह १, ३ — पत्र ४५; टी — पत्र ४९)।

विअंजण :: देखो वंजण = व्यञ्जन (प्राकृ ३१; सम्म ७२)।

विअंजिअ :: बि [व्यञ्जित] व्यक्ति किया हुआ, प्रकट किया हुआ (सूअ २, १, २७; ठा ५, २ — पत्र ३०८)।

विअंटूत :: वि [दे] १ अवरोपित। २ मुक्त (षड् १७७)

विअंति :: स्त्री [व्यन्ति] अन्त क्रिया। °कारय वि [°कारक] अन्त-क्रिया करनेवाला, कर्मो का अन्त करनेवाला, मुक्ति-साधक (आचा १, ८, ४, ३)।

विअंभ :: अक [वि + जृम्भ्] १ उत्पन्‍न होना। २ विसना। ३ जँभाई खाना। विअंभइ (हे ४, १५७; षड्; भवि)। वकृ. विअंभंत, विअंभमाण (धात्वा १५२; से १, ४३; गा ४२५; महा)

विअंभ :: वि [विदम्भ] निष्कपट, सत्य; 'अया- णयं वियंभसुहस्स' (स ६९०)।

विअंभण :: न [विजृम्भण] १ जँभाई, जम्हाई (स ३३६; सुपा १४९) २ विकाश। ३ उत्पत्ति (भवि; माल ८४)

विअंभिअ :: वि [विजृम्भित] १ प्रकाशित (गा ५६४) २ उत्पन्न (माल ८६) ३ न. जँभाई (गा ३५२)

विअंसण :: वि [विवसन] वस्त्र-रहित, नग्‍न (प्राकृ ३२)।

विअंसय :: पुं [दे] व्याध, बहेलिया (दे ७, ७२)।

विअक्क :: सक [वि + तर्कय्] विचारना, विमर्शं करना, मीमांसा करना। वकृ. विय- क्कंत, वियक्कमाण (सुपा २९४; उप २२० टी)।

विअक्क :: पुंस्त्री [वितर्क] विमर्शं, मीमांसा (औप; सम्मत्त १४१)। स्त्री. °क्का (सूअ १, १२, २१; पउम ९३, ६)।

विअक्किय :: वि [वितर्कित] विमर्शित, विचा- रित (सण)।

विअक्ख :: सक [वि + ईक्ष्] देखना। वकृ. वियक्खमाण (ओघभा १८८)।

विअक्खण :: वि [विचक्षण] विद्वान्, पण्डित, दक्ष (महा; प्रासू ४१; भवि; नाट — वेणी २४)।

विअग्ग :: वि [व्यग्र] व्याकुल (प्राकृ ३१)।

विअग्घ :: देखो वग्घ = व्याघ्र; ' — महिसवि (? विय)ग्घछलदीविया — ' (पणह १, १ — पत्र ७; पि १३४)।

विअग्घ :: पुं [वैयाघ्र] व्याघ्र-शिशु (पणह १, १ — पत्र १८)।

विअज्जास :: देखो विवज्जास (नाट — मृच्छ ३२९)।

विअट्ट :: सक [विसं + वद्] अप्रमाणित करना, असत्य साबित करना। विअट्टइ (हे ४, १२९)।

विअट्ट :: अक [वि + वृत्] विचरना, विहरना। वकृ, 'गिम्हसमयंति पत्ते वियट्ट- माणे (सु ? ) वणेसु वणकरेणुबिबिहदिणण- कयपंसुघाओ तुमं' (णाया १, १ — पत्र ६५)।

विअट्ट :: वि [विवृत्त] निवृत्त, व्यावृत्त; 'विअ- ट्टछउमेणं जिणेणं' (सम १; भग; कप्प; औप; पडि)। °भोइ वि [°भोजिन्] प्रतिदिन भोजन करनेवाला (भग)।

विअट्ट :: पुं [विवर्त] प्रपञ्च (स १७८)।

विअट्ट, विअट्टिअ :: वि [विसंवदित] संवाद-रहित, अप्रमाणित; 'विअट्टं विसंवइअं' (पाअ; कुमा ६, ८८)।

विअट्ठ :: वि [विकृष्ट] १ दूर-स्थित। २ क्रिवि. दूर (णाया १, १ टी — पत्र १)

विअड :: सक [वि + कटय्] १ प्रकट करना। २ आलोचना करना। वियडेइ (ठा १० टी — पत्र ४८५)। कवकृ. वियडिज्जंत (राज)

विअढ :: वि [व्यर्द] लज्जित, लज्जा-युक्त णाया १, ८ — पत्र १४३)।

विअढ :: वि [विवृत] खुला हुआ, अनावृत (ठा ३, १ — पत्र १२१; ५, २ — पत्र ३१२)। °गिह न [°गृह] चारो तरफ खुला घर, स्थान-मण्डपिका (कप्प; कस)। °जाण न [°यान] खुला वाहन, ऊपर से खुला यान (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।

विअड :: न [दे] १ प्रासुक जल, जीव-रहित पानी (सूअ १, ७, २१; ठा ३, ३ — पत्र १३८; ५, २ — पत्र ३१३; सम ३७; उत्त २, ४; कप्प) २ मद्य, दारू (पिंड २३९) ३ प्रासूक आहार, निर्दोष आहार; 'जं किंचि पावगं भगवं चं अकुव्वं वियडं भुंजित्था' (आचा १, ९, १, १८), 'वियडगं भोच्चा' (कप्प)

विअड :: वि [विकृत] विकार-प्राप्त (आचा; उत्त २, ४; कस; पि २१९)।

विअड :: वि [विकट] १ प्रकट, खुला (सूअ १, २, २, २२, पंचा १०, १८; पव १५३) २ विशाल, विस्तीर्णं; ' — अकोसायंतपउम- गंभीरवियडनाभे' (उवा; औप; गा १०३; गउड) ३ सुन्दर, मनोहर (गउड) ४ प्रभूत, प्रचुर (सूअ २, २, १८)। ५ पुं. एक ज्योतिष्क महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८; सुज्ज २०) ६ एक विद्याधर-राजा (पउम १०, २०)। °भोइ वि [°भोजिन्] प्रकाश में भोजन करनेवाला, दिन में ही भोजन करनेवाला (सम १९)। °विइ, °वाइ पुं [°पातिन्] पर्वत-विशेष (ठा ४, २ — -पत्र २२३; इक; ठआ २, ३० — पत्र ६९; ८०)

विअड :: अक [विकटय्] विस्तीर्णं होना। वियडेइ (गउड ११६८)।

विअडण :: स्त्रीन [विकटन] १ अतिचारों की आलोचना। २ स्वाभिप्राय-निवेदन (पंचा २, २७)। स्त्री. °णा (ओघ ६१३; ७९१; पिंडभा ४१; श्रावक ३७९; पंचा १६, १६)

विअडी :: स्त्री [वितटी] १ खराब किनारा। २ अटवी, जंगण (णाया, १ १-पत्र ६३)

विअड्डि :: स्त्री [वितदिं] वेदिका, हवन-स्थान, वेदी, चौतरा (हे २, ३६; कुमा; प्राप्र)।

विअड्‍ढ :: वि [विदग्ध] १ निपुण, कुशल। २ पण्डित, विद्वान् (हे २, ४०; गउड; महा)

विअड्‍ढक :: वि [विकर्षक] खींचनेवाला; 'महाधणुवियट्ट (? ड्ढ)का' (पणह १, ४ — पत्र ७२)।

विअड्‍ढा :: स्त्री [विदग्धा] नायिका का एक भेद (कुमा)।

वियडि्ढम :: पुंस्त्री [विदग्धता] १ निपुणता। २ पाण्डित्य (कुप्र ४०५; वज्जा १३४)

विअण :: पुंन [व्यजन] बेना, पंखा (प्राप्र; हे १, ४६; पणह १, १ — पत्र ८)।

विअण :: वि [विजन] निर्जंन, जन-रहित; 'लंघंति वियणकाणणं' (भवि)।

विअणा :: स्त्री [वेदना] १ ज्ञान। २ सुख- दुःख आदि का अनुभ। ३ विवाह। (प्राप्र; हे १, १४६) ४ पीड़ा, दुःख संताप (पाअ, गउड; कुमा)

विअणिय :: वि [वितनित, वितत] विस्तीर्णं (भवि)।

विअणिय :: वि [विगणित] अनादृत, तिरस्कृत (भवि)।

विअण्ण :: वि [विपन्न] मृत (गा ५४९)।

विअण्ह :: वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित (गा ९३)।

विअत्त :: सक [वि + वर्त्तय्] घूम कर जाना। संकृ. वियत्तूण, वियइत्ता, विउत्ता (आचा १, ८, १, २)।

विअत्त :: वि [व्यक्त] १ परिस्फुट (सूअ १, १, २, २५) २ अमुग्ध, विवेकी (सूअ १, १, २, ११) ३ वृद्ध, परिणत-वयस्क, 'णिग्गंथाणं सखुड्डयविअत्ताणं' (सम ३५) ४ पुं. भगवान् महावीर का चतुर्थं गणधर — प्रमुख शिष्य (सम १९) ५ गीतार्थं मुनि (ठा ४, १ टी — पत्र २००)। °किच्च न [°कृत्य] गीतार्थं का कर्तव्य — अनुष्ठान (ठा ४, १ टी)

विअत्त :: वि [विदत्त] विशेष रूप से दिया हुआ (ठा ४, १ टी — पत्र २००)।

विअत्त :: पुं [विवर्त] एक ज्योतिष्च महाग्रह (ठा २, ३ टी — पत्र ७९; सुज्ज १९ टी — पत्र २९६)।

विअद्द :: वि [वितर्द] हिंसक (आचा १, ६, ४, ५)।

विअद्ध :: देखो विअड्‍ढ = विदग्ध (पच्च ६०; नाट — मालती ५४)।

विअन्‍नु :: देखो विन्‍नु (सट्ठि ८)।

विअप्प :: सक [वि + कल्पय्] १ विचार करना। २ संशय करना। वियप्पइ, विअप्पेइ (भवि, गा ४७६)। वकृ. वियप्पंत (महा)। कृ. वियप्प (उफ ७२८ टी)

विअप्प :: पुं [विकल्प] १ विविध तरह की कल्पना; 'तं जयइ विरुद्धं पिव वियप्पजालं कइंदाण' (गउड) २ वितर्क, विचार (महा) ३ भेद, प्रकार; 'दव्वट्ठिओ अ पज्ज- वनओ अ, सेसा विअप्पा सिं' (सम्म ३)। देखो विगप्प = विकल्प।

विअप्पण :: न [विकल्पन] ऊपर देखो; 'एगंतुच्छेअम्मि वि सुहदुक्खविअप्पणमजुत्तं (सम्म १८; स ६८४)।

विअप्पणा :: स्त्री [विकल्पना] ऊपर देखो (धर्मंसं २१०)।

विअब्भ :: देखो विदब्भ (प्राकृ ३८; पउम २६, ८)।

विअम्ह :: देखो विअंभ = वि + जृम्भ्। विअ- म्हइ (प्राकृ ६४)।

विअय :: देखो विजय = विजय (औप; गउड)।

विअय :: वि [वितत] १ विस्तीर्णं, विशाल (महा) २ प्रसारित, फैलाया हुआ (विसे २०६१; श्रावक २०३। °पक्खि पुं [°पक्षिन्] मनुष्य-लोक से बाहर रहनेवाले पक्षी की एक जाति; 'नरलोगाओ बाहिं समुग्गपक्खी विअयपक्खी' (जी २२)। देखो वितत = वितत।

विअर :: सक [वि + चर्] विहरना, घूमना- फिरना। वअरइ (गउड ३८८)।

विअर :: सक [वि + तृ] देना, अर्पंण करना। वियरइ (कस; भवि), वियरेज्जा (कप्प)। कर्मं. वियरिज्जइ (उत्त १२, १०)। वकृ. वियरंत (काल)।

विअर :: पुं [दे] १ नदी आदि जलाशय सूख जाने पर पानी निकालने के लिए उसमें किया जाता गर्त्तं, गुजराती में 'वियडो' (ठा ४, ४ — पत्र २८१; णाया १, १ — पत्र ६३; १, ५ — पत्र ९९) २ गर्त्तं, खड्ढा; 'तत्थ गुलस्स जाव अन्‍नेसिं त बहूणं जिब्भिंदिय- पाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य निकरे य करेंति, करेत्ता बियरए खणंति....वियरे भरंति' (णाया १, १७ — पत्र २२९)

विअरण :: न [विचरण] बिहार, चलना- फिरना (अजि १९)।

विअरण :: न [वितरण] प्रदान, अर्पंण, (पंचा ७, ९; उप ५९७ टी; सण)।

विअरिय :: वि [विचरित] जिसने विचरण किया हो वह, विहृत (महा); 'विमलीकयम्ह चक्खू जहत्थया वियरिया गुणा तुज्झं' (पिंड ४९३)।

विअल :: अक [भुज्] मोड़ना, वक्र करना। विअलइ (धात्वा १५२)।

विअल :: अक [वि + गल्] १ गल जाना, क्षीण होना। २ टपकना, झरना। वकृ. विअलंत (गा ३६८; सुर ५, १२७)

विअल :: अक [ओजय्] मजबूत होना (संक्षि ३५)।

विअल :: वि [विकल] १ हीन, असंपूर्णं (पणह १, ३ — पत्र ४०) २ रहित, वर्जित, वन्ध्य (सा २) ३ विह्ववल, व्याकुल; 'विअलुद्ध- रणसहावा हुवंति जइ केवि सप्पुरिसा' (गा २८५)। देखो विगल = विकल।

विअल :: सक [विकलय्] विकल बनाना। वियलई (सण)।

विअल :: देखो विअड = विकट (से ८, २१)।

विअल :: देखो विदल = द्विदल (संबोध ४४)।

विअलंबल :: वि [दे] दीर्घं, लम्बा (दे ७, ३३)।

विअलिअ :: वि [विगलित] १ नाश-प्राप्‍त, नष्ट (से २, ४५; सण) २ पतित, टपक कर गिरा हुआ; 'विअलिअं उच्चतं' (पाअ)

विअल्ल :: अक [वि + चल्] १ क्षुब्ध होना। २ अव्यवस्थित होना; 'खलइ जीहा, मुह- वयणु वियलइ' (भवि)

विअस :: अक [वि + कस्] खिलना। विअसइ (प्राकृ ७६; हे ४, १९५)। वकृ. विअसंत, विअसमाण (औप; सुपा २०)।

विअसावय :: वि [विकासक] विकसित करनेवाला (गउड)।

विअसाविअ :: वि [विकासित] विकसित किया हुआ (सुपा २२५)।

विअसिअ :: वि [विकसित] विकास-प्राप्‍त (गा १३; पाअ; सुर २, २२२; ४, ५८; औप)।

विअह :: देखो विजह =वि + हा। संकृ. वियहित्तु (आचा १, १, ३, २)।

विआउआ :: स्त्री [विपादिका] रोग-विशेष, बिवाई, या बेवाई (दे ८, ७१)।

विआउरी :: स्त्री [विजनयित्री] व्यानेवाली, प्रसव करनेवाली (णाया १, २ — पत्र ७९)।

विआगर :: देखो वागर। वियागरेइ, वियागरंति (आचा २, २, ३, १; सूअ १, १४, १८), वियागरे, वियागरेज्जा (सूअ १, ९, २५; विसे ३३६; सूअ १, १४, १९)। वकृ. वियागरेमाण (आचा २, २, ३, १)।

विआघाय :: देखो वाघाय (आचा)।

विआण :: सक [वि + ज्ञा] जानना, मालूम करना। वियाणइ, विआणंति (भग; गा ४८), वियणासि (पि ५१०), वियाणाहि, वियाणेहि (पणण १ — पत्र ३९; महा)। कर्मं. वियाणिज्जइ (सट्ठि १६)। वकृ. वियाणंत, वियाणमाण (औप; उव)। संकृ. वियाणिआ, वियाणिऊण, विया- णित्ता (दसचू १, १८; महा; औप; कप्प)। कृ. वियाणियव्व (उप पृ ६०)।

विआण :: न [विज्ञान] जानकारी, ज्ञान; 'एक्कंपि भाय! दुलहं जिणमयविहिरियण- सुवियाणं' (सट्ठि १६)। देखो विन्नाण।

विआण :: न [वितान] १ विस्तार, फैलाव (गउड १७६; ३८६; ५६२) २ वृत्ति- विशेष। ३ अवसर। ४ यज्ञ (हे १, १७७; प्राप्र) ५ पुंन. चन्द्रातप, चँदवा, आच्छादन- विशेष (गउड २००; ११८०; हे १, १७७; प्राप्र)

विआणग :: वि [विज्ञायक] जानकार, विज्ञ (उप पृ ११६)।

विआणण :: न [विज्ञान] जानना, मालूम करना (स २९७; सुर ३, ७)।

वियाणय :: देखो विआणग (सम्म १६०; भग; औप; सुर ९, २१; सण)।

विआणिअ :: वि [विज्ञात] जाना हुआ, विदित (स २९७; सुपा ३९१; महा; सुर ४, २१४, १२, ७१; पिंग)।

विआय :: सक [वि + जनय्] जन्म देना; प्रसव करना; 'गुजराती में वियावुं' 'वियायइ पढमं जं पिउगिहे नारी' (उप ९६८ टी)। संकृ. विआय (राज)।

विआर :: सक [वि + कारय्] विकृत करना। विआरेदि (शौ) (मा ५)।

विआर :: सक [वि + चारय्] विचारना, विमर्शं करना। विआरेइ (प्राकृ ७१; भग), वियारिज्ज (सत्त ३९)। वकृ. वियारयंत (श्रा १६)। कवकृ. वियारिज्जंत (सुपा १४८)। संकृ. विआरिअ (अभि ४४)। कृ. विआरिणिज्ज (श्रा १४)।

विआर :: सक [वि + दारय्] फाड़ना, चीरना। विआरे (अप) (पिंग)। संकृ. वियारिऊण (श २६०)।

विआर :: पुं [विकार] विकृति; प्रकृति का भिन्‍न रूपवाला परिणाम (हे ३, २३; गउड; सुर ३, २९; प्रासू ४९)।

विआर :: पुं [विचार] १ तत्त्व-निर्णंय (गउड; विचार १; दं १) २ तत्त्व-निर्णंय के अनुकूल शब्द-रचना (जी ५१) ३ ख्याल, सोच; 'अणणो बक्करकालो अणणो कज्जवि- आरकालो' (कप्पू) ४ दिशा-फरागत के लिए बाहर जाना (पव २; १०१) ५ गमन की अनुकूलता (पव १०४) ६ विचरण। ७ अवकाश; 'अंतेउरे य दिणणवियारे जाते यावि होत्था' (विपा १, ५ — पत्र ६३) ८ विमश, मीमांसा। ९ मत, अभिप्राय (भवि)। °धवल पुं [धवल] एक राजा का नाम (उप ७२८ टी; महा)। °भूमि स्त्री [°भूमि] दिशा-फरागत जाने का स्थान (कप्प; उप १४२ टी)

विआरण :: न [विचारण] १ विचार करना (सुपा ४९४; सार्धं ६०) २ वि. विचार करनेवाला; 'जय जिणनाह समत्थवत्थुपरमत्थ- वियारण' (सुपा ५२) ३ वि. विचरण करनेवाला; 'अंबरंतरविआरणिआहिं' (अजि २६)

विआरण :: न [विदारण] चीरना, फाड़ना (सार्ध ४९; स २४१)।

विआरग :: देखो वागरण (कुप्र २४५)।

विआरण :: वि [वैदारण] विदारण-संबन्धी, विदारण से उत्पन्न होनेवाला। स्त्री. °णिआ (नव १९)।

विआरणा :: स्त्री [विचारणा] विचार, विमर्शं (उप ७२८ टी; स २४७; पंचा ११, ३४)।

विआरणा :: स्त्री [वितारणा] विप्रतारणा, ठगाई (उप ६१९)।

विआरय :: वि [विचारक] विचार करनेवाला (पउम ८, ५)।

विआरि :: वि [विचारिन्] ऊपर देखो (औप)।

विआरिअ :: वि [विचारित] जिसका विचार किया गया हो वह (दे १, १६८)।

विआरिअ :: वि [विदारित] १ खोला हुआ, फाड़ा हुआ; 'दूरविआरिअमुहं महाकार्यं — सीहं' (णामि १२) २ वीदीर्णं किया हुआ, चीरा हुआ (भवि)

विआरिअ :: वि [वितारित] १ अर्पित, दिया गया; 'वालि या सिरोहरा वियारिया दिट्ठी' (स ३३७) २ ठगा हुआ; विप्रतारित; 'जइ पुण धुत्तेण अहं वियारिओ' (सुपा ३२४)

विआरिआ :: स्त्री [दे] पूर्वाह्ण का भोजन (दे ७, ७१)।

विआरिल्ल, विआरुल्ल :: वि [विकारवत्] विकारवाला, विकारयुक्त (प्राप्र; हे २, १५९)। स्त्री. °ल्ला (सुपा १६४)।

बिआल :: देखो विआल = वि + चारय्। वकृ. वियालंत (उवर ८२)।

विआल :: देखो विआर = वि + दारय्। कृ. वियालणिय (सूअनि ३६; ३७)।

विआल :: पुं [विकाल] सन्ध्या, साँझ, सायंकाल (दे ७, ९१; कप्पू; विपा १, ५ — पत्र ६३; हे ४, ३७७; ४२४; कस, भवि। °चारि वि [°चारिन्] विकाल में घूमनेवाला (णाया १, १ — पत्र ३८; १, ४; औप)।

विआल :: पुं [दे] चोर, तस्कर (दे ७, ९०)।

विआल :: वि [व्याल] दुष्ट, 'मोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे पेहाए, चिताचेल्लरयं वियालं पडिपहे पेहाए' (आचा २, १, ५, ४)। देखो वाल = व्याल।

विआल :: देखो विचाल (राज)।

विआलग :: देखो विआलय = विकालक (ठा २, ३ — पत्र ७७)।

विआलण :: देखो विआरण = विचारण (ओघ ६६; विसे १७९; पिंड ५९७)।

विआलणा :: देखो विआरणा = विचारणा (विसे ३४७ टी; पिंड ५९७)।

विआलय :: वि [विदारक] विदारण-कर्त्ता (सूअनि ३६)।

विआलय :: पुं [विकालक] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (सुज्ज २०)।

विआलिउ :: न [दे] व्यालू, सायंकाल का भोजन; 'जा महु पुत्तह करयलि लग्गइ सा अमिएण वियालिउ मग्गइ' (भवि)।

विआलुअ :: वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे ७, ६८)।

विआव :: सक [वि + आप्] व्याप्त करना (प्रामा)।

विआवड :: देखो वावड = व्यापृत (ओघभा १९९; पउम २, ६)।

विआवत्त :: पुं [व्यावर्त्त] १ घोष और महाघोष इन्द्रों के दक्षिण दिशा के लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८; इक) २ ऋजुवालिका नदी के तीर पर स्थित एक प्राचीन चैत्य (कप्प) ३ पुंन. एक देव-विमान (सम ३२)

विआवाय :: पुं [व्यापात] भ्रंश, नाश (आचा १, ६, ५, ६ टि)।

विआविअ :: देखो वावढ = व्यापृत (धर्मंसं ९७६)।

विआस :: पुं [विकाश] १ मुँह आदि की फाड़- खुलापन, 'थूलं वियासं मुहे' (सूअ १, ५, २, ३) २ अवकाश (गउड २०१)

विआस :: पुं [विकास] प्रफुल्लता (पि १०२; भवि)।

विआस :: देखो वास = व्यास (राज)।

विआसइत्तअ :: (शौ) वि [विकासयितृक] विकसित करनेवाला (पि ६००)।

विआसग :: वि [विकासक] ऊपर देखो (सुपा ६५८)।

विआसर :: वि [विकस्वर] विकसनेवाला, प्रफुल्ल (षड्)।

विआसि, विआलिल्ल :: वि [विकासिन्] ऊपर देखो (पि ४०५; सुपा ४०२; ९)।

विआह :: सक [व्या + ख्या] व्याख्या करना। कर्मं. विआहिज्जंति (णंदि २२९)।

विआह :: पुं [विवाह] १ व्याह, परिणयन, शादी (गा ४७९; नाट — मालती ६) २ विविध प्रवाह। ३ विशिष्ट प्रवाह। ४ वि. विशिष्ट संतानवाला (भग १, १ टी)

°पण्णत्ति :: स्त्री [°प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंग- ग्रन्थ (भग १, १ टी)।

विआह :: वि [विबाध] बाध-रहित (भग १, १ टी)। °पण्णत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (भग १, १ टी)।

विआह° :: स्त्री [व्याख्या] १ विशद रूप से अर्थं का प्रतिपादन। २ वृत्ति, विवरण। °पण्णत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंग- ग्रन्थ (भग १, १ टी)

विआहिअ :: वि [व्याख्यात] १ जिसकी व्याख्या की गई हो वह, वर्णित (श्रा २२) २ उक्त, कथित; 'स एव भव्वसत्ताणं चक्खुभूए विआहिए' (गच्छ १, २६; भग)

विइ :: स्त्री [वृति] रज्जु-बन्धन (औप)। देखो वइ = वृति।

विअइ :: वि [विदित] ज्ञात, जाना हुआ (पाअ; पिंड ८२; संबोध ४९; स १६२; महा)।

विइइन्न :: देखो विइकिण्ण (भग १, १ टी — पत्र ३७)।

विइंचिअ :: वि [विविक्त] विनाशित (स १३५)।

विइंत :: सक [वि + कृत्] काटना, छेदना। विइंतेइ (णाया १, १४ टी — पत्र १८७)।

विइंत :: देखो विचिंत। वकृ. विइंतंत (गउड ९७८)।

विइकिण्ण :: वि [व्यतिकीर्ण] व्याप्त, फैला हुआ (भग १, १ — पत्र ३६)।

विइक्कंत :: वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत, गुजरा हुआ (ठा ९ — पत्र ४४५; उवा; कप्प)।

विइगिंछा, विइगिच्छा :: देखो वितिगिंछा (आचा; कस; उवा)।

विइगिट्ठ :: वि [व्यतिकृष्ट] दूर-स्थित, विप्रकृष्ट (बृह १)।

विइगिण्ण :: देखो विइकिण्ण (कस)।

विइज्जंत :: देखो वीअ = वीजय्।

विइज्जंत :: देखो विकिर।

विइण्ण :: वि [विकीर्ण] १ बिखरा हुआ; 'विइणणकेसी' (उवा) २ विक्षिप्त, फेंका हुआ (से १०, ३)। देखो चिकिण्ण, विकिन्न।

विइण्ण :: वि [वितीण] दिया हुआ, अर्पित (गा ३४६; ९१७; से ८, ६५; १०, ३; हे ४, ४४४; महा)।

विइण्ह :: वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित, निःस्पृह (से २, १०; प्राप्र; गा ९३; १७६)।

विइत्त :: देखो विचित्त (गउड; स २३९; ७४०)।

विइत्त :: देखो विवित्त (स ७४०)।

विइत्ता, विइत्ताणं :: देखो विअ = विद्।

विइत्तिद :: (शौ) देखो विचित्तिय (स्वप्‍न ३९)।

विइत्तु :: देखो विअ = विद्।

विइन्न :: देखो विइण्ण = वितीर्णं (सुर ४, ११)।

विइमिस्स :: वि [व्यतिमिश्र] मिश्रित, मिला हुआ (आचा)।

विउ :: वि [विद्, विद्वस्] विद्वान्, पण्डित, जानकार (णाया १, १९; उप ७६८ टी; सुर १, १३५; सूअ २, १, ६०; रंभा)। °प्पकड स्त्री [°प्रकृत] १ विद्वान द्वारा प्रकान्त। २ विद्वान् द्वारा किया हुआ (भग ७, १० टी — पत्र ३२५; १८, ७ — पत्र ७५०)

विउअ :: वि [वियुत] वियुक्त, रहित; 'दव्वं पज्जवविउअं दव्व-विउत्ता य पज्जवा नत्थि' (सम्म १२)।

विउअ :: वि [विवृत] १ विस्तृत। २ व्या- ख्यात (हे १, १३१)

विउअ :: (अप) देखो विओअ = वियोग (हे ४, ४१९)।

विउंचिआ :: स्त्री [दे. विचर्चिका] रोग-विशेष, पामा रोग का एक भेद; 'केवि विउंचिअपामा- समन्निया सेवगा तस्स' (सिरि ११७)।

विउंज :: सक [वि + युज्] विशेष रूप से जोड़़ना। विउंजंति (सूअ २, २, २१)।

विउक्कंति :: स्त्री [व्युत्क्रान्ति] उत्पत्ति; 'अ- विउक्कंतियं चयमाणे' (भग १, ७)।

विउक्कंति :: स्त्री [व्युत्क्रान्ति, व्यवक्रान्ति] मरण, मौत (भग १, ७)।

विउक्कम :: सक [व्युत् + क्रम्] १ परित्याग करना। २ उल्लंघन करना। ३ अक. च्युत होना, नष्ट होना, मरना। ४ उत्पन्‍न होना। विउक्कमंति (भग; ठा ३, ३ — पत्र १४१)। संकृ. विउकम्म (सूअ १, १, १, ६; उत्त ५; १५; आचा १, ८, १, २)

विउक्कस :: सक [व्युत् + कर्षय्] गर्वं करना, बढ़ाई करना। विउक्कसेज्जा, (सूअ १, १६, ९), विउक्कसे (आचा १, ६, ४, २ )।

विउक्कस्स :: पुं [व्युत्कर्ष] गर्वं, अभिमान (सूअ १, १, २, १२)।

विउच्छा :: देखो वि-उच्छा = विद-जुगुप्सा।

विउच्छेअ :: पुं [व्यवच्छेद] विनाश (पंचा १७, १८)।

विउज्जम :: अक [व्युद् + यम्] विशेष उद्यम करना। वकृ. 'धणियंपि विउज्जमंताणं' (पउम १०२, १३७)।

विउज्झ :: अक [वि + बुध्] जागना। विउज्झइ (भवि; सण)।

विउट्ट :: सक [वि + कुट्टय्] विच्छेद करना, विनाश करना। हेकृ. विउट्टित्तए (ठा २, १ — पत्र ५६; कस)।

विउट्ट :: सक [वि + त्रोटय्] तोड़ डालना। विउट्टइ (सूअ २, २, २०)। हेकृ. विउट्टित्तए (ठा २, १ — -पत्र ५६)।

विउट्ट :: अक [वि + वृत्] १ उत्पन्न होना। २ निवृत्त होना। विउट्टंति (सूअ २, ३, १), विउट्टेज्जा (ठा ८ टी — पत्र ४१८)

विउट्ट :: सक [वि + वर्तय्] १ विच्छेद करना। २ घूमकर जाना। विउट्टंति (स १७८)। संकृ. विउट्टाणं (आचा १, ८, १, २)। हेकृ. विउट्टित्तए (ठा २, १ — पत्र ५६)

विउट्ट :: देखो विअट्ट = विवृत्त (कप्प)।

विउट्टण :: न [विवर्तन] निवृत्ति (ओघ ७९१)।

विउट्टण :: न [विकुट्टन] १ विच्छेद। २ आलो- चना, अतिचार-विच्छेद (ओघ ७९१) ३ वि. विच्छेद-कर्ता (धर्मंसं ६६९)

विउट्टणा :: स्त्री [विकुट्टना] १ विविध कुट्टन। २ पीड़ा, संताप (सूअ १, १२, २१)

विउट्ठिअ :: वि [व्युत्थित] जो विरोध में खड़ा हुआ हो वह, विरोधी बना हुआ (सूअ १, १४, ८)।

विउड :: सक [वि + नाशय्] विनाश करना। विउडइ (हे ४, ३१। कर्मं. विउडिज्जंति (स ६७६)।

विउडण :: न [विनाशन] १ विनाश (स २७; ६९१) २ वि. विनाश-कर्ता (स ३७; २८२)

विउडिअ :: वि [विनाशित] नष्ट किया गया (पाअ; कुमा; उप ७२८ टी)।

विउण :: वि [विगुण] गुण-रहित, गुण-हीन (दे ६, ७८)।

विउत्त :: वि [वियुक्त] विरहित, वियोग-प्राप्त (सुर ३, १२३; १०, १४५, सुपा ११०; काल; सण)।

विउत्ता :: देखो विअत्त = वि + वर्त्तयं।

विउत्थिअ :: देखो विउट्ठिअ (कुप्र २२४; ३६९)।

विउद :: देखो विउअ = विवृत (प्राप्र)।

विउद्ध :: वि [विबुद्ध] १ जागृत (सुपा १४०) २ विकसित (स ७६८)

विउप्पकड :: वि [व्युत्प्रकट] अतिशय प्रकट — व्यक्त (भग ७, १० टी — पत्र ३२५)।

विउब्भाअ :: अक [व्युद् + भ्राज्] शोभना, दीपना, चमकना। वकृ. विउब्भाएमाण (भग ३, २ — पत्र १७३)।

विउब्भाअ :: सक [व्युद् + भ्राजय्] शोभित करना। वकृ. विउब्भाएमाण (भग ३, २)।

विउम :: वि [विद्वस्] विद्वान्, विज्ञ; 'विउमं ता पयहिज संथवं' (सूअ १, २, २, ११)।

विउर :: देखो विदुर (वेणी १३४)।

विउल :: वि [विपुल] १ प्रभूत, प्रचुर। २ विस्तीर्णं, विशाल (उवा; औप) ३ उत्तम, श्रेष्ठ (भग ९, ३३) ४ अगाध, गम्भीर (प्राप्र) ५ पुं. राजगिर के समीप का एक पर्वत (पउम २, ३७) °जस पुं [°यशस्] एक जिनदेव का नाम (उप ९८६ टी)। °मइ स्त्री [°मति] मनः पर्यंव नामक ज्ञान का एक भेद (कम्म १, ८; आवम)। २ वि. उक्त ज्ञानवाला (कप्प; औप)। °अरी स्त्री [°करी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३८)। देखो विपुल।

विउव :: देखो विउव्व = वैक्रिय (कम्म ३, २)।

विउवसिय :: देखो विओसिय = व्यवशमित (राज)।

विउवाय :: पुं [व्युत्पात] हिंसा, प्राणि-बध (सूअ २, ४, ३)।

विउव्व :: सक [वि + कृ, वि + कुर्व्] १ बनाना — दिव्य सामर्थ्थं से उत्पन्न करना। २ अलंकृत करना, मण्डित करना। विउव्वइ, विउव्वए (भग; कप्प; महा; पि ५०८)। भूका. विउव्विंसु। भवि. विउव्विस्संति (भग ३, १ — पत्र १५९), विउव्विस्सामि (पि ५३३)। वकृ. विउव्वमाण (सुज्ज २०)। कवकृ. विउव्विज्जमाण (ठा १० — पत्र ४७२)। संकृ. विउव्विऊण, विउव्विऊणं, विउव्वित्ता, विउव्विउं (महा; पि ५८५; भग; कस; सुपा ४७)। हेकृ. विउव्वित्तए (पि ५७८)

विउव्व :: न [वैक्रिय] १ शरीर-विशेष, अनेक स्वरूपों और क्रियायों को करने में समर्थ शरीर (पउम १०२, ९८; पव १६२; कम्म १, ३७) २ कर्म-विशेष; वैक्रिय शरीर की प्राप्ति का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, ३३) ३ वि. वैक्रिय शरीर से संबन्ध रखनेवाला (कम्म ४, २९)

विउव्वणया, विउव्वणया :: स्त्री [विक्रिया, विकुर्वणा] १ बनावट, शक्ति-विशेष से किया जाता वस्तु-निर्माण (सूअनि १६३; औप; पउम ११७, ३१; पत्र २३०) २ शक्ति-विशेष, वैक्रिय-करण शक्ति (देवेन्द्र २३०)

विउव्वाढ :: वि [दे] १ विस्तीर्णं। दुःख-रहित (दे १, १२९)

विउव्वि :: वि [वैक्रियिन, विकुर्विन्] १ विकुर्वणा करनेवाला (उप ३५७ टी) २ वैक्रिय-शरीरवाला (उत्त १३, ३२; सुख १३, ३२)

विउव्विअ :: वि [विकृत, विकुर्वित] १ निर्मित, बनाया हुआ (भग; महा; औप; सुपा ८८) २ अलंकृत, विभूषित (बृह १)

विउव्विअ :: वि [वैक्रियिक] वैक्रिय शरीर से संबन्ध रखनेवाला (कम्म ४, २४)। देखो वेउव्विअ।

विउस :: सक [व्युत् + सृज्] फेंकना। विउसिज्जा (आचा २, ३, २, ५), विउसिरे (आचा २, १६, १)।

विउस :: वि [विद्वस्] विज्ञ, पण्डित (पाअ; उप पृ १०६; सुपा १०७; प्रासू ६३; भवि; महा), 'विउसेहिं' (चेइय ७७४), 'विउसाणं' (सम्मत्त २१६)।

विउसग्ग :: देखो विओसग्ग (हे २, १७४; षड्)।

विउसमण :: न [व्युपशमन, व्यवशमन] १ उपशम, उपक्षय। २ सुरत का अवसान; 'ता से णं पुरिसे विउसमणरालसमयंसि केरिसए सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणे विहरति' (सुज्ज २०; भग १२, ६ — पत्र ५७८) ३ वि. विनाशक; 'सव्वदुक्खपावाण विउस- मणं' (पणह २, १ — पत्र १००)

विउसमणया :: स्त्री [व्यवशमना] उपशम, क्रोध-परित्याग (भग १७, ३ — पत्र ७२६)।

विउसमिय :: देखो विओसमिय (राज)।

विउसरण :: न [व्युत्सर्जन] परित्याग (दंस १)।

विउसरणया :: स्त्री [व्युत्सर्जना] ऊपर देखो (भग; णाया १, १ — पत्र ४६)।

विउसव :: देखो विओसव। संकृ. विउसवेत्ता (कस १, ३५ टि)।

बिउसवण :: देखो विउसमण (पणह २, ४ — पत्र १३१)।

विउसविय :: देखो विओसविय (ठा ६ — पत्र ३७०)।

विउसिज्जा :: देखो विओसिज्ज (आचा १, ६, २, २)।

विउसिरणया :: देखो विउसरणया (राय १२८)।

विउस्स :: सक [वि + उश्] विशेष बोलना। विउस्संति (सूअ १, १, २, २३)।

विउस्स :: अक [विद्वस्य्] विद्वान् की तरह आचरण करना। विउस्संति (सूअ १, १, २, २३)।

विउस्सग्ग :: देखो विओसग्ग (भग १, ९; उत्त ३०, ३०)।

विउस्सित्त :: वि [व्युत्सित, व्युत्सिक्त] अभिनिविष्ट, कदाग्रह-युक्त (सूअ १, १, १, ६)।

विउस्सिय :: वि [व्युषित] विशेष रूप से रहा हुआ (सूअ १, १, २, २३)।

विउस्सिय :: वि [व्युच्छित] विविध तरह से आश्रित; 'संसारं ते विउस्सिया' (सूअ १, १, २, २३)।

विउह :: सक [व्युह्] प्रेरणा करना। संकृ. विउहित्ताण (दस ५, १, २२)।

विउह :: वि [विबुध] १ पण्डित, विद्वान्। २ पुं. देव, सुर (हे १, १७७)। देखो विबुह।

विऊरिअ :: वि [दे] नष्ट, नाश-प्राप्त (दे ७, ७२)।

विऊसिर :: सक [व्युत् + सृज्] परित्याग करना; 'विऊसिरे विन्‍नु अगारबंधण' (आचा २, १६, १)।

विऊह :: पुं [व्यूह] रचना-विशेष (पंचा ८, ३०)।

विएअ :: वि [वितेजस्] महान् प्रकाश, 'अच्चंतविएएणवि गरुयाण ण णिेव्वडंति संकप्पा। विज्जुज्जुओ बहलत्तेण मोहेइ अच्छीइं' (गउड)।

विएऊण :: अ [दे्] चुनकर, 'सुयसागरा विए- ऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिणणं' (पणण १ — पत्र ४)।

विएस :: पुं [विदेश] १ देशान्तर, परदेश (सिरि ४६७; मह) २ कुत्सित ग्राम, खराब गाँव। ३ बन्धन-स्थान (गा ७६)

विओअ :: पुं [वियोग] जुदाई, बिछोह, विरह (स्वप्‍न ९३; अभि ४९; हे १, १७७; सुर ४, १५२; महा)।

विओइअ :: वि [वियोजित] जुदा किया हुआ (से ९, ७१; गा १३२; स ६८; सुर १५, २१७)।

विओग :: देखो विओअ (सुर २, २१५; ४ , १५१; महा)।

विओगिय :: वि [वियोगित] वियोग-प्राप्‍त (धर्मंवि १३१)।

विओज :: सक [वि + योजय्] अलग करना। विओजयंति (सूअ १, ५, १, १९)।

विओजय :: वि [वियोजक] वियोग-कारक (स ७५०)।

विओदर :: पुं [वृकोदर] भीमसेन, एक पाण्डव (नाट — वेणी ३९)।

विओयण :: न [वियोजन] वियोग, बिछोह (सुर ११, ३२)।

विओरमण :: न [व्युपरमण] विराधना, विनाश; 'छक्कायविओरमणं' (ओघभा १९०; ओघ ३२९)।

विओल :: वि [दे] आविग्‍न, उद्वेग युक्त (दे ७, ६३)।

विओवाय :: पुं [व्यवपात] भ्रंश, नाश (आचा; सूअ १, ३, ३, ४)।

विओसग्ग :: पुं [व्युत्सर्ग] १ परित्याग। २ तप-विशेष, निरीहपन से शरीर आदि का त्याग (औप)

विओसमण :: देखो विउसमण (पणह २, २ — पत्र ११८; २, ५ — पत्र १४९)।

विओसमिय :: वि [व्यवशमित] उपशान्त किया हुआ (कस ६, १ टि)।

विओसरणया :: देखो विउसरणया (औप)।

विओसव :: सक [व्यव + श्मय्] उपशान्त करना, ठण्ढ़ा करना, दबा देना। संकृ. 'तं अहिगरणं अ-विओसवेत्ता' (कस)।

विओसविय, विओसिय :: देखो विओसमिय; 'अवि- ओसवियपाहुडे' (कस १, ३५, ४, ५); 'विओसवियं वा पुणो उदीरि- त्तए' (कस ६, १; ४, ५ टि)।

विओसिज्जा :: अ [व्युत्सृज्य] परित्याग कर (आचा १, ६, २, १)।

विओसिय :: वि [व्यवसित] पर्यंवसित, समाप्त किया हुआ (सूअ १, १, ३, ५)।

विओसिय :: वि [विकोशित] कोश-रहित, निरावरण, नंगा; 'विउ (? ओ) सियवरासि — ' (पणह १, ३ — पत्र ४५)।

विओसिर :: देखो विऊसिर (पि २३५)।

विओह :: पुं [विबोध] जागरण, जागृति (भवि)।

विंख :: न [दे] वाद्य-विशेष (राज)।

विंचिणिअ :: वि [दे] १ पाटित, विदारित। २ धारा (दे ७, ९३)

विंचुअ :: पुं [वृश्चिक] जन्तु-विशेष, बिच्छू (हे १, १२८, २, १६; ८९)।

विंछ :: अक [वि + घट्] अलग होना। विंछइ (प्राकृ ७१)।

विंछिअ, विंछुअ :: देखो विंचुअ (हे १, २६; २, १६; सुख ३६, १४८; पउम ३९, १७; प्राप्र; प्राकृ २३; गा २३७ अ)।

विजंण :: देखो वंजण; 'तेत्तीसविंजणाइं' (चंड)।

विंजण :: देखो विअण = व्यजन; गुजराती में 'विंजणो' (रंभा २०)।

विंझ :: पुं [विन्ध्य] १ पर्वंत-विशेष, विन्ध्याचल (गा ११५; णाया १, १ — पत्र ६४) २ व्याध, बहेलिया (हे १, २५; २, २६; प्राप्र) ३ एक जैन मुनि (विसे २५१२) ४ एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५७८)

विंट :: सक [वेष्टय्] वेष्टन करनास लपेटना, गुजराती में 'विंटवुं'; 'विंटइ तं उज्जाणं हयगयरहसुहडकोडीहिं' (सुपा ५७३)। प्रयो, संकृ. विंटाविउं (सुपा १८९)।

विंट :: न [वृन्त] फल-पत्र आदि का बन्धन (हे १, १३९; प्राकृ ४; रंभा; प्रासू १०२)।

विंटल, विंटलिअ :: न [दे] १ वशीकरण विद्या, 'अन्नाइंपि कुंडलवि (? टलविं) — टलाइं करलाघवाइं कम्माइं' (सिरि ५७) २ निमित्त आदि का प्रयोग (बृह १); 'विंटलि- आणि पउंजंति' (गच्छ ३, १३)

विंटलिआ :: स्त्री [दे] गठरी, पोटली; गुजराती में 'विंटलुं' 'ताव कुमरेण खिता तप्पुरआ वत्थविंटलियां', 'तीए विंटलियाए' (सुपा २९१)।

विंटिया :: स्त्री [दे] १ गठरी, पोटली (सुख २, ५; उप १४२ टी) २ मुद्रिका, अंगुलीयक, गुजराती में 'वींटी'; 'उच्चारोवरि मुक्का कणयमयविंटिया नियया' (सुपा ६११), 'पडिवन्नाओ मणिविंढि (? टि)याहि तह अंगु- लीओ त्ति' (स ७६)

विंतर :: पुं [व्यन्तर] १ बिच्छु आदि दुष्ट जन्तु (उप ५९४); 'दुट्ठाण को न बीहइ विंतर- सप्पाण व खलाणं' (वज्जा १२) २ एक देव-जाति; 'निस्सूगाणं नराणं हि विंतरा अवि किंकरा' (श्रा १२; दं २)

विंतागी :: स्त्री [वृन्ताकी] बैंगन का गाछ

विंद :: सक [विद्] १ जानना। २ प्राप्त करना; 'धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ' (सूअ १, १४, २७)। वकृ. विंदमाण (णाया १, १ — पत्र २९; विपा १, २ — पत्र ३४)

विंद :: देखो वंद = वृन्द (भवि; पि ३६८)।

विंदारग, विंदारय :: देखो वंदारय (सुपा ५०३; नाट — शकु ८८)। °वर पुं [°वर] इन्द्र (सम्मत्त ७५)।

विंदावण :: पुंन [वृन्दावन] मथुरा का एक वन (ती ७)।

विंदुरिल्ल :: वि [दे] १ उज्ज्वल, देदीप्यमान। २ मंजुल घोषवाला, कल-कंठ। ३ विद्राणा, म्लान। ४ विस्तृत; 'घंटाहिं बिंदुरिल्लासुर- तरुणीविमाणाणुसारं लहंती (कप्पू)

विंद्र :: देखो वंद्र (प्राकृ ३६)।

विंद्रावण :: देखो विंदावण (प्राकृ ३६)।

विंध :: सक [व्यध्] बींधना, छेदना, बेधना। विंधइ, विंधेज्जा (पि ४८९; भग)। वकृ. विंधंत (सुर २, ९३)। संकृ. विंधिअ (नाट — मृच्छ २१३)। हेकृ. विंधिउं (स ६२)। कृ. विंधेयव्व (सुपा २६९)।

विंधण :: न [व्यधन] छेदन, बेधना; 'लक्ख- विंधण' — (धर्मंवि ५२)।

विंधिअ :: वि [विद्ध] जो बेधा गया हो वह, छिन्न (सम्मत्त १५८)।

विंभय :: देखो विम्हय = विस्मय (भवि)।

विंभर :: देखो विम्हर। विंभरइ (पि ३१३)।

विंभल :: वि [विह्‍वल्] व्याकुल, घबड़ाया हुआ; 'विसविंभल' (उप ५९७ टी, कुप्र ९०; ५९८; भवि; ओघ ७३)।

विंभिअ :: वि [विस्मित] आश्चर्यं-चकित 'ओधुणइ दीवओ विंभ' (? भि) ओ व्व पवणा- हओ सीसं' (वज्जा ६६; भवि)।

विंभिअ :: देखो विआभिअ; 'सोहग्गविंभियासाए' (वज्जा ८६)।

विंसदि :: (शौ) स्त्री [विंशति] बीस, २० (प्रयौ २०)।

विकंथ :: सक [वि + कत्थ्] प्रशंसा करना। विकंथइज्जा (सूअ १, १४, २१)।

विकंप :: अक [वि + कम्प्] हिल जाना, चलित होना। वकृ. विकंपआओ (सूअ १, १४, १४)।

विकंप :: सक [वि + कम्पय्] १ हिलाना, चलाना। २ त्याग करना, छोड़ना। ३ अपने मंडल से बाहर निकलना। ४ भीतर प्रवेश करना। विकंपइ (सुज्ज १, १)। संकृ. विकंपइत्ता (सुज्ज १, ६)

विकंप :: वि [विकम्प] कम्प, हिलन (पंचा १८, १५)।

विकच :: वि [विकच] विकसित, प्रफुल्ल (दे ७, ८६)।

विकट्ट :: सक [वि + कृत्] काटना। वकृ. विकट्टंत (संथा ६६)।

विकट्टिय :: वि [विकृत्त] काटा हुआ (तंदु ४४)।

विकट्ठ :: देखो विअट्ठ (राज)।

विकड्‍ढ :: सक [वि + कृष्] खींचना। विकड्‍इ (पणह १, १ — पत्र १८)। वकृ. विकड्‍ढमाण (उवा)।

विकत्त :: देखो विकट्ट। विकतंति (सूअ १, ५, २, २), विकत्ताहि (पणह १, १ — पत्र १८)।

विकत्तु :: वि [विकरितृ] विक्षेपक, विनाशक; 'अप्पा कत्ता विकत्ता य दुक्खाण य सुहाण य' (उत्त २०, ३७)।

विकत्थ :: देखो विकंथ। विकत्थइ, विकत्थसि (उव; कुप्र १२५)। वकृ. विकत्थंत (सुपा ३१६)।

विकत्थण :: न [विकत्थन] १ प्रशंसा, श्वाघा। २ वि. प्रशंसा-कर्ता (पुप्फ ३३०, धर्मंवि ३६)

विकत्थणा :: स्त्री [विकत्थना] प्रशंसा, श्वाघा (पिंड १२८)।

विकप्प :: देखो विअप्प (कस; पंचभा)।

विकप्पण :: न [विकल्पन] छेदन, काटना; 'पओउ (? पउ)लण-विकष्णणाणि य' (पणह १, १ — पत्र १८)।

विकप्पणा :: देखो विअप्पणा (णाया १, १६ — पत्र २१८)।

विकप्पिय :: देखो विगप्पिअ (राज)।

विकय :: देखो विगय = विकृत (पणह १, १ — पत्र २३; १, ३ — पत्र ४५)।

विकय :: देखो विकच (पिंग)।

विकर :: सक [वि + कृ] विकार पाना। कवकृ. विकीरंत (अच्चु ४७)।

विकरण :: न [विकरण] विक्षेपण, विनाश; 'कम्मरयविकरणकरं' (णाया १, ८ — पत्र १५२)।

विकराल :: देखो विगराल (दे; राज)।

विकल :: देखो विअल = विकल; 'कला अविकला तुज्झ' (कुप्र ८; सिरि २२३; पंचा ९, ३९)। देखो विगल = विकल।

विकस :: देखो विअस। विकसइ (षड्)।

विकसिय :: देखो विअसिअ (कप्प)।

विकहा :: देखो विगहा (सम ४९)।

विकारिण :: वि [विकारिन्] विकार-युक्त; 'बालो अविकारिणो अबुद्धीओ' (पउम २६, ९०)।

विकासर :: देखो विआसर (हे १, ४३)।

विकिइ :: देखो विगइ = विकृति (विसे २९६८)।

विकिंचण :: देखो विगिंचण (ओघभा २०९ टी)।

विगिंचणया :: देखो विगिंचणया (ओघभा २०९ टी; ठा ८ टी — पत्र ४४१)।

विकिट्ठ :: वि [विकृष्ट] १ उत्कृष्ट; 'विकिट्ठत- वसोसियंगो' (महा) २ न. लगातार चार दिनों का उपवास (संबोध ५८)। देखो विगिट्ठ।

विकिण :: सक [वि + क्री] बेचना। विकिणइ (हे ४, ५२)।

विकिणण :: न [विक्रयण] विक्रय, बेचना (कुमा)।

विकिण्ण :: वि [विकीर्ण] १ व्याप्त, भरा हुआ (भग) २ — देखो विइण्ण, विकिन्न = विकीर्णं (दे)

विकिदि :: देखो विगइ = विकृति (प्राकृ १२)।

विकिन्न :: वि [विकीर्ण] १ आकृष्ट (पणह १, १ — पत्र १८) २ देखो विइण्ण= विकीर्णं (पणह १, ३ — पत्र ४५)

विकिय :: देखो विगिय (ओघभा २८६ टी)।

विकिर :: अक [वि + कृ] १ बिखरना। २ सक. फेंकना। ३ हिलाना। कवकृ. विइज्जंत, विकिरिज्जमाण (गउड ३३४; राज)

विकिरण :: देखो विकरण (तंदु ४१)।

विकिरिया :: स्त्री [विक्रिया] १ विविध क्रिया। २ विशिष्ट क्रिया (राज)। देखो विक्किरिया।

विकीण :: देखो विकिण। विकीणइ, विकीणए (षड्)।

विकीरंत :: देखो विकर।

विकुच्छिअ :: वि [विकुत्सित] खराब, दुष्ट (भवि)।

विकुज्ज :: सक [विकुब्जय्] कुब्ज करना, दबाना। संक. विकुज्जिय (आचा २, ३, २, ६)।

विकुप्प :: अक [वि + कुप्] कोप करना। विकुप्पए (गा ९६७)।

विकुव्व :: देखो विउव्व = वि + कृ, कुर्व्। विकुव्वंति (पि ५०८)। भूका. विकुव्विंसु (पि ५१९)। भवि. विकुव्विसंति (पि ५३३)। बकृ. विकुव्वमाण; (ठा ३, १ — पत्र १२०)।

विकुस :: पुं [विकुश] बल्वज आदि तृण (औप; णाया १, १ टी- पत्र ६)।

विकूड :: सक [वि + कूटय्] प्रतिघात करना। विकूडे (विसे ९३३)।

विकूण :: सक [वि + कूणय्] घृणा से मुँह मोड़ना। विकूणेइ (विवे १०६)।

विकोअ :: पुं [विकोच] विस्तार, फैलाव (धर्मंसं ३६५; भग ५, ७ टी — पत्र २३६)।

विकोव :: देखो विगोव; 'जो पवयणं विकोवइ सो निओ दीहसंसारी' (चेइय ८३०)।

विकोवण :: न [विकोपन] विकास, प्रसार, फैलाव; 'सीसमइविकोवणट्ठाए' (पिंड ६७)।

विकोवणया :: स्त्री [विकोपना] विपाक; 'इंदिअत्थविकोवणयाए' (ठा ९ — पत्र ४४६)।

विकोविय :: वि [विकोविद] कुशल, निपुण (पिंड ४३१)।

विकोस :: वि [विकोश] कोश-रहित (तंदु २०)।

विकोस, विकोसाय :: अक [विकोशय्] १ कोश- रहित होना, विकसना। २ फैलना। विकोसइ (हे ४, ४२)। वकृ. विकोसायंत (पणह १, ४ — पत्र ७८)

विकोसिअ :: वि [विकोशित] १ विकसित (कुमा) २ कोश-रहित, नंगा (णाया १, ८ — पत्र १३३)

विक्क :: सक [वि + क्री] बेचना। वकृ. विक्कंच (पउम २६, ९)। कबकृ. विक्कायमाण (दस ५, १, ७२)।

