:: पुं [ए] स्वर-वर्ण विशेष (हे १, १; प्रामा)।

 :: पुं [ए] स्वर वर्ण-विशेष (हे १, १; प्रामा)।

 :: अ [ए, ऐ] इन अर्थों का सूचक अव्यम — १ आमन्त्रण, सम्बोधन; 'ए एहि सवडहुत्तो मज्झ' (पउम ८, १७४) २ वाक्यालंकार, वाक्य-शोभा; 'से जहाणाम ए' (अणु) ३ स्मरण। ४ असूया, ईर्ष्या। ५ अनुकम्पा, करणा। ६ आह्वान (हे २, २१७; भवि; गा ६०४)

 :: सक [आ + इ] आना, आगमन करना। एह (उवा)। भवि. एहिइ (उवा)। वकृ. एंत (पउम ८, ४३; सुर ११, १४८), इंत (सुर ३, १३), एज्जंत (पि ५६१), एज्जमाण (उप ६४८ टी)।

ए° :: देखो एत्तिअ (उवा)।

ए° :: देखो एवं (उवा)।

एअ :: वि [एत] आया हुआ, आगत (सम्मत्त ११९)।

एअ :: स [एतत्] यह (भग; हे १, ११; महा)। °रिस वि [°द्दश] ऐसा, इसके जैसा (द्र ३२)। °रूव वि [°रूप] ऐसा, इस प्रकार का (णाया १, १, महा)।

एअ :: देखो एग (गउड; नाट; स्वप्‍न ६०; १०६)। °आइ वि [°किन्] अकेला (अभि १९०; प्रति ६५)। °रिह त्रि. ब. [°दशन्] ग्यारह की संख्या, दश और एक (पि २४५)। °रहम वि [°दश] ग्यारहवाँ (भवि)।

एअ :: देखो एव = एव (कुमा)।

एअ, एअँ :: देखो एवं; 'एअ वि सिरीअ दिट्ठआ' (से ३, ४६; गउड; पिंग)।

एअंत :: देखो एक्कंत (वेणी १८)।

एआइस :: (अप) पुं. ब. [एकविंशति] एक्कीस (पिंग)।

एयारिच्छ :: वि [एतादृश] ऐसा, इसके जैसा (प्रामा)।

एइज्जमाण :: देखो एय = एज्।

एइय :: वि [एजित] कम्पित (राय ७४)।

एइश :: देखो एईस (सुख २, १७)।

एईस :: वि [एतादृश] ऐसा (विसे २५४९)।

एउंजि :: (अप) अ [एवमेव] १ इसी तरह। २ यही (भवि)

एऊण :: देखो एगूण (पिंग)।

एंत :: देखो इ = इ।

एंत :: देखो ए = आ + इ।

एक :: देखो एक्क तथा एग (षड्; सम ६६; पउम १०३; १७२; हेका ११९; पणह २, ५; पउम ११४, २४; सुपा १६५; कप्प; सम ७१; १५३)। °इशा अ [°दा] एक समय में, कोई वक्‍त (हे २, १६२)। °लं (अप) वि [°क] एकाकी (पि ५९५)। °लिय वि [°किन्] एकाकी, अकेला (उप ७२८ टी)। °णिउइ स्त्री [°नवति' संसंख्या-विशेषख्या- विशेष, एकानबे (सम ६५; पि ४३५)।

एकूण :: देखो अउण = एकोन (सुज्ज १९)।

एक्क :: देखो एक तथा एग (हे २, ९९; सुपा १४३; सम ६६; ५५; पउम ३१, १२८; गउड; कप्पू; मा १८; सुपा ४८९; मा ४१; पि ५९५; नाट; णाया १, १; गा ६१८; काल; सुर ५, २४२; भग; सम ३९; पउम २१, ६९; कप्प)। °वए देखो एगपए (गउडष सुर १, ३८)। °सणिय वि [°श- निक] एक ही बार भोजन करनेवाला (पणह २, १)। °सत्तरि स्त्री [°सप्तति] संख्या-विशेष, ७१, एकहत्तर (सम ८२)। °सरग, °सरय वि [°सरक, °सर्ग] एक समा, एक सरीखा (उवा; भग १६; पणह २, ५)। °सि अ [°शस्] एक बार; 'सव्वजहन्‍नो उदओ दसुगुणिओ एक्कसि कयाणं' (भग); 'एक्कसलि कओ पमाओ जीवं पाडेइ भवसमु द्दमि' (सुर ८, ११२); 'एक्कसि सीलकलंकि- अहं देज्जहिं पच्छित्ताइं' (हे ४, ४२८)। °स अ [°त्र] एक (किसी एक) में, 'एक्कसि न खु त्थिरो सित्ति पिओ कीइवि उवालद्धो' (कुमा)। °सि, °सिअं अ [°दा] कोई एक समय में (हे २, १६२)। °सिं अ [°शस्] एक बार (पि ४५१)। °इ पुं [°किन्] अकेला (प्रयौ २३)। °इ पुं [°दि] स्वनाम-ख्यात एक माण्डलिक (सूबा) (विपा १, १)। °णिउय वि [°नवत] ९१ वाँ (पउम ९१, ३०)। °रसम वि [°दश] ग्यायरहवाँ (विपा १, १; उवा; सुर ११, २५०)। °रह त्रि. ब. [°दशन्] ग्यारह, दश और एक (षड्)। °सीइ स्त्री [°शीति] संख्या-विशेष, एकासी (सम ८८)।°सीइविह वि [°शीतिविध] एकासी तरह का (पणण १; १७)। °सीय वि [°शीत] एकासीवाँ, ८१ वाँ (पउम ८१, १६)।° त्तरसय वि [°त्तरशततम] एक सौ एक वाँ, १०१ वाँ (पउम १०१, ७६)। °यर पुं [°दर] सहोदर भाई, सगा भाई (पउम ६, ६०; ४६, १८)। °यरा स्त्री [°दरा] सगी बहिन (पउम ८, १०६)।

एक्क :: वि [एकक] अकेला (हेका ३१)।

एक्क :: वि [दे] स्‍नेह-पर, प्रमे-तत्पर (दे १, १४४)।

एक्कई :: (अप) वि [एकाकिन्] एकाकी, अकेला (भवि)।

एक्कंग :: न [दे] चन्दन, सुगन्धि काष्ठ-विशेष (दे १, १४४)।

एक्कंत :: पुं [एकान्त] १ सर्वंथा। २ तत्त्व, प्रमेय। ३ जरूर, अवश्य। ४ असाधारणता, विशेष (से ४, २३) ५ निर्जंन, निराला (गा १०२)। देखो एगंत।

एक्कक्क :: वि [एकैक] हर एक, प्रत्येक (नाट)।

एक्कक्कम :: [दे] देखो एक्केक्कम (से ५, ५९)।

एक्कगसित्थ :: न [एकसिक्थ] तपो-विशेष (पव २७१)।

एक्कग्ग :: देखो एग-ग्ग= एक-क (कुप्र ७९)।

एक्कघरिल्ल :: पुं [दे] देवर, पति का छोटा भाई (दे १, १४६)।

एक्कणड :: पुं [दे] कथक, कथा कहनेवाला (दे १, १४५)।

एक्कमुह :: वि [दे] १ धर्मं-रहित, निधर्मी। २ दरिद्र, निर्धंन। ३ प्रिय, इष्ट (दे १, १४८)

एक्कमेक्क :: वि [एकैक] प्रत्येक, हर एक (हे ३, १; षड; कुमा)।

एक्कल्ल :: वि [दे] प्रबल, बलवान् (षड्)।

एक्कल्लपुडिंग :: न [दे] विरल-बिन्दु-वृष्टि, अल्प बिन्दुवाली बारिश (दे १, १४७)।

एक्कसिरअं :: अ [दे] १ शीघ्र, तुरन्त। २ संप्रति, आजकल (हे २, २१३; षड्)

एक्कसिरिआ :: अ [दे] शीघ्र, जलदी (प्राकृ ८१)।

एक्कसाहिल्ल :: वि [दे] एक स्थान में रहनेवाला (दे १, १४६)।

एक्कसिंबली :: स्त्री [दे] शाल्मली-पुष्पों से नूतन फलवाली (दे १, १४६)।

एक्कसेस :: देखो एग-सेस (अणु १४७)।

एक्कह :: देखो एग (प्राकृ ३५)।

एक्कार :: देखो एक्कारह (कम्म ६, १९)।

एक्कार :: पुं [अयस्कार] लोहार (हे १, १६६; कुमा)।

एक्की :: स्त्री [एका] एक (स्त्री) (निचू १)।

एक्कूण :: देखो अउण (पि ४४५)।

एक्केक्कम :: वि [दे] परस्पर, अन्योन्य (दे १, १४५); 'सुहडा एक्केक्कमं अपेच्छंता' (पउम ६८, १५)।

एक्केल्ल, एक्कोल्ल :: देखो एग (प्राकृ, ३५)।

एग :: स [एक] १ एक, प्रथम-संख्या (अणु) २ एकाकी, अकेला (ठा ४, १) ३ अद्वितीय (कुमा) ४ असहाय, निःसहाय (विपा १, २) ५ अन्य, दूसरा; 'एवमेगे वदंति मोसा' (पणह १, २) ६ समान, सदृश, तुल्य (उवा)। °इय देखो एग; 'अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पन्‍नत्ता' (सम २; ठा ७; औप)। °इय वि [°क] अकेला, एकाकी (भग)। °ओ अ [°तस्] एक तरफ (कप्प)। °क्खरिय वि [°क्षरिक] एक अक्षरवाला (नाम) (अणु)। °+खंधी स्त्री [°स्कन्ध] एक स्कन्धवाला (वृक्ष वगैरह) (जीव ३)। °खुर वि [°खुर] एक खुरवाला (गौ वगैरह पशु) (पणण १)। °ग वि [°क] एकाकी, अकेला (श्रा १४)। °ग्ग वि [°ग्र] तल्लीन, तत्पर (सुर १, ३०)। °चक्खु वि [°चक्षुष्क] एक आँखवाला, एकाक्ष, काना (पणह २, ५)। °चत्ताल वि [°चत्तारिंश] एकतालीसवाँ (पउम ४१, ७९)। °चर वि [°चर] एकाकी विहरनेवाला (आचा)। °चरिया स्त्री [°चर्या] एकाकी विहरना (आचा)। °चारि वि [°चारिन्] अकेल-बिहारी (सुअ १, १३)। °चूड पुं [°चूड] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४५)। °च्छत्त वि [°च्छत्र] १ पूर्ण प्रभुत्ववाला, अकण्टक; 'एगच्छत्तं ससागरं भुजिऊण वसुहं' (पणह २, ४)। २ अद्वितीय (काप्र १८९)। °जडि वि [°जटिन्] महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)। °जाय वि [°जात] अकेला, निस्सहाय; 'खग्गविसाणं व एगजाए' (पणह २, ५)। °ट्ठ वि [°स्थ] इकट्ठा, एकत्रित (भग १४, ६; उप पृ ३४१)। °ट्ठ वि [°र्थ] एक अर्थंवाला, पर्याय-शब्द (ओघ १ भा)। °ट्ठ, °ट्ठं अ [°त्र] एक स्थान में; 'मिलिया सव्वेवि एगट्‍ठं' (पउम ४७, ४४)। °ट्ठिय वि [°र्थिक] एक ही अर्थवाला, समानार्थक, पर्याय-शब्द (ठा १)। °ट्ठिय वि [°स्थिक] जिसके फल में एक ही बीज होता है एसा आम वगैरह का पेड़ (पणण १)। °णासा स्त्री [°नासा] एक दिक्कुमारो, देवी-विशेष (आव१ )। °त्त न [°त्र] एक ही स्थान में; 'एगत्तो ठिओ' (स ४७०)। °त्थ देखो °ट्ठ (सम्म १०९; निचू १)। °नासा देखो °णासा (ठा ८)।°पए अ [°पदे] एक ही साथ, युगपत् (पि १७१)। °पक्ख वि [°पक्ष] १ असहाय (राज)। २ ऐकान्तिक, अविरुद्ध (सूअ १, १२)। °पन्नास स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन, पचास और एक। °पन्नासइम वि [°पञ्चाशत्तम्] एकावनवाँ, ५१ वाँ (पउम ५१, २८)। °पाइअ वि [°पादिक] एक पाँव ऊँचा रखनेवाला (आतापना में) (कस)। °पासग वि [°पार्श्‍वक] एक ही पार्श्‍व की भूमि से सम्बन्ध रखनेवाला (आतापना में) (पणह २, १)। °पासिय वि [°पार्श्‍विक] देखो पूर्वोक्त अर्थ (कस)। °भत्त न [°भक्त] व्रत-विशेष, एकासन (पंचा १२)। °भूय वि [°भूत] १ एकीभूत, मिला हुआ (ठा १)। २ समाने (ठा १०)। °मण वि [°मनस्] एकाग्रचित्त, तल्लीन (सुर २, २२६)। °मेग वि [°एक] प्रत्येक, हर एक (सम ६७)। °य वि [°क] एकाकी, अकेला (दस ५)। य° वि [°ग] अकेला जानेवाला (उत्त ३)। °यर वि [°तर] दो में से कोई भी एक (षड्)। °या अ [°दा] एक समय में (प्रारू; नव २४)। °राइय वि [°रात्रिक] एक-रात्रि-सम्बन्धी, एक रात में होनेवाला (सम २१; सुर ९, ६०)। °राय न [°रात्र] एक रात्र (ठा ५, २)। °ल्ल वि [एक] एकाकी, अकेला (ठा ७; सुर ४, ५४)। °विह वि [°विध] एक प्रकार का (नव ३)। °विहारि वि [°विहारिन्] एकल-विहारी, अकेला विचरनेवाला (बृह १)। °वीसइम वि [°विशतितम] एककीसवाँ (पउम २१, ८१)। °वीसा स्त्री [°विंशति] एक्कीस (पि ४४५)। °सट्ठ वि [°षष्ट] एकसठवां, ६१ वां (पउम ६१, ७५)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] एकसठ (सम ७५)। °सत्तर वि [°सप्तम] एकहतरवाँ, ७१ वां (पउम ७१, ७०)। °समइय वि [°सामयिक] एक समय में होनेवाला (भग २४, १)। °सरिया स्त्री [°सरिका] एकावली, हार-विशेष (जं १)। °सडिय वि [°शाटिक] एक वस्त्रवाला, 'एगसाडियमुत्तरासंगं करेइ' (कप्प; णाया १, १)। °सिअं अ [°दा] एक समय में (षड्)। °सेल पुं [°शैल] पर्वत-विशेष (ठा २, ३)। °सेलकूड पुंन [°शैलकूट] एकशैल पर्वत का शिखर-विशेष (जं ४)। °सेस पुं [°शेष] व्याकरण- प्रसिद्ध समास-विशेष (अणु)। °हा अ [°धा] एक प्रकार का (ठा १)। °हुत्त अ [°सकृत्] एक बार (प्रामा)। °णिअ वि [°किन्] अकेला (कस; ओघ २८ भा)। °दिस त्रि. ब. [°दिशन्] ग्यारह। °दसुत्तरसय वि [°दिशोत्तरशततम] एक सौ ग्यारहवाँ, १११ वाँ (पउम १११, २४)। °भोग पुं [°भोग] एकत्र-बन्धन (निचू १)। °मोस वि [°मर्श] १ प्रत्यु- पेक्षणा का एक दोष, वस्त्र को मध्य मे ग्रहण कर दोनों अंचलों को हाथ से घसीट कर उठाना (ओघ २६७)। °यिय वि [°यित] एकत्र संबद्ध (कप्प)। °रस देखो °दस (पि ४३५)। °रसी स्त्री [°दशी] तिथि- विशेष, एकादशी (कप्प; पउम ७३, ३४)। °विण्ण स्त्रीन [°पञ्चाशत्] एकावन (पि २६५)। °वलि, °ली स्त्री [°वलि, ली] विविध प्रकार की मणियों से ग्रथित हार (औप)। °वलीपविभत्ति न [°वलीप्रवि- भक्ति] नाटक-विशेष (राय)। °वाइ पुं [°वादिन्] एक ही आत्मा वगैरह पदार्थ को माननेवाला दर्शन, वेदान्त-दर्शन (ठा ८)। °वीस स्त्रीन [°विंशति] संख्या-विशेष, एक्कीस (पउम २०, ७२)। °सण न [°शन, °सन] व्रत-विशेष, एकाशन (धर्मं २)। °ह पुंन [°ह] एक दिन (आचा २, ३, १)। °हिच्च वि [°हित्य] एक ही प्रहार से नष्ट हो जानेवाला (भग ७, ९)। °हिय वि [°हिक] १ एक दिन का उत्पन्‍न। २ पुं. ज्वर-विशेष, एकान्तर ज्वर (भग ३, ७)। °हिय वि [°धिक] एक से ज्यादा (पंच)। देखो एअ, एक और एक्क। एगंत देखो एक्कंत (ठा ५; सुअ १, १३; औघ ५५; पंचा ५; १०)। °दिट्ठि स्त्री [°दृष्टि] १ जैनेतर दर्शंन। २ वि. जैनेतर दर्शन को माननेवाला (सुअ २, ६)। ३ स्त्री. निश्चित सम्यक्त्व, निश्‍चल सत्य-श्रद्धा (सुअ १, १३)। °दूसमा स्त्री [°दुष्षमा] अवसर्पिणी-काल का छठवाँ और उत्सर्पिणी-काल का पहला आरा, काल-विशेष (सुअ १, ३)। °पंडिय पुं [°पण्डित] साधु, संयत (भग)। °बाल पुं [°बाल] १ जैनेतर दर्शन को माननेवाला। २ असंयत जीव (भग)। °वाइ वि [°वादिन्] जैनेतर दर्शंन का अनुयायी (राज)। °वाय पुं [°वाद] जैनेतर दर्शंन (सुपा ६५८)। °सुसमा स्त्री [°सुषमा] काल-विशेष, अवसर्पिणी काल का प्रथम और उत्सर्पिणी काल का छठवाँ आरा (णंदि)

एगंतिय :: वि [ऐकान्तिक] १ अवश्यंभावी (विसे) २ अद्वितीय; 'एगंतियं कम्मवाहि- ओसहं' (स ५९२) ३ जैनेतर दर्शन (सम्म १३०)

एगंतिय :: न [ऐकान्तिक] मिथ्यात्व का एक भेद — वस्तु को सर्वंथा क्षणिक आदइ एक ही दृष्टि से देखना (संबोध ५२)।

एगट्ठि :: देखो एग्ग-सट्ठि (देवेन्द्र १३९; सुज्ज १२)।

एगट्ठिया :: स्त्री [दे] नौका, जहाज (णाया १, १६)।

एगठाण :: न [एकस्थान] एक प्रकार का तप (पव २७१)।

एगंदिय :: वि [एकेन्द्रिय] एक इन्द्रियवाला, केवल स्पर्शोंन्द्रियवाला (जीव) (ठा ७)।

एगीभूत :: वि [एकीभूत] मिला हुआ, एकता- प्राप्‍त (सुपा ८६)।

एगूण :: देखो अउण। °चत्ताल वि [°चत्वा- रिंश] उनचालीसवां (पउम ३९, १३४)। °चत्तालीस स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] उनचालीस (सम ६६)। °चत्तालीसइम वि [°चत्वा- रिंशत्तम] उनचालीसवाँ (सम ५६)। °णउइ स्त्री [°नवति] नवासी (पि ४४४)। °तीस स्त्रीन [°त्रिंशत्] उनतीस, २९। °तीसइम वि [°त्रिंशत्तम] उनतीसवाँ, २९ वाँ (पउम २९, ४९)। °नउइ देखो °णउइ (सम ९४)। °नउय वि [°नवत] नवासीवाँ (पउम ५९, ६५)। °पन्न, °पन्नास स्त्रीन [°पञ्चाशत्] उनचास (सम ७०; भग)। °पन्नास वि [°पञ्चास] उनपचासवाँ (पउम ४९, ४०)। °पन्नासइम वि [°पञ्चाशत्तम] उनपचा- सवाँ (सम ९९)। °वीस स्त्रीन [°विंशति] उन्नीस (सम ३६; पि ४४४; णाया १, १९)। °वीसइ स्त्री [°वंशति] उन्नीस (सम ७३)। °वीसइम, °वीसईम, °वीसम वि [°विंशतितम] उन्नीसवाँ (णाया १, १८; पउम १९, ४५; पि ४४९)। °सट्ठ वि [षष्ट] उनसठवाँ ५९ वाँ (पउम ५९, ५९)। °सत्तर वि [°सप्तम] उनसत्तरवाँ (पउम ६९, ६०)। °सी, °सीइ स्त्री [°शीति] उन्नासी (सम ८७; पि ४४४; ४४६)। °सीय वि [°शीत] उन्नासीवाँ, ७९ वाँ (पउम ७९, ३५)। देखो अउण।

एगूरुय :: पुं [एकोरुक] १ इस नाम का एक अन्तर्द्वीप। २ वि. उसका निवासी (ठा ४, २)

एग्ग :: (अप) देखो एग (पिंग)।

एज :: पुं [एज] वायु, पवन (आचा)।

एजणया :: स्त्री [एजना] कम्प, काँपना (सूअनि १६६)।

एज्ज :: देखो एय = एज्। वकृ. एज्जमाण (राय ३८)।

एज्जंत :: देखो ए = आ + इ।

एज्जण :: न [आयन] आगमन (वव ३)।

एज्जमाण :: देखो ए = आ + इ।

एड :: सक [एड्] छोड़ना, त्याग करना। एडेइ (भग)। कवकृ. एडिज्जमाण (णाया १, १६)। संकृ. एडित्ता (भग)। कृ. एडेयव्व (णाया १, ९)।

एड :: सक [एडय्] हटाना, दूर करना। एडेह; संकृ. एडेत्ता (राय १८)।

एडक्क :: पुं [एडक] मेष, भेड़ (उप पृ २३४)।

एडया :: स्त्री [एडका] भेड़ी (षड्)।

एण :: पुं [एण] कृष्ण, मृग, हरिण (कप्पू)। °णाहि स्त्री [°नाभि] कस्तूरी (कप्पू)।

एणंक :: पुं [एणाङ्कं] चन्द्र, चन्द्रमा (कप्पू)।

एणिज्ज :: वि [एणेय] हरिण-संबन्धी, हरिण का (मांस वगैरह) (राज)।

एणिज्जय :: पुं [एणेयक] स्वनाम-ख्यात एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थि (ठा ८)।

एणिस :: पुं [एणिस] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)।

एणी :: स्त्री [एणी] हरिणी (पाअ; पणह १, ४)। °यार पुं [°चार] हरिणी को चरानेवाला, उनका पोषण करनेवाला (पणह १, १)।

एणुवासिअ :: पुं [दे] भेक, मेढ़क (दे १, १४७)। एणेज्ज देखो एणिज्ज (विपा १, ८)।

एण्हं, एण्हिं :: अ [इदानीम्] अधुना, संप्रति (महा; हे २, १३४)।

एताव :: देखो एत्तिअ = एतावत्; 'एतावं नर- लोओ' (जीवस १८७)।

एत्तअ :: वि [इयत्, एतावत्] इतना (अबि ५६; स्वप्‍न ४०)।

एत्तए :: देखो इ = इ।

एत्तहि :: (अप) अ [इतस्] यहाँ से (कुमा)।

एत्तहे :: देखो इत्तहे (कुमा)।

एत्ताहे :: देखो इत्ताहे (हे २, १३४; कुमा)।

एत्तिअ, एत्तल :: वि [इयत्, एतावत्] इतना (हे २, १५७)। °मत्त, °मेत्त वि [°मात्र] इतना ही (हे १, ८१)।

एत्तिक :: (शौ) देखो एत्तिअ = एतावत् (प्राकृ ९५)।

एत्तुल :: (अप) ऊपर देखो (हे ४, ४०८; कुमा)।

एत्तूण :: अ [दे] अधुना, इस समय (प्राकृ ८०)।

एत्तो :: देखो इओ (महा)।

एत्तोअ :: अ [दे] यहां से लेकर (दे १, १४४)।

एत्थ :: अ [अत्र] यहाँ, यहां पर (उवा; गउड; चारु १०३)।

एत्थी :: देखो इत्थी (उप १०३१ टी)।

एत्थु :: (अप) देखो एत्थ (कुमा)।

एदंपज्ज :: न [ऐदंपर्य] तात्पर्य, भावार्थ (उप ८५९ टी)।

एदिहासिअ :: (शौ) वि [ऐतिहासिक] इति- हास-संबन्धी (प्राप)।

एद्दह :: देखो एत्तिअ (हे २, १५७; कुमा; काप्र ७७)।

एम :: (अप) अ [एवं] इस तरह, ऐसा (षड् पिंग)।

एमइ :: (अप) अ [एवमेव] इसी तरह, ऐसा ही (षड्; वज्जा ६०)।

एमाइ, एमाइय :: वि [एवमादि] इत्यादि, वगैरह (सुर ८, २९; उव)।

एमाण :: वि [दे] प्रेवश करता हुआ (दे १, १४४)।

एमिणिआ :: स्त्री [दे] वह स्त्री, जिसके शरीर को, किसी देश के रिवाज के अनुसार, सूत के धागे से माप कर उस धागे को फेंत दिया जाता है (दे १, १४५)।

एमेअ, एमेव :: अ [एवमेव] इसी तरह, इसी प्रकार; 'ता भण किं करणिज्जं एमेअ ण वासरो ठाइ' (काप्र २९; हे १, २७१)।

एम्व :: (अप) अ [एवम्] इस तरह, इस प्रकार (हे ४, ४१८)। एम्वइ (अप) अ [एवमेव] इसी तरह, इस प्रकार (हे ४, ४२०)।

एम्वहिं :: (अप) अ [इदानीम्] इस समय, अधुना (हे ४, ४२०)।

एय :: अक [एज्] १ काँपना, हिलना। २ चलना। एयइ (कप्प)। वकृ. एयंत (ठा ७)। प्रयो., कवकृ. एइज्जमाण (राज)

एय :: पुं [एज] गति, चलन (भग २५, ४)।

एयंत :: देखो एक्कंत (पउम १५, ५८)।

एयण :: न [एजन] कम्प, हिलन; 'निरेयणं झाणं' (आव ४)।

एयणा :: स्त्री [एजना] १ कम्प। २ गति, चलन (सुअ २, २; भग १७, ३)

एयाणिं :: देखो इयाणिं (रंभा)।

एयावंत :: वि [एतावत्] इतना (आचा)।

एरंड :: पुं [एरण्ड] १ वृक्ष-विशेष, रेंड़, अंडी, एरण्ड का पेड़ (ठा ४, ४; णाया १, १) २ तृण-विशेष (पणण १)। °मिंजिया स्त्री [°मिञ्जिका] एरण्ड-फल (भग ७, १)

एरंड :: वि [ऐरण्ड] एरण्ड-वृक्ष-संबन्धी (पत्रादि) (दे १, १२०)।

एरंडइय, एरंडय :: पुं [दे] पागल कुत्ता, 'एरंडए साणे एरंडइयसाणेत्ति हडक्क- यितः' (बृह १)।

एरण्णवय :: न [ऐरण्यवत] १ क्षेत्र-विशेष (सम १२) २ वि. उस क्षेत्र में रहनेवाला (ठा २)

एरवई :: स्त्री [ऐरावती, अजिरवती] नदी- विशेष (राज; कस)।

एरवय :: न [ऐरवत] १ क्षेत्र-विशेष (सम १२; ठा २, ३) २ पुं. पर्वंत-विशेष (ठा १०)

एरवय :: वि [ऐरवत] ऐरवत क्षेत्र का (सुज्ज १, ३)।

एरवय :: वि [ऐरवत] ऐरवत क्षेत्र का रहनेवाला (अणु)। °कूड न [°कूट] पर्वत- विशेष का शिखर-विशेष (ठा १०)।

एराणी :: स्त्री [दे] १ इन्द्राणी व्रत का सेवन करनेवाली स्त्री (दे १, १४७)

एरावई :: स्त्री [ऐरावती] नदी-विशेष (ठा ५, २; पि ४६५)।

एरावण :: पुं [ऐरावण] १ इन्द्र का हाथी, जो कि इन्द्र के हस्ति-सैन्य का अधिपति देव है (ठा ५, १; प्रयौ ७८)। °वाइण पुं [°वाहन] इन्द्रबाहन (उप ५३० टी)

एरावय :: पुं [ऐरावत] १ ह्रद-विशेष (राज) २ ह्रद-विशेष का अधिष्ठाता देव (जीव ३) ३ छन्द-शास्त्रप्रसिद्ध पञ्चकला-प्रस्तार में आदि के ह्र्स्व और अन्त के दो गुरु अक्षरों का संकेत (पिंग) ४ लकुच वृक्ष। ५ सरल और लम्बा इन्द्र-धनुष। ६ इरावती नदी का समीपवर्त्ती देश। ७ इन्द्र का हाथी (हे १, २०८)

एरिस :: वि [ईदृश] इस तरह का, ऐसा (आचा; कुमा; प्रासू २१)।

एरिसिअ :: /?/(अप) ऊपर देखो (पिंग)।

एल :: वि [दे] कुशल, निपुण (दे १, १४४)।

एल, एलग :: पुं [एड, एल] १ मृगों की एक जाति (विपा १, ४) २ मेष भेड़ (सुअ २, २) °मूअ, °मूग वि [°मूक] १ मूक, भेड़ की तरह अव्यक्त बोलनेवाला; 'जलएलमूअमम्मणअलियवयणजंपणे दोसा' (श्रा १२; दस ५; आव ४; निचू ११)

एलगच्छ :: न [एलकाक्ष्] स्वनाम-ख्यात नगर- विशेष (उप २११ टी)।

एलय :: देखो एल (उवा; पि २४०)।

एलविल :: वि [दे] १ धनाड्य, धनी। २ पुं. वृषभ, वैल (दे १, १४८; षड्)

एला :: स्त्री [एला] १ इलायची का पेड़ (से ७, ६२) २ इलायची-फल (सुर १३, ३३)। °रस पुं [°रस] इलायची का रस (पणह २, ५)

एलालुय :: पुंन [एलालुक] आलू की एक जाति, कन्द-विशेष (अनु ६)।

एलावच्च :: न [एलापत्य] माण्डव्य गोत्र का एक शाखा-गोत्र (ठा ७)।

एलावच्च :: वि [ऐलापत्य] एलापत्य-गौत्र का (णंदि ४९)।

एलावच्चा :: स्त्री [एलापत्या] पक्ष की तीसरी रात (चंद १०, १४)।

एलिक्ख :: वि [ईदृक्ष्] ऐसा (उत्त ७, २२)।

एलिंघ :: पुं [एलिङ्घं] धान्य-विशेष (पणह १)।

एलिया :: स्त्री [एडिका, एलिका] १ एक जात की मृगी। २ भेड़िया (हे ३, ३२)

एलिस :: देखो एरिस (सुअ १, ६, १)।

एलु :: पुं [एलु] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)।

एलुग, एत्तुय :: पुंन [एलुक] देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी (जीव ३; आचा २)।

एल्ल :: वि [दे] दरिद्र, निर्धन (दे १, १७४)।

एव :: अ [एव] इन अर्थों का सूचक अव्ययः — १ अवधारण, निश्चय (ठा ३, १; प्रासु १३)| २ तुल्यता। ३ चार-नियोग। ४ निग्रह। ५ परिभव। ६ अल्प, थोड़ा (हे २, २१७)

एव :: देखो एवं (हे १, २९; पउम १५, २४)।

एवइ :: वि [इयत्, एवावत्] इतना। °खुत्तो अ [°कृत्वस्] इतनी बार (कप्प)।

एवइय :: वि [इयत्, एतावत्] इतना (कप्प; विसे ४४४)।

एवं :: अ [एवम्] इस तरह, इस रीति से, इस प्रकार (स १, १; हे १, २९)। °भूअ पुं [°भूत] १ व्युत्पति के अनुसार उस क्रिया से विशिष्ट अर्थ को ही शब्द का अभिधेय माननेवाला पक्ष (ठा ७) २ वि. इस तरह का, एवं-प्रकार (उप ८७७)। °विध, °विह वि [°विध] इस प्रकार का (हे ४, ३२३; काल)

एवंहास :: पुं [एवंहास] इतिहास (गउड ८०२)।

एवड :: (अप) वि [इयत्] इतना (हे ४, ४०८; कुमा; भवि)।

एवमाइ :: देखो एमाइ (पणह १, ३)।

एवमेव, एवामेव :: देखो एमेव (हे १, २७१; उवा)।

एव्वं :: देखो एवं (षड्; अभि ७२; स्वप्‍न १०)।

एव्व :: देखो एव = एव (अभि १३; स्वप्‍न ४०)।

एव्वहि :: (अप) अ [इदानीम्] इस समय, अधुना (षड्)।

एव्वारु :: पुं [इर्वारु] ककड़ी (कुमा)।

एस :: सक [इष्] १ इच्छा करना। २ खोजना। ३ प्रकाशित करना। एसइ (पिंड ७५)

एस :: सक [आ + इष्] करना, 'तम्हा विणयमेसिज्जा' (उत्त १, ७; सुख १, ७)।

एस :: सक [आ + इष्] १ खोजना, शुद्ध क्षिक्षा की खोज करना। २ निर्दोंष भिक्षा का ग्रहण करना। एसंति (आचा २, ९, २)।ष वकृ. एसमाण (आचा २, ५, १)। संकृ. एसित्ता, एसिया (उत्त १; आचा)। हेकृ. एसित्तए (आचा २, २, १)

एस :: वि [एष्य] १ भावी पदार्थ, होनेवाली वस्तु (आव ५) २ पुं. भविष्य काल (दसनि १); 'अकयंव संपइ गए कह कीरइ, किह व एसम्मि' (विसे ४२२)

°एस :: देखो देस; 'भण को ण रुस्सइ जणो पत्थिज्जंतो अएसकालम्मि' (गा ४००)।

एसग :: वि [एषक] अन्वेषक, गवेषक (आचा)।

एसज्ज :: न [ऐश्‍वर्य] वैभव, प्रभुत्व, संपत्ति (ठा ७)।

एसण :: न [एषण] १ अन्वेषण, खोज। २ ग्रहण (उत्त २)

एसणा :: स्त्री [एषणा] १ अन्वेषण, गवेषण, खोज (आचा) २ प्राप्ति, लाभ; 'विसएसणं झियायंति' (सूअ १, ११) ३ प्रार्थना (सूअ १, २) ४ निर्दोंष आहाक की खोज करना (ठा ६) ५ निर्दोंष भिक्षा (आचा २) ६ इच्छा, अभिलाष (पिंड १) ७ भिक्षा का ग्रहण (ठा ३, ४)। °समिइ स्त्री [°समिति] निर्दोष भिक्षा का ग्रहण करना (ठा ५)। °समिय वि [°समित] निर्दोष भिक्षा को ग्रहण करनेवाला (उत्त ६; भग)

एसणिज्ज :: वि [एषणीय] ग्रहण-योग्य (णाया १, ५)।

एसि :: वि [एषिन्] अन्वेषक, खोज करनेवाला (आचा)।

एसिय :: वि [एषिक] १ खोज करनेवाला, गवेषक। २ पुं. व्याध। ३ पाखण्डि-विशेष (सूअ १, ९) ४ मनुष्यों की एक नीच जाति (आचा २, १, २)

एसिय :: वि [एषित] गवेषित, अन्वेषित (भघ ७, १)। २ निर्दोष भिक्षा (वव ४)

एसिय :: वि [एषित] भिक्षा-चर्या की विधि से प्राप्त (सूअ २, १, ५६)।

एस्सरिय :: देखो एसज्ज (उव)।

एह :: अक [एध्] बढ़ना, उन्नत होना। एहइ (षड्)। प्रयो., कवकृ. 'दीसंति दुहम् एहंता (दस ९)।

एह :: (अप) वि [ईदृक्] ऐसा, इसके जैसा (षड् ; भवि)।

एहत्तरि :: (अप) स्त्री [एकसप्तति] संख्या-विशेष, ७१ (पिंग)।

एहा :: स्त्री [एधस्] समिध, इन्धन (उत्त १२, ४३; ४४)।

एहिअ :: वि [ऐहिक] इस जन्म-संबन्धी (ओघ ६२)।

 :: अ [अयि] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ संभावना। २ आमन्त्रण, संबोधन। ३ प्रश्‍न। ४ अनुराग, प्रीति। ५ अनुनय; 'ऐ बीहेमि; ऐ उम्मत्तिए' (हे १, १६९)

 :: पुं [ओ] स्वर वर्णं-विशेष (हे १, १; प्रामा)।

 :: देखो अव = अप (हे १, १७२; प्राप्र; कुमा; षड्)।

 :: देखो अव (हे १, १७२; प्राप्र; कुमा; षड्)।

 :: देखो उव (हे १, १७२; कुमा)।

 :: देखो उअ = उत (हे १, १७३; कुमा)।

 :: अ [ओ] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ वितर्कं। २ प्रकोप, विस्मय (प्राकृ ७८)

 :: अ [ओ] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ सूचना; 'ओ अविणयतत्तिल्ले'। २ पश्‍चा- त्ताप, अनुताप; 'ओ न भए छाया इत्तिआए' (हे २, २०३; षड्; कुमा; प्राप्र) ३ संबोधन, आमन्त्रण (नाट — चैत ३४) ४ पादपूर्त्ति में प्रयुक्‍त किया जाता अव्यय (पंचा १; विसे २०२४)

ओअ :: न [दे] वार्त्ता, कथा कहानी (दे १, १४९)।

ओअअ :: वि [अपगत] अपसृत; 'ओअआअव — (पि १६५)।

ओअंक :: पुं [दे] गर्जित, गर्जना (दे १, १५४)।

ओअंद :: सक [आ + छिद्] १ बलात्कार से छीन लेना। २ नाश करना। ओअंदइ (हे ४, १२५; षड्)

ओअंदणा :: स्त्री [आच्छेदना] १ नाश। २ जबरदस्ती छीनना (कुमा)

ओअक्ख :: सक [दृश्] देखना। ओअक्खइ (हे ४, १८१; षड्)।

ओअग्ग :: सक [वि + आप्] व्याप्त करना। ओअग्गइ (हे ४, १४१)।

ओअग्गिअ :: वि [व्याप्त] विस्तृत, फैला हुआ (कुमा)।

ओअग्गिअ :: वि [दे] १ अभिभूत, परिभूत। २ न. केश वगैरह को एकत्रित करना (दे १, १७२)

ओअग्घिअ, ओअघिअ :: वि [दे] घ्रात, सूँघा हुआ (दे १, १६२; षड्)।

ओअण्ण :: वि [अवनत] नमा हुआ, नीचे की तरफ मुड़ा हुआ (से ११, ११८)।

ओअत्त :: वि [अपवृत्त] औंधा किया हुआ, उलटा किया हुआ; ओअत्ते कुंभमुहे जललव- कणिआवि किं ठाइ ?' (गा ६५४)।

ओअत्तअ :: वि [अपवर्त्तितव्य] १ अपवर्त्तन- योग्य। २ त्यागने योग्य, छोड़ने लायक; 'कुसुमम्मि व पव्वाअए भमरोअत्तअम्मि' (से ३, ४८)

ओअम्मअ :: वि [दे] अभिभूत, पराभूत (षड्)।

ओअर :: सक [अव + तृ] १ जन्म-ग्रहण करना। २ नीचे उतरना। ओयरइ (हे ४, ८५)। वकृ. ओयरंत (ओघ १६१; सुर १४, २१)। हेकृ. ओयरिउं (प्रारू)। कृ. ओयरियव्व (सुर १०, १११)

ओअरण :: न [उपकरण] साधन, सामग्री (गा ६८१)।

ओअरण :: न [अवतरण] उतरना, नीचे आना (गउड)।

ओअरय :: पुं [अपवरक] कमरा, कोठरी (सुपा ४१५)।

ओअरिअ :: वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ (पाअ)।

ओअरिअ :: वि [औदरिक] पेट-भरा, पेटू, उदर भरने मात्र का चिन्ती करनेवाला (ओघ ११८ भा)।

ओअरिया :: स्त्री [अपवरिका] कोठरी, छोटा कमरा (सुपा ४१५)।

ओअल्ल :: देखो ओवट्ट = अप + वृत्। ओअल्लइ (प्राकृ ७०)।

ओअल्ल :: अक [अव + चल्] चलना। ओअल्लंति (पि १९७; ४८८)। वकृ. ओअ- ल्लंत (पि १९७; ४८८)।

ओअल्ल :: पुं [दे] १ अपचार, खराब आचरण, अहित आचरण (षड्; स ५२१) २ कम्प, कांपना (षड्; दे १, १६५) ३ गौओं का बाड़ा। ४ वि. पर्यंस्त, प्रक्षिप्‍त। ५ लम्बमान, लटकता हुआ (दे १, १६५) ६ जिसकी आँखें निमीलित होती हों वह; 'मुच्छिज्जंतो- अल्ला अक्कंता णिअअमहिहरेहि पवंगा' (से १३, ४३)

ओअल्लअ :: वि [दे] विप्रलब्ध, प्रतारित (षड्)। ओअव सक [साधय्] साधना, वश में करना, जीतना; 'गच्छाहि णं भो देवाणु- प्पिआ ! सिंधुए महाणइए पच्चत्थिमिल्लं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणि-ृ क्खुडाणि अ ओअवेहि' (जं ३)। संकृ. ओअवेत्ता (जं ३)।

ओअवण :: न [साधन] विजय वश करना, स्वायत्त करना (जं ३ — पत्र २४८)।

ओआअ :: पुं [दे] १ ग्रामाधीश, गाँव का स्वामी। २ आज्ञा, आदेश। ३ हस्ती वगैरह को पकड़ने का गर्त्त। ४ वि. अपहृत, छीना हुआ (दे १, १६६)

ओआअव :: पुं [दे] अस्त-समय (दे १, १६२)।

ओआर :: सक [प + वारय्] ढांकना, 'कह सुज्जं हत्थेण ओआरेसि' (मै ४९)।

ओआर :: पुं [अपकार] अनिष्ट, हानि, क्षति (कुमा)।

ओआर :: पुं [अवतार] १ अवतारण (ठा १; गउड) २ अवतार, देहान्तर-धारण (षड्) ३ उत्पत्ति, जन्म; 'अच्चंतमणोयारो जत्थ जरारोगवाहीणं' (स १३१) ४ प्रवेश (विसे १०४०)

ओआर :: देखो उवयार (षड्)।

ओआरण :: न [अवतारण] उतारना, अवतारित करना (दे ४, ४०)।

ओआरिअ :: वि [अवतारित] उतारा हुआ (से ११, ९३; उप ५९७ टी)।

ओआल :: पुं [दे] छोटा प्रवाह (दे १, १५१)।

ओआली :: स्त्री [दे] १ खड्‍ग का दोष। २ पंक्ति, श्रेणी (दे १, १६४)

ओआवल :: पुं [दे] बालातप, सुबह का सूर्य- ताप (दे १, १६१)।

ओआस :: देखो अवगास (हे १, १७२; कुमा; २०); 'अम्हारिसाण सुंदर ! ओआसो कत्थ पावाणं' (काप्र ९०३)।

ओआस :: देखो उववास (दे १, १७३; प्रारू)।

ओआहिअ :: वि [अवगाहित] जिसका अवगाहन किया गया हो वह (से १, ४; ८, १००)।

ओइंध :: सक [आ + मुच्] १ छोड़ देना, त्यागना, फेंक देना। २ उतार कर रख देना; 'तो उज्झिऊण लज्जं ओइंधइ कंचुयं सरीराओ' (पउम ३४, १६); तहेव य झड़त्ति परिवा- डीए ओइंधइ त्ति' (आक ३८)

ओइण्ण :: वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ (पाअ; गा ६३)।

ओइत्त, ओइत्तण :: न [दे] परिधान, वस्त्र (दे १, १५५)।

ओइल्ल :: वि [दे] आरूढ (दे १, १५८)।

ओउंठण :: न [अवगुण्ठन] स्त्री के मुँह पर का वस्त्र, घुँघट (अभि् १६८)।

ओउल्लिय :: वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ (षड्)।

ओऊल :: न [अवचूल] लटकरता हुंआ वस्त्रा- ञ्चल, प्रालम्ब (पाअ); 'मरगयलंबंतमोत्तिओ- ऊलं' (पउम ८, २८३)। देखो ओचूल।

 :: अ [ओम्] प्रणाव, मुख्य मन्त्राक्षर (पडि)।

ओंकार :: पुं [ओङ्कार] 'ओं' अक्षर (उत्त २५ ३१)।

ओगण :: अक [क्‍वण्] अव्यक्त आवाज करना। ओंगणइ (प्राकृ ७३)।

ओंघ :: देखो उंब। ओंघइ (हे ४, १२ टी)।

ओंडल :: न [दे] केश-गुम्फ, केश-रचना, धम्मिल्ल (दे १, १५०)।

ओंदुर :: देखो उंदुर (षड्)।

ओंबाल :: सक [छादय्] ढकना, आच्छादित करना। ओंबालइ (हे ४, २१)।

ओंबाल :: सक [प्लावय्] १ डुबाना। २ व्याप्त करना। ओंबालइ (हे ४, ४१)

ओंबालिअ :: वि [छादित] ढका हुआ (कुमा)।

औंबालिअ :: वि [प्लावित] १ डुबाया हुआ। २ व्याप्त (कुमा)

ओकंबण :: देखो उक्कंबण (आचा २, २, ३, १ टी)।

ओकच्छिया :: देखो उक्कच्छिआ (पव ६२)।

ओक्डढ :: वि [अपकृष्ट] १ खींचा हुआ। २ न. अपकर्षण, खींचाव (उत्त १९)

ओकड्‍ढग :: देखो उक्कड्‍ढग (पणह १, ३)।

ओकरग :: पुं [अवकरक] विष्ठा (मन ३०)।

ओक्कस :: सक [अव + कृष्] १ निमग्‍न होना, गड़ जाना। २ खींचना। ३ वह जाना। वकृ. ओकसमाण (कस)

ओक्कंत :: वि [अवक्रान्त] निराकृत, पराजित; 'परवाईहिं अणोक्कंता अण्णउत्थिएहिं अणाद्धंसिज्जमाणा विहरंति' (औप)।

ओक्कदी :: देखो उक्कंदी (दे १, १७४)।

ओक्कणी :: स्त्री [दे] यूका, जूँ (दे १, १५९)।

ओक्किअ :: न [दे] १ वास, वसन, अवस्थान, २ वमन, उल्टी (दे १, १५१)

ओक्खंच :: सक [आ + कृष्] खींचना। कर्मं. 'जह जह ओक्खंचिज्जइ, तह तह वेगं पगिणहमाणेण। भयवं ! तुरंगमेणं, इहाणिओ आसमे तुम्ह' (सुर ११, ५१)।

ओक्खंड :: सक [अव + खण्डय्] तोड़ना, भागना। कृ. ओक्खंडेअव्व (से १०, २९)।

ओक्खंडिअ :: वि [दे] आक्रान्त (दे १, ११२)।

ओक्खंद :: देखो अवक्खंद (सुर १०, २१०; पउम ३७, २९)।

ओक्खल :: देखो उऊखल (कुमा ; प्राप्र)।

ओक्खली :: [दे] देखो उक्खली (दे १, १७४)।

ओक्खमाण :: (शौ) वि [भविष्यत्] भविष्य में होनेवाला, भावी (प्राकृ ९६)।

ओक्खिण्ण :: वि [दे] १ अवकीर्णं। २ खण्डित, चूर्णित (कस; दे १, १३०) २ छन्‍न, ढका हुआ। ३ पार्श्‍व में शिथिल (दे १, १३०)

ओक्खित्त :: वि [अवक्षिप्त] फेंका हुआ (कस)। ओखंच देखो आक्खंच।

ओगम :: देखो अवगम। कृ. ओगमिदव्व (शौ) (मा ४८)।

ओगय :: वि [उपगत] प्राप्‍त (सूअ १, ५, २, १०)।

ओगर :: देखो ओग्गर (पिंग)।

ओगलिअ :: वि [अवगलित] गिरा हुआ, खिसका हुआ (गा २०५)।

ओगसण :: न [अपकसन] ह्रास (राज)।

ओगहिअ :: वि [अवगृहीत] उपात्त, गृहीत (ठा ३)।

ओगाढ :: वि [अवगाढ] १ आश्रित, अधिष्ठित (ठा २, २) २ व्याप्‍त (णाया १, १६) ३ निमग्‍न (ठा ४) ४ गंभीर, गहरा (पउम २०, ६५; से ९, २९)

ओगास :: पुं [अवकाश] जगह, स्थान (विवे १३६ टी)।

ओगास :: पुं [अवकांश] मार्गं, रास्ता (सुख २, २१)।

ओगाह :: सक [अव + गाह्] पाँव से चलना। वकृ. ओगाहंत (पिंड ५७५)।

ओगाह :: सक [अव + गाह्] अवगाहन करना। ओगाहइ (षड्)। वकृ. ओगा- हंत (आव २)। संकृ. ओगाहइत्ता, ओगाहित्ता (दस ५; भग ५, ४)।

ओगाहण :: न [अवगाहन] अवगाहन (भग)।

ओगाहणा :: स्त्री [अवगाहना] १ आधार-भूत आकाश-क्षेत्र (ठा १) २ शरीर (भग ६, ८) ३ शरीर परिमाण (ठा ४, १) ४ अवस्थान, अवस्थिति (विसे)। °णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष (भग ६, ८)। °णाम पुं [°नाम] अवगाहनात्मक परिणाम (भग ६, ८)

ओगाहम :: वि [अवगाहिम] फक्वान्‍न (पंचा ५)।

ओगिज्झ, ओगिण्ह :: सक [अव + ग्रह्] १ आश्रय लेना। २ अनुज्ञा-पूर्वक ग्रहण करना। ३ जानना। ४ उद्‍देश करना। ५ लक्ष्य कर कहना। ओगिण्हइ (भग; कप्प)। संकृ. ओगिज्झिय, ओगिण्हइत्ता, ओगिण्हित्ता, ओगिण्हित्ताणं (आचा; णाया १, १; कस; उवा)। कृ. ओघेत्तव्व (कप्प पि ५७०)

ओगिण्हण :: न [अवग्रहण] सामान्य ज्ञान- विशेष, अवग्रह (णंदि)।

ओगिण्हणया :: स्त्री [अवग्रहणता] १ ऊपर देखो (णंदि) २ मनो-विषयीकरण, मन से जानना (ठा ८)

ओगिन्ह :: देखो ओगिण्ह। संकृ. ओघि- न्हित्ता (निर १, १)।

ओगुंडिय :: वि [अवगुण्डित] लिप्‍त (बृह १)।

ओगुट्ठि :: स्त्री [अपकृष्टि] अपकर्ष, हलकाई, तुच्छता (पउम ५६, १५)।

ओगूहिय :: वि [अवगूहित] आलिंगित (णाया १, ९)।

ओग्गर :: पुं [ओगर] धान्य विशेष व्रीहि- विशेष (पिंग)।

ओग्गह :: देखो उग्गह (सम्म ७५; उव; कस; स ३५; ५९८)।

ओग्गह :: सक [प्रति + इष्] ग्रहण करना। ओग्गहइ (प्राकृ ७३)।

ओग्गहण :: देखो ओगिण्हण। °पट्टग पुंन [°पट्टक] जैन साध्वियों के पहनने का एक गुह्याच्छादक वस्त्र, जांघिया, लंगोट (कस)।

ओग्गहिय :: वि [अवगृहीत] १ अवग्रह-ज्ञान से जाना हुआ, अवग्रह का विषय। २ अनुज्ञा से गृहीत। ३ बद्ध, बँधा हुआ (उवा) ४ देने के लिए उठाया हुआ (औप)

ओग्गहिय :: वि [अवग्रहिक] अनुज्ञा से गृहीत, अवग्रहवाला (औप)।

ओग्गारण :: न [उद्नारण] उद्‍गार (चारु ७)।

ओग्गाल :: पुं [दे] छोटा प्रवाह (दे १, १५१)।

ओग्गाल :: सक [रोमन्थाय्] पगुराना, चबाई हुई वस्तु का पुनः चबाना। ओग्गालइ (हे ४, ४३)।

ओग्गालिर :: वि [रोमन्यायितृ] पगुरानेवाला, चबाई हुई वस्तु का पुनः चबानेवाला (कुमा)।

ओग्गाह :: देखो उग्गाह = उद् + ग्राहय्। ओग्गाहइ (प्राकृ ७२)।

ओग्गिअ :: वि [दे] अभिभूत, पराभूत (दे १, १५८)।

ओग्गीअ :: पुं [दे] हिम, बर्फ (दे १, १४९)।

ओग्घ :: देखो उग्घड। ओग्घइ (प्राकृ ७१)।

ओग्घसिय :: वि [अवघर्षित] प्रमार्जित, साफ-सुथरा किया हुआ (राय)।

ओघ :: पुं [ओघ] १ समूह, संघात (णाया १, ५) २ संसार, 'एते ओघं तरिस्संति समुद्दं ववहारिणो' (सूअ १, ३) ३ अविच्छेद अविच्छिन्‍नता (पणह १, ४) ४ सामान्य, साधारण। सण्णा स्त्री [°संज्ञा] सामान्य ज्ञान (पणण ७)। °देस पुं [°देश] सामान्य विवक्षा (भग २५, ३)। देखो ओह = ओघ।

ओघट्टिद् :: (शौ) वि [अवघट्टित] आहत (प्रयो २७)।

ओघसर :: पुं [दे] १ घर का जल-प्रवाह। २ अनर्थं, खराबी, नुकसान (दे १, १७०; सुर २, ९९)

ओघसिय :: देखो ओग्घसिय।

ओघाययण :: न [ओघायतन] १ परम्परा से पूजा जाना स्थान। २ तलाव में पानी जाने का साधारण रास्ता (आचा २, १०, २)

ओघेत्तव्व :: देखो ओगिण्ह।

ओचार :: पुं [दे. अपचार] धान्य रखने की बड़ी कोठी-मिट्टी का पात्र-विशेष (अणु १५१)।

ओचिदी :: (शौ) स्त्री [औचिती] उचितता, औचित्य (रंभा)।

ओचुब :: सक [अव + चुम्ब्] चुम्बन करना। संकृ. ओचुंबिऊण (भवि)।

ओचुल्ल :: न [दे] चुल्हा का एक भग (दे १, १५३)।

ओचूल, ओचूलण :: देखो ओऊल (विपा १, २; सुर ३, ७०)। २ मुख से हटचा हुआ शिथिल — ढीला (वस्त्र); 'ओचूलगनियत्या' (जं ३ — पत्र २४५)।

ओच्चय :: देखो अवचय (महा)।

ओच्चिया :: स्त्री [अवचायिका] तोड़ कर (फूलों को) इकट्ठा करनेवाली (गा ७९७)।

ओच्चेल्लर :: न [दे] ऊपर-भूमि। २ जघन के रोम (दे १, १३६)

ओच्छअ, ओच्छइय :: वि [अवस्तृत] १ आच्छादित। २ निरुद्ध, रोका हुआ (पणह १, ४; गउड; स १९४)

ओच्छंदिअ :: वि [दे] १ अपहृत। २ व्यथित, पीड़ित (षड्)

ओच्छण्ण :: वि [अवच्छन्न] आच्चादित, ढका हुआ; 'णिच्चोउगो असोगो ओच्छणणो सालरुक्खेणं' (सम १५२)। देखो ओच्छन्न।

ओच्छत्त :: न [दे] दन्त-धावन, दतवन (दे १, १५२)।

ओच्छन :: देखो ओच्छण्ण (स ११२, औप)। २ अवष्टब्ध, आक्रान्त (आचा)

ओच्छर :: (शौ) सक [अव + स्तृ] १ बिछाना, फैलाना। २ आच्छादित करना, ढाँकना। ओच्छरीअदि (नाट — उत्तम १०५)

ओच्छविय, ओच्छाइय :: वि [अवच्छादित] आच्छा- दित, ढका हुआ; 'गुच्छलयारु- क्खगुम्मबल्लिगुच्छओच्छाइयं सुरम्मं वेभार- गिरिकडगपायमूलं' (णाया १, १ — पत्र २५; २८ टी; महा; स १५०)।

ओच्छाइवि :: नीचे देखो।

ओच्छाय :: सक [अव + छादय्] आच्छादन करना। संकृ. ओच्छाइवि (भवि)।

ओच्छायण :: वि [अवच्छादन] ढांकना, पिधान (स ५५७)।

ओच्छाहिय :: देखो उच्छाहिय; 'ओच्छाहिओ परेण व लद्धि- पसंसाहिं वा समुत्तइओ। अवमाणिओ परेण य जो एसइ माणपिंडो सो।।' (पिंड ४६५)।

ओच्छिअ :: न [दे] केश-विवरण (दे १, १५०)।

ओच्छिण्ण :: वि [अवच्छिन्न] आच्छादित; 'पत्तेहि य पुप्फेहि य ओच्छिण्णपलिच्छिणणा' (जीव ३)।

ओच्छुंद :: सक [आ + क्रम्] १ आक्रमण करना। २ गमन करना। ओच्छुंदंति (से १३, १९)। कर्म. ओच्छुंदइ (से १०, ५५)

ओच्छुण्ण :: वि [आक्रान्त] १ दबाया हुआ। २ उल्लंघित; 'ओच्छुण्णदुग्गमपहा' (से १३, ६३; १५, १३)

ओच्छोअअ :: न [दे] घर की छथ के प्रान्त भाग से गिरता पानी; 'रक्खेइ पुत्तअं मत्थएण ओच्छोअअं पडिच्छंती। अंसूहिं पहिअधरिणी ओलि- ज्जंतं ण लक्खेइ' (गा ६२१)।

ओजिम्ह :: अक [ध्रा] तृप्‍त होना। ओजिम्इइ (प्राकृ ६५)।

ओज्जर :: वि [दे] भीरु, डेरपोक (षड्)।

ओज्जल :: देखो उज्जल (दे)।

ओज्जल्ल :: वि [दे] बलवान्, प्रबल (दे १, १५४)।

ओज्जाअ :: पुं [दे] गर्जित, गर्जारव (दे १, १५४)।

ओज्झ :: वि [दे] मैला, अस्वच्छ, चोखा नहीं वह (दे १, १४८)।

ओज्झंत :: देखो ओज्झा = अप + ध्या।

ओज्झमण :: न [दे] पलायन, भाग जाना (दे १, १०३)।

ओज्झर :: पुं [निर्झर] झरना, पर्वंत से निकलता जल-प्रवाह (गा ६४०; हे १, ९८; कुमा; महा)।

ओज्झारिअ :: [दे] देखो उज्झारिअ (दे १, १३३)।

ओज्झरी :: स्त्री [दे] ओझ, आंत का आवरण (दे १, १५७)।

ओज्झा :: सक [अप + ध्या] खराब चिन्तन करना। कवकृ. ओज्झंत (भवि)।

ओज्झा :: देखो अउज्झा (उप पृ ३७४)।

ओज्झाय :: देखो उवज्झाय (कुमा; प्रारू)।

ओज्झाय :: वि [दे] दूसरे को प्रेरणा कर हाथ से लिया हुआ (दे १, १५९)।

ओज्झावण :: देखो उवज्झाय (उप ३५७ टी)।

ओट्ठ :: पुं [ओष्ठ] ओठ, अधर (पउम १, २४; स्वप्‍न १०४; कुमा)।

ओट्ठिय :: वि [औष्ट्रिक] उष्ट्र-सम्बन्धी, उष्ट्र के बालों से बना हुआ (कस; स ५८६)।

ओडड्‍ढ :: वि [दे] अनुरक्‍त, रागी (दे १, १५६)।

ओड्ड :: पुं [ओड्र] १ उत्कल देश। २ वि. उत्कल देश का निवासी, उड़िया (पिींग)

ओड्डिअ :: वि [ओड्रीय] उत्कल-देशीय (पिंग)।

ओड्‍ढण :: न [दे] ओढ़न, उत्तरीय, चादर (दे १, १५५)।

ओडि्ढदा :: स्त्री [दे] ओढ़नी (स २११)।

ओढण :: न [दे] अवगुण्ठन (प्राकृ ३८)।

ओण :: देखो ऊण = ऊन (रंभा)।

ओणंद :: सक [अव + नन्द्] अभिनन्दन करना। कवकृ. ओणंदिज्जमाण (कप्प)।

ओणम :: अक [अव + नम्] नीचे नमना। वकृ. ओणमंत (से १, ४५)। संकृ. ओण- मिअ, ओणमिऊण (आचा २; निचू १)।

ओणय :: वि [अवनत] १ नमा हुआ (सुर , ४९) २ न. नमस्कार, प्रणाम (सम २१)

ओणल्ल :: अक [अव + लम्ब्] लटकना, 'केसकलावु खंधे ओणल्लइ' (भवि)।

ओणविय :: वि [अवनमित] नमाया हुआ, अवनत किया हुआ (गा ६३५)।

ओणाम :: सक [अव + नमय्] नीचे नमाना, अवनत करना। ओणामेहि (मृच्छ ११०)। संकृ. ओणामित्ता (निचू )।

ओणामणी :: स्त्री [अवनामनी] एक विद्या, जिसके प्रभाव से वृक्ष वगैरह स्वयं फलादि देना के लिए अवनत होते हैं (उप पृ १५५; निचू १)।

ओणामिय, ओणाविय :: वि [अवनमित] अवनत किया हुआ (से ५, ३९; ९, ४; गा १०३; भवि)।

ओणिअत्त :: अक [अपनि + वृत्] पीछे हटना, वापिस आना। वकृ. ओणिअत्तंत (से २, ७)।

ओणिअत्त :: वि [अपनिवृत्त] पीछे हटा हुआ, वापिस आया हुआ (से ५, ५८)।

ओणिमिल्ल :: वि [अवनिमीलित] मुद्धित, मुँदा हुआ (से ९, ८७; १३, ८२)।

ओणियट्ट :: देखो ओनियट्ट (पि ३३३)।

ओणियव्व :: पुं [दे] वल्मीक, चीटियों का खुदा हुआ मिट्टी का ढेर (दे १, १५१)।

ओणीवी :: स्त्री [दे] नीवी, कटि-सूत्र (दे १, १५०)।

ओणुणअ :: वि [दे] अभिभूत, पराभूत (दे १, १५८)।

ओण्णिद्द :: न [औत्रिद्रय] निद्रा का अभाव; 'ओणिणद्दं दोब्बल्लं' (काप्र ८५; दे १, ११७)।

ओण्णिय :: वि [और्णिक] ऊन का बना हुआ, ऊर्ण-निर्मित (कस)।

ओणेज्ज :: वि [उपनेय] सांचे में ढाल कर बना हुआ फूल आदि, सांचे से बनता मोम कसा पुतला; 'ओउट्टिमउक्किन्नं ओणणे' (? णे) ज्जं पीलिमं च रंगं च' (दसनि २, १७)।

ओत्तलहअ :: पुं [दे] विटप (दे १, ११९)।

ओत्ताण :: देखो उत्ताण (विक्र २८)।

ओत्थ :: सक [स्थग्] ढकना। ओत्थइ (प्राकृ ६५)।

ओत्थअ :: वि [अवस्तृत] १ फैला हुआ, प्रसृत (से २, ३) २ आच्छादित, पिहित; 'समं- तओ अत्थयं गयणं' (आवम; दे १, १५१; स ७७, ३७९)

ओत्थअ :: वि [दे] अवसन्न, खिन्न (दे १, १५१)।

ओत्थइअ :: देखो ओच्छइय (गा ५६९; से ८, ९२; स ५७६)।

ओत्थर :: देखो ओच्छर। ओत्थरइ (पि ५०५; नाट)।

ओत्थर :: पुं [दे] उत्साह (दे १, १५०)।

ओत्थरण :: न [अवस्तरण] बिछौना (पउम ४६, ८४)।

ओत्थरिअ :: वि [अवस्तृत] १ बिछाया हुआ। २ व्याप्‍त (से ७, ४७)

ओत्थरिअ :: वि [दे] १ आक्रान्त। २ जो आक्रमण करता हो वह (दे १, १६९)

ओत्थल्ल :: देखो उत्थल्ल = उत् + स्तृ। ओत्थ- ल्लइ (प्राकृ ७५)।

ओत्थल्लपत्थल्ला :: देखो उत्थल्लपत्थल्ला (दे १, १२२)।

ओत्थाडिय :: वि [अवस्तृत] बिछाय हुआ (भवि)।

ओत्थार :: सक [अव + स्तारय्] आच्छादित करना। कर्मं. ओत्थारिज्जंति (स ६६८)।

ओदइग :: देखो ओदइय (अज्झ १३६)।

ओदइय :: पुंन [औदयिक] १ उदय, कर्म- विपाक (भग ७, १४; विसे २१७४) २ वि. उदय निष्पन्न (विसे २१७४; सूअ १, १३) ३ पुं. कर्मोदय रूप भाव; 'कम्मोदयसहावो सव्वो असुहो सुहो य ओदइओ' (विसे ३४९४) ४ वि. उदय होने पर होनेवाला (विसे २१७४)

ओदच्च :: न [औदात्य] उदात्तता, श्रेष्ठता (प्रारू)।

ओदज्ज :: न [औदार्य] उदारता (प्रारू)।

ओदण :: न [ओदन] भात, रींधा हुआ चावल (पणह २, ५; ओव ७१४; चारु १)।

ओदरिय :: वि [औदारिक] पेट-भरा, पेट भरने के लिए ही जो साधु हुआ हो वह (निचू १)।

ओदहण :: न [अवदहन] तप्त किए हुए लोहे के कोश वगैरह सा दागना (राज)।

ओदारिय :: न [औदार्य] उदारता (प्रारू)।

ओद्द :: वि [ओद्रे] गीला (प्राकृ २०)।

ओद्दंपिअ :: वि [दे] १ आक्रान्त। २ नष्ट (दे १, १७१)

ओद्धंस :: सक [अव + ध्वंस्] १ गिरना। २ हटाना। ३ हराना। कवकृ. 'परवाईहिं अणोक्कंता अणणउत्थिएहिं अणोद्धंसिज्ज- माणा विहरंति' (औॅप)

ओधाव :: सक [अव + धाव्] पीछे दोड़ना। ओधावइ (महा)।

ओधुण :: देखो अवधुण। कर्म. ओधुव्वंति (पि ५३६)। संकृ. ओधुणिअ (पि ५९१)।

ओधूअ :: वि [अवधूत] कम्पित (नाट)।

ओधूसरिअ :: वि [अवधूसरित] धूसर रंगवाला, हलका पीला रंगवाला (से १०, २१)।

ओनडिय :: वि [अवनटित] अवगणित, तिर- स्कृत; 'चंदुओनडियअरुणपहं' (सम्मत्त २१४)।

ओनियट्ट :: वि [अवनिवृत्त] देखो ओणि- अत्त = अपनिवृत्त (कप्प)।

ओपल्ल :: वि [दे] अपदीर्णं, कुण्ठित; 'तते णं से तेतलिपुत्ते नीलुप्पल जाव असिं खंधे ओहरति, तत्थवि य से धारा ओपल्ला' (णाया १, १४)।

ओप्प :: वि [दे] सृष्ट, ओप दिया हुआ (षड्)।

ओप्प :: सक [अर्पय्] अर्पंण करना। ओप्पेइ (हे १, ६३)।

ओप्पा :: स्त्री [दे] शाण आदि पर मणि वगैरह का घर्षंण करना (दे १, १४८)।

ओप्पाइय :: वि [औत्पातिक] उत्पात-सम्बन्धी (औप)।

ओप्पिअ :: वि [अर्पित] समर्पित (हे १, ६३)।

ओप्पिअ :: वि [दे] शाण पर घिसा हुआ, 'णिवमउडोप्पिअपयणह' (दे १, १४८)।

ओप्पील :: पुं [दे] समूह, जत्था (पाअ)।

ओप्पुंसिअ, ओप्पुसिअ :: देखो उप्पुसिअ (गउड; पि ४८६)।

ओबद्ध :: वि [अवबद्ध] १ बँधा हुआ। २ अवसन्न (वव १)

ओबुज्झ :: सक [अव + बुध्] जानना। वकृ. ओबुज्झमाण (आचा)।

ओब्भालण :: देखो उब्भालण (दे १, १०३)।

ओभग्ग :: वि [अवभग्‍न] भग्‍न, नष्ट (से ३, ६३; १०, २६)।

ओभावणा :: स्त्री [अपभ्राजना] लोक-निन्दा, अपकीर्ति (राज)।

ओभास :: अक [अव + भास्] प्रकाशना, चमकना। वकृ ओभासमाण (भग ११, ९)। प्रयो. ओभासेइ (भग) ओभासंति, ओभा- सेंति (सुज्ज १९)। कृ. ओभासमाण (सूअ १, १४)।

ओभास :: सक [अव + भाष्] याचना करना, मांगना। कवकृ. ओभासिज्जमाण (निचू २)।

ओभास :: पुं [अवभास] १ प्रकाश (औप) २ महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)

ओभासण :: न [अवभासन] १ प्रकाशन, उद्योतन (भग ८, ८) २ आविर्भाव। ३ प्राप्‍ति (सूअ १, १२)

ओभासण :: न [अवभाषण] याचना, प्रार्थना (वव ८)।

ओभासिय :: वि [अवभाषित] १ याचित, प्रार्थित (वव ६) २ न. वाचना, प्रार्थना (बृह १)

ओभुग्ग :: वि [अवभुग्न] वक्र, बाँका; (णाया १, ८ — पत्र १३३)।

ओभेडिय :: वि [अवमुक्त] छुड़ाया हुआ, रहित किया हुआ; 'तेणवि कडि्ढऊणालक्खं पिव सुई-ओभोडिओ नियकुक्कुडो' (महा)।

ओम :: वि [अवम] असार, निस्सार (आचा २, ५, २, १)।

ओम :: वि [अवम] १ कम, न्यून, हीन (आचा) २ लघु, छोटा (ओघ २२३ भा) ३ न. दुर्भिक्ष, अकाल (ओघ १३ भा) °काट्ठ वि [°कोष्ठ] ऊनोदर, जिसने कम खाया हो वह (ठा ४)। °चेलग, °चेलय वि [°चेलक] जीर्णं और मलिन वस्त्र धारण करनेवाला (उत्त १२; आचा)। °रत्त पुं [°रात्र] १ दिन-क्षय, ज्योतिष की गिनती के अनुसार जिस तिथि का क्षय होता है वह (ठा ६) २ अहोरात्र, रात-दिन (ओघ २८५)

ओमइल्ल :: वि [अवमलिन] मलिन, मैला (से २, २५)।

ओमंथ :: [दे] देखो ओमत्थ (पाअ)।

ओमंथिय :: वि [दे] अधोमुख, किया हुआ, नमाया हुआ (णाया १, १)।

ओमंथिय :: वि [अवमस्तिक] शीर्षासन से स्थित, नीचे मस्तक और ऊँचे पैर रखकर स्थित (णंदि १२८ टी)।

ओमंस :: वि [दे] अपसृत, अपगत (षड्)।

ओमज्जण :: न [अवमज्जन] स्‍नान-क्रिया (उप ६४८ टी)।

ओमज्जायण :: पुं [अवमज्जायन] ऋषि- विशेष (जं ७, इक)।

ओमज्जिअ :: वि [अवमार्जित] जिसको स्पर्शं कराया गया हो वह, स्पर्शिंत (स ५६७)।

ओमट्ठ :: वि [अवमृष्ट] स्पृष्ट, छुआ हुआ (से ५, २१)।

ओमत्थ :: वि [दे] नत, अधोमुख (पाअ)।

ओमत्थिय :: [दे] देखो ओमंथिय (ओघ ३८९)।

ओमल्ल :: न [निर्माल्य] निर्माल्य, देवोच्छिष्ट द्रव्य (षड्)।

ओमल्ल :: वि [दे] घनीभूत, कठिन, जमा हुआ (षड्)।

ओमाण :: पुं [अपमान] अपमान, तिरस्कार (उत्त २६)।

ओमाण :: न [अवमान] १ जिससे क्षेत्र वगैरह का माप किया जाता है वह, हस्त, दण्ड वगैरह मान (ठा २, ४) २ जिसका माप किया जाता है वह क्षेत्रादि (अणु)

ओमाणण :: व [अवमानन, अप°] अपमान, तिरस्कार (स ६९७)।

ओमाय :: वि [अवमित] परिमित, मापा हुआ (सुज्ज ९)।

ओमाल :: देखो ओमल्ल = निर्माल्य (हे १, ३८; कुमा; वज्जा ८८)।

ओमाल :: अक [उप + माल्] १ शोभना, शोभित होना। २ सक; सेवा करना, पूजना। संकृ. ओमालिवि (भवि)। कवकृ. 'अहवावि भत्तिपणमंततियसवहूसीसकुसुमदोमेहिं। ओमा- लिज्जतकमो, नियमा तित्थाहिवो होइ' (उप ९८६ टी)

ओमालिअ :: देखो ओमल्ल = निर्माल्य (प्राकृ ३४)।

ओमालिअ :: वि [उपमालित] १ शोभित। २ पूजित अर्चित (भवि)

ओमालिआ :: स्त्री [अवमालिका] चिमड़ी या मुरजाई हुई माला (गा १९४)।

ओमास :: पुं [अवमर्श] स्पर्शं (से ९, ६७)।

ओमिण :: सक [अव + मा] मापना, मान करना। कर्म. ओमिणिज्जइ (अणु)।

ओमिण्ण :: न [दे] प्रोंखनक, विवाह की एक रीति, वर के लिये सासू की ओर से किया हुआ न्योछावर (पंचा ८, २५)।

ओमिय :: वि [अवमित] परिच्छिन्न, परिमित (सुज्ज ९)।

ओमील :: अक [अव + मील्] मुद्रित होना, बन्द होना। वकृ. ओमीलंत (से ३, १)।

ओमीस :: वि [अवमिश्र] १ मिश्रित। २ समीपस्थ। ३ न. सामीप्य, समोपता; 'सुचिरंपि अच्छमाणो, वेरूलिओ कायमणियओमीसे। न उवेइ कायभावं, पाहन्‍नगुणेण नियएण।' (ओघ ७७२)

ओमुक्क :: वि [अवमुक्त] परित्यक्त (सम्मत्त १५९)।

ओमुग्ग :: देखो उम्मुग्ग (पि १०४; २३४)।

ओमुच्छिअ :: वि [अवमृर्च्छित] महा-मूर्छा को प्राप्‍त (पउम ७, १५८)।

ओमुद्धग :: वि [अवमूर्धक] अधोमुख, 'ओमु- द्धगा धरणियले पडंति' (सूअ १, ५)।

ओमुय :: सक [अव + मुच्] पहनना। ओमुयइ (कप्प)। वकृ. ओमुयंत (कप्प)। संकृ. ओमुइत्ता (कप्प)।

ओमोय :: पुं [ओमोक] आभरण, आभूषण (भग ११, ११)।

ओमोयर :: वि [अवमोदर] भूख की अपेक्षा न्यून भोजन करनेवाला (उत्त ३०)।

ओमोयरिय :: न [अवमोदरिक] १ न्यून भोजनत्व, तप-विशेष (आचा) २ दुर्भिक्ष, अकाल (ओघ ७)

ओमोयरिया :: स्त्री [अवमोदरिता, °रिका] न्यून भोजन रूप तप (ठा ६)।

ओम्मय :: पुं [उन्माद] उन्मत्तता (संबोध २१)।

ओय :: न [ओझस्] १ विषम संख्या, जैसे एक, तीन, पाँच आदि (पिंड ६२६) २ आहार-विशेष, अपनी उत्पत्ति के समय जीव प्रथम जो आहार लेता है वह (सूअनि १७१)

ओय :: वि [ओकस्] गृह, घर (वव ५)।

ओय :: वि [ओज] १ एक, असहाय (सूअ १, ४, २, १) २ मध्यस्थ, तटस्थ, उदासीन (बृह १) ३ पुं. विषम राशइ (भग २५, ३)

ओय :: न [ओजस्] १ बल (आचा) २ प्रकाश, तेज (चंद ५) ३ उत्पत्ति-स्थान में आहत पुद्‍गलों का समूह (पणण ८; संग १८२) ४ आतँव ऋतु-धर्म (ठा ३, ३)

ओयंसि :: वि [ओजस्विन्] १ बलवान्। २ तेजस्वी (सम १५२; औप)

ओयट्टण :: न [अपवर्त्तन] पीछे हटना, वापिस लौटना (उप ७९०)।

ओयड्ढ :: सक [अप + कृष्] खींचना। कवकृ़. ओयाडि्ढयंत (पउम ७१, २६)।

ओयडि्ढया, ओयडि्ढी :: स्त्री [दे] ओढ़नी, ओढ़ने का वस्त्र, चादर, दुपट्टा (सुख २, ३०)।

ओयण :: देखो ओदण (पउम ६९, १६)।

ओयत्त :: वि [अववृत्त] अवनत, अधोमुख (पाअ)।

ओयत्त :: सक [अप + वर्तय्] उलटाना, खाली करने के लिए नमाना। संकृ. ओयत्तियाणं (आचा २, १, ७, ५)।

ओयत्तण :: न [अपवर्तन] खिसकाना, हटाना (पिंड ५९३)।

ओयविय :: वि [दे] परिकर्मित (पणह १, ४; औप)।

ओया :: स्त्री [ओजस्] शक्ति, सामर्थ्य (णाया १, १० — पत्र १७०)।

ओया :: स्त्री [ओजस्] १ प्रकाश (सुज्ज ६) २ माता का शुक्र-शोणित (तंदु १०)

ओयाइअ :: देखो उवयाइय (सुपा ६२५; दे ४, २२)।

ओयाय :: वि [उपयात] उपागत, समीप पहुँचा हुआ (णाया १, ९; निर १, १)।

ओयार :: सक [अव + तारय्] नीचे उता- रना। संकृ. ओयारिया (दस ५, १, ६३)।

ओयार :: पुं [अवतार] घाट, तीर्थं (चेइय ५१८)।

ओयारग :: वि [अवतारक] १ उतारनेवाला। २ प्रवृत्ति करनेवाला (सम १०९)

ओयारण :: देखो उयारण (कुप्र ७१)।

ओयावइत्ता :: अ [ओजयित्वा] १ बल दिखा कर। २ चमत्कार दिखा कर। ३ विद्या आदि का सामर्थ्यं दिखा कर (जो दीक्षा दी जाय वह) (ठा ४)

ओर :: वि [दे] १ चारु, सुन्दर (दे १, १४९) २ समीप (दश° अग° चू° आख्या° कोश. पत्र ८७ गा° ६)

ओरंपिअ :: वि [दे] १ आक्रान्त। २ नष्ट (दे १, १७१)

ओरंपिअ :: वि [दे] पतला किया हुआ, छिला हुआ (पाअ)।

ओरत्त :: वि [दे] १ गर्विष्ठ, अभिमानी। २ कुसुम्भ से रक्त। ३ विदारित, काटा हुआ दे १, १६५; पाअ

ओरद्ध :: देखो अवरद्ध = अपराद्ध प्राकृ ५०।

ओरम :: अक [उप + रम्] निवृत्त होना। ओरम सूअ १, २, १, १०।

ओरल्ली :: स्त्री [दे] लम्बा और मधुर आवाज दे १, १५४; पाअ।

ओरस :: सक [अव + तृ] नीचे उतरना। ओरसइ हे ४, ८५।

ओरस :: वि [उपरस] स्‍नेह-युक्त, अनुरागी ठा १०।

ओरस :: वि [औरस] १ स्वोत्पादित पुत्र, स्व-पुत्र ठा १० २ औरस्य, हृदयोत्पन्‍न जीव ३

ओरसिअ :: वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ कुमा।

ओरस्स :: वि [औरस्य] हृदयोत्पन्‍न, आभ्य- न्तरिक प्रारू।

ओराल :: देखो उराल = उदार ठा ४; १० जीव १।

ओराल :: देखो उराल दे चंद १।

ओराल :: न [औदार] नीचे देखो विसे ६३१।

ओरालिय :: न [औदारिक] १ शरीर विशेष, मनुष्य और पशुऔं का शरीर औप २ वि. शोभायमान, शोभा वाला पाअ ३ औदारिक शरीर वाला विसे ३७५। °णाम न [°नामन्] औदारिक शरीर का हेतूभूत कर्म कम्म

ओरालिय :: वि [दे] १ व्याप्त। २ उपलिप्त; 'दिट्ठोरुहिरोरालियसिरो' सुख १, १३

ओरालिय :: वि [दे] १ पोंछा हुआ; 'मुहि करयलु देवि पुणु ओरालिउमुहकमलु' भवि २ फैल्लाया हुआ, प्रसारित; 'दसदिसि वहकयंबु ओरालिओ' भवि

ओराली :: देखो ओरल्ली सुर ११, ८६।

ओरिकिय :: न [अवरिङ्कित] महिष की आवाज, 'कत्थइ महिसोरिंकिय कत्थइ डुहुडुहुडुहंतनइ- सलिलं' पउम ९४, ४३।

ओरिल्ल :: पुं [दे] लम्बा काल, दीर्घं काल दे १, १५५।

ओरी :: [दे] समीप आख्या° कोष, पत्र — ८५ गा° १५।

ओरुंज :: न [दे] क्रीडा-विशेष दे १, १५६।

ओरुंभिय :: वि [उपरुद्ध] आवृत्त, आच्छादित गा ९१४।

ओरुण्ण :: वि [अवरुदित] रोया हुआ गा ५३८।

ओरुद्ध :: वि [अवरुद्ध] रुका हुआ, बन्द किया हुआ गा ८००।

ओरुभ :: सक [अव + रुह्] उतरना। वकृ. ओरुभमाण कस।

ओरुम्मा :: अक [उद् + वा] सूखना, सूख जाना। ओरुम्माइ हे ४, ११।

ओरुह :: देखो ओरुभ। वकृ. ओरुहमाण संथा ६३; कस।

ओरुहण :: न [अवरोहण] नीचे उतरना पउम २६, ५५; विसे १२०८।

ओरुहण :: न [अवरोहण] नीचे उतारना, अवतारण पव १५५।

ओरोध :: देखो ओरोह = अवरोध विपा १, ९।

ओरोह :: देखो ओरुभ। वकृ. ओरोहमाण कस; ठा ५।

ओरोह :: पुं [अवरोध] १ अन्तः पुर, जनानखाना औप २ अन्तःपुर की स्त्री सुर १, १४३ ३ नगर के दरवाजा का अवान्तर द्वार णाया १, १; औप ४ संघात, समूह राज

ओलअ :: पुं [दे] १ श्‍येन पक्षी, बाज पक्षी। २ अपलाप, निह्नव दे १, १६०

ओलअणी :: स्त्री [दे] नवोढा, दुलहिन दे १, १६०।

ओलइण :: वि [दे. अवलगित] १ शरीर में सटा हुआ, परिहित दे १, १६२ पाअ २ लगा हुआ से १, १६२

ओलइणी :: स्त्री [दे] प्रिया, स्त्री दे १, १६०।

ओलंड :: सक [उत् + लङ्घ्] उल्लंघन करना। ओलंडेंति णाया १, १ — पत्र ६१।

ओलंब :: देखो अवलंब = अव + लम्ब्। संकृ. ओलंबिऊण महा।

ओलंब :: पुं [अवलम्ब] नीचे लटकना औप; स्वप्‍न ७३।

ओलंबण :: न [अवलम्बन] सहारा, आश्रय। °दीव पुं [°दीप] श्रृङ्खला-बद्ध दीपक राज।

ओलंबिय :: वि [अवलम्बित] आश्रित, जिसका सहारा लिया गया हो वह निचू १। २ लटकाया हुआ औप

ओलंबिय :: वि [उल्लंबित] लटकाया हुआ सूअ २, २ औप।

ओलंभ :: पुं [उपालम्भ] उलाहना, 'अप्पोलंभ- णिमित्तं पढमस्स णायज्झयणस्स अयमट्‍ठे पणणत्ते त्ति बेमि' णाया १, १।

ओलक्खिअ :: वि [उपलक्षित] पहिचाना हुआ पउम १३, ४२; सुपा २५४।

ओलगि :: अप देखो ओलग्गि सिरि ५२४।

ओलग्ग :: सक [अव + लग्] १ पीछे लगना। २ सेवा करना। ओलग्गंति पि ४८८। हेकृ. ओलग्गिउं सुपा २३४; महा। प्रयो., संकृ. ओलग्गाविवि सण

ओलग्ग :: वि [अवरुग्ण] १ ग्लान, बीमार। २ दुर्बल, निर्बल णाया १, १ — पत्र २८ टी; विपा १, २

ओलग्ग :: वि [अवलग्‍न] पीछे लगा हुआ, अनुलग्‍न महा।

ओलग्ग :: [दे] देखो ओलुग्ग दे १, १६४।

ओलग्गा :: स्त्री [दे] सेवा, भक्ति, चाकरी; 'करेउ देवो पसायं मम ओलग्गाए' स ६ ३९; 'ओलग्गाए वेलत्ति जंपिउं निग्गओ खुज्जो' धम्म ८ टी।

ओलग्गि :: वि [अवलागिन्] सेवा करनेवाला। स्त्री °णी रंभा।

ओलग्गिअ :: वि [अवलग्न] सेवित वज्जा ३२।

ओलावअ :: पुं [दे] श्येन, बाज पक्षी दे १, १६०; स २१३।

ओलि :: देखो ओली = आली हे १, ८३।

ओलिदअ :: पुं [अलिन्दक] बाहर के दरवाजे का प्रकोष्ठ गा २५४।

ओलिंप :: सक [दे] खोलना। कवकृ. 'ओलिंप- [? लिप्प] माणे वि तहा तहेव काया कवाडम्मिविभासियव्वा' पिंड ३५४।

ओलिंप :: सक [अव + लिप्] लीपना, लेप लगाना। वकृ. ओलिंपमाण राज।

ओलिंभा :: स्त्री [दे] उपदेहिका, दीमक दे १, १५३; गउड।

ओलिज्झमाण :: देखो ओलिह।

ओलित्त :: वि [अवलिप्त, उपलिप्त] लीपा हुआ, कृतलेप पणह १, ३; उव; पाअ; दे १, १५८; औप।

ओलित्ती :: स्त्री [दे] खड्‍ग आदि का एक दोष दे १, १५९।

ओलिप्प :: न [दे] हास, हँसी दे १, १५३।

ओलिप्पंती :: स्त्री [दे] खड्‍ग आदि का एक दोष दे १, १५९।

ओलिह :: सक [अव + लिह] आस्वादन करना। कवकृ. ओलिज्झमाण कप्प।

ओली :: सक [अव + ली] १ आगमन करना। २ नीचे आना। ३ पीछे आना; 'नीयं च काया ओलिंति' विसे २०६४

ओली :: स्त्री [आली] पंक्ति, श्रेणी कुमा।

ओली :: स्त्री [दे] कुल-परिपाटी, कुलाचार दे १, १४८।

ओलुंकी :: स्त्री [दे] बालकों की एक प्रकार की क्रीड़ा दे १, १५३।

ओलुंड :: सक [वि + रेचय्] झरना, टपकना, बाहर निकालना। ओलुडइ हे ४, २६।

ओलुंडिर :: वि [विरेचयितृ] झरनेवाला कुमा।

ओलुंप :: पुं [अवलोप] मसलना, मर्दन करना। गउड।

ओलुंपअ :: पुं [दे] तापिका-हस्त, तवा का हाथा दे १, १६३।

ओलुग्ग :: वि [अवरुग्ण] १ रोगी, बीमार पाअ २ भग्‍न, नष्ट पणह १, १; 'सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्ग-ॉ सरीरा' निर १, १

ओलुग्ग :: वि [दे] १ सेवक, नौकर। २ निस्तेज, निर्बल, बल-हीन दे १, १६४ ३ निश्‍छाय, निस्तेज सुर २, १०२; दे १, १६४; स ४९९; ५०४

ओलुग्गाविय :: वि [दे] १ बीमार। २ विरह, पीड़ित वज्जा ८६

ओलुट्ट :: वि [दे] १ असंघटमान, असंगत। २ मिथ्या, असत्य दे १, १६४

ओलेहड :: वि [दे] १ अन्यासक्त। २ तृष्णा- पर। ३ प्रवृद्ध दे १, १७२

ओलोअ :: देखो अवलोअ। वकृ, ओलोअंत, ओलोएमाण मा ५; णाया १, १६; १, १।

ओलोट्ट :: सक [अप + लुठ्] पीछे लौटना। वकृ. ओलोट्टमाण राज।

ओलोयण :: न [अवलोकन] १ देखना। २ दृष्टि, नजर उप पृ १२७

ओलोयण :: न [अवलोकन] गवाक्ष, 'दिट्ठा अन्‍नया तेण ओलोयणगएण' सुख २, ९।

ओलोयणा :: स्त्री [अवलोकना] १ देखना। २ गवेषणा, खोज पव ४

ओल्ल :: पुं [दे] १ पति, स्वामी। २ दण्ड- प्रतिनिधि पुरुष, राजपुरुष-विशेष पिंग

ओल्ल :: देखो उल्ल = आर्द्रं हे १, ८२; काप्र १७२।

ओल्ल :: देखो उल्ल = आर्द्रय्। ओल्लेइ पि १११। वकृ. ओल्लंत से १३, ६६। कवकृ. ओल्लिज्जंत गा ६२१;

ओल्लट्टण :: पुं [अवलटन] एक नरक-स्थान देवेन्द्र २८।

ओल्लण :: न [आर्द्रयण] गीला करना, भिजाना पि १११।

ओल्लणी :: स्त्री [दे] मार्जिता, इयायची, दाल- चीनी आदि मसाला से संस्कृत दधि दे १, १५४।

ओल्लरण :: न [दे] स्वाप, सोना दे १, १६३।

ओल्लरिअ :: वि [दे] सुप्त, सोया हुआ दे १६३; सुपा ३१२।

ओल्लविद :: शौ नीचे देखो पि १११; मृच्छ १०५।

ओल्लिअ :: वि [आर्द्रित] आर्द्र किया हुआ गा ३३०; सण।

ओल्ली :: स्त्री [दे] पनक, काई; गुजराती में ऊल' चेइय ३७३।

ओल्हव :: सक [वि + ध्यापय्] बुझाना। ठंढा करना। कवकृ. ओल्हविज्जंत स ३९२। कृ. ओल्हवेयव्व स ३९२।

ओल्हविअ :: वि [दे] देखो उल्हविय सुर १०, १४९।

ओव :: न [दे] हाथी वगैरह को बाँधने के लिए किया हुआ गर्त्तं दे १, १४९।

ओवअण :: न [अवपतन] नीचे गिरना, अधः पात से ६, ७७; १३, २२।

ओवइणी :: स्त्री [अवपातिनी] विद्या-विशेष, जिसके प्रभास से स्वयं नीचे आता है या दूसरे को नीचे उतारता है सूअ २, २।

ओवइय :: वि [अवपतित] १ अवतीर्ण, नीचे आया हुआ से ६, २८; औप २ आ पड़ा हुआ, आ डटा हुआ से ६, २९ ३ न. पतन औप

ओवइय :: पुंस्त्री [दे] तीन इन्द्रियवाला एक क्षुद्र जन्तु; 'से किं तं तेइंदिया ? तेइंदिया अणे- गविहा पणणत्ता, तं जहा; — ओवइया रोहि- णीया हत्थिसोंडा' जीव १।

ओवइय :: वि [औपचयिक] उपचित, परिपुष्ट राज।

ओवगारिय :: वि [औपकारिक] उपकार करने वाला भग १३, ६।

ओवगारिय :: वि [औपकारिक] उपकार के निमित्त का, उपकारार्थक देवेन्द्र ३०९।

ओवग्ग :: सक [अप + क्रम्] १ व्याप्‍त करना। २ ढकना, आच्छादन करना। ओवग्गइ, ओवग्गउ से ४, २५, ३, ११

ओवग्ग :: सक [उप + वल्ग्, आ + क्रम्] १ आक्रमण करना। २ पराभाव करना। ओवग्गइ भवि। संकृ. ओवग्गिवि करना।

ओवग्गहिय :: वि [औपग्रहिक] जैन साधुऔं के एक प्रकार का उपकरण, जो कारण- विशेष से थोड़े समय के लिए लिया जाता है पव ६०।

ओवग्गिअ :: वि [दे. उपवल्गित] १ अभिभूत १ आक्रान्त से ६, ३०; पाअ; सूर १३, ४२

ओवघाइय :: वि [औपधातिक] उपघात करने वाला, पीड़ा उत्पन्‍न करनेवाला; 'सुयं वा जइ वा दिट्‍ठं न लविज्जोवघाइयं' दस ८।

ओवच्च :: सक [उप + व्रज्] पास जाना, 'सुहाए ओवच्च वासहरं' भवि।

ओवट्ट :: अक [अप + वृत्] १ पीछे हटना। २ कम होना, ह्रास-प्राप्‍त होना। वकृ. ओवट्टंत उप ७९२

ओवट्ट :: पुं [अपवर्त्त] १ ह्रास, हानि। २ भागाकार, विसे २०६२

ओवट्टण :: न [अपवर्त्तन] ह्रास, कमी श्रावक २१६।

ओवट्टणा :: स्त्री [अपवर्त्तना] भागाकार, भाग- हरण राज।

ओवट्टिअ :: न [दे] चाटु, खुशामद दे १, १६२।

ओवट्ठ :: वि [अववृष्ट] वरसा हुआ, जिसने वृष्टि की हो वह से ६, ३४।

ओवट्ठ :: पुं [दे. अववर्ष] १ वृष्टि, वारिश से ९, २५ २ मेघ-जल का सिञ्‍चन दे १, १५२

ओवट्ठिइअ :: वि [औपस्थितिक] उपस्थिति के योग्य, नौकर प्रयौ ११।

ओवड :: अक [अव + पत्] गिरना, नीचे पड़ना। वकृ. ओवडंत से १३, २८।

ओवडण :: न [अवपतन] १ अधः पात। २ झम्पा-पात से २, ३२

ओवड्‍ढ :: वि [उपार्ध] आधे के करीब। °मोयरिया स्त्री [°वमोदरिका] बारह कवल का ही आहार करना, तप-विशेष भग- ७, १।

ओवडि्ढ :: वि [अपवृद्धि] ह्रास निचू २०।

ओवड्‍ढा :: स्त्री [दे] ओढ़नी का एक भाग दे १, १५१।

ओवण :: न [उपवन] बगीचा, आराम कुमा।

ओवणिहिय :: पुं [औपनिहित, औपनिधिक] भिक्षाचर विशेष; समीपस्थ भिक्षा को लेनेवाला साधु ठा ५; औप।

ओवणिहिया :: स्त्री [औपनिधिकी] आनुपूर्वी- विशेष, अनुक्रम-विशेष औप।

ओवत्त :: सक [अप + वर्त्तय्] १ उलटा करना। २ फिराना, घुमाना। ३ फेंकना। संकृ. ओवत्तिय दस ५। कृ. ओवत्तेअव्व से १०, ५०

ओवत्त :: वि [अपवृत्त] फिराया हुआ से ६, ६१।

ओवत्तिय :: वि [अपवर्त्तित] १ घुमाया हुआ। २ क्षिप्‍त णाया १, १ — पत्र ४७

ओवत्थाणिय :: वि [औपस्थानिक] सभा का कार्यं करनेवाला नौकर। स्त्री. °या भग ११, ११।

ओवम :: देखो ओवम्भ; 'इंदियपच्‍चक्खं पिय अणुमाण ओवमं च मइनाणं' जीवस १४२।

ओवमिय :: वि [औपमिक] उपमा-सम्बन्धी अणु।

ओवमिय, ओवम्म :: न [औपम्य] १ उपमा ठा ८; अणु २ उपमान, प्रमाण सूअ १, १०

ओवय :: सक [अव + पत्] १ नीचे उतरना। २ आ पड़ना। वकृ. ओयवंत, ओवयमाण कप्प; स ३७०; पि ३९६; णाया १, १ ९

ओवयण :: न [दे. अवपदन] प्रोङ्खणक, चुमना णाया १, १ — पत्र ३९।

ओवयण :: न [अवपतन] अवतरण, नीचे उतरना भग ३, २ — पत्र १७७।

ओवयाइयय :: वि [औपयाचितक] मनौती से प्राप्‍त किया हुआ, मनौती से मिला हुआ ठा १०।

ओवयारिय :: वि [औपचारिक] उपचार संबन्धी पंचा ६; पुप्फ ४०६।

ओवर :: पुं [दे] निकर, समूह दे १, १५७।

ओववाइय :: वि [औपपातिक] १ जिसकी उत्पत्ति होती हो वब पंच १ १ पुं. संसारी, प्राणी आचा ३ देव या नारक-जीव दस ४ | ४ न. देख या नारक जीव का शरीर पंच १ ५ जैन आगम-ग्रन्थ विशेष, औप- पातिक सूत्र औप

ओववाइय :: वि [औपपातिक] एक जन्म से दूसरे जन्म में जानेवाला सूअ १, १, ११।

ओवसग्गिय :: वि [औपुसर्गिक] १ उपसर्ग से संबन्ध रखनेवाला, उपद्रव — समर्थ रोगादि। २ शब्द-विशेष, प्र, परा आदि अव्यय रूप शब्द अणु

ओवसमिअ :: पुंन [औपशमिक] १ उपशम। २ वि. उपशम से उत्पन्न। ३ उपशम होने पर होनेवाला विसे २१७४

ओवसेर :: न [दे] १ चन्दन, सुगन्धि काष्ठ- विशेष। २ वि. रति-योग्य दे १, १७३

ओवस्सय :: देखो उवस्सय; 'घट्टिज्जइ ओवस्सय- तणयं तेणाइरक्खठ्ठा' पव ८१।

ओवह :: सक [अव + वह्] १ बह जाना, बह चलना। २ डूबना। कवकृ. ओवुब्भमाण कस

ओवहारिअ :: वि [औपहारिक] उपहार- संबन्धी विक ७५।

ओवहिय :: वि [औपधिक] माया से गुप्त बिचरनेवाला णाया १, २।

ओवाअअ :: पुं [दे] आपातप, जल-समूह की गरमी षड्।

ओवाइय :: देखो ओववाइय राज।

ओवाइय :: देखो उवयाइय सुपा ११३।

ओवाइय :: वि [आवपातिक] सेवा करनेवाला ठा १०।

ओवाडण :: न [अवपाटन] विदारण, नाश ठा २, ४।

ओवाडिय :: वि [अवपाटित] विदारित औप।

ओवाय :: सक [उप + याच्] मनौती करना। वकृ. ओवायंत, ओवाइयमाण सुर १३, २०९; णाया १, ८ — पत्र १३४।

ओवाय :: पुं [अवपात] १ सेवा, भक्ति ठा ३, २; औप २ गर्त्त, गड्‍ढा पणह १, १ ३ नीचे गिरना पणह १, ४

ओवाय :: वि [औपाय] उपाय-जन्य, उपाय- संबन्धी उत्त १, २८।

ओवार :: सक [अप + वारय्] आच्छादन करना, ढकना। संकृ. ओवारिअ अभि २१३।

ओवारि :: न [दे] धान्य भरने का एक प्रकार का लम्बा कोठा, गोदाम राज।

ओवारिअ :: वि [दे] ढेर किया हुआ, राशि- कृत स ४८७; ४८।

ओवारिअ :: वि [अपवारित] आच्छादित, ढका हुआ मै ६१।

ओवास :: अक [अव + काश्] शोभना, विराजना। ओवासइ प्राप।

ओवास :: अक [अव + काश्] अवकाश पाना, जगह मिलना। ओवासइ प्राप्त; कुमा ७, २३; प्राकृ ६६।

ओवास :: पुं [अवकाश] अवकाश, खाली जगह पाअ; प्राप्र; से १, ५४।

ओवास :: पुं [उपवास] उपवास, भोजनाभाव पउम ४२, ८९।

ओवासंतर :: पुंन [अवकाशान्तर] आकाश, गगन भग २०, २ — पत्र ७७६।

ओवाह :: सक [अव + गाह्] अवगाहना। ओवाहइ प्राप्र।

ओवाहिअ :: वि [अपवाहित] १ नीचे गिराया हुवा से ९, १९; १३, ७२ २ घुमाकर नीचे डाला हुआ से ७, ५५

ओविअ :: वि [दे] १ आरोपित, अध्यासित। २ मुक्त, परित्यक्त। ३ हृत, छीना हुआ। ४ न. खुशामद। ५ रुदित, रोदन दे १, १६७ ६ वि. परिकर्मित, संस्कारित कप्प ७ खचित, व्याप्त आवम ८ उज्ज्वलित, प्रकाशित णाया १, १६ ९ विभूषित, श्रृंगारित प्राप। देखो उविय।

ओविद्ध :: वि [अपविद्ध] १ प्रेरित, आहत से ७, १२ २ नीचे गिरिया हुआ से १३, २९

ओवील :: सक [अव + पीडय्] पीड़ा पहुँ- चाना, मार-पीट करना। वकृ. ओवीलेमाण णाया १, १८ — पत्र २३६।

ओवीलय :: देखो उव्वीलय पणह १, ३।

ओवुब्भमाण :: देखो ओवह।

ओवेहा :: स्त्री [उपेक्षा] १ उपदर्शन, देखना। २ अवधीरण; 'संजयगिहिचोयणचोयणे य वावारओवेहा' ओघ १७१ भा

°ओव्वण :: देखो जोव्वण से ७, ६२।

ओव्वत :: अक [अप + वृत्] १ पीछे फिरना, लौटना। २ अवनत होना। संकृ. ओवत्तिऊण ओघ भा ३० टी

ओव्वत्त :: वि [अपवृत्त] पीछे फिरा हुआ। २ नमा हुआ, अवनत से ८, ८४

ओव्वेव्व :: देखो उव्वेव संक्षि ३५।

ओस :: देखो ऊस — ऊष दस ५, १, ३३।

ओस :: पुं [दे] देखो ओसा राज। °चारण पुं [°चारण] हिम के अवलम्बन से जानेवाला साधु गच्छ।

ओसक्क :: सक [अव + ष्वष्क्] कम करना, घटाना। संकृ. ओसक्किया दस ५, १, ६३।

ओसक्क :: अक [अव + ष्वष्क्] १ पीछे हटना, अपसरण करना। २ भागना, पलायन करना। ३ उदीरण करना, उत्तेजित करना। ओसक्कइ पि ३०२; ३१५। वकृ. ओसक्कंत, ओसक्कमाण से ५, ७३; स ६४। संकृ. ओसक्कइत्ता, ओसक्किय, ओसक्किऊण ठा ८; दस ४; सुर २, १५

ओसक्क :: वि [दे. अवष्वष्कित] अपसृत, पीछे हटा हुआ धे १, १४९; पाअ।

ओसक्कण :: न [अवष्वष्कण] १ अपसरण स ६३ २ नियत काल से पहले करना धर्मं ३ ३ उत्तेजन बृह २

ओसक्किय :: वि [अवष्वष्कित] नियत काल से पहले किया हुआ पिंड २९०।

ओसट्ट :: अक [वि + सृप्] फैलना, पसरना। ओसट्टइ गा ८५६।

ओसट्ट :: वि [दे] विकसित, प्रफुल्लित षड्।

ओसडिअ :: वि [दे] आकीर्णं, व्याप्त षड्।

ओसढ :: न [औषध] दवा, इलाज, भैषज हे १, २२७।

ओसढिअ :: वि [औषधिक] वैद्य, चिकित्सक कुमा।

ओसण :: न [दे] उद्वेग, खेद दे १, १५५।

ओसण्ण :: वि [अवसन्न] १ खिन्न घा ३८२; से १३, ३० २ शिथिल, ढीला वव ३। देखो ओसन्न।

ओसण्ण :: वि [दे] त्रुटित, खण्डित दे १, १५६; षड्।

ओसण्णं :: अ [दे] प्रायः बहुत कर कप्प।

ओसत्त :: वि [अवसक्त] संबद्ध, संयुक्त णाया १, ३; स ४४९।

ओसधि :: देखो ओसहि ठा २, ३।

ओसद्ध :: वि [दे] पातित, गिराया हुआ पाअ।

ओसन्न :: देखो ओसण्ण = अवसन्न सुर ४, ३४; णाया १, ५; सं ९; पुप्फ २१। ३ न. एकान्त; 'ओसन्‍ने देइ गेणहइ वा' उव

ओसन्न :: वि [अवसन्न] निमग्‍न दसचू १, ८।

ओसन्नं :: देखो ओसण्णं कम्म १, १३; विसे २२७५।

ओसप्पिणी :: स्त्री [अवसर्पिणी] दश कोटा- कोटि सागरोपमपरिमित काल-विशेष, जिसमें सर्वं पदार्थों के गुणों की क्रमशः हानि होती जाती है सम ७२; ठा १।

ओसम :: सक [उप + शमय्] उपशान्त करना। भवि. ओसमेहिंति पिंड ३२६।

ओसमिअ :: वि [उपशमित] शान्ति-प्राप्‍त सम ३७।

ओसर :: अक [अव + तृ] १ नीचे आना। २ अवतरना, जन्म लेना। ओसरइ षड्

ओसर :: अक [अप + सृ] अपसरण करना, पीछे हटना। २ सरकना, खिसकना, फिस- लना। ओसरइ महा; काल। वकृ. ओसरंत गा १८; ३९३; से ६, २६; ९, ८२; १२, ६; से ६३

ओसर :: सक [अव + सृ] आना, तीर्थंकर आदि महापुरुष का पघारना उप ७२८ टी।

ओसर :: पुं [अवसर] १ अवसर, समय सूअ १, २ २ अन्तर राज

ओसरण :: न [अवसरण] १ जिन-देव का उपदेश स्थान उप १३३; रयण १ २ साधुओं का एकत्रित होना सूअ १, १२

ओसरण :: न [अपसरण] १ हटना, दूर होना। २ वि. दूर करनेवाला; 'बहुपावकम्मओसरणं' कुमा १

ओसरिअ :: वि [दे] १ आकीर्णं, व्याप्‍त। २ आँख के इशारे से संकेतित या इंगित षड् ३ अधोमुख, अवनत। ४ न. आँख का इशारा दे १, १७१

ओसरिअ :: वि [अवसृत] आगत, पधारा हुआ उप ७२८ टी।

ओसरिअ :: वि [अपसृत] १ पीछे हटा हुआ पउम १६, २३; पाअ; गा ३५१ २ न. अपसरण से २, ८

ओसरिअ :: वि [उपसृत] संमुखागत, सामने आया हुआ; पाअ।

ओसरिआ :: स्त्री [दे] अलिन्दक, बाहर के दर- वाजे का प्रकोष्ठ दे १, १६१।

ओसव :: पुं [उत्सव] उत्सव, आनन्द-क्षण प्राप्र।

ओसविय :: देखो ओसमिअ पिंड ३२६।

ओसविय :: वि [उच्छ्रयित] ऊँचा किया हुआ पउम ८, २६६।

ओसव्विअ :: वि [दे] १ शोभा-रहित। २ न. अवसाद, खेद दे १, १६८

ओसह :: न [औषध] दवाई, भैषज औप; स्वप्‍न ५६।

ओसहि°, ही :: स्त्री [ओषधि] १ वनस्पति पणण १ २ नगरी-विशेष राज। °महि- हर पुं [°महिधर] पर्वंत-विशेष अच्चु ४४

ओसहिअ :: वि [आवसथिक] चन्द्रार्घ-दानादि व्रत को करनेवाला गा ३४६।

ओसा :: स्त्री [दे] १ ओस, निशा-जल जी ५; आचा; विसे २५७६ २ हिम, बरफ दे १, १६४

ओसाअ :: पुं [दे] प्रहार की पीड़़ा दे १, १५२।

ओसाअ :: पुं [अवश्याय] हिम, ओस से १३, ५२; दे ८, ५३।

ओसाअंत :: वि [दे] १ जँभाई खाता हुआ आलसी। २ बैठता। ३ वेदना-युक्त दे १, १७०

ओसाअण :: वि [दे] १ महीशान, जमीन का मालिक। २ आपोशान षड्

ओसाण :: न [अवसान] १ अन्त ठा ४ २ समीपता, सामीप्य सूअ १, ४

ओसाण :: न [अवसान] गुरु के समीप स्थान, गुरु के पास निवास सूअ १, १४, ४।

ओसाणिहाण :: वि [दे] विधि-सूचक अनुष्ठित दे १, १६३।

ओसाय :: पुं [अवश्याय] ओस, निशा-जल जीवस ३१।

ओसायण :: न [अवसादन] परिशाटन, नाश विसे।

ओसार :: सक [अप + सारय्] दूर करना। ओसरेहि स ४०८। कर्म. ओसारिज्जंतु स ४१०। संकृ. ओसारिवि भवि।

ओसार :: पुं [दे] गो-वाट, गो-बाड़ा दे १, १४९।

ओसार :: पुं [अपसार] अपसरण से १३, १४।

ओसार :: देखो ऊसार = उत्सार भवि।

ओसार :: पुं [अवसार] कवच, बख्तर से १२, ५९।

ओसारिअ :: वि [अपसारित] दूर किया हुआ, अपनीत गा ६९; पउम २३, ८।

ओसारिअ :: वि [अवसारित] अवलम्बित, लटकाया हुआ औप।

ओसास :: अप देखो ओवास = अवकाश भवि।

ओसिअ :: वि [दे] १ अबल, बल-रहित दे १, १५० २ अपूर्वं, असाधारण षड् ओसिअ वि [उषित] १ बसा हुआ, रहा हुआ सूअ १, १४, ४ २ व्यवस्थित सूअ १, ४, १, २०

ओसिअंत :: वकृ. [अवसीदत्] पीड़ा पाता हुआ हे १, १०१; से ३, ५१।

ओसिंघिअ :: वि [दे] घ्रात, सूँघा हुआ दे १, १६२; पाअ।

ओसिंचित्तु :: वि [अपसेचयितृ] अपसेक करनेवाला सूअ २, २।

ओसिक्खिअ :: न [दे] १ गति-व्याघात। २ अरति-निहित दे १, १७३

ओसित्त :: वि [अवसिक्त] भीजाया हुआ, सिक्त आचा २, १, १, १।

ओसित्त :: वि [दे] उपलिप्‍त दे १, १५८।

ओसिय :: वि [अवसित] १ पर्यंवसित। २ उपशान्त सूअे १, १३ २ जीत, पराभूत विसे

ओसिरण :: न [दे] व्युत्सर्जन, परित्याग षड्।

ओसीअ :: वि [दे] अधो-मुख, अवनत दे १, १५८।

ओसीर :: देखो उसीर पणह २, ५।

ओसीस :: अक [अप + वृत्] १ पीछे हटना। २ घूमना, फिरना। संकृ. ओसी- सिऊण दे १, १५२

ओसीस :: वि [अप + वृत्त] अपवृत्त दे १, १५२।

ओसुअ :: वि [उत्सुक] उत्कण्ठित प्राप्र।

ओसुंखिअ :: वि [दे] उत्प्रेक्षित, कल्पित दे १६१।

ओसुंभ :: सक [अव + पातय्] १ गिरा देना। २ नष्ट करना। कर्म. ओसुब्भंति स ७, ६१। वकृ. ओसुभइ से ४, ५४। कबकृ. ओसुब्भंत पि ५३५

ओसुक्क :: सक [तिज्] तीक्ष्ण करना, तेज करना। ओसुक्कइ हे ४, १०४।

ओसुक्क :: वि [अवशुष्क] सूखा हुआ पउम ५३, ७९; ५, १४।

ओसुक्ख :: अक [अव + शुष्] सूखना। वकृ. ओसुक्खंत से ९, ९३।

ओसुद्ध :: वि [दे] १ विनिपतित दे १, १५७ २ विनाशित से १३, २२

ओसुब्भंत :: देखो ओसुंभ।

ओसुय :: न [ओत्सुक्य] उत्सुकता, उत्कण्ठा औप; पि ३२७ ए।

ओसोयणी, ओसोवणिया, ओसोवणी :: स्त्री [अवस्वापनी] विद्या- विशेष, जिसके प्रभाव से दूसरे को गाढ़ निद्राधीन किया जा सकता है सुपा २२०; णाया १, १६; कप्प।

ओस्सक्क :: पुं [अवष्वष्क] अपसर्पंण, पीछे हटना पव २।

ओस्सक्कण :: देखो ओसक्कण पिंड २८५।

ओस्सा :: [दे] देखो ओसा कस।

ओस्साड :: पुं [अवशाट] नाश, विनाश सण।

ओह :: देखो ओघ पणह १, ४; गा ५१८; निचू १९; ओघ २; धम्म १० टी। ५ सूत्र, शास्त्र-सम्बन्धी वाक्य विसे ९५७।

ओह :: सक [अव + तृ] नीचे उतरना। ओहइ हे ४, ८५।

ओह :: पुंन [ओघ] १ उत्सर्गं, सामान्य नियम; णंदि ५२ २ सामान्य, साधारण वव १ ३ प्रवाह राय ७ टी ४ सलिल- प्रवेश। ५ आस्रव-द्वार आचा २, १६, १० ६ संसार सूअ १, ६, ६। °सूय न [°श्रुत] शास्त्र-विशेष णंदि ५२

ओहंक :: पुं [दे] हास हँसी दे १, १५३।

ओहंजलिया :: स्त्री [दे] क्षुद्र जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष जीव १।

ओहंतर :: वि [ओघतर] संसार पार करने वाला मुनि; आचा।

ओहंस :: पुं [दे] १ चन्दन। २ जिसपर चन्दन घिसा जाता है वह शिला, चन्द्रौटा या होरसा दे १, १६८

