विक्षनरी:प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश/भाग-४
प :: पुं [प] १ ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं- विशेष (प्राप्र) २ पाप-त्याग; 'पत्ति य पाववज्जणे' (आवम)
प :: अ [प्र] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रकर्षं; 'पओस' (से २, ११)। २ प्रारम्भ; 'पणमिअ' 'पकरेइ' (जं १; भग १, १) ३ उत्पत्ति। ४ ख्याति, प्रसिद्धि। ५ व्यवहार। ६ चारों ओर से (निचू १; हे २, २१७) ७ प्रस्रवण, सूत्र (विसे ७८१) ८ फिर-फिर (निचू ३; १७) ९ गुजरा हुआ, विनष्ट; 'पासुअ' (ठा ४, २ — पत्र २१३ टी)
प° :: वि [प्राच्] पूर्वं तरफ स्थित (भवि)। पअंगम पुं [प्लवङ्गम] छन्द-विशेष (पिंग)।
पअंव :: पुं [प्रजङ्ग] राक्षस-विशेष (से १२, ८३)।
पअब्भ :: देखो पगब्भ = प्रगल्भ (प्राकृ ७८)।
पइ :: अ [प्रति] १ अपेक्षा-सूचक (दसनि ३, १) २ लक्ष्य, तरफ, और; 'भरुयच्छं पइ चलियं' (सम्मत्त १४१; धर्मंवि ५९)
पइ :: पुं [पति] १ धव, भर्ता, परवरिश करनेवाला (पाअ; गा १५९; कप्प) २ मालिक। ३ रक्षक; 'भुवई', 'तिअसगणवई', 'नरवइ' (सुपा ३६; अजि १७; १९) ४ श्रेष्ठ, उत्तम; धरणिधरवई' (अजि १७)। °घर न [°गृह] समुराल (षड्)। °वया, व्वया स्त्री [°व्रता] पति-सेवा-परायण स्त्री, कुलवती स्त्री, सती (गा ४१७; सुर ६, ६७)। °हर देखो °घर (हे १, ४)
पइ :: देखो पडि (ठा २, १; काल; उवर २१)।
पइअ :: वि [दे] १ भर्त्सित, तिरस्कृत। २ न. पहिया, रथ-चक्र (दे ६, ६४)
पइइ :: देखो पगइ = प्रकृति (से २, ४५)।
पइउं :: देखो पय = पच्।
पइउवचरण :: न [प्रत्युपचरण] प्रत्युपचार, प्रति-सेवा (रंभा)।
पइऊल :: देखो पडिकूल (नाट — विक्र ४५)।
पइंवया :: देखो पइ-वया (णाया १, १६ — पत्र २०४)।
पइक :: (अप) देखो पाइक्क (पिंग)।
पइकिदि :: देखो पडिकिदि (नाट — शकु ११६)।
पइक्क :: देखो पाइक्क (पिंग; पि १९४)।
पइगिइ :: देखो पडिकिदि (स ६२५)।
पइच्छन्न :: पुं [प्रतिच्छन] भूत-विशेष (राज)।
पइज्ज :: (अप) वि [पतित] गिरा हुआ (पिंग)।
पइज्ज :: (अप) वि [प्राप्त] मिला हुआ, लब्ध (पिंग)।
पइज्जा :: देखो पइण्णा (भवि; सण)।
पइट्ठ :: वि [दे] १ जिसने रस को जाना हो वह। २ विरल। ३ पुं. मार्गं, रास्ता (दे ६, ६६)
पइट्ठ :: देखो पगिट्ठ (सट्ठि ५ टी)।
पइट्ठ :: वि [दे] प्रोषित, भेजा हुआ; 'जह अद्द- कुमर मिच्छो अभयपइट्ठं जिणस्स पडिबिंब' (संबोध ३)।
पइट्ठ :: पुं [प्रतिष्ठ] भगवान् सुपार्श्वनाथ के पिता का नाम (सम १५०)।
पइट्ठ :: वि [प्रविष्ट] जिसने प्रवेश किया हो वह (स ४२६)।
पइठ्ठव :: सक [प्रति-स्थापय्] मूर्त्ति आदि की विधि-पूर्वंक-स्थापना करना। पइट्ठवेज्जा (पंचा ७, ४३)।
पइट्ठवण :: देखो पइट्ठावण (राज)।
पइट्ठा :: स्त्री [प्रतिष्ठा] १ आदर, सम्मान। २ कीर्त्ति, यश। ३ व्यवस्था (हे १, २०६) ४ स्थापना, संस्थापन (णंदि) ५ अवस्थान, स्थिति (पंचा ८) ६ मूर्त्ति में ईश्वर के गुणों का आरोपण; 'जिणबिंबाण' पइट्ठं कइया वि हु आइंसंतस्स' (सुर १६, १३) ७ आश्रय, आधार (औप)
पइट्ठा :: स्त्री [प्रतिष्ठा] १ धारण, वासना (णंदि १७६) २ समाधान, शंका निरास- पूर्वंक स्वपक्ष-स्थापन (चेइय ५३५)
पइट्ठाण :: पुं [प्रतिष्टान] मूल प्रदेश (राय २७)।
पइट्ठाण :: न [प्रतिष्ठान] १ स्थिति, अवस्थान; 'काऊण पइट्ठाणं रमणिज्जे एत्थ अच्छामो' (पउम ४२, २७; ठा ९) २ आधार, आश्रय (भग) ३ महल आदि की नींव (पव १४८) ४ नगर-विशेष (आक २१)
पइट्ठाण :: न [दे] नगर, शहर (दे ६, २९)।
पइट्ठावक, पइट्ठावग :: देखो पइट्ठावय (णाया १, १६ राज)।
पइट्ठावण :: न [प्रतिष्ठापन] १ संस्थापन (पंचा ७) २ व्यवस्थापन (पंचा ७)
पइट्ठावय :: वि [प्रतिष्ठापक] प्रतिष्ठा करनेवाला (औप; पि २२०)।
पइट्ठाविय :: वि [प्रतिष्ठापित] संस्थापित (स ६२; ७०५)।
पइट्ठिअ :: वि [प्रतिष्ठित] प्रतिबद्ध, रुका हुआ (आचा २, १६, १२)।
पइट्ठिय :: वि [प्रतिष्ठित] १ स्थित, अवस्थित (उवा) २ आश्रित; 'रयणायरतीरपइट्ठियाण पुरिसाण जं च दालिद्दं' (प्रासू ७०) ३ व्यवस्थित (आचा २, १, ७) ४ गौरवान्वित (हे १, ३८)
पइणियय :: वि [प्रतिनियत] नियम-संगत, नियमित (धर्मंवि २९६)।
पइण्ण :: वि [दे] विपुल, विस्तृत (दे ६, ७)।
पइण्ण :: वि [प्रतीर्ण] प्रकर्षं से तीर्णं (आचा)।
पइण्ण, पइण्णग :: वि [प्रकीर्णं, °क] १ विक्षिप्त फेंका हुआ; 'रत्थापइणणणअणु- प्पला तुमं सा पडिच्छए एंतं' (गा १४०) २ अनेक प्रकार से मिश्रित (पंचु) ३ बिखरा हुआ (ठा ६) ४ विस्तारित (बृह १) ५ न. ग्रंथ-विशेष, तीर्थंकर-देव की सामान्य शिष्य द्वारा बनाया हुआ ग्रंथ (णंदि)। °कहा स्त्री [°कथा] उत्सर्गं, सामान्य नियम; 'उस्सग्गो पइणणकहा भण्ड अववादो नियच्छाकहा भणणइ' (निचू ५)। °तव पुं [°तपस्] तपश्चर्या-विशेष (पंचा १९)
पइण्णा :: स्त्री [प्रतिज्ञा] १ प्रण, शपथ (नाट — मालती १०६) २ नियम (औप; पंचा १८) ३ तर्कशास्त्र प्रसिद्ध अनुमान-प्रमाण का एक अवयव, साध्य वचन का निर्देश (दसनि १)
पइण्णाद :: (शौ) वि [प्रतिज्ञान] जिसकी प्रतिज्ञा की गई हो वह (मा १५)।
पइण्णि :: वि [प्रतिज्ञावत्] प्रतिज्ञावाला, 'बंधमोक्खपइणिणणो' (उप ६, १०; सुख, १०)।
पइत्त :: देखो पउत्त = प्रवृत्त (भवि)।
पइत्त :: वि [प्रदीप्त] जला हुआ, प्रज्वलित (से १५, ७३)।
पइत्त :: देखो पवित्त = पवित्र (सुपा ७४)।
पइदि :: (शौ) देखो पगइ (नाट — शकु ६१)।
पइदिण :: न [प्रतिदिन] हर रोज (काल)।
पइद्विय :: वि [प्रदिग्ध] विलिप्न (सूअ १, ५, १)।
पइदियह :: न [प्रतिदिवस] प्रतिदिन, हर रोज (सुर १, ५०)।
पइनियम :: वि [प्रतिनियत] मुकरँर किया हुआ, नियुक्त किया हुआ (आवम)।
पइन्न :: देखो पइण्ण = प्रतीर्ण (पणह २, १ टी — पत्र १०५)।
पइन्न, पइन्नग :: देखो पइण्ण (उव; भवि; श्रा ६)।
पइन्नय :: देखो पइन्नग ( चेइय १९)।
पइन्ना :: देखो पइण्णा (सुर १, १)।
पइप्प :: देखो पलिप्प। वकृ. पइप्पमाण (गा ४१६)।
पइप्पईय :: न [प्रतिप्रतीक] प्रत्यंग, हर अंग (रंभा)।
पइभय :: वि [प्रतिभय] प्रत्येक प्राणी को भय उपजानेवाला (णाया १, २; पणह १, १; औप)।
पइभा :: स्त्री [प्रतिभा] बुद्धि-विशेष, प्रत्युत्पन्न- मति (पुप्फ ३३१)।
पइभाणाण :: न [प्रतिभाज्ञान] प्रतिभा से उत्पन्न होता ज्ञान, प्रातिभ प्रत्यक्ष (धर्मंसं १२०९)।
पइमुह :: वि [प्रतिमुख] संमुख (उप ७४४)।
पइर :: सक [वप्] बोना, वपन करना। पइरिंति (आचा २, १०, २)। भूका, पइरिंसु पइरिंति (आचा २, १०, २)। भवि. पइरिस्संति (आचा २, १०, २)। कर्म. पइरिज्जंति (स ७१३)।
पइरिक्क :: वि [दे. प्रतिरिक्त] १ शून्य, रहित (दे ६, ७१; से २, १५) २ बिशाल, विस्तीर्ण (दे ६, ७१) ३ तुच्छ, हलका (से १, ५८) ४ प्रचुर, विपुल (ओघ २४९ — पत्र १०३) ५ नितान्त, अत्यन्त 'पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमिए' (कप्प) ६ न. एकान्त स्थान, विजन स्थान, निर्जंन जगह (दे ६, ७१; स २३५; ७५५; गा ८८; उप २९३)
पइल :: (अप) देखो पढम (पि ४४९)।
पइलाइया :: स्त्री [प्रतिलादिका] हाथ के बल चलनेवाली सर्पं की एक जाति (राज)।
पइल्ल :: पुं [दे. पदिक] १ ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३) २ रोग-विशेष, श्लीपद (पणह २, ५)
पइव :: पुं [प्रतिव] एक यादव का नाम (राज)।
पइवरिस :: न [प्रतिवर्ष] हरएक वर्षं (पि २२०)।
पइवाइ :: वि [प्रतिवादिन्] प्रतिवादी, प्रतिपक्षी (विसे २४८८)।
पइविसिट्ठ :: वि [प्रतिविशिष्ट] विशेष-युक्त विशिष्ट (उवा)।
पइविसेस :: पुं [प्रतिविशेष] विशेष, भेद, भिन्नता (विसे ५२)।
पइस :: देखो पविस। पइसइ (भवि)। पइसंति (दे १, ९४ टि)। कर्मं, पइसिज्जइ (भवि)। वकृ. पइसंत (भवि)। कृ. पइसियव्व (स २३४)।
पइसमय :: न [प्रतिसमय] हर समय, प्रतिक्षण (पि २२०)।
पइसर :: देखो पविस। पइसरइ (भवि)।
पइसरा :: सक [प्र + वेशय्] प्रवेश कराना। पइसारिइ (भवि)।
पइसारिय :: वि [प्रवेशित] जिसका प्रवेश कराया गया हो वह, 'पइसारिओ य नयरिं' (महा; भवि)।
पइहंत :: पुं [दे] जयन्त, इन्द्र का एक पुत्र (दे ६, १९)।
पइहा :: सक [प्रति + हा] त्याग करना। संकृ. पइहिऊण (उव)।
पई° :: देखो पइ = पति (षड्; हे १, ४; सुर १, १७६)।
पईअ :: वि [प्रतीत] १ विज्ञात। २ विश्वस्त। ३ प्रसिद्ध, विख्यात (विसे ७०९)
पईअ :: न [प्रतीक] अंग, अवयव (रंभा)।
पईइ :: स्त्री [प्रतीति] १ विश्वास। २ प्रसिद्धि (राज)
पईव :: देखो पलीव। पईवेइ (कस)।
पईव :: पुं [प्रदीप] दीपक, दिया (पाअ; जी १)।
पईव :: वि [प्रतीप] १ प्रतिकूल (हे १, २०६) २ पुं. शत्रु, दुश्नन (उप ६४८ टी; हे १, २३१)
पईस :: (अप) देखो पइस। पईसइ (भवि)।
पउ :: (अप) वि [पतित] गिरा हुआ (पिंग)।
पउअ :: देखो पागय = प्राकृत (प्राकृ ५)।
पाउअ :: पुं [दे] दिन, दिवस (दे ६, ५)।
पउअ :: न [प्रयुत] संख्या-विशेष, 'प्रयुताङ्गं' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक; ठा २, ४)।
पउअंग :: न [प्रयुताङ्गं] संख्या-विशेष, 'अयुत' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४)।
पउंज :: सक [प्र + युज्] १ जोड़़ना, युक्त करना। २ उच्चारण करना। ३ प्रवृत्त करना। ४ प्रेरणा करना। ५ व्यवहार करना। ६ करना। पउंजइ (महा; भवि; पि ५०७)। पउंजंति (कप्प)। वकृ. पउंजंत, पउंजमाण (औप; पउम ३५, ३९)। कवकृ. पउज्जमाण (प्रयौ २३) कृ. पउंजिअव्व, पउज्ज (पणह २, ३; उप ७२८ टी; विसे ३३८४), पउद्दव्व (अप) (कुमा)
पउंजग :: वि [प्रयोजक] प्रेरक, प्रेरणा करनेवाला (पंचव १)।
पउंजण :: वि [प्रयोजन] प्रयोग करनेवाला (पउम १४, १०)। देखो पओअण।
पउंजणया, पउंजणा :: स्त्री [प्रयोजना] प्रयोग (ओघ ११४); 'दुक्खं कीरइ कव्वं' कव्वम्मि कए पउंजणा दुक्खं' (वज्जा २)।
पउंजिअ :: वि [प्रयुक्त] जिसका प्रयोग किया गया हो वह (सुपा १४०; ४४७)।
पउंजित्तु :: वि [प्रयोक्तृ] प्रवृत्ति करनेवाला (ठा ५, १)।
पउंजित्तु :: वि [प्रयोजयितृ] प्रवृत्ति करनेवाला (ठा ५, १)।
पउज्ज, पउज्जमाण :: देखो पउंज।
पउट्ट :: अ [परिवृत्य] मार कर। °परिहार पुं [°परिहार] मर कर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होकर उस शरीर का परिभोग करना, 'एवं खलु गोसाला ! वणस्सइ-काइयाओ पउट्ट- परिहारं परिहरंति' (भग १५ — पत्र ६६७)।
पउट्ट :: वि [परिवर्त] १ परिवर्तं, मर कर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होना। २ परिवर्तं- वाद; 'एस णं गोयमा ! गोसायस्स मंखलि- पुत्तस्स पउट्टे' (भग १५ — पत्र ६६७)
पउट्ठ :: वि [प्रवृष्ट] बरसा हुआ (हे १, १३१)।
पउट्ट :: पुं [प्रकोष्ठ] हाथ का पहुँचा, कलाई और केहुनी के बीच का भाग (पणह १, ४ — पत्र ७८; कप्प; कुमा)।
पउट्ठ :: वि [प्रजुष्ट] १ विशेष सेवित। २ न. अति उच्छिष्ट (चंड)
पउट्ठ :: वि [प्रद्विष्ट] द्वेष-युक्त; 'तो सो पउट्ठ- चित्तो' (सुपा ४७५)।
पउढ :: न [दे] १ गृह, घर। २ पुं. घर का पश्चिम प्रदेश (दे ६, ४)
पउण :: अक [प्रगुणय्] तन्दुरुस्त होना, नीरोग होना; 'अन्नस्स चिगिक्छाए पउणइ अन्नो न लोगम्मि' (धर्मंसं ११८४)।
पउण :: पुं [दे] १ व्रण-प्ररोह। २ नियम- विशेष (दे ६, ६५)
पउण :: वि [प्रगुण] १ पटु, निर्दोष; 'कह सच्चरणविहाणं जायइ पउर्णिंदियाणंपि' (सुपा ४७२; महा) २ तैयार, तय्यार (दंस ३)
पउणाड :: पुं [प्रपुनाट] वृक्ष-विशेष, पमाड का पेड़, चकवड़ (दे ५, ५ टि)।
पउत्त :: अक [प्र + वृत्] प्रवृत्ति करना। कृ. पउत्तिदव्व (शौ) (नाट — शकु ८७)।
पउत्त :: वि [प्रयुक्त] जिसका प्रयोग किया गया हो वह (महा; भवि)। २ न. प्रयोग (णाया १, १)
पउत्त :: पुं [पौत्र] लड़के का लड़का, पोता (प्राकृ १०; श्रु ११७)।
पउत्त :: न [प्रतोत्र] प्रतोद, प्राजन, चाषुक, पैना (दसा १०)।
पउत्त :: वि [प्रवृत्त] जिसने प्रवृत्ति की हो वह (उवा)।
पउत्ति :: स्त्री [प्रवृत्ति] १ प्रवर्त्तंन (भग १५) २ समाचार, वृत्तान्त (पाअ; सुर २, ४८; ३, ८४) ३ कार्यं, काज, काम। °वाउय वि [°व्यापृत] कार्यं में लगा हुआ (औप)
पउत्ति :: स्त्री [प्रयुक्ति] बात, हकीकत (उप पृ २२८; राज)।
पउत्तिदव्व :: देखो पउत्त = प्र + वृत्।
पउत्तु :: [प्रयोक्तृ] १ प्रयोग-कर्त्ता। २ प्रेरणा कर्त्ता। ३ कर्ता, निर्माता। स्त्री. °त्ती (तंदु ४५)
पउत्थ :: न [दे] १ गृह, घर (दे ६, ६६) २ वि. प्रोषित, प्रवास में गया हुआ; 'एहिइ सोवि पउत्थो अहं अ कुप्पेज्ज सोवि अणुणेज्ज' (गा १७; ६६७; हेका ३०, पउम १७, ३; वज्जा ७६; विवे १३२; उव; दे ६, ६६; भवि)। °वइआ स्त्री [पतिका] जिसका पति देशान्तर गया हो वह स्त्री (ओघ ४१३; सुपा ५०८)
पउद्दव्व :: देखो पउंज।
पउप्पय :: देखो पओप्पय (भघ ११, ११ टी)।
पउप्पय :: देखो पओप्पय = प्रपौत्रिक (भग ११, ११ टी)।
पउम :: न [पद्म] १ सूर्यं-विकासी कमल (हे २, ११३; पणह १, ३; कप्प; औप; प्रासू ११३) २ देव-विमान-विशेष (सम ३३; ३५) ३ संख्या-विशेष; 'पद्मांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; इक) ४ गन्ध-द्रव्य-विशेष (औप; जीव ३) ५ सुधर्मा सभा का एक सिंहासन (णाया २) ६ दिन का नववाँ मुहूर्त्तं (जो २) ७ दक्षिण रुचक-पर्वंत का एक शिखर (ठा ८) ८ पुं. राजा रामचन्द्र, सीता-पति (पउम १, ५; २५, ८) ९ आठवाँ बलदेव, श्रीकृष्ण के बड़े भाई। १० इस अवसर्पिणीकाल में उत्पन्न नववाँ चक्रवर्त्ती राजा, राजा पद्मोत्तर का पुत्र (पउम ५, १५३; १५४) ११ एक राजा का नाम (उप ६४८ टी) १२ माल्यव नामक पर्वंत का अधिष्ठाता देव (ठे २, ३) १३ भरतक्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में उत्पन्न होनेवाला आठवाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४) १४ भरत क्षेत्र का भावी आठवाँ बलदेव (सम १५४) १५ चक्रवर्त्ती राजा का निधि, जो रोग-नाशक सुन्दर वस्त्रों की पूर्त्ति करता है (उप ९८६ टी) १६ राजा श्रेणिक का एक पौत्र (निर २, १) १७ एक जैन मुनि का नाम (कप्प) १८ एक ह्रद (कप्प) १९ पद्म-वृक्ष का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३) २० महापद्म नामक जिनदेव के पास दीक्षा लेनेवाला एक राजा, एक भावी राजर्षि (ठा ८) °गुम्म न [°गुल्म] १ आठवें देव- लोक में स्थित एक देव-विमान का नाम (सम ३५) २ प्रथम देवलोक में स्थित एक देव- विमान का नाम (महा) ३ पुं. राजा श्रेणिक का एक पौत्र (निर २, १) ४ एक भावी राजर्षि, महापद्म नामक जिनदेव के पास दीक्षा लेनेवाला एक राजा (ठा ८) °चरिय न [°चरित] १ राजा रामचन्द्र की जीवनी — चरित्र। २ प्राकृत भाषा का एक प्राचीन ग्रंथ, जैन रामायण (पउम ११८, १२१) °णाभ पुं [°नाभ] १ वासुदेव, विष्णु (पउम ४०, १) २ आगामी उत्सर्पिणी- काल में भरतक्षेत्र में होनेवाला प्रथम जिन-देव का नाम (पव ४६) ३ कपिल-वासुदेव के एक माण्डलिक राजा का नाम (णाया १, १६ — पत्र २१३) °दल न [°दल] कमल-पत्र (प्रारू)। °द्दह पुं [°द्रह] विविध प्रकार के कमलों से परिपूर्णं एक महान् ह्रद का नाम (सम १०४; कप्प; पउम १०२, ३०)। °द्धय पुं [°ध्वज] एक भावी राजर्षि जो महापद्म नामक जिनदेव के पास दीक्षा लेगा (ठा ८)। °नाह देखो °णाभ (उप ६४८ टी)। °पुर न [°पुर] एक दक्षिणात्य नगर, जो आजकल 'नासिक' नाम से प्रसिद्ध है (राज)। °प्पभ पुं [°प्रभ] इस अव- सर्पिणी काल में उत्पन्न षष्ठ जिन-देव का नाम (कप्प)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] एक पुष्क- रिणी का नाम (इक)। °प्पह देखो °प्पभ (ठा ५, १, सम ४३; पडि)। °भद्द पुं [°भद्र] राजा श्रेणिक का एक पौत्र (निर २, १)। °मालि पुं [°मालिन्] विद्याधर-वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४२)। °मुह देखो पउमाणण (षड्)। °रह पुं [°रथ] १ विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४३) २ मथुरा नगरी के राजा जयसेन का पुत्र (महा) °राय पुं [°राग] रक्त-वर्णं मणि-विशेष (१३९; १६६)। °राय पुं [°राज] घातकीखण्ड की अपर- कंका नगरी का एक राजा, जिसने द्रौपदी का अपहरण किया था (ठा १०)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] १ उत्तर-कुरुक्षेत्र में स्थित एक वृक्ष (ठा २, ३) २ वृक्ष-सदृश बड़ा कमल (जीव ३) °लया स्त्री [°लता] १ कमलिनी, पद्मिनी (जीव ३; भग; कप्प) २ कमल के आकारवालो वल्ली (णाया १, १)। °वडिंसय, °वडेंसय न [°वतंसक] पद्मावती-देवी का सौधर्म नामक देवलोक में स्थित एक विमान (राज; णाया २ — पत्र २५३)। °वइवेइया स्त्री [°वरवेदिका] १ कमलों की श्रेष्ठ वेदिका (भग) ३ जम्बू द्वीप की जगती के ऊपर रही हुई देवों की एक भोग-भूमि (जीव ३) °वूह पुं [°व्यूह] सैन्य की पद्माकार रचना (पणह १, ३)। °सर पुं [°सरस्] कमलों से युक्त सरोवर (णाया १, १; कप्प; महा)। °सिरी स्त्री [°श्री] १ अष्टभ चक्र- वर्त्ती सुभुमराज की पटरानी (सम १५२) २ एक स्त्री का नाम (कुमा) °सेण पुं [°सेन] १ राजा श्रेणिक के एक पौत्र का नाम, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (निर १, २) २ नागकुमार-जातीय एक देव का नाम (दीव) °सेहर पुं [°शेखर] पृथ्वीपुर नगर के एक राजा का नाम (धम्म ७)। °गर पुं [°कर] १ कमलों का समूह। २ सरोवर (उप १३३ टी)। °सण न [°सन] पद्माकार आसन (जं १)
पउमग :: पुंन [पद्मक] केसर (दस ६, ६४)।
पउमप्पह :: पुं [पद्मप्रभ] विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का एक जैन आचार्यं (विपा ३)।
पउमा :: स्त्री [पद्मा] १ लक्ष्मी। २ देवी- विशेष। ३ लौंग, लवँग। ४ पुष्प-विशेष, कुसुम्भ-पुष्प (प्राकृ २८)
पउमा :: स्त्री [पद्मा] १ बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी की माता का नाम (सम १५१) २ सौधर्मं देवलोक के इन्द्र की एक पटरानी का नाम (ठा ८ — पत्र ४२९; पउम १०२, १५९) ३ भीम नामक राक्षसेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ एक विध्याधर कन्या का नाम (पउम ६, २४) ५ रावण की एक पत्नी (पउम ७४, १०) ६ लक्ष्मी (राज) ७ वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६) ८ चौदहवें तीर्थंकर श्रीअनन्तनाथ की मुख्य शिष्या का नाम (पव ९) ९ सुदर्शना-जम्बू की उत्तर दिशा में स्थित एक पुष्करिणी (इक) १० दूसरे बलदेव और बासुदेव की माता का नाम। ११ लेश्या-विशेष (राज)
पउमाड :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, पमाड़ का पेड़ चकवड़ (दे ५, ५)।
पउमाणण :: पुं [पद्मानन] एक राजा का नाम (उप १०३१ टी)।
पउमाभ :: पुं [पद्माभ] षष्ठ तीर्थंकर का नाम (पउम १, २)।
पउमार :: [दे] देखो पउमाड (दे ५, ५ टि)।
पउमावई :: स्त्री [पद्मावती] १ जम्बूद्वीप के सुमेरु पर्वंत के पूर्वं तरफ के रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी-देवी (ठा ८) २ भगवान् पार्श्वंनाथ की शासन-देवी, जो नाग- राज धरणेन्द्र की पटरानी है (संति १०) ३ श्रीकृष्ण की एक पत्नी का नाम (अंत १५) ४ भीम-नामक राक्षसेन्द्र की एक पटरानी (भग १०, ५) ५ शक्रेन्द्र की एक पटरानी (णाया २ — पत्र २५३) ६ चम्पे- श्वर राजा दधिवाहन की एक स्त्री का नाम आव ४)। ७ राजा कृणिक की एक पत्नी (भग ७, ९) ८ अयोध्या के राजा हरिसिंह की एक पत्नी (धम्म ८) ९ तेतलिपुर कि राजा कनककेतु की पत्नी (दंस १) १० कौशाम्बी नगरी के राजा शतानीक के पुत्र उदयन की पत्नी (विपा १, ५) ११ शैलक- पुर के राजा शैलक की पत्नी (णाया १, ५) १२ राजा कूणिक के पुत्र कालकुमार का भार्या का नाम। १३ राजा महाबल की भार्या का नाम (निर १, १; ५; पि १३९) १४ बीसवें तीर्थंकर श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की माता का नाम (पव ११) १५ पुण्डरीकिणी नगरी के राजा महापद्म की पटरानी (आचू १) १६ रम्यनामक विजय की राजधानी (जं ४)
पउमावत्ती :: (अप) स्त्री [पद्मावती] छन्द-विशेष (पिंग)।
पउमिणी :: स्त्री [पदि्मनी] १ कमलिनी, कमल-लता (कप्प; सुपा १५५) २ एक श्रेष्ठी की स्त्री का नाम (उप ७१८ टी)
पउमुत्तर :: पुं [पद्मोत्तर] १ नववें चक्रवर्त्ती श्रीमहापद्मराज के पिता का नाम (सम १५२) २ मन्दर पर्वंत के भद्रशाला वन का एक दिग्हस्ती पर्वंत (इक)
पउमुत्तरा :: स्त्री [पद्मोत्तरा] एक प्रकार की शक्कर, खाँड़, चीनी (णाया १, १७ — पत्र पणण २२९; १७)।
पउर :: वि [प्रचुर] प्रभूत, बहुत (हे १, १८०; कुमा, सुर ४, ७४)।
पउर :: वि [पौर] १ पुर-संबन्धी, नगर से संबन्ध रखनेवाला। २ नगर में रहनेवाला (हे १, १६२)
पउरव :: पुं [पौरव] पुरुनामक चन्द्र-वंशीय नृप का पुत्र (संक्षि ६)।
पउराण :: (अप) देखो पुराण (भवि)।
पउरिस :: वि [पौरुषेय] पुरुष-कृत, पुरुष का बनाया हुआ; 'वेदस्स तह यापउरिसभावा' (धर्मंसं ८९२)।
पउरिस, पउरुस :: पुंन [पौरुष] पुरुषस्य, पुरुषार्थ, वीरता, मरदानी (हे १, १११; १६२); 'पउरुसा' (प्राप्र); 'पउरुसं' (संक्षि ६)।
पउल :: सक [पच्] पकाना। पउलइ (हे ४, ९०; दे ६, २९)।
पउलण :: न [पचन] पकाना, पाक (पणह १, १)।
पउलिअ :: वि [पक्व] पका हुआ (पाअ)।
पउलिअ :: वि [प्रज्वलित] दग्ध, जला हुआ (उवा)।
पउल्ल :: देखो पउल। पउल्लइ (षड्; हे ४, ९० टि)।
पउल्ल :: वि [पक्व] पका हुआ (पंचा १)।
पउल्लग :: न [पचनक] रसोई का पात्र (दशवै° वृ° हारि° पत्र ९७, २)।
पउविय :: वि [प्रकुपित] विशेष कुपित, क्रुद्ध (महा)।
पउस :: सक [प्र + द्विष्] द्वेष करना। पउ- सेज्जा (ओघ २५ भा)।
पउसय :: वि [दे] देश-विशेष में उत्पन्न। स्त्री. °सिया (औप)।
पउस्स :: देखो पउस। पउस्ससिं (कुप्र ३७७)। वकृ. पउस्संत, पउस्समाण (राज; अंत २२)। संकृ. पउस्सिऊण (स ५१३)।
पउहण :: (अप) देखो पवहइ (भवि)।
पऊढ :: न [दे] गृह, घर (दे ६, ४)।
पए :: अ [प्रगे] पहले, पूर्व; 'तित्थगरवयण- करणे आयारिआणं कयं पए होइ' (ओघ ४७ भा); 'जइ पुण वियालपत्ता पए व पत्ता उवस्सयं न लभे' (ओघ १९८)।
पएणियार :: पुं [प्रैणीचार] व्याध की एक जाति, जो हरिणों को पकड़ने के लिए हरिणि-समूह को चराते एवं पालते हैं (पणह १, १ — पत्र १४)।
पएर :: पुं [दे] १ वृति-विवर, बाड़ का छिद्र। २ मार्गं, रास्ता। ३ कंठदीनार नामक भूषण- विशेष। ४ गले का छिद्र। ५ दिननाद, आर्त्तं- स्वर। ६ वि. दुश्शील, दूराचारी (दे ६, ६७)
पएस :: पुं [दे] प्रतिवेश्मिक, पड़ोसी (दे ६, ३)।
पएस :: पुं [प्रदेश] १ जिसका विभाग न हो सक ऐसा, सूक्ष्म अवयव (ठा १, १) २ कर्मं-दल का संचय (नव ३१) ३ स्थान, जगह (कुमा ६, ५९) ४ देश का एक भाग, प्रान्त (कुमा ६) ५ परिमाण-विशेष, निरंश- अवयव-परिमित माप। ६ छोटा भाग। ७ परमाणु। ८ द्वयणुक। ९ ञ्यणुक, तीन परमाणुओं का समूह (राज)। °कम्म न [°कर्मन्] कर्मं-विशेष, प्रदेश-रूप कर्मं (भग)। °ग्ग न [°प्र] कर्मों के दलिकों का परिमाण (भग)। °घण वि [°घन] निबिड़ प्रदेश (औप)। °णाम न [°नामन्] कर्मं- विशेष (ठा ६)। °णाम पुं [°नाम] कर्मं- द्रव्यों का परिणाम (ठा ६)। °बंध पुं [°बन्ध] कर्मं-दलों का आत्म-प्रदेशों के साथ संबन्धन (सम ९)। °संकम पुं [°संक्रम] कर्मं-द्रव्यों को भिन्न स्वभाव वाले कर्मों के रूप में परिणत करना (ठा ४, २)
पएसण :: न [प्रदेशन] उपदेश, 'पएसणयं णाम उवएसो' (आचू १)।
पएसय :: वि [प्रदेशक] उपदेशक, प्रदर्शंक; 'सिद्धपहपएसए वंदे' (विसे १०२५)।
पएसि :: पुं [प्रदेशिन्] स्वनाम-ख्यात एक राजा, जो श्री पार्श्वनाथ भगवान् के केशि- नामक गणधर से प्रबुद्ध हुआ था (राय; कुप्र १४५; श्रा ६)।
पएसिणी :: स्त्री [दे] पड़ोस में रहनेवाली स्त्री, पड़ोसिनी (दे ६, ३ टी)।
पएसिणी :: स्त्री [प्रदेशिनी] अंगुष्ठ के पास की उंगली, तर्जंनी (ओघ ३९०)।
पएसिय :: देखो पदेसिय (राज)।
पओअ :: पुं [पयोद] मेघ (दस ७, ५२)।
पओअ :: देखो पओग (हे १, २४५; अभि ९; सण; पि ८५)।
पओअण :: न [प्रयोजन] १ हेतु, निमित्त, कारण (सूअ १, १२) २ कार्यं, काम। ३ मतलब (महा; उत्त २३; स्वप्न ४८)
पओइद :: (शौ) वि [प्रयोजित] जिसका प्रयोग कराया गया हो वह (नाट — विक्र १०३)।
पओग :: पुं [प्रयोग] प्रयोजन (सूअ २, ७, २)।
पओग :: पुं [प्रयोग] १ शब्द-योजना (भास ६३) २ जीव का व्यापार, चेतन का प्रयत्न; 'उप्पाओ दुविगप्पो पओगजणिओ य विस्ससो चेव' (सम २५; ठा ३, १; सम्म १२९; स ५२४) ३ प्रेरणा (श्रा १४) ४ उपाय (आचू १) ५ जीव के प्रयत्न में कारण-भूत मन आदि (ठा ३, ३) ६ वाद- विवाद, शास्त्रार्थं (दसा ४)। °कम्म न [°कर्मन्] मन आदि की चेष्टा से आत्म- प्रदेशों के साथ बँधनेवाला कर्मं (राज)। °करण न [°करण] जीव के व्यापार द्वारा होनेवाला किसी वस्तु का निर्माण; 'होइ उ एगो जीवव्वावारो तेण जं विणिम्माणं पओगकरणं तयं बहुहो' (विसे)। °किरिया स्त्री [°क्रिया] मन आदि की चेष्टा (ठा ३, ३)। °फड्डय न [°स्पर्धक] मन आदि के व्यापार-स्थान की वद्धि-द्वारा कर्म-परमाणुओं में बढ़नेवाला रस (कम्मप २३)। °बंध पुंट [°बन्ध] जीव-प्रयत्न द्वारा होनेवाला बन्धन (भग १८, ३)। °मइ स्त्री [°मति] वाद- विषयक-परिज्ञान (दसा ४)। °संपया स्त्री [°संपत्] आचार्य का वाद-विषक सामर्थ्य (ठा ८)। °सा अ [प्रयोगेण] जीव- प्रयत्न से (पि ३६४)
पओज :: देखो पउंज = प्र + युज्। पओजए (पव ६४)।
पओजग :: वि [प्रयोजक] विनिश्चायक, निर्णायक, गमक (धर्मंसं १२२३)।
पओट्ठ :: देखो पउट्ठ = प्रकोष्ठ (प्राप्र; औप; पि ८४)।
पओत्त :: न [प्रतोत्र] प्रतोद, प्राजन-यष्टि, पैना। °धर पुं [°धर] बैलगाड़ी, हाँकनेवाला, बहल- वान या गाड़ीवान (णाया १, १)।
पओद :: पुं [प्रतोद] ऊपर देखो (औप)।
पओप्पय :: पुं [प्रपौत्रक] १ प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र। २ प्रशिष्य का शिष्य; 'तेण कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पओप्पए धम्मधासे नामं अणगारे' (भग ११, ११ — पत्र ५४८)
पओप्पिय :: पुं [दे. प्रपौत्रिक] १ वंश- परम्परा। २ शिष्य-संतति, शिष्य-संतान (भग ११, ११ — पत्र ५४८ टी)
पओरासि :: पुं [पयोराशि] समुद्र (सम्मत्त १७४)।
पओल :: पुं [पटोल] पटोल, परवर, परोरा (पणण १)।
पओली :: स्त्री [प्रतोली] १ नगर के भीतर का रास्ता (अणु) २ नगर का दरवाजा; 'गोउरं पओली य' (पाअ; सुपा २९१; श्रा १२; उप पृ ८५; भवि)
पओवट्ठाव :: देखो पज्जवत्थाव। पओवट्ठावेहि (पि २८४)।
पओवाह :: पुं [पयोबाह] मेघ, बादल (पउम ८, ४९; से १, २४; सुर २, ८५)।
पओस :: सक [प्र + द्विष्] द्वेष करना, बैर करना। पओसइ (सुख १, १४)।
पओस :: पुं [दे. प्रद्वेष] प्रद्वेष, प्रकृष्ट द्वेष (ठा १०; अंत; राय; आव ४; सुर १५, ५८; पुप्फ ४६५, कम्म १; महानि ४, कुप्र १०; स ६९६)।
पओस :: पुंन [प्रदोष] १ सन्ध्याकाल, दिन और रात्रि का सन्धि-काल (से १, ३४; कुमा) २ वि. प्रभूत दोषों से युक्त (से २, ११)
पओहण :: (अप) देखशो पवहण (भवि)।
पओहर :: पुं [पयोधर] १ स्तन, थन (पाअ; से १, २४; गउड; सुर २, ८५) २ मेघ, बादल (वज्जा १००) ३ छन्द-विशेष (पिंग)
पंक :: पुंन [पङ्कं] १ कर्दम, कीचड़, कादा, काँदो, कीच; 'धम्ममितंपि नो लग्गं पंकंव गयणंगण' (श्रा २८; हे १, ३०; ४; ३५७; प्रासू २५); 'सुसइ व पंकं' (वज्जा १३४) २ पाप (सूअ २, २) ३ असंयम, इन्द्रिय वगैरह का अनिग्रह (निचू १) °आवलिआ स्त्री [°वलिका] छन्द-विशेष (पिंग)। °प्फभा स्त्री [°प्रभा] चौथी नरक-भूमि (ठा ७; इक)। °बहुल वि [°बहुल] १ कर्दम-प्रचुर (सम ९०) २ पाप-प्रचुर (सूअ २, २) ३ पुंन. रत्नप्रभा नामक नरक-भूमि का प्रथम काण्ड (जीव ३)। °य न [°ज] कमल, पद्म (हे ३, २६; गउड; कुमा)। °वई स्त्री [°वती] नदी-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)
पंकज :: देखो पंक-य (सम्मत्त ११८)।
पंका :: स्त्री [पङ्का] चौथी नरक-भूमि (इक; कम्म ३, ५)।
पंकाभा :: स्त्री [पङ्काभा] चौथी नरक-पृथिवी (उत्त ३६, १५८)।
पंकावई :: स्त्री [पङ्कावती] पुष्कल नामक विजय के पश्चिम तरफ की एक नदी (इक; जं ४)।
पंकिय :: वि [पङ्कित] पंक-युक्त, कीचवाला (भग ६, ३; भवि)।
पंकिल :: वि [पङ्किल] कर्दमवाला (श्रा २८; गा ७६६; कप्पू; कुप्र १८७)।
पंकेरुह :: न [पङ्केरुह] कमल, पद्म (कप्पू; कुप्र १४१)।
पंख :: पुस्त्री [पक्ष] १ पंख, पाँखि, पाँख, पक्ष (पि ७४; राय; पउम ११; ११८; श्रा १४) २ पनरह दिन, पखवाड़ा (राज)। °सण न [°सन] आसन-विशेष (राय)
पंखि :: पुंस्त्री [पक्षिन्] पंखी, चिड़िया, पक्षी (श्रा १४)। स्त्री. °णी (पि ७४)।
पंखुडिआ, पंखुडी :: स्त्री [दे] पंख, पत्र (कुप्र २९; दे ६, ८)।
पंग :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। पंगइ (हे ४, ४०९)।
पंगण :: न [प्राङ्गण] आँगन (कुप्र २५०)।
पंगु :: वि [पङ्गु] पाद-विकल, खञ्ज, लंगड़ा, लूला, खोड़ा (पाअ; पि ३८०; पिंग)।
पंगुर :: सक [प्रा + वृ] ढकना, आच्छादन करना। पंगुरइ (भवि)। संकृ. पंगुरिवि (भवि)।
पंगुरण :: न [प्रावरण] वस्त्र, कपड़ा (हे १, १७५; कुमा; गा ७८२)।
पंगुल :: वि [पङ्गुल] देखो पंगु (विपा १, १; सं ७५; पाअ)।
पंच :: त्रि. ब. [पञ्चन्] पाँच, ५ (हे ३, १२३, कप्प; कुमा)। °उल न [°कुल] पंचायत (स २२२)। °उलिय पुं [°कुलिक] पंचायत में बैठ कर विचार करनेवाला (स २२२)। °कत्तिय पुं [कृत्तिक] भगवान् कुन्थुनाथ, जिनके पाँचो कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १)। °कप्प पुं [°कल्प] श्रीभद्रबाहुस्वामि-कृत प्राचीन ग्रन्थ का नाम (पंचभा)। °कल्लाणय न [°कल्या- णक] १ तीर्यंकर का च्यञ्न, ज्न्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण। २ काम्पिल्यपुर, जहाँ तेरहवें जिन-देव श्रीविमलनाथ के पाँचोौं कल्याणक हुए थे (ती २४) ३ तप-विशेष (जीत) °कोट्ठग वि [°कोष्ठक] १ पाँच कोष्ठों से युक्त। २ पुं. पुरुष (तंदु) °गव्व न [°गव्य] गाय के पाँच पदार्थं — दूध, दही, धृत, गोमय और मूत्र, पंचगव्य (कप्पू)। °गाह न [°गाथ] गाथाछन्द वाले पाँच पद्य (कस)। °गुण वि [°गुण] पाँचगुना (ठा ५, ३)। °चित्त पुं [°वित्र] षष्ठ जिन- देव श्रीपद्मप्रभ, जिनके पाँचों कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १; कप्प)। °जाम न [°याम] १ अहिंसा, सत्य, अचौर्यं, ब्रह्मचर्यं और त्याह ये पाँच महाव्रत। २ वि. जिसमें इन पाँच महाव्रतों का निरूपण हो वह (ठा ९) °णउइ स्त्री [°नवति] पंचानबे, ९५ (काल)। °णउय वि [°नवत] ९५ वाँ (काल)। °तालीस (अप) स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] पैतालीस, ४५ (पिंग; पि ४४५)। °तित्थी स्त्री [°तीर्थी] पाँछ तीर्थों का समुदाय (धर्मं २)। °तीसइम वि [°त्रिंशत्तम] पैतीसवाँ, ३५ वाँ (पणण ३५)। °दस त्रि. ब. [दशन्] पनरह, १५ (कप्पू)। °दसम वि [दशम] पनरहवाँ; १५ वाँ (णाया १, १)। °दसी स्त्री [°दशी] १ पनरहवीं, १५ वीं (विसे ५७९) २ पीर्णिमा। ३ अमावास्या (सुज्ज १०)। °दसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशत- तम] एक सौ पनरहवाँ, ११५ वाँ (पउम ११५, २४)। °नउइ देखो °णउइ (पि ४४७); नाणि वि [°ज्ञानिन्] मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यंव और केबल इन पाँचों ज्ञानों से युक्त, सर्वज्ञ (सम्म ६९)। °पठवी स्त्री [°पर्वी] मास की दो अष्टमी, दो चदुर्दशी और शुक्ल पंचमी ये पाँच तिथियाँ (रयण २६)। °पुव्वासाढ पुं [°पूर्वाषाढ] दसवें जिनदेव श्रीशीतलनाथ, जिनके पाँचों कल्या- णक पूर्वाषाढा नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १)। °पूस पुं [°पुष्य] पनरहवें जिनदेव श्रीधर्मं- नाथ (ठा ५, १)। °बाण पुं [°बाण] कामदेव (सुर ४, २४६; कुमा)। °भूय न न [°भूत] पृथिवी जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँच पदार्थं (सूअ १ १, १)। °भूयवाइ वि [°भूतवादिन्] आत्मा आदि पदार्थों को न मान कर केवल पाँच भूतों को ही माननेवाला, नास्तिक (सूअ, १, १, १)। °महव्वइय वि [°महाव्रतिक] पाँच महा- व्रतोंवाला (सूअ २, ७)। महव्वय न [°महाव्रत] हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, और परिग्रह का सर्वथा परित्याग (पणह २, ५)। °महाभूय न [°महाभूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँच पदार्थं (विसे)। °मुट्ठिय वि [°मुष्टिक] पाँच मुष्टियों का पाँच मुष्टियों से पूर्ण किया जाता (लोच) (णाया १, १; कप्प, महा)। °मुह पुं [°मुख] सिंह, पंचानन (उप १०३१ टी)। °यसी देखो °दसी (पउम ६६, १४)। °रत्त, °राय पुं [°रात्र] पाँच रात (भा ४३; पणह २, ५ — पत्र १४९)। °रासिय न [°राशिक] गणित-विशेष (ठा ४, ३)। °रूविय वि [°रूपिक] पाँच प्रकार के वर्णंवाला (ठा ४, ४)। °वत्थुग न [°वस्तुक] आचार्यं हरि- भद्रसूरि-रचित ग्रन्थ-विशेष (पंचव १, १)। °वरिस वि [°वर्ष] पाँच वर्ष की अवस्थावाला (सुर २, ७३)। °विह वि [°विध] पाँच प्रकार का (अणु)। °वीसइम वि [°विंशतितम] पचीसवाँ (पउम २५, २६)। °संगह पुं [°संग्रह] आचार्यं श्रीहरिभद्रसूरि- कृत एक जैन ग्रन्थ (पंच १)। °संवच्छरिय वि [°सांवत्सरिक] पाँच वर्ष परिमाणवाला, पाँच वर्षं की आयुवाला (सम ७५)। °सट्ठ वि [°षष्ट] पैसठवाँ, ६५ वाँ (पउम ६५, ५१)। °सट्ठि स्त्री [षष्टि] पैंसठ, ६५ (कप्प)। °समिय वि [°समित] पाँच समितियों का पालन करनेवाला (सं ८)। °सर पुं [°शर] कामदेव (पाअ; सुर २, ९३; सुपा ६०, रंभा)। °सीस पुं [°शीर्ष] देव-विशेष (दीव)। °सुण्ण न [°शून्य] पाँच प्राणिवध-स्थान (सूअ १, १, ४)। °सुत्तग न [°सूत्रक] आचार्यं- श्रीहरिभद्रसूरि-निर्मित एक जैन ग्रन्थ (पसू १)। °सेल, °सेलग, °सेलय पुं [°शौल, °क] लवणोदधि में स्थित और पाँच पर्वंतों से विभूषित एक छोटा द्वीप (महा; बृह ४)। °सोगंधिअ वि [°सौगन्धिक] इलायची, लवंग, कपूर, कंक्लो और जातीफल — जायफल इन पाँछ, सुगन्धित वस्तुओं से संस्कृत; 'नन्नत्थ पञ्चसोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसमुह-वासविहिं पच्चक्खामि' (उवा)। °हत्तर वि [°सप्तत] पचहत्तरवाँ, ७५ वाँ (पउम ७५, ८६)। °हत्तरि स्त्री [°सप्तति] १संख्या विशेष, ७५। २ जिनकी संख्या पचहत्तर हो वे (पि २६४; कप्प) °हत्थुत्तर पुं [°हस्तोत्तर] भगवान् महावीर, जिनके पाँचों कल्याणक उत्तराफाल्गुनी-नक्षत्र में हुए थे (कप्प)। °उह पुं [°युब] कामदेव (सण)। °णउइ स्त्री [°नवति] १ संख्या-विशेष, पंचानबे, ६५। २ जीनकी संख्या पंचानबे हो वे (सम ९७; पउम २०, १०३; पि ४४०) °णउय वि [°नवत] पंचानवाँ, ९५ वाँ (पउम ९५, ६९)। °णण पुं [नन] सिंह, गजेन्द्र (सुपा १७६; भवि)। °णुव्वइय वि [°णुव्रतिक] हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का आंशिक त्यागवाला (उवा; औप; णाया १; १२)।°याम देखो °जाम (बृह ६)। °स स्त्रीन [°शत्] १ संख्या-विशेष, पचास, ५०)। २ जिनकी संख्या पचीस हो वे; 'पंचासं अज्जियासाहस्सीओ' (सम ७०) °सग न [°शक] आचार्यं श्रीहरिभद्रसूरि- कृत एक जैन ग्रन्थ (पंचा)। °सीइ स्त्री [°शीति] १ संख्या-विशेष, अस्सी और पाँच, ८५। २ जिनकी संख्या पचासी हो वे (सम ९२; पि ४४६)। °सीइम वि [°शीतितम] पचासीवाँ, ८५ वाँ (पउम ८५, ३१; कप्प; पि ४४९)
पंचंअण्ण :: देखो पंचजण्ण (गउड)।
पंचंग :: न [पञ्चाङ्ग] १ दो हाथ; दो जानु और मस्तक ये पाँच शरीरीवयब। २ वि. पूर्वोक्त पाँच अंगवाला (प्रणाम आदि); 'पंचंगं करिय ताहे पणिवायं' (सुर ४, ६८)
पंचंगुलि :: पुं [दे] एरण्ड-वृक्ष, रेंडी का गाछ (दे ६, १७)।
पंचंगुलि :: पुं [पञ्चागुलि] हस्त, हाथ (णाया १, १; कप्प)।
पंचंगुलिआ :: स्त्री [पञ्चाङ्गुलिका] वल्ली- विशेष (णाया १ — पत्र ३३)।
पंचग :: वि [पञ्चक] पाँच (रुपया आदि) की कमत का (दसनि ३, १३)।
पंचग :: न [पञ्चक] पाँच का समूह (आचा)।
पंचजण्ण :: पुं [पाञ्चजन्य] श्रीकृष्ण का शंख (काप्र ८९२; गा ९७४)।
पंचत्त, पंचत्तण :: न [पञ्चत्व] १ पाँचपन, पञ्च- रूपता (सुर १, ५) २ मरण, मौत (सुर १, ५; सण; उप पृ १२४)
पंचपुंड :: वि [पञ्चपुण़्ड्र] पाँच स्थानों में पुण्ड्र-चिह्न (सफेदी) वाला (पिंड भा ४३)।
पंचपुल :: पुंन [दे] मत्स्य-बन्धन विशेष, मछली पकड़ने का जाल-विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५ टी)।
पंचम :: वि [पञ्चण] १ पाँचवाँ (उवा) २ पुं. स्वर-विशेष (ठा ७)। °धारा स्त्री [°धारा] अश्व की एक तरह की गति (महा)
पंचमहब्भूइअ :: वि [पाञ्चमहाभूतिक] पाँच महाभूतों को माननेवाला, सांख्यमत का अनुयायी (सूअ २, १, २०)।
पंतमासिअ :: वि [पाञ्चमासिक] १ पाँच मास की उम्र का। २ पाँच मास में पूर्णं होनेवाला (अभिग्रह आदि)। स्त्री. °आ (सम २१)
पंचमिय :: वि [पाञ्चमिक] पाँचवाँ, पंचम (ओघ ६१)।
पंचमी :: स्त्री [पञ्चमी] १ पाँचवीं (प्रमा) २ तिथि-विशेष, पंचमी तिथि (सम २९; श्रा २८) ३ व्याकरण-प्रसिद्ध अपादान विभक्ति (अणु)
पंचयन्न :: देखो पञ्चजण्ण (णाया १, १६; सुपा २६४)।
पंचलोइया :: स्त्री [पञ्चलौकिका] भुजपरिसर्प- विशेष, हाथ से चलनेवाले सर्प-जातीय प्राणी एक जाति (जीव २)।
पंचवडी :: स्त्री [पञ्चवटी] पाँच बट-वृक्षवाला एक शान, जहां श्रीरामचन्द्रजी ने अपने वनवास के समय आवास किया था, इस स्थान का अस्तित्व कई लोग 'नासिक' नगर के पास गोदाबरी नदी के किनारे मानते हैं, जब कि आधुनिक गवेषक लोग बस्तर रजवाड़े के दक्षिणी छोर पर, गोदावरी के किनारे, इसका होना सिद्ध करते है (उत्तर ८१)।
पंचवयण :: पुं [पञ्चवदन] सिंह; मृगराज (सम्मत्त १३८)।
पंचामय :: न [पञ्चामृत] ये पाँच वस्तु — दही; दूध, घी, मधु तथा शक्कर (सिरि २१८)।
पंचाल :: पुं [पाञ्चाल] कामशास्त्र्-प्रणेता एक ऋषि (सम्मत्त १३७)।
पञ्चाल :: पुं. ब. [पञ्चाल, पाञ्चाल] १ देश- विशेष, पञ्जाब देश (णाया १, ८; महा; पणण १) २ पुं. पञ्जाब देश का राजा (भवि) ३ छन्द-विशेष (पिंग)
पंचालिआ :: स्त्री [पञ्चालिका] पुतली, काष्ठादि- निर्मित छोटी प्रतिमा (कप्पू)।
पंचालिआ :: स्त्री [पाञ्चालिका] १ द्रुपुद-राज की कन्या, द्रौपदी (वेणी १५८) २ गान का एक भेद (कप्पू)
पंचावण्ण, पंचवन्न :: स्त्रीन [दे. पञ्चापञ्चाशत्] १ संख्या-विशेष, पचपन, ५५। २ जिनकी संख्या पचपन हो वे (हे २, १७४; दे २, २७; दे २, २७ टि)
पंचावन्न :: वि [दे. पञ्चावञ्चाश] पचपनवाँ (पउम ५५, ६१)।
पंचिंदिय, पंचिद्रिय :: वि [पञ्चेन्द्रिय] १ वह जीव जिसको त्वचा, जीभ, नाक, औँख और कान ये पाँचो इन्द्रियों हों (पणण १; कप्प; जीव १; भवि) २ न. त्वचा आदि पाँच इन्द्रियाँ (धर्म ३)
पंचिया :: स्त्री [पञ्चिका] १ पाँच की संख्यावाला। २ पाँच दिन का (वव १)
पंचुंबर :: स्त्रीन [पञ्चोदुम्बर] वट, पीपल, उदुम्बर, प्लक्ष और काकोदुम्बरी का फल (भवि)। स्त्री. °री (श्रा २०)।
पंचुत्तरसय :: वि [पञ्चोत्तरशततम] एक सौ पाँचवाँ, १०५ वाँ (पउम १०५, ११५)।
पंचेडिय :: वि [दे] विनाशित, 'जेण लोयस्स लोहत्तणं फेडियं दुदुकंदप्पदप्पं च पंचेडियं' (भवि)।
अंचेसु :: पुं [प्रञ्चेषु] कामदेव, कंदर्ष (कप्पू; रंभा)।
पंछि :: पुं [पक्षिन्] पंछी, पक्षी, पखेरू, चिड़िया (उप १०३१ टी)।
पंजर :: पुंन [पञ्जर] १ आचार्यं, उपाध्याय, प्रवर्त्तंक आदि मुनि-गण। २ उन्मार्ग-गमन- निषेध, सन्मार्गं-प्रवर्त्तंन। ३ स्वच्छन्दता-प्रति- षेध (वव) १)
पंजर :: न [पञ्जर] पिंजरा, पिंजड़ा (गउड, कप्पू; अच्चु २)।
पंजरिअ :: पुं [दे] जहाज का कर्मंचारी-विशेष (सिरि ४२७)।
पंजरिय :: वि [पञ्जरित] पिजरे में बंद किया हुआ (गउड)।
पंजल :: वि [प्राञ्जल] सरल, सीधा, ऋजु (सुपा ३९४; वज्जा ३०)।
पंञ्जलि :: पुंस्त्री [°प्राञ्जलि] प्रमाण करने के लिए जोड़ा हुआ कर-संपुट, हस्त-न्यास-विशेष, संयुक्त कर-द्वय (उवा)। °उड पुं [°पुट] अञ्जलि-पुट, संयुक्त कर-द्वय (सम १५१, औप)। °उड, °कड वि [कृतप्राञ्जली] जिसमे प्रणाम के लिए हाथ जोड़ा हो वह (भग; औप)।
पंजिअ :: न [दे] यथेच्छ दान, मुँह-माँगा दान; 'रायकुलेषु भमंतो पंजिअदाणं पगिणहेइ' (सिरि ११८)।
पंड :: वि [पाण्ड्य] देश-विशेष में उत्पन्न। स्त्री. °डी; 'पंडीणं गंडवालीपुलअणचवला' (कप्पू)।
पंड, पंडग, पंडय :: पुं [पण्ड, °क] १ नपुंसक, क्लीब (औघ ४६७; सम १५; पाअ) २ न. मेरु पर्वत का एक बन (ठा २, ३; इक)
पंडय :: देखो पंडव (हे १, ७०)।
पंडर :: पुं [पाण्डर] १ क्षीरबर नामक द्वीप का अधिष्ठाका देव (राज) २ श्वेत वर्णं, सफेद रंग। ३ वि. श्वेतबर्णंवाला, सफेद (कप्प)। °भिक्खु पुं [°भिक्षु] श्वेताम्बर जैन संप्रदाय का मुनि (स ५५२)
पंडर :: देखो पंडुर (स्वप्न ७१)।
पंडरंग :: पुं [दे] रुद्र, महादेव, शिव (दे ६, २३)।
पंडुरंगु :: पुं [दे] ग्रामेश, गाँव का अधिपति (घड्)।
पंडरिय :: देखो पंडुरिअ (भवि)।
पंडव :: पुं [पाण्डव] राजा पाण्डु का पुत्र — १ युधिष्ठिर, २ भीम, ३ अर्जुन, ४ सहदेव और ५ नकुल (णाया १, १६; उप ६४८ टी)
पंडव :: पुं [दे] अश्व-रक्षक (?); 'सिट्ठि सुहडेर्हि तासियपंडववयणेहिं नरवरो रुट्ठो' (सम्मत्त २१६)।
पंडविअ :: वि [दे] जलाद्रं, पानी से भींजा हुआ (दे ६, २०)।
पंडिअ :: वि [पण्डित] १ विद्वान्, शास्त्रों के मर्म को जाननेवाला, बुद्धिमान् तत्वज्ञ; 'कामज्झया णामं गणिया होत्था बावत्तरी- कलापंडिया' (विपा १, २; प्रासू ७४; १२९) २ संयत, साधु (सूअ १, ८, ९) °मरण न [°मरण] साधु का मरण, शुभ मरण-विशेष (भग; पच्च ४९)। °माण वि [°म्मन्य] विद्याभिमानी, निज को पाण्डित माननेवाला, दुर्विदग्ध, अधपका, मूर्ख, अनाड़ी (ओध २७ मा)। °माणि वि [°मानिन्] देखो पूर्वोक्त अर्थ (पउम १०५, २१; उप १३४ टी)। °वीरिअ न [°वीर्य] संयत का आत्म-बल (भग)।
पंडिच्चमाणि :: वि [पाण्डित्यमानिन्] पंडिताई का अभिमान रखनेवाला, विद्वत्ता का घमंड रखनेवाला (चेइय १९)।
पंडिच्च, पंडित्त :: न [पाण्डित्य] पण्डिताई, विद्वत्ता, वैदुष्य (उव; सुर १२, ६८; सुपा २६; रंभा; सं ५७)।
पंडी :: देखो पंड=पाण्ड्य।
पंडीअ :: (अप) देखो पंडिअ (पिंग)।
पंडु :: पुं [पाण्ड] १ नृप-विशेष, पाण्डवों का पिता (उप ६४८ टी; सुपा २७०) २ रोग- विशेष, पाण्ड्ड-रोग (जं १) ३ वर्ण-विशेष, शुक्ल और पीत वर्ण। ४ श्वेत वर्ण। ५ वि. शुक्ल और पीतवर्णवाला (कप्पू; गउड) ६ सफेद, श्वेत; 'सेअं सिअं वलक्खं अवदायं पंड्डं घवलं च' (पाअ; गउड) ७ शिला- विशेष, पाण्डुकम्वला नामक शिला (जं ४; इक)। कंबलसिला स्त्री [°कम्बलशिला] मेरु पर्वत के पाण्डक वन के दक्षिण छोर पर स्थित एक शिला, जिस पर जिन-देवों का जन्माभिषेक किया जाता है (जं ४)। °कंबला स्त्री [°कम्बला] वही पूर्वोक्त अर्थ (ठा २, ३)। °तणय पुं [°तनय] पण्डु- राज का पुत्र, पाण्डव (गउड ४८५)। °भद्द पुं [°भद्र] एक जैन मुनि, जो आर्य संभूति- विजय के शिष्य थे (कप्प)। °मट्टिया, °मत्तिया स्त्री [°मृत्तिका] एक प्रकार की सफेद मिट्टी (जीव १; पण्ण १ — पत्र २५)। °महुरा स्त्री [°मथुरा] स्वनाम-ख्यात एक नगरी, पाण्डवों द्वारा बनाई हुई भारतवर्ष के दक्षिण तरफ की एख नगरी का नाम (णाया १, १६ — पत्र २२५, अंत)। °राय पुं [°राज] राजा पाण्डु, पाण्डवों का पिता (णाया १, १६)। °सुय पुं [°सुत] पाण्डव (उप ६४८ टी)। °सेण पुं [°सेन] पाण्डवों का द्रौपदी से उत्पन्न एक पुत्र (णाया १, १६; उप ६४८ टी)
पंडुइय :: वि [पाण्डुकित] १ श्वेत रंग का किया हुआ (णाया १, १ — पत्र २८)
पंडुग, पंडुय :: पुं [पाण्डक] १ चक्रवर्त्ती का धान्यों की पूर्त्ति करनेवाला एक निधि (राज; ठा २, १ — पत्र ४४; उप ९८६ टी) २ सर्प की एक जाति (आचू १) ३ न मेरु पर्वत पर स्थित एक वन, पाण्डक-वन (सम ९९)
पंडुर :: पुं [पाण्डुर] १ श्वेत वर्ण, सफेद रंग। २ पीत-मिश्रित श्वेत वर्ण। ३ वि. सफेद वर्णवाला। ४ श्वेत-मिश्रित पीत वर्णवाला (कप्प; उव; से ८, ४९)। °ज्जा स्त्री [°।र्या] एक जैन साध्वी का नाम (आवम)। °त्थिय [°।स्थिक] एक गाँव का नाम (आचू १)
पंडुरंग :: पुं [पाण्डुराङ्ग] संन्यासी की एक जाति, भस्म लगानेवाला संन्यासी (अणु २४)।
पंडरग, पंडुरय :: पुं [पाण्डुरक] १ शिव-भक्त संन्यासियों की एक जाति (णाया १, १५ — पत्र १९३) २ देखो पंडुर; 'केसा पंड्डरया हवंति ते' (उत्त ३)
पंडुरिअ, पंडुल्लइय :: वि [पाण्डुरित] पाण्डुर वर्णवाला बना हुआ (गा ३८८; विपा १, २ — पत्र २७)।
पंत :: वि [प्रान्त] १ अन्तवर्त्ती, अन्तिम (भग ९; ३३) २ अशोभन, असुन्दर (आचा; ओघे १७ भा) ३ इन्द्रियों के अननुकूल, इन्द्रिय-प्रतिकूल (पण्ह २, ५) ४ अभद्र, असभ्य, अशिष्ट (ओघ ३६ टी) ५ अपसद, नीच, दुष्ट (णाया १, ८) ६ दरिद्र, निर्धन (ओघ ९१) ७ जीर्ण, फटा-टूटा; 'पंत- वत्थ — ' (बृह २) ८ व्यापन्न, विनष्ट; 'णिप्फावचणागमाई अंत; पंतं च होइ वावन्नं' (बृह १; आचा) ९ नीरस, सूखा (उत्त ८) १० भुक्तावशिष्ट, खा लेने पर बचा हुआ। ११ पर्युषित, बासी (णाया १, ५ — पत्र १११)। °कुल न [°कुल] नीच कुल, जघन्य जाति। (ठा ८)। °चर वि [°चर] नीरस आहार की खोज करनेवाला तपस्वी (पण्ह २, १)। °जीवि वि [°जीविन्] नीरस आहार से शरीर-निर्वाह करनेवाला (ठा ५, १)। °।हार वि [°।हार] रूखा-सूखा आहार करनेवाला (ठा ५, १)
पंताव :: सक [दे] ताड़न करना, मारना। पंतावे (पिंड ३२५)।
पंति :: स्त्री [पङ्क्ति] १ पंक्ति, श्रेणी, कतार (हे १, २५; कुमा; कप्प) २ सेना-विशेष, जिसमें एक हाथी, एक रथ, तीन घोड़े और पाँच पदाती हों ऐसी सेना (पउम ५६, ४)
पंति :: स्त्री [दे] वेणी, केश-रचना (दे ६, २)।
पंतिय :: स्त्रीन [पङ्क्ति] पंक्ति, श्रेणी; 'सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा' (आचा २, ३, ३, २)। स्त्री. 'पंतियाओ' (अणु)।
पंथ :: पुं [पन्थ, पथिन्] मार्ग, रास्ता; 'पंथं किर देसित्ता' (हे १, ८८), 'पंथम्मि पह- परिब्भट्ठं' (सुपा ५५०; हेका ५४; प्रासू १७३)।
पंथ :: पुं [पान्थ] पथिक, सुसाफिर (हे १, ३०; अच्चु ७४)। °कुट्टण न [°कुट्टन] मार- पीटकर मुसाफिरों को लूटना (णाया १, १८)। °कोट्ट पुं [°कुट्ट] वही अर्थ (विपा १, १ — पत्र ११)। °कोट्टि स्त्री [°कुट्टि] वही अर्थ; 'से चोरसेणावई गामघार्य वा जाव पंथकोट्टि वा काउं वच्चति' (णाया १, १८)। पंथग पुं [पान्थक] एक जैन मुनि (णाया १, ५; घम्म ९ टी)।
पंथाण :: देखो पंथ=पन्थ, पथिन्; 'पंथझाणे पंथाणंझाणे' (आउ ११)।
पंथिअ :: पुं [पन्थिक, पथिक] मुसाफिर, पान्थ; 'पंथिअ णं एत्थ संथर' (काप्र १५८; महा; कुमा; णाया १, ८; वज्जा ९०; १५८)।
पंथुच्छुहणी :: स्त्री [दे] श्वशुर-गृह से पहली बार आनीत स्त्री (दे ६, ३५)।
पंपुअ :: वि [दे] दीर्घ, लम्बा (दे ६, १२)।
पंफुल्ल :: वि [प्रफुल्ल] विकसित (पिंग)।
पंफुल्लिअ :: वि [दे] गवेषित, जिसकी खोज की गई हो वह (दे ६, १७)।
पंस :: सक [पांसय्] मलिन करना। पंसेई (विसे ३०५२)।
पंसण :: वि [पांसन] कलंकित करनेवाला, दूषण लगानेवाला (हे १, ७०; सुपा ३४५)।
पंसु :: पुं [पांसु, पांशु] धूली, रज, रेणु (हें २९; पाअ; आचा)। °कीलिय, °क्कीलिय वि [°क्रीडित] जिसके साथ बचपन में पांशु-क्रीड़ा की गई हो वह, बचपन का दोस्त (महा; सण)। °पिसाय पुंस्त्री [°पिशाच] जो रेणु-लिप्त होने के कारण पिशाच के तुल्य मालूम पड़ता हो वह (उत १२)। °मूलिय पुं [°मूलिक] विद्याधर, मनुष्य-विशेष (राज)।
पंसु :: पुं [पर्शु] कुठार, फरसा (हे १, २६)।
पंसु :: देखो पसु (षड्)।
पंसुखार :: पुं [पांशुक्षार] एक तरह का नोन, ऊषर लवण (दस ३, ८)।
पंसुल :: पुं [दे] १ कोकिल, कोयल। २ जार, उपपति (दे ६, ६६) ३ वि. रुद्ध, रोका हुआ (षड्)
पंसुल :: पुं [पांसुल] १ पुंश्चल, परस्त्री-लम्पट (गा ५१०; ५९९) २ वि. धूलि-युक्त (गउड)
पंसुला :: स्त्री [पांसुला] कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (कुमा)।
पंसुलिअ :: वि [पांसुलित] धूलि-युक्त किया हुआ; 'पंसुलिअकरेण' (गउड)।
पंसुलिआ :: स्त्री [दे. पांशुलिका] पार्श्व की हड्डी (पव २५३)।
पंसुली :: स्त्री [पांसुली] कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (पाअ; सुर १५, २; हे २, १७९)।
पकंथ :: देखो पगंथ (आचा १, ६, २)।
पकंथग :: पुं [प्रकन्थक] अश्व-विशेष, एक प्रकार का घोड़ा (ठा ४, ३ — पत्र २४८)।
पकंप :: पुं [प्रकम्प] कम्प, काँपना (आव ४)।
पकंपण :: न [प्रकम्पन] ऊपर देखो (सुपा ६५१)।
पकंपिअ :: वि [प्रकम्पित] प्रकम्प-युक्त, काँपा हुआ (आव २)।
पकंपिर :: वि [प्रकम्पितृ] काँपनेवाला (उप पू १३२)। स्त्री. °री (रंभा)।
पकड :: वि [प्रकृत] १ प्रस्तुत, प्रक्रान्त, उप- स्थित, असली, सच्चा (भग ७, १० — पत्र ३२४; १८, ७ — पत्र ३५०) २ कृत, निर्मित (भग १८, ७)
पकड :: देखो पगड=प्रकट (भग ७, १०)।
पकड्ढ :: देखो पगडढ। कवकृ. पकडि्ढज्ज- माण (औप)।
पकड्ढ :: वि [प्रकृष्ट] १ प्रकर्ष-युक्त। २ खींचा हुआ (औप) पकड्ढण न [प्रकर्षण] आकर्षण, खींचाव (निचू २०)।
पकत्थ :: सक [प्र+कत्थ्] श्लाघा करना, प्रशंसा करना। पकत्थइ (सूअ १, ४, १, १९, पि ५४३)।
पकप्प :: अक [प्र+क्लृप्] १ काम में आना, उपयोग में आना। २ काटना, छेदना। कृ. पकप्प (ठा ५, १ — पत्र ३००)। देखो पगप्प=प्र+क्लृप्।
पकप्प :: सक [प्र+कल्पय्] १ करना, बनाना। २ संकल्प करना; 'वासं वयं विति पकप्पयामे' (सूअ २, ६, ५२)
पकप्प :: पुं [प्रकल्प] १ उत्कृष्ट आचार, उत्तम आचरण (ठा ४, ३) २ अपवाद, बाधक नियम (उप ६७७ टी; निचू १) ३ अध्ययन- विशेष; 'आचारांग' सूत्र का एक अघ्ययन। ४ व्यवस्थापन: 'अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे' (सम २८) ५ कल्पना। ६ प्ररूपणा। ७ विच्छेद, प्रकृष्ट छेदन (निचू १) ८ जैन साधुओं का एक प्रकार का आचार, स्थविर- कल्प (पंचभा) ९ एक महाग्रह, ज्यौतिष देव-विशेष (सुज्ज २०) । °गंथ पुं [°ग्रंन्थ] एक प्राचीन जैन ग्रन्थ, ‘निशीथ’ सूत्र (जीव १) । °जइ पुं [°यति] ‘निशीथ’ अध्ययन का कानकार साधु; ‘धम्मो जिणपन्नत्तो पकप्पजइणा कहेयव्वो’ (धर्म १) । °घर वि [°घर] ‘निशीथ’ अध्ययन का जानकार (निचू २०) । देखो पगप्प = प्रकल्प ।
पकप्पणा :: स्त्री [प्रकल्पना] प्ररूपणा, व्याख्या; ‘परूवण त्ति वा पकप्पण त्ति वा एगट्ठा’ (निचू १)।
पकप्पणा :: स्त्री [प्रकल्पना] कल्पना (चेइय १४१; अज्झ १४२)।
पकप्पधारि :: वि [प्रकल्पधारिन्] ‘निशीथ’ सूत्र का जानकार (वव१)।
पकप्पि :: वि [प्रकल्पिन्] ऊपर देखो (वव १)।
पकप्पिअ :: वि [प्रकल्पित] काटा हुआ, ‘एसा परजुत्तिलया एएण पकंपि (? कप्पि) । आ णेआ’ (अज्झ १०२)।
पकप्पिअ :: वि [प्रकल्पित] १ संकल्पित (द्र २) २ निर्मित (महा) ३ न. पुर्वोपार्जित द्रव्य; ‘ण णो अत्थि पकप्पियं’ (सूअ १, ३, ३, ४)। देखो पगप्पिअ।
पकय :: वि [प्रकृत] प्रवृत्त, कार्य में लगा हुआ (उप ६२०)।
पकर :: सक [प्र + कृ] १ करने का प्रारम्भ करना । २ प्रकर्ष से करना । ३ करना । पकरेइ, पकरंति, पकरेंति (भग; पि ५०९) । वकृ. पकरेमाण (भग) । संकृ. पकरित्ता (भग)
पकर :: देखो पयर = प्रकर (नाट — वेणी ७२)।
पकरणया :: स्त्री [प्रकरणता] करण, कृति (भग)।
पकहिअ :: वि [प्रकथित] जिसमे कहने का प्रारम्भ किया हो वह (उप १०३१ टी; वसु)
पकाम :: न [प्रकाम] १ अत्यर्थ, अत्यन्त (णाया १, १; महा; नाट — शकु २७) २ पुं. प्रकृष्ट अभिलाष (भग ७, ७)
पकाव :: (अप) सक [पच्] पकाना । पकावउ (पिंग; पि ४५४)
पकास :: देखो पयास = प्रकाश (पिंग)।
पकिट्ठ :: देखो पगिट्ठ (राज)।
पकिण्ण :: वि [प्रकीर्ण] १ उप्त, बोया हुआ। २ दत्त, दिया हुआ; ‘जहि पकिणणा (न्ना) विरुहंति पुणणा’ (उत्त १२, १३)। देखो पइण्ण = प्रकीर्ण ।
पकित्तिअ :: वि [प्रकीर्त्तित] वर्णित, कथित (श्रु १०८)।
पकिदि :: देखो पगइ = प्रकृति (प्राकृ १२)।
पकिदि :: (शौ) देखो पइइ = प्रकृति (स्वप्न ६०; अभि ६५)।
पकिन्न :: देखो पकिण्ण (उत्त १२, १३)।
पकिरण :: न [प्रकिरण] देने के लिए फेंकना (वव १)।
पकुण :: देखो पकर = प्र + कृ । पकुणइ (कम्म १, ६०)।
पकुप्प :: अक [प्र + कृप्] क्रोध करना, गुस्सा करना । पकुप्पंति (महानि ४)।
पकुप्पित :: (चूपै) वि [प्रकुपित] क्रुद्ध, कुपित, गुस्साया हुआ (हे ४, ३२६)।
पकुविअ :: ऊपर देखो (महानि ४)।
पकुव्व :: सक [प्र + कृ, प्र + कुर्व्] १ करने का प्रारम्भ करना। २ प्रकर्ष से करना । ३ करना । पकुव्वइ (पि ५०८) । वकृ. पकुव्वमाण (सुर १६, २४; पि ५०८)
पकुव्वि :: वि [प्रकारिन्, प्रकुर्विन्] १ करनेवाला, कर्ता । २ पुं. प्रायश्चित्त देकर शुद्धि कराने में समर्थ गुरु (द्र ४९; ठा ८, पुप्फ ३५६)
पकूविअ :: वि [प्रकूजित] ऊँचे स्वर से चिल्लाया हुआ (उप पृ ३३२)।
पकोट्ठ :: देखो पओट्ठ (राज)।
पकोव :: पुं [प्रकोप] गुस्सा, क्रोध (श्रा १४)।
पक्क :: वि [पक्क] पका हुआ (हे १, ४७; २, ७९; पाअ)।
पक्क :: वि [दे] १ तृप्त, गर्वित । २ समर्थ, पक्का, पहुँचा हुआ (दे ६, ६४; पाअ)
पक्कंत :: वि [प्रक्रान्त] प्रस्तुत, प्रकृत (कुमा २७)।
पक्कग्गाह :: पुं [दे] १ मकर, मगरमच्छ (दे ६, २३) २ पानी में बसनेवाला सिंहाकार जल-जन्तु (से ५, ५७)
पक्कण :: वि [दे] १ असहन, असहिष्णु । २ समर्थ, शक्त (दे ६, ६९) ३ पुं. चाण्डाल (सं ६३) ४ एक अनार्य देश । ५ पुंस्त्री. अनार्य देश-विशेष में रहनेवाली एक मनुष्य- जाति (औप; राज) । स्त्री. °णी (णाया १, १; औप; इक) ६ पुं. एक नीच जाति का घर, शबर-गृह (पंरा ५२) °उल न [°कुल] १ चाराडाल का घर (बृह ३) २ एक गर्हित कुल; ‘पक्कणउले वसंतो सउणी इयरोवि गरहिओ होइ’ (आव ३)
पक्कणि :: वि [दे] १ अतिशय शोभमान, खूब शोभता हुआ । २ भग्न, भांगा हुआ । ३ प्रिववद, प्रियभाषी (दे ६, ६५)
पक्कणिय :: पुंस्त्री [दे] एक अनार्य देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (पराह १, १ — पत्र १४; इक)।
पक्कन्न :: न [पक्कान्न] केवल घी में बनी हुई वस्तु, मिठाई आदि (सुपा ३८७)।
पक्कम :: सक [प्र + क्रम्] प्रकर्ष से समर्थ होना । पक्कमइ (भग १५ — पत्र ६७८)।
पक्कम :: सक [प्र + क्रम्] १ प्रकर्ष से जाना, चला जाना, गमन करना । २ अक. प्रयत्न होना । प्रवृति होना। पक्कमई (उत्त ३, १३) । पक्कमंति (उत्त २७, १४; दस ३, १३); ‘अणुसासरणमेव पक्कमे’ (सूअ १, २, १, ११)
पक्कम :: पुं [प्रक्रम] प्रस्ताव, प्रर्सग (सुपा ३७४)।
पक्कमणी :: स्त्री [प्रक्रमणी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।
पक्कल :: वि [दे] १ समर्थ, शक्त (हे २, १७४; पाअ; सुर ११, १०४; वज्जा ३४)। १ दर्प-युक्त, गर्वित (सुर ११, १०४; गा ११८) ३ प्रौढ; ‘चत्तारि पक्कलबइल्ला’ (गा ८१२; पि ४३९)
पक्कस :: देखो वक्कस (आचा)।
पक्कसावअ :: पुं [दे] १ शरभ। २ व्याघ्र (दे ६, ७५)
पक्काइय :: वि [पक्कीकृत] पकाया हुआ, ‘पक्काइयमाउर्लिगसारिच्छा’ (वज्जा ६२)।
पक्किर :: सक [प्र + कृ] फेंकना । वकृ. ‘छारं च घूलि च कयवरं च उवरि पक्किर- माणा’ (णाया १, २)।
पक्कीलिय :: वि [प्रक्रीडित] जिसने क्रीड़ा का प्रारम्भ किया हो वह (णाया १, १; कप्प)।
पक्केल्लय :: वि [पक्क] पका हुआ (उवा)।
पक्ख :: पुं [पक्ष] वेदिका का एक भाग (राय ८२)।
पक्ख :: पुं [पक्ष] १ पाख, पखवारा, आघा महीना, पन्द्रह दिन-रात (ठा २, ४ — पत्र ८६; कुमा) २ शुक्ल और कृष्ण पक्ष, उजेला और अँघेरा पाख (जीव २; हे २, १०६) ३ पार्श्व, पजिर, कन्धा के नीचे का भाग । ४ पक्षियों का अवयव-विशेष, पंख, पर, पतत्र (कुमा) ५ तर्कशास्त्र- प्रसिद्ध अनुमान-प्रमाण का एक अवयव, साध्यवाली वस्तु (विसे २८२४) ६ तरफ, और । ७ जत्था, दल, टोली । ८ मित्र, सखा । ९ शरीर का आघा भाग । १० तरफदार । ११ तीर का पंख (हे २, १४७) १२ तरफदारी (वव १)। °ग वि [°ग] पक्ष-गामी, पक्ष-पर्यन्त स्थायी (कम्म १, १८)। °पिंड पुंन [°पिण्ड] आसन-विशेष — १ जानु और जाँघ पर वस्त्र बाँध कर बैठना । २ दोनों हाथों से शरीर का बन्धन कर बैठना (उत्त १, १९) । °य पुं [°क] पंखा, ताल- वृन्त (कप्प)। °वंत वि [°वत्] तरफ- दारीवाला (वव १) । °वाइल्ल वि [°पातिन्] पक्षपात करनेवाला, तरफदारी करनेवाला (उप (७२८ टी; धम्म १ टी) । °वाद पुं [°पात] तरफदारी (उप ६७०; स्वप्न ४५) । °वादि (शौ) देखो °वाइल्ल (नाट — विक्र २; मालती ६५) । °वाय देखो °वाद (सुपा २०६; २६३) । °वाय पुं [°वाद] पक्ष-सम्बन्धी विवाद (उप पृ ३१२)। °वाह पुं [°वाह] वेदिका का एक देश-विशेष (जं १) । °।वडिअ वि [°पतित] पक्ष- पाती (हे ४, ४०१) । °।वाइया स्त्री [°।वापिका] होम-विशेष (स ७५७)
पक्खंत :: न [पक्षान्त] अन्यतर इन्द्रिय-जात, ‘अन्नयरं इंदियजायं पक्खतं भण्णइ’ (निचू ६)।
पक्खंतर :: न [पक्षान्तर] अन्य पक्ष, भिन्न पक्ष, दूसरा पक्ष (नाट — महावी २५)।
पक्खंद :: सक [प्र + स्कन्द्] १ आक्रमण करना । २ दौड़कर गिरना । ३ अध्यवसाय करना; ‘पक्खंदे जलियं जो इं घूमकेउं दुरासयं’ (राज), ‘अगर्णि व पक्खंद पयंगसेणा’ (उत्त १२, २७)
पक्खंदण :: न [प्रस्कन्दन] १ आक्रमण । २ अध्यवसाय । ३ दौड़कर गिरना (११)
पक्खंदोलग :: पुं [पक्ष्यन्दोलक] पक्षी का हिडोला, झूला (राय ७५)।
पक्खज्जमाण :: वि [प्रखाद्यमान] जो खाया जाता हो वह (सूअ १, ५, २)।
पक्खडिअ :: वि [दे] प्रस्फुरित, विजृम्मित, समुत्पन्न; ‘पक्खडिए सिहिपडित्थरे विरहे’ (दे ६, २०)
पक्खर :: सक [सं + नाहय्] संनद्ध करना, अश्व को कवच से सज्जित करना । पक्खरेह (सुपा २८८) । संकृ पक्खरिअ (पिंग)।
पक्खर :: पुं [प्रक्षर] क्षरण, टपकना (कपूंर २६)।
पक्खर :: पुं [दे] जहाज की रक्षा का एक उप- करण, सामग्री (सिरि ३८७)।
पक्खर :: न [दे] पाखर, अश्व-संनाह, घोड़े का कवच (कुप्र ४४९; पिंग)।
पक्खरा :: स्त्री [दे] पाखर, अश्व-संनाह (दे ६, १०); ‘ओसारिअपक्खरे (विपा १, २)।
पक्खरिअ :: वि [संनद्ध] कवचित, संनद्ध, कवच से सज्जित (अश्व) (सुपा ५०२; कुप्र १२०; भवि)।
पक्खल :: अक [प्र + स्खल्] गिरना, पड़ना, स्खलित होना । पक्खलइ (कस) । वकृ. पक्खलंत, पक्खलमाण (दस ५, १; पि ३०६; नाट — मृच्छ १७; बृह ६)।
पक्खाउज्ज :: न [पक्षातोद्य] पखाउज, पखावज, एक प्रकार का बाजा, मृदंग (कप्पू)।
पक्खाय :: वि [प्रख्यात] प्रसिद्ध, विश्रुत (प्रारू)।
पक्खारिण :: पुं [प्रक्षारिण] १ अनार्य-देश विशेष । २ पुंस्त्री, उस देश का निवासी मनुष्य । स्त्री. °णी (राय)
पक्खाल :: सक [प्र + क्षालय्] पखारना, शुद्ध करना, धोना । कवकृ. पक्खालिज्जमाण (णाया १, ५) । संकृ पक्खालिअ, पक्खा- लिऊण (नाट — चैत ४०; महा)।
पक्खालण :: न [प्रक्षालन] पखारना, धोना (स ५२; औप)।
पक्खालिअ :: वि [प्रक्षालित] पखारा हुआ, धोया हुआ (औप; भवि)।
पक्खासण :: न [पक्ष्यासन] आसन-विशेष, जिसके नीचे अनेक अकार के पक्षियों का चित्र हो ऐसा आसन (जीव ३)।
पक्खि :: पुंस्त्री [पक्षिन्] पाखी, पक्षी (ठा ४, ४; आचा, सुपा ५९२) । स्त्री. °णी (श्रा १४) । °बिराल पृंस्त्री [°बिराल] पक्षि- विशेष (भग १३, ९) । स्त्री. °ली (जीव १) । °राय पुं [°राज] गरुड़ (सुपा २१०)। नीचे देखो।
पक्खिअ :: पुंस्त्री [पक्षिक] १ ऊपर देखो (श्रा २८) २ वि. पक्षपाती, तरफदारी करनेवाला; ‘तप्पक्खिओ पुणो अण्णो’ (श्रा १२)
पक्खिअ :: वि [पाक्षिक] स्वजन, ज्ञाति का (पव २६८)।
पक्खिअ :: वि [पाक्षिक] १ पाख में होनेवाला । २ पक्ष से सम्बन्ध रखनेवाला, अर्ध- मास-सम्बन्धी (कप्प; धर्म २) ३ न. पर्व- विशेष, चतुर्दशी (लहुअ १६; द्र ४५)। °।पक्खिअ पुं [°।पक्षिक] नपुंसक-विशेष, जिसको एक पाख में तिव्र विषयाभिलाष होता हो और एक पक्ष में अल्प, ऐसा नपुंसक (पुप्फ १२७)
पक्खिकायण :: न [पाक्षिकायन] गोत्र-विशेष, जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है (ठा ७)।
पक्खिण :: देखो पक्खि; ‘जह पक्खिणाण गरुडो’ (पउम १४, १०४)।
पक्खिणी :: देखो पक्खि ।
पक्खित्त :: वि [प्रक्षिप्त] फेंका हुआ (महा; पि १८२)।
पक्खिनाह :: पुं [पक्षिनाथ] गरुड पक्षी धर्मवि ८४)।
पक्खिप्प, पक्खिप्पमाण :: देखो पक्खिव।
पक्खिव :: सक [प्र + क्षिप्] १ र्फेकना, फेंक देना । २ छोड़ना, त्यागना । ३ डालना । पक्खिवइ (महा; कप्प) । पक्खिवइ (महा; कप्प) । पक्खिवह, पक्खिवेज्जा (आचा २, ३, २, ३) । कवकृ. पक्खिप्पमाण (णाया १, ८ — पत्र १२६; १४७) । संकृ. पक्खिऊण, पक्खिप्प (महा; सूअ १, ५, १; पि ३१९) । कृ. पक्खिवेयव्व (उप ६४८ टी)। प्रयो. वकृ. पक्खिवावेमाण (णाया १, १२)
पक्खीण :: वि [प्रक्षीण] अत्यन्त क्षीण; ‘अहं पक्खीणविभवो’ (महा)।
पक्खुडिअ :: वि [प्रखण्डित] खण्डित, अ- संपूर्ण (सुपा ११९)।
पक्खुब्भ :: अक [प्र + क्षुभ्] १ क्षोभ पाना । २ वृद्ध होना, बढ़ना । वकृ. पक्खु- ब्भंत (से २, २४)
पक्खुब्भंत :: देखो पक्खोभ।
पक्खुभिय :: वि [प्रक्षुभित] क्षोभ प्राप्त, प्रक्षुब्ध (औप)।
पक्खेव :: पुं [प्रक्षेप] शास्त्र में पीछे से किसी के द्वारा डाला या मिलाया हुआ वाक्य (धर्मसं १०११)। °।हार पुं [°।हार] कवलाहार (सूअनि १७१)।
पक्खेव, पक्खेवग :: पुं [प्रक्षेप, °क] १ क्षेपण, फेकना; 'बहिया पोग्गलपक्खेवे' (उवा) २ पूर्त्ति करनेवाला द्रव्य, पूर्त्ति के लिए पीछे से डाली जाती वस्तु; 'अपक्खेव- गस्स पक्खेवं दलयइ' (णाया १, १५ — पत्र १९३)
पक्खेवण :: न [प्रक्षेपण] क्षेपण, प्रक्षेप (औप)।
पक्खेवय :: देखो पक्खेवग (बृह १)।
पक्खोड :: सक [वि+कोशय्] १ खोलना। २ फैलाना। पक्खोडइ (हे ४, ४२)। संकृ. पक्खोडिऊण (सुपा ३३८)
पक्खोड :: सक [शद्] १ कँपाना। २ झाड़ कर गिराना। पक्खोडइ (हे ४, १३०)। संकृ. पक्खोडिय (उप ५८४)
पक्खोड :: सक [प्र + छादय्] ढकना, आच्छादन करना । संकृ. पक्खोडिय (उप ५८४)।
पक्खोड :: सक [प्र + स्फोटय] १ खूब झाड़ना । २ बारम्बार झाड़ना । पक्खोडिज्जा; वकृ. पक्खोडंन (दस ४, १) । प्रयो. पक्खोडा- विज्जा (दस ४, १)।
पक्खोड :: पुं [प्रस्फोट] प्रमार्जन, प्रतिलेखन की क्रिया-विशेष (पव २)।
पक्खोडण :: न [शदन] धूनन, कँपाना (कुमा)।
पक्खोडिअ :: बि [शदित] निर्झाटित. झाड़ कर गिराया हुआ (दे ६, २७; पाअ)।
पक्खोडिय :: देखो पक्खोड = शद्, प्र + छादय्।
पक्खोभ :: सक [प्र + क्षोभय्] क्षुब्ध करना, क्षोभ उत्पन्न कर हिला देना । कवकृ. पक्खुब्भंत (से २, २४)।
पक्खोलण :: न [शदन] १ स्खलित होनेवाला। २ वि. रुष्ट होनेवाला (राज)
पखम :: /?/(पै) देखो = पक्ष्मन्; ‘पखमलणअणं’ (प्राकृ. १२४)।
पखोड :: देखो पक्खोड = प्रस्फोट (पव २)।
पखल :: वि [प्रखर] प्रचण्ड, तीव्र, तेज (प्राप्र)।
पगइ :: स्त्री [प्रकृति] १ प्रकृति, स्वभाव (भग; कम्म १, २; सुर १४, ६९, सुपा ११०) २ प्रकृत अर्थ, प्रस्तुत अर्थ; ‘पडिसेहदुगं पगइं गमेइ’ (विसे २५०२) ३ प्राकृत लोक, साधा- रण जन-समूह; ‘दिन्नमुद्धारे बहुदव्वं पगईणं’ (सुपा ५६७) ४ कुम्भकार आदि अठारह मनुष्य-जातियाँ; अट्ठारसपगइब्भंतराण को सो न जो एइ’ (आक १२) ५ कर्मों का भेद (सम ९) ६ सत्व, रज और तम की साम्या- वस्था । ७ बलदेव के एक पुत्र का नाम (राज) °बंध पुं [°बन्ध] कर्म-पुदगलों में भिन्न- शक्तियों का पैदा होना (कम्म १, २) । देखो पगडि।
पगंठ :: पुं [प्रकण्ठ] १ पीठ-विशेष । २ अन्त का अवनत प्रदेश (जीव ३)
पगंथ :: सक [प्र + कथय्] निन्दा करना; ‘अलियं पगं(कं)थे अदुवा पगं(कं)थे’ (आचा)
पगड :: वि [प्रकट] व्यक्त, खुला, स्पष्ट, प्रत्यक्ष, (पि २१९)।
पगड :: वि [प्रकृत] प्रविहित, विनिर्मित (उत्त १३)।
पगड :: पुं [प्रगर्त्त] बड़ा गड्ढा या गड़हा (आचा २, १०, २)।
पगडण :: न [प्रकटन] प्रकाश करना, खुला करना (णंदि)।
पगडि :: स्त्री [प्रकृति] १ भेद; प्रकार (भग) २ — देखो पगइ (सम ५९; सुर १४, ६८)
पगडीकय :: वि [प्रकटीकृत] व्यक्त किया हुआ, स्पष्ट किया हुआ (सुपा १८१)।
पगड्ढ :: सक [प्र + कृष्] खींचना । कवकृ. पगड्ढिज्जमाण (विपा १, १)।
पगप्प :: देलो पकप्प = प्र + कल्पय् । संकृ. पगप्पएत्ता (सूअ २, ६, ३७)।
पगप्प :: देखो पकप्प = प्र + वलृप् (सूअ १, ८, ५)।
पगप्प :: वि. [प्रकल्प] १ उत्पन्न होनेवाला, प्रादुर्भूत होनेवाला; ‘बहुगुणप्पगप्पाइं कुज्जा अतसमाहिए’ (सूअ १, ३, ३, १९) । देखो पकप्प = प्रकल्प (आचा)
पगप्पिअ :: वि [प्रकल्पित] प्ररूपित, कथित; ‘ण उ एयाहिं दिट्टीहिं पुव्वमासि पगप्पियं’ (सूअ १, ३, ३, १९)। देखो पकप्पिअ ।
पगप्पित्तु :: वि [प्रकल्पयितृ, प्रकर्तयितृ] काटनेवाला, कतरनेवाला; ‘हंता छोत्ता पगब्भि- (?प्पि) त्ता आयसायाणुणमिणो’ (सूअ १, ८, ५)।
पगटभ :: अक [प्र + गल्भ्] १ घृष्टता करना, धृष्ट होना । २ समर्थ होना । पगब्भइ, पगब्भई (आचा, सूअ १, २, २, २१; १, २, ३, १०; उत्त ५, ७)
पगब्भ :: वि [प्रगल्भ] धृष्ट, ढीठ (पउम ३३, ९९) । २ समर्थ (उप २६४ टी)
पगब्भ :: न [प्रागल्म्य] धृष्टता, ढीठाई; ‘पगब्भि पाणे बहुणंतिवाती’ (सूअ १, ७, ८)।
पगब्भणा :: स्त्री [प्रगल्भना] प्रगल्भता, घृष्टता (सूअ १, १०, १७)
पगब्भा :: स्त्री [प्रगल्भा] भगवान् पार्श्वनाथ की एक शिष्या (आवम)।
पगब्भिअ :: वि [प्रगल्भित] घृष्टता-युक्त (सूअ १, १, १, १३; १, २, ३, ४)।
पगब्भित्तु :: वि [प्रगल्भितृ] काटनेवाला, ‘हंता छेत्ता पगभित्ता’ (सूअ १, ८, ५)।
पगय :: न [प्रकृत] १ प्रस्ताव, प्रसंग (सूअनि ४७) २ पुं. गाँव का अधिकारी (पध २६८)
पगय :: वि [प्रगत] संगत (श्रावक १८९)।
पगय :: वि [प्रकृत] प्रस्तुत, अधिकृत (विसे ८३३; उप ४७९)।
पगय :: वि [प्रगत] १ प्राप्त (राज) २ जिसने गमन करने का प्रारम्भ किया हो वह ; ‘मुणि- णोवि जहाभिमयं पगया पगएण कज्जेण (सुपा २३५) ३ न. प्रस्ताव, अधिकार (सुअ १, ११; १५)
पगय :: न [दे] पग, पाँव, पैर; ‘एत्थंतरम्मि लग्गो चंडमारुओ । तेण भग्गो तुरयपगयमग्गो’ (महा)।
पगर :: पुं [प्रकर] समूह, राशि (सुपा ६५५)
पगरण :: न [प्रकरण] १ अधिकार, प्रस्ताव । २ ग्रंथ-खराड-विशेष, ग्रंथांश-विशेष (विसें १११५) ३ किसी एक विषय को लेकर बनाया हुआ छोटा ग्रन्थ (उव)
पगरिअ :: वि [प्रगलित] गलित्कुष्ठ, कुष्ठ-विशेष की बीमारीवाला (पिंड ५७२)।
पगरिस :: पुं [प्रकर्ष] १ उत्कर्ष, श्रेष्ठता (सुपा १०६) २ आधिक्य, अतिशय (सुर ४, १९९)
पगरिसण :: न [प्रकर्षण] ऊपर देखो (यति १९)।
पगल :: अक [प्र + गल्] झरना, टपकना । वकृ. पगलंत (विपा १, ७; महा)।
पगहिय :: वि [प्रगृहीत] ग्रहण किया हुआ, उपात्त (सुर ३, १६७)।
पगाइय :: वि [प्रगीत] जिसने गाने का प्रारंभ किया हो वह; ‘पगाइयाइं मंगलमंतेउराइं’ (स ७३६)।
पगाढ :: वि [प्रगाढ] अत्यन्त गाढ़ (विपा १, १; सुपा ५३०)।
पगाम :: देखो पकाम (आचा; श्रा १४; सुर ३, ५७; कुप्र ३१५)।
पगामसो :: अ [प्रकामम्] अत्यन्त, अतिशय; 'पगामसो भुच्चा' (उत १७, ३)।
पगार :: पुं [प्रकार] १ भेद (आचू १) २ रीति; 'एएण पगारेण सव्वं, दव्वं दवाविओ' (महा) ३ आदि, वगैरह, प्रभृति (सूअ १, १३)
पगास :: देखो पयास=प्र+काशय् । वकृ. पगासेंत (महा)।
पगास :: पुं [प्रकाश] १ प्रभा, दीप्ति, चमक (णाया १, १); 'एगं महं नीलुप्पलगवलगुलि- यअयसिकुसुमप्पग्गासं असिं सुरधारं गहाय' (उवा) २ प्रसिद्धि, ख्याति (सूअ १, ६) ३ आविर्भाव, प्रादुर्भाव। ४ उद्द्योत, आतप (राज) ५ क्रोघ, गुस्सा; 'छन्नं च पसंस णो करे न य उक्कोस पगास माहणे' (सूअ १, २, २९) ६ वि. प्रकट, व्यक्त (निचू १)
पगासग :: देखो पगासय (राज)।
पगासण :: देखो पयासण (औप)।
पगासणया :: स्त्री [प्रकाशनता] प्रकाश, आलोक (ओघ ५५०)।
पगासणा :: स्त्री [प्रकाशना] प्रकटीकरण (उत्त ३२, २)।
पगासय :: वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला (विसे ११५५)।
पगासिय :: वि [प्रकाशित] उद्द्योतित, दीप्त; 'से सूरियस्स अब्भुग्गमेणं मग्गं वियाणाइ पगासियंसि' (सूअ १, १४, १२)।
पगिइ :: देखो पगइ (संबोध ३६)।
पगिज्झ :: अक [प्र+गृध्] आसक्ति का प्रारम्भ होना। पगिज्झिज्जा (उत्त ८, १९; सुख ८, १९)।
पगिज्झिय :: देखो पगिण्ह (कस; औप; पि ५९१)।
पगिट्ठ :: वि [प्रकृष्ट] १ प्रधान, मुख्य (सुपा ७७) २ उत्तम, श्रेष्ठ (कुप्र २०; सुपा २२६)
पगिण्ह :: सक [प्र+ग्रह्] १ ग्रहण करना। २ उठाना। ३ धारण करना। ४ करना। संकृ. पगिण्हित्ता, पगिण्हित्ताणं, पगि- ज्झिय (पि ५८२; ५८३; औप; आचा २, ३, ४, १, कस)
पगीअ :: वि [प्रगीत] १ गाया हुआ (पउम ३७, ४८) २ जिसकी गीत गाई गई हो वह (उप २११ टी)
यगीय :: वि [प्रगीत] जिसने गाने का प्रारम्भ किया हो वह (राय ४६)।
पगुण :: देखो पउण (सूअ १, १, २)।
पगुणीकर :: सक [प्रगुणी+कृ] प्रगुण करना, तय्यार करना, सज्ज करना। कवकृ. पगु- णीकीरंत (सुर १३, ३१)।
पगे :: अ [प्रगे] सुबह, प्रभात काल (सुर ७, ७८; कुप्र १५५)।
पग्ग :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। पग्गइ (षड्)।
पग्गल :: वि [दे] पागल, उन्मत्त (प्राकृ. १०६)।
पग्गह :: पुं [प्रग्रह] खाने के लिए उठाया हुआ भोजन-पान (सूअ २, २, ७३)।
पग्गह :: पुं [प्रग्रह] १ उपधि, उपकरण (ओघ ६६६) २ लगाम (से ९, २७; १२, ९९) ३ पशुओं को नाक में लगाई जाती डोरी, नाक की रस्सी, नाथ। ४ पशुओं को बाँधने की डोरी, रस्सी, पगहा (णाया १ ३; उवा) ५ नायक, मुखिया (ठा १) ६ ग्रहण, उपादान। ७ योजन, जोड़ना; 'अंजलिपग्ग- हेणं' (भग)
पग्गहिअ :: वि [प्रगृहीत] १ अभ्युपगत, सम्यक् स्वीकृत (अनु ३) २ प्रकर्ष से गृहीत (भग; औप) ३ उठाया हुआ (धर्म ३; ठा ९)
पग्गहिय :: वि [प्रग्रहिक] ऊपर देखो (उवा)।
पग्गिम, पग्गिम्व :: (अप) अ [प्रायस्] प्राय: बहुधा (षड्; हे ४, ४१४, कुमा)।
पग्गेज्ज :: पुं [दे] निकर, समूह (दे ६, १५)।
पघंस :: सक [प्र+घृष्] फिर-फिर घिसना। पघंसेज्ज (निचू १७)। प्रयो. वकृ पघं सावंत (निचू १७)।
पघंसण :: न [प्रघर्षण] पुन: पुन: घर्षण, 'एक्कं दिणं आघंसणं, दिणे दिणे पघंसणं' (निचू ३)।
पघोल :: अक [प्र+घूर्णय्] मिलना, संगत होना। वकृ. 'कंठपघोलंतपंचमुग्गारो' (कुप्र २२६)।
पघोस :: पुं [प्रघोष] उच्चै: शब्द-प्रकाश; उद्घोषणा (भवि)।
पघोसिय :: वि [प्रघोषित] घोषित किया हुआ, उच्च स्वर से प्रकाशित किया हुआ (भवि)।
पच :: सक [पच्] पकाना। पचइ, पचए, पचंति; पचसि, पचसे, पचह, पचत्थ; पचामि, पचामो, पचामु, पचाम, पचिमो, पचिमु (संक्षि ३०; पि ४३६, ४५५)। कवकृ. पच्चमाण; 'नरए नेरइयाणं अहोनिर्सि पच्च- माणाणं' (सुर १४, ४९; सुपा ३२८)।
पच :: (अप) देखो पंच। °आलीस, °तालीस स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] १ संख्या-विशेष, पैतालीस, ४५। २ पैतालीस संख्या जिनकी हो वे (पि २७३; ४४५; पिग)
पचंकमणग :: न [प्रचङ्क्रमण, °क] पाँव से चलना (औप)।
पचंकमावण :: न [प्रचङ्क्रमण] पाँव से संचारण, पाँव से चलाना (औप १०५ टि)।
पचंड :: देखो पयंड (वव ८)।
पचलिय :: देखो पयलिय=प्रचलित (औप)।
पचार :: सक [प्र+चारय्] चलाना। पचा- रेइ (सिरि ४३५)।
पचार :: पुं [प्रचार] विस्तार, फैलाव (मोह २०)। देखो पयार=प्रचार।
पचाल :: सक [प्र+चालय्] अतिशय चलाना, खूब चलाना। वकृ. पचालेमाण (भग १७, १)।
पचिय :: वि [प्रचित] समृद्ध (स्वप्न ६९)।
पचीस :: (अप) स्त्रीन [पञ्चविंशति] १ पचीस, संख्या-विशेष, बीस और पाँच, २५। २ जिनकी संख्या पचीस हो वे (पिंग; पि २७३)
पचुन्निय :: वि [प्रचूणित] चूर-चूर किया हुआ (सुर २, ८७)।
पचेलिम :: वि [पचेलिम] पक्व, पका हुआ; 'सइमहुरपचेलिमफलेहि' (सुपा ८३)।
पचोइअ :: वि [प्रचोदिंत] प्रेरित (सूअ १, २, ३)।
पच्चइग :: देखो पच्चइय=प्रत्ययिक (सुख २, १७)।
पच्चइय :: वि [प्रत्ययिक] १ विश्वासी, विश्वासवाला (णाया १, १२) २ ज्ञानवाला, प्रत्ययवाला । ३ न. श्रु त-ज्ञान, आगम-ज्ञान (विसे २१३९)
पच्चइय :: वि [प्रत्ययित] विश्वासवाला, विश्व- स्त (महा; सुर १६, १६६)।
पच्चइय :: वि [प्रात्ययिक] प्रत्यय से उत्पन्न, प्रतीति से संजात (ठा ३, ३ — पत्र १५१)।
पच्चंग :: न [प्रत्यङ्ग] हर एक अवयव (गुण १५; कप्पू)
पच्चंगिरा :: स्त्री [प्रत्यङ्गिरा] विद्यादेवी-विशेष, ‘ईसिवियसंतवयणा पभणइ पच्चंगिरा अहं विज्जा’ (सुपा ३०६)।
पच्चंत :: पुं [प्रत्यन्त] १ अनार्यदेश (प्रयौ १९) २ वि. समीपस्थ देश, संनिकृष्ट प्रान्त भाग (सुर २, २००)
पच्चंतिग :: देखो पच्चंतिय = प्रत्यन्तिक (आचा २, ३, १, ५)।
पच्चंतिय :: वि [प्रत्यन्तिक] समीप-देश में स्थित (उप २११ टी)।
पच्चंतिय :: वि [प्रात्यन्तिक] प्रत्यन्त देश से आया हुआ (धम्म ९ टी)।
पच्चक्ख :: न [प्रत्यक्ष] १ इन्द्रिय आदि की सहायता के बिना ही उत्पन्न होनेवाला ज्ञान (विसे ८९) २ इन्द्रियों से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान (ठा ४, ३) ३ वि. प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय; ‘पच्चक्खाओ अणंगो एगो तरुणो महाभागो’ (सुर ३, १७१)
मच्चक्ख, पच्चक्खा :: सक [प्रत्या + ख्या] त्याग करना, त्याग करने का नियम करना । पच्चक्खाइ (भग) । वक. पच्चक्ख- माण, पच्चक्खाएमाण (पि ५६१; उवा । संकृ. पच्चक्खाइत्ता (पि ५८२) । कृ. पच्चक्खेय (आव ६)।
पच्चक्खाण :: न [प्रत्याख्यान] १ परित्याग करने की प्रतिज्ञा (भग; उवा) २ जैन ग्रन्थांश-त्रिशेष, नववाँ पूर्व-ग्रन्थ (सम २६) ३ सर्व सावद्य — निद्य कर्मो से निवृत्ति (कम्म १, १७) । °।वरण पुं [°।वरण] कषाय-विशेष, सावद्य-विरति का प्रतिबन्धक क्रोध-आदि (कम्म १, १७)
पच्चक्खाणि :: वि [प्रत्याख्यानिन्] त्याग की प्रतिज्ञा करनेवाला (भग ६, ४)।
पच्चक्खाणी :: स्त्री [प्रत्यख्यानी] भाषा-विशेष, प्रतिषेधवचन (भग १०, ३)।
पच्चक्खाय :: वि [प्रत्याख्यात] त्यक्त, छोड़ दिया हुआ (णाया १, १; भग; कप्प)।
पच्चक्खायय :: वि [प्रत्याख्यायक] त्याग करनेवाला, ‘भत्तपच्चक्खायए’ (भग १४, ७)।
पच्चक्खाव :: सक [प्रत्या + ख्यापय्] त्याग कराना किसी विषय का त्याग करने की प्रतिज्ञा कराना । वकृ. पच्चक्खाविंत (आव ६)
पच्चक्खि :: वि [प्रत्यक्षिन्] प्रत्यक्ष ज्ञानवाला (वव १)।
पच्चक्खिय :: देखो पच्चक्खाय (सुपा ६२४)।
पच्चक्खीकर :: सक [प्रत्यक्षी + कृ] प्रत्यक्ष करना, साक्षात् करना । भवि. पच्चक्खीक- रिस्सं (अभि १८८)।
पच्चक्खीकिद :: /?/(शौ) वि [प्रत्यक्षीकृत] प्रत्यक्ष किया हुआ, साक्षात् जाना हुआ (पि ४९)।
पच्चक्खीभू :: अक [प्रत्यक्षी + भू] प्रत्यक्ष होना, साक्षात् होना । संकृ. पच्चक्खीभूय (आवम)।
पच्चक्खेय :: देखो पच्चक्खा।
पच्चग्ग :: वि [प्रत्यग्र] १ प्रधान, मुख्य (स २४) २ श्रेष्ठ, सुन्दर (उप ९८६ टी; सुर १०, १५२) ३ नवीन, नया (पाअ)
पच्चच्छिम :: देखो पच्चत्थिम (राज; ठा २, ३ — पत्र ७९)।
पच्चच्छिमा :: देखो पच्चत्थिमा (राज)।
पच्चच्छिमिल्ल :: वि [पाश्चात्य] पश्चिम दिशा में उत्पन्न, पश्चिम दिशा-सम्बन्धी (सम ६६; पि ३९५)।
पच्चच्छिमुत्तरा :: देखो पच्चत्थिमुत्तरा (राज)।
पच्चड :: अक [क्षर्] झरना, टपकना । पच्चडइ (हे ४, १७३) । वकृ. पच्चडमाण (कुमा)
पच्चड्ड :: सक [गम्] जाना, गमन करना । पच्चड्डइ (हे ४, १६२)।
पच्चड्डिअ :: वि [क्षरित] झरा हुआ, टपका हुआ (हे २, १७४)
पच्चड्डिया :: स्त्री [दे. प्रत्याड्डिका] मल्लों का एक प्रकार का करण (विसे ३३५७)।
पच्चणीय :: वि [प्रत्यनीक] विरोधी, प्रतिपक्षी, दुश्मन (उप १४९ टी; सुपा ३०७)।
पच्चणुभव :: सक [प्रत्यनु + भू] अनुभव करना । वकृ. पच्चणुभवमाण (णाया १, २)।
पच्चणुहो :: देखो पच्चणुभव । पच्चणुहोइ (उत्त १३, २३)।
पच्चत्त :: वि [प्रत्यक्त] जिसका त्याग करने का प्रारम्भ किया गया हो वह (उप ८२८)।
पच्चत्तर :: न [दे] चाटु, खुशामद (दे ६, २१)।
पच्चत्थरण :: न [प्रत्यास्तरण] बिछौना (पि २८५) । देखो पल्हत्थरण।
पच्चत्थि :: वि [प्रत्यर्थिन्] प्रतिपक्षी, विरोधी, दुश्मन (उप १०३१ टी; पाअ; कुप्र १४१)।
पच्चत्थिम :: वि [पाश्चात्य, पश्चिम] १ पश्चिम दिशा तरफ का, पश्चिम का । २ न. पश्चिम दिशा; ‘पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे जोयणसाह- स्सियं खेत्तं जाणइ, पासइ; एवं दक्खिणेणं, पच्चत्थिमेणं’ (उवा; भग; आचा. ठा २, ३)
पच्चत्थिमा :: स्त्री [पश्चिमा] पश्चिम दिशा (ठा १० — पत्र ४७८; आचा)।
पच्चत्थिमिल्ल :: वि [पाश्चात्य] पश्चिम दिशा का (विपा १, ७; पि ५९५; ६०२)।
पच्चत्थिमुत्तरा :: स्त्री [पश्चिमोत्तरा] पश्चिमोत्तर दिशा, वायव्य कोण (ठा १० — पत्र ४७८)।
पच्चत्थुय :: वि [प्रत्यास्तृत] आच्छादित, ढका हुआ (पउम ९४; ९६; जीव ३) । २ बिछाया हुआ (उप ६४८ टी)
पच्चद्ध :: न [पश्चार्ध] पिछला आधा, उत्तरार्ध (गउड)।
पच्चद्धचक्कवट्टि :: पुं [प्रत्यर्धचक्रवर्तिन्] वासु- देव का प्रतिपक्षी राजा, प्रतिवासुदेव (ती ३)।
पच्चप्पण :: न [प्रत्यर्पण] वापस देना, लौटा देना (विसे ३०५७)।
पच्चप्पिण :: सक [प्रति + अर्पय्] १ वापस देना, लौटाना । २ सौंपे हुए कार्य को करके निवेदन करना । पच्चप्पिणइ (कप्प) । कर्म. पच्चप्पिणिज्जइ (पि ५५७) । वकृ. पच्चप्पिणमाण (ठा ५, २ — पत्र ३११)। संकृ. पच्चप्पिणित्ता (पि ५५७)
पच्चबलोक्क :: वि [दे] आसक्त-चित्त, तल्लीन- मनस्क (दे ६, ३४)।
पच्चब्भास :: पुं [प्रत्याभास] निगमन, प्रत्युच्चारण (विसे २९३२)।
पच्चभिआण :: देखो पच्चभिजाण । पच्चभिआणादि (शौ) पि १७०, ५१०)।
पच्चभिआणिद :: /?/(शौ) देखो पच्चभिजाणिअ (पि ५६५)।
पच्चभिजाण :: सक [प्रत्यभि + ज्ञा] पहि- चानना, पहिचान लेना । पच्चभिजाणइ (महा)। वकृ पच्चभिजाणमाण (णाया १, १६) । संकृ. पच्चभिजाणिऊण (महा)।
पच्चभिजाणिअ :: वि [प्रत्यभिज्ञात] पहि- चाना हुआ (स ३९०)।
पच्चभिणाण :: न [प्रत्यभिज्ञान] पहिचान (स २१२; नाट — शकु ८४)।
पच्चभिन्नाय :: देखो पच्चभिजाणिअ (स १००; सुर ६, ७९; महा)।
पच्चमाण :: देखो पच = पच्।
पच्चय :: पुं [प्रत्यय] १ प्रतीति, ज्ञान, बोध (उव; ठा १ ; विसे २१४०) २ निर्णय, निश्चय (विसे २१३२) ३ हेतु, कारण (ठा २, ४) ४ शपथ, विश्वास उत्पन्न करने के लिए किया या कराया जाता तप्त-माष आदि का चर्वण वगैरह (विसे २१३१) ५ ज्ञान का कारण । ६ ज्ञान का विषय, ज्ञेय पदार्थ (राज) ७ प्रत्यय-जनक, प्रतीति का उत्पाक (विसे २१३१; आवम) ८ विश्वास, श्रद्धा । ९ शब्द, आवाज । १० छिद्र, विवर । ११ आधार, आश्रय । १२ व्याकरण-प्रसिद्ध प्रकृति में लगता शब्द-विशेष (हे २, १३)
पच्चल :: वि [दे] १ पक्का, समर्थ, पहुँचा हुआ (दे ६, ६९; सुपा ३४; सुर १, १४; कुप्र ६९; पाअ) २ असहन, असहिष्णु (दे ६, ६९)
पच्चलिउ, पच्चल्लिउ :: (अप) अ [प्रत्युत] वैपरीत्य, वरञ्च, वरन् (हे ४, ४२०)।
पच्चवणद :: /?/(शौ) वि [प्रत्यवनत] नमा हुआ, ‘एस मं कोवि पच्चवणदसिरोहरं उच्छुं विअ तिण्ण (?) भंगं करेदि’ (अभि २२४)।
पच्चवत्थय :: वि [प्रत्यवस्तृत] १ बिछाया हुआ। २ आच्छादित (आवम)
पच्चवत्थाण :: न [प्रत्यवस्थान] १ शङ्का- परिहार, समाधान (विसे १००७) २ प्रतिवचन, खण्डन (बृह १)
पच्चवर :: न [दे] मुसल, एक प्रकार की मोटी लकड़ी जिससे चावल आदि अन्न कूटे जाते हैं (दे ६, १५)।
पच्चवाय :: पुं [प्रत्यवाय] १ बाधा, विघ्न, व्याघात (णाया १, ९; महा; स २०९) २ दोष, दूषण (पउम ६५, १२; अच्चु ७०; ओघ २४) ३ पाप; 'बहुपच्चवायमरिओ गिहवासो' (सुपा १६२) ४ दुःख, पीड़ा (कुप्र ५५२)
पच्चवाय् :: पुं [प्रत्यवाय] १ उपघात-हेतु, नाश का कारण (उत्त १०, ३) २ अनर्थ (पंचा ७, ३९),
पच्चवेक्खिद :: (शो) वि [प्रत्यवेक्षित] निरीक्षित्त (नाट — शकु १३०)।
पच्चह :: न [प्रत्यह] हररोज, प्रतिदिन (अभि ६०)।
पच्चहिज्जाण, पच्चहियाण :: देखो पच्चभिजाण। पच्च- हिजाणेदि (पि ५१०)। पच्च- हियाणइ (स ४२)। संकृ. पच्चहियाणिऊण (स ४४०)।
पच्चा :: स्त्री [दे] तृण-विशेष, बल्वज (ठा ५, ३)। °पिच्चियय न [दे] बल्वज तृण की कूटी हुई छाल का बना हुआ रजोहरण — जैन साधु का एक उपकरण (ठा ५, ३ — पत्र ३३८)।
पच्चा :: देखो पच्छा (प्रयौ ३९; नाट — रत्ना ७)।
पच्चा :: अच्छ सक [प्रत्या+गम्] पीछे लौटना, वापस आना। पच्चाअच्छइ (षड्)।
पच्चाअद :: (शौ) देखो पच्चागय (प्रयौ २५)।
पच्चाइक्ख :: देखो पच्चक्ख=प्रत्या+ख्या। पच्चाइक्खामि (आचा २, १५, ५, १)। भवि. पच्चाइक्खिस्सामि (पि ५२९)। वकृ. पच्चाइक्खमाण (पि ४९२)।
पच्चाउट्टणया :: स्त्री [प्रत्यावर्त्तनता] अवाय — संशय रहित निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष, निश्च- यात्मक मति-ज्ञान (णंदि १७६)।
पच्चाएस :: पुंन [प्रत्यादेश] दृष्टान्त, निदर्शन, उदाहरण; 'पच्चाएसोव्व धम्मनिरयाणं' (स ३५; उव; कुप्र ५०); 'पच्चाएसं दिट्ठंतं' (पाअ)। देखो पच्चादेस।
पच्चागय :: वि [प्रत्यागत] १ वापस आया हुआ (गा ६३३; दे १, ३१; महा) २ न. प्रत्यागमन (ठा ६ — पत्र ३६५)
पच्चाचक्ख :: सक [प्रत्या+चक्ष्] परित्याग करना। हेकृ. पच्चाचक्खिंदु (शौ) (पि ४९९; ५७४)।
पच्चाणयण :: न [प्रत्यानयन] वापस ले आना (मुद्रा २७०)।
पच्चाणि°, पच्चाणी :: सक [प्रत्या+णी] वापस ले आना। कवकृ. पच्चाणिज्जंत (से ११, १३५)।
पच्चाणीद :: (शौ) वि [प्रत्यानीत] वापस लाया हुआ (पि ८१; नाट — विक्र १०)।
पच्चाथरण :: न [प्रत्यास्तरण] सामने होकर लड़ना (राज)।
पच्चादिट्ठ :: वि [प्रत्यादिष्ट] निरस्त, निराकृत (पि १४५; मृच्छ ९)।
पच्चादेस :: पुं [प्रत्यादेश] निराकरण (अभि ७२; १७८; नाट — विक्र ३)। देखो पच्चाएस।
पच्चापड :: अक [प्रत्या+पत्] वापस आना, लौटकर आ पड़ना। वकृ. 'अग्गपडि- हयपुणरविपच्चापडंतचंचलमिरिइकवयं (औप)।
पच्चामित्त :: पुंन [प्रत्यमित्र] अमित्र, दुश्मन (णाया १, २ — पत्र ८७; औप)।
पच्चाय :: सक [ति+आयय्] १ प्रतीति कराना। २ विश्वास कराना। पच्चाअइ (गा ७१२)। पच्चाएमो (स ३२४)
पच्चाय° :: देखो पच्चाया।
पच्चायण :: न [प्रत्यायन] ज्ञान कराना, प्रतीति- जनन (विसे २१३९)।
पच्चायय :: वि [प्रत्यायक] १ निर्णय-जनक। २ विश्वासृ-जनक (विक्र ११३)
पच्चाया :: अक [प्रत्या+जन्] उत्पन्न होना, जन्म लेना। पच्चायंति (औप)। भवि. पच्चायाहिइ (औप; पि ५२७)।
पच्चाया :: अक [प्रत्या+या] ऊपर देखो। पच्चायंति (पि ५२७)।
पच्चायाइ :: स्त्री [प्रत्याजाति, प्रत्यायाति] उत्पत्ति, जन्म-ग्रहण (ठा ३, ३ — पत्र १४४)।
पच्चायाय :: वि [प्रत्यायात] उत्पन्न (भग)।
पच्चार :: सक [उपा + लम्भ्] उपालभ्भ देना, उलाहना देना । पच्चारइ, पच्चारंति (हे ४, १५६; कुमा)।
पच्चारण :: न [उपालम्भन] प्रतिभेद (पाअ)।
पच्चारिअ :: वि [प्रचारित] चलाया हुआ (सिरि ४३६)।
पच्चारिय :: वि [उपालब्ध] जिसको उलाहना दिया गया हो वह (भवि)।
पच्चालिय :: वि [दे. प्रत्यार्दित] आर्द्र किया हुआ, गीला किया हुआ; ‘पच्चालिया. य से अहिययरं बाहसलिलेण दिट्ठी’ (स ३०८)।
पच्चालीढ :: न [प्रत्यालीढ] वाम पाद को पीछे हटा कर और दक्षिण पाँव को आगे रखकर खड़े रहनेवाले घानुष्क की स्थिति घनुषधारियों का पैतरा (वव १)
पच्चावड :: पुं [प्रत्यावर्त्त] आवर्त्त के सामने का आवर्त्त, पानी का भँवर (राय ३०)।
पच्चावरण्ह :: पुं [प्रत्यापराह्व] मध्याह्न के बाद समय, तीसरा पहर (विपा १, ३ टि; पि ३३०)।
पच्चासण्ण :: वि [प्रत्यासन्न] समीप में स्थित, सन्निकट, वहुत पास (विसे २६३१)।
पच्चासत्ति :: स्त्रो [प्रत्यासत्ति] समीपता, सामीप्य (मुद्रा १९१)।
पच्चासन्न :: देखो पच्चासण्ण; ‘निच्चं पच्चासन्नो परिसक्कइ सव्वश्रो मच्चू’ (उप ६ टी)।
पच्चांसा :: स्त्री [प्रत्याशा] १ आकांक्षा, वाञ्छा, अभिलाषा । २ निराशा के बाद की आशा (स ३६८) ३ लोभ, लालच (उप पु ७९)
पच्चासि :: वि [प्रत्याशिन्] वान्त या कय किया हुआ वस्तु का भक्षण करनेवाला (आचा)।
पच्चाह :: सक [प्रति + ब्रू] उत्तर देना । पच्चाह (पिंड ३७८)।
पच्चाहर :: सक [प्रत्या + हृ] उपदेश देना । वकृ. ‘पच्चाहरओ वि णं हिययगमणीओ जोयणनीहारी सरो’ (सम ६०)।
पच्चाहुत्त :: क्रिवि [पश्चान्मुख] पीछे, पीछे की तरफ; ‘जाव न सत्तट्ठ पए पच्चाहुत्तं नियत्तो सि’ (धर्मवि ५४)।
पच्चिम :: देखो पच्छिम (पिंग; पि ३०१)।
पच्चुअ :: (दे) देखो पच्चुहिअ (दे ६, २५)।
पच्चुअआर :: देखो पच्चुवयार (चारु ३६; नाट — मृच्छ ५७)।
पच्चुग्गच्छणया :: स्त्री [प्रत्युद्गमनता] अभिमुख गमन, (भग १४, ३)।
पच्चुच्चार :: पुं[प्रत्युच्चार] अनुवाद, अनुभाषण (स १८४)।
पच्छुच्छुहणी :: स्त्री [दे] नूतन सुरा, ताजा दारू (दे २, ३५)।
पच्चुज्जीविअ :: वि [प्रत्युज्जीवित] पुनर्जीवित (गा ६३१; कुप्र ३१)।
पच्चुट्ठिअ :: वि [प्रत्युत्थित] जो सामने खड़ा हुआ हो वह (सुर १, १३४)।
पच्चुण्णम :: अक [प्रत्युद् + नम्] थोड़ा ऊँचा होना । पच्चुणमइ (कप्प) । संकृ. पच्चुण्णमित्ता (कप्प; औप)।
पच्चुत्त :: वि [प्रत्युप्त] फिर से बोया हुआ (वे ७, ७७; गा ९१८)।
पच्चुत्तर :: सक [प्रत्यव + तृ] नीचे आना । पच्चुतरइ (पि ४४७) । संकृ. पच्चुत्तरित्ता (राज)।
पच्चुत्तर :: न [प्रत्युत्तर] जवाब, उत्तर (श्रा १२; सुपा २१; १०४)।
पच्चुत्थ :: वि [दे] प्रत्युप्त, फिर से बोया हुआ (दे ६, १३)।
पच्चुत्थुय, पच्चुत्थुय :: वि [प्रत्यवस्तृत] आच्छादित (णाया १, १ — पत्र १३, २०; कप्प)।
पच्चुद्धरिअ :: वि [दे] संमुखागत, सामने आया हुआ (दे ६, २४)।
पच्चुद्धार :: पुं [दे] संमुख आगमन (दे ६, २४)।
पच्चुप्पण्ण, पच्चुप्पन्न :: वि [प्रत्युत्पन्न] वर्त्तमान काल- संबन्धी (पि ५१९; भग; णाया १, ८; सम्म १०३) । °नय पुं [°नय] वर्त्तमान वस्तु को ही सत्य माननेवाला पक्ष, निश्चय नय (विसे ३१६१)।
पच्चुप्पन्न :: पुं [प्रत्युत्पन्न] वर्त्तमान काल (सूअ १, २, ३, १०)।
पच्चुप्फलिअ :: वि [प्रत्युत्फलित] वापस आया हुआ (से १४, ८१)।
पच्चुब्भड :: वि [प्रत्युद्भट] अतिशय प्रबल संबोध ५३)।
पच्चुरस :: न [प्रत्युरस] हृदय के सामने (राज)।
पच्चुल्लं :: अ [दे. प्रत्युत] प्रत्युत; उलटा; ‘न तुमं रुट्ठो, पच्चुल्लं ममं पूएसि’ (वव १)।
पच्चुवकार :: देखो पच्चुवयार (नाट — मृच्छ २५५)।
पच्चुवगच्छ :: सक [प्रत्युप + गम्] सामने जाना । पच्चुवगच्छइ (भग)।
पच्चुवगार, पच्चुवयार :: पुं [प्रत्युपकार] उपकार के बदले उपकार (ठा ४, ४; पउम ४९, ३९; स ४४०; प्रारू)।
पच्चुवयारि :: वि[प्रत्युपकारिन्] प्रत्युपकार करनेवाला (सुपा ५६५)।
पच्चुवेक्ख :: सक[प्रत्युप + ईक्ष्] निरीक्षण करना । पच्चुवेक्खेइ (औप) । संकृ. पच्चु- वेक्खित्ता (औप)।
पच्चुवेक्खिय :: वि [प्रत्युपेक्षित] अवलोकित, निरीक्षित (स ४४१)।
पच्चुहिअ :: वि [दे] प्रस्नुत, प्रक्षरित, अच्छी तरह जूने या टपकनेवाला (दे ६, २५)।
पच्चूढ :: न [दे] थाल, थार, भोजन करने का पात्र, बड़ी थाली (दे ६, १२)।
पच्चूस :: [दे] देखो पच्चूह = (दे); ‘किडएहिं पयत्तेणवि छाइज्जइ कह णु पच्चूसो ?’ (सुर ३, १३४)।
पच्चूस, पच्चूह :: पुं [प्रत्यूष] प्रभात काल (हे २ १४; णाया १, १; गा ६०४)।
पच्चूह :: पुंन [प्रत्यूह] विघ्न, अन्तराय (पाअ; कुप्र ५२)।
पच्चूह :: पुं [दे] सुर्य, रवि (दे ६, ५; गा ६०४; पाअ)।
पच्चेअ :: न [प्रत्येक] प्रत्येक, हर एक (षड्)।
पच्चेड :: न[दे] मुसल (दे ६, १५)।
पच्चेल्लिउ :: /?/(अप) देखो पच्चल्लिउ (भवि)।
पच्चोगिल :: सक [प्रत्यव + गिल्] आस्वादन करना, रस या स्वाद लेना । वकृ. पच्चोगिल- र्माण (कस ५, १०)।
पच्चोणामिणी :: स्त्री [प्रत्यवनामिनी] विद्या- विशेष, जिसके प्रभाव से वृक्ष आदि फल देने के लिए स्वयं नीचे नमते हें (उप पृ १५५)।
पच्चोणियत्त :: वि [प्रत्यवनिवृत्त] ऊँचा उछल कर नीचे गिरा हुआ (पण्ह १, ३ — पत्र ४५)।
पच्चोणिवय :: अक [प्रत्यवनि+पत्] उछल कर नीचे गिरना। वकृ. पच्चोणिवयंत (औप)।
पच्चोणी :: [दे] देखो पच्चोवणी (स २३५; ३०२; सुपा ९१; २२४; २७६)।
पच्चोयड :: न [दे] १ तट के समीप का ऊँचा प्रदेश (जीव ३) २ वि. आच्छादित (राय)
पच्चोयर :: सक [प्रत्यव+तृ] नीचे उतरना। पच्चोयरइ (आचा २, १५, २८)। संकृ. पच्चोयरित्ता (आचा २, १५, २८)।
पच्चोरुभ, पच्चोरुह :: सक [प्रत्यव+रुह्] नीचे उतरना। पच्चोरुभइ (णाया १, १)। पच्चोरुहइ (कप्प)। संकृ. पच्चोरुहित्ता (कप्प)।
पच्चोवणिअ :: वि [दे] संमुख आया हुआ (दे ६, २४)।
पच्चोवणी :: स्त्री [दे] संमुख आगमन (दे ६, २४)।
पचोसक्क :: अक [प्रत्यव+ष्वष्क्] १ नीचे उतरना। २ पीछे हटना। पच्चोसक्कइ, पच्चो- सक्कंति (उवा; पि ३०२; भग)। संकृ. पच्चो- सक्कित्ता (उवा; भग)
पच्छ :: सक [प्र+अर्थय्] प्रार्थना करना। कवकृ. पच्छिज्जमाण (कप्प, औप)।
पच्छ :: वि [पथ्य] १ रोगी का हितकारी आहार (हे २, २१; प्राप्र; कुमा; स ७२४; सुपा ५७९) २ हितकारक, हितकारी; 'पच्छा वाया' (णाया १, ११ — पत्र १७१)
पच्छ :: न [पश्चात्] १ चरम, शेष (चंद १) २ पीछे, पृष्ठ भाग। ३ पश्चिम दिशा; 'पुव्वेण सणं पच्छेण वंजुला दाहिणेण वडविडओ' (वज्जा ९६)। °ओ अ [°तस्] पीछे, पीठ की ओर; 'हत्थी वेगेण पच्छओ लग्गो' (महा); 'वहइ व महीअलभरिओ णोल्लेइ व पच्छओ धरेइ व पुरओ' (से १०, ३०); 'तो चेडयाओ तक्खणमाणावेऊण पच्छओ बाहं बद्धं दंसइ' (सुपा २२१) °कम्म न [°कर्मन्] १ अनन्तर का कर्म, बाद की क्रिया। २ यतियों की भिक्षा का एक दोष, दातृ-कर्तृ क दान देने के बाद की पात्र को साफ करने आदि क्रिया (ओघ ५१९)। °त्ताअ पु° [°ताप] अनुताप (वज्जा १४२)। °द्ध न [°अर्ध] पीछला आधा, उत्तरार्ध (गउड; महा)। °वत्थुक्क न [°वास्तुक] पिछला धर, धर का पिछला हिस्सा (पण्ह २, ४ — पत्र १३१)। °याव पुं [°ताप] पश्चाताप, अनुताप (आवम)। देखो पच्छा= पश्चात्।
पच्छइ, पच्छए :: (अप) अ [पश्चात्] ऊपर देखो (हे ४, ४२०; षड्; भवि)। °ताव पुं [°ताप] अनुताप, अनुशय (कुमा)।
पच्छंद :: सक [गम्] जाना, गमन करना। पच्छंदइ (हे ४, १६२)।
पच्छंदि :: वि [गन्तृ] गमन करनेवाला (कुमा)।
पच्छंभाग :: पुं [पश्चाद्भाग] १ दिवस का पिछला भाग (राज) २ पुंन. नक्षत्र-विशेष, चन्द्र पृष्ठ देकर जिसका भोग करता है वह नक्षत्र (ठा ९)
पच्छण :: स्त्रीन [प्रतक्षण] त्वक् का बारीक विदारण, चाकू आदि से पतली छाल निकालना; 'तच्छणेहि य पच्छणेहि य' (विपा १, १); 'तच्छणाहि य पच्छणाहि य' (णाया १, १३)।
पच्छण्ण :: वि [प्रच्छन्न] गुप्त, अप्रकट, (गा १८३)। °पइ पुं [°पति] जार, उपपति, यार (सूअ १, ४, १)।
पच्छद :: देखो पच्छय (औप)।
पच्छदण :: न [प्रच्छदन] आस्तरण, चादर — शय्या के ऊपर का आच्छादन-वस्त्र; 'सुप्पच्छद- णाए सय्याए णिद्दं ण लभामि' (स्वप्न ६०)।
पच्छन्न :: देखो पच्छण्ण (उव; सुर २, १८४)।
पच्छय :: पुं [प्रच्छद] वस्त्र-विशेष, दुपट्टा, पिछौरी (णाया १, १६)।
पच्छयण :: देखो पत्थयण (... )।
पच्छयण :: देखो पत्थयण (मोह ८०)।
पच्छलिउ :: (अप) देखो पच्चलिउ (षड्)।
पच्छा :: अ [पश्चात्] १ अनन्तर, बाद, पीछे (सुर २, २४४; पाअ; प्रासू ५७); 'पच्छा तस्स विवागे रुअंति कलुणं महादुक्खा' (प्रासू १२६) २ परलोक, परजन्म; 'पच्छा कडुअविवागा' (राज) ३ पिछला भाग, पृष्ठ। ४ चरम, शेष (हे २, २१) ५ पश्चिम दिशा (णाया १, ११)। °उत्त वि [°आयुक्त] जिसका आयोजन पीछे से किया गया हो वह (कप्प)। °कड पुं [°कृत] साधुपन को छोड़कर फिर गृहस्थ बना हुआ (द्र ५०; बृह १)। °कम्म देखो °पच्छ- कम्म (पि ११२)। °णिवाइ देखो °निवाइ (राज)। °णुताव पुं [°अनुताप] पश्चात्ताप, अनुताप; 'पच्छाणुतावेण सुभज्झवसाणेण' (आवम)। °णुपुव्वी स्त्री [°आनुपूर्वी] उलटा क्रम (अणु; कम्म ४, ४३)। °ताव पुं [°ताप] अनुताप (आव ४)। °ताविय वि [°तापिक] पश्चात्तापवाला (पण्ह २, ३) °निवाइ वि [°निपातिन्] १ पीछे से गिर जानेवाला। २ चारित्र ग्रहण कर बाद में उससे च्युत होनेवाला (आचा)। °भाग पुं [°भाग] पिछला हिस्सा (णाया १, १)। °मुह वि [°मुख] परांमुख, जिसने मुँह पीछे की तरफ फेर लिया हो वह (श्रा १२)। °यव, °याव देखो °ताव (पउम ९५, ६६; सुर १५, १४५; सुपा १२१, महा)। °यावि वि [°तापिन्] पश्चात्ताप करनेवाला (उप ७२८ टी) °वाय पुं [°वात] पश्चिम दिशा का पवन। २ पीछे का पवन (णाया १, ११) °संखडि स्त्री [दे. संस्कृति] १ पिछला संस्कार। २ मरण के उपलक्ष्य में ज्ञाति — कुटंबी वगैरह प्रभूत मनुष्यों के लिए पकायी जाती रसोई (आचा २, १, ३, २) °संथव पुं [°संस्तव] १ पिछला संबन्ध, स्त्री, पुत्री वगैरह का संबन्ध। २ जैन मुनियों के लिए भिक्षा का एक दोष, श्वशूर आदि पक्ष में अच्छी भिक्षा मिलने की लालच से पहले भिक्षार्थ जाना (ठा ३, ४)। °संथुय वि [°संस्तुत] पिछले संबन्ध से परिचित (आचा २, १, ४, ५)। °हुत्त वि [°दे] पीछे की तरफ का; 'थलमत्थयम्मि पच्छा- हुत्ताइं पयाइं तीए दट्ठूण' (सुपा २८१)।
पच्छा :: स्त्री [पथ्या] हरें, हरीतकी (हे २, २१)।
पच्छाअ :: सक [प्र+छदय्] १ ढकना। २ छिपाना। वकृ. पच्छाअंत (से ९, ४९; ११, ९)। कृ. पच्छाइज्ज (वसु)
पच्छाअ :: वि [प्रच्छाय] प्रचुर छायावाला (अभि ३९)।
पच्छाइअ :: वि [प्रच्छादत] १ ढका हुआ, आच्छादित। २ छिपाया हुआ (पाअ; भवि)
पच्छाइज्ज :: देखो पच्छाअ = प्र + छादय्।
पच्छाग :: पुं [प्रच्छादक] पात्र बाँधने का कपड़ा (ओघ २६५ भा)।
पच्छाडिद :: (शौ) वि [प्रक्षालित] धोया हुआ (नाट — मृच्छ २५५)।
पच्छाणिअ :: [दे] देखो पच्चोवणिअ (षड्)।
पच्ठछाणुताविअ :: वि [पश्चादनुतापिक] पश्चा- त्ताप-युक्त, पछतावा करनेवाला (राय १४१)।
पच्छादो :: (शौ) देखो पच्छा = पश्चात् (पि ६९)।
पच्छायण :: न [पथ्यदन] पाथेय, रास्ते में खाने का भोजन; 'वहणं करियं पच्छायणस्स भारियं' (महा)।
पच्छायण :: न [प्रच्छादन] १ आच्छादन, ढकना। २ वि. आच्छादन करनेवाला। °य़ा स्त्री [°ता] आच्छादन; 'परगुणपच्छायणया' (उव)
पच्छाल :: देखो पक्खाल। पच्छलेइ (काल)।
पच्छि :: स्त्री [दे] पिटिका, पिटारी, वेत्रादि- रचित भाजन-विशेष (दे ६, १)। °पेडय न [°पिटक] 'पच्छी' रूप पिटारी (भग ७, ८ टी — पत्र ३१३)।
पच्छि :: (आप) देखो पच्छइ (हे ४, ३८८)।
पच्छिज्जमाण :: देखो पच्छ = प्र + अर्थय्।
पच्छित्त :: न [प्रायश्चित] १ पाप की शुद्धि करनेवाला कर्मं, पाप का क्षय करनेवाला कर्मं (उव; सुपा ३६६; द्र ५२) २ मन को शुद्ध करनेवाला कर्म (पंचा १६, ३)
पच्छित्ति :: वि [पु्रायश्चित्तिन्] प्रायश्चित्त का भागी, दोषी (उप ३७९)।
पच्छिम :: न [पश्चिम] १ पश्चिम दिशा (उपा ७४ टि) २ वि. पश्चिम दिशा का, पाश्चात्य (महा; हे २, २१; प्राप्र) ३ पिछला, बाद का; 'दियसस्स पच्छिमे भाए' (कप्प) ४ अन्तिम, चरम; 'पुरिमपच्छिमगाणं तित्थ- गणणं' (सम ४४)। °द्ध न [°र्ध] उत्तरार्धं, उत्तरी आधा हिस्सा (महा; ठा २, ३ — पत्र ८१)। °सेल पुं [°शैल] अस्ताचल पर्वत (गउड)
पच्छिमा :: स्त्री [पश्चिमा] पश्चिम दिशा (कुमा; महा)।
पच्छिमिल्ल :: वि [पाश्चात्य] पीछे से उत्पन्न, पीछे का (विसे १७९५)।
पच्छियापिडय :: देखो पच्छि-पिडय (राय १४०)।
पच्छिल :: (अप) देखो पच्छिम (भवि)।
पच्छिल्ल, पच्छिल्लय :: वि [पश्चिम, पाश्चात्य] १ पश्चिम दिशा का। २ पिछला, पृष्ठवर्त्ती (पि ५९५, ५९५ टि ४)
पच्छुत्ताव :: पुं [पश्चादुत्ताप] पछतावा, पश्चात्ताप (सम्मत्त १६०; धर्मंवि ३५, १२२; १३०)।
पच्छुत्ताविअ :: (अप) वि [पश्चात्तापित] जिसको पश्चात्ताप हुआ हो वह (भवि)।
पच्छेकम्म :: देखो पच्छ-कम्म (हे १, ७९)।
पच्छेणय :: न [दे] पाथेय, रास्ते में निर्वाह करने की भोजन-सामग्री, कलेवा (दे ६, २४)।
पच्छोववण्णग, पच्छोववन्नक :: वि [पश्चादुपपन्न] पीछे से उत्पन्न (भग)।
पजंप :: सक [प्र + जल्प्] बोलना, कहना। पजंपह (पि २९६)।
पंजपावण :: न [प्रजल्पन] बोलाना, कथन कराना (औप; पि २९६)।
पजंपिअ :: वि [प्रजल्पित] कथित, उक्त, कहा हुआ (गा ६४९)।
पजणण :: वि [प्रजनन] उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला (राय ११४)।
पजणण :: न [प्रजनन] लिंग, पुरुष-चिह्न (विसे २५७९ टी; औघ ७२२)।
पजल :: अक [प्र + ज्वल्] १ विशेष जलना, अतिशय दग्ध होना। २ चमकना। वकृ. पजलंत (भवि)
पजलिर :: वि [प्रझ्वलितृ] अत्यन्त जलनेवाला, 'सियज्झाणनलपजलिरकम्मकंतारवूमलइउव्व' (सुपा १)।
पजह :: सक [प्र + हा] त्याग करना। पजहामि (पि ५००)। कृ. पजहियव्व (आचा)।
पजाला :: स्त्री [प्रज्वाला] अग्नि-शिखा, आग की लौ या लपट (कुप्र ११७)।
पजीवण :: न [प्रजीवन] आजीर्विका, जीवनो- पायस रोजी (पिंड ४७८)।
पजुत्त :: देखो पउत्त = प्रयुक्त (चंड)।
पजूहिअ :: वि [प्रयूथिक] यूथ या समूह को दिया हुआ, याचक-गण के अर्पित (आचा २, १, ४, २)।
पजेमण :: न [प्रजेमन] भोजन-ग्रहण, भोजन लेना (राय १४६)।
पज्जद :: सक [पायय्] पिलाना, पान कराना। पज्जेइ (विपा १, ६)। कवकृ. 'तणहाइया ते तउ तंब तत्तं पज्जिज्जमाणाट्टतरं रसति' (सूअ १, ५, १, २५)। कृ. पज्जेयव्व (भत्त ४०)।
पज्ज :: न [पद्म] छन्दो-बद्ध वाक्य (ठा ४, ४ — पत्र २८७)।
पज्ज :: न [पाद्य] पाद-प्रक्षालन जल; 'अग्धं च पज्जं च गहाय' (णाया १, १६ — पत्र २०९)।
पज्ज :: देखो पज्जत्त (दं ३३; कम्म ३, ७)।
पज्जंत :: पुं [पर्यन्त] अन्त, सीमा, प्रान्त भाग (हे १, ५८; २, ६५; सुर ४, २१६)।
पज्जण :: न [दे] पान, पीना (दे ६, ११)।
पज्जण :: न [पायन] पिलाना, पान कराना (भग १४, ७)।
पज्जण्ण :: देखो पजणण (सूअनि ५७)।
पज्जणुओग, पज्जणुजोग :: पुं [पर्यनुयोग] प्रश्न (धर्मंसं १७९; २९२)।
पज्जण्ण :: पुं [पर्जन्य] मेघ, बादल (भग १४, २; नाट, पृच्छ १७५)। देखो पज्जन्न।
पज्जतर :: वि [दे] दलित, विदारित (षड्)।
पज्जत :: वि [पर्याप्त] १ 'पर्याप्ति' से युक्त, 'पर्याप्ति' वाला (ठा २, १; पणह १, १; कम्म १, ४९) २ समर्थं, शक्तिमान। ३ लब्ध, प्राप्त। ४ काफी, यथेष्ट, उतना जितने से काम चल जाय। ५ न. तृप्ति। ६ सामर्थ्य। ७ निवारण। ८ योग्यता (हे २, २४; ट प्राप्र)। ९ कर्म-विशेष, जिसके उदय से जीब अपनी अपनी 'पर्याप्तियों' से युक्त होता है वह कर्मं (कम्म १, २६)। °णाम, °नाम न [°नामन्] अनन्तर उक्त कर्मं-विशेष (राज; सम ६७)
पज्जत्त :: न [पर्याप्त] लगातार चौतीस दिन का उपवास (संबोध ५८)।
पज्जत्तर :: [दे] देखो पज्जतर (षड् — पत्र २१०)।
पज्जत्ति :: स्त्री [पर्याप्ति] १ शक्ति, सामर्थ्यं (सूअ १, १, ४) २ जीव की वह शक्ति, जिसके द्वारा पुद्गलों को ग्रहण करने तथा उनको आहार, शरीर आदि के रूप में बदल देने का काम होता है, जीव की पुद्गलों को ग्रहण करने तथा परिणामाने या पचाने की शक्ति (भग; कम्म १, ४९; नव ४; दं ४) ३ प्राप्ति, पूर्णं प्राप्ति (दे ५, ६२) ४ तृप्ति; 'पियदंसणधणजीवियाण को लहइ पज्जत्तिं ?' (उप ७६८ टी)
पज्जत्ति :: स्त्री [पर्याप्ति] १ पूर्त्ति, पूर्णता (धर्मंवि ३८) २ अन्त, अवसान (सुख २, ८)
पज्जन्न :: पुं [पर्जन्य] मेघ-विशेष, जिसके एक बार बरसने से भूमि में एक हजार वर्षं तर चिकनाहट रहती है; 'पज्जु — (? ज) न्ने णं महामेह एगे णं वासेणं दस वाससयाइं भावेति' (ठा ४, ४ — पत्र २७०)।
पज्जय :: पुं [दे. प्रार्यक] प्रपितामह, पितामह का पिता, परदादा (भग ९, ३; दस ७; सुर १, १७४; २२०)।
पज्जय :: पुं [पर्यय] १ श्रुत-ज्ञान का एक भेद, उत्पत्ति के प्रथम समय में सूक्ष्म-निगोद के लब्धि- अपर्याप्त जीव को जो कुश्रुत का अंश होता है उससे दूसरे समय में ज्ञान का जितना अंश वढ़ता है वह श्रुतज्ञान (कम्म १, ७)। २ — देशो पज्जाय (सम्म १०३; णंदि; विसे ४७८; ४८८; ४९०; ४९१)। °समास पुं [°समास] श्रुतज्ञान का एक भेद, अनन्तर उक्त पर्ययं-श्रुत का समुदाय (कम्म १, ७)
पज्जयण :: न [पर्ययन] निश्चय, अवधारण (विसे ८३)।
पज्जर :: सक [कथय्] कहना, बौलना। पज्ज- रइ, पज्जर (हे ४, २; ६, २९, कुमा)।
पज्जरय :: पुं [प्रजरक] रत्नप्रभा-नामक नरक- पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६ — पत्र ३६५)। °मज्झ पुं [°मध्य] एक नरकावास (ठय़ा ६ — पत्र ३६७ टी)। °विट्ठ पुं [°वर्त्त] नरकावास-विशेष (ठा ६)। °सिट्ठ पुं [°वशिष्ट] एक नरकावास, नरक-स्थान- विशेष (ठा ६)।
पज्जल :: देखो पजल। पज्जलेइ (महा)। वकृ. पज्जलंत (कप्प)।
पज्जलण :: वि [प्रज्वलन] जलानेवाला (ठा ४, १)।
पज्जलिअ :: पुं [प्रज्वलित] तीसरी नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)।
पज्जलिय :: वि [प्रज्वलित] १ जलाया हुआ, दग्ध (महा) २ खूब चमकनेवाला, देदीप्य- मान (गच्छ २)
पज्जलिर :: वि [प्रझ्वलितृ] १ जलनेवाला। २ खूब चमकनेवाला (सुपा ६३८; सण)
पज्जलीढ :: वि [प्रर्यवलीढ] भक्षित (विचांर ३२६)।
पज्जव :: पुं [पर्यव] १ परिच्छेद, निर्णंय (विसे ८३; आवम) २ देखो पज्जाय (आचा; भग; विसे २७५२, सम्म ३२) °कसिण न [°कृत्स्न] चतुर्दंश पूर्वं-ग्रंथ तक का ज्ञान, श्रुतज्ञान-विशेष (पंचभा)। °जाय वि [°जात] १ भिन्न अवस्था को प्राप्त (पणह २, ५) २ ज्ञान आदि गुणोंवाला (ठा १) ३ न. विषयोपभोग का अनुष्ठान (आचा)। °जाय वि [°यात] ज्ञान-प्राप्त (ठा १)। °ट्ठिय पुं [स्थित, °र्थिक, °स्तिक] नय- विशेष, द्रव्य को छोड़कर केवल पर्यायों को ही मुख्य माननेवाला पक्ष (सम्म ६)। °णय, °नय पुं [°नय] वही अनन्तर उक्त अर्थं (राज; विसे ७५); उप्पज्जंति वयंति अ भावा नियमेण पज्जबनयस्स' (सम्म ११)
पज्जवण :: न [पर्यवन] परिच्छेद, निश्चय (विसे ८३)।
पज्जवथ्वाव :: सक [पर्यव + स्थापय्] १ अच्छी अवस्थी में रखना। २ विरोध करना। ३ प्रतिपक्ष के साथ वाद करना। पज्जवस्थावेदु (शौ). (मा ३९)। पज्जवत्थावेहि (पि ५५१)
पज्जवसाण :: न [पर्यवसान] अन्त, अवसान (भग)।
पज्जवसिअ :: न [पर्यवसित] अवसान, अन्त; 'अपज्जवसिए लोए' (आचा)।
पज्जा :: देखो पण्णा (हे २, ८३)।
पज्जा :: स्त्री [पद्या] मार्ग, रास्ता; 'भेअं च पडुच समा भावाणं पन्नवणपज्जा' (सम्म १५७; दे ६, १; कुप्र १७९)।
पज्जा :: स्त्री [दे] निःश्रेणी, सीढञी (दे ६, १)।
पज्जा :: स्त्री [पर्याय] अधिकार, प्रबन्ध-भेद (दे ६, १; पाअ)।
पज्जा :: देखो पाया; 'अगणिज्जंति नासे विज्जा दंडिज्जंती नासे पज्जा' (प्रासू ६६)।
पज्जाअर :: पुं [प्रजागर] जागरण, निद्रा का अभाव (अभि ९६)।
पज्जाउल :: वि [पर्याकुल] विशेष आकुल, व्याकुल (स ७२; ६७३; हे ४, २६६)।
पज्जाभाय :: सक [पर्या + भाजय्] भाग करना। संकृ. पज्जाभाइत्ता (राज)।
पज्जाय :: पुं [पर्याय] १ समान अर्थं का वाचक शब्द (विसे २५) २ पूर्णं प्राप्ति (विसे ८३) ३ पदार्थं-धर्मं, वस्तु-गुण। ४ पदार्थं का सूक्ष्म या स्थूल रूपान्तर (विसे ३२१; ४७९; ४८०; ४८१; ४८२; ४८३; ठा १, १०) ५ क्रम, परिपाटी (णाया १, १) ६ प्रकार, भेद (आवम) ७ अवसर। ८ निर्माण (हे २, २४)। देखो पज्जय तथा पज्जव।
पज्जाय :: पुं [पर्याय] तात्पर्य, भावार्थं, रहस्य (सूअनि १३९)।
पज्जाल :: सक [प्र + ज्वालय्] जलाना, सुलगाना। पज्जालइ (भवि)। संकृ. पज्जा- लिअ, पज्जालिऊण (दस ५, १; महा)।
पज्जालण :: न [प्रज्वालन] सुलगाना (उप ५९७ टी)।
पज्जालिअ :: वि [प्रज्वालित] जलाया हुआ, सुलगाया हुआ (सुपा १५१; प्रासू १८)।
पज्जिआ :: स्त्री [दे. प्रार्यिका] १ माता की मातामही, परमानी। २ पिता की मातामही, परदादी (दस ७; हे ३, ४१)
पज्जिज्जमाण :: देखो पज्ज = पायय्।
पज्जुट्ठ :: वि [पुर्युष्ट] फड़फड़ाया हुआ (? ); 'भिउडी ण कआ, कडुअं णालविअं अहरअं ण पज्जुट्ठं' (गा ९२१)।
पज्जुच्छुअ :: वि [पर्युत्सुक] अति उत्सुक (नाट)।
पज्जुणसर :: न [दे] ऊख के तुल्य एक प्रकार का तृण (दे ६, ३२)।
पज्जुण्ण :: पुं [प्रद्युन्न] १ श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम (अंत) २ कामदेव (कुमा) ३ वैष्णव शास्त्र में प्रतिपादित चतुर्व्युह रूप विष्णु का एक अंश (हे २, ४२) ४ एक जैनमुनि (निचू १)। देखो पज्जुन्न।
पज्जुत्त :: वि [प्रयुक्त] जटित, खचित; 'माणिक्क- पज्जुत्तकणयकडयसणाहेहिं' (स ३१२), 'दिव्व- खग्गचामरपज्जुत्तकुडंतरालाइं' (स ५९; भवि)। देखो प्रज्झुत्त।
पज्जुदास :: पुं [पर्युदास] निषेध, प्रतिषेध (विसे १८३)।
पज्जुन्न :: देखो पज्जुण्ण (णाया १, ५; अंत १४; कुप्र १८; सुपा ३२)। ५ वि. धनी, श्रीमन्त, प्रभूत धनवाला; 'पज्जुन्नओवि पडिपुन्नसयलंगो' (सुपा ३२)
पज्जुवट्ठा :: सक [पर्युप + स्था] उपस्थित होना। हेकृ. पज्जुवट्ठादुं (शौ) (नाट — वेणी २५)।
पज्जुवट्ठिय :: वि [पर्युपस्थित] उपस्थित, मौजूद, हाजिर, तत्पर (उत्त १८, ४५)।
पज्जुवास :: सक [पर्युप + आस्] सेवा करना, भक्ति करना। पज्जुवासइ, पज्जु- वासंति (उव ; भग)। वकृ. पज्जुवासमाण (णाया १, १; २)। कवकृ. पज्जुवासिज्जड- माण (सुपा ३७८)। संकृ. पज्जुवासित्ता (भग)। कृ. पज्जुवासणिज्ज (णाया १, १; औप)।
पज्जुवासण :: न [पर्युपासन] सेवा, भक्ति, उपासना (भग; स ११६; उप ३५७ टी; अभि ३८)।
पज्जुवासणया, पज्जुवासणा :: स्त्री [पर्युपासना] ऊपर देखो (ठा ३, ३; भग; णाया १, १३; औप)।
पज्जुवासय :: वि [पर्युपासक] सेवा करनेवाला (काल)।
पज्जुसण, पज्जुसवण :: न देखो. पज्जुसणा (धर्मंवि २१; विचार ५३१)।
पज्जुसणा :: स्त्री [पर्युषणा] देखो पज्जोसवणा; 'परिवसणा पज्जुसणा पज्जोसवणा य वास- वासो य' (निचू १०)।
पज्जुस्सुअ, पज्जूसुअ :: वि [पर्युत्सुक] अति उत्सुक, विशेष उत्कण्ठित (अभि १०९; पि ३२७ ए)।
पज्जोअ :: पुं [प्रद्योत] १ प्रकाश, उद्द्योत। २ उज्जयिनी नगरी का एक राजा (उव)। °गर वि [°कर] प्रकाश-कर्त्ता (सम १; (कप्प; औप)
पज्जोइय :: वि [प्रद्योतित] प्रकाशित (उप ७२८ टी)।
पज्जोय :: सक [प्र + द्योतय्] प्रकाशित करना। वकृ. पज्जोयंत (चेइय ३२४)।
पज्जोयण :: पुं [प्रद्योतम] एक जैन आचार्य (राज)।
पज्जोसव :: अक [परि + वस्] १ वास करना, रहना। २ जैनागम-प्रोक्त पर्युषणा- पर्वं मनना। पज्जोसवेइ, पज्जोसविंति, पज्जोसवेंति (कप्प)। वकृ. पज्जोसवंत, पज्जोसवेमाण (निचू १०; कप्प)। हेकृ. पज्जोसवित्तए, पज्जोसवेत्तए (कप्प; कस)
पज्जोसवण :: न. देखो पज्जोसवणा (पंचा १७, ६)।
पज्जोसवणा :: स्त्री [पर्युषणा] १ एक ही स्थान में वर्षा-काल व्यतीत करना (ठा १०; कप्प) २ वर्षा-काल (निचू १०) ३ पर्व- विशेष, भाद्रपद के आठ दिनों का एक प्रसिद्ध जैन पर्व; 'काराविओ अमारिं पज्जोसवणाईसु तिहीसु' (मुणि १०९००; सुर १६, १६१)। °कप्प पुं [°कल्प] पर्युंषणा में करने योग्य शास्त्र-विहित आचार, वर्षाकल्प (ठा ५, २)
पज्जोसवणा :: स्त्री [पर्योसवना, पर्युपशमना] ऊपर देखो (ठा १० — पत्र ५०६)।
पज्जोसविय :: वि [पर्युषित] स्थित, रहा हुआ (कप्प)।
पज्झंझ :: अक [प्र + झञ्झ्] शब्द करना, आवाज करना। वकृ. पज्झंझमाण (राज)।
पज्झट्टिआ :: स्त्री [पज्झट्टिका] छन्द-विशेष (पिंग)।
पज्झर :: अक [क्षर्, प्र + क्षर्] झरना, टपकना। पज्झरइ (हे ४, १७३)।
पज्झर :: पुं [प्रक्षर्] प्रवाह-विशेष (पणण २)।
पज्झरण :: न [प्रक्षरण] टपकना (वज्जा १०८)।
पज्झरिअ :: वि [प्रक्षरित] टपका हुआ (पाअ; कुमा; महा; संक्षि १५)।
पज्झल :: देखो पज्झर = क्षर्। पज्झलइ (पिंग)।
पज्झलिआ :: देखो पज्झट्टिआ (पिंग)।
पज्झाय :: न [प्रध्यात] अतिशय चिन्तन (अणु १३९)।
पज्झाय :: वि [प्रध्यात] चिन्तित, सोचा हुआ (अणु)।
पज्झुत्त :: वि [दे] खचित, जड़़ित, जड़ा हुआ (पाअ)। देखो पज्जुत्त
पझुंझ :: देखो पज्झुंझ। वकृ. पझुंझमाण (राय ८३)।
पटउडी :: स्त्री [पटकुटी] तंबु, वस्त्र-गृह, कपड़- कोट (सुर १३, ९)।
पटल :: देखो पडल = पटल (कुमा)।
पटह :: देखो पडह (प्रति १०)।
पटिमा :: (पै. चूपै) देखो पडिमा (षड्; पि १९१)।
पटोला :: स्त्री [पटोला] वल्ली-विशेष, कोशतकी, क्षारवल्ली (सिरि ९९६)।
पट्ट :: सक [पा] पीना, पान करना। पट्टइ (हे ४, १०)। भूका. पट्टीअ (कुमा)।
पट्ट :: पुं [पट्ट] १ पहनने का कपड़ा, 'पट्टो वि होइ इक्को देहपमाणेण सो य भइयव्वो' (बृह ३; ओघ ३४) २ रथ्या, मुहल्ला; 'तेणवि मालियपट्टे गंतूण करे कया माला' (सुपा ३७३) ३ पाषाण आदि का तख्ता, फलक; 'मणिसिलापट्टअसणाहो माहवीमंडवो' (अभि २००); 'पिअंगुसिलापट्टए उवविट्ठा' (स्वप्न ५२); 'पट्टसंठियपसत्थवित्थिण्णपिहुलसोणीओ' (जीव ३) ४ ललाट पर से बंधी जाती एक प्रकार की पगड़ी; 'तप्पभिइं पटबद्धा रायाणो जाया पुव्वं मउडबद्धा आसी' (महा) ५ पट्टा, चकनामा, किसी प्रकार का अधिकार- पत्र (कुप्र ११; जं ३) ६ रेशम। ७ पाट, सन (गा ५२०; कप्पू) ८ रेशमी कपड़ा। ९ सन का कपड़ा (कप्प, औप) १० सिंहासन, गद्दी, पाट (कुप्र २८; सुपा २८५) १२ कलाबत्तू (राज) १३ पट्टी, फोड़ा आदि पर बाँधा जाता, लम्बा वस्त्रांश, पाटा; 'चउरंगुलपमाणपट्टबंवेण सिरिबच्छालं- कियं छाइयं बच्छत्थलं' (महा, विपा १, १) १३ शाक-विशेष (सुज्ज २०)। °इल्ल पुं [°वत्] पटेल, गाँव का मुखिया (जं ३)। °उडी स्त्री [°कुटी] तंबू, वस्त्र-गृह (सुर १३, १५७)। °करि पुं [°करिन्] प्रधान हस्ती (सुपा ३७३)। °कार पुं [°कार] तन्तुवाय, वस्त्र बुननेवाला, जुलाहा (पणण १)। °वासिआ स्त्री [°वासिता] एक शिरो-भूषण (दे ४, ४३)। °साला स्त्री [°शाला] उपाश्रय, जैन मुनि के रहने का स्थान (सुपा २८५)। °सुत्त न [°सूत्र] रेशमी सूता (आवम)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] प्रधान हाथी (सुपा ३७२)
पट्टइल, पट्टइल्ल :: पुं [दे] पटेल, गाँव का मुखिया (सुपा २७३; ३६१)।
पट्टंसुअ :: न [पट्टांशक] १ रेशमी वस्त्र। २ सन का वस्त्र (गा ५२०; कप्पू)
पट्टग :: देखो पट्ट (कस)।
पट्टण :: न [पत्तन] नगर, शहर (भग; औप; प्राप्र; कुमा)।
पट्टदेवी :: स्त्री [पट्टदेवी] पटरानी (सिरि १२१२)।
पट्टय :: देखो पट्ट (उवा; णाया १, १६)।
पट्टसुत्त :: न [पट्टसूत्र] रेशमी वस्त्र (धर्मंवि ७२)।
पट्टाढा :: स्त्री [दे] पट्टा, घोड़े की पेटी, कसन; 'छोडिया पट्टाढा, ऊसारियं पल्लाणं' (महा; सुख १८, ३७)।
पट्टिय :: वि [पट्टिक] पट्टे पर दिया जाता गाँव वगैरह, 'पुव्विं पट्टियगामम्मि तुट्टदव्वत्थं पट्टइलो नरबालो पुव्विं जो आसि गुत्तीए खित्तौ' (सुपा २७३)।
पट्टिया :: स्त्री [पट्टिका] १ छोटा तख्ता, पाटी; 'चित्तपट्टिया' (सुर १, ८८) २ देखो पट्टी; 'सरासणपट्टिआ' (राज — जं ३)
पट्टिस :: पुं [दे. पट्टिश] प्रहरण-विशेष, एक प्रकार का हथियार (पणह १, १; पउम ८, ४५)।
पट्टी :: स्त्री [पट्टी] १ वनुर्यष्टि। २ हस्तपट्टिका, हाथ पर की पट्टी; 'उप्पीडियसरकासणपट्टिए' (विपा १, १ — पत्र २४)
पट्टुअ :: पुंन देखो पट्टुया; 'पट्टुएहिं' (सुख ९, १)।
पट्टुया :: स्त्री [दे] पाद-प्रहार, लात; गुजराती में 'पाटू'; 'सिरिवच्छो गोणेणं तहाहओ पट्टुयाए हिययम्मि' (सुपा २३७)। देखो पड्डुआ।
पट्टुहिअ :: न [दे] कलुषित जल, गंदा जल; 'पटटुहियं जाण कलुसजलं' (पाअ)।
पट्ठ :: वि [प्रष्ट] १ अग्रगामी, अग्रसर, अगुआ (णाया १, १ — पत्र १९) २ कृशल, निपुण। ३ प्रधान, मुखिया (औप; राज)
पट्ठ :: वि [स्पृष्ट] जिसका स्पर्श किया गया हो वह (औप)।
पट्ठ :: न [पृष्ठ] १ पीठ, शरीर के पीछे का भाग (णाया १, ९; कुमा) २ तल, ऊपर का भाग; 'तलिमं पट्टं च तलं' (पाअ)। °चर वि [°चर] अनुयायी, अनुगामी (कुमा)
पट्ठ :: वि [पृष्ठ] १ जिसको पूछा गया हो वह। २ न. प्रश्न, सवाल, 'छव्विहे पट्ठे पणणत्ते' (ठा ६ — पत्र ३७५)
पट्ठव :: सक [प्र + स्थापय्] १ प्रस्थान कराना, भेजना। २ प्रवृत्ति कराना। ३ प्रारम्भ करना। ४ प्रकर्षं से स्थापना करना। ५ प्रायश्चित्त देना। पट्ठवइ (हे ४, ३७)। भूका. पट्ठवइंसु (कप्प)। कृ. पट्ठवियव्व (कस; सुपा ६२७)
पट्ठवग :: देखो पट्ठवय (कम्म ६, ६६ टी)।
पट्ठवण :: न [प्रस्थापन] १ प्रकृष्ट स्थापन। २ प्रारम्भ; 'इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च' (अणु)
पट्ठवणा :: स्त्री [प्रस्थापना] १ प्रकृष्ट स्थापना। २ प्रायश्चित्तप्रदान; 'दुविहा पट्ठवणा खलु' (वव १)
पट्ठवय :: वि [प्रस्थापक] १ प्रवर्त्तंक, प्रवृत्ति करानेवाला (णाया १, १ — पत्र ६३) २ प्रारम्भ करनेवाला (विसे ६२७)
पट्ठविअ :: वि [प्रस्तापित] भेजा हुआ (पाअ; कुमा)। २ प्रवर्त्तित (निचू २०) ३ स्थिर किया हुआ (भग १२, ४) ४ प्रकर्षं से स्थापित, व्यवस्थापित (पणण २१)
पट्ठविइया, पट्ठविया :: स्त्री [प्रस्थापिता] प्रायश्चित- विशेष, अनेक प्रायश्चित्तो में जिसका पहले प्रारम्भ किया जाय वह (ठा ५, २; निचू २०)।
पट्ठाअ :: देखो पट्ठाव। वकृ. पट्ठाएंत (गा ४४०)।
पट्ठाण :: न [प्रस्थान] प्रयाण (सुपा १४२)।
पट्ठाव :: देखो पट्ठव। पट्ठावइ (हे ४, ३७)। पठ्ठावेइ (पि ५५३)।
पट्ठाविअ :: देखो पट्ठविअ (हे ४, १६; कुमा; पि ३०९)।
पट्ठि :: /?/स्त्री. देखो पट्ठ = पृष्ठ (गउड; सण)। °मंस न [°मांस] पीठ का मांस (पणह १, २)।
पट्ठिअ :: वि [प्रस्थित] जिसने प्रस्थान किया हो वह, प्रयात (दे ४, १६; ओघ ८१ भा सुपा ७८)।
पट्ठिअ :: वि [दे] अलंकृत, विभूषित (षड्)।
पट्ठिउकाम :: वि [प्रस्थातुकाम] प्रयाण का इच्छुक (श्रा १४)।
पट्ठिसंग :: न [दे] ककुद, बैल के कंधे पर का कूबड़, डिल्ला (दे ६, २३)।
पट्ठी :: देखो पट्ठि (महा; काल)।
पट्ठीवंस :: पुं [पृष्ठवंश] घर के मूल दो खंभों पर तिरछा रखा जाता बड़ा खम्भा (पव १३३)।
पठ :: देखो पढ। पठदि (शौ) (नाट — मृच्छ १४०)। पठंति (पिंग)। कर्मं. पठाविअइ (पि ३०९; ५५१)।
पठग :: देखो पाढग (कप्प)।
पड :: अक [पत्] पड़ना, गिरना। पडइ (उव; पि २१८; २४४)। वकृ. पडंत, पडमाण (गा २६४; महा; भवि; बृह ६)। संकृ. पडिअ (नाट — शकु ६७)। कृ. पडणीअ (काल)।
पड :: पुं [पट] वस्त्र, कपड़ा (औप; उव; स्वप्न ८५; स ३२९; गा १८)। °कार देखो °गार (राज)। °कुंडी स्त्री [°कुटी] तंबू, वस्त्र-गृह (दे ६, ६; ती ३)। °गार पुं [°काल] तन्तुवाय, कपड़ा बुननेवाला (पणह १, २ — पत्र २८)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] प्रभूत सूत्रार्थों को ग्रङण करने में समर्थ बुद्धिवाला (औप)। °मंडव पुं [°मण्डप] तंबू, वस्त्र- मण्डप (आक)। °मा वि [°वत्] पटवाला, वस्त्रवाला (षड्)। °वास पुं [°वास] वस्त्र में डाला जाता कुंकुम-चूर्णं आदि सुगन्धित पदार्थं (गउड; स ७३८)। °साडय पुं [°शाटक] १ वस्त्र, कपड़ा। २ धोती, पहनने का लम्बा वस्त्र (भग ९, ३३) ३ धोती और दुपट्टा (णाया १, १ — पत्र ५३)
पडंत्ता :: स्त्री [दे. प्रत्यञ्चा] ज्या, धनुष का चिल्ला या डोरी (दे ६, १४; पाअ)।
पडंसुअ :: देखो पडिंसुद (पि ११५)।
पडंसुआ :: स्त्री [प्रतिश्रुत्] १ प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि (हे १, ८८) २ प्रतिज्ञा (कुमा)
पडंसूअ :: स्त्री [दे] ज्या, धनुष का चिल्ला (दे ६, १४)।
पडंसुत्त :: देखो पडिंसुद (प्राकृ ३२)।
पडच्चर :: पुं [दे] साला जैसा विदूषक आदि (दे ६, २५)।
पडच्चर :: पुं [पटच्चर] चोर, तस्कर (नाट — मृच्छ १३८)।
पडज्झमाण :: देखो पडह = प्र + दह्।
पडण :: न [पतन] पात, गिरना (णाया १, १; प्रासू १०१)।
पडणीअ :: वि [प्रत्यनीक] विरोधी, प्रतिपक्षी, वैरी (स ४३९)।
पडणीअ :: देखो पड = पत्।
पडपुत्तिया :: स्त्री [पटपुत्रिका] छोटा वस्त्र, रुमाल (संबोध ५)।
पडम :: देखो पढम (पि १०४; नाट — शकु ९८)।
पडल :: न [पटल] १ समूह, संघात, वृन्द (कुमा) २ जैन साधुओं का एक उपकरण, भिक्षा के समय पात्र पर ढका जाता वस्त्र- खण्ड (पणह २, ५ — पत्र १४८)
पडल :: न [दे] नीव्र, नरिया, मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार का खपड़ा जिससे मकान छाए जाते हैं (दे ६, ५; पाअ)।
पडलग, पडलय :: स्त्रीन [दे. पटलक] गठरी, गाँठ; गुजराती में 'पोटुलुं' 'पोटली'; 'पुप्फपडसगहत्थाओ' (णाया १, ८)। स्त्री. °लिगा, °लिया (स २१३; सुपा ६)।
पडवा :: स्त्री [दे] पट-कुटी, पट-मण्डप, वस्त्र- गृह, तंबू (दे ६, ६)।
पडह :: सक [प्र + दह्] जलाना, दग्ध करना। कवकृ. पडज्झमाण (पणह १, २)।
पडह :: पुं [पटह] वाद्य-विशेष, नगाड़ा, ढोल (औप; णंदि; महा)।
पडहत्थ :: वि [दे] पूर्णं भरा हुआ (स १८०)।
पडहिय :: पुं [पाटहिक] ढोल बजानेवाला, ढोली, ढोलकिया (पउम ४८, ८९)।
पहहिया :: स्त्री [पटहिका] छोटा ढोल (सुर ३, ११५)।
पडाअ :: देखो पलाय = परा + अय्। कृ. पडाइअव्व (से १४, १२)।
पडाइअ :: वि [पलायित] जिसने पलायन किया हो वह, भागा हुआ (से १५, १५)।
पडाइअव्व :: देखो पडाअ।
पडाइया :: स्त्री [पताकिका] छोटी पताका, अन्तर-पताका (कुप्र १४५)।
पडाग :: पुं [पटाक, पताक] पताका, ध्वजा (कप्प; औप)।
पडागा, पडाया :: स्त्री [पताका] ध्वजा, ध्वज (महा; पाअ; हे १, २०६; प्राप्र; गउड)। °इयडाग पुं [°तिपताक] १ मत्स्य की एक जाति (विपा १, ८ — पत्र ८३) २ पताका के ऊपर की पताका (औप)। °हरण न [°हरण] विजय-प्राप्ति (संथा)
पडागार :: न [] नौका में लगनेवाला वस्त्र (दशवै° चू° १ प्रारम्भ और अग° १११)।
पडायाण :: देखो पल्लाग (हे १, २५२)।
पडायाणिय :: वि [पर्याणित] जिस पर पर्याण बाँधा गया हो वह (कुमा २, ६३)।
पडाली :: स्त्री [दे] १ पंक्ति, श्रेणी (दे ६, ९) २ घर के ऊपर की चटाई आदि की कच्ची छत (वव ७)
पडास :: देखो पलास (नाट — मृच्छ २४३)।
पडि :: वि [पटिन्] वस्त्रवाला (अणु १४४)।
पडि :: अ [प्रति] इन अर्थों का सूचक अव्यय- १ प्रकर्ष (वव १) २ सम्पूर्णंता (चेइय ७८२)
पडि :: अ [प्रति] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ विरोध, 'पडिवक्ख', 'पडिवासुदेव' (गउड; पउम २०, २०२) २ विशेष, विशिष्टता; 'पडिमंजरिवडिंसय' (औप) ३ वीप्सा, व्याप्ति; 'पडिदुवार', 'पडिपेल्लण' (पणह १, ३; से ६, ३२) ४ वापस, पीछे; 'पडिगय' (विपा १, १; भग; सुर १, १४६) ५ आभिमुख्य, संमुखता; 'पडिविरइ', 'पडिबद्ध' (पणह २, २; गउड) ६ प्रतिदान, बदला; 'पडिदेइ' (विसे ३२४१) ७ फिर से; 'पडिपडिय', 'पडिवविय' (सार्धं ९४; दे ६, १३) ८ प्रतिनिधिपन; 'पडिच्छंद' (उप ७२८ टी) ९ प्रतिषेध, निषेध; 'पडियाइक्खिय' (भग; सम ५९) १० प्रतिकूलता, विपरीतता; 'पडिवंथ' (से २, ४६) ११ स्वभाव; 'पडिवाइ' (ठा २, १) १२ सामीप्य, निक टता; 'पडिवेसिअ' (सुपा ५५२) १३ आधिक्य, अतिशय; 'पडियाणंद' (औप) १४, सादृश्य, तुल्यता; 'पडिइंद' (पउम १०५, १११) १५ लघुता, छोटाई; 'पडिदुवार' (कप्प; पणण २) १६ प्रशस्तता, श्लाघा; 'पडिरूव' (जीव ३) १७ सांप्रतिकता, वर्त्तमानता (ठा ३, ४ — पत्र १५८) १८ निरर्थंक भी इसका प्रयोग होता है, 'पडिइंदं' (पउम १०५, ९); 'पडिउच्चारेयव्व' (भग)
पडि :: देखो परि (से ४, ५०; ५, १९; ६९; अंत ७)।
पडिअ :: वि [दे] विघटित, वियुक्त (दे ६, १२)।
पडिअ :: वि [पतित] १ गिरा हुआ (गा ११; प्रासू ५; १०१) २ जिसने चलने को प्रारम्भ किया हो वह; 'आगयमग्गेण य पडिओ' (वसु)
पडिअ :: देखो पड = पत्।
पडिअंकिअ :: वि [प्रत्यङ्कित] १ विभूषित। २ उपलिप्त; 'बहुघणघुसिणपंकि पडियंकिओ' (भवि)
पडिअंतअ :: पुं [दे] कर्मंकर, नौकर (दे ६, ३२)।
पडिअग्ग :: सक [अनु + व्रज्] अनुसरण करना, पीछे जाना। पडिअग्गइ (हे ४, १०७; षड्)।
पडिअग्ग :: सक [प्रति + जागृ] १ सम्हालना। २ सेवा करना, भक्ति करना। ३ श्रुश्रुषा करना; 'वच्छ ! पडियग्गेहि मणिमोत्तियाइयं सारदव्वं' (स २८८), पडियग्गह (स ५४८)
पडिअग्गिअ :: वि [दे] १ परिभुक्त, जिसका परिभोग किया गया हो वह। २ जिसको बधाई दी गई हो वह। ३ पालित, रक्षित (दे ६, ७४)
पडिअग्गिअ :: वि [अनुव्रजित] अनुसृत (दे ६, ७४)।
पडिअग्गिअ :: वि [प्रतिजागृत] भक्ति से आदृत (स २१)।
पडिअग्गिर :: वि [अनुव्रजिन्] अनुसरण करने की आदत वाल (कुमा)।
पडिअज्झअ :: पुं [दे] उपाध्याय, विद्या-दाता गुरु (दे ६, ३१)।
पडिअट्टलिअ :: वि [दे] घृष्ट, घिसा हुआ (से ६, ३१)।
पडिअत्त :: देखो परि + वत्त = परि + वृत्। संकृ. पडिअत्तिअ (नाट)।
पडिअत्तण :: न [परिवर्त्तन] फेरफार, हेरफेर (से ५, ६९)।
पडिअमित्त :: पुं [प्रत्यमित्र] मित्र-शत्रु, मित्र होकर पीछे से जो शत्रु हुआ हो वह (राज)।
पडिअम्मिय :: वि [प्रतिकर्मित] मण्डित, विभूषित (दे ६, ३५)।
पडिअर :: सक [प्रति + चर्] १ बीमार की सेवा करना। २ आदर करना। ३ निरीक्षण करना। ४ परिहार करना। संकृ. पडियरिऊण (निचू १)
पडिअर :: सक [प्रति + कृ] १ बदला चुकाना। २ इलाज करना। ३ स्वीकार करना। हेकृ. पडिकाउं (गा ३२०)। संकृ. 'तहंति पडिकाऊण ठाविओ एसो' (कुप्र ४०)
पडिअर :: पुं [दे] चुल्ली-मूल, चुल्हे का मूल भाग (से ६, १७)।
पडिअर :: पुं [परिकर] परिवार, 'पडियरि (? र) त्थो पुरिसो व्व नियत्तो तेहिं चेव पएहिं नलो' (कुप्र ५७)।
पडिअरग :: वि [प्रतिचारक] सेवा-श्रुश्रुषा करनेवाला (निचू १; वव १)।
पडिअरण :: न [प्रतिचरण] सेवा, श्रुश्रुषा (ओघ ३९ भा; श्रा १; सुपा २९)।
पडिअरणा :: स्त्री [प्रतिचरणा] १ बीमार की सेवा-श्रुश्रुषा (ओग ८३) २ भक्ति, आदर, सत्कार (उप १३६ टी) ३ आलोचना, निरीक्षण (ओघ ८३) ४ प्रतिक्रमण, पाप- कर्म से निवृत्ति। ५ सत-कार्यं में प्रवृत्ति (आव ४)
पडिअलि :: वि [दे] त्वरित, वेग-युक्त (दे ६, २८)।
पडिआइय :: सक [प्रत्या + पा] फिर से पान करना। पडिआइयइ (दस १०, १)।
पडिआइय :: सक [प्रत्या + दा] फिर से ग्रहण करना। पडिआइयइ (दस १०, १)।
पडिआगय :: वि [प्रत्यागत] १ वापस आया हुआ, लौटा हुआ (पउम १६, २९) २ न. प्रत्यागमन, वापस आना (आचू १)
पडिआयण :: न [प्रत्यापन] फिर से पान, 'वंतस्स य पडिआयणं' (दसचू १, १)।
पडिआयण :: न [प्रत्यादान] फिर से ग्रहण (दसचू १, १)।
पडिआर :: पुं [प्रतिकार] १ चिकित्सा, उपाय, इलाज (आव ४; कुमा) २ बदला, शोघ (आचा) ३ पूर्वाचरित कर्मं का अनुभव (सूअ १, ३, १, ९)
पडिआर :: पुं [प्रत्याकार] तलवार की म्यान (दे २, ५; स २१५); 'न एक्कम्मि पडियारो दोन्नि करवालाइं मायंति' (महा)।
पडिआर :: पुं [प्रतिचार] सेवा-सुश्रुषा (णाया १, १३ — पत्र १७९)।
पडिआरय :: वि [प्रतिचारक] सेवा-श्रुश्रुषा करनेवाला (णाया १, १३ टी — पत्र १८१)। स्त्री. °रिया (णाया १, १ — पत्र २८)।
पडिआरि :: वि [प्रतिचारिन्] ऊपर देखो (वव १)।
पडिइ :: सक [प्रति + इ] पोछे लौटना, वापस आना। वकृ. पडिइंत (उप ५९७ टी)। हेकृ. पडिएत्तए (कस)।
पडिइ :: स्त्री [पतिति] पतन, पात (वव ५)।
पडिइंद :: पुं [प्रतीन्द] १ इन्द्र, देव-राज (पउम १०५, ९) २ इन्द्र का सामानिक- देव, इन्द्र के तुल्य वैभववाला देव (पउम १०५, १११) ३ वानर-वंश के एक राजा का नाम (पउम ६, १५२)
पडिइंधण :: न [प्रतीन्धन] अस्त्र-विशेष, इन्ध- नास्त्र का प्रतिपक्षी अस्त्र (पउम ७१, ६४)।
पडिइक्क :: देखो पडिक्क (आचा)।
पडिउंचण :: न [दे] अपकार का बदला (पउम ११, ३८; ४४, १९)।
पडिउंबण :: न [परिचुम्बन] संगम, संयोग (से २, २७)।
पडिउच्चार :: सक [प्रत्यत् + चारय्] उच्चा- रण करना, बोलना (भग; उवा)।
पडिउज्जम :: अक [प्रत्युद् + यम्] सम्पूर्णं प्रयत्न करना। पडिउज्जमंति (चेइय ७८२)।
पडिउट्ठिअ :: वि [प्रत्युत्थित] जो फिर से खड़ा हुआ हो वह (से १५, ८०; पउम ६१, ४०)।
पडिउण्ण :: देखो परिपुण्ण (से ५, १९)।
पडिउत्तर :: न [प्रत्युत्तर] जवाब, उत्तर (सुर २, १५८; भवि)।
पडिउत्तरण :: न [प्रत्युत्तरण] पार जाना, पार उतरना (निचू १)।
पडिउत्ति :: स्त्री [दे] खबर, समाचार; 'अम्मा- पियरस्स कुसलपडिउत्ती ससिणेहं परिपुठ्ठा' (महा)।
पडिउत्थ :: वि [पर्युषित] संपूर्ण रूप से अवस्थित (से ४, ५०)।
पडिउद्ध :: वि [प्रतिबुद्ध] १ जागृत, जगा हुआ (से १२, २२) २ प्रकाश-युक्त; 'जल- णिहिवहपडिउद्धं आअणणअडि्ढअं विअंभइ व धणुं' (दे ५, २७)
पडिउवयार :: पुं [प्रत्युपकार] उपकार का बदला, प्रतिफल (पउम ४८, ७२; सुपा ११५)।
पडिउस्सस :: अक [प्रत्युत् + श्वस्] पुनर्जी वित होना, फिर से जीना। वकृ. पडिउस्स- संत (से ९, १२)।
पडिऊल :: देखो पडिकूल (अच्चु ८०; से ३, ३५)।
पडिएत्तए :: देखो पडिइ।
पडिएल्लिअ :: वि [दे] कृतार्थ, कृत-कृत्य (दे ६, ३२)।
पडिओसह :: न [प्रत्यौषध] एक औषध का प्रतिपक्षी औषध (सम्मत्त १४२)।
पडिंसुआ :: देखो पडंसुआ = प्रतिश्रुत् (औप)।
पडिंसुद :: वि [प्रतिश्रुत] अंगीकृत, स्वीकृत (प्राप्र; पि ११५)।
पडिकंटय :: वि [प्रतिकण्टक] प्रतिस्पर्धीॉ (राय)।
पडिकंत :: देखो पडिक्कंत (उप २२० टी)।
पडिकत्तु :: वि [प्रतिकर्तृ] इलाज करनेवाला (ठा ४, ४)।
पडिकप्प :: सक [प्रति + कृप्] १ सजाना, सजावट करना; 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कूणियस्स रणणो भिंभिसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि' (औप), पडिकप्पेइ (औप)
पडिकप्पिअ :: वि [प्रतिक्लृप्त] सजाया हुआ (विपा १, २ — पत्र २३; महा; औप)।
पडिकम :: देखो पडिक्कम। कृ. 'पडिकमणं पडिकमओ पडिकमिअव्वं च आणुपुव्वीए' (आनि ४)।
पडिकमय :: न देखो पडिक्कमय (आनि ४)।
पडिकम्म :: न [प्रतिकर्मन्, परिकर्मन्] देखो परिकम्म (औप; सण)।
पडिकय :: वि [प्रतिकृत] १ जिसका बदला चुकाया गया हो वह। २ न. प्रतिकार, बदला (ठा ४, ४)
पडिकाउं, पडिकाऊण :: देखो पडिअर = प्रति + कृ।
पडिकामणा :: देखो पडिक्कामणा (ओधंभा ३९ टी)।
पडिकाय :: पुं [प्रतिकाय] प्रतिबिम्ब, प्रतिमा (चेइय ७५)।
पडिकिदि :: स्त्री [प्रतिकृति] १ प्रतिकार, इलाज। २ बदला (दे ६, १९) ३ प्रति- बिम्ब, मूर्त्ति (अभि १९९)
पडिकिय :: न [प्रतिकृत] ऊपर देखो (चेइय ७५)।
पडिकिरिया :: स्त्री [प्रतिक्रिया] प्रतीकार, वदला; 'कयपडिकिरिया' (औप)।
पडिकुट्ठ, पडिकुट्ठिल्लग :: वि [प्रतिक्रुष्ट] १ निषिद्ध, प्रतिषिद्ध (ओघ ४०३; पच्च ८; सुपा २०७); 'पडिकुट्ठिल्लगदिवसे वज्जेज्जा अट्ठमिं च नवमिं च' (वव १) २ प्रतिकूलट (स २७०); 'अन्नोन्नं पडिकुट्ठा दोन्निवि एए असव्याया' (सम्म १५३)
पडिकुट्ठेल्लग :: देखो पडिकुट्ठिल्लग (वव १)।
पडिकूड :: देखो पडिकूल = प्रतिकूल (सुर ११, २०१)।
पडिकूल :: सक [प्रतिकूलय्] प्रतिकूल आच- रण करना। वकृ. 'पडिकूलंतस्स मज्झ जिण- वयणं' (सुपा २०७; २०६)। कृ. पडिकूले- यव्व (कुप्र २४२)।
पडिकूल :: वि [प्रतिकूल] १ विपरीत, उलटा (उत्त १२) २ अनिष्ट, अनभिमत (आचा) ३ विरोधी, विपक्ष (हे २, ९७)
पडिकूलणा :: स्त्री [प्रतिकूलना] १ प्रतिकूल आचरण। २ प्रतिकूलता, विरोध (धर्मंवि ५८)
पडिकूलिय :: वि [प्रतिकूलित] प्रतिकूल किया हुआ (राज)।
पडिकूवग :: पुं [प्रतिकूपक] कूप के समीप का छोटा कूप (स १००)।
पडिकेसव :: पुं [प्रतिकेशव] वासुदेव का प्रतिपक्षी राजा, प्रतिवासुदेव (पउम २०, २०४)।
पडिकोस :: सक [प्रति + क्रुश्] आक्रोश करना, कोसना, शाप या गाली देना। पडि- कोसह (सूअ २, ७, ९)।
पडिकोह :: पुं [प्रतिक्रोध] गुस्सा (दस ६, ५८)।
पडिक्क :: न [प्रत्येक] प्रत्येक, हरएक (आचा)।
पडिक्कंत :: वि [प्रतिकान्त] पीछे हटा हुआ, निवृत्त (उवा; पणह २, १; श्रा ४३, सं १०९)।
पडिक्कम :: अक [प्रति + क्रम्] निवृत्त होना, पीछे हटना। पडिक्कमइ (उवा; महा०। पडिक्कमे (श्रा ३; ५; पच्च १२)। हेकृ. पडिक्कमिउं, पडिक्कमित्तए (धर्मं २; कस; ठा २, १)। संकृ. पडिक्कमित्ता (आचा २, १५)। कृ. पडिक्कंतव्व, पडिक्कमियव्व (आवम; ओघ ८००)।
पडिक्कम :: पुं [प्रतिक्रम] देखो पडिक्कमण, 'गिहिपडिक्कमाइयाराणं' (पव — गाथा २)।
पडिक्कमण :: न [प्रतिक्रमण] १ निवृत्ति, व्यावर्त्तन। २ प्रमाद-वश शुभ योग से गिर कर अशुभ योग को प्राप्त करने के बाद फिर से शुभ योग का प्राप्त करना। ३ अशुभ व्यापार से निवृत्त होकर उत्तरोत्तर शुद्ध योग में वर्त्तन (पणह २, १; औप; चउ ५; पडि) ४ मिथ्या- दुष्कृत-प्रदान, किए हुए पाप का पश्चात्ताप (ठा १०) ५ जैन साधु और गृहस्थों का सुबह और शाम को करने का एक आवश्यक अनुष्ठान (श्रा ४८)
पडिक्कमय :: वि [प्रतिक्रामक] प्रतिक्रमण करनेवाला, 'जीवो उ पडिक्कमओ असुहाणं पावकम्मनजोगाणं' (आनि ४)।
पडिक्कमिउं :: देखो पडिक्कम। °काम वि [°काम] प्रतिक्रमण करने की इच्छावाला (णाया १, ५)।
पडिक्कय :: पुं [दे] प्रतिक्रिया, प्रतीकार (दे ६, १९)।
पडिक्कामणा :: स्त्री [प्रतिक्रमणा] देखो पडि- क्मण (ओघ ३९ भा)।
पडिक्कूल :: देखो पडिकूल (हे २, ९७; षड्)।
पडिक्ख :: सक [प्रति + ईक्ष्] १ प्रतीक्षा करना, बाट देखना, बाट जोहना। २ अक. स्थिति करना। पठिक्खइ (षड्; महा)। वकृ. पडिक्खंत (पउम ५, ७२)
पडिक्खअ :: वि [प्रतीक्षक] प्रतीक्षा करनेवाला, बाट जोहनेवाला (गा ५५७ अ)।
पडिक्खंभ :: पुं [प्रतिस्तम्भ] अर्गला, अरगला, आगल, अगरी, ब्योंड़ा (से ६, ३३)।
पडिक्खण :: न [प्रतीक्षण] प्रतीक्षा, बाट, राह (दे १, ३४; कुमा)।
पडिक्खर :: वि [दे] १ क्रूर, निर्दंय (दे ६, २५) २ प्रतिकूल (षड्)
पडिक्खल :: अक [प्रति + स्खल्] १ हटना। २ गिरना। ३ रुकना। ४ सक. रोकना। वकृ. पडिक्खलंत (भवि)
पडिक्खलण :: न [प्रतिस्खलन] १ पतन। २ अवरोध (आवम)
पडिक्खलिअ :: वि [प्रतिस्खलित] १ परावृत्त, पीछे हटा हुआ (से १, ७) २ रुका हुआ (से १, ७; भवि)। देखो पडिखलिअ।
पडिक्खाविअ :: वि [प्रतीक्षित] १ स्थापित। २ कृत; 'विरमालिअ संसारे जेण पडिक्खा- विआ समयसस्था' (कुमा)
पडिक्खिअ :: वि [प्रतीक्षित] जिसकी प्रतीक्षा की गई हो वह (दे ८, १३)।
पडिक्खित्त :: वि [परिक्षिप्त] विस्तारित (अंत ७)।
पडिखंध :: न [दे] १ जल-वहन, जल भरने का दृति आदि पात्र। २ जलवाह, मेघ, बादल (दे ६, २८)
पडिखंधी :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (दे ६, २८)।
पडिखद्ध :: वि [दे] हत, मारा हुआ ( ? ); 'किमेइणा सुणहपाएण पडिखद्धेण' (महा)।
पडिखल :: देखो पडिक्खल (भवि)। कर्मं. पडिखलियइ (कुप्र २०५)।
पडिखलण :: देखो पडिक्खलण (धर्मंवि ५६)।
पडिखलिअ :: वि [प्रतिस्खलित] १ रुका हुआ (भवि) २ रोका हुआ; 'सहस्सा तत्तो पडिखलिओ अंगरक्खेण' (सुपा ५२७)। देखो पडिक्खलिअ।
पडिखिज्ज :: अक [परि + खिद्] खिन्न होना, क्लान्त होना। पडिखिज्जदि (शौ) (नाट — मालती ३१)।
पडिगमण :: न [प्रतिगमन] व्यावर्तन, पीछे लौटना (वव १०)।
पडिगय :: पुं [प्रतिगज] प्रतिपक्षी हाथी (गउड)।
पडिगय :: पुं [प्रतिगत] पीछे लौटा हुआ, वापस गया हुआ (विपा १, १; भग औप; महा; सुर १, १४६)।
पडिगह :: देखो पडिग्गह (दे ४, ३१)।
पडिगाह :: सक [प्रति + ग्रह्] ग्रहण करना, स्वीकार करना। पडिगाहइ (भवि)। पडिगाह, पडिगाहेहि (कप्प)। संकृ. पडिगा- हिया, पडिगाहित्ता, पडिगाहेत्ता (कप्प; आचा २, १, ३, ३)। हेकृ. पडिगाहित्तए (कप्प)।
पडिगाहग :: वि [प्रतिग्राहक] ग्रहण करने वाला (णाया १, १ — पत्र ५३; उप पृ २६३)।
पडिगाहिय :: वि [प्रतिगृहित] लिया हुआ, उपात्त (सुपा १४३)।
पडिग्गह :: पुं [पतद्ग्रह, प्रतिग्रह] १ पात्र, भाजन (पणह २, ५; औप; ओध ३६; २५१; दे ५, ४८; कप्प) २ कर्मं प्रकृति — विशेष, वह प्रकृति जिसमें दूसरी प्रकृति का कर्मं-दल परिणत होता है (कम्पप)। °धारि वि [°धारिन्] पात्र रखनेवाला (कप्प)
पडिग्गहिअ :: वि [प्रतिग्रहिन्, पतद्ग्रहिन्] पात्रवाला; 'समणो भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए पाणिपडिग्गहिए' (कप्प)।
पडिग्गाहिद :: (शौ) वि [प्रतिगृहित्, परि- गृहीत] स्वीकृत (नाट — मृच्छ ११०; रत्ना १२)।
पडिग्गाह :: देखो पडिगाह। पडिग्गाहेइ (उवा)। संकृ. पडिग्गाहेत्ता (उवा)। हेकृ. पडिग्गाहेत्तए (कस; औप)।
पडिग्गाह :: सक [प्रति + ग्राहय्] ग्रहण कराना। कृ. पडिग्गाहिदव्व (शौ) (नाट)।
पडिग्गाहय :: वि [प्रतिग्राहक] प्रत्यदाता, बापस लेनेवाला (दे ७, ५९)।
पडिग्घाय :: पुं [प्रतिघात] १ निरोध, अटकाव (दस ६, ५८) २ विनाश (धर्मंवि ५४)
पडिघाय :: पुं [प्रतिघात] १ नाश, विनाश। २ निराकरण, निरसन; 'दुक्खपडिघामयहेउं' (आचा; सुर ७, २३४)
पडिघायग :: वि [प्रतिघातक] प्रतिघात करनेवाला (उप २६४ टी)।
पडिघोलिर :: वि [प्रतिघूर्णितृ] डोलनेवाला, हिलनेवाला (से ६, ५१)।
पडिचंत :: पुं [प्रतिचन्द्र] द्वितीय चन्द्र, जो उत्पात आदि का सूचक है (अणु)।
पडिचक्क :: न [प्रतिचक्र] अनुरूप चक्र — समु — दाय (राज)। देखो पडियक्क = प्रतिचक्र।
पडिचर :: देखो पडिअर = प्रति = चर्। संकृ. पडिचरिय (दस ९, ३)। कृ. 'संडमो पडिचरियव्वो' (आव ४)।
पडिचर :: सक [प्रति + चर्] परिभ्रमण करना। पडिचरइ (सुज्ज १, ३)।
पडिचरग :: पुं [प्रतिचरक] जासूस, चर पुरुष (बृह १)।
पडिचरणा :: देखो पडिअरणा (राज)।
पडिचार :: पुं [प्रतिचार] कला-विशेष — १ ग्रह आदि की गति का परिज्ञान। २ रोगी की सेवा-श्रुश्रुषा का ज्ञान (जं २; औप; स ६०३)
पडिचारय :: पुंस्त्री [प्रतिचारक] नौकर, कर्मकर। स्त्री. °रिया (सुपा ३०४)।
पडिचोइज्जमाण :: देखो परिचोय।
पडिचोइअ :: वि [प्रतिचोदित] १ प्रेरित (उप पृ ३९४) २ प्रतिभणित, जिसको उत्तर दिया गया हो वह (पउम ४४, ४९)
पडिचोएत्तु :: वि [प्रतिचोदयितृ] प्रेरक (ठा ३, ३)।
पचिडोय :: सक [प्रति + चोदय्] प्रेरणा करना। पडिचोएंति (भग १५)। कवकृ. पडिचोइज्जमाण (भग १५ — पत्र ६७९)।
पडिचोयणा :: स्त्री [प्रतिचोदना] प्रेरणा (ठा ३, ३; भग १५ — पत्र ६७९)।
पडिचोयणा :: स्त्री [प्रतिचोदना] निर्भंर्त्संना, निष्ठुरता से प्रेरणा (विचार २३८)।
पडिच्चारग :: देखो पडिचारय (उप ९८६ टी)।
पडिच्छ :: देखो पडिक्ख। वकृ. पडिच्छंत; 'अहिसेयदिणं परडिच्छमाणो चिट्ठइ' (उव; स १२५; महा)। कृ. पडिच्छियव्व (महा)।