विक्कअ :: पुं [विक्रय] बेचना (अभि १८४; गउड; सं ४६)।

विक्कअ :: देको विक्कव (षड्)।

विक्कइ :: वि [विक्रयिन्] बेचनेवाला (दे २, ९८)।

विक्कंत :: देखो विक्क।

विक्कंत :: वि [विक्रान्त] १ पराक्रमी, शूर (णाया १, १ — पत्र २१; विसे १०५९; प्रासू १०७; कप्प) २ पुं. पहली नरक- भूमि का बाँरहवाँ नरकेन्द्रक — नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र ५)

विक्कंति :: स्त्री [विक्रान्ति] विक्रम, पराक्रम (णाया १, १६ — पत्र २११)।

विक्कंभ :: देखो विक्खंभ = विष्कम्भ (देवेन्द्र ३०९)।

विक्कणण :: न [विक्रयण] विक्रय, बेचना (सुपा ६०९, सट्ठि ९ टी)।

विक्कम :: अक [वि + क्रम्] पराक्रम करना, शूरता दिखलाना। भवि. विक्कमिस्सादि (शौ) (पार्थ ६)।

विक्कम :: पुं [विक्रम] १ शौर्यं, पराक्रम (कुमा) २ सामर्थ्यं (गउड) ३ एक राजा का नाम (सुपा ५६९) ४ राजा विक्रमादित्य (रंभा ७)। °जस पुं [°यशस्] एक राजा (महा)। °पुर न [°पुर] एक नगर का नाम (ती २१)। °राय पुं [°राज] एक राजा (महा)। °सेण पुं [°सेन] एक राज-कुमार (सुपा ५९२)। °इच्च, °इत्त पुं [°दित्य] एक सुप्रसिद्ध राजा (गा ४६४ अ; सम्मत्त १४६; सुपा ५९२; गा ४६४)

विक्कमण :: पुं [दे] चतुर चालवाला घोड़ा (दे ७; ६७)।

विक्कमि :: वि [विक्रमिन्] पराक्रमी, शूर (कुमा)।

विक्कव :: वि [विक्लव] व्याकुल, बेचैन (पव १६९; प्राप्र; संबोध २१)।

विक्कायमाण :: देखो विक्क।

विक्कि :: देखो विक्कइ; 'ते नाणविक्किणो पुण मिच्छत्तपरा, न ते मुणिणो' (संबोध १६)।

विक्किण :: वि [दे] संस्कृत, सुधारा हुआ (दस ७, ४३)।

विक्किंत :: वि [विकृत्त] छिन्‍न, काटा हुआ (पणह १, ३ — पत्र ५४)।

विक्किंट्ठ :: देखो विकिट्ठ (संबोध ५८)।

विक्किण :: सक [वि + क्री] बेचना। विक्किणइ (प्राप्र)। कर्मं. विक्किणीअंति (पि ५४८)। वकृ. विक्किणंत, विक्किणिंत (पि ३९७; सुपा २७६)। संकृ. विक्किणिअ (नाट — मृच्छ ६५)।

विक्किणिअ, विक्किय :: वि [विक्रीत] बेचा हुआ (सुपा ६४२; भवि)।

विक्किय :: देखो विउव्व = वैक्रिय; 'कयवि- क्कियरूवो सुरो व्व लक्खियसि' (सूपा १८७), 'कयाविक्किय-काओ देवुव्व' (सम्मत्त १०४)।

विक्किर :: सक [वि + कृ] बिखेरना, छितराना, फैलाना। कवकृ. विक्किरिज्जमाण (राय १४)।

विक्किरिया :: स्त्री [विक्रिया] विकृति, विकार; 'तीए नयणाइएहिं विक्किरियं कुणइ' (सुपा ५१४)। देखो विकिरिया।

विक्कीय :: देखो विक्किय = विक्रीत (सुर ९, १९५; सुपा ३८५)।

विक्के :: सक [वि + क्री] बेचना। बिक्केइ, विक्केअइ (हे ४, ५२; प्राप्र; धात्वा १५२)। कृ. विक्केज्ज (दे ६, ४०; ७, ६९)।

विक्केणुअ :: वि [दे] विक्रेय, बेचने योग्य (दे ७, ६९)।

विक्कोण :: पुं [विकोण] विकूणन, घृणा से मुँह सिकुड़ना (दे ३, २८)।

विक्कोस :: सक [वि + क्रुश्] चिल्लाना। विक्कोश (मा) (मृच्छ २७)।

विक्खंभ :: पुं [दे] १ स्थान, जगह (दे ७, ८८) २ अंतराल, बीच का भाग (दे ७, ८८; से ९, ५७) ३ विवर, छिद्र (से ३, १४)

विक्खंभ :: पुं [विष्कम्भ] १ विस्तार (पणण १ — पत्र ५२; ठा ४, २ — पत्र २२६; दे ७, ८८; पाअ) २ चौड़ई; 'जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेण पणणत्ते' (सम २) ३ बाहुल्य, स्थूलता, मोटाई (सुज्ज १, १ — पत्र ७) ४ प्रतिबन्ध, निरोध (सम्यकत्त्वो ८) ५ नाटक का एक अंग (कप्पू) ६ द्वार के दोनों तरफ के बीच का अन्तर (ठा ४, २ — पत्र २२५)

विक्खंभिअ :: वि [विष्कन्भित] निरुद्ध, रोका हुआ (सम्यकत्त्वो ८)।

विक्खण :: न [दे] कार्यं, काम, काज (दे ७, ६४)।

विक्खय :: वि [विक्षत] व्रण-युक्त, कृत-व्रण (भग ७, ६ — पत्र ३०७)।

विक्खर :: सक [वि + कृ] १ छितरना, तितर-बितर करना। २ फैलाना। ३ इधर उधर फेंकना। बिक्खरइ (कप्पू), विक्खरेज्जा (उवा २०० टि)। कवकृ. विक्खरिज्जमाण (राज)

विक्खवण :: न [विक्षमण] १ विनाश। २ वि. विनाशख; 'वज्जं असंखपडिवक्खविक्खवणं' (सुपा ४७)

विक्खाइ :: स्त्री [विख्याति] प्रसिद्धि (भवि)।

विख्याय :: वि [विख्यात] प्रसिद्ध, विश्रुत (पाअ; सुर १, ४६; रंभा; महा)।

विक्खास :: वि [दे] विरूप, खराब, कुत्सित (दे ७, ६३)।

विक्खिण्ण :: वि [दे] १ आयत, लम्बा। २ अवतीर्ण। ३ न. जघन (दे ७, ८८)

विक्खिण्ण :: देखो विकिण्ण (कस)।

विक्खित्त :: वि [विक्षिप्त] १ फेंका हुआ (पाअ; कस; गउड) २ भ्रान्त, पागल; 'पसुत्तविक्खित्तजणे परियणे' (उप ७२८ टी; दे १, १३३; महा)

विक्खिर :: देखो विक्खर। विक्खिरेज्जा (उवा)।

विक्खिरिअ :: वि [विकीर्ण] बिखरा हुआ, छितरा हुआ, फैला हुआ (सुर ५, २०६; सुपा २४९; गउड)।

विक्खिव :: सक [वि + क्षिप्] १ दूर करना। २ प्रेरना। ३ फेंकना। विक्खिवइ (महा)

विक्खिवण :: न [विक्षेपण] १ दूरीकरण। २ प्रेरणा (पव ६४)

विक्खेव :: पुं [विक्षेप] १ क्षोभ; 'छोहो विक्खेवो' (पाअ) २ उवाट, ग्लानि, खेद (से ५, ३) ३ ऊँचा फेंकना, ऊर्ध्वं-क्षेपण (ओघभा १६३) ४ फेंकना, क्षेपण (घा ५८२) ५ श्रृंगार-विशेष, अवज्ञा से किया हुआ मण्डन (पणह २, ४ — पत्र १३२) ६ चित्त-भ्रम (स २८२) ७ विलंब, देरी (स ७३५) ८ सैन्य, लश्कर (स २४; ५७३)

विक्खेवणी :: स्त्री [विक्षेपणी] कथा का एक भेद (ठा ४, २ — पत्र २१०)।

विक्खेविया :: स्त्री [विक्षेपिका] व्याक्षेप, विशेष (वव ६)।

विक्खोड :: सक [दे] निन्दा करना; गुजराती में 'वखोडवुं'। विक्खोडेइ (सिरि ८२५)।

विखंडिय :: वि [विखण्डित] खण्डित किया हुआ (पउम २२, ६२)।

विग :: देखो विअ = वृक (पणह १, १ — पत्र ७; सण; णाया १, १ — पत्र ६५)।

बिगइ :: स्त्री [विकृति] १ विकार-जनक घृत आदि वस्तु (णाया १, ८ — पत्र १२२; उव; सं ७२; श्रा २०) २ विकार (उत्त ३२, १०१)

विगइ :: स्त्री [विगति] विनाश (विसे २१४६)।

बिंगइंगाल :: वि [विगताङ्गार] राग-रहित (ओघ ५७६)।

विगइच्छ :: वि [विगतेच्छ] इच्छा-रहित, निःस्पृह (उप १३० टी; ९१३)।

विगंच :: देखो विगिंच। संकृ. विगंचिउं, विगंचिऊण (वव २; संबोध ५७)।

विगंचण :: देखो विगिंचण; 'काए कंडूयणं वज्जे तहा खेलविगंचणं' (संबोध ३)।

विगंचिअ :: देखो विइंचिअ (स १३५ टि)।

विगच्छ :: अक [वि + गम्] नष्ट होना। वकृ. विगच्छंत (सम्म १३४)।

विगज्झ :: देखो विगह = वि + ग्रह्।

विगड :: देखो विअग = विकट (पणह १, ४ — पत्र ७८; औप)।

विगड :: देखो विअड़ = विवृत (ठा ३, १ टी — पत्र १२२)।

विगण :: सक [वि +गणय्] १ निन्दा करना। २ घृणा करना। कवकृ. विंगणिज्जंत (तंदु १४)

विगत्त :: सक [वि + कृत्] काटना, छेदना। संकृ. विगत्तिऊणं (सूअ १, ५, २, ८)।

विगत्त :: वि [विकृत्त] काटा हुआ, छिन्न (पणह १, १ — पत्र १८)।

विगत्तग :: वि [विकर्तक] काटनेवाला (सूअ २, २, ६२)।

विगत्तणा :: स्त्री [विकर्तना] छेदन (उव)।

विगत्थय :: वि [विकत्थक] प्रशंसा करनेवाला, आत्मश्‍लाघा करनेवाला (भवि)।

विगप्प :: देखो विअप्प = वि + कल्पय्। वकृ. विगप्पयंत, विगप्पमाण (सुर ६, २२४; ३, १२४)।

विगप्प :: पुं [विकल्प] १ एक पक्ष में प्राप्रि; 'चसद्दो विगप्पेणं' (पंच ३, ४४) २ देखो विअप्प = विकल्प (णाया १, १६ — पत्र २१८; सुर ३, १०२; ४, २२२; सुपा १२९; जी २५)

विगप्पण :: देखो विअप्पण (उत्तर २३, ३२; महा)।

विगप्पिअ :: वि [विकल्पित] १ उत्प्रेक्षित, कल्पित (पव २; उव) २ चिन्तित, विचारित (पव १४५) ३ काटा हुआ, छिन्न; 'हत्थपा- यपडिच्छिन्नं कन्ननुासविगप्पिअं' (दस ८, ५६)

विगम :: पुं [विगम] विनाश (सुर ७, २२९; १२, १९)।

विगय :: वि [विकृत] विकार-प्राप्त (णाया १, २ — पत्र ७९; १, ८ — पत्र १३३)।

विगय :: वि [विगत] १ नाश-प्राप्‍त, विनष्ट (सम्म १३४; विसे ३३७७; पिंड ६१०) २ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २९)। °धूम वि [°धूम] द्वेष-रहित (ओघ ५७६)। °सोग पुं [°शोक] एक महा-ग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८), देखो वीअ-सोग। °सोगा स्त्री [°शोका] बिजय- विशेष की एक नगरी (ठा २, ३ — पत्र ८०)

विगरण :: न [विकरण] परिष्ठापन, परित्याग (कस)।

विगरह :: सक [वि + गर्ह] निन्दा करना। वकृ. विगरहमाण (सूअ २, ६, १२)।

विगराल :: वि [विकराल] भीषण, भयंकर (सुपा १८२; ५०५; सण)।

विगल :: सक [वि + गल्] टपकना, चूना। विगलइ (षड्)।

विगल :: पुं [विकल] १ विकलेन्द्रिय — दो, तीन या चार ज्ञानेन्द्रियवाला जन्तु (कम्म ३, ११; ४, ३; १५; १९; जी ४१) २ देखो विअल = विकल (उव; उप पृ १८१; पंचा १४, ४७)। °देस पुं [°देश] नय-वाक्य (अज्झ ६२)

विगलिंदिय :: पुं [विकलेन्द्रिय] दो, तीन या चार इन्द्रियवाला जन्तु (ठा २, २; ३, १ — पत्र १२१)।

विगस :: अक [वि + कस्] खिलना, फूलना। विगसंति (तंदु ५३)। वकृ. विगसंत (णाया १, १ — पत्र १९)।

विगह :: सक [वि + ग्रह्] १ लड़ाई करना। २ वर्गं-मूल निकालना। ३ समास आदि का समानार्थंक वाक्य बनाना। संकृ. 'भूओ भूओ विगज्झ मूलतिगं' (पंचा २, १८)

विगह :: देखो विग्गह; 'हातदवविवज्जिए विगह- मुक्के' (गच्छ २, ३३)।

विगहा :: स्त्री [विकथा] शास्त्र-ृविरुद्ध वार्त्ता, स्त्री आदि की अनुपयोगी बात (भग; उव; सुर १४, ८८; सुपा २५२; गच्छ १, ११)।

विगाढ :: वि [विगाढ] १ विशेष गाढ, अतिशय निबिड (उत्त १०, ४ टी) २ चारों ओर से व्याप्त (राज)

विगाण :: न [विगान] १ वचनीय, लोकापवाद (दे ३, ३) २ विप्रतिपत्ति, विरोध (धर्मंसं २९६; चेइय ७५६)

विगार :: पुं [विकार] विकृति, प्रकृति का अन्यथा परिणाम (उप ९८६ टी; विसे १९८८)।

विगारि :: वि [विकारिन्] विकृत होनेवाला (पिंड २८०; पउम १०१, ४८)।

विगाल :: देखो विआल = विकाल (सुर १, ११७)।

विगालिय :: वि [विगालित] विलम्बित, प्रती- क्षित; 'एत्तियमेत्तं कालं विमा (? गा) लियं जेण आसाए' (सुर ६, २३)।

विगाह :: सक [वि +गाह्] १ अवगाहन करना। २ प्रवेश करना। संकृ. विगाहिआ (सम ५०)

विगिंच :: सक [वि + विच्] १ पृथक् करन, अलग करना। २ परित्याग करना। ३ विनाश करना। विगिंचइ, विगिंचए, विगिंचंति (आचा; कस; श्रावक २९२ टी; सूअ १, १, ४, १२; पिंड ३९९), विगिंच (सूअ १, १३, २१; उत्त ३ १३; पिंड ३९५)। वकृ. विगिंचंत, विगिचमाण (श्रावक २९२ टी; आचा)। संकृ. विगिंचि- ऊणं, विगिंचित्ता (पिंड ३०५; आचा)। हेकृ. विगिंचिउं (पिंड ३९८)। कृ. विगिंचियव्व (पि ५७०)

विगिंचण :: न [विवेचन] परिष्ठापन, परित्याग (पिंड ४८३; कस)।

विगिंचणया, विगिंचणा, विगिंचाणआ :: स्त्री [विवेचना] १ निर्जरा, विनाश (ठा ८ — पत्र ४४१) २ परित्याग (ओघभा २०९; स ५१; ओघ ६०६; ८७)

विगिच्छा :: स्त्री [विचिकित्सा] संदेह, संशय, बहम (श्रा ३; पडि)।

विगिट्ठ :: देखो विकिट्ठ; 'अन्ने तवं विगिट्ठं काउं थोवावसेससंसारा' (पउम २, ८३; ४, २७; गच्छ २, २५; उत्त ३६; २५३)। °खमग पुं [°क्षपक] तपस्वी साधु (राज)। °भत्तिय वि [°भक्तिक] लगातार चार या उससे अधिक दिनों का उपवास करनेवाला (कप्प)।

विगिय :: देखो विगय = विकृत (ओघभा २८६)।

विगिला, विगिलाअ :: अक [वि + ग्लै] विशेष ग्लान होना, खिन्न होना। विगिलाइ, विगिलाएज्जा (पि १३६; आचा २, २, ३, २८)।

विगुण :: वि [विगुण] १ गुण-रहित (सिरि १२३३; प्रासु ७१) २ अनुनुगुण, प्रतिकूल (पंचा ६, ३२)

विगुत्त :: वि [विगुप्त] १ तिरस्कृत, अवधीरित (श्रा १२) २ जो खुला पड़ गया हो वह, जिसकी पोल खुल गई हो वह, जिसकी फजी- हत हुई हो वह; 'सदुक्कयविगुत्तो' (श्रा १४; धर्मंवि ७७)

विगुप्प° :: देखो विगोव।

विगुव्वणा :: देको विउव्वणा (ठा १ — पत्र १९)।

विगुव्विय :: देखो विउव्विअ (पउम ३९, ३२)।

विगोइय :: वि [विगोपित] जिसका दोष प्रकट किया गया हो वह (सण)।

विगोव :: सक [वि + गोपय्] १ प्रकाशित करना। २ तिरस्कार करना। ३ फजीहत करना। भवि. 'न खु न खु चउवेयपुत्तगो भोदुं सुद्ददिक्खं पवज्जिय अप्पाणं विगोविस्सं' (मोह १०)। कर्मं. विगुप्पसु (धर्मंवि १३४), विमुप्पहि (अप) (भवि)। संकृ. विगोवित्ता, विगोवइत्ता (कप्प; णाया १, १९ — पत्र २४४)

विगोवण :: न [विकोपन] विकास; 'तहवि य दंसिज्जंतो सीसमइविगोवणमदुट्ठा' (श्रावक २२८)।

विग्गह :: पुं [विग्रह] १ वक्रता, बाँक (ठा २, ४ — पत्र ८६) २ शरीर, देह (पाअ; स ७२६; सुपा १९) ३ युद्ध, लड़ाई (स ६३४) ४ समास आदि के समान अर्थवाला वाक्य (विसे १००२) ५ विभाग (ठा १०) ६ आकृति, आकार; 'वरवइरविग्गहए' (भग २, ८)। °गइ स्त्री [°गति] बाँकवाली गति, वक्र गति (ठा २, १ — पत्र ५५; भग)

विग्गहिय :: वि [वैग्रहिक] शरीर के अनुरूप; 'विग्गहिय उन्नयकुच्छी' (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

विग्गहीअ :: वि [विग्रहिक] युद्ध-प्रिय; 'जे विग्गहीए अनायभासी' (सूअ १, १३, ६)।

विग्गाहा :: (अप) स्त्री [विगाथा] छन्द-विशेष (पिंग)।

विग्गुत्त :: वि [दे] व्याकुल किया हुआ (भवि)।

विग्गुत्त :: देखो विगुत्त (धर्मंवि ५८; ६८)।

विग्गेव :: देखो विगोव। संकृ. विग्गोवित्ता (कप्प; औप)।

विग्गोव :: पुं [दे] आकुलता, व्याकुलता (दे ७, ६४; भवि; वज्ज २३)।

विग्गोवणया :: स्त्री [विगोपना] १ तिरस्कार। २ फजीहत (उव)

विग्घ :: पुंन [विघ्‍न] १ अन्तराय, व्याघात, प्रतिबन्ध (सुपा ३९५; कुमा; प्रासू ५४; १३५; कप्प; कम्म १, ६१; षड्) २ कर्मं- विशेष आत्मा के वीर्य, दान आदि शक्तियों का घातक कर्मं (कम्म १, ५२; ५३)। °कर वि [°कर] प्रतिबन्ध-कर्त्ता (कम्म १, ६१)। °ह वि [°घ] विघ्‍न-नाशक (श्रु ७५)। °विह वि [°वह] विघ्‍नवाला (सुर १, ४३)

विग्घर :: वि [विगृह] गृह-रहित; 'तह उग्घर- विग्घरनिरंगणोवि न य इच्छियं लहइ' (णाया १, १० टी — पत्र १७१)।

विग्घिय :: वि [विघ्रित] विघ्‍न-युक्त (हम्मीर १४)।

विघ्गुट्ठ :: वि [विघुष्ट] चिल्लाया हुआ (विपा १, २ — पत्र २९)। देखो विघुट्ठ।

विघट्ठ :: सक [वि + घट्टय्] १ वियुक्त करना। २ विनाश करना। विघट्टेइ (उव)

विघट्टण :: न [विघट्टन] विनाश (नाट)।

विघडण :: देखो विहडण (राज)।

विघत्थ :: वि [विघस्त, विग्रस्त] १ विशेष रूप से भक्षित। २ व्याप्‍त; 'वाहिविघत्थस्स मत्तस्स' (महा; प्राप्र)

विघर :: देखो विग्घर (उव)।

विघाय :: पुं [विघात] विनाश (कुमा)।

विघायग :: वि [विघातक] विनाश-कर्ता (धर्मंसं ५२९)।

विघुट्ठ :: न [विघुष्ठ] विरूप आवाज करना (पणह १, ३ — पव ४५)। देखो विग्घुट्ठ।

विघुम्म :: अक [वि + घूर्णय्] डोलना। वकृ. विघुम्ममाण (सुर ३, १०९)।

विचक्खु :: वि [विचक्षुष्क] चक्षु-रहित, अन्धा (उप ७२८ टी)।

विचच्चिया :: स्त्री [विचर्चिका] रोग-विशेष, पामा (राज)।

विचलिर :: वि [विचलितृ] चलायमान होनेवाला (सण)।

विचल्लिय :: वि [विचलित] चंचल बना हुआ (भवि)।

विचार :: देखो विआर = वि + चारय्। विचा- रेंति (मृच्छ १०४)।

विचारग :: वि [विचारक] विचार-कर्ता (रंभा)।

विचारण :: देखो विआरण = विचारण (कुप्र ३९७)।

विचारणा :: देखो विआरणा = विचारणा (धर्मंसं ३०६)।

विवाल :: न [विचाल] अन्तराल (दे ७, ८८)।

विचिअ :: वि [विचित] चुना हुआ (दे ७, ९१)।

विचिंत :: सक [वि + चिन्तय्] विचार करना। विचिंतेइ (महा)। वकृ. विचिंतेंत (सुर १२, १६६)। कृ. विचिंतियव्व, विचिंतिज्ज (पंचा ९, ४६, द्रव्य ५०)।

विचितण :: न [विचिन्तन] विचार, विमर्शं (श्रु ६)।

विचिंतिअ :: वि [विचिन्तिन] विचारित (सुर ८, ३)।

विचिंतिर :: वि [विचिन्तयितृ] विचार-कर्ता (श्रा १२; सण)।

विचिक्की :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

विचिगच्छा :: स्त्री [विचिकित्सा] संशय, धर्मं-कार्यं के फल की तरफ संदेह (सम्मत्त ९५)।

विचिट्ठिअ :: वि [विचेष्टित] १ जिसकी कोशिश की गई हो वह (सुपा ४७०) २ न. चेष्टा, प्रयत्‍न (उप ३२० टी)

विचिण, विचिण्ण :: सक [वि + चि] १ खोज करना। २ फूल आदि चूनना। विचिणंति (पि ५०२)। वकृ. विचिण्णंत (मा ४९)

विचित्त :: वि [विचित्र] १ विविध, अनेक तरह का; विचित्ततवो कम्मेहिं' (महा; राय; प्रासू ४२) २ अद्भुत, आश्चर्यंकारक; 'विहिणो विचित्तयं जाणिऊणं' (सुर १३, ४) ३ अनेक रँगवाला, शबल (णाया १, ९; कप्प) ४ अनेक चित्रों से युक्त (कप्प; सुज्ज २०) ५ पुं. पर्वंत-विशेष (पणह १, ५-पत्र ९४) ६ वेणुदेव और वेणुदारि नामक इन्द्रों का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७) °कूड पुं [°कूट] शीतोदा नदी के किनारे पर स्थित पर्वंत-विशेष (इक)। °पक्ख पुं [°पक्ष] १ वेणुदेव और वेणुदारि नामक इन्द्रों का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७; इक) २ चतुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४६)

विचित्ता :: स्त्री [विचित्रा] ऊर्ध्वं लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ७ — पत्र ४३७)। २ अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (राज)

विचित्तिय :: वि [विचित्रित] विचित्रता से युक्त (सण)।

विचुणिद :: (शौ) देखो विचिअ (नाट — मालती १४१)।

विचुन्नण :: न [विचूर्णन] चूर-चूर करना, टुकड़ा-टुकड़ा करना (द्र ३०)।

विचेयण :: वि [विचेतन] चैतन्य-रहित, निर्जीव (उप पृ ४९)।

विचेल :: वि [विचेल] वस्त्र-वर्जित, नंगा (पिंड ४७८)।

विच्च :: सक [वि + अय्] व्यय करना। विच्चेइ (ती ८)। देखो विव्व।

विच्च :: पुंन [दे] व्यूत, बुनने की क्रिया (राय ९२)।

विच्च :: न [दे. वर्त्मन्] १ बीच, मध्य; 'विच्चम्मि य सज्झाओ कायव्वो परमपयहेऊ' (पुप्फ ४२७), 'ठिओ अहं कूडकवाडविच्चे' (निसा १६) २ मार्गं, रास्ता (हे ४, ४२१; कुमा; भवि)

विच्च :: सक [दे] समीप में आना। विच्चइ (भवि)।

विच्चवण :: न [विच्यवन] भ्रंश, विनाश (विसे २९१)।

विच्चमेलिय :: वि [व्यत्याम्रेड़ित] १ भिन्‍न भिन्‍न अंशों से मिश्रित। २ अस्थान में ही छिन्‍न हो कर फिर ग्रथित, तोड़ कर साँधा हुआ (विसे ८५५)

विच्चाय :: पुं [वित्याग] परित्याग; 'पूयम्मि वीयरायं भावो विप्फुरइ विसयविच्चाया' (संबोध ८)।

विच्चि :: स्त्री [वीचि] तरंग, कल्लोल (पउम १०६, ४१)।

विच्चु, विच्चुअ :: देखो विंचुअ (उप ५९३; पि ५०; पणण १ — पत्र ४६)।

विच्चुइ :: स्त्री [विच्युति] भ्रंश, विनाश (विसे १८०)।

विच्चोअय :: न [दे] उपधान, ओसीसा (दे ७, ६८)।

विच्छ° :: देखो विअ = विद्।

विच्छड्ड :: सक [वि + छर्दय्] परित्याग करना। वकृ. विच्छड्डेमाण (णाया १, १८ — पत्र २३९)। संकृ. विच्छड्डइत्ता (कप्प)।

विच्छड्ड :: पुं [बिच्छर्द] १ ऋद्धि, वैभव, संपत्ति (पाअ; दे ७, ३२ टी; हे २, ३६; षड्) २ विस्तार (कुमा; सुपा १९२)

विच्छड्ड :: पुं [दे] १ निवह, समूह (दे ७, ३२; गउड; से २, २; ७२; गा ३८७) २ ठाटबाट, सजधज, घूमधाम; 'महया विच्छड्डेणं सोहणलग्गमि गुरुपमोएणं। कमलावई उ रन्‍ना परिणीया' (सुर १, १६९; कुप्र ४१; सम्मत्त १९३; धर्मवि ८२)

विच्छड्डि :: स्त्री [बिच्छर्दि] १ विशेष वमन। २ परित्याग (प्राप्र) ३ विस्तार; 'निम्मलो केवलालोअलच्छिविच्छि' (? च्छ) ड्डिकारओ' (सिरि १०९१)

विच्छड्डिअ :: वि [विच्छर्दित] १ परित्यक्त; 'पामुक्कं विच्छड्डिअं अवहत्थिअं उज्झिअं चत्तं' (पाअ; णाया १, १; ठा ८; औप) २ विक्षिप्‍त, फेंका हुआ (से १०, ४९) ४ विच्छादित, आच्छादित (हम्मीर १७)

विच्छड्डेमाण :: देखो विच्छड्ड = वि + छर्दय्।

विच्छद्दिअ :: देखो विच्छड्डिअ (नाट — मालती १२९)।

विच्छय :: वि [विक्षत] विविध तरह से पीड़ित (सूअ १, २, ३, ५)। देखो विक्खय।

विच्छल :: देखो विब्भल (षड् ४०)।

विच्छवि :: वि [विच्छवि] १ विरूप आकृतिवाला, कुडौल (पणह १, ३ — पत्र ५४) २ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २८)

विच्छाइय :: वि [विच्छायित] निस्तेज किया हुआ (सुपा १६६)।

विच्छाय :: वि [विच्छाय] निस्तेज, कान्ति- रहित, फीका (सुर ४, १०९; कप्पू; प्रासू १३७; महा; गउड)।

विच्छाय :: सक [विच्छायय्] निस्तेज करना; 'विच्छाएइ मियंकं तुसारवरिसो अणुगुणोवि' (गउड)। वकृ.य विच्छाअंत (कप्पू)।

विच्छिअ :: वि [दे] १ पाटित, विदारित। २ विचित, चुना हुआ। ३ विरल (दे ७, ९१)

विच्छिअ :: देखो विंछिअ (उत्त ३६, १४८; पि ५०; ११८; ३०१)।

विच्छिंद :: सक [वि + छिद्] तोड़ना, अलग करना। विच्छिंदइ (पि ५०६)। भवि. विच्छिंदिंहिंति (पि ५३२)। वकृ. विच्छिंद- माण (भग ८, ३ — पत्र ३६५)।

विच्छिण्ण :: वि [विच्छिन्न] अलग किया हुआ (विपा १, २ टि — पत्र २८; नाट — मृच्छ ८६)।

विच्छित्ति :: स्त्री [विच्छित्ति] १ विन्यास, रचना (पाअ; स ६१५; सुपा ५४; ८३; २६०; गउड) २ प्राप्‍त भाग (सुर ३, ७०) ३ अंगराग (गा ७८०)

विच्छिन्न :: देखो विच्छिण्ण (विपा १, २ टी — पत्र २८)।

विच्छिव :: सक [वि + स्पृश्] विशेष रूप से स्पर्शं करना। कवकृ. विच्छिप्पमाण (कप्प; औप)।

विच्छिव :: सक [वि + क्षिप्] फेंकना। संकृ. विच्छिविअ (नाट — चैत ३८)।

विच्छु, विच्छुअ :: देखो विंचुअ (गा २३७; जी १८; उत्त ३६; १४८; प्रासू १९; णाया १, ८ — पत्र १३३)।

विच्छुडिअ :: वि [विच्छुटित] १ बिछुड़ा हुआ, जो अलग हुआ हो, विरहित; 'जहवि हु कालवसेणं ससी समुद्दाओ कहवि विछु (? च्छु)डिओ' (वज्जा १५६) २ मुक्त (राज)

विच्छुरिअ :: वि [दे] अपूर्वं, अद्‌भुत (षड्)।

विच्छुरिअ :: वि [विच्छुरित] १ खचित, जड़ा हुआ; 'खचिअं विच्छुरिअयं जडिअं' (पाअ) २ संबद्ध, जोड़ा हुआ (से १४, ७९) ३ व्याप्त (पउम २, १०१; सुपा ६; २१२; सुर २, २२१)

विच्छुह :: सक [वि + क्षिप्] फेंकना, दूर करना। विच्छुहइ (से १०, ७३; गा ४२४ अ)। कृ. विच्छुढव्व (से १०, ५३)।

विच्छुह :: अक [वि + क्षुभ्] विक्षोभ करना, चंचल हो उठना। विच्छुहिरे (हे ३, १४२)।

विच्छूढ :: वि [विक्षिप्त] १ फेंकां हुआ, दूर किया हुआ (से ६, १९) २ प्रेरित (पाअ)

विच्छूढ :: वि [दे] वियुक्त, विरहित, विघटित; 'विच्छूढा जूहाओ' (स ६७८)।

विच्छूढव्व :: देखो विच्छुह = वि + क्षिप्।

विच्छेअ :: पुं [दे] १ विलास। २ जघन (दे ७, ९०)

विच्छेअ :: पुं [विच्छेद] १ विभाग, पृथक्करण (विसे १००६) २ वियोग (गा ९१३) ३ अनुबन्ध-विनाश, प्रवाह-निरोध (कप्पू)

विच्छेअण :: न [विच्छेदन] ऊपर देखो (राज)।

विच्छेअय :: वि [विच्छेदक] विच्छेद-कर्ता (भवि)।

विच्छेह :: वि [विच्छेदिन्] ऊपर देखो (कुप्र २२)।

विच्छेइअ :: वि [विच्छेदित] विच्छिन्न किया हुआ (नाट — विक्र ८२)।

विच्छोइय :: वि [दे] विरहित (भवि)।

विच्छोड :: देखो विच्छोल। संकृ. विच्छोडिवि (अप) (हे ४, ४३९)।

विच्छोम :: पुं [दे. विदर्भ] नगर-विशेष; 'विदर्भे विच्छोमो' (प्राकृ ३८)।

विच्छोय :: पुं [दे] विरह, वियोग (भवि)। देखो विच्छोह।

विच्छोल :: सक [कम्पय्] कँपाना। बिच्छो- लइ (हे ४, ४६)। बकृ. बिच्छोलंत, विच्छोलिंत (कप्पू; सुर १०, १०७; १५, १३)।

विच्छोलिअ :: वि [कम्पित] कँपाया हुआ (कुमा; गउड)।

विच्छोलिअ :: वि [विच्छोलित] धौत, धोया हुआ; 'धोअं विच्छोलिअं'ल (पाअ)।

विच्छोव :: सक [दे] वियुक्त करना, विरहित करना; 'कालेण रूढपेम्मे परोप्परं हिययनिव्वडियभावे। अकलुणहियओ एसो विच्छोवइ सत्तसंघाए' (स १८६)।

विच्छोह :: पुं [दे] विरह, वियोग (दे ७, ६२; हे ४, २९६)।

विच्छोह :: पुं [विक्षोभ] १ विक्षेप; 'जे संमु- हागअबोलतवलिअपिअपेसिअच्छिबिच्छोहा' (गा २१०), 'पुलइयकवोलमूला विमुक्ककडक्ख- विच्छोहा' (सम्मत्त १९१) २ चंचलता (उप पृ १५८)

विछल :: सक [वि + छलय्] छलित करना, ठगना। कर्मं. विछलिज्जइ (महा)।

विछोय :: देखो विच्छोव। विछोयइ (स १८६ (टि)।

विजइ :: वि [विजयिन्] विजेता, जीतनेवाला (कप्पू; नाट — विक्र ५)।

विजंभ :: देखो विअभ = वि + जृम्भ्। वकृ. विजंभंत (काप्र १८९)।

विजढ :: वि [वित्यक्त] परित्यक्त (उत्त ३६, ८३; सुख ३६, ८३; ओघ २४९)।

विजण :: देखो विअण = विजन। 'लक्खण ! देसो इमो विजणो' (पउम ३३, १३; हे १, १७७; कुमा)।

विजय :: सक [वि + जि] १ जीतना, फतह करना। २ अक. उत्कर्षं से वर्त्तंना, उत्कर्षं- युक्त होना। विजयइ (पव २७६ — गाथा १५९९); 'विजयतु ते पएसा विहरेइ जत्थ वीरजिणनाहो' (धर्मवि २२)। कृ. विजेतव्व (पै) (कुमा)

विजय :: पुं [विजय] १ निर्णंय, शास्त्र के अर्थं का ज्ञान-पूर्वंक निश्चय (ठा ४, १ — पत्र १८८; सुज्ज १०, २२) २ अनुचिन्तन, विमर्शं (औप)

विजय :: पुं [विजय] आश्रय, स्थान (दस ६, ५६)।

विजय :: पुं [विजय] १ जय, जीत, फतह (कुमा; कम्म १, ५५; अभि ८१) २ एक देव-विमान (अनु; सम ५७; ५८) ३ विजय-विमान-निवासी देवता (सम ५६) ४ एख मुहूर्त्तं, आहारोत्र का बारहवाँ या सतरहवाँ मुहुर्तं (सम ५१; सुज्ज १०, १३; कप्प; णाया १, ८ — पत्र १३३) ५ भग- वान् नमिनाथजी का पिता (सम १५१) ६ भारतवर्षं के बीसवें भावी जिनदेव (सम १५४; पव ४६) ७ तृतीय चक्रवर्ती के पिता का नाम (सम १५२) ८ आश्विन मास (सुज्ज १०, १९)। भारतवर्षं में उत्पन्न द्वितीाय बलदेव (सम ८४; १५८ टी; अनु; पव २०९) १० भारतवर्षं का भावी दूसरा बलदेव (सम १५४) ११ ग्यारहवें चक्रवर्ती राजा का पिता (सम १५२) १२ एक राजा (उप ७६८ टी) १३ एक क्षत्रिय का नाम (विपा १, १ — पत्र ४) १४ भगवान् चन्द्र- प्रभ का शासन-देव (संति ७) १५ जंबू- द्वीप का पूर्वं द्वार। १६ उस द्वार का अधिष्ठाता देव (ठा ४, २ — पत्र २२५) १७ लवण समुद्र का पूर्वं द्वार। १८ उस द्वार का अधिपति देव (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक) १९ क्षेत्र-विशेष, महाविदेह वर्षं का प्रान्त-तुल्य प्रदेश (ठा ८ — पत्र ४३५; इक; जं ४) २० उत्कर्षं; 'जएणं विजएणं वद्धावेइ (णाया १, १ — पत्र ३०; औप; राय) २१ पराभव करके ग्रहण करना (कुमा) २२ विक्रम की प्रथम शताब्दी के एक जैन आचार्य (पउम ११८, ११७) २३ अभ्युदय (राय)। २४ समृद्धि (राज) २५ धात की खण़्ड का पूर्व द्वार (इक) २६ कालोद समुद्र, पुष्कर-वरद्वीप तथा पुष्करोद समुद्र का पूर्व द्वार (राज) २७ रुचक पर्वत का एक कूट (ठा ८ — पत्र ४३६; इक) २८ एक राजकुमार (धम्म ११) २९ छन्द-विशेष (पिंग) ३० वि. जीतनेवाला; 'वरतुरए विहगाहिवविजयवेगघरे' (सम्मत्त २१६)। °चरपुर न [°चरपुर] एक विद्याधर-नगर (इक)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] विजय के लिए किया जाता प्रयाण (धर्मंवि ५९)। °ढक्का स्त्री [°ढक्का] विजय- सूचक भेरी (सुपा २६८)। °देव पुं [°देव] अठारहवीं शताब्दी का एक जैन आचार्यं (अज्झ १)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक २२३; २२४; ३२९)। °पुरा, पुरी स्त्री [°पुरी] पक्ष्मकावती नामक विजय- क्षेत्र की राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)। °माण पुं [°मान] एक जैन आचार्यं (द्र ७०)। °वंत वि [°वत्] विजयी, विजेता (ति १४)। °वत्त न [°वर्त] चैत्य- विशेष (कल्पटिप्पनक)। °वद्धमाण पुंन [°वर्धमान] ग्राम-विशेष (विपा १, १)। °वेजयंती स्त्री [°वैजयन्ती] विजय-सूचक पताका (औप)। °सायर पुं [°सागर] एक सूर्यंवंशी राजा (पउम ५, ६२)। °सिंह, °सीह पुं [°सिंह] १ सुप्रसिद्ध प्राचीन जैना- चार्यं (सुपा ६५८) २ एक विद्याधर राज- कुमार (पउम ६, १५७)। °सूरि पुं [°सूरि] चन्द्रगुप्त के समय का एक जैन आचार्य (धर्मंवि ४४)। °सेण पुं [°सेन] एक प्रसिद्ध जैन आचार्यं जो आम्रदेव सूरि के शिष्य थे (पव २७६ — गाथा १५९६)

विजयंता, विजयंती :: स्त्री [वैजयन्ती] १ पक्ष की आठवीं रात (सुज्ज १०, १४) २ एक रानी का नाम (उप ७२८ टी)

विजया :: स्त्री [विजया] भगवान् शान्तिनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)।

विजया :: स्त्री [विजया] १ भगवान् अजित- नाथजी की माता का नाम (शम १५१) २ पाँचवें बलदेव की माता (सम १५) ३ अंगारक आदि ग्रहों की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ विद्या-विदेश (पउम ७, १४१) ५ पूर्वं-रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६) ६ पाँचवें चक्रवर्ती राजा की पटरानी — स्त्री-रत्‍न (सम १५२) ७ विजय नामक देव की राजधानी (सम २१) ८ वप्रा नामक विजय की राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक) ९ पक्ष की सातवीं रात (सुज्ज १०, १४) १० एक श्रेष्ठिनी (सुपा ६२९) ११ भगवान् विमलनाथजी की शासन-देवी (पव २७; संति १०) १२ भगवान् सुमतिनाथजी की दीक्षा- शिबिका (सम १५१) १३ एक पुष्करिणी (इक)

विजल :: वि [विजल] १ जल-रहित (गउड) २ न. जल-रहित पंक (दस ५, १, ४)। देखो विज्जल।

विजह :: सक [वि + हा] परित्याग करना। विजहइ (पि ५७७)। संकृ. विजहित्तु (उत्त ८, २)।

विजहणा :: स्त्री [विहान] परित्याग (ठा ३, ३ — पत्र १३९)।

विजाइय :: वि [विजातीय] भिन्न जाति का, दूसरी तरह का (उफ १२८ टी)।

विजाण :: देखो विआण = वि + ज्ञा। संकृ. विजाणित्ता, विजाणिय (कप्प)।

विजाणग, विजाणय :: वि [विज्ञायक] जाननेवाला, विज्ञ (आचा; सूअनि १४५)।

विजाणुअ :: वि [विज्ञ, विज्ञायक] ऊपर देखो (प्राकृ १८)।

विजादीअ :: (शौ) देखो विजाइय (नाट — चैत ८८)।

विजाय :: न [दे] लक्ष्य, निशाना; 'लरुखं विजायं' (पाअ)।

विजिअ :: वि [विजित] पराभूत, हारा हुआ (सुर ९, २५; स ७००)।

विजुत्त :: वि [वियुक्त] विरहित (धर्मंसं १७४)।

विजुरि :: (अप) स्त्री [विद्युत्] बिजली (पिंग)।

विजेट्ठ :: वि [विज्येष्ठ] मध्यम; 'जेट्ठ विजेट्ठा कणिट्ठा य' (चेइय १५३)।

विजेतव्व :: देखो विजय = वि + जि।

विजोज :: सक [वि + योजय्] वियोग करना, अलग करना। संकृ. विजोजिय (पंच ५, १२९)।

विजोजण :: न [वियोजन] वियोग, विरह (मोह ९८)।

विजोजिअ :: वि [वियोजित] जुदा किया हुआ (कुप्र २८८)।

विजोयावइत्तु :: वि [वियोजयितृ] वियोजक, अलग करनेवाला (ठा ४, ३ — पत्र २३८; २३९)।

विजोहा :: स्त्री [विज्जोहा] छन्द-विशेष (पिंग)।

विज्ज :: अक [विद्] होना। विज्जइ; 'विज्जए (षड्; कस; भग; महा), विज्जई (सूअ १, ११, ६)। वकृ. विज्जंत; विज्जमाण (सुर २, १७६; पंचा ९, ४७)।

विज्ज :: सक [विजय्] पंखा चलाना, हवा करना। कर्मं. विज्जिज्जइ (भवि)। कवकृ. विज्जिज्जंत (पउम ६१, ३७; वज्जा ३६)।

विज्ज :: पुं [वैद्य] चिकित्सक, हकीम (सुर १२, २४, नाट — विक्र ६५)।

विज्ज :: पुं. ब. [दे] देश-विशेष (पउम ९८, ६५)।

विज्ज :: पुं [विद्वस्, विज्ञ] पण्डित, जानकार (हे २, १५; कुमा; प्राकृ १८; सूअ १, ६, ५)।

विज्ज :: देखो वीरिअ (पउम ३७, ७०)।

विज्ज° :: देखो विज्जा। °ज्झर (अप) देखो विज्जा-हर (पि २१६)। °त्थि वि [°र्थिन्] छात्र, अभ्यासी (सम्मत्त १४३)।

विज्ज° :: देखो विज्जु (कुप्र ३६९)।

°विज्जंतअ :: देखो पिज्जंत (से २, २४; पि ६०३)।

विज्जय :: न [बैद्यक] चिकित्सा (उर ८, १०; भवि)।

विज्जल :: पुं [विजल] १ नरकावास-विशेष, एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २८) २ वि. जल- रहित (निचू १)

विज्जल, विज्जुल :: न [दे. विजल] कर्दम, पंक, काँदो, कादा (आचा २, ८, ५, ३; २, १०, २)।

विज्जलिया :: स्त्री [विद्युत्] बिजली (कुप्र २८५)।

विज्जा :: स्त्री [विद्या] १ शास्त्र-ज्ञान, यथार्थं ज्ञान, सम्यग् ज्ञान (उत्त २३, २; णंदि; धर्मवि ३९; कुमा; प्रासू ४३) २ मन्त्र, देवी-अधिष्ठित अक्षर-पद्धति। ३ साधनावाला मन्त्र (पिंड ४९४; औप; ठा ३, ४ टी — पत्र १५९)। °अणुप्पवाय न [°अनुप्रवाद] जैन अंग ग्रंन्थांश विशेष, दसवाँ पूर्व (सम २६)। °टारण पुं [°चारण] शक्ति-विशेष- संपन्‍न मुनि (भग २०, ९ — पत्र ७९३)। °चारणलद्धि स्त्री [°चारणलब्धि] शक्ति- विशेष (भग २०, ९)। °णुप्पवाय देखो °अणुप्पवाय (राज)। °णुवाय न [°नुवाद] दसवाँ पूर्व (सिरि २०७)। °पिंड पुं [°पिण्ड] विद्या के बल से अर्जित भिक्षा (निचू १३)। °मंत वि [°वत्] विद्या- संपन्‍न (उप ४२५)। °लय पुंन [°लय] पाठशाला (प्रामा)। °सिद्ध वि [°सिद्ध] १ सर्वं विद्याओं का अधिपति, सभी विद्याऔं से संपन्‍न। २ जिसको कम से कम एक महाविद्या सिद्ध हो चुकी हो वह; 'विज्जाण चक्कवट्टी विज्जासिद्धो स, जस्स वेगावि सिज्झेज्ज महाविज्जा' (आवम)। °हर पुं [°धर] १ क्षत्रियों का एक वंश (पउम ५, २)। २ पुंस्त्री. उस वंश में उत्पन्न (महा)। स्त्री. °री (महा; उव) ३ वि. विद्या-धारी, शक्ति विशेष-सम्पन्न (औप; राय; जं ४)। °हरगोवाल पुं [°धरगोपाल] एक प्राचीन जैन मुनि, जो सुस्थित और सुप्रितिबद्ध आचार्यं के शिष्य थे (कप्प)। °हरी स्त्री [°धरी] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)। °हार (अप) न [°धर] छन्द-विशेष (पिंग)

विज्जावच्च :: (अप) देखो वेयावच्च (भवि)।

विज्जाहर :: वि [वैद्याधर] विध्याधर-संबन्धी; स्त्री. 'एसा विज्जाहरी माया' (महा)।

विज्जाडय :: देखो विज्झिडिय (राज)।

विज्जु :: पुं [विद्युत्] १ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १८) २ देवों की एक जाति, भवनपति देवों का एक भेद (पणह १, ४ — पत्र ६८) ३ आभलकप्पा नगरी का निवासी एक गृहस्थ (णाया २ — पत्र २५१) ४ एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६) ५ स्त्री. ईशानेन्द्र के सोम आदि लोकपालों की एक-एक अग्रमहीषी — पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ६ चमर नामक इन्द्र की एक पटरानी (ठा ५, १ — पत्र ३०२; णाया २ — पत्र २५१) ७ पुंस्त्री. बिजली; 'विज्जुणा, विज्जुए' (हे १, ३३; कुमा; गा १३५) ८ सन्ध्या, शाम (हे १, ३३) ९ वि. विशेष रूप से चमकनेवाला; 'विज्जुसोयामणिप्पभा' (उत्त २२, ७) °कार देखो °यार (जीव ३ — पत्र ३४२)। °कुमार पुं [°कुमार] एक देव-जाति (भग; इक)। °कुणारी स्त्री [°कुमारी] विदिगरुचक पर रहनेवाली दिक्कुमारी देवी; 'चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्त- रियाओ पणणत्ताओ' (ठा ४, १ — पत्र १९८)। °जिज्झ (?), °जिब्भ पुं [°जिह्‌व] अनुवेलंघर नागराज का एक आवास-पर्वत (इक; राज)। °तेअ पुं [°तेजस्] विद्याधरवंश का एक राजा (पउम ५, १८)। °दंत पुं [°दन्त] १ एक अन्त- र्द्वीप। २ उसमें रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २ — पत्र २२६) °दत्त पुं [°दत्त] विद्याधरवंश का एक राजा (पउम ५, १८)। °दाढ पुं [°दंष्ट्र] विद्याधर-वंश में उत्पन्न एक राजा का नाम (पउम ५, १८)। °पह, °प्पभ, °प्पह पुं [°प्रभ] १ एक वक्षस्कार पर्वत का नाग (सम १०२ टी; ठा २, ३ — पत्र ६९; ५, २ — पत्र ३२६; जं ४; सम १०२; इक) २ कूट-विशेष, विद्युत्प्रभ वक्षस्कार का एक शिखर (जं ४; इक) ३ देव-विशेष, विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वंत का अधिष्ठाता देव (जं ४) ४ अनुवेलंधर नागराज का एक आवास-पर्वंत (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक) ५ उस पर्वत का निवासी देव (ठा ४, २ — पत्र २२६) ६ देवकुरु वर्ष में स्थित एक महाद्रह (ठा ५, २ — पत्र ३२६) ७ न. एक विद्याधर-नगर (इक ३२९) °मई स्त्री [°मती] एक स्त्री का नाम (पणह १, ४ — पत्र ८५)। °मालि पुं [°मालिन्] १ पंचशैल द्वीप का अधिपति एक यक्ष (महा) २ रावण का एक सुभट (से १३, ८४) ३ ब्रह्मदेवलोक का इंद्र (राज) °मुह पुं [°मुख] १ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १८) ३ एक अन्तर्द्वीप। ४ उसका निवासी मनुष्य (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक) °मेह पुं [°मेघ] १ विद्युत्प्रधान मेघ, जल-रहति मेघ। २ बिजली गिरानेवाला मेघ (भग ७, ६ — पत्र ३०५) °यार पुं [°कार] बिजली करना, विद्युद्-रचना (भग २, ९)। °लआ, °ल्लया, स्त्री [°लता] विद्युत, बिजली (नाट — वेणी ६६; काल)। °ल्लहाइद न [°लखायित] बिजली की तरह आचरण (कप्पू)। °विल- सिअ न [°विलसित] १ छन्द-विशेष (अजि २१) २ विजली का विलास (से ४, ४०)। °सिहा स्त्री [°शिखा] एक रानी का नाम (महा)

विज्जुआ :: स्त्री [विद्युत्] १ बिजली (नाट — वेणी ६६) २ बलि नामक इन्द्र के सोम आदि चारों लोकपालों की एक-एक पटरानी; 'मित्तगा सुभद्दा विज्जुत्ता' (? या) असणी' (ठा ४, १ — पत्र २०४; इक) ३ धरणेन्द्र की एक अग्र-महिषी (णाया २ — पत्र २५१; इक)

विज्जुआइत्तु :: वि [विद्युत्कर्तृ] बिजली करनेवाला (ठा ४, ४ — पत्र २९९)।

विज्जुला, विज्जुलिअ, विज्जुली :: देखो विज्जु = विद्युत् (हे २ १७३; षड् १६१; कुमा; प्राकृ ३६; प्राप्र; पि २४४)।

विज्जू° :: दिखो विज्जु। °माला स्त्री [°माला] छन्द-विशेष (पिंग)।

विज्जे :: अ [दे] १ मार्गं से, रास्ता से। २ लिए (भवि)

विज्जओ :: पुं [विद्योत] उद्योत, प्रकाश; 'जोव्वणं जीविअं रूवं विज्जुविज्जोअचंचलं' (हित ९)।

विज्जोइय, विज्जोविय :: वि [विद्योतिन्] प्रकाशित; चमका हुआ (उप पृ ३३; स ५७६)।

विज्झ :: सक [व्यध्] बीधना, वेध करना, भेदना। विज्झंति (सूअ १, ५, १, ९), विज्झसे (गा ४४१)। संकृ. विद्‍धूण (सूअ १, ५, १, ९)। कृ. विज्झ (षड्)।

विज्झ :: अक [वि + घट्] अलग होना। विज्झइ (धात्वा १५२)।

विज्झ :: न [दे] बीझ, धक्का, ठेला; 'तो हत्थी तम्मि पडे विज्झं दाऊण कुमरमणु- मग्गे' (धर्मंवि ८१), 'ताव वणवारणेण य विज्झाइ (? इं) नरं अपावमाणेण कुविएण विइणणाइं धणियं नग्गोहरुक्खम्मि' (स ११३)।

विज्झ :: वि [विद्ध] बिधा हुआ; 'जइ तंपि तेण बाणेण बिज्झसे जेण हं विज्झा' (गा ४४१)।

विज्झ :: देखो विज्झ = व्यध्।

विज्झडिय :: वि [दे] १ मिश्रित, व्याप्‍त; 'सीउणहखरपरुसवायाविज्झडिया (भग ७, ६ — पत्र ३०७; उव)

विज्झल :: देको बिब्भल = विह्वल (भग ७, ६ टी — पत्र ३०८)।

विज्झव :: सक [वि + ध्यापय्] बुझाना, दीपक आदि को गुल करना, ठंढा करना। विज्झवइ (गउड; कुत्र ३९७)। कर्मं. विज्झविज्जइ (गा ४०७; स ४८६)। संकृ. विज्झवेऊणं, विज्झविय (धर्मंसं ९८५; स ४६६)। कृ. विज्झवियव्व (पउम ७८, ३७)।

विज्झवण :: स्त्रीन [विध्यापन] बुझाना, उप- शान्ति (स ४८६; सम्मत्त १९२; कुप्र २७०)। स्त्री. °णा (संथा १०९)।

विज्झविअ :: वि [विध्यापित] बुझाया हुआ, गुल किया हुआ, ठंढा किया हुआ (से ८, १६; १२, ७७; गा ३३३; पउम २०, ९२)।

विज्झा, विज्झाअ :: अक [वि + ध्यै] बुझना, ठंढा होना, गुल होना। विज्झाइ (गा ४३०; हे २, २८)। वकृ. विज्झाअंत (गा १०९)।

विज्झाअ, विज्झाण :: वि [विध्यात] १ बुझा हुआ, उपशान्त (से १, ३१; णाया १, १ — पत्र ६६, १, १४ — पत्र १९०; गउड; सुपा ४४८; प्रासु १३७; पउम ५, १८२) २ संक्रम-विशेष; 'विज्झायनाम- गेणं संकममेत्तेण सुज्झंति' (सम्यक्त्वो २१)

विज्झाव :: देखो विज्झव। विज्झावेइ (गा ८३६)।

विज्झावण :: देखो विज्झवण (उप २६४ टी)।

विज्झाविअ :: देखो विज्झविअ (महा)।

विज्झिडिय :: पुं [दे] मत्स्य की एक जाति (पणण १ — पत्र ४७)।

विटंक :: देखो विडंक (माल २३४; राज)।

विट्टाल :: सक [दे] अस्पृश्य करना, उच्छिष्ट करना, बिगाड़ना, दूषित करना, अपवित्र करना। विट्टालितिं (सुख १, १५)। कर्मं. 'विट्टालिज्जइ गंगा कयाइ किं वासवारेहिं' (चेइय १३४)। वकृ. विट्टालयंत (सिरि ११३२)।

विट्टाल :: पुं [दे] अस्पृश्य-संसर्गं, उच्छिष्टता, अपवित्रता; 'तुह घरम्मि चंडाली, विट्टालं कुणइ' 'सा घरबाहिं चिट्ठइ भुंजइ य, न तेण देव विट्टालो' (कुप्र २४३; हे ४, ४२२)।