ओहट्ट :: अक [अप + घट्‍ट्] १ कम होना, ह्रास पाना। २ पीछे हटना। ३ सक. हटाना, निवृत्त करना। ओहट्टइ हे ४, ४१९। वकृ. ओहट्टंत से ८, ६०; सुपा २३३

ओहट्ट :: पुं [दे] १ अवगुण्ठन। २ नीवी, कटि-वस्त्र। ३ वि. अपसृत, पीछे हटा हुआ दे १, १६६; भवि

ओहट्ट, ओहट्टय :: वि [अपघट्टक] निवारक, हटानेवाला, निषेधक विपा १, २, णाया १, १६; १८।

ओहट्टिअ :: वि [दे] दूसरे को दबाकर हाथ से गृहीत दे १, १५९।

ओहट्ठ :: पुं [दे] हास, हँसी दे १, १५३।

ओहट्ठ :: वि [अवघृष्ट] घिसा हुआ पउम ३७, ३।

ओहड :: वि [अपहृत] नीचे लाया हुआ दस ५, १, ६९।

ओहडणी :: स्त्री [दे] अर्गला दे १, १६०।

ओहत्त :: वि [दे] अवनत दे १, १५६।

ओहत्थिअ :: वि [अपहस्तित] परित्यक्त, दूर किया हुआ मै ३५।

ओहय :: वि [उपहत] उपघात-प्राप्त णाया १, १।

ओहय :: वि [अवहत] विनाशित औप।

औहर :: सक [अप + हृ] अपहरण करना। कर्मं. ओहरीआमि पि ९८।

ओहर :: अक [अव + हृ] टेढ़ा होना, वक्र होना। २ सक. उलटा करना। ३ फिरना। संकृ. ओहरिय आचा २, १, ७।

ओहर :: न [उपगृह] छोटा गृह, कोठरी पणह १, १।

ओहरण :: न [अपहरण] उठा ले जाना, अपहार उप ९७९।

ओहरण :: न [दे] १ विनाशन, हिंसा। २ असंभव अर्थं की सम्भावना दे १, १७४ ३ अस्त्र, हथियार स ५३१; ६३७ ४ वि. आघ्रात षड्

ओहारिअ :: वि [दे. अपहृत] १ फेंका हुआ से १३, ३ २ नीचे गिराया हुआ से ३, ३७ ३ उतारा हुआ, उत्तारित ओघ ८०६ ४ अपनीत; 'ओहरिअभरुव्व भार- वहो' श्रा ४०

ओहरिस :: वि [दे] १ आघ्रात, सूँघा हुआ। २ पुं. चन्दन धिसने की शिला, चन्द्रौटा दे १, १६९

ओहल :: देखो उऊखल हे १, १७१; कुमा।

ओहल :: सक [अव + खल्] घिसना। भवि- ओहलिही सुपा १३६।

ओहलिय :: वि [अवखलित] घिसा हुआ, 'अंसुजलोहलियगंडयलो' सुर २, १८६; सण।

ओहली :: स्त्री [दे] ओघ, समूह सुपा ३६४।

ओहस :: सक [उप + हस्] उपहास करन। ओहसइ नाट। कवकृ. ओहसिज्जंत से १५, १०। कृ ओहसणिज्ज स ८।

ओहसिअ :: न [दे] १ वस्त्र, कपड़ा। २ वि. धूत, कम्पित दे १, १७३

ओहसिअ :: वि [उपहसित] जिसका उपहास किया गया हो वह ग, ६०; दे १, १७३; स ४४८।

ओहाइअ :: वि [दे] अधो-मुख १, १५८।

ओहाइअ :: वि [अवधावित] चरित्र से भ्रष्ट दसचू १, १।

ओहाडण :: न [अवघाटन] प्रायश्‍चित्त-विशेष वव १।

ओहाडण :: न [अवघाटन] ढकना, पिधान वव १।

ओहाडणी :: स्त्री [दे. अवघाटनी] १ पिधानी दे १, १६१ २ एक प्रकार की ओढ़नी जीव ३

ओहाडिय :: वि [अवघाटित] १ पिहित, बन्द किया हुआ; 'वइरामयकवाडोहाडियाओ' जं १ — पत्र ७१ २ स्थगित आव ५

ओहाण :: न [उपधान] स्थागन, ढकना वव ४।

ओहाण :: न [अवधान] उपयोग, ख्याल आचा।

ओहाण :: न [अवधावन] अवक्रमण, पीछे हटना निचू १६।

ओहाम :: सक [तुलय्] तौलना, तुलना करना। ओहामइ हे ४, २५। वकृ. ओहामंत कुमा।

ओहामिय :: वि [तुलित] तौला हुआ पाअ; सुपा २६९।

ओहामिय :: वि [दे] १ अभिभूत षड् २ तिरस्कृत स ३१३; ओघ ६०। ३ बन्द किया हुआ, स्थगित; 'जह वीणावंसरवा खणेण आहामिआ सव्वा' पउम ४९, ६

ओहार :: सक [अव + धारय्] निश्‍चय करना। संक. ओहारिअ अभि १६४।

ओहार :: पुं [दे] १ कच्छप। २ नदी वगैरह के बीच की शुष्क जगह, द्वीप। ३ अंश, विभाग दे १, १६७ ४ जलचर-जन्तु विशेष पणह १, ३

ओहार :: पुं [अवधार] निश्चय। °व वि [°वत्] निश्चयवाला द्र ४९।

ओहारइत्तु :: वि [अवधारयितृ] निश्चय करनेवाला राज।

ओहारइत्तु :: वि [अवहारयितृ] दूसरे पर मिथ्याभियोग लगानेवाला राज।

ओहारण :: न [अवधारण] नियम, निश्चय द्र २।

ओहारणी :: स्त्री [अवधारणी] निश्चयात्मक भाषा; 'ओहारणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो' दस ८, ३।

ओहारिणी :: स्त्री [अवधारिणी] ऊपर देखो भास १४।

ओहाव :: सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना। ओहावइ हे ४, १६०; षड्।

ओहाव :: अक [अव + धाव्] पीछे हटना। वकृ. ओहावंत, ओहावेंत ओघ १२६; वव ८।

ओहावण :: न [अवधावन] १ अपसर्पंण, पलायन वव १ २ दीक्षा से भागना, दीक्षा को छोड़ देना वव ३

ओहावण :: न [अवभावन] अपमान, अपकीर्ति पिंड ४८९।

ओहावणा :: स्त्री [अपहापना] लाघव, लघुता जय २९।

ओहावणा :: स्त्री [अपभावना] तिरस्कार, अनादर उप १२९ टी; स ४१०।

ओहावणा :: स्त्री [आक्रान्ति] आक्रमण काल।

ओहाविअ :: वि [अपभावित] १ तिरस्कृत सुपा २२४ २ ग्लान, ग्लानि-प्राप्त वव ८

ओहाविअ :: वि [अवधावित] पलायित, अप- सृत दसचू १, २।

ओहास :: पुं [अवहास, उपहास] हँसी, हास्य प्राप्र; मै ४३।

ओहासण :: न [अवभाषण] याचना, मांग, विशिष्ट भिक्षा आव ४।

ओहासिय :: वि [अवभाषित] याचित पंचा १३, १०।

ओहि :: पुंस्त्री [अबधि] १ मर्यादा, सीमा, हद गा १७०; २०६ २ रूपि-पदार्थ का अती- न्द्रिय ज्ञान-विशेष उवा; महा। °जिण पुं [°जिन] अवधिज्ञानवाला साधु पणह २, १। °णाण न [°ज्ञान] अवधिज्ञान वव १। °णाणावरण न [°ज्ञानावरण] अवधि- ज्ञान का प्रतिबन्धक कर्म कम्म १। °दंसण न [°दर्शन] रूपी वस्तु का अतीन्द्रिय सामान्य ज्ञान सम १५। °दंसणावरण न [°दर्शना- वरण] अवधिदर्शन का आवारक कर्म ठा ९। °नाण देखो °णाण प्रारू। °मरण न [°मरण] मरण-विशेष भग १३, ७

ओहिअ :: वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ कुमा।

ओहिअ :: वि [औषिक] औत्सर्गिक, सामान्य रूप से उक्त अणु १९९; २००।

ओहिण्ण :: वि [अपभिन्न] रोका हुआ, अट- काया हुआ से १३, २४।

ओहित्थ :: न [दे] १ विषाद, खेद। २ रभस, वेग। ३ वि. विचारित दे १, १६८

ओहिर :: देखो ओहीर। ओहिरइ षड्।

ओहिर :: देखो ओहर = अप + हृ। कर्म. ओहि- रिआमि पि ९८।

ओहीअंत :: वि [अवहियमान] क्रमशः कम होता हुआ से १२, ४२।

ओहीण :: वि [अवहीन] १ पीछे रहा हुआ अभि ५६ २ अपगत, गुजरा हुआ से १२, ९७

ओहीर :: अक [नि + द्रा] सो जाना, निद्रा लेना हे ४, १२। वकृ. ओहीरमाण णाया १, १; विपा २, १; कप्प।

ओहीर :: अक [सद्] खिन्न होना। वकृ. ओहीरंतं ट सीअंत' पाअ।

ओहीरिअ :: वि [अवधीरित] तिरस्कृत, परि- भूत आचा २, १।

ओहीरिअ :: वि [दे] १ उद्‍गीत। २ अवसन्न, खिन्न दे १, १६३

ओहुअ :: वि [दे] अभिभूत, पराभूत दे १, १५८।

ओहुंज :: देखो उवहुंज। ओहुंजइ भवि।

ओहुड :: वि [दे] विफल, निष्पल दे १, १५७।

ओहुप्पंत :: वि [आक्रम्यमाण] जिसपर आक्र- मण किया जाता हो वह से ३, १८।

ओहुर :: वि [दे] १ अवनत, अवाङ् मुख गउड २ खिन्न, खेद-प्राप्त। ३ स्रस्त, व्वस्त दे १, १५७

ओहुल्ल :: वि [दे] १ खिन्न। २ अवनत, नीचे झुका हुआ भवि

ओहूणण :: न [अवधूनन] १ कम्प। २ उल्लङ्घन। ३ अपूर्व रण से भिन्न ग्रन्थि का भेद करना आचा १, ९, १

ओहूय :: वि [अवधूत] उल्लङ्घित बृह १।

 :: पुं [क] १ प्राकृत वर्ण-माला का प्रथम व्यञ्जनाक्षर, जिसका उच्चारण-स्थान कण्ठ है प्राप; प्रमा २ ब्रह्मा दे ५, २९ ३ किए हुए पाप का स्वीकार; 'कत्ति कडं मे पापं' आवम ४ न. पानी, जल स ६११ ५ सुख सुर १६, ५५। देखो °अ = क।

 :: देखो किम् गउड, महा।

कअवंत :: देखो कय-व=कृतवत् प्राकृ ३५।

कइ :: वि. ब. [कति] कितना, 'तं भंते ! कइदिसं ओभासेइ' भग। °अ वि [°क] कतिपय, कईएक; 'मोएमि जाव तुज्झं, पियरं कइएसु दियहेसु' पउम ३४, २७। °अव वि [°पय] कतिपय, कईएक हे १, २५०। °इ अ [°चित्] कईएक उप पृ ३। °त्थ वि [°थ] कितनावाँ, कौन संख्या का ? विसे ९१७। °वइय, °वय, °वाह वि [°पय] कईएक पउम ९१, १९; उवा, षड्; कुमा; हे १, २५०। °वि अ [°अपि] कईएक काल; महा। °विह वि [°विध] कितने प्रकार का भग।

कइ :: वि [कृतिन्] १ विद्वान्, पण्डित। २ पुण्यवान् सूअ २, १, ६०

कइ :: अ [क्वचित्] कहीं, किसी जगह में दसचू २, १४।

कइ :: अ [कदा] कब, किस समय ? 'एआई उण मज्झो थणभारं कइ णु उव्वहइ' गा ८०३।

कइ :: पुं [कपि] बन्दर, वानर पाअ। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष, वानर-द्वीप पउम ५५, १६। °द्धय, °धय पुं [°ध्वज] १ वानर-द्वीप के एक राजा का नाम पउम ६, ८३ २ अर्जुन हे २, ९० °हसिअ न [°हसित] १ स्वच्छ आकाश में अचानक बीजली का दर्शन। २ वानक के समान विकृत मुंह का हँसना भग ३, ६

कइ :: देखो कवि = कवि गउड; सुर १, २७। °अर अप पुं [कवि] श्रेष्ठ कवि पिंग। °मा स्त्री [°त्व] कवित्व, कविपन षड्। °राय पुं [°राज] १ श्रेष्ठ कवि पिंग २ 'गउडवहो' नामक प्राकृत काव्य के कर्त्ता वाक्पतिराज-नामक कवि; 'आसि कइरायइंधो वप्पइराओ त्ति पणइलवो' गउड ७९७

कइअ :: वि [क्रयिक] खरीदनेवाला, ग्राहक; 'किणंती कइओ होइ, विक्किणंतो य वाणिओ' उत्त ३५, १४।

कइअंक, कइअंकसइ :: पुं [दे] निकर, समूह दे २, १३।

ओइअव :: न [कैतव] कपट, दम्भ कुमा; प्राप्र।

कइआ :: अ [कदा] कब, किस समय ? गा १३८; कुमा।

कइउल्ल :: वि [दे] थोड़ा, अल्प दे १, २१।

कइंद :: पुं [कवीन्द्र] श्रेष्ठ कवि गउड।

खइकच्छु :: स्त्री [कपिकच्छु] वृक्ष-विशेष, केवांच, कौंछ, कवाछ गा ५३२।

कइगई :: स्त्री [कैकयी] राजा दशरथ की एक रानी पउम ९५, २१।

कइत्थ :: पुं [कपित्थ] १ वृक्ष-विशेष, कैथ का पेड़। २ फल-विशेष, कैथ, कैथा गा ६४१

कइम :: वि [कतम] बहुत में से कौन सा ? हे १, ४८; गा ११९।

कइयव्व :: देखो कइअव तंदु ५३।

कइयहा :: अप अ [कदा] कब, किस समय ? सण।

कइयाइ :: अ [कदाचित्] किसी समय में कुप्र ४१३।

कइर :: देखो कयर = कतर पिंड ४६९।

कइर :: पुं [कदर] वृक्ष-विशेष, 'जं कइररुक्ख- हिट्ठा इह दसकोडी दविणमत्थि' श्रा १६।

कइरव :: न [कैरव] कमल, कुमुद हे १, १५२।

कइरव :: पुंन [कैरव] कुमुद, 'कइरवो' संक्षि ५।

कइरविणी :: स्त्री [कैरविणी] कुमुदिनी, कमलिनी कुमा।

कइलास :: पुं [कैलास, °श] १ स्वनाम-ख्यात पर्वत विशेष पाअ; पउम ५; ५३; कुमा २ मेरु पर्वत निचू १३ ३ देव-विशेष, एक नाग-राज जीव ३। °सय पुं [°शय] महादेव, शिव कुमा। देखो केलास।

कइलासा :: स्त्री [कैलासा, °शा] देव-विशेष की एक राजधानी जीव ३।

खइल्लबइल्ल :: पुं [दे] स्वच्छन्द-चारी बैल दे २, २५।

कइविया :: स्त्री [दे] बरतन-विशेष, पीकदान, पीकदानी णाया १, १ टी — पत्र ४३।

कइस :: अप वि [कीदृश] कैसा कुमा।

कईया :: अप देखो कइआ सुपा ११६।

कईवय :: देखो कइवय पउम २८, १९।

कईस :: पुं [कवीश] श्रेष्ठ कवि, उत्तम कवि पिंग।

खईसर :: पुं [कवीश्वर] उत्तम कवि रंभा।

खउ :: पुं [ऋतु] यज्ञ कप्पू।

कउ :: अप अ [कुतः] कहां से हे ४, ४१६।

कउअ :: वि [दे] १ प्रधान, मुख्य। २ पुंन चिन्ह, निशान दे २, ५६

कउच्छेअय :: पुं [कौक्षेयक] पेट पर बँधी हुई तलवार हे १, १६२; षड्।

कउड :: न [दे. ककुद] देखो कउह = ककुद षड्।

कउरअ, कउरव :: पुं [कौरव] १ कुरु देश का राजा। २ पुंस्त्री. कुरु वंश में उत्पन्न। ३ वि. कुरु देशे या वंश से संबन्ध रखनेवाला। ४ कुरु देश में उत्पन्‍न प्राप्र; नाट; हे १, १६२

कउल :: न [दे] १ करीष, गोइंठा का चूर्णं दे २, ७

कउल :: न [कौल] तान्त्रिक मत का प्रवर्त्तक ग्रन्थ, कौलोपनिषद् वगैरह। २ वि. शक्ति का उपासक। ३ तान्त्रिक मत को जाननेवाला। ४ तान्त्रिक मत का अनुयायी। ५ देवता- विशेष; 'विससिज्जंतमहापसुदं- सणसंभमपरोप्परारूढा। गयणे च्चिय गंघउडिं कुणंति तुह कउलणरीओ' गउड

कउलव :: देखो कउरव चंड।

कउसल :: पुंन [कौशल] चतुराई, 'कउसलो' संक्षि ६; प्राकृ १०।

कउसल :: न [कौशल] कुशलता, दक्षता, होशियारी हे १, १६२; प्राप्र।

कउह :: न [दे] नित्य, सदा, हमेशा दे २, ५।

कउह :: पुंन [ककुद] १ बैल के कंधे का कुब्बड़। २ सफेद छथ्र वगैरह राज-चिह्ण। ३ पर्वंत का अग्रभाग, टोंच हे १, २२५ ४ वि. प्रधान, मुख्य; 'कलरिभियमहुरंतीतलतालवंसकउहाभिरामेसु। सद्देसु रज्जमाणा, रमंती सोइंदियवसट्टा।' णाया १, १७। देखो ककुह।

कउहा :: स्त्री [ककुभ्] १ दिशा कुमा २ शोभा, कान्ति। ३ चम्पा के पुष्पों की माला। ४ इस नाम की रागिणी। ५ शास्त्र। ६ विकीर्णं केश हें १, २१

कउहि :: वि [ककुदिन्] वृषभ, बैल अणु १४२।

कए, कएणं, कएण :: अ [कृते] वास्ते, निमित्त, लिए; 'तत्तो सो तस्स कए, खणेइ खाणी- उणेगठाणेसु' कुम्मा १५; कुमा; 'अवरणहमज्जिरीणं कएण कामो वहइ चावं' गा ४७३; लज्जा चत्ता सीलं च खंडिअं अजसघोसणा दिणणा। जस्स कएणं पिअसहि ! सो चेअ जणो जणो जाओ' गा ५२५।

कएल्ल :: वि [कृत] किया हुआ सुख २, १५।

कओ :: अ [कुतः] कहाँ से ? आचा; उव; रयण २६। °हुत्त क्रिवि [दे] किस तरफ; 'कओहुत्तं गंतव्वं ?' महा।

कओ :: अ [क्व] कहाँ, किस स्थान में; 'कओ वयामो ?' णाया १, १४।

कओण्ह :: वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम धर्मंवि ११२।

कओल :: देखो कवोल से ३, ४९।

कं :: अ [कम्] उदक, जल तंदु ५३।

कंइ :: अ [दे] किससे, 'कंइ पंइ सिक्खिउ ए गइलालस' विक १०२।

कंक :: पुं [कङ्कं] १ पक्षि-विशेष पणह १, १; ४; अनु ४ २ एक प्रकार का मजबूत और तीक्ष्ण लोहा उप ४९४ ३ वृक्ष-विशेष; 'कंकफलसरलनयण — ' उप १०३१ टी। °पत्त न [°पत्र] बाण-विशेष, एक प्रकार का बाण, जो उड़ता है वेणी १०२। °लोह पुंन [°लोह] एक प्रकार का लोहा उप पृ ३२६; सुपा २०७। °वत्त देखो °पत्त नाट

कंकइ :: पुं [कङ्कति] वृक्ष-विशेष, नागबला- नामक ओषधि उप १०३१ टी।

कंकड :: पुं [कङ्कट] वर्मं, कवच; 'रामो चावे ससंकडे दिट्ठी देंतो' पउम ४४, २१; औप।

कंकडइय :: वि [कङ्कटित] कवचवाला, वर्मित पणह १, ३।

कंकडुअ, कंकडुग :: पुं [काङ्कटुक] दुर्भेद्य माष, उरद की एक जाती, जो कभी पकता ही नहीं; 'कंकडुओ विव मासो, सिद्धि न उवेइ जस्स ववहारो' वव ३।

कंकण :: न [कङ्कण] हाथ का आभरण-विशेष, कँगन श्रा २८; गा ६९।

कंकण :: पुं [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति उत्त ३६, १४७।

कंकणी :: स्त्री [कङ्कण] हाथ का आभरण- विशेष; 'सयमेव मंकणीए धणीए तं कंकणी बद्धा' कुप्र १८५।

कंकति :: पुं [कङ्कति] ग्राम-विशेष राज।

कंकतिज्ज :: पुंस्त्री [काङ्कतीय] माघराज वंश में उत्पन्‍न राज।

कंकय :: पुं [कङ्कत] १ नागबला-नामक ओषधि। २ सर्प की एक जाति। ३ पुंस्त्री. कंधा, केश सँवारने का उपकरण सूअ १, ४

कंकलास :: पुं [कृकलास] कर्कोंट, सांप की एक जाति पाअ।

कंकसी :: स्त्री [दे] कंघी, केश सँवारने का उपकरण ती १५।

कंकाल :: न [कङ्काल] चमड़ी और मांस रहित अस्थि-पञ्जर; 'कंकालवेसाए' श्रा १६; 'अह नरकरंककंकालसंकुले भीसणमसाणे' वज्जा २०; दे २, ५३।

कंकावंस :: पुं [कङ्कावंश] वनस्पति-विशेष; पणण ३३।

कंकिल्लि :: देखो कंकेल्लि सुपा ५५६; कुमा।

कंकुण :: देखो कंकण = दे सुख ३६, १४७।

कंकेलि :: पुं [कङ्केलि] अशोक वृक्ष मै ६० विक्र २८।

कंकेल्लि :: पुं [दे. कङ्केलि] अशोक वुक्ष दे २, १२; गा ४०४; सुपा १४०; ५९२; कुमा।

कंकोड :: न [दे. कर्कोट] १ वनस्पति-विशेष, ककरैल, एक प्रकार की सब्जी, जो वर्षा में ही होती है दे २, ७; पाअ २ पुं. एक नागराज। ३ सांप की एक जाति हे १, २६; षड्

कंकोल :: पुं [कङ्कोल] १ कङ्कोल, शीतल-चीनी के वृक्ष का एक भेद। २ न. उस वृक्ष का पल; 'सकप्पूरेलाकंकोल तंबोलं' उप १०३१ टी। देखो कक्लो।

कंख :: सक [काङ्क्ष्] चाहना, बांछना। कंखइ हे ४, १९२; षड्

कंखण :: न [काङ्क्षण] नीचे देखो धर्मं २।

कंखा :: स्त्री [काङ्क्षा्] १ चाह, अभिलाष सूअ १, १५ २ आसक्ति, गृद्धि भग ३ अन्य धर्मं की चाह अथवा उसमें आसक्ति रूप सम्यक्त्व का एक अतिचार पडि। °मोहणिज्ज न [°मोहनीय] कर्मं-विशेष भग

कंखि :: व [काङ्क्षिन्] चाहनेवाला आचा; गउड; सुर १३, २४३।

कंखिअ :: वि [काङ्क्षित] १ अभिलषित। २ कांक्षा युक्त, चाहवाला उवा; भग

कंखिर :: वि [काङ्क्षितृ] चाहनेवाला, अभि- लाषी गा ५५; सुपा ५३७।

कंगणी :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, कांगनी पणण १।

कंगु :: स्त्रीन [कङ्गु] १ धान्य-विशेष, काँगन या काँगो ग ७; दे ७, १ २ वल्ली-विशेष पणण १

कंगुलिया :: स्त्री [दे. कङ्गुलिका] जिन-मन्दिर की एक बड़ी आशतना, जिन-मन्दिर में या उसके नजदीक लघु या बृद्ध नीति का करना धर्मं २।

कंचण :: पुंन [काञ्चन] १ एक देव-विमान देवेन्द्र १३१ २ वि. सोने का, सुवर्ण का; 'कंचणं खंडं' वज्जा १५८ °पह न [°प्रभ] १ रत्‍न-विशेष। २. वि. रत्‍न-विशेष का बना हुआ देवेन्द्र २६९। °पायव पुं [°पादप] वृक्ष-विशेष स ३७३

कंचण :: पुं [काञ्चन] १ वृक्ष-विशेष। २ स्व- नाम-ख्यात एक श्रेष्ठी उप ७२८ टी ३ न. सुवर्णं, सोना कप्प °उर न [°पुर] कलिंग देश का एक मुख्य नगर आक। °कूड न [°कूट] १ सौमनस-नामत वक्षस्कार पर्वंत का एक शिखर ठा ७ २ देव- विमान-विशेष सम १२ ३ रुचक पर्वंत का एक शिखर ठा ८। °केअई स्त्री [°केतकी] लता-विशेष कुमा। °तिलय न [°तिलक] इस नाम का विद्याधरों का एक नगर इक। °त्थल न [°स्थल] स्व- नाम ख्यात एक नगर दंस। °वलाणग न [°बलानक] चौरासी तीर्थों में एक तीर्थ का नाम राज। °सेल पुं [°शौल] मेरु- पर्वंत कप्पू

कंटणग :: पुं [काञ्चनक] १ पर्वत-विशेष सम ७० २ काञ्चनक पर्वंत का निवासी देव जीव ३

कंचणा :: स्त्री [कञ्चना] स्वनाम ख्यात एक स्त्री पणह १, ४।

कंचणार :: पुं [कञ्चनार] वृक्ष-विशेष पउम ५३, ७९; कुमा।

कंचणिया :: स्त्री [काञ्चनिका] रुद्राक्ष माला औप।

कंचा :: पै देखो कण्णा प्राप्र।

कंचि, कंची :: स्त्री [काञ्चि, °ञ्ची] १ स्वनाम-ख्यात एक देश कुमा २ कटी-मेखला, कमर का आभूषण पाअ ३ स्वनाम-ख्यात एक नगर सुपा ४०६

कंची :: स्त्री [दे] मुशल के मुँह में रक्खी जाती लोहे की एक वलयाकार चीज, सामी या साम दे २, १।

कंचीरय :: न [दे] पुष्प-विशेष वज्जा १०८।

कंचीरय :: न [काञ्चीरत] सुरत-विशेष वज्जा १०८।

कंचु, कंचुअ :: पुं [कञ्चुक] १ स्त्री का स्तनाच्छा- दक वस्त्र, चोली पउम ९, ११; पाअ २ सर्प-त्वक्, सांप की केंचली, केचुली विसे २५१७ ३ वर्म, कवच भग ९, ३३ ४ वृक्ष-विशेष हे १, २५; ३० ५ वस्त्र, कपड़ा; 'तो उज्झिऊण लज्जा लज्जं, ओइंधइ कंचुयं सरीराओ' पउम ३४, १५

कंचुइ :: पुं [कञ्चुकिन्] १ अन्तःपुर का प्रती- हार, चपरासी णाया १, १; पउम ८, ३९; सुर २, १०६ २ साँप विसे २५१७ ३ यव, जव। ४ चणक, चना। ५ जुआर, अगहन में होनेवाला एक प्रकार का अन्न, जोन्हरी। ६ वि. जिसने कवच धारण किया हो वह हे ४, २६३

कंचुइअ :: वि [कञ्चुकित] कञ्चुकवाला कुमा; विपा १, २।

कंचुइज्ज :: पुं [कञ्चुकीय] अन्तःपुर का प्रती- हार भग ११, ११।

कंचुइज्जंत :: वि [कञ्चुकायमान] कञ्चुक की तरह आचरण करता; 'रोमंचकंचुइज्जंत- सव्वगत्तो' सुपा १८१।

कंचुग :: देखो कंचुअ ओघ ६७६; विसे २५२८।

कंचुगि :: देखो °कचुइ सण।

कंचुलिआ :: स्त्री [कञ्चुलिका] कंचली, चोली कप्पू।

कंछुल्ली :: स्त्री [दे] हार, कण्ठाभरण भवि।

कंजिअ :: न [काञ्जिक] काञ्जिक सुर ३; १३३; कप्पू।

कंट :: देखो कंटग पिंड २००।

कंटअंत :: वि [कण्टकायमान] १ कण्टक जैसा, कण्टक की तरह आचरता से ९, २४ २ पुलकित होता अच्चु ५८

कंटइअ :: वि [कण्टकित] १ कण्टकवाला से १, ३२ २ रोमाञ्चित, पुलकित कुमा; पाअ

कंटइज्जंत :: देखो कंटअंत गा ६७।

कंटइल :: पुं [कण्टकिल] १ एक जाति का बाँस। २ वि. कण्टकों से व्याप्त सूअ १, ५

कंटइल्ल :: देखो कंटइअ पणह १, १; कुमा।

कंटउच्चि :: वि [दे] कण्ट-प्रोत दे २, १७।

कंटकिल्ल :: देखो कंटइअ हे २, ७५।

कंटग, कंटय :: पुं [कण्टक] १ कांटा, कण्टक कस; हे १, ३० २ रोमाञ्च, पुलक गा ६७ ३ शत्रु, दुश्‍मन णाया १, १ ४ वृश्चिक की पूँछ वव ६ ५ शल्य विपा १, ८ ६ दुःखोत्पादक वस्तु उत्त १ ७ ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध एक कुयोग गण १९। °बोंदिया स्त्री [°दे] कण्ठक- शाखा आचा २, १, ५

कंटाली :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष, कण्ट- कारिका, भटकटैया दे २, ४।

कंटियं :: वि [कण्टिक] १ कण्टकवाला, कण्टक-युक्त। २ वृक्ष-विशेष उप १०३१ टी

कंटिया :: स्त्री [कण्टिका] वनस्पति-विशेष बृह १; आचू १।

कंटी :: स्त्री [दे] उपकण्ठ, कण्ठिका, पर्वत के नजदीक की भूमि; 'एयाओ परूढारुणफलभरबंधुरिया भूमिखज्जुरा। कंटीओ निव्ववंति व, अमंदकरमंदआभोया' गउड।

कंटुल्ल, कंदोल :: [दे] देखो कंकोड = दे पाअ; दे २, ७।

कंठ :: पुं [दे] १ सूकर, सूअर। २ मर्यादा, सीमा दे २, ५१

कंठ :: पुं [°कण्ठ] १ गला, घांटी कुमा २ समीप, पास। ३ अञ्चल; 'कंठे वत्थाईणं णिबद्धगंठिम्मि' दे २, १८ °दरखलिअ बि [°दरस्खलित] गद्‍गद पाअ। °मुरय न [°मुरज] आभरण विशेष णाया १, १। °मुखी स्त्री [°मुरवी] गले का एक आभरण औप। मुही° स्त्री [°मुखी] गले का एक आभूषण राज। °सुत्त न [°सूत्र] १ सुरत-बन्ध-विशेष। २ गले का एक आभूषण औप

कंठ :: वि [कण्ठय] १ कण्ठ से उत्पन्‍न। २ सरल, सुगम निचू १५

कंठकुंची :: स्त्री [दे] १ वस्त्र वगैरह के अञ्‍चल में बँधी हुई गाँठ। २ गले में लटकती हुई लम्बी नाडी-ग्रन्थि दे २, १८

कंठदीणार :: पुं [दे] छिद्र, विवर दे १, २४।

कंठमल्ल :: न [दे] १ ठठरी, मृत-शिविका। २ यान-पात्र, वाहन दे २, २०

कंठमाल :: पुंस्त्री [कण्ठमाल] रोग-विशेष कुप्र ४७१।

कंठय :: पुं [कण्ठक] स्वनाम-ख्यात एक चौर- नायक महा।

कंठाकंठि :: अ [कण्ठाकण्ठि] गले-गले में ग्रहण कर णाया १, २ — पत्र ८८।

कंठाल :: वि [कण्ठवत्] बड़ा गलावाला धर्मंवि १०१।

कंठिअ :: पुं [दे] चपरासी, प्रतीहार दे २, १५।

कंठिआ :: स्त्री [कण्ठिका] गले का एक आभूषण गा ७५।

कंठीरअ :: देखो कंठीरव किरात १७।

कंठीरव :: पुं [कण्ठीरव] सिंह, शार्दूल प्रयौ २१।

कंड :: सक [कण्ड्] १ व्रीहि वगैरह का छिलका अलग करना। २ खींचना। ३ खुजवाना। वकृ. कंडंत ओग ४६८; गा ६६३; 'कंडिंत णाया १, ७

कंड :: न [काण्ड] १ अंगुल का असंख्यातंवा भाग; 'कंडंति एत्थ भन्‍नइ अंगुलभागो असं- खेज्जो' पव २६० टी

कंड :: पुंन [काण्ड] १ दण्ड, लाठी। २ निन्दित समुदाय। ३ पानी, जल। ४ पर्वं। ५ वृक्ष का स्कन्ध। ६ वृक्ष की शाखा। ७ वृक्ष का वह भाग, जहां से शाखाएँ निकलती हैं। ८ ग्रन्थ का एक भाग। ९ गुच्छ, स्तबक। १० अश्‍व, घोड़ा। ११ प्रेत, पितृ और देवता के यज्ञ का एक हिस्सा। १२ रीढ़, पृष्ठ भाग की लम्बी हुड्डी। १३ खुशामद। १४ श्‍लाधा, प्रशंसा। १५ गुप्‍तता, प्रच्छन्‍नता। १६ एकान्त, निर्जन। १७ तृण- विशेष। १८ निर्जन पृथ्वी हे १, ३० १९ अवसर, प्रस्ताव गा ६६३ २० समूह णाया १, ८ २१ बाण, शर उप ६६६ २२ देव-विमान-विशेष राज २३ पर्वत वगैरह का एक भाग सम ६५ २४ खण्ड, टुकड़ा अवयव आचू १ °च्छारिय पुं [°छारिक] १ इस नाम का एक ग्राम। २ एक ग्राम- नायक वव ७। देखो कंडग, कंडय।

कंड :: पुं [दे] १ फेन, फीन। २ वि. दुर्बल। ३ विपन्न, विपत्ति-ग्रस्त दे २, ५१

कंडइअ :: देखो कंटइअ गा ५५८।

कडइज्जंत :: देखो कंटइज्जंत गा ६७ अ।

कंडग :: न [कण्डक] १ संख्यातीत संयम-स्थान- समुदाय पिंड ९९; १०० २ विभाग, पर्वत आदि का एक भाग सूअ १, ६, १०

कंडग :: पुंन [काण्डक] देखो कंड = काण्ड आचा; आवम। २५ संयम-श्रेणी-विशेष बृह ३ २६ इस नाम का एक ग्राम आचू १। देखो कंडय।

कंडण :: न [कण्डन] व्रीहि वगैरह को साफ करना, तुष पृथक्करण श्रा २०।

कंडपंडवा :: स्त्री [दे] यवनिका, परदा दे २, २५।

कंडय :: पुंन [काण्डक] देखो कंड = काण्ड तथा कंडगा। २७ वृक्ष-विशेष, राक्षसों का चैत्य वृक्ष; 'तुलसी भूयाण भवे, रक्खसाणं च कंडओ' ठा ८ २८ तावीज, गण्डा, यन्त्र; 'बज्झंति कंडयाइं, पउणीकीरंति अगयाइं' सुर १६, ३२

कंडरीय :: पुं [कण्डरीक] महापद्म राजा का एक पुत्र, पुण्डरीक का छोटा भाई, जिसने वर्षो तक जैनी दीक्षा का पालन कर अन्त में उसका त्याग कर दिया था (णाया १, १९; उव)।

कंडरीय :: वि [कण्डरीक] १ अशोभन, अ- सुन्दर। २ अप्रधान (सूअनि १४७; १५३)

कंडलि, कंडलिआ :: स्त्री [कन्दरिका] गुफा, कन्दरा (पि ३३३; हे २, ३८; कुमा)।

कंडवा :: स्त्री [कण्डवा] वाद्य-विशेष (राय)।

कंडार :: सक [उत् + कृ] खुदना, छील-छाल कर ठीक करना। संकृ. 'णूणं दुवे इह पआवइणो जअम्मि, जे देहणिम्मवणजोव्वणदाणदक्खा। एक्कें घडेइ पढमं कुमरीणमंगं, कंडारिऊण पअडेइ पुणो दुईओ' (कप्पू)।

कंडावेल्ली :: स्त्री [काण्डवल्ली] वनस्पति-विशेष (पणण १)।

कंडिअ :: वि [कण्डित] साफ-सुथरा किया हुआ (दे १, ११५)।

कंडियायण :: न [कण्डिकायन] वैशाली (बिहार) का एक चैत्य (भग १५)।

कंडिल्ल :: पुं [काण्डिल्य] १ काण्डिल्य-गोत्र का प्रवर्त्तक ऋषि-विशेष। २ पुंस्त्री. काण्डिल्य गोत्र उत्पन्न। ३ न. गोत्र-विशेष, जो माण्डव्य गोत्र की एक शाखा है (ठा ७ — पत्र ३९०)। °यण पुं [°यन] स्वनाम ख्यात ऋषि- विशेष (चंद १०)

कंडु :: देखो कंडू (राज)।

कंडु :: देखो कंदु (सूअ १, ५)।

कंडुअ :: सक [कण्डूय्] खुजवाना। कंडुअइ (हे १, १२१; उव), कंडुअए (पि ४६२)। वकृ. कडुअंत (गा ४६०); कंडुअमाण (प्रासू २८)।

कंडुआ :: पुं [कान्दविक] हलवाई, मिठाइ बेचने- वाल; 'राया चिंसेइ; कओ कंडुयस्स जल- कंतरयणसंपत्ती ?' (आवम)।

कंडुअ, कंडग :: पुं [कन्दुक] गेंद (दे ३, ५६; राज)।

कंडुज्जुय :: वि [काण्डर्जु] बाण की तरह सीधा (स ३१७; गा ३५२)।

कंडुयग :: वि [कण्डूयक] खुजानेवाला (औप)।

कंडुयण :: न [कण्डूयन] १ खुजली, खाज, पामा, रोग-विशेष। २ खुजवाना; 'पामागहि- यस्स जहा, कंडुयणं दुक्खमेव मूढस्स' (स ५१५; उव २६४ टी; गउड)

कंडुयय :: देखो कंडुयग; 'अकंडुयएहिं' (पणह २, १ — पत्र १००)।

कंडुरु :: पुं [कण्डूरु] स्वनाम-ख्यात एक राजा, जिसने रामचन्द्र के भाई भरत के साथ जैनी दीक्षा ली थी (पउम ८५, ५)।

कंडू :: स्त्री [कण्डू] १ खुजलाहट, खुजवाना (णाया १, ५)। २ रोग-विशेष, पामा, खाज (णाया १, १३)

कंडूइ :: स्त्री [कण्डूति] ऊपर देखो (गा ५३२; सुर २, २३)।

कंडूइअ :: न [कण्डूयित] खुजवाना (सूअ १, ३, ३; गा १८१)।

कंडूय :: देखो कंडुअ = कण्डूय्। कंडूयइ (महा)। वकृ. कंडूयमाण (महा)।

कंडूयग :: वि [कण्डूयक] खुजवानेवाला (ठा ५, १)।

कंडूयण :: देखो कंडुयण (उप २५९; सुपा १७९; २२७)।

कंडुयय :: देखो कंडूयग (महा)।

कंडूर :: पुं [दे] बक, बगुला (दे २, ९)।

कंडूल :: वि [कण्डूल] खाजवाला, कण्डू-युक्त (कुमा)।

कंत :: सक [कृत्] १ काटना, छेदना। २ कातना, चरखे से सूता बनाना; 'सल्लं कंतंति अप्पणो' (सूअ १, ८, १०)। कंतामि (पिंडभा ३५)

कंत :: वि [कान्त] १ मनोहर, सुन्दर (कुमा) २ अभिलषित, वाञ्छित (णाया १, १) ३ पुं. पति, स्वामी (पाअ) ४ देव-विशेष (सुज्ज १९) ५ न. कान्ति, प्रभा (आचा २, ५, १)

कंत :: वि [क्रान्त] गत, गुजरा हुआ (प्राप)।

कंता :: स्त्री [कान्ता] १ स्त्री, नारी (सुर ३, १४; सुपा ५७३) २ रावण की एक पत्‍नी का नाम (पउम ७४, ११) ३ एक योग- दृष्टि (राज)

कंतार :: न [कान्तार] १ अरणय, जंगल (पाअ) २ दुष्ट, दूषित। ३ निराश्रय। ४ पागल (कप्पू)

कंतार :: पुंन [कान्तार] जल-फलादि-रहित अरणय, 'कंतारो' (सम्मत्त १९९)।

कंति :: स्त्री [कान्ति] १ तेज, प्रकाश (सुर २, २३६) २ शोभा, सौन्दर्य (पाअ) ३ इस नाम की रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, ११) ४ अहिंसा (पणह २, १) ५ इच्छा। ६ चन्द्र की एक कला (राज; बिक १०७)। °पुरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष (ती)। °म, °ल्ल वि [°मत्] कान्ति युक्त (आवम; गउड, सुपा ८; १८८)

कंति :: स्त्री [क्रान्ति] १ परिवर्त्तन, फेरफार। २ गमन, गति (नाट — विक्र ९०)

कंतु :: पुं [दे] काम, कामदेव (दे २, १)।

कंथक, कथंग, कंथय :: पुं [कन्थक] अश्व की एक जाति (ठा ४, ३; उत्त २३); 'जहा से कंबायाणं आइन्‍ने कंथए सिया' (उत्त ११)।

कंथा :: स्त्री [कन्था] कथड़ी, गुदड़ी, पुराने वस्त्र से बना हुआ ओढ़ना (हे १, १८७)।

कंथार :: पुं [कन्थार] वृक्ष-विशेष (उप २२० टी)।

कंथारिया, कंथारी :: स्त्री [कन्थारिका, °री] वृक्ष-विशेष (उप १०३१ टी)। °वण न [°वन] उज्जैन के समीप का एक जंगल, जहां अवन्तीसुकुमार-नामक जैन मुनि ने अन- शन व्रत किया था (आक)।

कंथेर :: पुं [कन्थेर] वृक्ष-विशेष (राज)।

कन्थेरी :: स्त्री [कन्थेरी] कसण्टकमय वृक्ष-विशेष (उर ३, २)।

कंद :: अक [क्रन्द्] काँदना, रोना। कँदइ (पि २३१)। भूखा, कंदिंसु (पि ५१६)। वकृ. कंदंत (गहा ५८४)। कन्दमाण (णाया १, १)।

कंद :: वि [दे] १ दृढ़, मजबूत। २ मत, उन्मत्त। ३ न. स्तरण, आच्छादन, (दे २, ५१)

कंद :: पुं [क्रन्द, क्रन्दित] व्यन्तर देवों की एक जाति (ठा २, ३ — पत्र ८५)।

कंद :: पुं [कन्द] १ गूदेदार और बिना रेशो की जड़; जमीकन्द, सूरन, शकरकन्द, बिलारीकन्द, ओल, गाजर, लहसुन वगैरह (जी ९) २ मूल, जड़ (गउड) ३ छन्द-विशेष (पिंग)

कंद :: पुं [स्कन्द] कार्त्तिकेय, षडानन (कुमा हे २, ५; षड्)।

कन्दणया :: स्त्री [क्रन्दनता] मोटे स्वर से चिल्लाना (ठा ४, १)।

कंदप्प :: पुं [कन्दर्प] १ कामदेव, अनंग (पाअ) २ कामोद्दीपक हास्यादि; 'कंदप्पे कुक्कइए' (पडि; णाया १, १) ३ देव-विशेष (पब ७३) ४ काम-संबन्धी कषाया ५ वि. काम- युक्त, कामी (बृह १)

कंदप्प :: वि [कान्दर्प] कान्दर्पं-संबन्धी (पव ७३)।

कंदप्पि :: वि [कन्दर्पिन्] कामोद्दीपक, कन्दर्प का उत्तेजक (वव १)।

कंदप्पिय :: पुं [कान्दर्पिक] १ मजाक करने वाला भाण्ड वगैरह (औप; भग) २ भाण्ड- प्राय देवों की एक जाती (पणह २, २) ३ हास्य वगैारह भाण्ड कर्मं से आजीविका चलानेवाला (पणण २०) ४ वि. काम- संबन्धी (बृह १)

कंदर :: न [कन्दर] १ रन्ध्र, विवर (णाया १, २) २ गुहा, गुफा (उवा; प्रासु ७३)

कंदरा, कंदीर :: स्त्री [कन्दरा] गुहा, गुफा (से ४, ९; राज)।

कंदल :: पुं [कन्दल] १ अंकुर, प्ररोह (सुपा ४) २ लता-विशेष (णाया १, ९)

कंदल :: न [दे] कपाल (दे २, ४)।

कंदलग :: पुं [कन्दलक] एक खुरवाला जानवर- विशेष (पणण १)।

कंदलिअ, कंदलिल्ल :: वि [कन्दलित] अंकुरित (कुमा; पि ५९५)।

कंदली :: स्त्री [कन्दली] १ लता-विशेष (सुपा ९; पउम ५३, ७९) २ अंकुर, प्ररोह; 'दारिद्दद्‍दुमकंदलीवणदवो' (उप ७२८ टी)

कंदली :: स्त्री [कन्दली] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८, ९९)।

कंदकिय :: पुं [कान्दविक] हलवाई, मिठाई वेचनेवाला (उप २११ टी)।

कंदिंद :: पुं [क्रन्देन्द्र, क्नन्दितेन्द्र] क्रन्दित्र- नामक देव-निकाय का इन्द्र (ठा २, ४ — पत्र ८५)।

कंदिय :: पुं [क्रन्दित] १ वाणव्यन्तर देवों की एक जाती (पणह १, ४; औप) २ न. रोदन, आक्रन्द (उत्त २)

कंदिर :: वि [क्रन्दिन्] काँदनेवाला (भवि)।

कंदी :: स्त्री [दे] मूला, कन्द-विशेष (दे २, १)।

कंदु :: पुंस्त्री [कन्दु] एक प्रकार का बरतन, जिसमें माण्ड वगैरह पकाया जाता है, हाँडा (विपा १, ३; सूअ १, ५)।

कंदुअ :: पुं [कन्दुक] १ गेंद (पाअ; स्वप्‍न ३९; में ६१) २ वनस्पति-विशेष (पणण १)

कंदुइअ :: पुं [कान्दविक] हलवाई, मिठाई बेचनेवाला (दे २, ४१; ६ ६३)।

कंदुक :: देखो कंदुअ (सूअ २, ३, १६)।

कंदुग :: देखो कंदुअ (राज)।

कंदुट्ट :: न [दे] देखो कदोट्ट (पाअ; धर्मा ५; सण)।

कदुब्बय :: पुंन [दे] कन्द-विशेष (सुख ३६, ९८)।

कंदुय :: देखो कंदुइअ (कुप्र ९८)।

कंदोइय :: देखो कंदुइअ (सुपा ३८५)।

कंदोट्ट :: न [दे] नील कमल (दे २, ९; प्राप्र; षड्; गा ६२२; उत्तर ११७; कप्पू; भवि)।

कंध :: देखो खंध = स्कन्ध (नाट; वज्जा ३६)।

कंधरा :: स्त्री [कन्दरा] ग्रीवा, गरदन (पाअ; सुर ४, १६६; गण ९)।

कंधार :: पुं [दे] स्कन्ध, ग्रीवा का पीछला भाग (उप पृ ८६)।

कंप :: अक [कम्प्] कांपना, हिलना। कंपइ (हे १, ३०)। वकृ. कंपंत, कंपमाण (महा; कप्प)। कवकृ. कंपिज्जंत (से ६, ३८; १३, ५९)। प्रयो. वकृ. कंपाविंत (सुपा ५९३)।

कंप :: पुं [कम्प] अस्थैर्यं, चलन, हिलन (कुमा; आउ)।

कंपड :: पुं [दे] पथिक, मुसाफिर (दे २, ७)।

कंपण :: न [कम्पन] १ कम्प, हिलन (भवि) २ रोग-विशेष। °वाइअ वि [°वातिक] कम्प वायु नामक रोगबाला (अनु ६)

कंपि :: वि [कम्पिन्] कांपनेवाला (कप्पू)।

कंपिअ :: वि [कम्पित] कांपा हुआ (कुमा)।

कंपिर :: वि [कम्पितृ] कांपनेवाला (गा ६५९; सुपा १५८; श्रा २७)।

कंपिल्ल :: वि [कम्पवत्] कापनेवाला, अस्थिर; 'निच्चमकंपिल्लं परभयाहि कंपिल्लनामपुरं' (उप ६ टी)।

कंपिल्ल :: पुं [काम्पिल्य] १ यदुवंशीय राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम (अन्त ३) २ न. पंजाब देश का एक नगर (ठा १०; उप ६४८ टी)। °पुर न [°पुर] नगर- विशेष (पउम ८, १४३; उबा)

कंब :: वि [कम्र] १ कामुक, कामी। २ सुन्दर, मनोहर (पि २६५)

कंब° :: देखो कंबा।

कंबर :: पुं [दे] विज्ञान (दे २, १३)।

कंबल :: पुंन [कम्बल] १ कामरी, ऊनी कपड़ा (आचा; भग) २ पुं. स्वनाम-ख्यात एक बलीबर्दं (राज) ३ गौ के गले का चमड़ा, सास्‍ना, गलकंबल, लहर (विपा १, २)

कंबा :: स्त्री [कम्बा] यष्टि, लकड़ी; 'दिट्ठो तज्जणएणं, निसूडिउं कंबवाएहिं; बद्धो' (सुपा ३९६)।

कंबि, कंबी :: स्त्री [कम्बि, °म्बी] १ दर्वी, कड़छी। २ लीला-यष्टि, छड़ी, शौख से हाथ में रखी जाती लकड़ी (उप पृ २३७)

कंबिया :: स्त्री [काम्बिका] पुस्तक का पुट्ठा, किताब का आवरण पृष्ठ (राय ९६)।

कंबु :: पुं [कम्बु] १ शङ्ख (पणह १, ४) २ इस नाम का एक द्वीप (पउम ४५, ३२) ३ पर्वंत-विशेष (पउम ४५, ३२) ४ न. एक देव-विमान (सम २२)। °ग्गीव न [°ग्रीव] एक देव-विमान (सम २२)

कंबोय :: पुं [कम्बोज] देश-विशेष (पउम २७, ७; स ८०)।

कंबोय :: वि [काम्बोज] कम्बोज देश में उत्पन्न (स ८०)।

कंभार :: पुं. ब. [कश्‍मीर] इस नाम का एक प्रसिद्ध देश (हे २, ६८; षड्)। °जम्म न [°जन्मन्] कुंकुम, केसर (कुमा)। देखो कम्हार।

कंभूर :: (अप) ऊपर देखो (षड्)।

कंस :: पुं [कंस] १ राजा उग्रसेन का एक पुत्र, श्रीकृष्ण का मातुल (पणह १, ४) २ महा- ग्रह-विशेष (ठा २, ३; — पत्र ७८) ३ कांसा, एक प्रकार का धातु (णाया १, ७ — पत्र ११८)। °णाभ पुं [°नाभ] ग्रह-विशेष (सुज्ज २०; इक)। °वण्ण पुं [°वर्ण] ग्रह-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८)। °वण्णाभ पुं [°वर्णाभ] ग्रह-विशेष (ठा २, ३)। °संहारण पुं [°संहारण] कृष्ण, विष्णु (पिंग)

कंस :: न [कांस्य] १ धातु-विशेष, कांसा। २ वाद्य-विशेष। ३ परिमाण-विशेष। ४ पीने का पात्र, प्याला (हे १, २९; ७०)। °ताल न [°ताल] वाद्य-विशेष (जीव ३)। °पत्ती, °पाई स्त्री [°पात्री] कांसा का बना हुआ पात्र-विशेष (कप्प; ठा ९)। °पाय न [°पात्र] काँसा का बना हुआ पात्र (दस ६)

कंसार :: पुं [दे] कसार, एक प्रकार की मिठाई, 'ता करेऊण कंसारं तालपुडसंजुयं चेगं विसमोयगं गोसे उवणेमि एयाणं' (स १८७)।

कंसारी :: स्त्री [दे] त्रीन्द्रिय क्षुद्र जन्तु की एक जाति (जी १८)।

कंसाल :: पुं [कांस्याल] वाद्य-विशेष (हे २, ९२; सुपा ५०)।

कंसाला :: स्त्री [कंसताला, कांस्यताला] वाद्य का एक प्रकार का निर्घोष, ताल (णंदि)।

कंसालिया :: स्त्री [कांस्यतालिका] एक प्रकार का वाद्य (सुपा २४२)।

कंसिअ :: पुं [कांस्यिक] १ कसेरा, कँसारी, कांस्य-कार (हे १, ७०) २ वाद्य-विशेष (सुपा २४२)

कंसिआ :: स्त्री [कंसिका] १ ताल (णाया १, १७) २ वाद्य-विशेष (आचा २)

ककाणि :: पुंस्त्री [दे] मर्म स्थान, 'अरुस्स विज्झंति ककाणओ से' (सूअ १, ५, २, १५)।

ककुध, ककुभ :: देखो कउह = ककुद (पि २०९; हे २, १७४)।

ककुह :: देखो कउह = ककुद (ठा ५, १; णाया १, १७; विपा १, २)। ५ हरिवंश का एक राजा (पउम २२, ९९)

ककुहा :: देखो कउहा (षड्)।

कक्क :: पुं [कल्क] १ उद्वर्त्तन-द्रव्य, शरीर पर का मैल दूर करने के लिए लगाया जाता द्रव्य (सूअ १, ९; निचू १) २ न. पाप (भग १२, ५) ३ माया, कपट (सम ७१)। °गगुग न [°गुरुक] माया, कपट (पणह १, २ — पत्र २८)

कक्क :: पुंन [कल्क] १ चन्दन आदि उद्वर्तन द्रव्य (दस ६, ६४) २ प्रसूति-रोग आदि में किया जाता क्षार-पातन। ३ लोध्र आदि से उद्वर्तंन (पव २ — गाथा ११५)। °कुरुया स्त्री [°करुका] माया, कपट (पव २)

कक्क :: पुं [कर्क] १ चक्रवर्त्ती का एक देव-कृत प्रासाद (उत्त १३, १३) २ राशि-विशेष, कर्क राशि (धर्मंवि ६६)

कक्कंध :: पुं [कर्कन्ध] ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)।

कक्कंधु :: स्त्री [कर्कन्धु] बैर का वृक्ष (पाअ)।

कक्कड :: पुं [कर्कट] कर्कराशि (विचार १०६)।

कक्कड :: न [कर्कट] १ जलजन्तु-विशेष, कुलीर (पाअ) २ ककड़़ी, फल-विशेष (पव ४) ३ हृदय का एक प्रकार का वायु (भग १०, ३)

कक्कडच्छ :: पुं [कर्कटाक्ष्] ककड़ी, खीरा (कप्प)।

कक्कडिया, कक्डी :: स्त्री [कर्कटिका, °टी] ककड़ी (खीरा) का गाछ (उप ९९१)।

कक्कणा :: स्त्री [कक्लना] १ पाप। २ माया (पणह १, २)

कक्कब :: पुं [दे] गुड़ बनाने समय की इक्षु-रस की एक अवस्था, इक्षु रस का विकार-विशेष (पिंड २८३)।

कक्कर :: पुं [कर्कर] १ कंकर, पत्थर (विपा १, २; गउड; सुपा ५९७; प्रासू १६८) २ बि. कठिन, परुष (आचू ४) ३ कर्कर आवाज वाला (उत्त ७)

कक्करणया :: स्त्री [कर्करणता] १ दोषोद्‍भावन, दोषोद्‍भावनगर्भित प्रलाप (ठा ३, ३ — पत्र १४७)

कक्कराइय :: न [कर्करायित] १ कर्कर की तरह आचरित। २ दोषोच्चारण, दोष-प्रकटन (आव ४)

कक्कस :: वि [कर्कश] १ कठोर, परुष (पाअ; सुपा ५८; आरा ९४; पउम ३१, ६९) २ प्रखर, चण्ड। ३ तीव्र, प्रगाढ (विपा १, १) ४ अनिष्ट, हानि-कारक (भग ९, ३३) ५ निष्ठुर, निर्दय (उवा) ६ चबा-चबा कर कहा हुआ बचन (आचा २, ४, १)

कक्कस, कक्कसार :: पुं [दे] दध्योदन, करम्ब (दे २, १४)।

कक्कसेण :: पुं [कर्कसेन] अतीत उत्सर्पिणी- काल में उत्पन्‍न एक स्वनाम ख्यात कुलकर पुरुष (राज)।

कक्कालुआ :: स्त्री [कर्कारुका] १ कूष्माण्ड- वल्ली, कोंहडा का गाछ; 'कक्कालुआ गोछडलि- तबेंटा' (मृच्छ ५९)

कक्किंड :: पुं [दे] कृकलास, गिरगिट; गुजराती में 'काकेडो' (दे २, ५)।

काक्कि :: पुं [काल्किन्] भविष्य में होनेवाला पाटलिपुत्र का एक राजा (ती)।

कक्किय :: न [कल्किक] मांस (सूअ १, ११)।

कक्केअण :: पुंन [कर्केतन] रत्‍न की एक जाती (कप्प; पउम ३, ७५)।

कक्केरअ :: पुं [कर्केरक] मणि-विशेष की एक जाति (मृच्छ २०२)।

कक्कोड :: न [कर्कोट] शाक-विशेष, ककरैल, कक्कोडा (राज)। देखो कक्कोडय।

कक्कोडई :: स्त्री [कर्कोटकी] ककोडे का वृक्ष ककरैल का गाछ (पाण १ — पत्र ३३)।

कक्कोडय :: न [कर्कोटक] देखो कक्कोड। २ पुं. अनुबेलन्धर-नामक एक नाग-राज। ३ उसका आवास पर्वत (भग ३, ६; इक)

कक्कोल :: पुं [कङ्कोल] १ वृक्ष-विशेष; शीतल- चीनी के वृक्ष का एक भेद (गउड; स ७१) २ न. फल-विशेष, जो सुगंधी होता है (पणह २, ५)। देखो कंकोल।

कक्कोली :: स्त्री [कङ्कोली] वृक्ष-विशेष (कुप्र २४९)।

कक्ख :: देखो कच्छ = कक्ष (उव; कप्प; सुर १, ८८; पउम ४४, १; पि ३१८; ४२०)।

कक्खग :: वि [कक्षाग] १ कक्षा-प्राप्त। २ पुं कक्षा का केश (तंदु ३९)

कक्खड :: देखो कक्कस (सम ४१; ठा १, १२ वज्जा ८४; उव)।

कक्खड :: वि [दे] पीन, पुष्ट (दे २, ११; कप्प; आचा; भवि)।

कक्खडंगी :: स्त्री [दे] सखीं, सहेली (दे २, १९)।

कक्खल :: [दे] देखो कक्कस (षड्)।

कक्खा :: देखो कच्छा = कक्षा (पाअ; णाया १, ८; सुर ११, २२१)।

कग्घाड :: पुं [दे] १ अपामार्गं, चिरचिरा, लटजीरा। २ किलाट, दूध की मलाई (दे २, ५४)

कग्घायल :: पुं [दे] किलाट, दूध का विकार, दूध की मलाई (दे २, २२)।

कच्च :: न [दे. कृत्य] कार्यं, काम दे २, २, (षड्)।

कच्च :: (पै) देखो कज्ज (प्राप्र)।

कच्च :: न [काच] काच, शीशा; 'कच्चं माणिक्कं च समं आहरणे पउंजीअदि' (कप्पू)।

कच्चंत :: वि [कृत्यमान] पीड़ित किया जाता (सूअ १, २, १)।

कच्चरा :: स्त्री [दे] १ कचरा, कच्चा खरबूजा। २ कचरा को सूखाकर, तलकर और मसाला डालकर बनाया हुआ खाद्य-विशेष, एक प्रकार का आचार, गुजराती में जिसको 'काचरी' कहते हैं; 'पुणो कच्चरा पप्पड़ा दिणणभेया' (भवि)

कच्चबार :: पुं [दे] कतबार, कूड़ा (सूक्त ४४)।

कच्चाइणी :: स्त्री [कात्यायनी] देवी-विशेष, चण्डी (स ४३७)।

कच्चायण :: पुं [कात्यायन] स्वनाम-ख्यात ऋषि-विशेष (सुज्जद १०)। १. न. कौशिक गोत्र की शाखा-रूप एक गोत्र। ३ पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०)

कच्चायणी :: स्त्री [कात्यायनी] पार्वती, गौरी (पाअ)।

कच्चि :: अ [कच्चित्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न। २ मंडल। ३ अभिलाप। ४ हर्ष (पि २७१; हे २, २१७; २१८)

कच्चु :: (अप) ऊपर देखो (हे ४, ३२९)।

कच्चूर :: पुं [कर्चूर] वनस्पति-विशेष, कचूर, काली हलदी (श्रा २०)।

कच्चोल, कच्चोलय :: पुंन [कच्चोलक] पात्र-विशेष, प्याला (पउम १०२, १२०; भवि सुपा २०१)।

कच्छ :: पुं [कक्ष] १ काँख, कखरी। २ वन जंगल (भग ३, ६) २ तृण, घास। ४ शुष्क तृण। ५ वल्ली, लता। ६ शुष्क काष्ठों वाला जंगल। ७ राजा वगैरह का जनान- खाना। ८ हाथी को बाँधने की डोर। ९ पार्श्‍व बाजू। १० ग्रह-भ्रमण। ११ कक्षा, श्रेणी। १२ द्वार, दरवाजा। १२ वनस्पति- विशेष, गूगल। १४ विभीतक वृक्ष। १५ घर की भीत। १६ स्पर्धा का स्थान। १७ जल-प्राय देश (हे २, १७)

कच्छ :: पुं. ब. [कच्छ] १ स्वनाम-ख्यात देश, जो आजकल भी 'कच्छ' नाम से प्रसिद्ध है (पउम ९८, ६४; दे २, १ टी)| २ जलप्राय देश, जल-बहुत देश (णाया १, १ — पत्र; ३३; कुमा) ३ कच्छा, लँगोट (सुर २, १६) ४ इक्षु वगैरह की वाटिका (कुमा; आचा २, ३) ५ महाविदेह वर्षं में स्थित एक विजय-प्रदेश (ठा २, ३) ६ तट, किनारा; 'गोलाणईए कच्छे, चक्खंतो राइआइ पत्ताइं' (गा १७१) ७ नदी के जल से वेष्टित वन (भग) ८ भगवान् ऋषभदेव का एक पुत्र (आवम) ९ कच्छ-विजय का एक राजा। १० कच्छ-विजय का अधिष्ठायक देव (जं ४) ११ पार्श्‍ववर्त्ती प्रदेश। १२ राजा वगैरह के उद्यान के समीप का प्रदेश (उप १८६ टी) १२ छन्द-विशेष, दोधक छंद का एक भेद (पिंग) °कूड न [°कूट] १ माल्यवन्तनामक वक्षस्कार पर्वंत का एक शिखर। २ कच्छ-विजय के विभाजक वैताढय पर्वत के दक्षिणोत्तर पार्श्‍ववर्त्ती दो शिखर (ठा ९) ३ चित्रकूट पर्वत का एक शिखर (जं ४)। °हिव पुं [°धिप] कच्छ देश का राजा (भवि)। °हिवइ पुं [°धिपति] कच्छ देश का राजा (भवि)

कच्छ :: पुंन [कच्छ] १ नदी के पास की नीची जमीन। २ मूला आदि की बाड़ी (आचा २, ३, ३, १)

कच्छकर :: पुं [दे] काछिआ, सब्जी बेचनेवाला। (लोक प्र° ४६४, २, ३१ — सर्ग)।

कच्छगावई :: स्त्री [कच्छकावती] महाविदेह वर्षं का एक विजय-प्रदेश (ठा २, ३)।

कच्छट्टी :: स्त्री [दे] कछौटी, लँगोटी, कछनी (रंभा — टी)।

कच्छभ :: पुं [कच्छप] १ कूर्मं, कछुआ (पणह १, १; णाया १, १) २ राहु, ग्रह-विशेष (भग १२, ६)। °रिंगिय न [°रिङ्गित] गुरु-वन्दन का एक दोष, कछुए की तरह चलते हुए वन्दन करना (बृह ३; गुभा)

कच्छभाणिया :: स्त्री [दे] जल में होनेवाली वनस्पति-विशेष (सूअ २, ३, १८)।

कच्छभी :: स्त्री [कच्छपी] १ कच्छप-स्त्री, कूर्मी। २ वाद्य-विशेष (पणह २, ५) ३ नारद की वीणा (णाया १, १७) ४ पुस्तक- विशेष (ठा ४, २)

कच्छर :: पुं [दे] पङ्क, कीच, कर्दं (दे २, २)।

कच्छरी :: स्त्री [कच्छरी] गुच्छ विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

कच्छव :: (अप) पुं [कच्छ] स्वनाम-प्रसिद्ध देश-विशेष (भवि)।

कच्छव :: देखो कच्छभ पउम ३४, ३३; दे १, १६७ (गउड)।

कच्छवी :: देखो कच्छभी (बृह ३)।

कच्छह :: देखो कच्छभ (पाअ)।

कच्छा :: स्त्री [कक्षा] १ विभाग, अंश (पउम १६, ७०) २ उरो बन्धन, हाथी के पेट पर बाँधने की रज्जु; 'उप्पीलियकच्छे' (विपा १, २ — पत्र २३; प्रामा) ३ काँख, बगल (भग ३, ६; प्रामा)| ४ श्रेणी, पंक्ति; 'चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमारणणो दुमस्स पायत्ताणियाहिवस्स सत्त कच्छाओ पणणत्ताओ' (ठा ७) ५ कमर पर बांधने का वस्त्र (गा ६८४) ६ जनानखाना, अन्तःपुर (ठा ७) ७ संशय-कोटि। ८ स्पर्धा-स्थान। ९ घर की भीत। १० प्रकोष्ठ (हे २, १७)

कच्छा :: स्त्री [कच्छा] कटि-मेखला, कमर का आभूषण (पाअ)। °वई स्त्री [°वती] देखो कच्छगावई (जं ४)। °वईकूड न [°वती- कूट] महाविदेह वर्ष में स्थित ब्रह्मकूट पर्वत का एक शिखर (इक)।

कच्छादब्भ :: पुं [दे. कक्षादर्भ] रोग-विशेष (सिरि ११७)।

कच्छु :: स्त्री [कच्छु] १ खुजली, खाज, रोग- विशेष (प्रासू २८) २ खाज को उत्पन्‍न करनेवाली औषधि, कपिकच्छु (पणह २, ५)। °ल, °ल्ल वि [°मत्] खाज रोगवाला (राज; विपा, १, ७)

कच्छुट्टिया :: स्त्री [दे. कच्छपटिका] कछौटी, लँगोटी (रंभा)।

कच्छुरिअ :: वि [दे] १ ईर्षित, जिसकी ईर्ष्या की जाय वह। २ न. ईर्ष्या (दे २, १६)

कच्छुरिअ :: वि [कच्छुरित] व्याप्‍त, खचित (कुम्मा ६ टी)|

कच्छुरी :: स्त्री [दे] कपिकच्छु, केवाँच (दे २, ११)।

कच्छुल :: पुं [कच्छुल] गुल्म-विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

कच्छुल्ल :: पुं [कच्छुल्ल] स्वनाम ख्यात एक नारद मुनि (णाया १, १६)।

कच्छू :: देखो कच्छु (प्रासू ७२)।

कच्छोटी :: स्त्री [दे] कछौटी, लंगोटी (रंभा — टी)।

कज्ज :: वि [कार्य] १ जो किया जाय वह। २ करने योग्य। ३ जो किया जा सके (हे २, २४) ४ न. प्रयोजन, उद्देश्य; 'न य साहेइ सकज्जं' (प्रासू २७, कप्पू) ५ कारण, हेतु (वव २) ६ काम, काज; 'अन्नह परिचिंतिज्जइ, सहरिसकंडुज्जएण हियएण। परिणमइ अन्‍नइ च्चिय, कज्जारंभो विहिवसेण' (सुर ४, १६)। °जाण वि [°ज्ञ] कार्य को जाननेवाला (उप ९४८)। °सेण पुं [°सेन] अतीत उत्सर्पिणी- काल में उत्पन्‍न स्वनाम ख्यात एक कुलकर- पुरुष (सम १५०)

कज्जआ :: (शौ) स्त्री [कन्यका] कन्या, कुमारी (प्राकृ ८७)।

कज्जउड :: पुं [दे] अनर्थं (दे २, १७)।

कज्जमाण :: वि [क्रियमाण] जो किया जाता हो वह; 'कज्जं च कज्जमाणं च आगमिस्सं च पावगं' (सूअ १, ८)।

कज्जल :: न [कज्जल] १ काजल, मसी। २ अञ्जन, सुरमा (कुमा)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] सुदर्शंना-नामत जम्बू-वृक्ष की उत्तर दिशा में स्थित एक पुष्करिणी (जीव ३)

कज्जलइअ :: वि [कज्जलित] १ काजलवाला। २ श्याम, कृष्ण (पाअ)

कज्जलंगी :: स्त्री [कज्जलाङ्गी] कज्जल-गृह, दीप के ऊपर रखा जाता पात्र, जिसमें काजल इकट्ठा होता है, कजरौटी (अंत, णाया १, १ — पत्र ६)।

कज्जला :: स्त्री [कज्जला] इस नाम की एक पुष्करिणी (इक)।

कज्जलान :: अक [व्रुड्] ड़ुबना, बूड़ना; 'आउसंतो समणा ! एयं ते णावाए उदयं उत्तिंगेण आसवइ, उवरुवरि वा णावा कज्ज- लावेइ' (आचा २, ३, १, १९)। वकृ. कज्जलावेमाण (आचा २, ३, १, १९)।

कज्जलिअ :: देखो कज्जलइअ (से २, ३६; गउड)।

कज्जव, कज्जवय :: पुं [दे] १ विष्ठा, मैला। २ तृण वगैरह का समूह, कूड़ा, कतवार (दे २, ११; उप १७९; ५६३; स २६४; दे ६, ५६; अणु)

कज्जिय :: वि [कार्यिक] कार्यार्थी, प्रयोजनार्थी (वव ३)।

कज्जोवग :: पुं [कार्योपग] अठासी महाग्रहों में एक ग्रह का नाम (ठा २, ३-पत्रे ७८)।

कज्झाल :: न [दे] सेवाल, एक प्रकार की घास, जो जलाशयो में लगती है (दे २, ८)।

कटरि :: (अप) अ [कटरे] इन अर्थों का द्योतक अव्यय — १ आश्चर्य, विस्मय; 'कटरि थणंतरु मुद्धडहे, जे मणु विच्चिन माइ' (हे ४, ३५०) २ प्रशंसा, श्‍लाघा; 'कटरि मालु सुविसालु, कटरि मुहकमल पसन्‍निम' (धम्म ११ टी)

कटार :: (अप) न [दे] छुरी, क्षुरिका (हे ४, ४४५)।

कट्ट :: सक [कृत्] काटना, छेदना। कट्टइ (भवि)। संकृ. कट्टि, कट्टिवि, कट्टिअ (रंभा; भवि; पिंग)।

कट्ट :: वि [कृत्त] काटा हुआ, छिन्न (उप १८०)।

कट्ट :: न [कष्ट] १ दुःख। २ वि. कष्ट-कारक, कष्टदाई (पिंग)

कट्टर :: पुंन [दे] कढ़ी में डाला हुआ घी का बड़ा, खाद्य-विशेष (पिंड ६३७)।

कट्टर :: न [दे] खण्ड, अंश, टुकड़ा; 'से जहा चित्तयकट्टरे इ वा वियणपट्टे इ वा' (अनु)।

कट्टराय :: न [दे] छुरी, शस्त्र-विशेष (स १४३)।

कट्टारी :: स्त्री [दे] क्षुरिका, छुरी (दे २, ४)।

कट्टिअ :: वि [कर्त्तित] काटा हुआ, छेदित (पिंग)।

कट्‍टु :: वि [कर्त्तृ] कर्त्ता, करनेवाला (षड्)।

कट्‍टु :: अ [कृत्वा] करके (णाया १, ५; कप्प भग)।

कट्टोरग :: पुं [दे] कटोरा, प्याला, पात्र-विशेष; 'तओ पासेहिं करोडगा कट्टोरगा मंकुआ सिप्पाओ य ठविज्जंति' (निचू १)।

कट्ठ :: न [कष्ट] १ दुःख, पीड़ा, व्यथा (कुमा) २ पाप। ३ वि. कष्ट-दायक, पीड़ा-कारक (हे २, ३४; ९०)। °हर न [°गृह] कठ- घरा, काठ की बनी हुई चारदीवारी (सुर २, १८१)

कट्ठ :: न [काष्ठ] काठ, लकड़ी (कुमा; सुपा ३५४) २ पुं. राजगृह नगर का निवासी एक स्वनाम-ख्यात श्रेष्ठी। (आवम) °कम्मंत न [कर्मान्त] लकड़ी का कारखाना (आचा २, २)। °करण न [°करण] श्यामक-नामक गृहस्थ के एक खेत का नाम (कप्प)। °कार पुं [°कार] काठ-कर्मं से जीविका चलानेवाला (अणु)। °कोलंब पुं [°कोलम्ब] वृक्ष की शाखा के नीचे झुकता हुआ अग्र-भाग (अनु)। °खाय पुं [°खाद] कीट-विशेष, घुण (ठा ४)। °दळ न [°दळ] रहर की दाल (राज)। °पाउया स्त्री [°पादुका] काठ का जूता, खड़ाऊँ (अनु ४)। °पुत्तलिया स्त्री [°पुत्तलिका] कठपुतली (अणु)। °पेज्जा स्त्री [°पेया] १ मूँग वगैरह की क्वाथ। २ घृत से तली हुई तण्डुल की राब (उवा)। °महु न [°मधु] पुष्प-मकरन्द (कुमा)। °मूल न [°मूल] द्विदल धान्य, जिसका दो टूकड़ा समान होता है ऐसा चना, मूँग आदि अन्न (बृह १)। °हार पुं [°हार] त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, क्षुद्र कीट-विशेष (जीव १)। °हारय पुं [°हारक] कठहरा, लकड़हारा (सुपा ३८५)

कट्ठ :: वि [कृष्ट] विलिखित, चासा हुआ; 'खीर- दुमहेट्ठपंथकट्ठोल्ला इंधणे य मीसो य' (ओघ ३३९)।

कट्ठण :: न [कर्षण] आकर्षण, खींचाव (गउड)।

कट्ठहार :: पुं [काष्ठहार] कठहरा, लकड़हारा, काष्ठवाहक (कुप्र १०४)।

कट्ठा :: स्त्री [काष्ठा] १ दिशा (सम ८८) २ हद, सीमा; 'कवडस्स अहो परा कट्ठा' (श्रा १६) ३ काल का एक परिमाण, अठारह निमेष (तंदु) ४ प्रकर्षं (सुज्ज ९)

कट्टिअ :: पुं [दे] चपरासी, प्रतीहार (दे २, १५)।

कट्ठिअ :: वि [काष्ठित] काठ से संस्कृत भीत बगैरह (आचा २, २)।

कट्ठिण :: देखो कढिण (नाट — मालती ५९)।

कट्ठेअ :: वि [काष्ठेय] देखो कट्ठिअ — काष्ठित (आचा २, २, १, ६)।

कट्ठोल :: देखो कट्ठ = कृष्ट (पिंड १२)।

कड :: वि [दे] १ क्षीण, दुर्बल। २ मृत, विनष्ट (दे २, ५१)

कड :: पुं [कट] १ गण्ड-स्थल, गाल (णाया १, १. पत्र ६५) २ तृण, घास। ३ चटाई, आस्तरण-विशेष (ठा ४, ४ पत्र २७१) ४ लकड़ी, यष्टि; 'तेसिं च जुद्धं लयालिट्‍ठु- कडपासाणदंतनिवाएहिं' (वसु) ५ वंश, बाँस (विपा १, ६; ठा ४, ४) ६ तृण- विशेष (ठा ४, ४) ७ छिला हुआ काष्ठ (आचा २, २, १) °च्छेज्ज न [°च्छेद्य] कला-विशेष (औप; जं २)। °तड न [°तट] १ कटक का एक भाग। २ गण्ड तल (णाया १, १)। °पूयणा स्त्री [°पूतना] व्यन्तरी- विशेष (विेसे २५४९)

कड :: वि [कृत] १ किया हुआ, बनाया हुआ, रचित (भग; पणह २, ४; विपा १, १; कप्प; सुपा २६) २ पुंन. युग-विशेष, सत्ययुग, (ठा ४, ३) ३ चार की संख्या (सूअ १, २) °जुग न [°युग] सत्य-युग, उन्नति का समय, आदि युग, १७२८००० वर्षों का यह युग होता है (ठा ४, ३)। °जुम्म पुं [°युग्म] सम राशि-विशेष, चार से भाग देने पर जिसमें कुछ भी शेष न बचे ऐसी राशि (ठा ४, ३)। °जुम्मकडजुम्म पुं [°युग्मकृतयुग्म] राशि-विशेष (भग ३४, १)। °जुम्मकलिओय [°युग्मकल्योज] राशि-विशेष (भग ३४, १)। °जम्मतेओग पुं [°युग्मञ्योज] राशि-विशेष (भग ३४, १)। °जुम्मदावरजुम्म पुं [°जुग्मद्वापर- युग्म] राशि-विशेष (भग ३४, १)। °जोगि वि [°योगिन्] १ कृत-क्रय (निचू १) २ गीतार्थं, ज्ञानी (ओघ १३४ भा) ३ तपस्वी (निचू १)। °वाइ पुं [°वादिन्] सृष्टि को नैसर्गिक न मानकर किसी की बनाई हुई माननेवाला, जगत्कर्त्तृत्ववादी (सूअ १, १, १)। °इ पुं [°दि] देखो °जोगि (भग; णाया १, १ — पत्र ७४)। देखो कय = कृत।

कडअल्ल :: पुं [दे] दौवारिक, प्रतीहार (दे २, १५)।

कडअल्ली :: स्त्री [दे] कण्ठ, गला (दे २, १५)।

कडइअ :: पुं [दे] स्थपति, बढई (दे २, २२)।

कडइअ :: वि [कटकित] वलय की तरह स्थित (से १२, ४१)।

कडइल्ल :: पुं [दे] दौवारिक, प्रतीहार (दे २, १५)।

कडंगर :: न [कडङ्गर] तुष, छिलका, भूसा (सुपा १२९)।

कडंत :: न [दे] मूली, कन्द विशेष। २ मुसल (दे २, ५६)

कडंतर :: न [दे] पुराना सूर्पं आदि उपकरण (दे २, १६)।

कडंतरिअ :: वि [दे] दारित, विदारित, विना- शित (दे २, २०)।

कडंब :: पुं [कडम्ब] वाद्य-विशेष (विसे ७८ टी)।

कडंबा :: पुंस्त्री [कदम्बा] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

कडंभुअ :: न [दे] १ कुम्भग्रीव-नामक पात्र- विशेष। घड़े का कण्ठ-भाग (दे २, २०)

कडक :: देखो कड़ग (नाट — रत्‍ना ५८)।

कडकड़ा :: स्त्री [कडकडा] अनुकरण शब्द- विशेष, कड़ कड़ आवाज (स २५७; पि ५५८; नाट — मालती ५९)।

कडकडिअ :: वि [कडकडित] जिसने कड़ कड़ आवाज किया हो वह, जीर्ण (सुर ३, १६३)।

कडकडिर :: वि [कडकडायितृ] कड़-कड़ आवाज करनेवाला (सण)।

कडक्किय :: न [कड़ाक्कित] कड़कड़ आवाज (सिरि ६६२)।

कडक्ख :: पुं [कटाक्ष] कटाक्ष, तिरछी चितवन, भाव-युक्त दृष्टि, आँख का संकेत (पाअ; सुर १, ४३; सुपा ६)।

कडक्ख :: सक [कटाक्षय्] कटाक्ष करना। कडक्खइ (भवि)। संकृ. कड़क्खेवि (भवि)।

कडक्खण :: न [कटाक्षण] कटाक्ष करना (भवि)।

कड़क्खिअ :: वि [कटाक्षित] १ जिसपर कटाक्ष किया गया हो वह (रंभा) २ न. कटाक्ष (भवि)

कड़ग :: पुंन [कटक] १ कड़ा, वलय, हाथ का आभूषण-विशेष (णाया १, १) २ यवनिका, परदा; 'अन्नस्स सग्गगमणं होही कडंतरेण तं सव्वं। निसुयमुवज्झाएणं' (उप १६९ टी) ३ पर्वत का मूल भाग। ४ पर्वंत का मध्य भाग। ५ पर्वंत की सम भूमि। ६ पर्वंत का एक भाग; 'गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु' (पच्च ८२; पणह १, ३; णाया १, ४; १८) ७ शिबिर, सेना रहने का स्थान (बृह २) ८ पुं. देश- विशेष (णाया १, १ — पत्र ३३)। देखो कडय।

कडच्छु :: स्त्री [दे] कर्छी, चमची, डोई (दे २, ७)।

कडण :: न [कदन] १ मार डालना, हिंसा करना। (कुमा) २ नाश करना। ३ मर्दन। ४ पाप। ५ युद्ध। ६ विह्वलता, आकुलता (हे १, २१७)

कडण :: न [कटन] १ घर की छत। २ घर पर छत डालना (गच्छ १)

कडण :: न [कटन] चटाई आदि से घर का संस्कार, चटाई आदि से घर के पार्श्व भागो का किया जाता आच्छादन (आचा २, २, ३, १ टी; पव १३३)।

कडणा :: स्त्री [कटना] घर का अवयव विशेष (भग ८, ६)।

कडणी :: स्त्री [कटनी] मेखला, 'सुरगिरिकड- णिपरिट्ठियचंदाइच्चाण सिरिमणुहरंति' (सुपा ६१५)।

कड़तला :: स्त्री [दे] लोहे का एक प्रकार का हथियार, जो एक धारवाला और वक्र होता है (दे २, १९)।

कडत्तरिअ :: वि [दे] देखो कडंतरिअ (भवि)।

कडद्दरिअ :: वि [दे] १ छिन्न, काटा हुआ। २ न. छिद्रता (षड्)

कडप्प :: पुं [दे. कटप्र] १ समूह, निकर, कलाप (दे २, १६; षड्; गउड; सुपा ९२; भवि; विक्र ९५) २ वस्त्र का एक भाग (दे २, १३)

कडमड :: पुंन [दे] उद्वेग (संक्षि ४७)।

कडय :: न [कटक] ऊख आदि की यष्टि (आचा २, १०, २)।

कडय :: देखो कडग (सुर १, १६३; पाअ; गउड; महा; सुपा १६२; दे ५, ३३)। ९ लश्कर, सैन्य (ठा ९) १० पुं. काशी देश का एक राजा (महा)। °वई स्त्री [°वती] राजा कटक की एक कन्या (महा)

कडयड :: पुं [कडकड] कड़-कड़ आवाज, 'कत्थइ खरपवहाणयकडम (? य) डभज्जंतदुम- गहणं' (पउम ९४, ४४)।

कडयडिय :: वि [दे] परावर्त्तित, फिराय हुआ, घुमाया हुआ; 'नं कुम्मह कडयडिय पिट्ठि नं पविहउ गिरिवरु' (सुपा १७६)।

कडसक्करा :: स्त्री [दे] वंश शलाका, बाँस की सलाई (विपा १, ६)।

कडसार :: न [कटसार] मुनि का एक उप- करण, आसन; 'न वि लेइ जिणा पिंछीं (? छिं)। नवि कुंडीं (? डिं) कक्कलं च कडसारं' (विचार १२८)।

कडसी :: स्त्री [दे] श्‍मशान, मसान (दे २, ६)।

कडहू :: पुं [कटभू] वृ़क्ष-विशेष (बृह १)।

कडा :: स्त्री [दे] कड़ी, सिकड़ी, जंजीर की लड़ी; 'वियडकवाडकडाणं खडक्खओ निसुणिओ तत्तो' (सुपा ४१४)।

कडार :: न [दे] नारिकेल, नारियर (दे २, १०)।

कडार :: पुं [कडार] १ वर्णं-विशेष, तामड़ा वर्णं, भूरा रंग। २ वि. कपिल वर्णवाला, भूरा रंग का, मटमैला रंग का (पाअ; रयण ७७; सुपा ३३; ९२)

कडाली :: स्त्री [दे. कटालिका] घोड़े के मुँह पर बाँदने का एक उपकरण (अनु ६)।

कडाह :: पुं [कटाह] १ कड़ाह, लोहे का पात्र, लोहे की बड़ी कड़ाही (अनु ६; नाट — मृच्छ ३) २ वृक्ष विशेष (पउम १३, ७९) ३ पाँजर की हड्डी, शरीर का एक अवयव (पणण १)

कडाहपल्हत्थिअ :: न [दे] दोनों पार्श्वों का अपवर्त्तन, पार्श्वों को घुमाना-फिराना (दे २, २५)।

कडि :: स्त्री [कटि] १ कमर, कटी (विपा १, २; अनु ६) २ वृक्षादि का मध्य भाग (जं १) °तड न [°तट] १ कटी-तट। २ मध्य भाग (राय) °पट्टय न [°पट्टक] धोती, वस्त्र-विशेष (बृह ४)। °पत्त न [°पत्र] १ सर्गादि वृक्ष की पत्ती। २ पतली कमर (अनु ५)। °यल न [°तल] कटी- प्रदेश (भवि)। °ल्ल न [°टीय] देखो कडिल्ल (दे) का दूसरा अर्थ। °वट्टी स्त्री [°पट्टी] कमर का पट्टा, कमर-पट्टा (सुपा ३३१)। °वत्थ न [°वस्त्र] धोती, कमर में पहनने का कपड़ा (दे २, १७)। °सुत्त न [°सूत्र] कमर का आभूषण, मेखला (सम १८३; कप्पू)। °हत्थ पुं [°हस्त] कमर पुर रखा हुआ हाथ (दे २, १७)

कडि :: वि [कटिन्] चटाईवाला (अणु १४४)।

कडिअ :: वि [कटित] १ कट-चटाई से आच्छादित (कप्प) २ कट से संस्कृत (आचा २, २, १) ३ एक दूसरे में मिला हुआ; 'घणकडियकडजिच्छाए' (औप)

कडिअ :: वि [दे] प्रीणित, खुशी किया हुआ (षड्)।

कडिखंभ :: पुं [दे] १ कमर पर रखा हुआ हाथ (पाअ; दे २, १७) २ कमर में किया हुआ आघात (दे, २, १७)

कडिण :: पुंन [दे] तृण-विशेष (सुअ २, २, ७)।

कडित्त :: देखो कालत्त (णाया १, १ टी — पत्र ६)।

कडिभिल्ल :: न [दे] शरीर के एक भाग में होनेवाला कुष्ठ-विशेष। (बृह ३)।

कडिल्ल :: वि [दे] १ छिद्र-रहित, निश्छिद्र (दे २, ५२; षड्) २ न. कटी-वस्त्र, कमर में पहनने का वस्त्र, धोती वगैरह (दे २, ५२; पाअ; षड्; सुपा १५२; कप्पू; भवि; विसे २६००) ३ वन, जंगल, अटवी; संसारभवकडिल्ले, संजोगवियोगसोगतरुगहणे। कुपहपणट्ठाण तुमं, सत्थाहो नाह ! उप्पन्नो।' (पउम २, ४५; वव २; दे २, ५२) ४ वि. गहन, निबिड, सान्द्र; 'झिल्लिभिल्लायइकडिल्लं' (उप १०३१ टी; दे २, ५२; षड्) ५ आशीर्वाद, आसीस। ६ पुं. दौवारिक, प्रतीहार। ७ विपक्ष, शत्रु, दुश्‍मन (दे २, ५२; षड्) ८ कटाह, लोहे का बड़ा पात्र (ओघ ९२) ९ उपकरण-विशेष (दस ९)

कडी :: देखो तडि (सुपा २२९)।

कडु, कडुअ :: पुं [कटुक] १ कडुआ, तिक्त, रस- विशेष (ठा १) २ वि. तीता, तिक्त रस-वाला (से १, ६१; कुमा) ३ अनिष्ट (पणह २, ५) ४ दारुण, भयंकर (पणह १, १) ५ परुष, निष्ठुर (नाट-रत्‍ना ६६) ६ स्त्री. वनस्पति-विशेष, कुटकी (हे २, १५५)

कडुअ :: (शौ) अ [कृत्वा] करके (हे २, २७२)।

कडुआल :: पुं [दे] घण्टा, घण्ठ (दे २, ५७) २ छोटी मछली (दे २, ५७; पाअ)

कडुइय :: वि [कटुकित] १ कड़ुआ किया हुआ। २ दूषित (गउड)

कडुइया :: स्त्री [कटुकी] वल्ली-विशेष, कुटकी (पणण १)।

कडुच्छय, कडुच्छु, कडुच्छुय :: पुंस्त्री [दे] देखो कडच्छु; 'धुवकडुच्छयहत्था' (सुपा ५१; पाअ; निर ३, १; धम्म)।

कडुयाविय :: वि [दे] १ प्रहृत, जिस पर प्रहार किया गया हो वह (उप पृ ६५) २ व्यथित, पीड़ित; 'सा य (चोरधाडी) कुमारपहारक- डुयाविया भग्गा परम्मुहा कया' (महा) ३ हराया हुआ, पराभूत। ४ भारी विपद् में फँसा हुआ (भवि)

कडूइद :: (शौ) वि [कटूकृत] कटुक किया हुआ (नाट)।

कडेवर :: न [कलेवर] शरीर, देह (राय; हे ४, ३६५)।

कड्‍ढ :: सक [कृष्] १ खींचना। २ चास करना। ३ रेखा करना। ४ पढ़ना। ५ उच्चारण करना। कड्‍ढइ (हे ४, १८७)। वकृ. कड्‍ढंत, कड्‍ढमाण (गा ६८७; महा)। कवकृ. कडि्ढज्जंत, कडि्ढज्जमाण (से ज्ञ, २६; ६, ३६; पणह १, ३)। संकृ. कडि्ढऊण, कड्‍ढेउ, कडि्ढत्तु कडि्ढय (महा), 'कड्‍ढेत्तु, नमोक्कारं' (पंचव), कडि्ढउं (पि ५७७)। कृ. कड्‍ढेयव्व (सुपा २३६)

कड्‍ढ :: पुं [कर्ष] खींचाव, आकर्षण (उत्त १९)।

कड्‍ढण :: न [कर्षण] १ खींचाव, आकर्षंण, (सुपा २६२) २ वि. खींचनेवाला, आकर्षक (उप पृ २७७)

कड्‍ढणया :: स्त्री [कर्षणता] आकर्षण (उप पृ २७७)।

कड्‍ढाविय :: वि [कर्षित] खींचवाया हुआ, बाहर निकलवाया हुआ (भवि)।

कडि्ढअ :: वि [दे] बाहर निकला हुआ, गुजारीत में 'काढेलुं' 'तो दासीहिं सुणउ व्व कडि्ढओ कुट्टिऊण बहिं' (सिरि ६८९)।

कडि्ढय :: वि [कृष्ट] १ आकृष्ट, खींचा हुआ (पणह १, ३) २ पठित, उच्चारित (स १८२)

कड्‍ढोकड्‍ढ :: न [कर्षापकर्ष] खींचातान (उत्त १९)।

कढ :: सक [क्वथ्] १ क्वाथ करना। २ उबालना। ३ तपाना, गरम करना। कढइ (हे ४, २२०)। वकृ. कढमाण (पि २२१)। कवकृ. 'राया जंपइ एयं सिंचइ रे रे कढंततिल्लेण' (सुपा १२०), कढीअमाण (पि २२१)

कढकढकढेंत :: वि [कडकडायमान] कड़-कड़ आवाज करता (पउम २१, ५०)।

कढण :: न [क्वथन] क्वाथ करना, 'रागगुणेणं पावइ खंडणकढणाइं मंजिट्ठा' (कुप्र २२३)।

कढिअ :: न [दे] कढ़ी (पिंड ६२४)।

कढिअ :: वि [क्वथित] १ उबाला हुआ। २ खूब गरम किया हुआ, 'कढिओ खलु निंबरसो अइकडुओ एव जाएइ' (श्रा २७; ओघ १४७; सुपा ४९६)

कढिआ :: स्त्री [दे] कढ़ी, भोजन-विशेष (दे २, ६७)।

कढिण, कढिणग :: वि [कठीन] १ कठिन, कर्कंश, कठोर, परुष (पणह १, ३, पाअ) २ न. तृण-विशेषष (आचा २, ३, ३) ३ पर्णं, पत्ता (पणगह २, ५)

कढोर :: वि [कठोर] १ कठिन, परुष, निष्ठुर। २ पुं. इस नाम का एक राजा (पउम ३२, २३)

कण :: सक [क्‍वण] शब्द करना, आवाज करना। कणाइ (हे ४, २३९)। वकृ. कणंत (सुर १०, २१८; वज्जा ६६)।

कण :: सक [कण्] आवाज करना। कणइ (हे ४, २३९)।

कण :: पुं [कण] १ कण, लेश; 'गुणकणमवि परिकहिउं न सक्कइ' (सार्ध ७६) २ विकीर्णं दान (कुमा) ३ वनस्पति-विशेष, (पणण १) ४ पुं. एक म्लेच्छ देश (राज) ५ ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७) ६ तण्डुल, ओदन (उत्त १२) ७ कनिक (आचा २, १) ८ बिंदु; 'बंदुइअं कणइअ' (पाअ)। °इअ वि [°वत्] बिन्दुवाला (पाअ)। [°कुंडग] पुं [कुण्डक] ओदन की वनी हुई एक भक्ष्य वस्तु; 'कणकुडंगं चइत्ताणं विट्ठं भुंजइ सूयरो' (उत्त १२)। °पूपलिया स्त्री [°पूपलिका] भोजन-विशेष, कणिक (आटा)। की बनाई हुई एक खाद्य वस्तु (आचा २, १)। °भक्ख पुं [°भक्ष्] वैशोषिक मत का प्रवर्त्तंक एक ऋषि (राज)। °वेत्ति स्त्री [°वृत्ति] भिक्षा, भीख (सुपा २३४)। °वियाणग पुं [°वितानक] देखो कणग- वियाणग (सुज्ज २०; इक)। °संताणय पुं [°संतानक] देखो कणग-संताणय (इक)। °द पुं [°द] वैशोषिक मत का प्रवतंक ऋषि (विसे २१९४)। °यण्ण वि [°कीर्ण] बिन्दुवाला (पाअ)

कण :: पुं [क्वण] शब्द, आवाज (उप पृ १०३)।

कणइकेउ :: पुं [कनकेकेतु] इस नाम का एक राजा (दंस)।

कणइपुर :: न [कनकिपुर] नगर-विशेष, जो महाराज जनक के भाई कनक की राजधानी थी (ती)।

कणइर :: पुं [कर्णिकार] कणेर, वनस्पति- विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

कणइल्ल :: पुं [दे] शुक, तोता, सुग्गा, सुआ (दे २, २१; षड्; पाअ)।

कणई :: स्त्री [दे] लता, वल्ली (दे २, २५; षड्; स ४१९; पाअ)।

कणंगर :: न [कनङ्गर] पाषाण का एक प्रकार का हथियार (विपा १, ६)।

कणकण :: पुं [कणकण] कण-कण आवाज (आवम)।

कणकणकण :: अक [दे] कण-कण आवाज करना। कणकणकणंति (पउम २६, ५३)। वकृ. कणकणकणंत (पउम ५३, ८६)।

कणकणग :: पुं [कनकनक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३)।

कणक्कणिअ :: वि [क्वणक्वणित] कण-कण आवाजवाला (कप्पू)।

कणखल :: न [दे] उद्यान-विशेष (सट्टि ९ टी)।

कणग :: वि [कानक] सुवर्णं-रस पाया हुआ (कपड़ा) (आचा २, ५, १, ५)। °पट्ट वि [°पट्ट] सोने का पट्टावाला (आचा २, ५, १, ५)।

कणग :: देखो कण (कप्प)।

कणग :: [दे] देखो कणय = (दे) (पणह १, २)।

कणग :: पुं [कनक] १ ग्रह विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७) २ रेखा-सहित ज्योतिः-पिण्ड, जो आकाश से गिरता है (ओघ ३१० भा; जी ६) ३ बिन्दु। ४ शलाका, सलाई (राज) ५ घृतवर द्वीप का अधिपति देव (सूज १९) ६ बिल्व वृक्ष, बेल का पेड़ (उत्तनि. ३) ७ न. सुवर्ण, सोना (सं ६४; जी ३) °कंत वि [°कान्त] १ कनक की तरह चमकता (आचा २, ५, १) २ पुं. देव-विशेष (दीव) °कुड न [°कूट] १ पर्वत-विशेष का एक शिखर (जं ४) २ पुं. स्वर्णं मय शिखरवाला पर्वत (जीव ३) °केउ पुं [°केतु] इस नाम का एक राजा (णाया १, १४)। °गिरि पुं [°गिरि] १ मेरु पर्वत। २ स्वर्ण- प्रचुर पर्वत (औप) °ज्झय पुं [°ध्वज] इस नाम का एक राजा (पंचा ५)। °पुर न [°पुर] नगर विशेष। (विपा २, ६)। °प्पभ पुं [°प्रभ] देव-विशेष (सुज्ज १९)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] १ देवी-विशेष। २ 'ज्ञाता- धर्मंसूत्र' का एक अध्ययन (णाया २, १) °फुल्लिअ न [पुष्पित] जिसमें सोने के फूल लगाए गए हों ऐसा वस्त्र (निचू ७७)। °माला स्त्री [°माला] १ एक बिद्याधर की पुत्री (उत्त ९) २ एक स्वनाम ख्यात साध्वी (सुर १५, ६७) °रह पुं [°रथ] इस नाम का एक राजा (ठा ७; १०)। °लया स्त्री [°लता] चमरेन्द्र के सोम-नामक लोकपाल- देव की एक अग्रमहिषी (ठा ४, १ — पत्र २०४)। °वियाणग पुं [°वितानक] ग्रह- विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २. ३; पत्र ७७)। °संताणग पुं [°संतानक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७७)। °वलि स्त्री [°वलि] १ सुवर्ण का एक आभूषण, सुवर्ण की मणियों से बना आभूषण (अंत २७) २ तप-विशेष, एक प्रकार की तपश्‍चर्या (औप) ३ पुं. द्वीप-विशेष। ४ समुद्र-विशेष (जीव ३) °वलिपविभत्ति स्त्री [°वलिप्रविभक्ति] नाट्य का एक प्रकार (राय)। °वलिभद्द पुं [°वलिभद्र] कनकावलि द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३)। °वलिमहाभद्द पुं [°वलिमहाभद्र] कनकावलिवर नामक समुद्र का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३)। °वलिमहावर पुं [°वलिमहावर] कनका- वलिबर नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वलिवर पुं [°वलिवर] १ इस नाम का एक द्वीप। २ इस नाम का एक समुद्र। कनकावलिवर समुद्र का अधिष्ठाता देव-विशेष (जीव ३) °वलिवरभद्द पुं [°वलिवरभद्र] कनकावलिवर द्वीप का एक अधिपति देव (जीव ३)। °वलिवरमहाभद्द पुं [°वलिवरमहाभद्र] कनकावलिवर नामक द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वलिवरोभास पुं [°वलिवरावभास] १ इस नाम का एक द्वीप। २ इस नाम का एक समुद्र (जीव ३)। °वलिवरोभासभद्द पुं [°वलिवरावभासभद्र] कनकावलिवराब- भास द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वलिवरोभासमहाभद्द पुं [°वलिवरा- वभासमहाभद्र] कनकावलिवरावभास द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वलि- वरोभासमहावर पुं [°वलिवरावभास- महावर] कनकावलिवरावभास-समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वलिवरोभास- वर पुं [°वलिवरावभासवर] कनकावलि- वरावभास-समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) °वली स्त्री [°वली] देखो °वलि का पहला और दूसरा अर्थ (पव २७१)। देखो कणय = कनक।

कणगसत्तरि :: स्त्री [कनकसप्तति] एक प्राचीन तैनेत्तर शास्त्र (अणु ३६)।

कणगा :: स्त्री [कनका] १ भीम-नामक राक्ष- सेन्द्र की एक अग्रमहीषी (ठा ४, २ — पत्र ७७) २ चमरेन्द्र के सोम-नामक लोकपाल की एक अग्र-महिषी (ठा ४, २) ३ 'णाया- धम्मकहा' सूत्र का एक अध्ययन (णाया २, १) ४ क्षुद्र जन्तु-विशेष की एक जाति, चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष (जीव १)

कणगत्तम :: पुं [कनकोत्तम] इस नाम का एक देव (दीव)।

कणय :: पुं [दे] १ फूलों को इकट्ठा करना, अवचय। २ बाण, शर; 'असिखेडयकणयतो- मर — ' (पउम ८, ८८; पणह १, १, दे २, ५६; पाअ)

कणय :: पुंन [कनक] एक देव विमान (देवेन्द्र १४४)।

कणय :: देखो कणग = कनक (ओघ ३१० भा; प्रासू १५६; हे १, २२८; उव; पाअ; महा; कुमा)। ८ पुं. राजा जनक के एक भाई का नाम (पउम २८, १३२)। ९ रावण का इस नाम का सुभट (पउम ५६, ३२) १० धतुरा, वृक्ष-विशेष (से ९, ४८) ११ वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३३) १२ न. छन्द-विशेष (पिंग)। °पव्वय पुं [°पर्वत] देखो कणग-गिरि (सुपा ४३)। °मय वि [°मय] सुवर्ण का बना हुआ (सुपा २०)। °भ न [°भ] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °ली स्त्री [°ली] घर का एक भाग (णाया १, १ — पत्र १२)। °वली स्त्री [°वली] देखो कणगावली। ३ एक राज- पत्‍नी (पउम ७, ४५)

कणयंदी :: स्त्री [दें] वृक्ष-विशेष, पाउरी, पाढल (दे २, ५८)।

कणविआणय :: पुं [कणवितानक] देखो कणगावियाणग (सुज्ज २०)।

कणवी :: स्त्री [दे] कन्या (वज्जा १०८)।

कणवीर :: पुं [करवीर] १ वृक्ष-विशेष, कनेर (हे १, २५३; सुपा १५१) २ न. कणेर का फूल (पणह १, ३)

कणि :: पुंस्त्री [दे] स्फुरण, स्फुर्त्ति; 'कणी फुरणं' (पाअ)।

कणिआर :: देखो कण्णिआर (कुमा; प्राप्र; हे २, ९५)।

कणिआरिअ :: वि [दे] १ कानी आँख से जो देखा गया हो वह। २ न. कानी नजर से देखना (दे २, २४)

कणिका :: स्त्री [कणिका] कनेक, रोटी के लिए पानी से भिजाया हुआ आटा (दे १, ३७)।

कणिक्क :: वि [कणिक्क] मत्स्य-विशेष (जीव १)।

कणिक्का :: देखो कणिका (श्रा १४)।

कणिट्ठ :: वि [कनिष्ठ] १ छोटा, लघु (पउम १५, १२; हे २, १७२) २ निकृष्ट, जघन्य (रंभा)

कणिय :: न [कणित] १ आर्त्तं-स्वर। २ आवाज, ध्वनि (आव ४)

कणिय°, कणिया :: देखो कणिका (कप्प)। २ कणिका, चावल का टुकड़ा (आचा २, १, ८)। °कुडय देखो कण-कुंडग (स ४८७)

कणिया :: स्त्री [क्वणिता] वीणा-विशेष (जीव ३)।

कणिर :: वि [क्वणितृ] आवाज करनेवाला (उप पृ १०३; पाअ)।

कणिल्ल :: न [कनिल्य] नक्षत्र-विशेष का गोत्र (इक)।

कणिल्लिका :: स्त्री [कनिष्ठिका] छोटी अंगुली (अंगविज्जा, अध्या° ९ श्‍लो° १७५३)।

कणिस :: न [कणिश] सस्य-शीर्षक, धान्य का अग्र-भाग (दे २, ६)।

कणिस :: न [दे] किंशारु, सस्य-शूक, सस्य का तीक्ष्ण अग्र भाग (दे २, ६; भवि)।

कणीअ, कणीअस :: वि [कनीयस्] छोटा, लघु; 'तस्य भाया कणीससो पहू नामं' (वसु; बेणी १७९; कप्प; अंत १४)।

कणीणिगा :: स्त्री [कनीनिका] १ आँख की तारा। २ छोटी उंगली (राज)

कणीर :: देखो कणेर (चंड)।

कणुय :: न [कणुक] त्वग् वगैरह का अवयव (आचा २, १, ८)।

कणूया :: देखो कणिया = कणिका (कस)।

कणेडि्ढआ :: स्‍त्री [दे] गुज्‍जा, घुँघची (दे २, २१)।

कणेर :: देखो कण्णिआर (हे १, १६८; पि २५८)।

कणेरु, कणेरुया :: स्‍त्री [करेणु] हस्तिनी, हथिनी (हे २, ११६; कुमा; णाया १, १ — पत्र ६४)।

कणोवअ :: न [दे] गरम किया हुआ जल, तेल वगैरह (दे २, १६)।

कण्ण :: पुं [कन्या] राशि-विशेष, कन्या-राशि; 'बुहो य कणणम्मि वट्टए उच्चो' (पउम १७, ८१)।

कण्ण :: पुं [कण्व] इस नामका एक परिव्राजक, ऋषि विशेष (औप; अभि २६२)।

कण्ण :: पुं [कर्ण] १ कोटि भाग, अग्रांश (सुज्ज १, १) २ एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)

कण्ण :: पुंन [कर्ण] १ कान, श्रवण, श्रोत्र; 'कणणाइं' (पि ३५८; प्रासू २) १ पुं. अङ्ग देश का इस नाम का एक राजा, युधिष्ठिर का बड़ा भाई (णाया १, १६) ३ काना, वस्तु के छोर का एक अंश (अग° सूत्र ५१, ९९) °उर, °ऊर न [°पूर] कान का आभूषण (प्राप्र; हेका ४५)। °गइ स्त्री [°गति] मेरु-सम्बन्धी एक डारी (जो १०)। °जयसिंहदेव पुं [°जयसिहदेव] गुजरात देश का बारहबीं शताब्दी का एक यशस्वी राजा (ती)। °देय पुं [°देव] विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का सौपष्ट्र-देशीय एक राजा (ती)। °धार पुं [°धार] नाविक, निर्यामक (णाया १, ८)। °पाउरण पुं [°प्रावरण] १ इस नाम का एक अन्तर्द्वीप। २ उस अन्त- र्द्वीप का निवासी (पणण १) °पावरण देखो °पाउरण (इक)। °पीढ न [°पीठ] कान का एक प्रकार का आभूषण (ठा ६)। °पृर देखो °ऊर (णाया १, ८)। °रवा स्त्री [°रवा] नदी-विशेष (पउम ४०, १३)। °वालिया स्त्री [°वालिका] कान के ऊपर भाग में पहना जाता एक प्रकार का आभूषण (औप)। °वेहणग न [°वेधनक] उत्सव- विशेष, कर्णवेवोत्सव (औप)। °सक्कुली स्त्री [°शष्शुली] १ कान का छिद्र। २ कान की लंबाई (णाया १, ८)। °सोहण न [°शोधन] कान का मैल निकालने का एक उपकरण (निचू ४)। °हार पुं [°धार] देखो °धार (अच्चु २४; स ३२७)। देखो कन्न।

कण्णआर :: देखो कण्णिआर (प्राकृ ३०)।

कण्णउज्ज :: पुं [कान्यकुब्ज] १ देश-विशेष, दोआव, गङ्गा और यमुना नदी के बीच का देश। २ न. उस देश का प्रधान नगर, जिसको आजकल 'कन्नौज' कहते हैं (ती; कप्पू)

कण्णंबाल :: न [दे] कान का आभूषण — कुण्डल बगैरह (दे २, २३)।

कण्णगा :: देखो कन्नगा (आव ४)।

कण्णच्छुरी :: स्त्री [दे] गृह-गोधा, छिपकली (दे २, १९)।

कण्णडय :: (अप) देखो कण्ण (हे ४, ४३२; ४३३)।

कण्णल :: (अप) वि [कर्णाट] १ देश-विशेष, कण्टिक। २ वि. उस देश का निवासी (पिंग)

कण्णलोयण :: पुंन [कर्णलोचन] देखो कण्णि- लायण (सुज्ज १०, १६)।

कण्णल्ल :: पुंन [कर्णल] ऊपर देखो (सुज्ज १०, १६ टी)।

कण्णस :: वि [कन्यस] अधम, जघन्य (उत ५)।

कण्णस्सरिय :: वि [दे] १ कानी नजर से देखा हुआ। २ न. कानी नजर से देखना (दे २, २४)

कण्णा :: स्त्री [कन्या] १ ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध एक राशि। २ कन्या, लड़की, कुमारी (कप्पू; पि २८२)। °चोलय न [°चोलक] धान्य- विशेष, जबनाल (णंदि)। °णय न [°नय] चोल देख का एक प्रधान नगर; 'चोलदेसाव- यंसे कणणणयनयरे' (ती)। °लिय न [°लीक] कन्या के विषय में बोला जाता झुठ (पणह १, ३)

कण्णाआस :: न [दे] कान का आभूषण — कुण्डल वगैरह (दे २, २३)।

कण्णाइंधण :: न [दे] कान का आभूषण — कुण्डल वगैरह (दे २, २३)।

कण्णाड :: पुं [कर्णाट] १ देश-विशेष, जो आजकल 'कण्टिक' नाम से प्रसिद्ध है। २ वि. उस देश में उत्पन्न, वहां का निवासी (कप्पू)

कण्णास :: पुं [दे] पर्यन्त, अन्त-भाग (दे २, १४)।

कण्णि :: पुं [कर्णि] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६)।

कण्णिआ :: स्त्री [कर्णिका] १ पद्म-उदर, कमल का बीज-कोष (दे ६, १४०) २ कोण, अस्त्र (अणु; ठा ८) ३ शालि वगैरह के बीज का मुख-मूल तुष-मुख (ठा ८)

कण्णिआर :: पुं [कर्ण्णिकार] १ वृक्ष-विशेष, कनेर का गाछ (कुमा; हे २, ९५; प्राप्र) २ गोशालक का एक भख्त (भग १४, १०) ३ न. कनेर का फूल (णाया १, ९)

कण्णिलायण :: न [कर्णिलायन] नक्षत्र-विशेष का एक गोत्र (इक)।

कण्णीरह :: देखो कन्नीरह।

कण्णुप्पल :: न [कर्णोत्पल] कान का आभूषण- विशेष (कप्पू)।

कण्णेर :: देखो कण्णिआर (हे १, १६८)।

कण्णोच्छडिआ :: स्त्री [दे] दूसरे की बात गुपचुप सुननेवाली स्त्री (दे २, २२)।

कण्णोड्‍ढ, कण्णोडि्ढआ :: स्त्री [दे] स्त्री को पहनने का वस्त्र विशेष, नीरङ्गी (दे २, २० टी)।

कण्णोढत्ती :: [दे] देखो कण्णोच्छडिआ (दे २, २२)।

कण्णोप्पल :: देखो कण्णुप्पल (नाट)।

कण्णोल्ली :: स्त्री [दे] १ चञ्चु, चोंच, पक्षी का ठोर, ठोंठ। २ अवतंस, शेखर, भूषण-विशेष (दे २, ५७)