पडिच्छ :: सक [प्रति + इष्] ग्रङण करना। पडिच्छइ, पडिच्छंति (कप्प; सुपा ३९)। वकृ. पडिच्छमाण, पडिच्छेमाण (औप; कप्प; णाया १, १)। संकृ. पडिच्छइत्ता, पडिच्छिअ, पडिच्छिउं, पडिच्छिऊण (कप्प; अभि १८५; सुपा ८७; निचू २०)। हेकृ. पडिच्छिउं (सुपा ७२)। कृ. पडि- च्छियव्व (सुपा १२५; सुर ४, १८९)। प्रयो. कर्म. पडिच्छावीअदि (शौ) (पि ५५२; नाट)। वकृ. पडिच्छावेमाण (कप्प)।
पडिच्छंद :: पुंन [प्रतिच्छन्द] १ मूर्त्ति, प्रति- बिम्ब (उप ७२८ टी; स १९१; ६०६) २ तुल्य, समान (से ८, ४६)। °कय वि [°कृत] समान किया हुआ (कुमा)
पड़िच्छंद :: पुं [दे] मुख, मुँह (दे ६, २४)।
पडिच्छग :: वि [प्रत्येषक] ग्रहण करनेवाला (निचू ११)।
पडिच्छण :: न [प्रतीक्षण] प्रतीक्षा, बाट, राह (उप ३७८)।
पडिच्छण :: न [प्रत्येषण] १ ग्रहण, आदान, लेना। २ उत्सारण, विनिवारण; 'कुलिसपडि- च्छणजोग्गा पच्छा कडया महिहराण' (गउड)
पडिच्छणा :: [प्रत्येषणा] ग्रहण, आदान (निचू १९)।
पडिच्छण्ण, पडिच्छन्न :: वि [प्रतिच्छन्न] आच्छादित, दका हुआ (णाया १, १ — पत्र १३; कप्प)।
पडिच्छय :: पुं [दे] समय, काल (दे ६, १६)।
पडिच्छये :: देखो पडिच्छग (औप)।
पडिच्छयण :: न [प्रतिच्छदन] देखो पडि- च्छायण (राज)।
पडिच्छा :: स्त्री [प्रतीच्छा] ग्रहण, अंगीकार (द्र ३३, सण)।
पडिच्छायण :: न [प्रतिच्छादन] आच्छादन- वस्त्र, प्रच्छादन-पट; 'हिरिपडिच्छायणं च नो संचाएमि अहियासित्तए' (आचा; णाया १, १ — पत्र १५ टी)।
पडिच्छायण :: न [प्रतिच्छादन] आच्छादन, आवऱण (सुज्ज २०)।
पडिच्छाया :: स्त्री [प्रतिच्छाया] प्रतिबिम्ब, परछाँई (उप ५९३ टी)।
पडिच्छावेमाण :: देखो पडिच्छा = प्रति + इष्।
पडिच्छिअ :: वि [प्रतीष्ट, प्रतीप्सित] १ गृहीत, स्वीकृत (स ७, ५४; उवा; औप; सुपा ८४) २ विशेष रूप से वाञ्छित (भग)
पडिच्छिअ :: देखो पडिच्छ = प्रति + इष्।
पडिच्छिआ :: स्त्री [दे] १ प्रतिहारी। २ चिर- काल से ब्यायी हुई भैंस (दे ६, २१)
पडिच्छिउं, पडिच्छिऊण, पडिच्छियव्व :: देखो पडिच्छ = प्रति + इष्।
पडिच्छिर :: वि [प्रतीक्षितृ] प्रतीक्षा करनेवाला, बाट देखनेवाला (वज्जा ३६)।
पडिच्छिय :: वि [प्रातीच्छिक] अपने दीक्षा- गुरु की आज्ञा लेकर दूसरे गच्छ के आचार्य के पास उनकी अनुमति से शास्त्र पढ़नेवाला मुनि (णंदि ५४)।
पडिच्छिर :: वि [दे] सदृश, समान (हे २, १७४)।
पडिछंद :: देखो पडिच्छंद; 'घडियं विपयडिछंदं' (उप ७२८ टी)।
पडिछा :: स्त्री [प्रतीक्षा] प्रतीक्षण, बाट (ओघ १७५)।
पडिछाया :: देखो पडिच्छाया (चेइय ७५)।
पडिजंप :: सक [प्रति + जल्प्] उत्तर देना। पडिजंपइ (भवि)।
पडिजग्ग :: देखो पडिजागर = प्रति + जागृ। पडिजग्गइ (बृह ३)।
पडिजग्गय :: वि [प्रतिजागरक] सेवा-श्रुश्रूषा करनेवाला (उप ७६८ टी)।
पडिजग्गिय :: वि [प्रतिजागृत] जिसकी सेवा- श्रुश्रूषा की घई हो वह (सुर ११, २४)।
पडिजागर :: सक [प्रति + जागृ] १ सेवा- श्रुश्रूषा करना, निर्वाह करना, निभाना। २ गवेषणा करना। पडिजागरंति (कप्प)। वकृ. पडिजागरणमाण (विपा १, १; उवा; महा)
पडिजागर :: पुं [प्रतिजागर] १ सेवा-श्रुश्रूषा। २ चिकित्सा; 'भणिओ सिट्ठी आणसु विज्जं पडिजागरठ्ठाए' (सुाप ५७९)
पडिजागरण :: न [प्रतिजागरण] ऊपर देखो (वव ६)।
पडिजागिरय :: देखो पडिजाग्गिय (दे १, ४१)।
पडिजायणा :: स्त्री [प्रतियातना] प्रतिबिम्ब, प्रतिमा, परछाई (चेइय ७५)।
पडिजुवइ :: स्त्री [प्रतियुवति] १ स्व-समान अन्य युवति। २ सपत्नी (कुप्र ४)
पडिजोग :: पुं [प्रतियोग] कार्मंण आदि योग का प्रतिघातक योग, चूर्णं-विशेष (सुर ८, २०४)।
पडिट्ठ :: वि [पटिष्ठ] अत्यन्त निपुण, बहुत चतुर (सुर १, १३५; १३, ९६)।
पडिट्ठविअ :: वि [परिस्थापित] संस्थापित (से ५, ५२)।
पडिट्ठविअ :: वि [प्रतिष्ठापित] जिसकी प्रतिष्ठा की गई हो वह (अच्चु ६४)।
पडिट्ठा :: देखो पइट्ठा (नाट — मालती ७०)।
पडिट्ठाव :: सक [प्रति + स्थापय्] प्रतिष्ठित करना। पडिट्ठावेहि (पि २२०; ५५१)।
पडिट्ठावअ :: देखो पइट्ठावय (नाट — वेणी ११२)।
पडिट्ठाविद :: (शौ) देखो पइट्ठाविय (अभि १८७)।
पडिट्ठिअ :: देखो पइट्ठिय (षड्; पि २२०)।
पडिठाण :: न [प्रतिस्थान] हर जगह (धर्मंवि ४)।
पडिण :: देखो पडीण (पि ८२; ९९)।
पडिणव :: वि [प्रतिनव] नया, नूतन; 'तुरअ- पडिणवखुरघाद णिरंतरखंडिढं' (विक्र २६)।
पडिणिअसंण :: न [दे] रात में पहनने का वस्त्र (दे ६, ३६)।
पडिणिअत्त :: अक [प्रतिनि + वृत्] पीछे लौटना, पीछे वापस जाना। पडिणियत्तई (औप)। वकृ. पडिणिअत्तंत, पडिणिअत्त- माण (से १३, ७५; नाट — मालती २९)। संकृ. पडिणियत्तित्ता (औप)।
पडिणिअत्त, पडिणिउत्त :: वि [प्रतिनिवृत्त] पीछे लौटा हुआ (गा ९८ अ; विपा १, ५; उवा; से १, २६; अभि १२४)।
पडिणिकास :: वि [प्रतिनिकाश] समान, तुल्य (राय ६७)।
पडिणिक्खम :: अक [प्रतिनिर् + क्रम्] बाहर निकलना। पडिणिक्खमइ (उवा)। संकृ. पडिणिक्खमित्ता (उवा)।
पडिणिग्गच्छ :: अक [प्रतिनिर् + गम्] बाहर निकलना। पडिणिग्गच्छइ (उवा)। संकृ. पडिणिग्गच्छित्ता (उवा)।
पडिणिज्जाय :: सक [प्रतिनिर् + यापय्] अर्पण करना। पडिणिज्जाएमि (णाया १, ७ — पत्र ११८)।
पडिणिभ :: वि [प्रतिनिभ] १ सदृश, तुल्य, बराबर। २ हेतु-विशेष, वादी की प्रतिज्ञा का खंडन करने के लिए प्रतिवादी की तरफ से प्रयुक्त समान हेतु — युक्ति (ठा ४, ३)
पडिणिवत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + वृत्। वकृ. पडिणिवत्तमाण (नाट, रत्ना ५४)।
पडिणिवत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनिवृत्त (काल)।
पडिणिविट्ठ :: वि [प्रतिनिविष्ट] द्विष्ट, द्वेष- युक्त (पणह १, १ — पत्र ७)।
पडिणिवुत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + वृत्। वकृ. पडिणिवुत्तमाण (वेणी २३)।
पडिणिवुत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनिवृत्त (अभि ११८)।
पडिणिवेस :: देखो पडिनिवेस (राज)।
पडिणिव्वत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + वृत्। वकृ. पडिणिव्वत्तंत (हेका ३३२)।
पडिणिसंत :: वि [प्रतिनिश्रान्त] १ विश्रान्त। २ निलोन (णाया १, ४ — पत्र ९७)
पडिणाय :: न [प्रत्यनीक] १ प्रतिसैन्य, प्रति- पक्ष की सेना (भग ८, ८) २ वि. प्रतिकूल, विपक्षी, विपरीत आचरण करनेवाला (भग ८, ८; णाया १, २; सम्म १६३; औप; ओघ ६३; द्र ३३)
पडिण्णत्त :: वि [प्रतिज्ञप्त] उक्त, कथित; 'जस्सं णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे; अहं च खलु पडणण (न्न) त्तो अपडिण्ण (न्न) त्तैहिं' (आचा १, ८, ५, ४)।
पडिण्णा :: देखो पइण्णा (स्वप्न २०७; सूअ १, २, २, २०)।
पडिण्णाद :: देखो पइण्णाद (पि २७६; ५६५, नाट — मालवि १२)।
पडितंत :: वि [प्रतितन्त्र] स्व-शास्त्र ही में प्रसिद्ध अर्थ, 'जो खलु संततसिद्धो न य पर- तंतेसु सो उ पडितंतो' (बृह १)।
पडितणु :: स्त्री [प्रतितनु] प्रतिमा, प्रतिबिम्ब (चेइय ७५)।
पडितप्प :: सक [प्रतितर्पय्] भोजनादि से तृप्त करना। पडितप्पह (ओघ ५३५)।
पडितप्प :: अक [प्रति + तप्] १ चिन्ता करना। २ खबर रखना। पडितप्पई (उत्त १७, ५)
पडितप्पिय :: वि [प्रतितर्पित] भोजन आदि से तृप्त किया हुआ (वव १)।
पडितुट्ठ :: देखो परितुट्ठ (नाट — मृच्छ ८१)।
पडितुल्ल :: वि [प्रतितुल्य] समान, सदृश (पउम ५, १४६)।
पडित्त :: देखो पलित्त = प्रदीप्त (से १, ५; ५, ८७)।
पडित्ताण :: देखो परित्ताण (नाट — शकु १४)।
पडित्थिर :: वि [दे] समान, सदृश (दे ६, २०)।
पडित्थिर :: वि [परिस्थिर] स्थिर, 'गुप्पंत- पडित्थिरे' (से २, ४)।
पडिथद्ध :: वि [प्रतिस्तब्ध] गर्वित (उत्त १२, ५)।
पडिदंड :: पुं [प्रतिदण्ड] मुख्य दण्ड के समान दूसरा दण्ड, 'सपडिदंडेणं धरिज्जमाणेणं आयवत्तेणं विरायंते (औप)।
पडिदंस :: सक [प्रति + दर्शय्] दिखलाना। पडिदंसेइ (भग; उवा)। संकृ. पडिदंसेत्ता (उवा)।
पडिदा :: सक [प्रति + दा] पीछे देना, दान का बदला देना। पडिदेइ (विसे ३२४१)। कृ. पडिदायव्व (कस)।
पडिदाण :: न [प्रतिदान] दान के बदले में दान; 'दाणपडिदाणउचियं' (उप ५९७ टी)।
पडिदासिया :: स्त्री [प्रतिदासिका] दासी (दस ३, १ टी)।
पडिदिसा, पडिदिसि :: स्त्री [प्रतिदिश्] विदिशा, विदिक् (राज; पि ४१३)।
पडिदुगंछि :: वि [प्रतिजुगुप्सिन्] १ निन्दा करनेवाला। २ परिहार करनेवाला; 'सीओ- दगपडिदुगंछिणो'। (सूअ १, २, २ २०)
पडिदुवार :: न [प्रतिद्वार] १ हर एक द्वार (पणह १, ३) २ छोटा द्वार (कप्प; पणण २)
पडिधि :: देखो परिहि; 'सूरियपडिधीतो बहित्ता' (सूज्ज ९)।
पडिनमुक्कार :: पुं [प्रतिनमस्कार] नमस्कार के बदल में नमस्कार — प्रणाम (रंभा)।
पडिनिक्खंत :: वि [प्रतिनिष्कान्त] बाहर निकला हुआ (णाया १, १३)।
टपडिनिक्खम :: देखो पडिणिक्खम। पडिनि- क्खमइ (कप्प)। संकृ. पडिनिक्खमित्ता; (कप्प; भग)।
पडिनिग्गच्छ :: देखो पडिणिग्गच्छ। पडिनि- ग्गच्छइ (उवा)। पडिनिग्गच्छंति (भग)। संकृ. पडिनिग्गच्छत्ता (उवा; पि ५८२)।
पडिनिभ :: देखो पडिणभ (दसनि १)।
पडिनियत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + वृत्। पडिनियत्तइ (महा)। हेकृ. पडिनियत्तए (कप्प)।
पडिनियत्त :: देखो पडिणिअत्त = प्रतिनिवृत्त (णाया १, १४; महा)।
पडिनियत्ति :: स्त्री [प्रतिनिवृत्ति] वापस लौटना प्रत्यावर्त्तन (मोह ६३)।
पडिनिवेस :: पुं [प्रतिनिवेश] १ आग्रह, कदाग्रह, दुराग्रह, अनुचित हठ (पच्च ६) २ गाढ़ अनुशय, पश्चात्ताप (विसे २२९६)
पडिनिसिद्ध :: वि [प्रतिनिषिद्ध] निवारित, हटाया हुआ (उप पृ ३३३)।
पडिन्नत्त :: देखो पडिण्णत्त (आचा १, ८, ५, ४)।
पडिन्नव :: सक [प्रति + ज्ञपय्] १ प्रतिज्ञा कराना। २ नियम दिलाना। पडिन्नविज्जा, पडिन्नवेज्जा (दसचू २, ८)
पडिन्ना :: देखो पडिण्णा (आचा)।
पडिपंथ :: पुं [प्रतिपथ] १ उलटा मार्गं, विपरीत मार्ग। २ प्रतिकूलता (सूअ १, ३, १, ९)
पडिपंथि :: वि [प्रतिपन्थिन्] प्रतिकूल, विरोधी; 'अप्पेगे पडिभासंति पडिपंथियमागता' (सूअ १, ३, १, ९)।
पडिपक्ख :: देखो पडिवक्ख (ओघ १३)।
पडिपडिय :: वि [प्रतिपतित] फिर से गहिरा हुआ, 'सत्थो सिवत्थिणो चालियावि पडिपडिया भवारणणे' (सार्ध ९४)।
पडिपत्ति, पडिपद्दि :: देखो पडिवत्ति (नाट — चैत ३४; संक्षि ९)।
पडिपह :: पुं [प्रतिपथ] १ उन्मार्ग, विपरीत रास्ता (स १४७; पि ३६६ ए) २ न. अभिमुख, संमुख (सूअ २, २, ३१ टी)
पडिपहिअ :: वि [प्रातिपथिक] संमुख आनेवाला (सूअ २, २, २८)।
पडिपाअ :: सक [प्रति + पादय्] प्रतिपादन करना, कथन करना। कृ. पडिपाअणीअ (नाट — शकु ६५)।
पडिपाय :: पुं [प्रतिपाद] मुख्य पाद को सहा- यता पहुँचानेवाला पाद (राय)।
पडिपाहुड :: न [प्रतिप्राभृत] बदले की भेंट (सुपा)।
पडिपिंडिअ :: वि [दे] प्रबृद्ध, बढ़ा हुआ (दे ६, ३४)।
पडिपिल्ल :: सक [प्रति + क्षिप्, प्रतिप्र + ईरय्] प्रेरणा करना। पडिपिल्लइ (भवि)।
पडिपिल्लण :: न [प्रतिप्रेरण] १ प्रेरणा (सुर १५; १४१) २ ढक्कन, पिधान। ३ वि. प्रेरणा करनेवाला; 'दीवसिहापडिपल्लिणमल्ले मिल्लंति नीसासे' (कुप्र १३१)
पडिपिहा :: देखो पडिपेहा। संकृ. पडिपिहित्ता (पि ५८२)।
पडिपीलण :: न [प्रतिपीडन] विशेष पीडन, अधिक दबाब (गउड)।
पडिपुच्छ :: सक [प्रति + प्रच्छ्] १ पृच्छा करना, पूछना। २ फिर से पूछना। ३ प्रश्न का जवाब देना। पडिपुच्छइ (उव)। वकृ. पडिपुच्छमाण (कप्प)। कृ. पडिपुच्छ- णिज्ज, पडिपुच्छणीय (उवा; णाया १, १; राय)
पडिपुच्छण :: न [प्रतिप्रच्छन] नीचे देखो (भग; उवा)।
पडिपुच्छणया, पडिपुच्छणा :: स्त्री [प्रतिपृच्छना] १ पूछना, पृच्छा। २ फिर से पृच्छा (उत्त २९, २०; औप) ३ उत्तर, प्रश्न का जवाब (बृह ४; उप पृ ३९८)
पडिपुच्छणिज्ज, पडिपुच्छणीय :: देखो पडिपुच्छ।
पडिपुच्छा :: स्त्री [प्रतिपृच्छा] देखो पडिपु- च्छणा (पंचा २; वव २; बृह १)।
पडिपुच्छिअ :: वि [प्रतिपृष्ट] जिससे प्रश्न किया गया हो वह (गा २८९)।
पडिपुज्जिय :: वि [प्रतिपूजित] पूजित, अर्चित; 'वंदणवरकणगकलससुविणिम्मियपडपुंजि' (? पुज्जि, पूइ) यसरसपउमसोहंतदारभाए' (णाया १, १ — पत्र १२)।
पडिपुण्ण :: देखो पडिपुन्न (उवा; पि २१८)।
पडिपुत्त :: पुं [प्रतिपुत्र] प्रपुत्र, पुत्र का पुत्र, पोता; 'अंकनिवेसियनियनियपुत्तयपडिपुत्तनत्त- पुत्तीयं' (सुपा ६)। देखो पडिपोत्तय।
पडिपुत्र :: वि [प्रतिपूर्ण] परिपूर्णं, संपूर्णं (णाया १, १; सुर ३, १८; ११४)।
पडिपूहय :: देखो पडिपुज्जिय (राज)।
पडिपूयग, पडिपूयय :: वि [प्रतिपूजक] पूजा करने- बाला (राज; सम ५१)।
पडिपूयय :: वि [प्रतिपूजक] प्रत्युपकार-कर्ता (उत्त १७, ५)।
पडिपूरिय :: वि [प्रतिपूरित] पूर्णं किया हुआ (पउम १००, ५०; ११५, ७)।
पडिपेल्लण :: देखो पडिपिल्लण (गउड; से ६, ३२)।
पडिपेल्लण :: न [परिप्रेरण] देखो पडिपिल्लण (से २, २४)।
प्रडिपेल्लिय :: वि [प्रतिप्रेरित] प्रेरित, जिसको, प्रेरणा की घई हो वह (सुर १५, १८०; महा)।
पडिपेह :: सक [प्रतिपि + धा] ढकना, आच्छादन करना। संकृ. पडिपेहित्ता (सूअ २, २, ५१)।
पडिपोत्तय :: पुं [प्रतिपुत्रक] नप्ता, कन्या का पुत्र, लड़की का लड़का, नाती (सुपा १९२)। देखो पडिपुत्तय।
पडिप्पह :: देखो पडिपह (उप ७२८ टी)।
पडिप्फद्धि :: वि [प्रतिस्पर्धिन्] स्पर्धा करनेवाला (हे १, ४४; २, ५३; प्राप्र; संक्षि १६)।
पडिप्फलणा :: स्त्री [प्रतिफलना] १ स्खलना। २ संक्रमण; 'पडिसद्दपडिप्फलणवज्जिरनीसे- ससुरघंटं' (सुपा ८७)
पडिप्फलिअ, पडिफलिअ :: वि [प्रतिफलित] १ प्रति- बिम्बित, संक्रान्त (से १५, ३१; दे १, २७) २ स्खलित (पाअ)
पडिबंध :: सक [प्रति + बन्ध्] रोकना, अट- काना। पडिबंधइ (पि ५१३)। कृ. पडि- बधेयव्व (वसु)।
पडिबंध :: सक [प्रति + बन्ध्] १ वेष्टन करना। २ सेकना। पडिबंधइ, पडिबंधंति (सूअ १, ३, २, १०)
पडिबंध :: पुं [प्रतिबन्ध] व्याप्ति, नियम (धर्मंसं १११)।
पडिबंध :: पुं [प्रतिबन्ध] १ रुकावट (उवा; कप्प) २ विघ्न, अन्तराय (उप ८८७) ३ अत्यादर, बहुमान (उप ७७६; उवर १४६) ४ स्नेह, प्रीति, राग (ठा ९; पंचा १७) ५ आसक्ति, अभिष्वंग (णाया १, ५; कप्प) ६ वेष्टन (सूअ १, ३, २)
पडिबंधअ, पडिबंधग :: वि [प्रतिबन्धक] प्रतिबन्ध करनेवाला, रोकनेवाला (अभि २५३; उफ ९४५)।
पडिबंधण :: न [प्रतिबन्धन] प्रतिबन्ध, रुकावट (पि २१८)।
पडिबंधेयव्व :: देखो पडिबंध = प्रति + बन्ध्।
पडिबद्ध :: वि [प्रतिबद्ध] १ रोका हुआ, संरुद्ध; 'वायुरिव अप्पडिबद्धे' (कप्प; पणह १, ३) २ उपजनित, उत्पादित (गउड १८२) ३ संसक्त, संबद्ध, संलग्न, 'सरिआण तरंगियपंकवडपडिबद्धवालुयामसिणा. . . . . . पुलिणवित्थारा' (गउड; कुप्र ११५; उवा) ४ सामने बँधा हुआ; 'पडिबद्धं नवर तुमे नरिंदचक्कं पयाववियडंपि' (गउड) ५ व्यव- स्थित (पंचा १३) ६ वेष्टित (गउड) ७ समीप में स्थित; 'तं चेव य सागरियं जस्स अदूरे स पडिबद्धो' (बृह १)
पडिबद्ध :: वि [प्रतिबद्ध] नियत, व्याप्त (पंता ७, २)।
पडिबाह :: सक [प्रति + बाध्] रोकना। हेकृ. पडिबाहिदुं (शौ) (नाट — महावी ९९)।
पडिबाहिर :: वि [प्रतिबाह्य] अनधिकारी, अयोग्य (सम ५०)।
पडिबिंब :: न [प्रतिबिम्ब] १ परछाँही, प्रति- च्छाया (सुपा २६९) २ प्रतिमा, प्रतिमूर्त्ति (पाअ; प्रामा)
पडिबिंबिअ :: वि [प्रतिबिम्बित] जिसका प्रतिबिम्ब पड़ा हो वह (कुमा)।
पडिबुज्झ :: अक [प्रति + बुध्] १ बोध पाना। २ जागृत होना। पडिबुज्झइ (उवा)। वकृ. पडिबुज्झंत, पडिबुज्झइ (उवा)
पडिबुज्झणया, पडिबुज्झणा :: स्त्री [प्रतिबोंधना] १ बोध, समझ। २ जागृति (स १५९; औप)
पडिबुंद्ध :: वि [प्रतिबुद्ध] १ बोध-प्राप्त (प्रासू १३५; उव) २ जागृत (णाया १, १) ३ न. प्रतिबोध (आचा) ४ पुं. एक राजा का नाम (णाया १, ८)
पडिबूहणया :: स्त्री [प्रतिबृंहणा] उपचय, पुष्टि (सूअ २, २, ८)।
पडिबोध :: देखो पडिबोह = प्रतिबोध (नाट — मालती ५६)।
पडबोधिअ :: देखो पडिबोहिय (अभि ५६)।
पडिबोह :: सक [प्रति + बोधय्] १ जागना। २ बोध देना, समझाना, ज्ञान प्राप्त कराना। पडिबोहेइ (कप्प; महा)। कवकृ. पडि- बोहिज्जंत (अभि ५६)। संकृ. पडिबोहिअ (नाट — मालती १३९)। हेकृ. पडिबोहिउं (महा)। कृ. पडिबोहियव्व (स ७०७)
पडिबोह :: पुं [प्रतिबोध] १ बोध, समझ। २ जागृति, जागरण (गउड; पि १७१)
पडिबोहग :: वि [प्रतिबोधक] १ बोध देनेवाला। २ जगानेवाला (विसे २४७ टी।
पडिबोहण :: न [प्रतिबोधन] देखो पडि- बोह = प्रतिबोध (काल; स ७०८)।
पडिबोहि :: वि [प्रतिबोधिन्] प्रतिबोध प्राण्त करनेवाला (आचा २, ३, १, ८)।
पडिबोहिय :: वि [प्रतिबोधित] जिसको प्रति- बोध किया गया हो वह (णाया १, १; काल)।
पडिभंग :: पुं [प्रतिभंग] भंग, विनाश (से ५, १६)।
पडिभंज :: अक [प्रति + भञ्ज्] भाँगना, टूटना। हेकृ. पडिभंजिउं (वव ४)।
पडिभंड :: न [प्रतिभाण्ड] एक वस्तु को बेचकर उसके बदले में खरीदी जाती चीज (स २०५; सुर ९, १५८)।
पडिभंस :: सक [प्रति + भ्रंशय्] भ्रष्ट करना, च्युत करना; 'पंथाओ य पडिभंसइ' (स ३९३)।
पडिभग्ग :: वि [प्रतिभग्न] भागा हुआ, पलायित (ओघ ५३३)।
पडिभड :: पुं [प्रतिभट] प्रतिपक्षी योद्धा (से १३, ७२; आरा ५९; भवि)।
पडिभण :: सक [प्रति + भण्] उत्तर देना, जवाब देना। पडिभणइ (महा; उवा; सुपा २१५), पडिभणामि (महानि ४)।
पडिभणिव :: वि [प्रतिभणित] प्रत्युत्तरित, जिसका उत्तर दिया गया हो वह (महा सुपा ६०)।
पडिभणिय :: वि [प्रतिभणित] १ निराकृत (धर्मंसं ६५०) २ न. प्रत्युत्तर, निराकरण (धर्मंसं ९१)
पडिभम :: सक [प्रति, परि + भ्रम्] घूमना, पर्यटन करना। संकृ. 'कत्थइ कडुआविय गयह पंति पडिभमिय सुहडसीसइँ दलंति' (भवि)।
पडिभमिय :: वि [प्रतिभ्रान्त, परिभ्रान्त] घूमा हुआ (भवि)।
पडिभय :: न [प्रतिभय] भय, डर (पउम ७३, १२)।
पडिभा :: अक [प्रतिभा] मालूम होना। पडि- भादि (शौ) (नाट — रत्ना ३)।
पडिभाग :: पुं [प्रतिभाग] १ अंश, भाग (भग २५, ७) २ प्रतिबिम्ब (राज)
पडिभास :: अक [प्रति + भास्] मालूम होना। पडिभासदि (शौ) (नाट — मृच्छ १४१)।
पडिभास :: सक [प्रति + भाष्] १ उत्तर देना। २ बोलना, कहना; 'अप्पेगे पडिभा- संति' (सूअ १, ३, १, ९)
पडिभिण्ण :: वि [प्रतिभिन्न] संबद्ध, संलग्न (से ४, ५)।
पडिभिन्न :: वि [प्रतिभिन्न] भेद-प्राप्त (पव — गाथा १६; चेइय ६४२)।
पडिभुअंग :: पुं [प्रतिभुजङ्गं] प्रतिपक्षी भुजंग — वेश्या-लंपट (कर्पूर २७)।
पडिभू :: पुं [प्रतिभू] जामिनदार, जमानत करनेवाला, मनौतिया (नाट — चैत ७५)।
पडिभेअ :: पुं [दे. प्रतिभेद] उपालम्भ, निंदा; 'पडिभेओ पच्चारणं' (पाअ)।
पडिभोइ :: वि [प्रतिभोगिन्] परिभोग करनेवाला, 'अकालपडिभोईणि' (आचा २, ३, १, ८; पि ४०५)।
पडिम :: वि [प्रतिम] समान, तुल्य (मोह ३५)।
पडिम° :: देखो पडिमा। °ट्ठाइ वि [°स्थायिन्] १ कायोत्सर्ग में रहनेवाला। २ नियम-विशेष में स्थित (पणह २, १ — पत्र १००, ठा ५, १ — पत्र २९६)।
पडिमंत :: सक [प्रति + मन्त्रय्] उत्तर देना। पडिमंतेइ (उत्त १८, ९)।
पडिमल्ल :: पुं [प्रतिमल्ल] प्रतिपक्षी मल्ल (भवि)।
पडिमा :: स्त्री [प्रतिमा] १ मूर्त्ति, प्रतिबिम्ब; 'जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्धं' (दसनि १; पाअ; गा १; ११४) २ कायोत्सर्गं। ३ जैन-शास्त्रोक्त नियम-विशेष (पणण २, १; सम १९; ठा २, ३; ५, १)। °गिह न [°गृह] मन्दिर (निचू १२)। देखो पडिम°।
पडिमाण :: न [प्रतिमान] जिससे सुवर्णं आदि का तौल किया जाता है वह रत्ती, मासा आदि परिमाण (अणु)।
पडिमाण :: न [प्रतिमान] प्रतिमा, प्रतिबिम्ब (चेइय ७५)।
पडिमि, पडिमिण :: सक [प्रति + मा] १ तौल करना, माप करना। २ गिनती करना। कर्मं. पडिमिणिज्जइ (अणु)। कवकृ. पडिमिज्जमाण (राज)
पडिमुंच :: सक [प्रति + मुच्] छोड़ना। हेकृ. पडिमुंचिउं (से १४, २)।
पडिमुंडणा :: स्त्री [प्रतिमुण्डना] निषेध, निवारण (बृह १)।
पडिमुक्क :: वि [प्रतिमुक्त] छोड़ा हुआ (से ३, १२)।
पडिमोअणा :: स्त्री [प्रतिमोचना] छुटकारा (से १, ४६)।
पडिमोक्खण :: न [प्रतिमोचन] छुटकारा (स ४१)।
पडिमोयग :: वि [प्रतिमोचक] छुटकारा करनेवाला (राज)।
पडिमोयण :: देखो पडिमोक्खण (औप)।
पडियक्क :: देखो पडिक्क (आचा)।
पडियक्क :: न [प्रतिचक्र] युद्धकला-विशेष, 'तेण पुत्तो विव निप्फाइत्तो ईसत्थे पडियक्के जन्तुमुक्के य अन्नासुवि कलासु' (महा)।
पडियग्गण :: न [प्रतिजागरण] सम्हाल, खबर (धर्मंसं १०१३)।
पडियच्च :: देखो पत्तिअ = प्रति + इ।
पडियरण :: न [प्रतिकरण] प्रतीकार, इलाज (पिंड ३६९)।
पडियरिअ :: वि [प्रतिचरित] सेवित, सेवा किया हुआ (मोह १०५)।
पडिया :: स्त्री [प्रतिज्ञा] १ उद्देश्य, 'पिंडवाय- पडियाए' (कस; आचा) २ अभिप्राय (ठा ५, २ पत्र ३१४)
पडिया :: स्त्री [पटिका] वस्त्र-विशेष, 'सुपमाणा य सुसुत्ता, बहुरूवा तह य कोमला सिसिरे। कत्तो पुणणेहि बिणा, वेसा पडियव्व संपडइ, (वज्जा ११६)।
पडियाइक्ख :: सक [प्रत्या + रव्या] त्याग करना। पडियाइक्खे (पि १६६)।
पडियाइक्खिय :: वि [प्रत्याख्यात] त्यक्त, परित्यक्त, छोड़ा हुआ; (ठा २, १; भग; उवा कस; विपा १, १; औप)।
पडियाणय :: न [दे. पर्याणक] पर्याण के नीचे दिया जाता चर्मं आदि का एक उपकरण (णाया १, १७ — पत्र २३०)।
पडिणाणंद :: पुं [प्रत्यानन्द] विशेष आनन्द, प्रभूत आह्लाद, बहुत आनंद (औप)।
पडियाणय :: न [दे. पटतानक, पर्याणक] पर्याण के नीचे रखा जाता वस्त्र आदि का एक घुड़सवारी का उपकरण (णाया १, १७ — पत्र २३२ टी)।
पडियारणा :: स्त्री [प्रतिवारणा] निषेध (पंचा १७, ३४)।
पडियासुर :: अक [दे] चिड़ना, गुस्सा होना। कृ. 'पडियासूरेयव्वं न कयाइवि पाणः चाएवि' (आक २५, १४)।
पडिर :: वि [पतितृ] गिरनेवाला (कुमा)।
पडिरअ :: देखो पडिरव (गा ५५ अ; से ७, १९)।
पडिरंजिअ :: वि [दे] भग्न, टूटा हुआ (दे ६, ३२)।
पडिरक्खिय :: वि [प्रतिरक्षित] जिसकी रक्षा की गई हो वह (भवि)।
पडिरव :: पुं [प्रतिरव] प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द (गउड; गा ५५; सुर १, २४४)।
पडिराय :: पुं [प्रतिराग] लाली, रक्तपन; 'उव्वहइ दइयगहियाहरोट्ठजिज्जंतरोसपडिरायं। पाणोसरंतमइरं व फलिहचसयं इमा वयणं' (गउड)।
पडिरिग्गअ :: [दे] देखो पडिरंजिअ (षड्)।
पडिरु :: अक [प्रति + रु] प्रतिध्वनि करना, प्रतिशब्द करना। वकृ. पडिरुअंत (से १२, ९; पि ४७३)।
पडिरुंध, पडिरुंभ :: सक [प्रति + रुध्] १ रोकना, अटकाना। २ व्याप्त करना। पडि- रुंभइ (से ८, ३९)। वकृ. पडिरुंधंत (से ११, ५)
पडिरुद्ध :: वि [प्रतिरुद्ध] रोका हुआ, अटकाया हुआ (सुपा ८५; वज्जा ५०)।
पडिरूअ, पडिरूव :: वि [प्रतिरूप] १ रम्य, सुन्दर, चारु, मनोहर; (सम १३७; उवा; औप) २ रूपवान्, प्रशस्त रूपवाला, श्रेष्ठ आकृतिवाला (औप) ३ असाधारण रूपवाला। ४ नूतन रूपवाला (जीव ३) ५ योग्य, उचित (स ८७; भग १५; दस ९, १) ६ सदृश, समान (णाया १, १ — पत्र ६१) ७ समान रूपवाला, सदृश आकारवाला (उत्त २९, ४२) ८ न. प्रतिबिम्ब, प्रतिमूर्त्ति; 'कइयावि चित्तफलए कइया वि पडम्मि तस्स पडिरूवं लिहिऊण' (सुर ११, २३८; राय) ९ समान रूप, समान आकृति; 'तुम्हपडिरूव- धारिं पासइ विज्जाहरसुदाढं' (शुपा २९८) १० पुं. इन्द्र-विशेष, भूत-निकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ११ विनय का एक भेद (वव १)
पडिरूवंसि :: वि [प्रतिरूपिन्] रमणीय, सुन्दर (आचा २, ४, २, १)।
पडिरूवग :: पुंन [प्रतिरूपक] प्रतिबिम्ब, प्रतिमा; 'तिदिसिं पडिरूवगा य देवकया' (आव; बृह)।
पडिरूवणया :: स्त्री [प्रतिरूपणता] १ समा- नता, सदृशता या सादृश्य। २ समान वेष- धारण (उत्त २९, १)
पडिरूवा :: स्त्री [प्रतिरूपा] एक कुलकर पुरुष की पत्नी का नाम (सम १५०)।
पडिरोव :: पुं [प्रतिरोप] पुनरागोपण (कुप्र ५५)।
पडिरोह :: पुं [प्रतिरोध] रुकावट (गउड; गा ७२४)।
पडिरोहि :: वि [प्रतिरोधिन्] रोकनेवाला (गउड)।
पडिलंभ :: सक [प्रति + लभ्] प्राप्त करना। संकृ. पडिलंभिय (सूअ १, १३)।
पडिलंभ :: पुं [प्रतिलम्भ] प्राप्ति, लाभ (सूअ २, ५)।
पडिलग्ग :: वि [प्रतिलग्न] लगा हुआ, सम्बद्ध (से ९, ८६)।
पडिलग्गल :: न [दे] वल्मीक, कीट-विशेष-कृत मृत्तिका-स्तूप (दे ६, ३३)।
पडिलभ :: सक [प्रति + लभ्] प्राप्त करना। पडिलभेज्ज (उत्त १, ७)। संकृ. पडिलब्भ (सूअ १, १३, २)।
पडिलाभ, पडिलाह :: सक [प्रति + लाभय्, लम्भय्] साधु आदि को दान देना। पडि- लाहेज्जह (काल)। वकृ. पडिलाभेमाण (णाया १, ५; भग; उवा)। संकृ. पडिला- भित्ता (भग ८, ५)।
पडिलाहण :: न [प्रतिलाभन] दान देना (रंभा)।
पडिलिहिअ :: वि [प्रतिलिखित] लिखा हुआ, 'सम्मं मंत दुवारि पडिलिहिअं' (ति १४)।
पडिलीण :: वि [प्रतिलीन] अत्यन्त लीन (धर्मंवि ५३)।
पडिलेह :: सक [प्रति + लेखय्] १ निरीक्षण करना, देखना। २ विचार करना। पडिलेहेइ उव; कस; भग); 'एतेसु जाणे पडिलेह सायं, एतेण काएण य आयदंडे' (सूअ १, ७, २)। संकृ. भूएहिं जाणं पडिलेह सायं' (सूअ १, ७, १९); पडिलेहित्ता (भग)। हेकृ. पडि- लेहित्तए, पडिलेहेत्तए (कप्प)। कृ. पडि- लेहियव्व (ओघ ४; कप्प)
पडिलेह :: पुं [प्रतिलेख] देखो पडिलेहा (चेइय २६६)।
पडिलेहग :: देखो पडिलेहय (राज)।
पडिलेहण :: न [प्रतिलेखन] निरीक्षण (ओघ ३ भा; अंत)।
पडिलेहणया :: देखो पडिलेहणा (उत्त २९, १)।
पडिलेहणा :: स्त्री [प्रतिलेखना] निरीक्षण, निरूपण (भग)।
पडिलेहणी :: स्त्री [प्रतिलेखनी] साधु का एक उफकरण, 'पुंजणी' (पव ६१)।
पडिलेहय :: बि [प्रतिलेखक] निरीक्षक, देखनेवाला (ओघ ४)।
पडिलेहा :: स्त्री [प्रतिलेखा] निरीक्षण, अव - लोकन (ओघ ३; ठा ५, ३; कप्प)।
पडिलेहि :: वि [प्रतिलेखिन्] निरीक्षक (सूअ १, ३, ३, ५)।
पडिलेहिय :: वि [प्रतिलेखित] निरीक्षित, देखा हुआ (उवा)।
पडिलेहियव्व :: देखो पडिलेह।
पडिलोम :: वि [प्रतिलोम] प्रतिकूल (भग)। २ विपरीत, उलटा (आचा २, २, २) ३ न. पश्चादानुपूर्वी, उलटा क्रम; 'वत्थं दुहाणुलो- मेण तह य पडिलोमओ भवे वत्थं' (सुर १६, ४८; निचू १) ४ उदाहरण का एक दोष (दसनि १) ५ अपवाद (राज)
पडिलोमइत्ता :: अ [प्रतिलोमयित्वा] वाद- विशेष वादसभा के सदस्य या प्रतिवादी को प्रतिकूल बनाकर किया जाता वाद — शास्त्रार्थ (ठा ६)।
पडिल्ली :: स्त्री [दे] १ वृति, बाड़। २ यवनिका, परदा (दे ६, ६५)
पडिव :: देखो पलीव = प्र + दीपय्। पडिवेइ (से ५, ६७)।
पडिवइर :: न [प्रतिवैर] वैर का बदला (भवि)।
पडिवई :: देखो पडिवया (पव २७१)।
पडिवंचण :: न [प्रतिवञ्चन] बदला, 'वेर- पडिवंचणट्ठ' (पउम २६, ७३)।
पडिवंथ :: देखो पडिपंथ (से २, ४६)।
पडिवंध :: देखो पडिबंध (भवि)।
पडिवंस :: पुं [प्रतिवंश] छोटा बाँस (राय)।
पडिवक्क :: सक [प्रति + वच्] प्रत्युत्तर देना, जवाब देना। पडिवक्कइ (भवि)।
पडिवक्ख :: पुं [प्रतिपक्ष्] १ रिपु, दुश्मन; विरोधी (पाअ; गा १५२; सुर १, ५६; २, १२९; से ३, १५) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ विपर्यय, वैपरीत्य (सण)
पडिवक्खिय :: वि [प्रतिपक्षिक] विरुद्ध पक्षवाला, विरोधी (सण)।
पडिवच्च :: सक [प्रति + व्रज्] वापस जाना। पडिवच्चइ (पि ५९०)।
पडिवच्छ :: देखो पडिवक्ख; 'अह णवरमस्स दोसो पडिवच्छेहिंपि पडिविणणो' (गा ९७९)।
पडिवज्ज :: सक [प्रित + पद्] स्वीकार करना, अंगीकार करना। पडिवज्जइ, पडि- वज्जए (उब; महा; प्रासू १४१)। भवि. पडिवज्जिस्सामि, पडिवज्जिस्सामो (पि ५२७; औप)। वकृ. पढिवज्जमाण (पि ५६२)। संकृ. पडिवज्जिऊण, पडिवज्जित्ताणं, पडिवज्जिय (पि ५८६; ५८३; महा; रंभा)। हेकृ. पडिवाज्जिउं, पडिवज्जित्तए, पडिवत्तुं (पंचा १८; ठा २, १, कस; रंभा)। कृ. पडिवज्जियव्व, पडिवज्जेयव्व (उत्त ३२; उप ६८४; १००१)।
पडिवज्जण :: न [प्रतिपदन] स्वीकार, अंगी- कार (कुप्र १४७)।
पडिवज्जण :: न [प्रतिपादन] अंगीकारण, स्वीकार करवाना (कुप्र १४७; ३८६)।
पडिवज्जणया :: स्त्री [प्रतिपदना] स्वीकार (णंदि २३२)।
पडिवज्जणया :: स्त्री [प्रतिपादना] प्रतिपादन (णंदि २३२)।
पडिवज्जय :: वि [प्रतिपादक] स्वीकार करनेवाला; 'एस ताव कसणधवलपडिवज्जओ त्ति' (स ५०५)।
पडिवज्जावण :: न [प्रतिपादन] स्वीकारण, स्वीकार कराना (कुप्र ६६)।
पडिवज्जाविय :: वि [प्रतिपादित] स्वीकार कराया हुआ (महा)।
पडिवज्जिय :: वि [प्रतिपन्न] स्वीकृत (भवि)।
पडिवट्टअ :: न [प्रतिपट्टक] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा (कप्पू)।
पडिवड्ढावअ :: वि [प्रतिवर्धापक] १ बधाई देने पर उसे स्वीकार कर धन्यवाद देनेवाला। २ बधाई के बदले में बधाई देनेवाला। स्त्री. °विआ (कप्पू)
पडिवण्ण :: वि [प्रतिपन्न] १प्राप्त; (भग) २ स्वीकृत, अंगीकृत (षड्) ३ आश्रित (औप; ठा ७) ४ जिसने स्वीकार किया हो वह (ठा ४, १)
पडिवत्त :: पुं [परिवर्त्त] परिवर्त्तन (नाट. मृच्छ ३१८)।
पडिवत्तण :: देखो पडिअत्तण (नाट)।
पडिवत्ति :: स्त्री [प्रतिपत्ति] १ परिच्छित्ति। २ प्रकृति, प्रकार (विसे ५७८) ३ प्रवृत्ति, खबर (पउम ४७, ३०; ३१) ४ ज्ञान (सुर १४, ७४)। ५ आदर, गौरव (महा) ६ स्वीकार, अंगीकार (णंदि) ७ लाभ, प्राप्ति; 'धम्मपडिवत्तिहेउत्तणेण' (महा) ८ मतान्तर। ९ अभिग्रह-विशेष (सम १०६) १० भक्ति, सेवा (कुमा; महा) ११ परि- पाटी, क्रम (आव ४) १२ श्रुत-विशेष, गति, इन्द्रिय आदि द्वारों में से किसी एक द्वार के जरिये समस्त संसार के जीवों को जानना (कम्म २, ७)। °समास पुं [°समास] श्रुत-ज्ञान विशेष — गति आदि दो चार द्वारों के जरिये जीवों का ज्ञान (कम्म १, ७)
पडिवत्तुं :: देखो पडिवज्ज।
पडिवद्दि :: देखो पडिवत्ति (प्राप्र)।
पडिवद्वावअ :: देखो पडिवड्ढावअ। स्त्री. °विआ (रंभा)।
पडिवन्न :: देखो पडिवण्ण; 'पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ' (प्रासु ३; णाया १, ५; उवा; सुर ४, ५७; स ६५६; हे २, २०६; पाअ)।
पडिवन्निय :: (अप) देखो पडिवण्ण (भवि)।
पडिवय :: अक [प्रति + पत्] ऊँचे जाकर गिरना। वकृ. पडिवयमाण (आचा)।
पडिवय :: सक [प्रति + वच्] उत्तर देना। भवि. पडिवक्खामि (सूअ १, ११, ६)।
पडिवयण :: न [प्रतिवचन] १ प्रत्युत्तर, जवाब (गा ४१६; सुर २, १२३; भवि) २ आदेश, आज्ञा; 'देहि में पडिवयणं' (आवम) ३ पुं. हरिवंश के एक राजा का नाम (पउम २२, ९७)
पडिवया :: स्त्री [प्रतिपत्] पडवा, पक्ष की पहली तिथि (हे १, ४४; २०६; षड्)।
पडिवविय :: वि [प्रत्युप्त] फिर से बोया हुआ (दे ६, १३)।
पडिवस :: अक [प्रति + वस्] निवास करना। वकृ. पडिवसंत (पि ३९७; नाट — मृच्छ ३२१)।
पडिवसभ :: पुं [प्रतिवृषभ] मूल स्थान से दो कोस की दूरी पर स्थित गाँव (पव ७०)।
पडिवह :: सक [प्रति + वह्] वहन करना, ढोना। कवकृ. पडिवुज्झमाण (कप्प)।
पडिवह :: देखो पडिपह (से ३, २४; ८, ३३; पउम ७३, २४)।
पडिवह :: पुं [प्रतिवध, परिवध] वध, हत्या (पउम ७३, २४)।
पडिवा :: देखो पडिवया (सुज्ज १०, १४)।
पडिवाइ :: वि [प्रतिवादिन्] प्रतिवाद करनेवाला, वादी का विपक्षी (भवि ५१, ३)।
पडिवाइ :: वि [प्रतिपादिन्] प्रतिपादन करनेवाला (भवि ५१, ३)।
पडिवाइ :: वि [प्रतिपातिन] १ विनश्वर, नष्ट होने के स्वभाववाला (ठा २, १; ओघ ५३२; उप पृ ३५८) २ अवधिज्ञान का एक भेद, फूँक से दीपक से प्रकाश के समान एकाएक नष्ट होनेवाला अवधिज्ञान (ठा ६; कम्म १, ८)
पडिवाइअ :: वि [प्रतिपातित] १ फिर से गिराया हुआ। २ नष्ट किया हुआ (भवि)
पडिवाइअ :: वि [प्रतिपादित] जिसका प्रति- पादन किया हो वह, निरूपित (अच्चु ५; स ४६; ५४३)।
पडिवाइअ :: वि [प्रतिवाचित] १ लिखने के बाद पढ़ा हुआ। २ फिर से बाँधा हुआ (कुप्र १६७)
पडिवाइऊण, पडिवाइयव्व :: देखो पडिवाय = प्रति + वाचय्।
पडिवाइय :: देखो पडिवाइ = प्रतिपातिन् (णंदि ८१)।
पडिवाडि :: देखो परिवाडि (गा ५३०)।
पडिवाद :: (शौ) सक [प्रति + पादय्] प्रतिपादन करना, निरूपण करना। पडिवादेदि (नाट — रत्ना ५७)। कृ. पडिवादमिज्ज (अभि ११७)।
पडिवादय :: वि [प्रतिपादक] प्रतिपादन करनेवाला। स्त्री. °दिआ (नाट — चैत ३४)।
पडिवाय :: सक [प्रति + वाचय्] १ लिखने के बाद उसे पढ़ लेना। २ फिर से पढञ लेना। संकृ. पडिवाइऊण (कुप्र १६७)। कृ. पडिवाइयव्व (कुप्र १६७)
पडिवाय :: सक [प्रति + पादय्] प्रतिपादन करना, निरूपण करना। पडिवाययंति (सूअ १, १४, २६)।
पडिवाय :: पुं [प्रतिपात] १ पुनः-पतन, फिर से गिरना (नव ३६) २ नाश, ध्वंस (विसे ५७७)
पडिवाय :: पुं [प्रतिवाद] विरोध (भवि)।
पडिवाय :: पुं [प्रतिवात] प्रतिकूल पवन (आवम)।
पडिवायण :: न [प्रतिपादन] निरूपण (कुप्र ११६)।
पडिवारय :: देखो परिवार; 'पडिवारयपरि- यरिओ' (महा)।
पडिवाल :: सक [प्रति + पालय्] १ प्रतीक्षा करना, बाट जोहना। २ रक्षण करना। पडिवालेइ (हे ४, २५९)। पडिवालेदु (शौ), (स्वप्न १००)। पडिवालह (अभि १८५)। वकृ. पडिवालअंत, पडिवालेमाण (नाट — रत्ना ४८; णाया १, ३)
पडिवालण :: न [प्रतिपालन] १ रक्षण। २ प्रतीक्षा, बाट (नाट — महा ११८; उप ६९९)
पडिवालिअ :: वि [प्रतिपालित] १ रक्षित। २ प्रतीक्षित, जिसकी बाट देखी गई हो वह (महा)
पडिवास :: पुं [प्रतिवास] औषध आदि को विशेष उत्कट बनानेवाला चूर्णं आदि (उर ८, ५; सुपा ६७)।
पडिवासर :: न [प्रतिवासर] प्रतिदिन, हर रोज (गउड)।
पडिवासुदेव :: पुं [प्रतिवासुदेव] वासुदेव का प्रतिपक्षी राजा (पउम २०, २०२)।
पडिविक्किण :: सक [प्रतिवि + क्री] बेचना। पडिविक्किणइ (आक ३३; पि ५११)।
पडिविज्जा :: स्त्री [प्रतिविद्या] प्रतिपक्षी विद्या, विरोधी विद्या (पिंड ४९७)।
पडिवित्थर :: पुं [प्रतिविस्तर] परिकर, विस्तार (सूअ २, २, ६२ टी; राज)।
पडिविद्धंसण :: न [प्रतिविध्वंसन] विनाश, ध्वंस (राज)।
पडिविप्पिय :: न [प्रतिविप्रिय] अपकार का बदला, बदले के रूप में किया जाता अनिष्ट (महा)।
पडिविरइ :: स्त्री [प्रतिविरति] निवृत्ति (पणह २, ३)।
पडिविरय :: वि [प्रतिविरत] निवृत्त (सम ५१; सूअ २, २, ७५; औप; उव)।
पडिविसज्ज :: सक [प्रतिवि + सर्जय्] विसर्जंन करना, बिदा करना। पडिविस्सज्जेइ (कप्प; औप)। भवि. पडिविसज्जेहिंति (औप)।
पडिविसज्जिय :: वि [प्रतिविसर्जित] बिदा किया हुआ, विसर्जित (णाया १, १ — पत्र ३०)।
पडिविहाण :: न [प्रतिविधान] प्रतीकार (स ५६७)।
पडिवुज्झामाण :: देखो पडिवह = प्रति + वह्।
पडिवुत्त :: वि [प्रत्युक्त] १ जिसका ऊत्तर दिया गया हो वह (अनु ३; उप ७२८ टी) २ न. प्रत्युत्तर (उप ७२८ टी)
पडिवुद :: (शौ) वि [परिवृत्त] परिकरित (अभि ५७; नाट — मृच्छ २०५)।
पडिवूह :: पुं [प्रतिव्यूह] व्यूह का प्रतिपक्षी व्यूह, सैन्य-रचना-विशेष (औप)।
पडिवूहण :: वि [प्रतिबृंहण] १ बढ़नेवाला (आचा १, २, ५, ५) २ न. वृद्धि, पुष्टि (आचा १, २, ५, ४)
पडिवेस :: पुं [दे] विक्षेप, फेंकना (दे ६, २१)।
पडिवेसिअ :: वि [प्रातिवेश्मिक] पड़ोसी, पड़ोस में रहनेवाला (दे ६, ३, सुपा ५५२)।
पडिवोह :: देखो पडिबोह (सण)।
पडिसंका :: स्त्री [प्रतिशङ्का] भय, शंका (पउम ६७, १५)।
पडिसंखा :: सक [प्रतिसं + ख्या] व्यवहार करना, व्यपदेशे करना। पडिसंखाए (आचा)।
पडिसंखिव :: सक [प्रतिसं + क्षिप्] संक्षेप करना। संकृ. पडिसंखिविय (भग १४, ७)।
पडिसंखेव :: सक [प्रतिसं + क्षेपय] सकेलना, समेटना। वकृ. पडिसंखेवेमाण (राय ४२)।
पडिसंचिक्ख :: सक [प्रतिसम् + ईक्ष्] चिन्तन करना। पडिसंचिक्खे (उत्त २, ३१)।
पडिसंजल :: सक [प्रतिसं + ज्वालय्] उद्दीपित करना। पडिसंजलेज्जासि (आचा)।
पडिसंत :: वि [परिशान्त] शान्त, उपशान्त (से ६, ६१)।
पडिसंत :: वि [प्रतिश्रान्त] विश्रान्त (बृह १)।
पडिसंत :: वि [दे] १ प्रतिकूल। २ अस्तमित, अस्त-प्राप्त (दे ६, १६)
पडिसंध, पडिसंधया :: सक [प्रतिसं + धा] १ फिर से साँधना। २ उत्तर देना। ३ अनुकूल करना। पडिसंधए (उत्त २७, १)। पडिसंधयाइ (सूअ २, ६, ३)। संकृ. पडिसंधाय (सूअ २, २, २९)
पडिसंध, पडिसंधा :: सक [प्रतिसं + धा] १ आदर करना। २ स्वीकार करना। पडि- संधए (पच्च ७)। संकृ. पडिसंधाय (सूअ २, २, ३१; ३२; ३३; ३४, ३५)
पडिसंमुह :: न [प्रतिसंमुख] संमुख, समाने; 'गओ पडिसंमुहं पज्जोयस्स' (महा)।
पडिसंलाव :: पुं [प्रतिसंलाप] प्रत्युत्तर, जवाब (से १, २९; ११, ३४)।
पडिसंलीण :: वि [प्रतिसंलीन] १ सम्यक् लीन, अच्छी तरह लीन। २ निरोध करनेवाला (ठा ४, २, औप)। °पडिया स्त्री [°प्रतिमा] क्रोध आदि के निरोध करने की प्रतिज्ञा (औप)
पडिसंविक्ख :: सक [प्रतिसंवि + ईक्ष्] विचार करना। पडिसंविक्खे (उत्त २, ३१)।
पडिसंवेद, पडिसंवेय :: सक [प्रतिसं + वेदय्] अनुभव करना। पडिसंवेदेइ, पडिसंवेययंति (भग; पि ४९०)।
पडिसंसाहणया :: स्त्री [प्रतिसंसाधना] अनुव्रजन, अनुगमन (औप; भग १४; ३; २५, ७)।
पडिसंहर :: सक [प्रतिसं + हृ] १ निवृत्त करना। २ निरोध करना। पडिसंहरेज्जा (सूअ १, ७, २०)
पडिसक्क :: देखो परिसक्क। पडिसक्कइ (भवि)।
पडिसडण :: न [प्रतिशदन, परिशदन] १ सड़ जाना। २ विनाश; 'निरन्तरपडिसडण- सीलाणि आउदलाणि' (काल)
पडिसडिय :: वि [परिशटित] जो सड़ गया हो, जो विशेषे जीर्णं हुआ हो वह (पिंड ५१७)।
पडिसत्तु :: पुं [प्रतिशत्रु] प्रतिपक्षी, दुश्मन, वैरी (सम १५३; पउम ५, १५६)।
पडिसत्थ :: पुं [प्रतिसार्थ] प्रतिकूल यूथ (निचू ११)।
पडिसद्द :: पुं [प्रतिशब्द] १ प्रतिध्वनि (पउम १६, ५३; भवि) २ उत्तर, प्रत्युत्तर, जवाब (पउम ९, ३५)
पड़िसद्दिय :: वि [प्रतिशब्दित] प्रतिध्वनि- युक्त (सम्मत्त २१८)।
पडिसम :: अक [प्रति + शम्] विरत होना। पडिसमइ (से ६, ४४)।
पडिसमाहर :: सक [प्रतिसमा + हृ] पीछे खींच लेना; 'दिट्ठिं पडिसमाहरे' (दस ८, ५५)।
पडिसय :: पुं [प्रतिश्रय] उपाश्रय, साधु का निवास-स्थान (दस २, १, टी)।
पडिसर :: पुं [प्रतिसर] १ सैम्य का पश्चाद्भाग (प्राप्र) २ हस्त-सूत्र, वह धागा जो विवाह से पहले वर-वधू के हाथ में रक्षार्थ बाँधते हैं; कंकण (धर्मं २)
पडिसरण :: न [प्रतिसरण] कंकण (पंचा ८, १५)।
पडिसरीर :: न [प्रतिशरीर] प्रतिमूर्त्ति, 'पट्ठ- विओ पडिसरीरं व' (धर्मवि ३)।
पडिसलागा :: स्त्री [प्रतिशलाका] पल्य-विशेष (कम्म ४, ७३)।
पडिसव :: सक [प्रति + शप्] शाप के बदले में शाप देना, 'अहमाहओ त्ति न य पडि- हणंति सत्तावि न य पडिसवंति' (उव)।
पडिसव :: सक [प्रति + श्रु] १ प्रतिज्ञा करना। २ स्वीकार करना। ३ आदर करना। कृ. पडिसवणीय (सण)
पडिसवत्त :: वि [प्रतिसपत्न] विरोधी शत्रु (दसनि ६, १८)।
पडिसा :: अक [शम्] शान्त होना। पडिसाइ (हे ४, १६७)।
पडिसा :: अक [नश्] भागना, पलायन होना। पडिसाइ, पडिसंति (हे ४, १७८; कुमा)।
पडिसाइल्ल :: वि [दे] जिसका गला बैठ गया हो, घर्घर कण्ठवाला (दे ६, १७)।
पडिसाड :: सक [प्रति + शादय्, परि- शाटय्] १ सड़ाना। २ पलटाना। ३ नाश करना। पडिसाडेंति (आचा २, १५, १८)। संकृ. पडिसाडित्ता (आचा २, १५, १८)
पडिसाडणा :: स्त्री [परिशाटना] च्युत करना, भ्रष्ट करना (वव १)।
पडिसाम :: अक [शम्] शान्त होना। पडिसा- मइ (हे ४, १६७; षड्)।
पडिसाय :: वि [शान्त] शान्त, शम-प्राप्त (कुमा)।
पडिसाय :: पुं [दे] घर्घर कण्ठ, बैठा हुआ गला (दे ६, १७)।
पडिसार :: सक [प्रतिस्मारय्] याद दिलाना। पडिसारेउ (भग १५)।
पडिसार :: सक [प्रति + सारय्] सजाना, सजावट करना। पडिसारेदि (शौ), कर्मं. पडिसारीअदि (शौ) (कप्पू)।
पडिसार :: सक [प्रति + सारय्] खिसकाना, हटाना, अन्य स्थान में ले जाना। पडिसारेइ (से १०, ७०)।
पडिसार :: पुं [दे] १ पटुता। २ वि. निपुण, पटु, चतुर (दे ६, १६)
पडिसार :: पुं [प्रतिसार] १ सजावट। २ अपसरण। ३ विनाश। ४ पराङ् मुखता (हे १, २०६; दे ६, ७६)
पडिसार :: पुं [प्रतिसार] अपसारण (हे १, २०६)।
प्रडिसारण :: न [प्रतिस्मारण] याद दिलाना (वव १)।
पडिसारणा :: स्त्री [प्रतिस्मारणा] संस्मारण (भग १५)।
पडिसारिअ :: वि [दे] स्मृत, याद किया हुआ (दे ६, ३३)।
पडिसारिअ :: वि [प्रतिसारित] १ दूर किया हुआ, अपसारित (से ११, १) २ विनाशित (से १४, ५८) ३ पराङ् मुख (से १३, ३२)
पडिसारी :: स्त्री [दे] जवनिका, परदा (दे ६, २२)।
पडिसाह :: सक [प्रति + कथय्] उत्तर देना। पडिसाहिज्जा (सूअ १, ११, ४)।
पडिसाहर :: सक [प्रतिसं + हृ] निवृत्त करना। पडिसाहरेज्जा (सूअ २, २, ८५)।
पडिसाहर :: सक [प्रतिसं + हृ] १ सकेलना, समेटना। २ वापस ले लेना। ३ ऊँचे ले जाना। पडिसाहरइ (औप; णाया १, १ — पत्र ३३)। संकृ. पडिसाहरित्ता, पडिसा- हरिय (णाया १, १; भग १४, ७)
पडिसाहरण :: न [प्रतिसंहरण] १ समेट, संकोच। २ विनाश; 'सीयतेयलेस्सापडिसाहर- णट्ठयाए' (भग १५ — पत्र ६६६)
पडिसिद्ध :: वि [दे] १ भीत, डरा हुआ। २ भग्न, त्रुटित (दे ६, ७१)
पडिसिद्ध :: वि [प्रतिषिद्ध] निषिद्ध, निवारित (पाअ; उव, ओघ १ टी; सण)।
पडिसिद्धि :: स्त्री [दे] प्रतिस्पर्धा (षड्)।
पडिसिद्धि :: स्त्री [प्रतिसिद्धि] १ अनुरूप सिद्धि। २ प्रतिकूल सिद्धि (हे १, ४४; षड्)
पडिसिद्धि :: देखो पडिप्फद्धि (संक्षि १६)।
पडिसिलोग :: पुं [प्रतिश्लोक] श्लोक के उत्तर में कहा गया श्लोक (सम्मत्त १४६)।
पडिसिविणअ :: पुं [प्रतिस्वप्नक] एक स्वप्न का विरोधी स्वप्न, स्वप्न का प्रतिकूल स्वप्न (कप्प)।
पडिसीसअ, पडिसीसक :: न [प्रतिशीर्षक] १ शिरो- वेष्टन, पगड़ी (कप्पू) २ सिर के प्रतिरूप सिर, पिसान (आटा) आदि का बनाया हुआ सिर (पणह १, २ — पत्र ३०)
पडिसुइ :: पुं [प्रतिश्रुति] १ ऐरवत वर्षं के एक भावी कुलकर (सम १५३) २ भरतक्षेत्र में उत्पन्न एक कुलकर पुरुष का नाम (पउम ३, ५०)
पडिसुण :: सक [प्रति + श्रु] १ प्रतिज्ञा करना। २ स्वीकार करना। पडिसुणइ, पडिसुणेइ (औप; कप्प; उवा)। वकृ. पडिसुणमाण (वव १; पि ५०३)। संकृ. पडिसुणित्ता, पडिसुणेत्ता (आव ४; कप्प)। हेकृ. पडिसुणेत्तए (पि ५७८)
पडिसुणण :: न [प्रतिश्रवण] अंगीकार (उप ४९३)।
पडिसुणण :: स्त्री न [प्रतिश्रवण] १ सुनाना, सुनकर उसका जवाब देना, प्रत्युत्तर (पव २)। स्त्री. °णा (पव २) २ श्रवण (पंचा १२, १५)
पडिसुणणा :: स्त्री [प्रतिश्रवण] १ अंगीकार, स्वीकार। २ मुनि-भिक्षा का एक दोष, आधाकर्मं-दोषवाली भिक्षा लाने पर उसका स्वीकार और अनुमोदन (धर्म ३)
पडिसुण्ण :: वि [प्रतिशून्य] खाली, रिक्त, शून्य; 'नय निलया निच्चपडिसुरणा' (ठा १, टी — पत्र २९)।
पडिसुत्ति :: वि [दे] प्रतिकूल (दे ६, १८)।
पडिसुद्ध :: वि [परिशुद्ध] अत्यन्त शुद्ध (चेइय ८०७)।
पडिसुय :: वि [प्रतिश्रुत] १ स्वीकृत, अंगीकृत (उप पृ १८४) २ न. अंगीकार, स्वीकार (उत्त २६)। देखो पडिस्सुय।
पडिसुया :: देखो पडंसुआ = प्रतिश्रुत् (पणह १, १ — पत्र १८)।
पडिसुया :: स्त्री [प्रतिश्रुता] प्रवज्या-विशेष, एक प्रकार की दीक्षा (ठा १० टी — पत्र ४७४)।
पडिसुहड :: पुं [प्रतिसुभट] प्रतिपक्षी योद्धा (काल)।
पडिसूयग :: पुं [प्रतिसूचक] गुप्तचरों की एक श्रेणी, नगर-द्वार पर रहनेवाला जासूस (वव १)।
पडिसूर :: वि [दे] प्रतिकूल (दे ६, १६, भवि)।
पडिसूर :: पुं [प्रतिसूर्य] सूर्यं के सामने देखा जाता उत्पातादि-सूचक द्वितीय सूर्य (अणु १२०)।
पडिसूर :: पुं [प्रतिसूर्य] इन्द्र-धनुष (राज)।
पडिसेज्जा :: स्त्री [प्रतिशय्या] शय्या-विशेष, उत्तर-शय्या (भग ११, ११; पि १०१)।
पडिसेग :: पुं [प्रतिषेक] नख के नीचे का भाग (राय ९४)।
पडिसेव :: सक [प्रति + सेव्] १ प्रतिकूल सेवा करना, निषिद्ध वस्तु की सेवा करना। २ सहन करना। ३ सेवा करना। पडिसेवइ, पडिसेवए, पडिसेवंति (कस, वव ३, उव)। वकृ. पडिसेवंत, पडिसेवमाण (पंचू ५; सम ३९; पि १७); 'पडिसेवमाणो फरुसाइं अचले भगवं रीइत्था' (आचा)। कृ. पडिसेवियव्व (वव १)
पडिसेवग :: देखो पडिसेवय (निचू १)।
पडिसेवण :: न [प्रतिषेवण] निषिद्ध वस्तु का सेवन (कस)।
पडिसेवणा :: स्त्री [प्रतिषेवणा] ऊपर देखो (भग २५, ७; उव; ओघ २)।
पडिसेवय :: वि [प्रतिषेवक] प्रतिकूल सेवा करनेवाला, निषिद्ध वस्तु का सेवन करनेवाला (भग २५, ७)।
पडिसेवा :: स्त्री [प्रतिषेवा] १ निषिद्ध वस्तु का आसेवन (उप ८०१) २ सेवा (कुप्र ५२)
पडिसेवि :: वि [प्रतिषेविन्] शास्त्र-प्रतिषिद्ध वस्तु का सेवन करनेवाला (उव; पउम ५; २८)।
पडिसेविअ :: वि [प्रतिषेवित] जिस निषिद्ध वस्तु का आसेवन किया गया हो वह (कप्प; औप)।
पडिसेवेत्तु :: वि [प्रतिषेवितृ] प्रतिषिद्ध वस्तु की सेवा करनेवाला (ठा ७)।
पडिसेह :: सक [प्रति + सिध्] निषेध करना, निवारण करना। कृ. पडिसेहेअव्व (भग)।
पडिसेह :: पुं [प्रतिषेध] निषेध, निवारण, रोक (ओघ ९ भा; पंचा ६)।
पडिसेहग :: वि [प्रतिषेधक] निषेध-कर्त्ता (धर्मंसं ४०; ९१२)।
पडिसेहण :: न [प्रतिषेधन] ऊपर देखो (विसे २७५१; श्रा २७)।
पडिसेहिय :: वि [प्रतिषेधित] जिसका प्रतिषेध किया गया हो वह, निवारित (विपा १, ३)।
पडिसेहेअव्व :: देखो पडिसेह = प्रति + सिध्।
पडिसोअ, पडिसोत्त :: पुं [प्रतिस्रोतस्] प्रतिकूल प्रवाह, उलटा प्रवोह (ठा ४, ४; हे २, ९८; उप २५२; पि ९१)।
पडिसोत्त :: वि [दे] प्रतिकूल (षड्)।
पडिस्संत :: देखो परिस्संत (नाट — मृच्छ १८८)।
पडिस्संति :: स्त्री [परिश्रान्ति] परिश्रम (नाट — मृच्छ ३२१)।
पडिस्सय :: पुं [प्रतिश्रय] जैन साधुओं को रहने का स्थान, उपाश्रय (ओघ ८७ भा; उप ५७१; स ६८७)।
पडिस्सर :: देखो पडिसर (पंचा ८, ४९)।
पडिस्साव :: सक [प्रति + श्रावय्] १ प्रतिज्ञा कराना। २ स्वीकार करना। वकृ. पडि- स्सावअन्त (नाट — वेणी १८)
पडिस्सावि :: वि [प्रतिस्राविन्] झरनेवाला, टपकनेवाला (राज)।
पडिस्सुण :: सक [प्रति + श्रु] १ सुनना। २ अंगीकार करना। पडिस्सुणंति (सुअ २, ६, ३०)। पडिस्सुणेज्जा (सूअ १, १४, ९)। पडिस्सुणे (उत्त १, २१)
पडिस्सुय :: वि [प्रतिश्रुत] १ प्रतिज्ञात। २ स्वीकृत (महा; ठा १०)। देखो पडिसुय।
पडिस्सुया :: देखो पडंसुआ (णाया १, ५)।
पडिस्सुया :: देखो पडिसुया = प्रतिश्रुता (ठा १० — पत्र ४७३)।
पडिहच्छ :: वि [दे] पूर्णं (सण)। देखो पडिहत्थ।
पडिहट्टु :: अ [प्रतिहृत्य] अर्पंण करके (कस; बृह ३)।
पडिहड :: पुं [प्रतिभट] प्रतिपक्षी योद्धा (से ३, ५३)।
पडिहण :: सक [प्रति + हन्] प्रतिघात करना, प्रतिहिंसा करना। पडिहणंति (उव)।
पडिहणण :: न [प्रतिहनन] १ प्रतिघात। २ वि. प्रतिघातक (कुप्र ३७)
पडिहणणा :: स्त्री [प्रतिहनन] प्रतिघात (ओघ ११०)।
पडिहणिय :: देखो पडिहय (सुपा २३)।
पडिहणिय :: देखो पडिभणिय (धर्मंसं ७०८)।
पडिहत्थ :: वि [दे] १ पूर्णं, भरा हुआ (दे ६, २८; पाअ; कुप्र ३४; वज्जा १२६; उप पृ १८१; सुर ४, २३९; सुपा ४८८); 'पडिह- त्थबिंबगहवइवअणे ता वज्ज उज्जाणं' (वाअ १५) २ प्रतिक्रिया, प्रतिकार, बदला। ३ वचन, वाणी (दे ६, १९) ४ अतिप्रभूत (जीव ३)। ५ अपूर्वं, अद्वितीय (षड्)
पडिहत्थ :: सक [दे] प्रत्युपकार करना, उपकार का बदला चुकाना। पडिहत्थेइ (से १२, ६६)।
पडिहत्थ :: वि [प्रतिहस्त] तिरस्कृत (चंड)।
पडिहत्थी :: स्त्री [दे] वृद्धि (दे ६, १७)।
पडिहम्म :: देखो पडिहण। पडिहम्मेज्जा (पि ५४०)। भवि. पडिहम्मिहिइ (पि ५४९)।
डिहय :: वि [प्रतिहत] प्रतिघात-प्राप्त (औप; कुमा; महा; सण)।
पडिहर :: सक [प्रति + हृ] फिर से पूर्णं करना। पडिहरइ (हे ४, २५९)।
पडिहा :: अक [प्रति + भा] मालूम होना, लगना। पडिहाइ (वज्जा १६२; पि ४८७)।
पडिहा :: स्त्री [प्रतिमा] बुद्धि-विशेष, नूतन- नूतन उल्लेख करने में समर्थं बुद्धि (कुमा)।
पडिहा :: देखो पडिहाय = प्रतिघात; 'पंचविहा पडिहा पन्नता, तं जहा, गतिपडिहा' (ठा ५, १ — पत्र ३०३)।
पडिहाण :: देखो पणिहाण; 'मणदुप्पडिहाणे' (उवा)।
पडिहाण :: न [प्रतिभान] प्रतिभा, बुद्धि- विशेष। °व वि [°वत्] प्रतिभावाला (सूअ १, १३; १४)।
पडिहाय :: देखो पडिहा = प्रति + भा। पडिहा- यइ (स ४६१; स ७५६)।
पडिहाय :: पुं [प्रतिघात] १ प्रतिहनन, घात का बदला। २ निरोध, अटकाब, रोक (पउम ६, ५३)
पडिहार :: पुं [प्रतिहार] इन्द्र-नियुक्त देव (पव ३९)।
पडिहार :: पुंस्त्री [प्रतिहार] द्वारपाल, दरवान (हे १, २०६; णाया १, ५; स्वप्न २२८; अभि ७७)। स्त्री. °री (बृह १)।
पडिहारिय :: देखो पाडिहारिय (कस; आचा २, २, ३, १७; १८)।
पडिहारिय :: वि [प्रतिहारित] अवरुद्ध, रोका हुआ (स ५४९)।
पडिहास :: अक [प्रति + भास्] मालूम होना, लगना। पडिहासेदि (शौ) (नाट)।
पडिहास :: पुं [प्रतिभास] प्रतिभास, प्रतिभान (हे १, २०६, षड्)।
पडिहासिय :: वि [प्रतिभासित] जिसका प्रतिभास हुआ हो वह (उप ९८६ टी)।
पडिहुअ, पडिहू :: पुं [प्रतिभू] जामीन, जामीन- दार, मनौतिया (पाअ; दे ५, ३८)।
पडिहू :: अक [परि + भू] पराभव करना, हराना। कवकृ. पडिहूअमाण (अभि ३६)।
पडी :: स्त्री [पटी] वस्त्र, कपड़ा (गउड; सुर ३, ४१)।
पडीआर :: पुं [प्रतीकार] देखो पडिआर = प्रतिकार (बेणी १७७; कुप्र ६१)।
पडीकर :: सक [प्रति + कृ] प्रतिकार करना। पडीकरेमि (मै ६६)।
पडीकार :: देखो पडिआर (पणह १, १)।
पडीछ :: देखो पडिच्छ = प्रति = इष्। पडी- छंति (पि २७५)।
पडीण :: वि [प्रतीचीन] पश्चिम दिशा से संबन्ध रखनेवाला (आचा; औप, ठा ५, ३)। °वाय पुं [°वात] पश्चिम का वायु (ठा ७)।
पडीणा :: स्त्री [प्रतीची] पश्चिम दिशा (ठा ६ — पत्र ३५९; सूअ २, २, ५८)।
पडीर :: पुं [दे] चोर-समूह, चोरों का यूथ (दे ६, ८)।
पडीव :: वि [प्रतीप] प्रतिकूल, प्रतिपक्षी, विरोधी (भवि)।
पडु :: वि [पटु] निपुण, चतुर, कुशल (औप; कुमा; सुर २, १४५)।
पडु :: (अप) देखो पडिअ = पतित (पिंग)।
पडुआलिअ :: वि [दे] १ निपुण बनाया हुआ। २ ताड़ित, पिटा हुआ। ३ धारित (दे ६, ७३)
पडुक्खेव :: पुं [प्रत्युत्क्षेप] १ वाद्य-ध्वनि। २ उत्थापन, उठान (अणु १३१)
पडुक्खेव :: पुं [प्रत्युत्थेप, प्रतिक्षेप] १ वाद्य- ध्वनि। क्षेपण, फेंकना; 'समतालपडुक्खेवं' (ठा ७ — पत्र ३९४)
पडुच्च :: अ [प्रतीत्य] १ आश्रय करके (आचा; सूअ १, ७; सम ३६; नव ३६) २ अपेक्षा करके (भग) ३ अधिकार करके; 'पडुच्च त्ति वा पप्प त्ति वा अहिकिच्च त्ति वा एगट्ठा' (आचू १; अणु)। °करण न [°करण] किसी का अपेक्षा से जो कुछ करना, आपे- क्षिक कृति (बृह १)। °भाव पुं [°भाव] सप्रतियोगिक पदार्थ, आपेक्षिक वस्तु (भास २८)। °वयण न [°वचन] आपेक्षिक वचन (सम्म १००)। °सच्चा स्त्री [°सत्या] सत्य भाषा का एक भेद, अपेक्षा-कृत सत्य वचन (पणण ११)
पडुच्चा :: ऊपर देखो; 'जे हिसंति आयसुहं पडुच्चा' (सूअ १, ५, १, ४)।
पडुजुवइ :: स्त्री [दे] युवति, तरुणी (दे ६, ३१)।
पडुत्तिया :: स्त्री [प्रत्युक्ति] प्रत्युत्तर, जवाब (भवि)।
पडुप्पण्ण, पडुप्पन्न :: पुं [प्रत्युत्पन्न] १ वर्त्तमान काल (ठा ३, ४) २ वि. वार्त्तमानिक, वर्त्तंमान काल में विद्यमान (ठा १०; भग ८, ५; सम १३२; उवा) ३ प्राप्त, लब्ध (ठा ४, २); 'न पडुप्पन्नो य से जहोचिओ आहारो' (स २९१) ४ उत्पन्न, जात (ठा ४, २); 'होंति य पडुप्पन्नविणास- णम्मि गंधव्विया उदाहरणं' (दसनि १)
पडुल्ल :: न [दे] १ लघु पिठर, छोटी थाली। २ वि. चिरप्रसूत (दे ६, ६८)
पडुवइअ :: वि [दे] तीक्ष्ण, तेज (दे ६, १४)।
पडुवत्ती :: स्त्री [दे] जवनिका, परदा (दे ६, २२)।
पडुह :: देखो पड्डुह। पडुहइ (हे ४, १५४ टि)।
पडोअ :: वि [दे] बाल, लघु, छोटा (दे ६, ९)।
पडोच्छन्न :: वि [प्रत्यवच्छन्न] आच्छादित, आवृत्त; 'अट्ठविहकम्मतमपडलपडोच्छन्ने' (उवा)।
पडोयार :: सक [प्रत्युप + चारय्] प्रतिकूल उपचार करना। पडोयारेंति, पडोयारेह (भग १५ — पत्र ६७९)। पडोयारेउ (भग १५ — पत्र ६७१)। पडोयारे (पि १५५)। कवकृ. पडोय (? या)। रिज्जमाण, पडेयारेज्ज- माण (पि १६३; भग १५ — पत्र ६७९)।
पडोयार :: पुं [दे] उपकरण (पिंड २८)।
पडोयार :: पुं [प्रत्युपचार] प्रतिकूल उपचार (भग १५ — पत्र ६७१; ६७९)।
पडोयार :: पुं [प्रत्यवतार] १ अवतरण। २ आविर्भाव; 'भरहस्स वासस्स केरिसए आगार- भावपडोयारे होत्था' (भग ६, ७ — पत्र २७६; ७, ६ — पत्र ३०५; औप)
पडोयार :: पुं [पदावतार] किसी वस्तु का पदों में विचार के लिए अवतरण (ठा ४, १ — पत्र १८८)।
पडोयार :: पुं [प्रत्युपकार] उपकार का उपकार (राज)।
पडोयार :: पुं [दे] १ सामग्री। २ परिकर, 'पायस्स पडोयार' (ओघ ३५२)
पडोल :: पुंस्त्री [पटोल] लता-विशेष, परवल का गाछ (पणण १ — पत्र ३२)।
पडोहर :: न [दे] घर का पीछला आँगन (दे ६, ३२; गा ३१३; काप्र २२४)।
पड्ड :: वि [दे] धवल, सफेद (दे ६, १)।
पड्डंस :: पुं [दे] गिरि-गुहा, पहाड़ की गुफा (दे ६, २)।
पड्डुच्छी :: स्त्री [दे] भैंस, 'पडुच्छिखीर' (ओघ ८७)।
पड्डत्थी :: स्त्री [दे] १ बहुत दूधवाली। २ दोहनेवाली (दे ६, ७०)
पड्डय :: पुं [दे] भैंस, पाड़ा, गुजराती में 'पाडो'; 'सो चेव इमो वसभो पड्डयपरिहट्टणं सहइ' (महा)।
पड्डला :: स्त्री [दे] चरण-घात, पाद-प्रहार (दे ६, ८)।
पड्डस :: वि [दे] सुसंयमित, अच्छी तरह से संयमित (दे ६, ६)।
पड्डाविअ :: वि [दे] समापित, समाप्त कराया हुआ (षड्)।
पड्डिया :: स्त्री [दे] १ छोटी भैंस, पाड़ी। २ छोटी गौ, बछिया (विपा १, २ — पत्र २६) ३ प्रथमप्रसूता गौ। ४ नव-प्रसूता महिषी (वव ३)। पड्डी स्त्री [दे] प्रथम-प्रसूता (दे (६, १)
पड्डुआ :: स्त्री [दे] चरण-घात, पाद-प्रहार (दे ६, ८)।
पड्डुह :: अक [क्षुभ्] क्षुब्ध होना। पड्डु- हइ (हे ४, १५४; कुमा)।
पढ :: सक [पठ्] १ पढ़ना, अभ्यास करना। २ बोलना, कहना। पढइ (हे १, १९९; २३१)। कर्मं. पढीअइ, पढिज्जइ (हे ३, १६०)। वकृ. पढंत (सुर १०, १०३)। कवकृ. पढिज्जंत, पढिज्जमाण (सुपा २६७; उप ५३० टी)। संकृ. पढित्ता (हे ४, २७१; षड्), पढिअ, पढिऊण (शौ) (हे ४, २७१), पढि (अप) (पिग)। हेकृ. पढिउं (गा २; कुमा)। कृ. पढियव्व, पढेयव्व (पंसू १; वज्जा ६)। प्रयो. पढावइ (कुप्र १८२)
पढ :: पुं [पढ] भारतीय देश-विशेष (इक)।
पढग :: वि [पाठक] पड़नेवाला (कप्प)।
पढण :: न [पठन] पाठ, अभ्यास (विसे १३८४; कप्पू)।
पढम :: वि [प्रथम] १ पहला, आद्य (हे १, ५५; कप्प; उवा; भग; कुमा; प्रासू ४८; ६८) २ नूतन, नया (दे) ३ प्रधान, मुख्य (कप्प)। °करण न [°करण] आत्मा का परिणाम-विशेष (पंचा ३)। °कसाय पुं [°कषाय] कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धी कषाय (कम्मप)। °ट्ठाणि, °ठाणि वि [°स्थानिन्] अव्युत्पन्न-बुद्धि, अनिष्णात (पंचा १९)। °पाउस पुं [°प्रावृष्] आषाढ़ मास (निचू १०)। °समोसरण न [°समवसरण] वर्षा-काल; 'बिइयसमोसरणं उदुबद्धं तं पड्डच्च वासावासोग्गहो पढमसमो- सरणं भणणइ' (निचू १)। °सरय पुं [°शरत्] मार्गंशीर्षं मास (भग १५)। °सुरा स्त्री [°सुरा] नया दारू, शराब (दे)
पढमा :: स्त्री [प्रथमा] १ प्रतिपदा तिथि, पड़वा (सम २९) २ व्याकरण-प्रसिद्ध पहली विभक्ति; 'णिद्देसे पढमा होइ' (अणु)
पढमालिआ :: स्त्री [दे. प्रथमालिका] प्रथम भोजन (ओघ ४७ भा; धर्मं ३)।
पढमिल्ल, पढमिल्लुअ, पढमिल्लुग, पढमुल्लुअ, पढमेल्लुय :: वि [प्रथम] पहला, आद्य (भग; श्रा २८; सुपा ५७; पि ४४९; ५९५; विसे १२२६; (णाया १, ६ — पत्र १४४, बृह १; पउम ९२, ११; धण १९; सण)।
पढाइद :: [शौ] नीचे देखो (नाट — चैत ८९)।
पढाव :: सक [पाठय्] पढ़ाना। पढावेइ (प्राकृ ६०)। संकृ. पढाविऊण, पढावेऊण (प्राकृ ६१)। हेकृ. पढाविउं, पढावेउं (प्राकृ ६१)। कृ. पढावणिज्ज, पढाविअव्व (प्राकृ ६१)।
पढावअ :: वि [पाठक] अध्यापक (प्राकृ ६०)।
पढावअ :: न [पाठन] पढ़ाना (कुप्र ९०)।
पढाविअ :: वि [पाठित] पढ़ाया हुआ (सुपा ४५३; कुप्र ९१)।
पढाविअवंत :: वि [पाठितवत्] जिसने पढ़ाया हो वह (प्राकृ ६१)।
पढाविउ, पढाविर :: वि [पाठयितृ] अध्यापक (प्राकृ ६०)।
पढि, पढिअ :: देखो पढ = पठ्।
पढिअ :: वि [पठित] पढ़ा हुआ (कुमा; प्रासू १३८)।
पढिज्जंत, पढिज्जमाण :: देखो पढ = पठ्।
पढिर :: वि [पठितृ] पढ़नेवाला (सण)।
पढुक्क :: वि [प्रढौकित] भेंट के लिए उपस्था- पित (भवि)।
पढुम :: देखो पढम (हे १, ५५; नाट — विक्र २९)।
पढेयव्व :: देखो पढ = पठ्।
पढे :: देखो पढाव। पढेइ (प्राकृ ६०)।
पण :: देखो पंच (सुपा १; नव १०; कम्म २, ९; २९; ३१)। °णउह स्त्री [°नवति] पंचानबे, नब्बे और पाँच (पि ४४६)। °तीस स्त्रीन [°त्रिंशत्] पैतीस, तीस और पाँच (औप; कम्म ४, ५३; पि २७३; ४४५)। °नुवइ देखो °णउइ (सुपा ६७)। °रस त्रि. ब. [°दशन्] पनरह (सण)।°वन्निय वि [°वर्णिक] पाँच रंग का (सुपा ४०२)। °वीस स्त्रीन [°विंशति] पचीस, बीस और पाँच (सम ४४; नव १३; कम्म २)। °वीसइ स्त्री [विंशति] वही अर्थ (पि ४४५)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] पैंसठ, साठ और पाँच (सम ७८; पि २७३)। °सय न [°शत] पाँच सो (दं ६)। °सीइ स्त्री [°शीति] पचासी, अस्सी और पाँच (कम्म २)। °सुन्न न [°सृन] पाँच हिंसा-स्थान (राज)।
पण :: पुं [पण] १ शर्त्तं, होड; 'लक्खपणेण जुज्झावेंतस्स' (महा) २ प्रतिज्ञा (आक) ३ धन। ४ विक्रेय वस्तु, क्रयाणक; 'तत्थ विढप्पिअ पणगणं' (ती ३)
पण :: पुं [प्रण] पन, प्रतिज्ञा (नाट — मालती १२४)।
पण, पणग :: न [पञ्चक] १ पाँच का समूह (पंच ३, १९) २ तप-विशेष, नीवी तप (संबोध ५७)
पणअत्तिअ :: वि [दे] प्रकटित, व्यक्त किया हुआ (दे ६, ३०)।
पणअन्न :: देखो पणपन्न (हे २, १७४ टि; राज)।
पणइ :: स्त्री [प्रणति] प्रणाम, नमस्कार (पउम ९९, ६६; सुर १२, १३३; कुमा)।
पणइ :: वि [प्रणयिन्] १ प्रणयवाला, स्नेही, प्रेमी। २ पुं. पति, स्वामी (पाअ; गउड ८३७) ३ याचक, अर्थी, प्रार्थी (गउड २४६; २५१; सुर १, १०८) ४ भृत्य, दास; 'बप्पइराओत्ति पणइलवो' (गउड ७९७)
पणइणी :: स्त्री [प्रणयिनी] पत्नी, भार्या, प्रिया, जोरू (सुपा २१६)।
पणइय :: वि [प्रणयिक, प्रणयिन्] देखो पणइ = प्रणियिन् (सण)।
पणंगणा :: स्त्री [पणाङ्गना] वेश्या, वारांगना (उप १०३१ टी; सुपा ४६०; कुप्र ५)।
पणग :: न [पञ्चक] पाँच का समूह (सुर ६, ११२; सुपा ६३९; 'जी ९; दं ३१; कम्म २, ११)।
पणग :: पुं [दे. पनक] १ शैवाल, सेवार या सिवार, तृण-विशेष जो जल में उत्पन्न होता है (बृह ४; दस ८; पणण १ णंदि) २ काई, वर्षा-काल में भूमि, काष्ठ आदि में उत्पन्न होनेवाला एक प्रकार का जल-मैल (आचा; पडि; ठा ८ — पत्र ४२९; कप्प) ३ कर्दम-विशेष, सूक्ष्म पंक (बृह ६; भग ७, ६)। देखो पणय (दे)। °मट्टिया, °मत्तिया स्त्री [°मृत्तिका] नदी आदि के पूर के होने पर रह जाती कोमल चिकनी मिट्टी (जीव १; पणण १ — पत्र २५)
पणच्च :: अक [प्र + नृत्] नाचना, नृत्य करना। वकृ. पणच्चमाण (णाया १, ८ — पत्र १३३; सुपा ४७२)। स्त्री. °णी (सुपा २४२)।
पणच्चय :: न [प्रनर्तन] नृत्य, नाच (सुपा १५४)।
पणच्चिअ :: वि [प्रनृत्तित] नाचा हुआ, जिसका नाच हुआ हो वह (णाया १, १ — पत्र २५)।
पणच्चिअ :: वि [प्रनृत्त] नाचा हुआ, 'अन्नया रायपुरओ पणच्चिया देवदत्ता' (महा; कुप्र १०)।
पणच्चिअ :: वि [प्रनर्त्तित] नचाया हुआ (भवि)।
पणट्ठ :: वि [प्रनष्ट] प्रकर्षं से नाश को प्राप्त (सूअ १, १, २; से ७, ८; सुर २, २४७; ३, ९६; भवि; उव)।
पणद्ध :: वि [प्रणद्ध] परिगत (औप)।
पणयण्ण :: देखो पणपन्न (कप्प १४७ टि)।
पणपण्णइम :: देखो पणपन्नइम (कप्प १७४ टि; पि २७३)।
पणपन्न :: स्त्रीन [दे. पञ्चपश्चाशत्] पचपन, पचास और पाँच (हे २, १७४; कप्प; सम ७२; कम्म ४, ५४; ५५; ति ५)।
पणपन्नइम :: वि [दे. पञ्चपञ्चाश्] पचपनवाँ, ५५ वाँ (कप्प)।
पणपन्निय :: देखो पणवन्निय (इक)।
पणपन्निय :: पुं [पंचप्रज्ञप्तिक] व्यन्तर देवों की एक जाति (पव १९४)।
पणम :: सक [प्र + नम्] प्रणाम करना, नमन करना। पणमइ, पणमए (स ३४४; भग)। वकृ. पणमंत (सण)। कवकसृ. पणमिज्जंत (सुपा ८८)। संकृ. पणमिअ, पणमिऊण, पणमिऊणं, पणमित्ता, पुणमित्तु (अभि ११८; प्रारू; पि ५९०; भग; काल)।
पणमण :: न [प्रणमन] प्रणाम, नमस्कार (उव; सुपा २७; ५९१)।
पणमिअ :: देखो पणम।
पणमिअ :: वि [प्रणत] १ नमा हुआ (भग; औप) २ जिसने नमने का प्रारम्भ किया हो वह (णाया १, १ — पत्र ५) ३ जिसको नमन किया गया हो वह; 'पणमिओ अणेण राया' (स ७३०)
पणमिअ :: वि [प्रणमित] नमाया हुआ (भवि)।
पणमिर :: वि [प्रणम्र] प्रणाम करनेवाला, नमनेवाला (कुमा; कुप्र ३५०; सण)।
पणय :: सक [प्र + णी] १ स्नेह करना, प्रेम करना। २ प्रार्थना करना। वकृ. पणअंत (से २, ९)
पणय :: वि [प्रणत] १ जिसको प्रणाम किया गया हो वह, 'नरनाहपणयपयकमलं' (सुपा २४०) २ जिसने नमस्कार किया हो वह; 'पणयपडिवक्खं' (सुर १, ११२; सुपा ३६१) ३ प्राप्त (सूअ १, ४, १) ४ निम्न, नीचा (जीव ३; राय)
पणय :: पुं [प्रणय] १ स्नेह, प्रेम (णाया १, ९; महा; गा २७) २ प्रार्थंना (गउड)। °वंत वि [°वत्] स्नेहवाला, प्रेमी (उप १३१)
पणय :: पुं [दे] पंक, कर्दंम (दे ६, ७)।
पणय :: पुं [दे. पनक] १ शैवाल, सेवार, तृण-विशेष। २ काई, जल-मैल (ओघ ३४९) ३ सूक्ष्म कर्दंम (पणह १, ४)
पणयाल :: वि [दे. पञ्चचत्वारिंश] पैंता- लीसवाँ, ४५ वाँ (पउम ४५, ४६)।
पणयाल, पणयालीस :: स्त्रीन [दे. पञ्चचत्वारिंशत्] पैंतालीस, चालीस और पाँच, ४५ (सम ६९; कम्म २, २७; ति ३; भग; सम ६८; औप; पि ४४५)।
पणव :: देखो पणम। पणवइ (भवि)। पणवइ (हे २, १९५)। वकृ. पणवंत (भव)।
पणव :: पुं [प्रणव] औंकार, 'औं' अक्षर (सिरि १९६)।
पणव :: पुं [पणव] पटह, ढोल, वाद्य-विशेष (औप; कप्प; अंत)।
पणवणिय :: देखो पणवन्निय (औप)।
पणवण्ण, पणवन्न :: देखो पणपन्न (पि २६५; २७३; भग; हे २, १७४ टि)।
पणवन्निय :: पुं [पणपन्निक] व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४)।
पणविय :: देखो पणभिय = प्रणत (भवि)।
पणवीसी :: स्त्री [पञ्चविंशतिका] पचीस का समूह (संबोध २५)।
पणस :: पुं [पनस] वृक्ष-विशेष, कटहल या कटहर (पि २०८; नाट — मृच्छ २१८)।
पणसुंन्दरी :: स्त्री [पणसुन्दरी] वेश्या (धर्मंवि १२७)।
पणाम :: सक [अर्पय्] अर्पंण करना, देने के लिए उपस्थित करना। पणमइ (हे ४, ३९), 'वंदिओ य पणयाण कल्लाणाइं पणमइ' (सुपा ३६३)।
पणाम :: सक [प्र + नमय्] नमाना। पणामेइ (महा)।
पणाम :: सक [उप + नी] उपस्थित करना। पणामेइ (प्राकृ ७१)।
पणाम :: पुं [प्रणाम] नमस्कार, नमन (दे ७, ९; भवि)।
पणामणिआ :: स्त्री [दे] स्त्रीविषयक प्रणय (दे ६, ३०)।
पणामय :: वि [अर्पक] देनेवाला (सूअ १, २, २)।
पणामय :: वि [प्रणामक] १ नमानेवाला। २ शब्द आदि विषय (सूअ १, २, २; २७)
पणामिअ :: वि [अर्पित] समर्पित, देने के लिए धरा हुआ (पाअ; कुमा); 'अपणामि- यंपि गहिअं कुसुमसेरण महुमासलच्छिए मुंहं' (हेका ५०)।
पणमिअ :: वि [प्रणामित] नमाया हुआ (से ४, ३१; गा २२)।
पणामिअ :: वि [प्रणमित] नत, नमा हुआ; 'पणामिया सायरं' (स ३१६)।
पणायक, पणायग :: वि [प्रणायक] ले जानेवाला, 'निव्वाणगमणसग्गप्पणायकाइं' (पणह २, १; पणह २, १ टी; वव १)।
पणाल :: पुं [प्रणाल] मोरी, पानी आदि जाने का रास्ता (से १३, ५४; उर १, ५; ६)।
पणालिआ :: स्त्री [प्रणालिका] १ परम्परा (सूअ १, १३) २ पानी जाने का रास्ता (कुमा)
पणाली :: स्त्री [प्रणाली] मोरी, पानी जाने का रास्ता (गउड)।
पणाली :: स्त्री [प्रनाली] शरीर-प्रमाण लम्बी लाठी (पणह १, ३ — पत्र ५४)।
पणास :: सक [प्र + नाशय्] विनाश करना। पणासेइ, पणासए (महा)।
पणास :: पुं [प्रणाश] विनाश, उच्छेदन (आवम)।
पणासण :: वि [प्रणाशन] विनाश करनेवाला; 'सव्वपावप्पणासणो' (पडि; कप्प)। स्त्री. °णी (श्रा ४६)।
पणासिय :: वि [प्रणाशित] जिसका विनाश किया गया हो वह (कप्प; भवि)।
पणिअ :: वि [दे] प्रकट, व्यक्त (दे ६, ७)।
पणिअ :: वि [प्रणीत] रचित (सूअनि ११२)।
पणिअ :: न [पर्णित] १ बेचने योग्य वस्तु (दे १, ७४; ६, ७; णाया १, १) २ व्यवहार, लेन-देन, क्रय-विक्रय (भग १५; णाया १, ३ — पत्र ९५) ३ शर्तं, होड़, एक तरह का जुआ (भास ९२) °भूमि, °भूमि स्त्री [°भूमि, °भूमी] १ अनार्यं देश-विशेष, जहाँ भगवान् महावीर ने एक चौमासा बिताया था (राज; कप्प) २ विक्रेय वस्तु रखने का स्थान (भग १५)। °साला स्त्री [°शाला] हाट, दूकान (बृह २, निचू १६)
पणिअ :: न [पण्य] विक्रेय वस्तु (सुपा २७५; औप; आचा)। °गिह, °घर न [°गृह] दूकान, हाट (निचू १२; आचा २, २, २)। °साला स्त्री [°शाला] °हाट, दूकान (आचा)। °वण पुं [°पण] दूकान, हाट (आचा)।
पणिअ :: वि [प्रणीत] सुन्दर, महोहर। °भूमि स्त्री [°भूमि] मनोज्ञ भूमि (भग १५)।
पणिअट्ठ :: वि [पणितार्थ] चोर (दस ७, ३७)।
पणिअसाला :: स्त्री [पण्यशाला] बखार, अन्न या माल रखने का घिरा हुआ स्थान, गोदाम (आचा २, २, २, १०)।
पणिआ :: स्त्री [दे] करोटिका, सिरकी हड्डी, खोपड़ी (दे ६, ३)।
पणिंदि, पणिदिय :: वि [पञ्चेन्द्रिय] त्वक्, जीभ; नाक, आँक और कान इन पाँचों इन्द्रियोंवाल प्राणी (कम्म २; ४, १०; १८; १९)।
पणिद्ध :: वि [प्रस्निग्ध] विशेष स्निग्ध (अणु २१५)।
पणिधाण :: देखो पडिहाण (अभि १८९; नाट. — विक्र ७२)।
पणिधि :: पुंस्त्री [प्रणिधि] माया, छल; 'पुणो पुणो पणिधि (? धी) ए हरित्ता उवहसे जणं' (सम ५०). देखो पणिहि।
पणियत्थ :: वि [प्रणिवसित] पहना हुआ (औप)।
पणिलिअ :: वि [दे] हत, मारा हुआ (षड्)।
पणिवइअ :: वि [प्रणिपतित] नत, नमा हुआ; 'पणिवइयवच्छला णं देवाणुप्पिया ! उत्तम- पुरिसा' (णाया १, १६ — पत्र २१९; स ११; उप ७६८ टी)।
पणिवइअ :: वि [प्रणिपतित] जिसको नमस्कार किया गया हो वह; 'नरपहुहिं पणिवइओ.... वीरो' (धर्मंवि ३७)।
पणिवय :: सक [प्रणि + पत्] नमन करना, वन्दन करना। पणिवयामि (कप्प; सार्धं ६१)।
पणिवाय :: पुं [प्रणिपात] वन्दन, नमस्कार (सुर ४, ६८; सुपा २८; २२२; महा)।
पणिहा :: सक [प्रणि + धा] १ एकाग्र चिन्तन करना, ध्यान करना। २ अपेक्षा करना। ३ अभिलाषा करना। ४ चेष्टा करना, प्रयत्न करना। संकृ. पणिहाय (णाया १, १०; भग १५)
पणिहाण :: न [प्रणिधान] १ एकाग्र ध्यान, मनो-नियोग, अवधान (उत्त १६, १४; स ८७; प्रामा) २ प्रयोग, व्यापार, चेष्टा; 'तिविहे पणिहाणे पणणत्ते; तं जहा — मणपणिहाणे, वयपणिहाणे, कायपणिहाणे' (ठा ३, १, ४, १; भग १८; उवा) ३ अभिलाष, कामना; 'संकाथाणाणि सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं' (उत्त १६, १४)
पणिहाय :: देखो पणिहा।
पणिहि :: पुंस्त्री [प्रणिधि] १ एकाग्रता, अवधान (पणह २, ५) २ कामना, अभिलाष (स ८७) ३ पुं. चरपुरुष, दूत (पणह १, ३; पाअ; सुर ३, ४; सुपा ४६२) ४ चेष्टा, व्यापार (दसनि १) ५ माया, कपट (आव ४) ६ व्यवस्थापन (राज)
पणिहि :: पुंस्त्री [प्रणिधि] बड़ा निधि (दस ८, १)।
पणिहिय :: वि [प्रणिहित] १ प्रयुक्त, व्यापृत (दसनि ८) २ व्यवस्थित (आव ४)
पणीय :: वि [प्रणीत] १ निर्मित, कृत, रचित; 'वइसेसियं पणीयं' (विसे २५०७; सुर १२, ६२; सुपा २८; १६७) २ स्निग्ध, घूत आदि स्नेह कि प्रचुरतावाला; 'विभुसा इत्थी- संसग्गी पणीयरसभोयणं' (दस ८, ५७; उत्त १६, ७; औघ १५० भा; औप; बृह ५) ३ निरूपित, प्ररूपित, आख्यात (अणु; आव ३) ४ मनोज्ञ, सुन्दर (भग ५, ४) ५ सम्यग् आचरित (सूअ १, ११)
पणीहाण :: देखो पणिहाण (आत्म ८; हित १५)।
पणुल्ल :: देखो पणोल्ल। वकृ. पणुल्लेमाण (पि २२४)।
पणुल्लिअ :: देखो पणोल्लिअ (पाअ; सुपा २४; प्रासू १६९)।
पणुवीस :: स्त्रीन [पञ्चविंशति] संख्या-विशेष, पचीस, वीस और पाँच। २ जिनकी संख्या पचीस हों वे (स १०६; पि १०४; २७३)
पणुवीसइस :: वि [पञ्चविंशतितम] पचीसवाँ, २५ वाँ (विसे ३१२०)।
पणोल्ल :: सक [प्र + णुद्] १ प्रेरणा करना। २ फेंकना। ३ नाश करना। पणेल्लइ (प्राप्र); 'पावाइं कम्माइं पणोल्लयामो' (उत्त १२, ४०)। कवकृ. पणोल्लिज्जमाण (णाया १, १; पणह १, ३)। संकृ. पणोल्ल (सूअ १, ८)
पणोल्लण :: न [प्रणोदन] प्रेरणा (ठा ८; उस पृ ३४१)।
फणोल्लय :: वि [प्रणोदक] प्रेरक (आचा)।
पणोल्लि :: वि [प्रणोदिन्] १ प्रेरणा करनेवाला। २ पुं. प्राजन दण्ड, बैल इत्यादि हाँकने की लड़की (पणह १, ३ — पत्र ५४)
पणोल्लिअ :: वि [प्रणोदित] प्रेरित (औप; पि २४४)।
पण्ण :: वि [प्रज्ञ] जानकार, दक्ष, निपुण (उत्त १, ८; सूअ १, ६)।
पण्ण :: वि [प्राज्ञ] १ प्रज्ञावाला, बुद्धिमान्, दक्ष (हे १, ५६; उप ९२३) २ वि. प्राज्ञ- सम्बन्धी (सूअ २, १)
पण्ण :: न [पर्ण] पत्र पुत्ता, पत्तो (कुमा)।
पण्ण :: देखो पणिअ = पण्य (नाट)।
पण्ण :: स्त्रीन [दे] पचास, ५०। स्त्री. °ण्णा (षड्)।
पण्ण :: देखो पंच, पण (पि २७३, ४४०; ४४५)। °रस त्रि. ब. [°दशन्] पनरह, १५ (सम २९; उवा)। °रसम वि [°दश] पनरहवाँ (उवा)। °रसी स्त्री [°दशी] १ पनरहवीं। २ तिथि-विशेष (पि २७३; कप्प)। °रह देखो °रस (प्राप्र)। °रह वि [°दश] पनरहवाँ, १५ वाँ (प्राप्र)। देखो पन्न = पंच।
पण्ण :: वि [पार्ण] पर्ण सम्बन्धी, पत्ते का, पत्ती से संबन्ध रखनेवाला (राज)।
पण्ण° :: देखो पण्णा°। °व वि [°वत्] प्रज्ञावाला (उप ६१२ टी)।
पण्णई :: [पन्नगा] भगवान् धर्मंनाथ की शासन- देवी (पव २७)।
पण्णग :: पुं [पन्नग] सर्पं, साँप (उप ७२८ टी)। °सन पुं [°शन] गरुड पक्षी (पिंग)। देखो पन्नय।
पण्णग :: वि [दे. पन्नक] दुर्गन्धी। °तिल पुं [°तिल] दुर्गन्धी तिल (राज)।
पण्णट्ठि :: स्त्री [पञ्चषष्टि] पैंसठ, साठ और पाँच, ६५ (कप्प)।
पण्णत्त :: वि [प्रज्ञप्त] निरूपित, उपदिष्ट, कथित (औप; उवा; ठा ३, १; ४, १; २; विपा १, १; प्रासू १२१)। २ प्रणीत, रचित (आवम; चंद २०; भग ११, ११; औप)।
पण्णत्ति :: स्त्री [प्रज्ञप्ति] १ विद्यादेवी-विशेष (जं १) २ जैन आगम ग्रंथ-विशेष, सूर्यं- प्रज्ञप्ति आदि उपांग-ग्रंथ (ठा ३, १; ४, १) ३ विद्या-विशेष (आचू १) ४ प्ररूपणा, प्रतिपादन (उवा; वव ३)। °खेवणी स्त्री [°क्षेपणी] कथा का एक भेद (ठा ४, २)। °पक्खेवणी स्त्री [°प्रक्षेपणी] कथा का एक भेद (राज)
पण्णपण्णिय :: पुं [पण्णपर्णि] व्यन्तर देवों की एक जाति (इक)।
पण्णय :: देखो पण्णग (से ४, ४)।
पण्णव :: सक [प्र + ज्ञापय्] प्ररूपण करना, उपदेश करना, प्रतिपादन करना। पणणवेइ, पणणवेंति (उवा; भग)। वकृ. पण्णवयंत पण्णवेमाण (भग; पि ५५१)। कृ. पण्ण- वणिज्ज (द्र ७)।
पण्णवग :: वि [प्रज्ञापक] प्ररूपक, प्रतिपादक (विसे ५४६)।
पण्णवण :: न [प्रज्ञापन] १ प्ररूपण, प्रति- पादन। २ शास्त्र, सिद्धान्त (विसे ८९४)
पण्णवय :: वि [प्रज्ञापन] ज्ञापक, निरूपक (संबोध ५)।
पण्णवणा :: स्त्री [प्रज्ञापना] १ प्ररूपणा, प्रति- पादन (णाया १, ९; उवा) २ एक जैन आगम ग्रंथ, 'प्रज्ञापना' सूत्र (भग)
पण्णवणिज्ज :: देखो पण्णव।
पण्णवणी :: स्त्री [प्रज्ञापनी] भाषा-विशेष, अर्थं- बोधक भाषा (भग १०, ३)।
पण्णवण्ण :: स्त्रीन [दे. पञ्चापञ्चाशत्] पच- पन, पचास और पाँच (दे ६, २७; षड्)।
पण्णवय :: देखो पण्णवग (विसे ५४७)।
पण्णवयंत :: देखो पण्णव।
पण्णविय :: वि [प्रज्ञापित] प्रतिपादित, प्ररू- पित (अणु; उत्त २९)।
पण्णवेत्तु :: वि [प्रज्ञापयितृ] प्रतिपादक, प्ररू- पण करनेवाला (ठा ७)।
पण्णवेमाण :: देखो पण्णव।
पण्णा :: सक [प्र + ज्ञा] १ प्रकर्षं से जानना। २ अच्छी तरह जानना। कर्मं. पण्णयंति (भग)
पण्णा :: देखो पण्ण (दे)।
पण्णा :: स्त्री [प्रज्ञा] मनुष्य की दस अवस्थाओं में पाँचवीं अवस्था (तंदु १६)।
पण्णा :: स्त्री [प्रज्ञा] १ बुद्धि, मति (उप १५४; ७२८ टी; निचू १) २ ज्ञान (सूअ १, १२)। °परिसह, °परीसह पुं [°परिषह, °परीषह] १ बुद्धि का गर्वं न करना। २ बुद्धि के अभाव में खेद न करना (भग ८, ८; पव ८६)। °मय पुं [°मद] बुद्धि का अभिमान (सूअ १, १३)। °वंत वि [°वत्] ज्ञानवान् (राज)
पण्णाग :: वि [प्रज्ञ] विद्वान् (पंचा १७, २७)।
पण्णाड :: देखो पन्नाड पण्णाडइ (दे ६, २९)।
पण्णाण :: न [प्रज्ञान] १ प्रकृष्ट ज्ञान। २ सम्यग् ज्ञान (सम ५१) ३ आगम, शास्त्र (आचा) °व वि [°वत्] १ ज्ञानवान्। २ शास्त्रज्ञ (आचा)
पण्णाराह :: (अप) त्रि. ब. [पञ्चदशन्] पनरह (पिंग)।
पण्णवीसा :: स्त्री [पञ्चविंशति] पचीस, बीस और पाँच, २५ (षड्)।
पण्णास :: स्त्रीन [दे. पञ्चाशत्] पचास, ५० (दे ६, २७; षड्; पि २७३; ४४५; कुमा)। देखो पन्नास।
पण्णासग :: वि [पञ्चाशक] पचास वर्ष की उम्र का (तंदु १७)।
पण्णुवीस :: देखो पणुवीस (स १४९)।
पण्ह :: पुंस्त्री [प्रश्न] प्रश्न, पृच्छा (हे १, ३५; कुमा)। स्त्री. °ण्हा (हे १, ३५)। (हे १; ३५)। °वाहण न [°वाहन] जैन मुनि-गण का एक कुल (ती ३८)। °वागरण न [°व्याकरण] ग्यारहवाँ जैन अंग-ग्रंथ (पणह २, ५; ठा १०; विपा १, १; सम १)। देखो पसिण।
पण्हअ :: अक [प्र + स्नु] झरना, टपकना; 'एक्को पणहअइ थणो' (गा ४०९; ४६२ अ)।
पण्हअ, पण्हव :: पुं [दे. प्रस्नव] १ स्तन-धघारा, स्तन से दूध का झरना (दे ६, ३; पि २३१; राज; अंत ७; षड्। २ झरन, टपकना; 'दिट्ठिपण्हव' (पिंड ४८७)
पण्हव :: पुं [पह्नव] १ अनार्य देश-विशेष। २ वि. उस देश का निवासी (पणह १, १ — पत्र १४)
पण्हवण :: न [प्रस्नवन] क्षरण, झरना (विपा १, २)।
पण्हविअ :: देखो पण्हुअ (दे ६, २५)।
पण्हा :: देखो पण्ह।
पण्हि :: पुंस्त्री [पार्ष्णि] फोली का अधोभाग, गुल्फ की नीचला हिस्सा; एड़ी (पणह १, ३; दे ७, ३२)।
पण्हिया :: स्त्री [प्रश्निका] एड़ी, गुल्फ का अधोभाग; 'मेलित्तु पणिहयाओ चरणे वित्था- रिऊण बाहिरओ' (चेइय ४८६)।
पण्हुअ :: वि [प्रस्नुत] १ क्षरित, झरा हुआ। २ जिसने झरने का प्रारम्भ किया हो वह; 'पणहुयपयहराओ' (पउम ७९, २०; हे २, ७५)
पण्हुइर :: वि [प्रस्नोतृ] झरनेवाला, 'हत्थप्फंसेण जरग्गवोवि पणहअइ दोहअगुणेोण। अवलोअणपण्डुइरिं पुत्तअ पुणणेहिं पाविहिसि' (गा ४६२)।
पण्होत्तर :: न [प्रश्नोत्तर] सवाल-जवाब (सुर १६, ४१; कप्पू)।
पतणु :: देखो पयणु (राज)।
पतार :: सक [प्र + तारय्] ठगना। संकृ. पतारिअ (अभि १७१)।
पतारग :: वि [प्रतारक] वञ्चक, ठग (धर्मंसं १४७)।
पत्तिण्ण, पतिन्न :: वि [प्रतीर्ण] पार पहुँचा हुआ, निस्तीर्णं (राज; पणह २, १ — पत्र ६९)।
पतुण्ण, पतुन्न :: न [प्रतुन्न] वल्कल का बना हुआ वस्त्र (आचा २, ५, १, ७)।
पतेरस, पतेलस :: वि [प्रत्रयोदश] प्रकृष्ट तेरहवाँ। °वास न [°वर्ष] १ प्रकृष्ट तेरहवाँ वर्ष। २ प्रकृत तेरहवाँ वर्ष। ३ प्रस्थित तेरहवाँ वर्ष (आचा)
पत्त :: वि [प्राप्त] मिला हुआ, पाया हुआ (कप्प; सुर ४, ७०; सुपा ३५७; जी ४४; दं ४६; प्रासू ३१; १६२; १८२; गा २४१)। °काल, °याल न [°काल] १ चैत्य-विशेष (राज) २ वि. अवसरोचित (स ४९०)
पत्त :: न [पत्र] १ पत्ती, पत्ता, दल, पर्ण (कप्प; सुर १, ७२; जी १०; प्रासू ६२) २ पक्ष पंख, पाँख (णाया १, १ — पत्र २४) ३ जिसपर लिखा जाता है वह, कागज, पन्ना (स ९२; सुर १, ७२; से २, १७३)। °च्छेज्ज न [°च्छेद्य] कला-विशेष (औप; स ६५)। °मंत वि [°वत्] पत्रवाला (णाया १, १)। °रह पुं [°रथ] पक्षी (पाअ)। °लेहा स्त्री [°लेखा] चन्दनादि से पत्र के आकृतिवाली रचना-विशेष, भूषा का एक प्रकार (अजि २८)। °वल्ली स्त्री [°वल्ली] १ पत्रवाली लता। २ मुँह पर चन्दन आदि से की जाती पत्र-श्रेणी-तुल्य रचना (कुप्र ३६५)। °विंट न [°वृन्त] पत्र का बन्धन (पि ५३)। °विंटिय वि [°वृन्तक, °वृन्तीय] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, पत्र वृन्त में उत्पन्न होता एक प्रकार का त्रीन्द्रिय जन्तु (पणण १ — पत्र ४५)। °विच्छुय पुं [°वृश्चिक] जीव-विशेष, एक तरह का वृश्चिक, चतुरिन्द्रिय जीवों की एक जाति (जीव १)। °वंट देखो °विंट °पि ५३)। °सगडिआ स्त्री [°शकटिका] पतों से भरी हुई गाड़ी (भग)। °समिद्ध वि [°समृद्ध] प्रभूत पत्तेवाला (पाअ)। °हार पुं [°हार] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १ — पत्र ४५; उत्त ३६, १३८)। °हार पुं [°हार] पत्ती पर निर्वाह करनेवाला वानप्रस्थ (औप)
पत्त :: न [पात्र] १ भाजन (कुमा; प्रासू ३९) २ आधार, आश्रय, स्थान (कुमा) ३ दान देने योग्य गुणी लोक (उप ६४८ टी; महा) ४ लगातार बत्तीस उपवास (संबोध ५८)। °बंध पुं [°बन्ध] पात्रों को बाँधने का कपड़ा (ओघ ६६८)। देखो पाय = पात्र।
पत्त :: वि [प्रात्त] प्रसारित (कप्प)।
पत्तइअ :: वि [पत्रकित] १ अल्प पत्रवाला। २ कुत्सित पत्रवाला (णाया १, ७ — पत्र ११६)
पत्तउर :: पुं [दे] वनस्पति-विशेष, एक प्रकार का गाछ (पणण १ — पत्र ३१)।
पत्तच्छेज्ज :: न [पत्रच्छेद्य] बाण से पत्ती बेधने की कला (जं २ टी पत्र १३७)। २ नक्काशी का काम, खोदने का काम (आचा २, १२, १)
पत्तट्ठ :: वि [दे प्राप्रार्थ] १ बहु-शिक्षित, विद्वान्, अति कुशल (दे ६, ६८; सुर १, ८१; सुपा १२६, भग १४, १; पाअ) २ समर्थं (जीवस २८५)
पत्तट्ठ :: वि [दे] सुन्दर, मनोहर (दे ६, ६८)।
पत्तण :: देखो पट्टण (राज)।
पत्तण :: न [दे. पत्त्रण] १ इषु-फलक, बाण का फलक। २ पुंख, बाण का मूल भाग (दे ६, ६४; गा १०००)
पत्तणा :: स्त्री [दे. पत्त्रण] १ — २ ऊपर देखो (गउड; से १५, ७३) ३ पुंख में की जाती रचना-विशेष (से ७, ५२)
पत्तणा :: स्त्री [प्रापणा] प्राप्ति (पंचु ४)।
पत्तपसाइआ :: स्त्री [दे] पत्तियों की एक की पगड़ी, जिसे भील लोग पहनते हैं (दे ६, २)।
पत्तपिसालस :: न [दे] ऊपर देखो (दे ६, २)।
पत्तय :: न [पत्रक] एक प्रकार का गेय (ठा ४, ४)।
पत्तय :: देखो पत्त (महा)।
पत्तरक :: न [दे. प्रतरक] आभूषण-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १४९)।
पत्तल :: वि [दे] १ तीक्ष्ण, तेज (दे ६, १४), 'नयणाइं समाणियपत्तलाइं परपुरिसजीवहरणाइं। असियसियाइं व मुद्धे खग्गा इव कं न मारंति'? (वज्जा ६०) २ पतला, कृश (दे ६, १४; वज्जा ४६)
पत्तल :: वि [पत्रल] १ पत्र-समृद्ध, बहुत पत्तीवाला (पाअ; से १, ६२; गा ५३२; ६३५; दे ६, १४) २ पक्ष्मवाला (औप; जं २)
पत्तल :: न [पत्र] पत्ती, पर्णं (हे २, १७३; प्रामा; सण; हे ४, ३८७)।
पत्तलण :: न [पत्रलन] पत्र-समृद्ध होना, पत्र- बहुल होना; 'वाउलिआपरिसोसणकुडंगपत्त- लणसुलहसंकेअ' (गा ६२६)।
पत्तली :: स्त्री [दे] कर-विशेष, एक प्रकार का राज-देय; 'गिणहह तद्देसपत्तलिं झत्ति' (सुपा ४६३)।
पत्तहारय :: वि [पत्रहारक] पत्तों को बेचने का काम करनेवाला (अणु १४९)।
पत्ताण :: सक [दे] पताना, मिटाना; 'पुच्छउ अन्नु कोवि जो जाणइ सो तुम्हह विवाउ पत्ताणइ' (भवि), पत्ताणहि (भवि)।
पत्तामोड :: पुंन [आमोटपत्र] तोड़ा हुआ पत्र, 'दब्भे य कुसे य पत्तामोडं च गेणहइ' (अंत ११)।
पत्ति :: स्त्री [प्राप्ति] लाभ (दे १, ४२; उप २२६; चेइय ८६४)।
पत्ति :: पुं [पत्ति] १ सेना-विशेष, जिसमें एक रथ, एक हाथी, तीन घोड़े और पाँच पैदल हों। २ पैदल चलनेवाली सेना (उप ७२८ टी)
पत्ति, पत्तिअ :: सक [प्रति + इ] १ जानना। २ विश्वास करना। ३ आश्रय करना। पत्तिअइ, पत्तियंति, पत्तिअसि, पत्तिआमि (से १३, ४४; पि ४८७; से ११, ९०; भग)। पत्तिएज्जा, पत्तिअ, पत्तिहि, पत्तिसु राय; गा २१६; ९९९; पि ४८७)। वकृ. पत्तिअंत, पत्तियमाण (गा २१६, ६७८; आचा २, २, २, १०)। संकृ. पडियच्च, पत्तियाइत्ता (सूअ १, ६, २७; उत्त २९; १)
पत्तिअ :: वि [पत्रित] संजात-पत्र, जिसमें पत्र उत्पन्न हुए हो वह (णाया १, ७; ११ — पत्र १७१)।
पत्तिअ :: वि [प्रतीति, प्रत्ययित] प्रतीतिवाला, विश्वस्त (ठा ६ — पत्र ३५५; कप्प; कस)।
पत्तिअ :: न [प्रीतिक] प्रीति, स्नेह (ठा ४, ३; ठा ६ — पत्र ३५५)।
पत्तिअ :: न [पत्रिक] भरकत-पत्र (कप्प)।
पत्तिआ :: स्त्री [पत्रिका] पत्र, वर्णं, पत्ती (कुमा)।
पत्तिआअ :: देखो पत्तिअ = प्रति + इ। पत्तिआअइ (प्राकृ ७५), पत्तिआअंति (पि ४८७)।
पत्तिआव :: सक [प्रति + आयय्] विश्वास कराना, प्रतीति कराना। पत्तिआवेइ (भास २३)।
पत्तिग :: देखो पत्तिअ = प्रतीक (पंचा ७, १०)।
पत्तिज्ज :: देखो पत्तिअ = प्रति + इ। पत्तिज्जसि, पत्तिजामि (पि ४८७)।
पत्तिज्जाव :: देखो पत्तिआव। पत्तिज्जावइ (सुपा ३०२)। पत्तिज्जावेमि (धर्मवि १३४)।
पत्तिसमिद्ध :: वि [दे] तीक्ष्ण (दे ६, १४)।
पत्ती :: स्त्री [दे] पत्तों की बनी हुई एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग सिर पर पहनते हैं (दे ६, २)।
पत्ती :: स्त्री [पत्नी] स्त्री, भार्या (उप पृ १६३; आप ६९; महा; पाअ)।
पत्ती :: स्त्री [पात्री] भाजन, पात्र (उप ९२२; महा; धर्मंवि १२९)।
पत्तुं :: देखो पाव = प्र + आप्।
पत्तुवगद :: (शौ) वि [प्रत्युपगत] १ सामने गया हुआ। २ वापस गया हुआ (नाट. — विक्र २३)
पत्तेअ, पत्तेग :: न [प्रत्येक] १ हरएक, एक एक (हे २, १०; कुमा; निचू १; पि ३४९) २ एक की तरभ, एक के सामाने; 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ' (जीव ३) ३ न. कर्मं-विशेष, जिसके उदय से एक जीव का एक अलग शरीर होता है; 'पत्तेयतणू पत्तेउदएणं' (कम्म १, ५०) ४ पृथक्, पृथक्, अलग अलग (कम्म १, ५०) ५ पुं. वह जीव जिसका शरीर अलग हो, एक स्वतन्त्र शरीरवाला जीव; 'साहारणपत्तेआ वणस्सइ- जीवा दुहा सुए भणिया' (जी ८) °णाम न [°नामन्] देखो ऊपर का तीसरा अर्थं (राज)। °निगोयय पुं [°निगोदक] जीव- विशेष (कम्म ४, ८२)। °बुद्ध पुं [°बुद्ध] अनित्यतादि भावना के कारणभूत किसी एक वस्तु से परमार्थं का ज्ञान जिसको उत्पन्न हुआ हो ऐसा जैन मुनि (महा; नव ४३)। °बुद्धसिद्ध पुं [°बुद्धसिद्ध] प्रत्येकबुद्ध होकर मुक्ति को प्राप्त जीव (धर्मं २)। °रस वि [°रस] विभिन्न रसवाला (ठा ४, ४)। °सरीर वि [°शरीर] १ विभिन्न शरीरवाला; 'पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीर- संघाया' (पंच ३) २ न. कर्मं.-विशेष, जिसके उदय से एक जीव का एख विभिन्न शरीर होता है (पणह १, १)। °सरीरनाम न [°शरीरनामन्] वही पूर्वोक्त अर्थं (सम ६७)
पत्तेय :: वि [प्रत्येक] बाह्य कारण (णंदि १३०, १३१ टी)।
पत्थ :: सक [प्र + अर्थय्] १ प्रार्थंना करना। २ अभिलाषा करना। ३ अटकाना, रोकना। पत्थेइ, पत्थेंति (उव; औप)। कर्म. पत्थिज्जसि (महा)। वकृ. पत्थंत, पत्थिंत, पत्थेअमाण (नाट — मालवि २५; सुपा २१३; प्रासू १२०); 'कामे पत्थेमाणा अकामा जंति दुग्गइं' (उप ३५७ टी)। कवकृ. पत्थिज्जंत, पत्थिज्जमाण (गा ४००; सुर १, २०; से ३, ३३; कप्प)। कृ. पत्थ, पत्थणिज्ज, पत्थेयव्व (सुपा ३७०; सुर १, ११९; सुपा १४८; पणह २, ४)
पत्थ :: पुं [पार्थ] १ अर्जुंन, मध्यम पाण्डव (स ६१२; वेणी १२६; कुमा) २ पाञ्चाल देश के एक राजा का नाम (पउम ३७, ८) ३ भद्दिलपुर नगर का एक राजा (सुपा ६२९)
पत्थ :: पुं [प्रार्थ] १ प्रार्थंन, प्रार्थंना (राय) २ दो दिनों का उपवास (संबोध ५८)
पत्थ :: देखो पच्छ = पथ्य (गा ८१४; पउम १७, ६४; राज)।
पत्थ :: देखो पत्थ = प्र + अर्थंय।
पत्थ :: पुं [प्रस्थ] १ कुडव का एक परिमाण (बृह ३; जीवस ८८; तंदु २९) २ सेतिका, एक कुडव का परिमाण (उप पृ ९६); 'पत्थगा उ जे पुरा आसी हीणमाणा उ तेधुणा' (वव १)
पत्थंत :: देखो पत्थ = प्र + अर्थंय्।
पत्थंत :: देखो पत्था।
पत्थग :: देखो पत्थय (राज)।
पत्थड :: पुं [प्रस्तर] १ रचना-विशेषवाला समूह (ठा ३, ४ — पत्र १७९) २ भवनों के बीच का अन्तराल भाग (पणण २, सम २५)
पत्थड :: वि [प्रस्तृत] १ बिछाया हुआ। २ फैला हुआ (भग ६, ८)
पत्थण :: न [प्रार्थन] प्रार्थंना (महा; भवि)।
पत्थणया, पत्थणा :: स्त्री [प्रार्थना] १ अभिलाषा, वाञ्छा (आव ४) २ याचना, माँग। ३ विज्ञप्ति, निवेदन (भग १२, ५; सुर १, २; सुपा २६६; प्रासू २१)
पत्थय :: देखो पत्थ = पथ्य (णाया १, १)।
पत्थय :: वि [प्रार्थक] अभिलाषा करनेवाला (सूअ १, २, २, १६; स २५३)।
पत्थय :: देखो पत्थ = प्रस्थ (उप १७९ टी; औप)।
पत्थयण :: न [पथ्यदन] शम्बल, पाथेय, मार्गं में खाने का खुराक, कलेवा (णाया १, १५; स १३०; उर ८, ७; सुपा ६२४)।
पत्थर :: सक [प्र + स्तृ] १ बिछाना। २ फैलाना। संकृ. पत्थरेत्ता (कस; ठा ६)
पत्थर :: पुं [प्रस्तर] पत्थर, पाषाण (औप; उव; पउम १७, ३६; सिरि ३३२); 'पत्थरेणाहओ कीवो पत्यरं डक्कुमिच्छई। मिगारिओ सरं पप्प सरुप्पर्त्तिं विमग्गई' (सुर ६, २०७)।
पत्थर :: न [दे] पाद-ताडन, लात (षड्)।
पत्थर :: देखो पत्थार (प्राप्र ; संक्षि २)।
पत्थरण :: न [प्रस्तरण] बिछौना, 'खट्टापत्थर- णयं तगा एगं' (धर्मंवि १४७)।
पत्थरभल्लिअ :: न [दे] कोलाहल करना (दे ६, ३६)।
पत्थरा :: स्त्री [दे] चरण-घात, लात (दे ६, ८)।
पत्थरिअ :: पुं [दे] पल्लव, कोपल (दे ६, २०)।
पत्तरिअ :: वि [प्रस्तृत] बिछाया हुआ, 'पत्थरिअं अत्थुअं' (पाअ)।
पत्थव :: देखो पत्थाव (हे १, ६८; कुमा; पउम ५, २१६)।
पत्था :: अक [प्र + स्था] प्रस्थान करना, प्रवास करना। वकृ. पत्थंत (से ३, ५७)।
पत्थाण :: न [प्रस्थान] प्रयाण, गमन (अभि ८१; अझि ९)।
पत्थार :: पुं [प्रस्तार] १ विस्तार (उवर ९९) २ तृणवन। ३ पल्लवादि-निर्मित शय्या। ४ पिंगल-प्रसिद्ध प्रक्रिया-विशेष (प्राप्र) ५ प्रायश्चित्त की रचना-विशेष (ठा ६ — पत्र ३७१; कस) ६ विनाश (पिंड ५०१; ५११)
पत्थारी :: स्त्री [दे] १ निकर, समूह (दे ६, ६९) २ शय्या, बिछौना, गुजराती में 'पत्थारी' (दे ६, ६९; पाअ; सुपा ३२०)
पत्थाव :: सक [प्र + स्तावय्] प्रारंभ करना। वकृ. पत्थावअंत (हास्य १२२)।
पत्थाव :: पुं [प्रस्ताव] १ अवसर। २ प्रसंग, प्रकरण (हे १, ६८; कुमा)
पत्थिअ :: वि [प्रस्थित] १ जिसने प्रयाण किया हो वह (से २, १६; सुर ४, १६८) २ न. प्रस्थान, गति, चाल (अजि ९)
पत्थिअ :: वि [प्रार्थित] १ जिसके पास प्रार्थना की गई हो वह। २ जिस चीज की प्रार्थंना की गई हो वह (भग; सुर ६, १८; १६, ६; उव)
पत्थिअ :: वि [दे] शीघ्र, जल्दी करनेवाला (दे ६, १०)।
पत्थिअ :: वि [प्रार्थिक] प्रार्थी, प्रार्थंना करनेवाला (उव)।
पत्थिअ :: वि [प्रास्थित] विशेष आस्थावाला, प्रकृष्ट श्रद्धावाला (उव)।
पत्थिअ°, पत्थिआ :: स्त्री [दे] बाँस का बना हुआ भाजन-विशेष (ओघ ४७३)। °पिडग, °पिडय न [°पिटक] बाँस का बना हुआ भाजन-विशेष (विपा १, ३)।
पत्थिद :: देखो पत्थिअ = प्रस्थित, प्रार्थित (प्राकृ २५)।
पत्थिव :: पुं [पार्थिव] १ राजा, नरेश (णाया १, १६; पाअ) २ वि. पृथिवी का बिकार (राजा)
पत्थी :: स्त्री [दे. पात्री] पात्र, भाजन; 'अंध- करबोरपत्थिं व माउआ मह पइं विलुंपंति' (गा २४० अ)।
पत्थीण :: न [दे] १ स्थूल वस्त्र, मोटा कपड़ा। २ वि. स्थूल, मोटा (दे ६, ११)
पत्थुय :: वि [प्रस्तुत] १ प्रकरण-प्राप्त, प्राकर- णिक (सुर ३, १९६; महा) २ प्राप्र, लब्ध (सूअ १, ४, १, १७)
पत्थुर :: देखो पत्थर = प्र + स्तृ। संकृ. पत्थु- रेत्ता (कस)।
पत्थेअमाण, पत्थेंत, पत्थेमाण, पत्थेयव्व :: देखो पत्थ = प्र + अर्थंय्।
पत्थोउ :: वि [प्रस्तोतृ] १ प्रस्ताव करनेवाला। २ प्रवर्त्तक। स्त्री. °त्थोई (पणह १, ३ — पत्र ४२)
पथम :: (पै) देखो पढम (पि १९०)।
पद :: देखो पय =पद (भग; स्वप्न १५; हे ४, २७०; पणह २, १; नाट — शकु ८१)।
पदअ :: सक [गम्] जाना, गमन करना। पदअइ (हे ४, १६२)। पदअंति (कुमा)।
पदंसिअ :: वि [प्रदर्शित] दिखलाया हुआ, बतलाया हुआ (श्रा ३०)।
पदक्खिण :: वि [प्रदक्षिण] १ जिसने दक्षिण की तरफ से लेकर मण्डलाकार भ्रमण किया हो वह। २ न. दक्षिणावर्त्तं भ्रमण; 'पदक्खि- णीकरअंतो भट्टारं' (प्रयौ ३५)। देखो पदाहिण।
पदक्खिण :: सक [प्रदक्षिणय्] प्रदक्षिणा करना, दक्षिण से लेकर मण्डलाकार भ्रमण करना। हेकृ. पदक्खिणेउं (पउम ४८, १११)।
पदक्खिणा :: स्त्री [प्रदक्षिणा] दक्षिण की ओर से मण्डलाकार भ्रमण (नाट — चैत ३८)।
पदण :: न [पदन] प्रत्यायन, प्रतीति कराना (उप ८८३)।
पदण :: (शौ) न [पतन] गिरना (नाट — मालती ३७)।
पदम :: (शौ) देखो पउम (नाट — मृच्छ १३९)।
पदय :: देखो पयय = पदग, पदक, पतग, पतंग (इक)।
पदरिसिय :: देखो पदंसिअ (भवि)।
पदहण :: न [प्रदहन] संताप, गरमी (कुमा)।
पदाइ :: वि [प्रदायिन्] देनेवाला (नाट — विक्र ८)।
पदाण :: न [प्रदान] दान, वितरण (औप; अभि ४५)।
पदादि :: (शौ) पुं [पदाति] पैदल चलनेवाला सैनिक (प्रयौ १७; नाट — वेणी ६६)।
पदायग :: वि [प्रदायक] देनेवाला (विसे ३२००)।
पदाव :: देखो पयाव (गा ३२६)।
पदाहिण :: वि [प्रदक्षिण] प्रकृष्ट दक्षिण, प्रकर्षं से दक्षिण दिशा में स्थित (जीव ३)। देखो पदक्खिण।
पदिकिदि :: (शौ) देखो पडिकिदि (मा १०; नाट — विक्र २१)।
पदित्त :: देखो पलित्त (राज)।
पदिस° :: स्त्री [प्रदिश्] विदिशा, ईशान आदि कोण; 'तसंति पाणा पदिसो दिसासु य' (आचा)।
पदिस्सा :: देखो पदेक्ख।
पदीव :: सक [प्र + दीपय्] १ जलाना। २ प्रकाश करना। पदीवेसि (पि २४४)। वकृ. पदीवेंत (पउम १०२, १०)
पदीव :: देखो पईव = प्रदीप (नाट — मृच्छ ३०)।
पदीविआ :: स्त्री [प्रदीपिका] छोटा दिया (नाट — मृच्छ ५१)।
पदुग्ग :: पुंन [प्रदुर्ग] कोट, किला (आचा, २, १०, २)।
पदुट्ठ :: वि [प्रद्विष्ट, प्रदुष्ट] विशेष द्वेष को प्राप्त (उत्त ३२; बृह ३)।
पदुब्भेइय :: न [पदोद्भेदक] पद-विभाग और शब्दार्थ मात्र का पारायण (राज)।
पदूमिय :: वि [प्रदावित, प्रदून] अत्यन्त पीड़ित (बृह ३)।
पदूस :: सक [प्र + द्विष्] द्वैष करना। पदूसंति (पंचा २, ३५)।
पदूसणया :: स्त्री [प्रद्वेषणा, प्रदूषणा] द्वेष, मात्सर्यं (उप ४८९)।
पदेक्ख :: सक [प्र + दृश्] प्रकर्षं से देखना। पदेक्खइ (भवि)। संकृ. 'पदिस्सा य दिस्सा वयमाणा' (भग १८, ८; पि ३३४)।
पदेस :: देखो पएस = प्रदेश (भग)।
पदेस :: पुं [प्रद्वेष] द्वेष (धर्मंसं ९७)।
पदेसिअ :: वि [प्रदेशित] प्ररूपित, प्रतिपादित (आचा)।
पदोस :: देखो पओस = दे, प्रद्वेष (अंत १३; निचू १)।
पदोस :: देखो पओस = प्रदोष (राज)।
पद्द :: न [दे] १ ग्राम-स्थान (दे ६, १) २ छोटा गाँव (पाअ)
पद्द :: न [पद्य] श्लोक, वृत्त, काव्य (प्राकृ २१)।
पद्देस :: देखो पदेस = प्रद्वेष (सूअ १, १६, ३)।
पद्धइ :: स्त्री [पद्धति] १ मार्गं, रास्ता (सुपा १८६) २ पंक्ति, श्रेणी (ठा २, ४) ३ परिपाटी, क्रम (आवम) ४ प्रक्रिया, प्रकरण (वज्जा २)
पद्धंस :: पुं [प्रध्वंस] ध्वंस, नाश। °भाव पुं [°भाव] अभाव-विशेष, वस्तु के नाश होने पर उसका जो अभाव होता है वह (विसे १८३७)।
पद्धर :: वि [दे] ऋजु, सरल, सीधा (दे ६, १०)। २ शीघ्र; गुजराती में 'पाधरुं'; 'पद्धर- पएहिं सुह़े पचारेइ' (सिरि ४३५)।
पद्धल :: वि [दे] दोनों पार्श्वों में अप्रवृत्त (षड्)।
पद्धार :: वि [दे] जिसका पूँछ कट गया हो वह, पूँछ-कटा (दे ६, १३)।
पधाइय :: देखो पधाविय (भवि)।
पधाण :: देखो पहाण (नाट — मृच्छ २०५)।
पधार :: देखो पहार = प्र + धारय्। भूका. पधारेत्थ (औप; णाया १, २ — पत्र ८८)।
पधाव :: सक [प्र + धाव्] दौड़ना, अधिक वेग से जाना। संकृ. पधाविअ (नाट)।
पधावण :: न [प्रधावन] १ दौड़, वेग से गमन। २ कार्यं की शीघ्र सिद्धि (श्रा १) ३ प्रक्षालन (धर्मंसं १०७८)
पधाविअ :: वि [प्रधावित] १ दौड़ा हुआ (महा; पणह १, ४) २ गति-रहित (राज)
पधाविर :: वि [प्रधावितृ] दौड़नेवाला (श्रा २८)।
पधूवण :: न [प्रधूपन] १ धूप देना। २ एक प्रकार का आलेपन द्रव्य (कस)
पधूविय :: वि [प्रधूपित] जिसको धूप दिया गया हो वह (राज)।
पधोअ :: सक [प्र + धाव्] धोना। संकृ. पधोइत्ता (आचा २, १, ६, ३)।
पधोअ :: वि [प्रधौत] धोया हुआ (औप)।
पधोव :: सक [प्र + धाव्] धोना। पधोवेंति (पि ४८२)।
पन :: दखो पंच। °र, °रस. ब. [°दशन्] पनरह, दस और पाँच, १५ (कम्म १; ४, ५२, ६८; जी २५)।
पनय :: (पै. चूपै) देखो पणय = प्रणय (हे ४, ३२६)।
पन्न :: देखो पण्ण = पर्ण (सुपा ३३९; कुप्र ४०८)।
पन्न :: देखो पण्ण = दे (भग; कम्म ४, ५४)।
पन्न :: देखो पण्ण = प्रज्ञ (आचा; कुप्र ४०८)।
पन्न :: वि [प्राज्ञ] १ पंडित, जानकार, विद्वान (ठा ७; उप १५१; धर्मंसं ४५२) २ वि. प्रज्ञ-संबन्धी (सूअ २, १, ५६)
पन्न :: देखो पंच। °र, °रस त्रि. ब. [°दशन्] पनरह, १५ (दं २२; सम २९; भग; सण)। °रस, °रसम वि [°दश] पनरहवाँ, १५ वाँ (सुर १५, २५०; पउम १५, १००)। °रसी स्त्री [°दशी] १ पनरहवीं। २ पनरहवीं तिथि (कप्प)
पन्न :: देखो पणिअ = पण्य (उप १०३१ टी)।
पन्नंगणा :: स्त्री [पण्याङ्गना] वेश्या, वाराङ्गना (उप १०३१ टी)।
पन्नग :: देखो पण्णग = पन्नग (विपा १, ७; सुर २, २३८)।
पन्नट्ठि :: देखो पण्णट्ठि (कप्प)।
पन्नत्त :: देखो पण्णत्त (णाया १, १; भग; सम १)।
पन्नत्तरि :: स्त्री [पञ्चसप्तति] पचहत्तर, ७५ (सम ८५; ति ३)।
पन्नत्ति :: देखो पण्णत्ति [सुपा १५३; संति ५; महा)]। ५ प्रकृष्ट ज्ञान। जिससे प्ररूपण किया जाय वह (तंदु ५४) ७ पाँचवाँ अंग-ग्रन्थ, भगवतीसूत्र (श्रावत ३३३)
पन्नत्तु :: वि [प्रज्ञापयितृ] आख्याता, प्रतिपादक (पि ३९०)।
पन्नपत्तिया :: स्त्री [प्रज्ञप्रत्यया] देखो पुन्नप- त्तिया (कप्प)।
पन्नपन्नइम :: देखो पणपन्नइम (पि ४४९)।
पन्नय :: देखो पण्णग (पाअ)। °रिउ पुं [°रिपु] गरुड़ पक्षी (पाअ)।
पन्नया :: स्त्री [पन्नगा] भगवान् धर्मंनाथजी की शासन-देवी (संति १०)।
पन्नव :: देखो पण्णव। पन्नवेइ (उव)। कर्म. पन्नविजच्जइ (उव)। वकृ. पन्नवयंत (सम्म १३४)। संकृ. पन्नवेऊणं (पि ५८५)।
पन्नवग :: वि [प्रज्ञापक] प्रतिपादक, प्ररूपक (कम्म ५, ८५ टी)।
पन्नवण :: देखो पण्णवण (सुपा २९९)।
पन्नवणा :: देखो पण्णवणा (भग; पणण १; ठा ३, ४)।
पन्नवय :: देखो पण्णवग (सम्म १६)।
पन्नवयंत :: देखो पन्नव।
पन्ना :: देखो पण्णा = प्रज्ञा (आचा; ठा ४, १; १०)।
पन्ना :: देखो पण्णा = दे (पव ५०)।
पन्नाड :: सक [मृद्] मर्दन करना। पन्नाडइ (हे ४, १२६)।
पन्नाडिअ :: वि [मृदित] जिनका मर्दन किया गया हो वह (पाअ; कुमा)।
पन्नाण :: देखो पण्णाण (आचा; पि ६०१)।
पन्नारस :: (अप) त्रि. ब. [पञ्चदशन्] पनरह, १५ (भवि)।
पन्नास :: देखो पण्णास (सम ७०; कुमा)। स्त्री. °सा (कप्प)। °इम वि [°तम] पचासवाँ, ५० वाँ; (पउम ५०, २३)।
पन्ह :: देखो पणह (कप्प)।
पन्हु :: (अप) देखो पण्हअ = दे. प्रस्नव (भवि)।
पपंच :: देखो पवंच (सुपा २३५)।
पपलीण :: वि [प्रपलायित] भागा हुआ (पि ३४६; ३६७; नाट — मृच्छ ५८)।
पपिआमह :: पुं [प्रपितामह] १ ब्रह्मा, विधाता (राज) २ पितामह का पिता, परदादा (धर्मंसं १४९)
पपुत्त :: पुं [प्रपुत्त] पौत्र, पुत्र का पुत्र, पोता (सुपा ४०७)।
पपुत्त, पपोत्त :: पुं [प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र; 'पोते का पुत्र, परपोता (विसे ८६२; राज)।
पप्प :: सक [प्र + आप्] प्राप्त करना। पप्पोइ, पप्पोति (पि ५०४; उत्त १४, १४)। पप्पोदि (शौ) (पि ५०४)। संकृ. पप्प (पणण १७; ओघ ५५; विसे ५५१)। कृ. पप्प (विसे २६८७)।
पप्पग :: न [दे. पर्पक] वनस्पति-विशेष (सूअ २, २, ६)।
पप्पड, पप्पडग :: पुंस्त्री [पर्पट] १ पापड़, मूँग या उर्दं की बहुत पतली एक प्रकार की रोटी (पव ३७; भवि) २ पापड़ के आकारवाला शुष्क मृत्णखण्ड (निचू १)। °पापय पुं [°पाचक] नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ३०)। °मोदय पुं [°मोदक] एक प्रकार की मष्ट वस्तु (पणण १७ — पत्र ५३३)
पप्पडिया :: स्त्री [पर्पटिका] तिल आदि की बनी हुई एक प्रकार की खाद्य वस्तु (पणण १; पिंड ५५६)।
पप्पल :: देखो पप्पड (नाट — विक्र २१)।
पप्पीअ :: पुं [दे] चातक पक्षी, पपीहा या पपोहरा (दे ६, १२)।
पप्पुअ :: वि [प्रप्लुत] १ जलार्द्रं, पानी से भीजा हुआ (पणह १, १; णाया १, ८) २ व्याप्त; 'धयपप्पुयवंजणाइं च' (पव ४ टी) ३ न. कूदना, लाँघना (गउड १२८)
पप्पोइ, पप्पोति :: देखो पप्प।
पप्फंदण :: न [प्रस्पन्दन] प्रचलन, फरकना (राज)।
पप्फाड :: पुं [दे] अग्नि-विशेष (दे ६, ९)।
पप्फिडिअ :: वि [दे] प्रतिफलित (दे ६, २२)।
पप्फुअ :: वि [दे] १ दीर्घ, लम्बा। २ उड्डीय- मान, उड़ता (दे ६, ६४)
पप्फुट्ट :: अक [प्र + स्फुट्] १ खिलना। २ फूटना। पप्फुट्टइ (प्राकृ ७४)
पप्फुडिअ :: पुं [प्रस्फुटित] नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २९)।
पप्फुय :: देखो पप्पुअ; 'बाहपप्फुयच्छो' (सुख २, २९)।
पप्फुर :: अक [प्र + स्फुर्] १ फरकना, हिलना। २ काँपना। पप्फुरइ (से १५, ७७; गा ६४७)
पप्फुरिअ :: वि [प्रस्फुरित] फरका हुआ (दे ६, १९)।
पप्फुल्ल :: अक [प्र + फुल्ल्] विकसना। वकृ. पप्फुल्लंत (रंभा)।
पप्फुल्ल :: वि [प्रफुल्ल] विकसित, खिला हुआ (णाया १, १३; उप पृ ११४; पउम ३, ६६; सुर २, ७६; षड्; गा ६३६; ९७०); 'इअ भणिएण णअंगी पप्फुल्लविलोअणा जाआ' (काप्र १६१)।
पप्फुल्लिअ :: वि [प्रफुल्लित] ऊपर देना (सम्मत्त १८९; भवि)।
पप्फुल्लिआ :: स्त्री [प्रफुल्लिका] देखो उप्फु- ल्लिआ (गा १९६ अ)।
पप्फुसिय :: न [प्रस्पृष्ट] उत्तम स्पर्शं (राय १८)।
पप्फोड :: देखो पप्फुट्ट। पप्फोडइ, फप्फोडए (धात्वा १४३)।
पप्फोड :: सक [प्र + स्फोटय्] १ झाड़ना, झाड़कर गिराना। २ आस्फालन करना। ३ प्रक्षेपण करना। पप्फोडइ (गा ४३३)। पप्फोडे (उत्त २६, २४)। वकृ. पप्फोडंत, पप्फोडयंत, पप्फोडेमाण (गा १४५, पि ४९१; ठा ६)। संकृ. 'पप्फोडजेऊण सेसयं कम्मं' (आउ ६७)
पप्फोडण :: न [प्रप्फोटन] १ झाड़ना, प्रकृष्ट घूनन (ओघ भा १६३) २ आस्फोटन, आस्फालन (पणह २, ५ — पत्र १४८; पिंड २६३)
पप्फोडणा :: स्त्री [प्रस्फोटना] ऊपर देखो (ओघ २६६; उत्त २६, २६)।
पप्फोडिअ :: वि [दे. प्रस्फोटित] निर्झटित, झाड़ कर गिराया हुआ (दे ६, २७, पाअ); 'पप्फोडअमोहजालस्स' (पडि)। २ फोड़ा हुआ, तोड़ा हुआ; 'पप्फोडिअसउणिअंडगं व ते हुंति निस्सारा' (संबोध १७)
पप्फोडेमाण :: देखो पप्फोड = प्र + स्फोटय्। पफुल्ल देखो पप्फुल्ल (षड्)।
पप्फुल्लिअ :: देखो पप्फुल्लिअ (हे ४, ३९६; पिंग)।
पबंध :: सक [प्र + बन्ध्] प्रबन्ध रूप से कहना, विस्तार से कहना। पबंधिज्जा (दस ५, २, ८)।
पबंध :: पुं [प्रबन्ध] १ सन्दर्भ, ग्रन्थ, परस्पर अन्वित वाक्य-समूह (रंभा ८) २ अविच्छेद, निरस्तरता (उत्त ११, ७)
पबंधण :: न [प्रबन्धन] प्रबन्ध, सन्दर्भं, अन्वित वाक्य-समूह की रचना; 'कहाए य पबंधणे' (सम २१)।
पबल :: वि [प्रबल] बलिष्ठ, प्रचण्ड, प्रखर (कुमा)।
पबाहा :: स्त्री [प्रबाधा] प्रकृष्ट बाधा, विशेष पीड़ा (णाया १, ४)।
पबुद्ध :: वि [प्रबुद्ध] १ प्रवीण, निपुण (से १२, ३४) २ जागा हुआ (सुर ५, २२९) ३ जिसने अच्छी तरह जानकारी प्राप्त की हो वह (आचा)
पबोध :: सक [प्र + बोधय्] १ जागृत करना। २ ज्ञान कराना। कर्मं. पबोधीआमि (पि ५४३)
पबोधण :: न [प्रबोधन] प्रकृष्ट बोधन (राज)।
पबोह :: देखो पबोध। कृ. पबोहणीय (पउम ७०, २८)।
पबोह :: पुं [प्रबोध] १ जागरण। २ ज्ञान, समझ (चारु ५४; पि १६०)
पबोहण :: देखो पबोधण (राज)।
पबोहय :: वि [प्रबोधक] प्रबोध-कर्ता (विसे १७३)।
पबोहिअ :: वि [प्रबोधित] १ जगाया हुआ। २ जिसको ज्ञान न कराया गया हो वह (सुपा ३१३)
पब्बल :: देखो पबल (से ४, २५; ६, ३३)।
पब्बाल :: देखो पव्वाल = छादय्। पव्बालइ (हे ४, २१)।
पब्बाल :: देखो पव्वाल = प्लावय्। पब्बालइ (हे ४, ४१)।
पब्बुद्ध :: देखो पबुद्ध (पि १९६)।
पब्भ :: वि [प्रह्व] नम्र (औप; प्राकृ २४)।
पब्भट्ठ, पब्भसिअ :: वि [प्रभ्रष्ट] १ परिभ्रष्ट, प्रस्खलित, चूका हुआ (पणह १, ३; अभि ११९; गा ३१८; सुर ३, १२३; गा ३३; ९५) २ विस्मृत (से १४, ४२) ३ पुं. नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २८)
पब्भार :: पुं [दे. प्राग्भार] १ संघात, समूह; जत्था (दे ६, ६६; से ४, २०; सुर १, २२३; कप्पू; गउड; कुलक २१)
पब्भार :: पुं [दे] गिरि-गुफा, पर्वंत-कन्दरा (दे ६; ६६); 'पब्भारकंदरगया साहंती अप्पणो अट्ठं' (पच्च ८१)।
पब्भार :: पुं [प्राग्भार] १ प्रकृष्ट भार, 'कुमरे संकमियरज्जपब्भारो' (धम्म ८ टी) २ ऊपर का भाग (से ४, २०) ३ थोड़ा नाम हुआ पर्वंत का भाग (णाया १, १ — पत्र ६३, भग ५, ७) ४ एक देश, एक भाग (से १, ५८) ५ उत्कर्षं, परभाग (गउड) ६ पुंन. पर्वंत के ऊपर का भाग (णंदि) ७ वि. थोड़ा नमा हुआ, ईषदवनत (अंत ११; ठा १०)
पब्भारा :: स्त्री [प्राग्भारा] दशा-विशेष, पुरुष की सत्तर से अस्सी वर्षं तक की अवस्था (ठा १० — पत्र ५१९; तंदु १६)।
पब्भूअ :: वि [प्रभूत] उत्पन्न, 'मंडुवकीए गब्भे, पब्भुओ दददुरत्तेण' (धर्मंवि ३५)।
पब्भोअ :: पुं [दे. प्रभोग] भोग, विलास (दे ६, १०)।
पभ :: पुं [प्रभ] १ हरिकान्त नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १; इक) २ द्वीप- विशेष और समुद्र-विशेष का अधिपति देव (राज)
°पभ :: वि [°प्रभ] सदृश, तुल्य (कप्प; उवा)।
°पभइ :: देखो °पभिइ; 'चंडाणं चंडरुद्दपभईणं' (अज्झ १४१)।
पभंकर :: पुं [प्रभङ्कर] १ ग्रह विशेष, ज्योतिष- देव- विशेष (ठा २, ३) २ पुंन. देव-विमान (सम ८; १४; पव २६७)
पभंकर :: वि [प्रभाकर] प्रकाशक, 'सव्वलोय- पभंकरो' (उत्त २३, ७६)।
पभंकरा :: स्त्री [प्रभङ्करा] १ विदेह-वर्षं की एक नगरी का नाम (ठा २, ३) २ चन्द्र की एक अग्रमहिषी का नाम (ठा ४, १) ३ सुर्यं की एक अग्रमहिषी का नाम (भग १०, ५)
पभंकरावई :: स्त्री [प्रभङ्करावती] विदेह वर्षं की एक नगरी (आचू १)।
पभंगुर :: वि [प्रभङ्गुर] अति विनश्वर (आचा)।
पभंजण :: पुं [प्रभञ्जन] १ वायुकुमार-निकाय के उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३; ४, १; सम ६९) २ लवण-समुद्र के एक पाताल- कलश का अधिष्ठायक देव (ठा ४, २) ३ वायु, पवन (से १४, ६९) ४ मानुषोत्तर पर्वंत के एक शिखर का अधिपति देव (राज)। °तणअ पुं [°तनय] हनूमान् (से १४, ६९)
पभंसण :: न [प्रभ्रंशन] स्खलना (धर्मंसं १०७९)।
पभकंत :: पुं [प्रभकान्त] १ — २ विद्युत्कुमार देवों के हरिकान्त और हरिस्सह नामक दोनों इन्द्रों के लोकपालों के नाम (ठा ४, १ — पत्र १९७; इक)
पभण :: सक [प्र + भण्] कहना, बोलना। पभणइ (महा; सण)।
पभणिय :: वि [प्रभणित] उक्त, कथित (सण)।
पभम :: सक [प्र + भ्रम्] भ्रमण करना, भटकाना। पभमेसि (श्रु १५३)।
पभव :: अक [प्र + भू] १ समर्थं होना, पहुँ- चना। २ होना, उत्पन्न होना। पभवइ (पि ४७५)। वकृ. पभवंत (सुपा ८६; नाट — विक्र ४५)
पभव :: पुं [प्रभव] १ उत्पत्ति, जन्म, प्रसूति, प्रसव (ठा ९; वसु) २ प्रथम उत्पत्ति का कारण (णंदि) ३ एक जैनमुनि, जम्बु-स्वामी का शिष्य (कप्प; वसु; णंदि)
पभवा :: स्त्री [प्रभवा] तृतीय वासुदेव की पटरानी (पउम २०, १८६)।
पभविय :: वि [प्रभूत] जो समर्थं हुआ हो, 'सा विज्जा सिट्ठसुए उदग्गपुन्नम्मि पभविया नेव' (धर्मंवि १२३)।
पभा :: स्त्री [प्रभा] १ कान्ति, तेज (महा; धर्मंसं १३३३) २ प्रभाव; 'निच्चुज्जोय रम्मा, सयंपभा ते विरायंति' (देवेन्द्र ३२०)
पभाइअ, पभाय :: पुंन [प्रभात] १ प्रातः काल, सुबह (पउम ७०, ५६; सुर ३, ९९; महा; स २४४) २ वि. प्रकाशित; रयणीए पभायाए' (उप ६४८ टी)। °तणय वि [°संबन्धिन्] प्राभातिक, प्रभात-सम्बन्धी, सुबह का (सुर ३, २४८)
पभार :: पुं [प्रभार] प्रकृष्ट भार (सम १५३)।
पभाव :: देखो पहाव = प्र + भावय्। पभावेइ, पभावंति (उव; पव १४८)। वकृ. पभाविंत (सुपा ३७९)।
पभाव :: देखो पहाव — प्रभाव (स्वप्न ९८)।
पभावई :: स्त्री [प्रभावती] १ उन्नीसवें जिन- देव की माता का नाम (सम १५१) २ रावण की एक पत्नी का नाम (पउम ७४, ११) ३ उदायन राजर्षि की पटरानी और चेड़ा नरेश की पुत्री का नाम (पडि) ४ बलदेव के पुत्र निषध की भार्या (आचू १) ५ राजा बल की पत्नी (भग ११, ११)
पभावग :: वि [प्रभावक] प्रभाव वढ़ानेवाला, शोभा की वृद्धि करनेवाला (श्रा ६; द्र २३)। २ उन्नति-कारक। ३ गौरव जनक (कुप्र १६८)
पभावण :: न [प्रभावन] नीचे देखो (श्रु ५)।
पभावणा :: स्त्री [प्रभावना] १ महात्म्य, गौरव। २ प्रसिद्धि, प्रख्याति (णाया १, १६ — पत्र १२२; श्रा ६; महा)
पभावय :: वि [प्रभावक] गौरव बढ़ेनेवाला (संबोध ३१)।
पभावाल :: पुं [प्रभावाल] वृक्ष-विशेष (राज)।
पभाविंत :: देखो पभाव = प्र + भावय्।
पभास :: सक [प्र + भाष्] बोलना, भाषण करना। पभासंति (विसे ४९९ टी)। वकृ. पभासंत, पभासयंत, पभासमाण (उप पृ २३; पउम ५५, १८; ८६, १०)।
पभास :: अक [प्र + भास्] प्रकाशित होना। पभासिंति (सुज्ज १९)। भूका — पभासिंसु (भग; सुज्ज १९)। भवि. पभासिस्संति (सुज्ज १९)। वकृ. पभासमाण (कप्प)।
पभास :: सक [प्र + भासय्] प्रकाशित करना। प्रभासेइ (भग)। पभासंति (सुज्ज ३ — पत्र ६४)। वकृ. पभासयंत, पभासे- माण (पउम १०८, ३३; रयण ७५; कप्प; उवा; औप; भग)।
पभास :: पुं [प्रभास] १ भगवान् महावीर के एक गणधर का नाम (सम १९; कप्प) २ एक विकटापाती पर्वंत का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३ — पत्र ६९) ३ एक जैन मुनि का नाम (धर्मं ३) ४ एक चित्रकर का नाम (धम्म ३१ टी) ५ न. तीर्थ-विशेष (जं ३, महा) ६ देव-विमान-विशेष (सम १३, ४१)। °तित्थि न [°तीर्थ] तीर्थं- विशेष, भारतवर्ष की पश्चिम दिशा में स्थित एक तीर्थं (इक)
पभासा :: स्त्री [प्रभासा] अहिंसा, दया (पणह २, १)।
पभासिय :: वि [प्रभाषित] उक्त, कथित (सूअ १, १, १, १९)।
पभासेमाण :: देखो पभास = प्र + भासय्।
पभिइ :: देखो पभिइं (द्र ५५)।
°पभिइ :: बि. ब. [°प्रभृति] इत्यादि, वगैरह (भग; उवा; महा)।
पभिइं, पभिई, पभीइ, पभीइं :: अ [प्रभृति] प्रारम्भ कर, (वहा से) शुरू कर, लेकर; 'बालभावाओ पभिइं' (सुर ४, १६७; कप्प; महा; स ७३९; २७५ टि)।
पभीय :: वि [प्रभीत] अति भीत, अत्यन्त डरा हुआ (उत्त ५, ११)।
पभु :: पुं [प्रभु] १ इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ७) २ स्वामी, मालिक (पउम ९३, २९; बृह २) ३ राजा, नृप; 'पभु राया अणुप्पभु जुवराया' (निचू २) ४ वि. समर्थं, शक्तिमान (श्रा २७; भग १५, उवा, ठा ४, ४) ५ योग्य, लायक; 'पभुत्ति वा जोग्गेत्ति वा एगट्ठा' (निचू २०)
पभुंज :: सक [प्र + भुज्] भोग करना। पभुंजेदि (शौ) (द्रव्य ९)।
पभुत्ति :: (पै) देखो पभिइं (कुमा)।
पभुत्त :: वि [प्रभुक्त] १ जिसने खाने का प्रारम्भ किया हो वह (सुर १०, ५८) २ जिसने भोजन किया हो वह (स १०४)
पभूइ, पभूइं :: देखो पभिइं (पउम ६, ७६; स २७५)।
पभूय :: वि [प्रभूत] प्रचुर, बहुत (भग; पउम ५, ५; णाया १, १; सुर ३, ८१; महा)।
पभोय :: (अप) देखो उवभोग; 'भोय-पभोयमाणु जं किज्जह' (भवि)।
पमइल :: वि [प्रमलिन] अति मलिन (णाया १, १)।
पमक्खण :: न [प्रमक्षण] १ अभ्यञ्जन, विले- पन। २ विवाह के समय किया जाता एक तरह का उबटन (स ७४)
पमक्खिअ :: वि [प्रम्रक्षित] १ विलिप्त। २ विवाह के समय जिसको उबटन किया गया हो वह (वसु; सम ७५)
पमज्ज :: सक [प्र + मृज्, मार्ज] मार्जंन करना, साफ-सुथरा करना, झाडू आदि से धूलि वगैरह को दूर करना। पमज्जइ (उवा; उवा)। पमज्जिया (आचा)। वकृ. पमज्जेमाण (ठा ७)। संकृ. पमज्जित्ता (भग; उवा)। हेकृ. पमज्जित्तु (पि ५७७)।
पमज्जण :: न [प्रमार्जन] मार्जंन, भूमि-शुद्धि (अंत)।
पमज्जणिया, पमज्जणी :: स्त्री [प्रमार्जनी] झाडू, भूमि साफ करने का उपकरण (णाया १, ७; धर्म ३)।
पमज्जय :: वि [प्रमार्जक] प्रमार्जन करनेवाला (दे ५, १८)।
पमज्जिअ :: वि [प्रमृष्ट, प्रमार्जित] साफ किया हुआ (उवा; महा)।
पमत्त :: वि [प्रमत्त] १ प्रमाद-युक्त, असाव- धान, प्रमादी, बेदरकार (उव; अभि १८५; प्रासू ९८) २ न. छठवाँ गुण-स्थानक (कम्म ४, ४७; ५६) ३ प्रमाद (कम्म २)। °जोग पुं [°योग] प्रमाद-युक्त चेष्टा (भग)। °संजय पुं [°संयत] प्रमादी साधु, प्रमाद- युक्त मुनि (भग ३, ३)
पमद :: देखो पमय (स्वप्न ५१; कप्पू)।
पमदा :: देखो पमया (नाट — शकु २)।
पमद्द :: सक [प्र + मृद] १ मर्दन करना। २ विनाश करना। ३ कम करना। ४ चूर्णं करना। ५ रुई की पूणी — पूनी बनाना। वकृ. पमद्दमाण (पिंड ५७४)
पमद्द :: पुं [प्रमर्द] १ ज्योतिष शास्त्र में प्रसिद्ध एख योग (सम १३; सुज्ज १०, ११) २ संघर्षं, संमर्दं (राज) ३ वि. मर्दन करनेवाला। ४ विनाशक; 'सारं मण्णइ सव्वं पच्चक्खाणं खु भवदुहपमद्दं' (संबोध ३७)
पमद्दण :: न [प्रमर्दन] १ चूरना, चूर्णं करना (राय) २ नाश करना। ३ कम करने (सम १२२) ४ रुई की पूणी करना (पिंड ६०३) ५ वि. विनाश करनेवाला (पंचा १४, ४२)
पमद्दय :: वि [प्रमर्दक] प्रमर्दन-कर्त्ता (दसनि १०, ३०)।
पमर्द्दि :: वि [प्रमर्दिन्] प्रमर्दंन करनेवाला (औप; पि २९१)।
पमय :: पुं [प्रमद] १ आनन्द, हर्षं (काल; श्रा २७) २ न. धतूरे का फल। °च्छी स्त्री [°क्षी] स्त्री, महिला (सुपा २३०)। °वण न [°वन] राजा का अन्तःपुर-स्थित वह वन या बागीचा जहाँ राज रानियों के साथ क्रीड़ा करे (स ११, ३७; णाया १, ८; १३)
पमया :: स्त्री [प्रमदा] उत्तम स्त्री, श्रेष्ठ महिला (उव; बृह ४)।
पमह :: पुं [प्रमथ] शिव का अनुचर (पाअ)। °णाह पुं [°नाथ] महादेव (समु १५०)। °हिव पुं [°धिप] शिव, महादेव (गा ४४८)।
पमा :: सक [प्र + मा] सत्य-सत्य ज्ञान करना। कर्म. पमीयए (विसे ९४६)।
पमा :: स्त्री [प्रमा] १ प्रमाण, परिमाण; 'पीअ- लधाउविणिम्मिअविहत्थिपममाहुलिंगआहरणं' (कुमा) २ प्रमाण, न्याय; 'अतिप्पसंगो पमासिद्धो' (धर्मंसं ६८१)
पमा° :: देखो पमाय = प्रमाद (वव १)।
पमाइ :: वि [प्रमादिन्] प्रमादी, बेदरकार (सुपा ५४३; उव; आचा)।
पमाइअव्व :: देखो पमाय = प्र + मद्।
पमाइल्ल :: देखो पमाइ; 'धम्मपमाइल्ले' (उप ७२८ टी)।
पमाण :: सक [प्र + मानय्] विशेष रीति से मानना, आदर करना। कृ. पमाणणिज्ज (श्रा २७)।
पमाण :: न [प्रमाण] १ यथार्थ ज्ञान; सत्य ज्ञान। २ जिससे वस्तु का सत्य-सत्य ज्ञान हो वह, सत्य ज्ञान का साधन (अणु) ३ जिससे नाप किया जाय वह; 'अणुप्पमाणंपि' (श्रा २७; भग; अणु) ४ नाप, माप, परि- माण (विचार ५४४; ठा ५, ३; जीवस ९४; भग; विपा १, २) ५ संख्या (अणु; जी २६) ६ प्रमाण-शास्त्र, न्याय-शास्त्र, तर्क- शास्त्र; 'लक्खणसाहित्तपमाणजोइसाईणि सा पढइ' (सुपा १०३) ७ पुंन. सत्य रूप से जिसका स्वीकार किया जाय वह। ८ मान- नीय, आदरणीय। ९ सच्चा, सही, ठीक-ठीक, यथार्थं; 'कमागओ जो य जेंसि किल धम्मो सो य पमाणो तेसिं' (सुपा ११०; श्रा १४); 'सुचरंपि अच्छमाणो नलथंभो पिच्छ इच्छुवाडम्मि। कीस न जायइ महुरो जइ सेसग्गी पमाणं ते' (प्रासू ३३)। °वाय पुं [°वाद] न्याय-शास्त्र, तर्कं-शास्त्र (सम्मत्त ११७)। °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-विशेष (सुज्ज १०, २०)
पमाण :: सक [प्रमाणय्] प्रमाण रूप से स्वीकार करना। पमाण, पमाणह (पिंग)। वकृ. पमाणंत (उवर १८९)। कृ. पमाणि- यव्व (सिरि ९१)।
पमाणिअ :: वि [प्रमाणित] प्रमाण रूप से स्वीकृत (सुपा ११०; श्रा १२)।
पमाणिआ, पमाणी :: स्त्री [प्रमाणिका, प्रमाणी] छन्द-विशेष (पिंग)।
पमाणीकर :: अक [प्रमाणी + कृ] प्रमाण करना, सत्य रूप से स्वीकार करना। कर्मं. पमाणीकरीअदि (शौ) (पि ३२४)। संकृ. पमाणीकिअ (नाट — मालवि ४०)।
पमाद :: देखो पमाय =प्र + मद्। कृ. पमादे- यव्व (णाया १, १ — पत्र ६०)।
पमाद :: देखो पमाय = प्रमाद (भग; औप; स्वप्न १०६)।
पमाय :: अक [प्र + मद्] प्रमाद करना, बेदरकारी करना। पमायइ, पमायए (उव; पि ४६०)। वकृ. पमायंत (सुपा १०)। कृ. पमाइअव्व (भग)।
पमाय :: पुं [प्रमाद] १ कर्तव्य कार्यं में अप्रवृत्ति और अकर्तव्य कार्यं में प्रवृत्ति रूप असावधानता, बेदरकारी (आचा; उत ४, ३२; महा; प्रासू ३८; १३४) २ दुःख, कष्ट; 'समग्गलोथाण वि जा विमायासम समुप्पाइयसुप्पमाया' (सत्त ३५)
पमार :: पुं [प्रमार] १ मरण का प्रारम्भ (भग १५) २ बूरी तरह मारना (ठा ५, १)
पमारणा :: स्त्री [प्रमारणा] बुरी तरह मारना (वव ३)।
पमिय :: वि [प्रमित] परिमित, नापा हुआ 'अंगुलमूलासंखिअभागप्पमिया उ होंति सेढीओ' (पंच २, २०)।
पमिलाण :: वि [प्रम्लान] अतिशय मुरझाया हुआ (ठा ३, १; धर्मंवि ५५)।
पमिलाय :: अक [प्र + म्लै] मुरझाना, 'पण- पन्नाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं' (तंदु ४)।
पमिल्ल :: अक [प्र + मील्] विशेष संकोच करना, सकुचना। पमिल्लइ (हे ४, २३२; प्राप्र)।
पमीय° :: देखो पमा = प्र + मा।
पमील :: देखो पमिल्ल । पमीलइ (हे ४, २३२)।
पमुइअ :: वि [प्रमुदित] हर्ष-प्राप्त, हर्षित (औप, जीव ३)।
पमुंच :: सक [प्र + मुच्] छोड़ना, परित्याग करना। पमुंचंति (उव)। कर्मं. पमुच्चइ (पि ५४२)। भवि. पमोक्खसि (आचा)। वकृ. पमुंचमाण (राज)।
पमुक्क :: वि [प्रमुक्क] परित्यक्त (हे २, ९७; षड्)।
°पमुक्ख :: देखो °पमुह (सुपा १०; गु ११; जी १०)।
पमुच्छिय :: पुं [प्रमूर्च्छित] नरकावास- विशेष (देवेन्द्र २७)।
पमुत्त :: देखो पमुक्क (पि ५६६)।
पमुदिय :: देखो पमुइअ (सुर ३, २०)।
पमुद्ध :: वि [प्रमुग्ध] अत्यन्त मुग्ध (नाट — मालती ४४)।
पमुह :: वि [प्रमुख] १ तल्लीन, दृष्टिवाला, 'एगप्पमुहे' (आचा) २ पुं. ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३) ३ न. प्रकृष्ट आरम्भ, आदि, आपात; 'किंपागफल- सरिच्छो भोगा पमुहे हवंति गुणामहुरा' (पउम १०८, ३१; पाअ) °पमुह वि. ब. [°प्रमुख] १ वगैरह, आदि। २ प्रधान, श्रेष्ठ, मुख्य (औप; प्रासू १६९)
पमुहर :: वि [प्रमुखर] वाचाल, बकवादी (उत्त १७, ११)।
पमेइल :: वि [प्रमेदस्विन्] जिसके शरीर में चर्बी बहुत हो वह, 'थूले पमेइले वज्झे पाइमेत्ति य नो वए' (दस ७, २२)।
पमेय :: वि [प्रमेय] प्रमाण-विषय, सत्य- पदार्थ (धर्मंसं ११९०)।
पमेह :: पुं [प्रमेह] रोग-विशेष, मेह रोग, मूत्र-दोष, बहुमूत्रता (निचू १)।
पमोअ :: पुं [प्रमोद] १ आनन्द, खुशी, हर्षं (सुर १, ७८; महा; णंदि) २ राक्षस-वंश के एक राजा का नाम, एक लंका-पति (पउम ५, २६३)
पमोक्ख° :: देखो पमुंच।
पमोक्ख :: पुंन [प्रमोक्ष्] १ मुक्ति, निर्वाण (सूअ १, १०, १२) २ प्रत्युत्तर, जवाब; 'नो संचाएइ ........किचिवि पमोक्खमक्खाइउं' (भग)
पमोक्खण :: न [प्रमोचन] परित्याग, 'कंठा- कंठियं अवयासिय बाहपमोक्खणं करेइ' (णाया १, २ — पत्र ८८)।
पमोय़णा :: स्त्री [प्रमोदना] प्रमोदन, प्रमोद, आह्लाद, आनंद (चेइय ४११)।
पम्मलाअ :: अक [प्र + म्लै] अधिक म्लान होना। पम्मलाअदि (शौ); (पि १३६; नाट — मालती ५३)।
पम्माअ, पम्माइअ :: वि [प्रम्लान] १ विशेष म्लान, अत्यन्त मुरझाया हुआ; 'पम्माअ- सिरीसाइं व। जह से जायाइं अंगाइं' (गा ५६; गा ५६ टि) २ शुष्क; 'वसहा य जायथामा, गामा पम्मायचिक्खिल्ला' (धर्मंवि ५३)
पम्माण :: वि [प्रम्लान] १ निस्तेज, मुरझाया हुआ। २ न. फींकापन, मुझाना; 'पम्हा (? म्मा) णरुणणलिंगो' (अणु १३९)
पम्मि :: पुं [दे] पाणि, हाथ, कर (षड्)।
पम्मुक्क :: देखो पमुक्क (हे २, ९७; षड्; (कुमा)।
पम्मुह :: वि [प्राङ्मुख] पूर्वं की ओर जिसका मुँह हो वह (भवि; वज्जा १६४)।
पम्ह :: पुंन [पक्ष्मन्] १ अक्षि-लोम, बरवनी, आँख के बाल (पाअ) ३ पद्म आदि का केसर, किंजल्क (उवा; भग; विपा १, १) ३ सूत्र आदि का अत्यल्प भाग। ४ पंख, पाँख (हे २, ७४; प्राप्र) ५ केश का अग्र- भाग (से ६, २०) ६ अग्र-भाग; 'णअणहु- आसणपरइत्तपत्तणपम्हं' (से १५, ७३) ७ महाविदेह वर्ष का एक विजय — प्रदेश (ठा २, ३; इक) ८ न. एक देव-विमान (सम १५) °कंत न [°कान्त] एक देव- विमान का नाम (सम १५)। °कूड पुं [°कूट] १ पर्वंत-विशेष (राज) २ न. ब्रह्मलोक नामक देवलोक का एक देव-विमान (सम १५) ३ पर्वंत-विशेष का एक शिखर (ठा २, ३; ९)। °ज्झय न [°ध्वज] देव-विमान-विशेष (सम १५)। °प्पभ न [°प्रभ] ब्रह्मलोक का एक देवविमान (सम १५)। °लेस, °लेस्स न [°लेश्य] ब्रह्मलोक-स्थित एक देव-विमाम (सम १५; राज)। °वण्ण न [°वर्ण] वही पूर्वोक्त अर्थं (सम १५)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] वही अर्थ (सम १५)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] वही पूर्वोक्त अर्थं (सम १५)। °वित्त न [°वर्त्त] वही अर्थं (सम १५)
पम्ह :: देखो पउम (पणह १, ४ — पत्र ६७; ७८; जीव ३)। °गंध वि [°गन्ध] १ कमल की गन्ध। २ वि. कमल के समान गन्धवाला (भग ६, ७)। °लेस वि [°लेश्य] पद्म नामक लेश्यावाला (भग)। °लेसा स्त्री [°लेश्या] लेश्या-विशेष, पाँचवीं लेश्या, आत्मा का शुभतर परिणाम-विशेष (ठा ३, १; सम ११)। °लेस्स देखो °लेस पणण १७ — पत्र ५११)
पम्हअ :: सक [प्र + स्मृ] भूल जाना; विस्मरण होना। पम्हअइ (प्राकृ ६१)।
पम्हगावई :: स्त्री [पक्ष्मकावती] महाविदेह वर्षं का एक विजय, प्रदेश-विशेष (ठा २, ३; इक)।
पम्हट्ठ :: वि [प्रस्मृत] १ विस्मृत (से ४, ४२) २ जिसको विस्मरण हुआ हो वह; 'किं पम्हट्ठ म्हि अहं तुह चलणुप्पणणतिवह- आपडिउणणं' (से ६, १२)
पम्हट्ठ :: वि [दे] १ प्रभ्रष्ट, विलुप्त, (से ४, ४२) २ फेंका हुआ, प्रक्षिप्त; 'पम्हट्ठं वा परिट्ठविय ति वा एगट्ठं' (वव १)
पम्हय :: वि [पक्ष्मज] १ पक्ष्म से उत्पन्न। २ न. एक प्रकार का सूता (पंचभा)
पम्हर :: पुं [दे] आमृत्यु, अकाल-मरण (दे ६, ३)।
पम्हल :: वि [पक्ष्मल] पक्ष्म-युक्त, सुंदर अक्षि-लोमवाला (हे २, ७४; कुमा; षड्, औप; गउड; सुर ३, १३९; पाअ)।
पम्हल :: पुं [दे] किंजल्क, पद्म आदि का केसर (दे ६, १३; षड्)।
पम्हलिय :: वि [दे. पक्ष्मलित] धवलित, सफेद किया हुआ; 'लायणणजोन्हापवाहपम्ह- लियचउद्दिसाभोओ' (स ३६)।
पम्हस :: सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, भूल जाना। पम्हसइ (षड्); पम्हसिज्जासु (गा ३४८)।
पम्हसाविय :: वि [विस्मारित] भूलाया हुआ, विस्मृत कराया हुआ (सुख २, ५)।
पम्हा :: स्त्री [पद्मा] १ लेश्या-विशेष, पद्म- लेश्या; आत्मा का शुभतर परिणाम-विशेष (कम्म ३, २२; श्रा २६) २ विजय-क्षेत्र विशेष (राज)
पम्हार :: पुं [दे] अपमृत्यु, बेमौत मरण (दे ६, ३)।
पम्हावई :: स्त्री [पक्ष्मावती] १ विजय-विशेष की एक नगरी (ठा २, ३; इक) २ पर्वंत- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)
पम्हट्ठ :: वि [दे] १ नष्ट, नाश-प्राप्त (हे ४; २५८) २ विस्मृत; 'पम्हुट्ठं विम्बरिअं' (पाअ), 'किं थ तयं पम्हुठ्ठुं' (णाया १, ८ — पत्र १४८; विचार २३८)
पम्हुत्तरवडिंसग :: न [पक्ष्मोत्तरावतंसक] व्रह्मलोक में स्थित एक देव-विमान (सम १५)।
पम्हुस :: सक [वि + स्मृ] भूलना, विस्मरण करना। पम्हुसइ (हे ४, ७५)।
पम्हुस :: सक [प्र + मृश्] स्पर्शं करना। पम्हुसइ, पम्हुस (हे ४, १८४; कुमा ७, २९)।
पम्हुस :: सक [प्र + मुष्] चोराना, चोरी करना। पम्हुसइ; पम्हुसेइ; पम्हुसंति (हे ४, १८४; सुपा १३७; कुमा ७, २९)।
पम्हुसण :: न [विस्मरण] विस्मृति (पंचा १५, ११)।
पम्हुसिअ :: वि [विस्मृत] जिसका विस्मरण हुआ हो वह (कुमा; उप ७६८ टी)।
पम्हुह :: सक [स्मृ] स्मरण करना, याद करना। पम्हुहइ (हे ४, ७४)।
पम्हुहण :: वि [स्मर्तृ] स्मरण करनेवाला। (कुमा)।
पय :: सक [पच्] पकाना, पाक करना। पयइ (हे ४, ९०)। वकृ. पयंत (कप्प)। संकृ. पइउं (कुप्र २६६)।
पय :: सक [पद्] १ जाना। २ जानना। ३ विचारना। पयइ (विसे ४०८)
पय :: पुंन [पयस्] १ क्षीर, दूध; 'पओ' (हे १, ३२; ओघ १२; पाअ) २ पानी, जल (सुपा १३६; पाअ)। °हर देखो पओहर (पिंग)
पय :: पुं [प्रज] प्राणी, जन्तु (आचा)।
पय :: पुंन [पद] १ विभक्ति के साथ का शब्द, 'पयमत्थवायगं जोयगं च तं नामियाइं पंचविहं' (विसे १००३; प्रासू १३८; श्रा २३) २ शब्द-समूह, वाक्य; 'उवएसपया इहं समक्खाया' (उप १०३८; श्रा २३) ३ पैर, पाँव, चरण; 'जार्ण च तज्जणातज्जणीइ लग्गो ठवेमि मंदपए, कव्वपहे बालो इव', 'जाव न सत्तट्ठ पए पच्चाहुत्तं नियत्तो सि' (सुपा १; धर्मवि ५४; सुर ३, १०७; श्रा २३) ४ पाद-चिन्ह, पदाङ्क (सुर २, २३२; सुपा ३५४; श्रा २३; प्रासू ५०) ५ पद्य का चौथा हिस्सा (अणु) ६ निमित्त, कारण (आचा) ७ स्थान; 'अवमाणपयं हि सेव त्ति' (सुर २, १९७; श्रा २३) ८ पदवी, अधिकार; 'जुवरायपए किं नवि अहिसिच्चइ देव ते पुत्तो ?' (सुर २, १७५; महा) ९ त्राण, शरण। १० प्रदेश। ११ व्यवसाय (श्रा २३) १२ कूट, जाल-विशेष (सूअ १, १, २, ८)। °खेम न [°क्षेम] शिव, कल्याण; 'कुव्वइ अ सो पयखेममप्पणो' (दस ९, ४, ६)। °त्थ पुं [°स्थ] पदाति, पैदल प्यादा; 'तुरएण सह तुरंगो पाइक्को सह पयत्थेण' (पउम ६, १८२)। °पास पुं [°पाश] वागुरा, जल आदि बन्धन (सूअ १, १, २, ८, ९)। °रक्ख पुं [°रक्ष] पदाति, प्यादा (भवि; हे ४, ४१८)। °विग्गह पुं [°विग्रह] पदविच्छेद (विसे १००६)। °विभाग पुं [°विभाग] उत्सर्ग और अपवाद का यथा-स्थान निवेश, सामा- चारी-विशेष (आव १)। °वीढ देखो पाय- वीढ (पव ४०; सुपा ६५६)। °समास पुं [°समास] पदों का समुदाय (कम्म १, ७)। °णुसारि वि [°नुसारिन्] एक पद से अनेक अनुक्त पदों का भी अनुसंधान करने की शक्तिवाला (औप, बृह १)। °णुसा- रिणी स्त्री [°नुसारिणी] बुद्धि-विशेष, एक पद के श्रवण से दूसरे अश्रुत पदों का स्वयं पता लगानेवाली बुद्धि (पणण २१)
पय :: (अप) देखो पत्तृ = प्राप्त (पिंग)।
पय° :: देखो पया = प्रजा। °पाल वि [°पाल] १ प्रजा का पालक। २ पुं. नृप-विशेष (सिरि ४५)
°पय :: वि [°प्रद] देनेवाला, 'पीइप्पयं' (रंभा)।
पयइ :: स्त्री [प्रकृति] संधि का अभाव (अणु ११२)।
पयइ :: देखो पगइ (गा ३१७; गउड; महा; नव ३१, भत्त ११; कप्पू; कुप्र ३४६)।
पयइदं :: पुं [पतगेन्द्र, पदकेन्द्र] वानव्यन्तर- जातीय देवों का इन्द्र (ठा २, ३)।
पयई :: देखो पयवी (गउड)।
पयंग :: पुं [पतङ्ग] १ सूर्यं, रवि (पाअ); 'तो हरिसपुलइयंगो चक्को इव दिट्ठउग्गयपयंगो' (उव ७२८ टी) २ रंग-विशेष, रञ्जन- द्रव्य-विशेष (उर ६, ४, सिरि १०५७) ३ शलभ, फतिंगा, उड़नेवाला छोटा कीट (णाया १, १७; पाअ) ४ — ५ देखो पयय = पतग, पदक, पदग (पणह १, ४ — पत्र ६८; राज) °वीहिया स्त्री [°वीथिकि] १ शलभ का उड़ना। २ भिक्षा के लिए पतंग की तरह चलना, बीच में दो चार घरों को छोड़ते हुए भिक्षा लेना (उत्त ३०, १९)। °वीहि स्त्री [°वीथि] वही पूर्वोक्त अर्थं (उत्त ३०, १९)
पयंचुल :: पुंन [प्रपञ्चुल] मत्स्यबन्धन-विशेष, मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल (विपा १, ८ — पत्र ८५)।
पयंड :: वि [प्रचण्ड] १ अत्युग्र, तीव्र; प्रखर। २ भयानक, भयंकर (पणह १, १; ३; ४; उव)
पयंड :: वि [प्रकाण्ड] अत्युग्र, उत्कट (पणह १, ४)।
पयंत :: देखो पय = पच्।
पयंप :: अक [प्र + कम्प्] अतिशय काँपना। वकृ. पयंपमाण (स ५९९)।
पयंप :: सक [प्र + जल्प्] १ कहना, बोलना। २ बकवाद करना। पयंपए (महा)। संकृ. पयंपिऊण, पयंपिऊणं (महा; पि ५८५)। कृ. पयंपिअव्व (गा ४५०; सुपा ५५२)
पयंपण :: न [प्रजल्पन] कथन, उक्ति (उप पृ २१७)।
पयंपिय :: वि [प्रकम्पित] अति काँपा हुआ (स ३७७)।
पयंपिय :: वि [प्रजल्पित] १ कथित, उक्त। २ न. कथन, उक्ति। ३ बकवाद, व्यर्थ जल्पन (विपा १, ७)
पयंपरि :: वि [प्रजल्पितृ] १ बोलनेवाला। २ वाचाट, बकवादी (सुर १६, ५८; सुपा ४१५; श्रा २७)
पयंस :: सक [प्र + दर्शय्] दिखलाना। पयंसेंति (विसे ६३२)।
पयंसण :: न [प्रदर्शन] दिखलाना (स ६१३)।
पयंसिअ :: वि [प्रदर्शित] दिखलाया हुआ (सुर १, १०१; १२, ३२)।
पयक्क :: देखो पाइक्क (.. ............... )।
पयक्ख :: सक [प्रत्या + ख्या] प्रत्याख्यान करना, प्रतिज्ञा करना। पयक्खेइ (विचार ७५५)।
पयक्खिण :: देखो पदक्खिण = प्रदक्षिण (णाया १, १६)।
पयक्खिण :: देखो पदक्खिण = प्रदक्षिणय्। संकृ. पयक्खिणिऊण (सुर ८, १०५)।
पयक्खिणा :: देखो पदक्खिणा (उप १४२ टी; सुर १४, ३०)।
पयग :: देखो पयय = पतग, पदक, पदग (राज; पव १९४)।
पयच्छ :: सक [प्र + यम्] देना, अर्पंण करना। पयच्छइ (महा)। संकृ. पयच्छिऊण (राज)।
पयच्छण :: न [प्रदान] १ दान, अर्पण (सुर २, १५१) २ वि. देनेवाला (सण)
पयट्ट :: अक [प्र + वृत्] प्रवृत्ति करना। पयट्टइ (हे २, ३०; ४, ३४७; महा)। कृ. पयट्टिअव्व (सुपा १२६)। प्रयो. पयट्टावेह (स २२)। संकृ. पयट्टाविउं (स ७१५)।
पयट्ट :: वि [प्रवृत्त] १ जिसने प्रवृत्ति की हो वह (हे २, २९; महा) २ चलित; 'पयट्टयं चलियं' (पाअ)
परयट्टय :: वि [प्रवर्त्तक] प्रवृत्ति करनेवाला (पणह १, १)।
पयट्टाविअ :: वि [प्रवर्त्तक] प्रवृत्ति करानेवाला (कप्पू)।
पयट्टाविअ :: वि [प्रवर्त्तित] प्रवृत्त किया हुआ, किसी कार्यं में लगाया हुआ (महा)।
पयट्टिअ :: वि [दे. प्रवर्त्तित] ऊपर देखो (धे ६, २६)।
पयट्टिअ :: वि [प्रवृत्त] प्रवृत्ति-युक्त (उत्त ४, २; सुख ४, २)।
पयट्ठाण :: देखो पइट्ठाण (काल; पि २२०)।
पयड :: सक [प्र + कटय्] प्रकट करना, व्यक्त करना। पयडइ, पयडेइ (सण, महा)। वकृ. पयडंत (सुपा १; गा ४०६; भवि)। हेकृ. पयडित्तु (पि ५७७)। प्रयो. पयडा- वइ (भवि)।
पयड :: वि [प्रकट] १ व्यक्त, खुला (कुमा; महा) २ बिख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध; 'विक्खाओ विस्सुओ पयडो' (पाअ)
पयडण :: न [प्रकटन] १ व्यक्त करना, खुला करना (सण) २ वि. प्रकट करनेवाला; 'जे तुज्झ गुणा बहुनेहपयडणा' (धर्मवि ६६)
पयडावण :: न [प्रकटन] प्रकट कराना (भवि)।
पयडाविय :: वि [प्रकटित] प्रकट कराया हुआ (काल; भवि)।
पयडि :: देख पगइ (पणण २३; पि २१९)।
पयडि :: स्त्री [दे] मार्ग, रास्ता; 'जे पुण सम्मद्दिट्ठी तेसिं मणो चडणपयडीए' (सट्ठि १४२)।
पयडिय :: वि [प्रकटित] प्रकट किया हुआ (सुर ३, ४८; श्रा २)।
पयडिय :: वि [प्रपतित] गिरा हुआ (णाया १, ८ — पत्र १३३)।
पयडीकय :: वि [प्रकटीकृत] प्रकट किया हुआ (महा)।
पयडीकर :: सक [प्रकटी + कृ] प्रकट करना। प्रयो. पयडीकरावेमि (महा)।
पयडीभूअ, पयडीहूअ :: वि [प्रकटीभूत] जो प्रकट हुआ हो (सुर ६, १८४; श्रा १६; महा; सण)।
पयड्ढणी :: स्त्री [दे] १ प्रतिहारी। २ आकृष्टि, आकर्षंण। ३ महिषी (दे ६, ७२)
पयण :: देखो पवण (गा ७७७)।
पयण :: देखो पडण (विसे १८५६)।
पयण, पयणग :: न [पचन, °क] १ पाक, पकाना (औप; कुमा) २ पात्र-विशेष, पकाने का पात्र (सूअनि ८०; जीव ३)। °साला स्त्री [°शाला] एक-स्थान (बृह २)
पयणु, पयणुअ :: वि [°प्रतनु] १ कृश, पतला। २ सूक्ष्म, बारीक। अल्प, थोड़ा (स २४६; सुर ८, १६५; भग ३, ४; जं २; पउम ३०, ९६; से ११, ५९; गा ६८२; गउड)
पयण्णय :: देखो पइण्णग (तंदु १)।
पयत्त :: अक [प्र + यत्] प्रयत्न करना। पअत्तध (शौ) (पि ४७१)।
पयत्त :: देखो पयट्ट = प्र + वृत (काल)।
पयत्त :: पुं [प्रयत्न] चेष्टा, उद्यम, उद्योग (सुपा; उव; सुर १, ६; २, १८२; ४, ८१)।
पयत्त :: वि [प्रदत्त, प्रत्त] १ दिया हुआ (भग) २ अनुज्ञात, संमत (अनु ३)
पयत्त :: देखो पयट्ट = प्रवृत्त (सुर २, १५९; ३, २४८; से ३, २४; ८, स ३; गा ४३६)।
पयत्ताविअ :: वि [प्रवर्त्तित] प्रवृत्त किया हुआ (काल)।
पयत्थ :: पुं [पदार्थ] १ शब्द का प्रतिपाद्य, पद का अर्थं (विसे १००३, चेइअ २७१) २ तत्व (सम १०९; सुपा २०५) ३ वस्तु, चीज (पाअ)
पयन्न :: देखो पइण्ण = प्रकीर्णं (भवि)।
पयन्ना :: देखो पइण्णा (उप १४२ टी)।
पयप्पण :: न [प्रकल्पन] कल्पना, विचार (धर्मंसं ३०७)।
पयय :: देखो पायय = प्राकृत (हे १, ६७; गउड)।
पयय :: वि [प्रयत] प्रयत्न-शील, सतत प्रयत्न करनेवाला (औप; पउम ३; ९५; सुर १, ४; उव); 'इच्छिज्ज न इच्छिज्ज व तहवि पयओ निमंतए साहू' (पुप्फ ४२६; पडि)।
पयय :: पुं [पतग, पदक, पदग] १ वान- व्यन्तर देवों की एक जाति (ठा २, ३; पणण १; इक) २ पतग देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३)। °वइ पुं [°पति] पतग दिवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)
पयय :: न [दे] अनिश, निरन्तर (दे ६, ६)।
पयर :: सक [स्मृ] स्मरण करना। पयरेइ (हे ४, ७४)। वकृ. पयरंत (कुमा)।
पयर :: अक [प्र + चर्] प्रचार होना; 'रन्ना सूयारा भणिया जं लोए पयरइ तं सव्वं सव्वे रंधह' (श्रावक ७३ टी)।
पयर :: अक [प्र + चर्] १ फैलना। २ व्यापृत होना, काम में लगना। पयरइ (णंदि ५१)
पयर :: पुं [प्रकर] समूह, सार्थं, जत्था; 'पयरो पिवीलियाणं भीमंपि भुवंगमं डसइ' (स ४२१; पाअ; कप्प)।
पयर :: पुं [प्रदर] १ योनि का रोग-विशेष। २ विदारण, भंग। ३ शर, बाण (दे ६, १४)
पयर :: देखो पइर = वप् ; 'कोडुबिओ य खित्तें धन्नं पयरेइ' (सुपा ३९०)।
पयर :: = देखो पयार = प्रकार (हे १, ६८; षड्)।
पयर :: देखो पयार = प्रचार (हे १, ६८)।
पयर :: पुंन [प्रतर] १ पत्रक, पत्रा, पतरा; 'कणगपयरलंबमाणमुत्तासमुज्जलं... .......... वरमिमाणपुंडरीयं' (कप्प; जीव ३; आचू १) २ वृत्त पत्राकार (औप; णाया १, १)। ३ गणित-विशेष, सूची से गुणी हुई सूची (कम्म ५, ९७; जीवस ९२; १०२) ४ भेद-विशेष, बाँस आदि की तरह पदार्थ का पृथग्भाव (भास ७)। °तप पुंन [तपस्] तप-विशेष; °वट्ट न [°वृत्त] संस्थान-विशेष (राज)
पयर :: न [प्रतर] गणित-विशेष, श्रेणी से गुनी हुई श्रेणी (अणु १७३)।
पयरण :: न [प्रकरण] १ प्रस्ताव, प्रसंग। २ एकार्थ-प्रतिपादक ग्रंथ। ३ एकार्थं-प्रतिपादक ग्रंथांश; 'जुम्हदम्हपयरणं' (हे १, २४६)
पयरण :: न [प्रतरण] प्रथम दातव्य भिक्षा (राज)।
पयरिस :: देखो पयंस। वकृ. पयरिसंत (पउम ६, ६४)।
पयरिस :: देखो पगरिस (महा)।
पयल :: अक [प्र + चल्] १ चलना। २ स्खलित होना। पयलेज्ज (आचा २, २, ३, ३)। वकृ. पयलेमाण (आचा २, २, ३, ३)
पयल :: देखो पयड = प्र + काटय्। पअल (पिंग)। संकृ. पअलिी (अप) (पिंग)।
पयल :: देखो पय़ड = प्रकट (पिंग)।
पलय :: (अप) सक [प्र + चालय्] १ चलाना। २ गिराना। पअल (पिंग)
पयल :: वि [प्रचल] चलायमान, चलनेवाला (पउम १००, ६)।
पयल :: पुं [दे] नीड़, पक्षि-गृह (दे ६, ७)।
पयल°, पलया :: स्त्री [दे. प्रचला] १ निद्रा, नींद (दे ६, ६) २ निद्रा-विशेष, बैठे- बैठे और खड़े खड़े जो नींद आती है वह। ३ जिसके उदय से बैठे-बैठै और खड़े-खड़े नींद आती है वह कर्म (सम १५; कम्म १, ११) °पलया स्त्री [दे. प्रचला] १ कर्मं. विशेष, जिसके उदय से चलते-चलते निद्रा आती है वह कर्म। २ चलते-चलते आनेवाली नींद (कम्म १, १; ठा ९; निचू ११)
पयला :: अक [प्रचलाय्] निद्रा लेना, नींद करना। पयलाइ (पाअ)। हेकृ. पवलाइत्तए (कस)।
पयलाइअ :: न [प्रचलायित] १ नींद, निद्रा। २ घूर्णन्, नींद के कारण बैठे-बैठे सिर का डोलना (से १२, ४२)
पलयाइया :: स्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले जन्तु की एक जातिे (सूअ २, ३, २५)।
पयलाय :: देखो पयला = प्रचलाय्। पयलायइ (जीव ३)। वकृ. पयलायंत (राज)।
पयलाय :: पुं [दे] १ हर, महादेव (दे ६, ७२) २ सर्पं, साँप (दे ६, ७२; षड्)
पयलायण :: न [प्रचलायन] देखो पयलाइअ (बृह ३)।
पयलायभत्त :: पुं [दे] मयूर, मोर (दे ६, ३६)।
पयलिअ :: देखो पयडिअ (पिंग; पि २३८)।
पयलिय :: वि [प्रचलित] १ स्खलित, गिरा हुआ (राय; आउ) २ हिला हुआ (पउम ९८, ७३; णाया १, ८; कप्प; औप)
पयलिय :: वि [प्रदलित] भाँघा हुआ, तोड़ा हुआ (कप्प)।
पयले :: सक [प्र = चालय्] चलायमान करना, अस्थिर करना। पयलेंति (दसचू १, १७)।
पयल्ल :: अक [प्र + सृ] पसरना, फैलना। पयल्लइ (हे ४, ७७; प्राकृ ७६)।
पयल्ल :: अक [कृ] १ शिथिलता करना, ढीला होना। २ लटकना। पयल्लइ (हे ४, ७०)
पयल्ल :: वि [प्रसृत] फैला हुआ (पाअ)।
पयल्ल :: पुं [प्रकल्प] महाग्रह-विशेष (सुज्ज २०)।
पयल्लिर :: वि [प्रसृमर] फैलनेवाला (कुमा)।
पयल्लिर :: वि [शैथिल्यकृत्] शिथिल होनेवाला, ढीला होनेवाला (कुमा ६, ४३)।
पयल्लिर :: वि [लम्बनकृत्] लटकानेवाला (कुमा ६४३)।
पयव :: सक [प्र + तप्, तापय्] तपाना, गरम करना। पअवेज्ज (से ४, २८)। वकृ. पअविज्जंत (से २, २४)।
पयव :: सक [पा] पीना, पान करना। कवकृ. 'धीरअं सइमुहल घणपअविज्जंतअं' (से २, २४)।
पयवई :: स्त्री [दे] सेना, लश्कर (दे ६, १६)।
पयवि :: स्त्री [पदवि] देखो पयवी (चेइय ८७२)।
पयविअ :: वि [प्रतप्त, प्रतापित] गरम किया हुआ, तपाया हुआ (गा १८५; से २, २५)।
पयवी :: स्त्री [पदवी] १ मार्गं, रास्ता (पाअ; गा १०७; सुपा ३७८) २ बिरुद, पदवी (उप पृ ३८९)
पयह :: सक [प्र + हा] त्याग करना, छोड़ना। पयहे, पयहिज्ज, पयहेज्ज (सूअ १, १०, १५; १, २, २, ११, १, २, ३, ६; उत्त ४, १२; स १३६)। संकृ. पयहिय (पउम ९३, १९; गच्छ १, स २४)। कृ. पयहियव्व (स ७१४)।
पयहिण :: देखो पदक्खिण = प्रदक्षिण (भवि)।
पया :: सक [प्र + जनय्] प्रसव करना, जन्म देना। पयामि (विपा १, ७)। पयाएज्जासि (विपा १, ७)। भवि. पयाहिति, पयाहिंति, पयाहिंसि (कप्प; पि ७९; कप्प)।
पया :: सक [प्र + या] प्रयाण करना, प्रस्थान करना। पयाइ (उत्त १३, २४)।
पया :: स्त्री [दे] चुल्ली, चुल्हा (राज)।
पया :: स्त्री. ब. [प्रजा] १ वशवर्त्ती, मनुष्य, रैयत; 'जह य पयाण नरिंदो' (उव; विपा १, १) २ लौक, जन-समूह; (सिरि ४२; पंचा ७, ३७) ३ जंतु-समूह; 'निव्विणण- चारी अरए पयासु' (आचा; सूअ १, ५, २, ९) ४ संतान वाली स्त्री; 'निर्व्विद नंर्दि अरए पयासु अमोहदंसी' (आचा; सूअ १, १०, १५) ५ संतान, संतति (सिरि ४२) °णंद पुं [°नन्द] एक कुलकर पुरुष का नाम (पउम ३, ५३)। °नाह पुं [°नाथ] राजा, नरेश (सुपा ५७५)। °पाल पुं [°पाल] एक जैनु मुनि जो पाँचवें बलदेव के पूर्वंजन्म में गुरू थे (पउम २०, १९२)। °वइ पुं [°पति] १ ब्रह्मा, विधाता (पाअ; सुपा ३०५) २ प्रथम वासुदेव के पिता का नाम (पउम २०, १८२; सम १५२) ३ नक्षत्र- देव-विशेष, रोहिणी-नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३ — पत्र ७७; सुज्ज १०, १२) ४ दक्ष, कश्यप आदि ऋषि। ५ राजा, नरेश। ६ सूर्य, रवि। ७ वह्नि, अग्नि। ८ त्वष्टा। ९ पिता, जनक। १० कीट-विशेष। ११ जामाता (हे १, १७७; १८०) १२ अहो- रात्र का उन्नीसवाँ मुहूर्त्तं (सुज्ज १०, १३)