विट्टालण :: न [दे] ऊपर देखो (स ७०१)।

विट्टालि :: वि [दे] बिगाड़नेवाला, अपवित्र करनेवाला। स्त्री. °णी (कप्पू)।

विट्टालिअ :: वि [दे] उच्छिष्ट किया हुआ, अपवित्र किया हुआ, बिगाड़ा हुआ (धर्मंवि ४५; सिरि ७१९; सुपा ११५; ३९०; महा)।

विट्टी :: स्त्री [दे] गठरी, पोटली (ओघ ३२४)। देखो विंटिया।

विट्ठ :: वि [वृष्ट] बरसा हुआ (हे १, १३७; षड्)।

विट्ठ :: वि [विष्ट] १ प्रविष्ट, पैठा हुआ (सूअ १, ३, १, १३) २ उपविष्ट, बैठा हुआ (पिंड ६००)

विट्ठ :: वि [दे] सुप्‍तोत्थित, सो कर उठा हुआ (षड्)।

विट्ठइ :: न [विष्टप] भुवन, जगत् (मृच्छ १०९)।

विट्ठंभ :: सक [वि + ष्टम्भय्] १ रोकना। २ स्थापित करना, रखना। विट्ठंभंति (औप)। संकृ. विट्ठंभित्ता (औप)

विट्ठंभणया :: स्त्री [विष्टम्भना] स्थापना (औप)।

विट्ठर :: पुंन [विष्टर] आसन; 'विट्ठरो' (प्राप्र; पउम ८०, ७; पाअ; सुपा ६०)।

विट्ठा :: स्त्री [विष्ठा] बीट, पुरीष, मल (पाअ; ओघभा २९६, प्रासू १५८)। °हर न [°गृह] मलोत्सर्गं-स्थान, टट्टी (पउम ७४, ३८)।

विट्ठि :: स्त्री [विष्टि] १ कर्मं, काज, काम (दे २, ४३) २ ज्योतिष-प्रसिद्ध एक करण, अर्धं तिथि (विसे ३३४८; स २९५; गण १९) ३ भद्रा नक्षत्र (सुर १६, ९०) ४ बेगार, मजूरी दिए बना ही जबरदस्ती या बेमन का कराया जाता काम (उर ६, ११)। विट्ठि स्त्री [वृष्टि] वर्षा, बारिश (हे १, १३७; प्राकृ ८; संक्षि ५; पउम २०, ८७; कुमा; रंभा)। देखो वुट्ठि।

विट्ठित :: वि [दे] अर्जित (षड्)।

विट्ठिय :: न [विस्थित] विशिष्ट स्थिति (भग ९, ३२ टी — पत्र ४६९)।

विड :: पुं [विट] १ भँड़ुआ (कुमा; सुर, ३, °+; ११६; रंभा)

विड :: न [विड] लवण-विशेष, एक तरह का नमक (दस ६, १८)।

विडंक :: पुंन [विटङ्क] कपोतपाली, प्रासाद आदि के आगे की ओर काठ की बना हुआ पक्षियों के रहने का स्थान, छतरी (णाया १, १ — पत्र १२; दे ७, ८६; गउड)।

विडंकिआ :: स्त्री [दे] वेदिका, वेदी, चौतरी (दे ७, ६७)।

विडंग :: देखो विडंक (पणह १, १ — पत्र ८)।

विडंग :: पुंन [विडङ्ग] १ औषध-विशेष। २ वि. अभिज्ञ, विदग्ध; 'विज्ज न एसो जरओ न य वाही एस कोवि संभूओ। उवसमइ सलोणेणं विडंगजोया- मयरसेणं' (वज्जा १०४)

विडंब :: सक [वि + डम्बय्] १ तिरस्कार करना, अपमान करना। २ दुःख देना। ३ नकल करना। विडंबइ, विडंबंति, विडंबेमि (भवि; कुप्र १९४; स ६९३)। वकृ. विडंबंत (पउम ८, ३२)। कवकृ. विडंविज्जंत (सुपा ७०)

विडंब :: सक [वि + डम्बय्] विवृत करना, फैलाना। विडंबेइ (भग ३, २ — पत्र १७३)।

विडंब :: पुंन [विबम्ब] १ तिरस्कार, अपमान (भवि) २ माया जाल, प्रपंच; 'अणिच्चं च कामाण सेवाविडंबं' (श्रु ९; कप्पू)

विडंबग :: वि [विडम्बक] विडंबना-जनक; 'जइवेसविडंबगा नवरं' (संबोध १४; उव)।

विडंबण :: न [विडम्बन] नीचे देखो (भवि)।

विडंबणा :: स्त्री [विडम्बना] १ तिरस्कार, अपमान (दे) २ दुःख, कष्ट (धण ४२) ३ अनुकरण, नकल। ४ उपहास। ५ कपट- वेष (कप्पू)

विडंबिय :: वि [विडम्बित] विडम्बना-प्राप्‍त (कप्प; गउड; ३०२)।

विडज्झामाण :: वि [विदह्यमान] जो जलाया जाता हो वह, जलता हुआ (आचा १, ६, ४, १)।

विड्‍डढ :: देखो विदड्‍ढ (गा ६७१)।

विडप्प, विडय :: पुं [दे] राहु (दे ७, ६५; पाअ; गउड; वज्जा ९८; दे ७, ६५)।

विडव :: पुं [विटप] १ पल्लव (सुर ३, ४५) २ शाखा (भवि ११०) ३ पल्लव-विस्तार। ४ स्तम्ब गुच्छा (प्राप्र)

विडवि :: पुं [विटपिन्] वृक्ष, पेड़, दरख्त (पाअ; सुपा ८८; गउड; सण)।

विडविड, विडविड्ड :: सक [रचय्] बनाना, निर्माण करना। विडविडइ, विडविड्डइ (हे ४, ९४; षड्)। भूका. विडविड्डीअ (कुमा)।

विडिअ :: वि [व्रीडित] लज्जित (से ११, ५०; पि ८१)।

विडिंचिअ, विडिच्चिर :: वि [दे] विकराल, भीषण, भयंकर (दे ७, ६९)।

विडिम :: पुं [दे] १ बाल-मृग (दे ७, ८९) २ गण्डक, गेंड़ा (दे ७, ८९; गउड) ३ वृक्ष, पेड़; 'दुमा य पायवा रुक्खा आगमा विडिमा तरू' (दसनि १, ३५) ४ शाखा (पणह २, ४ — पत्र १३०; औप; तंदु २१)

विडिमा :: स्त्री [दे] शाखा (पणह २, ४; तंदु २१; राज)।

विडुच्छअ :: वि [दे] निषिद्ध; 'प्रतिषिद्ध (षड्)।

विडुविल्ल :: वि [दे] भीषण, भयंकर (नाट — मालती १३७)।

विडूर :: पुं [विदूर] १ पर्वंत-विशेष। २ देश विशेष, जहाँ वैदूर्यं रत्‍न पैदा होता है (कप्पू)

विडोमिअ :: पुं [दे] गण्डक मृग, गेंड़ा (दे ७, ५७)।

विड्ड :: वि [दे] १ दीर्घं, लम्बा (दे ७, ३३) २ प्रपंच, विस्तार (दे १, ४)

विड्ड :: वि [व्रीड, व्रीडित] लज्जित, शरमिन्दा; 'लज्जिया विलिया विड्डा' (निर १, १; पि २४०)।

विड्डर :: देखो विड्डिर; 'अकंडविड्डरमेयं किं देव पारद्धं' (उप ७६८ टी)।

विड्डा :: स्त्री [व्रीडा] लज्जा, शऱम (दे ७, ६१; पि २४०)।

विड्डार :: न [विद्वार] देखो विड्डेर (राज)।

विड्डिर :: न [दे] १ आभोग (दे ७, ९०) २ आटोप, आडम्बर (पाअ) ३ वि. रौद्र भयंकर (दे ७, ९०)

विड्डिरिल्ला :: स्त्री [दे] रात्रि, निशा (दे ७, ६७)।

विड्‍डुम :: देखो विद्‍दुम (पाअ)।

विड्‍डुरी :: स्त्री [दे] आटोप, आडम्बर; 'किं लिंगाविड्‍डुरीधारणेणं' (उव)।

विड्‍डुरिल्ल :: वि [वैडूर्यवत्] वैदूर्यं रत्‍नवाला (सुपा ५९)।

विड्‍डेर :: न [दे. विड्डेर] नक्षत्र-विशेष, पूर्वं द्वारवाले नक्षत्रों में पूर्वं दिशा से जाने के बदले पश्‍चिम दिशा से जाने पर पड़ता नक्षत्र (विसे ३४०९)। देखो विड्डार।

विढज्ज :: (शौ) सक [वि + दह्] जलाना। संकृ. विढज्जिअ (पि २१२)।

विढणा :: स्त्री [दे] पार्ष्णि, फीली का नीचला भाग (दे ७, ६२)।

विढत्त :: वि [अर्जित] उपार्जित, पैदा किया हुआ (हे ४, २५८; गउड; श्रा १०; प्रासू ७४, भवि)।

विढत्ति :: स्त्री [अर्जिति] अर्जंन, उपार्जंन (श्रा १२)।

विढप्प :: अक [व्युत् + पद्] व्युत्पन्‍न होना। विढप्पंति (प्राकृ ६४)।

विढप्प° :: नीचे देखो।

विढव :: सक [अर्ज्] उपार्जन करना, पैदा करना। विढवइ (हे ४, १०८; महा; भवि)। कर्मं. विढविज्जइ, विढप्पइ (हे ४, २५१; कुमा; भवि)।

विढवण :: न [अर्जन] उपार्जंन (सुर १, २२१)।

विढविअ :: वि [अर्जित] पैदा किया हुआ (कुमा; सुपा २८०; महा)।

विढिअ :: वि [वेष्टित] लपेटा हुआ (सुपा ३८८)।

विणइ :: वि [विनयिन्] दूर करनेवाला; 'आरंभविणईणां' (आचा)।

विणइत्त :: वि [विनयवत्] विनयवाला, विनय को ही सर्वं-प्रधान माननेवाला (सूअनि ११८)।

विणइत्तु :: वि [विनेष्ट] विनीत बनानेवाला, विनय की शिक्षा देनेवाला (उत्त २९, ४)।

विणइत्तु :: देखो विणी = वि + नी।

विणइय :: वि [विनयित] शिक्षित किया हुआ, सिखाया हुआ (राज)। देखो विण्णय।

विणइल्ल :: देखो विणइत्त (कुमा)।

विणएत्तु :: देखो विणी = वि + न।

विणट्ठ :: वि [विनष्ट] विनाश-प्राप्‍त (उव; प्रासू ३१; नाट — मृच्छ १५२)।

विणड :: सक [वि + नटय्, वि + गुप्] १ व्याकुल करना। २ विडम्बना करना। विणडेइ (गउड ६८), विणडंति (उव), विणडउ (हे ४, ३८५; पि १००)

विणडिअ :: देखो विनडिअ (गा ६३० टी)।

विणण :: न [वान] बुनना (बृह १)।

विणभ :: सक [खेदय्] खिन्न करना। विणभइ (धात्वा १५३)।

विणम :: सक [वि + नम्] विशेष रूप से नमना। वकृ. विणमंत (नाट — मालवि ३४)।

विणमि :: देखो विनमि (राज)।

विणमिअ :: वि [विनत] विशेष रूप से नत (भग; औप; णाया १, १टी — पत्र ५)।

विणमिअ :: वि [विनमित] नमाया हुआ (गउड)।

विणय :: पुं [विनय] १ अभ्युत्थान, प्रणाम आदि भक्ति, श्रुश्रुषा, शिष्टता, नम्रता (आचा; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३; कुमा; उवा; औप; गउड; महा; प्रासु ८) २ संयम, चारित्र (सम ५१) ३ नरकावास-विशेष, एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २९) ४ अपनयन, दूरीकरण। ५ शिक्षा, सीख। ६ अनुनय।ट। ७ वि. विनय-युक्त, विनीत। ८ निभृत, शान्त। ९ क्षिप्त, फेंका हुआ। १० जितेन्द्रिय, संयमी (हे १, २४५) ११ पुं. शास्त्रानुसार प्रजा का पालन (गउड ६७)। °मंत वि [°वत्] विनय-युक्त (उप पृ १६९)

विणय :: वि [विनत] १ विशेष रूप से नमा हुआ (औप) २ पुंन. एक देव-विमान (सम ३७)

विणय° :: देखो विणया। °तणय पुं [°तनय] गरुड पक्षी (वज्जा १२२)। °सुअ पुं [°सुत] वही अर्थं (पाअ)।

विणयइत्तु :: दखो विणइत्तु (सुख २९, ४)।

विणयंधर :: पुं [विनयन्धर] एक शेठ का नाम (उप ७२८ टी)।

विणयण :: न [विनयन] विनय-शिक्षा, शिक्षण; 'आयारदेसणाओ आयारिया, विणयणादुव- ज्जाया' (विसे ३२००)।

विणया :: स्त्री [विनता] गरुड की माता का नाम (गउड)। °तणय पुं [°तनय] गरुड पक्षी (से १४, ६१; सुपा ३५४)।

विणस :: देखो विणस्स। विणसइ (उर ७, ३; कुमा ८, २१)।

विणसिर :: वि [विनश्वर] विनाश-शील; 'नश्वर (दे १, ९०)।

विणस्स :: अक [वि + नश्] नष्ट होना, विध्वस्त होना। विणस्सइ, विणस्सए, विणस्से (उव; महा; धर्मंसं ४०१)। भवि. विणस्सिहिसि (महा)। वकृ. विणस्समाण (उवा)। कृ. विणस्स (धर्मंसं ४०२; ४०३)।

विणस्सर :: देखो विणसिर (पि ३१५)।

विणा :: अ [विना] सिवाय, बिना (गउड; प्रासू १०; १५९; दं १७)।

विणामिद :: (शौ) देखो विणमिअ = विनमित (नाट — मृच्छ २१८)।

विणायग :: पुं [विनायक] यक्ष, एक देव-जाति; 'तत्थेव आगओ सो विणायगो पूयणो नामं' (पउम ३५, २२)। २ गणपति, गणेश (सट्ठि ७८ टी) ३ गरुड (पउम ७१, ६७)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र-विशेष, गरुडास्त्र (पउम ७१, ६७)

विणास :: देखो विणस्स। विणासइ (भवि)।

विणास :: सक [वि + नाशय्] ध्वंस करना, नष्ट करना। विणासेइ (उव; महा)। भवि. विणासिही, विणासेहामि (पि ५२७; ५२८)। कर्म. विणासिज्जइ (महा)। कवकृ. विणा- सिज्जंत (महा)। कृ. विणासियव्व (सुपा १४५)।

विणास :: पुं [विनाश] विध्वसं (उव; हे ४, ४२४)।

विणासग :: वि [विनाशक] विनाश-कर्ता (द्र १७)।

विणासण :: न [विनाशन] १ विनाश, विध्वंस (भवि) २ वि. विनाश, कर्ता (पणह २, १ — पत्र ९९; दस ८; ३८)

विणासिअ :: वि [विनाशित] विनाश-प्राप्त (पाअ; महा; भवि)।

विणि° :: देखी विणी।

विणिअंसण :: न [विनिदर्शन] खास उदाहरण, विशेष दृष्टान्त (से १२, ६९)।

विणिअंसण :: वि [विनिवसन] वस्त्र-रहित, नंगा (गा १२५)।

विणिइत्तु :: देखो विणइत्तु (उत्त २९, ४)।

विणिउत्त :: वि [विनियुक्त] कार्यं में प्रवर्त्तित (उप पृ ७५)।

विणिओग :: पुं [विनियोग] १ उपयोग, ज्ञान (विसे २४३७) २ कार्यं में लगाना (पंचा ७, ६) ३ विनिमय, लेनदेन (कुप्र २०९)

विणिओय :: सक [विनि + योजय्] जोड़ना, लगाना। विणिओयइ (भवि)।

विणिंत :: देखो विणी = विनिर् + इ।

विणिकुट्टिय :: वि [विनिकुट्टित] कूट कर बैठाया हुआ; 'थंमविणिकुट्टियाहिं पवराहिं' सालहंजीहिं (सुपा १८८)।

विणिक्कम :: देखो विणिक्खम। विणिक्कमइ (गउड २७५; पि ४८१)।

विणिक्कस :: सक [विनि + कृष्] खींच कर निकालना। संकृ. विणिक्कस्स (सूअ १, ५, १, २२)।

विणिक्खंत :: वि [विनिष्क्रान्त] १ बाहर निकला हुआ। २ जिसने गृह-त्याग किया हो वह, संन्यस्त (उप १४७ टी; कुप्र ३६; महा)

विणिक्खम :: अक [विनिस् + क्रम्] १ बाहर निकलना। २ संन्यास लेना। विणि- क्खमइ (गउड ८५१; ११८१)। संकृ. विणिक्खिमित्ता (भग)

विणिक्खमण :: न [विनिष्क्रमण] १ बाहर निकलना। २ संन्यास लेना (पंचा १८, २१)

विणिक्खित्त :: वि [विनिक्षिप्त] फेंका हुआ (नाट — मृच्छ ११९)।

विणिगिण्ह :: सक [विनि + ग्रह्] निग्रह करना, दंड देना। वकृ. विणिगिण्हंत (उप पृ २३)।

विणिगूह :: सक [विनि + गूहय्] गुप्त रखना, ढकना। विणिगूहिज्जा (आचा २, १, १०, २)।

विणिग्गम :: पुं [विनिर्गम] निःसरण, बाहर निकलना (गउड)।

विणिग्गय :: वि [विनिर्गत] बाहर निकला हुआ, बाहर गया हुआ (से २, ५; महा; भवि)।

विणिघाय :: पुं [विनिघात] १ मरण, मौत। २ संसार, भव-भ्रमण (ठा ५, १ — पत्र २९१)

विणिच्छ :: सक [विनिस् + चि] निश्चय करना। विणिच्छइ (सण)। संकृ. विणि- च्छिऊण (सण)।

विणिच्छय :: पुं [विनिश्चय] निश्चय, निर्णंय, परिज्ञान (पणह १, १ — पत्र १; ठा ३, ३; उव)।

विणिच्छिअ :: वि [विनिश्चित] निश्चित, निर्णीत (भग; उवा; कप्प; सुर २, २०२)।

विणिजुंस :: सक [विनि + युज्] जोड़ना, कार्यं में लगाना, प्रवृत्त करना। विणिजुंजइ (कुप्र ३९१)।

विणिज्जंतण :: वि [विनियन्त्रण] १ नियन्त्रण- रहित। २ प्रकटित, खुला। ३ निर्व्याज, कपट-रहित (से ११, २१)

विणिज्जमाण :: देखो विणी = वि + नी।

विणिज्जरण :: न [विनिर्जरण] निर्जरा, विनाश (विसे ३७७९; संबोध ५१)।

विणिज्जरा :: स्त्री [विनिर्जरा] ऊपर देखो (संबोध ४९)।

विणिज्जिअ :: वि [विनिर्जित] पराभूत, जिसका पराभव किया गया हो वह (महा; रंभा; नाट — विक्र ९०)।

विणिद्द :: वि [विनिद्र] खिला हुआ, विकसित (पाअ)।

विणिद्दलिय :: वि [विनिर्दलित] विदारित, तोड़ा हुआ (सण)।

विणिद्‌धुण :: सक [विनिर् + धू] कँपाना। वकृ. विणिद्‍धूणमाण (पि ५०३)।

विणिप्फन्न :: वि [विनिष्पन्न] संसिद्ध, संपन्न (उप ३६६)।

विणिप्फिडिअ :: वि [विनिस्फिटित] विनिर्गंत, बाहर निकला हुआ; 'सालिग्गामाउ तओ वंदणहेउं विणिप्फि़डिओ' (पउम १०५, २३)।

विणिबुड्ड :: देखो विणिवुड्ढ (पि ५६६)।

विणिब्भिन्न :: वि [विनिर्भिन्न] विदारित; 'कुतविणिब्भिन्नकरिकलहमुक्कसिक्कारपउरम्मि' (णमि १६)।

विणिमीलिअ :: वि [विनिमीलित] मीचा हुआ, मूँदा हुआ; 'अलिअपसुत्तअविणिमीलि- अच्छ दे सुहअ मज्झ ओआसं' (गा २०)।

विणिमुक्क :: देखो विणिम्मुक्क (पि ५६६)।

विणिमुय :: देखो विणिम्मुय। वकृ. विणिमुयंत (औप; पि ५६०)।

विणिम्मविअ :: वि [विनिर्मित] विरचित, बनाया हुआ, कृत (उप ७२८ टी)।

विणिय्माण :: न [विनिर्माण] रचना, कृति (विसे ३३१२)।

विणिम्मिअ :: देखो विणिम्मविअ (गा १५६; २३५; पाअ; महा)।

विणिम्मुक्क :: वि [विनिर्मुक्त] परित्यक्त; 'सव्व- कम्मविणिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं' (उत्त २५, ३४)।

विणिम्मुय :: वि [विनिर् + मुच्] छोड़ना, परित्याग करना। वकृ. विणिम्मुयमाण (णाया १, १ — पत्र ५३; पि ४८५)।

विणिय :: देखो विणीअ (भवि)।

विणियट्ट :: देखो विणिवट्ट। विणियट्टिज्ज (दस ८, ३४)। वकृ. विणियट्टमाण (आचा १, ५, ४, ३)।

विणियट्ट :: वि [विनिवृत्त] १ पीछे हटा हुआ। २ प्रणष्ट; 'विणियट्ठं ति पणट्ठं' (चेइय ३४६)

विणियट्टणया :: स्त्री [विनिवर्तना] निवृत्ति (उत्त २९, १)।

विणियत्त :: देखो विणियट्ट (सुपा ३३५; भवि; गा ७१; कुप्र १८२)।

विणियत्ति :: स्त्री [विनिवृत्ति] निवृत्ति, उपरम (कुप्र १८२; गउड)।

विणिरोह :: पुं [विनिरोध] प्रतिबन्ध, अटकाब (भवि)।

विणिवट्ट :: अक [विनि + वृत्] निवृत्त होना, पीछे हटना। वकृ. विणिवट्टमाण (आचा १, ५, ४, ३)।

विणिवट्टण :: देखो विनियट्टण (राज)।

विणिवट्टणया :: स्त्री [विनिवर्तना] निवर्त्तंन, विराम (भग १७, ३ — पत्र ७२७)।

विणिवडिअ :: वि [विनिपतित] नीचे गिरा हुआ (दे १, १५७)।

विणिवत्ति :: देखो विणियत्ति (उप ७२८ टी)।

विणिवाइ :: वि [विनिपातिन्] मार गिरानेवाला (गा ६३०)।

विणिवाइज्जंत :: देखो विणिवाए।

विणिवाइय :: न [विनिपातिक] एक तरह का नाटक (राज)।

विणिवाइय :: वि [विनिपातित] मार गिराया हुआ, व्यापादित (उपे ६४८ टी; महा; स ५६; सिक्खा ८२)।

विणिवाए :: सक [विनि + पातय्] मार गिराना। कवकृ. विणिवाइज्जंत (पउम ४५, ८)।

विणिवाडिअ :: देखो विणिवाइय (दे १, १३८)।

विणिवाद, विणिवाय :: पुं [विनिपात] १ निपात, अन्तिम, पतन, विनाश; 'पर- खग्गेण वि दिट्ठो विणिवादो किं न लोगम्मि' (धर्मंसं १२५; १२६; स २९५; ७६२) २ मरण, मौत (से १३, १६; गउड; गा १०२) ३ संसार (राज)

विणिवायण :: न [विनिपातन] मार गिराना (पउम ४, ४८)।

विणिवार :: सक [विन + वारय्] रोकना, निविराण करना, निषेध करना। विणिवारए (भवि)। कवकृ. विणिवारीअंत (नाट — मृच्छ १५४)।

विणिवारण :: न [विनिवारण] १ निवारण, प्रतिषेघ। २ वि. निवारण करनेवाला (पंचा ७, ३२)

विणिवारि :: वि [विनिवारिन्] निवावरण- कर्त्ता (पंचा ७, ३२)।

विणिवारिय :: वि [विनिवारित] प्रतिषिद्ध, निवारित (महा)।

विणिविट्ट :: वि [विनिविष्ट] १ उपविष्ट, स्थित (कुप्र १५२); 'सकम्मविणिविट्ठसरिसकयचेट्ठो' (उव; वै ६०) २ आसक्त, तल्लीन (आचा)

विणिवित्त :: देखो विणियट्ट (उप ७८९)।

विणिवित्ति :: देखो विणियत्ति (विसे २६३९; उवर १२७; श्रावक २५१; २५२; पंचा १, १७)।

विणिवुड्ड :: वि [विनिमग्न] निमग्‍न, बुड़ा हुआ, तराबोर, सराबोर; 'तइआ ठिओ सि जं किर पलोट्टसंरंभसेयविणिवुड्डो' (गउड ४९०)।

विणिवेइअ :: वि [विनिवेदित] जनाया हुआ, ज्ञापित (से १४, ४०)।

विणिवेस :: पुं [विनिवेश] १ स्थिति, उप- वेशन। २ विन्यास, रचना (गउड)

विणिवेसिअ :: वि [विनिवेशित] स्थापित, रखा हुआ (गा ९७४; सुर ३, ९५)।

विणिव्वर :: न [दे] पश्चात्ताप, अनुशय (दे ७, ६८)।

विणिव्ववण :: न [विनिर्वपन] शान्ति, दाहो- पशम (गउड)।

विणिस्सरिय :: वि [विनिःसृत] बाहर निकला हुआ (सण)।

विणिस्सह :: वि [विनिस्सह] श्रान्त, थका हुआ; 'कइयावि धणुपरिस्समविणस्सहो दीही- यासु मज्जेइ' (सुपा ५९)।

विणिह° :: देखे विणिहण।

विणिहट्‍टु :: देखो विणिहा।

विणिहण :: सक [विनि + हन्] मार डालना। विणिहणेज्जा, विणिहंति (सूअ १, ११, ३७; १, ७, १६)। कर्मं. विणिहम्मंति (उत्त ३, ६)।

विणिहय :: वि [विनिहत] जो मार डाला गया हो, व्यापादित (महा)।

विणिहा :: सक [विनि + धा] १ व्यवस्था करना। २ स्थापन करना। संकृ. विणिहट्‍टु, विणिहाय, विणिहित्तु (चेइय २६८; सूअ १, ७, २१; कप्प)

विणिहाय :: देखो विणिघाय (णाया १, १४ — पत्र १८६)।

विणिहिअ, विणिहित्त :: वि [विनिहित] स्थापित (गा ३९१; सुपा ९२)।

विणिहित्तु :: देखो विणिहा।

विणी :: अक [विनिर् + इ] बाहर निकलना। विणिंति, विणेंति (गा ९५४; पि ४९३)। वकृ. विणिंत (गउड १३८)।

विणी :: सक [वि + नी] १ दूर करना, हटाना। २ विनय-ग्रहण कराना। विणिंति (णाया १, १-पत्र २९; ३०), विणिज्जामि, विणइज्ज, विणएज्ज, विणेउ (णाया १, १ — पत्र २९; सूअ १, १३, २१; वि ४६०; णाया १, १ — पत्र ३२)। भूका. विणइंसु (सूअ १, १२, ३)। भवि. विणेहिइ (पि ५२१)। बकृ. विणेमाण (णाया १, १ — पत्र ३३)। कवकृ. विणिज्जमाण (णाया १, १ — पत्र २९)। हेकृ. विणएत्तु (आचा १, ५, ६, ४; पि ५७७)

विणीअ :: वि [विनीत] १ अपनीत, दूर किया हुआ, हटाया हुआ (णाया १, १ — पत्र ३३); 'सव्वदव्वेसु विणीयतणहे' (उत्त २९, १३) २ विनय-युक्त, नम्र, शिष्ट (ठा ४; ४ — पत्र २८५; शुपा ११९; उव) ३ शिक्षित; 'भद्दो विणीअविणओ' (उव ६)

विणीआ :: स्त्री [विनीता] अयोध्या नगरी (सम १५१; कप्प; पउम ३२, ५०; ती १)।

विणील :: वि [विनील] विशेष हरा रँग का (गउड)।

विणु :: (अप) देखो विणा (हे ४, ४२६; षड्; हम्मीर २८; कुलक १२; भवि; कम्म २, ९; २६; २७; ३, ५; कुमा)।

विणेअ :: वि [विनेय] शिक्षणीय, शिष्य, अन्तेवासी, चेला (सार्धं ७०; उप १०३१ टी)।

विणेमाण :: देखो विणी = वि + नी।

विणोअ :: सक [वि + नोदय्] १ खण्डित करना। २ दूर करना, हटाना। ३ खेल करना। ४ कुतूहल करना। विणोएइ, विणोयंति (गउड), विणोदेमि (शौ) (स्वप्‍न ५१)। भवि. विणोदइस्सामो (शौ) (पि ५२८)। वकृ. विणोदअंत (शौ) (नाट — उत्तर ६५)। कवकृ. विणोदीअमाण (शौ) (नाट — मालवि ४५)

विणोअ :: पुं [विनोद] १ खेल, क्रीड़ा। २ कौतुक, कुतूहल (गउड; सिरि ५९; सुर ४, २१९; हे १, १४६)

विणोइअ :: वि [विनोदित] विनोद-युक्त किया हुआ (सुर ११, २३८; सण)।

विणोदअंत :: देखो विणोअ = वि + नोदय्।

विणोयक, विणोयग :: वि [विनोदक] कुतूहल-जनक (रंभा)।

विणोयण :: न [विनोदन] १ अपनयद, दूर करना; 'परिस्समविणोयणत्थं' (उप १०३१ टी; कुप्र १४७) २ कुतूहल, कौतुक (गा ४८७)

विण्ण :: देखो विण्णु (संक्षि १६)।

विण्णइदव्व :: देखो विण्णव।

विण्णत्त :: वि [विज्ञप्त] निवेदित (सुपा २२)।

विण्णत्ति :: स्त्री [विज्ञप्ति] १ निवेदन, प्रार्थंना (कुमा) २ ज्ञान (सूअ १, १२, १७)

विण्णत्ति :: स्त्री [विज्ञप्ति] विज्ञान, विनिर्णय (णंदि १३४)।

विण्णय :: देखो विणइय (ठा १० — पत्र ५१९)।

विण्णय :: देखो विण्ण (विपा १, २ — पत्र ३६; १, ८ — पत्र ८४)।

विण्णव :: सक [वि + ज्ञपय्] १ बिनती करना, प्रार्थंना करना। २ मालूम करना, विदित करना। ३ कहना। विण्णवइ, विण्णवेमि, बिण्णवेमो (पि ५५३; ५५१)। भवि. विणणविस्सं (रुक्मि ४१)। वकृ. विण्णवंत (काल)। संकृ. विण्णविअ (नाट — मृच्छ २६४)। हेकृ. विण्णविदुं (शौ) (अभि ५३)। कृ. विण्णइदव्व (शौ) (पि ५५१)

विण्णवणा :: स्त्री [पिज्ञापना] विज्ञापन, निवे- दन (उवा)। देखो विन्नवणा।

विण्णा :: सक [वि + ज्ञा] जानना। संकृ. विण्णाय (दस ८, ५९)। कृ. विण्णेय (काल)।

विण्णाउ :: देखो विन्नाउ (राज)।

विण्णाण :: देखो विन्नाण (उवा; महा; षड़्)।

विण्णाण :: न [विज्ञान] अवाय-ज्ञान, निश्‍च- यात्मक ज्ञान (णंदि १७६)।

विण्णाणि :: वि [विज्ञानिन्] निपुण, विचक्षण (कुमा)।

विण्णाय :: वि [विज्ञात] १ जाना हुआ, विदित (पाअ, गउड १२०) २ न. विज्ञान (कप्प)

विण्णाव :: देखो विण्णव। विण्णवेमि, विण्णा- वेहि (मा ३८; ३९)।

विण्णास :: वि [वि + न्यासय्] स्थापना करना, रखना। वकृ. विण्णासंत (पउम ४३, २६)।

विण्णास :: देखो विन्नास (मा ५१)।

विण्णासणा :: स्त्री [विन्यासना] स्थापना (उप ३५४)।

विण्णु, विण्णुअ :: वि [विज्ञ] पण्डित, जानकार, विद्वान् (भग; प्राकृ १८)।

विण्णेय :: देखो विण्णा।

विण्हावणक :: न [विस्‍नापनक] मन्त्र आदि द्वारा संस्कृत जल से कराया जाता स्‍नान (पणह १, २ — पत्र ३०)।

विण्हि :: देखो वण्हि = वृष्णि (राज)।

विण्हु :: पुं [विष्णु] १ भगवान् श्रेयांसनाथ के पिता का नाम (सम १५१) २ श्रवण नक्षत्र का आघनात दव (ठा २, ३ — पत्र ७७) ३ यदुवंश का राजा अन्धकवृष्णि का नववाँ पुत्र (अंत ३) ४ एक जैन मुनि, विष्णुकुमार नामक मुनि (कुलक ३३) ५ एक श्रेष्ठी (उफ १०१४) ६ वासुदेव, नारायण, श्रीकृष्ण। ७ व्यापक। ८ वह्नि, अग्‍नि। ९ शुद्ध। १० एक स्मृति-कर्ता मुनि (हे २, ७५) ११ आर्यं जेहिल के शिष्य एक जैन मुनि (राज) १२ स्त्री. ग्यागहवें जिनदेव की माता का नाम (सम १५१)। °कुमार पुं [°कुमार] एक विख्यात जैन मुनि श्रपडि)। °सरी स्त्री [°श्री] एक सार्थंवाह-पत्‍नी (महा)। देखो विन्हु।

वितंड :: देखो वितद्द (आचा)।

वितण्ह :: वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित, निःस्पृह (उप २६४ टी)।

वितत :: पुं [वितत] १ वाद्य का एक प्रकार का शब्द (ठा २, ३ — पत्र ६३) २ एक महाग्रह (सुज्ज २० — पत्र २९५)। देखो विअत्त। ३ देखो विअय = वितत (ठा ४, ४ — पत्र २७१)

वितत :: न [दे] कार्यं, काम काज (दे ७, ६४)।

वितत्त :: वि [वितप्‍त] विशेष तृप्‍त (पणह १, ३ — पत्र ६०)।

वितत्थ :: पुं [वित्रस्त] १ एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) २ वि. भय-भीत, डरा हुआ (महा)

वितत्था :: स्त्री [वितस्ता] एक महा-नदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)।

विदद्द :: वि [वितर्द] १ हिंसक। २ प्रतिकूल (आचा)

वितर :: देखो विअर = वि + तृ। वितराम, वितरामो (पि १०; ४५५)।

वितर :: (अप) अक [वि + स्तारय्] विस्तार करना। वितर (पिंग)।

वितरण :: देखो विअरण = वितरण (राज)।

वितल :: वि [वितल] शबल, चितकबरा (राज)।

वितह :: वि [वितथ] मिथ्या, असत्य, झूठा (आचा; कप्प; सण)।

विर्तिकिच्छिअ :: वि [विचिकित्सित] फल की तरह संदेह वाल (भग)।

वितिकिण्ण :: देखो विइकिण्ण (निचू १६)।

वितिक्कंत :: देखो विइक्कंत (भग)।

वितिगिंछ :: सक [वि + चिकित्स्] १ विचार करना, विमर्शं करना। २ संशय करना। ३ निन्दा करना। वितिगिंछइ (सूअ २, २, ४९; ५०; पि ७४; २१५)

वितिगिंछा :: देखो वितिगिच्छा (आचा १, ३, ३, १; १, ५, ५, २; पि ७४)।

वितिगिंछिय :: देखो वितिकिच्छिअ (पि ७४; २१५)।

वितिगिच्छ :: देखो वितिगिछ। वितिगिच्छामि (पिी २१५; ३२७)।

वितिगिच्छा :: स्त्री [विचिकित्सा] १ संशय, शंका, बहम (सूअ १, ३, ३, ५, पि ७४) २ चित्त-विप्लव, चित्त-भ्रम। ३ निन्दा (सूअ १, १०, ३; पि ७४)

वितिगिच्छिअ :: देखो वितिकिच्छिअ (भग)।

वितिगिट्ठ :: देखो विइगिट्ठ (राज)।

वितिमिर :: वि [वितिमिर] १ अन्धकार- रहित, विशुद्ध, निर्मंल (सम १३७; पणण १७ — पत्र ५१९; ३६ — पत्र ८४७; कप्प) २ अज्ञान-रहित (औप) ३ पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक विमान-प्रस्तट (ठा ६ — पत्र ३६७)

वितिरिच्छ :: वि [वितिर्यञ्च्] वक्र, टेढ़ा (स ३३५; पि १५१; भग ३, २ — पत्र १७३)।

वित्त :: वि [दे] दीर्घ, लम्बा (दे ७, ३३)।

वित्त :: न [वित्त] १ द्रव्य, धन (पाअ; सूअ १, २, १, २२; औप) २ वि. प्रसिद्ध, विख्यात (सूअ २, ७, २; उत्त १, ४४)। °म वि [°वत्] धनी (द्र ५)

वित्त :: न [वृत्त] १ छन्द, पद्य, कविता (सूअनि ३८; सम्मत्त ८३) २ चरित्र, आचारण (सिरि १०९३) ३ वृत्ति, वर्त्तंन (हे १, १२८) ४ वि. उत्पन्न, संजात (श ७३७; महा) ५ अतीत, गुजरा हुआ (महा) ६ दृढ़, मजबूत। ७ वर्त्तुंल, गोल। ८ अधीत, पठित। ९ मृत (हे १, १२८) १० संसिद्ध, पूर्णं (सुर ४, ३९; महा)। °प्पाय वि [°प्राय] पूर्णं-प्राय (सुर ७, ८४)। देखो वट्ट = वृत्त।

वित्त :: देखो वेत्त = वेत्र (सूअनि १०८)।

°वित्त :: देखो पित्त (उप ५२२)।

वित्तइ :: वि [दे] १ गर्वित, अभिमानी। २ पुं. विलसित, विलास। ३ गर्वं, अहंकार (दे ७, ९१)

वित्तंत :: पुं [वृत्तान्त] समाचार, खबर (पउम २३, १८; सुपा २०४; भवि)।

वित्तत्थ :: देखो वितत्थ (सुख ९, १; नाट — वेणी २९)।

वित्तविय :: देखो वट्टिअ, वत्तिअ = वर्त्तित (भवि)।

वित्तास :: सक [वि + त्रासय्] भयभीत करना, डराना। वित्तासए (उत्त २, २०)। वकृ. वित्तासंत (पउम २८, २६)।

वित्तास :: पुं [वित्रास] भय, त्रास, डर (सुपा ४४१)।

वित्तासण :: न [वित्रासन] भय-प्रदर्शंन (आव)।

वित्तासिअ :: वि [वित्रासित] डरा कर भगाया हुआ (सुपा ६५२)।

वित्ति :: पुं [वेत्रिन्] दरवान्, प्रतीहार (कम्म १, ९)।

वित्ति :: स्त्री [वृत्ति] १ जीविका, निर्वाह- साधन (णाया १, १ — पत्र ३७; स ६७९; सुर २, ४९) २ टीका, विवरण (सम ४९; विसे १४२२; सार्ध ७३) ३ वर्त्तन, आव- रण। ४ स्थिति। ५ कौशिकी आदि रचना- विशेष। ६ अन्तःकरण आदि का एक तरह का परिणाम (हे १, १२८)। °अ वि [द] वृत्ति देनेवाला (औप; अत; णाया १, १ टी — पत्र ३)। °आर वि [°कार] टीका- कार, विवरण-कर्त्ता (कप्पू)। °च्छेय, °च्छएय [°च्छेद] जीविका-विनाश (आचा; सूअ १, ११, २०)। देखो वित्ती° = वृत्ति।

वित्तिअ :: वि [वित्तिक] वित्त से युक्त, धनवाला, वैभवशाली (औप; अन्त; णाया १, १ टी — पत्र ३)।

वित्ती° :: देखो वित्त = वृत्त। °कप्प वि [°कल्प] सिद्धप्राय, पूर्णं-प्राय (तंदु ७)।

वित्ती° :: देखो वित्ति = वृत्ति। °संखेव पुं [°संक्षेप] बाह्य तप का एक भेद — खाने, पीने और भोगने की चीजों को कम करना (सम ११)। °संखेवण न [°संक्षेपण] वही अर्थं; वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ (नव २८; पडि)।

वित्तेस :: वि [वित्तेश] धनी, श्रीमंत (उ ७२८ टी)।

वित्थ :: पुंन [विस्त] सुवर्णं, सोना (से १, १)।

वित्थक्क :: अक [वि + स्था] १ स्थिर होना। २ विलम्ब करना। ३ विरोध करना। वकृ. वित्थक्कंत (से ३, ४, १३, ७०; ७४)

वित्थक्क :: देखो विथक्क (स ६३४ टि)।

वित्थड, वित्थय :: वि [विस्तृत] १ विस्तार-युक्त, विशाल (भग; औप; पाअ; वसु; भवि; गा ४०७) २ संबद्ध, घटित (से १, १)

वित्थर :: अक [वि + स्तृ] १ फैलाना। २ बढ़ना। वित्थरइ (प्राकृ ७६; स २०१; ६८४; सिरि ९२७, मन २५)। वकृ. वित्थरंत (से ३, ३१; स ६८९)। हेकृ. वित्थरिउं (पि ५०५)

वित्थर :: पुंन [विस्तर] १ विस्तार, प्रपंच (गउड) २ शब्द-समूह (गउड ८९)

वित्थर :: देखो वित्थड; 'तत्थ वित्थरा कज्ज- धुरा' (से ४, ४६), वित्थरं च तलवट्टं' (वज्जा १०४)।

वित्थरण :: वि [विस्तरण] १ फैलानेवाला। २ वृद्धिजरेक (कुमा)

वित्थरिअ :: देखो वित्थड (सुर ३, ५४; सुपा ३६८; पि ५०५; भवि; सण)।

वित्थार :: सक [वि + स्तारय्] फैलाना। वित्थारइ (भवि), वित्थारेदि (शौ) (नाट — शकु १०६)।

वित्थार :: पुं [विस्तार] फैलाव, प्रपञ्च (गउड; हे ४, ३९५; नाट — शकु ९)। °रुइ विट [°रुचि] सम्यक्त्व-विशेष वाला, सब पदार्थों को विस्तार से जानने की चाहवाला सम्य- क्त्वी (पव १४९)।

वित्थारइत्तअ :: (शौ) वि [विस्तारयितृ] फैलानेवाला (अभि २८; पि ६००)।

वित्तारग :: वि [विस्तारक] फैलानेवाला (रंभा)।

वित्थारण :: न [विस्तारण] फैलाव; 'सीसमइ- वित्थारणमित्थत्थोयं कओ समुल्लावो' (सम्म १२२, सिरिर १२०७)।

वित्थारिय :: वि [विस्तारित] फैलाया हुआ (सण; दे)।

वित्तिण्ण, वित्थिन्न :: वि [विस्तीर्ण] विस्तार-युक्त, विशाल (नाट — मृच्छ ९४; पाअ; भवि)।

वित्थिय :: देखो वित्थड (स ६९७; गा ४०७ अ)।

वित्तिर :: न [दे] विस्तार, फैलाव (षड्)।

वित्थुय :: देखो वित्थड (स ६१०)।

विथक्क :: वि [विष्ठित] जो विरोध में खड़ा हुआ हो, विरोधी बना हुआ (स ४६७; ६३४)।

विद :: दखो विअ = विद्। वकृ. विदंत (उप २८० टी)। संकृ. विदित्ता, विदित्ताणं (सूअ १, ६, २८; पि ५८३)।

विदंड :: पुं [विदण्ड] कक्षा तक लम्क्षी लट्ठी (पव ८१)।

विदंसग :: देखो विदंसय (पणह १, १ टी — पत्र १५)।

विदंसण :: न [विदर्शन] अन्धकार-स्थित वस्तु का प्रकाशन (पणह १, १ — पत्र ८)। देखो विद्‌रिसण।

विदंसय :: वि [विदंशक] श्येन आदि हिंसक पक्षी (उत्त १९, ६५; सुख १९, ६५)।

विदड्‍ढ, विदद्ध :: वि [विदग्ध] १ पण्डित, विच- क्षण (संक्षि ८) २ विशेष दग्ध (पव १२५) ३ अजीर्णं का एक भेद (राज)। देखो विद्दड्‍ढ।

विदब्भ :: पुंस्त्री [विदर्भ] १ देश-विशेष, 'इओ य विदब्भदेसमंडणं कुडिणं नयरं' (कुप्र ४८; गा ८९) २ भगवान् सुपार्श्वंनाथ के गणधर — मुख्य शिष्य का नाम (सम १५२)। ३ पुंस्त्री. विदर्भं देश की प्राचीन राजधानी, कुण्डिनपुर, जो आजकल 'नागपुर' के नाम से प्रसिद्ध हैं; 'दूरे विदब्भा' (कुप्र ७०)

विदरिसण :: वि [विदर्शन] जिसके देखने से भय उत्पन्‍न हो वह वस्तु, विरूप आकारवाली विभीषिका आदि; 'एस णं तए विदरिसणे दिट्‍ठे' (उवा)। देखो विदंसण।

विदल :: न [विदल] वंश, बाँस (सुख १०, १; ठा ४, ४ — पत्र २७१)।

विदल :: न [द्विदल] १ चना आदि वह शुष्क धान्य जिसके दो दुकड़े समान होते हैं, 'जम्मि हु पीलिज्जंते नेहो न हु होइ बिंति तं विदलं। विदलेवि हु उप्पन्‍नं नेहजुयं होइ नो विदलं' (संबोध ४४) २ वि. जिसको दो दुकड़े किए गए हों वह (सूअनि ७१)

विदलिद :: (शौ) वि [विदलित] खण्डित, चूर्णित (नाट — वेणी २९)।

विदाअ :: देखो विद्दाय = विद्रुत (से १३, २५)।

विदारग, विदारय :: वि [विदारक] विदारण-कर्त्ता; 'कम्मरयविदारगाइं' (पणह २, १ — पत्र ९९; राज)।

विदालण :: न [विदारण] विविध प्रकार से चीरना, फाड़ना (पणह १, १ — पत्र १४)।

विदिअ :: देखो विइअ (अभि १२३; पउम ३९, ६८)।

विदिण्ण :: देखो विइण्ण = वित्तीर्णं (विपा १, २ — पत्र २२)।

विदिण्ण :: वि [विदीर्ण] फाड़ा हुआ, चीरा हुआ (नाट — मृच्छ २५५)।

विदित्ता, विदित्ताणं :: देखो विद = विद्।

विदिन्न :: देखो विदिण्ण = वितीर्णं (विपा १, २ टी — पत्र २२; सुर ५, १८७)।

विदिस :: (अप) स्त्री [विदिशा] एक नगरी का नाम (भवि)।

विदिसा, विदिसी° :: स्त्री [विदिश] १ विदिशा, उपदिशा, कोण (आचा; पि ४१३; पणण १ — २९) २ विपरीत दिशा, असंयम (आचा)

विदु :: देखो विउ (पंचा १६, ७)।

विदुगुंछा :: देखो विउच्छा (राज)।

विदुग्ग :: न [विदुर्ग] समुदाय (भग १, ८)।

विदुम :: वि [विद्वस्] विद्वान्, जानकार (सूअ १, २, ३, १७)।

विदुर :: वि [विदुर] १ विचक्षण, विज्ञ (कुमा) २ धीर ३ नागर, नागरिक (हे १, १७७) ४ पुं. कौरवों के एक प्रख्यात मन्त्री (णाया १, १६ — पत्र २०८)

विदुलतंगे :: न [विद्युल्लताङ्ग] संख्या-विशेष, हाहाहूहू को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)।

विदुलता :: स्त्री [विद्युल्लता] संख्या-विशेष, विद्युल्लतांग को चौरासी लाख से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक)।

विदुस :: देखो विदुः 'ण पमाणं अत्ति विदुसाणं' (धर्मंसं ८८०)।

विदूसग, विदूसय :: पुं [विदूषक] मसखरा, राजा के साथ रहनेवाला मुसाहब (सार्धं ६५; सम्मत्त ३०)।

विदेस :: देखो विएस = विदेश (णाया १, २ — पत्र ७९; औप; पउम १, ६९; विसे १६७१; कुमा; प्रासू ४४)।

विदेसि :: कि [विदेशिन्] परदेशी (सुपा ७२)।

विदेसिअ :: वि [विदेशिक] ऊपर देखो (सिरि ३९४)।

विदेह :: पुं [विदेह] १ राजा जनक (ती ३) २ पुं. ब. देश-विशेष; बिहार का उत्तरीय प्रदेश जो आजकल 'तिरहुत' के नाम से प्रसिद्ध है; 'इहेव भारहे वासे पुव्वदेसे विदेहा णामं जणवया' (ती १७; अंत) ३ पुंन. वर्षं- विशेष, महाविदेह-क्षेत्र (पव १६३) ४ वि. विशिष्ट शरीरवाला। ५ निर्लेप, लेप- रहित। ६ पुं. अनंग, कामदेव। ७ गृह-वास (कप्प ११०) ८ निषध पर्वंत का एक कूट। ९ नीलवंत पर्वत का एक कूट (ठा ९ — पत्र ४५४)। °जंबू स्त्री [°जम्बू] जम्बूवृक्ष-विशेष, जिसके नाम से यह जम्बू- द्वीप कहलाता है (जं ४; इक)। °जच्च पुं [°जार्च, °यात्य] भगवान् महावीर (कप्प ११०)। °दिन्ना स्त्री [°दत्ता] भगवान् महावीर की माता, रानी त्रिशला (कप्प)। °दुहिआ स्त्री [°दुहितृ] राजा जनक की पुत्री, सीता (ती ३)। °पुत्त पुं [°पुत्र] राजा कूणिक (भग ७, ८)

विदेहदिन्न :: पुं [वैदेहदत्त] भगवान् महावीर (कप्प ११० टी)।

विदेहा :: स्त्री [विदेहा] १ भगवान् महावीर की माता, त्रिशला देवी (कप्प ११० टी) २ जानकी, सीता (पउम ४६, १०)

विदेहि :: पुं [वैदेहिन्] विदेह देश का अधिपति, तिरहुत का राजा (सूअ १, ३, ४, २)।

विदेही :: स्त्री [विदेही] राजा जनक की पत्‍नी, सीता की माता (पउम २६, २)।

विद्दंडिअ :: वि [दे] नाशित, नष्ट किया हुआ (दे ७, ७०)।

विद्दड्‍ढ :: पुं [विदग्ध] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २७)।

विद्दव :: सक [वि + द्रावय्] १ विनाश करना। २ हैरान करना, उपद्रव करना। ३ दूर करना, हटाना। ४ झरना, टपकना। विद्दवई (कुप्र २८०)। वकृ. विद्दवयंत (रयण ७२)। कवकृ. 'रज्जं रक्खइ न परेहिं विद्दविज्जंतं' (कुप्र २७; सुर १३, १७०)

विद्दव :: पुं [विद्रव] १ उपद्रव, उपसर्गं; 'परचक्कचरडचोराइविद्दवा दूबरमुवगया सव्वे' (कुप्र २०) २ विनाश (णाया १, ९ — पत्र १५७; धर्मंवि २३)

विद्दविअ :: वि [विद्रवित] १ विप्लावित (से ४, ६०) २ दूर किया हुआ, हटाया हुआ (गा ८८) ३ विनाशित (भवि; सण)

विद्दा :: अक [वि + द्रा] खराब होना। विद्दाइ (से ४, २९)।

विद्दाण :: वि [विद्राण] १ म्लान, निस्तेज, फीका; 'विद्दाणमुहा ससोगिल्ला' (सुर ६, १२४), 'अदीणविद्दाणमुहकमलो' (यति ४३), 'दारिद्दमविद्दाणं नज्जइ आयारमित्तओ तुज्झं' (कुप्र १९५) २ शोकातुर, दिलगीर; 'विद्दाणो परियणो' (स ४७३; उप ९०४; उप ३२० टी)

विद्दाय :: वि [विद्रुत] १ विनष्ट (कुमा) २ पलायित। ३ द्रव-युक्त, द्रव-प्राप्‍त (हे १, १०७; षड्)

विद्दाय :: अक [विद्वास्य्] खुद को विद्वान् मानना। वकृ. विद्दायमाण (आचा)।

विद्दार :: देखो विड्डार (वव १)।

विद्दारण :: (अप) वि [विदारण] चीरनेवाला, फाड़नेवाला। स्त्री. °णी (भवि)।

विद्दापिय :: देखो विद्दविअ (भवि)।

विद्‍दुम :: पुं [विद्रुम] १ प्रवाल, मूँगा (से २९; गउड; जी ३) २ उत्तम वृक्ष (से २, २९)। °भ पुं [°भ] नववें बलदेव का पूर्वं-जन्म का गुरु (पउम २०, १९३)

विद्‌दुय :: वि [विद्रुत] अभिभूत, पीड़ित; 'अग्गिभयविहु' (? द्द) या (णाया १, १ — पत्र ६५)।

विद्‌दूणा :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (धे ७, ६५)।

विद्देस :: पुं [विद्वेष] द्वेष, मत्सर (पणह १, २ — पत्र २६)।

विद्देस :: वि [विद्वेष्य] द्वेष-योग्य, अप्रिय (पणह १, २ — पत्र २९)।

विद्देसण :: न [विद्वेषण] एक प्रकार का अभिचार-कर्मं, जिससे परस्पर में शत्रुता होती है (स ६७८)।

विद्देसि :: वि [विद्वेषिन्] द्वेष-कर्ता (कुप्र ३६७)।

विद्देसिअ :: देखो विदेसिअ (श्रा १२)।

विद्देसिअ :: वि [विद्विषित] द्वेष-युक्त (भवि)।

विद्ध :: सक [व्यध्] वींधना, छेद करना। विद्धइ (धात्वा १५३; नाट — रत्‍ना ७)। कवकृ. विद्विज्जंत (वै ८८)। संकृ. विद्‍धूण (सूअ १, ५, १, ९)।

विद्ध :: वि [विद्ध] वींधा हुआ, वेध किया हुआ (से १, १३; भवि)।

विद्ध :: देखो वुड्‌ढ = वृद्ध (उत्त ३२, ३; हे १, १२८; भवि)।

विद्धंस :: अक [वि + ध्वंस्] विनष्ट होना। विद्धंसइ (ठा ३, १ — पत्र १२३)। वकृ. विद्धंसमाण (सूअ १, १५, १८)।

विद्धंस :: सक [वि + ध्वंसय्] विनष्ट करना। भवि. विद्धंसेहिंति (भग ७, ६ — पत्र ३०५)।

विद्धंस :: पुं [विध्वंस] १ विनाश (सुर १, १२) २ वि. विनाश-कर्ता; 'जहा से तिमिरविद्धंसे उत्तिट्ठं ते दिवायरे' (उत्त ११, २४)

विद्धंसण :: न [विध्वंसन] विनाश (णाया १, १ — पत्र ४८; पणह १, ३ — पत्र ५५; सूअ १, २, २, १०; चेइय ६६४; उप पृ १८७)।

विद्धंसणया :: स्त्री [विध्वंसना] विनाश (भग)।

विद्धंसित :: वि [विध्वंसित] विनाशित (चंड ३, ५)।

विद्धंसिय, विद्धत्थ :: वि [विध्वस्त] विनष्ट (पउम ८, २३७; १९, ३०; पव १५५)।

विद्धि :: स्त्री [वृद्धि] १ बढ़ाव, बढ़ती (उप ७२८ टी; सुर ४, ११५) २ समृद्धि (ठा १० — पत्त्र ५२५; विसे ३४०८) ३ अभ्युदय। ४ संपत्ति। ५ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९) ६ कलान्तर, सूद (विपा १, १ — पत्र ११) ७ व्याकरण-प्रसिद्ध-स्वर का विकार (विसे ३४८२) ८ ओषधि- विशेष (राज)