कण्णोवगण्णिआ :: स्त्री [कर्णोपकर्णिका] कर्णाकर्णी, कानाकानी (दे १, ६१)।

कण्णोस्सरिअ :: [दे] देखो कण्णस्सरिय (दे २, २४)।

कण्ह :: पुं [कृष्ण] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९९)।

कण्ह :: पुं [कृष्ण] १ श्रीकृष्ण, माता देवकी और पिता वसुदेव से उत्पन्न नववाँ वासुदेव (णाया १, १६) २ पांचवाँ वासुदेव और बलदेव के पूर्वं जन्म के गुरू का नाम (सम १५३) ३ देशावकाशिक व्रत को अतिचरित करनेवाला एक उपासक (सुपा ५९२) ४ विक्रम की तृतीय शताब्दी का एक प्रसिद्ध जैनाचार्यं, दिगम्बर जैन मत के प्रवर्त्तंक शिवभूति मुनि के गुरू (विसे २५५३) ५ काला बर्ण (आचा) ६ इस नाम का एक परिव्राजक, तापस (औप) ७ वि. श्याम-वर्णं, काला रंगवाला (कुमा) °आरोल पुं [°ओराल] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)। °कंद पुं [°कन्द] वनस्पति-विशेष, कन्द-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)। °कण्णि- यार पुं [°कर्णिकार] काली कनेर का गाछ (जीव ३)। °कुमार पुं [°कुमार] राजा श्रेणिक का एक पुत्र (निर १, ४)। °गोमी स्त्री [°गोमिन्] काला श्रृगाल; 'कणहगोमी जहा चित्ता, कंटगं वा विचित्तयं' (वव ६)। °णाम न [°नामन्] कर्मं-विशेष, जिसके उदय से जीव का शरीर काला होता है (राज)। °पक्खिय वि [°पाक्षिक] १ क्रूर कर्म करनेवाला (सूअ २, २) २ बहुत काल तक संसार में भ्रमण करनेवाला (जीव) (ठा १, १) °बंधुजीव पुं [°बन्धुजीव] वृक्ष विशेष, श्याम पुष्पवाला दुपहरिया (जीव २)। °भूम, °भोम पुं [°भूम] काली जमीन (आवम; विसे १४५८)। °राई, °राई स्त्री [°राजि, °जी] १ काली रेखा (भग ६, ५; ठा ८) २ एक इन्द्राणी, ईशानेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ८; जीव ४) ३ 'ज्ञाता- धर्मंकथा' सूत्र का एक अध्ययन — परिच्छेद (णाया २, १) °रिसि पुं [°ऋषि] इस नाम का एक ऋषि, जिसका जन्म शंखावती नगरी में हुआ था (ती)। °लेस, °लेस्स वि [°लेश्य] कृष्ण-लेश्यावाला (भग)। °लेसा, लेस्सा स्त्री [°लेश्या] जीव का अति निकृष्ट मनः — परिणाम, जघन्य-वृत्ति (भग; सम ११; ठा १, १)। °वडिंसय, °वडेंसय न [°वतंसक] एक देव-विमान (राज; णाया २, १)। °वल्लि, °वल्ली स्त्री [°वल्लि, °ल्ली] वल्ली-विशेष, नागदमनी लता (पणण १)। °सप्प पुं [°सप] १ काला साँप (जीव ३)। २ राहु (सुज्ज २०)। देखो कन्ह।

कण्हई :: अ [कुतश्चित्] किसी से (सूअ १, २, ३, ६)। देखो कण्हुइ।

कण्हा :: स्त्री [कृष्णा] १ एक इन्द्राणी, ईशा- नेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ८ — पत्र ४२९) २ एक अन्तकृत् स्त्री (अंत २५) ३ द्रोपदी, पाण्डवों की स्त्री (राज) ४ राजा श्रेणिक की एक रानी (निर १, ४) ५ ब्रह्म देश की एक नदी (आवम)

कण्हुइ :: अ [क्वचित्] क्वचित्, कहीं भी (सूअ १, १)। २ कहाँ से ? (उत्त २)

कण्हुई :: देखो कण्हुइ (सूअ २, २, २१)।

कतवार :: पुं [दे] कतवार, कूड़ा (दे २, ११)।

कति :: देखो कइ = कति (पि ४३३; भग)।

कतु :: देखो कउ = कतु (कप्प)।

कत्त :: सक [कृत्] काटना, छेदना, कतरना। कत्ताहि (पणह १, १)। वक, कत्तंत (ओघ ४६८)।

कत्त :: सक [कृत्] कातना, चरखे से सूत बनाना। वकृ. कत्तंत (पिंड ५७४)।

कत्त :: वि [क्लृप्त] निर्मित (संक्षि ४०)।

कत्त :: न [दे] कलत्र, स्त्री (षड्)।

कत्तण :: न [कर्तन] कातना (पिंड ६०२)।

कत्तण :: न [कर्त्तन] १ कतरना, काटना (सम १२५; उप पृ २) २ वि. काटनेवाला, कतरनेवाला (सुर १, ७२)

कत्तणया :: स्त्री [कर्त्तनता] लवन, कतराई (सुर १, ७२)।

कत्तर :: पुं [दे] कतवार, कूड़ा; 'इत्तो य कविलमूसयकत्तरबझारितिडुपभिईहिं; 'केसव- किसी विणट्ठा' (सुपा २३७)।

कत्तरिअ :: वि [कृत्त, कर्त्तित] कतरा हुआ, काटा हुआ, लून (सुपा ५४६)।

कत्तरी :: स्त्री [कर्त्तरी] कतरनी, कैंची (कप्प)।

कत्तवीरिअ :: पुं [कार्त्तेवीर्य] नृप-विशेष (सम १५३; प्रति ३९)।

कत्तव्व :: वि [कर्त्तव्य] १ करने योग्य (स १७२) २ न. कार्य, काज, काम (श्रा ६)

कत्ता :: स्त्री [दे] अन्धिका-द्युत की कपर्दिका, कौड़ी (दे २, १)।

कत्ति :: स्त्री [कृत्ति] चर्मं, चमड़ा (स ४३६; गउड; णाया १, ८)।

कत्ति° :: वि [कर्तृ] करनेवाला, 'किरिया ण कत्तिरहिया' (धर्मसं १४५)।

कत्तिकेअ :: पुं [कार्त्तिकेय] महादेव का एक पुत्र, षडानन (दे ३, ५)।

कत्तिगी :: स्त्री [कार्त्तिकी] कार्तिक मास की पूर्णिमा (पउम ८९, ३०; इक)।

कत्तिम :: वि [कृत्त्रिम] कृत्रिम, बनावटी (सुपा ८३; जं २)।

कत्तिय :: पुं [कार्त्तिक] १ कार्त्तिक मास (सम ६५) २ इस नाम का एक श्रेष्ठी (निर १, ३) ३ भरत क्षेत्र के एक भावी तीर्थकर के पूर्व भव का नाम (सम १५४)

कत्तिया :: स्त्री [कृत्तिका] नक्षत्र-विशेष (सम ११; इक)।

कत्तिया :: स्त्री [कर्त्तिका] कतरनी, कैंची (सुपा २९०)।

कत्तिया :: स्त्री [कार्त्तिकी] १ कार्त्तिक मास की पूर्णिमा (सम ६६) २ कार्त्तिक मास की अमावास्या (चंद १०)

कर्त्तिवविय :: वि [दे] कृत्रिम, दिखाऊ; 'कत्ति- बबियाहिं उबहिप्पहाणाहिं' (सूअनि १, ४)।

कत्तु :: वि [कर्त्तृ] करनेवाला, 'कत्ता भुता य पुन्नपावाणं' (श्रा ६)।

कत्तो :: अ [कुतः] कहाँ से, किससे ? (पउम ४७, ८; कुमा)। °च्चय वि [°त्य] कहाँ से उत्पन्न ? (विसे १०१६)।

कत्थ :: सक [कत्थ] श्‍लाघा करना, प्रशंसना। कत्थइ (हे १, १८७)।

कत्थ :: अ [कुतः] कहाँ से ? (षड्)।

कत्थ :: अ [क्व, कुत्र] कहाँ ? (षड्; कुमा; प्रासू १२३)। °इ अ [°चित्] कहीं, किसी जगह (आचा; कप्प; हे २, १७४)।

कत्थ :: वि [कथ्य] १ कहने योग्य, कथनीय। २ न. काव्य का एक भेद (ठा ४, ४ — पत्र २८७) ३ वनस्पति-विशेष (राज)

कत्थंत :: देखो कह = कथय्।

कत्थभाणी :: स्त्री [कस्तभानी] पानी में होनेवाली वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)।

कत्थूरिया, कत्थूरी :: स्त्री [कस्तूरी] मृग-मद, हरिण की नाभि में होनेवाली सुगन्धित वस्तु (सुपा १४७; स २३९; कप्पू)।

कथ :: वि [दे] १ उपरत, मृत। २ क्षीण, दुर्बल (षड्)

कद :: (मा) देखो कड = कृत (प्राकृ १०३)।

कदग :: देखो कयग (हम्मीर ३४)।

कदण :: देखो कडण = कदन (कुमा)।

कदली :: देखो कयली (पणण १ — पत्र ३२)।

कदु :: देखो कउ = क्रतु (प्राकृ १२)।

कदुअ :: (शौ) अ [कृत्वा] करके (प्राकृ ८८)।

कदुइया :: स्त्री [दे] बल्ली-विशेष, कद्‍दू, लौकी (पणण १ — पत्र ३३)।

कदुशण :: (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम (प्राकृ १०२)।

कद्दम :: पुंन [कर्दम] कीचड़, काँदो (कुप्र ६६)। °ल वि [°ल] कीचड़वाला (सूअनि १६१)।

कद्दम, कद्दमग :: पुं [कर्दम] १ काँदो, कीच (पणह १ ४) २ देव-विशेष, एक नाग- राज (भग ६, ३)

कद्दमिअ :: वि [कर्दमित] पङ्क-युक्त, कीचड़ वाला (से ७, २०; गउड)।

कद्दमिअ :: पुं [दे] महिष, भैंसा (दे २, १५)।

कन्न :: देखो कण्ण = कर्ण (सुर १ २; सुर २, १७१; सुपा ५२४; धम्म १२ टी; ठा ४, २; सुपा ९५; पाअ)। °यंस पुं [°वतंस] कान का आभूषण (पाअ)।

कन्न :: देखो कण्ण (कुलक)। °एव देखो कण्ण- देव (कुप्र ४). °वट्टि, °वट्टि स्त्री [°वृत्ति] किनारा, अग्र भाग (कुप्र ३३१, ३३४; विचार ३२७; पब १२५)।

कन्नउज्ज :: देखो कण्णउज्ज (कुमा)।

कन्नगा :: स्त्री [कन्यका] कन्या, लड़की, कुमारी (सुर ३, १२२; महा)।

कन्नस :: वि [कनीयस्] कनिष्ठ, जघन्य; 'कन्नसमज्झिंमजेट्ठा' (पव १५७)।

कन्ना :: देखो कण्णा (सुर २, १५४; पाअ)।

कन्नाड :: देखो कण्णाड (भवि)।

कन्नारिय :: वि [दे] विभूषित, अलंकृत, 'आणहेँ कन्नारिउ गइंदु' (भवि)।

कन्नीरह :: पुं [कर्णीरथ] एक प्रकार का शिविका, धनाढ्य का एक प्रकार का वाहन (णाया १, ३)।

कन्‍नुल्लड :: (अप) पुं [कर्ण] कान, श्रवणेन्द्रिय (कुमा)।

कन्नेरय :: देखो कण्णिआर (कुमा)।

कन्नोली :: [दे] देखो कण्णोल्ली (पाअ)।

कन्ह :: देखो कण्ह (सुपा ५९६, कप्प)। °सह न [°सह] जैन साधुओ के एक कुल का नाम (कप्प)।

कपंध :: देखो कमन्ध (प्राकृ १३)।

कपिंजल :: पुं [कपिञ्जल] पक्षि-विशेष — १ चातक। २ गौरा पक्षी (पणह १, १)

कपूर :: देखो कप्पूर (श्रा २७)।

कप्प :: अक [कृष्] १ समर्थ होना। २ कल्पना, काम में आना। ३ सक. काटना, छेदना। कप्पइ, कप्पए (कप्प; महा; पिंग)। कर्मं. कप्पिज्जइ (हे ४, ३५७)। कृ. कप्प- णिज्ज (आव ६)। प्रयो. कप्पावेज्ज (निचू १७)। बकृ. कप्पावंत (निचू १७)

कप्प :: सक [कल्पय्] १ करना, बनाना। २ वर्णन करना। ३ कल्पना करना। वकृ. कप्पेमाण (विपा १, १)। संकृ. कप्पेऊण (पंचव १)

कप्प :: वि [कल्प्य] ग्रहण-योग्य (पंचा १२)।

कप्प :: पुं [कल्प] १ प्रक्षालन (पिंड २६६; २७१; ३०५; गच्छ २, ३२) २ आचार, व्यवहार (वव १; पव ६९) ३ दशाश्रु- तस्कन्ध सूअ। ४ कल्प-सूत्र। ५ व्यवहार सूत्र (वव १) ६ वि. उचित (पंचा १८, ३०)। °काल पुं [°काल] प्रभूत काल (सूत्र १, १, ३, १६)। °धर वि [°धर] कल्प तथा व्यवहार सूत्र का जानकार (वव १)

कप्प :: पुं [कल्प] १ काल-विशेष, देवों के दो हजार युग परिमित समय; 'कम्माण कप्पिआणं काहि कप्पंतरेसु णिव्वेसं' (अच्चु १८; कुमा) २ शास्त्रोक्त विधि, अनुष्ठान (ठा ६) ३ शास्त्र-विशेष (विसे १०७५; सुपा ३२४) ४ कम्बल-प्रमुथ उपकरण (ओघ ४०) ५ देवों का स्थान, बारह देवलोक (भग ५, ४; ठा २; १०) ६ बारह देवलोक निवासी देव, वैमानिक देव (सम २) ७ वृक्ष-विशेष, मनेवाञ्छित फल को देनेवाला वृक्ष, कल्प-वृक्ष (कुमा) ८ शस्त्र-विशेष; 'ओसिखेडयकप्पतोमरविहत्था' (पउम ९, ७३) ९ अधिवास, स्थान (बृह १) १० राजा नन्द का एक मन्त्री (राज) ११ वि. समर्थ, शक्तिमान् (णाया १, १३) १२ सदृश, तुल्य; 'केवलकप्पं' (आवम; पणह २, २) °ट्ठं पुं [°स्थ] बालक, बच्चा (वव ७)। °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] साधुओं का शास्त्रोक्त अनुष्ठान (बृह ६)। °ट्ठिया स्त्री [°स्थिका] १ लड़की, बालिका (वव ४) २ तरुण स्त्री (बृह १) °ट्ठी स्त्री [°स्था] १ बालिका, लड़की (वव ६) २ कुलाङ्गना, कूल-वधू (वव ३) °तरु पुं [°तरु] कल्प- वृक्ष (प्रासू १६८; हे २, ७९)। °त्थी स्त्री [°स्त्री] देवी, देव-स्त्री (ठा ३)। °दुम, °द्‍दुम पुं [°द्रुम] कल्प-वृक्ष (धण ६; महा) °पायव पुं [°पादप] कल्प-वृश्र (पडि, सुपा ३९)। °पाहुड न [°प्राभृत] जैन ग्रन्थ विशेष (ती)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष्] कल्प-वृक्ष (पणह १, ४)। °वडिंसय न [°वतंसक] १ विमान-विशेष। २ विमान- वासी देव-विशेष (निर) °वड़िसया स्त्री [°वतंसिका] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें कल्पा- वतंसक देव-विमानों का वर्णन है (राय; निर १)। °विडवि पुं [°विटपिन्] कल्प-वृक्ष (सुपा १२९)। °साल पुं [°शाल] कल्प-वृक्ष (उप १४२ टी)। °साहि पुं [°शाखिन्] कल्प-वृक्ष (सुपा ३९९)। °सुत्त न [°सूत्र] शीभद्रबाहु स्वामि-विरचित एक जैन ग्रन्थ (कप्प; कस)। °सुय न [°श्रुत] १ ज्ञान- विशेष। २ ग्रन्थ-विशेष (णंदि)। °ईअ पुं [°तीत] उत्तम जाति के देव-विशेष, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के निवासी देव (पणह १, ५; पणण १)। °ग पुं [°क] विधि को जाननेवाला (कस; औप)। °य पुं [°य] कर, चुङ्गी, राज-देय भाग (विपा १, ३)

कप्पंत :: पुं [कल्पान्त] प्रलय-काल, संहार- समय (कप्पू)।

कप्पड :: पुं [कर्पट] १ कपड़ा, वस्त्र (पउम २५, १५; सुपा ३४४; स १८०) २ जीर्णं वस्त्र, लकुटाकार कपड़ा (पणह १, ३)

कप्पडिअ :: वि [कार्पटिक] भिक्षुक, भीखमंगा (णाया १, ८; सुपा १३८; बृह १)।

कप्पडिअ :: वि [कार्पटिक] कपटी, मायावी (णाया १, ८ — पत्र १५०)।

कप्पण :: न [कल्पन] छेदन, काटना (सुपा १३८)।

कप्पणा :: स्त्री [कल्पना] १ रचना, निर्माण। प्ररूपण, निरूपण (निचू १) ३ कल्पना, विकल्प (विसे १६३२)

कप्पणी :: स्त्री [कल्पनी] कतरनी, कैंची (पणह १, १; विपा १, ४; स ३७१)।

कप्पर :: पुं [कर्पर] खप्पर, कपाल, सिर की खोपड़ी (बृह ४; नाट)। देखो कुप्पर = कर्पर।

कप्परिअ :: वि [दे] दारित, चीरा हुआ (दे २, २०; वज्जा ३४; भवि)।

कप्पास :: पुं [कार्पास] १ कपास, रुई। २ ऊन (निचू ३)

कप्पसत्थि :: पुं [कार्पासास्थि] त्रीन्दिय जीव- विशेष, क्षुद्र जन्तु-विशेष (जीव १)।

कप्पासिअ :: वि [कार्पासिक] १ कपास बेचनेवाला (अणु १४९) २ न. जैनेतर शास्त्र-विशेष (अणु ३६, णंदि)

कप्पासिय :: वि [कार्पासिक] कपास का बना हुआ, सूती वगैरह (अणु)।

कप्पासी :: स्त्री [कर्पासी] रुई का गाछ (राज)।

कप्पिआकप्पिअ :: न [कल्पाकल्प] एक जैन शास्त्र (णंदि २०२)।

कप्पिय :: वि [कल्पित] १ रचित, निर्मित (औप) २ स्थापित, समीप में रखा हुआ; 'से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं रुहिरं अप्प- कप्पियं करेइ' (निर १, १) ३ कल्पना निर्मित, विकल्पित (दसनि १) ४ व्यवस्थित (आचा; सूअ १, २) ५ छिन्न, काटा हुआ (विपा १, ४)

कप्पिय :: वि [कल्पिक] १ अनुमत, अनिषिद्ध (उवर १३०) २ योग्य, उचित (गच्छ १; वव ८) ३ पुं. गीतार्थं, ज्ञानी साधु; 'किं वा अकप्पिएणं' (वव १)

कप्पिया :: स्त्री [कल्पिका] जैन ग्रन्थ-विशेष एक उपाङ्ग-ग्रन्थ (जं १; निर)।

कप्पूर :: पुं [कर्पूर] कपूर, सुगन्धि, द्रव्य-विशेष (पणह २, ५; सुर २, ६; सुपा २९३)।

कप्पोवग :: पुं [कल्पोपक] १ कल्प-युक्त। २ देव-विशेष, बारह देव लोक-वासी देव (पणण २१)

कप्पोववण्ण :: पुं [कल्पोपपन्न] ऊपर देखो (सुपा ८८)।

कप्पोववत्तिआ :: स्त्री [कल्पोपपत्तिका] देव- लोक विशेष में उत्पत्ति (भग)।

कप्फल :: न [कट्‍फल] इस नाम की एक वनस्पति, कायफल (हे २, ७७)।

कप्फाड :: देखो कवाड = कपाट (गउड)।

कप्पाड :: [दे] देखो कफाड (पाअ)।

कफ :: पुं [कफ] कफ, शरीर स्थित धातु विशेष (राज)।

कफाड :: पुं [दे] गुफा, गुहा (दे २, ७)।

कबंध :: (शौ) देखो कमंध (प्राकृ ८५)।

कब्बट्ठी :: स्त्री [दे] छोटी लड़की (पिंड २८५)।

कब्बड, कब्बडग :: पुंन [कर्बट] १ खराब नगर, कुत्सित शहर (भग; पणह १, २) २ पुं. ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ३ वि कुनगर का निवासी (उत्त ३०)

कब्बर :: देखो कब्बुर (प्राकृ ७)।

कब्बाडभयय :: पुं [दे] ठीका पर जीमन खोदने का काम करनेवाला मजदूर (ठा ४, १ — पत्र २०३)।

कब्बुर, कब्बुरय :: वि [कर्बुर] १ कबरा, चितक बरा, चितला (गउड, अच्चु ६) २ पुं. ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव- विशेष (ठा २, ३; राज)

कब्बुरिअ :: वि [कर्बुरित] अनेक वर्णमाला, चितकबरा किया हुआ; 'देहकंतिकब्बुरिय- जम्मगिह' (सुपा ५४); 'मणिमयतोरणधोर- णितरुणपहाकिरणकब्बुरिअं' (कुम्मा ६; पउम ८२, ११)।

कभ :: (अप) देखो कफ (षड्)।

कभल्ल :: न [दे] कपाल, खप्पर (अनु ५; उवा)।

कम :: सक [क्रम्] १ चलना, पाँव उठाना। २ उल्लंघन करना। ३ अक. फैलना, पसरना। ४ होना; 'मणसोवि विसयनियमो न क्कमइ जओ स सव्वत्थ' (विसे २४६); 'न एत्थ उवायंतरं कमइ' (स २०६)। वकृ. कमंत (से २, ९)। कृ. कमणिज्ज (औप)

कम :: सक [कम्] चाहना, वाञ्छना। कवकृ. कम्मामाण (दे २, ८५)। कृ. कमणीय (सुपा ३४; २६२); कम्म (णाया १, १४ टी — पत्र १८८)।

कम :: अक [क्रम्] १ संगत होना, युक्त होना, घटना। २ अधिक रहना। कमइ (पिंड २३१; पव ६१)

कम :: पुं [क्रम्] १ पाद, पग, पाँव (सुर १, ८) २ परम्परा, 'नियकुलकमागयाओ पिउणा विज्जओ मज्झ दिन्‍नाओ' (सुर ३, २८) ३ अनुक्रम, परिपाटी (गउड) ४ मर्यादा, सीमा (ठा ४) ५ न्याय, फैसला; 'अवि- आरिअ कमं ण करिस्सदि' (स्वप्‍न २१) ६ नियम (बृह १)

कम :: पुं [क्लम] श्रम, थकावट, क्लान्ति (हे २, १०६; कुमा)।

कमंडलु :: पुंन [कमण्डलु] संन्यासियों का एक मिट्टी या काष्ठ का पात्र (निर ३, १; पणह १, ४; उप ६४८ टी)।

कमंध :: पुंन [कबन्ध] रुंड, मस्तकहीन शरीर (हे १, २३९; प्राप्र; कुमा)।

कमढ :: पुं [दे] १ दही की कलशी। २ पिठर, स्थाली। ३ बलदेव। ४ मुख, मुँह (दे २, ५५)

कमढ, कमढग, कमढय :: पुं [कमठ, °क] १ तापस-विशेष, जिसको भगवान् पार्श्‍वनाथ ने वाद में जीता था और जो मरकर दैत्य हुआ था (णमि २२) २ कूर्मँ, कच्छप (पाअ) ३ वंश, बाँस। ४ शल्लकी वृक्ष (हे १, १९९) ५ न. मैल, मल (निचू ३) ६ साध्वियों का एक पात्र (निचू १; ओघ ३६ भा) ७ साध्वियों को पहनने का एक वस्त्र (ओघ ६७५; बृह ३)

कमण :: न [क्रमण] १ गति, चाल। २ प्रवृत्ति (आचू ४)

कमणिया :: स्त्री [क्रमणिका] उपानत्, जूता (बृह ३)।

कमणिल्ल :: वि [क्रमणीवत्] जूतावाला, जूता पहना हुआ (बृह ३)।

कमणी :: स्त्री [क्रमण] जूता, उपानत् (बृह ३)।

कमणी :: स्त्री [दे] निःश्रेणी, सीढ़ी (दे २, ८)।

कमणीय :: वि [कमनीय] सुन्दर, मनोहर (सुपा ३४; २६२)।

कमल :: पुं [दे] १ पिठर, स्थाली। २ पटह, ढोल (दे २, ५४) ३ मुख, मुँह (दे २, ५४; षड्) ४ हरिण, मृग; 'तत्थ य एगो कमलो सगब्भहरिणीए संगओ बसइ' (सुर १५, २०२, दे २, ५४; अणु; कप्प; औप) ५ कलह, झगड़ा (षड्)

कमल :: पुंन [कमल] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४२)। °णअण पुं [नयन] विष्णु, नारायण (समु १५२)।

कमल :: न [कमल] १ कमल, पद्म, अरविन्द, (कप्प; कुमा; प्रासू ७१) २ कमलाख्य इन्द्राणी का सिंहासन। ३ संख्या-विशेष, 'कमलांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ पुं. कमलाख्य इन्द्राणी के पूर्वं जन्म का पिता (णाया २) ६ श्रेष्ठि-विशेष (सुपा २७५) ७ पिंगल-प्रसिद्ध एक गण, अन्त्य अक्षर जिसमें गुरु हो वह गण (पिंग) ८ एकजात का चावल, कलम (प्राप्र) °क्ख पुं [°क्ष] इस नाम का एक यक्ष (सण)। °जय न [°जय] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °जोणि पुं [°योनि] ब्रह्मा, विधाता (पाअ)। °पुर न [°पुर] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °प्पभा स्त्री [प्रभा] १ काल-नामक पिशाचेन्द्र की अग्र-महिषी (ठा ४, १) २ 'ज्ञाता धर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन (णाया २) °बन्धु पुं [°बन्धु] १ सूर्य, रवि (पउम ७०, ६२) २ इस नाम का एक राजा (पउम २२, ९८) °माला स्त्री [°माला] पोतनपुर नगर के राजा आनन्द की एक रानी, भगवान् अजि- तनाथ की मातामगी — दादी (पउम ५, ५२)। °रय पुं [°रजस्] कमल का पराग (पाअ)। °वडिंसय न [°वितंसक] कमला- नामक इन्द्राणी का प्रासाद (णाया २)। °सिरी स्त्री [°श्री] कमला-नामक इन्द्राणी की पूर्वं जन्म की माता का नाम (णाया २)। °सुंदरी स्त्री [°सुन्दरी] इस नाम की एक रानी (उप ७२८ टी)। °सेणा स्त्री [°सेना] एक राज-पुत्री (महा)। °अर, °गर पुं [°कर] १ कमलों का समूह। २ सरोवर, ह्रद वगैरह जलाशय (से १, २६; कप्प)। °पीड, °मेल पुं [°पीड] भरत चक्रवर्ती का अश्‍व-रत्‍न (जं ३; पि ९२)। °सण पुं [°सन] ब्रह्मा, विधाता (पाअ; दे ७, ६२)

कमलंग :: न [कमलाङ्ग] संख्या विशेष, चौरासी लाख महापद की संख्या (जो २)।

कमला :: स्त्री [दे] हरिणी, मृगी (पाअ)।

कमला :: स्त्री [कमला] १ लक्ष्मी (पाअ; सुपा २७५) २ रावण की एक पत्‍नी (पउम ७४, ९) ३ काल नामक पिशाचेन्द्र की एक अग्र-महिषी, इन्द्राणी विशेष (ठा ४, १) ४ 'ज्ञाताधर्मंकथा' सूत्र का एक अध्ययन (णाया २) ५ छन्द-विशेष (पिंग)। °अर पुं [°कर] धनाढ्य, धनी (से १, २६)

कमलिणी :: स्त्री [कमलिनी] पद्मिनी, कमल का गाछ (पाअ)।

कमलुब्भव :: पुं [कमलोद्भव] ब्रह्मा (त्रि ८२)।

कमव, कमवस :: अक [स्वष्] सोना, सो जाना। कमवइ (षड्)। कमवसइ (हे ४, १४६; कुमा)।

कमसो :: अ [क्मशः] क्रम से, एक-एक करके (सुर १, ११९)।

कमिअ :: वि [दे] उपसर्पित, पास आया हुआ (दे २, ३)।

कमिय :: वि [क्रान्त] उल्लंघित (दस २, ५)।

कमेलग, कमेलय :: पुंस्त्री [क्रमेलक] उष्ट्र, ऊँट (पाअ; उप १०३१ टी; करु ३३)। स्त्री. °गी (उप १०३१ टी)।

कम्म :: सक [कृ] हजामत करना, क्षौर-कर्म करना। कम्मइ (हे ४, ७२; षड्)। वकृ. कम्मंत (कुमा)।

कम्म :: सक [भुज्] भोजन करना। कम्मइ (षड्)। कम्मेइ (हे ४, ११०)।

कम्म :: देखो कम = कम्

कम्म :: पुंन [कर्मन्] १ जीव द्वारा ग्रहण किया जाता अत्यन्त सूक्ष्म पुद्नल (ठा ४, ४; कम्म १, १) २ काम, क्रिया, करनी, व्यापार (ठा १; आचा); 'कम्मा णाणफला' (पि १७२) ३ जो किया जाय वह। ४ व्याकरण-प्रसिद्ध कारक-विशेष (विसे २०९९, ३४२०) ५ वह स्थान, जहाँ पर चूना वगैरह पकाया जाता है (पणह २, ५ — पत्र १२३) ६ पूर्वं-कृति, भाग्य; 'कम्मत्ता दुब्भगा चेव' सूअ १, ३, १; आचा (षड्) ७ कार्मण शरीर। ८ कार्मंण-शरीर नामकर्मं, कर्मं-विशेष (कम्म २, २१) °कर वि [°कर] नौकर, चाकर (आचा)। देखो °गार। °करण न [°करण] कर्म-विषयक बन्धन, जीव-पराक्रम-विशेष (भग ६, १)।°कार वि [°कार] नौकर (पउम १७, ७)। °किब्बिस वि [°किल्बप] कर्म-चाण्डाल, खराब काम करनेवाला (उत्त ३)। °क्खंध पुं [°स्कन्ध] कर्मं-पुद्रलों का पिण्ड (कम्म ५)। °गर देखो °कर (प्रारू)। °गार पुं [°कार] १ कारीगर, शिल्पी (णाया १, ९) देखो °कर। °जोग पुं [°योग] शास्त्रोक्त अनुष्ठान (कम्म)। °ट्ठाण न [°स्थान] कारखाना (आचा)। °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] १ कर्मं-पुद्‍गलों का अवस्थान- समय (भग ६, ३) २ वि. संसारी जीव (भग १४, ६) °णिसेग पुं [°निषेक] कर्मं-पुद्‍गलों की रचना-विशेष (भग ६, ३)। °धारय पुं [°धारय] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास (अणु)। °परिसाडणा स्त्री [°परिशाटना] कर्मं-पुद्‍गलों का जीव-प्रदेशों से पृथक्करण (सूअ १, १)। °पुरिस पुं [°पुरुष] कर्म-प्रधान पुरुष — १ कारीगर, शिल्पी (सूअ १, ४, १) २ महारम्भ करनेवाले वासुदेव वगैरह राजा लोग (ठा ३, १ — पत्र ११३) °प्पवाय न [°प्रवाद] जैन ग्रन्थांश-विशेष, आठवाँ पूर्वं (सम २६)। °बंध पुं [°बन्ध] कर्मं-पुद्‍गलो का आत्मा में लगना, कर्मोँ से आत्मा का बन्धने (आव ३)। °भूमग वि [°भूमिक] कर्म-भूमि में उत्पन्‍न (पणण १)। °भूमि स्त्री [°भूमि] कर्मं-प्रधान भूमि, भरत क्षेत्र वगैरह (जी २३)। °भूमिग देखो °भूमग (पणण २३)। °भूमिय वि [°भूमिज] कर्मं-भूमिे में उत्पन्‍न (ठा ३, १ — पत्र ११४)। °मास पुं [°मास] श्रावण मास (जो १)। °मासग पुं [°माषक] मान-विशेष, पाँच गुञ्जा, पाँच रत्ती (अणु)।°य वि [°ज] १ कर्मं से उत्पन्‍न होनेवाला। १ कर्म-पुद्‍गलों का बना हुआ शरीर-विशेष, कार्मण शरीर (ठा २, १; ५, १) °या स्त्री [°जा] अभ्यास से उत्पन्‍न होनेवाली बुद्धि अनुभव (णंदि)। °लेस्सा स्त्री [°लेश्या] कर्म द्वारा होनेवाला जीव का परिणाम (भग १४, १)। °वग्गणा स्त्री [°वर्गणा] कर्म-रूप में परिणत होनेवाला पुद्‍गल-समूह (पंच)। °वाइ वि [°वादिन्] भाग्य को ही सब कुछ माननेवाला (राज)। °विवाग पुं [°विषाक] १ कर्म परिणाम, कर्मं-फल। २ कर्म-विपाक का प्रतिपादक ग्रन्थ (कम्म १, १) °संवच्छर पुं [°संवत्सर] लौकिक वर्षं (सुज्ज १०)। °साला स्त्री [°शाला] १ कारखाना। २ कुम्भकार का घटादि बनाने का स्थान (बृह २) °सिद्ध पुं [°सिद्ध] कारीगर, शिल्पी (आवम)। °जीव [°जीव] १ कारीगर। २ कारीगरी का कोई भी काम बतलाकर भिक्षादि प्राप्त करनेवाला साधु (ठा ५, १)। °दाण न [°दान] जिससे भारी पाप हो ऐसा व्यापार (भग ८, ५)। °यरिय पुं [°र्य] कर्म से आर्यं, निर्दोष, व्यापार करनेवाला (पणण १)। °वाइ देखो °वाइ (आचा)

कम्म :: वि [कार्मण] १ कर्म-सम्बन्धी, कर्म- जन्य, कर्मं-निर्मित, कर्मं-मय। २ न. कर्मं- पुद्‍गलों का ही बना हुआ एक अत्यन्त सूक्ष्म शरीर, जो भवान्तर में भी आत्मा के साथ ही रहता है (ठा १; कम्म ४) २ कर्मं- विशेष, कार्मण-शरीर का हेतु-भूत कर्म (कम्म २, २१) ३ कार्मण-शरीर का व्यापार (कम्म ३, १५; कम्म ४)

कम्मइय :: न [कर्मचित, कार्मण] ऊपर देखो (पउम १०२, ९८)।

कम्मंत :: पुं [दे. कर्मान्त] १ कर्मं-बन्धन का कारण (आचा; सूअ २, २) २ कर्मं-स्थान, कारखाना (दे २, ५२)

कम्मंत :: वि [कुर्वत्] १ हजामत करता हुआ। २ हजाम, नापित (कुमा)। °साला स्त्री [°शाला] जहाँ पर उस्तरा — बाल बनाने का छुरा आदि सजाया जाता हो वह स्थान (निचू ८)

कम्मक्कर :: देखो कम्म-कर (प्राकृ २६)।

कम्मग :: न [कर्मक, कार्मक, कार्मण] देखो कम्म = कार्मण (ठा २, २; पणण २१; (भग)।

कम्मण :: न [कार्मण] १ कर्मं-मय शरीर (दे २२) २ औषध, मन्त्र आदि के द्वारा मोहन, वशीकरण, उच्चाटन आदि कर्म (उप १३४ टी; स १०८)। °गारि वि [°कारिन्] कामण करनेवाला (सुर १, ९८)। °जोय पुं [°योग] कार्मंण-प्रयोग (णाया १, १४)

कम्मण :: न [भोजन] भोजन (कुमा)।

कम्ममाण :: देखो कम = कम्।

कम्मय :: देखो कम्मग (भग; पंच)।

कम्मव :: सक [उप + भुज्] उपभोग करना। कम्मवइ (हे ४, १११; षड्)।

कम्मवण :: न [उपभोग] उपभोग, काम में लाना (कुमा)।

कम्मस :: वि [कल्मष] १ मलिन। २ न. पाप (पाअ; हे २, ७९; प्रामा)

कम्मा :: स्त्री [कर्मन्] क्रिया, व्यापार (ठा ४, २ — पत्र २१०)।

कम्मार :: पुं [कर्मार] १ लोहार, लोहकार (विसे १५६८) २ ग्राम-विशेष (आचू १)

कम्मार, कम्मारग :: वि [कर्मकार, °क] १ नौकर, चाकर (स ५३७; ओघ ४, ९४ टी) २ कारीगर, शिल्पी (जीव ३)

कम्मारिया :: स्त्री [कर्मकारिका] स्त्री-नौकर, दासी (सुपा ६३०)।

कम्मि, कम्मिअ :: वि [कर्मिन्] कर्म करनेवाला, अभ्यासी; 'णवकम्मिएण उअ पामरेण देट्‍ ठूण पाउहारीओ। मोतव्वे जोत्तअपग्गहम्मि अवरासणी मुक्‍का'। (गा ६९४)। २ पाप कर्मं करनेवाला (सूअ १, ७; ९)

कम्मिया :: स्त्री [कर्मिका, कार्मिका] १ अभ्यास से उत्पन्‍न होनेवाला बुद्धि (णाया १, १) २ अक्षिण कर्म-विशेष, अवशिष्ट कर्म (भग)

कम्हल :: न [कश्‍मल] पाप (राज)।

कम्हा :: अ [कस्मात्] क्यों, किस कारण से ? (औप)।

कम्हार :: देखो कंभार (हे २, ७४)। °ज न [°ज] केसर, कंकुम (कुमा)।

कम्हिअ :: पुं [दे] माली, मालाकार (दे २, ८)।

कम्हीर :: देखो कंभार (मु्द्रा २४२; पि १२०; ३१२)।

कय :: पुं [कच] केश, बाल (हे १, १७७; कुमा)।

कय :: पुं [क्रय] खरीदना (सुपा ३४४)।

कय :: देखो कड = कृत (आचा; कुमा; प्रासू १५)। °उण्ण, °उन्न वि [°पुण्य] पुण्यशाली, भाग्यशाली (स ६०७; सुपा ६०६)। °क देखो °ग (पणह १, २)। °कज्ज वि [°काय] कृतार्थ, सफल-मनोरथ (णाया १, ८)। °करण वि [°करण] अभ्यासी, कृताभ्यास (बृह १, पणह १; ३)। °किञ्च वि [°कृत्य] कृतार्थ, सफल मनोरथ (सुपा २७)। °ग वि [°क] १ अपनी उत्पत्ति में दूसरे की अपेक्षा करनेवाला, प्रयत्‍न-जन्य (विसे १८३७; स ६५३)। पुं. दास-विशेष, गुलाम; 'भयगभर्त्त वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा' (निचू ९) ३ न. सुवर्णं, सोना (राज) °ग्ध वि [°ध्न] उपकार न माननेवाला, कृतघ्‍न (सुर २, ४४; सुपा ५८८)। °जाणुअ वि [°ज्ञायक] कृतज्ञ, उपकार को माननेवाला (पि ११८)। °ण्णु वि [°ज्ञ] उपकार को माननेवाला, किए हुए उपकार की कदर करनेवाला (धम्म २६)। °ण्णुया स्त्री [°ज्ञता] कृतज्ञता, एहसानमन्दी, निहारो मानना (उप पृ़ ८९)। °त्थ वि [°र्थ] कृतकृत्य, चरितार्थं, सफल- मनोरथ (प्रासू २३)। °नासि वि [°ना- शिन्] कृतघ्‍न (ओघ १६६)। °न्न, °न्‍नु देखो °ण्णु; 'जं कित्तिजलहिराया विवेयनय- मदिरं कयन्‍नगुरू' (सुपा ३०१; महा; सं ३३; श्रा २८)। °पंजलि वि [°प्राञ्जलि] कृताञ्जलि, नमस्कार के लिए जिसने हाथ ऊँचा किया हो वह (आव)। °पडिकइ स्त्री [°प्रतिकृति] १ प्रत्युपकार (पंचा १९) २ विनय-विशेष (वव १) °पडिकइया स्त्री [प्रतिकृतिता] १ प्रत्युपकार (णाया १, २) २ विनय का एक भेद (ठा ७) °बलिकम्म वि [°बलिकर्मन्] जिसने देवता की पूजा की है वह (भग २, ५; णाया १, १६ — पत्र २१०; तंदु)। °मंगला स्त्री [°मङ्गला] इस नाम की एक नगर (संथा)। °माल, °मालय वि [°माल, °क] १ जिसने माला बनाई हो वह। २ पुं. वृक्ष-विशेष, कनेर का गाछ; 'अंकोल्लबिल्लसल्लइकयमालतमाल- सालड्‍ढ' (उप १०३१ टी) ३ तमिस्रा- नामक गुफा का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३)। °लक्खण वि [°लक्षण] जिसने अपने शरीर चिन्ह को सफल किया हो वह (भग ९, ३३; णाया १, १)। °व वि [°वत्] जिसने किया हो वह (विसे १५५५)। °वणमाल — पिय पुं [°वनभालप्रिय] इस नाम का एक यक्ष (विपा २, १)। °वम्म पुं [°वर्मन्] नृप-विशेष, भगवान् विमलनाथ का पिता (सम १५१)। °वीरिय पुं [°वीर्य] कातँ- वोर्यं के पिता का नाम (सूअ १, ८)

कयं :: अ [कृतम्] अलम्, बस (उवर १४४)।

कयंगला :: स्त्री [कृतङ्गला] श्रावस्ती नगरी के समीप की एक नगरी (भग)।

कयंत :: पुं [कृतान्त] १ यम, मृत्यु, मरण (सुपा १९९; सुर २, ५) २ शास्त्र, सिद्धान्त; 'मरणंति कयं तं जं कयंतसिद्धं उ सपरहिअं' (सार्ध ११७; सुपा ११९) ३ रावण का इस नाम का सुभट (पउम ५६, ३१)। °मुह पुं [°मुख] रामचन्द्र के एक सेनापति का नाम (पउम ९४, ६२)। °वयण पुं [°वदन] राम ता एक सेनापति (पउम ९४, २०)

कयंध :: देखो कमंध (हे १, १३९; षड्)।

कयंब :: देखो कलंब (पणण १; हे १, २२२)।

कयंब :: पुं [कदम्ब] समूह, 'अप्पाणं पिव सर्व्वं जीवकयंबं च रक्खइ सयावि' (संबोध २०)।

कयंबिय :: वि [कदम्बित] अलंकृत, विभूषित (कप्प)।

कयंबुअ :: देखो कलंबुअ (कप्प)।

कयग :: वि [कृतक] प्रयत्‍न-जन्य (धर्मसं २६६; ४१४)।

कयग :: वि [क्रायक] खरीदनेवाला (वव १ टी)।

कयग :: पुं [कतक] १ वृक्ष-विशेष, निर्मली। २ न. कतक-फल, निर्मली-फल, पायपसारी; 'जह कयगमंजणाई जलवुट्ठीओ विसोहिंति' (विसे ५३६ टी)

कयज्ज :: वि [कदर्य] कंजूस, कृपण (राज)।

कयड्डि :: पुं [कपर्दिन्] इस नाम का एक यक्ष देवता (सुपा ५४२)।

कयण :: न [कदन] हिंसा मार डालना (हे १, २१७)।

कयत्थ :: सक [कदर्थय्] हैरान् करना, पीड़ा करना। कयत्थसे (धर्म ८ टी)। कबकृ. कयत्थिज्जंत (स ८)।

कयत्थण :: न [कदर्थन] हैरानी, हैरान् करना, पीड़न (सुपा १८०; महा)।

कयत्थणा :: स्त्री [कदर्थना] ऊपर देखो (स ४७२; सुर १५, १)।

कयत्थिय :: वि [कदर्थित] हैरान किया हुआ, पीड़ित (सुपा २२७; महा)।

कयन्न :: वि [कदन्न] खराब अन्‍न (धर्मवि १३९)।

कयम :: वि [कतम] बहुत में से कौन ? (स ४०२)।

कयर :: वि [कतर] दो में से कौन ? (हे ३, ५८)।

कयर :: पुं [क्रकर] ४ वृक्ष-विशेष, करीर, करील (स २५६) २ न. करीर का फल (पभा १४)

कयल :: पुं [कदल] १ कदली-वृक्ष, केला का गाछ। २ न. कदली फल, केला (हे १, १६७)

कयल :: न [दे] अलिञ्जर, पानी भरने का बड़ा गगरा, झंझर, मटका (दे २, ४)।

कयलि, °ली :: स्त्री [कदलि, °लि] केला का गाछ (मह; हे १, २२०)। °समागम पुं [°समागम] इस नाम का एक गाँव (आवम)। °हर न [°गृह] कदली-रतम्भ से बनाया हुआ घर (महा; सुर ३, १४; ११६)।

कयल्लय :: देखो कय = कृत (सुख २, ३)।

कयवर :: पुं [दे] १ कतवार, कूड़ा, मैला (णाया १, १; सुपा ३८; ८७; स २६४' भत्त ८६; पाअ; सण; पुप्फ ३१; निचू ७) २ विष्ठा (आव १)

कयवरुज्जिया :: स्त्री [दे. कचवरोज्झिका] कूड़ा साफ करनेवाली दासी (णाया १, ७ — पत्र ११७)।

कयवाउ :: पुं [कृकवाकु] कुक्कुट, कुकड़ा, मुर्गा (गउड)।

कयवाय :: पुं [कृकवाक] कुक्कुट, कुकड़ा, मुर्गा (पाअ)।

कयमण :: न [कदशन] खराब, भोजन (विवे १३६)।

कयसेहर :: पुं [दे] कुकड़ा, मुर्गा; 'कयसेहराण सुम्मइ आवालो झत्ति गोसम्मि' (वज्जा ७२)।

कया :: अ [कदा] कब, किस समय ? (ठा ३, ४; प्रासू १६९)।

कयाइ :: अ [कदापि] कभी भी, किसी समय भी (उवा)।

कयाइं, कयाइ, कयाई :: अ [कदाचित्] १ किसी समय, कभि (उवा; वसु); 'अह अन्नया कयाई' (सुपा ५०६; पि ७३) २ वितर्क-द्योतक अव्यय; 'नट्टे सि कयाइत्ति' (भग १५)

कयाण :: न [क्रयाणक] बेचने योग्य वस्तु, करियाना (उप पृ १२०)।

कयाणग :: /?/पुंन. देखो कयाण; 'देव निअवा- हणाण कयणगे किं न विक्केह' (सिरि ४७८)।

कयार :: पुं [दे] कतवार, कूड़ा, मैला (दे २, ११; भवि)।

कयावि :: देखो कयाइ = कदापि (प्रासू १३१)।

कयोग :: पुं [कयोग] नट-विशेष, बहुरूपिया (बृह ४)।

कर :: सक [कृ] करना, बनाना। करइ (हे ४, २३४)। भूका. कासी, काही, काहीअ, करिंसु; करेंसु, अकासि, अकासी (हे ४, १६२; कुमा; भग; कप्प)। भवि. काहिइ, काही, करिस्सइ, करिहिइ, काहँ, काहिमि (हे १, ५; पि ५३३; कुमा)। कर्मं. कज्जइ, करीइ, करिज्जइ (भग; हे ४, २५०)। वकृ. करंत, करिंत, करेंत, करेमाण (पि ५०९; रयण ७२; से २, १५; सुर २, २४०; उवा)। कवकृ. कज्जमाण, किरंत, कीरमाण (पि ५४७; कुमा; गा २७२; रयण ८९)। संकृ. करित्ता, करि- त्ताणं, करिदूण, काउं, काऊण, काऊणं, कट्‍टु, करिअ, किच्चा, कियाणं (कप्प; दस ३; षड्; कुमा; भग; अभि ४१; सूअ १, १, १; औप)। हेकृ. काउं, करेत्तए (कुमा, भग ८, २)। कृ. करणिज्ज, करणीअ, करि- अव्व, करेअव्व, कायव्व (दस १०; षड्; स २१; प्रासू १४८; कुमा)। प्रयो. करावेइ, करावेई (पि ५५३; ५५२)।

कर :: पुं [कर] एक महाग्रह (सुज्ज २०)।

कर :: पुं [कर] १ हस्त, हाथ (सुर १, ५४; प्रासू ५७) २ महसूल, चुंगी (उप ७६८ टी; सुर १, ५४) ३ किरण, अंशु (उप ७६८; टी; कुमा)। हाथी की सूँड़़ (कुमा) ५ करका, शिला-वृष्टि, ओला; 'करच्छडाझडि- यपक्खिउले' (पउम ९६, १५) °ग्गह पुं [°ग्रह] १ हाथ से ग्रहण करना; 'दइइ- करग्गहलुलिओ धम्मिल्लो' (गा ५४४) २ पाणि-ग्रहण, शादी (राज)| °य पुं [°ज] नख (काप्र १७२)। °रुह पुंन [°कररुह] १ नख (हे १, ३४) २ पुं. नृप-विशेष (पउम ७७, ८८)। °लाघव न [°लाघव] कला-विशेष, हस्त-लाघव (कप्पे)। °वंदण न [°वन्दन] वन्दन का एक दोष, एक प्रकार का शुल्क समझकर वन्दन करना (बृह ३)

करअडी, करअरी :: स्त्री [दे] स्थूल वस्त्र, मोटा कपड़ा (दे २, १६)।

करआ :: स्त्री [करका] करका, ओला, शिला- वृष्टि (अच्चु ९४)।

करइल्ली :: स्त्री [दे] शुष्क-वृक्ष, सूखा पेड़ (दे २, १७)।

करंक :: पुं [दे. करङ्क] १ भिक्षा-पात्र (दे २, ५५; गउड) २ अशोक-वृक्ष (दे २, ५५)

करंक :: पुंन [करङ्क] १ हड्डी, हाड़; 'करंकवच- यमीसणे मसाणम्मि' (सुपा १७५) २ अस्थि-पञ्जर, हाड़-पञ्जर (उप ७२८ टी) ३ पानदान, पान बगैरह रखने की छोटी पेटी; 'तंबोलकरंवाहिणिओ' (कप्पू) ४ हड्डियों का ढेर (सुर ९, २०३)

करंज :: सक [भञ्ज्] तोड़ना, फोड़ना, टुकड़ा करना। करंजइ (हे ४, १०६)।

करंज :: पुं [करञ्ज] वृक्ष-विशेष, करिञ्जा (पणण १; दे १, १३; गा १२१)।

करंज :: पुं [दे] शुष्क्-त्वक्, सूखी त्वचा (दे २, ८)।

करंजिअ :: वि [भग्न] तोड़ा हुआ (कुमा)।

करंड :: पुंन [करण्ड] वँशाकार हड्डी (तंदु ३५)।

करंड, करंडग, करंडय :: पुं [करण्ड, °क] १ करण्ड, डिब्बा, पेटिका (पणह १, ५; श्रा १४; ठा ४, ४)

करंडिया :: स्त्री [करण्डिका] छोटा डिब्बा (णाया १, ७, सुपा ४२८)।

करंडी :: स्त्री [करण्डी] १ डिब्बा, पेटिका (श्रा १४) २ कुंडी, पात्र-विशेष (उप ५६३)

करंडुय :: न [दे] पीठ के पास की हड्डी (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

करंत :: देखो कर = कृ।

करंब :: पुं [करम्ब] दही और भात का बना हुआ एक खाद्य द्रव्य, दध्योदन (पाअ; दे २, १४; सुपा १३९)।

करंबिय :: वि [करम्बित] व्याप्त, खचित (सुपा ३४; गउड)।

करकंट :: पुं [करकण्ट] इस नाम का एक परिव्राजक, तापस-विशेष (औप)।

करकंडु :: पुं [करकण्डु] एक जैन महर्षि (महा; पडि)।

करकचिय :: वि [क्रकचित] करवत आदि से फाड़ा हुआ (अणु १५४)।

करकड :: वि [दे. कर्कर कर्कट] १ कठिन, परुष (उवा)

करकड़ी :: स्त्री [दे. करकटी] चिथड़ा, निन्दनीय वस्त्र-विशेष, जो प्राचीन काल में वध्य पुरुष को पहनाया जाता था (विपा १, २ — पत्र २४)।

करकय :: पुं [क्रकच] करपत्र, करांत, आरा (पणण १, १)।

करकर :: पुं [करकर] 'कर-कर' आवाज (णाया १, ९)। °सुंठ पुंन [°शुण्ठ] तृण-विशेष (पणह १ — पत्र ४०)।

करकरिग :: पुं [करकिक] ग्रह-विशेष, ग्रहाधि- ष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८)।

करग :: देखो कारग = कारक (णंदि ५०)।

करग :: पुं [करक] १ करका, औला (श्रा २०; ओघ ३४३; जी ५) २ पानी की कलशी, जल-पात्र (अनु ५; श्रा १६; सुपा ३३९; ३६४)। देखो करय = करक।

करगय :: देखो करकय (स ६९९)।

करग्गह :: देखो कर-गह (सम्मत्त १७३)।

करघायल :: पुं [दे] किलाट, दूध की मलाई (दे २, २२)।

करच्छोडिया :: स्त्री [दे] ताली, ताल (सुख २, १५)।

करट्ट :: पुं [दे] अपवित्र अन्न को खानेवाला ब्राह्मण (मृच्छ २०७)।

करड :: पुं [करट] १ काक, कौआ (उर १, १४) २ हाथी का गण्ड-स्थल (सुपा १३६; पाअ) ३ वाद्य-विशेष (विक्र ८७) ४ कुसुम्भ-वृक्ष। ५ करीर-वृक्ष। ६ गिरगिट, सरट। ७ पाखंडी, नास्तिक। ८ श्राद्ध-विशेष (दे २, ५५ टी)

करड :: पुं [दे] १ व्याघ्र, शेर। २ वि. कबरा, चितकबरा (दे २, ५५)

करडा :: स्त्री [दे] लट्‍वा — १ एक प्रकार का करञ्ज वृक्ष। २ पक्षि विशेष, चटक। ३ भ्रमर, भौंरा। ४ वाद्य-विशेष (दे २, ५५)

करडि :: पुं [करटिन्] हाथी, हस्ती (सुर २, ६९; सुपा ५०; १३६)।

करडी :: स्त्री [दे. करटी] वाद्य-विशेष; 'अट्टसयं करडीणं' (जं २)।

करडुयभत्त :: न [दे] श्राद्ध-विशेष (पिंड)।

करण :: न [करण] १ इन्द्रिय (सुर ४, २३९; (कुमा) २ आसन, पद्मासन वगैरह (कुमा) ३ अधिकरण, आश्रय (कुमा) ४ कृति, क्रिया, विधान (ठा ३, ४; सुर ४, २४५) ५ कारक-विशेष, साधकतम (ठा ३, १; विसे १६३६) ६ उपाधि, उपकरण (ओघ ६६६) ७ न्यायालय, न्याय-स्थल (उप पृ ११७) ८ वीर्य-स्फुरण (ठा ३, १ — पत्र १०६) ९ ज्योतिः-शास्त्र-प्रसिद्ध बब-बालवादि करण (सुर २, १६५) १० निमित्त, प्रयो- जन (आचू १) ११ जेल, कैदखाना (भवि) १२ वि. जो किया जाय वह (ओघ २, भा ३) १३ करनेवाला (कुमा)। °हिवइ पुं [°धिपति] जेल का अध्यक्ष (भवि)। °साला स्त्री [°शाला] न्यायालय (दस° वृ° हारि° पत्र १०८, २)

करणया :: स्त्री [करणता] १ अनुष्ठान, क्रिया। २ संयमानुष्ठान (णाया १, १ — पत्र ५०)

करणसाला :: स्त्री [करणशाला] न्याय-मन्दिर (दस ३, १ टी)।

करणि :: स्त्री [दे] क्रिया, कर्मं (अणु १३७)।

करणि :: स्त्री [दे] १ रूप, आकार (दे २, ७; सुपा १०५; ४७५; पाअ) २ सादृश्य, समा- नता (अणु) ३ अनुकरण, नकल करना (गउड) ४ स्वीकार, अंगीकार (उप पृ ३८५)

करणिज्ज :: देखो कर = कृ।

करणिल्ल :: वि [दे] समान, सदृश; 'मयणजमल- तोणीरकरणिल्लेणं पयामथोरेणं निरंतरेणं च ऊरुजुयलेणं' (स ३१२); 'बंधुयकरणिल्लेण सहावारुणेण अहरेण' (स ३१२)।

करणीअ :: देखो कर = कृ।

करपत्त :: न [करपत्र] करपत्र, क्रकट (बिपा १, ६)।

करभ :: पुं [करभ] ऊँट, उष्ट्र (पणह १, १; गउड)।

करभी :: स्त्री [करभी] १ उष्ट्री, स्त्री-ऊँट, ऊँटनी (पिंड) २ धान्य भरने का बड़ा पात्र (बृह २; कस)। देखो करही।

करम :: वि [दे] क्षीण, दुर्बंल (दे २, ६; षड्)।

करमंद :: पुं [करमन्द] फलवाला वृक्ष-विशेष (गउड)।

करमद्द :: पुं [करमर्द] वृक्ष-विशेष, करौदा (पणण १ — पत्र ३२)।

करमरी :: स्त्री [दे] हठ-हृत स्त्री, बाँदी (दे २, १५; षड्; गा ५२७; पाअ)।

करय :: देखो करग (उप ७२८ टी; पणण १; कुमा; उवा ७)। ३ पक्षि-विशेष (पणह १, १)

करयंदी :: स्त्री [दे] मल्लिका, बेला का गाछ (दे २, १८)।

करयर :: अक [करकराय्] 'कर-कर' आवाज करना। वकृ. करयरंत (पउम ९४, ३५)।

कररुद्द :: पुं [कररुद्र] छन्द-विशेष (पिंग)।

करलि, करली :: स्त्री [कदलि, °ली] १ पताका। २ हरिण की एक जाति। ३ हाथी का एक आभरण (हे १, १२०; कुमा)

करव :: पुंन [दे. करक] जल-पात्र; 'पालिकरवाउ नीरं पाएउं पुच्छिओ' (सुपा २१४; ६३१)।

करवंदी :: स्त्री [करमन्दी] लता-विशेष, एक जात का एक पेड़ (दे, ८, ३५)।

करवत्तिआ :: स्त्री [करपात्रिका] जल-पात्र- विशेष (श्रा १२)।

करवाल :: पुं [करवाल] खड्‍ग, तलवार (पाअ; सुपा ६०)।

करविया :: स्त्री [दे. करकिका] पान पात्र- विशेष (सुपा ४८८)।

करवीर :: पुं [करवीर] वृक्ष विशेष, कनेर का गाछ (गउड)।

करसी :: [दे] देखो कडसी (हे २, १७४)।

करह :: पुं [करभ] १ ऊँट, उष्ट्र (पउम ५६, ४४; पाअ; कुमा; सुपा ४२७) २ सुगंधी द्रव्य-विशेष (गउड ६६८)

करहंच :: न [करहञ्च] छंद-विशेष (पिंग)।

करहाड :: पुं [करहाट] वृक्ष-विशेष, करहार, शिफा कन्द, मैनफल (गउड)।

करहाडय :: पुं [करहाटक] १ ऊपर देखो। २ देश-विशेष; 'करहाडयविसए धन्‍नऊरयसंनिवे- सम्मि' (स २५३)

करही :: देखो करभी। ३ इस नाम का एक छन्द (पिंग)। °रुह वि [°रोह] ऊँट सवार, उष्ट्री पर सवारी करनेवाला (महा)

कराइणी :: स्त्री [दे] शाल्मली वृक्ष, सेमर का पेड़ (दे २, १८)।

करादल्ल :: पुं [करादल्ल] स्वनाम ख्यात एक राजा (ती ३७)।

कराल :: वि [कराल] १ उन्‍नत, ऊँचा (अनु ५) २ दन्तुरित, जिसका दँत लम्बा और बाहर निकला हो वह (गउड) ३ भयानक, भयंकर (कप्पू) ४ फाड़नेवाला। ५ विकसित (से १०, ४१) ६ व्यवहित (से ११, ६९) ७ वि. इस नाम का विदेह-देश का राजा (धर्मं १)

कराल :: सक [करालय्] १ फाड़ना, छिद्र करना। २ बिकसित करना। करालेइ (से १०, ४१)

करालिअ :: वि [करालित] १ दन्दुरित, लम्बा और बहिर्निर्गंत दँतवाला (से १२, २०) २ व्यवहित किया हुआ, अन्तरालवाला बनाया हुआ (से ११, ९९) ३ भयंकर बनाया हुआ (कप्पू)

करली :: स्त्री [दे] दतवन, दाँत शुद्ध करने का काष्ठ (दे २, १२)

करावण :: न [कारण] करवाना, बनवाना, निर्मापन (सुपा ३३२; धम्म ८ टी)।

कराविय :: वि [कारित] कराया हुआ (स ५९४; महा)।

करि :: पुं [करिन्] हाथी, हस्ती (पाअ; प्रासू १६९)। °धरणट्टाण न [°धरणस्थान] हाथी को बाँधने का डोर — रज्जु, रस्सा (पाअ)। °नाह पुं [°नाथ] १ ऐरावण, इन्द्र का हाथी। २ उत्तम हस्ती (सुपा १०९)। °बंधण न [°बन्धन] हाथई पकड़ने का गर्त्त (पाअ)। °मयर पुं [°मकर] जल-हस्ती (पाअ)

करिअ :: पुं [करिक] एक महाग्रह (सुज्ज २०)।

करिअ, करिअव्व :: देखो कर = कृ।

करिआ :: स्त्री [दे] मदिरा परोसने का पात्र (दे २, १४)।

करिएव्वउं, करिएव्वउ :: (अप) देखो कायव्व (हे ४, ४३८; कुमा; पि २५४)।

करिंत :: देखो कर = कृ।

करिणिया, करिणी :: स्त्री [करिणी] हस्तिनी, हथिनी (महा; पउम ८०, ५३; सुपा ४)।

करिण :: पुं [करिन्] हाथी, हस्ती; 'रे दुट्ठ करिणाहम ! कुजाय! संभंतजुवइगहणेण' (उप ६ टी)।

करित्ता, करित्ताणं, करिदूण :: देखो कर = कृ।

करिमरी :: [दे] देखो करमरी (गा ५४; ५५)।

करिल्ल :: न [दे] १ वंशांकुर, बाँस का कोपड़, रेतीली भूमि में उत्पन्न होनेवाला वृक्ष-विशेष, जिसे ऊँट खाते हैं (दे २, १०) २ करैला, तरकारी-विशेष; 'थाणुपुरिसाइकुट्‍ठुप्पलाइसं- भियकरिल्लमंसाई' (विसे २९३) ३ अंकुर, कन्दल (अनु) ४ पुं. करील वृक्ष, करील (षड्) ५ वि. वंशांकुर के समान; 'हाहा ते चेय करिल्लपिययमाबाहुसयणदुल्ललियं' (गउड)

करिस :: देखो कड्‍ढ =कृष्। करिसंइ (हे ४, १८७)। वकृ. करिसंत (सुर१, २३०)। संकृ. करिसित्ता (पि ५८२)।

करिस :: पुं [कर्ष] १ आकर्षण, खींचाव। २ विलेखन, रेखा-करण। ३ मान-विशेष, पल का चौथा हिस्सा (जो १)

करिस :: देखो करीस (हे १, १०१; पाअ)।

करिसग :: वि [कर्षक] खेती करनेवाला, कृषी- वल (उत्त ३; आवम)।

करिसण :: न [कर्षण] १ खींचाव, आकर्षण। २ चासना, खेती करना। ३ कृषि, खेती (पणह १, १)

करिसय :: देखो करिसग (सुपा २, २६०; सुर २, ७७)।

करिसावण :: पुंन [कार्षाषण] सिक्का-विशेष (विसे ५०६; अणु)।

करिसिद :: (शौ) वि [कर्षित] १ आकर्षित। २ चास हुआ, खेती किया हुआ (हेका ३३१)

करिसिय :: वि [कृशित] दुर्बल किया हुआ (सूअ १, ३)।

करीर :: पुं [करीर] वृक्ष-विशेष, करीर, करील (उप ७२८ टी; श्रा १६; प्रासू ६२)।

करीस :: पुं [करीष] जलाने के लिए सुखाया हुआ गोबर, कंडा, गोइठा (हे १, १०१)।

करुण :: देखो कलुण (स्वप्‍न ५३; सुपा २१६); 'उज्झइ उयारभावं दक्खिणं करुणयं च आमुयइ' (गउड)।

करुणा :: स्त्री [करुणा] दया, दूसरे के दुःख को दूर करने की इच्छा (गउड; कुमा)।

करुणाइय :: वि [करुणायित] जिसपर करुणा की गई हो वह (गउड)।

करुणि :: वि [करुणिन्] करुणा करनेवाला, दयालु (सण)।

करे :: सक [कारय्] कराना। करेइ (प्राकृ ६०)।

करेअव्व, करेंत :: देखो कर = कृ।

करेडु :: पुं [दे] कृकलास; गिरगिट, सरट (दे २, ५)।

करेणु :: पुं [करेणु] १ हस्ती, हाथी। २ कनेर का गाछ; 'एसो करेणू' (हे २, ११६) ३ स्त्री. हस्तिनी हथिनी (हे २, ११६; णाया १, १; सुर ८, १३९)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] ब्रह्मदत्त चक्रनर्ती की एक स्त्री (उत्त १३)। °सेणा स्त्री [°सेना] देखो पूर्बोक्त अर्थ (उत्त १३)

करेणुआ :: स्त्री [करेणु] हस्तिनी, हथिनी (पाअ; महा)।

करेमाण, करेअव्व :: देखो कर = कृ।

करेवाहिय :: वि [करबाधित] राज-कर से पीड़ित, महसूल से हैरान (औप)।

करोड :: पुं [दे] १ नारिकेल, नारियल। २ काक, कौआ। ३ वृषभ, बैल (दे २, ५४)

करोडग :: पुं [दे] पात्र-विशेष, कटोरा (निचू १)।

करोडि :: स्त्री [करोटि] सिर की हड्डी (सुख, २, २९)।

करोडिय :: पुं [करोटिक] कापालिक, भिक्षुक- विशेष (णाया १, ८ — पत्र १५०)।

करोडिया, करोडी :: स्त्री [करोटिका, °टी] १ कुंड़ा, बड़े मुँह का एक पात्र, कांस्य- पात्र-विशेष (अणु; दे ७, १५; पाअ) २ स्थागिका, पानदान (णाया १, १ टी — पत्र ४३) ३ मिट्टी का एक तरह का पात्र (औप) ४ कपाल, भिक्षा-पात्र (णाया १, ८) ५ परोसने का एक उपकरण (दे, २, ३८)

करोडी :: स्त्री [दे] एक प्रकार की चींटी, क्षुद्र- जन्तु-विशेष (दे २, ३)।

करोडी :: स्त्री [दे] मुरदा, शव (कुप्र १०२)।

कल :: सक [कलय्] १ संख्या करना। २ आवाज करना। ३ जानना। ४ पहिचानना। ५ संबन्ध करना। कलह (हे ४, २५९; षड्)। कलयंति (विसे २०२९)। भवि. कलइस्सं (पि ५३३)। कर्मं. कलिज्जए (विसे २०२९) वकृ. कलयंत (सुपा ४)। कवकृ. कलिज्जंत (सुपा ९४)। संकृ. कलिऊण, कलिअ (महा; अभि १८२)। कृ. कलणिज्ज, कलणीअ (सुपा ६२२; पि ९१)

कल :: वि [कल] १ मधुर, मनोहर (पाअ) २ पुं. अव्यक्त मधुर शब्द (णाया १, १६) ३ कोलाहल, कलकल (चंद १९) ४ कर्दम, कीचड़, कांदो (भत्त १३०) ५ धान्य-विशेष, गोल चना, मटर (ठा ५, ३)। °कंठी स्त्री [°कण्ठी] कोकिला, कोयल (दे २, ३०; कप्पू)। °मंजुल वि [°मंञ्जुल] शब्द से मधुर (पाअ)। °यंठ पुं [°कण्ठ] कोकिल, कोयल (कुमा)। °यंठी देखो °कण्ठी (सुर ४, ४८)। °हंस पुं [°हंस] एक पक्षी, राज-हंस (कप्प; गउड)

कलंक :: पुं [कलङ्क] १ दाग, दोष (प्रासू ९४) २ लाञ्छन, चिह्न (कुमा; गउड)

कलंक :: सक [कलंङ्कय्] कलंकित करना। कलंकइ (भवि)। कृ. कलंकियव्व (सुपा ४४८; ५८१)।

कलंक :: पुं [दे] १ बाँस, वंश (दे २, ८) २ बाँस का बनाई हुई बाड़ (णाया १, १८)

कलंकण :: न [कलङ्कन] कलंकित करना (पव ८)।

कलंकल :: वि [कलङ्कल] असमंजस, अशुभ (औप; संथा)।

कलंकलीभागि :: वि [कलङ्कलीभागिन्] दुःख- व्याकुल (सूअ २, २, ८१; ८३)।

कलंकलीभाव :: पुं [कलङ्कलीभाव] १ दुःख से व्याकुलता। २ संसार-परिभ्रमण (आचा २, १६, १२)

कलंकवई :: स्त्री [दे] वृति, बाड़; काँटेो आदि से परिच्छन्नु स्थान-परिधि (दे २, २४)।

कलंकिअ :: वि [कलङ्कित] कलंकित, दागी (हे ४, ४३८)।

कलंकिल्ल :: वि [कलङ्किन्] कलंकवाला, दागी (काल; पि ५९५)।

कलंतर :: न [कलान्तर] व्याज, सूद (कुप्र ३५५)।

कलंद :: पुं [कलन्द] १ कुण्ड, कुण्डा, रंग- पात्र (उवा) २ जाति से आर्य एक प्रकार के मनुष्य (ठा ६ — पत्र ३५८)

कलंव :: पुं [कदम्ब] १ वृक्ष-विशेष, नीप, कदम की गाछ (हें १, ३०; २२२; गा ३७; कप्पू) °चीर न [°चीर] शस्त्र-विशेष (विपा १, ६ — पत्र ६६)। °चीरिया स्त्री [°चीरिका] तृण-विशेष, जिसका अग्र भाग अति तीक्ष्ण होता है (जीव ३)। °वालुया स्त्री [°वालूका] १ कदम्ब के पुष्प के आकारवाली धूली। २ नरक की नदी; 'कलंबवा- लुयाए दड्ढपुव्वो अणंतसो' (उत्त १९)

कलंबु :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, नालिका (दे २, ३)।

कलंबुअ :: न [कदम्बक] कदम्ब-वृक्ष का पुष्प, 'धाराहयकलंबुअं पिव समुस्ससियरोमकूवे' (कप्प)।

कलंबुआ :: [दे] देखो कलंबु (पणण १; सुज्ज ४)।

कलंबुआ :: स्त्री [कलम्बुका] १ कदम्ब पुष्प के समान मांस-गोलक। २ एक गाँव का नाम, जहाँ पर भगवान् महावीर को कालहस्तो ने सताया था (राज)

कलंबुगा :: स्त्री [कलम्बुका] जल में होनेवाली वनस्पति की एक जाति (सूअ २, ३, १८)।

कलंबुय :: पुं [कदम्बक] कदम्ब-वृक्ष (सुज्ज १९)।

कलकल :: पुं [कलकल] १ कोलहल, कल- कलरव (श्रा १४) २ व्यक्त शब्द, स्पष्ट आवाज (भग ९, ३३; राय) ३ चूना आदि से मिश्रित जल (विपा १, ६)

कलकल :: अक [कलकलाय्] 'कल कल आवाज करना। वकृ. कलकलंत, कलकलिंत, कलकलेंत, कलकलमाण (पणह १, १; ३; औप)।

कलकलिअ :: न [कलकलित] कोलाहल करना (दे ६, ३६)।

कलकलिअ :: वि [कलकलित] कलकल शब्द से युक्त (सिरि ६६४)।

कलक्ख :: देखो कडक्ख = कटाक्ष (गा ७०२)।

कलचुलि :: पुं [करचुलि] १ क्षत्रिय-विशेष। २ इस नाम का एक क्षत्रिय-वंश (पिंग)

कलण :: देखो करण; 'तोसुवि कलणेसु हासु सुहसंकप्पो' (अच्चु ८२)।

कलण :: न [कलन] १ शब्द, आवाज। २ संख्यान, गिनती (विसे २०२८) ३ धारण करना (सुपा २५) ४ जानता (सुपा १९) ५ प्राप्ति, ग्रहण; 'जुत्तं वा सयलकलाकलणं रयणयरसुअस्स' (श्रा १६)

कलणा :: स्त्री [कलना] १ कृति, करण; 'जुणणं कंदप्प-दर्प्पं णिहुवणकलणकँदलिल्लं कुणंता' (कप्पू) २ धारण करना, लगाना; 'मज्झणहे सिरिखंडपंककलणा' (कप्पू)

कलणिज्ज :: देखो कल = कलय्।

कलत्त :: न [कलत्र] स्त्री, भार्या (प्रासू ७६)।

कलधोय :: देखो कलहोय (औप)।

कलभ :: पुंस्त्री [कलभ] १ हाथी का बच्चा (णाया १, १) २ बच्चा, बालक; 'उवमासु अपज्जत्तेभकलभदंतावहासमूरुजअं' (हे १, ७)

कलमिआ :: स्त्री [कलमिका] हाथी का स्त्री- बच्चा (णाया १, १ — पत्र ६३)।

कलम :: पुं [दे. कलम] १ चोर, तस्कर (दे २, १०, पाअ; आचा) २ एक प्रकार का उत्तम चावल (उवा जं २; पाअ)

कलमल :: पुं [कलमल] १ पेट का मल (ठा ३, ३) २ वि. दुर्गन्धि, दुर्गन्धवाला (उप ८३३)

कलमल :: पुंन [दे] १ मदन-वेदन (संक्ष ४७) २ कंपन, थरथराहट, घृण; 'असुईए अट्ठीणं सोणियकिमिजालपूहमंसाणं। नामंपि चिंतियं खलु कलमलयं जणइ हिययम्मि' (मन ३३)

कलय :: देखो कालय (हे १, ६७)।

कलय :: पुं [दे] १ अर्जुन वृक्ष। २ सोनार, सुवर्णंकार (दे २, ५४)

कलय :: पुं [कलाद] सोनार, सुवर्णंकार (षड्)।

कलयंदि :: वि [दे] १ प्रसिद्ध, विख्यात। २ स्त्री. वृक्ष-विशेष, पाडरी, पाढल (दे २, ५८)

कलयज्जल :: न [दे] ओष्ठ-लेप, होठ पर लगाया जाता लेप-विशेष (भवि)।

कलयल :: देखो कलकल (हे २, २२०; पाअ; गा ५३५)।

कलयाविर :: वि [कलकलायितृ] कलकल करनेवाला (वज्जा ६६)।

कलरुद्दाणी :: स्त्री [कलरुद्राणी] इस नाम का छन्द (पिंग)।

कलल :: न [कलल] १ वीर्यं और शोणित का समुदाय, 'पाइज्जंति रडंता सुतत्ततवुतंबसंनिभं कललं' (पउम ११८, ८); 'वसकललसेंभ- सोणिय — ' (पउम ३९, ५६) २ गर्भ- वेष्टन चर्म। ३ गर्भं के अवयव रूप रेत-विकार (गउड) ४ काँदो, कीचड़, कर्दम (गउड)

कललिय :: वि [कललित] कर्दमित, कीचवाला किया हुआ; 'अणणोणणकलहविअलियकेसरकी- लालकललियद्दारा' (गउड)।

कलविंक :: पुं [कलविङ्क] पक्षि विशेष, चटक, गौरिया पक्षी, गौरैया (पाअ' गउड)।

कलवू :: स्त्री [दे] तुम्बी पात्र (दे २, १२; षड्)।

कलस :: पुं [कलश] १ कलश, घड़ा; (उवा; णाया १, १) २ स्कन्धक छन्द का एक भेद, छन्द-विशेष (पिंग)

कलस :: पुंन [कलश] १ एक देव विमान। (देवेन्द्र १४०) २ वाद्य-विशेष (राय ५० टी)

कलसिया :: स्त्री [कलशिका] १ छोटा घड़ा (अणु) २ वाद्य विशेष (आचू १)

कलह :: पुं [कलह] क्लेश, झगड़ा (उव; औप)।

कलह :: देखो कलभ (उव; पउम ७८, २८)।

कलह :: न [दे] तलवार की म्यान (दे २, ५; पाअ)।

कलह :: अक [कलहाय्] झगड़ा करना, लड़ाई करना। वकृ कलहंत, कलहमाण (पउम २८, ४; सुपा ११; २३३; ५४६)।

कलहण :: न [कलहन] झगड़ा करना (उव)।

कलहाअ :: देखो कलह = कलहाय्। कलहाएदि (शौ) (नाट)। वकृ. कलहाअंत (गा ६०)।

कलहाइअ :: वि [कलहायित] कलहवाला, झगड़ाखोर (पाअ)।

कलहि :: वि [कलहिन्] झगड़ाखोर (दे ५, ५४)।

कलहोय :: न [कलधौत] १ सुवर्णं, सोना (सण) २ चाँदी, रजत (गउड; पणह १, ४; पाअ)

कला :: स्त्री [कला] १ अंश, भाग, मात्रा (अनु ४) २ समय का सूक्ष्म भाग (विसे २०२८) ३ चन्द्रमा का सोलहवाँ हिस्सा (प्रासू ६५) ४ कला, विद्या, विज्ञान (कप्प; राय; प्रासू ११२) पुरुष-योग्य कला के मुख्य बहत्तर और स्त्री-योग्य कला के मुख्य चौसठ भेद हैं; 'बावत्तरी कला' (अणु); 'बावत्तरिकलापंडियावि पुरिसा' (प्रासू १२९); 'चउसट्ठिकलापंड़िया' (णाया १, ३)। पुरुष- कला ये हैं; — १ लिपि ज्ञान। २ अकगणित। ३ चित्र कला। ४ नाट्यकला। ५ गान, गाना। ६ वाद्य बजाना। ७ स्वर-गत (षड्‍ज, ऋषभ वगैरह स्वरों का ज्ञान) ८ पुष्कर गत (मृदगं, मुरजादि विशेष वाद्य का ज्ञान) ९ समताल (संगीत के ताल का ज्ञान) १० द्युत कला। ११ जनवाद (लोगों के साथ आलाप संलाप करने की विधि) १२ पांसे का खेल। १३ अष्टापद (चौपाट खलने की रीति) १४ शीघ्र-कवित्व। १५ दक-मृत्तिका (पृथक्करण- विद्या) १६ पाक कला। १७ पान-विधि (जलपान के गुण-दोष का ज्ञान) १८ वस्त्र- विधि (वस्त्र की सजावट की रीति) १९ विलेपन-विधि। २० शयन-विधि। २१ आर्या (छन्द-विशेष) बनाने की रीति। २२ प्रहेलिका (विनोद के लिए पहेलियां — गूढ़ाशय पद्य) २३ मागधिका (छन्द विशेष) २४ गाथा (छन्द विशेष) २५ गीति (छन्द-विशेष) २६ श्‍लोक (अनुष्‍टुप् छन्द) २७ हिरण्य युक्ति (चांदी के आभूषण की यथास्थान योजना) २८ सुवर्णं-युक्ति। २९ चूर्ण-युक्ति (सुगन्धि पदार्थ बनाने की रीति) ३० आमरण-विधि (आभूषणों की सजावट) ३१ तरुणी परिकर्मं (स्त्री को सुन्दर बनाने की रीति)। ३२ स्त्री-लक्षण (स्त्री के शुभाशुभ चिन्हों का परिज्ञान)। ३३ पुरुष-लक्षण। ३४ अश्‍व-लक्षण। ३५ गज-लक्षण। ३६ गो- लक्षण। ३७ कुक्कुट-लक्षण। ३८ छत्र- लक्षण। ३९ दण्ड-लक्षण। ४० असि लक्षण। ४१ मणि-लक्षण (रत्‍न-परिक्षा)। ४२ काकणि-लक्षण (रत्‍न विशेष की परीक्षा)। ४३ वास्तुविद्या (गृह बनाने और सजाने की रीति)। ४४ स्कन्धावार-मान (सैन्य परि- माण)। ४५ नगर-मान। ४६ चार (ग्रह-चार का परिज्ञान)। ४७ प्रतिचार (ग्रहों के वक्र- गमन वगैरह का ज्ञान, अथवा रोगप्रतीकार- ज्ञान)। ४८ व्यूह (सैन्य रचना)। ४९ प्रतिव्यूह (प्रतिद्वन्द्वि व्यूह)। ५० चक्र व्यूह। ५१ गरुड- व्यूह। ५२ शकट व्यूह। ५३ युद्ध (मल्ल-युद्ध)। ५४ निषुद्ध। ५५ युद्धातियुद्ध (खड्‍गादि शस्त्र में युद्ध)। ५६ दृष्टि-युद्ध। ५७ मुष्टि- युद्ध। ५८ बाहु-युद्ध। ५९ लता-युद्ध। ६० इषु-शास्त्र (दिव्यास्त्र-सूचक शास्त्र)। ६१ त्सरु-प्रपात (खड्‍ग-शिक्षा शास्त्र)। ६२ धनुर्वेद। ६३ हिरण्य-पाक (चाँधी बनाने की रीति)। ६४ सुदर्ण-पाक। ६५ सूत्रक्रीड़ा (एक ही सूत को अनेक प्रकार कर दिखाना)। ६६ वस्त्र-क्रीड़ा। ६७ नालिका खेल (द्युत- विशेष)। ६८ पत्र-च्छेद्य (अनेक पत्रों में अमुक पत्र का छेदन, हस्त-लाघव)। ६९ कट-च्छेद्य (कट की तरह क्रम से छेद करने का ज्ञान)। ७० सजीव (मरी हुई धातु को फिर असल बनाना)। ७१ निर्जीव (धातु- मारण, रसायण)। ७२ शकुन-रुत (शकुन- शास्त्र); (जं २ टी; सम ८३)। °गुरु पुं [°गुरु] कलाचार्य, विद्याध्यापक, शिक्षक (सुपा २५)। °यरिय पुं [°चार्य] देखो पूर्वोंक्त अर्थं (णाया १, १)। °वई स्त्री [°वती] १ कलावाली स्त्री। २ एक पतिव्रता स्त्री (उप ७३६; पडि)। °सवण्ण न [सवर्ण] संख्या-विशेष (ठा १०)।

कलाइआ :: स्त्री [कलाचिका] प्रकोष्ठ, कोनी से लेकर मणिबन्ध तक का हस्तावयव (पाअ)।

कलय :: पुं [कलाद] सोनार, सुवर्णंकार (षणह १, २; णाया) १, ८)।

कलाय :: पुं [कलाय] धान्य विशेष, गोल चना, मटर (ठा ३, ५; अनु ५)।

कलाव :: पुं [कलाप] १ समूह, जत्था (हे १, २३१)। २ मयूर-पिच्छ (सुपा ४८)। ३ शरधि, तूण, जिसमें बाण रक्खे जाते हैं (दे २, १५)। ४ कण्ठ का आभूषण (औप)।

कलावग :: न [कलापक] १ चार श्‍लोकों की एक वाक्यता। २ ग्रीवा का एक आभरण (पणह २, ५)।

कलावय :: न [कलापक] चार पद्यों की एक वाक्यता (सम्मत्त १८७)।

कलावि :: पुंस्त्री [कलापिन्] मयूर, मोर (उप ७२८ टी)।

कलि :: पुं [कलि] एक नरकावास (देवेन्द्र २६)।

कलि :: पुं [कलि] १ कलह, झगड़ा (कुमा; प्रासू ९४)। २ युग-विशेष, कलि युग (उप ८३३)। ३ पर्वत विशेष (ती ५४)। ४ प्रथम भेद (निचू १५)। ५ एक, अकेला (सूअ १, २, २; भग १८, ४)। ६ दुष्ट पुरुष; 'दुट्ठो कली' (पाअ)। °ओग, °ओय पुं [°ओज] युग्म-राशि विशेष (भग १८, ४; ठा ४, ३)। °ओयकडजुम्म पुं [°ओज- कृतयुग्म] युग्म-राशि-विशेष (भग ३४, १)। °ओयकलिओय पुं [°ओजकल्योज] युग्म-राशि विशेष (भग ३४, १)। °ओजते- ओय पुं [°ओजञ्योज] युग्म-राशि विशेष (भग ३४, १)। °ओयदावरजुम्म पुं [°ओजद्वापरयुग्म] युग्म-राशि-विशेष (भग ३४, १)। °कुंड न [°कुण्ड] तीर्थ- विशेष (ती १५)। °जुग न [°युग] कलि- युग (ती २१)।

कलि :: पुं [°दे] शत्रु, दुश्‍मन (दे २, २)।

कलिअ :: वि [कलित] १ युक्त, सहित (पणह १, २)। २ प्राप्त, गृहीत। ३ ज्ञात, विदित (दे २. ५६; पाअ)।

कलिअ :: देखो कल = कलय्।

कलिअ :: पुं [दे] १ नकुल, न्यौला, नेवला। २ वि. गर्वित, गर्व-युक्त (दे २, ५६)।

कलिआ :: स्त्री [दे] सखी, सहेली (दे २, ५६)।

कलिआ :: स्त्री [कलिका] अविकसित, पुष्प, कली (पाअ; गा ४४२)।

कलिंग :: पुं [कलिङ्ग] १ देश-विशेष, यह देश उड़ीसा से दक्षिण की ओर गोदावरी के मुहाने पर है (पउम ९८, ६७; ओघ ३० भा; प्रासू ६०)। २ कलिंग देश का राजा (पिंग)। कलिंग पुं [कलिङ्ग] भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र (ती १४)।

कलिंच :: देखो किलिंच (गा ७७०)।

कलिञ्ज :: पुं [कलिञ्ज] कट, चटाई (निचू १७)।

कलिंज :: न [दे] छोटी लकड़ी (दे २, ११)।

कलिंब :: पुंन [कलिम्ब] १ बाँस का पात्र- विशेष, 'कलिंबो बंसकप्परी' (गच्छ २)। २ सूखी लकड़ी (भग ८, ३)।

कलित्त :: न [कटित्र] कमर पर पहना जाता एक प्रकार का चर्म मय कबच (णाया १, १; औप)।

कलिम :: न [दे] कमल, पद्म (हे २, ९)।

कलिमल :: देखो कलमल = कलकल (तंदु ४१)।

कलिल :: वि [कलिल] गहन, घना, दुर्भेद्य (पाअ)।

कलुण :: वि [करुण] १ दीन, दया-जनक, कृपा-पात्र (हे १, २५४; प्रासू १२६; सुर २, २२९)। २ पुं. साहित्य शास्त्र-प्रसिद्ध नव रसों में एक रस (अणु)।

कलुणा :: देखो करुणा (राज)।

कलुस :: वि [कलुष] १ मलिन, अस्वच्छ; 'कलिकलुसं' (विपा १, १; पाअ)। २ न. पाप, दोष, मैल (स १३२; पाअ)।

कलुसिअ :: वि [कलुषित] पाप-ग्रस्त, मलिन (से १०, ५; गउड)।

कलुसीकय :: वि [कलुषीकृत] मलिन किया हुआ (उव)।

कलेर :: पुं [दे] १ कंकाल, अस्थि-पञ्जर। २ वि. कराल, भयानक (दे २, ५३)।

कलेवर :: न [कलेवर] शरीर, देह (आउ ४८; पिंग)।

कलेसुअ :: न [कलेसुक] तृण-विशेष (सूअ २, २)।

कलोवाइ :: स्त्री [दे] पात्र-विशेष (आचा २, १, २, १)।

कल्ल :: न [कल्य] १ कल, गया हुआ या आगामी दिन (पाअ; णाया १, १; दे ८, ६७)। २ शब्द, आवाज। ३ संख्या, गिनती (विसे ३४४२)। ४ आरोग्य, निरोगता; 'कल्लं किलारुग्गं' (विसे ३४३९)। ५ प्रभात, सुबह (अणु)। ६ वि. निरोग, रोग रहित (ठा ३, ३; दे ८; ६५)। ७ वि. दक्ष, चतुर (दे ८, ६५)।

कल्लवत्त :: पुं [कल्यवर्त्त] कलेवा, प्रातर्भोजन, जल-पान (स्वप्‍न ६०; नाट)।

कल्लवाल :: पुं [कल्यपाल] कलवार, शराब बेचनेवाला (मोह ९२)।

कल्लविअ :: वि [दे] १ तीमित, आर्द्रित। २ विस्तारित, फैलाया हुआ (दे २, १८)।

कल्ला :: स्त्री [दे] मद्य, दारू (दे २, २)।

कल्लाकल्लिं, कल्लाकल्लि :: अ [कल्याकल्य] १ प्रतिदिन, हर रोज (विपा १, ३; णाया १, १८)। २ प्रति-प्रभात, रोज सुबह (उवा; प्राप)।

कल्लाण :: न [कल्याण] सुवर्णं (सिरि ३७३)।

कल्लाण :: पुंन [कल्याण] १ सुख, मंगल, क्षेम; 'गुणट्ठाणपरिणामे संते जीवाण सयलकल्लाणा' (उप ६००; महा; प्रासू १४९)। २ निर्वाण, मोक्ष (विसे ३४४०)। ३ विवाह, लग्‍न (वसु)। ४ जिन भगवान् का पूर्व भव से च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-ज्ञान तथा मोक्ष- प्राप्‍ति रूप अवसर; 'पंच महाकल्लाणा सव्वेसिं जिणाण होंति णिअमेण' (पंचा ९)। ५ समृद्धि, वैभव (कप्प)। ६ वृक्ष-विशेष (पणण १)। ७ तप विशेष (पव)। ८ देश- विशेष। ९ नगर विशेष; 'कल्लाणदेसे कल्लाणनयरे संकरो णाम राया जिण भत्तो हुत्था' (ती ५१)। १० पुण्य, शुभ कर्म (आचा)। ११ वि. हित-कारक, सुख-कारक (जीव ३; उत्त ३)। °कडय न [कृतक] नगर-विशेष (ती)। °कारि वि [°कारिन्] सुखावह, मंगल-कारक (णाया १, १६)।

कल्लाणि :: वि [कल्याणिन्] कल्याण-प्राप्‍त (राज)।

कल्लाणी :: स्त्री [कल्याणी] १ कल्याण करनेवाली स्त्री (गउड)। २ दो वर्षं की बछिया (उत्तर १०३)।

कल्लाल :: पुं [कल्यपाल] कलाल, दारू बेचनेवाला (अणु; आव ६)।

कल्लि :: अ [कल्ये] कल दिन, कल को (गा ५०२)।

कल्लुग :: पुं [कल्लुक] द्वीन्द्रिय जीव-विशेष, कीट की एक जाति (जीव ३)।

कल्लुय :: पुं [कल्लुक] द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पणण १ — पत्र ४४)।

कल्लुरिया :: [दे] देखो कुल्लरिया (राज)।

कल्लेउय :: पुंन [दे] कलेवा, प्रातराश (ओघ ४९४ टी)।

कल्लोडय :: पुं [दे] दमनीय बैल, साँड़ (आचा २, ४, २)।

कल्लोडिआ :: [दे] देखो कल्होडी (नाट)।

कल्लोल :: पुं [कल्लोल] तरंग, ऊर्मि (औप; प्रासू १२७)।

कल्लोल :: वि [दे, कल्लोल] शत्रु, दुश्‍मन (दे २, २)।

कल्लोलिणी :: स्त्री [कल्लोलिनी] नदी (कप्पू)।

कल्हार :: न [कह्‍ लार] सफेह कमल (पणण १; दे २, ७६)।

कल्हिं :: देखो कल्लिं (गा ८०२)।

कल्होड :: पुं [दे] वत्सतर, बछड़ा (दे २, ९)।

कल्होडी :: स्त्री [दे] वत्सतरी, बछिया (दे २, ९)।

कव :: अक [कु] आवाज करना, शब्द करना। कवइ (हे ४, २३३)।

कवइय :: वि [कवचित] बख्तरवाला, वर्मित (पउम ७०, ७१; औप)।

कबंध :: देखो कमंध (पणह १, ३; महा; गउड)।

कवग्ग :: पुं [कवर्ग] 'क' से 'ड' तक के पाँच अक्षर (धर्मंवि १४)।

कवचिअ :: देखो कवइय (सिरि १३१९)।

कवचिया :: स्त्री [कवचिका] कलाचिका, प्रकोष्ठ (राज)।

कबट्टिअ :: वि [कदर्थित] पीड़ित, हैरान किया हुआ (हे १, १२४)।

कवड :: न [कपट] माया, छद्म, शाठ्य (पाअ; सुर ४, १९१)।

कवडि :: देखो कवड्डि; 'तो भणइ कवडिजक्खो अज्जवि तं पुच्छसे एयं' (सुपा ५४२)।

कवड्ड :: पुं [कपर्द] बड़ी, कौड़ी, बराटिका (दे ११०; जी १५)।

कवड्डि :: पुं [कपर्दिन्] १ यक्ष-विशेष (सुपा ५१२)। २ महादेव, शिव (कुमा)।

कवड्डिया :: स्त्री [कपर्दिका] कौड़ी, वराटिका (सुपा १४, ५४५)।

कवण :: वि [किम्] कौन ? (पउम ७२, ८; कुमा)।

कवय :: पुंन [कवच] कर्म, बख्तर (विपा १, २; पउम २४, ३१; पाअ)।

कवय :: न [दे] वनस्पति-विशेष, भूमिच्छत्र (दे २, ३)।

कबरी :: स्त्री [कबरी] केश-पाश, धम्मिल्ल (कुमा; वेणी १८३)।

कबल :: सक [कबलय्] ग्रसना, हड़प करना। कबलेइ (गउड)। कर्म. कवलिज्जइ (गउड)। कबकृ. कबलिज्जंत (सुपा ७०)। संकृ. कव- लिऊण (गउड)।

कवल :: पुं [कवल] कवल, ग्रास (पव ४; औप)।

कबलण :: न [कबलन] ग्रसन, भक्षण (काप्र १७०; सुपा ४७४)।

कवलिअ :: वि [कबलित] ग्रसित, भक्षित (पाअ; सुर २, १४९; सुपा १२१; ३१९)।

कबलिया :: स्त्री [दे] ज्ञान का एक उपकरण (आप ८)।

कवल्ल :: पुं [दे] लोहे का कड़ाह (सूअ १, ५, १, १५)।

कवल्लि, कबल्ली :: स्त्री [दे] पात्र-विशेष, गुड़ बगैरह पकाने का भाजन, कड़ाह, कराह; 'डज्झंतेण य गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभूयाए' (संथा १२०; विपा १, ३)।

कवाल, कवाड :: पुंन [कपाट] किवाड़, किवाड़ी (गउड; औप; गा ६२०)।

कबाल :: न [कपाल] १ खोपड़ी, सिर की हड्डी; 'करकलिअकवालो' (सुपा १५२)। २ घट- कर्पर, भिक्षा-पात्र (आचा; हे १, २३१)।

कवास :: पुं [दे] एक प्रकार का जूता, अर्धजङ्घा (दे २, ५)।

कवि :: देखो इक = कपि (सुर १, २४६)।

कवि :: पुं [कवि] १ कविता करनेवाला (सुर १, १८; सुपा ५६२; प्रासू ६३)। २ शुक्र, ग्रह-विशेष (सुपा ५६२)। °त्थ न [°त्व] कविता, कवित्त (सुर १, ४२)। देखो कइ = कवि।

कविअ :: न [कविक] लगमा (पाअ; सुपा २१३)।

कविंजल :: देखो कपिंजल (आचा २)।

कविकच्छु, कविगच्छु :: देखो कइकच्छु (पणह २, ५; श्रा १४; दे १, २९; जीव ३)।

कविट्ठ :: देखो कइत्थ (पणण १; दे ३, ४५)।

कविड :: न [दे] घर का पिछला आँगन (दे २, ९)।

कवित्थ :: देखो कइत्थ (उप ३०३१ टी)।

कवियच्छु :: देखो कइकच्छु (स २३६)।

कविल :: पुं [दे] श्वान, कुत्ता (दे २, ६; पाअ)।

कविल :: पुं [कपिल] १ वर्ण-विशेष, भूरा रंग, तामड़ा वर्णं (उवा २) २ पक्षि-विशेष (पणह १ ४) ३ सांख्य मत का प्रवर्त्तक मुनि-विशेष (आवम; औप) ४ एक ब्राह्मण महर्षि (उत्त ८) ५ इस नामका एक वासु- देव (णाया १, १६) ६ राहु करा पुद्रल- विशेष (सुज्ज २०) ७ वि. भूरा रंग का, मटमैला रंग का (पउम ६, ७०; से ७, २२)। °स्त्री [°] एक ब्राह्मणी का नाम (आचू)

कविलडोला :: स्त्री [दे. कपिलडोला] क्षुद्र जन्तु-विशेष, जिसको गुजराती में 'खडमाकड़ी' कहते हैं (जी १८)।

कविलास :: देखो कइलास; 'तेसुवि हवेज्ज कवि- लासमेरुगिरिसंनिभा कूडा' (उव)।

कविलिअ :: वि [कपिलित] कपिल रंगवाला किया हुआ, भूरे रंग से रंगित (गउड)।

कविल्लुय :: न [दे] पात्र-विशेष, कड़ाही (बृह ५)।

कविस :: पुं [कपिश] १ वर्णं-विशेष, काला- पीला रंग, बादामी, कृष्ण-पीत-मिश्रित वर्ण। २ वि. कपिश वर्णंवाला (पाअ; गउड)

कविस :: न [दे] दारू, मद्य, मदिरा (दे २, २)।

कविसा :: स्त्री [दे] अर्धजङ्घा, एक प्रकार का जूता (दे, २, ५)।

कविसायण :: पुंन [कपिशायन] मद्य-विशेष, गुड़ का दारू (पणण १७ — पत्र ५३२)।

कविसीसग, कविसीसय :: पुंन [कपिशीर्षक] प्राकार का अग्र-भाग (औप; णाया १, १; राय)।

कविहसिय :: पुंन [कपिहसित] आकाश में अकस्मात् होनेवाली भयंकर आवाज करती ज्वाला (अणु १२०)।

कवेल्लुय :: देखो कविल्लुय (ठा ८ — पत्र ४१७)।

कवोड :: देखो कवोय (पिंड २१७)।

कवोय :: पुं [कपोत] १ कबूतर, पारावत, परेवा (गउड; विपा १, ७) २ म्लेच्छ-देश-विशेष (पउम २७, ७) २ न कृष्णाण्ड, कोहड़ा (भग १५)

कवोल :: पुं [कपोल] गाल, गण्ड (सुर ३, १२०; हे ४, ३९५)।

कवोशण :: (मा) वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम (प्राकृ १)।

कव्व :: न [काव्य] १ कविता, कवित्व (ठा ४, ४; प्रासू १) २ पुं. ग्रह-विशेष, शुक्र (सुर ३, ५३) ३ वि. वर्णंनीय, श्‍लाघनीय (हे २, ७९)। °इत्त वि [°वत्] काव्यवाला (हे २, १५९)

कव्व :: न [क्रव्य] मांस (सुर ३, ५३)।

कव्वट्ठ :: पुं [दे] बालक, बच्चा (गच्छ ३, १६)।

कव्वड :: देखो कब्बड (भवि)।

कव्वा :: स्त्री [क्रव्या] माया (सूत्र° चू° पत्र. १७५ सूत्र गा° ३४५. अध्या° ९ गा° १)।

कव्वाड :: पुं [दे] दक्षिण हस्त, दाहिना हाथ (दे २, १०)।

कव्वाडिअ :: वि [दे] काँवर उठानेवाला, बहँगी से माल ढोनेवाला (कुप्र १२१)।

कव्वाय :: पुं [क्रव्याद] १ राक्षस, पिशाच (पउम ७, १०; दे २, १५; स २१३) २ वि. कच्चा मांस खानेवाला (पउम २२, ३५) ३ मांस खानेवाला (पाअ)

कव्वाल :: न [दे] १ कर्मं-स्थान, कार्यालय। २ गृह, घर(दे २, ५२)

कस :: सक [कष्] १ ठार मारना। २ कसना, घिसना। ३ मलिन करना। कसंति (पणण १३)। कवकृ. कसिज्जमाण (सुपा ६१५)

कस :: पुं [कश] चर्म-यष्टि, चाबुक (पणह १, ३; णाया १, २; स २८७)।

कस :: पुं [कष] १ कसौटी, कष-क्रिया; 'ताव- च्छेयकसेहिं सुद्धं पासइ सुवन्नमुप्पन्नं' (सुपा ३८६) २ कसौटी का पत्थर (पाअ) ३ वि. हिंसक, मार डालनेवाला, ठार मारने- वाला (ठा ४, १) ४ पुंन. संसार, भव, जगत् (उत्त ४) ५ न. कर्मं, कर्म.-पुद्रल; 'कम्मं कसं भवो वा कसं' (विसे १२२८)। °पट्ट, °वट्ट पुं [°पट्ट] कसौटी का पत्थर (अणु; गा ६२६; सुर २, २४)। °हि पुंस्त्री [°हि] सर्प करी एक जाती (पणण १)

कसई :: स्त्री [दे] फल विशेष, अरण्यचारी वनस्पति का फल (दे २, ६)।

कसट :: (पै) देखो कट्ठ = कष्ट (हे ४, ३१४; प्राप्र)।

कसट्ट :: पुं [दे] कतवार, कूड़ा (ओघ ५५७)।

कसण :: पुं [कृष्ण] १ वर्ण विशेष। २ वि. कृष्ण वर्णवाला, काला, श्याम (हे २, ७५; ११०; कुमा)। °पक्ख पुं [°पक्ष] कृष्ण- पक्ष, बदी पखवारा (पाअ)। °सार पुं [°सार] १ वृक्ष-विशेष। २ हरिण की एक जाति (नाट-मृच्छ ३)

कसण :: वि [कृत्स्‍न] सकल, सब, सम्पूर्णं (हें १, ७५)।

कसणसिअ :: पुं [दे] बलभद्र, वासुदेव का बड़ा भाई (दे २, २३)।

कसणिअ :: वि [कृष्णित] काला किया हुआ (पाअ)।

कसमीर :: देखो कम्हीर (पउम ९८, ६५)।

कसर :: पुं [दे] अवम बैल (दे २, ४; गा ७९५); 'नणु सीलभरुव्वहणे, तेवि हु सीयंति का (? क) सरुव्व' (पुप्फ ६३)।

कसर :: पुंन [दे. कसर] रोग-विशेष, कण्डू- विशेष; 'कच्छुख' (? क) सराभिभूआ खरतिक्ख- णक्खकंडूइअविकयतणू' (जं २ — पत्र १६५)।

कसरक्क :: पुंन [दे. कसरत्क] १ चवर्ण-शब्द, खाते समय जो शब्द होता है वह; 'खज्जइ न उ कसरक्केहिं' (हे ४, ४२३; कुमा) २ कुड्‍मलस, फूल की कली; 'ते गिरिसिहरा ते पीलु- पल्लवा ते करीरकसरक्का। लब्भंति करह ! मरुविलसियाइं कत्तो वणेत्थम्मि' (वज्जा ४६)

कसव्व :: न [दे] बाष्प, भाफ। २ वि. स्तोक, अल्प। ३ प्रचुर, व्याप्त (दे २, ५३) ४ आर्द्र, गीला; 'रुहिरकसव्वलंबियदीहरवणको- लवब्भनिउरंबं' (स ४३७; दे २, ५३) ५ कर्कंश, परुष; 'बूढोअयकयरवचुरणकलुस- पालासफलकसव्वाओ' (गउड)

कसा :: स्त्री [कशा, कसा] चर्मं-यष्टि, चाबुक, कोड़ा (विपा १, ६; सुपा ३४५)।

कसा :: देखो कासा (षड्)।

कसाइ :: वि [कषायिन्] १ कषाय रंगवाला। २ क्रोध-मान-माया-लोभ-वाला (पणण १८; आचा)

कसाइअ :: वि [कषायित] ऊपर देखो (गा ४८२; श्रा ३५; आचा)।

कसाय :: सक [कशाय्] ताड़न करना, मारना। भूका. कसाइत्था (आचा)।

कसाय :: पुं [कषाय] १ क्रोध, मान, माया और लोभ (विसे १२२९; दं ३) २ रस- विशेष, कषैला (ठा १) ३ वर्ण-विशेष, लाल-पीला रंग (उवा २२) ४ क्‍वाथ, काढ़ा। ५ वि. कषैला स्वादवाला। ६ कषाय रंगवाला। ७ सुगन्धी, खुशबूदार (हे २, १६०)

कसार :: [दे] देखो कंसार (भवि)।

कसि :: वि [कषिन्] मारनेवाला, विनाशक; 'चित्तारि एए कसिणो कसाया सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स' (सुख १, १)।

कसिअ :: न [कशिका] प्रतोद, चाबुक; 'अंघो मए भद्दवदीए कसिअं आढत्तं' (प्रयौ १०८)।

कसिआ :: /?/स्त्री. ऊपर देखो (सुर १३, १७०)।

कसिआ :: स्त्री [दे] फल-विशेष, अरण्यचारी नामक वनस्पति का फल (दे २, ६)।

कसिट :: (पै) देखो कट्ठ = कृष्ट (षड्)।

कसिण :: देखो कसण = कृष्ण, कृत्स्‍न (हे २, ७५; कुमा; पाअ; दे ४, १२)।

कसुमीरा :: स्त्री [कश्‍मीर] एक उत्तर भारतीय देश (प्राकृ २८; ३३)।

कसेरु, कसेरुय :: पुंन [कशेरु, °क] जलीय कन्द- विशेष (गउड; पणण १)।

कसेरुग :: पुंन [कशेरुक] जलमें होनेवाली वन- स्पति की एक जाति (सूअ २, ३, १८; आचा २, १, ८. ५)।

कसोति :: स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, 'महाहिं कसोर्ति भोच्चा कज्जं सधेंति' (सुज्ज १०, १७)।

कस्स :: पुं [दे] पङ्क, कर्दम, काँदो (दे २, २)।

कस्सय :: न [दे] प्राभृत, उपहार, भेंट (दे २, १२)।

कस्सव :: पुं [काश्यय] १ वंश-विशेष, 'कस्सव- वंसुत्तसो' (विक्र ६५) २ ऋषि-विशेष (अभि २६)

कह :: सक [कथय्] कहना, बोलना। कहइ (हे ४, २)। कर्मं. कत्थइ, कहिज्जइ (हे १, १८७; ४, २४९)। वकृ. कहंत, कहिंत, कहेमाण (रयण ७२; सुर ११, १४८)। ववकृ. कत्थंत, कहिज्जंत, कहिज्जमाण (राज; सुर १, ४४; गा १९८; सुर १४, ९४)। संकृ. कहिउं, कहिऊण (मह; काल)। कृ. कहणिज्ज, कहियव्व, कहेयव्व, कहणीय (सूअ १, १, १; सुर ४, १९२; सुपा ३१६; पणह २, ४; , सुर १२, १७०)।

कह :: सक [क्वथ्] क्वाथ करना, उबालना। कहइ (षड्)।

कह :: पुं [कफ] कफ, शरीरस्थ धातु-विशेष, बलगम (कुमा)।

कह :: देखो कहं (हे १, २९; कुमा; षड्)। °कहवि देखो कहं-कहंपि (गउड; उप ७२८ टी)। °वि देखो कहं-पि (प्रासू ११४; १४१)।

कहआ :: अ [कथंवा] विचर्कं और आश्रय अर्थ को बतलानेवाला अव्यय (से ७, ३४)।

कहं :: अ [कथम्] १ कैसे, किस तरह ? (स्वप्‍न ४५; कुमा) २ क्यों. किस लिए ? (हे १, २९, षड्; महा)। °कहंपि अ [°कथमपि] किसी तरह (गा १४९)। °कहा स्त्री [°कथा] राग-द्वेष को उत्पन्न करनेवाली कथा, विकथा (आचा)। °चि, °ची अ [°चित्] किसी तरह, किसी प्रकार से (श्रा १२; उप ५३० टी)। °पि अ [°अपि] किसी तरह (गउड)

कहकह :: पुं [कहकह] प्रमोद-कलकल, खुशी का शोर (ठा ३, १ — पत्र ११६; कप्प)।

कहकह :: अक [कहकहय्] खुशी का शोर मचाना। वकृ. कहकहिंत (पणह १, २)।

कहकहकह :: पुं [कहकहकह] खुशी का शोर (भग)।

कहक्कह :: पुं [कथंकथा] बातचीत (आचा २, १५, २)|

कहग :: वि [कथक] १ कहनेवाला, (सट्टि २३) २ पुं. कथा-कार (उप १०३१ टी)

कहण :: न [कथन] कथन, उक्ति (धर्म १)।

कहणा :: स्त्री [कथना] ऊपर देखो (अंत २; उप ४९७; ६९८)।

कहय :: देखो कहग (दे १, १४५)।

कहल्ल :: पुंन [दे] कर्पर, खप्पर (अंत १२)।

कहा :: स्त्री [कथा] कथा, वार्त्ता, हकीकत (सुर २; २५०; कुमा; स्वप्‍न ८३)।

कहाणग, कहाणय :: न [कथानक] १ कथा, वार्त्ता (श्रा १२; उप पृ ११९) २ प्रसंग, प्रस्ताव; 'कयं से नामं जालिणित्ति कहाणयविसेसेण' (स १३३; ५८८) ३ प्रयोजन, कार्यं; 'कहाणयविसेसेण समागओ पाडलावहं' (स ५८५)

कहाव :: सक [कथय्] कहलाना, बुलवाना। कहोवेइ (महा)।

कहावण :: पुं [कार्षापण्] सिक्का-विशेष (हे २, ७१; ९३; कुमा)।

कहाविअ :: वि [कथित] कहलाया हुआ (सुपा ६५, ४५७)।

कहि, कहिआ, कहिं :: अ [क्‍व, कुत्र] कहां, किस स्थान में ? (उवा; भग; नाट; कुमा; उव)।

कहित्तु :: वि [कथयितृ] कहनेवाला, भाषक (सम १५)।

कहिय :: वि [कथित] कथित, उक्त (उव; नाट)।

कहिया :: स्त्री [कथिका] कथा, कहानी (उप १०३१ टी)।

कहु :: (अप) अ [कुतः] कहां से ? (षड्)।

कहेड :: वि [दे] तरुण, जवान (दे २, १३)।

कहेत्तु :: देखो कहित्तु (ठा ४, २)।

काअइंची, काइंची :: स्त्री [काकचिञ्ची] गुञ्जा, घुंघची (प्राकृ ३०)।

काइअ :: वि [कायिक] शारीरिक; शरीर- संबन्धी (श्रा ३४; प्रामा)।

काइआ, काइगा :: स्त्री [कायिकी] १ शरीर-सबं- धी क्रिया, शरीर से निर्वृत ध्या- पार (ठा २, १; सम १०; नव १७) २ शौच- क्रिया (स ६४९) ३ मूत्र, पेशाब (ओघ २१९; उप पृ २७८)

काइंदी :: स्त्री [काकन्दी] इस नाम की एक नगरी, बिहार की एक नगरी (संथा ७६)।

काइणी :: स्त्री [दे] गुञ्जा, लाल रत्ती (दे २, २१)।

काई :: स्त्री [काकी] कौए की मादा (विपा १, ३)।

काउ :: स्त्री [कापोती] लेश्या विशेष, आत्मा का एक प्रकार का परिणाम (भग; आचा)। °लेसा स्त्री [°लेश्या] आत्म-परिणाम-विशेष (सम; ठा ३, १)। °लेस्स वि [°लेश्य] कापोत लेश्यावाला (पणण १७; भग)। °लेस्सा देखो °लेसा (पणण १७)।

काउं :: देखो कर = कृ।

काउंबर :: पुं [काकोदुम्बर] नीचे देखो (राज)।

काउंबरी :: स्त्री [काकोदुम्बरी] ओषधि-विशेष, 'निबंबउंबउंबरकाउंबरिबोरि — ' (उप १०३१ टी; पणण १)।

काउकाम :: वि [कर्त्तुकाम] करने को चाहनेवाला (ओघ ५३७)।

काउड्डावण :: न [कायोड्डावन] उच्चाटन, दूर- स्थित दूसरे के शरीर का आकर्षण करना (णाया १, १४)।

काउदर :: पुं [काकोदर] साँप की एक जाति़ (पणह १, १)।

काउमण :: वि [कर्त्तुमनस्] करने की चाहवाला (उव; उप पृ ७०; सं ९०)।

काउरिस :: पुं [कापुरुष] १ खराब आदमी, नीच पुरुष। २ कातर, डरपोक पुरुष (गउड; सुर ८, १५०; सुपा १६२)

काउल्ल :: पुं [दे] बक, बगुला (दे २, ९)।

काउसग्ग, काउस्सग्ग :: पुं [कायोत्सर्ग] १ शरीर पर के ममत्व ता त्याग (उत्त २९) २ कायिक-क्रिया का त्याग। ३ ध्यान के लिए शरीर की निश्‍चलता (पडि)|

काऊ :: देखो काउ (ठा १; कम्म ४, १३)।

काऊणं, काऊण :: देखो कर = कृ।

काओदर :: देखो काउदर (स्वप्‍न ९८)।

काओली :: स्त्री [काकोली] कन्द-विशेष, वन- स्पति-विशेष (पणण १)।

काओवग :: पुं [कायोपग] संसारी आत्मा (सूअ २, ६)।

काओसग्ग :: देखो काउसग्ग (भवि)।

काक :: पुं [काक] १ कौआ, वायस (अनु ३) २ ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८)। °जंघा स्त्री [°जङ्घा] वनस्पति-विशेष, चकसेनी, घुंघची (अनु ३)। देखो काग, काय = काक।

काकंदग :: पुं [काकन्दक] एक जैन महर्षि (कप्प)।

काकंदिय :: पुं [काकन्दिक] एक जैन महर्षि (कप्प)।

काकंदिया :: स्त्री [काकन्दिका] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

काकंदी :: देखो काइंदी (णाया १, ९; ठा ५, १)।

काकणि :: देखो कागणि (विपा १, २)।

काकलि :: देखो कागलि (ठा १० — पत्र ४७१)।

काग :: देखो काक (दे १, १०९; प्रासू ९०)। °तालसंजीवगनाय पुं [°तालसंजीवकन्या- य] काकतालीयन्याय (उप १४२ टी)। °तालिज्ज, °तालीअ न [°तालीय] जैसे कौए का अतर्कित आगमन और ताल-फल का अकस्माद् गिरना होता है ऐसा अवितर्कित संभव, अकस्मात् किसी कार्य का होना (आचा; दे ५, १५)। °थल न [°स्थल] देश-विशेष (दे २, २७)। °पाल पुं [°पाल] कुष्ठ- विशेष (राज)। °पिंडी स्त्री [°पिण्डी] अग्र-पिण्ड (आचा २, १, ६)। देखो काय = काक।