पयाइ :: पुं [पदाति] प्यादा, पाँव से (पैदल) चलनेवाला सैनिक (हे २, १३८; षड्; कुमा; महा)।
पयाग :: पुंन [प्रयाग] तीर्थं-विशेष, जहाँ गंगा और यमुना का संगम है (पउम ८२, ८१; है १, १७७)।
पयाण :: न [प्रदान] दा्न, वितरण (उवा; उप ५९७ टी; सुर ४, २१०; सुपा ४६२)।
पयाण :: न [प्रतान] विस्तार (भग १६, ६)।
पयाण :: न [प्रयाण] प्रस्थान, गमन (णाया १, ३; पणह २, १; पउम ५४, २८; महा)।
पयाम :: देखो पकाम (स ६५९)।
पयाम :: न [दे] अनुपूर्व, क्रमानुसार (दे ६, ९; पाअ)।
पयाय :: देखो पयाग (कुमा)।
पयाय :: वि [प्रयात] जिसने प्रयाण किया हो वह (उप २११ टी; महा; औप)।
पयाय :: वि [प्रजात] उत्पन्न, संजात; 'पयया- साला विडिमा' (दस ७, ३१)।
पयाय :: वि [प्रजात, प्रजनित] प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह; 'दारगं पयाया' (विपा १, १; २; कप्प; णाया १, १ — पत्र ३३); 'पयाया पुत्तं' (वसु)।
पयाय :: देखो पयाव = प्रताप (गा ३२६; से ४, ३०)।
पयार :: सक [प्र + चारय्] प्रचार करना। पयारइ (सण)। संकृ. पयारिवि (अप) (सण)।
पयार :: सक [प्र + तारय्] प्रतारण करना, ठगना। पयारइ, पयारसि (सण)।
पयार :: पुं [प्रकार] १ भेद, किस्म। २ ढंग, रीति, तरह (हे १, ६८; कुमा)
पयार :: पुं [प्राकार] किला, दुर्गं (पउम ३०, ४९)।
पयार :: पुं [प्रचार] १ संचार, संचरण (सुपा २४) २ प्रसार, फैलव (हे १, ६८)
पयार :: पुं [प्रचार] १ प्रकर्षं-प्राप्ति (दसनि १, ४१) २ आचरण, आचार (दसनि १, १३५)
पयारण :: न [प्रतारण] वञ्चना, ठगाई (सुर १२, ६१)।
पयारिअ :: वि [प्रतारित] ठगा हुआ, वञ्चित (पाअ; सुर ४, १५५)।
पयाल :: पुं [पाताल] भगवान् अनन्तनाथजी का शासन-यक्ष; 'छम्मुह पयाल किन्नरं' (संति ८)।
पयाव :: सक [प्र + तापय्] तपाना, गरम करना। वकृ. पयावेमाण (पि ५५२)। हेकृ. पयावित्तए (कप्प)।
पयाव :: पुं [प्रताप] १ तेज, प्रखरता (कुमा; सण) २ प्रकृष्ट ताप, प्रखर ऊष्मा (पव ४)
पयावण :: न [पाचन] पकवाना, पाक कराना (पणह १, १; श्रा ८)।
पयावण :: न [प्रतापन] १ गरम करना, तपाना (ओघ १८० भा; पिंड ३४; आचा) २ अग्नि (कुप्र ३८९)
पयावि :: वि [प्रतापिन्] १ प्रताप-शाली। २ पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ५)
पयास :: सक [प्र + काशय्] १ व्यक्त करना। २ चमकाना। ३ प्रसिद्ध करना। पयासेइ (हे ४, ४५)। वकृ. पयासंत, पयासेंत, पयासअंत (सण; गा ४०३; उप ५३३ टी; पि ३९७)। कृ. पयासणिज्ज, पयासियव्व (उप ५९७ टी; उप पृ ५५)
पयास :: देखो पगास = प्रकाश (पाअ; कुमा)।
पयास :: पुं [प्रयास] प्रयत्न, उद्यम (चेइय २६०)।
पयास :: (अप) नीचे देखो (भवि)।
पयासग :: वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला (सं ७८)।
पयासण :: न [प्रकाशन] १ प्रकाश-करण (आचा; सुपा ४१६) २ वि. प्रकाशक प्रकाश करनेवाला; 'परमत्थपयासणं वीरं' (पुप्फ १)
पयासय :: देखो पयासग (विसे ११३०; सं १; पव ८९)।
पयासि :: वि [प्रकाशिन्] प्रकाश करनेवाला (सण; हम्मीर १४)।
पयासिय :: देखो पगासिय (भवि)।
पयासिर :: वि [प्रकाशितृ] प्रकाश करनेवाला (भवि)।
पयासेंत :: देखो पयास = प्र + काशय्।
पयाहिण :: देखो पदक्खिण = प्रदक्षिण (उवा, ओप; भवि; पि ६५)।
पयाहिण :: देखो पदक्खिण = प्रदक्षिणय्। पयाहिणइ (भवि)। पयाहिणंति (कुप्र २९३)।
पयाहिणा :: देखो पदक्खिणा (सुपा ४७)।
पय्यवत्थाण :: (शौ) न [पर्यवस्थान] प्रकृति में अवस्थान (स्वप्न ४८)।
पर :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना। परइ (हे ४, १६१; कुमा)।
पर :: देखो प = प्र (तंदु ४६)।
पर :: वि [पर] १ अन्य, भिन्न, इतर (गा ३८४; महा; प्रासू ८; १५७) २ तत्पर, तल्लीन; 'कोउहलपरा' (महा, कुमा) ३ श्रेष्ठ, उत्तम, प्रधान (आचा; रयण १५) ४ प्रकर्षं-प्राप्त, प्रकृष्ट (आचा; श्रा २३) ५ उत्तरवर्त्ती, बाद का; 'परलोग — ' (महा) ६ दूरवर्त्ती (सूअ १, ८; निचू १) ७ अनात्मीय, अस्वीय (उत्त १; निचू २) ८ पुं. शत्रु, दुश्मन, रिपु (सुर १२, ९२; कुमा; प्रासू ६) ९ न. केवल, फक्त (कुमा; भवि) °उट्ठ वि [°पुष्ट] अन्य से पालित। २ पुं. कोकिल पक्षि (हे १, १७९) °उत्थिय वि [°तीर्थिक] भिन्न दर्शंनवाला (भग)। °एस पुं [°देश] विदेश, भिन्न, अन्य देश (भवि)। °ओ अ [°तस्] १ बाद में, परली — दूसरी तरफ; 'अडवीए परओ' (महा) २ भिन्न में, इतर में (कुमा) ३ इतर से, अन्य से (सूअ १, १२) °गणिच्चय वि [°गणीय] भिन्न गण से संबन्ध रखनेवाला। स्त्री. °च्चिया (निचू ८)। °गरिहंझाण न [°गर्हाध्यान] इतर की निन्दा का विचार (आउ)। °घाय पुं [°घात] १ दूसरे को आघात पहुँचाना। २ पुंन. कर्मं-विशेष, जिसके उदय से जीव अन्य बलवानों की भी दृष्टि में अजेय समझा जाता है वह कर्मं; 'परघाउदया पाणी परेसिं बलीणंपि होइ दुद्धरिसो' (कम्म १, ४४)। °चित्तण्णु वि [°चित्तज्ञ] अन्य के मन के भाव को जाननेवाला (उप १७९ टी)। °च्छंद, °छंद पुं [°च्छंन्द] १ पर का अभिप्राय, अन्य का आश्रय (ठा ४, ४; भग २५, ७) २ पराधीन, परतन्त्र (राज; पाअ) °जाणुअ वि [°ज्ञ] १ पर को जाननेवाला। २ प्रकृष्ट जानकार (प्राकृ १८) °ट्ठ पुं [°र्थ] परोपकार (राज)। °ट्ठा स्त्री [°र्थ] दूसरे के लिए; 'कडं परट्ठाए' (आचा)। °णिदंझाण न [°निन्दाध्यान] अन्य की निन्दा का चिन्तन (आउ)। °ण्णुअ देखो °जाणुअ (प्राकृ १८)। °तंत वि [°तन्त्र] पराधीन, परायत्त (सुपा २३३)। °तित्थिअ देखो °उत्थिय (भग; सम्म ८५)। °तीर न [°तीर] सामनेवाला किनारा (पाअ)। °त्थ न [°त्व] १ भिन्नत्व, पार्थक्य। २ वैशोषिक दर्शंन में प्रसिद्ध गुण-विशेष (विसे २४९१) °त्त अ [°त्र] १ जन्मान्तर में, परलोक में (सुपा ५०८) २ न. जन्मान्तर; 'ते इहअंपि परत्ते नरयगइं जंति नियमेण' (सुपा ५२१), 'इह लोए च्चिय दीसइ सग्गो नरओ य किं परत्तेण' (वज्जा १३८)। °त्थ अ [°त्र] जन्मान्तर में, 'इहं परत्थावि य जं विरुद्धं न किज्जए तंपि सया निसिद्धं' (सत्त ३७; सुर १४, ३३; उव)। °त्थ देखो °ट्ठ (सुर ४, ७३)। °त्थी स्त्री [°स्त्री] परकीय स्त्री (प्रासू १५५)। °दार पुंन [°दार] परकीय स्त्री (पडि); 'जो वज्जइ परदारं सो सेवइ नो कयाइ परदारं' (सुपा ३६९), 'दव्वेण अप्पकालं गहिया बेसावि होइ परदारं' (सुपा ३८०)। °दारि वि [°दारिन्] परस्त्री-लम्पट; 'ता एस वसुमईए कएण परदारियाए आयाओ' (सुर ६, १७९)। °पक्ख वि [°पक्ष्] वैधर्मिक, भिन्न धर्म का अनुयायी (द्र १७)। °परिवाइय वि [°परिवादिक] इतर के दोषों को बोलनेवाला, पर-निन्दक (औप)। °परिवाय पुं [°परिवाद] १ पर के गुण- दोषों का विप्रकीर्णं वचन (औप; कप्प) २ पर-निन्दा, इतर के दोषों का परिकीर्त्तन (ठा १; ४, ४) ३ अन्य के सद्गउणों का अपलाप (पंचू) °परिवाय पुं [°परिपात] अन्य का पातन, दोषोंद्घाटन-द्वारा दूसरे को गिराना (भग १२, ५)। °पुट्ठ देखो °उट्ठ (पणण १७; स ४१९)। °भव पुं [°भव] आगामी जन्म (औप; पणह १, १)। °भविअ वि [°भविक] आगामी जन्म से संबन्ध रखनेवाला (भग; ठा ६)। °भाग पुं [°भाग] १ श्रेष्ठ अंश। २ अन्य का हिस्सा। ३ अत्यन्त उत्कर्ष (उप पृ ६७) °महेला स्त्री [°महेला] १ उत्तम स्त्री। २ परकीय स्त्री (सुपा ४७०)। °यत्त देखो °यत्त, 'परयत्तो परछंदो' (पाअ) °लोअ, °लोग पुं [°लोक] १ इतर जन, स्वजन से भिन्न (उप ९८६ टी) २ जन्मान्तर (पणह १, २; विसे १९५१; महा; प्रासू ७५; सण) °वस वि [°वश] पराधीन, परतन्त्र (कुमा; सुपा २३७)। °वाइ पुं [°वादिन्] इतर दार्शं- निक (औप)। °वाय पुं [°वाद] १ इतर दर्शंन, भिन्न मत (औप) २ श्रेष्ठ वादी (श्रा २३) °वाय पुं [°वाच्] १ सज्जन, सुजन। २ वि. श्रेष्ठ वाणीवाला (श्रा २३) °वाय वि [°वाज] १ श्रेष्ठ गतिवाला। २ पुं. श्रेष्ठ अश्व (श्रा २३) °वाय वि [°वाय] जानकार, ज्ञानी (श्रा २३)। °वाय वि [°पाक] १ सुन्दर रसोई बनानेवाला। २ पुं. रसोइया (श्रा २३) °वाय पुं [°पात] १ जुआड़ी, जुए का खेलाड़ी। २ अशुभ समय (श्रा २३)। °वाय पुं [°व्याद] ब्राह्मण, विप्र (श्रा २३) °वाय पुं [°वाय] धनी जुलाहा, धनाढ्य तन्तुवाय (आ २३)। °वाय वि [°व्रात] १ प्रकृष्ट समूहवाला। २ न. सुभिक्ष समय का धान्य (श्रा २३) °वाय पुं [°वात] ग्रीष्म समय का जलधि-तट (श्रा २३)। °वाय पुं [व्याच] धूर्त्तं, ठध (श्रा २३)। °वाय वि [°पाय] अनीतिवाला (श्रा २३)। °वाय वि [°वाक] वेदज्ञ, वेदवित् (श्रा २३)। °वाय वि [°पातृ] १ दयालु, कारुणिक। २ खूब पान करनेवाला। ३ खूब सूखनेवाला। ४ पुं. पावृट् काल का यवास वृक्ष। ५ मद्य-व्यसनी (श्रा २३) °वाय वि [°बाद] सुस्थिर (श्रा २३)। °वाय वि [°व्यातृ] १ श्रेष्ठ आच्छादक। २ पुं. वस्त्र, कपड़ा (श्रा २३) °वाय वि [°वातृ] १ प्रकृष्ट वहन करनेवाला। २ पुं. श्रेष्ठ तन्तु- वाय, उत्तम जुलाहा। ३ महान् पवन (श्रा २३) °वाय वि [°व्यागस्] १ अति बड़ा अपराधी, गुरुतर अपराधी (श्रा २३)। °वाय वि [°व्याप] प्रकृष्ट विस्तारवाला (श्रा २३) °वाय वि [°बाक] १ जहाँ पर प्रकृष्ट बक-समूह हो वह स्थान। २ न. मत्स्य- परिपूर्णं सरोवर (श्रा २३) °वाय वि [°व्याय] १ श्रेष्ठ वायुवाला। २ जहाँ पर पक्षियों का विशेष आगमन होता हो वह। ३ पुं. अनुकूल पवन से चलता जहाज। ४ सुन्दर घर। ५ वनोद्देश, वन-प्रदेश (श्रा २३) °वाय वि [°बाय] १ जहाँ पानी का प्रकृष्ट आगमन हो वह। २ न. जलधि- मुख, समुद्र का मुँह। ३ पुं. महासमुद्र, महा- सागर (श्रा १३) °वाय वि [°व्याज] अन्य के पास-विशेष गमन करनेवाला। २ प्रार्थना-परायण (श्रा २३) °वाय वि [°पाय] १ अत्यन्त हीन-भाग्य। २ नित्य- दरिद्र (श्रा २३)। °वाय वि [°वाप] १ प्रकृष्ट वपनवाला। २ पुं. कृषक (श्रा २३) °वाय वि [°पाप] १ महापापी। २ हत्या करनेवाला (श्रा २३) °वाय पुं [°पाक] १ कुम्भकार, कुम्हार। २ मुक्त जीव। ३ पहली तीन नरक-भूमि (श्रा २३) °वाय वि [°पाग] वृक्ष-रहित, वृक्ष-वर्जित (श्रा २३)। °वाय वि [°वाज्] शत्रु-नाशक (श्रा २३)। °वाय पुं [°पाद] महान् वृक्ष, बड़ा पेड़ (श्रा २३)। °वाय वि [°पात्] प्रकृष्ट पैरवाला (श्रा २३)। °वाय वि [°वाच] फलित शालि (श्रा २३)।°वाय वि [°वाप] १ विशेष भाव से शत्रु की चिन्ता करनेवाला। २ पुं. मन्त्री, अमात्य। ३ सुभट, योद्धा (श्रा २३) °वाय वि [°पात] आपात-सुन्दर, जो प्रारम्भ में ही सुन्दर हो वह (श्रा २३)। °वाय वि [°व्राय] श्रेष्ठ विवाहवाला (श्रा २३)। °वाय वि [°पाय] श्रेष्ठ रक्षावाला, जिसकी रक्षा का उत्तम प्रबन्ध हो वह। २ अत्यन्त प्यासा। ३ पुं. राजा, नरेश (श्रा २३) °वाय वि [°व्यात] १ इतर के पास विशेष वमन करनेवाला। २ पुं. भिक्षुक, याचक (श्रा २३)। °वाय वि [°पायस्] १ दूसरे की रक्षा के लिए हथियार रखनेवाला। २ पुं. सुभट, योद्धा (श्रा २३) °वाया स्त्री [°व्याजा] वेश्या, वारांगना (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°व्यागस्] असती, कुलटा (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°व्यापा] अन्तिम समुद्र की स्थिति (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°पाता] धूर्त्तं-मैत्री (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°व्राया] नृप- कन्या (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°पागा] मरु-भूमि (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°वाच्] कश्मीर-भूमि (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°वाज्] नृप-स्थिति (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°पात्] शतपदी, जन्तु-विशेष (श्रा २३)। °वाया स्त्री [°व्यावा] भेरी, वाद्य-विशेष (श्रा २३)। °विएस पुं [°विदेश] परदेश, विदेश (पउम ३२, ३६)। °व्वस देखो °वस (षड्; गा २६५; भवि)। °संतिग वि [°सत्क] पर-संबन्धी, परकीय (पणह १ ३)। °समय पुं [°समय] इतर दर्शन का सिद्धान्त; 'जावडया नयवाया तावइया चेव परसमया' (सम्म १४४)। °हुअ वि [°भृत] १ दूसरे से पुष्ट, अन्य से पालित (प्राप्र) २ पुंस्त्री. कोयल, पिक पक्षी (कप्प)। स्त्री. °आ (सुर ३, ५४; पाअ)। °घाय देखो °घाय (प्रासू १०४; सम ६७)। °धीण देखो °हीण (धर्मंवि १३६)। °यत्त वि [°यत्त] पराधीन, परतन्त्र (पउम ६४, ३४; उप पृ १८२; महा)। °हीण वि [°धीन] परतन्त्र, परायत्त (नाट — मालवि २०)
पर° :: देखो परा = अ (श्रा २३; पउम ६१, ८)।
परं :: अ [परम्] १ परन्तु, किन्तु; 'जं तुमं आणवेसित्ति, परं तुह दूरे नयरं' (महा) २ उपरान्त; 'नो से कप्पइ एत्तो बाहिं; तेण परं, जत्थ नाणदंसणचरित्ताइं उस्सप्पंति त्ति बेमि' (कस १, ५१; २, ४ — ७; ४, १२ — २६) ३ केबल, फक्त; 'एस मह संतावो, परं माणससरमज्जणेण जइ अवगच्छइत्ति' (महा)
पर :: अ [परुत्] आगमी वर्षं, 'अज्झं कल्लं परं परारिं' (वै २), 'अज्जं परं परारिं पुरिसा चिंतंति अत्थसंपत्तिं' (प्रासू ११०)।
परंग :: सक [परि + अङ्ग] चलना, गति करना। कवकृ. परंगिज्जमाण (औप)।
परंगमण :: न [पर्यङ्गन] पाँव से चलना, चंक्रमण (औप)।
परंगामण :: न [पर्यङ्गन] चलाना, चंक्रमण कराना (भग ११, ११ — पत्र ५४४)।
पतंतम :: वि [परतम] अन्य को हैरान करनेवाला (ठा ४, २ — पत्र २१६)।
परंतम :: वि [परतमस्] १ अन्य पर क्रोध करनेवाला। २ अन्य-विषयक अज्ञान रखनेवाला (ठा ४, २ — पत्र २१६)
परंतु :: अ [परन्तु] किन्तु (सुपा ४६९)।
परंदम :: वि [परन्दम] १ अन्य को पीड़ा पहुँचानेवाला (उत्त ७, ६) २ अन्य को शान्त करनेवाला। ३ अश्व आदि को सिखानेवाला (ठा ४, २ — पत्र २१३)
परंपर, परंपरग, परंपरय :: वि [परम्पर] १ भिन्न-भिन्न (णंदि) २ व्यवहित; 'परंपर- सिद्ध — ' (पणण १; ठा २, १; १०) ३ पुंन. परम्परा, अविच्छिन्न धारा (उप ७३३), 'पुरिसपरंपरएण तेहिं इट्ठगा आणिया', 'एस दव्वपरंपरगो' (आव १), 'परंपरेणं' (कप्प; धर्मंसम ५३१; १३०९)
परंपरा :: स्त्री [परम्परा] १अनुक्रम, परिपाटी (भग; औप; पाअ) २ अविच्छिन्न, धारा, प्रवाह (णाया १, १) ३ निरन्तरता, अ- व्यवधान (भग ६, १) ४ व्यवधान, अन्तर; 'अणंतरोववणणगा चेव परंपरोववणणगा चेव' (ठा २, २; भग १३, १)
परंभार :: वि [परम्भरि] दूसरे का पेट भरनेवाला (ठा ४, ३ — पत्र २४७)।
परंमुह :: वि [पराङ्मुख] मुँह-फिरा, विमुख (पि २६७)।
परकीअ, परकेर, परक्क :: वि [परकीय] अन्य-सम्बन्धी, इतर से सम्बन्ध रखनेवाला (विसे ४१; सुपा ३४६; अभि १५१; षड्; स्वप्न ४०; स २०७; षड्), 'न सेवियव्वा पमया परक्का' (गोय १३)।
परक्क :: न [दे] छोटा प्रवाह (दे ६, ८)।
परक्कंत :: वि [पराक्रान्त] १ जिसने पराक्रम किया हो वह। २ अन्य से आक्रान्त; 'गामा- णुगामं दुइज्जमाणस्स दुज्जायं दुप्परक्कंतं भवइ' (आचा) ३ न. पराक्रम, बल। ४ उद्यम, प्रयत्न। ५ अनुष्ठान; 'जे अबुद्धा महाभागा वीरा असम्मत्तदंसिणो, असुद्धं तेसि परक्कंतं' (सूअ १, ८, २२)
परक्कम :: अक [परा + क्रम्] पराक्रम करना। परक्कमे, परक्कमेज्जा, परक्कमेज्जासि (आचा)। वकृ. परक्कमंत, परक्कममाण (आचा)। कृ. परक्कमियव्व, परक्कम्म (णाया १, १; सूअ १, १, १)।
परक्कम :: सक [परा + क्रम्] १ जाना। २ आसेवन करना। ३ अक. प्रवृत्ति करना। परक्कमे (दस ५, १, ६)। परक्कमिज्जा (दस ८, ४१)। संकृ. परक्कम्म (दस ८, ३२)
परक्कम :: पुं [पराक्रम] गर्तं आदि से भिन्न मार्गं (दस ५, १, ४)।
परक्कम :: पुंन [पराक्रम] १ वीर्यं, बल, शक्ति, सामर्थ्यं (विसे १०४९; ठा ३, १; कुमा), 'तस्स परक्कमं गीयमाणं न तए सुयं' (सम्मत्त १७६) २ उत्साह। ३ चेष्टा, प्रयत्न (आचू १; प्रासु ६३; आचा) ४ शत्रु का नाश करने की शक्ति (जं ३) ५ पर-आक्रमण, पर-पराजय (ठा ४, १; आवम) ६ गमन, गति (सूअ २, १, ६)। ७ मार्ग (दश° अ° चू° सू° ८६)
परक्कमि :: वि [पराक्रमिन्] पराक्रम-संपन्न (धर्मंवि १९; १२०)।
परग :: न [दे. परक] १ तृण-विशेष, जिससे फूल गूँथथे जाते हैं (आचा २, २, ३, २०; सूअ २, २, ७) २ धान्य-विशेष (सूअ २, २, ११)
परग :: वि [पारग] परग तृण का बना हुआ (आचा २, १, ११, ३; २, २, ३, १४)।
परगासय :: वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला (तंदु ४६)।
परग्घ :: वि [परार्घ] महर्घ, महँगा, बहुमूल्य (दस ७, ४३)।
परज्ज :: (अप) सक [परा + जि] पराजय करना, हराना। परज्जइ (भवि)।
परज्जिय :: (अप) वि [पराजित] पराजय- प्राप्त, हराया हुआ (भवि)।
परज्झ :: वि [दे] १ पर-वश, पराधीन, परतन्त्र; 'जेसंखया; तुच्छपरप्पवाई ते पेज्ज- दोसाणुगया परज्झा' (उत्त ४, १३ बृह ४) २ पुंन. परतन्त्रता, पराधीनता (ठा १० — पत्र ५०५; भग ७, ८ — पत्र ३१४)
परट्ट :: देखो परिअट्ट = परिवर्त्त (जीवस २५२; पव १६२; कम्म ५, ५९)।
परडा :: स्त्री [दे] सर्प-विशेष (दे ६, ५), 'उच्चारं कुणमाणो अपाणदेसम्मि गरुय- परडाए, दट्ठो पीडाए मओ' (सुपा ६२०)।
परदारिअ :: पुं [पारदारिक] परस्त्री-लम्पट (पउम १०५, १०७)।
परद्ध :: वि [दे] १ पीड़ित, दुःखित (दे ६, ७०; पाअ; सुर ७, ४; १६, १४४; उप पृ २२०; महा) २ पतित। ३ भीरु, ड़रपोक (दे ६, ७०) ४ व्याप्त; 'जीइ परद्धा जीवा न दोसगुणदंसिणो होंति' (धम्मो १४)
परप्पर :: देखो परोप्पर (पि ३११; नाट — मालती १६८)।
परब्भवमाण :: देखो पराभव = परा + भू।
परभत्त :: वि [दे] भीरु, डरपोक (षड्)।
परभाअ :: पुं [दे] सुरत, मैथुन (दे ६, २७)।
परम :: वि [परम] १ उत्कृष्ट, सर्वाधिक (सूअ १, ६; जी ३७) २ उत्तम, सर्वोत्तम, श्रेष्ठ (पंचव ४; धर्मं ३; कुमा) ३ अत्यरक्थं, अत्यन्त (पणह १, ३; भग; औप) ४ प्रधान, मुख्य (आचा; दस ९, ३) ५ पुं. मोक्ष, मुक्ति। ७ संयम, चरित्र (आचा; सूअ १, ९) ७ न. सुख (दस ४) ८ लगातार पाँच दिनों का उपवास (संबोध ५८) °ट्ठ पुं [°र्थ] १ सत्य पदार्थं, वास्तविक चीज; 'अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे' (भग; धर्मं १) २ मोक्ष, मुक्ति (उत्त १८; पणह १, ३) ३ संयम, चारित्र (सूअ १, ९) ४ पुंन. देखो नीचे °त्थ = र्थं; 'पर- मट्ठनिट्ठिअट्ठा' (पडि, धर्म २) °ण्ण देखो °न्न (सम १५१)। °त्थ पुंन [°र्थ] १ तत्त्व, सत्य, 'तत्तं परमत्थं' (पाअ), 'परम- त्थदो' (अभि ९१) २ — ४ देखो °ट्ठ (सुपा २४; ११०; सण; प्रासू १६४; महा) °त्थ न [°स्त्र] सर्वोत्तम हथियार, अमोघ अस्त्र (से १, १ )। °दंसि वि [°दर्शिन्] १ मोक्ष देखनेवाला। २ मोक्ष-मार्गं का जानकार (आचा) °न्न न [°न्न] १ खीर, दुग्ध-प्रधान मिष्ट भोजन (सुपा ३६०) २ एक दिन का उपवास (संबोध ५८) °पय न [°पद] मोक्ष, निर्वाण, मुक्ति (पाअ; भवि; अजि ४०; पंचा १४)। °प्प पुं [°त्मन्] सर्वोत्तम आत्मा, परमेश्वकर (कुमा; सुपा ८३; रयण ४३)। °प्पय देखो °पय (सुपा १२७)। °प्पय देखो °प्प (भवि)। °प्पया स्त्री [°त्मता] मुक्ति, मोक्ष; 'सेलेसिं आरुहिउं अरिकेसरिसूरी परमप्पयं पत्तो' (सुपा १२७)। °बोधिसत्त पुं [°बोधिसत्त्व] परमार्हंत, अर्हंन् देव का परम भक्त (मोह ३)। °संखिज्ज न [°संख्येय] संख्या-विशेष (कम्म ४, ७१)। °सोमणस्सिय वि [°सौमनस्यित] सर्वोत्तम मनवाला, संतुष्ट मनवाला (औप; कप्प)। °सोमणस्सिय वि [°सौमनस्यिक] वही अर्थ (औप; कप्प)। °हेला स्त्री [°हेला] उत्कृष्ट तिरस्कार (सुपा ४७०)। °उ न [°युस्] १ लम्बा आयुष्य, बड़ी उमर (पउम १०, ७) २ जीवित काल, उमर (विपा १, १)। °णु पुं [°णु] सर्व-सूक्ष्म वस्तु (भग; गउड)। °हम्मिय [°धार्मिक] असुर-विशेष, नारक जीवों को दुःख देनेवाले देवों की एक जाति (सम २८)। °होहिअ वि [°धोवधिक] अवधिज्ञान-विशेषवाला, ज्ञानि- विशेष (भग)
परमाहम्मिय :: वि [परमधार्मिक] सुख का अभिलाषी (दस ४, १)।
परमिट्ठि :: पुं [परमेष्ठिन्] १ ब्रह्मा, चतुरानन (पाअ; सम्मत्त ७८) २ अर्हंन्, सिद्ध, आचार्यं, उपाध्याय और मुनि (सुपा ९५; आप ९८; गण ६; निसा २०)
परमुक्क :: वि [परामुक्त] परित्यक्त (पउम ७१, २९)।
परमुवगारि, परमुवयारि :: वि [परमोपकारिन्] बड़ा उपकार करनेवाला (सुर २, ४२; २, ३७)।
परमुह :: देखो परम्मुह (से २, १६)।
परमोट्ठि :: देखो परमिट्ठि (कुमा; भवि; चेइय ४६६)।
परमेसर :: पुं [परमेश्वर] सर्वेश्वर्यं-संपन्न, परमात्मा (सम्मत्त १४४; भवि)।
परम्मुह :: वि [पराङ्मुख] विमुख, मुँह-फिरा, उदासीन (णाया १, २; काप्र ७२३; गा ६८८)।
परय :: न [परक] आधिक्य, अतिशय (उत्त ३४, १४)।
परलोइअ :: वि [परलौकिक] जन्मान्तर- संबन्धी (आचा; सम ११६; पणह १, ५)।
परवाय :: वि [प्ररवाज] १ प्रकृष्ट शब्द से प्रेरणा करनेवाला। २ पुं. सारथि, रथ हाँकनेवाला (श्रा २३)
परवाय :: वि [प्रारवाय] १ श्रेष्ठ गाना गानेवाला। २ पुं. उत्तम गवैया (श्रा २३)
परवाय :: पुं [प्ररपाज] नाज (अन्न) भरने का कोठा, वह घर जहाँ नाज संगृहीत किया जाता है, कोठार, बखार (श्रा २३)।
परवाया :: स्त्री [प्ररवाप्] गदिरि-नदी, पहाड़ी नदी( श्रा २३)।
परस :: (अप) देखो फास = स्पर्श (पिंग; भवि)। °मणि पुं [°मणि] रत्न-विशेष, जिसके स्पर्शं से लोहा सुवर्णं होता है (पिंग)।
परसण्ण :: (अप) देखो पसण्ण (पिंग)।
परसु :: पुं [परशु] अस्त्र-विशेष, परश्वव, कुठार, कुल्हाड़ी (भग ९, ३३; प्रासू ९; ९२; काल)। °राम पुं [°राम] जमदग्नि ऋषि का पुत्र, जिसने इक्कीस बार निःक्षत्रिय पृथिवी की थी (कुमा; पि २०८)।
परसुहत्त :: पुं [दे] वृक्ष, पेड़, दरख्त (दे ६, २९)।
परस्सर :: पुंस्त्री [दे. पराशर] गेंड़ा, पशु-विशेष (पणण १; राज)। स्त्री. °री (पणण ११)।
परहुत्त :: वि [पराभूत] पराजित, हराया गया (पउम ६१, ८)।
परा :: अ [परा] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ आभिमुख्य, संमुखता। २ त्याग। ३ धर्षण। ४ प्राधान्य, मुख्यता। ५ विक्रम। ६ गति, गमन। ७ भङ्ग। ८ अनादर। ९ तिरस्कार। १० प्रत्यावर्तन (हे २, २१७) ११ भृश, अत्यन्त (ठा ३, २; श्रा २३)
परा :: स्त्री [दे. परा] तृण-विशेष (पणह २, ३ — पत्र १२३)।
पराइ :: सक [परा + जि] हराना, पराजय करना। संकृ. पराइइत्ता (सूअनि १९९)।
पराइअ :: वि [पराजित] पराभव-प्राप्त (पउम २, ८६; औप; स ६३४; सुर ९, २५; १३, १७१; उत्त ३२, १२)।
पराइअ :: (अप) वि [परागत] गया हुआ (भवि)।
पराइण :: देखो पराजिण। पराइणइ (पि ४७३; भग)।
पराई :: स्त्री [परकीया] इतर से संबन्ध रखने- बाली, वह नायिका जो परपुरष से प्रेम करे (हे ४, ३५०; ३६७)। देखो पराय = परकीय।
पराकम :: देखो परक्कम (सूअ २, १, ६)।
पराकय :: वि [पराकृत] निराकृत, निरस्त (अज्झ ३०)।
पराकर :: सक [परा + कृ] निराकरण करना। पराकरोदि (शौ) (नाट — चैत ३५)।
पराजय :: पुं [पराजय] परिभव, अभिनव, हार (राज)।
पराजय, पराजिण :: सक [परा + जि] पराजय करना, हराना। भूका. पराज- यित्था (पि ५१७)। भवि. पराजिणिस्सइ (पि ५२१)। संकृ. पराजिणित्ता (ठा ४, २)। हेकृ. पराजिणित्तए (भग ७, ९)।
पराजिणिअ, पराजिय :: देखो पराइअ = पराजित (उप पृ ५२; महा)।
पराण :: देखो पाण = प्राण (नाट — चैत ५४; पि १३२)।
परागण :: वि [परकीय] अन्य का, दूसरे का; 'जत्थ हिरणणसुवण्णं हत्थेण पराणगंपि नो छिप्पे' (गच्छ २, ५०)।
पराणिय :: वि [पराणीत] पहुँचा हुआ (भवि)।
पराणी :: सक [परा + णी] पहुँचाना। पराणए (भवि)। पराणेमि (स २३४); 'जइ भणसि ता निमेसमित्तेण तुमं तायमंदिरं पराणेमि' (कुप्र ६०)।
परानयण :: न [पराणयन] पहुँचाना; 'नियम- गिणीपरानयणे का लज्जा, अवि य ऊसवो एस' (उप ७२८ टी)।
पराभव :: सक [परा + भू] हराना। कवकृ. पराभविज्जंत, परब्भवमाण (उप ३२० टी; णाया १, २; १८)।
पराभव :: पुं [पराभव] पराजय, हार (विपा १, १)।
पराभविअ :: वि [पराभूत] अभिभूत, हराया हुआ (धर्मंवि ६८)।
परामट्ठ :: देखो परामुट्ठ (पउम ९८, ७३)।
परामरिस :: सक [परा + मृश्] १ विचार करना, विवेचन करना। २ स्पर्शं करना। परामरिसइ (भवि)। वकृ. परामरिसंत (भवि)। संकृ. परामरिसिअ (नाट — मृच्छ ८७)
परामरिस :: पुं [परामर्श] १ विवेचन, विचार (प्रामा) २ युक्ति, उपत्ति। ३ स्पर्शं। ४ न्याय-शास्त्रोक्त व्याप्ति-विशिष्ट रूप से पक्ष का ज्ञान (हे २, १०५)
परामिट्ठ, परामुट्ठ :: वि [परामृष्ट] १ विचारित, विवेचित। २ स्पृष्ट, छुआ हुआ (नाट — मृच्छ ३३; हे १ १३१; स १००; कुप्र ५१)
परामुस :: सक [परा + मृश] १ स्पर्शं करना, छूना। २ विचार करना, विवेचन करना। ३ आच्छादित करना। ४ पोंछना। ५ लोप करना। परामुसइ (कस)। कर्मं. 'सूरो परामुसिज्जइ णाभिमुहुक्खित्तधूलिहिं' (उवर १२३)। वकृ. 'नियउत्तरिज्जेण नयणाइं परामुसंतेण भणियं' (कुप्र ६६)। कवकृ. परामुसिज्जमाण (स ३४९)
परामुसिय :: देखो परामुट्ठ (महा; पाअ)।
पराय :: अक [प्र + राज्] विशेष शोभना। वकृ. परायंत (कप्प)।
पराय :: पुं [पराग] १ धूली, रज; 'रेणु पंसु रओ पराओ य' (पाअ) २ पुष्प-रज (कुमा; गउड)
पराय, परायग :: वि [परकीय] पर-संम्बन्धी, इतर से संबन्ध रखनेवाला; 'नो अप्पणा पराया गुरुणो कइयावि हुंति सुद्धाणं' (सट्ठि १०५; हे ४, ३७६; भग ८; ५)।
परायण :: वि [परायण] तत्पर (कम्म १, ६१)।
परारिं :: अ [परारि] आगामी तीसरा वर्षं (प्रासू ११०; वै २)।
पराल :: देखो पलाल (प्रासू १३८)।
पराव :: /?/(अप) सक [प्र + आप्] प्राप्त करना। परावहिं (हे ४, ४४२)।
परावत्त :: अक [परा + वृत्] १ बदलना; पलटना। २ पीछे लौटना। परावत्तइ (उवर ८८)। वकृ. परावत्तमाण (राज)
परावत्त :: सक [परा + वर्तय्] १ फिराना। २ आवृत्ति करना। परावत्तंति (पव ७१), परावत्तेसि (मोह ४७)। संकृ. 'तो सागरेण भणियं अरे परावत्तिऊण निययरंह' (कुप्र ३७८)
परावत्त :: पुं [परावर्त] परिवर्तंन, हेरफेर, हेराफेरी (स ९२; उप पृ.२७; महा)।
परावत्ति :: वि [परावर्त्तिन्] परिवर्त्तंन करनेवाला; 'वेसपरावत्तिणी गुलिया' (महा)।
परावत्ति :: स्त्री [परावृत्ति] परिवर्तंन, हेराफेरी (उप १०३१ टी)।
परावत्तिय :: वि [परावर्त्तित] परिवर्त्तित, बदला हुआ (महा)।
परासर :: पुं [पराशर] १ पशु-विशेष (राज) २ ऋषि-विशेष (औप; गा ८९२)
परासु :: वि [परासु] प्राण-रहित, मृत (श्रा १४; धर्मंसम ६७)।
पराहव :: देखो पराभव = पराभव (गुण ६)।
पराहुत्त :: वि [दे. पराङ्मुख] विमुख, मुँह- फिरा (ग २४५; से १०, ६४; उप पृ ३८८; ओघ ५१४; वज्जा २६), 'महविणयपराहुत्तो' (पउम ३३, ७४, सुख २, १७)।
पराहुत्त, पराहूअ :: वि [पराभूत] अभिभूत, हराया हुआ (उप ६४८ टी; पाअ)।
परि :: अ [परि] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ सर्वंतोभाव, सर्मतात्, चारों ओर (गा २२; सूअ १, ९) २ परिपाटी, क्रम (पिंग) ३ पुनः पुनः फिर फिर (पणह १, १; श्रावक २८४) ४ सामीप्य, समीपता; (गउड ७७९) ५ विनिमय, बदला; 'परि- याण' = परिदान (भवि) ६ अतिशय, विशेष (स ७३४) ७ संपूर्णता; 'परिट्ठिअ' (पव ६९) ८ बाहरपन (श्रावक २८४) ९ ऊपर (हे २, २११; सुपा २६९) १० शेष, बाकी। ११ पूजा। १२ व्यापकता। १३ उपरम, निवृत्ति। १४ शोक। १५ किसी प्रकार की प्राप्ति। १६ आख्यान। १७ संतोष-भाषण। १८ भूषण, अलंकरण। १९ आलिंगन। २० नियम। २१ वर्जन, प्रतिषेध (हे २, २१७, भवि; गउड) २२ निरर्थंक भी इसका प्रयोग होता है (गउड १०; सण)
परि :: देखो पडि = प्रति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; पणण १६ — पत्र ७७४; ७८१)।
परि :: स्त्री [दे] गीति, गीत (कुमा)।
परि :: सक [क्षिप्] फेंकना। परिइ (षड्)।
परिअंज :: सक [परि + भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। परिअंजइ (धात्वा १४३)।
परिअंत :: सक [श्लिष्] १ आलिंगन करना। २ संसर्गं करना। परिअंतइ (हे ४, १९०)
परिअंत :: देखो पज्जंत (पणह १, ३; पउम ६५, १६; सूअ २, १, १५)।
परिअंतणा :: स्त्री [परियन्त्रणा] अतिशय यन्त्रणा (नाट — मालती २८)।
परिअंतिअ :: वि [श्लिष्ट] आलिंगित (कुमा)।
परिअंभिअ :: वि [परिजृम्भित] विकसित (से २, २०)।
परिअट्ट :: अक [परि + वृत्] पलटना, बद- लना। वकृ. 'दिट्ठो अपरिअट्टंतीए सहया- रच्छायाए एसो' (कुप्र ४५; महा), परियट्ट- माण (महा)।
परिअट्ट :: सक [परि + वर्तय्] १ पलटाना, बदलाना। २ आवृत्ति करना, पठित पाठ को याद करना। ३ फिराना, घुमाना। परियट्टइ, परियट्टेइ (भवि; उव)। हेकृ. 'परियट्टिउ- माढत्तो नलिणीगुम्मं ति अज्झयणं' (कुप्र १७३)
परिअट्ट :: सक [परि + अट्] परिभ्रमण करना, घूमना। परिअट्टइ (हे ४, २३०)। संकृ. परियट्टिवि (अप) (भवि)।
परिअट्ट :: पुं [दे] रजक, धोबी (दे ६, १५)।
परिअट्ट :: पुं [परिवर्त] १ पलटाव, बदला। २ समय का परिणाम-विशेष, अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल (विपा १, १; सुर १६, १४५; पव १६२)
परिअट्टग :: वि [परिवर्तक] परिवर्तन करनेवाला (निचू १०)।
परिअट्टण :: न [परिवर्तन] १ पलटाव, बदला करना (पिंड ३२४; वै ६७) २ द्विगुण, त्रिगुण आदि उपकरण (आचा १, २, १, १)
परिअट्टणा :: स्त्री [परिवर्तना] १ फिर फिर होना (पणह १, १) २ आवृत्ति, पठित पाठ का आंवर्तन (आचा २, १, ४, २; उत्त २९, १; ३०, ३४; औप; ठा ५, ३) ३ द्विगुण आदि उपकरण (पि २८९) ४ बदला करना (पिंड ३२५)
परिअट्टय :: वि [पर्यटक] परिभ्रमण करनेवाला; 'मेरुगिरिसययपरियट्टयं' (कप्प ३९)।
परिअट्टलिअ :: वि [दे] परिच्छिन्न (दे ६, ३६)।
परिअट्टविअ :: वि [दे] परिच्छिन्न (षड्)।
परिअट्टिय :: वि [परिवर्तित] बदलाया हुआ (ठा ३, ४; पिंड ३२३; पंचा १३, १२)। देखो परिअत्तिअ।
परिअड :: सक [परि + अट्] परिभ्रमण करना। परिअडंति (श्रावक १३३)। वकृ. परियडंत (सुर २, २)।
परिअडण :: न [पर्यटन] परिभ्रमण (स ११४)।
परिअडि :: स्त्री [दे] १ वृति, बाड़। २ वि. मूर्ख, बेवकूफ (दे ६, ७३)
परिअडिअ :: वि [पर्यटित] परिभ्रान्त, भटका हुआ (सिक्खा १७)।
परिअड्डिअ :: वि [दे] प्रकटित, व्यक्त किया हुआ (षड्)।
परिअड्ढ :: अक [परि + वृध्] बढ़ना, 'परिअड्ढइ लायणणं' (हे ८, २२०)।
परिअड्ढ :: सक [परि + वर्धय्] बढ़ाना (हे ४; २२०)।
परिअडि्ढ :: स्त्री [परिवृद्धि] विशेष वृद्धि (प्राकृ २१)।
परिअडि्ढअ :: वि [परिवर्धिन्, °क] बढ़ानेवाला, 'समणगणवंदपरियड्ढिए' (औप)।
परिअडि्ढअ :: वि [पर्याढ्यक] परिपूर्णं (औप)।
परिअडि्ढअ :: वि [परिकर्षिन्, °क] खींचनेवाला, आकर्षक (औप)।
परिअडि्ढअ :: वि [परिकृष्ट] खींचा हुआ, आकृष्ट; 'जस्स समरेसु रहेइ हयगयमयमिलिय- परिमलुग्गारा। दढपरियड्ढियजयसिरिकेस- कलावो व्व खग्गलया' (सुपा ३१)।
परिअण :: पुं [परिजन] १ परिवार, कुटुम्ब, पुत्र-कलत्र आदि पालनीय वर्ग। २ अनुचर, अनुगामी (गा २८३; गउड; पि ३५०)
परिअत्त :: देखो परिअंत = श्लिष्। परिअत्तइ (हे ४, १९० टी)।
परिअत्त :: देखो परिअट्ट = परि + वृत्। परि- यत्तइ (भवि); 'नडुव्व परिअत्तए जीवो' (वै ६०), परियत्तए (उवा)। वकृ. परिय- त्तमाण (महा)।
परिअत्त :: देखो परिअट्ट = परि + वर्तंय्। संकृ. परियत्तेउ (तंदु ३८)।
परिअत्त :: देखो परिअट्ट = परिवर्तं (औप)।
परिअत्त :: वि [दे] प्रसृत, फैला हुआ; 'सव्वा- सणरिउसंभवहो करपरिअत्ता तावँ' (हे ४, ३९५)।
परिअत्त :: वि [परिवृत्त] पलटा हुआ (भवि)।
परिअत्तण :: देखो परिअट्टण (गउड), 'चाइयणकरपरंपरपरियत्तणखेयवसपरिस्संता। अत्था किविणघरत्था सुत्थावत्था सुयंति व्व' (सुपा ६३३)।
परिअत्तणा :: देखो परिअट्टणा (राज)।
परिअत्तमाण :: देखो परिअत्त।
परिअत्तमाणी :: स्त्री [परिवर्तमाना] कर्मं- प्रकृति-विशेष, यह कर्मं-प्रकृति जो अन्य प्रकृति के बन्ध या उदय को रोक कर स्वयं बन्ध या उदय को प्राप्त होती है (पंच ३, १४; ३, ४३; कम्म ५, १ टी)।
परिअत्ता :: स्त्री [परिवर्ता] ऊपर देखो (कम्म ५, १)।
परिअत्तिअ :: वि [परिवर्तित] १ मोड़ा हुआ; ‘वालिअयं परिअत्तिअं’ (पाअ) २ देखो परिअट्टिय (भवि)
परिअर :: सक [परि + चर्] सेवा करना । वकृ. परिअरंत (नाट — शकु १५८)।
परिअर :: वि [दे] लीन, निमग्न (दे ६, २४)।
परिअर :: पुं [परिकर] १ कटि-कन्धन; ‘सन्नद्ध- बद्धपरियरभडेहि’ (भवि) २ परिवार; ‘किरण- किलामियपरियरभुयंगवविसजलणधूमतिमिरेहिं’ (गउड; चेइय ९४)
परिअर :: पुं [परिचर] सेवक, भृत्य; ‘अणु- णिज्जंतं रक्खापरिअरघुअघवलचामरणिहेण’ (गउड)।
परिअरण :: न [परिचरण] सेवा (संबोध ३९)।
परिअरणा :: स्त्री [परिचरणा] सेवा (सम्मत २१५)।
परिअरिय :: वि [परिकरित, परिवृत] १ परि- वार-युक्त; ‘हयगयरहजोहसुहडपरियरिओ’ (महा; भवि; सण) २ परिवेष्टित; ‘तओ तं समायण्णिऊण सुइसुहं ताण गेयं समंतओ परियरिया सव्वलोगेणं’ (महा; सिरि १२८२)
परिअल :: सक [गम्] जाना, गमन करना । परिअलइ (हे ४, १६२)।
परिअल, परिअलि :: पुंस्त्री [दे] थाल, थलिया, भोजन- पात्र (भवि; दे ६, १२)।
परिअलिअ :: वि [गत] गया हुआ (कुमा)।
परिअल्ल :: देखो परिअल । परिअल्लइ (हे ४, १६२) । संकृ. परिअल्लिऊण (कुमा)।
परिआरअ :: वि [परिचारक] सेवक, भृत्य (चारु ५३) । स्त्री. °रिआ (अभि १९९)।
परिआल :: सक [वेष्टय्] वेष्टन करना, लपेटना । परिआलेइ (हे ४, ५१)।
परिआल :: वि [दे] परिवृत, परिवेष्टित; ‘सो जयइ जामइल्लायमाण- मुहलालिवलयपरिआलं। लच्छिनिवेसंतेउरवइं व जो वहइ वणमालं’ (गउड)।
परिआल :: देखो परिवार (णाया १, ८; ठा ४, २; औप)।
परिआलिअ :: वि [वेष्टित] लपेटा हुआ, बेढ़ा हुआ (कुमा; पाअ)।
परिआव :: देखो परिताव (दस ९, २, १४)।
परिआविअ :: सक [पर्या + पा] पीना । परिआविएज्जा (सूअ २, १, ४९)।
परिआसमंत :: /?/(अप) अ [पर्यासमन्तात्] चारों और से (भवि)।
परिइ :: सक [परि + इ] पर्यटन करना । परिं- यंति (उत्त २७, १३)।
परिइण्ण :: वि [परिकीर्ण] व्याप्त (सम्मत्त १५६)।
परिइद :: /?/(शौ) वि [परिचित] परिचय-विशिष्ट, ज्ञात, पहचाना हुआ (अभि २४५)।
परिउंब :: सक [परि + चुम्ब्] चुम्बन करना । परिउंबइ (भवि)।
परिउंबण :: न [परिचुम्बन] सर्वतः चुम्बन (गा २२; हास्य १३४)।
परिउंबणा :: स्त्री [परिचुम्बना] ऊपर देखो; ‘गंडपरिउंबणापुलइअंग ण पुणो चिराइस्सं’ (गा २०)।
परिउज्झिय :: वि [पर्युज्झित] सर्वथा त्यक्त (सण)।
परिउट्ठ :: वि [परितुष्ट] विशेष तुष्ट (स ७३४)।
परिउत्थ :: वि [दे] प्रोषित, प्रवास में गया हुआ (दे ६, १३)।
परिउसिअ :: वि [पर्युषित] बासी, ठण्ढा, भाफ निकला हुआ (भोजन) (दे १, ३७)।
परिऊढ :: वि [दे. परिगूढ] क्षाम, कृश, पतला; ‘उप्फुल्लिआइ खेल्लउ मा णं वारेहि होउ परिऊढा । मा जहणभारगरुई पुरिसाअंती किलिम्मिहिइ’ (गा १९६)।
परिऊरण :: न [परिपूरण] परिपूर्त्ति (नाट — शकु ८)।
परिएस :: देखो परिवेस = परि + विष् । कवकृ. परिएसिज्जमाण (आचा २, १, २, १)।
परिएस :: देखो परिवेस = परिवेश (स ३१२)।
परिओस :: सक [परि + तोषय्] संतुष्ट करना, खुशी करना । परिओसइ (भवि; सण)।
परिओस :: पुं [परितोष] आनन्द, संतोष, खुशी (से ११, ३; गा ६८; २०९; स ९; सुपा ३७०)।
परिओस :: पुं [दे. परिद्वेष] विशेष द्वेष (भवि)।
परिओसिय :: वि [परितोषित] संतुष्ट किया हुआ (से १३, २५; भवि)।
परिंत :: देखो परी = परि + इ ।
परिकंख :: सक [परि + काङ्क्ष] १ विशेष अभिलाषा करना । २ प्रतीक्षा करना । परिकंखए (उत्त ७, २)
परिकंद :: पुं [परिक्रन्द] आक्रन्द, चिल्लाहट (हम्मीर ३०)।
परिकंपि :: वि [परिकम्पिन्] अतिशय कँपानेवाला (गउड)।
परिकंपिर :: वि [परिकम्पितृ] विशेष काँपनेवाला (सण)।
परिकच्छिय :: वि [परिकक्षित] परिगृहीत (राय)।
परिकट्टलिअ :: वि [दे] एकत्र पिण्डीकृत (पिंड २३९)।
षरिकड्ढ :: सक [परि + कृष्] १ पार्श्व भाग में खींचना । २ प्रारम्भ करना । वकृ. परिकड्ढेमाण (राज) । संकृ. परिकडि्ढऊण (पंचव २)
परिकढिण :: वि [परिकठिन] अत्यन्त कठिन (गउड)।
परिकप्प :: सक [परि + कल्पय्] १ निष्पादन करना । २ कल्पना करना । परिकप्पयंति (सुअ १, ७, १३) । संकृ परिकप्पिऊण (चेइय १४)
परिकप्पिय :: वि [परिकल्पित] छिन्न, काटा हुआ (पण्ह १, ३) । देखो परिगप्पिय।
परिकब्बुर :: वि [परिकर्बुर] विशेष कबरा — चितकवरा (गउड)।
परिकम्म, परिकम्मण :: न [परिकर्मन्] १ गुण-विशेष का आधान, संस्कार-करण; ‘परिकम्मं किरियाए वत्थुणं गुणविसेस- परिणामो’ (विसे ९२३; सुर १३, १२४), ‘तेवि पयट्टा काउं सरीरपरिकम्मणं एवं’ (कुप्र २७१; कप्प; उव) २ संस्कार का कारण-भूत शास्त्र (णंदि) ३ गणित- विशेष । ४ संख्यान-विशेष, एक तरह की गणना (ठा १० — पत्र ४९६) ५ निष्पादन (पव १३३)
परिकम्मणा :: स्त्री. ऊपर देखो; ‘खेत्तमरूवं निच्चं न तस्स परिकम्मणा नय विणासो’ (विसे ९२४; सम्म ५४; संबोध ५३; उपपं ३४)।
परिकम्मिय :: वि [परिकर्मित] परिकर्म- विशिष्ट, संस्कारित (कप्प)।
परिकर :: देखो परिअर = परिकर (पिंग)।
परिकलण :: न [परिकलन] उपभोग; ‘भमर- परिकलणखमकमलभूसि यसरो’ (सुपा ३)।
परिकलिअ :: वि [परिकलित] १ युक्त, सहित (सिरि ३८१) २ व्याप्त (सम्मत्त २१५) ३ प्राप्त; ‘अंजलिपरिकलियजलं व गलइ इह जोयं’ (धर्मवि २५)
परिकवलणा :: स्त्री [परिकवलना] भक्षण; ‘हरियपरिकवलणापुट्ठगोसंकुला’ (सुपा ३)।
परिकविल :: वि [परिकपिल] सर्वतोभाव से कपिल वर्णवाला (गउड)।
परिकविस :: वि [परिकपिश] अतिशय कपिश रँगवाला (गउड)।
परिकसण :: न [परिक र्ण] खींचाव (गउड)।
परिकह :: सक [परि + कथय्] प्ररूपण करना, कहना । परिकहेइ (उवा), परिकहंतु (कम्म ६, ७५) । कर्म, परिकहिज्जइ (पि ५४३)। हेकृ. परिकहेउं (औप)।
परिकहण :: न [परिकधन] आख्यान, प्ररूषण (सुपा २)।
परिकहणा :: स्त्री [परिकथना] ऊपर देखो (आवम)।
परिकहा :: स्त्री [परिकथा] १ बातचीत । २ वर्णन (पिंड १२६)
परिकहिय :: वि [परिकथित] प्ररूपित, आख्यात (महा)।
परिकिण्ण :: देखो परिकिन्न; ‘चेडियाचक्कवाल- परिकिण्णा’ (उवा)।
परिकित्तिअ :: वि [परिकीर्त्तित] व्यावर्णित, श्लाघित (श्रु ११०)।
परिकिन्न :: वि [परिकीर्ण] १ परिवृत, वेष्टित, ‘नियपरियणपरिकिन्नो’ (धर्मवि ५४) २ व्याप्त (सुर १, ५६)
परिकिलंत :: वि [परिक्लान्त] विशेष खिन्न (उप २६४ टी)।
परिकिलेस :: सक [परि + क्लेशय्] दुःखी करना, हैरान करना । परिकिलेसंति (भग) । संकृ. परिकिलेसित्ता (भग)।
परिकिलेस :: पुं [परिक्लेश] दुःख, वाधा, हैरानी (सूअ २, २, ५५; औप, स ६७५; धर्मसं १००४)।
परिकीलिर :: वि [परिक्रीडितृ] अतिशय क्रीड़ा करनेवाला (सण)।
परिकुंठिय :: वि [परिकुण्ठित] जड़ीभूत (विसे १८३)।
परिकुडिल :: वि [परिकुटिल] विशेष वक्र (सुर १, १)।
परिकुद्ध :: वि [परिक्रुद्ध] अत्यन्त कुपित (धर्मवि १२४)।
परिकुविय :: वि [परिकुपित] अतिशय क्रुद्ध (णाया १, ८; उव; सण)।
परिकोमल :: वि [परिकोमल] सर्वथा कोमल (गउड)।
परिक्कंत :: वि [पराक्रान्त] पराक्रम-युक्त (सूअ १, ३, ४, १५)।
परिक्कम :: सक [परि + क्रम्] १पाँव से चलना । २ समीप में जाना । ३ पराभव करना । ४ अक. पराक्रम करना । परिक्कमदि (रुक्मि ४६) । परिक्कमसि (रुक्मि ५५) । परिक्कमेध (शौ) (पि ४८१) । वकृ. परिक्कमंत (नाट) । कृ. परिक्कमियव्व (णाया १, ५ — पत्र १०३) । संकृ. परिक्कम्म (सूअ १, ४, १, २)
परिक्कम :: देखो परिक्कम = पराक्रम (णाया १, १; सण; उत्त १८, २४)।
परिक्कहिअ :: देखो परिकहिय (सुपा २०८)।
परिक्काम :: देखो परिक्कम = परि + कम् । परिक्कामदि (पि ४८१; त्रि ८७)।
परिक्ख :: सक [परि + ईक्ष] परखना, परीक्षा करना । परिक्खइ, परिक्खए, परिक्खंति, परिक्खउ (भवि; महा; वज्जा १५८; स ४५७) । वकृ. परिक्खंत; परिक्खमाण (ओघ ८० भा; श्रा १४) । संकृ. परिक्खिय (उव) । कृ. परिक्खियव्य (काल)।
परिक्खअ :: वि [परीक्षक] परीक्षा करनेवाला (सुपा ४२७; श्रा १४)।
परिक्खअ :: वि [परिक्षत] आहत, जिसको घाव हुआ हो वह (से ८, ७३)।
परिक्खअ :: पुं [परिक्षय] १ क्रमशः हानि; ‘बहुलपक्खचंदस्स जोण्हापरिक्खओ विअ’ (चारु ८) २ क्षय, नाश (गउड)
परिक्खण :: न [परीक्षण] परीक्षा (स ४६६; कप्पू; सुपा ४४६; णाया १, ७ भवि)।
परिक्खणा :: स्त्री [परीक्षणा] परीक्षा (पउम ६१, ३३)।
परिक्खमाण :: देखो परिक्ख।
परिक्खल :: सक [परि + स्खल्] स्खलित होना । वकृ. परिक्खलंत (से ४, १७)।
परिक्खलिअ :: वि [परिस्खलित्त] स्खलना- प्राप्त (पि ३०६)।
परिक्खा :: स्त्री [परीक्षा] परख, जाँच (नाट — मालवि २२)।
परिक्खाइअअ :: वि [दे] परिक्षीण (षड्)।
परिक्खाम :: वि [परिक्षाम] अतिशय कृश (उत्तर ७२; नाट — रत्ना ३)।
परिक्खि :: वि [परिक्षिन्] परखनेवाला, परीक्षक (श्रा १४)।
परिक्खित्त :: वि [परिक्षिप्त] १ वेष्टित, घेरा हुआ (औप; पाअ; से १, ५२; वसु) २ सर्वथा क्षिप्त (आवम) ३ चारों ओर से व्याप्त (राय)
परिक्खिय :: वि [परीक्षित] जिसकी परीक्षा की गई हो वह (प्रासू १५)।
परिक्खिव :: सक [परि + क्षिप्] १ वेष्टन करना । २ तिरस्कार करना । ३ व्याप्त करना । ४ फेंकना; ‘एयं खु जरामरणं परिक्खिवइ वग्गुरा व मयजूहं’ (तंदु ३३; जीवस १८६) । कर्म, परिक्खिवीआमो (पि ३१९)
परिक्खिविय :: वि [परिक्षित] फेंका हुआ (हम्मीर ३२)।
परिक्खेव :: वि [परिक्षेप] घेरा, परिधि (भग; सम ५६; कस; औप)।
परिक्खेवि :: वि [परिक्षेपिन्] तिरस्कार करनेवाला (उत्त ११, ८)।
परिखंध :: पुं [दे] काहार, कहार, जलादि- वाहक, नौकर (दे २, २७)।
परिखिज्ज :: सक [परि + खर्ज्] खुजाना, खुजलाना । कवकृ ‘परिखज्जमाणमत्थयदेसो’ उप ९८६ टि)।
परिखण :: न [परीक्षण] परिक्षा-करण, परीक्षा लेने, परखने या जाँच करने का काम (पव ३८)।
परिखविय :: वि [परिक्षपित] परिक्षीण; ‘गुरुअट्टज्झाणपरिखवियसरीरो’ (महा)।
परिखाम :: वि [परिक्षाम] अति दुर्बल, विशेष कृश (गा १९६)।
परिखित्त :: देखो परिक्खित्त (सण)।
परिखिव :: देखो परिक्खिव । परिखिवइ (भवि); ‘राया तं परिखिवई दोहग्गवईण मज्झम्मि’ (सम्मत्त २१७; चेइय ६५५)।
परिखिविय :: देखो परिखित्त (सण)।
परिखुहिय :: वि [परिक्षुब्ध] अतिशय क्षोभ को प्राप्त (भवि)।
परिखेइय :: वि [परिखेदित] विशेष खिन्न किया हुआ (सण)।
परिखेद :: /?/(शौ) पुं [परिखेद] विशेष खेद (स्वप्न १०, ८०)।
परिखेय :: सक [परि + खेदय्] अतिशय खिन्न करना । परिखेवइ (सण)। संकृ. परिखेइवि (अप) (सण)।
परिखेविय :: /?/(अप) देखो परिखिविय (सण)।
परिगंतु :: देखो परिगम।
परिगण :: सक [परि + गणय्] १ गणना करना । २ चिन्तन करना, विचार करना । वकृ-‘एस थक्का मम गमणस्स त्ति परि- गणंतेण विण्णविओ राया’ (महा)
परिगप्पण :: न [परिकल्पन] कल्पना (धर्मसं ६८१)।
परिगप्पणा :: स्त्री [परिकल्पना] ऊपर देखो (धर्मसं ३०५)।
परिगप्पिय :: वि [परिकल्पित] जिसकी कल्पना की गई हो वह (स ११३; धर्मसं ६९९) । देखो परिकप्पिय।
परिगम :: सक [परि + गम्] १ जाना, गमन करना । २ चारों ओर से वेष्टन करना । ३ व्याप्त करना । संकृ. परिगंतु (सण)
परिगमण :: न [परिगमन] १ गुण, पर्याय; ‘परिगमणं पज्जाओ अणेगकरणंगुणोत्ति एगत्था’ (सम्म १०९) २ समन्ताद् गमन निचू ३)।
परिगमिर :: वि [परिगन्तृ] जानेवाला (सण)।
परिगय :: वि [परिगत] १ परिवेष्टित; ‘मणु- स्सवग्गुरापरिगए’ (उवा; गा ९६), ‘बहुपरि- यणपरिगया’ (सम्मत्त २१७) २ व्याप्त; ‘विसपरिगयाहिं दाढाहि’ (उवा)
परिगर :: पुं [परिकर] परिवार; ‘सेसाण तु हरियव्वं परिगरविहवकालमादीणि णाउं’ धर्मसं ९२९)।
परिगरिय :: वि [परिकरित] देखो परिअरिय (सुपा १२७)।
परिगल :: अक [परि + गल्] १ गल जाना, क्षीण होना । २ झरना, टपकना । परिगलइ (काल)। वकृ. परिगलंत (पउम ११२, १५; तंदु ४४)
परिगलिय :: वि [परिगलित] गला हुआ, परिक्षीण (कुप्र ७; महा; सुपा ८७; ३९२)।
परिगलिर :: वि [परिगलितृ] गल जानेवाला, क्षीण होनेवाला (सण)।
परिगह :: देखो परिगेण्ह । संकृ. परिगहिअ (मा ४८)।
परिगह :: देखो परिग्गह (कुमा)।
परिगहिय :: देखो परिग्गहिय (बृह १) ।
परिगा :: सक [परि + गै] गान करना । कवकृ. परिगिज्जमाण (णाया १, १)।
परिगालण :: न [परिगालन] गालन, छानन (पण्ह १, १)।
परिगिज्जमाण :: देखो परिगा।
परिगिज्झ, परिगिज्झिय :: देखो परिगेण्ह ।
परिगिण्ह :: देखो परिगेण्ह । परिगिण्हइ (आचू १) । वकृ. परिगिण्हंत, परिगिण्हमाण (सूअ २, १, ४४; ठा ७ — पत्र ३८३)।
परिगिला :: सक [परि + ग्लै] ग्लान होना । वकृ. परिगिलायमाण (आचा)।
परिगुण :: सक [परि + गुणय्] परिगणन करना, गिनती करना । परिगुणहु (अप) (पिंग)।
परिगुणण :: न [परिगुणन] स्वाध्याय (ओघ ६२)।
परिगुव :: सक [परि + गुप्] १ व्याकुल होना । २ सक. सतत भ्रमण करना । वकृ. परिगुवंत (राज)
परिगुव :: सक[परि + गु] शब्द करना । वकृ. परिगुवंत (राज)।
परिगुव्व :: अक [परि + गुप्] १ व्याकुल होना । २ सक. सतत भ्रमण करना । वकृ. परिगुव्वंत (ठा १० — पत्र ५००)
परिगू :: सक [परि + गू] शब्द करना । कवकृ. परिगुव्वंत (ठा १० — पत्र ५००)।
परिगेण्ह, परिग्गह :: सक [परि + ग्रह्] ग्रहण करना, स्वीकार करना (प्रामा)। वकृ. परिग्गहमाण (आचा १, ८, ३, १)। संकृ. परिगिज्झिय, परिघेत्तूण (राज; पि ५८६) । हेकृ. परिघेत्तुं (पि ५७६) । कृ. परिगिज्झ, परिघेतव्व, परिघेत्तव्व (उत्त १, ४३; सुपा ३३; सुअ २, १, ४८, पि ५७०)।
परिग्गय :: देखो परिगय (दस ९, २, ८)।
परिग्गह :: पुं [परिग्रह] १ ग्रहण, स्वीकार । २ धन आदि का संग्रह (पण्ह १, ५; औप) ३ ममत्व, मूर्च्छा (ठा १) ४ ममत्व-पूर्वक जिसकी संग्रह किया जाय वह (आचा, ठा ३, १; धर्म २) °वेरमण न [°विरमण] परिग्रह से निवृत्ति (ठा १, पण्ह २, ५)। °।वत वि [°वत्] परिग्रह-युक्त (आचा; पि ३९६)।
परिग्गहि :: वि [परिग्रहिन्] परिग्रह-युक्त (सूअ १, ९)।
परिग्गहिय :: वि [परिगृहीत] स्वीकृत (उवा; औप)।
परिग्गहिया :: स्त्री [पारिग्रहिकी] परिग्रह- सम्बन्धी क्रिया (ठा २, १; नव १७)।
परिघग्घर :: वि [परिघर्घर] बैठी हुई (आवाज); ‘हरिणो जयइ चिरं विहयसद्दपरि- घग्घरा वाणी’ (गउड)।
परिघट्ट :: सक [परि + घट्ट] आघात करना । कवकृ. परिघट्टिज्जंत (महा)।
परिघट्टण :: न [परिघट्टन] आघात (वज्जा ३८)।
परिघट्टण :: न [परिघटन] निर्माण, रचना (निचू १)।
परिघट्टिय :: वि [परिघट्टित] आहत, ताडित (जीव ३)।
परिघट्ठ :: वि [परिघृष्ट] १ जिसका घर्षण किया गया हो वह, घिसा हुआ; ‘मंदरयडपरि- घट्ठ’ (हे २, १७४)
परिघाय :: देखो परीघाय (राज)।
परिघास :: सक [परि + घासय्] जिमाना, भोजन कराना । हेकृ. परिघासेउं (आचा)।
परिघासिय :: वि [परिघर्षित] परिघर्ष-युक्त, ‘रयसा वा परिघासियपुव्वे भवति’ (आचा २, १, ३, ५)।
परिघुम्मिर :: वि [परिघूर्णितृ] शनैः शनैः काँपता हिलता, डोलता (पउम ८, २८३; गा १४८)।
परिघेतव्व, परिघेत्तव्व, परिघेत्तुं, परिघेत्तूण :: देखो परिगेण्ह।
परिघोल :: सक [परि + घूर्ण्] १ डोलना । २ परिभ्रमण करना । वकृ. परिघोलंत, परिघोलेमाण (से १, ३३; औप, णाया १, ४ — पत्र ९७)
परिघोलण :: न [दे.परिघोलन] विचार (ठा ४, ४ — पत्र २८३)।
परिघोलिर :: वि [परिघूर्णितृ] डोलनेवाला (गउड)।
परिचअ :: देखो परियय = परिचय (नाट — शकु ७७)।
परिचअ :: देखो परिच्चअ । संकृ. परिचइऊण, परिचइय (महा)।
परिचंचल :: वि [परिचञ्चल] अतिशय चपल (वै १४)।
परिचत्त :: देखो परिच्चत्त (महा; औप)।
परिचरणा :: स्त्री [परिचरणा] सेवा, भक्ति सुपा १५९)।
परिचल :: सक [परि + चल्] विशेष चलना । परिचलइ (पिंग)।
परिचलिअ :: वि [परिचलित] विशेष चला हुआ (दे ५, ९)।
परिचारअ :: वि [परिचारक] सेवा करनेवाला, सेवक (नाट — मालवि ६) । स्त्री. °रिआ (नाट)।
परिचारण :: स्त्री [परिचारणा] मैथुन-प्रवृत्ति (ठा ५, १)।
परिचिंत :: सक [परि + चिन्तय्] चिन्तन करना, विचार करना । परिचिंतइ, परिचिंतेइ (सण; उव) । कर्म. परिचितियइ (अप) (सण)। वकृ. परिचिंतंत, परिचिंतयंत (सण; पउम ६६, ४)।
परिचिंतिय :: वि [परिचिन्तित] जिसका चिन्तन किया गया हो वह (सण)।
परिचिंतिर :: वि [परिचिन्तयितृ] चिन्तन करनेवाला (सण)।
परिचिट्ठ :: अक [परि + स्था] रहना, स्थिति करना । परिचिट्ठइ (सण)।
परिचिय :: वि [परिचित] ज्ञात, जाना हुआ, चिह्ना हुआ, पहिचाना हुआ (औप)।
परिचुंब :: देखो परिउंबृ । परिचुंबिज्जमाण (औप) । संकृ. परिचुंबिअ (अभि १५०)।
परिचुंबण :: देखो परिउंबण (पउम १६, ७९)।
परिचुंबिय :: वि [परिचुम्बित] जिसका चुम्बन किया गया हो वह, ‘परिचुंबियनहग्गं’ (उप ५९७ टी)।
परिच्चअ :: सक [परि + त्यज्] परित्याग करना, छोड़ देना । परिच्चयइ, परिच्चअह (महा; अभि १७७) । वकृ. परिच्चअंत ( अभि १३७) । संकृ. परिच्चइअ, परिच्चज्ज, परिच्चइऊण (पि ५९०; उत्त ३५, २; राज) । हेकृ. परिच्चइत्तए, परिच्चत्तुं (उवा; नाट)।
परिच्चत्त :: वि [परित्यक्त] जिसका परित्याग किया गया हो वह (से ८, २०; सुर २; १२०; सुपा ४१८; नाट — शकु १३२)।
परिच्चयण :: न [परित्यजन] परित्याग (स ३३)।
परिच्चाइ :: वि [परित्यागिन्] परित्याग करने वाला (औप; अभि १४०)।
परिच्चाग, परिच्चाय :: पुं [परित्याग] त्याग, मोचन (पंचा ११, १४; उप ७९२; औप, भग)।
परिच्चाय :: वि [परित्याज्य] त्याग करने लायक, ‘अण्णेवि असुहजोगा सोहिपयाणे परिच्चाया’ (संबोध ५४)।
परिच्चिअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, ऊपर फेंका हुआ (षड्)।
परिच्चिअ :: देखो परिचिय (उप १४२ टी)।
परिच्छ :: देखो परिक्ख, ‘मणवयणकायगुत्तो सज्जो मरणं परिच्छिज्जा’ (पच्च ६८; पिंड ३०), परिच्छंति (पिंड ३१)।
परिच्छग :: वि [परिक्षक] परीक्षा-कर्त्ता (धर्मसं ५१६)।
परिच्छण्ण, परिच्छन्न :: वि [परिच्छन्न] १ आच्छादित, ढका हुआ (महा) २ परिच्छद- युक्त, परिवार-सहित (वव ४)
परिच्छय :: वि [परीक्षक] परीक्षा करनेवाला (सम्म १५६)।
परिच्छा :: स्त्री [परीक्षा] परख, जाँच, आजमाइश (ओघ ३१ भा; विसे ८४८; उप पृ १०८)।
परिच्छिअ :: देखो परिक्खिय (श्रा १६)।
परिच्छिंद :: सक [परि + छिद्] निश्चय करना, निर्णय करना । २ काटना, काट डालना । परिच्छिंदइ (धर्मसं ३७१) । संकृ. ‘परिच्छिंदिय बाहिरगं च सायं निक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं’ (आचा — टि; पि ५०६; ५९१)
परिच्छिण्ण :: वि [परिच्छिन्न] १ काटा हुआ, ‘नय सुहतण्हा परिच्छिण्णा’ (पच्च ६५) २ निर्णीत; निश्चित (आव ४)
परिच्छित्ति :: स्त्री [परिच्छित्ति] १ परिच्छद, निर्णय । २ परीक्षा, जाँच (उप ८९५)
परिच्छिन्न :: देखो परिच्छिण्ण (स ५६६; सम्मत्त १४२)।
परिच्छूढ :: वि [दे. परिक्षिप्त] १ उत्क्षिप्त; फेंका हुआ (दे ६, २५; नमि ९) २ परि- त्यक्त (से १३, १७)
परिच्छेअ :: पुं [परिच्छेद] निर्णय, निश्चय (विसे २२४४, स ६६७)।
परिच्छेअ :: वि [दे. परिच्छेक] लघु छोटा (औप)।
परिच्छेअग :: वि [परिच्छेदक] निश्चय करनेवाला (उप ८५३ टी)।
परिच्छेज्ज :: वि [परिच्छेद्य] वह वस्तु जिसका क्रय-विक्रय परिच्छेद पर निर्मर रहता है — रत्न, वस्त्र आदि द्रव्य (श्रा १८)।
परिच्छेद :: देखो परिच्छेअ=परिच्छेद (धर्मसं १२३१)।
परिच्छेदग :: देखो परिच्छेअग (धमँसं ५०)।
परिच्छोय :: वि [परिस्तोक] थोड़ा, अल्प (औप)।
परिछेज्ज :: देखो परिच्छेज्ज (श्रा १८)।
परिजंपिय :: वि [परिजल्पित] उक्त, कथित (सुपा ३९४)।
परिजज्जर :: वि [परिजर्जर] अतिजीर्ण (उप २६४ टी; ९८६ टी)।
पपिजडिल :: वि [परिजटिल] अतिशय जटिल (गउड)।
परिजण :: देखो परिअण (उवा)।
परिजव :: सक [परि+विच्] पृथक् करना, अलग करना। संकृ. परिजविय (सूअ २, २, ४०)।
परिजव :: सक [परि+जप्] १ जाप करना। २ बहुत बोलना, बकवाद करना। संकृ. 'स भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्ज- माणे णो पोहिं सद्धिं परिजविया २ गामा- णुगामं दूइज्जेज्जा' (आचा २, ३, २, ८)
परिजवण :: न [परिजपन] जाप, जपन, मन्त्र आदिका पुनः पुनः उच्चारण (विसे ११४०; सुर १२, २०१)।
परिजाइय :: वि [परियाचित] माँगा हुआ (धर्मसं १०४५)।
परिजाण :: सक [परि+ज्ञा] अच्छी तरह जानना। परिजाणइ (उवा)। वकृ. परिजा- णमाण (कुमा)। कवकृ. परिजाणिज्जमाण (णाया १, १; कुमा)। संकृ. परिजाणिया (सूअ १, १, १, १; १, ९, ९; १, ९, १०)। कृ. परिजाणियव्व (आचा; पि ५७०)।
परिजिअ :: वि [परिजित] सर्वथा जीत, जिस- पर पूरा काबू किया गया हो वह (विसे ८५१)।
परिजुण्ण :: वि [परिजीर्ण] १ फटा-टूटा, अत्यन्त जीर्ण (आचा) २ दुर्बल (उत्त २, १२) ३ दरिद्र, निर्धन; 'परिजूण्णो उ दरिद्दो' (वव ४)
परिजुण्ण :: देखो परिजुन्ना (ठा १० — पत्र ४७४ टी)।
परिजुत्त :: वि [परियुक्त] सहित (संबोध १)।
परिजुन्न :: देखो परिजुण्ण (उप २६४ टी)।
परिजुन्ना :: स्त्री [परिजीर्णा, परिद्यूना] प्रव्रज्या, विशेष, दरिद्रता के कारण ली हुई दीक्षा (ठा १० — पत्र ४७३)।
परिजुसिय :: देखो परिझुसिय (ठा ४, १ — पत्र १८७; औप)।
परिजुसिय :: न [पर्युषित] रात्रि-परिवसन, रात का बासी रहना, बासी (ठा ४, २ — पव २१९)। देखो परिउसिअ।
परिजूर :: अक [परि+जृ] सर्वथा जीर्ण होना; 'परिजूरइ ते सरीरयं' (उत १०, २६)।
परिजूरिय :: वि [परिजीर्ण] अतिजीर्ण (अणु)।
परिज्जय :: पुं [दे] कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज २०)।
परिज्जुन्न :: देखो परिजूरिय (दस ९, २, ८)।
परिज्झामिय :: वि [परिध्यामित] श्याम (काला) किया हुआ (निचू १)।
परिज्झुसिय, परिझुसिय, परिझूसिय :: वि [परिजुष्ट] १ सेवित। २ प्रीत; 'परिज्झुसियकामभो- गसंपओगसंपउत्ते' (भग २५, ७ — पत्र ९२३; ९२५ टी। ३ परीक्षण, ठा ४, १ — पत्र १८८ टी; पि २०९)।
परिट्ठव :: सक [परि+स्थापय्] १ परि- त्याग करना। २ संस्थापन करना। परिट्ठवेइ; परिट्ठवेज्जा (आचा २, १, ९, ५; उवा)। संकृ. परिट्ठवेऊण, परिट्ठवेत्ता (बृह ४; कस)। हेकृ. परिट्ठवेत्तए (कस)। वकृ. परिट्ठवंत (निचू २)। कृ. परिट्ठप्प, परिट्ठवेयव्व (उत्त १४, ९; कस)
परिट्ठवण :: न [प्रतिष्टापन] प्रतिष्ठा कराना (चेइय ७७६)।
परिट्ठवण :: न [परिष्ठापन] परित्याग (उव; पव १५२)।
परिट्ठवणा :: स्त्री [परिष्ठापना] ऊपर देखो, 'अविहिपरिट्ठवणाए काउस्सग्गो य गुरुसमी- वम्मि' (बृह ४)।
परिट्ठवणा :: स्त्री [प्रतिष्ठापना] प्रतिष्ठा कराना, 'वेयावच्चं जिणगिहरक्खणपरिट्ठवणाइजिण- किच्चं' (चेइय ७७६)।
परिट्ठविय :: स्त्री [प्रतिष्ठापित] संस्थापित (भवि)।
परिट्ठा :: देखो पइट्ठा (हे १, ३८)।
परिट्ठाइ :: वि [परिष्ठापिन्] परित्यागी (नाट — साहि १६२)।
परिट्ठाण :: न [परिस्थान] परित्याग (नाट)।
परिट्ठाव :: देखो परिट्ठव हेकृ. परिट्ठावित्तए (कप्प; पि ५७८)।
परिट्ठावअ :: वि [परिस्थापक] परित्याग करनेवाला (नाट)।
परिट्ठिअ :: वि [परिस्थित] संपूर्ण रूप से स्थित (पव ६९)।
परिट्ठिअ :: देखो पइट्ठिय (हे १, ३८; २, २११; षड्; महा; सुर ३, १३)।
परिठव :: देखो परिट्ठव। परिठवहु (अप) (पिंग)।
परिठवण :: देखो परिट्ठवण=परिष्ठापन (पव — गाथा २४)।
परिण :: देखो परिणी, 'परिणइ बहुयाउ खयर- कन्नाओ' (धर्मवि ८२)। वकृ. परिणंत (भवि)। संकृ. परिणिऊण (महा; कुप्र ७९; १२७)।
परिणइ :: स्त्री [परिणति] परिणाम; (गा ५६८; धर्मसं ९२३)।
परिणंत :: देखो परिण।
परिणंतु :: वि [परिणन्तृ] परिणाम को प्राप्त होनेवाला, परिणत होनेवाला (विसे ३५३४)।
परिणंद :: सक [परि+नन्द्] वर्णन करना, श्लाघा करना; 'ताणं परिणंदंता (? ति)' (तंदु ४०)।
परिणद्ध :: वि [परिणद्ध] १ परिगत, वेष्टित; 'उंदुरमालापरिणद्धसुकयर्चिघे' (उवा, णाया १, ८ — पत्र १३३) २ न. वेष्टन (णाया १, ८)
परिणम :: सक [परि+णम्] १ प्राप्त करना। २ अक. रूपान्तर को प्राप्त होना। ३ पूर्ण होना, पूरा होना; 'किण्हलेसं तु परिण्मे' (उत ३४, २२), 'परिणमइ अप्पमाओ' (स ६८४; भग १२, ५)। वकृ. परिणमंत, परिणममाण (ठा ७; णाया १, १ — पत्र ३१)
परिणमण :: न [परिणमन] परिणाम (धर्मसं ४७२; उप ८९८)।
परिणमिअ, परिणय :: वि [परिणत] १ परिपक्व (पाअ) २ वृद्धि-प्राप्त; 'तह परिणमिओ धम्मो जह तं खोभंति न सुरावि' (धर्मवि ८) ३ अवस्थान्तर को प्राप्त (ठा २, १ — पत्र ५३; पिंड २६५) °वय वि [°वयस्] १ वृद्ध; बूढ़ा (णाया १, १ — पत्र ४८)
परिणयण :: न [परिणयन] विवाह (उप १०१४; सुपा २७१)।
परिणयणा :: स्त्री. ऊपर देखो (धर्मवि १२६)।
परिणव :: देखो परिणम। परिणवइ (आरा ३१; महा)।
परिणाइ :: पुं [परिज्ञाति] परिचय, 'कह तुज्झ तेण समयं परिणाई तक्खणेण उप्पनो' (पउम ५३, २५)।
परिणाम :: सक [परि+णमय्] परिणत करना। परिणामेइ (ठा २, २)। कवकृ. परिणामिज्जमाण, परिणामेज्जमाण (भग; ठा १०)। हेकृ. परिणामित्तए (भग ३, ४)।
परिणाम :: पुं [परिणाम] १ अवस्थान्तर-प्राप्ति, रूपान्तरलाभ (धर्मसं ४७२) २ दीर्घ काल के अनुभव से उत्पन्न होनेवाला आत्म-धर्म विशेष (ठा ४, ४ — पत्र १८३) ३ स्वभाव, धर्म (ठा ६) ४ अध्यवसाय, मनो-भाव (निचू २०) ५ वि. परिण्त करनेवाला; 'दिट्ठंता परिणामे' (वव १०; बृह १)
परिणामणया, परिणामणा :: स्त्री [परिणामना] परिण- माना, रूपान्तरकरण (पण्ण ३४ — पत्र ७७४; विसे २२७५)।
परिणामय :: वि [परिणामक] परिणत करनेवाला (बृह १)।
परिणामि :: वि [परिणामिन्] परिणत होमेवाला (दे १, १; श्रावक १८३)। °कारण न [°कारण] कार्य-रूप में परिणत होनेवाला कारण, उपादान कारण (उवर २७)।
परिणामिअ :: वि [पारिणामिक] १ परिणाम- जन्य, परिणाम से उत्पन्न। २ परिणाम- संबन्धी। ३ पुं. परिणाम। ४ भाव-विशेष; 'सव्वदव्वपरिणइरूवो परिणामिओ सव्वो' (विसे २१७६; ३४९५)
परिणामिअ :: वि [परिणमित] परिणत किया हुआ (पिंड ६१२; भग)।
परिणामिआ :: स्त्री [पारिणामिकी] बुद्धि- विशेष, दीर्घ काल के अनुभव से उत्पन्न होनेवाली बुद्धि (ठा ४, ४)।
परिणाय :: वि [परिज्ञात] जाना हुआ, परिचित (पउम ११, २७)।
परिणाव :: सक [परि+णायय्] विवाह कराना। परिणावसु (कुप्र ११९)। कृ. परिणावियव्व, परिणावेयव्व (कुप्र ३३०; १५४)।
परिणावण :: न [परिणायन] विवाह कराना (सुपा ३९८)।
परिणाविअ :: वि [परिणावित] जिसका विवाह कराया गया हो वह (सुपा १९५; धर्मवि १३९; कुप्र १४)।
परिणाह :: पुं [परिणाह] १ लम्बाई, विस्तार (पाअ; से ११, १२) २ परिधि (स ३१२; ठा २, २)
परिणिऊण :: देखो परिण।
परिणिंत :: देखो परिणी=परि+गम् ।
परिणिज्जंत :: देखो परिणी=परि+णी।
परिणिज्जरा :: स्त्री [परिनिर्जरा] विनाश, क्षय (पउम ३१, ६)।
परिणिज्जिय :: वि [परिनिर्जित] पराभूत, पराजय-प्राप्त (पउम ५२, २१)।
परिणिट्ठा :: स्त्री [परिनिष्ठा] संपूर्णता, समाप्ति (उवर १२५)।
परिणिट्ठाण :: न [परिनिष्ठान] अवसान, अन्त (विसे ६२६)।
परिणिट्ठिअ :: वि [परिनिष्ठित] १ पूर्ण किया हुआ, समाप्त किया हुआ (रयण २५) २ पार-प्राप्त (णाया १, ८; भास ९८; पंचा १२, १४) ३ परिज्ञात (वव १०)
परिणिट्ठिया :: स्त्री [परिनिष्ठिता] १ कृषि- विशेष, जिसमें दो या तीन बार तृण-शोधन किया गया हो वह कृषि; अर्थात् दो या तीन बार की सोहनी (निराई) की हुई खेत। २ दीक्षा-विशेष, जिसमें बारंबार अतिचारों की आलोचना की जाती हो वह दीक्षा (राज)
परिणिय :: वि [परिणीत] जिसका विवाह हुआ हो वह (सण; भवि)।
परिणिव्वव :: सक [परिनिर्+वापय्] सर्व प्रकार से अतिशय परिणत करना। संकृ. परिणिव्वविय (कस)।
परिणिव्वा :: अक [परिनिर्+वा] १ शान्त होना। २ मुक्ति पाना, मोक्ष को प्राप्त करना। परिणिव्वायंति (भग)। भुका. परिणिव्वाइंसु (पि २१६)। भाव. परि- णिव्वाहिंति (भग)
परिणिव्वाण :: न [परिनिर्वाण] मुक्ति, मोक्ष (आचा; कप्प)।
परिणिव्वुइ :: स्त्री [परिनिर्वृति] ऊपर देखो (राज)।
परिणिव्वुय :: देखो परिनिव्वुअ (औप)।
परिणी :: सक [परि+णी] १ विवाह करना। २ ले जाना। कवकृ. परिणिज्जंत, परिणीय- माण (कुप्र १२७; आचा)
परिणी :: अक [परि+गम्] बाहर निकलना। वकृ. परिणिंत (स ६६१)।
परिणीअ :: वि [परिणीत] जिसका विवाह किया गया हो वह (महा; प्रासू ६३; सण)।
परिणील :: वि [परिनील] सर्वथा हरा रंग का (गउड)।
परिणे :: देखो परिणी। परिणेइ (महा; पि ४७४)। हेकृ. परिणेउं (कुप्र ५०)। कृ. परिणेयव्व (सुपा ४५५; कुप्र १३८)।
परिणेविय :: (अप) वि [परिणायित] जिसका विवाह कराया गया हो वह (सण)।
परिणेव्वुय :: देखो परिनिव्वुअ (उत्त १८, ३५)।
परिण्ण :: वि [परिज्ञ] ज्ञाता, जानकार (आचा १, ५, ६, ४)।
परिण्ण° :: देखो परिण्णा° (आचा १, २, ६, ५)।
परिण्णा :: सक [परि+ज्ञा] जानना। संकृ. परिण्णाय (आचा; भग)। हेकृ. परिण्णादुं (शौ) (अभि १८९)।
परिण्णा :: स्त्री [परिज्ञा] १ ज्ञान, जानकारी (आचा; वसु; पंचा ६, २५) २ विवेक (आचा) ३ पर्यालोचन, विचार (सुअ १, १, १) ४ ज्ञान-पूर्वक प्रत्याखान (ठा ५, २)
परिण्णाण :: वि [परिज्ञान] ज्ञान, जानकारी (घर्मसं १२५३; उप पृ २७४)।
परिण्णाय :: देखो परिण्णा=परि+ज्ञा।
परिण्णाय :: वि [परिज्ञात] विदित, जाना हुआ (सम १९; आचा)।
परिण्णि :: वि [परिज्ञिन्] परिज्ञा-युक्त, 'गीय- जुओ उ परिण्णी तह जिणइ परीसहाणीयं' (वव १)।
परितंत :: वि [परितान्त] सर्वथा खिन्न, निर्विण्ण (णाया १, ४ — पत्र ९७; विपा १, १; उव)।
परितंबिर :: वि [परिताम्र] विशेष ताम्र — अरुण वर्णवाला (गउड)।
परितज्ज :: सक [परि+तर्जय्] तिरस्कार करना। वकृ. परितज्जयंत (पउम ४८, १०)। परितड्डविय वि [परितत] खूब फैलाया हुआ (सण)।
परितणु :: वि [परितनु] अत्यन्त पतला (सुपा ५८)।
परितप्प :: अक [परि+तप्] १ संतप्त होना, गरम होना। २ पश्चाताप करना। ३ दुःखी होना। परितप्पइ (महा; उव); परितप्पंति (सूअ २, २, ५५), 'ता लोहभारवाहगनरुव्व परितप्पसे पच्छा' (धर्मवि ६)। संकृ. परित- प्पिऊण (महा)
परितप्प :: सक [परि+तापय्] परिताप उपजाना। परितप्पंति (सुअ २, २, ५५)।
परितप्पण :: न [परितपन] परितप्त होना (सूअ २, २, ५५)।
परितप्पण :: न [परितापन] परिताप उपजाना (सूअ २, २, ५५)।
परितलिअ :: वि [परितलित] तला हुआ (ओघ ८८)।
परितविय :: वि [परितप्त] परिताप युक्त (सण)।
परिताण :: न [परित्राण] १ रक्षण। २ वागुरादि बन्धन (सूअ १, १, २, ६)
परिताव :: देखो परितप्प=परि+तापय्। कृ. परितावेयव्व (पि ५७०)।
परिताव :: पुं [परिताप] १ संताप, दाह। २ पश्चाताप। ३ दुःख, पीड़ा (महा, औप)। °यर वि [°कर] दुःखोत्पादक (पउम ११०, ९)
परितावण :: देखो परितप्पण=परितापन (औप)।
परिताविअ :: वि [परितापित] १ संतापित (औप) २ तला हुआ (ओघ १४७)
परितास :: पुं [परित्रास] अकस्मात् होनेवाला भय (णाया १, १ — पत्र ३३)।
परितुट्टिर :: वि [परित्रुटितृ] टूटनेवाला (सण)।
परितुट्ठ :: वि [परितुष्ट] तोष-प्राप्त, संतुष्ट (उव; चेइय ७०१)।
परितुलिय :: वि [परितुलित] तौला हुआ (सण)।
परितेज्जि :: देखो परित्तज।
परितोल :: सक [परि+तोलय्] उठाना। वकृ. 'जुगवं परितोलंता कग्गं समरंगणम्मि तो दोवि' (सुपा ५७२)।
परितोस :: सक [परि+तोषय्] संतुष्ट करना। भवि. परितोसइस्सं (कर्पूर ३२)।
परितोस :: पुं [परितोष] आनन्द, खुशी (नाट — मालवि २३)।
परितोसिय :: वि [परितोषित] संतुष्ट किया हुआ (सण)।
परित्त :: वि [परीत] १ व्याप्त (सिरि १८३) २ प्रभ्रष्ट (सूअ २, ६, १८) ३ संख्येय, जिसकी गिनती हो सके ऐसा (सम १०६) ४ परिमित, नियत परिमाणवाला (उप ४१७) ५ लघु, छोटा। ६ तुच्छ, हलका (उप २७०; ९९४) ७ एक से लेकर असंख्येय जीवों का आश्रय, एक से लेकर असंख्येय जीववाला (ओघ ४१) ८ एक जीववाला (पण्ण १)। °करण न [°करण] लघूकरण (उप २७०)। °जीव पुं [°जीव] एक शरीर में एकाकी रहनेवाला जीव (पण्ण १)। °णंत न [°।नन्त] संख्या-विशेष (कम्म ४, ७१; ८३)। °संसारिअ वि [°संसारिक] परिमित संसारवाला (उप ४१७)। °।संख न [°।संख्यात] संख्या-विशेष (कम्म ४, ७१; ७८)
परित्तज :: देखो परिच्चय। संकृ. परित्तजिअ (स्वप्न ५१), परितेज्जि (अप)। (पिंग)।
परित्ता, परित्ताअ :: सक [परि+त्रै] रक्षण करना। परित्ताइ, परित्ताअसु, परिताहि, परित्तायह (प्राकृ ७०; पि ४७९; हे ४, २६८)।
परित्ताइ :: वि [परित्रायिन्] रक्षण-कर्ता (सुपा ४०५)।
परित्ताण :: न [परित्राण] रक्षण (से १४, ३५; सुपा ७१; आत्मानु ८; सण)।
परित्ताणंतय :: पुंन [परीतानन्तक] संख्या-विशेष (अणु २३४)।
परित्तास :: देखो परितास (कप्प)।
परित्तासंखेज्जय :: पुंन [परीतासंख्येयक] संख्या-विशेष (अणु २३४)।
परित्तीकय :: वि [परीतीकृत] संक्षिप्त किया हुआ, लघूकृत (णाया १, १ — पत्र ६६)।
परित्तीकर :: सक [परीती+कृ] लघु करना, छोटा करना। परित्तीकरेंति (भग)।
परित्थोम :: न [परिस्तोम] १ मस्तक। २ वि. वक्र; 'चितपरित्थोमपच्छदं' (औप)
परिथंभिअ :: वि [परिस्तम्भित] स्तब्ध किया हुआ (सुपा ४७५)।
परिथु :: सक [परि+स्तु] स्तुति करना। कवकृ. परिथुव्वंत (सुपा ६०७)।
परिथूर, परिथूल :: वि [परिस्थूर] विशेष स्थूल, खूब मोटा (धर्मसं ८३८; चेइय ८५४; श्रा ११)।
परिदा :: सक [परि+दा] देना। कर्म. परि- दिज्जसु (अप), (पिंग)।
परिदाह :: पुं [परिदाह] संताप (उत्त २, ८; भग)।
परिदिण्ण :: वि [परित्त] दिया हुआ (अभि १२५)।
परिदिद्ध :: वि [परिदिग्ध] उपलिप्त (सुख २, ३७)।
परिदिन्न :: देखो परिदिण्ण (सुपा २२)।
परिदेव :: अक [परि+देव] विलाप करना। परिदेवए (उत्त २, १३)। वकृ. परिदेवंत (पउम २६, ९२; ४५, ३६)।
परिदेवण :: न [परिदेवन] विलाप, 'तस्स कंदणसोयणपरिदेवणताडणाइं लिगाइं' (संबोध ४९; संवे ८)।
परिदेवणया :: स्त्री [परिदेवना] ऊपर देखो (ठा ४, १ — पत्र १८८)।
परिदेवि :: वि [परिदेविन्] विलाप करनेवाला (नाट — शकु १०१)।
परिदेविअ :: न [परिदेवित] विलाप (पाअ; से ११, ६६; सुर २, २४१)।
परिदो :: अ [परितस्] चारों ओर से (गा ४५४ अ)।
परिधम्म :: पुं [परिधर्म] छन्द-विशेष (पिंग)।
परिधवलिय :: वि [परिधवलित] खूब सफेद किया हुआ (सण)।
परिधाम :: पुंन [परिधामन्] स्थान (सुपा ४६३)।
परिधाविअ :: वि [परिधावित] दौड़ा हुआ (हम्मीर ३२)।
परिधाविर :: वि [परिधावितृ] दौड़नेवाला (सण)।
परिधूणिय :: वि [परिधूनित] अत्यन्त कँपाया हुआ (सम्मत्त १३९)।
परिधूसर :: वि [परिधूसर] धूसर वर्णवाला (वज्जा १२८; गउड)।
परिनट्ठ :: वि [परिनष्ट] विनष्ट (महा)।
परिनिक्खम :: देखो पडिनिक्खम। परिनिक्ख- मेइ (कप्प)।
परिनिट्ठिय :: देखो परिणिट्ठिअ (कप्प; रंभा ३०)।
परिनिय :: सक [परि+दृश्] देखना, अव- लोकन करना। वकृ. परिनियंत (सुपा ५२२)।
परिनिविट्ठ :: वि [परिनिविष्ट] ऊपर बैठा हुआ (सुपा २६९)।
परिनिविड :: वि [परिनिबिड] विशेष निबिड या घना (महा)।
परिनिव्वा :: देखो परिणिव्वा। परिनिव्वाइ (भग), परिनिव्वाइंति (कप्प)। भवि. परि- निव्वाइस्संति (भग)।
परिनिव्वाण :: देखो परिणिव्वाण (णाया १, ८; ठा १, १; भग; कप्प; पव १३८ टी)।
परिनिव्वुअ, परिनिव्वुड :: वि [परिनिवृत] १ मुक्त, मोक्ष को प्राप्त (ठा १, १; पउम २०, ८४; कप्प) २ शान्त, ठंढा (सूअ १, ३, ३, २१) ३ स्वस्थ (सुपा १८३)
परिन्न :: देखो परिण्ण (आचा)।
परिन्न° :: देखो परिण्ण° (आचा)।
परिन्ना :: देखो परिण्णा (उप ५२५)।
परिन्नाण :: देखो परिण्णाण (आत्ता)।
परिन्नाय :: देखो परिण्णाय=परिज्ञात (सुपा २६२)।
परिन्नाय :: वि [प्रतिज्ञात] जिसकी प्रतिज्ञा की गई हो वह) (पिंड २८१)।
परिपंडुर, परिपंडुल :: वि [परिपाण्डुर] विशेष पाण्डुर — धूसर वर्ण वाला (सुपा २५६; कप्पू; गउड; से १०, ३३)।
परिपंथग :: वि [प्रतिपथक] दुश्मन, विरोधी, प्रतिकूल (स १०५)।
परिपंथिअ, परिपंथिग :: वि [परिपन्थिक] ऊपर देखो (स ७४९; उप ९६९)।
परिपक्क :: वि [परिपक्व] पका हुआ (पव ४; भवि)।
परिपलिअ :: (अप) वि [परिपतित] गिरा हुआ (पिंग)।
परिपाग :: पुं [परिपाक] विपाक, फल; 'पुव्व- भवविहिअसुचरिअपरिपागो एस उदयसंपत्तो' (रयण ५२; आचा)।
परिपाडल :: वि [परिपाटल] सामान्य लाल रंगवाला, गुलाबी रंग का (गउड)।
परिपाडिअ :: वि [परिपाटित] फाड़ा हुआ, विदारित (दे ७, ९१)।
परिपाल :: सक [परि+पालय्] रक्षण करना। परिपालइ (भवि)। कृ. परि- पालणीअ (स्वप्न २६)। संकृ. परिपालिउं (सुपा ३४२)।
परिपालण :: न [परिपालन] रक्षण (कुप्र २२९; सुपा ३०८)।
परिपालिय :: वि [परिपालित] रक्षित (भवि)।
परिपासय :: [दे] देखो परिवास (दे) (पाअ)।
परिपिअ :: सक [परि+पा] पीना, पान करना। कवकृ. परिपिज्जंत (नाट — चैत ४०)।
परिपिंजर :: वि [परिपिञ्जर] विशेष पीत- रक्त वर्णवाला (गउड)।
परिपिंडिय :: वि [परिपिण्डित] १ एकत्र समुदित, इकट्ठा किया हुआ (पिंड ४९७) २ न. गुरु-वन्दन का एक दोष (धर्म २)
परिपिक्क :: देखो परिपक्क (पि १०१)।
परिपिज्जंत :: देखो परिपिअ।
परिपिट्टण :: न [परिपिट्टन] पीटना, ताड़न (वव १)।
परिपिरिया :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (भग ५, ४ — पत्र २१३)।
परिपिल्ल :: सक [परिप्र+ईरय्] प्रेरणा। परिपिल्लइ (सुपा ९४)।
परिपिहा :: सक [परिपि+धा] ढकना, आच्छादन करना। संकृ. परिपिहित्ता, परिपिहेत्ता (कप्प; पि ५८२)।
परिपीडिय :: वि [परिपीडित] जिसको पीड़ा पहुँचाई गई हो वह (भवि)।
परिपील :: सक [परि+पीडय्] १ पीड़ना। २ पीलना, दबाना। परिपीलेज्जा (पि २४०)। संकृ. परिपीलइत्ता, परिपीलिय, परिपीलियाण (भग; राज; आचा २, १, ८, १)
परिपीलिअ :: देखो परिपीडिअ (राज)।
परिपुंगल :: वि [दे] श्रेष्ठ, उत्तम (?); 'जंपइ भविसयतु परिपुंगलु होसइ रिद्धिविद्धि सुह- मंगलु' (भवि)।
परिपुच्छ :: सक [परि+प्रच्छ्] प्रश्न करना। परिपुच्छइ (भवि)।
परिपुच्छण :: न [परिप्रच्छन] प्रश्न, पृच्छा (भवि)।
परिपुच्छिअ, परिपुट्ठ :: वि [परिपृष्ट] पूछा हुआ, जिज्ञासित (गा ९२३; भवि; सुपा ३८७)।
परिपुण्ण, परिपुन्न :: वि [परिपूर्ण] संपूर्ण (भग; भवि)।
परिपुस :: सक [परि+स्पृश्] संस्पर्श करना। परिपुसइ (से ४, ५)।
परिपूज :: सक [परि+पूजय्] पूजता। परिपूजउ (अप) (पिंग)।
परिपूणग :: पुं [दे. परिपूर्णक] पक्षि-विशेष का नीड, सुघरी नामक पक्षी का घोंसला (विसे १४५४; १४६५)।
परिपूणग :: पुं [दे. परिपूर्णक] घी-दूध गालने का कपड़ा, छानना (णंदि ५४)।
परिपूय :: वि [परिपूत] छाना हुआ (कप्प; तंदु ३२)।
परिपूर :: सक [परि+पूरय्] पूर्ण करना, भरपूर करना। वकृ. परिपूरंत (पि ५३७)। संकृ. परिपूरिअ (नाट — मालवि १५)।
परिपूरिय :: वि [परिपूरित] भरपूर, व्याप्त (सुर २, ११)।
परिपेच्छ :: सक [परिप्र+ईक्ष] देखना। वकृ. परिपेच्छंत (अच्चु ६३)।
परिपेरंत :: पुं [परिपर्यन्त] प्रान्त भाग (णाया १, ४; १३; सुर १५, २०२)।
परिपेरिय :: वि [परिप्रेरित] जिसको प्रेरणा की गई हो वह (सुपा १८६)।
परिपेलव :: वि [परिपेलव] १ सुकर, सहज, सहल, आसान (से ३, १३) २ अदृढ़ । ३ निःसार। ४ वराक, दीन (राज)
परिपेल्लिअ :: देखो परिपेरिय (गा ५७७)।
परिपेस :: सक [परिप्र+इष्] भेजना। परिपेसइ (भवि)।
परिपेसण :: न [परिप्रेषण] भेजना (भवि)।
परिपेसल :: वि [परिपेशल] सुन्दर, मनोहर (सुपा १०९)।
परिपेसिय :: वि [परिप्रेषित] भेजा हुआ (भवि)।
परिपोस :: सक [परि+पोषय्] पुष्ट करना। कवकृ. परिपोसिज्जंत (राज)।
परिप्पमाण :: न [परिप्रमाण] परिमाण (भवि)।
परिप्पव :: सक [परि+प्लु] तैरना, गोता लगाना। वकृ. परिप्पवंत (से २, २८; १०, १३; पाअ)।
परिप्पुय :: वि [परिप्लुत] आप्लुत, व्याप्त (राज)।
परिप्पुया :: स्त्री [परिप्लुता] दीक्षा-विशेष (राज)।
परिप्फंद :: पुं [परिस्पन्द] १ रचना-विशेष, 'जयइ वायापरिप्फंदो' (गउड) २ समन्तात् चलन (चारु ४५) ३ चेष्टा, प्रयत्न; 'थोया रंभेवि विहिम्मि आयसग्गे व्व खंडणमुवेंति। स-परिप्फंदेर्ण चिय णीआ भमिदारुसयलं व' (गउड)
परिप्फुड :: वि [परिस्फुट] अत्यन्त स्पष्ट (से ११, ६०; सुर ४, २१४; भवि)।
परिप्फुड :: पुं [परिस्फोट] १ प्रस्फोटन, भेदन। २ वि. फोड़नेवाला, विभेदक; 'तमपडल- परिप्फुडं चेव तेअसा पज्जलंतरूवं' (कप्प)
परिप्फुर :: अक [परि+स्फुर्] चलना। परिप्फुरदि (शौ) (नाट — उत्तर २८)।
परिप्फुरण :: न [परिस्फुरण] हिलन, चलन (सण)।
परिप्फुरिअ :: वि [परिस्फुरित] स्फूर्ति-युक्त, 'वयणु परिप्फुरिउ' (भवि)।
परिफंस :: पुं [परिस्पर्श] स्पर्श, छूना (पि ७४; ३११)।
परिफंसण :: न [परिस्पर्शन] ऊपर देखो (उप ९८६ टी)।
परिफग्गु :: वि [परिफल्गु] निस्सार, असार (धर्मसं ६५३)।
परिफासिय :: वि [परिस्पृष्ट] व्याप्त (दस ५, १, ७२)।
परिफुड :: देखो परिप्फुड=परिस्फुट (पउम ३, ८; प्रासू ११९)।
परिफुडिय :: वि [परिस्फुटित] फूटा हुआ, भग्न (पउम ६८, १०)।
परिफुर :: देखो परिप्फुर। परिप्फुरइ (सण)। वकृ. परिफुरंत (सण)।
परिफुरिअ :: देखो परिप्फुरिय (सण)।
परिफुल्लिअ :: वि [परिफुल्लित] फूला हुआ, कुसुमित (पिंग)।
परिफुस :: सक [परि+स्पृश्] स्पर्श करना, छूना। वकृ. परिफुसंत (धर्मवि १२६; १३६)।
परिफुसिय :: वि [परिप्रोञ्छित] पोंछा हुआ (उप पृ ६४)।
परिफोसिय :: वि [परिस्पृष्ट] छूआ हुआ, 'उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयति' (णाया १, १६; उप ६४८ टी)।
परिबूहण :: न [परिबृंहण] वृद्धि, उपचय (सूअ २, २, ६)।
परिब्भंत :: वि [दे] १ निषिद्ध, निवारित। २ भीरु, डरपोक (दे ६, ७२)
परिब्भंसिद :: (शौ) नीचे देखो (मा ५०)।
परिब्भट्ठ :: वि [परिभ्रष्ट] पतित, स्खलित (णाया १, १३; सुपा ५०६; अभि १४४)।
परिब्भम :: सक [परि+भ्रम्] पर्यटन करना, भटकना। परिब्भमइ (प्राकृ ७६; भवि; उव)। वकृ. परिब्भमंत (सुर २, ८७; ३, ४; ४, ७१; भवि)।
परिब्भमण :: न [परिभ्रमण] पर्यटन (महा)।
परिब्भमिअ :: वि [परिभ्रान्त] भटका हुआ (वै ६३; सण; भवि)।
परिब्भीअ :: वि [परिभीत] भय-प्राप्त (पउम ५३, ३९)।
परिब्भूअ :: वि [परिभूत] पराभव-प्राप्त (सुपा २५८)।
परिभग्ग :: वि [परिभन्न] भाँगा हुआ (आत्मानु १४)।
परिभट्ठ :: देखो परिब्भट्ठ (महा; पि ८५)।
परिभणिर :: वि [परि+भणितृ] कहनेवाला (सण)।
परिभम :: देखो परिब्भम। परिभमइ (महा)। वकृ. परिभमंत, परिभममाण (महा; सण; भवि; संवेग १४)। संकृ. परि भमिऊणं (पि ५८५)। हेकृ. परिभमिउं (महा)।
परिभमिअ :: देखो परिब्भमिअ (भवि)।
परिभमिर :: वि [परिभ्रमितृ] पर्यटन करनेवाला (सुपा २६९)।
परिभव :: सक [परि+भू] पराजय करना, तिरस्कारना। परिभवइ (उव)। कर्म. परि- भविज्जामि (मोह १०८)। कृ. परिभवणिज्ज (णाया १, ३)।
परिभव :: पुं [परिभव] पराभव, तिरस्कार (औप; स्वप्न १०; प्रासू १७३)।
परिभवंत :: पुं [परिभवत्] पार्श्वस्थ साधु, शिथिलाचारी मुनि (वव १)।
परिभवण :: न [परिभवन] ऊपर देखो (राज)।
परिभवणा :: स्त्री [परिभवन] ऊपर देखो (औप)।
परिभविअ :: वि [परिभूत] अभिभूत (धर्मवि ३९)।
परिभाअ :: सक [परि+भाजय्] बाँटना, विभाग करना। परिभाएइ (कप्प)। वकु. परिभाइंत, परिभायंत, परिभाएमाण (आचा २, ११, १८; णाया १, ७ — पत्र ११७; १, १; कप्प)। कवकृ. परिभाइज्ज- माण (राज)। संकृ. परिभाइत्ता, परि- भायइत्ता (कप्प; औप)। हेकृ. परिभाएउं (पि ५७३)।
परिभाइय :: वि [परिभाजित] विभक्त किया हुआ (आचा २, २, ३, २)।
परिभायंत :: देखो परिभाअ।
परिभायण :: न [परिभाजन] बँटवा देना (पिंड १६३)।
परिभाव :: सक [परि+भावय्] १ पर्या- लोचन करना। २ उन्नत करना। परिभावइ (महा)। संकृ. परिभाविऊण (महा)। कृ. परिभावणीय (राज)
परिभावइत्तु :: वि [परिभावयितृ] प्रभावक, उन्नति-कर्ता (ठा ४, ४ — पत्र २६५)।
परिभावि :: वि [परिभाविन्] परिवभ करनेवाला (अभि ७१)।
परिभास :: सक [परि+भाष्] १ प्रति- पादन करना, कहना। २ निन्दा करना। परि- भासइ, परिभासंति, परिभासेइ, परिभासए (उत्त १८, २०; सूअ १, ३, ३, ८; २, ७, ३६; विसे १४४३)। वकृ. परिभास- माण (पउम ५३, ९७)
परिभासा :: स्त्री [परिभाषा] १ संकेत (संबोध ५८; भास १९) २ तिरस्कार। ३ चूर्णि, टीका-विशेष (राज)
परिभासि :: वि [परिभाषिन्] परिभव-कर्ता, 'राइणियपरिभासी' (सम ३७)।
परिभासिय :: वि [परिभाषित] प्रतिपादित (सूअनि ८८; भास २१)।
परिभिंद :: सक [परि+भिद्] भेदन करना। कवकृ. परिभिज्जमाण (उप पृ ६७)।
परिभीय :: वि [परिभीत] डरा हुआ (उव)।
परिभुंज :: सक [परि+भुञ्ज्] १ खाना, भोजन करना। सेवन करना, सेवना। ३ बारबार उपभोग में लेना। कर्म. परिभुंजिज्जइ परिभुज्जइ (पि ५४६; गच्छ २, ५१)। वकृ. परिभुंजंत, परिभुंजमाण (निचू १; णाया १, १; कप्प)। कवकृ. परिभुज्जमाण (औप; उप पृ ६७; णाया १, १ — पत्र ३७)। हेकृ. परिभोत्तु (दस ५, १)। कृ. परिभोग, परिभोत्तव्व (पिंड ३४; कस)
परिभुंजण :: न [परिभोजन] परिभोग (उप १३४ टी।
परिभुंजणया :: स्त्री [परिभोजना] ऊपर देखो (सम ४४)।
परिभुत्त :: वि [परिभुक्त] जिसका परिभोग किया गया हो वह (सुपा ३००)।
परिभुत्त, परिभुय :: वि [परिवृत] वेष्टित, परिकरित, लपेटा हुआ, घेरा हुआ (आचा २, ११, ३; २, ११, १६)।
परिभूअ :: वि [परिभूत] अभिभूत, तिरस्कृत (सूअ २, ७, २; सुर १६, १२९; चेइय ७१४; महा)।
परिभोअ :: देखो परिभोग (अभि १११)।
परिभोइ :: वि [परिभोगिन्] परिभोग करनेवाला (पि ४०५; नाट — शकु ३५)।
परिभोग :: पुं [परिभोग] १ बारबार भोग (ठा ५, ३ टी; आव ६) २ जिसका बार- बार भोग किया जाय वह वस्र आदि (औप) ३ जिसका एक ही बार भोग किया जाय — जो एक ही बार काम में लाया जाया वह — आहार, पान आदि (उवा) ४ बाह्य वस्तुओं का भोग (आव ६) ५ आसेवन (पण्ह १, ३)
परिभोग, परिभोत्तव्व, परिभोत्तु :: देखो परिभुंज।
परिमइल :: सक [परि+मृज्] मार्जन करना (संक्षि ३५)।
परिमउअ :: वि [परिमृदुक] १ विशेष कोमल। २ अत्यन्त सुकर, सरल (धर्मसं ७९१); ७९२)। स्त्री. °उई (विसे ११९९)
परिमउलिअ :: वि [परिमुकुलित] चारों ओर से संकुचित (सण)।
परिमंडण :: न [परिमण्डन] अलंकरण, विभूषा (उत्त १६, ९)।
परिमंडल :: वि [परिमण्डल] वृत्त, गोलाकार (सूअ २, १, १५; उत्त ३६, २२; स ३१२; पाअ; औप; पण्ण १; ठा १, १)।
परिमंडिय :: वि [परिमण्डित] विभूषित, सुशोभित (कप्प; औप; सुर ३, १२)।
परिमंथर :: वि [परिमन्थर] मन्द, धीमा (गउड; स ७१९)।
परिमंथिअ :: वि [परिमथित] अत्यन्त आलो- डित (सम्मत्त २२६)।
परिमंद :: वि [परिमन्द] मन्द, अशक्त (सुर ४, २४०)।
परिमग्ग :: सक [परि+मार्गय्] १ अन्वे- षण करना, खोजना। २ माँगना, प्रार्थना करना। वकृ. परिमग्गमाण (नाट — विक्र ३०)। संकृ. परिमग्गेउं (महा)
परिमग्गि :: वि [परिमार्गिन्] खोज करनेवाला (गा २९१)।
परिमज्जिर :: वि [परिमज्जितृ] डूबनेवाला (सुपा ९)।
परिमट्ठ :: वि [परिमृष्ट] १ घिसा हुआ (से ६, २; ८, ४३) २ आस्फालित; 'परिमट्ठ- मेरुसिहरो' (से ४, ३७) ३ मार्जित, शोधित (कप्प)
परिमद्द :: सक [परि+मर्दय्] मर्दन करना। वकृ. परिमद्दयंत (सुर १२, १७२)।
परिमद्दण :: न [परिमर्दन] मर्दन, मालिश (कप्प; औप)।
परिमद्दा :: स्त्री [परिमर्दा] संबाधन, दबाना, पैचप्पी — पैर दबाना आदि (निचू ३)।
परिमन्न :: सक [परि+मन्] आदर करना। परिमन्नइ (भवि)।
परिमल :: सक [परि+मल्, मृद्] १ घिसना। २ मर्दन करना; 'जो मरणयालि परिमलइ हत्थु' (कुप्र ४५२), 'णलिणीसु भमसि परिमलसि सत्तलं मालइंपि णो मुअसि। तरलत्तणं तुह अहो महुअर जइ पाडला हरइ ।।' (गा ६१९)
परिमल :: पुं [परिमल] १ कुंकुम-चन्दनादि का मर्दन (से १, ६४) २ सुगन्ध (कुमा; पाअ)
परिमलण :: न [परिमलन] १ परिमर्दन। २ विचार (गा ४२८; गउड)
परिमलिअ :: वि [परिमलित, परिमृदित] जिसका मर्दन किया गया हो वह (गा ६३७; से ७, ६२; महा, वज्जा ११८)।
परिमहिय :: वि [परिमहित] पूजित (पउम १, १)।
परिमा :: (अप) देखो पडिमा (भवि)।
परिमाइ :: स्त्री [परिमाति] परिमाण, 'जिण- सासणि छज्जीवदयाइ व पंडियमरणि सुगइ- परिमाइ व' (भवि)।
परिमाण :: न [परिमाण] मान, माप, नाप (औप, स्वप्न ४२; प्रासू ८७)।
परिमास :: पुं [परिमर्श] स्पर्श (णाया १, ९; गउड; से ६, ४८; ९, ७६)।
परिमास :: पुं [दे] नौका का काष्ठ-विशेष (णाया १, ९ — पत्र १५७)।
परिमासि :: वि [परिमर्शिन्] स्पर्शं करनेवाला (पि ६२)।
परिमिज्ज :: नीचे देखो।
परिमिण :: सक [परि + मा] नापना, तौलना। वकृ. परिमिणंति (सुपा ७७)। कृ. परिमिज्ज, परिमेय (पच्च ५९; पउम ४९, २२)।
परिमिअ :: वि [परिमित] परिमाण-युक्त (कप्प; ठा ५, १; औप; पणह २, १)।
परिमिअ :: वि [परिवृत्त] परिकरित, वेष्टित (पउम १०१, भवि)।
परिमिला :: अक [परि + म्लै] म्लान होना। परिमिलादि (शौ) (पि १३६; ४७९)।
परिमिलाण :: वि [परिम्लान] म्लान, विच्छाय, निस्तेज (महा)।
परिमिल्लिर :: वि [परिमोक्तृ] परित्याग करनेवाला (सण)।
परिमुअ :: सक [परि + मुच्] परित्याग करना। परिमुअइ (सण)।
परिमुक्क :: वि [परिमुक्त] परित्यक्त (सुपा २५२; महा; सण)।
परिमुट्ठ :: वि [परिमृष्ट] स्पृष्ट (मा ४४)।
परिमुण :: सक [परि + ज्ञा] जानना। परि- मुणसि (वज्जा १०४)।
परिमुणिअ :: वि [परिज्ञान] जाना हुआ (पउम १६, ६१; सण)।
परिमुस :: सक [परि + मुष्] चोरी करना। वकृ. परिमुसंत (श्रा २७)। संकृ. परिमु- सिऊण (कर्पूर २९)।
परमुस :: सक [परि + मृश्] स्पर्शं करना, छूना। परिमुसइ (भवि)।
परिमुसण :: न [परिमोषण] १ चोरी। २ वञ्चना, ठगाई (गा २६)
परिमुसिअ :: वि [परिमृष्ट] स्पृष्ट (महानि ४; भवि)।
परिमूसण :: देखो परिमुसण (गा २६)।
परिमेय :: देखो परिमिण।
परिमोक्कल :: वि [दे. परिमुक्त] स्वैर, स्वच्छन्दी (भवि)।
परिमोक्ख :: पुं [परिमोक्ष्] १ मोक्ष, मुक्ति (आचा) २ परित्याग (सूअ १, १२, १०)
परिमोय :: सक [परि + मोचय्] छोड़ाना, छुटकारा कराना। परिमोयइ (सूअ २, १, ३९)।
परिमोयण :: न [परिमोचन] मोक्ष, छुटकारा (सुर ४, २५०; औप)।
परिमोस :: पुं [परिमोष] चोरी (महा)।
परियंच :: सक [परि + अञ्च्] १ पास में जाना। २ स्पर्श करना। ३ विभूषित करना। संकृ. परिअंचिवि (अप) (भवि)
परियंट :: सक [परि + अर्च्] पूजना। संकृ. परिअंचिवि (अप) (भवि)।
परियंचण :: न [पर्यञ्चन] स्पर्शं करना (सुख ३, १)। देखो पलियंचण।
परियंचिअ :: वि [पर्यञ्चित] विभूषित, 'पव- रारामगामपरियंचिउ' (भवि)।
परियंचिअ :: वि [पर्यचित] पूजित (भवि)।
परियंद :: सक [परि + वन्द्] वन्दन करना, स्तुति करना। कवकृ. परियंदिज्जमाण (औप)।
परियंधण :: न [परिवन्दन] वन्दन, स्तुति (आचा)।
परियच्छ :: सक [दृश्] १ देखना। २ जानना। परियच्छइ (भवि; उव), परियच्छंति (उव)
परियच्छिय :: देखो परिकच्छिय (राज)।
परियच्छी :: स्त्री [परिकक्षी] परदा (धर्मंरत्न वृ° गा° ३१ पत्र २५, २)।
परियत्थि :: स्त्री [पर्यस्ति] देखो पल्हत्थिया, 'जत्तो वायइ पवणो परियत्थी दिज्जए तत्तो' (चेइय १३०)।
परियप्प :: सक [परि + कल्पय्] कल्पना करना, चिन्तन करना। वकृ. परियप्पमाण (आचा १, २, १, २)।
परियप्पण :: न [परिकल्पन] कल्पना (धर्मंसं १२०८)।
पारयय :: पुं [परिचय] जान-पहचान, विशेष रूप से ज्ञान (गउड; से १५, ६६; अभि १३१)।
परियय :: वि [परिगत] अन्वित, युक्त (स २२)।
परियाइ :: सक [पर्या + दा] १ समन्ताद् ग्रहण करना। २ विभाग से ग्रहण करना। परियाइयह (सूअ २, १, ३७)। संकृ. परियाइत्ता (ठा ७)
परियाइअ :: वि [पर्यात्त] संपूर्णं रूप से गृहीत (ठा २, ३ — पत्र ६३)।
परियाइअ :: देखो परियाईय (ठा २, ३ — पत्र ६३)।
परियाइणया :: स्त्री [पर्यादान] समन्ताद् ग्रहण (पणण ३४ — पत्र ७७४)।
परियाइत्त :: वि [पर्याप्त] काफी (राज)।
परियाईय :: वि [पर्यायातीत] पर्याय को अतिक्रान्त (राज)।
परियाग :: देखो पज्जाय (औप; उवा; महा; कप्प)।
परियागय :: वि [पर्यागत] १ पर्याय से आगत (उत्त ५, २१, सुख ५, २१; णाया १, ३) २ सर्वथा निष्पन्न (णाया १, ७ — पत्र ११६)
परियाण :: सक [परि + ज्ञा] जानना। परियाणइ, परियाणाइ (पि १७०; उवा)।
परियाण :: न [परित्राण] रक्षण (सूअ १, १, २, ६; ७)।
परियाण :: न [परिदान] १ विनिमय, बदला, लेनदेन। २ समन्ताद् दान (भवि)
परियाण :: न [परियान] १ गमन (ठा १०) २ वाहन, यान (ठा ८) ३ अवतरण (ठा ३, ३)
परियाणण :: न [परिज्ञान] जानकारी (स १३)।
परियाणिअ :: वि [परित्राणित] परित्राण- युक्त (सूअ १, १, २, ७)।
परियाणिअ :: वि [परिज्ञान] जाना हुआ, विदित (पउम ८८, ३३; रत्न १८; भवि)।
परियाणिअ :: पुंन [परियानिक] १ यान, वाहन। २ विमान-विशेष (ठा ८)
परियादि :: देखो परियाइ। परियादियति (कप्प)। संकृ. परियादित्ता (कप्प)।
परियाय :: देखो पज्जाय (ठा ४, ४; सुपा १९; विसे २७९१; औप; आचा; उवा)। ९ अभिप्राय, मत; 'सएहिं परियाएहिं लोयं बूया कडेति यं' (सूअ १, १, ३, ९) १० प्रव्रज्या, दीक्षा (ठा ३, २ — पत्र १२९) ११ ब्रह्मचर्य (आव ४) १२ जिन-देव के केवल-ज्ञान की उत्पत्ति का समय (णाया १, ८)। °थेर पुं [°स्थावर] दीक्षा की अपेक्षा से वृद्ध (ठा ३, २)
परियायंतकरभूमि :: स्त्री [पर्यायान्तबृद्- भूमि] जिन-देव के केवल ज्ञान की उत्पत्ति के समय से लेकर तदनन्तर सर्वं प्रथम मुक्ति पानेवाले के बीच के समय का आन्तर (णाया १, ८ — पत्र १५४)।
परियार :: सक [परि + चारय्] १ सेवा- श्रूश्रूषा करना। २ संभोग करना, विषय- सेवन करना। परियारेइ (ठा ३, १; भग)। वकृ. परियारेमाण (राज)। कवकृ. परि- यारिज्जमाण (ठा १०)
परियार :: पुं [परिचार] मैथुन, विषय-सेवन (पणण ३४ — पत्र ७८०; ठा ३, १)।
परियारग :: वि [परिचारक] १ विषय-सेवन करनेवाला (पणण २; ठा २, ४) २ सेवा- श्रुश्रूषा करनेवाला (विपा १, १)
परियारण :: न [परिचारण] १ सेवा-श्रुश्रूषा (सुज्ज १८ — पत्र २६५) २ काम-भोग (पणण ३४)
परियारणया, परियारणा :: स्त्री [परिचारणा] ऊपर देखो (पणण ३४; ठा ५, १)। °सद्द पुं [°शब्द] विषय-सेवन के समय का स्त्री का शब्द (निचू १)।
परियाल :: देखो परिवार (राय ५४)।
परियालोयण :: न [पर्यालोचन] विचार, चिन्तन (सुपा ५००)।
परियाव :: देखो परिताव = परिताप (आचा; ओघ १५४)।
परियावज्ज :: अक [पर्या + पद्] १ पीडित होना। २ रूपान्तर में परिणत होना। ३ सक. सेवना। परियाबज्जइ, परियावज्जंति (कप्प; आचा)
परियावज्जण :: न [पर्यापादन] रूपान्तर- प्राप्ति (पिंड २८०)।
परियावज्जणा :: स्त्री [पर्यापादन] आसेवन (ठा ३, ४ — पत्र १७४)।
परियावण :: देखो परितावण (सूअ २, २, ६२)।
परियावणा :: स्त्री [परितापना] परिताप, संताप (औप)।
परियावणिया :: स्त्री [परियापनिका] कालान्तर तक अवस्थान, स्थिति (णाया १, १४ — पत्र १८९)।
परियावण्ण, परियावन्न :: वि [पर्यापन्न] स्थित, अव- स्थित (आचा २, १, ११, ७; ८; भग ३४, २; कस)।
परियावन्न :: वि [पर्यापन्न] लब्ध, प्राप्त (आचा २, १, ९, ६)।
परियावस :: सक [पर्या + वासय्] आवास कराना। परियावसे (उत्त १८, ५४; सुख १८, ५४)।
परियावसह :: पुं [पर्यावसथ] मठ, संन्यासी का स्थान (आचा २, १, ८, २)।
परियाविय :: वि [परितापित] पीड़ित (पडि)।
परियासिय :: वि [परिवासित] बासी रखा हुआ (कस)।
परिरंज :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। परिरंजइ (प्राकृ ७४)।
परिरंभ :: सक [परि + रभ्] आलिंगन करना। परिरंभस्सु (शौ) (पि ४६७)। संकृ. परिरंभिउं (कुप्र २४२)।
परिरंभण :: न [परिरम्भन] आलिङ्गन (पाअ; गा ८३५; सुपा २; ३९६)।
परिरक्ख :: सक [परि + रक्ष्] परिपालन करना। परिरक्खइ (भवि)। कृ. परिक्ख- णीअ (सिक्खा ३१)।
परिक्खण :: न [परिरक्षण] परिपालन (गा ६०१; भवि)।
परिरक्खा :: स्त्री [परिरक्षा] ऊपर देखो (पउम ५९, ५३; धर्मंवि ५३; गउड)।
परिरक्खिय :: वि [परिरक्षित] परिपालित (भवि)।
परिरद्ध :: वि [परिरब्ध] आलिङ्गित (गा ३९८)।
परिरय :: पुं [परिरय] १ परिधि, परिक्षेप (उत्त ३६, ५९; पउम ५९, ६१; पव १५८; औप) २ पर्याय, समानार्थंक शब्द; 'एगपरिरय त्ति वा एगपज्जाय त्ति वा एगणामभेद त्ति वा एगट्ठा' (आचू १) ३ परिभ्रमण, फिर कर जाना; 'अहवा थेरो, तस्स य अंतरा ड्डा डोंगरा वा, जे समत्था ते उज्जुएण वच्चंति, जो असमत्थो सो परिरएणं — भमा- डेण वच्चइ' (ओधमा २० टी)
परिराय :: अक [परि + राज्] विराजना, शोभना। वकृ. परिरायमाण (कप्प)।
परिरिंख :: सक [परि + रिङ्ख्] चलना, फरकना, हिलना। वकृ. परिरिंखमाण (उप ५३० टी)।
परिरुंभ :: सक [परि + रुध्] रोकना, अटकाना। कर्मं. परिरुज्झइ (गउड ४३४)। संकृ. परिरंभिऊण (उवकु १)।
परिलंघि :: वि [परिलङ्घिन्] लंघन करनेवाला (गउड)।
परिलंवि :: वि [परिलम्बिन्] लटकनेवाला (गउड)।
परिलंभिअ :: वि [परिलम्भित] प्राप्त कराया हुआ, 'सो गयवरो मुणीणं (मुणीहिं) वयामि परिलंभिओ पसन्नप्पा' (पउम ८४, १)।
परिलग्ग :: वि [परिलग्न] लगा हुआ, व्यापृत (उप ३५६ टी)।
परिलिअ :: वि [दे] लीन, तन्मय (दे ६, २४)।
परिली :: अक [परि + ली] लीन होना। वकृ. परिलिंत, परिलेंत, परिलीयमाण (णाया १, १ — पत्र ५; औप; से ६, ४८; पणह १, ३; राय)।
परिली :: स्त्री [दे] आतोद्य-विशेष, एक तरह का बाजा (राज)।
परिलीण :: वि [परिलीन] निलीन (पाअ)।
परिलुंप :: सक [परि + लुप्] लुप्त करना, अदृष्ट करना। कवकृ. परिलुप्पमाण (महा)।
परिलेंत :: देखो परिली = परि + ली।
परिलोयण :: न [परिलोचन, परिलोकन] अवलोकन, निरीक्षण। २ वि. देखनेवाला; 'जुगंतरपरिलोयणाए दिट्ठीए' (उवा)
परिल्ल :: देखो पर = पर (से ९, १७)।
परिल्लवास :: वि [दे] अज्ञात-गति (दे ६, ३३)।
परिल्ली :: देखो परिली = दे (राय ४६)।
परिल्ली :: देखो परिली। वकृ. परिल्लिंत, परिल्लेंत (औप)।
परिल्हस :: अक [परि + स्रंस्] गिर पड़ना, सरक जाना। परिल्हसइ (हे ४, १९७)।
परिवइत्तु :: वि [परिव्रजितृ] गमन करने में समर्थं (ठा ४, ४ — पत्र २७१)।
परिवंकड :: (अप) वि [परिवक्र] सर्वंथा टेढ़ा (भवि)।
परिवंच :: सक [परिवञ्चय्] ठगना। संकृ. परिवंचिऊण (सम्मत्त ११८)।
परिवंचिअ :: वि [परिवञ्चित] जो ठगा गया हो (दे ४, १८)।
परिवंथि :: वि [परिपन्थिन्] विरोधी, दुश्मन (पि ४०५; नाट — विक्र ७)।
परिवंदण :: न [परिवन्दन] स्तुति, प्रशंसा (आचा)।
परिवंदिय :: वि [परिवन्दित] स्तुत, पूजित (पउम १, ६)।
परिवक्खिय :: देखो परिवच्छिय (औप)।
परिवग्ग :: पुं [परिवर्ग] परिजन-वर्गं (पउम २३, २४)।
परिवच्छ :: न [दे] अवधारण, निश्चय; 'साम- णत्थ परिवच्छे' (कल्पगा° २१४२)।
परिवच्छिय :: देखो परिकच्छिय; 'उज्जलनेवत्थ- हव्वपरिवच्छियं' (णाया १, १६ टी — पत्र २२१; औप)। देखो परिवत्थिय।
परिवज्ज :: सक [प्रति + पद्] स्वीकार करना। परिवज्जइ (भवि)।
परिवज्ज :: सक [परि + वर्जय्] परिहार करना, परित्याग करना। परिवज्जइ (भवि)। संकृ. परिवज्जिय, परिवज्जियाण (आचा, पि ५९२)।
परिवज्जण :: न [परिवर्जन] परित्याग (धर्मंसं ११२०)।
परिवज्जणा :: स्त्री [परिवर्जना] ऊपर देखो (उव)।
परिवज्जिय :: वि [परिवर्जित] परित्यक्त (उवा; भग; भवि)।
परिवट्ट :: देखो परिवत्त = परि + वर्तय्। परि- वट्टइ (भवि)। संकृ. परिवट्टिवि (अप) (भवि)।
परिवट्टण :: न [परिवर्तन] आवर्तन, आवृत्ति; 'आगमपरिवट्टणं' (संबोध ३९)।
परिवट्टि :: देखो परिवत्ति (मा ५२)।
परिवट्टिय :: देखो परिवत्तिय (भवि)।
परिवट्टुल :: वि [परिवर्तुल] गोलाकार (स ६८)।
परिवड :: अक [परि + पत्] पड़ना। वकृ. परिवडंत, परिवडमाण (पंच ५, ६२; ६७; उप पृ ३)।
परिवडिअ :: वि [परिपतित] गिरा हुआ (सुपा ३६०; वसु; यति २३; हम्मीर ३०; पंचा ३, २४)।
परिवडढ :: अक [परि + वृध्] बढ़ना। परिवड्ढइ (महा; भवि)। भवि. परिवड्ढिस्सइ (औप)। कृ. परिवड्ढंत, परिवड्ढमाण, परिवड्ढेमाण (गा ३४९; णाया १, १३; महा; णाया १, १०)।
परिवड्ढण :: न [परिवर्धन] परिवृद्धि, बढ़ाव (गउड; धर्मंसं ८७५)।
परिवडि्ढ :: स्त्री [परिवृद्धि] ऊपर देखो (से ५, २)।
परिवडि्ढअ :: देखो परिअडि्ढअ = परिबर्धिन् (औप १६ टि)।
परिवडि्ढअ :: वि [परिवर्धित] बढ़ाया हुआ (गा १४२; ४३१)।
परिवड्ढेमाण :: देखो परिवड्ढ।
परिवण्ण :: सक [परि + वर्णय्] वर्णन करना। कृ. परिवण्णेअव्व (भग)।
परिवण्णिअ :: वि [परिवर्णित] जिसका वर्णंन किया गया हो वह (आत्म ७)।
परिवत्त :: देखो परिअट्ट = परि + वृत्। परि- त्तई (उत्त ३३, १)। परिवत्तसु (गा ८०७)। वकृ. परिवत्तंत (गा २८३)।
परिवत्त :: देखो परिअट्ट = परि + वर्तंय्। वकृ. परिवर्त्तेंत, परिवत्तयंत (स ९; सूअ १, ५, १, १५)। संकृ. परिवत्तिऊण (काल)।
परिवत्त :: देखो परिअट्ट = परिवर्तं; 'विहियरूव- परिवत्तो' (कुप्र १३४)। २ संचरण, भ्रमण (राज)।
परिवत्त :: देखो परिअत्त = परिवृत्त (काल)।
परिवत्तण :: देखो पडिअत्तण (पि २९८; नाट — विक्र ८३)।
परिवत्तर :: (अप) वि [परिपक्त्रिम] पकाया गया, गरम किया गया; 'अंगु मलेवि सुअंधा- मोएं निमज्जिउ परिवत्तरतोएं' (भवि)।
परिवत्ति :: वि [परिवर्तिन्] बदलानेवाला, 'रूवपरिवत्तिणी विज्जा' (कुप्र १२६; महा)।
परिवत्तिय :: देखो परिअट्टिय (सुपा २९२)।
परिवत्थ :: न [परिवस्त्र] वस्त्र, कपड़ा (भवि)।
परिवत्थिय :: वि [परिवस्त्रिन] आच्छादित, 'उज्जलनेवच्छहत्थ (? व्व) परिवत्थियं' (औप)। देखो परिवच्छिय।
परिवद्ध :: देखो परिवड्ढ। वकृ. परिवद्धमाण (राज)।
परिवन्न :: देखो पडिवन्न (उप १३९ टी)।
परिवय :: अक [परि + वत्] तिर्यंक् गिरना। परिवयंति (राय १०१)।
परिवय :: सक [परि + वद्] निन्दा करना। परिवएज्जा, परिवयंति (आचा)। वकृ. परिवयंत (पणह १, ३)।
परिवरिअ :: वि [परिवृत] परिकरित, वेष्टित (सुपा १२५)।
परिवलइअ :: वि [परिवलयित] वेष्टित (सुख १०, १)।
परिवस :: अक [परि + वस्] बसना, रहना। परिवसइ, परिवसंति (भग; महा; पि ४१७)।
परिवसण :: न [परिवसन] आवास (राज)।
परिवसणा :: स्त्री [परिवसना] पर्युंषणा-पर्वं (निचू १०)।
परिवसिअ :: वि [पर्युषित] रहा हुआ, वास किया हुआ (सण)।
परिवह :: सक [परि + वह्] वहन करना, ढोना। २ अक चालू रहना। परिवहइ (कप्प)। परिवहंति (गउड)। वकृ. परिवहंत (पिंड ३५६)
परिवहण :: न [परिवहन] ढोना (राज)।
परिवा :: अक [परि + वा] सूखना। परिवायइ (गउड)।
परिवाइ :: वि [परिवादिन्] निन्दा करनेवाला (उव)।
परिवाइय :: वि [परिवाचित] पढ़ा हुआ (पउम ३७, १५)।
परिवाई :: स्त्री [परिवाद] कलंक-वार्ता, 'दई- यस्स ताव वता जणपरिवाई लहुं पत्ता' (पउम ९५, ४१)।
परिवाड :: सक [घटय्] १ घटाना, संगत करना। २ रचना, निर्माण करना। परिवाडेइ (हे ४, ५०)
परिवाडल :: देखो परिपाडल (गउड)।
परिवाडि :: स्त्री [परिपाटि] १ पद्धति, रिति (विसे १०८५) २ पंक्ति, श्रेणी (उत्त १, ३२) ३ क्रम. परंपरा (संवे ९) ४ सू्त्रार्थ- वाचना, अध्यापन; 'थिरपरिवाडी गहियवक्को' (धर्मंवि ३६); 'एगत्थेहि वत्तिं न करे परि- वाडिदाणमवि तासिं' (कुलक ११)
परिवाडिअ :: वि [घटित] रचित (कुमा)।
परिवाडी :: देखो परिवाडि; 'परिवाडीआगयं हवइ रज्जं' (पउम ३१, १०६; पाअ)।
परिवाद :: पुं [परिवाद] निन्दा, दोष-कीर्तंन (धर्मंसं ९५४)।
परिवादिणी :: स्त्री [परिवादिनी] वीणा-विशेष (राज)।
परिवाय :: देखो परिवाद (कप्प; औप; पउम ९५, ६०; णाया १, १, स ३२; आत्महि १५)।
परिवायग, परिवायव :: पुं [परिव्राजक] संन्यासो, बावा, (सण; सुर १५, ५)।
परिवायणी :: स्त्री [परिवादनी] सात ताँतवाली वीणा (राय ४६)।
परिवार :: सक [परि + वारय्] १ वेष्टन करना। २ कुटुम्ब करना। वकृ. परिवारयंत (उत्त १३, १४)। संकृ. परिवारिया (सूअ १, ३, २, २)
परिवार :: पुं [परिवार] गृह-लोक, घर के मनुष्य (औप; महा; कुमा)। २ न. म्यान (पाअ)
परिवारण :: न [परिवारण] १ निराकरण (पणह १, १ — पत्र १९) २ आच्छादन, ठकना (दे १, ८६)
परिवारिअ :: वि [दे] घटित, रटित (दे ६, ३०)।
परिवारिअ :: वि [परिवारित] १ परिवार- संपन्न। २ वेष्टित; 'जहा से उड्डवई चंदे नक्खतपरिवारिए' (उत्त ११, २५; काल)
परिवाल :: देखो परिआलि। परिवालइ (दे ६, ३५ टी)।
परिवाल :: सक [परि + पालय्] पालन करना। परिवालइ, परिकालेइ (भवि; महा)। वकृ. परिवालयंत (सुर १, १७१)। संकृ. परिवालिय (राज)।
परिवाल :: देखो परिवार = परिवार (णाया १, ८ — पत्र १३१)।
परिवाविय :: वि [परिवापित] उखाड़ कर फिर से बोया हुआ (ठा ४, ४)।
परिवाविया :: स्त्री [परिवापिता] दीक्षा-विशेष फिर से महाव्रतों का आरोपण (ठा ४, ४)।
परिवास :: पुं [दे] खेत में सोनेवाला पुरुष (दे ६, २६)।
परिवास :: न [परिवासस्] वस्त्र, कपड़ा; 'जंवोरुयगुज्झंतरपासइँ सुनियत्थइँ मि झीण- परिवासइँ' (भवि)।
परिवासि :: वि [परिवासिन्] बसनेवाला (सुपा ४२)।
परिवासिय :: वि [परिवासित] सुवासित, सुगन्ध-युक्त; 'मयपरिमलपरिवासियदूरें' (भवि)।
परिवाह :: सक [परि + वाहय्] १ वहन कराना। २ अश्वादि खेलाना, अश्वादि-क्रीड़ा करना; 'विवरीयसिक्खतुरयं परिवाहइ वाहियालीए' (महा)
परिवाह :: पुं [परिवाह] जल का उछाल, बहाव; 'भरिउच्चरंतपसरिअपिअलसंभरणपिसुणो वराईए। परिवाहो विअ दुक्खस्स वहइ णअणट्ठिओ बाहो' (गा ३७७)।
परिवाह :: पुं [दे] दुर्विनय, अविनय (दे ६, २३)।
परिवाहण :: न [परिवाहन] अश्वादि-खेलन; 'आसपरिवाहणनिमित्तं गएण' (स ८१; महा)।
परिविआल :: सक [परि + विश्] बेष्टन करना। परिविआलइ (प्राकृ ७५; धात्वा १४४)।
परिविचिट्ठ :: अक [परिवि + स्था] १ उत्पन्न होना। २ रहना। परिचिचिट्ठइ (आचा १, ४, २, २; पि ४८३)
परिविच्छिय :: वि [परिविक्षत] सर्वंथा छिन्न- हत (सूअ १, ३, १, २)।
परिविट्ठ :: वि [परिविष्ट] परोसा हुआ (स १८९; सुपा ६२३)।
परिवित्तस :: अक [परिवि + त्रस्] डरना। परिवित्तसंति; 'परिवित्तसेज्जा (आचा १, ६, ५, ५)।
परिवित्ति :: स्त्री [परिवृत्ति] परिवर्त्तंन (सुपा ५८७)।
परिविद्ध :: वि [परिविद्ध] जो बिंबा गया हो वह (सुपा २७०)।
परिविद्धंस :: सक [परिवि + ध्वंसय्] १ विनाश करना। २ परिताप उपजाना। संकृ. परिविद्धंसित्ता (भग)
परिविद्धत्थ :: वि [परिविध्वस्त] १ विनष्ट। २ परितापित (सूअ २, ३, १)
परिविप्फुरिय :: वि [परिविस्फुरित] स्फूर्त्ति- युक्त (सण)।
परिवियलिय :: वि [परिविगलित] चुआ हुआ, टपका हुआ (सण)।
परिवियलिर :: वि [परिविगलितृ] झरनेवाला, चूनेवाला (सण)।
परिविरल :: वि [परिविरल] विशेष विरल (गउड; गा ३२९)।
परिविलसिर :: वि [परिविलसितृ] विलासी (सण)।
परिविस :: सक [परि + विश्] वेष्ठन करना। परिविसइ (प्राकृ ७५)।
परिविस :: सक [परि + विष्] परोसना, खिलाना। संकृ. परिविस्स (उत्त १४, ९)।
परिवियास :: पुं [परिविषाद्] समन्तात् खेद (धर्मंवि १२६)।
परिविहुरिय :: वि [परिविधुरित] अति पीड़ित, 'मणिसंजुयदेविकरपरिविहुरिओ गयं मोत्तुं' (सुर १५, १५)।
परिवीअ :: सक [परि + वीजय्] पँखा करना, हवा करना। परिवीएमि (स ६७)।
परिवाइअ :: वि [परिवीजित] जिसको हवा की गी हो वह (उप २११ टी)।
परिवीढ :: न [परीपीठ] आसन-विशेष (भवि)।
परिवील :: सक [परि-पीडय्] दबाना। संकृ. परिवीलियाण (आचा २, १, ८, १)।
परिवुड :: वि [परिवृत] परिकरित, वेष्टित (णाया १, १४; धर्मंवि २४; औप; महा)।
परिवुत्थ :: वि [पर्युषित] १ रहा हुआ। २ न वास, निवास (गउड ५४०)। देखो परिवुसिअ।
परिवुद :: देखो परिवुड (प्राकृ १२)।
परिवुदि :: स्त्री [परिवृत्ति] वेष्टन (प्राकृ १२)।
परिवुसिअ :: वि [पर्युषित] स्थित, रहा हुआ; 'जे भिक्खू अचेले परिवुसिए' (आचा १, ८, ७, १; १, ६, २, २)। देखो परिवुत्थ।
परिवुसिअ :: वि [पर्युषित] गत, गुजरा हुआ (आचा २, ३, १, ३)।
परिवूढ :: वि [परिवृढ] समर्थं (उत्त ७, २)।
परिवूढ :: वि [परिवृद्ध] स्थूल (भास ८९; उत्त ७, ६)।
परिवूढ :: वि [परिवृद्ध] १ बलवान्, बलिष्ठ (दस ७, २३) २ माँसल, पुष्ट (आचा २, ४, २, ३)
परिवूढ :: वि [परिव्यूढ] वहन किया हुआ, ढोया हुआ; 'न चइस्सामि अहं पुण चिरपरि- वूढं इमं लोहं' (धर्मंवि ७)।
परिवूहण :: देखो परिबूहण (राज)।
परिवेढ :: सक [परि + वेष्ट्] बेढञना, लपेटना। परिवेढइ (भवि)। संकृ परिवेढिय (निचू १)।
परिवेढ :: पुं [परिवेष्ट] वेष्टन, घेरा; 'जा जग्गइ तो पिच्छइ सेवापरसुह़परिवेढं' (सिरि ६३८)।
परिवेढाविय :: वि [परिवेष्टित] वेष्टित कराया हुआ (पि ३०४)।
परिवेढिय :: वि [परिवेष्टित] बेढ़ा हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ (उप ७६८ टी; धण २०; पि ३०४)।
परिवेय :: अक [परि + वेप्] काँपना, 'कायरघरिणि परिवेयइ' (भवि)।
परिवेल्लिर :: वि [परिवेल्लितृ] कम्पन-शील (गउड)।
परिवेव :: अक [परि + वेप्] काँपना। वकृ. परिवेयमाण (आचा)।
परिवेस :: सक [परि + विष्] परोसना। परिवेसइ (सुपा ३८६)। कर्मं. परिवेसिज्जइ (णाया १, ८)। वकृ. परिवेसंत, परिवेसंत, परि- वेसयंत (पिंड १२०; सुपा ११; णाया १, ७)।
परिवेस :: पुं [परिवेश, °ष] १ वेष्टन, (गउड) २ मंडल, मेधादि से सूर्य-चन्द्र का वेष्टनाकार मंडल; 'परिवेसो अंबरे फरुसवणणो' (पउम ६९, ४७; स ३१२ टी; गउड)
परिवेसण :: न [परिवेषण] परोसना (स १८७; पिंड ११९)।
परिवेसणा :: स्त्री [परिवेषणा] ऊपर देखो (पिंड ४४५)।
परिवेसि :: [परिवेशिन्] समीप में रहनेवाला (गउड)।
परिव्वअ :: सक [परि + व्रज्] १ समंताद् गमन करना। २ दीक्षा लेना। परिव्वए; परिव्वएज्जासि (सूअ १, १, ४, ३; पि ४६०)
परिव्वअ :: वि [परिवृत] परिवेष्टित, 'तारा- परिव्वओ विव सरयपुणिणमाचंदो' (वसु)।
परिव्वअ :: वि [परिव्वय] विशेष व्यय (नाट — मृच्छ ७)।
परिव्वय :: पुं [परिव्यय] खर्चा, खर्चं करने का धन (दस ३, १ टी)।
परिव्वह :: सक [परि + वह्] वहन करना, धारण करना। परिव्वहइ (संबोध २२)।
परिव्वाइया :: स्त्री [परिव्राजिका] संन्यासिनी (णाया १, ८; महा)।
परिव्वाज :: (शौ) पुं [परि + व्राज्] संन्यासी (चारु ४६)।
परिव्वाजअ :: (शौ) पुं [परिव्राजक] संन्यासी (पि २८७; नाट — मृच्छ ८५)।
परिव्वाजिआ :: (शौ) देखो परिव्वाइया (मा २०)।
परिव्वाय :: देखो परिव्वाज (सूअनि ११२; औप)।
परिव्वायग, परिव्वायय :: पुं [परिव्राजक] संन्यासी, साधु (भग)।
परिव्वायग :: वि [परिव्राजक] परिव्राजक- सम्बन्धी (कप्प)।
परिस :: देखो फरिस = स्पर्श (गउड ; चारु ४२)।
परिसंक :: अक [परि + शङ्क] भय करना, डरना। वक्र. परिसंकमाण (सूअ १, १०, २०)।
परिसंकिय :: वि [परिशङ्कित] भीत (पणह १, ३)।
परिसंखा :: सक [परिसं + ख्या] १ अच्छी तरह जानना। २ गिनती करना। संकृ. परिसंखाय (दस ७, १)
परिसंखा :: स्त्री [परिसंख्या] संख्या, गिनती (पउम २, ४६; जीवस ४०; पव — गाथा १३; तंदु ४; सण)।
परिसंग :: पुं [परिषङ्ग] संग, सोहबत (हम्मीर १६)।
परिसंग :: पुं [परिष्वङ्ग] आलिङ्गन (पउम २१, ५२)।
परिसंगय :: वि [परिसंगत] युक्त, सहित (धर्मंवि १३)।
परिसंठव :: सक [परिसं + स्यापय्] संस्थापन करना। परिसँठवहु (अप) (पिंग)। वकृ. परिसंठविंत (उपषं ४३)।
परिसंठविय :: वि [परिसंस्थापित] संस्थापित (तंदु ३८)।
परिसंठिय :: वि [परिसंस्थित] स्थित, रहा हुआ (महा)।
परिसंत :: वि [परिश्रान्त] थका हुआ (महा)।
परिसंथाविय :: वि [परिसंस्थापित] आश्वासित (स ५६६)।
परिसक्क :: सक [परि + ष्वष्क्] चलना, गमन करना, इधर-उधर घूमना। परिसक्कइ (उप ६ टी; कुप्र १७५)। वकृ. परिसक्कंत, परिसक्कमाण (काप्र ९१७; स ४१; १३९)। संकृ. परिसक्किऊण (सुपा ३१३)। कृ. परिसक्कियव्व (स १६२)।
परिसक्कण :: न [परिष्वष्कण] परिभ्रमण (से ५, ५५; १३, ५६; सुपा २०१)।
परिसक्किअ :: वि [परिष्वष्कित] १ गत (भवि) २ न. परिक्रमण, परिभ्रमण (गा ६०६)
परिसक्कर :: वि [परिष्वष्कित] गमन करनेवाला (णाया १, १; पि ५९६)।
परिसज्जिअ :: (अप) वि [परिष्वक्त] आलिंगित (सण)।
परिसड :: अक [परि + शट्] उपयुक्त होना। परिसडइ (आचा २, १, ९, ६)।
परिसडिय :: वि [परिशटित] सड़ा हुआ, विनष्ट (णाया १, २; औप)।
परिसण्ह :: वि [परिश्लिक्ष्ण] सूक्ष्म, छोटा (से १, १)।
परिसन्न :: वि [परिषण्ण] जो हैरान हुआ हो, पीडित (पउम १७, ३०)।
परिसप्प :: सक [परि + सृप्] चलना। परिसप्पेइ (नाट — विक्र ९१)।
परिसप्पि :: वि [परिसर्पिन्] १ चलनेवाला (कप्पू) २ पुंस्त्री. हाथ और पैर से चलनेवाला जन्तु-नकुल, सर्प आदि प्राणि- गण। स्त्री. °णी (जीव २)
परिसम :: देखो परिस्सम (महा)।
परिसमत्त :: वि [परिसमाप्त] सम्पूर्णं, जो पूरा हुआ हो वह (से १५, ९५; सुर १५, २५०)।
परिसमत्ति :: स्त्री [परिसमाप्ति] समाप्ति' पूर्णता (उप ३५७; स ५२)।
परिसमापिय :: वि [परिसमापित] जो समाप्त किया गया हो, पूरा किया हुआ (विसे ३६०२)।
परिसमाव :: सक [परिसम् + आप्] पूर्णं करना। संकृ. परिसमाविअ (अभि ११६)।
परिसर :: पुं [परिसर] नगर आदि के समीप का स्थान (औप; सुपा १३०; मोह ७६)।
परिसल्लिय :: वि [परिशल्यित] शल्य-युक्त (सण)।
परिसव :: सक [परि + स्त्रु] झरना, टपकना। वकृ. परिसवंत (तंदु ३९; ४१)।
परिसह :: पुं [परिषह] देखो परीसह (भग)।
परिसा :: स्त्री [परिषद्] १ सभा, पर्षंद् (पाअ; औप; उवा; विपा १, १) २ परिवार (ठा ३, २ — पत्र १२७)
परिसाइ :: देखो परिस्साइ (राज)।
परिसाइयाण :: देखो परिसाव।
परिसाड :: सक [परि + शाटय्] १ त्याग करना। २ अलग करना। परिसाडेइ (कप्प; भग)। संकृ. परिसाडइत्ता (भग)
परिसाड :: सक [परि + शाटय्] १ इधर- उधर फेंकना। २ भरना। ३ रखना; 'परिसा- डिज्ज भोअणं' (दस ५, १, २८)। परिसा- डिंति; भूका. परिसाडिंसु; भवि. परिसाडिस्संति (आचा २, १०, २)
परिसाडणा :: स्त्री [परिशाटना] वपन, बोना (वव १)।
परिसाडणा :: स्त्री [परिशाटना] पृथक्करण (सूअनि ७; २०)।
परिसाडि :: वि [परिशाटिन्] परिशाटन-युक्त (ओघ ३१)।
परिसाडि :: वि [परिशाटि] परिशाटन, पृथ- क्करण (पिंड ५५२)।
परिसाडिय :: स्त्री [परिशातित] गिरिया हुआ (दस ५, १, ९६)।
परिसाम :: अक [शम्] शान्त होना। परि- सामइ (हे ४, १६७)।
परिसाम :: वि [परिश्याम] नीचे देखो (गउड)।
परिसामल :: वि [परिश्यामल] कृष्ण, काला (गउड)।
परिसामिअ :: वि [शान्त] शान्त, शम-युक्त (कुमा)।
परिसामिअ :: वि [परिश्यामित] कृष्ण किया हुआ (णाया १, १)।
परिसाव :: सक [परि + स्रावय्] १ निचो- ड़ना। २ गालना। संकृ. परिसावियाण (आचा २, १, ८, १)
परिसावि :: देखो परिस्सावि (बृह १)।
परिसाहिय :: वि [परिकथित] प्रतिपादित, उक्त (सण)।
परिसिंच :: सक [परि + सिच्] सींचना। परिसिंचिज्जा (उत्त २, ९)। वकृ. परिसिंच- माण (णाया १, १)। कवकृ. परिसिच्चमाण (कप्प; पि ५४२)।
परिसिट्ठ :: वि [परिशिष्ट] अवशिष्ट, बाकी बचा हुआ (आचा १, २, ३, ५)।
परिसिढिल :: वि [परिशिथिल] विशेष शिथिल, ढीला (गउड)।
परिसित्त :: वि [परिषिक्त] १ सींचा हुआ (गा १८५; सण) २ न. परिषेक, सेचन (पणह १, १)
परिसिल्ल :: वि [पर्षद्वत्] परिषद् वाला (बृह ३)।
परिसील :: सक [परि + शीलय्] अभ्यास करना, आदत डालना। संकृ. परिसीलिवि (अप) (सण)।
परिसीलण :: न [परिशीलन] अभ्यास, आदत (रंभा; सण)।
परिसीलिय :: वि [परिशीलित] अभ्यस्त (सण)।
परिसीसग :: देखो पडिसीसअ (राज)।
परिसुक्क :: वि [परिशुष्क] खूब सूखा हुआ (विपा १, २; गउड)।
परिसुण्ण :: वि [परिशून्य] खाली, रिक्त, सुन्न (से ११, ८७)।
परिसुत्त :: वि [परिसुप्त] सर्वंथा सोया हुआ (नाट — उत्तर २३)।
परिसुद्ध :: वि [परिशुद्ध] निर्मल, निर्दोंष (उव; गउड)।
परिसुद्धि :: स्त्री [परशुद्धि] विशुद्धि, निर्भंलता (गउड; द्र ६५)।
परिसुन्न :: देखो परिसुण्ण (विसे २८५०; सण)।
परिसुस :: (अप) सक [परि + शोषय्] सुखाना। संकृ. परिसुसिवि (अप) (सण)।
परिसूअणा :: स्त्री [परिसूचना] सूचना (सुपा ३०)।
परिसेय :: पुं [परिषेक] सेचन (ओघ ३४७)।
परिसेस :: पुं [परिशेष] १ बाकी बचा हुआष अवशिष्ठ (से १०, २३; पउम ३५, ४०; गा ८८; कम्म ६, ६०) २ अनुमान-प्रमाण का एक भेद, परिशेषानुमान (धर्मंसं ९८; ९९)
परिसेसिअ :: वि [परिशेषित] १ बाकी बचा हुआ (भग) २ परिच्छिन्न, निर्णीत; 'डज्झसि डज्झसु कड्डसि कड्ढसु अह फुडसि हिअअ ता फुडसु। तहवि परिसेसिओ च्चिअ सो हु मए गलिअसब्भावो' (गा ४०१)
परिसेह :: पुं [परिषेध] प्रतिषेध, निवारण; 'पावट्ठाणण जो उ परिसेहो, झाणज्झयणा- ईणं जो य विही, एस धम्मकसो' (काल)।
परिसोण :: वि [परिशोण] लाल रँग का (गउड)।
परिसोसण :: न [परिशोषण] सुखाना (गा ६२८)।
परिसोसिअ :: वि [परिशोषित] सुखाया हुआ (सण)।
परिसोह :: सक [परि + शोधय्] शुद्ध करनाष कवकृ. परिसोहिज्जंत (सण)।
परिस्सअ :: सक [परि + स्खञ्ज्] आलिंगन करना। परिस्सअदि (शौ) (पि ३१५)। संकृ. परिस्सइअ (पि ३१५; नाट — शकु ७२)।
परिस्संत :: देखो परिसंत (णाया १, १; स्वप्न ४०; अभि २१०)।
परिस्सज :: (शौ) देखो परिस्सअ। परिस्सजह (उत्तर १७६)। वकृ. परिस्सजंत (अभि १३३)। संकृ. परिस्सजिअ (अभि १२५)।
परिस्सम :: पुं [परिश्रम] मेहनत (धर्मंसं ७८८, स्वप्न १०; अभि ३९)।
परिस्सम्म :: अक [परि + श्रम्] १ मेहनत करना। २ विश्राम लेना। परिस्सम्मइ (विसे ११९७; धर्मंसं ७८९)
परिस्सव :: सक [परि + स्रु] चूना, झरना, टपकना। वकृ. परिस्सवमाण (विपा १, १)।
परिस्सव :: पुं [परिस्रव] आस्रव, कर्म-बन्ध का कारण (आचा)।
परिस्सह :: देखो परीसह (आचा)।
परिस्साइ :: देखो परिस्सावि = परिस्राविन् (ठा ४, ४ — पत्र २७९)।
परिस्साव :: देखो परिसाव। संकृ. परिस्सावि- याण (पि ५९२)।
परिस्सावि :: वि [परिस्राविन्] १ कर्मं-बन्ध करनेवाला (भग २५, ६) २ चूनेवाला, टपकनेवाला। ३ गुह्य बात को प्रकट कर देनेवाला (गच्छ १, २२; पंचा १५, १४)
परिस्सावि :: स्त्री [परिश्राविन्] सुनानेवाला (द्रव्य ४९)।
परिह :: सक [पार + धा] पहिरना, पहनना। परिहइ (धर्मंवि १५०; भवि); 'सव्वंगीणेवि परिहए जंबू रयणमयालंकारे' (धर्मंवि १४९)।
परिह :: पुं [दे] रोष, गुस्सा (दे ६, ७)।
परिह :: पुं [परिघ] अर्गंला, आगल (अणु)।
परिहच्छ :: वि [दे] १ पटु, दक्ष, निपुण (दे ६, ७६; भवि) २ पुं. मन्यु, रोष, गुस्सा (दे ६, ७१)। देखो परिहत्थ।
परिहच्छ :: देखो पडिहच्छ (औप)।
परिहट्ट :: सक [मृद्, परि + घट्टय्] मर्दन करना, चूर करना, कचरना, कुचलना। परि- हट्टइ (हे ४, १२६; नाट — साहित्य ११९)।
परिहट्ट :: सक [वि + लुल्] १ मारना, मार कर गिरा देना। २ सामना करना। ३ लूट लेना। ४ अक. जमीन पर लोटना। परिहट्टइ (प्राकृ ७३)
परिहट्टण :: न [परिघट्टन] १ अघिघात, आघात (से १०, ४१) २ घर्षण, घिसना (से ८, ४३)
परिहट्टि :: स्त्री [दे] आकृष्टि, आकर्षण, खीचाव (दे ६, २१)।
परिहट्टिअ :: वि [मृदित] जिसका मर्दन किया गया हो वह, 'परिहट्टिओ माणो' (कुमा; पाअ)।
परिहण :: न [दे. परिधान] वस्त्र, कपड़ा (दे ६, २१; पाअ; हे ४, ३४१; सुर १, २५; भवि)।
परिहत्थ :: पुं [दे] १ जलजन्तु-विशेष; 'परि- हत्थमच्छपुंछड़अच्छोडणपोच्छलंतसिलिलोहं' (सुर १३, ४१) 'पोक्खरिणी........ परि- हत्थभर्मतमच्छछप्पयअणेगसउणगणमिहुणवि- यरिसद्दुन्इयमहुरसरनाइया पासाईया' (णाया १, १३ — पत्र १७९) २ वि. दक्ष, निपुण; 'अन्ने रणपरिहत्था सूरा' (पउम ६१, १; पणह १, ३ — पत्र ५५; पाअ, आव ४) ३ परिपूर्णं (औप; कप्प)। देखो परिहच्छ, पडिहत्थ।
परिहर :: सक [परि + धृ] धारण करना। संकृ. परिहरिअ (उत्त १२, ६)।
परिहर :: सक [परि + हृ] १ त्याग करना, छोड़ना। २ करना। ३ परिभोग करना, आसेवन करना। परिहरइ (हे ४, २५९; उव; महा)। परिहरंति (भग १५ — पत्र ६६७)। वकृ. परिहरंत, परिहरमाण (गा १६९; राज)। संकृ. परिहरिअ (पिंग)।ऑ हेकृ. परिहरित्तए, परिहरिउं (ठा ५, ३; काप्र ४०८)। कृ. परिहरणीअ, परिहरि- अव्व (पि ५७१; गा २२७; ओघ ५९; सुर १४, ८३; सुपा ३९६; ५८८; पणह २, ५)
परिहरण :: न [परिधरण] धारण करना (वव १)।
परिहरण :: न [परिहरण] १ परित्याग, वर्जन (महा) २ आसेवन, परिभोग (ठा १०)
परिहरणा :: स्त्री [परिहरणा] ऊपर देखो (पिंड १९७); 'परिहरणा होइ परिभोगो' (ठा ५, ३ टी — पत्र ३३८)।
परिहरिअ :: वि [परिहृत] परित्यक्त, वर्जित (महा; सण; भवि)।
परिहरिअ :: देखो परिहर = परि + धृ, हृ।
परिहरिअ :: वि [परिधृत] धारण किया हुआ, 'परिहरिअकणअकुंडलगंडत्थलणणहरेसु सव- णेसु। अणणुअ ! समअवसेणं परिहिज्जइ तालबेंटजुअं।।' (गा ३९८ अ)।
परिहलाविअ :: पुं [दे] जल-निर्गंम, मोरी, पनाला (दे ६, २९)।
परिहव :: सक [परि + भू] पराभव करना। वकृ. परिहवंत (वव १)। कृ. परिहवियव्व (उप १०३६)।
परिहव :: पुं [परिभव] पराभव, तिरस्कार (से १३, ४६; गा ३६६; हे ३, १८०)।
परिहवण :: न [परिभवन] ऊपर देखो (स ५७२)।
परिहविय :: वि [परिभूत] पराजित, तिरस्कृत (उप पृ १८०)।
परिहस :: सक [परि + हस्] उपहास करना, हँसी करना। परिहसइ (नाट)। कर्म. परिह- सीअदि (शौ) (नाट — शकु २)।
परिहस्स :: वि [परिह्रस्व] अत्यन्त लघु (स ८)।
परिहा :: अक [परि + हा] हीन होना, कम होना। परिहाइ, परिहायइ (उव; सुख २, ३०)। भवि. परिहाइस्सदि (शौ) (अभि ९)। कवकृ. परिहायंत; परिहायमाण (सुर १०, ९; १२, १४; णाया १, १३; औप; ठा ३, ३), परिहीअमाण (पि ५४५)।
परिहा :: सक [परि + धा] पहिरना। भवि. परिहिस्सामि (आचा १, ६, ३, १)। संकृ. परिहिऊण, परिहित्ता (कुप्र ७२; सूअ १, ४, १, २५)। कृ. परिहियव्व (स ३१५)।
परिहा :: स्त्री [परिखा] खाई (उर ४, २; पाअ)।
परिहाइअ :: वि [दे] परिक्षीण (षड्)।
परिहाइवि :: देखो परिहाव = परि + धापय्।
परिहाण :: न [परिधान] १ वस्त्र, कपड़ा, (कुप्र ५६; सुपा ५५) २ वि. पहिरनेवाला, पहननेवाला; 'महिविलया सलिलवत्थपरि- हाणी (पउम ११, ११९)
परिहारिणी :: स्त्री [परिहाणि] ह्रास, नुकसान, क्षति (सम ९७; उप ३२९; जी ३३; प्रासू ३६)।
परिहाय :: वि [दे] क्षीण, दुर्बल (दे ६, २५; पाअ)।
परिहायंत, परिहायमाण :: देखो परिहा = परि + हा।
परिहार :: पुं [परिहार] करण. कृति (वव १)।
परिहार :: पुं [परिहार] १ परित्याग, वर्जंन (गउड) २ परिभोग, आसेवन; 'एवं खलु गोसाला ! वणस्सइकाइयाओ पउट्टपरिहारं परिहरंति' (भघ १५) ३ परिहार-विशुद्धि नामक संयम-विशेष (कम्म ४, १२; २१) ४ विषय (वव १) ५ तप-विशेष (ठा ५, २; वव १)। °विशुद्धिअ, °विसुद्धिीअ न [°विशुद्धिक] चारित्र-विशेष, संयम-विशेष (ठा ५, २; नव २६)
परिहार :: वि [परिहारिन्] परिहार करनेवाला (बृह ४)।
परिहारिअ :: वि [पारिहारिक] आचारवान् मुनि, उद्युक्त विहारी जैन साधु (आचा २, १, १, ४)।
परिहारिणी :: स्त्री [दे] देर से व्याई हुई भैंस (दे ६, ३१)।
परिहारिय :: वि [परिहारिक] १ परित्याग के योग्य (बृह १) २ परिहार नामक तप का पालक (पव ६९)
परिहाल :: पुं [दे] जल-निर्गंम, मोरी (दे ६, २९)।
परिहाव :: सक [परि + धापय्] पहिराना। संकृ. परिहाइवि (अप) (भवि)।
परिहाव :: सक [परि + हापय्] ह्रास करना, कम करना, हीन करना। वकृ. परिहावेमाण (णाया १, १ — पत्र २८)।
परिहाविअ :: वि [परिहापित] हीन किया हुआ (वव ४)।
परिहाविअ :: वि [परिधापित] पहिराया हुआ (महा; सुर १०, १७; स ५२९; कुप्र ९)।
परिहास :: पुं [परिहास] उपहास, हँसी (गा ७७१; पाअ)।
परिहासणा :: स्त्री [परिभाषणा] उपालम्भ (आव १)।
परिहि :: पुंस्त्री [परिधि] १ परिवेष, 'ससिबिंबं व परिहिणा रुद्धं सिन्नेण तस्स रायगिहं' (पव २५५) २ परिणाह, विस्तार (राज)
परिहिअ :: वि [परिहित] पहिरा हुआ (उवा, भग, कप्प; औप; पाअ; सुर २, ८०)।
परिहऊण :: देखो परिहा = परि + घा।
परिहिंड :: सक [परि + हिण्ड्] परिभ्रमण करना। परिहिंडए (ठा ४, १ टी — पत्र १९२)। वकृ. परिहिंडंत, परिहिंडमाण (पउम ८, १६८; ६०, ५; १५५; औप)।
परहिंडिय :: वि [परिहिण्डित] परिभ्रान्त, भटका हुआ (पउम ६, १३१)।
परिहित्ता, परिहियव्व :: देखो परिहा = + धा।
परिहीअमाण :: देखो परिहा = परि +हा।
परिहीण :: वि [परिहीन] १ कम, न्यून (औप) २ क्षीण, विनष्ट (सुज्ज १) ३ रहित, वर्जित (उव) ४ न. ह्रास, अपचय (राय)
परिहुत्त :: वि [परिभुक्त] जिसका भोग किया गया हो वह (से १, ६४; दे ४, ३९)।
परिहूअ :: वि [परिभूत] पराजित, अभिभूत (गा १३४; पउम ३, ९, से २८)।
परिहेरग :: न [दे. परिहार्यक] आभूषण-विशेष (औप)।
परिहो :: सक [परि + भू] पराभव करना। परिहोइ (भवि)।
परिहोअ :: देखो परिभोग (गउड)।
परिह्लस :: (अप) अक [परि + ह्रस्] कम होना। परिह्लसइ (पिंग)।
परी :: सक [परि + इ] जाना, गमन करना। परिंति (पि ४९३)। वकृ. परिंत (पि ४९३)।
परी :: सक [क्षिप्] फेंकना। परीइ (हे ४, १४३)। परीसि (कुमा)।
परी :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना। परीइ (हे ४, १६१)। परेंति (पणह १, ३ — पत्र ४६)।
परिघाय :: पुं [परिघात] निर्घात, विनाश (पव ६४)।
परीणम :: देखो परिणम = परि + णम्; 'संस- ग्गओ पणणवणागुणाओ लोगुत्तरत्तेंण परी- णमंति (उप पं ३५)।
परीभोग :: देखो परिभोग (सुपा ४६७; श्रावक २८४; पंचा ८, ९)।
परीमाण :: देखो परिमाण (जीवस १२३; १३२, पव १५९)।
परीय :: देखो परित्त (राज)।
परीयल्ल :: पुं [दे. परिवर्त] वेष्टन, 'तीपरी- यलस्लमणिस्सट्टं रयहरणं धारए एगं' (ओघ ७०९)।
परीरंभ :: पुं [परीरम्भ] आलिंगन (कुमा)।
परीवज्ज :: वि [परिवर्ज्य] वर्जंनीय (कम्म ६, ९ टी)।
परीवाय :: देखो परिवाय = परिवाद (पउम १०१, ३; पव २३७)।
परीवार :: देखो परिवार = परिवार (कुमा; चेइय ४८)।
परीसण :: न [परिवेषण] परोसना (दे २, १४)।
परीसम :: देखो परिस्सम (भवि)।
परीसह :: पुं [परीषह] भूत आदि से होनेवाली पीड़ा (आचा; औप; उव)।
परुइय :: वि [प्ररुदित] जो रोने लगा हो वह (स ७५५)।
परुक्ख :: देखो परोक्ख (विसे १४०३ टी; सुपा १३३; श्रा १; कुप्र २५)।
परुण्ण, परुन्न :: देखो परुइय (से १, ३५; १०, ६४; गा ३५४, ८३८; महा; स २०४)।
परुप्पर :: देखो परोप्पर (कुप्र ५)।
परुब्भासिद :: (शौ) वि [प्रोद्भासित] प्रकाशित (प्रयौ २०)।
परुस :: वि [परुष] कठोर (गा ३४४)।
परूढ :: वि [प्ररूढ] १ उत्पन्न (धर्मंवि १२१) २ बढ़ा हुआ (औप; पि ४०२)
परूव :: सक [प्र + रूपय्] प्रतिपादन करना। परूवेइ, परूवेंति (औप; कप्प; भग)। संकृ. परूवइत्ता (ठा ३, १)।
परूवग :: वि [प्ररूपक] प्रतिपादक (उव; कुप्र १८१)।
परूवण :: न [प्ररूपण] प्रतिपादन (अणु)।
परूवणा :: स्त्री [प्ररूपणा] ऊपर देखो (आचू १)।
परूविअ :: वि [प्ररूपित] १ प्रतिपादित, निरूपित (पणह २, १) २ प्रकाशित; 'उत्तमकंचणरयणपरूविअभासुरभूसणाभासुरि- अंगा' (अजि २३)
परेअ :: पुं [दे] पिशाच (दे ६, १२; पाअ; षड्)।
परेण :: अ [परेण] बाद, अनन्तर (महा)।
परेयम्मण :: देखो परिकम्मण (कप्प)।
परेवय :: न [दे] पाद-पतन (दे ६, १६)।
परेव्व :: वि [परेद्युस्तन] परसों का, परसों होनेवाला (पिंड २४१)।
परो° :: अ [पर] उत्कृष्ट, 'परोसंतेहिं तच्चेहिं' (उवा)।
परोइय :: देखो परुइय (उप ७६८ टी)।
परोक्ख :: न [परोक्ष्] १ प्रत्यक्ष-भिन्न प्रमाण, 'पच्चक्खपरोक्खाइं दुन्नेवि जओ पमाणाइं' (सुर १२, ६०; णंदि) २ वि. परोक्ष-प्रमाण का विषय, अप्रत्यक्ष (सुपा ६४७; हे ४, ४१८) ३ न. पीछे, आँखों की ओट में; 'मम परोक्खे किं तए अणुभूयं ?' (महा)
परोट्ट :: देखो पलोट्ट = पर्यस्त (षड्)।
परोप्पर, परोप्फर :: वि [परस्पर] आपस में (हे १, ६२; कुमा; कप्पू; षड्)।
परोवआर :: पुं [परोपकार] दूसरे की भलाई (नाट — मृच्छ १९८)।
परोवयारि :: वि [परोपकारिन्] दूसरे की भलाई करनेवाला (पउम ५०, १)।
परोवर :: देखो परोप्पर (प्राकृ २६; ३०)।
परोविय :: देखो परुइय (उप ७२८ टी; स ४८०)।
परोह :: अक [प्र + रुह्] १ उत्पन्न होना। २ बढ़ना। परोहदि (शौ) (नाट)
परोह :: पुं [प्ररोह] १ उत्पत्ति (कुमा) २ वृद्धि। ३ अंकुर, बीजोद्भेद (हे १, ४४); पुन्नलयाण परोहे रेहइ आवालपंतिव्व' (धर्मंवि १६८)
परोहड :: न [दे] घर का पिछला आँगन, घर के पीछे का भाग (ओघ ४१७; पाअ; गा ६५८ अ; वज्जा १०६; १०८)।
पल :: अक [पल्] १ जीना। २ खाना। पलइ (षड्)। देखो बल = बल्।
पल :: (अप) अक [पत्] पड़ना, गिरना। पळइ (पिंग)। वकृ. पलंत (पिंग)।
पल :: (अप) सक [प्र + कटय्] प्रकट करना। पल (पिंग)।
पल :: अक [परा + अय्] भागना; 'चोराण कामुयाण य पामरपहियाण कुक्कुडो रडइ। रे पलह रमह वाहयह, वहह तणुइज्जए रयणी' (वज्जा १३४)।
पल :: न [दे] स्वेद, पसीना (दे ६, १)।
पल :: न [पल] १ एक बहुत छोटी तोल; चार तोला (ठा ३, १; सुपा ४३७; वज्जा ६८; कुप्र ४१६) २ मांस (कुप्र १८६)
पलंघ :: सक [प्र + लङ्घ्] अतिक्रमण करना। पलंधेज्जा (औप)।
पलंघण :: न [प्रलङ्घन] उल्लंघन (औप)।
पलंड :: पुं [पलगण्ड] राज, चूना पोतने का काम करनेवाला कारीगर; 'पलगंडे पलंडो' (प्राकृ ३०)।
पलंडु :: पुं [पलाण्डु] प्याज (उत्त ३६, ९८)।
पलंब :: अक [प्र + लम्ब्] लटकना। पलंबए (पि ४५७)। बकृ. पलंबमाण (औप; महा)।
पलंब :: वि [प्रलम्ब] १ लटकनेवाला, लटकता (पणह १, ४; राय) २ लम्बा, दीर्घ (से १२, ५९; कुमा) ३ पुं. ग्रह-विशेष, एक महाग्रह (ठा २, ३) ४ मुहुर्त्तं-विशेष, अहो- रात्र का आठवाँ मुहुर्त्तं (सम ५१) ५ पुंन आभरण-विशेष (औप) ६ एक तरह का धानम का कोठा (बृह २) ७ मूल (कस; बृह १) ८ रुचक पर्वत का एक शिखऱ (ठा ८ — पत्र ४३६) ९ पुंन. फल (बृह १; ठा ४, १ — पत्र १८५) १० देब-विमान-विशेष (सम ३८)
पलंबिअ :: वि [प्रलम्बित] लटका हुआ (कप्प; भवि; स्वप्न १०)।
पलंबिर :: वि [प्रलम्बितृ] लटकनेवाला, लट- कता (सुपा ११; सुर १, २४८)।
पलक्क :: वि [दे] लम्पट, 'इय विसयपलपकओ' (कुप्र ४२७; नाट)।
पलक्ख :: पुं [प्लक्ष्] बड़ का पेड़ (कुमा; पि १३२)।
पलग :: न [पलक] फल-विशेष (आचा २, १, ८, ६)।
पलज्जण :: वि [प्ररञ्जन] रागी, अनुराग वाला; 'अधम्मपलज्जण — ' (णाया १, १८; औप)।
पलट्ट :: अक [परि + अस्] १ पलटना, बदलना। २ सक. पलटाना, बदलाना। पलठ्ठइ (पिंग); 'कोहाइकारणेवि हु नो वयणसिरिं पलट्टंति' (संबोध १८)। संकृ. पलट्टि (अप) (पिंग)। देखो पल्लट्ट।
पलत्त :: वि [प्रलपित] १ कथित, उक्त, प्रलाप- युक्त (सुपा ११४; से ११, ७९) २ न. प्रलाप, कथन (औप)
पलय :: पुं [प्रलय] १ युगान्त, कल्पान्त-काल। २ जगत् का अपने कारण में लय (से २, २; पउम ७२, ३१) ३ विनाश; 'जायजाइ- पलए' (ती ३) ४ चेष्टा-क्षय। ५ छिपना (हे १, ६८७)। °क्क पुं [°र्क] प्रलप-काल का सूर्य (पउम ७२, ३१)। °घण पुं [°धन] प्रलय का मेघ (सण)। °लण पुं [°नल] प्रलय काल की आग (सण)
पलल :: न [पलल] १ तिल-चूर्णं, तिल-क्षोद (पणह २, ५; पिंड १९५) २ मांस (कुप्र १८७)
पललिअ :: न [प्रललित] १ प्रकीडित (णाया १, १ — पत्र ६२) २ अंग-विन्यास (पणह २, ४)
पलव :: तक [प्र + लप्] प्रलाप करना, बक- वाद करना। पलवदि (शौ) (नाट — -वेणी १७)। वकृ. पलवंत, पलवमाण (काल; सुर २, १२५; सुपा २५०; ६४१)।
पलवण :: न [प्लवण] उछलना, उच्छलन; 'संपाइमवाउवहो पलवण आउवघाओ य' (ओघ ३४८)।
पलविअ, पलवित :: वि [प्रलपित] १ अनर्थंक कहा हुआ। २ न. अनर्थंक भाषण (चंड; पणह १, २)
पलविर :: वि [प्रलपितृ] बकवादी (दे ७, ५६)।
पलस :: न [दे] १ कार्पास-फल। २ स्वेद, पसीना (दे ६, ७०)
पलस :: (अप) न [पलाश] पत्र, पत्ती (भवि)।
पलसु :: स्त्री [दे] सेवा, पूजा, भक्ति (दे ६, ३)।
पलहि :: पुंस्त्री [दे] कपास (दे ६, ४; पाअ; वज्जा १८६; हे २, १७४)।
पलहिअ :: वि [दे] १ विषम, असम। २ पुंन. आवृत जमीन का वास्तु (दे ६, १५)
पलहिअअ :: वि [दे. उपलहृदय] मूर्खं, पाषाण-हृदय (षड्)।
पलहुअ :: वि [प्रलघुक] १ स्वल्प, थोड़ा। २ छोटा (से ११, ३३; गउड)
पला :: देखो पलाय = परा + अय्; 'जं जं भणामि अहयं सयलंपि बर्हि पलाइ तं तुज्झ' (आत्मानु २३), पलासि, पलामि (पि ५६७)।
पलाअंत, पलाइअ :: देखो पलाय = परा + अय्।
पलाइअ, पलाण :: वि [पलायित] १ भागा हुआ. नष्ट; 'पलाइए हलिए' (गा ३६०); 'रिउणो सिन्नं जह पलाणं' (धर्मंवि ५९; ५१; पउम ५३, ८४; ओघ ४९७; उप १३९ टी; सुपा २२; ५०३; ती १५; सण; महा) २ न. पलायन (दस ४, ३)
पलाण :: न [पलायन] भागना (सुपा ४६४)।
पलाणिअ :: वि [पलायनित] जिसने पलायन किया हो वह, भागा हुआ; तेणवि आगच्छंतो विन्नाओ तो पलाणिओ दूरं' (सुपा ४६४)।
पलात :: वि [प्रलात] गृहीत (चंड)।
पलाय :: अक [परा + अय्] भाग जाना, नासना। पलायइ, पलाअसि (महा; पि ५६७)। भवि. पलाइस्सं (पि ५६७)। वकृ. पलाअंत, पलायमाण (गा २९१; णाया १८; आक १८; उप पृ २९)। संकृ. पलाइअ (नाट; पि ५६७)। हेकृ. पलाइउं (आक १९; सुपा ४६४)। कृ. पलाइअव्व (पि ५६७)।
पलाय :: पुं [दे] चोर, तस्कर (दे ६, ८)।
पलाय :: देखो पलाइअ = पलायित (णाया १, ३; स १३१; उप पृ २५७; धण ४८)।
पलायण :: न [पलायन] भागना (ओघ २६, सुर २, १४)।
पलायणया :: स्त्री. ऊपर देखो (चेइय ४४६)।
पलायमाण :: देखो पलाय = परा + अय्।
पलाल :: वि [प्रलाल] प्रकृत लालावाला (अणु १४१)।
पलाल :: न [पलाल] तृण-विशेष, पुआळ (पणह २, ३; पाअ; आचा). °पीढय न [°पीठक] पलाल का आसन (निचू १२)।
पलालग :: वि [पलालक] पलाल — पुआल का बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।
पलाव :: सक [नाशय्] भागाना, नष्ट करना। पलावइ (हे ४, ३१)।
पलाव :: पुं [प्लाव] पानी की बाढञ (तंदु ५० टी)।
पलाव :: पुं [प्रलाप] अनर्थंक भाषण, बकवाद (महा)।
पलावण :: न [नाशन] नष्ट करना, भगाना (कुमा)।
पलावि :: वि [प्रलापिन्] बकवादी, 'असंबद्ध- पलाविणी एसा' (कुप्र २२२, संबोध ४७; अभि ४६)।
पलाविअ :: वि [प्लावित] डुबाया हुआ, भिगाया हुआ (सुर १३, २०४; कुप्र ६०; ९७; सण)।
पलाविअ :: वि [प्रलापित] अनर्थंक घोषित करवाया हुआ; 'मंछुडु कि दुच्चरिउ पलाविउ सज्जणजणहो नाउं लज्जाविउ' (भवि)।
पलाविर :: वि [प्रलापितृ] बकवाद करनेवाला; 'अहह असंबद्धपलाविरस्स बड्डयस्स पेच्छ मह पुरओ' (सुपा २०१), 'दिव्वनाणीव जंपेइ, एसो एवं पलाविरो' (सुपा २७७)।
पलास :: पुं [पलाश] १ वृक्ष-विशेष, किंशुक का वृक्ष, ढाक (वज्जा १५२; गा ३११) २ राक्षस (वज्जा १३०; गा ३११) ३ पुंन. पत्र, पत्ता (पाअ; वज्जा १५२) ४ भद्रशाल वन का एक दिग्हस्ती कूट (ठा ८ — पत्र ४३६; इक)
पलासि :: स्त्री [दे] भल्ली, छोटा भाला, शस्त्र- विशेष (दे ६, १४)।
पलासिया :: स्त्री [दे. पलाशिका] त्वक्काष्ठिका, छाल की बनी हुई लकड़ी (सूअ १, ४, २, ७)।
पलाह :: देखो पलास (संक्षि १६; पि २६२)।
पलि :: देखो पलि (सूअ १, ९, ११; २, ७, ३६; उत्त २९, ३४; पि २५७)।
पलिअ :: न [पलित] १ बृद्ध अवस्था के कारण बालों का पकना, केशों की श्वेतता। २ बदन की झुरियाँ (हे १, २१२) ३ कर्मं. कर्मं- पुद्गल; 'जे केइ सत्ता पलियं चयंति' (आचा १, ४, ३, १) ४ घृणित अनुष्ठान; 'से आकुट्ठे वा हए वा लुंचिए वा पलियं पकंथे' (आचा १, ६, २, २) ५ कर्म. काम (आचा १, ९, २, २) ६ ताप। ७ पंक, कादा। ८ वि. शिथिल। ९ वृद्ध, बूढ़ा (हे १, २१२) १० पका हुआ, पक्व (धर्मं २; निचू १५) ११ जरा-ग्रस्त; 'न हि दिज्जइ आहरणं पलियत्तयकणणहत्थस्स' (राज)। °ट्ठाण, °ठाण न [°स्थान] कर्मं-स्थान, कारखाना (आचा १, ९, २, २)
पलिअ :: न [पल] चार कर्ष या तीन सौ बीस गुञ्जा की नाप (तंदु २९)।
पलिअ :: देखो पल्ल = पल्य (पव १५८; भग; जी २६; नव ९; दं २७)।
पलिअ :: (अप) देखो पडिअ (पिंग)।
पलिअंक :: पुं [पर्यङ्कं] पलँग, खाट (हे २, ६८; सम ३५; औप)। °आसण न [°आसन] आसन-विशेष (सुपा ६५५)।
पलिअंका :: स्त्री [पर्यङ्का] पद्मासन, आसन- विशेष (ठा ५, १ — पत्र ३००)।
पलिउंच :: सक [परि + कुञ्च्] १ अपलाप करना। २ ठगना। ३ छिपाना, गोपन करना। पलिउंचंति, पलिउंचयंति (उत्त २७, १३; सूअ १, १३, ४)। संकृ. पलिउंचिय (आचा ३, १, ११, १)। वकृ. पलिउंचमाण (आचा १, ७, ४, १; २, ५, २, १ )
पलिउंचण :: न [परिकुञ्चन] माया, कपट (सूअ १, ९, ११)।
परिउंचणा :: स्त्री [परिकुञ्चना] १ सच्ची बात को छिपाना। २ माया (ठा ४, १ टी — पत्र २००) ३ प्रायश्चित्त-विशेष (ठा ४, १)
पलिउंचि :: वि [परिकुञ्चिन्] मायावी, कपटी (वव १)।
पलिउंचिय :: वि [परिकुञ्चित] १ वञ्चित। २ न. माया, कुटिलता (वव १) ३ गुरु- वन्दन का एक दोष, पूरा वन्दन न करके ही गुरु के साथ बातें करने लग जाना (पव २)। पलिउंजिय देखो परिउज्जिय (भग)
पलिउच्छन्न :: देखो पलिओच्छन्न (आचा १, ५, १, ३)।
पलिउच्छूढ :: देखो पलिओछूढ (औप — पृ ३० टी)।
पलिउज्जिय :: वि [परियोगिक] परिज्ञानी, जानकार (भग २, ५)।
पलिऊल :: देखो पडिऊल (नाट — विक्र १८)।
पलिओच्छन्न :: वि [पलितावच्छन्न] कर्मा- वष्टब्ध, कुकर्मी (आचा; १, ५, १, ३)।
पलिओच्छिन्न :: वि [पर्यवच्छिन्न] ऊपर देखो (आचा; पि २५७)।
पलिओछूढ :: वि [पर्यवक्षिप्त] प्रसारित (औप)।
पलोओवम :: पुंन [पल्योपम] समय-मान- विशेष, काल का एक दीर्घ परिमाण (ठा २, ४; भग; महा)।
पलिंचा :: (शौ) देखो पडिण्णा (पि २७६)।
पलिकुंचणया :: देखो पलिउंचणा (सम ७१)।
पलिक्खीण :: वि [परिक्षीण] क्षय-प्राप्त (सूअ २, ७, ११; औप)।
पलिगोव :: पुं [परिगोप] १ पङ्क, कादा, काँदो। २ आसक्ति (सूअ १, २, २, ११)
पलिच्छण्ण, पलिच्छन्न :: वि [परिच्छन्न] १ समन्ताद् व्याप्त (णाया १, २ — पत्र ७८; १, ४) २ निरुद्ध, रोका हुआ; 'णेत्तेहिं पलिच्छन्नेहिं' (आचा १, ४, ४, २)
पलिच्छाअ :: सक [परि + छादय्] ढकना, आच्छादन करना। पलिच्छाएइ (आचा २, १, १० ६)।
पलिच्छिंद :: सक [परि + छिद्] छेदन करना, काटना। संकृ. पलिच्छिंदिय, पलि- च्छिदियाणं (आचा १, ४, ४, ३; १, ३, २, १)।
पलिच्छिन्न :: वि [परिच्छिन्न] विच्छिन्न, काटा हुआ (सूअ १, १६, ५; उप ५८५; सुर ९, २०९)।
पलित्त :: वि [प्रदीप्त] ज्वलित (कुप्र ११६; सं ७७; भग)।
पलिपाग :: देखो परिपाग (सूअ २, ३, २१; आचा)।
पलिप्प :: अक [प्र + दीप्] जलना। पलिप्पइ (षड्; प्राकृ १२)। वकृ. पलिप्पमाण (पि २४४)।
पलिबाहर, पलिबाहिर :: वि [परिबाह्य] हमेशा बाहर होनेवाला (आचा)।
पलिभाग :: पुं [परिभाग, प्रतिभाग] १ निर्विभागी अंश (कम्म ४, ८२) २ प्रति- नियत अंश (जीवस १५४) ३ सादृश्य, समानता (राज)
पलिभिंद :: सक [परि + भिद्] १ जानना। २ बोलना। ३ भेदन करना, तोड़ना। संकृ. पलिभिंदियाणं (सूअ १, ४, २, २)
पलिभेय :: पुं [परिभेद] चूरना (निचू ५)।
पलिमंथ :: सक [परि + मन्थ्] बाँधना। पलिंमंथए (उत्त ९, २२)।
पलिमंथ :: पुं [परिमन्थ] १ विनाश (सूअ २, ७, २६; विसे १४५७) २ स्वाध्याय-व्याघात (उत्त २९, ३४; धर्मंसं १०१७) ३ विघ्न, बाधा (सूअ १, २, २, ११ टी) ४ मुधा व्यापार, व्यर्थ क्रिया (श्रावक १०९; ११२)
पलिमंथग :: पुं [परिमन्थक] १ धान्य-विशेष, काला चना (सूअ २, २, ६३) २ गोल चना। ३ विलंब (राज)
पलिमंथु :: वि [परिमन्थु] सर्वंथा घातक (ठा ६ — पत्र ३७१; कस)।
पलिमद्द :: देखो परिमद्द। परिमद्देज्जा (पि २५७)।
पलिमद्द :: वि [परिमर्द] मालिश करनेवाला (निचू ९)।
पलिमोक्ख :: देखो परिमोक्ख (आचा)।
पलियंचण :: न [पर्यञ्चन] परिभ्रमण (सुर ७, २४३)। देखो परियंचण।
पलियंत :: पुं [पर्यन्त] १ अन्त भाग (सूअ १, ३, १, १५) २ वि. अवसानवाला, अन्त- वाला; 'पलियंतं मणुयाण जीवियं' (सूअ १, २, १, १०)
पलियंत :: न [पल्यान्तर्] पल्योपम के भीतर (सूअ १, २, १, १०)।
पलियल्ल :: न [परिपार्श्व] समीप, पास, निकट (भग ६, ५ — पत्र २६८)।
पलिल :: देखो पलिअ = पलित (हे १, २१२)।
पलिव :: देखो पलीव। पलिवेइ (पि २४४)।
पलिवग :: देखो पलीवग (राज)।
परिविअ :: वि [प्रदीपित] जलाया हुआ (षड्; हे १, १०१)।
पलिविद्धंस :: अक [परिवि + ध्वंस्] नष्ट होना। पलिविद्धंसिज्जा (अणु १८०)।
पलिसय, पलिस्सय :: सक [परि + स्वञ्ज्] आलिंगन करना, स्पर्शं करना, छूना। पलिस्सएज्जा (बृह ४)। वकृ. पलिसयमाणे गुरुगा दो लहुगा आणमाईणि' (बृह ४)। हेकृ. पलिस्सइउं (बृह ४)।
पलिह :: देखो परिह = परिघ (राज)।
पलिहअ :: वि [दे] मूर्खं, बेवकूफ (दे ६, २०)।
पुलिहइ :: स्त्री [दे] क्षेत्र, खेत; 'नियपलिहईइ दोहिवि किसिकम्मं काउमाढत्तं' (सुर १५, २०१)।
पलिहस्स :: न [दे] ऊर्ध्वं दारु, काष्ठ-विशेष (दे ६, १६)।
पलिहाय :: पुं [दे] ऊपर देखो (दे ६, १६)।
पली :: सक [परि + ई] पर्यटन करना, भ्रमण करना। पलेइ (सूअ १, १३, ९), पलिंति (सूअ १, १, ४, ९)।
पली :: अक [प्र + ली] लीन होना, आसक्ति करना। पलिंति (सूअ १, २, २, २२)। वकृ. पलेमाण (आचा १, ४, १, ३)।
पलीण :: वि [प्रलीन] १ अति लीन (भग २५, ७) २ संबद्ध (सूअ १, १, ४, २) ३ प्रलय-प्राप्त, नष्ट (सुर ४, १५४) ४ छिपा हुआ, निलोन (सुर ९, २८)
पलीमंथ :: देखो पलिमंथ (सूअ १, ९, १२)।
पलीव :: अक [प्र + दीप्] जलना। पलीवइ (हे ४, १५२; षड्)।
पलीव :: सक [प्र + दीपय्] जलाना, सुलगाना। पलीवइ, पलीवेइ (महा; हे १, २२१)। संकृ. पलीविऊण, पलीविअ (कुप्र १६०; गा ३३)।
पलीव :: पुं [प्रदीप] दीपक, दीआ (प्राकृ १२; षड्)।
पलीवग :: वि [प्रदीपक] आग लगानेवाला (पणह १, १)।
पलीवण :: न [प्रदीपन] आग लगाना (श्रा २८; कुप्र २६)।
पलीवणया :: स्त्री. ऊपर देखो (निचू १६)।
पलीविअ :: देखो पलीव = प्र + दीपय्।
पलीविअ :: वि [प्रदीप्त] प्रज्वलित (पाअ)।
पलीविअ :: वि [प्रदीपित] जलाया हुआ (उव)।
पलुंपण :: न [प्रलोपन] प्रलोप (औप)।
पलुट्ट :: वि [प्रलुठित] लेटा हुआ (दे १, ११९)।
पलुट्ट :: देखो पलोट्ट = पर्यस्त (हे ४, ४२२)।
पलुटिअ :: देखो पलोट्टिअ = पर्यंस्त (कुमा ४, ७५)।
पलुट्ठ :: वि [प्लुष्ट] दग्ध, जला हुआ (सुर ९, २०६; सुपा ४)।
पलेमाण :: देखो पली = प्र + ली।
पलेव :: पुं [प्रलेप] एक जाति का पत्थर, पाषाण-विशेष (जी ३)।
पलोअ :: सक [प्र + लोक्, लोकय्] देखना, निरीक्षण करना। पलोयइ, पलोअए, पलोएइ (सण; महा)। कर्मं. पलोइज्जइ (कप्प)। वकृ.पलोअंत, पलोअअंत, पलो- एंत, पलोएमाण, पलोयमाण (रयण १४; नाट — मालती ३२; महा; पि २६३; सुपा ४४; ३५१)
पलोअण :: न [प्रलोकन] अवलोकन (से १४, ३५; गा ३२२)।
पलोअणा :: स्त्री [प्रलोकना] निरीक्षण (ओघ ३)।
पलोइ :: वि [प्रलोकिन्] प्रेक्षक (औप)।