विद्‍धूण :: देखो विद्ध = व्यध्।

विधम्म :: देखो विहम्म (राज)।

विधम्मिय :: वि [विधर्मित] तिरस्कृत (विसे २३४९)।

विधवा :: देखो विहवा (निचू ८)।

विधा :: अ [वृथा] मुधा, निरर्थक, व्यर्थ (धर्मंसं ४११)।

विधाण :: देखो विहाण = विधान (बृह १)।

विधाय :: देखो बिहाय = विधातृ (राज)।

विधार :: सक [वि + धारय्] निवारण करना। संकृ. विधारेउं (पिंड १०२)।

विधि :: (शौ) देखो विहि (हे ४, २८२; ३०२)।

विधुर :: वि [विधुर] १ व्याकुल, विह्वल; 'नहि विधुरसहावा हुंति दुत्थेवि धीरा' (कुप्र ५४) २ विषम, असमान (धर्मंसं १२२३; १२२४)। देखो विहुर।

विधुव :: (शौ) देखो विहुण = वि + घू। विधुवेदि (पि ५०३)।

विधूण :: देखो विहुण = वि + धू। संकृ. विधू- णित्ता (सूअ २, ४, १०)।

विधूम :: पुं [विधूम] अग्‍नि, वह्नि (सूअ १, ५, २, ८; वसु)।

विधूय :: वि [विधूत] क्षुणण, सम्यक् स्पृष्ट; 'विधूयकप्पे' (आचा १, ३, ३, ३; १, ६, ३, १)। देखो विहूअ।

विनड :: देखो विणड। विनडइ (भवि), 'अइ हिअअ पसिअ विरमसु दुल्लहपेम्मेण किं नु विनडेसि' (रुक्मि ५८)। कवकृ. विनडिज्जंत, विनडिज्जमाण (सुपा ६५५; १३४)।

विनडण :: न [विनटन] १ व्याकुल करना। २ विडम्बना (सुपा २०८)

विनडिअ :: वि [विनटित] १ व्याकुल जना हुआ। २ विडम्बित; 'तण्हाछुहाविनडिओ फलजलरहियम्मि सेलम्मि' (सम्मत्त १५९; सुपा २९०)

विनमि :: पुं [विनमि] भगवान् ऋषभदेव का एक पौत्र (धण १४)।

विनास :: देखो विणास = वि + नाशय्। विना- सए (महा)।

विनिज्झा :: सक [विनि + ध्यै] देखना। विनिज्झाए (दस ५, १, १५)।

विनिबद्ध :: वि [विनिबद्ध] संबद्ध, बँदा हुआ (महा)।

विनिमय :: पुं [विनिमय] व्यत्यय, 'इअ सव्व- भासविनिमययपरिहिं' (कुमा)।

विनियट्ट :: देखो विणिवट्ट। वकृ. विनियट्ट- माण (आचा १, ५, ४, ३)।

विनियट्टण :: न [विनिवर्त्तन] निवृत्ति, विराम (आचा)।

विनिरय :: वि [विनिरत] लीन, आसक्त (कुप्र ९६)।

विनिहन्न :: सक [विनि + हन्] मार डालना, विनाश करना। विनिहन्निज्जा (उत्त २, १७)।

विनिहाय :: देखो विणिघाय (विपा १, २ — पत्र ३१)।

विनीय :: देखो विणीअ (कस)।

विन्नत्त :: देखो विण्णत्त (काल)।

विन्नत्ति :: देखो विण्णत्ति (दं ४७; कुमा)।

विन्नप्प :: देखो विन्नव।

विन्नव :: देखो विण्णव। विन्नवइ, विन्नवेइ (पउम ३९, ११४; महा), विन्नवेज्जा (कप्प)। वकृ. विन्नवेमाण (कप्प)। संकृ. विन्नविउं, विन्नवित्ता (सुपा ३२३; पि ५८२)। कृ. विन्नप्प, विन्नवणीय, विन्नवियव्व (पउम ४६, ४६; मोह ८२; सुपा १९२; २१९; ३२१)।

विन्नवण :: न [विज्ञपन] निवेदन, विज्ञापन (सुपा २९७)।

विन्नवणा :: स्त्री [विज्ञापना] १ प्रार्थंना, विनती (सूअ १, ३, ४, १०) २ महिला, नारी (सूअ १, २, ३, २)। देखो विण्णवणा।

विन्नविय :: वि [विज्ञापित] निवेदित (महा)।

विन्ना :: देखो विण्णा = वि + ज्ञा। कृ. विन्नेय (भग; उप ३३९ टी)।

विन्ना :: देखो बिन्ना। °यड न [°तट] एक नगर का नाम (उप पृ ११२)।

विन्नाउ :: वि [विज्ञातृ] जाननेवाला (आचा)।

विन्नाण :: न [विज्ञान] १ सद्‌बोध, ज्ञान (भग; आचा) २ कला, शिल्प; 'तं नत्थि किंपि विन्नाणं जेण धरिज्जइ काया' (वै ७), 'कुसुम- विन्नाणं' (कुमा; प्रासु ४३; ११२) ३ मेघा, मति, बुद्धि; 'मेहा मई मणीसा विन्नाणं धी चिई बुद्धी' (पाअ)

विन्नाणिय, विन्नाय :: देखो विण्णाय (उप १५० टी; सुर २, १३१; पि १०९; पाअ)।

विन्नाविय :: देखो विन्नविय (सुपा १४४)।

विन्नास :: पुं [विन्यास] १ रचना, विच्छत्ति; 'विन्नासो विच्छित्ती' (पाअ), 'वयणविन्नासो' (स ३०१; सुपा १७; २९९; महा) २ स्थापना (भवि)

विन्नासण :: न [विन्यासन] संस्थापन (स ३१८)।

विन्नासिअ :: वि [विन्यासित] संस्थापित (स ५६०)।

विन्नासिअ :: (अप) देखो विणासिअ (हे ४, ४१८)।

विन्‍नु :: देखो विण्णु (आचा); 'एगा विन्नु' (ठा १ — पत्र १९)।

विन्नेय :: देखो विन्ना = वि + ज्ञा।

विन्हु :: पुं [विष्णु] एक जैन मुनि, जो आर्यं- जेहिल के शिष्य थे (कप्प)। देखो विण्हु। °पअ न [°पद] आकाश (समु १५०)। °पदी स्त्री [°पदी] गंगा नदी (समु १५०)।

विपंची :: स्त्री [विपञ्ची] वाद्य-विशेष, बीणा (पणह १, ४ — पत्र ६८; २, ५ — पत्र १४९)।

विपक्क :: वि [विपक्‍व] पका हुआ (उप पृ २११)। देखो विवक्क।

बिपक्ख :: देखो विवक्ख; 'निज्जियविपक्ख- लक्खो' (सुपा १०३; २४०)।

विपक्खिय :: वि [विपक्षिक] विरोधी, दुश्‍मन (संबोध ५९)।

विपच्चइय :: न [विप्रत्ययिक] बारहवें जैन अंग-ग्रंथ का सूत्र-विशेष (सम १२८)।

विपच्चमाण :: वि [विपच्यमान] १ जो पकाया जाता हो वह (श्रा २०; सं ८९), 'आमासु अप्पक्कासु विपच्चमाणासु मंसपेसीसु' (संबोध ४४) २ दग्ध होता, जलता; 'तव्विरहान- लजालाविपच्चमाणस्स मह निच्चं' (रयण ४१)

विपज्जय :: देखो विवज्जय (राज)।

विपज्जास :: देखो विवज्जास (नाट — मृच्छ २२९)।

विपडिवत्ति :: देखो विप्पडिवत्ति (विसे २६१४; सम्मत्त २२८)।

विपडिसेह :: सक [विप्रति + सिध्] निषेध करना। कृ. विपडिसेहेयव्व (भग ५, ७ — पत्र २३४)।

विपणोल्ल :: सक [विप्र + नोदय्] प्रेरणा करना। विपणोल्लए (आचा १, ५, २, २; पि २४४)।

विपण्ण :: देखो विवण्ण = विपन्न (चारु ८)।

विपत्ति :: देखो विवत्ति = विपत्ति (गा २८२ अ; राज)।

विपत्थाविद :: (शौ) वि [विप्रस्तावित] आरब्ध, जिसका प्रारंभ किया गया हो वह; 'एदाए चोरिआए एसम्ह घरे कलहो विपत्था- विदो' (हास्य १२१)।

विपरामुस :: सक [विपरा + मृश्] १ समा- रम्भ करना, हिंसा करना। २ पीड़ा उपजाना, हैरान करना। ३ अक. उत्पन्न होना, उप- जाना। विपरामुसइ, विपरामुसंति, विपरामुसह (आचा; पि ४७१)। देखो विप्परामुस।

विपराहुत्त :: वि [विपराङ्मुक्ष्] विशेष पराङ्मुख, अतिशय उदासीन (पउम ११५, २२)।

विपरिकम्म :: न [विपरिकर्मन्] शरीर को आकुञ्चन-प्रसारण आदि क्रिया (आचा २, ८, १)।

विपरिकुंचि :: वि [विपरिकुञ्चिन्] विपरि- कुंचित नामक वन्दन-दोषवाला; 'देसकहा- बिंत्तंते कहेइ दरवंदिए विपरिकुंची' (बृह ३)।

विपरिकुंचिय :: देखो विप्पलिउंचिय (राज)।

विपरिखल :: अक [वपरि + स्खल्] १ स्खलित होना, गिरना। २ भूल करना। वकृ. विपरिखलंत (अच्चु २२)

विपरिणम :: अक [विपरि + णम्] १ बद- लना, रूपान्तर को प्राप्‍त होना। २ विपरीत होना, उलटा होना। विपरिणमे (पिंड ३२७)। वकृ. विपरिणममाण (भग ७, १० — पत्र ३२५)

विपरिणय :: वि [विपरिणत] रूपान्तर को प्राप्त (पिंड २६५)।

विपरिणाम :: सक [विपरि + णमय्] १ विपरीत करना, उलटा करना। २ बदलवाना, रूपान्तर को प्राप्‍त करना। विपरिणामेइ (स ५१३। हेकृ. विपरिणामित्तए (उवा)

विपरिणाम :: पुं [विपरिणाम] १ रूपान्तर- प्राप्‍ति (आचा; औप) २ उलटा परिणाम, विपरीत अध्यवसाय (धर्मंसं ५११)

विपरिणामिय :: वि [विपरिणमित] रूपान्तर को प्राप्‍त (भग ६, १ टी — पत्र २५१)।

विपरिधाव :: सक [विपि + धाव्] इधर उधर दौड़ना। विपरिधावई (उत्त २३, ७०)।

विपरियास :: देखो विप्परियास (राज)।

विपरिवसाव :: सक [विपरि + वासय्] रखना। विपरिवसावेइ (णाया १, १२ — पत्र १७५)। वकृ. विपरिवसावेमाण (णाया १, १२)।

विपरीअ :: देखो विवरीअ (सूअ १, १, ४, ५; गा ५४ अ)।

विपलाअ :: अक [विपरा + अय्] दूर भागना। वकृ. विपरालअंत (गा २९१)।

विपल्हत्थ :: देखो विवल्हत्थे (पि २८५)।

विपस्सि :: वि [विदर्शिन्] देखनेवाला (आचा)।

विपाग :: देखो विवाग (राज)।

विपिक्ख :: देखो विप्पेक्ख। वकृ. विपिक्खंत (राज)।

विपिण :: देखो विविण (कुमा)।

विपित्त :: वि [दे] विकसित, खिला हुआ (दे ७, ६१)।

विपुल :: देखो विउल (णाया १, १ — पत्र ७५; कप्प; पणह २, १ — पत्र ९९)। °वाहण पुं [°वाहन] भारतवर्षं में होनेवाला बारहवाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४)।

विप्प :: न [दे] पुच्छ, दुम, पूँछ (दे ७, ५७)।

विप्प :: पुं [विप्र] ब्राह्मण, द्विज (हे १, १७७; महा)।

विप्प :: पुं [विप्रुष्, विप्र] १ मूत्र और विष्ठा के बिन्दु। २ विष्ठा और मूत्र; 'मुत्तपुरीसाण विप्पुसो विप्पा अन्‍ने विडित्ति विष्ठा भासंति य पत्ति पासवणं' (विसे ७८१; औप; महा)

विप्पइट्ठ :: देखो विप्पगिट्ठ (राज)।

विप्पइण्ण :: वि [विप्रकीर्ण] बिखरा हुआ, इधऱ उधर पटका हुआ (से २, ५; कस)।

विप्पइर :: सक [विप्र + कृ] इधर उधर पटकना, बिखेरना। विप्पइरामि (उवा)। वकृ. विप्प- इरमाण (णाया १, ९ — पत्र १५७)।

विप्पउंज :: सक [विप्र + युज्] १ विरुद्ध प्रयोग करना। २ विशेष रूप से जोड़ना; 'अदुवा वायाओ विप्पउंजंति' (आचा १, ८, १, ३)

विप्पओअ, विप्पओग :: पुं [विप्रयोग] अलहदा, अलग, जुदा, विरह, वियोग (उत्तर १५; स २८१; चंड; पउम ४५, ४६; जी ४३; उत्त १३, ८; महा)।

विप्पकड :: वि [विप्रपकट] विशेष रूप से प्रकट (भग ७, १० — पत्र ३२४)।

विप्पकिर :: देखो विप्पइर। वकृ. विप्पकिरेमाण (णाया १, १ — पत्र ३९)।

विप्पक्ख :: देखो विपक्ख (पि १९६)।

विप्पगब्भिय :: वि [विप्रगल्भित] अत्यन्त धृष्ट (सूअ १, १, २, ५)।

विप्पगरिस :: पुं [विप्रकर्ष] दूरी, आसन्नता का अभाव; 'देसाइविप्पगरिसा' (धर्मंसं १२१७)।

विप्पगाल :: सक [नाशय्, विप्र + गालय्] नाश करना। विप्पगालइ (हे ४, ३१; पि ५५३)।

विप्पगालिअ :: वि [नाशित, विप्रगालित] नाशित (कुमा)।

विप्पगिट्ठ :: वि [विप्रकृष्ट] १ दूरवर्त्ती, दूरी पर स्थित (स २२६) २ दीर्घ, लम्बा; 'णाइ- विप्पगिट्‍ठेहिं अद्धाणोहिं (णाया १, १५)

विप्पचय :: सक [विप्र + त्यज्] छोड़ना, त्याग करना। कृ. विप्पचइयव्व (तंदु ३५)।

विप्पचय :: पुं [विप्रत्यय] १ संदेह, संशय (उत्त २३, २४) २ वि. प्रत्यय-रहित, अविश्वसनीय (उव)

विप्पजढ :: वि [विप्रहीण] परित्यक्त (णाया १, २ — पत्र ८४; पंचा १४, ६; पव १२३)।

विप्पजह :: सक [विप्र + हा] परित्याग करना, छोड़ देना। विप्पजहइ, विप्पजहंति, विप्पजहे (कस; उवा; सूअ २, १, ३८, उत्त ८; ४)। भवि विप्पजहिस्सामो (पि ५३०)। वकृ. विप्पजहमाण (ठा २, २ — पत्र ५९; पि ५००)। संकृ. विप्पजहित्ता, विप्पजहाय (उत्त २९, ७३; भग)। कृ. विप्पजहणिज्ज, विप्पजहियव्व (णाया १, १ — पत्र ४८; पि ५७१; णाया १, १८ — पत्र २४१)।

विप्पजह :: न [विप्रहाण] परित्याग। °सेणिया स्त्री [°श्रेणिका] बारहवें जैन अंग-ग्रन्थ का एक परिकर्मं-अंश-विशेष (सम १२९)।

विप्पजहणा, विप्पजहन्ना :: स्त्री [विप्रहाणि] प्रकृष्ट त्याग, परित्याग (उत्त २९, ७३, औप; विसे ३०८६; पणण ३६ — पत्र ८४७)।

विप्पजहिय :: वि [विप्रहीण] परित्यक्त (पि ५६५)।

विप्पजोग :: देखो विप्पओअ (चंड)।

विप्पडिइ :: अक [विपरि + इ] विपरीत होना, उलटा होना। विप्पडिएइ (सूअ १, १२, १०)।

विप्पडिघाय :: पुं [विप्रतिघात] प्रतिबन्ध, अटकाव (णाया १, १९ — पत्र २४५)।

विप्पडिपह :: पुं [विप्रतिपथ] विपरीत मार्गं (उप १०३१ टी)।

विप्पडिवण्ण :: देखो विप्पडिवन्न (पव ७३ टी)।

विप्पडिवत्ति :: स्त्री [विप्रतिपत्ति] १ विरोध (विसे २४८०) २ प्रतिज्ञा-भंग (उप ५१९)

विप्पडिवन्न :: वि [विप्रतिपन्न] १ जिसने विशेष रूप से स्वीकार किया हो वह; 'मिच्छ- चपज्जवेहिं परिवड्‍ढमाणेहिं २ मिच्छत्तं विप्प- डिवन्‍ने जाए जाए यावि होत्था' (णाया १, १३ — पत्र १७८) २ विरोध-प्राप्त, विरोधी बना हुआ (आचा १, ८, १, ३; सूअ १, ३, १, ११)

विप्पडिवेअ, विप्पडिवेद :: सक [विप्रति + वेदय्] जानना। २ विचारना। विप्पडिवेएइ (आचा १, ५, ४, ४), विप्पडि- वेदेंति (सूअ २, १, १५)

विप्पडिसिद्ध :: वि [विप्रतिषिद्ध] आपस में असंमत (उवर ३)।

विप्पडीव :: वि [विप्रतीप] प्रतिकूल (माल १७७)।

विप्पणट्ठ :: वि [विप्रनष्ट] पलायित, नाश- प्राप्त (स ३५३; उवा)।

विप्पणम, विप्पणव :: सक [विप्र + णम्] १ नमना। २ अक, तत्पर होना। विप्पणवंति (सूअ १, १२, १७)। वकृ. विप्पणमंत (राज)

विप्पणस्स :: अक [विप्र + नश्] नष्ट होना, विनाश-प्राप्त होना। विप्पणस्सइ (कस) भवि. विप्पणस्सिहिइ (महानि ४)।

विप्पणास :: पुं [विप्रणाश] विनाश (धर्मंवि ५७)।

विप्पतार :: सक [विप्र + तारय्] ठगना। विप्पतारसि (धर्मंवि १४७)। कर्मं. विप्पता- रीअदि (शौ) (नाट — शकु ७५)।

विप्पदीअ, विप्पदीव :: (शौ) देखो विप्पडीव (नाट — मालती १०९; ११९; मृच्छ ४८)।

विप्पमाय :: पुं [विप्रमाद] विविध प्रमाद (सूअ १, १४, १)।

विप्पमुंच :: सक [विप्र + मुच्] छोड़ना, मुक्त करना। कर्मं. विप्पमुच्चइ (उत्त २५, ४१)।

विप्पमुक्क :: वि [विप्रमुक्त] विमुक्त (औप; सुर २, २३७; सुपा ४४५)।

विप्पय :: न [दे] १ खल-भिक्षा। २ दान। ३ वि. वापित। ४ पुं. वैद्य (दे ७, ८९)

विप्पयार :: सक [विप्र + तारय्] ठगना। विप्पयारंति, विप्पआरेमि (कुप्र ६; त्रि ८८)। कर्म. विप्पयारीअइ (कुप्र ४४)। संकृ. विप्पआरिअ (त्रि ८८)।

विप्पयारणा :: स्त्री [विप्रतारणा] वंचना, ठगाई (कुप्र ४४; मोह ९४)।

विप्पयारिअ :: वि [विप्रतारित] वञ्चित, ठगा हुआ (मोह १०१)।

विप्परद्ध :: वि [दे] विशेष पीड़ित; 'करचरण- दंतमुसलप्पहारेहिं विप्परद्धें समाणे तं चेव महद्दहं पाणीयं पादेउं (? पाउं) समोयरेति' (णाया १, १ — पत्र ६४)। देखो परद्ध।

विप्परामुस :: देखो विपरामुस; 'आवंती केयावंती लोगंसि विप्परामुसंति अट्ठाए अणट्ठाए वा, एएसु चेव विप्परामुसंति' (आचा)।

विप्परिणम :: देखो विपरिणम। भवि. विप्परि- णमिस्सति (भग)।

विप्परिणय :: देखो विपरिणय (भग ५, ७ टी — पत्र २३६; काल)।

विप्परिणाम :: देखो विपरिणाम = विपरि + णमय्। विप्परिणामंति, विप्परिणामेंति (आचा)। संकृ. विप्परिणामइत्ता (भग)।

विप्परिणाम :: देखो विपरिणाम = विपरिणाम (आचा; भग ५, ७ टी — पत्र २३६)।

विप्परिणामिय :: देखो विपरिणामिय (भग ६, १ — पत्र २५०)।

विप्परियास :: सक [विपरि + आसय्] व्यत्यय करना, उलटा करना। विप्परियासेइ (निचू ११)। कृ. विप्परियासंत (निचू ११)।

विप्परियास :: पुं [विपर्यास] १ व्यत्यय, विपरीतता (आचा; सूअ १, ७, ११) २ परिभ्रमण (सूअ १, १२, १३; १, १३; १२)

बिप्परियासणा :: स्त्री [विपर्यासना] व्यत्यय करना (निचू ११)।

विप्परुद्ध :: वि [विप्ररुद्ध] तिरस्कृत; 'हयनिह यविप्परुद्धो दूओ' (पउम ८, ५८)।

विप्पल :: देखो विप्प = विप्र (प्राकृ ३७)।

विप्पलंभ :: सक [विप्र + लभ्] ठगना। विप्पलंभेमि (स ५०९)।

विप्पलंभ :: पुं [विप्रलम्भ] १ वञ्चना, ठगाई (उप २४) २ श्रृङ्गार की एक अवस्था — जिसमें उत्कृष्ट अनुराग होने पर भी प्रिय समागम नहीं होता (सुपा १६४) ३ विप- र्यास, व्यत्यय, वैपरीत्य (धर्मंसं ३०४)। विरह, वियोग (कप्पू)

विप्पलंभअ :: वि [विप्रलम्भक] प्रतारक, ठगनेवाला (मृच्छ ४७)।

विप्पलंभिअ :: वि [विप्रलम्भित] १ प्रतारित। २ विरहित (सुपा २१९)

विप्पलद्ध :: वि [विप्रलब्ध] वञ्चित, प्रतारित (चारु ४५; सं ४१८; ६८०)।

विप्पलय :: पुं [दे] विविधता, विचित्रता; 'तंदट्‍ठुं सो सव्वं जाणइ संबंधविप्पलयं' (धर्मंवि १२७)।

विप्पलविद :: (शौ) न [विप्रलपित] निरर्थंक वचन, बकवाद (स्वप्‍न ८१)।

विप्पलाअ :: देखो विपलाअ। भूका. विप्पला- इत्था (विपा १, २ — पत्र २९)। वकृ. विप्पलावमाण (णाया १, १ — पत्र ६५)।

विप्पलाअ, विप्पलाव :: पुं [विप्रलाप] १ परिवेदन, रोना, कन्दन; 'अविओगो विप्प- लाओ' (तंदु ८७; रयण ६४) २ निरर्थंक वचन, बकवाद (उत्त १३, ३३) ३ विरहा- लाप (पउम ४४, ६८)

विप्पलिउंचिअ :: न [वपरिकुञ्चित] गुरु- वन्दन का एक दोष, संपूर्णं वन्दन न करके बीच में बातचीत करने लग जाना (पव २ — गाथा १५२)।

विप्पलुंपग :: वि [विप्रलोपक] लूटनेवाला, लुटेरा (पणह १, ३ — पत्र ४४)।

विप्पलोहण :: वि [विप्रलोभन] लुभानेवाला (स ७६३)।

विप्पव :: पुं [विप्लव] १ देश का उपद्रव, क्रान्ति। २ दूसरे राजा के राज्य आदि से भय (हे २, १०६) ३ शरीर की विसंस्थु- लता, अस्वस्थता (कुमा)

विप्पवर :: न [दे] भल्लातक, भिलाँवा (दे ७, ६६)।

विप्पवस :: अक [विप्र + वस्] प्रवास में जाना, देशान्तर जाना। संकृ. विप्पवसिय (आचा २, ५, २, ३)।

विप्पवसिय :: वि [विप्रोषित] देशान्तप में गया हुआ, प्रवास में गया हुआ (णाया १, २ — पत्र ७९, १, ७ — पत्र ११५)।

विप्पवास :: पुं [विप्रवास] प्रवास, देशान्तर- गमन (प्रति १००)।

विप्पसन्न :: वि [विप्रसन्न] १ विशेष प्रसन्न, खुश। २ प्रसन्न-चित का मरण (उत्त ५, १८)

विप्पसर :: अक [विप्र + सृ] फैलना। भूका. 'बहवे हत्थी......दिसो दिसं विप्पसरित्था' (पि ५१७)।

विप्पसाय :: सक [विप्र + सादय्] प्रसन्न करना। विप्पसायए (आचा १, ३, ३, १)।

विप्पसीअ :: अक [विप्र + सद्] प्रसन्न होना। विप्पसीएज (उत्त ५, ३०; सुख ५, ३०)।

विप्पहय :: वि [विप्रहत] आहत, जखमी (सुर ९, २२१)।

विप्पहाइय :: वि [विप्रभाजित] विभक्त, बँटा हुआ (औप)।

विप्पहीण, विप्पहूण :: वि [विप्रहीण] रहित, वर्जित (सं ७७; स १६१; पि १२०; ५०३)।

विप्पावग :: वि [दे] हास्य-कर्ता, उपहास करनेवाला (सुख १, १३)।

विप्पिअ :: पुंन [विप्रिय] १ अप्रिय, अनिष्ट (णाया १, १८ — पत्र २१३; गा २५०; से ४, ३६; हे ४, ४२३) २ अपराध, गुनाह (पाअ) °आरय वि[°कारक] १ अप्रिय- कर्ता। २ अपराध-कर्ता (हे ४, ३४३)

विप्पंडिअ :: वि [दे] नाशित (दे ७, ७०)।

विप्पीइ :: स्त्री [विप्रीति] अप्रीति (पणह १, ३ — पत्र ४२)।

विप्पु :: स्त्री [विप्रुष्] बिन्दु, अवयव, अंश; 'मुत्तपुरीसाण विप्पुसा विप्पा' (औप; विसे ७८१)।

विप्पुअ :: वि [विप्लुत] उपद्रुत, उपद्रव-युक्त (दे ६, ७६)।

विप्पुस :: /?/पुंन. देखो विप्पु; 'असुइस्स विप्पु- सेणवि' (पिंड १९५)।

विप्पकेख :: सक [विप्र + ईक्ष्] निरीक्षण करना, देखना। वकृ. विप्पेक्खंत (पणह १, १ — पत्र १८)।

विप्पेक्खिअ :: वि [विप्रेक्षित] निरीक्षित (पणह २, ४ — पत्र १३१; भग ९, ३३ — पत्र ४६६)।

विप्पेसहि :: स्त्री [विप्रौषधि] आध्यात्मिक- शक्ति-विशेष, जिसके प्रभाव से योगी के विष्ठा और मूत्र का बिन्दु ओषधि का काम करता है (पणह २, १ — पत्र ९९; औप; विसे ७७९; संति २)।

विप्फंद :: अक [वि + स्पन्द्] इधर-उधर चलना, तड़फना। वकृ. विप्फंदमाण (आचा)।

विप्फंदिअ :: वि [विस्पन्दिन्] इधर-उधर भटका हुआ, परिभ्रान्त; 'खज्जंतेण जलथले सकम्म- विप्फंडि (? दि) एण जीवेणं। तिरियभवे दुक्खाइं छुहतणहा- ईणि भुत्ताइं।' (पउम ९५, ५२)।

विप्फरिस :: पुं [विस्पर्श] विरुद्ध स्पर्शं (प्राप्र)।

विप्फाडग :: वि [विपाटक] चीरनेवाला, विदारक (पणह १, ४ — पत्र ७२)।

विप्फाडिअ :: वि [दे. विपाटित] नाशित (दे ७, ७०)।

विप्फारिय :: वि [विस्फारित] १ विस्तारित (उप पृ १५२) २ विकासित (सुपा ८३)

विप्फाल :: सक [दे] पूछना, पृच्छा करना। विप्फालेइ (वव १)।

विप्फाल :: देखो विकाल। संकृ. विप्फालिय (राज)।

विप्फाल :: पुं [दे] पृच्छा, प्रश्‍न (वव १टी)।

विप्फालणा :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (वव १ टी)।

विप्फालिय :: देखो विप्फारिय (राज)।

विप्फुड :: वि [विस्फुट] स्पष्ट, व्यक्त (रंभा)।

विप्फुर :: अक [वि + स्फुर्] १ होना। २ विकसना। ३ तड़फड़ना। ४ फरकना, हिलना। विप्फुरइ (संबोध ३४; काल; भवि)। वकृ. विप्फुरंत (उत्त १९, ५४; पउम ९३, ३)

विप्फुरण :: न [विस्फुरण] १ विजृम्भण, विकास (श्रावक २४५; सुर २, २३७) २ स्पन्दन, हिलन (गउड)

विप्फुरिय :: वि [विस्फुरित] विजृम्भित (सुपा २०४; सण)।

विप्फुल्ल :: वि [विफुल्ल] विकसित, प्रफुल्ल; 'तह तह सुणहा विप्फुल्लगंडविवरंमुही हसइ' (वज्जा ४४)।

विप्फोडअ :: पुं [विस्फोटक] फोड़ा (नाट — शकु २७; पि ३११; प्राप्र)।

विफंद :: देखो विप्फंद। वकृ. विफंदमाण (आचा १, ४, ३, ३)।

विफाल :: सक [वि + पाटय्] १ विदारण करना। २ उखाड़ना। संकृ. विफालिय (आचा २, ३, २, ६)

विफुट्ट :: अक [वि + स्फुट्] फटना। वकृ. चिंतंति किं विफुट्टंत चंडबंभंडयस्स रवो' (सुपा ४५)।

विफुरण :: देखो विप्फुरण (सुपा २५)।

विबंधक :: वि [विबन्धक] विशेष रूप से बाँधनेवाला (पंच २, १)।

विबद्ध :: वि [विबद्ध] १ विशेष बद्ध। २ माहित (सूअ १, ३, २, ९)

विबाहग :: वि [विबाधक] विरधी, बाधक (धर्मंसं ४९९)।

विवुद्ध :: वि [विबुद्ध] जागृत (सिरि ९१५)।

विबुध :: (शौ) नीचे देखो (पि ३६१)।

विबुह :: पुं [विबुध] १ देव, त्रिदश (पाअ, सुर १, ४५) २ पण्डित, विद्वान् (सुर १, ४५)। °चंद पुं[°चन्द्र] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (सुपा ६५८)। °पहु पुं[°प्रभु] इन्द्र (सुर १, १७२)। °पुर न[°पुर] स्वर्गं (सम्मत्त १७५)

विबुहेसर :: पुं [विबुधेश्वर] इन्द्र (श्रावक ५६)।

विबोह :: पुं [विबोध] जागरण (पंचा १, ४२)।

विबोहग :: देखो विबोहय (कप्प)।

विबोहण :: न [विबोधन] ज्ञान कराना; 'अबुहजणविबोहणकरस्स' (सम १२३)।

विबोहय :: वि [विबोधक] १ विकासक; 'कुमुयवणविबोहयं' (कप्प ३८ टि) २ ज्ञान-जनक (विसे १७४)

विब्बोअ :: पुं [विव्वोक] विलास, लीलाा; 'हेला ललिअं लीला विब्बोओ विब्भमो विलासो य' (पाअ)। देखो बिब्बोअ।

विब्भंग :: देखो विभंग (भग; पव २२६, कम्म ४, १४; ४०)।

विब्भंगि :: वि [विभङ्गिन्] विभंग-ज्ञानवाला (भग)।

विब्भंत :: वि [विभ्रान्त] १ विशेष भ्रान्त, चक्कर में पड़ा हुआ (आचा १, ६, ४, ३) २ पुं. प्रथम नरक-भूमि का सातवाँ नर- केन्द्रक — स्थान-विशेष (देवेन्द्र ४)

विब्भंस :: पुं [विभ्रंश] अतिपात, हिंसा, प्राण- वियोजन (राज)।

विब्भट्ठ :: वि [विभ्रष्ट] विशेष भ्रष्ट (पति ४०)।

विब्भस :: पुं [विभ्रम] १ विलास (पाअ; गउड ५५; १९७; कुमा) २ स्त्री की श्रृंगार के अंग-भूत चेष्टा-विशेष (गउड; गा ५) ३ चित्त-भ्रम, पागलपन (राय) ४ श्रृंगार- संबन्धी मानसिक अशान्ति (कप्पू) ५ विशेष भ्रान्ति (सुपा ३२७; गउड) ६ संदेह। ७ आश्चर्य। ८ शोभा (गउड) ९ भूषणों का स्थान-विपर्यंय (कुमा) १० रावण का एक सुभट (पउम ५६, २९) ११ मैथुन, अब्रह्म। १२ काम-विकार (पणह १, ४ — -पत्र ६६)

विब्भल :: वि [विह्‍वल] १ व्याकुल, व्यग्र (सुर ८, ५७; १२, १६८) २ व्यासक्त, तल्लीन। ३ पुं. विष्णु, नारायण (षड् ४०; हे २, ५८)

विब्भलिअ :: वि [विह्‍वलित] व्याकुल किया हुआ (कुमा)।

विब्भवण :: न [दे] उपधान, ओसीसा (दे ७, ६८)।

विब्भाडिय :: वि [दे] नाशित (भवि)।

विब्भार :: देखो वेब्भार (पि २६६)।

विब्भिडि :: पुं [दे] मत्स्य की एक जाति (विपा १, ८ टी — पत्र ८३)।

विब्भेइअ :: वि [दे] सूई से विद्ध (दे ७, ६७)।

विभंग :: पुं [विभङ्ग] १ विपरीत अवधिज्ञान, वितथ अवधिज्ञान, मिथ्यात्व-युक्त अवधिज्ञान (पव २२६ टी) २ ज्ञान-विशेष (सूअ २, २, २५) ३ विराधना, खण्डन। ४ मैथुन, अब्रह्म (पणह १, ४ — पत्र ६६)। देखो विहंग = विभंग।

विभंगु :: पुंस्त्री [दे] तृण-विशेष; 'एरंडे कुरुविंदे करकरसुंठे तहा विभंगू य' (पणण १ — पत्र ३३)।

विभंगुर :: वि [विभङ्गुर] विनश्वर (सुपा ६०५; प्रासू ९९; पुप्फ २२०)।

विभंज :: सक [वि + भञ्ज्] भाँग डालना, तोड़ना। संकृ. विभंजिऊण (काल)।

विभंतडी :: (अप) स्त्री [विभ्रान्ति]विशिष्ट भ्रम (हे ४, ४१४)।

विभग्ग :: वि [विभग्न] भाँगा हुआ, खण्डित (पउम ११३, २६)।

विभज :: सक [वि + भज] १ बाँटना, विभाग करना। २ विकल्प से प्राप्त करना, पक्षतः प्राप्‍ति करना — विधान और निषेध करना। कर्मं. विभज्जंति (तंदु २)। कवकृ. विभज्जमाण (णाया १, १ — पत्र ६०; उप २६४ टी)। संकृ. विभजिऊण (धर्मंवि १०५)। देखो विभज्ज।

विभजण :: न [विभजन] विभाग, भाग-बँटाई (पव ३८)।

विभज्ज :: देखो विभज। विभज्ज (कम्म ६, १०)।

विभज्जवाद, विभज्जवाय :: पुं [विभज्यवाद] स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, जैन दर्शन (धर्मंसं ९२१; सूअ १, १४, २२; उवर ९९)।

विभत्त :: वि [विभक्त] १ विभाग-युक्त, बाँटा हुआ (नाट — शकु ४६; कप्प) २ भिन्न; अलग, जुदा; 'विभत्तं धम्मं झोसेमाणे' (आचा; कप्प; महा) ३ न. विभाग (राज)

विभत्ति :: स्त्री [विभक्ति] १ विभाग, भेद (भग १२, ५ — पत्र ५७४; सूअनि ६६; उत्तनि ३६); 'लोगस्स पएसेसु अणंतरपरंपरा- विभत्तीहिं' (पंच २, ३९; ४०; ४१) २ व्याकरण-प्रसिद्ध प्रत्यय — विशेष (ओघभा ४; चेइय २९८; सूअनि ६६)

विभमण :: न [दे] उपधान, ओसीसा (दे ७, ६८ टी)।

विभय :: देखो विभज। विभए, विभयंति (कम्म ६, ३१; आचा; उत्त १३, २३)।

विभयणा :: स्त्री [विभजना] विभाग (सम्म १०१)।

विभर :: सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, भूल जाना। विभरइ (पि ३१३)।

विभव :: देखो विहव (उव; महा)।

विभवण :: न [विभवन] चिरूप-करण, खराब करना (राज)।

विभाइम :: वि [विभाज्य] विभाग-योग्य (ठा ३, २ — पत्र १३४)।

विभाइम :: वि [विभागिम] विभाग से बना हुआ (ठा ३, २ — पत्र १३४)।

विभाग :: पुं [विभाग] अंश, बाँट (काल; सण)।

विभागिम :: देखो विभाइम = विभागिम (उप पृ १४१)।

विभाय :: देखो विभाग (रंभा)।

विभाय :: न [विभात] प्रकाश, कान्ति, तेज (सण)।

विभाय :: पुं [विभाव] परिचय; 'कस्स विस- मदसाविभाओ न होइ' (स १९८)।

विभाव :: सक [वि + भावय्] १ विचार करना, ख्याल करना। २ विवेक से ग्रहण करना। ३ समझना। वकृ. विभावंत, विभा- वेंत, विभावेमाण (सुपा ३७७; उप ५९७ टी; कप्प)। कवकृ. विभाविज्जंत, विभा- विज्जमाण (से ८, ३२; स ७५०)। हेकृ. विभावेत्तए (कस)। कृ. विभावणीय (पुप्फ २५४)

विभाव :: देखो विभव; 'तओ महाविभावेणं पूइऊण पेसिया गया य' (महा)।

विभावसु :: पुं [विभावसु] १ सूर्यं, रवि। २ रविवार (पउम १७, १७७)। देखो विहावसु।

विभाविय :: वि [विभावित] विचारित (सण)।

विभास :: सक [वि + भाष्] १ विशेष रूप से कहना, स्पष्ट कहना। २ व्याख्या करना। ३ विकल्प से विधान करना। विभासइ (पव ७३ टी)। कृ. विभासियव्व (उत्तनि ३६; पिंड १२४)। हेकृ. विभासिउं (विसे १०८५)

विभासण :: न [विभाषण] व्याख्य़ा, व्याख्यान (विसे १४२८)।

विभासय :: वि [विभाषक] व्याख्याता, व्याख्या-कर्त्ता (विसे १४२५)।

विभासा :: स्त्री [विभासा] १ विकल्प-विधि, पाक्षिक, प्राप्‍ति, भजना, विधि और निषेध का का विधान (पिंड १४३; १४४; १४५; २३५; ३०२; उप ४१५ टी; द्र १९) २ व्याख्या, विवरण, स्पष्टीकरण (विसे १३८५; १४२१; पिंड ६३७) ३ विज्ञापन, निवेदन (उप ९८०) ४ विविध भाषण (पिंड ४३८) ५ विशोषोक्ति (देवेन्द्र ३६७) ६ परिभाषा, सेकेत (कम्म १, २८; २९) ७ एक महानदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)

विभासिय :: वि [विभासित] प्रकाशित; उद्‍द्योतित (सम्मत्त ६२)।

विभिण्ण, विभिन्न :: देखो विहिण्ण = विभिन्न (गउड ५७०; ११८०; उत्त १९, ५५)।

विभीसण :: पुं [विभीषण] १ रावण का एक छोटा भाई (पउम ८, ६२) २ विदेह वर्षं का एक वासुदेव (राज)

विभीसावण :: वि [विभीषण] भय-जनक, भयंकर (भवि)।

विभीसिया :: स्त्री [विभिषिका] भय-प्रदर्शंन (उव)।

विभु :: पुं [विभु] १ प्रभु, परमेश्वर (पउम ५, ११२) २ नाथ, स्वामी, मालिक (पउम ७०, १२) ३ इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ७) ४ वि. व्यापक (विसे १९८५)

विभूइ :: स्त्री [विभूति] १ ऐश्वर्यं, वैभव (उव; औप) २ ठाटबाट, धूमधाम; 'महाविभूइए चलिओ जिणजत्ताए' (सुर ३, ६२; महा) ३ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९)

विभूसण :: न [विभूषण] १ अलंकार, गहना। २ शोभा; 'दिव्वालंकारविभूशणाइं' (उव; औप)

विभूसा :: स्त्री [विभूषा] १ सिंगार की सजा- वट, शरीर पर अलंकार-वस्त्र आदि को सजा- वट (आचा १, २, १, ३; औप; जीव ३) २ शरीर-शोभा; 'मेहुणाओ उवसंतस्स किं विभूसाइ कारिअं' (दस ६, २, ६५; ६६; ६७; उत्त १६, ९)

विभूसिय :: वि [विभूषित] विभूषा-युक्त, अलंकृत, शोभित (भग; उत्त १६, ९; महा; विपा १, १ — पत्र ७)।

विभेद, विभेय :: पुं [विभेद] १ भेदन, विदारण (धर्मंसं ८२९); 'जयवाणरकुंभ- विभेयक्खमे' (गउड; उप ७२८ टी) २ भेद, प्रकार; 'उड्ढाहोतिरियविभेयं तिहुयणंपि' (चेइय ९६४)

विभेयग :: वि [विभेदक] भेदनकर्त्ता; 'परमम्म- विभेयगो' (धर्मंवि ७९)।

विमइ :: स्त्री [विमति] छन्द-विशेष (पिंग)।

विमइअ :: वि [दे] भर्त्सित, तिरस्कृत (दे ७, ७१)।

विमउल :: वि [विमुकुल] विकसित, खिला हुआ (णाया १, १ टी — पत्र ३; औप)।

विमंतिय :: वि [विमन्त्रित] जिसके बारे में मस- लहत — गुप्त युक्ती की गई हो वह (सुर ११, ९७)।

विमंसिअ :: वि [विमृष्ट, विमर्शित] विचारित, पर्यालोचित (सिरि १०४५)।

विमग :: देखो विमय (राज)।

विमग्ग :: सक [वि + मार्गय्] १ विचार करना। २ अन्वेषण करना, खोजना। ३ प्रार्थंना करना, मांगना। ४ इच्छा करना, चाहना। विमग्गइ, विमग्गहा (उव; उत्त १२, ३८)। वकृ. विमग्गंत, विमग्गमाण (गा ३५१; सुर २, १७; से ४, ३६; महा)

विमग्गिअ :: वि [विमार्गित] १ याचित, माँगा हुआ (सिरि १२७; सुर ४, १०७) २ अन्वेषित, गवेषित (पाअ)

विमज्झ :: न [विमध्य] अन्तराल (राज)।

विमण :: वि [विमनस] १ विषणण, खिन्न, शोक-सन्तप्त (कप्प; सुर ३, १६८; महा) २ शून्य-चित्त, सुन्न चित्तवाला (विपा १, २ — पत्र २७) ३ निराश, हताश (गा ७६) ४ जिसका मन अन्यत्र गया हो वह (से ४, ३१; गउड)

विमद्द :: सक [वि + मर्दय्] १ संघर्षं करना। २ मर्दंन करना। कवकृ. विमद्दि- ज्जमाण (सिरि १०३८)

विमद्द :: पुं [विमर्द] १ विनाश; 'आसत्तपुरिस- संतइदालिद्दविमद्दसंजणायं' (सुपा ३८; गउड) २ संघर्षं (स ७२२; कुप्र ४६)

विमद्दण :: न [विमर्दन] ऊपर देखो (भवि)।

विमन्न :: सक [वि + मन्] मानना, गिनना। वकृ. 'सव्वं सुविणं व तं विमन्‍नंतो' (सुर ४, २४३)।

विमय :: पुं [दे] पर्वं-वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

विमर :: (अप) नीचे देखो। विमरह (पिंग)।

विमरिस :: सक [वि + मृश्] विचारना। कृ. विमरिसिदव्व (शौ) (अभि १८४)।

विमरिस :: पुं [विमर्श] विकल्प, विचार (राज)।

विमल :: वि [विमल] १ मल-रहित, विशुद्ध, निर्मल (कप्प; औप; से ८, ४९; पउम ५१, २७; कुमा; प्रासू २; १५७; १६१) २ पुं. इस अवसर्पिणी-काल में उत्पन्न तेरहवें जिनदेव (सम ४३; पडि) ३ भारतवर्षं में होनेवाले वाईसवें जिन-भगवान् (सम १५४) ४ एक प्राचीन जैन आचार्य और कवि जिन्होंने विक्रम की प्रथम शताब्दी में 'पउमचरिअ' नामक जैन रामायण बनाई है (पउम ११८ १११८) ५ एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ६ भगवान् अजित- नाथ का पूर्वंजन्मीय नाम (सम १५१) ७ पुंन. सहस्रार देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा ८ — पत्र ४३७) ८ ब्रह्म-देवलोक में स्थित एक देव-विमान (सम १३; देवेन्द्र १४०) ९ एक ग्रैवेयक देव-विमान (सम ४१; देवेन्द्र १४१) १० लगातार य़छः दिनों का उपवास। ११ लगातार सात दिनों का उपवास (संबोध ५८) १२ पुं. अहिंसा, दया (पणह २, १ — पत्र ९९) °घोस पुं [°घोष] एक कुलकर पुरुष (सम १५०)। °चंद पुं[°चन्द्र] एक जैन आचार्यं (महा)। °प्पहा स्त्री[°प्रभा] भगवान् शीतलनाथजी की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)। °वर पुं[°वर] आनत-प्राणत देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा १० — पत्र ५१८)। °वाहण पुं[°वाहन] १ भारत- वर्ष के भावी प्रथम जिनदेव, जिनके दूसरे नाम देवसेन तया महापद्म होंगे (ठा ९ — पत्र ४५९) २ कुलकर पुरुष-विशेष (सम १०४; १५०; १५३; पउम; ३, ५५) ३ भारतवर्षं का एक भावी चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४) ४ एक जैन, जो भगवान् अभिनन्दन के पूर्वं जन्म में गुरु थे (पउम २०, १२; १७) ५ भगवान् संभवनाथ का पूर्वं-जन्मीय नाम (सम १५१)। °सामि पुं[°स्वामिन्] सिद्धचक्रजी का अधिष्ठायक देव (सिरि २०४)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] षष्ठ वासुदेव की पटरानी (पउम २०; १८६)

विमलण :: न [विमर्दन] मणि आदि को शाण पर घिसना, घर्णंण (दे १, १४८)।

विमलहर :: पुं [दे] कलकल, कोलाहल (दे ७, ७२)।

विमला :: स्त्री [विमला] १ ऊर्ध्वं दिशा (ठा १० — पत्र ४७८) २ धरणेन्द्र के लोकपालों की अग्र-महीषियों के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ३ गतिरति और गीतयश नाम के गन्धर्वेन्द्रों की अग्र-महिषियों के नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ चौदहवें जिनदेव की दीक्षा-शिविका (सम १५१)

विमलिअ :: वि [विमर्दिन्] जिसका मर्दंन किया गया हो वह, घृष्ट (से ९, ७)।

विमलिअ :: वि [दे] १ मत्सर से उक्त। २ शब्द-सहित, शब्दवाला (दे ७, ७२)

विमलेसर :: पुं [विमलेश्वर] सिद्धचक्रजी का अधिष्ठायक देव (सिरि ७७३)।

विमलोत्तर :: पुं [विमलोत्तर] ऐरवत वर्षं का एक भावी जिनदेव (सम १५४)।

विमहिद :: (शौ) वि [विमथित] जिसका मथन किया गया हो वह (नाट — मालवि ४०)।

विमाउ :: स्त्री [विमातृ] सौतेली माँ (सत्त ३५; १७१)।

विमाण :: सक [वि + मानय्] अपमान करना, तिरस्कार करना। विमाणेज्जह (महा ५९)।

विमाण :: पुंन [विमान] १ देव का निवास- भवन (सम २; ८; ९; १०; १२; ठा ८; १०; उवा; कप्प; देवेन्द्र २५१; २५३; पणह १, ४ — पत्र ६८; ति १२) २ देव-यान, आकाश-यान, आकाश में गति करने में समर्थं रथ (से ९, ७२; कप्प) ३ अपमान, तिरस्कार। ४ वि. मान-रहित, प्रमाण-शून्य (से ९; ७२)। °पविभत्ति स्त्री[°प्रविभक्ति] जैन ग्रन्थ- विशेष (सम ६६)। °भवण न[°भवन] विमानाकार गृह (कप्प)। °वासि पुं [°वासिन्] देवों की एक उत्तम जाति, वैमानिक देव (पणह १, ४ — पत्र ६८; ति १२)

विमाणणा :: स्त्री [विमानना] अवगणना, तिरस्कार (चेइय १३२)।

विमाणिअ :: वि [विमानित] अपमानित (पिंड ४१३; कप्प; महा)।

विमिस्स :: अ [विमृश्य] विचार करके। °गारि वि[°कारिन्] विचार-पूर्वंक करनेवाला (स १८४; ३२४)।

विमिस्स :: वि [विमिश्र] मिश्रित, मिला हुआ, युक्त (पंच २, ७; महा)।

विमिस्सण :: न [विमिश्रण] मिश्रण, मिलावट (सम्मत्त १७१)।

विमीसिव :: वि [विमिश्रित] विमिश्र, मिश्रित (भवि)।

विमुउल :: देखो विमउल (राज)।

विमुंच :: सक [वि + मुच्] १ छोड़ना, बन्धन-मुक्त करना। २ परित्याग करना। विमुंचइ (सण)। कर्म. विमुच्चई (आचा २, १, ६, ९)। वकृ. विमुंचंत (महा), विमुच्च [? मुंच] माण (णाया १, ३ — पत्र ९५)। कृ. विमोत्तव्व (उप २६४ टी, विमोय (ठा २, १ — पत्र ४७)

विमुकुल :: देखो विमउल (पणह १, ४ — पत्र ७२)।

विमुक्क :: वि [विमुक्त] १ छुटा हुआ, छुट्टा, बन्धन-रहित; 'जवविमुक्केण आसेण' (महा ४९; पाअ; आचानि ३४३) २ परित्यक्त; 'विमुक्कजीयाण' (महा ७७) ३ निःसंग, संग-रहित (आचा २, १६, ८)

विमुक्ख :: पुं [विमोक्ष्] छुटकारा, मुक्ति (से ११, ५६; आचानि २५८; २५९; अजि ५)।

विमुक्खण :: देखो विमोक्खण (उत्त १४, ४; कुप्र ३९९)।

विमुच्छिअ :: वि [विमृच्छित] मूर्छा-प्राप्त (से ११, ५६)।

विमुत्त :: देखो विमुक्क 'मुत्तिविमुत्तेसुवि' (पिंड ५६)।

विमुत्ति :: स्त्री [विमुक्ति] १ मोक्ष, मुक्ति (आचानि ३४३, कुप्र १९) २ आचारांग सूत्र का अन्तिम अध्ययन (आचा २, १६, १२) ३ अहिंसा (पणह २, १ — पत्र ९९)

विमुयण :: व [विगोचन] परित्याग (संबोध १०)।

विमुह :: वि [विमुख] १ पराङ् मुख उदासीन (गउड; सुपा २८; भवि) २ पुं. एक नरक- स्थान (देवेन्द्र २८) ३ पुंन. आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७६)

विमुह :: अक [वि + मुह्] घबराना, व्याकुल होना, बैचैन होना। वकृ. विमुहिज्जंत (से २, ४६; ११, ४९)।

विमुहिअ :: वि [विमुग्ध] घबराया हुआ (से ४, ४४; गा ७९२)।

विमुहिअ :: वि [विमुखित] पराङ् मुख किया हुआ (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

विमूढ :: वि [विमूढ] १ घबराया हुआ। २ अस्फुट, अस्पष्ट (गउड)

विमूरण :: वि [विभञ्जक] तोड़नेवाला, खण्डन- कर्त्ता; 'जं मंगलं बाहुवलिस्स आसि तेअस्सिणो माणविमूरणस्स' (मंगल १०)।

विमोइय :: वि [विमोचित] छुड़ाया हुआ (णाया १, २ — पत्र ८८; सण)।

विमोक्ख :: देखो विमुक्ख (से ३, ८)।

विमोक्खण :: न [विमोक्षण] १ छुटकारा, छुड़ाना, बन्धन-मोचन (आचा; सूअ २, ७, १०; पउम १०२, १८८, स ९८; ७४२) २ वि. छुड़ानेवाला, विमुक्त करनेवाला; 'सव्वदुक्खविमोक्खणं' (सूअ १, ११, २; २, ७, १०)। स्त्री. °णी (उत्त २६, १)

विमोक्खय :: वि [विमोक्षक] छुटकारा पानेवाला; 'ते दुक्ख-विमोक्खया' (सूअ १, १, २, ५)।

विमोडण :: न [विमोटन] मोड़ना (दे)।

विमोत्तव्व :: देखो विमुंच।

विमोय :: सक [वि + मोचय्] छुड़ाना, मुक्त करना। संकृ. विमोइभऊण (सण)।

विमोय :: देखो विमुंच।

विमोयग :: वि [विमोचक] छोड़नेवाला, दूर करनेवाला; 'न ते दुक्खविमोयगा' (सूअ १, ९, ३)।

विमोयण :: न [विमोचन] १ छुटकारा, मुक्ति। २ वि. छुड़ानेवाला; 'दुहसयविमोयणकाइं' (पणह २, १ — पत्र ९९)

विमोयणा :: स्त्री [विमोचना] छुटकारा (सूअ १, १३, २१)।

विमोह :: सक [वि + मोहय्] मुग्ध करना, मोह उपजाना। विमोहेइ (महा)। संकृ. विमोहित्ता, विमोहेत्ता (भग १०, ३ — पत्र ४९८)।

विमोह :: देखो विमोक्ख (आचा)।

विमोह :: वि [विमोह] १ मोहर-रहित (उत्त ५, २६) २ पुं. विशेष मोह, घबराहट (सम्मत्त २२९) ३ आचारांग सूत्र का एक अध्ययन (सम १५; ठा ९ टी — पत्र ४४५)

विमोहण :: न [विमेहन] १ मोह उपजाना। (सुर ६, ३८) २ वि. मोह उपजानेवाला (उप ७२८ टी)

विमोहिअ :: वि [विमोहित] मोह-प्राप्त (महा २३; ५२)।

विम्ह :: न [वेश्‍मन्] गृह, घर (राज)।

विम्हइअ :: वि [विस्मित] आश्चर्यं-चकित, चमत्कृत (सुर १, १६०)।

विम्हय :: अक [वि + स्मि] चमत्कृत होना, विस्मित होना, आश्‍चर्यान्वित होना। कृ. विम्हवणिज्ज विम्हयणीअ (हे १, २४८; अभि २०२)।

विम्हय :: पुं [विस्मय] आश्‍चर्यं, चमत्कार (हे २, ७४; षड्; प्राप्र; उव; गउड़; अवि १)।

विम्हर :: सक [स्मृ] याद करना। विम्हरइ (हे ४, ७४)।

विम्हर :: सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, याद न आना, भूल जाना। विम्हरइ (हे ४, ७५; प्राकृ ६३; षड्)। वकृ, विन्हरंत (श्रा १६)।

विम्हरण :: न [विस्मरण] विस्पृति (पव ६; संबोध ४३; सूक्त ८०)।

विम्हराइअ :: वि [दे] १ मूर्छित, मूर्छा-प्राप्त। २ विस्मापित (से ९, ४१)

विम्हरावण :: वि [स्मरण] स्मरण करानेवाला, याद दिलानेवाला; 'बावणणवीरकहविम्हरा- वाणा' (कुमा)।