कागंदी :: देखो काइंदी (अनु २)।

कागणि :: स्त्री [दे] १ राज्य, 'असोगसिरिणो पुत्तो अंधो जायइ कागर्णि' (विसे ८६२) २ मांस का छोटा टुकड़ा (औप)

कागणी :: देखो कागिणी (श्रा २७; ठा ७)।

कागणी :: स्त्री [काकिणी] सवा गुँजा का एक बांट (अणु १५५)।

कागल :: पुं [काकल] ग्रीवास्थ उन्नत प्रदेश (अनु)।

कागलि, कागली :: स्त्री [काकलि, °ली] १ सूक्ष्म गीत-ध्वनि, स्वर-विशेष (सुपा ५९; उप पृ ३५) २ देवी-विशेष, भगवान् अभिनन्दन की शासन-देवी (पव २७)

कागिणी :: स्त्री [काकिणी] १ कौड़ी, कपर्दिका (उर ७, ३; उव; श्रा २८ टी) २ बीस कौड़ी के मूल्य का एक सिक्का (उप ५४५) ३ रत्‍न विशेष (सम २७; उप ९८६ टी)

कागी :: स्त्री [काकी] १ कौए की मादा (वा २ विद्या-विशेष (विसे २४५३)

काकोणंद :: पुं [काकोनन्द] इस नाम की एक म्लेच्छ जाति, 'मिच्छा कागोणंदा विक्खाया महियलम्मि ते सूरा' (पउम ३४, ४१)।

काठिण्ण :: न [काठिन्य] कठिनता (धर्मंसं ५१, ५४)।

काढ :: पुं [क्वाथ] काढ़ा (कुलक ११)।

काण :: वि [काण] काना, एकाक्ष (सुपा ६४३)।

काण :: वि [दे] १ सच्छिद्र, काना (आचा २, १, ८) २ चुराया हुआ। °क्कय पुं [°क्रय] चुराई हुई चीज को खरीदना (सुपा ३४३; ३४४)

काणच्छि, काणच्छिया :: स्त्री [दे] टेढ़ी नजर से देखना, कटाक्ष (दे २, २४; भवि); 'काणच्छियाओ य जहा विडो तहा करेइ' (आवम)।

काणण :: न [कानन] १ घन, जंगल (पाअ)। बगीचा, उपवन (अनु; औप)

काणत्थेव :: पुं [दे] विरल जल-वृष्टि, बूंद-बुँद बरसना (दे २, २९)।

काणद्धी :: स्त्री [दे] परिहास (दे २, २८)।

काणिक्का :: स्त्री [दे] बड़ी ईँट (बृह ३)।

काणिट्टा :: स्त्री [काणेष्टा] लोहे की इँट (वव ४)।

काणिआर :: देखो कण्णिआर (संक्षि १७)।

काणिय :: न [काण्य] आँख का रोग, 'काणिय झिम्मिअं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा' (आचा)। काणीण पुं [कानीन] कुँवारी कन्या से उत्पन्न पुत्र (भवि)।

कादंब :: देखो कायंब (पणह १, १)।

कादंबरी :: देखो कायंबरी (अभि १८८)।

कादूसण :: वि [कदूषण] आत्मा को दूषित करनेवाला। स्त्री. °णिया (भग ६, ५ — पत्र २६८)।

कापुरिस :: देखो काउरिस (णाया १, १)।

काम :: पुं [काम] रोग, बीमारी (दसनि २, १५)। °एव देखो कामदेव (कुप्र ४११)। °ग्धे न [°घ्न] आयंबिल तप (संबोध ५८)। °डहण पुं [°दहन] महादेव, शिव (वज्जा ९८)। °रुय देखो कामरूअ (धर्मवि ५९)। काम सक [कामय्] चाहना, वाञ्छना। कामेइ (पि ४९१)। कामेंति (गउड)। वकृ. कामेंत कामअमाण (गा २५९; अभि ९१)।

काम :: पुं [काम] १ इच्छा, कामना, अभिलाषा (उत्त १४; आचा; प्रासू ९९) २ सुन्दर शब्द, रूप वगैरह विषय (भग ७, ७; ठा ४, ४) ३ विषय का अभिलाष (कुमा) ४ मदन, कन्दर्प (कुमा; प्रासू १) ५ इन्द्रिय-प्रीति (धर्म १) ६ मैथुन (पणण २) ७ छन्द-विशेष (पिंग) °कंत न [°कान्त] देव-विमान-विशेष (जीव ३)। °कम न [°कम] लान्तक देव-लोक के इन्द्र का यात्रा-विमान (ठा १० — पत्र ४३७)। °काम वि [°काम] विषय की चाहवाला (पणण २)। °कामि वि [°कामिन्] विषयाभिलाषी (आचा)। °कृड न [°कूट] देव विमान-विशेष (जीव ३)। °गम वि [°गम] १ स्वेच्छाचारी, स्वैरी (जीव ३) २ न देखो °कम (जीव ३) °गामि स्त्री [°गामी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३५)। °गुण न [°गुण] १ मैथुन (पणह १, ४) २ शब्द-प्रमुख विषय (उत्त १४) °घड पुं [°घट] इप्सित चीज को देनेवाला दिव्य कलश (श्रा १४)। °जल न [°जल] स्‍नान-पीठ, जिसपर बैठकर स्‍नान किया जाता है वह पट्ट; 'सिणाणपीढं तु कामजलं' (निचू १३)। °जुग पुं [°युग] पक्षि-विशेष (जीव ३)। °ज्झय न [°ध्वज] देवविमान-विशेष (जीव ३)। °ज्झया स्त्री [°ध्वजा] इस नाम की एक वेश्या (विपा १, २)। °ट्ठि वा [°र्थिन्] विषयाभिलाषी (णाया १, १)। °डि्ढय पुं [°र्द्धिक] १ जैन साधुओं का एक गण (ठा ९ — पत्र ४५१) २ न. जैन मुनियों का एक कुल (राज) °णयर न [°नगर] विद्याधरों का एक नगर (इक)। °दाइणी स्त्री [°दायिनी] ईप्सित फल को देनेवाली विद्या-विशेष (पउम ७, १३५)। °दुहा स्त्री [°दुधा] कामधेनु (श्रा १६)। °देअ, °देव पुं [°देव] १ अनंग, कन्दर्पं (नाट; स्पप्‍न ५५) २ एक जैन श्रावक का नाम (उवा) °धेणु स्त्री [°धेनु] ईप्सित फल देनेवाली गौ (काल)। °पाल पुं [°पाल] १ देव-विशेष (दीव) २ बलदेव, हलायुध (पाअ)। °पिपासय वि [°पिपासक] विषयाभिलाषी (भग)। °पुर न [°पुर] इस नाम का एक विद्याधर-नगर (इक)। °प्पभ न [°प्रभ] देवविमान-विशेष (जीव ३)। °फास पुं [°स्पर्श] ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठाता देव-विशेष (सुज्ज २०)। °महावण न [°महावन] बनारस के समीप का एक चैत्य (भग १५)। °रुअ पुं [°रूप] देश- विशेष, जो आसाम में है (पिग)। °लेस्स [°लेश्य] देव-विमान-विशेष (जीव ३)। °वण्ण न [°वर्ण] एक देव-विमान (जीव ३)। °सत्थ न [°शास्त्र] रति-शास्त्र (धर्म २)। °समणुण्ण वि [°समनोज्ञ] कामा- सक्त, कामान्ध (आचा)। °सिंगार न [°श्रृङ्गार] देव-विमान-विशेष (जीव ३)। °सिष्ट न [°शिष्ट] एक देव-विमान-विशेष (जीव ३)। °वट्ट न [°वर्त] देव-विमान-विशेष (जीव ३)। °वसाइत्त स्त्री [°वशा- यिता] योगी का एक तरह का ऐश्‍वर्य, जिसमें योगी अपनी इच्छा के अनुसार सर्व पदार्थों का अपने चित्त में समावेश करता है (राज)। °संसा स्त्री [°शंसा] विषयाभिलाष (ठा ४, ४)

कामं :: अ [कामम्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवधारण (सूअ २, १) २ अनुमति, सम्मति (निचू १६) ३ अभ्युपगम, स्वीकार (सूअ २, ६) ४ अतिशय, अधिक्य (हे २, २१७)

कामंग :: न [कामाङ्गं] कन्दर्प का उत्तेजक स्‍नान वगैरह (सूअ २, २)।

कामंदुहा :: स्त्री [काकदुधा] कामधेनु, ईप्सित वस्तु को देनेवाली दिव्य गौ (पउम ८२, १४)।

कामंध :: [कामान्ध] विषयातुर, तीव्र कामी (प्रासू १७६)।

कामकिसोर :: पुं [दे] गर्दभ, गधा (दे २, ३०)।

कामग :: वि [कामक] १ अभिलाषणीय, वाञ्छ- नीय (पणह १, १) २ चाहनेवाला, इच्छुक (सूअ १, २, २)

कमण :: न [कामन] चाह, अभिलाष, 'पणइ- त्थिकामणेणं जीवा नरयम्मि वच्तंति' (महा)।

कामय :: देको कामग (उवा)।

कामि :: वि [कामिन्] विषयाभिलाषी (आचा; गउड)।

कामि :: वि [कामिन्] अभिलाषी (कुप्र १५४)।

कामिअ :: वि [कामित] वाञ्छित, अभिलाषित (सुपा २५५)।

कामिअ :: वि [कामिक] १ काम-सम्बन्धी, विषय-सम्बन्धी (भत्त १११) २ न. तीर्थं- विशेष (ती २८) ३ सरोवर-विशेष, जिसमें ईप्सित जन्म मिलता है (राज) ४ वि. इच्छा पूर्ण करनेवाला (स ३६०) ५ वि. इच्छुक, इच्छावाला, साभिलाष (विपा १, १)

कामिआ :: स्त्री [कामिका] इच्छा, अभिलाषा; 'अकामिआए चिणंति दुक्खं' (पणह १, ३)।

कामिंजुल :: पुं [कामिञ्जुल] पक्षि-विशेष (दे २, २९)।

कामिडि्ढ :: पुं [कामर्द्धि] एक जैन मुनि, आर्यं मुहस्तिसूरि का एक शिष्य (कप्प)।

कामिडि्ढय :: न [कामर्द्धिक] जैन मुनियों का एक कुल (कप्प)।

कामिणी :: स्त्री [कामिनी] कान्ता, स्त्री (सूपा ५)।

कामिय :: वि [कामित] यथेष्ठ, जितना चाहे उतना (पिंड २७२)।

कामुअ, कामुग :: वि [कामुक] कामी, विषयाभिलाषी (मै २५; महा)। °सत्थ न [°शास्त्र] काम-शास्त्र, रति-शास्त्र (उप ५३० टी)।

कामुत्तरवडिंसग :: न [कामोत्तरावतंसक] देवविमान-विशेष (जीव ३)।

काय :: पुं [काय] १ वनस्पति की एक जाति (सूअ २, ३, १६) २ एक महाग्रह (सुज्ज २०) ३ पुंन. जीव-निकाय, जीव-समूह; 'एयाइं कायाइं पवेदिताइं' (सूअ १, ७, २)। °मंत वि [°वत्] बड़ा शरीरवाला (सूअ २, १, १३)। °वह पुं [°वध] जीव-हिंसा; (श्रावक ३४९)

काय :: पुं [काय] १ शरीर, देह (ठा ३, १; कुमा) २ समूह, राशि (विसे ९००) ३ देश-विशेष (पणह १, १) ४ वि. उस देश में रहनेवाला (पणण १)। °गुत्त वि [°गुप्त] शरीर को वश में रखनेवाला (भग)। °गुत्ति स्त्री [°गुप्ति] शरीर को वश में रखना, जितेन्द्रियता (भग)।°जोअ, °जोग पुं [°योग] शरीर व्यापार, शारीरिक क्रिया (भग)। °जोगि वि [°योगिन्] शरीर-जन्य क्रियावाला (भग)। °ट्ठिइ स्त्री [°स्थिति] मर कर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होकर रहना (ठा २, ३)। °णिरोह पुं [°निरोध] शरीर-व्यापार का परित्याग (आव ४)। °तिगिच्छा स्त्री [°चिकित्सा] १ शरीर- रोग की प्रतिक्रिया। २ उसका प्रतिपादक शास्त्र (विपा १, ८)। °भवत्थ वि [°भवस्थ] माता के उदर में स्थित (भग)। °वंझ पुं [वन्ध्य] ग्रह-विशेष (राज)। °समिअ वि [°समित] शरीर की निर्दोष प्रवृत्ति करनेवाला (भग)। °समिइ स्त्री [°समिति] शरीर की निर्दोष प्रवृत्ति (ठा ८)

काय :: पुं [काक] १ कौआ, वायस (उप पृ २३; हेंका १४८; वा २६) २ वनस्पति- विशेष, काला उम्वर (पणण १ — पत्र ३५)। देखो काक, काग।

काय :: पुं [काच] काँच, शीशा (महा; आचा)।

काय :: पुं [दे] १ काँवर, बहँगी, बोझ ढोने के लिए तराजुनुमा एक वस्तु, इसमें दोनों ओर सिकहर लटकाये जाते हैं (णाया १, ८ टी — पत्र १५२)। °कोडिय पुं [°कोटिक] कांवर से भार ढोनेवाला (णाया १, ८ टी)। देखो काव।

काय :: पुं [दे] १ लक्ष्य, वेध्य, निशाना। २ उपमान, जिस पदार्थ की उपमा दी जाय वह (दे २, २६)

कायंचुल :: पुं [दे] कामिञ्जुल, जल-पक्षी- विशेष (दे २, २९)।

कायंदी :: स्त्री [दे] परिहास, उपहास (दे २, २८)।

कायंदी :: देखो काइंदी (स ६)।

कायंधुअ :: पुं [दे] कामिञ्जुल, जल-पक्षी विशेष (दे २, २९)।

कायंब, कायंबग :: पुं [कादम्ब, °क] १ हंस-पक्षी (पाअ; कप्प) २ गन्धर्व-विशेष। ३ कदम्ब-वृक्ष (राज) ४ वि. कदम्बृ-वृक्ष- सम्बन्धी; 'कायंबपुप्फोगोलयमसूरअइमुत्तयस्स पुप्फं व' (पुप्फ २६८)

कायंवर :: न [कादम्बर] मद्य-विशेष, गुड़ का दारू; 'कायंबरपसन्ना' (पउम १०२, १२२)।

कायंबरी :: स्त्री [कादम्बरी] एक गुहा का नाम (कुप्र ९३)।

कायंबरी :: स्त्री [कादम्बरी] १ मदिरा, दारू (पाअ; पउम ११३, १०) २ अटवी-विशेष (स ५५१)

कायक :: न [दे. कायक] हरा रंग का रूई से बना हुआ वस्त्र (आचा २, ५, १)।

कायत्थ :: पुं [कायस्थ] जाति-विशेष, कायथ जाति, कायस्य नाम से प्रसिद्ध जाति, लेखक, लिखने का काम करनेवाली मनुष्य-जाति (मुद्रा ७९; मृच्छ ११७)।

कायपिउच्छा, कायपिउला :: स्त्री [दे] कोकिला, कोयल, पिकी (दे २, ३०; षड्)।

कायर :: वि [कातर] अधीर, डरपोक (णाया १, १; प्रासू ५८)।

कायर :: वि [दे] प्रिय, स्‍नेह-पात्र (दे २, ५८)।

कायरिय :: वि [कातर] १ डरपोक, भयभीत, अधीर; 'धीरणवि मरियव्वं कायरिएणावि अवस्समरियव्वं' (प्रासू १०९) २ पुं. गोशालक, का एक भक्त (भग ८, ५)

कायरिया :: स्त्री [कातरिका] माया, कपट (सूअ १, २, १)।

कायल :: पुं [दे] १ काक, कौआ (दे २, ५८; पाअ) २ वि. प्रिय, स्‍नेह-पात्र (दे २, ५८)

कायलि :: देखो कागलि (नाट — मृच्छ ९२)।

कायवंझ :: [कायवन्ध्य] ग्रह-विशेष, ग्रहा- धिष्ठायक देव-विशेष (राज)।

कायव्व :: देखो कर = कृ।

कायह :: वि [कायह] देश-विदेश में बना हुआ (वस्त्र); (आचा २, ५, १, ७)।

काया :: स्त्री [काया] शरीर, देह (प्रासू ११२)।

कार :: सक [कारय्] करवाना, बनवाना। कारेइ, कारेह (पि ४७२; सुपा ११३)। भूका. कारेत्था (पि ५१७)। वकृ. कारयतं (सुर १६, १०); कारेमाण (कप्प)। कबकृ. कारिज्जंत (सुपा ५७)। संकृ. कारिऊण (पि ५८४)। कृ. कारेयव्व (पंचा ९)।

कार :: वि [दे] कट्ठ, कड़वा, तीता (दे २, २६)।

कार :: /?/पुंन. देखो कारा = कारा (स ६११; णाया १, १)।

कार :: पुं [कार] १ क्रिया, कृति व्यापार (ठा १०) २ रूप, आकृति। ३ संघ का मध्य भाग (वव ३)

°कार :: वि [°कार] करनेवाला (पउम १७, ७)।

कारंकड :: वि [दे] परुष, कठिन (दे २, ३०)।

कारंड, कारडंग, कारंजव :: पुं [कारण्डक, °क] पक्षि-विशेष; 'हंस- कारडंवचक्कवाओवसोभियं' (भवि औप; स ६०१; णाया १, १; पणह १, १; विक्र ४१)।

कारग :: वि [कारक] १ करनेवाला (पउम ८२, ७९; उप पृ २१५) २ करानेवाला (श्रा ६; विसे) ३ न. कर्ता, कर्म वगैरह व्याकरण प्रसिद्ध कारक (विसे ३३८४) ४ कारण, हेतु; 'कारणं ति वा कारगं ति वा साहारणं ति वा एगट्ठा' (आचू १) ५ उदाहरण, दृष्टान्त (ओघ १९ भा) ६ पुंन. सम्यकत्व-विशेष, शास्त्रानुसार शुद्ध क्रिया; 'जं जह भणियं तुमए तं तह करणम्मि कारगो होइ' (सम्य १४)

कारण :: न [कारण] १ हेतु, निमित्त (विसे २०९८; स्वप्‍न १७) २ प्रयोजन (आचा)। ३ अपवाद (कप्प)

कारणिज्ज :: वि [कारणीय] प्रयोजनीय (स ३२९)।

कारणिय :: वि [कारणिक] १ प्रयोजन से किया जाता (उवर १०८) २ कारण से प्रवृत्त (वव २)। ३ पुं. न्याय-कर्ता, न्यायाधीश (सुपा ११८)

कारय :: देखो कारग (श्रा १६; विसे ३४२०)।

कारव :: सक [कारय्] करवाना, बनवाना। कारवेइ (उव)। वकृ. कारविंत (सुपा ६३२; पुप्फ ४७)। संकृ. कारवित्ता (कप्प)।

कारवण :: न [कारण] निर्मापन, बनवाना (राज)।

कारवस :: पुं [कारवश] देश-विशेष (भवि)।

कारवाहिय :: वि [कारबाधित] देखो करे- वाहिय (औप)।

कारविय :: वि [कारित] कराया हुआ (सुर १, २२९)।

कारह :: वि [कारभ] करभ-सम्बन्धी (गउड)।

कारा :: स्त्री [कारा] कैदखाना (दे २, ९०; पाअ)। °गार पुंन [°गार] कैदखाना, जेल (सुपा १२२; सार्ध ५२)। °घर न [°गृह] कैदखाना (अच्चु ८३)। °मंदिर न [°मन्दिर] कैदखाना, जेलखाना (कप्पू)।

कारा :: स्त्री [दे] लेखा, रेखा (दे २, २६)।

कारायणी :: स्त्री [दे] शाल्मलि-वृक्ष, सेमर का पेड़ (दे २, १८)।

काराव :: देखो कारव। कारावेइ (पि ५५२)। भवि. काराविस्सं (पि ५२८)।

कारावण :: देखो कारावण (पणह १, ३; उप ४०९)।

कारावय :: वि [कारक] करानेवाला, विधायक (स ५५७)।

काराविय :: वि [कारित] करवाया हुआ, बनवाया हुआ (विसे १०१९; सुर ३, २४; स १९३)।

कारि :: वि [कारिन्] कर्ता, करनेवाला; 'एयस्स कारिणी बालिसत्तमारोविया जेण' (उव ५९७ टी); 'एयअणत्थस्स कारिणी अहयं' (सुर ८, ५९)।

कारिका :: देखो कारिया (तंदु ४६)।

कारिम :: वि [दे] कृत्रिम, बनावटी, नकली (दे २, २७; गा ४५७; षड्; उप ७२८ टी; स ११९; प्रासू २०)।

कारिय :: देखो कज्ज = कार्यं (सूअ १, २, ३, १०; दस ६, ६५)।

कारिय :: वि [कारित] कराया हुआ, बनवाया हुआ (पणह २, ५)। कार्यं (सूत्र गा १५१)।

कारियल्लई :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, करैला का गाछ (पणण १ — पत्र ३३)।

कारिया :: स्त्री [कारिका] करनेवाली, कर्त्री (उवा)।

कारिल्ल :: देखो कारि (संबोध ३८)।

कारिल्ली :: स्त्री [दे] वल्ली विशेष, करैला का गाछ (सूक्त ९१)।

कारीस :: पुं [कारीष] गोइठा की अग्‍नि, कंडा की आग (उत्त १२)।

कारु :: पुं [कारु] १ कारीगर, शिल्पी (पाअ; प्रासू ८०) २ नव प्रकार के कारु चर्मंकर आदि।

कारुइज्ज :: वि [कारुकीय] कारीगर से सम्बन्ध रखनेवाला (पणह १, २)।

कारुणिय :: वि [कारुणिक] दयालु, कृपालु (ठा ४, २; सण)।

कारुण्ण, कारुन्न :: न [कारुण्य] दया, करुणा; (महा उप ७२८ टी)।

कारेमाण, कारेयव्व :: देखो कार = कारय्।

कारेल्लय :: न [दे] करैला, तरकारी-विशेष (अनु ६)।

कारोडिय :: पुं [कारोटिक] १ कापालिक, भिक्षुक-विशेष। २ ताम्बुल-वाहक, स्थगीधर (औप)

काल :: न [दे] तमिस्त्र, अन्धकार (दे २, २६ षड्)।

काल :: पुं [काल] १ समय वक्त (जी ४९) २ मृत्यु, मरण (विसे २०६७; प्रासू ११२) ३ प्रस्ताव, प्रसंग अवसर (विसे २०६७) ४ विलम्ब, देरी (स्वप्‍न ६१) ५ उमर, वय (स्वप्‍न ४२)| ६ ऋतु (स्वप्‍न ४२) ७ ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ७८) ८ ज्योतिः-शास्त्र प्रसिद्ध एक कुयोग (गण १९) ९ सातवीं नरक- पृथ्वी का एक नरकावास (ठा ५, ३ — पत्र ३४१; सम ५८) १० नरक के जीवों को दुःख देनेवाले परमाधार्मिक देवों की एक जाति (सम २८) ११ वैलम्ब इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८) १२ प्रभञ्जन इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९८) १३ इन्द्र-विशेष, पिशाच- निकाय का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३ — पत्र ८५) १४ पूर्वीय लवण समुद्र के पाताल-कलशों का अधिष्ठाता देव (ठा ४, २ — पत्र २२६) १५ राजा श्रेंणिक का एक पुत्र (निर १, १) १६ इस नाम का एक गृहपति (णाया २, १) १७ अभाव (बृह ४) १८ पिशाच देवों की एक जाति (पणण १) १९ निधि-विशेष (ठा ९ — पत्र ४४९) २० वर्णं-विशेष, श्याम- वर्ण (पणण २) २१ न. देव-विमान-विशेष (सम ३५) २२ 'निरयावली' सूत्र का एक अध्ययन (निर १, १) २३ काली-देवी का सिंहासन (णाया २) २४ वि. कृष्ण, काला रंग का (सुर २, ५) °कंखि वि [°काङ्क्षिन्] १ समय की अपेक्षा करनेवाला (आचा) २ अवसर का ज्ञाता (उत्त ६) °कप्प पुं [°कल्प] १ समय-सम्बन्धी शास्त्रीय विधान। २ उसका प्रतिपादक शास्त्र (पंचभा) °काल पुं [°काल] मृत्यु-समय (विसे २०६६)। °कूड न [°कूट] उत्कट विष-विशेष (सुपा २३८)। °क्खेव पुं [°क्षेप] विलम्ब, देरी (से १३, ४२)। °गय वि [°गत] मृत्यु-प्राप्‍त, मृत (णाया १, १; महा)। °चक्क न [°चक्र] १ वीस सागरोपम परिमित समय (णंदि) २ एक भयंकर शस्त्र; 'जाहे एवमवि न सक्कइ ताहे कालचक्कं विउव्वइ' (आवम) °चूला स्त्री [°चूडा] अधिक-मास वगैरह का अधिक समय (निचू १)। °ण्णु वि [°ज्ञ] अवसर का जानकार (उप १७९ टी; आचा)। °दट्ठ वि [°दष्ट] मौत से मरा हुआ (उप ७२८ टी)। °देव पुं [°देव] देव-विशेष (दीव)। °धम्म पुं [°धर्म] मृत्यु, मरण (णाया १, १; विपा १, २)। °न्न, °न्‍नु देखो °ण्णु (पि २७६; सुपा १०९)। °परिपाय पुं [°पर्याय] मृत्यु-समय (आचा)। °परिहीण न [°परिहीन] विलम्ब, देरी (राय)। °पाल पुं [°पाल] देव-विशेष, धरणेन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)। °पास पुं [°पाश] ज्योति-शास्त्र-प्रसिद्ध एक कुयोग (गण १८)। °पिट्ठ, °पुट्ठ पुंन [°पृष्ठ] १ धनुष। २ कर्णं का धनुष। ३ काला हरिण। ४ कौञ्च पक्षी (पि ५३)। °पुरिस पुं [°पुरुष] जो पुंवेद कर्म का अनुभव करता हो वह (सूअ १, ४, १, २ टी)। °प्पभ पुं [°प्रभ] इस नाम का एक पर्वत (ठा १०)। °फोडय पुंस्त्री [°स्फोटक] प्राणाहर फोड़ा। स्त्री. °डिया (रंभा)। °मास पुं [°मास] मृत्यु-समय; 'कालमासे कालं किच्चा' (विपा १, १; २; भग ७, ९)। °मासिणी स्त्री [°मासिनी] गर्भिणी, गुर्विणी (दस ५, १)। °मिग पुं [°मृग] कृष्ण मृग की एक जाति (जं २)। °रत्ति स्त्री [°रात्रि] प्रलय-रात्रि, प्रलय-काल (गउड)। °वडिसग न [°वितंसक] देव- विमान-विशेष, काली देवी का विमान (णाया २)। °वाइ वि [°वादिन्] जगत् को कालकृत माननेवाला, समय को ही सब कुछ माननेवाला (णंदि)। °वासि पुं [°वर्षिन्] अवसर पर बरसनेवाला मेघ (ठा ४, ३ — पत्र २६०)। °संदीव पुं [°संदीप] असुर-विशेष, त्रिपुरासुर (आक)। °समय पुं [°समय] समय, वक्त (सुज्ज ८)। °समा स्त्री [°समा] समय-विशेष, आरक-रूप समय (जो २)। °सार पुं [°सार] मृग की एक जाति, काला मृग; 'एक्को वि कालसारो ण देइ गंतुं पयाहिणव- लंतो' (गा २५)। °सोअरिय पुं [°सोक- रिक] स्वनाम ख्यात एक कसाई (आक)। °गरु °गुरु, °यरु न [°गुरु] सुगन्धि द्रव्य-विशेष, जो धूप के काम में लाया जाता है (णाया १, १; कप्प; औप; गउड)। °यस, °स न [°यस] लोहे की एक जाति (हे १, २६९; कुमा, प्राप्र; से ८, ४६)। °सवेसियपुत्त पुं [°स्यवैशिकपुत्र] इस नाम का एक जैन मुनि जो भगवान् पार्श्‍वनाथ की परम्परा में थे (भग)

कालंजर :: पुं [कालञ्जर] १ देश-विशेष (पिंग) २ पर्वत विशेष (आवम)। देखो कालिंजर।

कालक्खर :: सक [दे] १ निर्भर्त्सना करना, फटकारना। २ निर्वासित करना, बाहर निकाल देना; 'तो तेणं भणिया भज्जा, पिए ! पुत्तो कालक्खरियइ एसो, तो सा रोसेण भणइ तयभिमुहं, मइ जीवंतीए इमं न होइ ता जाउ दव्वंपि; किं कज्जइ लच्छीए, पुत्त- विउत्ताण पिउणा पिययम ! जयम्मि' (सुपा ३९९; ४००)

कालक्खर :: पुंन [कालाक्षर] १ अल्प-ज्ञान, अल्प-शिक्षा; २ वि. अल्प-शिक्षित; 'कालक्ख- रदूसिक्खिअ धम्मिअ रे निबकीडअसरिच्छ' (गा ८७८)

कालक्खरिअ :: वि [दे] १ उपालब्ध, निर्भं- र्त्सिंत। २ निर्वासित; 'तहवि न विरमइ दुलहो अणाहकुलडाए संगमे, तत्तो कालक्ख- रिओ पिउणा' (सुपा ३८८); 'तो पिउणा कालेणं कालक्खरिओ' (सुपा ४८८)

कालक्खरिअ :: वि [कालाक्षरिक] देरी से अक्षर जाननेवाला, अशिक्षित; 'भो तुम्हाणं मज्झे अहं एक्को कालक्खरिओ' (कप्पू)।

कालग, कालय :: पुं [कालक] १ प्रसिद्ध जैनाचार्यं (पुप्फ १४९; २४०) २ भ्रमर, भौंरा (राज)। देखो काल (उवा; उप ९८६ टी)

कालय :: वि [दे] धूर्त्तं, ठग (दे २, २८)।

कालवट्ठ :: न [दे. कालपृष्ठ] धनुष (दे २, २८)।

कालवेसिय :: पुं [कालवैशिक] एक वेश्या- पुत्र (ती ७)।

काला :: स्त्री [काला] १ श्याम-वर्णंवाली। २ तिरस्कार करनेवाली (कुमा) ३ एक इन्द्राणी, चमरेन्द्र की एक पटरानी (ठा ५, १) ४ वेश्या-विशेष (ती ७)

कालाइक्कमय :: न [कालातिक्रमक] तप-विशेष, दिन के पूर्वार्ध तक आहार-त्याग (संबोध ५८)।

कालाकोण :: पुंन [काललवण] काला नोन या नमक (दस ३, ८)।

कालि :: पुं [कालिन्] बिहार का एक पर्वंत (ती १३)।

कालिअसूरि :: पुं [कालिकसूरि] एक प्रसिद्ध प्राचीन जैन आचार्य (विचार ५२९)।

कालिआ :: स्त्री [दे] १ शरीर, देह। २ काला- न्तर। ३ मेघ, बारिश (दे २, ५८) ४ मेघ- समूह, बादल (पाअ)

कालिआ :: स्त्री [कालिका] १ देवी-विशेष (सुपा १८२) २ एक प्रकार का तूफानी पवन (उप ७२८ टी; णाया १, ९)

कालिंग :: पुं [कालिङ्ग] १ देश विशेष; 'पत्तो कालिंगदेसओ' (श्रा १२) २ वि. कलिङ्ग देश में उत्पन्‍न (पउम ९९, ५५)

कालिंगी :: स्त्री [कालिङ्गी] वल्ली-विशेष, तरबुज का गाछ (पणण १)।

कालिंगी :: स्त्री [कालिङ्गी] विद्या विशेष (सूअ २, २, २७)।

कालिंजण :: न [दे] तापिच्छ, श्याम तमाल का पेड़ (दे २, २९)।

कालिंजणी :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (दे २, २९)।

कालिंजर :: पुं [कालिञ्जर] १ देश-विशेष (पिंग) २ पर्वत-विशेष (उत्त १३) ३ न. जंगल-विशेष (पउम ५८, ९) ४ तीर्थ- स्थान-विशेष (ती ७)

कालिंदी :: स्त्री [कालिन्दी] १ यमुना नदी (पाअ) २ एक इन्द्राणी, शकेन्द्र की एक पटरानी (पउम १०२, १५९)

कालिंब :: पुं [दे] १ शरीर, देह। २ मेघ, बारिश (दे २, ५९)

कालिश :: देखो कालिय = कालिक (राज)।

कालिगी :: स्त्री [कालिकी] संज्ञा-विशेष, बहुत समय पहले गुजरी हुई चीज का भी जिससे स्मरण हो सके वह (विसे ५०८)।

कालिज :: न [कालेय] हृदय का गूढ़ मांस- विशेष (तंदु)।

कालिम :: पुंस्त्री [कालिमन्] श्यामता, कृष्णता, दागीपन (सुर ३, ४४; श्रा १२)।

कालिय :: पुं [कालय] इस नाम का एक सर्पं (सुपा १८१)।

कालिय :: वि [कालिक] १ काल में उत्पन्न काल-संबन्धी। २ अनिश्‍चित, अव्यवस्थित; 'हत्थागया इमे कामा कालिया जे अणागया' (उत्त ५; करु १६) ३ वह शास्त्र, जिसको अमुक समय में ही पढ़ने की शास्त्रीय आज्ञा है (ठा २, १ — पत्र ४९)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष (णाया १, १७ — पत्र २२८)। °पुत्त पुं [°पुत्र] एक जैन मुनि जो भगवान् पार्श्‍वंनाथ की परम्परा में से थे (भग)। °सण्णि वि [°संज्ञिन्] कालिकी संज्ञावाला (विसे ५०९)। °सुय न [°श्रुत] वह शास्त्र जो अमुक समय में ही पढ़ा जा सके (णंदि)। °णुओग पुं [°नुयोग] देखो पूर्वोक्त अर्थ (भग)

काली :: स्त्री [काली] १ विद्या-देवी-विशेष (संति ५) २ चमरेन्द्र की एक पटरानी (ठा ५, १; णाया २, १) ३ वनस्पति- विशेष, काकजङ्घा (अनु ४) ४ श्यामवर्णवाली स्त्री; 'सामा गायइ महुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च' (ठा ७) ५ राजा श्रेणिक की एक रानी (निर १, १) ६ चौथी जैन शासन-देवी (संति ९) ७ पार्वंती, गौरी (पाअ) ८ इस नाम का एक छंद (पिंग)

कालुण :: न [कारुण्य] दया, कारुणा। °वडिया स्त्री [°वृत्ति] भीख माँग कर आजीविका करना (विपा १, १)।

कालुणिय :: देखो कारुणिय (सूअ १, १, १)।

कालुणीय :: देखो कारुणिय (सूअ १, ३, २, ९)।

कालुय :: पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

कालुसिय :: न [कालुष्य] कलुषता, मलिनता (आउ)।

कालुस्स :: न [कालुष्य] कलुषपन (सा २)।

कालेज्ज :: न [दे] तापिच्छ, श्याम तमाल का पेड़ (दे २, २९)।

कालेय :: न [कालेय] १ काली देवी का अपत्य। २ सुगन्धि द्रव्य-विशेष, कालचन्दन (स ७५) ३ हृदय का मांस-खण्ड, कलेजा (सूअ १, ५, १; रंभा)

कालोद :: देखो कालोय (जीव ३)।

कालोदधि :: पुं [कालोदधि] समुद्र-विशेष (पणह १, ५)।

कालोदाइ :: पुं [कालोदायिन्] इस नाम का एक दार्शनिक विद्वान् (भग ७, १०)।

कालोय :: पुं [कालोद] समुद्र-विशेष जो घातकी-खण्ड द्वीप को चारों तरफ घिर कर स्तित है (सम ६७)।

काव, कावड :: पुं [दे] १ काँवर, बहँगी, बोझ ढ़ोनेके लिए तराजूनुमा एक वस्तु, इसमें दोनों ओर सिकहर लटकाये जात हैं (जीव ३; पउम ७५, ५२)। °कोडिय पुं [°कोटिक] काँवर से भार ढ़ोनेवाला (अणु)। देखो काय = (दे)।

कावडि, कावोडि :: स्त्री [दे] काँवर (कुप्र १२१; २४४, दस ४, १ टी)।

कावडिअ :: पुं [दे] वैवधिक, काँवर से भार ढोनेवाला (पउम ७५, ५२)।

कावध :: पुं [कावध्य] एक महाग्रह, ग्रहाधि- ष्ठायक देव-विशेष (राज)।

कावलिअ :: वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे २, २८)।

कावलिअ :: वि [कावलिक] कवल-प्रक्षेप रूप आहार (भग; संग १८१)।

कावालिअ :: पुं [कापालिक] वाम-मार्गी, अघोर सम्प्रदाय का मनुष्य (सुपा १७४; ३९७; दे १, ३१; प्रबो ११५)।

कावालिआ, कावालिणी :: स्त्री [कापालिकी] कापालिक- व्रतवाली स्त्री (गा ४०८)।

काविट्ठ :: न [कापिष्ट] देव-विमान-विशेष (सम २७; पउम २०, २३)।

काविल :: न [कापिल] १ सांख्य-दर्शंन (सम्म १४५) २ वि. सांख्य मत का अनुयायी (औप)

काविलिय :: वि [कापिलीय] १ कपिल मुनि- संबन्धी। २ न. कपिल-मुनि के वृत्तान्तवाला एक ग्रन्थांश; 'उत्तराध्ययन' सूत्र का आठवाँ अध्ययन (सम ६४)

काविसायण :: देखो कविसायण (जीव ३)।

कावी :: स्त्री [दे] नीलवर्णंवाली, हरा रंग की चीज (दे २, २६)।

कावुरिस :: देखो कापुरिस (स ३७५)।

कावेअ :: न [कापेय] वानरपन, चञ्चलता (अच्चु ९२)।

कावोय :: वि [दे] काँवर वहन करनेवाला (अणु ४६)।

कास :: देखो कड्‍ढ = कृष्। कासइ (षड्)।

कास :: अक [कास्] १ कहरना, रोग-विशेष से खराब आवाज करना। २ कासना, खाँसी की आवाज करना। ३ खोखार करना। ४ छींक खाना। वकृ. कासंत, कासमाण (पणह १, ३ — पत्र ५४; आचा)। संकृ. कासित्ता (जीव ३)

कास :: पुं [काश, °स] १ रोग-विशेष, खाँसी (णाया १, १३) २ तृण-विशेष, कास; 'कास- कुसुमंव मन्‍ने सुनिप्फलं जम्म-जीवियं निययं' (उप ७२८ टी); 'कासुकुसुमंव विहलं' (आप ५८) ३ उसका फूल जो सफेद और शोभाय- मान होता है; 'ता तत्थ नियइ धूलिं ससहर- हरहासकाससंकासं' (सुपा ४२८; कुमा) ४ ग्रह-विशेष, ग्रह-देव-विशेष (ठा २, ३) ५ रस (ठा ७) ६ संसार, जगत् (आचा)

कास :: देखो कंस = कांस्य (हे १, २९; षड्)।

कासंकस :: वि [कासङ्कष] प्रमादी, संसार में आसक्त (आचा)।

कासग :: देखो कासय; 'जेण रोहंति बीजाइं, जेण जीवंति कासगा' (निचू १)।

कासण :: न [कासन] खोखारना, खाट्‍कार (ओघ २३५)।

कासमद्दग :: पुं [कासमर्दक] वनस्पति-विशेष, गुच्छ-विशेष (पणण १ — पत्र ३२)।

कासय, कासव :: पुं [कर्षक] कृषीवल, किसान (दे १, ८७; पाअ); 'जह वा लुणाइ सस्साइं, कासवो परिणयाइं छित्तम्मि। तह भूयाइं कयंतो, वत्थुसहावो इमो जम्हा' (सुपा ६५१)।

कासव :: पुं [कश्यप] १ इस नाम का एक ऋषि (प्रामा) २ हरिण की एक जाति। ३ एक जाति की मछली। ४ दक्ष प्रजापति का जमाता। ५ वि. दारू पीनेवाला (हे १, ४३; षड्)

कासव :: न [काश्यप] १ इस नाम का एक गोत्र (ठा ७; णाया १, १; कप्प) २ पुं. भगवान् ऋषभदेव का एक पूर्व पुरुष। ३ वि. काश्यय गोत्र में उत्पन्न, काश्यप-गोत्रीय (ठा ७ — पत्र ३९०; उत्त ७; कप्प; सूअ १, ६) ४ पुं. नापित, हजाम (भग ९, १०; आवम) ५ इस नाम का एक गृहस्थ (अंत १८) ६ न. इस नाम का एक 'अंतगडदसा' सूत्र का अध्ययन (अंत १८)

कासवनालिया :: स्त्री [काश्यपनालिका] श्री- पर्णीफल (आचा २, १, ८, ६; दस ५, २, २१)।

कासविज्जया :: स्त्री [काश्यपीया] जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)।

कासवी :: स्त्री [काश्यपी] १ पृथिवी, धरित्री (कुमा) २ कश्यकप-गोत्रीया स्त्री (कप्प)। °रइ स्त्री [°रति] भगवान् सुमतिनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)

कासा :: स्त्री [कृशा] दुर्बल स्त्री (हे १, १२७; षड्)।

कासाइया, कासई :: स्त्री [काषायी] कषाय-रंग से रंगी हुई साड़ी, लाल साड़ी (कप्प; उवा)।

कासाय :: वि [काषाय] कषाय-रंग से रंगा हुआ वस्त्रादि (गउड)।

कासार :: न [कासार] १ तलाव, छोटा सरोवर (सुपा १६६) २ पक्वान्न-विशेष, कँसार (स १८९) ३ पुं. समूह, जत्था (गउड) ४ प्रदेश, स्थान (गउड)। °भूमि स्त्री [°भूमि] नितम्ब-प्रदेश (गउड)

कासार :: न [दे] धातु-विशेष, सीसपत्रक (दे २, २७)।

कासि :: पुं [काशी] १ देश-विशेष, काशी जिला; 'कासित्ति जणावओ' (सुपा ३१; उत्त १८) २ काशी देश का राजा (कुमा) ३ स्त्री. काशी नगरी, बनारस शहर (कुमा)। °पुर न [°पुर] काशी नगरी, बनारस शहर (पउम ६, १३७)। °राय पुं [°राज] काशी देश का राजा (उत्त १८)। °व पुं [°प] काशी देश का राजा (पउम १०४, ११)। °वड्‍ढण पुं [°वर्धन] इस नाम का एक राजा, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा ८ — पत्र ४३०)

कासिअ :: न [दे] १ सूक्ष्म वस्त्र, बारीक कपड़ा। २ सफेद वस्त्र (दे २, ५९)

कासिअ :: न [कासित] छींक, क्षुत् (राज)।

कासिज्ज :: न [दे] काकस्थल-नामक देश (दे २, २७)।

कासिल्ल :: वि [कासिक] खाँसी रोगवाल (विपा १, ७ — पत्र ७२)।

कासी :: स्त्री [काशी] काशी, बनारस (णाया १, ८)। °राय पुं [राज] काशी का राजा (पिंग)। °स पुं [°श] काशी का राजा (पिंग)। °सर पुं [°श्वर] काशी का राजा (पिंग)।

काह :: सक [कथय्] कहना। काहयंते (सूअ १, १३, ३)।

काहर :: देखो काहार (दस ४, १ टी)।

काहल :: वि [दे] १ मृदु, कोमल। २ ठग, धूर्त्त (दे २, ५८)

काहल :: वि [कातर] कातर, डरपोक, अधीर (हे १, २१४; २५४)।

काहल :: पुंन [काहल] १ वाद्य-विशेष (सुर ३, ९६; औप; णंदि) २ अव्यक्त आवाज (पणह २, २)

काहला :: स्त्री [काहला] वाद्य-विशेष, महा- ढक्का (विक्र ८७)।

काहलिया :: स्त्री [काहलिका] आभूषण-विशेष (पव २७१)।

काहली :: स्त्री [दे] तरुणी, युवती (दे २, २६).

काहल्ली :: स्त्री [दे] १ खर्चं करने का धान्यादि। २ तवा, जिसपर पूरी या पूड़ी वगैरह पकायी जाती है (दे २, ५९)

काहार :: पुं [दे] कहार, एक जाति जो पानी भरने और डौली वगैरह ढोने का काम करती है (दे २, २७; भवि)।

काहार :: पुंन [दे] काँवर, बहँगी (सुज्ज १०, ९)।

काहावण :: पुं [कार्षापण] सिक्का-विशेष (हे २, ७१; पणह १; २; षड; (प्राप्र)।

काहिय :: वि [काथिक] कथा-कार, वार्ता करनेवाला (बृह १)।

काहिल :: पुं [दे] गोपाल, ग्वाला, स्त्री. ला° (दे २, ३८)।

काहिल्लिआ :: स्त्री [दे] तवा, जिसपर पूरी आगि पकायी जाती है (पाअ)।

काहीअ :: देखो काहिय (गच्छ ३, ९)।

काहीइदाण :: न [कारिष्यतिदान] प्रत्युपकार की आशा से दिया जाता दान (ठा १०)।

काहे :: अ [कदा] कब, किस समय ? (हे २, ६५; अंत २४; प्राप्र)।

काहेणु :: स्त्री [दे] गुञ्जा, लाल रत्ती (दे २, २१)।

कि :: देखो किं (हे १, २९; षड्)।

कि :: सक [कृ] करना, बनाना; 'डुक्कियं करणे' (विसे ३३००)। कवकृ. किज्जत (सुर १, ६०; ३, १४; ५९)।

किअ :: देखो कय = कृत (काप्र ९२५; प्रासू १५; धम्म २४; मै ९५; वज्जा ४)।

किअ :: देखो किव = कृप (षड्)।

किअंत :: वि [कियत्] कितना (सण)।

किअंत :: देखो कयंत (अच्चु ५६).

किआडिआ :: स्त्री [कृकाटिका] गला का उन्नत भाग (पाअ)।

किइ :: स्त्री [कृति] कृति, क्रिया, विधान (षड्; प्राप्र; उव)। °कम्म न [°कर्मन्] १ वन्दन, प्रणमन (सम २१) २ कार्य-करण (भग १४, ३) ३ विश्रामणा (व्यव° गा° ९२)

किं :: स [किम्] कौन, क्या, क्यों, निन्दा, प्रश्‍न, अतिशय, अल्पता और सादृश्य को बतलानेवाला शब्द (हे १, २९; ३, ५८; ७१; कुमा; विपा १, १; निचू १३); 'किं बुल्लंति मणीओ जाउ सहस्सेहिं घिप्पंति' (प्रासू ४)। °उण अ [°पुनः] तब फिर, फिर क्या ? (प्राप्र)।

किंकत्तव्यया :: देखो किंकायव्यया (आचा २, २, ३)।

किंकम्म :: पुं [किंकर्मन्] इस नाम का एक गृहस्थ (अंत)।

किंकर :: पुं [किङ्कर] नौकर, चाकर, दास (सुपा ६०; २२३)। °सच्च पुं [°सत्य] १ पर- मेश्वर, परमात्मा। २ अच्युत, विष्णु (अच्चु २)

किंकरी :: स्त्री [किङ्करी] दासी, नौकरानी (कप्पू)।

किंकाइअ :: देखो केकाइय (अणु २१२)।

किंकायव्वया :: स्त्री [°किंकर्त्तव्यता] क्या करता है यह जानना। °मूढ वि [°मूढ] किंकर्तव्य-विमूढ, हक्काबक्का, भौंचक्का, वह मनुष्य जिसे यह न सूझ पड़े कि क्या किया जाय (महा)।

किंकार :: पुंन [क्रेङ्कार] अव्यक्त शब्द-विशेष (सिरि ५४१)।

किंकिअ :: वि [दे] सफेद, श्वेंत (दे २, ३१)।

किंकच्चजड :: वि [किंकृत्यजड] हक्काबक्का, वह मनुष्य जिसे यह न सूझ पड़े कि क्या किया जाय (श्रा २७)।

किंकिणिआ :: स्त्री [किङ्किणिका] क्षुद्र-घण्टिका, करधनी (सुपा १५६)।

किंकिणी :: स्त्री [किङ्किणी] ऊपर देखो (सुपा १५४; कुम)।

किंकिल्लि :: देखो किंकिल्लि (विचार ४६१)।

किंगिरिड :: पुं [किङ्किरिट] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रिन्द्रिय जीव की एक जाति (राज)।

किंच :: अ [किञ्च] समुच्चय-द्योतक अव्यय, और भी, दूसरा भी (सुर १, ४०; ४१)।

किंचण :: न [किञ्चन] १ द्रव्य-हरण, चोरी (विसे ३४५१) २ अ. कुछ, किञ्चित् (वव २)

किंचण :: न [किञ्चन] द्रव्य, वस्तु (उत्त ३२, ८, सुव ३२, ८)।

किंचहिय :: वि [किञ्चिदधिक] कुछ ज्यादा (सुरा ४३०)।

किंचि :: अ [किञ्चित्] अल्प, ईषत्, थोड़ा (जी १; स्वप्‍न ४७)।

किंचिम्मत्त :: वि [किञ्चिन्मात्र] स्वल्प, बहुत थोड़ा, यत्किञ्चित् (सुपा १४२)।

किंचूण :: वि [किञ्चिदून] कुछ कम, पूर्णं-प्राय (औप)।

किंजक्क :: पुं [किजक्क] पुष्प-रेणु, पराग (णाया १, १)।

किंजक्ख :: पुं [दे] शिरीष-वृक्ष, सिरस का पेड़ (दे २, ३१)।

किंणेदं :: (शौ)। अ [किमिदम्, किमेतत्] यग क्या ? (षड्; कुमा)।

किंतु :: अ [किन्तु] परन्तु, लोकिन (सुर ४, ३७)।

किंथुग्घ :: देखो किंसुग्ध (राज)।

किंदिय :: न [केन्द्र] १ वर्त्तु ल का मध्य-स्थल। २ ज्योतिष में इष्ट लग्‍न से पहला, चौथा, सातवाँ और दसवां स्थान; 'किंदियठाणट्ठिय- गुरुम्मि' (सुपा ३९)

किंदुअ :: पुं [कन्दुक] कन्दुक, गेंद (भवि)।

किंधर :: पुं [दे] छोटी मछली (दे २, ३२)।

किंनर :: पुं [किन्नर] १ व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४) २ भगवान् धर्मंनाथ जी के शासनदेव का नाम (संति ८) ३ चमरेन्द्र की रथ-सेना का अधिपति देव (ठा ५, १) ४ एक इन्द्र (ठा २, ३) ५ देव- गन्धर्वं, देव-गायक (कुमा)। °कंठ पुं [°कण्ठ] किन्नर के कण्ठ जितना बड़ा एक मणि (जीव ३)

किंनरी :: स्त्री [किन्नरी] किन्नर देव की स्त्री (कुमा)।

किंनु :: अ [किंनु] पूर्वंपक्ष, आक्षेप, आशंका का सूचक अव्यय (वव १)।

किंपय :: वि [दे] कृपण, कंजूस (दे २, ३१)।

किंपाग :: पुं [किम्पाक] १ वृक्ष-विशेष, 'हुंति मुहि च्चिय महुरा विसया किंपागभूरुहफलं व' (पुप्फ ३९२; औप) २ न. उसका फल, जो देखने में और स्वाद में सुन्दर, परन्तु खाने से प्राण का नाश करता है; 'किंपागफलोवमा विसया' (सुर १२, १३८)

किंपि :: अ [किमपि] कुछ भी (प्रासू ६०)।

किंपुरिस :: पुं [किंपुरुष] १ व्यन्तर देवों की एक जाती (पणह १, ४) २ एक इन्द्र, किन्नर-निकाय के उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) ३ वैरोचन बलीन्द्र की रथसेना का अधिपति देव (ठा ५, १ — पत्र ३०२)। °कंठ पुं [°कण्ठ] मणि की एक जाति, जो किंपुरुष के कण्ठ जितना बड़ा होता है (जीव ३)

किंबोड :: वि [दे] स्खलित, गिरा हुआ, भुला हुआ (२, ३१)।

किमज्झ :: वि [किंमध्य] असार, निःसार (पणह २, ४)।

किंवयंती :: स्त्री [किंवदन्ती] जनश्रुति, जनरव (हम्मीर ३६)।

किसारु :: पुं [किंशारु] सस्य-शूक, सस्य का तीक्ष्ण अग्र भाग (दे २, ६)।

किंसुग्घ :: न [किंस्तुघ्न] ज्योतिष-प्रसिद्ध एक स्थिर करण (विसे ३३५०)।

किसुअ :: पुं [किंशुक] १ पलाश का पेड़, टेसु, ढाक (सुर ३, ४६) २ न.पलाश का पुष्प (हे १, २९; ८६)

किक्किंडि :: पुं [दे] सर्प, साँप (दे २, ३२)।

किक्किंधा :: स्त्री [किष्किन्धा] नगरी-विशेष (से १४, ५५)।

किक्किंधि :: पु. [किष्किन्धि] १ पर्वत-विशेष (पउम ६, ४५) २ इस नाम का एक राजा (पउम ६, १५४; १०, २०)। °पुर न [°पुर] नगर विशेष (पउम ६, ४५)

किच्च :: वि [कृत्य] १ करने योग्य, कर्त्तव्य, फरज (सुपा ४६५; कुमा) २ वन्दनीय, पूजनीय; 'न पिट्ठओ न पुरुओ नेव किच्चाण पिट्ठओ' (उत्त ३) ३ पुं. गृहस्थ (सूअ १, १, ४) ४ न. शास्त्रोक्त अनुष्ठान, क्रिया, कृति (आचा २, २, २; सूअ १, १, ४)

किच्चंत :: वि [कृत्यमान] १ छिन्न किया जाता, काटा जाता। २ पीड़ित किया जाता, सताया जाता (राज)

किच्चण :: न [दे] प्रक्षालन, धोना; 'हरिअच्छेयण छप्पइयघच्चणं किच्चणं च पोत्ताणं' (ओव १६८ — पत्र ७२)।

किच्चा :: स्त्री [कृत्या] १ काटना, कर्त्तन (उप पृ ३५९) २ क्रिया, काम, कर्म। ३ देव वगैरह की मूर्त्ति का एक भेद। ४ जादूगरी, जादू। ५ रोग-विशेष, महामारी का रोग (हे १, १२८)

किच्चा :: देखो कर = कृ।

किच्चि :: स्त्री [कृत्ति] १ मृग वगैरह का चमड़ा। २ चमड़े का वस्त्र। ३ भूर्जपत्र, भोजपत्र। ४ कृत्तिका नक्षत्र (हे २, १२; ८९; षड्)। °पाउरण पुं [°प्रावरण] महादेव, शिव (कुमा)। °हर पुं [°धृर] महादेव, शिव (षड्)

किंच्चिरं :: अ [कियाच्चिरम्] कितने समय तक, कब तक ? (उप १२८ टी)।

किच्छ :: न [कृच्छ] १ दुःख कष्ट (ठा ५, १) २ वि. कष्ट-साध्य, कष्ट-युक्त (हे १, १२८) ३ क्रिवि. दुःख से, मुश्किल से (सुर ८, १४८)

किज्ज :: वि [क्रेय] खरीदने योग्य, 'अकिज्जं किज्जमेव वा' (दस ७)।

किज्जंत :: देखो कि = कृ।

किज्जअ :: वि [कृत] किया गया, निर्मित (पिंग)।

किट्ट :: सक [कीर्त्तय्] १ श्लाघा करना, स्तुति करना। २ वर्णन करना। ३ कहना, बोलना। किट्टइ, किट्टेइ (आचा; भग)। वकृ. किट्टमाण (पि २८९)। संकृ. किट्टइत्ता, किट्टित्ता (उत्त २९; कप्प)। हेकृ. किट्टित्तए (कस)

किट्ट :: स्त्रीन [कीट्ट] १ धातु का मल, मैल (उप ५३२) २ रंग-विशेष (उर ६, ५) ३ तेल, घी वगैरह का मैल। स्त्री. °ट्टी (पभा ३३)

किट्टण :: देखो कित्तण (बृह ३)।

किट्टि :: स्त्री [किट्टि] १ अल्पीकरण-विशेष, विभाग-विशेष; 'अपुव्वविसोहीए अणुभागोणू- णविभयणं किट्टी' (पंच १२; आवम)

किट्टिय :: वि [कीर्त्तित] १ वर्णित, प्रशंसित (सूअ २, ६) २ प्रतिपादित, कथित (सूअ २, २; ठा ७)

किट्टिया :: स्त्री [कीटिका] वनस्पति-विशेष (पणण १; भग ७, २)।

किट्टिस :: न [किट्टिस] १ खली, सरसों, तिल आदि का तैल रहित चूर्णं (अणु) २ एक प्रकार का सूत, सूता (अणु; आवम)

किट्टिस :: न [किट्टिस] १ ऊन आदि का वाकी बचा हुआ अंश। २ उससे बना हुआ सूता। ३ ऊन, ऊँट के बाल आदि की मिलावट का सूता (अणु ३४)

किट्टी :: देखो किट्ट = किट्ट।

किट्टीकय :: वि [किट्टीकृत] आपस में मिला हुआ, एकाकार, जैसे सुवर्णं आदि का किट्ट उसमें मिल जाता है उस तरह मिला हुआ (उव)।

किट्ठ :: वि [क्लिष्ट] क्लेश-युक्त (भग ३, २; जीव ३)।

किट्ठ :: वि [कृष्ट] जोता हुआ, हल-विदारित (सुर ११, ५६; भग ३, २)। २ न. देव- विमान विशेष; 'जे देवा सिरिवच्छं सिरिदाम- कँडं मल्लं किट्टं' (? ट्ठं) चावोणणयं अर- णणवडिंसर्गं विमाणं देवत्ताए उववणणा' (सम ३९)

किट्ठि :: स्त्री [कृष्टि] १ कर्षण। २ खींचाव, आकर्षंण। ३ देवविमान-विशेष (सम ९)। °कूड न [°कूट] देवविमान-विशेष (सम ९)। °घोस न [°घोस] विमान-विशेष (सम ९)। °जुत्त न [°युक्त] विमान-विशेष (सम ९)। °ज्झय न [°ध्वज] विमान-विशेष (सम ९)। °प्पभ न [°प्रभ] देवविमान-विशेष (सम ९)। °वण्ण न [°वर्ण] विमान-विशेष (सम ९)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] विमान-विशेष (सम ९)। °सिट्ट न [°शिष्ट] एक देव-विमान (सम ९)

किट्ठियावत्त :: न [कृष्टयावर्त्त] देवविमान-विशेष (सम ९)।

किट्ठुत्तरवडिंसग :: न [कृष्टयुत्तरावतंसक] इस नाम का देव-विमान, देव-भवन (सम ९)।

किडग :: न [क्रीडक] क्रीड़ा करनेवाला (सूअ १, ४, १, २ टी)।

किडि :: पुं [किरि] सूकर, सूअर (हे १, २५१; षड्)।

किडिकिडिया :: स्त्री [किटिकिटिका] सूखी, हड्डी की आवाज (णाया १, १ — पत्र ७४)।

किडिभ :: पुं [किटिभ] रोग-विशेष, एक प्रकार का क्षुद्र कोढ़ (लहुअ १५; भग ७, ६)।

किडिया :: स्त्री [दे] खिड़की, छोटा द्वार (स ५८३)।

किड्ड :: अक [क्रीड्] खेलना, क्रीड़ा करना। वकृ. किड्डंत (पि ३९७)।

किड्डकर :: वि [क्रीडाकर] क्रीड़ा-कारक (औप)।

किड्डा :: स्त्री [क्रीडा] १ क्रीड़ा, खेल (विपा १, ७) २ बाल्यावस्था (ठा १० — पत्र ५१९)

किड्डाविया :: स्त्री [क्रीडिका] क्रीड़न-धात्री, बालत को खेल-कूद करानेवाली दाई (णाया १, १६ — पत्र २११)।

किढि :: वि [दे] १ संभोग के लिए जिसको एकान्त स्थान में लाया जाय वह (वव ३) २ स्थविर, वृद्ध (बृह १)

किढिण :: न [किठिन] संन्यासियों का एक पात्र, जो बाँस का बना हुआ होता है (भग ७, ९)।

किण :: सक [क्री] खरीदना। किणइ (हे ४, ५२)। वकृ. 'से किणं किणावेमाणे हण घायमाणे' (सूअ २, १)। किणंत (सुपा ३६६)। संकृ. किणित्ता (पि ५८२)। प्रयो. किणावेइ (पि ५५१)।

किण :: पुं [किण] १ घर्षंण-चिह्न, घर्षण की निशानी (गउड) २ मांस-ग्रंथि। ३ सूखा घाव (सुपा ३७०; वज्जा ३६)

किणइय :: वि [दे] शोभित, विभूषित (पउम ६२, ९)।

किणण :: न [क्रयण] कीनना, खरीद, क्रय (उप पृ २५८)।

किणा :: देखो किण्णा (प्राप्र; हे २, ६९)।

किणि :: वि [क्रयिन्] खरीदनेवाला (सम्बोध १६)।

किणिकिण :: अक [किणिकिणय्] किण- किण आवाज करना। वकृ. किणिकिणिंत (औप)।

किणिय :: वि [क्रीत] कीना हुआ, खरीदा हुआ (सुपा ४३४)।

किणिय :: पुं [किणेक] १ मनुष्य की एक जाति, जो बाजा बनाती और बजाती है (वव ३) २ रस्सी बनाने का काम करनेवाली मनुष्य जाति; 'किणिया उबरत्ताओ वलिंति' (पंचु)

किणिय :: न [किणित] वाद्य-विशेष (राय)।

किणिया :: स्त्री [किणिका] छोटा फोड़ा, फुनसी; 'अन्‍नेवि सइं महियलनिसीय- णुप्पन्‍नकिणियपोंगिल्ला। मलिणजरकप्पोढोच्छइयविग्गहा कहवि हिंडंति' (स १८०)।

किणिस :: सक [शाणय्] तीक्ष्ण करना, तेज करना। किणिसइ (पिंग)।

किणो :: अ [किमिति] क्यों, किसलिए ? (दे २, ३१; हे २, २१६; पाअ; गा ६७; महा)।

किण्ण :: वि [कीर्ण] १ उत्कीर्णं, खुदा हुआ; 'उवलकिणणव्व कट्ठघडियव्व' (सुपा ५७१) २ क्षिप्त, फेंका हुआ (ठा ९)

किण्ण :: पुं [किण्व] १ फलवाला वृक्ष-विशेष, जिससे दारू बनता है (गउड; आचा) २ न. सूरा बीज, किणव-वृक्ष के बीज, जिसका दारू बनता है (उत्त २)। °सुरा स्त्री [°सुरा] किणव-वृक्ष के फल से बनी हुई मदिरा (गउड)

किण्ण :: वि [दे] शोभमान, राजमान (दे २, ३०)।

किण्णं :: अ [किंनम्] प्रश्‍नार्थंक अव्यय (उवा)।

किण्णर :: देखो किंनर (जं १; राय; इक)।

किण्णा :: अ [कथम्] क्यों, क्यों कर, कैसे ?; 'किणणा लद्धा किणणा पत्ता' (विपा २, १ — पत्र १०६)।

किण्णु :: अ [किंनु] इन अर्थो का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न। २ वितर्कं। ३ सादृश्य। ४ स्थान, स्थल। ५ विकल्प (उवा; स्वप्‍न ३४)

किण्ह :: देखो कण्ह (गा ६५; णाया १, १; उर ६, ५; पणण १७)।

किण्ह :: न [दे] १ बारीक कपड़ा। २ सफेद कपड़ा (दे २, ५९)

किण्हग :: पुं [दे] वर्षाकाल में घड़ा आदि में होनेवाली एक तरह की काई (जीवस ३६)।

किण्हा :: देखो कण्हा (ठा ५, ३ — पत्र ३५१; कम्म ४, १३)।

कितव :: पुं [कितव] द्युतकर, जूआरी (दे ४, ८)।

कित्त :: देखो किच्च (संक्षि ५)।

कित्त :: देखो किट्ट = कीर्त्तय्। भवि. कित्तइस्सं (पडि)। संकृ. कित्तइत्ताण (पच्च ११६)।

कित्तण :: न [कीर्त्तन] १ श्‍लाघा, स्तुति; 'तव य जिणुत्तम संति कित्तणं' (अजि ४; से ११, १३३) २ वर्णन, प्रतिपादन। ३ कथन, उक्ति (विसे ९४०; गउड; कुमा)

कित्तणा :: स्त्री [कीर्तना] कीर्तंन, वर्णंन, प्रशंसा (चेइय ७४८)।

कीत्तय :: वि [कीर्तक] कीर्तन-कर्ता (पव २१६ टी)।

कित्तवोरिअ :: देखो कत्तवीरिअ (ठा ८)।

कित्ता :: देखो किच्चा = कृत्या (प्राकृ ८)।

कित्ति :: स्त्री [कीर्त्ति] १ यश, कीर्त्ति, सुख्याति (औप; प्रासू ४३; ७४; ८२) २ एक विद्या- देवी (पउम ७, १४१) ३ केसरि-द्रह की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३ — पत्र ७२) ४ देव-प्रतिमा-विशेष (णाया १, १ टी — पत्र ४३) ५ श्‍लाघा, प्रशंसा (पंच ३) ६ नीलावन्त पर्वंत का एक शिखर (जं ४) ७ सौधर्म देवलोक की एक देवी (निर) ८ पुं. इस नाम का एक जैन मुनि, जिसको पास पाँचवें बलदेव ने दीक्षा ली थी (पउम २०, २०५) °कर वि [°कर] १ यशस्कर, ख्याति-कारक (णाया १, १) २ पुं. भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र का नाम (राज) °चंद पुं [°चन्द्र] नृप-विशेष (धम्म)। °धम्म पुं [°धर्म] इस नाम का एक राजा (दंस)| °धर पु [°धर] १ नृप- विशेष (तंदु) २ एक जैन मुनि, दूसरे बलदेव के गुरु (पउम २०, २०५) पुरिस पुं [°पुरुष] कीर्त्ति-प्रधान पुरुष, वासुदेव वगैरह (ठा ९)। °म वि [°मत्] कीर्ति- युक्त। °मई स्त्री [°मती] १ एक जैन साध्वी, (आक) २ ब्रह्मदत्त चकवर्ती की एक स्त्री (उत्त १३)। °य वि [°द] कीर्त्ति- कर, यशस्कर (औप)

कित्ति :: स्त्री [कृत्ति] चर्मं, चमड़ा; 'कुत्तो अम्हाण वग्घकित्ती य' (काप्र ८६३; गा ६४०; वज्जा ४४)।

कित्तिम :: वि [कृत्त्रिम] बनावटी, नकली (सुपा २४; ६१३)।

कित्तिय :: वि [कीर्त्तित] १ उक्त, कथित; 'कित्तियवंदियमहिया' (पडि) २ प्रशंसित, श्‍लाघित (ठा २, ४) ३ निरूपित, प्रति- पादित (तंदु)

कित्तिय :: वि [कियत्] कितना (गउड)।

किन्न :: वि [क्लिन्न] आर्द्रं, गीला (हे ४, ३२९)।

किन्ह :: देखो कण्ह (कप्प)।

किपाड :: वि [दे] स्खलित, गिरा हुआ (षड्)।

किब्बिस :: न [किल्बिष] १ पाप, पातक (पणह १, २) २ मांस; 'निग्गयं च से बीयपासेणं किब्बिसं' (स २६३) ३ पुं. चाण्डाल-स्थानीय देव-जाति (भग १२, ५) ४ वि. मलिन। ५ अधम, नीच (उत्त ३) ६ पापी, दुष्ट (धर्मं ३) ७ कुर्बर, चितकबरा (तंदु)

किब्बिसिय :: पुं [किल्बिषिक] १ चाण्डाल- स्थानीय देव-जाति (ठा ३, ४ — पत्र १६२) २ केवल वेषधारी साधु (भग) ३ वि. अधम, नीच (सूअ १, १, ३) ४ पाप- फल को भोगनेवासा दरिद्र, पंगु वगैरह (णाया १, १) ५ भाण्ड-चेष्टा करनेवाला (औप)

किब्बिसिया :: स्त्री [कौल्बिषिकी] १ भावना-विशेष, धर्म-गुरु वगैरह की निन्दा करने की आदत (धर्मं ३) २ केवल वेष-धारी साधु की वत्ति (भग)

किम :: (अप) अ [कथम्] क्यों, कैसे ? (हे ४, ४०१)।

किमण :: देखो किवण (आचा)।

किमस्स :: पुं [किमश्व] नृप-विशेष, जिसने इन्द्र को संग्राम में हराया था और शाप लगने से जो मरकर अजगर हुआ था (निचू १)।

किमी :: पुं [कृमि] १ क्षुद्र जीव, कीट-विशेष (पणह १, ३) २ पेट में, फुनसी में और बवासीर में उत्पन्‍न होनेवाला जन्तु-विशेष (जी १५) ३ द्वीन्द्रिय कीट-विशेष (पणह १, १-पत्र २३)। °य न [°ज] कृमि-तन्तु से उत्पन्‍न वस्त्र; 'कोसेज्जपट्टमाई जं, किमियं तु पवुच्चइ' (पंचभा)। °+राग, °राय पुं [°राग] किरमिजी का रंग (कम्म १, २०; दे २, ३२; पणह २, ४)। °रासि पुं [°राशि] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)

किमिघरवसण :: [दे] देखो किमिहरवसण (षड्)।

किमिच्छय :: न [किमिच्छक] इच्छानुसार दान (णाया १, ८ — पत्र १५०)।

किमिण :: वि [कृमिमत्] कृमि-युक्त; 'किमिणबहुदुरभिगंघेसु' (पणह २, ५)।

किमिराय :: वि [दे] लाक्षा से रक्त (दे २, ३२)।

किमिहरवसण :: न [दे] कौशेय-वस्त्र, रेशमी वस्त्र (दे २, ३३)।

किमु :: अ [किमु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न। २ वितर्क। ३ निन्दा। ४ निषेध (हे २, २१७, पिंग)

किमुय :: अ [किमुत] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ प्रश्‍न। २ विकल्प। ३ वितर्कं। ४ अतिशय (हे २, २१८); 'अमरनररायमहियं ति पूइयं तेहि, किमुय सेसेहिं' (विसे १०६१)

किम्मिय :: न [दे. किम्मित] जड़ता, जाड्य (राज)।

किम्मीर :: वि [किर्मीर] १ कर्बुर, कबरा (पाअ) २ पुं. राक्षस-विशेष, जिसको भीमसेन ने मारा था (वेणी ११७) ३ वंश-विशेष; 'जाया किम्मरवंसे' (रंभा)

किय :: देखो कीय (पिंड ३०६)।

कियंत :: वि [कियत्] कितना (सम्मत्त २२८)।

कियत्थ :: देखो कयत्थ (भवि)।

कियव्व :: देखो कइअव (उप ७२८ टी)।

किया :: देखो किरिया; 'हयं नाणं कियाहीणं' (हे २, १०४); 'मग्गणुसारी सद्धो पन्‍न- वणिज्जो कियावरो चेव' (उप १९९; विसे ३५९३ टी; कप्पू)।

कियाडिया :: स्त्री [दे] कानबूट्टी, कान का ऊपरी भाग (वव १)।

कियाणं :: देखो कर = कृ।

कियाणग :: न [क्रयाणक] किराना, नमक, मसाला आदि बेचने चीजें (सुर १, ६०)।

किर :: पुं [दे] सूकर, सूअर (दे २, ३०; षड्)।

किर :: अ [किल] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ संभावना। २ निश्‍चय। ३ हेतु, निश्‍चित कारण। ४ वार्त्ता-प्रसिद्ध अर्थ। ५ अरुचि। ६ अलीक, असत्य। ७ संशय, संदेह (हे २, १८६; गा १२६; प्रासू १७; दस १) ८ पाद-पूर्त्ति में भी इसका प्रयोग होता है (कम्म ४, ७६)

किर :: सक [कृ] १ फेंकना। २ पसारना, फैलाना। ३ बिखेरना। वकृ. किरंत (से ४, ५८; १४, ५७)

किरण :: पुंन [किरण] किरण, रश्‍मि, प्रभा (सुपा ३५१; गउड; प्रासू ८२)।

किरणिल्ल :: वि [किरणवत्] किरणवाला, तेजस्वी (सुर २, २४२)।

किराड, किराय :: पुं [किरात] १ अनार्यं देश-विदेश (पव १४८) २ भील, एक जंगली जाति (सुर २, २७; १८०; सुपा ३६१; हे १, १८३)

किरात :: (शौ) देखो किराय (प्राकृ ८६)।

किरि :: देखो किर = किल (सिरि ८३२, ८३४)।

किरि :: पुं [किरि] भालू की आवाज; 'कत्थइ किरित्ति कत्थइ हिरित्ति कत्थइ छिरित्ति रिच्छाणं सद्दो' (पउम ९४, ४५)।

किरि :: पुं [किरि] सूकर, सूअर (गउड)।

किरिआण :: देखो कयाण 'जम्मंतरगहिअपुन्‍न- किरिआणो' (कुलक २१)।

किरिइरिया, किरिकिरिआ :: स्त्री [दे] १ कर्णोपकर्णिका, एक कान से दूसरे कान गई हुई बात, गप। २ कुतूहल, कौतुक (दे २, ६१)

किरिकिरिया :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, बाँस आदि की कम्बा — लकडी से बना हुआ एक प्रकार का बाजा (आचा २, ११, १)।

किरित्तण :: देखो कित्तण (नाट — माल ९७)।

किरिया :: स्त्री [क्रिया] १ क्रिया, कृति, व्या- पार, प्रयत्‍न (सूअ २, १; ठा ३, ३) २ शास्त्रोक्त अनुष्ठान, धर्मानुष्ठान (सूअ २, ४; पव १४९) ३ सावद्य व्यापार (भग १७, १) ४ °ट्ठाण न [°स्थान] कर्मंबन्ध का कारण (सूअ २, २; आव ४) °वर वि [°पर] अनुष्ठान-कुशल (षड्)। °वाइ वि [°वादिन्] १ आस्तिक, जीवादि का अस्तित्व माननेवाला (ठा ४, ४) २ केवल क्रिया से ही भीक्षा होता है ऐसा मानेनवाला (सम १०९)। °विसाल न [°विशाल] एक जैन ग्रन्थांश, तेरहवाँ पूर्व-ग्रन्थ (सम २६)

किरीड :: पुं [किरीट] मुकुट, शिरो-भूषण (पाअ)।

किरीडि :: पुं [किरीटिन्] अर्जुंन, मध्यम पाण्डव (वेणी १९२)।

किरीत :: वि [क्रीत] कीना हुआ, खरीदा हुआ (प्राप्र)।

किरीय :: पुं [किरीय] १ एक म्लेच्छ देश। २ उसमें उत्पन्न म्लेच्छ जाति (राज)

किरोलय :: न [किरोलक] फल-विशेष, किरो- लिका वल्ली का फल (उर ६, ५)।

किल :: देखो किर = किल (हे २, १८६; गउड; कुमा)।

किलंत :: वि [क्लान्त] खिन्‍न, श्रान्त (षड्)।

किलंज :: न [किलिञ्ज] बाँस का एक पात्र, जिसमें गैया वगैरह को खाना खिलाया जाता है (उवा)।

किलंज :: न [किलिञ्ज] तृण-विशेष (धर्मवि १३५; १३६)।

किलकिल :: अक [किलकिलाय्] 'किल- किल' आवाज करना, हँसना; 'किलकिलइ व्व सहरिसं मणिकंचीकिंकिणिरिवेण' (कप्पू)।

किलकिलाइय :: न [किलकिलायित] 'किल- किल' ध्वनि, हर्ष-ध्वनि (आवम)।

किलणी :: स्त्री [दे] रथ्या, गली (दे २, ३१)।

किलम्म :: अक [क्लिम्] क्लान्त होना, खिन्न होना। किलम्मइ (कप्पू)। किलम्मसि (वज्जा ९२)। वकृ. किलम्मंत (पि १३६)।

किलाचक्क :: न [क्रीडाचक्र] इस नाम का एक छन्द — वृत्त (पिंग)।

किलाड :: पुं [किलाट] दूध का विकार-विशेष, मलाई (दे २, २२)।

किलाम :: सक [क्लमय्] क्लान्त करना, खिन्न करना, ग्लानि उत्पन्‍न करना। किलामेज्ज (पि १३६)। वकृ. किलामेंत (भग ५, ६)। कवकृ. किलामीअमाण (मा ४९)।

किलाम :: पुं [क्लम] खेद, परिश्रम, ग्लानि; 'खमणिज्जो भे किलामो' (पडि; विसे २४०४)।

किलामणया :: स्त्री [क्लमना] खिन्‍न करना, उत्पन्‍न करना (भग ३, ३)।

किलमणा :: स्त्री [क्लमना] क्लम, क्लेश (महानि ४)।

किलामिअ :: देखो किलंत (अणु १३९)।

किलामिअ :: वि [क्लमित] खिन्न किया हुआ, हैरान किया हुआ, पीड़ित; 'तणहाकिलामि- अंगो' (पउम १०३, २२; सुर १०, ४८)।

किलिंच :: न [दे] छोटी लकड़ी, लकड़ी का टुकड़ा; 'दंतंतरसोहणयं किलिंचमित्तंपि अवि- दिन्‍नं' (भत्त १०२; पाअ; दे २, ११)।

किलिंचिअ :: न [दे] ऊपर देखो (गा ८०)।

किलिंत :: देखो किलंत (नाट — मृच्छ २५; पि १३६)।

किलिकिंच :: अक [रम्] रमण करना, क्रीड़ा करना। किलिकिंचइ (हे ४, १६८)।

किलिकिंचिअ :: न [रत] रमण, क्रीड़ा, संभोग (कुमा)।

किलिकिल :: अक [किलकिलाय्] 'किल-किल' आवाज करना। वकृ. किलिकिलंत (उप १०३१ टी)।

किलिकिलि :: न [किलिकिलि] इस नाम का एक विद्याधरनगर (इक)।

किलिकिलिकिल :: देखो किलकिल। वकृ. किलिकिलिकिलंत (पउम ३३, ८)।

किलिगिलिय :: न [किलिकिलित] 'किल-किल' आवाज करना, हर्षं-द्योतक ध्वनि-विशेष (स ३७०; ३८५)।

किलिट्ठ :: वि [क्लिष्ट] १ क्लेश-युक्त (उत्त ३२) २ कठिन, विषमा। ३ क्लेश-जनक (प्राप्र; हे २, १०६; उव)

किलिण्ण :: देखो किलिन्न (स्वप्‍न ८५)।

किलित्त :: वि [क्लृप्त] कल्पित, रचित (प्राप्र; षड्; हे १, १४५)।

किलित्ति :: स्त्री [क्लृप्ति] रचना, कल्पना (पि ५९)।

किलिन्न :: वि [क्लिन्न] आर्द्र, गीला (हे १, १४५; २, १०६)।

किलिम्म :: देखो किलम्म। किलिम्मइ (पि १७७)। वकृ. किलिम्मंत (से ९, ८०; ११, ५०)।

किलिम्मिअ :: वि [दे] कथित, उक्त (दे २, ३२)।

किलिव :: देखो कीव (वव २; मै ४३)।

किलिस :: अक [क्लिश्] खेद पाना, थक जाना, दुःखी होना। वकृ. किलिसंत (पउम २१, ३८)।

किलिस :: देखो किलेस; 'मिच्छत्तमच्छभीयाण, किलिससलिलम्मि बुड्डाणं' (सुपा ९४)।

किलिसिअ :: वि [क्लेशित] आयासित, क्लेश- प्राप्त (स १४६)।

किलिस्स :: देखो किलिस = क्लिश्। किलिस्सइ (मह; उव)। वकृ. किलिस्संत (नाट — माल ३१)।

किलिस्सिअ :: वि [क्लिष्ट] क्लेश-प्राप्त, क्लेश- युक्त (उप पृ ११९)।

किलीण :: देखो किलिण्ण (भवि)।

किलीव :: देखो कीव (स ६०)।

किलेस :: अक [क्लिश्] क्लेश पाना, हैरान होना। किलेसइ (प्राकृ २७)।

किलेस :: पुं [क्लेश] १ खेद, थकावट (औप) २ दुःख, पीड़ा, बाधा (पउम २२, ७५; सुज्ज २०) ३ दुःख का कारण। ४ कर्म. शुभा- शुभ-कर्म (बृह १)। °यर वि [°कर] क्लेश- जनक (पउम २२, ७५)

किलेसिय :: वि [क्लेशित] दुःखी किया हुआ (सुर ४, १६७; १६९)।

किल्ला :: देखो किड्डा (मै ६१)।

किव :: पुं [कृप] १ इस नाम का एक ऋषि, कृपाचार्य (हे १, १२८); 'भाइसयसमग्गं गंगेयं विदुरं दोणं जयद्दहं सउणीं कीवं ( ? सउर्णि किवं) आसत्थामं' (णाया १, १६ — पत्र २०८)

किवँ :: (अप) देखो कहं (कुमा)।

किवण :: वि [कृपण] १ गरीब, रंक, दीन (सूअ १, १, ३; अच्चु ९७) २ दरिद्र, निर्धन (पणह १, २) ३ कंजूस, अदाता (दे २, ३१) ४ क्लीब, कायर (सूअ २, २)

किवा :: स्त्री [कृपा] दया, मेहरवानी (हे १, १२८)। °वन्न वि [°पन्न] कृपा-प्राप्त, दयालु (पउम ९५, ४७)।

किवाण :: पुंन [कृपाण] खड्ग, तलवार (सुपा १५८; हे १, १२८; गउड)।

किवालु :: वि [कृपालु] दयालु, दया करनेवाला (पउम ३४, ५०; ९७, २०)।

किविड :: न [दे] १ खलिहान, अन्न साफ करने का स्थान। २ वि. खलिहान में जो हुआ हो वह (दे २, ६०)

किविडी :: स्त्री [दे] १ किवाड़, पार्श्बं-द्वार। २ घर का पिछला आँगन (दे, २, ६०)

किविण :: देखो किवण (हे १, ४६; १२८; गा १३६; सुर ३, ४४; प्रासू ५१; पणह १, १)।

किवीडजोणि :: पुं [कृपीटयोनि] अग्‍नि (सम्मत्त २२६)।

किस :: सक [क्रशय्] ह्रसित करना, अपचित करना। किसए (सूअ १, २, १, १४)।

किस :: वि [कृश] १ दुर्बल, निर्बंल (उवर ११३) २ पतला (हे १, १२८; ठा ४, २)

किसंग :: वि [कृशाङ्ग] दुर्बल शरीरवाला (गा ६५७)।

किसर :: पुं [कृशर] १ पक्‍वान्न-विशेष, तिल, चावल और दूध की बनी हुई एक खाद्य चीज। २ खिचड़ी, चावल और दाल का मिश्रित भोजन-विशेष (हे १, १२८)

किसर :: देखो केसर 'महमहिअदसणकिसरं' (हे १, १४६)।

किसरा :: स्त्री [कृशरा] खिचड़ी, चावल-दाल का मिश्रित भोजन-विशेष (हे १, १२८; दे १, ८८)।

किसल :: देखो किसलय (हे १, २६९; कुमा)।

किसलइय :: वि [किसलयित] अंकुरित, नये अंकुरवाला (सुर ३, ३९)।

किसलय :: पुंन [किसलय] १ नूतन अंकुर (श्रा २०) २ कोमल पत्ता (जी ९); 'सव्वोवि किसलओ खलु उग्गममाणो अणंतओ भणिओ' (पणण १)। °माला स्त्री [°माला] छन्द-विशेष (अजि १९)

किसा :: देखो कासा (हे १, १२७)।

किसाणु :: पुं [कृशानु] १ अग्‍नि, वह्नि, आग। २ वृक्ष-विशेष, चित्रक वृक्ष। ३ तीन की संख्या (हे १, १२८; षड्)

किसि :: स्त्री [कृषि] खेती, चास (विसे १६१५; सुर १५, २००; प्राप्र)।

किसिअ :: वि [कृशित] दुर्बलता-प्राप्त, कृशता- युक्त (गा ४०; वज्जा ४०)।

किसिअ :: वि [कृषित] १ विलखित, रेखा किया हुआ। २ जोता हुआ, कृष्ट। ३ खींचा हुआ (हे १, १२८)

किसीवल :: पुं [कृषीवल] कर्षंक, किसान; 'पायं परस्स धन्‍नं भक्खंति किसीवला पुव्विं' (श्रा १६)।

किसोर :: पुं [किशोर] बाल्यावस्था के बाद की अवस्थावाला बालक; 'सीहकिसोरोव्व गुहाओ निग्गओ' (सुपा ५४१)।

किसोरी :: स्त्री [किशोरी] कुमारी, अविवाहिता युवती (णाया १, ९)।

किस्स :: देखो किलिस = क्लिश्। संकृ. किस्स- इत्ता (सूअ १, ३, २)।

किह, किहं :: देखो कहं (आचा; कुमा; भाग ३, २; णाया १, १७)।

कीअ :: देखो कीव (षड्; प्राप्र)।

कीइस :: वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का (स १४०)।

किकस :: पुं [कीकश] १ कृमि-जन्तु-विशेष। २ न. हड्डी, हाड़। ३ वि. कठिन, कठोर (राज)

कीचअ :: देखो कीयग (वेणी १७७)।

कीड :: देखो किड्ड = क्रीड्। भवि. कीडिस्सं (पि २२६)।

कीड :: पुं [कीट] १ कीड़ा, क्षुद्र जन्तु (उव) २ कीट-विशेष, चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त २)

कीडइल्ल :: वि [कीटवत्] कीड़ावाला, कीटक- युक्त (गउड)।

कीडण :: न [क्रीडन] खेल, क्रीड़ा (सुर १, स ११८)।

कीडय :: पुं [कीटक] देखो कीड = कीट (नाट; सुपा ३७०)।

कीडय :: न [कीटज] कीड़े के तन्तु से उत्पन्न होनेवाला वस्त्र, वस्त्र-विशेष (अणु)।

कीडा :: देखो किड्डा (सुर ३, ११६; उवा)।

कीडाविया :: देखो किड्डाविया (राज)।

किडिया :: स्त्री [कीटिका] पिपीलिका, चींटी (सुर १०, १७९)।

कीडी :: स्त्री [कीटी] ऊपर देखो (उप १४७ टी; दे २, ३)।

कीण :: सक [क्री] खरीदना, मोल लेना। कीणइ, कीणए (षड्)। भवि. कीणिस्सँ (पि ५११; ५३४)।

कीणास :: पुं [कीनाश] यम, जम (पाअ; सुपा १८३)। °गिह [°गृह] मृत्यु, मौत (उप १३६ टी)।

किदिस :: (शौ) देखो कीरिस (प्राकृ ८३)।

कीय :: वि [क्रीत] १ खरीदा हुआ, मोल किया हुआ (सम ३९; पणह २, १; सुपा ३४५) २ जैन साधुऔं के लिए भिक्षा का एक दोष (ठा ३, ४) ३ न. क्रय, खरीद (दस ३; सूअ १, ९) °कड, °गड वि [°कृत] १ मूल्य देकर लिया हुआ (बृह १) २ साधु के लिए मोल से कीना हुआ, जैन साधु के लिए भिक्षा-दोष-युक्त वस्तु (पि ३३०)

कीयग :: पुं [कीचक] विराट देश के राजा का साला, जिसको भीम ने मारा था (उप ६४८ टी); 'नवमं दूयं विराडनयरं, तत्थ णं तुमं कि (? की) यगं भाउसयसमग्गं' (णाया १, १६ — पत्र २०९)।

कीया :: स्त्री [कीका] नयन-तारा, 'मरकतम- सारकलित्तनयणकीयरासिवन्‍ने' (णाया १, १ टी — पत्र ६)।

कीर :: पुं [दे. कीर] शुक, तोता, सुग्गा (दे २, २१; उर १, १४)।

कीर :: पुं [कीर] १ देश-विशेष, काश्मीर देश। २ वि. काश्मीर देश संबन्धी। ३ बि. काश्मीर देश में उत्पन्न (विसे ४६४ टी)

कीरंत, कीरमाण :: देखो कर = कृ।

कीरल :: पुं [कीरल] देश-विशेष (पउम ९८, ६४)।

कीरिस :: देखो केरिस (गा ३७४; मा ४)।

कीरी :: स्त्री [कीरी] लिपि-विशेष, कीर देश की लिपि (विसे ४६४ टी)।

कील :: अक [क्रीड्] क्रीड़ा करना, खेलना। कीलइ (प्राप्र)। वकृ. कीलंत, कीलमाण (सुर १, १२; पि २४०)। संकृ. कीलेत्ता, कीलिऊण (सुर १, ११७; पि २४०)।

कील :: वि [दे] स्तोक, अल्प, थोड़ा (दे २, २१)।

किल :: देखो खील (पाअ)।

कील :: पुंन [दे कील] कंठ, गला (सूअ १, ५, १, ९)।

कीलण :: न [कीलन] कील से बन्धन, खीले में नियन्त्रण; 'फणिमणिकीलणदुक्खं विम्हरियं पुहविदेवीए' (मोह २०)।

कीलण :: न [क्रीडन] क्रीड़ा, खेल (औप)। °धाई स्त्री [°धात्री] बालक को खेल-कूद करानेवाली दाई (णाया १, १)।

कीलणअ :: न [क्रीडनक] खिलौना (अभि २४२)।

कीलणिआ, किलणी :: स्त्री [दे] रथ्या, गली (दे २, ३१)।

कीला :: स्त्री [दे] १ नव-वधू, दुलहिन (दे २, ३३)

कीला :: स्त्री [कीला] सुरत समय में किया जाता हृदय-ताड़न विशेष (दे २, ६४)।

कीला :: स्त्री [क्रीडा] खेल, क्रीडन (सुपा ३५८; सुर १, ११७)। °वास पुं [°वास] क्रीड़ा करने का स्थान (इक)।

कीलाल :: न [कीलाल] रुधिर, खून, रक्त (उप ८६; पाअ)।

कीलालिअ :: वि [कीलालित] रुधिर-युक्त, खूनवाला (गउड)।

कलावण :: न [क्रीडन] खेल कराना (णाया १, २)।

कीलावणय :: न [क्रीडानक] खिलौना (निर १, १)।

कलिअ :: न [क्रीडित] क्रीड़ा, रमण, क्रीड़न (सम १५; स २४१)।

कीलिअ :: वि [कीलित] खूँटा ठोका हुआ, 'लिहयव्व कीलियव्व' (मह; सुपा २५४)।

कीलिआ :: स्त्री [कीलिका] १ छोटा खूँटा, खूँटी (कम्म १, ३९) २ शरीर-संहनन-विशेष, शरीर का एक प्रकार का बाँधा, जिसमें हड्डियाँ केवल खूँटी से बँधी हुई हों ऐसा शरीर-बन्धन (सम १४९; कम्म १, ३९)

कीव :: पुं [क्लीब] १ नपुंसक (बृह ४) २ वि. कातर, अधीर (सुर २, १४; णाया १, १)

कीव :: पुं [दे. कीव] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।

कीस :: वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का (भग; पणण ३४)।

कीस :: वि [किंस्व] कौन स्वभाववाला, कैसे स्वभाव का (भग)।

कीस :: अ [कस्मात्] क्यों, किस से, किस कारण से ? (उव; हे ३, ६८)।

कीस :: देखो किलिस्स। कीसंति (उत्त १९, १५; वै ३३)। वकृ. कीसंत (वै ८३)।

कु :: अ [कु] १ अल्प, थोड़ा। २ निषिद्ध, निवा- रित। ३ कुत्सित, निन्दित (हे २, २१७; से १, २६; सम्म १) ४ विशेष, ज्यादा (णाया १, १४) °उरिस पुं [°पुरुष] खरबा आदमी, दुर्जंन (से १२, ३३)। °चर वि [°चर] खरबा चाल-चलनवाला, सदाचार- रहित (आचा)। °डंड पुं [°दण्ड] पाश- विशेष, जिसका प्रान्त भाग काष्ठ का होता है ऐसा रज्जु-पास (पणह १, ३)। °डंडिम वि [°दण्डिम] दण्ड देकर छीना हुआ द्रव्य (विपा १, ३)। °तित्थ न [°तीर्थ] १ जलाशय में उतरने का खराब मार्ग (प्रासू ९०) २ दूषित दर्शन (सूअ १, १, १) ३ °तित्थि वि [°तीर्थिन्] दूषित मत का अनुयायी (कुमा)।°दंडिम देखो डंडिम (णाया १, १ — पत्र ३७)। °दंसण न [°दर्शन] दुष्ट मत, दूषित धर्म (पणण २) °दंसणि वि [°दर्शनिन्] १ दुष्ट दार्शंनिक। २ दूषित मत का अनुयायी (श्रा ६) °दिट्ठि़ स्त्री [°दृष्टि] १ कुत्सित दर्शंन (उत्त २८) २ दूषित मत का अनुयायी (धर्मं २) °दिट्ठिय वि [°दृष्टिक] दुष्ट दर्शंन का अनु- यायी, मिथ्यात्वी (पउम ३०, ४४)। °प्पव- यण न [°प्रवचन] १ दूषित शास्त्र। २ वि. दूषित सिद्धान्त को माननेवाला (अणु) °प्पवयणिय वि [°प्रावचनिक] १ दूषित सिद्धान्त का अनुसरण करनेवाला (सूअ १, २, २) २ दूषित आगम-संबन्धी (अनुष्ठान) (अणु) °भत्त न [°भक्त] खराब भोजन (पउम २०, १६६)। °मार पुं [°मार] १ कुत्सित मार (सूअ २, २) २ अत्यन्त मार, मृत-प्राय करनेवाला ताड़न (णाया १, १४) °रंडा स्त्री [°रण्डा] राँड़, विधवा (श्रा १६)। °रुव, °रूव न [°रूप] १ खराब रूप (उप ३६२ टी; पणह १, ४) २ माया- विशेष (भग १२, ५) °लिंग न [°लिङ्ग] १ कुत्सित भेष (दंस) २ पुं. कीट वगैरह क्षुद्र जन्तु (विसे १७५४) ३ वि. कुतीर्थिक, दूषित धर्मं का अनुयायी (आवम) °लिंगि पुं [लिङ्गिन्] १ कीट वगैरह क्षुद्र जन्तु (ओघ ७४८) २ वि. कुतीर्थिक, असत्य धर्मं का अनुयायी (पणह १, २) °वय न [°पद] खराब शब्द; 'सो सोहइ दूसंतो, कइयणरइयाइं विविहकध्वाइं। जो भँजिऊण कुवयं, अन्नपयं सुंदरं देइ' (वज्जा ६)। °वियप्प पुं [°विकल्प] कुत्सित विचार (सुपा ४४)। °वुरिस देखो °उरिस (पउम ६५, ४५)। °संसग्ग पुं [°संसर्ग] खराब सोहबत, दुर्जंन-संगति (धर्म ३)। °सत्थ पुंन [°शास्त्र] कुत्सित शास्त्र, अनाप्त-प्रणीत सिद्धान्त; 'ईसरमयाइया सव्वे कुसत्था' (निचू ११)। °समय पुं [°समय] १ अनाप्‍त- प्रणीत शास्त्र (सम्म १) २ वि. कुतीर्थिक, कुशास्त्र का प्रणेता और अनुयायी (सम्म १) °सल्लिय वि [°शल्यिक] जिसके भीतर खराब शल्य घुस गया हो वह (पणह २, ४)। °सील न [°शील] १ खराब स्वभाव (आचा) २ अब्रह्मचर्य, व्यभिचार (ठा ४, ४) ३ वि. जिसका आचरण अच्छा न हो वह, दुराचारी (ओघ ७६३) ४ अब्रह्मचारी, व्यभिचारी (ठा ५, ३)। °स्सुमिण पुंन [°स्वप्‍न] खराब स्वप्‍न (श्रा ६)। °हण वि [°धन] अल्प धनवाला, दरिद्र (पणह २, १ — पत्र १००)

कु :: स्त्री [कु] १ पृथिवी, भूमि; 'कुसमयवि- सासणं' (सम्म १ टी — पत्र ११४; से १, २६)। °त्तिअ न [°त्रिक] १ तीनों जगत्, स्वर्गं, मर्त्य और पाताल लोक। २ तीन जगत् में स्थित पदार्थं (औप)। °त्तिअ वि [°त्रिज] तीनों जगत् में उत्पन्‍न वस्तु (आवम)। °त्तिआवण पुंन [°त्रिकापण] तीनों जगत् के पदार्थ जहाँ मिस सके ऐसी दूकान (भग; णाया १, १ — पत्र ५३)। °वलय न [°वलय] पृथ्वी-मण्डल (श्रा २७)

कुअरी :: देखो कुआँरी (पि २५१)।

कुअलअ :: देखो कुवलय (प्राप्र)।

कुआँरी :: देखो कुमारी (गा २९८)।

कुइअ :: वि [कुचित] सकुचा हुआ (पव ६२)।

कुइमाण :: वि [दे] म्लान, शुष्क (दे २, ४०)।

कुइय :: वि [कुचित] अवस्यान्दित, क्षरित (ठा ६)।

कुइय :: वि [कुपित] क्रुद्ध, कोप-युक्त (भवि)।

कुइयण्ण :: पुं [कुविकर्ण] इस नाम का एक गृहपति, एक गृहस्थ (विसे ६३२)।

कुउअ :: पुंन [कुतुप] स्‍नेह पात्र, घी तैल वगैरह भरने का चमड़े का पात्र-विशेष; 'तुप्पाइं' को (? कु) उआइं (पाअ) देखो कुतुव।

कुउआ :: स्त्री [दे] तुम्बी-पात्र, तुम्बा (दे २, १२)।

कुउव :: देखो कुउअ (पिंड ५५७)।

कुऊल :: न [दे] १ नीवी, नारा, इजारबन्द। २ पहने हुए कपड़े का प्रांत भाग, अञ्चल (दे २, ३८)

कुऊहल :: न [कुतूहल] १ अपूर्वं वस्तु देखने की लालसा — उत्सुकत। २ कौतुक, परि- हास (हे १, ११७; कुमा)

कुओ :: अ [कुतः] कहाँ से ? (षड्)। °इ अ [°चित्] कहीं से, किसी से (स १८५)। °वि अ [°अपि] कहीं से भी (काल)।

कुंआरी :: स्त्री [कुमारी] वनस्पति-विशेष, कुवारपाठा, धीकुवार, घीगुवार (श्रा २०; जी १०)।

कुंकण :: न [दे] १ कोकनद, रक्त-कमल (पणण १ — पत्र ४०) २ पुं. क्षुद्र जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय कीड़े की एक जाति (उत्त ३६)

कुंकण :: पुं [कोङ्कण] देश-विशेष (अणु; सार्धं ३४)।

कुंकुण :: देखो कुंकण (सिरि २८६)।

कुंकम :: न [कुङ्कुम] केसर, सुगन्धी द्रव्य- विशेष (कुमा; श्रा १८)।

कुंग :: पुं [कुङ्ग] देश-विशेष (भवि)।

कुंच :: सक [कुञ्च्] १ जाना, चलना। २ अक. संकुचित होना। ३ टेढ़ा चलना (कुमा; गउड)

कुंच :: पुं [°कौञ्च] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १; उप पृ २०८; उर १, १४) २ इस नाम का एक असुर (पाअ) ३ इस नाम का एक अनार्य देश। ४ वि. उसके निवासी लोग (पव २७४)। °रवा स्त्री [°रवा] दण्डकारण्य की इस नाम की एक नदी (पउम ४२, १५)। °वीरग न [°वीरक] एक प्रकार का जहाज (निचू १६)। °रि पुं [°रि] कार्त्तिकेय, स्कन्द (पाअ)। देखो कोंच।

कुंचल :: न [दे] मुकुल, कली, बौर (दे २, ३६; पाअ)।

कुंचि :: वि [कुञ्चित] १ कुटिल, वक्र। २ मायावी, कपटी (वव १)

कुंचिगा :: देखो कोंचिगा।

कुंचिय :: वि [कुञ्चित] १ संकुचित (सुपा ५८) २ कुण्डल के आकारवाला, गोलाकृति (औप; जं २) ३ कुटिल, वक्र (वव १)

कुंचिय :: पुं [कुञ्चिक] इस नाम का एक जैन उपासक (भत्त १३३)।

कुंचिया :: देखो कोंचिगा। रूई से भरा हुआ पहनने का एक प्रकार का कपड़ा (जीत)।

कुंचिया :: स्त्री [कुञ्चिका] कुञ्जी, ताली (पिंड ३५६)।

कुंजर :: पुं [कुञ्जर] हस्ती, हाथी (हे १, ६६ पाअ)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष, हस्तिनापुर (पउम ९५, ३४)। °सेणा स्त्री [°सेना] ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्ती की एक रानी (उत्त २९)। °वत्त न [°वर्त] नगर- विशेष (सुर ३, ८८)।

कुंट :: वि [कुण्ट] १ कुब्ज, वामन (आचा) २ हाथ-रहित, हस्त-हीन (पव ११०; निचू ११; आचा)

कुंटलविटल :: न [दे] १ मंत्र-तंत्रादि का प्रयोग, पाखण्ड-विशेष (आवम) २ वि. मंत्र- तंत्रादि से आजीविका चलानेवाला (आक)

कुंटार :: वि [दे] म्लान, सूखा, मलिन (दे २, ४०)।

कुंटि :: स्त्री [दे] १ गठरी, गाँठ (दे २, ३४) २ शस्त्र-विशेष, एक प्रकार का औजार; 'मुसलुक्खलहलदंतालकुंटिकुद्दालपमुहसत्थाणं' (सुपा ५२६)

कुंठ :: वि [कुण्ठ] १ मन्द, आलसी (श्रा १६) २ मूर्खं, बुद्धि-रहित (आचा)

कुंठी :: स्त्री [दे] सँड़सी, चीमटा (वज्जा ११४)।

कुंड :: न [कुण्ड] १ कुंडा, पात्र-विशेष (षड्) २ जलाशय-विशेष (णंदि) ३ इस नाम का एक सरोवर (ती ३४) ४ आज्ञा, आदेश; 'वेसमणकिंडधारिणोतिरियजंभगा देवा' (कप्प)। °कोलिय पुं [°कोलिक] एक जैन उपासक (उवा) °ग्गाम पुं [°ग्राम] मगध देश का एक गाँव (कप्प; पउम २, २१)। °धारि वि [°धारिन्] आज्ञाकारी (कप्प)। °पुर न [°पुर] ग्राम-विशेष (कप्प)

कुंड :: न [दे] ऊख पेरने का जीर्णं काण्ड, जो बाँस का बना हुआ होता है (दे २, ३३; ४, ४५)।

कुंडग :: पुंन [कुण्डक] १ अन्‍न का छिलका (उत्त १, ५; आचा २, १, ८, ६) २ चावल से मिश्रित भूसा (उत्त १, ५)

कुंडमी :: स्त्री [दे. कुटभी] छोटी पताका (आवम)।

कुंडमोअ :: पुंन [कुण्डमोद] हाथी के पैर की आकृतिवाला मिट्टी का एक तरह का पात्र (दस ६, ५१)।

कुंडल :: पुंन [कुण्डल] १ एक देव-विमान (देवेन्द्र १४५) २ तप-विशेष; 'पुरिमड्ड' या निर्विकृतिक तप (संबोध ५७)

कुंडल :: पुंन [कुण्डल] १ कान का आभूषण (भग; औप) २ पुं. विदर्भं देश के एक राजा का नाम (पउम ३०, ७७) ३ द्वीप- विशेष। ४ समुद्र-विशेष। ५ देव-विशेष (जीव ३) ६ पर्वत-विशेष (ठा १०) ७ गोल आकार (सुपा ९२) °भद्द पुं [°भद्र] कुण्डल द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३)। °मंडिअ वि [°मण्डित] १ कुण्डल से विभूषित। २ विदर्भं देश का इस नाम का एक राजा (पउम ३०, ७४) °महाभद्द पुं [°महाभद्र] देव-विशेष (जीव ३)। °महावर पुं [°महावर] कुण्डलवर समुद्र का अधिष्ठाता देव (सुज्जा १९)। °वर पुं [°वर] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र-विशेष। ३ देव-विशेष (जीव ३) ४ पर्वंत-विशेष (ठा ३, ४) °वरभद्द पुं [°वरभद्र] कुण्डलवर द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (जीव ३)। °वरमहाभद्द पुं [°वरमहा- भद्र] कुण्डलवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °वरोभीस पुं [°वराव- भास] १ द्वीप-विशेष। २ समुद्र-विशेष (जीव ३)। °वरोभासभद्द पुं [°वराव- भासभद्र] कुण्डलवरावभास द्वीप का अधि- ष्ठाता देव (जीव ३)। °वरोभासमहाभद्द पुं [°वरावभासमहाभद्र] देखो पूर्वोक्त अर्थं (जीव ३)। °वरोभासमहावर पुं [°वरावभासमहावर] कु्डलवरावभास समुद्र का अधिष्ठायक देव-विशेष (जीव ३)। °वरोभासवर पुं [°वरावभासवर] समुद्र- विशेष का अधिपति देव-विशेष (जीव ३)

कुंडला :: स्त्री [कुण्डला] विदेहवर्षं-स्थित नगरी विशेष (ठा २, ३)।

कुंडलि :: वि [कुण्डलिन्] कुण्डलवाला (भास ३३)।

कुंडलिअ :: वि [कुण्डलित] वर्त्तुल, गोल आकारवाला (सुपा ९२; कप्पू)।

कुडलिआ :: वि [कुण्डलिका] छन्द-विशेष (पिंग)।

कुंडलोद :: पुं [कुण्डलोद] इस नाम का एक समुद्र (सुज्ज १९)।

कुंडाग :: पुं [कुण्डाक] संनिवेश-विशेष, ग्राम- विशेष (आवम)।

कुंडि :: देखो कुडी (महा)।

कुंडिअ :: पुं [द] ग्राम का अधिपति, गाँव का मुखिया (दे २, ३७)।

कुंडिअपेसण :: न [दे] ब्राह्मण विष्टि, ब्राह्मण की नौकरी, ब्राह्मण की सेवा (दे २, ४३)।

किंडिगा, कुडिया :: स्त्री [कुण्डिका] नीचे देखो (रंभा; अनु ५; भग; णाया २, ५)।

कुंडिण :: न [कुण्डिन] विदर्भं देश का एक नगर (कुप्र ४८)।

कुंडी :: स्त्री [कुण्डी] १ कुण्डा, पात्र-विशेष; 'तेसिमहोभूमीए ठविया कुंडी य तेल्लपडि- पुन्‍ना' (सुपा २६९) २ कमण्डल, संन्यासी का जल-पात्र (महा)

कुंढ :: देखो कुंठ (सुपा ४२२)।

कुंढय :: न [दे] १ चुल्ली, चूल्हा। २ छोटा बरतन (दे २, ६३)

कुंत :: पुं [दे] शुक, तोता, सुग्गा (दे २, २१)।

कुंत :: पुं [कुन्त] १हथियार-विशेंष, माला (पणह १, १; औप) २ राम के एक सुभट का नाम (पउम ५९, ३८)

कुंतल :: पुं [कुन्तल] १ केश, बाल (सुर १, १; सुपा ६१; २००) २ देश-विशेष (सुपा ६१; उव ४१५)। °हार पुं [°हार] धम्मिल्ल, संयत केश, बाँधे हुए बाल (पाअ)

कुंतल :: पुं [दे] सातवाहन, नृप-विशेष (दे २, ३६)।

कुंतला :: स्त्री [कुन्तला] इस नाम की एक रानी (दंस)।

कुंतला :: स्त्री [दे] करोटिका, परोसने का एक उपकरण (दे २, ३८)।

कुतली :: स्त्री [कुन्तली] कुन्तल देश की रहनेवाली स्त्री (कप्पू)।

कुंताकुंति :: न [कुन्ताकुन्ति] बर्छे की लड़ाई (सिरि १०३२)।

कुती :: स्त्री [दे] मंजरी, बौर (दे २, ३४)।

कुंती :: स्त्री [कुन्ती] पाण्डवों की माता का नाम (उप ६४८)। °विहार पुं [°विहार] नासिक-नगर का एक जैन मन्दिर, जिसको जीर्णोद्धार कुन्तीजी ने किया था (ती २८)।

कुतीपोट्टलय :: वि [दे] चतुष्कोण, चार कोनवाला, चौकोर (दे २, ४३)।

कुंथुं :: पुं [कुन्थु] १ एक जिन-देव, इस अव- सर्पिणी काल में उत्पन्‍न सत्तरहवाँ तीर्थंकर और छठवाँ चक्रवर्ती राजा (सम ४३; पडि) २ हरिवंश का एक राजा (पउम २२, ९८) ३ चमरेन्द्र की हस्ति-सेना का अधिपति देव-विशेष (ठा ५, १ — पत्र ३०२) ४ एक क्षुद्र जन्तु, त्रीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६; जी १७)

कुंद :: पुं [कुन्द] १ पुष्प-वृक्ष विशेष (जं २) २ न. पुष्प-विशेंष, कुन्द का फूल (सुर २, ७६; णाया १, १) ३ विद्या- धरों का एक नगर (इक) ४ पुंन. छन्द-विशेष (पिंग)

कुंदय :: वि [दे] कृश, दुर्बंल (दे २, ३७)।

कुंदा :: स्त्री [कुन्दा] एक इन्द्राणी, मानिभद्र इंद्र की पटरानी (इक)।

कुंदीर :: न [दे] बिम्बी-फल, कुन्दरुन का फल (दे २, ३९)।

कुंदुक्क :: पुं [कुन्दुक्क] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ४१)।

कुंदरुक्क :: पुं [कुन्दुरुक] सुगन्धि पदार्थ-विशेष (णाया १, १ — पत्र ४१; सम १३७)।

कुंदुल्लुअ :: पुं [दे] पक्षि-विशेष, उलूक, उल्लु (पाअ)।

कुंधर :: पुं [दे] छोटी मछली (दे २, ३२)।

कुंपय :: पुंन [कूपक] तैल वगैरह रखने का पात्र-विशेष (रयण ३१)।

कुंपल :: पुंन [कुट्‍मल, कुड्‍मल] १ इस नाम का एक नरक। २ मुकुल, कली, कलिका (हे १, २६; कुमा; षड्)

कुंबर :: [दे] देखो कुंधर (पाअ)।

कुभ :: पुं [कुम्भ] १-३ साठ, अस्सी और एक सौ आढक की नाप (अणु १५१; तंदु २९) ४ ज्योतिष-प्रसिद्ध एक राशि (विचार १०६) ५ एक बाजा (राय ४६)

कुंभ :: पुं [कुम्भ] १ स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा, भगवान् मल्लिनाथ का पिता (सम १५१; पउम २०, ४५) २ स्वनाम-ख्यात जैन महर्षि, अठारहवें तीर्थंकर के प्रथम शिष्य (सम १५२) ३ कुम्भकर्णं का एक पुत्र (से १२, ६५) ४ एक विद्याधर सुभट का नाम (पउम १०, १३) ५ परमाधार्मिक देवों की एक जाति (सम २९) ६ कलश, धड़ा (महा; कुमा) ७ हाथी का गण्ड-स्थल (कुमा) ८ धान्य मापने का एक परिमाण (अणु)| ९तरने का उपकरण (निचू १) १० ललाट, भाल-स्थल (पव २) ११ °अण्ण पुं [°कर्ण] रावण के छोटे भाई का नाम (१५, ११)। °आर पुं [°कार] कुम्हार, घड़ा आदि मिट्टी का बरतन बनानेवाला (हे १, ८)। °उर न [°पुर] नगर- विशेष (दंस)। °गार देखो °आर (महा)। °ग्ग न [°ग्र] मगध-देश-प्रसिद्ध एक परिमाण (णाया १, ८ — पत्र १२५)। °सेण पुं [°सेन] उत्सिर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर के प्रथम शिष्य का नाम (तित्थ)

कुंभंड :: न [कुष्माण्ड] फल-विशेष, कोहँड़ा, कुम्हड़ा (कप्पू)।

कुंभार :: पुं [कुम्भकार] कुम्हार, घड़ा आदि मिट्टी का बरतन बनानेवाला (हे १, ८)। °वाय पुं [°पाक] कुम्हार का बरतन पकाने का स्थान (ठा ८)।

कुंभि :: पुं [कुम्भिन्] १ हस्ती, हाथी (सण) २ नपुंसक-विशेष, एक प्रकार का षंड पुरुष (पुप्फ १२७)

कुंभिक्क :: देखो कुंभिय (राय ३७)।

कुंभिणी :: स्त्री [दे] जल का गर्त (दे २. ३८)।

कुंभिय :: वि [कुम्भिक] कुम्भ-परिमाणवाला (ठा ४, २)।

कुंभिल :: पुं [दे. कुम्भिल] १ चोर, स्तेन (दे २, ६२; विक ५६) २ पिशुन, दुर्जन (दे २, ६२)

किंभिल्ल :: वि [दे] खोदने योग्य (दे २, ३९)।

कुंभी :: स्त्री [कुम्भी] १ पात्र-विशेष, घड़े के आकारवाला छोटा कोष्ठ (सम १२५) २ कुंभ, घड़ा (जं ३) °पाग पुं [°पाक] १ कुंभी में पकना (पणह २, ५) २ नरक की एक प्रकार की यातना (सूअ १, १, १)