पलोइअ :: वि [प्रलोकित] देखा हुआ (गा ११८; महा)।
पलोइर :: वि [प्रलोकितृ] प्रेक्षक (गा १८०, भवि)।
पलोएंत, पलोएमाण :: देखो पलोअ।
पलोघर :: [दे] देखो परोहड (गा ३१३ अ)।
पलोट्ट :: सक [प्रत्या + गम्] लौटना, वापस आना। पलोट्टइ (हे ४, १६६)।
पलोट्ट :: सक [परि + अस्] १ फेंकना। २ मार गिराना। ३ अक. पलटना, विपरीत होना। ४ प्रवृत्ति करना। ५ गिरना। पलोट्टइ, पलोट्टेइ (हे ४, २००; भग; कुमा)। वकृ. पलोट्टंत (वज्जा ६६; गा २२२)
पलोट्ट :: अक [प्र + लुठ्] जमीन पर लोटना। वकृ. पलोट्टंत (से ६, ५८)।
पलोट्ट :: वि [पर्यस्त] १ क्षिप्त, फेंका हुआ। २ हत। ३ विक्षिप्त (हे ४, २५८) ४ पतित, गिरा हुआ (गा १७०) ५ प्रवृत्त, 'रेल्लंता वणभागा तओ पलोट्टा जवा जला- णोघा' (कुमा)
पलोट्टजीह :: वि [दे] रहस्य-भेदी, बात को प्रकट करनेवाला (दे ५, ३५)।
पलोट्टण :: न [प्रलोठन] ढुलकाना, लुढ़काना, गिराना (उप पृ ११०)।
पलोट्टिअ :: देखो पलोट्ट = पर्यंस्त (कुमा)।
पलोभ :: सक [प्र + लोभय्] लुभाना, लालच देना। पलोभेदि (शौ) (नाट — मृच्छ ३१३)।
पलोभविअ :: वि [प्रलोभित] लुभाया हुआ (धर्मवि ११२)।
पलोभि :: वि [प्रलोभिन्] विशेष लोभी (धर्मंवि ७)।
पलोभअ :: देखो पलोभविअ (सुपा ३४३)।
पलोव :: (अप) देखो पलोअ। पलोवइ (भवि)।
पलोहर :: [दे] देखो परोहड (गा ६८५ अ)।
पलोहिद :: (शौ) देखो पलोभिअ (नाट)।
पल्ल :: पुंन [पल्य] १ गोल आकार का एक धान्य रखने का पात्र (पव १५८; ठा ३, १) २ काल-परिमाण विशेष, पल्योपम (पउम २०, ६७; दं २७) ३ संस्थान-विशेष, पल्यंक संस्थान; 'पल्लासंठाणसंठिया' (सम ७७)
पल्ल :: पुं [पल्ल] धान्य भरने का बड़ा कोठा, 'बहवे पल्ला सालीणं पडिपुणणा चिट्ठंति' (णाया १, ७ — पत्र ११५)।
पल्लंक :: देखो पलिअंक (हे २, ६८; षड्)।
पल्लंक :: पुं [पल्यङ्क] शाक-विशेष, कन्द विशेष (श्रा २०; जी ९; पव ४; संबोध ४४)।
पल्लंघण :: न [प्रलङ्घन] १ अतिक्रमण (ठा ७) २ गमन, गति (उत्त २४, ४)
पल्लग :: देखो पल्ल = पल्ल (विसे ७०६)।
पल्लट्ट :: देखो पलट्ट = परि + अस। पल्लट्टइ (हे ४, २००; भवि)। संकृ. पल्लट्टिउं (पंचा १३, १२)।
पल्लट्ट :: पुं [दे] पर्वत-विशेष (पणह १, ४)।
पल्लट्ट :: पुं [दे. परिवर्त] काल-विशेष, अनन्त काल चक्कों का समय(घण ४७)।
पल्लट्ट, पल्लत्थ :: देखो पलोट्ट = पर्यंस्त (हे २, ४७; ६८)।
पल्लित्थि :: स्त्री [पर्यस्ति] आसन-विशेष, पलथी; 'पायपसारणं पल्लत्थिबंधणं बिंबपट्ठिदाणं च। उच्चासणसेवणया जिणपुरओ भन्नइ अवन्ना।।' (चेइय ६०)। देखो पल्हत्थिया।
पल्लल :: न [पल्वल] छोटा तलाव (प्राकृ १७, णाया १, १; सुपा ६४६; स ४२०)।
पल्लव :: पुं [पल्लव] १ किसलय, अंकुर (पाअ, औप) २ पत्र, पत्ता (से २९) ३ देश- विशेष (भवि) ४ विस्तार (कप्पू)
पल्लव :: देखो पज्जव (सम ११३)।
पल्लवाय :: न [दे] क्षेत्र, खेत (दे ६, २६)।
पल्लविअ :: वि [दे] लाक्षा-रक्त (दे ६, १९; पाअ)।
पल्लविअ :: वि [पल्लवित] १ पल्लवाकार (दे ६, १९) २ अंकुरित, प्रादुर्भूंत उत्पन्न (दे १, १) ३ पल्लव-युक्त (रंभा)
पल्लविल्ल :: वि [पल्लववत्] पल्लव-युक्त (सुपा ५; घण २४)।
पल्लविल्ल :: देखो पल्लव (हे २, १६४)।
पल्लस्स :: देखो पलोट्ट = परि + अस्। पल्लस्सइ (प्राकृ ७२)।
पल्लाण :: न [पर्याण] अश्व आदि का साज, 'किं करिणो पल्लाणं उव्वोढुं रासभो तरइ' (प्रवि १७; प्राप्र)।
पल्लाण :: सक [पर्याणय्] अश्व आदि को सजाना। पल्लाणेह (स २२)।
पल्लाणिअ :: वि [पर्याणित] पर्याण-युक्त (कुमा)।
पल्लि :: स्त्री [पल्लि] १ छोटा गाँव। २ चोरों के निवास का गहन स्थान (उप ७२८ टी)
°नाह :: पुं [°नाथ] पल्ली का स्वामी (सुपा ३५१; सुर २, ३३)। °वइ पुं [°पति] वही अर्थं (सुर १, १९१; सुपा ३५१)।
पल्लिअ :: वि [दे] १ आक्रान्त (निचू २) २ ग्रस्त (निचू १) ३ प्रेरित; 'पल्लट्टा पल्लि- आरहट्टव्व' (धण ४७)
पल्लित्त :: वि [दे] पर्यस्त (षड्)।
पल्ली :: देखो पल्लि (गउड; पंचा १०; ३६; सुर २, २०४)।
पल्लीण :: वि [प्रलीन] विशेष लीन, 'गुत्तिदिए अल्लीणे पल्लीणे चिट्ठइ' (भग २५, ७; कप्प)।
पल्लोट्टजीह :: [दे] देखो पल्लोट्टजीह (षड्)।
पल्हत्थ :: देखो पलोट्ट + परि + अस्। पल्हत्थइ (हे ४, २००)। वकृ. पल्हत्थंत (से १०, १०; २, ५)। कवकृ. पल्हत्थंत (से ८, ८३; ११, ९६)।
पल्हत्थ :: सक [वि + रेचय्] बाहर निका- लना। पल्हत्थइ (हे ४, २६)।
पल्हत्थ :: देखो पलोट्ट = पर्यस्त; 'करतल — पल्हत्थमुहे' (सूअ २, २, १६; हे ४, २५८)।
पल्हत्थण :: न [पर्यसन] फेंक देना, प्रक्षेष्ण; 'अन्नदा भुवणपल्हत्थणपवणो समुट्ठिदो दुठु- पवणो (मोह ६२)।
पल्हत्थरण :: देखो पच्चत्थरण (से ११, १०८)।
पल्हत्थाविअ :: वि [विरेचित] बाहर निकल- वाया हुआ (कुमा)।
पल्हत्थिअ :: देखो पलोट्ट = पर्यस्त (से ७, २०; णाया १, ४६ — पत्र २१९; सुपा ७९)।
पल्हत्थिया :: स्त्री [पर्यस्तिका] आसन-विशेष — १ दोनों जानु खड़ा कर पीठ के साथ चादर लपेटकर बैठना (पव ३८) २ जंघा पर वस्त्र लपेटकर बैठना। ३ जंघा पर पाँव रखकर बैठना (उत्त १, १९)। °पट्ट पुं [°पट्ट] योग-पट्ट (राज)
पल्हय, पल्हव :: पुं [पह्लव] १ अनार्य देश- विशेष (कस, कुप्र ९७) २ पुंस्त्री. पह्लव देश की निवासी (भग ३, २ — पत्र १७०; अंत)। स्त्री. °वी, °विया (पि ३३०; औप; णाया १, १ — पत्र ३७; इक)
पल्हवि :: पुंस्त्री [दे. पह्लवि] हाथी की पीठ पर बिछाया जाता एक तरह का कपड़ा, 'पल्हवि हत्थत्थरणं' (पव ८४)।
पल्हविया, पल्हवी :: देखो पल्हव।
पल्हाय :: सक [प्र = ह्लाद्] आनन्दित करना, खुशी करना। पल्हायइ (संबोध १२)। वकृ. पल्हायंत (उव; सुर ३, १२१)। कृ. देखो पल्हायणिज्ज।
पल्हाय :: पुं [प्रह् लाद] १ आनन्द, खुशी (कुमा) २ हिरण्यकशिपु नामक दैत्य कै पुत्र (हे २, ७६) ३ आठवाँ प्रतवासुदेव राजा (पउम ५, १५६) ४ एक विद्याधर नरेश (पउम १५, ५)
पल्हायण :: न [प्रह्लादन] १ चित-प्रसन्नता, खुशी (उत्त २९, १७) २ वि. आनन्द- दायक (सुपा ५०७) ३ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३९)
पल्हायणिज्द :: वि [प्रह्लादनीय] आनन्द- जनक (णाया १, १ — पत्र १३)।
पल्हींय :: पुं. ब. [प्रह् लीक] देश-विशेष (पउम ९८, ६६)।
पव :: सक [पा] पानी। कृ. 'अरसमेहा.... अ- प्पवणिज्जो दगा....वासं वासिहिंति' (भग ७, ६ — पत्र ३०५)।
पव :: अक [प्लु] १ फरकना। २ सक. उछल कर जाना। ३ तैरना। पवेज्ज (सूअ १, १, २, ८)। वकृ. पवंत, पवमाण (से ५, ३७; आचा २, ३, २, ४)। हेकृ. पविउं (सूअ १, १, ४, २)
पव :: पुं [प्लव] १ पूर (कुमा) २ उच्छलन, कूदना। ३ तरण, तैरना। ४ भेक, मेढ़क। ५ वानर, बन्दर। ६ चाण्डाल, डोम। ७ जल-काक। ८ पाकुड़ का पेड़। ९ कारण्डव पक्षी। १० शब्द, आवाज। ११ रिपु, दुश्मन। १२ मेष, मेंढा। १३ जल-कुक्कुट। १४ जल, पानी। १५ जलचर पक्षी। १६ नौका, नाव (हे २, १०६)
पव :: स्त्रीन [प्रपा] पानीयशाला, प्याऊ; 'सहाणि वा पवाणि वा' (आचा २, २, २, १०)।
पवंग :: पुं [प्लवङ्ग] १ बानर (से २, ४६; ४, ४७) २ बानर-वंशीय मनुष्य। °नाह पुं [°नाथ] बानर-वंशीय राजा, बाली (पउम ९, २९)। °वइ पुं [°पति] बानरराज (पि ३७९)
पवंगम :: पुं [प्लवंगम] १ बानर (पाअ; से ६, १९) २ छन्द-विशेष (पिंग)
पवंच :: पुं [प्रपञ्च] १ विस्तार (उप ५३० टी; औप) २ संसार (सूअ १, ७; उव) ३ प्रतारण, ठगाई (उव)
पवंचण :: न [प्रपञ्चन] विप्रतारण, वञ्चना, ठगाई (पणह १, १ — पत्र १४)।
पवंचा :: स्त्री [प्रपञ्चा] मनुष्य की दश दशाओं में सातवीं दशा — ६० से ७० वर्षं की अवस्था (ठा १०; तंदु १६)।
पवंचिअ :: वि [प्रपञ्चित] विस्तारित (श्रा १४; कुप्र ११८)।
पवंछ :: सक [प्र + वाञ्छ्] वाञ्छना, अभिलाष करना। वकृ. पवंछमाण (उप पृ १८०)।
पवंत :: देखो पव = प्लु।
पवंपुल :: पुंन [दे] मच्छी पकड़ने का जाल- विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।
पवक :: वि [प्लवक] १ उछल-कूद करनेवाला। २ तैरनेवाला (पणह १, १ टी — पत्र २) ३. पुं. पक्षी। ४ देवजाति-विशेष, सुपर्णंकुमार नामक देव-जाति (पणह २, ४ — पत्र १३०)
पवक्खमाण :: देखो पवय = प्र + वच्।
पवग :: देखो पवक (पणह २, ४; कप्प; औप)।
पवज्ज :: सक [प्र + पद्] स्वीकार करना। पवज्जइ, पविज्जिजा (भवि; हित २०)। भवि. पविज्जिहिसि (घा ६६१)। वकृ. पवज्जंत (श्रा २७)। संकृ. पवज्जिय (मोह १०)। कृ. पवज्जियव्व (पंचा १९)।
पवज्जण :: न [प्रपदन] स्वीकार, अंगीकार (स २७१; पंचा १४, ८; श्रावक १११)।
पवज्जा :: देखो पव्वज्जा (महानि ४)।
पवज्जिय :: वि [प्रपन्न] स्वीकृत, अंगीकृत (धर्मंवि ५३; कुप्र २९५; सुपा ४०७)।
पवज्जिय :: वि [प्रवादित] जो बजने लगा हो (स ७५९)।
पवज्जिय :: देखो पवज्ज।
पवट्ट :: अक [प्र + वृत्] प्रवृत्ति करना। पवट्टइ (महा)।
पवट्ट :: वि [प्रवृत्त] जिसने प्रवृत्ति की हो वह (षड्; हे २, २९ टि)।
पवट्टय :: वि [प्रवर्त्तक] प्रवृत्ति करानेवाला (राज)।
पवट्टि :: स्त्री [प्रवृत्ति] प्रवर्त्तंन (हम्मीर १५)।
पवट्टिअ :: वि [प्रवर्त्तित] प्रवृत्त किया हुआ (भवि; दे)।
पवट्ठ :: देखो पउट्ठ = प्रकोष्ठ (हे १, १५६)।
पवड :: अक [प्र + पत्] पड़ना, गिरना। पवडइ, पवडिज्ज, पवडेज्ज (भग; कप्प; आचा २, २, ३, ३)। वकृ. पवडंत, पवडेमाण (णाया १, १; सिरि ६८९; आचा २, २, ३, ३)।
पवडण :: न [प्रपतन] अधः पात (बृह ६)।
पवडणया, पवढणा :: स्त्री [प्रपतना] ऊपर देखो (ठा ४, ४, — पत्र २८०; राज)।
पवडेमाण :: देखो पवड।
पवड्ढ :: अक [दे] पोढ़ना, सोना; 'जाव राया पवड़्ढइ ताव कहेहि किंचि अक्खाणयं' (सुख ९, १)।
पवड्ढ :: अक [प्र + वृध] बढ़ना। पवड्ढइ (उव)। वकृ. पवड्ढमाण (कप्प; सुर १, १८१; श्रु १२४)।
पवड्ढ :: वि [प्रवृद्ध] बढ़ा हुआ (अज्झ ७०)।
पवड्ढण :: न [प्रवर्धन] १ बढ़ाव, प्रवृद्धि (संबोध ११) २ वि. बढ़ानेवाला; 'संसारस्स पवड्ढणं' (सूअ १, १, २, २४)
पवडि्ढय :: वि [प्रवर्धित] बढ़ाया हुआ (भवि)।
पवण :: वि [प्रवण] १ तत्पर (कुप्र १३४) २ तंदुरुस्त, स्वस्थ, सुस्थ; 'पडियरिओ तह, पवणो पुव्वं व जहा स संजाओ' (उप ५९७ टी; कुप्र ४१८)
पवण :: न [प्लवन] १ उछल कर गमन (जीव ३) २ तरण; 'तरिउकामस्स पवहणं (? वण)। किच्चं' (णाया १, १४ — पत्र १९१)। °किच्च पुं [°कृत्य] नौका, नाव, डोंगी (णाया १, १४)
पवण :: पुं [पवन] १ पवन, वायु (पाअ; प्रासु १०२) २ देव-जाति विशेष, भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति, पवनकुमार (औप; पणह १, ४) ३ हनुमान् का पिता (से १, ४८)। °गइ पुं [°गति] हनुमान का पिता (पउम १५, ३७), वानरद्वीप के राजा मन्दर का पुत्र (पउम ६, ६८)। °चंड पुं [°चण्ड] व्यक्ति-वाचक नाम (महा)। °तणअ पुं [°तनय] हनुमान् (से १, ४८)। °नंदण पुं [°नन्दन] हनुमान् (पउम १९, २७; सम्मत्त १२३)। °पुत्त पुं [°पुत्र] हनुमान् (पउम ५२, २८)। °वेग पुं [°वेग] १ हनुमान का पिता (पउम १५, १९०) २ एक जैन मुनि (पउम २०, १९०)। °सुअ पुं [°सुत] हनुमान् (पउम ४९, १३; से ४, १३; ७, ४६)। °णंद पुं [°नन्द] हनुमान् (पउम ५२, १)
पवणंजअ :: पुं [पवनञ्जय] १ हनुमान् का पिता (पउम १५, ६) २ एक श्रेष्ठि-पुत्र (कुप्र ३७७)
पवणिय :: वि [प्रवणित] सुस्थ किया हुआ, तंदुरस्त किया हुआ (उप ७६८ टी)।
पवण्ण :: देखो पवन्न (सण)।
पवत्त :: देखो पवट्ट = प्र + वृत्। पवत्तइ, पवत्तए (पव २४७; उव)।
पवत्त :: सक [प्र + वर्त्तय्] प्रवृत्त करना। पवत्तेइ, पवत्तेहिी (वव १; कप्प)।
प्रवत्त :: देखो पवट्ट = प्रवृत्त (पउम ३२, ७०; स ३७९; रंभा)।
पवत्तग :: वि [प्रवर्त्तक] प्रवृत्ति करानेवाला (उफ ३३९ टी; धर्मंवि १३२)।
पवत्तण :: न [प्रवर्त्तन] १ प्रवृत्ति (हे २, ३०; उत्त ३१, २) २ वि. प्रवृत्ति करानेवाला (उत्त ३१, ३; पणह १, ५)
पवत्तय :: वि [प्रवर्त्तक] १ प्रवृत्ति करनेवाला (हे २, ३०)। वि. प्रवृत्त करानेवाला; 'तित्थवरप्पवत्तयं' (अजि १८; गच्छ १, १०)
पवत्ति :: स्त्री [प्रवृत्ति] प्रवर्त्तन। °वाउय वि [°व्यापृत] प्रवृत्ति में लगा हुआ (औप)।
पवत्ति :: वि [प्रवत्तिन्] प्रवृत्ति करानेवाला (ठा ३, ३; कस; कप्प)।
पवत्तिणी :: स्त्री [प्रवर्त्तिनी] साध्वियों की अध्यक्षा, मुख्य जैन साध्वी (सुर १, ४१; महा)।
पवत्तिय :: देखो पवट्टिअ (काल)।
पवत्तिया :: स्त्री [दे] संन्यासी का एक उपकरण (कुप्र ३७२)।
पवद :: देखो पवय = प्र + वद्। वकृ. पवदमाण (आचा)।
पवदि :: स्त्री [प्रवृत्ति] ढकना, आच्छादन (संक्षि ९)।
पवद्ध :: देखो पवड्ढ = प्र + वृध्। वकृ. पवद्धमाण (चेइय ६१९)।
पवद्ध :: पुं [दे] घन, हथौड़ा (दे ६, ११)।
पवद्धिय :: देखो पवडि्ढय (महा)।
पवन्न :: वि [प्रपन्न] १ स्वीकृत, अंगीकृत (चेइय ११२, प्रासू २१) २ प्राप्त; 'गुरुयणगुरुविणयपवन्नमाणसो' (महा)
पवमाण :: देखो पव = प्लु।
पवमाण :: पुं [पवमान] पवन, वायु (कुप्र ४४४; सुपा ८६)।
पवय :: सक [प्र + वद्] १ बदवाद करना। २ वाद-विवाद करना। वकृ. पवयमाण (आचा १, ५, १, ३)
पवय :: सक [प्र + वच्] बोलना, कहना। भवि. कवकृ. पवक्खमाण (धर्मंसं ९१)। कर्मं. पवुच्चइ, पवुच्चई, पवुच्चति (कप्प; पि ५४४; भग)।
पवय :: देखो पवक = प्लवक (उप पृ २१०)।
पवय :: पुं [प्लवग] वानर, कपि (पउम ६५, ५०; हे ४; २२०; पाअ; से २, ३७; १५, १७)। °वइ पुं [°पति] वानरों का राजा सुग्रीव (से २, ३९)। °हिव पुं [°धिप] वही पूर्वोक्त अर्थ (से २, ४०; १२, ७०)।
पवयण :: पुं [प्राजन] कोड़ा, चाबुक (दे २, ९७)।
पवयण :: न [प्रवचन] १ जिनदेव-प्रणीत सिद्धान्त, जैन शास्त्र (भघ २०, ८, प्रासू १८१) २ जैन संघ; 'गुणसमुदाओ संघो पवयण तित्थं ति होइ एगट्ठा' (पंचा ८, ३९; विसे १११२; उप ४२३ टी; औप) ३ आगम-ज्ञान (विसे १११२)। °माया स्त्री [°माता] पाँच समिति और तीन गुप्ति रूप धर्मं (सम १३)
पवर :: वि [प्रवर] श्रेष्ठ, उत्तम (उवा; सुपा ३१९; ३४१; प्रासू १२९; १५४)।
पवरंग :: न [दे. प्रवराङ्ग] सिर, मस्तक (दे ६, २८)।
पवरपुंडरीय :: पुंन [प्रवरपुण्डरीक] एक देव-विमान (आचा २, १५, २)।
पवरा :: स्त्री [प्रवरा] भगवान् वासुपूज्य की शासनदेवी (पव २७)।
पवरिस :: सक [प्र + वृष्] बरसना, वृष्टि करना। पवरिसइ (भवि)।
पवल :: देखो पबल (कप्पू; कुप्र २४७)।
पवस :: अक [प्र + वस्] प्रयाण करना, विदेश जाना। वकृ. पवसंत (से १, २४; गा ९४)।
पवसण :: न [प्रवसन] प्रवास, विदेश यात्रा, मुसाफिरी (स १९६; उप १०३१ टी)।
पवसिअ :: वि [प्रोषित] प्रवास में गया हुआ (गा ४५; ८४०; सुर ५, २११; सुपा ४७३)।
पवह :: अक [प्र + वह्] १ बहना। २ सक. टपकना, झरना। पवहइ (भवि; पिंग)। वकृ. पवहंत (सुर २, ७५)। संकृ. पवहित्ता (सम ८४)
पवह :: सक [प्र + हन्] मार डालना। वकृ. 'पिच्छउ पवहिंतं मज्झ करयलं कलिय- करवालं' (सुपा ५७२)।
पवह :: वि [प्रवह] १ बहनेवाला। २ टपकनेवाला; चूनेवाला; 'अट्ठ णालीओ अब्भंतरप्प- वहाओ' (विपा १, १ — पत्र १६)
पवह :: पुं [प्रवाह] १ स्रोत, बहाव, जल-धारा (गा ३९९, ५४१; कुमा) २ प्रवृत्ति। ३ व्यवहार। ४ उत्तम अश्व (हे १, ६८)। ५ प्रभाव (राज)
पवहण :: पुंन [प्रवहण] १ नौका, जहाज (णाया १, ३; पि ३५७) २ गाड़ी आदि वाहन; 'जुग्गगया गिल्लिगया थिल्लिगया पवहणगया' (औप; वसु; चारु ७०)
पवहाइअ :: वि [दे] प्रवृत्त (दे ६, ३४)।
पवहाविय :: वि [प्रवाहित] बहाया हुआ (भवि)।
पवा :: स्त्री [प्रपा] जलदान-स्थान, पानी-शाला, प्याऊ (औप, पणह १, ३; महा)।
पवाइ :: वि [प्रवादिन्] १ वाद करनेवाला, वादी। २ दार्शनिक (सूअ १, १, १; चउ ४७)
पवाइअ :: वि [प्रवात] बहा हुआ (वायु); 'पवाइया कलंबवाया' (स ६८९; पउम ५७, २७; णाया १, ८; स ३९)।
पवाइअ :: वि [प्रवादित] बजाया हुआ (कप्प; औप)।
पवाण :: (अप) देखो पमाण = प्रमाण (कुमा; पि २५१, भवि)।
पवाड :: सक [प्र + पातय्] गिराना। वकृ. पवाडेमाण (भग १७, १ — पत्र ७२०)।
पवादि :: देखो पवाइ (धर्मंसम १३३)।
पवाय :: अक [प्र + वा] १ सुख पाना। २ बहना (हवा का) ३ सक. गमन करना। ४ हिंसा करना। पवाअइ (प्राकृ ७६)। वकृ. पवायंत (आचा)
पवाय :: पुं [प्रवाद] १ किंवदन्ती, जनश्रुति (सुपा ३००; उप पृ २९) २ परंपरा- प्राप्त उपदेश। २ मत, दर्शंन; 'पवाएण पवायं जाणेज्जा' (आचा)
पवाय :: पुं [प्रपात] १ गर्त्तं, गड्ढा (णाया १, १४ — पत्र १९१; दे १, २२) २ ऊँचे स्थान से गिरता जल-समूह (सम ८४) ३ तर-रहित तिराधार पर्वत-स्थान। ४ रात में पड़नेवाली धाड़, धारा (राज) ५ पतन (ठा २, ३)। °द्दह पुं [°द्रह] वह कुण्ड, जहाँ पर्वत पर से नदी गिरती हो (ठा २, ३ — पत्र ७३)
पवाय :: पुं [प्रवात] १ प्रकृष्ट पवन (पणह २, ३) २ वि. बहा हुआ (पवन) (संक्षि ७) ३ पवन-रहित (बृह १)
पवायग :: वि [प्रवाचक] पाठक, अध्यापक (विसे १०६२)।
पवायण :: न [प्रवाचन] प्रपठन, अध्ययन (सम्मत्त ११७)।
पवायणा :: स्त्री [प्रवाचना] ऊपर देखो (विसे २८३५)।
पवायण :: देखो पवायग (विसे १०६२)।
पवाल :: पुंन [प्रवाल] १ नवांकुर, किसलय (पाअ ३४१; णाया १, १; सुपा १२९) २ मूँगा, विद्रुम (पाअ; कप्प)। °मंत, °वंत वि [°वत्] प्रवालवाला (णाया १, १; औप)
पवालिअ :: वि [प्रपालित] जो पालने लगा हो वह (उप ७२८ टी)।
पवास :: पुं [प्रवास] विदेश-गमन, परदेश- यात्रा (सुपा ६५७; हेका ३७; सिरि ३५६)।
पवासि, पवासु :: वि [प्रवासिन्] मुसाफिर (गा ९८; षड्; पि ११८; हे ४; ३९५)।
पवाह :: सक [प्र + वाहय्] बहाना, चलाना। पवाहइ (भवि)। भवि. पवाहेहिति (विसे २४९ टी)।
पवाह :: देखो पवह = प्रवाह (हे १, ६८; ८२; कुमा; णाया १, १४)।
पवाह :: पुंन [प्रबाध] प्रकृष्ट पीड़ा (विपा १, ९ — पत्र ९०)।
पवाहण :: न [प्रवाहन] १ जल, पानी (आवम) २ बहाना, बहन कराना (चेइय ५२३)
पवि :: पुं [पवि] वज्र, इन्द्र का अस्त्र-विशेष (उप २११ टी; सुपा ४६७; कुमा; धर्मंवि ८०)।
पविअंभिअ :: वि [प्रविजृम्भित] प्रोल्लसित, समुत्पन्न (गा ५३६ अ)।
पविआ :: स्त्री [दे] पक्षी का पान-पात्र (दे ६, ४; ८, ३२; पाअ)।
पविइण्ण :: वि [प्रवितीर्ण] दिया हुआ (औप)।
पविइण्ण, पविइन्न :: वि [प्रविकीर्ण] १ व्याप्त (औप; णाया १, १ टी — पत्र ३) २ विक्षिप्त, निरस्त (णाया १, १)
पविक्थ :: सक [प्रवि + कत्थ्] आत्म-श्याघा करना। पविकत्थई (सम ५१)।
पविकसिय :: वि [प्रविकसित] प्रकर्षं से विक- सित (राज)।
पविकिर :: सक [प्रवि + कृ] फेंकना। वकृ. पविकिरमाण (ठा ८)।
पविक्खिअ :: वि [प्रवीक्षित] निरीक्षित, अवलोकित (स ७४६)।
पविक्खिर :: देखो पविकिर; 'नाविअजणे य भंडं पविक्खिरंते समुद्दम्मि' (सुर १३, २०९)।
पविग्घ :: वि [दे] विस्मृत (षड्)।
पविचरिय :: वि [प्रविचरित] गमन-द्वारा सर्वत्र व्याप्त (राय)।
पविज्जल :: वि [प्रविज्वल] १ प्रज्वलित (सूअ १, ५, २, ५) २ रुघिरादि से पिच्छिल — व्याप्त (सूअ १, ५, २, १६; २१)
पविट्ठ :: वि [प्रविष्ट] घुसा हुआ (उवा; सुर ३, १३९)।
पविणी :: सक [प्रवि + णी] दूर करना। पविणेति (भग)।
पवित्त :: पुं [पवित्र] १ दर्भ, कुशा, तृण-विशेष (दे ६, १४) २ वि. निर्दोष, निष्कलङ्क, शुद्ध, स्वच्छ (कुमा; भग; उत्तर ४५)
पवित्त :: देखो पवट्ट = प्रवृत्त (से ६, ५७)।
पवित्त :: सक [पवित्रय्] पवित्र करना। वकृ. पवित्तयंत (सुपा ८५)। कृ. पवित्तियव्व (सुपा ५८४)।
पवित्तय :: न [पवित्रक] अंगूठी, अंगुलीयक (णाया १, ५; औप)।
पवित्ताविय :: वि [प्रवत्तित] प्रवृत्त किया हुआ (भवि)।
पवित्ति :: देखो पवत्ति = प्रवृत्ति (सुपा २; ओघ ६३; औप)।
पवित्तिणी :: देखो पवत्तिणी (कस)।
पवित्थर :: अक [प्रवि + स्तृ] फैलाना। वकृ. पवित्थरमाण (पव २५५)।
पवित्थर :: पुं [प्रविस्तर] विस्तार (उवा; सूअ २, २, ६२)।
पवित्थरिअ :: वि [प्रविस्तृत] विस्तीर्णं (स ७५२)।
पवित्थरिल्ल :: वि [प्रविस्तरिन्] विस्तारवाला (राज — पणह १, ५)। देखो पविरल्लिय।
पवित्थारि :: वि [प्रविस्तारिन्] फैनलेवाला (गउड)।
पविद्ध :: देखो पव्विद्ध (पव २)।
पविद्धंस :: अक [प्रवि + ध्वंस्] १ विनाशाभि- मुख होना। २ विनष्ट होना; 'तेण पर जोणी पविद्धंसइ, तेण परं जोणी विद्धंसइ' (ठा ३, १ — पत्र १२३)
पविद्धत्थ :: वि [प्रविध्वस्त] विनष्ट (जीव ३)।
पविभत्ति :: स्त्री [प्रविभक्ति] पृथक्-पृथक् विभाग (उत्त २, १)।
पविभाग :: पुं [प्रविभाग] ऊपर देखो (विसे १९४२)।
पविमुक्क :: वि [प्रविमुक्त] परित्यक्त (सुर ३, १३९)।
पविमोयण :: न [प्रविमोचन] परित्याग (औप)।
पविय :: वि [प्राप्त] प्राप्त, 'भुवि उवहासं पविया दुक्खाणं हुंति ते णिलया' (आरा ४४)।
पवियंभिर :: वि [प्रविजृम्भितृ] १ उल्लसित होनेवाला। २ उत्पन्न होनेवाला (सण)
पवियक्किय :: न [प्रवितर्कित] विकल्प, वितर्कं (उत्त २३, १४)।
पवियक्खण :: वि [प्रविचक्षण] विशेष प्रवीण (उत्त ९, ६३)।
पवियार :: पुं [प्रवीचार] १ काया और वचन की चेष्टा-विशेष (उप ६०२) २ काम-क्रीडा, मैथुन (देवेन्द्र ३४७; पव २६६)
पवियारण :: न [प्रविचारण] संचार, 'वाउप- वियारणट्ठा ठब्भायं उणयं कुज्जा' (पिंड ६५०)।
पवियारणा :: स्त्री [प्रविचारणा] काम-क्रीडा, मैथुन (देवेन्द्र ३४७)।
पवियास :: अक [प्रवि + काशय्] फाड़ना, खोलना; 'पवियासइ नियवयणं' (धर्मंवि १२४)।
पवियासिय :: वि [प्रविकासित] विकसित किया हुआ, 'पवियासियकमलवणं खणं निहालेइ दिणनाहं' (सुपा ३४)।
पविरइअ :: वि [दे] त्वरित, शीघ्रता-युक्त (दे ६, २८)।
पविरंज :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। पविरंजइ (हे ४, १०६)।
पविरंजव :: वि [दे] स्निग्ध, स्नेह-युक्त (षड्)।
पविरंजिअ :: वि [भ्रम] भाँगा हुआ (कुमा दे ६, ७४)।
पविरंजिअ :: वि [दे] १ स्निग्ध, स्नेह-युक्त। २ कृत-निषेध, निवारित (दे ६, ७४)
पविरल :: वि [प्रविरल] १ अनिबिड। २ विच्छिन्न (गउड) ३ अत्यन्त थोड़ा, बहुत ही कम; 'परकज्जकरणरसिया दोसंति महीए पविरलनरिंदा' (सुपा २४०)
पविरल्लिय :: वि [दे] विस्तारवाला (पणह १, ५ — पत्र ९१)। देखो पवित्थरिल्ल।
पविरिक्क :: वि [प्रविरिक्त] एकदम शून्य, बिलकुल खाली (गउड ६८५)।
पविरेल्लिय :: [दे] देखो पविरल्लिय (पणह १, ५ टी — पत्र ९२)।
पविलुंप :: सक [प्रवि + लुप्] बिलकुल नष्ट करना। कवकृ. पविलुप्पमाण (महा)।
पविलुत्त :: वि [प्रविलुप्त] बिलकुल नष्ट (उप ५९७ टी)।
पविलुप्पमाण :: देखो पविलुंप।
पविस :: सक [प्र + विश्] प्रवेश करना, घुसना। पविसइ (उव; महा)। भबि. पविसिस्सामि, पविसिहिइ (पि ५२६)। वकृ. पविसंत, पविसमाण (पउम ७९, १६; ' सुपा ४४८; विपा १, ५; कप्प)। संकृ. पविसित्ता, पविसित्तु, पविसिअ, पविसिऊण (कप्प; महा; अभि ११६; काल)। हेकृ. पविसित्तए, पवेट्ठुं (कस; कप्प; पि ३०३)। कृ. पविसिअव्व (ओघ ९१; सुपा ३८१)।
पविसण :: न [प्रवेशन] प्रवेश, पैठ (पिंड ३१७)।
पविसु :: सक [प्रवि + सू] उत्पन्न करना। संकृ. पविसुइत्ता (सूअ २, २, ६५)।
पविस्स :: देखो पविस। पविस्सइ (महा)। बकृ. पविस्समाण (भवि)।
पविहर :: सक [प्रवि + हृ] विहार करना, विचरना। पविहरंति (उव)।
पविहस :: अक [प्रवि + हस्] हसना, हास्य करना। वकृ. पविहसंत (पउम ५६, १७)।
पवीइय :: वि [प्रवीजित] हवा के लिए चलाया हुआ (औप)।
पवीण :: वि [प्रवीण] निपुण, दक्ष (उप ९८६ टी)।
पवीणी :: देखो पविणी। पवीणेइ (औप)।
पवील :: सक [प्र + पीडय्] पीड़ना, दमन करना। पवीलए (आचा १, ४, ४, १)।
पवुच्च° :: देखो पवय = प्र + वच।
पवुट्ठ :: वि [प्रवृष्ट] १ खूब बरसा हुआ, जिसने प्रभूत वृष्टि की हो वह (आचा २, ४, १, १३) २ न. प्रभूत वृष्टि, वर्षंण; 'काले पवुट्ठ' विअ अहिणंदिदं देवस्स सासणं' (अभि २२०)
पबुड्ढ :: वि [प्रवृद्ध] बढ़ा हुआ, विशेष बृद्ध (दे १, ९)।
पवुडि्ढ :: स्त्री [प्रवृद्धि] बढ़ाव (पंच ५, ३३)।
पवुत्त :: वि [प्रोक्त] १ जो कहने लगा हो, जिसने बोलना आरम्भ किया हो वह (पउम २७, १६; ९४, २१) २ उक्त, कथित (धर्मंवि ८२)
पवुत्थ :: [दे] देखो पउत्थ; 'खुड्डयं पुत्तं घेत्तुं गामे पवुत्था' (आक २३; २५)।
पवुद :: वि [प्रवृत] प्रकर्षं से आच्छादित (प्राकृ १२)।
पवूढ :: वि [प्रव्यूढ] १ धारण किया हुआ (स ५११) २ निर्गत (राज)
पवेइय :: वि [प्रवेदित] १ निवेदित, प्रति- पादित; 'तमेव सच्चं नीसंक जं जिणेहिं पवेइयं' (उप ३७४ टी; भग) २ विज्ञात, विदित (राज) ३ भेंट किया हुआ (उत्त १३, १३; सुख १३, १३)
पवेइय :: वि [प्रवेपित] कम्पित (पउम ५, ७८)।
पबेज्ज :: सक [प्र + वेदय्] १ विदित करना। २ भेंट करना। ३ अनुभव करना। पवेज्जए (सूअ १, ८, २४)
पवेढिय :: वि [प्रवेष्टित] घिरा हुआ, बेढ़ा हुआ (सुर १२, १०४)।
पवेय :: देखो पवेज्ज। पवेयंति (आचा १, ९, २, १२)। हेकृ. पवेइत्तए (कस)।
पवेयण :: न [प्रवेदन] १ प्ररूपण, प्रतिपादन। २ ज्ञान, निर्णय। ३ अनुभावन (राज)
पवेविय :: वि [प्रवेपित] प्रकम्पित (णाया १, १ — पत्र ४७; उत्त २२, ३६)।
पवेविर :: वि [प्रवेपितृ] काँपनेवाला (पउम ८०, ६४)।
पवेस :: सक [प्र + वेशय्] घुसाना। पवेसेइ (महा)। पवेसआमि (पि ४९०)।
पवेस :: पुं [प्रवेश] भीत की स्थूलता (ठा ४, २ — पत्र २२५)।
पवेस :: पुं [प्रवेश] १ पैठ, घुसना (कुमा; गउड; प्रासू २२) २ नाटक का एक हिस्सा (कप्पू)
पवेस :: पुं [प्रद्वेष] अधिक द्वेष (भवि)।
पवेसण, पवेसणग, पवेसणय :: पुंन [प्रवेशन, °क] १ प्रवेश, पैठ (पणह १, १; प्रासू ३८; द्रव्य ३२) २ विजातीय जन्मान्तर में उत्पत्ति, विजातीय योनि में प्रवेश (भग ९, ३२)
पवेसि :: वि [प्रवेशिन्] प्रवेश करनेवाला (औप)।
पवेसिय :: वि [प्रवेशित] घुसाया हुआ (सण)।
पवोत्त :: पुं [प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र (आक ८)।
पव्व :: पुंन [पर्वन्] १ ग्रन्थि, गाँठ (ओघ ४८९; जी १२; सुपा ५०७) २ उत्सव, त्यौहार (सुपा ५०७; श्रा २८) ३ पूर्णिमा और अमावास्या तिथि। ४ पूर्णिमा और अमावास्यावाला फक्ष (ठा ६ — पत्र ३७०; सुज्ज १०) ५ अष्टमी, चतुर्दंशी, पूर्णिमा और आमावास्या का दिन; 'अट्ठमी चउद्दसी पुण्णिमा य तहमावसा हवइ पव्वं। मासम्मि पब्बछक्कं तिन्नि य पव्वाइं पक्खम्मि' (धर्म २) ६ मेखला, गिरिमेखला। ७ द्रंष्ट्रा-पर्वंत (सूअ १, ६, १२) ८ संख्या-विशेष (इक)। °बीय पुं [°बीज] इक्षु-आदि वृक्ष, जिसका पर्वं — ग्रन्थि — ही उत्पत्ति का काणर होता है (राज)। °राहु पुं [°राहु] राहु-विशेष, जो पूर्णिमा और अमावास्या में क्रमशः चन्द्र और सूर्यं का ग्रहण करता है (सुज्ज १९)
पव्वइ :: न [पर्वतिन्] १ गोत्र-विशेष, काश्यप गोत्र की एक शाखा। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (राज)। देखो पव्वपेच्छइ।
पव्वइ° :: देखो पव्वई (गा ४५५)।
पव्वइअ :: वि [प्रव्रजित] १ दीक्षित, संन्यस्त (औप; दसनि २ — गाथा १६४) २ गत, प्राप्त; 'अगाराओ अणगारियं पव्वइया' (औप, सम; कप्प) ३ न. दीक्षा, संन्यास (वव १)
पव्वइंद :: पुं [पर्वतेन्द्र] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५ टी)।
पव्वइग :: देखो पव्वइअ (उप पृ ३३५)। स्त्री. °गा (उप पृपृ ५४)।
पव्वइसेल्ल :: न [दे] बाल-मय कंडक — तावीज (दे ६, ३१)।
पव्वई :: स्त्री [पार्वती] गौरी, शिव-पत्ती (पाअ)।
पव्वंग :: पुंन [पर्वाङ्ग] संख्या-विशेष (इक)।
पव्वक, पव्वग :: पुंन [पर्वक] १ वाद्य-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १४९) २ ईख जैसी ग्रन्थिवाली वनस्पति (पणण १) ३ तृण-विशेष (निचू १)
पव्वग :: वि [पार्वक] पर्व — ग्रन्थि — गाँठ का बना हुआ (आचा २, २, ३, २०)।
पव्वज्ज :: पुं [दे] १ नख। २ शर, बाण। ३ बाल-मृग (दे ६, ६९)
पव्वज्जा :: स्त्री [प्रव्रज्या] १ गमन, गति। २ दीक्षा, संन्यास (ठा ३, २; ४, ४; प्रासू १६७)
पव्वणी :: स्त्री [पर्वणी] कार्तिकी आदि पर्वं- तिथि (णाया १, १ — पत्र ५३)।
पव्वपेच्छइ :: न [पर्वप्रेक्षकिन्] देखो पव्वइ (ठा ७ — पत्र ३९०)।
पव्वय :: सक [प्र + व्रज्] १ जाना, गति करना। २ दीक्षा लेना, संन्यास लेना। पव्वयइ (महा)। भवि. पव्वइस्सामो, पव्वइहिति (औप)। वकृ. पव्वयंत, पव्वयमाण (सुर १, १२३; ठा ३, १)। हेकृ. पव्वइत्तए, पव्वइउं (औप; भग; सुपा २०९)
पव्वय :: देखो पव्वग (पणण १ — पत्र ३३)।
पव्वय :: देखो पव्वइअ; 'अगारमावसंतावि अरणणा वावि पध्वया' (सूअ १, १, १, १९)।
पव्वय, पव्वयय :: पुंन [पर्वत, °क] १ गिरि, पहाड़ (ठा ३, ४; प्रासु १५४; उवा), 'पव्वयाणि वणाणि य' (दस ७, २६, ३०) २ पुं, द्वितीय वासुदेव का पूर्वं-भत्रीय नाम (सम १५३; पउम २०, १७१) ३ एक ब्राह्मण-पुत्र का नाम (पउम ११, ९) ४ एक राजा (भवि) ५ एक राज-कुमार (उप ९३७)। °राय पुं [°राज] मेरु पर्वंत (सुज्ज ५)। °विदुग्ग पुंन [°विदुर्ग] पर्वंतीय देश, पहाड़वाला प्रदेश (भग)
पव्वयगिह :: न [पर्वतगृह] पर्वत की गुफा (आचा २, ३, ३, १)।
पव्वह :: सक [प्र + व्यथ्] पीड़ना, दुःख देना। पव्वहेजा (सूअ १, १, ४, ९)। कवकृ. पव्वहिज्जमाण (णाया १, १६ — पत्र १९९)।
पव्वहणा :: स्त्री [प्रव्यथना] व्यथा, पीड़ा (औप)।
पव्वहिय :: वि [प्रव्यथित] अति दुःखित (आचा १, २, ६, १)।
पव्वा :: स्त्री [पर्वा] लोकपालों की एक बाह्य परिषद् (ठा ३, २ — पत्र १२७)।
पव्वाअंत :: देखो पव्वाय = म्लै।
पव्वाइअ :: वि [प्रव्राजित] १ जिसको दीक्षा दी गई हो वह (सुपा ५६६) २ न. दीक्षा देना (राज)
पव्वाइअ :: वि [म्लान] विच्छाय, शुष्क (कुमा ६, १२)।
पव्वाइआ :: स्त्री [प्रव्राजिका] परिव्राजिका, संन्यासिनी (महा)।
पव्वाडिअ :: देखो पव्वालिअ = प्लावित (से ५, ४१)।
पव्वाण :: वि [म्लान] शुष्क, सूखा (ओघ ४८८)।
पव्वाय :: देखो पवाय = प्र + वा। पव्वाअइ (प्राकृ ७६)।
पव्वाय :: सक [प्र + व्राजय्] दीक्षित करना (सुपा ५६६)।
पव्वाण :: अक [म्लै] सूखना। पव्वायइ (हे ४, १८)। वकृ. पव्वाअंत (से ७, ६७)।
पव्वाय :: वि [म्लान, प्रवाण] शुष्क, सूखा हुआ (पाअ; ओघ ३६३; स २०३; से ४८; ९, ६३; पिंड ४४)।
पव्वाय :: पुं [प्रवात] प्रकृष्ट पवन (गा ६२३)।
पव्वाल :: सक [छादय] ढकना, आच्छादन करना। पव्वालइ (हे ४, २१)।
पव्वाल :: सक [प्लावय्] खूब भिजाना, तताबोर करना। पव्वालइ (हे ४, ४१)।
पव्वालण :: न [प्लावन] तराबोर करना (से ६, १५)।
पव्वालिअ :: वि [प्लावित] जल-व्याप्त, सरा- बोर किया हुआ (पाअ; कुमा; से ९, १०)।
पव्वालिअ :: वि [छादित] ढका हुआ (कुमा)।
पव्वाव :: सक [प्र + व्राजय्] दीक्षित करना, संन्यास देना। पव्वावेइ (भग)। संकृ. पव्वा- वेऊण (पंचव २)। हेकृ. पव्वावित्तए, पव्वावेत्तए, पव्वावेउं (ठा २, १; कस; पंचभा)।
पव्वावण :: न [प्रव्राजन] दीक्षा देना (उव; ओघ ४४२ टी)।
पव्वावण :: न [दे] प्रयोजन (पिंड ५१)।
पव्वावणा :: स्त्री [प्रव्राजना] दीक्षा देना (ओघ ४४३; पव २५; सूअनि १२७)।
पव्वाविय :: वि [प्रव्राजित] दीक्षित, साधु बनाया हुआ (णाया १, १ — पत्र ६०)।
पव्वाह :: सक [प्र + वाहय्] वहाना, प्रवाह में डालना। वकृ. पव्वाहमाण (भग ५, ४)।
पव्विद्ध :: वि [दे] प्रेरित (दे ६, ११)।
पव्विद्ध :: वि [प्रवृद्ध] महान् बड़ा (से १४, ५१)।
पव्विद्ध :: न [प्रविद्ध] गुरु-वन्दन का एक दोष, वन्दन को सामप्त किये बिना ही भागना (पव २)।
पव्वीसग :: न [दे. पव्वीसग] वाद्य-विशेष (पणह १, ४ — पत्र ६८)।
पसइ :: स्त्री [प्रसृति] १ नाप-विशेष, दो प्रसृति — पसर का एक परिमाण (तंदु २९) २ पूर्ण अञ्जलि, दो हस्त-तल — अँजुरी मिला कर भरी हुई चीज (कुप्र ३७४)
पसंग :: पुंन [प्रसङ्ग] १ परिचय, उपलक्ष (स ३०५) २ संगति, संबन्ध; 'लोए पलीवणं पिव पलालपूलप्पसंगेण' (ठा ४, ४; कुप्र २६); 'वरं दिट्ठिविसो सप्पो वरं हालाहलं विसं। हीणायारागीयत्थवयणपसंगं खु णो भद्दं' (संबोध ३६) ३ आपत्ति, अनिष्ट-प्राप्ति (स १७४) ४ मैथुन, काम-क्रीडा (पणह १, ४) ५ आसक्ति। ६ प्रस्ताव, अधिकार (गउड; भवि; पंचा ९, २९)
पसंगि :: वि [प्रसङ्गिन्] प्रसंग करनेवाला, आसक्त; 'जूयप्पसंगी' (महा; णाया १, २)।
पसंज :: अक [प्र + सञ्ज्] १ आसक्ति करना। २ आपत्ति होना, अनिष्ट-प्राप्ति होना। पसज्जइ (उव); 'अणिच्चे जीवलोगम्मि किं हिंसाए पसज्जसि' (उत्त १८, ११; १२)। पसज्जेज्जा (विसे २६९)
पसंडि :: न [दे] कनक, सुवर्णं (दे ६, १०)।
पसंत :: वि [प्रशान्त] १ प्रकृष्ट शान्त, शम- प्राप्त (कप्प; स ४०३; कुप्र) २ साहित्य- शास्त्र-प्रसिद्ध रस-विशेष, शान्त रस (अणु)
पसंति :: स्त्री [प्रशान्ति] नाश, विनाश; 'सव्व- दुक्खप्पसंतीणं' (अजि ३)।
पसंधण :: न [प्रसन्धान] सतत प्रवर्त्तन (पिंड ४६०)।
पसंस :: सक [प्रशंस्] श्लाधा करना। पसं- सइ (महा; भवि)। वकृ. पसंसंत, पसंस, - माण (पउम २८, १५; २२, ६८)। कवकृ. पसंसिज्जमाण (वसु)। संकृ. पसंसिऊण (महा)। कृ. पसंसणिज्ज, पसस्स, पसं- सियव्व (सुपा ४७; ६४५; सुर १, २१९; पउम ७५, ८), देखो पसंस।
पसंस :: वि [प्रशस्य] १ प्रशंसा-योग्य। २ पुं. लोभ (सूअ १, २, २, २९)
पसंसण :: न [प्रशंसन] प्रशंसा, श्लाघा (उप १४२ टी; सुपा २०६; उप पं १७)।
पसंसय :: वि [प्रशंसक] प्रशंसा करनेवाला (श्रा ६; भवि)।
पसंसा :: स्त्री [प्रशंसा] श्लाघा, स्तुति, वर्णंन (प्रासू १६७; कुमा)।
पसंसिअ :: वि [प्रशंसित] श्लाघित (उत्त १४, ३८)।
पसज्ज° :: देखो पसंज।
पसज्झ, पसज्झं :: अ [प्रसह्य] १ खुले तौर से, प्रकट रीति से (सूअ १, २, २, १९) २ हठात्, बलात्कार से (स ३१)
पसज्झचेय :: न [प्रसह्यचेतस्] धर्मं-निरपेक्ष चित्त, कदाग्रही मन (दसचू १, १४)।
पसढ :: वि [प्रसह्य] अनेक दिन रखकर खुला किया हुआ (दस ५, १, ७२)।
पसढ :: वि [प्रशठ] अत्यन्त शठ (सूअ २, ४, ३)।
पसढं :: देखो पसज्झ (दस ५, १, ७२)।
पसढिल :: वि [प्रशिथिल] विशेष ढीला (हे १, ८९)।
पसण्ण :: वि [प्रसन्न] १ खुश, स्वस्थ (से ५, ४१; गा ४६५) २ स्वच्छ, निर्मंल (औप; ओघ ३४५)। °चंद पुं [°चन्द्र] भगवान् महावीर के समय का एक राजर्षि (उव; पडि)
पसण्णा :: स्त्री [प्रसन्ना] मदिरा, दारू (णाया १, १६; विपा १, २)।
पसत्त :: वि [प्रसक्त] १ चिपका हुआ (गउड ५१) २ आसक्त (गउड ५३१; उव) ३ आपत्ति-ग्रस्त, अनिष्ट-प्राप्ति के दोष से युक्त (विसे १८५६)
पसत्ति :: स्त्री [प्रसक्ति] १ आसक्ति, अभिष्वङ्ग (उप १३१) २ आपत्ति-दोष (अज्झ ११६)
पसत्थ :: वि [प्रशस्त] १ प्रशंसनीय, श्लाघनीय। २ श्रेष्ठ, अच्छा (हे २, ४५; कुमा)
पसत्थि :: स्त्री [प्रशस्ति] वंशोत्कीर्तंन, वंश- वर्णंन (गउड; सम्मत्त ८३)।
पसत्थु :: पुं [प्रशास्तृ] १ लेखाचार्यं, गणित का अध्यापक (ठा ३, १) २ धर्मं-शास्त्र का पाठक (ठा ३, १; औप) ३ मन्त्री, अमात्य (सूअ २, १, १३)
पसन्न :: देखो पसण्ण (महा; भवि; सुपा ६१४)।
पसन्ना :: देखो पसण्णा (पाअ; पउम १०२, १२२; सुख २, २९)।
पसप्प :: पुं [प्रसर्प] विस्तार, फैलाव (द्रव्य १०)।
पसप्पग :: वि [प्रसर्पक] १ प्रकर्षं से जानेवाला, मुसाफिरी करनेवाला। २ विस्तार को प्राप्त करनेवाला (ठा ४, ४ — पत्र २६४)
पसम :: अक [प्र + शम्] अच्छी तरह शान्त होना। पसमंति (आक १६)।
पसम :: पुं [प्रशम] १ प्रशान्ति, शान्ति (कुमा) २ लगातार दो उपवास (संबोध ५८)
पसम :: पुं [प्रश्रम] विशेष मेहनत — खेद (आव ४)।
पसमण :: न [प्रशमन] १ प्रकृष्ट शमन (पिंड ६६३; सुर १, २४९) २ वि. प्रशान्त करनेवाला (स ६९५)। स्त्री. °णी (कुमा)
पसमाविअ :: वि [प्रशमित] प्रशान्त किया हुआ (स ६२)।
पसमिक्ख :: सक [प्रसम् + ईक्ष्] प्रकर्षं से देखना। संकृ. पसमिक्ख (उत्त १४, ११)।
पसमिण :: वि [प्रशमिन्] प्रशान्त करनेवाला, नाश करनेवाला; 'पावंति, पावपसमिण पास- जिण तुह प्पभावेण' (णमि १७)।
पसम्म :: देखो पसम = प्र + शम। पसम्मइ (गउड)। वकृ. पसम्मंत (से १०, २२; गउड)।
पसय :: पुं [दे] १ मृग-विशेष (दे ६, ४; पणह १, १; भवि; सण; महा) २ मृग-शिशु (विपा १, ४)
पसय :: वि [प्रसृत] फैला हुआ, 'पसयच्छि !' (वज्जा ११२; १४४)। देखो पसिअ = प्रसृत।
पसर :: अक [प्र + सृ] फैलना। पसरइ (पि ४७७; भवि)। वकृ. पसरंत (सुर १, ८९; भवि)।
पसर :: पुं [प्रसर] विस्तार, फैलाव (हे ४, १५७; कुमा)।
पसरण :: न [प्रसरण] ऊपर देखो (कप्पू)।
पसरिअ :: वि [प्रसृत] फैला हुआ, विस्तृत (औप; गा ४; भवि; णाया १, १)।
पसरेह :: पुं [दे] किंजल्क (दे ६, १३)।
पसल्लिअ :: वि [दे] प्रेरित (षड्)।
पसव :: सक [प्र + सू] जन्म देना, उत्पन्न करना। पसवइ (हे ४, २३३)। पसवंति (उव)। वकृ. पसवमाण (सुपा ४३४)।
पसव :: (अप) सक [प्र + विश्] प्रवेश करना। पसवइ (प्राकृ ११९)।
पसव :: पुं [प्रसव] १ जन्म, उत्पत्ति (कुमा) २ न. पुष्प, फूल; 'कुसुमं पसवं पसूअं च' (पाअ), 'पुप्फाणि अ कुसुमाणि अ फुल्लाणि तहेव होंति पसवाणि' (दसनि १, ३६)
पसव :: [दे] देखो पसय। 'पसवा हवति एए' (पउम ११, ७७)। °नाह पुं [°नाथ] मृग- राज, सिंह (स ६५७)। °राय पुं [°राज] सिंह (स ६५७)।
पसवडक्क :: न [दे] विलोकन (दे ६, ३०)।
पसवण :: न [प्रसवन] प्रसूनि, जन्म-दान (भग; उप ७४४; सुर ९, २४८)।
पसवि :: वि [प्रसविन्] जन्म देनेवाला (नाट — शकु ७४)।
पसविय :: वि [प्रसूत] जो जन्म देने लगा हो, जिसने जन्म दिया हो वह; 'सयमेव पसविया हं महाकिलेसेण नरनाह' (सुर १०, २३०; सुपा ३९)। देखो पसूअ = प्रसूत।
पसविर :: वि [प्रसवितृ] जन्म देनेवाला (नाट)।
पसस्स :: देखो पसंस।
पसस्स :: वि [प्रशस्य] प्रभूत शस्यवाला (सुपा ६४५)।
पसाइअ :: वि [प्रसादित] १ प्रसन्न किया हुआ (स ३८६; ५७६) २ प्रसन्न होने के कारण दिया हुआ, 'अंगविलग्गमसेसं पसाइयं कडयवत्थाइं' (सुर १, १६३)
पसाइआ :: स्त्री [दे] भिल्ल के सिर पर का पर्णं-पुट, भिल्लों की पगड़ी (दे ६, २)।
पसाइयव्व :: देखो पसाय = प्र + सादय्।
पसाम :: वि [प्रशाम्] शान्त होनेवाला (षड्)।
पसाय :: सक [प्र + सादय्] प्रसन्न करना, खुश करना। पसाअंति, पसाएसि (गा ९१; सिक्खा ६१)। वकृ. पसाअमाण (गा ७४५)। हेकृ. पसाइउं, पसाएउं (महा; गा ५२४)। कृ. पसाइयव्व (सुपा ३६५)।
पसाय :: पुं [प्रसाद] १ प्रसर्त्ति, प्रसन्नता, खुशो; 'जणमणपसायजणाणो' (वसु) २ कृपा, मेहरबानी (कुमा) ३ प्रणय (गा ७१)
पसायण :: न [प्रसादन] प्रसन्न करना, 'देव- पसायणपहाणमणो' (कुप्र ५; सुपा ७, महा)।
पसार :: अक [प्र + सारय्] पसारना, फैलाना। पसारेइ (महा)। वकृ. पसारेमाण (णाया १, १; आचा)। संकृ. पसारिअ (नाट — मृच्छ २५५)।
पसार :: पुं [प्रसार] विस्तार, फैलाव (कप्पू)।
पसारण :: न [प्रसारण] ऊपर देखो (सुपा ५८३)।
पसारिअ :: वि [प्रसारित्] १ फैलाया हुआ (सण; नाट — वेणी २३) २ न. प्रसारण (सम्मत्त १३३; दस ४, ३)
पसास :: सक [प्र + शासय्] १ शासन करना, हुकुमत करना। २ शिक्षा देना। ३ पालन करना। वकृ. 'रज्जं पसासेमाणे विहरइं' (णाया १, १ टी — पत्र ६; १ १४ — पत्र १८९; औप; महा)
पसाह :: सक [प्र + साधय्] १ बस में करना। २ सिद्ध करना। पसाहेइ (नाट; भवि)। वकृ. पसाहेमाण (औप)
पसाहग :: वि [प्रसाधक] साधक, सिद्ध करनेवाला (धर्मंसं २६)। °तम वि [°तम] १ उत्कृष्ट साधक। २ न. व्याकरण-प्रसिद्ध कारक-विशेष; कारण-कारक (विसे २११२)। देखो पसाहय।
पसाहण :: न [प्रसाधन] १ सिद्ध करना, साधना; 'विज्जापसाहणुज्जयविज्जाहर- संनिरुदधएगंतो' (सुर ३, १२) २ उत्कृष्ट साधन; 'सव्वुत्तमं माणुसत्तं दुल्लहं भवसमुद्दे पसाहणं नेव्वाणस्स न निउंजेंति धम्मे' (स ७४४) ३ अलंकार, भूषण (णाया १, ३; से ३, ४४) ४ भूषण आदि की सजावट; भूसणपसाहणाडंबरेहिं' (वज्जा ११४; सुपा ६६)
पसाहय :: देखो पसाहग (काल)। २ सजानेवाला (भग ११, ११)
पसाहा :: स्त्री [प्रशाखा] शाखा की शाखा, छोटी शाखा (णाया १, १; औप महा)।
पसाहाविय :: वि [प्रसाधित] विभूषित कराया गया, सजवाया हुआ (भवि)।
पसाहि :: वि [प्रसाधिन्] सिद्ध करनेवाला, 'अब्भुदयपसाहिणी' (संबोध ८; ५४)।
पसाहिअ :: वि [प्रसाधित] अलंकृत किया हुआ, सजाया हुआ (से ४, ६१; पाअ)।
पसाहिल्ल :: वि [प्रशाखिन्] प्रशाखा-युक्त (सुर ८, १०८)।
पसिअ :: अक [प्र + सद्] प्रसन्न होना। पसिअ (गा ३८४; ४६६; हे १, १०१)। पसियइ (सण)। संकृ. पसिऊण, पसिऊणं (सण; सुपा ७)।
पसिअ :: वि [प्रसृत] फैला हुआ, विस्तीर्णं, 'पसिअच्छि !' (गा ९२०; ९२३)।
पसिअ :: न [दे] पूग-फल, सुपारी (दे ६, ६)।
पसिंच :: सक [प्र + सिच्] सेचन करना। वकृ. पसिंचमाण (सुर १२, १७२)।
पसिंडि :: (दे) देखो पसंडि (पाअ)।
पसिक्खअ :: वि [प्रशिक्षक] सीखनेवाला (गा ६२९ अ)।
पसिज्जण :: न [प्रसदन] प्रसन्न होना, 'अत्य- क्करूसणं खणपसिज्जणं अलिअवअणणिब्बंधो' (गा ६७५)।
पसिढिल :: देखो पसढिल (हे १, ८९; गा १३३; गउड)।
पसिण :: पुंन [प्रश्न] १ पृच्छा, प्रश्न (सुपा ११, ४५३) २ दर्पंण आदि में देवता का आह्वान, मन्त्रविद्या-विशेष (सम १२३; बृह १)। °विज्जा स्त्री [°विद्या] मन्त्रविद्या- विशेष (ठा १०)। °पसिण न [°प्रश्न] मन्त्रविद्या के बल से स्वप्न आदि में देवता के आह्वान द्वारा जाना हुआ शुभाशुभ फल का कथन (पव २; बृह १)
पसिणिय :: वि [प्रश्नित] पूछा हुआ (सुपा १९; ६२५)।
पसिद्ध :: वि [प्रसिद्ध] १ विख्यात, विश्रुत (महा) २ प्रकर्षं से मुक्ति को प्राप्त, मुक्त (सिरि ५६५)
पसिद्धि :: स्त्री [प्रसिद्घि] १ ख्याति (हे १, ४४) २ शंका का समाधान, आक्षेप का परिहार (अणु; चेइय ४९)
पसिस्स :: देखो पसीस (विसे १४)।
पसीअ :: देखो पसिअ = प्र + सद्। पसीयइ, पसीयउ (कुप्र १)। संकृ. पसीऊण (सण)।
पसीस :: पुं [प्रशिष्य] शिष्य का शिष्य (पउम ४, ८६)।
पसु :: पुं [पशु] १ जन्तु-विशेष, सींग पूँछवाला प्राणी, चतुष्पाद प्राणि-मात्र (कुमा; औप) २ अज, बकरा (अणु)। °भूय वि [°भूत] पशु-तुल्य (सूअ १, ४, २)। °मेह पुं [°मेध] जिसमें पशु का भोग दिया जाता हो वह यज्ञ (पउम ११, १२)। °वइ पुं [°पति] महादेव, शिव (गा १; सुपा ३१)
पसुत्त :: वि [प्रसुप्त] सोया हुआ (हे १, ४४; प्राप्र; णाया १, १६)।
पसुत्ति :: स्त्री [प्रसुप्ति] कुष्ठ रोग विशेष, नखादि-विदारण होने पर भी अचेतनमा (राज)। देखो पसूह।
पसुव :: (अप) देखो पसु (भवि)।
पसुहत्त :: पुं [दे] वृक्ष, पेड़ (दे ६, २९)।
पसू :: सक [प्र + सू] जन्म देना, प्रसव करना। वकृ. पसूअमाण (गा १२३)। संकृ. पसूइत्ता (राज)।
पसू :: वि [प्रसृ] प्रसव-कर्ता, जन्म-दाता (मोह २६)।
पसूअ :: न [दे] पुष्प, फूल (दे ६, ९; पाअ; भवि)।
पसूअ :: वि [प्रसृत] १ उत्पन्न, जो पैदा हुआ हो (णाया १, ७; उव; प्रासू १५९) २ देखो पसविय (महा)
पसूअण :: न [प्रसवन] जन्म-दान (सुपा ४०३)।
पसूइ :: स्त्री [प्रसृति] १ प्रसब, जन्म, उत्पत्ति (पउम २१, ३४; प्रासू १२८) २ एक प्रकार का कुष्ठ रोग, नखादि से विदारण करने पर भी दुःख का असंवेदन, चमड़ी का मर जाना (पिंड ६००)। °रोग पुं [°रोग] रोग-विशेष (सम्मत्त ५८)
पसूइय :: पुं [प्रसूतिक] वातरोग-विशेष (सिरि ११७)।
पसूण :: न [प्रसून] फूल, पुष्प (कुमा; सण)।
पसेअ :: पुं [प्रस्वेद] पसीना (दे ६, १)।
पसेढि :: स्त्री [प्रश्रेणी] अवान्तर श्रेणि — पंक्ति (पि ६६; राय)।
पसेण :: पुं [प्रसेन] भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम श्रावक का नाम (विचार ३७८)।
पसेणइ :: पुं [प्रसेनजित्] १ कुलकर-पुरुष- विशेष (पउम ३, ५५; सम १५०) २ यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत ३)
पसेणि :: स्त्री [प्रश्रेणि] अवान्तर जाति, 'अट्ठारससेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ' (णाया १, १ — पत्र ३७)।
पसेयग :: देखो पसेवय (राज)।
पसेव :: सक [प्र + सेव्] विशेष सेवा करना। वकृ. पसेवमाण (श्रु ५५)।
पसेवय :: पुं [प्रसेवक] कोथला, थैला; 'णहावि- यपसेवओव्व उरंसि लंबंति दोवि तस्स थणया' (उवा)।
पसेविआ :: स्त्री [प्रसेविका] थैली, कोथली (दे ५, २५)।
परस :: सक [दृश्] देखना। पस्सइ (षड्; प्राकृ ७१)। वकृ. पस्समाण (आचा; औप; वसु; विपा १, १)। कृ. पस्स (ठा ४, ३)।
पस्स :: (शौ) देखो पास = पार्श्वं (अभि १८९; अवि २९; स्वप्न ३९)।
पस्स :: देखो पस्स = दृश्।
पस्सओहर :: वि [पश्यातोहर] देखते हुए चोरी करनेवाला, सुनार, उचक्का; 'नणु एसो पस्सओहरो तेणो' (उप ७२८ टी)।
पस्सि :: वि [दर्शिन्] देखनेवाला (पणण ३०)।
पस्सेय :: देखो पसेअ (सुख २, ८)।
पह :: वि [प्रह्ल] १ नम्र। २ विनीत। ३ आसक्त (प्राकृ २४)
पह :: पुं [पथिन्] मार्गं, रास्ता (हे १, ८८; पाअ; कुमा; श्रा २८; विसे १०५२; कप्प; औप)। °देसय वि [°देशक] मार्ग-दर्शंक (पउम ६८, १७)।
पहएल्ल :: पुं [दे] अपूप, पूआ, खाद्य-विशेष (दे ६, १८)।
पहंकर :: देखो पभंकर (उत्त २३; ७६; सुख २३, ७६; इक)।
पहंकरा :: देखो पभंकरा (इक)।
पहंजण :: पुं [प्रभञ्जन] १ वायु, पवन (पाअ) २ देव-जाति-विशेष, भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति (सुपा ४०) ३ एक राजा (भवि)
पहकर :: [दे] देखो पहयर (णाया १, १; कप्प; औप; उप पृ ४७; विपा १, १; राय; भग ९, ३३)।
पहट्ठ :: वि [दे] १ दृप्त, उद्धत (दे ६, ९; षड्) २ अचिरतर दृष्ट, थोड़े ही समय के पूर्वं देखा हउआ (षड्)
पहट्ठ :: वि [प्रहृष्ट] आनन्दित, हर्षं-प्राप्त (औप; भग)।
पहण :: सक [प्र + हन्] मार डालना। पहणइ, पहणे (महा; उत्त १८, ४९)। कर्मं. पहणिज्जइ (महा)। वकृ. पहणंत (पउम १०५, ६५)। कवकृ. पहम्मंत, पहम्ममाण (पि ५४०; सुर २, १४)। हेकृ. पहणिउं, पहणंउं (कुप्र २५; महा)।
पहण :: न [दे] कुल, वंश (दे ६, ५)।
पहणि :: स्त्री [दे] संमुखागत का निरोध, सामने आए हुए का अटकाव (दे ६, ५)।
पहणिय :: देखो पहय = प्रहत (सुपा ४)।
पहत्थ :: पुं [प्रहस्त] रावण का मामा (से १२, ५५)।
पहद :: वि [दे] सदा दृष्ट (दे ६, १०)।
पहम्म :: सक [प्र + हम्म्] प्रकर्षं से गति करना। पहम्मइ (हे ४, १६२)।
पहम्म :: न [दे] १ सुर-खात, देव-कुण्ड (दे ६, ११) २ खात-जल, कुण्ड। ३ विवर, छिद्र (से ९, ४३)
पहम्मंत, पहम्ममाण :: देखो पहण = प्र + हन्।
पहय :: वि [प्रहत] १ घृष्ट, घिसा हुआ (से १, ५८; बृह १) २ मार डाला गया, निहत (महा)
पहय :: वि [प्रहृत] जिस पर प्रहार किया गया हो वह, 'पहया अहिमंतियजलेण' (महा)।
पहयर :: पुं [दे] निकर, समूह, यूथ (दे ६, १५; जय १३; पाअ)।
पहर :: सक [प्र + हृ] प्रहार करना। पहरइ (उव)। वकृ. पहरंत (महा)। संकृ. पहरिऊण (महा)। हेकृ. पहरिउं (महा)।
पहर :: पुं [प्रहार] १ मार, प्रहार (हे १, ६८; षड्, प्राप्र; संक्षि २) २ जहाँ पर प्रहार किया हो वह स्थान (से २, ४)
पहर :: पुं [प्रहर] तीन घंटे का समय (गा २८; ३१; पाअ)।
पहरण :: न [प्रहरण] १ अस्त्र, आयुध (आचा; औप; विपा १, १; गउड) २ प्रहार-क्रिया (से ३, ३८)
पहराइया :: देखो पहाराइया (पणण १ — पत्र ६४)।
पहराय :: पुं [प्रभराज] भरतक्षेत्र का छठवाँ प्रतिवासुदेव (सम १५४)।
पहरिअ :: वि [प्रहृत] १ प्रहार करने के लिए उद्यत (सुर ९, १२९) २ जिस पर प्रहार किया गया हो वह (भवि)
पहरिस :: पुं [प्रहर्ष] आनन्द, खुशी; 'आमोओ पहरिसो तोसो' (पाअ; सुर ३, ४०)।
पहलादिद :: (शौ) वि [प्रह् लादित] आनन्दित (स्वप्न १०६)।
पहल्ल :: अक [घूर्णं] घूमना, काँपना, डोलना, हिलना। पहल्लइ (हे ४, ११७; षड्)। वकृ.पहल्लंत (सुर १, ६९)।
पहल्लिर :: वि [प्रघूर्णितृ] घूमनेवाला, डोलता (कुमा; सुपा २०४)।
पहव :: अक [प्र + भू] १ उत्पन्न होना। २ समर्थं होना। पहवइ (पंचा १०, १०; स ७०; संक्षि ३६)। भवि. पहविस्सं (पि ५२१)। वकृ. पहवंत (नाट — मालति ७२)
पहव :: पुं [प्रभव] उत्पत्ति-स्थान (अभि ४१)।
पहव :: देखो पहाव = प्रभाव (स ६३७)।
पहव :: देखो पह = प्रह्व (विसे ३००८)।
पहव :: पुं [प्रभव] एक जैन महर्षि (कुमा)।
पहविय :: वि [प्रभूत] जो समर्थ हुआ हो, 'मणिकुंडलाणुभावा सत्थं नो पहवियं नरिंदस्स' (सुपा ६१५)।
पहस :: अक [प्र + हस्] १ हसना। २ उपहास करना। पहसइ (भवि; सण)। वकृ. पहसंत (सण)
पहसण :: न [प्रहसन] १ उपहास, परिहास। २ नाटक का एक भेद, हास्य-रस प्रधान नाटक रूपक-विशेष; 'पहसणप्पायं कामसत्थ- वयणं' (स ७१३; १७७; हास्य ११९)
पहसिय :: वि [प्रहसित] १ जो हसने लगा हो (भग) २ जिसका उपहास किया हो वह (भवि) ३ न. हास्य (बृह १) ४ पुं. पवनञ्जय का एक विद्याधर-मित्र (पउम १५, ५६)
पहा :: सक [प्र + हा] १ त्याग करना। २ अक. कम होना, क्षीण होना; 'पहेज्ज लोहँ' (उत्त ४, १२; पि ५६६)। वकृ. पहिज्जमाण, पहेज्जमाण (भग; राज)। संकृ. पहाय, पहिऊण (आचा १, ९, १, १; वव ३)
पहा :: स्त्री [प्रथा] १ रीति, व्यवहार। २ ख्याति, प्रसिद्धि (षड्)
पहा :: स्त्री [प्रभा] कान्ति, तेज, आलोक, दीप्ति (औप; पाअ; सुर २, २३५; कुमा; चेइय ५१४)। °मंडल देखो भामंडल (पउम ३०, ३२)। °यर पुं [°कर] १ सूर्यं, रवि। २ रामचन्द्र के भाई भरत से साथ दीक्षा लेनेवाला एक राजर्षि (पउम ८५, ५)। °वई स्त्री [°वती] आठवें वासुदेव की पटरानी (पउम २०, १८७)
पहाड :: सक [प्र + घ्राटय्] इधर उधर भमाना, घुमाना। पहाडेंति (सूअनि ७० टी)।
पहाण :: वि [प्रधान] १ नायक, मुखिया, मुख्य; 'अवगन्नइ सव्वेवि हु पुरप्पहाणेवि' (सुपा ३०८), 'तत्थत्थि वणिप्पहाणो सेट्ठी वेसमणनामओ' (सुपा ६१७) २ उत्तम, प्रशस्त, श्रेष्ठ, शोभन (सुर १, ४८; महा; कुमा; पंचा ६, १२) ३ स्त्रीन. प्रकृति — सत्त्व, रज और तमोगुण की साम्यावस्था; 'ईसरेण कडे लोए पहाणाइ तहावरे' (सूअ १, १, ३, ६) ४ पुं. सचिव, मन्त्री (भवि)
पहाण :: पुं [पाषाण] पत्थर (चउप्पन्न°)।
पहाण :: न [प्रहाण] अपगम, विनाश (धर्मंसं ८७५)।
पहाणि :: स्त्री [प्रहाणि] ऊपर देखो (उत्त ३, ७; उप ९८६ टी)।
पहाम :: सक [प्र + भ्रमय्] फिराना, घुमाना। कवकृ. पहामिज्जंत (से ७, ६९)।
पहाय :: देखो पहा = प्र + हा।
पहाय :: न [प्रभात] १ प्रातःकाल, सबेरा (गउड; सुपा ३६; ६०२) २ वि. प्रभा- युक्त (से ९, ४४)
पहाय :: देखो पहाव = प्रभाव (हे ४, ३४१; हास्य १३२; भवि)।
पहाया :: देखो वाहाया (अनु)।
पहार :: सक [प्र + धारय्] १ चिन्तन करना, विचार करना। २ निश्चय करना। भूका. पहारेत्थ, पहारेत्था, पहारिंसु (सुअ २, ७, ३६; औप; पि ५१७; सूअ २, १, २०)। वकृ. पहारेमाण (सूअ २, ४, ४)
पहार :: देखो पहर = (पाअ; हे १, ६८)।
पहाराइया :: स्त्री [प्रहारातिगा] लिपि-विशेष (सम ३५)।
पहारि :: वि [प्रहारिन्] प्रहार करनेवाला (सुपा २१५; प्रासू ९८)।
पहारिय :: वि [प्रहारिन] जिस पर प्रहार किया गया हो वह (स ५९८)।
पहारिय :: वि [प्रधारित] विकल्पित, चिन्तित (राज)।
पहारेत्तु :: वि [प्रधारयितृ] चिन्तन करनेवाला, 'अहाकम्मे अणवज्जेति मणं पहारेत्ता भवति' (भग ५, ६)।
पहाव :: सक [प्र + भावय्] प्रभाव-युक्त करना, गौरवित करना। पहावइ (सण)। संकृ. पहाविऊण (सण)।
पहाव :: (अप) अक [प्र + भू] समर्थं होना। पहावइ (भवि)।
पहाव :: पुं [प्रभाव] १ शक्ति, सामर्थ्यं; 'तुमं च तेतलिपुत्तस्स पहावेण' (णाया १, १४; अभि ३८) २ कोष और दण्ड का तेज। ३ माहात्म्य; 'तायपहाविओ चेव में अविग्धं भविस्सइ त्ति' (स २९०, गउड)
पहावणा :: देखो पभावणा (कुप्र २८४)।
पहाविअ :: वि [प्रधावित] दौड़ा हुआ (स ५८४; गा ५३५; गउड)।
पहाविर :: वि [प्रधावितृ] दौड़नेवाला (वज्जा ९२; गा २०२)।
पहास :: सक [प्र + भाष्] बोलना। पहासई (सुख ४; ६); 'नाऊण चुन्नियं तं पहगिट्ठहियया पहासई पावा' (महा)।
पहास :: अक [प्र + भास्] चमकना, प्रकाशना। वकृ. पहासंत (सार्धं ५९)।
पहास :: पुं [प्रहास] अट्टहास आदि विशेष हास्य (दस १०, ११)।
पहासा :: स्त्री [प्रहासा] देवी-विशेष (महा)।
पहिअ :: वि [पान्थ, पथिक] मुसाफिर (हे २, १५२; कुमा; षड्; उव; गउड)। °साला स्त्री [°शाला] मुसाफिरखाना, धर्मंशाला (धर्मंवि ७०; महा)।
पहिअ :: वि [प्रथित] १ विस्तृत। २ प्रसिद्ध, विख्यात (औप) ३ राक्षसस-वंश का एक राजा एक लंका-पति (पउम ५; २६२)
पहिअ :: वि [प्रहित] भेजा हुआ, प्रेषित (उप पृ ४५; ७६८ टी; धम्म ९ टी)।
पहिअ :: वि [दे] मथित, विलोडित (दे ६, ६)।
पहिऊण :: देखो पहा = प्र + हा।
पहिसय :: वि [प्रहिंसक] हिंसा करनेवाला (ओघ ७५३)।
पहिज्जमाण :: देखो पहा = प्र + हा।
पहिट्ठ :: देखो पहट्ठ = प्रहृष्ट (औप; सुर ३, २४८; सुपा ९३; ४३७)।
पहिर :: सक [परि + धा] पहिरना, पहनना। पहिरइ, पहिरंति (भवि; धर्मंवि ७)। कर्मं. पहिरिज्जइ (संबोध १४)। वकृ. पहिरंत (सिरि ९८)। संकृ. पहिरिउं (धर्म्मवि १५)। प्रयो., संकृ. पहिरावेऊण, पहिराविऊण (सिरि ४५९; ७७०)।
पहिरावण :: न [परिधापन] १ पहिराना। २ पहिरावन, भेंट में-इनाम में दिया जाता वस्त्रादि; गुजराती में — 'पहिरामणी' (श्रा २८)
पहिराविय :: वि [परिधापित] पहिराया हुआ (महा; भवि)।
पहिरिय :: वि [परिहित] पहिरा हुआ, पहना हुआ (सम्मत्त २१८)।
पहिल :: वि [दे] पहला, प्रथम (संक्षि ४७; भवि; पि ४४९)। स्त्री. °ली (पि ४४९)।
पहिल्ल :: अक [दे] पहल करना, आगे करना। पहिल्लइ (पिंग)। संकृ. पहिल्लिअ (पिंग)।
पहिल्लिर :: वि [प्रघूर्णितृ] खूब हिलनेवाला, अत्यन्त हिलता (सम्मत्त १८७)।
पहिवी :: देखो पुहवी = पृथिवी (नाट)।
पहीण :: वि [प्रहीण] १ परिक्षीण (पिंड ६३१; भग) २ भ्रष्ट, स्खलित (सूअ २, १, ६)
पहु :: पुं [प्रभु] १ परमेश्वर, परमात्मा (कुमा) २ एक राज-पुत्र, जयपुर के विन्ध्यराज का एक पुत्र (वसु) ३ स्वामी, मालिक (सुर ४, १५९) ४ वि. समर्थं, शक्तिमान; 'दाणं दरिद्दस्स पहुस्स खंती' (प्रासू ४८) ५ अधि- पति, मुखिया, नायक (हे ३, ३८)
°पहुइ :: देखो °पभिइ (कप्पू)।
पहुई :: देखो पुहुवी (षड्)।
पहुंक :: पुं [पृथुक] खाद्य पदार्थं विशेष, चिउड़ा (दे ६, ४४)।
पहुच्च :: अक [प्र + भू] पहुँचाना। पहुच्चइ (हे ४, ३९०)। वकृ. पहुच्चमाण (ओघ ५०५)।
पहुट्ट :: देखो पप्फुट्ट। पहुट्टइ (कप्पू)।
पहुडि :: देखो पभिइ (हे १, १३१; ती १०; षड्)।
पहुण :: पुं [प्राघुण] अतिथि, मेहमान (उप ९०२)।
पहुणाइय :: न [प्राघुण्य] आतिथ्य, अतिथि- सत्कार; 'न्हाणभोयणबत्थाहरणदाणइप्पहु- णाडि (? इ) यं संपाडेइ' (रंभा)।
पहुत्त :: वि [प्रभूत] १ पर्याप्त, काफी; 'पज्जतं च पहुत्तं' (पाअ; गउड; गा २७७) २ समर्थं (से २, ९) ३ पहुँचा हुआ (ती १५)
पहुदि :: देखो पभिइ (संक्षि ४; प्राकृ १२)।
पहुप्प, पहुव :: अक [प्र + भू] १ समर्थं होना, सकना। २ पहुँचना। पहुप्पइ (हे ४, ६३; प्राक़ृ ६२); 'एयाओ बालियाओ निय- नियगेहेसु जह पहुप्पंति तह कुणइ' (सुपा २५०)। पहुप्पामो (काल), पहुप्पिरे (हे ३, १४२)। वकृ. 'किं सहइ कोवि कस्सवि पाअ- पहारं पहुप्पंतो, ' पहुप्पमाण (गा ७; ओघ ५०५; किरात १६)। कवकृ. पहुव्वंत (से १४, २५; वव १०)। हेकृ. पहुविउं (महा)
पहुवी :: स्त्री [पृथिवी] भूमि, धरती (नाट — मालती ७२)। °पहु पुं [°प्रभु] राजा (हम्मीर १७)। °वइ पुं [°पति] वही अर्थ (हम्मीर १६)।
पहुव्वंत :: देखो पहुव।
पहूअ :: वि [प्रभूत] १ बहुत, प्रचुर (स ४५९) २ उद्गत। ३ भूत। ४ उन्नत (प्राकृ ६२)
पहेज्जमाण :: देखो पहा = प्र + हा।
पहेण :: न [दे] वधू को ले जाने पर पिता के घर दी जाती जमीन (आचा २, १, ४, १)।
पहेण, पहेणग, पहेणय :: न [दे] १ भोजनापायन, खाद्य वस्तु की भेंट (आचा; सूअ २, १, ५६; गा ३२८; ६०३; पिंड ३३५; पाअ; दे ६, ७३) २ उत्सव (दे ६, ७३)
पहेरक :: न [प्रहेरक] आभरण-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १४९)।
पहेलिया :: स्त्री [प्रहेलिका] गूढ़ आश्रयवाली कविता (सुपा १५५; औप)।
पहोअ :: सक [प्र + धाव्] प्रक्षालन करना, धोना। पहोएज्ज (आचा २, २, १, ११)।
पहोइ :: वि [प्रधाविन्] धोनेवाला (दस ४, २६)।
पहोइअ :: वि [दे] १ प्रवर्त्तित। २ प्रभुत्व (दे ६, २६)
पहोड :: सक [वि + लुल्] हिलोरना, अन्दो- लना। पहोडइ (धात्वा १४४)।
पहोयण :: स्त्रीन [प्रधावन] प्रक्षालन, 'दंतपहो- यण य' (दस ३, ३)।
पहोलिर :: वि [प्रघूर्णितृ] हिलनेवाला, डोलता (गा ७८; ६९६; से ३, ४९; पाअ)।
पहोव :: देखो पधोव। पहोवाहि (आचा २, १, ६, ३)।
पासक :: [पा] पीना, पान करना। भवि, पाहिसि, पाहामि, पाहामो (कप्प; पि ३१५; कस)। कर्मं. पिज्जइ (उव) पीअंति (पि ५३९)। कवकृ. पिज्जंत (गउड; कुप्र १२०)। पीयमाण (स ३८२), पेंत (अप) (सण)। संकृ. पाऊण, पाऊणं (नाट — मुद्रा ३९; गउड; कुप्र ६२)। हेकृ. पाउं, पायए (आचा)। कृ. पायव्व, पिज्ज (सुपा ४३८; पणह १, २; कुमा २, ६), पेअ, पेयव्व (कुमा; रयण ६०), पेज्ज (णाया १, १; १७; उवा)।
पा :: सक [पा] रक्षण करना। पाइ, पाअइ (विसे ३०२५; हे ४, २४०), पाउ (पिंग)।
पा :: सक [घ्रा] सूँघना, गन्ध लेना। पाइ, पाअइ (प्राप्र ८, २०)।
पाइ :: वि [पातिन्] गिरनेवाला (पंचा ५, २०)।
पाइ :: वि [पायिन्] पीनेवाला (गा ५६७; हि ६)।
पाइअ :: न [दे] वदन-विस्तार, मुँह का फैलाव (दे ६, ३९)।
पाइअ :: देखो पागय = प्रकृत (दे १, ४; प्राकृ. ८; प्रासू १; वज्जा ८; पाअ; पि ५३); 'अह पाइआओ भासाओ' (कुमा १, १)।
पाइअ :: वि [पायित] पिलाया हुआ, पान कराया हुआ (कुप्र ७९; सुपा १३०; स ४५४)।
पाइंत :: देखो पाय = पायय्।
पाइक्क :: पुं [पदाति] प्यादा, पैर से चलनेवाला सैनिक (हे २, १३८, कुमा)।
पाइडि :: स्त्री [प्रावृति] प्रावरण, वस्त्र (गा २३८)।
पाइण :: देखो पाईण (पि २१५ टि)।
पाइत्ता :: (अप) स्त्री [पवित्रा] छन्द-विशेष (पिंग)।
पाइद :: [शौ] वि [पाचित] पकवाया हुआ (नाट — चैत १२६)।
पाइन्न :: देखो पाईण (णंदि ४९)।
पइभ :: न [प्रातिभ] प्रतिभा, बुद्धि-विशेष (कुप्र १५५)।
पाइम :: वि [पाक्य] १ पकाने योग्य। २ काल-प्राप्त, मृत (दस ७, २२)
पाइम :: वि [पात्य] गिराने योग्य (आचा २, ४, २, ७)।
पाई :: स्त्री [पात्री] १ भाजन-विशेष (णाया १, १ टी) २ छोटा पात्र (सूअ २, २, ७०)
पाईण :: वि [प्राचीन] १ पूर्वदिशा-संबन्धी, 'ववहार-पाइणाइ (? ईणाइ)' (पिंड ३९; कप्प; सम १०४) २ न. गोत्र-विशेष। ३ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न; 'थेरे अज्जभद्द- बाहू पाईणसगोत्ते' (कप्प)
पाईणा :: स्त्री [प्राचीना] पूर्व दिशा (सूअ २, २, ५८; ठा ६ — पत्र ३५९)।
पाउ :: देखो पाउं = प्रादुस् (सूअ २, ६, ११; उवा)।
पाउ :: पुं [पायु] गुदा, गाँड़, (ठा ९ — पत्र ४५०; सण)।
पाउ :: पुंस्त्री [दे] १ भक्त, भात, भोजन। २ इक्षु, ऊख (दे ६, ७५)
पाउअ :: न [दे] १ हिन, अवश्याय (दे ६, ३८) २ भक्त। ३ इक्षु (दे ६, ७५)
पाउअ :: देखो पाउड = प्रावृत (गा ५२०; स ३५०; औप; सुर ६, ८; पाअ; हे १, १३१)।
पाउअ :: देखो पागय (गा २; ६९८; प्राप्र; कप्पू; पिंग)।
पाउआ :: स्त्री [पादुका] १ खड़ाऊँ, काष्ठ का जूता (भग; २ २९; पिंड ५७२) २ जूता, पगरखी (सुपा २५४; औप)
पाउं :: देखो पा = पा।
पाउं :: अ [प्रादुस्] प्रकट, व्यक्त; 'संति असंतिं करिस्सामि पाउं' (सूअ १, १, ३, १)।
पाउंछण, पाउंछणग :: न [प्रादप्रोञ्छन, °क] जैन मुनि का एक उपकरण, रजोहरण (पव ११२ टी; ओघ ६३०; पंचा १७; १२)।
पाउकर :: सक [प्रादुस् + कृ] प्रकट करना। भवि. पाउकरिस्सामि (उत्त ११, १)।
पाउकर :: वि [प्रादुष्कर] प्रादुर्भावक (सूअ १, १५, २५)।
पाउकरण :: न [प्रादुष्करण] १ प्रादुर्भाव। २ वि. जो प्रकाशित किया जाय वह। ३ जैन मुनि के लिए एक भिक्षा-दोष, प्रकाश कर दी हुई भिक्षा; 'पकिणणपाउकरणपामिच्च' (पणह २, ५ — पत्र १४८)
पाउकास :: वि [पातुकाम] पीने की इच्छा वाला; 'तं जो णं णवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे से णं निग्गच्छउ' (णाया १, १८)। पाउक्क वि [दे] मार्गीकृत, मार्गित (दे ६, ४१)।
पाउक्करण :: देखो पाउकरण (राज)।
पाउक्खालय :: न [दे पायुक्षालक] १ पाखाना, टट्ठी, मलसोर्ग-स्थान; 'ठाइ चेव एसो पाउक्खालयम्मि रयणीए' (स २०५; भत्त ११२) २ मलोत्सर्गं-क्रिया; 'रयणीए पाउक्खालयनिमित्तमुट्ठिओ' (स २०५)
पाउग्ग :: वि [दे] सभ्य, सभासद (दे ६, ४१; सण)।
पाउग्ग :: वि [प्रायोग्य] उचित, लायक (सुर १५, २३३)।
पाउग्गह :: पुं [पतद्ग्रह] पात्र (आचानि २८८)।
पाउग्गिअ :: वि [दे] १ जुआ खेलनेवाला। २ सोढ, सहन किया हुआ (दे ६, ४१; पाअ)
पाउड :: देखो पागय (प्राकृ १२; मुद्रा १२०)।
पाउड :: वि [प्रावृत] १ आच्छादित, ढका हुआ (सूअ १, २, २, २२) २ वस्त्र, कपड़ा (ठा ५, १)
पाउण :: सक [प्रा + वृ] आच्छादित करना, पहिरना। पाउणइ (पिंड ३१)। संकृ. 'पडं पाउणिऊण रतिं णिग्गओ' (महा)।
पाउण :: सक [प्र + आप्] प्राप्त करना। पाउणइ (भग)। पाउणंति (औप; सूअ १, ११, २१)। पाउणेज्जा (आचा २, ३, १, ११)। भवि. पाउणिस्सामि, पाउणिहिइ (पि ५३१; उवा)। संकृ. पाउणित्ता (औप; णाया १, १; विपा २, १; कप्प; उवा)। हेकृ. पाउणि- त्तए (आचा २, ३, २, ११)।
पाउण :: (अप) देखो पावण = पावम (पिंग)।
पाउत्त :: देखो पउत्त = प्रयुक्त (औप)।
पाउप्पभाय :: वि [प्रादुष्प्रभात] प्रभा-युक्त, प्रकाश-युक्त; 'कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए' (णाया १, १; भग)।
पाउब्भव :: अक [प्रादुस् + भू] प्रकट होना। पाउब्भवइ (पव ४०)। भूका. पाउव्भवित्था (उवा)। वकृ. पाउब्भवंत, पाउब्भवमाण (सुपा ६; कुप्र २९; णाया १, ५)। संकृ. पाउब्भवित्ताणं (उवा; औप)। हेकृ. पाउब्भवित्तए (पि ५७८)।
पाउव्भव :: वि [पापोद्भव] पाप से उत्पन्न (उप ७६८ टी)।
पाउब्भवणा :: स्त्री [प्रादुर्भवन] प्रादुर्भाव (भग ३, १)।
पाउब्भुय :: (अप) नीचे देखो (सण)।
पाउब्भूय :: वि [प्रादुर्भृत] १ उत्पन्न, संजात। २ प्रकटति (औप; भग; उवा; विपा १, १)
पाउरण :: न [आवरण] वस्त्र, कपड़ा (सूअनि ८६; हे १, १७५; पंचा ५, १०; पव ४, षड्)।
पाउरण :: न [दे] कवच, वर्मं (षड्)।
पाउरणी :: स्त्री [दे] कवच, वर्मं (दे ६, ४३)।
पाउरिअ :: देखो पाउड = प्रावृत (कुप्र ४५२)।
पाउल :: वि [पापकुल] हलके कुल का, जघन्य कुल में उत्पन्न; 'दवावियं पाउलाण दविण- जायं' (स ६२९), 'कलसद्दपउरपाउलमंगल- संगीयपवरपेक्खणयं' (सुर १०, ५)।
पाउल्ल :: /?/न. देखो पाउआ, 'पाउल्लाइं संकमट्ठाए' (सूअ १, ४, २, १५)।
पाउव :: न [पादोद] पाद-प्रक्षालन-जल, 'पाउबदाइं च णहाणुबदाइं च' (णाया १, ७ — पत्र ११७)।
पाउस :: पुं [प्रावृष्] वर्षा ऋतु (हे १, १९; प्राप्र; महा)। °कीड पुं [°कीट'] वर्षा ऋतु में उत्पन्न होनेवाला कीट-विशेष (दे)। °गम पुं [°गम] वर्षा-प्रारम्भ (पाअ)।
पाउसिअ :: वि [प्रावृषिक] वर्षा-सम्बन्धी (राज)।
पाउसिअ :: वि [प्रोषित, प्रवासिन्] प्रवास में गया हुआ, 'तह मेहागमलसंसियआगमणाणं पईण मुद्धाओ। मग्गमवलोयमाणीउे नियइ पाउसियदइयाओ'। (सुपा ७०)।
पाउसिआ :: स्त्री [प्राद्वेषिकी] द्वेष — मत्सर से होनेवाला कर्म-बन्ध (सम १०; ठा २, १; भग; नव १७)।
पाउहारी :: स्त्री [दे. पाकहारी] भक्त को लानेवाली, भात-पानी ले आनेवाली (गा ६९४ अ)।
पाए :: अ [दे] प्रभृति, (वहां से) शुरू करके (ओघ १६९; बृह १)।
पाए :: सक [पायय्] पिलाना। पाएइ (हे ३, १४९)। पाएज्जाह (महा)। वकृ. पाइंत, पाययंत (सुर १३, १३४; १२, १७१)। संकृ. पाएत्ता (आक ३०)।
पाए :: सक [पादय्] गति कराना। पाएइ (हे ३, १४९)।
पाए :: सक [पाचय्] पकवाना। पाएइ (हे ३, १४९)। कर्मं. पाइज्जइ (श्रावक २००)।
पाएण, पाएणं :: अ [प्रायेण] बहुत करके, प्रायः (विसे ११९९; काल; कप्प; प्रासू ४३)।
पाओ :: अ [प्रायस्] ऊपर देखो (श्रा २७)।
पाओ :: अ [प्रातस्] प्रातः काल, प्रभात (सुज्ज १, ९; कप्प)।
पाओकरण :: देखो पाउकरण (पिंड २९८)।
पाओग :: देखो पाउग्ग (सूअनि ६५)।
पाओगिय :: वि [प्रायोगिक] प्रयत्न-जनित, अस्वाभाविक (चेइय ३५३)।
पाओग्ग :: देखो पाउग्ग (भास १०; धर्मंसं ११८०)।
पाओपगम :: न [पादपोपगम] देखो पाओ- वगमण (वव १०)।
पाओयर :: पुं [प्रादुष्कार] देखो पाउकरण (ठा ३, ४; पंचा १३, ५)।
पाअ :: /?/वगमण न [पादपोपगमन] अनशन- विशेष, मरण विशेष (सम ३३; औप; कप्प; भग)।
पाओवगय :: वि [पादपोपगत] अनशन-विशेष से मृत (औप; कप्प; अंत)।
पाओस :: पुं [दे. प्रद्वेष] मत्सर, द्वेष (ठा ४, ४ — पत्र २८०)।
पाओसिय :: देखो पादोसिय (ओघ ६६२)।
पाओसिया :: देखो पाउसिआ (धर्म ३)।
पांडविअ :: वि [दे] जलार्द्र, पानी से गीला (दे ६, २०)।
पांडु :: देखो पंडु (पव २४७)। °सुअ पुं [°सुत] अभिनय का एक भेद (ठा ४, ४ — पत्र २८५)।
पाक :: देखो पाग (कप्प)।
पाकम्म :: न [प्राकाम्य] योग की आठ सिद्धियों में एक सिद्धि; 'पाकम्मगुणेण मुणी भुवि व्व नीरे जलि विव भुवि चरइ' (कुप्र २७७)।
पाकार :: पुं [प्राकार] किला, दुर्गं (उप पृ ८४)।
पाकिद :: (शौ) देखो पागय (प्रयौ २४; नाट — वेणी ३८; पि ५३; ८२)।
पाखंड :: देखो पासंड (पि २६५)।
पाग :: पुं [पाक] १ पचन-क्रिया (औप; उवा; सुपा ३७४) २ दैत्य-विशेष (गउड) ३ विपाक, परिणाम (धर्मंसं ६९५) ४ बलवान् दुश्मन (आवम)। °सासण पुं [°शासन] इन्द्र, देव-पति (हे ४, २६५; गउड; पि २०२). °सासणी स्त्री [°शासनी] इन्द्रजाल-विद्या (सूअ २, २, २७)
पागइअ :: वि [प्राकृतिक] १ स्वाभाविक। २ पुं. साधारण मनुष्य, प्राकृत लोक (पव ९१)
पागड :: सक [प्र + कटय्] प्रकट करना, खुला करना, व्यक्त करना। वकृ. पागडेमाण (ठा ३, ४ — पत्र १७१)।
पागड :: वि [प्रकट] व्यक्त, खुला (उत्त ३९, ४२; औप; उव)।
पागडण :: न [प्रकटन] १ प्रकट करना। २ वि. प्रकट करनेवाला (धर्मंसं ८२६)
पागडिअ :: वि [प्रकटित] व्यक्त किया हुआ (उव; औप)।
पागडि्ढ, पागडि्ढक :: वि [प्राकर्षिन्, °क] १ अग्र- गामी; 'पागट्ठी (? ड्ढी) पट्ठवए जूहवई' (णाया १, १) २ प्रवर्त्तंक, प्रवृत्ति करानेवाला (पणह १, ३ — पत्र ४५)
पागब्भ :: न [प्रागल्भ्य] धृष्ठता, ढिठाई (सूअ १, ५, १, ५)।
पागब्भि, पागब्भिय :: वि [प्रागल्भिन्, °क] घृष्टतावाला, घृष्ट, ढीठ (सूअ १, ५, १, ५; २, १, १८)।
पागय :: वि [प्राकृत] १ स्वाभाविक, स्वभाव- सिद्ध। २ आर्यावर्त्तं की प्राचीन लोक-भाषा; 'सक्कया पागया चेव' (ठा ७ — पत्र ३९३; विसे १४६६ टी; रयण ९४; सुपा १) ३ पुं. साधारण बुद्धिवाला मनुष्य, सामान्य लोग; 'जेसिं णामागोत्तं न पागत्ता पणमवेहिंति' (सुज्ज १९), 'किंतु महामइगम्मो दुरवगम्मो पागयजणस्स' (चेइय २५९, सुर २, १३०)। °भासा स्त्री [°भाषा] प्राकृत भाषा (श्रा २३)। °वागरण न [°व्याकरण] प्राकृत भाषा का व्याकरण (विसे ३४५५)
पागार :: पुं [प्राकार] किला, दुर्गं (उव; सुर ३, ११४)।
पाजावच्च :: पुं [प्राजापत्य] १ वनस्पति का अधिष्ठाता देव। २ वनस्पति (ठा ५, १ — पत्र २९२)
पाटप :: (चूपै) देखो वाडव (षड्)।
पाठीण :: देखो पाढीण (पणह १, १ — पत्र ७)।
पाड :: देखो फाड = पाट्य; 'असिपत्तधणूहि पाडंति' (सूअनि ७९)।
पाड :: सक [पातय्] गिराना। पाडेइ (उव)। संकृ. पाडिअ, पाडिऊण (काप्र १९६; कुप्र ४६)। कवकृ. पाडिज्जंत (उप ३२० टी)।
पाड :: देखो पाडय = पाटक; 'तो सो दिट्ठट्ठाणे सय गओ वेसपाडिम्मि' (सुपा ५३०)।
पाडच्चर :: वि [दे] आसक्त चित्तवाला (दे ६, ३४)।
पाडच्चर :: पुं [पाटच्चर] चोर, तस्कर (पाअ; दे ६, ३४)।
पाडण :: न [पाटन] विदारण (आव ६)।
पाडण :: न [पातन] १ गिराना, पाड़ना (सूअनि ७२) २ परिभ्रमण, इधर-उधर घूमना; 'लहुजढरपिढरपडियारपाडणत्ताण कयकीलो' (कुमा २, ३७)
पाडणा :: स्त्री [पातना] ऊपर देखो (विपा १, १ — पत्र १६)।
पाडय :: पुं [पाटक] मुहल्ला, रथ्या; 'चंडाल- पाडए गंतु' (धर्मंवि १३८; विपा १, ८; महा)।
पाडय :: वि [पातक] गिरानेवाला। स्त्री. °डिआ (मृच्छ २४५)।
पाडल :: पुं [पाटल] १ वर्णं-विशेष, श्वेत और रक्त वर्णं, गुलाबी रंग। २ वि. श्वेत-रक्त वर्णवाला (पाअ) ३ न. पाटलिका-पुष्प, गुलाब का फूल (गा ४६९; सुर ३, ५२; कुमा) ४ पाटला वृक्ष का पुष्प, पाढल का फूल (गा ३०)
पाडल :: पुं [दे] १ हंस, पक्षि-विशेष। २ वृषभ बैल। कमल (दे ६, ७६)
पाडलसउण :: पुं [दे] हंस, पक्षि-विशेष (दे ६, ४६)।
पाडला :: स्त्री [पाटला] वृक्ष-विशेष, पाढल का पेड़, पाडरि (गा ४५९; सुर ३, ५२; सम १५२), 'चंपा य पाडलरुक्खो जया य वसु- पुज्जपत्थिवो होइ' (पउम २०, ३८)।
पाडलि :: स्त्री [पाटलि] ऊपर देखो (गा ४६८)। °उत्त, °पुत्त न [°पुत्र] नगर- विशेष, पटना, जो आजकल बिहार प्रदेश का प्रधान नगर है (हे २, १५०; महा; पि २९२; चारु ३९)। °पुत्त वि [°पुत्र] पाटलिपुत्र-संबन्धी, पटना का (पव १११)। °संड न [°षण्ड] नगर-विशेष (विपा १, ७; सुपा ८३)। देखो पाडली।
पाडलिय :: वि [पाटलित] श्वेत-रक्त वर्णवाला किया हुआ (गउड)।
पाडली :: देखो पाडलि (उप पृ ३९०)। °पुर न [°पुर] पटना नगर (धर्मंवि ४३)। °वुत्त न [°पुत्र] पटना नगर (षड्)।
पाडव :: न [पाटव] पटुता, निपुणता (धम्म १० टी)।
पाडवण :: न [दे] पाद-पतन, पैर पर गिरना, प्रणाम-विशेष (दे ६, १८)।
पाडहिग, पाडहिय :: वि [पाटहिक] ढोल बजानेवाला, ढोलिया, ढोलकिया (स २१६)।
पाडहुक :: वि [दे] प्रतिभू, मनौतिया, जामिनदार (षड्)।
पाडिअ :: वि [पाटित] फाड़ा हुआ, विदारित (स ६९९)।
पाडिअ :: वि [पातित] गिराया हुआ (पाअ; प्रासू २; भवि)।
पाडिअष्टा :: पुं [विश्राम] (दे ६, ४४)।
पाडिअज्झ :: पुं [दे] पिता के घर से वधू को पति के घर ले जानेवाला (दे ६, ४३)।
पाडिआ :: देखो पाडय = पातक।
पाडिएक्क, पाडिक्क :: न [प्रत्येक] हर एक (हे २, २१०; कप्प; पाअ; णाया १, १६; २, १; सूअनि १२१ टी; कुमा), 'एगे जीवे पाडिक्कएणं सरीरएणं' (ठा १ — पत्र १९)।
पाडिंतिय :: न [प्रात्यन्तिक] अभिनय-विशेष (राय ५४)।
पाडिच्चरण :: न [प्रतिचरण] सेवा, उपासना (उप पृ ३४६)।
पाडिच्छय :: वि [प्रतीप्सक] ग्रहण करनेवाला (सुख २, १३)।
पाडिज्जंत :: देखो पाड = पातय्।
पाडिपह :: न [प्रतिपथ] अभिमुख, सामने (सूअ २, २, ३१)।
पाडिपहिअ :: देखो पडिपहिअ (सूअ २, २, ३१)।
पाडिपिद्धि :: स्त्री [दे] प्रतिस्पर्धा (षड्)।
पाडिप्पवग :: पुं [पारिप्लवक] पक्षि-विशेष (पउम १४, १८)।
पाडिप्फाद्धि :: वि [प्रतिस्पधिन्] स्पर्धा करनेवाला (हे १, ४४; २०६)।
पाडियंतिय :: न [प्रात्यन्तिक] अभिनय-विशेष (राज)।
पाडियक्क :: देखो पाडिएक्क (औप)।
पाडिवय :: वि [प्रातिपद] १ प्रतिपत्-संबन्धी, पडवा तिथि का; 'जह चंदो पाडिवओ पडिपुन्नो सुक्कपक्खम्मि' (उवर ६०) २ पुं. एक भावी जैन आचार्य (विचार ५०९)
पाडिवया :: स्त्री [प्रतिपत्] तिथि-विशेष, पक्ष की पहली तिथि; पडवा (सम २९; णाया १, १०; हे १, १५; ४४)।
पाडिवेसिय :: वि [प्रातिवेश्मिक] पड़ोसी स्त्री. °या (सुपा ३९४)।
पाडिसार :: पुं [दे] १ पटुता, निपुणता। २ वि. पटु, निपुण (दे ६, १६)
पाडिसिद्धि :: देखो पडिसिद्धि = प्रतिसिद्धि (हे १, ४४; प्राप्र)।
पाडिसिद्धि :: स्त्री [दे] १ स्पर्धा (दे ६, ७७; कप्पू; कुप्र ४९) २ समुदाचार। ३ वि. सद्दश, तुल्य (दे ६, ७७)
पाडिसिरा :: स्त्री [दे] खलीन-युक्ता (दे ६, ४२)।
पाडिस्सुइय :: न [प्रातिश्रुतिक] अभिनय का एक भेद (राज)।
पाडिहच्छी, पाडिहत्थी :: स्त्री [दे] शिरो-माल्य, मस्तक- स्थित पुष्पमाला (दे ६, ४२; राज)।
पाडिहारिय :: वि [प्रातिहारिक] वापस देने योग्य वस्तु (विसे ३०५७; औप; उवा)।
पाडिहेर :: न [प्रातिहार्य] १ देवता-कृत प्रती- हार-कर्मं, देवकृत पूजा-विशेष (औप; पव ३९), 'इय सामइए भावा इहइंपि नागदत्त- नरनाहो। जाओ सपडिहेरो' (सुपा ५४४) २ देव-सान्निध्य (भत्त ९६); 'बहूणं सुरेहिं कयं पाडिहेरं' (श्रु ६४; महा)
पाडी :: स्त्री [दे] भैंस की बछिया, पाड़ी या पड़िया गुजराती में 'पाडी' (गा ६५)।
पांडुकी :: स्त्री [दे] व्रणी — जखमवाले की पालकी (दे ६, ३९)।
पाडुंगोरि :: वि [दे] १ विगुण, गुण-रहित। २ मद्य में आसक्त। ३ स्त्री. मजबूत वेष्टनवाली बाड़; 'पाडुंगोरी च वृतिदीर्घं यस्या विवेष्टनं परितः' (दे ६, ७८)
पाडुक्क :: पुं [दे] समालम्भन, चन्दन आदि का शरीर में उपलेप। २ वि. पटु, निपुण (दे ६, ७६)
पाडुच्चिय :: वि [प्रातीतिक] किसी के आश्रय से होनेवाला, आपेक्षिक। स्त्री. °या (ठा २, १; नव १८)।
पाडुच्ची :: स्त्री [दे] तुरग-मण्डन, घोड़े का सिंगार (दे ६, ३९; पाअ)।
पाडुहुअ :: वि [दे] प्रतिभू, मनौतिया, जामिन- दार (दे ६, ४२)।
पाडेक्क :: देखो पाडिक्क (सम्म ५५)।
पाडोस :: पुं [दे] पड़ोस, प्रातिवेश्मिकता (श्रा २७)।
पाडेसिअ :: वि [दे] पड़ोसी, पड़ोसिया (सिरि ३१२; श्रा २७; सुपा ५५२)।
पाढ :: सक [पाठय्] पढ़ाना, अध्ययन कराना। पाढइ, पाढेइ (प्राकृ ६०; प्राप्र)। कर्मं. पाढिज्जइ (प्राप्र)। सकृ. पाढिऊण, पाढेऊण (प्राकृ ६१)। हेकृ. पाढिउं, पाढेउं (प्राकृ ६१)। कृ. पाढणिज्ज, पाढिअव्व, पाढेअव्व (प्राकृ ६१)।
पाढ :: पुं [पाठ] १ अध्ययन, पठन (औधभा ७१; विसे १३८४; सम्मत्त १४०) २ शास्त्र, आगम। ३ शास्त्र का उल्लेख; 'पाढो त्ति वा सत्थं ति वा एगट्ठा' (आचू १) ४ अध्यापन, शिक्षा (उप पृ ३०८; विसे १३८४)
पाढ :: देखो पाडय = पाटक (स्रा ९३ टी)।
पाढंतर :: न [पाठान्तर] भिन्न पाठ (श्रावक ३११)।
पाढग :: वि [पाठक] १ उच्चारण करनेवाला, 'पढियं मंगलपाढगेहिं' (कुप्र ३२) २ अभ्यासी, अध्ययन करनेवाला। ३ अध्यापन करनेवाला, अध्यापक; 'वत्थुपाढगा', 'सुमिण पाढगाणं' 'लक्खणसुमिणपाढगाणं' (धर्मंवि ३३; णाया १, १; कप्प)
पाढण :: न [पाठन] अध्यापन (उप पृ १२८; प्राकृ ६१; सम्मत्त १४२)।
पाढणया :: स्त्री [पाठना] ऊपर देखो (पंचभा ४)।
पाढय :: देखो पाढग (कप्प; स ७; णाया १, १ — पत्र २०; महा)।
पाढव :: वि [पायिव] पृथिवी का विकार, पृथिवी का; 'पाढवं सरीरं हिच्चा' (उत्त ३, १३)।
पाढा :: स्त्री [पाठा] बनस्पति-विशेष, पाढ, पाठ का गाछ (पणण १७)।
पाढाव :: सक [पाठय्] पढ़ाना, अध्यापन करना। पाढावेइ (प्राप्र)। संकृ. पाढाविऊण, पाढावेऊण (प्राकृ ६१)। हेकृ. पाढाविउं, पाढावेउं (प्राकृ ६१)। कृ. पाढावणिज्ज., पाढाविअव्व (प्राकृ ६१)।
पाढावअ :: वि [पाठक] अध्यापक (प्राकृ ६०)।
पाढावण :: न [पाठन] अध्यापन (प्राकृ ६१)।
पाढाविअ :: वि [पाठित] अध्यापित (प्राकृ ६१)।
पाढाविअवंत :: वि [पाठितवत्] जिसने पढ़ाया हो वह (प्राकृ ६१)।
पाढाविउ, पाढाविर :: वि [पाठयितृ] पढ़ानेवाला (प्राकृ ६१; ६०)।
पाढिअ :: वि [पाठित] पढ़ाया हुआ, अध्यापिच (प्राप्र)।
पाढिअवंत :: देखो पाढाविअवंत (प्राकृ ६१)।
पाढिआ :: स्त्री [पाठिका] पढ़नेवाला स्त्री (कप्पू)।
पाढिउ, पाढिर :: वि [पाठयितृ] अध्यापक, पढ़ानेवाला (प्राकृ ६१)।
पाढीण :: पुं [पाठीन] मत्स्य-विशेष, 'पोठिया' मछली, मत्स्य की एक जाति (गा ४१४; विक्र ३२)।
पाढोआमास :: पुं [पृथगामर्श] बारहवें अंग- ग्रंथ का एक भाग (णादि २३५)।
पाण :: सक [प्र + आनय्] जिलाना। वकृ. पाणअंत (नाट — मालती ५)।
पाण :: पुंस्त्री [दे] श्वपच, छण्डाल (दे ६, ३८; उप पृ १५४; महा; पाअ; ठा ४, ४; वव १)। स्त्री. °णी (सुख ९, १; महा)। °उडी स्त्री [°कुटी] चाण्डाल की झोंपडी (गा २२७)। °विलया स्त्री [°वनिता] चाण्डाली (उफ ७९८ टी)। °डंबर पुं [°डम्बर] यक्ष-विशेष (वव ७)। °हिवइ पुं [°धि- पति] चाण्डाल-नायक (महा)।
पाण :: न [पान] १ पीना, पीने की क्रिया (सुर ३, १०) २ पीने की चीज, पानी आदी (सुज्ज २० टी; पडि; महा; आचा) ३ पुं. गुच्छ-विशेष; 'सणपाणकासमद्दअग्घाडगसा- मर्सिदुवारे य' (पणण १)। °पत्त न [°पात्र] पीने का भोजन, प्याला (दे) °गार न [°गार] मद्य-गृह (णाया १, २; महा)। °हार पुं [°हार] एकाशन तप (संबोध ५८)
पाण :: पुंन [प्राण] १ जीवन के आधार-भूत ये दश पदार्थं-पाँच इन्द्रियाँ, मन, वचन और शरीर का बल, उच्छ्वास तथा निःश्वास (जी २६; पणण १; महा; ठा १, ६) २ समय- परिमाण विशेष, उच्छ्वास-नि श्वास-परिमित काल (इक; अणु) ३ जन्तु, प्राणी, जीव; 'पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा' (सूअ १, ७, १६; ठा ९, आचा; कप्प) ४ जीवित, जीवन (सुपा २९३; ५६३; कप्पू)। °इत्त वि [°वत्] प्राणवाला, प्राणी (पि ६००)। °च्चय पुं [°त्यय] प्राण-नाश (सुपा २९८; ६१६) °च्चाय पुं [°त्याग] मरण, मौत (सुर ४, १७०)। °जाइय वि [°जातिक] प्राणी, जीव, जन्तु (आचा १, ९, १, १)। °नाह पुं [°नाथ] प्राणनाथ, पति, स्वामी (रंभा)। °प्पिया स्त्री [°प्रिया] स्त्री, पत्नी (सुर १, १०८)। °वह पुं [°वध] हिंसा (पणह १, १)। °वित्ति स्त्री [°वृत्ति] जीवन-निर्वाह (महा)। °सम पुं [°सम] पति, स्वामी (पाअ)। °सुहुम न [°सूक्ष्म] सूक्ष्म जन्तु (कप्प)। °हिय वि [°हृत्] प्राण-नाशक (रंभा)। °इंत वि [°वत्] प्राणवाला, प्राणी (प्राप्र)। °इवाइया स्त्री [°तिपातिकी] क्रिया-विशेष, हिंसा से होनेवाला, कर्मं-बन्ध (नव १७)। °इवाय पुं [°तिपात] हिंसा (उवा)। °उ पुंन [°युस्] ग्रन्थांश-विशेष, बारहवाँ पूर्वं (सम २५; २६)। °पाण, °पाणु पुंन [°पान] उच्छ्वास और निःश्वास (धर्मंसं १०८; ६८)। °याम पुं [°याम] योगाङ्ग- विशेष — रेचक, कुम्भक और पूरक नामक प्राणों को दमने का उपाय (गउड)
पाणंतकर :: वि [प्राणान्तकर] प्राण-नाशक (सुपा ६१४)।
पाणंतिय :: वि [प्राणान्तिक] प्राण-नाशवाला, 'पाणंतियावई पहु !' (सुपा ४५२)।
पाणग :: पुंन [पानक] १ पेय-द्रव्य-विशेष (पंचभा १; सुज्ज २० टी; कप्प) २ वि. पान करनेवाला (?); 'ण पाणगो जं ततो अणणो' (धर्मंसम ८२; ७८)
पाणद्धि :: स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे ६, ३९)।
पाणम :: अक [प्र + अण्] निःश्वास लेना, नीचे सांसना। पाणमंति (सम २; भग)।
पाणय :: न [पानक] देखो पाण = पान (विसे २५७८)।
पाणय :: पुं [प्राणत] स्वर्गं-विशेष, दसवाँ देव- लोक (सम ३७; भग; कप्प)। २ विमानेन्द्रक, देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १३५) ३ प्राणत स्वर्गं का इन्द्र (ठा ४, ४) ४ प्राणत देव- लोक में रहनेवाला देव (अणु)
पाणहा :: स्त्री [उपानह्] जूता, 'पाणहाओ य छत्तं च णालीयं बालबीयणं' (सूअ १, ९, १८)।
पाणाअअ :: पुं [दे] श्वपच, चाण्डाल (दे ६, ३८)।
पाणाम :: पुं [प्राण] निःश्वास (भग)।
पाणामा :: स्त्री [प्राणामी] दीक्षा-विशेष (भग ३, १)।
पाणाली :: स्त्री [दे] दो हाथों का प्रहार (दे ६, ४०)।
पाणि :: पुं [प्राणिन्] जीव, आत्मा, चेतन (आचा; प्रासू १३९; १४४)।
पाणि :: पुं [पाणि] हस्त, हाथ (कुमा; स्वप्न ५३; ६०)। °गहण देखो °ग्गहण (भवि)। °ग्गह पुं [°ग्रह] विवाह (सुपा ३७३; धर्मंवि १२३)। °ग्गहण न [°ग्रहण] विवाह, शादी (विपा १, ९; स्वप्न ९३; भवि)।
पाणिअ :: न [पानीय] पानी, जल (हे १, १०१; प्राप्र; पणह १, ३ कुमा)।°धारिया स्त्री [°धरिका] पनिहारी; 'जियसत्तुस्स रणणो पाणियघ (? ध) रियं सद्दावेइ' (णाया १, १२ — पत्र १७५)। °हारी स्त्री [°हारी] पनिहारी (दे ६, ५६; भवि)। देखो पाणीअ।
पाणिणि :: पुं [पाणिनि] एक प्रसिद्ध व्याकरण- कार ऋषि (हे २, १४७)।
पाणिणीअ :: वि [प्राणिनीय] पाणिनि-संबन्धी, पाणिनि का (हे २, १४७)।
पाणी :: देखो पाण = (दे)।
पाणी :: स्त्री [पानी] बल्ली-विशेष, 'पाणी सामा- वल्ली गुंजावल्ली य वत्थाणी' (पणण १ — पत्र ३३)।
पणीअ :: देखो पाणिअ (हे १, १०१; प्रासू १०५)। °धरी स्त्री [°धरी] पनिहारी (णाया १, १ टी — पत्र ४३)।
पाणु :: पुंन [प्राण] १ प्राण वायु। २ श्वासो- च्छ्वास (कम्म ५, ४०; औप, कप्प) ३ समय-परिमाण-विशेष, 'एगे ऊसासनीसासे एस पाणुत्ति वुच्चइ। सत्त पाणूणि से थोवे' (तंदु ३२)
पात, पाद :: देखो पाय = पात्र (सूअ १, ४, २; पणह २, ५ — पत्र १४८)। °बंधण न [°बन्धण] पात्र बाँधने का वस्त्र-खण्ड, जैन- मुनि का एक उपकरण (पणह २, ५)।
पाद :: देखो पाय = पाद (विपा १, ३)। °सम वि [°सम] गेय-विशेष (ठा ७ — पत्र ३९४)। °ट्ठपय न [°ष्ठपद] दृष्टिवाद नामक बारहवें जैन आगम-ग्रन्थ का एक प्रतिपाद्य विषय (सम १२८)।
पादु° :: देखो पाउ = प्रादुस्। पादुरेसए (पि ३४१)। पादुरकासि (सूअ १, २, २, ७)।
पादो :: देखो पाओ = प्रातस् (सुज्ज १, ९)।
पादोसिय :: वि [प्रादोषिक] प्रदोष-काल का, प्रदोष-संबन्धी (ओघ ६५८)।
पादव :: देखो पायव (गा ५३७ अ)।
पाधन्न :: देखो पाहन्न (धर्मंसं ७८६)।
पाधार :: सक [स्वा + गम्, पाद + धारय्] पधारना, 'पाधारह निअगेहे' (श्रा १६)।
पाबद्ध :: वि [प्राबद्ध] विशेष बंधा हुआ, पाशित (निचू १६)।
पाभाइय, पाभातिय :: वि [प्राभातिक] प्रभात- संबन्धी (ओघभा ३११; अनु ६; धर्मंवि ५८)।
पाम :: सक [प्र + आप्] प्राप्त करना, गुजराती में 'पामवु'। 'कारावेइ पडिमं जिणाण जिअरोगदोसमोहाणं। सो अन्नभवेो पामइ भवमलणं धम्मवररयणं।।' (रयण १२)। कर्मं. पामिज्जइ (सम्मत्त १४२)।
पामण्ण :: न [प्रामाण्य] प्रमाणता, प्रमाणपन (धर्मंसं ७५)।
पामद्दा :: स्त्री [दे] दोनों पैर से धान्य-मर्दंन (दे ६, ४०)।
पामन्न :: देखो पामण्ण (विसे १४६६; चेइय १२४)।
पामर :: पुं [पामर] कृषीबल, कर्षक, खेती का काम करनेवाला गृहस्थ; 'पामरगहवइसेआण- कासया दोणया हलिआ' (पाअ; वज्जा १३४; गउड; दे ६, ४१; सुर १६, ५३)। २ हलका जाति का मनुष्य (कप्पू; गा २३८) ३ मूर्खं बेवकूफ, अज्ञानी (गा १६४); 'को नाम पामरं मुत्तुं वच्चइ दुद्दमकद्दमे (श्रा १२)
पामा :: स्त्री [पामा] रोग-विशेष, खुजली, खाज (सुपा २२७)।
पामाड :: पुं [पद्माट] पमाड़, पमार, पवाड, चकवड़, वृक्ष-विशेष (पाअ)।
पामिच्च :: सक [दे] उधार लेना। पामिच्चेज्ज (आचा २, २, २, ३)।
पामिच्च :: न [दे. अपमित्य] १ धार लेना, वापस देने का वादा कर ग्रहण करना। २ वि. जो उधार लिया जाय वह (पिंड ९२; ३१६; आचा; ठा ३, ४; ९; औप; पणह २, ५; पव १२५; पंचा १३, ५; सुपा ६४३)
पामिच्चिय :: वि [दे] उधार लिया हुआ (आचा १, १०, १)।
पामुक्क :: वि [प्रमुक्त] परित्यक्त (पाअ; स ६५७)।
पामूल :: न [पादमूल] पैर का मूल भाग, पाँव का अग्र भाग (पउम ३, ६; सुर ८, १६९; पिंड ३२८)। देखो पायमूल = पादमूल।
पामोक्ख :: देखो पमुह = प्रमुख (णाया १, ५; ८; महा)।
पामोक्ख :: पुं [प्रमोक्ष्] मुक्ति, छुटकारा (उप ६४८ टी)।
पाय :: पुं [दे] १ रथ-चक्र, रथ का पहिया (दे ६, ३७) २ फणी, साँप (षड्)
पाय :: पुं [पाक] १ पाचन-क्रिया । २ रसोई (प्राकृ १९; उप ७२८ टी)
पाय :: वि [पाक्य] पाक-योग्य (दस ७, २२)।
पाय :: देखो पाव (चंड)।
पाय :: पुं [पात] १ पतन (पंचा २, २५, से १, १९) २ संबन्ध; 'पुणो पुणो तरलदिट्ठि- पाएहिं' (सुर ३, १३८)
पाय :: पुं [पाय] पान, पीने की क्रीया (श्रा २३)।
पाय :: पुं [पाद] १ गमन, गति (श्रा २३) २ पैर, चरण, पाँव; 'चलणा कमा य पाया' (पाअ; णाया १, १) ३ पद्य का चौथा हिस्सा (हे ३, १३४; पिंग) ४ किरण; 'अंसु रस्सी पाया' (पाअ; अजि २८) ५ सानु, पर्वंत का कटक (पाअ) ६ एकाशन तप (संबोध ५८) ७ छः अंगुलों का एक नाप (इक)। °कंचणिया स्त्री [°काञ्चनिका] पैर प्रक्षालन का एक सुवर्णं-पात्र (राज)। °कंबल पुंन [°कम्बल] पैर पोंछने का वस्त्र- खण्ड (उत्त १७; ७)। °कुक्कुड पुं [°कुक्कुट] कुक्कुट-विशेष (णाया १, १७ टी — पत्र २३०)। °घाय पुं [°घात] चरण- प्रहार (पिंग)। °चार पुं [°चार] पैर से गमन (णाया १, १)। °चारि वि [°चारिन्] पैर से यातायात करनेवाला, पाद-विहारी (पउम ६१, १६)। °जाल, °जालग न [°जाल, °क] पैर का आभूषण-विशेष (औप; अजि ३१; पणह २, ५)। °त्ताण न [°त्राण] जूता, पगरखी (दे १, ३३)। °पलंब पुं [°प्रलम्ब] पैर तक लटकनेवाला एक आभू- षण (णाया १, १ — पत्र ५३)। °पीढ देखो °वीढ (णाया १, १; महा)। °पुंछण न [°प्रोञ्छन] रजोहरण, जैन साधु का एक उपकरण (आचा; ओघ ५११; ७०९; भग, उवा)। °प्पडण न [°पतन] पैर पर गिरना, प्रणाम-विशेष (पउम ७३, १८)। °मूल न [°मूल] १ देखो पामूल (कस) २ मनुष्यों की एक साधारण जाति, नर्तंकों की एक जाति; 'समागयाइं पायमूलाइं', 'पुलइज्जमाणो पायमूलेहिं पत्तो रहसमीवे', 'पणच्चियाइं पायमूलाइं', 'सद्दावियाइं पायमूलाइं', 'पण- च्चंत्तेहिं पायमूलेहिं' (स ७२१; ७२२, ७३४)। °लेहणिआ स्त्री [°लेखनिका] पैर पोंछने का जैन साधु का एक काष्ठमय उपकरण (ओघ ३६)। °वंदय वि [°वन्दक] पैर पर गिरकर प्रणाम करनेवाला (णाया १, १३)। °वडण न [°पतन] पैर पर गिरना, प्रणाम- विशेष (हे १, २७०; कुमा; सुर २, १०६)। °वडिया स्त्री [°वृत्ति] पाद-पतन, पैर छूना, प्रणाम-विशेष; 'पायवडियाए खेमकुसलं पुच्छंति' (णाया १, २; सुपा २५)। °विहार पुं [°विहार] पैर से गति (भग)। °वीढ न [°पीठ] पैर रखने का आसन (हे १, २७०; कुमा; सुपा ९८)। °सीसग न [°शीर्षक] पैर के ऊपर का भाग (राय)। °उलअ न [°कुलक] छन्द-विशेष (पिंग)
पाय :: देखो पत्त = पात्र (आचा; औप; ओधभा ३६; १७४)। °केसरिआ स्त्री [°केसरिका] जैन साधुऔं का एक उपकरण, पात्र-प्रमार्जंन का कपड़ा (ओघ ६६८; विसे २५५२ टी)। °ट्ठवण, °ठवण न [°स्थापन] जैन मुनियों का एक उपकरण, पात्र रखने का वस्त्र-खण्ड (विसे २५५२ टी; ओघ ६६८)। °णिज्जोग, °निज्जोग पुं [°निर्योग] जैन साधु का यह उपकरण-समूह — पात्र, पात्रबन्ध, पात्रस्थापन, पात्रकेशरिका, पटल, रजस्राण और गुच्छक (पिंड २६; बृह ३; विसे २५५२ टी)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] पात्र-संबन्धी अभिग्रह — प्रतिज्ञा-विशेष (ठा ४, ३)। देखो पाद = पात्र।
पाय :: (अप) देखो पत्त = प्राप्त (पिंग)।
पाय° :: अ [°प्रायस्] प्रायः, बहुत करके; 'पायप्पाणं वणेइ त्ति' (पिंड ४४३)।
°पाय :: पुं. ब. [°पाद] पूज्य, 'संथुआ अजिअ- संतिपायया' (अजि ३४)।
पायए :: देखो पा = पा।
पापं :: देखो पाय° (स ७६१; सुपा २८; ५६९; श्रावक ७३)।
पायं :: अ [प्रातस्] प्रभात (सूअ १, ७, १४)।
पायंगुट्ठ :: पुं [पादाङ्गुष्ठ] पैर का अंगूठा (णाया १, ८)।
पायंजलि :: पुं [पातञ्जल] पतञ्जलिकृत शास्त्र, पातञ्जल योग-सूत्र (णंदि १९४)।
पायंत :: न [पादान्त] गीत का एक भेद, पाद- वृद्धगीत (राय ५४)।
पायंदुय :: पुं [पादान्दुक] पैर बाँधने का काष्ठमय उपकरण (विपा १, ६ — पत्र ६६)।
पायक :: देखो पायय = पातक (वव १)।
पायक्क :: देखो पाइक्क (सम्मत्त १७६)।
पायक्खिण्ण :: न [प्रादक्षिण्य] प्रदक्षिणा (पउम ३२, ९२)।
पायग :: न [पातक] पाप (श्रावक २४८)।
पायच्छित्त :: पुंन [प्रायश्चित्त] पाप-नाशन कर्मं, पाप-क्षय करनेवाला कर्मं; 'पारंचिओ नाम पायच्छित्तो संवुत्तो' (सम्मत्त १४४; उवा; औप; नव २९)।
पायड :: देखो पागड = प्र + कटय्। पायडइ (भवि)। वकृ. पायडंत (सुपा २५९)। कवकृ. पायडिज्जंत (गा ६८५)। हेकृ. पायडिउं (कुप्र १)।
पायड :: न [दे] अंगण, आँगन (दे ६, ४०)।
पायड :: देखो पागड = प्रकट (हे १, ४४; प्राप्र; ओघ ७३; जी २२, प्रासू ६४)।
पायड :: देखो पागड = प्राकृत; 'अहंपि दाव दिअसे णअरं परिब्भमिअ अलद्धभोआ पाअः डगणिआ विअ रत्तिं पस्सदो सइदुं आअच्छामि' (अवि २९)।
पायड :: वि [प्रावृत] आच्छादित (विसे २५७९ टी)।
पायडिअ :: वि [प्रकटित] व्यक्त किया हुआ (कुप्र ४; से १, ५३; गा १९९; २६०; गउड; स ४९८)।
पायडिल्ल :: वि [प्रकट] खुला (वज्जा १०८)।
पायण :: न [पायण] पिलाना, पान कराना (णाया १, ७)।
पायत्त :: न [पादात] पादति-समूह, प्यादों का लश्कर (उत्त १८, २; औप; कप्प)। °णिय न [°नीक] पदाति सैन्य (पि ८०)।
पायपुंछण :: न [पादपुञ्छन] पात्र-विशेष, शराव, सकोरा।
पायप्पहण :: पुं [दे] कुक्कुट, मुर्गा (दे ६, ४५)।
पायय :: न [पातक] पाप (अच्चु ४३)।
पायय :: देखो पाव = पाप (पाअ)।
पायय :: देखो पागय (हे १, ६७)।
पायय :: देखो पायव (से ६, ७)।
पायय :: देखो पावय = पावक (अभि १२५)।
पावय :: देखो पाय = पाद (कप्प)।
पायरास :: पुं [प्रातराश] प्रातः काल का भोजन, जलपान, जलखवा (आचा; णाया १, ८)।
पायल :: न [दे] चक्षु, आँख (दे ६, ३८)।
पायव :: पुं [पादप] वृक्ष, पेंड़ (पाअ)।
पायव्व :: देखो पा = पा।
पायस :: पुंन [पायस] दूध का मिष्टान्न, खीर; 'पायसो खीरी' (पाअ; सुपा ४३८)।
पायसो :: अ [प्रायशस्] प्रायः, बहुत कर (उप ४४६; पंचा ३, २७)।
पायार :: पुं [प्राकार] किला, कोट, दुर्गं (पाअ; हे १, २६८; कुमा)।
पायाल :: न [पाताल] रसा-तल, अधो भुवन (हे १, १८०; पाअ)। °कलश पुं [°कलश] समुद्र के मध्य में स्थित कलशाकार वस्तु (अणु)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (पउम ४५, ३९)। °मंदिर न [°मन्दिर] पाताल- स्थित गृह (महा)। °हर न [°गृह] वही अर्थं (महा)।
पायाल :: न [पाददल] पादात्य सैन्य, पैदल सैनिक (चउप्पन्न° पत्र° १८५)।
पायालकारपुर :: न [पाताललङ्कापुर] पाताल- लंका, रावण की राजधानी; 'पायालंकारपुरं सिग्घं पत्ता भउव्विग्गा' (पउस ६, २०१)।
पायावच्च :: न [प्राजापत्य] अहोरात्र का चौद- हवाँ मुहुर्त्तं (सम ५१)।
पायाविय :: वि [पायित] पिलाया हुआ (पउम ११, ४१)।
पायाहिण :: न [प्रादक्षिण्य] १ वेष्टन (पव ६१) २ दक्षिण की ओर; 'पायाहिणेण तिहि पंतिआहिं झएह लद्धिपए' (सिरि १९९)
पायाहिणा :: देखो पयाहिणा; 'पायाहिणं करिंतो' (उत्त ९, ५९, सुख ९, ५९)।
पार :: अक [शक्] सकना, करने में समर्थं होना। पारइ, पारेइ (हे ४, ८६; पाअ)। वकृ. पारंत (कुमा)।
पार :: सक [पारय्] पार पहुँचना, पूर्णं करना। पारेइ (हे ४, ८६; पाअ) हेकृ. पारित्तए (भग १२, १)।
पार :: पुंन [पार] १ तट, किनारा (आचा) २ पर्ला, किनारा; 'परतीरं पारं' (पाअ), 'किह म्ह होही भवजलहिपारं' (निसा ५) ३ परलोक, आगामी जन्म। ४ मनुष्य-लोक- भिन्न नरक आदि (सूअ १, ६, २८) ५ मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण; 'पारं पुणणुत्तरं बुहा बिंति' (बृह ४) °ग वि [°ग] पार जानेवाला (औप; सुपा २५४)। °गय वि [°गत] १ पार-प्राप्त (भग; औप) २ पुं. जिन-देव, भगवान् अर्हन् (उप १३२ टी)। °गामि वि [°गामिन्] पर पहुँचनेवाला (आचा; कप्प; औप)। °पाणग न [°पानक] पेय द्रव्य- विशेष (णाया १, १७)। °विउ वि [°विद्] पार को जाननेवाला (सूअ २, १, ६०)। °भोय वि [°भोग] पार-प्रापक (कप्प)
पार :: देखो पायार (हे १, २६८; कुमा)।
पारंक :: न [दे] मदिरा नापने का पात्र (दे ६, ४१)।
पारंगम :: वि [पारगम्] १ पार जानेवाला। २ पार-गमन (आचा)
पारंगय :: वि [पारंगत] पार-प्राप्त (कुप्र २१)।
पारंचि :: वि [पाराञ्चि] सर्वोत्कृष्ट-दशम प्रायश्चित्त करनेवाला; 'पारंचीणं दोणहवि' (बृह ४)।
पारंचिय :: न [पाराञ्चिक] १ सर्वोत्कृष्ट प्राय- श्चित्त, तप-विशेष से अतिचारों की पार- प्राप्ति (ठा ३, ४ — पत्र १६२; औप) २ वि. सर्वोत्कृष्ट प्रायश्चित्त करनेंवाला (ठा ३, ४)
पारंचिय :: [पाराञ्चित] ऊपर देखो (कस; बृह ४)।
पारंपज्ज :: न [पारम्पर्य] परम्परा (रंभा १५)।
पारंपर :: पुं [दे] राक्षस (दे ६, ४४)।
पारंपर, पारंपरिय :: न [पारम्पर्य] परम्परा (पउम २१, ८०; आरा १६; धर्मंसं १११८; १३१७); 'आयरियपारंपर्ये (? रिए)। ण आगयं' (सूअनि १२७ — पृष्ठ ४८७)।
पारंपरिय :: वि [पारम्परिक] परंपरा से चला आता (उप ७२८ टी)।
पारंभ :: सक [प्रा + रभ्] १ आरम्भ करना, शुरू करना। २ हिंसा करना, मारना। ३ पीड़ा करना। पारंभेमि (कुप्र ७०)। कवकृ. 'तणहाए पारज्झमाणा' (औप)
पारंभ :: पुं [प्रारम्भ] शुरू, उपक्रम (विसे १०२०; पव १९६)।
पारंभिय :: वि [प्रारब्ध] आरब्ध, उपक्रान्त (धर्मंवि १४४; सुर २, ७७, १२, १५९; सुपा ५५)।
पारकेर, पारक्क :: वि [परकीय] पर का, अन्यदीय (हे १, ४४; २ १४८; कुमा)।
पारक्किअ :: देखो पारक्क (माल १९२)।
पारज्झमाण :: देखो पारंभ = प्रा + रम्।
पारण, पारणग, पारणय :: न [पारण, °क] व्रत के दूसरे दिन का भोजन, तप की समाप्ति के अनन्तर का भोजन (सण; उवा; महा)।
पारणा :: स्त्री [पारणा] ऊपर देखो। °इत्त वि [°वत्] पारणवाला (पंचा १२, ३५)।
पारंतत :: न [पारतन्त्र्य] परतन्त्रता, पराधीनता (उप २५२; पंचा ९, ४१; ११, ७)।
पारत्त :: अ [परत्र] परलोक में, आगामी जन्म में; 'पारत्त बिइज्जओ धम्मो' (पउम ५, १६३)।
पारत्त :: वि [पारत्र, पारत्रिक] पारलौकिक, आगामी जन्म से संबन्ध रखनेवाला; 'इत्तो पारत्तहियं ता कीरउ देव ! वंकचूलिस्स' (धर्मवि ६०; ओघ ६२; स २४९)।
पारत्ति :: स्त्री [दे] कुसुम-विशेष (गउड; कुमा)।
पारत्तिय :: वि [पारत्रिक] देखो पारत्त = पारत्र (स ७०७)।
पारदारिय :: वि [पारदारिक] परस्त्री-लम्पट (णाया १, १८ — पत्र २३६)।
पारद्ध :: वि [प्रारब्ध] १ जिसक प्रारम्भ किया गया हो वह; 'पारद्धा य विवाहनिमित्तं सयला सामग्गी' (महा) २ जो प्रारम्भ करने लगा हो वह; 'तओ अवरणहसमए पारद्धो नच्चिउं' (महा)
पारद्ध :: न [दे] पूर्वं-कृत कर्मं का परिणाम, प्रारब्ध। २ वि. आखेटक, शिकारी। ३ पीड़ित (दे ६, ७७)
पारद्धि :: स्त्री [पापर्द्धि] शिकार, मृगया (हे १, २३५; कुमा; उप पृ २५७; सुपा २१६)।
पारद्धिअ :: वि [पापर्द्धिक] शिकारी, शिकार करनेवाला, गुजराती में 'पारधी'; 'मयणमहा- पारद्धियनिसायबाणवलीविद्धा' (सुपा ७१; मोह ७६)।
पारमिया :: स्त्री [पारमिता] बौद्ध-शास्त्र-परि- भाषित प्राणतिपात-विरमणादि शिक्षा-व्रत, अहिसा आदि व्रत (धर्मंसं ९८८)।
पारम्म :: न [प्रारम्य] परमता, उत्कृष्टता (अज्झ ११४)।
पारय :: वि [पारग] समर्थं (आचा २, ३, २, ३)।
पारय :: पुं [पारद] धातु-विशेष, पारा, रस- धातु। °मद्धण न [°मर्दन] आयुर्वेद — विहित रीति से पारा का मारण, रसायन-विशेष; 'अंग-कढिणयाहेउं च सेवंति पारयमद्दणं' (स २८९)। २ वि. पार-प्रापक (श्रु १०९)।
पारय :: न [दे] सुरा-भाण्ड, दारु रखने का पात्र (दे ६, ३८)।
पारय :: देखो पार-ग (कप्प; भग; अंत)।
पारय :: पुं [प्रावारक] १ पट, वस्त्र। २ वि. आच्छादक (हे १, २७१; कुमा)
पारलोइअ :: वि [पारलौकिक] परलोक-संबन्धी, आगामो जन्म से संबन्ध रखनेवाला (पणह १, ३; ४; सूअ २, ७, २३; कुप्र ३८१; सुपा ४९१)।
पारवस्स :: न [पारवश्य] परवशता, पराधीनता (रयण ८१)।
पारस :: पुं [पारस] १ अनार्यं देश-विशेष, फारस देश, ईरान (इक) २ मणि-विशेष, जिसके स्पर्श से लोहा सुवर्ण हो जाता है (संबोध ५३) ३ पारस देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (पणह १, १) °उल न [°कुल] १ ईरान देश; 'भरिऊण भंडस्स वहणाइं पत्तो पारसउलं', 'इओ य सो अयलो पारसउले विढविय बहुयं दव्वं' (महा) २ वि. पारस देश का, ईरान का निवासी; 'मागहयपारसउला कालिंगा सीङला य तहा' (पउम ९९, ५५)। °कूल न [°कूल] ईरान का किनारा, ईरान देश की सीमा (आवम)
पारसिय :: वि [पारसिक] फआरस देश का, 'सहसा पारसियसुओ समागओ रायपयमूले', 'पारसियकीरमिहुणं' (सुपा २९७; ३९०)।
पारसी :: स्त्री [पारसी] १ पारस देश की स्त्री (औप; णाया १, १ — पत्र ३७; इक) २ लिपि-विशेष, फारसी लिपि (विसे ४६४ टी)
पारसीअ :: वि [पारसीक] फारस देश का निवासी (गउड)।
पाराई :: स्त्री [दे] लोह-कुशी-विशेष, लोहे की दंडाकार छोटी वस्तु; 'चडवेलावज्झपट्टपाराइं (? ई) छिवकसलयवरत्तनेत्तप्पहारसयतालियं- गमंगा' (पणह २, ३)।
पाराय :: देखो पारावय (प्राप्र)।
पारायण :: न [पारायण] १ पार- प्राप्ति (विसे ५६५) २ पुराण-पाठ-विशेष; 'अधीउं (? य) समत्तपरायणो साखापारओ जाओ' (सुख २, १३)
पारावय :: देखो पारेवय (पाअ; प्राप्र; गा ६४; कप्प ५९ टि)।
पारावर :: पुं [दे] गवाक्ष, वातायन (दे ६, ४३)।
पारावार :: पुं [पारावार] समुद्र, सागर (पाअ; कुप्र ३७०)।
पाराविअ :: वि [पारित] जिसको पारण कराया गया हो वह (कुप्र २१२)।
पारासर :: पुं [पाराशर] १ ऋषि-विशेष (सूअ १, ३, ४, ३) २ न. गोत्र-विशेष, जो वशिष्ठ गोत्र की एक शाखा है। ३ वि. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०) ४ पुं. भिक्षुक। ५ कर्म-त्यागी संन्यासी; 'अंतेवि पारासरा अत्थि' (सुख २, ३१)
पारिओसिय :: वि [पारितोषिक] तुष्टि-जनक दान, प्रसन्नता-सूचक दान, पुरस्कार (सम्मत्त १२२; स १९३; सुर १६, १८२; विचार १७१)।
पारिच्छा :: देखो परिच्छा; 'वयपरिणे चिंता गिंह समप्पेमि तासि पारिच्छा' (उप १७३; उप पृ २७५)।
पारिच्छेज्ज :: देखो परिच्छेज्ज (णाया १, ८ — पत्र १३२)।
पारिजाय :: देखो पारिय = पारिजात (कुमा)।
पारिट्ठावणिया :: स्त्री [पारिष्ठापनिकी] समिति- विशेष, मल आदि के उत्सर्गं में सम्यकत् प्रवृत्ति (सम १०; औप; कप्प)।
पारिडि :: स्त्री [प्रावृत्ति] प्रावरण, वस्त्र, कपड़ा; 'विक्किणइ माहमासम्मि पामरो पारिडिं बइ- ल्लेण' (गा २३८)।
पारिणामिअ :: देखो परिणामिअ = पारिणामिक (अणु; कम्म ४, ६९)।
पारिणामिआ, पारिणामिगी :: देखो परिणामिआ (आव १; णाया १, १ — पत्र ११)।
पारितावणिया :: स्त्री [पारितापनिकी] दूसरे को परिताप — दुःख उपजाने से होनेवाला कर्मं-बन्ध (सम १०)।
पारितावणी :: स्त्री [पारितापनी] ऊपर देखो (नव १७)।
पारितोसिअ :: देखो पारिओसिय (नाट — सुपा २७; प्रामा)।
पारित्त :: देखो पारत्त = परत्र; 'पारित्त बिइजओ धम्मो' (तंदु ५६)।
पारिप्पव :: पुं [पारिप्लव] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।
पारिभद्द :: पुं [पारिभद्र] वृक्ष-विशेष, फरहद का पेड़ (कप्पू)।
पारिय :: वि [पारित] पूर्णं किया हुआ (रयण १९)।
पारिय :: पुं [पारिजात] १ देव-वृक्ष-विशेष, कल्प-तरु-विशेष। २ फरहद का पेड़; 'कप्पूर- परियाण य अहिअयरो मालईगंधो' (कुमा ५, १३) ३ न. पुष्प-विशेष, फरहद का फूल जो रक्त वर्णं का और अत्यन्त शोभाय- मान होता है; 'सुहिए ण विढप्पइ पारियच्छि सुंडीरहं खंडइ वसइ लच्छि' (भवि)
पारियत्त :: पुं [पारियात्र] देश-विशेष, 'परि- ब्भमंतो पत्तो पारियत्तविसयं' (कुप्र ३६६)।
पारियल्ल :: न [दे. परिवर्त] पहिए के पृष्ठ भाग की बाह्य परिधि (णंदि ४३)।
पारियाय :: देखो पारिय = पारिजात (सुपा ७९; से ९, ५८; महा; स ७५९)।
पारियावणिया :: देखो पारितावणिया (ठा २, १ — पत्र ३९)।
पारियवणिया :: देखो पारियावणिया (स ५५१)।
पारियासिय :: वि [पारिवासित] बासी रखा हुआ (कस)।
पारिव्वज्ज :: न [पारिव्राज्य] संन्यासिपन, संन्यास (पउम ८२, २४)।
पारिव्वाई :: स्त्री [पारिव्राजी, परिव्राजिका] संन्यासिनी (उप पृ २७९)।
पारिव्वाय :: वि [पारिव्राज] संन्यासि-संबन्धी (राज)।
पारिसज्ज :: वि [पारिषद्य] सभ्य, संभासद (धर्मवि ९)।
पारिसाडणिया :: स्त्री [पारिशाटनिकी] परि- शाटन-परित्याग से होनेवाला कर्मं-बन्ध (आव ४)।
पारिहच्ची :: स्त्री [दे] माला (दे ६, ४२)।
पारिहट्टी :: स्त्री [दे] १ प्रतिहारी। २ आकृष्टि, आकर्षंण। ३ चिर-प्रसूता महिषी, बहुत देर से ब्यायी हुई भैंस (दे ६, ७२)
पारिहत्थिय :: वि [पारिहस्तिक] स्वभाव से निपुण (ठा ९ — पत्र ४५१)।
पारिहारिय :: वि [पारिहारिक] तपस्वी-विशेष, परिहार नामक व्रत करनेवाला (कस)।
पारिहासय :: न [पारिहासक] कुल-विशेष, जैन मुनियों के एक कुल का नाम (कप्प)।
पारी :: स्त्री [दे] दोहन-भाण्ड, जिसमें दोहन किया जाता है वह पात्र-विशेष (दे ६, ३७; गउड ५७७)।
पारीण :: वि [पारीण] पार-प्राप्त, 'धीवर- सत्थाण पारीणो' (धर्मंवि १३; सिरि ४८९; सम्मत्त ७५)।
पारुअग्ग :: पुं [दे] विश्राम (दे ६, ४४)।
पारुअल्ल :: पुं [दे] पृथुक, चिउड़ा (दे ६, ४४)।
पारुसिय :: देखो फारुसिय (आचा १, ६, ४, १ टि)।
पारुहल्ल :: वि [दे] मालीकृत, श्रेणी रूप से स्थापित; 'पालीबंधं च पारुहल्लोम्मिं' (दे ६, ४५)।
पारेवई :: स्त्री [पारापती] कबूतरी, कबूतर की मादा (विपा १, ३)।
पारेवय :: पुं [पारापत] १ पक्षि-विशेष, कबूतर (हे १, ८०; कुमा; सुपा ३२८) २ वृक्ष-विशेष। ३ न. फल-विशेष (पणण १७)
पारोक्ख :: वि [पारोक्ष्] परोक्ष-विषयक, परोक्ष-संबन्धी (धर्मंसं ५०२)।
पारोह :: देखो परोह (हे १, ४४; गा ५७५; गउड)।
पारोहि :: वि [प्ररोहिन्] प्ररोहवाला, अंकुरवाला (गउड)।
पाल :: सक [पालय्] पालन करना, रक्षण करना। पालेइ (भग; महा)। वकृ. पालयंत, पालंत, पालिंत, पालेमाण (सुर २, ७१; सं ४९; महा; औप; कप्प)। संकृ. पालइत्ता, पालित्ता, पालेऊण (कप्प; महा); 'पालेवि (अप) (हे ४, ४४१)। कृ. पालियव्व, पालेयव्व (सुपा ४३५; ३७९; महा)।
पाल :: देखो पार = पारय्। संकृ. पालइत्ता (कप्प)।
पाल :: पुं [दे] १ कलवार, शराब बेचनेवाला। २ वि. जीर्णं, फटा-टूटा (दे ६, ७५)
पाल :: पुंन [पाल] आभूषण-विशेष, 'मुरविं वा पालं वा तिसरयं वा कडिसुत्तगं वा' (औप)। २ वि. पालक, पालन-कर्त्ता; 'जो सयलसिंधु- सायरहो पालु' (भवि)। स्त्री. °ला (वव ४)
पालंक :: न [पालङ्क्य] तरकारी-विशेष, पालक का शाक (बृह १)।
पालंगा :: स्त्री [पालङ्क्या] ऊपर देखो (उवा)।
पालंत :: देखो पाल = पालय्।
पालंब :: पुं [प्रालम्ब] १ अवलम्बन, सहारा; 'पावइ तडविडविपालंबं' (सुपा ६३५) २ गले का आभूषण-विशेष (औप; कप्प) ३ दीर्घं, लम्बा (औप; राय) ४ पुंन. ध्वजा के नीचे लटकता वस्त्राञ्चल; 'ओऊल पालंबं' (पाअ)
पालक्का :: स्त्री [पालक्या] देखो पालंगा; 'वत्थुलपोरगमज्जारपोइवल्ली य पालक्का' (पणण १ — पत्र ३४)।
पालग :: देखो पालय (कप्प; औप; विसे २८५९; संति १; सुर ११, १०८)।
पालण :: न [पालन] १ रक्षण (महा; प्रासू ३) २ वि. रक्षण-कर्ता; 'धम्मस्स पालणी चेव' (संबोध १९; सं ६७)
पालदुदुह :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)।
पालप्प :: पुं [दे] १ प्रतिसार। २ वि. विप्लुत (दे ६, ७६)
पालय :: वि [पालक] रक्षक, रक्षण-कर्ता (सुपा २७६; सार्धं १०)। २ पुं. सौधर्मेंन्द्र का एक आभियौगिक देव (ठा ८) ३ श्रीकृष्ण का एक पुत्र (पव २) ४ भगवान् महावीर के निर्वाण के दिन अभिषिक्त अवंती (उज्जैन) का एक राजा (विचार ४९२) ५ देव- विमान-विशेष (सम २)
पालास :: पुं [पालाश] पलाश-सम्बन्धी। २ न. पलाश वृक्ष का फल, किंशुक-फल (गउड)
पालि :: स्त्री [पालि] १ तालाव आदि का बन्ध (सुर १३, ३२; अंत १२; महा) २ प्रान्त भाग (गा ९४९)। देखो पाली = पाली।
पालि :: स्त्री [दे] १ धान्य मापने की नाप। २ पल्योपम, समय का सुदीर्घ परिमाण-विशेष (उत्त १८, २८; सुख १८, २८)
पालिआ :: स्त्री [दे] खड्ग-मुष्टि, तलवार की मूठ (पाअ)।
पालिआ :: देखो पाली =पाली; उज्जाणपालि- याहिं कविउत्तिहिं व बहुरसड्ढाहिं' (धर्मंवि १३)।
पालित्त :: पुं [पादलिप्त] एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं (पिंड ४९८; कुप्र १७८)।
पालित्ताण :: न [पादलिप्तीय] सौराष्ट्र देश का एक प्राचीन नगर, जो आजकल भी 'पालिताणा' नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र १७९)।
पालित्तिआ :: स्त्री [दे] १ राजधानी। २ मूल- नीवी। ३ भण्डार, निधि। ४ भंगी, प्रकार (कप्पू)
पालिय :: वि [पालित] रक्षित (ठा १०; महा)।
पालियाय :: देखो पारिय = पारिजात (राय ३०)।
पाली :: स्त्री [पाली] पंक्ति, श्रेंणी (गउड)। देखो पालि।
पाली :: स्त्री [दे] दिशा (दे ६, ३७)।
पालीबंध :: पुं [दे] तालाव, सरोवर (दे ६, ४५)।
पालीहम्म :: न [दे] वृति, बाड़ (दे ६, ४५)।
पालेव :: पुं [पादलेप] पैर में किया हुआ लेप (पिंड ५०३)।
पाव :: सक [प्र + आप्] प्राप्त करना। पावइ (हे ४, २३९)। भवि. पाविहिसि (पि ५३१)। कर्मं. पाविज्जइ (उव)। वकृ. पावंत, पावेंत (पिंग; पउम १४, ३७)। कवकृ. पावियंत, पावेज्जमाण (पणह १, १; अंत २०)। संकृ. पाविऊण (पि ५८६)। हेकृ. पत्तुं, पावेउं (हास्य ११९; महा)। कृ. पावणिज्ज, पाविअव्व (सुर ९, १४२; स ६८६)।
पाव :: देखो पव्वाल = प्लावय। पावेइ (हे ४, ४१)।
पाव :: पुंन [पाप] १ अशुभ कर्मं-पुद्गल, कुकुर्म (आचा, कुमा; ठा १; प्रासू २५); 'जम्मंतरकए पावे पाणी मुहुत्तेण निद्दहे' (गच्छ १, ६) २ पापी, अधर्मी, कुकर्मी (पणह १, १; कुमा ७, ९)। °कम्म न [°कर्मन्] अशुभ कर्मं (आचा)। °कम्मि वि [°कर्मिन्] कुकर्मं करनेवाला (ठा ७)। °दंड पुं [°दण्ड] नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २९)। °पगइ स्त्री [°प्रकृति] अशुभ कर्मं-प्रकृति (राज)। °यारिॉ वि [°कारिन्] दुराचारी (पउम ६३, ४३; महा)। °समण पुं [°श्रमण] दुष्ट साधु (उत्त १७, ३; ४)। °सुमिण पुंन [°स्वप्न] दुष्ट स्वप्न (कप्प)। °सुय न [°श्रुत] दुष्ट शास्त्र (ठा ९)
पाव :: पुं [दे] सर्पं, साँप (दे ६, ३८)।
पाव :: (अप) देखो पत्त = प्राप्त (पिंग)।
पावंस :: वि [पापीयस्] पापी, कुकर्मी (ठा ४, ४ — पत्र २६५)।
पावक्खालय :: न [दे. पापक्षालक] देखो पाउक्खालय (स ७४१)।
पावग :: वि [पावक] १ पवित्र करनेवाला (राज)। पुं. अग्नि, वह्नि (सुपा १४२)
पावग :: वि [प्राप्रक] पहुँचानेवाला (सुपा ५००)।
पावग :: देखो पाव = पाप (आचा; धर्मंसं ५४३)।
पावज्जा :: (अप) देखो पव्वज्जा (भवि)।
पावडण :: देखो पाय-वडण = पाद-पतन (प्राप्र; कुमा)।
पावडि्ढ :: देखो पारद्धि (सिरि ११०८; १११०)।
पावण :: वि [पावन] पवित्र करनेवाला (अच्चु ४७; समु १५०)।
पावण :: न [प्लावन] १ पानी का प्रवाह। २ सराबोर करना (पिंड २४)
पावण :: न [प्रापण] १ प्राप्ति, लाभ (सुर ४, १११; उपपं ७) २ योग की एक सिद्धि; 'पावणसत्तीए छिवइ मेरुसिरमंगुलीए मुणी' (कुप्र २७७)
पावद्धि :: देखो पारद्धि (धर्मंवि १४८)।
पावय :: देखो पाव = पाप (प्रासू ७५)।
पावय :: वि [प्रावृत] आच्छादित, ढका हुआ (सूअ २, ७; ३)।
पावय :: पुंन [दे] वाद्य-विशेष, गुजराती में 'पावो' (पउम ५७, २३)।
पावय :: देखो पावग = पावक (उप ७२८ टी; कुप्र २८३; सुपा ४; पाअ)।
पावयण :: देखो पवयण (हे १, ४४; उवा; णाया १, १३)।
पावयणि :: वि [प्रवचनिन्] सिद्धान्त का जानकार, सैद्धान्तिक (चेइय १२८)।
पावयणिय :: वि [प्रावचनिक] ऊपर देखो (सम ६०)।
पावरअ :: देखो पावारय (स्वप्न १०४)।
पावरण :: पुं [प्रावरण] एक म्लेच्छ जाति (मृच्छ १५२)।
पावरण :: न [प्रावरण] वस्त्र, कपड़ा (हे १, १७५)।
पावरिय :: वि [प्रावृत्त] आच्छादित (कुप्र ३८)।
पावस :: देखो पाउस (कुप्र ११७)।
पावा :: स्त्री [पापा] नगरी-निशेष, जो आजकल भी बिहार के पास पावापुरी के नाम से प्रसिद्ध है (कप्प; ती ३; पंचा १९, १७; पव ३४; विचार ४९)।
पावाइ :: वि [प्रवादिन्] वाचाट, दार्शनिक (सूअ २, ६, ११)।
पावाइअ :: वि [प्राव्राजिक] संन्यासी (रयण २२)।
पावाइअ :: वि [प्रावादिक] देखो पावाइ (आचा)।
पावाइअ, पावादुय :: वि [प्रावादुक] वाचाट, दार्श- निक (सूअ १, १, ३, १३; २, २, ८०; पि २६५)।
पावार :: पुं [प्रावार] १ रुंछवाला कपड़ा। २ मोटा कम्बल (पव ८४)
पाराय :: देखो पारय = प्रावारक (हे १ २७१; कुमा)।
पावालिआ :: स्त्री [प्रपापालिका] प्रपा या प्याऊ पर नियुक्त स्त्री (गा १६१)।
पावासु, पावासुअ :: वि [प्रवासिन्, °क] प्रवास करनेवाला (पि १०५; हे १, ९५; कुमा)।
पाविअ :: वि [प्राप्त] लब्ध, मिला हुआ (सुर ३, १६; स ६८६)।
पाविअ :: वि [प्रापित] प्राप्त करवाया हुआ (सण; नाट — मृच्छ २७)।
पाविअ :: वि [प्लावित] सराबोर किया हुआ, खूब भिजाया हुआ (कुमा)।
पाविट्ठ :: वि [पापिष्ठ] अत्यन्त पापी (उव ७२८ टी; सुर १, २१३; २, २०५; सुपा १६९; श्रा १४)।
पावीढ :: देखो पाय-वीढ (पउम ३, १; हे १, २७०; कुमा)।
पावीयंस :: देखो पावंस (पि ४०९; ४१४)।
पावुअ :: वि [प्रावृत] आच्छादित (संक्षि ४)।
पावेज्जमाण :: देखो पाव = प्र + आप।
पावेस :: वि [प्रावेश्य] प्रवेशोचित, प्रवेश के लायक (औप)।
पावेस :: पुं [प्रावेश] वस्त्र के दोनों तरफ लटकता रुंछा (णाया १, १)।
पास :: सक [द्दश्] १ देखना। २ जानना। पासइ, पासेइ (कप्प)। पासिमं = 'पश्य' (आचा १, ३, ३, ५)। कर्मं. पासिज्जइ (पि ७०)। वकृ. पासंत, पासमाण (स ७५; कप्प)। संकृ. पासिउं, पासित्ता, पासित्ताणं, पासिया (पि ४६५; कप्प; पि ५८३; महा)। हेकृ. पासित्तए, पासिउं (पि ५७८; ५७७)। कृ. पासियव्व (कप्प)
पास :: पुं [पार्श्व] १ वर्तमान अवसर्पिणी-काल के तेईसवें जिन-देव (सम १३; ४३) २ भगवान् पार्श्वंनाथ का अधिष्ठायक यक्ष (संति ८) ३ न. कन्धा के नीचे का भाग, पाँजर (णाया १, १६) ४ समीप, निकट (सुर ४, १७९)। °वच्चिज्ज वि [°पित्यीय] भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में संजात (भग)
पास :: पुं [पाश] फाँसा, बन्धन-रज्जू (सुर ४, ३३७; औप; कुमा)।
पास :: न [दे] १ आँख। २ दाँत। ३ कुन्त, प्रास। ४ वि. विशोभ, कुडौल, शोभा-हीन (दे ६, ७५) ५ पुंन. अन्य वस्तु का अल्पु- निश्रण; 'निच्चुन्नो तंबोलो पासेण विणा न होइ जइ रंगो' (भाव २)
°पास :: वि [°पाश] अपसद, निकृष्ट, जघन्य, कुत्सित; 'एस पासंडियपासो किं करिस्सइ' (सम्मत्त १०२)।
पासंगिअ :: वि [प्रासङ्गिक] प्रसंग-संबन्धी, आनुषंगिक (कुम्मा २७)।
पासंड :: न [पासण्ड] १ पाखण्ड, असत्य धर्मं, धर्मं का ढींग (ठा १०; णाया १, ८; उवा; आव ६) २ व्रत (अणु)
पासंडि, पासंडिय :: वि [पासाण्डिन्, °क] १ पाखंडी, लोक में पूजा पानी के लिए धर्मं का ढोंग रचनेवाला (महानि ४; कुप्र २७९; सुपा ९९; १०९; १९२) २ पुं. व्रती, साधु, मुनि; 'पव्वइए अणगारे पासंडे (? डी) चरग तावसे भिक्खू। परिवाइए य समणे' (दसनि २ — णाया १६४)
पासंदण :: न [प्रस्यन्दन] झरन, टपकना (बृह १)।
पासग :: वि [दर्शक] देखनेवाला (आचा)।
पासग :: पृं [पाशक] १ फाँसा, बन्धन-रञ्जु (उप पृ १३; सुर ४, २५०) २ पासा, जुआ खेलने का उपकरण-विशेष (जं ३)
पासग :: न [प्राशक] कला-विशेष (औप)।
पासण :: न [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण (पिंड ४७५; उप ९७७; ओघ ५४; सुपा ३७)।
पासणया :: स्त्री. ऊपर देखो (ओघ ६३; उप १४८; णाया १, १)।
पासणिअ :: वि [दे] साक्षी (दे ६, ४१)।
पासणिअ :: वि [प्राश्निक] प्रश्न-कर्ता (सूअ १, २, २, २८; आचा)।
पासत्थ :: वि [पार्श्वस्थ] १ पार्श्वं में स्थित, निकट-स्थित (पउम ९८, १८; स २६७; सूअ १, १, २, ५) २ शिथिलाचारी साधु (उप ८३३ टी; णाहा १, ५; ६, — पत्र २०६; सार्धं ८८)
पासत्थ :: वि [पाशस्थ] पाश में फँसा हुआ, पाशित (सूअ १, १, २, ५)।
पासल्ल :: न [दे] १ द्वार (दे ६, ७६) २ वि. तिर्यंक, वक्र (दे ६, ७६; से ६; ६२; गउड)। पासल्ल देखो पास = पार्श्व (से ९, ३८, गउड)
पासल्ल :: अक [तिर्यञ्च्, पार्श्वाय्] १ वक्र, होना। २ पार्श्व घुमाना; 'पासल्लंति महिहरा' (से ६, ४५)। वकृ. पासल्लंत (से ६, ४१)
पासल्लइअ :: देखो पासल्लिअ (से ९, ७७)।
पासल्लि :: वि [पार्श्विन्] पार्श्वं-शयित, 'उत्ताण- गपासल्ली तेसज्जी वावि ठाण ठाइत्ता' (पव ६७; पंचा १८, १५)।
पासल्लिअ :: वि [पार्श्वित, तिर्यक्त] १ पार्श्वं में किया हुआ। २ टेढ़ा किया हुआ (गउड; पि ५९५)
पासवण :: न [प्रस्रवण] मूत्र, पेशाब (सम १०; कस; कप्प; उवा; सुपा ६२०)।
पासाईय :: देखो पासादीय (सम १३७; उवा)।
पासाकुसुम :: न [पाशाकुसुम] पुष्प-विशेष, 'छप्पअ गम्मसु सिसिरं पासाकुसुमेहिं ताव, मा मरसु' (गा ८१९)।
पासाण :: पुं [पाषाण] पत्थर (हे १, २६२; कुमा)।
पासाणिअ :: वि [दे] साक्षी (दे ६, ४१)।
पासाद :: देखो पासाय (औप; स्वप्न ५९)।
पासादिय :: वि [प्रसादित] १ प्रसन्न किया हुआ। २ न. प्रसन्न करना (णाया १, ९ — पत्र १६५)
पासादीय :: वि [प्रासादीय] प्रसन्नता-जनक (उवा; औप)।
पासादीय :: वि [प्रासादित] महलवाला, प्रासाद-मुक्त (सूअ २, ७, १ टी)।
पासाय :: पुंन [प्रासाद] महल, हर्म्यं (पाआ; पउम ८०, ४)। °वडिंसय पुं [°वतंसक] श्रेष्ठ महल (भग; औप)।
पासायवडेंसग :: पुं [प्रासादावतंसक] श्रेष्ठतम महल, प्रासाद-विशेष (राय ६६)।
पासास :: स्त्री [दे] भल्ली, छोटा भाला (दे ६, १४)।|
पासाव, पासावय :: पुं [दे] गवाक्ष, वातायन, झरोखा (षड्; दे ६, ४३)।
पासि :: वि [पार्श्विन्] पार्श्वंस्थ, शिथिलाचारी साधु; 'पासिसारिच्छो' (संबोध ३५)।
पासिद्ध :: देखो पसिद्धि (दे १, ४४)।
पासिम :: वि [दृश्य] दर्शंनीय, ज्ञेय (आचा)।
पासिमं :: देखो पास = दृश्।
पासिय :: वि [पाशिक] फाँसे में फँसानेवाला (पणह १, २)।
पासिय :: वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ (आचा — पासिम)।
पासिय :: वि [पाशित] पाश-युक्त (राज)।
पासिया :: स्त्री [पाशिका] छोटा पाश (महा)।
पासिया :: देखो पास = दृश्।
पासिल्ल :: वि [पार्श्विक] १ पास में रहनेवाला। २ पार्श्वंशायी (पव ५४; तंदु १३; भग)
पासी :: स्त्री [दे] चूड़ा, चोटी (दे ६, ३७)।
पासु :: देखो पंसु (हे १, २९; ७०)।
पासुत्त :: देखो पसुत्त (गा ३२४; सुर २, ८२; ९, १६८; हे १, ४४; कुप्र २५०)।
पासेइय :: वि [प्रस्वोदित] प्रस्वेद-युक्त, पसीनावाला (भि)।
पासेल्लिय :: वि [पार्श्ववत्] पार्श्वं-शायी, बगल में सोनेवाला (राज)।
पासोअल्ल :: देखो पासल्ल = तिर्यंञ्च्। वकृ. पासोअल्लंत (से ६, ४७)।
पाह :: (अप) सक [प्र + अर्थय्] प्रार्थंना करना। पाहसि (पि ३५९)।
पाहंड :: देखो पासंड (पि २६५)।
पाहण :: देखो पाहाण; 'महंतं पाहणं तयं' (श्रा १२); 'चउकोणा समतीरा पाहणबद्धा य निम्मविया' (धर्मंवि ३३; महा; भवि)।
पाहणा :: देखो पाणहा; 'तेगिच्छं पाहणा पाए' (दस ३, ४)।
पाहण्ण, पाहन्न :: न [प्राधान्य] प्रधानता, प्रधानपन (प्रासू ३२; ओघ ७७२)।
पाहर :: सक [प्रा + हृ] प्रकर्षं से लाना, ले आना। पाहराहि (सूअ, ४, २, ९)।
पाहरिय :: वि [प्राहरिक] पहरेदार (स ५२५; सुपा ३१२; ४५५)।
पाहाउय :: देखो पाभाइय (सुपा ३५; ५५९)।
पाहण :: पुं [पाषाण] पत्थर (हे १, २६२; महा)।
पाहिज्ज :: देखो पाहेज्ज (पाअ)।
पाहुड :: न [प्राभृत] १ उपहार, पाहुर, भेंट (हे १, १३१; २०६; विपा १, ३; कर्पूर २७, कप्पू; महा; कुमा) २ जैन ग्रन्थांश-विशेष, परिच्छेद, अध्ययन (सुज्ज १; २; ३) ३ प्राभृत का ज्ञान (कम्म १, ७) °पाहुड न [°प्राभृत] १ ग्रन्थांश-विशेष, प्राभृत का भी एक अंश (सुज्ज १, १; २) २ प्राभृत- प्राभृत का ज्ञान (कम्म १, ७)। °पाहुडस- मास पुंन [°प्राभृतसमास] अनेक प्राभृत- प्राभृतों का ज्ञान (कम्म १, ७)। °समास पुंन [°समास] अनेक प्राभृतों का ज्ञान (कम्म १, ७)
पाहुड :: न [प्राभृत] १ क्लेश, कलह (कस; बृह १) २ दृष्टिवाद के पूर्वों का अध्याय-विशेष (अणु २३४) ३ सावद्य कर्मं, पाप-क्रिया (आचा २, २, ३, १; वव १)। °छेय पुं [च्छेद] बारहवें अंग-ग्रन्थ के पूर्वों का प्रकरण-विशेष (वव १)। °पाहुडिआ स्त्री [°प्राभृतिका] दृष्टिवाद का प्रकरण-विशेष (अणु २३४)
पाहुडिआ :: स्त्री [प्राभृतिका] १ दृष्टिवाद का छोटा अध्याय (अणु २३४) २ अर्चंनिका, विलेपन आदि (बब ४)
पाहुडिआ :: स्त्री [प्राभृतिका] १ भेंट, उपहार (पव ६७) २ जैन मुनि की भिक्षा का एक दोष, विवक्षित समय से पहले — मन में संकल्पित भिक्षा, उपहार रूप से दी जाती भिक्षा (पंचा १३, ५; पव ६७; ठा ३, ४ — पत्र १५९)
पाहुण :: वि [दे] विक्रेय, बेचने की वस्तु (दे ६, ४०)।
पाहुण, पाहुणग, पाहुणय :: पुं [प्राघुण, °क] अतिथि, पाहुना, मेहमान (ओघभा ५३; सुर ३, ८५; महा; सुपा १३; कुप्र ४२; औप; काल)।
पाहुणिअ :: पुं [प्राघुणिक] अतिथि, पहुना, मेहमान (काप्र २२४)।
पाहुणिअ :: पुं [प्राधुनिक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)।
पाहुणिज्ज :: वि [प्राहवनीय] प्रकृष्ट संप्रदान, जिसको दान दिया जाता वह (णाया १, १ टी — पत्र ४)।
पाहुण्ण, पाहुण्णग, पाहुण्णय :: न [प्राघुण्य, °क] आतिथ्य, अतिथि का सत्कार, पहुनाई; 'कयं मंजरीए पाहुण (? णण) गं' (कुप्र ४२; उप १०३१ टी)।
पाहेअ :: न [पाथेय] रास्ते में व्यय करने की सामग्री, मुसाफिरों में खाने का भोजन (उत १९, १८; महा; अभि ७६; स ९८; सुपा ४२४)।
पाहेज्ज :: न [दे. पाथेय] ऊपर देखो (दे ६, २४)।
पाहणग :: (दे) देखो पहेणग (पिंड २८८)।
पि :: देखो अवि (हे २१८; स्वप्न ३७; कुमा; भवि)।
पिअ :: सक [पा] पीना। पिअइ (हे ४, १०; ४१९; गा १६१)। भूका. अपिइत्थ (आचा)। वकृ. पिअंत, पियमाण (गा १३ अ; २४६; से २, ५; विपा १, १)। संकृ. पिच्चा, पेच्चा, पिएऊण (कप्प; उत्त १७, ३; धर्मंवम २५), पिएविणु (अप) (सण)। प्रयो. पियावए (दस १०, २)।
पिअ :: पुं [प्रिय] १ पति, कान्त, स्वामी (कुमा) २ वि. इष्ट, प्रीति-जनक (कुमा)। °अम पुं [°तम] पति, कान्त (गा १६; कुमा)। °अमा स्त्री [°तमा] पत्नी, भार्या (कुमा)। °अर वि [°कर] प्रीति-जनक (नाट — पिंग)। °कारिणी स्त्री [°कारिणी] भगवान् महावीर की माता का नाम. त्रिशला देवी (कप्प)। °गंथ पुं [°ग्रन्थ] एक प्राचीन जैन मुनि, आचार्यं सुस्थित और सुप्रतिबद्ध का एक शिष्य (कप्प)। °जाअ वि [°जाय] जिसको पत्नी प्रिय ह वह (गा ५१८)। °जाआ स्त्री [°जाया] प्रेम-पात्र पत्नी (गा १६९)। °दंसण वि [°दर्शन] १ जिसका दर्शंन प्रिय — प्रीतिकर हो वह (णाया १, १ — पत्र १९; औप) २ पुं. देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७९) °दंसणा स्त्री [°दर्शना] भगवान् महावीर की पुत्री का नाम (आवम)। °धम्म वि [°धर्मन्] १ धर्म की श्रद्धा वाला (णाया १, ८) २ पुं. श्री रामचन्द्र के साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक राजा (पउम ८५, ५) °भाउग पुं [°भ्रातृ] पति का भाई (उप ६४८ टी)। °भासि वि [°भाषिन्] प्रिय-वक्ता (महा ५८)। °मित्त पुं [°मित्र] १ एक जैन मुनि, जो अपने पीछले भव में पाँचवाँ वासुदवे हुआ था (पउम २०, १७१) °मेलय वि [°मेलक] १ प्रिय का मेल — संयोग करानेवाला। २ न. एक तीर्थं (स ५५१)। °उय वि [°युष्क] जीवित-प्रिय (आचा)। °यग वि [°यत, °त्मक] आत्म-प्रिय (आचा)
पिअ :: देखो पीअ; 'पीआपीअं पिआपिअं' (प्राप्र; सण; भवि)।
पिअ° :: देखो पिउ (प्रासू ७६; १०८)। °हर न [°गृह] पिता का घर, पीहर, नैहर, मैका (पउम १७, ७)।
पिअआ :: देखो पिआ (श्रा १६)।
पिअइउ :: (अप) वि [प्रीणयितृ] प्रीति उपजानेवाला, खुख करनेवाला (भवि)।
पिअउल्लिय :: (अप) देखो पिआ (भवि)।
पिअंकर :: वि [प्रियंकर] १ अभीष्ट-कर्त्ता, इष्ट-जनक (उत्त ११, १४) २ पुं. एक चक्रवर्त्ती राजा (उप ९७२) ३ रामचन्द्र के पुत्र लव का पूर्व जन्म का नाम (पउम १०४, २९)
पिअंगु :: पुं [प्रियङ्ग] १ वृक्ष-विशेष, प्रियंगु, ककुंदनी का पेड़ (पाअ; औप; सम १५२) २ कंगु, मालकाँगनी का पेड़; 'पियंगउणो कंगू' (पाअ) ३ स्त्री. एक स्त्री का नाम (विवा १, १०)। °लइया स्त्री [°लतिका] एक स्त्री का नाम (महा)
पिअंवय :: वि [प्रियंवद] मधुर-भाषी (सुर १, ६५; ४, ११८; महा)।
पिअंवाइ :: वि [प्रियवादिन्] ऊपर देखो (उत्त ११, १४; सुख ११, १४)।
पिअण :: न [दे] दुग्ध, दूध (दे ६, ४८)।
पिअण :: न [पान] पीना, 'तुहथन्नपियणनिरयं' (धर्मंवि १२५; सुख ३, १; उप १३९ टी; स २६३; सुपा २४५; चेइय ५७०)।
पिअणा :: स्त्री [पृतना] सेना-विशेष, जिसमें २४३ हाथी, २४३ रथ, ७२९ घोड़े और १२१५ प्यादें हो वह लख्कर (पउम ५ ६, ६)।
पिअमा :: स्त्री [दे] प्रियंगु वृक्ष (दे ६, ४९; पाअ)।
पिअमाहवी :: स्त्री [दे] कोकिला, पिकी (दे ६, ५१; पाअ)।
पिअय :: पुं [प्रियक] वृक्ष-ृविशेष, विजयसार का पेड़ (औप)।
पिअर :: पुंन [पितृ] १ माता-पिता, मा-बाप; 'सुणंतु निणणयमिमं पियरा', 'पियराइं रुयंताइं' (धर्मंवि १२२) २ पुं. पिता, बाप (प्राप्र)
पिअरंज :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। पिअरंजइ (प्राकृ. ७४)।
पिअल :: (अप) देखो पिअ = प्रिय (पिंग)।
पिआ :: स्त्री [प्रिया] पत्नी, कान्ता, भार्या (कुमा; हेका ९९)।
पिआमह :: पुं [पितामह] १ ब्रह्मा, चतुरानन (से १, १७; पाअ; उप ५९७ टी; स २३१) २ पिता का पिता, दादा (उव)। °तणअ पुं [°तनय] जाम्बवान्, वानर-विशेष (से ४, ३७)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र-विशेष, ब्रह्मास्त्र (से १५, ३७)
पिआमही :: स्त्री [पितामही] पिता की माता, दादी (सुपा ४७२)।
पिआर :: (अप)। वि [प्रियतर] प्यारा (कुप्र ३२; भवि)।
पिआरी :: (अप) स्त्री [प्रियतरा] प्यारी, प्रिया, पत्नी (पिंग)।
पिआल :: पुं [प्रियाल] वृक्ष-विशेष, पियाल, चिरौंजी का पेड़ (कुमा, पाअ; दे ३, २१; पणण १)।
पिआलु :: पुं [प्रियालु] वृक्ष-विशेष, खिन्नो, खिरनी का गाछ (उर २, १३)।
पियासा :: देखो पिवासा (गा ८१४)।
पिइ :: देखो पीइ; 'तेणं पिइए सिट्ठं' (पउम ११, १४)।
पिइ :: पुं [पितृ] १ पिता, बाप (उप ७२८ टी) २ मधा-नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (सुज्ज १०, १२; पि ३९१)। °मेह पुं [°मेध] यज्ञ-विशेष, जिसमें बाप की होम किया जाय अह यज्ञ (पउम ११, ४२)। °वण न [°वन] श्मशान (सुपा ३५९)। °हर न [°गृह] पिता का घर, पीहर (पउम १८, ७; सुर ९, २३६)। देखो पिंड।
पिइज्ज :: पुं [पितृव्य] चाचा, बाप का भाई; 'सुपासो वीरजिणपिइञ्जो' (? ज्ज)' (विचार ४७८)।
पिइय :: वि [पैतृक] पिता का, पितृ-संबन्धी (भग)।
पिउ, पिउअ :: पुं [पितृ] १ बाप, पिता (सुर १, १७९; औप; उव; हे १, १३१) २ पुंन. माँ बाप, माता-पिता; 'अन्नया मह पिऊणि गामं पत्ताइं' (धर्मंवि १४७ सुपा ३२९)। °कम्म पुं [°क्रम] पितृ-वंश, पितृ-कुल (कुमा)। °कुल न [°कुल] पिता का वंश (षड्)। °घर न [°गृह] पिता का घर, पीहर (सुपा ६०१)। °च्छा, °च्छी स्त्री [°ष्वस्] पिता की बहिन, फूआ, बूआ, फुफू (गा ११०; हे २, १४२; पाअ; णाया १; १६), 'कोंति पिउत्थिं (? च्छिं) सक्कारेइ' (णाया १, १६ — पत्र २१६)। °पिंड पुं [°पिण्ड] मृतक-भोजन, श्राद्ध में दिया जाता भोजन (आचा २, १, २)। °भगिणी स्त्री [°भगिनी] फूफी, पिता की बहिन (सुर ३, ८२)। °वइ पुं [°पति] यम, यमराज (हे १, १३४)। °वण न [°वन] श्मशान (पउम १०५, ५१; पाअ; हे १, १३४)। °सिआ स्त्री [°ष्वस्] फूफी (हे २, १४२; कुमा), °सेणकण्हा स्त्री [°सेनकृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५)। °स्सिय देखो °सिआ (विपा १, ३ — पत्र ४१)। °हर देखो °घर (सुर १०, १९; भवि)
पिउअ :: देखो पिइय (राज)।
पिउच्चा :: स्त्री [दे. पितृष्वस्] फूफी, पिता की बहिन (षड्)।
पिउच्चा, पिउच्छा :: स्त्री [दे] सखी, वयस्या (षड् १७५; २१०)।
पिउली :: स्त्री [दे] १ कपाँस, कपास। २ तूल-लतिका, रूई की पूनी (दे ६, ७८)
पिउलस्ल :: देखो पिउ (हे २, १६४)।
पिंकार :: पुं [अपिकार] १ 'अपि' शब्द। २ अपि शब्द की व्याख्या (ठा १० — पत्र ४९५)
पिंखा :: स्त्री [प्रेङ्खा] हिंडोला, डोला (पाअ)।
पिंखोल :: सक [प्रेङ्खोलय्] झूलना। वकृ. पिंखोलमाण (राज)।
पिंग :: देखो पंग = ग्रह् (कुमा ७, ४९)।
पिंग :: पुं [पिङ्ग] १ कपिश वर्णं, पीत वर्णं। २ वि. पीला, पीत रँग का (पाअ; कुमा; णमि १४) ३ पुंस्त्री. कपिंजल पक्षी। स्त्री. °गा (सूअ १, ३, ४, १२)
पिंगगंग :: पुं [दे] मर्कट, बन्दर (दे ६, ४८)।
पिंगल :: पुं [पिङ्गल] १ नील-पीत वर्णं। २ वि. नील-मिश्रत पीत-वर्णंवाला (कुमा; ठा ४, २; औप) ३ पुं. ग्रह-विशेष (ठा २, ३) ४ एक यक्ष (सिरि ६६६) ५ चक्रवर्त्ती का एक निधि, आभूषणों की पूर्त्ति करनेवाला एक निधान (ठा ९; उप ९८६ टी) ६ कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज २०) ७ प्राकृत-पिंगल का कर्त्ता एक कवि (पिंग) ८ एक जैन उपासक (भग) ९ न. प्राकृत का एक छन्द-ग्रंथ (पिंग) °कुमार पुं [°कुमार] एक राजकुमार, जिसने भगवान् सुपार्श्वनाथ के समीप दीक्षा ली थी (सुपा ९६)। °क्ख वि [°क्ष्] १ नीली-पीली आँखवाला (ठा ४, २ — पत्र २०८) २ पुं. पक्षि-विशेष (पणह १, १; औप)
पिंगलायण :: न [पिङग्लायन] १ गोत्र-विशेष, जो कौत्स गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७)
पिंगलिअ :: वि [पिङ्गलित] नीला-पीला किया हुआ (से ४, १८; गउड; सुपा ८०)।
पिंगलिय :: वि [पैङ्गलिक] पिंगल-संबन्धी (पिंग)।
पिंगा :: देखो पिंग।
पिंगायण :: न [पिङ्गयन] मघा-नक्षत्र का गोत्र (इक)।
पिंगिअ :: वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ (कुमा)।
पिंगिम :: पु्ंस्त्री [पिङ्गिमन्] पिंगता, पीलापन (गउड)।
पिंगीकय :: वि [पिङ्गीकृत] पीला किया हुआ, 'घणथणघुसिणिक्कुप्पंकपिंगीक्य व्व' (लहुअ ७)।
पिंगुल :: पुं [पिङ्गुल] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।
पिंचु :: पुंस्त्री [दे] पक्व करीर, पक्का करील (दे ६, ४६)।
पिंछ, पिंछड :: देखो पिच्छ (आचा; गउड, सुपा ६४१)।
पिंछी :: स्त्री [पिच्छी] साधु का एक उपकरण, 'नवि लेइ जिणा पिंछों' (? छिं)' (विचार १२८)।
पिंछोली :: स्त्री [दे] मुँह के पवन से बजाया जाता तृण-मय वाद्य-विशेष (दे ६, ४७)।
पिंज :: सक [पिञ्ज्] पीजना, रूई का धुनना। वकृ. पिंजंत (पिंड ५७४; ओघ ४६८)।
पिंजण :: न [पिञ्जन] पीजना (पिंड ६०३; दे ७, ६३)।
पिंजर :: पुं [पिञ्जर] १ पीत-रक्त वर्णं, रक्त-पीत मिश्रित रँग। २ वि. रक्त-पीत वर्णंवाला (गउड; कुप्र ३०७)
पिंजर :: सक [पिञ्जरय्] रक्त-मिश्रित पीत-वर्णं-युक्त करना। वकृ. पिंजरयंत (पउम ९२, ९)।
पिंजरण :: न [पिञ्जरण] रक्त-मिश्रिच पीत- वर्णंवाला करना (सण)।
पिंजरिअ :: वि [पिञ्जरित] पिञ्जर वर्णंवाला किया हुआ (हम्मीर १२, गउड; सुपा ५२४)।
पिंजरुड :: पुं [दे] पक्षि-विशेष, भारुण्ड पक्षी, जिसके दो मुँह होते हैं (दे ६, ५०)।
पिंजिअ :: वि [पिञ्जित] पीजा हुआ (दे ७, ६४)।
पिंजिअ :: वि [दे] विधुत (दे ६, ४९)।
पिंड :: सक [पिण्डय्] १ एकत्रित करना, संश्लिष्ट करना। २ अक. एकत्रित होना, मिलना। पिंडेइ, पिंडयए (उव; पिंड ६६)। संकृ. पिण्डिऊण (कुमा)
पिंड :: पुं [पिण्ड] १ कठिन द्रव्यों का संश्लेष (पिण्डभा २) २ समूह, संघात (ओघ ४०७; विसे ९००) ३ गुड़ वगैरह की बनी हुई गोल वस्तु, वर्तुलाकार पदार्थं (पणह २, ५) ४ भिक्षा में मिलता आहार, भिक्षा (उव; ठा ७) ५ देह का देश। ६ देह, शरीर। ७ घर का एक देश। ८ अन्न का गोला जो पितरों के उद्देश से दिया जाता है। ९ गन्ध-द्रव्य विशेष, सिह्लक। १० जपा-पुष्प। ११ कवल, ग्रास। १२ गज-कुम्भ। १३ मदनक वृक्ष, दमनक का पेड़। १४ न. आजीविका। १५ लोहा। १६ श्राद्ध, पितरों को दिया जाता दान। १७ वि. संहत। १८ घन, निबिड़ (हे १, ८५)। °कप्पिअ वि [°कल्पिक] सर्वथा निर्दोष भिक्षा तेनेवाला (वव ३)। °गुला स्त्री [°गुला] गुड़-विशेष, इक्षुरस का विकार-विशेष, शक्कर बनने के पहले की अवस्था-विशेष (पिंड २८३)। °घर न [°गृह] कर्दम से बना हुआ घर (वव ४)। °त्थ पुं [°स्थ] जिन भगवान् की अवस्था- विशेष; 'न पिंडत्थपयत्थावत्थंतरभावणा सम्मं' (संबोध २)। °त्थ पुं [°र्थ] समुदायार्थ (राज)। °दाण न [°दान] पिण्ड देने की क्रिया, श्राद्ध (धर्मवि २६)। °पयडि स्त्री [°प्रकृति] अवान्तर भेदवाली प्रकृति (कम्म १, २५)। °वद्धण न [°वर्धन] आहार-वृद्धि, कवल-वृद्धि, अन्न-प्राशन (अंत)। वद्धावण न [°वर्धन] आहार बढ़ाना (औप) °वाय पुं [°पात] भिक्षा-लाभ, आहार-प्राप्ति (ठा ५, १, कस)। °वास पुं [°वास] सुहृजन (भवि)। °विसुद्धि, °विसोहि स्त्री [°विशुद्धि] भिक्षा की निर्दोंषता (अंत; ओधभा ३)
पिंडग :: पुं [पिण्डक] ऊपर देखो (कस)।
पिंडण :: न [पिण्डन] १ द्रव्यों का एकत्र संश्लेष (पिंडभा २) २ ज्ञानावरणीयादि कर्मं (पिंड ६६)
पिंडणा :: स्त्री [पिण्डना] १ समूह (ओघ ४०७) २ द्रव्यों का परस्पर संयोजन (पिंड २)
पिंडय :: देखो पिंड (ओघभा ३३)।
पिंडरय :: न [दे] दाडिम, अनार (दे ६, ४८)।
पिंडलइय :: वि [दे] पिण्डीकृत, पिण्डाकार किया हुआ (दे ६, ५४; पाअ)।
पिंडलग :: न [दे] पटलक, पुष्प का भाजन (ठा ७)।
पिंडवाइअ :: वि [पिण्डपातिक, पैण्डपातिक] भक्त-लाभवाला, जिसको भिक्षा में आहार की प्राप्ति हो वह (ठा ५, १; कस; औप; प्राकृ ९)।
पिंडार :: पुं [पिण्डार] गोप, ग्वाला (गा ७३१)।
पिंडालु :: पुं [पिण्डालु] कन्द-विशेष (श्रा २०)।
पिंडि° :: देखो पिंडी (भग; णाया १, १ टी — पत्र ५)।
पिंडिम :: वि [पिण्डिम] १ पिण्ड से बना हुआ, बहल (पणह २, ५ — पत्र १५०) २ पुद्गल-समूहरूप, संघाताकार (णाया १, १ टी — पत्र ५; औप)
पिंडिय :: वि [पिण्डित] १ एकत्रित, इकट्ठा किया हुआ (सूअनि १४०; पंचा १४, ७; महा) २ गुणित (औप)
पिंडिया :: स्त्री [पिण्डिका] १ पिण्डी, पिंडली, जानू के नीचे का मांसल अवयव (महा) २ वर्तुलाकार वस्तु (औप)। देखो पिंडी।
पिंडी :: स्त्री [पिण्डी] १ लुम्बी, गुच्छा (औप; भग; णाया १, १; उप पृ ३९) २ घर का आधार-भूत काष्ठ-विशेष, पीढा; 'विघडियपिंडिबंधसंधिपरिलंबिवालणिम्मोआ' (गउड) ३ वर्तुलाकार वस्तु, गोला; 'पिन्नागपिंडी' (सूअ २, ६, २६) ४ खर्जुर-विशेष (नाट — शकु ३५)। देखो पिडिया।
पिंडी :: स्त्री [दे] मञ्जरी (दे ६, ४७)।
पिंडीर :: न [दे. पिण्डीर] दाड़िम, अनार (दे ६; ४०)।
पिंडेसणा :: स्त्री [पिण्डैषणा] भिक्षा ग्रहण करने की रीति (ठा ७)।
पिंडेसिय :: वि [पिण्डैषिक] भिक्षा की खोज करनेवाला (भग ९, ३३)।
पिंडोलग, पिंडोलगय, पिंडोलय :: वि [पिण्डावलगक] भिक्षा से निर्वाह करनेवाला, भिक्षा का प्रार्थी, भिक्षु (आचा; उत्त ५, २२; सुख ५, २२; सूअ १, ३, १, १०)।
पिंध :: (अप) सक [पि + धा] ढकना। पिंधउ (पिंग)। संकृ. पिंधउ (पिंग)।
पिंधण :: (अप) न [पिधान] ढकना (पिंग)।
पिंसुली :: स्त्री [दे] मुँह से पवन भरकर बजाया जाता एक प्रकार का तृण-वाद्य (दे ६, ४७)।
पिक :: पुंस्त्री [पिक] कोकिल पक्षी (पिंग)। स्त्री. °की (दे ६, ५१)।
पिक्क :: देखो पक्क = पक्व (हे १, ४७; पाअ; गा ५९५)।
पिक्ख :: सक [प्र + ईक्ष्] देखना। पिक्खइ (भवि)। वकृ. पिक्खंत (भवि)। कृ. पिक्खेयव्व (सुर ११, १३३)।
पिक्खग :: वि [प्रेक्षक] निरीक्षक, द्रष्टा (ती १०; धर्मंवि १५)।
पिक्खण :: न [प्रेक्षण] निरीक्षण (राज)।
पिक्खिय :: वि [प्रेक्षित] दृष्ट (पि ३९०)।
पिग :: देखो पिक (कुमा)।
पिचु :: पुं [पिचु] कार्पास, रुई (दे ६, ७८)। °लया स्त्री [°लता] पूनी, रुई की पूनी (दे ६, ५६)।
पिचुमंद :: पुं [पिचुमन्द] निम्ब वृक्ष, नीम का पेड़ (मोह १०३)।
पिच्च, पिच्चा :: अ [प्रेत्य] पर-लोक, आगामी जन्म (श्रा १४; सुपा ५०६; सूअ १, १, १, ११)। देखो पेच्च।
पिच्चा :: देखो पिअ = पा।
पिच्चिय :: वि [दे. पिच्चित] कूटी हुई छाल (ठा ५, ३ — पत्र ३३८)।
पिच्छ :: सक [दृश्, प्र + ईक्ष्] देखना। पिच्छइ, पिच्छंति, पिच्छ (कप्प; प्रासू १६०; ३३)। वकृ. पिच्छंत, पिच्छमाण (सुपा ३४९; भवि)। कवकृ. पिच्छिज्जमाण (सुपा ९२)। संकृ. पिच्छिउं, पिच्छिऊण (प्रासू ९१; भवि)। कृ. पिच्छणिज्जं (कप्प; सुर १३, २२३; रयण ११)।
पिच्छ :: न [पिच्छ] १ पक्ष का अवयव, पंख का हिस्सा (उवा; पाअ) २ मयूर-पिच्छ, शिखण्ड (णाया १, ३) ३ पक्ष, पाँख (उप ७६८ टी; गउड) ४ पूँछ, लांगूल (गउड)
पिच्छण :: न [प्रेक्षण] १ दर्शंन, अवलोकन (श्रा १४; सुपा ५५)
पिच्छण, पिच्छणय :: न [प्रेक्षण, °क] तमाशा, खेल, नाटक; 'पारद्धं पिच्छणं तहि ताव' (सुपा ४८५), 'तो जवणियछिड्डेहिं पिच्छइ अंतेउरंपि पिच्छणयं' (सुपा २००)।
पिच्छल :: वि [पिच्छल] १ स्निग्ध, स्नेह-युक्त। २ मसृण (सण)
पिच्छा :: स्त्री [प्रेक्षा] निरीक्षण। °भूमि स्त्री [°भूमि] रंग-मण्डप, रंगमँच (पाअ)।
पिच्छि :: वि [पिच्छिन्] पिच्छवाला (औप)।
पिच्छिर :: वि [प्रेक्षितृ] प्रेक्षक, द्रष्टा देखनेवाला (सुपा ७८; कुमा)।
पिच्छिल :: वि [पिच्छिल] १ स्नेह-युक्त, स्निग्ध। २ मसृण, चिकना (गउड; हास्य १४०; दे ६, ४९)
पिच्छिली :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ६, ४७)।
पिच्छी :: स्त्री [दे] चूड़ा, चोटी (दे ६, ३७)।
पिच्छी :: स्त्री [पिच्छिका] पीछी (गा ५७२)।
पिच्छी :: स्त्री [पृथ्वी] १ पृथ्वी, धरित्री, धरती (कुमा) २ बड़ी इलायची। ३ पुनर्नवा। ४ कृष्ण जीरक। ५ हिंगुपत्री (हे १, १२८)
पिच्छोला :: स्त्री [दे] बीन बजाने की कंबिका (सूत्र कृ° चू° पत्र १४६)।
पिज्ज :: सक [पा] पीना। पिज्जइ (हे ४, १०)। कृ. पिज्जणिज्ज (कुमा)।
पिज्ज :: पुंन [प्रेमन्] प्रेम, अनुराग (सूअ १, १६, २; कप्प)।
पिज्ज, पिज्जंत :: देखो पा = पा।
पिज्जा :: स्त्री [पेया] यवानू (पिंड ६२४)।
पिज्जाविअ :: वि [पायित] जिसको पान कराया गया हो वह (सुख २, १७)।
पिट्ट :: सक [पीडय्] पीड़ा करना। पिट्टंति (सूअ २, २, ५५)।
पुट्ट :: अक [भ्रंश्] नीचे गिरना। पिट्टइ (षड्)।
पिट्ट :: सक [पिट्टय्] पीटना, ताड़न करना। पिट्टइ, पिट्टेइ (आचा; पिंग; गा १७१; सिरि ६५५)। वकृ. पिट्टंत (पिंग)।
पिट्ट :: न [दे] पेट, उदर (पंचा ३, १९; धर्मंवि ६६; चेइय २३८; करु २६; सुपा ५९३; सं २१)।
पिट्टण :: न [पिट्टन] ताड़न, आघात (सूअ २, २, ६२; पिंड ३४; पणह १, १; औघ ५९९; उप ५०९)।
पिट्टण :: न [पीडन] पीड़ा, क्लेश (सूअ २, २, ५५)।
पिट्टणा :: स्त्री [पिट्टना] ताड़न (ओघ ३५७)।
पिट्टावणया :: स्त्री [पिट्टना] ताड़न कराना (भग ३, ३ — पत्र १८२)।
पिट्टिय :: वि [पिट्टित] पीटा हुआ, ताड़ित (सुख २, १५)।
पिट्ठ :: न [पिष्ट] तण्डुल आदि का आटा, चूर्णं (णाया १, १; ३; दे १, ७८; गा ३८८)।
पिट्ठ :: न [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का हिस्सा (औप; उव)।
°ओ :: अ [°तस्] पीछे से, पृष्ठ भाग से (उवा; विपा १, १; औप)। २ करंडग न [°करण्डक] पृष्ठ-वंश, पीठ की बड़ी हड्डी (तंदु ३५)। °चर वि [°चर] पृष्ठ-गामी, अनुयायी (कुमा)। देखो पिट्ठि।
पिट्ठ :: वि [स्पृष्ट] १ छुआ हुआ। २ न. स्पर्शं (पव १५७)
पिट्ठ :: वि [पृष्ठ] १ पूछा हुआ। २ न. प्रश्न, पृच्छा; 'जंपसि विणअं ण जंपसे पिट्ठं' (गा ९४३)
पिट्ठंत :: न [दे. पृष्ठान्त] गुदा, गाँड़ (दे ६, ४९)।
पिट्ठखउरा :: स्त्री [दे] पङ्क-सुरा, कलुष मदिरा (दे ६, ५०)।