विम्हरिअ :: वि [विस्मृत] भुला हुआ, याद न किया हुआ (कुमा; पाअ)।

विम्हल :: देखो विब्भल (उप ५३० टी)।

विम्हलिअ :: देखो विब्भलिअ (अच्चु २२)।

विम्हारिअ :: वि [विम्मारित] भुलाया हुआ (कुमा; श्रा २८)।

विम्हारिअ :: (अप) देखो विम्हरिअ (सण)।

विम्हाव :: सक [वि + स्मापय्] आश्चर्यं- चकित करना। विम्हावेइ (महा; निचू ११)। वकृ. विम्हावेंत (उत्त ३६, २६२)।

विम्हावण :: न [विस्मापन] आश्चर्य उपजाना, विस्मय-करण (औप)।

विम्हावणा :: स्त्री [विस्मापना] ऊपर देखो (निचू ११)।

विम्हावय :: वि [विस्मापक] विस्मय-जनक (सम्मत्त १७४)।

विम्हाविअ :: वि [विस्मापित] आश्चर्यान्वित किया हुआ (धर्मंवि १४७)।

विम्हिअ :: वि [विस्मित] विस्मय-प्राप्त, चमत्कृत (श्रा २८ — पत्र १६०; उव)।

विम्हिय :: (अप) देखो विम्हय। विम्हियइ (सण)।

विम्हिर :: वि [विस्मेर] विस्मय पानेवाला, चमत्कृत होनेवाला (श्रा १२, २७)।

विपच्चा :: देखो विअच्चा।

वियट्टच :: अक [वि + वृत्] बरतना, होना। हेकृ. वियट्टित्तए (आचा २, २, २, ३)।

वियद्द :: पुं [व्यर्द, व्यट्ट] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७६)।

विर :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। विरइ (हे ४, १०६)।

विर :: अक [गुप्] व्याकुल होना। विरइ (हे ४, १५०), विरंति (कुमा)।

विर :: (अप) देखो वीर (सण)।

विरइ :: स्त्री [विरति] १ विराम, निवृत्ति। २ सावद्य — पाप कर्मं से निवृत्ति, संयम, त्याग (उव; आचा)। ३ छन्द-शास्त्र-प्रसिद्ध विश्राम- स्थान, यति (चेइय ५०७)

विरइअ :: वि [विरचित] १ कृत, निर्मित, बनाया हुआ। २ सजाया हुआ (पाअ; औप; कप्प; पउम ११८, १२१; कुमा; महा; रंभा; कप्पू)

विरइअ :: देखो विराइअ (कप्प)।

विरइयव्व :: देखो विरय = वि + रचय्।

विरंचि :: पुं [विरञ्चि] ब्रह्मा, विधाता (कुप्र ४०३; त्रि ८७; सम्मत्त १९२)।

विरच्च, विरज्ज :: अक [वि + रञ्ज्] १ रिक्त होना, उदासीन होना। २ रँग-रहित होना। विरज्जइ (उव; उत्त २९, २; महा)। वकृ. विरज्जंत, विरच्चमाण, विरज्जमाण (से ४, १४; भवि; उत्त २९, २; गा १४६; २६६)

विरत्त :: वि [विरक्त] १ उदासीन, विराग-प्राप्त (सम ५७; प्रासू १५५; १६६; महा) २ विविध रंगवाला (आचा १, २, ३, ५)

विरत्ति :: स्त्री [विरक्ति] वैराग्य, उदासीनता (उप पृ़ ३२)।

विरम :: अक [वि + रम्] निवृत्त होना, अट- कना। विरमइ (गा ७०८), विरमेज्जा (आचा), विरम, विरमसु (गा ३४५; १४९)। प्रयो., हेकृ. विरमावेउं (गा ३४९)।

विरम :: पुं [विरम] विराम, निवृत्ति (गउड; गा ४५९; ६०६; सुर ७, १६३)।

विरमण :: देखो वेरमण (राज; प्रामा)।

विरमाण :: सक [प्रति + पालय्] पालन करना, रक्षण करना। विरमाणइ (धात्वा १५३)।

विरमाल :: सक [प्रति + ईक्ष्] राह देखना, वाट जोहना, प्रतीक्षा करना। विरमालइ (हे ४, १९३)। संकृ. विरमालिअ (कुमा)।

विरमालिअ :: वि [प्रतीक्षित] जिसकी प्रतीक्षा की गई हो वह (पाअ)।

विरय :: सक [वि + रचय्] १ करना, बनाना। २ सजाना, सजावट करना। विरएइ, विरअंति, विरअआमि; विरयइ (प्राकृ ७४; कप्पू; पि ५९०; सण)। वकृ. विरयमाण (सुर १६, १५)। संकृ. विरइअ (नाट)। हेकृ. विरइउ° (सुपा २)। कृ. विरइयव्व (पउम ६६, १९)

विरय :: वि [विरत] १ निवृत्त, रुका हुआ, विराम-प्राप्त (उवा; गा ५४१; दं ४६) २ पाप-कार्यं से निवृत्त, संयमी, त्यागी (आचा, उव) ३ न. विरति, विराम। ४ संयम, त्याग (दं ४६; कम्म २, २)। °विरय वि [°विरत] आंशिक संयम रखनेवाला, जैन उपासक, श्रावक (सम २६)

विरय :: पुं [दे] छोटा जल-प्रवाह, छोटी नदी (दे ७, ३९); 'विरया तणुसरिआओ' (पाअ)।

विरय :: पुं [विरजस्] १ महाग्रह, ज्योतिष्क। देव-विशेष (सुज्ज २०) २ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१)

विरयण :: स्त्रीन [विरचन] १ कृति, निर्माण। २ सजावट (नाट — मालती २८; कप्पू)। स्त्री. °णा (सुपा ६५, से १५, ७१); 'पडिवट्टए विअ तसर-विरअणा' (कप्पू)

विरया :: स्त्री [विरजा] १ गो-लोक में स्थित राधा की एक सखी। २ उसके शाप से बनी हुई एक नदी; 'लंघिअविरआसरिअं' (अच्चु ८६)

विरल :: वि [विरल] १ अल्प, थोड़ा; 'परदुक्खे दुक्खिआ विरला' (हे २, ७२; ४, ४१२; उव; प्रासू १८०; गउड) २ अनिबिड। ३ विच्छिन्न (गउड; उव)

विरलि :: स्त्री [दे] वस्त्र-विशेष, डोरिया, डोरीवाला कपड़ा; 'विरलिमाई भूरिभेआ' (पव ८४ टी)।

विरलिअ :: वि [विरलित] विरल बना हुआ, विरल किया हुआ (गउड)।

विरली :: देखो विराली (राज)।

विरल्ल :: सक [तन्] विस्तारना, फैलाना। विरल्लइ, विरल्लोइ, बिरल्लंति (हे ४, १३७; षड्; गउड)।

विरल्ल :: पुं [तान] विस्तार, फैलाव, (वव ४)।

विरल्लण :: न [तनन] विस्तार, फैलाव; 'अट्ठ- मयविरल्लणे सया रमइ' (उव)।

विरल्लिअ :: वि [तत] विस्तारवाला, विस्तारित (दे ७, ७१; पाअ; कुमा; णाया १, १७ — पत्र २३२; ठा ४, ४ — पत्र २७६); 'जह उल्ला साडीया आसुं सुक्कइ विरल्लिया संती' (विसे ३०३२)।

विरल्लिअ :: देखो विरलिअ (राज; भवि)।

विरल्लिअ :: वि [दे] जलार्द्रं, भींजा हुआ (दे ७, ७१)।

विरस :: अक [वि + रस्] चिल्लाना, क्रन्दन करना। वकृ. विरसंत (सण)।

विरस :: वि [विरस] रस-रहित, शुष्क (णाया १, ५ — पत्र १११; गउड; हे १, ७; सण)। २ विरुद्ध रसवाला (भग ७, ६ — पत्र ३०५) ३ पुं. रामभ्राता भरत के साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक राजा (पउम ८५, ३) ४ न. तप-विशेष, निर्विकृतिक तप (संबोध ५८)

विरस :: न [दे] वर्षं, साल, बारह मास (दे ७, ६२)।

विरसमुह :: पुं [दे] काक, कौआ (दे ७, ४९)।

विरसिय :: वि [विरसित] रस-हीन, रस- विरहित (हम्मीर ५१)।

विरह :: सक [वि + रह्] १ परित्याग करना। २ अलग करना। कवकृ. विरहिज्जंत (नाट — शकु ८२)। कृ. विरहियव्व (शौ) (नाट — शकु ११७)

विरह :: पुं [विरह] १ वियोग, विछोह, जुदाई (गउड; हे १, ८४; ११५; प्रासू १५९; कुमा; महा) २ आन्तर, व्यवधान (भग) ३ पुं. वृक्ष-विशेष; 'फुल्लंति विरहरुक्खा सोऊण पंचमुग्गारं' (संबोध ४७; श्रा ३५), 'धरा विओ पच्चासन्ने विराहो नाम तरू, वाइऊण वीणं फुल्लाविओ सो' (कुप्र १३९), 'फुल्लंति विरहिणो विरहयव्व लहिऊण पंचमं केवि' (कुप्र २४८) ४ अभाव। ५ विनाश (राज) ६ हरिवंश में उत्पन्न एक राजा (पउम २२, ९८)

विरह :: वि [विरथ] रथ-रहित (पउम १०, ६३)।

विरह :: पुंन [दे] १ एकान्त, विजन (दे ७, ९१, णाया १, २ — पत्र ७९; पुप्फ ३४४); 'सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणीओ २ विहरंति' (विपा १, ९ — पत्र ८९) २ कुसुंभ से रँगा हुआ कपड़ा (दे ७, ९१)

विरहाल :: न [दे] कुसुम्भ से रँगा हुआ वस्त्र (दे ७, ६८)।

विरहि :: वि [विरहिन्] वियोगी, बुछुड़ा हुआ (कुमा)।

विरहिअ :: वि [विरहित] विरह-युक्त (भग; उव; हे ४, ३७७)।

विरा :: अक [वि + ली] १ नष्ट होना। २ द्रवित होना, पिघलना। ३ अटकाना, निवृत्त होना। विराइ (हे ४, ५६)

विराइ :: वि [विरागिन्] विरागवाला, विरक्त, उदासीन। स्त्री. °णी (नाट)।

विराइ :: वि [विराजिन्] शोभनेवाला, चमकता (से २, २९)।

विराइ :: वि [विराविन्] शब्द-युक्त, आवाजवाला (से २, २९)।

विराइअ :: देखो विराय = विलीन (से २, २९)।

विराइअ :: वि [विराजित] सुशोभित (उवा; औप; महा)।

विराग :: पुं [विराग] १ राग का अभाव, वैराग्य, उदासीनता (सुज्ज १३; उप ७२८ टी) २ वि. राग-रहित, वीतराग (पच्च १०४; औप)

विराड :: पुं [विराट] देश-विशेष (उप ६४८ टी)। °नयर न[°नगर] नगर-विशेष (णाया १, १६ — पत्र २०९)।

विराध :: (अप) पुं [विराध] एक राक्षस का नाम (पिगं)।

विराम :: पुं [विराम] उपरम, निवृत्ति, अवसान (गउड)।

विरामण :: न [विरमण] विरत करना, निवर्तन, विरमाना; 'वेरविरामणपज्जवसाणं' (पणह २, ४ — पत्र १३१)।

विराय :: अक [वि + राज्] शोभना, चमकना। विरायए (पाअ)। वकृ. विरायंत, विरायमाण (कप्प; औप; णाया १, १ टी — पत्र २, सुर २, ७६)।

विराय :: वि [विलीन] १ विशीर्णं, विगलित, नष्ट (से ७, ६४; गउड; कुमा ६, ३८) २ पिघला हुआ (पाअ)

विराय :: देखो विराग (पणह २, ५ — पत्र १४९; कुमा; सुपा २०५; वज्जा ६; कुप्र १११)।

विराल :: देखो बिराल (णाया १, १ — पत्र ६५; पि २४१)।

विरालिआ :: स्त्री [विरालिका] १ पलाश- कन्द। २ पर्ववाला कन्द (दस ५, २, १८)। देखो बिरालिआ।

बिराली :: स्त्री [विराली] १ वल्ली-विशेष (पव ४, श्रा २०; संबोध ४४) २ ततुरिन्द्रिय जंतु की एक जाति (उत्त ३६, १४८; सुख ३६, १४८)। देखो विराली।

विराव :: पुं [विराव] शब्द, आवाज (गउड)।

विरावि :: वि [विराविन्] आवाज करनेवाला (गउड)।

विराह :: सक [वि + राधय्] १ खण्डन करना, भाँगना, तोड़ना। विरहंति (उव)। वकृ. विराहंत, विराहेंत (सुपा ३२८; उव)

विराहअ, विराहग :: वि [विराधक] खण्डन करनेवाला, तोड़नेवाला, भंजक (भग; णाया १, ११-पत्र १७१)।

विराहणा :: स्त्री [विराधना] खण्डन, भंग (सम ८; णाया १, ११ टी — पत्र १७३; पणह १, १ — पत्र ६; ओघ ७८८)।

विराहिअ :: वि [विराधित] १ खण्डित, भग्‍न (भग) २ अपराद्ध, जिसका अपराध किया गया हो वह; 'अविराहियवेरिएहिं' (पणह १, ३ — पत्र ५३) ३ पुं. एक विद्याधर-नरेश (पउम ७६, ७)

विरिअ :: वि [भग्‍न] भाँगा हुआ, तोड़ा हुआ (कुमा)।

विरिअ :: देखो वीरिअ (सूअनि ९१; ९४; औप)।

विरिंच :: सक [वि + भज्] विभाग-ग्रहण करना, भाग लेना, बाँट लेना; 'सयणो वि य से रोगं न विरिंचइ, नेय नासेइ' (स १३७)।

विरिंच :: पुं [विरिञ्च] ब्रह्मा विधाता (पाअ)।

विरिंचि :: पुं [विरिञ्चि] ऊपर देखो (सुर १२, ७८)।

विरिंचिअ :: वि [दे] १ विमल, निर्मंल। २ विरक्त, उदासीन (दे ७, ९३)

विरिंचिर :: पुं [दे] १ अश्‍व, घोड़ा। २ वि. विरल (दे ७, ९३)

विरिंचिरा :: स्त्री [दे] धारा, प्रवाह (दे ७, ९३)।

विरिक्क :: वि [दे] पाटित, विदारित (दे ७, ६४)।

विरिक्क :: वि [विरिक्त] जो खाली हुआ हो वह (पउम ४५, ३२; सुपा ४२२)।

विरिक्क :: वि [विभक्त] १ बाँटा हुआ; 'जेणं चित्तयराणं सभा समभागेहि बिरिक्का' (महा) २ जिसने भाग बाँट लिया हो वह, अपना हिस्सा ले कर जो अलग हुआ हो वह; 'एगम्मि सरिणणवेसे दो भाउया वणिया, ते य परोप्परं विरिक्का' (ओघ ४९४ टी)

विरिक्का :: स्त्री [दे] बिन्दु, लव, लेश (लुख २, २७)।

विरिचिर :: वि [दे] धारा से विरेचन करने वाला (षड्)।

विरिज्जय :: वि [दे] अनुचर, अनुगत (दे ७, ६६)।

विरिल्ल :: सक [वि + स्तृ] विस्तारना, पैलाना। विरिल्लइ (प्राकृ ७६)।

विरीअ :: (अप) देखो विवरीअ (पिंग)।

विरीह :: सक [प्रति + पालय्] पालन करना, रक्षण करना। विरीहइ (प्राकृ ७५; धात्वा १५३)।

विरु, विरुअ :: अक [वि + रु] रोना, चिल्लाना। वकृ. विरुयमाण (उफ ३३९ टी)।

विरुअ :: न [विरुत] ध्वनि, पक्षी की आवाज, शब्द (गा ६४; से १, २३; नाट — मृच्छ १३६)।

विरुअ :: वि [दे. विरूप] १ खराब, कुड़ौल, दुष्ट रूपवाला, कुत्सित (दे ७, ६३; भवि) २ विरुद्ध, प्रतिकूल (षड्)। देखो विरूअ।

विरुट्ठ :: पुं [विरुष्ट] नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र २८)।

विरुद्ध :: वि [विरुद्ध] विरोधवाला, विपरीत, प्रतिकूल, उलटा (औप; गउड)। °यारि वि [°चारिन्] विपरीत आचरण करनेवाला (उफ ७२८ टी)।

विरुव :: देखो विरूव (दे ६, ७५)।

विरुह :: अक [वि + रुह्] विशेष रूप से उगना, अंकुरित होना। बिरुहंति (उत्त १२, १३)।

विरुह :: देखो विरूह (पणण १ — पत्र ३६; श्रा २०)।

विरूअ, विरूव :: वि [विरूप] १ कुरूप, भौड़ा, कुड़ौल, खराब, कुत्सित (गा २९३; भवि; स्वप्‍न ४४; सुर १, २९; उप ७२८ टी) २ विरुद्ध, प्रतिकूल, उलटा (सुर ११, ८०) ३ बहुवध, अनक तरह का, नानावध (आचा)

विरूह :: पुंन [विरूढ] अंकुरित द्विदल-धान्य (पव ४)।

विरेअ :: सक [वि + रेचय्] १ मल को नीचे से निकालना। २ बाहर निकालना। विरेअइ (हे ४, २६)। वकृ. विरेअंत (कुमा ६, १७)

विरेअण :: न [विरेचन] १ मल-निस्सारण, जुलाब (उकु २५; णाया १, १३ — पत्र १८१) २ वि. भेदक, विनाशक; 'सयल- दुक्खविरेयणं समणत्तणंति' (स २७८; ६६३)

विरेल्लिअ :: देखो विरिल्लिअ = तत (णाया १, १७ टी — पत्र २३४; गउड ४३५)।

विरोयण :: पुं [विरोचन] अग्‍नि, वह्नि (भत्त १२३)।

विरोल :: सक [मन्थ्] विलोडना, विलोड़न करना। विरोलइ (हे ४, १२१; षड्)।

विरोल :: सक [वि + लग्] १ अवलम्बन करना। २ आरोहण करना, चढ़ना। विरोलइ (धात्वा १५३)

विरोलिअ :: वि [मथित] विलोडित (पाअ; कुमा; भवि)।

विरोह :: सक [वि + रोधय्] विरोध करना। विरोहंति (संबोध १७)।

विरोह :: पुं [विरोध] विरुद्धता, प्रतीपता, वैर, दुश्‍मनाई (गउड; नाट — मालती १३८; भवि)।

विरोहय :: वि [विरोधक] विरोध-कर्ता (भवि)।

विरोहि :: वि [विरोधिन्] दुश्‍मन, प्रतिपन्थी (पि ४०५; नाट — शकु १६)।

विरोहिय :: वि [विरोधित] विरोध-प्राप्‍त (वज्जा ७०)।

विल :: अक [व्रीड्] लज्जा करना, शरमिन्दा होना। संकृ. विलिऊण (स ३७५)।

विल :: न [विल] नमक-विशेष, एक तरह का नोन (आचा २, १, ६, ६)।

विलइअ :: वि [दे] १ अधिज्य, धनुष की डोरी पर चढ़ाया हुआ। २ दीन, गरीब (दे ७, ९२) ३ ऊपर चढ़ाया हुआ, आरोपित 'आणा जस्स विलइआ सीसे सेसव्व हरिहरे- हिंपि' (धण २५), 'पढुमं चिअ रहुवइणा उवरिं हिअए तुलिओ भरोव्व विलइओ' (से ३, ५)

विलओलग :: पुं [दे] लुंटाक, लुटेरा (राज)।

विलओली :: स्त्री [दे] १ विस्वर वचन। २ विलोकना, तलाशी (पणह १, ३ — पत्र ५३)। देखो बिलकोली°।

विलंघ :: सक [वि + लङ्घ्] उल्लंघन करना। विलंघेंति (धर्मंसं ८४२)। वकृ. विलंघंत (काल)।

विलंघण :: न [विलङ्घन] उल्लंघन, अतिक्रमण; 'ही ही सीलविलंधणं' (उप ५९७ टी)।

विलंघल :: (अप) देखो विहलंबल (सण)।

विलंघलिअ :: (अप) वि [विह्‍वलाङ्घित] व्याकुल शरीरवाला; 'मुच्छविलंघलिउं' (सण)।

विलंब :: देखो विडंब = वि + डम्बय्। वकृ. विलंबमाण (धर्मंसं १००५)।

विलंब :: अक [वि + लम्ब्] १ देरी करना। २ सक. लटकाना, धारण करना। कर्मं. विलंबीअदि (शौ) (नाट — विक्र ३१)। वकृ. विलंबंत (से ३, २९)। संकृ विलंबिअ (नाट — वेणी ७६)। कृ. विलंबणिज्ज (श्रा १४)

विलब :: पुं [विलम्ब] १ देरी, अशीघ्रता (घा ५८८) २ तप-विशेष, पूर्वार्धं तप (संबोध ५८) ३ न. नक्षत्र-विशेष, सूर्य के द्वारा परि- भोग कर छोड़ा हुआ नछत्र (विसे ३४०९)

विलंबग :: वि [विलम्बक] धारण करनेवाला (सूअ १, ७, ८)।

विलंबणा :: देखो विडंबणा (प्रासू १०३)।

विलंबणा :: स्त्री [विडम्बना] निर्वंर्तंना, बनावट, कृति (अणु १३९)।

विलंबि :: न [विलम्बिन्] १ सूर्यं के द्वारा भोकर छोड़ा हुआ नक्षत्र। २ सूर्यं जिसपर हो उसके पीछे का तीसरा नक्षत्र (वव १)

विलंबिअ :: वि [विलम्बित] १ विलम्ब-युक्त (कप्प) २ न. नक्षत्र-विशेष (वव १) ३ नाट्य-विशेष (राय)

विलक्ख :: वि [विलक्ष] १ लज्जित, शरमिन्दा (से १०, ७०; सुर १२, ६६; सुपा १६८; ३२८; महा; भवि) २ प्रतिभा-शून्य, मूढ (से १०, ७०)

विलक्ख :: न [वैलक्ष्य] विलक्षता, लज्जा, शरम (सुर ३, १७९)।

बिलक्खिम :: /?/पुंस्त्री. ऊपर देखो; 'उवसमियविल- क्खिम — -' (भवि)।

विलग्ग :: सक [वि + लग्] १ अवलम्बन करना, सहारा लेना। २ चढ़ना, आरोहण करना। ३ पकड़ना। ४ चिपटना। गुजराती में 'वळगवुं'। विलग्गासि, बिलग्गेज्जासि (महा)। बकृ. विलग्गंत (पि ४८८)

विलग्ग :: वि [विलग्‍न] १ लगा हुआ, चिपटा हुआ, संलग‍न; 'जह लोहसिला अप्पंपि बोलए तह विलग्गपुरिसंपि' (संबोध १३; से ४, २; ३, १४२; गा १८८; १५९; महा) २ अवलम्बित (सुर १०, ११४) ३ आरूढ़; 'अन्नया आयरिया सिद्धतेलं तेण समं वंदगा विलग्गा' (सुख १, ३)

विलज्ज :: अक [वि + लस्ज] शरमाना। विलज्जामि (कुप्र ५७)।

विलट्ठि :: पुंस्त्री [वियष्टि] साढ़े तीन हाथ में चार अंगुल कम लट्ठी, जैन साधुओं का उप- करण-दंड (पव ८१)।

विलद्ध :: वि [विलब्ब] अच्छी तरह प्राप्त, सुलब्ध; (पिंग)।

विलप्प :: पुं [विलात्मन्] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)।

विलभ :: सक [खेदय्] खिन्न करना, खेद उपजाना। विलभेइ (प्राकृ ६७)।

विलमा :: स्त्री [दे] ज्या, धनुष की डोरी (दे ७, ३४)।

विलय :: पुं [दे] सूर्यं का अस्त होना (दे ७, ६३; पाअ)।

विलय :: पुं [विलय] १ विनाश (कुप्र ५१; सुपा १९७; ती ३) २ तल्लीनता (ती ३) ३ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)

विलया :: स्त्री [वनिता] स्त्री, महिला, नारी (पाअ; हे २, १२८; षड्; कुमा; रंभा; भवि)।

विलव :: अक [वि + लप्] रोना, काँदना, चिल्लाना। बिलवइ (षड्; महा)। बकृ. विलवंत, विलवमाण (महा; णाया १, १ — पत्र ४७)।

विलवण :: वि [विलपन] रोनेवाला, चिल्लानेवाला। °या स्त्री[°ता] विलाप, क्नन्दन (औप)।

विलविअ :: न [विलपित] विलाप, क्रन्दन (पाअ; औप)।

विलविर :: वि [विलपितृ] विलाप करनेवाला (कुमा; सण)।

विलस :: अक [वि + लस्] १ मौज करना। २ चमकना। विलसइ, विलसेसु (महा)। वकृ. विलसंत (कप्प; सुर १, २२८)

विलसण :: न [विलसन] १ विलास, मौज (उप पृ १८१) २ वि. मौज करनेवाला (सुर १, २२१ टि)

विलसिय :: वि [विलसित] १ चेष्टा-विशेष। २ दीप्ति, चमक (महा)

विलसिर :: वि [विलसितृ] विलासी, विलास करनेवाला (सुपा २०४; २५४; धर्मंवि १६; सण)।

विला :: देखा विरा; 'मयणं व मणो मुणिणोवि हंत सिग्घं चिय विलाइ' (भत्त १२७), 'तावेण व नवणीयं विलाइ सो उद्धरिज्जंतो' (कुप्र १०५)।

विलाल :: देखो बिराल (पि २४१)।

विलाव :: पुं [विलाप] क्रन्दन, बिलख-बिलख या विकल होकर रोना परिदेवन (उव )।

विलाविअ :: वि [विलापित] विलाप-युक्त (वै ८६; भवि)।

विलास :: पुं [विलास] १ स्त्री का नेत्र-विकार। २ स्त्री की श्रृंगार-चेष्टा विशेष, अंग और क्रिया-संबन्धी स्त्री की चेष्टा-विशेष (पणह २, ४ — पत्र १३२; औप; गउड) २ दीप्‍ति, चमक (कुमा; गउड) ३ चेष्‍टा-विशेष, मौज (गउड)। °पुर न[°पुर] नगर-विशेष (सुपा ६२२)। °वई स्त्री[°वती] स्त्री, नारी, महिला (से १०, ७१; गउड)

विलासि :: वि [विलासिन्] १ मौजी, शौकीन (हास्य १३८; गउड) २ चमकनेवाला। स्त्री. °णी; 'चंदविलासिणीओ चंदद्धसमललाडाओ' (औप)

विलासिअ :: वि [विलासिक, °सित] विलास- युक्त (गा ४०५)।

विलासिणी :: स्त्री [विसिनी] १ नारी, स्त्री। २ वेश्या (गा २९३; ८०३ अ; गउड, नाट — रत्‍ना ६; पि ३४६; ३८७)। देखो विलासि।

विलिअ :: न [व्यलीक] १ कंदर्प-संबन्धी अपराध, वह अपराध जो काम के आवेग के कारण किया जाय, गुनाह (कुमा; गा ५३) २ अकार्य (गा ५३) ३ अप्रिय, विप्रिय (गा ५३; पाअ) ४ अनृत, असत्य। ५ प्रतारणा, ठगाई। ६ गति-विपर्यय। ७ वि. अपराधी। ८ अकार्यं-कर्ता। ९ विप्रिय-कर्ता। १० झूठ बोलनेवाला (हे १, ४६; १०१)

विलिअ :: वि [व्रीडित] लज्जित, शरमिन्दा (पाअ; पड्)।

विलिअ :: न [दे. व्रीडित] लज्जा, शरम (दे ७, ६५; सण)।

विलिइअ :: वि [व्यलीकित] व्यलीक-युक्त; 'विलि (? लिइ)ए विड्डे' (भग १५ — पत्र ६८१; राज)।

विलिंग :: सक [वि + लिङ्ग्] आलिङ्गन करना, स्पर्शं करना। विलिंगेज्ज (आचा २, ९; ३)।

विलिंजरा :: स्त्री [दे] धाना, भुने हुए जौ (दे ७, ६९)।

विलिंप :: सक [वि + लिप्] लेप करना, लेपनिा, पोतना। विलिंपइ (सण)। संकृ. विलिंपिऊण (सण)। हेकृ. विलिंपित्तए (कस)। प्रयो., वकृ. विलिंपावंत (निचू १७)।

विलिज्ज :: अक [वि + ली] १नष्‍ट होना। २ पिघलना। विलिज्जइ; विलिज्जंति, विलिज्ज (हे ४, ५६; ४१८; भवि, अज्झ ५५, संबोध ५२; गच्छ २, २६)। वकृ. विलिज्जंत, विलिज्ज- माण (पउम ६, २०, ३; २१; २२)

विलित :: देखो विलिअ = व्रीडित (उप २९६)।

विलित्त :: वि [विलिप्त] लिपा हुआ, जिसको विलेपन किया गया हो वह (सुर ३, ६२; १०, १७; भवि)।

विलिव्विली :: स्त्री [दे] कोमल और निर्बंल शरीरवाली स्त्री, नाजुक बदनवाली नारी (दे ७, ७०)।

विलिह :: सक [वि + लिख्] १ रेखा करना। २ चित्र बनना। ३ खोदना। विलिहइ (भवि)। वकृ विलिहमाण (पउम ७, १२०)। कवकृ. विलिहिज्जमाण (कप्प)। हेकृ. विलिहिउं (कप्पू)

विलिह :: सक [वि + लिह्] १ चाटना। २ चुम्बन करना। विलिहंतु (कप्पू)। वकृ. बिलिहंत (गच्छ १, १७; भत्त १४२)

विलिहण :: न [विलेखन] रेखा-करण (तंदु ५०)।

विलिहिअ :: वि [विलिखित] चित्रित (सुर १२, २०)।

विलीअ :: देखो विलिअ = व्रीडित; 'सोगवि- वसो विलीओ' (कुप्र १३५)।

विलीअ :: देखो विलिअ = व्यलीक; 'मज्झ विलीयं नरवइस्स परिवसइ किंपि चित्ते' (सुपा ३००)।

विलीइर :: वि [विलेतृ] द्रवण-शील, पिघलनेवाला (कुमा)।

विलीण :: वि [बिलीन] १ पिघला हुआ, द्रवी- भूत। २ विनष्ट; 'सोवि तुह झाणजलणे मयणो मयणं विअ बिलीणो' (धण २५; पाअ; महा; भवि) ३ जुगुप्सित (पणह १, १ — पत्र १४)

विलुंगयाम :: वि [दे] निर्ग्रंन्थ, अकिंचन, साधु; 'एस विलुंगयामो सिज्जाए' (आचा २, १, २, ४)।

विलुंचण :: न [विलुञ्चन] उन्मूलन, जड़ से उखाड़ना (पणह १, १ — पत्र २३)।

विलुंप :: सक [वि + लुप्] १ लूटना। २ काटना। ३ विनाश करना। विलुंपंति, विलुंपह (आचा; सूअ २, १, १६; पि ४७१); 'अत्थं चोरा विलुंपंति' (महा)। वकृ. विलुंपमाण (सुपा ५७४)। कवकृ. विलुप्पंत, विलुप्पमाण (पउम १९, ३१; सुपा ८०; सुर २, २१; उवा)

विलुंप :: सक [काङ्क्ष्] अभिलाष करना, चाहना। विलुंपइ (हे ४, १९२)।

विलुंपइत्तु :: वि [विलोप्‍तृ] विलोप-कर्ता, काटनेवाला (सूअ २, २, ६)।

विलुंपय :: पुं [दे] कीट, कीड़ा (दे ७, ६७)।

विलुंपिअ :: वि [काङ्क्षित] अभिलषित (कुमा ७, ३८; दे ७, ६६)।

विलुंपिअ :: पुं [दे. विलुप्त] आशित, कवलित, खाया हुआ; 'धत्थं कवलिअं असिअं विलुं- पिअं बंफिअं खइअं' (पाअ)। देखो विलुत्त।

विलुंपित्तु :: देखो विलुंपइत्तु (आचा)।

विलुक्क :: [दे] छिपा हुआ (भवि)।

विलुक्क :: वि [विलुञ्चित] विमुण्डित, सर्वंथा केश-रहित किया हुआ (परिंड २१७)।

विलुत्त :: वि [विलुप्त] १ काटा हुआ, छिन्न; 'विलुतकेसिं' (पउम १०२, ५३; पणह १, ३ — पत्र ५४) २ लुण्टित, लुटा हुआ; 'इमाइ अडवीइ वाणियगसत्थो। मह पुरि- सेहि विलुत्तो, पत्तं वित्तं तहिं पउरं' (सुर ११, ४८) ३ विनष्ट; 'तुमं उण जलविलु- त्तप्पसाहणं जेव सुमरसि' (कप्पू)।।

विलुत्तहिअअ :: वि [दे] जो समय पर काम करने को न जानता हो वह (दे ७, ७३)।

विलुप्पंत, विलुप्पमाण :: देखो विलुंप।

विलुलिअ :: वि [विलुलित] उपमर्दित (से ६, १२)।

विलूण :: वि [विलून] काटा हुआ, छिन्न (सुपा ६)।

विलेवण :: न [विलेपने] १ शरीर पर लगाने का चन्दन, कुंकुम आदि पिष्ट द्रव्य (कुमा; उवा; पाअ) २ लेपन-क्रिया (औप)

विलेविअ :: वि [विलेपित] विलेपन-युक्त (सण)।

विलेविआ :: स्त्री [विलेपिका] पान-विशेष (राज)।

विलेहिअ :: वि [विलेखित] चित्रित किया हुआ (सुर १२, ११७)।

विलोअ :: सक [वि + लोक्] देखना। कर्मं. विलोइज्जंति, विलोईअंति (पि ११)। कवकृ. विलोइज्जमाण (उप पृ६७)। संकृ. विलोइऊण (काप्र १९५)।

विलोअ :: पुं [विलोक] आलोक, प्रकाश (उप पृ ३५८)।

विलोअ :: देखो विलोव (सुपा ४४०)।

विलोअण :: पुंन [विलोचन] आँख, नेत्र (काप्र १६१; गा ९७०; सुपा ५२९)।

विलोअण :: न [विलोकन] १ देखना, निरी- क्षण। २ वि. देखनेवाला; 'लोयालोयविलो- यणकेवलनाणेण नायभावस्स' (सुर ४, ८६)

विलोट्ट :: अक [विसं + वद्] १ अप्रमाणित होना, झूठा साबित होना। २ उलटा होना, विपरीत होना। विलोट्टइ, विलोट्टए (हे ४, १२९; भवि; स ७१६)

विलोट्ट, विलोट्टिअ :: वि [विसंवदित] १ जो जूठा साबित हुआ हो (कुमा ६, ८८) २ जो कहकर फिर गया हो, प्रतिज्ञा- च्युत; 'कन्नाए सयणमहिलाईलोयवरुओ विल्लिट्टो सो' (उप ५९७ टी) ३ विरुद्ध बना हुआ; 'चउरो महनरवइणो विलोट्ठि (? ट्टि) या चउदिसिं पि अइवलिणो' (सुपा ४५२)

विलोड :: सक [वि + लोडय्] मंथन करना। विलोडेइ (कुप्र ३४७)।

विलोडिय :: वि [विलोडित] मथित (कुप्र ७८)।

विलोभ :: सक [वि + लोभय्] १ लुब्ध करना, लुभाना, आसक्त करना। २ लालच देना। ३ विस्मय उपजाना। कृ. विलोभ- णिज्ज (कुप्र १३८)

विलोल :: देखो विलोड। वकृ. विलोलंत (उफ पृ ८७)।

विलोल :: अक [वि + लुठ्] लेटना; 'बिलो- लंति महीतले विसूणियंगमंगा' (पणह १, १ — पत्र १८)।

विलोल :: वि [विलोल] चचंल, अस्थिर (से २, १६; गउड; कप्पू)।

विलोव :: पुं [विलोप] लूट, डकैती; 'सत्थ- विलोवे जाए' (सुर १५, १८)।

विलोवण :: न [विलोपन] ऊपर देखो; 'परध- णविलोवणाईणं' (उव)।

विलोवय :: वि [विलोपक] लूटनेवाला, लुटेरा; 'अद्धाणाम्मि विलोबए' (उत्त ७, ५)।

विलोह :: देखो विलोभ। हेकृ. विलोहइदु° (शौ) (मा ४२)।

विलोहण :: वि [विलोभन] १ आश्‍चर्य-जनक। २ लुभानेवाला; 'मुद्धमइविलोहणं नेयं' (श्रावक १३२)

विल्ल :: अक [वेल्ल्] चलना, हिलना; 'विल्लंति द्‍दुमपल्लवा' (रंभा)।

विल्ल :: देखो बिल्ल (हे १, ८५; राज)।

विल्ल :: वि [दे] १ अच्छ, स्वच्छ। २ विलसित, विलास-युक्त (दे ७, ८८) ३ पुंन. सुगंधी द्रव्य-विशेष, जो धुप का काम में आता है; 'डज्झंतविल्लगुग्गुलुपवियंभियघूमसंघायं' (स ४३६)

विल्लय :: देखो चिल्लअ (औप)।

विल्लय :: देखो वेल्लग (सुपा २७६)।

विल्लरी :: स्त्री [दे] केश, बाल (दे ७, ३२)।

विल्लल :: देखो बिल्लक (इक)।

विल्लहल :: देखो वेल्लहल (प्रवि २३)।

विल्ली :: स्त्री [विल्वी] गुच्छ-वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

विल्ह :: वि [दे] धवल, सफेद (दे ७, ६१)।

विव :: देखो इव (हे २, १८२; गा २९०; ६०९; अ; कुमा)।

विवइ :: स्त्री [विपद्] विपत्ति, कष्ट, दुःख (उप ७७१; हे ४, ४००)। °गर वि [°कर] दुःख-जनक (कुमा)।

विवइ :: स्त्री [विवृति] व्याख्या, विवरण टीका (कुप्र १९)। देखो विवदि।

विवइण्ण :: वि [विप्रकीर्ण] बिखरा हुआ (पउम ७८, २९; से ५, ५२; १३, ८९)।

विवंक :: वि [विवक्र] विशेष बाँका, टेढ़ा (स २५१)।

विवंचिआ :: स्त्री [विपञ्चिका] वाद्य-विशेष, वीणा (पाअ)।

विवक्‍क :: वि [विपक्‍व] १ अच्छी तरह पूर्ण किया हुआ। २ प्रकर्ष को प्राप्‍त, अत्यन्त पका हुआ। ३ उदय में आगत, पलाभिमुख; 'विवक्‍कतवबंभचेराणं देवाणं अवन्‍नं वदमाणे' (ठा ५, २ — पत्र ३२१)

विवक्ख :: पुं [विपक्ष] १ दुश्मन, रिपु, विरोघी; 'विवक्खदेवीहिं' (गउड; स ५९४; अच्चु ३१) २ न्याय-शास्त्र-प्रसिद्ध विरुद्ध पक्ष, वह वस्तु जहाँ साघ्य आदि का अभाव हो (दसनि १ — गाथा १४२) ३ विपरीत धर्म (अणु) ४ वैधर्म्य, विसदृशता (ठा १ टी — पत्र १३)

विवक्खा :: स्त्री [विवक्षा] कहने की इच्छा (पंच १, १० भास ३१; दसनि १, ७१)।

विवग्घ :: वि [विव्याघ्र] व्याघ्र के चमड़े से मढ़ा हुआ, व्याघ्र-चर्म-युक्त (आचा २, ५, १, ५)।

विवच्‍चास :: पुं [विपर्यास] विपर्यय, विप- रीतता, व्यत्यास, उलटा (उत्त ३०, ४; सुख ३०, ४; ओघ २६८)।

विवच्छा :: स्त्री [विवत्सा] १ एक महानदी (ठा १० — पत्र ४७७) २ वत्स-रहित स्त्री (राज)

विवज्ज :: अक [वि+पद्] मरना, नष्ट होना। विवज्जइ, विवज्जामि (स ११९; पच्‍च १४; सुख २, ४५)। भवि. विवज्जिही (कुप्र १८६)। वकृ. विवज्जत (नाट — रत्‍ना ७७)।

विवज्ज :: सक [वि+वर्जय्] परित्याग करना। विवज्जेइ (उव)। वकृ. विवज्जयंत, विवज्जमाण (उव; धर्मसं १०३२)। कृ. विवज्जणिज्ज, विवज्जणीअ (उप ५९७ टी; अभि १८३)।

विवज्ज :: वि [विवर्ज] १ रहित, वर्जित; 'मउडविवज्जाहरणं सर्व्व से देइ भट्टस्स' (सुपा २७१) २ परित्याग, परिहार (पिंड १२६)

विवज्जग :: वि [विवर्जक] वर्जन करनेवाला (सूअ २, ६, ५)।

विवज्जण :: न [विवर्जन] परित्याग (रत्‍न २२)।

विवज्जणया, विवज्जणा :: स्त्री [विवर्जना] परित्याग, परिहार, वर्जन (सम ४४; उत्त ३२, २; दसचू २, ५)।

विवज्जत्थ :: वि [विपर्यस्त] विपरीत, उलटा (पंचा ११, ३७; कम्म १, ५१)।

विवज्जय :: पुं [विपर्यय] विपर्यास, व्यत्यास, वैपरीत्य (पाअ; उप १४२ टी; पव १३३; पंचा ६, ३०; कम्म १, ५५)।

विवज्जास :: पुं [विपर्यास] १ विपर्यय, व्यत्यय (पाअ; पंचा ८, ११) २ भ्रम, मिथ्याज्ञान (सुर ६, १५४)

विवज्जिअ :: वि [विवजित] रहित, वर्जित, परित्यक्त (उव; दं ३६; सुर ३, १५५; रंभा; भवि)।

विवट्ट :: अक [वि+वृत्] बरतना, रहना। विवट्टइ (हे ४, ११८)। वकृ. विवट्टमाण (कुमा ६, ८०; रंभा)।

विवडिय :: वि [विपतित] गिरा हुआ (पउम १६, २२; भग ७, ८ टी — पत्र ३१८)।

विवड्‍ढ :: अक [वि+वृध्] बढ़ना। वकृ. विवड़ढमाण (णाया १, १० टी — पत्र १७१)।

विवड्‍ढण :: वि [विवर्धन] बढ़ानेवाला; 'मयविवड्ढणं' (उत्त १६, ७)। स्त्री. °णी (उत्त १६, २)। देखो विवद्धण।

विवडि्ढ :: स्त्री [विवृद्धि] बढ़ाव, वृद्धि (पंचा १८, १३)।

विवडि्ढअ :: वि [विवृद्ध] बढ़ा हुआ (नाट — पिंग)।

विवणि :: पुंस्त्री [विपणि] १ बाजार (सुपा ५३०) २ हाट, दूकान; 'विवणी तह आवणो हट्टो' (पाअ)

विवणीय :: वि [व्यपनीत] दूर किया हुआ, हटाया हुआ (कप्प)।

विवणण :: देखो विवन्न=विपन्‍न (उत्त २०, ४४; गा ५५० अ)।

विवण्ण :: वि [विवर्ण] १ कुरूप, कुडौल (से ५, ४७; दे ६७९) २ फीका, निस्तेज, म्लान (णाया १, १ — पत्र २८; से ८, ८७)

विवण्ण :: वि [द्विपर्ण] १ दो पत्रवाला। २ पुं. वृक्ष, पेड़ (राज)

विवत्त :: पुं [विवर्त्त] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (सुज्ज २०)।

विवत्ति :: स्त्री [विपत्ति] १ विनाश (णाया १, ९ — पत्र १५७; विपा १, २ — पत्र ३२; सुपा २३५; उव) २ मरण, मौत (सुर २, ५१; स ११९) ३ कार्य की असिद्धि (सुपा २३५; उव; बृह १) ४ आपदा, कष्ट (सुपा २३५)

विवत्तिअ :: वि [विवर्त्तित] फिराया हुआ, घुमाया हुआ (से ६, ८०)।

विवत्थ :: पुं [विवस्त्र] एक महाग्रह (सुज्ज २०)।

विवदि :: स्त्री [विवृति] १ विवरण, टीका। २ विस्तार (संक्षि ९)

विवद्धण :: न [विवर्धन] वृद्धि, बढ़ाव (कप्प)। देखो विवड्‍ढण।

विवद्धणा :: स्त्री [विवर्धना] वृद्धि, बढ़ाव (उप ६७५)।

विवद्धि :: पुं [विवर्धि] देव-विशेष (अणु १४५)।

विवन्न :: देखो विवण्ण=विवर्ण (सुपा ३१६)।

विवन्न :: वि [विपन्न] १ नाश-प्राप्‍त, विनष्ट (णाया १, ९ — पत्र १५७; स ३४५; सुपा ५०६) २ मृत, मरा हुआ (पउम ४४, १०; उत्त १०, ४४; स ७५६; सूअनि १६२; धर्मवि १४४)

विवय :: अक [वि+वद्] झगड़ा करना, विवाद करना। वकृ. विवयंत (सुपा ५४६; सम्मत्त २१५)।

विवय :: वि [दे] विस्तीर्ण (षड्)।

विवया :: स्त्री [विपद्] कष्ट, दुःख (उप ७२८ टी)।

विवर :: सक [वि+वृ] १ बाल सँवारना। २ विस्तारना। ३ व्याख्या करना। विवरइ (भवि), विवरेहि (स ७१७)। वकृ. 'केसे निवस्स विवरन्ती' (कुप्र २८५)

विवर :: न [विवर] १ छिद्र (पाअ; गउड; प्रासू ७३) २ कन्दरा, गुहा से ९, ४६)। ३ एकान्त, विजन; ‘कामज्झयाए गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागणाणे २ विहरति’ (विपा १२ — पत्र ३४) ४ पुंन. आकाश (भग २०, २)

विवरंमुह :: वि [विपराङ्मुख] विमुख, पराङ्मुख (पउम ७३, ३०; से ६, ४२)।

विवरण :: न [विवरण] १ व्याख्यान, ‘सोऊण सुमिणविवरणं’ (सुपा ३८) २ व्याख्या- कारक ग्रंथ, टीका (विसे ३४२२; पव — गाथा ३६; सम्मत्त ११९) ३ बाल सँवारना (दे १, १५०; पव ३)

विवरामुह, विवराहुत्त :: देखो विवरंमुह (भवि; से ११, ८५)।

विवरिअ :: वि [विवृत] व्याख्यात (विसे १३६९; स ७१७) । देखो विवुअ ।

विवरअ :: /?/(अप) नीचे दोखो (सण)।

विवरीअ :: वि [विपरीत] उलटा, प्रतिकूल (भग १, १ टी; गउड; कप्पू; जी १२; सुपा ६१०) । °ण्णु वि [°ज्ञ] उलटा, जाननेवाला (धर्मसं १२७४)।

विवरीर, विवरेर :: (अप) ऊपर देखोः ‘घइं विवरीरी बुद्धडी होइ विणासहो कालि’ (हे ४, ४२४), ‘माइ कज्जु विवरेरओ दीसह’ (भवि)।

विवरुक्ख, विवरोक्ख :: वि [विपरोक्ष] परोक्ष, अ- प्रत्यक्ष; ‘जावच्‍चिय दहवयणो विवरोक्खो आवलीए धूयाए’ (पउम ९, ११) । २ न. अभाव; ‘पासम्मि अहंकारो होहिइ कह वा गुणाण विवरुक्खे’ (गउड ७९) । ३ परोक्षता, अप्रत्यक्षपन; ‘इय ताहे भावागयपच्‍चक्खायंतणश्‍वइगुणाण । विवरोक्खम्मि वि जाया कईण संबोहणालावा’ (गउड १२०४)

विवल :: अक [वि + वल्] मुड़ना, टेढा होना (गउड ४२४)।

विवला, विवलाअ :: अक [विपरा + अय्] पलायन करना, भाग जाना । विवलाइ, विवलायइ, विवलाअंति (गउड ९३४; ११७९; पि ५६७) । वकृ. विवलाअंत, विवलाअमाण (से ३, ६०; गा २९१; गउड १६९; से १५, १४; गउड ४७२)।

विवलाअ :: वि [विपलयित] भागा हुआ (से १, २; १४, ३०)।

विवलिअ :: वि [विवलित] मोड़ा हुआ, परावर्त्तित (गा ६८०; गउड ४२४; काप्र १६५)

विवलीअ :: देखो विवरीअ; ‘विवलीअभासए’ (अणु)।

विवल्हत्थ :: वि [विपर्यस्त] विपरीत, उलटा (से ६, ८)।

विवस :: वि [विवश] १ अधीन, परायत्त, परतमन्त्र (प्रासू १०७; कुमा; कम्म १, ५७) २ बाध्य, लाचार (कुप्र १३५)

विवह :: सक [वि + वह्] विवाह करना, शादी करना (प्रामा)।

विवहण :: न [विव्यधन] विनाश (णाया १, १ — पत्र ६५)।

विवाइअ :: व [विपादित] व्यापादित, जो जान से मार डाला गया हो वह; ‘छिद्देण विवाइओ वाली’ (पउम ३, १०; उत्त १९, ५९; ६३)।

विवाउग :: वि [विवादक] विवाद-कर्ता (स ४५९)।

विवाग :: पुं [विपाक] १ कर्म-परिणाम, सुख- दुःखादि भोग रूप कर्म-फल (ठा ४, १ — पत्र १८८; विपा १, १; उव; सुपा ११०; सण; प्रासू १२२) २ प्रकर्ष; ‘वयविवाग- परिणामा’ (ठा ४, ४ टी — पत्र २८३) ३ पाककाल; ‘जं से पुणो होइ दुहं विवागे’ (उत्त ३२, ३३) । ° विजय पुंन [°विचय] धर्मध्यान का एक भेद, कर्म-फल का अनु- चिन्तन (ठा ४, ४ — पत्र १८८) । °सुय न [°श्रुत] ग्यारहवाँ जैन अङ्‍ग-ग्रंथ (सम १; विपा १, १; औप)

विवागि :: वि [विपाकिन्] विपाकवाला (अज्झ ११३)।

विवाद, विवाय :: पुं [विवाद] झगड़ा, तकरार, वाक्- कलह, जबानी लड़ाई (उवा; उव; स ३८५; सुपा २८२; ३९१)।

विवाय :: सक [वि + पादय्] मार डालना । विवाएमि (विसे २३८५) । वकृ. विवाएंत, विवायंत (पउम ५७, ३१; २७, ३७)

विवाय :: देखो विवाग (सुर १२, १३९; स २७५; ३२१; सं ११८; सण)। ‘सव्वं चिय सहदुक्खं पुव्वज्जियसुकयदुक्कयविवाया । जायइ जियाण जं ता को खेओ सकयउवभोगे’ (उप ७२८ टी)

विवायण :: वि [विवादन] विवाद-कर्ता; ‘ते दोवि विवायणु व्व रायकुले’ (धर्मवि २०)।

विवाविड :: न [दे] अतिशय गौरव (संक्षि ४७)।

विवाह :: सक [वि + वाहय्] लग्‍न करना, शादी करना । विवाहेमो (कुप्र १३१)।

विवाह :: देखो विआह = विवाह (उवा; स्वप्‍न ५१; सम १; ८८) । °गणय पुं [°गणक] ज्योतिषी, जोशी (दे ६, १११) । °जन्न पुं [°यज्ञ] विवाह-उत्सव (मोह ४४)।

विवाह :: देखो विआह = विबाध (सम १; ८८)।

विवाह° :: देखो विआह° = व्याख्या (सम १; ८८)।

विवाहाविय :: वि [विवाहित] जिसकी शादी कराई गई हो वह (महा)।

विवाहिय :: वि [विवाहित] जिसकी शादी हुई हो वह (महा; सण)।

विविइसा :: स्त्री [विविदिषा] जानने की इच्छा, जिज्ञासा (अज्झ ६९)।

विविक्क :: देखो विवित्त (सूअ १, १, २, १७)।

विविच :: सक [वि + विच्] पृथक् करना, श्रलग करना । संकृ. विविचित्ता (सूअ २, ४, १०)।

विविण :: न [विपिन] जंगल, वन (गउड; नाट — चैत ७२)।

विवित्त :: वि [विविक्त] १ रहित, वर्जित । २ पृथग्‌भूत (दस ८, ५३; भग ९, ३३; उत्त २९, ३१; उव) ३ विविध, अनेकविध; ‘आसवेर्हि विवित्तेर्हि तिप्पमाणो हियासए । गंथेर्हि विवित्तेर्हि आउकालस्स पारए’ (आचा १, ८, ८, ९; १०) ४ न. एकान्त, विजन; 'किंतु विवित्तमाइसउ ताओ' (स ७४३)

विवित्त :: वि [विविक्त] १ विवेक-युक्त। २ संतिग्‍न, भत-भीरु (तत ४)

विविदिअ :: वि [विविदित] विशेष रूप से ज्ञात (पण्ह २, १ — पत्र ९९)।

विविदिसा :: देखो विविइसा (पंचा ३, २७)।

विविद्धि :: पुं [विवृद्धि] उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३ — पत्र ७७)।

विविह :: वि [विविध] अनेक प्रकार का, बहुविध, भाँति भाँति का (आचा; राय, उव; महा)।

विवुअ :: वि [विवृत] १ विस्तृत। २ व्याख्यात (संक्षि ४)

विवुज्झ :: अक [वि+बुध्] जागना। विवुज्झदि (शौ) (प्राप्र)।

विवुडि्ढ :: देखो विवडि्ढ (ओघभा १३९; स १३५)।

विवुद :: देखो विवुअ (प्राकृ ८; १२)।

विवुदि :: देखो विवदि (प्राकृ १२)।

विवुह :: देखो विबुह (सण)।

विवेअ :: देखो विवेग (कुमा; महा ५२; ७७)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] विवेक-ज्ञाता (पउम ५३, ३८)।

विवेअ :: पुं [विवेप] विशेष कंप (सुपा १४)।

विवेइ :: वि [विवेकिन्] विवेकवाला (सुपा १४८; कुमा; सण)।

विवेग :: पुं [विवेक] १ परित्याग (सूअ १, २, १, ८; ठा २, ३; औप; आचानि ३०३) २ ठीक-ठीक वस्तु-स्वरूप का निर्णय, विनिश्चय (औप कुमा) ३ प्रायश्चित्त (आचा १, ५, ४, ४) ४ पृथक्करण (औप)

विवेगि :: देखो विवेइ (सुपा ५४३; कुप्र ४७)।

विवेच :: सक [वि+वेचय्] विवेचन करना, ठीक-ठीक निर्णय करना, विवेक करना। कर्म. विवेचिज्जइ (धर्मसं १३१०)। हेकृ. विवेचितुं (धर्मसं १३११)।

विवेयण :: न [विवेचन] विवेक, निर्णय (विसे १९४२)।

विवोल :: पुं [दे] विशेष कोलाहल, कलकल आवाज; 'विवोलेण सवणसुहयं' (स ५७१)।

विवोलिअ :: वि [दे] व्यतिक्रान्त, गुजरा हुआ; 'कहकहवि विवोलिया मे रयणी' (स ५०९)।

विवोह :: देखो विबोह (भवि)।

विव्व :: सक [वि+अय्] व्यय करना, खर्च करना; चिंतामणिप्पभावा संपजइ तस्स दविणमइपउरं। तं विव्वइ जिणभवणे' (सुपा ३८२)। कृ. 'विव्वेयव्वो' (सुपा ४२४; ५८९)। देखो विच्च=वि=अय्।

विव्वाय :: वि [दे] १ अवलोकित। २ विश्रान्त (दे ७, ८९)

विव्वोअ :: देखो बिब्बोअ (कुमा)।

विव्वोयण :: [दे] देखो बिब्बोयण (कप्प)।

विस :: सक [विश्] प्रवेश करना। विसइ, विसंति (वज्जा २६, सण; गउड)। वकृ. विसंत (गउड)। संकृ. विसिऊण (गउड)।

विस :: सक [वि+शॄ] १ हिंसा करना। २ नष्ट करना। कवकृ. विसिज्जमाण, विसीरंत (विसे ३४३७; अच्चु ७४)