कुंभी :: स्त्री [कूष्माण्डी] कोहँड़ा का गाछ, 'चलिओ कुंभीफल दंतुरासु' (गउड)।

कुंभी :: स्त्री [दे] केश-रचना, केश-संयम (दे २ ३४)।

कुंभील :: पुं [कुम्भील] जलचर प्राणी-विशेष, नक्र, मगर (चारु ६४)।

कुंभुब्भव :: पुं [कुम्भोद्‍भव] ऋषि-विशेष, अगस्त्य ऋषि (कप्पू)।

कुकम्मि :: वि [कुकर्मिन्] खराब कर्मं करनेवाला (सूअ १, ७, १८)।

कुकुला :: स्त्री [दे] नवोढ़ा, दुलहिन (दे २, ३३)।

कुकुस :: [दे] देखो कुक्कुस (दस ५, १३४)।

कुकुहाइय :: न [कुकुहायित] चलते समय का शब्द-विशेष (तंदु)।

कुकूल :: पुं [कुकूल] करीषाग्‍नि, कंडे की आग (पणह १, १)।

कुक्क :: देखो कोक्क। कुक्कइ (पि १९७; ४८८)।

कुक्क :: पुं [दे] कुत्ता, कुक्कुर; 'कुक्केहि कुक्काहि अ बुक्कअंते' (मृच्छ ३६)।

कुक्कयय :: न [दे] आभरण-विशेष; 'अदु अंजर्णि अलंकार कुक्कययं मे पयच्छाहि' (सूअ १, ४, २, ७)। देखो कुक्कुडय।

कुक्की :: स्त्री [दे] कुत्ती, कुक्कुरी (मृच्छ ३६)।

कुक्कुअ :: वि [कुत्कुच] भाँड की तरह शरीर के अवयवों की कुचेष्टा करनेवाला (धर्मं २; पव ६)।

कुक्कुअ :: न [कौकुच्य] कुचेष्टा, कामात्पादक अंग-विकार (पउम ११, ६७; आचा)।

कुक्कुअ :: वि [कुकूज] आक्रदन करनेवाला (उत्त २१)।

कुक्कुआ :: स्त्री [कुचकुचा] अवस्यन्दन, क्षरण, रस-रस कर चूना, रसना (बृह ६)।

कुक्कुइअ :: वि [कौकुचिक] भाँड़ की तरह कुचेष्टा करनेवाला, काम-चेष्टा करनेवाला (भग; औप)।

कुक्कुइअ :: न [कौकुच्य] काम-कुचेष्टा, 'भंडाईण व नयणाइयाण सवियारकरणमिह भणियं। कुक्कुइयं' (सुपा ५०९; पडि)।

कुक्कुड :: पुं [कुर्कट] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (उत्त ३६, १४८)।

कुक्कुड :: पुं [कुक्कुट] १ कुक्कुट, मुर्गा (गा ५८२; उवा) २ वनस्पति-विशेष (भग १५) ३ विद्या द्वारा किया जाता हस्त- प्रयोग-विशेष (वव १) °मंसय न [°मांस- क] १ मुर्गा का मांस। २ बीजपूरक वनस्पति का गुदा (भग १५)

कुक्कुड :: वि [दे] मत्त, उन्मत्त (दे २, ३७)।

कुक्कुडय :: न [कुक्कुटक] देखो कुक्कयय (सूअ १, ४, २, ७ टी)।

कुक्कुडिया, कुक्कुडी :: स्त्री [कुक्कुटिका, °टी] कुक्कुटी, मुर्गा (णाया १, ३; विपा १, ३)।

कुक्कुडी :: स्त्री [कुक्कुटी] माया, कपट (पिंड २९७)।

कुक्कुडेसर :: न [कुक्कुटेश्‍वर] तीर्थं-विशेष (ती १६)।

कुक्कुर :: पुं [कुक्कुर] कुत्ता, श्‍वान (पउम ९४, ८०; सुपा २७७)।

कुक्कुरुड :: पुं [दे] निकर, समूह (दे २, १३)।

कुक्कुस :: पुं [दे] धान्य आदि का छिलका, भूसा (दे २, ३६; दस ५, १, ३४)।

कुक्कुह :: पुं [कुक्कुभ] पक्षि-विशेष (गउड)।

कुक्कुहाइअ :: न [दे] चलते समय का अश्‍व का शब्द-विशेष (तंदु ५३)।

कुक्खि :: [दे. कुक्षि] देखो कुच्छि (दे २, ३४; औप; स्वप्‍न ६१; करु ३३)।

कुक्खिंभरि :: देखो कुच्छिंभरि (धर्मवि १४९)।

कुक्खेअअ :: देखो कुच्छेअय (संक्षि ६)।

कुग्गाह :: पुं [कुग्राह] १ कदाग्रह, हठ (उप ८३३ टी) २ जल-जन्तु विशेष; 'कुग्गाह- गाहाइयजंतुसंकुलो' (सुपा ६२६)

कुच :: पु [कुच] स्तन, थन (कुमा)।

कुचोज्ज :: न [कुचोद्य] कुतर्क (धर्मंसं ११७५)।

कुच्च :: पुं [कूर्च] कंघी, बाल सँवारने का उप- करण (उत्त २२, ३०)।

कुच्च :: न [कूर्च] १ दाढ़ी-मूँछ (पाअ; अभि २१२) २ तृण-विशेष (पणह २, ३)। देखो कुच्चग।

कुच्चंधरा :: स्त्री [कूर्चधरा] दाढ़ी-मूँछ, धारण करनेवाली (ओघ ८३ भा)।

कुच्चग :: वि [कौर्चक] शर-नामक गाछ क बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।

कुच्चग, कुच्चय :: देखो कुच्च (आचा २, २, ३; काल)। ३ कूँची, तृण-निर्मित तूलिका, जिससे दीवाल में चूना लगाया जाता है (उप पृ ३४३; कुमा)।

कुच्चिय :: वि [कूर्चिक] दाढ़ी-मुँ छवाला (बृह १)।

कुच्छ :: सक [कुत्स्] निन्दा करना, धिक्कारना। कृ. कुच्छ कुच्छणिज्ज (श्रा २७; पणह १, ३)।

कुच्छ :: पुं [कुत्स] १ ऋषि-विशेष। २ गोत्र- विशेष; 'थेरस्स णं अजसिवभूइस्स कुच्छसगु- त्तस्स' (कप्प)

कुच्छ :: देखो कुच्छ = कुत्स।

कुच्छग :: पुं [कुत्सक] वनस्पति-विशेष (सूअ २, २)।

कुच्छणिज्ज :: देखो कुच्छ = कुत्स्; 'अन्‍नेसिं कुच्छणिज्जं साणाणं भक्खणिज्जं हि' (श्रा २७)।

कुच्छा :: स्त्री [कुत्सा] निन्दा, घृणा, जुगुप्सा (ओघ ४४४; उप ३२० टी)।

कुच्छि :: पुंस्त्री [कुक्षि] १ उदर, पट (हे १, ३५; उवा; महा) २ अड़तालीस अंगुल का मान (जं २) °किमि पुं [°कृमि] उदर में उत्पन्‍न होनेवाला कीड़ा, द्वीन्द्रीय जन्तु-विशेष (पणण १)।°धार पुं [°धार] १ जहाज का काम करनेवाला नौकर; 'कुच्छिधारकन्न- धारगब्भजसंजत्ताणावावाणियगा' (णाया १, ८ — पत्र १३३) २ एक प्रकार का जहाज का व्यापारी (णाया १, १६)। °पूर पुं [°पूर] उदर-पूर्त्ति (वव ४)। °वेयणा स्त्री [°वेदना] उदर का रोग-विशेष (जीव ३)। °सूल पुंन [°शूल] रोग-विशेष (णाया १, १३; विपा १, १)

कुच्छंभरि :: वि [कुक्षिम्भारि] अकेलपेटू, पेटू, स्वार्थी; 'हा तियचरितकुर्त्सिं (? च्छिं) भरिए ! (रंभा)।

कुच्छिमई :: स्त्री [दे. कुक्षिमती] गर्भिणी, आपन्न-सत्त्वा (दे २, ४१; षड्)।

कुच्छिभद्दिका :: (मा) देखो कुच्छिमई (प्राकृ १०२)।

कुच्छिय :: वि [कुत्सित] खराब, निन्दित गर्हित (पंचा ७; भवि)।

कुच्छिल्ल :: न [दे] १वृत्ति का विबर, बाड़ का छिद्र (दे २, २४) २ छिद्र, विवर (पाअ)

कुच्छेअ?/? :: पुं [कौक्षेयक] तलवार, खड्ग (दे १, १६१ षड्)।

कुज :: पुं [कुज] वृक्ष, पेड़ (जं २)।

कुजय :: पुं [कुजय] जूआरी, जूआखोर (सूअ १, २, २)।

कुज्ज :: वि [कुब्ज] १ कुब्ज, कुबड़ा, वामन (सुपा २; कप्पू) २ पुंन. पुष्प-विशेष (षड्)

कुज्जय :: पुं [कुब्जक] १ वृक्ष-विशेष, शतपत्रिका (पउम ४२, ८; कुमा) २ न. उस वृक्ष का पुष्प; 'बंधेउं कुज्जयपसूणं' (हे १, १८१)

कुज्झ :: सक [क्रुध्] क्रोध करना, गुस्सा करना। कुज्झइ (हे ४, २१७; षड्)

कुट्ट :: सक [कुट्‌ट्] १ कूटना, पीटना, ताड़न करना। २ काटना, छेदना। ३ गरम करना। ४ उपालम्भ देना। भवि. कुट्टइस्सं (पि ५२८)। वकृ. कुट्टिंत (सुर ११, १)। कवकृ. कुट्टि- ज्जंत, कुट्टिज्जमाण (सुपा ३४०; प्रासू ६६; राय)। संकृ. कुट्टिय (भग १४, ८)

कुट्ट :: पुं [कुट] घड़ा, कुम्भ (सूअ २, ७)।

कुट्ट :: पुंन [दे] १ कोट, किला; 'दिज्जंति कवा- डाइं कुट्‍टुवारि भडा ठविज्जंति' (सुवा ५०३) २ नगर, शहर (सुर १५, ८१)। °वाल पुं [°पाल] कोतवाल, नगर-रक्षक (सुर १५, ८१)

कुट्टण :: न [कुट्टन] १ छेदन, चूर्णंन, भेदन (औप) २ कूटना, ताड़ना (हे ४, ४३८)

कुट्टणा :: स्त्री [कुट्टना] शारीरिक पीड़ा (सूअ १, १२)।

कुट्टणी :: स्त्री [कुट्टनी] १ मूसल, एक प्रकार की मोटी लकड़ी, जिससे चावल आदि अन्न कूटे जाते हैं (बृह १) २ दूती, कूटनी, कुट्टिनी (रंभा)

कुट्टयरी :: स्त्री [दे] चंडी, पार्वती (दे २, ३५)।

कुट्टा :: स्त्री [दे] गौरी, पार्वती (दे २, ३५)।

कुट्टाय :: पुं [दे] चर्मकार, मोची (दे २, ३७)।

कुट्टित :: देखो कुट्ट = कुट्ट्।

कुट्टिंतिया :: देखो कोट्टंतिया (राज)।

कुट्टिंब :: [दे] देखो कोट्टिंब (पाअ)।

कुट्टणी :: स्त्री [कुट्टिनी] कूटनी, दूती (कप्पू; रंभा)।

कुट्टिम :: देखो कोट्टिम = कुट्टिम (भग ८, ९; राय; जीव ३)।

कुट्टिय :: वि [कुट्टित] १कूटा हुआ, ताड़ित (सुपा १५; उत्त १९) २ छिन्न, छेदित (बृह १)

कुट्ठ :: पुंन [कुष्ठ] १ पंसारी रे यहाँ बेची जाती एक वस्तु, कूठ (विसे २९३; पणह २, ५) २ रोग-विशेष, कोढ़ (वव ६)

कुट्ठ :: पुं [कोष्ठ] १ उदर, पेट; 'जहा विसं कुट्ठगयं मंतमूलविसारया। वेज्जा हणंति मंतेहि' (पडि) २ कोठा, कुशूल, धान्य भरने का बड़ा भाजन (पणह २, १)। °बुद्धि वि [°बुद्धि] एक बार जाननें पर नहीं भूलनेवाला (पणह २, १)। देखो कोट्ठ, कोट्ठग।

कुट्ठ :: वि [क्रुष्ट] १ शपित, अभिशप्त। २ न. शाप, अभिशाप-शब्द; 'उड्ढं कुट्ठं केहिं पेच्छंता आगया इत्थं' (सुपा २५०)

कुट्ठग :: पुंन [कोष्ठक] शून्य घर (दस ५, १ २०; ८२)।

कुट्ठा :: स्त्री [कुष्ठा] इमली, चिंचा (बृह १)।

कुट्ठि :: वि [कुष्ठिन्] कुष्ठ रोगवाला (सुपा २४३; ५७६)।

कुड :: पुं [कुट] १ घड़ा, कलश (दे २, ३५; गा २२९; विसे १४५९) २ पर्वत। ३ हाथी वगैरह का बन्धन-स्थान (णाया १, १ — पत्र ६३) ४ वृक्ष, पेड़; 'तकड्डवियासिहंडमंडियकु- डग्गो' (सुपा ५९२)। कंठ पुं [°कण्ठ] पात्र-विशेष, घड़ा के जैसा पात्र (दे २, २०)। °दोहिणी स्त्री [°दोहिनी] घड़ा भर दूध देनेवाली (गा ५३७)

कुडंग :: पुंन [कुटङ्क] १ कुञ्ज, निकुञ्ज, लता वगैरह से ढका हुआ स्थान (गा ६८०; हेका १०५) २ वन, जंगल (उप २२० टी) ३ बाँस की जाल, बाँस की बनी हुई छत (बृह १) ४ गह्वर, कोटर (राज) ५ वंश- गहन (णाया १, ८; कुमा)

कुडंग :: पुंन [दे. कुटङ्क] लता-गृह लता से ढका हुआ घर (दे २, ३७; महा; पाअ; षड्)।

कुडंगा :: स्त्री [कुटङ्का] लता-विशेष (पउम ५३, ७९)।

कुंडंगी :: स्त्री [दे. कुटङ्की] बाँस की जाली, एक्कपहारेण निवडिया वंसकुडंगी' (महा; सुर १२, २००; उप पृ २८१)।

कुडंब :: देखो कुडुंब (महा; गा ६०६)।

कुडग :: देखो कुड (आवम; सूअ १, १२)।

कुडभी :: स्त्री [कुटभी] छोटा पताका (सम ६०)।

कुडय :: न [दे] लता-गृह, लता से आच्छादित घर, कुटीर, झोंपड़ी (दे २, ३७)।

कुडय :: पुंन [कुटज] वृक्ष-विशेष, कुरैया (णाया १, ९; पणण १७; स १९४); 'कुडयं दलइ' (कुमा)।

कुडव :: पुं [कुडव] अनाज या अन्न नापने का एक माप (णाया १, ७; उप पृ ३७०)।

कुडाल :: देखो कुड्डाल (उवा)।

कुडिअ :: वि [दे] कुब्ज, वामन, नाटा (पाअ)।

कुडिआ :: स्त्री [दे] बाड़ का विवर (दे २, २४)।

कु़डिच्छ :: न [दे] १ बाड़ का छिद्र। २ कुटी, झोंपड़ी। ३ वि. त्रुटित, छिन्न (दे २, ६४)

कुडिल :: वि [कुटिल] वक्र, टेढ़ा (सुर १, २०; २, ८६)।

कुडिलविडल :: न [दे. कुटिलविटल] हस्ति- शिक्षा (राज)।

कुडिल्ल :: न [दे] १ छिद्र, विवर (पाअ) २ वि. कुब्ज, कुबड़ा (पाअ)

कुडिल्लय :: वि [दे. कुटिलक] कुटिल, टेढ़ा, वक्र (दे २, ४०; भवि)।

कुडिब्बय :: देखो कुलिव्वय (राज)।

कुडी :: स्त्री [कुटी] छोटा गृह, झोपड़ी, कुटीर (सुपा १२०; वज्जा ६४)।

कुडीर :: न [कुटीर] झोंपड़ी, कुटी (हे ४, ३६४; पउम ३३, ८५)।

कुडीर :: न [दे] बाड़ का छिद्र (दे २, २४)।

कुडुंग :: पुं [दे] लतागृह, लताओ से ढका हुआ घर (षड्; गा १७५; २३२ अ)।

कुडुंव :: न [कुटुम्ब] परिजन, परिवार, स्वजन- वर्ग (उवा; महा; प्रासू १६७)।

कुडुंबय :: पुं [कुस्तुम्बक] १ वनस्पति-विशेष, धनियाँ (पणण १ — पत्र ४०) २ कन्द- विशेष; 'पलंडुलसणकंदे य कंदली य कुडुंबए' (उत्त ३६, ९८ का)

कुडुंबि, कुडुबिअ :: वि [कुटुम्बिन्, °क] १ कुटुम्ब- युक्त, गृहस्थ। २ कुनबेवाला, कर्षंक (गउड) ३ सम्बन्धी; 'सोभागुणसमुद- एणं आणणकुडुंबिएणं' (कप्प)

कुडुंबीआ :: न [दे] सुरत, संभोग, मैथुन (षड्)।

कुडुंभग :: पुं [दे] जल-मण्डूक, पानी का मेढक (निचू १)।

कुडुक्क :: पुं [दे] लता-गृह (षड्)।

कुडुच्चिअ :: न [दे] सुरत, संभोग, मैथुन (दे २, ४१)।

कुडुल्ली :: (अप) स्त्री [कुटी] कुटिया, झोंपड़ी (कुमा)।

कुड्ड :: पुंन [कुड्‍य] १ भित्ति, भीत (पउम ६८, ९; हे २, ७८); 'अज्जं गओत्ति अज्जं गओत्ति अज्जं गओत्ति गणिरीए। पढमव्विअ दिअहद्धे कुड्डो लेहाहिं चित्तलिओ (गा २०८)

कुड्ड :: न [दे] आश्‍चर्य, कौतुक, कुतूहल (दे २, ३३; पाअ; षड्; हे २, १७४)।

कुड्डगिलोई :: [दे] गृह-गोधा, छिपकली (दे २, १९)।

कुड्डलेवणी :: स्त्री [दे. कुडचलेपनी] सुधा, चूना, खड़ी, खटिका (दे २, ४२)।

कुड्डाल :: न [दे] हल के ऊपर का विस्तृत अंश (उवा)।

कुढ :: पुंन [दे] १ चुराई हुई वस्तु की खोज में जाना (दे २, ६२; सुपा ५०३) २ छीनी हुई चीज को छुड़ानेवाला, वापस लेनेवाला (दे २, ६२)

कुढार :: पुं [कुठार] कुल्हाड़ा, फरसा (हे १, १९९; षड्)।

कुढावय :: न [दे] अनुगमन, पीछे जाना (विसे़ १४३९ टी)।

कुढिय :: वि [दे] कूढ, मूर्खं, बेसमझ; 'कूयंति नेउराइं पुणो पुणो कुढियुपुरिसोव्व' (सुर ३, १४२)।

कुढिय :: वि [दे] जिसके माल की चोरी हो गई हो वह (सुख २, २१)।

कुण :: सक [कृ] करना, बनाना। कुणइ, कुणउ, कुण (भग; महा; सुपा ३२०)। वकृ. कुणंत, कुणमाण (गा १६५; सुपा ३६; ११३; आचा)।

कुणक्क :: पुं [कुणक] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

कुडव :: न [कुणय] १मुरदा, मृत-शरीर (पाअ; गउड) २ वि. दुर्गन्धी (हे १, २३१)

कुणाल :: पुं. ब. [कुणाल] १ देश-विशेष (णाया १, ८; उप ९८६ टी) २ प्रसिद्ध महाराज अशोक का एक पुत्र (विसे ८६१)। °नयर न [°नगर] एक शहर, उज्जैन; 'आसी कुणालनयरे' (संथा)

कुणाला :: स्त्री [कुणाला] इस नाम की एक नगरी (सुपा १०३)।

कुणि, कुणिअ :: पु [कुणि] १ हस्त-विकल, ठूँठ, हाथ-कटा मनुष्य (पउम २, ७७) २ जन्म से ही जिसका एक हाँथ छोटा हो वह। ३ जिसका एक पाँव छोटा हो वह, खञ्ज (पणह २, ५ — पत्र १५०; आचा)

कुणिआ :: स्त्री [दे] वृति-विवर, बाड़ का छिद्र (दे २, २४)।

कुणिम :: पुंन [दे. कुणप] १ शव, मृतक, मुरदा (पणह २, ३) २ मांस (ठा ४, ४; औप) ३ नरकावास-विशेष (सूअ १, ५, १) ४ शव का रुधिर, वसा वगैरह (भग ७, ६)

कुणुकुण :: अक [कुणुकुणाय्] शीत से कम्प होने पर 'कड़कड़' आवाज करना। वकृ. कुणुकुणंत (सुर २, १०३)।

कुण्हरिया :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

कुतत्ती :: स्त्री [दे] मनोरथ, वाञ्छा (दे २, ३६)।

कुतुंब :: पुं [कुस्तुम्ब] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

कुतुबर :: पुं [कुस्तुम्बर] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

कुतुव :: पुंन [कुतुप] १ तेल वगैरह भरने का चमड़े का पात्र (दे ५, २२)। देखो कुउअ।

कुत्त :: पुं [दे] कुत्ता, कुक्कुर (रंभा)।

कुत्त :: न [दे. कुतक] ठेका, इजारा (विपा १, १ — पत्र ११)।

कुत्तार :: वि [कुतार] अयोग्य तारक (गच्छ १, ३०)|

कुत्तिय :: पुंस्त्री [दे] एक तरह का कीड़ा, चतुरिन्द्रिय जन्तु-विशेष; 'करालिय कुत्तिय विच्छु' (आप १७; पभा ४१)।

कुत्ती :: स्त्री [दे] कुत्ती, कुक्कुरी (रंभा)।

कुत्थ :: अ [कुत्र] कहाँ, किस स्थान में ? (उत्तर १६४)।

कुत्थ :: सक [कोथय्] सड़ाना, 'नो वाऊ हरेज्जा, नो सलिलं कुत्थिज्जा' (पव १५८ टी), कुच्छे (? त्थे) ज्जा (अणु १६१)। भवि. कुच्छि (? त्थि) हिई (पिंड २३८)। कृ. कृत्थ (दसनि १०, २४)।

कुत्थ :: देखो कढ। कुत्थसि, कुत्थसु (गा ५०१ अ)।

कुत्थण :: स्त्रीन [कोथन] सड़ना, सड़ जाना (वव ४)।

कुत्थर :: न [दे] १ विज्ञान (दे २, १३) २ कोटर, वृक्ष की पोल, गह्वर (सुपा २४९) ३ सर्प वगैरह का बिल (उप ३५७ टी)

कुत्थल :: देखो कोत्थल; 'कुच्छ (? त्थ) लस- माणउयरो' (धर्मंवि २७)।

कुत्थुंब :: पुं [कुस्तुम्ब] वाद्य-विशेष (राय)।

कुत्थुभरी :: स्त्री [कुस्तुम्बरी] वनस्पति-विशेष, धनियाँ (पणण १ — पत्र ३१)।

कुःथुह :: पुंन [कौस्तुभ] मणि-विशेष, जो विष्णु की छाती पर रहती है (हेका २५७)।

कुत्थुहवत्थ :: न [दे] नीवी, नारा, इजारबन्द (दे २, ३८)।

कुदो :: देखो कुओ (हे १, ३७)।

कुद्द :: वि [दे] प्रभुत, प्रचुर (दे २, ३४)।

कुद्दण :: पुं [दे] रासक, रासा (दे २, ३८)।

कुद्दव :: पुं [कोद्रव] धान्य-विशेष, कोदों, कोदव (सम्य १२)।

कुद्दाल :: पुं [कुद्दाल] १ भूमि खोदने का साधन, कुदार, कुदारी (सुपा ५२६) २ वृक्ष-विशेष (जं २)

कुद्ध :: वि [क्रुद्ध] कुपित, क्रोध-युक्त (महा)।

कुपिच :: (पै) अ [क्वचित्] किसी जगह में (प्राकृ १२३)।

कुप्प :: सक [कुप्] कोप करना, गुस्सा करना। कुप्पइ (उव; महा)। वकृ. कुप्पंत (सुपा १६७)। कृ. कुप्पियव्व (स ९१)।

कुप्प :: सक [भाप्] बोलना, कहना। कुप्पइ (भवि)।

कुप्प :: न [कुप्य] सुवर्णं और चाँदी को छोड़ कर अन्य धातु और मिट्टी वगैरह के बने हुए गृह-उपकरण, 'लोहाई उवक्खरो कुप्पं' (बृह १; पडि)।

कुप्पढ :: पुं [दे] १ गृहाचार, घर का रिवाज। २ समुदाचार; सदाचार (दें २, ३६)

कुप्पर :: न [दे] सुरत के समय किया जाता हृदय-ताड़न-विशेष। २ समुदाचार, सदाचार। ३ नर्मं, हाँसी, ठट्‍ठा (दे २, ६४)

कुप्पर :: पुं [कूर्पर] १ कफोणि, हाथ का मध्य भाग। २ जानु, घुटना। ३ रथ का अवयव-विशेष (जं ३)

कुप्पर :: पुं [कर्पर] देखो कप्पर। भीत की परत, भीत का जीर्ण-शीर्ण थर; 'एयाओ पाडलवंडुकुप्परा जुणणभित्तिओ' (गउड)।

कुप्पल :: देखो कुंपल (पि २७७)।

कुप्पास :: पुं [कूर्पास] कञ्चुक, काँचली जनानी कुरती (हे १, ७२; कप्पू; पाअ)।

कुप्पिय :: वि [कुपित] १ कुपित, क्रुद्ध। २ न. क्रोध, गुस्सा; 'कुप्पियं नाम कुज्झियं' (आचू ४)

कुप्पिस :: देखो कुप्पास (हे १, ७२; दे २, ४०)।

कुबर :: पुं [कूबर] भगवान् मल्लिनाथ का शासनाधिष्ठायक यक्ष (पव २६)।

कुबेर :: पुं [कूबेर] भगवान् कुन्थुनाथ के प्रथम श्रावक का नाम (विचार ३७८)।

कुबेर :: पुं [कुबेर] १ कुबेर, यक्ष-राज, धनेश (पाअ; गउड) २ भगवान् मल्लिनाथ का शासनाधिष्ठाता यक्ष विशेष (संति ८) ३ काञ्चनपुर के एक राजा का नाम (पउम ७, ४५) ४ इस नाम का एक श्रेष्ठी (उप ७२८ टी) ५ एक जैन मुनि (कप्प)। °दिसा पुं [°दिश्] उत्तर दिशा (सुर २, ८५)। °नयरी स्त्री [°नगरी] कुबेर की राजधानी, अलका (पाअ)

कुबेरा :: स्त्री [कुबेरा] जैन साधु-गण की एक शाखा (कप्प)।

कुब्बड :: वि [दे] कुबड़ा, कुब्ज, वामन (श्रा २७)।

कुब्बर :: पुं [कूबर] वैश्रमण के एक पुत्र का नाम (अंत ५)।

कुभंड :: पुं [कुभाण्ड] देव-विशेष की जाति (ठा २, ३ — पत्र ८५)।

कुभंडिंद :: पुं [कुभाण्डेन्द्र] इद्र-विशेष, कुभाण्ड देवों का स्वामी (ठा २, ३)।

कुमर :: देखो कुमार (हे १, ६७; सुपा २४३; ६५९; कुमा)।

कुमरी :: देखो कुमारी (कप्पु; पाअ)।

कुमार :: पुं [कुमार] १ प्रथम वय का बालक. पाँच वर्ष तक का लड़का (ठा १०; णाया १, २) २ युवराज, राज्यार्ह पुरुष (पणह १, ५) ३ भगवान् वासुपूज्य का शासना- धिष्ठाता यक्ष (संति ७) ४ लोहकार, लोहार; चवेडमुट्ठिमाईहिं कुमारोहिं अयं पिव' (उत्त २३) ५ कार्त्तिकेय, स्कन्द (पाअ) ६ शुक पक्षी। ७ घुड़सवार। ८ सिन्धु नद। ९ वृक्ष-विशेष, वरुण-वृक्ष (हे १, ६७) १० अविवाहित, ब्रह्मचारी (सम ५०)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष (आचा २, ३)। °णंदि पुं [°नन्दिन्] इस नाम का एक सोनार (आवम)। °धम्म पुं [°धर्म] एक जैन साधु (कप्प)। °वाल पुं [°पाल] विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक सुप्रसिद्ध जैन राजा (दे १, ११३ टी)

कुमार :: पुं [दे] कुआर का महीना, आश्‍विन मास (ठा २, १)।

कुमारा :: स्त्री [कुमारा] इस नाम का एक संनिवेश, 'तओ भगवं कुमाराए संनिवेसे गओ' (आवम)।

कुमारिय :: पुं [कुमारिक] कसाई, सौनिक (बृह १)।

कुमारिय :: स्त्री [कुमारिका] देखो कुमारी (पि ३५०)।

कुमारी :: स्त्री [कुमारी] १ प्रथम वय की लड़की २ अविवाहित कन्या (हे ३, ३२) ३ वनस्पति-विशेष, घीकुआरी (पव ४) ४ नवमल्लिका। ५ नदी-विशेष। ६ जम्बु-द्वीप का एक भाग। ७ वनस्पति-विशेष, अप- राजिता। ८ सीता। ९ बड़ी इलाची। १० वन्ध्या ककड़ी की लता। ११ पक्षि-विशेष (हे ३, ३२)

कुमारी :: स्त्री [दे कुमारी] गौरी, पार्वती (दे २, ३५)।

कुमुअ :: पुं [कुमुद] १ इस नाम का एक वानर (से १, ३४) २ महाविदेह-वर्ष का एक विजय-युगल, भूमि-प्रदेष-विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०) ३ न. चन्द्र-विकासी कमल (णाया १, ३ — पत्र ९६; से १, २६) ४ संख्या-विशेष, कुमुदाङ्ग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २) ५ शिखर-विशेष (ठा ८) ६ वि. पृथ्वी में आनन्द पानेवाला। ७ खराब प्रीतिवाला (से १, २६)। देखो कुमुद।

कुमुअ :: पुं [कुमुद] देव-विशेष (सिरि ६६७)। °चंद पुं [°चन्द्र] आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की मुनि अवस्था का नाम (सम्मत्त १४१)।

कुमुअंग :: न [कुमुदाङ्ग] संख्या-विशेष, 'महाकाल' को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (जो २)।

कुमुआ :: स्त्री [कुमुदा] १ इस नाम की एख पुष्करिणी (जं ४) २ एक नगरी (दीव)

कुमुइणी :: स्त्री [कुमुदिनी] १ चन्द्र-विकासी कमल का पेड़ (कुमा; रंभा) २ इस नाम की एक रानी (उप १०३१ टी)

कुमुद :: देखो कुमुअ (इक)। देव-विमान -विशेष (सम ३३; ३५). °गुम्म न [°गुल्म] देव- विमान-विशेष (सम ३५)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक)। °प्पभा स्त्री [°प्रभा] इस नाम को एक पुष्करिणी (जं ४)। °वण न [°वन] मथुरा नगरी के समपी का एक जङ्गल (ती २१)। °गर पुं [°कर] कुमुद- षण्ड, कुमुदों से भरा हुआ वन (पणह १, ४)।

कुमुदंग :: देखो कुमुअंग (इक)।

कुमुदग :: न [कुमदक] तृण-विशेष (सूअ २, २)।

कुमुली :: स्त्री [दे] चुल्ली, चूल्हा (दे २, ३९)।

कुम्म :: पुं [कूर्म] कच्छप, कछुआ (पाअ)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] मगध देख के एक गाँव का नाम (भग १५)।

कुम्मण :: वि [दे] म्लान, शुष्क, कुम्हलाया हुआ (दे २, ४०)।

कुम्मार :: पुं [कूर्मार] मगध देश के एक गाँव का नाम (आचा २, १५, ५)।

कुम्मास :: पुं [कुल्माष] १ अन्‍न-विशेष, उरद (ओघ ३५९; पणह २, ५) २ थोड़ा भीजा हुआ मूँग वगैरह धान्य (पणह २, ५ — पत्र १४८)

कुम्मी :: स्त्री [कूर्मी] १ कछुई, कच्छपी। २ नारद की माता का नाम (पउम ११, ५२)। °पुत्त पुं [°पुत्र] दो हाथ ऊँचा इस नाम का एक पुरुष, जिसने मुक्ति पाई थी (औप)

कुंम्ह :: पुंब. [कुश्मन्] देश-विशेष (हे २, ७४)।

कुम्हंड :: देखो कोहंड (प्राकृ २२)।

कुम्हंडी :: देखो कोहंडी (प्राकृ २२)।

कुय :: पुं [कुच] १ स्तन, थन। २ वि. शिथिल (वव ७) ३ अस्थिर (निचू १)|

कुयवा :: स्त्री [दे] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

कुरंग :: पुं [कुरङ्ग] १ मृग की एक जाति (जं २) २ कोई भी मृग, हरिण (पणह १, १; गउड)। स्त्री. °गी (पाअ)। °च्छी स्त्री [°क्षी] हरिण के नेत्र जैसे नेत्रवाली स्त्री, मृगनयनी स्त्री (वाअ २०)

कुरंटय :: पुं [कुरण्टक] वृक्ष-विशेष, पियवाँसा (उप १०३१ टी)।

कुरकुर :: देखो कुरुकुरु। वकृ. कुरकुराइंत (रंभा)।

कुरय :: पुं [कुरक] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

कुरय :: न [कुरबक] पुष्प-विशेष (वज्जा १०६)।

कुरर :: पुं [कुरर] कुरर-पक्षी, उत्क्रोश (पणह १, १; उप १०२६)।

कुररी :: स्त्री [दे] पशु, जानवर (दे २, ४०)।

कुररी :: स्त्री [कुररी] १ कुरर पक्षी की मादा। २ गाथा छन्द का एक भेद (पिंग) ३ मेषी, मेढ़ी (रंभा)

कुरल :: पुं [कुरल] १ केश, बाल; 'कुरल- कुरलोहिं कलिओ तमालदलसामलो अइसणिद्धो' (सुपा २४; पाअ) २ पक्षि-विशेष (जीव १)

कुरली :: स्त्री [कुरली] १ केशों की वक्र सटा (सुपा १; २४) २ कुरल-पक्षिणी; 'कुरलिव्व नहंगणे भमइ' (पउम १७, ७९)

कुरवय :: पुं [कुरबक] वृक्ष-विशेष, कटसरैया (गा ६; मा ४०; विक्र २९; स ४१४; कुमा; दे ५, ९)।

कुरा :: स्त्री [कुरा] वर्ष-विशेष, अकर्मं भूमि- विशेष (ठा २, ३; १०)।

कुरिण :: न [दे] बड़ा जंगल, भयंकर अटवी (ओघ ४४७)।

कुरु :: पुं. ब. [कुरु] १ आर्य देश-विदेश, जो उत्तर भारत में है (णाया १, ८; कुमा)| २ भगवान् आदिनाथ का इस नाम का एक पुत्र (ती १४) ३ अकर्म-भूमि विशेष (ठा ६) ४ इस नाम का एक वंश (भवि) ५ पुंस्त्री. कुरु वंश में उत्पन्न, कुरु वंशीय (ठा ६) °अरा, °आरी देखो नीचे °चरा, °चरी (षड्)। °खेत्त °क्खेत्त न [क्षेत्र] १ दिल्ली के पास का एक मैदान, जहाँ कौरव और पाण्डवों की लड़ाई हुई थई। २ कुरु देश की राजधानी, हस्तिनापुर नगर (भवि; ती १६)। °चंद पुं [°चन्द्र] इस नाम का एक राजा (धम्म; आवम)। °चर वि [°चर] कुरु देख का रहनेवाला। स्त्री. °चरा, °चरी (हे ३, ३१)। °जंगल न [°जङ्गल] कुरु-भूमि, देश-विशेष (भवि; ती ७)। °णाह पुं [°नाथ] दुर्योधन (गा ४४३; गउड)। °दत्त पुं [°दत्त] इस नाम का एक श्रेष्ठी और जैन महर्षि (उत २; संथा)। °मई स्त्री [°मती] ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की पटरानी (सम १५२)। °राय पुं. [°राज] कुरु देश का राजा (ठा ७)। °वइ पुं [°पति] कुरु देश का राजा (उप ७२८ टी)

कुरुकुया :: स्त्री [कुरुकुचा] पाँव का प्रक्षालन (ओघ ३१८)।

कुरुकुरु :: अक [कुरुकुराय्] 'कुर-कुर' आवाज करना, कुलकुलाना, बड़बड़ाना। कुरुकुराअसि (पि ५५८)। वकृ. कुरुकुराअंत (कप्पू)।

कुरुकुरिअ :: न [दे] रणरणक, औत्सुक्य (दे २, ४२)।

कुरुगुर :: देखो कुरुकुरु। कुरुगुरेंति (स ५०३)।

कुरुचिल्ल :: पुं [दे] १ कुलीर, जल-जन्तु-विशेष। २ न. ग्रहण, उपादान (दे २, ४१)। देखो कुरुविल्ल।

कुरुच्च :: वि [दे] अनिष्ट, अप्रिय (दे २, ३९)।

कुरुड :: वि [दे] १ निर्दय, निष्ठुर (दे २, ६३; भवि) २ निपुण, चतुर (दे २, ५३; भवि)

कुरुण :: न [दे] राजा का या दूसरे का धन (राज)।

कुरुमाल :: सक [दे] टटोलना, धीरे धीरे हाथ फेरना। वकृ. कुरुमालंत (कुप्र ४४)।

कुरुय :: न [दे. कुरुक] माया, कपट (सम ७१)।

कुरुया :: स्त्री [दे. कुरुका] शरीर-प्रक्षालन, स्‍नान (वव १)।

कुरुर :: देखो कुरर (कुमा)।

कुरुल :: पुं [दे] १ कुटिल केश, टेढ़ा बाल (दे २, ६३; भवि) २ वि. निर्दय। ३ निपुण, चतुर (दे २, ६३)

कुरुल :: अक [कु] आवाज करना, कौए का बोलना। करुलहि (भवि)।

कुरुलिअ :: न [कुत] वायस क शब्द, कौए की आवाज (भवि)।

कुरुव :: देखो कुरु (पउम ११८, ८३; भवि)।

कुरुवग :: देखो कुरवय (सुपा ७७)।

कुरुविंद :: पुं [कुरुविन्द] १ मणि-विशेष, रत्‍न की एक जाति (गउड) २ तृण-विशेष (पणण १; पणह १, ४ — पत्र ७८) ३ कुटिलिक-नामक रोग, एक प्रकार का जंघा रोग; 'एणीकरुविंदचत्तवट्टाणपूव्वजंघे' (औप)। °वत्त पुंन [°वर्त्त] भूषण-विशेष (कप्प)

कुरुविंदा :: स्त्री [कुरुविन्दा] इस नाम की एक वणिग्‌भाया (पउम ५५, ३८)।

कुरुविल्ल :: [दे] देखो कुरुचिल्ल (पाअ)।

कुल :: पुंन [कुल] १ कुल, वंश, जाति (प्रासू १७) २ पैतृक वंश (उत्त ३) ३ परिवार, कुटुम्ब (उप ६, ७७) ४ सजातीय समूह (पणह १, ३) ५ गोत्र (सुपा ८; ठा ४, १) ६ एक आचार्य की संतति (कप्प) ७ घर, गृह (कप्प; सूअ १, ४, १) ८ सान्निध्य, सामीप्य (आचा) ९ ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध नक्षत्र-संज्ञा (सुज्ज १०; इक); 'कुलो, कुलं' (हे १, ३३)। °उव्व पुं [पूर्व] पूर्वज, पूर्व-पुरुष (गउड)। °कम पुं [°क्रम] कुलाचार, वंश-परम्परा का रिवाज (सट्ठि ७४)। °कर देखो नीचे °गर (ठा १०)। °कोडि स्त्री [°कोटि] जाति-विशेष (पव १५१; ठा ९; १०)। °क्कम देखो कम (सट्ठि ६)। °गर पुं [°कर] कुल की स्थापना करनेवाला, युग के प्रारम्भ में नीति वगैरह की व्यवस्था करनेवाला महापुरुष (सम १२९; धण ५)। °गेह न [°गेह] पितृ-गृह (सण)। °घर न [°गृह] पितृ-गृह (औप)। °ज वि [°ज] कुलीन; खानदानी कुल में उत्पन्‍न (द्र ५)। °जाय वि [°जात] कुलीन, खान- दानी कुल का (सुपा ५९८; पाअ)। °जुअ वि [°युत] कुलीन (पव ६४)। °णाम न [°नामन्] कुल के अनुसार कियाजाता नाम (अणु)। °तंतु पुं [°तन्तु] कुल-सतान, कुल-संतति (वव ६)। °तिलग पुंन [°तिलक] कुल में श्रेष्ठ (भग ११, ११)। °त्थ वि [°स्थ] कुलीन, खानदानी वंश का (णाया १, ५)। °त्थेर पुं [°स्थविर] श्रेष्ठ साधु (पंचु)। °दिणयर पुं [°दिनकर] कुल में श्रेष्ठ (कप्प)। °दीव पुं [°दीप] कुल प्रकाशक, कुल में श्रेष्ठ (कप्प)। °देव पुं [°देव] गोत्र-देवता (सुपा ५९७)। °देवी स्त्री [°देवी] गोत्र-देवी (सुपा ६०२)। °धम्म पुं [°धर्म] कुलाचार (ठा १०)। °पव्वय पुं [°पर्वत] पर्वत-विशेष (सम ६६; सुपा ४३)। °पुत्त पुं [°पुत्र] वंश-रक्षक पुत्र (उत्त १)। °बालिया स्त्री [°बालिका] कुलीन कन्या (सुर १, ४३; हेका ३०१)। °भूसण न [°भूषण] १ वंश को दिपाने या चमकानेवाला। २ पुं. एक केवली भगवान् (पउम ३९, १२२)। °मय पुं [°मद] कुल करा अभिमान (ठा १०)। °मयहरिया, °महत्तरिया स्त्री [°महत्तरिका] कुल में प्रधान स्त्री, कुटुम्ब की मुखिया (सुपा ७६; आवम)। °य देखो °ज (सुपा ५९८)। °रोग पुं [°रोग] कुल व्यापक रोग (जं २)। °वइ पुं [°पति] तापसों का मुखिया, प्रधान संन्यासी (सुपा १६०; उप ३१)। °वंस पुं [°वंश] कुल रूप वंश, वंश (भग ११, १०)। °वंस पुं [°वंश्य] कुल में उत्पन्न, वंश से संजात (भग ९, ३३)। °वडिसय पुं [°वितंसक] कूल-भूषण, कुल-दीपक (कप्प)। °वहू स्त्री [°वधू] कुलीन स्त्री, कुलाङ्गना (आव ५; पि ३८७)। °संपण्ण वि [°संपन्न] कुलीन, खानदानी कुल का (औप)। °समय पुं [°समय] कुलाचार (सूअ १, १, १)। °सेल पुं [°शौल] कुल-पर्वत (सुपा ६००; सं ११९)। °सेलया स्त्री [°शौलजा] कुल पर्वत से निकली हुई नदी; कुलंसलयावि सरिया नूणं नोययरणुसरइ' (सुपा ६००)। °हर न [°गृह] पितृगृह, पिता का घर (गा १२१; सुपा ३६४; से ९, ५३)। °जीव वि [°जीव] अपने कुल की बड़ाई बतला कर आजीविका प्राप्त करनेवाला (ठा ५, १)। °य न [°य] पक्षी का घर, नीड़ (पाअ)। °यार पुं [°चार] कुलाचार, वंश-परम्परा से चला आता रिवाज (वव १)। °रिय पुं [°य] पितृ-पक्ष की अपेक्षा से आर्य (ठा ३, १)। °लय वि [°लय] गृहस्थों के घर भीख माँगनेवाला (सूअ २, ६)

कुलकर :: पुं [कुलङ्कर] इस नाम का एक राजा (पउम ८२, २९)।

कुलप :: पुं [कुलम्प] इस नाम का एक अनार्य देश। २ उसमें रहनेवाली जाति (सूअ २, २)

कुलकुल :: देखो कुरकुर। कुलकुलइ (भवि)।

कुलक्ख :: पुं [कुलक्ष्] १ एक म्लेच्छ देश। २ उसमें रहनेवाली जाति (पणह १, १; इक)

कुलाग्घ :: पुं [कुलार्घ] एक अनार्यं देश (पव २७४)।

कुलडा :: स्त्री [कुलटा] व्यभिचारिणी स्त्री, पुंश्‍चली (सुपा ३८४)।

कुल्थ :: पुंस्त्री [कुलत्थ] अन्न-विशेष, कुलथी (ठा ५, ३; णाया १, ५)। स्त्री. °त्था (श्रा १८)।

कुलफसण :: पुं [दे] कुल-कलंक, कुल का दाग, कुल की आपकीर्ति (दे २, ४२; भवि)।

कुलय :: देखो कुडव (तंदु २९; अणु १५१)।

कुलय :: न [कुलक] तीन या चार से ज्यादा परस्पर सापेक्ष पद्य (समत्त ७६)।

कुलल :: पुं [कुलल] १ पक्षि-विशेष (पणह १, १) २ गृद्ध पक्षी (उत्त १४) ३ कुरर पक्षी (सूअ १, ११) ४ मार्जार, बिड़ाल; जहा कुक्कुडपायस्स णिच्चं कुललओ भयं' (दस ४)

कुललय :: पुंन [दे] कुल्ला, गंडुष (पव ३८)।

कुलव :: देखो कुडव (जो २)।

कुलसंतइ :: स्त्री [दे] चुल्ली, चूल्हा (दे २, ३९)।

कुलाअल :: पुं [कुलाचल] कुलपर्वत (त्रि ८२)।

कुलाण :: देखो कुणाल (राज)।

कुलाल :: पुं [कुलाल] कुम्भकार, कुम्हार (पाअ; गउड)।

कुलाल :: पुं [कुलाट] १ मार्जार, बिलाड़। २ ब्राह्मण, विप्र (सूअ २, ६)

कुलिंगाल :: पुं [कुलाङ्गार] कुल में कलंक लगानेवाला, दुराचारी (ठा ४, १ — पत्र १८५))।

कुलिअ :: न [कुलिक] खेत में घास काटने का छोटा काष्ठ-विशेष (अणु ४८)।

कुलिक, कुलिय :: पुं [कुलिक] १ ज्यातिष-शास्त्र में प्रसिद्ध एक कुयोग (गण १८) २ न. एक प्रकार का हल (पणह १, १)

कुलिय :: न [कुड्य] १ भीत, भित्ति (सूअ १, २, १) २ मिट्टी की बनाई हुई भीत (बृह २; कस)

कुलिया :: स्त्री [कुलिका] भींत, कुड्य (बृह २)।

कुलिर :: पुं [कुलिर] मेष वगैरह बारह राशि में चतुर्थ राशि (पउम १७, १०८)।

कुलिव्वय :: पुं [कुटिव्रत] परिव्राजक का एक भेद, तापस-विशेष, घर में ही रहकर क्रोधादि का विजय करनेवाला (औप)।

कुलिस :: पुंन [कुलिश] वज्र, इन्द्र का मुख्य आयुध (पाअ; उप ३२० टी)। °निणाय पुं [°निनाद] रावण का इस नाम का एक सुभट (पउम ५६, २९)। °मज्झ न [°मध्य] एक प्रकार की तपश्‍चर्या (पउम २२, २४)।

कुलीकोस :: पुं [कुटीक्रोश] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।

कुलीण :: वि [कुलीन] उत्तम कुल में उत्पन्न (प्रासू ७१)।

कुलीर :: पुं [कुलीर] जन्तु-विशेष (पाअ; दे २ ४१)।

कुलुंच :: सक [दह्, म्लै] १ जलाना। २ म्लान करना। संकृ. 'मालइकुमाइं कुलुं- चिऊण मा जाणि णिव्वुओ सिसिरो' (गा (४२६)

कुलुक्किय :: वि [दे] जला हुआ, 'विरहदवग्गि- कुलुक्कियकायहो' (भवि)।

कुलोवकुल :: पुं [कुलोपकुल] ये चार नक्षत्र — अभिजित्, शतभिषा, आर्द्रा और अनुराधा (सुज्ज १०, ५)।

कुल्ल :: पुं [दे] १ ग्रीवा, कण्ठ। २ वि. अस- मर्थ, अशक्त। ३ छिन्न-पुच्छ, जिसकी पूँछ कटा गई हो वह (दे २, ६१)

कुल्ल :: पुंन [दे] चूतड़; गुजराती में 'कुलो' (सुख ८, १३)।

कुल्ल :: अक [कूर्द्] कूदना। वकृ. 'मारुईरक्ख- साण बलं मुक्कवुक्कारपाइक्ककुल्लंतवग्गंतसे- णामुहं' (पउम ५३, ७९)।

कुल्लउर :: न [कुल्यपुर] नगर-विशेष (संथा)।

कुल्लड :: न [दे] १ चुल्ली, चूल्हा (दे २, ६३) २ छोटा पात्र, पुड़वा (दे २, ६३; पाअ)

कुल्लरिअ :: पुं [दे] कान्दविक, हलवाई, मिठाई बनानेवाला (दे २, ४१)।

कुल्लरिया :: स्त्री [दे] हलवाई की दूकान (आवम)।

कुल्ला :: स्त्री [कुल्या] १ जल की नाली, सारिणी (कुमा; हे २, ७९) २ नदी, कृत्रिम नदी (कप्पू)

कुल्लाग :: पुं [कुल्याक] संनिवेश-विशेष, मगध देश का एक गाव (कप्प)।

कुल्ली :: देखो कुल्ला (धर्मवि ११२)।

कुल्लुडिया :: स्त्री [कुल्लिडिका] घटिका, घड़ी (सूअ १, ४, २)।

किल्लुरी :: स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, गुजराती — 'कुलेर' (पव ४)।

कुल्लूरिअ :: [दे] देखो कुल्लरिअ (महा)।

कुल्ह :: पुं [दे] श्रृगाल, सियार (दे २, ३४)।

कुवणय :: न [दे] लकुट, यष्टि, लड़की, छड़ी (राज)।

कुवलय :: न [कुवलय] १ नीलोत्पल, हरा रंग का कमल (पाअ) २ चन्द्र-विकासी कमल (श्रा २७) ३ कमल, पद्म (गा ५)

कुवली :: स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष (कुप्र २४९)।

कुविंद :: पुं [कुविन्द] तन्तुवाय, कपड़ा बुननेवाला (सुपा १८८)। °वल्ली स्त्री [°वल्ली] वल्ली-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

कुविय :: वि [कुपित] क्रुद्ध, जिसको गुस्सा हुआ हो वह (पणह १, १; सुर २, ५; हेका ७३; प्रासू ६४)।

कुविय :: देखो कुप्प = कुप्प (पणह १, ५; सुपा ४०६)। °साल स्त्री [°शाला] बिछौना आदि गृहोपकरण रखने की कुटिया, घर का वह भाग जिसमें गृहोपकरण रक्खे जाते हैं (पणह १, ४ — पत्र ११३)।

कुवेणी :: स्त्री [कुवेणी] शस्त्र-विशेष, एक प्रकार का हथियार (पणह १, ३ — पत्र ४४)।

कुवेर :: देखो कुबेर (महा)।

कुव्व :: सक [कृ. कुर्व] करना, बनाना। कुव्वइ (भग)। भूका. कुव्वित्था (पि ५१७)। वकृ. कुव्वतं, कुव्वमाण (ओघ १५ भा; णाया १, ९)।

कुस :: पुंन [कुश] तृण-विशेष, दर्भ, डाभ, काश (विपा १, ६; निचू १)। २ पुं. दाश- रथी राम के एक पुत्र का नाम (पउम १००, २)। °ग्ग [°प्र] दर्भ का अग्र-भाग जो अत्यन्त तीक्ष्ण होता है (उत्त ७)। °ग्गानयर न [°ग्रनगर] नगर-विशेष, बिहार का एक नगर, राजगृह, जो आजकल 'राजगिर' नाम से प्रसिद्ध है (पउम २, ९८)। °ग्गपुर न [°ग्रपुर] देखो पूर्वोक्त अर्थं (सुर १, ८१)। °ट्ट पुं [°वर्त्त] आर्य देश-विशेष (सत्त ६७ टी)। °ट्ठ पुं [°र्य] आर्य दे-विदेश, जिसकी राजधानी शौर्यपुर थी (इक)। °त्त न [°क्त, °क्त] आस्तरण-विशेष, एक प्रकार का बिछौना (णाया १, १ — पत्र १३)। °त्थल- पुर न [°स्थलपुर] नगर-विशेष (पउम २१, ७९)। °मट्टिया स्त्री [मृत्तिका] डाभ के साथ कुटी जाती मिट्टी (निचू १८)। °वर पुं [°वर] द्वीप-विशेष (अणु — टी)

कुस :: वि [क्रौश] दर्भ का बना हुआ (आचा २, २, ३, १४)।

कुसण :: न [दे] तीमन, आर्द्र करना (दे २, ३५)।

कुसण :: न [दे] गोरस (पिंड २८२)।

कुसणिय :: वि [दे] गोरस से बना हुआ करम्बा आदि खाद्य, 'कुसु' (? स) णियंत' (पिंड २८२ टी)।

कुसल :: वि [कुशल] १ निपुण, चतुर, दक्ष, अभिज्ञ (आचा; णाया १, २) २ न. सुख, हित (राय) ३ पुण्य (पंचा ६)

कुसला :: स्त्री [कुशला] नगरी-विशेष, विनीता, अयोध्या (आवम)।

कुसार :: देखो कूसार (स ६८९)।

कुसी :: स्त्री [कुशी] लोहे का बना हुआ एक हथियार (दे ८, ५)।

कुसीलव :: पुं [कुशीलव] अभिनयकर्ता नट (कप्पू)।

कुसुंभ :: पुंन [कुसुम्भ] १ वृक्ष-विशेष, कसुम, बर्रै (ठा ८ — पत्र ४०५) २ न. कुसुम का पुष्प, जिसका रंग बनता है (जं २) ३ रंग-विशेष (श्रा १२)

कुसुंभिअ :: वि [कुसुम्भित] कुसुम्भ रंगवाला (श्रा १२)।

कुसुंभिल :: पुं [दे] पिशुन, दुर्जन, चुगलखोर (दे २, ४०)।

कुसुंभी :: स्त्री [कुसुम्भी] वृक्ष-विशेष, कुसुम का पेड़ (पाअ)।

कसुम :: अक [कुसुमय्] फूल आना। कुसु- मंति (संबोध ४७)।

कुसुम :: न [कुसुम] १ पुष्प, फूल (पाअ; प्रासू ३४) २ पुं. इस नाम का भगवान् पद्मप्रभ का शासनाधिष्ठायक यक्ष (संति ७)। °केउ पुं [°केतु] अरुणवर द्वीप का अधिष्ठायक देव (दीव)। °चाय, °चाव पुं [°चाप] कामदेव, मकरध्वज (सुपा ५९; ५३०; महा)। °ज्झय पुं [°ध्वज] वसन्त ऋतु (कुमा)। °णयर न [°नगर] नगर-विशेष, पाटलिपुत्र, आजकल जो 'पटना' नाम से प्रसिद्ध है (आवम)। °दंत पुं [°दन्त] एक तीर्थङ्कर देव का नाम, इस अवसर्पिणी काल के नववें जिनदेव, श्री सुविधिनाथ (पउम १, ३)। °दाम न [°दामन्] फूलों की माला (उवा)। °धणु न [धनुष्] कामदेव (कुमा)। °पुर न [°पुर] देखो ऊपर °णयर (उप ४८६)। बाण पुं [°बाण] कामदेव (सुर ३, १६२; पाअ)। °रअ पुं [°रजस्] मकरन्द (पाअ)। °रद पुं [°रद] देखोदंत (पउम २०, ५)। °लया स्त्री [°लता] छन्द-विशेष (अजि १५)। °संभव पुं [°संभव] मधुमास, चैतमासल (अणु)। °सर पुं [°शर] कामदेव (सुर ३, १०६)। °अर पुं [°कर] इस नाम का एक छन्द (पिंग)। °उह पुं [°युध] काम, कामदेव (स ५३८)। °वई स्त्री [°वती] इस नाम की एक नगरी (पउम ५, २९)। °सव पुं [°सव] किंजल्क, पराग, पुष्प- रेणु (णाया १, १; औप)

कुसुमसंभव :: पुं [कुसुमसम्भव] वैशाख नाम का लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १९)।

कुसमाल :: वि [कुसमवत्] फूलवाला (स ६९७)।

कुसुमाल :: पुं [दे] चोर, स्तेन (दे २, १०)।

कुसुमालिअ :: वि [दे] शून्य-मनस्क, भ्रान्त- चित्त (दे २, ४२)।

कुसुमिअ :: वि [कुसुमित] पुष्पित, पुष्प- युक्त, खिला हुआ (णाया १, १; पउम ३३, १४८)।

कुसुमिल्ल :: वि [कुसुमवत्] ऊपर देखो (सुपा २२३)।

कुसुर :: [दे] देखो झसुर (हे २, १७४ टि)।

कुसूल :: पुं [कुशूल] कोष्ठ, अन्‍न रखने के लिए मिट्टी का बना एक प्रकार का बड़ा पात्र (पाअ)।

कुस्सुमिण :: पुं [कुस्वप्‍न] दुष्ट स्वप्‍न (संबोध ४२)।

कुह :: अक [कुथ्] सड़ जाना, दुर्गन्धी होना। कुहइ (भवि; हे ४, ३६५)।

कुह :: पुं [कुह] वृक्ष, पेड़, गाछ; 'कुहा मह्णीरुहा वच्छा' (दसनि १)।

कुह :: देखो कहं (गा ५०७ अ)।

कुहंड :: पुं [कूष्माण्ड] व्यन्तर देखों की एक जाति (औप)।

कुहंड :: न [कूष्माण्ड] १ कुम्हड़ा, पेठा, कोहँड़ा (कम्म ५, ८५)

कुहंडिया :: स्त्री [कूष्माण्डी] कोहँड़ा का गाछ (राय)।

कुहक्क, कुहग :: देखो कुहय (धर्मवि १३५; कुप्र ८)।

कुहग :: पुं [कुहक] कन्द-विशेष, 'लाहिणीहू य थीहू य, कुहगा य तहेव य' (उत्त ३६, ९९ का)।

कुहड :: वि [दे] कुब्ज, कूबड़ा (दे २, ३६)।

कुहण :: पुं [कुहन] १ वृक्षों का एक प्रकार, वृक्षों की एक जाति; 'से किं तं कुहणा ? कुहण अणोगविहा पणणत्ता' (पणण १ — पत्र ३५) २ वनस्पति-विशेष। ३ भूमि-स्फोट (पणण १ — पत्र ३०; आचा) ४ देश-विदेश। ५ इसमें रहनेवाली जाति (पणह १, १ — पत्र १४; इक)

कुहण :: वि [क्रोधन] क्रोधी, क्रोध करनेवाला (पणह १, ४ — पत्र १००)।

कुहणी :: स्त्री [दे] कूर्पंर, हाथ का मध्य-भाग (सुपा ४१२)।

कुहय :: पुंन [कुहक] १ वायु-विशेष, दौड़ते हुए अश्‍व के उदर-प्रदेश के समीप उत्पन्‍न होता एक प्रकार का वायुः 'घणगज्जिय- हयकुहए' (गच्छ २) २ इन्द्रजालादि कौतुक; 'अलोलुए अक्कुहए अमाई' (दस ९, ३)

कुहर :: न [कुहर] १ पर्वत का अन्तराल (णाथा १, १ — पत्र ६३); 'गेहंव वित्तरहिअं णिज्जरकुहर व सलिलसुराणविअं' (गा ६०७) २ छिद्र, बिल, विवर (पणह १, ४; पासू २) ३ पुं. ब. देश-विशेष (पउम ९८, ६७)

कुहाड :: पुं [कुठार] कुल्हाड़, फरसा (विपा १, ६; पउम ९९, २४; स २, ४)।

कुहाडी :: स्त्री [कुठारी] कुल्हाड़ी, कुठार (उप ९६३)।

कुहावणा :: स्त्री [कुहना] १ आश्‍चर्य-जनक, दम्भ-क्रिया, दम्भ-चर्या। २ लोगों से द्रव्य हासिल करने के लिए किया हुआ कपट-भेष (जीत)

कुहिअ :: वि [दे] लिप्‍त, पोता हुआ (दे २, ३५)।

कुहिअ :: वि [कुथित] १ थोड़ी दुर्गन्धवाला (णाया १, १२ — पत्र १७३) २ सड़ा हुआ (उप ५९७ टी) ३ विनष्ट (णाया १, १)। °पूइय वि [पूतिक] अत्यन्त सड़ा हुआ (पणह २, ५)

कुहिणी :: स्त्री [दे] १ कूर्पर, हाथ का मध्य भाग। २ रथ्या, महल्ला (दे २, ६२)

कुहिल :: पुंस्त्री [कुहुमत्] कोयल पक्षी (पिंग)।

कुहु :: स्त्री [कुहु] कोकिल पक्षी की आवाज (पिंग)।

कुहुण :: देखो कुहण = कुहन (उत्त ३६, ९६ का)।

कुहुव्वय :: पुं [कुहुव्रत] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८)।

कुहेड :: पुं [दे] ओषधी-विशेष, गुरेटक, एक प्रकार का हर्रे का गाछ (दे २, ३५)।

कुहेड, कुहेडअ :: पुं [कुहेट, °क] १ चमत्कार उपजानेवाला मन्त्र-तन्त्रादि ज्ञान; 'कुहेडबिज्जासवदारजीवी न गच्छइ सरणं तम्मि काले' (उत्त २०, ४५) २ आभाणक, वक्रोक्ति-विशेष; 'तेसु न विम्हयइ सयं आह- ट्‍टुकुहेडएहिं व' (पव ७३ टी; बृह १)

कुहेडग :: पुंन [दे] अजडमा (पंचा ५, ३०)।

कुहेडगा :: स्त्री [कुहेटका] कन्द-विशेष, पिण्डालु (पव ४)।

कूअ :: देखो कूव= कूप (चंड; हम्मीर ३०)।

कूअण :: न [कूजन] १ अव्यक्त शब्द। २ वि. ऐसी आवाज करनेवाला (ठा ३, ३)

कूअणया :: स्त्री [कूजनता] कूजन, अव्यक्त शब्द (ठा ३, ३)।

कूइआ :: स्त्री [कूपिका] कूईं, छोटा कूप (चंड)।

कूइय :: न [कूजित] अव्यक्त, आवाज (महा; सुर ३, ४८)।

कूइया :: स्त्री [कूजिका] किवाँड़ आदि का अव्यक्त आवाज (पिंड ३५६ टी)।

कूचिआ :: स्त्री [कूर्चिका] दाढ़ी-मूँछ का बाल (संबोध ३१)।

कूचिया :: स्त्री [कूचिका] बूद्‍बुद, बुलबुला, पानी का बुलका (विसे १४६७)।

कूज :: अक [कूज्] अव्यक्त शब्द करना। कूजाहि (चारु २१)। वकृ. कजंत (मै २६)।

कूजिअ :: न [कूजित] अव्यक्त आवाज (कुमा; मै २६)।

कूड :: सक [कूटय्] १ झुठा ठहरना। २ अन्यथा करना। कूड़े (अणु ५० टी)

कूड :: पुं [दे. कूट] पाश, फाँसी, जाल (दे २, ४३; राय; उत्त ५; सूअ १, ५, २)।

कूड :: पुंन [कूट] १ असत्य, छल-युक्त, झुठा; 'कुडतुलकूडमाणे' (पडि) २ भ्रान्ति-जनक वस्तु (भग ७, ६) ३ माया, कपट, छल, दगा, धोखा (सुपा ६२७) ४ नरक (उत्त ५) ५ पीड़ा-जनक स्थान, दुःखोत्पादक जगह (सूअ १, ५, २; उत्त ६) ६ शिखर, टोंच (ठा ४, २; रंभा) ७ पर्वत का मध्य भाग (जं २) ८ पाषाणमय यन्त्र-विशेष, मारने का एक प्रकार का यन्त्र (भग १५) ९ समूह, राशि (निर १, १)। °कारि वि [°कारिन्] धोखेबाज, दगाखोर (सुपा ६२७)। °ग्गाह पुं [°ग्राह] धोखे से जीवों को फँसानेवाला (विपा १, २)। स्त्री. °ग्गाहणी (विपा १, २)। °जाल न [°जाल] धोखे का जाल, फाँसी (उत्त १९)। °तुला स्त्री [°तुला] झुठी नाप, बनावटी नाप (उवा १)। °पास न [°पाश] एक प्रकार की मछली पकड़ने का जाल (विपा १, ८)। °प्पओग पुं [°प्रयोग] प्रच्छन्न पाप (आव ४)। °लेह पुं [°लेख] १ जाली लेख, दूसरे के हस्ताक्षर-तुल्य अक्षर बान कर धोखे- बाजी करना। २ दूसरे के नाम से झुठो चिट्ठी वगैरह लिखना (पडि; उवा)। °वाहि पुं [°वाहिन्] बैल, बलीवर्द (आव ५)। °सक्ख न [°साक्ष्य] झुठी गवाही (पंचा १)। °सक्खि न [°साक्षिन्] झुठी साक्षि देनिेवाली (श्रा १४)। °सक्खिज्ज न [°सा- क्ष्य] भुठी गवाही (सुपा ३७५)| °सामलि स्री [°शाल्मलि] १ वृक्ष-विशेष के आकार का एक स्थान, जहाँ गरुड जातीय देवों का निवास है (सम १३; ठा २, ३) २ नरक स्थित वृक्ष-विशेष (उत्त २०) °गार न [°गार] १ शिखर के आकारवाला घर (ठा ४, २) २ पर्वंत पर बना हुआ घर (आचा २, ३, ३) ३ पर्वत में खुदा हुआ घर (निचू १२) ४ हिंसा-स्थान (ठा ४, २)।। °गारसाला स्त्री [°गारशाला] षड्‍यन्त्र वाला घर, षड्‍यन्त्र करने के लिए बनाया हुआ घर (विपा १, ३)। °हिच्च न [हत्य] पाषाण-भय यन्त्र की तरह मारना, कुचल डालना (भग १५)

कूड :: न [कूट] १ पाश, जाल, फाँस, फंदा (सूअ १, ५, २, १८; राय ११४) २ लगातार २७ दिन का उपवास (संबोध ५८)

कूडग :: देखो कूड (आवम)।

कूण :: अक [कूणय्] संकुचित होना, संकोच पाना (गउड)।

कूणिअ :: वि [कूणित] संकोच-प्राप्त, संकोचित (गउड)।

कूणिअ :: वि [दे] ईषद् विकसित, थोड़ा खिला हुआ (दे २, ४४)।

कूणिअ :: पुं [कूणिक] राजा श्रेणित का पुत्र (औप)।

कूणिय :: वि [कूणित] सड़ा हुआ (कुप्र १६०)।

कूय :: अक [कूज्] अव्यक्त आवाज करना। वकृ. कूयंत, कूयमाण (ओघ २१ भा; विपा १, ७)।

कूय :: पुं [कूप] १ कूप, कूँआ (गउड) २ घी, तेल वगैरह रखने का पात्र, कुतुष (णाया १, १ — पत्र ५८; औप) °दद्‍दुर पुं [दर्दुर] १ कूप का मेढ़क। २ वह मनुष्य जो अपना घर छोड़ बाहर न गया हो, अल्पज्ञ (उप ६४८ टी)। देखो कूव।

कूर :: वि [क्रूर] १ निर्दय, निष्कृप, हिंसक (पणह १, ३) २ भयंकर, रौद्र (णाया १, ८; सूअ १, ७) ३ पुं. रावण का इस नाम का एक सुभट (पउम ५६, २९)

कूर :: पुंन [कूर] वनस्पति-विशेष (सूअ २, ३, १६)।

कूर :: न [कूर] भात, ओदन (दे २, ४३)। °गडुअ, °गड्डुअ पुं [गडुक] एक जैन महर्षि (आचा; भाव ८)।

कूर° :: अ [ईषत्] थोड़ा, अल्प (हे २, १२९; षड्)।

कूरपिउड :: न [दे] भोजन-विशेष, खाद्य-विशेष (आवम)।

कूरि :: वि [क्रूरिन्] १ निर्दयी, क्रूर चित्तवाला। २ निर्दय परिवारवाला (पणह १, ३)

कूल :: न [दे] सैन्य का पिछला भाग (दे २, ४३; से १२, ९२)।

कूल :: न [कूल] तट, किनारा (पाअ; णाया १, १९)। °धमग पुं [ध्मायक] एक प्रकार का वानप्रस्थ जो किनारे पर खड़ा हो आवाज कर भोजन करता है (औप)। वालग, वालय पुं [बालक] एक जैन मुनि (आव; काल)।

कुलकंसा :: स्त्री [कूलङ्कषा] नदी, तीर को तोड़नेवाली नदी (वेणी १२०)।

कूंव :: पुंन [दे] १ चुराई चीज की खोज में जाना (दे २, ६२; पाअ) २ चुराई चीज को छुड़ानेवाला, छीनी हुई चीज को लड़ाई वगैरह कर वापस लेनेवाला; 'तए णं सा दोवदी देवी पउमणामं एवं वयासी — एवं खलु देवा° जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बारव- तीए णयरीए कणहे णामं वासुदेव मम प्पियभाउए परिवसति; तं जइ णं से छण्हं मासाणं ममं कूवं नो हव्वमागच्चइ, तए णं अहं देवा° जं तुमं वदसि तस्स आणाओवा- यवणणिद्देसे चिट्ठिस्सामि' (णाया १, १६ — पत्र २१५); 'दोवईए कूवग्गाहा' (उफ ६४८ टी; दे ६, ६२)

कुव, कूवग, कूवय :: पुं [कूप, °क] १ कूप, कूँआ, गर्त्त (प्रासू ४५) २ स्‍नेह-पात्र, कुतुप, कुप्पा (वज्जा ७२; उप पृ ४१२) ३ जहाजका मध्य स्तम्भ, जहाँपर पाल बोधा जाता है (औप; णाया १, ८) °तुला स्त्री [°तुला] कूपतुला, ढेंकुवा (दे १, ६३; ८७)। °मंडुक्क पुं [°मण्डूक] १ कूप का मेढक। २ अल्पज्ञ मनुष्य, जो अपना घर छोड़ बाहर न जाता हो (निचू १)

कूवय :: पुं [कूपक] देखो कूव = कूप (रयण ३२)। स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन मुनि (अंत ३)।

कूवर :: पुंन [कूवर] १ जहाज का एक अवयव, जहाज का मुख-भाग; 'संचुणिणयकट्ठकूवरा' (णाया १, ९ — पत्र १५७) २ रथ या गाड़ी वगैरह का एक अवयव, युगन्धर (से १२, ८४)

कूवल :: न [दे] जवन-वस्त्र (दे २, ४३)।

कूविय :: न [कूजित] अव्यक्त शब्द, 'तह कहवि कुणइ सो सूरयकूवियं तप्पुरो जेण' (सुपा ५०८)।

कूविय :: पुं [कूपिक] इस नाम का एक संनि- वेश — गाँव (आवम)।

कूविय :: वि [दे] मोष-व्यावर्त्तंक, चूराई हुई चीज की खोज कर उसे लानेवाला (णाया १, १८ — पत्र २३६) २ चोर की खोज करनेवाला (णाया १, १)

कूविया :: स्त्री [कूपिका] १ छोटा कूप (उफ ७२८ टी) २ छोटा स्‍नेह-पात्र, कूप्पी (राज)

कूवी :: स्त्री [कूपी] ऊपर देखो, 'एयाओ अमय- कूवीओ' (उप ७२८ टी)।

कूसार :: पुं [दे] गर्त्ताकार, गर्त्तं जैसा स्थान, खड्‍डा; 'कूसारखलंतपओ' (दे २, ४४; पाअ)।

कुहंड :: पुं [कूष्माण्ड] व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४)।

के :: सक [क्री] कीनना, खरीदना। केइ, केअइ (षड्)।

के° :: वि [कियत्] कितना ? °चिरेण अ [°चिरेण] कितने समय में ? (अंत २४)। °च्चिरं अ [°च्चिरं] कितने समय तक ? (पि १४९)। °च्चिरेण देखो °चिरेण (पि १४९)। °दूर न [°दूर] किता दूर ? 'केंदूरे सा पूरी लंका ? (पउम ४८, ४७)। °महालय वि [°महालय] कितना बड़ा ? (णाया १, ८)। °महालिय वि [°महत्] कितना बड़ा ? (पणण २१)। °महिडि्ढय वि [°महर्द्धिक] कितनी बड़ी ऋद्धिवाला (पि १४९)।

किअइ :: पुं [केकय] देश-विशेष, जिसका आधा भाग आर्यं और आधा भाग अनार्यं है, सिन्धु देश की सामा पर का देश (इक); 'केयइ- अड्‍ढं च आरियं भणियं' (पणण १; सत्त ६७ टी)।

केअई :: स्त्री [केतकी] वृक्ष-विशेष, केवड़ा का वृक्ष (कुमा; दे ८, २५)।

केअग, केअय :: पुं [केतक] १ वृक्ष-विशेष, केवड़ा का गाछ, केतकी (गउड) २ न. केतकी-पुष्प, केवड़ा का फूल (गउड) ३ चिन्ह, निशान (ठा १०)

केअगी :: स्त्री [केतकी] १ केवड़ा का गाछ य़ा पौधा। २ केवड़ा का फूल (राय ३४)

केअल :: देखो केवल (अभि २६)।

केअव :: देखो कइअव = कैतव; 'जं केअवेण पिम्मं' (गा ७४४)।

केआ :: स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी (दे २, ४४; भग १३, ९)।

केआर :: पुं [केदार] १ क्षेत्र, खेत (सुर २, ७८) २ आलवाल, क्यारी (पाअ; गा ६९०)

केआरवाण :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, पलाश का जमीन, गोचर भूमि (कप्पू)।

केउ :: पुं [केतु] १ ध्वज, पताका (सुपा २२९) २ ग्रह-विशेष (सुज्ज २०; गउड) ३ चिह्न, निशान (औप) ४ तूल-सूत्र, रूई का सूता (गउड)। °खेत्त न [°क्षेत्र] मेघ-वृष्टि से ही जिसमें अन्न पैदा हो सकता हो ऐसा क्षेत्र-विशेष (आव ६)। °मई स्त्री [°मती] किन्नरेन्द्र और किंपुरुषेन्द्र की अग्र-महीषी का नाम, इन्द्राणी-विशेष (भग १०, ५; णाया २)। °माल न [°माल] वैताढ्य पर्वत पर स्थित इस नाम का एक विद्याधर-नगर (इक)

केउ :: पुं [दे] कन्द, काँदा (दे २, ४४)।

केउ :: पुंन [केतु] एक देवविमान (देवेन्द्र १३४)।

केउग, केउय :: पुं [केतुक] पाताल-कलश-विशेष (सम ७१; ठा ४, २ — पत्र २२६)।

केऊर :: पुंन [केयूर] १ हाथ का आभूषण- विशेष, अङ्गद, बाजूबन्द (पाअ; भग ९, ३३) २ पुं. दक्षिण समुद्र का पाताल-कलश (पव २७२)

केऊरपुत्त :: पुं [दे] गाय ताथा भैंस का बच्चा (संक्षि ४७)।

केऊव :: पुं [केयूप] दक्षिण समुद्र का एक पालाल-कलश (इक)।

केंकाय :: अक [केङ्काय] 'कें-कें' आवाज करना। वकृ. 'पेच्चइ तओ जड़ागि केंकायंतं महीपडियं' (पउम ४४, ५४)।

केंसुअ :: देखो किंसुअ (कुमा)।

केकई :: स्त्री [कैकयी] १ राजा दशरथ की एक रानी, केकय देश के राजा की कन्या (पउम २२, १०८; उप पृ ३७) २ आठवें वासुदेव की माता (सम १५२) ३ अपर-विदेह के विभीषण-वासुदेव की माता (आवम)

केकय :: पुं [केकय] १ देश-विशेष, यह देश प्राचीन वाह्लीक प्रदेश के दक्षिण की ओर तथा सिंधु देश की सीमा पर स्थित है। २ इस देश का रहनेवाला (पणह १, १) ३ केकय देश का राजा (पउम २२, १०८)

केकसिया :: स्त्री [कैकासिका] रावण का माता का नाम (पउम ७, ५४)।

केका :: स्त्री [केका] मयूर-वाणी। °रव पुं [°रव] मयूर की आवाज, मयूर-शब्द (णाया १, १ — पत्र २५)।

केकाइय :: न [केकायित] मयूर का शब्द (सुपा ७९)।

केक्कई :: देखो केकई (पउम ७९, २६)।

केक्य :: देखो केकय (पव २७४)।

केक्कसी :: स्त्री [कैकसी] रावण की माता (पउम १०३, ११४)।

केक्काइय :: देखो केकाइय (णाया १, ३ — पत्र ९५)।

केगई :: देखो केकई (पउम १, ६४; २०, १८४)।

केगाइय :: देखो केकाइय (राज)।

केज्ज :: वि [क्रेय] बेचने की चीज (ठा ९)।

केढ, केढव :: पुं [कैटभ] १ इस नाम का एक प्रतिवासुदेव राजा (पउम ५, १५६) २ दैत्य-विशेष (हे १, २४०; कुमा)। °रिउ पुं [°रेपु] श्रीकृष्ण, नारायण (कुमा)

केत्त :: देखो केत्तिअ (हास्य १३९)।

केत्तिअ, केत्तिल :: वि [कियत्] कितना ? (हे २, १५७; कुमा; षड्; महा)।

केत्तुल :: (अप) ऊपर देखो (कुमा; षड्; हे ४, ४०८)।

केत्थु :: (अप) अ [कुत्र] कहाँ, किस जगह ? (हे ४, ४०५)।

केद्दह :: देखो केत्तिअ (हे २, १५७; प्राप्र)।

केम, केम्व :: (अप) देखो कहं (षड्; हे ४, ४०१; ४१८)।

केय :: न [केत] १ गृह, घर। २ चिह्न, निशानी (पव ४)

केयण :: न [केतन] १ वक्र वस्तु, टेढ़ी चीज। २ चंगेरी का हाथा (ठा ४, २ — पत्र २१८) ३ संकेत, संकेत-स्थान (वव ४) ४ धनुष की मूठ (उत्त ९) ५ मछली पकड़ने का जाल (सूअ १, ३, १) ६ स्थान, जगह (आचा) ७ 'कडवल्लसंठितं' (सूत्र° चूर्णी. पत्र ८२ गा° १७६)

केयय :: देखो केकय (सुपा १४२)।

केयव्व :: वि [क्रेतव्य] खरीदने योग्य वस्तु (उत्त ३५, १५)।

केर, केरय :: वि [दे. सबन्धिन्] संबन्धी वस्तु, संबन्धी चीज (स्वप्‍न ५१; हे ४, ३५९; ३७३; प्राप्र; भवि)।

केरव :: न [कैरव] १ कुमुद, सफेद कमल (पाअ; सुपा ४९) २ कैतव, कपट (हे १, १५२)

केरिच्छ :: बि [कीदृक्ष्] कैसा, किस तरह का ? (हे १, १०५; प्राप्र; काल)।

केरिस :: वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का ? (प्रामा)।

केरी :: स्त्री [क्रकटी] वृक्ष-विशेष, करीर का गाछ; 'निंबबबोरिकेरि — ' (उप १०३१ टी)।

केल :: देखो कयल = कदल (हे १, १६७)।

केलाइय :: वि [समारचित] साफसुथरा किया हुआ (कुमा)।

केलाय :: सक [समा + रचय] समारचन करना, साफ कर ठीक करना। केलायइ (हे ४, ९५)।

केलास :: पुं [कैलास] राहु का कृष्ण पुद्रल- विशेष (सुज्ज २०)।

केलास :: पुं [कैलास] १ स्वनाम-प्रसिद्ध पर्वत- विशेष (से ६, ७३; गउड; कुमा) २ इस नाम का एक नाग-राज (इक) ३ इस नाग- राज का आवास-पर्वत (ठा ४, २) ५ मिट्टी का एक तरह का पात्र (निर १, ३)। देखो कइलास।

केलि :: देखो कयलि (कुमा)।

केलि :: स्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८; सुख ३६, ९८)।

केलि, केली :: स्त्री [केलि, °ली] १ क्रीड़ा, खेल, मजाक (कुमा; पाअ; कप्पूः) २ परि- हास, हाँसी, ठट्ठा (पाअ; औप) ३ काम- क्रीड़ा (कप्पू; औप) °आर वि [°कार] क्रीड़ा करनेवाला, विनोदी (कप्पू)। °काणण न [°कानन] क्रीड़ोद्यान (कप्पू)। °किल, °गिल वि [°किल] १ विनोदी, क्रीड़ा-प्रिय (सुपा ३१४) २ पुं. व्यन्तर-जातीय देव- विशेष (सुपा ३२०) ३ पुंन. स्थान-विशेष (पउम ५५, १७)। °भवण न [°भवन] क्रीड़ा-गृह, विलास-घर (कप्पू)। °विमाण न [°विमान] विलास-महल (कप्पू)। °सअण न [°शयन] काम-शय्या (कप्पू)। °सेज्जा स्त्री [°शय्या] काम-शय्या (कप्पू)

केली :: देखो कयली (हे १, १२०)।

केली :: स्त्री [दे] असती, कुलटा, व्यभिचारिणी स्त्री (दे २, ४४)।

केलीगिल :: वि [कैलीकिल] केलीकिल स्थान में उत्पन्न (पउम ५५, १७)।

केव° :: देखो के° (भग; पणण १७ — पत्र ५४५; विसे २८६१)।

केवँ :: (अप) देखो कहं (कुमा)।

केवइय :: वि [कियत्] कितना ? (सम १३४; विसे ६४६ टी)।

केवट्ट :: पुं [कैवर्त्त] धीवर, मछलीमार, मछुआ (पाअ; स २५८; हे २, ३०)।

केवड :: (अप) देखो केत्तिअ (हे ४, ४०८; कुमा)।

केवल :: वि [केवल] १ अकेला, असहाय (ठा २, १; औप) २ अनुपम, अद्वितीय (भग ९, ३३) ३ शुद्ध, अन्य वस्तु से अमिश्रित (दस ४) ४ संपूर्ण, परिपूर्ण (निर १, १) ५ अनन्त, अन्त-रहित (विसे ८४) ६ न. ज्ञान-विशेष, सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, भूत, भावी वगैरह सर्व वस्तुऔं का ज्ञान, सर्वज्ञता (विसे ८२७) °कप्प वि [°कल्प] परिपूर्ण, संपूर्णं (ठा ३, ४)। °णाण न [°ज्ञान] सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, संपूर्ण ज्ञान (ठा २, १)। °णाणि, °नाणि वि [°ज्ञानिन्] १ केवल-ज्ञानवाला, सर्वज्ञ (कप्प; औप) २ पुं. इस नाम के एक, अर्हन् देव, अतीत उत्सर्पिणी-काल के प्रथम तीर्थकर (पव ६)। °णाण, °नाण; °न्नाण देखो °णाण (विसे ८२६; ८२९; ८२३)। °दंसण न [°दर्शन] परिपूर्ण सामान्य बोध (कम्म ४, १२)

केवलं :: अ [केवलम्] केवल, सिर्फं, मात्र (स्वप्‍न ९२; ९३; महा)।

केवलाअ :: सक [समा + रभ्] आरम्भ करना, शूरू करना। केवलाअइ (षड्)।

केवलि :: वि [केवलिन्] केवल ज्ञानवाला, सर्वज्ञ (भग)। °पक्खिय वि [पाक्षिक] १ स्वयंबुद्ध। २ पुं. जिनदेव, तीर्थकर (भग ९, ३१)

केवलिअ :: वि [केवलिक] १ केवलज्ञानवाला (भग) २ परिपूर्ण, संपूर्णं; 'सामाइयं केवलियं पसत्यं' (विसे २६८१)

केवलिअ :: वि [कैवलिक] १ केवल-ज्ञान से संबन्ध रखनेवाला (दं १७) २ केवलि- प्रोक्त (सूअ १, १४) ३ केवल-ज्ञानि-संबन्धी (ठा ४, २) ४ न. केवल ज्ञान, संपूर्ण ज्ञान (आव ४)

केवलिअ :: न [कैवल्य] केवल ज्ञान, 'केवलिए संपत्ते' (सत्त ६७ टी; विसे ११८०)।

केवली :: स्त्री [केवली] ज्योतिष विद्या-विशेष (हास्य १२६, १२९)।

केस :: पुं [केश] केश, बाल (उप ७६८ टी; प्रयौ २६)। °पुर न [°पुर] वैताढ्य पर स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °लोअ पुं [°लोच] केशों का उन्मुलन (भग; पणह २, ४)। °वाणिज्ज न [°वाणिज्य] केशः वाले जीवों का व्यापार (भग ८, ५)। °हत्थ, °हत्थय पुं [°हस्त, °क] केशपाश, समा- रचित केश, संयत बाल (कप्प; पाअ)।

केस :: देखो केरिस। स्त्री. °सी (अणु १३१)।

केस :: देखो किलेस (उप ७६८ टी; धम्म २२)।

केसर :: पुं [कवीश्वर] उत्तम कवि, श्रेष्ठ कवि (उप ७२८ टी)।

केसर :: पुंन [केसर] एक देवविमान (देवेन्द्र १४२)।

केसर :: पुंन [केसर] १ पुष्प-रेणु, पराग, किंजल्क (से १, ५०; दे ६, १३) २ सिंह वगैरह कं कंधा का बाल, केसरा (से १, ५०; सुपा २१५) ३ पुं. बकुल वृक्ष (कप्पू; गउड; पाअ) ४ न. इस नाम का एक उद्यान, काम्पिल्य नगर का एक उपवन (उत्त १७) ५ फल-विशेष (राज) ६ सुवर्ण, सोना। ७ छन्द-विशेष (हे १, १४६) ८ पुष्प- विशेष (गउड ११२२)

केसरा :: स्त्री [केसरा] १ सिंह वगैरह के स्कन्ध पर के बालों की सटा, 'केसरा य सीहाणं' (प्रासू ५१; गउड; प्रामा)

केसरि :: पुं [केसरिन्] १ सिंह, बनराज, कण्ठीरव (उप ७२८ टी; से ८, ९४; पणह १, ४) २ ह्रद-विशेष, नीलवन्त पर्वंत पर स्थित एक ह्रद (सम १०४) ३ नृप-विशेष, भरत-क्षेत्र के चतुर्थ प्रति वासुदेव (सम १५४)। °द्दह पुं [°द्रह] द्रह-विशष (ठा २, ३)

केसरिआ :: स्त्री [केसरिका] साफ करने का कपड़े का टुकड़ा (भग; विसे २५५२ टी)।

केसरिल्ल :: वि [केसरवत्] केसरवाला (गउड)।

केसरी :: स्त्री [केसरी] देखो केसरिआ; 'तिदं- डकुंडियछत्तलुयंकुसपबित्तयेकसरीहत्थगए' (णाया १, ५ — पत्र १०५)।

केसव :: पुं [केशव] १ अर्ध-चक्रवर्त्ती राजा (सम) २ श्रीकृष्ण वासुदेव, नारायण (गउड)

केसि :: वि [क्लेशिन्] क्लेश-युक्त, क्लिष्ट (विसे ३१५४)।

केसि :: पुं [केशि] १ एक जैन मुनि, भगवान् पार्श्‍वनाथ के शिष्य (राय; भग) २ असुर- विशेष, अश्‍व के रूप को धारण करनेवाला एक दैत्य, जिसको श्रीकृष्ण ने मारा था (मुद्रा २६२)

केसि :: पुं [केशिन्] देखो केसव (पउम ७५, २०)।

केसिअ :: वि [केशिक] केशवाला, बाल-युक्त। स्त्री. °आ (सूअ १, ४, २)।

केसी :: स्त्री [केशी] सातवें वासुदेव की माता (पउम २०, १८४)।

°केसी :: स्त्री [°केशी] केशवाली स्त्री, 'विइणण- केसी' (उवा)।

केसुअ :: देखो किंसुअ (हे १, २९; ८६)।

केह :: (अप) वि [कीद्दश्] कैसा, किस तरह का ? (भवि; षड्; कुमा)।

केहिं :: (अप) अ. लिए वास्ते (हे ४, ४२५)।

कैअव :: न [कैतव] कपट, दम्भे (हे १, १; गा १२४)।

कोअ :: देखो कोक (दे २, ४५ वटी)।

कोअ :: देखो कोव (गउड)।

कोअंड :: देखो कोदंड (पाअ)।

कोआस :: अक [वि + कस्] विकसना, खिलना। कोआसइ (हे ३, १९५)।

कोआसिय :: वि [विकसित] विकसित, प्रफुल्ल, खिला हुआ (कुमा; जं २)।

कोइल :: पुं [कोकिल] १ कोयल, पिक (पणह १, ४; उप २३; स्वप्‍न ६१) २ छन्द का एक भेद (पिंग)। °च्छय पुं [°च्छद] वनस्पति-विशेष, तलकण्टक (पणण १७ — पत्र ५२७)

कोइला :: स्त्री [कोकिला] स्त्री कोयल, पिकी; 'कोइला पंचमं सरं' (अणु; पाअ)।

कोइला :: स्त्री [दे] कोयला, काष्ठ के अंगार (दे २, ४९)।

कोउआ :: स्त्री [दे] गोइठा की अग्‍नि, करीषाग्‍नि (दे २, ४८; पाअ)।

कोउग, कोउय :: न [कौतुक] १ कूतुहल, अपूर्वं वस्तु देखने का अभिलाष (सुर २, २२६) २ आश्‍चर्य, विस्मय (वव १) ३ उत्सव (राय) ४ उत्सुकता, उत्कण्ठा (पंचव १) ५ दृष्टि-दोषादि से रक्षा के लिए किया जाता काजल का तिलक, रक्षा-बन्धनादि प्रयोग (राय; औप; विपा १, १; पणह १, २; धर्मं ३) ६ सौभाग्य आदि के लिए किया जाता स्‍नपन विस्मापन, धूप, होम वगैरह कर्म (वव १, णाया १, १४)

कोउण्ह :: वि [कदुष्ण] थोड़ा गरम (धर्मंवि ११३)।

कोउहल, कोउहल्ल :: देखो कुऊहल (हे १, ११७; १७१; २, ९९; कुमा; प्राप्र)।

कोउहल्लि :: वि [कुतूहलिन्] कुतूहली, कौतुकी कुतूहल-प्रिय (कुमा)।

कोऊहल, कोऊहल्ल :: देखो कुऊहल (कुमा; पी ६१)।

कोंकण :: पुं [कोङ्कण] देश-विशेष (स ४१२)।

कोंकणग :: पुं [कोङ्कणक] १ अनार्य देश-विशेष (इक) २ वि. उस देश में रहनेवाला (पणह १, १; विसे १४१२)

कोंच :: पुं [°क्रौञ्च] १ इस नाम का एक अनार्यं देश (पणह १, १) २ पक्षि-विशेष (ठा ७) ३ द्वीप-विशेष (ती ४५) ४ इस नाम का एक असुर (कुमा) ५ वि. क्रौञ्च देश का निवासी (पणह १, १)। °रिवु पुं [°+रिपु] कार्त्तिकेय, स्कन्द (कुमा)। °वर पुं [°वर] इस नाम का एक द्वीप (अणु-टी)। °वीरग पुंन [°वीरक] एक प्रकार का जहाज (बृह १)। देखो कुंच।

कोंचिगा :: स्त्री [कुञ्चिका] चाली, कुंजी (उप १७७)।

कोंचिय :: वि [कुञ्चित] आकुञ्चित, संकुचित पणह १, ४)।

कोंटलय :: न [दे] १ ज्योतिष-सम्बन्धी सूचना। २ शकूनादि निमित्त-सम्बन्धी सूचना; 'पउंजणे कोंटलयस्स' (ओघ २२१ भा)

कोंठ :: देखो कुंठ (हे १, ११६ पि)।

कोंड :: देखो कुड (हे १, २०२)।

कोंड :: पुं [कौण्ड, गौड] देश-विशेष (इक)।

कोंडल :: देखो कुंडल (राज)। °मेत्तग पुं [°मित्रक] एक व्यन्तर देव का नाम (बृह ३)।

कोंडलग :: पुं [कुण्डलक] पक्षि विशेष (औप)।

कोंडालिआ :: स्त्री [दे] १ श्‍वापद जन्तु-विशेष, साही, श्‍वावित्। २ क्रीड़ा, कीट (दे २, ५०)

कोंडिअ :: पुं [दे] ग्राम-निवासी लोगों में फूट कराकर छल से गाँव का मालिक बन बैठनेवाला (दे २, ४८)।

कोंडिणपुर :: न [कौण्डिनपुर] नगर-विशेष (रुक्मि ५१)।

कोंडिया :: देखो कुंडिया (पणह २, ५)।

कोंडिण्ण :: देखो कोडिन्न (राज)।

कोंढ :: देखो कुंढ (हे १, ११६)।

कोंढुल्लु :: पुं [दे] उलुक, उल्लु, पक्षि-विशेष (दे २, ४९)।

कोंत :: देखो कुंत (पणह १, १ सुर २, २८)।

कोंतल :: देखो कुंतल = किन्तल (प्राकृ ६. संक्षि ४)।

कोंती :: देखो कुंती (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

कोंभी :: देखो कुंभी (प्राकृ ६)।

कोक :: पुं [कोक] १ चक्रवाक पक्षी (दे ८, ४३) २ वृक, भेड़िया (इक)

कोकंतिय :: पुंस्त्री [दे] जन्तु-विशेष, लोमड़ी, लोखरिआ (पणह १, १)। स्त्री. °या (णाया १, १ — पत्र ६५)।

कोकणद :: देखो कोकणय (संबोध ४७)।

कोकणय :: न [कोकनद] १ रक्त कुमुद। २ लाल कमल (पणण १; स्वप्‍न ७२)

कोकासिय :: [दे] देखो कोक्कासिय (पणह १, ४ — पत्र ७८)।

कोकुइय :: देखो कुक्कुइअ (ठा ६ — पत्र ३७१)।

कोक्क :: सक [व्या + हृ] बुलाना, आह्वान करना। कोक्कइ (हे १, ७६; षड्)। वकृ. कोक्कंत (कुमा)। संकृ. कोक्किवि (भवि)। प्रयो. कोक्कावइ (भवि)।

कोक्कास :: पुं [कोक्कास] इस नाम का एक वर्धकि, बढ़ई (आचू १)।

कोक्कासिय :: [दे] देखो कोआसिअ (दे २, ५०)।

कोक्किय :: वि [व्याहृत] आहूत, बुलाया हुआ (भवि)।

कोक्कुइय :: देखो कक्कुइअ (कस; औप)।

कोखुब्भ :: देखो खोखुब्भ वकृ. कोखुब्भमाण (पि ३१९)।

कोच्चप्प :: न [दे] अलीक-हित, झुठी भलाई, दिखावटी हित (दे २, ४६)।

कोच्चिय :: पुंस्त्री [दे] शैक्षक, नया शिष्य (वव ६)।

कोच्छ :: न [कौत्स] १ गोत्र-विशेष। २ पुंस्त्री. कौत्स गोत्र में उत्पन्न (ठा ७ — पत्र ३९०)

कोच्छ :: वि [कौक्ष] १ कुक्षि सम्बन्धी, उदर से सम्बन्ध रखनेवाला। २ न. उदरप्रदेश; 'गणियायारकणेरुकात्थ (? च्छ) हत्थी' (णाया १, १ — पत्र ६४)

कोच्छभास :: पुं [दे. कुत्सभाष] काक, कौआ, वायस; 'न मणी सयसाहस्सो आवि- ज्झि कोच्छभासस्स' (उव)।

कोच्छेअय :: देखो कुच्छेअय (हे १, १६१; कुमा; षड्)।

कोज्ज :: देखो कुज्ज (कप्प)।

कोज्जप्प :: न [दे] स्त्री-रहस्य (दे २, ४६)।

कोज्जय :: देखो कुज्जय (णाया १, ८ — पत्र १२५)।

कोज्जरिअ :: वि [दे] आपूरित, पूर्ण किया हुआ, भरा हुआ (षड्)।

कोज्झरिअ :: वि [दे] ऊपर देखो (दे २, ५०)।

कोटर :: देखो कोट्टर (चेइय १५१)।

कोटिंब :: पुं [दे] गौ (निशीथ ३५६५ गा°)।

कोटुंभ :: पुंन [दे] हाथ से आहत जल, 'कोटुं भो जलकरप्फालो' (पाअ)। देखो कोट्‍टुंभ।

कोटीवरिस :: अ [कोटिवर्ष] लाट देश की प्राचीन राजधानी (विचार ४९)।

कोट्ट :: देखो कुट्ट = कुट्ठ्। कवकृ. कोट्टिज्जमाण (आवम)। संकृ. कोट्टिय (जीव ३)।

कोट्ट :: न [दे] १ नगर, शहर (दे २, ४५) २ कोट, किला, दुर्गं (णाया १, ८ — पत्र १३४; उत्त ३०; बृह १; सुपा ११८)। °वाल पुं [°पाल] कोटवाल, नगर-रक्षक (सुपा ४१३)

कोट्टंतिया :: स्त्री [कुट्टयन्तिका] तिल वगैरह को चूरने का उपकरण (णाया १, ७ — पत्र ११७)।

कोट्टकिरिया :: स्त्री [कोट्टक्रिया] देवी-विशेष, दुर्गा आदि रुद्र रूपवाली देवी (अणु २५)।

कोट्टण :: देखो कुट्टण (उप १७९; पणह १, १)।

कोट्टर :: देखो कोडर (महा; हे ४, ४२२; गा ५६३ अ)।

कोट्टवीर :: पुं [कोट्टवीर] इस नाम का एक मुनि, आचार्य शिवभूमि का एक शिष्य (विसे २५५२)।

कोट्टा :: स्त्री [दे] १ गौरी, पार्वती (दे २, ३५ — १, १७४) २ गला, गर्दन (उप ९९१)

कोट्टाग :: पुं [कोट्‍टाक] १ वर्धंकि, बढ़ई (आचा २, १; २) २ न. हरे फलों को सुखाने का स्थान-विशेष (बृह १)

कोट्टिंब :: पुं [दे] द्रोणी, नौका, जहाज (दे २, ४७)।

कोट्टिम :: पुंन [कुट्टिम] १ रत्‍नमय भूमि (णाया १, २) २ फरस-बंध जमीन, बँधी हुई जमीन (जं १) ३ भूमि-तल (सुर ३, १००) ४ एक या अनेक तलावाला घर (वव ४) ५ झोंपड़ी, मढ़ी। ६ रत्‍न की खान। ७ अनार का पेड़ (हे १, ११६; प्राप्र)

कोट्टिम :: वि [कृत्रिम] बनावटी, बनाया हुआ, अकुदरती (पउम ९६, ३९)।

कोट्टिल, कोट्टिल्ल :: पुं [कौट्टिक] मुग्दर, मुगरी, मुगरा, जोड़ी (राज; विपा १, ६ — पत्र ६६; ६९)।

कोट्टी :: स्त्री [दे] १ दोह, दोहन। २ विषम स्खलना (दे २, ६४)

कोट्‍टुंभ :: पुंन [दे] हाथ से आहत जल, 'कोटटुंभं करहए तोए' (दे २, ४७)।

कोटटुम :: अक [रम्] क्रीड़ा करना, रमण करना। कोट्‍टुमइ (हे ४, १६८)।

कोट्‍टुवाणी :: स्त्री [क्रोट्‍टवाणी] जैन मुनि- गण की एक शाखा (कप्प)।

कोट्ठ :: देखो कुट्ठ = कुष्ठ (भग १६, ६; णाया १, १७)।

कोट्ठ :: पुं [कोष्ठ] १ धारणा, अवधारित अर्थं का कालान्तर में स्मरण-योग्य अवस्थान (णंदि १७६) २ सुगन्धी द्रव्य-विशेष (राय ३४)

कोट्ठ, कोट्ठग, कोट्ठय :: देखो कुट्ठ =कोष्ठ (णाया १, १; ठा ३, १; पाअ)। ३ आश्रय-विशेष, आवास-विशेष (ओघ २००; वव १) ४ अपवरक, कोठरी (दस ५, १; उप ४८६) ५ चैत्य-विशेष (णाया २, १)। °गार न [°गार] घान्य भरने का घर (औप; कप्प)। २ भाण्डागार, भंडार (णाया १, १)

कोठ्ठार :: पुंन [कोष्ठागार] भाण्डागार, भंडार; (पउम २, ३)।

कोट्ठि :: वि [कुष्ठिन्] कुष्ठ रोगी (आचा)।

कोट्ठिया :: स्त्री [कोष्ठिका] छोटा कोष्ठ, लघु कुशूल (उवा)।

कोट्‍ठु :: पुं [क्रोष्ठृ] श्रृगाल, सियार (षड्)।

कोडंढ :: देखो कोदंड (स २५९)।

कोडंडिय :: देखो कोदंडिय (कप्प)।

कोडंब :: न [दे] कार्य, काम, काज (दे २, २)।

कोडय :: [दे] देखो कोडिअ (पाअ)।

कोडर :: न [कोटर] गह्वर, वृक्ष का पोल भाग, विवर (गां ५६२)।

कोडल :: पुं [कोटर] पक्षि-विशेष (राज)।

कोडाकोडि :: स्त्री [कोटाकोटि] संख्या-विशेष, करोड़ को करोड़ से गुनने पर जो संख्या लब्ध हो वह (सम १०५; कप्प; उव)।

कोडाल :: पुं [कोडाल] १ गोत्र-विशेष का प्रवर्त्तक पुरुष। २ न. गोत्र-विशेष (कप्प)

कोडि :: स्त्री [कोटि] १ धनुष का अग्र भाग (राय ११३) २ भेद, प्रकार (पिंड ३९५)

कोडि :: स्त्री [कोटि] १ संख्या, विशेष, करोड़, १००००००० (णाया १, ८; सुर १, ६७; ४, ६१) २ अग्र-भाग, अणि, नोक (से १२, २९; पाअ) ३ अंश, विभाग, भाग; 'नत्थिक्कसो पएसो लोए वालग्गकोडिमित्तोवि' (पव्व ३९; ठा ९)। °कोडि देखो कोडा- कोडि (सुपा २९९)। °बद्ध वि [°बद्ध] करोड़ संख्यावाला (वव ३)। °भूमि स्त्री [°भूमि] एक जैन तीर्थ (ती ४३)। °सिला स्त्री [°शिला] एक जैन तीर्थ (पउम ४८, ९९)। °सो अ [°शस्] करोड़ों, अनेक करोड़ (सुपा ४२०)। देखो कोडी।

कोंडिअ :: न [दे] १ छोटा मिट्टी का पात्र, लघु सराव, सकोरा (दे २, ४७) १ पुं. पिशुन, दुर्जंन, चुगलखोर (षड्)

कोडिअ :: पुं [कोटिक] १ एक जैन मुनि (कप्प) २ एक जैन-मुनि-गण (कप्प; ठा ९)

कोडिअ :: वि [कोटित] संकोचित (धर्मसं ३८८)।

कोडिण्ण, कोडिन्न :: न [कौडिन्य] १ इस नाम का एक नगर (उप ६४८ टी) २ वशिष्ठ गोत्र की शाखा रूप एक गोत्र (कप्प) ३ पुं. कौडिन्य गोत्र का प्रवर्त्तक पुरुष। ४ वि. कौडिन्य-गोत्रीय (ठा ७ — पत्र ३९०; कप्प) ५ पुं. एक मुनि, जो शिवभूमि का शिष्य था (विसे २५५२) ६ महागिरि- सूरि का शिष्य, एक जैन मुनि (कप्प) ७ गोतम-स्वामी के पास दीक्षा लेनेवाले पाँच सौ तापसों का गुरू (उप १४२ टी)

कोडिन्ना :: स्त्री [कौण्डिन्या] कौडिन्य-गोत्रीय स्त्री (कप्प)।

कोडिल्ल :: पुं [दे] पिशुन, दुर्जन, चुगलखोर (दे २, ४०; षड्)।

कोडिल्ल :: देखो कोट्टिल्ल (राज)।

कोडिल्ल :: पुं [कौटिल्य] इस नाम का एक ऋषि, चाणक्य मुनि (वव १; अणु)।

कोडिल्लय :: न [कौटिल्यक] चाणक्य-प्रणीत नीति-शास्त्र (अणु)।

कोडिसाहिय :: न [कोटिसहित] प्रत्याख्यान विशेष, पहले दिन उपवास करके दूसरे दिन भी उपवास की ली जाती प्रतिज्ञा (पव ४)।

कोडि :: देखो कोडि (उव; ठा ३, १; जी ३७)। °करण न [°करण] विभाग, विभजन (पिंड ३०७)। °णार न [°नार] इस नाम का सोरठ देश का एक नगर (ती ५६)। °मातसा स्त्री [°मातसा] गान्धार ग्राम की एक मूर्च्छँना (ठा ७ — पत्र ३९३)। °वरिस न [°वर्ष] लाट देश की राजधानी, नगर-विशेष (इक; पव १७४)। °वारिसिया स्त्री [°वर्षिका] जैन मुनि-गण की एक शाखा (कप्प)। °सर पुं [°श्वर] करोड़ पति, कोटीश (सुपा ३)।

कोडीण :: न [कोडीन] १ इस नाम का एक गोत्र, जो कौत्स गोत्र की एक शाखा रूप है। २ वि. इस गोत्र में उत्पन्‍न (ठा ७ — पत्र ३९०)

कोडुंब :: न [दे] कार्य, काज (दे २, २)।

कोडुंबि :: देखो कुडुंबि (ठा ३, १ — पत्र १२५)।

कोडुंबिय :: पुं [कौटुम्बिक] १ कुटुम्ब का स्वामी, परिवार का स्वामी, परिवार का मुखिया (भग) २ ग्राम-प्रधान, गाँव का आदमी (पणह १, ५ — पत्र ९४) ३ वि. कुटुम्ब में उत्पन्‍न, कुटुम्ब से सम्बन्ध रखनेवाला, कुटुम्ब-सम्बन्धी (महा; जीव ३)

कोडूसग :: पुं [कोदूषक] अन्‍न-विशेष, कोदों की एक जाति (राज)।

कोड्ड :: [दे] देखो कुड्डु (दे २, ३३; स ६४१ ६४२; हे ४, ४२२; णाया १, १६ — पत्र २२४; उप ८९२; भवि)।

कोड्डम :: देखो कोट्टुम (कुमा)।

कोड्डमिअ :: न [रत] रति-क्रीड़ा-विशेष (कुमा)।

कोड्डिय :: वि [दे] कुतुहली, कौतुकी, विनोद- शील, उत्कण्ठित (उप ७६८ टी)।

कोड्‍ढ, कोढ :: पुं [कुष्ठि] रोग-विशेष, कुष्ठ-रोग पि ६६; णाया १, १३; श्रा २०)।

कोढि :: वि [कुष्ठिन्] कुष्ठ-रोग से ग्रस्त, कुष्ठ- रोगी (आचा)।

कोढिक, कोढिय :: वि [कुष्ठिक] कुष्ठ-रोगि, कुष्ठ- ग्रस्त (पणह २, ५ विपा १, ७)।

कोण :: वि [दे] १ काला, श्याम वर्णवाला (दे २, ४५) २ पुं. लकुट, लकड़ी, यष्टि (दे २, ४५; निचू १; पाअ) ३ वीणा वगैरह बजाने की लकड़ी, वीणा-वादन-दण्ड (जीव ३)

कोण, कोणग :: पुंन [कोण] कोन, अस्त्र, घर का एक भाग (गउड; दे २, ४५; रंभा)।

कोणव :: पुं [कौणप] राक्षस, पिशाच (पाअ)।

कोणायल :: पुं [कोणाचल] भगवान् शान्ति- नाथ के प्रथम श्रावक का नाम (विचार ३७८)।

कोणालग :: पुं [कोनालक] जलचर पक्षि-विशेष (पणह १, १)।

कोणाली :: स्त्री [दे] गोष्ठी, गोठ (बृह १)।

कोणिअ, कोणिग :: पुं [कोणिक] राजा श्रेणिक का पुत्र, नृप-विशेष (अंत; णाया १, १; महा; उव)।

कोणु :: स्त्री [दे] लेखा, लकरी, रेखा (दे २, २६)।

कोणेट्ठिया :: स्त्री [दे] गुञ्जा, गु° 'चणोठी' (अनु° वृ° हारि° पत्र° ७६) देखो, चणोट्ठिया।

कोण्ण :: पुं [दे. कोण] गृह-कोण, घर का एक भाग, कोना (दे २, ४५)।

कोतव :: न [कौतव] मूषक के रोम से निष्पन्‍न सूता (राज)।

कोतुहल :: देखो कुऊहल (काल)।

कोत्तलंका :: स्त्री [दे] दारू परोसने का भाण्ड, पात्र-विशेष (२, १४)।

कोत्तिअ :: वि [कौतुकिक] कौतूकी, कुतूहली (गा ६७२)।

कोत्तिअ :: पुं [कोत्रिक] १ भूमि-शयन करनेवाला वानप्रस्थ (औप) २ न. एक प्रकार का मधु (ठा ९)

कोत्थ :: देखो कोच्छ = कौक्ष।

कोत्थर :: न [दे] १ विज्ञान (दे २, १३) २ कोटर, गह्‌वर (सुपा २४७; निचू १५)

कोत्थल :: पुं [दे] १ कुशूल, कोष्ठ (दे २, ४८) २ कोथली, थैला (स १६२)। °कारा स्त्री [°कारी] भौंरी, कीट-विशेष (बृह १)

कोत्थुभ, कोत्थुह, कोथुभ :: पुं [कौस्तुभ] वासुदेव के वक्ष- स्थल की मणि (ती १०; प्राप्र; महा; गा १५१; पणह १, ४)।

कोदंड :: पुं [कोदण्ड] धनुष, धनु, कार्मुक, चाप (अंत १६)।

कोदंडिम, कोदंडिय :: देखो कु-दंडिम (जं ३; कप्प)।

कोदूसग :: देखो कोडूसग (भग ६, ७)।

कोद्दव :: देखो कुद्दव (भवि)।६

कोद्दविया :: स्त्री [दे] मातृवाहा, क्षुद्र कीट-विशेष (सुख १८, ३५)।

कोद्दाल :: देखो कुद्दाल (पणह १, १ — पत्र २३)।

कोद्दालिया :: स्त्री [कुद्दालिका] छोटा कुदार, कुदारी (विपा १, ३)।

कोध :: पुं [कोध] इस नाम का एक राजा, जिसने दाशरथि भरत के साथ जैन दीक्षा ली थई (पउम ८५, ४)।

कोप्प :: देखो कुप्प = कुप्। कोप्पइ (नाट)।

कोप्प :: पुं [दे] अपराध, गुनाह (दे २, ४५)।

कोप्प :: वि [कोप्य] द्वेष्य, अप्रतीकर; 'अकोप्पजंघजुगला' (पणह १, ३)।

कोप्पर :: पुं [कूर्पर] १ हाथ का मध्य भाग (ओघ २६६ भा; कुमा; हे १, १२४) २ नदी का किनारा, तट, तीर (ओघ ३०)

कोबेरी :: स्त्री [कौबेरी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४२)।

कोभग, कोभगक :: पुं [कोभक] पक्षि-विशेष (अंत; औप)।

कोमल :: वि [कोमल] मृदु, सुकुमार (जी १०; पाअ; कप्पू)।

कोमार :: वि [कौमार] १ कुमार से संबन्ध रखनेवाला, कुमार-संबन्धी (विपा १, ७१) २ कुमारी-संबन्धी (पाअ) ३ कुमारी में उत्पन्‍न (दे १, ८१)। स्त्री. °रिया, °री (भग १५)। °भिच्च न [°भृत्य] वैद्यक शास्त्र-विशेष, जिसमें बालकों के स्तन पान- संबन्धी वर्णन है (विपा १, ७ — पत्र ७५)। कोमारी स्त्री [कौमारी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)

कोमुइया :: स्त्री [कौमुदिका] श्रीकृष्ण वासुदेव की एक भेरी, जो उत्सव की सूचना के समय बजाई जाती थी (विसे १४७६)।

कोमुई :: स्त्री [दे] पूर्णिमा, कोई भी पूर्णिमा (दे २, ४८)।

कोमुई :: स्त्री [कौमुदी] १ शरद् ऋतु की पूर्णिमा (दे २, ४८) २ चन्द्रिका चाँदनी (औप; धम्म ११ टी) ३ इस नाम की एक नगरी (पउम ३९, १००) ४ कार्त्तिक की पूर्णिमा (राय)। °नाह पुं [°नाथ] चन्द्रमा, चाँद (धम्म ११ टी)। °महूसव पुं [°महोत्सव] उत्सव-विशेष (पि ३६६)