पिट्ठखउरिआ :: स्त्री [दे] मदिरा, दारू (पाअ)।
पिट्ठव्व :: वि [प्रष्टव्य] पूछने योग्य, 'नियकरक्कीदीवि किंकरी किं पिट्ठि (? ठ्ठ) व्वा' (रंभा)।
पिट्ठायय :: पुंन [पिष्ठातक] केसर आदि गन्ध-द्रव्य (गउड; स ७३४)।
पिट्ठी :: स्त्री [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का भाग (हे १, १२९; णाया १, ९; रंभा; कुमा; षड्)। °ग वि [ग] पीछे चलनेवाला (श्रा १२)। °चम्पा स्त्री [°चम्पा] चम्पा नगरी के पास की एक नगरी (कप्प)। °मंस न [°मांस] परोक्ष में अन्य के दोष का कीर्तंन; 'पिट्ठिमंसं न खाइज्जा' (दस ८, ४७)। °मंसिय वि [°मांसिक] परोक्ष में दोष बोलनेवाला, पीछे निन्दा करनेवाला (सम ३७)। °माइया स्त्री [°मातृका] एक अनुत्तर-गामिनी स्त्री; 'चंदिमा पिट्ठिमाइया' (अनु २)। देखो पिट्ठ = पृष्ठ।
पिट्ठी :: स्त्री [पैष्टी] आटा की बनी हुई मदिरा (बृह २)।
पिड :: पुं [पिट] १ वंश-पत्र आदि का बना हुआ पात्र-विशेष। २ कब्जा, अधीनता; 'जा ताव तेणं भणियं रे रे रे बाल मह पिडे पडिओ' (सुपा १७६)
पिडग :: देखो पिडय = पिटक (औप; उवा; सुज्ज १९)।
पिडच्छा :: स्त्री [दे] सखी (दे ६, ४९)।
पिडय :: न [पिटक] १ वंशमय पात्र-विशेष, 'भोयणंपि (? पि) डयं करेति' (णाया १, १ — पत्र ८६) २ दो चन्द्र और दो सूर्यों का समूह (सुज्ज १९)
पिडय :: वि [दे] आविन्न (षड्)।
पिडव :: सक [अर्ज्] पैदा करना, उपार्जंन करना। पिडवइ (षड्)।
पिडिआ :: स्त्री [पिटिका] १ वंश-मय भाजन-विशेष (दे ४, ७; ६, १) २ छोटी मंजूषा पेटी, पिटारी (उप ५८७; ५९७ टी)
पिड्ड :: सक [पीडय्] पीड़ना। पिड्डइ (आचा; पि २७९)।
पिड्ड :: अक [भ्रंश्] नीचे गिरना। पिड्डइ (षड्)।
पिड्डइअ :: वि [दे] प्रशान्न्त (षड्)।
पिढं :: अ [पृथक्] अलग, जुदा (षड्)।
पिढर :: पुंन [पिठर] १ भाजन-विशेष, स्थाली (पाअ; आचा; कुमा) २ गृह-विशेष। ३ मुस्ता, मोथा। ४ मन्थान-दण्ड, मथनिया (हे १; २०१; षड्)
पिणद्ध :: सक [पि + नह्, पिनि + धा] १ ढकना। २ पहिनना। ३ पहिराना। ४ बाँधना। पिणद्धइ, पिणद्धेइ (पि ५५९)। हेकृ. पिणद्धुं, पिणद्धित्तए (अभि १८५; राज)
पिणद्ध :: वि [पिनद्ध] १ पहना हुआ (पाअ; औप; गा ३२८) २ बद्ध, यन्त्रित (राय) ३ पहनाया हुआ; 'निगमउडोवि पिणद्धो तस्स सिरे रयणचिंचइओ' (सुपा १२५)
पिणद्धाविद :: (शौ) वि [पिनिधापित] पह- नाया हुआ (नाट — शकु ६८)।
पिणाइ :: पुं [पिनाकिन्] महादेव, शिव (पाअ; गउड)।
पिणई :: स्त्री [दे] आज्ञा, आदेश (दे ६, ४८)।
पिणाग :: पुंन [पिनाक] १ शिव-धनुष। २ महादेव का शूलास्त्र (धर्मंवि ३१)
पिणागि :: देखो पिणाइ (धर्मंवि ३१)।
पिणाय :: देखो पिणाग (गउड)।
पिणाय :: पुं [दे] बलात्कार (दे ६, ४९)।
पिणिद्ध :: वि [पिनद्ध, पिनिहित] देखो पिणद्ध = पिनद्ध; (पणह २, ४ — पत्र १३०; कप्प; औप)।
पिणिधा :: सक [पिनि + धा] देखो पिणद्ध = पि + नह्। हेकृ. पिणिधत्तए (औप; पि ५७८)।
पिण्णाग :: देखो पिन्नाग (राज)।
पिण्णिया :: स्त्री [दे. पिण्यिका] गन्ध-द्रव्य- विशेष, ध्यामक, गन्ध-तृण (उत्तनि ३)।
पिण्ही :: स्त्री [दे] क्षामा, कृश स्त्री (दे ६, ४६)।
पित्त :: पुंन [पित्त] शरीर-स्थित धातु-विशेष, तिक्त धातु (भग; उव)। °ज्जर पुं [°ज्वर] पित्त से होता बुखार (णाया १, १)। °मुच्छा स्त्री [°मूर्च्छा] पित्त की प्रबलता से होनेवाली बेहोशी (पडि)।
पित्तल :: न [पित्तल] धातु-विशेष, पीतल (कुप्र १४४)।
पित्तिज्ज, पित्तिय :: पुं [पितृव्य] चाचा, पिता का भाई (कप्प; सम्मत्त १७२; सिरि २९३, धर्मंवि १२७; स ४९५, सुपा ३३४)।
पित्तिय :: वि [पैत्तिक] पित्त का, पित्त- संबन्धी (तंदु १९; णाया १, १; औप)।
पिधं :: अ [पृथक्] अलग, जुदा (हे १, १८८; कुमा)।
पिधाण :: देखो पिहाण (नाट — विक्र १०३)।
पिन्नाग, पिन्नाय :: पुं [पिण्याक] खली, तिल आदि का तेल निकाल लेने पर जो उसका भाग बचता है वह (सूअ २, ६, २६; २, १, १६; २, ६, २८)।
पिपीलिअ :: पुं [पिपीलक] कीट-विशेष, चीऊँटा (कप्प)।
पिपीलिआ, पिपीलिका :: स्त्री [पिपीलिका] चोंटी, चीऊँटी (पणह १, ६; जी १६; णाया १, १६)।
पिप्पड :: सक [दे] बड़बड़ाना, जो मन में आवे सो बकना। पिप्पडइ (दे ६, ५० टी)।
पिप्पडा :: स्त्री [दे] ऊर्णा-पिपीलिका (दे ६, ४८)।
पिप्पडिअ :: वि [दे] १ जो बड़बड़ाया हो। २ न. बड़बड़ाना, निरर्थक उल्लाप, बकवाद (दे ६, ५०)
पिप्पय :: पुं [दे] १ मशक (दे ६. ७८) २ पिशाच, भूत (पाअ)। ३ वि. उन्मत्त (दे ६, ७८)
पिप्पर :: पुं [दे] १ हंस। २ वृषभ (दे ६, ७९)
पिप्परी :: स्त्री [पिप्पली] पीपर का गाछ (पणण १)।
पिप्पल :: पुंन [पिप्पल] १ पीपल वृक्ष, अश्वत्थ (उप १०३१ टी; पाअ; हि १०) २ छुरा, क्षुरक (विपा १, ६ — पत्र ६६; ओघ ३५९)
पिप्पलग :: वि [पैष्पलक] पीपल के पान का बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।
पिप्पलि, पिप्पली :: स्त्री [पिप्पलि, °ली] ओषधि- विशेष, पीपर; 'महुप्पिप्पलिसुंठाई अणेगहा साइमं होइ' (पंचा ५, ३०; पणण १७)।
पिप्पिडिअ :: देखो पिप्पडिअ (षड्)।
पिप्पिया :: स्त्री [दे] दाँत का मैल (णंदि)।
पिब :: देखो पिअ = पा। पिबामो (पि ४८३)। संकृ. पिबित्ता (आचा)।
पिब्ब :: न [दे] जल, पानी (दे ६, ४६)।
पिम्म :: पुं [प्रेमन्] प्रेम, प्रीति, अनुराग (पाअ; सुर २, १७२; रंभा)।
पियाल :: पुं [प्रियाल] १ वृक्ष-विशेष, खिरनी का पेड़। २ न. फल-विशेष खिरनी, खिन्नी (दस ५, २, २४)
पियास :: (अप) स्त्री [पिपासा] प्यास (भवि)।
पिरिडी :: स्त्री [दे] शकुनिका, चिड़िया (दे ६, ४७)।
परिपिरिया :: देखो परिपिरिया (राज)।
पिरिली :: स्त्री [पिरिली] १ गुच्छ-विशेष, वनस्पति-विशेष (पणण १) २ वाद्य-विशेष (राज)
पिल :: देखो पील। कर्मं. पिलिज्जइ (नाट)।
पिलंखु, पंलक्खु :: पुं [प्लक्ष्] १ वृक्ष-विशेष, पिलखन, पाकड़ का पेड़ (सम १५२; ओघ २६; पि ७४) २ एक तरह का पीपल वृक्ष; 'पिलक्खु पिप्पलभेदो' (निचू ३)
पिलण :: न [दे] पिच्छिल देश, चिकनी जगह (दे ६, ४९)।
पिला :: देखा पीला (पि २२६)।
पिलाग :: न [पिटक] फोड़ा, फुनसी (सूअ १, ३, ४, १०)।
पिलिंखु :: देखो पिलंखु (विचार १४८)।
पिलिहा :: स्त्री [प्लीहा] अंग-विशेष, पिलही, तिल्ली (तंदु ३९)।
पिलुअ :: न [दे] क्षुत, छींक (षड्)।
पिलुंक, पिंलुक्ख :: देखो पिलखु (पि ७४; पणण १ — पत्र ३१)।
पिलुंखु :: देखो पिलंखउ (आचा २, १, ८, ३)।
पिलुट्ठ :: वि [प्लुष्ट] दग्ध (हे २, १०६)।
पिलोस :: पुं [प्लोष] दाह, दहन (हे २, १०६)।
पिल्ल :: देखो पेल्ल = क्षिप्। पिल्लइ (भवि)।
पिल्ल :: सक [प्र + ईरय्] १ प्रेरण करना। २ प्रवृत्त करना। पिल्लेइ (वव १)
पिल्लग :: न [दे] पक्षी का बच्चा।
पिल्लण :: न [प्रेरण] प्रेरणा (जं ३)।
पिल्लणा :: स्त्री [प्रेरणा] प्रेरणा (कप्प)।
पिल्लि :: स्त्री [दे] यान-विशेष (दसा ६)।
पिल्लिअ :: वि [क्षिप्त] फेंका हुआ (पाअ; भवि; कुमा)।
पिल्लिअ :: वि [प्रेरित] जिसको प्रेरणा की गई हो वह (सुपा ३६१)।
पिल्लिरी :: स्त्री [दे] १ तृण-विशेष, गण्डुत् तृण। २ चोरी, कीट-विशेष। ३ घर्म, पसीना (दे ६, ७९)
पिल्लुग :: (दे) देखो पिलुअ (वव २)।
पिल्ह :: न [दे] छोटे पक्षी के तुल्य (दे ६, ४६)।
पिव :: देखो इव (हे २, १८२; कुमा; महा)।
पिव :: सक [पा] पीना। पिवइ (पिंग)। भूका. अपिवित्था (आचा)। कर्मं. पिवीअंति (पि ५३९)। संकृ. पिविअ, पिविइत्ता, पिवित्ता (नाट; ठा ३, २; महा)। हेकृ. पिविउं, पिवित्तए (आक ४२; औप)।
पिवण :: देखो पिअण = (दे) (भवि)।
पिवासय :: वि [पिपासक] पीने की इच्छावाला (भग — अत्थ°)।
पिवासा :: स्त्री [पिपासा] प्यास, पीने की इच्छा (भग; पाअ)।
पिवासिय :: वि [पिपासित] तृषित (उवा; वै.....)।
पिवीलिआ :: देखो पिपीलिआ (उव; स ४२०, भा ४९)।
पिव्व :: देखो पिब्ब (षड्)।
पिस :: सक [पिष्] पीसना। पिसइ (षड्)।
पिसंग :: पुं [पिशङ्ग] १ पिंगल वर्णं, मठियारा रँग। २ वि. पिंगल वर्णं वाला (पाअ; कुप्र १०५; ३०६)
पिसंडि :: [दे] देखो पसंडि (सुपा ६०७; कुप्र ९२; १४५)।
पिसल्ल :: पुं [पिशाच] पिशाच, व्यन्तर-योनिक देवों की एक जाति (हे १, १९३; कुमा; पाअ; उप २६४ टी; ७६८ टी)।
पिसाजि :: वि [पिशाचिन्] भूताविष्ट (हे १, १७७; कुमा; षड्; चंड)।
पिसाय :: देखो पिसल्ल (हे १, १९३, पणह १, ४; महा; इक)।
पिसिअ :: न [पिशित] माँस (पाअ; महा)।
पिसुअ :: पुंस्त्री [पिशुक] क्षुद्र कीट-विशेष। स्त्री. °या (राज)।
पिसुण :: सक [कथय्] कहना। पिसुणइ, पिसुणेइ, पिसुणंति, पिसुणोंति, पिसुणसु (हे ४, २; गा ६८५; सुर ९, १९३; गा ५५९; कुमा)।
पिसुण :: पुं [पिशुन] खल, दुर्जन, पर-निन्दक, चुगलखोर (सुर ३, १६, प्रासू १८; गा ३७७; पाअ)।
पिसुणिअ :: वि [कथित] १ कहा हुआ। २ सूचित (सुपा २३; पाअ; कुप्र २७८)
पिसुमय :: (पै) पुं [विस्मय] आश्चर्यं (प्राकृ १२४)।
पिह :: सक [स्पृह्] इच्छा करना, चाहना। पिहाइ (भग ३, २ — पत्र १७३)। संकृ. पिहाइत्ता (भग ३, २)।
पिह :: वि [पृथक्] भिन्न, जूदा; 'पिहप्पिहाणं' (विसे ८४८)।
पिहं :: अ [पृथक्] अलग (हे १, १३७; षड्)।
पिहंड :: पुं [दे] १ वाद्य-विशेष। २ वि. विवर्णं (दे ६, ७९)
पिहड :: देखो पिढर (हे १, २०१; कुमा, उवा)।
पिहण :: न [पिधान] १ ढक्कन, पिहान (सुर १६, १९५) २ ढकना, आच्छादन (पंचा १, ३२; संबोध ४६; सुपा १२१)
पिहणया :: स्त्री [पिधान] आच्छादन, ढकना (स ५१)।
पिहय :: देखो पिह = पृथक् (कुमा)।
पिहा :: सक [पि + धा] १ ढकना। २ बँद करना। पिहाइ (भग ३, २)। संकृ. पिहाइत्ता, पिहिऊण (भग ३, २; महा)
पिहाण :: देखो पिहण (ठा ४, ४; रत्न २५; कप्प)।
पिहाणिआ :: स्त्री [पिधानिका] ढकनी (पाअ)।
पिहाणी :: स्त्री [पिधानी] ऊपर देखो (दे)।
पिहिअ :: वि [पिहित] १ ढका हुआ। २ बँद किया हुआ (पाअ; कस; ठा २, ४ — पत्र ९६; सुपा ६३०) °सव वि [°स्रव] १ जिसने आस्रव को रोका हो (दस ४) २ पुं. एक जैन मुनि का नाम (पउम २०, १८)
पिहिण :: देखो पिहण, 'आणवणे पेसवणे पिहिणे ववएस मच्छरे चेव' (श्रा ३०; पडि)।
पिहिमि° :: (अप) स्त्री [पृथिवी] भूमि, धरती। °पाल पुं [°पाल] राजा (भवि)।
पिहीकय :: वि [पृथक्कृत] अलग किया हुआ (पिंड ३९१)।
पिहु :: वि [पृथु] १ विस्तीर्णं (कुमा) २ पुं. एक राजा का नाम (पउम ९८, ३४)। °रोम पुं [°रोम] मीन, मत्स्य (दे ६, ५० टी)
पिहु :: देखो पिह = पृथक् (सुर १३, ३९; सण)।
पिहु° :: देखो पिहुय; 'पिहुखज्ज त्ति नो वए' (दस ७, ३४)।
पिहुंड :: न [पिहुण्ड] नगर-विशेष (उत्त ३१, २)।
पिहुण :: [दे] देखो पेहुण (आचा २, १, ७, ६)। °हत्थ पुं [°हस्त] मयूर-पिच्छ का किया हुआ पँखा (आचा २, १, ७, ६)।
पिहुत्त :: देखो पुहुत्त (तंदु ४)।
पिहुय :: पुंन [पृथुक] खाद्य-विशेष, चिउड़ा (आचा २, १, १, ३; ४)।
पिहुल :: वि [पृथुल] विस्तीर्णं (पणह १, ४; औप; दे ६, १४३; कुमा)।
पिहुल :: न [दे] मुँह के वायु से बजाया जाता तृण-वाद्य (दे ६, ४७)।
पिहे :: देखो पिहा। पिहेइ, पिहे (उत्त २९, ११, सूअ १, २, २, १३)। संकृ. पिहेऊण (पि ५८६)।
पिहो :: अ [पृथक्] अलग, भिन्न (विसे १०)।
पिहोअर :: वि [दे] तनु, कृश, दुर्बंल (दे ६, ५०)।
पी :: सक [पी] पान करना। वकृ. 'तम्मुहस- संककंतिपीऊसपूरं पीयमाणी' (रयण ५१)।
पीअ :: पुं [पीत] १ पीत वर्णं, पीला रँग। २ वि. पीत वर्णंवाला, पीला (हे २, १७३; कुमा; प्राप्र) ३ जिसका पान किया गया हो वह (से १, ४०; दे ६, १४४) ४ जिसने पान किया हो वह (प्राप्र)
पीअ :: वि [प्रीत] प्रीति-युक्त, संतुष्ट (औप)।
पीअर :: (अप) नीचे देखो (पिंग)।
पीअल :: देखो पीअ = पीत (हे २, १७३; प्राप्र)।
पीअसी :: स्त्री [प्रेयसी] प्रेम-पात्र स्त्री (कुमा)।
पीइ :: पुं [दे] अश्व, घोड़ा (दे ६, ५१)।
पीइ, पीई° :: स्त्री [प्रीति] १ प्रेम, अनुराग (कप्प; महा) २ रावण की एक पत्नी का नाम (पउम ७४, ११) °कर पुंन [°कर] एक विमानावास, आठवाँ ग्रैवेयक-विमान (देवेन्द्र १३७; पव १९४)। °गम न [°गम] महाशुक्र देवेन्द्र का एक यान-विमान (इक; औप)। °दाण न [°दान] हर्षं होने के कारण दिया जाता दान, पारितोषिक (औप; सुर ४, ६१)। °धम्मिय न [°धार्मिक] जैन मुनियों का एक कुल (कप्प)। °मण वि [°मनस्] १ प्रीति-युक्त चित्त वाला (भग) २ पुं. महाशुक्र देवलोक का एक यान-विमान (ठा ८ — पत्र ४३७)। °वद्धण पुं [°वर्धन] कार्तिक मास का लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १९; कप्प)
पीईय :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, गुल्म का एक भेद; 'पीईयपाणकणइरकुज्जय तह सिन्दुवारे य' (पणण १)।
पीऊस :: न [पीयूष] अमृत, सुधा (पाअ)।
पीड :: सक [पीडय्] १ हैरान् कराना। २ दबाना। पीडइ, पीडंतु (पिंग; हे ४, ३८५)। कर्मं. पीडिज्जइ (पिंग)। कवकृ. पीडिज्जंत, पीडिज्जमाण (से ११, १०२; गा ५४१; सण)
पीड° :: देखो पीडा। °यर वि [°कर] पीड़ा- कारक (पउम १०३, १४३)।
पीडरइ :: स्त्री [दे] चोर की स्त्री (दे ६, ५१)।
पीडा :: स्त्री [पीडा] पीड़न, हैरानी, वेदना (पाअ)। °कर वि [°कर] पीड़ा-कारक; 'अलिअं न भासियव्वं अत्थि हुसच्चंपि जं न वत्तव्वं। सच्चंपि तं न सच्चं जं परपीडाकरं वयणं' (श्रा ११; प्रासू १५०)।
पीडिअ :: वि [पीडित] १ पीड़ा से जो दुःखी हो वह, अभिभऊत, पराजित, व्याकुल, दुःखित। २ दबाया गया (हे १, २०३, महा; पाअ)
पीढ :: पुंन [पीठ] १ आसन, पीढा; 'पीढं विट्ठरं आसणं' (पाअ; रयण ९३) २ आसन-विशेष, व्रती का आसन (चंड; हे १, १०६; उवा; औप) ३ तल; 'चत्तूण नेडपीढं' (कुमा) ४ पुं. एक जैन महर्षि (सट्ठि ८१ टी)। °बंध पुं [°बन्ध] ग्रंथ की अवतरणिका, भूमिका; 'नय पीढबन्ध- रहियं कहिज्जमाणंपि देइ भावत्थं' (पउम ३; १६)। °मद्द, °मद्दअ पुंस्त्री [°मर्दक] काम-पुरुषार्थं, में सहायक नायक का समीपवर्त्ती पुरुष, राजा आदि का बयस्य-विशेष (णाया १, १ — पत्र १९; कप्प)। स्त्री. °मद्दिआ (मा १६)। °सप्पि वि [°सर्पिन्] पंगु- विशेष (आचा)
पीढ :: न [दे] १ ईख पेरने का यन्त्र (दे ६, ५१) २ समूह, यूथ; 'उट्ठियं वणइंदपीढं, पणट्ठा दिसो दिसो (? सिं) कप्पडिया' (स, २३३) ३ पीठ, शरीर के पीछे का भाग; 'हत्थिपीढसमारूढो' (त्रि ९९)
पीढग, पीढय :: न [पीठक] देखो पीढ = पीठ (कस; गच्छ १, १०; दस ७, २८)।
पीढरखंड :: न [पीठरखण्ड] नर्मंदा-तीर पर स्थित एक प्राचीन जैन तीर्थं (पउम ७७, ६४)।
पीढाणिय :: न [पीठानीक] अश्व-सेना (ठा ५, १ — पत्र ३०२)।
पीढिआ :: स्त्री [पीठिका] आसन-विशेष, मञ्च; 'आसंदी पीढिआ' (पाअ)। देखो पेढिया।
पीढि :: स्त्री [दे. पीठिका] काष्ठ-विशेष, घर का एक आधार-काष्ठ; गुजराती में 'पीढिउं'; 'तत्तो नियत्तिऊणं सत्तट्ठ पयाइं जाव पहरेइ। ता उवरिपीढिखलणे खग्गेण खडक्कियं तत्थ' (धर्मंवि ५६)।
पीण :: सक [पीनय्] पुष्ट करना। पीणंति (राय १०१)।
पीण :: सक [प्रीणय्] खुश करना। कृ. देखो पीणणिज्ज।
पीण :: वि [दे] चतुरस्त्र, चतुष्कोण (दे ६, ५१)।
पीण :: वि [पीन] पुष्ट, मांसल, उपचित (हे २, १५४; पाअ; कुमा)।
पीणण :: न [प्रीणन] खुश करना (धर्मंवि १४८)।
पीणणिज्ज :: वि [प्रीणनीय] प्रीति-जनक (औप; कप्प; पणण १७)।
पीणाइय :: वि [दे. पैनायिक] गर्वं से निर्वृत्त, गर्वं से किया हुआ; 'पीणाइयविरसरडियसद्दणं फोडयंते व अंबरतलं' (णाया १, १ — पत्र ६३)।
पीणाया :: स्त्री [दे. पीनाया] गर्वं, अहंकार (णाया १, १)।
पीणिअ :: वि [प्रीणित] १ तोषित (सण) २ उपचित. परिवृद्ध (दस ७, २३) ३ पुं. ज्योतिष-प्रसिद्ध योग-विशेष, जो पहले सूर्य या चन्द्र का किसी ग्रह या नक्षत्र के साथ होकर बाद में दूसरे सूर्यं आदि के साथ उपचय को प्राप्त हुआ हो वह योग (सुज्ज १२)
पिणिम :: पुंस्त्री [पीनता] पुष्टता, मांसलता (हे २, १५४)।
पीयमाण :: देखो पा = पा।
पीयमाण :: देखो पी = पी।
पीरिपीरिया :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राय ४५)।
पील :: सक [पीडय्] १ पीलना, पेरना, दबाना। २ पीड़ा करना, हैरान करना। पीलइ, पीलेइ (धात्वा १४५; पि २४०)। कवकृ. पीलिज्जत (श्रा ६)
पीलण :: न [पीलन] दबाब, पीलन, पेरना; 'माणंसिणीण माणो पीलणमीअ व्व हिअआहि' (काप्र १६९), 'जंतपीलणकम्मे' (उवा)।
पीला :: देखो पीडा (उप ४३६; सुपा ३५८)।
पीलावय :: वि [पीडक] १ पेरनेवाला। २ पुं. तेली, यंत्र से निकालनेवाला (वज्जा ११०)
पीलिअ :: वि [पीडित] पीला या पेरा हुआ (औप; ठा ५, ३; उव)।
पीलिम :: वि [पीडावत्] दाबवाला, दाबने से बना हुआ (वस्त्र आदि की आकृति) (दसनि २, १७)।
पीलु :: पुं [पीलु] १ वृक्ष-विशेष, पीलु का पेड़ (पणण १; वज्जा ४६) २ हाथी (पाअ; स ७३५) ३ न. दूध; 'एगट्ठं बहुनामं दुद्ध पओ पीलु खीरं च' (पिंड १३१)
पीलुअ :: पुं [दे. पीलुक] शावक, बच्चा; 'तंडसंठिअणईडेक्कंतपीलुआरक्खणेक्कदिणणम- गा' (गा १०२)।
पीलुट्ठ :: वि [दे. प्लुष्ट] देखो पिलुट्ठ (दे ६, ५१)।
पीवर :: वि [पीवर] उपचित, पुष्ट (णाया १, १; पाअ; सुपा २६१)। °गब्भा स्त्री [°गर्भी] जो निकष्ट भविष्य में ही प्रसव करनेवाली हो वह स्त्री (ओधभा ८३)।
पीवल :: देखो पीअ = पीत (हे १, २१३; २, १७३; कुमा)।
पीस :: सक [पिष्] पीसना। पीसइ (पि ७६)। वकृ. पीसंत (पिंड ५७४; णाया १, ७)। संकृ. पीसिऊण (कुप्र ४५)।
पीसण :: न [पेषण] १ पीसनाा, दलना (पणह १, १; उप पृ १४०; रयण १८) २ वि. पीसनेवाला (सूअ १, २, १; १२)
पीसय :: वि [पेषक] पीसनेवाला (सुपा ९३)।
पीह :: सक [स्पृह्, प्र + ईह्] अभिलाषा करना, चाहना। पीहंति, पीहेज्जा (औप; ठा ३, ३ — पत्र १४४)।
पीहग :: पुं [पीठक] नवजात शिशु को पीलाइ जाती एक वस्तु (उप ३११)।
°पु :: स्त्री [पुर्] शरीर (विसे २०९५)।
पुअ :: न [प्लित] १ तिर्यंग् गति। २ झाँपना, झम्प-गति; 'जुज्झामो पू (? पु) यघाएहिं' (विसे १४३९ टी)। °जुद्ध न [°युद्ध] अवम युद्ध का एक प्रकार (विसे १४७७)
पुअंड :: पुं [दे] तरुण, युवा (दे ६, ५३; पाअ)।
पुआइ :: वि. [दे] १ तरुण, युवा (दे ६, ८०) २ उन्मत्त (दे ६, ८०; षड्) ३ पुं. पिशाच (दे ६, ८०, पाअ; षड्)
पुआइणी :: स्त्री [दे] १ पिशाच-गृहीत स्त्री, भूताविष्ट महिला। २ उन्मत्त स्त्री। ३ कुलटा, व्यभिचारिणो (दे ६, ५४)
पुआव :: सक [प्लावय्] ले जाना। संकृ. पुयावइत्ता (ठा ३, २)।
पु° :: पुं [°पुंस्] पुरुष, मर्दं (पि ४१२; धम्म १२ टी)। देखो पुंगव, पुंनाग, पुंवउ आदि।
पुंख :: पुं [पुङ्ख] १ बाण का अग्र भाग; 'तस्स य सरस्स पुंखं विद्धइ अन्नेण तिक्खवाणेण' (धर्मंवि ९७; उप पृ ३९५) २ न. देव- विमान-विशेष (सम २२)
पुंखणग :: न [दे. प्रोङ्खणक] चुमाना, विवाह की एक रीति, गुजराती में 'पोंखणुं' (सुपा ६५)।
पुंखिअ :: वि [पुङ्खित] पुंख-युक्त किया हुआ, 'घणुहे तिक्खो सरो पुंखिओ' (कप्पू)।
पुंगल :: पुं [दे] श्रेष्ट, उत्तम (भवि)।
पुंगव :: वि [पुङ्गव] श्रेष्ठ, उत्तम (सुपा ५; ८०; श्रु ४१; गउड)।
पुंछ :: सक [प्र + उञ्छ्] पोंछना, सफा करना। पुंछइ (प्राकृ ६७; हे ४, १०५)। कृ. पुंछणीअ (पि १८२)।
पुंछ :: पुंन [पुच्छ] पूँछ, लांगुल (प्राकृ १२; हे १, २६)।
पुंछण :: न [प्रोञ्छन] १ मार्जंन (कप्प; उवा; सुपा २६०) २ रजोहरण, जैन मुनि का एक उपकरण (बृह १)
पुंछणी :: स्त्री [प्रोञ्छनी] पोंछने का एक छोटा तृणमय उपकरण (राय)।
पुंछिअ :: वि [प्रोञ्छत] पोंछा हुआ, मृष्ट (पाअ; कुमा; भवि)।
पुंज :: सक [पुञ्ज, पुञ्जय्] १ इकट्ठा करना। २ फैलाना, विस्तार करना। फुंजइ (हे ४, १०२, भवि)। कर्मं. पुंजिज्जइ (कप्पू)। कवकृ. पुंजइज्जमाण (से १२, ८९)
पुंज :: पुंन [पुञ्ज] ढेर, राशि (कप्प; कस; कुमा); 'खारिक्कपुंजायाइं ठावइ' (सिरि ११९६)।
पुंजइअ :: वि [पुञ्जित] १ एकत्रति (से ९, ६३; पउम ८, २६१) २ व्याप्त, भरपूर (पउम ८, २६१)
'पुंजइज्जमाण :: देखो पुंज = पुञ्ज्।
पुंजक, पुंजय :: वि [पुञ्जक] १ राशि रूप से स्थित, 'न उणं पुंजकपुंजका' (पिंड ८२) २ देखो पुंज = पुञ्ज।
पुंजय :: पुंन [दे] कतवार, गुजराती में 'पूंजो'; 'काओवि तहिं पुंजयपुंछण — छउमेण निययपावरय। अवर्णिंतीओ इव सारविंति जिणमंदिरंगणयं' (सुपा २६०)।
पुंजाय :: वि [दे] पिण्डाकार किया हुआ, 'पुंजायं पिंडलइयं' (पाअ)।
पुंजाविय :: वि [पुञ्जित] एकत्रित कराया हुआ (काल)।
पुंजिअ :: वि [पुञ्जित] एकत्रित (से ५, ७२; कुमा; कप्पू)।
पुंड :: पुं [पुण्ड्र] १ देश-विशेष, विन्ध्याचल के समीप का भू-भाग (स २२५; भग १५) २ इक्षु-विशेष (पउम ४२, ११; गा ७४०) ३ वि. पुण्ड्र-देशीय (पउम ९९, ५५) ४ धवल, श्वेत, सफेद (णाया १, १७ टी — पत्र २३१) ५ पुंन. तिलक (स ९; पिंडभा ४३; कुप्र २९४) ६ देव-विमान-विशेष (सम २२)। °वद्धण न [°वर्धन] नगर-विशेष (स २२५)। देखो पोंड।
पुंडइअ :: वि [दे] पिण्डीकृत, पिण्डाकार किया हुआ (दे ६, ५४)।
पुंडरिक :: देखो पुंडरीअ (सूअ २, १, १)।
पुंडरिकि :: वि [पुण्डरीकिन्] पुण्डरीकवाला (सूअ २, १, १)।
पुंडरिगिणी :: स्त्री [पुण्डरीकिणी] पुष्कलावती विजय की एक नगरी (णाया १, १९; इक; कुप्र २९५)।
पुंडरिय :: देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक, पौण्डरीक (उव; काल; पि ३५४)।
पुंडरीअ :: पुं [पुण्डरीक] १ ग्यारह रुद्र पुरुषों में सातवाँ रुद्र (विचार ४७३) २ एक राजा, महापद्म राजा का एक पुत्र (कुप्र २९५; णाया १, १९) ३ व्याघ्र, शार्दूल (पाअ) ४ पुंन. तप-विशेष (पव २७१) ५ श्वेत पद्म, सफेद कमल (सूअनि १४५) ६ कमल, पद्म; 'अंबुरुहं सयवत्तं सरोरुहं पुंडरीअमरविंदं' (पाअ; सम १; कप्प) ६ देव-विमान विशेष (सम ३५) ७ वि. श्वेत, सफेद (संग १३२)। °गुम्म न [°गुल्म] देव-विमान-विशेष (सम ३५)। °दह, °द्दह पुं [°द्रह] शिखरी पर्वंत पर का एक महा- ह्रद (ठा २, ३; सम १०४)
पुंडरीअ :: वि [पौण्डरीक] १ श्वेत पद्म का, श्वेत-पद्म-संबन्धी (सूअनि १४५) २ प्रधान, मुख्य। ३ कान्त , श्रेष्ठ, उत्तम (सूअनि १४७; १४८) ४ न. सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का पहला अध्ययन (सूअनि १५७)। देखो पोंडरीग।
पुंडीरीया :: स्त्री [पुण्डरीका] देखो पोंडरी (राज)।
पुंडे :: अ [दे] जाओ (दे ६, ५२)।
पुंढ :: देख पुंड (उप ७९५)।
पुंढ :: पुं [दे] गर्त, गड़हा, गढा (दे ६, ५२)।
पुंनाग :: पुं [पुन्नाग] १ वृक्ष-विशेष, पुष्प- प्रधान एक वृक्ष-जाति, पुन्नाग, पुलाक, सुल- तान चम्पक, पाटल का गाछ (उप पृ १८; ७६८ टी; सम्मत्त १७५) २ श्रेष्ठ पुरुष, उत्तम मर्दं (धम्म १२ टी; सम्मत्त १७५)। देखो पुन्नाम।
पुंपुअ :: पुं [दे] संगम (दे ६, ५२)।
पुंभ :: पुंन [दे] नीरस, दाड़िम का छिलका (?); 'मग्गइ अलत्तयं जा निपीलियं पुंभ- मप्पए ताव' (धर्मंवि ६७); अलत्तए मग्गिए नीरसं पणामेइ' (महा ५९)।
पुंवउ :: पुंन [पुंवचस्] व्याकरणोक्त संस्कार- युक्त शब्द-विशेष, पुंलिंग शब्द (पणण ११- पत्र ३६३)।
पुंवेय :: पुं [पुंवेद] १ पुरुष को स्त्री-स्पर्शं का अभिलाष। २ उसका कारण-भूत कर्मं (पि ४१२)
पुंस :: सक [पुंस, मृज्] मार्जंन करना, पोंछना। पुंसइ (हे ४, १०५)।
पुंस° :: देखो पुं°। कोइल, °कोइलग पुं [°कोकिल] मरदाना कोयल, पिक (ठा १० — पत्र ५९९; पि ४१२)।
पुंसण :: न [पुंसन] मार्जंन (कुमा)।
पुंसइ :: पुं [पुंशब्द] 'पुरुष' ऐसा नाम (कुमा)।
पुंसली :: स्त्री [पुंश्चली] कुलटा, ब्यभिचारिणी स्त्री (वज्जा ९८; धर्मंवि १३७)।
पुंसिअ :: वि [पुंसित] पोंछा हुआ (दे १, ९९)।
पुक्क, पुक्कर :: सक [पूत् + कृ] पुकारना, डाँकना, आह्वान करना। पुक्करेइ (धम्म ११ टी)। बकृ. पुक्कंत, पुक्करंत (पणह १, ३ — पत्र ४५; श्रा १२)। देखो पोक्क।
पुक्करिय :: वि [पूत्कृत] पुकारा हुआ (सुपा ३८१)।
पुक्कल :: देखो पुक्खल (पणह २, ५ — पत्र १५१)।
पुक्का :: स्त्री देखो पुक्कार = पूत्कार (पाअ; सुपा ५१७)।
पुक्कार :: देखो पुक्कर। पुक्कारेंति (राय)। वकृ. पुक्कारंत, पुक्कारिंत, पुक्कारेमाण (सुपा ४१५; ३८१; २४८; णाया १, १८)।
पुक्कार :: पुं [पृत्कार] पूकार, डाँक, आह्वान (सुपा ५१७; महा; सण)।
पुक्खर :: देखो पोक्खर = पुष्कर (कप्प; महा; पि १२५)। °कण्णिया स्त्री [°कर्णिका] पद्म का बीज-कोश, कमल का मध्य भाग (औप)। °क्ख पुं [°क्ष] १ विष्णु, श्रीकृष्ण। २ कश्मीर के एक राजा का नाम (मुद्रा २४२)। °गय न [°गत] वाद्य-विेशेष का ज्ञान, कला-विशेष (औप)। °द्ध न [°र्ध] पुष्करवर नामक द्वीप का आधा हिस्सा (सुज्ज १९)। °वर पुं [°वर] द्वीप-विशेष (ठा २, ३; पडि)। °संवठ्टद देखो पुक्खल-संवट्टय (राज)। °वत्त देखो पुक्खलावट्टय (राज)
पुक्खरिणी :: देखो पोक्खरिणी (सूअ २, १, २, ३; औप; पाअ)।
पुक्खरोअ, पुक्खरोद :: पुं [पुष्करोद] समुद्र-विशेष (इक; ठा ३, १; ७; सुज्ज १९)।
पुक्खल :: पुं [पुष्कर] एक विजय, प्रान्त- विशेष, जिसकी मुख्य नगरी का नाम ओषधि है (इक)। २ पद्म, कमल; 'भिसभिसमुणाल- पुक्खलत्ताए' (सूअ २, ३, १८) ३ पद्म- केसर (आचा २, १, ८ — सूत्र ४७)। °विभंग न [°विभङ्ग] पद्म-कन्द (आचा २, १, ८ — सूत्र ४७)। °संवट्ट, °संवट्टय पुं [°संवर्त, °क] मेघ-विशेष, जिसके बर- सने से दस हजार वर्षं तक पृथिवी वासित रहती है (उऱ २, ९; ठा ४, ४ — पत्र २७०)। देखो पुक्खर।
पुक्खल :: पुं [पुष्कल] १ एक विजय, प्रदेश- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०) २ अनार्यं देश-विशेष। ३ पुंस्त्री. उस देश में उत्पन्न. उसमें रहनेवाला; 'सिंघलीहिं पुलिंहिदि पुक्खलीहिं (?)' (भग ९, ३३ — पत्र ४५७), 'सिंहलीहिं पुलिंदीहिं पक्खणीहिं (?)' (भग ९, ३३ टी — पत्र ४६०) ४ वि. अत्यन्त, प्रभूत (कुप्र ४१०) ५ संपूर्णं, परिपूर्णं (सूअ २, १, १)
पुक्खलच्छिभग, पुच्छलच्छिभय :: पुंन [दे] जलरुह-विशेष, जल में होनेवाली वनस्पति- विशेष (सूअ २, ३, १८; १९)। देखो पोक्खलच्छिलय।
पुक्खलावई :: स्त्री [पुष्करावती, पुष्कलावती] महाविदह वर्षं का विजय — प्रान्त-विशेष (ठा २, ३; इक; महा)। °कूड पुंन [°कूट] एक- शैल पर्वंत का एक शिखर (इक)।
पुक्खलावट्टय :: पुं [पुष्करावर्तक, पुष्कला- वर्तक] मेघ-विशेष; 'पुक्खल' (? ला) वट्ठए णं महामेहे एगेणं वासेणं दस वाससहस्साइं भावेति' (ठा ४, ४)।
पुक्खलावत्त :: पुं [पुष्करावर्त, पुष्कलावर्त] महाविदेह वर्षं का एक विजय-प्रान्त (जं ४)। °कूड पुं [°कूट] एकशैल पर्वंत का एक शिखर (इक)।
पुगारिया :: स्त्री [दे] वस्त्रादि खादक जंतु-विशेष (सूत्र° चू° गा° २८२)।
पुग्ग :: पुंन [दे] वाद्य-विशेष, 'सो पुरम्मि पुग्गाइं वाएइ' (कुप्र ४०३)।
पुग्गल :: पुं [पुद्गल] १ वृक्ष-विशेष। २ न. फल-विशेष । ३ माँस (दस ५, १, ७३)
पुग्गल :: देखो पोग्गल (सिक्खा १५, नव ४२; पि १२५)। °परट्ट, °परावत्त पुं [°परावर्त] देखो पोग्गल-परिअट्ट (कम्म ५, ८६; वै. ५०; सिक्खा ८)।
पुच्चड :: देखो पोच्चड; 'सेयमलपुच्च (? च्च) डम्मी' (तंदु ४०)।
पुच्छ :: सक [प्रच्छ्] पूछना, प्रश्न करना। पुच्छइ (हे ४, ९७)। भूका. पुच्छिंसु, पुच्छीअ, पुच्छे (पि ५१६; कुमा; भग)। कर्मं. पुच्छिज्जइ (भवि)। वकृ. पुच्छंत (गा ४७; ३५७; कुमा)। कवकृ. पुच्छि- ज्जंत (गा ३४७; सुर ३, १५१)। संकृ. पुच्छित्ता (भग। हेकृ. पुच्छिउं, पुच्छि- त्तए (पि ५७३; भग)। कृ. पुच्छणिज्ज, पुच्छणीअ, पुच्छियव्व, पुच्छेयव्व (श्रा १४, पि ५७१; उप ८६४; कप्प)।
पुच्छ :: देखो पुंछ = प्र + उञ्छ्। पुच्छइ (षड्)।
पुच्छ :: देखो पुंछ = पुच्छ (कप्प)।
पुच्छअ, पुच्छग :: वि [प्रच्छक] पूछनेवाला, प्रश्न-कर्ता (ओधभा २८; सुर १०, ६५)। स्त्री. °च्छिआ (अभि १२५)।
पुच्छण :: न [प्रच्छन, प्रश्न] पृच्छा (सूअनि १९३; धर्मंवि ८; श्रावक ९३ टी)।
पुच्छणया, पुच्छणा :: स्त्री [प्रच्छना] ऊपर देखो (उप ४९६, औप)।
पुच्छणी :: स्त्री [प्रच्छनी] प्रश्न की भाषा (ठा ४, १ — पत्र १८२)।
पुच्छल :: (अप) देखो पुट्ठ = पृष्ट (पिंग)।
पुच्छा :: स्त्री [पृच्छा] प्रश्न (उवा; सुर ३, ३५)।
पुच्छिअ :: वि [पृष्ट] पूछा हुआ (औप; कुमा; भग; कप्प; सुर २, १६८)।
पुच्छिर :: वि [प्रष्टृ] प्रश्न-कर्ता (गा ५९८)।
पुछल :: देखो पुच्छल (पिंग)।
पुज्ज :: सक [पूजय्] पूजना, आदर करना। पुज्जइ (कुप्र ४२३; भवि)। कर्मं. पुज्जिज्जइ (भवि)। वकृ. पुज्जंत (कुप्र १२१)। कवकृ. पुज्जिज्जंत (भवि)। संकृ. पुज्जिउं, पुज्जि- ऊण (कुप्र १०२, भि)। कृ. पुज्जिअव्व (ती ७)। प्रयो. पुज्जावइ (भवि)।
पुज्ज :: देखो पूज = पूजय्।
पुज्जंत :: देखो पुज्ज = पूजय्।
पुज्जंत :: देखो पूर = पूरय्।
पुज्जण :: न [पूजन] पूजा, अर्चा (कुप्र १२१)।
पुज्जमाण :: देखो पूर = पूरय्।
पुज्जा :: स्त्री [पूजा] पूजा, अर्चा (उप पृ २४२)।
पुज्जिय :: वि [पूजित] सेवित, अर्चित (भवि)।
पुट्ट :: सक [प्र + उञ्छ्] पोंछना। पुट्टइ (प्राकृ ६७)।
पुट्ट :: न [दे] पेट, उदर (श्रा २८; मोह ४१; पव १३५; सम्मत्त २२६; सिरि २४२; सण)।
पुट्टल, पुट्टलय :: पुंन [दे] गट्ठर, गाँठ; गुजराती में 'पोट्लु'; 'संबलपुट्टलयं च गहिय' (सम्मत्त ६१)।
पुट्टलिया :: स्त्री [दे] छोटी गठरी, पोटली, मोटरी (सुपा ४३; ३४४)।
पुट्टिल :: पुं [पोट्टिल] १ भगवान् महावीर का एक शिष्य, जो भविष्य में तीर्थंकर होनेवाला है (विचार ४७८) २ एक अनुत्तर-देवलोक- गामी जैन महर्षि (अनु २)
पुट्ठ :: वि [स्पृष्ट] १ छुआ हुआ (भग; औप; हे १, १३१) २ न. स्पर्शं (ठा २, १, नव १८)
पुट्ठ :: वि [पृष्ट] १ पूछा हुआ (औप; सण; हे २, ३४) २ न. प्रश्न (ठा २, १)। °लाभिय वि [°लाभिक] अभिग्रह-विशेषवाला (मुनि) (औप; पणह २, १)। °सेणिवापरिकम्म पुंन [°श्रेणिकापरिक- र्मन्] दृष्टिवाद का एक प्रतिपाद्य विषय (सम १२८)
पुट्ठ :: वि [पुष्ट] उपचित (णाया १, ३, स ४१९)।
पुट्ठ :: देखो पिट्ठ = पृष्ठ (प्राप्र; संक्षि १९)।
पुट्ठव :: वि [स्पृष्टवत्] जिसने स्पर्शं किया हो वह (आचा १, ७, ८, ८)।
पुट्ठवई :: देखो पोट्ठवई (सुज्ज १०, ६)।
पुट्ठवया :: स्त्री [प्रोष्ठपदा] नक्षत्र-विशेष (सुज्ज १०, ५)।
पुट्ठि :: स्त्री [पुष्ट] पोषण, उपचय (विसे २२१; चेइय ८)। २ अहिंसा, दया (पणह २, १ — पत्र ९९)। °म वि [°मत्] १ पुष्टिवाला। २ पुं. भगवान् महावीर का एक शिष्य (अनु)
पुट्ठि :: देखो पिट्ठि = पृष्ठ; 'पाअपडिअस्स पइणो पुट्ठिं पुत्ते समारुहंतम्मि' (गा ११; ३३, ८७; प्राप्र; संक्षि १९)।
पुट्ठि :: स्त्री [पृष्टि] पृच्छा, प्रश्न। °य वि [°ज] प्रश्न-जनित (ठा २, १ — पत्र ४०)।
पुट्ठि :: स्त्री [स्पृष्टि] स्पर्शं। °य वि [°ज] स्पर्शं-जनित (ठा २, १)।
पुट्ठिया :: स्त्री [पृष्टिका] प्रश्न से होनेवाली क्रिया — कर्मबन्ध (ठा २, १)।
पुट्ठिया :: स्त्री [स्पृष्टिका] स्पर्शं से होनेवाली क्रिया — कर्मबन्ध (ठा २, १)।
पुट्ठिल :: देखो पोट्ठिल (अनु २)।
पुट्ठीया :: स्त्री [स्पृष्टीया] देखो पुट्ठिया = स्पृष्टिका (नव १८)।
पुट्ठीया :: स्त्री [पृष्टीया] पृच्छा से होनेवाली क्रिया — कर्मंबन्ध (नव १८)।
पुड :: पुं [पुट] १ परिमाण-विशेष। २ पुंट- परिमित वस्तु (राय ३४)
पुड :: पुंन [पुट] १ मिथः संबन्ध, परस्पर जोड़ान, मिलाव, मिलान; 'अंजलिपुड — -', 'ताहे कलयलपुडेण नीओ सो' (औप; महा) २ खाल, ढोल आदि का चमड़ा; 'हुरब्भपुड- संठाणसंठिया' (उवा ९४ टी; गउड ११६७; कुमा) ३ संबद्ध दलद्वय, मिला हुआ दो दल; 'सिप्पपुडसंठिया' (उवा; गउड ५७६) ४ ओषधि पकाने का पात्र-विशेष (णाया १, १३) ५ पत्रादि-रचित पात्र, देना (रंभा) ६ आच्छादन, ढक्कन (उवा; गउड) ७ कमल, पद्म; 'पुडइणी' (विक्र २३) °भेयण न [°भेदन] नगर, शहर (कस)। °वाय पुं [°पाक] १ पुट-पात्रों से ओषधि का पाक- विशेष। २ पाक-निष्पन्न औषध-विशेष; 'पुढ (? ड) वाएहि' (णाया १, १३ — पत्र १८१)
पुड :: (शौ) देखो पुत्त = पुत्र (पि २९२; प्राप्र)। पुडइअ वि [दे] पिण्डीकृत एकत्रित (दे ६, ५४)।
पुडइणी :: स्त्री [दे. पुटकिनी] नलिनी, कम- लिनी (दे ६, ५५; विक्र २३)।
पुडग :: पुंन [पुटक] देखो पुट = पुट (उवा)।
पुडपुडी :: स्त्री [दे] मुँह से सीटी बजाना, एक प्रकार की अव्यक्त आवाज (पव ३८)।
पुडम :: देखो पुढम (प्रति ७१; पि १०४)।
पुडय :: देखो पुडग (उवा; सुपा ६५६)।
पुडिंग :: न [दे] मुँह, वदन। २ बिन्दु (दे ६, ८०)।
पुडिया :: स्त्री [पुटिका] पुड़ी, पुड़िया (दे ५, १२)।
पुड्ढ :: (शौ) देखो पुत्त = पुत्र (प्राप्र)।
पुढं :: देखो पिहं (षड्)।
पुढम :: वि [प्रथम] पहला (हे १, ५५; कुमा; स्वप्न २३१)।
पुढवि° :: देखो पुढवी (आचानि १, १, २; भग १९, ३; पि ९७)। °काइय़, °क्काइय वि [°कायिक] पृथिवी शरीरवाला (जीव), (पणण १; भग १९, ३; ठा १; आचानि १, १, २)। °क्काय देखो पुढवी-काय (आचानि १, १, २)।
पुढवी :: स्त्री [पृथिवी] १ पृथिवी, धरती, भूमि (हे १, ८८; १३१; ठा ३, ४) २ काठि- न्यादि गुणवाला पदार्थ, द्रव्य-विशेष — मृत्तिका पाषाण, धातु आदि (पणण १) ३ पृथिवीकाय का जीव (जी २) ४ ईशा- नेन्द्र के एक लोकपाल की अग्र-महिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४) ५ एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३६) ६ भगवान् सुपार्श्वनाथ की माता का नाम (राज)। °काइय देखो पुढवि-काइय (राज) °काय वि [°काय] पृथिवी शरीरवाला (जीव), (आचानि १, १, २)। °वइ पुं [°पति] राजा (ठा ७)। °सत्थ न [°शस्त्र] १ पृथिवी रूप शस्त्र। २ पृथिवी का शस्त्र, हल, कुद्दाल आदि (आचा)। देखो पुहई, पुहवी।
पुढीभूय :: वि [पृथग्भूत] जो अलग हुआ हो (सुपा २३६)।
पुढुम :: वि [प्रथम] पहला, आद्य (हे १, ५५; कुमा)।
पुढो :: अ [पृथग्] अलग, भिन्न (सुपा ३६२; रयण ३०; श्रावक ४०; आचा)। °छंद वि [°छन्द] विभिन्न अभिप्रायवाला (आचा; पि ७८)। °जण पुं [°जन] प्राकृत मनुष्य, साधारण लोक (सूअ १, ३, १, ६)। °जय पुं [°जीव] बिभिन्न प्राणी (सूअ १; १, २, ३)। °विभाय, °वेभाय वि [°विमात्र] अनेक प्रकार का, बहुविध (राज; ठा ४, ४ — पत्र २८०)।
पुढोजग :: वि [दे. पृथग्जक] पृथग्भूत, भिन्न व्यस्थित; 'जमिणं जगती पुढोजगा' (सूअ १, २, १, ४)।
पुढोवम :: वि [पृथिव्युपम] पृथिवी की तरह सब सहन करनेवाला (सूअ १, ६, २६)।
पुढोसिय :: वि [पृथिवीश्रित] पृथिवी के आश्रय में रहा हुआ (सूअ १, १२, १३; आचा)।
पुण :: सक [पू] १ पवित्र करना। २ धान्य आदि को तुषरहित करना, साफ करना। पुणइ (हे ४, २४१)। पुणंति (णाया १, ७)। कर्मं. पुणिज्जइ, पुव्वइ (हे ४, २४२)
पउण :: अ [पुनर्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ भेद, विशेष (विसे ८११) २ अवधारण, निश्चय। ३ अधिकार, प्रस्ताव। ४ द्वितीय बार, बारान्तर। ५ पक्षान्तर। ६ समुच्चय (पणह २, ३, गउड; कुमा; औप; जी ३७; प्रासू ९, ५२; १६८; स्वप्न ७२; पिंग) ७ पादपूर्त्ति में भी इसका प्रयोग होता है (निचू १) °करण न [°करण] फिर से बनाना। २ वि. जिसकी फिर से बनावट की जाय वह; 'भिन्नं संखं न होइ पुणकरणं' (उव)। °ण्ण वि [°नव] फिर से नया बना हुआ, ताजा (उप ७६८ टी; कप्पू)। °पुण अ [°पुनर्] फिर- फिर, बारंबार। °पुणक्करण न [°पुनःकरण] फिर फिर बनाना, बारंबार निर्माण (दे १, ३२)। °ब्भव पुं [°भव] फिर से उत्पत्ति, फइर से जन्म-ग्रहण (चेइय ३५७; औप)। °ब्भू स्त्री [°भू] फिर से विवाहित स्त्री, जिसका पुनर्लंग्न हुआ हो वह महिला; 'अत्थि पुणब्भूकप्पो त्ति विवाहिया पच्छन्ंन' (कुप्र २०८; २०९)। °रवि, °रावि अ [°अपि] फिर भी (उवा; उत्त १०, १६; १९)। °रावित्ति स्त्री [°आवृत्ति] पुनः आवर्त्तन (पडि)। °रुत्त वि [°उक्त] फिर से कहा हुआ। २ न. पुनरुक्ति (चेइय ५३८)। °वि अ [°अपि] फिर भी (संक्षि १९; प्राकृ ८७)। °व्वसु पुं [°वसु] १ नक्षत्र-विशेष (सम १०; ६९) २ आठवें वासुदेव के पूर्वं जन्म का नाम (सम १५३; पउम २०, १७२)
पुण :: (अप) देखो पुण्ण = पुण्य। °मंत वि [°मत्] पुण्यशाली (पिंग)।
पुणअ :: सक [दृश्] देखना। पुणअइ (धात्वा १४५)।
पुणइ :: पुं [दे] श्वपच, चाण्डाल (दे ६, ३८)।
पुणण :: वि [पवन] पवित्र करनेवाला। स्त्री. °णी (कुमा)।
पुणरुत्त, पुणरुत्तं :: अ. कृत-करण, बारंबार, फिर-फिर; 'अइ सुप्पइ णीसहेहिं अंगेहिं पुणरुत्तं' (हे १, १७९; कुमा), 'ण वि तह छेअरआइँवि हरंति पुणरुत्तकाअरसिआइ' (गा २७४)।
पुणा, पुणाइ, पुणाइं :: अ. देखो पुण = पुनर् (पि ३४३; हे १, ६५; कुमा; पउम ६, ९७; उवा)।
पुणु :: (अप) देखो पुण = पुनर् (कुमा; पि ३४२)।
पुणो :: देखो पुण = पुनर् (औप; कुमा; प्राकृ ८७)।
पुणोत्त :: देखो पुण-रुत्त, पुणरुत्त (प्राकृ ३०)।
पुणोल्ल :: सक [प्र + नोदय्] १ प्रेरणा करना। २ अत्यन्त दूर करना। पुणोल्लयामो (उत्त १२, ४०)
पुण्ण :: पुंन [पुण्य] १ शुभ कर्मं, सुकृत (औप; महा; प्रासू ७५; पाअ) २ दो उपवास, बेला; 'भद्दं पुणं (? णणं) सुही (? हि) यं छट्ठमत्तस्स एगट्ठा' (संबोध ५८)। ३ वि. पवित्र, 'थाणुपियाजलपुणणं' (कुमा)। कलसा स्त्री [°कलशा] लाट देश के एक गाँव का नाम (राज)। °घण पुं [°घन] विद्याधरों का एक स्वनाम-ख्यात राजा (पउम ५, ६५)। °मंत, °मंत वि [°वत्] पुण्यवाला, भाग्यवान् (हे २, १५९, चंड)। देखो पुन्न = पुण्य।
पुण्ण :: वि [पूर्ण] १ संपूर्णं, भरपूर, पूरा (औप; भग; उवा) २ पुं. द्वीपकुमार देवों का दक्षिणात्य इन्द्र (इक) ३ इक्षुवर समुद्र करा अधिष्ठायक देव (राज) ४ तिथि-विशेष, पक्ष की पाँचवी; दसवीं और पनरहवीं तिथि (सुज्ज १०, १५) ५ पुंन. शिखर-विशेष (इक) °कसल पुं [°कलश] संपूर्णं घट (जं १)। °घोस पुं [°घोष] ऐरवत वर्षं का एक भावी जिन-देव (सम १५४)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ संपूर्णं चन्द्रमा। २ विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४४) °प्पभ पुं [°प्रभ] इक्षुवर द्वीप का अधिपति देवं (राज)। °भद्द पुं [भद्र] १ स्वनाम-ख्यात एक गृह-पति, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी (अंत) २ यक्ष-निकाय का एक इन्द्र (४, १) ३ पुंन. अनेक कूट-शिखरों का नाम (इक) ४ यक्ष का चैत्य-विशेष (औप; विपा १, १; उवा)। °मासी स्त्री [°मासी] पूर्णिमा तिथि (दे)। °सेण पुं [°सेन] राजा श्रेंणिक का पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी, (अनु)। देखो पुन्न = पूर्णं।
पुण्णमासिणी :: स्त्री [पौर्णमाासी] तिथि-विशेष, पूर्णिमा (औप; भग)।
पुण्णवत्त :: न [दे] आनन्द से हृत वस्त्र (दे ६, ५३; पाअ)।
पुण्णा :: स्त्री [पूर्णा] १ तिथि-विशेष, पक्ष की ५, १० और १५ वीं तिथि (संबोध ५४; सुज्ज १०, १५) २ पूर्णंभद्र और मणिभद्र इन्द्र की एक महादेवी — अग्र-महीषी (इक; णाया २); 'पुण्णभद्दस्स णं जक्खिंदस्स जक्खरन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पणणत्ताओ तं जहा — पुत्ता (? ण्णा) बहुपुत्तिआ उत्तपा तारगा, एवं माणिभद्दस्सवि' (ठा ४, १ — पत्र २०४)
पुण्णाग, पुण्णाम :: देखो पुन्नाग (पउम ४३, ३९; से ६, ५९; हे १, १९०; पि २३१)।
पु्ण्णाली :: स्त्री [दे] असती, कुलटा, पुंश्चली (दे ६, ५३; षड्)।
पुण्णाह :: पुंन [पुण्याह] १ पुण्य दिन, शुभ दिवस (गा १६५; गउड) २ वाद्य-विशेष; 'पुण्णहतूरेण' (स ४०१; ७३४)
पुण्णिमसी :: स्त्री [पूर्णमासी] पूर्णिमा (संबोध ३६)।
पुण्णिमा :: स्त्री [पूर्णिमा] तिथि-विशेष, पूर्णं- मासी (काप्र १९४)। °यंद पुं [°चन्द्र] पूर्णिमा का चन्द्र (महा; हेका ४८)।
पुण्णिमासिणी :: देखो पुण्णमासिणी (सम ६६; श्रा २९; सुज्ज १०, ६)।
पुत्त :: पुं [पुत्र] लड़का (ठा १०; कुमा; सुपरा ६९; ३३४; प्रासू २७; ७७; णाया १, २)। °वई स्त्री [°वती] लड़कावाली स्त्री (सुपा २८१)।
पुत्तंजीवय :: पुं [पुत्रंजीवक] वृक्ष-विशेष, पुतजीया, जियापोता का पेड़; 'पुत्तंजीवाअरिट्ठे' (पणण १ — पत्र ३१)। २ न. जियापोता का बीज; 'पुत्तंजीवयमालालंकिएणं' (स ३३७)
पुत्तय :: पुं [पुत्रक] देखो पुत्त (महा)।
पुत्तरे :: पुंस्त्री [दे] योनि, उत्पत्ति-स्थान; 'पुत्तरे योनौ' (संक्षि ४७)।
पुत्तलय :: पुं [पुत्रक] पूतला (सिरि ८६१; ९२; ६४)।
पुत्तलिया, पुत्तली :: स्त्री [पुत्रिका] शालभञ्जिका, पूतली (पाअ; कुम्मा ६; प्रवि १३; सुपा २६९; सिरि ८१५)।
पुत्तह :: देखो पुत्त (प्राकृ ३५)।
पुत्ताणुपुत्तिय :: वि [पौत्रानुपुत्रिक] पुत्र- पौत्रादि के योग्य, 'पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिं' कप्पेति (णाया १, १ — पत्र ३७)।
पुत्तिआ :: स्त्री [पुत्रिका] १ पुत्री, लड़की (अभि १७८) २ पूतली (दे ६, ९२, कुमा)
पुत्तिल्ल :: देखो पुत्त (प्राकृ ३५)।
पुत्ती :: स्त्री [पुत्री] लड़की (कप्पू)।
पुत्ती :: स्त्री [पोती] १ वस्त्र-खण्ड, मुख-वस्त्रिका (पव ६०; संबोध ५४) २ साड़ी, कटी-वस्त्र (धर्मंवि १७)। देखो पोत्ती।
पुत्तुल्लं :: पुं [पुत्र] पुत्र, लड़की (प्राकृ ३५)।
पुत्थ :: वि [दे] मृदु, कोमल (दे ६, ५२)।
पुत्थ, पुत्थय :: पुंन [पुस्त, °क] १ लेप्यादि कर्मं (श्रा १) २ पुस्तक, पोथी, किताब; 'पुत्थए लिहावेइ' (कुप्र ३४८), 'अवहरिओ पुत्थओ सहसा' (सम्मत्त ११८)। देखो पोत्थ।
पुथवी :: देखो पुढवी (चंड)।
पुथुणी, पुथुवी :: (पै) देखो पुढवी (प्राकृ १२४; पि १९०)। °नाथ (पै) पुं [°नाथ] राजा (प्राकृ १२४)।
पुध :: देखो पिह = पृथक् (ठा १०)।
पुंध :: देखो पिंधं (हे १, १८८)।
पुधुम, पुधुम :: (पै) देखो पुढम, पुढुम (पि १०४; हे ४, ३१६)।
पुन्न :: देखो पुण्ण = पुन्य; 'कह मह इत्तियापुन्ना जं सो दीसिज्ज पच्चक्खं' (सुर १२, ११८; उप ७६८ टी; कुमा)। °कंखिअ वि [°काङ्क्षित्, °काङ्क्षिन्] पुण्य की चाहवाला (भग)। °कलस पुं [°कलश] एक राजा का नाम (उव ७६८ टी)। °जसा स्त्री [°यशस्] एक स्त्री का नाम (उप ७२८ टी)। °पत्तिया स्त्री [°प्रत्यया] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)। °पिवासय वि [°पिपासक] पुण्य का प्यासा, पुण्य की चाहवाला (भग)। °भागि वि [°भागिन्] पुण्य की भागी, पुण्य-शाली (सुपा ६४१)। °सम्म पुं [°शर्मन्] एक ब्राह्मण का नाम (उप ७२८ टी)। °सार पुं [°सार] एक स्वनाम-ख्यात श्रेष्ठी (उप ७२८ टी)।
पुन्न :: देखो पुण्ण = पूर्ण (सुर २, ६७; उप ७६८ टी; ठा २, ३; अनु २)। °तल्ल पुं [°तल] एक जैन मुनि-गच्छ (कुप्र ६)। °पाय वि [°प्राय] करीब-करीब संपूर्णं, कुछ कम पूर्णं (उप ७६२८ टी)। °भद्द पुं [°भद्र] १ यक्ष-विशेष (सिरि ६६६) २ यक्ष-निकाय एक इन्द्र (ठा २, ३) ३ एक अन्तकृद् मुनि (अंत १८) ४ एक जैन मुनि, आर्यं श्री संभूतविजय का एक शिष्य (कप्प)
पुन्नयण :: पुं [पुण्यजन] यक्ष, एक देव-जाति (पाअ)।
पुन्नाग, पुन्नाम, पुन्नाय :: देखो पुंनाग (कप्प; कुमा; पउम २१, ४९; पाअ)। ३ न. पुन्नाग का फूल (कुमा; हे १, १९०)
पुन्नालिया, पुन्नाली :: [दे] देखो पुण्णाली (सुपा ५९९; ५९७)।
पुन्निमा :: देखो पुण्णिमा (रंभा)।
पुप्पुअ :: वि [दे] पीन, पुष्ट, उपचित (दे ६, ५२)।
पुप्फ :: न [पुष्प] १ फूल, कुसुम (णाया १, १; कप्प; सुर ३, ६५; कुमा)। एक विमानावास, देवविमान-विशेष (देवेद्र १३५; सम ३८) ३ स्त्री का रज। ४ विकास। ५ आँख का एक रोग। ६ कुबेर का विमान (हे १, २३६; २, ५३; ९०, १५४) °इरि पुं [°गिरि] एक पर्वंत का नाम (पउम ७६, १०)। °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान; 'पुफ्फ- कंतं' (सम ३८)। °करंडय पुं [°करण्डक] हस्तिशीर्षं नगर का उद्यान, 'पुप्फकरंडए उज्जाणे' (विपा २, १)। °केउ पुं [°केतु] १ ऐरवत क्षेत्र का सातवाँ भावी तीर्थंकर — जिनदेव (सम १५४) २ ग्रह-विशेष, ग्रहा- धिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)। °ग न [°क] १ मूल भाग; 'भाणस्स पुफ्फगंतो इमेहिं कज्जेहिं पडिलेहे' (ओघ २८९)। २ पुप्फ, फूल (कप्प) ३ देखो नीचे °य (औप) °चूला स्त्री [°चूला] १ भगवान् पार्श्वनाथ की मुख्य शिष्या का नाम (सम १५२; कप्प) २ एक महासती, अन्निकाचार्यं की सुयोग्य शिष्या (पडि) ३ सुबाहुकुमार की मुख्य पत्नी की नाम (विपा २, १) °चूलिया स्त्री [°चूलिका] एक जैन ग्रन्थ (निर १, ४)। °च्चणिया स्त्री [°र्चनिका] पुष्पों से पूजा (णाया १, २)। °च्चिणिया स्त्री [°चार्यिनी] फूल बिननेवाली स्त्री (पाअ)। °छज्जिया स्त्री[°छादिका] पुष्प-पात्र-विशेष (राज)। °ज्झय न [°ध्वज] एक देव- विमान (सम ३८)। °णंदि पुं [°नन्दिन्] एक राजा का नाम (ठा १०)। °णालिया देखो °नालिया (तंदु)। °दंत पुं [°दन्त] १ नववाँ जिनदेव, श्री सुविधिनाथ (सम ९२; ठा २, ४) २ ईशानेन्द्र के हस्ति-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १; इक) ३ देव- विशेष (सिरि ६६७)। °दंती स्त्री [°दन्ती] दमयन्ती की माता का नाम, एक रानी (कुप्र ४८)। °नालिया स्त्री [°नालिका] पुष्प का बेंट — डंठल (तंदु ४)। °निज्जास पुं [°निर्यास] पुष्प-रस (जीव ३)। °पुर न [°पुर] पाटलिपुत्र, पटना शहर (राज)। °पूरय पुं [°पूरक] पुष्प की रचना-विशेष (णाया १, १६)। °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम ३८)। °बलि पुं [°बलि] उपचार, पुष्प-पूजा (पाअ)। °बाण पुं [°बाण] कामदेव (रंभा)। °भद्द स्त्रीन [°भद्र] नगर-विशेष, पटना शहर (राज)। °मंत वि [°वत्] पुष्पवाला (णाया १, १)। °माल न [°माल] बैताढ्य की उत्तर श्रेणी का एक नगर (इक)। °माला स्त्री [°माल] ऊर्ध्वं लोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७)। °य पुं [°क] १ फेन, डिण्डीर (पाअ) २ न. ईशानेन्द्र का एक पारियानिक विमान, देव-विमान विशेष (ठा ८; इक; पउम ७९; २८; औप) ३ पुष्प, फूल (कप्प) ४ ललाट का एक पुष्पाकार आभूषण (जं २) देखो ऊपर °ग। °लाई, °लावी स्त्री [°लावी] फूल बिननेवाली स्त्री पाअ; दे १, ९)। °लेस न [°लेश्य] एक देव-विमान (सम ३८)। °वई स्त्री [°वती] १ ऋतुमती स्त्री (दे ६, ९४; गा ४८०) २ सत्पुरुष नामक किं पुरु- षेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १; णाया २) ३ बीसवें जिनदेव की प्रवर्त्तिनी — प्रमुख साध्वी का नाम (सम १५२; पव ९) ४ चैत्य-विशेष (भग)। °वण्ण न [°वर्ण] एक देव-विमान (सम ३८)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] एत देव-विमान (सम ३८)। °सिद्ध न [°सिद्ध] देव-विमान-विशेष (सम ३८)। °सुय पुं [°शुक] व्यक्ति- वाचक नाम (उव)। °वित्त न [°वर्त्त] एक देव-विमान (सम ३८)
पुप्फस :: न [दे] फेफसा, शरीर का एक भीतरी अंग (पउम १०५, ५५)।
पुप्फा :: स्त्री [दे] फूफी, पिता की बहिन (दे ६, ५२)।
पुप्फिअ :: वि [पुष्पित] कुसुमित, संजात- पुष्प (धर्मंवि १४८; कुमा; णाया १, ११; सुपा ५८)।
पुप्फिआ :: स्त्री [दे] देखो पुप्फा (पाअ)।
पुप्फिआ :: स्त्री [पुष्पिता] एक जैन आगम- ग्रंथ (निर १, ३)।
पुप्फिम :: पुंस्त्री [पुष्पत्व] पुष्पपन (हे २, १५४)।
पुप्फी :: [दे] देखो पुप्फा (षड्)।
पुप्फुआ :: स्त्री [दे] करीष (गोयठा) का अग्नि, 'सूइज्जइ हेमंतम्मि दुग्गओ पुप्फुआसुअंधेण' (गा ३२९)।
पुप्फुत्तर :: न [पुष्पोत्तर] एक विमान (कप्प)। °वडिंसग न [°वतंसक] एक देव-विमान (सम ३८)।
पुप्फुत्तरा, पुप्फोत्तरा :: स्त्री [पुष्पोत्तरा] शक्कर की एक जाति (णाया १, १७ — पत्र २२९; पणण १७ — पत्र ५३३)।
पुप्फोदय :: न [पुष्पोदक] पुष्प-रस से मिश्रित जल (णाया १, १ — पत्र १९)।
पुप्फोवय, पुप्फोवा° :: वि [पुप्फोपग] पुष्प प्राप्त करनेवाला, फूलनेवाला (वृक्ष) (ठा ३, १ — पत्र ११३)।
पुभ :: पुं [पुंस्] १ पुरुष, नर; 'थीअपुमाणं विसुज्झंता' (पंच ५, ७२), 'पुमत्तमागम्म कुमार दोवि' (उत्त १४, ३; ठा ८; औप) २ पुरुष-वेद (कम्म ५, ६०)। °आणमणी स्त्री [°आज्ञापनी] पुरुष को आज्ञा देनेवाली भाषा, भाषा-विशेष (पणण ११)। °पन्नावणी स्त्री [प्रज्ञापनी] भाषा-विशेष; पुरुष के लक्षणों का प्रतिपादन करनेवाली भाषा (पणम ११ — पत्र ३६४)। °वयण न [°वचन] पुलिंग शब्द का उच्चारण (पणण ११ — पत्र ३७०)
पुम्म :: (अप) सक [दृश्] देखना। पुम्मइ (प्राकृ ११९)।
पुयसी :: स्त्री [दे] पुत-प्रदेश, कमर के नीचे का भाग; 'पुयलिं पुप्फोडेमाणे' (भग १५ — पत्र ६७९)।
पुयावइत्ता :: देखो पुआव।
पुर :: (अप) देखो पूर = पूरय्। पूरह (पिंग)।
पुर :: न [पुर] १ नगर, शहर (कुमा; कुप्र ४३८) २ शरीर, देह (कुप्र ४३८)। °चंद पुं [°चन्द्र] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४४)। °भेयण वि [°भेदन] नगर का भेदन करनेवाला। स्त्री — °णी (उत्त २०, १८)। °वइ पुं [°पति] नगर का अधिपति (भवि)। °वर न [°वर] श्रेष्ठ नगर, (उवा; पणह १, ४)। °वरी स्त्री [°वरा] श्रेष्ठ नगरी (णाया १, ९; उवा; सुर २, १५२)। °वाल पुं [°पाल] नगर- रक्षक, राजा (भवि)
पुर :: देखो पुरं; 'पुरकम्मम्मि य पुच्छा' (बृह १)।
पुरएअ, पुरएव :: देखो पुरदेव (भवि)।
पुरओ :: अ [पुरतस्] १ अग्रतः, आगे (सम १५१; ठा ४, २; गा ३५०; कुमा; औप) २ पहले, पूर्वं में; 'पूरओ कयं जं तु तं पुरेकम्मं' (ओघ ४८६)
पुरं :: अ [पुरस्] १ पहले, पूर्वं में। २ समक्ष; 'तए णं से दरिद्दें समुकिट्ठे समाणे पच्छा पुरं च णं विउलभोगसमितिसमन्नागते यावि विहरिज्जा' (ठा २, १ — पत्र ११७) ३ अग्रे, आगे। °गम वि [°गर्म] अग्र- गामी, पुरोवर्त्ती (सूअ १, ३, ३, ६)। देखो पुरे, पुरो।
पुरंजय :: पुं [पुरञ्जय] एक विद्याधर राजा। °पुर न [°पुर] एक विद्याधर-नगर (इक)।
पुरंदर :: पुं [पुरन्दर] १ इन्द्र, देवराज। २ गन्ध-द्रव्य-विशेष (हे १, १७७) ३ वृक्ष-विशेष, चव्य जा पेड़; 'पुरंदरकुसुमदाम- सुविणेण सूइया जाया' (उप ९८६ टी) ४ एक राजर्षि (पउम २१, ८०) ५ मन्दर- कुञ्ज नगर का एक विद्याधर राजा (पउम ६, १७०)। °जसा स्त्री [°यशस्] एक राज-कन्या का नाम (उप ९७३)। °दिसि स्त्री [°दिश्] पूर्वं दिशा (उप १४२ टी)
पुरंधि, पुरंधी :: स्त्री [पुरन्ध्री] १ बहु कुटुम्बवाली स्त्री। २ पति और पुत्रवाली स्त्री (कुमा; कुप्र १०७; सुपा २६; पाअ) ३ अनेक काल पहले व्याही हुई स्त्री (कप्पू)
पुरक्कड :: देखो पुरक्खड (सूअ २, २, १८)।
पुरक्कार :: पुं [पुरस्कार] १ आगे करना, अग्रतः स्थापन (आचा) २ सम्मान, आदर (सम ४०)
पुरक्खड :: वि [पुरस्कृत] १ आगे किया हुआ (श्रा ६) २ पुरोवर्त्ती, आगामी; 'गहण- समयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति' (भग १, १)
पुरच्छा :: देखो पुरत्था (राज)।
पुरच्छिम :: देखो पुरत्थिम (ठा २, ३ — पत्र ६७; सुज्ज २० — पत्र २८७; पि ५९५)। °दाहिणा स्त्री [°दक्षिणा] पूर्वं-दक्षिण दिशा, अग्निकोण (ठा १० — -पत्र ४७८)।
पुरच्छिमा :: देखो पुरत्थिमा (ठा १० — पत्र ४७८)।
पुरच्छिमिल्ल :: देखो पुरत्थिमिल्ल (सम ६६)।
पुरत्थ :: वि [पुरः स्थ] आगे रहा हुआ, अग्र- वर्त्ती, पुरस्सर, 'पुरत्थं होइ सहायं रणे समं तेण' (उप १०३१ टी), 'जेण गहिएणणत्था इत्थ परत्थावि हु पुरत्था' (श्रा १४)।
पुरत्थ, पुरत्थओ, पुरत्था :: अ [पुरस्तात्] १ पहले, काल या देश की अपेक्षा से आगे; 'तप्पुर- पुरत्थभाए' (सुपा ३९०), 'मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य' (उत्त ३२, ३१), 'आदीणियं दुक्कडियं पुरत्था' (सूअ १, ५, १, २) २ पूर्वंदिशा; 'पुरत्थाभिमुहे' (कप्प; औप; भग; णाया १, १ — पत्र १९)
पुरत्थिम :: वि [पौरस्त्य, पूर्व] १ पूर्वं की तरफ का; 'उत्तर-पुरत्थिमे दिसीभाए' (कप्प; औप) २ न. पूर्वं दिशा; 'पुरतो पुरत्थिमेणं' (णाया १, १ — पत्र ५४; उवा)
पुरत्थिमा :: स्त्री [पूर्वा] पूर्वं दिशा; 'पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ' (आचा; मृच्छ १५८ टि)।
पुरत्थिमिल्ल :: वि [पौरस्त्य] पूर्वं दिशा का, पूर्वं दिशा में स्थित (विपा १, ७, पि ५९५)।
पुरदेव :: पुं [पुरादेव] भगवान् आदिनाथ, 'पुरदेवजिणस्स निव्वाणं' (पउम ४, ८७)।
पुरव :: देखो पुव्व (गउड; हे ४, २७०; ३२३)।
पुरस्सर :: वि [पुरस्सर] अग्रगामी (कप्पू)।
पुरा :: स्त्री [पुर्] नगरी, शहर (हे १, १६)।
पुरा :: देखो पुरिल्ला = पुरा (सूअ १, १, २, २४; विपा १, १)। °इय, °कय वि [°कृत] पूर्व काल में किया हुआ (भवि; कुप्र ३१९)। °भव पुं [°भव] पूर्वं जन्म (कुप्र ४०६)।
पुराअण :: वि [पुरातन] पुराना, प्राचीन। स्त्री. °णी (नाट — चैत १३१)।
पुराकर :: सक [पुरा + कृ] आगे करना। पुराकरंति (सूअ १, ५, २, ५)।
पुराण :: वि [पुराण] १ पुराना, पुरातन (गउड; उत्त ८, १२) २ न. व्यासादि- मुनि-प्रणीत ग्रन्थ-विशेष, पुरातन इतिहास के द्वारा जिसमें धर्म-तत्त्व निरूपित किया जाता हो वह शास्त्र (धर्मंवि ३८; भवि)। °पुरिस पुं [°पुरुष] श्रीकृष्ण (वज्जा १२२)
पुरिकोबेर :: पुं. ब. [पुरीकौबेर] देश-विशेष (पउम ९८, ६७)।
पुरित्थिमा :: देखो पुरत्थिमा (सूअ २, १, ६)।
पुरिम :: देखो पुव्व = पूर्व (हे २, १३५; प्राकृ २८; भग; कुमा); 'पंचवओ खलु धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स' (पव ७४; पंचा १७, १)। °ड्ढ पुंन [°र्ध] १ पूर्वार्धं। २ प्रत्याख्यान-विशेष (पंचा ५; पडि) ३ तप-विशेष, निर्विकृतिक तप (संबोध ५७)। °डि्ढय वि [°र्धिक] 'पुरिमड्ढ' प्रत्याख्यान करनेवाला (पणह २, १; ठा ५, १)
पुरिम :: वि [पौरस्त्य] अग्र-भव, अग्रेतन, आगे का; 'इय पुव्वुत्तचउक्के झाणेसु पढमदुगि खु मिच्छत्तं। पुरिमदुगे सम्मत्तं' (संबोध ५२)।
पुरिम :: पुं [दे] प्रस्फोटन, प्रतिलेखन की क्रिया- विशेष, 'छ प्पुरिमा नव खोडा' (ओघ २६५)।
पुरिमताल :: न [पुरिमताल] नगर-विशेष (विपा १, ३; औप)।
पुरिमिल्ल :: वि [पूर्वीय] पहले का, पुरातन, प्राचीन; 'आसि नरा पुरिमिल्ला, ता किं अम्हेवि तह होमो' (चेइय ११५)।
पुरिल :: पुं [दे] दैत्य, दानव (षड्)।
पुरिल्ल :: वि [पुरातन] पुरा-भव, पहले का, पूर्वंवर्त्ती (विसे १३२९; हे २, १६३)।
पुरिल्ल :: वि [पौरस्त्य] पुरोःभव, पुरो-वर्त्ती, अग्र-गामी (से १३, २; हे २, १६३; प्राप्र; षड्)।
पुरिल्ल :: वि [पौर] पुरःभव, नागरिक (प्राकृ ३५; हे २, १६३)।
पुरिल्ल :: वि [दे] प्रवर, श्रेष्ठ (दे ६, ५३)।
पुरिल्ल :: देखो पुरिल्ला = पुरा, पुरस्; 'पुरिल्लो' (हे २, १६४ टि; षड्)।
पुरिल्लदेव :: पुं [दे] असुर, दानव (दे ६, ५५)।
पुरिल्लापहाणा :: स्त्री [दे] साँप की दाढ (दे ६, ५६)।
पुरिल्ला :: अ [पुरा] १ निरन्तर क्रिया-करण, विच्छेद-रहित क्रिया करना। २ प्राचीन, पुराना। ३ पुराने समय में। ४ भावी। ५ निकट, सन्निहित। ६ इतिहास, पुरावृत्त (हे २, १६४)
पुरिल्ला :: अ [पुरस] आगे, अग्रतः (हे २, १६४)।
पुरिस :: पुंन [पुरुष] १ पुमान्, नर, मर्दं (हे १, १२४; भग; कुमा; प्रासू १२९); 'इत्थीणि वा पुरिसाणि वा' (आचा २, ११, १८) २ जीव, जीवात्मा (विसे २०९०; सूअ २, १, २६) ३ ईश्वर (सूअ २, १, २६)।ट ४ शङ् कु, छाया नापने का काष्ठादि-निर्मित कीलक। ५ पुरुष-शरीर (णंदि) °कार, °क्कार, °गार पुं [°कार] १ पौरुष, पुरुषपन, पुरुष-चेष्टा, पुरुष-प्रयत्न (प्रासू ४३; उवा; सुर २, ३५; उवर ४७) २ पुरुषत्व का अभिमान (औप) °जाय पुं [°जात] १ पुरुष। २ पुरुष-जातीय (सूअ २, १, ६; ७; ठा ३, १; २; ४, १) °जुग न [°युग] क्रम-स्थित पुरुष (सम ६८)। °जेट्ठ पुं [°ज्येष्ठ] प्रशस्त पुरुष (पंचा १७, १०)। °त्थ, °त्तण न [°त्व] पौरुष, पुरुषपन; 'नहि नियजुवइसलहिया पुरिसा पुरिसत्तणमुविंति' (सुर २, २४; महा; सुपा ८४)। °त्थ पुं [°र्थ] धर्मं, अर्थं, काम और मोक्ष रूप पुरुष- प्रयोजन; 'सयलपुरिसत्थकारणमइदुलहो माणुसो भवो एसो' (धर्मंवि ८२; कुमा; सुपा १२६)। °पुंडरीअ पुं [°पुण्डरीक] इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न षष्ठ वासुदेव (पव २१०)। °प्पणीय वि [°प्रणीत] १ ईश्वर-निर्मित। २ जीव-रचित (सूअ २, १, स २६) °मेह पुं [°मेध] यज्ञ-विशेष, जिसमें पुरुष का होम किया जाय वह यज्ञ (राज)। °यार देखो °कार (गउड; सुर २, १६; सुपा २७१)। °लक्खण न [°लक्षण] कला- विशेष, पुरुष के शुभाशुभ चिह्न पहचानने की एक सामुद्रिक कला (जं २)। °लिंग, न [°लिङ्ग] पुरुष-चिह्न। °लिंगसिद्ध पुं [°लिङ्गसिद्ध] पुरुष-शरीर से जो मुक्ति हुआ हो वह (णंदि)। °वयण न [°वचन] पुलिंग शब्द (आचा २, ४, १, ३)। °वर पुं [°वर] श्रेष्ठ पुरुष (औप)। °वरगंधहत्थि पुं [°वरगन्धहस्तिन्] १ पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के तुल्य। २ जिन-देव (भग; पडि) °वरपुंडरीय पुं [°वरपुण्डरीक] १ पुरुषों में श्रेष्ठ पद्म के समान। २ जिन-देव, अर्हंन् (भग; पडि) °विजय पुं [°विचय, °विजय] ज्ञान-विशेष (सूअ २, २, २७)। °वेय पुं [°वेद] १ कर्मं-विशेष, जिसके उदय से पुरुष को स्त्री-संभोग की इच्छा होती है वह कर्मं। २ पुरुष को स्त्री-भोग की अभि- लाषा (पणण २३; सम १५०) °सिंह, °सीह पुं [°सिंह] १ पुरुषों में सिंह के समान, श्रेष्ठ पुरुष। २ पुं. जिनदेव, जिन भगवान् (भग; पडि) ३ भगवान् धर्मंनाथ के प्रथम श्रावक का नाम (विचार ३७८) ४ इस अवसर्पिणी काल में उत्पन्न पाँचवाँ वासुदेव (सम १०५; पउम ५, १५५; पव २१०)। °सेण पुं [°सेन] १ भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर मोक्ष जानेवाला एक अन्तकृद् महर्षि, जो वासुदेव के अन्यतम पुत्र थे (अंत १४) २ भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न होनेवाले एक मुनि, जो राजा श्रेणिक के पुत्र थे (अनु १)। °दाणिअ, °दाणीय पुं [°दानीय] उपादेय पुरुष, आप्त पुरुष (सम १३; कप्प)
पुरिसकारिआ :: स्त्री [पुरुषकारिका, °ता] पुरुषार्थं, प्रयत्न (दस, ५, २, ६)।
पुरिसाअ :: अक [पुरुषाय्] विपरीत मैथुन करना। वकृ. पुरिसाअंत (गा १९६; ३९१)।
पुरिसाइअ :: न [पुरुषायित] विपरीत मैथुन (दे १, ४२)।
पुरिसाइर :: वि [पुरुषायितृ] विपरीत रत करनेवाला, 'दरपुरिसाइरि विसमिरि सुजाण पुरिसाण जं दुक्खं' (गा ५२; ४४६)।
पुरिसुत्तम, पुरिसोत्तम :: पुं [पुरुषोत्तम] १ उत्तम पुरुष, श्रेष्ठ पुमान्। २ जिन- देव, अर्हंन् (सम १; भग; पडि)। ३ चौथा त्रिखण्डाधिपति, चतुर्थं वासुदेव (सम ७०; पउम ५, १५५) ४ भगवान् अनन्तनाथ का प्रथम श्रावक (विचार ३७८) ५ श्रीकृष्ण (सम्मत्त २२६)
पुरी :: स्त्री [पुरी] नगरी, शहर (कुमा) °नाह पुं [°नाथ] नगरी का अधिपति, राजा (उप ७२८ टी)।
पुरीस :: पुंन [पुरीष] विष्ठा (णाया १, ८; उप १३९ टी; ३२० टी; पाअ); 'मुत्तपुरीसे य पिक्खंति' (धर्मंवि १९)।
पुरु :: पुं [पुरु] १ स्व-नाम-ख्यात एक राजा (अभि १७६) २ वि. प्रचुर, प्रभूत। स्त्री. °ई (प्राकृ २८)
पुरुपुरिआ :: स्त्री [दे] उत्कण्ठा, उत्सुकता (दे ६, ५)।
पुरुमिल्ल :: देखो पुरिमिल्ल (गउड)।
पुरुव, पुरुव्व :: देखो पुव्व = पूर्वं; 'ण ईरिसो दिट्ठपुरुवो' (स्वप्न ५५), 'अमंद- आणंदगुंदलपुरुव्वं' (सुपा २२, नाट — मृच्छ १२१; पि १२५)।
पुरुस :: (शौ) देखो पुरिस (प्राकृ ८३; स्वप्न २६; अवि ८५; प्रयौ ९६)।
पुरुसोत्तम :: (शौ) देखो पुरिसोत्तम (पि १२४)।
पुरुहूअ :: पुं [दे] घूक, उल्लू (दे ६, ५५)।
पुरुहूअ :: पुं [पुरुहूत] इन्द्र, देव-राज (गउड)।
पुरूरव :: पुं [पुरूरवस्] एक चंद्र-वंशीय राजा (पि ४०८; ४०९)।
पुरे :: देखो पुरं; 'जस्स नत्थि पुरे पच्छा मज्झे तस्स कुओ सिया' (आचा)। °कड वि [°कृत] आगे किया हुआ, पूर्वं में किया हुआ (औप; सूअ १, ५; २, १; उत्त १०, ३)। °कम्म न [°कर्मन्] पहले करने का काम; पूर्वं में की जाती क्रिया; 'पुरओ कयं जं तु तं पुरेकम्मं' (ओघ ४८६; हे १, ५७)। °क्कार पुं [°कार] सम्मान, आदर (उत्त २९, ७; सुख २९, ७)। °क्खड देखो °कड (पणण ३६ — पत्र ७९६; पणह १, १)। °वाय पुं [°वात] १ सस्नेह वायु। २ पूर्वं दिशा का पवन (णाया १, ११ — पत्र १७१) °संखड़ि स्त्री [दे. संस्कृति] पहले ही किया जाता जिमनवार — भोजनोत्सव; (आचा २, १, २, ९; २, १ ४, १)। °संथुय वि [°संस्तुत] १ पूर्वं- परिचित। २ स्व-पक्ष का सगा (आचा २, १, ४, ५)
पुरेस :: पुं [पुरेश] नगर-स्वामी (भवि)।
पुरो :: देखो पुर° (मोह ४६, कुमा)। °अ, °ग वि [°ग] अग्रगामी, अग्रेसर (प्रति ४०; विसे २५४८)। °गम वि [°गम] वही अर्थ (उप पृ ३५१)। °भाइ वि [°भागिन्] दोष को छोड़ कर गुण-मात्र को ग्रहण करने वाला (नाट — विक्र ६७)।
पुरोकर :: सक [पुरस् + कृ] १ आगे करना। २ स्वीकार करना। ३ सम्मान करना। संकृ. पुरोकरिअ, पुरोकाउं (मा १६; सूअ १, १, ३, १५)
पुरोत्तमपुर :: न [पुरोत्तमपुर] एक विद्याधर- नवर का नाम (इक)।
पुरोवग :: पुं [पुरोपक] वृक्ष-विशेष (औप)।
पुरोह :: पुं [पुरोधस्] पुरोहित (उप ७२८ टी; धर्मंवि १४६)।
पुरोहड :: वि [दे] १ विषम, असम। २ पच्छोकड़ (?) (दे ६, १५) ३ पुंन. आवृत भूमि का वास्तु (दे ६, १५) ४ अग्रद्वार, दरवाजा का अग्रभाग (ओघ ६२२) ५ बाडा, वाटक; 'संझासमए पत्ते मज्झ बलद्दा पुरोहडस्संतो। मह दिट्ठीए दंसिवि ठाएयव्वा' (सुपा ५४५; बृह २)
पुरोहिअ :: पुं [पुरोहित] पुरोधा, याजक, होम आदि से शान्ति-कर्मं करनेवाला ब्राह्मण (कुमा; काल)।
पुल :: पुंन [दे. पुल] छोटा फोड़ा, फुनसी; 'ते पुला भिज्जंति' (ठा १० — पत्र ५२१)।
पुल :: वि [पुल] समुच्छित, उन्नत; 'पुलनिप्पुलाए' (दस १०, १६)।
पुल :: अक [पुल्] उन्नत होना (दस १०, १६)।
पुल, पुलअ :: सक [दृश्] देखना। पुलइ, पुलअइ (प्राकृ ७१; हे ४, १८१; प्राप्र ८, ६९)। पुलएइ (गउड १०६३), पुलएमि (गा ५३१)। वकृ. पुलंत, पुलअंत, पुलएंत (कप्पू; नाट — मालवि ६; पउम ३, ७७; ८, १६०, सुर ११, १२०, १२, २०४; ७, २१२)। संकृ. पुलइण (स ६८९)।
पुलअ :: पुं [पुलक] १ रोमाञ्च (कुमा) २ रत्न-विशेष, मणि की एक जाति (पणण १; उत्त ३६, ७७; कप्प) ३ जलचर जन्तु- विशेष, ग्राह का एक भेद; 'सीमागारपुलु (? ल)- यसुंमुसार — ' (पणह १, १ — पत्र ७)। °कंड पुंन [°काण्ड] रत्नप्रभा नरक-पृथिवी का एक काण्ड (ठा १०)
पुलअण :: वि [दर्शन] देखनेवाला, प्रेक्षक (कुमा)।
पुलअण :: न [पुलकन] पुलकितक होना (कप्पू)।
पुलआअ :: अक [उत् + लस्] उल्लसित होना, उल्लास पाना। पुलआअइ (हे ४, २०२)। वकृ. पुलआअमाण (कुमा)।
पुलइअ :: वि [दृष्ट] देखा हुआ (गा ११८; सुर १४, ११; पाअ)।
पुलइअ :: वि [पुलकित] रोमाञ्चित (पाअ; कुमा ४, १९; कप्प; महा; गा २०)।
पुलइज्ज :: अक [पुलकाय्] रोमाञ्चित होना। वकृ. पुलइज्जंत (सण)।
पुलइल्ल :: वि [पुलकिन्] रोमाञ्च-युक्त, रोमा- ञ्चित (वज्जा १६४)।
पुलएंत :: देखो पुलअ = दृश्।
पुलंधअ :: पुं [दे] भ्रमर, भौंरा (षड्)।
पुलंपुल :: न [दे] अनवरत, निरन्तर (पणह १, ३ — पत्र ४५; औप)।
पुलक, पुलग :: देखो पुलअ = पुलक (पि २०३ टि; णाया १, १; सम १०४; कप्प)।
पुलय :: पुंन [पुलक] कीट-विशेष (आचा २, १३, १)।
पुलाग, पुलाय :: पुंन [पुलाक] १ असार अन्न, 'धन्न- मसारं भन्नइ पुलायसद्देण' (संबोध २८; पव ९३); 'निस्सारए होइ जहा पुलाए' (सूअ १, ७, २६) २ चना आदि शुष्क अन्न (उत्त ८, १२, सुख ८, १२) ३ लह- सुन आदि दुर्गन्ध द्रव्य। ४ दुष्ट रसवाला द्रव्य; 'तिविहं होइ पुलागं धणणे गंधे यरस- पुलाए य' (बृह ५) ५ पुं. अपने संयम को निस्सार बनानीवाला मुनि, शिथिलाचारी साधुओं का एक भेद (ठा ३, २; ५, ३; संबोध २८; पव ९३)
पुलिसिअ :: पुं [दे] अग्नि-कण (दे ६, ५५)।
पुलिंद :: पुं [पुलिन्द] १ अनार्यं देश-विशेष (इक) २ पुंस्त्री. उस देश में रहनेवाला मनुष्य (पणह १, १; औप; फप्पू; उव)। स्त्री. °दी (णाया १, १; औप)
पुलिण :: न [पुलिन] तट, किनारा; 'ओइणणो नइपुलिणाओ' (पउम १०, ५४)। २ लगातार बाईस दिनों का उपवास (संबोध ५८)
पुलिय :: न [पुलित] गति-विशेष (औप)।
पुलुट्ठ :: वि [प्लुष्ट] दग्ध (पाअ)।
पुलोअ :: सक [दृश्, प्र + लोक्] देखना। पुलोए (हे ४, १८१; सुर १, ८९)। वकृ. पुलअंत, पुलोएंत (पि १०४; सुर ३, ११८)।
पुलोअण :: न [दर्शन, प्रलोकन] बिलोकन (दे ६, ३०; गा ३२२)।
पुलोइअ :: वि [दृष्ट, प्रलोकित] १ देखा हुआ (सुर ३, १९४) २ न. अवलोकन (से ७, ५९)
पुलोएंत :: देखो पुलोअ।
पुलोम :: पुं [पुलोमन्] दैत्य-विशेष। °तणया स्त्री [°तनया] शची, इन्द्राणी (पाअ)।
पुलोमी :: स्त्री [पौलोमी] इन्द्राणी (प्राकृ १०; हे १, १६०)।
पुलोव :: देखो पुलोअ। पुलोवेंदि (शौ) (पि १०४)।
पुलोस :: पुं [प्लोष] दाह, दहन (गउड)।
पुल्ल :: [दे] देखो पोल्ल (सुख ९, १)।
पुल्लि :: पुंस्त्री [दे] १ व्याघ्र, शेर (दे ६, ७९; पाअ) २ सिंह, पञ्चानन, मृगेन्द्र (दे ६, ७९)। स्त्री. 'को पियइ पयं च पुल्लीए' (सुपा ३१२)
पुव, पुव्व :: सक [प्लु] गति करना, चलना। पुवंति (पि ४७३), पुव्वंति (भग १५ — पत्र ६७०; टी — पत्र ६७३)।
पुव्व° :: देखो पुण = पू।
पुव्व :: वि [पूर्व] १ दिशा, देश और काल की अपेक्षा से पहले का, आद्य, प्रथम (ठा ४, ४; जी १; प्रासू १२२) २ समस्त, सकल। ३ ज्येष्ठ भ्राता (हे २, १३५; षड्) ४ पुंन. काल-मान-विशेष, चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो उतने वर्षं (ठा २, ४; सम ७४; जी ३७; इक) ५ जैन ग्रंथाश-विशेष, बारहवें अंग-ग्रन्थ का एक विशाल विभाग, अध्ययन, परिच्छेद; 'चोद्दसपुव्वी' (विपा १, १) ६ द्वन्द्ध, वधू-वर आदि युग्म; 'पुव्वट्ठाणाणि' (ाचा २, ११, १३) ७ पूर्व-ग्रन्थ का ज्ञान (कम्म १, ७) ८ कारण, हेतु (णंदि) °कालिय वि [°कालिक] पूर्व काल का, पू्रव काल से संबन्ध रखनेवाला (पणह १, २ — पत्र २)। °गय न [°गत] जैन शास्त्रांश-विशेष, बारहवें अंग का विभाग-विशेष (ठा १० — पत्र ४९१)। °ण्ह पुं [°ह्ण] २ दिन का पूर्व भाग, सुबह से दो पहर तक का समय (हे १, ६७) २ तप-विशेष, 'परिमड्ढ' तप (संबोध ५८९)। °तव पुंन [°तपस्] वीतराग अवस्था के पहले का — सराग अवस्था का तप (भग)। °दारिअ वि [°द्वारिक] पूर्व दिशा में गमन करने में कल्याण-कारी (नक्षत्र)। (सम १२)। °द्ध पुंन [°र्ध] पहला आधा (नाट)। °धर वि [°धर] पूर्वं-ग्रन्थ का ज्ञानवाला (पणह २, १)। °पय न [°पद] उत्सर्गं-स्थान (निचू १)। °पुट्ठवया स्त्री [°प्रोष्ठपदा] नक्षत्र-विशेष (सुज्ज १०, ५)। °पुरिस पुं [°पुरुष] पूर्वज, पुरखा (सुर २, १९४)। °प्पओग पुं [°प्रयोग] पहले की क्रिया, पूर्वं काल का प्रयत्न (भग ८, ९)। °फग्गुणी स्त्री [°फाल्गुनी] नक्षत्र-विशेष (राज)। °भद्दवया स्त्री [°भाद्रपदा] नक्षत्र- विशेष (राज)। °भव पुं [°भव] गत जन्म, अतीत जन्म (णाया १, १)। °भविय वि [°भविक] पूर्वजन्म संबंधी (भवि)। °य पुं [°ज] पूर्व पुरुष, पुरखा (सुपा २३२)। °रत्त पुं [°रात्र] रात्रि का पूर्व भाग (भग; महा)। °व न [°वत्] अनुमान प्रमाण का एक भेद (अणु)। °विदेह पुं [°विदेह] महाविदेह वर्षं का पूर्वीय हिस्सा (ठा २, ३; इक)। °समास पुंन [°समास] एक से ज्यादा पूर्व-शास्त्रों का ज्ञान (कम्म १, ७)। °सुय न [°श्रुत] पूर्वं का ज्ञान (राज)। °सूरि पुं [°सूरि] पूर्वाचार्य, प्राचीन आचार्यं (जीव १)। °हर देखो °धर (पउम ११८, १२१)। °णुपुव्वी स्त्री [°नुपूर्वी] क्रम, परिपाटी (भग; विपा १, १; औप; महा)। °णह देखो °ण्ह (हे १, ६७; षड्)। °फिग्गुणी देखो °फग्गुणी (सम ७; इक)। °भद्दवया देखो °भद्दवया (सम ७)। °साढा स्त्री [°षाढा] नक्षत्र-विशेष (सम ९)
पुव्वंग :: पुंन [पूर्वाङ्गं] १ समय-परिमाण- विशेष, चौरासी लाख वर्षं (ठा २, ४; इक) २ पक्ष के पहले दिन का नाम, प्रतिपत् (सुज्ज १०, १४)
पुव्वंग :: वि [दे] मुण्डित (षड्)।
पुव्वा :: स्त्री [पूर्वा] पूर्व दिशा (कुमा)।
पुव्वाड :: वि [दे] पीन, मांसल, पुष्ट (दे ६, ५२)।
पुव्वामेव :: अ [पूर्वमेव] पहले ही (कस)।
पुव्वावईणय :: न [पूर्वावकीर्णक] नगर-विशेष (इक)।
पुव्वि :: वि [पूर्विन्] पूर्वं-शास्त्र का जानकार (विपा १, १; राज)।
पुव्वि, पुव्वि :: क्रिवि [पूर्वम्] पहले, पूर्वं में (सण; उवा; सुर १, १९४; ४, १११; औप)। °संथव पुं [°संस्तव] पूर्व में की जाती श्लाघा, जैन मुनि की भिक्षा का एक दोष, भिक्षा-प्राप्ति के पहले दायक की स्तिति करना (ठा ३, ४)।
पुव्विम :: पुंस्त्री [पूर्वत्व] पहिलापन, प्रथमता (षड्)।
पुव्विल्ल :: वि [पूर्व, पूर्वीय] पहले का, पूर्वं का; 'पुव्विल्लसमं करणं' (चेइय ८८९); 'पुव्विल्लए किंचिवि दुट्ठकम्मे' (निसा ४; सुपा ३४६; सण)।
पुव्वुत्त :: वि [पूर्वोक्त] पहले कह हुआ, पूर्वं में उक्त (सुर २, २४८)।
पुव्वुत्तरा :: स्त्री [पूर्वेोत्तरा] ईशान कोण (राज)।
पुस :: सक [प्र + उञ्छ्, मृज्] साफ करना, शुद्ध करना, पोंछना। पुसइ (प्राकृ ६६; हे ४, १०५; गा ४३३)। कवकृ. पुसिज्जंत (गा २०६)।
पुस :: देखो पुस्स (प्राकृ २६; प्राप्र)।
पुस :: पुं [पौष] मास-विशेष, पौष मास; 'पुसो' (प्राकृ १०)।
पुसिअ :: वि [प्रोञ्छित, मृष्ट] पोंछा हुआ (गउड; से १०, ४२; गा ५४)।
पुसिअ :: पुं [पृषत] मृग-विशेष (गा ६२९)।
पुस्स :: पुं [पुष्य] १ नक्षत्र-विशेष, कृत्तिका से आठवाँ नक्षत्र (प्राकृ २६; प्राप्र; सम ८; १७; ठा २, ३) २ रेवती नक्षत्र का अधि- पति देव (सुज्ज १०, १२) ३ ऋषि-विशेष (राज)। °माणअ, °माणव पुं [°मानव] मागध, स्तुति-पाठक, भाट-चारण आदि (णाया १, ८ — पत्र १३३; टि — पत्र १३६)। देखो पूस = पुष्य।
पुस्सदेवय :: न [पुष्यदैवत] जैनेतर शास्त्र- विशेष (णंदि १५४)।
पुस्सायण :: न [पुष्यायण] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६)।
पुह, पुहं :: देखो पिह = पृथक् (हे १, १८८)। °ब्भूय वि [°भूत] अलग, जो जुदा हुआ हो (अज्झ ९०)।
पुहइ°, पुहई :: स्त्री [पृथिवी] १ तृतीय वासुदेव की माता का नाम (पउम २०, १८४) २ एक नगरी का नाम (पउम २०, १८८) २ भगवान् सुपार्श्वनाथ की माता का नाम (सुपा ३९) ४ — देखो पुढवी, पुहवी (कुमा; हे १, ८८; १३१)। °धर पुं [°धर] राजा (पउम; ८५, ४)। °नाह पुं [°नाथ] राजा (सुपा १२२)। °पहु पुं [°प्रभु] राजा (उप ७२८ टी)। °पाल पुं [°पाल] राजा (सुर १, २४३)। °राय पुं [°राज] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का शाकम्भरी देश का एक राजा; 'पुहईराएण सयंभरीनरिंदेण' (मुणि १०९०१)। °वइ पुं [°पति] राजा (सुपा २०१; २४८; ५१६)। °वाल देखो °पाल (उप ६४८ टी)
पुहईसर :: पुं [पृथिवीश्वर] राजा (सुपा १०७; २४१)।
पुहत्त :: न [पृथक्त्व] १ भेद, पार्थक्य (अणु) २ विस्तार (राज) ३ बहुत्व (भग १, २; ठा १०) ४ वि. भिन्न, अलग; 'अत्थपुहत्तस्स' (विसे १०६९)। °वियक्क न [°वितर्क] शुक्ल ध्यान का एक भेद (संबोध ५१)। देखो पुहुत्त, पोहत्त।
पुहत्तिय :: देखो पोहत्तिय (भग)।
पुहय :: देखो पिह = पृथक्; 'पुहय देवीणं' (कुमा)।
पुहवि°, पुहवी :: देखो पुढवी, पुहई (पि ३८६; श्रा १४; प्राप्र, प्रासू ५; ११३; सम १५१; स १५२)। ९ भगवान् श्रेयांसनाथ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९) १० एक छन्द का नाम (पिंग) °चंद पुं [°चन्द्र] एक राजा (यति ५०)। °पाल पुं [°पाल] १ एक राजकुमार (उप ९८६ टी) २ देखो पुहई-पाल (सिरि ४५)। °पुर न [°पुर] एक नगर का नाम (उप ८४४)
पुहवीस :: पुं [पृथिवीश] राजा (हे १, ६)।
पुहु :: वि [पृथु] विशाल, विस्तीर्णं। स्त्री. °ई (प्राकृ २८)।
पुहुत्त :: न [पृथक्त्व] १ दो से नव तक की संख्या (सम ४४; जी ३०; भग) २ — देखो पुहत्त (ठा १० — पत्र ४७१; ४९५)
पुहुवी :: देखो पुहु-ई (हे २, ११३)।
पू° :: देखो पुं°। °सुअ पुं [°शुक] तोता, मर्दं पिक-पक्षि (गा ५६३ अ)।
पूअ :: सक [पूजय्] पूजा करना। पूएइ (महा)। कर्मं. पूइजसि (गउड)। वकृ. पूयंत (सुपा २२४)। कवकृ. पूइज्जंत (पउम ३२, ९)। कृ. पूअणीअ, पूएअव्व, पूअणिज्ज (नाट — मृच्छ १९५; उवर १९६; औप; णाया १, १ टी; पंचा २, ८; उप ३२० टी)। संकृ., पूइऊण (महा)।
पूअ :: न [दे] दधि, दही (दे ६, ५६)।
पूअ :: पुं [पूग] १ वृक्ष-विशेष, सुपारी का गाछ (गउड) २ न. फल-विशेष, सुपारी (स ३४५)। देखो पूग। °प्फली, °फली स्त्री [°फली] सुपारी का पेड़ (पउम ५३, ७९; पणण १)
पूअ :: न [पूर्त] तालाब, कूआँ आदि खुदवाना, अन्न-दान करना, देव-मन्दिर बनाना आदि जन-समूह के हित का कार्य; 'गरहियाणि इट्ठपूयाणि' (स ७१३)।
पूअ :: वि [पूत] १ पवित्र, शुद्ध (णाया १, ५; औप) २ न. लगातार छः दिनों का उपवास (संबोध ५८) ३ वि. सूप आदि से साफ — तुष-रहित किया हुआ (णाया १, ७ — पत्र ११६)
पूअ :: न [पूय] पीब, दुर्गन्ध रक्त, व्रण से निकला हुआ गन्दा सफेद बिगड़ा हुआ खून (पणह १, १; णाया ३, ८)।
पूअण :: न [पूजन] पूजा, सेवा (कुमा; औप; टसुपा ५८४; महा)।
पूअणा :: स्त्री [पूजना] १ ऊपर देखो (पणह २, १; से ७६३; संबोध ९) २ काम- विभूषा (सूअ १, ३, ४, १७)
पूअणा, पूअणी :: स्त्री [पूतना] १ दुष्ट व्यन्तरी, डाइन, डाकिनी (सूअ १, ३, ४, १३; पिंडभा ४१; सुपा २६; पणह १, ४) २ गाडर, भेड़ी, मेषी (सूअ १, ३, ४, १३)
पूअय :: वि [पूजक] पूजा करनेवाला (सुर १३, १४३)।
पूअर :: देखो पोर = पूतर (श्रा १४; जी १५)।
पूअल :: पुं [पूप] अपूप, पूआ, खाद्य-विशेष (दे ६, १८)।
पूअलिया :: स्त्री [पूपिका] ऊपर देखो (पव ४)।
पूआ :: स्त्री [दे] पिशाच-गृहीता, भूताविष्ट स्त्री (दे ६, ५४)।
पूआ :: स्त्री [पूजा] पूजन, अर्चा, सेवा (कुमा)। °भत्त न [°भक्त] पूज्य के लिए निष्पादितॉ भोजन (बृह २)। °मह पुं [°मह] पूजोत्सव (कुप्र ८५)। °रह पुं [°रथ] राक्षस-वंश में उत्पन्न एक राजा का नाम, एक लंका-पति (पउम ५, २५९)। °रिह, °रुह वि [°र्ह] पूजा-योग्य (सुपा ४६१; अभि ११८)।
पूआहिज्ज :: वि [पूजाहार्य] पूजित-पूजक (ठा ५, ३ टी — पत्र ३४२)।
पूइ :: वि [पूति] १ दुर्गंन्धी, दुर्गंन्धवाला (पउम ४४, ५५' उप ७२८ टी; तंदि ४१) २ अप- वित्र (पंचा १३, ५) ३ स्त्री. दुर्गन्ध। ४ अपवित्रता (तंदु ३८) ५ भिक्षा का एक दोष, पूति-कर्मं (पिंड २६८) ६ रोग-विशेष, एक नासिका-रोग, नासा-कोथ (विसे २०८) ७ पूय, पीब; 'गलंतपूइनिवहं' (महा), 'पूइ- बसरुहिरपुन्नं' (सुर १४, ४६), 'जहा सुणी पुइकण्णी' (उत्त १, ४) ८ वृक्ष-विशेष, एकास्थिक वृक्ष की एक जाति; 'पूई य निंब- करए' (पणण १ — पत्र ३१)। °कम्म पुंन [°कर्मन्] मुनि-भिक्षा का एक दोष, पवित्र वस्तु में अपवित्र वस्तु को मिलाकर दी जाती भिक्षा का ग्रहण (ठा ३, ४ टी; औप; पंचा १३, ५)। °म वि [°मत्] १ दुर्गंन्धी। २ अपवित्र (तंदु ३८)
पूइ :: वि [पूति] कुथित, सड़ा हुआ (आचा २, १, ८, ४)। °पिन्नाग पुंन [°पिण्याक] सर्षप-खल, सरसों की खली (दस ५, २, २२)।
पूइअ :: वि [पूयित] ऊपर देखो (राय १८)।
पूइआलुग :: न [दे. पूत्यालुक] जल में होनेवाली बनस्पति-विशेष (आचा २, १, ८ — सूत्र ४७)।
पूइज्जंत :: देखो पूअ = पूजय्।
पूइम :: वि [पूज्य] पूजा योग्य, सम्माननीय; 'जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो' (दसचू १, ४)।
पूइय :: वि [पूजित] अर्चित, सेवित (औप; उव)।
पूइय :: वि [पूतिक] १ अपवित्र, अशुद्ध, दूषित (पणह २, ५, उप पृ २१०) २ दुर्गन्धी, दुष्ट गन्धवाला (णाया १, ८; तंदु ४१) ३ पूति नामक भिक्षा-दोष से युक्त (पिंड २६८)
पूइय :: देखो पोइय = (दे); 'बलो गओ पूइया- वणं' (सुख २, २९; उप)।
पूएअव्व :: देखो पूअ = पूजय्।
पूंडरिअ :: न [दे] कार्यं, काम, काज, प्रयोजन (दे ६, ५७)।
पूग :: पुं [पूग] १ समूह, संघात (मोह २८) २ देखो पूअ = पूग (सं ७०; ७१)
पूगी :: स्त्री [पूगी] सुपारी का पेड़। °फल न [°फल] सुपारी, कसैली (रयण ५५)।
पूज :: देखो पूअ = पूजय्। कर्मं. पूज्जए (उव)। वकृ. पूजयंत (विसे २८८८)। कृ. पूज्ज, पूज (पउम ११, ६७; सुपा १८०; सुर १, १७; उवर १९६; उव; उप ५६८)।
पूजग :: देखो पूअय (पंचा ४, ४४)।
पूजण :: देखो पूअण (पंचा ६, ३८)।
पूजा :: देखो पुआ = पूजा (उप १०१९)।
पूजिय :: देखो पूइय = पूजित (औप)।
पूण :: पुं [दे] हस्ती, हाथी (दे ६, ५६)।
पूणिआ, पूणी :: स्त्री [दे] पूणी, पूनी, रुई की पहल (दे ६, ७८; ६, ५६)।
पूप :: देखो पूअल (पिंड ५५७)।
पूयइ :: पुं [पूपकिन्] हलवाई (णंदि १९४)।
पूयंत :: देखो पूअ = पजय्।
पूयली :: स्त्री [दे] रोटी (आचा २, १, ८, ६)।
पूयावणा :: स्त्री [पूजना] पूजा कराना (संबोध १५)।
पूर :: सक [पूरय्] पूर्ति करना, भरना। पूरइ, पूरए (हे ४, १६९, औप; भग; महा; पि ४६२)। वकृ. पूरंत, पूरयंत (कुमा, कप्प; औप)। कवकृ. पुज्जंत, पुज्जमाण, पूरिज्जंत, पूरंत, पूरमाण (उप पृ १५४; सुपा ६८; उप १३९ टी; भवि; गा ११६; से १, ६३; ६, ६७)। संकृ पूरित्ता (भग), पूरि (अप), (पिंग)। हेकृ. पूरिइत्तए (पि ५७८)। कृ. पूरिअव्व (से ११, ४४)।
पूर :: पुं [पूर] १ जल-समूह, जल-प्रवाह, जल- धारा (कुमा) २ खाद्य-विशेष; 'कप्पूरपूरसहिए तंबोले' (सुर २, ६०) ३ वि. पूरा, पूर्णं; 'पूराणि य से समं पणइमणोरहेहिं अज्जेव सत्त राइंदियाइं, भविस्सइ य सुए सामिणी विज्जासिद्धी' (स ३६३)
पूरइत्तअ :: (शौ) वि [पूरयितृ] पूर्णं करनेवाला (मा ४३)।
पुरंतिया :: स्त्री [पूरयन्तिका] राजा की एक परिषत् — परिवार (राज)।
पूरग :: वि [पूरक] पूर्त्ति करनेवाला (कप्प; औप; रयण ७७)।
पूरण :: न [पूरण] शूर्ष, सूप, सिरकी का बना एक पात्र जिससे अन्न पछोरा जाता है (दे ६, ५६)।
पूरण :: न [पूरण] १ पूर्त्ति, 'समस्सापूरणं' (सिरिे ८६८) २ पालन (आचू ५) ३ पुं. यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत ३) ४ एक गृह-पति का नाम (उवा) ५ वि. पूर्ति करनेवाला (राज)। पूरमाण देखो पूर = पूरय्।
पूरय :: देखो पूरग; 'बत्तीसं किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ' (पिंड ६४२)।
पूरयंत, पूरिअव्व :: देखो पूर = पूरय्।
पूरिगा :: स्त्री [पूरिका] मोटा कपड़ा (राज)।
पूरिम :: वि [पूरिम] पूरने से — भरने से होनेवाला (णाया १, १३, पणह २, ५; औप)।
पूरिमा :: स्त्री [पूरिमा] गान्धार ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७ — पत्र ३९३)।
पूरिय :: वि [पूरित] भरा हुआ (गउड; सण; भवि)।
पूरी :: स्त्री [पूरी] तन्तुवाय का एक उपकरण (दे ६ ५६)।
पूरेंत :: देखो पूर = पूर = पूरय्।
पूरोट्टी :: स्त्री [दे] अवकर, कतवार, कूड़ा (दे ६, ५७)।
पूल :: पुंन [पूल] पूला, घास की अँटिया (उप ३२० टी; कुप्र २१५)।
पूव, पूवल :: देखो पूअल (कस; दे ६, ११७; निचू १)।
पूवलिआ, पूविगा :: देखो पूअलिया (बृह १; निचू १६)।
पूस :: अक [पूष्] पुष्ट होना। पूसइ (हे ४, २३६; प्राकृ ६८)।
पूस :: देखो पुस्स = पूष्य (णाया १, ८; हे १, ४३)। °गिरि पुं [°गिरि] एक जैन मुनि (कप्प)। °फली स्त्री [°फली] वल्ली-विशेष (पणण १)। °माण, °माणग पुं [°माण, °मानव] मागध, मङ्गल-पाठक; ' — वद्धमाण- पूसमाणघंटियगणेहिं' (कप्प; औप)। °माणग पुं [°मानक] ज्योतिर्देवता-विशेष, ग्रहाधि- ष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)। °माणय देखो °माण (औप)। °मित्त पुं [°मित्र] १ स्वनाम-प्रसिद्ध जैन मुनि-त्रय — १ घृत- पुष्यमित्र, २ वस्त्रपुष्यमित्र, ३ दुर्बलिका- पुष्यमित्र, जो आर्यं रक्षितसूरि के शिष्य थे (विसे २५१०; २२८९) २ एक राजा (विचार ४९३)। °मित्तिय न [°मित्रीय] एख जैन मुनि-कुल (कप्प)
पूस :: पुं [दे] १ राजा सातवाहन (दे ६, ८०) २ शुक, तोता (दे ६, ८०; गा २६३; वज्जा १३४, पाअ)
पूस :: पुं [पूषन्] १ सूर्यं, रवि (हे ३, ५६) २ मणि-विशेष (पउम ६, ३९)
पूसा :: स्त्री [पुष्या] व्यक्ति-वाचक नाम, कुण्ड- कोलिक श्रावक की पत्नी (उवा)।
पूसाण :: देखो पूस = पूषन् (हे ३, ५६)।
°पूह :: पुं [अपोह] विचार, मीमांसा; 'ईहापूह- मग्गणगवेसणं करेमाणस्स' (औप; पि १४२; २८६)। देखो अपोह = अपोह।
पृथुम :: (पै) देखो पढम; 'पृथुमसिनेहो' (प्राकृ १२४)।
पेअ :: पुं [प्रेत] १ व्यन्तर-भेद, एक देव-जाति (सुपा ४९१; ४९२; जय २९) २ मृतक (पउम ५, ९०)। °कम्म न [°कर्म्मन्] अन्त्येष्टि क्रिया, मृत का दाहादि कार्य (पउम २३, २४)। °करणिज्ज न [°करणीय] अन्त्येष्टि क्रिया (पउम ७५, १)। °काइय वि [°कायिक] प्रेत-योनि में उत्पन्न, व्यन्तर-विशेष (भग ३, ७)। °देवयकाइय वि [°देवताकायिक] प्रेत-देवता का, प्रेत- सम्बन्धी (भग ३, ७)। °नाह पुं [°नाथ] यमराज, जम (स ३१९)। °भूमि, °भूमी स्त्री [°भूमि, °मी] श्मशान (सुपा २६५)। °लोय पुं [°लोक] श्मशान (पउम ८९, ४३)। °वइ पुं [°पति] यम (उप ७२८ टी)। °वण न [°वन] श्मशान (पाअ; सुर १६, २०४; वज्जा २; सुपा ५१२)। °हिव पुं [°धिप] यम, जमराज (पाअ)
पेअ :: वि [प्रेयस] अतिशय प्रिय। स्त्री. °सी (सम्मत्त १७५)।
पेअ, पेअब्ब :: देखो पा = पा।
पेआ :: स्त्री [पेया] यवागू, पीने की वस्तु- विशेष (हे १, २४८)।
पेआल :: न [दे] १ प्रमाण (दे ६, ५७; विसे १६९ टी; णंदि; उव) २ विचार (विसे १३६१) ३ सार, रहस्य (ठा ४, ४ टी — पत्र २८३; उप पृ २०७) ४ प्रधान, मुख्य (उवा)
पेआलणा :: स्त्री [दे] प्रमाणृ-करण, 'पञ्जव- पेयालणा पिंडो' (पिंड ६५)।
पेआलुय :: वि [दे] विचारित (विसे १४८२)।
पेइअ :: वि [पैतृक] १ पिता से आया हुआ, पितृ-क्रम-प्राप्त; 'पेइओ धम्मो' (पउम ८२, ३३; सिरि ३४८; स ५६६) २ न. स्त्री के पिता का घर, पीहर, नैहर, मैका; 'ता जा कुले कलंकं नो पयडइ ताव पेइए एयं पेसेमि', 'विमलेण तओ भणियं गच्छ पिए पेइयमियाणिं' (सुपा ६००)
पेईहर :: न [पितृगृह, पैतृकगृह] पीहर, स्त्री के पिता का घर; 'इय चिंतिऊण सिग्धं धणसिरिपेईहरम्मि संचलिओ' (सुपा ६०३)।
पेऊस :: न [पीयुष] अमृत, सुधा (हे १, १०५; गा ६५; कप्पू)। °सण पुं [°शन] देव, सुर (कुमा)।
पेंखिअ :: वि [प्रेङ्खित] कम्पित (कप्पू)।
पेंखोल :: अक [प्रेङ्खोलय्] झूलना, हिलना। वकृ. पेंखोलमाण (णाया १, १ — पत्र ३१)।
पेंड :: देखो पिंड = पिण्ड (हे १, ५८; प्राकृ ५; प्राप्र; कुमा)।
पेंड :: न [दे] १ खसढ, टुकड़ा। २ वलय (दे ६, ८)
पेंडधव :: पुं [दे] खड्ग, तलवार (दे ६, ५९)।
पेंडबाल :: वि [दे] देखो पेंडलिअ (दे ६, ५४)।
पेंडय :: पुं [दे] १ तरुण, युवा। २ षण्ढ, नपुंसक (दे ६, ५३)
पेंडल :: पुं [दे] रस (दे ६, ५८)।
पेंडलिअ :: वि [दे] पिण्डीकृत, पिण्डाकार किया हुआ (दे ६, ५४)।
पेंडव :: सक [प्र + स्थापय्] १ रखना, स्थापन करना। २ प्रस्थान कराना। पेंडवइ (हे ४, ३७)
पेंडविर :: वि [प्रस्थापयितृ] प्रस्थापन करनेवाला (कुमा)।
पेंडार :: पुं [दे] १ गोप, गो-पाल, ग्वाला। २ महिषी-पाल (दे ६, ५८)
पेंडोली :: स्त्री [दे] क्रीड़ा (दे ६, ५९)।
पेंढा :: स्त्री [दे] कलुष सुरा, पंकवाली मदिरा (दे ६, ५०)।
पेंत :: देखो पा = पा।
पेक्ख :: सक [प्र + ईक्ष्] दैखना, अवलोकन करना। पेक्खइ, पेक्खए (सण; पिंग)। वकृ. पेक्खंत (पि ३९७)। कवकृ. पेक्खिज्जंत (से १५, ६३)। संकृ. पेक्खिअ, पेक्खिऊण (अबि ४२; काप्र १५८)। कृ. पेक्खणिज्ज (नाट — वेणी ७३)।
पेक्खअ, पेक्खग :: वि [प्रेक्षक] देखनेवाला, निरीक्षक, द्रष्टा (सुर ७, ८०; स ३७९; महा)।
पेक्खण :: न [प्रेक्षण] निरीक्षण, अवलोकन (सुपा १९९; अभि ५३)।
पेक्खणग, पेक्खणय :: न [प्रेक्षणक] खेल, तमाशा, नाटक (सुर ७, १८२; कुप्र ३०)।
पेक्खणा :: स्त्री [प्रेक्षणा] निरीक्षण, अवलोकन (ओघ ३)।
पेक्खा :: स्त्री [प्रेक्षा] ऊपर देखो (पउम ७२; २९)। देखो पेच्छा।
पेक्खिय :: देखो पेच्छिअ (राज)।
पेखिल :: (अप) वि [प्रेक्षित] दृष्ट (रंभा)।
पेच्च, पेच्चा :: अ [प्रेत्य] परलोक, आगामी जन्म (भग; औप); 'संबंही खलु पेच्च दुल्लहा' (वै ७३)। °भव पुं [°भव] आगामी जन्म, परलोक (औप)। °भाविअ वि [°भाविक] जन्मांतर-संबन्धी (पणह २, २)।
पेच्चा :: देखो पिअ = पा।
पेच्छ :: सक [दृश् प्र + ईक्ष्] देखना। पेच्छइ, पेच्छए (हे ४, १८१, उव; महा; पि ४५७)। भवि. पेच्छिहिसि (पि ५२५)। वकृ. पेच्छंत (गा ३७३; महा)। संकृ. पेच्छिऊण (पि ५८५)। हेकृ. पेच्छिउं, पेच्छित्तए (उप ७२८ टाी; औप)। कृ. पेच्छणिज्ज, पेच्छिअव्व (गा ९९; औप; पणह १, ४; से ३, ३३)।
पेच्छ :: वि [प्रेक्ष्] द्रष्टा, दर्शक; 'अपरमत्थपरेच्छो' (स ७१५)।
पेच्छग :: देखो पेक्खग (भास ४७; धर्मंसं ७४३)।
पेच्छण :: देखो पेक्खण (सुपा ३७)।
पेच्छणग, पेच्छणय :: देखो पेक्खणग (पंचा ९, ११; महा)।
पेच्छय :: वि [प्रेक्षक] द्रष्टा, निरीक्षक (पउम ८६, ७१, स ३६१; गा ४९८)।
पेच्छय :: वि [दे] जो देखे उसी को चाहनेवाला, दृष्ट-मात्र का अभिलाषी (दे ६, ५८)।
पेच्छा :: स्त्री [प्रेक्षा] प्रेक्षणक, तमाशा, खेल, नाटक; 'पेच्छाछणो सिणणविलोअणाण जहा सुचोक्खोवि न किंचिदेव' (उपपं ३७; सुर १३, ३७; औप)। देखो पेक्खा। °घर न [°गृह] देखो °हर (ठा ४, २)। °मंडव पुं [°मण्डप] नाट्य-गृह, खेल आदि में प्रेक्षकों के बैठने का स्थान (पव २६९)। °हर न [°गृह] नाटक-गृह, खेल-तमाशा का स्थान (पउम ८०, ५)।
पेच्छि :: वि [प्रेक्षिन्] प्रेक्षक, द्रष्टा (चेइय १०९; गा २१४)।
पेच्छिअ :: वि [प्रेक्षित] १ निरीक्षित, अव- लोकित (कुमा) २ न. निरीक्षण, अवलोकन (सुर १२, १८३; गा २२५)
पेच्छिर :: वि [प्रेक्षितृ] निरीक्षक, द्रष्टा (गा १७४; ३७१)।
पेज्ज :: देखो पा = पा।
पेज्ज :: पुंन [प्रेमन्] प्रेंम अनुराग (सूअ २, ५, २२; आचा; भग; ठा १; चेइय ६३४)। °दंसि वि [°दर्शिन्] अनुरागी (आचा)।
पेज्ज :: वि [प्रेयस्] अत्यन्त प्रिय (औप)।
पेज्ज :: वि [प्रेज्य] पूज्य, पूजनीय (राज)।
पेज्ज :: देखो पेर = प्र + ईरय्।
पेज्जल :: न [दे] प्रमाण (दे ६, ५७)।
पेज्जलिअ :: वि [दे] संघटित (षड्)।
पेज्जा :: देखो पेआ (ओघ १४६; हे १, २४८)।
पेज्जाल :: वि [दे] विपुल, विशाल (दे ६, ७)।
पेट, पेट्ट :: न [दे] पेट, उदर (पिंग; पव १)।
पेट्ठ :: देखो पिट्ठ = पिष्ट (संक्षि ३; प्राकृ ५; प्राप्र)।
पेड :: देखो पेडय; 'नडपेडनिहा' (संबोध १८)।
पेडइअ :: पुं [दे] धान्य आधि बेचनेवाला वणिक् (दे ६, ५९)।
पेडक, पेडय :: न [पेटक] समूह, यूथ; 'नडपेडक- संनिहा जाण' (संबोध १५; सुपा ५४६; सिरि १६३; महा)।
पेडा :: स्त्री [पेटा] १ मञ्जुषा, पेटी (दे ५, ३८; महा) २ पेटाकार चतुष्कोण गृह-पंक्ति में भिक्षार्थं-भ्रमण (उत्त ३०, १९)
पेडाल :: पुं [दे पेटाल] बड़ी मञ्जुषा, बड़ी पेटी (मुद्रा ११०)।
पेडावइ :: पुं [पेटकपति] यूथ का नायक (सुपा ५४६)।
पेडिआ :: स्त्री [पेटिका] मञ्जुषा (मुद्रा २४०)।
पेड्ड :: स्त्री पुं [दे] महिष, भैंस (दे ६, ८०)।
पेड्डा :: स्त्री [दे] १ भित्ति, भींत। २ द्रार, दरवाजा। ३ महिषी, भैंस (दे ६, ८०)
पेढ :: देखो पीढ = पीठ (हे १, १०६; कुमा); 'काऊण पेढं टविया तत्थ एसा पडिमा' (कुप्र ११७)।
पेढाल :: वि [दे] १ विपुल (दे ६, ७; गउड) २ वर्तुल, गोलाकार (दे ६, ७; गउड; पाअ)
पेढाल :: वि [पीठवत्] पीठ-युक्त (गउड)।
पेढाल :: पुं [पेढाल] १ भारत वर्षं का आठवाँ भावी जिनदेव, 'पेढालं अट्ठमयं आणंदजियं नमसामि' (पव ४६) २ ग्यारह रुद्र पुरुषों में दसवाँ (विचार ४७३) ३ एक ग्राम, जहाँ भगवान् महावीर का विचरण हुआ था; 'पेढालग्गाममागओ भयवं' (आवम) ४ न. एक उद्यान; 'तओ सामी दढभूमिं गओ, तीसे बाहिं पेढालं नाम उज्जाणं' (आव १) °पुत्त पुं [°पुत्र] १ भारतवर्षं का आठवाँ भावी जिन-देव; 'उदए पेढालपुत्ते य' (सम १५३) २ भगवान् पार्श्वनाथ के संतान में उत्पन्न एक जैन मुनि; 'अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे नियंठे मेयज्जे गोत्तेणं' (सूअ २, ७, ५; ९) ३ भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न एक जैन मुनि (अनु २)
पेढिया :: देखो पीढिआ; 'चत्तारि मणिपीढि- याओ' (ठा ४, २ — पत्र २३०)। २ ग्रन्थ की भूमिका, प्रस्तावना (वसु)
पेढी :: देखो पीढी (जीव ३)।
पेणी :: स्त्री [प्रौणी] हरिणी का एक भेद (पणह १, ४ — पत्र ६८)।
पेदंड :: वि [दे] लुप्त-दण्डक, जुए में जो हार गया हो वह, जिसका दाव चला गया हो वह (मृच्छ ४९)।
पेम :: पुंन [प्रेमन्] प्रेम, अनुराग, प्रीति, स्नेह (उवा; औप; सं ५; सुपा २०४; रयण ४२)।
पेमालुअ :: वि [प्रेमिन्] प्रेमी, अनुरागी (उप ९८६ टी)।
पेम्म :: देखो पेम (हे २, ९८; २५; कुमा; गा १२६; प्रासू ११९)।
पेम्मा :: स्त्री [प्रेमा] छन्द-विशेष (पिंग)।
पेया :: स्त्री [पेया] वाद्य-विशेष, बड़ी काहला (राय ४५)।
पेर :: सक [प्र + ईरय्] १ पठाना, भेजना, प्रेषण करना। २ धक्का लगाना, आघात करना। ३ आदेश करना। ४ किसी कार्यं में जोड़ना — लगाना। ५ पूर्वंपक्ष करना, प्रश्न करना, सिद्धान्त का विरोध करना। ६ गिराना। पेरइ (धर्मंसं ५९०; भवि)। वकृ. पेरंत (कुप्र ७०; पिंग)। कवकृ. पेरिज्जंत (सुपा २५१; महा)। कृ. पेज्ज (राज)
पेरंत :: देखो पज्जंत (हे १, ५८; ९३; प्राप्र; औप; गउड)। °चक्कवाल न [°चक्रवाल] बाह्य परिधि, बाहर का घेराव (पणह १, ३)। °वच्च न [°वर्चस्] मण्डप, तृणादि- निर्मित गृह (राज)।
पेरग :: वि [प्रेरक] प्रेरणा करनेवाला, पूर्वंपक्षी (धर्मंसं ५८७)।
पेरण :: न [दे] १ ऊर्ध्वं स्थान (दे ६, ५९) २ खेल, तमाशा (स ७२३; ७२५)
पेरण :: न [प्रेरण] प्रेरणा (कुप्र ७०)।
पेरणा :: स्त्री [प्रेरणा] ऊपर देखो (सम्मत्त १५७)।
पेरिअ :: वि [प्रेरित] जिसको प्रेरणा की गई हो वह (दे ८, १२; भवि)।
पेरिज्ज :: न [दे] साहाय्य, सहायता, मदद (दे ६, ५८)।
पेरिज्जंत :: देखो पेर = ष्र + ईरय्।
पेरुल्लि :: वि [दे] पिण्डीकृत, पिण्डाकार किया (दे ६, ५४)।
पेलव :: वि [पेलव] १ कोमल, सुकुमार, मृदु (पाअ; से २, २७; अभि २६; औप) २ पतला, कृश। ३ सूक्ष्म, लघु (णाया १, १ — पत्र २५; हे १, २३८)
पेलु :: स्त्री [पेलु] पूणी, रुई की पहल; 'कंतामि ताव पेलुं' (पिंडभा ३५)। °करण न [°करण] पूणी — पूनी बनाने का उपकरण, शलाका आदि (विसे ३३०५)।
पेल्ल :: सक [क्षिप्] फेंकना। पेल्लइ (हे ४, १४३)। कर्मं. पेल्लिज्जइ (उव)। वकृ. पेल्लंत (कुमा)। संकृ. पेल्लिऊण (महा)।
पेल्ल :: देखो पेर = प्र + ईरय्। पेल्लेंइ (प्राकृ ६०)। कवकृ. पेल्लिज्जंत (से ६, २५)। संकृ. पेल्लि (अप), पेल्लिअ (पिंग)। कृ. पेल्लेयव्व (ओधभा १८ टी)।
पेल्ल :: सक [पीडय्] पीलना, दबाना, पीड़ना। पेल्लेसि, पेल्लिसि (स ५७४ टि)।
पेल्ल :: सक [पूरय्] पूरना, भरना। कवकृ. पेल्लिज्जंत (से ६, २५)।
पेल्ल, पेल्लग :: पुंन [दे] बच्चा, शिशु, बालक (उप २१६); 'बीयम्मि पेल्लगाइं' (उप २२० टी)।
पेल्लग :: देखो पेरग (निचू १६)।
पेल्लण :: देखो पेरण (पणह १, ३; गउड)।
पेल्लण :: न [क्षेपण] फेंकना (धर्मं २)।
पेल्लय :: पुं [दे] देखो पेल्ल = (दे) (विपा १, २ — पत्र ३६); 'सपेल्लियं सियालिं' (सुख २, ३३)। पेल्लय देखो पेरग (बृह १)।
पेल्लय :: पुं [पेल्लक] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर विमान में उत्पन्न एक जैन मुनि (अनु २)।
पेल्लव, पेल्लाव :: देखो पेर। पेल्लवइ, पेल्लावइ (प्राकृ ६०)।
पेल्लिअ :: वि [दे. पीडित] पीड़ित (दे ६, ५७); 'बलियदाइपेल्लिओ' (महा)।
पेल्लिअ :: देखो पेरिअ (गा २२१; विपा १, १)।
पेल्लेयव्व :: देखो पेल्ल = प्र + ईरय्।
पेव्वे :: अ. आमन्त्रण-सूचक अव्यय (षड्)।
पेस :: अक [प्र + एषय्] भेजना, पठाना। पेसइ, पेसेइ (भवि; महा)। वकृ. पेसअंत (पि ४९०; रंभा)। संकृ. पेसिअ, पेसिउं (मा ४०; महा)। कृ. पेसइयव्व, पेसिअव्व; पेसेयव्व (सुपा ३००; २७८; ६३०; उप १३६ टी)।
पेस :: देखो पीस। वकृ. पेसयंत (राज)।
पेस :: पुंस्त्री [प्रेष्य] १ कर्मंकर, नौकर, दास, चाकर (सम १९; सूअ १, २, २, ३; उवा) २ वि. भेजने योग्य (हे २, ९२)
पेस :: पुं [दे. पेश] १ सिन्ध देश में होनेवाली एक पुशु-जाति (आचा २, ५, १, ८)
पेस :: वि [दे. पैश] पेश नामक जानवर के चमड़े का बना हुआ (वस्त्र) (आचा २, ५, १, ८)।
पेसण :: न [दे] कार्यं, काज, प्रयोजन (दे ६, ट ५७; भवि; णाया १, ७ — -पत्र ११७; पउम १०३, २९)।
पेसण :: न [प्रेषण] १ पठाना, भेजना। २ नियोजन, व्यापारण (कुमा; गउड) ३ आज्ञा, आदेश (से ३, ५४)
पेसणआरी, पेसणआली :: स्त्री [दे] दूती, दूत-कर्मं करनेवाली स्त्री (दे ६, ५९; षड्)।
पेसाणा :: स्त्री [पेषण] पीसना, पेषण; 'सिलाए डजवगोहूमपेसणाए हेऊए' (उप ५९७ टी)।
पेसल :: वि [पेशल] १ सुन्दर, मनोज्ञ (आचा; गउड) २ मधुर, मञ्जु (पाअ) ३ कोमल (गउड)
पेसल, पेसलेस :: न [दे] सिन्ध देश के पेश नामक पशु के चर्म के सूक्ष्म पक्ष्म से निष्पन्न वस्त्र, 'पेसाणि वा पेसलाणि वा' (२ आचा २, ५, १ — सूत्र १४५), 'पेसाणि वा पेसलेसाणि वा' (३ आचा २, ५, १, ८; (राज)।
पेसव :: सक [प्र + एषय्] भेजवाना। वकृ. पेसवेयव्व (उप १३६ टी)।
पेसवण :: न [प्रेषण] भेजवाना, दूसरे के द्वारा प्रेषण (उवा; पडि)।
पेसविअ :: वि [प्रेषित] भेजवाया हुआ, प्रस्था- पित (पाअ; उप पृ ५८)।
पेसाय :: वि [पैशाच] पिशाच-संबन्धी (बृह २)।
पेसि :: स्त्री [पेशि] देशो पेसी (सुपा ४८७)।
पेसिअ :: वि [प्रेषित] १ भेजा हुआ, प्रहित (गा ११२; भवि; काल) २ प्रेषण (पउम ९, ३५)
पेसिआ :: स्त्री [पेशिका] खण्ड, टुकड़ा, 'अंब- पेसिया ति वा अंबाडगपेसिया ति वा' (अनु ६; आचा २, ७, २, ७; ८; ९)।
पेसिआर :: पुं [प्रेषितकार] नौकर, भृत्य, कर्मंकर (पउम ९, ३५)।
पेसिदवंत :: (शौ) वि [प्रेषितवत्] जिसने भेजा हो वह (पि ५६९)।
पेसी :: स्त्री [पेशी] मांस-खण्ड, मांस-पिण्ड (तंदु ७)। देखो पेसिआ।
पेसुण्ण, पेसुन्न :: न [पैशुन्य] परोक्ष में दोष- कीर्तन, चुगली (औप; सूअ १, १६, २; णाया १, १; भग; सुपा ४२१)।
पेसेयव्व :: देखो पेस = प्र + एषय़्।
पेस्सिदवंत :: देखो पेसिदवंत (पि ५६९)।
पेह :: सक [प्र + ईक्ष्] १ देखना, निरीक्षण करना, ध्यान-पूर्वक देखना। २ चिन्तन करना। पेहइ, पेहए (पि ८७; उव), पेहंति (कुप्र १९२)। भवि. पेहिस्सामि (पि ५३०)। वकृ. पेहंत, पेहमाण (उपपृ १५४; चेइय २५०; पि ३२३)। संकृ. पेहाए, पेहिया (कस; पि ३२३)
पेह :: सक [प्र + ईह्] १ इच्छा करना, चाहना। २ प्रार्थना करना। पेहेइ (दस ९, ४, २)
पेहण :: न [प्रेक्षण] निरीक्षण (पंचा ४, ११)।
पेहा :: स्त्री [प्रेक्षण] १ निरीक्षण (उव; सम ३२) २ कायोत्सर्ग कसा एक दोष, कायोत्सर्गं में बन्दर की तरह ओष्ठ-पुट को हिलाते रहना (पव ५) ३ पर्यालोचन, चिन्तन (आव ४) ४ बुद्धि, मति (उत्त १, २७)
पेहाविय :: वि [प्रेक्षित] दर्शित, दिखलाया हुआ (उप पृ ३८८)।
पेहि :: वि [प्रेक्षिन्] निरीक्षक (आचा; उव)। स्त्री. °णी (पि ३२३)।
पेहिय :: वि [प्रेक्षित] निरीक्षित (महा)।
पेहुण :: न [दे] १ पिच्छ, पँख (दे ६, ५८; पाअ; गा १७३; ७६५; वज्जा ४४; भत्त १४१; गउड) २ मयूर-पिच्छ, मयूर- पंख, शिखण्ड (पणह १, १; २, ५; जं १; णाया १, ३)। देखो पिंहुण।
पोअ :: सक [प्र + वे] पिरोना, गूँथना। पोअंति (गच्छ ३, १८; सूअनि ७४)। वकृ. पोयमाण (स ५१२)। संकृ. पोइऊण (धर्मवि ६७)।
पोअ :: वि [प्रोत] पिराया हुआ (दे १, ७६)।
पोअ :: पुं [पोत] १ जहाज, प्रवहण, नौका (पाअ; सुपा ८८; ३६९) २ बालक, शिशु, बच्चा (दे ६, ८१; पाअ; सुपा ३६९) ३ न. वस्त्र, कपड़ा (ठा ३, १ — पत्र ११४)
पोअ :: पुं [दे] १ धव वृक्ष, वाय, धौं का पेड़। २ छोटा साँप (दे ६, ८१)
पोअइआ :: स्त्री [दे] निद्राकारी लता, लता- विशेष (दे ६, ६३; पाअ)।
पोअंड :: वि [दे] १ भय-रहित, निडर। २ षण्ढ, नामर्दं (दे ६, ६१)
पोअंत :: पुं [दे] शपथ, सौगत (दे ६, ६२)।
पोअण :: न [प्रवयन, प्रोतन] पिरोना, गुम्फन, गूँथना (आवम)।
पोअणपुर :: न [पोतनपुर] नगर-विशेष (सुपा ५०९; भवि)।
पोअणा :: स्त्री [प्रवयना, प्रोतना] पिरोना (उप ३५६)।
पोअय :: वि [पोतज] पोत से उत्पन्न होनेवाला प्राणी — हस्ती आदि (ठा ३, १)।
पोअय :: पुं [पोतक] देंखो पोअ = पोत (उवा; औप)।
पोअलय :: पुं [दे] १ आश्विन मास का एक उत्सव; जिसमें पत्नी के हाथ से लेकर पति अपूप को खाता है। २ एक प्रकार का अपूप — खाद्य-विशेष, पूआ। ३ बाल वसन्त (दे ६, ८१)
पोआई :: स्त्री [पोताकी] १ शकुनि को उत्पन्न करनेवाली विद्या-विशेष। २ शकुनिका, पक्षि- विशेष (विसे २४५३)
पोआउय :: वि [पोतायुज, पोतज] देखो पोअय (पउम १०२, ९७)।
पोआय :: पुं [दे] ग्राम-प्रधान, गाँव का मुखिया (दे ६, ६०)।
पोआल :: पुं [दे] वृषभ, बलीवर्दं (दे ६, ६२)।
पोआल :: [दे. पोतक] बच्चा; शिशु, बालक (ओघ ४४७)।
पोइय :: पुं [दे] १ हलवाई, मिठाई बेचनेवाला। २ खद्योत (दे ६, ६३) ३ निमग्न, डूबा हुआ (ओघ १३६) ४ स्पन्दित (बृह १)
पोइअ :: वि [प्रोत] पिराया हुआ (दे ७, ४४; उप पृ १०९; पाअ)।
पोइअल्लय :: देखो पोइअ = प्रोत (ओघ ५३९ टी)।
पोइआ, पोई :: स्त्री [दे] निद्राकारी लता, वल्ली- विशेष (दे ६, ६३; पणण १ — पत्र ३४)।
पोउआ :: स्त्री [दे] करीष — सूखा गोबर (गोइँठा) का अग्नि (दे ६, ६१)।
पोंग :: पुं [दे] पाक, पकना (स १८०)।
पोंगिल्ल :: वि [दे] पुका हुआ, परिपक्व, परि- पाक-युक्त; कच्छी भाषा में 'पोंगेल'; 'अन्नेवि सइंमहियलनिसीय — णुप्पन्नकिणियपोंगिल्ला। मलिणजरकप्पडोच्छइय — विग्गहा कहबि हिंडंति।।' (स १८०)।
पोंड :: न [दे] फूल, पुष्प; 'एगं सालियपोंड़ं बद्धो आमेलगो होइ' (उत्तनि ३)।
पोंड :: देखो पुंड। °वद्धण न [°वर्धन] नगर- विशेष (महा)। °वद्धणिया स्त्री [°वर्धनिका] जैन मुनि-गण की एक शाखा (कप्प)।
पोंड, पोंडय :: पुं [दे] यूथ का अधिपति (दे ६, ६०)। २ फल (पणह १, ४ — पत्र ७८) ३ अविकसित अवस्थावाला कमल (विसे १४२५) ४ कपास का सूता; 'दव्वं तु पोंडयादी भावे सुत्तमिह सूयगं नाणं' (सूअनि ३)
पोंडरिगिणी :: देखो पुंडरिगिणी (ठा २, ३)।
पोंडरिय :: देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक (स ४३६)।
पोंडरी :: स्त्री [पौण्ड्री, पुण्डरीक] जम्बूद्वीप के मेरु के उत्तर रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८)।
पोंडरीअ :: देखो पुंडरीअ = पुण्डरीक (औप, णाया १, ५; १९; सम ३३; देवेन्द्र ३१८; सूअनि १४६)।
पोंडरीअ, पोंडरीग :: न [पौण्डरीक] १ गणित- विशेष, रज्जु-गणित (सूअनि १५४) २ देखो पुंडरीअ = पौण्डरीक (सूअ २, १, १; सूअनि १४९; १५१)
पोक्क :: सक [व्या + हृ, पत् + कृ] पुका- रना, आह्वान करना। पोक्कइ (हे ४, ७६)।
पोक्क :: वि [दे] आगे स्थूल और उन्नत तथा बीच में निम्न (नासिका); 'पोक्कनासे' (उत्त १२, ६)।
पोक्कण :: पुं [पोक्कण] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उश देश में बसनेवाली म्लेच्छ जाति (पणह १, १)
पोक्कण :: न [व्याहरण, पूत्करण] १ पुकार, आह्वान। २ वि. पुकारनेवाला (कुमा)
पोक्कर :: देखो पुक्कर । पोक्करंत (महा)। वकृ. पोक्करंत (सुपा ३८०)।
पोक्करिय :: वि [पूत्कृत] १ पुकारा हुआ (सुर ६, १६४) २ न. पुकार (दंस ३)
पोक्कार :: देखो पुक्कार = पूत्कार (उप पृ १८५)।
पोक्किअ :: देखो पोक्करिय (उप १०३१ टी)।
पोक्खर :: न [पुष्कर] १ जल, पानी। २ पद्म, कमल। ३ पद्म-कोष। ४ एक तीर्थं, अजमेर-नगर के पास का एक जलाशय — तीर्थ। ५ हाथी का सूँढ का अग्र भाग। ६ वाद्य-भाण्ड। ७ आपाण, दूकान। ८ असि- कोष, तलवार की म्यान। ९ मुख, मुँह। १० कुष्ठ रोग की ओषधि। ११ द्वीप-विशेष। १२ युद्ध, लड़ाई। १३ शर, बाण। १४ आकाश; 'पोक्खरं' (हे १, ११६; २, ४; संक्षि ४) १५ पुं. नाग-विशेष। १६ रोग- विशेष। १७ सारस पक्षी। १८ एक राजा का नाम। १९ पर्वंत-विशेष। २० वरुण- पत्र; 'पोक्खरो' (प्राप्र)। देखो पुक्खर।
पोक्खर :: वि [पौष्कर] १ पुष्कर-सम्बन्धी। ३ पद्माकार रचनावाल; 'पोक्खरं पवहणं' (चारु ७०)
पोक्खरिणी :: स्त्री [पुष्करिणी] १ जलाशय- विशेष, वर्तुंल वापी (णाया १, १ — पत्र ६३) २ पद्मिनी, कमलिनी, पद्म-लता; 'जलेण वा पोक्खरिणीापलासं' (उत्त ३२, ६०) ३ वापी (कुमा) ४ पद्म-समूह। ५ पुष्कर-मूल (हे २, ४) ६ चौकोना जला- शय, पोखरी, वापी (पणह १, १; हे २, ४)
पोक्खल :: देखो पुक्खल (पणण १ — पत्र ३५; आचा २, १, ८, ११)।
पोक्खलच्छिलय, पोक्खलच्छिल्लय :: देखो पुक्खलच्छि- भय (पणण १ — पत्र ३५; राज)।
पोक्खलि :: पुंन [पुष्कलिन्] एक जैन उपा- सक, जिसका दूसरा नाम शतक था (राज)।
पोग्गर, पोग्गल :: पुंन [पुद्गल] १ रूपादि-विशिष्ट द्रव्य, मूर्त्तं द्रव्य, रूपवाला पदार्थं; 'पोग्गला' (भग ८, १; ठा २, ४; ४, ४; ५, ३; ८), 'पोग्गलाइं' (सुज्ज ९; पंच ३, ४६) २ न. मांस (पव २६८; हे १, ११६) °त्थिआय पुं [°स्तिकाय] पुद्गल-स्कन्ध, पुद्गल-राशि (भग; ठा ५, ३)। °परट्ट, °परियट्ट पुं [°परिवर्त] १ समस्त पुद्गल-द्रव्यों के साथ एक-एक परमाणु का संयोग-वियोग। २ समय का उत्कृष्टतम परिमाण-विशेष, अनन्त कालचक्र-परिमित समय (कम्म ५, ८६; भग १२, ४; ठा ३, ४)
पोग्गलि :: वि [पुद्गलिक] पुद्गलवाला, पुद्गल- युक्त (भग ८, १० — पत्र ४२३)।
पोग्गलिय :: वि [पौद्गलिक] पुद्गल-मय, पुद्गल- संबन्धी, पुद्गल का (पिंडभा ३२४)।
पोच्च :: वि [दे] सुकुमार, कोल; गुजराती में 'पोंचुं' (दे ६, ६०)।
पोच्चड :: वि [दे] १ असार, निस्सार (णाया १, ३ — पत्र ९४) २ अतिनिबिड (पणह १, १ — पत्र १४) ३ मलिन (निचू ११)
पोच्छल :: अक [प्रोत् + शल्] उछलना, ऊँचा जाना। वकृ. पोच्छलंत (सुर १३, ४१)।
पोच्छाहण :: न [प्रोत्साहन] उत्तेजम (वेणी १०५)।
पोच्छाहिअ :: वि [प्रोत्साहित] विशेष उत्सा- हित किया हुआ, उत्तेजित (सुर १३, २९)।
पोट्ट :: पुं [पुत्र] लड़का, 'एक्केण चारभड- पोट्टेण' (वव १, टी)।
पोट्ट :: न [दे] पेट, उदर, मराठी में 'पोट' (दे ६, ६०; णाया १, १ — पत्र ६१; ओधभा ७६; गा ८३; १७१; २८५; स ११९; ७३८; उवा; सुख २, १५; सुपा ५४३; प्राकृ ३७; पव १३५; जं २)। °साल पुं [°शाल] एक परिव्राजक का नाम (विसे २४५२; ५५)। °सारणी स्त्री [°सारणी] अतीसार रोग (आव ४)।
पोट्ट, पोट्टल :: न [दे] पोटला, गट्ठर, गठरी; 'कामिणिनियंबबिंबं कंदप्पविलासराय- हाणित्ति। न मुणइ अमेज्झपोट्टं' (सुपा ३५५; दे २, २४; स १००)।
पोट्टलिगा :: स्त्री [दे] पोटली, गठरी (सुख २, १७)।
पोट्टलिय :: वि [दे] पोटली उठानेवाला, गठरी-वाहक (निचू १६)।
पोट्टलिया :: [दे] देखो पोट्टलिगा (उप पृ ३८७; सुर १२, ११; सुख २, १७)।
पोट्टि :: स्त्री [दे] उदर-पेशी (मृच्छ २००)।
पोट्टिल :: पुं [पोट्टिल] १ भारतवर्षं का भावी नववाँ तीर्थंकर — जिन-देव (सम १५३) २ भारतवर्षं के चौथे भावी जिन-देव का पूर्वंभवीय नाम (सम १५४) ३ भगवान् महावीर का व्युत्क्रम से छठवें भव का नाम (सम १०५) ४ एक जैन मुनि, जिसने भगवान् महावीर केो समय में तीर्थंकर-नाम- कर्मं बँधा था (ठा ९) ५ एक जैन मुनि (पउम २०, २१) ६ देव-विशेष (णाया १, १४) ७ देखो पोट्ठिल (राज)
पोट्टिला :: स्त्री [पोट्टिला] व्यक्ति-वाचक नाम, एक स्त्री का नाम (णाया १, १४)।
पोट्टिम :: पुं [पोट्टिस] एक कवि का नाम (कप्पू)।
पोट्ठवई :: स्त्री [प्रौष्ठपदी] १ भाद्रपद मास की पूर्णिमा। २ भादों की अमावास्या (सुज्ज १०, ६)
पोट्ठिल :: पुं [पुष्टिल] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर-विमान में उत्पन्न एक जैन मुनि (अनु)।
पोडइल :: न [दे] तृण-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।
पोढ :: वि [प्रौढ] १ समर्थ (पाअ) २ निपुण, चतुर। ३ प्रगल्भ। ४ प्रबृद्ध, यौलव के बाद की अवस्थावाला (उप पृ ८६; सुपा २२४; रंभा; नाट — मालती १३६)। °वाय पुं [°वाद] प्रतिज्ञा-पूर्वंक प्रत्याख्यान (गा ५२२)
पोढा :: स्त्री [प्रौढा] १ तीस से पचपन वर्षं तक की स्त्री (कुप्र १८५) २ नायिका का एक भेद, श्रृङ्गार रस में काम-कला आदि अच्छी तरह जाननेवाली (प्राकृ १०)
पोढिम :: पुंस्त्री [प्रौढमन्] प्रौढता, प्रौढपन (मोह २)।
पोढी :: स्त्री [प्रौढी] ऊपर देखो (कुप्र ४०७)।
पोणिअ :: वि [दे] पूर्णं (दे ६, २८)।
पोणिआ :: स्त्री [दे] सूते से भरा हुआ तकुवा (दे ६, ६१)।
पोत :: देखो पोअ = पोत (औप; बृह १; णाया १, ८)।
पोत्तणया :: देखो पोअणा (उप पृ ४१२)।
पोत्त :: पुं [पौत्र] पुत्र का पुत्र, पौता (दे २, ७२; श्रा १४)।
पोत्त :: न [पोत्र] प्रवहण, नौका; 'वेलाउलम्मि ओयारियाणि सव्वाणि तेण पोत्ताणि' (उप ५९७ टी)।
पोत्त, पोत्तग :: न [पोत] १ वस्त्र, कपड़ा (श्रा १२; ओघ १६८; कप्पू; स ३३२) २ धोती, कटी-वस्त्र (गच्छ ३, १८; कस; वव ८४; श्रावक ९३; टी; महा) ३ वस्त्र- खण्ड (पिंड ३०८)
पोत्तय :: पुं [दे] फोता, वृषण, अण्डकोश (दे ६, ६२)।
पोत्तिअ :: न [पौतिक] वस्त्र, सूती कपड़ा (ठा ५, ३ — पत्र ३३८; कस २, २९ टि)।
पोत्तिअ :: वि [पोतिक] १ वस्त्र-धारी। २ पुं. वानप्रस्थों का एक भेद (औप)
पोत्तिआ :: स्त्री [पौत्रिका] पुत्र की लड़की (रंभा)।
पोत्तिआ :: स्त्री [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १४७)।
पोत्तिआ, पोत्ती :: स्त्री [पोतिका, पोती] १ धोती, पहनने का वस्त्र, साड़ी (विसे २६०१) २ छोटा वस्त्र, वस्त्र-खण्ड; 'चउ- प्फालयाए पोत्तीए मुहं बंधेत्ता' (णाया १, १ — पत्र ५३; पिंडभा ९), 'मुहपोत्तियाए' (विपा १, १)
पोत्ती :: स्त्री [दे] काच, शीशा (दे ६, ६०)।
पोत्तुल्लया :: देखो पोत्तिआ (णाया १, १८ — पत्र २३५)।
पोत्थ, पोत्थग, पोत्थय :: पुंन [पुस्त, °क] १ वस्त्र, कपड़ा णाया १, १३ — पत्र १७९) २- ३ देखो पुत्थ; 'पोत्थकम्मजक्खा विव निच्चिट्ठा' (वसु; श्रा १२; सुपा २८६; विसे १४२५, बृह ३; प्राप्र; औप)
पोत्था :: स्त्री [प्रोत्था] प्रोत्थान, मूलोत्पत्ति (उत्त २०, १६)।
पोत्थार :: पुं [पुस्तककार] पोथी लिखनेवाला, पोथी बनाने का काम करनेवाला शिल्पी, दफ्तरी, जिल्दसाज (जीव ३)।
पोत्थिया :: स्त्री [पुस्तिका] पोथी, पुस्तक; 'सरस्सइ व्व पोत्थियावलग्गहत्था' (काल)।
पोप्पय :: पुंन [दे] हस्त-परिभर्षंण, हाथ फिराना (उप पृ ३५३)।
पोप्फल :: न [पूगफल] सुपारी (हे १, १७०; कुमा)।
पोप्फली :: स्त्री [पूगफली] सुपारी का पेड़ (हे १, १७०; कुमा)।
पोम :: देखो पउम; 'जहा पोमं जले जायं' (उत्त २५, २७; सुख २५, २७; पउम ५३, ७९)।
पोमर :: न [दे] कुसुम्भ-रक्त वस्त्र (दे ६, ६३)।
पोमाड :: पुं [दे. पद्माट] पमाड, पमार, चकवड़ का पेड़ (स १४४)। देखो पउमाड।
पोमावई :: स्त्री [पद्मावती] छन्द-विशेष (पिंग)।
पोमिणी :: देखो पउमिणी (सुपा ६४६; सम्मत्त १७१)।
पोम्म :: देखो पउम (हे १, ६१; १, २, ११२; गा ७५; कुमा; प्राकृ २८; कप्पू; पि १६६)।
पोम्मा :: देखो पउमा (प्राकृ २८; गा ४७१; पि १६६)।
पोम्ह :: देखो पम्ह = पक्ष्मन्; 'जह उ किर णालिगाए धणियं मिदुख्यपोम्हभरियाए' (धर्मंसम ९८०)।
पोर :: पुं [पूतर] जल में होनेवाला क्षुद्र जन्तु (हे १, १७०; कुमा)।
पोर :: वि [पौर] पुर में — नगर में उत्पन्न, नागरिक (प्राकृ ३५)।
पोर :: देखो पुर = पुरस्। °कव्व न [°काव्य] शीघ्रकवित्व (राज)।
पोर :: पुंन [दे. पर्वन्] ग्रंथि, गाँठ (ठा ४, १; अनु)। °बीय वि [°बीज] पर्वं-बीज से उगनेवाली वनस्पति, इक्षु आदि (ठा ४, १)।
पोरग :: पुंन [पर्वक] वनस्पति का एक भेद, पर्वंवाली वनस्पति (पणण १ — पत्र ३३)।
पोरच्छ :: पुं [दे] दुर्जंन, खल (दे ६, ६२ पाअ)।
पोरच्छिम :: देखो पुरच्छिम (सुपा ४१)।
पोरत्थ :: वि [दे] मत्सरी, ईर्ष्यालु, द्वेषी (षड्)।
पोरय :: न [दे] क्षेत्र (दे ६, २६)।
पोरव :: पुं [पौरव] राजा पुरु की संतान (अभि ९५)।
पोरवाड :: पुं [पौरवाट] एक जैन श्रावक- कुल (ती २)।
पोराण :: देखो पुराण (पणण २८; औप; भग; हे ४, २८७; उव; गा ३४)।
पोराण :: वि [पौराण] १ पुराण-सम्बन्धी (राय) २ पुराण शास्त्र का ज्ञाता (राज)
पोराणिय :: वि [पौराणिक] पुराण-शास्त्र- संबन्धी (स ३४४)।
पोरिस :: न [पौरुष] १ पुरुषत्व, पुरुषार्थं (प्रासू १७) २ पराक्रम (कुमा)
पोरिस :: वि [पौरुषेय] पुरुष-जन्य, पुरुष- प्रणीत (धर्मंसं ८९२ टी)।
पोरिसिमंडल :: न [पौरुषीमण्डल] एक जैन शास्त्र (णंदि २०२)।
पोरिसिय :: देखो पोरिसीय; 'अत्थाहमतारम- पोरिसियंसि उदगंसि अप्पाणं मुयति' (णाया १, १४ — पत्र १९०)।
पोरिसी :: स्त्री [पौरुषी] १ पुरुष-शरीर-प्रमाण छाया। २ जो समय में पुरुष-परिमाण छाया हो वह काल, प्रहर (उवा; विपा २, १; आचा; कप्प, पव ४) ३ प्रथम प्रहर तक भोजन आदि का त्याग, प्रत्याख्यान-विशेष, तप-विशेष (पव ४; संबोध ५७)
पोरसीय :: वि [पौरुषिक] पुरुष-प्रमाण, पुरुष-परिमित; 'कुंभी महंताहियपोरिसीया' (सूअ १, ५, १, २४)।
पोरुस :: पुं [पुरुष] अत्यन्त बृद्ध पुरुष (सूअ १, ७, १०)।
पोरुस :: देखो पोरिस (स २०४; उप ७२८ टी; महा)।
पोरेकच्च, पोरेगच्च :: न [पौरस्कृत्य] पुरस्कार, कला- विशेष (औप; राय; और १०७ टि)।
पोरेवच्च :: न [पौरेवृत्य] पुरोवर्त्तित्व, अग्रेसरता (औप; सम ८६; विपा १, १; कप्प)।
पोलंड :: सक [प्रोत + लङ्घ्] विशेष उल्लंघन करना। पोलंडेइ (णाया १, १ — पत्र ६१)।
पोलच्चा :: स्त्री [दे] खेटित भूमि, कृष्ट जमीन (दे ६, ६३)।
पोलास :: न [पोलास] १ नगर-विशेष, पोलासपुर (उवा) २ उद्यान-विशेष (राज)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (उवा; अंत)
पोलासाढ :: न [पोलाषाढ] श्वेतविका नगरी का एक चैत्य (विसे २३५७)।
पोलिअ :: पुं [दे] सौनिक, कसाई (दे ६, ६२)।
पोलिआ :: स्त्री [दे. पौलिका] खाद्य-विशेष, पूरी (?); 'सुणओ इव पोलियासत्तो' (उप ७२८ टी; राज)।
पोली :: देखो पओली; 'बद्धेसु पोलिदारेसु, गवेसंतो अ धुत्तयं' (श्रा १२; उप पृ ८४; धर्मंवि ७७)।
पोल्ल :: वि [दे] पोला, शुषिर, खाली, रिक्त; 'पोल्लो व्व मुट्ठी जह से असारे' (उत्त २०, ४२; णाया १, १ — पत्र ६३; पव ८१), 'वंका कीडक्खइया चित्तलया पोल्लया य दड्ढा य' (महा)।
पोल्लड :: वि [दे] ऊपर देखो, 'वंका कीडक्खइया चित्तलया पोल्लडा य दड्ढा य' (ओघ ७३५, विचार ३३६)।
पोल्लर :: न [दे] तप-विशेष, निर्विकृतिक तप (संबोध ५८)।
पोस :: अक [पुष्] पुष्ट होना। पोसइ (धात्वा १४५; भवि)।
पोस :: सक [पोषय्] १ पुष्ट करना। २ पालन करना। पोसेइ (पंचा १०, १४); 'मायरं पियरं पोस' (सूअ १, ३, २, ४), पोसाहि (सूअ १, २, १, १९)। कवकृ. पोसिज्जंत (गा १३५)
पोस :: वि [पोष] १ पोषक, पुष्टि-कारक; 'अभिक्खणं पोसवत्थं परिहिंति' (सूअ १, ४, १, ३) २ पुं. पोषण, पुष्टि (संबोध ३९)
पोस :: पुं [पोस] १ अपान-देश, गुदा (पणह १, ४ — पत्र ७८; ओघ ५५६; औप) २ योनि (निचू ६) ३ लिंग, उपस्थ; 'णवसो- तपरिस्सिवा बोंदी पणणत्ता, तं जहा; दो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुहं, पोसे, पाऊं' (ठा ९ — पत्र ४५०)
पोस :: पुं [पौष] पौष मास (सम ३५)।
पोसग :: वि [पोषक] १ पुष्टि-कारक। २ पालन-कर्ता (पणह १, २)
पोसण :: न [पोषण] १ पुष्टि (पणह १, २) २ पालन। ३ वि. पोषण-कर्ता, 'लोग परं पि जहासिपोसणो' (सूअ १, २, १, १९)
पोसण :: न [पोसन] अपान, गुदा (जं ३)।
पोसणया :: स्त्री [पोषणा] १ पोषण, पुष्टि। २ भरण, पालन (उवा)
पोसय :: देखो पोस = पोस; 'पोसए त्ति' (ठा ९ टी — पत्र ४५०; बृह ४)।
पोसय :: देखो पोसग (राज)।
पोसह :: पुं [पोषध, पौषध] १ अष्टमी, चतुर्दंशी आदि पर्वतिथि में करने योग्य जैन श्रावक का व्रत-विशेष, आहार-आदि के त्याग- पूर्वक किया जाता अनुष्ठान-विशेष (सम १९; उवा; औप; महा, सुपा ६१९; ६२०) २ पर्व-दिवस — अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वं- तिथि; 'पोसहसद्दो रूढीए एत्थ पव्वाणुवायओ भणिओ' (सुपा ६१९)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] जैन श्रावक को करने योग्य अनुष्ठान-विशेष, व्रत-विशेष (पुंचा १०, ३)। °वय न [°व्रत] वही पूर्वोक्त अर्थं (पडि)। °साला स्त्री [°शाला] पौषध-व्रत करने का स्थान (णाया १, १ — पत्र ३१; अंत; महा)। °ववास पुं [°पवास] पर्वदिन में उप- वास-पूर्वक किया जाता जैन श्रावक का अनु- ष्ठान-विशेष, जैन श्रावक का ग्यारहवाँ व्रत (औप; सुपा ६१९)
पोसहिय :: वि [पौषधिक] जिसने पोषध- व्रत किया हो, पौषध करनेवाला (णाया १, १ — पत्र ३०; सुपा ६१९; धर्मंवि २७)।
पोसिअ :: वि [दे] दुःस्थ, दरिद्र, दुःखी (दे ६, ६१)।
पोसिअ :: वि [पुष्ट] पोषण-युक्त (भवि)।
पोसिअ :: वि [पोषित] १ पुष्ट किया हुआ। २ पालित (उत्त २७, १४)
पोसिद :: (शौ) वि [प्रोषित] प्रवास — विदेश में गया हुआ। °भत्तुआ स्त्री [°भर्तृका] जिसका पति प्रवास — परदेश में गया हो वह स्त्री (स्वप्न १३४)।
पोसी :: स्त्री [पौषी] १ पौष मास की पूर्णिमा। २ पौष मास की अमावास (सुज्ज १०, ६; इक)
पोह :: पुं [दे] बैल आदि की विष्ठा का ढेर, कच्छी भाषा में 'पोह' (पिंड २४५)।
पोह :: पुं [प्रोथ] अश्व के मुख का प्रान्त भाग (गउड)।
पोहण :: पुं [दे] छोटी मछली (दे ६, ६२)।
पोहत्त :: न [पुथुत्व] चौड़ाई (भग)।
पोहत्त :: देखो पुहत्त (पि ७८)।
पोहत्तिय :: वि [पार्थक्त्विक] पृथक्त्व-संबन्धी (पणण २२ — पत्र ६३९; ६४०; २३ — पत्र ६६४)।
पोहल :: देखो पोप्फल (षड्)।
°प्प :: देखो प = प्र; 'विप्पोसहिपत्ताणं' (संति २; गउड)।
°प्पआस :: देखो पयास = प्रयास (अभि ११७)।
°प्पउत्त :: देखो पउत्त = प्रवृत्त (मा ३)।
°प्पच्चअ :: देखो पच्चय (अभि १७६)।
°प्पडव :: (मा) अक [प्र + तप्] गरम होना। प्पडिवदि (पि २१९)।
°प्पडिआर :: देखो पडिआर = प्रतिकार (मा ४३)।
°प्पडिहा :: देखो पडिहा = प्रतिभा (कुमा)।
°प्पणइ :: देखो पणइ = प्रणयिंन् (कुमा)।
°प्पणाम :: देखो पणाम = प्रणाम (हे ३, १०५)।
°प्पणास :: देखो पणास = प्रणाश (सुपा ६५७)।
°प्पणा :: देखो पण्णा = प्रज्ञा (कुमा)।
°प्पत्थाण :: देखो पत्थाण (अभि ८१)।
°प्पदेस :: देखो पदेस (नाट — विक्र ४)।
°प्पफुरिद :: (शौ) देखो पप्फुरिअ (नाट — मालती ५४)।
°प्पबंध :: देखो पबंध (रंभा)।
°प्पभिदि :: देखो °पभिइ (रंभा)।
°प्पभूद :: (शौ) देखो पभूय (नाट — वेणी ३६)।
°प्पमत्त :: देखो पमत्त (अभि १८५)।
°प्पमाण :: देखो पमाण (पि ३६६ ए)।
°प्पमुक्क :: देखो पमुक्क (नाट — उत्तर ५६)।
°प्पमुह :: देखो पमुह (गउड)।
°प्पयर :: देखो पयर (कुमा)।
°प्पयाव :: देखो पयाव (कुमा)।
°प्पयास :: देखो पयास = प्रकाश (सुपा ६५७)।
°प्पलवि :: देखो पलावि (अभि ४६)।
°प्पवत्तण :: देखो पवत्तण; 'अजिअजिण सुह- प्पवत्तणं' (अजि ४)।
°प्पवह :: देखो पवह (कुमा)।
°प्पवेस :: देखो पवेस (रंभा)।
°प्पवेसि :: देखो पवेसि (अभि १७५)।
°प्पसर :: देखो पसर = प्र +सृ। वकृ. प्पंसरंत (रंभा)।
°प्पसर :: देखो पसर = प्रसर।
°प्पसव :: देखो पसव = (नाट — मालवि ३७)।
°प्पसाय :: देखो पसाय = प्रसाद (रंभा)।
°प्पसुत्त :: देखो पसुत्त (रंभा)।
°प्पसूद :: (शौ) देखो पसूअ = प्रसुत (आभि १४०)।
°प्पहर :: देखो पहर =प्रहार (से २, ४; पि २६७ ए)।
°प्पहा :: देखो पहा (कुमा)।
°प्पहाण :: देखो पहाण (रंभा)।
°प्पहाय :: देखो पहाय = प्रभाव; 'प्पहाउ' (रंभा)।
°प्पहार :: देखो पहार (रंभा)।
°प्पहाव :: देखो पहाव (अभि ११९)।
°प्पहु :: देखो पहु (रंभा)।
°प्पारंभ :: देखो पारंभ (रंभा)।
°प्पिअ :: देखो पिअ = प्रिय (अभि ११८; मा १८)।
°प्पिआ :: देखो पिआ (कुमा)।
°प्पिव :: देखो इव (प्राकृ २६)।
°प्पेम :: देखो पेम (पि ४०४)।
°प्पम्म :: देखो पेम्म (कुमा)।
°प्पोढ :: देखो पोढ (रंभा)।
°प्फंस :: देखो फंस = स्पर्शं (काप्र ७४३; गा ४६२; ५५६)।
°प्फणा :: रेखो फणा (सुपा ५३५)।
°प्फद्धा :: देखो फद्धा (कुमा)।
°प्फल :: देखो फल (पि २००)।
°प्फाल :: सक [स्फालय्] १ आघात करना। २ पछाड़ना। प्फालउ (पिंग)
°प्फालण :: न [स्फालन] आघात (गउड; गा ५४९)।
°प्फुड :: देखो फुड (कुमा; रंभा)।
°प्फोडण :: देखो फोडण (गा ३८१)।
प्रस्स :: (अप) देखो पस्स = दृश्। प्रस्सदि (हे ४, ३९३)।
प्राइम्व, प्राइव, प्राउ :: (अप) देखो पाय = प्रायस् (हे ४, ४१४; कुमा)।
प्रिय :: (अप) देखो पिअ = प्रिय (हे ४, ३९८; कुमा)।
प्रेक्किअ :: न [दे] वृष रटित, बैल की चिल्लाहट (षड्)।
प्रेयंड :: वि [दे] धूर्त्तं, ठग (दे १, ४)।
फ :: पुं [फ] ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष (प्राप्र)।
फंद :: अक [स्पन्द्] थोड़ा हिलना, फरकना। फंदइ, फंदंति (हे ४, १२७; उत्त १४, ४५)। वकृ. फंदंत, फंदमाण (सूअ १, ४, १, ९; ठा ७ — पत्र ३८३; कप्प)।
फंद :: पुं [स्पन्द] किञ्चित् चलन (षड्; सण)।
फंदण :: न [स्पन्दन] ऊपर देखो (विसे १८४७; हे २, ५३; प्राप्र)।
फंदणा :: स्त्री [स्पन्दना] ऊपर देखो (सूअनि ८ टी)।
फंदिअ :: वि [स्पन्दिन्] १ कुछ हिला हुआ, फरका हुआ (पाअ) २ हिलाया हुआ, ईषत् चालित (जीव ३)
फंफ :: (अप) अक [उद् + गम्] उछलना। फंफाइ (पिंग १८४, ५)।
फंफसय :: पुं [दे] लता-भेद, वल्ली-विशेष (दे ६, ८३)।
फंफाइ :: (अप) वि [कम्पायित, कम्पित] कँपाया हुआ, कम्प-प्राप्त (पिंग)।
फंस :: अक [विसम् + वद्] असत्य प्रमाणित होना, प्रमाण-विरुद्ध होना, अप्रमाण साबित होना। फंसइ (हे ४, १२९)। प्रयो., भूका. फंसाविही (कुमा)।
फंस :: सक [स्पृश्] छूना। फंसइ, फंसेइ (हे ४, १८२; प्राकृ २७)। कर्मं. फंसिज्जइ (कुमा)।
फंस :: पुं [स्पर्श्] स्पर्शं, छूना (पाअ; प्राप्र; प्राकृ २७; गा २६९)।
फंसण :: न [स्पर्शन्] छूना, स्पर्शं करना (उफ ३३० टी; धर्मंवि ४३, मोह २९)।
फंसण :: वि [पांसन] अपसद, अधम; 'कुल- फंसणो' (सुख २, ९; स १९८; भवि)।
फंसण :: वि [दे] १ युक्त, संयत। २ मलिन, मैला (दे ६, ८७)
फंसुल :: वि [दे] मुक्त, त्यक्त (दे ६, ८२)।
फंसुली :: स्त्री [दे] नवमालिका, पुष्प-प्रधान वृक्ष-विशेष (दे ६, ८२)।
फक्किया :: स्त्री [फक्किका] ग्रन्थ का विषम स्थान, कठिन स्थान (सुर १६, २४७)।
फग्गु :: वि [फल्गु] १ असार, निरर्थंक, तुच्छ (सुर ८, ३; संबोध १६; गा ३६९ अ) २ स्त्री. भगवान् अजितनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)। °मित्त पुं [°मित्र] स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (कप्प)। °रक्खिय पुं [°रक्षित] एक जैन मुनि (आव १)। °सिरी स्त्री [°श्री] इस अवसर्पिणी काल के पंचम आरे में होनेवाली अन्तिम जैन साध्वी (विचार ५३४)
फग्गु :: पुं [दे. फल्गु] वसन्त का उत्सव, फगुआ (दे ६, ८२)।
फग्गुण :: पुं [फाल्गुन] १ मास-विशेष, फागुन का महिना (पाअ; कप्प) २ अर्जुन, मध्यम पण्डुपुत्र (वज्जा १३०)
फागुणी :: स्त्री [फाल्गुनी] १ फागुन मास की पूर्णिमा (इक; सुज्ज १०, ६) २ फागुन मास की अमावस्या (सुज्ज १०, ६) ३ एक गृह- पति की स्त्री (उवा)
फग्गुणी :: स्त्री [फल्गुनी] नक्षत्र-विशेष (ठा २, ३)।
फट्ट :: अक [स्फट्] फटना, टूटना। फट्टइ (भवि)।
फड :: सक [स्फट्] १ खोदना। २ शोधना। वकृ. 'गतं फडमाणीओ' (सुपा ६१३)। हेकृ. फडिउं (सुपा ६१३)
फड :: न [दे] साँप का सर्व शरीर (दे ६, ८६)।
फड :: पुंन [दे. फट] साँप की फणा (दे ६, ८६; कुप्र ४७२)।
फडही :: [दे] देखो फलही (गा ५५० अ)।
फडा :: स्त्री [फटा] साँप की फन, सर्पं-फणा (णाया १, ९; पउम ५२, ५; पाअ; औप)। °ल वि [°वत्] फनवाला (हे २, १५९; चंड)।
फडिअ :: वि [स्फटित] खोदा हुआ, 'तो थीवे- सघरेहिं नरेहिं फडिया झडत्ति मा गत्ता' (सुपा ६१३)।
फड़िअ, फडिग :: देखो फलिह = स्फटिक (नाट — रत्ना ८३); 'फ़डिगपाहाणनिभा' (निटू ७)।
फडिल्ल :: देखो फडा-ल (चंड)।
फडिह :: पुं [परिघ] १ अर्गंला, आगल (से १३, ३८) २ कुठार (से ५, ५४)
फडिहा :: देखो फलिहा = परिखा (से १२, ७५)।
फड्ड, फड्डग, फड,्ड, फड्डुग :: पुंन [दे. स्पर्धं, °क] १ अंश, भाग, निस्सा, गुजराती में 'फाडिउं'; 'कम्मियकद्दमिस्सा चुल्ली उक्खा य फड्डगजुया उ' (पिंड २५३) २ संपूर्ण गण के अधिष्ठाता के वशवर्त्ती गण का एक लघुतर हिस्सा, समुदाय का एक अति छोटा विभाग जो संपूर्णं समुदाय के अध्यक्ष के अधीन हो; 'गच्छागच्छिं गुम्मागुम्मिं फड्डाफड्डिं' (औप; बृह १) ३ द्वार आदि का छोटा छिद्र, विवर। ४ अवधिज्ञान का निर्गंम-स्थान; 'फड्डा य असंखेज्जा', फड्डा य आणुगामी' (विसे ७३८; ७३९) ५ समुदाय; 'तत्थ पव्वइयगदा फड्डगेहिं एंति' (आवम; आचू १) ६ समुदाय-विशेष, वर्गंणा-समुदाय; 'नेहप्पच्चय- फड्डगमेगं अविभागवग्गणा णंता' (कम्मप २८; ४४; पंच ३, २८; ५, १८३; १८४; जीवस ७६); 'तं इगिफड्डुं संते, ' 'तासि खलु फड् डुगाइं तु' (पंच ५, १७९; १७१)। °वइ पुं [°पति] गण के अवान्तर विभाग का नायक (बृह १)
फण :: पुं [फण] फन, साँप की फणा (से ६, ५५; पाअ; गा २४०; सुपा १; प्रासू ५१)।
फणग :: पुं [दे. फनक] कंघा, केश सवाँरने का उपकरण (उत्त २२, ३०)।
फणज्जुय :: पुं [दे] वनस्पति-विशेष, 'तुलसी कणह-ओराले फणज्जुए अजए य भूयणए' (पणण १ — पत्र ३४)।
फणस :: पुं [पनस] कटहर का पेड़ (पणण १; हे १, २३२; प्राप्र)।
फणा :: स्त्री [फणा] फन (सुर २, २३६)।
फणि :: पुं [फणिन्] १ साँप, सर्पं, नाग (उप ३५७ टी; पाअ; सुपा ५५६; महा; कुमा) २ दो कला या एक गुरु अक्षर की संज्ञा (पिंग) ३ प्राकृत-पिंगल का कर्ता, पिंगला- चार्यं (पिंग) °चिंध पुं [°चिह्न] भगवान् पार्श्वंनाथ (कुमा)। °पहु पुं [°प्रभु] १ नागकुमार देवों का एक स्वामी, धरणेन्द्र (ती ३) २ शेष नाग (धर्मवि ५७) °राय पुं [°राज] १ शेष नाग (कुप्र २७२) २ पिंगल-कर्ता (पिंग) °लआ स्त्री [°लता] नागलता, वल्ली-विशेष, (कप्पू)। °वइ पुं [°पति] १ इन्द्र-विशेष, धरणेन्द्र (सुपा ३१) २ नाग-राज (मोह २९) ३ पिंगलकार (पिंग)। °सेहर पुं [°शेखर] प्राकृत-पिंगल का कर्ता (पिंग)
फणिंद :: पुं [फणीन्द्र] १ नाग-राज, शेष नाग (प्रासू ११३) २ पिंगलकार (पिंग)
फणिल्ल :: सक [चोरय्] चोरी करना। फणिल्लइ (धात्वा १४६)।
फणिह :: पुं [दे. फणिह] कंधा, केश सवाँरने का उपकरण (सूअ १, ४, २, ११)।
फणीसर :: पुं [फणीश्वर] देखो फणि-वइ (पिंग)।
फणुज्जय :: देखो फणज्जुय (राज)।
फद्ध :: पुं [स्पर्ध] स्पर्धा, हिर्सं (कुमा)।
फद्धा :: स्त्री [स्पर्धा] ऊपर देखो (दे ८, १३; कुमा ३, १८)।
फद्धि :: वि [स्पर्धिन्] स्पर्धा करनेवाला (प्राकृ २३)।
फर, फरअ :: पुं [दे. फल, °क] १ काष्ठ आदि का तख्ता। २ ढाल। (दे १, ७६; ६, ८२; कप्पू; सुर २, ३१)। देखो फल, फलग।
फरअ :: पुंन [दे. स्फरक] अस्त्र-विशेष, 'फरएहिं छाइऊणं तेवि हु गिणहंति जीवंतं' (धर्मंवि ८०)।
फरक्किद :: वि [दे] फरका हुआ, हिला हुआ, कम्पित (कप्पू)।
फरस :: देखो फरिस = स्पर्शं (रंभा; नाट)।
फरसु :: पुं [परशु] कुठार, कुल्हाड़ा, फरसा (भवि; पि २०४)। °राम पुं [°राम] ब्राह्मण- विशेष, जमदग्नि ऋषि का पुत्र (भत्त १५३)।
फरहर :: अक [फरफराय्] फरफर आवाज करना। वकृ. फरहरंत (भवि)।
फरित :: देखो फलिह = स्फटिक (इक)।
फरिस :: सक [स्पृश्] छूना। फरिसइ (षड्); फरिसइ (प्राकृ २७)। कर्मं. फरि- सिज्जइ (कुमा)। कवकृ. फरिसिज्जंत (धर्मंवि १३६)।
फरिस, फरिसग :: पुंन [स्पर्श, °क] स्पर्श, छूना (आचा; पणह १, १; गा १३२; प्राप्र; पाअ; कप्प); 'न य कीरइ तणुफरिसं' (गच्छ २, ४४)।
फरिसण :: न [स्पर्शन] इन्द्रिय-विशेष, त्वगि- न्द्रिय (कुप्र २२४)।
फरिसिय :: वि [स्पष्ट] छुआ हुआ (कुप्र १९; ४२)।
फरिहा :: देखो फलिहा = परिखा (णाया १, १२)।
फरुस :: वि [परुष] १ कर्कंश, कठिन (उवा; पाअ; हे १, २३२; प्राप्र) २ न. कुवचन, निष्ठुर वाक्य, 'ण यावि किंची फरुसं वदेज्जा' (सूअ १, १४, ७; २१)
फरुस, फरुसग :: पुं [दे. परुष, °क] कुम्भकार, कुम्हार, कोहाँर, कुँभार; 'पोग्गलमो- यगफरुसगदंते' (बृह ४)। °साला स्त्री [°शाला] कुंभकार-गृह (बृह ३)।
फरुसिया :: स्त्री [परुषता, पारुष्य] कर्कंशता, निष्ठुरता (आचा)।
फल :: अक [फल्] फलना, फलान्वित होना। फलइ (गा १७; ८९४), फलंति (सिरि १२८२)। वकृ. फलंत (से ७, ५९)।
फल :: पुंन [फल] १ वृक्षादि का शस्य (आचा; कप्प; कुमा; ठा ९; जी १०) २ लाभ; 'पुच्छइ ते सुमिणाणं एएसिं किमिह मह फलो होइ' (उप ९८६ टी) ३ कार्यं; 'हेउफलभा- वओ होंति' (पंचव १; धर्मं १) ४ इष्टानिष्ट- कृत कर्मं का शुभ या अशुभ फल — परिणाम (सम ७२; हे ४, ३३५) ५ उद्देश्य। ६ प्रयोजन। ७ त्रिफला। ८ जायफल। ९ बाण का अग्र भाग। १० फाल। ११ दान। १२ मुष्क, अण्डकोष। १३ ढाल। १४ कक्कोल, गन्ध द्रव्य-विशेष (हे १, २३) १५ अग्र भाग; 'अदु वा मुट्ठिणा अद्रु कुताइफलेणं' (आचा १, ९, ३, १०) °मंत, °व वि [°वत] फळवाला (णाया १, ४; पंचा ४)। °वडिंढय, वद्धिय न [°वर्द्धिक] १ नगर-विशेष, फलोधि-नामक मरुदेशीय नगर। २ वहाँ का एक जैन मन्दिर (ती ५२)
फलअ, फलग :: पुंन [फलक] १ काष्ठ आदि का तख्ता (आचा; गा ६५६; तंदु २९; सुर १०, १९१; औप) २ जुए का एक उपकरण (औप; धण ३२) ३ ढाल; 'भरिएहिं फलएहिं' (विपा १, ३; कुमा; सार्धं १०१) ४ देखो फल (आचा)। °सज्जा स्त्री [°शय्या] काष्ठ का तख्ता जिसपर सोया जाय (भग)
फलण :: न [फलन] फलना (सुपा ६)।
फलइ, फलहग :: पुंन [फलह, °क] फलक, काठ आदि का तख्ता; 'अस्संजए भिक्खु- पडिमाए पीढं वा फलहगं वा णिस्सेणिं वा उदूहलं वा आहट्टु उस्सविय दुरुहेज्जा' (आचा २, १, ६, १), 'भूमिसेज्जा फलह- सेज्जा' (औप), 'घरफलहे' (दे १, ८; पि २०६), 'पेक्खइ मन्दिराइँ फलहद्धुग्धाडिय- जालगवक्खाइ', 'अह फलहंतरेण दरिसिय- गुज्झंतरदेसइ' (भवि); 'पिहुपत्तासमयसं गुणनियरनिबद्धफलहसंघायं। संजमियसयलजोगं बोहित्थं मुणिवरसरिच्छं' (सुर १३, ३९)।
फलहिआ, फलही :: स्त्री [फलहिका, फलही] काठ आदि का तख्ता; 'सूरिए अत्थमिए फलहिअं घडेउमाढवइ', 'इत्थ पहाणफलहो चिट्ठइ' (ती ११), 'कलावईए रूवं सिग्धं आलिहसु चित्तफलहीए' (सुर १, १५१)।
फलही :: स्त्री [दे] १ कर्पास, कपास (दे ६, ८२; गा १६५, ३५९) २ कपास की लता; 'दरफुडिअवेंटभारोणआइ हसिअं व फलहीए' (गा ३६०)
फलाव :: सक [फलाय्] फलवान् बनाना, सफल करना; 'तत्तोवि अ घणणतमा निअय- फलेणं फलावंति' (रत्न २९)।
फलावह :: वि [फलावह] फलप्रद, फल को धारण करनेवाली (पउम १४, ४४)।
फलासव :: पुं [फलासव] मद्य-विशेष (पणण १७)।
फलि :: पुं [दे] १ लिंग, चिह्न। २ वृषभ, वैल (दे ६, ८६)
फलिअ :: वि [फलित] १ विकसित, 'फुडिअं फलिअं च दलिअमुद्दरिअं' (पाअ) २ फल - युक्त, जिसको फल हुआ हो वह (णाया १, ११)
फलिअ :: न [दे] वायन, बायान, भोजन आदि का बाँटा जाता उपहार (ठा ३, ३ — पत्र १४७)।
फलिआरी :: स्त्री [दे] दूर्वा, कुश तृण (दे ६, ८३)।
फलिणी :: स्त्री [फलिनी] प्रियंगु-वृक्ष (दे १, ३२; ६, ४९; पाअ, कुमा; गा ९६३)।
फलिह :: पुं [परिध] १ अर्गला, आगल; 'अग्गला फलिहो' (पाअ; औप), 'ऊसिय- फलिहा' (भग २, ५ — पत्र १३४) २ अस्त्र-विशेष, लोहे का मुद्गर आदि अस्त्र। ३ गृह, घर। ४ काच-घट। ५ ज्योतिष-शास्त्र- प्रसिद्ध एक योग (हे १, २३२; प्राप्र)
फलिह :: पुं [स्फटिक] १ मणि-विशेष, स्फटिक मणि (जी ३; हे १, १९७; कप्पू) २ एक विमानावास, देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३२; इक) ३ रत्नप्रभा पृथिवी का एक स्फटिक- मय काण्ड (ठा १०) ४ गन्धमादन पर्वंतच का एक कूट (इक) ५ कुण्डल पर्वंत का एक कूट। ६ रुचक पर्वंत का एक शिखर (राज)। °गिरि पुं [°गिरि] कैलास पर्वंत (पाअ)
फलिह :: पुं [फलिह] फलक, काठ आदि का तख्ता; 'अवेसिणो फलिहा' (पाअ), 'नाणो- वगरणभूयाणं कवलियाफलिहपुत्थियाईणं' (आप ८)।
फलिह :: पुंन [स्फटिक] आकाश (भग २०, २)।
फलिह :: न [दे] कपास का टेंटा, टेंट या ढेढ़ी (अणु ३५ टी)।
फलिहंस :: पुं [फलिहंसक] वृक्ष-विशेष (दे ४, १२)।
फलिहा :: स्त्री [परिखा] खाई, किले या नगर के चारों ओर की नहर (औप; हे १, २३२; कुमा)।
फलिहि :: देखो परिहि (प्राकृ १५)।
फलिहि :: देखो फलही=दे (अणु ३५)।
फली :: स्त्री [फली] काठ आदि की छोटी तख्ती; 'तत्तो चंदणफलीउ वणियहट्टम्मि विक्किउं कहवि' (सुपा ३८५)।
फलोवय, फलोवा° :: वि [फलोपग] फल-प्राप्त, फल- सहित (ठा ३, १ पत्र — ११३)।
फल्ल :: वि [फल्य] सूते का वस्त्र, सूती कपड़ा (बृह १)।
फब्बीह :: सक [लभ्] यथेष्ट लाभ प्राप्त करना, गुजराती में 'फाववु'। फव्वीहामो (बृह १)। फव्व (दश° अगस्त्य° सू° ३०३)।
फसल :: वि [दे] १ सार, चितकबरा; 'फसलं सबलं सारं किम्मीरं चित्तलं च बोगिल्लं' (पाअ; दे ६, ८७) २ स्थासक (दे ६, ८७)
फसलाणिअ, फसलिअ :: वि [दे] कृत-विभूष, जिसने विभूषा की हो वह, श्रृङ्गारित (दे ६, ८३); 'फसलियाणि कुंकुमराएण' (स ३९०)।
फसुल :: वि [दे] मुक्त (दे ६, ८२)।
फाइ :: स्त्री [स्फाति] वृद्धि (ओघ ४७)।
फाईकय :: वि [स्फीतीकृत] १ फैलाया हुआ। २ प्रसिद्ध किया हुआ; 'वइसेसियं पणीयं फाईकयमणणमणणेहिं' (विसे २५०७)
फागुण :: देखो फग्गुण (पि ६२)।
फाड :: सक [पाटय्, स्फाटय्] फाड़ना। फाडेइ (हे १, १९८; २३२)। वकृ. फाडंत (कुमा)।
फाडिय :: वि [फाटित, स्फाटित] विदारित (भवि)।
फाणिअ :: पुंन [फाणित] १ गुड़; 'फाणिओ गुडो भणणति' (निचू ४) २ गुड़ का विकार-विशेष, आर्द्र गुड़, पानी में द्रावित गुड़ (औप; कस; पिंड २३९; ६२५; पव ४) ३ क्वाथ (पणण १७ — पत्र ५३०)
फाय :: वि [स्फीत] १ वृद्ध। २ विस्तीर्णं। ३ ख्यात (विसे २५०७)
फार :: वि [स्फार] १ प्रचुर, बहुत; 'फारफल- भारभज्जिरसाहासयसंकुलो महासाही' (धर्मंवि ५५) २ विशाल, विपुल। ३ विस्मृत, फैला हुआ (सुर २, २३६; काप्र १७०; सुपा १६४; कुप्र ५१)
फारक्क :: वि [दे. स्फारक] स्फारकास्त्र को धारण करनेवाला, 'तं नासंतं दट्ठुं फारक्का नमुइवयणओ ढुक्का' (धर्मंवि ८०)।
फारुसिय :: न [पारुष्य] परुषता, कठोरता, कर्कशता; 'फारुसियं समाइयंति' (आचा)।
फाल :: देखो °प्फाल।
फाल :: देखो फाड। फालेइ (हे १, १९८; २३२)। कवकृ. फालिज्जंत, फालिज्जमाण (गा १५३; सम्मत्त १७४)। संकृ. फालेऊण (गा ४८९)।
फाल :: पुंन [फाल] १ लोहमय कुश, एक प्रकारी का लोहे की लम्बी कील (उवा) २ फाल से की जाती एक प्रकार की दिव्य- परीक्षा, शपथ-विशेष (सुपा १८९) ३ फलांग, लाँफ; 'दीवि व्व विहलफालो' (कुप्र १२)
फालण :: न [पाटन, स्फाटन] विदारण, 'खोणी किं न सहेदि सीरमुहओ तं तारिसं फालणं' (रंभा; सम १२५)।
फालण :: देखो °प्फालण।
फाला :: स्त्री [फाला] फलाङ्ग, लाँफ (कुप्र २७८; कुलक ३२)।
फालि :: स्त्री [दे. फालि] १ फली, छीमी, फलियाँ २ शाखा "सिंबलिफालिव्व अग्गिणा दड्ढो" (संथा ८५) ३ फाँक, टुकड़ा " — नागवल्लीदलपूगीफलफालिपमुह — " (रयण ५५)
फालिअ :: वि [पाटित, स्फाटित] विदारित (कुमा; पणह १, १ — पत्र; पउम ८२, ३१; औप)।
फालिअ :: न [दे. फालिक] देश-विशेष में होता वस्त्र-विशेष, "अमिलाणि वा गज्जलाणि बा फालियाणि बा कायहाणि वा (आचा २, ५, १, ७)।
फालिअ, फालिग, फालिह :: पुं [स्फाटिक] १ रत्त-विशेष (कप्प) २ वि. स्फटिक-रत्न का (पि २२६; उप ९८६; सुपा ८८)
फालिहद्द :: पुं [पांरभेद्र] १ फरहद का पेड़। २ देवदारु का पेड़। ३ निम्ब का पेड़ (१; २३२)
फास :: सक [स्पृश्, स्पर्शय्] १ स्पर्श करना, छूना। २ पालन करना। फासइ, फासेइ (हे ४, १८२; भग)। कर्मं. फासिज्जइ (कुमा)। वकृ. फासंत, फासयंत (पंचा १०, ३५ पणह २, ३ — पत्र १२३)। कवकृ. फासा- इज्जमाण (भग — अ°)। संकृ. फासइत्ता, फासित्ता (उत्त २९, १; सुख २९, १; कप्प; भग)
फास :: पुंन [स्पर्श] १ स्पर्श, छूना (भग; प्रासू १०४) २ ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ दुःख-विशेष, 'एयाइं फासाइं फुसंति बालं' (सूअ १, ५, २, २२) ५ स्पर्शं इन्द्रिय, त्वचा (भग) ६ रोग। ७ ग्रहण। ८ युद्ध, लड़ाई। ९ गुप्त चर, जासूस। १० वायु, पवन। ११ दान। १२ 'क' से लेकर 'म' तक के अक्षर। १३ वि. स्पर्शं करनेवाला (हे २, ९२)। °कीव पुं [°क्लीब] क्लीब का एक भेद (निचू ४)। °णाम, °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, कर्कश आदि स्पर्शं का कारणभूत कर्मं (राज; सम ६७)। °मंत वि [°मत्] स्पर्शवाला (ठा ५, ३; भग)। °मय वि [°मय] स्पर्शं-मय, स्पर्शं से निर्वृत्त; 'फासा- मयाओ सोक्खाओ' (ठा १०)
फासग :: वि [स्पर्शक] स्पर्श करनेवाला (अज्झ १०४)।
फासण :: न [स्पर्शन] १ स्पर्श-क्रिया (श्रा १६) २ स्पर्शेन्द्रिय, त्वचा (पव ६७)
फासणया, फासणा :: स्त्री [स्पर्शना] १ स्पर्शं-क्रिया (ठा ६; स १५९; जीवस १८१) २ प्राप्ति (राज)
फासिअ :: वि [स्पृष्ट] १ छुआ हुआ (नव ४१; विसे २७८३) २ प्राप्त; 'उचिए काले विहिणा पत्तं जं फासियं तयं भणियं' (पव ४)
फासिअ :: वि [स्पर्शिक] स्पर्शं करनेवाला (विसे १००१)।
फासिअ :: वि [स्पर्शित] १ स्पर्शं-युक्त, स्पृष्ट। २ प्राप्त (पव ४ — गाथा २१२)
फासिंदिय :: न [स्पर्शेन्द्रिय] त्वगिन्द्रिय (भग; णाया १, १७)।
फासु, फासुअ, फासुग :: वि [प्रासु, °क] अचेतन, जीव- रहित, निर्जीव, अचित्त वस्तु (भग; पंचा १०, ६; औप; उवा; णाया १, ५; पउम ८२, ५)।
फिक्कर :: अक [फित् + कृ] प्रेत — पिशाच का चिल्लाना; 'तह फिक्करंति पेया' (सुपा ४९२)।
फिक्कि :: पुंस्त्री [दे] हर्षं, खुशी (दे ६, ८३)।
फिज :: न [दे. स्फिच्] नितम्ब, चूतर, जंघा का उपरि-भाग (सुख ८, १३)।
फिट्ट :: अक [भ्रंश्] १ नीचे गिराना। २ टूटना, भाँगना। ३ ध्वस्त होना। ४ पलायन करना, भागना। फिट्टइ (हे ४, १७७; प्राकृ ७६; गा १८३; चेइय ५८७), फिट्टई (उत्त २०, ३०), फिट्टंति (सिरि १२९३)। भवि. फिट्टिहिइ, फिट्टिहिसि (कुप्र १६५; गा ७६८)
फिट्ट :: वि [भ्रष्ट] विनष्ट; 'पाणिएण तणह व्विअ न फिट्टा' (गा ९३; भवि)।