विस :: पुंन [विष] १ जहर, गरल, हलाहल; 'झत्ति नट्ठो दुहावि विमोहविसो' (सम्मत्त २२९; उवा; गउड; प्रासू १२०; कुमा) २ पानी, जल (से ८, ६३) °नंदि पुं [°नन्दिन्] प्रथम बलदेव का पूर्वभवीय नाम (सम १५३)। °न्न [°।न्न] विष-मिश्रित अन्न (उप ६४८ टी)। °मइअ, °मय वि [°मय] विष का बना हुआ (हे १, ५०; षड्)। °व वि [°वत्] १ विषवाला, विष-युक्त। २ पुं. सर्प, साँप (से ७, ६७) °हर पुं [°धर] साँप, सर्प (से २, २५; सुर १, १४९; महा)। °हरवइ पुं [°धरपति] शेष नाग (से ९, ७)। °हरिंद पुं [°धरेन्द्र] शेष नाग (गउड)। °हारिणी स्त्री [°हारिणी] पनीहारी, पानी भरनेवाली स्त्री (हे ४, ४३९)।

विस :: देखो बिस (गा ९५२; गउड)।

विस :: पुं [वृष] १ बैल, साँड़, वृषभ (सुर १, २४८; सुपा ३६३; ५९७; सुख ८, १३) २ ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि (सुपा १०८; विचार १०७) ३ मूषक, चूहा (दे ७, ६१; षड्) ४ धर्म। ५ बल-युक्त। ६ ऋषभ नामक औषध। ७ पुरुष-विशेष (सुपा ३६३) ८ काम, कन्दर्प। ९ शुक्र-युक्त, वीर्य-युक्त। १० श्रृङ्गवाला कोई भी जानवर (सुपा ५९७)

विसइ :: वि [निषयिन्] विषयवाला विषय-युक्त (विसे २७६०)।

विसंक :: वि [विशङ्क] शंका-रहित, निःशंक (उप १३९ टी)।

विसंखल :: वि [विश्रृङ्खल] स्वच्छन्द, स्वैरी, निरंकुश, उद्धत (पाअ; स १८०; से ५, ६८)।

विसंखल :: सक [विश्रृङ्खलय्] निरंकुश करना, अव्यवस्थित कर डालना। संकृ. विसंखलेऊण (सुख २, १५)।

विसंघट्टिय :: वि [विसंघट्टित] वियुक्त, विघ- टित (कुप्र ९)।

विसंघड :: अक [विसं+घट्] अलग होना, जुदा होना। वकृ. विसंघडंत (गा ११५)।

विसंघडिय :: वि [विसंघटित] वियुक्त, जो जुदा हुआ हो वह (णाया १, ८ — १४१; महा)।

विसंघाइय :: वि [विसंघातित] संहत किया हुआ (अणु १७६)।

विसंघाय :: सक [विसं+घातय्] संहत करना। कर्म, विसंघाइज्जइ (अणु १७६)।

विसंजुत्त :: वि [विसंयुक्त] वियुक्त, जो अलग हुआ हो (सम्म २२; सूअनि १२१ टी)।

विसंजोअ :: पुं [विसं+योजय्] वियुक्त करना, अलग करना। विसंजोएइ (भग)।

विसंजोअ, विसंजोग :: पुं [विसंयोग] वियोग, विघटन, पृथग्‌भाव, जुदाई (कम्म ५, ८२; पंच ३, ५४)।

विसंठुल :: वि [विसंस्थुल] १ विह्वल, व्याकुल (पाअ; से १४, ४१; हे २, ३२; ४, ४३६; मोह २२; धम्मो ५) २ अव्यवस्थित (गा १४६; कुप्र ४१७; दे १, ३४)

विसंतव :: पुं [द्विषन्तप] शत्रु को तपानेवाला, दुश्मन को हैरान करनेवाला (हे १, १७७)।

विसंथुल :: देखो विसंठुल (पउम ८, २००; स ५२१)।

विसंथुलिय :: वि [विसंस्थुलित] व्याकुल बना हुआ (सण)।

विसंधि :: पुं [विसन्धि] १ एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) २ वि. बन्धन-रहित (राज) °कप्प, °कप्पेल्लय पुं [°कल्प] एक महाग्रह (सुज २०)।

विसंनिविट्ठ :: न [विसंनिविष्ट] विविध रथ्या, अनेक महल्ला (औप)।

विसंभ :: देखो वीसंभ (महा)।

विसंभणया :: देखो विस्संभणया (आचा १, ८, ६; ४)।

विसंभोइय :: वि [विसंभोगिक] जिसके साथ भोजन आदि का व्यवहार न किया जाय वह, मंडली-बाह्य, समाज-बाह्य (ठा ५, १ — पत्र ३००)।

विसंभोग :: पुं [विसंभोग] साथ बैठकर भोजन आदि का अव्यवहार (ठा ३, ३)।

विसंभोगिय :: देखो विसं भोइय (ठा ३, ३ — पत्र १३९)।

विसंवइय :: वि [विसंवदित] १ सबूत रहित, अप्रमाणित (पाअ; स ५७६) २ विघटित, वियुक्त (से ११, ३९)

विसंवय :: अक [विसं +वद्] १ अप्रमाणित होना, असत्य ठहरना, सवूत से सिद्ध न होना। २ विघटित होना, अलग होना। ३ विपरीत होना, अन्यथा होना। विसंवयइ, विसंवयंति (हे ४, १२९; उव); 'सो तारिसो घम्मो नियमेण फले विसंवयइ' (स ६४८; ७१६), 'चरिएण कहं विसंवयसि' (मन २९), विसंवएज्जा (महानि ४)। वकृ. विसंवयंत (उव; उप ७६८ टी, धर्मसं ८८३)

विसंवयण :: न [विसंवदन] विसंवाद, सबूत का अभाव (उप पृ २९८)।

विसंवाइ :: वि [विसंवादिन्] १ विघटित होनेवाला, विच्छिन्न होनेवाला (कुमा ६, ८९) २ अप्रमाणित होनेवाला, सबूत से सिद्ध नहीं होनेवाला, असत्य ठहरनेवाला (कुप्र २९४; सम्मत्त १२३)

विसंवाइअ :: वि [विसंवादित] विसंवाद-युक्त (दे १, ११४; से ३, ३०)।

विसंवाद :: देखो विसंवाय=विसंवाद (धर्मसं १४८)।

विसंवादण :: देखो विसंवायण (उत्त २९, ४८)।

विसंवादणा :: देखो विसंवायणा (ठा ४, १ — पत्र १९६)।

विसंवाय :: वि [दे] मलिन, मैला (दे ७, ७२)।

विसंवाय :: पुं [विसंवाद] १ सबूत का अभाव, विरुद्ध सबूत, विपरीत प्रमाण; 'अण्णोण्ण- विसंवाओ' (संबोध १७; सुपा ६०८) २ व्याघात (गा ६१६) ३ विचलता (से ३, ३०)

विसंवायग :: वि [विसंवादक] १ सबूत रहित, प्रमाण-रहित। २ ठगनेवाला, वंचक (सुपा ६०८)

विसंवायण :: न [विसंवादन] नीचे देखो (उत २९, ४८; सुख २९, ४८)।

विसंवायणा :: स्त्री [विसंवादना] १ असत्य कथम। २ वंचना, ठगाई (ठा ४, १ — पत्र ३९६)

विसंसरिय :: वि [विसंसृत] उठ गया हुआ; 'पहायसमए य विसंसरिएसुं थाणएसुं' (स ५३७)।

विसंहणा :: देखो विस्संभणया (आचा)।

विसकल :: वि [विशकल] नीचे देखो (राज)।

विसकलिय :: वि [विशकलित] दुकड़-टुकड़ा किया हुआ, खण्डित (आवम)।

विसग्ग :: पुं [विसर्ग] १ निसर्ग, त्याग; 'सिमि- णेवि सुरयसंगमकिरियासंजणियवंजणविसग्गो' (विसे २२८) २ विसर्जन, छुटकारा, छोड़ देना (पिं २१५) ३ अक्षर-विशेष, विसर्ज- नीय वर्ण (पिंग)

विसज्ज :: सक [वि+सृज्, सर्जय्] १ बिदा करना, भेजना । २ त्यागना। विसज्जेह (महा)। संकृ. विसज्जिऊण, विसज्जिअ (महा; अभि ४६)। हेकृ. विसज्जिदुं (शौ) (अभि ६०)। कृ. विसज्जिदव्व (शौ) (अभि ५०)

विसज्जणा :: स्त्री [विसर्जना] बिदाई (वव ४)।

विसज्जिअ :: वि [विसृष्ट, विसर्जित] १ बिदा किया हुआ, भेजा हुआ (औप; अभि ११६; महा; सुपा १५०, २५७) २ त्यक्त; 'जीवेण जाणि उ विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि' (उव)

विसट्ट :: अक [दल्] फटना, टूटना, टुकड़े- टुकड़े होना। विसट्टइ (हे ४, १७६; षड्) विसट्टंति (गउड); 'तस्स विसट्टउ हिअयं' (कुमा)। वकृ. विसट्टंत (स ५७६)।

विसट्ट :: अक [वि+कस्] विकसना, खिलना, फूलना। विसट्टइ (प्राकृ ७६), विसट्टंति (वज्जा १३८)। वकृ. विसट्टंत, विसट्टमाण (वज्जा ६०; ठा ४, ४ — पत्र २६४)।

विसट्ट :: सक [वि+कासय्] विकसित करना, फुलाना, प्रफुल्ल करना। विसट्टइ (धात्वा १५३)।

विसट्ट :: अक [पत्] गिरना, स्खलित होना। विसट्टंति (सुख २, २९)।

विसट्ट :: वि [दे] १ विघटित, विश्‍लिष्ट (पाअ; गउड १००९) २ विकसित, प्रफुल्ल, खिला हुआ (प्राकृ ७७; गउड ६६७; ८०५; कुमा; सुर ३, ४२; भत्त ३०) ३ दलित, विशीर्ण, खण्डित, जिसका टुकड़ा-टुकड़ा हुआ हो वह (से ६, ३०; गउड ५५९; भवि) ४ उत्थित (गउड ७)

विसट्टण :: न [विकसन] विकास, प्रफुल्लता; 'देव ! पणयजणकल्लाणकंदुट्टविसट्टणुग्गंतमि- हराणुगारिणो' (धर्मा ५)।

विसड, विसढ :: देखो विसम (षड्; हे १, २४१; कुमा; दे ७, ६२); 'ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलिया जाया' (उव)।

विसढ :: वि [दे] १ नीराग, राग-रहित। २ नीरोग, रोग-रहित (दे ७, ६२) ३ विषोढ, सहन किया हुआ (उव) ४ विशीर्ण, टुकड़े- टुकड़े किया हुआ (से ६, ६६) ५ आकुल, व्याकुल (से ११, ८९)

विसढ :: वि [विशठ] १ अत्यंत दंभी, अतिशय मायावी; 'देवेहि पाडिहेरं किं व कयं एत्थ विसढेहि' (पउम १०२, ५२) २ पुं. एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५५०)

विसण :: देखो वसण=वृषण (दे ६, ६२)।

विसण :: न [वेशन] प्रवेश (राज)।

विसण्ण :: वि [विसंज्ञ] संज्ञा-रहित, चैतन्य- वर्जित (से ६, ६८)।

विसण्ण :: देखो विसन्न=विषण्ण (महा; वसु; राज)।

विसत्त :: वि [विसत्त्य] सत्त्व-रहित (वव ६)।

विसत्थ :: देखो वीसत्थ (णाया १, १ — पत्र १३; स्वप्‍न १६; उप ७२८ टी)।

विसद :: देखो विसय=विशद (पण्ह १, ४ — पत्र ७२: कप्प; त्रि ९७)।

विसद्द :: पुं [विशब्द] १ विशिष्ट शब्द। २ वि. विशिष्ट शब्दवाला (गउड)

विसन्न :: वि [विषण्ण] १ खिन्न, शोक-ग्रस्त, विषादयुक्त (पण्ह १, ३ — पत्र ५५; सुर ९, १८०; श्रु १२) २ आसक्त, तल्लीन (सूअ १, १२, १४) ३ निमग्‍न; 'अंतरा चेव सेयंसि विसन्‍ने' (णाया १, १ — पत्र ६३) ४ पुं. असंयम (सूअ १, ४, १, २९)

विसन्न :: देखो विस-न्न।

विसन्ना :: स्त्री [विसंज्ञा] विद्या-विशेष (पउम ७, १३९)।

विसप्प :: अक [वि+सृप्] फैलना, विस्तरना, व्याप्त होना। वकृ. विसप्पंत, विसप्पमाण (कप्प; भग; औप; तंदु ५३)।

विसप्प :: पुं [विसर्प] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २७)।

विसप्पि :: वि [विसपिन्] फैलनेवाला (सुपा ४४७)।

विसप्पिर :: वि [विसर्पितृ] ऊपर देखो (सण)।

विसम :: देखो वीसम=वि+श्रम्। विसमदु (रंभा ३१)।

विसम :: वि [विषम] १ ऊँचा-नीचा, उन्नता- वनत (कुमा; गउड) २ असम, असमान, अतुल्य (भग, गउड) ३ अयुग्म, एकी संख्या, जैसे — एक, तीन, पाँच, सात आदि। ४ दारुण, कठिन, कठोर। ५ संकट, संकरा, कम चौड़ा, संकीर्ण (हे १, २४१; षड्) ६ पुंन. आकाश (भग २०, २)। °क्खर वि [°।क्षर] अपसिद्धान्तवाला, असत्य निर्णयवाला (से ४, २४)। °लोअण पुं [°लोचन] महादेव, शिव (वेणी ११७)। °वाण पुं [°बाण] कामदेव (सण)। °सर पुं [°शर] वही (स १; सुपा १६३; सण)

विसमय :: न [दे] भल्लातक, भिलावाँ (दे ७, ६६)।

विसमय :: देखो विस-मय।

विसमिअ :: वि [विषमित] १ बीच-बीच में विच्छेदित (से ९, ८७) २ विषम बना हुआ (गउड)

विसमिअ :: वि [विस्मृत] भुला हुआ, अस्मृत (से ९, ८७)।

विसमिअ :: [विश्रमित] विश्रान्त किया हुआ, विश्राम-प्रापित (से ९, ८७)।

विसमिअ :: वि [दे] १ विमल, निर्मल। २ उत्थित (दे ७, ९२)

विसमिर :: वि [विश्रमितृ] विश्राम करनेवाला। स्त्री. °री (गा ५२; प्राकृ ३०)।

विसम्म :: अक [वि+श्रम्] विश्राम करना, आराम करना। भवि. विसम्मिहिइ (गा ५७५)। कृ. विसम्मिअव्व (से ९, २)।

विसय :: वि [विशद] १ निर्मल, स्वच्छ (कुप्र ४१५; सटि्ठ ७८ टी) २ व्यक्त, स्पष्ट (पाअ) ३ धवल, सफेद (औप)

विसय :: पुंन [विशय] १ गृह, घर (उत्त ७, १) २ संभव, संभावना (आचू १)

विसय :: पुं [विषय] १ गोचर, इन्द्रिय आदि से जाना जाता पदार्थ — शब्द, रूप, रस आदि वस्तु (पाअ; कुमा; महा) २ जनपद, देश (ओघभा ८; कुमा; पउम २७, ११; सुपा ३१, महा) ३ काम-भोग, विलास; 'भोग- पुरिसो समज्जियविसयसुहो' (ठा ३, १ टी — पत्र ११४; कम्म १, ५७; सुपा ३१; महा) ४ बाबत, प्रकरण, प्रस्ताव; 'जोइसविसए' (उप ९८६ टी; ओघभा ६) °।विहइ पुं [°।धिपति] देश का मालिक, राजा (सुपा ४६४)।

विसर :: सक [वि+सृज्] १ त्याग करना। २ बिदा करना, भेजना। विसरइ (षड्)

विसर :: अक [वि+सृ] सरकना, धसना, नीचे गिरना, खिसकना। वकृ. विसरंत (णाया १, ९ — पत्र १५७; से १४, ५४)।

विसर :: सक [वि+स्मृ] भूल जाना, याद न आना। विसरइ (प्राकृ ६३)।

विसर :: पुं [दे] सैन्य, सेना, लंश्कर (दे ७, ६२)।

विसर :: पुं [विसर] समूह, युथ, संघात (सुपा ३; सुर १, १८५; १०; १४)।

विसरण :: न [विशरण] विनाश (राज)।

विसरय :: पुंन [दे] वाद्य-विशेष (महा)।

विसरा :: स्त्री [विसरा] मच्छी पकड़ने का जाल-विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।

विसरिअ :: वि [विस्मृत] याद नहीं आया हुआ (पि ३१३)।

विसरिया :: स्त्री [दे] सरट, कृकलास, गिरगिट (राज)।

विसरिस :: वि [विसदृश] असमान, विजा- तीय (सण)।

विसलेस :: पुं [विश्‍लेष] जुदाई, वियोग, पृथग्‌भाव (चंड)।

विसल्ल :: वि [विशल्य] शल्य-रहित (पउम ६३ ११; चेइय ३८७)। °करणी स्त्री [°करणी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

विसल्ला :: स्त्री [विशल्या] १ एक महौषधि (ती ५) २ लक्ष्मण की एक स्त्री (पउम ६३, २९)

विसस :: सक [वि+शस्] वध करना, मार डालना; 'विससेह महिसे' (मोह ७६)। कवकृ. विससिज्जंत (गउड ३१९)।

विसस :: देखो विस्सस=वि+श्‍वस्। कृ- विससिअव्व (सं १०८)।

विससिय :: वि [विशसित] वध किया हुआ, जो मार डाला गया हो वह (गउड; ४७५; ससम्मत्त १४०)।

विसह :: सक [वि+षह्] सहन करना। विसहंति (उव)। वकृ. विसहंत (से १२, २३; सुपा २३३)। हेकृ. विसहिउं (स ३४६)।

विसह :: वि [विषह] सहन करनेवाला, सहिष्णु; 'वसुंधरा इव सव्वफासविसहे' (कप्प; औप)।

विसह :: देखो वसभ (गउड)।

विसहण :: न [विषहण] १ सहन करना (धर्मसं ८९७) २ वि. सहिष्णु (पव ७३ टी)

विसहिअ :: वि [विषोढ] सहन किया हुआ (से ६, ३३)।

विसाअ :: (अप) स्त्री [विश्‍वा] छन्द-विशेष (पिंग)।

विसाइ :: वि [विषादिन्] पिषाद-युक्त, शोक ग्रस्त (संबोध ३६)।

विसाण :: न [विषाण] १ हाथी का दाँत (पण्ह १, १ — मत्र ८, अणु २१२) २ श्रृंग, सींग (सुख ९, १; पाअ; औप) ३ सूअर का दाँत (उवा) ४ पुं.ब. देश-विशेष (पउम ९८, ६५)

विसाण :: सक [विशाणय्] घिसना, शाण पर चढ़ाना। कर्म. विसाणीअदि (शौ) (नाट-मृच्छ १३९)।

विसाणि :: वि [विषाणिन्] १ सींगवाला। २ पुं. हाथी, हस्ती। ३ श्रृंगाटक, सिंघाड़ा। ४ ऋषभ नामक औषध (अणु १४२)

विसाय :: सक [वि+स्वादय्] विशेष चखना, खाना। वकृ. विसाएमाण (णाया १, १ — पत्र ३७; कप्प)।

विसाय :: पुं [विषाद] खेद, शोक, दिलगीरी, अफसोस (उव; गउड; सुपा १०४; हे १, १५५)। °वंत वि [°वत्] खिन्न, शोक- ग्रस्त (श्रा १४)।

विसाय :: वि [विसात] १ सुख-रहित (विवे १३६) २ पुंन. एक देव-विमान (सम ३८)

विसाय :: वि [विस्वाद] स्वाद-रहित; 'आम- यकारि विसायं मिच्छत्तं कयसणं व जं भुत्तं' (विवे १३६)।

विसार :: सक [वि+सारय्] फैलाना। वकृ. विसारंत (उत्त २२, ३४)।

विसार :: पुं [दे] सैन्य, सेना (षड्)।

विसार :: वि [विसार] सार-रहित, निःस्सार (गउड)।

विसारण :: न [विशारण] खण्डन (पिंड ५९०)।

विसारणिय :: वि [विस्मारणिक] स्मारणा- रहित, जिसको याद न दिलाया गया हो वह (काल)।

विसारय :: वि [दे] धृष्ट, ढीठ, साहसी (दे ७, ६६)।

विसारय :: वि [विशारद] विद्वान् पण्डित, दक्ष (पण्ह, १, ३ — पत्र ५३; भग; औप; सुर १, १३; आत्म १९)।

विसारि :: वि [विसारिन्] फैलनेवाला, व्यापक (गउड)। स्त्री. °णी (कप्पू)।

विसारि :: पुं [दे] कमलासन, ब्रह्मा (दे ७, ६२)।

विसाल :: वि [विशाल] १ विस्तुत, बड़ा, विस्तीर्ण, चौड़ा (पाअ; सुर २, ११६; प्रति १०) २ पुं. एक ग्रह-देवता, अठासी महा- ग्रहों में एक महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ एक इन्द्र, क्रन्दित-निकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ४ पुंन. देव-विमान विशेष (सम ३५; देवेन्द्र १३६; पव १९४) ५ न. एक विद्या- धर-नगर (इक)

विसालय :: पुं [दे] जलघि, समुद्र (दे ७, ७१)।

विसाला :: स्त्री [विशाला] १ एक नगरी का नाम, उज्जयिनी, उज्जैन (सुपा १०३; उप ९८८) २ भगवान् पार्श्‍वनाथ की दीक्षा- शिविका (विचार १२९) ३ जंबूवृक्ष विशेष, जिससे यह जंबूद्वीप कहलाता है। ४ राजधानी-विशेष (इक) ५ भगवान् महावीर की माता का नाम (सूअ १, २, ३, २२) ६ एक पुष्करिणी (राज)

विसालिस :: देखो विसरिस (उत्त ३, १४)।

विसासण :: वि [विशासन] विघातक, विना- शक; 'कुसुमयविसासणं' (सम्म १)।

विंसासिअ :: वि [विशासित] १ मारित, हिंसित, जिसका वध किया हो वह। २ विशेष रूप से धर्षित। ३ विश्‍लेषित, वियुक्त किया हुआ। ४ मार भगाया हुआ (से ८, ६३)

विसाह :: पुं [विशाख] स्कन्द, कार्तिकेय (पाअ)।

विसाहा :: स्त्री [विशाखा] १ नक्षत्र-विशेष (सम १०) २ व्यक्ति-वाचक नाम, एक स्त्री का नाम (वज्जा १२२) ३ एक विद्याधर- कन्या (महा)

विसाहिअ :: वि [विसाधित] १ सिद्ध किया गया । २ न. संसिद्धि; 'खग्गविसाहिउ जहि लहहुं पिय तहि देसहिं जाहुं' (हे ४, ३८६; ४११)

विसाही :: स्त्री [वैशाखी] १ वैशाख मास की पूर्णिमा। २ वैशाख मास की अमावस (सुज्ज १०, ६)

विसि :: स्त्री [दे] करि-शारी, गज-पर्याण (दे ७, ६१)।

विसि :: देखो बिसि (हे १, १२८; प्राप्र)।

विसिज्जमाण :: देखो विस=वि-शॄ।

विसिट्ठ :: वि [विशिष्ट] १ प्रघान, मुख्य (सुअ १, ६, ७; पण्ह २, १ — पत्र ९९) २ विशेष-युक्त (महा) ३ विशेष शिष्ट, सुसभ्य (वज्जा १६०) ४ युक्त, सहित (पण्ण २३ — पत्र ६७१) ५ व्यतिरिक्त, भिन्न, विलक्षण (विसे) ६ पुं. एक इन्द्र, द्वीपकुमार- देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८४) ७ न. लगातार छः दिनों का उपवास (संबोध ५८)। °दिट्ठि स्त्री [°दृष्टि] अहिंसा (पण्ह २, १)

विसिट्ठि :: स्त्री [विसृष्टि] विपरीत क्रम (सिरि ८७८)।

विसिण :: वि [दे] रोमश, प्रचुर रोमवाला (दे ७, ६४)।

विसिस :: सक [वि+शिष्] विशेषण-युक्त करना। कर्म. 'किरिया विस(?सि)स्सए पुण नाणाउ, सुए जओ भणिअं' (अज्झ ५८; ५९)।

विसिह :: पुं [विशिख] १ बाण, तीर (पाअ; पउम ८, १००; सुपा २२; किरात १३) २ वि. शिखा रहित (गउड ५३९)

विसी :: देखो बिसी (हे १, १२८; प्राप्र)।

विसी :: स्त्री [विंशति] बील, बीस का समूह; 'केत्ती (?त्ति) आओ भाअवदाणं विसीओ' (हास्य १३९)।

विसीअ :: अक [वि+सद्] १ खेद करना। २ निमग्‍न होना, डूबना। विसीयइ, विसीअंति, विसीअए, विसीयह (सूअ १, ३, ४, १; १, ३, ४, ५; ठा ४, ४ — पत्र २७८; उव)। वकृ. विसीयंत (पि ३९७)

विसीइय :: वि [विशीर्ण] १ जीर्ण, त्रुटित। २ न. टूटना, जर्जरित होना; 'संधीहि विहडियं पिव विसीइयं सव्वअंगेहि' (सुर १२, १६९)

विसीरंत :: देखो विस=वि+शॄ।

विसील :: वि [विशील] १ ब्रह्मचर्य-रहित, व्यभिचारी (वसु; उप ५९७ टी) २ खराब स्वभाववाला, विरूप आचरणवाला (उत्त ११, ५)

विसुज्झ :: अक [वि+शुध्] शुद्धि करना। विसुज्झइ (उव)। वकृ. विसुज्झंत, विसु- ज्झमाण (उप ३२० टी; णाया १, १ — पत्र ६४; उवा; औप; सुर १६, १६१)।

विसुणिय :: वि [विक्षुत] विज्ञात (पण्ह १, ४ — पत्र ८५)।

विसुत्त :: वि [विशोतस्] १ प्रतिकूल। २ खराब, दुष्ट (भवि)

विसुत्तिया :: देखो विसोत्तिया (श्रावक ५९; दस ५, १, ९)।

विसुद्ध :: वि [विशुद्ध] १ निर्मल, निर्दोष (सम ११९; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३; प्रासू २२; उव; हे ३, ३८) २ विशद, उज्ज्वल (पण्ण १७ — पत्र ४८६) ३ पुं. ब्रह्यदेव- लोक का एक प्रतर (ठा ६ — पत्र ३६७)

विसुद्धि :: स्त्री [विशुद्धि] निर्दोषता, निर्मलता (औप; गा ७३७)।

विसुमर :: सक [वि+स्मृ] भूल जाना, याद न आना। विसुमरइ, विसुमरामि (महा; पि ३१३), विसुमरेहि (स २०४)।

विसुमरिअ :: वि [विस्मृत] जिसका विस्मरण हुआ हो वह (स २९५; सुख २, २९; सुर १४, १७)।

विसुराविय :: वि [खेदित] खिन्न किया हुआ; 'अरईविलासविसुरावियाण निव्वडइ सोहग्गं' (गउड १११)।

विसुव :: न [विषुवत्] रात और दिन की समानतावाला काल, वह समय जब दिन और रात दोनों बराबर होते हैं (दे ७, ५०)।

विसूइया :: स्त्री [विसूचिका] रोग-विशेष, हैजा (उव; सुर १६, ७२; आचा २, २, १, ४)।

विसूणिय :: वि [विशूनित] १ फुला हुआ, सुजा हुआ (पण्ह १, १ — पत्र १८) २ काटा हुआ, उत्कृत्त (सूअ १, ५, २, ९)

विसूर :: देखो विसुमर। विसूरइ (प्राकृ ६३)।

विसूर :: अक [खिद्] खेद करना। विसूरइ (हे ४, १३२; प्राप्र; उव)। वकृ. विसूरंत, विसूरमाण (उव; गा ४१४; सुपा ३०२; गउड)। कृ. विसूरियव्व (गउड)।

विसूरण :: न [खेदन] १ खेद। २ पीड़ा (पण्ह १, ५ — पत्र ९४)

विसूरणा :: स्त्री [खेदना] खेद, अफसोस; दुःख (से ५, ३)।

विसूरिअ :: वि [खिन्न] खेद-युक्त, दिलगीर (से १०, ७६)।

विसूहिय :: पुंन [विष्वग्हित] एक देव-विमान (सम ४१)।

विसेढि :: स्त्री [विश्रेणि] १ विदिशा-सम्बन्धी श्रेणि, वक्र रेखा। २ वि. विश्रेणि में स्थित (णंदि; पि ६६; ३०४)

विसेस :: सक [वि+शेषय्] विशेष-युक्त करना, गुण आदि द्वारा दूसरे से भिन्‍न करना, विशेषण से अन्वित करना, व्यवच्छेद करना। विसेसइ, विसेसेइ (भवि; सण; सूअनि ६१ टी; भग; विसे ७६; महा)। कर्म विसेसिज्जइ (विसे ३१११)। संकृ. विसेसिउं (विसे ३११४)। कृ. विसेसणिज्ज, विसेस्स (वि‍से २१५६; १०३५)।

विसेस :: पुंन [विशेष] १ प्रभेद, पार्थक्य, भिन्‍नता; 'ण संपरायंसि विसेसमत्थि' (सूअ २, ६, ४६; भग; विसे १०५, उव) २ भेद, प्रकार; 'दसविहे विसेसे पन्‍नत्ते' (ठा १०, महा; उव) ३ असाधारण, अमुक, व्यक्ति, खास (उव; जी ३९; महा; अभि २१०) ४ पर्याय, धर्म, गुण (विसे २६७) ५ अधिक, अतिशय, ज्यादा; 'तओ विसेसेण तं पुज्जं' (भग; प्रासू १७६; महा; जी ३९) ६ तिलक। ७ साहित्यशास्त्र-प्रसिद्ध अलंकार- विशेष। ८ वैशेषिक-प्रसिद्ध अन्त्य पदार्थ (हे १, २६०) °न्‍नु [°ज्ञ] विशेष जानने वाला (सं ३२; महा)। °ओ अ [°तस्] खास करके (महा)।

विसेस :: पुं [विश्‍लेष] पृथक्‍करण (वव १)।

विसेसण :: न [विशेषण] दूसरे से भिन्‍नता बतानेवाला गुण आदि (उप ४४४; भास ८९; पंच १, १२; विसे ११५)।

विसेसणिज्ज :: देखो विसेस=वि+शेषय्।

विसेसय :: पुंन [विशेषक] तिलक, चन्दन आदि जा मस्तक-स्थित चिह्न (पाअ; से १०, ७४; वेणी ४९; गा ९३८; कुप्र २५५)।

विसेसिअ :: वि [विशेषित] १ विशेषण-युक्त किया हुआ, भेदित (सम्म ३७, विसे २६८७) २ अतिशयित (पाअ)

विसेस्स :: देखो विसेस=वि+शेषय्।

विसोग :: वि [विशोक] शोक-रहित (आचा)।

विसोत्तिया :: स्त्री [विस्त्रीतसिका] १ विमार्ग- गमन, प्रतिकूल गति। २ मन का विमार्ग में गमन, अपघ्यान, दुष्ट चिन्तन (आचा; विसे ३०१२; उव; धर्मसं ८१२) ३ शंका (आचा)

विसोपग, विसोवग :: पुंन [दे.विंशोपक] कौड़ी का बीसवाँ हिस्सा (धर्मवि ५७; पंचा ११, २२)।

विसोह :: सक [वि+शोधय्] १ शुद्ध करना, मल-रहित करना, निर्दोष बनाना। २ त्याग करना। विसोहइ, विसोहेइ (उव; सण; कस)। विसोहिज्ज (आचा २, ३, २, ३)। हेकृ. विसोहित्तए (ठा २, १ — पत्र ५६)

विसोह :: वि [विशोभ] शोभा-रहित (दे १, ११०)।

विसोहण :: न [विशोधन] शुद्धि-करण (कस)।

विसोहणया :: स्त्री [विशोधना] ऊपर देखो (ठा ८ — पत्र ४४१)।

विसोहय :: वि [विशोधक] शुद्धि-कर्ता (सूअ १, ३, ३, १६)।

विसोहि :: स्त्री [विशोधि] १ विशूद्धि, निर्मलता, विशुद्धता (पउम १०२, १९६; उव; पिंड ६७१; सुपा १९२) २ अपराध के योग्ये प्रायश्‍चित्त (ओघ २) ३ आवश्यक, सामयिक आदि षट्-कर्म (अणु ३१) ४ भिक्षा का एक दोष, जिस दोषवाले आहार का त्याग करने पर शेष भिक्षा या भिक्षा-पात्र विशुद्ध हो वह दोष (पिंड ३९५)। °कोडि स्त्री [°कोटि] पूर्वोक्त विशोधि-दोष का प्रकार (पिंड ३९५)

विसोहिय :: वि [विशोधित] १ शुद्ध किया हुआ। २ पुं. मोक्ष-मार्ग (सूअ १, १३, ३)

विस्स :: देखो विस=विश्; 'देवीए जेण समयं अहंपि अग्गीए विस्सामि' (सुर २, १२७)।

विस्स :: न [विस्र] १ कच्ची गन्घ अपक्‍व मांस आदि की बू। २ वि. कच्‍ची गन्धवाला (प्राप्र; अभि १८४) °गंधि वि [°गन्धिन्] आमगन्धि, अपक्‍व मांस के समान गंधवाला (अभि १८४)।

विस्स :: पुं [विश्व] १ एक नक्षत्र-देवता, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३ — पत्र ७७; अणु १४५; सुज्ज १०, १२) २ स. सर्व, सकल, सब (विसे १६०३; सुर १२, ५६) ३ पुंन. जगत्, दुनियाँ (सुपा १३६; सम्मत्त १६०; रंभा) °इ पुं [°जित्] यज्ञ विशेष (प्राकृ ९५)। °कम्म पुं [कर्मन्] शिल्पी-विशेष, देव- वर्धकि (स ६००; कुप्र ९)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (सुपा ६३५)। °भूइ पुं [°भूति] प्रथम वासुदेव का पूर्व-भवीय नाम (सम १५३; पउम २०, १७१; भत्त १३७; ती ७)। °यम्म देखो °कम्म (स ६१०)। °वाइअ पुं [°वादिक] भगवान् महावीर का एक गण (ठा ९ — पत्र ४५१)। °सेण पुं [°सेन] १ भगवान् शान्तिनाथजी का पिता, एक राजा (पम १५१; १५२) २ अहोरात्र का एक मुहूर्त्त (सम ५१)। देखो वीस=विश्‍व।

विस्सअ :: (मा) देखो विम्हय=विस्मय (षड्)।

विस्संत :: देखो वीसंत (सुपा ५८३)।

विस्संतिअ :: न [विश्रान्तिक] मथुरा का एक तीर्थ (ती ७)।

विस्संद :: सक [वि+स्यन्द्] टपकना, झरना, चूना। विस्संदति (ठा ४, ४ — पत्र २७९)।

विस्संभ :: सक [वि+श्रम्भ्] विश्‍वास करना। कृ. विस्संभणिज्ज (श्रा १४; उपपं १९)।

विस्संभ :: पुं [विश्रम्भ] विश्वास, श्रद्धा (प्रयौ ९९; महा)। °घाइ वि [°घातिन्] विश्वास-घातक (णाया १, २ — पत्र ७९)।

विस्संभण :: न [विश्रम्भण] विश्वास (माल १६६)।

विस्संभणया :: स्त्री [विश्रम्भणा] विश्‍वास (आचा)।

विस्संभर :: पुं [विश्‍वम्भर] जन्तु-विशेष, भुजपरिसर्प की एक जाति (सूअ २, ३, २५; ओघ ३२३)। २ मूषक, चूहा (ओघ ३२३) ३ इन्द्र। ४ विष्णु, नारायण (नाट — चैत ३८)

विस्संभरा :: स्त्री [विश्‍वम्भरा] पृथिवी, धरती (कुप्र २१३)।

विस्संभिय :: वि [विश्रब्ध] विश्वास-प्राप्‍त, विश्वासी (सुख १, १४)।

विस्संभिय :: वि [विश्वभृत्] जगत्-पूरक (उत्त ३, २)।

विस्सत्थ :: देखो वीसत्थ (नाट — शकु ५३)।

विस्सद्ध :: देखो वीसद्ध (अभि १६३; मुद्रा २२३)।

विस्सम :: अक [वि+श्रम्] थाक लेना। विस्समइ (प्राकृ २६)। कृ. विस्समिअ (नाट — मालती ११)।

विस्सम :: पुं [विश्रम] विश्राम, विश्रान्ति (स्वप्‍न १०६)।

विस्समिअ :: देखो विस्संत (सुपा ३७२)।

विस्सर :: सक [वि+स्मृ] भूलना। विस्सरइ (घात्वा १५३)।

विस्सर :: वि [विस्वर] खराब आवाजवाला (सम ५०; पण्ह १, १ — पत्र १८)।

विस्सरण :: न [विस्मरण] विस्मृति, याद न आना (पभा २४; कुल १४)।

विस्सरिय :: वि [विस्मृत] भूला हुआ (उप पृ ११३)।

विस्सस :: सक [वि+श्वस्] विश्वास करना, भरोसा करना। विस्ससइ (प्राकृ २६)। वकृ. विस्ससंत (श्रा १४)। कृ. विस्ससणिज्ज (श्रा १४; भत्त ९९)।

विस्ससिअ :: वि [विश्वस्त] विश्वास-युक्त, भरोसा-पात्र (श्रा १४; सुपा १८३)।

विस्साणिय :: वि [विश्राणित] दिया हुआ, अर्पित (उप १३८ टी)।

विस्साम :: देखो वीसाम (प्राकृ २६; नाट — शकु २७)।

विस्सामण :: न [विश्रामण] चप्पी, अंग-मर्दन आदि भक्‍ति, वैयावृत्त्य (ती ८)।

विस्सामणा :: स्त्री [विश्रामणा] ऊपर देखो (पव ३८; हित २०)।

विस्साव :: देखो विसाय=वि+स्वादय्। कृ. विस्सायणिज्ज (णाया १, १२ — पत्र १७४)।

विस्सार :: सक [वि+स्मृ] भूल जाना। संकृ. 'कोऊहलपरा विस्सारिऊण रायसासणं अगणिऊण नियभूर्मि पविट्ठा नयरि' (महा)।

विस्सार :: सक [वि+स्मारय्] विस्मरण करवाना (नाट — मालती ११७)।

विस्सारण :: न [विसारण] विस्तारण, फैलाना (पव ३८)।

विस्सावसु :: पुं [विश्वावसु] एक गन्धर्व, देव-विशेष (पउम ७२, २९)।

विस्सास :: पुं [विश्वास] भरोसा, प्रतीति, श्रद्धा (सुख १, १०; सुपा ३५२; प्राप्र)।

विस्सासिय :: वि [विश्वासित] जिसको विश्‍वास कराया गया हो वह (सुपा १७७)।

विस्साहल :: पुं [विश्वाहल] अंग-विद्या का जानकार चतुर्थ रुद्र-पुरुष (विचार ४७३)।

विस्सुअ :: वि [विश्रुत] प्रसिद्ध, विख्यात (पाअ; औप; प्रासू १०७)।

विस्सुमरिय :: देखो विसुमरिअ (उप १२७)।

विस्सेणि, विस्सेणी :: स्त्री [विश्रेणि, °णी] निःश्रेणि, सीढ़ी (आचा)।

विस्सेसर :: पुं [विश्वेश्वर] काशी-विश्‍वनाथ, काशी में स्थित महादेव की एक मूर्त्ति (सम्मत्त ७५)।

विस्सोअसिआ :: दखो विसोत्तिआ (हे २, ९८)।

विह :: सक [व्यध्] ताड़न करना। वकृ. विहमाण (उत्त २७, ३, सुख २७, ३)।

विह :: देखो विस=विष (आचा; पि २६३)।

विह :: पुंन [दे] १ मार्ग, रास्ता (ओध ६०६) २ अनेक दिनों में उल्लंघनीय मार्ग (आचा २, ३, १, ११; २, ३, ३, १४) ३ अटवी- प्राय मार्ग (आचा २, ५, २, ७)

विह :: पुंन [विहायस्] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७५; दसनि १, २३); देखो विहग=विहायस्।

विह :: पुंस्त्री [विध] १ भेद, प्रकार (उवा; कप्प) २ पुंन. आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७५; आचा १, ८, ४, ५; दसनि १, २३)

विहइ :: स्त्री [दे] वृन्ताकी, बैंगन का गाछ (दे ७, ६३)।

विहंग :: पुं [विहङ्ग] पक्षी, चिड़िया, पखेरू (पाअ; गउड; कप्प; सुर ३, २४५; प्रासू १७२)। °णाह पुं [°नाथ] गरुड़ पक्षी (गउड ८२३; ८२४; १०२२)।

विहंग :: पुं [विभङ्ग] विभाग, टुकड़ा, अंश (पण्ह १, ३ — पत्र ५४; गउड ४०४)। देखो विभंग (गउड; भवि)।

विहंगम :: पुं [विहंगम] पक्षी, चिड़िया (गउड; मोह ३२; श्रु ७७; सण)।

विहंज :: सक [वि+भञ्ज‍्] भाँगना, तोड़ना, विनाश करना। संकृ. विहंजिवि (अप) (भवि)।

विहंजिअ :: वि [विभक्त] बाँटा हुआ; 'आगम- जुत्तिपमाणविहंजिओ' (भवि)।

विहंड :: सक [वि+खण्डय्] विच्छेद करना, विनाश करना। विहंडइ (भवि)।

विहंडण :: न [विखण्डन] १ विच्छेद, विनाश (सम्मत्त ३०) २ वि. विच्छेद-कर्ता, विनाशक (सण)

विहंडण :: वि [विभण्डन] भाँड़नेवाला, गालि- सूचक; 'भण्णसि रे जइ विहंडणं वअणं' (गा ९१२)।

विहंडिअ :: वि [विखण्डित] विनाशित (पिंग; सण)।

विहग :: पुं [विहग] पक्षी, चिड़िया (पउम १४, ८०; स ६९७; उत्त २०, ६०)। °।हिव पुं [°।धिप] गरुड़ पक्षी (सम्मत्त २१६)।

विहग :: पुंन [विहायस्] आकाश, गगन। °गइ स्त्री [°गति] १ आकाश में गमन (पंचा ३, ६) २ कर्म-विशेष, आकाश में गति कर सकने में कारण-भूत कर्म (सम ६७; कम्म १, २४; ४३)

विहट्ट :: देखो विघट्ट। विहट्टइ (भवि)।

विहट्टिअ :: वि [विघट्टित] खण्डित, द्विधाभूत (से २, ३२)। १०२

विहड :: अक [वि+घट्] नियुक्त होना, अलग होना, टूट जाना। विहडइ, विहडेइ (महा; प्राकृ ७१)। वकृ. विहडंत (से ३, १४)।

विहड :: सक [वि+घटय्] तोड़ना, खण्डित करना। संकृ. विहडिऊण (सण)।

विहड :: देखो विहल=विह्वल (से ४, ५४)।

विहडण :: न [विघटन] १ अलग होना, वियोग (सुपा ११६; २४३) २ अलग करना। ३ खोलना; 'तह झीणा जह मउलि- यलोयणउडविहडणे वि असमत्था' (वज्जा ८८)

विहडण :: पुं [दे] अनर्थ (षड्)।

विहडणा :: स्त्री [विघटना] वियोजन, अलग करना; 'संघडणविहडणावावडेण विहिणा जणो नडिओ' (धर्मवि ४२)।

विहडप्फड :: वि [दे] १ व्याकुल, व्यग्र (हे २, १७४) २ त्वरित, शीघ्र (भवि)

विहडा :: स्त्री [विघटा] विभेद, अनैकय, फाट- फुट; 'जह मह कुडुं बविहडा न घडइ कइयावि दंतकलहेण' (सुपा ४२१)।

विहडाव :: सक [वि+घटय्] वियुक्त करना, अलग करना। विहडावइ (महा)।

विहडावण :: न [विघटन] वियोजन (भवि)।

विहडाविय :: वि [विघटित] वियोजित (सार्ध ७१)।

विहडिय :: वि [विघटित] १ वियुक्त, विच्छिन्न (महा ३६, ५) २ खुला हुआ (महा ३०, ३०)

विहण :: देखो विहन्न। विहणंति (पि ४९०)। संकृ. विहत्तु (सूअ १, ५, १, २१)।

विहणु :: वि [दे] संपूर्ण, सकल (सण)।

विहण्ण :: न [दे] पिंजन, पींजना, धुनना (दे ७, ६३)।

विहत्त :: देखो विभत्त (से ७, १५; चेइय २७४; सुर १, ४७; सुपा ३६९)।

विहत्ति :: देखो विभत्ति (पउम २४, ५, उप पृ १४७)।

विहत्तु :: देखो विहण।

विहत्थ :: वि [विहस्त] १ व्याकुल, व्यग्र (से १२, ४९; कुप्र ४०९; सिरि ३८६; ८३६; सम्मत्त १६१) २ कुशल, दक्ष; 'पहरणवि- हत्थहत्था' (कुप्र १०३; २०६) ३ पुं. विशिष्ट हाथ, किसी वस्तु से युक्त हाथ; 'पढमं उत्तरिऊणं धवलो जा जाइ पाहुडवि- हत्थो' (सिरि ६९१); 'सद्दवभाणविहत्थो' (उव) ४ क्लोब (सम्मत्त १६१)

विहत्थि :: पुंस्त्री [वितस्ति] परिमाण-विशेष, बारह अंगुल का परिमाण (हे १, २१४; कुमा; अणु १५७)।

विहदि :: स्त्री [विधृति] १ विशेष धैर्य। २ वि. घैर्य-रहित (संक्षि ९)

विहन्न, विहम्म :: सक [वि+हन्] १ मारना, ताड़न करना। २ नाश करना। ३ अतिक्रमण करना। विहन्नई (उत्त २, २२)। कर्म. विहन्निज्जा (उत्त २, १)। वकृ. विहम्ममाण, विहम्माण (पि ५६२; उत्त २७, ३)। कवकृ. विहम्ममाण (सूअ १, ७, ३०)

विहम्म :: वि [विधर्मन्] भिन्न धर्मवाला, विभिन्न, विलक्षण; 'मोत्तूणायसहावं वसेज्ज वत्थुं विहम्मम्मि' (विसे २२४१)।

विहम्म :: सक [विधर्मय्] धर्म-रहित करना। वकृ. विहम्मेमाण (विपा १, १ — पत्र ११)।

विहम्म :: न [वैधर्म्य] १ विधर्मता, विरुद्ध- धर्मता। २ तर्कशास्त्र-प्रसिद्ध उदाहरण-भेद, वैधर्म्य-दृष्टान्त (सम्म १५३)

विहम्माणा :: स्त्री [विघर्मणा, विहनन] कद- र्थना, पीड़ा (पण्ह १, ३ — पत्र ५३; विसे २३५०)।

विहय :: वि [दे] पिंजित, धुना हुआ (दे ७, ६४)।

विहय :: वि [विहत] १ मारा हुआ, आहत (पउम २७, २८) २ विनाशित (महा)

विहय :: देखो विहग=विहग (गउड; सण)।

विहय :: देखो विहव=विभव (दे ३, २९; नाट — मालवि ३३)।

विहर :: अक [वि+हृ] १ क्रीड़ा करना, खेलना। २ रहना, स्थिति करना। ३ सक गमन करना, जाना। विहरइ (हे ४, २५९; उवा; कप्प; उव), विहरंति (भग), विहरेज्ज (पव १०४)। भूका. विहरिंसु, विहरित्था (उत्त २३, ९; पि ३५०; ५१७)। भवि. विहरिस्सइ (पि ५२२)। वकृ. विहरंत, विहरमाण (उत्त २३, ७; सुख २३, ७; ओघ १२४; महा; भग)। संकृ. विहरित्ता, विहरिअ (भग, नाट-वक्र १०२)। विहरित्तए, विहरिउ° (भग; ठा २, १ — पत्र ५६; उव)। कृ. विहरियव्व (उप १३१ टी)

विहर :: सक [प्रति+ईक्ष्] प्रतीक्षा करना, बाट जोहना। विहरइ (षड्)।

विहर :: देखो विहार (उप ८३३ टी)।

विहरण :: ने [विहरण] विहार (कुप्र २२)।

विहरिअ :: न [दे] सुरत, संभोग (दे ७, ७०)।

विहरिअ :: वि [विहृत] जिसने विहार किया हो वह (ओघ २१०; उव; कुप्र १६६)।

विहल :: अक [वि+ह् वल्] व्याकुल होना। वकृ. विहलंत (स ४१५)।

विहल :: देखो विहड=वि+घट्। वकृ. विहलंत (से १४, २९)।

विहल :: वि [विह् वल] व्याकुल, व्यग्र (हे २, ५८; प्राकृ २४; पउम ८, २००; से ५, ५८; गा २८५; प्रासू ५; हास्य १४०, वज्जा २४; षड्; गउड)।

विहल :: देखो विअल=विकल (संक्षि ८)।

विहल :: वि [विफल] १ निष्फल, निरर्थक (गउड; सुपा ३६९) २ असत्य, झूठा; 'मिच्छा मोहं विहलं अलिअं असच्चं असब्भूअं' (पाअ)

विहल :: सक [विफलय्] निष्फल बनाना, निरर्थक करना। विहलंति (उव)।

विहलंखल, विहलंघल :: वि [विह् वलाङ्ग] व्याकुल शरीरवाला (काप्र १९६; स २५५; सुख १८, ३५; सुर ९, १७३; सुपा ४४७); 'वियणाविहलंघला पडिया' (सुर १५, २०४)।

विहलिअ :: वि [विह् वलित] व्याकुल किया हुआ (कुमा ३, ४३; प्राप; महा)।

विहलिअ :: देखो विहडिय (से ७, ४६)।

विहलिअ :: वि [विफलित] विफल किया हुआ (सण)।

विहल्ल :: अक [वि+रु, वि+स्तृ?] १ आवाज करना। २ सक. विस्तार करना। विहल्लइ (धात्वा १४३)

विहल्ल :: पुं [विहल्ल] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (पडि)।

विहव :: पुं [विभव] समृद्धि, संपत्ति, ऐश्वर्य (पाअ; गउड, कुमा; हे ४, ६०; प्रासू ७२; ७९)।

विहवण :: न [विधवन] विनाश (राज)।

विहवा :: स्त्री [विधवा] जिसका पति मर गया हो वह स्त्री, राँड़ (औप; उव; गा ५३९; स्वप्‍न ५६; सुर १, ४३)।

विहवि :: वि [विभविन्] संपत्ति-शाली, घनाढ्य (कुमा; सुपा ४२२; गउड)।

विहव्व :: देखो विहव=विभव (नाट — मृच्छ ६९)।

विहस :: अक [वि+हस्] १ विकसना, खिलना, प्रफुल्ल होना। २ हास्य करना, मघ्यम प्रकार का हास्य करना। विहसइ, विहसए, विहसेइ, विहसंति (प्राकृ २६; सण; कुमा; हे ४, ३६५)। विहसेज्ज, विहसेज्जा (कुमा ५, ८५)। भवि. विहसिहिइ, विहसेहिइ (कुमा ५, ८३)। वकृ. विहसंत, विहसेंत (से २, ३९; कुमा ३, ८८; ५, ८४)। संकृ विहसिऊण, विहसिअ, विहसेऊण (गउड ८४५; ९१५; नाट — शकु ९८; कुमा ५, ८२)। हेकृ. विहसिउं, विहसेउं (कुमा ५, ८२)

विहसाव :: सक [वि+हासय्] १ हँसाना। २ विकसित करना। संकृ. विहसाविऊण, विहसावेऊण (प्राकृ ६१)

विहसाविअ :: वि [विहासित] १ हँसाया हुआ। २ विकसित किया हुआ (प्राकृ ६१)

विहसिअ :: वि [विहसित] १ विकसित, खिला हुआ; प्रफुल्ल; 'विहसियदिट्ठीए विह- सियमुहीए' (महा; सम्मत्त ७६) २ न. मघ्यम प्रकार का हास्य (गउड ६९६; ७५१)

विहसिर :: वि [विहसितृ] खिलनेवाला, विकसित होनेवाला।

विहसिव्विअ :: वि [दे] विकसित, खिला हुआ (दे ७, ६१)।

विहस्सइ :: देखो बिहस्सइ (पाअ; औप)।

विहा :: अक [वि+भा] शोभना, चमकना। विहादि (शौ) (पि ४८७)।

विहा :: सक [वि+हा] परित्याग करना। संकृ. विहाय (सूअ १, १४, १)।

विहा :: अ [वृथा] निरर्थक, व्यर्थ, मुधा (पंचा १२, ५)।

विहा :: स्त्री [विधा] प्रकार, भेद (कप्प; महा; अणु)।

विहा° :: देखो विहग=विहायस् (धर्मसं ६१९)।

विहाइ :: वि [विधायिन्] कर्ता, करनेवाला (चेइय ४०३; उप ७६८ टी; धर्मवि १३६)।

विहाउ :: वि [विधातृ] १ कर्ता, निर्माता (विसे १५६७, पंचा ९, ३६) २ पुं. पणपन्नि-देवों के उतर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)

विहाउ :: सक [वि+घटय्] १ वियुक्त करना, अलग करना। २ विनाश करना। ३ खोलना, उघाड़ना। विहाडेइ, विहाडेंति (राय १०४; महा; भग); 'कम्मसमुग्गं विहा- डेंति' (औप; राय)। संकृ. 'समुग्गयं तं विहाडेउं' (धर्मवि १५)। कृ. विहाडेयव्व (महा)

विहाड :: वि [विघाट] विकट (राज)।

विहाड :: वि [विहाट] प्रकाश-कर्ता (सम्म २)।

विहाडण :: न [दे] अनर्थ (दे ७, ७१)।

विहाडिअ :: वि [विघटित] १ वियोजित, अलग किया हुआ (धर्मसं ७४२) २ विना- शित (उप ५९७ टी)

विहाडिअ :: वि [विघटित] उद्‍घाति, खोला हुआ (उप पृ ५४; वसु)।

विहाडिर :: वि [विघटयितृ] अलग करनेवाला घियोजक (सण)।

विहाण :: पुं [दे] १ विधि, विघाता, दैव, भाग्य (दे ७, ९०); 'माणुसमयजूहवहं विहाणवाहो करेमाणो' (स १३०; भवि) २ बिहान, प्रभात, सुबह (दे ७, ९०; से ३, ३१; भवि; हे ४, ३३०; ३६२; सिरि ५२५) ३ पूजन अर्चन; 'अओ चेव कूरदेवयाविहाणनिमित्तं पयारिऊण परियणं एयाए वावाइओ हविस्सइ' (स २९६)

विहाण :: न [विधान] १ शास्त्रोक्त रीति (उप ७६८; पव ३५) २ निमणि, रचना (पंचा ७, ५; रंभा; महा) ३ प्रकार, भेद (से ३, ३१; पणह १, १; भग) ४ व्याकरणोक्त विधि-विशेष (पणह २, २ — पत्र ११४) ५ अवस्था-विशेष (सूअ २, १, ३२) ६ विशेष; 'विहाणमग्गणं पडुच्च' (भग १, १ टी) ७ रीति (महा) ८ क्रम, परिपाटी (बृह १)

विहाण :: न [विहान] परित्याग (राज)।

विहाणिय :: (अप) वि [विधायिन्] कर्ता, करनेवाला (सण)।

विहाय :: अक [वि + भा] १ शोभना। २ प्रकाशना, चमकना, दीपना। विहायंति (स १२)। वकृ. विहायंत (सिरि २९८)

विहाय :: पुं [विघात] १ अवसान, अंत (से १, १६) २ विरोधी, दुश्‍मन, परिपन्थी (से ८, ५४; स ४१२)