कोमुदिया :: देखो कोमुइया (णाया १, ५ — पत्र १००)।

कोमुदी :: देखो कोमुई = कौमुदी (णाया १, ट १ २)।

कोयव :: वि [कौतव] चूहे के रोमों से बना हुआ (वस्त्र) (अणु ३४)।

कोयव :: वि [कौयव] 'कोयव' देश में निष्पन्‍न (आचा २, ५, १, ५)। देखो कोयवग।

कोयवग, कोयवय :: पुं [दे] रूई से भरे हुए कपड़े का बना हुआ प्रावरण-विशेष, रजाई (णाया १, १७ — पत्र २२९)।

कोयवी :: स्त्री [दे] रूई से भरा हुआ कपड़ा (बृह ३)।

कोरंग :: पुं [कोरङ्क] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।

कोरंट, कोरंटग :: पुं [कोरण्ट, °क] १ वृक्ष-विशेष (पाअ) २ न. इस नाम का भृगुकच्छ (भडौंच) शहर का एक उपवन (वव १) ३ कोरण्टक वृक्ष का पुष्प (पणह १, ४; जं १)

कोरअ :: (शौ) देखो कउरव (प्राकृ ८४)।

कोरय, कोरव :: पु्ंन [कोरक] फलोत्पादक मुकुल, फल की कली (पाअ); 'चत्तारि कोरवा पन्नत्ता' (ठा ४, १ — पत्र १८५)।

कोरव :: देखो कउरव (सम्मत्त १७६)।

कोरविआ :: स्त्री [कौरव्या] देखो कोरव्वीया (अणु १३०)।

कोरव्व :: पुंस्त्री [कौरव्य] १ कुरु-वंश में उत्पन्न (सम १५२; ठा ६) २ कौरव्य-गोत्रीय। ३ पुं. आठवाँ चक्रवर्ती राजा ब्रह्मदत्त (जीव ३)

कोरव्वीया :: स्त्री [कौरवीया] इस नाम की षड्ज ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७)।

कोरिंट, कोरिंटये, कोरेंट :: देखो कोरंट (णाया १, १ — पत्र १९; कप्प; पउम ४२, ८; औप; उवा)।

कोल :: पुं [दे] ग्रीवा, नोक, गला (दे २, ४५)।

कोल :: पुं [क्रोड] १ सूअर, वराह (पणह १, १ — पत्र ७, स १११) २ उत्सङ्ग; गोद; 'कोलीकय — ' (गउड)

कोल :: पुं [कोल] १ देश-विशेष (पउम ९८, ६६) २ घुण, काष्ठ-कीट (सम ३९) ३ शूकर, बराह, सूअर (उप ३२० टी; णाया १, १; कुमा; पाअ) ४ मूषिक के आकार का एक जन्तु (पणह १, १ — पत्र ७) ५ अस्त्र-विशेष (धम्म ५) ६ मनुष्य की एक नीच जाति (आचू ४) ७ बदरी-वृक्ष, बेर का गाछ। ८ न. बदरी-फल, बेर (दस ५, १; भग ६, १०)। °पाग न [°पाक] नगर- विशेष, जहाँ श्रीऋषभदेव भगवान् का मंदिर है, यह नगर दक्षिण में है (ती ४५)। °पाल पुं [°पाल] देव विशेष, धरणेन्द्र का लोकपाल (ठा ३, १ — पत्र १०७)। °सुणय, °सुणह पुंस्त्री [°शुनक] १ बड़ा शूकर, सूअर की एक जाति, जंगली वराह (आचा २, १, ५) २ शिकारी कुत्ता (पणण ११)। स्त्री. °णिया (पणण ११)। °वास पुंन [°वास] काष्ठ, लकड़ी (सम ३९)

कोल :: वि [कौल] १ शक्ति का उपासक, तान्त्रिक मत का अनुयायी। २ तान्त्रिक मत से संबन्ध रखनेवाला; 'कोलो घम्मो कस्स णो भाइ रम्मो' (कप्पू) ३ न. बदर-फल- संबन्धी (भग ६, १०)। °चूण्ण न [°चूर्ण] बेर का चूर्णं, बेर का सत्तू (दस ५, १)। °ट्ठिय न [°स्थिक] बेर की गुठिया या गुठली (भग ६, १०)

कोलंब :: पुं [दे] पिठर, स्थाली (दे २, ४७; पाअ) २ गृह, घर (दे २, ४७)

कोलंब :: पुं [कोलम्ब] वृक्ष की शाखा का नामा हुआ अग्र भाग (अनु ५)।

कोलगिणी :: स्त्री [कोली, कोलकी] कोल- जातीय स्त्री (आचू ४)।

कोलघरिय :: वि [कौलगृहिक] कुलगृह- संबन्धी, पितृगृह-संबन्धी, पितृगृह से संबन्ध रखनेवाला (उवा)।

कोलज्जा :: स्त्री [दे] धान्य रखने का एक तरह का गर्त्त (आचा २, १, ७)।

कोलर :: देखो कोटर (गा ५६३ अ)।

कोलव :: न [कौलव] ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध एक करण (विसे ३३४८)।

कोलाल :: वि [कौलाल] १ कुम्भकार-संबन्धी। २ न. मिट्टी का पात्र (उवा)

कोलालिय :: पुं [कौलालिक] मिट्टी का पात्र बेचनेवाला (बृह २)।

कोलाह :: पुं [कोलाभ] साँप की एक जाति (पणह १)।

कोलाहल :: पुं [दे] पक्षी की आवाज, पक्षी का शब्द (दे २, ५०)।

कोलाहल :: पुं [कोलाहल] तुमुल, शोरगुल, रौला, हल्ला, बहुत दूर जानेवाला अनेक प्रकार का अस्फुट शब्द (दे २, ५०; हेका १०५; उत्त ९)।

कोलाहलिय :: वि [कोलाहलिक] कोलाहलवाला, शोरगुलवाला (पउम ११७, १६)।

कोलिअ :: पुं [दे] एक अवम मनुष्य-जाति (सुख २, १५)।

कोलिअ :: पुं [दे] कोली, तन्तुवाय, जुलाहा, कपड़ा बुननेवाला (दे २, ६५; णंदि; पव २; उप पृ २१०) २ जाल का काड़ी, मकड़ा (दे २, २५; पाअ; श्रा २०; आव ४; बृह १)

कोलित्त :: न [दे] उल्मुक, लूका (दे २, ४९)।

कोलिन्न :: न [कौलीन्य] कुलीनता, खानदानी (धर्मंवि १४६)।

कोलीकय :: वि [क्रोढीकृत] स्वीकृत, अंगीकृत (गउड)।

कोलीण :: न [कौलीन] १ किंवदंती, लोक-वार्ता, जन-श्रुति (मा ३७) २ वि. वंश-परंपरागत, कुलक्रम से आयात। ३ उत्तम कुल में उत्पन्‍न। ४ तान्त्रिक मत का अनुयायी (नाट — महावी १३३)

कोलीर :: न [दे] लाल रंग का एक पदार्थं, कुरुविन्द; 'कोलीररत्तणयणेअं' (दे २, ४६)।

कोलुण्ण :: न [कारुण्य] दया, अनुकम्पा, करुणा (निचू ११)। °पडिया, °वडिया स्त्री [°प्रतिज्ञा] अनुकम्पा की प्रतिज्ञा (निच ११)।

कोलेज्ज :: पुं [दे] नीचे गोल और ऊपर खाई के आकर का धान्य आदि भरने का कोठा (आचा २, १, ७, १)।

कोलेय :: पुं [कौलेयक] श्‍वान, कुत्ता (सम्मत्त १९०; धर्मंवि ५२)।

कोल्ल :: पुंन [दे] कोयला, जली हुई लकड़ी का टुकड़ा (निचू १)।

कोल्लइर :: न [कोल्लकिर] नगर-विशेष (पिंड ४२७)।

कोल्लपाग :: न [कोल्लपाक] दक्षिण देश का एक नगर, यहाँ श्री ऋषभदेव का मन्दिर है (ती ४५)।

कोल्लर :: पुं [दे] पिठर, स्थाली, थाली, थरिया (दे २, ४७)।

कोल्ला :: देखो कुल्ला (कुमा)।

कोल्लाग :: देखो कुल्लाग (अंत)।

कोल्लापुर :: न [कोल्लापुर] दक्षिण देश का एक नगर, महालक्ष्मी का स्थान (ती ३४)।

कोल्लासुर :: पुं [कोल्लासुर] इस नाम का एक दैत्य (ती ३४)।

कोल्लुग :: [दे] देखो कोल्हुअ (वव १; बृह १)।

कोल्हाहल :: न [दे] फल-विशेष, बिम्बी-फल (दे २, ३९)।

कोल्हुअ :: पुं [दे] १ श्रृगाल, सियार (दे २, ६५; पाअ; पउम ७, १७; १०५, ४२) २ कोल्हू, चरखी, ऊख से रस निकालने का कल (दे २, ६५; महा)

कोव :: सक [कोपय्] १ दूषित करना। २ कुपित करना। कोवेइ (सूअनि १२५), कोवइज्ज (कुप्र ९४)

कोव :: पुं [कोप] क्रोध, गुस्सा (विपा १, ९; प्रासू १७५)।

कोवण :: वि [कोपन] क्रोधी, क्रोध-युक्त (पाअ; सुपा ३८५; सम ३४७; स्वप्‍न ८२)।

कोवाय :: पुं [कोर्पक] अनार्यं देश-विशेष (पव २७४)।

कोवासिअ :: देखो कोआसिय (पाअ)।

कोवि :: वि [कोपिन्] क्रोधी, क्रोध-युक्त (सुपा २८१; श्रा २०)।

कोविअ :: वि [कोविद] निपुण, विद्वान्, अभिज्ञ (आचा; सुपा १३०; ३९२)।

कोविअ :: वि [कोपित] १ क्रुद्ध किया हुआ। २ दूषित, दोष-युक्त किया हुआ; 'वइरो किर दाहो वायणंति नवि कोवियं वयणं' (उव)

कोविआ :: स्त्री [दे] श्रृगाली, सियारिन (दे २, ४९)।

कोविआर :: पुं [कोविदार] वृक्ष-विशेष (विक्र ३३)।

कोविणी :: स्त्री [कोपिनी] कोप-युक्त स्त्री (श्रा १२)।

कोशण :: (मा) वि [कदष्ण] थोड़ा गरम (प्राकृ १०२)।

कोस :: पुं [दे] १ कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ रक्त वस्त्र। २ समुद्र, जलधि, सागर (दे २, ६५)

कोस :: पुं [क्रोश] कोस, मार्गं की लम्बाई का परिमाण, दो मील (कप्प; जी ३२)।

कोस :: पुं [कोश, ष] १ खजाना, भण्डार (णाया १, १३१; पउम ५, २४) २ तलवार की म्यान (सूअ १, ९)| ३ कुडमल; 'कमलकोसव्व' (कुमा) ४ मुकुल, कली (गउड) ५ गोल, वृत्ताकार; 'ता मुह- मेलियकरकोस, पिहियपसरंतदंतकरपसरं' (सुपा २७; गउड) ६ दिव्य-भेद, तप्त लोहे का स्पर्श वगैरह शपथ; 'एत्थ अम्हे कोसविसएहिं पच्चाएमो' (स ३२४) ७ अभिधान-शास्त्र, शब्दार्थ-निरूपक ग्रन्थ, जैसा प्रस्तुत पुस्तक। ८ पुंन. पानपात्र, चषक (पाअ) ८ न. नगर विशेष; 'कोसं नाम नयरं' (स १३३)। °पाण न [°पान] सौगंध, शपथ (गा ४४८)। °हिव पुं [°धिप] खजानची, भंडारी (सुपा ७३)। कोसंब पुं [कोशाम्र] फल-वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)। °गंडिया स्त्री [°गण्डिका] खड्ग-विशेष, एक प्रकार की तलवाल (राज)

कोसंबिया :: स्त्री [कौशाम्बिका] जैनमुनि- गण की एक शाखा (कप्प)।

कोसंबि :: स्त्री [कौशाम्बी] वत्स देश की मुख्य- नगरी (ठा १०; विपा १, ५)।

कोसग :: पुं [कोशक] साधुओं का एक चर्म- मय उपकरण, चमड़े की एक प्रकार की थैली (धर्मं ३)।

कोसट्टइरिआ :: स्त्री [दे] चण्डी, पार्वती, गौरी, शिव-पत्‍नी (दे २, ३५)।

कोसय :: न [दे. कोशक] लघु शराव, छोटा पान पात्र (दे २, ४७; पाअ)।

कोसल :: न [कौशल] कुशलता, निपुणता, चातुरी (कुमा)।

कोसल :: न [दे] नीवी, नारा, इजारबन्द (दे २, ३८)।

कोसल, कोसलग :: पुं [कोसल, °क] १ देश-विशेष (कुमा; महा) २ एक जैन महर्षि, सुकोसल मुनि (पउम २२, ४४) ३ कोसल देश का राजा। ४ वि. कोशल देश में उत्पन्न (ठा ५, २) ५ °पुर न [°पुर] अयोध्या नगरी (आक १)

कोसला :: स्त्री [कोसला] १ नगरी-विशेष, अयोध्या-नगरी (पउम २०, २८) २ अयोध्या-प्रान्त, कोसल-देश (भग ७, ९)

कोसलिअ :: वि [कौशलिक] १ कोसल देश में उत्पन्‍न, कोसल देश-सम्बन्धी (भग २०, ८) २ अयोध्या में उत्पन्‍न, अयोध्या संबन्धी (जं २)

कोसलिअ :: न [दे. कौशलिक] प्राभृत, भेंट, उपहार (दे २, १२; सण; सुपा — प्रस्तावना ५)।

कोसलिआ :: स्त्री [दे. कौशलिका] ऊपर देखो (दे २, १२; सुपा — प्रस्तावना ५)।

कोसल्ल :: न [कौशल्य] निपुणता, चतुराई (कुमा; सुपा १९; सुर १०; ८०)।

कोसल्ल :: न [दे] प्राभृत, भेंट, उपहार; 'तं पुरजणकोसल्लं नरवइणा अप्पियं कुमारस्स' (महा)।

कोसल्लया :: स्त्री [कौशल्य] निपुणता, चतुराई; 'तह मज्झनीइकोसल्लया य खीणच्चिय इयाणिं' (सुपा ६०३)।

कोसल्ला :: स्त्री [कौशल्या] दाशरथि राम की माता (उप पृ ३७४)।

कोसल्लिअ :: न [दे. कौशलिक] भेंट, उपहार (दे २, १२; महा; सुपा ४१३; ५२७; सण)।

कोसा :: स्त्री [कोशा] इस नाम की एक प्रसिद्ध वेश्या, जिसके यहाँ जैन महर्षि श्रीस्थूलभद्र मुनि ने निर्विकार भाव से चातुर्मास (चौमासा) किया था (विवे ३३)।

कोसिण :: वि [कोष्ण] थोड़ा गरम (नाट — वेणी)।

कोसिय :: न [कौशिक] १ मनुष्य का गोत्र विशेष (अभि ४१; ठा ३९०) २ बीसवें नक्षत्र का गोत्रक (चंद १०) ३ पुं. उलूक, घूक, उल्लू (पाअ; सार्धं ५९) ४ साँप- विशेष, चण्डकोशिक-नामक दृष्टि-विष सर्पं, जिसको भगवान् श्रीमहावीर ने प्रबोधित किया था (आवम) ५ वृक्ष-विशेष। ६ इन्द्र। ७ नकुल। ८ कोशाध्यक्ष, खजानची ९ प्रीति, अनुराग। १० इस नाम का एक राजा। ११ इस नाम का एक असुर। १२ सर्प को पकड़नेवाला, सपेरा, गारुड़िक। १३ अस्थिसार, मज्जा। १४ श्रृंगाररस (हे १, १५९) १५ इस नाम का एक तापस (भवि) १६ पुंस्त्री. कौशिक गोत्र में उत्पन्‍न, कौशिक-गोत्रीय (ठा ७ — पत्र ३९०)। १७ स्त्री. कोसिई (मा १६)

कोसिया :: स्त्री [कोशिका] १ भारतवर्षं की एक नदी (कस) २ इस नाम की एक विद्या- धर-राज-कन्या (पउम ७, ५४) ३ चमड़े का जूता; 'कोसियमालाभूसियसिरोहरो विगय- वसणो य' (स २२३)। देखो कोसी।

कोसियार :: पुं [कोशिकार] १ कीट-विशेष, रेशम का कीड़ा (पणह १, ३) २ न. रेशमी वस्त्र (ठा ५, ३)

कोसी :: स्त्री [कोशी] १ शिम्वी, छोमी, फली (पाअ) २ तलवार की म्यान (सूअ २, १, १६)

कोसी :: स्त्री [कोशी] देखो कोसिया (ठा ५, ३ — पत्र ३५१)। २ गोलाकार एक वस्तु; 'कचणकोसीपविट्ठदंताणं' (औप)

कोसुंभ :: वि [कौसुम्भ] कुसुंभ-सम्बन्धी (रँग) (सिरि १०५७)।

कोसुम :: वि [कौसुम] फूल सम्बन्धी, फूल का बना हुआ; 'कोसुमा बाणा' (गउड)।

कोसुम्ह :: देखो कुसुंभे (संक्षि ४)।

कोसेअ, कोसेज्ज :: न [कौशेय] १ रेशमी वस्त्र, रेशमी कपड़ा (दे २, ३३; सम १५३; पणह १, ४) २ तसर का बना हुआ वस्त्र (जीव ३)

कोह :: पुं [°क्रोध] गुस्सा, कोप (ओघ २ भा; ठा ४, १)। °मुंड वि [°मुण्ड] क्रोध- रहित (ठा ५, ३)।

कोह :: पुं [कोथ] सड़ना, शीर्णता (भग ३, ६)।

कोह :: पुं [दे कोथ] कोथली, थैला (विसे २९८८)।

कोह :: वि [क्रोधवत्] क्रोध-युक्त, कोप-सहित; 'कोहाए माणाए मायाए लोभाए....आसाय- णाए' (पडि)।

कोहंगक :: पुं [कोभङ्गक] पक्षि-विशेष (औप)।

कोहंझाण :: न [क्रोधध्यान] क्रोध-युक्त चिन्तन (आउ ११)।

कोहंड :: न [कूष्माण्ड] १ कुष्माण्डी-फल, कोहँड़ा (पि ७६; ८९; १२७) २ न. देव-विमान-विशेष (ती ५६)। ३ पुं, ब्यन्तर- श्रेणीय देव-जाति-विशेष (पव १९४)

कोहंडी :: स्त्री [कूष्माण्डी] कोहँड़े का गाछ (हे १, १२४; दे २, ५० टी)।

कोहण :: वि [क्रोधन] १ क्रोधी, गुस्साखोर (सम ३७; पउम ३५, ७) २ पुं. इस नाम का रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३२)

कोहल :: देखो कुऊहल (हे १, १७१)।

कोहलिअ :: वि [कुतूहलिन्] कुतूहली, कुतूहल-प्रेमी। स्त्री. °आ (गा ७६८)।

कोहलिआ :: स्त्री [कूष्माण्डिका] कोहँड़ा का गाछ; 'जह लंघेसि परवइं निययवइं भरसहंपि मोत्तूणं। तह मणणे कोहलिए, अज्जं कल्लंपि फुट्टिहिसि' (गा ७६८)।

कोहली :: देखो कोहंडी (हे २, ७३; दे २, ५० टी)।

कोहल्ल :: देखो कोहल (षड्)।

कोहल्ली :: स्त्री [दे] तापिका, तवा, पचन-पात्र- विशेष (दे २, ४६)।

कोहल्ली :: देखो कोहंडी (षड्)।

कोहि, कोहिल्ल :: वि [क्रोधिन्] क्रोधी, क्रोधी-स्वभाव का गुस्साखोर (कम्म ४, १४०; बृह २)।

कौरव, कौलव :: देखो कउरव (हे १, १ चंड)।

°क्किसिय :: देखो किसिय = कृषित (उप ७२८ टी)।

°क्कूर :: देखो कूर = कूर। (वा २६)।

°क्केर :: देखो °केर (हे २, ९९)।

°क्खंड :: देखो खंड (गउड)।

°क्खंभ :: देखो खंभ (से ३, ५९)।

°क्खम :: देखो खम (प्रासू २७)।

°क्खलण :: देखो खलण (गउड)।

°क्खिंसा :: देखो खिंसा (सुपा ५१०)।

°क्खु :: देखो खु (कप्पू; अभि ३७; चारु १४)।

°क्खुत्त :: देखो खुत्त (गउड)।

°क्खेड्ड :: देखो खेड्ड (सुपा ५५२)।

°क्खेव :: देखो खेव; 'खारक्खेवं व खए' (उप ७२८ टी)।

°क्खोडी :: देखो खोडी (पणह १, ३)।

 :: पुं [ख] १ व्यंजन-वर्णं विशेष, इसका स्थान कण्ठ है (प्रामा; प्राप) २ न. आकाश, गगन; 'गज्जंते खे मेहा' (हे १, १८७; कुमा; दे ६, १२१) ३ इन्द्रिय (विसे ३४४३) °ग पुं [°ग] १ पक्षी, खग (पाअ; दे २, ५०) २ मनुष्य की एक जाति, जो विद्या के बल से आकाश में गमन करती है, विद्याधर- लोक (आरा ५९) देखो खय = खग। °गइ स्त्री [°गति] १ आकाश-गति। २ कर्म- विशेष, जो आकाश-गति का कारण है (कम्म २, ३; नव ११)। °गामिणी स्त्री [°गामिनी] विद्या-विशेष, जिसके प्रभाव से आकाश में गमन किया जा सकता है (पउम ७, १४५)। °पुप्फ न [°पुष्प] आकाश-कुसुम, असंभावित वस्तु (कुमा)

खअ, खउर :: सक [खव्] संपत्ति-युक्त करना। खअइ, खउरइ (प्राकृ ७३)।

खइ :: वि [क्षयिन्] १ क्षयवाला, नाशवाला। २ क्षय रोगवाला, क्षय-रोगी (सुपा २३३; ५७६)

खइअ :: वि [क्षपित] नाशित, उन्मुलित (औप; भवि)।

खइअ :: वि [खचित] १ व्याप्त, जटित। २ मण्डित, विभूषित (हे १, १९३; औप; स ११४)

खइअ :: वि [खादित] १ खाया हुआ, भुक्त, ग्रस्त (पाअ; स २५०; उप पृ ४९) २ आक्रान्त; 'तह य होंति उ कसाया। खइओ जेहिं मणुस्सो कज्जाकज्जाइं न मुणेइ' (स ११४) ३ न. भोजन, भक्षण; 'खइएण व पीएण व न य एसो ताइओ हवइ अप्पा' (पञ्च ६२; ठा ४, ४ — पत्र २७६)

खइअ :: वि [क्षयित] क्षय-प्राप्त, क्षीण; 'किमि- कायखइयदेहो' (सुर १६, १९१)।

खइअ :: पुं [दे] हेवाक, स्वभाव (ठा ४, ४ — पत्र २७६)।

खइअ, खइग :: पुं [क्षायिक] १ क्षय, विनाश, उन्मुलन; 'से किं तं खइए ? खइए अट्ठणहं कम्मपयडीणं खइएणं' (अणु) २ वि. क्षय से उत्पन्न, क्षय-संबन्धी, क्षय से संबन्ध रखनेवाला। ३ कर्म-नाश से उत्पन्न; 'कम्मक्खयसहावो खइओ' (विसे ३४९५; कम्म १, १५; ३, १९; ४, २२; सम्य २३; औप)

खइत्त :: न [क्षैत्र] खेतों का समूह, अनेक खेत (पि ६१)।

खइया :: स्त्री [खदिका] खाद्य-विशेष, सेका हुआ व्रीहि — धान, लावा; 'दहिघयपायसखइया- निओएं' (भवि)।

खइर :: पुं [खदिर] वृक्ष-विशेष, खैर का गाछ (आचा; कुमा)।

खइर :: वि [खादिर] खदिर-वृक्ष-संबन्धी (हे १, ६७; सुपा १५१)।

खइव :: [दे] देखो खइअ (ठा ४, ४ — पत्र १७६ टी)।

खउड :: पुं [खपुट] स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैना- चार्य (आवम; आचू)।

खउर :: अक [क्षुभ्] १ क्षुब्ध होना, डर से विह्वल होना। २ सक. कलुषित करना। खउरइ (हे ४, १५५; कुमा); 'खउरेंति घिइग्गहणं' (से ५, ३)

खउर :: वि [दे] कलुषित, 'दरदड्ढविवणणविददु- मरअक्खउरा' (से ५, ४७; स ५७८)।

खउर :: न [क्षौर] क्षौर-कर्म, हजामत (हेका १८६)।

खउर :: पुंन [खपुर] खैर वगैरह का चिकना रस, गोंद (बृह ३; निचू १६)। °कढिणय न [°कठिनक] तापसौं का एक प्रकार का पात्र (विसे १४६५)।

खउरिअ :: वि [क्षुब्ध] कलुषित (पाअ; बृह ३)।

खउरिअ :: वि [क्षौरित] मुण्डित, लुञ्चित, केश- रहित किया हुआ (से १०, ४३)।

खउरिअ :: वि [खपुरित] खरण्टित, चिपकाया हुआ (निचू ५)।

खउरीकय :: वि [खपुरीकृत] गोंद वगैरह की तरह चिकना किया हुआ; 'कलुसीकओ य किट्टीकओ य खउरीकओ य मलिणिओ। कम्मेहि एस जीवो, नाऊणवि मुज्जई जेण' (उव)।

खओवसम :: पुं [क्षयोपशम] कुछ भाग का विनाश और कुछ का दबना (भग)।

खओवसमिय :: वि [क्षयोपशमिक] १ क्षयो- पशम से उत्पन्न, क्षयोपशम-संबन्धी (सम १४५; ठा २, १; भग) २ पुंन. क्षयोपशम (भग; विसे २१७५)

खंखर :: पुं [दे] पलाश-वृक्ष (ती ५३)।

खंगार :: पुं [खङ्गार] राजा खेंगार, विक्रम की बारहवीं शताब्दी का सौराष्ट्र देश का एक भूपति, जिसको गुजरात के राजा सिद्धराज ने मारा था (ती ५)। °गढ पुं [°गढ] नगर विशष, सौराष्ट्र का एक नगर, जो आज- कल 'जूनागढ़' के नाम से प्रसिद्ध है (ती २)।

खंच :: सक [कृष्] १ खींचना। २ वश में करना। खंचइ (भवि); 'ता गच्छ तुरिय- तुरियं तुरयं मा खंच मुंच मुक्कलयं' (सुपा १९८)

खंचिय :: वि [कृष्ट] १ खींचा हुआ (स ५७४) २ वश में किया हुआ (भवि)

खंज :: अक [खञ्ज्] लंगड़ा होना (कप्पू)।

खंज :: वि [खञ्ज] लंगड़ा, पंगु, लूला (सुपा २७६)।

खंज :: न [खञ्ज] गाड़ी में लोहे के डंडे के पास बाँधा जाता सण आदि का गोल कपड़ा — जो तेल आदि से भीजाया हुआ रहता है, बि- डुआ; 'खंजंजणनयणनिभा' (उत्त ३४, ४)।

खंजण :: पुं [खञ्जन] राहु का कृष्ण पुद्‍गल- विशेष (सुज्ज २०)।

खंजण :: पुं [खञ्जन] १ पक्षि-विशेष, खञ्जरीट (दे २, ७०) २ वृक्ष-विशेष; 'ताडवडखज्जखं- जणसुक्खयरगहीरदुक्खसंचारे' (स २५६)

खंजण :: पुं [दे] १ कर्दंम, कीचड़ (दे २, ६९; पाअ) २ कज्जल, काजल, मषी (ठा ४, २) ३ गाड़ि के पहिए के भीतर का काला कीच (पणण १७ — पत्र ५२५)

खंजर :: पुं [दे] सुखा हुआ पेड़ (दे २, ६८)।

खंजा :: स्त्री [खञ्जा] छन्द-विशेष (पिंग)।

खंजिअ :: वि [खञ्जित] जो लंगड़ा हुआ हो, पंगूभूत (कप्पू)।

खंड :: सक [खण्डय] तोड़ना, टूकड़ा करना, विच्छेद करना। खंडइ (हे ४, ३६७)। कवकृ खंडिज्जंत (से १३, ३२; सुपा १३४)। हेकृ. खंडित्तए (उवा)। कृ. खंडियव्व (उप ६२८ टी)।

खंड :: पुं [खण्ड] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २९)। °कव्व न [°काव्य] खोटा काव्यग्रन्थ (सम्मत्त ८४)।

खंड :: (अप) देखो खग्ग; 'सुंडीरहं खंडइ वसइ लच्छी' (भवि)।

खंड :: पुंन [खण्ड] १ टुकड़ा, अंश, हिस्सा (हे २, ९७; कुमा) २ चीनी, मिस्त्री (उर ६, ८) ३ पृथ्वी का एक हिस्सा; 'छक्खंड — ' (सण)। °घडग पुं [°घटक] भिक्षुक का जल-पात्र (णाया १, १६)। °प्पवाया स्त्री [°प्रपाता] वैताढ्य पर्वंत की एक गुफा (ठा २, ३)। °भेय पुं [°भेद] विच्छेद-विशेष, पदार्थं का एक तरह का पृथक्करण, पटके हुए घड़े की तरह पृथग्‌भाव (भग ५, ४)। °मल्लय पुंन [°मल्लक] भिक्षा- पात्र (णाया १, १६)। °सो अ [°शस्] टुकड़ा-टुकड़ा, खण्ड-खण्ड (पि ५१९)। °भेय देखो °भेय (ठा १०)

खंड :: न [दे] १ मुण्ड, शिर, मस्तक। २ दारू का बरतन, मद्य-पात्र (दे , ६८)

खंडई :: स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे २, ६७)।

खंडग :: पुंन [खण्डक] चौथा हिस्सा (पव १४३)।

खंडग :: न [खण्टक] शिखर-विशेष (ठा ९; इक)।

खंडण :: न [खण्डन] १ विच्छेद, भञ्‍जन, नाश (णाया १, ८) २ कण्डन, धान्य वगैरह का छिलका अलग करना; 'खंडणदलणाइं गिह- कम्मे' (सुपा १४) ३ वि. नाश करनेवाला, नाशक (सुपा ४३२)

खंडणा :: स्त्री [खण्डना] विच्छेद, विनाश (कप्पू; निचू १)।

खंडपट्ट :: पुं [खण्डपट्ट] १ द्यूतकार, जूआरी (विपा १, ३) २ धूर्त्तं, ठग। ३ अन्याय से व्यवहार करनेवाला (विपा १, ३)

खंडरक्ख :: पुं [खण्डरक्ष्] १ दाण्डपाशिक, कोतवाल (णाया १, १, पणह १, ३; औप) २ शुल्कपाल, चुंगी वसूल करनेवाला (णाया १, १; विसे २३९०; औप)

खंडव :: न [खाण्डव] इन्द्र का वन-विशेष, जिसको अर्जुन ने जलाया था (नाट — वेणी ११४)।

खंडा :: स्त्री [खण्ड] मिस्त्री, चीनी, शक्कर, खांड, (ओघ ३७३)।

खंडा :: स्त्री [खण्डा] इस नाम की एक विध्याधर- कन्या (महा)।

खंडाखंड़ि :: अ [खण्डशस्] टुकड़ा-टुकडा; खण्डखण्ड (उवा; णाया १, ९)। °डीकय वि [कृत] टुकड़ा-टुकड़ा किया हुआ (सुर १६, ५९)।

खंडामणिकंचण :: न [खण्डामणिकाञ्चन] इस नाम का एक विद्याधर-नगर (इक)।

खंडावत्त :: न [खण्डावर्त्त] इस नाम का एक विद्याघरनगर (इक)।

खंडाहंड :: वि [खण्डखण्ड] टुकड़ा-टुकड़ा किया हुआ (सुपा ३८५)।

खंडिअ :: पुं [खण्डिक] छात्र, बिद्यार्थी (औप)।

खंडिअ :: वि [खण्डित] छिन्‍न, विच्छिन्‍न (हे १, ५३; महा)।

खंडिअ :: पुं [दे] १ मागध, भाट, विरुद-पाठक। २ वि. अनिवार्य, निवारण करने का अशक्य (दे २, ७८)

खंडिआ :: स्त्री [खण्डिका] खण्ड, टुकड़ा (अभि ६२)।

खंडिआ :: स्त्री [दे] नाप-विशेष, बीस मन की नाप (सं २४)।

खंडी :: स्त्री [दे] १ अपद्वार, छोटा गुप्त द्वार (णाया १, १८ — पत्र २३६) २ किले का छिद्र (णाया १, २ — पत्र ७९)

खंडु :: (अप) देखो खग्ग। गुजराती में 'खांडु' कहते हैं (प्राकृ १२१)।

खंडुअ :: न [दे] बाहु-वलय, हाथ का आभूषण- विशेष, बाजूबंद (मृच्छ १८१)।

खंडुय :: देखो खंडग (पव १४३)।

खंत :: पुं [दे] पिता, बाप (पिंड ४३२; सुख २, ३; ५; ८)।

खंत :: देखो खा।

खंत :: वि [क्षान्त] क्षमा-शील, क्षमा-युक्त (उप ३२० टी; कप्पू; भवि)।

खंतव्व :: वि [क्षन्तव्य] क्षमा-योग्य, माफ करने लायक (विक्र ३८; भवि)।

खंति :: स्त्री [क्षान्ति] क्षमा, क्रोध का अभाव (कप्प; महा; प्रासू ४८)।

खंति :: देखो खा।

खंतिया, खंत :: स्त्री [दे] माता, जननी (पिंड ४३०; ४३१)।

खंद :: पुं [स्कन्द] १ कार्त्तिकेय, महादेव का एक पुत्र (हे २, ५, प्राप्र; णाया १, १ — पत्र ३९) २ राम का स्कन्द नाम का एक सुभट (पउम ६७, ११) °कुमार पुं [°कुमार] एक जैन मुनि (उव)। °ग्गह पुं [°ग्रह] १ स्कन्दकृत उपद्रव, स्कन्दावेश (जं २) २ ज्वर-विशेष (भाग ३, ६)। °मह पुं [°मह] स्कन्द का उत्सव (णाया १, १)। °सिरी स्त्री [°श्री] एक चोर-सेनापति की भार्या का नाम (विपा १, ३)

खंदग, खंदय :: पुं [स्कन्दक] १-२ ऊपर देखो। ३ एक जैन मुनि (उव; भग; अंत; सुपा ४०८) ४ एक परिव्राजक, जिसने भगवान् महावीर के पास पीछे से जैन दीक्षा ली थी (पुप्फ ८४)

खंदरुद्द :: न [स्कन्दरुद्र] शास्त्र-विशेष (धर्मंसं ९३५)।

खंदिल :: पुं [स्कन्दिल] एक प्रख्यात जैनाचार्यं, जिसने मथुरा में जैनागमों को लिपि-बद्ध किया (गच्छ १)।

खंध :: पुं [स्कन्ध] भित्ति, भीत, दीवार (आचा २, १, ७, १)।

खंध :: पुं [स्कन्ध] १ पुद्गल-प्रचय, पुद्गलों का पिण्ड (कम्म ४, ६९) २ समूह, निकर (विसे ९००) ३ कन्धा, काँध (कुमा) ४ पेड़ का धड़, जहाँ से शाखा निकलती है (कुमा) ५ छन्द-विशेष (पिंग)। °करणी स्त्री [°करणी] साध्वियों को पहनने का उपकरण- विशेष (ओघ ९७७)। °मंत वि [°मत्] स्कन्धवाला (णाया १, १)। °बीय पुं [°बीज] स्कन्ध ही जिसका बीज होता है ऐसा कदली वगैरह का गाछ (ठा ५, २)। °सलि पुं [°शालिन्] व्यन्तर देवं की एक जाति (राज)

खंधग्गि :: पुं [दे. स्कन्धाग्‍नि] स्थूल काष्ठों की आग (दे २, ७०; पाअ)।

खंधमंस :: पुं [दे] हाथ, भुजा, बाहू (दे २, ७१)।

खंधमसी :: स्त्री [दे] स्कन्ध-यष्टि, हाथ (षड्)।

खंधय :: देखो खंध (पिंग)।

खंधयट्ठि :: स्त्री [दे. स्कन्धयष्टि] हाथ, भुजा, (दे २, ७१)।

खंधर :: पुंस्त्री [कन्धर] ग्रीवा, गला, गरदन (सण)। स्त्री. °रा (महा)।

खंधलट्ठि :: स्त्री [दे. स्कन्धयष्टि] स्कन्ध-यष्टि, हाथ, भुजा (षड्)।

खंधवार :: देखो खंधावार (महा)।

खंधाआर :: देखो खंधावार (प्राकृ ३०)।

खंधार :: पुं. ब. [स्कन्धार] देश-विशेष (पउम ९८, ६६)।

खंधार :: देखो खंधावार (पउम ९९, २८; महा; विसे २४४१)।

खंधाल :: वि [स्कन्धवत्] स्कन्धवाला (सुपा १२९)।

खंधावार :: पुं [स्कन्धावार] छावनी, सैन्य का पड़ाव, शिविर (णाया १, ८; स ६०३, महा)।

खंधि :: वि [स्कन्धिन्] स्कन्धवाला (औप)।

खंधिल्ल :: देखो खंधि (स ६९७)।

खंधी :: /?/स्त्री. देखो खंध (औप)।

खंधीधार :: पुं [दे] बहुत गरम पानी का धारा (दे २, ७२)।

खंप :: सक [सिच्] सिञ्चना, छिड़कना। खंपइ (भवि)।

खंपणय :: न [दे] वस्त्र, कपड़ा; 'बहुसेयसिन्न- मलमइलखंपणयचिक्कणसरीरो' (सुपा ११)।

खंभ :: पुं [स्तम्भ] खंभा, थंभा (हे १, १८७; २, ४, ९; भग; महा)।

खंभ :: सक [स्कभ्] क्षुब्ध होना, विचलित होना। खंभेज्जा, खंभाएज्जा (ठा ५, १ — पत्र २९२)।

खंभत्तित्थ :: न [स्तम्भतीर्थ] एक जैन तीर्थं, गुजरात का प्राचीन 'खंभणा' गाँव (कुप्र २१)।

खंभल्लिअ :: वि [स्तम्भि] खंभे से बाँधा हुआ (से ९, ८५)।

खंभाइत्त :: न [स्तम्भादित्य] गुर्जर देश का एक प्राचीन नगर, जो आजकल 'खंभात' नाम से प्रसिद्ध है (ती २३)।

खंभालण :: न [स्तम्भालगन] खम्भे से बाँधना (पणह १, ३)।

खक्खरग :: पुंन [दे] सुखी रोटी (धर्म २)।

खग्ग :: पुं [खड्ग] १ पशु विशेष, गेंड़ा (उप १४८; पणह १, १) २ पुंन. तलवार, असि (हे १, ३४; स ५३१)। °धेणुआ स्त्री [°धेनु] छुरी, चाकू (दंस)। °पुरा स्त्री [°पुरा] विदेह-वर्ष की स्वनाम-प्रसिद्ध नगरी (ठा २, ३)। °पुरी स्त्री [°पुरी] पूर्वोक्त ही अर्थ (इक)

खग्गाखग्गि :: न [खड्‍गाखडि्ग] तलवार को लड़ाई (सिरि १०३२)।

खग्गि :: पुं [खडि्गन्] जन्तु-विशेष, गेंड़ा (कुमा)।

खग्गिीअ :: पुं [दे] ग्रामेश, गाँव का मुखिया (दे २, ६९)।

खग्गी :: स्त्री [खङ्गी] विदेह वर्ष की नगरी- विशेष (ठा २, ३)।

खग्गूड :: वि [दे] १ शठ-प्राय, धूर्त्त-सदृशॉ (ओघ ३६ भा) २ धर्मरहित, नास्तिक- प्राय (ओघ ३५ भा) ३ निद्रालु। ४ रस- लम्पट (बृह १)

खच :: सक [खच्] १ पावन करना, पवित्र करना। २ कसकर बाँधना। खचइ (हे ४, ८९)

खचिअ :: देखो खइअ = खचित (कुमा)। ३ पिञ्जरित (कप्प)

खच्चल्ल :: पुं [दे] ऋक्ष, भल्लूक, भालु (दे २, ६९)।

खच्चोल :: पुं [दे] व्याघ्र, शेर (दे २, ६९)।

खज्ज :: पुं [खर्ज] वृक्ष-विशेष (स २५६)।

खज्ज :: वि [खाद्य] १ खाने योग्य वस्तु (पणह १, २) २ न. खाद्य-विशेष (भवि)

खज्ज :: वि [क्षय्य] जिसका क्षय किया जा सके वह (षड्)।

खज्जंत :: देखो खा।

खज्जग :: देखो खज्ज = खाद्य (भग १५)।

खज्जमाण :: देखो खा।

खज्जय :: देखो खज्ज = खाद्य (पउम ६९, १६)।

खज्जिअ :: वि [दे] १ जीर्णं, सड़ा हुआ। २ उपालब्ध, जिसको उलाहना दिया गया हो वह (दे २, ७८)

खज्जिर :: (अप) वि [खाद्यमान] जो खाया गया हो वह (सण)।

खज्जू :: स्त्री [खर्जू] खुजली, पामा (राज)।

खज्जूर :: पुं [खर्जूर] १ खजूर का पेड़ (कुमा; उत्त ३४) २ न. खजूर का फल (पउम ४१, ९; सुपा ५७)

खज्जूरी :: स्त्री [खर्जूरी] खजूर का गाछ (पाअ; पणण १)।

खज्जोअ :: पुं [दे] नक्षत्र (दे २, ६९)।

खज्जोअ :: पुं [खद्योत] कीट-विशेष, जूगनू, (सुपा ४७; णाया १, ८)।

खट्ट :: न [दे] १ तीमन, कढ़ी, झोर (दे २, ६७) २ वि. खट्टा, अम्ल (पणण १ — पत्र २७; जीव १)। °मेह पुं [°मेघ] खट्टे जल की वर्षा (भग ७, ६)

खट्टंग :: न [दे] छाया, आतप का अभाव (दे २, ६८)।

खट्टंग :: न [खट्‍वाङ्गं] १ शिव का एक आयुध (कुमा) २ चारपाई का पाया या पाटी। ३ प्रायश्चितात्मक भिक्षा मागने का एक पात्र। ४ तान्त्रिक मुद्रा-विशेष; 'हत्थट्ठियं कवालं, न मुयइ नूणं खणंपि खट्टंगं। सा तुह विरहे बालय, बाला कावालिणी जाया' (वज्जा ८८)

खट्टक्खड :: पुं [खट्वाक्षक] रत्‍नप्रभा नामक पृथिवी का एक नकरकाबास, 'कालं काऊण रयणप्पभाए पुढवीए खट्टक्खडाभिहाणे नरए पलिओवमाऊ चेव नारगो उववन्नोत्ति' (स ८६)।

खट्टा :: स्त्री [खट्वा] खाट, पलंग, चारपाई (सुपा ३३७; हे १, १९५)। °मल्ल पुं [°मल्ल] बीमारी की प्रबलता से जो खाट से उठ न सकता हो वह (बृह १)।

खट्टिअ, खट्टिक्क :: [दे. खट्टिक] खटीक, सौनिक, कसाई (गा ६८२; सूअ २, २; दे २, ७०)।

खड :: पुं [दे] एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)।

खड :: न [दे] तृण, घास (दे २, ६७; कुमा)।

खडइअ :: वि [दे] संकुचित, संकोच-प्राप्त (दे २, ७२)।

खडंग :: न [षडङ्ग] छः अंग, वेद के ये छः अंग — शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द, निरुक्त। °वि वि [°वित्] छहों अंगो का जानकार (पि २६५)।

खडक्कय :: पुंन [खटत्कृत] आहट देना, ध्वनि के द्वारा सूचना, सिकड़ी वगैरह की आवाज; 'वियडकवाडकडाणं खडक्कओ निसुणिओ तत्तो' (सुपा ४१४)।

खडक्कार :: पुं [खटत्कार] ऊपर देखो (सुर ११, ११२; विक्र ९०)।

खडक्किआ, खडक्की :: स्त्री [दे] खिड़की, छोटा द्वार (कप्पू; महा; दे २, ७१)।

खडक्किय :: देखो खडक्कय (धर्मवि ५६)।

खडक्खड :: पुं [खटत्खट] खट-खट आवाज (मोह ८६)

खडक्खर :: देखो छडक्खर (सम्मत्त १४३)।

खडखड :: पुं [खडखड] देखो खाडखड (इक)।

खडखडग :: वि [दे] छोटा और लम्बा (राज)।

खडट्ठोबिल :: पुं [दे] एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)।

खडणा :: स्त्री [दे] गैया, गौ (गा ६३९ अ)।

खडहड :: पुं [खटखट] साँकल वगैरह की आवाज, खटत्कार (सुपा ५०२)।

खडहडी :: स्त्री [दे] जन्तु-विशेष, गिलहरी, गिल्ली (दे २, ७२)।

खडिअ :: देखो खट्टिअ (गा ६८२ अ)।

खडिअ :: देखो खलिअ (गा १९२ अ)।

खडिअ :: पुं [दे] दवात, स्याही का पात्र (धर्मंवि ५७)।

खडिआ :: स्त्री [खटिका] खड़ी, लड़कों को लिखने की खड़ी या खड़िया (कप्पू)।

खडी :: स्त्री [खटी] ऊपर देखो (प्रारू)।

खडुआ :: स्त्री [दे] मौक्तिक, मोती (दे २, ६८)।

खडुक्क :: अक [आविस् + भू] प्रकट होना, उत्पन्न होना। खडुक्कंति (वज्जा ४६)।

खडुक्क, खडुग :: पुंस्त्री [दे] मुंड सिर पर उंगली का आघात (वव १)।

खड्ड :: सक [मृद्] मर्दन करना। खड्डइ (हे ४, १२६)।

खड्ड, खड्डग :: न [दे] १ श्‍मश्रु, दाढ़ी-मूँछ (दे २, ६६; पाअ) २ बड़ा, महान् (विसे २५७९ टी) ३ गर्त्तं के आकारवाला (उवा)

खड्डा :: स्त्री [दे] १ खानि, आकार (दे २, ६६) २ पर्वंत का खात, पर्वंत का गर्त्तं (दे २, ६६) ३ गर्त्तं, गड्ढा, खड्डा (सुर २, १०३; स १५२; सुपा १५; श्रा १६; महा; उत्त २; पंचा ७)

खड्डिअ :: वि [मृदित] जिसका मर्दंन किया गया हो वह (कुमा)।

खड्डुया :: स्त्री [दे] ठोकर, आघात; 'खड् डुया मे चवेडा मे' (उत्त १, ३८)।

खड्डोलय :: पुं [दे] खड्डा, गर्त्तं, गड्‍ढा (स ३९२)।

खण :: सक [खन्] खोदना। खणइ (महा)। कर्म. खम्मइ, खणिज्जइ (हे ४, २४४)। वकृ. खणेमाण (सुर २, १०३)। संकृ.- खणेत्तु (आचा)। कवकृ. खन्नमाण (पि ५४०)।

खण :: पुं [क्षण] काल-विशेष, बहुत थोड़ा समय (ठा २, ४; हे २, २०; गउड; प्रासू १३४)। °जोइ वि [°योगिन्] क्षणमात्र रहनेवाला (सूअ १, १, १)। °भंगुर वि [°भङ्गुर] क्षण-विनश्‍वर, क्षणिक (पउम ८, १०५; गा ४२३; विवे ११४)। °या स्त्री [°दा] रात्रि, रात (उप ७६८ टी।

खणक्खण, खणखणखण :: अक [खणणणाय्] 'खण- खण' आवाजे करना। खण- खणंति (पउम ३६, ५३)। वकृ. खण- क्खणंत (स ३८४)।

खणग :: वि [खनक] खोदनेवाला (णाया १, १८)।

खणण :: न [खनन] खोदना (पउम ८६, ६०; उप पृ २२१)।

खणय :: देखो खण = क्षण (आचा; उवा)।

खणय :: वि [खनक] खोदनेवाला (दे १, ८५)।

खणविय :: वि [खानित] खुदाया हुआ (सुपा ४५४; महा)।

खणि :: स्त्री [खनि] खान, आकार (सुपा ३५०)।

खणिक्क, खणिग :: देखो खणिय = क्षणिक; 'सद्दाइया कामगुणा खणिक्का' (श्रु १५२; धर्मंसं २२८)।

खणित्त :: न [खनित्र] खोदने का अस्त्र, खन्ती (दे ४, ४)।

खणिय :: वि [क्षणिक] १ क्षण-विनश्‍वर, क्षण-भंगुर (विसे १६७२) २ वि. फुरसतवाला, काम-धंधा से रहित; 'नो तुम्हे विव अम्हे खणिया इय वुत्तु नीहरिओ' (धम्म ८ टी)। °वाइ वि [°वादिन्] सर्वं पदार्थं को क्षण-विनश्‍वर माननेवाला, बौद्धमत का अनुयायी (राज)

खणिय :: वि [खनित] खुदा हुआ (सुपा २५६)।

खणी :: देखो खणि (पाअ)।

खणुसा :: स्त्री [दे] मन का दुःख, मानसिक पीड़ा (दे २, ६८)।

खण्ण :: न [दे] खात, खोदा हुआ (दे २, ६६; बृह ३; वव १)।

खण्ण :: वि [खन्य] खोदने योग्य (दे २, ३९)।

खण्णु :: देखो खाणु (दे २, ९९; षड्)।

खण्णुअ :: पुं [दे. स्थाणुक] कीलक, खोंटी, खूँटा (दे २, ६८; गा ६४; ४२२ अ)।

खत्त :: न [दे] १ खात, खोदा हुआ (दे २, ६६; पाअ) २ शस्त्र से तोड़ा हुआ (ओघ ३४०) ३ सेंध, चोरी करने के लिए दीवाल में किया हुआ छेद (उप पृ ११६; णाया १, १८)। ४ खाद, गोबर (उप ५९७ टी)। °खणग पुं [°खनक] सेंध लगाकर चोरी करनेवाला (णाया १, १८)। °खणण न [°खनन] सेंध लगाना (णाया १, १८)। °मेह पुं [°मेघ] करीष के समान रसवाला मेघ (भग ७, ६)

खत्त :: पुं [क्षत्र] क्षत्रिय, मनु्ष्य-जाति-विशेष (सुपा १९७; उत्त १२)।

खत्त :: वि [क्षात्र] १ क्षत्रिय-संबन्धी, क्षत्रिय का। २ न. क्षत्रियत्व, क्षत्रियपन; 'अहह अखत्तं करेइ कोइ इमो' (धम्म ८ टी; नाट)

खत्तय :: पुं [दे] १ खेत खोदनेवाला। २ सेंध लगाकर चोरी करनेवाला। ३ ग्रह-विशेष, राहु (भग १२, ६)

खत्ति :: पुं [दे] एक म्लेच्छ-जाति (मृच्छ १५२)।

खत्ति :: पुंस्त्री [क्षत्रिन्] नीचे देखो, 'खत्तीण सेट्ठे जह दंतवक्के' (सूअ १, ६, २२)।

खत्तिअ :: पुं स्ती [क्षत्रिय] मनुष्य की एक जाती, क्षत्री, राजन्य (पिंग; कुमा; हे २, १८५; प्रासू ८०)। °कुडंग्गाम पुं [°कुण्डग्राम] नगर-विशेष, जहाँ श्रीमहावीर देव का जन्म हुआ था (भग ९, ३३)। °कुडंपुर न [°कुण्डपुर] पूर्वोंक्त ही अर्थ (आचा २, १५, ४)। °विज्जा स्त्री [°विद्या] धनु- र्विद्या (सूअ २, २)।

खत्तिणी, खत्तियाणी :: स्त्री [क्षत्रियाणी] क्षत्रिय जाति की स्त्री (पिंग; कप्प)।

खद्द :: न [दे] प्रभूत लाभ (पंचा १७, २१)।

खद्ध :: वि [दे] १ भुक्त, भक्षित (दे २, ६७; सुपा ६१०; उप पृ २५२; सण; भवि) २ प्रचुर, बहुत; 'खद्धे भवदुक्खजले तरइ बिणा नेय सुगुरुतर्रि' (सार्घ ११४; दे २, ६७; पव २; बृह ४) ३ बिशाल, बड़ा (ओघ ३०७; ठा ३, ४) ४ अ. शीघ्र, जल्दी (आचा २, १, ९)। °दाणिअ वि. [°दानिक] समृद्ध, ऋद्धि-संपन्‍न (ओघ ८६)

खन्न :: [दे] देखो खण्ण (पाअ)।

खन्नमाण :: देखो खण = खन्।

खन्‍नुअ :: [दे] देखो खण्णुअ (पाअ)।

खपुसा :: स्त्री [दे] एक प्रकार का जूता (बृह ३)।

खप्पर :: पुं [कर्पर] १ मनुष्य-जाति-विशेष, 'पत्ते तम्मि दसण्णगेसु पवलं जं खप्पराणं बलं' (रंभा)| २ भिक्षा-पात्र, कपाल (सुपा ४९५) ३ खोपड़ी, कपाल (हे १, १८१) ४ घट वगैरह का टुकड़ा (पउम २०, १६६)

खप्पर, खप्पुर :: वि [दे] रूक्ष्, रूखा, निष्ठुर (दे २, ६९; पाअ)।

खम :: सक [क्षम्] १ क्षमा करना, माफ करना। २ सहन करना। खमइ (उवर ८३; महा)। कर्म. खमिज्जइ (भवि)। कृ. खम्मियव्व (सुपा ३०७; उप ७२८ टी; सुर ४, १६७)। प्रयो. खमावइ (भवि)। संकृ. खमावइत्ता, खमावित्ता (पडि; काल)। कृ. खमावियव्व (कप्प)

खम :: वि [क्षम] १ उचित, योग्य; 'सच्चित्तो आहारो न खमो मणसा वि पत्थेउं' (पच्च ५४; पाअ) २ समर्थं, शक्तिमान् (दे १, १७; उप ९५०; सुपा ३)

खमग :: पुं [क्षमक, क्षपक] तपस्वी जैन साधु (उप पृ ३९२; ओघ १४०; भत्त ४४)।

खमण :: न [क्षपण] थपश्‍चर्या, बेला, तेला आदि तप (पिंड ३१२)।

खमण :: न [क्षपण, क्षमण] १ उपवास (बृह १; निचू २०) २ पुं. तपस्वी जैन साधु (ठा १० — पत्र ५१४)

खमय :: देखो खमग (ओघ ५६४; उप ४८६; भत्त ४०)।

खमा :: स्त्री [क्षमा] १ पृथिवी, भूमि; 'उव्वूढ- खमाभारो' (सुपा ३४८) २ क्रोध का अभाव, क्षान्ति (हे २, १८) °वइ पुं [°पति] राजा, नृप, भूपति (धर्म १६)। °समण पुं [°श्रमण] साधु, ऋषि, मुनि (पडि)। °हर पुं [°धर] १ पर्वंत, पहाड़। २ साधु, मुनि (सुपा ३२९)

खमावणया, खमावणा :: स्त्री [क्षमणा] खमाना, माफी माँगना (भग १७, ३; राज)।

खमाविय :: वि [क्षमित] माफ किया हुआ (हे ३, १५२; सुपा ३६४)।

खमिय :: वि [क्षमित] माफ किया हुआ (कुप्र १६)।

खम्म :: देखो खण = खन्। खम्मइ (प्राकृ ६८)।

खम्मक्खम :: पुं [दे] १ संग्राम, लड़ाई। २ मन का दुःख। ३ पश्‍चात्ताप का निश्‍वास (दे २, ७९)

खय :: देखो खच। खअइ (षड्)।

खय :: अक [क्षि] क्षय पाना, नष्ट होना। खअइ (षड्)।

खय :: देखो खग (पाअ)। ३ आकाश तक ऊँचा पहुँचा हुआ (से ९, ४२)। °राय पुं [°राज] पक्षिओं का राजा, गरुड-पक्षी (पाअ)। °वइ पुं [°पति] गरुड़-पक्षी (से १५, ५०)

खय :: न [क्षत] १ व्रण, घ्राव; 'खारक्खेवं व खए' (उप ७२८ टी) २ वि. व्रणित, घवाया हुआ; 'सुणओव्व कीडखओ' (श्रा १४; सुपा ३४९; सुर १२, ९१)। °यार स्त्री पुं [°चार] शिथिलाचारी साधु या साध्वी (वव ३)

खय :: वि [खात] खोदा हुआ (पउम ६१, ४२)।

खय :: पुं [क्षय] १ क्षय, प्रलय, विनाश (भग १, ११) २ रोग-वशेष, राज-यक्ष्मा (लहुअ १५)। °कारि वि [°कारिन्] नाश- कारक (सुपा ६५५)। °काल, °गाल पुं [°काल] प्रलय-काल, (भवि; हे ४, ३७७)। °ग्गि पुं [°ग्नि] प्रलय-काल की आग (से १२, ८१)। °नाणि पुं [°ज्ञानिन्] केवल- ज्ञानी, परिपूर्ण ज्ञानवाला, सर्वंज्ञ (विसे ५१८)। °समय पुं [°समय] प्रलय-काल (लहुअ २)

खयंकर :: वि [क्षयकर] नाश-कारक (पउम ७, ८१; ९६, ३४; पुप्फ ८२)।

खयंतकर :: वि [क्षयान्तकर] नाश-कारक (पउम ७, १७०)।

खयर :: पुंस्त्री [खचर] १ आकाश में चलनेवाला, पक्षी (जी २०) २ विद्याधर, विद्या बल से आकाश में चलनेवाला मनुष्य (सुर ३, ८८; सुपा २४०)। °राय पुं [°राज] विद्याधरों का राजा (सुपा १३४)

खयर :: देखो खइर = खदिर (अन्त १२; सुपा ५९३)।

खयरक्क :: वि [खादिरक] खदिर-सम्बन्धि। स्त्री. °क्का (सुख २, ३)।

खयाल :: पुंन [दे] वंश-जाल, बाँस का वन (भवि)।

खर :: अक [क्षर्] १ झरना, टपकना। २ नष्ट होना। खरइ (विसे ४५५)

खर :: वि [खर] १ निष्ठुर, रुखा, परुष, कठोर (सुर २, ६; दे २, ७८; पाअ) २ पुंस्त्री. गर्दंभ, गधा (पणह १, १; पउम ५६, ४४) ३ पुं. छन्द-विशेष (पिंग) ४ न. तिल का तेल (ओघ ४०६) °कंट न [°कण्ट] बबूल वगैरह की शाखा (ठा ३, ४)। °कंड न [°काण्ड] रत्‍नप्रभा पृथिवी का प्रथम काण्ड- अंश-विशेष (जीव ३)। °कम्म न [°कर्मन्] जिसमें अनेक जीवों की हानि होती है ऐसा काम, निष्ठुर धंधा (सुपा ५०५)। °कम्मिअ वि [°कर्मिन्] १ निष्ठुर कर्मं करनेवाला। २ पुं. कोतवाल, दाण्डपाशिक (ओघ २१८)। °किरण पुं [°किरण] सूर्य, सूरज (पिंग; सण)। °दूसण पुं [°दूषण] इस नाम का एक विद्याधर राजा, जो रावण का बहनोई था (पउम १०, १७)। °नहर पुं [°नखर] श्‍वापद जन्तु, हिंसक प्राणी सुपा १३६; ४७४)। °निस्सण पुं [°निःस्वन] इस नाम का रावण का एख सुभट (पउम ५६, ३०)। °मुह पुं [°मुख] १ अनार्य, देश-विशेष। २ अनार्य देश-विशेष का निवासी (पणह १, ४) °मुही स्त्री [°मुखी] १ वाद्य-विशेष (पउम ५७, २३; सुपा ५०; औप) २ नपुंसक दासी (बब ६) °यर वि [°तर] १ विशेष कठोर (सुपा ६०६) २ पुं. इस नाम का एक जैन गच्छ (राज)। °सन्नय न [°संज्ञक] तिल का तेल (ओघ ४०६)। °साविआ स्त्री [°शाविका] लिपि-विशेष (सम ३५)। °स्सर पुं [°स्वर] परमाधार्मिक देवों की एक जाति (सम २९)

खर :: वि [क्षर] विनश्वर, अस्थायी (विसे ४५७)।

खरंट :: सक [खण्टय्] १ धूत्कारना, निर्भं- र्त्संना करना। २ लेप करना। खरंटए (सूक्त ४६)

खरंट :: वि [खरण्ट] १ धूत्कारनेवाला, तिर- स्कारक। २ उपर्लिप्त करनेवाला। ३ अशुचि पदार्थ (ठा ४, १; सूक्त ४६)

खरंटण :: न [खरण्टन] १ निर्भर्त्सन, परुष- भाषण (वव १) २ प्रेरणा (ओघ ४० भा)

खरंटणा :: स्त्री [खरण्टना] ऊपर देखो (ओघ ७५)।

खरंटिअ :: वि [खरण्टित] निर्भर्त्सित (कुप्र ३१८)।

खरंसूया :: स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (संबोध ४४)।

करड :: पुं [दे] हाथी की पीठ पर बिछाया जाता आस्तरण (पव ८४)।

खरड :: सक [लिप्] लेपना, पोतना। संकृ. खरडिवि (सुपा ४१५)।

खरड :: पुं [खरट] एक जघन्य मनुष्य-जाति, 'अह केणइ खरडेणं किणिउं हट्टम्मि वरुणव- णियस्स' (सुपा ३६२)।

खरडिअ :: वि [दे] १ रूक्ष, रुखा। २ भग्‍न, नष्ट (दे २, ७९)

खरडिअ :: वि [लिप्त] जिसको लेप किया गया हो वह, पोता हुआ (ओघ ३७३ टी)।

खरण :: न [दे] बबूल वगैरह की कण्टक-मय डाली (ठा ४, ३)।

खरफरुस :: पुं [खरपरुष] एक नरक स्थान (देवेन्द्र २७)।

खरय :: पुं [खरक] भगवान् महावीर के काम में से खीला (मांस कील) निकालनेवाला एक वैद्य (चेइय ९९)।

खरय :: पुं [दे] १ कर्मंकर, नौकर (ओघ ४३८) २ राहु (भग १२, ६)

खरहर :: अक [खरखराय्] 'खर-खर' आवाज करना। वकृ. खरहरंत (गउड)।

खरहिअ :: पुं [दे] पौत्र, पोता, पुत्र का पुत्र (दे २, ७२)।

खरा :: स्त्री [खरा] जन्तु-विशेष, नेवला की तरह भुज से चलनेवाला जन्तु-विशेष (जीव २)।

खरिअ :: वि [दे] भुक्त, भक्षित (दे २, ६७; भवि)।

खरिआ :: स्त्री [दे] नौकरानी, दासी (ओघ ४३८)।

खरिसुअ :: पुं [दे. खरिंशुक] कन्द-विशेष (श्रा २०)।

खरुट्टी :: स्त्री [खरोष्ट्री] एक प्राचीन लिपि जो दाहिने से बाएँ को लिखी जाती थी। गांधार लिपि। देखो, खरोट्टिआ (पणण )।

खरल्ल :: वि [दे] १ कठिन, कठोर। २ स्थपुट, विषम और ऊँचा (दे २, ७८)

खरोट्टिआ :: स्त्री [खरोष्ट्रिका] लिपि-विशेष (सम ३५)।

खल :: अक [स्खल] १ पड़ना, गिरना। २ भूलना। ३ रुकना। खलइ (प्राप्र)। वकृ. खलंत, खलमाण (से २, २७; गा ५४६; सुपा ६४१)

खल :: अक [स्खल] अपसरण करना, हटना। खलाहि (उत्त १२, ७)।

खल :: अ. [खलु] पाद पूर्त्ति में प्रयुक्त होता अव्यय (प्राकृ ८१)।

खल :: वि [खल] १ दुर्जन, अधम मनुष्य (सुर १, १९) २ न. धान साफ करने का स्थान (विपा १ ८; श्रा १४)। °पू वि [°पू] खलिहान या खलियान को साफ करनेवाला (कुमा; षड्; प्रामा)

खलइअ :: वि [दे] रिक्त, खाली (दे २, ७१)।

खलक्खल :: अक [खलखलाय्] 'खल-खल' आवाज करना। खलक्खलेइ (पि ५५८)।

खलगंडिय :: वि [दे] मत्त, उन्मत्त (दे २, ६७)।

खलण :: न [स्खलन्] १ नीचे देखो (आचा; से ८, ५५; गा ४९६; वज्जा २६)

खलणा :: स्त्री [स्खलना] १ गिर जाना, निपतन (दे २, ६४) २ विराधना, भंजन (ओघ ७८८) ३ अटकायत, रुकावट; 'होज्जा गुणो, ण खलणं करेमि जइ अस्स वसणस्स' (उप ३३९ टी)

खलभलिय :: वि [दे] क्षुब्ध, क्षोम-प्राप्त (भवि)।

खलहर, खलहल :: पुं [खलखल] नदी के प्रवाह की आवाज, 'वहमाणवाहिणीणं दिसि- दिसिसुव्वंतखलहरासद्दो' (सुर ३, ११; २, ७५)।

खला :: अक [दे] खराब करना, नुकसान करना; 'ताणवि खलो खलाइ य' (पउम ३७, ६३)।

खलिअ :: वि [स्खलित] १ रुका हुआ। २ गिरा हुआ पतित (हे २, ७७; पाअ) ३ न. अपराध, गुनाह। ४ भुल (से १, ९)

खलिअ :: वि [खलिक] खल से व्याप्त, खलि- खचित (दे ४, १०)।

खलिण :: पुंन [खलिन] १ लगाम (पाअ) २ कायोत्सर्ग का एक दोष (पव ५)

खलिया :: स्त्री [खलिका] तिल वगैरह का तैल- रहित चूर्णं खली, खरी (सुपा ४१४)।

खलियार :: सक [खली + कृ] १ तिरस्कार करना, धूत्कारना। २ ठगना। ३ उपद्रव करना। खलियारसि, खलियारेंति (सुपा २३७; स ४६८)

खलियार :: पुं [खलिकार] तिरस्कार, निर्भर्त्संना (पउम ३९, ११६)।

खलियारण :: न [खलीकरण] तिरस्कार (पउम ३९, ८४)।

खलियारणा :: स्त्री [खलीकरणा] वञ्चना, ठगाई (स २८)।

खलियारिअ :: वि [खलीकृत] १ तिरस्कृत (पउम ६६, २) २ वञ्चित, ठगा हुआ (स २८)

खलिर :: वि [स्खलितृ] स्खलन करनेवाला (वज्जा ५८; सण)।

खली :: स्त्री [दे. खली] तिल-पिण्डिका, तिल वगैरह का स्‍नेहरहित चूर्ण, खली (दे २, ६६; सुपा ४१५; ४१६)।

खलीकय :: देखो खलियारिअ (चउ ४४)।

खलीकर :: देखो खलियार = खली + कृ। खली- करेइ (स २७)। कर्म. खलीकरीयइ, खली- किज्जइ (स २८; सण)।

खलीण :: न [खलीन] देखो खलिण (सुपा ७७; स ५७४)। २ नदी का किनारा; 'खलीणमट्टियं खणमाणे' (विपा १, १ — पत्र १९)

खलु :: अ [खलु] विशेष-सूचक अव्यय (दसनि ४, १९)।

खलु :: अ [खलु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ अवधारण, निश्‍चय (जी ७) २ पुनः, फिर (आचा) ३ पादपूर्त्ति और वाक्य की शोभा के लिए भी इसका प्रयोग होता है (आचा; निचू १०)। °खित्त न [°क्षेत्र] जहाँ पर जरूरी चीज मिले वह क्षेत्र (वव ८)

खलुंक :: पुं [दे] १ गली बैल, अविनीत बैल, (ठा ४, ३ — पत्र २४८) २ अविनीत शिष्य., कुशिष्य (उत्त २७)

खलुंकिज्ज :: पुं [दे] १ गली बैल संबन्धी। २ न. उत्तराध्ययन सूत्र का इस नाम का एक अध्ययन (उत्त २७)

खलुग :: देखो खलुय (पव ६२)।

खलुय :: न [खलुक] गुल्फ; पाँव का मणि- बन्ध (विपा १, ६)।

खल्ल :: न [दे] १ बाड़ का छिद्र। २ विलास (दे २, ७७) ३ वि. खाली, रिक्त; 'जाया खल्लकवोला परिसोसियमंससोणिया धणियं' (उप ७२८ टी; दे १, ३८)

खल्ल :: वि [दे] निम्‍न-मध्य, जिसका मध्य भाग नीचा हो वह (दे १, ३८)।

खल्लइअ :: वि [दे] १ संकुचित, संकोच-युक्त। २ प्रहृष्ट, हर्षंयुक्त (दे २, ७९; गउड)

खल्लग, खल्लय :: पुंन [दे] १ पत्र, पत्ता। २ पत्र- पुट, पत्तों का बना हुआ पुड़वा या दोना (सूअ १, २, २, १९ टी; पिंड २१०; बृह १)

खल्लग, खल्लय :: पुंन [दे] १ पाँव का रक्षण करनेवाला चमड़ा, एक प्रकार का जूता (धर्मं ३) २ थैला (उप १०३१ टी)

खल्ला :: स्त्री [दे] चर्मं, चमड़ा, खाल (दे २, ६६; पाअ)।

खल्लाड :: देखो खल्लीड (नीचू २०)।

खल्लिरा :: स्त्री [दे] संकेत (दे २, ७०)।

खल्लिहड :: (अप) देखो खल्लीड (हे ४, ३८९)।

खल्ली :: स्त्री [दे] सिर का वह चमड़ा, जिसमें केश पैदा न होता हो (आवम)।

खल्लीड :: पुं [खल्वाट] जिसके सिर पर बाल न हो, गंजा, चंदला (हे १, ७४; कुमा)।

खल्लूड :: पुं [खल्लूट] कन्द-विशेष (पणण १ — पत्र ३६)।

खव :: सक [क्षपय्] १ नाश करना। २ डालना, प्रक्षेप करना। ३ उल्लंघन करना। खवेइ (उव), खवयंति (भग १८, ७)। कर्मं. खविज्जंति (भग)। वकृ. खवेमाण (णाया १, १८)। संकृ. खवइत्ता, खवित्तु, खवेत्ता (भग १५; सम्य १६, औप)

खव :: पुं [दे] १ वाम हस्त, बायाँ हाथ। २ गर्दंभ, रासभ (दे २, ७७)

खवग :: वि [क्षपक] १ नाश करनेवाला, क्षय करनेवाला। २ पुं. तपस्वी जैन-मुनि (उवः भाव ८) ३ वि. क्षपक श्रेणि में आरूढ़ (कम्म ५)। °सेढि स्त्री [श्रेणि] क्षपण- क्रम, कर्मों के नाश की परिपाटी (भग ९, ११; उवर ११४)

खवडिअ :: वि [दे] स्खलित, स्खलन-प्राप्त (दे २, ७१)।

खवण, खवणय :: न [क्षपण] १ क्षय, नाश (जीत) २ डालना, प्रक्षेप (कम्म ४, ७५) ३ पुं. जैन-मुनि (विसे २५८५; मुद्रा ७८)

खवण :: देखो खमण; 'विहिय पक्खखवणे सो' (धर्मं २३)।

खवणा :: स्त्री [क्षपणा] अध्ययन, शास्त्र-प्रकरण (अणु २५०)।

खवय :: पुं [दे] स्कन्ध, कँधा (दे २, ६७)।

खवय :: देखो खवग (सम २६; आरा १३; आचा)।

खवलिअ :: वि [दे] कुपित, क्रुद्ध (दे २, ७२)।

खवल्ल :: पुं [खवल्ल] मत्स्य-विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८३ टी)।

खवा :: स्त्री [क्षपा] रात्रि, रात। °जल न [°जल] आवश्याय, हिम (ठा ४, ४)।

खविअ :: वि [क्षपित] १ विनाशित, नष्ट किया हुआ (सुर ४, ५७; प्राप) २ उद्वेजित (गा १३४)

खव्व :: पुं [दे] १ वाम कर, बाँया हाथ। २ रासभ, गधा (दे २, ७७)

खव्व :: वि [खवे] वामन, कुब्ज, नाटा (पाअ)।

खव्व :: वि [खवे] लघु, थोड़ा; 'अखव्वगव्वो कओ आसि' (सिरि ९७५)।

खव्वुर :: देखो कब्बुर (विक्र २८)।

खव्वुल :: न [दे] मूँह, मुख (दे २, ६८)।

खस :: अक [दे] खिसकना, गिर पड़ना। खसइ (पिंग)।

खस :: पुं. ब. [खस] १ अनार्य देश-विशेष, हिन्दुस्थान के उत्तर में स्थित इस नाम का एक पहाड़ी मुल्क (पउम ९८ ६६) २ पुंस्त्री. खस देश में रहनेवाला मनुष्य (पणह १ — पत्र १४; इक)

खसखस :: पुं [खसखस] पोस्ता का दानास उशीर, खस (सं ९६)।

खसफस :: अक [दे] खसना, खिसकना, गिर पड़ना। वकृ. खसफसेमाण (सुर २, १५)।

खसफसि :: वि [दे] व्याकुल, अधीर। °हूअ वि [°भूत] व्याकुल बना हुआ (हे ४, ४२२)।

खसर :: देखो कसर = दे कसर (जं २; स ४८०)।

खसिअ :: देखो खइअ = खचित (हे १, १९३)।

खसिअ :: न [कसित] रोग-विशेष, खाँसी (हे १, १८१)।

खसिअ :: वि [दे] खिसका हुआ (सुपा २८१)।

खसु :: पुं [दे] रोग-विशेष, पामा; गुजराती में 'खस' (सण)।

खह :: पुंन [खह] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७५)।

खह :: देखो ख (ठा ३, १)।

खहयर :: देखो खयर (औप; विपा १, १)।

खहयरी :: स्त्री [खचरी] १ पक्षिणी, मादा पक्षी। २ विद्याधरी, विद्याधर की स्त्री (ठा ३, १)

खा, खाअ :: सक [खाद्] खाना, भोजन करना, भक्षण करना। खाइ, खाअइ, खाउ (हे ४, २२८)। खंति (सुपा ३७०; महा)। भवि. खाहिइ (हे ४, २२८)। कर्म. खज्जइ (उव)। वकृ. खत, खायंत, खायमाण (करु १४; पउम २२, ७५; विपा १, १); 'खंता पिअंता इह जे मरंति, पुणोवि ते खंति पिअंति रायं!' (करु १४)। कवकृ. खज्जंत, खज्जमाण (पउम २२, ४३; गा २४८; पउम १७, ८१; ८२, ४०)। हेकृ. खाइउं (पि ५७३)।

खाअ :: वि [ख्यात] प्रसिद्ध, विश्रुत (उप ३२९; ६२३; नव २७; हे २, ९०)। °कित्तीय वि [°कीर्त्तिक] यशस्वी, कीर्त्तिमान् (पउम ७, ४८)। °जस वि [°यशस्] वही अर्थ (पउम ५, ८)।

खाअ :: वि [खादित] भुक्त, भक्षित; खाउग्गि- णण — ' (गा ६६८; भवि)।

खाअ :: वि [खात] १ खुदा हुआ। २ न. खुदा हुआ जलाशय; 'खाओदगाइं' (कप्प) ३ ऊपर में विस्तारवाली और नीचे में संकुचित ऐसी परिखा। ४ ऊपर और नीचे समान रूप से खुदी हुइ परिखा (औप) ५ खाई, परिखा पाअ)।

खाइ :: स्त्री [खाति] खाई, परिखा (सुपा २६४)।

खाइ :: स्त्री [ख्याति] प्रसिद्धि, कीर्त्ति (सुपा ५२९; ठा ३, ४)।

खाइ :: [दे] देखो खाइं (औप)।

खाइअ :: देखो खइअ = क्षायिक (विसे ४९; २१७५; सत्त ६७ टी)।

खाइअ :: वि [खादित] खाया हुआ, भुक्त, भक्षित (प्राप; निर १, १)।

खाइआ :: स्त्री [दे. खातिका] खाई, परिखा (दे २, ७३; पाअ; सुपा ५२९; भग ५, ७; पणह २, ५)।

खाइं :: अ [दे] १ — २ वाक्य की शोभा औरॉ पुनः शब्द के अर्थं का सूचक अव्यय (भग ५, ४; औप)

खाइग :: देखो खाइअ = क्षायिक (सुपा ५५१)।

खाइम :: न [खादिम] अन्न-वर्जित फल, औषध वगैरह खाद्य चीज (सम ३९; ठा ४२; औप)।

खाइर :: वि [खादिर] खदिर-वृक्ष-सम्बन्धी, खैर का, कत्थई (हे १, ६७)।

खाउय :: न [खाद्यक] खाद्यपदार्थ (मूलशुद्धि गा° १७१, देवदिन्न कथा गा. ९ पछी)।

खाओवसम, खाओवसमिअ :: देखो खओवसमिय (सुपा ५५१; ६४८; सम्य २३)।

खाओवसमिग :: देखो खाओवसमिअ (अज्झ ६८; सम्यक्त्वो ५)।

खाडइअ :: वि [दे] प्रतिफलित, प्रतिबिम्बित (दे २, ७३)।

खाडखड :: पुं [खाडखड] चौथी नरक-पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६)।

खाडहिला :: स्त्री [दे] एक प्रकार का जानवर, गिलहरी, गिल्ली (पणह १, १; उप पृ २०५ विसे ३०४ टी)।

खाण :: पुं [दे] एक म्लेच्छजाति (मृच्छ १५२)।

खाण :: न [खादन] भोजन, भक्षण; 'खाणेण अ पाणेण अ तह गहिओ मंडलो अडअणाए' (गा ६६२; पउम १४, १३९)।

खाण :: न [ख्यात] कथन, उक्‍ति (राज)।

खाणि :: स्त्री [खानि] खान, आकर (दे २, ६६; कुमा; सुपा ३४८)।

खाणिअ :: वि [खानित] खुदवाया हुआ (हे ३, ५७)।

खाणी :: देखो खाणि (पाअ)।

खाणु, खाणुय :: पुं [स्थाणु] स्थाणु, ठूठा वृक्ष, अचल (पणह २, ५; हे २, ७; कस)।

खादि :: देखो खाइ = ख्याति (संक्षि ९)।

खाम :: सक [क्षमय्] खमाना, माफी माँगना। खामेइ (भग)। कर्म. खामिज्जइ, खामीअइ (हे ३, १५३)। संकृ. खामेत्ता (भग)।

खाम :: वि [क्षाम] १ कृश, दुर्बल; 'खामपं डुकवोलं' (उप ९८६ टी; पाअ) २ क्षीण, अशक्त (दे ६, ४६)

खामण :: न [क्षमण] खमाना (श्रावक ३६५)।

खामणा :: स्त्री [क्षमणा] क्षमापना, माँफी माँगना, क्षमा-याचना (सुपा ५९४; विवे ७९)।

खामिय :: वि [क्षमित] १ जिसके पास क्षमा माँगी गई हो वह, खमाया हुआ (विसे २३८८; हे ३, १५२) २ सहन किया हुआ। ३ विलम्बित, विलम्ब किया हुआ; 'तिणिण अहोरत्ता पुण न खामिया में कयंतेण (पउम ४३, ३१; हे ३, १५३)

खाय :: पुं [खाद] पाँचवी नरक-भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)।

खायर :: देखो खाइर (कर्मं ६)।

खार :: पुं [क्षार] १ एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ३०) २ भुजपरिसर्पं की एक जाति (सूअ २, ३, २५) ५ बैर, दुश्मनी (सुख १, ३)। °डाह पुंन [°दाह] क्षार पकाने की भट्ठी (आचा २, १०, २)। °तंत पुंन [°तन्त्र] आयुर्वेद का एक भेद, वाजीकरण (ठा ८ — पत्र ४२८)

खार :: पुं [क्षार] १ क्षरण, झरना, संचलन (ठा ८) २ भस्म, खाक (णाया १, १२) ३ खार, क्षार; लवण-विशेष (सूअ १, ७) ४ लवण, नोन (बृह ४) ५ जानवर-विशेष (पणण १) ६ सर्जिका, सज्जी (सूअ १, ४, २) ७ वि. कटू या चरपरा स्वादवाला, कटु चीज (पणण १७ — पत्र ५३०) ८ खारो चीज, नमकीन स्वादवाली वस्तु (भग ७, ६; सूअ १, ७) °तउसी [°त्रपुषी] कटु त्रपुषी, वनस्प ति-विशेष (पणण १७)। °तिल्ल न [°तैल] खारे से संस्कृत तैल (पणह २, ५)। °मेह पुं [°मेघ] क्षार रसवाले पानी की वर्षा (भग ७, ६)। °वत्तिव वि [°पात्रिक] क्षार-पात्र में जिमाया हुआ। २ क्षार-पात्र का आधार-भूत (औप)। °वत्तिय वि [°वृत्तिक] खार में फेंका हुआ, खार से सींचा हुआ (औप; दसा ६)। °वावी स्त्री [°वापी] क्षार से भरी हुई वापी, कूँआ (पणह १, १)

खारंफिडी :: स्त्री [दे] गोधा, गोह, जन्तु-विशेष (दे २, ७३)।

खारदूसण :: बि [खारदूषण] खरदूषण का, खरदूषण-सम्बन्धी (पउम ४५, १५)।

खारय :: न [दे] मुकुल, कली (दे २, ७३)।

खारायण :: पुं [क्षारायण] १ ऋषि-विशेष। २ माण्डव्यगोत्र के शाखाभूत एक गोत्र (ठा ७)

खारि :: स्त्री [खारी] एक प्रकार की नाप, ३४ सेर की तौल (गा ८१२)।

खारिंभरी :: स्त्री [खारिम्भरी] खारी-परिभित वस्तु जिसमें अट सके ऐसा पात्र भर दूध देनेवाली (गा ८१२)।

खारिक्क :: न [दे] फल-विशेष, छुहारा (सिरि ११९६)।

खारिय :: वि [क्षारित] १ स्रावित, झराया हुआ (वव ६) २ पानी में घिसा हुआ (भवि)

खारी :: देखो खारि (गा ८१२; जो १)।

खारुगणिय :: पुं [क्षारुगणिक] १ म्लेच्छ देश- विशेष। २ उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति (भग १२, २)

खारोदा :: स्त्री [क्षारोदा] नदी-विशेष (राज)।

खाल :: सक [क्षालय्] धोना, पखारना, पानी से साफ करना। कृ. खालणिज्ज (उप ३२६)।

खाल :: स्त्रीन [दे] नाला, मोरी, गंदगी निकलने का मार्गं (ठा २, ३)। स्त्री. खाला (कुमा)।

खालण :: न [क्षालन] प्रक्षालन, पखारना (सुपा ३२८)।

खालिअ :: वि [क्षालित] धौत, धोया हुआ (ती १३)।

खावण :: न [ख्यापन] प्रतिपादन (पंचा १०, ७)।

खावणा :: स्त्री [ख्यापना] प्रसिद्धि, प्रकथन; 'अक्खाणं खावणाविहाणं वा' (विसे)।

खावियंत :: वि [खाद्यमान] जिसको खिलाया जाता हो वह, 'कागणिमंसाइं खावियंतं' (विपा १, २ — पत्र २४)।

खावियग :: वि [खादितक] जिसको खिलाया गया हो वह, 'कागणिमंसखावियगा' (औप)।

खावेंत :: वि [ख्यापयत्] प्रख्याति करता हुआ, प्रसिद्धि करता हुआ (उप ८३३ टी)।

खास :: अक [कास्] खाँसना, खाँसी खाना। खासई (तंदु १६)।

खास :: पुं [कास] रोग-विशेष, खाँसी की बीमारी, खाँसी (विपा १, १; सुपा ४०४; सण)।

खासि :: वि [कासिन्] खाँसी का रोगवाला (सुपा ५७६)।

खासिअ :: न [कासित] खाँसी, खाँसना (हे १, १८१)।

खासिअ :: पुं [खासिक] १ म्लेच्छ देश विशेष| २ उसमें रहनेवाली म्लेच्छ जाति (पणह १, १ — पत्र १४; इक; सूअ १, ५, १)

खि :: अक [क्षि] क्षीण होना। कर्म. 'खिज्जइ भवसंतती' (स ६८४)। खीयंति, खीयंते (कम्म ६, ६६; टी)।

खिइ :: स्त्री [क्षिति] पृथिवी, धरा (पउम २०, १५९; स ४१९)। °गोयर पुं [°गोचर] मनुष्य, मानुष, आदमी (पउम ५३, ४३)। °पइट्ठ न [°प्रतिष्ठ] नगर-विशेष (स ६)। °पइाठ्ठय न [°प्रतिष्ठित] १ इस नाम का एक नगर (उप ३२० टी; स ७) २ राजगृह नाम का नगर, जो आजकल बिहार में 'राज- गिर' नाम से प्रसिद्ध है (ती १०)। °सार पुं [°सार] इस नाम का एक दुर्गं (पउम ८०, ३)

खंख :: अक [सिङ्खय्] खिंखिं आवाज करना। खिखेइ। वकृ. खिंखियंत (सुख २, ३३)।

खिंखिणिया :: स्त्री [किङ्किणिका] क्षुद्र घण्टिका (उवा)।

खिंखिणी :: स्त्री [किङ्किणी] ऊपर देखो (ठा १०; णाया १, १; अजि २७)।

खिंखिणी :: स्त्री [दे] श्रृगाली, स्त्री-सियार (दे २, ७४)।

खिंग :: पुं [खिङ्गं] रंडीबाज, व्यभिचारी; 'अणेगखिंगजणउव्वासियरसणे' (रंभा)।

खिंस :: सक [खिंस्] निन्दा करना, गर्हा करना, तुच्छकारना। खिंसए (आचा)। कर्म. खिंसिज्जइ (बृह १)। कवकृ. खिंसि- ज्जंत (उप ५८८)। कृ. खिंसणिज्ज (णाया १, ३)।

खिंसण :: न [खिंसन] अवर्णवाद, निन्दा, गर्हा (औप)।

खिंसणा :: स्त्री [खिंसना] निन्दा, गर्हा (औप; उप १३४ टी)।

खिंसा :: स्त्री [खिंसा] ऊपर देखो (ओघ ६०; द्र ४२)।

खिंसिय :: वि [खिंसित] निन्दित गर्हित (ठा ६)।

खिक्खंड :: पुं [दे] कृकलास, गिरगिट, सरट (दे २, ७४)।

खिक्खियंत :: वि [खिखीयमान] 'खि-खि' आवाज करता (पणह १, ३ — पत्र ४६)।

खिक्खिरी :: स्त्री [दे] डोम वगैरह का स्पर्श रोकने की लकड़ी (दे २, ७३)।

खिच्च :: पुंन [दे] खीचड़ी, कृसरा (दे १, १३४)।

खिज्ज :: अक [खिद्] १ खेद करना, अफसोस करना। २ उद्विग्‍न होना, थक जाना। खिज्जइ, खिज्जए (स ३४; गउड; पि ४५७)। कृ. खिज्जियव्व (महा; गा ५१३)

खिज्जणिया :: स्त्री [खेदनिका] खेद-क्रिया अफसोस, मन ता उद्वेग (णाया १, १६ — पत्र २०२)।

खिंज्जिअ :: न [दे] उपालम्भ, उलाहना (दे २, ७४)।

खिज्जिअ :: वि [खिन्न] १ खेद प्राप्‍त। २ न. खेद (स ५५५) ३ प्रणय-जन्य रोष (णाया १, ९ — पत्र १६५)

खिज्जिअय :: न [खेदितक] छन्द-विशेष (अजि ७)।

खिज्जिर :: वि [खेदितृ] खेद करनेवाला, खिन्‍न होने की आदतवाला (कुमा ७, ६०)।

खिड्ड :: न [खेल] खेल, क्रीड़ा, मजाक; 'खिड्डेण मए भणियं एयं' (सुपा ३०२); 'बालत्तणं खिड्डपरो गमेइ' (सत्त ६८)। °कर वि [°कर] खेल करनेवाला, मजाक करनेवाला (सुपा ७८)।

खिण्ण :: वि [खिन्न] १ खिन्‍नष खेद प्राप्‍त। २ श्रान्त, थका हुआ (दे १, १२४; गा २२९)

खिण्ण :: देखो खाण (प्राप)।

खित्त :: वि [क्षिप्त] १ फेंका हुआ (सुर ३, १०२; सुपा ३५७) २ प्रेरित (दे १, ६३)। °इत्त, °चित्त वि [°चित्त] भ्रान्त-चित्त, विक्षिप्‍त-मनस्क, पागल (ठा ५, २; औघ ४६७; ठा ५, १)। °मण वि [°मनस्] चित्त-भ्रमवाला (महा)

खित्त :: देखो खेत्त (अणु; प्रासू; पडि)। °देवया स्त्री [°देवता] क्षेत्र का अधिष्ठायक देव (श्रा ४७)। °वाल पुं [पाल] देव-विशेष, क्षेत्र-रक्षक देव (सुपा १५२)।

खित्तज :: पुं [क्षेत्रज] गोद लिया हुआ लड़का, 'खित्तज सुएणावि कुलं वट्टउ (कुप्र २०८)।

खित्तय :: न [क्षिप्तक] छन्द-विशेष (अजि २४; २५)।

खित्तय :: न [दे] १ अनर्थं, नुकसान। २ वि. दीप्‍त, प्रज्वलित (दे २, ७९)

खित्तअ :: वि [क्षैत्रिक] १ क्षेत्र-सम्बन्धी। २ पुं. व्याधि-विशेष; 'तालुपुडं गरलाणं जह बहुवाहीण खित्तिओ वाही' (श्रा १२)

खिन्न :: देखो खिण्ण = खिन्‍न (पाअ; महा)।

खिप्प :: अक [कृप्] १ समर्थ होना। २ दुर्बल होना। खिप्पइ (संक्षि ३५)

खिप्प :: वि [क्षिप्र] शीघ्र, त्वरा-युक्त। °गइ वि [°गति] १ शीघ्र गतिवाला। २ पुं. अमितगति इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)

खिप्पं :: अ [क्षिप्रम्] तुरन्त, शीघ्र, जल्दी (प्रासू ३७; पडि)।

खिप्पंत :: देखो खिव।

खिप्पामेव :: अ [क्षिप्रमेव] शीघ्र ही, तुरन्त ही (जं ३; महा)।

खिमा :: स्त्री [क्ष्मा] पृथिवी (चंड)।

खिर :: अक [क्षर्] १ गिरना, गिर पड़ना। २ टपकना, झरना। खिरइ (हे ४, १७३)। वकृ. खिरंत (पउम १८, ३२)

खिरिय :: वि [क्षरित] १ टपका हुआ। २ गिरा हुआ (पाअ)

खिल :: न [खिल] अकृष्ट-भूमि, ऊसर जमीन (पणह १, २ — पत्र २९)।

खिलीकरण :: न [खिलीकरण] खआली करना, शून्य करना; 'जुवजणधीरखिलीकरणकवाडओ वेसवाडओ' (मै ८)।

खिल्ल :: सक [कीलय्] रोकना, रिुकावट डालना; 'भणइ इमाणं बन्धव ! गमणं खिल्लेमि कड्डिउं रेहं' (सुपा १३७)।

खिल्ल :: अक [खेल्] क्रीड़ा करना, खेल करना, तमाशा करना। वकृ. खिल्लंत (सुपा ३९९)।

खिल्ल :: पुं [दे] फोड़ा, फुनसी; गुजराती में 'खील' (तंदु ३८)।

खिल्लण :: न [खेलन] खिलौना, खेलनक (सुर १५, २०८)।

खिल्लहड, खिल्लहल :: पुं. [दे. खिल्लहड] कन्द विशेष (श्रा २०; धर्म २)।

खिल्लुहडा :: स्त्री [दे] कन्द-विशेष (संबोध ४४)।

खिव :: सक [क्षिप्] १ फेंकना। २ प्रेरना। ३ डालना। खिवइ, खिवेइ (महा)। वकृ. खिवेमाण (णाया १, २)। कवकृ. खिप्पंत (काल)। संकृ. खिविय (कम्म ४, ७४)। कृ. खिवियव्व (सुपा १५०)

खिवण :: न [क्षेपण] १ फेंकना, क्षेपण (से १२, ३६) २ प्रेरण, इधर-उधर चलाना (से ५, ३)

खिविय :: वि [क्षिप्त] १ क्षिप्‍न, फेंका हुआ। २ प्रेंरित (सुपा २)

खिव्व :: देखो खिव। संकृ. 'अह खिव्विऊण सव्वं, पोए ते पत्थिया रयणभूमि' (धम्म १२ टी)।

खिस :: अक [दे] सरकना, खिसकना। संकृ. 'अह नियगामे गच्छंतस्स खिसिऊण वाहणा- हिंतो पडियं' (सुपा ५२७; ५२८)।

खीण :: देखो खिण्ण = खिन्‍न; 'कोवेत्थ सुरय- खीणो' (पउम ३२, ३)।

खीण :: वि [क्षिण] १ क्षय-प्राप्‍त, नष्ट, विछिन्‍न (सम्म ६०; हे २, ३) २ दुर्बल, कृश (भग २, ५) °दुह वि [°दुःख] दुःख- रहित (सम १५३)। °मोह वि [°मोह] १ जिसका मोह नष्ट हो गया हो वह (ठा ३, ४) २ न. बारहवाँ गुण-स्थानक (सम २६) °राग वि [°राग] १ वीतराग, राग-रहित। २ पुं. जिनदेव, तीर्थकर देव (गच्छ १)

खीयमाण :: वि [क्षीयमाण] जिसका क्षय होता जाता हो वह (गा ९८६ टी)।

खीर :: न [क्षीर] बेला, दो दिन का उपवास (संबोध ५८)। °डिंडिर पुं [°डिण्डीर] देव-विशेष (कुप्र ७६)। °डिंडिरा स्त्री [°डिण्डीरा] देवी-विशेष (कुप्र ७६)। °वर पुं [°वर] १ समुद्र-विशेष। २ द्वीप-विशेष (सुज्ज १९)

खीर :: न [क्षीर] १ दुग्ध, दूध (हे २, १७; प्रासू १३; १६८) २ पानी, जल (हे २, १७) ३ पुं. क्षीरवर समुद्र का अधिष्टायक देव (जीव ३) ४ समुद्र विशेष, क्षीर-समुद्र (पउम ६६, १८)। कयंब पुं [°कदम्ब] इस नाम का एक ब्राह्मण-उपाध्याय (पउम २१, ९)। °काओली स्त्री [°काकोली] वनस्पति-विशेष, खीरविदारी; (पणण १)। °जल पुं [°जल] क्षीर-समुद्र, समुद्र-विशेष (दीव)। °जलनिहि पुं [°जलनिधि] वही पूर्वोक्त अर्थं (सुपा २९५)। °दुम, °द्दम पुं [°द्रुम] दूधवाला पेड़, जिसमें दूध निकलता है ऐसे वृक्ष की जाति (ओघ ३४९; निचू १)। °धाई स्त्री [धात्री] दूध पिलानेवाली दाई (णाया १, १)। °पूर पुं [°पूर] उबलता हुआ दूध (पणण १७)। °प्पभ पुं [°प्रभ] क्षीरवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °मेह पुं [°मेघ] दूध- समान स्वादवाले पानी की वर्षा (तित्थ)। °वई स्त्री [°वती] प्रभूत दूध देनेवाली (बृह ३)। °वर पुं [°वर] द्वीप-विशेष (जीव ३)। °वारि न [°वारि] क्षीर समुद्र का जल (पउम ६६, १८)। °हर पुं [°गृह, °धर] क्षीर-सागर (वज्जा २४)। °सव पुं [°श्रव] लब्धि-विशेष, जिसके प्रभाव से बचन दूध की तरह मधुर मालूम हो। २ ऐसी लब्धिवाला जीव (पणह २, १; औप)

खीरइय :: वि [क्षीरकित] संजात-क्षीर, जिसमें दूध उत्पन्‍न हुआ हो वह; 'तए णं साली पत्तिया वत्तिआ गब्भिया पसूया आगयगन्धा खीरा (? र) इया बद्धफला' (णाया १, ७)।

खीरि :: वि [क्षीरिन्] १ दूधवाला। २ पुं जिसमें दूध निकलता है ऐसे वृक्ष की जाति (उप १०३१ टी)

खीरिज्जमाण :: वि [क्षीर्यमाण] जिसका दोहन किया जाता हो वह (आचा २, १, ४)।

खीरिणी :: स्त्री [क्षीरिणी] १ दूधवाली (आचा २, १, ४) २ वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३१)

खीरी :: स्त्री [क्षैरेयी] खीर, पक्वान्‍न-विशेष (सूपा ६३६; पाअ)।

खीरोअ :: पुं [श्रीरोद] समुद्र-विशेष, क्षीर- सागर (हे २, १८२; गा ११७; गउड; उप ५३० टी; स ३४४)।

खीरोआ :: स्त्री [क्षीरोदा] इस नाम की एक नदी (इक ठा २, ३)।

खीरोद :: देखो खीरोआ (ठा ७)।

खीरोदक, खीरोदय :: पुं [क्षीरोदक] क्षीर-सागर (णाया १, ८; औप)।

खीरोदा :: देखो खीरोआ (ठा ३, ४ — पत्र १६१)।

खील, खीलग, खीलव :: पुं [कील, °क] खीला, खूँट, खूँटी (स १०६; सूअ १, ११; हे १, १८१; कुमा)। °मग्ग पुं [°मार्ग] मार्गं-विशेष, जहाँ धूली ज्यादा रहने से खूँटी के निशान बनाये गये हों (सूअ १, ११)।

खीलावण :: न [क्रीडन] खेल कराना, क्रीड़ा कराना। °धाई स्त्री [°धात्री] खेल-कूद करानेवाली दाई (णाया १, १ — पत्र ३७)।

खीलिया :: देखो कीलिआ (जीवस ४८)।

खीलिया :: स्त्री [कीलिका] छोटी खूँटी (आवम)।

खीव :: पुं [क्षीब] मद-प्राप्‍त, मदोन्मत्त, मस्त (दे, ८, ६६)।

खु :: अ [खलु] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ निश्‍चय, अवधारण। २ वितर्क, विचार। ३ संशय, संदेह। ४ संभा- वना। ५ विस्मय, आश्चर्यं (हे २, १९८; षड्; गा ६; १४२; ४०१; स्वप्‍न ९; कुमा)

खु° :: देखो खुहा (पणह २, ४; सुपा १९८; णाया १, १३)।

खुइ :: स्त्री [क्षुति] १ छींक। २ छोंक का निशान (णाया १, १६; भग ३, १)

खुइय :: वि [दे] १ विच्छिन्न। २ विघ्यात, शान्त; 'खुइया चिया' (कुप्र १४०)

खुंखुणय :: पुं [दे] नाक का छिद्र (दे २, ७६; पाअ)।

खुंखुणी :: स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे २, ७६)।

खुंगाह :: पुं [दे] अश्व की एक उत्तम जाति (सम्मत्त २१६)।

खुंट :: पुं [दे] खूँट, खूंटी। °मोडय वि [°मोटक] १ खूंटे को मोड़नेवाला, उससे छूटकर भाग जानेवाला। २ पुं. इस नाम का एक हाथी (नाट — मृच्छ ८४)

खुंडय :: वि [दे] स्खलित, स्खलना-प्राप्‍त (दे २, ७१)।

खुंद :: (शौ) सक [क्षुद्] १ जाना। २ पीसना, कूटना। खुंददि (प्राकृ ९३)

खुंद :: अक [क्षुध्] भूख लगना। खुंदइ (प्राकृ ६६)।

खुंपा :: स्त्री [दे] वृष्टि को रोकने के लिए बनाया जाता एक तृणमये उपकरण (दे २, ७५)।

खुंभण :: वि [क्षोभण] क्षोभ उपजानेवाला (पणह १, १ — पत्र २३)।

खुज्ज :: अक [परि + अस्] १ फेंकना। २ निरास करना। खुज्जइ (प्राकृ ७२)

खुज्ज, खुज्जय :: वि [कुब्ज] १ कूबड़ा। २ वामन (हे १, १८१; गा ५३४) ३ वक्र. टेढ़ा (ओघ) ४ एक पार्श्व से हीन (पव ११०) ५ न. संस्थान-विशेष, शरीर का वामन आकार (ठा ६; सम १४९; औप)। स्त्री. खुज्जा (णाया १, १)

खुज्जिय :: वि [कुब्जिन्] कूबड़ा (आचा)।

खुट्ट :: सक [तुड्] १ तोड़ना, खण्डित करना, टुकड़ा करना। २ अक. खूटना, क्षीण होना। ३ टूटना, त्रुटित होना। खुट्टइ (नाट — साहित्य २२९; हे ४, ११६); खुट्टंति (उव)

खुट्ट :: वि [दे] त्रुटित, खण्डित, छिन्न (हे २, ७४; भवि)।

खुड :: देखो खुट्ट = तुड्। खुडइ (हे ४, ११६)। खुर्डेति (स ८, ४८)। वकृ. 'पवंगभिन्नमत्थया खुडंतदित्तमोत्तिया' (पउम ५३, ११२; स ४४८)। संकृ. खुंडिऊण (स ११३)।

खुडक्क :: देखो खुडुक्क = (दे)। खुड्डक्कए (धर्मंवि ७१)।

खुडक्किअ :: [दे] देखो खुडुक्किअ (गा २२६)।

खुडिअ :: वि [खण्डित] त्रुटित, खण्डित, विच्छिन्न (हे १, ५३; षड्)।

खुडुक्क :: सक [अप + क्रमय्] हटाना, दूर करना। खुडुक्कइ (प्राकृ ७०)।

खुडुक्क :: अक [दे] १ नीचे उतरना। २ स्खलित होना। ३ शल्य की तरह चुभना। ४ गुस्सा से मौन रहना। खुड्डक्कइ (हे ४, ३९५)। वकृ. खुडुक्कंत (कुमा)

खुडुक्किअ :: वि [दे] १ शल्य की तरह चुभा हुआ, खटका हुआ (उप ३५५) २ रोष- मूक, गुस्सा से मौन धारण करनेवाला। स्त्री. °आ (गा २२६ अ)

खुड्ड, खुड्डग :: वि [दे. क्षुद्र क्षुल्लक] १ लघु, छोटा (दे २, ७४; कप्प; दस ३; आचा २, २, ३; उत्त १) २ नीच, अधम दुष्ट (पुप्फ ४४१) ३ पुं. छोटा साधु, लघु शिष्य (सूअ १, ३, २) ४ पुंन. अंगुलीय- विशेष, एक प्रकार की अँगुठी (औप; उप २०४)

खुड्डमड्डा :: अ [दे] १ बहु, अत्यन्त। २ फिर- फिर (निचू २०)

खुड्डय :: देखो खुड्ड (हे २, १७४; षड्; कप्प; सम ३५; णाया १, १)।

खुड्डाग, खुड्डाय :: देखो खुड्डग (औप; पणण ३६; णाया १, ७; कप्प)। °णियंठ न [°नैर्ग्रन्थ] उत्तराध्ययन सूत्र का छठवाँ अध्ययन (उत्त ६)।

खुड्डिअ :: न [दे] सुरत, मैथुन, संभोग (दे २, ७५)।

खुड्डिआ :: स्त्री [दे. क्षुद्रिका] १ छोटी, लध्वी (ठा २, ३; आचा २, २, ३) २ डाबर, नही खुदा हुआ छोटा तलाव (जं १; पणह २, ५)

खुणुक्खुडिआ :: स्त्री [दे] घ्राण, नाक, नासिका (दे २, ७६)।

खुण्ण :: वि [क्षुण्ण] १ मर्दित (गा ४४५; निचू १) २ चूर्णित (दे २, ४५) ३ मग्‍न, लीन; 'अजरामपहखुरणा साहू सरणं सुकय- पुराणा' (चउ ३८; संथा)

खुण्ण :: वि [दे] परिवेष्टित (दे २, ७५)।

खुत्त :: वि [दे] निमग्‍न, डूबा हुआ (दे २, ७४; णाया १, १; गा २७६; ३२४; संथा; गउड)।

°खुत्तो :: अ [°कृत्वस्] बार, दफा (उव; सुर १४, ६१)।

खुद्द :: वि [क्षुद्र] तुच्छ, नीच, दुष्ट, अधम (पणह १, १; ठा ६)।

खुद्द :: न [क्षौद्रय] क्षुद्रता, तुच्छता, नीचता (उप ९१५)।

खुद्दिमा :: स्त्री [क्षुद्रिमा] गान्धार ग्राम की एक मूर्च्छना (ठा ७ — पत्र ३९३)।

खुद्ध :: वि [क्षुब्ध] क्षोभ-प्राप्‍त, घबड़ाया हुआ (सुपा ३२५)।

खुधा :: स्त्री [क्षुध्] भूख (धर्मंसं १०६२)।

खुधिय :: वि [क्षुधित] क्षुधातुर, भूखा (सूअ १, ३, १ )।

खुन्न :: देखो खुण्ण = क्षुण्ण (पि ५६८)।

खुन्न :: देखो खुण्ण = (दे) (पाअ)।

खुप्प :: सक [प्लुष्] जलाना। खुप्पइ (प्राकृ ६५)।

खप्प :: अक [मस्ज्] डूबना, निमग्‍न होना। खुप्पइ (हे ४, १०१)। वकृ. खुप्पंत (गउड; कुमा; ओघ २३; से १३, ६७)। हेकृ. खुप्पिउं (तंदु)।

खुप्पिवासा :: स्त्री [क्षुत्पिपासा] भूख और प्यास (पि ३१८)।

खुब्भ :: अक [क्षुभ्] १ क्षोभ पाना, क्षुभित होना। २ नीचे डुबना। वकृ. खुब्भंत (ठा ७ — पत्र ३८३)

खुब्भण :: न [क्षोभण] क्षोभ, घबड़ाहट (राज)।

खुभ :: अक [क्षुभ्] डरना, घबड़ाना। खुभइ (रयण १८)। कृ. खुभियव्व (पणह २, ३)।

खुभिय :: वि [क्षुभित] १ क्षोभ-युक्त, घबड़ाया हुआ (पणह १, ३) २ न. क्षोभ, घबड़ाहट (ओघ) ३ कलह, झगड़ा (बृह ३)

खुम्म :: अक [क्षुध्] भूख लगना। खुम्मइ (प्राकृ ६६)।

खुम्मिय :: विं [दे] नमित, नमाया हुआ (णाया १, १ — पत्र ४७)।

खुय :: न [क्षुत] छींक (चेइय ४३३)।

खुर :: पुं [खुर] जानवर के पाँव का नख (सुर १, २४८; प्रासू १७१)।

खुर :: पुं [क्षुर] छूरा, उस्तरा (णाया १, ८; कुमा; प्रयौ १०७)। °पत्त न [°पत्र] अस्तुरा या उस्तरा, छूरा (विपा १, ६)।

खुरप्प :: पुंन [क्षुरप्र] एक तरह का जहाज (सिरि ३८३)।

खुरप्प :: पुं [क्षुरप्र] १ घास काटने का अस्त्र- विशेष, खुरपा (सम १३४) २ शर-विशेष, एक प्रकार का बाण (वेणी ११७)

खुरसाण :: पुं [खुरशान] १ देश-विदेश (पिंग) २ खुरशान देश का राजा (पिंग)

खुरहखुडी :: स्त्री [दे] प्रणय-कोप (षड्)।

खुरासाण :: देखो खुरसाण (पिंग)।

खुरि :: वि [खुरिन्] खुरवाला जानवर (आव ३)।

खुरु :: पुं [खुरु] प्रहरण-विशेष, आयुध-विशेष (सुर १३, १६३)।

खुरुडक्खुडी :: स्त्री [दे] प्रणय-कोप (दे २, ७६)।

खुरुप्प :: देखो खुरप्प (पउम ५९, १९; स १८४)।

खुल :: क [दे] वह गाँव जहाँ साधुओं को भिक्षा कम मिलती हो या भिक्षा में घृत आदि न मिलता हो (वव १)।

खुल :: देखो खुम्म। खुलइ (प्राकृ ६६)।

खुलिअ :: देखो खुडिअ (पिंग)।

खुलुह :: पुं [दे] गुल्फ, पैर की गाँठ, फीली (दे २, ७५; पाअ)।

खुल्ल :: न [दे] कुटी, कुटीर (दे २, ७४)।

खुल्ल, खुल्लग :: वि [क्षुल्ल, °क] १ छोटा, लघुस क्षुद्र (पणण १) २ पुं. द्वीन्द्रिय जीव-विशेष (जीव १)

खुल्लग :: देखो खुड्डग (कुप्र २७९)।

खुल्लण :: (अप) देखो खुड्ड (पिंग)।

खुल्लय :: वि [क्षुल्लक] १ लघु, क्षुद्र, छोटा (भवि) २ कपर्दंक-विशेष, एक प्रकार की कौड़ी (णाया १, १८ — पत्र २३५)

खुल्लासय :: पुं [दे] खलासी, जहाड का कर्मंचारी-विशेष (सिरि ३८५)।

खुल्लिरी :: स्त्री [दे] संकेत (दे २, ७०)।

खुव :: पुं [क्षुप] जिसकी शाखा और मूल छोटे होते है ऐसा वृक्ष (णाया १, १ — पत्र ६५)।

खुवय :: पुं [दे] तृण-विशेष, कण्टकि-तृण, कँटीला घास (दे २, ७५)।

खुव्व :: देखो खुभ। खुव्वइ (षड्)।

खुव्वय :: न [दे] पत्ते का पुड़वा, दोना (वव २)।

खुह :: देखो खुभ। कृ. खुहियव्व (सुपा ६१६)।

खुहा :: स्त्री [क्षुध्] भूख, बुभुक्षा (महा; प्रासू १७३)। °परिसह, °परीसह पुं [°परिषह, °परीषह] भूख की वेदना को शान्ति से सहन करना (उत्त २; पंचा १)।

खुहिअ :: वि [क्षुभित] १ क्षोभ-प्राप्त (से १, ४९; सुपा २४१) २ क्षोभ, संत्रास (ओघ ७)

खूण :: न [क्षूण] नुकसान, हानि (सुर ४, ११३; महा) २ अपराध, गुनाह (महा) ३ न्यूनता, कमी (सुपा ७; ४३०)

खेअ :: सक [खेदय्] खिन्न करना, खेद उपजाना। खेएइ (विसे १४७२; महा)।

खेअ :: पुं [खेद] १ खेद, उद्वेग, शोक (उप ७२८ टी) २ तकलीफ, परिश्रम (स ३१५) ३ संयम, विरति (उत्त १५) ४ थकावट, श्रान्ति (आचा)। °ण्ण, °न्न वि [°ज्ञ] निपुण, कुशल, चतुर, जानकार (उप ९०८; ओघ ६४७)

खेअ :: देखो खेत्त (सूअ १, ९; आचा)।

खेअ :: पुं [क्षेप] त्याग, मोचन (से १२, ४८)।

खेअण :: न [खेदन] १ खेद, उद्वेग। २ वि. खेद उपजानेवाला (कुमा)

खेअर :: देखो खयर (कुमा; सुर ३, ९)। °हिव पुं [°धिप] विद्याधरों का राजा (पउम २८, ५७)। °हिवइ पुं [°धिपति] विद्याधरों का राजा (पउम २८, ४४)।

खेअरिंद :: पुं [खेचरेन्द्ग] खेचरों का राजा (पउम ९, ५२)।

खेअरी :: देखो खहयरी (कुमा)।

खेणालु :: वि [दे] १ निःसह, मन्द, आलसी। २ असहिष्णु, ईर्ष्यालु (दे २, ७७)

खेइय :: वि [खेदित] खिन्‍न किया हुआ (स ६३४)।

खेचर :: देखो खेअर (ठा ३, १)।

खेज्जणा :: स्त्री [खेदना] खेद-सूचक वाणी, खेद (णाया १, १८)।

खेड :: सक [कृष्] खेती करना, चास करना। खेडइ (सुपा २७६); 'थह अन्नया य दुन्निवि हलाइं खेडंति अप्पणच्चेव' (सुपा २३७)।

खेड :: सक [खेटय्] हाँकना। खेडए (चेइय ३३७; कुप्र ७१)।

खेड :: न [खेट] १ धूली का प्राकारवाला नगर (औप; पणह १, २) २ नदी और पर्वतों से वेष्टित नगर (सूअ २, २) ३ पुं. मृगया, शिकार (भवि)

खेडग :: न [खेटक] फलक, ढ़ाल (पणह १, ३)।

खेडण :: न [कर्षण] खेती करना (सुपा २३७)।

खेडण :: न [खेटन] खदेड़ना, पीछे हटाना (उप २२९)।

खेडणअ :: न [खेलनक] खिलौना (नाट — रत्‍ना ९२)।

खेडय :: पुं [क्ष्वेटक] १ विष, जहर (हे २, ६) २ ज्वर-विशेष (कुमा)

खेडय :: वि [स्फेटक] नाशक, नाश करनेवाला (हे २, ६; कुमा)।

खेडय :: न [खेटक] छोटा गाँव (पाअ; सुर २, १९२)।

खेडावग :: वि [खेलक] खेल करनेवाला, तमासगरि (उप पृ १८८)।

खेडिअ :: वि [कृष्ट] हल से विदारित (दे १, १३६)।

खेडिअ :: पुं [स्फेटिक] १ नाशवाला, नश्वर। २ अनादरवाला (हे २, ६)