फिट्टा :: स्त्री [दे] १ मार्ग, रास्ता; 'ता फिट्टाए मिलियं कुट्ठियनरपेडियं एगं' (सिरि २९९) २ प्रणाम-विशेष, मार्गं में किया जाता प्रणाम (गुभा १)। °मित्त पुंन [°मित्र] मार्गं में मिलने पर प्रणाम करने तक की अवधिवाली मित्रतावाला (सुपा १८९)
फिड :: देखो फिट्ट। फिडइ (हे ४, १७७)।
फिडिअ :: वि [भ्रष्ट, स्फिटित] १ भ्रंश-प्राप्त, नष्ट, च्युत (ओघ ७, १११; ११२; से ४, ५४; ६४) २ अतिक्रान्त, उल्लंघित (ओधभा १७४; औप)
फिड्ड :: वि [दे] वामन (दे ६, ८४)।
फिप्प :: वि [दे] कृत्रिम, बनावटी (दे ६, ८३)।
फिप्फिस :: न [दे] अन्त्र-आँत स्थित मांस- विशेष, फेफड़ा (सूअनि ७२; पणह १, १)।
फिर :: सक [गम्] फिरना, चलना। वकृ. फिरंत (धर्मंवि ८१)।
फिरक्क :: पुंन [दे] खाली गाड़ी, भार ढ़ोनेवाली खाली गाड़ी; 'समचित्ता दुवि वसहा सगडं कड्ढंति उवलभरियंपि। अट्ठवि विभि- न्नचित्ता फिरक्कजुत्तावि तमन्मंति' (सुपा ४२४)।
फिरिय :: वि [गत] गया हुआ, 'गोधणवालणहेउं पुरिसा हइ केवि अग्गओ फिरिया। जं सुम्मइ आसन्नो सुन्नेवि हु एस संखरपो' (धर्मंवि १३९)।
फिलिअ :: देखो फिडिअ (से ८, ६८)।
फिल्लुस :: अक [दे] फिसलना, खिसकना, गिरना। वकृ. 'सेवालियभूमितले फिल्लुस- माणा य थामथामाम्मि' (सुर २, १०५)। देखो फेल्लुस।
फीअ :: देखो फाय (सूअ २, ७, १)।
फीणिया :: स्त्री [दे] एक जात की मीठाई, गुजराती में 'फेणी'; (सम्मत्त ५७)।
फुंका :: स्त्री [दे] फूँक, मुँह से हवा निकालना (मोह ६७)।
फुंकार :: पुं [फुङ्रार] फुफकार, कुपित सर्पं आदि की आवाज (सुर २, २३७)।
फुंटा :: स्त्री [दे] केश-बन्ध (दे ६, ८४)।
फुंद :: देखो फंद = स्पन्द। फुंदइ (से १५, ७७)।
फुंफमा, फुंफआ, फुंफुगा :: स्त्री [दे] करीषाग्नि, वनकाण्डे की आग (पाअ; दे ६, ८४; तंदु ४५; जीव २; बृह १; कम्म १, २२)।
फुंफुमा :: स्त्री [दे] १ करीषाग्नि, 'अहवा डज्झउ निहुयं निद्धूमं फुंफुम ब्व चिरमेसो' (उप ७२८ टी) २ कचवर-वह्नि, कूड़ा-करकट की आग (सुख १, ८)
फुंफुल, फुंफुल :: सक [दे] १ उत्पाटन करना। २ कहना। फुंफुल्लइ (हे २, १७४)
फुंस :: सक [मृज्, प्र + उञ्छ्] पोंछना; साफ करना। फुँसादि (प्राकृ ९३)।
फुंसण :: देखो फासण (उप पृ ३४)।
फुक्क :: अक [फूत् + कृ] १ फुफकारना, फूँ फूँ आवाज करना। २ सक, मुँह से हवा निकालना, फूँकना। फुक्कइ (पिंग)। वकृ. फुक्कंत (गा १७६), फुक्किज्जंत (अ) (हे ४, ४२२)
फुक्का :: स्त्री [दे] १ मिथ्या (दे ६, ८३) २ फूँक (कुप्र १५०)
फुक्कार :: पुं [फूत्कार] फुफकार, फूँ फूँ की आवाज (कुप्र ५८; सण)।
फुक्किय :: वि [फूत्कृत] फूफकारा हुआ (आव ४)।
फुक्की :: स्त्री [दे] रजकी, धोबिन (दे ६, ८४)।
फुग्ग :: स्त्रीन [दे. स्फिच्] शरीर का अवयव- विशेष, कटि-प्रोथ (सूअनि ७९)।
फुग्गफुग्ग :: वि [दे] विकीर्णं रोमवाला, परस्पर, असंबद्ध — बिखरे हुए केशवाला; 'तस्स भ्रुमगाओ फुग्गफुग्गाओ' (उवा)।
फुट, फुट्ट :: अक [स्फुट्, भ्रंश्] १ विकसना, खीलना। २ प्रकट होना। ३ फूटना, फटना, टूटना। ४ नष्ट होना। फुटइ, फुट्टई, फुट्टेइ, फुट्टउ (संक्षि ३६; प्राकृ ६९; हे ४, १७७; २३१; उव; भवि; पिंग; गा २२८)। भवि. 'फुट्टिस्सइ बोहित्थं महिलाजणकहियमंतं वा' (धर्मंवि १३), फुट्टिहिइ (पि ५२६)। वकृ. फुट्टंत, फुट्टमाण (पणह १, ३; गा २०४; सुर ४, १५१; णाया १, १ — पत्र ३९)
फुट्ट :: वि [स्फुटित, भ्रष्ट] १ फूटा हुआ, टूटा हुआ, विदीर्ण (उप ७२८ टी; सम्मत्त १४५; सुर २, ९०; ३, २४३; १३; २१०) २ भ्रष्ट, पतित (कुमा) ३ विनष्ट; 'फुट्टहडा- हडसीसं' (णाया १, १६; विपा १, १)
फुट्टण :: न [स्फुटन] १ फूटना, टूटना (कुप्र ४१७) २ वि. फूटनेवाला, विदीर्णं होनेवाला (हे ४, ४२२)
फुट्टिअ :: वि [स्फुटित] विदारित, 'फुट्टिअमोहो' (कुमा ७, ६४)।
फुट्टिर :: वि [स्फुटितृ] फूटनेवाला (सण)।
फुट्ठ :: देखो पुट्ठ = स्पृष्ट (पि ३११)।
फुड :: देखो फुट्ट = स्फुट्, भ्रंश्। फुडइ (हे ४, १७७; २३१; प्राकृ ६९); 'फुडंति सव्वंग- संधीओ' (उप ७२८ टी)। वकृ. फुडमाण (सुर ३, २४३)।
फुड :: देखो पुट्ठ = स्पृष्ट (पणण ३६; ठा ७ — पत्र ३८३; जीवस २००; भग)।
फुड :: वि [स्फुट] स्पष्ट, व्यक्त, साफ, विशद (पाअ; हे ४, २५८; उवा)।
फुडण :: न [स्फुटन] टूटना, खण्डित होना (पणह १, १ — पत्र २३)।
फुडा :: स्त्री [स्फुटा] अतिकाय-नामक महोरगेन्द्र की एक पटरानी, इन्द्राणी-विशेष (ठा ४, १; इक)।
फुडा :: स्त्री [फटा] साँप की फन, 'उक्कडफु- डकुडिलजडिलकक्कसवियडफुडाडेवकरणदच्छं' (उवा)।
फुडिअ :: वि [स्फुटित] १ विकसित, खिला हुआ (पाअ; गा ३६०) २ फूटा हुआ, विदीर्णं (स ३८१) ३ विकृत (पणह १, २ — पत्र ४०)
फुडिअ :: (अप) देखो फुरिअ (भवि)।
फुडिआ :: स्त्री [स्फोटिका] छोटा फोड़ा, फुनसी (सुपा १३८)।
फउड्ड :: देखो फुट्ट। फुड्डइ (षड्)।
फुन्न :: वि [दे. स्पृष्ट] छूआ हुआ (पव १५८ टी; कम्म ५, ८५ टी)।
फुप्फुस :: न [दे] उदरवर्त्ती अन्त्र-विशेष, फेफड़ा (सूअनि ७३; पउम २६, ५४)।
फुम :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना। फुमइ (हे ४, १६१)। प्रयो. फुमावइ (कुमा)।
फुम :: सक [दे. फूत् + कृ] फूँक मारना, मुँह से हवा करना। फुमेज्जा (दस ४, १०)। वकृ. फुमंत (दस ४, १०)। प्रयो. फुमावेज्जा (दस ४, १०)।
फुर :: अक [स्फुर्] १ फरकना, हिलना। २ तड़फड़ना। ३ विकसना, खीलना। ४ प्रकाशित होना, प्रकट होना; 'फुऱइ अ सीताइ तक्खणं वामच्छं' (से १५, ७६; पिंग)। वकृ. फुरंत, फुरमाण (गा १९२; सुर २, २२१; महा; पिंग; से ६, २५; १२, २६)। संकृ. फुरित्ता (ठा ७)
फुर :: सक [अप + हृ] अपहरण करना, छीनना। प्रयो. फुराविंति (वव ३)।ष
फुर :: पुं [स्फुर] शस्त्र-विशेष; फुरफलगावरण- गाहिय — ' (पणह १, ३ — पत्र ४९)।
फुर :: (अप) देखो फुड = स्फुट (पिंग)।
फुरण :: न [स्फुरण] १ फरकना, कुछ हिलना, ईषत् कम्पन; 'जं पुण अच्छिप्फुरणं मह होही भारिया तेण' (सुर १३, १२७) २ स्फूर्ति (सुपा ६; वज्जा ३४; सम्मत्त १६१)
फुरफुर :: अक [पोस्फुराय] खूब काँपना, थरथराना, तड़फड़ाना। फुरफुरेज्जा (महानि १)। वकृ. फुरफुरंत, फुरफुरेंत (सुर १४, २३३; स ६९९; २५९)।
फुरिअ :: वि [स्फुरित] १ कम्पित, हिला हुआ, फरका हुआ, चलित (दे ६, ८४; सुर ५, २२६; गा १३७) २ दीप्त (दे ६, ८४)
फुरिअ :: वि [दे] निन्दित (दे ६, ८४)।
फुरफुर :: देखो फुरफुर । वकृ. फुरुफुरंत, फुरु- फुरेंत (पणह १, ३; पिंड ५९०; सुर ७, २३१; णाया १, ८ — पत्र १३३)।
फुल :: देखो फुड़ = स्फुट्। फुलइ (नाट)। फुले (अप) (पिंग)।
फुल :: (अप) देखो फुर =स्फुर्। फुला (पिंग)।
फुल :: (अप) देखो फुड = स्फुट (पिंग)।
फुल :: (अप) देखो फुल्ल = फुल्ल (पिंग)।
फुलिअ :: देखो फुडिअ = स्फुटित (से ५, ३०)।
फुलिअ :: (अप) देखो फुल्लिअ (पिंग)।
फुलिंग :: पुं [स्फुलिङ्गं] अग्नि-कण (णाया १, १; दे ६, १३५; महा)।
फुल्ल :: अक [फुल्ल] फूलना, पुष्प-युक्त होना, विकसना। फुल्लइ, फुल्लए, फुल्लेइ (रंभा; सम्मत्त १४०), फुल्लंति (हे २, २६)। भवि. फुल्लिहिसि (गा ८०२)।
फुल्ल :: देखो कम = क्रम्। फुल्लइ (धात्वा १४६)।
फुल्ल :: न [फुल्ल] १ फूल, पुष्प (कुमा; धर्मंवि २०; सम्मत्त १४३; दसनि १) २ फूला हुआ, पुष्पित (भग; णाया १, १ — पत्र १८; कुमा)। °मालिया स्त्री [°मालिका] फूल बेचनेवाली, मालाकार की स्त्री, मालिन (सुर ३, ७४)। °वल्लि स्त्री [°वल्लि] पुष्प-प्रधान लता (णाया १, १)
फुल्लंधय :: पुं [फुल्लन्धय, पुष्पन्धय] भ्रमर, भँवरा (उप ९८६ टी)।
फुल्लंधुअ :: पुं [दे] भ्रमर, भौंरा (दे ६, ८५; पाअ; कुमा)।
फुल्लग :: न [फुल्लक] पुष्प की आकृतिवाला ललाट का आभूषण (औप)।
फुल्लण :: न [फुल्लन] विकास (वज्जा १५२)।
फुल्लया :: स्त्री [फुल्ला, पुष्पा] वल्ली-विशेष, पुष्पाह्वा, शतपुष्पा, सोया का गाछ; 'दहफुल्लय- कोगलिमा (? मो) गली य तह अक्कबोंदीया' (पणह १ — पत्र ३३)।
फुल्लवड :: न [दे] पुष्प-विशेष, मदिरा-वामक फूल (कुप्र ४५३)।
फुल्लविय, फुल्लाविय :: वि [फुल्लित] फुलाया हुआ (सम्मत्त १४०; विक्र २३)।
फुल्लिअ :: वि [फुल्लित] पुष्पित, विकसित (अंत १२; स ३०३; सम्मत्त १४०; २२७)।
फुल्लिम :: पुंस्त्री [फुल्लता] विकास, फूलन; 'अच्छउ ता फलकाले फुल्लिमसमए वि कालिमा वयणे। इय कलिउं व पलासो चत्तो पत्तेहिं किविणो व्व' (सुर ३, ४४)।
फुल्लिर :: वि [फुल्लितृ] फूलनेवाला, प्रफुल्ल; 'हिययणं दणचंदणफुल्लिरफुल्लेहिं' (सम्मत्त २१४)।
फुस :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना। फुसइ (हे ४, १६१)।
फुस :: सक [मृज्] मार्जन करना, पोंछना, साफ करना। फुसइ (हे ४, १०५; भवि)। कर्मं. फुसिज्जइ, फुसिज्जउ (कुमा; सुपा १२४)। वकृ. फुसंत, फुसमाण (भवि; कुप्र २८५)। संकृ. फुसिऊण (महा)।
फुस :: सक [स्पृश्] स्पर्श करना, छूना। फुसइ (भग; औप; उत्त २, ६), फुसंति (विसे २०२३), फुसंतु (भग)। वकृ. फुसंत, फुसमाण (ओघ ३८६; भग)। संकृ. फुसिअ, फुसित्ता, फुसित्ताणं (पंच २, ३८; भग; औप; पि ५८३)। कृ. फुस्स (ठा ३, २)।
फुसण :: न [स्पर्शन्] स्पर्श-क्रिया (भग; सूपा ५)।
फुसणा :: स्त्री [स्पर्शना] ऊपर देखो (विसे ४३२; नव ३२)।
फुसिअ :: देखो फुस = स्पृश्।
फुसिअ :: वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ (जीवस १९६)।
फुसिअ :: वि [मृष्ट] पोंछा हुआ (उप पृ ३४५ सुपा २११; कुप्र २३१)।
फुसिअ :: पुंन [पृषत] १ बिन्दु, बुन्द, बूँद (आचा; कप्प) २ बिन्दु-पात (सम ६०)। फुसिअ वि [भ्रमित] घुमाया हुआ (कुमा ७, ४)
फुसिआ :: स्त्री [दे] वल्ली विशेष, 'सेसविदुगो- त्तफुसिया' (पणण १ — पत्र ३३)।
फुस्स :: देखो फुस = स्पृश्।
फूअ :: पुं [दे] लोहकार, लोहार (दे ६, ८५)।
फूम :: देखो फुम। वकृ. फूमंत (राज)।
फूमिय :: वि [फूत्कृत] फूँका हुआ (उप पृ १४१)।
फूल :: देखो फूल्ल = फुल्ल; 'फलफूलछल्लिकट्ठा मूलगपत्ताणि बीयाणि' (जी १३)।
फेक्कार :: पुं [फेत्कार] १ श्रृगाल की आवाज (सुर ९, २०४) २ आवाज, चिल्लाहट (कप्पू)
फेक्कारिय :: न [फेत्कारित] ऊपर देखो (स ३७०)।
फेड :: सक [स्फेटय्] १ विनाश करना। २ दूर हटाना। ३ परित्याग करना। ४ उद्घाटन करना। फेडइ, फेडेइ; फेडंति (उव; हे ४, ३५८; संबोध ५४; स ४१४)। कर्मं. फेडिज्जइ (भवि)
फेडण :: न [स्फेटन] १ विनाश। २ अपनयन (पव १३५)
फेडणया :: स्त्री [स्फेटना] ऊपर देखो (पिंड ३८७)।
फेडावणिय :: न [दे] विवाह-समय की एक रीति, वधू को प्रथम बार लजा-परिहार के वक्त दिया जाता उपहार (स ७८)।
फेडिअ :: वि [स्फेटित] १ नष्ट किया हुआ, विनाशित (पउम ३६, २२) २ त्याजित (सिरि ९५५) ३ अपनीय (ओधभा ४२) ४ उद्घाटित (स ७८)
फेण :: पुं [फेण, फेन] फेण, झाग, जल-मल, पानी आदि के ऊपर का बुद्भुदाकार पदार्थं (पाअ; णाया १, १ — पत्र ६२; कप्प)। °मालिणी स्त्री [°मालिनी] नदी-विशेष (ठा २, ३; इक)।
फेणबंध, फेणवड़ :: पुं [दे] वरुण (दे ६, ८५)।
फेणाय :: अक [फेणाय्, फेनाय्] फेण — फेन का वमन करना, झाग निकालना। वकृ. फेणायमाण (प्रयौ ७४)।
फेप्फस, फेफस :: न [दे] देखो फिप्फिस, फुप्फुस (राज; तंदु ३९)।
फेरण :: न [दे] फेरना, घुमाना; 'गुंफणफेरण- सुंकारएहिं' (सुर २, ८)।
फेल :: सक [क्षिप्] १ फेंकना। २ दूर करना। फेलदि (शौ) (नाट)। संकृ. फेलिअ (नाट)
फेला :: स्त्री [दे] झूँठन-झाँठन, जूठन भोजन से बचा-खुचा, उच्छिष्ट; 'तस्स य अणुकंपाए देवी दासी य तम्मि कूवम्मि। निच्चं खिवंति फेलं तीए सो जियइ सुणउव्व।' 'दुग्गंधकूववासो गब्भो, जणणीइ चावियरसेहिं। जं गब्भपोसणं पुण तं फेलाहारसंकासं।' (धर्मंवि १४९)।
फेलाया :: स्त्री [दे] मातुलानी, मामी (दे ६, ८५)।
फेल्ल :: पुं [दे] दरिद्र, निर्धन (दे ६, ८५)।
फेल्लुस :: सक [दे] फिसलना, खिसकना, खिसककर गिरना। फेल्लुसइ (दे ६, ८६)। संकृ. फेल्लुसिऊण (दे ६, ८६; स ३५५)।
फेल्लुसण :: न [दे] १ फइसलन, पतन। २ पिच्छिल जमीन, वह जगह जहाँ पाँव फिसल पड़े (दे ६, ८६)
फेल्हमाण :: देखो फेल्लुसण (वव ४ टी)।
फेस :: पुं [दे] १ त्रास, डर। २ सद्भाव (दे ६, ८७)
फोअ :: पुं [दे] उद्गम (दे ६, ८६)।
फोइअय :: वि [दे] १ मुक्त। २ विस्तारित (दे ६, ८७)
फोंफा :: स्त्री [दे] डराने की आवाज, भयोत्पादक शब्द (दे ६, ८६)।
फोड :: सक [स्फोटय्] १ फोड़ना, विदारण करना। २ राई आदि से शाक आदि को वघारना। फोडेज्ज (कुप्र ६७)। वकृ. फोडंत, फोडेमाण (सुपा २०१, ५९३; औप)
फोड :: पुं [स्फोट] १ फोड़ा, व्रण-विशेष (ठा १० — पत्र ५२०) २ वर्णं-विशेष, शब्द- भेद (राज) ३ वि. भक्षक; 'बहुफोडो' (ओघभा १९१)
फोडअ :: (शौ) पुं [स्फोटक] ऊपर देखो (प्राकृ ८६)।
फोडण :: न [स्फोटन] १ विदारण (पव ६ टी; गउड) २ राई आदि से शाक आदि को वघारना (पिंड २५०) ३ राई आदि संस्कारक पदार्थ (पिंड २५५) ४ वि. फोड़नेवाला, दिदारण करनेवाला; 'कायर- जणहिययफोडणं' (णाया १, ८); 'अम्हं मअणसराहअहिअअव्वणफाडणं गीअं' (गा ३८१)
फोडय :: देखो फोडअ (पउम ६३, २६)।
फोडाव :: सक [स्फोटय्] १ फोड़वाना। तोड़वाना। २ खुलवाना। संकृ. फोडाविऊण (स ४६०)
फोडाविय :: वि [स्फोटित] १ तोड़वाया हुआ। २ खुलवाया हुआ; 'फोडाविया संपुडा' (स ४६०)
फोडि :: स्त्री [स्फोटि] विदारण, भेदन; 'भाडी- फोडीसु वज्जए कम्मं' (पडि)। °कम्म न [°कर्मन्] १ जमीन आदि का विदारण करने का काम, हल आदि से भूमि-दारण, कूप, तड़ाग आदि खोदने का काम। २ उक्त काम कर आजीविका चलाना (पडि)
फोडिअ :: वि [स्फोटित] १ फोड़ा हुआ, विदारित (णाया १, ७; स ४७२) २ राई आदि से बघारा हुआ (वव १)
फोडिअय :: वि [दे. स्फोटित, °क] राई से बघारा हुआ शाकादि (दे ६, ८८)।
फोडिअय :: न [दे] रात के समय जंगल में सिंहादि से रक्षा का एक प्रकार (दे ६, ८८)।
फोडिया :: स्त्री [स्फोटिका] छोटा फोड़ा (उप ७६८ टी)।
फोडी :: स्त्री [स्फोटी, स्फौटी] देखो फोडि (उवा; पव ६; पडि)।
फोप्फस :: न [दे] शरीर का अवयव-विशेष, 'कालिज्जयअंतपित्तजरहिययफोप्फसफेफसपि- लिहोदर — ' (तंदु ३९)।
फोफल :: न [दे] गन्ध-द्रव्य विशेष, एक प्रकार की औषधि, 'महुरविरेयणमेसो कायव्वो फोफलाइदव्वेहिं' (भत्त ४२)।
फोफस :: देखो फोप्फस (पणह १, १ — पत्र ८)।
फोरण :: न [स्फोरण] निरन्तर प्रवर्त्तन, 'विसयम्मि अपत्तेवि हु णियसत्तिप्फोररीण फलसिद्धी' (उवर ७४)।
फोरविअ :: वि [स्फोरित] निरन्तर प्रवृत्त किया हुआ, 'तेहिंपि नियनियसत्ती फोरवीया' (सम्मत्त २२७; हम्मीर १४)।
फोस :: देखो फुस = स्पृश्; 'सव्वं फोसंति जगं' (जीवस १९९)।
फोस :: पुं [दे] उद्गम (दे ६, ८६)।
फोस :: पुं [दे. पोस] अपान-देश, गुदा (तंदु २०)।
फोसणा :: स्त्री [स्पर्शना] स्पर्शं-क्रिया (जीवस १९९)।
ब :: पुं [ब] ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं-विशेष (प्राप)।
बअर :: (शौ) न [बदर] १ फल-विशेष, बेर। २ कपास का बीज (प्राकृ ८३)
बइट्ठ :: (अप) वि [उपविष्ट] बैठा हुआ (हे ४, ४४४; भवि)।
बइल्ल :: पुं [दे] बैल, बरध, वृषभ (दे ६, ९१; गा २३८; प्राकृ ३८; हे २, १७४; धर्मवि ३; श्रावक २५८ टी; श्रु १५३; प्रासू ५५; कुप्र २७९; ती १५; वै ६; कप्पू)।
बइस :: (अप) अक [उप + विश्] बैठना; गुजराती में 'बेसवुं'। बइसइ (भवि)।
बइसणय :: (अप) न [उपवेशनक] आसन (ती ७)।
बइसार :: (अप) सक [उप + वेशय्] बैठाना। वइसारइ (भवि)।
बइस्स :: देखो वइस्स (पि ३००)।
बईस :: (अप) देखो बइस। बईसइ (भवि)।
बईस :: (अप) न [उपवेश] बैठ, बैठन, बैठना; 'तोवि गोट्ठडा करविआ मुद्धए उट्ठ-बईस' (हे ४, ४२३)।
बउणी :: स्त्री [दे] कार्पासी, कर्पास-वल्ली (दे ३, ५७)।
बउल :: पुं [बकुल] १ वृक्ष-विशेष, मौलसरी का पेड़ (सम १५२; पाअ; णाया १, ९) २ बकुल का पुष्प (से १, ५६) °सिरी स्त्री [°श्री] १ बकुल का पेड़। २ बकुल का पुष्प (श्रा १२)
बउस :: पुं [बकुश] १ अनार्यं देश-विशेष। २ पुंस्त्री. उस देश का निवासी (पणह १, १ — पत्र १४)। स्त्री. °सी (णाया १, १ — पत्र ३७) ३ वि. शबल, चितकबरा। ४ मलिन चरित्रवाला, शरीर के उपकरण और विभूषा आदि से संयम को मलिन करनेवाला (ठा ३, २; ५, ३; सुख ६, १), स्त्री. 'तए णं सा सूमालिया अज्जा सरीरबउसा जाया यावि होत्था' (णाया १, १६)। ४ पुंन मलिन संयम, शिथिल चारित्र-विशेष (सुख ६, १)
बउहारी :: स्त्री [दे] बुहारी, संमार्जंनी, झाडू (दे ६, ९७)।
बंग :: पुं [बङ्ग] १ भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र का नाम (ती १४) २ देश-विशेष, बंगाल देख (उप ७९५; ती १४) ३ बंग देश का राजा (पिंग)
बंगल :: (अप) पुं [बङ्ग] बंग देश का राजा (पिंग)।
बंगाल :: पुं [बङ्गाल] बँगाल देश, 'बंगालदेस- वइणो तेणं तुह ससुरयस्स दिन्ना हं' (सुपा ३७७)।
बंझ :: देखो वंझ (पि २६९)।
बंडि :: पुं [दे] देखो बंदि = बन्दिन् (षड्)।
बंद :: न [दे] कैदी, कारा-बद्ध मनुष्य; 'बंदंपि किंपि' (स ४२१), 'बंदाइं गिन्हइ कयाबि', छलेण गिन्हंति बंदाइं', 'बंदाणं मोयावणकए' (धर्मंवि ३२); 'एगत्थंबंदपग्गहियपहियकीरंत- करुणरुन्नसरा' (धर्मंवि ५२)। °ग्गह पुं [°ग्रह] कैदी रूप से पकड़ना; 'परदोहघट्ट- वाडणबंदग्गहखत्तखणणपमुहाइं' (कुप्र११३)।
बंदण :: न [दे] कैदी (नंदीटिप्प° वैनयि की बुद्धि में १३ वाँ कथानक)।
बंदि :: स्त्री [बन्दि] देखो बंदी (हे १, १४२; २, १७६)।
बंदि, बंदिण :: पुं [बन्दिन्] स्तुति-पाठक, मंगल- पाठक, मागध; 'मंगलपाढयमागह- चारणवेआलिआ बंदी' (पाअ; उप ७२८ टी; धर्मवि ३०), 'उद्दामसद्दबंदिणवंद्रसमुग्धुट्ठ- नामाइं' (स ५७६)।
बंदिर :: न [दे] समुद्र-वाणिज्य-प्रधान नगर, बंदर (सिरि ४३३)।
बंदी :: स्त्री [बन्दी] १ हठ-हृत स्त्री, बाँदी (दे २, ८४; गउड १०५; ८४३) २ कैद किया हुआ मनुष्य (गउड ४२९; गा ११८)
बंदीकय :: वि [बन्दीकृत] कैद किया हुआ, बाँध कर आनीत (गउड)।
बंदुरा :: स्त्री [बन्दुरा] अश्व-शाला, 'गच्छ निरूवेहि बंदुराओ, भूसेहि तुरए' (स ७२५)।
बंध :: सक [बन्ध्] १ बाँधना, नियन्त्रण करना। २ कर्मों का जीव-प्रदेशों का साथ संयोग करना। बंधइ (भग; महा; उव; हे १, १८७)। भूका. बंधिंसु (पि ५१६)। कर्मं, बंधिज्झइ, बज्झइ (हे ४, २४७), भवि. बंधिहइ, बज्झिहिइ (हे ४, २४७)। वकृ. बंधंत बंधमाण (कम्म २, ८; पणण २२)। संकृ. बंधइत्ता, बांउउं, बंधिऊण, बंधिऊणं, बंधित्ता, बंधित्तु (भग; पि ५१३; ५८५; ५८२)। हकृ. बंधेउ (हे १, १८१)। कृ. बंधियव्व (पंच १, ३)। कवकृ. बज्झंत, बज्झमाण (सुपा १९८; कम्म १, ३५; औप)
बंध :: पुं [दे] भृत्य, नौकर (दे ६, ८८)।
बंध :: पुं [बन्ध] १ कर्म-पुद्गलों का जीव- प्रदेशों के साथ दूध-पानी की तरह मिलाना, जीव-कर्मं.-संयोग (आचा; कम्म १, १५; ३२) २ बन्धन, नियन्त्रण, संयमन (श्रा १०; प्रासू १५३) ३ छन्द-विशेष (पिंग)। °सामि वि [°स्वामिन्] कर्मं-बन्ध करनेवाला (कम्म्म ३, १; २४)
बंधई :: स्त्री [बन्धकी] पुंश्चली, अशती स्त्री (नाट — मालती १०६)।
बंधग :: वि [बन्धक] १ बाँधनेवाला। २ कर्मं-बन्ध करनेवाला, आत्म-प्रदेश के साथ कर्म-पुद्गलों का संयोग करनेवाला (पंच ५, ८४; श्रावक ३०६; ३०७; पंचा १६, ४०, कम्म ६, ९)
बंधण :: न [बन्धन] १ बाँधने का — संश्लेष का साधन, जिससे बाँधा जाय वह स्निग्ध- तादि गुण (भग ८, ९ — पत्र ३९४) २ जो बाँधा जाय वह। ३ कर्मं, कर्मं-पुद्गल। ४ कर्मं-बन्ध का कारण (सूअ १, १, १, १) ५ संयमन, नियन्त्रण (प्रासू ३) ६ नियन्त्रण का साधन, रज्जु आदि (उव) ७ कर्मं-विशेष, जिस कर्मं के उदय से पूर्वं- गृहीत कर्मं-पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कर्मं- पुद्गलों का आपस में सम्बन्ध हो वह कर्मं (कम्म १, २४; ३१; ३५; ३६; ३७)
बंधणया :: स्त्री [बन्धन] बन्धन (भग)।
बंधणी :: स्त्री [बन्धनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४१)।
बंधय :: देखो बंधग (णंदि ४२)।
बंधव :: पुं [बान्धव] १ भाई, भ्राता। २ मित्र, वयस्य, दोस्त। ३ नातेदार, संबंधी, नतैत। ४ माता। ५ पिता। ६ माता-पिता का सम्बन्धी मामा, चाचा आदि (हे १, ३०; प्रासू ७६; उत्त १८, १४)
बंधाप :: (अशो) सक [बन्धय्] बँधाना, बँधवाना। बंधायपति (पि ७)।
बंधाविअ :: वि [बन्धित] बँधाया हुआ (सुपा ३२५)।
बंधिअ :: देखो बद्ध (सूअ १, २, १, १८; धर्मंवि २३)।
बंधु :: पुं [बन्धु] १ भाई, भ्राता। २ माता। ३ पिता। ४ मित्र, दोस्त। ५ स्वजन, नातेदार, नतैत (कुमा; महा; प्रासू १०८; सुपा १६८; २४१) ६ छन्द-विशेष (पिंग) °जीव पुं [°जीव] वृक्ष-विशेष, दुपहरिया का पेड़ (स्वप्न ६९; कुमा)। °जीवग पुं [°जीवक] वही अर्थं (णाया १, १; कप्प; भग)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एक श्रेष्ठी का नाम (महा) २ एक जैन मुनि का नाम (राज) °मई, °वई स्त्री [°मती] १ भगवान् मल्लिनाथ की मुख्य साध्वी का नाम (णाया १, ८; पव ९; सम १५२) २ स्वनाम-ख्यात स्त्री-विशेष (महा; राज)। °सिरी स्त्री [°श्री] श्रीदाम राजा का पत्नी (विपा १, ६)
बंधुर :: वि [बन्धुर] १ सुन्दर, रम्य (पाअ) २ नम्र, अवनत (गउड २०५)
बंधुरिय :: वि [बन्धुरित] १ पिंडिकृत (गउड ३८३) २ नम्रीभूत, नाम हुआ (गउड ५५६) ३ मुकुटित, मुकुटयुक्त। ४ विभूषित (गउड ५३३)
बंधुल :: पुं [बन्धुल] वेश्या-पुत्र, असती-पुत्र (मृच्छ २००)।
बंधूण :: पुं [बन्धूक] वृक्ष-विशेष, दुपहरिया का पेड़ (स ३१२)।
बंधोल्ल :: पुं [दे] मेलक, मेल, संगति (दे ६, ८९; षड्)।
बंभ :: पुं [ब्रह्मन्] १ ब्रह्मा, विधाता (उप १०३१ टी; दे ६, २२; कुप्र २०३) २ भगवान् शान्तिनाथ का शासनाधिष्ठायक यक्ष (संति ७। ३ अप्काय का अधिष्ठायक देव (ठा ५, १ — पत्र २९२) ४ पाँचवें देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ५ बारहवें चक्रवर्त्ती का पिता (सम १५२) ६ द्वितीय बलदेव और वासुदेव का पिता (सम १५२; ठा ९ — पत्र ४४७) ७ ज्योतिष-शास्त्र प्रसिद्ध एक योग (पउम १७, १०) ८ ब्राह्मण, विप्र (कलुक ३१) ९ चक्रवर्ती राजा का एक देव-कृत प्रासाद (उत्त १३, १३) १० दिन का नववाँ मुहूर्त (सम ५१) ११ छन्द-विशेष (पिंग) १२ ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (सम २२) १३ एक जैन मुनि का नाम (कप्प) १४ पुंन. एक विमानावास, देव- विमान-विशेष (देवेन्द्र १३१; १३४; सम १९) १५ मोक्ष, अपवर्ग (सूअ २, ६, २०) १६ ब्रह्मचर्यं (सम १८; ओधभा २) १७ सत्य अनुष्ठान (सूअ २, ५, १) १८ निर्विकल्प सुख (आचा १, ३, १, २) १९ योगशास्त्र-प्रसिद्ध दशम द्वार (कुमा) °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम १९)। °कूड पुं [°कूट] १ महाविदेह वर्षं का एख वक्षस्कार पर्वंत (जं ४) २ न. एक देव-विमान (सम १९) °चरण न [°चरण] ब्रह्मचर्यं (कुप्र १६१)। °चारि वि [°चारिन] १ ब्रह्मचर्यं पालन करनेवाला (णाया १, १; उवा) २ पुं. भगवान् पार्श्वं नाथ का एक दणधर प्रमुख नाथ (ठा ८ — पुत्र ४२९) °चेर, °च्चेर न [°चर्य] १ मैथुन-विरति (आचा; पणह २, ४; हे २, ७४; कुमा; भग; सं ११; उप पृ ३४३) २ जितेन्द्र-शासन, जिन-प्रवचन (सूअ २, ५, १)। °ज्झय न [°ध्वज] एक देव-विमान (सम १९)। °दत्त पुं [°दत्त] भारतवर्षं में उत्पन्न बारहवाँ चक्रवर्त्ती राजा (ठा २, ४; सम १५२; उव)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप- विशेष (राज)। °दीविया स्त्री [°द्वीपिका] जैन-मुणि गण की एक शाखा (कप्प)। °प्पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम १९)। °भूइ पुं [°भूति] एक राजा, द्वितीय वासु- देव का पिता (पउम २०, १८२)। °यारि देखो °चारि (णाया १, १; सम १३; कप्प; सुपा २७१; महा; राज)। स्त्री °णी (णाया १, १४)। °रुइ पुं [°रुचि] स्वनाम-प्रसिद्ध एक ब्राह्मण, नारद का पिता (पउम ११, ५२)। °लेस न [°लेश्य] एक देव-विमान (सम १९)। °लोअ, लोग पुं [°लोक] एक स्वर्गं, पाचवाँ देवलोक (भग; अनु; सम १३)। °लोगवडिंसय न [°लोकावतंसक] एक देव-विमान (सम १७)। °व °वंत वि [°वत्] ब्रह्मचर्यंवाला (आचा)। °वडिंसय पुं [°वतंसक] सिद्ध-शिला, ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (सम २२)। °वण्ण न [°वर्ण] एख देव-विमान (सम १९)। °वय न [°व्रत] ब्रह्मचर्यं (णाया १, १)। °वि वि [°वित्] ब्रह्म का जानकार (आचा)। °व्वय देखो °वय (सं ५६; प्रासू १५६)। °संति पुं [°शान्ति] भगवान् महावीर का शासन-यक्ष (गण ११; ती १५)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] एक देव-विमान (सम १९)। °सिट्ठ न [°सृष्ट] एक देव-विमान (सम १९)। °सुत्त न [°सूत्र] उपवीत, यज्ञो- पवीत (मोह ३०; सुख २, १३)। °हिअ पुं [°हित] एक विमानावास, देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३४)। °वत्त न [°वर्त] एक देव-विमान (सम १९)। देखो बंभाण, बम्ह।
बंभंड :: न [ब्रह्माण्ड] जगत्, संसार (गउड; कुप्र ४; सुपा ३६८; ५९३)।
बंभणं :: पुं [ब्राह्मण] ब्राह्मण, विप्र (स २६०; सुर २, १३०, सुपा १६८; हे ४, २८०; महा)।
बंभणिआ :: स्त्री [ब्राह्मणिका] पञ्चेन्द्रिय जन्तु-विशेष (पुप्फ २६७)।
बंभणिआ, बंभणी :: स्त्री [दे. ब्राह्मणिका] कीट-विशेष (दे ६, ९०; पाअ; दे ८, ६३; ७५)।
बंभण्ण, बंभण्णय :: स्त्री [ब्रह्मण्य, ब्राह्मण्य, °क] ब्राह्मण का हित। २ ब्राह्मण- संबन्धी। ३ न. ब्राह्मण-समूह। ४ ब्राह्मण- धर्म; 'बंभणणकज्जेसु सज्जो' (सम्मत्त १४०; कप्प; औप; पि २५०)
बंभद्दीविग :: वि [ब्रह्मद्वीपिक] ब्रह्मदीपिका- शाखा में उत्पन्न (णंदि ५१)।
बंभद्दीविगा :: स्त्री [ब्रह्मद्वीपिका] एक जैन- मुनि-शाखा (णंदि ५१)।
बंभलिज्ज :: न [ब्रह्मलीय] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)।
बंभहर :: न [दे] कमल, पद्म (दे ६, ९१)।
बंभाण :: देखो बंभ (पउम ५, १२२)। °गच्छ पुं [°गच्छ] एक जैन-मुनि गच्छ (ती २८)।
बंभि°, बंभी :: स्त्री [ब्राह्मी] १ भगवान् ऋषभदेव की एक पुत्री (कप्प; पउम ५, १२०; ठा ५, २; सम ९०) २ लिपि-विशेष (सम ३५; भग) ३ कल्प-विशेष (सुपा ३२४) ४ सरस्वती देवी (सिरि ७६४)
बंभुत्तर :: पुं [ब्रह्मोत्तर] एक विमानावास, देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३४)। °वडिंसक न [°वतंसक] एक देव-विमान (सम १९)।
बंहि :: पुं [बर्हिन्] मयूर, मोर (उत्तर २६)।
बंहिण :: (अप) ऊपर देखो (पि ४०६)।
बक :: देखो बय (पणह १, १ — पत्र ८)।
बक्कर :: न [दे. बर्कर] परिहास (दे ६, ८९; कुप्र १९७; कप्पू)।
बक्कम :: न [दे] अन्न-विशेष, 'बक्कसं मुद्रभाषा- दिनषिकानिष्पन्नमन्नं' (सुख ८, १२; उत्त ८, १२)।
बग :: देखो बय (दे २, ९; कुप्र ६९)।
बगदादि :: पुं [बगदादि] देश-विशेष, बगदाद देश; 'बगदादिविसयवसुहाहिवसस खलीपना- मधेयस्स' (हम्मीर ३४)।
बगी :: स्त्री [बकी] बगुली, बगुले की मादी (विपा १, ३; मोह ३७)।
बग्गड :: पुं [दे] देश-विशेष (ती १५)।
बज्झ :: वि [बाह्य] बाहर का, बहिरङ्ग (पणह १, ३ ; प्रासू १७२)। °ओ अ [°तस्] बाह्य से, बहिरंग से; 'किं ते जुज्झेण बज्झओ' (आचा)।
बज्झ :: न [बन्ध] बन्धन, बाँधने का वागुरा आदि साधन, 'अह तं पवेज बज्झं, अहे वज्झस्स वा वए' (सूअ १, १, २, ८)।
बज्ज :: वि [बद्ध] १ बन्धनाकार व्यवस्थित, 'अह तं पवेज्ज बज्झं' (सूअ १, १, २, ८) २ बँधा हुआ (प्रति १५)
बज्झंत, बज्झमाण :: देखो बन्ध = बन्ध्।
बठर :: पुं [बठर] मूर्खं छात्र (कुप्र १९)।
बड :: (अप) वि [दे] बड़ा, महान् (पिंग)। देखो वड्ड।
बडबड :: अक [वि + लप्] विलाप करना, बड़बड़ाना। बड़बडइ (षड़्)।
बडहिला :: स्त्री [दे] धुरा के मूल में जी जाती कील, कीलक-विशेष (सट्ठि ११६)।
बडिस :: देखो बलिस (हे १, २०२)।
बड्, बडुअ :: पुं [बटु, °क] लड़का, छोकड़ा (उप ७१३; सुपा २००)।
बड्डवास :: [दे] देखो वड्डवास (दे ७, ४७)।
बतीस, बत्तिस :: (अप) देखो बत्तीस (पिंग)।
बत्तीस :: स्त्रीन [द्वात्रिंशत्] १ संख्या-विशेष, बत्तीस, ३२)। २ जिनकी संख्या बत्तीस हों वे; 'बत्तीसं जोगसंगहा पन्नत्ता' (सम ५७; औप; उव; पिंग)। स्त्री. °सा (सम ५७)
बत्तीसइ° :: स्त्री. ऊपर देखो (सम ५७)। बद्धय न [°बद्धक] १ बत्तीस प्रकार रचनाओं से युक्त। २ बत्तीस पात्रों से निबद्ध (नाटक); 'बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं' (णाया १, १ — पुत्र ३९; विपा २, १ टी — पत्र १०४)। °विह वि [°विध] बत्तीस प्रकार का (सम ५७)
बत्तीसइम :: वि [द्वात्रिंशत्तम] १ बत्तीसवाँ, ३२ वाँ (पउम ३२, ९७; पणण ३२) २ न. पनरह दिनों का लगातार उपवास (णाया १, १)
बत्तीसा :: देखो बत्तीस।
बत्तीसिया :: स्त्री [द्वात्रिंशिका] १ बत्तीस पद्यों का निबन्ध — ग्रन्थ (सम्मत्त १४४) २ एक प्रकार का नाप (अणु)
बद्ध :: वि [बद्ध] १ बँधा हुआ, नियन्त्रित; 'बद्धं संदाणिअं निअलिअं च' (पाअ) २ संश्लिष्ट, संयुक्त (भग; पाअ) ३ निबद्ध, रचित (आवम) °प्फल, °फल पुं [°फल] १ करञ्ज का पेड़ (हे २, ९७) २ वि. फल-युक्त, फल-संपन्न (णाया १, ७ — पत्र ११६)
बद्धग :: पुं [बद्धक] तूण-वाद्य विशेष (राय ४६)।
बद्धय :: पुं [दे] कान का एक आभूषण (दे ६, ८९)।
बद्धेल्लग, बद्धेल्लय :: देखो बद्ध (अणु; महा)।
बप्प :: पुं [दे] १ सुभट, योद्धा (दे ६, ८८) २ बाप, पिता (दे ६, ८८; दस ७, १८; स ५८१; उप ३२० टी; सुर १, २२१; कुप्र ४३; जय; भवि; पिंग)
बप्पहट्ठि :: पुं [बप्पभट्टि] एक सुविख्यात जैन आचार्य (विचार ५३३; ती ७)।
बप्पीह :: पुं [दे] पपीहा, चातक पक्षी (दे ६, ९०; स ६८९; पाअ; हे ४, ३८३)।
बप्पुड :: वि [दे] बेचारा, दीन, अनुकम्पनीय गुजराती में 'बापडुं' (हे ४, ३८७; पिंग)।
बप्फ :: पुंन [बाष्ष] १ भाफ, ऊष्मा; 'बप्फो' (हे २, ७०; षड्), 'बप्फं' (प्राकृ २३; विसे १५३५) २ नेत्र-जल, अश्रु; 'बप्फं बाहो य नयणजलं' (पाअ), 'बप्फपज्जाउललोअणाहिं' (स ५६१; स्वप्न ८५)
बाप्फाउल :: वि [दे. बाष्पाकुल] अतिशय उष्ण (दे ६, ९२)।
बब्बर :: पुं [बर्बर] १ अनार्य देश-विशेष (पउम ९८, ६५) २ वि. बर्बर देश का निवासी (पणह १, १; पउम; ९९, ५५)। °कूल न [°कूल] बर्बर देश का किनारा (सिरि ४३०)
बब्बरी :: स्त्री [दे] केश-रचना (दे ६, ९०)।
बब्बरी :: स्त्री [बबँरी] बर्बंर देश की स्त्री (णाया १, १; औप; इक)।
बब्बूल :: पुं [बब्बूल] वृक्ष-विशेष, बबूल का पेड़ (उप ८३३ टी; महा)।
बब्भ :: पुं [दे] वर्ध्रं, चर्मं, चमड़े की रज्जु; 'बब्भो बद्धे' (दे ६, ८८); 'वज्जो बद्धो = (? बब्भो वद्धो)' (पाअ)।
बब्भागम :: वि [बह्वागम] बहु-श्रुत, शास्त्रों का अच्छा जानकार (कस)।
बब्भासा :: स्त्री [दे] नदी-भेद, वह नदी जिसके पूर से भावित पानी में धान्य आदि बोया जाता हो (राज)।
बब्भिआयण :: न [बाभ्रव्यायन] गोत्र-विशेष (इक)।
बभाल :: पुं [दे] कलकल, कोलाहल (दे ६, ९०)।
बम्ह :: पुं [ब्रह्मन्] १ ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७) २ देखो बंभ (हे २, ७४; कुमा; गा ८१६; अच्चु १३; वज्जा २६; सम्मत्त ७७; हे १, ५९; २, ६३; ३, ५६)। °चरिअ देखो बंभ-चेर (हे २, ६३; १०७)। °तरु पुं [°तरु] पलाश का पेड़ (कुमा)। °धमणी स्त्री [°धमनी] ब्रह्मनाड़ी (अच्चु ८४)
बम्हज्ज :: (शौ) देखो बंभण्ण (प्राकृ ८७)।
बम्हण :: देखो बंभण (अच्चु १७; प्रयौ ३७)।
बम्हण्णय :: देखो बंभण्णय (भग)।
बम्बहर :: [दे] देखो बंभहर (षड्)।
बम्हाल :: पुं [दे] अपस्मार, वायु रोग-विशेष, मृगी रोग (षड्)।
बय :: पुं [बफ] १ पक्षि-विशेष, बगुला। २ कुबेर। ३ महादेव। ४ पुष्प-वृक्ष विशेष, मल्लिका का गाछ (श्रा २३) ५ राक्षस- विशेष (श्रा २३) ६ असुर-विशेष, बकासुर (वेणी १७७)
बयाला :: देखो बा-याला (पव १९)।
बरठ :: पुं [दे] धान्य-विशेष (पव १५४ टी)।
बरह :: न [बर्ह] १ मयूर-पिच्छ (स ५००) २ पत्र। ३ परिवार (प्राकृ २८)। देखो बरिह।
बरहि, बरहिण :: पुं [बर्हिन्] मयूर, मोर (पाअ; प्राकृ २८; पउम; २८, १२०; णाया १, १; पणह १, १; औप)।
बरिह :: देखो बरह (हे २, १०४)। °हर पुं [°धर] मयूर (षड्; प्राकृ २८)।
बरिहि, बरिहिण :: देखो बरहि (कप्पू; हे ४, ४२२)।
बरुअ :: न [दे] तृण-विशेष, इक्षु-सदृश तृण (दे ५, १९; ६, ९१; पाअ)।
बरुड :: पुं [दे] शिल्पी-विशेष, चटाई बनानेवाला शिल्पी (अणु १४९)।
बल :: अक [ज्वल] जलाना, गुजराती में 'बळवुं'। बलंति (हे ४, ४१६)।
बल :: अक [बल्] १ जीना। २ सक. खाना। बलइ (हे ४, २५९)
बल :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। बलइ (षड्)। देखो वल = ग्रह्।
बल :: पुं [बल] १ बलदेव, हलधर, वासुदेव का बड़ा भाई (पउम २०, ८४; पाअ) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ एक क्षत्रिय परिव्राजक (औप) ४ न. सामर्थ्यं, पराक्रम (जी ४२; स्वप्न ४२; प्रासू ६३) ५ शारीरिक पराक्रम; 'बलवीरियाणं जओ भेओ' (अज्झ ९५) ६ सैन्य, सेना (उत्त ९, ४; कुमा) ७ खाद्य- विशेष; 'आसाढाहिं बलेहिं भोज्जा कज्जं साधेंति' (सुज्ज १०, १७) ८ अष्टम तप, लगातार तीन दिनों का उपवास (संबोध ५८) ९ पर्वंत-विशेष का एक कूट-शिखर (ठा ९) °च्छि वि [°च्छित्] १ बल का नाशक। २ न. जहर, विष (से २, ११) °ण्णु देखो °न्न (राज)। °देव पुं [°देव] हली, वासुदेव का बड़ी भाई, राम (सम ७१; औप)। °न्न वि [°ज्ञ] बल को जाननेवाला (आचा)। °भद्द पुं [°भद्र] १ भरतक्षेत्र का भावी सातवाँ वासुदेव (सम १५४) २ राजा भरत का एक प्रपौत्र (पउम ५, ३) ३ एक विमानावास, देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १३३) देखो °हद्द। °भाणु पुं [°भानु] राजा बलमित्र का भागिनेय (काल)। °महणा स्त्री [°मथनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४२)। °मित्त पुं [°मित्र] इस नाम का एक राजा (विचार ४९४; काल)। °व वि [°वत्] १ बलवान्, बलिष्ठ (विसे ७९८) २ प्रभूत सैन्यवाला (औप) ३ पुं. अहोरात्र का आठवाँ मुहुर्त (सुज्ज १०, १३) °वइ पुं [°पति] सेनापति, सेनाध्यक्ष (महा)। °वंत, °वग देखो °व (णाया १, १; औप; णाया १, ५)। °वत्त न [°वत्त्व] बलिष्ठता (ओधभा ६)। °वाउय वि [°व्यापृत] सैन्य में लगाया हुआ (औप)। °हद्द पुं [°भद्र] १ बलदेव। २ छन्द-विशेष (पिंग)। देखो °भद्द।
बलकार, बलक्कार :: पुं [बलात्कार] जबरदस्ती (पउम ४६, २९; दे ६, ४९; अभि २१७; स्वप्न ७९)।
बलक्कारिद :: (शौ) वि [बलात्कारित] जिस पर बलात्कार किया गया हो वह (नाट — मालती १२३)।
बलद्द :: पुं [दे] बलघ, बैल (सुपा ५४५, नाट — मृच्छ ९०)।
बलमड्डा :: स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे ६, ९२)।
बलमोडि :: देखो बलामोडि; 'मग्गिअलद्धे बल- मोडिचुंबिए अप्पणेण उवणीदे' (गा ८२७)। बलमोडिअ देखो बलमोडिअ; 'केसेसु बल- मोडिअ तेण समरम्मि जअस्सिरी गहिआ' (गा ९७७)।
बलय :: पुं [दे] बलध, बैल (पउम ८०, १३)।
बलया :: देखो बलाया (हे १, ६७)।
बलवट्टि :: स्त्री [दे] १ सखी। २ व्यायाम को सहन करनेवाली स्त्री (दे ६, ९१)
बलहट्ठुया :: स्त्री [दे] चने की रोटी (वज्जा ११४)।
बला :: अ. स्त्री [बलात्] जबरदस्ती, बलात्कार (से १०, ७८; औधभा २०); 'बलाए' (उप १०३१ टी)।
बला :: स्त्री [बला] १ मनुष्य की दश दशाओं में चौथी अवस्था, तीस से चालीस वर्षं तक की अवस्था (तंदु १६) २ दृष्टि-विशेष, योग की एक दृष्टि। ३ भगवान् कुन्थुनाथ की शासन-देवी, अच्युता (राज)
बलाका :: देखो बलाया (पणह १, १ — पत्र ८)।
बलाणय :: न [दे] १ उद्यान आदि में मनुष्य को बैठने के लिए बनाया जाता स्थान — बेंच आदि (धर्मंवि ३३; सिरि ५८९) २ द्वार, दरवाजा; 'पविसंतो चेव बलाणयम्मि कुज्जा निसीहिया तिन्नि' (चेइय १८८)
बलामोडि :: स्त्री [दे. बलामोटि] बलात्कार (दे ६, ९२)।
बलामोडिअ :: अ [दे. बलादामोट्य] बला- त्कार से, जबरदस्ती से; 'केसेसु बलालो़डिअ तेण अ समरम्मि जयसिरी गहिआ' (काप्र १६७; उत्तर १०३; पि २३८)।
बलामोलि :: देखो बलामोडि (से १०, ६४)।
बलाया :: स्त्री [बलाका] बक-विशेष, बिस- कण्ठिका, बगुले की एक जाति (हे १, ६७; उप १०३१ टी)।
बलाहग :: पुं [बलाहक] मेघ, जीमूत; 'गलिय- जलबलाहगपंडुर' (वसु)।
बलाहगा :: देखो बलाहया (ठा ८)।
बलाहय :: देखो बलाहग (णाया १, ५; कप्प; पाअ)।
बलाहया :: स्त्री [बलाहका] १ बक-विशेष, बलाका (उप २६४) २ देवी-विशेष, अनेक दिक्कुमारी देवियों का नाम (इक — पत्र २३१; २३४)
बलि :: पुं [बलि] १ असुरकुमारों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३; १०; इक) २ स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा (गा ४०६) ३ सातवाँ प्रतिवासुदेव (पउम ५, १५६) ४ एक दानव, दैत्य-विशेष (कुमा) ५ पुंस्त्री. उपहार, भेंट (पिंड १९५; दे १, ९६) ६ पूजोपहार, देवता को धरा जाता नैवेद्य; 'सुरहिबिलेवणवरकुसुमदामबलिदीवणेहिं च' (पव १ टी), 'वंदणपूयणबलिढोयणेसि' (चेइय ५२; पव १३३; सुर ३, ७८, कुप्र १७४) ७ भूत आदि को दिया जाता भोग, बलिदान; 'भूअबलिव्व' (वै ४६) ८ पूजा, अर्चा, सपर्या। ९ राज-ग्राह्य भाग। १० चामर का दण्ड। ११ उपप्लव (हे १, ३५) १२ छन्द-विशेष (पिंग) °उट्ठ पुं [°पुष्ट] काक, कौआ (पाअ)। °कम्म न [°कर्मन्] >१ पूजन, पूजा की क्रिया। २ देवता को उप- हार-नैवेद्य धरने की क्रिया (भग; सूअ २, २, ५५; णाया १, १; ८; कप्प; औप)। °चंचा स्त्री [°चञ्चा] बलीन्द्र की राजधानी, (णाया २; इक)। °मुह पुं [°मुख] वन्दर, कपि (पाअ)। °यम्म देखो °कम्म (पउम ३७, ४९)
बलि :: वि [बलिन्] १ बलवान्, बलिष्ठ (सुपा ४५१; कुप्र २७७) २ पुं. रामचन्द्र का एक सुभट (पउम ५९, ३८)
बलिअ :: वि [दे] १ पीन, मांसल, स्थूल, मोटा (दे ६, ८८; उप १४२ टी; बृह ३) २ क्रिवि. गाढ़, बाढ़, अतिशय, अत्यर्थं; 'गाढं बाढं बलिअं धणिअं दढमइसएण अच्चत्थं' (पाअ; णाया १, १ — पत्र ६४; भग ९, ३३)
बलिअ :: वि [बलिन्, बलिक] १ बलवान्, सबल, पराक्रामी; 'कत्थावि जीवो बलिओ कत्थवि कम्माइं हुंति बलियाइं' (प्रासू १२३), 'एस अम्ह ताओ बलियदाइयपेल्लिएओ इमं विसमं पल्लिं समस्सिओ' (महा, पउम ४८, ११७; सुपा २७५; औप) २ प्राणवाला (ठा ४, ३ — पत्र २४६)
बलिअ :: वि [बलित] जिसको बल उत्पन्न हुआ हो, सबल (कुप्र २७७)। २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)।
बलिअंक :: पुं [बलिताङ्क] छन्द-विशेष (पिंग)।
बलिआ :: स्त्री [दे. बलिका] सूर्पं, सूप, अन्न को तुषादि-रहित करने का एक उपकरण (आवम)।
बलिट्ठ :: वि [बलिष्ठ] बलवान्, सबल (प्रासू १५४)।
बलिद्द :: पुं [दे. बलीवर्द] बलध, वृषभ; 'दो सारबलिद्दावि हुं' (सुपा २३८)।
बलिमड्डा :: स्त्री [दे] बलात्कार; 'अन्नह बलि- मड्डाए गहिउमणो सोम ! एकलियं' (उप ७२८ टी)।
बलिवद्द :: देखो बलीवद्द (पउम ३३, ११९)।
बलिस :: न [वडिश] मछली पकड़ने का काँटा (हे १, २०२)।
बलिस्सह :: पुं [बलिस्सह] स्वनाम-ख्यात एख जैन मुनि, आर्यं महागिरि का एक शिष्य (कप्प)।
बलीअ :: वि [बलीयसम] अधिक बलवाला, बलिष्ठ (अभि १०१)।
बलीवद्द :: पुं [बलीवर्द] बैल, वृषभ (विपा १, २)।
बलुल्लड :: (अप) देखो बल = बल (हे ४, ४३०)।
बले :: अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्चय, निर्णय। २ निर्धारण (हे २, १८५; कुमा)
बल्ल :: न [बाल्य] बालत्व, बालकपन, शिशुता (कुमा ३, ३५)। देखो बाल = बाल्य।
बव :: सक [ब्रू] बोलना, कहना। बवइ, बवए (षड्)। देखो बुव, बू।
बव :: न [बव] ज्तोतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध एक करण (विसे ३३४८; सूअनि ११; सुपा १०८)।
बव्वाड :: पुं [दे] दक्षिण हस्त (दे ६, ८९)।
बहड :: वि [बृहत्] बड़ा महान्। °इच्च न [°दित्य] नगर-विशेष (ती ३५)।
बहत्तरी :: देखो बाहत्तरि (पव २०)।
बहप्पइ, बहप्फइ :: देखो बहस्सइ (हे १, १३८; २, ६९; १३७; षड्, कुमा; सम्मत्त १३७)।
बहरिय :: देखो बहिरिय, 'तालरवबहरियदियंतरं' (महा)।
बहल :: न [दे] पंक, कर्दम, कादा (दे ६, ८९)। सुरा स्त्री [°सुरा] पंकवाली मदिरा (दे ५, २)।
बहल :: वि [वहल] १ निबिड़, सान्द्र, , निरंतर, गाढ (गउड; हे २, १७७) २ स्थूल, मोटा (ठा ४, २; गउड) ३ पुष्कल, अत्यन्त (कप्पू)
बहलिम :: पुंस्त्री [बहलता] १ स्थूलता, मोटाई। २ सातत्य, निरंतरता (वज्जा ५२; गा ७५५)
बहली :: स्त्री [बहली] १ देश-विशेष, भारतवर्षं का एक उत्तरीय देश; 'तक्खसिलाए पुरीए वहलीविसयावंयभूयाए' (कुप्र २१२) २ बहली देश की स्त्री (णाया १, १ — पत्र ३७, औप, इक)
बहलीय :: वि [बहलीक] देश-विशेष में — बहली देश में रहनेवाला (पणह १, १ — पत्र १४)।
बहव :: देखो बहु; 'काले समइक्कंते अइबहवे' (पउम ४१, ३६), 'सोहग्गकप्पतरुवरपमुहतवे सा कुणइ बहवे' (सम्मत्त २१७), 'जायंति बहववेरग्गपल्लवुल्लासिणो झत्ति' (हि ५)।
बहस्सइ :: पुं [बृहस्पति] १ ज्योतिष्त-देव विशष, एक महाग्रह (ठा २, ३ — पत्र ७७; सुज्ज २० — पत्र २९४) २ सुराचार्यं, देव- गुरु (कुमा) ३ पुष्य नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १०, १२) ४ राजनीति-प्रणेता एक ऋषि। ५ नास्तिक मत का प्रवर्त्तंक एक विद्वान् (हे २, १३७) ६ एक ब्राह्मण, पुरोहित-पुत्र। ७ विपाकसूत्र का एक अध्ययन (विपा १, १)। °दत्त पुं [°दत्त] देखो अंत के दो अर्थं (विपा १, ५)
बहि :: अ [बहिस्] बाहर; 'अबहिलेसे परिव्वए' (आचा), 'गामबहिम्मि य तं ठाविऊण गाभंतरे पविट्ठो सो' (उप ७ टी)। °हुत्त वि [°दे] बहिर्मुंख (गउड)।
बहिअ :: वि [दे] मथित, विलोडित (षड्)।
बहिं :: देखो बहि (आचा; उव)।
बहिणिआ, बहिणी :: स्त्री [भगिनी] बहिन (अभि १३७; कप्पू; पाअ; पउम ६, ६; हे २, १२६; कुमा)। २ सखी, वयस्या (संक्षि ४७)। °तणअ पुं [°तनय] भगिनो- पुत्र (दे)। °वइ पुं [°पति] बहनोई (दे)। देखो भइणी।
बहित्ता :: अ [बहिस्तात्] बाहर (सुज्ज ९)।
बहिद्धा :: अ [दे] १ बाहर। २ मैथुन, स्त्री- संभोग (हे २, १७४; ठा ४, १ — पत्र २०१)
बहिद्धा :: अ [बहिर्धा] बाहर की तरफ (दस २, ४)।
बहिया :: अ [बहिस्, बहिस्तात्] बाहर (विपा १, १; आचा; उवा; औप)।
बहिर :: वि [बाह्य] बहिर्भूत, बाहर का (प्राकृ ३८)।
बहिर :: वि [बधिर] बहरा, जो सुन न सकता हो वह (विपा १, १; हे १, १८७; प्रासू १४३)।
बहिरिय :: वि [बधिरित] बधिर किया हुआ (सुर २, ७५)।
बहु :: वि [बहु] १ प्रचुर, प्रभूत, अनेक, अनल्प (ठा ३, १; भग; प्रासू ४१; कुमा; श्रा २७)। स्त्री. °हुई (षड्, प्राकृ २८) २ क्रिवि. अत्यन्त, अतिशय (कुमा ५, ६६; काल)। °उदग पुं [°उदक] वानप्रस्थ का एक भेद (औप)। °चूड़ पुं [°चूड] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४६)। °जपिर वि [°जल्पितृ] वाचाट, बकवादी (पाअ)। °जण पुं [°जन] अनेक लोग (भग)। २ न. आलोचना का एक प्रकार (ठा १०)। °णड देखो °नड (राज)। °णाय न [°नाद] नगर-विशेष (पउम ५५, ५३)। °देसिअ वि [°देश्य] कुछ ज्यादा, थोड़ा बहुत (आचा २, ५, १, २२)। °नड पुं [°नट] नट की तरह अनेक भेष को धारण करनेवाला (आचा)। °पडिपुण्ण, °पडिपुन्न वि [°परिपूर्ण] पूरा पूरा (ठा ६; भग)। °पढिय वि [°पठित] अति शिक्षित, अतिशय शिक्षित (णाया १, १४)। °पलावि वि [°प्रलापिन्] बकवादी (उप पृ ३३९)। °पुत्तिअ न [°पुत्रिक] बहु- पुत्रिका देवी का सिंहासन (निर १, ३)। °पुत्तिआ स्त्री [°पुत्रिका] १ णांभद्र नामक °पुत्तिआ की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १; णाया २) २ सौधर्म देवलोक की एक देवी (निर १, ३) °प्पएस वि [°प्रदेश] प्रचुर प्रदेश — कर्म-दल वाला (भग)। °फोड वि [°स्फोट] बहु-रक्षक (ओधभा १९१)। °भंगिय न [°भङ्गिक] दृष्टिवाद का सूत्र-विशेष (सम १२८)। °मय वि [°मत] १ अत्यन्त अभीष्ट (जीव १) २ अनुमोदित, संमत, अनुमत (काप्र १७९; सुर ४, १८८)। °भाइ वि [°मायिन्] अति कपटी (आचा)। °माण पु [°मान] अति- शय आदर (आवम; पि ६००; नाट — विक्र ५)। °माय वि [°माय] अति कपटी (आचा)। °मुल्ल, °मोल्ल वि [°मूल्य] मूल्यवान्, कीमती (राज; षड्)। °रय वि [°रत] १ अत्यन्त आसक्न (आचा) २ जमालि का अनुयायी। ३ न. जमालि का चलाया हुआ एक मत — क्रिया की निष्पत्ति अनेक समयों में ही माननेवाला मत (ठा १०; औप) °रय न [°रजस्] खाद्य-विशेष, चिउड़ा की तरह का एक प्रकार का खाद्य (आचा २, १, १, ३)। °रव वि [°रव] १ प्रभूत यथवाला, यशस्वी (सम ५१) २ न. एक विद्याधर-नगर (इक)। °रूवा स्त्री [°रूपा] सुरूप नामक भूतेन्द्र की एक अग्र- महिषो (ठा ४, १; णाया २)। °लेव पुं [°लेप] चावल आदि के चिकने माँड़ का लेप (पडि)। °वयण न [°वचन] बहुत्व- बोधक प्रत्यय (आचा २, ४, १, ३)। °विह वि [°विध] अनेक प्रकार का, नानाविध (कुमा; उव)। °विहिय वि [°विध, °विधिक] विविध, अनेक तरह का (सूअनि ९४)। °संपत्त वि [°संप्राप्त] कुछ कम संप्राप्त (भग)। °सच्च पुं [°सत्य] अहोरात्र का दशवाँ मुहुर्त (सुज्ज १०; १३)। °सो अ [°शस्] अनेक बार (उव; श्रा २७; प्रासू ४२; १५९; स्वप्न ५६)। °स्सुय वि [°श्रुत] शास्त्रज्ञ, शास्त्रों का अच्छा जानकार, पण्डित (भग; सम ५१; ठा ६ — पत्र ३५२; सुपा ५६४)। °हा अ [°धा] अनेकधा (उव; भवि)
बहुअ, बहुअय :: वि [बहु, °क] ऊपर देखो (हे २, १६४; कुमा; श्रा २७)।
बहुआरिआ, बहुआरी :: स्त्री [दे] बुहारी, झाड़ू (दे ८, १७ टी)।
बहुई :: देखो बहु = ई।
बहुखज्ज :: वि [बहुखाद्य] १ बहु-भक्ष्य, खूब खाने योग्य। २ पृथक् — चिउड़ा बनाने योग्य (आचा २, ४, २, ३)
बहुग :: देखो बहुअ (आचा ७)।
बहुजाण :: पुं [दे] १ चोर, तस्कर। २ धूर्त्तं, ठग। ३ जार, उपपति (षड्)
बहुण :: पुं [दे] १ चोर, तस्कर। २ धूर्त्तं (दे ६, ६७)
बहुणाय :: वि [बाहनाद] बहुनाद-नगर का (पउम ५५, ५३)।
बहुत्त :: वि [प्रभूत] बहुत, प्रचुर (हे १, २३३)।
बहुमुह :: पुं [दे. बहुमुख] दुर्जन, खल (दे ६, ९२)।
बहुराणा :: स्त्री [दे] खड्ग-धारा, तलवार की धार (दे ६, ९१)।
बहुरावा :: स्त्री [दे] शिवा, श्रृगाली (दे ६, ९१)।
बहुरिया :: स्त्री [दे] बुहारी, झाडू (बृह १)।
बहुल :: वि [बहुल] १ प्रचुर, प्रभूत, अनेक (कुमा; श्रा २८) २ बहुविध, अनेक प्रकार का (आवम) ३ व्याप्त (सुपा ६३०) ४ पुं. कृष्ण पक्ष (पाअ) ५ स्वनाम-ख्यात एक ब्राह्मण (भग १५)
बहुल :: पुं [बहुल] आचार्य महागिरि के शिष्य एक प्राचीन जैन मुनि (णंदि ४९)।
बहुला :: स्त्री [बहुला] १ गौ, गैया (पाअ) २ इस नाम की एक स्त्री (उवा)। °वण न [°वन] मथुरा नगरी का एक प्राचीन वन (ती ७)
बहुलि :: पुं [बहुलिन्] स्वनाम-ख्यात एक राज-पुत्र (उप ९३७)।
बहुली :: स्त्री [दे] माया, कपट, दम्भ (सुपा ६३०)।
बहुल्लिया :: स्त्री [दे] बड़े भाई की स्त्री (षड्)।
बहुल्ली :: स्त्री [दे] क्रोड़ोचिंत शालभञ्जिका, खेलने की पुतली (षड्)।
बहुवी :: देखो बहुई (हे २, ११३)।
बहुर्व्वाहि :: पुं [बहुव्रीहि] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास (अणु १४७)।
बहुअ :: वि [प्रभूत] बहुत, प्रचुर (गउड)।
बहेडय :: पुं [बिभीतक] १ बहेड़ा का पेड़ (हे १, ८८; १०५; २०६) २ न. बहेड़ा का फल (कुमा)
बा° :: वि. ब. [द्वा°, द्वि] दो, दो की संख्यावाला। °इस (अप) देखो °वीस (पिंग)। °ईस देखो °वीस (पिंग)। °णउइ स्त्री [°नवति] बानबे, ९२ (सम ९६; कम्म ६, २६)। °णउय वि [°नवत] ९२ वाँ (पउम ९२, २९)। °णुवइ देखो °णउइ (रयण ६२)। °याल, °यालीस स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] वयालीस, चालीस और दो, ४२ (उव; नव २; भग; सम ६६; कप्प; औप), स्त्री. °याला, °यालीसा (कम्म ६, ६; कप्प)। °यालीसइम वि [°चत्वा- रिशत्तम] बयालीसवाँ, ४२ वाँ (पउम ४२, ३७)। °र, °रस त्रि. ब. [°दशन्] बारह, १२; 'बारभिक्खुपडिमधरो' (संबोध २२; कम्म ४, ५; १५; नव २०; दं ७; कप्प; जी २८; उवा)। °रस वि [°दश] बारहवाँ, १२ वाँ (सुख २, १७)। °रसंग स्त्रीन [°दशाङ्ग] बारह जैन अंग-ग्रंथ (पि ४११), स्त्री. °गी (राज)। °रसभ वि [°दश] बारहवाँ (सूअ २, २, २१; पव ४६; महा)। °रसमासिय वि [°दशमासिक] बारह मास का, बारह-मास-संबन्धी (कुप्र १४१)। °रसय न [°दशक] बारह का समूह (ओधभा १५)। °रसवरिसिय वि [°दशवार्षिक] बारह वर्षं का (मोह १०२; कुप्र ६०)। °रसविह वि [°दशविध] बारह प्रकार का (नव ३०)। °रसाह न [°दशाह, °दशाख्य] १ बारहवाँ दिन। २ जन्म के बार- हवें दिन किया जाता उत्सव, बरही (णाया १, १; कप्प; औप; सुर ३, २५) °रसी स्त्री [°दशी] बारहवीं तिथि, द्वादशी (सम २९; पउम ११७, ३२; ती ७)। °रसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशत] एक सौ बारहवाँ (पउम ११२, २३)। °रह देखो °रस = दशन् (हे १, २१९)। °वट्टि स्त्री [°षष्टि] बासठ, ६२ (सम ७५; पंच ५, १८; सुर १३, २३८; देवेन्द्र १३७)। °वण (अप)। देखो °वन्न (पिंग)। °वण्ण देखो °वन्न (कुमा)। °वत्तर वि [°सप्तत] बहत्तरवाँ, ७२ वाँ (पउम ७२, ३८)। °वत्तरि स्त्री [°सप्तति] बहत्तर, ७२ (सम ८३; भग; औप, प्रासू १२९)। °वन्न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] बावन, पचास और दो, ५२ (सम ७१; महा); 'बावन्नं होंति जिणभवणा' (सुख ९, १)। °वन्न वि [°पञ्चाश] बावनवाँ (पउम ५२, ३०)। °वीस स्त्रीन [°विशति] बाईस, २२ (भग; जी ३४), स्त्री. °सा (पि ४४७)। °वीस वि [°विंश] बाईसवाँ, २२ वाँ (पउम २०, ८२; पव ४६) °वीसइ देखो वीस = विंशति (भग; पव १८६)। °वीसइम वि [°विंशतितम] १ बाईसवाँ, २२ वाँ (पउम २२, ११०; अंत २६) २ लगातार दस दिन का उपवास (णाया १, १ — पत्र ७२)। °वीसविह वि [°विंशतिविध] बाईस प्रकार का (सम ४०)। °सट्ठ वि [°षष्ट] बासठवाँ, ६२ वाँ (पउम ६२, ३७)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] बासठ, ६२ (सम ७५, पिंग)। °सी, °सीइ स्त्री [°अशीति] बयासी, ८२ (नव २; सम ८९; कप्प; कम्म ५, १७)। °सीइम वि [°अशीतितम] बयासीवाँ, ८२ वाँ (पउम ८२, १२२)। °हत्तर (अप) देखो °हत्तरि (सण)। °हत्तरि स्त्री [°सप्तति] बहत्तर, ७२ (कप्प; कुमा; सुपा ३१९)
बाअ :: पुं [दे] बाल, शिशु (षड्)।
बाइया :: स्त्री [दे] माँ, माता; गुजराती में 'बाई' (कुप्र ८७)।
बाउल्लया, बाउल्लिआ, बाउल्ली :: स्त्री [दे] पञ्चालिका, पुतली; 'आलिहियभित्तिबाउल्लयं व न हु मुंजिउं तरइ' (वचज्जा ११८; कप्पू; दे ६, ९२)।
बाउस :: देखो बउस (पिंड २४; ओघ ३४८)।
बाउसिय :: वि [बाकुशिक] 'बकुश' चारित्रवाला (सुख ६, १)।
बाउसिया :: स्त्री [बकुशिका] 'बकुश' चारित्रवाली (णाया १, १६ — पत्र २०६)।
बाढ :: क्रिवि [बाढ] १ अतिशय, अत्यन्त, घना (उप ३२०; पाअ; महा)। °क्कार पुं [°कार] स्वीकार-सूचक उक्ति (विसे ५६५)
बाण :: पुं [दे] १ पनस वृक्ष, कटहर का पेड़। २ वि. सुभग (दे ६, ९७)
बाण :: पुंस्त्री [बाण] १ वृक्ष-विशेष, कटसरैया का गाछ (पणण १७ — पत्र ५२६; कुमा) २ पुं. शर, बाण (कुमा; गउड) ३ पाँच की संख्या (सुर १६, २४९)। °वत्त न [°पात्र] तूणीर, शरधि (से १, १८)
बाध :: देखो बाह = बाध्। कवकृ. बाधीअमाण (पि ५६३)।
बाधा :: स्त्री [बाधा] विरोध (धर्मंसं ११७)।
बाधिय :: वि [बाधित] विरोधवाला, प्रमाण- विरुद्ध (धर्मंसम २५९)।
बाह्मण :: देखो बम्हण (हे १, ६७; षड्)।
बाय :: न [बाक] बक-समूह (श्रा २३)।
बायर :: वि [बादर] १ स्थूल, मोटा, असूक्ष्म (पणह १, १; पव १६२; दे ४४) २ नववाँ गुण-स्थानक (कम्म २, ३; ५; ७)। °नाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, स्थूलता-हेतु कर्म (सम ६७)
बार :: न [द्वार] दरवाजा (हे १, ७९)।
बारगा :: स्त्री [द्वारका] स्वनाम-प्रसिद्ध नगरी, जो आजकल भी कठियावाड़ में 'द्वारका' के ही नाम से प्रसिद्ध है (उत्त २२, २२; २७)। बारवई स्त्री [द्वारवती] १ ऊपर देखो (सम १५१; णाया १, ५; उप ६४८ टी) २ भगवान् नेमिनाथ की दीक्षा शिविका (विचार १२९)
बाल :: पुं [बाल] १ बाल, केश (उप ८३४) २ बालक, शिशु (कुमा; प्रासू ११६) ३ वि. मूर्ख, अज्ञानी (पाअ) ४ नया, नूनन (कप्पू) ५ पुं. स्वनाम-ख्यात एक विध्याधर राजा (पउम १०, २१) ६ वि. असंयत, संयम-रहित (ठा ४, ३)। °कइ पुं [°कवि] तरुण कवि, नया कवि (कप्पू)। °क्क पुं [°र्क] उदित होता सूर्यं (कुमा)। °ग्गाह पुं [ग्राह] बालक की सार-सम्हाल करनेवाला नौकर (सुर १, १९२)। °ग्गाहि पुं [°ग्राहिन्] वही पूर्वोक्त अर्थं (णाया १, २ — पत्र ८४)। °घाय वि [°घात] बाल- हत्या करनेवाला (णाया १, २; १८)। °तव पुंन [°तपस्] १ अज्ञानी की तपश्चर्या (भग; औप) २ वि. अज्ञान पूर्वंक तप करनेवाला (कम्म १, ५९)। °तवस्सि वि [°तपस्विन्] अज्ञान-पूर्वंक तप करनेवाला, मूर्ख तपस्वी (पि ४०५)। °पंडिअ वि [°पण्डित] आंशिक त्याग करनेवाला, कुछ अंशों में त्यागी और कुछ में अत्यागी (भग)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] अनभिज्ञ (धण ५०)। °मरण न [°मरण] अवरित दशा का मरण, असंयमी की मौत (भग; सुपा ३५७)। °वियण, °वीयण पुंस्त्री [°व्यजन] चामर, चँवर (णाया १, ३), स्त्री. 'उवणहाओ बालवी- अणो' (ठा ५, १ — पत्र ३०३)। °हार पुं [°धार] बालक का सार-सम्हाल करनेवाला नौकर (सुपा ४५८)
बाल :: देखो बल। °ण्ण, °न्न वि [°ज्ञ] बल को जाननेवाला (आचा १, २, ५, ५; आचा)।
बाल :: न [बाल्य] बालत्व, बचपन, लड़कपन, लपन, मूर्खता (उत्त ७, ३०)। देखो बल्ल।
बालअ :: देखो बाल = बाल (गा १२६)।
बालअ :: पुं [दे] वणिक्-पुत्र (दे ६, ९२)।
बालग्गपोइआ :: स्त्री [दे] १ जल-मन्दिर, तलाव आदि में बनवाया जाता छोटा प्रासाद। २ वलभी, अट्टालिका (उत्त ९, २४)
बाला :: स्त्री [बाला] १ कुमारी, लड़की (कुमा) २ मनुष्य की दस अवस्थाओं में पहली दशा, दस वर्षं तक की अवस्था (तंदु़ १६) ३ छन्द-विशेष (पिंग)
बालालुंबी :: स्त्री [दे] तिरस्कार, अवहेलना (सुपा १४)।
बालि :: वि [बालिन्] बाल-प्रधान, सुन्दर केशवाला (अणु; बृह १)।
बालिआ :: स्त्री [बालिका] बाला, कुमारी, लड़की (प्रासू ५१; महा)।
बालिआ :: स्त्री [बालता] १ बालकपन, शिशुता (भग) २ मूर्खता, बेवकूफी, 'बिइया मंदस्सा बालिया' (आचा)
बालिस :: वि [बालिश] मूर्खं, बेवकूफ (पाअ; धण २३)।
बाह :: सक [बाध्] १ विरोध करना। २ रोकना। ३ पीड़ा करना। ४ विनाश करना। बाहइ, बाहए (पंचा ५, १५; हे १, १८७; उव), बाहंति (कुप्र ९८)। कवकृ. बाहिज्जंत, बाहीअमाण (पउम १८, १९; सुपा ६४५; अभि २४४)। कृ. बाहणिज्ज (कप्पू)
बाह :: पुं [बाष्प] अश्रु, आँसु (हे २, ७०; पाअ; कुमा)।
बाह :: पुं [बाध] विरोध (भास ३४)।
बाह :: देखो बाढ (प्रयौ ३७)।
बाह :: पुं [बाहु] हाथ, भुजा (संक्षि २)।
बाहग :: वि [बाधक] १ रोकनेवाला (पंचा १, ४९) २ विरोधी; 'अब्भुवगयबाहगा नियमा' (श्रावक १६२)
बाहड :: पुं [बाहड, वाग्भट] राजा कुमारपाल का स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री (कुप्र ६)।
बाहण :: न [बाधन] १ बाधा, विरोध (धर्मंसं १२७६) २ विराधन (पंचा १६, ५)
बाहणा :: स्त्री [बाधना] ऊपर देखो (धर्मंसं १११)।
बाहर :: देखो बाहिर (आचा)।
बाहल :: पुं [बाहल] देश-विशेष (आवम)।
बाहल्ल :: न [बाहल्य] स्थूलता, मोटाई (सम ३५; ठा ८ — पत्र ४४०; औप)।
बाहा :: स्त्री [बाधा] १ हरकत, हरज। २ विरोध (सुपा १२६) ३ पीड़ा, परस्पर संश्लेष से होनेवाली पीड़ा (जं १; भग १४, ८)
बाहा :: स्त्री [बाहु] हाथ, भुजा (हे १, ३६; कुमा; महा; उवा; औप)।
बाहा :: स्त्री [दे. बाहा] नरकावास-श्रेणी (देवेन्द्र ७७)।
बाहि, बाहिं :: अ [बहिस्] बाहर (सुज्ज १९ — पत्र २७१; महा; आचा; कुमा; हे २, १४०; पि ४८१)।
बाहिज्ज :: न [बाधिर्य] बधिरता, बहरापन (विसे २०८)।
बाहिर :: अ [बहिस्] बाहर (हे २, १४०; पाअ; आचा; उव)। °ओ अ [°तस्] बाहर से (कप्प)।
बाहिर :: वि [बाह्य] बाहर का (आचा; ठा २, १ — पत्र ५५; भग २, ८ टी)। °उद्धि पुं [°ऊर्ध्विन्] कायोत्सर्गं का एक दोष, दोनों पार्ष्णि मिलाकर और पैर को फैलाकर किया जाता कायोत्सर्गं (चेइय ४८६)।
बाहिरंग :: वि [बाहिरङ्गं] बाहर की, बाह्य (सूअ २, १, ४२)।
बाहिरिय :: वि [बाहिरिक, बाह्य] बाहर का, बाहर से संबन्ध रखनेवाला (सम ८३; णाया १, १; पिंड ६३६; औप; कप्प)।
बाहिरिया :: स्त्री [बाहिरिका] किले के बाहर की गृह-पंक्ति, नगर के बाहर का मुहल्ला (सूअ २, ७, १; स ९६)।
बाहिरिल्ल :: वि [बाह्य] बाहर का (भग; पि ५९५)।
बाहु :: पुंस्त्री [बाहु] १ हाथ, भुजा (हे १, ३६; आचा; कुमा) २ पुं. भघवान् ऋषभदेव का पुत्र, बाहुबलि (कुप्र ३१०) °बलि पुं [°बलि] १ भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र, तक्षषशिला का एक राजा (सम ९०; पउम ४, ५२; उव) २ बाहुबलि के प्रपौत्र का पुत्र (पउम ५, ११)। °मूल न [°मूल] कक्षा, बगल (कप्पू)
बाहुआ :: पुं [बाहुक] स्वनाम-ख्यात एक ऋषि (सूअ १, ३, ४, २)।
बाहुडअ :: वि [दे] लज्जित, शरर्मिदा (सुपा ४७४)।
बाहुया :: स्त्री [बाहुका] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (राज)।
बाहुलग :: देखो बाहु (तंदु ३९)।
बाहुलेय :: पुं [बाहुलेय] गो-वत्स, बैल, वृषभ (आवम)।
बाहुलेर :: पुं [बाहुलेय] काली गाय का बछड़ा (अणु २१७)।
बाहुल्ल :: न [बाहुल्य] बहुलता, प्रचुरता (पिंड ५६; भग; सुपा २७; उप ९०७)।
बाहुल्ल :: वि [बाष्पवत्] अश्रुवाला (कुमा; सुपा ४९०)।
बि :: वि. ब. [द्वि] दो, २; 'बिन्नि' (हे ४, ४१८; नव ४; टा २, २; कम्म ४, २; १०; सुख १, १४)। °जडि पुं [°जटिन्] एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव-विशेष (सुज्ज २०)। °दल न [°दल] चना आदि वह धान्य जिसके दो टुकड़े बराबर के होते हैं; 'जह बिदल सूलीणं' (वि ३)। °याल देखो बा — याल (कम्म ६, २८)। °यालसय पुंन [°चत्वारिंशच्छत] एक सौ बेआलीस, १४२ (कम्म २, २६)। °विह वि [°विध] दो प्रकार का (पिंग)। °लट्ठि स्त्री [°षष्टि] बासठ, ६२ (सुज्ज १०, ६ टी)। °सत्तारि, °सयरि स्त्री [°सप्तति] बहत्तर, ७२ (पव १६; जीवस २०९; कम्म ३, ५)।
बि°, बिअ :: वि [द्वितीय] दूसरा (कम्म ३, १६; पिंग)। °कसाय पुं [°कषाय] अप्रत्याख्यानावरण नामक कषाय (कम्म ४, ५६)।
बिअ :: न [द्विक] दो का समुदाय, युग्म, युगल (भग; कम्म १, ३३; प्रासू १९)।
बिआया :: स्त्री [दे] कीट-विशेष, संलग्न रहनेवाला कीट-द्वय (दे ६, ९३)।
बिइअ :: देखो बिइज्ज (हे १, ५; पव १९४)।
बिइआ :: देखो बीआ (राज)।
बिइज्ज :: वि [द्वितीय] १ दूसरा (हे १, २४८; प्रासू ५९) २ सहाय, मदद करनेवाला (पाअ; सुर ३, १४); 'जे दुहियम्मि न दुहिया, आवइपत्ते बिइज्जया नेव। पहुणो न ते उ भिच्चा, धुत्ता परमत्थओ णेया' (सुर ७, १४५)
बिउण :: वि [द्विगुण] दुगुना (हे १, ९४; २, ७९; गहा २८९)। °रय वि [°कारक] दुगुना करनेवाला (भवि)।
बिउण :: सक [द्विगुणय्] दुगुना करना। बिउणेइ (पि ५५९)।
बिंट :: न [वृन्त] फलादि का बन्धन; 'बंधणं बिंटं' (पाअ)। °सुरा स्त्री [°सुरा] मदिरा, दारू; 'बिंटसुरा पिंट्ठखउरिया मइरा' (पाअ)।
बिंत :: देखो बू =ब्रू।
बिंदिय :: वि [द्वीन्द्रिय] जिसको त्वचा और जीभ ये दो ही इन्द्रियां हो वह (औप)।
बिंदु :: पुंन [बिन्दु] १ अल्प अंश। २ बिन्दी, शून्य, अनुस्वार। ३ दोनों भ्रू का मध्य भाग। ४ रेखागणित का एक चिन्ह; 'बिंदुणो, बिंदुई' (हे १, ३४; कप्प, उप १०२२; स्वप्न ३९; कस; कुमा) °कला स्त्री [°कला] अनुस्वार, बिन्दी (सिरि १९६)। °सार न [°सार] १ चौदहवाँ पूर्वं, जैन ग्रन्थांश- विशेष (सम २७; विसे ११२६) २ पुं. भौर्यं वंश का एक राजा, राजा चन्द्रगुप्त का पुत्र (विसे ८९२)
बिंदुइअ :: वि [बिन्दुकित] बिन्दु-युक्त, बिन्दु- विलिप्त (पाअ; गउड)।
बिंदुइज्जंत :: वि [बिन्दूयमान] बिन्दुओं से व्याप्त होता (से ११, १२५)।
बिंद्रावण :: न [वृन्दावन] मथुरा के पास का एक वैष्णव-तीर्थं (प्राकृ १७)।
बिंब :: सक [बिम्ब्] प्रतिबिम्बित करना। कर्मं. बिंबिज्जइ (सूक्त ४६)।
बिंब :: न [बिम्ब] १ प्रतिमा, मूर्त्ति (कुमा) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ नय बिम्बीफल, कुन्दरुन का फल (णाया १, ८ — पत्र १२६ पाअ; कुमा; दे २, ३९) ४ प्रतिबिम्ब, प्रतिच्छाया। ५ अर्थ-शून्य आकार, 'अणणं जणं पस्सति बंबभूयं' (सूअ १, १३, ८) ६ सूर्यं तथा चन्द्र का मण्डल (गउड; कप्पू)
बिंबवय :: न [दे] फल-विशेष, भिलावाँ; 'बिंबवयं भल्लायं' (पाअ)।
बिंबिसार :: देखो भिंभिसार (अंत)।
बिंबी :: स्त्री [बिम्बी] लता-विशेष, कुन्दरुन का गाछ (कुमा)। °फल न [°फल] कुन्दरुन का फल (सुपा २९३)।
बिंबोवणय :: न [दे] १ क्षोभ। २ विकार। ३ ओसीसा, उच्छीर्षंक (दे ६, ९८)
बिंह :: सक [बृंह] पोषण करना। कृ. देखो बिंहणिज्ज।
बिंहणिज्ज :: वि [बृंहणीय] पुष्टि-जनक (ठा ६ — पत्र ३७५; णाया १, १ — पत्र १९)।
बिंहिअ :: वि [बृंहित] पुष्ट, उपचित (हे १, १२८)।
बिग्गइआ, बिग्गाई :: स्त्री [दे] कीट-विशेष, संलग्न रहता कीट-युग्म, गुजराती में 'बगाई' (दे ६, ९३)।
बिज्ज :: देखो बीज; 'बिज्जं पिव वड्ढिया बहवे' (पउम ११, ९६)।
बिज्जउर :: न [बीजपूर] फल-विशेष, एक तरह का नीबू; 'बिज्जउरचिब्भिडेहिं कुणइ पिहा- णाइं सव्वत्थ' (सुपा ६३०)।
बिज्जय :: (अप) देखो बिइज्ज (भवि)।
बिट्ट :: पुं [दे] बेटा, लड़का, पुत्र (चंड)।
बिट्टी :: स्त्री [दे] बेटो, पुत्री, लड़की (चंड; हे ४, ३३०)।
बिट्ठ :: वि [दे. विष्ट] बैठा हुआ, उपविष्ट (ओघ ४७१)।
बिडाल :: पुं [बिडाल] मार्जार, बिलाव, बिलार, बिल्ला (पि २४१)।
बिडालिआ, बिडाली :: स्त्री [बिडालिका, °स्त्री] बिल्ली, मार्जारी, बिलारी, बिलैया (सम्मत्त १२२; पि २४१)। देखो बिरालिआ।
बिडिस :: देखो बडिस (उप १४२ टी)।
बिदिय :: देखो बिइअ (उप २७६)।
बिन्ना :: स्त्री [बेन्ना] भारत की एक नदी (पिंड ५०३)।
बिब्बोअ :: पुं [विव्वोक] १ स्त्री की श्रृंगार- चेष्टा-विशेष, इष्ट अर्थं की प्राप्ति होने पर गर्वं से उत्पन्न अनादर-क्रिया (पणह २, ४ — पत्र १३१; णाया १, ८ — पत्र १४२; भत्त १०९) २ न. उपधान, तकिया, ओसोसा; 'सयणीअं तूलिअं सबिब्बोअं' (गच्छ ३, ८)
बिब्बोअ :: पुं [बिब्बोक] काम-विकार (अणु १३६)।
बिब्बोइअ :: न [बिब्बोकित] स्त्री की श्रृंगार- चेष्टा का एक भेद (पणह २, ४ — पत्र १३१)।
बिब्बोयण :: न [दे] उपाघान, तकिया, ओसीसा (णाया १, १ — पत्र १३)।
बिझेलय :: देखो बहेडय (पणण १ — पत्र ३१)।
बिराड :: पुं [बिडाल] १ पिंगल-प्रसिद्ध मध्य- लघुक पाँच मात्रावाला अक्षर-समूह। २ छंद- विशेष (पिंग)
बिराल :: देखो बिडाल (सुर १, १८)।
बिरालिआ, बिराली :: देखो बिडालिआ (सम्मत्त १२३; पाअ)। २ भुजपरिसर्पं- विशेष, हाथ से चलनेवाला एक प्रकार का प्राणी (सूअ २, ३, २५)
बिरालिआ :: स्त्री [बिरालिका] स्थल-कन्द- विशेष (आचा २, १, ८, ३ )।
बिरुद :: न [विरुद] इल्काब, पदवी (सम्मत्त १४१)।
बिल :: न [बिल] १ रन्ध्र, विवर, साँप आदि जन्तुओं के रहने का स्थान (विपा १, ७, गउड) २ कूप, कुआँ (राय)। °केलीकारक वि [दे. °केलीकारक] दूसरे को व्यामुग्ध करने के लिए विस्वर वचन बोलनेवाला (पणह १, ३ — पत्र ४४)। °पंतिया स्त्री [°पङ्क्तका] खान की पद्धति (पणह २, ५ — पत्र १५०)
बिलाड, बिलाल :: देखो बिडाल (भग; पि २४१)।
बिलालिआ :: देखो बिलालिआ (पि २४१)।
बिल्ल :: पुं [बिल्व] १ वृक्ष-विशेष, बेल का पेड़ (पणण १; उप १०३१ टी) २ न. बेल का फल (पाअ)
बिल्लल :: पुं [बिल्वल] १ अनार्य देश-विशेष। २ उस देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (पणह १, १ — पत्र १४)। देखो चिल्लल = चिल्वल।
बिस :: न [बिस] कमल आदि के नाल का तन्तु, मृणाल (णाया १, १३; कुमा; पाअ)। °कंठी स्त्री [°कण्ठी] बलाका, बक पक्षी की एक जाति (दे ६, ९३)। देखो भिस = बिस।
बिसि :: देखो बिसी (दे १, ८३)।
बिसिणी :: स्त्री [बिसिनी] कमलिनी, कमल का गाछ (पि २०९)।
बिसी :: स्त्री [बृषी] ऋषि का आसन (दे १, ८३; पि २०९)।
बिह्न :: अक [भी] डरना। बिहेइ (प्राकृ ६४; पि २०१)।
बिह :: वि [बृहत्] बड़ा महान्। °ण्णर पुं [°नल] छन्द-विशेष (पिंग)।
बिहप्पइ, बिहप्फइ, बिहस्सइ :: देखो बहस्सइ (हे २, १३७; १, १३८; २, ६९; षड्; कुमा)।
बिहिअ :: देखो बिंहिअ (प्राकृ ८)।
बिहेलग :: देखो बिभेलय (दस ५, २, २४)।
बीअ :: देखो बिइअ (हे १, ५; २, ७९; सुर १, ३८; सुपा ४८५)।
बीअ :: न [बीज] १ बीज; 'बीया; 'लाउअबीअं इक्कं नासइ भारं गुडस्स जह सहसा' (प्रासू १५१; आचा; जी १३; औप) २ मूल कारण; 'सारीरमाणसाणेयदुक्खबीयभूयकम्म- वणदहणसहं' (महा) ३ वीर्यं, शरीरान्तर्गंत सप्त धातुओं में से मुख्य धातु, शुक्र (सुपा ३९०; वव ९) ४ 'ह्रीं' अक्षर (सिरि १९६)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] मूल अर्थं को जानने से शेष अर्थों का निज बुद्धि से स्वयं जाननेवाला (औप)। °मंत वि [°वत्] बीजवाला (णाया १, १)। °रुइ स्त्री [°रुचि] एक ही पद से अनेक पद और अर्थों का अनुसंधान द्वारा फैलनेवाली रुचि। २ वि. उक्ति रुचिवाला (पणण १)। °रुह वि [°रुह] बीज से उत्पन्न होनेवाली वनस्पति (पणण १)। °वाय पुं [°वाप] क्षुद्र जन्तु- विशेष (राज)। °सुहुम न [°सूक्ष्म] छिलके का अग्र भाग (कप्प)
बीअऊरय :: न [बीजपूरक] फल-विशेष, एक तरह की नीबू (मा ३६)।
बीअजमण :: न [दे] बीज मलने का खल — खलिहान (दे ६, ९२)।
बीअण :: पुं [दे] नीचे देखो (दे ६, ९३ टी)।
बीअय :: पुंन [दे. बीजक] वृक्ष-विशेष, आसन वृक्ष, विजयसार का गाछ (दे ६, ९३; पाअ)।
बीअवावय :: पुं [बीजवापक] विकलेन्द्रिय जन्तु की एक जाति (अणु १४१)।
बीआ :: स्त्री [द्वितीया] १ तिथि-विशेष, दूज (सम २९; श्रा २९, रयण २; णाया १, १०; सुपा १७१) २ द्वितीय विभक्ति (चेइय ५०९)
बीज :: देखो बीअ = बीज (कुमा; पणह २, १ — पत्र ९९)।
बीडग :: न [बीटक] बीड़ा; पान का बीड़ा, सज्जित ताम्बूल (सुपा ३३९)।
बीडि, बीडई :: स्त्री [बीटि, °टी] ऊपर देखो; 'बिल्लदलबीडीओ कीसोवि मुहम्मि पक्खिवइ' (धर्मंवि १४०)।
बीभच्छ :: पुं [] [बीभत्स] साहित्य प्रसिद्ध एक- रस (अणु १३५)।
बीभच्छ, बीभत्थ :: वि [बीभत्स] १ घृणोत्पादक, घृणा-जनक। २ भयंकर, भय- जनक (उवा; तंदु ३८; णाया १, २; संबोध ४४) ३ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५९, २)
बीयत्तिय :: वि [दे. बीजयितृ] बीज बोनेवाला, वपन करनेवाला। २ पुं. पिता; 'बीयं बीयत्ति- यस्सेव' (सुपा ३९०; ३९१)
बीलय :: पुं [दे] ताडंकर, कर्णंभूषण-विशेष; कान का एक गहना (दे ६, ९३)।
बीह :: अक [भी] डरना। बीहइ, बीहेइ (हे ४, ५३; महा; पि २१३)। वकृ. बीहंत (ओघभा १९; उप ७६८ टी; कुमा)। कृ. बीहियव्व (स ६८२)।
बीहच्छ :: देखो बीभच्छ (पि ३२७)।
बीहण, बीहणग, बीहणय :: वि [भीषण, °क] भय-जनक, भयंकर (पि २१३; पणह १, १; पउम ३५, ५४)।
बीहविय :: वि [भीषित] डराया हुआ (सम्मत्त ११८)।
बीहिअ :: वि [भीत] १ डरा हुआ (हे ४, ५३) २ नय भय, डर; 'न य बीहिअं
ममावि :: हु' (श्रा १४)।
बीहिर :: वि [भेतृ] डरनेवाला (कुमा ६, ३५)।
बुलाव :: सक [वाचय्] बुलवाना। संकृ. बुआवइत्ता (ठा ३, २ — पत्र १२८)।
बुइअ :: वि [उक्त] कथित (सूअ १, २, २ २४; १, १४, २५; पणह २, २)।
बुंदि :: पुंस्त्री [दे] १ चुम्बन। २ सूकर, सूअर (दे ६, ९८)
बुंदि :: स्त्री [दे] शरीर, देह; 'इह बुंदि चइत्ताण तत्थ गंतूण सिज्झइ' (ठा १ टी — पत्र २४; सुज्ज २०; तंदु १३; सुपा ६५६; धम्म ९ टी; पाअ)। देखो बोंदि।
बुंदिणी :: स्त्री [दे] कुमारी-समूह (दे ६, ९४)।
बुंदीर :: पुं [दे] १ महिष, भेंसा। २ वि, महान्, बड़ा (दे ६, ९८)
बुंध :: न [बुध्न] १ वृक्ष का मूल। २ कोई भी मूल, मूलमात्र (हे १, २६; षड्)
बुंबा :: स्त्री [दे] चिल्लाहट, पुकार (सुपा ५९५)।
बुंबु :: पुं [दे] ऊपर देखो (करु ३१)।
बुंबुअ :: न [दे] बृन्द, यूथ, समूह (दे ६, ९४)।
बुक्क :: वि [दे] विस्मृत (वव १)।
बुक्क :: अक [गर्ज, बुक्क्] गर्जंन करना, गरजना। बुक्कइ (हे ४, ९८)।
बुक्क :: अक [भष्, बुक्क्] श्वान — कुत्ता का भूँकना। बुक्कइ (षड्)।
बुक्क :: पुंन [दे] १ तुष, छिलका (सुख १८, ३७) २ वाद्य-विशेष; 'बुक्कतंबुक्कसंबुक्कसंददु- क्कडं' (सुपा ५०)
बुक्कण :: पुं [दे] काक, कौआ (दे ६, ९४; पाअ)।
बुक्कस :: देखो बोक्कस (राज)।
बुक्का :: स्त्री [दे] १ मुष्टि (दे ६, ९४; पाअ) २ व्रिहिमुष्टि (दे ६, ९४) ३ वाद्य-विशेष; 'ढक्काडक्कहुडुक्काबुक्कासंबुक्करडिपभिईणं आउ- जाणं' (सुपा १९५)
बुक्का :: स्त्री [गर्जना] गर्जन, गर्जारव (पउम ६, १०८; गउड)।
बुक्कार :: पुं [दे. बूङ्कार] गर्जन, गर्जना (पउम ७, १०५; गउड)।
बुक्कास :: पुं [दे] तन्तुवाय, जुलाहा (आचा २, १, २, २)।
बुक्कासार :: वि [दे] भीरु, डरपोक (दे ६, ९५)।
बुक्किअ :: वि [गर्जित] जिसने गर्जना की हो वह; 'अह बुक्किआ तुह भडा' (कुमा)।
बुज्झ :: सक [बुध्] १ जानना, ज्ञान करना, समझना। २ जागना। बुज्झइ (उव)। भूका. बुज्झिंसु (भग)। भवि. बुज्झिहिइ (औप)। वकृ. बुज्झंत, भुज्झमाण (पिंग; आचा)। संकृ. बुज्झा (हे २, १५)। कृ. बुद्ध, बोद्धव्व, बोधव्व (पिंग; कुमा; नव २३; भग; जी २१)
बुज्झविय, बुज्झाविअ :: वि [बोधित] १ जिसको ज्ञान कराया गया हो वह। २ जगाया गया (कुप्र ६४; सुपा ४२५; प्राकृ ६८)
बुंज्झेअ :: वि [बुद्ध] ज्ञात, विदित (पाअ)।
बुज्झिर :: वि [बोद्धृ] १ जाननेवाला। २ जागनेवाला (प्राकृ ६८)
बुडबुड :: अक [बुडबुडय्] बुडबुड आवाज करना; 'सुरा जहा बुडबुडेइ अव्वत्तं' (चेइय ४९२)।
बुड्ड :: अक [ब्रुड, मस्ज्] डूबना। बुड्डइ (हे ४, १०१; उव; कुमा; भवि)। भवि. बुड्डीसु (अप) (हे ४, ४२३)। वकृ. बुड्डंत, बुड्डमाण (कुमा; उप १०३१ टी)। प्रयो, वकृ. बुड्डावंत (संबोध १५)।
बुड्ड :: वि [ब्रुडिंत, मग्न] डूबा हुआ, निमग्न (धम्म १२ टी; गा ३७; रंभा २३, सुर १०, १८९; भवि); 'घयबुड्डमंडगाई' (पव ४ टी)।
बुड्डण :: न [ब्रुडन] डूबना (संवे २; कप्पू)।
बुड्डिर :: पुं [दे] महिष, भैंसा (षड्)।
बुड्ढं :: वि [वृद्ध] बूढ़ा (पिंग)। स्त्री. °ड्ढा, °ड्ढी (काप्र १९७; सिरि १७३)।
बुण्ण :: वि [दे] १ भीत, डरा हुआ। २ उद्विग्न (दे ७, ९४ टी)
बुत्ती :: स्त्री [दे] ऋतुमती स्त्री (दे ६, ९४)।
बुद्ध :: वि [बुद्ध] १ विद्वान्, पण्डित, ज्ञात- तत्व (सम १; उप ६१२ टी, श्रा १२; कुप्र ४०; श्रु १) २ जागा हुआ, जागृत (सुर ९, २४३) ३ भूत, भविष्य और वर्त्तमान का जानकार (चेइय ७१३) ४ विज्ञात, विदित (ठा ३, ४) ५ पुं. जिन-देव, अर्हंन्, तीर्थकर (सम ६०) ६ बुद्धदेव, भगवान् बुद्ध (पाअ; दे ७, ५१; उर ३, ७; कुप्र ४४०; धर्मंसं ६७२) ७ आचार्यं; सूरि (उत्त १, १७)। °पुत्त पुं [°पुत्र] आचार्यं शिष्य (उत्त १, ७)। °बोहिय वि [°बोधित] आचार्यं-बोधित (नव ४३)। °माणि वि [°मानिन्] निज को पण्डित माननेवाला (सूअ १, ११, २५)। °लय पुंन [°लय] बुद्ध-मन्दिर (कुप्र ४४२)
बुद्ध :: वि [बौद्ध] १ बुद्ध-भक्ता। २ बुद्ध-संबन्धी, बुद्ध का (ती ७; सम्मत्त ११९)
बुद्ध :: देखो बुज्झ।
बुद्ध :: देखो बुंध (सुज्ज २०)।
बुद्धंत :: पुंन [बुध्नान्त] अधो-भाग, नीचे का हिस्सा; 'ता राहु णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिणिहत्ता बुद्धंतेणं मुयइ' (सुज्ज २०)।
बुद्धि :: स्त्री [बुद्धि] १ मति, मेधा, मनीषा, प्रज्ञा (ठा ४, ४; जी ६; कुमा; कप्प; प्रासू ४७) २ देव-प्रतिमा-विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३) ३ महापुण्डरीक ह्रद की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३ — पत्र ७२; इक) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ तीर्थंकरी। ६ साध्वी (राज) ७ अहिंसा, दया (पणह २, १) ८ पुं. इस नाम का एक मन्त्री (उप ८४४) °कूड न [°कूट] पर्वत-विशेष का शिखर (राज)। °बोहिय वि [°बोधित] १ तीर्थंकरी — स्त्री-तीर्थंकर से प्रतिबोधित। २ सामान्य साध्वी से बोधित (राज) °मंत वि [°मत्] बुद्धिवाला (उप ३३९; सुपा ३७२; महा)। °ल पुं [°ल] १ एक स्वनाम- प्रसिद्ध श्रेष्ठी (महा) २ देखो °ल्ल (राज)। °ल्ल वि [°ल] बुद्धू, मूर्ख, दूसरे की बुद्धि पर जीनेवाला; 'तस्स पंडियमाण (? णि) स्स बुद्धिल्लस्स दुरप्पणो' (ओधभा २६ टी; २७)। °वंतं देखो °मंत (भवि)। °सागर, °सायर पुं [°सागर] विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी का एक सुप्रसिद्ध जैनाचार्यं और ग्रन्थकार (सुर १६, २४५; सार्धं ६९; सम्मत्त ७६)। °सिद्ध पुं [°सिद्ध] बुद्धि में सिद्धहस्त, संपूर्णं बुद्धिवाला (आवम)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] एक मन्त्री-कन्या (उप ७२८ टी)
बुध :: देखो बुह (पणह १, ५; सुज्ज २०)।
बुब्बुअ :: अक [बुबूय्] 'बु' 'बु' आवाज करना, छाग — बकरा का बोलना। बुब्बयइ (कुप्र २४)। वकृ. बुब्बुयंत (कुप्र २४)।
बुब्बुअ :: पुं [बुद् बुद्] बुलबुला, पानी का बुलका (दे ६, ९५; औप; पिंड १९; णाया १, १; वै ४५; प्रासू ९६; दं १३)।
बुभुक्खा :: स्त्री [बुभुक्षा] भूख, खाने की इच्छा (अभि २०७)।
बुय :: वि [ब्रुव] बोलनेवाला (सूअ १, ७ १०)।
बुयाण :: देखो बुव।
बुल :: वि [दे] बोड, भदत्त, धर्मिष्ठ (पिंग १९८)।
बुलंबुला :: स्त्री [दे] बुलबुला, बुदबुद (दे ६, ९५)।
बुलबुल :: पुं [दे] ऊपर देखो (षड्)।
बुल्ल :: देखो बोल्ल। बुल्लइ (कुप्र २६; श्रा १४); बुल्लंति (प्रासू ४)। प्रयो. बुल्लावेइ, बुल्लावेमि, बुल्लावए (कुप्र १२७; सिरि ४४०)।
बुव :: सक [ब्रू] बोलना। बुवइ (षड्; कुमा)। वकृ. बुवंत, बुयाइ, बुवाण (उत्त २३, २१; सूअ १, ७, १०; उत्त २३, ३१)। देखो बू।
बुस :: न [बुस] १ भूसा, यव आदि का कडंगर, नाज का छिलका (ठा ८ — पत्र ४१७) २ तुच्छ धान्य, फल-रहित धान्य (गउड)
बुसि :: स्त्री [वृषि, °सि] मुनि का आसन। °म, °मंत वि [°मत्] संयमी, व्रती, मुनि (सूअ २, ६, १४; आचा)।
बुसिआ :: स्त्री [बुसिका] यव आदि का कडंगर, भूसा (दे २, १०३)।
बुह :: पुं [बुध] १ ग्रह-विशेष, एक ज्योतिष्क देव (सुर ३, ५३; धर्मंवि २४) २ वि. पण्डित, विद्वान् (ठा ४, ४; सुर ३, ५३; धर्मंवि २४; कुमा; पाअ)
बुहप्पइ, बुहप्फइ, बुहस्सइ :: देखो बहस्सइ (हे २, ५३; १३७; षड्; कुमा)।
बहुक्ख :: सक [बुभुक्ष्] खानी की इच्छा करना। बुहुक्खइ (हे ४, ५; षड्)।
बुहुक्खा :: देखो बुभुक्खा (राज)।
बुहुक्खिअ :: वि [बुभुक्षित] भूखा (कुमा)।
बू :: सक [ब्रू] बोलना, कहना। बूम, बूया, बूहि (उत्त २५, २९; सूअ १, १, ३, ९; १, १, १, २)। विंति, बेंति, बेमि, बुआ (कम्म ३, १२; महा; कप्प)। भूका. अब्बबो (उत्त २३, २१; २२; २५; ३१; ठा ३, २)। वकृ. बिंत, बेंत (उप ७२८ टी; सुपा ३६०; विसे ११९)। संकृ. बूइत्ता (ठा ३, २) देखो बव, बुव।
बूर :: पुं [बूर] वनस्पति-विशेष (णाया १, १ — पत्र ६; उत्त ३४, १९; कप्प; औप)। °णालिया, °नालिया स्त्री [°नालिका] बूर से भरी हुई नली (राज; भग)।
बूल :: वि [दे] मूक, वाचा-शक्ति से रहित (पिंग १९८ टी)।
बूह :: सक [बृंह्] पुष्ट करना। बूहए (सूअ २, ५, ३२)।
बे :: देखो बि (वज्जा १०; हे ३, ११९; १२०; पिंग)। °आसी (अप) स्त्री [°अशीति] बयासी, ८२ (पिंग)। °इंदिय वि [°इन्द्रिय] त्वचा और जीभ ये दो ही इन्द्रियवाला प्राणी (ठा १; भग; स ८३; जी १५)। °हिय [द्वयाहिक] दो दिन का (जीवस ११९)।
बेंट :: देखो बिंट (महा)।
बेंत :: देखो बू।
बेंदि :: देखो बें-इंदिय (पंच ५, ५६)।
बेट्ठ :: देखो बिट्ठ (ओघभा १७४)।
बेड, बेडय :: पुं [दे] नौका, जहाज (दे ६, ९५, सुर १३, ५०)।
बेडा, बेडिया :: स्त्री [दे] नौका, जहाज (उप ७२८ टी; सिरि ३८२; ४०७; श्रा १२; धम्म १२ टी); 'पाणीहि जलं दारइ अरित्तदंडेहि बेडिव्व' (धर्मंवि १३२)।
बेड्डा :: स्त्री [दे] श्मश्रु, दाढ़ी-मूँछ के बाल (दे ६, ९५)।
बेदोणिय :: वि [द्वैद्रोणिक] दो द्रोण का, द्रोण-द्वय-परिमित; 'कप्पइ मे बेदोणियाए कंसपाईए हिरणणभरियाए संबवहरित्तए' (उवा)।
बेभेल :: पुं [बेभेल] विन्ध्याचल के नीचे का एक संनिवेश (भाग ३, २ पत्र १७१)।
बेमासिय :: वि [द्वैमासिक] दो मास का, दो महीने का संबन्ध रखनेवाला (पउम २२, २८)।
बेलि :: स्त्री [दे] स्थूणा, खूँटा (दे ६, ९५; पाअ)।
बेल्ल :: देखो बिल्ल (प्राकृ ५)।
बेल्लग :: पुं [दे] बैल, बलीवर्दं (आवम)।
बेस :: अक [विश्, स्था] बैठना, 'अंतंतं भोक्खामि क्कि बेसए भुंजए य तह चेव' (ओघ ५७१)।
बेसक्खिज्ज :: न [दे] द्वेष्यत्व, रिपुता, दुश्मनाई (दे ७, ७९ टी)।
बेसण :: न [दे] वचनीय, लोकापवाद, लोक- निन्दा (दे ७, ७५ टी)।
बेहिम :: वि [दे. द्वैधिक] दो टुकड़े करने योग्य, खण्डनीय (दस ७, ३२)।
बोंगिल्ल :: वि [दे] १ भूषित, अलंकृत। २ पुं. आटोप, आडम्बर (दे ६, ९९)
बोंटण :: न [दे] चूबुत, स्तन का अग्र भाग (दे ६, ९६)।
बोंड :: न [दे] १ चूचुक, स्तन-वृन्त (दे ६, ९६) २ फल-विशेष, कपास का फल (औप; तंदु २०)। °य न [°ज] सूती वस्त्र, सूती कपड़ी (सूअ २, २, ७३; औप)
बोंद :: न [दे] मुख, मुँह (दे ६, ९९)।
बोंदि :: स्त्री [दे] १ रूप। २ मुख, मुँह (दे ६, ९९) ३ शरीर, देह (दे ६, ९९; पणह १, १; कप्प; औप; उत्त ३५, २०, स ७१२; विसे ३१६१; पव ५५; पंचा १०, ४)
बोंदिया :: स्त्री [दे] शाखा (सूअ २, २, ४६)।
बोकड, बोक्कड :: पुं [दे] छाग, बकरा; गुजराती में 'बोकडो' (ती २; दे ६, ९६)। स्त्री. °डी (दे ६, ९६ टी)।
बोक्कस :: पुं [बोक्कस] १ अनार्य देश-विशेष (पव २७४) २ वर्णंसंकर जाति-विशेष, निषाद से अंवष्ठी की कुक्षि में उत्पन्न (सुख ३, ४)
बोक्कसालिय :: पुं [दे] तन्तुवाय, 'कोट्टागकुलाणि वा गामरक्खकुलाणि वा बोक्कसालियकुलाणि वा' (आचा २, १, २, ३)।
बोक्कार :: देखो बुक्कार (सुर १०, २२१)।
बोक्किय :: न [बूत्कृत] गर्जन, गर्जंना (पउम ५९, ५४)।
बोगिल्ल :: वि [दे] चितकबरा, 'फसलं सबलं सारं किम्मीरं चित्तलं च बोगिल्लं' (पाअ)।
बोट्ट :: सक [दे] उच्छिष्ट करना, जूठा करना। गुजराती में 'बोटबुं' 'रयणीए रयणिचरा चरंति बोट्टंति अन्नमाईयं' (सुपा ४९१)।
बोड :: वि [दे] १ धार्मिक, धर्मिष्ठ। २ तरुण, युवा (दे ६, ९६) ३ मुण्डित-मस्तक; 'एमेव अढइ बोडो', गुजराती में 'बोडो' (पिंड २१७)
बोडघेर :: न [दे] गुल्म-विशेष (पाअ)।
बोडिय :: पुं [बोटि] १ दिगम्बर जैन संप्र- दाय। २ वि. दिगम्बर जैन संप्रदाय का अनुयायी; 'बोड़ियसिवभूईओ बोडियलिंगस्स होइ उप्पत्ती' (विसे १०४१, २५५२)
बोडिय :: वि [दे] मुण्ड़ित-मस्तक (?); 'बोडियमसिए धुवं मरणं' (ओघभा ८३ टी)।
बोड्डर :: न [दे] श्मश्रु, दाढ़ी-मूँछ (दे ६, ९५)।
बोड्डिआ :: स्त्री [दे] कर्पादिका, कौड़ी; 'कसेरि न लहइ बोड्डिअवि गय लक्खेतिं घेप्पंति' (रहे ४, ३३५)।
बोदर :: वि [दे] पृथु, विशाल (दे ६, ९६)।
बोदि :: देखो बोंदि (औप)।
बोद्दह :: [दे] देखो बोद्रह (पाअ)।
बोद्ध :: वि [बौद्ध] बुद्ध-भक्त (संबोध ३४)।
बोद्धव्व :: देखो बुज्झ।
बोद्रह :: वि [दे] तरुण, जवान (दे ७, ८०)।
वोधण :: न [बोधन] बोध, शिक्षा, उपदशे (सम ११६)।
बोधव्व :: देखो बुज्झ।
बोधि :: देखो बोहि (ठा २, १ — पत्र ४६)। °सत्त पुं [°सत्त्व] सम्यग् दर्शंन को प्राप्त प्राणी, अर्हंन् देव का भक्त जीव (मोह ३)। बोधिअ वि [बोधित] ज्ञापित, अवगमित (धर्मंसं ५०९)।
बोब्बड :: वि [दे] मूक (दश° अगस्त्य चू° पत्र° २४३)।
बोर :: न [बदर] फल -विशेष, बेर (गा २००; हे १७०; षड्; कुमा)।
बोरी :: स्त्री [बदरी] बेर का गाछ (प्राकृ ४; हे १, १७०; कुमा; हेका २५९)।
बोल :: सक [बोडय्] डुबाना, 'तंबोलो तं बोलइ जिणवसहिट्ठिएण जेण खद्धो' (सार्धं ११४); बुड्डतं बोलए अन्नं (सूक्त ६६), बोलेइ, बोलए (संबोध १३), 'केसिं च बंधित्तु गले सिलाओ उदगंसि बोलंति महालयंसि' (सूअ १, ५, १०), बोलेमि (सिरि १३८)। 'गुरुनामेणं लोए बोलेइ बहु' (उवर १५२)।
बोल :: अक [व्यति + क्रम्] १ पसार होना, गुजरना। २ सक. उल्लंघन करना; 'दुई ण एइ, चंदोवि उग्गओ, जामिणीवि बोलेइ' (गा ८५४), 'पुणो तं बंधेण न बोलइ कयाइ' (श्रावक ३३)। बोलए (चंड)। देखो वोल = गम्।
बोल :: पुं [दे] १ कलकल, कोलाहल (दे ६, ९०; भग; भवि; कप्पू; उप उप ५०९), 'हासबोलबहुला' (औप) २ समूह; 'कमढा- सुरेण रइयम्मि भीसणे पलयतुल्लजलबोले' (भाव १; कुलक ३४)
बोलग :: पुंन [दे. ब्रोड] १ मज्जन, डूबना। २ कर्षंण, खींचाव; 'उच्चुलं बोलगं पज्जेति' (विपा १, ६ — पत्र ६८)
बोलिअ :: वि [ब्रोडित] डुबाया हुआ (वज्जा ९८)।
बोलिंदि :: स्त्री [दे] लिपि-विशेष, ब्राह्मी लिपि का एक भेद; 'माहेसरीलिवी दामिलिवी बोलिं- दिलीवो' (सम ३५)।
बोल्ल :: सक [कथय्] बोलना, कहना। बोल्लइ, (हे ४, २, प्राकृ ११९; सुर ८, १९७; भवि)। कर्मं. बोल्लिअइ (अप) (कुमा)। कृ. बोल्लेवय (अप) (कुमा)। प्रयो. बोल्ला- वइ (कुमा)।
बोल्लअ :: पुं [कथन] बोल, वचन (गा ६०३)।
बोल्लणअ :: वि [कथयितृ] बोलने का स्वभाववाला (हे ४, ४४३)।
बोल्ला :: स्त्री [कथा] वार्ता, बात; 'नीयबोल्लाए' (उप १०१५)।
बोल्लाविय :: वि [कथित] बुलवाया हुआ (स ४९१; ६९९)।
बोल्लिअ :: वि [कथित] १ उक्त। २ न. उक्ति (भवि; हे ४, ३८३)
बोव्व :: न [दे] क्षेत्र, खेत (दे ९६)।
बोह :: सक [बोधय्] १ समझना, ज्ञान कराना। २ जगाना। बोहेइ (उव)। कर्मं. वोहिज्जइ (उव)। वकृ. बोहिंत, बोहेंत (सुर १५, २४६; महा)। कवकृ. बोहिज्जंत (सुर २, १४५; ८, १६५)। हेकृ. बोहेउं (अज्झ १७९)
बोह :: पुं [बोध] १ ज्ञान, समझ (जी १) २ जागरण (कुमा)
बोहग :: देखो बोहय (दं १)।
बोहण :: देखो बोधण (उप २०९; सुर १, ३७; उवर १)।
बोहय :: वि [बोधक] बोध देनेवाला, ज्ञान- दाता (सम १; णाया १, १; भग; कप्प)।
बोहहर :: पुं [दे] मागध, स्तुति-पाठक (दे ६, ९७)।
बोहारी :: स्त्री [दे] बुहारी, संमार्जनी, झाडू, (दे ६, ९७)।
बोहि :: स्त्री [बोधि] १ शुद्ध धर्मं का लाभ, सद्धर्मं की प्राप्ति, 'दुल्लहा बोही' (उत्त ३६, २५८), 'बोहो जिणेहि भणिया भवंतरे सुद्ध- धम्मसंपत्ती' (चेइय ३३२; संबोध १४; सम ११९; उप ४८१ टी) २ अहिंसा, अनुकम्पा, दया (पणह २, १ )। देखो बोधि।
बोहिअ :: वि [बोधित] १ ज्ञापित, समझाया हुआ (भग) २ विकासित, विबोधित; 'रवि- किरणतरुणबोहियसहस्सपत्त — -' (कप्प)
बोहिअ :: पुं [बोधिक] मनुष्य चुरानेवाला चोर (निचू १; चेइय ४४६)।
बोहिंत :: देखो बोह = बोधय्।
बोहिग :: देखो बोहिअ = बोधिक (राज)।
बोहित्थ :: पुंन [दे] प्रवहण, जहाज, यानपात्र, नौका (दे ६, ९६; स, २०६; चेइय २६४; कुप्र २२२; सिरि ३८३; सम्मत्त १५७; सुपा ९४; भवि)।
बोहित्थिय :: वि [दे] प्रवहण-स्थित (वज्जा १५८)।
°ब्भंसं :: देखो भंस (सुपा ५०९)।
°ब्भमर :: देखो भमर (नाट — मुद्रा ३९)।
°ब्भास :: देखो अब्भास; 'किंतु अइदुहवा सा दिट्ठिब्भासेवि कुणइ न हु कोइ' (सुपा ५९७)।
°ब्भि :: बि [भित्] भेदन करेनावाला, नाश- कर्ता; 'सगडब्भि' (आचा १, ३, ४, १)।
ब्रो :: (अप) देखो बू। ब्रोहि (प्राकृ १२१)।
भ :: पुं [भ] १ ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं- विशेष (प्राप; प्रामा) २ पिंगल-प्रसिद्ध आधि-गुरु और दो ह्रस्व अक्षरो की संज्ञा, भगण (पिंग) ३ न. नक्षत्र (सुर १६, ४३) °आर पुं [°कार] १ 'भ' अक्षर। २ भगण (पिंग)। °गण पुं [°गण] भगण (पिंग)
भइ :: देखो भव = भू।
भइ :: स्त्री [भृति] वेतन, तनखाह (णाया १, ८ — पत्र १५०; विपा १, ४; उवा)। देखो भुइ।
भइअ :: वि [भक्त] १ विभक्त (श्रावक १८५; सम ७९) २ खण्डित; 'अंगुलसखासंखप्प- एसभइयं पुढो पयरं' (पंच २, १२; औप) ३ विकल्पित (वव ६)
भइअ :: न [भक्त] भागाकार (वव १)।
भइअ, भइअव्व :: देखो भय = भज्।
भइअ, भइग :: वि [भृतिका] कर्मकर, नौकर, चाकर (राय २१)।
भइगि°, भइणिआ, भइणी :: स्त्री [भगिनी] बहिन, स्वसा (सुपा १५; स्वप्न १५; १७; विपा १, ४; प्रासू ७८; कुल २३५; कुमा)। °वइ पुं [°पति] बहनोई (सुपा १५; ५३२)। °सुअ पुं [°सुत] भागिनेय, भानजा (सुपा १७)। देखो बहिणी।
भइरव :: वि [भैरव] १ भयंकर, भीषण, भय- जनक (पाअ; सुपा १८२) २ पुं. नाट्यादि- प्रसिद्ध एक रस, भयानक रस। ३ महादेव, शिव। ४ महादेव का एक अवतार। ५ राग- विशेष, भैरव राग। ६ नद-विशेष (हे १, १५१; प्राप्र)। देखो भेरव।
भइरवी :: स्त्री [भैरवी] शिव-पत्नी, पार्वती (गउड)।
भइरहि :: पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्त्ती का एक पुत्र, भगीरथ (पउम ५, १७५)।
भइल :: वि [दे] भया, जात (रंभा ११)।
भउम्हा :: (शौ) देखो भमुहा (पि २५१)।
भउहा :: (अप) देखो भमुहा (पिंग)।
भएयव्व :: देखो भय = भज्।
भंकार :: पुं [भङ्कार] भनकार, अव्यक्त आवाज विशेष (उप पृ ८६)।
भंकारि :: वि [भङ्गारिन्] भनकार करनेवाला (सण)।
भंग :: पुं [भङ्ग] १ भांगना, खण्ड, खण्डन (ओघ ७८८; प्रासू १७०; जी १२; कुमा) २ प्रकार, भेद, विकल्प (भग; कम्म ३, ५) ३ विनाश (कुमा; प्रासू २१) ४ रचना- विशेष; 'तरंगरंगंतभंग — -' (कप्प) ५ परा- जय। ६ पलायन (पिंग)। °रय न [°रत] मैथुन-विशेष (वज्जा १०८)
भंग :: पुं [भृङ्ग] आर्यं देश-विशेष, जिसकी राजधानी प्राचीन काल में पावापुरी थी (इक)।
भंग :: (अप) देखो भग्ग = भग्न (पिंग)।
भंगरय :: पुं [भृङ्गरज, भृङ्गारक] १ पौधा विशेष, भृङ्गराज, भँगरा, भंगरैया। २ न. भँगरा का फूल (वज्जा १०८; सुपा ३२४)
भंगा :: स्त्री [भङ्गा] १ वनस्पति-विशेष, पाट, कुष्टा; 'कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंच वत्थाइं धारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा — जंगिए भंगिए साणए पोत्तिए तिरीड- पट्टए णामं पंतमए' (ठा ५, ३ — पत्र ३३८) २ वाद्य-विशेष; ' — पडहहुडुकुडुंडु- क्काभेरीभंगापहुदिसूरिवज्जभंडतुमुल — ' (विक्र ८७)
भंगि :: स्त्री [भङ्गि] १ प्रकार, भेद (हे ४, ३३९; ४११) २ व्याज, छल, बहाना; 'सहिभंगिभणिअसब्भाविआवराहाए' (गा ९१३) ३ विच्छित्ति, बिच्छेद (राज) ४ पुंस्त्री. देश विशेष; 'पावा भंगी य' (पव २७५; विचार ४९)
भंगिअ :: न [भङ्गिक, भाङ्गिक] १ भंगा-मय, एक तरह का वस्त्र, पाट का बना हुआ कपड़ा (ठा ३, ३; ५, ३ — पत्र १३८; कस) २ शास्त्र-विशेष; 'जोगतिंगस्सवि भंगियसुत्ते किरिया जओ भणिया' (चेइय २४५)
भंगिल्ल :: वि [भङ्गवत्] प्रकारवाला, भेदृ पतित; 'पढमभंगिल्ला' (संबोध ३२)।
भंगी :: स्त्री [भङ्गी] देखो भंगि (दे ४, ३३९; गा ९१३; विचार ४९)।
भंगी :: स्त्री [भृङ्गी] वनस्पति-विशेष; — १ भाँग, विजया। २ अतिविषा, अतिस का गाछ (पणण १ — पत्र ३६; पणण १७ — पत्र ५३१)
भंगुर :: वि [भङ्गुर] १ स्वयं भाँगनेवाला, विनश्वर, विनाश-शील; 'तडिदंडाडंबरभंगुराइं हो विसयसोक्खाइं' (उप ६ टी; पणह १, ४; सुर १०, १८; स ११४; धर्मंसं ११७१; विवे ११४) २ कुटिल, वक्र; 'कुडिल वंकं भंगुरं' (पाअ)
भंछा :: देखो भत्था (राज)।
भंज :: सक [भञ्ज्] १ भाँगना, तोड़ना। २ पलायन कराना, भगाना। ३ पराजय करना। ४ विनाश करना। भंजइ, भंजए (हे ४, १०६; षड्; पि ५०६)। भवि. भंजिस्सइ (पि ५३२)। कर्मं. भज्जइ (भग; महा)। बकृ. भंजंत (गा १६७; सुपा ५६०)। कवकृ. भज्जंत भज्जमाण (से ६, ४४; सुर १०, २१७; स ६३)। संकृ. भंजिअ, भंजिउ, भंजिऊण, भंजिऊणं, भंजेऊण (नाट; पि ५७९; महा; पि ५८५; महा), भज्जिउ (अप) (हे ४, ३९५)। हेकृ. भंजित्तए (णाया १, ८), भंजणहं (अप) (हे ४, ४४१ टि)
भंजअ, भंजग :: वि [भञ्जक] भाँगनेवाला, भंग करनेवाला (गा ५५२; पणह १, ४)। २ पुं. वृक्ष, पेड़; 'भंजगा इव संविवेसं नो चयंति' (आचा)।
भंजण :: न [भञ्जन] १ भंग, खण्डन (पव ३८; सुर १०, ६१) २ विनाश (सुपा ३७९; पणह १, १) ३ वि. भंजन करनेवाला, तोड़नेवाला, विनाशक; 'भवभंजण' (सिरि ५४६), 'रिउसंगभंजणेण' (कुमा)। स्त्री. °णी (गा ७४५)
भंजणा :: स्त्री [भञ्जना] ऊपर देखो 'विणओ- वयारम — (? र मा-) णस्स भंजणा पूयणा गुरुणस्स' (विसे ३४६९; निचू १)।
°भंजाविअ, भंजिअ :: वि [भञ्जित] १ भँगाया हुआ, तुड़वाया हुआ; (स ५४०) २ भगाया हुआ (पिंग) ३ आक्रान्त (तंदु ३८)
भंजिअ :: देखो भग्ग = भग्न (कुमा ६, ७०; पिंग; भवि)।
भंड :: सक [भाण्डय्] भँडारा करना, संग्रह करना, इकट्ठा करना। भंडेइ (सुख २, ४५)।
भंड :: सक [भण्ड्] भाँड़ना, भर्त्संना करना, गाली देना। भंडइ (सण)। वकृ. भंडंत (गा ३७९)। संकृ. भंडिउं (वव १)।
भंड :: पुं [भण्ड] १ विट, भडुआ (पव ३८) २ भाँड़, बहुरूपिया, मुख आदि के विकार से हँसाने का काम करनेवाला, निर्लज्ज (आव ६)
भंड :: न [दे] १ वृन्ताक, बैंगन, भंटा (दे ६, १००) २ पुं. मागध, स्तुति-पाठक। ३ सखा, मित्र। ४ दौहित्र, पुत्री का पुत्र (दे ६, १०९) ५ पुंन. मण्डन, आभूषण, गहना (दे ६, १०९; भग; औप) ६ वि. छिन्न, मूर्धा, सिर-कटा (दे ६, १०९) ७ न. क्षुर, छुरा। ८ छुरे से मुण्ड़न (राज)
भंड, भंडग :: पुंने [भाण्ड] १ बरतन, बासन, पात्र; 'दुग्गइदुहभंडे घडइ अक्खंडे' (संवेग १४; दे ३, २१; श्रा २७; सुपा १९९) २ क्रयाणक, पण्य, बेचने की वस्तु (णाया १, १ — पत्र ६०; औप; पणह १, १; उवा; कुमा) ३ गृह, स्थान (जीव ३) ४ वस्त्र- पात्र आदि घर का उपकरण (ठा ३, १; कप्प; ओघ ६६६; णाया १, ५)
भंडण :: न [दे. भण्डन] १ कलह, वाक्- कलह, गाली-प्रदान (दे ६, १०१; उव; महा; णाया १, १६ — पत्र २१३; ओघ २१४; गा ६९९; उप ३३९; तंदु ५०) २ क्रोध, गुस्सा (सम ७१)
भंडणा :: स्त्री [भण्डना] भाँड़ना, गाली- प्रदान (उप ३३६)।
भंडय :: देखो भंड = भण्ड (हे ४, ४२२)।
भंडय :: देखो भंडग; 'पायसघयदहियाणं भरि- ऊणं भंडए गरुए' (महा ८०, २४; उत्त २६, ८)।
भंडवेआलिअ :: वि [भाण्डवैचारिक] करि- याना बेचनेवाला (अणु १४९)।
भंडा :: स्त्री [दे] सम्बोधन-सूचक शब्द (संक्षि ४७)।
भंडाआर, भंडागार :: पुं [भाण्डागार] भंडार, कोठा या कोठोर, बखार (मुद्रा १४१; स १७२; सुपा २२१; २६)।
भंडागारि, भंगागारिअ :: पुंस्त्री [भाण्डागारिन्, °क] भंडारी, भंडार का अध्यक्ष (णाया १, ८; कुप्र १०८)। स्त्री. °रिणी (माया १, ८)।
भंडार :: देखो भंडागार (महा)।
भंडार :: पुं [भाण्डकार] बर्तंन बनानेवाला शिल्पी (राज)।
भंडारि, भंडारिअ :: देखो भंडागारि (स २०७; सुर ४, ६०)।
भंडिअ :: पुं [भाण्डिक] भंडारी, भंडार का अध्यक्ष (सुख २, ४५)।
भंडिआ :: स्त्री [भाण्डिका] स्थाली, थलिया (ठा ८ — पत्र ४१७)।
भंडिआ, भंडी :: स्त्री [दे] १ गंत्री, गाड़ी (बृह ३; दे ६, १०९; आवम; निचू ३; वव ६) २ शिरीष वृक्ष। ३ अटवी; जंगल। ४ असती, कुलटा (दे ६, १०९)
भंडीर :: पुं [भण्डीर] वृक्ष-विशेष, शिरीष वृक्ष (कुमा)। °वंडिसय, °वडेंसय न [°वतंसक] मथुरा नगरी का एक उद्यान; 'महुराए णयरीए भंडि (? डीर) वडेंसए उज्जाणे' (राज; णाया २ — पत्र २५३)। °वण न [°वन] १ मथुरा का एक वन (ती ७) २ मथुरा का एक चैत्य (आवम)
भंडु :: न [दे] मुण्डन (दे ६, १००)।
भंडुल्ल :: देखो भंड = भाण्ड (भवि)।
भंत :: वि [भ्रान्त] १ घुमा हुआ; 'भंतो जसो भेईणी (ए)' (पउम ३०, ९८) २ भ्रान्ति- युक्त, भ्रमवाला, भूला हुआ (दे १, २१) ३ अपेत, अनवस्थित (विसे ३४४८) ४ पुं. प्रथम नरक का तीसरा नरकेन्द्रक — नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ३)
भंत :: वि [भगवत्] भगवान्, ऐश्वर्यं-शाली (ठा ३, १; भग, विसे ३४४८ — ३४५६)।
भंत :: वि [भदन्त] १ कल्याण-कारक। २ सुख-कारक। ३ पूज्य (विसे ३४३९; कप्प; विपा १, १; कस; विसे ३४७४)
भंत :: वि [भजत्] सेवा करता (विसे ३४४६)।
भंत :: वि [भात्, भ्राजत्] चमकता, प्रकाशता (विसे ३४४७)।
भंत :: वि [भवान्त] भव का — संसार का अन्त करनेवाला, सुक्ति का कारण (विसे ३४४९)।
भंत :: वि [भयान्त] भय-नाशक (विसे ३४४९)।
भंति :: स्त्री [भ्रान्ति] भ्रम, मिथ्या ज्ञान (धर्मंसं ७२१; ७२३; सुपा ३१२; भवि)।
भंति :: (अप) स्त्री [भक्ति] भक्ति, प्रकार (पिंग)।
भंभल :: वि [दे] १ अप्रिय, अनिष्ट (दे ६, ११०) २ मूर्खं, अज्ञान, पागल, बेवकूफ (दे ६, ११०; सुर ८, १९६)
भंभसार :: पुं [भम्भसार] भगवान् महावीर के समकालीन और उनके परम भक्त एक मगधाधिपति, ये श्रेणिक और बिम्बसार के नाम से भी प्रसिद्ध थे (णाया १, १३; औप)। देखो भिंभसार, भिंभिसार।
भंभा :: स्त्री [दे. भम्भा] १ वाद्य-विशेष, भेरी (दे ६, १००; णाया १, १७; विसे ७८ टी; सुर ३, ९६; सम्मत्त १०६; राय; भग ७, ६) २ 'माँ', 'भाँ' की आवाज (भग ७, ६ — पत्र ३०५)
भंभी :: स्त्री [दे] १ असती, कुलटा (दे ६, ९९) २ नीति-विशेष (राज)
भंस :: अक [भ्रंश्] १ नीचे गिरना। २ नष्ट होना। ३ स्खलित होना। भंसइ (हे ४, १७७)
भंस :: पुं [भ्रंश] १ स्खलना। २ विनाश (सुपा ११३; सुर ४, २३०), 'संपाडइ संपयाभंसं' (कुप्र ४१)
भंसग :: वि [भ्रंशक] विनाशक (वव १)।
भंसण :: न [भ्रंशन] ऊपर देखो; 'को णु उवाओ जिणधम्म-भंसणे होज्ज एईए' (सुपा ११३; सुर ४, १५)।
भंसणा :: स्त्री [भ्रंशना] ऊपर देखो (पणह २, ४ श्रावक ९५)।
भक्ख :: सक [भक्षय्] भक्षण करना, खाना। भक्खेइ (महा)। कर्मं. भक्खिज्जइ (कुमा)। वकृ. भक्खंत (स १०२)। हेकृ. भक्खिउं (महा)। कृ. भक्ख, भक्खेय, भक्खणिज्ज (पउम ८४, ४; सुपा ३७०; णाया १, १०; सुर १४, ३४; श्रा २७)।
भक्ख :: पुं [भक्ष] भक्षण, भोजन; 'भो कीर खीरसक्करदक्खाभक्खं करहि ताव' (सुपा २९७)।
भक्ख :: देखो भक्ष् =भक्षय्।
भक्ख :: पुंन [भक्ष्य्] खण्ड-खाद्य, चीनी का बना हुआ खाद्य द्रव्य, मिठाई (सुज्ज २० टी)।
भक्खग :: वि [भक्षक] भक्षण करनेवाला (कुप्र २९)।
भक्खण :: न [भक्षण] १ भोजन (पणण २८) २ वि. खानेवाला, 'सव्वभक्खणो' (श्रा २८)
भक्खणया :: स्त्री [भक्षणा] भक्षण, भोजन (उवा)।
भक्खर :: पुं [भास्कर] १ सूर्यं, रवि (उत्त २३, ७८; लहुअ १०) २ अग्नि, वह्नि। ३ अर्क-वृक्ष (चंड)
भक्खराभ :: न [भास्कराभ] १ गोत्र-विशेष, जो गौतम गोत्र की शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)
भक्खावण :: न [भक्षण] खिलाना (उप १५० टी)।
भक्खि :: वि [भक्षिन्] खानेवाल (औप)।
भक्खिय :: वि [भक्षित] खाया हुआ (भवि)।
भक्खेय :: देखो भक्ख = भक्षय्।
भग :: पुंन [भग] १ ऐश्वर्यं। २ रूप। ३ श्री। ४ यश, कीर्त्ति। ५ धर्मं। ६ प्रयत्न; 'इस्सरियरूवसिरिजसघम्मपयत्ता मया भगा- भिक्खा' (विसे १०४८; चेइय २८८) ७ सूर्यं, रवि। ८ माहात्म्य। ९ वैराग्य। १० मुक्ति, मोक्ष। ११ वीर्य। १२ इच्छा (कप्प)- टी) १३ ज्ञान (प्रामा) १४ पूर्वफिल्गुनी नक्षत्र (अणु) १५ स्त्री. योनि, उत्पत्ति-स्थान (पणह १, ४ — पत्र ६८; सुज्ज १०, ८) १६ देव-विशेष, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का अधिष्ठाता देव, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३; सुज्ज १०, १२) १७ गुदा और अण्ड- कोश के बीच का स्थान (बृह ३) °दत्त पुं [°दत्त] नृप-विशेष (हे ४, २९९)। °व देखो °वंत भग, महा)। °वई स्त्री [°वती] १ ऐश्वर्यादि-सम्पन्ना, पूज्या (पडि) २ भगवती-सूत्र, पाँचवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (पंच ५, १२५)। वंत वि [°वत्] ऐश्वर्यादि- गुण-सम्पन्न। २ पुं. परमेश्वर, परमात्मा (कप्प; विसे १०४८; प्रामा)
भगंदर :: पुं [भगन्दर] रोग-विशेष — गुदा की भीतरी भाग में होनेवाला एक प्रकार का फोड़ा (णाया १, १३; विपा १, १)।
भगंदरि :: वि [भगन्दरिन्] भगन्दर रोगवाला (श्रा १६; संबोध ४३)।
भंगदरिअ :: वि [भगन्दरिक] ऊपर देखो (विपा १, ७)।
भगंदल :: देखो भगंदर (राज)।
भगिणी :: देखो बहिणी (णाया १, ८; कप्प; कुप्र २३६; महा)।
भगिरहि, भगीरहि :: पुं [भगीरथि] सगर चक्रवर्ती का एक पुत्र, भगीरथ (पउम ५, १७६; २१५)।
भग्ग :: वि [भग्न] १ खण्डित, भाँगा हुआ (सुर २, १०२; दं ४६; उवा) २ पराजित। ३ पलायित, भागा हुआ; 'जइ भग्गा पारक्कडा' (हे ४, ३७९; ३५४; महा, वव २)। °इ पुं [°जित्] क्षत्रिय परिव्राजक-विशेष (औप)
भग्ग :: वि [दे] लिप्त, पोता हुआ (दे ६, ९९)।
भग्ग :: न [भाग्य] नसीब, दैव (सुर १३, १०५)।
भग्गव :: पुं [भार्गव] १ ग्रह-विशेष, शुक्र ग्रह (पउम १७, १०८) २ ऋषि-विशेष (समु १८१)
भग्गवेस :: न [भार्गवेश] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६ टी; इक)।
भग्गिअ :: (अप)। देखो भग्ग = भग्न (पिंग)।
भच्च :: पुं [दे] भागिनेय, भानजा (षड्)।
भच्छिअ :: वि [भर्त्सित] तिरस्कृत (दे १, ८०; कुमा ३, ८६)।
भज :: देखो भय = भज्। वकृ. भजंत, भजेंत, भजमाण, भजेमाण (षड्)।
भज्ज :: सक [भ्रस्ज्] पकाना, भुनना। भज्जंति, भज्जेंति (सूअनि ८१; विपा १, ३)। वकृ. भज्जंत, भज्जेंत (पिंड ५७४; विपा १, ३)।
भज्ज :: देखो भंज (आचा २, १, १, २)।
भज्ज :: देखो भय = भज्।
भज्जंत :: देखो भंज।
भज्जण, भज्जणय :: न [भ्रज्जन] १ भुनन, भुनना (पणह १, १; अनु ५) २ भुनने का पात्र (सूअनि ८१; विपा १, ३)
भज्जमाण :: देखो भंज।
भज्जमाण :: देखो भंज।
भज्जा :: स्त्री [भार्या] पत्नी, स्त्री (कुमा; प्रासू ११६)।
भज्जि :: स्त्री [भर्जिका] देखो भज्जिआ।
भज्जिअ :: देखो भग्ग = भग्न; 'तरुणियं वा छिवाडिं अभिक्कंतभज्जियं पेहाए' (आचा २, १, १, २)।
भज्जिअ :: वि [भृष्ट, भर्जित] भुना हुआ, पकाया हुआ (गा ५५७; आचा २, १, १, ३; विपा १, २, उवा)।
भज्जिआ :: स्त्री [भर्जिका] १ भाजी, शाक-भेद, पत्राकार तरकारी (पव २५९) २ पथ्यदन, मार्गं-भोजन (क्लपभाष्य गा° ३६१८)
भज्जिम :: वि [भ्रज्जिम] भुनने योग्य (आचा २, ४, २, १५)।
भज्जिर :: वि [भङ्क्तृ] भाँगनेवाला, 'फारफल- भारभज्जिरसाहासयसंकुलो महासाही' (धर्मंवि ५५; सण)।
भज्जेंत :: देखो भज्ज = भ्रस्ज्।
भट्ट :: पुं [भट्ट] १ मनुष्य-जाति-विशेष, स्तुति- पाठक की एक जाति, भाट; 'जयजयसददक- रंतसुभट्टं' (सिरि १५५; सुपा २७१; उप पृ १२०) २ वेदाभिज्ञ पण्डित, ब्राह्मण, बिप्र (उप १०३१ टी) ३ स्वामित्व, मालिकपन, मालकियत (प्रति ७)
भट्टारग, भट्टारय :: पुं [भट्टारक] १ पूज्य, पूजनीय (आव ३; महा) २ नाटक की भाषा में राजा (प्राकृ ९५)
भट्टि :: देखो भत्तु = भर्तृ (ठा ३, १; सम ८६; कप्प; स १४४; प्रति ३; स्वप्न १५)।
भट्ठिअ :: पुं [दे] बिष्णु, श्रीकृष्ण (हे २, १७४; दे ६, १००)।
भट्टिणी :: स्त्री [भर्त्री] स्वामिनी, मालिकिन (स १३४)।
भट्टिणी :: स्त्री [भट्टिनी] नाटक की भाषा में वह रानी जिसका अभिषेक न किया गया हो (प्रति ७)।
भट्टु :: (शौ) देखो भट्टारय (प्राकृ ९५)।
भट्ठ :: वि [भ्रष्ट] १ नीचे गिरा हुआ। २ च्युत, स्खलित (महा; द्र ४३) ३ नष्ट (सुर ४, २१५; णाया १, ९)
भट्ठ :: पुंन [भ्राष्ट्र] भर्जन-पात्र, भुनने का बर्तन (दे ५, २०); 'भट्ठट्ठियचणगो विव सयणीए कीस तडफडसि' (सुर ३, १४८)।
भट्ठि, भट्ठी :: स्त्री [दे] धूलि-रहित मार्ग (ओघ २३; २४ टी; भग ७, ६ टी — पत्र ३०७)।
भड :: पुं [भट] १ योद्धा, लड़ाका (कुमा)। शूर, वीर (से ३, ९; णाया १, १) ३ म्लेच्छों की एक जाति। ४ वर्णं-संकर जाति- विशेष, एक नीच मनुष्य-जाति। ५ राक्षस (हे १, १९५)। °खइआ स्त्री [°कादिता] दीक्षा-विशेष (ठा ४, ४)
भडक्क :: पुंस्त्री [दे] आडम्बर, तड़क-भड़क, टीम- टाम, ठाठमाठ (सट्ठि ४४ टी)। स्त्री. °क्का (उव)।
भडग :: पुं [भटक] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उस देश में रहनेवाली एक म्लेच्छ-जाति (पणह १, १ — पत्र १४; इक)। देखो भड।
भडारय :: (अप) देखो भट्टारय (भवि)।
भडित्त :: न [भटित्र] शूल-पक्व मांसादि, कबाब (स २६२; कुप्र ४३२)।
भडिल :: वि [दे] संबोधन-सूचक शब्द (संक्षि ४७)।
भण :: सक [भण्] कहना, बोलना, प्रतिपादन करना। भणइ, भणेइ (हे ४, २३९; कुमा)। कर्मं. भण्णइ, भणणए, भणिज्जई (पि ५४८, षड्; पिंग)। भूका. भणीअ (कुमा)। भवि. भणिहि, भणिर्स्सं (कुमा)। वकृ. भणत, भणमाण, भेणमाण (कुमा; महा; सुर १०, ११४)। कवकृ. भण्णंत, भणिज्जंत, भणिज्जमाण, भणीअंत, भण्णमाण (कुमा; पि ५४८; गा १४५)। संकृ. भणिअ, भणिउं, भणिऊण (कुमा; पि ३४९)। हेकृ. भणिउ°, भणिउं (पउम ९४, १३; पि ५७६)। कृ. भणिअव्व, भणेयव्व (अजि ३८; सुपा ६०८)। कवकृ. भन्नंत, भन्नमाण (सुर २, स १९१; उप पृ २३; उप १०३१ टी)।
भणग :: वि [भण, °क] प्रतिपादन करनेवाला (णंदि)।
भणण :: न [भणन] कथन, उक्ति (उप ५५३; सुपा २८३; संबोध ३)।
भणाविअ :: वि [भाणित] कहलाया हुआ (सुपा ३५८)।
भणिअ :: वि [भणित] कथित (भग)।
भणिइ :: स्त्री [भणिति] उक्ति, बचन (सुर ९, १४५; सुपा २१४; धर्मंवि ५८)।
भणिर :: वि [भमितृ] कहनेवाला, वक्ता (गा २९७; कुमा; सुर ११, २४४; श्रा १६)। स्त्री. °री (कुमा)।
भणेमाण :: देखो भण।
भण्ण :: सक [भण्] कहना, बोलना। भण्णइ (धात्वा १४७)।
भण्णमाण :: देखो भण = भण्।
भत्त :: पुंन [भक्त] १ आहार, भोजन। २ अन्न, नाज (विपा १, १; ठा २, ४; महा) ३ ओदन, भात (प्रामा) ४ लगातार सात दिनों का उपवास (संबोध ५८) ५ वि. भक्ति-युक्त, भक्तिमान; 'सो सुलसा बालप्पभितिं चेव हरिणेगमेसीभत्तया यावि होत्था' (अंत ७; उप पृ ६६; महा; पिंग) °कहा स्त्री [°कथा] आहार-कथा, भोजन-संबन्धी वार्ता (ठा ४, ४)। °च्छंद, °च्छंद पुं [°च्छंन्द] रोग-विशेष, भोजन की अरुचि; 'कच्छू जरो खासो सासो भत्तच्छंदो अक्खिदुक्खं' (महा; महा — टि)। °पच्चक्खाण न [°प्रत्याखान] आहार-त्याग-रूप अनशन, अनशन का एक भेद, मरण का एक प्रकार (ठा २, ४ — पत्र ९४; औप ३०, २)। °परीण्णा; °परिन्ना स्त्री [°परिज्ञा] १ वही पूर्वोक्त अर्थं (भत्त १६९, १०; पव १५७) २ ग्रंथ-विशेष (भत्त १)। °पाणय न [°पानक] आहार- पानी, खान-पान (विपा १, १)। °वेला स्त्री [°वेला] भोजन-समय (विपा १, १)
भत्त :: वि [भूत] उत्पन्न, संजात (हे ४, ६०)।
भत्ति :: देखो भत्तु (पिंग)।
भत्ति :: स्त्री [भक्ति] १ सेवा, विनय, आदर (णाया १, ८ — पत्र १२२; उव; औप; प्रासू २९) २ रचना (विसे १६३१; औप; सुपा ५२) ३ एकाग्र-वृत्ति-विशेष (आव २) ४ कल्पना, उपचार (धर्मंसं ७४२) ५ प्रकार, भेद (ठा ९) ६ विच्छित्ति-विशेष (औप) ७ अनुराग (धर्मं १) ८ विभाग। ९ अवयव। १० श्रद्धा (हे २, १५९)। °मंत, °वंत वि [मत्] भक्तिवाला, भक्त (पउम ९२, २८; उव; सुपा १९०, हे २, १५९; भवि)
भत्तिज्ज :: पुं [भ्रातृव्य] भतीजा, भाई का पुत्र (सिरि ७१६; धर्मंवि १२७)।
भत्ती :: नीचे देखो।
भत्तु :: पुं [भर्तृ] १ स्वामी, पति, भतार (णाया १, १६ — पत्र २०७); 'णववहू उव- रतभत्तुया' (णाया १, ९; पाअ; स्वप्न ५६) २ अधिपति, अध्यक्ष। ३ राजा, नरेश। ४ बि. पोषक, पोषण करनेवाला। ५ धारण करनेवाला (हे ३, ४४; ४५)। स्त्री. — भत्ती (पिंग)
भत्तोस :: न [भक्तोष] १ भुना हुआ अन्न (पंचा ५, २९; प्रभा १५) २ सुखादिका, खाद्य-विशेष (पव ३८)
भत्थ :: पुंस्त्री [दे] भाथा, तूणीर, तरकस; 'अह आरोवियचावो पिट्ठे दढबन्धभत्थओ अभओ' (धर्मंवि १४६)।
भत्था :: स्त्री [भस्त्रा] चमड़े की धौंकनी, भाथी (उप ३२० टी; धर्मंवि १३०)।
भत्थिअ :: वि [भर्त्सित] तिरस्कृत (सम्मत्त १८९)।
भत्थी :: स्त्री [भस्त्री] भाथी, चमड़े की धौंकनी; 'भत्थि व्व अनिलपुन्ना वियसियमुदरं' (कुप्र २९६)।
भद :: सक [भद्] १ सुख करना। २ कल्याण करना (विसे ३४३९)। वकृ. भदंत; नीचे देखो।
भदंत :: वि [भदन्त] १ कल्याण-कारक। २ सुख-कारक। ३ पूज्य, पूजनीय (विसे ३४३९; ३४७४)
भद्द :: न [दे] आमलक, आँवला-फल-विशेष (दे ६, १००)।
भद्द, भद्दअ :: न [भद्र] १ मंगल, कल्याण; 'भद्दं मिच्छादंसणसमूहमइअस्स अमय- सारस्स जिणवयणस्स भगवओ' (सम्मत्त १६७; प्रासू १६) २ सुवर्णं, सोना। ३ मुस्तक, मोथा, नागरमोथा (हे २, ८०) ४ दो उपवास (संबोध ५८) ५ देव-विमान विशेष (सम ३२) ६ शरासन, मूठ (णाया १, १ टी — पुत्र ४३) ७ भद्रासन, आसन- विशेष (आवम) ८ वि. साधु, सरल, भला, सज्जन। ९ उत्तम, श्रेष्ठ (भग; प्रासू १६; सुर ३, ४) १० सुख-जनक, कल्याण-कारकॉ (णाया १, १) ११ पुं. हाथी की एक उत्तम जाति (ठा ४, २ — पत्र २०८; महा) १२ भारतवर्षं का तीसरा भावी बलदेव (सम १५४) १३ अंगविद्या का जानकार द्वितीय रुद्र पुरुष (विचार ४७३) १४ तिथि-विशेष — द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी तिथि (सुज्ज १०, १५) १५ छन्द-विशेष (पिंग) १६ स्वनाम-ख्यात एक जैन आचार्यं (महानि ६; कप्प) १७ व्यक्ति-वाचक नामक (निर १, ३; आव १; धम्म) १८ भारतवर्ष का चौबीसवाँ भावी जिनदेव (पव ७) °गुत्त पुं [°गुप्त] स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैनाचार्यं (णंदि; सार्धं २३)। °गुत्तिय न [°गुप्तिक] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)। °जस पुं [°यशस्] १ भगवान् पार्श्वनाथ का एक गणधर (ठा ८ — -पत्र ४२९) २ एक जैन मुनि (कप्प)। °जसिय न [°यशस्क] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)। °नंदि पुं [°नन्दिन्] स्वनाम-ख्यात एक राज-कुमार (विपा २, २)। °बाहु पुं [°बाहु] स्वनाम-प्रसिद्ध प्राचीन जैनाचार्यं और ग्रन्थकार (कप्प, णंदि)। °मुत्था स्त्री [°मुस्ता] वनस्पति-विशेष, भद्रमोथा (पणण १)। °वया स्त्री [°पदा] नक्षत्र-विशेष (सुर १०, २२४)। °साल न [°शाल] मेरु पर्वंत का एक वन (ठा २, ३, इक)। °सेण पुं [°सेन] १ धरणेन्द्र के पदाति-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १; इक) २ एक श्रेष्ठी का नाम (आव ४)। °स न [°श्व] नगर-विशेष (इक)। °सण न [°सन] आसन-विशेष, सिंहासन (णाया १, १; पणह १, ४; पाअ; औप)
भद्ददारु :: न [भद्रदारु] देवदारु, देवदार की लकड़ी (उत्तनि ३)।
भद्दव°, भद्दवय :: पुं [भाद्रपद] मास-विशेष, भादों का महीना (वज्जा ८२; सुर ३, १३८)।
भद्दसिरी :: स्त्री [दे] श्रीखण्ड, चन्दन (दे ६, १०२)।
भद्दा :: स्त्री [भद्रा] १ रावण की एक पत्नी (पउम ७४, ९) २ प्रथम बलदेव की माता (सम १५२) ३ तीसरे चक्रवर्त्ती की जननी (सम १५२) ४ द्वितीय चक्रवर्ती की स्त्री (सम १५२) ५ मेरु के पूर्व रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८) ६ एक प्रतिमा, व्रत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ६४) ७ राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५) ८ तिथि-विशेष — द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी तिथि (संबोध ५४) ९ छन्द-विशेष (पिंग) १० कामदेव श्रावक की भार्या का नाम। ११ चुलनीपिता नामक उपासक की माता का नाम (उवा) १२ एक सार्थवाहक स्त्री का नाम (विपा १, ४) १३ गोशालक की माता का नाम (भग १५) १४ अहिंसा, दया (पणह २, १) १५ एक वापी (दीव) १६ एक नगरी (आचू १) १७ अनेक स्त्रियों का नाम (णाया १, ८; १६, आवम)
भद्दाकरि :: वि [दे] प्रलम्ब, अति लम्बा (दे ६, १०२)।
भद्दिआ :: स्त्री [भद्रिका, भद्रा] १ शोभना, सुन्दर (स्त्री) (ओघभा १७) २ नगरी-विशेष (कप्प)
भद्दिज्जिया :: स्त्री [भद्रीया, भद्रीयिका] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)।
भद्दिलपुर :: न [भद्दिलपुर] भारतवर्षं का एक प्राचीन नगर (अंत ४; कुप्र ८४; इक)।
भद्दुत्तरवडिंसग :: न [भद्रोत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम ३२)।
भद्दुत्तर°, भद्दोत्तर°, भद्दोत्तरा :: स्त्री [भद्रोत्तरा] प्रतिमा- विशेष, प्रतिज्ञा का एक भेद, एख तरह का व्रत (औप; अंत ३०; पव २७१)।
भद्र :: देखो भद्द (हे २, ८०; प्राकृ १७)।
भन्नतं, भन्नमाण :: देखो भण = भण्।
भप्प :: देखो भस्स = भस्मत् (हे २, ५१; कुमा)।
भम :: सक [भ्रम] भ्रमण करना, घूमना। भमइ (हे ४, १६१; प्राकृ ६९)। बकृ. भमंत, भममाण (गा २०२; ३८७; कप्प; औप)। संकृ. भमिआ, भमिऊण (षड्; गा ७४६)। कृ. भमिअव्व (सुपा ४३८)।
भम :: पुं [भ्रम] १ भ्रमण (कुप्र ४) २ भ्रान्ति, मोह, मिथ्या-ज्ञान (से ३, ४८; कुमा)
भमग :: न [भ्रमक] लगातार एकतीस दिनों का उपवास (संबोध ५८)।
भमइ :: देखो भभ = भ्रम; 'भवम्मि भमड़इ एगुच्चिय' (विवे १०८; हे ४, १६१)।
भमडिअ :: वि [भ्रान्त] १ घूमा हुआ, फिरा हुआ (स ४७३) २ भान्ति-युक्त (कुमा)। देखो भमिअ।
भमण :: न [भ्रमण] घूमना, चकराना। (दे ४६; कप्प)।
भममुह :: पुं [दे] आवर्त्तं (दे, १०१)।
भमया :: स्त्री [भ्रू] भौंह, नेत्र के ऊपर की केश-पंक्ति (हे २, १६७; कुमा)।
भमर :: पुं [भ्रमर] १ मधुकर, भौंरा (हे १, २४४; कुमा; जी १८; प्रासू ११३४) २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग) ३ विट, रंडीबाज (कप्पू) °रुअ पुं [°रुच] अनार्यं देश-विशेष (पव २७४)। °वलि स्त्री [°वलि] १ छन्द-विशेष (पिंग) २ भ्रमर-पंक्ति (राय)
भमरटेंटा :: स्त्री [दे] १ भ्रमर की तरह अक्षि- गोलकवाली। २ भ्रमर की तरह अस्थिक आचरणवाली। ३ शुष्क व्रण के दागवाली (कप्पू)
भमरिया :: स्त्री [भ्रमरिका] जन्तु-विशेष, बर्रें (जी १८)। देखो भमलिया।
भमरी :: स्त्री [भ्रमरी] स्त्री-भ्रमर, भौंरी (दे)। नीचे देखो।
भमलिया, भमली :: स्त्री [भ्रमरीका, °री] १ पित्त के प्रकोप से होनेवाला रोग-विशेष, चक्कर; 'भमरी पित्तुदयाओ भमंतमहिदंसणं' (चेइय ४३५; पडि) २ वाद्य-विशेष (राय)
भमस :: पुं [दे] तृण-विशेष, ईख की तरह का एक प्रकार का घास (दे ६, १०१)।
भमाइअ :: वि [भ्रमित] घुमाया हुआ, फिराया हुआ (से ३, ६१)।
भमाड :: सक [भ्रमय्] घुमाना, फिराना। भमाडेइ (हे ४, ३०), भमाडेसु (सुपा ११४)। वकृ. भमाडेंत (पउम १०६, ११)।
भमाड :: देखो भम = भ्रम्। भमाडइ (हे ४, १६१; भबि)।
भमाड :: पुं [भ्रम] भ्रमण, घुमना, चक्कर (ओघभा २६ टी; ८३ टी)।
भमाडण :: न [भ्रमण] घुमाना (उप पृ २७८)।
भमाडअ :: देखो भमडिअ (कुमा)।
भमाडिअ :: वि [भ्रमित] घुमाया हुआ, फिराया हुआ (पउम १९, २५)।
भभाव :: देखो भमाड = भ्रमय्। भमावइ, भमावेइ (पि ५५३; हे ४, ३०)।
भमास :: [दे] देखो भमस (दे ६, १०१; पाअ)।
भमि :: स्त्री [भ्रमि] १ आवर्त्त, पानी का चक्रा- कार भ्रमण (अच्चु ९३) २ चित्त-भ्रम करने की शक्ति (विसे १६५३) ३ रोग- विशेष, चक्कर, 'भमिपरिभमियसरीरो' (हम्मीर २८)
भमिअ :: देखो भमडिअ (जी ४८; भवि)। ३ न. भ्रमण; 'भमिअमणिक्कंतदेहलीदेसं' (गा ५२५)।
भमिअ :: देखो भमाइअ (पाअ)।
भमिअव्व, भमिआ :: देखो भम = भ्रम्।
भमिर :: वि [भ्रमितृ] भ्रमण करनेवाला (हे २, १४५; सुर १, ५५, ३, १८)।
भमुह :: न [भ्रू] नीचे देखो; 'दीहाइं भमुहाइं' (आचा २, १३, १७)।
भमुहा :: स्त्री [भ्रू] भौं, आँख के ऊपर की रोग-राजी (पउम ३७, ५०; औप; आचा; पाअ)।
भम्म, भम्मड :: देखो भम = भ्रम्। भम्मइ (प्राकृ ६९), भम्मसु (गा ४१५; ४४७)। भम्मढइ (हे ४, १६१)। भम्मडेइ (कुमा)।
भम्मर :: (अप) देखो भमर (पिंग)।
भय :: देखो भद। वकृ. देखो भयंत = भदंत।
भय :: अक [भज्] १ सेवा करना। २ विकल्प से करना। ३ विभाग करना। ४ ग्रहण करना। भयइ, भअइ (सम्म १२४; कुमा), भए, भएज्जा (बृह १), भयंति (विसे १६९०); तम्हा भय जीव वेरग्गं' (श्रु ६१)। वकृ. भयंत, भयमाण (विसे ३४४६; सूअ १, २, २, १७)। कवकृ. 'सव्वत्तुभद्दमाणसुहेहिं' (कप्प)। संकृ. भइत्ता (ठा ६)। कृ. भइअ, भइअव्व, भएयव्व, भज्ज, भयणिज्ज (विसे ६१८; २०४९; उत्त ३६, २३, २४; २५; कम्म ५, ११; विसे ६१५; उप ६०४; विसे ३२०२; ७४८; १८१; जीवम १४५; पंच ५, ८; विसे ६१६; जीवस १४७)
भय :: न [भय] डर, त्रास, भीति (आचा; णाया १, १; गा १०२; कुमा; प्रासू १९; १७३)। °अर बि [°कर] भय-जनक (से ५, ४४; ११, ७५)। °जणणी स्त्री [°जननी] १ त्रास उत्पन्न करनेवाली (बृह १) २ विद्या- विशेष (पउम ७, १४१)। °वाह पुं [°वाह] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६३)
भय :: देखो भव (उव; कुमा; सण; सुपा ४२०; गउड)।
भय :: देखो भग (औप; पिंग)।
भयंकर :: वि [भयंकर] १ भय-जनक, भोषण (हे ४, ३३१, सण; भवि) २ प्राणि-वध, हिंसा (पणह १, १)
भयंत :: देखो भय = भज्।
भयंत :: देखो भंत = भगवत् (सूअ १, १६, ६)।
भयंत :: देखो भदंत (ओघ ४८; उत्त २०, ११; औप)।
भयंत :: देखो भंत = भयान्त (विसे ३४४९; ३४५३; ३३५४)।
भयंत :: देखो भंत = भवान्त (विसे ३४५४; औप)।
भयंत :: वि [भयत्र] भय से रक्षा करनेवाला (औप; सूअ १, १६, ६)।
भयंतु :: वि [भयत्रातृ] भय से रक्षा करनेवाला 'धम्ममाइक्खणे भयंतारो' (सूअ १, ४, १, २५)।
भयंतु :: वि [भक्तृ] सेवक, सेवा करनेवाला (औप)।
भयक, भयग :: पुं [भृतक] १ नौकर, कर्मंकर (ठा ४, १; २) २ वि. पोषित (पणह १, २; णाया १, २)
भयण :: न [भयण] १ सेवा (राज) २ विभाग (सम्म ११३) ३ पुं. लोभ (सूअ १, ९, ११)
भयण :: देखो भवण (नाट — चैत ४०)।
भयणा :: स्त्री [भजना] १ सेवा (निचु १) २ विकल्प (भग; सम्म १२४; दं ३१; उव)
भयप्पइ, भयप्फइ :: देखो बहस्सइ (हे २, १३७; षड्)।
भयवग्गाम :: पुं [दे] मोढेरेक, गुजरात का एक गाँव (दे ६, १०२)।
भयाणय :: वि [भयानक] भयंकर, भय-जनक (स १२१)।
भयालि :: पुं [भयालि] भारतवर्षं के भावी अठारहवें जिनदेव का पूर्वं-भवीय नाम (सम १५४)। देखो सयालि।
भयालु :: वि [भीरु] भीरु, डरपोक (दे ६, १०७; नाट)।
भयावण :: (अप) देखो भयाणय (भवि)।
भयावह :: वि [भयावह] भय-जनक, भय-कारक (सूअ १, १३, २१)।
भर :: सक [भृ] १ भरना। २ धारण करना। ३ पोषण करना। भरइ (भवि; पिंग), भरसु (कम्म ४, ७६)। वकृ. भरंत (भवि)। कवकृ. भरंत, भरेंत, भरिज्जंत (से १, ५८; ४, ८; १, ३७)। संकृ. भरेऊणं (आक ९)। कृ. भरणिज्ज, भरणीअ, भत्तव्व, भरेअव्व (प्राप्र; नाट राज; से ९, ३)
भर :: सक [स्मृ] स्मरण करना, याद करना। भरइ (हे ४, ७४; प्राप्र)। वकृ. भरंत (गा ३८१; भवि)। संकृ. भरिअ, भरिऊणं (कुमा)। प्रोय, वकृ. भरावंत (कुमा)।
भर :: पुंन [भर] १ समूह, प्रकर, निकर; जइव्वं तह एगाणिणावि भीमारिदुट्ठभरं' (प्रवि १२; सुपा ७; पाअ) २ भार, बोझ (से ३, ५; प्रासू २९; सा ९) ३ गुरुतर कार्यं; 'भरणित्थरणसमत्था' (विसे १६९ टी; ठा ४, ४ टी — पत्र २८३) ४ प्रचुरता, अतिशय। ५ कर — राजदेय भाग की प्रचुरता, कर की गुरुता; 'करेहि य भरेहि य' (विपा १, १) ६ पूर्णंता, सम्पूर्णंता; 'इय चिंताए निद्दं अलहंतो निसिभरम्मि नरनाहो' (कुप्र ६) ७ मध्य भाग। ८ जमावट; 'भरमुवगए कोलापमोए; ( स ५३०)
भरअ :: देखो भरह (षड्)।
भरड :: पुं [भरद] व्रती-विशेष, एक प्रकार का बाबा; 'सिवभवणाहिगारिणा भरडएणा' (सम्मत्त १४५)।
भरण :: न [स्मरण] स्मृति (गा २२२; ३७७)।
भरण :: न [भरण] १ भरना, पूरना (गउड) २ पोषण (गा ५२७) ३ शिल्प-विशेष, वस्त्र में बेलृ-बूटा आदि आकार की रचना; 'सीवणं तुन्नणं भरणं' (गच्छ ३, ७)
भरणी :: स्त्री [भरणी] नक्षत्र-विशेष (सम ८; इक)।
भरध :: (शौ) देखो भरह (प्राकृ ८५)।
भरह :: पुं [भरत] १ भगवान् आदिनाथ का ज्येष्ठ पुत्र और प्रथम चक्रवर्त्ती राजा (सम ९०; कुमा; सुर २, १३३) २ राजा रामचन्द्र का छोटा भाई (पउम २५, १४) ३ नाट्य-शास्त्र का कर्त्ता एक मुनि (सिरि ५६) ४ वर्षं-विशेष, भारत वर्षं; 'हहेव जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा — भरहे हेमवए हरिवासे महाविदेहे रम्मए एरणणवए एरवए' (सम १२; जं १; पडि) ५ भारवर्षं का प्रथम भावी चक्रवर्त्ती (सम १५४) ६ शबर। ७ तन्तुवाय। ८ नृप- विशेष, राजा दुष्यन्त का पुत्र। ९ भरत के वंशज राजा। १० नट (हे १, ११४; षड्) ११ देव-विशेष (जं ३) १२ कूट-विशेष, पर्वत-विशेष का शिखर (जं ४; ठा २, ३; ९) °खित्त न [°क्षेत्र] भारतवर्षं (सण)। °वास न [°वर्ष] भारतवर्षं, आर्यावर्त्त (पणह १, ४)। °सत्थ न [°शास्त्र] भरतमुनि- प्रणीत नाट्यशास्त्र (सिरि ५६)। °हिव पुं [°धिप] १ संपूर्णं भारतबर्षं का राजा, चक्रवर्त्ती। २ भरत चक्रवर्त्ती (सण)। °हिवइ पुं [°धिति] वही अर्थं (सण)
भरहेसर :: पुं [भरतेश्वर] १ संपूर्णं भारतवर्षं का राजा, चक्रवर्त्ती। २ चक्रवर्त्ती भरत (कुमा २, १७; पडि)
भरिअ :: वि [भृत, भरित] भरा हुआ, पूर्णं, व्याप्त (विपा १, ३; औप; धर्मंवि १४४; काप्र १७४; हेका २७२; प्रासू १०)।
भरिअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ, 'भरिअं लुढिअं सुमरिअं' (पाअ; कुमा; भवि)।
भरिउल्लट्ट :: वि [दे. भृतोल्लुठित] भर कर खाली किया हुआ (दे ७, ८१; पाअ)।
भरिम :: वि [भरिम] भर कर बनाया हुआ (अणु)।
भरिया :: (अप) देखो भारिया (कुमा)।
भरिली :: स्त्री [भरिली] चतुरिन्द्रिय जन्तु- विशेष (राज)।
भरु :: पुं [भरु] १ एक अनार्यं देश। २ एक अनार्यं मनुष्य-जाति (इक)
भरुअच्छ :: पुं [भृगुकच्छ] गुजरात का एक प्रसिद्ध शहर जो आजकल 'भड़ौच' के माम से प्रसिद्ध है (काल; मुनि १०८९९; पडि)।
भरोच्छय :: न [दे] ताल का फल (दे ६, १०२)।
भल :: देखो भर = स्मृ। भलइ (हे ४, ७४)। प्रयो., वकृ. भलावंत (कुमा)।
भल :: सक [भल्] सम्हालना। भलिज्जासु (सुपा ५४६)। भवि. भलिस्साभि (काल)। कृ. भलेयव्व (ओघ ३८६ टी)। प्रयो, संकृ. भलाविऊण (सिरि ३१२; ५९९)।
भलंत :: वि [दे] स्खलित, होता, गिरता (दे ६, १०१)।
भलाविअ :: वि [भालित] सौपा हुआ, सम्हालने के लिये दिया हुआ (श्रा १६)।
भलि :: पुंस्त्री [दे] कदाग्रह, हठ; 'आसुलहमेच्छण जाहं भलि ते नवि दूर गणंति' (हे ४, ३५३; चंड)।
भल्ल :: पुं [भल्ल] १ भालु, रीछ (पणह १, १) २ पुंन. अस्त्र-विशेष, भाला, बरछी (गा ५०४; ५८५; ५९४)
भल्ल, भल्लय :: वि [भद्र] भला, उत्तम, श्रेष्ठ, अच्छा (कुमाा; हे ४, ३५१; भवि)। °त्तण, °प्पण न [°त्व] भलमनसी, भलाई (कुमा)।
भल्लय :: [भल्लक] देखो भल्ल = भल्ल (उप पृ ३०; सण आवम)।
भल्लअय, भल्लातक, भल्लाय :: पुं [भल्लात, °क] १ वृक्ष-विशेष, भिलावा का पेड़ (पणण १; दे १, २३) २ न. भिलावा का फल (दे १, २३; ५, २६; पाअ)
भल्लि :: स्त्री [भल्लि] देखो भल्ली (कुमा)।
भल्लिम :: पुंस्त्री [भद्रत्व] भलाई, भद्रता (सुपा १२३; कुप्र १०८)।
भल्ली :: स्त्री [भल्ली] भाला, बरछी, अस्त्र-विशेष (सुर २, २८; कुप्र २७४; सुपा ५३०)।
भल्लु :: पुंस्त्री [दे] भालु, रीछ (दे ६, ९९)।
भल्लुंकी :: स्त्री [दे] शिवा, श्रृगाली (दे ६, १०१; सण); 'भल्लुंकी रुट्ठिया विकट्टं ती' (संथा ६६)।
भल्लोड :: पुंन [दे] बाण का पुंख, शर का अग्र भाग, गुजराती में 'भालोडुं; 'कन्नायडि्ढ- यवणुहपठ्ठदीसंतभल्लोडा' (सुर २, ७)।
भव :: अक [भू] १ होना। २ सक. प्राप्त करना। भवइ, भवए (कप्प; महा), भए (भग; ठा ३, १)। भूका. भविंसु (भग)। भवि. भविस्सइ, भविस्सं (कप्प; भग; पि ५२१)। बकृ. भवंत (गउड ५८८), 'भूयभा- विभा (? भ) वमाण भाविही' (कुप्र ४३७)। संकृ. भविअ, भवित्ता, भवित्ताणं (अभि ५७; कप्प; भग; पि ५८३), भइ (अप), (पिंग)। कृ. भवियव्व (णाया १, १; सुर ४, २०७; उव; भग, सुपा १६४)। देखो भव्व)
भव :: पुं [भव] १ संसार (ठा ३, १; उवा; भग; विपा २, १; कुमा; जी ४१) २ संसार का कारण (सम्म १) ३ जन्म, उत्पत्ति (ठा ४, ३) ४ नरकादि योनि, जन्म- स्थान (आचा; ठा २, ३; ४, ३) ५ महा- देव, शिव (पाअ) ६ वि. होनेवाला, भावी (ठा १) ७ उत्पन्न; 'कणयपुरं नामेणं तत्थ भवो हं महाभाग !' (सुपा ५८४) ८ न. देव-विमान-विशेष (सम २) °जिण वि [°जिन] रागादि को जीनतेवाला; 'सासणं जिणाणं भवजिणाणं' (सम्म १)। °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] १ देव आदि योनि में उत्पत्ति की काल-मर्यादा (ठा २, ३) २ संसार में अवस्थान (पंचा १)। °त्थ वि [°स्थ] संसार में स्थित (ठा २, १)। °त्थकेवलि वि [°स्थकेवलिन्] जीवमुक्तं (सम्म ८९)। °धारणिज्ज न [°धारणीय] जीवन-पर्यंन्त संसार में धारण करने योग्य शरीर (भग; इक)। °पच्चइय वि [°प्रत्ययिक] १ नरकादि-योनि-हेतुक। २ न. अवधिज्ञान का एक भेद (ठा २, १; सम १४५)। °भूइ पुं [°भूति] संस्कृत का एक प्रसिद्ध कवि (गउड)। °सिद्धिय. °सिद्धीय वि [°सिद्धिक] उसी जन्म में या बाद के किसी जन्म में मुक्ति होनेवाला, मुक्ति-गामी (सम २; पणण १८; भग; विसे १२३०; जीवस ७५; श्रावक ७३; ठआ १; विसे १२२६)। °भिणंदि, °भिनंदि, °हिनंदि वि [°भिनन्दिन्] संसार को पसंद करनेवाला, संसार को अच्छा माननेवाला (राज; संबोध ८; ५३)। °कग्गाहि न [°प्रेगाहिन्] कर्मं-विशेष (धर्मंसं १२९१)
भव :: देखो भव्व (कम्म ४, ९)।
भव, भवंत :: पुं [भवत्] तुम, आप (कुमा; हे २, १७४)।
भवंत :: देखो भव = भू।
भवँ :: (अप) भम = भ्रम्। भवंइ (सण)। वकृ. भवँत (भवि)। संकृ. भविँत्तु (सण)।
भवँण :: (अप) देखो भमण (भवि)।
भभण :: न [भवन] १ उत्पत्ति, जन्म (धर्मंसं १७२) २ गृह, मकान, वसति (पाअ; कुमा) ३ असुरकुमार आदि देवों का विमान (पणण २) ४ सत्ता (विसे ६९)। °वइ पुं [°पति] एक देव-जाति (भग)। °वासि पुं [°वासिन्] वही पूर्वोक्त अर्थं (ठा १०; औप)। °वासिणी स्त्री [°वासिनी] देवी विशेष (पणण १७; महा ६८, १२)। °हिव पुं [°धिप] एक देव-जाति (सुपा ६२०)
भवमाण :: देखो भव = भू।
भवर :: देखो भमर (चंड)।
भवाणी :: स्त्री [भवानी] शिव-पत्नी, पार्वंती (पाअ; समु १५७)। °कंत पुं [°कान्त] महादेव (पिंग)।
भवारिस :: वि [भवादृश] तुम्हारे जैसा, आपके तुल्य (हे १, १४२; चंड; सुपा २७६)।
भवि :: पुं [भविन्] भव्य जीव, मुक्ति-गामी प्राणी (भवि)।
भविअ :: देखो भव = भू।
भविअ :: वि [भव्य] १ सुन्दर (कुमा) २ श्रेष्ठ, उत्तम (संबोध १) ३ मुक्ति-योग्य, मुक्ति-गामी (पणण १; उव) ४ भावी, होनेवाला (हे २, १०७; षड्)। देखो भव्व = भव्य।
भविअ :: वि [भविक] १ मुक्ति-योग्य, मुक्ति- गामी। २ संसारी, संसार में रहनेवाला (सुर ४, ८०)
°भविअ :: वि [°भविक] भव-संबन्धी (सण)।
भवित्ती :: स्त्री [भवित्री] होनेवाली (पिंग)।
भवियव्व :: देखो भव = भू।
भवियव्वया :: स्त्री [भवितव्यता] नियति, अवश्यंभावी, होनी (महा)।
भविल :: वि [भविल] निष्ठुर (दश° अगस्त्य चू° पत्र° १६८, सूत्र° ३२६)।
भविस :: (अप) देखो भवीस। °त्त, °यत्त पुं [°दत्त] एक कथा-नायक (भवि)।
भविस्स :: पुं [भविष्य] १ भविष्य काल, आगामी समय (पउम ३५, ५६; पि ५६०) २ वि. भविष्य काल में होनेवाला, भावी (णाया १, १६ — पत्र २१४; पउम ३५, ५६; सुर १, १३५; कप्पू)
भवीस :: (अप) ऊपर देखो (भवि)।
भव्व :: वि [भव्य] १ सुन्दर, 'सव्वं भव्वं करिस्सामि' (सुपा ३३९) २ उचित, योग्य (विसे २८; ४४) ३ श्रेष्ठ, उत्तम (वज्जा १८) ४ होता, वर्त्तमान; 'एयं भूयं वा भव्वं वा भविस्सं वा' (णाया १, १६ — पत्र २१४; कप्प; विसे १३४२) ५ भावी, होनेवाला (विसे ५८; पंच २, ८) ६ मुक्ति-योग्य, मुक्ति-गामी (बिसे १८२२; ३; ४; ५; दं १)। °सिद्धीय देखो भव-सिद्धीय; 'पज्जात्तापज्जत्ता सुहुमा किंचहिया भव्व- सिद्धीया' (पंच २, ७८)
भव्व :: पुं [दे] भागिनेय, भानजा (दे ६, १००)।
भस :: सक [भष्] भूँकना, श्वान का बोलना। भसइ (हे ४, १८६; षड् — पत्र २२२), भसंति (सिरि ६२२)।
भसग :: पुं [भसक] एक राज-कुमार, श्रीकृष्ण के बड़े भाई जरत्कुमार का एक पौत्र (उव)।
भसण :: देखो भिसण। भसणेमि (पि ५५९)।
भसण :: न [भषण] १ कुत्ते का शब्द (श्रा २७) २ पुं. श्वान, कुत्ता (पाअ; सिरि ६२२)
भसणअ :: (अप) वि [भषितृ] भूँकनेवाला, 'सुणउ भसणउ' (हे ४, ४४३)।
भसम :: पुं [भस्मन्] १ ग्रह-विशेष, 'भस- मग्गहपीडियं इमं तित्थं' (सट्ठि ४२ टी) २ राख, भभूत; 'भसमुद्घूलियगत्तो' (महा; सम्मत्त ७६)। देखो भास = भस्मन्।
भसल :: देखो भमर (हे, १, २४४; २५४; कुमा; सुपा ४; (पिंग)।
भसुआ :: स्त्री [दे] शिवा, श्रृगाली, सियारिन (दे ६, १०१; पाअ)।
भसुम :: देख भसम (प्राकृ ३७)।
भसेल्ल :: पुंन [दे] घान्य आदि का तीक्ष्ण अग्र भाग, 'सालिभसेल्लसरिसा से केसा' (उवा)।
भसोल :: न [दे. भसोल] एक नाट्य-विधि (राज)।
भस्थ :: (मा) देखो भट्ट (षड्)।
भस्थालय :: (मा) देखो भट्टारय (षड्)।
भस्स :: देखो भंस = भ्रंश्। भस्सइ (प्राकृ ७६)। वकृ. भस्संत (काल)।
भस्स :: पुं [भस्मन्] १ ग्रह-विशेष। २ राख (हे २, ५१)
भस्सिअ :: वि [भस्मित] जलाकर राख किया हुआ, भस्म किया हुआ (कुमा)।
भा :: अक [भा] चमकना, दीपना; प्रकाशना; 'भा भाजो वा दित्तीए' (विसे ३४४७)। भाइ (कप्पू), भासि (गउड)। वकृ. देखो भंत = भात्।
भा :: स्त्री [भा] दीप्ति, प्रभा, कान्ति, तेज (कुमा)। °मंडल पुं [°मण्डल] राजा जनक का पुत्र (पउम २६, ८७)। °वलय न [°वलय] जिन-देव का एक महाप्रातिहार्यं, पीठ के पीछे रखा जाता दीप्ति-मंडल (संबोध २; सिरि १७७)।
भा, भाअ :: अक [भी] डरना, भय करना। भाइ, भाअइ, भाआमि (हे ४, ५३; षड्; महा; स्वप्न ८०), भादि (शौ) (प्राकृ ९३), भायइ (सण)। भवि. भाइस्सदि, भाइस्सं (शौ) (पि ५३०)। वकृ. भायंत (कुमा)। कृ. भआइयव्व (पणह २, २; स ५६२; (सुपा ४१)।
भाअ :: देखो भा = भा। भाअदि (शौ) (प्राकृ ९३)।
भाअ :: सक [भायय्] डराना। भाअइ, भाएइ (प्राकृ ६४), भाएसि (कर्पूर २४)। वकृ. भायमाण (सुपा २४८)।
भाअ :: देखो भाव = भावय्। कृ. भाएअव्व (नव २५)।
भाअ :: पुं [भाग] १ योग्य स्थान। २ एक देश (से १३, ९) ३ अंश, विभाग, हिस्सा (पाअ; सुपा ४०७; पव — -गाथा ३०; उवा) ४ भाग्य, नसीब (सार्ध ८०) °घेअ, °हेअ पुंन [°धेय] १ भाग्य, नसीब (से ११, ८५; स्वप्न ५१; हम्मीर १४; अभि १९७) २ कर, राज-देय। ३ दायाद, भागीदार; 'भाअहेओ, भाअहेअं' (प्राकृ ८८; नाट — चैत ६०)। देखो भाग।
भाअ :: पुं [दे] ज्येष्ठ भगिनी का पति (दे ६, १०२)।
भाअ :: देखो भाव (भवि)।
भाआव :: देखो भाअ = भायय्। भाआवेइ (प्राकृ ६४)।
भाइ :: देखो भागि; 'सारिव्व बंधवहमरणभाइणो जिण ण हुंति तइ दिट्ठे' (धण ३२; उप ९८६ टी)।
भाइ, भाइअ :: पुं [भ्रातृ] भाई, बन्धु (उप ५१६; महा; आवम)। °बीया स्त्री [°द्वि- तीया] पर्वं-विशेष, भैयादूज, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि (ती १९)। °सुअ पुं [°सुत] भतीजा (सुपा ४७०)। देखो भाउ।
भाइअ :: वि [भाजित] १ विभक्त किया हुआ, बाँटा हुआ (पिंड़ २०८) २ खण्डित (पंच २, १०)
भाइअ :: वि [भीत] १ डरा हुआ। २ न. डर, भय (हे ४, ५३)
भाइणिज्ज, भाइणेअ, भाइणेज्ज :: पुंस्त्री [भागिनेय] भगिनी-पुत्र, बहिन का लड़का, भानजा (धम्म १२ टी; नाट — रत्ना ८५; स २७०; णाया १, ८ — पत्र १३२, पउम ९९, ३९; कुप्र ४४०; महा)। स्त्री. °ज्जी (पउम १७, ११२)।
भाइयव्व :: देखो भा = भी।
भाइर :: वि [भीरु] डरपोक (दे ६, १०४)।
भाइल्ल :: पुं [दे] हालिक, कर्षक, कृषीबल, किसान (दे ६, १०४)।
भाइल्ल :: वि [भागिन्, °क] भागीदार, साझीदार, अंश-ग्राही (सूअ २, २, ६३; पणह १, २; ठा ३, १ — पत्र ११३; णाया १, १४)। देखो भागि।
भाइहंड :: न [दे. भ्रातृभाण्ड] भाई, बहिन आदि स्वजन; गुजराती में 'भाँवड' (कुप्र १५६)।
भाईरही :: स्त्री [भागीरथी] गंगा नदी (गउड; हे ४, ३४७; नाट — विक्र २८)।
भाउ, भाउअ :: पुं [भ्रातृ] भाई, बन्धु (महा; सुर ३, ८८; पि ५५, हे १, १३१ उव)। °जाया, °ज्जाइया स्त्री [°जाया] भौजाई, भाई का स्त्री (दे ६, १०३; सुपा २६४)।
भाउअ :: देखो भाअ = (दे) (दे ६, १०२ टी)।
भाउअ :: न [दे] आषाढ़ मास में मनाया जाता गौरी-पार्वती का एक उत्सव (दे ६, १०३)।
भाउग :: देखो भाउ (उप १४९ टी; महा)।
भाउज्जा :: स्त्री [दे] भौजाई, भाई की पत्नी (दे ६, १०३)।
भाउराअण :: पुं [भागुरायण] व्यक्ति-वाचक नाम (मुद्रा २२३)।
भाएअव्व :: देखो भाअ = भावय्।
भाग :: पुं [भाग] १ अंश, हिस्सा (कुमा; जी २७; दे १, १६७) २ अचिन्त्य शक्ति, प्रभाव, माहात्म्य; 'भागोचिंता सत्ती स महा- भागो महप्पभावो त्ति' (विसे १०५८) ३ पूजा, भजन (सूअ १, ८, २२) ४ भाग्य, नसीब; 'धन्ना कयपुन्ना हं महंतभागोदओवि मह अत्थि' (सिरि ८२३) ५ प्रकार, भंगी (राज) ६ अवकाश (सुज्ज १०, ३ — पत्र १०४)। °धेअ, °धेज्ज °हेअ देखो भाअ- हेअ (पउम ६, ५७; २८स ८९; स १२; सुर १४, ६; पाअ)। देखो भाअ = भाग।
भागवय :: वि [भागवत] १ भगवान् से संबन्ध रखनेवाला। २ भगवान् का भक्त (धर्मंसं ३१२) ३ न. ग्रंथ-विशेष (णंदि)
भागि :: वि [भागिन्] १ भजनेवाला, सेवन करनेवाला; 'भारस्स भागी' (उव), 'किं पुण मरणंपि न में संजायं मंदभग्गभागिस्स' (सुपा ५४७) २ भागीदार, साझीदार, अंश-ग्राही (प्रामा)
भागिणेज्ज, भागिणेय :: देखो भाइणेज्ज (महा; कुप्र ३७१)।
भागीरही :: देखो भाईरही (पाअ)।
भाज :: अक [भ्राज्] चमकना। वकृ. भाजंत, भंत (विसे ३४४७)।
भाड :: पुंन [दे] भाड़, वह बड़ा चूल्हा जहाँ अन्न भुना जाता है, भट्ठी; 'जाया भाडसमाणा मगाग उत्तत्तवालुया अहिय' (धर्मंवि १०४; सण)।
भाडय :: न [भाटक] भाड़ा, किराया (सुर ९, १५७)।
भाडिय :: वि [भाटकित] भाड़े पर लिया हुआ, 'बोहित्थं भाडियं वियडं' (सुर १३, ३५)।
भाडिया, भाडी :: स्त्री [भाटिका, °टी] भाड़ा, शुल्क, किराय; 'एक्काण देइ भाडि अन्नाहिं समं रमेइ रयणीए', 'बिला- सिणीए दाऊण इच्छियं भाडिं' (सुपा ३८२; ३८३; उवा)। °कम्म न [°कर्मन्] बैल, गाड़ी आदि भाड़े पर देने का काम — धन्धा; 'भाडियकम्मं' (स ५०; श्रा २२; पडि)।
भाण :: देखो भण = भण। संकृ. भाणिऊण, भाणिऊणं (पिंड ६१५; उव)। कृ. भाणियव्व (ठा ४, २; सम ८४; भग; उवा; कप्प; औप)।
भाण :: देखो भायण ओघ ६९५; हे १, २६७; कुमा)।
भाणिअ :: वि [भाणित] १ पढ़ाया हुआ, पाठित; 'नाणसत्थाइं भाणिआ' (रयण ६८) २ कहलाया हुआ; 'मयणसिरिनामाए रन्नो भज्जाए भाणिओ मंती' (सुपा ५८७)
भाणु :: पुं [भानु] १ सूर्यं, रवि (पउम ४९, ३९, पुप्फ १६४; सिरि ३२) २ किरण (प्रामा) ३ भगवान् धर्मंनाथ का पिता, एक राजा (सम १५१) ४ स्त्री. एक इन्द्राणी, शक्र की एक अग्र-महिषी (पउम १०२, १५९)। °कण्ण पुं [°कर्ण] रावण का एक अनुज (पउम ७, ९७)। °मई स्त्री [°मती] रावण की एक पत्नी (पउम ७४, १०)। °मालिणी [°मालिनी] विद्या-विेशेष (पउम ७, १३६)। °मित्त न [°मित्र] उज्जयिनी के राजा बलमित्र का छोटा भाई (काल; विचार ४९४)। °वेग पुं [°वेग] एक विद्याधर का नाम (महा; सण)। °सिरी स्त्री [°श्री] राजा बलमित्र की बहिन (काल)
भाम :: देखो भमाड = भ्रमय्। भामेइ (हे ४, ३०)। कवकृ. भामज्जंत (गा ४५७)। कृ. भामेयव्व (ती ७)।
भामण :: न [भ्रामण] घुमाना, फिराना (सम्मत्त १७४)।
भामर :: न [भ्रामर] १ मधु-विशेष, भ्रमरी का बनाया हुआ मधु (पव ४) २ पुं. दोधक छन्द का एक भेद (पिंग)
भामरी :: स्त्री [भ्रामरी] १ बीणा-विशेष (णाया १, १७ — पत्र २२९) २ प्रदक्षिणा (कप्पू; भवि)
भामिअ :: वि [भ्रमित] १ घुमाया हुआ (से २, ३२) २ भ्रान्त किया हुआ, भ्रान्त-चित्त किया हुआ; 'धत्तुरभामिओ इव' (मन २७; धर्मंवि २३)
भामिणी :: स्त्री [भागिनी] भाग्यवाली (हे १, १९०; कुमा)।
भामिणी :: स्त्री [भामिनी] १ कोप-शीला स्त्री। २ स्त्री, महिला (श्रा १२; सुर १, ७६; सुपा ४७५; सम्मत्त १९३)
भाय :: देखो भाउ (कुमा)।
भायंत :: देखो भा = भी।
भायण :: पुंन [भाजन] १ पात्र। २ आधार। ३ योग्य; 'भायणा, भायणाइं' (हे १, ३३; २६७), 'ति च्चिय धन्ना ते पुन्नभायणा, ताण जीवियं सहलं' (सुपा ५६७; कुमा)
भायण :: न [भाजन] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७६)।
भायणंग :: पुं [भाजनाङ्ग] कल्पवृक्ष की एक जाति, पात्र देनेवाला कल्पवृक्ष (पउम १०२, १२०)।
भायणिज्ज :: देखो भाइणिज्ज (धर्मंवि १२; काल)।
भायणाण :: देखो भाअ = भायय्।
भायर :: देखो भाउ (कुमा)।
भायल :: पुं [दे] जात्य अश्व, उत्तम जाति का घोड़ा (दे ६, १०४; पाअ)।
भार :: पुं [भार] १ बोझा, गुरुत्व (कुमा) २ भारवाली वस्तु, बोझवाली चीज (श्रा ४०) ३ काम संपादन करने का अधिकार; 'भारक्खमेवि पुत्ते जो नियमारं ठवित्तु नियपुत्तें' न य साहेइ सकज्जं' (प्रासू २७) ४ परि- माण-विशेष; 'लाउअबीअं इक्कं नासइ भारं गुडस्स जह सहसा' (प्रासू १५१) ५ परिग्रह, धन-धान्य आदि का संग्रह (पणह १, ५)। °ग्गसो अ [°ग्रशस्] भार भार के परिमाण से; 'दसद्धवन्नमल्लं कुम्भग्गसो य भारग्गसो य' (णाया १, ८ — पत्र १२५)। °वह वि [°वह] बोझा ढोनेवाला (श्रा ४०)। °वह वि [°वह] वही अर्थं (पउम ९७, २९)
भारई :: स्त्री [भारती] भाषा, वाणी, वाक्य, वचन (पाअ)। देखो भारही।
भारदाये, भारद्दाय :: न [भारद्वाज] १ गोत्र-विशेष, जो गोतम गोत्र की एक शाखा है (कप्प; सुज्ज १०, १६) २ पुं. भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न; 'जे गोयमा ते गग्गा ते भारद्दा (? द्दाया); ते अंगिरसा' (ठा ७ — पत्र ३९०)। पक्षि-विशेष (ओधभा ८४) ४ मुनि-विशेष (पि २३६; २९८; ३६३)
भारय :: देखो भार (सुपा १४, ३८५)।
भारह :: न [भारत] १ भारतवर्षं, भरत-क्षेत्र (उवा); 'जहा निसंते तवणच्चिमाली पभासई केवलभारहं तु' (दस ९, १, १४) २ पाण्डव कौरवों का युद्ध, महाभारत (पउम १०५, १६) ३ ग्रंथ-विशेष, जिसमें पाण्डव- कौरव युद्ध का वर्णंन है, व्यास-मुनि-प्रणीत महाभारत (कुमा; उर ३, ८) ४ भरत मुनि-प्रणीत नाट्य-शास्त्र (अणु) ५ बि. भारतवर्षं-सम्बन्धी, भारतवर्षं का (ठा २, ३ — पत्र ६९), 'त्थ खलु इमे दुवे सूरिया पन्नता, तं जहा — भारहे चेव सूरिए, एरवए चेव सूरिए' (सुज्ज १, ३)। °खेत्त न [°क्षेत्र] भारतवर्षं (ठा २, ३ टी — पत्र ७१)
भारहिय :: वि [भारतीय] भारत-संबन्धी, 'जा भारहियकहा इव भीमज्जुणनउलसउणि- सोहिल्ला' (सुपा २६०)।
भारही :: स्त्री [भारती] १ सरस्वती देवी (पि २०७) २ देखो भारई (स ३१९)
भारिअ :: वि [भारिक] भारी, भारवाला, गुरु (दे ४, २; णाया १, ६ पत्र — ११४)।