विहाय :: देखो विभाग (गउड; से ९, ३२)।

विहाय :: वि [विभात] १ प्रकाशित, 'निसा विहाय त्ति उट्ठिओ कणहो' (कुप्र २६८) २ न. प्रभात, प्रातः काल (से १२, १९)

विहाय :: देखो विहग = विहायस् (श्रा २२)।

विहाय :: देखो विहा = वि + हा।

विहाय :: (अप) देखो विहिअ (भवि)।

विहार :: सक [वि + धारय्] १ अपेक्षा करना। २ विशेष रूप से धारण करना। वकृ. विहारंत (पउम ८, १५९)

विहार :: पुं [विहार] १ विचरण, गमन, गति (पव १०४; उवा) २ क्रीड़ा-स्थान (सम १००) ३ देव-गृह, देव-मन्दिर (उत्त ३०, ७; कुमा) ४ अवस्थान, अवस्थिति; 'असा- सयं दट्ठु इमं विहारं' (उत्त १४, ७) ५ क्रीड़ा (ठा ८; कप्प) ६ मुनि-वर्त्तंन, मुनि- चर्या, साध्वाचार (वव १; णंदि; उव) °भूमि स्त्री [°भूमि] १ स्वाध्याय-स्थान (आचा २, १, १, ८; कस; कप्प) २ विचरण-भूमि (वव ४) ३ क्रीड़ा-स्थान। ४ चैत्य की जगह (कप्प; राज)

विहारि :: वि [विहारिन्] विहार करनेवाला (आचा; उव; श्रा १४)।

विहालिय :: देखो विहाडिअ; 'दुवारं विहालियं पासइ' (उप ६४८ टी)।

विहाव :: देखो विभाव = वि + भावय्। विहा- वइ, विहावेमि (भवि; रुक्मि ५७)। कवकृ. विहाविज्जमाण (स ४१)। कृ. विहावियव्व (उप ३४२)।

विहावण :: न [विधापन] निर्मापण, करवाना (चेइय ६९)।

विहावण :: न [विभावन] आलोचना, 'एवं विचिंतियव्वं गुणदोसविहावणं परमं' (पंचा ९, ४६)।

विहावरी :: स्त्री [विभावरी] रात्रि, निशा (पाअ; उप ७६८ टी; सुपा ३९३)।

विहावसु :: पुं [विभावसु] अन्‍नि, आग (पाअ)। देखो विभावसु।

विहाविअ :: वि [विभावित] दृष्ट, निरीक्षत; 'दिट्ठं विहाविअं' (पाअ; गा ५०७)।

विहाविअ :: वि [विधावित] उल्लसित, प्रस्फुरित (स ९७)।

विहास :: पुं [विहास] हँसी, उपहास (भवि)।

विहास, विहासाव :: देखो विहसाव। संकृ. विहा- सिऊण, विहासेऊण, विहा- साविऊण, विहासावेऊण (प्राकृ ६१)।

विहासाविअ, विहासिअ :: देखो विहासाविअ (प्राकृ ६१)।

विहि :: पुं [विधि] १ ब्रह्मा, चतुरानन, विधाता (पाअ; अच्चु ३७; धर्मंसं ९२६; कुमा) २ पुंस्त्री. प्रकार, भेद (उवा); 'सव्वाहिं नयवि- हीहिं' (पव १४९) ३ शास्त्रोक्त विधान, अनुष्ठान, व्यवस्था (पंचा ६, ४८; औप) ४ क्रम, सिलसिला, परिपाटी (बृह १) ५ रीति। ६ नियोग, आदेश, आज्ञा। ७ आज्ञा- सूचक वाक्य। ८ व्याकरण का सूत्र-विशेष। ९ कर्मं। १० हाथी को खाने का अन्न (हे १, ३५) ११ दैव, भाग्य; 'अणुकूलो अहव विही किंवा तं जं नु करेइ' (सुर ६, ८१; पाअ; कुमा; प्रासू ५८) १२ नीति, न्याय। १३ स्थिति, मर्यादा (बृह १) १४ कृति, करण (पंचा ११)। °न्‍नु वि [°ज्ञ] विधि का जानकार (णाया १, १ — पत्र ११; सुर ८, ११८)। °वयण न [°वचन] विधि- वाक्य, विधि-वाद, विध्युपदेश (चेइय ७४४)। °वाय पुं [°वाद] वही पूर्वोक्त अर्थ (भास ७५; चेइय ७४४)

विहिअ :: वि [विहित] १ कृत, अनुष्ठित, निर्मित (पाअ; महा) २ चेष्टित (औप) ३ शास्त्र में जिसका विधान हो वह, शास्त्रोक्त (पंचा १४, २७)

विहिंस :: सक [वि + हिंस्] विविध उपायों से मारना, वध करना। विहिंसइ (आचा १, १, १, ४)। कृ. विहिंस (पणह १, २ — पत्र ४०)।

विहिंस :: वि [विहिंस] हिंसा करनेवाला, 'अ-विहिंसे सुव्वए दंते' (आचा १, ६, ४, ३)।

विहिंसग :: वि [विहिंसक] वध करनेवाला (आचा; गच्छ १, १०)।

विहिंसण :: न [विहिंसन] विविध प्रकार स मारना (पणह १, १ — पत्र १८)।

विहिंसा :: स्त्री [विहिंसा] १ विशेष हिंसा (पणह १, १ — पत्र ५। २ विविध हिंसा (सूअ १, २, १, १४)

विहिण्ण, विहिन्न :: वि [विभिन्न] १ जुदा, अलग (से ७, ५३; १३, ८६; भवि) २ खण्डित, भाँग कर टुकड़ा-टुकड़ा बना हुआ (से ३, ६०)

विहिम :: न [दे] जंगल, अरण्य (उप ८४२ टी)।

विहिमिहिय :: वि [दे] विकिसित, प्रफुल्ल (षड्)।

विहियव्व :: देखो विहे = वि + धा।

विहिविल्ल :: सक [वि + रचय्] बनाना, निर्माण करना। विहिविल्लइ (प्राकृ ७४)।

विहीण :: वि [विहीन] १ वर्जित, रहित (प्रासू १७२) २ त्यक्त (कुमा)

विहीर :: सक [प्रति + ईक्ष्] प्रतीक्षा करना, बाट जोहना। विहीरइ (हे ४, १९३), विहीरइ (स ४१८)।

विहीर :: वि [प्रतिक्ष्] प्रतीक्षा करनेवाला (कुमा ७, ३८)।

विहरिअ :: वि [प्रतीक्षित] जिसकी प्रतीक्षा की गई हो वह (पाअ)।

विहीसण :: देखो विभीसण (से ४, ५५)।

विहीसिया :: देखो विभीसिया (सुपा ५४१)।

विहु :: पुं [विधु] १ चन्द्र, चाँद (पाअ) २ विष्णु, श्रीकृष्ण। ३ ब्रह्मा। ४ शंकर, महादेव। ५ वायु, पवन। ६ कपूर (हे ३, १९)

विहुअ :: वि [विधुत] कम्पित (गा ६६०; गउड)। २ उन्मुलित, उखाड़ा हुआ (से १, ५५) ३ त्यक्त (गउड)

विहुंडुअ :: पुं [दे] राहु, ग्रह-विशेष (दे ७, ६५)।

विहुण :: सक [वि + धू] १ कँपाना, हिलाना। २ दूर करना, हटाना। ३ त्याग करना। ४ पृथग् करना, अलग करना। विहुणइ, विहुणंति (भवि; पि ५०३), विहुणाहि (उत्त १०, ३)। कर्मं. विहुव्वइ (पि ५३६)। वकृ. विहुणंत, विहुणमाण (सुपा २७२; पउम ९४, ३५)। कवकृ. विहुव्वंत (से ६, ३५; ७, २१)। संकृ. विहुणिय (सूअ १, २, १, १५; यति २१; स ३०८)

विहुणण :: न [विधूनन] १ दूरीकरण (पउम १०१, १९) २ व्यजन, पंखा (राज)

विहुणिय :: वि [विधूत] देखो विहुअ (सुपा २५३; यति २१)।

विहुर :: वि [विधुर] १ विकल, व्याकुल, विह्वल (स्वप्‍न ९३; महा; कुमा; दे १, १५; सुपा ९२; गउड, सण) २ क्षीण (गउड १०३९) ३ विसदृश, विलक्षण, विषम; 'अवि- सिट्ठम्मिवि जोगम्मि बाहिरे होइ बिहुरया' (ओध ५१) ४ विश्लिष्ट, वियुक्त (गउड ५३९) ३ न. व्याकुल-भाव, विह्वलता; 'विलोट्टए विहुरम्मि' (स ७१६; वज्जा ३२; ९४; प्रासू ५८; भवि; सण)

विहुराइअ :: वि [विधुरायित] व्याकुल बना हुआ (गउड १११ टी)।

विहुरिज्जमाण :: वि [विधुरायमाण] व्याकुल बनता (सुपा ४१६)।

विहुरिय :: वि [विधुरित] १ व्याकुल बना हुआ (सुर २, २१६; ९ ११५; महा) २ वियुक्त बना हुआ, बिछुड़ा हुआ, विरहित (गउड)

विहुरीकय :: वि [विधुरीकृत] व्याकुल किया हुआ (कुमा)।

विहुल :: दखो विहुर (पाअ)।

विहुल्ल :: वि [विफुल्ल] १ खिला हुआ। २ उत्साही; 'नियकज्जविहुल्ली' (भवि)

विहुव्वंत :: देखो विहुण।

विहूअ :: वि [विधूत] १ कम्पित, (माल १७८) २ वर्जित, रहित; 'नयविहिवि- हूयबुद्धी' (पउम ५५, ४)। देखो विधूय, विहुअ।

विहुइ :: देखो विभूइ (अच्चु १४; भवि)।

विहूण :: देखो विहुण। संकृ. विहूणिया (आचा १, ७, ८, २४; सूअ १, १, २, १२; पि ५०३)।

विहूण :: देखो विहीण (कुमा; उव)।

विहूणय :: न [विधूनक] व्यजन, पंखा (सूअ १, ४, २, १०)।

विहूसण :: देखो विभूसण (दे ६, १२७; सुपा १९१; कुप्र २९)।

विहूसा :: स्त्री [विभूषा] १ शोभा (सुपा ६२१; दे ६, ८३) २ अलंकार आदि से शरीर की सजावट (पंचा १०, २१)

विहूसिअ :: वि [विभूषित] विभूषा-युक्त, अलंकृत (भवि)।

विहे :: सक [वि + धा] करना, बनाना। विहेइ, विहेंति, विहेसि, विहेमि (धर्मंसं १०११; स ६३४; ७१२; गउड; ३३२; कुमा ७, ६७)। संकृ. विहेऊण (पि ५८५)। हेकृ. विहेउं (हित १)। कृ. विहियव्व, विहेअ, विहेअव्व (सुपा १५८; हि २२; धम्मो ४; महा; सुपा १९३; श्रा १२; हि २; पउम ६६, १८; सुपा १५९)।

विहेड :: सक [वि + हेटय्] १ मारना, हिंसा करना। २ पीड़ा करना। वकृ. विहेडयंत (उत्त १२, ३९)। कवकृ. 'विहम्मणाहिं विहेड' (? ट्ठ) यंता' (पणण १, ३ — पत्र ५३)

विहेडय :: वि [वेहेठक] अनादर-कर्ता (दस १०, १०)।

विहेडि :: वि [विहेटिन्] १ हिंसा करनेवाला। २ पीड़ा करनेवाला; 'अंगे मंते अहिज्जंति पाणभूयविहेडिणो' (सूअ १, ८, ४)

विहेडिय :: वि [विहेटित] पीड़ित (भत्त १३३)।

विहेढणा :: स्त्री [विहेठना] कदर्थंना, पीड़ा (उव)।

विहोड :: सक [ताडय्] ताड़न करना। विहोडइ (हे ४, २७)।

विहोडिअ :: वि [ताडित] जिसका ताड़न किया गया हो वह (कुमा)।

विहोय :: (अप) देखो विहव (भवि)।

वी :: देखो वि = अपि, वि; 'एक्कं चिय जाव न वी, दुक्खं वोलेइ जणियपियविरहं' (पउम १७, १२)।

वीअ :: सक [वीजय्] हवा डालना, पंखा करना। वीअअंति अभि ८९), वीयंति (सुर १, ९६)। वकृ. वीअंत (गा ८६; सुर ७, ८८)। कवकृ. विइज्जंत, वीइज्जमाण (से ६, ३७; णाया १, १ — पत्र ३३)।

वीअ :: वि [दे] १ विधुर, व्याकुल। २ तत्काल, तात्कालिक, उसी समय का (दे ६, ९३)

वीअ :: देखो बीअ = द्वीतीय (कुमा; गा ८६; २०९; ४०९; गउड)।

वीअ :: वि [वीत] विगत, नष्ट (भग; अज्झ ९६)। °कम्ह न [°कश्म ?] १ गोत्र- विशेष। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०) °धूम वि [°धूम] द्वेष- रहित (भग ७, १ — पत्र २९१)। °ब्भय, °भय न [°भय] १ नगर-विशेष, सिन्धुसौवीर देश की प्राचीन राजधानी (धर्मंवि १६; २१; इक; विचार ४८; महा) २ वि. भय-रहित (धर्मंवि २१)। °मोह वि [°मोह] मोह- रहित (अज्झ ६९)। °राग, °राय वि [°राग] राग-सहित, क्षीण-राग (भग; सं ४१)। °सोग पुं [°शोक] एक महाग्रह (सुज्ज २०; ठा २, ३ — पत्र ७९)। °सोगा स्त्री [°शोका] सलिलावती नामक विजय- प्रान्त की राजधानी, नगरी-विशेष (णाया १, ८ — पत्र १२१; इक; पउम २०, १४२)

वीअजमण :: देखो बीअजमण (दे ६, ९३ टी)।

वीअण :: न [वीजन] १ हवा करना, पंखा से हवा करना (कप्पू) २ स्त्रीन. पंखा, व्यजन (सुर १, ९६; कुप्र ३३३; महा)। स्त्री. °णी (औप; सूअ १, ९, ८; णाया १, १ — पत्र ३२)

वीआविय :: वि [वीजित] जिसकी पंखा से हवा कराई गई हो वह (स ५४९)।

वीइ :: पुंस्त्री [वीचि] १ तरंग, कल्लोल (पाअ; औप) २ आकाश, गगन (भग २०, २ — ७७५) ३ संप्रोयग, संबन्ध (भग १०, २ — पत्र ४९५) ४ पृथग् भाव, जुदाई (भग १४, ६ टी — पत्र ६४४)। °दव्व न [°द्रव्य] प्रदेश से न्यून द्रव्य, अवयब-हीन वस्तु (भग १४, ६ टी — पत्र ६४४)

वीइ :: स्त्री [विकृति] १ विरूप कृति, दुष्ट क्रिया। २ वि. दुष्ट क्रियावाला (भग १०, २ — पत्र ४९५) ३ देखो विगइ (कस ४, ५ टी)

वीइंगाल :: वि [वीताङ्गार] राग-रहित (भग ७, १ — पत्र २९२; पि १०२)।

वीइक्कंत :: वि [व्यतिक्रान्त] १ व्यतीत, गुजरा हुआ; 'बासीए राइंदिएहिं वीइक्कंतेहिं' (सम ८९) २ जिसने उल्लंघन किया हो वह (भग १०, ३ टी — पत्र ४९९)

वीइक्कम :: सक [व्यति + क्रम्] उल्लंघन करना। वकृ. वीइक्कममाण (कस)।

वीइज्जमाण :: देखो वीअ = वीजय्।

विइमिस्स :: वि [व्यतिमिश्र] मिश्रित, मिला हुआ (आचा)।

विइय :: वि [वीजित] जिसको हवा की गई हो वह (औप; महा)।

वीइवय :: सक [व्यति + व्रज्] १ परि- भ्रमण करना। २ गमन करना, जाना। ३ उल्लंघन करना। वीइवयइ; वीइवइज्जा, वीइवएज्जा (सुज्ज २० टी; भग १०, ३ — पत्र ४९८)। वकृ. विइवयमाण (णाया १, १ — पत्र ३१)। संकृ. वीइवइत्ता, वीइवएत्ता (भग २, ८; १०, ३ — पत्र ४९९)

विई :: स्त्री. देखो वीइ = वीचि (पाअ; भग १०, २; २०, २)।

वीई :: अ [विचिच्य] पृथग् होकर, जुदा होकर (भग १०, २ — पत्र ४९५)।

वीई :: अ [विचिन्त्य] चिन्तन करके (भग १०, २ — पत्र ४९५)।

वीईवय :: देखो वीइवय। वीईवयइ (भग; सुज्ज २० टी; भग ७, १० — पत्र ३२४)। वकृ. वीईवयमाण (राय १९; पि ७०; १५१)।

वीचि :: देखो वीइ = वीचि (कप्प; भग १४, ६ — पत्र ६४४)।

वीचि :: स्त्री [दे] लघु रथ्या, छोटा मुहल्ला (दे ७, ७३)।

विज :: देखो वीअ = वीजय्। वीजइ, वीजेमि (हे ४, ५; षड् मै ६६)।

वीजण :: देखो वीअण (कुमा)।

वीजिय :: देखो वीइय (स ३०८)।

वीडग, वीडय :: देखो बीडग (स ६७)।

वीडय :: पुं [व्रीडक] लज्जा, शरम (गउड ७३१)।

वीडिअ :: वि [व्रीडित] लज्जित, शरमिन्दा (णाया १, ८ — पत्र १४३)।

वीड़िआ :: स्त्री [वीटिका] सजाया हुआ, पान, बीड़ा (गउड)। देखो बीडी।

°वीढ :: देखो पीढ (गउड; उप पृ २२९; भवि)।

वीण :: सक [वि + चारय्] विचार करना। वीणइ, वीणेइ (धात्वा १५३; प्राकृ ७१)।

°वीण :: देखो पीण (सुर १३, १८१)।

वीणण :: न [दे] १ प्रकट करना (उप पृ ११८) २ विदित करना, ज्ञापन (उप ७६५)

वीणा :: स्त्री [वीणा] वाद्य-विशेष (औप; कुमा; गा ५६१; स्वप्‍न ६७)। °यरिणी स्त्री [°करी] वीणा-नियुक्त दासी; 'ता लहु वीणायरिणिं सद्देहि, सद्दिया वीणायरिणी' (स ३०९)। °वायग वि [°वादक] वीणा बजानेवाला (महा)।

वीत :: देखो वीअ = वीत (ठा २, १ — पत्र ५२; पणण १७ — पत्र ४९४; सुज्ज २० — पत्र २९५)।

वीतिकंत, वीतिक्कंत :: देखो वीइक्कंत (भग १०, ३ — पत्र ४९८; णाया; १, १ — पत्र २४, २९)।

वीतिवय, वीतीवय :: देखो वीइवय। वीतिवयंतिे (भग)। वीतीवयइ (णाया १, १२ — पत्र १७४)। वकृ. वीतिवयमाण (कप्प)। संकृ. वीतिवइत्ता (औप)।

वीमंस :: सक [वि + मृश्, मीमासं] विचार करना, पर्यालोचन करना। संकृ. वीमंसिय (सम्मत्त ५६)।

वीमंसय :: वि [विमर्शक, मीमांसक] विचार- कर्ता (उव)।

विमंसा :: स्त्री [विमर्श, मीमांसा] विचार, पर्यालोचन, निर्णय की चाह (सूअ १, १, २, १७; विसे २८९; ३९६; ५६५; उप ५२०)।

वीमंसिय :: वि [विमर्शित, मीमांसित] विचारित, पर्यालोचित (सम्मत्त ५४)।

वीर :: पुं [वीर] १ भगवान् महावीर (पणह १, १ — पत्र २३; १, २; सुज्ज २०; जी १) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ साहिर्य-प्रसिद्ध एक रस (अणु १३६) ४ वि. पराक्रमी, शूर (आचा; सूअ १, ८, २३; कुमा) ५ पुंन. एक देव-विमान (सम १२; इक) ६ न. वैताढ्य पर्वत की उत्तर श्रेणी में स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °कंत पुंन [°कान्त] एक देव-विमान (सम १२)। °कण्ह पुं [°कृष्ण] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (निर १, १; पि ५२)। °कण्हा स्त्री [°कृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्‍नी (अंत २५)। °कूड पुंन [°कूट] एक देव- विमान (सम १२)। °गत पुंन [°गत] एक देव-विमान (सम १२)। °जस पुं [°यशस्] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८ — पत्र ४३०)। °ज्झय पुंन [°ध्वज] एक देव- विमान (सम १२)। °धवल पुं [°धवल] गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा (ती २; हम्मीर १३)। °निहाण न [°निधान] स्थान-विशेष (महा)। °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम १२)। °भद्द पुं [°भद्र] भगवान् पार्श्‍वंनाथ का एक गण- धर (सम १३; कप्प)। °मई स्त्री [°मती] एक चोर-भगिनी (महा)। °लेस पुंन [°लेश्य] एक देव-विमान (सम १२)। °वण्ण पुंन [°वर्ण] एक देव-विमान (सम १२)। °वरण न [°वरण] प्रतिसुभट से युद्ध का स्वीकार, 'इस योद्धा से मैं लड़ूँगा' ऐसी युद्ध की माँग (कुमा ६, ४६; ५२)। °वरणी स्त्री [°वरणी] प्रतिसुभट से प्रथम शस्त्र-प्रहार की याचना (सिरि १०२४)। °वलय न [°वलय] सुभट का एक आभूषण, वीरत्व- सूचक कड़ा (कप्प; तंदु २९)। °विराली स्त्री [°बिराली] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)। °सिंग पुंन [°श्रृङ्ग] एक देव- विमान (सम १२)। °सिट्ठ पुंन [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम १२)। °सेण पुं [°सेन] एक प्रसिद्ध वीर यादव का नाम (णाया १, ५ — पत्र १००; अंत; उप ६४८ टी)। °सेणिय पुंन [°सैनिक, श्रेणिक] ऐक देव-विमान (सम १२)। °वित्त पुंन [°वर्त्त] देवविमान-विशेष (सम १२)। °सण न [°सन] आसन-विशेष, नीचे पैर रखकर सिंहासन पर बैठने कि जैसा अवस्थान (णाया १, १ — पत्र ७२; भग)। °सणिय वि [°सनिक] वीरासन से बैठनेवाला (ठा ५, १ — पत्र २९९; कस; औप)

वीरंगय :: पुं [वीराङ्गद] १ भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८ — पत्र ४३०) २ एक राजकुमार (उप १०३१ टी)

वीरण :: स्त्रीन [वीरण] तृण-विशेष, उशीर, खस (अणु २१२; पाअ)।

वीरल्ल :: पुं [वीरल्ल] श्येन पक्षी (पणह १, १ — पत्र ८; १३)।

वीरिइ :: पुं [वीर्य] १ भगवान् पार्श्‍वनाथ का एक मुनि-संघ। २ भगवान् पार्श्‍वनाथ का एक गणधर (ठा ८ — पत्र ४२९) ३ पुंन. शक्ति, सामर्थ्यं (उवा; ठा ३, १ टी — पत्र १०६) ४ अन्तरंग शक्ति, आत्म-बल (प्रासू ४६; अज्झ ९५) ५ पराक्रम (कम्म १, ५२) ६ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३१) ७ शरीर-स्थित एक धातु, शुक्र। ८ तेज, दीप्‍ति (हे २, १०७; प्राप्र)

वीरुणी :: स्त्री [वीरुणी] पर्वं-वनस्पति विशेष, 'वीरुणा' (? णी) तह इक्कडे य मासे य' (पणण १ — पत्र ३३)।

वीरुत्तरवडिंसग :: पुंन [वीरोत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम १२)।

वीरुहा :: स्त्री [वीरुधा] विस्तृत लता (कुप्र ६५; १३६)।

वीलण :: वि [दे] पिच्छिल, स्‍निग्ध, मसृण, चिकना (दे ७, ७३)।

वीलय :: देखो बीलय (दे ६, ९३)।

वीली :: स्त्री [दे] १ तरंग, कल्लोल (दे ७, ७३) २ वीथी, पंक्ति, श्रेणी (षड्)

वीवाह :: देखो विवाह = विवाह; 'एसा एक्का घूया वल्लहिया ता इमीए वीवाहं' (सुर ७, १२१; महा)।

वीवाहण :: न [ विवाहन] विवाह करण, विवाह-क्रिया (उव ९८६ टी; सिरि १५१)।

विीवाहिग :: वि [वैवाहिक] विवाह-सम्बन्धी (धर्मंवि १४७)।

वीवाहिय :: वि [विवाहित] जिसकी शादी की गई हो वह (महा)।

वीवी :: स्त्री [दे] वीचि; तरंग (षड्)।

वीस :: देखो विस्स = विस्र (सूअ २, २, ६६; संक्षि २०)।

वीस :: देखो विस्स = विश्‍व (सूअ १, ६, २२)। °उरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष (उप ५६२)। °सअ वि [°सृज्] जगत्कर्ता (षड्)। °सेण पुं [°सेन] १ चक्रवर्त्ती राजा; 'जोहेसु णाए जह वीससेणे' (सूअ १, ६, २२)। २ पुं. अहोरात्र का १८ वाँ मुहुर्त्तं (सुज्ज १०, १३)

वीस°, वीसइ :: स्त्री [विंशति] १ संख्या-विशेष, बीस, २०। २ जीसकी संख्या बीस हों वे (कप्प; कुमा; प्राकृ ३१; संक्षि २१)। °मं वि [°म] १ बीासवाँ; २० वाँ (सुपा ४५२; ४५७; पउम २०; २०८; पव ४६) २ न. लगातार नव दिनों का उपवास (णाया १, १ — पत्र ७२)। °हा अ [°धा] बीस प्रकार से (कम्म १, ५)

वीसंत :: वि [विश्रान्त] १ विश्राम-प्राप्‍त, जिसने विश्रान्ति ली हो वह; 'परिस्संता वीसंता नग्गोहतरुतले' (कुप्र ६२; पउम ३३, १३; दे ७, ८९; पाअ; सण; उप ६४८ टी)

विसंदण :: न [विस्यन्दन] दही की तर और आटे से बनता एक प्रकार का खाद्य (पव ४; पभा ३३)।

वीसंभ :: देखो विस्संभ = वि + श्रम्भ्। वीसंभइ (सूअनि २१ टी)।

वीसंभ :: देखो विस्संभ = विश्रम्भ (उव; प्राप्र; गा ४३७)।

वीसज्जिअ :: देखो विसज्जिअ (से ६, ७७; १५, ९३; पउम १०, ५२; धर्मंवि ४९)।

वीसत्थ :: वि [विश्वस्त] विश्‍वास-युक्त (प्राप्र; गा ६०८)।

वीसद्ध :: वि [विश्रब्ध] विश्‍वास-युक्त (गा ३७६; अभि ११६; भवि; नाट — मृच्छ १९१)।

वीसम :: देखो विस्सम = वि + श्रम्। वीसमइ, विसमामो (षड्; महा; पि ४८९)। वकृ. वीसममाण (पउम ३२, ४२; पि ४८९)।

वीसम :: देखो वीस्मम = विश्रम (षड्)।

विसम :: देखो विस-म।

वीसमिर :: वि [विश्रमितृ] विश्राम करनेवाला (सण)।

वीसर :: देखो विस्सर =वि + स्मृ। वीसरइ (हे ४, ७५; ४२६; प्राकृ. ६३; षड्; भवि), वीसरेसि (रंभा)।

वीसर :: देखो वीस्सर = वीस्वर; 'वीसरसरं रसतो जो सो जोणीमुहाओ निप्फिडइ' (तंदु १४)।

वीसरणालु :: वि [विस्मर्तृ] भूल जानेवाला (ओघ ४२५)।

वीसरिअ :: देखो विस्सरिय (गा ३६१)।

वीसव :: (अप) सक [वि + श्रमय्] विश्राम करवाना। वीसवइ (भवि)।

वीसम :: देखो वीस्सस। वीससइ (पि ६४; ४९६)। वकृ. विससंत (पउम ११३, ५)। कृ. वीससणिज्ज, वीससणीअ (उत्त २९, ४२; नाट — मालवि ५३)।

वीससा :: अ [विस्रसा] स्वभाव, प्रकृति (ठा ३, ३ — पत्र १५२; भग; णाया १, १२)।

विससिय :: वि [वैस्रसिक] स्वाभाविक (आवम)।

वीसा :: देखो वीसइ (हे १, २८; ९२; ठा ३, १ — पत्र ११९; षड्)।

वीसा :: स्त्री [विश्वा] पृथिवी, धरती (नाट)।

वीसाण :: पुं [विष्वाण] आहार, भोजन (हे १, ४३)।

विसाम :: पुं [विश्राम] १ विराम, उपरम। २ प्रवृत्त व्यापार का अवसान, चालू क्रिया का अंत (हे १, ४३; से २, ३१, महा)

वीसमण :: देखो विस्सामण (कुप्र ३१०)।

वीसामणा :: देखो विस्सामण (कुप्र ३१०)।

बीसाय :: देखो विसाय = वि + स्वादय्। कृ. विसायणिज्ज (पणण १७ — पत्र ५३२)।

वीसार :: देखो विस्सार = वि + स्मृ। वीसारेइ (धर्मंवि ५३१)।

विसारिअ :: वि [विस्मारित] भुलवाया हुआ (कुमा)।

वीसाल :: सक [मिश्रय्] मिलाना, मिला- वट करना। वीसालइ (हे ४, २८)।

विसालिअ :: वि [मिश्रित] मिलाया हुआ (कुमा)।

वीसाँ :: (अप) देखो वीसाम (कुमा)।

विसास :: देखो विस्सास (प्राप्र; कुमा)।

वीसिया :: स्त्री [विंशिका] बीस संख्यावाला (वव १)।

वीसु :: न [दे] युतक्, पृथग्, जुदा (दे ७, ७३)।

वीसुं :: अ [विष्वक्] १ समन्तात्, सब और से। २ समस्तपन, सामस्त्य (हे १, २४; ४३; ५२; षड्; कुमा; दे ७, ७३ टी)

वीसुंभ :: देखो वीसंभ = वि + श्रम्भ्। वीसुं- भेज्जा (ठा ५, २ — पत्र ३०८; कस)।

वीसुंभ :: अक [दे] पृथग् होना, जुदा होना। वीसुंभेज्जा (ठा ५, २ — पत्र ३०८; कस)।

विसुंभण :: न [दे] पृथग्‍भाव, अलग होना (ठा ५, २ टी — पत्र ३१०)।

वीसुंभण :: न [विश्रम्भण] विश्वास (ठा ५, २ टी — पत्र ३६०)।

वीसुय :: देखो विस्सुअ (पणह १, ४ — पत्र ६८)।

वीसेढि, विसेणि :: देखो विसेढि (भास १०; णंदि १८४)।

वीहि :: पुंन [व्रीहि] धान, धान्य-विशेष; 'सालीणि वा वीहिणि वा कोद्दवाणि वा कंगूणि वा' (सूअ २, २, ११; कस)।

वीहि, वीहिया, वीही :: स्त्री [वीथि, °का, °थी] १ मार्गं, रास्ता (आचा; सुअ १, २, १, २१; प्रयौ १००; गउड ११८८) २ श्रेणी, पंक्ति (स १४) ३ क्षेत्र-भाग (ठा ९ — पत्र ४६८) ४ बाजार (उप २८; महा)

वुअ :: वि [दे] १ बुना हुआ। २ बुनवाया हुआ; 'जन्न तयट्ठा कीय नेव वुयं जं न गहियमन्‍नेसि' (पव १२५)। देखो वूय।

वुअ, वुइअ :: वि [वृत] १ प्रार्थित। २ प्रार्थंना आदि से नियुक्त; 'वुओ' (संक्षि ४) ३ वेष्टित; 'कुकम्मवुइया' (सुपा ९३)

वुइय :: वि [उक्त] कथित (उत्त १८, २६)।

वुंज :: (?) सक [उद् + नमय्] ऊँचा करना। वुंजइ (धात्वा १५४)।

वुंताकी :: स्त्री [वृन्ताकी] बैंगन की गाछ (दे ७, ६३)।

वुंद :: देखो वंद = वृन्द (गा ५५९; हे १, १३१)।

वुंदारय :: देखो वंदारय (दे १, १३२; कुमा; षड्)।

वुंदावण :: देखो विंदावण (हे १, १३१; प्राप्र; संक्षि ४; कुमा)।

वुंद्र :: देखो वंद्र (हे १, ५३; कुमा १, ३८)।

वुक्क :: देखो बुक्क = दे (सण)।

वुक्कंत :: वि [व्युत्क्रान्त] १ अतिक्रान्त, व्यतीत, गुजरा हुआ; 'वोलीणं वुक्कंतं अइच्छिअं वोलिअं अइक्कंतं' (पाअ), 'वुक्कंतो बहुकालो तुह पयसेवं कुणंतस्स' (सुाप ५६१) २ विध्वस्त, विनष्ट (राज) ३ निष्क्रान्त, बाहर निकला हुआ (निचु १६)। देखो वोक्कंत।

वुक्कंति :: स्त्री [व्युत्क्रान्ति] उत्पत्ति (राज)।

वुक्कम :: पुं [व्युत्क्रम] १ वृद्धि, बढ़ाव (सूअ २, ३, १) २ उत्पत्ति (सूअ २, ३, १; २, ३, १७)

वुक्कस :: सक [व्युत् +कृष्] पीछे खींचना, वापस लोटाना। बुक्कसाहि (आचा २, ३, १, ९)।

वुक्कार :: देखो बुक्कार (सण)।

वुक्कार :: सक [दे. बुङ्कारय्] गर्जंन करना। वुक्कारेंति (राय १०१)।

वुक्कारिय :: न [दे. बूङ्कारित] गर्जंना (स ५४८)।

वुग्गह :: पुं [व्युद्‍ग्रह] १ कलह, झगड़ा, विग्रह, लड़ाई (ठा ५, १ — पत्र ३००; वव १; पव २६८) २ घाड़, डाका (उप पृ २४५) ३ बहकाव (संबोध ५२) ४ मिथ्याभिनिवेश, कदाग्रह (राज)

बुग्गबहअ :: वि [व्युद्‍ग्राहक] कलह-कारक, 'नय वुग्गहिअं कहं कहिज्जा' (दस १०, १०)।

वुग्गहिअ :: वि [व्युद्‍ग्रहिक] कलह-संबन्धी (दस १०, १०)।

वुग्गाह :: सक [व्युद् ; ग्राहय्] बहकाना, भ्रान्त-चित्त करना। वुग्गाहेमी (महा)। वकृ. वुग्गाहेमाण (णाया १, १२ — पत्र १७४; औप)।

वुग्गाहणा :: स्त्री [व्युद्‍ग्राहणा] बहकाव (औघभा २५)।

वुग्गाहिअ :: वि [व्युद्‌ग्राहित] बहकाया हुआ, भ्रान्तचित्त किया हुआ (कस; चेइय ११७; सिरि १०८१)।

वुच्च° :: देखो वय = वच्।

वुच्चमाण :: वि [उच्यमान] जो कहा जाता हो वह (सूअ १, ९, ३१; भग; उप ५३० टी)।

वुच्चा :: अ [उक्त्वा] कह कर (सूअ २, २, ८१, पि ५८७)।

वुच्छ :: देखो वच्छ = वृक्ष (नाट — मृच्छ १५४)।

वुच्छ° :: देखो वोच्छ° (कम्म १, १)।

बुच्छ° :: देखो वोच्छिंद।

बुच्छिण्ण :: देखो वुच्छिन्न (राज)।

विच्छित्ति :: देखो वोच्छित्ति (विसे २४०५)।

वुच्छिन्न :: वि [व्युच्छिन्न, व्यवच्छिन्न] १ अपगत, हटा हुआ। २ विनष्ट (उव) ३ न. लगातार चौदह दिनों का उपवास (संबोध ५८)

बुच्छेअ :: देखो वोच्छेअ (पव २७३; कम्म २, २२; सुपा २५४)।

वुच्छेयण :: देखो वोच्छेयण (ठा ६ — पत्र ३५८)।

वुज्ज :: अक [त्रस्] डरना। वुज्जइ (प्राप्र)। देखो वोज्ज।

वुज्जण :: न [दे] स्थगन, आच्छादन, ढकना (धर्मंसं १०२१ टी; ११०२)।

वुज्झंत :: वि [उह्यमान] पानी के वेग से खींचा जाता, बह जाता (पउम १०२, २४); 'गिरि- निज्झरणोदगेहि बुज्झंतो' (वै ८२)। देखो वह = वह।

वुज्झण :: देखो वुज्जण (धर्मंसं १०२१)।

वुज्झमाण :: देखो वुज्झंत (पउम ८३, ४)।

वुञ :: (अप) देखो वच्च = व्रज्। वुञइ (हे ४, २९२; कुमा)। संकृ. विञेप्पि, वुञेप्पिणु (हे ४, ३९२)।

वुट्ठ :: अक [व्युत् + स्था] उठना, खड़ा होना। वुट्ठए (पि ३३७)।

विट्ठ :: वि [वृष्ट] १ बरसा हुआ (हे १, १३७; विपा २, १ — पत्र १०८; कुमा १, ५८) २ न. वृष्टि (दस ८, ६)

वुट्ठि :: देखो विट्ठि = वृष्टि (हे १, १३७; कुमा)। °काय पुं [°काय] बरसना जल-समूह (भघ १४, २ — पत्र ६३४; कप्प)।

वुट्ठिय :: वि [व्युत्थित] जो उठ कर खड़ा हुआ हो वह (भवि)।

°वुड :: देखो पुड = पुट; 'जंपइ कयंजलिवुडो' (पउम ९३, २२)।

वुड्‍ढ :: अक [वृध्] बढ़ना, (संक्षि ३४)। वुड्‍ढंति (भग ५, ८)।

वुड्‍ढ :: सक [वर्धय्] बढ़ाना। संकृ. वुड्‍ढंत (द्र २३)।

वुड्‍ढ :: वि [वृद्ध] १ जरा अवस्थावाला, बूढ़ा (औप; सुर ३, १०४; सुपा २२७; सम्मत्त १५८; प्रासू ११६; सण) २ बड़ा, महान् (कुमा) ३ वृद्धि-प्राप्त। ४ अनुभवी, कुशल, निपुण। ५ पंडित. जानकार (हे १, १३१; २, ४; ९०) ६ निभृत, शान्त, निविकार (ठा ८) ७ पुं. तापस, संन्यासी (णाया १, १५ — पत्र १९३; अणु २४) ८ एक जैन मुनि का नाम (कप्प)। °त्त, °त्तण न [°त्व] बुढ़पा, जरावस्था (सुपा ३६०; २४२)। °वाइ पुं [°वादिन्] एक समर्थं जैनाचार्यं जो सुप्रसिद्ध कवि सिद्धसेन दिवाकर के गुरु थे (सम्मत्त १४०)। °वाय पुं [°वाद] किंवदव्ती, कहावत, जनश्रुति (स २०७)। °सावग पुं [°श्रावक] ब्राह्मण (णाया १, १५ — पत्र १९३; औप)। °णुग वि [नुग] वृद्ध का अनुयायी (सं ३३)

वुड्‍ढ :: वि [दे] विनष्ट (राज)।

वुडि्ढ :: स्त्री [वृद्धि] १ बढ़ाव, बढ़ना (आचा; भग, उवा; कुमा; सण) २ अभ्युदय, उन्नति। ३ समृद्धि, संपत्ति। ४ व्याकरण-प्रसिद्ध ऐकार आदि वर्णों की एक संज्ञा (सुपा १०३; हे १, १३१) ५ समूह। ६ कलान्तर, सूद। ७ ओषधि-विशेष। ८ पुं. गन्धद्रव्य-विशेष (हे १, १३१)। °कर वि [°कर] वृद्धि-कर्ता (सुर १, १२९; द्र २४)। °धम्मय वि [°धर्मक] बढ़नेवाला, वर्धन- शील (आचा)। °म वि [°मत्] वृद्धिवाला (विचार ४९७)

वुणण :: न [दे] बुनना (सम्मत्त १७३)।

वुणिय :: वि [दे] बुना हुआ; 'अ-बुणिया खट्टा' (कुप्र २२६)।

वुण्ण :: वि [दे] १ भीत, त्रस्त (दे ७, ९४, विपा १, २ — पत्र २४) २ उद्विग्‍न (दे ७, ९४)

वुत्त :: वि [उक्त] कथित (उवा; अनु ३; महा)।

वुत्त :: वि [उप्त] बोया हुआ (उव)।

वुत्त :: न [वृत्त] छन्द, कविता, पद्य (पिंग)। देथो वट्ट = वृत्त।

°वुत्त :: देखो पुत्त (प्रयौ २२)।

वुत्तंत :: पुं [वृत्तान्त] खबर, समाचार, हकीकत, बात (स्वप्‍न १५३; प्राप्र; हे १, १३१; स ३५)।

वुत्ति :: देखो वत्ति = वृत्ति; 'जायामायामुत्तिएणं' (सूअ २, १, ५०; प्राकृ ८)।

वुत्थ :: वि [उषित] बसा हुआ, रहा हुआ (पाअ; णाया १, ८ — पत्र १४८; उव, धण ४३; उप पृ १२७; सुख २, १७, से ११, ८०; कुप्र १८७)।

वुद :: देखो वुअ = वृत (प्राकृ ८)।

वुदास :: पुं [व्युदास] निरास (विसे ३४७५)।

वुदि :: देखो वइ = वृति (प्राकृ ८)।

वुद्ध :: देखो वुड्‍ढ = वृद्ध (षड्)।

वुद्धि :: देखो वुडि्ढ (ठा १० — पत्र ५२५; सम १७; संक्षि ४)।

वुन्न :: देखो वुण्ण (सुर ६, १२४; सुपा २५०; णमि १०; भवि; कुमा; हे ४, ४२१)।

वुप्पंत :: वि [उप्यमान] बोया जाता, 'पेच्छइ य मंगलसएहि वप्पिणं करिसगेहि वुप्पंतं' (आक २५; पि ३३७)।

वुप्पाय :: वि [व्युत + पादय्] व्युत्पन्न करना, होशियार करना। वकृ. वुप्पाएमाण (णाया १, १२ — पत्र १७४; औप)।

वुप्फ :: न [दे] शेखर, शिरः-स्थित (दे ७, ७४)।

वुब्भ° :: देखो वह = वह्।

वुब्भमाण :: देखो वुज्झमाण (कुप्र २२३)।

°वुर :: देखो पुर (अच्चु १६)।

°वुरिस :: देखो पुरिस = पुरुष (अउम ६५, ४५)।

वुल्लाइ :: पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

वुसह :: देखो वसभ (चारु ७; गा ४६०; ८२०; नाट — मृच्छ १०)।

वुसि :: स्त्री [वृषि] मुनि का आसन। °राइ, राइअ वि [राजिन्] संयमी, जितेन्द्रिय, त्यागी, साधु (निचू १६)। देखो वुसि, वुसी।

वुसि :: वि [वृषिन्] संविग्‍न, साधु, संयमी, मुनि; 'वुसि संविग्गो भणिओ' (निचू १६)।

वुसिम :: वि [वश्य] वश में आनेवाला, अधीन होनेवाल; 'निस्सारियं बुसिमं मन्‍नमाणा' (निचू १६)।

वुसी :: स्त्री [वृषी] मुनि का आसन। °म वि [°मत्] संयमी, साधु, मुनि; 'एस धम्मे वुसिमओ' (सूअ १, ८, १९; १, ११, १५; १, १५; ४; उत्त ५, १८; सुख ५, १८)। देखो बुसि।

वुस्सग्ग :: देखो विओसग्ग; 'सच्चित्ताणं पुप्फाइयाण दव्वाण कुणइ वुस्सग्गं' (उप १४२; संबोध ५१; ५२)।

वूढ :: देखो वुड्‍ढ = वृद्ध (सुपा ५१०; ५२०)।

वूढ :: वि [व्यूढ] १ धारण किया हुआ, 'सीआपरिमट्ठेण व वूढो तेणवि णिरंतरं रोमंचो' (से १, ४२; धण २०; विचार २२९; णंदि ५२) २ ढोया हुआ; मुणिवूढो सील- भरो वियसपसत्ता तरंति नो वोढुं' (प्रवि १७; स १६२) ३ बहा हुआ, वेग में खिचा गया (भत्त १२२) ४ उपचित, पुष्ट (से ६, ५०) ५ निःसृत, निकला हुआ; 'जम्मुहमहद्दहाओ दुवालसंगी महानई वूढा। ते गणहरकुलगिरिणो सव्वे वंदामि भावेण' (चेइय ४)

वूणक :: पुंन [दे] बालक; बच्चा (राज)।

वूय :: वि [दे] बुना हुआ; 'जं न तयट्ठा वूयं नय किणिंयं नेय गहियमन्‍नेहिं' (सुपा ६४३)। देखो वुअ = (दे)।

वूह :: पुंन [व्यूह] १ युद्ध के लिए की जाती सैन्य की रचना-विशेष (पणह १, ३ — पत्र ४४; औप; स ६०३; कुमा) २ समूह (सम १०९; कुप्र ५६)

बे :: देखो वइ = वै (प्राकृ ८०; राज)।

वे :: अक [वि + इ] नष्ट होना। वेइ (विसे १७९४)।

वे, वेअ :: सक [व्ये] संवरण करना। वेइ, सेअइ, वेअए (षड्)।

वेअ :: सक [वेदय्] १ अनुभव करना, भोगना। २ जानना। वेअइ, वेएइ, वेएंति (सम्यक्त्वो ९; भग)। वकृ. वेअंत, वेएमाण, वेयमाण (सम्यक्त्वो ५; पउम ७५, ४५; सुपा २४३; णाया १, १ — पत्र ६६; औप; पंच ५, १३२; सुपा ३६६)। कवकृ. वेइज्जमाण (भग; पणह १, ३ — पत्र ५५)। संकृ. वेयइत्ता (सूअ १, ६, २७)। कृ. वेय, वेअव्व, वेइयव्व (ठा २, १ — पत्र ४७; रयण २४; सुख ९, १; सुपा ६१४; महा)। देखो वेअ = (वेद्य), वेअणिज्ज, वेअणिय।

वेअ :: अक [वि +एज्] विशेष काँपना। वेयइ (णंदि ४२ टी)। वकृ. वेयंच (ठा ७ — पत्र ३८३)।

वेअ :: अक [वेप्] काँपना। वकृ. वेअणाण (गा ३१२ अ)।

वेअ :: पुं [वेद] १ शास्त्र-विशेष, ऋग्वेद आदि ग्रंथ (विपा १, ५ टी — पत्र ६०; पाअ; उव) २ कर्मं-विशेष, मोहनीय कर्मं का एक भेद, जिसके उदय से मैथुन की इच्छा होती है (कम्म १, २२; उप पृ ३५३) ३ आचारांग आदि जैन ग्रन्थ (आचा १, ३, १, २) ४ विज्ञ, जानकार (भग)। °व वि. [°वत्] वेदों का जानकार (आचा १, ३, १, २)। °वि, °विउ वि [°विद्] वही अर्थं (पि ४१३; श्रा २३)। °वत्त न [°व्यक्त] चैत्य-विशेष (आचा २, १५, ३५)। °वत्त न [°वर्त] देखो °वत्त (आचा २, १५, ५)

वेअ :: न [वेद्य] कर्मं-विशेष, सुख तथा दुःख का कारण-भूत कर्मं (कम्म १, ३)।

वेअ :: पुं [वेग] शीघ्र, गति, दौड़, तेजी (पाअ; से ५, ४३; कुमा; महा; पउम ९३, ३९)। २ प्रवाह। ३ रेतस्। ४ सूत्र आदि निःसारण- यन्त्र। ५ संस्कार-विशेष (प्राकृ ४१)। देखो वेग।

वेअंत :: पुं [वेदान्त] दर्शंन-विशेष, उपनिषद् का विचार करनेवाला दर्शंन (अच्चु १)।

वेअग :: वि [वेदक] १ भोगनेवाला, अनुभव करनेवाला (सम्यक्त्वो १२; संबोध ३३; श्रावक ३०९) २ न. सम्यक्त्व का एक भेद (कम्म ३, १९) ३ वि. सम्यक्त्व-विशेष वाला जीव (कम्म ४, १३; २२)। °छहिय वि [छिन्नवेदक] जिसका पुरुष-चिह्न आदि काटा गया हो वह (सूअ २, २, ६३)

वेअच्छ :: न [वैकक्ष्] १ उत्तरासंग, छाती में यज्ञौपवीत की तरह पहना जाता वस्त्र, माला आदि। २ बन्ध-विशेष, मर्कंट-बन्ध। ३ कन्धे के नीचे लटकना (णाया १, ८ — पत्र १३३)

वेअड :: सक [खच्] जड़ना। वेअडइ (हे ४, ८९; षड्)।

वेअडिअ :: वि [खचित] जड़ा हुआ, जडाऊ (कुमा; पाअ; भवि)।

वेअडिअ :: वि [दे] प्रत्युप्‍त, फिर से बोया हुआ (दे ७, ७७)।

वेअडिअ :: पुं [दे. वैकटिक] मोती वेधनेवाला शिल्पी, जौहरी (कप्पू)।

वेअड्डि :: देखो विअड्डि (औप)।

वेअड्‍ढ :: न [दे] भल्लातक, भिलावाँ (दे ७, ६६)।

वेअड्‍ढ :: पुं [वैताढ्य] पर्वंत-विशेष (सुर ६, १७; सुपा ६२९; महा; भवि)।

वेअड्‍ढ :: न [वैदग्ध्य] विदग्धता, विच- क्षणता (सुपा ६२९)।

वेअण :: न [वेतन] मजूरी का मूल्य, तवखाह (पाअ; विपा १, ३ — पत्र ४२; उप पृ ३६८)।

वेअण :: न [वेपन] १ कम्प, काँपना (चेइय ४३५; नाट — उत्तर ६१) २ वि. काँपनेवाला (चेइय ४३५)

वेअण :: न [वेदन] अनुभव, भोग (आचा; कम्म २, १३)।

वेअणा :: देखो विअणा (उवा; हे १, १४६; प्रासु १०४; १३३; १७४)।

वेअणिज्ज, वेअणिय :: वि [वेदनीय] १ भोगने योग्य। २ न. कर्मं-विशेष, सुख-दुःख आदि का कारण-भूत कर्म (प्रास, ठा २, ४; कप्प; कम्म १, १२)

वेअय :: देखो वेअग (विसे ५२८)।

वेअरणी :: स्त्री [वैतरणी] १ नरक-नदी (कुप्र ४३२; उव) २ परमाधार्मिक देवों की एक जाति, जो वैतरणी की विकुर्वंणा करके उसमें नरक-जीवों को डालता है (सम २९) ३ विद्या-विशेष (आवम)

वेअल्ल :: देखो वेइल्ल = विचकिल; 'वेयल्लफुल्ल- नियरच्छलेण हसइव्व गिम्हरिऊ' (धर्मंवि २०)।

वेअल्ल :: वि [दे] १ मृदु, कोमल (दे ७, ७५) २ न. असमार्थ्य (दे ७, ७५; षाअ)

वेअल्ल :: न [बैकल्य] विकलता, व्याकुलता (गउड)।

वेअव्व :: देखो वेअ = वेदय्।

वेअस :: पुं [वेतस] वृक्ष-विशेष, बेंत का पेंड़ (हे १, २०७; ' षड्; गा ६४५)।

वेआगरण :: वि [वैयाकरण] व्याकरण-संबंन्धी, संदेह-निराकरण से सम्बन्ध रखनेवाला (पंचभा)।

वेआर :: सक [दे] ठगना, प्रतारणा करना। वेयारइ (भवि)। कर्मं. वेआरिज्जसि (गा ९०९)। हेकृ. विआरिउं (गा २८६; वज्जा ११४)।

वेआरणिय :: वि [वैदारणिक] विदारण- सम्बन्धी, विदारण से उत्पन्‍न (ठा २, १ — पत्र ४०)।

वेआरणिय :: वि [दे] प्रतारण-सम्बन्धी, ठगने से उत्पन्‍न (ठा २, १ — पत्र ४०)।

वेआरणिय :: वि [वैचारणिक] विचार-संबंधी (टा २, १ — पत्र ४०)।

वेआरिअ :: वि [दे] १ प्रतारित, ठगा हुआ (दे ७, ९५; पउम १४, ४६; सुपा १५२) २ पुं. केश, बाल (दे ७, ९५)

वेआल :: पुं [वेताल] १ भूत-विशेष, विकृत पिशाच, प्रेत (पणह १, ३ — पत्र ४६; गउड; महा; पिंग) २ छन्द-विशेष (पिंग)

वेआल :: वि [दे] १ अन्धा। २ पुं. अंधकार (दे ७, ९५)

वेआलग :: वि [विदारक] विदारण-कर्ता (सूअनि ३६)।

वेआलण :: न [विदारण] फाड़ना, चीरना (सूअनि ३६)।

वेआलि :: पुं [वैतालिन्] बन्दी, स्तुति-पाठक (उप ७२८ टी)।

वेआलिअ :: देखो वइआलिअ (पाअ; हे १, १५२; चेइय ७४६)।

वेआलिय :: वि [वैक्रिय] विक्रिया से उत्पन्‍न (सूअ १, ५, २, १७)।

वेआलिय :: वि [वैकालिक] विकाल-सम्बन्धी, अपराह्न में हना हुआ (दसनि १, ६; १५)।

वेआलिय :: न [विदारक] विदारण-क्रिया (सूअनि ३६)।

वेआलिय :: देखो वइआलीअ (सूअनि ३८)।

वेआलिया :: स्त्री [वैतालिकी] वीणा-विशेष (जीव ३)।

वेआली :: स्त्री [वैताली] १ विद्या-विशेष, जिसके प्रभाव से अचेतन काष्ठ भी उठ खड़ा होता है — -चेतन की तरह क्रिया करता है (सूअ २, २, २७) २ नगरी-विशेष (णाया १, १६ — पत्र २१७)

वेइ :: स्त्री [वेदि] परिष्कृत भूमि-विशेष, चौतरा (कुमा; महा)।

वेइ :: वि [वोदन्] १ जाननेवाला (चेइय ११९; गउड) २ अनुभव करनेवाला (पंच ५, ११९)

वेइअ :: वि [वेदित] १ अनुभूत (भग) २ ज्ञात, जाना हुआ (दस ४, १; पउम ६६, ३)

वेइअ :: देखो वेविअ = वेपित (गा ३९२ अ)।

वेइअ :: वि [वैदिक] १ वेदाश्रित, वेद-संबन्धी (ठा ३, ३ — पत्र १५१) २ वेदों का जानकार (दसनि ४, ३५)

वेइअ :: वि [वेगित] वेलावाला, वेग-युक्त (णाया १, १ — पत्र २९)।

वेइअ :: वि [व्येजित] १ कम्पित, काँपा हुआ (भग १, १ टी — पत्र १८) २ कँपाया हुआ (राय ७४)

वेइआ :: स्त्री [दे] पनीहारी, पानी ढोनेवाली स्त्री (दे ७, ७६)।

वेइआ :: स्त्री [वेदिका] १ परिष्कृत भूमि- विशेष, चौतरा (भग; कुमा, महा) २ अंगुलि-मुद्रा, अंगूठी (दे ७, ७६ टी) ३ वर्जंनीय प्रतिलेखन का एक भेद, प्रत्युपेक्षणा का एक देषो (उत्त २६, २६; सुख २६, २६, ओघभा १६३)

वेइज्ज :: अक [वि + एज्] काँपना। वकृ. वेइज्जमाण (भग १, १टी — पत्र १८)।

वेइज्जमाण :: देखो वेअ = वेदय्।

वेइद्ध :: वि [दे] १ ऊँचा किया हुआ। २ विसंस्थूल। ३ आविद्ध। ४ शिथिल (दे ७, ९५)