खेड्ड :: अक [रम्] क्रीड़ा करना, खेल करना। खेड्डइ (हे ४, १६८)। खेड्डंति (कुमा)।

खेड्ड, खेढ्डय :: न [खेल] १ क्रीड़ा, खेल, तमाशा, मजाक (हे २, १७४; महा; सुपा २७; स ५०९) २ बहाना, छल; 'मय- खेड्डय विहेऊण' (सुपा ५२३)

खेड्डा :: स्त्री [क्रीडा] क्रीड़ा, खेल, तमाशा (औप; पउम ८, ३७; ' गच्छ २)।

खेड्डिया :: स्त्री [दे] बारी, दफा; 'भद्द ! पच्छिमा खेड्डिया' (स ४८५)।

खेत्त :: पुंन [क्षेत्र] १ आकाश (विसे २०८८) २ कृषि-भूमि, खेत (बृह १) ३ जमीन, भूमि। ४ देश, गाँव, नगर वगैरह स्थान (कप्प; पंचू; विसे) ५ भार्या, स्त्री (टा १०) °कप्प पुं [°कल्प] १ देश का रिवाज (बृह ६) २ क्षेत्र-संबन्धी अनुष्ठान। ३ ग्रन्थ-विशेष, जिसमें क्षेत्र-विषयक आचार का प्रतिपादन हो (पंचू)। °पलिओवम न [°पल्योपम] काल का नाप-विशेष (अणु)। °रिय पुं [°र्य] आर्यं भूमि में उत्पन्न मनुष्य (पणण १)। देखो खित्त = क्षेत्र।

खेत्तय :: पुं [क्षेत्रक] राहु (सुज्ज २०)।

खेत्ति :: वि [क्षेत्रिन्] क्षेत्रवाला, क्षेत्र का स्वामी (विसे १४९२)।

खेम :: न [क्षेम] १ कुशल, कल्याण, हित (पउम ६५, १७, गा ४९९; भत्त ३६; रयण ९) २ प्राप्त वस्तु का परिपालन (णाया १, ५) ३ वि. कुशलता-युक्त, हित- कर, उपद्रव-रहित (णाया १, १; दस ७) ४ पुं. पाटलिपुत्र के राजा जितशत्रु लका एक अमात्य (आचू १) °पुरी स्त्री [°पुरी] १ नगरी-विशेष (पउम २०, ७) २ विदेह- वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३)

खेमंकर :: पुं [क्षेमङ्कर] १ कुलकर पुरुष-विशेष (पउम ३, ५२) २ ऐरवत क्षेत्र के चतुर्थं कुलकर-पुरुष (सम १५३) ३ ग्रह-विशेष ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३) ४ स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन मुनि (पउम २१, ८०) ५ वि. कल्याण-कारक, हित-जनक (उप २११ टी)

खेमंधर :: पुं [क्षेमन्धर] १ कुलकर पुरुष- विशेष (पउम ३, ५२) ऐरवत क्षेत्र का पाँचवाँ कुलकर पुरुष-विशेष (सम १५३) ३ बि. क्षेम-धारक, उपद्रव-रहित (राज)

खेमव :: पुं [क्षेमक] स्वनाम-प्रसिद्ध एक अन्त कृद् जैनमुनि (अंत)।

खेमराय :: पुं [क्षेमराज] राजा कुमारपाल का एक पूर्वं-पुरुष (कुप्र ५)।

खेमलिज्जिया :: स्त्री [क्षेमलिया] जैनमुनि-गण की एक शाखा (कष्प)।

खेमा :: स्त्री [क्षेमा] १ विदेह वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३) २ क्षेमपुरी-नामक नगरी-विशेष (पउम २०, १०)

खेर :: पुं [दे] एक म्लेच्छ जाति (मृच्छ १५२)।

खेरि :: स्त्री [दे] १ परिशाटन, नाश; 'धणणखेरिं वा' (बृह २) २ खेद, उद्वेग। ३ उत्कंठा, उत्सुकता (भवि)

खेल :: अक [खेल्] खेलना, क्रीड़ा करना, तमाशा करना। खेलइ (कप्पू), खेलउ (गा १०६)। वकृ. खेलंत (पि २०६)।

खेल :: पुं [दे] जहाज का कर्मंचारी-विशेष (सिरि ३८५)।

खेल :: वि [खेल] खेल करनेवाला, नाटक का पात्र (धर्मवि ९)। स्त्री. °लिया (धर्मवि ९)।

खेल :: पुं [श्लेष्मन्] श्‍लेष्मा, कफ, निष्ठीवन, थूथू (सम १०; औप; कप्प; पडि)।

खेलण, खेलणय :: न [खेलन, °क] १ क्रीड़ा. खेल। २ खिलौना (आक; स १२७)

खेलोसहि :: स्त्री [श्‍लेष्मौषधि] १ लब्धि- विशेष, जिससे श्‍लेष्म ओषधि का काम देने लगे (पणह २, १; संति ३) २ वि. ऐसी लब्धिवाला (आवम; पव २७०)

खेल्ल :: देखो खेल = खेल्। खेल्लइ (पि २०६) वकृ. खेल्लमाण (स ४४)। प्रयो. संकृ. खेल्लावेऊण (पि २०६)।

खेल्ल :: देखो खेल = श्‍लेष्मन (राज)।

खेल्लण :: देखो खेलण (स २६५)।

खेल्लावण, खेल्लावणय :: न [खेलनक] १ खेल कराना, क्रीड़ा कराना। २ न. खिलौना (उप १४२ टी)। °धाई स्त्री [°धात्री] खेल करानेवाली दाई (राज)

खेल्लिअ :: न [दे] हसित, हँसी, ठट्ठा (दे २, ७६)।

खेल्लुड :: देखो खल्लूड (राज)।

खेव :: पुं [क्षेप] १ क्षेपण, फेंकना (उप ७२८ टी) २ न्यास, स्थापना (विसे ९१२) ३ संख्या-विशेष (कम्म ४, ८१; ८४)

खेव :: पुं [क्षेप] बिलम्ब, देरी (स ७७५)।

खेव :: पुं [खेद] उद्वेग, खेद, क्लेश; 'न हु कोइ गुरू खेवं वच्चइ सीसेसु सत्तिसुमहेसु (?)' (पउम ९७, २३)।

खेवण :: न [क्षेपण] प्रेरण (णाया १, २)।

खेवय :: वि [क्षेपक] फेंकनेवाला (गा २४२)।

खेविय :: वि [खेदित] खिन्‍न किया हुआ (भवि)।

खेह :: पुंन [दे] घूली, रज; 'वग्गिरतुरगखर- खुरुक्खयखेहाइन्‍नरिक्खपहं' (सुर ११, १७१)।

खोअ :: पुं [क्षोद] १ इक्षु, ऊख। २ द्वीप- विशेष, इक्षुवर द्वीप। ३ समुद्र-विशेष, इक्षुरस समुद्र (अणु ९०)

खोइय :: वि [दे] बिच्छेदित, 'सव्वे संघी खोइया' (सुख २, १५)।

खोउदय :: पुं [क्षोदोदक] समुद्र-विशेष (सूअ १, ६, २०)।

खोओद :: देखो खोदोद (सुज्ज १९)।

खोंटग, खोंटय :: पुं [दे] खूँटी, खूँटा (उप २७८; स २६३)।

खोक्ख :: अक [खोख्] वानर का बोलना, बन्दर का आवाज करना। खोक्खइ (गा १७१ अ)।

खोक्खा, खोखा :: स्त्री [खोखा] वानर की आवाज (गा ५३२)।

खोखुब्भ :: अक [चोक्षुभ्य्] अत्यन्त भयभीत होना, विशेष व्याकुल होना। वकृ. खोखु- ब्भमाण (औप पणह १, ३)।

खोज्ज :: पुंन [दे] मार्ग-चिह्न (संक्षि ४७)।

खोट्ट :: सक [दे] खटखटाना, ठकठकाना, ठोकना। कवकृ. खोट्टिज्जतं (ओघ ५९७ टी)। संकृ. खोट्टेउं (ओघ ५९७ टी)।

खोट्टिय :: [दे] बनावटी लकड़ी (नंदीटिप्प. पत्र १४६)।

खोट्टी :: स्त्री [दे] दासी, चाकरानी (दे २, ७७)।

खोड :: पुं [स्फोट] फोड़ा (प्राकृ १८)।

खोड :: पुं [दे] १ सीमा-निर्धारक काष्ठ, खूँटा। २ वि धार्मिक, धर्मिष्ठ (दे २, ८०) ३ खंज, लंगड़ा, (दे २, ८०; पिंग) ४ श्रृगाल, सियार (मृच्छ १८३) ५ प्रदेश, जगह; 'सिंगक्खोडे कलहो' (ओघ ७६ भा) ६ प्रस्फोटन, प्रमार्जन (ओघ २६५) ७ न. राजकुल में देने योग्य सुवर्णं वगैरह द्रव्य (वव १)

खोडपज्जालि :: पुं [दे] स्थूल काष्ठ की अग्‍नि (दे २, ७०)।

खोडय :: पुं [क्ष्योटक] नख से चर्म का निष्पी- ड़न (हे २, ६)।

खोडय :: पुं [स्फोटक] फोड़ा, फुंसी (हे २, ६)।

खोडिय :: पुं [खोटिक] गिरनार पर्वत का क्षेत्रपाल देवता (ती २)।

खोडी :: स्त्री [दे] १ बड़ा काष्ठ (पणह १, ३ — पत्र ५३) २ काष्ठ की एक प्रकार की पेटी (महा) ३ नकली लकड़ी (३ आव वृ. हारि. पत्र ४२१)

खोणि :: स्त्री [क्षोणि] पृथिवी, धरणी (सण)। °वइ पुं [°पति] राजा, भूपति (उप ७६८ टी)।

खोणिद :: पुं [क्षोणीन्द्र] राजा, भूमिपति (सण)।

खोणी :: देखो खोणि (सुर १२, ९१; सुपा २३८; रंभा)।

खोद :: पुं [क्षोद] १ चूर्णन, विदारण (भग १७, ६) २ इक्षु-रस, ऊख का रस (सूअ १, ६)। °रस पुं [°रस] समुद्र-विशेष (दीव)। °वर पुं [°वर] द्वीप-विशेष (जीव ३)

खोद :: पुं [क्षोद] चूर्णं, बुकनी (हम्मीर ३४)।

खोदोअ, खोदोद :: पुं [क्षोदोद] १ समुद्र-विशेष, जिसका पानी इक्षु-रस के तुल्य मधुर है (जीव ३; इक) २ मधुर पानीवाली वापी (जीव ३) ३ न. मधुर पानी, इक्षु- रस के समान मिठा जल (पणण १)

खोद्द :: न [क्षौद्र] मधु, शहद (भग ७, ६)।

खोभ :: सक [क्षोभय्] १ विचलित करना, धैर्य से च्युत करना। २ आश्‍चर्य उपजाना। ३ रंज पैदा करना। खोभेइ (महा) वकृ. खोभंत (पउम ३, ६९; सुपा ४९३)। हेकृ. खोमित्तए, खोभइउं (उवा; पि ३१९)

खोभ :: पुं [क्षोभ] १ विचलित, संभ्रम (आव ५) २ इस नाम का एक रावण का सुभट (पउम ५६, ३२)

खोभण :: न [क्षोभण] क्षोभ उपजाना, विच- लित करना; 'तेलोक्कखोभणकरं' (पउम २, ८२; महा)।

खोभिय :: वि [क्षोभित] विचलित किया हुआ (पउम ११७, ३१)।

खोम, खोमग :: न [क्षौम] १ कार्पासिक वस्त्र, कपास का बना हुआ वस्त्र (णाया १, १ — पत्र ४३ टी; उवा १) २ सन का बना हुआ वस्त्र (सम १२३; भग ११, ११; पणह २, ४) ३ रेशमी वस्त्र (उप १४९; स २००) ४ वि. अतसी-संबंधी, सन-संबन्धी, (ठा १०; भग १, १ ११)। °पसिण न [°प्रश्‍न] विद्या-विशेष, जिससे वस्त्र में देवता का आह्वान किया जाता है (ठा १०)

खोमिय :: न [क्षौमिक] १ कपास का बना हुआ वस्त्र (ठा ३, ३) २ सन का बना हुआ वस्त्र (कप्प)

खोमिय :: वि [क्षौमिक] १ रेशम सम्बन्धी। २ सन-सम्बन्धी (पव १२७)

खोय :: देखो खोद (सम १५१; इक)।

खोर, खोरय :: न [दे] पात्र-विशेष, कचोलक, कटोरा (उप पृ १३५; णंदि)।

खोल :: पुं [दे] १ छोटा गधा (दे २, ८०) २ वस्त्र का एक देश (दे २, ८०; ५, ३०; बृह १) ३ मद्य का नीचला कीट-कर्दंम (आचा २, १, ८; बृह १)

खोल :: पुं [दे] गुप्‍तचर, जासूस (पिंड १२७)।

खोल्ल :: न [दे] कोटर, गह्वर 'खोल्लं कोत्थरं' (निचू १५)।

खोसलय :: वि [दे] दन्तुल, लम्बे और बाहर निकले हुए दाँतवाला (दे २, ७७)।

खोसिय :: वि [दे] जीर्णं-प्राय किया हुआ (पिंड ३२१)।

खोह :: देखो खोभ = क्षोभय्। खोहइ (भवि)। वकृ. खोहेंत (से १५, ३३)। कवकृ. खोहि- ज्जंत (से २, ३)।

खोह :: देखो खोभ = क्षोभ (पणह १, ४; कुमा सुपा ३६७)।

खोहण :: देखो खोभण (श्रा १२; सुपा ५०३)।

खोहिय :: देखो खोभिय (सण)।

 :: पुं [ग] व्यञ्जन-वर्णं विशेष, इसका स्थान कण्ठ है (प्रामा; प्राप)।

°ग :: वि [°ग] १ जानेवाला। २ प्राप्‍त होनेवाला, जैसे — पारग, वसग (आचा; महा)

गअवंत :: वि [गतवत्] गया हुआ (प्राकृ ३५)।

गइ :: स्त्री [गति] १ ज्ञान, अवबोध (विसे २५०२) २ प्रकार, भेद (से १, ११) ३ गमन, चलन, देशान्तर-प्राप्‍ति, (कुमा) ४ जन्मान्तर-प्राप्‍ति, भवान्तर-गमन ठा (१, १; दं) ५ देव, मनुष्य, तिर्यञ्च, नरक और मुक्त जीव की अवस्था, देवादि-योनि (ठा ५, ३) °तस पुं [°त्रस] अग्‍नि और वायु के जीव (कम्म ३, १३; ४, १९)। °नाम न [°नामन्] देवादि-गति का कारण- भूत कर्मं (सम ६७)। °प्पवाय पुं [°प्रपात] १ गति की नियतता (पणण १६) २ ग्रंथांश-विशेष (भग ८, ७)

गइंद :: पुं [गजेन्द्र] १ ऐरावण हाथी, इन्द्र- हस्ती। २ श्रेष्ठ हाथी (गउड; कुमा)। °पय

 :: [°पद] गिरनार पर्वत का एक जल-तीर्थं (ती ३)।

गइल्लय :: दखो गय = गत (सुख २, २२)।

गउ, गउअ :: पुं [गो] बैल, वृषभष साँड़ (हे १, १५८)। °पुच्छ पुं न [°पुच्छ] १ बैल की पूँछ। २ बाण-विशेष (कुमा)

गउअ :: पुं [गवय] गो-तुल्य आकृतिवाला जंगली पशु-विशेष, नील गाय (कुमा)।

गउआ :: स्त्री [गो] गैया, गौ (हे १, १५८)।

गउड :: पुं [गौड] १ स्वनाम ख्यात देश, बंगाल का पुर्वी भाग (हे १, २०२; सुपा ३८६) २ गौड़ देश का निवासी (हे १, २०२) ३ गौड़ देश का राजा (गउड; कुमा)। °वह पुं [°वध] वाक्पतिराज का बनाया हुआ प्राकृत-भाषा का एक काव्य-ग्रंथ (गउड)

गउण :: वि [गौण] अप्रधान, अमुख्य (दे १, ३)।

गउणी :: स्त्री [गौणी] शक्ति-विशेष, शब्द की एक शक्ति (दे २, ३)।

गउरव :: देखो गारव (कुमा; हे १, १६३)।

गउरविय :: वि [गौरवित] गौरव-युक्त किया हुआ, जिसका आदर-सम्मान किया गया हो वह; 'तज्जणयाइं तत्थागयाइं थेवेहिं चेव दियहेहिं, गउरवियाइं रयणायरेण' (सुपा ३५६; ३६०)।

गउरी :: स्त्री [गौरी] १ पार्वंती, शिव-पत्‍नी (सुपा १०६) २ गौर वर्णंवाली स्त्री। ३ स्त्री-विशेष (कुमा)। °पुत्त पुं [°पुत्र] पार्वंती का पुत्र, स्कन्द, कार्त्तिकेय (सुपा ४०१)

गंअ :: देखो गय = गत; 'भीया जहागयगइं पडिवज्जं गंए' (रंभा)।

गंग :: पुं [गङ्ग] मुनि-विशेष, द्विक्रिय मत का प्रवर्त्तक आचार्य (ठा ७; विसे २४२५)। °दत्त पुं [°दत्त] १ एक जैन मुनि, जो षष्ठ वासुदेव के पूर्वजन्म के गुरू थे (स १५३) २ नववें वासुदेव के पूर्वजन्म का नाम (पउम २०, ७१) ३ इस नाम का एक जैन श्रेष्ठी (भग १६, ५)। °दत्ता स्त्री [°दत्ता] एक सार्थवाह की स्त्री का नाम (विपा १, ७)

गंग° :: देखो गंगा। °प्पवाय पुं [°प्रपात] हिमाचल पर्वंत पर का एक महान् ह्रद, जहाँ से गंगा निकलती है (ठा २, ३)। °सोअ पुं [°स्रोतस्] गंगा नदी का प्रवाह (पि ८५)।

गंगली :: स्त्री [दे] मौन, चुप्पी (सुपा २७८; ४८७)।

गंगा :: स्त्री [गङ्गा] १ स्वनाम-प्रसिद्ध नदी (कस; सम २७; कप्प) २ स्त्री-विशेष (कुमा) ३ गोशालक के मत से काल-परिमाण-विशेष (भग १५) ४ गंगा नदी की अधिष्ठायिका देवी (आवम) ५ भीष्मपितामह की माता का नाम (णाया १, १६)। °कुंड न [°कुण्ड] हिमाचल पर्वंत पर स्थित ह्रद-विशेष, जहाँ से गंगा निकलती है (ठा ८)। °कूड न [°कूट] हिमाचल पर्वंत का एक शिखर (ठा २, ३) °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष, जहाँ गंगा-देवी का भवन है (ठा २, ३)। °देवी स्त्री [°देवी] गंगा की अधिष्ठायिका देवी, देवी विशेष (इक)। °वत्त पुं [°वर्त्त] आवर्त्तं-विशेष (कप्प)। °सय न [°शत] गोशालक के मत में एक प्रकार का काल- परिमाण (भग १५)। °सागर पुं [°सागर] प्रसिद्ध तीर्थं-विशेष, जहाँ गंगा समुद्र में मिलती है (उत्त १८)

गंगेअ :: पुं [गाङ्गेय] १ गंगा का पुत्र, भीष्म- पितामह (णाया १, १६; वेणी १०४) २ द्वैक्रिय मत का प्रवर्त्तक आचार्य (आचू १) १ एक जैन मुनि, जो भगवान् पार्श्‍वं- नाथ के वंश के थे' (भग ९, ३२)

गंछ, गंछय :: पुं [दे] वरुड़, इस नाम की एक म्लेच्छ जाति (दे २, ८४)।

गंछिय :: पुं [दे] तेली। गु° घाँची (लोक प्र° ४६५। १ — ३१ सर्गं)।

गंज :: सक [गञ्ज] १ तिरस्कार करना। २ उल्लंघन करना। ३ मर्दन करना। ४ पराभाव करना। गंजइ (जय ५)। कृ. गंजणीय (सिरि ३८)

गंज :: पुं [दे] गाल (दे २, ८१)।

गंज :: पुं [गञ्ज] भीज्य-विशेष, एक प्रकार की खाद्य वस्तु (पणह २, ५ — पत्र १४८)। °साला स्त्री [°शाला] तृण, लकड़ी वगैरह इन्धन रखने का स्थान (निचू १५)।

गंजण :: न [गञ्जन] १ अपमान, तिरस्कार (सुपा ४८०); 'वेण्णीवि रण्णुप्पन्ना बज्झंति गया न चेव केसरिणो। संभाविज्जइ मरणं, न गंजणं धीरपुरिसाणं' (वज्जा ४२) २ कलंक, दाग; 'जंदणरहिओ जम्मो' (वज्जा १८)

गंजण :: वि [गञ्जन] मर्दंनकर्ता (सिरि ५४६)।

गंजा :: स्त्री [गञ्जा] सुरा-गृह, मद्य की दूकान (दे २, ८५ टी)।

गंजिअ :: पुं [गाञ्जिक] कल्य-पाल, दारू बेचनेवाला, कलाल (दे २, ८५ टी)।

गंजिअ :: वि [गञ्जित] १ पराजित, अभिभूत; 'तग्गरिमगंजिओ इवं' (उप ९८६ टी) २ हत, मारा हुआ, विनाशित (पिंग) ३ पीड़ित (हे ४, ४०९)

गंजिल्ल :: वि [दे] १ वियोग-प्राप्त, वियुक्त। २ भ्रान्त-चित्त, पागल (दे २, ८३)

गंजुल्लिय :: वि [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (जय १२)।

गंजोल :: वि [दे] समाकुल, व्याकुल (षड्)।

गंजोल्लिअ :: वि [दे] १ रोमाञ्चित, जिसके रोम खड़े हुए हों वह (दे २, १००; भवि) २ न. हँसाने के लिए किया जाता अंग-स्पर्श, गुदगुदी, गुदगुदाहट (दे २, १००)

गंठ :: सक [ग्रंथ्] १ गठना, गूंथना। २ रचना, बनाना। गंठइ (हे ४, १२०; षड्)

गंठ :: देखो गंथ (राय; सूअ २, ५; धर्मं २)।

गंठि :: स्त्री [गृष्टि] एकबार व्यायी हुई गौ (प्राकृ ३२)।

गंठ :: पुस्त्री [ग्रन्थि] १ गाँठ, जोड़। २ वाँस आदि की गिरह, पर्वं (हे १, ३५; ४, १२०) ३ गठरी, गाँठ (णाया १, १; औप) ४ रोग-विशेष (लहुअ १५) ५ राग-द्वेष का निबिड़ परिणाम-विशेष (उप २५३); 'गंठित्ति सुदुब्भेओ कक्खडघणरूढगूढगंठि व्व। जीवस्स कम्मजणिओ घणरागद्दोसपरिणामा' (विसे ११९५)

°छेअ :: पुं [°च्छेद] गाँठ तोड़नेवाला, चोर- विशेष, पाकेटमार (दे २, ८६)। °भेय पुं [°भेद] ग्रन्थि का भेदन (धर्म १)। °भेयग वि [°भेदक] १ ग्रन्थि को भेदनेवाला। २ पुं. चोर-विशेष (णाया १, १८; पणह १, ३) °वण्ण पुं [°पर्ण] सुगन्धि गाछ विशेष (कप्पू)। °सहिय वि [°सहित] १ गाँठ- युक्त। २ न. प्रत्याख्यान-विशेष, व्रत-विशेष (धर्म २; पडि)

गंठिम :: न [ग्रन्थिम] १ ग्रन्थन से बनी हुई माला वगैरह (पणह २, ५; भग ९, ३३) २ गुल्म-विशेष (पणण १ — पत्र ३२)

गंठिय :: वि [ग्रथित] गूँथा हुआ, गठा हुआ, पिरोया हुआ (कुमा)।

गंठिय :: वि [ग्रन्थिक] गाँठवाला (सूअ २, ५)।

गंठिल्ल :: वि [ग्रन्थिमत्] ग्रन्थि-युक्त, गाँठवाला (राज)।

गंड :: पुं [दे] १ बन, जंगल। २ दाण्डपाशिक, कोतवाल। ३ छोटा मृग (दे २, ९९) ४ नापित, नाई (दे २, ९९; आचा २, १, २) ५ न. गुच्छ, समूह; 'कुसुमदामगंडमुव- ट्ठवियं' (महा)

गंड :: पुंन [गण्ड] १ गाल, कपोल (भग; सुपा ८) २ रोग-विशेष, गण्डमाला; 'ता मा करेह बीयं गंडोवरिफोडियातुल्लं ९उप ७६८ टी; आचा) ३ हाथी का कुम्भस्थल (पव २९) ४ कुच, स्तन (उत्त ८) ५ ऊख का जत्था, इक्षु-समूह (उप पृ ३५९) ६ छन्द-विशेष (पिंग) ७ फोड़ा, स्फोटक (उत्त १०) ८ गाँठ, ग्रन्थि (अवि १७; अभि १८४)। °भेअ, भेअअ पुं [°भेदक] चोर-विशेष, पाकेटमार (अवि १७; अभि १८४)। °माणिया स्त्री [°माणिका] धान्य का एक प्रकार की नाप (राय)। °माला स्त्री [°माला] रोग-विशेष, जिसमें ग्रोवा फूल जाती है (सण) °यल न [°तल] कपोल- तल (सुर ४, १२७)। °लेहा स्त्री [°लेखा] कपोल-पाली, गाल पर लगाई हुई कस्तूरी वगैरह की छटा (निर १, १; गउढ)। °वच्छा स्त्री [°वक्षस्का] पीन स्तनों से युक्त छातीवाली स्त्री (उत्त ८)। °वाणिया स्त्री [°पाणिका] बाँस का पात्र-विशेष; जो डाला से छोटा होता है (भग ७, ८)। °वास पुं [°पार्श्‍व] गाल का पार्श्‍बं-भाग (गउड)

गंड :: न [गण्ड] दोष, नाग (सूअ १, ६ १६)। °माणिया स्त्री [°मानिका] पात्र- विशेष (राय १४०)। °विइवाय पुं [°व्यति- पात] ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध एक योग (संबोध ५४)।

गंडइया :: स्त्री [गण्डकिका] नदी-विशेष (आवम)।

गंडय :: पुं [गण्डक] १ गेंड़ा, जानवर-विशेष (पाअ; दे ७, ५७) २ उद्‍घोषणा करनेवाला पुरुष, टेर लगानेवाला पुरुष (ओघ ६४४)

गंडली :: स्त्री [दे] गँडेरी, ऊख का टुकड़ा (उप पृ १०६)।

गंडा :: देखो गंठि = ग्रन्थि (प्राकृ १८)।

गंडाग :: पुं [गण्डक] नाई, हजमा (आचा २, १, २, २)।

गंडि :: पुं [गण्डि] जन्तु-विशेष (उत्त १)।

गंडि :: वि [गण्डिन्] १ गण्डमाला का रोगवाला (आचा) २ गण्ड रोगवाला (पणह २, ५)

गंडिया :: स्त्री [गण्डिका] १ गँडेरी, ऊख का टुकड़ा (महा) २ सोनार का एक उपकरण (ठा ४, ४) ३ एक अर्थ के अधिकारवाली ग्रन्थ-पद्धति (सम १२९)

गंडिल :: देखो गंधिल (इक)।

गंडिलावई :: देखो गंधिलावई (इक)।

गंडी :: स्त्री [गण्डी] १ सोनार का एक उपकरण (ठा ४, ४ — पत्र २७१) २ कमल की कर्णिका (उत्त ३६)। °तिंदुग न [°तिन्दुक] यक्ष-विशेष (ती ३८)। °पय पुं [°पद] हाथी वगैरह चतुष्पद जानवर (ठा ४, ४)। °पोत्थय पुंन [°पुस्तक] पुस्तक-विशेष (ठा ४, २)

गंडीरी :: स्त्री [दे] गण्डेरी, ऊख का टुकड़ा (दे २, ८२)।

गंडीव :: न [गाण्डीव] १ अर्जुंन का धनुष (बेणी ११२)

गंडीव :: न [दे. गाण्डीव] धनुष, कार्मुक (दे २, ८४; महा; पाअ)।

गंडीवि :: पुं [गाण्डीविन्] अर्जुन, मध्यम पाण्डव (वेणी ५८)।

गंडुअ :: न [गण्डु] ओसीसा, सिरहाना (महा)।

गंडुअ :: न [गण्डुत्] तृण-विशेष (दे २, ७५)।

गंडुल :: पुं [गण्डोल] कृमि-विशेष, जो पेट में पैदा होता है (जी १५)।

गंडुवहाण :: न [गण्डोपधान] गाल का तकिया (पव ८४)।

गंडूपय :: पुं [गण्डुपद] जन्तु-विशेष (राज)।

गंडूल :: देखो गंडुल (पणह १, १ — पत्र २३)।

गंडूस :: पुं [गण्डूष] पानी ता कुल्ला (गा २७०; सुपा ४४९), 'बहुमइरागंडूसपाणं' (उप ९८६ टी)।

गंडूस :: पुं [गण्डूष] पानी का कुल्ला (सूअनि ५४)।

गंत :: देखो गा।

गंतव्व, गंता :: देखो गम = गम्।

गंतिय :: न [गन्तृक] तृण-विशेष (पणण १ — पत्र ३३)।

गंती :: स्त्री [गन्त्री] गाड़ी, शकट (धम्म १२ टी; सुपा २७७)।

गंतुं :: देखो गम = गम्।

गंतुंपच्चागया :: स्त्री [गत्वाप्रत्यागता] भिक्षा- चर्या-विशेष, जैन मुनियों की भिक्षा का एक प्रकार (ठा ६)।

गंतुकाम :: वि [गन्तुकाम] जाने की इच्छा वाला (श्रा १४)।

गंतुमण :: वि [गन्तुमनस्] ऊपर देखो (वसु)।

गंतूण, गंतूणं :: देखो गम = गम्।

गंथ :: देखो गंठ — ग्रन्थ। गंथइ (पि ३३३)। कर्म. गंथीअंति (पि ५४८)।

गंथ :: पुं [ग्रन्थ] १ शास्त्र, सूत्र, पुस्तक (विसे ८९४; १३८३) २ धन-धान्य वगैरह बाह्य मिथ्यात्व, क्रोध, मान आदि आभ्यन्तर उपधि, परिग्रह (ठा २, १; बृह १; विसे २५७३) ३ धन, पैसा (श २३६) ४ स्वजन, संबन्धी लोग (पणह २, ४)। °ईअ पुं [°तीत] जैन साधु (सूअ १, ६)

गंथि :: वि [ग्रन्थिन्] रचना-कर्ता (सम्मत्त १३९)।

गंथि :: देखो गंठि (पणह १, ३ — पत्र ४४)।

गंथिम :: देखो गंठिम (णाया १, १३)।

गंदिला :: स्त्री [गन्दिला] देखो गंधिल (इक)।

गंदिणी :: स्त्री [दे] क्रीड़ा-विशेष, जिसमें आँख बंद की जाती है, आँख-मिचौनी (दे २, ८३)।

गंदुअ :: देखो गेंदुअ (षड्)।

गंध :: पुं [गन्ध] १ गन्ध, नासिका से ग्रहण करने योग्य पुदार्थों की बास, महक (औप; भग; हे १, १७७) २ लव, लेश (से ६, ३) ३ चूर्ण-विशेष (पणह १, १) ४ वानव्यन्तर देवों की एक जाति (इक) ५ न. देव-विमान-विशेष (निर १, ४) ६ बि. गन्धयुक्त पदार्थ (सूअ १, ६)। °उडी स्त्री [°कुटी] गन्ध-द्रव्य का घर (गउड; हे १, ८)। °कासाइया स्त्री [°काषायिका] सुगन्धि कषाय रंग की साड़ी (उवा; भग ९, ३३)। °गुण पुं [°गुण] गन्धरूप गुण (भग)। °ट्टय न [°ट्टक] गन्ध-द्रव्य का चूर्ण (ठा ३, १ — पत्र ११७)। °ड्‍ढ वि [°ढय] गन्धपूर्ण, सुगन्धपूर्ण (पंचा २)। °णाम न [°नामन्] गन्ध का हेतुभूत कर्मं- विशेष (अणु)। °तेल्ल न [°तैल] सुगन्धित तैल (कप्पू)। °दव्व न [°द्रव्य] सुगन्धित वस्तु, सुवासित द्रव्य (उत्त १)। °देवी स्त्री [°देवी] देवी-विशेष, सौधर्मं देवलोक की एक देवी (निर १, ४)। °द्धाणि स्त्री [°ध्राणि] गन्ध-तृप्ति (णाया १, १ — पत्र २५; औप)। °नाम देखो °णाम (सम ६७)। °मय पुं [°+मृग] कस्तूरी मृग, कस्तुरिया हरिन (सुपा २)। °मंत वि [°वत्] १ सुगन्धित, सुगन्ध-युक्त। २ अतिशय गन्धवाला, विशेष गन्ध से युक्त (ठा ५, ३ — पत्र ३३३)। °मादण, °मायण पुं [°मादन] १ पर्वत-विशेष, इस नाम का एक पहाड़ (सम १०३; पणह २, २; ठा २, ३ — पत्र ६९) २ पुंन. पर्वंत- विशेष का एक शिखर (ठा २, ३ — पत्र ८०) ३ न. नगर-विशेष (इक)। °वई स्त्री [°वती] भूतानन्द-नामक नागेन्द्र का आवास-स्थान (दीव)। °वट्टय न [°वर्त्तक] सुगन्धित लेप-द्रव्य (विपा १, ९)। °वट्टि स्त्री [°वर्त्ति] गन्ध-दव्य की बनाई हुई गोली (णाया १, १; औप)। °वह पुं [°वह] पवन, वायु (कुमा; गा ५४२)। °वास पुं [°वास] १ सुगन्धित वस्तु का पुट। २ चूर्णं- विशेष (सुपा ९७) °समिद्ध वि [°समृद्ध] १ सुगन्धित, सुगन्ध-पूर्ण। २ न. नगर-विशेष (आवम; इक) °सालि पुं [°शालि] सुग- न्धित व्रीहि, धान (आवम)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] उत्तम हस्ती, जिसकी गन्ध से दूसरे हाथी भग जाते हैं (सम १; पडि)। °हरिण पुं [°हरिण] कस्तुरिया हिरन (कप्पू)। °हारग पुं [°हारक] १ इस नाम का एक म्लेच्छ देश। २ गन्धहारक देश का निवासी (पणह १, १ — पत्र १४)

गंधण :: पुं [गन्धम] एक सर्पं-जाति (दस २, ८)।

गंधपिसाय :: पुं [दे] गन्धिक, पसारी (दे २, ८७)।

गंधय :: देखो गंध (महा)।

गंधलया :: स्त्री [दे] नासिका, घ्राण (दे २, ८५)।

गंधवाह :: पुं [गन्धवाह] पवन (समु १८०)।

गंधव्व :: पुं [गन्धर्व] १ देव-गायक, स्वर्गं-गायक (उत्त १; सण) २ एक प्रकार की देव-जाति, व्यंतर देवों की एक जाति (पणह १, ४, औप) ३ यक्ष-विशेष, भगवान् कुन्थुनाथ का शासनाधिष्ठायक यज्ञ (संति ८) ४ न. मुहूर्त्तं-विशेष (सम ५१) ५ नृत्य-युक्त गीत, गान (विपा १, २)। °कंठ न [°कण्ठ] रत्‍न की एक जाति (राय)। °घर न [°गृह] संगीत-गृह, संगीतालय, संगीत का अभ्यास- स्थान (जं १)। °णगर, °नगर न [°नगर] असत्य-नगर, संध्या के समय में आकाश में दीखता मिथ्या-नगर, जो भावी उत्पात का सूचक है (अणु; पव १६८)।°पुर न [°पुर] देखो °णगर (गउड)। °लिवि स्त्री [°लिपि] लिपि-विशेष (सम ३५)। °विवाह पुं [°विवाह] उत्सव-रहित विवाह, स्त्री-पुरुष की इच्छा के अनुसार विवाह (सण)। °साला स्त्री [°शाला] गान-शाला, संगीत-गृह, संगी- तालय (वव १०)

गधव्व :: वि [गन्धर्व] १ गंधर्व-संबन्धी, गंधर्वं से संबन्ध रखनेवाला (जं १; अभि ११५) २ पुं. उत्सव-हीन विवाह, विवाह-विशेष; 'गंधव्वेण विवाहेण सयमेव विवाहिया' (आवम) ३ न. गीत, गान (पाअ)

गंधव्वि :: वि [गन्धर्विन्] गानेवाला (ती ३)।

गंधव्विअ :: वि [गान्धर्विक] १ गंधर्व-विद्या में कुशल (सुपा १९९)

गंधा :: स्त्री [गन्धा] नगरी-विशेष (इक)।

गंधाण :: न [गन्धान] छन्द-विशेष (पिंग)।

गंधार :: पुं [गन्धार] देश-विशेष, कन्धार (स ३८)। २ पर्वंत-विशेष (स ३९)। ३ न. नगर-विशेष (स ३८)

गंधार :: पुं [गान्धार] स्वर-विशेष, रागिनी- विशेष (ठा ७)।

गंधारी :: स्त्री [गान्धारी] १ सती-विशेष, कृष्ण वासुदेव की एक स्त्री (पडि; अंत १५) २ विद्यादेवी-विशेष (संति ६) ३ भगवान् नमिनाथ की शासनदेवी (संति १०)

गंधारी :: स्त्री [गान्धारी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

गंधावइ, गंधावइ :: पुं [गन्धापातिन्] स्वनाम-प्रसिद्ध एक वृत्त, वैताढ्य पर्वंत (इक; ठा २, ३ — पत्र ६९; ८०; ठा ४, २ — पत्र २२३)।

गंधि :: वि [गन्धिन्] गंध-युक्त, गंधवाला (कप्प; गउड)।

गंधिअ :: वि [दे] दुर्गन्ध, खराब गन्धवाला (दे २, ८३)।

गंधिअ :: पुं [गान्धिक] गन्ध-युक्त बेचनेवाला, पसारी (दे २, ८७)।

गंधिअ :: वि [गन्धिक] गंध-युक्त, 'सुगन्धवर- गन्धगन्धिए' (औप)। °साला स्त्री [°शाला] दारू वगैरह गन्धवाली चीज की दूकान (वव ९)।

गंधिअ :: वि [गन्धित] गन्ध-युक्त, गन्धवाला (स ३७२; गा ५४५; ५७२)।

गंधिल :: पुं [गन्धिल] वर्षं-विशेष, विजय-क्षेत्र- विशेष (ठा २, ३; इक)।

गंधिलावई :: स्त्री [गन्धिलावती] १ क्षेत्र- विशेष, विजयवर्षं-विशेष (ठा २, ३; इक) २ नगरी-विशेष (द्र ६१) °कूड न [°कूट] १ गन्धमादन पर्वंत का शिखर (जं ४) २ वैताढ्य पर्वत का शिखर-विशेष (ठा ९)

गंधिल्ली :: स्त्री [दे] छाया, छाँह (उप १०३१ टी)।

गंधुत्तमा :: स्त्री [गन्धोत्तमा] मदिरा, सुरा (दे २, ८६)।

गंधेल्ली :: स्त्री [दे] १ छाया, छांह। २ मधु- मक्षिका (दे २, १००)

गंधोदग, गंधोदय :: न [गन्धोदक] सुगन्धित जला सुगन्ध-वासित पानी (औप; विप, १, ९)।

गंधोल्ली :: स्त्री [दे] १ इच्छा, अभिलाषा। २ रजनी, रात (दे २, ९९)

गंप्पि, गंप्पिणु :: देखो गम = गम्।

गंभौर :: न [गाम्भीर्य] १ गम्भीरता। २ अनौद्धत्य (सूअनि ९६)

गंभीर :: वि [गम्भीर] १ गम्भीर, अस्ताघ, अतुच्छ, गहरा (औप; से ६, ४४; कप्प) २ पुंन. गहन-स्थान, गहन प्रदेश, जहाँ प्रति- शब्द उत्थित हो (विसे ३४०४; बृह १) ३ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५९, ३) ४ यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र (अंत ३) ५ न. समुद्र के किनारे पर स्थित इस नाम का एक नगर (सुर १३, ३०)। °पोय न [°पोत] नगर-विशेष (णाया १, १७)। °मालिणी स्त्री [°मालिनी] महा- विदेह-वर्ष की एक नगरी (ठा २, ३)

गंभीरा :: स्त्री [गम्भीरा] १ गंभीर-हृदया स्त्री (वव ५) २ मात्रा-छन्द का एक भेद (पिंग) ३ क्षुद्र जंतु-विशेष, चतुरिन्द्रय जीव विशेष (पणण १)

गंभीरिअ :: न [गाम्भीर्य] गम्भीरता, गम्भीरपन (हे २, १०७)।

गंभीरिम :: पुंस्त्री [गाम्भीर्य] ऊपर देखो (सण)।

गगण :: न [गगन] आकाश, अम्बर (कप्प; स ३४८)। °णंदण न [°नन्दन] वैताढ्य पर्वत पर का एक नगर (इक)। °वल्लभ, °वल्लह न [°वल्लभ] वैताढ्य पर्वत पर का एक नगर (राज; इक)।

गगणंग :: पुंन [गगनाङ्गं] छन्द-विशेष (पिंग)।

गग्ग :: पुं [गर्ग] १ ऋषि-विशेष। २ गोत्र- विशेष, जो गौतम गोत्र की एक शाखा है (ठा ७)

गग्ग :: पुं [गर्ग] १ एक जैन महर्षि (उत्त २७, १) २ विक्रम की बारहवीं शताब्दी का एक श्रेष्ठी (कुप्र १४३)

गग्ग :: पुं [गार्ग्य] गर्गं गोत्र में उत्पन्न ऋषि- विशेष (उत्त २७)।

गग्गर :: वि [गद्‍गद्] १ गद्गद आवाजवालास अति अस्पष्ट वक्ता (प्राप्र) २ आनंद या दुःख से अव्यक्त कथन (हे १, २१९; कुमा)

गग्गरी :: स्त्री [गर्गरी] गगरी, छोटा घड़ा (दे २, ८९; सुपा ३३९)।

गग्गिर :: देखो गग्गर; 'रुज्जगग्गिरं गेअं' (घा ८४३; सण)।

गच्छ :: सक [गम्] १ जाना, गमन करना। २ जानना। ३ प्राप्त करना। गच्छइ (प्राप्र; षड्)। भवि. गच्छं (हे ३, १७१; प्राप्र)। वकृ. गच्छंत, गच्छमाण (सुर ३, ६६; भग १२, ६)। संकृ. गच्छिअ (कुमा)। हेकृ. गच्छित्तए (पि ५९८)

गच्छ :: पुंन [गच्छ] १ समूह, सार्थं, संघात (स १४८) २ एक आचार्यं का परिवार (औप; सं ४७) ३ गुरु-परिवार; 'गुरुपरिवारो गच्छो, तत्थ वसंताण खिज्जरा विउला' (पंचव; धर्म ३)। °वास पुं [°वास] गुरु-कुल में रहना, गच्छपरिवार के साथ निवास (धर्म ३)। °विहार पुं [°विहार] गच्छ की समाचारी, गच्छ का आचार (वव १)। °सारणा स्त्री [°सारणा] गच्छ का रक्षण (राज)

गच्छागच्छिं :: अ. गच्छ-गच्छ से होकर (औप)।

गच्छिल्ल :: वि [गच्छवत्] गच्छवाला, गच्छ में रहनेवाला (बृह १)।

गज :: देखो गय = गज (गड्; प्रास १७१; इक)। °सार पुं [°सार] एक जैन मुनि, दण्डक-ग्रन्थ का कर्ता (दं ४७)।

गज्ज :: पुं [दे] जव, यूब, अन्न-विशेष (दे २, ८१; पाअ)।

गज्ज :: न [गद्य] छन्द-रहित वाक्य, प्रबन्ध (ठा ४, ४ — पात्र २८७)।

गज्ज :: अक [गर्ज्] गरजना, गड़गड़ाना, घड़- घड़ाना। गज्जइ (हे ४, ९८)। वकृ.गज्जंत, गज्जयंत (सुर २, ७५; रयण ५८)।

गज्जण :: न [गर्जन] १ गर्जंन, भयानक ध्वनि, मेघ या सिंह का नाद। २ नगर-विशेष (उप ७९५)

गज्जणसद्द :: पुं [दे. गर्जनशब्द] पशु और हाथी की आवाज (दें २, ८८)।

गज्जफल, गज्जल :: वि [दे] देंश-विशेष में उत्पन्न (वस्त्र) (आचा २, ५, १, ५; ७)।

गज्जभ :: पुं [गर्जभ] पश्चिमोत्तर दिशा का पर्वंत (आवम)।

गज्जर :: पुं [दे] कन्द-विशेष, गाजर, गजरा, इसका खाना धर्म-शास्त्र में निषिद्ध है। (श्रा १६; जी ९)।

गज्जल :: वि [गर्जल] गर्जन करनेवाला (निचू ७)।

गज्जह :: देखो गज्जभ (आवम)।

गज्जि :: स्त्री [गर्जि] गर्जन, हाथी वगैरह की आवाज (कुमा सुपा ८९; उप पृ ११७)।

गज्जिआ :: वि [गर्जित] १ जिसने गर्जंन किया हो वह. स्तनित (पाअ) २ न. गर्जंन, मेघ वगैरह की आवाज (पणह १, ३)

गज्जित्तु, गज्जिर :: वि [गर्जितृ] गर्जन करनेवाला, गरजनेवाला (ठा ४, ४ — पत्र २६९; गा ५५)।

गज्जिल्लिअ :: न [दे] १ गुदगुदी, गुदगुदाहट। २ अंग-स्पर्श से होनेंवाला रोमांच, पुलक (षड्)

गज्झ :: वि [ग्राह्य] ग्रहण-योग्य (स १४०; विसे १७०७)।

गट्टण :: पुं [गट्टन] धरणेंद्र की नाट्य-सेना का अधिपति (राज)।

गट्ठिया :: स्त्री [दे] गठिया, गुठली; 'अंबगट्ठिया' (निचू १५)।

गड :: न [गड] १ विस्तीर्णं शिला, मोटा पत्थर (दे २, ११०) २ गर्त्त, खाई (सुर १३, ४१)

गड :: (मा) देखो गय = गत (प्राप्र)।

गडयड :: पुंन [दे] गर्जन, भयानक ध्वनि, हाथी वगैरह की आवाज; 'ता गययडं कुणंतो, समागओ गयवरो, तत्थ' 'इत्थंतरे सयं चिय, सो जक्खो गडयडं पकुव्वंतो' (सुपा २८१; ५४२)।

गडयड :: अक [दे] गर्जंन करना, भयानक आवाज करना। वकृ. गडयडंत (सुपा १९४)।

गडयडी :: स्त्री [दे] वज्र-निर्घोष, गड़गड़ आवाज, मेघ-ध्वनि (दे २, ८५; सण)।

गडवड :: न [दे] गड़वड़, गोलमाल (सुपा ५४१)।

गडिअ, गडुअ :: देखो गम = गम्।

गडुल :: न [दे] चावल वगैरह का धोया-जल, चावल आदि का धोवन (धर्म २)।

गड्ड :: पुंस्त्री [गर्त्त] गड़हा, गड्‍ढा (हे २, ३२; प्राप्र; सुपा ११४)। स्त्री. गड्डा (हे १, ३५)।

गड्ड :: न [दे] शकट, गाड़ी (तो १५)।

गड्डरिगा, गड्डरिया :: स्त्री [दे] भेड़ी, मेषी, ऊर्णायु; 'गड्डरिगपवाहेणं गयाणुगइयं जणं वियाणंतो' (धम्म; सूअ १, ३, ४)।

गड्डरी :: स्त्री [दे] १ छागी, अजा, बकरी (दे २, ८४) २ भेड़ी, मेषी (सट्ठि ३८)

गड्डह :: पुंस्त्री [गर्दभ] गदहा, गधा, खर (हे २, ३७)। °वाहण पुं [°वाहन] रावण, दशानन (कुमा)।

गड्डिआ, गड्डी :: स्त्री [दे] गाड़ी, शकट (ओघ ३८६ टी; दे २, ८१; सुपा २५२)।

गड्‍ढ :: न [दे] शय्या, बिछौना (दे २, ८१)।

गढ :: देखो घड = घट्। गढइ (हे ४, ११२)।

गढ :: पुंस्त्री [दे] गढ, दुर्ग, किला, कोट (दे २, ८१; सुपा २५; १०५)। स्त्री. गढा (कुमा)।

गढिअ :: वि [घटित] गढ़ा हुआ, जटित (कुमा)।

गढिअ :: वि [ग्रथित] १ गूँथा हुआ, निबद्ध; 'नेहनिगडगढियाणं' (उप ९८६ टी; पणह १, ४) २ रचित, गुम्फित, निर्मित (ठा २, १) ३ गृद्ध, आसक्त; (आचा २, २, २; पणह १, २)

गण :: सक [गणय्] १ गिनना, गिनती करना। २ आदर करना। ३ अभ्यास करना, आवृत्ति करना। ४ पर्यालोचन करना। गणइ, गणेइ (कुमा; महा)। वकृ. गणंत, गणेंत (पंचा ४; से ४, १५)। कृ. गणेयव्व (उप ५५५)

गण :: पुं [गण] १ समूह, समुदाय. यूथ, थोक (जी ३४; कुमा; प्रासू ४; ७५; १५१) २ गच्छ, समान आचार व्यवहारवाले साधुओं का समूह (कप्प) ३ छन्दः — शास्त्र प्रसिद्ध मात्रा-समूह (पिंग) ४ शिव का अनुचर (पाअ; कुमा) ५ मल्लों का समुदाय (अणु) °ओ अ [तस्] अनेकशः, बहुशः (सूअ २, ६)। °नायग पुं [°नायक] गण का मुखिया (णाया १, १)। °नाह पुं [°नाथ] १ गण का स्वामी, गण का मुखिया (सुपा २, १०) २ गणधर, जिनदेव का प्रधान शिष्य (पउम १२, ९) ३ आचार्यं, सूरि (सार्ध २३) °भाव पुं [°भाव] विवेक- विशेष (गउड)। °राय पुं [°राज] १ समान्त राजा (भग ७, ९) २ सेनापति (आव ३; कप्प) °वइ पुं [°पति] १ घण का स्वामी। २ गणेश, गजानन, शिवपुत्र (गा ३७२ गउड) ३ जिनदेव का मुख्य शिष्य, गणधर (सिग्ध २) °सामि पुं [°स्वामिन्] गण का मुखिया, गणधर (उप २८० टी)। °हर पुं [°धर] १ जिनदेव का प्रधान शिष्य (सम ११३) २ अनुपम ज्ञानादिगुण-समूह को धारण करनेवाला जैन साधु, आचार्यं वगैरह; 'सेज्जभवं गणहरं' (आवम; पव २७६)। °हरिदं पुं [°धरेन्द्र] गणधरों में श्रेष्ठ, प्रधान गणधर (पउम ३, ४३; ५८, १)। °हारि पुं [°धारिन्] देखो °हर (गण २३; सार्ध १)। °जीव पुं [°जीव] गण के नाम से निर्वाह करनेवाला (ठा ५, १)। °विच्छेइय, °विच्छेदय, °विच्छेयय पुं [°विच्छेदक] साधु-गण के कार्यं की चिन्ता, करनेवाला साधु (आचा २, १, १; ठा ३, ३; कप्प)। °हिवइ पुं [°धिपति] १ शिव- पुत्र, गजानन, गणेश (गा ४०३; पाअ) २ जिनदेव का प्रधान-शिष्य (पउम २६, ४)

गणग :: पुं [गणक] १ ज्योतिषी, जोशी, ज्योतिष-शास्त्र का जानकार, दैवज्ञ (णाया १, १) २ भंडारी, भाण्डागारिक (णाया १, १ — पत्र १९)

गणण :: न [गणन] गिनती, संख्यान (वव १)।

गणणा :: स्त्री [गणना] गिनती, संख्या, संख्यान (सुर २, १३२; प्रासू १००; सूअ २, २)।

गणणइआ :: स्त्री [दे. गण-नायिका] पार्वंती, चण्डी, शिवपत्‍नी (दे २, ८७)।

गणय :: देखो गणग (औप; सुपा २०३)।

गणसम :: वि [दे] गोष्ठी-रत, गोठ में लीन (दे २, ८७)।

गणायमह :: पुं [दे] विवाह-गणक (दे २, ८६)।

गणाविअ :: वि [गणित] गिनती कराया हुआ (स ६२९)।

गणि :: वि [गणिन्] १ गण का स्वामी, गण का मुखिया। स्त्री. गणिणौ (सुपा ६०२) २ पुं. आचार्य, गच्छनायक, साधु-समुदाय का नायक (ठा ८) ३ जिनदेव का प्रधान साधु- शिष्य (पउम ९१, १०) ४ परिच्छेद, निश्‍चय, सिद्धान्त (णंदि)। °पिडग न [°पिटक] १ बारह, मुख्य जैन आगम ग्रन्थ, द्वादशाङ्गी (सम १; १०६) २ निर्युक्ति वगैरह से युक्त जैन आगम (औप) ३ पुं. यक्ष-विशेष, जिन-शासन का अधिष्ठायक देव (संति ४) ४ निश्‍चय-समूह, सिद्धान्त-समूह (णंदि)। °विज्जा स्त्री [°विद्या] १ शास्त्र- विशेष। २ ज्योतिष और निमित्त शास्त्र का ज्ञान (णंदि)

गणि :: पुंस्त्री [गणि] अध्ययन, परिच्छेद, प्रकरण (णंदि १४३)।

गणिम :: न [गणिम] गिनती से बेची जाती बस्तु, संख्या पर जिसका भाव हो वह (श्रा १८; णाया १, ८)।

गणिम :: न [गणिम] १ गणना, गिनती, संख्या। २ वि. संख्येय, जिसकी गिनती की जा सके वह, (अणु १५४)

गणिय :: वि [गणित] १ गिना हुआ। २ न. गिनती, संख्या (ठा ९; जं २) ३ जैन साधुओ का एक कुल (कप्प) ४ अंक गणित, गणित-शास्त्र (णंदि; अणु)। °लिवि स्त्री [°लिपि] लिपि-विशेष, अंक-लिपि (सम ३५)

गणिय :: पुं [गणिक] गणित-शास्त्र का ज्ञाता, 'गणियं जाणइ गणिआ' (अणु)।

गणिया :: स्त्री [गणिका] वेश्या, गणिका (श्रा १२ विपा १, २)।

गणिर :: वि [गणयितृ] गिनती करनेवाला (गा २०८)।

गणेत्तिआ, गणेत्ती :: स्त्री [दे] १ रुद्राक्ष का बना हुआ हाथ का आभूषण-विशेष (णाया १, १६ — पत्र २१३; औप; भग; महा) २ अक्ष-माला (दे २, ८१)

गणेसर :: पुं [गणेस्वर] १ गण का नायक। २ छन्द-विशेष (पिंग)

गण्ण :: वि [गण्य] गणनीय, संख्येय (संबोध १०)।

गण्णा :: (मा) स्त्री [गणना] गिनती (प्राकृ १०२)।

गत्त :: न [गात्र] देह, शरीर (औप; पाअ; सुर २, १०१)।

गत्त :: देखो गड्ड (भग १५)। स्त्री. गत्ता (सुपा २१४)।

गत्त :: न [दे] १ ईषा, चौपाइई या चारपाई की लकड़ी-विशेष। २ पंक, कर्दम (दे २, ९९) ३ वि. गत, गया हुआ (षड्)

°गत्तण :: वि [कर्तन] काटनेवाला, छेदक (सूअ १, १५, २४)।

गत्तडि, गत्ताडी :: स्त्री [दे] १ गवादनी, गोचर-भूमि (दे २, ८२) २ गायिका, गानेवाली स्त्री (षड् दे २, ८२)

गत्थ :: वि [ग्रस्त] कवलित, ग्रास किया हुआ; 'अइमहच्छलोभगच्छा' (? त्या)' (पणह १, ३ — पत्र ४४; नाट — चैत १४९)।

गद :: सक [गद्] बोलना, कहना। वकृ. गदंत (नाट — चैत ४५)।

गदि :: देखो गइ = गति (देवेन्द्र ३५१)।

गदुअ :: (शौ) अ [गत्वा] जाकर (प्राकृ ८८)।

गद्द :: देखो गज्ज = गद्य (प्राकृ २१)।

गद्दतोय :: पुं [गर्दतोय] लोकान्तिक देवों की एक जाती (सम ८५; णाया १, ८)।

गद्दब्भ :: पुं [दे] कटु-ध्वनि, कर्णं-कटु आवाज (दे २, ८२; पाअ; स १११; ४२०)।

गद्दभ :: देखो गद्दह = गर्दभ (आक)।

गद्दभय :: देखो गद्दहय (आचा २, ३, १; आवम)।

गद्दमाल :: पुं [गर्दभाल] स्वनाम-प्रसिद्ध एक परिव्राजक (भग)।

गद्दभालि :: पुं [गर्दभालि] एक जैन मुनि (ती २५)।

गद्दभिल्ल :: पुं [गर्दभिल्ल] उज्जयिनी का एक राजा (निचू १०; पि २९१; ४००)।

गद्दभी :: स्त्री [गर्दभी] १ गधी, गदही (पि २९१) २ विद्या-विशेष (काल)

गद्दह :: पुं [गर्दभ] १ गदहा, गधा, खर (सम ५०; दे २, ८०; पाअ; हे २, ३७) २ इस नाम का एक मंत्रि-पुत्र (वृह १)

गद्दह :: न [दे] कुमुद, चन्द्र-विकासी कमल (दे २, ८३)।

गद्दहय :: पुं [गर्दभक] १ क्षुद्र जन्तु-विशेष, जो गोशाला वगैरह में उत्पन्‍न होता है (जी १७) २ देखो गद्दह (नाट)

गद्दही :: देखो गद्दभी (नाट — मृच्छ ५८; निचू १०)।

गद्दिअ :: वि [दे] गर्वित, गर्वं-युक्त (दे २, ८३)।

गद्ध :: पुं [गृध्र] पक्षि-विशेष, गीध, गिद्ध (औप)।

गन्न :: वि [गण्य] १ माननीय, आदरास्पद; 'हियमप्पणो करेंतो, कस्स न होइ गरुओ गुरुगन्‍नो', 'सव्वो गुणेहि गन्नो' (उव) २ न. गणना, गिनती; 'मुल्लस्स कुणइ गन्‍नं' (सुपा २५३)

गब्भ :: पुं [गर्भ] १ कुक्षि, पेट, उदर (ठा ५, १) २ उत्पत्ति-स्थान, जन्म-स्थान (ठा २, ३) ३ भ्रूण, अन्तरापत्य (कप्प) ४ मध्य, अन्तर, भीतर की (णाया १, ८) °गरा स्त्री [°करी] गर्भाधान करनेवाली विद्या-विशेष (सूअ २, २)। °घर न [°गृह] भीतर का घर, घर का भीतरी भाग (णाया १, ८)। °ज वि [°ज] गर्भ में उत्पन्‍न होनेवाला प्राणी, मनुष्य, पशु वगैरह (पउम १०२, ९७)। °त्थ वि [°स्थ] १ गर्भं में रहनेवाला। २ गर्भं से उत्पन्‍न होनेवाला मनुष्य वगैरह (ठा २, २) °मास पुं [°मास] कार्त्तिक से लेकर माघ तक का महीना (वव ७)। °य देखो °ज (जी २३)। °वई स्त्री [°वती] गर्भिणी स्त्री (सुपा २७६)। °वक्कंति स्त्री [°व्युत्क्रान्ति] १ गर्भाशय में उत्पत्ति (ठा २, ३)। °वक्कंतिअ वि [°व्युत्क्रान्तिक] गर्भाशय में जिसकी उत्पत्ति होती है वह (सम २; २५)। °हर देखो घर (सुर ६, २१; सुपा १८२)

गब्भर :: न [गह्रर] १ कोटर, गुहा। २ गहन, विषम स्थान (आव ४; पि ३३२)

गब्भर :: देखो गहर; 'गब्भरो' (प्राकृ २४; संक्षि १६)।

गंब्भाहाण :: न [गर्भाधान] संस्कार-विशेष (राय १४६)।

गब्भिज्ज :: पुं [दे. गर्भज] जहाज का निम्‍न श्रेणी का नौकर 'कुच्छिधारकन्‍नधारगब्भिज (? ज्ज) संजत्ताणावावणियगा' (णाया १, ८ — पत्र १३३; राज)।

गब्बिण, गब्भिय :: वि [गर्भित] १ जिसको गर्भ पैद हुआ हो वह, गर्भ-युक्त (हे १, १०८; प्राप्र; णाया १, ७) २ युक्त, सहित; 'वेडिसदलनीलभित्तिगब्भिणयं' (कुमा; षड्)

गब्भिल्ल :: देखो गब्भिज्ज (णाया १, १७ — पत्र २२८)।

गम :: सक [गम्] १ जाना, गति करना, चलना। २ जानना, समझना। ३ प्राप्‍त करना। भूका. गमिही (कुमा)। कर्म. गम्मइ, गमिज्जइ (हे ४, २४९)। कवकृ. गम्ममाण (स ३४०)। संकृ. गतु, गमिअ, गंता, गतूण, गंतूणं (कुमा; षड्; प्राप्र; औप; कस), गडुअ, गडिअ, गदुअ (शौ); (हे ४, २७२; पि ४८१; नाट — मालती ४०), गमेप्पि, गमेप्पिणु, गंप्पि, गंप्पिणु (अप); (कुमा)। हेकृ. गंतुं (कस; श्रा १४)। कृ. गंतव्व, गमणिज्ज, गमणीअ (णाया १, १; गा २४९; उव; भग; नाट)

गम :: सक [गमय्] १ ले जाना। २ व्यतीत करना, पसार करना, गुजरना। गमेंति (गउड); 'बुहा ! मुहा मा दियहे गमेह' (सत्त ४)। कर्म. गमेज्जंति (गउड)। वकृ. गमंत (सुपा २०२)। संकृ. गमिऊण (पि) हेकृ गमित्तए (पि ५७८)

गम :: पुं [गम] १ गमन, गति, चाल (उप २२० टी) २ प्रवेश(पउम १, २९) ३ शास्त्र का तुल्य पाठ, एक तरह का पाठ, जिसका तात्पर्यं भिन्न हो (दे १, १; विसे ५४९; भग) ४ व्याख्या, टीका (विसे ९१३) ५ बोध, ज्ञान, समझ (अणु; णंदि)। ६ मार्गं, रास्ता (ठा ७)

गम :: पुं [गम] १ प्रकार (वव १) २ वि. जंगम (महानि ४)

गमग :: वि [गमक] बोधक, निश्‍चायक (विसे ३१५)।

गमण :: न [गमन] गमन, गति (भग; प्रासू १३२)। २ वेदन, बोध (णंदि) ३ व्या- ख्यान, टीका। ४ पुष्य वगैरह नव नक्षत्र (राज)

गमणया, गमणा :: स्त्री [गमन] गमन, गति 'लोगंत- गमणयाए' (ठा ४, ३); 'पायवंदए पहोरेत्थ गमणाए' (णाया १, १ — पत्र २९)।

गमणिज्ज :: देखो गम = गम्।

गमणिया :: स्त्री [गमनिका] १ संक्षिप्त, व्याख्यान, दिग्-दर्शन (राज) २ गुजारना, अतिक्रमण; 'कालगमणिया एत्थ उवाओ' (उप ७२८ टी)

गमणी :: स्त्री [गमनी] १ विद्या-विशेष, जिसके प्रभाव से आकाश में गमन क्रिया जा सकता है (णाया १, १६ — पत्र २१३) २ जूता; 'सव्वोबि जणो जलं विगाहिं तो उत्तारइ गमणीओ चरणाहिंतो' (सुपा ६१०)

गमणीअ :: देखो गम = गम।

गमय :: देखो गमग (विसे २९७३)।

गमार :: वि [दे. ग्राम्य] अविदग्घ, मूर्ख (संक्षि ४७)।

गमाव :: देखो गम = गमय्। गमावइ (सण)।

गमिअ :: वि [गमिक] प्रकारवाला (वव १)।

गमिद :: वि [दे] १ अपूर्ण। २ गूढ़। ३ स्खलित (षड्)

गमिय :: वि [गमित] १ गुजारा हुआ, अतिक्रांत (गउड) २ ज्ञापित, बोधित, निवेदित (विसे ५५६)

गमिय :: न [गमिक] शास्त्र-विशेष, सदृश पाठवाला शास्त्र; 'भंग-गणियाइं, गमियं सरि- सगमं च कारणवसेण' (विसे ५४९; ४५४)।

गमिर :: वि [गन्तृ] जानेवाला (हे २, १४५)।

गमेप्पि, गमोप्पेणु :: देखो गम = गम्।

गमेर :: देखो गमार (संक्षि ४७)।

गमेस :: देखो गवेस। गमेसइ (हे ४, १८९)। गमेसंति (कुमा)।

गम्म :: वि [गम्य] १ जानने योग्य। २ जो जाना जा सके (उवर १७०; सुपा ४२६) ३ हराने योग्य, आक्रमणीय (सुर १२९; १५, १४४) ४ जाने योग्य। ५ भोगने योग्य — स्वपत्‍नी वगैरह (सुर १२, ५२)

गम्म :: न [गम्य] गमन, 'अगम्मगम्मं सुविणेषु धन्‍नं' (सुख ८, १३)।

गम्ममाण :: देखो गम = गम्।

गय :: वि [दे] १ धूर्णित, भ्रमित, घुमाया गया (दे २, ९९; षड्) २ मृत, मरा हुआ, निर्जीव (दे २, ९९)

गय :: वि [गत] १ गया हुआ (सुपा ३३४) २ अतिक्रान्त, गुजरा हुआ (दे १, ५६) ३ विज्ञात, जाना हुआ (गउड) ४ नष्ट, हत (उप ७२८ टी) ५ प्राप्‍त; 'आघईगयंपि सुहए' (प्रासू ८३; १०७) ६ स्थित, रहा हुआ; 'मणगयं' (उत्त १) ७ प्रविष्ट, जिसने प्रवेश किया हो (ठा ४ १) ८ प्रवृत्त (सूअ १, १, १) ९ व्यवस्थित (औप) १० न. गति, गमन; 'उसभो गइंदमयगलसुललियगय- विक्कमभो भयवं (वसु; सुपा ५७८; आचा) °पाण वि [°प्राण] मृत, मरा हुआ (श्रा २७)। °राय वि [°राग] राग-रहित, वीत- राग, निरीह (उप ७२८ टी)। °वइया, °वई स्त्री [°पतिका] १ विधवा, राँड; (औप; पउम २९, ४२) २ जिसका पति विदेश गया हो वह स्त्री; प्रोषित-भर्त्तृका (गा ३३२; पउम २९, ४२)। °वय वि [°वयस्] वृद्ध. बुड्ढा (पाअ)। °णिगइअ वि [°नुग- तिक] अँध, परम्परा का अनुयायी, अंध- श्रद्धालु (उवर ४६)

गय :: पुं [गज] १ हाथी, हस्ती, कुंजर (अणु; औप; प्रासू १५४; सुपा ३३४) २ एक अंतकृत् जैन मुनि, गज सुकुमालस मुनि (अंत ३) ३ इस नाम का एक सेठ (उप ७६८ टी) ४ रावण का एक सुभट (पउम ५९, ट २) °उर न [°पुर] नगर-विशेष, कुरु देश का प्रधान नगर, हस्तिनापुर (उप १०१४; महा; सण)। °कण्ण, °कन्‍न पुं [°कर्णं] १ द्वीप-विशेष। २ उसमें रहनेवाला (जीव ३; ठा ४, २) °कलभ पुं [°कलभ] हाथी का बच्चा (राय)।°गय वि [°गत] हाथी के ऊपर आरूढ़ (औप)। °ग्गपय पुं [°ग्रपद] पर्वंत-विशेष (आक)। °त्थ वि [°स्थ] हाथी के ऊपर स्थित (पउम ८, ८६)। °पुर देखो °उर (सूअ १, ५, १)। °बंधय पुं [°बन्धक] हाथी का पकड़नेवाला जाति (सुपा ६४२)। °मारिणी स्त्री [°मारिणी] वनस्पति-विशेष, गुच्छ विशेष (पणण १ — पत्र ३२)। °मुह पुं [°मुख] १ गणेश, गणपति, शिव-पुत्र (पाअ) २ यक्ष-विशेष (गण ११)। °राय पुं [°राज] प्रधान हाथी, श्रेष्ठ हस्ती (सुपा ३८()। °वइ पुं [°पति] गजेन्द्र, श्रेष्ठ हस्ती (णाया १, १६; सुपा २८९)। °वर पुं [°वर] प्रधान हाथी। °वरारि पुं [°वरारि] सिंह, शार्दूल, वनराज (पउम १७, ७९)। °वहू स्त्री [°वधू] हथिनी, हस्तिनी (पाअ)। °वीहि स्त्री [°वीथी] शुक्र वगैरह महाग्रहों का चार-क्षेत्र-विशेष (ठा ९)। °ससण पुं [°श्‍वसन] हाथी की सूँड़ (औप)। °सुकुमाल पुं [°सुकुमाल] एक प्रसिद्ध जैन मुनि, उसी भव में मुक्ति-गत जैन साधु-विशेष (अंत, पडि)। °रि पुं [°रि] सिंह, पञ्चानन (भवि)। °रोह पुं [°रोह] हस्तिपक, महावत (पाअ)

गय :: पुं [गद] रोग, बीमारी (औप; सुपा ५७८)।

गयंक :: पुं [गजाङ्क] देवों की एक जाति, दिक्कुमार देव (औप)।

गयंद :: पुं [गजेन्द्र] श्रेष्ठ हाथी (गउड)।

गयकंठ :: पुं [गजकण्ठ] रत्‍न-विशेष (राय ६७)।

गयकन्‍न :: पुं [गजकर्ण] अनार्य देश-विशेष (पव २७४)।

गयग्गपय :: न [गजाग्रपद] दशार्णकूट का एक तीर्थं (आचानि ३३२)।

गयण :: न [गगन] 'ह' अक्षर (सिरि १९६)। °मणि पुं [°मणि] सूर्य (कुप्र ५१)।

गयण :: न [गगन] गगन, आकाश, अम्बर (हे २, १६४; गउड)। °गइ पुं [गति] एक राजकुमार (दंस)। °चर वि [°चर] आकाश में चलनेवाला, पक्षी, विद्याधर वगैरह (सुपा २५०)। °मंडल पुं [मण्डल] एक राजा (दंस)।

गयणरइ :: पुं [दे] मेघ, मेह, बादल (दे २, ८८)।

गयणिंदु :: पुं [गगनेन्दु] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४५)।

गयनिमीलिया :: स्त्री [गजनिमीलिका] उपेक्षा, उदासीनता (स ५१)।

गयमुह :: पुं [गजमुख] अनार्यं देश-विदेश (पव २७४)।

गयसाउल, गयसाउल्ल :: वि [दे] विरक्त, वैरागा (दे ८७; षड्)।

गया :: स्त्री [गदा] लोहें का या पाषाण का अस्त्र-विशेष, लोहे का मुगदग या लाठी (राय)। °हर पुं [°धर] वासुदेव; (उत्त ११)।

गया :: स्त्री [गदा] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३३)।

गया :: स्त्री [गया] स्वनाम-प्रसिद्ध नगर-विशेष (उप २५१)।

°गर :: वि [°कर] करनेवाला, कर्त्ता (सण)।

गर :: पुं [गर] १ विष-विशेष, एक प्रकार का जहर (निचू १)। २ ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध बवादि करणों में से एक (विसे ३३४८)

°गरण :: देखो करण (रयण ९३)।

गरल :: न [गरल] १ विष, जहर (पाअ प्रासू ३९) २ रहस्य। ३ वि. अव्यक्त, असप्ष्ट; 'अ-गरलाए अ-मम्मणाए' (औप)

गरलिगाबद्ध :: वि [गरलिकाबद्ध] निक्षिप्‍त, उपन्यस्त (निचू १)।

गरह :: सक [गर्ह्] निन्दा करना, घृणा करना। गरहइ, गरहइ (भग)। वकृ. गरहंत (द्र १५)। कवकृ. गरहिज्जमाण (णाया १, ८)। संकृ. गरहित्ता (आचा २, १५)। हेकृ. गरहित्तए (कस; ठा २, १)। कृ. गरहणिज्ज, गरणीय, गरहियव्व (सुपा १८४; ३७९; पणह २, १)।

गरहण :: न [गर्हण] निन्दा, घृणा (पि १३२)।

गरहणया, गरहणा :: स्त्री [गर्हणा] निन्दा, घृणा (भग १७, ३; औप; पणह २, १)।

गरहा :: स्त्री [गर्हा] निन्दा, घृणा (भग)।

गरहिअ :: वि [गर्हित] निन्दित, घृणित (सं ६३; द्र ३३; सण)।

°गरिअ :: वि [कृत] किया हुआ, निर्मित (दे ७, ११)।

गरिट्ठ :: वि [गरिष्ठ] अति गुरु, बड़ा भारी (सुपा १०; १२८; प्रासू १५४)।

गरिम :: पुंस्त्री [गरिमन्] गुरुता, गुरुत्व, गौरव (हे १, ३५; सुपा २३; १०६)।

गरिह :: देखो गरह। गरिहइ, गरिहामि (महा; पडि)।

गरिह :: पुं [गर्ह] निन्दा, गर्हा (प्राप्र)।

गरिहणया :: देखो गरहणया (उत्त २९, १)।

गरिहा :: स्त्री [गर्हा] निन्दा, घृणा, जुगुप्सा (ओघ ७९१; स १६०)।

गरु :: देखो गुरु; ['गरुयरगत्ताए खिविऊण'] (सुपा २१४)।

गरुअ :: वि [गुरुक] गुरु, बड़ा, महान् (हे १, १०९; प्राप्र; प्रासू ३९)।

गरुअ :: सक [गुरुकारय्] गुरू करना, बड़ा बनाना। गरुएइ (पि १२३); 'हांसाण सरेहिं सिरी, सारिज्जेइ अह सराण हंसेहिं। अणणणणं चिअ एए, अप्पाणं णवर गरुअंति' (हेका २५५)।

गरुआ, गरुआआ :: अक [गुरुकारय्] १ बड़ा बनाना। बड़े की तरह आचरण करना। गरुआइ, गरुआअइ (हे ३, १३८)

गरुइअ :: वि [गुरुकृत] बड़ा किया हुआ (से ९, २०; गउड)।

गरुई, गरुगी :: स्त्री [गुर्वी] बड़ी, ज्येष्ठा, महती (हे १, १०७; प्राप्र; निचू १)।

गरुक्क :: देखो गरुअ; 'णवजोव्वणरूअपसाहिणा सिंगरगुणगरुक्केण' (प्राप)।

गरुड :: देखो गरुल (संति १; स २६५; पिंग)। छन्द-विशेष (पिंग)। °त्थ न [°स्त्र] अस्त्र- विशेष, उरगास्त्र का प्रतिपक्षी अस्त्र (पउम १२, १३०; ७१, ६६)। °द्धय पुं [°ध्वज] विष्णु, वासुदेव (पउम ६१, ५७)। °वूह पुं [°व्यूह] सेना की एक प्रकार की रचना (महा; पि २४०)।

गरुडंक :: पुं [गरुडाङ्क] १ विष्णु, वासुदेव। २ इक्ष्वाकु वंशष के एक राजा का नाम (पउम ५, ७)

गरुल :: पुं [गरुड] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३४)।

गरुल :: पुं [गरुड] १ पक्षि-राज, पक्षि-विशेष (पणह १, १) २ यक्ष-विशेष, भगवान् शान्तिनाथ का शासन-यक्ष (संति ८) ३ भवनपति देवों की एक जाति, सुपर्णकुमार देव (पणह १, ४) ४ सुपर्णकुमार देवों का इन्द्र (सूअ १, ६) °केउ पुं [°केतु] देखो °ज्झय (राज)। °ज्झय, °द्धय पुं [°ध्वज] १ गरुड़ पक्षी के चित्रवाली ध्वजा (राय) २ वासुदेव, कृष्ण। ३ देव-जाति-विशेष, सुपर्णंकुमार देव (आवम; सम; पि)। °व्वूह देखो गरुड-वूह (जं २), °सत्थ न [°शस्त्र] गरुड़ास्त्र, अस्त्र-विशेष (महा)। °सण न [°सन] आसन-विशेष (राय)। °वेवाय न [°पपात] शास्त्र-विशेष, जिसको याद करने से गरुडदेव प्रत्यक्ष होते हैं (ठा १०)। देखो गरुड।

गरुवी :: देखो गरुई (कुमा)।

गल :: अक [गल्] १ गल जाना, सड़ना। २ खतम होना, समाप्त होना। ३ झरना, टप- कना, गिरना। ४ पिघलना, नरम होना। ५ सक. गिराना, टपकाना; 'जाव रत्ती गलइ' (महा)। वकृ. 'नवेण रस-सोएहिं गलंतम असुइरसं' (महा; सुर ४, ६८; सुपा २०४)। गलिंत (पणह १; ३; प्रासू ७२)। प्रयो., वकृ. गलावेमाण (णाया १, १२)

गल, गलअ :: पुं [गल] १ गला, ग्रीवा, कण्ठ (सुपा ३३; पाअ) २ वडिंश, वंसी, स मछली पकड़ने का काँटा (उप १८८; विपा १; ८; सुर ८, १४०)। °गज्जि स्त्री [°गर्जि] गले की गर्जंना (महा)। °गज्जिय न [°गर्जित] गल-गर्जंन (महा)। °लाय वि [°लात] गले में लगाया हुआ, कण्ठ-न्यस्त (औप)

गलई :: स्त्री [गलकी] वनस्पति-विशेष (राज)।

गलग :: देखो गलअ (पणह १, १)।

गलत्थ :: देखो खिव। गलत्थइ (हे ४, १४३; भवि)।

गलत्थण :: न [क्षेपण] १ क्षेपण करना, फेंकना। २ प्रेरण (से ५, ५३; सुपा २८)

गलत्थलिअ :: वि [दे] १ क्षिप्त, फेंका हुआ। २ प्रेरित (दे २, ८७)

गलत्थल्ल :: पुं [दे] गलहस्त, हाथ से गला पक- ड़ना (णाया १, ९; पणह १, ३ — पत्र ५३)।

गलत्थल्लिअ :: [दे] देखो गलत्थलिअ (से ५, ४३; ८, ६१)।

गलत्था :: स्त्री [दे] प्रेंरणा; 'गरुयाणं चिय भुवणम्मि आवया न उण हुंति लहुयाण। गहकल्लोलगलत्था, ससिसूराणं न ताराणं' (उप ७२८ टी)।

गलत्थिअ :: वि [क्षिप्र] १ प्रेरित (सुपा ६६५) २ फेंका हुआ (दे २, ८७; कुमा) ३ बाहर निकाला हुआ (पाअ)

गलद्धअ :: पुं [दे] प्रेरित, क्षिप्त (षड्)।

गलहत्थिअ :: वि [गलहस्तित] गला पकड़कर बाहर निकाला हुआ (वज्जा १३८)।

गलाण :: देखो गिलाण (नाट — चैत ३४)।

गाले :: देखो गल = गल; 'मच्छुव्व गलिं गिलित्ता' (दसचू १, ६)।

गलि, गलिअ :: वि [गलि, °क] दुर्विनीत, दुर्दम (श्रा १२; सुपा २७६)। °गद्दह पुं [°गर्दभ] अविंनीत गदहा (उत्त २७)। °बइल्ल पुं [°बलीवर्द] दुर्विनीत बैल (कप्पू)। °स्स पुं [°शव] दुर्दंम घोड़ा (उत्त १)।

गलिअ :: वि [गलित] १गला हुआ, पिघला हुआ (कप्प) २ क्षालित, प्रक्षालित (कुमा) ३ स्खलित, पतित (से १, २) ४ नष्ट, नाश- प्राप्त (सुपा २४३; सण)

गलिअ :: वि [दे] स्मृत, याद किया हुआ (दे २, ८१)।

गलिंते :: देखो गल = गल।

गलिच्च :: वि [गलीय, गल्य] गले का (पिंड ४२४)।

गलिर :: वि [गलितृ] निरन्तर पिघलता, टप- कता; 'बहुसोगगलिरनयणेण' (श्रा १४)।

गलुल :: देखो गरुल (अच्चु १; षड्)।

गलोई, गलोया :: स्त्री [गुडुची] वल्ली-विशेष, गिलोय, गुरुच (हे १, १२४; जी १०)।

गल्ल :: पुं [गल्ल] १ गाल, कपोल (दे २, ८१; उवा) २ हाथी का गण्ड-स्थल, कुम्भ-स्थल (षड्)। °मसूरिया स्त्री [°मसूरिका] गाल का उपधान (जीत)

गल्लक्क :: पुंन [दे] १ स्फटिक मणि (प्राप्र; पि २९६)

गल्लत्थ :: देखो गलत्थ। गल्लत्थइ (षड्)।

गल्लप्फोड :: पुं [दे] डमरुक, वाद्य-विशेष (दे २, ८६)।

गल्लूरण :: न [दे] माँस खाते हुए कुपित शेर की गर्जना (माल ९०)।

गल्लोल्ल :: न [दे] गडुक, पात्र-विशेष (निचू १)।

गव :: पुंस्त्री [गो] पशु, जानवर (सूअ १, २, ३)।

गवक्ख :: पुं [गवाक्ष] १ गवाक्ष, वातायन, झरोखा (औप; पणह २, ४) २ गवाक्ष के आकृति का रत्‍न-विशेष (जीव ३) °जाल न [°जाल] १ रत्‍न-विशेष का ढेर (जीव ३; राय) २ जालीवाला वातायन (औप)

गवच्छ :: पुं [दे] आच्छादन, ढकना (राय)।

गवच्छिय :: बि [दे] आच्छादित, ढका हुआ (राय; जीव ३)।

गवत्त :: न [दे] घास, तृण (दे २, ८५)।

गवत्थिय :: देखो गवच्छिय (पउमच° ४१ — ५)।

गवय :: पुं [गवय] गो की आकृति का जंगली पशु-विशेष, नील गाय (पणह १ , १)।

गवर :: पुं [दे] वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)।

गवल :: पुं [गवल] १ जंगली पशु-विशेष, जंगली महिष (पउम ८८, ६) २ न. महिष का सिंग (पणण १७; सुपा ९२)

गवा :: स्त्री [गो] गैया, गाय (पउम ८०, १३)।

गवादणी :: देखो गवायणी (आचा २, १०, २)।

गवायणी :: स्त्री [गवादनी] गोचर-भूमि (दे २, ८२)।

गवार :: वि [दे] गँवार, छोटे गाँव का निवासी (वज्जा ४)।

गवालिय :: न [गवालीक] गौ के विषय में अनृत भाषण (पणह १, २)।

गविअ :: वि [दे] अवधृत, निश्चित (षड्)।

गविट्ठ :: वि [गवेषित] खोजा हुआ (सुपा १५४; ६४०; स ४८४; पाअ)।

गविल :: न [दे] उत्तम कोटि की चीनी, शुद्ध मिस्त्री (उर ५, ९)।

गवेधुआ :: स्त्री [गवेधुका] जैनमुनि-गण की एक शाखा (कप्प)।

गवेलग :: पुंस्त्री [गवेलक] १ मेष, भेड़ (णाया १, १; औप) २ गौ और भेड़ (ठा ७)

गवेस :: सक [गवेषय्] गवेषणा करना, खोजना, तलाश करना। गवेसइ (महा; षड्)। भूका° गवेसित्था (आचा)। वकृ. गवेसंत, गवेसयंत, गवेसमाण (श्रा १२, सुपा ४१०; सुर १, २०२; णाया १, ४)। हेकृ. गवे- सित्तए (कप्प)।

गवेसइत्तु :: वि [गवेषयितृ] खोज करनेवाला, गवेषक (ठा ४, २)।

गवेसग :: वि [गवेषक] ऊपर देखो (उप पृ ३३)।

गवेसण :: न [गवेषण] खोज, अन्वेषण (औप; सुर ४, १४३)।

गवेसणया :: स्त्री [गवेषणा] ईहा-ज्ञान, संभा- वना-ज्ञान (णंदि १७४)।

गवेसणया, गवेसणा :: स्त्री [गवेषणा] १ खोज, अन्वे- षण (औप; सुपा २३३) २ शुद्ध भिक्षा की याचना (ओघ ३) ३ भिक्षा का ग्रहण (ठा ३, ४)

गवेसय :: देखो गवेसग (भवि)।

गवेसाविय :: वि [गवेषित] १ दूसरे से खोज- वाया हुआ, दूसरे द्वारा खोज किया गया (स २०७; ओघ ६२२ टी) २ गवेषित, अन्वे- षित, खोजा हुआ (स ९८)

गवेसि :: वि [गवेषिन्] खोज करनेवाला, गवेषक (पुप्फ ४४०)।

गवेसिअ :: वि [गवेषित] अन्वेषित, खोजा हुआ (सुर १५, १२६)।

गव्व :: पुं [गर्व] मान, अहंकार, अभिमान (भग १५; पव २१६)।

गव्वर :: न [गह्‍वर] कोटर, गुहा (स ३९३)।

गव्वि :: वि [गर्विन्] अभिमानी, गर्व-युक्त (श्रा १२; दे ७, ९१)।

गव्विट्ठ :: वि [गर्विष्ठ] विशेष अभिमानी, गर्व करनेवाला (दे १, १२८)।

गव्विय :: वि [गर्वित] गर्वं-युक्त, जिसको अभि- मान उत्पन्न हुआ हो वह (पाअ; सुपा २७०)।

गब्बिर :: वि [गर्विन्] अहंकारी, अभिमानी (हे २, १५९; हेका ४५)। स्त्री. °री (हेका ४५)।

गस :: सक [ग्रस्] खाना, निगलना, भक्षण करना। गसइ (हे ४, २०४; षड्)। वकृ. गसंत (उप ३२० टी)।

गसण :: न [ग्रसन] भक्षण, निगलना (स ३५७)।

गसिअ :: वि [ग्रस्त] भक्षित, निगलित (कुमा; सुर ९, ९०; सुपा ४८९)।

गह :: सक [ग्रथ्] गूँथना, गठना। गहेति (सूअनि १४०)।

गह :: सक [ग्रह्] १ ग्रहण करना, लेना। २ जानना। गहेइ (सण)। वकृ. गहंत (श्रा २७)। संकृ. गहाय, गहिअ, गहिऊण, गहिया, गहेउं (पि ५९१; नाट; ' पि ५८६; सूअ १, ४, १; १, ५, २)। कृ. गहीअव्व, गहेअव्व (रयण ७०; भग)

गह :: पुं [ग्रह] १ ग्रहण, आदान, स्वीकार (विसे ३७१; सुर ३, ९२) २ सूर्य, चन्द्र वगैरह ज्योतिष्क-देव (गउड; पणह १, २) ३ कर्म का बन्ध (दस ४) ४ भूत वगैरह का आक्रमण, आवेश (कुमा; सुर २, १४४) ५ गृद्धि, आसक्ति, तल्लीनता (आचा) ६ संगीत का रस-विशेष (दस २) °खोभ पुं [°क्षोभ] राक्षस वंश के एक राजा का नाम, एक लंकेश (पउम ५, २६६)। °गज्जिय न [°गर्जित] ग्रहों के संचार से होनेवाली आवाज (जीव ३)।°गहिय वि [°गृहीत] भूतादि से आक्रान्त, पागल (कुमा; सुर २, १४४)। °चरिय न [°चरित] १ ज्योतिष- शास्त्र (वव ४) २ ज्योतिष-शास्त्र का परिज्ञान (सम ८३) °दंड पुं [°दण्ड] दण्डाकार ग्रह-पंक्ति (भग ३, ७)। °नाह पुं [°नाथ] १ सूर्यं, सूरज (श्रा २८) २ चन्द्र, चन्द्रमा (उप ७२८ टी) °मुसल न [°मुसल] मुसलाकार ग्रह-पंक्ति (जीव ३)।°सिंघाडग न [°श्रृङ्गाटक] १ पानी-फल के आकारवाली ग्रहपंक्ति (भग ३, ७) २ ग्रह युग्म, ग्रह की जोड़ी (जीव ३)। °हिव पुं [°धिप] सूर्यं, सूरज (श्रा २८)

गह :: पुं [ग्रह] १ संबंध (धर्मंसं ३६३) २ पकड़, धरना (सूअ १, ३, २, ११; धर्मवि ७२) ३ ग्रहण, ज्ञान (धर्मंसं १३६४)। °भिन्न न [°भिन्न] जिसके बीच से ग्रह का गमन हो वह नक्षत्र (वव १)। °सम न [°सम] गेय काव्य का एक भेद (दसनि २, २३)

गह° :: न [गृह] घर, मकान। °वइ पुं [°पति] गृहस्थ, गृही, संसारी (पउम २०, ११६; प्राप्र)।°वइणी स्त्री [°पत्‍नी] गृहिणी, स्त्री (सुपा २२९)।

गहकल्लोलं :: पुं [दे. ग्रहकल्लोल] राहु, ग्रह- विशेष (दे २, ८६; पाअ)।

गहगह :: अक [दे] हर्षं से भर जाना, आनन्द- पूर्णं होना। गहगहइ (भवि)।

गहण :: न [ग्रहण] १ आदान, स्वीकार (से ४, ३३; प्रासू १४) २ आदर, सम्मान। ३ ज्ञान, अवबोध (से ४, ३३) ४ शब्द, आवाज (आचा २, ३, ३; आवम) ५ वि. ग्रहण करनेवाला। ६ न. इन्द्रिय (विसे १७०७) ७ चन्द्र-सूर्य का उपराग — ग्रहण (भग १२, ६) ८ वि. ग्राह्य, जिसका ग्रहण किया जाय वह (उत्त ३२) ९ न. शिक्षा- विशेष (आव)

गहण :: न [ग्राहण] ग्रहण कराना, अंगीकार कराना; 'जो आसि वंभचेरग्गहणगुरू' (कुमा)।

गहण :: न [ग्रहण] १ आदान का कारण। २ आक्षेपक, 'चक्खुस्स रूवं गहणं वयंति' (उत्त ३२, २२)

गहण :: न [गहन] अरण्य-क्षेत्र (आचा २, ३, ३, १)। °विदुग्ग न [°विदुर्ग] पर्वंत के एक प्रदेश में स्थित वृक्ष-वल्ली-समुदाय (सूअ २, २, ८)।

गहण :: वि [गहन] १ निबिड़, दुर्भेद्य, दुर्गम; 'काले अणाइणिहणे जोणीगहणम्मि भीसणे इत्थ' (जी ४९), 'फलसारणलिणिगहणा' (गउड) २ वन, झाड़़ी, घना कानन (पाअ; भग) ३ वृक्ष-गह्वर, वृक्ष का कोटर (विपा १, ३ — पत्र ४९)

गहण :: न [दे] १ निर्जल-स्थान, जल-रहित प्रदेश (दे २, ८२; आचा २, ३, ३) २ बन्धक, धरोहर, गिरवी (सुपा ५४८)

गहणय :: न [दे] गहना, आभूषण (सुपा १५४)।

गहणया :: स्त्री [ग्रहण] ग्रहण, स्वीकार, उपा- दान (औप)।

गहणी :: स्त्री [ग्रहणी] गुदाशय, गाँड़ (पणह १, ४; औप)।

गहणी :: स्त्री [ग्रहणी] कुक्षि, पेट (पव १०६)।

गहणी :: स्त्री [दे] जबरदस्ती हरण की हुई स्त्री, बादी या बंदी (दे २, ८४; से ९, ४७)।

गहत्थि :: पुं [गभस्ति] किरण, त्विड् (पाअ)।

गहर :: पुं [दे] गृध्र, गीध-पक्षि (दे २, ८४; पाअ)।

गहर :: पुंन [गह्वर] १ निकुंज। २ वन, जंगल। ३ दंभ, कपट। विषम-स्थान। ५ रोदन। ६ गुफा। ७ अनेक अनर्थों का संकट; 'गहरो' (प्राकृ २४)

गहवइ :: पुं [गृहपति] कृषक, खेती करनेवाला (पाअ)।

गहवइ :: वि [दे] १ ग्रामीण, गाँव का रहने वाला (दे २, १००) २ पुं. चन्द्रमा, चाँद (दे २, १००; पाअ; वाअ १५)

गहिअ :: वि [दे] वक्रित, मोड़ा हुआ, टेढ़ा, किया हुआ (दे २, ८५)।

गहिअ :: वि [गृहीत] १ उपात्त, स्वीकृत (औप; ठा ४, ४) २ पकड़ा हुआ (पणह १, ३) ३ ज्ञात, उपलब्ध, विदित (उत्त २; षड्)

गहिअ :: वि [गृद्ध] आसक्त, तल्लीन (आचा)।

गहिआ :: स्त्री [दे] १ काम-भोग के लिए जिसकी प्रार्थना की जाती हो वह स्त्री (दे २, ८५) २ ग्रहण करने योग्य स्त्री (षड्)

गहिर :: वि [गभीर] गहरा, गम्भीर, अस्ताघ (दे १, १०१; काप्र ९२५; कप्प; गउड; औप; प्राप्र)।

गहिल :: वि [ग्रहिल] भूतादि से आविष्ट, पागल (श्रा १४)।

गहिलिय, गहिल्ल :: वि [दे. ग्रहिल] आवेश-युक्त, पागल, भ्रान्त-चित्त (पउम ११३, ४३; षड्; श्रा १२; उप ५९७ टी; भवि)।

गहीअ :: देखो गहिअ = गृहीत (श्रा १२; रयण ६८)।

गहीर :: देखो गभीर (प्रासू ६)।

गहीरिअ :: न [गाभीर्य] गहराई, गम्भीरपन (हे २, १०७)।

गहीरिम :: पुंस्त्री [गभीरिमन्] गहराई, गम्भी- रता (हे ४, ४१९)।

गहेअव्व, गहेउं :: देखो गह = ग्रह।

गह्‍ण :: (अप) देखो गह = ग्रह्। गह्णइ (षड्)।

गा, गाअ :: सक [गौ] १ गाना, आलापना। २ वर्णन करना। ३ श्‍लाघा करना। गाइ, गाअइ (हे ४, ६)। वकृ. गंत, गाअंत, गायमाण (गा ५४६; पि ४७९; पउम ६४, २४)। कवकृ. गिज्जंत (गउड; गा ६४२; सुपा २१; सुर ३, ७९)। संकृ. गाइउं (महा)

गाअ :: पुं [गो] बैल, वृषभ, साँड़ (हे १, १५८)।

गाअ :: न [गात्र] १ शरीर, देह (सम ६०) २ शरीर का अवयव (औप)

गाअ :: वि [गायक] गानेवाला (कुमा)।

गाअंक :: पुं [गवाङ्क] महादेव, शिव (कुमा)।

गाअण :: वि [गायन] गानेवाला, गवैया (सुपा ५५; सण)।

गाइअ :: वि [गीत] १ गाया हुआ, 'किन्नरेण तो गाइयं गीयं' (सुपा १९) २ न. गीत, गान, गाना (आव ४)

गाइआ :: स्त्री [गायिका] गानेवाली स्त्री (गा ६४४)।

गाइर :: वि [गाथक] गानेवाला, गवैया (सुपा ५४)।

गाई :: स्त्री [गो] गैया, गौ (हे १, १५८; दे ४, १८; गा २७१; सुर ७, ९५)।

गाउ, गाउअ, गाऊण :: न [गव्यूत] १ कोस, क्रोश, दो हजार धनुष-प्रमाण जमीन (पि २५४; औप; इक जी १८; विसे ८२ टी) २ दो कोस, क्रोश-युक्त (ओघ १२)

गागर :: पुं [दे] स्त्री को पहनने का वस्त्र-विशेष, लहँगा, घँघरा या घाँघरा; गुजराती में 'घाघरो' (पणह १, ४)। २ मत्स्य-विशेष (पणण १)।

गागरी :: [दे] देखो गायरी (पि ६२)।

गागलि :: पुं [गागलि] एक जैनमुनि (उत्त १०)।

गागेज्ज :: वि [दे] मथित, मथा हुआ, आलो- ड़ित (दे २, ८८)।

गागेज्जा :: स्त्री [दे] नवोढ़ा, दुलहिन (दे २, ८८)।

गाडिअ :: वि [दे] विधुर, वियुक्त (दे २, ८३)।

गाढ :: वि [गाढ] १ गाढ़, निबिड़, सान्द्र (पाअ; सुर १४, ४८) २ मजबूत, दृढ़ (सुर ४, २३७) ३ क्रिवि. अत्यन्त, अतिशय (कप्प)

गाण :: न [गान] गीत, गाना (हे ४, ६)।

गाण :: वि [गायन] गवैया, गीत-प्रवीणा (दे २, १०८)।

गाणंगणिअ :: पुं [गाणङ्गणिक] छः ही मास के भीतर एक साधु-गण से दूसरे गण में जानेवाला साधु (बृह १)।

गाणी :: स्त्री [दे] गवादनी, गोचर-भूमि (दे २, ८२)।

गाथा :: देखो गाहा (भग; पिंग)।

गाध :: वि [गाध] अस्ताघ-रहित, कम गहरा (दे ५, २४)।

गाम :: पुं [ग्राम] १ समूह, निकर; 'चवलो इंदियगामो' (सुर २, १३८) २ प्राणि-समूह, जन्तु-निकर (विसे २८६९) ३ गाँव, वसति, ग्राम (कप्प; णाया १, १८; औप) ४ इन्द्रिय-समूह (भग; औप) °कंडग, °कंडय पुं [°कण्टक] १ इन्द्रिय-समूह रूप काँटा (भग; औप) २ दुर्जँनों का रूक्ष आलाप, गाली (आचा) °घायग वि [°घातक] गाँव का नाश करनेवाला (पणह १, ३)। °णिद्धमण न [°निर्धमन] गाँव का पानी जाने का रास्ता, नाला (कप्प)। °धम्म पुं [°धर्म] १ विषयाभिलाष, विषय की वाञ्छा (ठा १०) २ इन्द्रियों का स्वभाव। ३ विषय- प्रवृत्ति (आचा) ४ मैथुन (सूअ १, २, २) ५ शब्द, रूप वगैरह इन्द्रियों का विषय (पणह १, ४) ६ गाँव का धर्मं, गाँव का कर्तंव्य (ठा १०)। °द्ध पुंन [°र्ध] आधा गाँव। २ उत्तर भारत, भारत का उत्तरप्रदेश (निचू १२)। °मारी स्त्री [°मारी] गाँव भर में फैली हुई बीमारी-विशेष (जीव ३)। °रोग पुं [°रोग] ग्राम-व्यापक बीमारी (जं २)। °वइ पुं [°पति] गाँव का मुखिया (पाअ)। °णुग्गाम न [नुग्राम] एक गाँव से दूसरे गाँव (औप)।°यार पुं [°चार] विषय (आवम)

गामउड, गामऊड :: पुं [दे] गाँव का मुखिया (दे २, ८९; बृह ३)।

गामांतिय :: न [ग्रामान्तिक] १ गाँव की सीमा (आचा) २ वि. गाँव की सीमा में रहनेवाला (दसा १) ३ पुं. जैनेतर दार्शंनिक-विशेष (सूअ २, २)

गामगोह :: पुं [दे] गाँव का मुखिया (दे २, ८९)।

गामड :: पुं [ग्रामक] गाँव, छोटा गाँव (श्रा १६)।

गामण :: न [दे. गमन] भू-सर्पण (भग ११, ११)।

गमाणह :: न [दे] ग्राम-स्थान, ग्राम-प्रदेश (षड्)।

गामणि :: देखो गामणी (दे २, ८९; षड्)।

गामणिसुअ :: पुं [दे] गाँव का मुखिया (दते २, ८९)।

गामणी :: पुं [दे] गाँव का मुखिया (दे २, ८९; प्रामा)।

गामणी :: वि [ग्रामणी] १ श्रेष्ठ, प्रधान, नायक (से ७, ६०, धण १; गा ४४६; षड्) २ पुं. तृण-विशेष (दे २, ११२)

गामपिंडलोग :: पुं [दे] भीख से पेट भरने के लिये गाँव का आश्रय लेनेवाला भीखारी (आचा)।

गामरोड :: पुं [दे] छल से गाँव का मुखिया बन बैठनेवाला, गाँव के लोगों में फूट उत्पन्‍न कर गाँव का मालिक होनेवाला (दे २, ९०)।

गामहण :: न [दे] ग्राम-स्थान, गाँव का प्रदेश (दे २, ९०)। २ छोटा गाँव (पाअ)।

गामाग :: पुं [ग्रामाक] ग्राम-विशेष, इस नाम का एक सन्निवेश (आवम)।

गामार :: वि [दे. ग्रामीण] ग्रामीण, छोटे गाँव का रहनेवाला (वज्जा ४)।

गामि :: वि [गामिन्] जानेवाला (गा १६७; आचा)। स्त्री. °णी (कप्प)।

गामिअ :: वि [ग्रामिक] १ देखो गामिल्ल (दे २, १००) २ ग्राम का मुखिया (निचू २) ३ विषयाभिलाषी (आचा)

गामिणिआ :: स्त्री [गामिनिका] गमन करनेवाली स्त्री, 'ललिअहंसबहुगामिणिआहि' (अजि २६)।

गामिल्ल, गामिल्लुअ, गामीण :: वि [ग्रामीण] गाँव का निवासी, गँवार; (पउम ७७, १०८; विसे १ टी; दे ८, ४७)। स्त्री. °ल्ली (कुमा)।

गामुअ :: वि [गामुक] जानेवाला (स १७५)।

गामेइआ :: स्त्री [ग्रामेयिका] गाँव की रहनेवाली स्त्री. गँवार स्त्री (गउड)।

गामेणी :: स्त्री [दे] छागी, अजा, बकरी (दे २, ८४)।

गामेय :: देखो गामेयग (धर्मवि १३७)।

गामेयग :: वि [ग्रामेयक] गाँव का निवासी, गँबार (बृह १)।

गामेरेड :: [दे] देखो गामरोड (षड्)।

गामेलुअ, गामेल्ल :: देखो गामिल्ल (मृच्छ २७५; विपा १, १; विसे १४११)।

गामेस :: पुं [ग्रामेश] गाँव का अधिपति (दे २, ३७)।

गायण :: वि [गायन] गवैया, गायक (सिरि ७०१)।

गायरी :: स्त्री [दे] गर्गरी, गगरी, कलशी, छोटा घड़ा (दे २, ८९)।

°गार :: वि [°कार] कारक, कर्त्ता (भवि)।

गार :: पुं [दे. ग्रावन्] पत्थर, पाषाण, कड्कड़ (वव ४)।

गार :: न [अगार] गृह, घर, मकान (ठा ६)। °त्थ पुंस्त्री [°स्थ] गृहस्थ, गृही (निचू १)। °त्थिय पुंस्त्री [°स्थित] गृहस्थ, गृही, संसारी; 'गारत्थियजणउचियं भासासमिओ न भासिज्जा' (पुप्फ १८१; ठा ६)।

°गारय :: वि [कारक] कर्त्ता, करनेवाला (श १५१)।

गारव :: पुंन [गौरव] १ अभिमान, अहंकार। २ अभिलाष, लालसा; 'तओ गारवा पणणत्ता' (ठा ३, ४; श्रा ३५; सम ८) ३ महत्व, गुरुत्व, प्रभाव (कुमा) ४ आदर, सम्मान (षड्; प्राप्र)

गारवित :: वि [गौरवित] १ गौरवान्वित, महत्त्वशाली। २ गर्वीला, अभिमानी। ३ लालासावाला, अभिलाषी (सूअ १, १, १)

गारविल्ल :: वि [गौरववत्] ऊपर देखो (कम्म १, ५९)।

गारहत्थ :: वि [गार्हस्थ] गृहस्थ-सम्बन्धी, गृहस्थ का (पव २३५)।

गारि :: पुंस्त्री [अगारिन्] गृही, संसारी, गृहस्थ (उत्त ५, १९)।

गारिहत्थिय :: स्त्रीन [गार्हस्थ्य] गृहस्थ-संबन्धी, संसारि-संबन्धी। स्त्री. °या (पव २३५)।

गारुड, गारुल्ल :: वि [गारुड] १ गरुड़-सम्बन्धी। २ सर्प के विष को उतारनेवाला, सर्पं-विष को दूर करनेवाला। ३ पुं. सर्पं विष को दूर करनेवाला मन्त्र (उप ९८६ टी; से १४, ५७) ४ न. शास्त्र विशेष, मन्त्र-शास्त्र- विशेष, सर्पंविष-नाशक मन्त्र का जिसमें वर्णन हो वह शास्त्र (ठा ९)। °मंतं पुं [°मन्त्र] सर्पं-विष का नाशक मन्त्र (सुपा २१९)। °विउ वि [°वित्] गारुड मन्त्र का जानकार, गारुड अस्त्र का जानकार (उप ९८६ टी)

गाल :: सक [गालय्] १ गालना, छानना। २ नाश करना। ३ उल्लंघन करना, अतिक्र- मण करना। गालयइ (विसे ६४)। वकृ. गालेमाण (भग ९, ३३)। कवकृ. गालि- ज्जंत (सुपा १७३) प्रयो. गालावेइ (णाया १, १२)

गालण :: न [गालन] छालना, गालना (पणह १, १; उप पृ ३७९)।

गालणा :: स्त्री [गालना] १ गालना, छानना। २ गिरवाना। ३ पिघलवाना (विपा १, १)

गालवाहिया :: स्त्री [दे] छोटी नौका, डोंगी; 'एत्थंतरम्मि समागया गालवाहियाए निज्जा- मया' (स ३५१)।

गालि :: स्त्री [गालि] गाली, गारी, अपशब्द, असभ्य वचन (सुपा ३७०)।

गालिय :: वि [गालित] १ छाना हुआ। २ अतिक्रान्त। ३ विनाशित। ४ क्षिप्त; 'गालिय- मिठो निरंकुसो वियरिओ रायहस्थी' (महा)

गाली :: स्त्री [गाली] देखो गालि (पव ३८)।

गाव :: (अप) देखो गा। गावइ (पिंग)। बकृ. गावंत (पि २५४)।

गाव :: (अप) देखो गव्व (भवि)।

गाव :: वि [दे] गत, गया हुआ, गुजरा हुआ (षड्)।

गाव, गावाण :: पुं [ग्रावन्] १ पत्थर, पाषाण (पाअ) २ पहाड़, गिरि (हे ३, ५६)

गावि :: (अप)। देखो गव्विय (भवि)।

गावी :: स्त्री [गो] गौ, गैया (हे २, १७४; विपा १, २; महा)।

गास :: पुं [ग्रास] ग्रास, कवल (सुपा ४८८)।

गास :: पुं [ग्रास] भोजन (पव ९५)।

गाह :: देखो गह = ग्रह्। कर्मं. गाहिज्जइ (प्राप्र)।

गाह :: सक [ग्राहय्] ग्रहण कराना। गाहेइ (औप)।

गाह :: सक [गाह्] १ गाहना, ढूँढ़ना। २ पढ़ना, अभ्यास करना। ३ अनुभव करना। ४ टोह लगाना। गाहदि (शौ); (मृच्छ ७२)। कवकृ. गाहिज्जंत (वज्जा ४)

गाह :: पुं [गाध] अस्ताघ-रहित, थाह (ठा ४, ४)।

गाह :: पुं [ग्राह्] १ गाह, कुंभीर, नक्र, जल- जन्तु-विशेष, मगर (दे २, ८९; णाया १, ४; जी २०) २ आग्रह, हठ (विसे२६८९; पउम १९, १२) ३ ग्रहण, आदान (निचू १) ४ गारुड़िक, सर्प को पकड़नेवाली मनुष्य- जाति (बृह १)। °वई स्त्री [°वती] नदी- विशेष (ठा २, ३ — पत्र ८०)

गाहग :: वि [ग्राहक] १ ग्रहण करनेवाला, लेनेवाला (सुपा ११) २ समझनेवाला, जाननेवाला (सुपा ३४३) ३ समझानेवाला, शिक्षक, आचार्य, गुरु (औप) ४ ज्ञापक, बोधक। स्त्री. गाहिगा (औप)

गाहक :: वि [ग्राहक] प्राप्ति करनेवाला, 'गाहगं सयलगुणाणं' (स ६८२)।

गाहण :: न [ग्राहण] १ ग्रहण कराना। २ ग्रहण, आदान; 'गाहण तवचरियस्सा गहणं चिय गाहणा होंति' (पंचभा) ३ शास्त्र, सिद्धान्त (वव ४) ४ बोधक-वचन, शिक्षा, उपदेश (पणह २, २)

गाहणया, गाहणा :: स्त्री [ग्राहणा] ऊपर देखो (उप पृ ३१४; आचा; गच्छ १)।

गाहय :: देखो गाहग (विसे ८३१; स ४९८)।

गाहा :: स्त्री [गाथा] अध्ययन, ग्रन्थ-प्रकरण (उत्त ३१, १३)।

गाहा :: स्त्री [गाथा] १ छन्द-विशेष, आर्या, गीति (ठा ५, ३; अजि ३७; ३८) २ प्रतिष्ठा। ३ निश्चय; 'सेसपयाण य गाहा' (आव ४) ४ 'सूत्रकृतांग' सूत्र का सोलहवाँ /?/ (सूअ १, १, १)

गाहा :: स्त्री [दे] गृह, घर, मकान; 'गाहा घरं गिहमिति एगट्ठा' (वव ८)। °वइ पुंस्त्री [°पति] १ गृहस्थ, गृही, संसारी (ठा ४, ४; सुपा २२९) २ धनी, धनाढ्य (उत्त १) ३ भंडारी, भाण्डागारिक (सम २७)। स्त्री. °णी (णाया १, ५; उवा)

गाहाल :: पुं [ग्राहाल] कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जन्तु विशेष (जीव १)।

गाहावई :: स्त्री [ग्राहावती] १ नदी-विशेष। २ द्वीप-विशेष। ३ ह्रद-विशेष, जहाँ से ग्राहावती नदी निकलती है (जं ४)

गाहाविय :: वि [ग्राहित] जिसको ग्रहणं कराया गया हो वह (सुर ११, १८३)।

गाहिणी :: स्त्री [गाहिनी] १ गाहनेवाली स्त्री। २ छन्द-विशेष (पिंग)

गाहिपुर :: न [गाधिपुर] नगर-विशेष (गउड)।

गाहिय :: वि [ग्राहित] १ जिसको ग्रहण कराया गया हो वह। २ भ्रामित, उकसाया हुआ (सूअ १, २, १)

गाहीकय :: वि [गाथीकृत] एकत्रित, इकट्ठा किया हुआ (सूअनि १, १६)।

गाहु :: स्त्री [गाहु] छन्द-विशेष (पिंग)।

गाहुलि :: पुंस्त्री [दे] ग्राह, नक्र, मगर, क्रूर जल- जन्तु विशेष (दे २, ८९)।

गाहुल्लिया :: देखो गाहा = गाथा (सुपा २९४)।

गिंठि :: [गृष्टि] १ एक बार व्यायी हुई। २ एक बार व्यायी हुई गाय (हे १, २६)

गिंघुअ :: [दे] देखो गेंठुआ (पाअ)।

गिंघुल्ल :: [दे] देखो गेंठुल्ल (पाअ)।

गिंभ :: (अप) देखो गिह्य (हे ४, ४४२)।

गिंह :: देखो गिह्या (षड्)।

गिज्जंत :: देखो गा।

गिज्झ :: अक [गृध्] आसक्त होना, लम्पट होना। गिज्जइ (हे ४, २१७)। गिज्झह (णाया १, ८)। वकृ. गिज्झंत (औप)। कृ. गिज्झियव्व (पणह २, ५)।

गिज्झ :: बि [गृह्य, ग्राह्य] १ ग्रहण करने योग्य। २ अपनी तरफ में किया जा सके ऐसा (ठा ३, २)

गिट्ठि :: देखो गिंठि; 'वारेंतस्सवि बला दिट्ठी गिट्ठिव्व जवसम्मि' (उप ७२८ टी; पाअ; गा ६४०)।

गिड्डिया :: स्त्री [दे] गेड़ी, गेंद खेलने की लकड़ी (पव ३८)।

गिण :: देखो गण = गणय्। गिणंति (सट्ठि ९७)।

गिण्ह :: देखो गह = ग्रह्। गिणहइ (कप्प)। वकृ. गिण्हंत, गिण्हमाण (सुपा ६१९; णाया १, १)। संकृ. गिण्हिउं, गिण्हि- ऊण, गिण्हित्ता (पि ५७४; ५८५; ५८२)। हेकृ. गिण्हित्तए (कप्प)। कृ. गिण्हियव्व, गिण्हेयव्व (अणु; सुपा ५१३)।

गिण्हण :: देखो गहण = ग्रहण (सिरि ३४७; पिंड ४५९; तंदु ५०)।

गिण्हणा :: स्त्री [ग्रहण] उपादान, आदान (उत्त १९, २७)।

गिण्हाविअ :: वि [ग्राहित] ग्रहण कराया हुआ (धर्मंवि ११६)।

गिद्ध :: पुं [गृध्र] पक्षि-विशेष, गीध (पाअ; णाया १; १६)।

गिद्ध :: वि [गृद्ध] आसक्त, लम्पट, लोलुप (पणह १, २; आचू ३)।

गिद्धपिट्ठ :: न [गृद्ध स्पृष्ट, गृधपृष्ठ] मरण- विशेष, आत्महत्या के अभिप्राय से गीध आदि को अपना शरीर खिला देना (पव १५७)।