भारिअ :: वि [भारित] १ भारवाला, भारी (उप पृ १३४) २ जिस पर भार लादा गया हो वह, भार-युक्त किया गया (सुख २, २५)
भारिआ :: देखो भज्जा (हे २, १०७; उवा; णाया २)।
भारिल्ल :: वि [भारवत्] भारी, बोझवाला (धर्मंवि १३७)।
भारुंड :: पुं [भारुण्ड] दो मुँह और एक शरीर वाला पक्षी, पक्षि-विशेष (कप्प; औप; महा; दे ६, १०८)।
भाल :: न [भाल] ललाट (पाअ; कुमा)।
भलुंकी :: [दे] देखो भल्लुंकी (भत्त १६०)।
भाल्ल :: पुंन [दे] मदन-वेदना, काम-पीड़ा (संक्षि ४७)।
भाव :: सक [भावय्] १ वासित करना, गुणा- घान करना। २ चिन्तन करना। भावेइ (विवे ९८), भाविंति (पिंड १२६), 'भारवेज्ज भावणं' (हि १९), भावेसु (महा)। कर्मं. भाविज्जइ (प्रासू ३७)। वकृ. भावेंत, भावमाण, भावेमाण (सुर ८, १८५; सुपा २९५; उवा)। संकृ. भावेत्ता, भाविऊण (उवा; महा)। कृ. भावणिज्ज, भावियव्व, भावेयव्व (कप्पू; काल; सुर १४, ८४)
भाव :: अक [भास्] १ दिखाना, लगना, मालूम होना। २ पसन्द होना, उचित मालूम होना; 'सो चेव दिवलोगो देवसहस्सोबसोहिओ रम्मो। तुह विरहियाइ हयिह भावइ नरओवमो मज्झ।' (सुर ७, १६)। 'तं चिय इमं विमाणं रम्मं मणिकणगरयणविच्छुरियं। तुमए मुक्कं भावइ घड़ियालयसच्छहं नाह।' (सुर ७, १७)। 'एम्वहिं राहपओहरहं जं भावइ तं होउ' (हे ४, ४२०)
भाव :: पुं [भाव] १ पदार्थं, वस्तु; 'भावो वत्थु पयत्थो' (पाअ; विसे ७०; १६९२) २ अभिप्राय, आशय (आचा; पंचा १, १; प्रासु ४२) ३ चित्त-विकार, मानस विकृति; 'हावभावपलसियविक्खेवविलाससालिणीहिं' (पणह २, ४ — पत्र १३२) ४ जन्म, उत्पत्ति; 'पिंडो कज्जं पइसमयभावाउ' (विसे ७१) ५ पर्याय, धर्मं, वस्तु का परिणाम, द्रव्य की पूर्वापर अवस्था (पणह १, ३; उत्त ३०, २३; बिसे ६९; कम्म ४, १; ७०) ६ धात्वर्थ-युक्त पदार्थ विवक्षित क्रिया का अनुभव करनेवाली वस्तु, पारमार्थिक पदार्थ (विसे ४९) ७ परामार्थं, वास्तविक सत्य (विसे ४९) ८ स्वभाव, स्वरूप (अणु; णंदि) ९ भवन, सत्ता (विसे ६०; गउड ९७८) १० ज्ञान, उपयोग (आचू १; विसे ५०) ११ चेष्टा (णाया १, ८) १२ क्रिया, धात्वर्थं (अणु) १३ विधि, कर्तव्योपदेश; 'भावाभावमणंता' (भग ४१ — पत्र ९७९) १४ मन का परिणाम (पंचा २, ३३; उव; कुमा ७, ५५) १५ अन्तरंग बहुमान, प्रेम, राग (उव; कुमा ७, ८३; ८५) १६ भावना, चिन्तन (गउड १२०४; संबोध २४) १७ नाटक की भाषा में विविध पदार्थों का चिन्तक पण्डित (अभि १८२) १८ आत्मा (भग १७, ३) १९ अवस्था, दशा (कप्पू)। °केउ पुं [°केतु] ज्योतिष्क-देव-विशेष, महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)। °त्थ पुं [°र्थ] तात्पर्यं, रहस्य (स ६)। °न्न °न्नुय वि [°ज्ञ] अभिप्राय को जाननेवाला (आचा; महा)। °पाण पुं [°प्राण] ज्ञान आदि आत्मा का अन्तरंग गुण (पणण १)। °संजय पुं [°संयत] सच्चा, साधु (उप ७३२)। °साहु पुं [°साधु] वही अर्थं (भग)। °सव पुं [°स्रव] वह आत्मृपरिणाम, जिससे कर्म का आगमन हो; 'आसवदि जेण कम्मं परि- णामेणप्पणो स विणणोओ भावासवो' (द्रव्य २९)
भाव :: पुं [भाव] महान् वादी, समर्थं विद्वान् (दस १, १ टी)।Z
भावअ :: वि [भावक] होनेवाला (प्राकृ ७०)। देखो भावग।
भावइआ :: स्त्री [दे] धार्मिक-गृहिणी (दे ६, १०४)।
भावग :: वि [भावक] वासक पदार्थ, गुणाधायक वस्तु (आचू ३)। देखो भाचअ।
भावड :: पुं [भावक] स्वनाम-ख्यात एक जैन गृहस्थ (ती २)।
भावण :: पुं [भावन] १ स्वनाम-ख्यात एक वणिक् (पउम ५, ८२) २ नीचे देखो (संबोध २४; वि ६)
भावणा :: स्त्री [भावना] १ वासना, गुणाधान, संस्कार-करण (औप) २ अनुप्रेक्षा, चिन्तन। ३ पर्यालोचन (ओधभा ३; उव; प्रासू ३७)
भाव :: वि [भाविन्] भविष्य में होनेवाला (कुमा; सण)।
भाविअ :: वि [दे] गृहीत, उपात्त (दे ६, १०३)।
भाविअ :: न [भाविक] एक देव-विमान (सम ३३)।
भाविअ :: वि [भावित] १ वासित (पणह २, ५; उत्त १४, ५२; भग; प्रासू ३७) २ भाव-युक्त; 'जिणपवयणतिव्वभावियमइस्स' (उव) ३ शुद्ध, निर्दोष (बृह १) °प्प वि [°त्मन्] १ वासित अन्तःकरणवाला (औप; णाया १, १) २ पुं. मुहुर्त-विशेष, अहोरात्र का तेरहवाँ या अठारहवाँ मुहुर्तं (सुज्ज १०, १३; सम ५१)। °प्पा स्त्री [°त्मा] भगवान् धर्मंनाथ की मुख्य शिष्या (सम १५२)
भाविंदिअ :: न [भावेन्द्रिय] उपयोग, ज्ञान (भग)।
भाविर :: वि [भाविन्, भावितृ] भविष्य में होनेवाला, अवश्यंभावी; 'अम्हं भाविरदीहर — पवासदुहिया मिलाएइ' (सुपा ९), 'एत्थंत- रम्मि भाविरनियपिउगुरुविरहग्गिदूमियमणेण' (सुपा ७५)।
भाविल्ल :: वि [भाववत्] भाव-युक्त, षण- वीसं भावणाइं भाविल्लो पंचमहव्वयाईणं' (संबोध २४)।
भाविस्स :: देखो भविस्स; 'भाविस्सभूयपभवंत- भावआलोयलोयणं विमलं' (सुपा ८६)।
भावुक :: वि [दे] वयस्य, मित्र (संक्षि ४७)।
भावुग, भावुय :: वि [भावुक] अन्य के संसर्गं की जिस पर असर हो सकती हो वह वस्तु (ओघ ७७३; संबोध ५४)।
भास :: सक [भाष्] कहना, बोलना। भासइ, भासंति (भग; उव)। भवि. भासिस्सामि (भग)। वकृ. भासंत, भासमाण (औप; भग; विपा १, १)। कवकृ. भासिज्जमाण (भग; सम ६०)। संकृ. भासित्ता (भग)। कृ. भासिअव्व (भग; महा)।
भास :: अक [भास्] १ शोभना। २ लगना, मालूम होना। ३ प्रकाशना, चमकना। भासइ (हे ४, २०३), भासए, भासंति, भाससि (मोह २९; भत्त ११०; सुर ७, १६२)। वकृ. भासंत (अच्चु ५४)
भास :: सक [भीषय्] डराना। भासइ (धात्वा १४७)।
भास :: पुं [भास] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १; दे २, ९२) २ दीप्ति, प्रकाश; 'नाव- रिज्जइ कयावि। उक्कोसावरणम्मिवि जल- यच्छन्नक्कभासो व्व' (विसे ४९८; भवि)
भास :: पुं [भस्मन्] १ ग्रह-विशेष, ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३; विचार ५०७) २ भस्म, राख (णाया १, १; पणह २, ५)। °रासि पुं [°राशि] ग्रह-विशेष (ठा २, ३; कप्प)
भास :: न [भाष्य] व्याख्या-विशेष, पद्य-बद्ध टीका (चैत्य १; उप ३५७ टी; विचार ३५२; सम्यक्त्वो ११)।
भास° :: देखो भासा (कुमा)। °ण्णु वि [°ज्ञ] भाषा के गुण-दोष का जानकार (धर्मंसं ९२५)। °व वि [°वत्] वही अर्थं (सूअ १, १३, १३)।
भासग :: वि [भाषक] बोलनेवाला, वक्ता, प्रतिपादक (विसे ४१०; पंचा १८, ९; ठा २, २ — पत्र ५९)।
भासण :: न [भासन] चमक, दीप्ति, प्रकाश; 'वलमल्लिभासणाणं' (औप)।
भासण :: न [भाषण] कथन, प्रतिपादन (महा)।
भासणया, भासणा :: स्त्री [भाषणा] ऊपर देखो (उप ५१९; विसे १४७; उव)।
भासय :: देखो भासग (विसे ३७४; पणण १८)।
भासय :: वि [भासक] प्रकाशक (विसे ११०४)।
भासल :: वि [दे] दीप्त, प्रज्वलित (दे ६, १०३)।
भासा :: स्त्री [भाषा] १ बोली, 'अट्ठारसदेसी- भासाविसारए' (औप १०९, कुमा) २ वाक्य, वाणी, गिरा, वचन (पाअ) °जड्ड वि [°जड] बोलने की शक्ति से रहित, मूक (आव ४)। °पज्जति स्त्री [°पर्याप्ति] पुद्गलों को भाषा के रूप में परिणत करने की शक्ति (भग ६, ४)। °विजय पुं [°विचय] १ भाषा का निर्णंय। २ दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (ठा १० — पत्र ४९१)। °विजय पुं [°विजय] दृष्टिवाद (ठा १०)। °समिअ वि [°समित] वाणी का संयमवाला (भग)। °समिइ स्त्री [°समिति] वाणी का संयम (सम १०)। देखो भास°।
भासा :: स्त्री [भास] प्रकाश, आलोक, दीप्ति (पाअ)।
भासि :: वि [भाषिन्] भाषक, वक्ता (धर्मंवि ५२; भवि)।
भासिअ :: वि [भाषित] १ उक्त, कथित, प्रतिपादित (भग; आचा; सण; भवि) २ न. भाषण, उक्ति (आवम)
भासिअ :: वि [भाषिन्, °क] वक्ता, बोलनेवाला (भवि)।
भासिअ :: वि [दे] दत्त, अर्पित (दे ६, १०४)।
भासिअ :: वि [भासित] प्रकाशवाला, प्रकाश- युक्त (निचू १३)।
भासिर :: वि [भाषितृ] वक्ता (सुपा ५४८; सण)।
भासिर :: वि [भास्वर] दीप्त, देदीप्यमान (कुमा)।
भासिल्ल :: वि [भाषावत्] भाषा-यु, वाणी-युक्ते (उत्त २७, ११)।
भासीकय :: वि [भस्मीकृत] जलाकर राख किया हुआ (उप ९८६ टी)।
भासुंड़ :: अक [दे] बाहर निकलना। भासुंडइ (दे ६, १०३ टी)।
भासुंडि :: स्त्री [दे] निःसरण, निर्गंमन (दे ६, १०३)।
भासुर :: वि [भासुर] १ भास्वर, दीप्तिमान, चमकता (सुर ६, १८४; सुपा ३३; २७२; कुप्र ६०; धर्मंसं १३२६ टी) २ घोर, भीषण, भयंकर; 'घोरा दारुणभासुरभइरव- लल्लक्कभीमभीसणया' (पाअ) ३ एक देव- विमान (सम १३) ४ छन्द-विशेष (अजि ३०)
भासुरिअ :: वि [भासुरित] देदीप्यमान किया हुआ, 'भासुरभूसणभासुरिअंगा' (अजि २३)।
भि :: देखो °ब्भि (आचा)।
भिअप्पइ, भिअप्फइ, भिअस्सइ :: देखो बहस्सइ (पि २१२; षड)।
भिइ :: देखो भइ = भृति (राज)।
भिउ :: पुं [भृगु] १ स्वनाम-ख्यात ऋषि- विशेष। २ पर्वंत-सानु। ३ शुक्र-ग्रह। ४ महादेव, शिव। ५ जमदग्नि। ६ ऊँचा प्रदेश। ७ भृगु का वंशज। ८ रेखा, राजि (हे १, १२८; षड्)। °कच्छ न [°कच्छ] नगर-विशेष, भड़ौच (राज)
भिउड़ :: न [दे] अंग-विशेष, शरीर का अवयव- विशेष (?); 'मुत्तूण तुरगभिउडे खग्गं पिट्ठम्मि उत्तरीयं च'; 'तो तस्सेव य खग्गं भिउडाओ गिन्हिऊण चाणक्को' (धर्मंवि ४१)।
भिउडि :: स्त्री [भृकुटि] १ भौं-भंग, भौं का विकार (विपा १, ३; ३) २ पुं. भगवान् नमिनाथ का शासन-देव (संति ८)
भिउडिय :: वि [भृकुटित] जिसने भौं चढ़ाई हो वह (णाया १, ८)।
भिउडी :: देखो भिउडि (कुमा)।
भिउर :: वि [भिदुर] विनश्वर (आचा)।
भिउव्व :: पुं [भार्गव] भृगु, मुनि का वंशज, परिव्राजक-विशेष (औप)।
भिंग :: वि [दे] कृष्ण, काला (दे ६, १०४)। २ नील, हरा। ३ स्वीकृत (षड्)
भिंग :: पुं [भृङ्गं] १ भ्रमर मधुकर (पउम ३३, १४८; पाअ) २ पक्षि-विशेष (पणण १७ — पत्र ५२६) ३ कीट-विशेष। ४ विदलित अंगार, कोयला (णाया १, १ — पत्र २४; औप)। कल्पवृक्ष की एक जाति (सम १६) ६ छन्द-विशेष (पिंग) ७ जार, उपपति। ८ भाँगरा का पेड़। ९ पात्र-विशेष, झारी (हे १, १२८)। °णिभा स्त्री [°निभा] एक पुष्करिणी (इक)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] पुष्करिणी-विशेष (जं ४)
भिंगा :: स्त्री [भृङ्गा] एक पुष्करिणी, वापी- विशेष (इक)।
भिंगार, भिंगारक, भिंगारग :: पुं [भृङ्गार, °क] १ भाजन- विशेष, झारी (पणह १, ४; औप) २ पक्षि-विशेष; 'भिंगा- ररवंतभेरवरवे' (णाया १, १ — पत्र ६५); 'भिंगारकदीणकंदियरवेसु' (णाया १, १ — पत्र ६३; पणह १, १; औप) ३ स्वर्णं-मय जल-पात्र (हे १, १२८; जं २)
भिंगारी :: स्त्री [दे. भृङ्गारी] १ कीट-विशेष, चिरी, झिल्ली (दे ६, १०५; पाअ; उत्त ३६, १४८) २ मशक, डाँस (दे ६; १०५)
भिंजा :: स्त्री [दे] अभ्यंग, मालिश (सूअ १, ४, २, ८)।
भिंटिया :: स्त्री [दे. वृन्ताकी] भंटा का गाछ (उप १०३१ टी)।
भिंडिमाल, भिंडवाल :: पुं [भिन्दिपाल] शस्त्र-विशेष (पणह १, १; औप; पउम ८, १२०; स ३८४; कुमा; हे २, ३८; प्राप्र)।
भिंद :: सक [भिद्] १ भेदना, तोड़ना। २ विभाग करना। भिंदइ, भिंदए (महा; षड्)। भवि. भेच्छं, भिंदिस्संति (हे ३, १७१; कुमा; पि ५३२)। कर्मं. भिज्जइ (आचा; पि ५४६)। वकृ. भिंदंत, भिंदमाण (ग १३६, पि ५०६)। कवकृ. भिज्जंत, भिज्जमाण (से ५, ६५; ठा २, ३, श्रा ६; भग; उवा; णाया १, ९; विसे ३११)। संकृ. भित्तूण, भित्तूणं, भिंदिअ भिंदिऊण, भेत्तुआण, भेत्तण (रंभा; उत्त ९, २२; नाट — विक्र १७, पि ५८६; हे २, १४६; महा)। हेकृ. भिंदित्तए, भित्तुं, भेत्तुं (पि ५७८; कप्प; पि ५७४)। कृ. भिंदियव्व (पणह २, १), भेअव्व (से १०, २९)
भिंदण :: न [भेदन] खण्डन, विच्छेद (सुर १६, ५६)।
भिंदणया :: स्त्री [भेदना] ऊपर देखो (सुर १, ७२)।
भिंगिवाल :: (शौ) देखो भिंडिवाल (प्राकृ ८७)।
भिंभल :: देखो भिब्भल (सुपा ८३; ३९५, पि २०९)।
भिंभलिय :: वि [विह् वलित] विह्वल किया हुआ, 'ता गज्जइ मायंगो बिंझवणे य (? म) यपवाहर्भिंभलिओ' (धर्मंवि ८०)।
भिंभसार :: पुं [भिम्भसार] देखो भंभसार (औप)।
भिंभा :: स्त्री [भिम्भा] देखो भंभा (राज)।
भिंभिसार :: पुं [भिम्भिसार] देखो भंभसार (ठा ९ — पत्र ४५८; पि २०९)।
भिंभी :: स्त्री [भिम्भी] वाद्य-विशेष, ढक्का (ठा ९ टी — पत्र ४६१)।
भिक्ख :: सक [भिक्ष्] भीख माँगना, याचना करना। भिक्खइ (संबोध ३१)। वकृ. भिक्खमाण (उत्त १४, २६)।
भिक्ख :: न [भैक्ष्] १ भिक्षा, भीख। २ भिक्षा- समूह (ओघभा २१६; २१७); 'न कज्जं मम भिक्खेण' (उत्त २५, ४०)। °जीविअ वि [°जीविक] भीख से निर्वाह करनेवाला, भिखमंगा (प्राकृ ९; पि ८४)
भिक्ख° :: देखो भिक्खा (पि ९७, कुप्र १८३; धर्मंवि ३८)।
भिक्खण :: न [भिक्षण] भीख माँगाना, याचना (धर्मंसम १०००)।
भिक्खा :: स्त्री [भिक्षा] भीख, याचना (उव; सुपा २७७; पिंग)। °यर वि [°चर] भिक्षुक (कप्प)। °यरिया स्त्री [°चर्या] भिक्षा के लिये पर्यटन (आचा; औप; ओघभा ७४; उवा)। °लाभिय पुं [°लाभिक] भिक्षुक-विशेष (औप)।
भिक्खाग, भिक्खाय :: वि [भिक्षाक] भिक्षा माँगनेवाला, भिक्षा से शरीर-निर्वाह करनेवाला (ठा ४, १ — पत्र १८५; आचा २, १, ११, १; उत्त ५, २८; कप्प)।
भिक्खु :: पुंस्त्री [भिक्षु] १ भीख से निर्वाह करनेवाला, साधु, मुनि, संन्यासी, ऋषि (आचा; सम २१; कुमा; सुपा ३४९; प्रासू १६६), 'भिक्खणसीलो य तओ भिक्खु त्ति निदरिसिओ समए' (धर्मंसं १०००) २ बौद्ध संन्यासी; 'कम्मं चयं न गच्छइ चउव्विहं भिक्खुसमयम्मि' (सूअनि ३१)। स्त्री. °णी (आचा २, ५, १, १; गच्छ ३, ३१; कुप्र १८८)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] साधु का अभिग्रह-विशेष, मुनि का व्रत-विशेष (भग; औप)। °पडिआ स्त्री [°प्रतिज्ञा] साधु का उद्देश, साधु के निमित्त, 'से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से जं पुण वत्थं जाणेज्जा असंजए भिक्खु- पडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा' (आचा २, ५, १, ४)
भिक्खुंड :: देखो भिच्छंड (राज)।
भिक्खोंड :: देखो भिच्छुंड (अणु २४)।
भिक्खारि :: (अप) वि [भिक्षाकारिन्] भिखारी, भीख माँगनेवाला (पिंग)।
भिगु :: देखो भिउ (पउम ४, ८६; ओघ ३७४)।
भिगुडि :: देखो भिउडि (पि १२४)।
भिच्च :: पुं [भृत्य] १ दास, सेवक, नौकर (पाअ; सुर २१, ६२, सुपा ३०७) २ वि. अच्छी तरह पोषण करनेवाला (विपा १, ७ — पत्र ७५) ३ वि. भरणीय, पोषणीय (पणह १, २ — पत्र ४०)। °भाव पुं [°भाव] नौकरी (सुर ४, १५९)
भिच्छ° :: देखो भिक्ख° (पि ९७)।
भिच्छा :: देखो भिक्खा (गा १६२)।
भिच्छुंड :: वि [दे. भिक्षोण्ड] १ भिखारी, भिक्षा से निर्वाह करनेवाला। २ पुं. बौद्ध साधु (णाया १, १५ — पत्र १९३)
भिज्ज :: न [भेद्य] कर-विशेष, दण्ड-विशेष (विपा १, १ — पत्र ११)।
भिज्जा :: देखो भिज्झा (ठा २, ३ — पत्र ७१; सम ७१)।
भिज्जिय :: देखो भिज्झिय (भग)।
भिज्झा :: स्त्री [अभिध्या] गृद्धि, लोभ (कस)।
भिज्झिय :: वि [अभिध्यित] लोभ का विषय, सुन्दर (भग ६, ३ — पत्र २५३)।
भिट्ट :: सक [दे] भेंटना। कर्मं. 'बहुविहभिट्ट- णएहिीं भिट्टज्जइ लद्धमाणेहिं' (सिरि ९०१)।
भिट्टण :: न [दे] भेंट, उपहार; गुजराती में 'भेटणुं' (सिरि ७५९; ९०१)।
भिट्ठा :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (सिरि ३९२)।
भिड :: सक [दे] भिड़ना — १ मिलना, सटना, सट जाना। २ लड़ना, मुठभेड़ करना। भिडइ (भवि), भिडंति (सिरि ४५०)। वकृ. भिडंत (उप ३२० टी; भवि)
भिडण :: न [दे] लड़ाई, मुठभेड़; 'सोंडीरसुहड- भिडणिक्कलंपडं' (सुपा ५६९)।
भिडिय :: वि [दे] जिसने मुठभेड़ की हो वह, लड़ा हुआ (महा; भवि)।
भिणासि :: पुं [दे] पक्षि-विशेष (पणह १, १ पत्र ८)।
भिण्ण :: देखो भिन्न (गउड; नाट — चैत ३४)। °मरट्ठ (अप) पुं [°महाराष्ट्र] छन्द का एक भेद (पिंग)।
भित्त :: देखो भिच्च (संक्षि ५)।
भित्तग, भित्तय :: न [दे. भित्तक] १ खण्ड, टुकड़ा। २ आधा हिस्सा (आचा २, ७, २, ८; ९; ७)
भित्तर :: न [दे] १ द्वार, दरवाजा (दे ६, १०५) २ भीतर, अंदर (पिंग)
भित्ति :: स्त्री [भित्ति] भीत (गउड; कुमा)। °संध न [°सन्ध] भीत — दीवार का संधान, 'जाएवि भित्तिसंधे खणियं खत्तं सुत्तिक्ख- सत्थेणं' (महा)।
भित्तिरूव :: वि [दे] टंक से छिन्न (दे ६, १०५)।
भित्तिल :: न [भित्तिल] एक देव-विमान (सम ३८)।
भित्तु :: वि [भेत्तृ] भेदन करनेवाला (पव २)।
भित्तुं, भित्तूण :: देखो भिंद।
भिद :: देखो भिंद। भिंदंति (आचा २, १, ६, ९)। भवि. भिदिस्संति (आचा २, १, ६, ९)। भवि. भिदिस्संति (आचा २, १, ६ ९; पि ५३२)।
भिन्न :: वि [भिन्न] १ विदारित, खण्डित (णाया १, ८; उव; भग, पाअ; महा) २ प्रस्फुटित, स्फोटित (ठा ४, ४; पणह २, १) ३ अन्य विसद्दश, विलक्षण (ठा १०) ४ परित्यक्त, उज्झित; 'जीवजढं भावओ भिन्नं (बृह १; आव ४) ५ ऊन, कम, न्यून (भग)। °कहा स्त्री [°कथा] मैथुन-संबद्ध बात, रहस्यालाप (ओघ ९९)। °पडवाइय वि [°पिण्डपातिक] स्फोटित अन्न आदि लेने की प्रतिज्ञावाला (पणह २, १ — पत्र १००)। °मास पुं [°मास] पचीस दिन का महीना (जीत)। °मुहुत्त न [°मुहूर्त्त] अन्तर्मुहूर्त्तं, न्यून मुहुर्त्त (भग)
भिप्फ :: पुं [भीष्म] १ स्वनाम-ख्यात एक कुरुवंशीय क्षत्रिय, गांगेय, भीष्म पितामह। २ साहित्य-प्रसिद्ध रस-विशेष, भयानक रस। ३ वि. भय-जनक, भयंकर (हे २, ५४; प्राकृ ९५; कुमा)
भिब्भल :: वि [विह् वल] व्याकुल (हे २, ५८; ९०; प्राकृ २४; कुमा; वज्जा १५६)।
भिब्भलण :: न [विह्वलन] व्याकुल बनाना (कुमा)।
भिब्भिस :: अक [भास् + य़ङ् = बाभास्य] अत्यन्त दीपना। वकृ. भिब्भसमाण, भिब्भिसमीण (णाया १, १ — पत्र ३८; राय; पि ५५६)।
भिमोर :: पुं [दे. हिमोर] हिम का मध्य भाग (?) (हे २, १७४)।
भियग :: देखो भयग (सण)।
भिलंग :: पुं [दे] भ्रक्षण। देखो भिलिंत (सूत्र कृतांग सूत्र २८५ चूर्णी)।
भिलगा :: देखो भिलुगा (दस ६, ६२)।
भिलिंग :: सक [दे] अभ्यंग करना, मालिश करना। भिलिंगेज्ज (आचा २, १३, २; ४; ५; निचू १७)। वकृ. भिलिंगंत (निचू १७)। प्रयो. भिलिंगावेज्ज (निचू १७)। वकृ. भिलिंगावंत (निचू १७)।
भिलिंग, भिलिंग :: पुं [दे] धान्य-विशेष, मसूर (कप्प; पंचा १०, ७३)।
भिलिंज :: पुं [दे] अभ्यंग, आपाद-मस्तक-तैल- मर्द्दन (सूअ १, ४, २, ८ टी)।
भिलुंग :: पुं [दे. भिलुङ्क] हिंसक पक्षी (राय १२४)।
भिलुगा :: स्त्री [दे] फटी हुई जमीन, भूमि की रेखा — फाट (आचा २, १, ५, ५)।
भिल्ल :: पुं [भिल्ल] १ अनार्यं देश-विशेष (पव २७४) २ एक अनार्यं जाति (सुर २, ४; ९, ३४; महा)
भिल्लमाल :: पुं [भिल्लमाल] स्वनाम-ख्यात एक प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश (विवे ११४)।
भिल्लायई :: स्त्री [भल्लातकी] भिलावाँ का पेड़ (उप १०३१ टी)।
भिल्लिअ :: वि [भिलित] खण्डित, तोड़ा हुआ; 'पंचमहव्वयतुंगो पायारो भिल्लिओ जेणं' (उव)।
भिस :: देखो भास = भास्। भिसइ (हे ४, २०३; षड्)। वकृ. भिसंत, भिसमाण, भिसमीण (पउम ३, १२७; ७५, ३७; णाया १, १; औप; कुमा; णाया १, १; पि ५६२)।
भिस :: सक [प्लुष्] जलाना (प्राकृ ६५; घात्वा १४७)।
भिस :: सक [भायय्] डराना। भिसइ, भिसेइ (प्राकृ ६४)।
भिस :: न [भृश] १ अत्यन्त, अतिशय, अति- शयित; 'गलंतभिसभिन्नदेहे य' (पिंड ५८३, उप ३२० टी; सत्त ६१; भवि)
भिस :: देखो बिस (प्राकृ १५; पणण १; सूअ २, ३, १८)। °कंदय पुं [°कन्दक] एक प्रकार की खाने की मिष्ट वस्तु (पणण १७ — पत्र ५३३)। °मुणाली स्त्री [°मृणाली] कमलिनी (पणण १)।
भिसअ :: पुं [भिषज्] १ वैद्य, चिकित्सक (हे १, १८; कुमा) २ भगवान् मल्लिनाथ का प्रथम गणधर (पव ८)
भिसंत :: देखो भिस = भास्।
भिसंत :: न [दे] अनर्थं (दे ६, १०५)।
भिसग :: देखो भिसअ (णाया १, १ — पत्र १५४)।
भिसण :: सक [दे] फेंकना, डालना। भिसणेमि (गा ३१२)।
भिसमाण :: देखो भिस = भास्।
भिसरा :: स्त्री [दे] मत्स्य पकड़ने का जाल- विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।
भिसाव :: सक [भायय्] डराना। भिसावेइ (प्राकृ ६४)।
भिसिआ, भिसिगा :: स्त्री [दे. बृषिका] आसन-विशेष, ऋषि का आसन (दे ६, १०५; भग; कुप्र ३७२; णाया १, ८; उप ६४८ टी; औप; सूअ २, २, ४८)।
भिसिण :: देखो भिसण भिसिणोमि (गा ३१२ अ)।
भिसिणी :: स्त्र [भिसिनी] कमलिनी, पद्मिनी (हे १, २३८; कुमा; गा ३०८; काप्र ३१; महा; पाअ)।
भिसी :: स्त्री [बृषी] देखो भिसिआ (पाअ)।
भिसोल :: न [दे] नृत्य-विशेष (ठा ४, ४ — पत्र २८५)।
भिह, भी :: अक [भी] डरना। भिहइ (षड्)। कृ. भेअव्व (सुपा ५८४)।
भी :: स्त्री [भी] १ भय, 'नो दंडभी डंडं समार- भेज्जासि' (आचा) २ वि. डरनेवाला, भीरु (आचा)
भीअ :: विी [भीत] डरा हुआ (हे २, १९३; ४, ५३, पाअ; कुमा, उवा)। °भीय वि [°भीत] अत्यन्त डरा हुआ (सुर ३, १६५)।
भीइ :: स्त्री [भीति] डर, भय (सुर २, २३७; सिरि ८३६; प्रासू २४)।
भीइअ :: वि [भीत] डरा हुआ (उप ९४०)।
भीइर :: वि [भेतृ] डरनेवाला, 'ता मरणभीइरं विसज्जेह मं, पव्वईस्सं' (वसु)।
भीड :: [दे] देखो भिड। संकृ. भीडिवि (अप) (भवि)।
भीडिअ :: [दे] देखो भिडिय (सुपा २९२)।
भीतर :: [दे] देखो भित्तर (कुमा)।
भीम :: वि [भीम] १ भयंकर, भूषण (पाअ; उव; पणह १, १; जी ४४, प्रासू १४४) २ पु. एक पाण्डव, भीमसेन (गा ४४३) ३ राक्षस-निकाय का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ४ भारतवर्षं का भावी साँतवाँ प्रतिवासुदेव; 'अपराइए य भीमे महाभीमे य सुग्गीवे' (सम १५४) ५ राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंकापति (पउम ५, २६३) ६ सागर चक्रवर्त्ती का एक पुत्र (पउम ५, १७५) ७ दमयंती का पिता (कुप्र ४८) ८ एक कुल-पुत्र (कुप्र १२२) ९ गुजरात का चालुक्य- वंशीय एक राजा — भीमदेव (कुप्र ४) १० हस्तिनापुर नगर का एक कुटग्राह — राज — पुरुष (बिपा १, २)। °एव पुं [°देव] गुजरात का एक चालुक्य राजा (कुप्र ५)। °कुमार पुं [°कुमार] एक राज-पुत्र (धम्म)। °प्पभ पुं [°प्रभ] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २५९)। °रुह पुं [°रथ] एक राजा, दमयंती का पिता (कुप्र ४८)। °सेण पुं [°सेन] १ एक पाण्डव, भीम (णाया १, १६) २ एक कुलकर पुरुष (सम १५०)। °वलि पुं [°वलि] अंग-विद्या का जानकार पहला रुद्र पुरुष (विचार ४७३)। °सुर न [°सुर] शास्त्र-विशेष (अणु)
भीमासुरक्क :: न [भीमासुरोक्त, °रीय] एक जैनेतर प्राचीन शास्त्र (अणु ३६)।
भीरु, भीरुअ :: वि [भीरु, °क] डरपोक (चेइय ६६; गउड; उत्त २७, १०; अभि ८२)।
भीस :: सक [भीषय्] डराना। भीसइ (धात्वा १४७), भीसेइ (प्राकृ ६४)।
भीसण :: वि [भीषण] भयंकर, भय-जनक (जी ४९; सण; पाअ)।
भीसय :: देखो भेसग (राज)।
भीसाव :: देखो भीस। भीसावेइ (धात्वा १४७)।
भीसिद :: (शौ) वि [भीषित] भय-भीत किया हुआ, डराया हुआ (नाट — माल ५९)।
भीह :: अक [भी] डरना। भीहइ (प्राकृ ६४)।
भुअ :: देखो भुंज। भुअइ, भुअए (षड्)।
भुअ :: न [दे] भुर्जं-पत्र, वृक्ष-विशेष, की छाल (दे ६, १०६)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] वृक्ष-विशेष; भूर्जंपत्र का पेड़ (पणण १ — पत्र ३४)। °वत्त न [°पत्र] भोजपत्र (गउड ६४१)।
भुअ :: पुंस्त्री [भुज] १ हाथ, कर (कुमा) २ गणित-प्रसिद्ध रेखा-विशेष (हे १, ४)। स्त्री. °आ (हे १, ४; पिंग; गउड; से १, ३)। °परिसप्प पुंस्त्री [°परिसर्प] हाथ से चलनेवाला प्राणी, हाथ से चलनेवाली सर्पं- जाति (जी २१; पणण १; जीव २)। स्त्री. °प्पिणी (जीव २)। °मूल न [°मृल] कक्षा, काँख (पाअ)। °मोयग पुं [°मोचक] रत्न की एक जाति (भग; औप; उत्त ३६, ७६; तंदु २०)। °सप्प पुं [°सर्प] देखो °परिसप्प (पव १५०)। °ल वि [°वत्] बलवान् हाथवाला (सिरि ७९९)
भुअअ :: देखो भुअग (गउड; पिंग; से ७, ३९; पाअ)।
भुअइंद :: पुं [भुजगेन्द्र] १ श्रेष्ठ सर्पं (गउड) २ शेषनाग, वासुकि (अच्चु २७)। °वुरेस पुं [°पुरेश] श्रीकृष्ण (अच्चु २७)
भुअईशर, भुअएसर :: पुं [भुजगेश्वर] ऊपर देखो (पणह १, ४ — पत्र ७८; अच्चु ३९)। °णअरणाह पुं [°नगरनाथ] श्री- कृष्ण (अच्चु ३९)।
भुअंग :: पुं [भुजंग] १ सर्पं, साँप (से ५, ६०; गा ६४०; गउड; सुर २, २४५; उव; महा; पाअ) २ विट, रंडीबाज, वेश्या-गामी (कमा; वज्जा ११६) ३ जार, उपपति (कप्पू) ४ द्युतकार, जुआड़ी (उप पृ २५२) ५ चोर, तस्कर; 'देव सलोत्तओ चेव मायापओयकुसलो वाणिययवेसधारी गहिओ महाभुअंगो' (स ४३०) ६ बदमाश, ठग; 'तावसवेसधारिणो गहियनलियापओग- खग्गा विसेणकुमारसंतिया चत्तारि महाभूयंग त्ति' (स ५२४) °कित्ति स्त्री [°कृत्ति] कंचुक (गा ६४०)। °पआत (अप) देखो °प्पजाय (पिंग)। °प्पजाय न [°प्रयात] १ सर्पं-गति। २ छन्द-विशेष (भवि)। °राअ पुं [°राज] शेषनाग (त्रि ८२)। °वइ पुं [°पति] शेषनाग (गउड)। °पिआअ (अप) देखो °प्पजाय (पिंग)
भुअगम :: पुं [भुजंगम] १ सर्प, साँप (गउड १७८; पिंग) २ स्वनाम-ख्यात एक चोर (महा)
भुअंगिणी, भुअंगी :: स्त्री [भुजङ्गी] १ विद्या-विशेष (पउम ७, १४०) २ नागिन (सुपा १८१; भत्त ११७)
भुअग :: पुं [भुजग] १ सर्पं, साँप (सुर २, २३६; महा; जी ३१) २ एक देव-जाति, नाग-कुमार देव (पणह १, ४) ३ वानव्यंतर देवों की एक जाति, महोरग (इक) ४ रंडीबाज; 'मं कुट्ठणिव्व भुयदं तुमं परायेसि अलियवयणेहिं' (कुप्र ३०९) ५ वि. भोगी, विलासी (णाया १, १ टी — पत्र ४; औप)। °परिरिंगिअ न [परिरिङ्गत] छन्द-विशेष (अजि १६)। °वई स्त्री [°वती] एक इन्द्राणी, अतिकाय नामक महोरगेन्द्र की एक अग्र-महिषी (इक; ठा ४, १; णाया २)। °वर पुं [°वर] द्वीप-विशेष (राज)
भुअग :: वि [भोजक] पूजक, सेवा-कारक (णाया १, १ टी — पत्र ४; औप; अंत)।
भुअगा :: स्त्री [भुजगा] एक इन्द्राणी, अतिकाय नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १, णाया २; इक)।
भुअगीसर :: देखो भुअईसर (तंदु २०)।
भुअण :: देखो भुवण (चंड; हास्य; १२२; पिंग; गउड)।
भुअप्पइ, भुअप्फइ, भुअस्सइ :: देखो बहस्सइ (पि २१२; षड्)।
भुआ :: देखो भुअ = भुज।
भुइ :: स्त्री [भृति] १ मरण। २ पोषण। ३ वेतन। ४ मूल्य (हे १, १३१; षड्)
भुउडि :: देखो भिउडि (पि १२४)।
भुंगल :: न [दे] वाद्य-विशेष (सिरि ४१२)।
भुंज :: सक [भुज्] १ भोजन करना। २ पालन करना। ३ भोग करना। ४ अनुभव करना। भुजइ (हे ४; ११०; कस; उवा)। भुंजेज्जा (कप्प); 'निअभुअं भुंजसु सुहेणं' (सिरि १०४४)। भूका. भुजित्था (पि ५१७)। भवि. भुंजिही, भोक्खसि, भोक्खामि, भोक्खसे, भोच्छं (पि ५३२; कप्प; हे ३, १७१)। कर्मं. भुज्जइ, भुंजिज्जइ (हे ४, २४९)। वकृ. भुजंत, भुंजमाण, भुंजेमाण, भुंजाण (आचा; कुमा; बिपा १, २; सम ३९; कप्प; पि ५०७; धर्मंवि १२७)। कवकृ. भुज्जंत (सुपा ३७५)। संकृ. भुंजिअ, भुंजिआ, भुंजिऊण, भुंजिऊणं, भुंजित्ता, भुंजित्तु, भोच्चा, भोत्तुं, भोत्तूण (पि ५९१; सूअ १, ३, ४, २; सण; पि ५८५; उत्त ९, ३; पि ५०७; हे २, १५; कुमा; प्राकृ ३४)। हेकृ. भुंजित्तए, भोत्तुं, भोत्तए (पि ५७८; हे ४, २१२; आचा), भुंजण (अप) (कुमा)। कृ. भुज्ज, भुंजि- यव्व, भुंजेयव्व, भोत्तव्व, भुत्तव्व, भोज्ज, भोग्ग (तंदु ३३; धर्मंवि ४१, उप १३९ टी; श्रा १६; सुपा ४९५; पिंडभा ४५; सम्मत्त २१९; णाया १, १; पउम ९४, ९४; हे ४, २१२; सुपा ४९५; पउम ९८, २२; दे ७, २१; ओघ २१४; उप पृ ७५; सुपा १६३; भवि)
भुंजग :: वि [भोजक] भोजन करनेवाला (पिंड १२३)।
भुंजण :: देखो भुंज = भुज्।
भुंजण :: न [भोजन] भोजन (पिंड ५२१)।
भुंजणा :: स्त्री. ऊपर देखो (पव १०१)।
भुंजय :: देखो भुंजग (सण)।
भुंजाव :: सक [भोजय] १ भोजन कराना। २ पालन कराना। ३ भोग कराना। भुंजावेइ (महा)। कवकृ. भुंजाविज्जंत (पउम २, ५)। संकृ. भुंजाविऊण, भुंजावित्ता (पि ५८२)। हेकृ. भुंजावेउं (पंचा १०, ४८ टी)
भुंजावय :: वि [भोजक] भोजन करानेवाला (स २५१)।
भुंजाविअ :: वि [भोजित] जिसको भोजन कराया गया हो वह (धर्मंवि ३८; कुप्र १६८)।
भुंजिअ :: देखो भुंज = भुज्।
भुंजिअ :: देखो भुत्त (भवि)।
भुंजिर :: वि [भोक्तृ] भोजन करनेवाला (सुपा ११)।
भुंड :: पुंस्त्री [दे] सूकर, वराह; गुजराती में 'भृडं' (दे ६, १०६)। स्त्री. °डी, °डिणी (दे ६, १०६ टी; भवि)।
भुंडीर :: [दे] ऊपर देखो (दे ६, १०६)।
भुंभल :: न [दे] मद्य-पात्र (कम्म १, ५२)।
भुंहडि :: (अप) देखो भूमि (हे ४, ३९५)।
भुक्क :: अक [बुक्क्] भूँकना, श्वान का बोलना। भुक्कइ (गा ६६४ अ)।
भुक्कण :: पुं [दे] १ श्वान, कुत्ता। २ मद्यॉ आदि का मान (दे ६, ११०)
भुक्किअ :: न [बुक्कित] श्वान का शब्द (पाअ; पि २०९)।
भुक्किर :: वि [बुक्कितृ] भूँकनेवाला (कुमा)।
भुक्खा :: स्त्री [दे. बुभुक्षा] भूख, क्षुधा (दे ६, १०६; णाया १, १ — पत्र २८; महा; उप ३७९; आरा ९६; सम्मत्त १५७)। °लु वि [°वत्] भूखा (धर्मंवि ६९)।
भुक्खिअ :: वि [दे. बुभुक्षित] भूखा, क्षुधातुर (पाअ; कुप्र १२६; सुपा ५०१; उप ७२८ टी; स ५८३; वै २९)।
भुगुभुग :: अक [भुगभुगाय्] 'भुग' 'भुग' आवाज करना। वकृ. भुगुभुगेंत (पउम १०५, ५९)।
भुग्ग :: वि [भुग्र] १ मोड़ा हुआ, वक्र, कुटिल (णाया १, ८ — -पत्र १३३; उवा)। वि. भग्न, टूटा हुआ (णाया १, ८) ३ दग्ध, जला हुआ; 'किं मज्झ जीविएणं एवंविहपरा- भवग्गिभुग्गाए' (उप ७६८ टी) ४ भूना हुआ; 'चणउव्व भुग्गु' (कुप्र ४३२)
भुज :: (अप) देखो भुंज। भुजइ (सण)।
भुजंग :: देखो भुअंग (भवि)।
भुजग :: देखो भुअग = भुजग (धर्मंवि १२४)।
भुज्ज :: देखो भुंज भुज्जइ (षड्)।
भुज्ज :: पुं [भूर्ज] १ वृक्ष-विशेष। २ न. वृक्ष-विशेष की छाल (कप्पू; उप पृ १२७; सुपा २७०)। °पत्त, °वत्त न [°पत्र] वही अर्थं (आवम; नाट, विक्र ३३)
भुज्ज :: देखो भुंज।
भुज्ज :: वि [भूयस्] प्रभूत, अनल्प (औप; पि ४१४)।
भुज्जिय :: वि [दे. भुग्न] १ भूना हुआ धान्य। २ पुं. धाना, भूना हुआ यव (पणह २, ५ — पत्र १४८)
भुज्जो :: अक [भूयस्] फिर, पुनः (उवा; सुपा २७२)।
भुण्ण :: पुं [भ्रूण] १ स्त्री का गर्भ। २ बालक, शिशू (संक्षि १७)
भुत्त :: वि [भुक्त] १ भक्षित (णाया १, १; उवा; प्रासू ३८) २ जिसने भोजन किया हो वह; 'ते भायरो न भुत्ता' (सुख १, १५; कुप्र १२) ३ सेवित। ४ अनुभूत; 'अम्म ताय मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा' (उत्त १९, ११; णाया १, १) ५ न. भक्षण, भोजन; 'हासभुत्तासियाणि य' (उत्त १६, १२)। ६ विष-विशेष (ठा ६)। °भोगि वि [°भोगिन्] जिसने भोगों का सेवन किया हो वह (णाया १, १)
भुत्तवंत :: वि [भुक्तवत्] जिसने भोजन किया हो वह (पि ३९७)।
भुत्तव्व :: देखो भुंज।
भुत्ति :: स्त्री [भुक्ति] १ भोजन (अच्चु १७; अज्झ ८२) २ भोग (सुपा १०८) ३ आजिबिका के लिए दिया जाता गाँव, क्षेत्र आदि गिरास; 'उज्जेणी नाम पुरी दिन्ना तस्स य कुमारभुत्तीए' (उप २११ टी, कुप्र १६९)। °वाल पुं [°पाल] गिरासदार (धर्मंवि १५४)
भुत्तु :: वि [भोक्तृ] भोगनेवाला (श्रा ६, संबोध ३५)।
भूत्तूण :: पुं [दे] भृत्य, नौकर (दे ६, १०६)।
भुत्थल्ल :: पुं [दे] बिल्ली को फेंका जाता भोजन (कप्पू)।
भुम :: देखो भम = भ्रम्। भुमइ (हे ४, १६१; सण)। संकृ. भुमिवि (अप) (सण)।
भुम°, भुमगा, भुमया, भुमा :: स्त्री [भ्रू] भौं, आँख के ऊपर की रोम राजि (भग; उवा; हे २, १६७; औप; कुमा; पाअ; पव ७३)।
भुमिअ :: देखो भमिअ = भ्रान्त; 'भुमिअघणगू' (कुमा)।
भुम्मि :: (अप) देखो भूमि (पिंग)।
भुरुंडिआ :: स्त्री [दे] शिवा, श्रृगाली, सिया- रिन (दे ६, १०१)।
भुरुंडिय, भुरुकुंडिअ, भुरुहुंडिअ :: वि [दे] उद्धुलित, घूलि-लिप्त; 'घूलिभुरुंड़ियपुत्तेहिं परिगया चिं- तए तत्तो' (सुपा २२९; दे ६, १०६), 'भुइभ्रुर' (? रु) कुंडियंगो' (कुप्र २६३; सूत्र कृ° चूर्णी गा° २८२)।
भुल्ल :: अक [भ्रंश्] १ च्युत होना। २ गिरना। ३ भूलना; 'भुल्लंति ते मणा मग्गा हा पमाओ दुरंतओ' (आत्म १९; हे ४, १७७)
भुल्ल :: वि [भ्रष्ट] भूला हुआ, 'कामंधओ किं पभमेसि भुल्लो' (श्रु १५३; सुपा १२४; ५१६; कप्पू)।
भुल्लविअ :: वि [भ्रंशित] भ्रष्ट किया हुआ (कुमा)।
भुल्लिर :: वि [भ्रंशिन्] भूलनेवाला, 'मयण- अभुल्लिरदुल्ललियभल्लिसुमहल्लतिक्खभल्लीहिं' (सुपा १२३)।
भुल्लुंकी :: [दे] देखो भल्लुंकी (पाअ)।
भुव :: देखो हुव = भू। भुवइ (पि ४७५)। भुवदि (शौ) (धात्वा १४७)। भूका. भुवि (भग)।
भुव :: देखो भुअ = भुज (भवि)।
भुवइंद :: देखो भुअइंद (से ५, ७१)।
भुवण :: न [भुवन] १ जगत्, लोक (जी १; सुपा २१; कुमा २, १५) २ जीव, प्राणी; 'भुवणाभयदाणललिअस्स' (कुमा) ३ आकाश (प्रासू १००) °क्खोहणी स्त्री [°क्षोभनी] विद्या-विशेष (सुपा १७४)। °गुरु पुं [°गुरु] जगत् का गुरु (सुपा ७५)। °नाह पुं [°नाथ] जगत् का त्राता (उप पृ ३५७)। °पाल पुं [°पाल] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गोपगिरि का एक राजा (मुणि १०८९९)। °बंधु पुं [°बन्धु] १ जगत् का बन्धु। २ जिनदेव (उप २११ टी)। °सोह पुं [°शोभ] सातवें बलदेव के दीक्षक एक जैन मुनि (पउम २०, २०५)। °लंकार पुं [°लंकार] रावण का एक पट्ट-हस्ती (पउम ८२, १११)
भुवणा :: स्त्री [भुवना] विद्या-विशेष (पउम ७, १४०)।
भुश्का :: (मा) देखो भुक्खा (प्राकृ १०१)।
भुस :: देखो बुस; 'तुसरासी इवा भुसरासी इवा' (भग १५)।
भुसुंढि :: स्त्री [दे. भुशुण्डि] शस्त्र-विशेष (सण)।
भू :: देखो भूव = भू। भोमि (पि ४७६)। संकृ भोत्ता, भोदूण (शौ) (हे ४, २७१)।
भू :: स्त्री [भ्रू] भौं, आँक के ऊपर की रोम- राजि; 'रन्ना भुसन्नाए' (सुपा ५७९; श्रा १४; सुपा २२९; कुमा)।
भू :: स्त्री [भू] १ पृथिवी, धरती (कुमा; कुप्र ११६; जीवस २७६; सिरि १०४४) २ पृथ्वीकाय, पार्थिव शरीरवाला जीव (कम्म ४, १०; १९; ३६)। °आर पुं [°दार] शूकर, सूअर (किरात ९)। °कंत पुं [°कान्त] राजा, नर-पति (श्रा २८)। °गोल पुं [°गोल] गोलाकार भूणण्डल (कप्पू)। °चंद पुं [°चन्द्र] पृथिवी का चन्द्र, भूमि-चन्द्र (कप्पू)। °चर वि [°चर] भूमि पर चलने फिरनेवाला मनुष्य आदि (उप ९८६ टी)। °च्छत्त पुंन [°च्छत्र] वनस्पति-विशेष (दे १, ६४)। °तणग देखो °यणय (राज)। °धण पुं [°धन] राजा (श्रा २८)। °धर पुं [°धर] १ राजा, नरपति (धर्मंवि ३) २ पर्वंत, पहाड़ (धर्मंवि ३; कुप्र २६४) °नाह पुं [°नाथ] राजा (उप ९८६ टी; धर्मंवि १०७)। °मह पुं [°मह] अहोरात्र का सत्ताईसवाँ मुहुर्त्त (सम ५१)। °यणय पुंन [°तृणक] वनस्पति- विशेष (पणण १ — पत्र ३४)। °रुह पुं [°रुह] वृक्ष, पेड़ (गउड; पुप्फ ३९२; धर्मंवि १३८)। °व पुं [°प] राजा (उप ७२८ टी; ती ३; श्रु ६६, काल)। °वइ पुं [°पति] राजा (सुपा ३६; पिंग)। °वाल पुं [°पाल] १ राजा (गउड; सुपा ५६०) २ व्यक्ति-वाचक नाम (भवि)। °वित्त पुं [°वित्त] राजा (श्रा २८)। °वीढ न [°पीठ] भूतल, भूमि-तल (सुपा ५९३)। °हर देखो °धर (सण)
भू°, भूअ :: पुं [भूयस्] कर्मं-बन्ध का एक प्रकार (कम्म ५, २२; २३)। °गार पुं [°कार] वही अर्थं (कम्म ५, २२)। देखो भूओगार।
भुअ :: पुं [दे] यन्त्रवाह, यन्त्र-वाहक पुरुष (दे ६, १०७)।
भूअ :: वि [भूत] १ वृत्त, संजात, बना हुआ। २ अतीत, गुजरा हुआ (षड्; पिंग) ३ प्राप्त, लब्ध (णाया १, १ — पत्र ७४) ४ समान, सदृश, तुल्य; 'तसभूएहिं' (सूअ २, ७, ७; ८ टी) ५ वास्तविक, यथार्थं, सत्य; 'भूअत्थेहिं चिअ गुणेहिं' (गउड), 'भूयत्थसत्थ- गंथी' (सम्मत्त १३९) ६ विद्यमान; 'एवं जह स दृत्थो संतो भूओ तदन्नहाभूओ' (विसे २२५१) ७ उपमा, औपम्य। ८ तादर्थ्यं, तदर्थंभाव; 'ओवम्मे तादत्थेो व हुज्ज एसित्थ भूयसद्दो त्ति' (श्रावक १२४) ९ न. प्रकृत्यर्थं; 'उम्मत्तगभूए' (ठा ५, १) १० पुं. एक देव-जाति (पणह १, ४; इक; णाया १, १ — पत्र ३९) ११ पिशाच (पाअ; दे ४, २५) १२ समुद्र-विशेष (देवेन्द्र २५५) १३ द्वीप-विशेष (सुज्ज १९) १४ पुंन. जन्तु, प्राणी; 'पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं' 'भूयाणि वा जीवाणि वा' (आचा १, ६, ५, ४; १, ७, २, १; २, १, १, ११; पि ३६७); 'हरियाणि भूआणि विलंबगाणि' (सूअ १, ७, ८; उवर १५९) १५ पृथिवी आदि पाँच द्रव्य, महाभूत (स १६५), 'किं मन्ने पंच भूया' (विसे १६८९) १३ वृक्ष, पेड़, वनस्पति (आचा १, १, ६, २) °इंद पुं [°इन्द्र] भूत-देवों का इन्द्र (पि १६०)। °ग्गह पुं [°ग्रह] भूत का आवेश (जीव ३)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] जीव-समुह (सम २६)। °त्थ वि [°र्थ] यथार्थं, वास्तविक- (गउड; पउम २८, १४)। °दिण्णा देखो °दिन्ना (पडि)। °दिन्न पुं [°दिन्न] १ एक जैन आचार्यं (णंदि) २ एक चाण्डाल-नायक (महा) °दिन्ना स्त्री [°दिन्ना] १ एक अन्त- कृत् स्त्री (अंत) २ एक जैन साध्वी, महर्षि स्थूलभद्र की भगिनी (कप्प) °मंडलपवि- भत्ति न [°मण्डलप्रविभक्ति] नाट्य-विधि का एक भेद (राज)। °विलि स्त्री [°लिपि] लिपि-विशेष (सम ३५)। °वडिंसा स्त्री [°वतंसा] १ एक इन्द्राणी (जीव ३) २ एक राजधानी (दीव) °वाइ, °वाइय, °वादिय पुं [°वादिन्, °वादिक] १ एक देव-जाति (इक; पणह १, ४; औप) २ वि. भूत-ग्रह का उपचार करनेवाला, मन्त्र- तन्त्रादि का जानकार (सुख १, १४) °वाय पुं [°वाद] १ यथार्थंवाद। २ दृष्टिवाद, बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (ठा १० — पत्र ४९१) °विज्जा, °वेज्जा स्त्री [°विद्या] आयुर्वेद का एक भेद, भूत-निग्रह-विद्या (विपा १, ७ — पत्र ७५ टी)। °णंद पुं [°नन्द] १ नागकुमार देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र- (इक; ठा २, ३ — पत्र ८४) २ राजा कूणिक का पट्ठ-हस्ती (भग १७, १)। °णंदप्पह पुं [°नन्दप्रभ] भूतानन्द इन्द्र का एक उत्पात-पर्वत (राज)। °वाय देखो °वाय (विसे ५५१; पव ९२ टी)
भूअण्ण :: पुं [दे] जोती हुई खल-भूमि में किया जाता यज्ञ (दे ६, १०७)।
भूआ :: स्त्री [भूता] १ एक जैन साध्वी, महर्षि स्थूलभद्र की एक भगिनी (कप्प; पडि) २ इन्द्राणी की एक राजधावी (जीव ३)
भूइ :: स्त्री [भूति] १ संपति, धन, दौलत; 'ता परदेसं गंतुं विढवित्ता भूरिभूइपब्भारं' (सुर १, २२३; सुपा १४८) २ भस्म, राख; 'जारमसाणसमुब्भवभूइसुहप्फंसिसिजि- रंगीए' (गा ४०८; स ९; गउड) ३ महा- देव के अंग की भस्म; 'भूइभूसियं हरसरीरं व' (सुपा १४८; ३६३) ४ वृद्धि (सूअ १, ६, ६) ५ जीव-रक्षा (उत्त १२, ३३) °कम्म पुंन [°कर्मन्] शरीर आदि की रक्षा के लिए किया जाता भस्मलेपन-सूत्रबंधनादि (पव ७३ टी; बृह १)। °पण्ण, °पन्न वि [°प्रज्ञ] १ जीव-रक्षा की बुद्धिवाला (उत्त १२, ३३) २ ज्ञान की वृद्धिवाला, अनन्त- ज्ञानी (सूअ १, ६, ६)। देखो °भूई।
भूइंद :: पुं [भूतेन्द्र] भूतों का इन्द्र (पि १६०)।
भूइट्ठ :: वि [भूयिष्ठ] अति प्रभूत, अत्यन्त (विसे २०३९; विक्र १४१)।
भूइट्ठा :: स्त्री [भूतेष्टा] चतुर्दंशी तिथि (प्रारू)।
भूई° :: देखो भूइ (पव २ — ११२)। °कम्मिय वि [°कर्मिक] भूति-कर्मं करनेवाला (औप)।
भूओ :: अ [भूयस्] १ फिर से, पुनः (पउम ६८, २८; पंच २, १८) २ बारंबार, फिर फिर; 'भूओ य अहिलसंतं' (उप ६५१)। °गार पुं [°कार] कर्मं-बन्ध का एक प्रकार, थोड़ी कर्मं-प्रकृति के बन्ध के बाद होनेवाला अधिक-प्रकृति-बन्ध (पंच ५, १२)
भूओद :: पुं [भूतोद] समुद्र-विशेष (सुज्ज १९)।
भूओबघाइय :: वि [भूतोपघातिन्, °क] जीवों की हिंसा करनेवाला (सम ३७; औप)।
भूंहडी :: (अप) देखो भूमि (हे ४, ३९५ टि)।
भूण :: देखो भुण्ण (संक्षि १७; सम्मत्त ८६)।
भूज :: देखो भुज्ज = भूर्ज (प्राकृ २६)।
भूप :: देखो भू-व (वव १)।
भूमआ :: देखो भुमया (प्राप्र)।
भूमणया :: स्त्री [दे] स्थगन, आच्छादन (वव १)।
भूमि :: स्त्री [भूमि] १ पृथिवी, धरती (पउम ६९, ४८; गउड) २ क्षेत्र (कुमा) ३ स्थल, जमीन, जगह, स्थान (पाअ; उवा; कुमा) ४ काल, समय (कप्प) ५ माल, मंजिला, तला; 'सत्तभूमियं पासायभवणं' (महा)। °कंप पुं [°कम्प] भू-कम्प (पउम ६९, ४८)। °गिह, °घर न [°गृह] नीचे का घर, भूँइघरा, तहखाना (श्रा १६, महा)। °गोयरिय वि [°गोचरिक] स्थलचर, मनुष्य आदि (पउम ५९, ५२)। स्त्री. °री (पउम ७०, १२)। °च्छत्त न [°च्छत्र] वनस्पति- विशेष (दे)। °तल न [°तल] धरा-पृष्ठ, भूतल (सुर २, १०५)। °देव पुं [°देव] ब्राह्मण (मोह १०७)। °फोड पुं [°स्फोट] वनस्पति-विशेष (जी ९)। °फोडी स्त्री [°स्फोटी] एक प्रकार का जहरीला जन्तु; 'पासवणं कुणमाणो दट्ठो गुज्झम्मि भूमि- फोडीए' (सुपा ६२०)। °भाग पुं [°भाग] भूमि-प्रदेश (महा)। °रुह पुंन [°रुह] भूमिस्फोट, वनस्पति-विशेष (श्रा २०; पव ४)। °वइ पुं [°पति] राजा (उप पृ १८८)। °वाल पुं [°पाल] राजा (गउड)। °सुअ पुं [°सुत] मंगल-ग्रह (मृच्छ १४६)। °हर देखो °घर (महा)। देखो भूमी।
भूमिआ :: स्त्री [भूमिका] १ तला, मंजिल, माल (महा) २ नाटक में पात्र का वेशान्तर- ग्रहण (कप्पू)
भूमिंद :: पुं [भूमिन्द्र] राजा, नरपति (सम्मत्त २१७)।
भूमिपिसाय :: पुं [दे. भूमिपिशाच] ताल वृक्ष, ताड़ का पेड़ (दे ६, १०७)।
भूमि :: देखो भूमि (से १२, ८८; कप्प; पिंड ४४८, पउम ६४, १०)। °तुडयकूड न [°तुडगकूट] एक विद्याधर-नगर (इक)। °भुयंग पुं [°भुजङ्ग] राजा (मोह ८८)।
भूमीस :: पुं [भूमीश] राजा (श्रा १२)।
भूमीसर :: पुं [भूमिश्वर] राजा (सुपा ५०७)।
भूयिट्ठ :: देखो भूइट्ठ (हास्य १२३)।
भूरि :: वि [भूरि] १ प्रचुर, अत्यन्त, प्रभूत (गउड; कुमा; सुर १, २४८; २, ११४) २ न. स्वर्णं, सोना। ३ धन, दौलत (सार्धं ८४)। °स्सव पुं [श्रवस्] एक चन्द्र- वंशीय राजा, भूरिश्रवा (नाट — वेणी ३७)
भूस :: सक [भूषय्] १ सजावट करना। २ शोभाना, अलंकृत करना। भूसेमि (कुमा)। वकृ. भूसयंत (रंभा)। कृ. भूस (रंभा)
भूसण :: न [भूसण] १ अलंकार, गहना (पाअ; कुमा) २ सजावट। ३ शोभा-करण (पणहट २, ४; सण)
भूसा :: स्त्री [भूषा] ऊपर देखो (दे ३, ८; कुमा)।
भूसिअ :: वि [भूषित] मण्डित, अलंकृत (गा ५२०; कुमा; काल)।
भूहरी :: स्त्री [दे] तिलक-विशेष (सिरि १०२२)।
भे :: अ [भोस्] आमन्त्रण-सूचक अव्यय (औप)।
भेअ :: पुंन [भेद] १ प्रकार, 'पुढविभेआइ इच्चाई' (जी ४, ५) २ विशेष, पार्थक्य (ठा २, १, गउड; कप्पू) ३ एक राज- नीति, फूट; 'दाणमाणोवयारेहि सामभेआइएहि य' (प्रासू ९७), 'सामदंडभेयवप्पयाणाणीइ- सुप्पउत्तणयविहिन्नू' (णाया १, १ — पत्र ११) ४ घाव, आघात; 'वड्ढंति वम्मह- विइणणसरप्पसारा ताणं पआसइ ललुं चिअ चित्तभेओ' (कप्पू) ५ मण्डल का अवान्त- राल, बीच का भाग; 'पडिवत्तीओ उदए तह अत्थमणेसु य। भेयवा (? घा) ओ कणणकला मुहुत्ताण गतिति य।।' (सुज्ज १, १) ६ विच्छेद, पृथक्करण, विदारण (औप; अणु)। °कर वि [°कर] विच्छेद-कर्ता (औप)। °घाय पुं [°घात] मंडल के बीच में गमन (सुज्ज १, १)। °समावन्न वि [°समापन्न] भेद-प्राप्त (भग)
भेअग :: वि [भेदक] भेद-कारक (औप; भग)।
भेअण :: न [भेदन] १ विदारण, विच्छेदन; 'कुंतस्स सत्तपायालभेयणे नूण सामर्थ' (चेइय ७४६; प्रासू १४०) २ भेद, फूट करना (पव १०६) ३ विनाश; 'कुलसयण- मित्तभेयणकारिकाओ' (तंदु ४६)
भेअय :: देखो भेअग (भग)।
भेअव्व :: देखो भिंद।
भेअव्व :: देखो भी = भी।
भेइल्ल :: वि [भेदवत्] भेद वाला, 'सम्मत्त- नाणचणा पत्तेयं अट्ठअट्ठभेइल्ला' (संबोध २२; पंच ४, १)।
भेउर :: देखो भिउर (आचा; ठा २, ३)।
भेंडी :: स्त्री [भिण्डा, °ण्डी] गुल्म-विशेष, एक जाति की वनस्पति (पणह १ — पत्र ३२)।
भेंभल :: देखो भिंभल (से ६, ३७)।
भेंभलिद :: (शौ) देखो भिंभलिअ (पि २०९)।
भेक :: देखो भेग (दे १, १४७)।
भेक्खस :: पुं [दे] राक्षस-रिपु, राक्षस का प्रतिपक्षी (कुप्र ११२)।
भेग :: पुं [भेक] मेंढक (दे ४, ९, धर्मंसं ५५७)। भेच्छ° देखो भिंद।
भेज्ज :: देखो भिज्ज (विपा १, १ टी — पत्र १२)।
भेज्ज, भेज्जलय, भेज्जल्ल :: वि [दे] भीरु, डरपोक (दे ६, १०७; षड्)।
भेड :: वि [दे. भेर] भीरु, कातर (हे १, २५१; दे ६, १०७; कुमा २, ६२)।
भेडक :: देखो भेलय (मृच्छ १८०)।
भेत्तु :: वि [भेत्तृ] भेदल-कर्ता (आचा)।
भेत्तुआण, भेत्तुं, भेत्तुण :: देखो भिंद।
भेद :: देखो भिंद। संकृ. भेदिअ (मृच्छ १४३)।
भेद :: देखो भेअ (भग)।
भेदअ :: देखो भेअय (वेणी ११२)।
भेदणया :: देखो भेअण (उप पृ ३२१)।
भेदिअ :: देखो भेद = भिंद।
भेदिअ :: वि [भेदित] भिन्न किया हुआ (भग)।
भेरंड :: पुं [भेरण्ड] देश-विशेष (राज)।
भेरव :: न [भैरव] १ भय, डर (कप्प) २ पुं. राक्षस आदि भयंकर प्राणी (सूअ १, २, २, १४; १६) ३ देखो भइरव (पउम ६, १८३; चेइय १००; औप; महा; पि ६१)। °णंद पुं [°नन्द] एक योगी का नाम (कप्पू)
भेरि, भेरी :: स्त्री [भेरि; °री] वाद्य-विशेष, ढक्का (कप्प, पिंग; औप; सण)।
भेरुंड :: पुं [भेरुण्ड] भारुंड पक्षी, दो मुँह और एक शरीरवाला पक्षि-विशेष (दे ६, ५०)।
भेरुंड :: पुं [दे] १ चित्रक, चीता, श्वापद पशु-विशेष (दे ६, १०८) २ निर्विष सर्पं; 'सविसो हम्मइ सप्पो भेरुंडो तत्थ मुच्चइ' (प्रासू १६)
भेरुताल :: पुं [भेरुताल] वृक्ष-विशेष (राज)।
भेल :: सक [भेलय्] मिश्रण करना, मिलाना। गुजराती में 'भेळनवुं'। संकृ. भेलइत्ता (पि २०६)।
भेलय :: पुं [दे. भेलक] बेड़ास उडुप, नौका (दे ६, ११०)।
भेलविय :: वि [भेलित] मिश्रित, युक्त; 'सो भयभेलवियदिट्ठी जलं ति मन्नमाणो' (वसु)।
भेली :: स्त्री [दे] १ आज्ञा, हुकुम। २ बेड़ा, नौका। ३ चेटी, दासी (दे ६, ११०)
भेस :: सक [भेषय्] डराना। भेसइ, भेसेइ (धात्वा १४८; प्राकृ ६४)। कर्म. भेसज्जए (धर्मंवि ३)। वकृ. भेसंत, भेसयंत (पउम ५३, ८९; श्रा १२)। कवकृ. भेसिज्जत (पउम ४६, ५४)। संकृ. भेसेऊण (काल; पि ५८६)। हेकृ. भेसेउं (कुप्र १११)।
भेसग :: पुं [भीष्मक] रुक्मिणी का पिता, कौण्डिन्य-नगर का एक राजा (णाया १, १६; (उप ६४८ टी)।
भेसज :: न [भैषज] औषध (पउम १४, ५४; ५६)।
भेसज्ज :: न [भैषज्य] औषध, दवाई (उवा; औप; रंभा)।
भेसण :: देखो भीसण (भग ७, ६ — पत्र ३०७)।
भेसण :: न [भीषण] डराना, वित्रासन (ओघ २०१)।
भेसणा :: स्त्री [भीषणा] ऊपर देखो (पणह २, १ — पत्र १००)।
भेसयंत :: देखो भेस।
भेसाव :: देखो भेस। भेसावइ (धात्वा १४८)।
भेसाविय, भेसिअ :: वि [भीषित] डराया हुआ (पउम ४६, ५३; से ७, ४५; सुर २, ११०; श्रावक ९३ टी)।
भो :: देखो भुंज। संकृ. भोऊण, भोत्तृण (धात्वा १४८; ३७)। हेकृ. भोउ (धात्वा १४८; संक्षि ३७)। कृ. भोत्तव्व (संक्षि ३७), भोअव्व (धात्वा १४८)।
भो :: अ [भोस्] आमन्त्रण-द्योतक अव्यय (प्राकृ ७९; उवा; औप; जी ५०)।
भो° :: स [भवत्] तुम, आप। स्त्री. भोई (उत्त १४, ३३; स ११९)।
भोअ :: सक [भोजय्] खिलाना, भोजन कराना। भोयइ, भोयए (सम्मत्त १२५; सूअ २, ६, २९)। संकृ. भोइत्ता (उत्त ९, ३८)।
भोअ :: पुं [दे. भोग] भाड़ा, किराया (दे ६, १०८)।
भोअ :: देखो भोग (स ६५८; पाअ, सुपा ४०४; रंभा ३२)।
भोअ :: पुं [भोज] उज्जयिनी नगरी का एक सुप्रसिद्ध राजा (रंभा)। °राय पुं [°राज] वही अर्थं (सम्मत्त ७५)।
भोअ :: वि [भौत] भस्म से उपलिप्त (धर्मंसं ४१)।
भोअग :: वि [भोजक] १ खानेवाला (पिंड ११७) २ पालन-कर्ता (बृह १)
भोअडा :: स्त्री [दे] कच्छ, लंगोट; 'णेवत्थं भोवडादीयं' (निचू १)।
भोअण :: न [भोजन] १ भक्षण, खाना। २ भात आदि खाद्य वस्तु (आचा; ठा ६; उवा; प्रासू १८०; स्वप्न ६२; सण) ३ लगातार सतरह दिनों का उपवास (संबोध ५८) ४ उपभोग; 'विरूवरूवाइं काभोगाइं समारंभंति भोयणाए' (सूअ २, १, १७)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] भोजन देनेवाली एक कल्पवृक्ष-जाति (पउम १०२, ११९)
भोअल :: (अप) पुं [दे. भोल] छन्द-विशेष (पिंग)।
भोइ :: वि [भोजिन्] भोजन करनेवाला (आचा; पिंड १२०; उव )।
भोइ :: देखो भोगि (सुपा ४०४; संबोध ५०; पिंग; रंभा)।
भोइ, भोइअ :: पुं [दे. भोगिन्, °क] १ ग्रामा- ध्यक्ष, ग्राम का मुखिया, गाँव का नायक (वव ७; दे ६, १०८; उत्त १५, ९, बृह १; ओघभा ४३; पिंड ४३६; सुख १, ३, पव २६८; भवि; सुपा १९५; गा ५५६७) २ महेश (षड्)
भोइअ :: वि [भोगिक] १ भोग-युक्त, भोगासक्त, विलासी (उत्त १५, ९; गा ५५६) २ भोग-वंश में उत्पन्न (उत्त १५, ९)
भोइअ :: वि [भोजित] जिसको भोजव कराया गया हो वह (सुर १, २१४)।
भोइणी :: स्त्री [दे. भोगिनी] ग्रामाध्यक्ष की पत्नी (पिंड ४३६; गा ६०३; ७३७; ७७६; निचू १०)।
भोइया, भोई :: स्त्री [भोग्या] १ भार्या, पत्नी, स्त्री (बृह १; पिंड ३६८) २ वेश्या (वव ७)
भई :: देखो भो° = भवत्।
भोंड़ :: देखो भुंड़ (गा ४०२)।
भोक्ख° :: देखो भुंज।
भोग :: पुंन [भोग] १ स्पर्शं, रस आदि विषय, उपभोग्य पदार्थं; 'रूवी भंते भोगा अरूवी' (भग ७, ७ — पत्र ३१०), 'भोगभोगाइं भुंजमाणे बिहरह' (विपा १, २) २ विषय- सेवा (भग ९, ३३; औप), 'भुंजंता बहुविहाइं' भोगाइं' (संथा २७) ३ मदन-व्यापार, काम- चेष्टा; 'कामभोगे यं खलु मए अप्पाहट्टुं' (सूअ २, १, १२) ४ विषयेच्छा, विषयाभिलाष (आचा) ५ विषयःसुख; 'चइत्तु भोगाइं असासयाइं' (उत्त १३, २०); 'तुच्छा य कामभोगा' (प्रासू ९९); 'अहिभोगो विय भोगो निहणंव धणं मलंव कमलंपि मन्नंता' (सुपा ८३) ६ भोजन, आहार (पंचा ५, ४; उप २०७) ७ गुरु-स्थानीय जाति-विशेष, एक क्षत्रिय-कुल (कप्प; सम १५१; ठा ३, १ — पत्र ११३; ११४) ८ अमात्य आदि गुरु-स्थानीय लोक, गुरु-वंश में उत्पन्न (औप) ९ शरीर, देह (तंदु २०) १० सर्पं की फणा (सुपा) ११ सर्प का शरीर (दे ६, ८६)। °करा देखो भोगंकरा (इक)। °कुल न [°कुल] पूज्य-स्थानीय कुल-विशेष (पि ३६७)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (आवम)। °पुरिस पुं [°पुरुष] भोग-तत्पर पुरुष (ठा ३, १ — पत्र ११३; ११४)। °भागि वि [°भागिन्] भोग-शाली (पउम ५९, ८८)। °भूम वि [°भूम] भोग-भूमि में उत्पन्न (पउम १०२, १६९)। °भूमि स्त्री [°भूमि] देवकुरु आदि अकर्मं- भूमि (इक)। °भाग पुंन [°भोग] भोगार्हं शब्दादि-विषय, मनोज्ञ शब्दादि (भग ७, ७; विपा १, ६)। °मालिणी स्त्री [°मालिनी] अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८; इक)। °राय पुं [°राज] भोग-कुल का राजा (दस २, ८)। °वइया स्त्री [°वतिका] लिपि-विशेष (पणण १ — पत्र ६२); 'भोगवयता' (? इया)' (सम ३५)। °वई स्त्री [°वती] १ अधोलोक में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८; इक) २ पक्ष की दूसरी, सातवीं और बारहवीं रात्रि-तिथि (सुज्ज १०, १५)। °विस पुं [°विष] सर्पं की एक जाति (पणण १ — पत्र ५०)
भोगंकरा :: स्त्री [भोगंकरा] अधोलक में रहनेवाली एक्क दिक्कुमारी देवी (ठा ८)।
भोगा :: स्त्री [भोगा] देवी-विशेष (इक)।
भोगि :: पुं [भोगिन्] १ सर्पं, साँप (सुपा ३९९; कुप्र २९८) २ पुंन. शरीर, देह (भग २, ५; ७, ७) ३ वि. भोग-युक्त, भोगासक्त, विलासी (सुपा ३९९; कुप्र २९८)
भोग्ग, भोच्चा, भोच्छ° :: देखो भुंज।
भोट्टंत :: पुं [भोटान्त] १ देश-विशेष, नेपाल के समीप का एक भारतीय देश, भोटान। २ भोटान का रहनेवाला (पिंग)
भोण :: देखो भोअण (षड्)।
भोत्त :: देखो भुत्त (षड्; सुख २, ९; सुपा ४९५)।
भोत्तए, भोत्तव्व :: देखो भुंज।
भोत्ता :: देखो भू = भुव = भू।
भोत्तू :: वि [भोक्तृ] भोगनेवाला (विसे १५६९; दे २, ४८)।
भोत्तुं, भोत्तूण :: देखो भुंज।
भोत्तूण :: देखो भुत्तूण (दे ६, १०६)।
भोदूण :: देखो भू = भुव = भू।
भोम :: वि [भौम] १ भूमि-सम्बन्धी (सूअ १, ६, १२) २ भूमि में उत्पन्न (ओघ २८; जी ५) ३ भूमि का विकार (ठा ८) ४ पुं. मंगल-ग्रह (पाअ) ५ पुं. नगराकार विशिष्ट स्थान। ६ नगर (सम्म १५, ७८) ७ निमित्त-शास्त्र-विशेष, भूमि-कम्पादि से शुभाशुभ फल बतलानेवाला। शास्त्र (सम ४९) ८ अहोरात्र का सत्ताईसवाँ मुहुर्त्त; 'अणवं च भोग (? म) रिसहे' (सुज्ज १०; १३)। °लिय न [°लीक] भूमि-सम्बन्धी मृषावाद (पणह १, २)
भोमिज्ज :: देखो भोमेज्ज (सम २; उत्त २३६; २०३)।
भोमिर :: देखो भमिर; 'लब्भइ णाइअणंते संसारे सुभोमिरो जीवो' (संबोध ३२)।
भोमेज्ज, भोमेयग :: वि [भौमेय] १ भूमि का विकार, पाथिव (सम १००; सुपा ४८) २ पुं. एक देव-जाति, भवनपति नामक देव- जाति (सम २)
भोरुड :: पुं [दे] भारुंड पक्षी (दे ६, १०८)।
भोल :: सक [दे] ठगना (सुपा ५२२)।
भोल :: वि [दे] भद्र, सरल चित्तवाला; गुजराती मे 'भोळु'। स्त्री. °ला, °लिया (महानि ६; सुपा ५१४)।
भोलग :: पुं [भोलक] यक्ष-विशेष, 'भोलगनामा जक्खो अभिवंछियसिद्धिदा अत्थि' (धर्मंसं १४१)।
भोलव :: सक [दे] ठगना, गुजराती में 'भोळववुं'। संकृ. भोलविउं (सुपा २९४)।
भोलवण :: न [दे] वञ्चन, प्रतापण (सम्मत्त २२९)।
भोलविय, भोलिअ :: वि [दे] वञ्चित, ठगा हुआ (कुप्र ४३५; सुपा ५२२)।
भोल्लय :: न [दे] पाथेय-विशेष, प्रबन्ध-प्रवृत्त पाथेय (दे ६, १०८)।
भोवाल :: (अप) देखो भू-वाल (भवि)।
भोहा :: (अप) देखो भू = भ्रू (पिंग)।
भ्रंत्रि :: (अप) देखो भंति = भ्रान्ति (हे ४, ३६०)।
म :: पुं [म] ओष्ठ-स्थानीय व्यञ्जन-बर्ण विशेष (प्राप)।
म :: अ [मा] मत, नहीं (हे ४, ४१८; कुमा; पि ९४; ११४; भवि)।
मअआ :: स्त्री [मृगया] शिकार (अभि ५५)।
मइ :: स्त्री [मृति] मौत, मरण (सुर २, १४३)।
मइ :: स्त्री [मति] १ बुद्धि, मेधा, मनीषा; 'मेहा मई मणीसा' (पाअ; सुर २, ६५; कुमा; प्रासू ७१) २ ज्ञान-विशेष, इन्द्रिय और मन से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान (ठा ४, ४; णंदि; कम्म ३, १८; ४, ११; १४; विसे ९७)। °अन्नाण न [°अज्ञान] विपरीत मति-ज्ञान, मिथ्यादर्शन-युक्त मति-ज्ञान (भग विसे ११४; कम्म ४, ४१)। °णाण, °ण्णाण, °नाण न [°ज्ञान] ज्ञान-विशेष (विसे १०७; ११४; ११७; कम्म १, ४)। °नाणवरण न [°ज्ञानावरण] मति-ज्ञान का आवरक कर्मं (विसे १०४)। °नाणि वि [°ज्ञानिन्] मति-ज्ञानवाला (भग)। °पत्तिया स्त्री [°पात्रिका] एक जैन मुनि- शाखा (कप्प)। °ब्भंस पुं [°भ्रंश] बुद्धि- विनाश (भग; सुपा १३४)। °म, °मंत, °वंत वि [°मत्] बुद्धिमान (ओघ ६३०; आचा; भवि)
मइ° :: देखो मई = मृगी (कुप्र ४४)।
मइअ :: वि [मत्त] मद-युक्त, उन्मत्त (से ७, ६६; गा ४९८; ७०६; ७६१)।
मइअ :: देखो मा = मा।
मइअ :: वि [जे. मतिक] १ भर्त्सित, तिरस्कृत (दे ६, ११४) २ न. बोये हुए बीजों के आच्छादन के काम में लगती एक काष्ठ-मय वस्तु, खेती का एक औजार; 'नंगले मइयं सिया' (दस ७, २८; पणह १, १ — पत्र ८)
°मइअ :: वि [°मय] व्याकरण-प्रसिद्ध एक तद्धित-प्रत्यय, निवृत्त, बना हुआ; 'धम्ममइएहि अइसुंदरेहि' (उव), 'जिणपडिमं गोसीसचंद- णमइयं' (महा)।
मइआ :: स्त्री [मृगया] शिकार (सिरि १११५)।
मइंद :: पुं [मैन्द] राम का एक सैनिक, वानर- विशेष (से ४, ७; १३, ८३)।
मइंद :: पुं [मृगेन्द्र] १ सिंह, पंचानन (प्राकृ ३०; सुर १६, २४२; गउड) २ छन्द का एक भेद (पिंग)
मइज्ज :: देखो मईअ = मदीय (षड्)।
मइत्तो :: अ [मत्] मुझसे (प्राप्र)।
मइमोहणी :: स्त्री [दे. मतिमोहनी] सुरा, मदिरा, दारू (दे ६, ११३; षड्)।
मइरा :: स्त्री [मदिरा] ऊपर देखो (पाअ; से २, ११; गा २७०; दे ६, ११३)।
मइरेय :: न [मैरेय] ऊपर देखो (पाअ)।
मइल :: वि [मलिन] मैला, मल-युक्त, अस्वच्छ (हे २, ३८; पाअ; गा ३४; प्रासू २५; भवि)।
मइल :: पुं [दे] कलकल, कोलाहल (दे ६, १४२)।
मइल :: वि [दे. मलिन] गत-तेजस्क, तेज- रहित, फीका (दे ६, १४२; से ३, ४७)।
मइल :: सक [मलिनय्] मैला करना, मलिन बनाना। मइलइ, मइलेइ, मइलिंति, मइलेंति (भवि, उव; पि ५५९)। कर्मं. मइलिज्जइ (भव; पि ५५९)। वकृ. मइलंत (पउम २, १००)। कृ. मइलियव्व (स ३९९)।
मइल :: अक [दे. मलिनाय्] तेज-रहित होना, फीका लगना। वकृ. मइलंत (से ३, ४७; १०, २७)।
मइलण :: न [मलिनना] मलिन करना (गउड)।
मइलणा :: स्त्री [मलिनना] १ ऊपर देखो (ओघ ७८८) २ मालिन्य, मलिनता। ३ कलंक; 'लहइ कुलं मइलणं जेण' (सुर ६, १२०), 'इमाए मइलणाए अमुगम्मि नयरुज्जा- णासन्ने नग्गोहपायवे उब्बंधणेण अत्ताणयं परिच्चइउं ववसिओ चक्कदेवो' (स ९४)
मइलपुत्ती :: स्त्री [दे] पुष्पवती, रजस्वला स्त्री (षड्)।
मइलिअ :: वि [मलिनित] मलिन किया हुआ (श्रावक ९५; पि ५५९; भवि)।
मइल्ल :: वि [मृत] मरा हुआ। स्त्री. °ल्लिया, 'एवं खलु सामी ! पउमावती देवी मइल्लियं दारियं पयाया। तए णं कणगरहे राया तीसे मइल्लियाए दारियाए नीहरणं करेति, बहूणि लोइयाइं मयकिच्चाइं' (णाया १, १४ — पत्र १८६)।
मइहर :: पुं [दे] ग्राम-प्रधान, गाँव का मुखिया (दे ६, १२१)। देखो मयहर।
मई :: स्त्री [दे] मदिरा, दारू (दे ६, ११३)।
मई :: स्त्री [मृगी] हरिणी, हरिण की मादा, हिरनी (गा २८७; से ६, ८०; दे ३, ४६; कुप्र १०)।
मई° :: देखो मइ = मति। °म, °व वि [°मत्] बुद्धिवाला (पि ७३; ३९६; उप १४२ टी)।
मईअ :: वि [मदीय] मेरा, अपना (षड्; कुमा; स ४७७; महा)।
मउ :: पुं [दे] पर्वंत, पहाड़ (दे ६, ११३)।
मउ, मउअ :: वि [°मृदु, °क] कोमल, सुकुमार (हे १, १२७; षड्; सम ४१; सुर ३, ३७; कुमा)। स्त्री. °उई (प्राकृ २८; गउड)।
मउअ :: वि [दे] दीन, गरीब (दे ६, ११४)।
मउइअ :: वि [मृदुकित] जो कोमल बना हो (गउड)।
मउई :: देखो मउ = मृदु।
मउंद :: पुं [मुकुन्द] १ विष्णु, श्रीकृष्ण (राय) २ वाद्य-विशेष; 'दुंदुहिमउंदमद्दल- तिलिमापमुहेण तूरसद्देण' (सुर ३, ६८), 'महामउंदसंठाणसंठिए' (भग)
मउक्क :: देखो माउक्क = मृदुत्व (षड्)।
मउड :: पुंन [मुकुट] शिरो-भूषण, किरीट, सिरपेंच (पव ३८; हे १, १०७; प्राप्र; कुमा; पाअ; औप)।
मउड, मउडि :: पुं [दे] धम्मिल्ल, कबरी, जूट, जूड़ा (पाअ; दे ६, १७)।
मउण :: देखो मोण (हे १, १६२; चंड)।
मउर :: पुंन [मुकुर] १ बाल-पुष्प, फूल की कली, बौर (कुमा) २ दर्पंण, आईना, शीशा। ३ कुलाल-दण्ड। ४ बकुल का पेड़। ५ मल्लिका-वृक्ष। ६ कोली-वृक्ष। ७ ग्रंथि- पर्णं-वृक्ष, चोरक (हे १, १०७; प्राकृ ७)
मउर, मउरंद :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, अपामार्गं, ओंगा, लटजीरा, चिरचिरा (दे ६, ११८)।
मउल :: देखो मउड = मुकुट (से ४, ५१)।
मउल :: पुंन [मुकुल] थोड़ी विकसित कली, कलिका, बौर (रंभा २९)। २ देह, शरीर। ३ आत्मा; 'मउलं, मउलो' (हे १, १०७; प्राप्र)
मउल :: अक [मुकुलय्] सकुचना, संकुचित होना; 'मउलेंति णअणाइं' (गा ५)। वकृ. मउलंत, मउलिंत (से ११, ६२; पि ४९१)।
मउलण :: न [मुकुलन] संकोच; 'जं चेअ मउलणं लोअणाणं' (हे २, १८४; विसे ११०६; गउड)।
मउलाअ :: अक [मुकुलय्] १ सकुचना। २ सक-संकुचित करना। वकृ. मउलाअंत (नाट — मालती ५४; पि १२३)
मउलाइय :: वि [मुकुलित] सकुचााया हुआ, संकोचित (वज्ज १२६)।
मउलाव :: देखो मउलाअ। कर्मं. मउलाविज्जंति (पि १२३)। वकृ. मउलावेंत (पउम १५, ८३)।
मउलावअ :: वि [मुकुलायक] संकुचित करनेवाला; 'हरिसविसेसो वियसावओ य मउलावओ य अच्छीण' (गउड)।
मउलाविय :: देखो मउलाइय (उप पृ ३२१; सुपा २००; भवि)।
मउलि :: पुंस्त्री [दे] हृदय-रस का उच्छलन (दे ६, ११५)।
मउलि :: पुं [मुकुलिन्] सर्पं-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८; पणण १ — पत्र ५०)।
मउलि :: पुंस्त्री [मौलि] १ किरीट, मुकुट, शिरो- भूषण (पाअ) २ मस्तक, सिर (कुप्र ३८६; कुमा; अजि २२; अच्चु ३४) ३ शिरो- वेष्टन विशेष, एक तरह की पगड़ी (पव ३८) ४ चूड़ा, चोटी। ५ संयत केश। ६ पुं. अशोक वृक्ष। ७ स्त्री. भूमि, पृथिवी (हे १, १६२; प्राकृ १०)
मउलिअ :: वि [मुकुलित] १ संकुचित (सुर ३, ४५; गा ३२३; से १, ६५) २ मुकुला- कार किया हुआ (औप) ३ एकत्र स्थित (कुमा) ४ मुकुल-युक्त; 'कलिका-सहित (राय)
मउवी :: देखो मउई (हे २, ११३; कुमा)।
मऊर :: पुंस्त्री [मयूर] पक्षि-विशेष, मोर (प्राप्र; हे १, १७१; णाया १, ३)। स्त्री. °री (विपा १, ३)। °माल न [°माल] एक नगर (पउम २७, ६)।
मऊरा :: स्त्री [मयूरा] एक रानी, महापद्म चक्रवर्त्ती का माता (पउम २०, १४३)।
मऊह :: पुं [मयूख] १ किरण, रश्मि (पाअ) २ कान्ति, तेज। ३ शिखा। ४ शोभा (हे १, १७१; प्राप्र) ५ राक्षस वंश के एक राजा का नाम, एक लंका-पति (पउम ५, २६५)
मए :: सक [मदय्] मद-युक्त करना, उन्मत्त बनाना। वकृ. मएंत (से २, १७)।
मअएजारिस :: वि [मादृश] मेरे जैसा, मेरे तुल्य; 'मएजारिसाणं पुरिसाहमाणं इमं चेवोचियं' (स ३३)।
मं :: (अप) देखो म = मा (षड्; हे ४, ४१८; कुमा)। °कार पुं [°कार] 'मा' अव्यय (ठा १० — पत्र ४९५)।
मंकड :: देखो मक्कड (आचा)।
मंकण :: पुं [मत्कुण] खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष; गुजराती में 'मांकण' (जी १६)।
मंकण :: पुंस्त्री [दे. मर्कट] बन्दर, बानर। स्त्री. °णी; 'सयमेव मंकणीए धणोए तं कंकणी बद्धा' (कुप्र १८५)।
मंकाइ :: पुं [मङ्काति] एक अन्तकृद् महर्षि (अंत १८)।
मंकार :: पुं [मकार] 'म' अक्षर (ठा १० — पत्र ४९५)।
मंकिअ :: न [मङ्कित] कूद कर जाना (दे ८, १५)।
मंकुण :: देखो मंकण = मत्कुण (दे; भवि)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] गण्डीपद प्राणि-विशेष (पणण १ — पत्र ४९)।
मंकुस :: [दे] देखो मंगुस (गा ७८१)।
मंख :: देखो मक्ख = भ्रक्ष्। वकृ. मंखंत (राज)।
मंख :: पुं [दे] अण्ड, वृषण (दे ६, ११२)।
मंख :: पुं [मङ्ख] एक भिक्षुक-जाति जो चित्र- पट दिखाकर जीवन-निर्वाह करता है (णाया १, १ टी; औप; पणह २, ४; पिंड ३०९; कप्प)। °फलय न [°फलक] १ मंख का तख्ता। २ निर्वाह-हेतुक चैत्य (पंचा ६, ४५ टी)
मंखण :: न [भ्रक्षण] १ मक्खन; 'मंखणं व सुकुमालकरचरणा' (उप ६४८ टी) २ अभ्यंग, मालिश (सुर १२, ८)
मंखलि :: पुं [मङ्खलि] एक मंख-भिक्षु, गोशा- लक का पिता। °पुत्त पुं [°पुत्र] गोशालक, आजीवक मत का प्रवर्तंक एक भिक्षु जो पहले भगवान् महावीर का शिष्य था (ठा १०; उवा)।
मंग :: सक [मङ्ग] १ जाना। २ साधना। ३ जानना। कर्मं, मंगिज्जए (विसे २२)
मंग :: पुं [मङ्ग] १ धर्मं (विसे २२) २ रंजन- द्रव्य-विशेष, रंग के काम में आता एक द्रव्य (सिरि १०५७)
मंगइय :: देखो मगइय (निर १, १)।
मंगरिया :: स्त्री [दे] नाद्य-विेशेष (राय)।
मंगल :: पुं [मङ्गल] १ ग्रह-विशेष, अंगारक ग्रह (इक) २ न. कल्याण, शुभ, क्षेम, श्रेय (कुमा) ३ विवाह सूत्र-बन्धन (स्वप्न ४९) ४ विघ्न-क्षय (ठा ३, १) ५ विघ्न-क्षय के लिए किया जाता इष्टदेव-नमस्कार आदि शुभ कार्य। ६ विघ्न-क्षय का कारण, दुरित-ॉ नाश का निमित्त (विसे १२; १३; २२; २३; २४; औप; कुमा) ७ प्रशंसावाक्य, खुशामद (सूअ १, ७, २५) ८ इष्टार्थं-सिद्धि, वाञ्छित- प्राप्ति (कप्प) ९ तप-विशेष, आयंबिल (संबोध ५८) १० लगातार आठ दिनों का उपवास (संबोध ५८) ११ वि. इष्टार्थं- साधक, मंगल-कारक (आव ४)। °ज्झय पुं [°ध्वज] मांगलिक ध्वज (भग)। °तूर न [°तूर्य] मंगल-वाद्य (महा)। °दीव पुं [°दीप] मांगलिक दीप, देव-मन्दीर में आरती के बाद किया जाता दीपक (धर्मंवि १२३; पंचा ८, २३)। °पाढव पुं [°पाठक] मागध, चारण (पाअ)। °पाढिया स्त्री [°पाठिका] वीणा-विशेष, देवता के आगे सुबह और सन्ध्या में बजाई जाती वीणा (राज)
मंगल :: वि [दे] १ सदृश, समान (दे ६, ११८) २ न. अग्नि. आग। ३ डोरा बूनने का एक साधन। ४ बन्दनमाला (विसे २७)
मंगलग :: पुंन [मङ्गलक] स्वस्तिक आदि आठ मांगलिक पदार्थ (सुपा ७७)।
मंगलसज्झ :: न [दे] वह खेत जिसमें बीज बोना बाकी हो (दे ६, १२६)।
मंगला :: स्त्री [मङ्गला] भगवान् श्रीसुमतिनाथ की माता का नाम (सम १५१)।
मंगलालया :: स्त्री [मङ्गलालया] एक नगरी का नाम (आचू १)।
मंगलावइ :: पुं [मङ्गलापातिन्] सौमनस-पर्वंत का एक कूट (इक; जं ४)।
मंगलावई :: स्त्री [मङ्गलावती] महाविदेह वर्षं का एक विजय, प्रान्त-विशेष (ठा २, ३; इक)।
मंगलावत्त :: पुं [मङ्गलावर्त] १ महाविदेह वर्ष का एक विजय, प्रान्त-विशेष (ठा २, ३; इअ) २ देव-विशेष (जं ४) ३ न. एक देव-विमान (सम १७) ४ पर्वंत-विशेष का एक शिखर (इक)
मंगलिअ, मंगलीअ :: वि [माङ्गलिक] १ मंगल- जनक; 'सअलजीवलोअमंगलिअ- जम्मलाहस्स' (उत्तर ९०; अच्चु ३६; सुपा ७८) २ प्रशंसा-वाक्य बोलनेवाला; 'सुहमं- गलीए' (सूअ १, ७, २५)
मंगल्ल :: वि [मङ्गलय, माङ्गल्य] मंगल-कारी, मंगल-जनक, मांगलिक; 'पढमाणो जिणगुण- गणनिबद्धमंगल्लवित्ताइं' (चेइय १९०; णाया १, १; सम १२२; कप्प; औप; सुर १, २३८; १५, १७३; सुपा ५५)।
मंगी :: स्त्री [मङ्गी] षड्ज ग्राम की एक मूर्च्छंना (ठा ७ — पत्र ३९३)।
मंगु :: पुं [मङ्गु] एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्यं, आर्यंमंगु (णंदि; ती ७; आत्म २३)।
मंगुल :: न [दे] १ अनिष्ट (दे ६, १४५; सुपा ३३८; सुक्त ८०) २ पाप (दे ६, १४५; वज्जा ८; गउड; सूक्त ८०) ३ पुं. चोर, तस्कर (दे ६, १४५) ४ वि. असुन्दर, खराब (पाअ, ठा ४, ४ — पत्र २७१; स ७१३; दंस ३)। स्त्री. °ली; 'मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपणणत्ती' (उवा)
मंगुस :: पुं [दे] नकुल, न्यौला, भुजपरिसर्पं- विशेष (दे ६, ११८; सूअ २, ३, २५)।
मंच :: पुं [दे] बन्ध (दे ६, १११)।
मंच :: पुं [मञ्च] १ मचान, उचासन (कप्प; गउड) २ गणितशास्त्र प्रसिद्ध दश योगों में तीसरा योगे, जिसमें चन्द्रादि मंचाकर से रहते हैं (सुज्ज १२ — पत्र २३३) °इमंच पुं [°तिमञ्च] १ मचान के ऊपर का मञ्च, ऊपर ऊपर रखा हुआ मंच (औप) २ गणित-प्रसिद्ध एक योन जिसमें चन्द्र, सूर्यं आदि नक्षत्र एक दूसरे के ऊपर रक्खे हुए मंचों के आकार से अपस्थित होते हैं (सुज्ज १२)
मंची :: स्त्री [मञ्चा] खटिया, खाट; 'ता आरुह मंचीए' (सुर १०, १६८; १६९)।
मंछुडु :: (अप) अ [मङ्क्षू] शीघ्र, जल्दी (भवि)।
मंजर :: पुं [मार्जार] मंजार, बिल्ला, बिलाव (हे २, १३२; कुमा)। देखो मज्जर, मज्जार।
मंजरि :: स्त्री [मञ्जरि] देखो मंजरी (औप)।
मंजरिअ :: वि [मञ्जरित] मञ्जरी-युक्त; 'मंजरिओ चूयनिकरो' (स ७१९)।
मंजरिआ, मंजरी :: स्त्री [मढ्जरिका °री] नवोत्पन्न सुकुमार पल्लावाकार लता, बौर (कुमा, गउड)। °गुंडी स्त्री [°गुण्डी] वल्ली- विशेष; 'तोमरिगुंडी य मंजरीगुंडी' (पाअ)।
मंजार :: देखो मंजर (हे १, २६)।
मंजिआ :: स्त्री [दे] तुलसी (दे ६, ११६)।
मंजिट्ठ :: वि [माञ्जिष्ठ] मजीठ रंगवाला, लाल। स्त्री. °ट्ठी (कप्पू)।
मंजिट्ठा :: स्त्री [मञ्जिष्ठा] मजीठ, रंग-विशेष (कप्पू; हे ४, ४३८)।
मंजरी :: न [मञ्जीर] १ नूपुर; 'हंसयं नेउरं च मंजीरं' (पाअ, स ७०४; सुपा ६६) २ छन्द-विशेष (पिंग)
मंजरी :: न [दे] श्रृङ्खलक, साँकल, जंजीर, सिकड़ (दे ६, ११६)।
मंजु :: वि [मञ्जु] १ सुन्दर, मनोहर (पाअ) २ कोमल, सुकुमार (औप; कप्प) ३ प्रिय. इष्ट (राय; जं १)
मंजुआ :: स्त्री [दे] तुलसी (दे ६, ११६; पाअ)।
मंजुल :: वि [मञ्जुल] १ सुन्दर, रमणीय, मधुर (सम १५२, कप्प; विपा १, ७; पाअ; पिंग) २ कोमल (णाया १; १)
मंजूसा, मंजूसा :: स्त्री [मञ्जुषा] १ विदेह वर्ष की एक नगरी (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक) २ पिटारी, छोटी संदूक (सुपा ३२१; कप्पू)
मंठ :: वि [दे] १ शठ, लुच्चा, बदमाश। २ पुं. बन्ध (दे ६, १११)
मंड :: सक [मण्ड्] भूषित करना, सजाना। मंडइ (षड्), मंडंति (पि ५५७)।
मंड :: सक [दे] १ आगे धरना। २ प्रारम्भ करना, गुजराती में 'माींडवु'; 'जो मंडइ रण- भरधुरोह खंधुं' (भवि)
मंड :: पुंन [मण्ड] रस; 'तयाणंतरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्थ सारएएणं गोघयमंडेणं' (उवा)।
मंडअ :: देखो मंडव = मण्डप (नाट — शक्रु ९८)।
मंडअ, मडग :: पुं [मण्डक] खाद्य-विशेष, माँड़ा, एक प्रकार की रोटी (उप पृ ११५, पव ४ टी; कुप्र ४३; धर्मंवि ११९)।
मंडग :: वि [मण्डक] विभूषक, शोभा बढ़ानेवाला; 'ससिं च . . . . . . . . . जोइसमुहमंडगं। (कप्प)।
मंडण :: न [मण्डन] १ भूषण, भूषा (गउड; प्रासु १३२) २ वि. विभूषक, शोभा बढ़ानेवाला (गउड; कुमा)। स्त्री. °णी (प्रासू ९४)। °धाई स्त्री [°धात्री] आभूषण पहनानेवाली दासी (णाया १, १ — पत्र ३७)
मंडल :: पुं [दे. मण्डल] श्वान, कुत्ता (दे ६, ११४; पाअ; स ३९८; कुप्र २८०; सम्मत्त १९०)।
मंडल :: न [मण्डल] १ समूह, यूथ (कुमा; गउड; सम्मत्त १९०) २ देश (उप १४२ टी; कुप्र ४६; २८०) ३ गोल, वृत्ताकार पदार्थं (कुमा; गउड) ४ गोल आकार से वेष्टन (ठा ३, ४ — पत्र १६६; गउड) ५ चन्द्र-सूर्य आदि का चार-क्षेत्र (सम ६९; गउड) ६ संसार, जगत् (उत्त ३१, ३; ४; ५; ६) ७ एक प्रकार का कुष्ठ रोग। ८ एक प्रकार की वृत्ताकार दाद — दद्रु (पिंड ६००) ९ बिम्ब; 'डज्झइ ससिमंडलकलस- दिणणकंठग्गहं मयणो' (गउड) १० सुभटों का स्थान-विशेष (राज) ११ मण्डलाकार परिभ्रमण (सुज्ज १, ७; स ३४९) १२ इंगित क्षेत्र (ठा ७ — पत्र ३९८) १३ पुंय नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २९)। °व वि [°वत्] मण्डल में परिभ्रमण करनेवाला (सुज्ज १, ७)। °हिव पुं [°धिप] मण्डलाधीश (भवि)। °हिवइ पुं [°धिपति] वही अर्थ (भवि)
मंडल :: पुंन [मण्डल] योद्धा का युद्ध समय का आसन (वव १)। °पवेस पुं [°प्रवेश] एक प्राचीन जैन शास्त्र (णंदि २०२)।
मंडलग्ग :: पुंन [मण्डलाग्र] तलवार, खङ्दग (हे ३, ३४; भवि)।
मंडलय :: पुं [मण्डलक] एक माप, बारह कर्म-भाषकों का एक बाँट (अणु १५५)।
मंडलि :: पुं [मण्डलिन्] १ मण्डलाकार चलता वायु, चक्र-वात, बवंडर (जी ७) २ माणड- लिक राजा; 'तेवीसं तित्थंकरा पुव्वभवे मंडलिरायाणो हात्था' (सम ४२) ३ सर्पं की एक जाति (पणह १ — पत्र ५१) ४ न. गोत्र-विशेष, जो कौत्स गोत्र की एक शाखा है। ५ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)। °पुरी स्त्री [°पुरी] नगर- विशेष, गुजरात का एक नगर, जो आजकल भी 'मांडल' नाम से प्रसिद्ध है (सुपा ६५९)
मंडलिअ :: वि [मण्डलित] मण्डलाकार बना हुआ; 'मंडलियचंडकोजंडमुक्ककंडोलिखंडिय- सिरेहिं' (सुपा ४; वज्जा ६२; गउड)।
मंडलिअ :: वि [मण्डलिक, माण्डलिक] १ मण्डलाकारवाला। २ पुं. मंडल रूप से स्थित पर्वत-विशेष (ठा ३, ४ — पत्र १६६; पणह २, ४) ३ मण्डलाधीश, सामान्य राजा (णाया १, १; पणह १, ४; कुमा; कुप्र १२०; महा)
मंडली :: स्त्री [मण्डली] १ पंक्ति, श्रेणी, समूह (से ५, ७९; गच्छ २, ५६) २ अश्व की एक प्रकार की गति (स १३, ६९; महा) ३ वृत्ताकार मंडल — -समूह (संबोध १७; उव)
मंडलीअ :: देखो मंडलिअ = मण्डलिक; 'तह तलवरसेणाहिवकोसाहिवमंजलीयसामंते' (सुपा ७३; ठा ३, १ — पत्र १२६)।
मंडल :: पुं [मण्डप] १ विश्राम-स्थान। २ वल्ली आदि से वेष्टित स्थान (जीव ३; स्वप्न ३९; महा; कुमा) ३ स्नान आदि करने का गृह; 'न्हाणमंडवंसि', 'भोयणमंडवंसि' (कप्प; औप)
मंडव :: न [माण्डव्य] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)
मंडविआ :: स्त्री [मण्डपिका] छोटा मण्डप (कुमा)।
मंडव्यायण :: न [माण्डव्यायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६; इक)।
मंडावण :: न [मण्डन] सजाना, विभूषित कराना। °धाई स्त्री [°धात्री] सजानेवाली दासी (आचा २, १५, ११)।
मंडावय :: वि [मण्डक] सजानेवाला (निचू ९)।
मंडि°, मंडिअ :: वि [मण्डित] १ भूषित (कप्प; कुमा) २ पुं. भगवान् महावीर के षष्ठ गणधर का नाम (सम १९; विसे १८०२) ३ एक चोर का नाम (धर्मंवि ७२; ७३)। °कुच्छि पुंन [°कुक्षि] चैत्य- विशेष (उत्त २०, २)। °पुत्त पुं [°पुत्र] भगवान् महावीर का छठवाँ गणधर (कप्प)
मंडिअ :: वि [दे] रचित, बनाया हुआ। २ बिछाया हुआ; 'संसारे हयविहिणा महिलाख्वेण मंडिए पासे। बज्झंति जाणमाणा अयाणमाणावि बज्झंति।।' (रयण ८) ३ आगे धरा हुआ; 'मइ मंडिउ रणभरधुरहो खंधु' (भवि) ४ आरब्ध; 'रणु मंडिउ कच्छाहिवेण ताव' (भवि; सण)
मंडिल्ल :: पुं [दे] अपूप, पूआ, पक्वान्न-विशेष (दे ६, ११७)।
मंडी :: स्त्री [दे] १ पिधानिका, ढकनी (दे ६, १११; पाअ) २ अन्न का अग्र रस, माँड़। ३ माँड़ी, कलप, लेई (आव ४)। °पाहुडिया स्त्री [°प्राभृतिका] एक भिक्षा-दोष, अन्न के माँड़ अथवा माँड़ी को दूसरे पात्र में रखकर दी जाती भिक्षा का ग्रहण (आव ४)
मंडुक, मंडुक्क :: देखो मंडूअ (श्रा २८; पणह १, १; हे २, ९८; षड्; पाअ)।
मंडुक्कलिया, मंडुक्किया, मंडुक्की :: स्त्री [मण्डूकिका, °की] १ स्त्री मेंढक, भेकी, दादुरी (उप १४७ टी; १३७ टीा) २ शाक- विशेष, वनस्पति-विशेष (उवा; पणण १ — पत्र ३४)
मंडुग, मंडूअ, मंडूक, मंडूर :: पुं [मण्डूक] १ मेंढक, दादुर; 'मंडुगगइसरिसो खलु अहिगारो होइ सुत्तस्स' (वव ७; कुमा) २ वृक्ष-विशेष, श्योनाक, सोनापाठा। ३ बन्ध-विशेष (संक्षि १७); 'मंडूरो' (प्राप्र) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °प्पुअ न [°प्लुत] भेक की चाल। २ पुं. ज्योषि-प्रसिद्ध योग- विशेष, भेक की गति की तरह होनेवाला योग (सुज्ज १२ — पत्र २३३)
मंडोवर :: न [मण्डोवर] नगर-विशेष (ती १५)।
मंत :: सक [मत्रन्य्] १ गुप्त परमर्श करना, मसलहत करना। २ आमंत्रण करना। मंतइ (महा; भवि)। भवि. मंतही (अप) (पिंग)। वकृ. 'मंतंत, मंतयंत' (सुपा ५३५; ३०७; अभि १२०)। सकृ. मंतिअ, मंतिऊण, मंतेऊण (अभि १२४; महा)
मंत :: पुंन [मन्त्र] १ गुप्त बात, गुप्त आलो- चना; 'न कहिज्जइ एसिमेरिसं मंतं' (सिरि ६२५); 'फुट्टिस्सइ बोहित्थं महिलाजणकहिय- मंतं व' (धर्मंवि १३; कुमा) २ जप्य, जाप करने योग्य प्रणवादिक अक्षर-पद्धति (णाया १, १४; ठा ३, ४ टी — ेपत्र १५९; कुमा; प्रासू १४)। °जंभग पुं [°जृम्भक] एक देव-जाति (भग १४, ८ टी — पत्र ६५४)। °देवया स्त्री [°देवता] मन्त्राधिष्ठायक देव (श्रा १)। °न्नु वि [°ज्ञ] मन्त्र का जानकार (सुपा ६०३)। °वाइ वि [°वादिन्] मान्त्रिक, मन्त्र को ही श्रेष्ठ माननेवाला (सुपा ५९७)। °सिद्ध वि [°सिद्ध] १ सब मन्त्र जिसके स्वाधीन हों वह। २ बहु-मन्त्र। ३ प्रधान मन्त्रवाला; 'साहोणसव्वमंतो बहुमंतो वा पहाणमंतो वा, नेओ स मंतसिद्धो' (आवम)
मंत :: वि [मान्त्र] मन्त्र-सम्बन्धी, मान्त्रिक। स्त्री 'मंती ठक्कारपंतिव्व' (धर्मंवि २०)।
मंत :: देखो मा = मा।
मंतक्ख :: न [दे] १ लज्जा, शरम। २ दुःख (दे ६, १४१) ३ अपराध; 'न लेइ गरुयंपिंणाम- णाम-मंतक्खं' (गउड)
मंतण :: न [मन्त्रण] १ गुप्त आलोचना, गुप्त मसलहत (पउम ५, ९६; ४९) २ मसलहत, परामर्श, सलाह; 'मंतणत्थं हक्का- रिओ अणेण जिणदत्तसिट्ठो' (कुप्र ११९)। ३ जाप; 'पुणो पुणो मंतमतणं सुहयं (चेइयॉ ७९३)
मंतर :: देखो वंतर (कप्प)।
मंता :: अ [मत्वा] जानकार (सूअ १, १०, ६; आचा १, १, ५, १; १, ३, १, ३; पि ५८२)।
मंति :: पुं [मन्त्रिन्] १ मन्त्री, अमात्य, दीवान (कप्प; औप; पाअ) २ वि. मन्त्रों का जान- कार (गु १२)
मंति :: पुं [दे] विवाह-गणक, जोशी, ज्योतिर्वित् (दे ६, १११)।
मंतिअ :: वि [मन्त्रित] गुप्त रीति से आलो- चित (महा)।
मंतिअ :: देखो मंत = मन्त्रय्।
मंतिअ :: वि [मान्त्रिक] मन्त्र का ज्ञाता; 'मंतेण मंतियस्स व वाणीए ताड़िओ तुज्झ' (धर्मंवि ६; मन ११)।
मंतिण :: देखो मंति = मन्त्रिन्; 'निगूहिओ मंति- णेहि कुसलेहिं' (पउम २१, ९०; ६५, ८; भवि)।
मंतु :: वि [मन्तृ] १ ज्ञाता, जानकार। २ पुं. जीव, प्राणी (विसे ३५२५)
मंतु :: देखो मण्णु (हे २, ४४; षड्; निचू २)। °म वि [°मत्] क्रोधवाला, कोप-युक्त। स्त्री. °मई (कुमा)।
मंतु :: पुंन [°मंन्तु] अपराध; 'मंतुं विलियं विप्पियं' (पाअ)।
मतुआ :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ६, ११६; भवि)।
मंतेल्लि :: स्त्री [दे] सारिका, मैना (दे ६, ११९)।
मंथ :: सक [मन्थ्] १ विलोड़न करना। २ मारना, हिंसा करना। ३ अक. क्केश पाना। मंथइ (हे ४, १२१; प्राकृ. ३३; षड्)। कवकृ. मंथिज्जत, मंथिज्जमाण, मच्छंत (पउम ११३, ३३; सुपा २५१; १९५; पणह १, ३ — पत्र ५३)। संकृ. मंथित्तु (सम्मत्त २२६)
मंथ :: पुं [मन्थ] १ दही विलोने — महने का दण्ड, मथनी (पिसे ३८४) २ केवलि. समुद्धात के समय मन्थाकार किया जाता जीव-प्रदेश- समूह (ठा ६; औप)
मंथ :: (अप) देखो मत्थ = मस्त (पिंग)।
मंथण :: न [मन्थन] १ विलोडन, विलोने की क्रिया; 'खोरोअमंथणुच्छलिअदुद्धसित्तो व्व महुमहणो' (गा ११७) २ घर्षण; 'मंथण- जोए अग्गो' (संबोध १) ३ पुंन मथनी, दही आदि मथने की लकड़ी (प्राकृ १४)
मंथणिआ :: स्त्री [मन्थनिका] १ मंथनी, महानी, दही मथने की छोटी लकड़ी (राज) २ मथानी, दधि-कलशी, दही महने की हँड़िया (दे २, ९५)
मंथणी :: स्त्री [मन्थनी] ऊपर देखो (दे २, ५५)।
मंथर :: वि [मन्थर] १ मन्द, धीमा (से १, ३८; गउड; पाअ; सुपा १) २ विलम्ब से होनेवाला (पंचा ६, २२) ३ पुं. मन्थन- दण्ड; 'वीसाममंथरायमाणसेलवोच्छिणणदूर- वडणाओ' (गउड)
मंथर :: वि [दे. मन्थर] १ कुटिल, वक्र, टेढ़ा (दे ६, १४५; भवि) २ स्त्रीन. कुसुम्भ, वृक्ष-विशेष, कुसूम का पेड़ (दे ६, १४५)। स्त्री. °रा; 'मंथुरा कुसुंभो' (पाअ)
मंथर :: वि [दे] बहु, प्रचुर, प्रभूत (दे ६, १४५; भवि)।
मंथरिय :: वि [मन्थरित] मन्थर किया हुआ (गउड)।
मंथाण :: पुं [मन्थान] १ विलोडन-दण्ड; 'तत्तो विसुद्धपरिणाममेरुमंथाणमहियभवज- लही' (धर्मंवि १०७; दे ६, १४१; वज्जा ४; पाअ; समु १५०) २ छन्द-विशेष (पिंग)
मंथिअ :: वि [मथित] विलोडित (दे २, ८८; पाअ)।
मंथु :: पुंन [दे] १ बदरादि-चूर्ण (पणह २, ५; उत्त ८, १२; सुख ८, १२; दस ५, १, ९८; ५, २, २४; आचा) २ चूर्णं, चूर, बुकनी (आचा २, १, ८, ८) ३ दूध का विकार- विशेष, मट्ठा और माखन के बीच की अवस्था वाला पदार्थं (पिंड २८२)
मंद :: पुं [मन्द] १ ग्रह-विशेष, शनिश्चर (सुर १०, २२४) २ हाथी की एक जाति (ठा ४, २ — पत्र २०८) ३ वि. अलस, धीमा, मृदु (पाअ; प्रासू १३२) ४ अल्प, थोड़ा (प्रासू ७१) ५ मूर्ख, जड़, अज्ञानी (सूअ १, ४, १, ३१; पाअ) ६ नीच, खल, 'मुहमेव अहीणं तह य मंदस्स' (प्रासू १९) ७ रोग ग्रस्त, रोगी (उत्त ८, ७)। °उण्णिया स्त्री [°पुण्यका] देवी-विशेष (पंचा १९, २४)। °भग्ग वि [°भाग्य] कमनसीब (सुपा ३७६; महा)। °भाअ वि [°भाग, °भाग्य] वहि अर्थं (स्वप्न २२; कुमा)। °भाइ वि [°भागिन्] वही अर्थं (स ७५६; सुपा २२९)। °भाग देखो °भाअ (सुर १०, ३८)
मंद :: न [मान्द्य] १ बीमारी, रोग; 'न य मंदेणं मरई कोइ तिरिओ अहव मणुओ वा' (सुपा २२६) २ मूर्खता, बेवकूफी; 'बालस्स मंदयं बीय' (सूअ १, ४, १, २९)
मंदक्ख :: न [मन्दाक्ष्] लज्जा, शरम (राज)।
मंदग, मंदय :: न [मन्दक] गेय-विशेष; एक प्रकार का गान (राज; ठा ४, ४ — पत्र २८५)।
मंदर :: पुं [मन्दर] १ पर्वंत-विशेष, मेरु पर्वंत (सुज्ज ५; सम १२; हे २, १७४, कप्प; सुपा ४७) २ भगवान् विमलनाथ का प्रथम गणधऱ (सम १५२) ३ वानरद्वीप का एक राजा, भरुयकुमार का पुत्र (पउम ६, ६७) ४ छन्द का एक भेद (पिंग) ५ मन्दर-पर्वत का अधिष्ठायक देव (जं ४)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष, (इक)
मंदा :: स्त्री [मन्दा] १ मन्द-स्त्री (वज्जा १०६) २ मनुष्य की दश अवस्थाओं में तीसरी अवस्था २१ से ३० वर्षं तक की दशा (तंदु १६)
मंदाइणी :: स्त्री [मन्दाकिनी] १ गंगा नदी, भागीरथी (पउम १०, ५०; पाअ) २ रामचन्द्र के पुत्र लव की स्त्री का नाम (पउम १०६, १२)
मंदाय :: क्रिवि [मन्द] शनैः, धीमे से; 'मंदायं मंदायं पव्वइयाए' (जीव ३)।
मंदाय :: न [मन्दाय] गेय-विशेष (जं १)
मंदार :: पुं [मन्दार] १ कल्पवृक्ष-विशेष (सुपा १) २ पारिभद्र वृक्ष। ३ न. मन्दार वृक्ष का फूल; 'मंदारदामरमणिज्जभूयं' (कप्प; गउड) ४ परिभद्र वृक्ष का फूल (वज्जा १०६)
मंदिअ :: वि [मान्दिक] मन्दता वाला, मन्द; 'बाले य मंदिए मूढे' (उत्त ८, ५)।
मंदिर :: न [मन्दिर] १ गृह, घर (गउड; भवि) २ नगर-विशेष (इक; आचू १)
मंदिर :: वि [मान्दिर] मन्दिर-नगर का; 'सीह- पुरा सोहा वि य गीयपुरा मंदिरा य बहुणाया' (पउम ५५, ५३)।
मंदीर :: न [दे] १ श्रृंखल, साँकल। २ मन्थान- दण्ड (दे ६, १४१)
मंदुय :: पुं [दे. मन्दुक] जलजन्तु-विशेष (पणह १, १ — पत्र ७)।
मंदुरा :: स्त्री [मन्दुरा] अश्व-शाला (सुपा ६७)।
मंदोदरी, मंदोयरी :: स्त्री [मन्दोदरी] १ रावण-पत्नी (से १३, ९७) २ एक वणिक्- पत्नी (उप ५९७ टी)
मंदोशण :: (मा)। वि [मन्दोष्ण] अल्प गरम (प्राकृ १०२)।
मंधाउ :: पुं [मान्धातृ] हरिवंश का एक राजा (पउम २२, ९७)।
मंधादण :: पुं [मन्धादन] मेष, गाडर; 'जहा मंधादए (? णे) नाम थिमिअं भुंजती दगं' (सूअ १, ३, ४, ११)।
मधाय :: पुं [दे] आढ्य, श्रीमंत (दे ६, ११९)।
मंभीस :: (अप)। सक [मा + भी] डरने का निेषेध करना, अभय देना। संकृ. मंभीसिवि (भवि)।
मंभीसिय :: देखो माभीसिअ (भवि)।
मंस :: पुंन [मांस] मांस, गोश्त, पिशित; 'अयमाउसो मंसे अयं अट्ठी' (सूअ २, १, १६; आचा; ओघभा २४६; कुमा; हे १, २९)। °इत्त वि [°वत्] मांस-लोलुप (सुख १, १५)। °खल न [°खल] मांस सुखाने का स्थान (आचा २, १, ४, १)। °चक्खु पुंन [°चक्षुस्] १ मांस-मय चक्षु। २ वि. मांस-मय चक्षुवाला, ज्ञान-चक्षु-रहित; 'अद्दिस्से मंसचक्खुणा' (सम ६०)। °सण वि [°शन] मांस-भक्षक (कुमा)। °सि, °सिण वि [°शिन्] वही अर्थं (पउम १०५, ४४; महा), 'मंसासिणस्स' (पउम २६, ३७)
मंस :: न [मांस] फल का गर्भं, फल का गुद्दा (आचा २, १, १०, ५; ६)।
मंसल :: वि [मांसल] पीन, पुष्ट, उपचित (पाअ; हे १, २९; पणह १, ४)।
मंसी :: स्त्री [मांसी] गन्ध-द्रव्य-विशेष जटामांसी (पणह २, ५ — पत्र १५०)।
मंसु :: पुंन [श्मश्रु] दाढ़ी-मुँछ — पुरुष के मुख पर का बाल (सम ६०; औप; कुमा), 'मंसू' (हे १, २६, प्राप्र), 'मंसूइं' (उवा)।
मंसु :: देखो मंस; 'मंसूणि क्षिन्नपुव्वाइं' (आचा)।
मंसुडग :: न [दे. मांसोन्दुक] मांस-खण्ड (पिंड ५८६)।
मंसुल्ल :: वि [मांसवत्] मांसवाला (हे २, १५९)।
मक्कंडेअ :: पुं [मार्कण्डेय] ऋषि-विशेष (अभि २४३)।
मक्कड :: पुं [मर्कट] १ वानर, बनरा, बन्दर (गा १७१; उप पृ १८८; सुपा ६०६; दे २, ७२; कुप्र ९०; कुमा) २ मकड़ा, जाल बनानेवाला क्रीड़ा (आचा; कस; गा ६३; दे ६, ११९) ३ छन्द का एक भेद (पिंग)। °बंध पुं [°बन्ध] बन्ध-विशेष, नाराच-बन्ध (कम्म १, ३९)। °संताण पुं [°संतान] मकड़ा का जाल (पडि)
मक्कडबंध :: न [दे] श्रृंखलाकार ग्रीवा-भूषण (दे ६, १२७)।
मक्कडी :: स्त्री [मर्कटी] वानरी बनरी (कुप्र ३०३)।
मक्कल :: (अप) देखो मक्कड (पिंग)।
मक्कार :: पुं [माकार] १ 'मा' वर्ण। २ 'मा' के प्रयोगवाली दण्डनीति, निषेध-सूचक एक प्राचीन दण्ड-नीति (ठा ७ — पत्र ३९८)
मक्कुण :: देखो मंकुण (पव २६२; दे १, ९६)।
मक्कोड :: पुं [दे] १ यन्त्र-गुम्फनार्थं राशि, जन्तर गठने के लिए बनाई जाती राशि (दे ६, १४२) २ पुंस्त्री. कीट-विशेष; 'चींटा, गुज- राती में 'मकोडो', 'मंकोडो' (निचू १; आवम; जी १६)। स्त्री. °डा (दे ६, १४२)
मक्ख :: सक [म्रक्ष्] १ चुपड़ना, स्नेहान्वित करना। २ घी, तेल आदि स्निग्ध द्रव्य से मालिश करना। मक्खइ (षड्), मक्खंति (उप १४७ टी), मक्खिज्ज, मक्खेज्ज; (आचा २, १३, २; ३)। हेकृ. मक्खेत्तए (कस)। कृ. मक्खियव्व (ओघ ३८५ टी)
मक्खण :: न [म्रक्षण] १ मक्खन, नवनीत (स २५८; पभा २२) २ मालिश, अभ्यंग (निचू ३)
मक्खर :: पुं [मस्कर] १ गति। २ ज्ञान। ३ वंश बांस। ४ छिद्रवाला बाँस (संक्षि १५; पि ३०६)
मक्खिअ :: वि [म्रक्षित] चुपड़ा हुआ (पाअ; दे ८, ६२; ओघ ३८५ टी)।
मक्खिअ :: न [माक्षिक] मक्षिका-संचित मधु (राज)।
मक्खिआ :: स्त्री [मक्षिका] मक्खी (दे ६, १२३)।
मगइअ :: वि [दे] हस्त-पाशित, हाथ में बाँधा हुआ (विपा १, ३ — पत्र ४८; ४९)।
मगण :: पुं [मगण] छन्द-शास्त्र-प्रसिद्ध तीन गुरु अक्षरों की संज्ञा (पिंग)।
मगदंतिआ :: स्त्री [दे] १ मालती का फूल। २ मोगरा का फूल; 'कुमुअं वा मगदंतिअ' (दस, ५, २, १४; १६)
मगदंतिआ :: स्त्री [दे. मगदन्तिका] १ मेंदी या मेहँदी का गाछ। २ मेंदी की पत्ती (दस ५, २, १४; १६)
मगर :: पुं [मकर] १ मगर-मच्छ, जलजन्तु- विशेष (पणह १, २; औप; उव; सुर १३, ४२; णाया १, ४) २ राहु (सुज्ज २०)। देखो मयर।
मगरिया :: स्त्री [मकरिका] वाद्य-विशेष (राय ४६)।
मगसिर :: स्त्रीन [मृगशिरस्] नक्षत्र विशेष 'कत्तिय रोहिणी मगसिर अद्दा य' (ठा २, ३ — पत्र ७७)। स्त्री. °रा; 'दो मगसिराओ' (ठा २, ३ — पत्र ७७)।
मगह :: देखो मागह। °तित्थ न [°तीर्थ] तीर्थं-विशेष (इक)।
मगह, मगहग :: पुं. ब. [मगध] देश-विशेष (कुमा)। °वरच्छ [°वराक्ष्] आभरण-विशेष (औप पृ ४८ टि)। °पुर न [°पुर] नगर- विशेष (महा)। देखो मयह।
मगा :: अ [दे] पश्चात्, पीछे, मराठी में 'मग' (दे १, ४, टी)।
मगुंद :: देखो मउंद = मुकुन्द (उत्तनि ३)।
मग्ग :: सक [मार्गय] १ मागना। २ खोजना। मग्गइ, मग्गंति (उव; षड्; हे १, ३४)। वकृ. मग्गंत, मग्गमाण (गा २०२; उप ६४८ टी; महा; सुपा ३०८)। संकृ. मग्गेविणु (अप) (भवि)। हेकृ. मग्गिउं (महा)। कृ. मग्गिअव्व मग्गेयव्व (से १४, २७; सुपा ५१८)
मग्ग :: सक [मग्] गमन करना, चलना। मग्गइ (हे ४, २३०)।
मग्ग :: पुं [मार्ग] १ रास्ता, पथ (ओघ ३४; कुमा; प्रासू ५०; ११७; भग) २ अन्वेषण, खोज (विसे १३८२) °ओ अ [°तस्] रास्ते से (हे १, ३७)। °ण्णु वि [°ज्ञ] मार्गं का जानकार (उप ९४४)। °त्थ वि [°स्थ] १ मार्गं से स्थित। २ सोलह से ज्यादा वर्षं की उम्रवाला (सूअ २, १, ६)। °दय वि [°दय] मार्ग-दर्शक (भग; पडि)। °विउ वि [°वित] मार्गं का जानकार (ओघ ८०२)। °ह वि [°घ] मार्गं-नाशख (श्रु ७४)। °णुसारि वि [°नुसारिन्] मार्गं का अनुयायी (धर्म २)
मग्ग :: पुं [मार्ग] १ आकाश (भग २०, २ — पत्र ७७५) २ आवश्यक-कर्मं, सामयिक आदि षट्-कर्मं (अणु ३१)
मग्ग, मग्गअ :: पुं [दे] पश्चात्, पीछे (दे ६, १११; से १, ५१; सुर २, ५६; पाअ; भग)।
मग्गअ :: वि [मार्गक] माँगनेवाला (पउम ९९, ७३)।
मग्गण :: पुं [मार्गण] १ याचक (सुपा २४) २ बाण, शर (पाअ) ३ न. अन्वेषण, खोज (विस १३८१) ४ मार्गणा, विचारणा, पर्यालोचन (औप; विसे १८०)
मग्गण°, मग्गणया, मग्गणा :: स्त्री [मार्गणा] १ अन्वेषण, खोज (उप पृ २७९; उप ९९२; ओघ ३) २ अन्वय-धर्मं के पर्यालोचन द्वारा अन्वेषण, विचारणा, पर्या- लोचना (कम्म ४, १; २३; जीवस २)
मग्गणया :: स्त्री [मार्गणा] ईहा-ज्ञान, ऊहापोह (णंदि १७५)।
मग्गण्णिर :: वि [दे] अनुगमन करने की आदतवाला (दे ६, १२४)।
मग्गसिर :: पुं [मार्गशिर] मास-विशेष, मगसिर मास, अगहन (कप्प; हे ४, ३५७)।
मग्गसिरी :: स्त्री [मार्गशिरी] १ मर्गसिर मास की पूर्णिमा। २ मगसिर की अमावस (सुज्ज १०, ६)
मग्गिअ :: वि [मर्गित] १ अन्वेषित, गवेषित (से ९, ३९) २ माँगा हुआ, याचित (महा)
मग्गिर :: त्रि [मार्गयितृ] खोज करनेवाला (सुपा ५८)।
मग्गिल्ल :: वि [दे] पाश्चात्य, पीछे का (विसे १३२९)।
मग्गु :: पुं [मद्गु] पक्षि-विशेष, जल-काक (सूअ १, ७, १५; हे २, ७७)।
मघ :: पुं [मघ] मेघ (भग ३, २; पणण २)।
मघमघ :: अक [प्र + सृ] फैलना, गन्ध का पसारना; गुजराती में 'मघमघवु', मराठी में 'मघमघ्णें'। वकृ. मघमघंत, मघमघिंत, मघमघेंत (सम १३७; कप्प; औप)।
मघव :: पुं [मघवन्] १ इन्द्र, देव-राज (कप्प; कुमा ७, ९४) २ तृतीय चक्रवर्त्ती राजा (सम १५२; पउम २०, १११)
मघवा :: स्त्री [मघवा] छठवीं नरक-भूमि, 'मघव त्ति माघवत्ति य पुढवीणं नामधेयाइं' (जीवस १२)।
मघा :: स्त्री [मघा] १ ऊपर देखो (ठा ७ — पत्र ३८८; इक) २ देखो महा = मघा (राज)
मघोण :: पुं [दे. मघवन्] देखो मघव (षड्; पि ४०३)।
मच्च :: अक [मद्] गर्वं करना। मच्चइ (षड्; हे ४, २२५)।
मच्च :: (अप) देखो मंच; 'मंकुणमच्चइ सुत्त बराई' (भवि)।
मच्च :: न [दे] मल, मैल (दे ६, १११)।
मच्च, मच्चिअ :: पुं [मर्त्य] मनुष्य, मानुष (स २०८; रंभा; पाअ; सूअ १, ८, २; आचा)। °लोअ पुं [°लोक] मनुष्य- लोक (कुप्र ४११)। °लोईय वि [°लोकीय] मनुष्य-लोक से सम्बन्ध रखनेवाला (सुपा ५१९)।
मच्चिअ :: वि [दे] मल-युक्त (दे ६, १११ टी)।
मच्चिर :: वि [मदितृ] गर्वं करनेवाला (कुमा)।
मच्चु :: पुं [मृत्यु] १ मौत, मरण (आचा; सुर २, १३८; प्रासू १०६; महा) २ यम, यमराज (षड्) ३ रावण का एक सैनिक (पउम ५६, ३१)
मच्छ :: पुं [मत्स्य] १ मछली (णाया १, १; पाअ; जी २०; प्रासू ५०) २ राहु (सुज्ज २०) ३ देश-विशेष (इक, भवि) ४ छन्द का एक भेद (पिंग)। °खल न [°खल] मत्स्यों को सुखाने का स्थान (आचा २, १, ४, १)। °बंध पुं [°बन्ध] मच्छीमार, धीवर (पणह १, १; महाा)
मच्छ :: पुंन [मत्स्य] मत्स्य के आकार की एक वनस्पति (आचा २, १, १०, ५; ६)।
मच्छंडिआ :: स्त्री [मत्स्यण्डिका] खण्डशर्कंरा, एक प्रकार की शक्कर (पणह २, ४, णाया १, १७; पणण १७, पिंड २८३; मा ४३)।
मच्छंडी :: स्त्री [मत्स्यण्डी] शक्कर (अणु १४७)।
मच्छंत :: देखो मंथ = मन्थ्।
मच्छंध :: देखो मच्छ-बंध (विपा १, ८ — पत्र ८२)।
मच्छर :: पुं [मत्सर] १ ईर्ष्या, द्वेष, डाह, पर-संपति की असॉहिष्णुता (उव) २ कोप, क्रोध। ३ वि. ईर्ष्यालु, द्वेषी। ४ क्रोधी। कृपण (हे २, २१)
मच्छर :: न [मात्सर्य] ईर्ष्या, द्वेष (से ३, १९)।
मच्छरि :: वि [मत्सरिन्] मत्सरवाला (पणह २, ३; उवा; पाअ)। स्त्री. °णी (गा ८४ महा)।
मच्छरिअ :: वि [मत्सरित, मत्सरिक] ऊपर देखो (पउम ८, ४९; पंचा १, ३२; भवि)।
मच्छल :: देखो मच्छर = मत्सर (हे २, २१; षड्)।
मच्छिअ :: देखो मक्खिअ = माक्षिक (पव ४ — गाथा २२०)।
मच्छिअ :: वि [मात्स्यिक] मच्छीमार (श्रा १२; अभि १८७; विपा १, ६; पिंड ६३१)।
मच्छिका :: (मा) देखो माउ = मातृ (प्राकृ १०२)।
मच्छिगा :: देखो मच्छिया (पि ३२०)।
मच्छिया, मच्छी :: स्त्री [मक्षिका] मक्खी (णाया १, १६; जी १८; उत्त ३६, ६०; प्राप्र; सुपा २८१)।
मज्ज :: सक [मद्] अभिमान करना। मज्जइ, मज्जई, मज्जेज्ज (उव; सूअ १, २, २, १; धर्मंसं ७८)।
मज्ज :: अक [मस्ज्] १ स्नान करना। २ डूबना। मज्जइ (हे ४, १०१), मज्जामा (महा ५७, ७; धर्मंसं ८९४)। वकृ. मज्जमाण (गा २४६; णाया १, १)। संकृ. मज्जिऊण (महा)। प्रयो. संकृ. मज्जावित्ता (ठा ३, १ — पत्र ११७)
मज्ज :: सक [मृज्] साफ करना, मार्जन करना। मज्जइ (षड् प्राकृ ६६; हे ४, १०५)।
मज्ज :: न [मद्य] दारू, मदिरा (औप; उवा; हे २, २४; भवि)। °इत्त वि [°वत्] मदिरा-लोलुप (सुख १, १५)। °व वि [°प] मद्य-पान करनेवाला (पाअ)। °वीअ वि [°पीत] जिसने मद्य-पान किया हो वह (विपा १, ९ — पत्र ९७)।
मज्जग :: वि [माद्यक] मद्य-सम्बन्धी; 'अन्नं वा मज्जगं रसं' (दस ५, २, ३६)।
मज्जण :: न [मज्जन] १ स्नान। २ डूबना (सुर ३, ७६; कप्पू; गउड; कुमा)। °घर न [°गृह] स्नान-गृह (णाया १, १ — पत्र १९)। °धाई स्त्री [°धात्री] स्नान करानेवाली दासी (णाया १, १ — पत्र ३७)। °पाली स्त्री [°पाली] वही अर्थं (कप्प)
मज्जण :: न [मार्जण] १ साफ करना, शुद्धि (कप्प) २ वि. मार्जन करनेवाला (कुमा)। °घर न [°गृह] शुद्धि-गृह (कप्प; औप)
मज्जर :: देखो मंजर (प्राकृ ५)। स्त्री. °री; 'को जुन्नमज्जरिं कंजिएण पवियारिउं तरइ' (सुर ३, १३३)।
मज्जविअ :: वि [माज्जित] १ स्नपित। २ स्नात; 'एत्थ सरे रे पंथिअ गयवइवहुयाउ मज्जविया' (वज्जा ९०)
मज्जा :: स्त्री [दे. मर्या] मर्यादा (दे ६, ११३; (भवि)।
मज्जा :: स्त्री [मज्जा] धातु-विशेष, चर्बी, हड्डी के भीतर का गूदा (सण)।
मज्जाइल्ल :: वि [मर्यादिन्] मर्यादावाला (निचू ४)।
मज्जाया :: स्त्री [मर्यादा] १ न्याय्य-पथ-स्थिति, व्यवस्था; 'रयणायरस्स मज्जाया' (प्रासू ६८; आवम) २ सीमा, हद, अवधि। ३ कूल, किनारा (हे २, २४)
मज्जार :: पुंस्त्री [मार्जार] १ बिल्ला, बिलाव (कुमा; भवि) २ वनस्पति-विशेष; 'वत्थुल- पोरगमज्जारपोइवल्ली य पालक्का' (पणण १ — पत्र ३४)। स्त्री. °रिआ, °री (कप्पू; पाअ)
मज्जार :: पुं [मार्जार] वायु-विशेष (भग १५ — पत्र ६८६)।
मज्जाविअ :: वि [मज्जित] स्नपित (महा)।
मज्जिअ :: वि [दे] १ अवलोकित, निरीक्षित। २ पीत (दे ६, १४४)
मज्जिअ :: वि [मज्जित] स्नात; (पिंड ४२३; महा; पाअ)।
मज्जिअ :: वि [मार्जित] साफ किया हुआ (पउम २०, १२७; कप्प, औप)।
मज्जिआ :: स्त्री [मार्जिता] रसाला, भक्ष्य- विशेष — दही, शक्कर आदि का बना हुआ और सुगन्ध से वासित एक प्रकार रा खाद्य, श्रीखण्ड (पाअ, दे ७, २; पव २५९)।
मज्जिर :: वि [मज्जितृ] मज्जन करने की आदतवाला (गा ४७३; सण)।
मज्जोक्क :: वि [दे] अभिनव, नूतन (दे ६, ११८)।
मज्झ :: न [मध्य] १ अन्तराल, मझार, बीच (पाअ; कुमा; दे ३६; प्रासू ५०; १६७) २ शरीर का अवयव — विशेष (कप्पू) ३ संख्या-विशेष, अन्त्य और परार्ध्यं के बीच की संख्या (हे २, ९०; प्राप्र) ४ नि. मध्यवर्ती, बीच का (प्रासू १२५) °एस पुं [°देश] देश-विशेष, गंगा और यमुना के बीच का प्रदेश, मध्य प्रान्त (गउड)। °गय वि [°गत] १ बीच का, मध्य में स्थित (आचा; कप्प) २ पुं. अवधिज्ञान का एक भेद (णंदि)। °गेवेज्जय न [°ग्रैवेयक] देवलोक-विशेष (इक)। °ट्ठिअ वि [°स्थित] तटस्थ, मध्यस्थ (रयण ४८)। °ण्ण, °ण्ह पुं [°ह्न] दिन का मध्य भाग, दोपहर (प्राप्र; प्राकृ १८, कुमा; अभि ५५; हे २, ८४; महा) २. न. तप-विशेष, पूर्वार्धं तप (संबोध ५८)। °ण्हतरु पुं [°ह्नतरु] वृक्ष-विशेष, मध्याह्न समय में अत्यन्त फूलनेवाले लाल रँग के फूलवाला वृक्ष (कुमा)। °त्थ वि [°स्थ] तटस्थ (उव; उप ६४८ टी; सुर १६, ९५) २ बीच में रहा हुआ (सुपा २५७) °देस देखो °एस (सुर ३, १६)। °न्न देखो °ण्ण (हे २, ८४; सण)। °म वि [°म] मध्य का, मझला, बीच का (भग; नाट — विक्र ५)। °रत्त पुं [°रात्र] निशीथ (उपर १३९; ७२८ टी)। °रयणि स्त्री [°रजनि] मध्य रात्रि (स ६३६)। °लोग पुं [°लोक] मेरु पर्वंत (राज)। °वात्ते वि [°वर्तिन्] अन्तर्गंत (मोह ६४)। °वलिअ वि [°वलित] १ बीच में मुड़ा हुआ। २ चित्त में कुटिल (वज्जा १२)
मज्झअ :: पुं [दे] नापित, नाई, हजाम (दे ६, ११५)।
मज्झआर :: न [दे] मझार, मध्य, अन्तराल (दे ६, १२१; विक्र २८; उव; गा ३; विसे २६९१; सुर १, ४५; सुपा ४६; १०३; खा १); 'असोगवणिआइ मज्झयारम्मि' (भाव ७)।
मज्झतिअ :: न [दे] मध्यन्दिन, मध्याह्न (दे ६, १२४)।
मज्झंदिण :: न [मध्यन्दिन] मध्याह्न (दे ६, १२४)।
मज्झंमज्झ :: न [मध्यमध्य] ठीक बीच (भग; विपा १, १; सुर १, २४४)।
मज्झगार :: देखो मज्झआर (राज)।
मज्झण्हिय :: वि [माध्याह्निक] मध्याह्न-संबन्धी (धर्मंवि १०५)।
मज्झत्थ :: न [माध्यस्थ्य] तटस्थता, मध्यस्थता (उप ९१५; संबोध ४५)।
मज्झिम :: वि [मध्यम] १ मध्य-वर्त्ती बीच का (हे १, ४८; सम ४३; उवा; कप्प; औप; कुमा) २ पुं. स्वर-विशष (ठा ७ — पत्र ३९३)। °रत्त पुं [°रात्र] निशीथ, मध्य- रात्रि (उप ७२८ टी)
मज्झिमगंड :: न [दे] उदर, पेट (दे ६, १२५)।
मज्झिमा :: स्त्री [मध्यमा] १ बीच री उंगली (ओघ ३९०) २ एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)
मज्झिमिल्ल :: वि [मध्यम] मध्य-वर्त्ती, बीच का (अणु)।
मज्झिमिल्ला :: देखो मज्झिमा (कप्प)।
मज्झिल :: वि [माध्यिक, मध्यम] मझला, बीच का (पव ३६; देवेन्द्र २३८)।
मट्ट :: वि [दे] श्रृङ्ग-रहित (दे ६, ११२)।
मट्ठिआ :: स्त्री [मृत्तिका] मट्टी, मिट्टी, माटी (णाया १, १; औप; कुमा; महा)।
मट्टी :: स्त्री [मृत्, मृत्तिका] ऊपर देखो (जी ४; पडि; दे)।
मट्टुहिअ :: न [दे] १ परिणीत स्त्री का कोप। २ वि. कलुष। ३ अशुचि, मैला (दे ६, १४६)
मट्ठ :: वि [दे] अलस, आलसी, मन्द, जड़ (दे ६, ११२; पाअ)।
मट्ठ :: वि [मृष्ट] १ मार्जित, शुद्ध (सूअ १, ६, १२; औप) २ मसृण, चिकना (सम १३७; दे ८, ७) ३ घिसा हुआ (औप; हे २, १७४) ४ न. मिरच, मरिच (हे १, १२८)
मड :: वि [दे. मृत] १ मरा हुआ, निर्जीव (दे ६, १४१); 'मडोव्व अप्पाणं' (वज्जा १४८), 'मडे' (मा) (प्राकृ १०३)। °इ वि [°दिन्] निर्जीव वस्तु को खानेवाला (भग)। °सय पुं [°श्रय] श्मशान (निचू ३)
मड :: पुं [दे] कंठ, गला (दे ६, १४१)।
मडंब :: पुंन [दे. मडम्ब] ग्राम-विशेष, जिसके चारों ओर एक योजन तक कोई गांव न हो ऐसा गाँव (णाया १, १; भग; कप्प; औप; पणह १, ३; भवि)।
मडक्क :: पुं [दे] १ गर्वं, अभिमान; 'न किउ वयणु संचिलिय मडक्कइ' (भवि) २ मटका, कलश, घड़ा; मराठी में 'मड़कें' (भवि)
मडक्किया :: स्त्री [दे] छोटा मटका, कलशी (कुप्र ११९)।
मडप्प, मडप्पर, मडप्फर :: पुं [दे] गर्वं, अभिमान, अहंकार; 'अञ्जवि कंदप्पमडप्पखंजडणे वहइ पंडिच्च (लुपा २६; कुप्र २२१; २८४; षड्; दे ६, १२०; पाअ; सुपा ६; प्रासू ८५; कुप्र २५५; सम्मत्त १८९; धम्म ८ टी; भवि; सण)।
मडभ :: वि [मडभ] कुब्ज, बामन (राज)।
मडमड, मडमडमड :: अक [मजमडाय] १ मड मड आवाज करना। २ सक. मड मड आवाज हो उस तरह मारना। मडमडमडंति (पउम २६, ५३)। भवि. मडमडइश्शं, मडमडाइश्शं (मा); (पि ५२८; चारु ३५)
मडमडाइअ :: वि [मडमडायित] 'मड' 'मडं' आवाज हो उस तरह मारा हुआ (उत्तर १०३)।
मडय :: न [मृतक] मुड़दा, मुर्दा, शव (पाअ; हे १, २०६; सुपा २१९)। °गिह न [°गृह] कब्र (निचू ३)। °चेइअ न [°चैत्य] मृतक के दाह होने पर या गाड़ने पर बनाया गया चैत्य — -स्मारक-मन्दिर (आचा २, १०, १९)। °डाह पुं [°दाह] चिता, जहाँ पर शव फूँके जाते हों (आचा २, १०, १९)। °थूभिया स्त्री [°स्तूपिका] मृतक के स्थान पर बनाया गया छोटा स्तूप (आचा २, १०, १९)।
मडय :: पुं [दे] आराम, बगीचा (दे ६, ११५)।
मडवोज्झा :: स्त्री [दे] शिबिका, पालकी (दे ६, १२२)।
मडह :: वि [दे] १ लघु, छोटा (दे ६, ११७; पाअ; सण) २ स्वल्प, थोड़ा (गा १०५; स ८; गउड; वज्जा ४२)
मडहर :: पुं [दे] गर्वं, अभिमान (दे ६, १२०)।
मडहिय :: वि [दे] अल्पीकृत, न्यून किया हुआ (गउड)।
मडहुल्ल :: वि [दे] लघु, छोटा; 'मडहुल्लियाए किं तुह इमीए किं वा दलेहिं तलिणोहिं' (वज्जा ४८)।
मडिआ :: स्त्री [दे] समाहत स्त्री, आहत महिला (दे ६, ११४)।
मडुवइअ :: वि [दे] १ हत, विध्वस्त। २ तीक्ष्ण (दे ६, १४६)
मड्ड :: सक [मृद्] मर्दन करना। मड्डइ (हे ४, १२६; प्राकृ ६८)।
मड्डय :: पुं [दे. मड्डक] वाद्य-विशेष (राय ४६)।
मड्डा :: स्त्री [दे] बलात्कार, हठ, जबरदस्ती (दे ६, १४०, पाअ; सुर ३, १३६; सुख २, १५)। २ आज्ञा, हुकुम (दे ६, १४०, सुपा २७९)।
मड्डिअ :: वि [मर्दित] जिसका मर्दंन किया गया हो वह (हे २, ३६, षड्; पि २९१)।
मड्डुअ :: देखो मद्दुअ (राज)।
मढ :: देखो मड्ड। मढइ (हे ४, १२६)।
मढ :: पुंन [मठ] संन्यासियों का आश्रय, व्रतियों का निवासस्थान; 'मढो' (हे १, १९९; सुपा २३४; वज्जा ३४; भवि); 'मढं' (प्राप्र)।
मढिअ :: देखो मड्डिअ (कुमा)।
मढिअ :: वि [दे] १ खचित; गुजराती में 'मढेलुं', 'एयाउ ओसहीओ तिघाउमढियाउ धारिज्जा' (सिरि ३७०) २ परिवेष्टित (दे २, ७५; पाअ)
मढी :: स्त्री [मठिका] छोटा मठ (सुपा ११३)।
मण :: सक [मन्] १ मानना। २ जानना। ३ चिन्तन करना। मणइ, मणसि (षड्; कुमा)। कवकृ. मणिज्जमाण (भग १३, ७; बिसे ८१३)
मण :: पुंन [मनस्] मन, अन्तः करण, चित्त (भग १३, ७; विसे ३५२५; स्वप्न ४५; दं २२; कुमा, प्रासू ४४; ४८; १२१)। °अगुत्ति स्त्री [°अगुप्ति] मन का असंयम (पि १५६)। °करण न [°करण] चिन्तन, पर्यालोचन (श्रावक ३३७)। °गुत्त वि [°गुप्त] मन को संयम में रखनेवाला (भग)। °गुत्ति स्त्री [°गुप्ति] मन का संयम (उत्त २४, २)। °जाणुअ वि [°ज्ञ] १ मन को जाननेवाला, मन का जानकार। २ सुन्दर, मनोहर (प्राकृ १८)। °जिविअ वि [°जिविक] मन को आत्मा माननेवाला (पणह १, २ — पत्र २८)। °जोअ पुं [°योग] मन की चेष्टा, मनो-व्यापार (भग)। °ज्ज, °ण्णु, °ण्णुअ देखो °जाणुअ (प्राकृ १८; षड्)। °थंभणी स्त्री [°स्तम्भनी] विद्या-विशेष, मन को स्तब्ध करनेवाली दिव्य शक्ति (पउम ७, १३७)। °नाण न [°ज्ञान] मन का साक्षात्कार करनेवाला ज्ञान, मनः- पर्यंव ज्ञान (कम्म ३, १८; ४, ११; १७; २१)। °नाणि वि [°ज्ञानिन्] मनः-पर्यंव नामक ज्ञानवाला (कम्म ४, ४))। °पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] पुद्गलों को मन के रूप में परिणत करने की शक्ति (भग ६, ४)। °पज्जव पुं [°पर्यव] ज्ञान-विशेष, दूसरे के मन की अवस्था को जाननेवाला ज्ञान (भग; औप; विसे ८३)। °पज्जवि वि [°पर्यविन्] मनःपर्यंव ज्ञानवाला (पव २१)। °पसिण- विज्जा स्त्री [°प्रश्नविद्या] मन के प्रश्नों का उत्तर देनेवाली विद्या (सम १२३)। °बलिअ वि [°बलिन्, °क] मनो-बलवाला, दृढ मनवाला (पणह २, १; औप)। °मोहण वि [°मोहन] मन को मुग्ध करनेवाला, चित्ताकर्षक (गा १२८)। °योगि वि [°योगिन्] मन की चेष्टावाला (भग)। °वग्गणा स्त्री [°वर्गणा] मन के रूप में परिणत होनेवाला पुद्गल-समूह (राज)। °वज्ज न [°वज्र] एक विद्याधर-नगर (इक)। °समिइ स्त्री [°समिति] मन का संयम (ठा ८ — पत्र ४२२)। °समिय वि [°समित] मन तो संयम में रखनेवाला (भग)। °हंस पुं [°हंस] छन्द-विशेष (पिंग)। °हर वि [°हर] मनोहर, सुन्दर, चित्ताकर्षक (हे १, १५६; औप; कुमा)। °हरण पुंन [°हरण] पिंगल-प्रसिद्ध एक मात्रा-पद्धति (पिंग)। °भिराम, °भिरा- मेल्ल वि [°अभिराम] मनोहर (सम १४९; औप, उप पृ ३२२; उप २२० टी)। °म वि [°आप] सुन्दर, मनोहर (सम १४९; विपा १, १; औप; कप्प)। देखो मणो°।
मणं :: देखो मणयं (प्राकृ ३८)।
मणंसि :: वि [मनस्विन्] प्रशस्त मनवाला (हे १, २६)। स्त्री. °णी (हे १, २६)।
मणंसिल°, मणंसिला :: स्त्री [मनःशिला] लाल वर्ण की एक उपधातु, मनशिल, मैनशिल (कुमा; हे १, २६)।
मणग :: पुं [मनक] एक जैन बाल-मुनि, महर्षि शर्य्यंभवसूरि का पुत्र और शिष्य (कप्प; धर्मंवि ३८)। देखो मणय।
मणगुलिया :: स्त्री [दे] पीठिका (राय)।
मणण :: न [मनन] १ ज्ञान, जानना। २ समझना (विसे ३५२५) ३ चिन्तन (श्रावक ३३७)
मणय :: पुं [मनक] द्वितीय नरक-भूमि का तीसरा नरकेन्द्रक — नरकावास-विशेष (देवेन्द्र ६)। देखो मणगा।
मणयं :: अ [मनाग्] अल्प, थोड़ा (हे २, १६९, पाअ; षड्)।
मणस :: देखो मण = मनस्; 'पसन्नमणो करिस्सामि' (पउम ६, ५६), 'लाभो चेव तवस्सिस्स होइ अद्दीणमणसस्स' (ओघ ५३७)।
मणसिल°, मणसिला :: देखो मणंसिला (कुमा; हे १, २६; जी ३; स्वप्न ६४)।
मणसीकय :: वि [मनसिकृत] चिन्तित (पणण ३४ — पत्र ७८२; सुपा २४७)।
मणसीकर :: सक [मनसि + कृ] चिन्तन करना, मन में रखना। मणसीकरे (उत्त २, २५)।
मणस्सि :: देखो मणंसि (धर्मंवि १४६)।
मणा :: देखो मणयं (हे २, १६९; कुमा)।
मणाउ, मणाउं :: (अप) ऊपर देखो (कुमा; भवि; पि ११४; हे ४, ४१८; ४२६)।
मणागं :: ऊपर देखो (उप १३२; महा)।
मणाल :: देखो मुणाल (राज)।
मणालिया :: स्त्री [मृणालिका] पद्म-कन्द का मूल (तंदु २०)। देखो मुणालिआ।
मणासिला :: देखो मणंसिला (हे १, २६; पि ६४)।
मणि :: पुंस्त्री [मणि] पत्थर-विशेष, मुक्ता आदि रत्न (कप्प; औप; कुमा; जी ३; प्रासू ४)। °अंग पुं [°अङ्ग] कल्प-वृक्ष की एक जाति जो आभूषण देती है (सम १७)। °आर पुं [°कार] जौहरी, रत्नों के गहनों का ब्यापारी (दे ७, ७७; मुद्रा ७९; णाया १, १३; धर्मंवि ३६)। °कंचण न [°काञ्चन] रुक्मि-पर्वत का एक शिखर (ठा २, ३ — पत्र ७०)। °कूड न [°कूट] रुचक पर्बंत का एक शिखर (दीव)। °क्खइअ वि [°खचित] रत्न-जटित (पि १९६)। °चइया स्त्री [°चयिता] नगरी- विशेष (विपा २, ६)। °चूड पुं [°चूड] एक विद्या-धर नृप (महा)। °जाल न [°जाल] भूषण-विशेष, मणि-माला (औप)। °तोरण न [°तोरण] नगर-विशेष (महा)। °प देखो °व (से ९, ४३)। °पेढिया स्त्री [°पीठिका] मणि-मय पीठिका (महा)। °प्पभ पुं [°प्रभ] एक विद्याधर (महा)। °भद्द पुं [°भद्र] एक जैन मुनि (कप्प)। °भूमि स्त्री [°भूमि] मणि खचित जमीन (स्वप्न ५४)। °मइय, °मय वि [°मय] मणि-मय, रत्न निर्वृत्त (सुपा ९२; महा)। °रह पुं [°रथ] एक राजा का नाम (महा)। °व पुं [°प] १ यक्ष। २ सर्प, नाग (से २, २३) ३ समुद्र (से ९, ५०)। °वई स्त्री [°मती] नगरी-विशेष (बिपा २, ६ — पत्र ११४ टि)। °वंध पुं [°बन्ध] हाथ और प्रकोष्ठ के बीच का अवयव (सण)। °वालय पुं [°पालक, °वालक] समुद्र (से २, २३)। °सलागा स्त्री [°शलाका] मद्य-विशेष (राज)। °हयय पुं [°हृदय] देव-विशेष (दीव)
मणिअ :: न [मणित] संभोग-समय का स्त्री का अव्यक्त शब्द (गा ३९२; रंभा)।
मणिअं :: देखो मणयं (षड्; हे २, १६९; कुमा)।
मणिअड :: (अप) पुं [मणि] माला का सुमेर (हे ४, ४१४)।
मणिच्छिअ :: वि [मनईप्सित] मनोऽभीष्ट (सुपा ३८४)।
मणिज्जमाण :: देखो मण = मन्।
मणिट्ठ :: वि [मनइष्ट] मन को प्रिय (भवि)।
मणिणायहर :: न [दे. मणिनागगृह] समुद्र, सागर (दे ६, १२८)।
मणिरइआ :: स्त्री [दे] कटीसूत्र (दे ६, १२६)।
मणीसा :: स्त्री [मनीषा] बुद्धि, मेधा, प्रज्ञा (पाअ)।
मणीसि :: वि [मनीषिन्] बुद्धिमान, पण्डित (कप्प)।
मणीसिद :: वि [मनीषित] वाञ्छित (नाट — मृच्छ ५७)।
मणु :: पुं [मनु] १ स्मृति-कर्ता मुनि-विशेष (विसे १५०८; उप १५० टी) २ प्रजापति- विशेष; 'चोद्दहमणुचोग्गुणओ' (कुमा; राज) ३ मनुज, मनुष्य; 'देवताओ मणुत्तं' (पउम २१, ६३; कम्म १, १६; २ १६) ४ न. एक देव-विमान (सम २)
मणुअ :: पुं [मनुज] १ मनुष्य, मानव (उवा; भग; हे १, ८; पाअ; कुमा; स ८२; प्रासू ४५) २ भगवान् श्रेयांसनाथ का शासन-यक्ष (संति ७) ३ वि. मनुष्य-सम्बन्धी; 'तिरिया मणुया य दिव्वगा उवसग्गा तिविहाहिया- सिया' (सूअ १, २, २, १५)
मणुइंद :: पुं [मनुजेन्द्र] राजा, नरपति (पउम ८५, २२; सुर १, ३२)।
मणुई :: स्त्री [मनुजी] मनुष्य-स्त्री, नारी, महिला (णंदि १२६ टी)।
मणुएसर :: पुं [मनुजेश्वर] ऊपर देखो (सुपा २०४)।
मणुज्ज, मणुण्ण :: वि [मनोज्ञ] सुन्दर, मनोहर (पाअ; उप १४२ टी; सम १४९; भग)।
मणुस, मणुस्स :: पुंस्त्री [मनुष्य] १ मानव, मर्त्य (आचा; पि ३००; आचा; ठा ४, २; भग; श्रा २८; सुपा २०३; जी १९; प्रासू २८)। स्त्री. °स्सी (भग; पणण १८; पत्र २४१)। °खेत्त न [°क्षेत्र] मनुष्य- लोक (जीव ३)। °सेणियापरिकम्म पुं [°श्रेणिकापरिकर्मन्] दृष्टिवाद का एक सूत्र (सम १२८)
मणुस्स :: वि [मानुष्य] मनुष्य-सम्बन्धी, 'दिव्वं व मणुस्सं वा तेरिच्छं वा सरागहियएणं' (आप २१)।
मणुस्सिंद :: पुं [मनुष्येन्द्र] राजा, नर-पति (उत्त १८, ३७; उप पृ १४२)।
मणूस :: देखो मणुत्स (हे १, ४३; औप; उबर १२२; पि ६३)।
मणे :: अ [मन्ये] विमर्शं-सूचक अव्यय (हे २, २०७; षड्; प्राकृ २६; गा १११; कुमा)।
मणो° :: देखो मण = मनस्। °गम न [°गम] देवविमान-विशेष, 'पालगपुप्फगसोमणससिरि- वच्छनंदियावत्तकामगमपीतिगममणोगमविमल- सव्वओभद्दसरिसनामघेज्जेहि विमाणेहिं ओ- इराणा' (अप)। °ज्ज वि [°ज्ञ] १ सुन्दर, मनोहर (हे २, ८३; उप २६४ टी) २ पुं. गुल्म-विशेष; 'सरियए णोमालियकोरिंटय- वत्थुजीवगमणोज्जे' (पणण १ — पत्र ३२)। °ण्ण, °न्न वि [°ज्ञ] सुन्दर, मनोहर (हे २, ८३; पि २७६)। °भव पुं [°भव] कामदेव, कन्दर्प (सुपा ६८; पिंग)। °भिरमणिज्ज वि [°भिरमणीय] सुन्दर, चित्ताकर्षंक (पउम ८, १४३)। °भू पुं [°भू] कामदेव, कन्दर्प (कप्पू)। °मय वि [°मय] मानसिक; 'सारीरमणोमयाणि दुक्खाणि' (पणह १, ३ — पत्र ५५)। °माणसिय वि [°मानसिक] मन में ही रहनेवाला — वचन से अप्रकटित — मानसिक दुःख आदि (णाया १, १, — पत्र २९)। °रम वि [°रम] १ सुन्दर, रमणीय (पाअ) २ पुं. एक विमानेन्द्रक, देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १३६) ३ मेरु पर्वंत (सुज्ज ५) ४ राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६५) ५ किन्नर-देवों की एक जाति। रुचक द्वीप का अधिष्ठायक देव (राज) ७ तृतीय ग्रैवेयक-विमान (पव १९४) ८ आठवें देवलोक के इन्द्र का पारियानिक विमान (इक) ९ एक देव- विमान (सम १७) १० मिथिला एक एक चैत्य (उत्त ९, ८; ९) ११ उपवन-विशेष (उप ९८६ टी) °रमा स्त्री [°रमा] चतुर्थं वासु- देव की पटरानी का नाम (पउम २०, १८६)। २ भगवान् सुपार्श्वंनाथ की दीक्षा-शिविका (सुपा ७५; विचार १२९) ३ शक्र की अञ्जुका नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (इक) °रह पुं [°रथ] १ मन का अभिलाष (औप; कुमा; हे ४, ४१४) २ पक्ष का तृतीय दिवस (सुज्ज १०, १४ — पत्र १४७) °हंस पुं [°हंस] छन्द-विशेष (पिंग)। °हर पुं [°हर] १ पक्ष की तृतीय दिवस (सुज्ज १०, १४) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ वि. रमणीय, सुन्दर (हे १, १५६; षड्; स्वप्न ५२; कुमा)। °हरा स्त्री [°हरा] भगवान् पद्मप्रभ की दीक्षा-शिविका (विचार १२९)। °हव देखो °भव (स ८१; कप्पू)। °हिराम वि [°भिराम] सुन्दर (भवि)
मणोसिला :: देखो मणंसिला (हे १, २६; कुमा)।
मण्ण :: देखो मण = मन्। मणणइ (पि ४८८)। कर्मं. मणिणञ्जइ (कुप्र १०९)। वकृ. मण्णमाण (नाट. चैत १३३)।
मण्णण :: न [मानन] मानना, आदर (उप १५४)।
मण्णा :: देखो मन्ना (राज)।
मण्णिय :: देखो मन्निय (राज)।
मण्णु :: देखो मन्नु (गा ११; ५०८; दे ६, ७१; वेणी १७)।
मण्णे :: देखो मणे (कप्प)।
मत्त :: वि [मत्त] १ मद-युक्त, मत्तवाला (उवा; प्रासू ६४; ९८; भवि) २ न. मद्य, दारू (ठा ७) ३ मद, नशा (पव १७१)। °जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष (ठा २, ३; इक)
मत्त :: देखो मेत्त = मात्र, 'वयणमत्तमिट्ठाणं' (रंभा)।
मत्त :: न [अमात्र, मात्र] पात्र, भाजन (आचा २, १, ६, ३; ओघ २५१)। देखो मत्तय।
मत्त :: (अप) देखो मच्च = मर्त्यं (भवि)।
मत्तंगय :: पुं [मत्ताङ्गक, °द] कल्पवृक्ष की एक जाति, मद्य देनेवाला कल्पतरु (सम १७; पव १७१)।
मत्तंड :: पुं [मार्तण्ड] सूर्यं, रवि (सम्मत्त १४५, सिरि १००८)।
मत्तग :: न [दे] पेशाब, मूत्र (कुलक ९)।
मत्तग, मत्तय :: पुंन [अमत्र, मात्रक] १ पात्र, भाजन। २ छोटा पात्र; बिइज्जओ मत्तओ होइ' (बृह ३; कप्प)
मत्तय :: देखो मत्तग = दे (कुलक १३)।
मत्तल्ली :: स्त्री [दे] बलात्कार (दे ६, ११३)।
मत्तवारण :: पुंन [मत्तवारण] बरंडा, बरामदा, दालान (दे ६, १२३; सुर ३, १००; भवि)।
मत्तवाल :: पुं [दे] मतवाला, मदोन्मत्त (दे ६, १२२, षड्; सुख २, १७; सुखा ४८६)।
मत्ता :: स्त्री [मात्रा] १ परिमाण (पिंड ६५१) २ अंश, भाग, हिस्सा (स ४८३) ३ समय का सूक्ष्म नाप। ४ सूक्ष्म उच्चारण-कालवाला वर्णावयव (पिंग) ५ अल्प, लेश, लव (पाअ)
मत्ता :: अ [मत्वा] जानकार (सूअ १, २, २, ३२)।
मत्तालंब :: पुं [दे. मत्तालम्ब] बरंडा, बरा- मदा (दे ६, १२३; सुर १, ५७)।
मत्तिया :: स्त्री [मृत्तिका] मिट्टी (पणण १ — पत्र २५)। °वई स्त्री [°वती] नारी-विशेष, दशार्णदेश की राजधानी (पव २७५)।
मत्थ, मत्थग, मत्थय :: पुंन [मस्त, °क] माथा, सिर (से १, १; स ३८५; औप)। °त्थ वि [°स्थ] सिर में स्थित (गउड)। °मणि पुं [°मणि] शिरोमणि, प्रधान, मुख्य (उप ६४८ टी)।
मत्थय :: पुंन [मस्तक] गर्भं, फल आदि का मध्याभाग — अन्तःसार (आचा २, १, ८, ६)।
मत्थयधोय :: वि [दे. धौतमस्तक] दासत्व से मुक्त, गुलामी से मुक्त किया हुआ (णाया १, १ — पत्र ३७)।
मत्थुलुंग, मत्थुलुय :: न [मस्तुलुङ्ग] १ मस्तक-स्नेह, सिर में से निकलता एक प्रकार का चिकना पदार्थ (पणह १, १; तंदु १०) २ मेद का फिप्फिस आदि (ठा ३, ४ — पत्र १७०; भग; तंदु १०)
मत्थिय :: देखो महिअ = मथित (पणह २, ४ — पत्र १३०)।
मद :: देखो मय = मद (कुमा; प्रयौ १६, पि २०२)।
मद :: (मा) देखो मय = मृत (प्राकृ १०३)।
मदण :: देखो भयण (स्वप्न ९३; नाट — मृच्छ २३१)।
मदणसला :: (गा) देखो मयणसलागा (पणण १ — पत्र ५४)।
मदणा :: देखो मयणा = मदना (णाया २ — पत्र २५१)।
मदणिज्ज :: वि [मदनीय] कामोद्दीपक, मदन- वर्धक (णाया १, १ — पत्र १९; औप)।
मदि :: देखो मइ = मति (मा ३२; कुमा; पि १९२)।
मदीअ :: देखो मईअ (स २३२)।
मदुवी :: देखो मउई (चंड)।
मदोली :: स्त्री [दे] दूती, दूत कर्मं करनेवाली स्त्री (षड्)।
मद्द :: सक [मृद्] १ चूर्ण करना। मालिश करना, मसलना, मलना। मद्दाहि (कप्प)। कर्मं. मद्दीअदि (नाट — मृच्छ १३५)। हेकृ. मद्दिउं (पि ५८५)
मद्दण :: न [मर्दन] १ अंग-चप्पी, मालिश (सुपा २४) २ हिंसा करना; 'तसथावरभूय- मद्दणं विविहं' (उव) ३ वि. मर्दंन करनेवाला (ती ३)
मद्दल :: पुं [मर्दल] वाद्य-विशेष, मुरज, मृदंग (दे ६, ११९; सुर ३, ६८; सिरि १५७)।
मद्दलिअ :: वि [मार्दलिक] मृदंग बजानेवाला (सुपा २९४; ५५३)।
मद्दव :: न [मार्दव] मृदुता, नम्रता, विनय, अहंकार निग्रह (औप; कप्प)।
मद्दवि :: वि [मार्दविन्] नम्र, विनीत; 'अज्ज- वियं मद्दवियं लाघवियं' (सूअ २, १, ५७; आचा)।
मद्दविअ :: वि [मार्दविक, °त] ऊपर देखो (बृह ४; वव १)।
मद्दिअ :: देखो मड्डिअ (पाअ)।
मद्दी :: स्त्री [माद्री] १ राजा शिशुपाल की मा का नाम (सूअ १, ३, १, १ टी) २ राजा पाण्डु की एक स्त्री का नाम (वेणी १७१)
मद्दुअ :: पुं [मद्दुक] भगवान् महावीर का राजगृह-निवासी एक उपासक (भग १८, ७ — पत्र ७५०)।
मद्दुग :: पुं [मद्गु, °क] पक्षि-विशेष, जल- वायस (भग ७, ६ — पत्र ३०८)। देखो मग्गु।
मद्दुग :: देखो मुदुग (राज)।
मधु :: देखो महु (षड्; रंभा; पिंग)।
मधुघाद :: पुं [मधुपात] एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)।
मधुर :: देखो महुर (निचू १, प्राकृ ८५)।
मधुसित्थ :: देखो महुसित्थ (ठा ४, ४ — पत्र २७१)।
मधूला :: स्त्री [दे. मधूला] पाद-गण्ड (राज)।
मन :: अ [दे] निषेवार्थक अव्यय, मत, नहीं (कुमा)।
मनुस्स :: देखो मणुस्स (चंड; भग)।
मन्न :: देखो मण्ण मन्नइ, मन्नसि (आचा; महा), मन्नंते, मन्नेसि (रंभा)। कर्मं, मन्निज्जउ (महा)। वकृ. मन्नंत, मन्नमाण (सुर १४, १७१; आचा; महा; सुपा ३०७; सुर ३, १७४)।
मन्न :: देखो माण = मानय्। कृ. मन्न, मन्नाय मन्नणिज्ज, मन्नियव्व, मन्निय (उप १०३६; धर्मंवि ७९; भवि; सुर १०; ३८; सुपा ३९८; ठा १ टी — पत्र २१; सं ३५)।
मन्ना :: स्त्री [मनन] १ मति, बुद्धि (ठा ५ — पत्र १९) २ आलोचन, चिन्तन (सूअ २ १, ४१; ठा १)
मन्ना :: स्त्री [मान्या] अभ्युपगम, स्वीकार (ठा १ — पत्र १९)।
मन्नाय :: देखो मन्न = मानय्।
मन्नाविय :: वि [मानित] मनाया हुआ (सुपा १५९)।
मन्निय :: वि [मत] माना हुआ (सुपा ६०५; कुमा)।
मन्नु :: पुं [मन्यु] १ क्रोध, गुस्सा (सुपा ६०४) २ दैन्य, दीनता; 'सोयसमुब्भूयगरुय- मन्नुवसा' (सुर ११, १४४) ३ अहंकार। ४ शोक, अफसोस। ५ क्रतु, यज्ञ (हे २, २५; ४४)
मन्नुइय :: वि [मन्यवित] मन्यु-युक्त, कुपित (सुख ४, १)।
मन्नुसिय :: वि [दे] उद्विग्न (स ५६६)।
मन्ने :: देखो मण्णे (हे १, १७१; रंभा)।
मप्प :: न [दे] माप, बाँट; 'तेण य सह वरु- णेणं आणेवि य तस्स हट्टमप्पाणि' (सुपा ३६२)।
मब्भीसडी, मब्भीसा :: (अप) स्त्री [मा भैषीः] अभय- वचन (हे ४, ४२२)।
ममकार :: पुं [ममकार] ममत्व, मोह, प्रेम, स्नेह (गच्छ २, ४२)।
ममच्चय :: वि [मदीय] मेरा (सुख २, १५)।
ममत्त :: न [ममत्व] ममता, मोह, स्नेह (सुपा २९)।
ममया :: स्त्री [ममता] ऊपर देखो (पंचा १५, ३२)।
ममा :: सक [ममाय्] ममता करना। ममाइ, ममायए (सूअ २, १, ४२, उव)। वकृ. ममायमाण, ममायमीण (आचा; सूअ २, ६, २१)।
ममाइ :: वि [ममत्विन्] ममतावाला (सूअ १, १, १, ४)।
ममाइय :: वि [ममायित] जिसपर ममता की गई हो वह (आचा)।
ममाय :: वि [दे] ग्रहण करना। ममायंति (दस ६, ४९)।
ममाय :: वि [ममाय] ममत्व करनेवाला (निचू १३)।
ममि :: वि [मामक] मेरा, मदीय; 'ममं वा मर्मि वा' (सूअ २, २, ९)।
ममूर :: सक [चूर्णय्] चूरना। ममूरइ (धात्वा १४८)।
मम्म :: पुंन [मर्मन्] १ जीवन-स्थान। २ सन्धि-स्थान (गा ४४९; उप ९९१; हे १, ३२) ३ मरण का कारण-भूत वचन आदि (णाया १, ८) ४ गुप्त बात (प्रासू ११; सुपा ३०७) ५ रहस्य, तात्पर्यं (श्रु २८)। °य वि [°ग] मर्म-वाचक (शब्द) (उत्त १, २५; सुख १, २५)
मम्मक्क :: पुं [दे] गर्वं, अहंकार (षड्)।
मम्मक्का :: स्त्री [दे] १ उत्कण्ठा। २ गर्वं (दे ६, १४३)
मम्मण :: न [मन्मन] १ अव्यक्त वचन (हे २, ६१; दे ६, १४१; विपा १, ७; वा २६) २ वि. अव्यक्त वचन बोलनेवाल (श्रा १२)
मम्मण :: पुं [दे] १ मदन, कन्दर्पं। २ रोष, गुस्सा (दे ६, १४१)
मम्मणिआ :: स्त्री [दे] नील मक्षिका (दे ६, १२३)।
मम्मर :: पुं [मर्मर] शुष्क पत्तों की आवाज (गा ३६५)।
मम्मह :: पुं [मन्मथ] कामदेव, कन्दर्प (गा ४३०; अभि ९५)।
मम्मी :: स्त्री [दे] मामी, मातुल-पत्नी (दे ६, ११२)।
मय :: न [मत] मनन, ज्ञान (सूअ २, १, ५०) २ अभिप्राय, आशय (ओघनि १६०; सूअनि १२०) ३ समय, दर्शंन, धर्मं; 'समओ मयं' (पाअ; सम्मत्त २२८) ४ वि. माना हुआ (कम्म ४, ४९) ५ इष्ट, अभीष्ट (सुपा ३७१)। °न्नु वि [°ज्ञ] दार्शनिक (सुपा ५८२)
मय :: पुं [मय] १ उष्ट्र, ऊँट (सुख ९, १) २ अश्वतर, खच्चर; 'मयमहिससरहकेसरि — ' (पउम ९, ५९) ३ एक विद्याधर-नरेश (पउम ८, १)। °हर पुं [°धर] ऊँटवाला (सुख ९, १)
मय :: वि [मृत] मरा हुआ, जीव-रहित (णाया १, १; उव; सुर २, १८; प्रासू १७; प्राप्र)। °किच्च न [°कृत्य] मरण के उपलक्ष में किया जाता श्राद्ध आदि कर्मं (विपा १, २)।
मय :: पुंन [मद] १ गर्व, अभिमान; 'एयाइं मयाइं बिगिंच धीरा' (सूअ १, १३, १६; सम १३; उप ७२८ टी; कुमा; कम्म २, २९) २ हाथी के गण्ड-स्थल से झरता प्रवाही पदार्थ (णाया १, १ — पत्र ६५; कुमा) ३ आमोद, हर्ष। ४ कस्तूरी। ५ मत्तता, नशा। ६ नद, बड़ी नदी। ७ वीर्यं, शुक्रे (प्राप्र) °करि पुं [°करिन्] मदवाला हाथी (महा)। °गल वि [°कल] १ मद से उत्कट, नशे में चूर; 'मअगलकुंजरगमणी' (पिंग) २ पुं. हाथी (सुपा ९०; हे १, १८२; पाअ; दे ६, १२५) ३ छन्द-विशेष (पिंग)। °णासणी स्त्री [°नाशनी] बिद्या- विशेष (पउम ७, १४०)। °धम्म पुं [°धर्म] विद्याधर-वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४३)। °मंजरी स्त्री [°मञ्जरी] एक स्त्री का नाम (महा)। °वारण पुं [°वारण] मदवाला हाथी; 'मयवारणो उ मत्तो निवा- डियालाणावरखंभो' (महा)
मय :: पुं [मृग] १ हरिण (कुमा; उप ७२८ टी) २ पशु, जानवर। ३ हाथी की एक जाति। ४ नक्षत्र-विशेष। ५ कस्तूरी। ६ मकर राशि। ७ अन्वेषण। ८ याचन, माँग। ९ यज्ञ-विशेष (हे १, १२६)। °च्छी स्त्री [°क्षी] हरिण के नेत्रों के समान नेत्रवाली (सुर ४, १९; सुपा ३५५; कुमा)। °णाह पुं [°नाथ] सिंह (स १११)। °णाहि पुंस्त्री [°नाभि] कस्तूरी (पाअ; सुपा २००; गउड)। °तण्हा स्त्री [°तृष्णा] घूप में जल- भ्रान्ति (दे; से ९, ३५)। °तण्हिआ स्त्री [°तृष्णिका] वही अर्थं (पि ३७५)। °तिण्हा देखो °तण्हा (पि ५४)। °तिण्हिआ देखो °तण्हिआ (पि ५४)। °धुत्त पुं [°धूर्त्त] श्रृगाल, सियार (दे ६, १२५)। °नाभि देखो °णाहि (कुमा)। °राय पुं [°राज] सिंह, केसरी (पउम २, १७; उप पृ ३०)। °लंछण पुं [°लाञ्छन] चन्द्रमा (पाअ; कुमा; सुर १३, ५३)। °लोअणा स्त्री [°रोचना] गोरोचन, गोरोचना, पीत-वर्णं द्रव्य-विशेष (अभि १२७)। °रि पुं [°रि] सिंह (पाअ)। °रिहमण पुं [°रिदमन] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६२)। °हिव पुं [°धिप] सिंह, केसरी (पाअ; स ९)। देखो मिअ, मिग = मृग।
मयंक, मयंग :: देखो मिअंक (हे १, १७७; १८०; कुमा; षड्; गा ३९९; रंभा)।
मयंग :: देखो मायंग = मातंग; 'कूबर वरुणो भिउडी गोमेहो वामण मयंगो' (पव २६)।
मयंग :: पुं [मृदङ्ग] वाद्य-विशेष (प्राकृ ८)।
मयंगय :: पुं [मतङ्गज] हाथी, हस्ती (पउम ८०, ६९; उप पृ २६०)।
मयंगा :: स्त्री [मृतगङ्गा] जहाँ पर गंगा का प्रवाह रुक गया हो वह स्थान (णाया १, ४ — पत्र ९६)।
मयंतर :: न [मतान्तर] भिन्न मत, अन्य मत (भग)।
भयंद :: देखो मइंद = मृगेन्द्र (सुपा ९२)।
मयंध :: वि [मदान्ध] मद के कारण अन्धा बना हुआ, मदोन्मत्त (सुर २, ६९)।
मयग :: वि [मृतक] १ मरा हुआ। २ न. मुर्दा (णाया १, ११; कुप्र २९; औप)। °किच्च न [°कृत्य] श्राद्ध आदि कर्म (णाया १, २)
मयड :: पुं [दे] आराम, बगीचा (दे ६, ११५)।
मयण :: पुं [मदन] १ कन्दर्पं, कामदेव (पाअ; धण २५; कुमा; रंभा) २ लक्ष्मण का एक पुत्र (पउम ९१, २०) ३ एक वणिक्- पुत्र (सुपा ६१७) ४ छन्द का एक भेद (पिंग) ५ वि. मद-कारक, मादक; 'मयणा दरनिव्वलिया निव्वलिया जह कोद्दवा तिविहा' (विसे १२२०) ६ न. मीन, मोम; 'मयणो मयणं विअ विलीणो' (धण २५; पाअ; सुर २, २४६)। °घरिणी स्त्री [°गृहिणी] काम-प्रिया, रति (कुप्र १०९)। °तालंक पुं [°तालङ्क] छन्द-विशेष (पिंग)। °तेरसी स्त्री [°त्रयोदशी] चैत्र मास की शुक्ल त्रयोदशी तिथि (कुप्र ३७८)। °दुम पुं [°द्रुम] वृक्ष-विशेष (से ७, ६६)। °फल न [°फल] फल-विशेष, मैनफल; 'तओ तेणुप्पलं मयणफलेण भावियं मणुस्सहत्थे दिन्नं, एयं वररुइस्स देज्जाहि' (सुख २, १७)। °मजरी स्त्री [°मञ्जरी] १ राजा चण्डप्रद्योत की एक स्त्री का नाम। २ एक श्रेष्ठि-कन्या (महा)। °रेहा स्त्री [°रेखा] एक युवराज की पत्नी (महा)। °वेय पुं [°वेग] पुरुष-विशेष का नाम (भवि)। °सुन्दरी स्त्री [°सुन्दरी] राजा श्रीपाल की एक पत्नी (सिरि ५३)। °हरा स्त्री [°गृह] छन्द-विशेष (पिंग)। °हल देखो °फल; 'मयणहलगंधओ ता उव्वमिया चंद- हाससुरा' (धर्मंवि ९४)
मयणंकुस :: पुं [मदनाङ्कुश] श्रीरामचन्द्र का एक पुत्र, कुश (पउम ९७, ९)।
मयणसलागा, मयणसलाया :: स्त्री [दे. मदनशलाका] मैना, सारिका (जीव १ टी — पत्र ४१, दे ६, ११९)।
मयणसाला :: स्त्री [दे. मदनशाला] सारिका- विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।
मयणा :: स्त्री [दे. मदना] मैना, सारिका (उप १२९ टी, आव १)।
मयणा :: स्त्री [मदना] १ वैरोचन बलीन्द्र की एक पटरानी (ठा ५, १ — पत्र ३०२) २ शक्र के लोकपाल की एक स्त्री (ठा ४, १ — पत्र २०४)
मयणाय :: पुं [मैनाक] १ द्वीप-विशेष। २ पर्वंत-विशेष (भवि)
मयणिज्ज :: देखो मदणिज्ज (कप्प; पणण १७)।
मयणिवास :: पुं [दे] कन्दर्प, कामदेव (दे ६, १२६)।
मयर :: पुं [मकर] १ जलजन्तु-विशेष, मगर- मच्छ (औप; सुर १३, ४६) २ राशि- विशेष, मकर राशि (सुर १३, ४६; विचार १०६) ३ रावण का एक सुभट (पउम ५६; २९) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °केउ पुं [°केतु] कामदेव, कन्दर्पं (कप्पू)। °द्धय पुं [°ध्वज] वही (पाअ; कुमा; रंभा)। °लंछण पुं [°लाञ्छन] वही (कप्पू; पि ५४)। °हर पुंन [°गृह] वही (पाअ; से १, १८; ४, ४८; वज्जा १५४; भवि)
भयरंद :: पुं [दे. मकरन्द] पुष्प-रज, पुष्प- पराग (दे ६, १२३; पाअ; कुमा ३, ५४)।
मयरंद :: पुं [मकरन्द] पुष्प-रस, पुष्प-मधु (दे ६, १२३; सुर ३, १०; प्रासू ११३; कुमा)।
मयल :: देखो मइल = मलिन (सुपा २६२)।
मयलणा :: दखो मइलणा (सुपा १२४; २०६)।
मश्लवुत्ती :: [दे] देखो मइलपुत्ती (दे ६, १२५)।
मयलिण :: देखो मलिणिअ (उप ७२८ टी)।
मयल्लिगा :: स्त्री [मतल्लिका] प्रधान, श्रेष्ठ, 'कूडक्खरविओ (? उ) मयल्लिगाणं' (रंभा १७)।
मयह :: देखो मगह। °सामिय पुं [°स्वामिन्] मगध देश का राजा (पउम ९१, ११)। °पुर न [°पुर] राज-गृह नगर (वसु)। °हिवइ पुं [°धिपति] मदघ देश का राजा (पउम २०, ४७)।
मयहर :: पुं [दे] १ ग्राम-प्रधान, ग्राम-प्रवर, गाँव का मुखिया (पव २६८; महा; पउम ९३; १६) २ वि. वडील, मुखिया, नायक; 'सयलहत्थारोहपहाणमयहरेण' (स २८०; महानि ४; पउम ९३, १७)। स्त्री. °रिगा, °रिया, °री (उप १०३१ टी; सुर १, ४१; महा; सुपा ७९; १२६)
मयाई :: स्त्री [दे] शिरो-माला (दे ६, ११५)।
मयार :: पुं [मकार] १ 'म' अक्षर। २ मका- मादि अश्लील — अवाच्य शब्द; 'जत्थ जयार- मयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं' (गच्छ ३, ४)
मयाल :: (अप) देखो मराल (पिंग)।
मयालि :: पुं [मयालि] जैन महर्षि-विशेष — १ एक अन्तकृद् मुनि (अंत १४) २ एक अनुत्तर-गामी मुनि (अनु १)
मयाली :: स्त्री [दे] लता-विशेष, निद्राकरी लता (दे ६, ११६; पाअ)।
मर :: अक [मृ] मरना। मरइ, मरए (हे ४, २३४; भग; उव; महा; षड्), मर (हे ३, १४१)। मरिज्जइ, मरिज्जउ (भवि; पि ४७७)। भूका. मरही, मरीअ (आचा; पि ४६६)। भवि. मरिस्ससि (पि ५२२)। वकृ. मरंत. मरमाण (गा ३७५; प्रासू ६४; सुपा ४०५; भग; सुपा ६५१; प्रासू ८३)। संकृ. मरिऊण (पि ५८६)। हेकृ. मरिउं, मरेउं (संक्षि ३४)। कृ. मरियव्व (अंत २४, सुपा २१५, ५०१, प्रासू १०९), मरिएव्वउं (अप) (हे ४, ४३८)।
मर :: पुं [दे] १ मशक। २ उल्लु, धूक (दे ६, १४०)
मरअद, मरगय :: पुंन [मरकत] नील वर्णंवाला रत्न-विशेष, पन्ना (संक्षि ९; हे १, १८२; औप; षड्; गा ७५; काप्र ३१); 'परिकम्मिओवि बहुसो काओ किं मरगओ होइ' (कुप्र ४०३)।
मरजीवय :: पुं [दे. मरजीवक] समुद्र के भीतर उतर कर जो वस्तु निकालने का काम करता है वह (सिरि ३८५)।
मरट्ट :: पुं [दे] गर्वं, अहंकार (दे ६, १२०; सुर ४, १५४; प्रासू ८५; ती ३; भवि; सण; हे ४, ४२२; सिरि ९६२); 'अखिलमइ (? र) ट्टकंदप्पमद्दणे लद्धजयपडायस्स' (धर्मंवि ९७)।
मरट्टा :: स्त्री [दे] उत्कर्ष, 'एईइ अहरहरिआरुणिममरट्टाइं (? इ) लज्जामाणाइ। बिंबफलाइं उब्बंधणं च वल्ल्लीसु विरयंति।। (कुप्र २६९)।
मरट्ठ :: (अप) देखो मरहट्ठ (पिंग)।
मरढ :: देखो मरहट्ठ। स्त्री. °ढी (कप्पू)।
मरण :: पुंन [मरण] मौत, मृत्यु (आचा; भग; पाअ; जी ४३; प्रासू १०७; ११६); 'सेसा मरणा सव्वे तब्भवमरणेण णायव्वा' (पव १५७)।
मरल :: सक मराल = मराल, हंस (प्राकृ ५)।
मरह :: सक [मृप्] क्षमा करना; 'खमंतु मरहंतु ण देवाणुप्पिया' (णाया १, ८ — पत्र १३५)।
मरहट्ठ :: पुंन [महाराष्ट्र] १ बड़ा देश। २ देश-विशेष, महाराष्ट्र, मराठा; 'मरहट्ठो मरहट्ठं' (हे १, ६९; प्राकृ ६; कुमा) ३ सुराष्ट्र (कुमा ३, ६०) ४ पुं. महाराष्ट्र देश का निवासी, मराठा (पणह १, १ — पत्र १४; पिंग) ५ छन्द-विशेष (पिंग)
मरहट्ठी :: स्त्री [महाराष्ट्री] १ महाराष्ट्र की रहनेवाली स्त्री। २ प्राकृत भाषा का एक भेद (पि ३५४)
मराल :: वि [दे] अलस, मन्द, आलसी (दे ६, ११२; पाअ)।
मराल :: पुं [मराल] १ हंस पक्षी (पाअ) २ छन्द-विशेष।
मराली :: स्त्री [दे] १ सारसी, सारस पक्षी की मादा। २ दूती। ३ सखी (दे ६, १४२)
मरिअ :: वि [मृत] मरा हुआ (सम्मत्त १३९)।
मरिअ :: वि [दे] १ त्रुटित, टूटा हुआ। २ विस्तीर्णं (षड्)
मरिअ :: देखो मिरिअ (प्रयौ १०५; भास ८ टी)।
मरिइ :: देखो मरीइ; 'अह उत्पन्ने नाणे जिणस्स, मरिई तओ य निक्खंतो' (पउम ८२, २४)।
मरिस :: सक [मृष्] सहन करना, क्षमा करना। मरिसइ, मरिसेइ, मरिसेउ (हे ४, २३५; महा; स ६७०)। कृ. मरिसियव्व (स ६७०)।
मरिसावणा :: स्त्री [मर्षणा] क्षमा (स ६७१)।
मरीइ :: पुं [मरीचि] १ भगवान् ऋषभदेव का एक पौत्र और भरत चक्रवर्त्ती का पुत्र, जो भगवान् महावीर का जीव था (पउम ११, ९४)। २ पुंस्त्री. किरण (पणह १, ४--पत्र ७२; धर्मंसं ७२३)
मरीइया :: स्त्री [मरीचिका] १ किरण-समूह। २ मृग-तृष्णा, किरण में जल भ्रान्ति (राज)
मरीचि :: देखो मरीइ (औप; सुज्ज १, ९)।
मरीचिया :: देखो मरीइया (औप)।
मरु :: पुं [मरुत्] १ पवन, वायु। २ देव, देवता। ३ सुगन्धी वृक्ष-विशेष, मरुआ, मरुवा (षड़्) ४ हनूमान का पिता (पउम ५३, ७९)। °णदण पुं [°नन्दन] हनूमान् (पउम ५३, ७९)। °स्सुय पुं [°सुत] वही (पउम १०१, १)। देखो मरुअ = मरुत्।
मरु, मरुअ :: पुं [मरु, °क] १ निर्जंल देश (णाया १, १६ — पत्र २०२; औप) २ देश-विशेष, मारवाड़ (ती ५; महा; इक; पणह १, ४ — पत्र ६८) ३ पर्वंत, ऊँचा पहाड़ (निचू ११) ४ वृक्ष-विशेष, मरुआ, मरुवा (पणह २, ५ — पत्र १५०) ५ ब्राह्मण, विप्र (सुख २, २७) ६ एक नृप-वंश। ७ मरु-वंशीय राजा; 'तस्स य पुट्टीए नंदो पणपन्नसयं च होइ वासाणं। मरुयाणं अट्ठसयं' (विचार ४९३) ८ मरु देश का निवासी (पणह १, १)। कंतार न [°कान्तार] निर्जंल जंगल (अच्चु ८५)। °त्थली स्त्री [°स्थली] मरु-भूमि (महा)। °भू स्त्री [°भू] वही (श्रा २३)। °य वि [°ज] मरु देश में उत्पन्न (पणह १, ४ — पत्र ६८)
मरुअ :: देखो मरु = मरुत् (पणह १, ४ — पत्र ६८)। २ एक देव-जाति (ठा २, २)। °कुमार पुं [°कुमार] वानरद्वीप के एक राजा का नाम (पउम ६, ६७)। °वसभ पुं [°वृषभ] इन्द्र (पणह १, ४ — पत्र ६८)
मरुअअ, मरुअग :: पुं [मरुबक] वृक्ष-विशेष, मरुआ, मरुवा (गउड; पणण १ — पत्र ३४)।
मरुआ :: स्त्री [मरुता] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत)।
मरुइणी :: स्त्री [मरुकिणी] ब्राह्मण-स्त्री, ब्राह्मणी (विसे ९२८)।
मरुंड :: देखो मुरुंड (अंत; औप; णाया १, १--पत्र ३७)।
मरुकुंद :: पुं [दे. मरुकुन्द] मरुआ, मरुवे का गाछ (भवि)।
मरुद :: देखो मरुअ = मरुक (पणह १, १ — पत्र १४; इक)।
मरुदेव :: पुं [मरुदेव] १ ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव (सम १५३) ३ एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०; पउम ३, ५५)
मरुदेवा, मरुदेवी :: स्त्री [मरुदेवा, °वी] १ भगवान् ऋषभदेव की माता का नाम (उव; सम १५०; १५१) २ राजा श्रेणिक की एक पत्नी, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाई थी (अंत)
मरुद्देवा :: स्त्री [मरुद्देवा] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाली राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५)।
मरुल :: पुं [दे] भूत-पिशाच (दे ६, ११४)।
मरुवय :: देखो मरुअअ (गा ६७७; कुमा; विक्र २९)।
मरुस :: देखो मरिस। मरुसिज्ज (भवि)।
मल :: सक [मल्] धारण करना (भग ९, ३३ टी — पत्र ४८०)।
मल :: देखो मद्द। मलइ, मलेइ (हे ४, १२६; प्राकृ ६८; भवि), मलेमि (से ३, ६३), मलेंति (सुर १, ९७)। कर्मं. मलिज्जइ (पंचा १६, १०)। वकृ. मलेंत (से ४, ४२)। कवकृ. मलिज्जंत (से ३, १३)। संकृ. मलिऊण, मणिऊणं (कुमा; पि ५८५)। कृ. मलेव्व (वै ६९; निसा ३)।
मल :: पुं [दे] स्वेद, पसीना (दे ६, १११)।
मल :: पुंन [मल] १ मैल (कुमा; प्रासू २५) २ पाप (कुमा) ३ बँधा हुआ कर्मं (चेइय ६२२)
मलपिअ :: वि [दे] गर्वी, अहंकारी (दे ६, १२१)।
मलण :: न [मर्दन, मलन] मर्दंन, मलना (सम १२५; गउड; दे ३, ३४; सुपा ४४०; पंचा १६, १०)।
मलय :: पुं [दे. मलक] आस्तरण-विशेष (णाया १, १ — पत्र १३; १, १७ — पत्र २२९)।
मलय :: पुं [दे. मलय] १ पहाड़ का एक भाग (दे ६, १४४) २ उद्यान, बगीचा (दे ६, १४४; पाअ)
मलय :: पुं [मलय] १ दक्षिण देश में स्थित एक पर्वत (सुपा ४५९; कुमा; षड्) २ मलय-पर्वंत के निकट-वत्ती देश-विशेष (पव २७५; पिंग) ३ छन्द-विशेष (पिंग) ४ देवविमान-विशेष (देवेन्द्र १४३) ५ न. श्रीखण्ड, चन्दन (जीव ३) ६ पुंस्त्री. मलय देश की निवासी (पणह १, १) °केउ पुं [°केतु] एक राजा का नाम (सुपा ६०७)। °गिरि पुं [°गिरि] एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्यं और ग्रन्थकार (इक; राज)। °चंद पुं [°चन्द्र] एक जैन उपासक का नाम (सुपा ६४५)। °द्दि पुं [°द्रि] पर्वंत-विशेष (सुपा ४७७)। °भव वि [°भव] १ मलय देश में उत्पन्न। २ न. चन्दन (गउड) °मई स्त्री [°मती] राजा मलयकेतु की स्त्री (सुपा ६०७)। °य [°ज] देखो °भव (राज)। °रुह पुं [°रुह] चन्दन का पेड़ (सुर १, २८)। २ न. चन्दन-काष्ठ (पाअ)। °चल पुं [°चल] मलय पर्वंत (सुपा ४५९)। °णिल पुं [°निल] मलयाचल से बहता शीतल पवन (कुमा)। °यल देखो °चल (रंभा)
मलय :: वि [मालय] १ मलय देश में उत्पन्न (अणु) २ न. चन्दन (भवि)
मलवट्टी :: स्त्री [दे] तरुणी, युवति (दे ६, १२४)।
मलहर :: पुं [दे] तुमुल-ध्वनि (दे ६, १२०)।
मलि :: वि [मलिन्] मलवाला, मल-युक्त (भवि)।
मलिअ :: वि [मृदित] जिसका मर्दंन किया गया हो वह (गा ११०; कुमा; हे ३, १३५; औप; णाया १, १)।
मलिअ :: न [दे] १ लघु क्षेत्र। २ कुण्ड (दे ६, १४४)
मलिअ :: वि [मलित] मल-युक्त, मलिन; 'मलमलियदेहवत्था' (सुपा १६६; गउड)।
मलिज्जंत :: देखो मल = मृद्।
मलिण :: वि [मलिन] मैला, मल-युक्त (कुमा; सुपा ६०१)।
मलिणिय :: वि [मलिनित] मलिन किया हुआ (उव)।
मलीमस :: वि [मलीमस] मलिन, मैला (पाअ)।
मलेव्व :: देखो मल = मृद्।
मलेच्छ :: देखो मिलिच्छ पि ८४; नाट--चैत १८)।
मल्ल :: सक [मल्ल] देखो मल = मल् (भग ९, ३३ टी)।
मल्ल :: पुं [मल्ल] १ पहलवान, कुश्ती लड़नेवाला, बाहु-योद्धा (ओप; कप्प; पणह २, ४; कुमा) २ पात्र; 'दीवसिहापडिपिल्लण- भल्ले मिल्लंति वीसासे' (कुप्र १३१) ३ भीत की अवष्टम्भन-स्तम्भ। ४ छप्प का आधार-भूत काष्ठ (भग ८, ६ — पत्र ३७६)। °जुद्ध न [°युद्ध] कुश्ती (कप्पू; हे ४, ३८२)। °दिन्न पुंन [°दत्त] एक राज- कुमार (णाया १, ८)। °वाइ पुं [°वादिन्] एक सुविख्यात प्राचीन जैन आचार्यं और ग्रंथकार (सम्मत्त १२०)
मल्ल :: न [माल्य] १ पुष्प, फूल (ठा ४, ४, ) २ फऊल की गुँथी हुई माला (पाअ; औप) ३ मस्तक-स्थित पुष्पमाला (हे २, ७९) ४ एक देव-विमान (सम ३९) ५ बलि; 'मल्लं ति बलीए णामं' (आव° चूर्णि° भा° १ पत्र ३३२)
मल्लइ :: पुं [मल्लकि, °किन्] नुप-विशेष (भग; औप; पि ८९)।
मल्लग, मल्लय :: न [दे. मल्लक] १ पात्र-विशेष, शराव (विसे २४७ टी; पिंड २१०; तंदु ४४; महा; कुलक १४; णाया १, ९; दे ६, १४५; प्रयौ ६७) २ चषक, पानपत्र (दे ६, १४५)
मल्लय :: न [दे] अपूप-भेद, एक तरह का पूआ। २ वि. कुसुम्भ से रक्त (दे ६, १४५)
मल्लाणी :: स्त्री [दे] मातुलानी, मामी (दे ६, ११२; पाअ; प्राकृ ३८)।
मल्लि :: वि [मल्लिन्] धारण-कर्ता (भग ९, ३३ टी)।
मल्लि :: वि [माल्यिन्] माल्य-युक्त, मालावाला (औप)।
मल्लि :: स्त्री [मल्लि] १ उन्नीसवें जिन-देव का नाम (सम ४३; णाया १, ८; मंगल १२; पडि) २ वृक्ष-विशेष, मोतिया का गाछ (दे २, १८)। °णाह, °नाह पुं [°नाथ] उन्नीसवें जिन-देव (महा; कुप्र ६३)