वेइल्ल :: देखो विअइल्ल (हे १, १६६; २, ९८; कुमा)।

वेउंठ :: देखो वेकुंठ (गउड)।

वेउट्टिया :: स्त्री [दे] पुनःऋ पुनः, फिर-फिर (कप्प)।

वेउव्व :: देखो विउव्व = वि + कृ, कुर्व्। संकृ. वेउव्विऊण (सुपा ४२)।

वेउव्व :: वि [वैक्रिय] १ विकृत, विकार-प्राप्‍त (विसे २५७९ टी) २ देखो विउव्व = वैक्रिय (कम्म ३, १६)। °लद्धि स्त्री [°लब्धि] शक्ति-विशेष, वैक्रिय शरीर उत्पन्न करने का सामर्थ्यं (पउम ७०, २९)

वेउव्वि :: देखो विउव्वि (पणह २, १ — पत्र ९९; कप्प; औप; ओघभा ५७)।

वेउव्विअ :: देखो विउव्विअ = विकृत, विकु- र्विंत; 'वेउव्वियं असुइजंबालं अइचिक्कणं फासेण' (स ७६२; सुपा ४७)।

वेउव्विअ :: वि [वैक्रिय, वैक्रियिक, वैकुर्विक] १ शरीर-विशेश, अेक स्वरूपों और क्रियाओं को करने में समर्थं शरीर (सम १४१; भग, दं ८) २ वैक्रिय शरीर बनाने की शक्तिवाला (सम १०३; पव — गाथा ६) ३ विकुर्वणा से बनाया हुआ; 'विंझगिरिसमीवगयं एयं वेउव्वियं च मह भवणं' (सुपा १७८) ४ वैक्रिय़ शरीरवाला (विसे ३७५) ५ वैक्रिय शरीर से संबन्ध रखनेवाला (भग) ६ विभू- षित (भग १८, ५ — पत्र ७४६)। °लद्धिअ वि [°लब्धिक] वैक्रिय शरीर उत्पन्न करने की शक्तिवाला (भग)। °समुग्घाय पुं [°समुद्धात] वैक्रिय शरीर बनाने के लिए आत्म-प्रदेशों को बाहर निकलना (अंत)

वेउव्विया :: स्त्री [दे] पुनः-पुनः, फिर फिर (कप्प)।

वेंकड :: पुं [वेङ्कट] दक्षिण देश में स्थित एक पर्वत (अच्चु १)। °णाह पुं [°नाथ] विष्णु की वेंकाटाद्रि पर स्तित मूर्त्ति (अच्चु १)।

वेंगी :: स्त्री [दे] वृतिवाली, बाड़वाली (दे ७, ४३)।

वेंजण :: देखो वंजण (प्राकृ ३१)।

वेंट :: देखो विंट = वृन्त (गा ३५९; हे १, १३९; २, ३१; कुमा; प्राकृ ४)।

वेंटल :: देखो विंटल (ओघ ४२४)।

वेंटली :: देखो विंटलिआ; 'तओ तेण तस्स (करिणो) पुरिओ वेंटलीकाऊण पक्खित्त- मुत्तरीयं' (महा)।

वेंटिआ :: देखो विंटिया (ओघ २०३; ओघभा ७९; उप १४२ टी; बब १)।

वेंड :: पुं [वेतण्ड] हाथी, हस्ती (प्राकृ ३०)। देखो वेयंड।

वेंढसुरा :: स्त्री [दे] कलुष मदिरा (दे ७, ७८)।

वेंढि :: पुं [दे] पशु (दे ७, ७४)।

वेंढिअ :: वि [दे] वेंष्टित, लपेटा हुआ (दे ७, ७६; महा)।

वेँभल :: देखो विंभल (पणह १, ३ — पत्र ४५; पउम ५, १९२)।

वेकक्ख :: देखो वेअच्छ; 'वेकक्खउत्तरीआ' (कुमा)।

वेकच्छिया, वेकच्छी :: देखो वेगच्छिया (ओघभा ३१८; ओघ ६७७)।

वेकिल्लिअ :: न [दे] रोमन्थ, चबी हुई चीज को फिर से चबाना (दे ७, ८२)।

वेकुंठ :: पुं [वैकुण्ठ] १ विष्णु, नारायण। २ इन्द्र, देवाधीश। ३ गरुडपक्षी। ४ अर्जंक वृक्ष, सफेद बर्बंरी का गाछ। ५ लोक-विशेष, विष्णु का धाम (हे १, १९९) ६ पुंन, मथुरा का एक वैष्णव तीर्थं (ती ७)

वेग :: देखो वेअ = वेग (उवा; कप्प; कुमा)। °वई स्त्री [°वती] एक नदी का नाम (ती १५)। °वंत वि [°वत्] वेगवाला (सुर २, १६७)।

वेगच्छ :: देखो वेअच्छ (उवा)।

वेगच्छिया, वेगच्छी :: स्त्री [वैकक्षिका, °क्षा] कक्षा के पास पहना जाता वस्त्र, उत्तरासंग (पव ६२); 'कयतिलओ वेगच्छिं आणववहारपणरूवं' (संबोध ६)।

वेगड :: स्त्रीन [दे] पोत-विशेष, एक तरह का जहाज; 'चउसट्ठी वेगडाणं' (सिरि ३८२)।

वेगर :: पुं [दे] द्राक्षा, लोंग आदि से मिश्रित चीनी आदि (उर ५, ९)।

वेगुन्न :: देखो वइगुण्ण (धर्मंसं ८८४; सुपा २९०)।

वेग्ग :: देखो विअग्ग (प्राकृ ३०)।

वेग्ग :: देखो वेग (भवि)।

वेग्गल :: वि [दे] दूर-वर्त्ती; गुजराती में 'वेगळुं' (हे ४, ३७०)।

वेचित्त :: देखो वइचित्त (भास ३०; अज्झ ४६)।

वेच्च :: देखो विच्च = वि +अय्। वेच्चइ (हे ४, ४१९)।

वेच्छ° :: देखो विअ = विद्।

वेच्छा :: देखो वगच्छिया। °सुत्त न [°सूत्र] उपवीत की तरह पहनी जाती साँकली (भग ९, ३३ टी — ४७७; राय)।

वेजयंत :: पुंन [वैजयन्त] १ एक अनुत्तर देव- विमान (सम ५६; औप; अनु)। २-७ जंबू- द्वीप, लवण समुद्र, धातकी खण्ड, कालोद समुद्र, पुष्करवर द्वीप तथी पुष्करोद समुद्र का दक्षिण द्वार (ठा ४, २ — पत्र २२५; जीव ३, २ — पत्र २६०; ठा ४: २ — पत्र २२६; जीव ३, २ — पत्र ३२७; ३२९; ३३१; ३४७)। ८-१३ पुं. जंबूद्वीप, लवण समुद्र आदि के दक्षिण द्वारों के अधिष्ठाता देव (ठा ४, २ — पत्र २२५; जीव ३, २ — पत्र २६०; ठा ४, २ — पत्र २२६; जीव ३, २ — पत्र ३२७; ३२९; ३३१; ३४७) १४ एक अनुत्तर देवविमान का निवासी देव (सम ५६)। १५ जंबू-मन्दर के उत्तर रुचक पर्वंत का एक शिखर; 'विजए य वि (? वे) जयेते' (ठा ८ — पत्र ४३६) १६ वि. प्रधान, श्रेष्ठ (सूअ १, ६, २०)

वेजयंती :: स्त्री [वैजयन्ती] १ ध्वजा, पताका (सम १३७; सूअ १, ६, १०; सुर १, ७०; कुमा) २ षष्ठ बलदेव की माता का नाम (सम १५२) ३ अंगारक आदि महाग्रहों की एक-एक अग्रमहिषी का नाम (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ पूर्वं रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६) ५ विजय-विशेष की राजधानी (ठा २, ३ — पत्र ८०) ६ एक विद्याधर-नगरी (सुर ५, २०४) ७ रामचन्द्रजी की एक सभा (पउम ८०, ३) ८ भगवान् पद्मप्रभ की दीक्षा- शिबिका (सम १५१) ९ उत्तर अंजनगिरि का दक्षिण दिशा में स्थित एक पुष्करिणी (ठा ४, २ — पत्र २३०) १० पक्ष की आठवीं रात्रि का नाम; 'विजया य विजयंता (? वेजयंती' (सुज्ज १०, १४) ११ भगवान् कुन्थुनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)

वेज्ज :: वि [वेद्य] भोगने योग्य, अनुभव करने योग्य (संबोध ३३)।

वेज्ज :: पुं [वैद्य] १ चिकित्सक, हकीम (गा २३७; उव) २ वृक्ष-विशेष। ३ वि. पण्डित, विद्वान् (हे १, १४८; २, २४)। °सत्थ न [°शास्त्र] चिकित्सा-शास्त्र (स १७)

वेज्जग, वेज्जय :: न [वैद्यक] १ चिकित्सा-शास्त्र (ओघ ६२२ टी; स ७११) २ वैद्य- संबन्धी क्रिया, वैद्य-कर्मं (अणु २३४; कुप्र १८१)

वेज्झ :: वि [वेध्य] बीधने योग्य (नाट — साहित्य १५८)।

वेट्ठण :: देखो वेढण (नाट — मालती ११९)।

वेट्ठणग :: पुं [वेष्टनक] १ सिर पर बाँधी जाती एक तरह की पगड़ी। २ कान का एक आभूषण (राज)

वेट्ठिया :: देखो विट्ठा (सुर १६, १७५)।

वेट्ठि :: देखो विट्ठि; 'रायवेट्ठिं व मन्नंता' (उत्त २७, १३; प्राकृ ५)।

वेट्ठिद :: (शौ) देखो वेढिअ (नाट — मृच्छ ९२)।

वेड :: [दे] देखो बेड (दे ६, ९५; कुमा)।

वेडइअ :: पुं [दे] वाणिजक, व्यापारी (दे ७, ७८)।

वेडंबग :: देखो विंडंबग; 'जह वेडंबगलिंगे' (संबोध १२)।

वेडस :: पुं [वेतस] वृक्ष-विशेष, बेंत का गाछ (पाअ; सम १५२; कप्प)।

वेडिअ :: पुं [दे] मणिकार, जौहरी (दे ७, ७७)।

वेडिकिल्ल :: वि [दे] संकट, सकरा, कमचौड़ा (दे ७, ७८)।

वेडिस :: देखो वेडस (प्राप्र; हे १, ४६; २०७; कुमा; गा ७६०)।

वेडुबंक, वेडुंवग :: वि [दे] नृपादि कुल में उत्पन्न (आव° परि नि° गा° ७६ आव° दीपिका भा° २ पत्र, ७०, २)।

वेडुज्जे, वेडुरिअ :: देखो वेरुलिअ (हे २, १३३; पाअ; नाट — मृच्छ १३९)।

वेडुल्ल :: वि [दे] गर्वित, अभिमानी (दे ७, ४१)।

वेड्‍ढ :: देखो वेढ = वेष्‍ट्। वेडढइ (प्राप्र)।

वेड्‍ढय :: पुं [वेष्टक] छन्द-विशेष (अजि ९)।

वेढ :: सक [वेष्ट्] लपेटना। वेढइ, वेढेइ (हे ४, २२१; उवा)। कर्मं. वेढिज्जइ (हे ४, २२१)। वकृ. वेढंत, वेढेमाण (पउम ४९, २१; णाया १, ६)। कवकृ. वेढिज्ज- माण (सुपा ९४)। संकृ. वेढित्ता, वढेत्ता, वेढिउं, वेढेउं (पि ३०४; महा)। प्रयो. वेढावेइ (पि ३०४)।

वेढ :: पुं [वेष्ट] १ छन्द-विशेष (सम १०६; अणु २३३; णंदि २०९) २ वेष्टन, लपेटन (गा ९६; २२१; से ६; १३) ३ एक वस्तु-विषयक वाक्य-समूह, वर्णंन-ग्रन्थ (णाया १, १६ — पत्र २१८; १, १७ — पत्र २२८; अनु)

°वेढ :: देखो पीढ (गउड)।

वेढण :: न [वेष्टन] लपेटना (से १, ६०; ६, ४३; १२, ९५; गा ५६३; धर्मंसं ४९७)।

वेढिअ :: वि [वेष्टित] लपेटा हुआ (उव; पाअ; सुर २, २३८)।

वेढिम :: वि [वेष्टिम] १ वेष्टन से बना हुआ (पणह २, ५ — पत्र १५०; णाया १, १३ — पत्र १७८; औप) २ पुंस्त्री. खाद्य-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १४८; राज)

वेण :: पुं [दे] नदी का विषम घाट (दे ७, ७४)।

वेण :: (अप) देखो वयण = वचन (हे ४, ३२९)।

वेणइअ :: न [वैनयिक] १ विनय, नम्रता (ठा ५, २ — पत्र ३३१; दस ९, १, १२; सट्ठि १०६ टी) २ मिथ्यात्व-विशेष, सभी देवों और धर्मों को सत्य मानना (संबोध ५२) ३ वि. विनय-संबन्धी (सम १०६; भग) ४ विनय को ही प्रधान माननेवाला, विनय-वादी (सूअ १, ६, २७)। °वाद पुं [°वाद] विनय को ही मुख्य मानानेवाला दर्शंन (धर्मंसं ९९५)

वेणइगी, वेणइया :: स्त्री [वैनयिकी] विनय से प्राप्त होनेवाली वुद्दि (उप पृ ३४०; णाया १, १ — पत्र ११)।

वेणइया :: स्त्री [वैणकिया] लिपि-विशेष (सम ३५; पणण १ — पत्र ६२)।

वेणा :: स्त्री [वेणा] महर्षि स्थूलभद्र की एक भगिनी (कप्प; पडि)।

वेणि :: स्त्री [वेणी] १ एक प्रकार की केश-रचना, वालों की गूथी हुई चोटी (उवा) २ वाद्य- विशेष (सण) ३ गंगा और यमुना का संगम- स्थान (राज)। °वच्छाराय पुं [°वत्सराज] एक राजा (कुप्र ४४०)

वेणिअ :: न [दे] वचनीय, लोकापवाद (दे ७, ७५; षड्)।

वेणी :: स्त्री [वेणी] देखो वेणि (से १, ३९; गा २७३; कप्पू)।

वेणु :: पुं [वेणु] १ वंश, बाँस (पाअ; कुमा; षड्) २ एक राजा (कुमा) ३ वाद्य- विशेष, बंसी (हे १, २०३) °दालि पुं [°दालि] एक इन्द्र, सुपर्णंकुमार देवों का उत्तरदिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८४; इक)। °देव पुं [°देव] १ सुपर्णंकुमार- नामक देव-जाति का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्रप ८४) २ देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ६७; ७९) ३ गरुड पक्षी (सूअ १, ६, २१)। °याणुजाय पुं [°कालुजात] गणितशास्त्र-प्रसिद्ध दस योगों में द्वितीय योग, जिसमें चन्द्र, सूर्य और नक्षत्र वंशाकार से अवस्थान करते है (सुज्ज १२ — पत्र २३३)

वेणुणास, वेणुसाअ :: पुं [दे] भ्रमर, भौंरा (दे ७, ७८; षड्)।

वेण्ण :: वि [दे] आक्रान्त (षड्)।

वेण्णा :: स्त्री [वेन्ना] नदी-विशेष। °यड न [°तट] नगर-विशेष (पउम ४८, ६३; महा)।

वेण्हु :: देखो विण्हु (संक्षि ३; प्राकृ ५)।

वेताली :: स्त्री [दे] १ तट, किनारा; 'जन्‍नं नावा पुव्ववेतालीउदाहिणावेतालिीं जलपहेणं गच्छति' (पणण १६ — पत्र ४८०) २ गली (आव° वृ° पत्र ३५५)

वेत्त :: न [दे] स्वच्छ वस्त्र (दे ७, ७५)।

वेत्त :: पुं [वेत्र] वृक्ष-विशेष, बेंत का गाछ (पणण १ — पत्र ३३; विपा १, ६ — पत्र ६६)। °सण न [°सन] बेंत का बना हुआ आसन (पउम ६९, १४)।

वेत्तव्व :: वि [वेत्तव्य] जानने योग्य (प्राप्र)।

वेत्तिअ :: पुं [वैत्रिक] द्वारपाल, चपरासी (सुपा ७३)।

वेद :: देखो वेअ = वेदय्। वेदेइ, वेदंति, वेदेंति (भग; सूअ १, ७, ४; ठा २, ४ — पत्र १००), वेदेज्ज (धर्मंसं १९६)। भूका. वेदेंसु (ठा २, ४; भग)। भवि. वेदिस्संति (ठा २, ४; भग)। कवकृ. वेदेज्जमाण (ठा १० — पत्र ४७२)।

वेद :: देखो वेअ = वेद (पणह १, २ — पत्र ४०; धर्मंसं ८९२)।

वेदंत :: देको वेअंत (धर्मंसं ८९३)।

वेदक, वेदग :: देखो वेअग (पणह १, २ — पत्र २८, धर्मंसं १९६)।

वेदणा :: देखो विअणा (भग; स्वप्‍न ८०; नाट — मालवि १४)।

वेदब्भी :: स्त्री [वैदर्भी] प्रद्युन्‍न कुमार की एक स्त्री का नाम (अंत १४)।

वेदस :: (शौ) देखो वेडिस (प्राकृ ८३; नाट शकु ९८)।

वेदि :: देखो वेइ = वेदि (पउम ११, ७३)।

वेदिग :: पुं [वादक] एक इभ्य मनुष्य-जाति, 'अंबट्ठा य कलंदा य. वेदेहा वेदिगातिता (? इया)। हरिता चुंचुणा चेव छप्पेता इब्भजाइओ।।' (ठा ६ — पत्र ३५८)।

वेदिय :: देखो वेइअ = वेदित (भग)।

वेदिस :: न [वैदिश] विदिशा की तरफ का नगर (अणु १४९)।

वेदुलिय :: देखो वेरुलिअ (चंड)।

वेदूणा :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ७, ६५)।

वेदेसिय :: देखो वइदेसिअ (राज)।

वेदेह :: पुं [वैदेह] एक इभ्य मनुष्य-जाति (ठा ६ — पत्र ३५८)। देखो वइदेह।

वेदेहि :: पुं [विदेहिन्] विदेह देश का राजा (उत्त ९, ६२)।

वेधम्म :: देखो वइधम्म (धर्मंसं १८५)।

वेधव्व :: देखो वेहव्व (मोह ९९)।

वेन्ना :: देखो वेण्णा (उप पृ ११५)।

वेप्प :: वि [दे] भूत आधि से गृहीत, पागल (दे ७, ७४)।

वेप्पुअ :: न [दे] १ शिशुपन, बचपन। २ वि. भूत-गृहीत, भूताविष्ट (दे ७, ७६)

वेफल्ल :: न [वैफल्य] निष्पलता (विसे ४१६; धर्मंसं २२; अज्झ १३३)।

वेब्भल :: वि [विह्‍वल] व्याकुल (प्राप्र)।

वेब्भार, वेभार :: पुं [वैभार] पर्वंत-विशेष, राजगृही के समीप का एक पहाड़ (णाया १, १ — पत्र ३३; सिरि ४)।

वेम :: देखो वेमय। वेमइ (प्राकृ ७४)।

वेम :: पुं [वेमन्] तन्तुवाय का एक उपकरण (विसे २१००)।

वेमइअ :: वि [भग्‍न] भाँगा हुआ (कुमा ६, ६८)।

वेमणस्स :: न [वैमनस्य] १ मनमुटाव, भीतरी द्वेष (उव) २ दैन्य, दीनता (पणह १, १ — पत्र ५)

वेमय :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। वेमयइ (हे ४, १०६; षड्)।

वेमाउअ, वेमाउग :: वि [वैमातृक] विमाता की संतान (सम्मत्त १७१; मोह ८८)।

वेमाणि :: पुंस्त्री [विमानिन्] विमान-वासी देवता एक उत्तम देव-जाति (दं २)। स्त्री. °णिणी (पणण १७ — पत्र ५००; पंचा २, १८)।

वेमाणिअ :: पुं [वैमानिक] एक उत्तम देव- जाति, विमानवासी देवता (भग; औप; पणहॉ १, ५ — पत्र ९३; जी २४)।

वेमाया :: स्त्री [विमात्रा] अनियत परिमाण (भग १, १० टी)।

वेम्मि :: क्रि [वच्मि] मैं कहता हूँ (चंड)।

वेयंड :: पुं [वेतण्ड] हस्ती, हाथी (स ६३०; ७३५)। देखो वेंड।

वेयावच्च, वेयावडिय :: न [वैयावृत्त्य, वैयापृत्य] सेवा, शुश्रुषा (उव; कस; णाया १, ५; औप; ओघभा ३२१; आचा; णाया १, १ — पत्र ७५; धर्मंसं ९९५, श्रु ५३)।

वेर :: न [वैर] दुश्‍मनाई, शत्रुता (दे १, १५२; अंत १२; प्रासू १२३)।

वेर :: न [द्वार] दरवाजा (षड्)।

वेरग्ग :: न [वैराग्य] विरागता, उदासीनता (उव; रयण ३०; सुपा १७३; प्रासू ११९)।

वेरग्गिअ :: वि [वैराग्यिक] वैराग्य-युक्त, विरागी (उव; स १३५)।

वेरज्ज :: न [वैराज्य] १ वैरि-राज्य, विरुद्ध राज्य (सुख २, ३५; कस) २ जहाँ पर राजा विद्यमान न हो वह राज्य। ३ जहाँ पर प्रधान आदि राजा से विरक्त रहते हों वह राज्य (कस; बृह १)

वेरत्तिय :: वि [वैरात्रिक] रात्रि के तृतीय पहर का समय (उत्त २६, २०; ओघ ६६२)।

वेरमण :: न [विरमण] विराम, निवृत्ति (सम १०; भग; उवा)।

वेराड :: पुं [वैराट] भारतीय देश-विशेष, अल- वर तथा उसके चारों ओर का प्रदेश (भवि)।

वेराय :: (अप) पुं [ विराग] वैराग्य, उदासीनता (भवि)।

वेरि, वेरिअ :: देखो वइरि (गउड; कुमा; पि ६१)।

वेरिज्ज :: वि [दे] १ असहाय, एकाकी। २ न. सहायता, मदद (दे ७, ७६)

वेरुलिअ :: पुंन [वेडूर्य] १ रत्‍न की एक जाति, 'सुचिरं पि अच्छमाणो वेरुलिओ कावगणीअ उम्मीसो' (प्रासू ३२; पाअ), 'वेरुलिअं' (हे २, १३३, कुमा) २ विमानावास-विशेष (देवेन्द्र १३२) ३ शक्र आदि इन्द्रों का एक आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३) ४ महा- हिमवंत पर्वंत का शिखर (ठा २, ३ — पत्र ७०; ठा ८ — पत्र ४३६) ५ रुचक पर्वंत का एक शिखर (ठा ८ — पत्र ४३६) ६ वि. वैडूर्यं रत्‍नवाला (जीव ३, ४; राय)। °मय वि [°मय] वैडूर्य रत्‍नों का बना हुआ (पि ७०)

वेरोयण :: देखो वइरोअण = वैरोचन (णाया २, १ — पत्र २४७)।

वेल :: न [दे] दन्त-मांस, दाँत के मूल का मांस (दे ७, ७४)।

वेलंधर :: पुं [वेलन्धर] एक देव-जाति, नाग- राज-विशेष (सम ३३)। २ पर्वंत-विशेष। ३ न. नगर-विशेष (पउम ५४, ३९)

वेलंधर :: पुं [वैलन्धर] वेलन्धर-संबन्धी (पउम ५५, १७)।

वेलंब :: पुं [वेलम्ब] १ वायुकुमाक नामक देवों के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५; इक) २ पाताल-कलश का अधिष्ठाता देव-विशेष (ठा ४, १ — पत्र १९८; ४, २ — पत्र २२६)

वेलंब :: पुं [दे. विडम्ब] १ विडम्बना (दे ७, ७५; गउड) २ वि. पिडम्बना-कारक (पणह २, २ — पत्र ११४)

वेलंवग :: पुं [विडम्बक] १ विदूषक, मसखरा (औप; णाया १, १ टी — पत्र २; कप्प) २ वि. विडम्बना करनेवाला (पुप्फ २२६)

वेलक्ख :: न [वेलक्ष्य] लज्जा, शरम (गउड)।

वेलणय :: न [दे. व्रीडनक] १ लज्जा, शरम (दे ७, ६५ टी) २ पुं. साहित्य-प्रसिद्ध रस- विशेष, लज्जा-जनक वस्तु के दर्शन आदि से उत्पन्न होनेवाला एक रस (अणु १३५)

वेलव :: सक [उपा + लभ्] १ उपालम्भ देना, उलाहना देना। २ कँपाना। ३ व्याकुल करना। ४ व्यावृत्त करना, हटाना। वेलवइ (हे ४, १५६; षड्)। वकृ. वेलवंत (से २, ८)। कवकृ. वेलविज्जंत (से १०, ६८)। कृ वेलवणिज्ज (कुमा)

वेलव :: सक [वञ्च्] १ ठगना। २ पीड़ा करना। बेलवइ (हे ४, ९३)। कर्मं. वेल- बिज्जंति (सुपा ४८२; गउड)

वेलविअ :: वि [वञ्चित] १ प्रतारित, ठगा हुआ (पाअ; वज्जा १५२; विवे ७७; वै २६) २ पीड़ित, हैरान किया हुआ (खा ११)

वेला :: स्त्री [दे] दन्त-मांस, दाँत के मूल का मांस (दे ७, ७४)।

वेला :: स्त्री [वेला] १ समय, अवसर, काल (पाअ; कप्पू) २ ज्वार, समुद्र के पानी की वृद्धि (पणह १, ३ — पत्र ५५) ३ समुद्र का किनारा (से १, ६२; औप; गउड) ४ मर्यादा (सूअ १, ९, २९) ५ वार, दफा (पंचा १२, २९)। °उल न [°कुल] बन्दर, जहाजों के ठहरने का स्थान (सुर १३, ३०; उप ५९७ टी)। °वासि पुं [°वासिन्] समुद्र-तट के समपी रहनेवाला वानप्रस्थ (औप)

वेलाइअ :: वि [दे] मृदु, कोमल। २ दीन, गरीब (दे ७, ९६)

वेलाव :: (अप) सक [वि + लम्बय्] देरी करना, विलम्ब करना। वेलावसि (पिंग)।

वेलिल्ल :: वि [वेलावत्] वेला-युक्त (कुमा)।

बेली :: स्त्री [दे] १ लता-विशेष, निद्राकरी लता (दे ७, ३४) २ घर के चार कोणों में रखा जाता छोटा स्तम्भ (पव १३३)

वेलु :: देखो वेणु (हे १, ४; २०३)।

वेलु :: पुं [दे] १ चोर, तस्कर। २ मुसल (दे ७, ९४)

वेलुंक :: वि [दे] विरूप, खराब, कुत्सित (दे ७, ६३)।

वेलुग, वेलुय :: पुंन [वेणुक] १ बेल का गाछ। २ बेल का फल (आचा २, १, ८, १४) ३ वंश, बाँस; 'वेलुयाणि तणाणि य' (पणण १ — पत्र ४३; पि २४३) ४ बासंकरिला, वनस्पति-विशेष (दस ५, २, २१)

वेलुरिअ, विलुलिअ :: देखो वेरुलिअ (प्राप्र; पि २४१, दे ७, ७७)।

वेलूणा :: स्त्री [दे] लज्जा, लाज (दे ७, ६५)।

वेल्ल :: अक [वेल्ल्] १ काँपना। २ लेटना। ३ सक. कँपाना। ४ प्रेरना। वेल्लइ (पि १०७)। वेल्लंति (गउड)। वकृ. वेल्लंत, वेल्लमाण (गउड; हे १, ६६; पि १०७)

वेल्ल :: अक [रम्] क्रीड़ा करना। वेल्लइ (हे ४, १६८)। कृ. वेल्लणिज्ज (कुमा ७, १४)।

वेल्ल :: पुं [दे] १ केश, बाल। २ पल्लव। ३ विलास (दे ७, ९४) ४ मदन-वेदना, काम- पीड़ा। ५ वि. अबिदग्ध, मूर्खं (संक्षि ४७) ६ न. देखो वेल्लग (सुपा २७६)

वेल्लइअ :: देखो वेल्लाइअ (षड्)।

वेल्लग :: न [दे] १ एक तरह की गाड़ी, जो ऊपर से ढकी हुई होती हैं, गुजराती में 'वेल'। २ गाड़ी के ऊपर का तला (श्रा १२)

वेल्लण :: न [वेल्लन] प्रेरणा (गउड)।

वेल्लय :: देखो वेल्लग (सुपा २८१; २८२)।

वेल्लरिअ :: पुं [दे] केश, बाल (षड्)।

वेल्लरिआ :: स्त्री [दे] वल्ली, लता (षड्)।

वेल्लरी :: स्त्री [दे] वेश्या, वारांगना (दे ७, ७६; षड्)।

वेल्लविअ :: देखो वेल्लिअ (से १, २६)।

वेल्लविअ :: वि [दे] विलिप्‍त, पोता हुआ (से १, २६)।

वेल्लहल, वेल्लहल्ल :: वि [दे] १ कोमल, मृदु (दे ७, ९६; षड्; गउड; सुपा ५६२; स ७०४) २ विलासी (दे ७, ९६; षड्; सुपा ५२) ३ सुन्दर (गा ५९८)

वेल्ला :: स्त्री [दे. वल्ली] लता, वल्ली (दे ७, ९४)।

वेल्लालअ :: वि [दे] संकुचित, सकुचा हुआ (दे ७, ७९)।

वेल्लि :: देखो वल्लि (उव; कुमा)।

वेल्लिअ :: वि [वेल्लित] १ कँपाया हुआ (से ७, ५१) २ प्रेरित (से ६, ६५)

वेल्लिर :: वि [वेल्लितृ] काँपनेवाला (गउड)।

वेल्ली :: देखो वेल्लि (गा ८०२; गउड)।

वेव :: अक [वेप्] काँपना। वेवइ (हे ४, १४७; कुमा; षड)। वकृ. वेवंत, वेवमाण रंभा; कप्प; कुमा)।

वेवज्झ :: न [वैवाह्य] विपाह, शादी (राज)।

वेवण्ण :: न [वैवर्ण्य] फीकापन (कुमा)।

वेवय :: पुंन [वेपक] रोग-विशेष, कम्प (आचा)।

वेवाइअ :: वि [दे] उल्लसित, उल्लास-प्राप्‍त (दे ७, ७९)।

वेवाहिअ :: वि [वैवाहिक] संबन्धी, विवाह- संबन्धवाला (सुपा ४९६; कुप्र १७७)।

वेविअ :: वि [वेपित] १ कम्पित (गा ३९२; पाअ) २ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २७)

वेविर :: वि [वेपुतृ] काँपनेवाला (कुमा; हे २, १४५; ३, १३५)।

वेव्व :: अ [दे] आमन्त्रण-सूचक अव्यय (हे २, १९४; कुमा)।

वेव्व :: अ [दे] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ भय, डर। २ वारण, रुकावट। ३ विषाद, खेद। ४ आमन्त्तण (हे २, १९३; १९४; कुमा)

वेस :: पुं [वेष] शरीर पर वस्त्र आदि की सजा- वट (कप्प; स्वप्‍न ५३; सुपा ३८६; ३८७; गउड; कुमा)।

वेस :: वि [व्येष्य] विशेष रूप से वांछनीय (वव ३)।

वेस :: पुं [वेष] १ विरोध, वैर। २ घृणा, अप्रीति (गउड; भवि)

वेस :: वि [वेष्य] वेषोचित, वेष के योग्य (भग २, ५ — पत्र १३७; सुज्ज २ — पत्र २९१)।

वेस :: वि [द्वेष्य] १ द्वेष करने योग्य, अप्री- तिकर (पउम ८८, १९; १२६; सुर २, २०८; दे १, ४१) २ विरोधी, शत्रु, दुश्‍मन (सुपा १५२; उप ७६८ टी)

वेस :: देखो वइस्स = वैश्य (भवि)।

वेसइअ :: वि [वैषयिक] विषय से संबन्ध रखनेवाला (पि ६१)।

वेसंपायण :: देखो वइसंपायण (हे १, १५२; षड्)।

वेसंभ :: पुं [विश्रम्भ] विश्‍वास (पउम २८, ५४)।

वेसंभरा :: स्त्री [दे] गृहगोधा, छिपकली (दे ७, ७७)।

वेसक्खिज्ज :: न [दे] द्वेष्यत्व, विरोध, दुश्‍मनाई (दे ७, ७९)।

वेसण :: न [दे] वचनीय, लोकापवाद (दे ७, ७५)।

वेसण :: न [वेषण] जीरा आदि मसाला (पिंड ५४)।

वेसण :: न [वेसन] चना आदि द्विदल — दाल का आटा, बेसन (पिंड २५६)।

वेसमण :: पुं [वैश्रमण] १ यक्षराज, कुबेर (पाअ; णाया १, १ — पत्र ३९; सुपा १२८) २ इन्द्र का उत्तर दिशा का लोकपाल (सम ८६; भग ३, ७ — पत्र १९९) ३ एक विद्याधर-नरेश (पउम ७, ९९) ४ एक राजकुमार (विपा २, ६) ५ एक शेठ का नाम (सुपा १२८; ६२७) ६ अहोरात्र का चौदहवाँ मुहुर्त्तं (सुज्ज १०, १३' सम ५१) ७ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४४) ८ क्षुद्र हिमवान् आदि पर्वंतों के शिखरों का नाम (ठा २, ३ — पत्र ७०; ८०; ८ — पत्र ४३६; ९ — पत्र ४५४)। °काइय पुं [°कायिक] वैश्रमण की आज्ञा में रहनेवाली एक देव-जाति (भग ३, ७ — पत्र १९९)। °दत्त पुं [°दत्त] एक राजा का नाम (विपा १, ९ — पत्र ८८)। °देवकाइय पुं [°देवकायिक] वैश्रमण के अधीनस्थ एक देव-जाति (भग ३, ७ — पत्र १९९)। °प्पभ पुं [°प्रभ] वैश्रमण के उत्पात-पर्वंत का नाम (ठा १० — पत्र ४८२)। °भद्द पुं [°भद्र] एक जैन मुनि (विपा २, ३)

वेसम्म :: न [वैषम्य] विषमता; असमानता (अज्झ ५; पव २१६ टी)।

वेसर :: पुंस्त्री [वेसर] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८) २ अश्‍वतर, खच्चर। स्त्री. °री (सुर ८, १९)

वेसलग :: पुं [वृषल] शूद्र, अधम-जातीय मनुष्य (सूअ २, २, ५४)।

वेसवण :: पुं [वैश्रवण] देखो वेसमण (हे १, १५२; चंड; देवेन्द्र २७०)।

वेसवाडिय :: पुं [वेशवाटिक] एक जैन मुनि- गण (कप्प)।

वेसवार :: पुं [वेसवार] धनिया आदि मसाला (कुप्र ६८)।

वेसा :: देखो वेस्सा (कुमा; सुर ३, ११६, सुपा २३५)।

वेसाणिय :: पुं [वैषाणिक] १ एक अन्तर्द्वीप। २ अन्तर्द्वीप विशेष में रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २ — पत्र २२५)

वेसानर :: देखो वइसानर (सट्ठि ९ टी)।

वेसायण :: देखो वेसियायण (राज)।

वेसालिअ :: वि [वैशालिक] १ समुद्र में उत्पन्‍न। २ विशालाख्य जाति में उत्पन्‍न। ३ विशाल, बड़ा, विस्तीर्णं; 'मच्छा वेसालिया चेव' (सूअ १, १, ३, २) ४ पुं. भगवान् ऋषभदेव (सूअ १, २, ३, २२) ५ भगवान् महावीर (सूअ १, २, ३, २२; भग)

वेसाली :: स्त्री [वैशाली] एक नगरी का नाम (कप्प; ३३०)।

वेसास :: देखो वीसास; 'को किर वेसासु वेसासो' (धर्मवि ६५)।

वेसासिअ :: वि [वैश्वासिक, विश्वास्य] विश्‍वास-योग्य, विश्‍वसनीय, विश्‍वास-पात्र (ठा ५, ३ — पत्र ३४२; विपा १, १ — पत्र १५; कप्प; औप; तंदु ३५)।

वेसाह :: देखो वइसाह (पाअ; वव १)।

वेसाही :: स्त्री [वैशाखी] १ वैशाख मास की पूर्णिमा। २ वैशाख मास की अमावस (इक)

वेसि :: वि [द्वेषिन्] द्वेष करनेवाला (पउम ८, १८७; सुर ६, ११५)।

वेसिअ :: देखो वइसिअ (दे १, १५२)।

वेसिअ :: पुंस्त्री [वैशक] १ वैश्य, बणिक् (सूअ १, ९, २) २ न. जैनेतर शास्त्र- विशेष, काम-शास्त्र (अणु ३६; राज)

वेसिअ :: वि [वैषिक] वेष-प्राप्‍त, वेष-संबन्धी (सूअ २, १, ५६; आचा २, १, ४, ३)।

वेसिअ :: वि [व्येषित] १ विशेष रूप से अभिलषित। २ विविध प्रकार से अभिलषित (भग ७, १ — पत्र २९३)

वेसिट्ठ :: देखो वइसिट्ठ (धर्मंसं २७१)।

वेसिणी :: स्त्री [दे] वेश्या, गणिका (गा ४७४)।

वेसिया :: देखो वेस्सा; 'कामासत्तो न मुणइ गम्मागम्मंपि वेसियाणुव्व' (भत्त ११३; ठा ४, ४ — पत्र २७१)।

वैसियायण :: पुं [वैश्यायन] एक बाल तापस (भग १५ — पत्र ६६५; ६६६)।

वेसी :: स्त्री [वैश्या] वैश्य जाति की स्त्री (सुख ३, ४)।

वेसुम :: पुं [वेश्‍मन] गृह, घर (प्राकृ २८)।

वेस्स :: देखो वइस्स = वैश्य (सूअ १, ९, २)।

वेस्स :: देखो वेस = द्वेष्य (उत्त १३, १८)।

वेस्स :: देखो वेस = वेष्य (राज)।

वेस्सा :: स्त्री [वेश्या] १ पण्यांगना, गणिका (विसे १०३०; गा १५६; ८९०) २ ओषधि-विशेष; पाढ़ का गाछ (प्राकृ २६)

वेस्सासिअ :: देखो विसासिअ (भग)।

वेह :: सक [प्र + ईक्ष्] देखना, अवलोकन करना; 'जहा संगमाकालंसि पिट्ठतो भीरु वेहइ' (सूअ १, ३, ३, १)।

वेह :: सक [व्यध्] बींधना, छेदना। वेहइ (पि ४८९)।

वेह :: पुं [वेध] १ वेधन, छेद (सम १२५; वज्जा १४२) २ अनुबोध, अनुगम, मिश्रण। ३ द्युत-विशेष, एक तरह का जुआ (सूअ १, ९, १७) ४ अनुशय, अत्यन्त द्वेष (पणह १, ३ — पत्र ४२)

वेह :: पुं [वेधस्] विधि, विधाता (सुर ११, ५)।

वेहण :: न [वेधन] वेधन, छेद करना (राय १४६; धर्मंवि ७१)।

वेहम्म :: देखो वइधम्म (उप १०३१ टी; धर्मंसं १८५ टी)।

वेहल्ल :: पुं [विहल्ल] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (अनु १, २; निर १, १)।

वेहव :: सक [वञ्च्] ठगना। वेहवइ (हे ४, ९३; षड्)।

वेहव :: न [वैभव] विभूति, ऐश्वर्यं (भवि)।

वेहविअ :: पुं [दे] १ अनादर, तिरस्कार। २ वि. क्रोधी (दे ७, ९६)

वेहविअ :: वि [वञ्चित] प्रतारित (दे ७, ९६ टी)।

वेहव्व :: न [वैधव्य] १ विधवापन, रँड़ापा, राँड़पन (गा ६३०; हे १, १४८; गउड; सुपा १३६)

वेहाणस :: देखो वेहायस (आचा २, १०, २; ठा २, ४ — पत्रक ९३; सम ३३; णाया १, १६ — पत्र २०२; भग)।

वेहाणसिय :: वि [वैहायसिक] फाँसी आदि से लटक कर मरनेवाला (औप)।

वेहायस :: वि [वैहायस] १ आकाश-सम्बन्धो, आकाश में होनेवाला। २ न. मरण-विशेष, फाँसी लगा कर मरना (पव १५७) ३ पुं. राजा श्रेणिक का एक पुत्र (अनु)

वेहारिय :: वि [वैहारिक] विहार-सम्बन्धी बिहार-प्रवण (सुख २, ४५)।

वेहास :: न [विहायस्] १ आकाश, गगन (णाया १, ८ — पत्र १३४)। अन्तराल, बीच भाग (सूअ १, २, १, ८)

वेहास :: देखो वेहायस (पव १५७; अनु १)।

वेहम :: वि [वैधिक, वेध्य] तोड़ने योग्य, दो टुकड़े करने योग्य (दस ७, ३२)।

वैउंठ :: देखो वेकुंठ (समु १५०)।

वेभव :: देखो वेहव (त्रि १०३)।

वोअस :: देखो वोक्कस। [कवकृ.] वोयसिज्जमाण (भग)।

वोइय :: वि [व्यपेत] वर्जित, रहित (भवि)।

वोंट :: देखो विंट = वृन्त (हे १, १३९)।

वोकिल्ल :: वि [दे] गृह-शूर, घर में वीर बननेवाला, झूठा शूर (दे ७, ८०)।

वोकिल्लिअ :: न [दे] रोमन्थ, चबी हुई चीज को पुनः चबाना (दे ७, ८२)।

वोक्क :: सक [वि + ज्ञपय्] विज्ञप्‍ति करना। बोक्कइ (हे ४, ३८)। वकृ. वोक्कंत (कुमा)।

वोक्क :: सक [व्या + हृ, उद् + नद्] पुका- रना, आह्वान करना। वोक्कइ (षड्; प्राकृ ७४)।

वोक्क :: सक [उद् + नट्] अभिनय करना। वोक्कइ (प्राकृ ७४)।

वोक्कंत :: वि [व्युत्क्रान्त] १ विपरीत क्रम से स्थित (हे १, ११६) २ अतिक्रान्त; 'पज्ज- वनयवोक्कंतं तं वत्थुं दव्वट्ठिअस्स वयणिज्जं' (सम्म ८)। देखो वुक्कंत।

वोक्कस :: सक [व्यप + कृष्] ह्रास प्राप्‍त करना, कमी करना। कवकृ. वोक्कसिज्जमाण (भग ५, ६ — पत्र २२८)।

वोक्कस :: देखो वोक्कस (सूअ १, ९, २)।

वोक्कस :: देखो वुक्कस = व्युत् + कृष्। वोक्क- साहि (आपा २, ३, १, १४)।

वोक्का :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष; 'डक्कावोक्काण रवो वियंभिओ रायपंगणए' (सुपा २४२)। देखो बुक्का।

वोक्का :: स्त्री [व्याहृति] पुकार (उप ७६८ टी)।

वोक्कार :: देखो बोक्कार (सुर १, २४६)।

वोक्ख :: देखो वोक्क = उद् + नद्। वोक्खइ (धात्वा १५४)।

वोक्खंदय :: पुं [अवस्कन्द] आक्रमण (महा)।

वोक्खारिय :: वि [दे] विभूषित; 'पवरदेवंग- वत्थवोक्खारियकणयखंभं' (स २३९)।

वोगड :: वि [व्याकृत] १ कहा हुआ, प्रति- पादित (सूअ २, ७, ३८; भग; कस। २ परिस्फुट (आचानि २९२)

वोगडा :: स्त्री [व्याकृता] प्रकट अर्थ वाली भाषा (पणण ११-पत्र ३७४)।

वोगसिअ :: वि [व्युत्काषत] निष्कासित, बाहर निकाला हुआ (तंदु २)।

वोच, वोच्च :: सक [वद्] बोलना, कहना। वोचइ, वोच्चइ (धात्वा १५४)।

वोच्चत्थ :: वि [व्यत्यस्त] विपरीत उलटा; 'हियनिस्सेस (? यस)बुद्धिवोच्चत्थे' (उत्त ८, ५; सुख ८, ५; विसे ८५३)।

वोच्चत्थ :: न [दे] विपरीत रत (दे ७, ५८)।

वोच्छ° :: देखो वय = वच्।

वोच्छिंद :: सक [व्युत् + व्यव + छिद्] १ भाँगना, तोड़ना, खण्डित करना। २ विनाश करना। ३ परित्याग करना। वोच्छिंदइ (उत्त २९, २)। भवि वोच्छिंदिहिंति (पि ५३२)। कर्मं. वुच्छिज्जं, वोच्छिजइ, वोच्छि- ज्जए (कम्म २, ७; पि ५४६; काल)। भवि. वोच्छिज्जिहिंति (पि ५४९)। वकृ. वोच्छिंदंत, वोच्छिंदमाण (स १५, ६२; ठा ६ — पत्र ३५९)। कवकृ. वोच्छिज्जंत, वोच्छिज्जमाण (से ८, ५; ठा ३, १ — पत्र ११६)

वोच्छिण्ण :: देखो वोच्छिन्न (विपा १, २ — पत्र २८)।

वोच्छित्ति :: स्त्री [व्यवच्छित्ति] विनाश; 'संसारवोच्छित्ती' (विसे १६३३)। °णय पुं [°नय] पर्याय-नय (णंदि)।

वोच्छिन्न :: देखो वुच्छिन्न (भग; कप्प; सुर ४, ६९)।

वोच्छेअ, वोच्छेद :: पुं [व्युच्छेद, व्यवच्छेद] १ उच्छेद, विनाश; 'संसारवो- च्छेयकरे' (णाया १, १ — पत्र ६०; धर्मंसं २२८) २ अभाव, व्यावृत्ति (कम्म ६, २३) ३ प्रतिबन्ध, रुकावट, निरोध (उवा; पंचा १, १०) ४ विभाग (गउड ७४०)

वोच्छेयण :: न [व्युच्छेदन] १ विनाश (चेइय ५२४; पिंड ६६६) २ परित्याग (ठा ६ टी — पत्र ३६०)

वोज्ज :: देखो वुज्ज। वोज्जइ (हे ४, १९८ टी)।

वोज्ज :: सक [वीजय्] हवा करना। वोज्जइ (हे ४, ५; षड्)। वकृ. वोज्जंत (कुमा)।

वोज्जिर :: वि [त्रसितृ] डरनेवाला (कुमा)।

वोज्झ :: देखो वह = वह्। भवि. 'तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगासिंधूओ महानदीओ रहपह- वित्थराओ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं जणं वोज्झि- हिंतिं' (भग ७, ६ — पत्र ३०७)। कृ. 'नासानीसासवयवोज्झं. . . अंसुयं' (णाया १, १, १ — पत्र २५; राय १०२; प्राप)।

वोज्झ, वोज्झमल्ल :: पुं [दे] बोझ, भार; 'असि- वोज्झं फलयवोज्झमल्लं च' (दे ७, ८०)।

वोज्झर :: वि [दे] १ अतीत। २ भीत, त्रस्त (दे ७, ९६)

वोट्ठि :: वि [दे] सक्त, लीन (षड़्)।

वोड :: वि [दे] १ दुष्ट। छिन्न-कर्णं, जिसका कान कट गया हो वह (गा ५४९)। देखो बोड।

वोडही :: स्त्री [दे] १ तरुणी, युवति। २ कुमारी; 'सिक्खंतु वोडहीओ' (गा ३९२)। देखो वोद्रह।

वोड्ड :: वि [दे] मूर्खं; वेवकूफ (उव)।

वोढ :: वि [ऊढ] वहन किया हुआ (धात्वा १५४)।

वोढ :: वि [दे] देखो वोड (गा ५५० अ)।

वोढव्व :: देखो वह = वह्।

वोढु :: वि [वोढृ] वहन-कर्ता (महा)।

वोढुं :: देखो वह = वह्।

वोढूण :: अ [उड्‌ढ्‌वा] वहन कर (पि ५८६)।

वोत्तव्व :: देखो वय = वच्।

वोत्तुआण :: अ [उक्त्वा] कह कर (षड् — पृ १५३)।

वोत्तुं, वोत्तूण :: देखो वय = वच्।

वोदाण :: न [व्यवदान] १ कर्मं-निर्जंरा, कर्मों का विनाश (ठा ३, ३ — पत्र १५६; उत्त २९, १) २ शुद्धि, विशेष रूप से कर्मं- विशोधन (पंखा १५, ४; उत्त २९, १; भग) ३ तप, तपश्चर्या (सूअ १, १४; १७) ४ वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)

वोद्रह :: वि [दे] तरुण, युवा (दे ७, ८०); 'वोद्रहद्रम्मि पडिआ' (हे २, ८०)। स्त्री. °ही; 'सिक्कखंतुवोद्रहीओ' (हे २, ८०)।

वोभीसण :: वि [दे] वराक, दीन, गरीब (दे ७, ८२)।

वोम :: न [व्योमन्] आकाश, गगन (पाअ; विसे ६५५९)। °बिन्दु पुं [°बिन्दु] एक राजा का नाम (पउम ७, ५३)।

वोमज्झ :: पुं [दे] अनुचित वेष (दे ७, ८०)।

वोमज्झिअ :: न [दे] अनुचित वेष का ग्रहण (दे ७, ८० टी)।

वोमिल :: पुं [व्योमिल] एक जैन मुनि (कप्प)।

वोमिला :: स्त्री [व्योमिला] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प)।

वोय :: पुं [वोक] एक देश का नाम (पउम ९८, ६४)।

वोरच्छ :: वि [दे] तरुण, युवा (दे ७, ८०)।

वोरमण :: न [व्युपरमण] हिंसा, प्राणि-वध (पणह १, १ — पत्र ५)।

वोरल्ली :: स्त्री [दे] १ श्रावण मास की शुक्ल चतुर्दंशी तिथि में होनेवाला एक उत्सव। २ श्रावण मास की शुक्ल चतुर्दंशी (दे ७, ८१)

वोरविअ :: वि [व्यपरोपित] जो मार डाला गया हो वह; 'सक्कारित्ता जुयलं दिन्‍नं बिइएण बोरचिओ' (वव १)।

वोरुट्ठी :: स्त्री [दे] रुई से भरा हुआ वस्त्र (पव ८४)।

वोल :: सक [गम्] १ गति करना, चलना। २ गुजारना, पसार करना। ३ अतिक्रमण करना, उल्लंघन करना। ४ अक. गुजरना, पसार होना। वोलइ (प्राकृ ७३; हे ४, १६२; महा; धर्मंसं ७५४); 'कालं वोलेइ' (कुप्र २२४), वोलंति (वज्जा १४८; धर्मंवि ५३)। वकृ. वोलंत, वोलेंत (कुमा; गा २१०; २२०; पउम ६, ५४; से १४, ७५; सुपा २२४; से ६, ९६)। संकृ. वोलिऊण, वोलेत्ता (महा; आव)। कृ. वोलेअव्व (से २, १; स ३९३)। प्रयो., संकृ. वोलाविउं, वोलावेउं (सुपा १४०; गा ३४९; अ ?)। देखो बोल = व्यति + क्रम्।

वोल :: देखो बोल = दे (दे ६, ९०)।

वोलट्ट :: अक [व्युप + लुट्] छलकना। वकृ. वोलट्टमाण (भग)।

वोलाविअ :: वि [गमित] अतिक्रमित (वज्जा १४, सुपा ३३४; गा २१)।

वोलिअ, वोलीण :: वि [गत] १ गया हुआ (प्राकृ ७७) २ गुजरा हुआ, जो पसार हुआ हो वह, व्यतीत (सुर ६, १९; महा; पव ३५; सुर ३, २५) ३ अतिक्रान्त, उल्लंघित (पाअ; सुर २, १; कुप्र ४५; से १, ३; ४, ४८; गा ५७; २५२; ३४०; हे ४, २५८; कुमा; महा)

वोल्ल :: सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना। वोल्लइ (धात्वा १५४)।

वोल्लाह :: पुं [वोल्लाह] देश-विशेष ( ८१)।

वोल्लाह :: वि [वौल्लाह] देश-विशेष में उत्पन्‍न (स ८१)।

वोवाल :: पुं [दे] वृषभ, बैल (दे ७, ७९)।

वोसग्ग :: पुं [व्युत्सर्ग] परित्याग (विसे २६०५)।

वोसग्ग, वोसट्ट :: अक [वि + कस्] १ विकसना, खिलना। २ बढ़ना। वोसग्गइ, वोसट्टइ (षड्; हे ४, १९५; प्राकृ ७६)। वकृ. वोसट्टमाण (भग, गा ८२८)

वोसट्ट :: सक [वि + वासय्] १ विकास करना। २ बढ़ाना। वोसट्टइ (धात्वा १५४)

वोसट्ट :: वि [विकसित] विकास-प्राप्त (हे ४, २५८; प्राकृ ७७)।

वोसट्ट :: वि [दे] भर कर खाली किया हुआ (दे ७, ८१)।

वोसट्टिअ :: वि [विकसित] विकास-प्राप्त (कुमा)।

वोसट्ठ :: वि [व्युत्सृष्ट] १ परित्यक्त, छोड़ा हुआ (कप्प; कस; ओघ ६०५; उत्त ३५, १९; आचा २, ८, १; पंचा १८, ६)। २ परिष्कार-रहित, साफसूफ-वर्जित (सूअ १, १६, १) ३ कायोत्सर्गं में स्थिते (दस ५, १, ९१)

वोसमिय :: वि [व्यवशमित] उपशमित, शान्त किया हुआ; 'खामिय वोसमियाइं अहिगपणाइंतु जे उदीरेंति। ते पावा नायव्वा' (ठा ६ टी — पत्र ३७१)।

वोसर, वोसिर :: सक [व्युत् + सृज्] परित्याग करना, छोड़ना। वोसरिमो, वोसिरइ, वोसिरामि (पव २३७; महा; भग; औप), बोसरेज्जा, (पि २३५)। वकृ. वोसिरंत (कुप्र ८१)। संकृ. वोसिज्ज, वोसिरित्ता (सूअ १, ३, ३, ७; पि २३५)। कृ. वोसिरियव्व (पत्र ४६)।

वोसिर :: वि [व्युत्सर्जन] छोड़नेवाला (उप पृ २६८)।

वोसिरण :: न [व्युत्सर्जन] परित्याग (हे २, १७४; श्रा १२; श्रावक ३७९; ओघ ५८)।

वोसिरिअ :: देखो वोसट्ठ (पउम ४, ५२; धर्मंसं १०५१; महा)।

वोसेअ :: वि [दे] उन्मुख-गत (दे ७, ८१)।

वोहित्त :: न [वहित्र] प्रवहण, जहाज, नौका (गा ७४६)। देखो बोहित्थ।

वोहार :: न [दे] जल-वहन (दे ७, ८१)।

व्युड :: पुं [दे] विट, भडुआ (षड्)।

व्रंद :: देखो वंद = वृन्द (प्राप्र)।

व्रत्त :: (अप) देखो वय = व्रत (हे ४, ३९४)।

व्राक्रोस :: (अप) पुं [व्याक्रोश] १ शाप। २ निन्दा। ३ विरुद्ध चिन्तन (प्राकृ ११२)

व्रागरण :: (अप) देखो वागरण (प्राकृ ११२)।

व्राडि :: (अप) पुं [व्याडि] संस्कृत व्याकरण और कोष का कर्ता एक मुनि (प्राकृ ११२)।

व्रास :: देखो वास = व्यास (हे ४, ३९९; प्राकृ ११२; षड्; कुमा)।

व्व :: देखो इव (हे २, १८२, कप्प; रंभा)।

व्व :: देखो वा = अ (प्राकृ २६)।

°व्वअ :: देखो वय = व्रत (कुमा)।

व्ववसिअ :: देखो ववसिय = व्यवसित (अभि १२४)।

°व्वाज :: देखो वाय = व्याज (मा २०)।

°व्वावार :: देखो वावार = व्यापार (मा ३६)।

°व्वावुड :: देखो वावुड (अभि २४९)।

°व्वाहि :: देखो वाहि (मा ४४)।

व्वि :: देखो इव (प्राकृ २६)।

व्वे :: अ [दे] संबोधन-सूचक अव्यय (प्राकृ ८०)।