मल्लि :: स्त्री [मल्लि] पुष्प-विशेष (भग ९, ३३ टी)।
मल्लिअज्जुण :: पुं [मल्लिकार्जुन] एक राजा का नाम (कुमा)।
मल्लिआ :: स्त्री [मल्लिका] १ पुष्प-वृक्ष-विशेष (णाया १, ९; कुप्र ४९) २ पुष्प-विशेष (कुमा) ३ छन्द-विशेष (पिंग)
मल्लिहाण :: न [माल्याधान] १ पुष्प-बन्धन- स्थान। २ केश-कलाप (भग ९, ३३ टी — पत्र ४८०)
मल्ली :: देखो मल्लि (णाया १, ८; पउम २० ३५; विचार १४८; कुमा)।
मल्ह :: अक [दे] मौज मानना, लीला करना। वकृ. मल्हंत (दे ६. ११९ टी; भवि)।
मल्हण :: न [दे] लीला, मौज (दे ६, ११९)।
मव :: सक [मापय्] मापना, माप करना, नापना। मवंति (सिरि ४२५)। कर्मं. 'आउयाइं मविज्जंति' (कम्म ५, ८५ टी)। कवकृ. मविज्जमाण (विसे १४००)।
मविय :: वि [मापित] मापा हुआ (तंदु ३१)।
मश्चली :: (मा) स्त्री [मत्स्य] मछली (पि २३३)।
मस, मसअ :: पुं [मश, °क] १ शरीर पर का तिलाकार काला दाग, तिल (पव २५७) २ मच्छड़, क्षुद्र जन्तु-विशेष (गा ५६०; चारु १०; वज्जा ४६)
मसक्कसार :: न [मसक्कसार] इन्द्रों का एक स्वयं आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)।
मसग :: देखो मसअ (भग; औप; पउम ३३, १०८; जी १८)।
मसण :: वि [मसृण] १ स्निग्ध, चिकना। २ सुकुमाल, कोमल, अकर्कंश। ३ मन्द, धीमा (हे १, १३०; कुमा)
मसरक्क :: सक [दे] सकुचना, समेटना। संकृ. 'दसवि करंगुलीउ मसरक्किवि (अप)' (भवि)।
मसाण :: न [श्मशान] मसान, मरघट (गा ४०८; प्राप्र; कुमा)।
मसार :: पुं [दे. मसार] मसृणता-संपादक पाषाण-विशेष, कसौटी का पत्थर (णाया १, १ — पत्र ६; औप)।
मसारगल्ल :: पुं [मसारगल्ल] एक रत्न-जाति (णाया १, १ — पत्र ३१; कप्प; उत्त ३६, ७६; इक)।
मसि :: स्त्री [मसि] १ काजल, कज्जल (कप्पू) २ स्याही, सियाही (सुर २, ५)
मसिंहार :: पुं [मसिंहार] क्षत्रिय-परिव्राजक विशेष (औप)।
मसिण :: देखो मसण (हे १, १३०; कुमा; औप; से १, ४५; ५, ६४)।
मसिण :: वि [दे] रम्य, सुन्दर (दे ६, ११८)।
मसिणिअ :: वि [मसृणित] १ मृष्ट, शुद्ध किया हुआ, मार्जित; 'रोसिणिअं मअिणिअं' (पाअ) २ स्निग्ध किया हुआ (से ९, ६) ३ विलुलित, विमर्दित (से १, ५५)
मसी :: देखो मसि (उवा)।
मसूर, मसूरग, मसूरय :: पुंन [मसूर, °क] १ धान्य-विशेष, मसूरि (ठा ४, ३; सम १४९; पिंड ६२३) २ उच्छीर्षंक, ओसीसा (सुर २, ८३; कप्प) ३ वस्त्र या चर्मं का वृत्ताकार आसन (पव ८४)
मस्सु :: देखो मंसु (संक्षि १२; पि ३१२)।
मस्सूरग :: देखो मसूरग; 'मस्सूरए य थिबुगे' (जीवस ५२)।
मह :: सक [काङ्क्ष्] चाहना, वाञ्छना, महइ (हे ४, १९२; कुमा; सण)।
मह :: सक [मथ्] १ मथना, विलोड़न करना। २ मारना। महेज्जा (उवा)
मह :: सक [मह्] पूजना। महइ (कुमा), महेइ (सिरि ५६६)। संकृ. महिअ (कुमा)। कृ. महिणिज्ज (उप पृ १२६)।
मह :: पुंन [मह] उत्सव (विपा १, १ — पत्र ५; रंभा; पाअ; सण)।
मह :: पुं [मख] यज्ञ (चंड; गउड)।
मह :: वि [महत्] १ बड़ा, वृद्ध। २ विपुल, विस्तीर्णं। ३ उत्तम, श्रेष्ठ; 'एगं महं सत्तुस्सेहं' (णाया १, १ — पत्र १३; काल, जी ७; हे १, ५)। स्त्री. °ई (उव; महा)। °एवी स्त्री [°देवी] पटरानी (भवि)। °कंतजस पुं [°कान्तयशस्] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६५)। °कमलंग न [°कमलाङ्ग] संख्या-विशेष, ८४ लाथ कमल की सख्या (जो २)। °कव्व न [°काव्य] सर्गं-बद्ध उत्तम काव्य- ग्रंथ (भवि)। °काल देखो महा-काल (देवेन्द्र २४)। °गइ पुं [°गति] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, २६५)। °ग्गह देखो महा-ग्रह (सम ९३)। °ग्घ वि [°अर्घ] महा-मूल्य, कीमती (सुर ३, १०३; सुपा ३७)। °ग्घविअ वि [°अर्घित] १ महँगा, दुर्लंभ (से १४, ३७) २ विभूषित; 'विमलंगोवंगगुणमहग्घविया' (सुपा १, ६०) ३ सम्मानित; 'अ्च्चियवंदियपूइय- सक्कारियपणमिओ महग्घविओ' (उव) °ग्घिम (अप) वि [°अर्घित] बहू-मूल्य, महँगा (भवि)। °चंद पुं [°चन्द्र] १ राजकुमार-विशेष (विपा २, ५; ९) २ एक राजा (विपा १, ४) °च्च वि [°अर्च] १ बड़ा ऐश्वर्यंवाला। २ बड़ी पूजा — सत्कार-वाला (ठा ३, १ — पत्र ११७; भग) °च्च वि [°अर्च्य] अति पूज्य (ठा ३, १, भग)। °च्छरिय न [°आश्चर्य] बड़ा आश्चर्यं (सुर १०, ११८)। [°जक्ख पुं °यक्ष] भगवान् अजितनाथ का शासना- धिष्ठायक देव (पव २६; संति ७)। °जाला स्त्री [°ज्वाला] विद्यादेवी-विशेष (संति ६)। °ज्जुइय वि [°द्युतिक] महान् तेजवाला (भग; औप)। °डि्ढ स्त्री [°ऋद्धि] महान् वैभव (राय)। °डि्ढय, °ड्ढीअ वि [°ऋद्धिक] विपुल वैभववाला (भग; ओघभा १०)। °ण्णव पुं [°अर्णव] महा-सागर (सुपा ४१७; हे १, २६९)। °ण्णवा स्त्री [°अर्णवा] १ बड़ी नदी। २ समुद्र-गामिनी (कस ४, २७ टि; बृह ४) °तुडियंग न [°त्रुटिताङ्ग] ८४ लाख त्रुटित की संख्या (जो २)। °त्तण न [°त्व] बड़ाई, महत्ता (श्रा २७)। °त्तर वि [°तर] १ बहुत बड़ा (स्वप्न २८) २ मुखिया, नायक, प्रधान (कप्प; औप; विपा १, ८) ३ अन्तः पुर का रक्षक (औप) स्त्री. °रिया, °री (ठा ४, १ — पत्र १९८; इक)। °त्थ वि [°अर्थ] महान् अर्थंवाला (णाया १; ८; श्रा २७)। °त्थ न [°अस्त्र] अस्त्र-विशेष, बड़ा हथियार (पउम ७१, ६७)। °त्थिम पुंस्त्री [°र्थत्व] महार्थंता (भवि)। °दलिल्ल वि [°दलिल] बड़ा दलवाला (प्रासू १२३)। °द्दह पुं [°द्रह] बड़ा ह्रद (णाया १, १ — पत्र ६४; गा १८६ अ)। °द्दि स्त्री [°अद्रि] १ बड़ी याचना। २ परिग्रह (पणह १, ५ — पत्र ९२) °द्दुम पुं [°द्रुम] १ महान् वृक्ष (हे ४, ४४५) २ वैरोचन इन्द्र के एक पदाति-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२) °द्धि वि [°ऋद्धि] बड़ी ऋद्धिवाला (कुमा)। °धूम पुं [°धूम] बड़ा धुआँ (महा)। °न्नव देखो °ण्णव (श्रा २८)। °पाण न [°प्राण] ञ्यान-विशेष (सिरि १३३०)। °पुंडरीअ पुं [°पुण्डरीक] ग्रह-विशेष (हे २, १२०)। °प्प पुं [°आत्मन्] महान् आत्मा, महा-पुरुष (पउम ११८, १२१)। °प्फल वि [°फल] महान् फलवाला (सुपा ६२१)। °बाहु पुं [°बाहु] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६५)। °बोह पुं [°अबोध] महा-सागर, 'इय वुंत्ततं सोउं रणण निव्वासिया तहा सुगया। महाबोहे जंतूणं जह पुणरवि नागया तत्थ' (सम्मत्त १२०)।
°ब्बल :: पुं [°बल] १ एक राज-कुमार (विपा २, ७; भग ११, ११; अंत) २ वि. विपुल बलवाला (भग; औप)। देखो महा- बल। °ब्भय वि [°भय] महाभय-जनक (पणह १, १)। °ब्भूय न [°भूत] पृथिवी आदि पाँच द्रव्य (सूअ २, १, २२)। °मरुय पुं [°मरुत] एक महर्षि, अन्तकृद् मुनि-विशेष (अंत २५)। °मास पुं [°अश्व] महान् अश्व (औप)। °यर देखो त्तर (णाया १, १ — पत्र ३७)। °रव पुं [°रव] राक्षस वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६६)। °रिसि पुं [°ऋषि] महर्षि, महा- मुनि (उव; रयण ३७)। °रिह वि [°अर्ह] बड़े के योग्य, बहु-मूल्य, कीमती (विपा १, ३; औप; पि १४०)। °वाय पुं [°वात] महान् पवन (ओघ ३८७)। °व्वइय वि [°व्रतिक] महाव्रतवाला (सुपा ४७४)। °व्वय पुंन [°व्रत] महान् व्रत; 'महव्वया पंच हुंति इमे' (पउम ११, २३), 'सेसा महव्वया ते उत्तरगुणसंजुयावि न हु सम्मं' (सिक्खा ४८; भग; उव)। °व्वय पुं [°व्यय] विपुल खर्चं (उप पृ १०८)। °सलाग स्त्री [°शलाका] पल्य-विशेष, एक प्रकार की नाप (जीवस १३९)। °सिव पुं [°शिव] एक राजा, षष्ठ बलदेव और वासुदेव का पिता (सम १५२)। °सुक्क देखो महा- सुक्क (देवेन्द्र १३५)। °सेण पुं [°सेन] १ आठवें जिनदेव का पिता (सम १५०) २ एक राजा (महा) ३ एक यादव (उफ ६४८ टी) ४ न. वन-विशेष (विसे १४८४)। देखो महा-सेण। देखो महा°।
महअर :: पुं [दे] गह्वर-पति, निकुञ्ज का मालिक (दे ६, १२३)।
महइ° :: अ [महानि] १ अति बड़ा। २ अत्यन्त विपुल। °जड वि [°जट] अति बड़ी जटावाला (पउम ५८, १२)। °महाइंदइ पुं [°महेन्द्रजित्] इक्ष्वाकु-वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ६)। °महापुरिस पुं [°महापुरुष] १ सर्वोत्तम पुरुष, सर्वे-श्रेष्ठ पुरुष। २ जिनदेव, जिन भगवान् (पउम २, १८)। °महालय वि [°महत्] अत्यन्त बड़ा; 'महइमहालयंसि संसारंसि' (उवा; सम ७२)। स्त्री. °लिया (भग; उवा)
महई :: देखो मह = महत्।
महंग :: पुं [दे] उष्ट्र, ऊँट (दे ६, ११७)।
महंत :: देखो मह = महत् (आचा; औप; कुमा)।
महच्च :: न [माहत्य] १ महत्व। २ महत्त्ववाला (ठा ३, १ — पत्र ११७)
महण :: न [दे] पिता का घर (दे ६, ११४)।
महण :: न [मथन] १ विलोडन (से १, ४९; वज्जा ८) २ घर्षण (कुप्र १४८) ३ वि. मारनेवाला; 'दरितनागदप्पमहणा' (पणह १, ४)| ४ विनाश, करनेवाला; 'नाणं च चरणं च भवमहणं (संबोध ३५; सुर ७, २२५)। स्त्री. °णी (श्रा ४६)
महण :: पुं [महन] राक्षस वंश का एक राजा; एक लंका-पति (पउम ५, २६२)।
महणिज्ज :: देखो मह = मह्।
महति° :: देखो महइ° (ठा ३, ४; णाया १, १; औप)।
महती :: स्त्री [महती] वीणा-विशेष, सौ ताँतवाली वीणा (राय ४६)।
महत्थार :: न [दे] १ भाण्ड, भाजन। २ भोजन (दे ६, १२५)
महप्पुर :: पुं [दे] माहात्म्य, प्रभाव; 'तुह मुहचंदपहाए फरिसाण महप्पुरो एसो' (रंभा ४३)।
महमह :: देख मघमघ। महमहइ (हे ४, ७८; षड्; गा ४९७), महामहेइ (उव)। वकृ महमहंत (काप्र ९१७)। संकृ. महमहिअ (कुमा)।
महमहिअ :: वि [प्रसृत] १ फैला हुआ (हे १, १४६; वज्जा १५०) २ सुरभित (रंभा)
महम्मह :: देखो महमह; 'जिअलोअसिरी महम्म- हइ' (गा ६०४)।
महया° :: देखो महा°; 'महयाहिमवंतमहंतमलय- मंदरहिंदसारे' (णाया १, १ टी — पत्र ६, औप; विपा १, १; भग)।
महर :: वि [दे] असमर्थं, अशक्त (दे ६, ११३)।
महलयपक्ख :: देखो महालवक्ख (षड् — पृष्ठ १७६)।
महल्ल :: वि [दे. महत्] १ वृद्ध, बड़ा (दे ६, १४३; उवा; गउड; सुर १, ५४; पंचा ५, १६; संबोध ४७; ओघ १३६; प्रासू १४९; जय १२, सुपा ११७)। २ पृथुल, विशाल, विस्तीर्ण (दे ६, १४३; प्रवि १०; स ६९२; भवि)। स्त्री. °ल्लिया (औप; सुपा ११६; ५८७)
महल्ल :: वि [दे] १ मुखर, वाचाट, बकवादी (दे ६, १४३; षड्) २ पुं. जलघि, समुद्र (दे ६, १४३) ३ समूह, निवह (दे ६, १४३; सुर १, ५४)
महल्लिर :: देखो महल्ल; 'हरिनहकढिणमहल्लिर- पयनहरपरंपराए विकरालो' (सुपा ११)।
महव :: देखो मघव (कुमा; भवि)।
महा :: स्त्री [मघा] नक्षत्र-विशेष (सम १२; सुज्ज १०, ५; इक)।
महा° :: देखो मह = महत् (उवा)। °अडड न [°अटट] संख्या-विशेष, ८४ लाख महाअट- टांग की संख्या (जो २)। °अडडंग न [°अटटाङ्गं] संख्या-विशेष, ८४ लाख अटट (जो २)। °आल देखो °काल (नाट — चैत ८२)। °ऊह न [°ऊह] संख्या-विशेष, ८४ लाख महाऊहाँ की संख्या (जो २)। °कइ पुं [°कवि] श्रेष्ठ कवि, समर्थं कवि (गउड; चेइय ८४३; रंभा)। °कंदिय पुं [°क्रन्दित] व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४; औप; इक)। °कच्छ पुं [°कच्छ] १ महाविदेह वर्षं का एक विजय- क्षेत्र--प्रान्त (ठा २, ३; इक) २ देव- विशेष (जं ४) °कच्छा स्त्री [°कच्छा] अतिकाय नामक इन्द्र की एक अग्र-महीषी (ठा ४, १ — पत्र २०४, णाया २; इक)। °कण्ह पुं [°कृष्ण] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (निर १, १)। °कण्हा स्त्री [°कृष्णा] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५)। °कप्प पुं [°कल्प] १ जैन ग्रन्थ-विशेष (णंदि) २ काल का एक परिमाण (भग १५) °कमल न [°कमल] संख्या-विशेष, चौरीसा लाख महाकमलागं की संख्या (जो २)। °कव्व देवो °मह — कव्व (सम्मत्त १४६)। °काय पुं [°काय] १ महोरग देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३; इक) २ वि. महान् शरीरवाला (उवा)। °काल पुं [°काल] १ महाग्रह-विशेष, एक ग्रह-देवता (सुज्ज २०; ठा २, ३) २ दक्षिण लवण-समुद्र के पाताल-कलश का अधिष्ठायक देव (ठा ४, २ — पत्र २२६) ३ एक इन्द्र, पिशाच — निकाय का उत्तर दिशा का इन्द्क (ठा २, ३ — पत्र ८५) ४ परमा- धार्मिक देवों की एक जाति (सम २८) ५ वायु-कुमार देवों का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८) ६ वेलम्ब इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८) ७ नव निधियों में एक निधि, जो धातुओं की पूर्त्ति करता है (उप ९८६ टी; ठा ९ — त्र ४४९) ८ सातवीं नरक-भूमि का एक नरकावास (ठा ५, ३ — पत्र ३४१; सम ५८) ९ पिशाच देवों की एक जाति (राज) १० उज्जयिनी नगरी का एक प्राचीन जैन मन्दिर (कुप्र १७४) ११ शिव, महादेव (आव ६) १२ उज्जयिनी का एक श्मशान (अंत) १३ राजा श्रेणिक का एक पुत्र (निर १, १) १४ न. एक देव- विमान (सम ३५) °काली स्त्री [°काली] १ एक विद्या-देवी (संति ५) २ भगवान् सुमतिनाथ की शासन-देवी (संति ९) ३ राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५) °किण्हा स्त्री [°कृष्णा] एक महा-नदी (ठा ५; ३--पत्र ३५१)। °कुमुद, °कुमुय न [°कुमुद] १ एक देव-विमान (सम ३३) २ संख्या-विशेष, चौरासी लाख महाकुमुदांगॉ की संख्या (जो २)। °कुमुयअंग न [°कुमु- दाङ्गं] संख्या, कुमुद को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २)। °कूम्भ पुं [°कूम] कूमवितार (गउड)। °कुल न [°कुल] १ श्रेष्ठ कुल (निचू ८) २ वि. प्रशस्त कुल में उत्पन्न; 'निक्खंता जे महाकुला' (सूअ १, ८, २४) °गंगा स्त्री [°गङ्गा] परिमाण-विशेष (भग १५)। °गह पुं [°ग्रह] १ सूर्य आदि ज्योतिष्क (सार्धं ८७) °गह वि [°आग्रह] आग्रही, हठी (सार्ध ८७)। °गिरि पुं [°गिरि] १ एक जैन महर्षि (उव; कप्प) २ बड़ा पर्वंत (गउड) °गोव पुं [°गोप] १ महान् रक्षक। २ जिन भगवान् (उवा; विसे २९५९) °घोस पुं [°घोष] १ ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव (सम १५४) २ एक इन्द्र, स्तनित कुमार देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ एक कुलकर पुरुष (सम १५०) ४ परमाधार्मिक देवों की एक जाति (सम २९) ५ न. देवविमान-विशेष (सम १२; १७) चद पुं [°चन्द्र] ऐरवत वर्षं के एक भावी तीर्थंकर (सम १५४)। °जणिअ पुं [°जनिक] श्रेष्ठी, सार्थंवाह आदि नगर के गण्य-मान्य लोग (कुमा)। °जलहि पुं [°जलधि] महा-सागर (सुपा ४७४)। °जस पुं [°यशस्] १ भरत चक्रवर्त्ती का एक पौत्र (ठा ८ — पत्र ४२९) २ ऐरवत क्षेत्र के चतुर्थ भावी तीर्थकर-देव (सम १५४) ३ वि. महान् यशस्वी (उत्त १२, २३) °जाइ स्त्री [°जाति] गुल्म- विशेष (पणण १)। °जाण न [°यान] १ बड़ा यान — वाहन। २ चारित्र, संयम (आचा) ३ एक विद्याधर-नगर का नाम (इक) ४ पुं. मोक्ष, मुक्ति (आचा) °जुद्ध न [°युद्ध] बड़ी लड़ाई (जीव ३)। °जुम्म पुंन [°युग्म] महान् राशि (भग ३५)। °ण देखो °यण; 'गामदुआरब्भासे अगडसमीवे महाणमज्झे वा' (ओघ ६६)। °णई स्त्री [°नदी] बड़ी नदी (गउड; पउम ४०, १३)। °णंदियावत्त पुं [°नन्द्यावर्त] १ घोष नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८) २ न. एक देवविमान (सम ३२)। °णगर देखो °नगर (राज)। °णलिअ देखो °नलिण (राज) °णील न [°नील] १ रत्न-विशेष। २ वि. अति नील वर्णवाला (जीव ३; औप)। °णीला देखो °नीला (राज)। °णुभाअ, °णुभाग वि [°अनुभाग] महानुभाव, महाशय (नाट — मलाती ३९; गच्छ १, ४; भग; सिरि १६)। °णुभाव वि [°अनुभाव] वही अर्थ (सुर २, ३५; द्र ६६)। °तमपहा स्त्री [°तमः — प्रभा] सप्तम नरक-पृथिवी (पव १७२)। °तमा स्त्री [°तमा] बही (चेइय ७५६)। °तीरा स्त्री [°तीरा] नदी-विशेष (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)। °तुडिय न [°त्रुटित] महात्रुटितांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह, संख्या-विशेष (जो २)। °दामाट्ठि पुं [°दामास्थि] ईशानेन्द्र के वृषभ-सैन्य का अधिपति (इक)। °दामाडि्ढ पुं [°दामर्द्धि] वही अर्थ (ठा ५, १ — पत्र ३०३)। °दुम देखो मह--द्दुम (इक) २ न. एक देव-विमान (सम ३५) °दुमसेण पुं [°द्रुमसेन] राजा श्रेणिक का एक पुत्र जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (अनु २)। °देव पुं [°देव] १ श्रेष्ठ देव, जिन-देव (पउम १०९, १२) २ शिव, गौरी-पति (पउम १०९, १२; सम्मत्त ७६)। °देवी स्त्री [°देवी] पटरानी (कप्पू)। °धण पुं [°धन] एक वणिक् (पउम ५५, ३८)। °धणु पुं [°धनुष्] बलदेव का एक पुत्र (निर १, ५)। °नई स्त्री [°नदी] बड़ी नदी (सम २७; कस)। °नंदिआवत्त देखो °णंदिेयावत्त (इक)। °नगर न [°नगर] बड़ा शहर (पणह २, ४)। °नय पुं [°नद] ब्रह्मपुत्रा आदि बड़ी नदी (आवम)। °नलिण न [°नलिन] १ संख्या-विशेष, महानलिनांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २) २ एक देव-विमान (सम ३३) °नलिणंग न [°नलिनाङ्ग] संख्या-विशेष, नलिन को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २)। °निज्जमय पुं [°निर्यामक] श्रेष्ठ कर्णंधार (उवा)। °निद्दा स्त्री [°निद्रा] मृत्यु, मरण (पउम ६, १९८)। °निनाद, °निनाय वि [°निनाद] प्रख्यात, प्रसिद्ध (ओघ ८६; ८६ टी)। °निसीह न [°निशीथ] एक जैन आगम-ग्रन्थ (गच्छ ३, २९)। °नीला स्त्री [°नीला] एक महानदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)। °पउम पुं [°पद्म] १ भरतक्षेत्र का भावी प्रथम तीर्थंकर (सम १५३) २ पुंडरीकिणी नगरी का एक राजा और पीछे से राजर्षि (णाया १, १९ — पत्र २४३) ३ भारतवर्षं में उत्पन्न नववाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम १५२; पउम २०, १४३) ४ भरतक्षेत्र का भावी नववाँ चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४) ५ एक राजा (ठा ९) ६ एक निधि (ठा ९ — पत्र ४४९) ७ एक द्रह (सम १०४; ठा २, ३ — पत्र ७२) ८ राजा श्रेणिक का एक पौत्र (निर १, १) ९ देव-विशेष (दीव) १० वृक्ष-विशेष (ठा २, ३) ११ न. संख्या-विशेष; महापद्मांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २) १२ एक देव-विमान (सम ३३)। °पउमअंग न [°पद्माङ्ग] संख्या-विशेष, पद्म को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २)। °पउमा स्त्री [°पद्मा] राजा श्रेणिक की एक पुत्र-वधू (निर १, १)। °पंडिय वि [°पण्डित] श्रेष्ठ विद्वान् (रंभा)। °पट्टण न [°पत्तन] बड़ा शहर (उवा)। °पण्ण, °पन्न वि [°प्रज्ञ] श्रेष्ठ बुद्धिवाला (उप ७७३; पि २७६)। °पभ न [°प्रभ] एक देव-विमान (सम १३)। °पभा स्त्री [°प्रभा] एक राज्ञी (उप १०३१ टी)। °पम्ह पुं [°पक्ष्म] महाविदेह वर्ष का एक विजय — प्राप्न (ठा २, ३)। °परिण्णा, °परित्रा स्त्री [°परिज्ञा] आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का सातवाँ अध्ययन (राज; आक)। °पसु पुं [°पशु] मनुष्य (गउड)। °पह पुं [°पथ] बड़ा रास्ता, राज-मार्गं (भग; पणह १, ३; औप)। °पाण न [°प्राण] व्रह्मलोक-स्थित एक देव-विमान (उत्त १८, २८)। °पायाल पुं [°पाताल] बड़ा पाताल-कलश (ठा ४, २ — पत्र २२६; सम ७१)। °पालि स्त्री [°पालि] १ बड़ा पल्य। २ सागरोपम-परिमित भव-स्थिति--आयु, 'अहमासि महापाणे जुइमं वरिससओवमे। जा सा पालिमहापाली दिव्वा वलिससओवमा' (उत्त १८, २८) °पिउ पुं [°पितृ] पिता का बड़ा भाईं (विपा १, ३ — पत्र ४०)। °पीढ पुं [°पीठ] एक जैन महर्षि (सट्ठि ८१ टी)। °पुंख न [°पुङ्ख] एक देव-विमान (सम २२)। °पुंड न [°पुण्ड्र] एक देव-विमान (सम २२)। °पुंडरीय न [°पुण्डरीक] १ विशाल श्वेत कमल (राय) २ पुं. ग्रह-विशेष (सम १०४) ३ देव-विशेष। ४ देखो °पुंडरीअ (राज) °पुर न [°पुर] १ एक विद्याधर-नगर (इक) २ नगर-विशेष (विपा २, ७) °पुरा स्त्री [°पुरी] महापक्ष्म-विजय की राजधानी (ठा २, ३--पत्र ८०)। °पुरिस पुं [°पुरुष] १ श्रेष्ठ पुरुष (पणह २, ४) २ किंपुरुष- निकाय का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) °पुरी दखो °पुरा (इक)। °पोंडरीअ न [°पुण्डरीक] एक देव-विमान (स ३३)। देखो °पुंडरीय (ठा २, ३ — -पत्र ७२)। °फल देखो मह-प्फल (उवा)। °फलिह न [°स्फटिक] शिखरी पर्वंत का एक उत्तर-दिशा-स्थित कट (राज)। °बल वि [°बल] १ महान् बलवाला (भग) २ पुं. ऐरवत क्षेत्र का एक भावी तीर्थंकर (सम १५४) ३ चक्रवर्त्ती भरत के वंश में उत्पन्न एक राजा (पउम ५, ४; ठा ८ — पत्र ४२९) ४ सोमवंशीय एक नर-पति (पउम ५, १०) ५ पाँचवें बलदेव का पूर्वंजन्मीय नाम (पउम २०, १९०) ६ भारतवर्षं का भावी छठवाँ वासुदेव (सम १५४) °बाहु पुं [°बाहु] १ भारत-वर्षं का भावी चतुर्थं वासुदेव (सम १५४) २ रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३०)। अपर विदेह-वर्षं में उत्पन्न एक वासुदेव (आव ४)। °भद्द न [°भद्र] तप-विशेष (पव २७१)। °भद्दप- डिमा स्त्री [°भद्रप्रतिमा] निचे देखो (औप)। °भद्दा स्त्री [°भद्रा] व्रत-विशेष, कायोत्सर्गं- ध्यान का एक व्रत (ठा २, ३--पत्र ६४)। °भय देखो मह-ब्भय (आचा)। °भाअ, °भाग वि [°भाग] महानुभाव, महाशय (अभि १७४; महा; सुपा १९८; उप पृ ३)। °भीम पुं [°भीम] १ राक्षसों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) २ भारतवर्ष का भावी आठवाँ प्रतिवासुदेव (सम १५४) ३ वि. बड़ा भयानक (दंस ४) °भीमसेण पुं [°भीमसेन] एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०)। °भुअ पुं [°भुज] देव-विशेष (दीव)। °भुअंग पुं [°भुजङ्ग] शेष नाग (से ७, ५९)। °भोया स्त्री [°भोगा] एक महा-नदी (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)। °मउंद पुंन [°मुकुन्द] वाद्य- विशेष (भग)। °मंति पुं [°मन्त्रिन्] १ सर्वोच्च अमात्य, प्रधान मन्त्री (औप; सुपा २२३; णाया १, १) २ हस्ति-सैन्य का अध्यक्ष (णाया १, १ — पत्र १९)। °मंस न [°मांस] मनुष्य का मांस (कप्पू)। °मच्च पुं [°अमात्य] प्रधान मन्त्री (कुमा)। °मत्त पुं [°मात्र] हस्तिपक, हाथी का महावत; 'तत्तो नरसिंहनिवस्स कुंजरा सिंहभयविहुरहियया। अवगणियमहामत्ता मत्तावि पलाइया झत्ति' (कुप्र ३९४) °मरुया स्त्री [°मरुता] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत)। °मंह पुं [°मह] महोत्सव (आव ४)। °महंत वि [°महत्] अति बड़ा (सुपा ५६४; स ६९३)। °माई (अप) स्त्री [माया] छन्द-विशेष (पिंग)। °माउया स्त्री [°मातृका] माता की बड़ी बहन (विपा १, ३ — पत्र ४०)। °माढर पुं [°माठर] ईशानेन्द्र के रथ-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०३; इक)। °माणसिआ स्त्री [°मानसिका] एक विद्या- देवी (संति ६)। °माहण पुं [°ब्राह्मण] श्रेष्ठ ब्राह्मण (उवा)। °मुणि पुं [°मुनि] श्रेष्ठ साधु (कुमा)। °मेह पुं [°मेघ] बड़ा मेघ (णाया १, १ — पत्र ४; ठा ४, ४ः। °मेह वि [°मेध] बुद्धिमान (उप १४२ टी)। °मोक्ख वि [°मूर्ख] बड़ा बेवकूफ (उफ १०३१ टी)। °यण पुं [°जन] श्रेष्ठ लोग (सुपा २९१)। °यस देखो °जस (औप; कप्प)। °रक्खस पुं [°राक्षस] लंका नगरी का एक राजा जो धनवाहन का पुत्र था (पउम ५, १३९)। °रह पुं [°रथ] १ बड़ा रथ (पणह २, ४ — पत्र १३०) २ वि. बड़ा रथवाला। ३ बड़ा योद्धा, दस हजार योद्धाओं के साथ अकेला जूझनेवाला (सूअ १, ३, १, १; गउड) °रहि वि [°रथिन्] देखो पूर्वं का २रा और ३रा अर्थं (उप ७२८ टी)। °राय पुं [°राज] १ बड़ा राजा, राजाधिराज (उप ७६८ टी; रंभा; महा) २ सामानिक देव, इन्द्र- समान ऋद्धिवाला देव (सुर १५, ६) ३ लोकपाल देव (सम ८६) °रिट्ठ पुं [°रिष्ठ] बलि नामक इन्द्र का एक सेनापति (इक)। °रिसि पुं [°ऋषि] बड़ा मुनि, श्रेष्ठ साधु (उव)। °रिह, °रुह देखो मह-रिह (पि १४०; अभि १८७)। °रोरु पुं [°रोरु] अप्रतिष्ठान नरकेन्द्रक की उत्तर दिशा में स्थित एक नरकावास (देवेन्द्र २४)। °रोरुअ पुं [°रोरुक, °रौरव] सातवीं नरक-भूमि का एक नरकावास — नरक-स्थान (सम ५८, ठा ५, ३ — पत्र ३४१; इक)। °रोहिणी स्त्री [°रोहिणी] एक महा-विद्या (राज)। °लंजर पुं [°अलञ्जर] बड़ा जल-कुम्भ (ठा ४, २ — पत्र २२६७)। °लच्छी स्त्री [°लक्ष्मी] १ एक श्रेष्ठि-भार्या (उप ७२८ टी) २ छन्द-विशेष (पिंग) ३ श्रेष्ठ लक्ष्मी। ४ लक्ष्मी- विशेष (नाट)। °लयंग न [°लताङ्गं] संख्या-विशेष, लता नामक संख्या को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक; जो २)। °लया स्त्री [°लता] संख्या-विशेष, महालतांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २)। °लोहिअक्ख पुं [°लोहिताक्ष्] बलीन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ --पत्र ३०२; इक)। °वक्क न [°वाक्य] परस्पर- संबद्ध अर्थं वाले वाक्यों का समुदाय (उप ८५९)। °वच्छ पुं [°वत्स] विजय-विशेष, विदेह वर्षं का एक प्रान्त (ठा २, ३; इक)। °बच्छा स्त्री [°वत्सा] वही (इक)। °वण न [°वन] मथुरा के निकट का एक वन (ती ७)। °वण पुंन [°आपण] बड़ी दूकान (भवि)। °वप्प पुं [°वप्र] विजयक्षेत्र-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०; इक)। °वय देखो मह — व्वय (सुपा ६५०)। °वराह पुं [°वराह] १ विष्णु का एक अवतार (गउड) २ बड़ा सूअर (सूअ १, ७, २५) °वह देखो °पह (से १, ५८)। °वाउ पुं [°वायु] ईशानेन्द्र के अश्व-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०३; इक)। °वाड पुं [°वाट] बड़ा बाड़ा, महान् गोष्ठ; 'निव्वाणमहावाडं' (उवा)। °विगइ स्त्री [°विकृति] अति विकार-जनक ये वस्तु — मधु, मांस, मद्य और माखन (ठा ४, १ — पत्र २०४; अंत)। °विजय वि [°विजय] बड़ा विजयवाला; 'महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ महाविमा- णाओ' (कप्प)। °विदेह पुं [°विदेह] वर्षं- विशेष, क्षेत्र-विशेष (सम १२; उवा; औप; अंत)। °विमाण न [°विमान] श्रेष्ठ देव- गृह (उवा)। °विल न [°बिल] कन्दरा आदि बड़ा विवर (कुमा)। °वीर पुं [°वीर] १ वर्तमान समय के अन्तिम तीर्थंकर (सम १; उवा; विपा १, १) २ वि. महान् परा- क्रमी (किरात १९) °वीरिअ पुं [°वीर्य] इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ५)। °वीहि, °वीहि स्त्री [°वीथि, °थी] बड़ा बाजार (पउम ६९, ३४)।२ श्रेष्ठ मार्गं (आचा)। °वेग पुं [°वेग] एक देव-जाति, भूतों की एक प्रकार की जाति (राज; इक)। °वेजयंती स्त्री [°वैजयन्ती] बड़ी पाताका, विजय-पताका, (कप्पू)। °सई स्त्री [°सती] उत्तम पतिव्रता स्त्री (उप ७२८ टी, पड)। °सउणि स्त्री [°शकुनि] एक विद्याधर-स्त्री (पणह १, ४ — पत्र ७२)। °सडि्ढ वि [श्रद्धिन्] बड़ी श्रद्धावाला (आचा; पि ३३३)। °सत्त वि [°सत्त्व] पराक्रमी (द्र ११; महा)। °समुद्द पुं [°समुद्र] महासागर (उवा)। सयग, °सयय पुं [°शतक] भगवान् महावीर का एक उपासक (उवा)। °सामाण न [°सामान] एक देव-विमान (सम ३३)। °साल पुं [°शाल] एक युवराज (पडि)। °सिलाकंटय पुं [°शिलाकण्टक] राजा कूणिक और चेटकराज की लड़ाई (भग ७, ९ — पत्र ३१५)। °सीह पुं [°सिंह] एक राजा, षष्ठ बलदेव और वासुदेव का पिता (ठा ९ — पत्र ४४७)। °सीहणिक्कीलिय, °सीहनिकीलिय न [°सिहनिक्रीडित] तप-विशेष (राज; पव २७१ — गाथा १५२२)। °सीहसेण पुं [°सिंहसेन] भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर देवलोक में उत्पन्न राजा श्रेणिक का एक पुत्र (अनु २)। °सुक्क पुं [°शुक्र] १ एक देवलोक, सातवाँ देवलोक (सम ३३; विपा २, १) २ सातवें देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ न. एक देव-विमान (सम ३३) °सुमिण पुं [°स्वप्न] उत्तम फल का एक सूचक स्वप्न (णाया १, १ — पत्र १३; पि ४४७)। °सुर पुं [°असुर] १ बड़ा दानव। २ दानवों का राजा हिरण्यकशिपु (से १, २; गउड) °सुव्वय, °सुव्वया स्त्री [°सुव्रता] भगवान् नेमिनाथ की मुख्य श्राविका (कप्प; आवम)। °सूला स्त्री [°शूला] फाँसी (श्रा २७)। °सेअ पुं [°श्वेत] एक इन्द्र, कूष्माण्ड नामक वान- व्यन्तर देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (इक; ठा २, ३--पत्र ८५)। °सेण पुं [°सेन] १ ऐरवत क्षेत्र के एक भावी जिन-देव (सम १५४) २ राजा श्रेणिक का एक पुत्र जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (अनु २) ३ एक राजा (विपा १, ९ — पत्र ८८) ४ एक यादव (णाया १, ५) ५ न. एक वन (विसे २०८९)। देखो मह-सेण। °सेणकण्ह पुं [°सेनुकृष्ण] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (पि ५२)। °सेणकण्हा स्त्री [°सेनकृष्ण] राजा श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५)। °सेल पुं [°शौल] १ बड़ा पर्वत (णाया १, १) २ न. नगर-विशेष (पउम ५५, ५३) °सोआम, °सोदाम पुं [°सौदाम] वैरोचन बलीन्द्र के अश्व-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १; इक)। °हरि पुं [°हरि] एक नर-पति, दसवें चक्रवर्त्ती का पिता (सम १५२)। °हिसव, °हिमवंत पुं [°हिमवत्] १ पर्वत-विशेष (पउम १०२, १०५; ठा २, २; महा) २ देव-विशेष (जं ४)
महाअत्त :: वि [दे] आढ्य, श्रीमन्त (दे ६, ११९)।
महाइय :: पुं [दे] महात्मा (भवि)।
महाणड :: पुं [दे. महानट] रुद्र, महादेव (दे ६, ४, १२१)।
महाणस :: न [महानस] रसोई-घर, पाक-स्थान (णाया १; ८; गा १३; उप २५६ टी)।
महाणसि :: वि [महानसिन्] रसोई बनानेवाला, रसोइया। स्त्री. °णी (णाया १, ७ — पत्र ११७)।
महाणसिय :: वि [महानसिक] ऊपर दे्खो (विपा १, ८)।
महाबिल :: न [दे. महाबिल] व्योम, आकाश (दे ६, १२१)।
महामंति :: पुं [महामन्त्रिन्] महावत, हस्ति- पक (राय १२१ टी)।
महारिय :: ? (अप) वि [मदीय] मेरा (जय ३०)।
महाल :: पुं [दे] जार, उपपति (दे ६, ११६)।
महालक्ख :: वि [दे] तरुण, जवान (दे ६, १२१)।
महालय :: देखो मह = महत् (णाया १, ८; उवा; औप), 'मा कासि कम्माइं महालयाइं' (उत्त १३, २६)। स्त्री. °लिया (औप)।
महालय :: पुंन [महालय] १ उत्सवों का स्थान (सम ७२) २ बड़ा आलय। ३ वि. बृहत्काय, बड़ा शरीरवाला (सूअ २, ५, ६)
महालवक्ख :: पुं [दे. महालयपक्ष] श्राद्ध-पक्ष, आश्विन (गुजराती भाद्रपद) मास की कृष्ण पक्ष (दे ६, १२७)।
महावल्ली :: स्त्री [दे] नलिनी, कमलिनी (दे ६, १२२)।
महाविजय :: पुं [महाविजय] एक देवविमान (आचा २, १५, २)।
महासउण :: पुं [दे] उल्लु, घूक-पक्षी (दे ६, १२७)।
महासद्दा :: स्त्री [दे] शिवा, श्रृगाली (दे ६, १२०; पाअ)।
महासेल :: वि [माहशैल] महाशैल नगर से संबन्ध रखनेवाला, महाशैल का (पउम ५५, ५३)।
महि° :: देखो मही (कुमा)। °अल न [°तल] भू-पीठ, भूमि-पृष्ठ (कुमा; गउड; प्रासू ४५)। °गोयर पुं [°गोचर] मनुष्य (भवि; सण)। °पट्ठ न [°पृष्ठ] भूमि-तल (षड्)। °पाल पुं [°पाल] राजा (उव)। °मंडल न [मण्डल] भऊ-मण्डल (भवि; हे ४, ३७२)। °रमण पुं [°रमण] राजा (श्रा २७)। °वइ पुं [°पति] राजा (णाया १, १ टी; औप)। °वट्ठ देखो °पट्ठ (हे १, १२९; कुमा)। °वल्लह पुं [°वल्लभ] राजा (गु १०)। °वाल पुं [°पाल] १ राजा, नरपति (हे १, २२९) २ व्यक्ति, वाचक नाम (भवि) °वेढ पुं [°वेष्ट, °पीठ] मही-तल, भू-तल (से १, ४; ४९)। °सामि पुं [°स्वामिन्] राजा (कुमा)। °हर पुं [°धर] १ पर्वंत (पाअ; लसे ३, ३८; ४, १७; कुप्र ११७) २ राजा (कुप्र ११७)
महिअ :: वि [मथित] विलोडित (से २, १८; पाअ)।
महिअ :: वि [महित] १ पूजित, सत्कृत (से १२, ४७; उवा; औप) २ न. एक देव- विमान (सम ४१) ३ पूजा, सत्कार (णाया १, १)
महिअ :: वि [महीयस्] बड़ा, गुरु; 'राअ- निओओ महिओ को णाम गआगअमिह करेइ' (मुद्रा १८७)।
महिअद्दुअ :: न [दे] घी का किट्ट, घृत-मल (राज)।
महिआ :: स्त्री [महिका] १ सूक्ष्म वर्षा, सूक्ष्म जल-तुषार (पणण १; जी ५) २ घूमिका, घुंध, कुहरा (ओघ ३०; पाअ) ३ मेघ- समूह; 'घणनिवहो कालिआ महिआ' (पाअ)। देखो मिहिआ।
महिंद :: पुं [महेन्द्र] १ बड़ा इन्द्र, देवाधीश (औप; कप्प; णाया १, १ टी — पत्र ६) २ पर्वंत-विशेष (से ६, ५९) ३ अति महान्, खूब बड़ा (ठा ४, २ — पत्र २३०) ४ एक राजा (पउम ५०, २३) ५ ऐरवत वर्षं का भावी १५ वाँ तीर्थंकर (पव ७) ६ पुंन. एक देव-विमान (सम २२; देवेन्द्र १४१) °कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम २७)। °केउ पुं [°केतु] हनूमान के मातामह का नाम (पउम ५०, १९)। °ज्झय पुं [°ध्वज] १ बड़ा ध्वज। २ इन्द्र के ध्वज के समान ध्वज, बड़ा इन्द्र-ध्वज (ठा ४, ४ — पत्र २३०) ३ न. एक देव-विमान (सम २२) °दुहिया स्त्री [°दुहिता] अञ्जनासुन्दरी, हनूमान की माता (पउम ५०, २३)। °विक्कम पुं [°विक्रम] इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ६)। °सीह पुं [°सिंह] १ कुरु देश का एक राजा (उप ७२८ टी) २ सनत्कुमार चक्रवर्त्ती का एक मित्र (महा)
महिंद :: वि [माहेन्द्र] १ महेन्द्र-सम्बन्धी। २ उत्पात-विशेष (अणु २१५)
महिंदुत्तरवडिंसय :: न [महेन्द्रोत्तरावतंसक] एक देव-विमान (सम २७)।
महिगा :: देखो महिआ (जीवस ३१)।
महिच्छ :: वि [महेच्छ] महत्वाकांक्षी (सूअ २, २, ६१)।
महिच्छा :: स्त्री [महेच्छा] महत्वाकांक्षा, अपरिमित वाञ्छा (पणह १, ५)।
महिट्ठ :: वि [दे] मट्ठा से संसृष्ट, तक्र-संस्कारित (विपा १, ८ — पत्र ८३)।
महिडि्ढ, महिडि्ढय, महिड्ढीय :: वि [महर्द्धि, °क] बड़ी ऋद्धिवाला, महान् वैभववाला (श्रा २७; भग; ओघभा ६; औप; पि ७३)।
महिम :: पुंस्त्री [महिमन्] १ महत्त्व, माहात्म्य, गौरव (हे १, ३५; कुमा; गउड; भवि) २ योगी का एक प्रकार की ऐश्वर्यं (हे १, ३५)
महिला :: देखो मिहिला (महा; राज)।
महिला :: स्त्री [महिला] स्त्री, नारी (कुमा; हे ३, ४१; पाअ)। °थूभ पुं [°स्तूप] कूप आदि का किनारा (विसे २०६४)।
महिलिया :: स्त्री [महिलिका, महिला] ऊपर देखो (णाया १, २; पउम १४, १४५; प्रासू २४)।
महिलिया :: स्त्री [मिथिलिका, मिथिला] देखो मिहिला (कप्प)।
महिस :: पुं [महिष] भैंस (गउड; औप; गा ५४८)। °सुर पुं [°सुर] एक दानव (स ४३७)।
महिसंद :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, शिग्रु का पेड़ (दे ६, १२०)।
महिसिअ :: वि [महिषिक] भैंसवाला, भैंस चरानेवाला (अणु १४४)।
महिसिक्क :: न [दे] महिषी-समूह (दे ६, १२४)।
महिसी :: स्त्री [महिषी] १ राज-पत्नी (ठा ४, १) २ भैंस (पाअ; पउम; २६, ४१)
महिस्सर :: पुं [महेश्वर] एक इन्द्र, भूतवादि- देवों का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५)। देखो महेसर।
मही :: स्त्री [मही] १ पृथिवी, भूमि, धरती (कुमा, पाअ) २ एक नदी (ठा ५, २ — पत्र ३०८) ३ छन्द-विशेष (पिंग)। °नाह पुं [°नाथ] राजा (उप पृ १६१)। °पहु पुं [°प्रभु] राजा (उप ७२८ टी)। °पाल पुं [°पाल] वही अर्थं (उप १५० टी; उव)। °रुह पुं [°रुह] वृक्ष, पेड़ (पाअ, सुर ३, ११०; १६, २४८)। °वइ पुं [°पति] राजा (श्रा २८; उप १४९ टी; सुपा ३८)। °वीढ न [°पीठ] भूमि-तल (सुर २, ७४)। °स पुं [°श] राजा (श्रा १४)। °सक्क पुं [°शक्र] वही अर्थ (श्रा १४)। देखो महि°।
महु :: पुं [मधु] १ एक दैत्य (से १, १; अच्चु ४०) २ वसन्त ऋतु; 'सुरही महू वसंतो' (पाअ; कुमा) ३ चैत्र मास (सुर ३, ४०; १६, १०७; पिंग) ४ पाँचवाँ प्रति-वासुदेव राजा (पउम ५, १५६) ५ एक राजा (श्रु ९१) ६ मथुरा का एक राज-कुमार (पउम १२, २) ७ चकवर्त्ती का एक देव-कृत महल (उत्त १३, १३) ८ मधूक का पेड़, महुआ का गाछ (कुमा) ९ अशोक-वृक्ष (चंड) १० न. मद्य, दारू (से २, २७) ११ क्षोद्र, शहद (कुमा, पव ४; ठा ४, १) १२ पुष्प-रस। १३ मधुर- रस। १४ जल, पानी (प्राप्र; हे ३, २५) १५ छन्द-विशेष (पिंग) १६ मधुर, मिष्ट वस्तु (पणह २, १)। °अर पुंस्त्री [°कर] भ्रमर, भौंरा (पाअ; स्वप्न ७३; औप; कप्प; पिंग)। स्त्री. [°रिआ, °री] (अभि १९०; नाट — मृच्छ ५७)। °अरवित्ति स्त्री [°करवृत्ति] माधुकरी, भिक्षा वृत्ति (सुपा ८३)। °अरीगीय न [°करीगीत] नाट्य- विधि-विशेष (महा)। °आसव वि [°आश्रव] लब्धि-विशेषवाला, जिसके प्रभाव से वचन मधुर लगे ऐसी लब्धिवाला (पणह २, १ — पत्र १००)। °गुलिया स्त्री [°गुटिका] शहद की गोली (ठा ४, २)। °पडल न [°पटल] मधुपुडा (दे ३, १२)। °भार पुं [°भार] छन्द-विशेष (पिंग)। °मक्खिया, °मच्छिआ स्त्री [°मक्षिका] शहद की मक्खी; 'अह उड्डियाउ तोमस्मुहाउ महुक्खि (? मक्खि) याउ सव्वत्तो' (धर्मंवि १२४; गा ६३४)। °मय वि [°मय] मधु से भरा हुआ (से १, ३०)। °मह पुं [°मथ] विष्णु, वासुदेव, उपेन्द्र (पाअ; से १, १७) २ भ्रमर (से १, १७) °मह पुं [°मह] वसन्त का उत्सव (से १, १७)। °महण पुं [°मथन] १ विष्णु (से १, १; वज्जा २४; गा ११७; हे ४, ३८४; पि १४३; पिंग) २ समुद्र, सागर। ३ सेतु, पुल (से १, १) °मास पुं [°मास] चैत मास (भवि)। °मित्त पुंन [°मित्र] कामदेव (सुपा ५२९)। °मेहण न [°मेहन] रोग-विशेष, मधु-प्रमेह (आचा १, ६, १, २)। °मेहणि वि [°मेहनिन्] मधु-प्रमेह रोगवाला (आचा)। °मेहि पुं [°मेहिन्] वही अर्थं (आचा)। °राय पुं [°राजा] एक राजा (रयण ७४)। °लट्ठि स्त्री [°यष्टि] १ ओषधि-विशेष, यष्टिमधु, मुलेठी, जेठी मधु। २ इक्षु, ईख (हे १, २४७) °वक्क पुं [°पर्क] १ दधियुक्त मधु, दही और शहद। २ षोडशोप- चार पूजा का छठवाँ उपचार (उत्तर १०३)। °वार पुं [°वार] मद्य, दारू (पाअ)। °सिंगि स्त्री [°श्रृङ्गी] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)। °सूयण पुं [°सूदन] विष्णु (गउड; सुपा ७)
महुअ :: पुं [मधूक] १ वृक्ष-विशेष, महुआ का गाछ (गा १०३) २ न. महुआ का फल (प्राप्र; हे १, २२२)
महुअ :: पुं [दे] पक्षि-विशेष, श्रीवद पक्षी। २ मागध, स्तुति-पाठक (दे ६, १४४)
महुण :: सक [मथ्] १ विलोडन करना। २ विनाश करना। वकृ. 'विमुक्कट्टट्टहासा जलियजलणपिंगलकेसा महुणिंत-जालाकराल- पिसाया मुक्का' (महा)
महुत्त :: (अप) देखो मुहुत्त (भवि)।
महुप्पल :: न [महोत्पल] कमल, पद्म; 'महुप्पलं पंकयं नलिणं' (पाअ)।
महुमुह :: पुं [दे. मधुमुख] पिशुन, दुर्जन, खल (दे ६, १२२)।
महुर :: पुं [महुर] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उस देश में रहनेवाली अनार्य मनुष्य-जाति (पणह १, १ — पत्र १४)
महुर :: वि [मधुर] १ मीठा, मिष्ट (कुमा; प्रासू ३३; गउड; गा ४०१) २ कोमल (भग ९, ३१; औप)। °भासि वि [°भाषिन्] प्रिय-भाषी (पउम ६, १३३)। महुरा स्त्री [मथुरा] भारत की एक प्रसिद्ध नगरी, मथुरा (ठा १०; सम १५३; पणह १, ३; हे २, १५०; कुमा; वज्जा १२२)। °मंगु पुं [°मङ्गु] एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं (सिक्खा ९२)। °हिव पुं [°धिप] मथुरा का राजा (कुमा)
महुरालिअ :: वि [दे] परिचित (दे ६, १२५)।
महुरिम :: पुंस्त्री [मधुरिमन्] मधुरता, माधुर्यं (सुपा २९४; कुप्र ५०)।
महुरेस :: पुं [मथुरेश] मथुरा का राजा (कुमा)।
महुला :: स्त्री [दे] रोग-विशेष, पाद-गण्ड (निचू २)।
महुसित्थ :: न [मधुसिक्थ] १ मदन, मोम (उप पृ २०६) २ पंक-विेशेष, स्त्री के पैर में लगा हुआ अलता तक लगनेवाला कादा (ओधभा ३३) ३ कला-विशेष (स ६०२)
महुस्सव :: देखो महुसव (राज)।
महूअ :: देखो महुअ = मधुक (कुमा; हे १, १२२)।
महूसव :: पुं [महोत्सव] बड़ा उत्सव (सुर ३, १०८; नाट — मृच्छ ५४)।
महेंद :: देखो महिंद (से ६, २२)।
महेड्ड :: पुं [दे] पंक, कादा (दे ६, ११९)।
महेब्भ :: पुं [महेभ्य] बड़ा शेठ (श्रा १६)।
महेभ :: पुं [महेभ] बड़ा हाथी (कुमा)।
महेला :: स्त्री [महेला] स्त्री, नारी (हे १, १४६; कुमा)।
महेस :: पुं [महेश] नीचे देखो (त्रि ९४; भवि)।
महेसर :: पुं [महेश्वर] १ महादेव, शिव (पउम ३५, ६४; धर्मंवि १२८) २ जिनदेव, अर्हन् (पउम १०९, १२) ३ श्रीमन्त, आढ्य (सिरि ४२) ४ भूतवादि देवों के उत्तर दिशा का इन्द्र (इक)। °दत्त पुं [°दत्त] एक पुरोहित (विपा १, ५)
महेसि :: देखो मह-रिसि (सम १२३; पणह १, १; उप ३५७; ७२८ टी; अभि ११८)।
महोअर :: पुं [महोदर] १ रावण का एक भाई (से १२, ५४) २ वि. बहु-भक्षी (निचू १)
महोअहि :: पुं [महोदधि] महासागर (से ५, २, महा)। °रव पुं [°रव] वानर-वंश का एक राजा (पउम ६, ९३)।
महोच्छव :: देखो महूसव (सुर ६, ११०)। महोदहि देखो महोअहि (पणह २, ४; उप ७२८ टी)।
महोरग :: पुं [महोरग] १ व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४ — पत्र ६८; इक) २ बड़ा साँप। ३ महा-काय सर्पं की एक जाति (पणह १, १ — पत्र ८)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र-विशेष (महा)
महोरगकंठ :: पुं [महोरगकण्ठ] रत्न-विशेष (राय ६७)।
महोसव :: देखो महूसव (नाट — रत्ना २४)।
महोसहि :: स्त्री [महौषधि] श्रेष्ठ औषधि (गउड)।
मा :: अ [मा] मत, नहीं (चेइय ६८४; प्रासू २१)।
मा :: स्त्री [मा] १ लक्ष्मी, दौलत (से ३, १५; सुर १६, ५२) २ शोभा (से ३, १५)
मा, माअ :: अक [मा] १ समाना, अटना। २ सक. माप करना। ३ निश्चय करना, जानना। माइ, माअइ, माइज्जा, माएज्जा (पव ४०; कुमा; प्राकृ ६६; संवेग १८; औप)। वकृ. मंत, माअंत (कुमा; ४, ३०, से २, ९; गा २७८)। कवकृ. भिज्जंत, भिज्जमाण (से ७, ६९; सम ७९; जीवस १४४)। कृ. माअव्व; 'वाया सहस्स-मइया, ' माइअ (से ९, ३; महा; कप्प)। देखो मेअ = मेय। माअडि पुं [मातलि] इन्द्र का सारथि (से १५, ५१)
माअरा :: देखो माइ = मातृ (कुमा; हे ३, ४६)।
माअलि :: देखो माअडि (से १५, ४९)।
माअलिआ :: स्त्री [दे] मातृष्वसा, माता की बहन (दे ६, १३१)।
माअही :: स्त्री [मागधी] काव्य की एक रीति (कप्पू)। देखो मागहिआ।
माआरा, माइ :: स्त्री [मातृ] १ माँ, जननी (षड्; ठा ४, ३; कुमा; सुपा ३७७) २ देवता, देवी (हे १, १३५; ३, ४६; सुख ३, ९) ३ स्त्री. नारी। ४ माया (पंचा १७, ४८) ५ भूमि। ६ विभूति। ७ लक्ष्मी। ८ रेवती। ९ आखुकर्णी। १० जटामांसी। ११ इन्द्र-वारुणी, इन्द्रायण (षड्; हे १, १३५; ३, ४६) °घर न [°गृह] देवी- मन्दिर (सुख ३, ९)। °ट्ठाण, °ठाण न [°स्थान] १ माया-स्थान (पंचा १७, ४८; सम ३९) २ माया, कपट-दोष (पंचा १७, ४८; उवर ८४)। °मेह पुं [°मेध] यज्ञ- विशेष, जिसमें माता का वध किया जाय वह यज्ञ (पउम ११, ४२)। °हर देखो °घर (हे १, १३५)। देखो माउ, माया = मातृ।
माइ :: वि [मायिन्] माया-युक्त, मायावी (भग; कम्म ४, ४०)।
माइ :: अ [मा] मत, नहीं (प्राकृ ७८)।
माइ, माइअ :: वि [दे] १ रोमश, रोमवाला, प्रभूत बालों से युक्त (दे ६, १२८; णाया १, १८ — पत्र २३७) २ मयूरित, पुष्प- विशेषवाला (औप; भग; णाया १, १ टी — पत्र ५; अंत)
माइअ :: वि [मात] समाया हुआ, अटा हुआ (सुख ९, १)।
माइअ :: वि [मायिक] मायावी (दे ६, १४७; णाया १, १४)।
माइअ :: वि [मात्रिक] मात्रा-युक्त, परिमित (तंदु २०; पन्ह १, ४ पत्र ९८)।
माइअ :: देखो मा =मा।
माइं :: देखो माइ = मा (हे २, १९१; कुमा)।
माइंगण :: न [दे] वृन्ताक, भंटा (उप ५९३)।
माइंद :: [दे] देखो मायंद (प्राप्र, स ४१९)।
माइंद :: पुं [मृगेन्द्र] सिंह, केसरी; 'एक्कसर-ॉ पहरदारियमाइंदगइंदजुज्झमाभिडिए' (वज्जा ४२)।
माइंदजाल, माइंदयाल :: न [मायेन्द्रजाल] माया-कर्मं, बनावटी प्रपंच (सुर २, २२९; स ६९०)।
माइंदा :: स्त्री [दे] आमलकी, आमला का गाछ (दे ६, १२९)।
माइण्हिआ :: स्त्री [मृगतृष्णिका] धूप में जल की भ्रान्ति (उफ २२० टी; मोह २३)।
माइलि :: वि [दे] मृदु, कोमल (दे ६, १२९)।
माइल्ल :: देखो माइ = मायिन् (सूअ १, ४, १, १८, आचा; भग, ओघ ४१३; पउम ३१, ५१; औप; ठा ४, ४)।
माइवाह, माईवाह :: पुंस्त्री [दे. मातृवाह] द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष, क्षुद्र कीट-विशेष (उत्त ३६, १२९, जी १५; पुष्प २६५)। स्त्री. °हा (सुख १८, ३५; जी १५)।
माउ :: देखो माइ = मातृ (भग; सुर १, १७९, औप; प्रामा कुमा; षड्; हे १, १३४; १३५)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] स्त्री-वर्गं (बृह १)। °च्छा देखो °सिआ (हे २; १४२; गा ६४८)। °पिउ पुं [°पितृ] माँ-बाप (सुर १, १७९)। °म्मही स्त्री [°मही] माँ की माँ, नानी (रंभा २०)। °सिआ, °सी, °स्सिआ स्त्री [°ष्वसृ] माँ की बहन, मौसी (हे २, १४२ कुमा; विपा १, ३; सुर ११, २१९; पि १४८; विपा १, ३ — पत्र ४१)।
माउ, माउअ :: वि [मातृ, °क] १ प्रमाता, प्रमाण-कर्ता, , सत्य ज्ञानवाला। २ परिमाण-कर्ता, नापनेवाला। ३ पुं. जीव। ४ आकाशः 'माऊ' 'माउओ' (षड्; हे १, १३१; प्राप्र; प्राकृ ८; हे १, १३४)
माउअ :: वि [मातृक] माता-संबन्धी (हे १, १३१; प्राप्र; प्राकृ ८; राज)।
माउअ :: पुंन [मातृक, °का] १ अकार आदि छयालीस अक्षर; 'बंभीए णं लिवीए छायालीसं माउयक्खरा' (सम ६९; आव ५) २ स्वर। ३ करण (हे १, १३१; प्राप्र; प्राकृ ८)। नीचे देखो।
माउआ :: स्त्री [मातृका] १ माता, माँ (णाया १, ९ — पत्र १५८) २ ऊपर देखो (सम ६९)। °पय पुंन [°पद] शास्त्रों के सार-भूत शब्द — उत्पाद; व्य और घ्रौव्य (सम ६९)
माउआ :: स्त्री [दे. मातृका] दुर्गा, पार्वंती, उमा (दे ६, १४७)।
माउआ :: स्त्री [दे] १ सखी, सहेली (दे ६, १४७; पाअ; णाया १, ९ — पत्र १५८) २ ऊपर के होठ पर के बाल, मूँछ; 'रत्तगंड- मंसिुयाहिं माउयाहिं उवसोहियाइं' (णाया १, ९ — पत्र १५८)
माउआपय :: न [मातृकापद्] मूलाक्षर, 'अ' से 'ह' तक के अक्षर (दसनि १, ८)।
माउक्क :: वि [मृदु, °क] कोमल, कुमार (हे १, १२७; २, ९९; कुमा)।
माउक्क :: न [मृदुत्व] कोमलता (हे १, १२७; २, २; कुमा)।
माउच्चा :: स्त्री [दे. मातृष्यसृ] देखो माउ-च्छा (षड्)।
माउच्चा :: स्त्री [दे] सखी, सहेली (षड्)।
माउच्छ :: वि [दे] मृदु, कोमल (दे ६, १२९)।
माउत्त, माउत्तण :: देखो माउक्क =मृदुत्व (कुमा; हे २; २; षड्)।
माउल :: पुं [मातुल] माँ का भाई, मामा (सुर ३, ८१; रंभा; महा)।
माउलिअ :: देखो मउलिअ (से ११, ९१)।
माउलिंग :: देखो माहुलिंग (राज)।
माउलिंग, माउलिंगी :: स्त्री [मातुलिङ्गा, °ङ्गी] बोजौरे का गाछ (पणण १ — पत्र ३२; पउम ४२, ९)।
माउलुंग :: देखो माहुलिंग (हे १, २१४; अनु)।
मागंदिअ :: पुं [माकन्दिक] माकन्दिकपुत्र नामक एक जैन मुनि (भघ १८ — १ टी)। °पुत्त पुं [°पुत्र] वही अर्थ (भग १८, ३)।
मागसीसी :: स्त्री [मार्गशीर्षी] १ अगहन मास की पूर्णिमा। २ अगहन की अमावास्या (इक)
मागह, मागहय :: वि [मागय °क] १ मगध- देशीय, मगध देश में उत्पन्न, मगध देश का, मगध-संबन्धी (ओघ ७१३; विसे १४९९; पव ६१; णाया १, ८; पउम ९९, ५५) २ पुं. स्तुति-पाठक, बन्दी, चारण (पाअ; औप)। °भासा स्त्री [°भाषा] देख मागहिआ का पहला अर्थं (राज)
मागहिआ :: स्त्री [मागधिका] १ मगध देश की भाषा, प्राकृत भाषा का एक भेद। २ कला-विशेष (औप) ३ छन्द-विशेष (सुख २, ४५; अजि ४)
माघवई :: स्त्री [माघवती] सातवीं नरक-भूमि (पव १४३; इक; ठा ७ — पत्र ३८८)।
माघवा, माघवी :: [माघवा, °वी] ऊपर देखो, 'मघव त्ति माघव त्ति य पुढवीणं नामधेयाइं' (जीवस १२; इक)।
माज्जार :: देखो मज्जार (संक्षिी २)।
माडंबिअ :: पुं [माडम्बिक] १ 'मडंब' का अधिपति (णाया १, १; औप; कप्प) २ प्रत्यन्त — सीमा-प्रान्त का राजा (पणह १, ५ — पत्र ९४)
माडंबिय :: वि [माडम्बिक] चित्र-मंडप का अध्यक्ष (राय १४१)।
माडिअ :: न [दे] गृह, घर (दे ६, १२८)।
माढर :: पुं [माठर] १ सौधर्मेन्द्र के रथ-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०३, इक) २ न. गोत्र-विशेष (कप्प)। ३ शास्त्र-विशेष (णंदि)
माढर :: पुंस्त्री [माठर] माठर-गोत्र में उत्पन्न (णंदि ४९)।
माढरी :: स्त्री [माठरी] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)।
माढिअ :: वि [माठित] सन्नाह-युक्त, वर्मित (कुमा)।
माढी :: स्त्री [माठी] कवच, वर्म, बख्तर (दे ६, १२८ टी; पणह १, ३ — पत्र ४४; पाअ; से १२, ६२)।
माण :: सक [मानय्] १ सम्मान करना, आदर करना। २ अनुभव करना। माणइ, माणेइ, माणंति, माणेमि (हे १, २२८; महा; कुमा; सिरि ९९)। वकृ. माणंत, माणेमाण (सुर २, १८२; णाया १, १ — पत्र ३३)। कवकृ. माणिज्जंत (गा ३२०)। हेकृ. माणिउं, माणेउं (महा; कुमा)। कृ. माणणिज्ज, माणणीअ माणेयव्व (उव; सुर १२, १९५; अभि १०७; उप १०३१ टी); 'जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अ- माणिमो' (दसचू १, ५)
माण :: पुंन [मान] १ गर्वं, अहंकार, अभिमान; 'अड्ढद्धीकयमाणिसिमाणो' (कुमा), 'पुव्वं विबुहसमक्खं गुरुणो एयस्स खंडियं माणं' (सम्मत्त ११९) २ माप, परिमाण। ३ नापने का साधन, बाट — बटखरा आदि (अणु; कप्प; जी ३०; श्रा १४) ४ प्रमाण, सबूत (विसे ९४६; धर्मंसं ५२५) ५ आदर, सत्कार (णाया १, १; कप्प) ६ पुं. एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५४५) °इंत, °इत्तं, °इल्ल वि [°वत्] मानवाला (षड्; हे २, १५९; हेका ७३; पि ५९५)। स्त्री. °त्ता, °त्ती (कुमा; गउड)। °तुंग पुं [°तुङ्ग] एक प्राचीन जैन कवि (नमि २१)। °वई स्त्री [°वती] १ मानवाली स्त्री (से १०, ६९) २ रावण की एक पत्नी (पउम ७४, ११)। °संघ न [°संघ] एक विद्याधर-नगर (इक)। °वाइ वि [°वादिन्] अहंकारी (आचा)
माण :: वि [मान] मान-संबन्धी, मान का; 'कोहाए माणाए मायाए' (पडि)।
माण :: न [दे] परिमाण-विशेष, दस शेर को नाप; 'गुजराती में माणुं' (उप १५४)।
माणंसि :: वि [दे] १ मायावी, कपटी (दे ६, १४७; षड्) २ स्त्री. चन्द्र-वधू (दे ६, १४७)
माणंसि :: देखो मणंसि (काप्र १६९; संक्षि १७; षड्)।
माणण :: न [मानन] १ आदर, सत्कार (आचा) २ मानना (रयण ८४) ३ अनुभव। ४ सुख का अनुभव; 'सुइसमाणणे' (अजि ३१)
माणणा :: स्त्री [मानना] ऊपर देखो (पणह २, १; रयण ८४)।
माणय :: देखो माण = (दे) (सुपा ३५८)।
माणव :: पुं [मानव] १ मनुष्य, मर्त्यं (पाअ; सुपा २४३) २ भगवान् महावीर का एक गण (ठा ९ — पत्र ४५१; कप्प)
माणवग, माणवय :: पुं [मानवक] १ एक निधि, अस्त्र-शस्त्रों की पूर्त्ति करनेवाला निधि (उप ९८६ टी; ठा ९ — पत्र ४४९; इक) २ ज्योतिष्क ग्रह-विशेष, एक महाग्रह (ठा २, ३; सुज्ज २०) ३ सौधर्मं देवलोक का एक चैत्य-स्तम्भ (सम ६३)
माणवी :: स्त्री [मानवी] एक विद्या-देवी (संति ६)।
माणस :: न [मानस] १ सरोवर-विशेष (पणह १, ४; औप; महा, कुमा) २ मन, अन्तः- करण (पाअ; कुमा) ३ वि. मन-संबन्धी, मन का (सुर ४, ७५) ४ पुं. भूतानन्द के गन्धर्वं-सैन्य का नायक (इक)
माणसिअ :: वि [मानसिक] मन-संबन्धी, मन का (श्रा २४; औप)।
माणसिआ :: स्त्री [मानसिका] एक विद्या-देवी (संति ६)।
माणि :: वि [मानिन्] १ मान-युक्त, मानवाला (उव; कुप्र २७९; कम्म ४, ४०)। स्त्री. °णिणी (कुमा) २ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५९ २) ३ पर्वंत-विशेष। ४ कूट-विशेष (राज; इक)
माणिअ :: वि [दे. मानित] अनुभूत (दे ६, १३०; पाअ)।
माणिअ :: वि [मानित] सत्कृत (गउड)।
माणिक्क :: न [माणिक्य] रत्न-विशेष, माणिक (सुपा २१७; वज्जा २०; कप्पू)।
माणिण :: देखो माणि (पउम ७३, २७)।
माणिभद्द :: पुं [माणिभद्र] १ यक्ष-निकाय के उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५; इक) २ यक्षदेवों की एक जाति (सिरि ६६६; इक) ३ देव-विशेष। ४ शिखर- विशेष (राज; इक) ५ एक देव-विमान (राज)
माणिम :: देखो माण = मानय्।
माणी :: स्त्री [मानिका] २५६ पलों का एक माप (अणु १५२)
माणुस :: पुंन [मानुष] १ मनुष्य, मानव, मर्त्यं (सूअ १, ११, ३; पणह १, १; उव; सुर ३, ५९; प्राप्र; कुमा); 'जं पुण हिययाणंदं जणेइ तं माणुसं विरलं' (कुप्र ९), 'मयाणि माइपिइपमुहमाणुसाणि सव्वाणि' (कुप्र २९) २ वि. मनुष्य-संबन्धी; 'तिविहं कहावत्थुं ति पुव्वायरियपवाओ, तं जहा, दिव्वं दिव्वमाणुसं माणुसं च' (स २)
माणुसी :: स्त्री [मानुषी] १ स्त्री-मनुष्य, मानवी (पव २४१; कुप्र १६०) २ मनुष्य से संबन्ध रखनेवाली; 'माणुसी भासा' (कुप्र ६७)
माणुसुत्तर, माणुसोत्तर :: पुं [मानुषोत्तर] १ पर्वंत- विशेष, मनुष्यलोक का सीमा- कारक पर्वंत (राज; ठा ३, ४; जीव ३) २ न. एक देव-विमान (सम २)
माणुस्स :: देखो माणुस (आचा; औप; धर्मंवि १३; उपपं २; विसे ३००७); 'माणुस्सं लोगं' (ठा ३, ३ — पत्र १४२), 'माणुस्सगाइं भोगभोगाइं' (कप्प)।
माणुस्स, माणुस्सय :: न [मानुष्य, °क] मनुष्यत्व, मानुसपन, मनुष्यता (सुपा १९९; स १३१ प्रासू ४७; पउम ३१, ८१)।
माणुस्सी :: देखो माणुसी (पव २४०)।
माणूस :: देखो माणुस (सुर २, १७२; ठा ३, ३ — पत्र १४२)।
माणेसर :: पुं [माणेश्वर] माणिभद्र यक्ष (भवि)।
माणोरमा :: (अप) स्त्री [मनोरमा] छन्द-विशेष (पिंग)।
मातंग :: देखो मायंग (औप)।
मातंजण :: देखो मायंजण (ठा २, ३ — पत्र ८०)।
मातुलिंग :: देखो माहुलिंग (आचा २, १, ८, १)।
मादलिआ :: स्त्री [दे] माता, जननी (दे ६, १३१)।
मादु :: देखो माउ = स्त्री (प्राकृ ८)।
माधवी :: देखो माहवी = माघवी (हास्य १३३)।
माभाइ :: पुंस्त्री [दे] अभय-प्रदान, अभय-दान, अभय (दे ६, १२९; षड्)।
माभीसिअ :: न [दे] ऊपर देखो (दे ६, १२९)।
माम :: अ. कोमल आमान्त्रण का सूचक अव्यय (पउम ३८, ३६)।
माम, मामग :: पुं [दे] मामा, माँ का भाई (सुपा १६; १६५)।
मामग, मामय :: वि [मामक] १ मदीय, मेरा (आचा; अच्चु ७३) २ ममतावाला (सूअ १, २, २, २८)
मामय :: देखो मामग = (दे) (पउम ९८, ५५; स ७३१)।
मामा :: स्त्री [दे] मामी, मामा की बहू (दे ६, ११२)।
मामाय :: वि [मामाक] 'मा' 'मा' बोलनेवाला, निवारक (ओघ ४३५)।
मामास :: पुं [मामाष] १ अनार्यं देश-विशेष। २ अनार्यं देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (इक)
मामि :: अ. सखी के आमन्त्रण में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (हे २, १९५; कुमा)।
मामिया, मामी :: स्त्री [दे] मामा की बहू (विपा १, ३ — पत्र ४१; दे ६, ११२; गा २०४; प्राकृ ३८)।
माय :: वि [मात] समाया हुआ (कम्म ५, ८५ टी; पुप्फ १७२; महा)।
माय :: वि [मायावत्] कपटवाला, 'कोहाए माणाए मायाए लोभाए' (पडि)।
माय :: देखो मेत्त = मात्र; 'लोमुक्खणणमायमवि' (सूअ २, १, ४८)।
माय° :: देखो माया = माया (आचा)।
माय° :: देखो मत्ता = मात्रा। °न्न वि [°ज्ञ] परिमाण का जानकार (सूअ २, १, ५७)।
मायइ :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष (पउम ५३, ७९)।
मायंग :: पुं [मातङ्ग] १ भगवान् सुपार्श्वनाथ का शासनयक्ष। २ भगवान् महावीर का शासन-यक्ष (संति ७, ८) ३ हस्ती, हाथी (पाअ; सुर १, ११) ४ चाण्डाल, डोम (पाअ)
मायंगी :: स्त्री [मातङ्गी] १ चाण्डलिन (निचु १) २ विद्या-विशेष (आचू १)
मायंजण :: पुं [मातञ्जन] पर्वंत-विशेष (इक)।
मायंड :: पुं [मार्तण्ड] सूर्यं, रवि (सुपा २४२; कुप्र ८७)ष
मायंद :: पुं [दे. माकन्द] आम्र, आम का पेड़ (हे २, १७४; प्राप्र; दे ६, १२८; कुप्र ७१; १०६)।
मायंदिअ :: देखो मागंदिअ (भग १८, १)।
मायंदी :: स्त्री [माकन्दी] नगरी-विशेष (स ६; कुप्र १०६)।
मायंदी :: स्त्री [दे] श्वेताम्बर साध्वी (दे ६, १२९)।
मायण्हिया :: स्त्री [मृगतृष्णिका] किरण में जल की भ्रान्ति, मरु-मरीचिका; 'जह मुद्धमओ मायणिहियाए तिसिओ करेइ जल-बुद्धिं। तह निव्विवियेपुरिस कुणइ अधम्मेवि धम्ममइं' (सुपा ५००)।
मायहिय :: (अप) देखो मागहिया (भवि)।
माया :: देखो माइ = मातृ; 'मायाइ अहं भणिओ' (धर्मंवि ५; पाअ; विपा १, ९; षड्)। °पिइ, °पिति पुंन [°पितृ]माँ-बाप (पि ३९१; स १८४)। °मह पुं [°मह] माँ का बाप (सुर ११, ४६; सुपा ३८४)। °वित्त देखो °पिइ; 'दुहियाण होइ सरणं मायावित्तं महिलियाणं' (पउम १७, २१); 'तेणेव देवेण तहिं मायावित्ताइं रोवमाणाइं' (सुर ६, २३५; १, २३६; धर्मंवि २१, महा)।
माया :: देखो मत्ता = मात्रा; 'नो अइमायाए पाणाभोयणं आहारेत्ता (उत्त १६, ८; औप; उव; कस)।
माया :: स्त्री [माया] १ कपट, छल, शाट्य. धोखा (भग; कुमा; ठा ३, ४; पाअ; प्रासू १७५) २ इन्द्रजाल (दे ३, ५३; उप ८२३) ३ मन्त्राक्षर-विशेष; 'ह्रीँ' अक्षर (सिरि १९७) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °णर पुं [°नर] पुरुष-वेश-धारी स्त्री-आदि (धर्मंसं १२७८)। °बीय न [°बीज] 'ह्रीँ' अक्षर (सिरि ४०१)। °मोस पुंन [°मृषा] कपट-पूर्वंक असत्य वचन (णाया १, १; पणह १, २; भग; औप)। °वत्तिअ, °वत्तीय वि [°प्रत्ययिक] कपट से होनेवाला, छल- मूलक (भग; ठा २, १; नव १७)। °वि वि [°विन्] मायायुक्त (पउम ८८, ११)। स्त्री. °वेणी (सुपा ६२७)
मायि :: वि [मायिन्] माया-युक्त, मायावी (उवा; पि ४०५)।
मार :: सक [मारय्] १ ताड़न करना। २ हिंसा करना। मारइ, मारेइ (आचा; कुमा; भग)। भवि. मारेहिसि (पि ५२८)। कर्मं. मारिज्जइ (उव)। वकृ. मारंत, मारेंत (भत्त ९२; पउम १०५, ७६)। कवकृ. मारिज्जंत (सुपा १५७)। संकृ. मारेत्ता (महा), मारि (अप) (हे ४, ४३९)। हेकृ. मारेउं (महा)। कृ. मारियव्व, मारेयव्व (पउम ११, ४२), मारिणिज्ज (उप ३५७ टी)
मार :: पुं [मार] १ ताड़न (सुपा २२६) २ मरण, मौत (आचा; सूअ २, २, १७; उप पृ ३०८) ३ यम, जम (सूअ १, १, ३, ७) ४ कामदेव, कंदर्पं (उप ७६८ टी) ५ चौथा नरक का एक नरकावास (ठा ४, ४ — पत्र २६५; देवेन्द्र १०) ६ वि. मारनेवाला (णाया १, १६ — पत्र २०२)। °वहू स्त्री [°वधू] रति (सुपा ३०४)
मार :: पुं [मार] मणि का एक लक्षण (राय ३०)।
मारग :: वि [मारक] मारनेवाला। स्त्री. °रिगा (कुप्र २३५)।
मारण :: न [मारण] १ ताड़न। २ हिंसा (भग; स १२१)
मारणअ :: (अप) वि [मारयितृ] मारनेवाला (हे ४, ४४३)।
मारणंतिअ :: वि [मारणान्तिक] मरण के अन्य समय का (सम ११; ११९; औप; उवा; कप्प)।
मारणया, मारणा :: स्त्री [मारणा] मारना (भग; पणङ १, १; विपा १, १)।
मारय :: देखो मारग (उव; संबोध ४३)।
मारा :: स्त्री [मारा] प्राणि-वध का स्थान, सूना (णाया १, १६ — -पत्र २०२)।
मारि :: स्त्री [मारि] १ रोग-विशेष, मृत्यु-दायक रोग (स २४२) २ मारण (आवम) ३ मौत, मृत्यु (उप ३२९)
मारि :: देखो मार = मारय्।
मारि :: वि [मारिन्] मारनेवाला (महा)।
मारिज्ज :: पुं [मारीच] रावण का एक सुभट (पउम ५९, ७)। देखो मारीअ।
मारिज्जि :: देखो मरिइ (पउम ८२, २६)।
मारिय :: वि [मारित] मारा हुआ (महा)।
मारिलग्गा :: स्त्री [दे] कुत्सित स्त्री (दे ६, १३१)।
मारिव :: पुंन [दे] गौरव, 'गौरवे मारिवे' (संक्षि ४७)।
मारिस :: वि [मादृश] मेरे जैसा (कुमा)।
मारी :: स्त्री [मारी] देखो मारि (स २४२)।
मारिअ :: पुं [मारीच] ऋषि-विशेष (अभि २४९)। देखो मारिज्ज।
मारीइ, मारीजि :: पुं [मारीचि] एक विद्याधर सामन्त राजा (पउम ८, १३२)। २ रावण का एक सूभट (पउम ५६, २७)
मारुअ :: पुं [मारुत] १ पवन, वायु (पाअ; सुपा २०४; सुर ३, ४०; १३, १९४; आप १४; महा) २ हनूमान का पिता (से २, ४४)। °तणय पुं [°तनय] हनूमान (से ४४; हे ३, ८७)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र- विशेष, वातास्त्र (पउम ५९, ६१)
मारुअ :: पि [मारुक] मरु देश का, मरु- संबन्धी; 'णो अमयवल्लरी मारुयम्मि कत्थइ थले होइ' (उप ९८६ टी)।
मारुइ :: पुं [मारुति] हनूमान (से १, ३७)।
माल :: अक [माल्] १ शोभना। २ वेष्टित होना। कृ. 'अच्चिसहस्समालणीयं' (णाया १, १ — पत्र ३८)
माल :: पुं [दे] १ आराम, बगीचा (दे ६, १४६) २ मञ्च, आसन-विशेष (दे ६, १४६; णाया १, १ — पत्र ६३; पंचा १३, १४) ३ वि. मञ्जु (दे ६, १४६)
माल :: पुं [दे. माल] १ देश-विशेष (पउम ९८, ६५) २ घर का उपरि-भाग, तला, मंजिल; गुजराती में 'मोळा' (णाया १, ९ — पत्र ५७; चेइय ४८१; पंचा १३, १४; ठा ३, ४ — पत्र १५९) ३ वनस्पति-विशेष (जं १)
माल° :: देखो माला। °गार वि [°कार] माली (उप पृ १६६)।
मालइ°, मालई :: स्त्री [मालती] १ लता-विशेष। २ पुष्प-विशेष (पउम ५३, ७९; पाअ; कुमा) ३ छन्द-विशेष (पिंग)
मालंकार :: पुं [मालङ्कार] वैरोचन बलीन्द्र के हस्ति-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक)।
मालणीय :: देखो माल = माल्।
मालय :: देखो माल = दे. माल (ठा ३, १ — पत्र १२३)।
मालव :: पुं [मालव] १ भारतीय देश-विशेष (इक; उप १४२ टी) २ मालव देश का निवासी मनुष्य (पणह १, १ — पत्र १४)
मालव :: पुं [मालव] म्लेच्छ-विशेष, आदमी को उठा ले जानेवाली एक चोर जाति (वव ४)।
मालवंत :: पुं [माल्यवत्] १ पर्वंत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ६९; ८०; सम १०२) २ एक रामकुमार (पउम ६, २२०)। °परि- याग, °परियाय पुं [°पर्याय] पर्वत-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०; ६९)
मालविणी :: स्त्री [मालविनी] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।
माला :: स्त्री [माला] १ फूल आदि का हार, 'मल्लं माला दाभं' (पाअ; स्वप्न ७२; सुपा ३१६; प्रासू ३०; कुमा) २ पंक्ति, श्रेणी (पाअ) ३ समूह; 'जलमालकद्दमालं' (सूअनि १६१) ४ छन्द-विशेष (पिंग)। °इल्ल वि [°वत्] माला वाला (प्राप्र)। °कारि वि [°कारिन्] माली, पुष्प-व्यवसायी। स्त्री. °णी (सुपा ५१०)। °गार वि [°कार] वही अर्थं (उप १४२; टी; अंत १८, सुपा ५६२; उप पृ १५९)। °धर पुं [°धर] प्रतिमा के ऊपर के भाग की रचना-विशेष (चेइय ९३)। °यार, °र देखो °कार (अंत १८; उप पृ १५७; गा ५९६)। स्त्री. °री (कुमा; गा ५९७)। °हरा स्त्री [°धरा] छन्द-विशेष (पिंग)
माला :: स्त्री [दे] ज्योत्सना, चन्द्रिका (दे ६, १२८)।
मालाकुंकुम :: न [दे] प्रधान कुंकम (दे ६, १३२)।
मालि :: स्त्री [मालि] वृक्ष-विशेष (सम १५२)।
मालि :: पुं [मालिन्] १ पाताल-लंका का एक राजा (पउम ६, २२०) २ देश-विशेष (इक) ३ वि. माली, पुष्प-व्यवसायी (कुमा) ४ शोभनेवाला (कुमा)
मालिअ :: पुं [मालिक] ऊपर देखो (दे २, ८; 'पणह १, २; सुपा २७३; उप पृ १५७)।
मालिअ :: वि [मालित] शोभित, विभूषित; परलोए पुण कल्लाणमालिआमालिआ कमेणेव' (सा २३; पाअ; उप २६४ टी)।
मालिआ :: स्त्री [मालिका, माला] देखो माला = माला (सा २३; स्वप्न ५३; औप; उवा)।
मालिज्ज :: न [मालीय] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)।
मालिणी :: स्त्री [मालिनी] १ माली का स्त्री (कुमा) २ शोभनेवाला (औप) ३ छन्द-विशेष (पिंग) ४ मालावाली (गउड)
मालिण्ण, मालिन्न :: न [मालिन्य] मलिनता (उप पृ २२; सुपा ३५२; ५८६)।
मालुग, मालुय :: पुं [मालुक] १ त्रान्द्रिय जन्तु- विशेष (सुख ३६, १३८) २ वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१; णाया १, २ — पत्र ७८)
मालुया :: स्त्री [मालुका] १ वल्ली, लता (सूअ १, ३, २, १०) २ वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)
मालुहाणी :: स्त्री [मालुधानी] लता-विशेष (गउड)।
मालूर :: पुं [दे. मालर] कपित्थ, कैथ का गाछ (दे ६, १३०)।
मालूर :: पुं [मालूर] १ बिल्व वृक्ष, बेल का गाछ (दे ३, १९; गा ५७९; गउड, कुमा) २ न. बेल का फल (पाअ; गउड)
माहव, माम्वह :: पुं [मातुल] मामा (पुष्पमाला ३२ श्लो° ८ भवभावना)।
माविअ :: वि [मापित] मापा हुआ (से ६, ६०; दे ८, ४८)।
मास :: देखो मंस = मांस (हे १, २९; ७०; कुमा; उप ७२८ टी)।
मास :: पुं [मास] १ महिना, तीस दिन का समय (ठा २, ४; उफ ७६८ टी; जी ३५) २ समय, काल; 'कालमासे कालं किच्चा' (विपा १, १; २; कुप्र ३५), 'पसवमासे' (कुप्र ४०४) ३ पर्वं — वनस्पति-विशेष; 'वीरुणा — (? णी) तह इकडे य मासे य' (पणण १ — -पत्र ३३) °उस देखो °तुस (राज)। °कप्प पुं [°कल्प] एक स्थान में महिना तक रहने का आचार (बृह ६)। °खमण न [°क्षपण] लगातार एक मास का उपवास (णाया १, १; विपा २, १; भग)। °गुरु न [°गुरु] तप-विशेष, एका- शन तप (संबोध ५७)। °तुस पुं [°तुष] एक जैन मुनि (विवे ५१)। °पुरी स्त्री [°पुरी] १ नगरी-विशेष, भृंगी देश की राजधानी (इक) २ 'वर्तं' देश की राजधानी; 'पावा भंगी य, मासपुरी वट्ठा' (पव २७५)। °पूरिया स्त्री [°पूरिका] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)। °लहु न [°लघु] तप-विशेष, 'पुरिमड्ढ' तप (संबोध ५७)
मास :: पुं [माष] १ अनार्यं देश-विशेष। २ देश-विशेष में रहनेवालाी मनुष्य-जाति (पणह १, १ — पत्र १४) ३ धान्य-विशेष, उड़द (दे १, ९८) ४ परिमाण विशेष, मासा (वज्जा १३०)। °पण्णी स्त्री [°पर्णी] वनस्पति विशेष (पणण १ — पत्र ३६)
मासल :: देखो मंसल (हे १, २९; कुमा)।
मासलिय :: वि [मांसलित] पुष्ट किया हुआ (गउड; सुपा ४७४)।
मासाहस :: पुं [मासाहस] पक्षि-विशेष, 'मासाहससउणिसमो किं वा चिट्ठामि घंघलिओ' (संवे ६; उव; उर ३, ३)।
मासिअ :: पुं [दे] पिशुन, खल, दुर्जंन (दे ६, १२२)।
मासिअ :: वि [मासिक] मास-सम्बन्धी (उवा; औप)।
मासिआ :: स्त्री [मातृष्वसृ] माँ की बहिन (धर्मंवि २२)।
मासु :: देखो मंसु = श्मश्रु (हे २, ८६)।
मासुरी :: स्त्री [दे] श्मश्रु, दाढ़ी-मूँछ (दे ६, १३०; पाअ)।
माह :: पुं [माघ] १ मास-विशेष, माघ का महिना (पाअ; हे ४, ३५७) २ संस्कृत का एक प्रसिद्ध कवि। ३ एक संस्कृत काव्य- ग्रंथ, शिशुपाल-वध काव्य (हे १, स १८७)
माह :: न [दे] कुन्द का फूल (दे ६, १२८)।
माहण :: पुंस्त्री [माहन, ब्राह्मण] हिंसा से निवृत्त, अहिंसक — १ मुनि, साधु, ऋषि। २ श्रावक, जैन उपासक। ३ ब्राह्मण (आचा; सूअ २, २, ४८; ५४; भघ १, ७; २, ५; प्रासू ८०; महा)। स्त्री. °णी (कप्प)। °कुंड न [°कुण्ड] मगध देश का एक ग्राम (आचू १)
माहप्प :: पुंन [माहात्म्य] १ महत्त्व, गौरव। २ महिमा, प्रभाव (हे १, ३३; गउड; कुमा; सुर ३, ५३; प्रासू १७)
माहप्पया :: स्त्री. ऊपर देखो (उप ७६८ टी)।
माहय :: पुं [दे] चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष (उत्त ३६, १४९)।
माहव :: पुं [माधव] १ श्रीकृष्ण, नारायण (गा ४४३; वज्जा १३०) २ वसन्त ऋतु। २ बैशाख मास (गा ७७७; रुक्मि ५३)। °प्पइणी स्त्री [°प्रणयिनी] लक्ष्मी (स ५२३)
माहविआ :: स्त्री [माधविका] नीचे देखो (पाअ)।
माहवी :: स्त्री [माधवी] १ लता-विशेष (गा ३२२; अभि १९९; स्वप्न ३९) २ एक राज-पत्नी (पउम ६, १२६; २०, १८४)
माहारयण :: न [दे] १ वस्त्र, कपड़ा। २ वस्त्र-विशेष (दे ६, १३२)
माहिंद :: पुं [माहेन्द्र] १ एक देव-लोक (सम ८) २ एक इन्द्र, माहेन्द्र देवलोक का स्वामी (ठा २, ३ — पत्र ८५) ३ ज्वर- विशेष; 'माहिंदजरो जाओ' (सुपा ६०६) ४ दिन का मुहुर्त्तं (सम ५१) ५ वि. महेन्द्र-सम्बन्धी (पउम ५५, १६)
माहिंदफल :: न [माहेन्द्रफल] इन्द्रयव, कौरेया का बीज (उत्तनि ३)।
माहिल :: पुं [दे] महिषी-पाल, भैंस चरानेवाला (दे ६, १३०)।
माहिवाय :: पुं [दे] १ शिशिर पवन (दे ६, १३१) २ माघ का पवन (षड्)
माहिसी :: देखो महिसी (कप्प)।
माही :: स्त्री [माघी] १ माघ मास की पूर्णिमा। २ माघ की अमावस्या (सुज्ज १०, ६)
माहुर :: वि [माथुर] मथुरा का (भत्त १४५)।
माहुर :: न [दे] शाक, तरकारी (दे ६, १३०)।
माहुर, माहुरय :: वि [माधुर, °क] १ मधुर रहसवाला। २ आम्ल रस से भिन्न रसवाला (उवा)
माहुरिअ :: न [माधुर्य] मधुरता (प्राकृ १९)।
माहुलिंग :: पुं [मातुलिङ्ग] १ बीजपूर वृक्ष; बीजौरानीबू का पेड़ (हे १, २४४; चंड) २ न. बीजौरे का फल (षड्; कुमा)
माहेसर :: वि [माहेश्वर] १ महेश्वर-भक्त (सिरि ४८) २ न. नगर-विशेष (पउम १०, ३४)
माहेसरी :: स्त्री [माहश्वरी] १ लिपि-विशेष (सम ३५) २ नगरी-विशेष (राज)
मि :: (अप) देखो अवि — अपि (भवि)।
मि° :: स्त्री [मृत्] मिट्टी, मट्टी; 'जह मिल्ले- वावगमादलाबुणोवस्समेव गइभावो' (विसे ३१४२)। °प्पिंड पुं [°पिण्ड] मिट्टी का पिंडा (अभि २००)। °म्मय वि [°मय] मिट्टी का बना हुआ (उप २४२; पिंड ३३४; सुपा २७०)।
मिअ :: देखो मय = मृग; 'सवणिंदियदोसेणं मिओ मओ वाहबाणेण' (सुर ८, १४२; उत्त १, ५; पणह १, १; सम ६०; रंभा, ठा ४, २; पि ५४)। °चक्क न [°चक्र] विद्या-विशेष, ग्राम-प्रवेश आदि में मृगों के दर्शन आदि से शुभाशुभ फल जानने की विद्या (सूअ २, २, २७)। °णअणी, °नयना स्त्री [°नयना] देखो मय-च्छी (नाट; सुर ६; १५३)। °मय पुं [°मद] कस्तूरी (रंभा ३५)। °रिउ पुं [°रिपु] सिंह (सुपा ५७१)। °वाहण पुं [°वाहन] भरतक्षेत्र के एक भावी तीर्थंकर (सम १५३)।
मिअ :: पुं [मृग] हरिण के आकार का पशु- विशेष, जो हरिण से छोटा और जिसके पुच्छ लम्बा होता है। °लोमिअ वि [°लोमिक] उसके बालों से बना हुआ (अणु ३५)।
मिअ :: देखो मित्त = मित्र (प्राप्र)।
मिअ :: वि [दे] अलंकृत, विभूषित (षड्)।
मिअ :: वि [मित] मानोपेत, परिमित (उत्त १६, ८; सम १५२; कप्प)। २ थोडा, अल्प; 'मिअं तुच्छं' (पाअ)। °वाइ वि [°वादिन्] आत्मा आदि पदार्थों को परिमित माननेवाला (ठा ८ — पत्र ४२७)।
मिअ :: देखो मिब = इव (गा २०६ अ; नाट)।
मिअ° :: देखो मिआ। °ग्गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष (विपा १, १)।
मिअआ :: स्त्री [मृगया] शिकार (नाट — शकु २७)।
मिअंक :: पुं [मृगाङ्क] १ चन्द्र, चाँद (हे १, १३०; प्राप्र; कुमा; काप्र १९४) २ चन्द्र का विमान (सुज्ज २०) ३ इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, ७)। °माणि पुं [°मणि] चन्द्रकान्त मणि (कप्पू)
मिअंग :: देखो मयंग = मृदंग (कप्पू)।
मिअसिर :: देख मगसिर (पि ५४)।
मिआ :: स्त्री [मृगा] १ राजा विजय की पत्नी (विपा १, १) २ राजा बलभद्र की पत्नी (उत्त १९, १) °उत्त, °पुत्त पुं [°पुत्र] १ राजा विजय का एक पुत्र (विपा १, १; कर्मं १५) २ राजा बलभद्र का एक पुत्र, जिसका दूसरा नाम बलश्री था (उत्त १९, २) °वई स्त्री [°वती] १ प्रथम वासुदेव की माता का नाम (सम १५२) २ राजा शतानीक की पटरानी का नाम (विपा १, ५)
मिइ :: स्त्री [मिति] १ मान, परिमाण। २ हद, अवधि; 'किं दुक्करमुवायाणं न मिई जमुवायसत्तीए' (धर्मंवि १४३)
मिइ :: देखो मिउ = मृत् (धर्मंसं ५५८)।
मिइंग :: देखो मयंग = मृदंग (हे १, १३७; कुमा)।
मिइंद :: देखो मइंद = मृगेन्द्र (अभि २४२)।
मिउ :: स्त्री [मृद्] मिट्टी, मट्टी; 'मउदंडचक्क- चीवरसामग्गीवसा कुलालुव्व' (सम्मत्त २२४), 'मिउपिंडो दव्वघडो सुसावगो तह य दव्वसाहु त्ति' (उप २५५ टी)।
मिउ :: वि [मृदु] कोमल, सुकुमार (औप; कुमा; सण)।
मिउ :: वि [मृदु] मनोज्ञ, सुन्दर; 'मिउमद्दव- संपन्ने' (णंदि ५२)।
मिंचण :: न [दे] मीचना, निमीलन (दे ३, ३०)।
मिंज°, मिंजा, मिंजिय :: स्त्री [मज्जा] १ शरीर-स्थित धातु- विशेष, हाड़ के बीच का अवयव- विशेष (पणह १, १ — पत्र ८; महा; उवा; औप) २ मध्यवर्त्ती अवयव; 'पेहुण- मिंजिया इवा' (पणण १७ — पत्र ५२९)
मिंठ, मिंठिल :: पुं [दे] हस्तिपक, हाथी का महावत (उप १२८ टी; कुप्र ३६८; महा; भत्त ७६; धर्मंवि ८१; १३५; मन १०; उप १३०)। देखो मेंठ।
मिंढ, मिंढय :: पुंस्त्री [मेढ्र] १ मेंढा, भेड़, मेष, गाडर (विसे ३०४ टी; उप पृ २०५; कुप्र १९२), 'ते य दरा मिंढया ते य' (धर्मंवि- १४०)। स्त्री. °ढिया (पाअ) २ न. पुरुष- लिंग, पुरुष-चिह्न (राज) °मुह पुं [°मुख] १ अनार्यं देश-विशेष (पव २७४) २ न. नगर-विशेष (राज)। देखो मेंढ।
मिंढिय :: पुं [मेण्ढिक] ग्राम-विशेष (कर्मं १)।
मिग :: देखो मय = मृग (विपा १, ७; सुर २, २२७; सुपा १९८; उव), 'सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा' (सूअ १, ६, २१)। °गंध पुं [°गन्ध] युगलिक मनुष्य की एक जाति (इक)। °नाह पुं [°नाथ] सिंह (सुपा ६३२)। °वइ पुं [°पति] सिंह (पणह १, १; सुपा ६३६)। °वालुंकी स्त्री [°वालुङ्की] वनस्पति-विशेष (पणण १७ — पत्र ५३०)। °रि पुं [°रि] सिंह (उव; सुर ६, २७०)। °हिव पुं [°धिप] सिंह (पणह २, ५)।
मिगया :: स्त्री [मृगया] शिकार (सुपा २१४; कुप्र २३; मोह ६२)।
मिगव्व :: न [मृगव्य] ऊपर देखो (उत्त १८, १)।
मिगसिर :: देखो मगसिर (सम ८; इक; पि ४३६)।
मिगावई :: देखो मिआ-वई (पउम २०, १८४ २२, ५५; उव; अंत, कुप्र १८३; पडि)।
मिगी :: स्त्री [मृगी] १ हरिणी (महा) २ विद्या-विशेष (राज)। °पद न [°पद] स्त्री का गुह्य स्थान, योनि (राज)
मिच्चु :: देखो मच्चु (षड्; कुमा)।
मिच्छ :: (अप) देखो इच्छ = ईष्; 'न उ देइ कप्पु मिच्छइ न न दंडु' (भवि)।
मिच्छ :: पुं [म्लेच्छ] यवन, अनार्य, मनुष्य (पउम २७, १८; ३४; ४१; ती १५; संबोध १६)। °पहु पुं [°प्रभु] म्लच्छों का राजा (रंभा)। °पिय न [°प्रिय] पलाण्डु, प्याज, लशुन; 'मिच्छप्पियं तु भुत्तं जा गंधो ता न हिडंति' (बृह ५)। °हिव पुं [°धिप] यवनों का राजा (पउम १२, १४)।
मिच्छ :: न [मिथ्य] १ असत्य वचन, झूठ। २ वि. असत्य, झूठा; 'मिच्छं ते एवमाहंसु' (भग), 'तं तहा, नेव मिच्छं' (पउम २३, २६) ३ मिथ्यादृष्टि, सत्य पर विश्वास नहीं रखनेवाला, तत्त्व का अश्रद्धालु; 'मिच्छो हियाहियविभागनाणसणणसमन्निओ कोइ' (विसे ५१९)
मिच्छ° :: देखो मिच्छा (कम्म ३, २; ४)। °कार पुं [°कार] मिथ्या-करण (आवम)। °त्त न [°त्व] सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा, सत्य धर्मं का अविश्वास (ठा ३, ३; आचू ६; भग; औप; उप ५३१; कुमा)। °त्ति वि [°त्विन्] सत्य धर्मं पर विश्वास नहीं करनेवाला, परमार्थ का अश्रद्धालु (दं १८)। °दिट्ठि, °दिट्ठीय, °द्दिट्ठि, °द्दिट्ठिय वि [°द्दष्टि, °क] सत्य धर्मं पर श्रद्धा नहीं रखनेवाला, जिन-धर्मं से भिन्न धर्मं को मानने- वावा (सम २६; कुमा; ठा २, २; औप; ठा १)।
मिच्छा :: अ [मिथ्या] १ असत्य, झूठा (पाअ) २ कर्मं-विशेष, मिथ्यात्व-मोहनीय कर्मं (कम्म २, ४; १४) ३ गुण- स्थानक विशेष, प्रथम गुण-स्थानक (कम्म २, २; ३; १३) °दंसण न [°दर्शन] १ सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा (सम ८; भग; औप) २ असत्य धर्मं (कुमा्)। °नाण न [°ज्ञान] असत्य ज्ञान, विपरीत ज्ञान, अज्ञान (भग)। °सुअ न [°श्रुत] असत्य श्राद्ध, मिथ्यादृष्टि-प्रणीत शास्त्र (णंदि)
मिज्ज :: अक [मृ] मरना। मिज्जंति (सूअ १, ७, ९)। वकृ. मिज्जमाण (भग)।
मिज्जंत, मिज्जमाण :: देखो मा = मा।
मिज्झ :: वि [मेध्य] शुचि, पवित्र (उप ७२८ टी)।
मिट :: सक [दे] मिटाना, लोप करना। मिटि- ज्जसु (पिंग)। प्रयो. मिटावह (पिंग)।
मिट्ठ :: वि [मिष्ट, मृष्ट] मीठा, मधुर; 'मुहमिट्ठा मणदुट्ठा वेसा सिट्ठाण कहमिट्ठा' (धर्मंवि ६५; कप्पू; सुर १२, १७; हे १, १२८, रंभा)।
मिण :: सक [मा, मी] १ परिमाण करना, नापना, तोलना। २ जानना, निश्चय करना। मिणइ (विसे २१८६), मिणसु (पव २५४)
मिणण :: न [मान] मान, माप, परिमाण (उफ पृ ६७)।
मिणाय :: न [दे] बलात्कार, जबरदस्ती (दे ६, ११३)।
मिणाल :: देखो मुणाल (प्राकृ ८; रंभा)।
मित्त :: पुं [मित्र] १ सूर्यं, रवि (सुपा ६४५; सुख ४, ६; पाअ; वज्जा १४४) २ नक्षत्रदेव- विशेष, अनुराधा नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३ — -पत्र ७७; सुज्ज १०, १२) ३ अहोरात्र का तीसरा मुहुर्त्तं (सम ५१; सुज्ज १०, १३) ४ एक राजा का नाम (विपा १, २) ५ पुंन. दोस्त, वयस्य, सखा; 'मित्तो सही वयंसो' (पाअ), 'पहाणामित्ता' (स ७०७), 'तिविहो मित्तो हवइ' (स ७१५; सुपा ६४५; प्रासू ७६)। °केसी स्त्री [°केशी] रुचक पर्वंत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी; 'अलंबुसा मित (? त्त) केसी' (ठा ८ — पत्र ४३७; इक)। °गा स्त्री [°गा] वैरोचन बलीन्द्र की एक अग्र-महिषी, एक इन्द्राणी (ठा ४, १ — पत्र २०४)। °णंदि पुं [°नन्दिन्] एक राजा का नाम (विपा २, १०)। °दाम पुं [°दाम] एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०)। °देवा स्त्री स्त्री [°देवा] अनुराधा नक्षत्र (राज)। °व वि [°वत्] मित्रवाला (उत्त ३, १८)। °सेण पुं [°सेन] एक पुरोहित-पुत्र (सुपा ५०७)
मित्त :: देखो मेत्त = मात्र (कप्प; जी ३१; प्रासू १४५)।
मित्तल :: पुं [दे] कन्दर्पं, काम (दे ६, १२६; सुर १३, ११८)।
मित्ति :: स्त्री [मति] १ मान, परिमाण। २ सापेक्षता; 'उस्सग्गवबायाणं मित्तीए अह ण भोयणं दुट्ठं। उस्सग्गवबायाणं मित्तीइ तहेव उवगरणं' (अज्झ ३७)
मित्तिआ :: स्त्री [मृत्तिका] मिट्टी, मट्टी (अभि २४३)। °वई स्त्री [°वती] दशार्ण देश की प्राचीन राजधानी (विचार ४८)।
मित्तिज्ज :: अक [मित्रीय्] मित्र को चाहना। वकृ. मित्तिज्जमाण (उत्त ११, ७)।
मित्तिय :: न [मैत्रेय्] १ गोत्र-विशेष, जो वत्स गोत्र की एक शाखा है। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)
मित्तिवय :: पुं [दे] ज्येष्ठ, पति का बड़ा भाई (दे ६, १३२)।
मित्ती :: स्त्री [मैत्री] मित्रता, दोस्ती (सूअ २, ७, ३६; श्रा १४; प्रासू ८)।
मिथुण :: देखो मिहुण (पउम ६९, ३१)।
मिदु :: देखो मिउ (अभि १८३; नाट — रत्ना ८०)।
मिरिअ :: पुंन [मिरिच] १ मरिच का गाछ। २ मिरच, मिर्चा (पणण १७ — पत्र ५३१; हे १, ४६; ठा ३, १ टी; पव २५९)
मिरिआ :: स्त्री [दे] कुटी, झोंपडी (दे ६, १३२)।
मिरिइ, मिरी, मिरीइ, मिरीय :: पुंस्त्री [मरीचि] किरण, प्रभा, तेज; 'चंचलमिरिइकवयं' (औप), 'सप्पहा सिमिरि (? री) या' (औप), 'निक्कंकडच्छाया समिरीया' (औप; ठा ४, १ — पत्र २२९), 'विज्जघणमिरीइसुर- दिप्पंततेय — ' (औप), 'सूरमिरीयकवयं विणिम्मुयंतेहिं' (पणह १, ४ — पत्र ७२)।
मिल :: अक [मिल्] मिलना। मिलइ (हे ४, ३३२; रंभा; महा)। कर्मं. मिलिज्जइ (हे ४, ४३४)। वकृ. मिलंत (से १०, १६)।
मिलक्खु :: /?/पुंन. देखो मिच्छ = म्लेच्छ (ओघ ४४०; धर्मंसं ५०८; ती १५; उत्त १०, १६), 'मिलक्खूणि' (पि ३८१)।
मिलण :: न [मिलन] मेल, मिलाना, एकत्रित होना; 'लोगमिलणिम्मि' (उप ५७८; सुपा २५०)।
मिलणा :: स्त्री. ऊपर देखो (उप १२८ टी; उप ७०९)।
मिला, मिलाअ :: अक [म्लै] म्लान होना, निस्तेज होना। मिलाइ, मिलाअइ (दे २, १०६; ४, १८; २४०; षड्)। वकृ. मिला- अंत, मिलाअमाण (पि १३६; ठा ३, ३; णाया १, ११)।
मिलाअ, मिलाण :: वि [म्लान] निस्तेज, विच्छाय (णाया १, १ — पत्र ३७; स ४२५; हे २, १०६, कुमा; महा)।
मिलाण :: न [दे] पर्याण (?) ' — थासगमिला- णचमरोगंड़परिमंडियकडीणं' (औप)।
मिलाणि :: स्त्री [म्लानि] विच्छायता (उप १४२ टी)।
मिलिअ :: वि [मिलित] मिला हुआ (गा ४४३; कुमा)।
मिलिअ :: वि [मेलित] मिलाया हुआ (कुमा)।
मिलिच्छ :: देखो मिच्छ = म्लेच्छ (हे १, ८४; हम्मीर ३४)।
मिलिट्ठ :: वि [म्लिष्ट] १ अस्पष्ट वाक्यवाला। २ म्लान। ३ न. अस्पष्ट वाक्य (प्राकृ २७)
मिलिमिलिमिल :: अक [दे] चमकना। वकृ. मिलिमिलिमिलंत (पणह १, ३ — पत्र ४४)।
मिलीण :: देखो मिलिअ (ओधभा २२ टी)।
मिल्ल :: सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना। मिल्लइ (भवि)। वकृ. मिल्लंत (सुपा ३१७)। कृ. मिल्लेव (अप) (कुमा)। प्रयो., कवकृ. मिल्लाविज्जंत (कुप्र १९२)।
मिल्लाविअ :: वि [मोचित] छुड़ाया हुआ (सुपा ३८८; हम्मीर १८; कुप्र ४०१)।
मिल्लिअ :: (अप) देख मिलिअ (पिंग)।
मिल्लिर :: वि [मोक्तृ] छोड़नेवाला (कुमा)।
मिल्ह :: देखो मिल्ल। मिल्हइ (आत्मानु २२), मिल्हंति (कुप्र १७)। भवि. मिल्हिस्सं (कुप्र १०)। कृ. मिल्हियव्व (सिरि ३५७)।
मिल्हिय :: वि [मुक्त] छोड़ा हुआ (श्रा २७)।
मिव :: देखो इव (हे २, २८२; प्राप्र; कुमा)।
मिस :: सक [मिस्] शब्द करना। वकृ. मिसंत (तंदु ४४)।
मिस :: न [मिष] बहाना, छल, व्याज (चेइय ८३१; सिक्खा २९; रंभा; कुमा)।
मिसमिस :: अक [दे] १ अत्यन्त चमकना। २ खूब जलना। वकृ. मिसमिसंत (णाया १, १ — पत्र १९; तंदु २९; उप ६४८ टी)
मिसल :: (अप) सक [मिश्रय्] मिश्रण करना, मिलाना। मराठी में 'मिसलणें'। मिसलइ (भवि)।
मिसल :: (अप) देखो मीस, मीसालिअ (भवि)।
मिसिमस :: देखो मिसमिस वकृ. मिसि- मिसंत, मिसिमिसिंत, मिसिमिसिमाण, मिसिमिसीयमाण, मिसिमिसेंत मिसि- मिसेमाण (औप, कप्प; पि ५५८; उवा; पि ५५८; णाया १, १ — पत्र ६४)।
मिसिमिसिय :: वि [दे] उद्दीप्त, उत्तेजित (सुर ३, ५०)।
मिस्स :: सक [मिश्रय्] मिश्रण करना, मिलाना। मिस्सइ (हे ४, २८)।
मिस्स :: देखो मीस = मिश्र (भग)।
°मिस्स :: पुं [°मिश्र] पूज्य, पूजनीय; 'वसिठ्ठ- मिस्सेसु' (उत्तर १०३)।
मिस्साकूर :: पुंन [मिश्राकूर] खाद्य-विशेष, 'अणुराहाहिं मिस्साकूरं भोच्चा कज्जं साधेंति' (सुज्ज १०, १७)।
मिह :: अक [मिध्] स्नेह करना। मिहसि (सुर ४, २१)।
मिह :: देखो मिस = मिष; 'निग्गओ अलियगा- मंतरगमणामिहेण' (महा)।
मिह :: देखो मिहो (आचा)।
मिहिआ :: स्त्री [दे] मेघ-समूह (दे ६, १३२)। देखो महिआ।
मिहिआ :: स्त्री [मेघिका] अल्प मेघ (से ४, १७)। देखो महिआ।
मिहिर :: पुं [मिहिर] सूर्यं, रवि (उप पृ ३५०; सुपा ४१६; धर्मा ५), 'सायरनिसायराणं मेहसिंहडीण मिहिरनलिणीणं। दूरेवि वसंताणं पडिवन्नं नन्नहा होइ' (उप ७२८ टी)।
मिहिला :: स्त्री [मिथिला] नगरी-विशेष (ठा १०; पउम २०, ४५; णाया १, ८ — पत्र १२४; इक)।
मिहु, महुं :: देखो मिहो (उप ९४७; आचा)।
मिहुण :: न [मिथुन] १ स्त्री-पुरुष का युग्म, दंपती (हे १, १८७; पाअ; कुमा) २ ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि (विचार १०६)
मिहो :: अ [मिथस्] परस्पर, आपस में (उप ९७६; स ५३६; पि ३४७)।
मीअ :: न [दे] समकाल, उसी समय (दे ६, १३३)।
मीण :: पुं [मीन] १ मत्स्य, मछली (पाअ; गउड; ओघ ११६; सुर ३; ५३; १३, ४६) २ ज्योतिष-प्रसिद्ध राशि-विशेष (सुर ३, ५३; विचार १ ६; संबोध ५४)
मीत :: देखो मित्त = मित्र (संक्षि १७)।
मीमंस :: सक [मीमांस्] विचार करना। कृ. 'अ-मीमंसा गुरू' (स ७३०)।
मीमंसा :: स्त्री [मीमांसा] जैमिनीय दर्शंन, पूर्वंमीमांसा (सुख ३, १; धर्मवि ३८)।
मीमंसिय :: वि [मिमांसित] विचारित (उप ९८६ टी)।
मीरा :: स्त्री [दे] दीर्घं चुल्ली, बड़ा चुल्हा (सूअनि ७६)।
मील :: अक [मील्] मीचाना, बन्द होना, सकुचाना। मीलइ (हे ४, २३२; षड्)।
मील :: देखो मिल (वि ११)।
मीलच्छीकार :: पुं [मीलच्छ्रीकार] १ यवन देश-विशेष, 'मीलच्छीकारदेसोवरि चलिदो खप्परखाणराया' (हम्मीर ३५) २ एक यवन राजा (हम्मीर ३५)
मीलण :: न [मीलन] संकोच (कुमा)।
मीलण :: देखो मिलण; 'खणजडणमणमीलणोवमा विसया' (व ११; राज)।
मीलिअ :: देखो मिलिअ = मिलित (पिंग)।
मीस :: सक [मिश्रय्] मिलाना, मिश्रण करना। कर्मं. मीसिज्जइ (पि ६४)।
मीस :: वि [मिश्र] १ संयुक्त, मिला हुआ, मिश्रित (हे १, ४३; २, १७०; कुमा; कम्म २, १३, १५; ४, १३; १७; २४; भग; औप; दं २२) २ न. लगातार तीन दिनों का उपवास (संबोध ५८)
मीसालिअ :: वि [मिश्र] संयुक्त, मिला हुआ (हे २, १७०; कुमा)।
मीसिय :: वि [मिश्रित] ऊपर देखो (कुमा; कप्प; भवि)।
मुअ :: सक [मोदय्] खुश करना। कवकृ. मुइज्जंत (से ७, ३७)।
मुअ :: सक [मुच्] छोड़ना। मुअइ (हे ४, ९१), मुअंति (गा ३१९)। वकृ. मुअंत, मुयमाण (गा ६४१; से ३, ३९; पि ४८५)। संकृ. मुइत्ता (भग)।
मुअ :: वि [मृत] मरा हुआ (से ३, १२; गा १४२; वज्जा १५८; प्रासू ५७; पउम १८; १९; उप ६४८ टी)। °वहण न [°वहन] शव-यान, ठठरी, अरथी (दे २, २०)।
मुअ :: वि [स्मृत] याद किया हुआ (सूअ २, ७, ३८; आचा)।
मुअंक :: देखो मिअंक (प्राकृ ८)।
मुअंग :: देखो मिअंग (षड्; सम्मत्त २१८)।
मुअंगी :: स्त्री [दे] कीटिका, चींटी (दे ६, १३४)।
मुअग्ग :: पुं [दे] 'आत्मा बाह्य और अभ्यन्तर पुद्गलों से बना हुआ हैं' ऐसा मिथ्या ज्ञान (ठा ७ टी — पत्र ३८३)।
मुअण :: न [मोचन] छुटकारा, छोड़ना (सम्मत्त ७८; विसे ३३१९; उप ५२०)।
मुअल :: (अप) देखो मु्अ = मृत (पिंग)।
मुआ :: स्त्री [मृत्] मिट्टी (संक्षि ४)।
मुआ :: स्त्री [मुद्] हर्षं, खुशी, आनन्द; 'सुरयरसाओवि मुयं अहियं उवजणइ तस्स सा एसा' (रंभा)।
मुआइणी :: स्त्री [दे] डुम्बी, डोमिन, चाण्डालिन (दे ६, १३५)।
मुआविअ :: वि [मोचित] छुड़वाया हुआ (स ४४६)।
मुइ :: वि [मोचिन्] छोड़नेवाला (विसे ३४०२)।
मुइअ :: वि [मुदित] १ हर्षित, मोद-प्राप्त (सुर ७, २२३; प्रासू १०५; उव; औप) २ पुं. रावण का एक सुभट; (पउम ५६, ३२)
मुइअ :: वि [दे] योनि-शुद्ध, निर्दोष मातावाला; 'मुइओ जो होई जोणिसुद्धो' (औप — टी)।
मुइअंगा :: देखो मुअंगी; 'उवलिप्पंते काया मुइअंगाई नवरि छट्ठे' (पिंड ३५१)।
मुइंग :: देखो मिअंग (हे १, ४६; १३७; प्राप्र; उवा; कप्प; सुपा ३९२; पाअ)। °पुक्खर पुंन [°पुष्कर] मृदंग का ऊपरवाला भाग (भग)।
मुइंगलिया, मुइंगा :: स्त्री [दे] कोटिका, चींटी (उप १३४ टी; संथा ८६; विसे १२०८; पिंड ३५१ टी)।
मुइंगि :: वि [मृदङ्गिन्] मृदंग बजानेवाला (कुमा)।
मुइंद :: देखो मइंद = मृगेन्द्र (प्राकृ ८)।
मुइज्जंत :: देखो मुअ = मोदय्।
मुइर :: वि [मोक्तृ] छोड़नेवाला (सण)।
मुउ :: देखो मिउ (काल)।
मुउउंद :: पुं [मुचुकुन्द] १ नृप-विशेष (अच्चु ६६) २ पुष्पवृक्ष-विशेष (कप्पू)
मुउंद :: पुं [मुकुन्द] विष्णु, नारायण (नाट — चैत १२९)।
मुउर :: देखो मउर = मुकुर (षड्)।
मुउळ :: देखो मउल = मुकुल (षड्; मुद्रा ८४)।
मुंगायण :: न [मृङ्गायण] गोत्र-विशेष, विशाखा नक्षत्र का गोत्र (इक)।
मुंच :: देखो मुअ = मुच्। मुंचइ, मुंचए (षड्; कुमा)। भूका. मुंची (भत्त ७६)। भवि. मोच्छं, मोच्छहि, मुंचिहिइ (हे ३, १७१; पि ५२९)। कर्म. मुच्चइ; मुच्चए, मुच्चंति (आचा; हे ४, २०६, महा; भग)। भवि. मुच्चिहिति (भग)। वकृ. मुंचंत (कुमा)। कवकृ. मुच्चंत (पि ५४२)। संकृ. मोत्तुं, मोत्तुआण, मोत्तूण (कुमा; षड्; प्राकृ ३४)। हेकृ. मोत्तं (कुमा), मुंचणाहि (अप) (कुमा)। कृ. मोत्तव्व, मुत्तव्व (हे ४, २१२; गा ६७२; सुपा ५८९)।
मुंज :: पुंन [मुञ्ज] मूँज, तृण-विशेष, जिसकी रस्सी बनाई जाती है (सूअ २, १, १६; गच्छ २, ३६; उफ ६४८ टी। °मेहला स्त्री [°मेखला] मूँज का कटिसूत्र (णाया १; १६ — पत्र २१३)।
मुंजइ :: न [मौञ्जकिन्] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री, गेत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)
मुंजकार :: पुं [मुञ्जकार] मूँज की रस्सी बनानेवाला शिल्पी (अणु १४९)।
मुंजायण :: पुं [मौञ्जायन] ऋषि-विशेष (हे १, १६०; प्राप्र)।
मुंजि :: पुं [मौञ्जिन्] ऊपर देखो (प्राकृ १०)।
मुंट :: वि [दे] हीन शरीरवाला, 'डे बंभचेरभट्ठा पाए पाडंति बंभयारीणं। ते हंति टुंटमुंटा बोहीवि सुदुल्लहा तेसिं' (संबोध १४)।
मुंड :: सक [मुण्डय्] १ मूँडना, बाल उखाड़ना। २ दीक्षा देना, संन्यास देना। मुंडइ (भवि), मुंडेह (सूअ २, २, ६३)। प्रयो., वकृ. मुंडावेंत (पंचा १०, ४८ टी)। हेक. मुंडावेउं, मुंडावित्तए, मुंडावेत्तए (पंचा १०, ४८; ठा २, १; कस)
मुंड :: पुंन [मुण्ड़] १ मस्तक, सिर (हे ४, ४४६; पिं ग) २ वि. मुण्डित, दीक्षित, प्रव्रजित (कप्प; उवा; पिंड ३१४)। °परसु पुं [°परशु] नंगा कुल्हाडा, तीक्ष्ण कुठार (पणह १, ३ — पत्र ५४)
मुंडण :: न [मुण्डन] केशों का अपनयन (पंचा २, २; स २७१; सुर १२, ४५)।
मुंडा :: स्त्री [दे] मृगी, हरिणी (दे ६, १३३)।
मुंडाविअ :: वि [मुण्डित] मूँड़ाया हुआ (भग, महा; णाया १, १)।
मुंडि :: वि [मुण्डिन्] मुण्डन करनेवाला (उव, औप; भत्त १००)।
मुंडिअ :: वि [मुण्डित] मुण्डन-युक्त (भग; उप ६३४; मह)।
मुंडी :: स्त्री [दे] नोरङ्गी, शिरो-वस्त्र, घूँघट (दे ६, १३३)।
मुंढ, मुंढाण :: पुं [मूर्धन्] मूर्धा, मस्तक, सिर (हे १, २६; २, ४१; षड्)। देखो मुद्ध = मूर्धन्।
मुकलाव :: सक [दे] भेजवाना, गुजराती में 'मोकलाववुं'। संकृ. मुकलाविऊण (सिरि ४७४)।
मुकुर :: पुं [मुकुर] दर्पंण, आईना (दे १, १४)।
मुक्क :: (अप) सक [मुच्] छोड़ना; गुजराती में 'मूकवूं'। मुक्कइ (प्राकृ ११९)। संकृ. मुक्किअ (नाट — चैत ७६)।
मुक्क :: वि [मूक] वाक्-शक्ति से रहित, गूँगा (हे २, ९९; सुपा ५५२; षड्)।
मुक्क :: देखो मुक्कल (विस ५५०)।
मुक्क :: वि [मुक्त] १ छोड़ा हुआ, त्यक्त (उवा; सुपा ४७५; महा; पाअ) २ मुक्ति-प्राप्त, मोक्ष- प्राप्त (हे २, २) ३ लगतार पाँच दिन का उपवास (संबोध ५८)। देखो मुत्त = मुक्त।
मुक्कय :: न [दे] दुलहिन के अतिरिक्त अन्य निमन्त्रित कन्याओं का विवाह (दे १, १३५)।
मुक्कल :: वि [दे] १ उचित, योग्य (दे ६, १४७) २ स्वैर, स्वतन्त्र, बन्धन-मुक्त (दे ६, १४७; सुर १, २३३; विसे १८; गउड; सिरि ३५३; पाअ; सुपा १९८)
मुक्कलिअ :: वि [दे] बन्धन-मुक्त किया हुआ; अनियन्त्रित (दे १, १५६ टी)।
मुक्कुंडी :: स्त्री [दे] जूट (दे ६, ११७)।
मुक्कुरुड :: पुं [दे] राशि, ढेर (दे ६, १३६)।
मुकेलय :: देखो मुक्क = मुक्त (अणु १९८)।
मुक्ख :: पुं [मोक्ष्] १ मुक्ति, निर्वाण (सुर १४, ६५; हगे २, ८९; सार्धं ८६) २ छुटकारा; 'रिणमुक्खं' (रयण ६५; धर्मंवि २१)
मुक्ख :: वि [मूर्ख] अज्ञानी; बेवकूफ (हे २, ११२; कुमा; गा ८२; सुपा २३१)।
मुक्ख :: वि [मुख्य] प्रधान, नायक (हास्य १२५)।
मुक्ख :: पुंन [मुष्क] १ अण्डकोष। २ वृक्ष-विशेष। ३ चोर, तस्कर। ४ वि. मांसल पुष्ट (प्राप्र)
मुक्खण :: देखो मोक्खण (सिक्खा ४५)।
मुक्खणी :: स्त्री [मोक्षणी] स्तम्भन से छुटकारा करनेवाली विद्या-विशेष (धर्मवि १२४)।
मुख :: देखो मुह = मुख (प्रासू ६; राज)।
मुख :: पुं [मुख] १ एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२) २ गाड़ी के ऊपर का ढक्कन (अणु १५१)
मुग :: देखो मुग्ग; 'एगमुगभरुव्वहणे असमत्थो किं गिरिं वहइ' (सुपा ४६१)।
मुगुंद :: देखो मउंद = मुकुन्द (आचा २, १, २, ४; विसे ७८ टी)।
मुगुंस :: पुंस्त्री [दे] हाथ से चलनेवाले जन्तु की एक जाति, भुजपरिसर्प-जातीय एक प्राणी (पणह १, १ — पत्र ८)। स्त्री. °सा (उवा)। देखो मंगुस, मुग्गस।
मुग्ग :: पुं [मुद्ग] १ धान्य-विशेष, मूँग (उवा) २ रोग-विशेष (ति १३) ३ पक्षि-विशेष, जल-जाक (प्राप्र)। °पण्णी स्त्री [°पर्णिी] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)। °सेल पुं [°शैल] पर्वंत-विशेष कभी नहीं भींगनेवाला एक पर्वंत (उप ७२८ टी)
मुग्गड :: पुं [दे] मोगल, म्लेच्छ-जाति विशेष (हे ४, ४०९)। देखो मोग्गड।
मुग्गर :: न [मुद्गर] १ पुष्प-विशेष (वज्जा १०६) २ देखो मोग्गर (प्राप्र; आप ३६; कप्प)
मुग्गरय :: न [दे. मुग्धारत] मुग्धा के साथ रमण (वज्जा १०६)।
मुग्गल :: देखो मुग्गड (ती १५)।
मुग्गस :: पुं [दे] नकुल, न्यौला (दे ६, ११८)।
मुग्गाह :: अक [प्र + सृ] फैलना। मुग्गाहइ (?) (धात्वा १४८)।
मुग्गिल, मुग्गिल्ल :: पुं [दे] पर्वंत-विशेष (ती ७; भत्त १६१)।
मुग्गुलसु :: देखो मुग्गस (दे ६, ११८)।
मुग्घड :: देखो मुग्गड (हे ४, ४०९)।
मुग्घुरुड :: देखो मुक्कुरुड (दे ६, १३६)।
मुचकुंद, मुचुकुंद :: देखो मुउउंद (सुर २, ७६; कुमा)।
मुच्छ :: अक [मूर्च्छ्] १ मूर्छित होना। २ आसक्त होना। ३ बढना। मुच्छइ, मुच्छए (कस; सूअ १, १, ४, २)। वकृ. मुच्छंत, मुच्छमाण (गा ५४६; आचा)
मुच्छणा :: स्त्री [मृर्च्छना] गान का अंग (ठा ७ — पत्र ३९५)।
मुच्छा :: स्त्री [मूर्च्छा] १ मोह (ठा २, ४; प्रासू १७९) २ अचेतनावस्था, बेहोशी (उव; पडि) ३ गृद्धि, आसक्ति (सम ७१) ४ मूर्च्छना, गीत का एक अंग (ठा ७ — पत्र ३९३)
मुच्छाविअ :: वि [मूर्छित] मूर्छा-युक्त किया हुआ (से १२, ३८)।
मुच्छिअ :: वि [मूर्छित] १ मूर्छा-युक्त (प्रासू ५७; उवा) २ पुं. नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २७)
मुच्छिज्जंत :: वि [मूर्च्छायमान] मूर्च्छा को प्राप्त होना (से १३, ४३)।
मुच्छिम :: पुं [मूर्च्छिम] मत्स्य-विशेष, 'वायाए काएणं मणरहिआणं न दारुणं कम्मं। जोअआणसहस्समाणो मुच्छिममच्छो उआहरणं' (मन ३)।
मुच्छिर :: वि [मूर्च्छितृ] १ बढ़नेवाला। २ बेहोशीवाला (कुमा)
मुज्झ :: अक [मुह्] १ मोह करना। २ घबड़ाना। मुज्झइ (आचा; उव; महा)। भवि. मुज्झिहिति (औप)। कृ. मुज्झियव्व (पणह २, ५ — पत्र १४९; उव)
मुट्टिम :: पुंस्त्री [दे] गर्वं, अहंकार, गुजराती में 'मोटाई'; 'कयमुट्टिमंगीकारो' (हम्मीर ३५)। देखो मोट्टिम।
मुट्ठ :: वि [मुष्ट, मुषित] जिसकी चोरी हुई हो वह (पिंड ४९६; सुर २, ११२; सुपा ३६१; महा)।
मुट्ठि :: पुंस्त्री [मुष्टि] मुट्ठी, मूठी, घूँसा, मुक्का; 'मुट्ठिणा', मुट्ठीअ' (पि ३७९; ३८५; पाअ; रंभा; भवि)। °जुज्झ न [°युद्ध] मुष्टि से की जाती लड़ाई, मूकामूकी (आचा)। °पुत्थय न [°पुस्तक] १ चार अंगुल लम्बा वृत्ताकार पुस्तक। २ चार अंगुल लम्बा चतुष्कोण पुस्तक (पव ८०)
मुट्ठिअ :: पुं [मौष्टिक] १ अनार्यं देश-विशेष। २ एक अनार्य मनुष्य-जाति (पणह १, १ — पत्र १४) ३ मुट्ठी से लड़नेवाला मल्ल (पणह २, ५ — पत्र १४९) ४ वि. मुष्टि- सम्बन्धी (कप्प)
मुट्ठिअ :: पुं [मुष्टिक] १ मल्ल-विशेष, जिसको बलदेव ने मारा था (पणह १, ४ — पत्र ७२; पिंग) २ अनार्य देश-विशेष। ३ एक अनार्य मनुष्य जाति (इक)
मुट्ठिका :: स्त्री [दे] हिक्का, हिचकी (दे ६, १३४)।
मुड्ढ :: देखो मुंढ (कुमा)।
मुड्ढ :: वि [मुग्ध, मूढ] मूर्ख, बेवकूफ (हम्मीर ५१)।
मुण :: सक [ज्ञा, मुण्] जानना। मुणइ, मुणंति, मुणिमो (हे ४, ७; कुमा)। कर्मं. मुणिज्जइ (हे ४, २५२), मुणिज्जामि (हास्य १३८)। वकृ. मुणंत, मुणिंत (महा; पउम ४८, ६)। कवकृ. मुणिज्जमाण (से २, ३६)। संकृ. मुणिय, मुणिउं, मुणि- ऊण, मुणेऊणं (औप; महा)। कृ. मुणिअव्व मुणेअव्व (कुमा; से ४, २४; नव ४२; कप्प; उव; जी ३२)।
मुणण :: न [ज्ञान मुणन] ज्ञान, जानकारी (कुप्र १८४; संबोध २५; धर्मवि १२५; सण)।
मुणमुण :: सक [मुणमुणाय्] अव्यक्त शब्द करना, बड़बड़ाना। वकृ. मुणमुणंत, मुणमुणिंत (महा)।
मुणाल :: पुंन [मृणाल] १ पद्मकन्द के ऊपर की बेल — लता (आचा २, १, ८, ११) २ बिस, पद्मनाल। ३ पद्म आदि के नाल का तन्तु — सूत्र (पाअ; णाया १, १३; औप) ४ वीरण का मूल। ५ पद्म, कमल; 'मुणालो', 'मृणालं' (प्राप्र; हे १, १३१)
मुणालि :: पुं [मुणालिन्] १ पद्म-समूह। २ पद्म-युक्त प्रदेश, कमलवाला स्थान; 'मुणाली बाणाली' (सुपा ४१३)
मुणालिआ, मुणाली :: स्त्री [मुणालिका, °ली] १ बिस-तन्तु, कमल-नाल का सूता (नाट — रत्ना २६) २ बिस का अंकुर (गउड) ३ कमलिनी (राज)। देखो मणालिया।
मुणि :: पुं [मुनि] १ राग-द्वेष-रहित मनुष्य, संत, साधु, ऋषि, यति (आचा; पाअ; कुमा; गउड) २ अगस्त्य ऋषि; 'जलहिजलं व मुणिणा' (सुपा ४८९) ३ सात की संख्या। ४ छन्द-विशेष (पिंग) °चंद पुं [°चन्द्र] १ एक प्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रंथकार, जो वादी देवसूरि के गुरु थे (धम्मो २५) २ एक राज-पुत्र (महा) °नाह पुं [°नाथ] साधुओं का नायक (सुपा १९०; २५०)। °पुंगव पुं [°पुङ्गव] श्रेष्ठ मुनि (सुपा ९७; श्रु ४१)। °राय पुं [°राज] मुनि-नायक (सुपा १९०)। °वइ पुं [°पति] वही अर्थं (सुपा १८१, २०६)। °वर पुं [°वर] श्रेष्ठ मुनि (सुर ४, ५६, सुपा २४४)। °वेजयंत पुं [°वैजयन्त] मुनि- प्रधान, श्रेष्ठ मुनि (सूअ १, ६, २०)। °सीह पुं [°सिंह] श्रेष्ठ मुनि (पि ४३६)। °सुव्वय पुं [°सुव्रत] १ वर्तमाने काल में उत्पन्न भारतवर्ष के बीसवें तीर्थंकर (सम ४३) २ भारतवर्ष के एक भावी तीर्थंकर (सम १५३)
मुणि :: पुं [दे. मुनि] वृक्ष-विशेष, अगस्ति- द्रुम (दे ६, १३३; कुमा)।
मुणिअ :: वि [ज्ञात, मुणित] जाना हुआ (हे २, १९९; पाअ; कुमा; अवि १६; पणह १, २; उप १४३ टी)।
मुणिअ :: वि [दे. मुणिक] ग्रह-गृहीत, भूता- विष्ट, पागल (भग १५ — पत्र ६६५)।
मुणिंद :: पुं [मुनीन्द्र] श्रेष्ठ मुनि (हे १, ८४; भग)।
मुणिर :: वि [ज्ञातृ, मुणितृ] जाननेवाला (सण)।
मुणीश :: पुं [मुनीश] मुनि-नायक (उप १४१ टी; भवि)।
मुणीसर :: पुं [मुनिश्वर] ऊपर देखो (सुपा ३६६)।
मुणीसिम :: (अप) पुंन [मनुष्यत्व] १ मनुष्यपन। २ पुरुषार्थं (हे ४, ३३०)
मुत्त :: सक [मूत्रय्] मूतना, पेशाब करना। मुत्तंति (कुप्र ९२)।
मुत्त :: न [मूत्र] प्रस्रवण, पेशाब (सुपा ६१९)।
मुत्त :: देखो मुक्क = मुक्त (सम १; से २, ३०; जी २)। °लिय स्त्री [°लय] मुक्त जोवों का स्थान, ईषत्प्राग्भारा नामक पृथिवी (इक)। स्त्री. °या (ठा ८ — पत्र ४४०; सम २२)।
मुत्त :: वि [मृर्त] १ मूर्तिवाला, रूपवाला, आकारवाला (चैत्य ६१) २ कठिन। ३ मूढ़। ४ मूर्च्छा-युक्त (हे २, ३०) ५ पुं. उपवास, एक दिन का उपवास (संबोध ५८) ६ एक प्राण का नाम (कप्प)
मुत्त° :: देखो मुत्ता (औप; पि ९७; चैत्य १४)।
मुत्तव्व :: देखो मुंच।
मुत्ता :: स्त्री [मुक्ता] मोती, मौक्तिक (कुमा)। °जाल न [°जाल] मुक्ता-समूह, मोतियों की माला (औप; पि ९७)। °दाम न [°दामन्] मोतियों की माला (ठा ४, २)। °वलि, °वली स्त्री [°वलि, °ली] १ मोती का माला, मोती का हार (सम ४४; पाअ) २ तप-विशेष (अतं ३१) ३ द्वीप- विशेष। ४ समुद्र-विशेष। °सुत्ति स्त्री [°शुक्ति] १ मोती की शाप। २ मुद्रा-विशेष (चेइय २४०; पंचा ३, २१)। °हल न [°फल] मोती (हे १, २३६; कुमा; प्रासू २)। °हलिल्ल वि [°फलवत्] मोतीवाला (कप्पू)
मुत्ति :: स्त्री [मूर्त्ति] १ रूपस आकार; 'मुत्ति- विमुत्तेसु' (पिंड ५६; विसे ३१८२) २ प्रतिबिम्ब, प्रतिमूर्त्ति, प्रतिमा; 'चउमुहमुत्ति- चउक्कं' (संबोध २) ३ शरीर, देह (सुर १, ३; पाअ) ४ काठिन्य, कठिनत्व (हे २, ३०; प्राप्र)। °मंत वि [°मत्] मूर्त्तिवाला, मूर्त्तं, रूपी (धर्मंवि ६; सुपा ३८९; श्रु ९७)
मुत्ति :: स्त्री [मुक्ति] १ मोक्ष, निर्वाण (आचा; पाअ; प्रासू १५५) २ निर्लोभता, संतोष (श्रा ३१) ३ मुक्त जीवों का स्थान, ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (ठा ८ — पत्र ४४०) ४ निस्संगता (आचा)
मुत्ति :: वि [मूत्रिन्] बहु-मूत्र रोगवाला; 'उयरिं च पास मुर्त्तिं च सूणियं च गिलासिणं' (आचा)।
मुत्ति :: वि [मौक्तिन, मौक्तिक] मोती पिरोने या गूँथनेवाला (उप पृ २१०)।
मुत्तिअ :: न [मौक्तिक] मुक्ता, मोती (से ५, ४९; कुप्र ३; कुमा, सुपा २४; २४९; प्रासू ३९; १७१)। देखो मोत्तिअ।
मुत्तोली :: स्त्री [दे] १ मूत्राशय (तंदु ४१) २ वह छोटा कोठा जो ऊपर नीचे संकीर्णं और मध्य में विशाल हो (राज)
मुत्थ :: त्रि [मुस्त] मोथा, नागरमोथा (गउड)। स्त्री. °त्था (सोबोध ४४; कुमा)।
मुदग्ग :: देखो मुअग्ग (ठा ७ — पत्र ३८२)।
मुदा :: स्त्री [मुद्] हर्षं, खुशी। °गर वि [°कर] हर्षंजनक (सूअ १, ६, ९)।
मुदुग :: पुं [दे] ग्राह-विशेष, जल-जन्तु की एक जाति (जीव १ टी — पत्र ३६)।
मुद्द :: सक [मुद्रग्] १ मोहर लगना। २ बन्द करना। ३ अंकन करना। मुद्देह (धम्म ११ टी)
मुद्दंग :: पुं [दे] १ उत्सव। २ सम्मान (?) (स ४६३; ४६४)
मुद्दग, मुद्दय :: पुं [मुद्रिका] अँगूठी (उा); 'लद्धो भद्द ! तुमे किं अह अंगुलिमुद्दिओ एसो' (पउम ५३, २४)।
मुद्दा :: स्त्री [मुद्रा] १ मोहर, छाप (सुपा ३२१; वज्जा १५६) २ अँगूठी (उवा) ३ अंग- विन्यास-विशेष (चैत्य १४)
मुद्दिअ :: वि [मुद्रित] १ जिस पर मोहर लगाई गई हो वह। २ बंद किया हुआ (णाया १, २ — पत्र ८६; ठा ३, १ — पत्र १२३, कप्पू; सुपा १४४; कुप्र ३१)
मुद्दिअ°, मुद्दिआ :: स्त्री [मुद्रिका] अँगूठी (पणह १, ४; कप्प; औप; तंदु २९)। °वंध पुं [°बन्ध्] ग्रन्थि-बन्ध, बन्ध-विशेष (ओघ ४०२; ४०५)।
मुद्दिआ :: स्त्री [मृद्वीका] १ द्राक्षा की लसता (पणण १ — पत्र ३३) २ द्राक्षा, दाख (ठा ४, ३ — पत्र २३९; उत्त ३४, १५; पव १५५)
मुद्दी :: स्त्री [दे] चुम्बन (दे ६, १३३)।
मुद्दुय :: देखो मुदुग (पणण १ — पत्र ४८)।
मुद्ध :: देखो मुंढ (औप; ओघभा १९; कुमा)। °न्न वि [°न्य] १ मस्तक में उत्पन्न। २ मस्तक-स्थ, अग्रेसर। ३ मूर्घस्थानीय रकार आदि वर्णं (कुमा)। °य पुं [°ज] केश, बाल (पणह १, ३ — पत्र ५४)। °सुल न [°शूल] मस्तक-पीड़ा, रोग-विशेष (णाया १, १३)
मुद्ध :: वि [मुग्ध] १ मूढ, मोह-युक्त। २ सुन्दर, मनोहर, मोह-जनक (हे २, ७७; प्राप्र; कुमा; विपा १, ७ — पत्र ७७)
मुद्धा :: स्त्री [मुग्धा] मुग्धा स्त्री, नायिका का एक भेद, काम-चेष्टा रहिच अंकुरित यौवना (कुमा)।
मुद्धा :: (अप) देखो मुहा (कुमा)।
मुद्धाण :: देखो मुढ (उवा; कप्प; पि ४०२)।
मुब्भ :: पुं [दे] घर के ऊपर का तिर्यंक् काष्ठ, गुजराती में 'मोभ' (दे ६, १३३)। देखो मोब्भ।
मुमुक्खु :: वि [मुमुक्षु] मुक्त होने की चाहवाला (सम्मत्त १४०)।
मुम्मुह, मुम्मुय :: वि [मूकमूक] १ अत्यन्त मूक। २ अव्यक्तभाषी (सूअ १, १२, ५; राज)
मुम्मुर :: सक [चूर्णय्] चूरना, चूर्णं करना। मुम्मुरइ (प्राकृ ७५)।
मुम्मुर :: पुं [दे] कीरष, गोइंठा (दे ६, १४७)।
मुम्मुर :: पुं [दे. मुर्मुर] १ करीषाग्नि, गोइंठा की आग (दे ६, १४७; जी ६) २ तुषाग्नि (सुर ३, १८७) ३ भस्म-च्छन्न अग्नि, भस्म-मिश्रित अग्नि-कण (उप ६४८ टी; जी ६; जीव १)
मुम्मुही :: स्त्री [मुन्मुखी] मनुष्य की दश दशाओं में नववीं दशा — ८० से ९० वर्षं तक को अवस्था (ठा १० — पत्र ५१९; तंदु १६)।
मुर :: अक [लड्] १ विलास करना। २ सक. उत्पीड़न करना। ३ जीभ चलाना। ४ उपक्षेप करना। ५ व्याप्त करना। ६ बोलना। ७ फेंकना। मुरइ (प्राकृ ७३)
मुर :: अक [स्फुट्] खीलना। मुरइ (हे ४, ११४; षड्)।
मुर :: पुं [मुर] दैत्य-विशेष। °रिउ पुं [°रिपु] श्रीकृष्ण (ती ३)। °वेरिय पुं [°वैरिन्] वही अर्थं (कुमा)। °रि पुं [°रि] वही अर्थं (वज्जा १५४)।
मुरई :: स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे ६, १३५)।
मुरज, मुरय :: पुं [मुरज] मृदंग, वाद्य-विशेष (कप्प; पाअ; गा २५३, सुपा ३९३; अंत; धर्मंवि ११२; कुप्र २८८; औप; उप पृ २३६)। देखो मुरव।
मुरल :: पुं. ब. [मुरल] एक भारतीय दक्षिण देश, केरल देश; 'दिअर ण दिट्ठा नुए मुरला' (गा ८७६)।
मुरव :: देखो मुरय (औप, उप पृ २३६)। २ अंग-विशेष, गल-घण्टिका (औप)
मुरवि :: स्त्री [दे. मुरजिन्] आभरण-विशेष (औप)।
मुरिअ :: वि [स्फुटित] खीला हुआ (कुमा)।
मुरिअ :: वि [दे] १ त्रुटित, टूटा हुआ (दे ६, १३५) २ मुड़ा हुआ, वक्र बना हुआ (सुपा ५४७)
मुरिअ :: पुं [मौर्य] १ प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश (उप २११ टी) २ मौर्यं वंश में उत्पन्न; 'रायगिहे मू (? मु) रियबलभद्दे' (विसे २३५७)
मुरंड :: पुं [मुरुण्ड] १ अनार्यं देश-विशेष (इक; पव २७४) २ पादलिप्तसूरि के समय का एक राजा (पिंड ४९४; ४९८) ३ पुंस्त्री. मुरुण्ड देश का निवासी मनुष्य (पणह १, १ — पत्र १४)। स्त्री. °डी (इक)
मुरुक्कि :: स्त्री [दे] पक्वान्न-विशेष (सण)।
मुरुक्ख :: देखो मुक्ख = मूर्खं (हे २, ११२; कुमा, सुपा ६११; प्राकृ ९७)।
मुरुमुंड :: पुं [दे] जूट, केशों की लट (दे ६, ११७)।
मुरुमुरिअ :: न [दे] रणरणक, उत्सुकता (दे ६, १३६; पाअ)।
मुरुह :: देखो मुरुक्ख (षड्)।
मुलासिअ :: पुं [दे] स्फुर्लिंग, अग्नि-कण (दे ६, १३५)।
मुल्ल :: (अप) देखो मुंच। मुल्लइ (प्राकृ ११९)।
मुल्ल, मुल्लिअ :: पुंन [मूल्य] कीमत; 'को मुल्लो' (वज्जा १५२; औप; पाअ; कुमा; प्रयौ ७७)।
मुव :: (अप) देखो मुअ = मुच्। मुवइ (भवि)।
मुव्वह :: देखो उव्वह = उद् + वह्। मुव्व हइ (हे २, १४७)।
मुस :: सक [मुष्] चोरी करना। मुसइ (हे ४, २३९; सार्ध ९२)। भवि. मुसिस्सइ (धर्मंवि ४)। कर्मं. मुसिज्जामो (पि ४५५)। वकृ. मुसंत (महा)। कवकृ. मुसिज्जंत, मुसिज्जमाण (सुपा ४५०; कुप्र २४७)। संकृ. मुसिऊण (स ६९३)।
मुसंढि :: देखो मुसुंढि (सम १३७; पणह १, १ — पत्र ८; उत्त ३६, १००; पणण १ — पत्र ३५)।
मुसण :: न [मोषण] चोरी (सार्धं ९०; धर्मंवि ५६)।
मुसल :: पुंन [मुसल] १ मूसल या मूसर, एक प्रकार की मोटी लकड़ी जिससे चावल आदि अन्न कूटे जाते हैं (औप; उवा; षड्; हे १, ११३) २ मान-विशेष (सम ९८)। °धर पुं [°धर] बलदेव (कुमा)। °उह पुं [°युध] बलदेव (पाअ)
मुसल :: वि [दे] मांसल, पुष्ट (षड्)।
मुसलि :: पुं [मुसलिन्] बलदेव (दे १, ११८; सण)।
मुसली :: देखो मोसली (ओघभा १६१)।
मुसह :: न [दे] मन की आकुलता (दे ६, १३४)।
मुसा :: अ. स्त्री. [मृषा] मिथ्या, अमृत, झूठ, असत्य भाषण (उवा; षड्; हे १, १३६; कस); 'अयाणंता मुसं वए' (सूअ १, १, ३, ८; उव)। °वाद देखो °वाय (सूअ १, ३, ४, ८)। °वादि वि [°वादिन्] झूठ बोलनेवाला (पणह १, २ आचा २, ४, १, ८)। °वाय पुं [°वाद] झूठ बोलना, असत्य भाषण (सम १०; भग; कस)।
मुसाविअ :: वि [मोषित] चुरवाया हुआ, चोरी कराया हुआ (ओघ २६० टी)।
मुसिय :: वि [मुषित] चुराया हुआ (सुपा २२०)।
मुसुंढि :: पुंस्त्री [दे] १ प्रहरण-विशेष, शस्त्र- विशेष (औप) २ वनस्पति-विशेष (उत्त ३६, १००, सुख ३६, १००)
मुसुमुर :: सक [भञ्ज] भाँगना, तोड़ना। मुसुमूरइ (हे ४, १०६)। हेकृ. 'तेसिं च केसमवि मुसुमु [? सुमू] रिउमसमत्थो' (सम्मत्त १२३)।
मुसुमूरण :: न [भञ्जन] तोड़ना, खण्डन (सम्मत्त १८७)।
मुसुमूराविअ :: वि [भञ्जित] भँगाया हुआ (सम्मत्त ३०)।
मुसुमूरिअ :: वि [भग्न] भाँगा हुआ (पाअ; कुमा; सण)।
मुह :: देखो मुज्झ; 'इय मा मुहसु मणेणं' (जीवा १०)। संकृ. मुहिअ (पिंग)। °कवकृ. मुहिज्जंत (से ११; १००)।
मुह :: न [मुख] १ मुँह, वदन (पाअ; हे ३, १३४; कुमा; प्रासू १९) २ अग्र भाग (सुज्ज ४) ३ उपाय (उत्त २५, १६; सुख २५, १६) ४ द्वार, दरवाजा। ५ आरम्भ। ६ नाटक आदि का सन्धि-विशेष। ७ नाटक आदि का शब्द-विशेष। ८ आद्य, प्रथम। ९ प्रधान, मुख्य। १० शब्द, आवाज। ११ नाटक। १२ वेद-शास्त्र (प्राप्र; हे १, १८७) १३ प्रवेश (निचू ११) १४ पुं. वृक्ष-विशेष, बड़हल का गाछ (सुज्ज १०, ८)। °णंतग, °णंतय न [°नन्तक] मुख-वस्त्रिका (ओघभा १५८; पव २)। °तूरय न [°तूर्य] मुह से बजाया जाता वाद्य (भग)। °धोवणिया स्त्री [°धावनिका] मुँह धोने की सामग्री, दतवन आदि; 'मुहधोवणियं खिप्पं उवणमेहि' (उप ६४८ टी)। °पत्ती स्त्री [°पत्री] मुख-वस्त्रिका (उवा; ओघ ६६९; द्र ५८)। °पुत्तिया, °पोत्तिया, °पोत्ती स्त्री [°मोतिका] मुख- वस्त्रिका, बोलते समय मुँह के आगे रखने का वस्त्र-खण्ड (संबोध ५; विपा १, १; पव १२७)। °फुल्ल न [°फुल्ल] १ बड़हल का फूल। २ चित्रा-नक्षत्र का संस्थान (सुज्ज १०, ८)। °भंडग न [°भाण्डक] मुखाभरण (औप)। °मंगलिआ, °मंगलीअ वि [°माङ्ग- लिक] मुँह से पर-प्रशंसा करनेवाला, खुशा- मदी (कप्प; औप; सूअ १, ७, २५)। °मक्कडा, °मक्कडिया स्त्री [°मर्कटा, °टिका] गला पकड़ कर मुँह को मोड़ना, मुख- वक्रीकरण (सुर १२, ६७; णाया १, ८ — पत्र १४४)। °वंत वि [°वत्] मुँहवाला (भवि)। °वड पुं [°पट] मुँह के आगे रखने का वस्त्र (से २, २२; १३, ५९)। °वडण न [°पतन] मुँह से गिरना (दे ६, १३६)। °वण्ण पुं [°वर्ण] प्रशंसा, खुशामद (निचु ११)। °वास पुं [°वास] भोजन के अनन्तर खाया जाता पान, चूर्ण आदि मुँह को सुगन्धी बनानेवाला पदार्थं (उवा ४२; उर ८, ५)। °वीणिया स्त्री [°वीणिका] मुँह से विकत शब्द करना, मुँह से वाद्य का शब्द करना (निचू ५)। मुहड देखो मुहल। °सय न [°शय] एक नगर (ती १५)
मुहत्थडी :: स्त्री [दे] मुँह से गिरना (दे ६, १३६)।
मुहर :: देखो मुहल = मुखर (सुपा २२८)।
मुहरिय :: वि [मुखरित] वाचाल बना हुआ, आवाज करता (सुर ३, ५४)।
मुहरोमराइ :: स्त्री [दे] भ्रू, भौं (दे ६, १३६; षड्; १७३)।
मुहल :: न [दे] मुख, मुँह (दे ६, १३४; षड्)।
मुहल :: वि [मुखर] १ वाचाट, बकवादी (गा ५७८; सुर ३, १८; सुपा ४) २ पुं. काक, कौआ। ३ शंख (हे १, २५४; प्राप्र)। °रव पुं [°रव] तुमुल, कोलाहल (पाअ)
मुहा :: अ. स्त्री. [मुधा] व्यर्थं, निरर्थंक (पाअ; सुर ३, १; धर्मंसं ११३२; श्रा २८; प्रासू ९); 'मुहाइ हारिंति अप्पाणं' (संबोध ४६)। °जीवि वि [°जीविन्] भिक्षा पर निर्वाह करनेवाला (उत्त २५, २८)।
मुहिअ :: न [दे] मुफत, बिना मूल्य; मुफत में करना (दे ६, १३४)।
मुहिआ :: स्त्री [दे. मुधिका] ऊपर देखो (दे ६, १३४; कुमा; पाअ); 'ते सव्वेवि हु कुमरस्स तस्स मुहिआइ सेवगा जाया' (सिरि ४५७); 'जिणसासणंपि कहमवि लद्धुं हारेसि मुहियाए' (सुपा १२४); 'मुह (? हि) याइ गिणह लक्खं' (कुप्र २३७)।
मुहु, मुहुं :: अ [मुहुस्] बार बार (प्रासू २९; हे ४, ४४४; पि १८१)।
मुहुत्त, मुहुत्ताग :: पुंन [मुहुर्त्त] दो घड़ी का काल, अड़तालीस मिनिट का समय (श्रठा २, ४; हे २, ३०; औप; भग; कप्प; प्रासू १०५; इक; स्वप्न ६४; आचा; ओघ ५२१)।
मुहुमुह :: देखो महुमुह (पाअ)।
मुहुल :: देखो मुहल = मुखर (पाअ)।
मुहुल :: देखो मुह = मुख (हे २, १६४; षड्; भवि)।
मूअ :: देखो मुक्क = मूक (हे २, ९९; आचा; गउड; विपा १, १)।
मूअ :: दोखो मुअ = मृत; 'लज्जाइ कह ण मूओ सेवंतो गामवाहलियं' (वज्जा ५४)।
मअल, मूअल्ल :: वि [दे. मूक] मूक, वाक्-शक्ति से हीन (दे ६; १३७; सुर ११, १५४)।
मूअल्लइअ, मूअल्लिअ :: वि [दे. मूकायित] मूक बना हुआ (से ५, ४१; गउड; पि ५९५)।
मइंगलिया, मूइंगा :: देखो मुइंगलिया (उप १३४ टी; ओघ ५५८)।
मूइल्लअ, मुयल्लिअ :: वि [मृत] मरा हुआ; 'एणिहं वारेइ जणो तइआ मूइल्लओ, कहिं व गओ। जाहे विसं व जाअं सव्वंगपहोलिरं पेम्मं' (गा ६९९ अ)।
मूड, मढ :: पुं [दे] अन्न का एक दीर्धं परिमाण; 'इगमूडलक्खसमहियमवि धन्नं अत्थि तायगिहे' (सुपा ४२७); 'तो तेहि ताडिओ सो गाढं कणमूढउव्व लउडेहिं' (धर्मंवि १४०)।
मूढ :: वि [मूढ] मूर्खं, मुग्ध (प्राप्र; कस; पउम १, २८; महा; प्रासू २९)। °नइय न [°नयिक] श्रुत-विशेष, शास्त्र-विशेष (आवम)। °विसूइया स्त्री [°विसूचिका] रोग-विशेष (सुपा १३)।
मूण :: न [मौन] चुप्पी (स ४७७; पणह २, ४ — पत्र १३१)।
मूयग :: पुं [दे. मूयक] मेवाड़़ देश में प्रसिद्ध एक प्रकार का तृण (पणह २, ३ — -पत्र १२३)।
मूर :: सक [भञ्ज्] भाँगना, तोड़ना। मूरइ (हे ४, १०६)। भूका. मूरीअ (कुमा)।
मूरग :: वि [भञ्जक] भाँगनेवाला, चूरनेवाला (पणह १, ४ — पत्र ७२)।
मूल :: न [मूल] १ जड़ (ठा ९; गउड; कुमा; गा २३२) २ निबन्धन, कारण (पणह १, ३ — पत्र ४२) ३ आदि, आरम्भ (पणह २, ४) ४ आद्य कारण (आचानि १, २, १ — गाथा १७३; १७४) ५ समीप, पास, निकट (ओघ ३८४; सुर १०, ९) ६ नक्षत्र- विशेष (सुर १०, २२३) ७ व्रतों का पुनः स्थापन (औप; पंचा १६, २१) ८ पिप्पली- मूल (आचानि १, २, १) ९ वशीकरण आदि के लिए किया जाता ओषधि-प्रयोग, 'आमंतमूलं वसीकरणं' (प्रासू १४) १० आद्य, प्रथम, पहला। ११ मुख्य (संबोध ३; आवम; सुपा ३९४) १२ मूलधन, पुंजी (उत्त ७, १४; १५) १३ चरण, पैर। १४ सूरण, कन्द-विशेष, ओल। १५ टीका आदि से व्याख्येय ग्रन्थ (संक्षि २१) १६ प्रायश्चित- विशेष (विसे १२४९) १७ पुंन. कन्द- विशेष, मूली (अनु ६; श्रा २०)। °छेज्ज वि [°छेद्य] मूल नामक प्रायश्चित्त से नाश- योग्य (विसे १२४९)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] कृष्ण-पुत्र शाम्ब की एक पत्नी (अंत १५)। °देव पुं [°देव] व्यक्ति-ृवाचक नाम; (महा; सुपा ५२९)। °देवी स्त्री [°देवी] लिपि- विशेष (विसे ४६४ टी)। °नायग पुं [°नायक] मन्दिर की अनेक प्रतिमाओं में मुख्य प्रतिमा (संबोध ३)। °प्पाडि वि [°उत्पाटित] मूल को उखाड़नेवाला (संक्षि २१)। °बिंब न [°बिम्ब] मुख्य प्रतिमा (संबोध ३)। °राय पुं [°राज] गुजरात का चौलुक्य-वंशीय एक प्रसिद्ध राजा (कुप्र ४)। °वंत वि [°वत्] मूलवाला (औप; णाया १, १)। °सिरि स्त्री [°श्री] शाम्ब- कुमार की एक पत्नी (अंत १५)
मूलग, मूलय :: न [मूलक] १ कन्द-विशेष, मूली, मूरई (पणण १; जी १३) २ शाक-विशेष (पव १५४; कुमा)
मूलगत्तिआ :: स्त्री [मूलगतिका] मूले — मूली की पतली फाँक (दस ५, २, २३)।
मूलवेलि :: स्त्री [दे. मूलवेलि] घर के छप्पर का आधारसर-भूत-स्तम्भ-विशेष (आचा २, २, ३, १ टी; पव १३३)।
मूलिगा :: स्त्री [मूलिका] ओषधि-विशेष (उप ९०३)।
मूलिय :: न [मौलिक] मूलधन, पुजी (उत्त ७, १९; २१)।
मूलिल्ल :: वि [मूल, मौलिक] प्रधान, मुख्य; 'मूलिल्लवाहणे' (सिरि ४२३)।
मूलिल्ल :: वि [मूलवत्] मूलधनवाला, पुंजीवाला; 'अत्थि य देवदत्ताए गाढाणुरत्तो मूलिल्लो मित्तसेणो अयलनामा सत्थावाहपुत्तो' (महा)।
मूली :: स्त्री [मूली] ओषधि-विशेष, वशीकरण आदि के कार्यें में लगती ओषधि (महा)।
मूस :: देखो मुस = मुष्। मूसइ (संक्षि ३६)।
मूसग, मूसय :: पुं [मूषक, मूषिक] मूसा, चूहा (उव; सुर १, १८; हे १, ८८; षड्; कुमा)।
मूसारि :: वि [दे] भग्न, भाँगा हुआ (दे ६, १३७)।
मूसल :: वि [दे] उपचित (दे ६, १३७)।
मूसल :: देखो मूसल = मुसल (हे १, ११३; कुमा)।
मूसा :: देखो मुसा (हे १, १३६)।
मूसा :: स्त्री [मूषा] मूस, धातु गालने — गलाने के पात्र (कप्प; आरा १००; सुर १३, १८०)।
मूसा :: स्त्री [दे] लघु द्वार, छोटा दरवाजा (दे ६, १३७)।
मूसाअ :: न [दे] ऊपर देखो (दे ६, १३७)।
मूसिय :: देखो मूसय (आचा)। °रि पुं [°रि] मार्जार, बिल्ला (आचा)।
मे :: अ [मे] १ मेरा। २ मुझसे (स्वप्न १५; ठा १)
मेअ :: पुं [मेद] १ अनार्यं देश-विशेष (इक) २ एक अनार्यं मनुष्य-जाति (पणह १, १ — पत्र १४) ३ पुंस्त्री. चाण्डाल (सम्मत्त १७२)। स्त्री. मेई (सम्मत्त १७२)
मेअ :: वि [मेय] १ जानने योग्य, प्रमेय, पदार्थं, वस्तु (उत्त १८; २३) २ नापने योग्य (षड्)। °न्न वि [°ज्ञ] पदार्थं-ज्ञाता (उत्त १८, २३; सुख १८, २३)
मेअ :: पुंन [मेदस्] शरीर-स्थित धातु-विशेष, चर्बी (तंदु ३८; णाया १, १२ — पत्र १७३; गउड)।
मेअज्ज :: न [दे] धान्य, अन्न (दे ६, १३८)।
मेअज्ज :: पुं [मेदार्य] मेदार्यं गोत्र में उत्पन्न (सूअ २, ७, ५)।
मेअज्ज :: पुं [मेतार्य] १ भगवान् महावीर का दसवाँ गणधर (सम १९) २ एक जैन महर्षि (उव; सुपा ४०९; विवे ४३)
मेअय :: वि [मेचक] काला, कृष्ण-वर्ण (गउड ३३६)।
मेअर :: वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे ६, १३८)।
मेअल :: पुं [मेकल] पर्वत-विशेष। °कन्ना स्त्री [°कन्या] नर्मंदा नदी (पाअ)।
मेअवाडय :: पुंन [मेदपाटक] एक भारतीय देश, मेवाड़; 'णाव दाहविअं सअलंपि मेअ- वाडयं हम्मीरवीरेहि' (हम्मीर २७)।
मेइणि°, मेइणी :: स्त्री [मेदिनी] १ पृथिवी, धरती (सुपा ३२; कुमा; प्रासू ५२) २ चाण्ड़लालिन (सुपा १६; सम्मत्त १७२) °नाह पुं [°नाथ] राजा (उप पृ १८६; सुपा १०८)। °पइ पुं [°पति] १ राजा। २ चाण्डाल; 'जो विबुहपणयचरणोवि गोत्तभेई न, मेइणिपईवि न हु मायंगो' (सुपा ३२)। °सामि पुं [°स्वामिन्] राजा (उप ७२८ टी)
मेइणीसर :: पुं [मेदनीश्वर] राजा (उफ ७२८ टी)।
मेंठ :: पुं [दे] हस्तिपक, महावत (दे ६, १३८)। देखो मिंठ।
मेंठी :: स्त्री [दे] मेंढी, मेषी गड़रिया (दे ६, १३८)।
मेंढ :: स्त्री [मेढ्र] मेंढा, मेष, भेड़, गाड़र (ठा ४; २)। स्त्री. °ढी (दे ६, १३८)। °मुह पुं [°मुख] १ एक अन्तर्द्वीप। २ अन्तर्द्वीप- विशेष में रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक)। °विसाणा स्त्री [°विषाणा] बनस्पति-विशेष, मेोढाशिंगी (ठा ४, १ — पत्र १८५)। देखो मिंढ।
मेखला :: देखो मेहला (राज)।
मेज्ज :: न [मेय] मान, तौल, बाट, बटखरा, जिससे मापा जाय वह (अणु १५४)।
मेघ :: देखो मेह (कुमा; सुपा २०१)। °मालिणि स्त्री [°मालिनी] नन्दन वन की शिखर पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७)। °वई स्त्री [°वती] एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७)। °वाहण पुं [°वाहन] एक विद्याधर राज- कुमार (पउम ५, ६५)।
मेघंकरा :: स्त्री [मेघङ्करा] एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८ — पत्र ४३७)।
मेच्छ :: देखो मिच्छ = म्लेच्छ (ओघ २४; औप; उप ७२८ टी; मुद्रा २६७)।
मेज्ज :: देखो मेअ = मेय (षड्; णाया १, ८ — पत्र १३२; श्रा १८)।
मेज्झ :: देखो मिज्झ (महा ४, ११; ४०, २४)।
मेट :: देखो मिट। प्रयो. मेटाव (पिंग)।
मेडंभ :: पुं [दे] मृग-तन्तु (दे ६, १३९)।
मेडय :: पुं [दे] मजला, तला, गुजराती में 'मेडो'; 'तस्स य सयणट्ठाणं संचारिकमट्ठमेड- यस्सुवरिं' (सुपा ३५१)।
मेड्ढ :: देखो मेंढ (उप पृ २२४)।
मेढ :: पुं [दे] वणिक्-सहाय, वणिक् को मदद करनेवाला (दे ६, १३८)।
मेढक :: पुं [दे] काष्ट-विशेष, काष्ठ का छोटा डंडा (पणह १, १ — पत्र ८)।
मेढि :: पुं [मेथि] पशुबन्धन-काष्ठ; खले के बीच का काष्ठ, जहाँ पशु को बाँध कर धान्य-मर्दन किया जाता है (हे १, २१५; गच्छ १, ८; णाया १, १ — पत्र ११)। २ आधार, स्तम्भ; 'सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू मेढीभूए' (उवा), 'सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ अ' (श्रा १; कुप्र २६९; संबोध २४) °भूअ वि [°भूत] १ आधार-सदृश, आधार-भूत (भग) २ नाभि-भूत, मध्य में स्थित (कुमा)
मेणआ, मेणक्का :: स्त्री [मेनका] १ हिमालय की पत्नी। २ स्वर्गं की एक वेश्या (अभि ४२; नाट — विक्र ४७; पिंग)
मेत्त :: न [मात्र] १ साकल्य, संपूर्णंता। २ अवधारण; 'भोअणमेत्तं' (हे १, ८१)
मेत्तल :: [दे] देखो मित्तल (सुर १२, १५२)।
मेत्ती :: स्त्री [मैत्री] मित्रता, दोस्ती (से १, ९; गा २७२; स ७१६; उव)।
मेधुणिया :: देखो मेहुणिआ (निचू १)।
मेर :: (अप) वि [मदीय] मेरा (प्राकृ १२०; भवि)।
मेरग :: पुं [मेरक, मैरेयक] १ तृतीय प्रति- वासुदेव राजा (पउम ५, १५६) २ पुंन. मद्य-विशेष (उवा; विपा १, २ — पत्र २७) ३ वनस्पति का त्वचा-रहित टुकड़ा; 'उच्छु- मेरंग' (आचा २, १, ८, १०)
मेरा :: स्त्री [दे. मिरा] मर्यादा (दे ६, ११३; पाअ; कुप्र ३३५; अज्झ ६७; सण; हे १, ८७; कुमा; औप)।
मेरा :: स्त्री [मेरा] १ तृण-विशेष, मुञ्ज की सलाई (पणह २, ३ — पत्र १२३) २ दशवें चक्रवर्त्ती की माता (सम १५२)
मेरु :: पुं [मेरु] १ पर्वंत-विशेष (उव; प्रासू १५४) २ छन्द-विशेष (पिंग)
मेरु :: पुं [मेरु] पर्वंत, कोई भी पहाड़ (आचा २, १०, २)।
मेल :: सक [मेलय्] १ मिलाना। २ इकट्ठा करना। मेलइ, मेलंति (भवि; पि ४८६)। संकृ. मेलित्ता, मेलिय (पि ४८६; महा)
मेल :: पुं [मेल] मेल, मिलाप, संगम, संयोग, मिलन (सूअनि १५; दे ६, ५२; सार्ध १०६), 'दिट्ठो पियमेलगो मए सुविणो' (कुप्र २१०)।
मेलण :: न [मेलन] ऊपर देखो (प्रासू ३५)।
मेलय :: पुं [मेलक] १ संबन्ध, संयोग (कुमा) २ मेला, जन-समूह का एकत्रित होना (दे ७, ८९; त्रि ८६)
मेलव :: सक [मेलय्, मिश्रय्] मिलाना, मिश्रण करना। मेलवइ (हे ४, २८)। भवि. मेलविहिसि (पि ५२२)। संकृ. मेलवि (अप) (हे ४, ४२९)।
मेलाइयव्व :: नीचे देखो।
मेलाय :: अक [मिल्] एकत्रित होना; 'पडि- निक्खमित्ता एगयओ मेलायंति' (भग)। संकृ. मेलायित्ता (भग)। कृ. मेलाइयव्व (ओघभा २२ टी)।
मेलाव :: देखो मेलव। मेलानइ (भवि)।
मेलाव :: पुंन [मेल] १ निलाप, संगम, मिलन (सुपा ४६९); 'निच्चं चिय मेलाबं सुमग्गं- निरयाणं अइदुलहं' (सट्ठि १४३)
मेलावग :: देखो मेलय (आत्महि १९)।
मेलावड :: (अप) देखो मेलय; 'मणवल्लहमेला- वडउ पुन्निहिं लब्भइ एहु' (सिरि ७३)।
मेलावय :: देखो मेलावग (सुपा ३६१; भवि)।
मेलाविअ :: वि [मेलित] मिलाया हुआ, इकट्ठा किया हुआ (से १०, २८)।
मेलिअ :: वि [मिलित] मिला हुआ (ठा ३, १ टी — पत्र ११९; महा; उव); 'एवं सुलील वंतो असीलवंतेहि मेलिओ संतो। पावेइ गुणपरिहाणी मेलणदोसाणुसंगेणं' (प्रासू ३५)।
मेली :: स्त्री [दे] संहृति, जन-समूह का एकत्रित होना, मेला (दे ६, १३८)।
मेलीण :: देखो मिलीण (पउम २, ६); 'अणणो- णणकडक्खंतरपेसिअमेलीणदिट्ठिपसराइं' (गा ६९९; ७०२ अ)।
मेल्ल :: देखो मिल्ल। मेल्लइ (हे ४, ९१), मेल्लेमि (कुप्र १९)। वकृ. मेल्लंत (महा)। संकृ. मेल्लावं, मेल्लेप्पिणु (अप) (हे ४, ३५३; पि ५८८)। कृ. मेल्लियव्व (उफ ५५५)।
मेल्लण :: न [मोचन] छोड़ना, परित्याग (प्रासू १०२)।
मेल्लाविय :: वि [मोचित] छुड़वाया छुआ (सुर ८, ६८; महा)।
मेव :: देखो एव (पि ३३६)।
मेवाड, मेवाढ :: देखो मेअवाडय (ती १५; मोह ८८)।
मेस :: पुं [मेष] १ मेंढा, भेड़, गाड़र (सुर ३, ५३) २ राशि-विशेष (विचार १०६; सुर ३, ५३)
मेह :: पुं [मेघ] १ अभ्र, जलधर (औप) २ कालागुरु, सुगंधी धूप-द्रव्य-विशेष (से ९, ४९) ३ भगवान् सुमतिनाथ का पिता (सम १५०) ४ एक जैन महर्षि (अंत १८) ५ राजा श्रेणिक का एक पुत्र (णाया १, १ — पत्र ३७) ६ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२) ७ छन्द-विशेष (पिंग) ८ एक वणिक्-पुत्र (सुपा ६१७) ९ एक जैनमुनि (कप्प) १० देव-विशेष (राज) ११ मुस्तक, ओषाधि-विशेष, मोथा। १२ एक राक्षस। १३ राग-विशेषे (प्राप्र; हे १, १८७) १४ एक विद्याधर-नगर (इक) °कुमार पुं [°कुमार] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (णाया १, १; उव)। °ज्झाण पुं [°ध्यान] राक्षस- वंश का एक राजा, एक लंकापति (पउम ५, २६६)। °णाअ पुं [°नाद] रावण का एक पुत्र (से १३, ९)। °पुर न [°पुर] वैताढ्य पर्वंत के दक्षिण श्रेणी का एक नगर (पउम ६, २)। °मुह पुं [°मुख] १ देव- विशेष (राज) २ एक अन्तर्द्वीप। ३ अन्त- र्द्वीप-विशेष का निवासी मनुष्य (ठा ४, २ — पत्र २२६; इक) °रव न [°रव] विन्ध्य- स्थली का एक जैन तीर्थं (पउम ७७, ६१)। °वाहण पुं [°वाहन] १ राक्षस-वंश का आदि पुरुष, जो लंका का राजा था (पउम ५, २५१) २ रावण का एक पुत्र (पउम ८, ६४)। °सीह पुं [°सिंह] विध्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, ४३)। देखो मेघ।
मेह :: पुं [मेह] १ सेचन (सूअ १, ४, २, १२) २ रोग-विशेष, प्रमेह (श्रा २०; सुख १, १५)
मेहंकरा :: देखो मेघंकरा (इक)।
मेहच्छीर :: न [दे] जल, पानी (दे ६, १३९)।
मेहण :: न [मेहन] १ झरन, टपकना। २ प्रस्रवण, मूत्र; 'महुमेहणं' (आचा १, ६, १, २) ३ पुरुष-लिंग (राज)
मेहणि :: वि [मेहनिन्] झरनेवाला (आचा)।
मेहर :: पुं [दे] ग्राम-प्रवर, गाँव का मुखिया (दे ६, १२१; सुर १५, १९८)।
मेहरि :: पुंस्त्री [दे] काष्ठ-कीट, घुन (जी १५)।
मेहरिया, मेहरी :: स्त्री [दे] गानेवाली स्त्री (सुपा ३९४)।
मेहलय :: पुं ब. [मेखलक] देश-विशेष (पवउम ९८, ६६)।
मेहला :: स्त्री [मेखला] काञ्ची, करधनी (पाअ; पणह १, ४; औप; गा ४६३)।
मेहलिज्जिया :: स्त्री [मेखलिया] एक जैन मुनि-शाखा (कप्प)।
मेहा :: स्त्री [मेवा] एक इंन्द्राणी, चमरेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ५, १ — पत्र ३०२; इक)।
मेहा :: स्त्री [मेधा] बुद्धि, मनीषा, प्रज्ञा (सम १२५; से १, १९; हास्य १२५)। °अर वि [°कर] १ बुद्धि-वर्धंक। २ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)
मेहा :: स्त्री [मेधा] अवग्रह-ज्ञान (णंदि १७४)।
मेहावई :: देखो मेघ-वई (इक)।
मेहावण्ण :: न [मेघावर्णं] एक विध्याधर- नगर (इक)।
मेहावि :: वि [मेधाविन्] बुद्धिमान, प्राज्ञ (ठा ५, ३; णाया १, १; आचा; कप्प; औप; उप १४२; टी; कुप्र १४०; धर्मंवि ९८)। स्त्री. °णी (नाट — शकु ११६)।
मेहि :: देखो मेढि (से ९, ४२)।
मेहि :: वि [मेहिन्] प्रस्रवण करनेवाला, 'महुमोहिणं' (आचा)।
मेहिय :: न [मेधिक] एक जैन मुनि-कुल (कप्प)।
मेहिल :: पुं [मेधिल] भगवान् पार्श्वंनाथ के वंश का एक जैन मुनि (भग)।
मेहुण, मेहुणय :: न [मैथुन] रति-क्रिया, संभोग (सम १०; पणह १, ४; उवा; औप; प्रासू १७९; महा)।
मेहुणय :: पुं [दे] फूफा का लड़का (दे ६, १४८)।
मेहुणिअ :: पुं [दे] मामा का लड़का (बृह ४)।
मेहुणिआ :: स्त्री [दे] १ साली, भार्या की बहिन (दे ६, १४८) २ मामा की लड़की (दे ६, १४८; बृह ४)
मेहुन्न :: देखो मेहुण; 'हिंसालियचोरिक्के मेहुन्न- परिग्गहे य निसिभत्ते' (ओघ ७८७)।
मैरेअ :: न [मैरेय] मद्य-विशेष (माल १७७)।
मो :: अ. इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवधारण, निश्चय (सूअनि ८९; श्रावक १२५) २ पाद-पूर्ति (पउम १०२, ८९; धर्मंसं ६४५; श्रावक ९०)
मोअ :: सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना। मोअइ (प्राकृ ७०; ११९)। वकृ. मोअंत (से ८, ६१)।
मोअ :: सक [मोचय्] छुड़वाना, त्याग कराना। मोअअदि (शौ) (नाट — मालवि ४१)। कवकृ. मोइज्जंत (गा ६७२)।
मोअ :: पुं [मोद] हर्षं, खुशी (रयण १५; महा; भवि)।
मोअ :: वि [दे] १ अधिगत। २ पुं. चिभँट आदि का बीजकोश (दे ६, १४८) ३ मूत्र, पेशाब (सूअ १, ४, २, १२; पिंड ४६८; कस; पभा १५)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] प्रस्रवण-विषयक नियम-विशेष (ठा ४, २ — पत्र ६४; औप; वव ९)
मोअइ :: पुं [मोचकि] वृक्ष-विशेष; 'सल्लइ- मोयइमालुयबउलपलासे करंजे य' (पणण १ — पत्र ३१)।
मोअग :: वि [मोचक] मुक्त करनेवाला (सम १; पडि; सुपा २३४)।
मोअग :: पुं [मोदक] लड्डु, मिष्टान्न-विशेषॉ (अंत ६; सुपा ४०६)। देखो मोदअ।
मोअण :: न [मोचन] नीचे देखो (स ५७५; गउड)।
मोअणा :: स्त्री [मोचना] १ परित्याग (श्रावक ११५) २ मुक्ति, छुटकारा (सूअ १, १४, १८) ३ छुड़वाना, मुक्त कराना (उप ५१०)
मोअय :: देखो मोअग (भग; पउम ११५, ९; सुपा ४०६; नाट — विक २१)।
'मोआ :: स्त्री [मोचा] कदली वृक्ष, केला का गाछ (राज)।
मोआव :: सक [मोचय्] छुड़वामा। भोआ- वेमि, मोआवेहि (नाट — शकु २५; मृच्छ ३१९)। भवि. मोआवइस्ससि (पि ५२८)। कर्मं. मोयाविज्जइ (कुप्र २९१)। वकृ. मोयावंत (सुपा १८९)।
मोआवण :: न [मोचन] छुटकारा कराना (सिरि ६१८; स ४७)।
मोआविअ, मोइअ :: वि [मोचित] छुड़वाया हुआ (पि ५५२; नाट — मृच्छ ८६; सुर १०, ६; सुपा ४७७; महा; सुर २, ३६; ६, ७८; सुपा २३२; भवि)।
मोइल :: पुं [दे] मत्स्य-विशेष (नाट)।
मोंड :: देखो मुंड = मुण्ड (हे १, ११६; २०२)।
मोक :: पुं [मोक] सर्पं-कंचुक, साँप का केंचुल।
मोकल्ल :: सक [दे] भेजना; गुजराती में 'मोकलवुं', मराठी में 'मोकलणें'। मोकल्लइ (भवि)।
मोक्क :: देखो मुक्क = मुक्त (षड्)।
मोक्कणिआ, मोक्कणी :: स्त्री [दे] कृष्ण कर्णिका, कमल का काल मध्य भाग (दे ६, १४०)।
मोक्कल :: देखो मोकल्ल; 'नियपियरं भणसु तुमं मोक्खलइ जेण सिग्घंपि' (सुपा ६१२)।
मोक्कल :: देखो मुक्कल (सुपा ५८०; हे ४; ३६६)।
मोक्कलिय :: वि [दे] १ प्रेषित, भेजा हुआ (सुपा ५२१) २ विसृष्ट (सुपा १४०)
मोक्ख :: देखो मुक्ख = मोक्ष (औप; कुमा; हे २, १७६; उप २६४ टी; भग; वसु)।
मोक्ख :: देखो मुक्ख = मूर्खं (उप ५५५)।
मोक्ख :: न [दे] वनस्पति-विशेष (सूअ २, २, ७)।
मोक्खण :: न [मोक्षण] मुक्ति, छुटकारा (स ४१८, सुर २, १७)।
मोग्गड :: पुं [दे] व्यन्तर-विशेष (सुपा ४०८)। देखो मुग्गड।
मोग्गर :: पुं [दे] मुकुल, कलिका, बौर (दे ६, १३९)।
मोग्गर :: पुं [मुद्गर] मुगरा, मोगरी। २ कमरख का पेड़ (हे १, ११६; २, ७७) ३ पु्ष्पवृक्ष-विशेष, मोगरा का गाछ (पणण १ — पत्र ३२) ४ देखो मुग्गर। °पाणि पुं [°पाणि] एक जैन महर्षि (अंत १८)
मोग्गरिअ :: वि [दे] संकुचित, मुकुलित (दे ६, १३९ टी)।
मोग्गलायण, मोग्गल्लायण :: न [मौद्गलायन, °ल्या°] १ गोत्र-विशेष (इक; ठा ७; सुज्ज १०, १६) २ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)
मोग्गाह :: देखो मुग्गाह। मोग्गाहइ (?) (धात्वा १४९)।
मोघ :: देखो मोह = मोघ; 'मोधमणोरहा' (पणह १, ३ — पत्र ५५)।
मोच :: देखो मोअ = मोचय्। संकृ. मोचिअ (अभि ४७)।
मोच :: न [दे] अर्धंजंधी, एक प्रकार का जूता (दे ६, १३९)।
मोच :: देखो मोअ = (दे) (सूअ १, ४, २, १२)।
मोचग :: देखो मोअग = मोचक (वसु)।
मोट्टाय :: अक [रम्] क्रीड़ा करना। मोट्टायइ (हे ४, १६८)।
मोट्टाइअ :: न [रत] रति-क्रीड़ा, रत, मैथुन (कुमा)।
मोट्टाइअ :: न [मोट्टायित] चेष्टा-विशेष, प्रिय- कथा आदि में भावना से उत्पन्न चेष्टा (कुमा)।
मोट्टिम :: न [दे] बलात्कार (पि २३७)। देखो मुट्टिम।
मोड :: सक [मोटय्] १ मोड़ना, टेढ़ा करना। २ भाँगना। भोडसि (सुर ७, ६)। वकृ. मोडंत, मोडिंत, मोडयंत (भवि; महा; स २५७)। कवकृ. मोडिज्जमाण (उप पृ ३४)। संकृ. मोडेउं (सुपा १३८)
मोड :: पुं [दे] जूट, लट (दे ६, ११७)।
मोडग :: वि [मोटक] मोड़नेवाला (पणह १, ४ — पत्र ७२)।
मोडण :: न [मोटन] मोड़न, मोड़ना (वज्जा ३८)।
मोडणा :: स्त्री [मोटना] ऊपर देखो (पणह १, ३ — पत्र ५३)।
मोडिअ :: वि [मोटित] १ भग्न, भाँगा हुआ (गा ५४९; णाया १, ९ — पत्र १५७; पणह १, ३ — पत्र ५३) २ आम्रेडित, मोड़ा हुआ (विपा १, ६ — पत्र ६८; स ३३५)
मोढ :: पुं [मोढ] एक वणिक्-कुल (कुप्र २०)।
मोढेरय :: न [मोढेरक] नगर-विशेष (दे ६, १०२; ती ७)।
मोण :: न [मौन] मुनिपन, वाणी का संयम, चुप्पी (औप; सुपा २३७; महा)। °चर वि [°चर] मौन व्रतवाला, वाणी का संयमवाला, वाचंयम (ठ ५, १ — पत्र २९६; पणह २, १ — पत्र १००)। °पय न [°पद] संयम, चारित्र (सूअ १, १३, ९)।
मोणावणा :: स्त्री [दे] प्रथम प्रसूति के समय पिता की ओर से किया जाता उत्सव-पूर्वंक निमन्त्रण (उप ७६८ टी)।
मोणि :: वि [मौनिन्] मौनवाला (उव; सुपा १४; संबोध २१)।
मोत्त :: देखो मुत्त = मुक्त (धर्मंसं ७५)।
मोत्तव्व :: देखो मुंच।
मोत्ता :: देखो मुत्ता (से ७, २५; संक्षि ४; प्राकृ ६; षड् ८०)।
मोत्ति :: देखो मुत्ति = मुक्ति (पणह १, ५ — पत्र ९४)।
मोत्तिअ :: देखो मुत्तिअ (गा ३१०; स्वप्न ६३; औप; सुपा २३१; महा, गउड)। °दाम न [°दाम] छन्द-विशेष (पिंग)।
मोत्तुआण, मोत्तुं, मोत्तुण :: देखो मुंच = मुच्।
मोत्थ :: देखो मुत्थ (जी ९; संक्षि ४; पि १२५; प्रामा)।
मोदअ :: देखो मोअग = मोदक (स्वप्न ६०)। २ न. छन्द-विशेष (पिंग)
मोब्भ :: [दे] देखो मुब्भ (दे ८, ४)।
मोर :: पुं [दे] श्वपच, चाण्डाल (दे ६, १४०)।
मोर :: पुं [मोर] १ पक्षि-विशेष, मयूर (हे १, १७१; कुमा) २ छन्द-विशेष (पिंग)। °बंध पुं [°बन्ध] एक प्रकार का बन्धन (सुपा ३४५)। °सिहा स्त्री [°शिखा] एक महौषधि (ती ५)
मोरउल्ला, मोरकुल्ला :: अ. मुधा, व्यर्थं (हे २, २१४; कुमा; चउप्पन्न° पत्र — ७७, सुमतिजिन — चरित्र)।
मोरंड :: पुं [दे] तिल आदि का मोदक, खाद्य- विशेष (राज)।
मोरग :: वि [मायूरक] मयूर के पिच्छों से निष्पन्न (आचा २, २, ३, १८)।
मोरत्तय :: पुं [दे] श्वपच, चाण्डाल (दे ६, १४०)।
मोरिय :: पुं [मौर्य] १ एक क्षत्रिय-वंश। २ मौर्यं वंश में उत्पन्न (पि १३४)। °पुत्त पुं [°पुत्र] भगवान् महावीर का एक गणधर — प्रधान शिष्य (सम १९)
मोरी :: स्त्री [मोरी] १ मयूर पक्षी की मादा, मोरनी (पि १६६; नाट — मृच्छ १८) २ विद्या-विशेष (सुपा ४०१)
मोलग :: पुं [दे. मौलक] बाँधने के लिए गाड़ा हुआ खूँटा (उव)।
मोलि :: देखो मउलि (काल; सम १९)।
मोल्ल :: देखो मुल्ल (हे १, १२४; उव; उप पृ १०४; णाया १, १ — पत्र ६०; भग)।
मोस :: पुं [मोष] १ चोरी। २ चोरी का माल; 'राया जंपइ मोसं एसिं अप्पसु' (सुप्प २२१; महा)
मोस :: पुंन [मृपा] झूठ, असत्य भाषण; 'चउव्विहे मोसो पणणत्ते', 'दसवि मोसे पणणत्ते' (ठा ४, १; १०; औप, कप्प)।
मोसण :: वि [मोषण] चोरी करनेवाला (कुप्र ४७)।
मोसलि, मोसली :: स्त्री [दे. मुशली, मौशली] वस्त्रादी निरीक्षण का एक दोष, वस्त्र आदि की प्रतिलेखना करते समय मुसल की तरह ऊँचे या नीचे भीत आदि का स्पर्शं करना, प्रतिलेखना का एक दोष; 'वज्जेयव्वा य मोसली तइया' (उत्त २६, २६; २५; ओघ २६५, २६६)।
मोसा :: देखो मुसा (उवा, हे १, १३६)।
मोह :: सक [मोहय्] १ भ्रम मे डालना। २ मुग्ध करना। मोहइ (भवि)। वकृ. मोहंत, मोहेंत (पउम ४, ८६; ११, ९६)। कृ. देखो मोहणिज्ज।
मोह :: देखो मऊह (हे १, १७१; कुमा; कुप्र ४३७)।
मोह :: वि [मोघ] १ निष्फल, निरर्थंक (से १०, ७०; गा ४८२), 'मोहाइ पत्थणाए सो पुण सोएइ अप्पाणं' (अज्झ १७५; आत्म १)। क्रिवि. 'मोहं कओ पयासो' (चेइय ७५०) २ असत्य, मिथ्या; 'मिच्छा मोहं विहलं अलिअं असच्चं असब्भूअं' (पाअ)
मोह :: पुं [मोह] १ मूढ़ता, अज्ञता, अज्ञान (आचा; कुमा; पणण १, १) २ विपरीत ज्ञान (कुमा २, ५३) ३ चित्त की व्याकुलता (कुमा ५, ५) ४ राग, प्रेम। ५ काम- क्रीड़ा; 'मोहाउरा मणुस्सा तह कामदुहं सुहं बिति' (प्रासू २८; पणङ १, ४) ६ मूर्छा, बेहोशी (स्वप्न ३१; स ६९६) ७ कर्मं.- विशेष, मोहनीय कर्मं (कम्म ४, ६०; ६९) ८ छन्द-विशेष (पिंग)
मोहण :: न [मोहन] १ मुग्ध करना। २ मन्त्र आदि से वश करना (सुपा ५९९) ३ मूर्छा, बेहोशी (निसा ९) ४ वशीकरण, मुग्ध करनेवाला मन्त्रादि-कर्मं (सुपा ५९९) ५ काम का एक बाण। ६ प्रेम, अनुराग (कप्पू) ७ मैथुन, रति-क्रिया (स ७६०; णाया १, ८; जीव ३) ८ वि. व्याकुल बनानेवाला (स ५५७; ७४४) ९ मोहक, मुग्ध करनेवाला; 'मोहणं पसूणंपि' (धर्मंवि ६५; सुर ३; २९; कर्पूंर २५)
मोहणिज्ज :: वि [मोहनीय] १ मोह-जनक। २ न. कर्मं-विशेष, मोह का कारण-भूत कर्मं (सम ६६; भग; अंत; औप)
मोहणी :: स्त्री [मोहनी] एक महौषधि (ती ५)।
मोहर :: न [मौखर्य] वाचाटता, बकवाद (पणह २, ५ — -पत्र १४८; पुप्फ १८०)।
मोहर :: वि [मौखर] वाचाट, बकवादी (ठा १० — पत्र ५१६)।
मोहरिअ :: वि [मौखरिक] ऊपर देखो (ठा ६ — पत्र ३७१; औप; सुपा ५२०)।
मोहरिअ :: न [मौखर्य] वाचालता, बकवाद (उवा; सुपा ५१४)।
मोहि :: वि [मोहिन्] मुग्ध करनेवाला (भवि)।
मोहणी :: स्त्री [मोहिनी] छन्द-विशेष (पिंग)।
मोहिय :: वि [मोहित] १ मुग्ध किया हुआ (पणह १, ४; द्र १४) २ न. निधुवन, मैथुन, रति-क्रीड़ा (णाया १; ९ — पत्र १६५)
मोहुत्तिय :: वि [मौहुर्त्तिक] ज्योतिष-शास्त्र का जानकार (कुप्र ५)।
मौलिअ :: देखो मोरिय; 'णिवेदेह दाव णंदकुल- णगकुलिसस्स मौलिअकुलपडिट्ठावकस्स अज्ज- चाणक्कस्स' (मुद्रा ३०९)।
म्मि :: अ. पाद-पूर्त्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (पिंग)।
म्मिव :: देखो इव (प्राकृ २६)।
म्हस :: देखो भंस=भ्रंश् । म्हसइ (प्राकृ ७६)।