गिद्धि :: स्त्री [गृद्धि] एक देव-विमान (देवेन्द्र १३४)।

गिद्धि :: स्त्री [गृद्धि] आसक्ति, लम्पटता, गार्ध्यं (सूअ १, ६)।

गिन्हणा :: देखो गिण्हणा (उत्त १९, २७)।

गिह्य :: पुं [ग्रीष्म] ऋतु-विशेष, गरमी का मौसिम (हे २, ७४; प्राप्र)।

गिह्या :: /?/स्त्री. देखो गिह्य; 'गिम्हासु' (सुख २, ३७)।

गिर :: सक [गृ] १ बोलना, उच्चारण करना। २ गिलना, निगलना। गिरइ (षड्)

गिरा :: स्त्री [गिर्] वाणी, भाषा, वाक् (हे १, १६)।

गिरि :: पुं [गिरि] १ पहाड़, पर्वत (गउड; १, २३) °अडी स्त्री [°तटी] पर्वतीय नदी (गउड)। °कण्णई, °कण्णी स्त्री [°कर्णी] वल्ली-विशेष, लता-विशेष (पणण १ — पत्र ३३; श्रा २०)। °कूड न [°कूट] १ पर्वंत का शिखर। २ पुं. रामचन्द्र का महल (पउम ८०, ४)। °जण्ण पुं [°यज्ञ] कोंकण देश में वर्षाकाल में किया जाता एक प्रकार का उत्सव (बृह १)। °णई स्त्री [°नदी] पर्वतीय नदी (पि ३८५)। °णाल पुं [°नार] प्रसिद्ध पर्वंत-विशेष, जो काठिया- वाड़ में आजकल भी 'गिरनार' के नाम से बिख्यात है (प्री ३)। °दारिणी स्त्री [°दा- रिणी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३९)। °नई देखो °णई (सुपा ६३५)। °पक्खंदण न [°प्रस्कन्दन] पहाड़ पर से गिरना (निचू ११)। °यडय न [°कटक] पर्वत का मव्य भाग (गउड)। °पब्भार पुं [°प्राग्भार] पर्वत-नितम्ब (संथा)। °राय पुं [°राज] मेरु पर्वत (इक)। °वर पुं [°वर] प्रधान पर्वंत, उत्तम पहाड़ (सुपा १७६)। °वरिंद पुं [°वरेन्द्र] मेरु पर्वत (श्रा २७)। सुआ स्त्री [°सुता] पार्वती, गौरी (पिंग)

गिरि :: पुं [दे] बीज-कोश (दे ६, १४८)।

गिरिंद :: पुं [गिरीन्द्र] १ श्रेष्ठ पर्वंत। २ मेरु पर्वंत। ३ हिमाचल (कप्पू)

गिरिकन्नी :: देखो गिरि-कण्णी (पव ४)।

गिरिडी :: स्त्री [दे] पशुओं के दाँत को बाँधने का उपकरण-विशेष; 'दंतगहिरिडिं पबंधइ' (सुपा २३७)।

गिरिनयर :: न [गिरिनगर] गिरनार पर्वंत के नीचे का नगर, जो आजकल 'जूनागढ' के नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र १७६)।

गिरिफुल्लिय :: न [गिरिपुष्पित] नगर-विशेष (पिंड ४६१)।

गिरिस :: पुं [गिरिश] महादेश, शिव (पाअ; दे, ६, १२१)। °वास पुं [°वास] कैलाश पर्वत (से ६, ७५)।

गिरीस :: पुं [गिरीश] १ हिमालय पर्वत। २ महादेव, शिव (पिंग)

गिल :: सक [ग] गिलना, निगलना, भक्षण करना। संकृ. गिलिऊण (नाट)।

गिलण :: न [गरण] निगरण, भक्षण (हे ४, ४४५)।

गिला, गिलाअ :: अक [गलै] १ ग्लान होना, बीमार होना। २ खिन्‍न होना, थक जाना। ३ उदासीन होना। गिलाइ, गिलायइ, गिला- एमि (भग; कस; आचा)। वकृ. गिलायमाण (ठा ३, ३)

गिला :: स्त्री [ग्लानि] १ बीमारी, रोग। २ खेद, थकावट (ठा ८)

गिलाण :: देखो गिलाअ; 'गिलाणइ कज्जे' (स ७१७)।

गिलाण :: वि [ग्लान] १ बीमार, रोगी (सूअ १, ३, ३) २ अशक्त, असमर्थं, थका हुआ (ठा ३, ४) ३ उदासीन, हर्षं-रहित (णाया १, १३; हे २, १०६)

गिलाणि :: स्त्री [ग्लानि] ग्लानि, खेद, थकावट (ठा ५, १)।

गिलायय :: वि [ग्लायक] ग्लानि-युक्त, लान (औप)।

गिलासि :: पुंस्त्री [ग्रासिन्] व्याधि-विशेष, भस्मक रोग (आचा)। स्त्री. °णी (आचा)।

गिलिअ :: वि [गिलित] निगला हुआ, भक्षितॉ (सुपा ३, २०९; सुपा ६४०)।

गिलिअवंत :: वि [गिलितवत्] जिसने भक्षण किया हो वह (पि ५६९)।

गिलोइया, गिलोई :: स्त्री [दे] गृह-गोधा, छिपकली (सुपा ६४०; पुप्फ २६७)।

गिल्लि :: स्त्री [दे] १ हाथी की पीठ पर कसा जाता होदा, हौदा (णाया १, १ — पत्र ४३ टी; औप) २ डोली, दो आदमी से उठाई जाती एक प्रकार की शिविका (सूअ २, २; दसा ६)

गिव्वाण :: पुं [गीर्वाण] देव, सुर, त्रिदश (उप ५३० टी)।

गिह :: न [गृह] घर, मकान (आचा; श्रा २३; स्वप्‍न ९४)। °त्थ पुंस्त्री [स्थ] गृहस्थ, गृही, संसारी (कप्प; द्र ५)। स्त्री. °त्था (पउम ४६, ३३)। °नाह पुं [°नाथ] घर का मालिक (श्रा २८)। °लिंगि पुंस्त्री [°लि- ङ्गिन्] गृहस्थ, गृही, संसारी (दंस)। °वइ पुंस्त्री [°पति] गृहस्थ, गृही, घर का मालिक (ठा ५, ३; सुपा २३४)। °वास पुं [°वास] १ घर में निवास। २ द्वितीयाश्रम, संसारिपन; 'गिहवासं पासं पिव मन्‍नंतो वसइ दुक्खिओ तम्मि' (धम्म; सूअ १, ९)। °वट्ट पुं [°वर्त्त] द्वितीय आश्रम, संसारिपन (सूअ १, ४, १)। °सम पुं [°श्रम] घर- वास, द्वितीयाश्रम (स १४८)

गिहिकोइला :: स्त्री [गृहकोकिला] गृहगोधा, छिपकली (स ७५८)।

गिहमेहि :: पुं [गृहमेधिन्] गृहस्थ (धर्मंवि २६)।

गिहवइ :: पुं [गृहपति] देश का अधिपति, सूबे- दार; 'तह गिहवईवि देस्स नायगो' (पव ८५)।

गिहि :: पुं [गृहिन्] गृही, संसारी, गृहस्थ (ओघ १७ भा; नव ४३)। °धम्म पुं [°धर्म] गृहस्थ-धर्म, श्रावक-धर्म (राज)। °लिंग न [°लिङ्ग] गृहस्थ का वेश (बृह १)।

गिहिणी :: स्त्री [गृहिणी] गृहिणी, भार्या, स्त्री (सुपा ८३; श्रा १६)।

गिहीअ :: वि [गृहीत] आत्त, उपात्त, ग्रहण किया हुआ (स ४२८)।

गिहेलुग :: देखो गिहेलुय (आचा २, ५, १, ८)।

गिहेलुय :: पुं [गृहैलुक] देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी (निचू १३)।

गी :: स्त्री [गिर्] वाणी, भाषा, वाक्; 'थिरमुज्जलं च छायाघणं च गीविलसियं जस्सं' (गउड)।

गीआ :: स्त्री [गीता] श्रीमद्भगवद्‍गीता, ज्ञानमय उपदेश, छन्द-विशेष (पिंग)।

गीइ :: स्त्री [गीति] १ छन्द-विशेष, आर्या-वृत्त का एक भेद। २ गान, गीत (टा ७; उप १३० टी)

गीइया :: स्त्री [गीतिका] ऊपर देखो (औप; णाया १, १)।

गीय :: वि [गीत] १ पद्म-मय वाक्य, गेय, जो गाया जाय वह (पणह २, ५; अणु)| २ कथित, प्रतिपादित (णाया १, १) ३ प्रसिद्ध, विख्यात (संथा) ४ न. गान, ताल और बाजे के अनुसार गाना (जं २; उत्त १) ५ संगीत-कला, गान-कला, संगीत-शास्त्र का परिज्ञान (णाया १, १) ६ पुं. गीतार्थ, उत्सर्ग और अपवाद वगैरह का जानकार जैन साधु, विद्वान् जैन मुनि (उप ७७३) °जस पुं [°यशस्] इन्द्र-विशेष, गन्धर्वं देवों का एक इन्द्र (ठा २, ३; इक)। °त्थ पुं [°र्थ] १ विद्वान् जैन मुनि (उप ८३३ टी; वव ४; सुपा १२७) २ संगीत-रहस्य (मै १४) °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (पउम ५५, ५३)। °रइ स्त्री [°रति] १ संगीत-क्रीड़ा (औप) २ पुं. गन्धर्वं देवों का एक इन्द्र (इक, भग, ३, ८) ३ गन्धर्व-सेना का अधिपति देव-विशेष (ठा ७) ४ वि. संगीत- प्रिय, गान-प्रिय (विपा १, २)

गीवा :: स्त्री [ग्रीवा] कण्ठ, गरदन (पाअ)।

गुंछ :: देखो गुच्छ (हे १, २६)।

गुंछा :: स्त्री [दे] १ बिन्दु। २ दाढ़ी-मूँछ। ३ अधम, नीच (दे २, १०१)

गुंज :: अक [हस्] हँसना, हास्य करना। गुंजइ (हे ४, १९६)।

गुंज :: अक [गुञ्ज्] १ गुन-गुन करना, भ्रमर आदि का आवाज करना। २ गर्जंना, सिंह वगैरह का आवाज करना; 'गुंजंति सोहा' (महा)। वकृ. गुंजंत (णाया १, १ — पत्र ५ रंभा)

गुंज :: पुं [गुञ्ज] १ गुञ्जारव करता वायु (पउम १३, ४३) २ पर्वत-विशेष; 'गुंजवरपव्वयं ते' (पउम ८, ९०; ९४)

गुंजा :: स्त्री [गुञ्जा] १ लता-विशेष (सुर २, ६) २ फल-विशेष, घुँधची (णाया १, १ ; गा ३१०) ३ भम्भा, वाद्य-विशेष (आचा) ४ परिमाण-विशेष (ठा ४, १) ५ गुञ्जारव, गुंजन, गुन-गुन आवाज; 'गुंजाचक्ककुह- रोगगूढं' (राय) ६ वायु-विशेष, गुञ्जारव करनेवाला वायु (जीव १; जी ७) °फल, °हल न [°फल] फल-विशेष, घुंघची (सुर २, ६; सुपा २६१)

गुंजालिआ :: स्त्री [गुञ्जालिका] गंभीर तथा टेढ़ी वापी — वावली या बावड़ी (आचा २, ३, ३, १)।

गुंजालिया :: स्त्री [गुञ्जालिका] वक्र-सारिणी, टेढ़ी कियारी (णाया १, १)। २ गोल पुष्करिणी (निचू १२) ३ वक्र नदी (पणण ११)

गुंजाविअ :: वि [हासित] हँसाया हुआ (कुमा ७, ४१)।

गुंजिअ :: न [गुञ्जित] गुन-गुन आवाज, भ्रमर वगैरह का शब्द (कुमा)।

गुंजिर :: वि [गुञ्जितृ] गुन-गुन आवाज करनेवाला (उप १०३१ टी)।

गुंजुल्ल :: देखो गुंजोल्ल गुंज्जल्लइ (हे ४, २०२)।

गुंजेल्लिअ :: वि [दे] पिण्डीकृत, इकट्ठा किया हुआ (दे २, ९२)।

गुंजोल्ल :: सक [वि + लुल्] बिखेरना। गुंजो- ल्लइ (प्राकृ ७३)।

गुंजोल्ल :: अक [उत् + लस्] उल्लास पाना, विकसित होना। गुंजाल्लइ (हे ४, २०२)।

गुंजोल्लिअ :: वि [उल्लसित] विकसित, विक- सित (कुमा)।

गुंठ :: सक [उद् + धूलय्, गुण्ठ्] धूल वाला करना, धूली के रंग का करना, धूस- रित करना। गुंठइ (हे ४, २९)। वकृ. गुंठंत (कुमा)।

गुंठ :: पुं [दे] अधम अश्‍व, दुष्ट घोड़ा (दे २, ९१; स ४५४)। २ वि. मायावी, कपटी (वव ३)

गुंठा :: स्त्री [दे] माया, दम्भ, छल (वव ३)।

गुंठिअ :: वि [गुण्ठित] १ धूसरित। २ व्याप्त ३ आच्छादित (दे १, ८५)

गुंठी :: स्त्री [दे] नीरंगी, स्त्री का वस्त्र-विशेष (दे २, ९०)।

गुंड :: न [दे] मुस्ता से उत्पन्न होनेवाला तृण- विशेष (दे २, ९१)।

गुंडण :: न [गुण्डन] धूलि का लेप, धूल का शरीर में लगाना; 'रयरेणुगुंडणाणि य नो सम्मं सहस्सि' (णाया १, १ — पत्र ७१)।

गुंडिअ :: वि [गुण्डित] १ धूलि-लिप्त, धूलि- युक्त (पाअ) २ लिप्त, पता हुआ; 'चुण्ण गुंडिअगातं' (विपा १, २ — पत्र २४) ३ घिरा हुआ; 'सउणी जह पसुगुडिया' (सूअ १, २, १) ४ आच्छादित, प्रावृत (आवा) ५ प्रेरित (पणह १, ३)

गुंथण :: न [ग्रन्थन] गूँथना, गठना (रयण १८)।

गुंद :: पुं [गुन्द्र] वृक्ष-विशेष (पाअ)।

गुंदल :: न [दे. गुन्दल] १ आनन्द-ध्वनि, खुशी की आवाज, हर्षं की तुमुलध्वनि; 'मत्त- वरकामिणीसंघकयगुंदलं' (सुर ३, ११५)। 'कारिणीहिं कलहेहिं य खणमेक्कं हरिसगुंदलं काउं' (सुाप १३७) २ हर्षं-भर, आनन्द- संदोह, खुशो की वृद्धि; 'अमंदआणंदगुंदल- पुरुव्वं' 'आणंदगुंदलेणं ललइ लीलावईहिं परिकलिओ' (सुपा २२; १३६)। वि. आनन्द- मग्‍न, खुशी में लीन; 'तं तह दट्‍ठुं आणंद- गुंदलं' (सुपा १३४)

गुंदवडय :: न [दे] एक प्रकार की मिठाई, गुज- राती में जिसको 'गुंदवडा' कहते हैं (सुपा ४८५)।

गुंदा, गुंपा :: स्त्री [दे] १ बिन्दु २ अधम, नीच (दे २, १०१)

गुंध :: सक [ग्रन्थ] गठना। गुंधइ (प्राकृ ६३)।

गुंफ :: सक [गिम्फ्] गूँथना, गठना। गुंफइ (षड्) वकृ. गुंफुंत (कुमा)।

गुंफ :: पुं [गुम्फ] १ रचना, गूंथना, ग्रन्थन (उप १०३१ टी; दे १, १५०; ६, १४२)

गुंफ :: पुं [दे] गुप्ति, कारागार, जेल (दे २, ९०)।

गुंफण :: न [दे] गोफन, पत्थर फेंकने का अस्त्र- विशेष; 'गुंफणफेरणसुंकारएहिं' (सुर २, ८)।

गुंफी :: स्त्री [दे] शतपदी, क्षुद्र कीट-विशेष, गोजर, कनखजूरा (दे २, ९१)।

गुग्गुल :: पुं [गुग्गुल] सुगन्धित द्रव्य-विशेष, गूगल या गुग्गुल (सुपा १५१)।

गुग्गुली :: स्त्री [गुग्गुल] गूगल का पेड़ (जी १०)।

गुग्गुलु :: देखो गुग्गुल (स ४३६)।

गुच्छ, गुच्छय :: पुं [गुच्छ] १ गुच्छा, गुच्छक, स्तबक (उत्त २; स्वप्‍न ७२) २ वृक्षों की एक जाति (पणण १) ३ पत्तों का समूह (जं १)

गुच्छय :: देखो गोच्छय (ओघ ६६८)।

गुच्छिय :: वि [गुच्छित] गुच्छा वाला, गुच्छ- युक्त; 'निच्चं गुच्छिया' (राय)।

गुज्ज :: देखो गोज्ज (सुपा २८१)।

गुज्जर :: पुं [गूजर] १ भारत का एक प्रान्त, गुजरात देश (पिंग) २ वि. गुजरात का निवासी। स्त्री. °री (नाट)

गुज्जरत्ता :: स्त्री [गूर्जरत्रा] गुजरात देश (सार्धं ६८)।

गुज्जलिअ :: वि [दे] संघटित (षड्)।

गुज्झ :: पुं [गुह्य] एक देव-जाति (दस ७, ५३)।

गुज्झ, गुज्झअ :: वि [गुह्य] १ गोपनीय, छिपाने योग्य (णाया १, १; हे २, १२४) २ न. गुप्त बात, रहस्य; 'सिमंतिणिहिययगयं गुज्झं पिव तक्खणा फुट्टं' (उप ७२८ टी) ३ लिंग, पुरुष-चिह्ण। ४ योनि, स्त्री-चिह्ण (धर्मं २) ५ मैथुन, संभोग (पणह १, ४)। °हर वि [°धर] गुप्त बात को प्रकट नहीं करनेवाला (दे २ ४३)। °हर वि [°हर] रहस्य- भेदी, गुप्त बात को प्रसिद्ध करनेवाला (दे २, ९३)

गुज्झअ, गुज्झग :: पुं [गुह्यक] देवों की एक जाति (ठा ५, ३)।

गुट्ठ :: न. [दे] स्तम्ब, तृण-काण्ड; 'अज्जुण- गुट्ठ व तस्स जाणूइं' (उवा)।

गुट्ठ :: देखो गोट्ठ (पाअ; भत्त १६२)।

गुट्ठी :: देखो गोट्ठी (सूक्त ५८)।

गुड :: सक [गुड्] १ हाथी को कवच वगैरह से सजाना। २ लड़ाई के लिए तय्यार करना, सजाना; 'गुडह गइंदे पउणीकरेह रहचक्कपा- इक्के' (सुपा २८८)। कवकृ. 'गुडिअगुडिज्जं- तभडं' (से १२, ८७)

गुड :: सक [गुड्] नियन्त्रण करना। गुडेइ (संबोध ५४)।

गुड :: पुं [गुड] १ गुड़, ईख का विकार, लाल शक्कर (हे १, २०२; प्रासू १५१) २ एक प्रकार का कवच (राज)। °सत्थ न [°सार्थ] नगर-विशेष (आक)

गुडदालिअ :: वि [दे] पिण्डीकृत, इकट्ठा किया हुआ (दे २, ९२)।

गुडा :: स्त्री [गुडा] १ हाथी का कवच। २ अश्व का कवच (विपा १, २)

गुडिअ :: वि [गुडित] कवचित, वर्मित, कृत- संनाह (से १२, ७३; ८७; विपा १, २)।

गुडिआ :: स्त्री [गुटिका] गाली (गा १७७)।

गुडीलद्धिआ :: स्त्री [दे] चुम्बन (दे २, ९१)।

गुड्डर :: पुंन [दे] खीमा, या खेमा, तंबु, डेरा, वस्त्र-गृह (सिरि ४८२; ९४४)।

गुण :: सक [गुणय्] १ गिनना। २ आवृत्ति करना, याद करना। गुणइ (सूक्त ५१; हे ४, ४२२), गुणेइ (उव)। वकृ. गुणमाण (उप पृ ३९९)

गुण :: पुं [गुण] उच्चारण (सूअनि २०)। २ रसना, मेखला (आचा २, २, १, ७)

गुण :: पुंन [गुण] १ गुण, पर्याय, स्वभाव, धर्मं (ठा ५, ३) २ ज्ञान, सुख वगैरह एक ही साथ रहनेवाला धर्मं (सम्म १०७; १०९) ३ ज्ञान, विनय, दान, शौर्यं, सदाचार वगैरह दोष-प्रतिपक्षी पदार्थ (कुमा; उत्त १९; अणु; ठा ४, ३; से १, ४) ४ लाभ, फायदा; 'विहेवेहिीं गुणाइं मग्गंति' (हे १, ३४, सुपा १०३) ५ प्रशस्तता, प्रशंसा (णाया १, १) ६ रज्जु, डोरा, धागा (से १, ४) ७ व्याकरण-प्रसिद्ध ए, आ और अर् रूप स्वर-विकार (सुपा १०३) ८ जैन गृहस्थ को पालने का व्रत विशेष, गुण-व्रत (पंचव ३) ९ रूप, रस, गन्ध वगैरह द्रव्याश्रित धर्मं; 'गुण-पच्चक्खत्तणाआ गुणीवि जाओ घडाव्व पच्चक्खो' (ठा १, १; उत्त १८) १० प्रत्यञ्चा, धनुष का रोदा (कुमा) ११ कार्यं, प्रयोजन (भग २, १०) १२ अप्रधान, अमुख्य, गौण (हे १, ३४) १३ अंश, विभाग (अणु) १४ उपकार, हित (पंचा ५) °कर वि [°कर] १ लाभ-कारक। २ उपकार-कारक (पंचा ५) °कार पुं [°कार] गुणा करना, अभ्यास-राशि (सम ९०)।°चंद पुं [°चन्द्र] १ एक राजकुमार (आवम) २ एक जैन मुनि और ग्रन्थकार। ३ श्रेष्ठि-विशेष (राज) °ट्ठाण न [°स्थान] गुणों का स्वरूप-विशेष, मिथ्यादृष्टि वगैरह चउदह गुण-स्थानक (कम्म ४; पव ९०)। °ट्ठिअ पुं [°र्थिक] गुण को प्रधान माननेवाला मत, नय-विशेष (सम्म १०७)। °ड्‍ढ वि [°ढय] गुणी, गुणवान् (सुर ३, २०; १३०)। °ण्ण, °ण्णु, °न्‍न, °न्‍नु वि [°ज्ञ] गुण का जानकार (गउड; उवर ८९; उप ५३० टी; सुपा १२२)। °पुरिस पुं [°पुरुष] गुणी पुरुष (सूअ १, ४)। °मंत वि [°वत्] गुणी, गुण-युक्त (आचा २, १, ९)। °रयणसं- वच्छर न [°रत्‍नसंवत्सर] तपश्‍चर्या-विशेष (भग)। °व, °वंत वि [°वत्] गुणी, गुण-युक्त (श्रा ३९; उप ८७५)। °व्वय न [व्रत] जैन गृहस्थ को पालने योग्य-व्रत- विशेष (पडि)। °सिलय न [°शिलक] राजगृह नगर का एक चैत्य (णाया १, १)। °सेढि स्त्री [°श्रेणी] कर्मं-पुद्‍गलों की रचना- विशेष (पंच)। °सेण पुं [°सेन] इस नाम का एक प्रसिद्ध राजा (स ६)। °हर वि [°धर] १ गुणों को धारण करनेवाला, गुणी। २ तन्तु-धारक। स्त्री. °रा (सुपा ३२७)। °यर पुं [°कर] गुणों की खान, अनेक गुणवाला, गुणी (पउम १५, ६८; प्रासू १३४)

गुण :: देखो एगूण; 'गुणसट्ठि अपमत्ते सुराउबंधं तु जइ इहागच्छे' (कम्म २, ८; ४, ५४; ५६; श्रा ४४)।

°गुण :: वि [°गुण] गुना, आवृत्त; 'वीसगुणो तीसगुणो' (कुमा; प्रासू २६)।

गुणण :: न [गुणन] १ गुणकार (पव २३६) २ ग्रन्थ-परावर्तंन, आवृत्ति; 'गुणणु (? गुण- णणु)। प्पेहासु अ असत्तो' (पिंड ६६४)

गुणणा :: स्त्री [गुणना] ऊपर देखो (सम्यक्त्वो १५)।

गुणयालीस :: स्त्रीन [एकोनचत्वारिंशत्] उनचालीस, ३९ (राय ५९)।

गुणबुडि्ढ :: स्त्री [गुणवृद्धि] लगातार आठ दिनों का उपवास (संबोध ५८)।

गुणसेण :: पुं [गुणसेन] एक जैन आचार्यं जो सुप्रसिद्ध हेमाचार्यं के प्रगुरु थे (कुप्र १९)।

गुणा :: स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष (भवि)।

गुणाविय :: वि [गुणित] पढ़ाया हुआ, पाठित; 'तत्थ सो अज्जएण सयलाओ धणुव्वेयाइयाओ महत्थविज्जाओ गुणाविओ' (महा)।

गुणि :: वि [गुणिन्] गुण-युक्त, गुणवाला (उप ५९७ टी; गउड; प्रासू २९)।

गुणिअ :: वि [गुणित] १ गुना हुआ, जिसका गउण किया गया हो वह (श्रा ९) २ चिंतित, याद किया हुआ (से ११, ३१) ३ पठित अधीत (ओघ ६२) ४ जिस पाठ की आवृत्ति की गई हो वह, परावर्तित (वव ३)

गुणिल्ल :: वि [गुणवत्] गुणी, गुण-युक्त (पि ५९५)।

गुण्ण :: देखो गोण्ण (अणु १४०)।

गुण्ह :: (अप) देखो गिण्ह। युणहइ (प्राकृ ११९)।

गुत्त :: न [गोत्र] साधुत्व, साधुपन (सूअ २, ७, १०)।

गुत्त :: वि [गुप्त] गुप्त, प्रच्छन्न, छिपा हुआ (णाया १, ४; सुर ७, २३४)। २ रक्षित (उत्त १५) ३ स्व-पर की रक्षा करनेवाला, गुप्ति- युक्त, मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्तिवाला (उप ६०४) ४ एक स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य (आक)

गुत्त :: देखो गोत्त (पाअ; भग; आवम)।

गुत्तण्हाण :: न [दे] पितृ-तर्पण (दे २, ९३)।

गुत्ति :: स्त्री [गुप्ति] १ कैदखाना, जेल (सुर १, ७३; सुपा ९३) २ कठघरा (सुपा ९३) ३ मन, बचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना। ४ मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्ति ठा २, १; सम ८)।°गुत्त वि [°गुप्त] मन वगैरह की निर्दोष प्रवृत्तिवाला, संयत (पणह २, ४)। °पाल पुं [°पाल] जेल का रक्षक, कैदखाना का अध्यक्ष (सुपा ४६७)। °सेण पुं [°सेन] ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न एक जिनदेव (सम १५३)

गुत्ति :: स्त्री [गुप्ति] गोपन, रक्षण (गु १२)।

गुत्ति :: स्त्री [दे] १ बन्धन (दे २, १०१; भवि) २ इच्छा, अभिलाषा। ३ वचन, आवाज। ४ लता, वल्ली। ५ सिर पर पहनी जाती फूल की माला (दे २, १०१)

गुत्तिंदिय :: वि [गुप्तेन्द्रिय] इंद्रिय-निग्रह करने वाला, संयतेद्रिय (भग; णाया १, ४)।

गुत्तिय :: वि [गौप्तिक] रक्षक, रक्षण करनेवाला; 'नगरगुत्तिए सद्दावेइ' (कप्प)।

गुत्तिय :: वि [गौत्रिक] गोती, समान गोत्रवाला, गोतिया (कुप्र ३४४)।

गुत्तिवाल :: देखो गुत्ति-पाल (धर्मंवि २६)।

गुत्थ :: वि [ग्रथित] गुम्फित, गूँथा हुआ (स ३०३; प्राप; गा ६३; कम्पू)।

गुत्थंड :: पुं [दे] भास-पक्षि, पक्षि-विशेष (दे २, ९२)।

गुद :: पुंस्त्री [गुद] गाँड़, गुदा (दे ६, ४९)।

गुद्दह :: न [गोद्रह] नगर-विशेष (मोह ८८)।

गुप्प :: अक [गुप्] व्याकुल होना। गुप्पइ (हे ४, १५०; षड्)। वकृ. गुप्पंत, गुप्पमाण (कुमा ६, १०२; कप्प; औप)।

गुप्प :: वि [गोप्य] १ छिपाने योग्य। २ न एकान्त, विजन (ठा ४, १)

गुप्पई :: स्त्री [गोष्पदी] गौ का पैर डूबे उतना गहरा, 'को उत्तरिउं जलहिं, निब्बुड्डए गुप्पई- नीरे' (धम्म १२ टी)।

गुप्पंत :: न [दे] १ शयनीय, शय्या। २ वि. गोपित, रक्षित (दे २, १०२) ३ संमूढ़, मुग्ध, घबड़ाया हुआ, व्याकुल (दे २, १०२; से १, २; २, ४)

गुप्पय :: देखो गो-पय (सूक्त ११)।

गुप्फ :: पुं [गुल्फ] फीली, पैर की गाँठ (स ३३; हे २, ९०)।

गुफगुमिअ :: वि [दे] सुगन्धी, सुगन्ध-युक्त (दे २, ९३)।

गुब्भ :: देखो गुप्फ (षड्)।

गुभ :: सक [गुफ्] गूँथना, गठना। गुभइ (हे १, २३६)।

गुभ :: सक [भ्रम्] घूमना, पर्यंटन करना, भ्रमण करना। गुमइ (हे ४, १६१)।

गुमगुम, गुमगुमाअ :: अक [गुमगुमाय्] १ 'गुम- गुम' आवाज करना। २ मधुर अव्यक्त ध्वनि करना। वकृ. गुमगुमंत, गुमगुमिंत, गुमगुमायंत (औप; णाया १, १; कप्प; पउम ३३, ९)

गुमगुमाइय :: वि [गुमगुमायित] जिसने 'गुम-गुम' आवाज किया हो वह (औप)।

गुमिअ :: वि [भ्रमित] भ्रमित, घुमाया हुआ (कुमा)।

गुमिल :: वि [दे] १ मूढ़, मुग्ध। २ गहन, गहरा। ३ प्रस्खलित। ४ आपूर्णं, भरपूर (दे २, १०२)

गुमुगुमुगुम :: देखो गुमगुम। वकृ. गुमुगुमु- गुमंत, गुमुगुमुगुमेंत (पउम २, ४०; ९२, ९)।

गुम्म :: अक [मुह्] मुग्ध होना, घबड़ाना, व्याकुल होना। गुम्मइ (हे ४, २०७)।

गुम्म :: पुं [गुल्म] परिवार, परिकर; 'इत्थी- गुम्मसंपरिवुडे' (सूअ २, २, ५५)।

गुम्म :: पुंन [गुल्म] १ लता, वल्ली, वनस्पति- विशेष (पणण १) २ झाड़ी, वृक्ष-घटा (पाअ) ३ सेना-विशेष, जिसमें २७ हाथी, २७ रथ, ८१ घोड़ा और १३५ प्यादा हों ऐसी सेना (पउम ५६, ५) ४ वृन्द, समूह (औप; सूअ २, २) ५ गच्छ का एक हिस्सा, जैनमुनि-समाज का एक अंश (औप) ६ स्थान, जगह (ओघ १९३)

गुम्मइअ :: वि [दे] १ मूढ़, मूर्खं (दे २, १०३; ओघ १३६; पाअ; षड्) २ अपूरित, पूर्ण नहीं किया हुआ (षड्) ३ पूरित, पूर्णं किया हुआ (दे २, १०३) ४ स्खलित। ५ संचलित, मूल से उच्चलित। ६ विघटित, वियुक्त (दे २, १०३; षड्)

गुम्मड :: देखो गुम्म। गुम्मडइ (हे ४, २०७)।

गुम्मडिअ :: वि [मोहित] मोह-युक्त, मुग्ध किया हुआ (कुमा ७, ४७)।

गुम्मागुम्मि :: अ. जत्थाबन्ध होकर (औप)।

गुम्मिअ :: वि [मुग्ध] १ मोह-प्राप्त, मूढ़ (कुमा ७, ४७) २ घूर्णित, मद से घूमता हुआ (बृह १)

गुम्मिअ :: पुं [गौल्मिक] कोतवाल, नगर- रक्षक (ओघ १९३; ७६६)।

गुम्मिअ :: वि [दे] मूल से उखाड़ा हुआ, उन्मु- लित (दे २, ९२)।

गुम्मी :: स्त्री [दे] इच्छा, अभिलाषा (दे २, ९०)।

गुम्मी :: स्त्री [गुल्मी] शतपदी, यूका, खटमल, जूँ (उत्त ३६, १३९; सुख ३६, १३९)।

गुम्ह :: सक [गुम्फ्] गूँथना, गठना। गुम्हदु (शौ) (स्वप्‍न ५३)।

गुह्य :: देखो गुज्झ (हे २, १२४)।

गुरव :: देखो गुरु; 'जो वुरवे साहीणे धम्मं साहेइ पोढबुद्धिओ' (पउम ६, ११४)।

गुरु, गुरुअ :: पुं [गुरु] १ शिक्षक, विद्या-दाता, पढ़ानेवाला (वव १; अणु) २ धर्मोपदेशक, धर्माचार्य (विसे ९३०) ३ माता, पिता वगैरह पूज्य लोग (ठा १०) ४ बृहस्पति, ग्रह-विशेष (पउम १७, १०८; कुमा) ५ स्वर विशेष, दो मात्रावाला आ, ई वगैरह स्वर, जिसके पीछे अनुस्वार या संयुक्त व्यञ्जन हो ऐसा भी स्वर-वर्ण (पिंग) ६ वि. बड़ा, महान् (उवा; से ३, ३८) ७ भारी, बोझिल (ठा १, १; कम्म १) ८ उत्कृष्ट, उत्तम (कम्म ४, ७२; ७९) °कम्म वि [°कर्मन्] कर्मो का बोझवाला, पापी (सुपा २६५)।°कुल न [°कुल] १ धर्मा- चार्यं का सामीप्य (पंचा ११) २ गुरु- परिवार (उप ६७७)। °गइ स्त्री [°गति] गति-विशेष, भारीपन से ऊँचा-नीचा गमन (ठा ८)। °लाघव न [°लाघव] सारासार, अच्छा और बुरापन (वव ४)। °सज्झिल्लग पुं [°सहाध्यायिक] गुरु के भाई (बृह ४)

गुरुई :: देखो गरुई (णाया १, १)।

गुरुणी :: स्त्री [गुर्वी] १ गुरु-स्थानीय स्त्री (सुर ११, २११) २ धर्मोपदेशिका, साध्वी (उप ७२८ टी)

गुरेड :: न [गुरेट] तृण-विशेष (दे १, ५४)।

गुल :: देखो गुड = गुड (ठा ३, १; ९; णाया १, ८; गा ५५४; औप)।

गुल :: न [दे] चुम्बन (दे २, ९१)।

गुलगुंछ :: सक [उत् + क्षिप्] ऊँचा फेंकना। गुलगुँछइ (हे ४, १४४)। संकृ. गुलगुंछिऊण (कुमा)।

गुलगुंछ :: देखो गुलुगुंछ = उद् + नमय्। गुलगुंछइ (हे ४, ३६)।

गुलगुल :: अक [गुलगुलाय्] 'गुलगुल' आवाज करना, हाथी का हर्षं से चिंघाड़ना या बोलना। वकृ. गुलगुलंत, गुलगुलेंत (उप १०३१ टी; उवा; पउम ८, १७१; १०२; २०)।

गुलगुलाइअ, गुलगुलिय :: न [गुलगुलायित] हाथी की गर्जंना (जं ५; सुपा १३७)।

गुलल :: सक [चाटौकृ] खुशामद करना। गुल- लइ (हे ४, ७३)। वकृ. गुललंत (कुमा)।

गुललावणिया :: स्त्री [गुडलावणिका] एक तरह की मिठाई, गोलपापड़ी। २ गुड़धाना (पव २५९; सुज्ज २० टी)

गुलहाणिया :: स्त्री [गुडधानिका] खाद्य-विशेष (पव ४)।

गुलिअ :: वि [दे] मथित, विलोड़ित (दे २, १०३; षड्)। २ पुं. गेंद, कन्दुक; 'कंदुओ गुलिओ' (पाअ)।

गुलिआ :: स्त्री [दे] १ बुसिका। २ गेंद, कन्दुक। ३ स्तबक, गुच्छा (दे २, १०३)

गुलिआ :: स्त्री [गुलिका] १ गोली, गुटिका (महा; णाया १, १३; सुपा २९२) २ वर्णंक द्रव्य-विशेष, सुगन्धित द्रव्य-विशेष (औप; णाया १, १ — पत्र २४)

गुलुइय :: वि [दे] गुल्मित, गुल्मवाला, लता समूहवाला (औप; भग)।

गुलुंछ :: पुं [गुलुञ्छ] गुञ्छ, गुच्छा (दे २, ९२)।

गुलुगुंछ :: देखो गुलगुँछ = उत् + क्षिप्। गुलु गुंछइ (हे ४, १४४)।

गुलुगुंछ :: सक [उत् + नमय्] ऊँचा करना, उन्नत करना। गुलुगुंछइ (हे ४, ३६)।

गुलुगुंछिअ :: वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ, उन्नमित (दे २, ९३; कुमा)।

गुलुगुंछिअ :: वि [दे] बाड़ से अन्तरित (दे २, ९३)।

गुलगुल :: देखो गुलगुल। गुलुगुलंत (भवि)। वकृ. गुलुगुलेंत (पि ५५८)।

गुलुगुलाइय, गुलुगुलिय :: देखो गुलगुलाइआ (औप; पणह १, ३; स ३६९)।

गुलुच्छ :: वि [दे] भ्रमित, घुमाया हुआ, (दे २, ९२)।

गुलुच्छ :: पुं [गुलुच्छ] गुच्छा, स्तबक (पाअ)।

गुल्लइय :: वि [गुल्मवत्] लता-समूहवाला, गुल्म-युक्त (णाया १, १ — पत्र ५)।

गुव :: देखो गुप्त = गुप्। गुवंति (भग १५)।

°गुवलय :: देखो कुवलय; 'मुद्दियगुवलयनिहाणं' (णंदि)।

गुवालिया :: [दे] देखो गोआलिआ (जी १७)।

गुविअ :: वि [गुप्त] व्याकुल, क्षुब्ध (ठा ३, ४ — पत्र १६१)।

गुविल :: वि [गुपिल] १ गहन, गहरा, गाढ़, निबिड़ (सुर ६, ६९; उप पु ३०; पणह १, ३) २ न. झाड़ी, जंगल (उप ८३३ टी); 'इक्को करइ कम्मं, इक्को अणुहवइ दुक्कयविभारं। इक्को संसरइ जिओ, जरमरणचउग्गइगुविलं' (पच्च ४४)

गुविल :: वि [दे] चीनी का बना हुआ, मिस्त्रीवाला (मिष्टान्न) (उर ५, १०)।

गुव्विणी :: स्त्री [गुर्विणी] गर्भंवती स्त्री (सुपा २७७)।

गुह :: देखो गुभ। गुहइ (हे १, २३६)।

गुह :: पुं [गुह्] कार्त्तिकेय, एक शिव-पुत्र (पाअ)।

गुहा :: स्त्री [गुहा] गुफा, कन्दरा (पाअ; ठा २, ३; प्रासू २७१)।

गुहिर :: वि [दे] गम्भीर, गहरा (पाअ; कप्प)।

गूढ :: वि [गूढ] गुप्त, प्रच्छन्न, छिपा हुआ (पणह १, ४; जी १०)। °दंत पुं [°दन्त] १ एक अन्तर्द्वीप, द्वीप-विशेष। २ द्वीप-विशेष का निवासी (ठा ४, २) ३ एक जैन मुनि। ४ 'अनुत्तरोपपातिक दशा' सूत्र का एक अध्य- यन (अनु २) ५ भरत क्षेत्र का एक भावी चक्रवर्त्ती राजा (सम १५४)

गूह :: सक [गूह्] छिपाना, गुप्त रखना। बकृ. गूहंत (स ६१०)।

गूह :: न [गूथ] गू, विष्ठा (तंदु)।

गूहण :: न [गूहन] छिपाना (सम ७१)।

गूहिय :: वि [गूहित] छिपाया हुआ (स १८९)।

गृण्ह, गृन्ह :: (अप) देखो गिण्ह। गृन्हइ (कुमा)। संकृ. गृण्हेप्पिणु (हे ४, ३९४)।

गेअ :: वि [गेय] १ गाने योग्य, गाने लायक, गीत (ठा ४, ४ — पत्र २८७, वज्जा ४४) २ न. गीत, गान; 'मणहरगेयझुणीए' (सुर ३, ६९; गा ३३४)

गेंठुअ :: न [दे] स्तनों के ऊपर की वस्त्र-ग्रन्थि (दे २, ६९)।

गेंठुल्ल :: न [दे] कञ्चुक, चोली (दे २, ९४)।

गेंड :: न [दे] देखो गेंठुअ (दे २, ९३)।

गेंडुई :: स्त्री [दे] क्रीड़ा, खेल, गम्मत, विनोद (दे २, ९४)।

गेंदुअ :: पुं [कन्दुक] गेंद, गेंदा, खेलने की एक वस्तु (हे १, ५७; १८२; सुर १, १२१)।

गेज्ज :: वि [दे] मथित, विलोड़ित (दे २, ८८)।

गेज्जल :: न [दे] ग्रीवा का आभरण (दे २, ९४)।

गेज्झ :: वि [ग्राह्य] ग्रहण-योग्य (हे १, ७८)।

गेडण :: न [दे] १ फेंकना, क्षेपण। २ दे देना; 'तत्तंबगेडणकए ससंभमा आसमाउ लहुं' (उप ६४८ टी)

गेड्ड :: न [दे] १ पङ्क, कीच, काँदो। २ यव, अन्न-विशेष (दे २, १०४)

गेड्डी :: स्त्री [दे] गेड़ी, गेंद खेलने की लकड़ी (कुमा)।

गेण्ह :: देखो गिण्ह। गेणहइ (हे ४, २०९; उव; महा)। भूका. गेरणीअ (कुमा)। भवि. गेणिहस्सइ (महा)। वकृ. गेण्हंत, गेण्हमाण (सुर ३, ७४; विपा १, १)। संकृ. गोण्हित्ता, गेण्हिऊण, गोण्हिअ (भग; पि ५८६; कुमा)। कृ. गेण्हियव्व (उत्त १)।

गेण्हण :: न [ग्रहण] आदान, उपादान, लेना (उप ३३६; स ३७५)।

गेण्हणया :: स्त्री [ग्रहणा] ग्रहण, आदान (उप ५२९)।

गेण्हाविय :: वि [ग्राहित] ग्रहण कराया हुआ (स ५२९; महा)।

गोण्हिअ :: न [दे] उरः-सूत्र, स्तनाच्छादक-वस्त्र (दे २, ९४)।

गेद्ध :: देखो गिद्ध (औप)।

गेरिअ, गेरुअ :: पुंन [गौरिक] १ गेरु, लाल रङ्ग की मिट्टी (स २२३, पि ६०; ११८) २ मणि-विशेष, रत्‍न की एक जाति (पणण १ — पत्र २६) ३ वि. गेरु रंग का (कप्पू) ४ पुं. त्रिदण्डी साधु, संख्या मत का अनुयायी परिव्राजक (पव ९४)

गेलण्ण, गेलन्न :: न [ग्लान्य] रोग, बीमारी, ग्लानि (विसे ५४०; उप ४९६; ओघ ७७; २२१)।

गेविज्ज, गेवेज्ज :: न [ग्रैवेयक] १ ग्रीवा का आभू- षण, गले का गहना (औप, णाया १, २) २ ग्रैवेयक देवों का विमान (ठा ९) ३ पुं. उत्तम श्रेणी के देवों की एक जाति (कप्प; औप; भग; जी ३३; इक)

गेवेय :: देखो गेवेज्ज (आचा २, १३, १)।

गेह :: पुंन [गेह] घर, 'न नई न वणं न उज्जडो 'गेहो' (वज्जा ९८)|

गेह :: न [गेह] गृह, घर, मकान (स्वप्‍न १६; गउड)। °जामाउय पुं [°जामातृक] घर- जमाई, सर्वदा ससुर के घर में रहनेवाला जामाता (उप पृ ३६९)। °गार वि [°कार] १ घर के आकारवाला। २ पुं. कल्पवृक्ष की एक जाति (सम १७)। °लु वि [°वत] घरवाला, गृही, संसारी (षड्)। °सम पुं [°श्रम] गृहस्थाश्रम (पउम ३१, ८३)

गेहि :: वि [गृद्ध] लोलुप, अत्यासक्त (ओघ ८७)।

गेहि :: स्त्री [गृद्धि] आसक्ति, गार्ध्यं, लालच (स ११३; पणह १, ३)।

गेहि :: वि [गेहिन्] नीचे देखो (णाया १; १४)।

गेहिअ :: वि [गेहिक] १ घरवाला, गृही। २ पुं. भर्त्ता, धनी, पति (उत्त २)

गेहिअ :: [गृद्धिक] अत्यासक्त, लोलुपु, लालची (पणह १, ३)।

गेहिणी :: स्त्री [गेहिनी] गृहिणी, स्त्री (सुपा ३४१; कुमा; कप्पू)।

गो :: पुं [गो] भूप, राजा; 'तइओ गो भूपपसुर- स्सिणो त्ति' (वव १)। °माहिसक्क न [°माहिषक] गौ और भैंस का झुंड या समूह 'निव्वुयं गोमाहिसक्कं' (स ६८९)।

गो :: पुं [गो] १ रश्‍मि, किरण (गउड) २ स्वर्गं, देव-भूमि (सुपा १४२) ३ बैल, बलीवर्दं। ४ पशु, जानवर। ५ स्त्री. गैया; 'अपरप्पेरियतिरियानमियदिग्गमणओणिलो गोव्व' (विसे १७५८; पउम १०३, ५०; सुपा २७५) ६ वाणी, वाग् (सूअ १, १३) ७ भूमि; 'जं महइ विंझवणगोयराण लोओ पुर्लिदाण' (गउड; सुपा १४२) °आल देखो °वाल (पुप्फ २१६)। °इल्ल वि [°मत्] गो-युक्त, जिसके पास अनेक गौ हो वह (दे २, ९८)। °उल न [°कुल] १ गौओं का समूह (आव ३) २ गोष्ठ, गो- बाड़ा; 'सामी गोउलगओ' (आवम)। °उलिय वि [°कुलिक] गो-कुलवाला, गो-कुल का मालिक, गोवाला (महा)। °कलंजय न [°किलञ्जक] पात्र-विशेष, जिसमें गौ को खाना दिया जाता है (भग ७, ८)। °कीड पुं [°कीट] पशुओं की मक्खी, बघी (जी १६)। °क्खीर, °खीर न [°क्षीर] गैया का दूध (सम ६०; णाया १, १ )। °ग्गह पुं [°ग्रह्] गाय की चोरी, गौ को छीनना (पणह १, ३)। °ग्गहण न [°ग्रहण] गो-ग्रङण (णाया १, १८). °णेसज्जा स्त्री [°निषद्या] आसन विशेष, गौ की तरह बैठना (ठा १, १)। °तित्थ न [°तीर्थ] १ गौओं का तालाब आदि में उतरने का रास्ता, क्रम से नीची जमीन (जीव ३) २ लवण समुद्र वगैरह की एक जगह (ठा १०) °त्तास वि [°त्रास] १ गौओं को त्रास देनेवाला। २ पुं. एक कूटग्राह का पुत्र (विपा १, २) °दास पुं [°दास] १ एक जैन- मुनि, भद्रबाहु स्वामी का प्रथम शिष्य। २ एक जैनमुनिगण (कप्प; ठा ९) °दोहिया स्त्री [°दोहिका] १ गौ का दोहन। २ आसन विशेष, गौ दुहने के समय जिस तरह बैठा जाता है उस तरह का उपवेशन (ठा ५, १) °दुह वि [°दुह्] गौ को दोहनेवाला (षड्)। °धूलिआ स्त्री [°धूलिका] लग्‍न-विशेष, गौओं को चरा कर लौटने का समय, सायंकाल; 'वेलव्व गोधूलिया' (रंभा)। °पय °प्पय न [°ष्पद] १ गौ का खुर डूबे उतना गहरा; 'लद्धम्मि जम्मि जीवाण जायइ गोपयं व भवजलही' (आप ६६) २ गोपद-परिमित भूमि (अणु) ३ गौ का खुर (ठा ४, ४) °भद्द पुं [°भद्र] श्रेष्ठि-विशेष, शालिभद्र के पिता का नाम (ठा १०)। °भूमि स्त्री [°भूमि] गौओं को चरने की जगह (आवम)। °म वि [°मत्] गौवाला (विसे १४९८)। °मड न [°मृत] गौ का शव (णाया १, ११ — पत्र १७३)। °मय न [°मय] गोवर, गौ का मल, गो-विष्ठा (भग ५, २)। °मुत्तिया स्त्री [°मूत्रिका] १ गौ का मूत्र, गोमूत्र (ओघ ६४ भा) २ गोमूत्र के आकारवाली गृहपंक्ति (पंचव २) °मुहिअ न [°मुखित] गौ के मुख की आकारवाली ढ़ाल (णाया १, १८)। २ रहग पुं [°रथक] तीन वर्ष का बैल (सूअ १, ४, २)। °रोयण स्त्रीन [°रोचन] स्वनाम-ख्यात पीत-वर्णं द्रव्य-विशेष, गोमस्तकस्थित शुष्क-पित्त (सुर १, १३७)। स्त्री. °णा (पंचा ४)। °लेहणिया स्त्री [°लेहनिका] ऊषर भूमि (निचू ३)। °लोम पुं [°लोम] १ गौ का रोम, बाल। २ द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष (जीव १)। °वइ पुं [°पति] १ इन्द्र। २ सूर्य। ३ राजा (सुपा १४२) ४ महादेव। ५ बैल (हे १, २३१)। °वइय पुं [°व्रतिक] गौओं की चर्या का अनुकरण करनेवाला एक प्रकार का तपस्वी (णाया १, १५)। °वय देखो °पय (राज)। °वाड पुं [°वाट] गौओं का बाड़ा (दे २, १४९)। °व्वइय देखो °वइय (औप)। °साला स्त्री [शाला] गौओं का बाड़ा (निचू ८)। °हण न [°धन] गौओं का समूह (गा ६०९; सुर १, ४९)

गोअ :: देखो गोव = गोपय्। कृ. गोअणिज्ज (नाट — मालती १२१)।

गोअंट :: पुं [दे] १ गौ का चरण। २ स्थल- श्रृङ्गाट, स्थल में होनेवाला श्रृङ्गाट या सिंघाड़ा का पेड़ (दे २, ९८)

गोअग्गा :: स्त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे २, ९६)।

गोअल्ला :: स्त्री [दे] दूध बेचनेवाली स्त्री (दे २, ९८)।

गोअर :: पुं [गोचर] छात्रालय (दस ५, २, २)।

गोअलिणी :: स्त्री [गोपालिनी] ग्वालिन, जो मयणभूमिभंडोयरम्मि जुन्हादहीय महणेण। पुन्निमगोअलिणीए मक्खणपिंडुव्व निम्मविओ।' (धर्मंवि ५५)।

गोआ :: स्त्री [गोदा] नदी-विशेष, गोदावरी नदी, 'गोआणइकच्छकुडंगवासिणा दरिअसी- हेण' (गा १७५)।

गोआ :: स्त्री [दे] गगरी, कलशी, छोटा घड़ा (दे २, ८९)।

गोआअरी :: स्त्री [गोदावरी] नदी-विशेष, गोदावरी (गा ३५५)।

गोआलिआ :: स्त्री [दे] वर्षा ऋतु में उत्पन्‍न होनेवाला कीट-विशेष (दे २, ९८)।

गोआवरी :: देखो गोआअरी (हे २, १७४)।

गोउर :: न [गोपुर] नगर या किले का दरवाजा (सम १३७, सुर १, ५६)।

गोउलिय :: वि [गोकुलिक] गो-धन पर नियुक्त पुरुष, गोकुल-रक्षक (कुप्र ३१)।

गोंजी, गोंठी :: स्त्री [दे] मंजरी, बौर (दे २, ९५)।

गोंड :: देखो कोंड = कोण्ड (इक)।

गोंड :: न [दे] कानन, बन, जंगल (दे २, ९४)।

गोंडी :: स्त्री [दे] मंजरी, बौर (दे २, ९५)।

गोंदल :: देखो गुंदल (भवि)।

गोंदीण :: न [दे] मयूर-पित्त, मोर का पित्त (दे २, ९७)।

गोंफ :: पुं [गुल्फ] पाद-ग्रन्थि, पैर की गाँठ (पणह १, ४)।

गोकण्ण, गोकन्न :: पुं [गोकर्ण] १ गौ का कान। २ दो खुरवाला चतुष्पद-विशेष (पणह १, १) ३ एक अन्तर्द्वीप, द्वीप-विशेष। ४ गोकर्णं-द्वीप का निवासी मनुष्य (ठा ४, २)

गोकिलिंज :: देखो गो-कलिंजय (राय १४०)।

गोक्खुरय :: पुं [गोक्षुरक] एक औषधि का नाम, गोखरू (स २५६)।

गोच्चय :: पुं [दे] प्राजन-दण्ड, कोड़ा, चाबुक (दे २, ९७)।

गोच्छ :: देखो गुच्छ (से ६, ४७; गा ५३२)।

गोच्छअ, गोच्छग :: पुंन [गोच्छक] पात्र वगैरह साफ करने का वस्त्र-खण्ड (कस; पणह २, ५)।

गोच्छड :: न [दे] गोमय, गो-विष्ठा (मृच्छ ३४)।

गोच्छा :: स्त्री [दे] मञ्जरी, बौर (दे २, ९५)।

गोच्छिय :: देखो गुच्छिय (औप; णाया १, १)।

गोछद :: देखो गोच्छड (नाट — मृच्छ ४१)।

गोजलोया :: स्त्री [गोजलौका] क्षुद्र कीट-विशेष द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १५)।

गोज्ज :: पुं [दे] १ शारीरिक दोषवाला बैल (सुपा २८१) २ गानेवाला, गवैया, गायक; वीणावंससणाहं, गीयं नडनट्टछत्तगोज्जेहिं। बंदिजणेण सहरिसं, जयसद्दालायणं च कयं' (पउम ८५, १९)

गोट्ठ :: पुं [गोष्ठ] गोबाड़ा, गौओं के रहने का स्थान (महा; पउम १०३, ४०; गा ४४७)।

गोट्ठामाहिल :: पुं [गोष्ठामाहिल] कर्म-पुद्रलों को जीव प्रदेश से अबद्ध माननेवाला एक जैनाभास आचार्य (ठा ७)।

गोट्ठि :: देखो गोट्ठी (आवम)।

गोट्ठिल्ल, गोट्ठिल्लग :: पुं [गौष्ठिक] एक मण्डली के सदस्य, मित्र, समान-वयस्क दोस्त (णाया १, १६ — पत्र २०५; बिपा १, २ — पत्र ३७)।

गोट्ठी :: स्त्री [गोष्ठी] १ मण्डली, समान वय- वालों की सभा (प्राप्र; दसनि १; णाया १, १६) २ वार्त्तालाप, परामर्शं (कुमा)

गोड :: पुं [गौड] १ देश-विशेष (स २८६) २ वि. गौड़ देश का निवासी (पणह १, १)

गोड :: पुं [दे] गोड़, पाद, पैर (नाट — मृच्छ १५८)।

गोडा :: स्त्री [गोला] नदी-विशेष, गोदावरी (गा ५८; १०३)।

गोडी :: स्त्री [गौडी] गुड़ की बनी हुई मदिरा, गुड़ का दारू (बृह २)।

गोड्ड :: वि [गौड] १ गुड़ का बना हुआ । २ मधुर, मीठा (भग १८, ६)

गोड्ड :: [दे] देखो गोड (मृच्छ १२०)।

गोण :: पुं [दे] १ साक्षी (दे २, १०४) २ बैल, वृषभ, बलीवर्दं (दे २, १०४; कुमा, हे २, १७४; सुपा ५४७; औप; दस ५, १; आचा २, ३, ३; उप ९०४; विपा १, १)। °इन्न वि [°वत्] गाय वाला, गौओं का मालिक (सुपा ५४७)। °वइ पुंस्त्री [°पति] गौओं का मालिक, गौ वाला (सुपा ५४७)

गोण :: (शौ) पुंन [गो] बैल, 'गौणो, गोणं' (प्राकृ ८८)।

गोण :: वि [गौण] १ गुण निष्पन्‍न, गुण-युक्त, यथार्थ (विपा १, २; औप) २ अप्रधान, अमुख्य (औप)

गोणंगणा :: स्त्री [गवाङ्गना] गैया, गाय (सुपा ४६५)।

गोणंगणा :: स्त्री [गवाङ्गना] गैया, गाय (सुपा ४६५)।

गोणत्त, गोणत्तय :: पुंन [दे] वैद्य का औजार रखने का थैला (उप ३१७; स ४८४)।

गोणस :: पुं [गोनस] सर्प की एक जाति, फण-रहित साँप की एक जाति (पण्ह १, १; उप पृ ४०३)।

गोणा :: स्त्री [दे] गाय, गैया, गऊ (षड्)।

गोणिक्क :: पुं [दे] गो-समूह, गौओं का समुह (दे २, ९७; पाअ)।

गोणिय :: वि [दे] गौओं का व्यापारी (वव ९)।

गोणी :: स्त्री [दे] गाय, गैया (ओघ २३ भा)।

गोण्ण :: देखो गोण=गौण (कप्प; णाया १, १ — पत्र ३७)।

गोतिहाणी :: स्त्री [दे. गोत्रिहायणी] गोवत्सा, गौ की बछड़ी (तंदु ६२)।

गोत्त :: पुं [गोत्र] १ पर्वत, पहाड़; (श्रा १४) २ न. नाम, अभिधान, आख्या (से १५, १०) ३ कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से प्राणी उच्‍च या नीच जाति का कहलाता है (ठा २, ४) ४ पुंन. गोत, वंश, कुल, जाति; 'सत्त मूलगोत्ता पण्णत्ता' (ठा ७)। °क्खलिय न [°स्खलित] नाम-विपर्यास, एक के बदले दूसरे के नाम का उच्‍चारण (से ११, १७)। °देवया स्त्री [°देवता] कुल-देवी (श्रा १४)। °फुस्सिया स्त्री [°स्पर्शिका] वल्ली-विशेष (पण्ण १)

गोत्त :: पुंन [गोत्र] १ पूर्वज पूरुष के नाम से प्रसिद्ध अपत्य — संतति (णंदि ४९; सुज्ज १०, १६) २ वि. वाणी का रक्षक (सूअ १, १३, ९)

गोत्ति :: वि [गोत्रिन्] समान गोत्रवाला, कुटुम्बी, स्वजन (सुपा १०९)।

गोत्ति :: देखो गुत्ति (स २४२)।

गोत्तिअ :: वि [गोत्रिक] समान गोत्रवाला, स्वजन, भाई-बंद (श्रा २७)।

गोत्थुभ :: देखो गोथुम (इक)।

गोत्थूभा :: देखो गोथूभा (इक)।

गोथुभ, गोथूभ :: पुं [गोस्तूप] १ ग्यारहवें जिन- देव का प्रथम-शिष्प (सम १५२; पि २०८) २ विलन्धर नागराज का एक आवास-पर्वत (सम ९९) ३ न. मानुषोत्तर पर्वत का एक शिखर (दीव) ४ कौस्तुभ- रत्‍न (सम, १५८)

गोथूभा :: स्त्री [गोस्तूपा] १ वापी-विशेष, अंजन पर्वत पर की एक वापी (ठा ३, ३) २ शक्रेन्द्र की एक अग्रमहिषी की राजधानी (ठा ४, २)

गोदा :: स्त्री [दे गोदा] नदी-विशेष, गोदावरी (षड्; गा ९५५)।

गोध :: पुं [गोध] १ म्लेच्छ देश। ३ गोध देश का निवासी मनुष्य (राज)

गोधा :: स्त्री [गोधा] गोह, हाथ से चलनेवाली एक साँप की जाति (पण्ह १, १; णाया १, ८)।

गोन्न :: देखो गोण्ण (णाया १, १६ — पत्र २००)।

गोपुर :: देखो गोउर (उत्त ९; अभि १८५)।

गोप्पहेलिया :: स्त्री [गोप्रहेलिका] गौओं को चरने की जगह (आजा २, १०, २)।

गोफणा :: स्‍त्री [दे] गोफन, पत्थर फेंकने का अस्‍त्र-विशेष (राज)।

गोमद्दा :: स्‍त्री [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे २, ९६)।

गोमाअ, गोमाउ :: पुं [गोमायु] श्रृगाल, सियार, गीदड़ (नाट — मृच्छ ३२०; पि १६५; णाया १, ४; स २२९; पाअ)।

गोमाणसिया :: स्‍त्री [गोमानसिका] शय्या- कार स्थान-विशेष (जीव ३)।

गोमाणसी :: स्‍त्री [गोमानसी] ऊपर देखो (जीव ३)।

गोमि, गोमिअ :: वि [गोमिन्] जिसके पास अनेक गौ हों वह, (अणु; निचू २)।

गोमिअ :: देखो गोम्मिअ (राज)।

गोमिआ :: [दे] देखो गोमी (अणु २१२)।

गोमिक :: (मा) [गौरवित] संमानित (प्राकृ १०१)।

गोमी :: स्‍त्री [दे] कनखजूरा, त्रीन्द्रिय जन्तु- विशेष (जी १६)।

गोमुह :: पुं [गोमुख] १ यक्ष-विशेष, भगवान् ऋषभदेव का शासन-यक्ष (संति ७) २ एक अन्तर्द्वीप, द्वीप विशेष। ३ गोमुख-द्वीप का निवासी मनुष्य (ठा ४, २) ४ न. उपलेपन (दे २, ९८)

गोमुही :: स्‍त्री [गोमुखी] वाद्य-विशेष; (अणु; राय)।

गोमुही :: [गोमुखी] वाद्य-विशेष (राय ४६, अणु १२८)।

गोमेअ, गोमेज्ज :: पुं [गोमेद] रत्‍न की एक जाति, राहुरत्‍न (कुमा ७०; उत्त २)।

गोमेह :: पुं [गोमेध] १ यक्ष-विशेष, भगवान् नेमिनाथ का शासन-देव (सं ८) २ यज्ञ- विशेष, जिसमें गौ का वघ किया जाता है (पउम ११, ४१)

गोम्मिअ :: पुं [गौल्मिक] कोतवाल, नगर- रक्षक (पण्ह १, २)।

गोम्ही :: देखो गोमी (राज)।

गोय :: देखो गोत्त (सम ३३; कम्म १)। °।वाइ पि [°वादिन्] अपने कुल को उत्तम माननेवाला, वंशाभिमानी (आचा)।

गोय :: न [दे] उदुम्बर-गूलर वगैरह का फल (आव ६)।

गोय :: न [गोत्र] मौन, वाक्-संयम (सूअ १, १४, २०)। °वाय पुं [°वाद] गोत्र-सूचक वचन (सूअ १, ९, २७)।

गोयम :: पुं [गोतम] ऋषि-विशेष (ठा ७)। २ छोटा बैल (औप) ३ न. नोत्र-विशेष (कप्प; ठा ७)

गोयम :: वि [गौतम] १ गोतम गोत्र में उत्पन्न, गोतम-गोत्रीय; 'जे गोयमा ते सतविहा पण्णत्ता' (ठा ७; भग जं १) २ पुं. भगवान् महावीर का प्रघान-शिष्य (भग १४, ७; उवा) ३ इस नाम का एक राज-कुमार, राजा अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जो भगवान् नेमि- नाथ के पास दीक्षा लेकर शत्रुञ्‍जय पर्वतपर मुक्त हुआ था (अन्त २) ४ एक मनुष्य- जाति, जो बैल द्वारा भिक्षा माँग कर अपना निर्वाह चलाती है (णाया १, १४) ५ एक ब्राह्मण (उप ६१७) ६ द्वीप विशेष (सम ८०; उप ५९७ टी)। °केसिज्ज न [°केशीय] 'उत्तराध्ययन' सुत्र का एक अध्य- यन, जिसमें गौतम स्वामी और केशिमुनि का संवाद है (उत्त २३)। °सगुत्त वि [°सगोत्र] गोतम गोत्रीय (भग; आवम)। °सामि पुं [°स्वामिन्] भगवान् महावीर के सर्व-प्रधान शिष्य का नाम (विपा १, १ — पत्र २)

गोयमज्जिया, गोयमेज्जिया :: स्त्री [गौतमार्यिका] जैनमुनि- गण की एक शाखा (राज; कप्प)।

गोयर :: पुं [गोचर] १ गौओं को चरने की जगह, 'णो गोयरे णो वणगाणियाणं' (बुह ३) २ विषय; 'अंबुरुहगोयरं णमह... सयंभुं' (हउड) ३ इन्द्रिय का विषय, प्रत्यक्ष; 'इअ राया उज्जाणं तं कासी नयणगोअरं सव्वं' (कुमा) ४ भिक्षाटन, भिक्षा के लिए भ्रमण (ओघ ६९ भा; दस ५, १) ५ भिक्षा, माधुकरी (उप २०४) ६ वि. भूमि में विचरनेवाला; 'विझवणगोयराण पुलिदाण' (गउड)। °चरिआ स्त्री [°चर्या] भिक्षा के लिए भ्रमण (उप १३७ टी; पउम ४, ३) °भूमि स्त्री [°भूमि] १ पशुओं को चरने की जगह (दे ३, ४०) २ भिक्षा-भ्रमण की जगह (ठा ६)। °वत्ति वि [°वर्त्तिन्] भिक्षा के लिए भ्रमण करनेवाला (गा २०४)

गोयरी :: स्त्री [गौचरी] भिक्षा, माधुकरी (सुपा २६६)।

गोर :: पुं [गौर] १ शुक्ल-वर्ण, सफेद रंग। २ वि. गौर वर्णवाला, शुक्ल (गउड; कुमा) ३ अवदात, निर्मल (णाया १, ८)। °खर पुं [°खर] गर्दभ की एक जाति (पण्ण १) °गिरि पुं [°गिरि] पर्वत-विशेष, हिमाचल (निचू १)। °मिग पुं [°मृग] १ हरिण की एक जाति। २ न. उस हरिण के चमड़े का बना हुआ वस्त्र (आचा २, ५, १)

गोरअ :: देख गोरव (गा ८९)।

गोरंग :: वि [गौराङ्ग] गोरा शरीरवाला, शुक्ल शरीरवाला (कप्पू)।

गोरंफिडी :: स्त्री [दे] गोघा, गोह, जन्तु-विशेष (दे २, ९८)।

गोरडित :: वि [दे] स्रस्त, घ्वस्त (षड्)।

गोरव :: न [गौरव] १ महत्व, गुरुत्व (प्रासू ३०) २ आदर, सम्मान, बहुमान (विसे ३४७३; रयण ५३) ३ गमन, गति (ठा ९)

गोरविअ :: वि [गौरवित] सम्मानित, जिसका आदर किया गया हो वह (दे ४, ५)।

गोरव्व :: वि [गौरव्य] गौरव-योग्य (धर्मवि ९४; कुप्र ३७७)।

गोरस :: पुंन [गोरस] गोरस, दूध, दही, मट्ठा या छाछ वगैरह (णाया १, ८; ठा ४, १)।

गोरस :: पुं [गोरस] वाणी का आनन्द (सिरि १४०)।

गोरह :: पुं [दे] हल में जोतने योग्य बैल (आचा २, ४२, ३)।

गोरा :: स्त्री [दे] लाङ्गल-पद्धति, हल-रेखा। २ चक्षु, आँख। ३ ग्रीवा, गर्दन या डोक (दे २, १०४)

गोरि° :: देखो गोरी (हे १, ४)।

गोरिअ :: न [गौरिक] विद्याधर का नगर-विशेष (इक)।

गोरी :: स्त्री [गौरी] १ शुक्ल-वर्णा स्त्री (हे ३, २८) २ पार्वती, शिव-पत्‍नी (कुमा; सुपा २४०; गा १) ३ श्रीकृष्ण की एक स्त्री का नाम (अंत १५) ४ इस नाम की एक विद्या- देवी (संति ६)। °कूड न [°कूट] विद्याधर-नगर-विशेष (इक)

गोरी :: स्त्री [गौरी] विद्या-विशेष (सूअ २, २, २७)।

गोरूव :: न [गोरूप] प्रशस्त गाय (धर्मवि ११२)।

गोल :: पुं [दे] १ साक्षी (दे २, ९५) २ पुरुष का निन्दा-गर्भ आमन्त्रण (णाया १, ९) ३ निष्‍ठुरता, कठोरता (दस ७)

गोल :: पुं [गोल] १ वृक्ष-विशेष, 'कदम्बगोल- णिहकंटअंतणिअंगे' (अच्चु ५८) २ गोला- कार, वृत्ताकार, मण्डलाकार वस्तु (ठा ४, ४, अनु ५) ३ गोलक, कुंडा (सुपा २७०) ४ गेंद, कन्दुक (सूअ १, ४)

गोल :: पुंस्त्री [दे] गोला, जार से उत्पन्न, कुंड (दस ७, १४)। स्त्री. °ली (दस ७, १६)।

गोलग, गोलय :: पुं [गोलक] ऊपर देखो (सूअ २, २; उप पृ ३९२ काल)।

गोलव्वायण :: न [गौलव्यायन] गोत्र-विशेष (सुज १०, १६)।

गोला :: स्त्री [दे] गौ, गैया (दे २, १०४; पाअ)। २ नदी, कोई भी नदी। ३ सखी, सहेली, संगिनी (दे २, १०४)। गोदावरी नदी (दे २, १०४; घा ५८; १७५; हेका २६७; पि ८५; १६४; पाअ; षड्)

गोलिय :: पुं [गौडिक] गुड़ वनानेवाला (वव ९)।

गोलिया :: स्त्री [दे] १ गोली, गुटिका (राय; अणु)। गेंद, लड़कों के खेलने की एक चीज; 'तीए दासीए घडो गोलियाए भिन्‍नो' (दसनि २) ३ बड़ा कुण्डा, बड़ी, थाली (ठा ८) °लिंछ, °लिच्छ न [°लिञ्छ, °लिच्छ] १ चुल्ली, चूल्हा। २ अग्‍नि-विशेष (ठा ५ — पत्र ४१७)

गोलियायण :: न [गोलिकायन] १ गोत्र-विशेष, जो कौशिक गोत्र की एक शाखा है। २ वि. गोलिकायन-गोत्रीय (ठा ७)

गोली :: स्त्री [दे] मथनी या मथानी, मथनिया, दही मथने की लकड़ी, रही (दे २, ९५)।

गोल्ल :: न [दे] बिम्बी-फल, कुन्दरुन का फल (णाया १, ८; कुमा)।

गोल्ल :: पुं [गौल्य] १ देश-विशेष (आवम) २ न. गौत्र-विशेष, जो काश्यप गोत्र की शाखा है। ३ वि. गौल्य गोत्र में उत्पन्न (ठा ७)

गोल्हा :: स्त्री [दे] बिम्बी, वल्ली-विशेष, कुन्दरुन की लतर (दे २, ९५; आवम; पाअ)।

गोव :: सक [गोपय्] १ छिपाना। २ रक्षण करना। गोवए, गोवेइ (सुपा ३४६; महा)। कवकृ.गोविज्जंत (सुपा ३३७; सुर ११, १६२; प्रासू ६५)

गोव, गोवअ :: पुं [गोप] गौओं का रक्षक, ग्वाला, गोपाल (उवा ७; दे २, ५८; कप्पू)। °जिरि पुं [°गिरि] पर्वत-विशेष; 'गोवगिरिसिहरसंठियचरमजिणाययणदारमव- रुद्धं (मुणि १०८९७)।

गोवड्‍ढण :: देखो गोवद्धण (पि २९१)।

गोवण :: न [गोपन] १ रक्षण। २ छिपाना (श्रा २८: उप ५९७ टी)

गोवद्धण :: पुं [गोवर्धन] १ पर्वत-विशेष (पि २९१) २ ग्राम विशेष (पउम २०, ११५)

गोवय :: वि [गोपक] छिपानेवाला, ढाँकनेवाला (संबोध ३४)।

गोवर :: पुंन [दे] गोबर, गोमय, गो-विष्ठा (दे २, ९६; उप ५९७ टी)।

गोवर :: पुं [गोवर] १ मगध देश का एक गाँव, गौतम-स्वामी की जन्मभूमि (आक) २ वणिग्-विशेष (उप ५६७ टी)

गोवल :: न [गोबल] १ गोधन, गोकुल, गौओं का समुह; 'रिंति गोवलाइं' (सुपा ४३३) २ गोत्र-विशेष (सुज्ज १०)

गोवलायण :: देखो गोवल्लायण (सुज्ज १०)।

गोवलिय :: पुं [गोबलिक] ग्वाला, अहीर (सुपा ४३३)।

गोवल्ल :: पुंन [गोवल] गोत्र-विशेष (सुज १०, १६ टी)।

गोवल्लायण :: वि [गोवलायन] १ गोवल गोत्र में उत्पन्न। २ न. गोत्र विशेष (इक)

गोपा :: पुं [गोंपा] गौओं का पालन करनेवाला, ग्वाला (प्रामा)।

गोवाय :: सक [गोपाय्] १ छिपाना। २ रक्षण करना। वकृ. गोवायंत (उप ३५७)

गोवाल :: पुं [गोपाल] गौ पालनेवाला, ग्वाला, अहीर (दे २, २८)। °गुज्जरी स्त्री [°गुर्जरी] भैरव रागवाली भाषा-विशेष, गुजरात के अहीरों का गीत (कुमा)।

गोवालय :: पुं [गोपालक] ऊपर देखो (पउम ५, ९६)।

गोवालि :: पुं [गोपालिन्] ग्वाला, गोप, अहीर (सुपा ४३२; ४३३)।

गोवालिणी :: स्त्री [गोपालिनी] गोप-स्त्री, अही- रिन, ग्वालि (सुपा ४३२)।

गोवालिय :: पुं [गोपालिक] गोप, अहीर, ग्वाला (सुपा ४३३)।

गोवालिया :: स्त्री [गोपालिका] गोप-स्त्री, गोपी, अहीरिन (णाया १, १६)।

गोवाली :: स्त्री [गोपाली] वल्ली-विशेष (पण्ण १)।

गोविअ :: वि [दे] अजल्पाक, नहीं बोलनेवाला (दे २, ९७)।

गोविअ :: वि [गोपित] १ छिपाया हुआ। २ रक्षित (सुर १, ८८; निर १, ३)

गोविआ :: स्त्री [गोपिका] गोपांगना, अहीरिन (कुमा; गा ११४)।

गोविंद :: पुं [गोपेन्द्र] १ स्वनाम-ख्यात एक योग-विषयक ग्रन्थकार। २ एक जैनमुनि (पंचव; णंदि)

गोविंद :: पुं [गोविन्द] १ विष्णु, कृष्ण। २ एक जैन मुनि (ठा १०)। °णिज्जुत्ति स्त्री [°निर्युक्ति] इस नाम का एक्र जैन दार्शनिक ग्रन्थ (निचू ११)

गोविल :: न [दे] कञ्चुक, चोली (दे २, ९४)।

गोवी :: स्त्री [दे] बाला; कन्या, कुमारी, लड़की (दे २, ९६)।

गोवी :: स्त्री [गोपी] गोपांगना, अहीरिन (सुपा ४३५)।

गोव्वर :: [दे] देखो गोवर (उप ५६३; ५९७ टी)।

गोस :: पुंन [दे] प्रभात, सुबह, प्रातःकाल (दे २, ९६; सणः गउड; वव ६; पंचव २; पाअ; षड्; पव ४)।

गोसंधिय :: पुं [गोसंधित] गौपाल, ग्रहीर (राज)।

गोसग्ग :: पुंन [दे गोसर्ग] प्रातःकाल, प्रभात (दे २, ९६; पाअ)।

गोसण्ण :: वि [दे] मूर्ख, बेवकूफ (दे २, ९७; षड्)।

गोसाल, गोसालग :: पुं.ब. [गोशाल] १ देश-विशेष (पउम ९८, ६५) २ पुं.भगवान् महावीर का एक शिष्य, जिसने पीछे अपना आजीविक मत चलाया था (भग १५)

गोसाविआ :: स्त्री [दे] १ वेश्या, वारांगना (मृच्छ ५५) २ मूर्ख-जननी (नाट-मृच्छ ७०)

गोसिय :: वि [दे] प्रभातिक, प्रातःकाल-संबन्धी (सण)।

गोसीस :: न [गोशीर्ष] चन्दन-विशेष, सुगन्घित काष्ठ-विशेष (पण्ह २, ४; ५; कप्प; सुर ४, १४; सण)।

गोह :: पुं [दे] १ गाँव का मुखिया (दे २, ८६) २ भट, सुभट, योद्धा (दे २, ८६; महा) ३ जार, उपपति (उप पृ २१५) ४ सिपाही, पुलिस (उप पृ ३३५) ५ पुरुष, आदमी, मनुष्य (मृच्छ ५७)

गोह :: पुं [दे] कोतवाल आदि कूर मनुष्य (सुख ३, ९)। २ वि. ग्रामीण, ग्राम्य, गँवार या गँवारू, देहाती (सुख २, १३)

गोहा :: देखो गोधा (दे २, ७३; भग ८, ३)।

गोहिया :: स्त्री [गोधिका] १ गोधा, गोह, जल- जन्तु-विशेष (सुर १०, १८६) २ साँप की एक जाति (जीव २) ३ वाद्य-विशेष (अणु)

गोहुर :: न [दे] गोमय, गो-विष्ठा (दे २, ९६)।

गोहूम :: पुं [गोधूम] अन्न-विशेष, गेहूँ (कस)।

गोहेर, गोहेरय :: पुं [गोघेर] जन्तु-विशेष, साँप की तरह का जानवर (पउम ४८, ९२; ९१)।

°ग्गह :: देखो गह= ग्रह (गउड)।

°ग्गहण :: देखो गहण=ग्रहण (अभि ५६)।

°ग्गहण :: देखो गहण=ग्रहाण (कुमा)।

 :: पुं [घ] कण्ठ-स्थानीय व्यञ्‍जन वर्ण-विशेष (प्राप; प्रामा)।

घअअंद :: न [दे] मुकुर, दर्पण (षड्)।

घइं :: (अप) अ पाद-पूरक और अनर्थक अव्यय (हे ४, ४२४; कुमा)।

घओअ, घओद :: पुं [घृतोद] १ समुद्र-विशेष, जिसका पानी घी के तुल्य स्वादिष्ट है (इक; ठा ७) २ मेघ-विशेष (तित्थ) ३ वि. जिसका पानी घी के समान मधुर हो ऐसा जलाशय। स्त्री. °आ, °दा (जीव ३; राय)

घंघ :: पुं [दे] गृह, मकान, घर (दे २, १०५)। °साला स्त्री [°शाला] अनाथ-मण्डप, भिक्षुओं का आश्रय-स्थान (ओघ ६३९; वव ७; आचा)।

घंघल :: (अप) न [झकट] १ झगड़ा, कलह (हे ४, ४२२) २ मोह, घबराहट (कुमा)

घंघलिअ :: वि [दे] घबड़ाया हुआ (संवे ६; धर्मवि १३४)।

घंघोर :: वि [दे] भ्रमण-शील, भटकनेवाला (दे २, १०६)।

घंचिय :: पुं [दे] तेली, तेल निकालनेवाला; गुजराती में 'घांची' (सुर १६, १९०)।

घंट :: पुंस्त्री [घण्ट] घण्टा, कांस्य-निर्मित वाद्य- विशेष (ओघ ८६ भा)। स्त्री. °टा (हे १, १९५; राय)।

घंटिय :: पुं [घण्टिक] चाण्डाल का कुल-देवता, यक्ष-विशेष (बृह १)।

घंटिय :: पुं [घाण्टिक] घण्टा बजानेवाला (कप्प)।

घंटिया :: स्त्री [घण्टिका] १ छोटी घण्टी (प्रामा) २ किंकिणी, घुँघुरू (सुर १, २४८; जं २) ३ आभरण-विशेष (णाया १, ९)

घंस :: पुं [घर्ष] घर्षण, घिसन (णाया १, १ — पत्र ६३)।

घंसण :: न [घर्षण] घिसन, रगड़ (स ४७)।

घंसिय :: वि [घर्षित] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ (औप)।

घक्कूण :: देखो घे।

घग्घर :: न [दे] घँघरा, घघरा, लहँगा, स्रियों के पहनने का एक वस्त्र (दे २, १०७)।

घग्घर :: पुं [घर्घर] १ शब्द-विशेष (गा ८००) २ खोखला गला; 'घग्घरगलम्मि' (दे ६, १७) ३ खोखला आवाज; 'रुयमाणी घग्घरेण- सद्देण' (सुर २, ११२) ४ न. श्याद्वल, शैवाल या सेवार वगैरह का समूह (गउड)

घट्ट :: सक [घट्ट्] १ स्पर्श करना, छूना। २ हिलना, चलना। ३ संघर्ष करना। ४ आहत करना। घट्टइ (सुपा ११६)। वकृ. घट्टंत (ठा ७)। कवकृ. घट्टिज्जंत (से २, ७)

घट्ट :: सक [घट्टय्] हिलाना। संकृ. घट्टियाण (दस ५, १, ३०)।

घट्ट :: अक [भ्रंश्] भ्रष्ट होना। घट्टइ (षड्)।

घट्ट :: पुं [दे] १ कुसुम्भ रंग से रंगा हुआ वस्त्र। २ नदी का घाट। ३ वेणु, वंश, बाँस (दे २, १११)

घट्ट :: पुं [घट्ट] १ शर्कराप्रभा-नामक नरक-भूमि का एक नरकावास (इक) २ पुंन. जमाव (श्रा २८) ३ समूह, जत्था; 'हयघट्टाइं' (सुपा २५६) ४ वि. गाढ़ा, निबिड; 'मूल घट्टकररुहओ' (सुपा ११)

घट्टंसुअ :: न [दे. घटयंशुक] वस्र-विशेष, बूटेदार कौसुम्भ वस्त्र (कुमा)।

घट्टण :: वि [घट्टन] चालाक, हिला देनेवाला (पिंड ६३३)।

घट्टण :: न [घट्टन] १ छूना, स्पर्श करना। २ चलाना, हिलाना (दस ४)

घट्टणग :: पुं [घट्टनक] पात्र वगैरह को चिकना करने के लिए उस पर घिसा जाता एक प्रकार का पत्थर (बृह ३)।

घट्टणया, घट्टणा :: स्त्री [घट्टना] १ आघात, आह- नन (औप; ठा ४, ४) २ चलन, हिलन (ओघ ९) ३ विचार। ४ पृच्छा (बृह ४) ५ कदर्थना, पीड़ा (आचा) ६ स्पर्श; छूना (पण्ण १६)

घट्टय :: देखो घट्ट (महा)।

घट्टिय :: वि [घट्टित] १ आहत, संघर्ष-युक्त (जं १) २ प्रेरित, चालित (पण्ह १, ३) ३ स्पृष्ट, छुआ हुआ (जं १; राय)

घट्ठ :: वि [घृष्ट] १ घिसा हुआ (हे २ १७४; औप; सम १३७)

घड :: सक [घट्] १ चेष्टा करना । २ करना, बनाना। अक. परिश्रम करना। ४ संगत होना, मिलना। घडइ (हे १, १९५) वकृ. घडंत, घडमाण (से १, ५; निचू १)। कृ. घडियव्व (णाया १, १ — पत्र ६०)

घड :: सक [घटय्] १ मिलाना, जोड़ना, संयुक्त करना। २ बनाना, निमणि करना। ३ संचालन करना। घडेइ (हे ४, ५०)। भवि. घडिस्सामि (स ३६४)। वकृ. घडंत (सुपा २५५)। संकृ. घडिअ (दस ५, १)

घड :: पुं [घट] घड़ा, कुम्भ, कलश (हे १, १९५)। °कार पुं [°कार] कुम्भकार, मिट्टी का बरतन बनानेवाला (उप पृ ४१५)। °चेडिया स्‍त्री [°चेटिका] पानी भरनेवाली दासी, पनहारिन (सुपा ४९०)। °दास पुं [°दास] पानी भरनेवाला नौकर, पनिहारा आचा)। °दासी स्‍त्री [°दासी] पानी भरनेवाली, पनिहारी (सूअ १, १५)।

घड :: वि [दे] सृष्टीकृत, बनाया हुआ (षड्)।

घडइअ :: वि [दे] संकुचित (षड्)।

घडग :: पुं [घटक] छोटा घड़ा (जं २; अणु)।

घटगार :: देखो घड-कार (वव १)।

घडचडग :: पुं [घटचटक] एक हिंसा-प्रधान संप्रदाय (मोह १००)।

घडण :: स्त्रीन [घटन] १ घटना, प्रसंग (वि १३) २ अन्वय, संबंध (चेइय ४६७)

घडण :: न [घटन] १ घड़ना या गढ़ना, कृति, निर्माण (से ७, ७१) २ यत्‍न, चेष्टा, परि- श्रम (अनु ४; पणह २, १)

घडणा :: स्त्री [घटना] मिलान, मेल, संयोग (सूअ १, १, १)।

घडय :: देखो घडग (जं २)।

घडा :: स्त्री [घटा] समूह, जत्था (गउड)।

घडाघडी :: स्त्री [दे] गोष्ठी, सभा, मण्डली (षड्)।

घडाव :: सक [घटय्] १ बनाना। २ बनवाना। ३ संयुक्त करना, मिलाना। घडावइ (हे ४, ३४०)। संकृ. घडावित्ता (आवम)

घडि :: वि [घटिन्] घटवाला (अणु १४४)।

घडि° :: स्त्री [घटी] देखो घडिआ=घटिका (प्रासू ५५)। °मंतय, °मत्तय न [°मात्रक] छोटे घड़े के आकार का पात्र-विशेष (राज; कस)। °जंत न [°यन्व] रेंट, रेंहट, पानी निकालने का कल (पाअ)।

घडिअ :: वि [घटित] १ कृत, निर्मित (पाअ) २ संसक्त संबद्ध, श्लिष्ट, मिला हुआ (पाअ; स १९४; औप; महा)

घडिअघडा :: स्त्री [दे] गोष्ठी, मण्डली (दे २, १०५)।

घडिआ :: स्त्री [घटिका] १ छोटा घड़ा, कलशी (गा ४९०; श्रा २७) २ घड़ी, मुहूर्त (सुपा १०८) ३ समय बतानेवाला यन्त्र, घटी-यन्त्र, घड़ी (पाअ)। °लय न [°लय] घण्टागृह, घण्टा बजाने का स्थान (सुर ७, १७)

घडिआ, घडी :: स्त्री [दे] गोष्ठी, मण्डली (षड्; दे २, १०५)।

घडिगा :: देखो घडिआ (सूअ १, ४, २, १४)।

घडी :: स्त्री [घटी] देखो घडिआ (स २३८; प्रारू)।

घडुक्कय :: पुं [घटोत्कच] भीम का पुत्र (हे ४, २९९)।

घडुब्भव :: वि [घटोद्‍भव] १ घट से उत्पन्न। २ पुं. ऋषि-विशेष, अगस्त्य मुनि (प्रारू)

घढ :: न [दे] थूहा, टीला, स्तूप (पाअ)।

घण :: पुं [घन] १ मेघ, बादल (सुर १३, ४५; प्रासू ७२) २ हथौड़ा (दे ६, ११) ३ गणित-विशेष, तीन अंकों का पूरण करना, जैसे दो का घन आठ होता है (ठा १० — पत्र ४९६; विसे ३५४०) ४ वाद्य का शब्द- विशेष, कांस्यताल वगैरह (ठा २, ३) ५ वि. दृढ़, ठोस (औप) ६ अविरल, निबिड़, निश्छिद्र, सान्द्र (कुमा; औप) ७ गाढ़, प्रगाढ़; 'जाया पीई घणा तेसि' (उप ५९७ टी) ८ अतिशय, अधिक, अत्यन्त (राय) ९ कठिन, तरलता-रहित, स्त्यान (जी ७; ठा ३, ४) १० न. देवविमान-विशेष (सम ३७) ११ पिण्ड (सूअ १, १, १) १२ वाद्य-विशेष (सुज्ज १२)। °उदहि देखो घणोदहि (भग)। °णिचिय वि [°निचित] अत्यन्त निबिड़ (भग ७, ८; औप)। °तव न [तपस्] तपश्‍चर्या- विशेष (उत्त ३) °दंत पुं [°दन्त] १ इस नाम का एक अन्तर्द्वीप। २ उसका निवासी मनुष्य (ठा ४, २)। °माल न [°माल] वैताढ्य पर्वत पर स्थित विद्यावर- नगर-विशेष (इक)। °मुइंग पुं [°मृदङ्ग] मेघ की तरह गम्भीर आवाजवाला वाद्य- विशेष (औप)। °रह पुं [°रथ] एक जैन मुनि (पउम २०; १९)। °वाउ पुं [°वायु] स्त्यान वायु, जो नरक-पृथ्विी के नीचे है (उत्त ३६)। °वाय पुं [°वात] देखो °वाउ (भग; जी ७)। °वाहण पुं [°वाहन] विद्याधरों के राजा का नाम (पउम ५, ७७)। °विज्जुआ स्त्री [°विद्युता] देवी-विशेष, एक दिक्‍कुमारी देवी का नाम (इक)। °समय पुं [°समय] वर्षा-काल, वर्षा ऋतु (कुमा पाअ)

घणंगुल :: पुंन [घनाङ्गुल] परिमाण-विशेष, सूची से गुना हुआ प्रतरांगुल (अणु १५८)।

घणसंमद्द :: पुं [घनसंमर्द] ज्योतिष-प्रसिद्ध योग विशेष, जिसमें चन्द्र या सूर्य ग्रह अथवा नक्षत्र के बीच में होकर जाता है वह योग (सुज्ज १२ — पत्र २३३)।

घणघणाइय :: न [घनघनायित] रथ की घनघनाहट या गड़गड़ाहट, अव्यक्त शब्द- विशेष (पण्ह १, ३)।

घणवाहि :: पुं [दे] इन्द्र, स्वर्गपति (दे २, १०७)।

घणसार :: पुं [घनसार] कपूर (पाअ; भवि)। °मंजरी स्त्री [°मञ्‍जरी] एक स्त्री का नाम (कप्पू)।

घणा :: स्त्री [घना] धरणेन्द्र की एक अग्र-महिषी, इन्द्राणी-विशेष (णाया २, १ — पत्र २५१)।

घणा :: स्त्री [घृणा] घृणा, जुगुप्सा, गर्हा (प्राप्र)।

घणिय :: न [घनित] गर्जना, गर्जन (सुज २०)।

घणोदहि :: पुं [घनोदधि] पत्थर की तरह कठिन जल-समूह (सम ३७)। °वलय न [°वलय] वलयाकार कठिन जल-समूह (पण्ण २)।

घण्ण :: पुं [दे] १ उर, वक्षस्, छाती। २ वि. रक्त, रंगा हुआ (दे २, १०५) ३ घात्य, मार डालने योग्य (सूत्र कृ. २ — ७, पत्र ४१०)

घत्त :: सक [क्षिप्] १ फेंकना, डालना। २ प्रेरणा। घत्तइ (हे ४, १४१)। संकृ. अंकाओ घत्तिऊण वरवीणं' (पउम ७८, २०; स ३५१)

घत्त :: सक [ग्रह्] ग्रहण करना। भवि घत्तिस्सं (प्रयौ ३३)।

घत्त :: सक [गवेषय्] खोजना, ढूँढ़ना, अनु- संधान करना। घतइ (हे ४, १८९)। संकृ घत्तिअ (कुमा)।

घत्त :: सक [यत्] यत्‍न करना, उद्योग करना। घत्तह (तंदु ५६)।

घत्त :: वि [घात्य] १ मार डालने योग्य। २ जो मारा जा सके (पि २८१, सूअ २, ७, ६; ८)

घत्तण :: न [क्षेपण] फेंकना (कुमा)।

घत्ता :: स्त्री [घत्ता] छन्द विशेष (पिंग)।

घत्ताणंद :: न [घत्तानन्द] छन्द-विशेष (पिंग)।

घत्ति :: अ [दे] शीघ्र, जल्दी (प्राकृ ८१)।

घत्तिय :: वि [क्षिप्त] प्रेरित (स २०७)।

घत्तु :: वि [घातुक] मारनेवाला, घातक, जल्‍लाद (उत्त १८, ७)।

घत्थ :: वि [ग्रस्त] गृहीत, पकड़ा हुआ (पिंड ११९)।

घत्थ :: वि [ग्रस्त] १ भक्षित, निगला हुआ, कवलित (पउम ७१, ५१; पण्ह १, ५) २ आक्रान्त, अभिभूत (सुपा ३५२; महा)

घम्म :: पुं [घर्म] घाम, गरमी, संताप, धूप (दे १, ८७; गा ४१४)। २ पसीना, स्वेद (हे ४, ३२७)

घम्मा :: स्त्री [घर्मा] पहली नरक-पृथिवी (ठा ७)।

घम्मोई :: स्त्री [दे] तृण-विशेष (दे २, १०६)।

घम्मोडी :: स्त्री [दे] १ मघ्याह्न काल। २ मशक, मच्छर, क्षुद्र जन्तु-विशेष। ३ ग्रामणी नामक-तृण (दे २, ११२)

घय :: न [घृत] घी, घृत (हे १, १२६; सुर १६, ६३)। °आसव पुं [°।श्रव] जिसका वचन घी की तरह मधुर लगे ऐसा लब्धिमान् पुरुष (आवम)। °किट्ट न [°किट्ट] घी का मैल (धर्म २)। °किट्टिया स्त्री [°कि- ट्टिका] घी का मैल (पव ४)। °गोल न [°गोल] घी और गुड़ की बनी हुई एक प्रकार की मिठाई, मिष्टान्‍न-विशेष (सुपा ६३३)। °घट्ट पुं [°घट्ट] घी का मैल (बृह १)। °पुन्‍न पुं [°पूर्ण] घेवर, मिष्टान्न विशेष (उप १४२ टी)। °पूर पुं [° र] धेवर या घीवर, मिष्टान्‍न-विशेष (सुपा ११)। °पूसमित्त पुं [°पुष्यमित्र] एक जैन मुनि, आर्यरक्षित सूरि का एक शिष्य (आचू १)। °मंड पुं [°मण्ड] ऊपर का घी, घृतसार (जीव ३)। °मिल्लिया स्त्री [°इलिका] घी का कीट, क्षुद्र जन्तु-विशेष (जो १६)। °मेह पुं [°मेघ] घी के तुल्य पानी बरसनेवाली वर्षा (जं ३)। °वर पुं [°वर] द्वीप- विशेष (इक)। °सागर पुं [°सागर] समुद्र-विशेष (दीव)।

घयण :: पुं [दे] भाण्ड, भाँड़ा, भडवा (उप पृ २०४; २७५; पंचव ४)।

घयपूस :: पुं [घृतपुष्य] एक जैन महर्षि (कुलक २२)।

घर :: पुंन [गृह] घर, मकान, गृह (हे २, १४४; ठा ५, प्रासू ७५)। °कुटी स्त्री [°कुटी] १ घर के बाहर की कोठरी। २ चौक के भीतर की कुटिया (ओघ १०५) ३ स्त्री का शरीर (तंदु)। °कोइला, °कोइलिआ स्त्री [°कोकिला] गृहगोधा, छिपकली (पिंड; सुपा ६४०)। °गोली स्त्री [°गोली] गृह- गोघा, छिपकली (दे २, १०५)। °गोहिआ स्त्री [°गोधिका] छिपकली, जन्तु-विशेष (दे २, १९)। °जामाउय पुं [°जामातृक] घर-जमाई, ससुर घर में ही हमेशा रहनेवाला जामाता (णाया १, १६)। °त्थ पुं [°स्थ] गृही, संसारी, घरबारी (प्रासू १३१)। °नाम न [°नामन्] असली नाम, वास्तविक नाम (महा)। °वाडय न [°पाटक] ढकी हुई जमीन वाला घर (पाअ)। °वार न [°द्वार] घर का दरवाजा (काप्र १९५)। °सउणि पुं [°शकुनि] पालतू जानवर (वव २)। °समुदाणिय पुं [समुदानिक] आजीविक मत का अनुयायी साधु (औप)। °सामि [°स्वामिन्] घर का मालिक (हे २, १४४)। °सामिणी स्री [°स्वामिनी] गृहिणा, स्त्री (पि ९२)। °सूर [°शूर] अलीक शूर, झूठा शूर, घर में ही बहादुरी दिखानेवाला (दे)

घरंगण :: न [गृहाङ्गण] घर का आँगन, चौक (गा ४४०)।

घरकूडी :: स्त्री [गृहकूटी] स्री-शरीर (तंदु ४०)।

घरग :: देखो घर (जीव ३)।

घरघंट :: पुं [दे] चटक, गौरैया पक्षी (दे २, १०७; पाअ)।

घरघरग :: पुं [दे] गला का आभूषण-विशेष (जं १)।

घरट्ट :: पुं [घरट्ट] जाता, चक्की, अन्‍न पीसने का पाषाण यन्त्र (गा ८००; सण)।

घरट्ट :: पूं [दे] अरघट्ट, अरहट, पानी का चरखा (निचू १)।

घरट्टी :: स्त्री [घरट्टी] शतघ्नी, तोप (दे ३, १०)।

घरणी :: देखो घरिणी; 'तं वरधरणि वरणि व' (७२८ टी; प्रासू ४५)।

घरयंद :: पुं [दे] आदर्श, दर्पण, शीशा (दे २, १०७)।

घरस :: पुं [दे. गृहवास] गृहाश्रम, गृहस्थाश्रम (बृह ३)।

घरसण :: देखो घंसण (सण)।

घरिंत :: वि [गृहवत्] घरवाला, गृहस्थ (प्राकृ ३५)।

घरिणी :: स्त्री [गृहिणी] घरवाली, स्त्री, भार्या, पत्‍नी (उप ७२८ टी; से २, ३८; सुर २ १००; कुमा)।

घरिल्ल :: पुं [गृहिन्] गृही, संसारी, घरबारी (गा ७३६)।

घरिल्ला :: स्त्री [गृहिणी] घरवाली, स्त्री, पत्‍नी (कुमा)।

घरिल्ली :: स्त्री [दे गृहिणी] गृहिणी, पत्‍नी (दे २, १०६)।

घरिस :: पुं [घर्ष] घर्षण, रगड़ (णाया १, १६)।

घरिसण :: न [घर्षण] घर्षण, रगड़ (सण)।

घरोइला :: स्त्री [दे] गृहगोधा, छिपकली, बिस्तु- इया (पि १६८)।

घरोल :: न [दे] गृह-भोजन-विशेष (दे २, १०६)।

घरोलिया, घरोली :: स्त्री [दे] गृहगोधिका, छिपकली; गुजराती में 'घरोली' (पण्ह १, १; दे २, १०५)।

घलघल :: पुं [घलघल] 'घल-घल' आवाज, घ्वनि-विशेष (विपा १, ६)।

घल्ल :: सक [क्षिप्] फेंकना, डालता, वालना। घल्लइ, घल्लति (भवि; हे ४, ३३४; ४२२)।

घल्ल :: वि [दे] अनुरक्त, प्रेमी (दे २, १०५)।

घल्लय, घल्लीय :: पुं [दे] द्वीन्द्रिय जीव की एक जाति (सुख ३६, १३०; उत्त ३६, १६०)।

घल्लिअ :: वि [क्षिप्र] फेंका हुआ, डाला हुआ (भवि)।

घल्लिअ :: वि [दे] घटित, निर्मित, किया हुआ; 'अइरुट्ठेणं तेणवि घल्लिओ तिक्खखग्गगुरुघाओ' (सुपा २४९)।

घस :: सक [घृष्] १ घिसना, रगड़ना। २ मार्जन करना, सफा करना। घसइ (महा; षड्) संकृ. 'घसिऊण अरणिकट्ठं' अग्गी पज्जालिओ मए पच्छा' (सुर ७, १८९)

घस :: स्त्रीन [दे] १ फटी हुई जमीन, फाटवाली भूमि (आचा २, १०, २) २ शुषिर भूमि, पोली जमीन। ३ क्षार भूमि (दस ६, ३२)

घसण :: देखो वंसण (सुपा १४; दे १, १६९)।

घसणिअ :: वि [दे] अन्विष्ट, गवेषित (षड्)।

घसणी :: स्त्री [घर्षणी] सर्प-रेखा, टेढ़ी लकीर (स ३५७)।

घसा :: स्त्री [दे] १ पोलो जमीन। २ भूमि- रेखा, लकीर (राज)

घसिय :: वि [घृष्ट] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ (दसा ५)।

घसिर :: वि [ग्रसितृ] बहु-भक्षक, बहुत खानेवाला (ओघ १३३ भा)।

घसी :: स्त्री [दे] १ भूमि-राजि, लकीर। २ नीचे उतरना, अवतरण (राज)

घसी :: स्त्री [दे] जमीन का उतार, ढाल (आचा २, १, ५, ३)।

घसुमर :: वि [घस्मर] खाने की आदतवाला, खाधुक (प्राकृ २८)।

घाइ :: वि [घातिन्] घातक, नाशक, हिसक (गा ४३७; विसे १२३८; भग)। °कम्म न [°कर्मन्] कर्म-विशेष; ज्ञानावरण, दर्शना- वरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म (अंत)। °चउक्क न [चतुष्क] पूर्वोक्त चार कर्म (प्रारू)।

घाइअ :: वि [घातित] १ मारित, विनाशित (णाया १, ८; उव) २ घवाया हुआ, जो शक्ति-शून्य हुआ हो, सामर्थ्यरहित; 'करणाइं घाइयाइं जाया अह वेयणा मंदा' (सुर ४, २३९)

घाइआ :: स्त्री [घातिका] १ विनाश करनेवाली स्त्री, मारनेवाली स्त्री (जं २) २ घात, हत्या। ३ घाव करना (सुर १६, १५०)

घाइज्जमाण, घाइयव्व :: देखो घाय=हन्।

घाइयव्व :: देखो घाय=घातय्।

घाइर :: वि [घ्रायिन्] सूँघनेवाला (गा ८८६)।

घाउकाम :: वि [हन्तुकाम] मारने की इच्छावाला (णाया १, १८)।

घाएंत :: देखो घाय=हन्।

घाड :: अक [भ्रंश्] भ्रष्ट होना, च्युत होना। घाडइ (षड्)।

घाड :: पुं [घाट] १ मित्रता, सौहार्द (बृह णाया १, २) २ मस्तक के नीचे का भाग (णाया १, ८ — पत्र १३३)

घाडिय :: वि [घाटिक] वयस्य, मित्र (णाया १, २ बृह १)।

घाडेरुय :: पुं [दे] खरगोश की एक जाति (?) 'जे तुह संगसुहासारज्जुनिबद्धा दुहं मए रुद्धा। घाडेरुयससया इव अबंधणा ते पलायंति' (उप ७२८ टी)।

घाण :: पुं [दे] १ घानी, कोल्हू, तिल-पीड़न- यन्त्र (पिंड) २ घान, चक्की आदि में एक बार डालने का परिमाण (सुपा १४)

घाण :: पुंन [घ्राण] नाक, नासिका; 'दो घाणा' (पुण्ण १५; उप ६४८ टी; दे २, ७६)। °।रिस पुंन [°।र्शस्] नासिका में होनेवाला रोग-विशेष, पीनस (ओघ १८४ भा)।

घाणिदिय :: न [घ्राणेन्द्रिय] नासिका, नाक (उत्त २९)।

घाय :: सक [हन्] मारना, मार डालना, विनाश करना। वकृ. घाएह (उव)। वकृ. 'घाएंत रिउभंडहवे' (पउम ९०, १७)। घायंत (पउम २४, २९; विसे १७६३)। कवकृ. 'से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहिं चोर- सएहिं सद्धि गिहं घाइज्जमाणं पासइ' (णाया १, १८)। वकृ. घाइयव्व (पउम ६६, ३४)।

घाय :: सक [घातय्] मरवाना, दूसरे द्वारा मार डालना, विनाश करवाना। वकृ. घायमाण (सूअ २, १)। कृ. घाइयव्व (पउम ६६, ३४)।

घाय :: पुं [घात] गमन, गति (सुज १, १)।

घाय :: पुं [घात] १ प्रहार, चोट, वार (पउम ५६; २५) २ नरक (सूअ १, ५, १) ३ हत्या, विनाश, हिंसा (सूअ १, १, २) ४ संसार (सूअ १, ७)

घायग :: वि [घातक] मार डालनेवाला, विना- शक (स २९४; सुपा २०७)।

घायण :: न [हनन] १ हत्या, नाश, हिंसा (सुपा ३४६; द्र २९) २ वि. हिंसक, मार डालनेवाला (स १०८)

घायण :: पुं [दे] गायक, गवैया (दे २, १०८; हे २, १७४; षड्)।

घायणा :: स्त्री [हनन] मारना, हिसा, वध (पण्ह १, १)।

घायय :: देखो घायग (विसे १७६३; स २९७)।

घायय :: पुं [घातक] नरक-स्थान विशेष (देवेन्द्र २६; ३०)।

घायावणा :: स्त्री [घातना] १ मरवाना, दूसरे द्वारा मारना । २ लूटपाट मचवाना; 'बहुग्गा- मवायावणाहि ताविया' (विपा १, ३)

घार :: अक [घारय्] १ विष का फैलना, विष की असर से बेचैन होना। २ सक. विष से बेचैन करना। ३ विष से मारना। कर्म. 'घारिज्जतो य तओ विसेण' (स १८९)। हेकृ. घारिज्जिउं (स १८९)

घार :: पुं [दे] प्राकार, किला, दुर्ग (दे २, १०८)।

घारंत :: पुं [दे] घृतपूर, घेवर, एक प्रकार की मीठाई (दे २, १०८)।

घारण :: न [घारण] विष की असर से होनेवाली बेचैनी (सुपा १२४)।

घारिय :: वि [घारित] जो विष की असर से बेचैन हुआ हो; 'ततओ भोगो। सव्वत्थ तदुवघाया विसघारियभोगतुल्लोत्ति' (उप ४४२); 'विसवा (? घा) रियस्स जह वा घणचन्दणकामिणीसंगो' (उवर ६७); 'विसघारिओ सि धत्तूरिओ सि मोहेण किव ठगिओ सि' (सुपा १२४; ४४७)।

घारिया :: स्त्री [दे] मिष्टान्न-विशेष, गुजराती में जिसे 'घारी' कहते हैं (भवि)।

घारी :: स्त्री [दे] १ शकुनिका, पक्षि-विशेष (दे २, १०७; पाअ) २ छन्द-विशेष (पिंग)

घास :: सक [घृष्] १ घिसना। २ पीड़ा करना। कर्म. घासइ (सूअ १, १३, १५)

घास :: पुं [घास] तृण, पशुओं को खाने का तृण (दे २, ८५; औप)।

घास :: पुं [ग्रास] १ कवल, कौर (औप; उत्त २) २ आहार, भोजन (आचा; ओघ ३३०)

घास :: पुं [घर्ष] घर्षण, रगड़; 'जो मे उवज्जि- ओ इह कररुहघसणेण चरणघासेण' (सुपा १४)।

घासंसणा :: स्त्री [ग्रासैषणा] आहार-विषयक शुद्धि अशुद्धि का पर्यालोचन (ओघ ३३८)।

घि :: देखो घे। भवि. घिच्छिइ (विसे १०२३)। कर्म. घिप्पंति (प्रासू ४)। संकृ घित्तूण (कुमा ७, ४९)। हेकृ. घित्तुं (सुपा २०९)। कृ. घित्तव्व (सुर १४, ७७)।

घिअ :: न [घृत] घी, घीव, आज्य (गा २२)।

घिअ :: वि [दे] भर्त्सित, तिरस्कृत, अवधीरित (दे २, १०८)।

घि°, घिंसु :: पुं [ग्रीष्म] १ गरमी की ऋतु, ग्रीष्म काल; 'घिसिसिरवासे' (ओघ ३१० भा; उत्त २, ८; पि ६; १०१) २ गरमी, अभिताप (सूअ १, ४, २)

घिट्ठ :: वि [दं] कुब्ज, कूबड़ा (दे २, १०८)।

घिट्ठ :: वि [घृष्ट] घिसा हुआ, रगड़ा हुआ (सुपा २७८; गा ६२९ अ)।

घिणा :: स्त्री [घृणा] १ जुगुप्सा, अरुचि। २ दया, अनुकम्पा (हे १, १२८)

घिणिल्ल :: वि [घृणावत्] घृणावाला, नफ- रत करनेवाला (पिंड १७६)।

घित्त :: (अप) वि [क्षिप्त] फेंका हुआ, डाला हुआ (भवि)।

घित्तुमण :: वि [ग्रहीतुमनस्] ग्रहण करने की इच्छावाला (सुपा २०९)।

घित्तूण, घिप्प° :: देखो घि।

घिस :: सक [ग्रस्] ग्रसना, निगलना, भक्षण करना। घिसइ (हे ४, २०४)।

घिसरा :: स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल- विशेष (विपा १, ८ — पत्र ८५)।

घिसिअ :: वि [ग्रस्त] कवलित, निगला हुआ, भक्षित (कुमा ७, ४६)।

घुंघुरुड :: पुं [दे] उत्कर, ढग, ढेर, समूह (दे २, १०९)।

घुंट :: पुं [दे] घूँट, एक बार पीने योग्य पानी आदि (हे ४, ४२३)।

घुग्घ, घुग्घिअ :: (अप) पुंन [घुग्घिका] कपि-चेष्टा, बन्दर की चेष्टा (हे ४, ४२३; कुमा)।

घुग्घुच्छण :: न [दे] खेद, तकलीफ, परिश्रम (दे २, ११०)।

घुग्घुरि :: पुं [दे] मण्डूक, भेक, मेढूक (दे २, १०९)।

घुग्घुस्सुअ :: वि [दे] निःशंक होकर गया हुआ (षड्)।

घुग्घुस्सुसय :: न [दे] साशंक वचन, आशंका- युक्त वाणी (दे २, १०९)।

घुघुघुघुघुघ :: अक [घुघुघुघाय्] 'घुघु' आवाज करना, घूक या उल्लू का बोलना। वकृ. घुघुघुघुघुघेंन (पउम १०५, ५९)।

घुघुय :: अक [घुघूय्] ऊपर देखो । वकृ. घुघुयंत (णाया १, ८ — पत्र १३३)।

घुट्टग :: पुं [घुष्टक] लिपे हुए पात्र को घिसने का पत्थर (पिंड १५)।

घुट्टघुणिअ :: न [दे] पहाड़ की बड़ी शिला (दे २, ११०)।

घुट्ठ :: वि [घुष्ट] घोषित, ऊँची आवाज से जाहिर किया हुआ (पउम ३, ११८; भवि)।

घुडुक्क :: अक [गर्ज्] गरजना, गर्जारव करना। घुडुक्कइ (हे ४, ३९५)।

घुण :: पुं [घुण] काष्ठ-भक्षक कीट, घुन (ठा ४ १; विसे १५३६)।

घुणहुणिआ, घुणाहुणी :: स्त्री [दे] कर्णोपकर्णिका, कानाकानी (दे २, ११०; महा)।

घुणिय :: वि [घुणित] घुणों से विद्ध, घुना हुआ (बृह १)।

घुण्ण :: देखो घुम्म। वकृ. घुण्णंत (नाट)।

घुण्णिअ :: वि [घुर्णित] १ घुमा हुआ। २ भ्रान्त, भटका हुआ (दे ८, ४६)

घुत्तिअ :: वि [दे] गवेषित, अन्वेषित, खोजा हुआ (दे २, १०९)।

घुन्न, घुम :: देखो घुम्म। घुमइ (पिंग)। वकृ. घुन्नंत (पण्ह १, ३)।

घुमघुमिय :: वि [घुमघुमित] १ जिसने 'घुम- घुम' आवाज किया हो वह। २ न. 'घुम-घुम' ध्वनि; 'महुरगंभीरघुमघुमियवरमद्दलं' (सुपा ५०)

घुम्म :: अक [घुर्ण्] घूमना, चक्राकार फिरना। घुम्मइ (हे ४, ११७; षड्)। वकृ. घुम्मंत, घुम्ममाण (हेका ३३; णाया १, ९)। संकृ. घुम्मिऊण (महा)।

घुम्मण :: न [घूर्णन] चक्राकार भ्रमण (कुमा)।

घुम्माविअ :: वि [घूर्णित] घुमाया हुआ (वज्जा १२२)।

घुम्मिय :: वि [घूर्णित] घुमा हुआ, चक्र की तरह फिरा हुआ (सुपा ९४)।

घुम्मिर :: वि [घूर्णितृ] घूमनेवाला, फिरनेवाला, चक्राकार घूमनेवाला (उप पृ ६२; गा १८०; गउड)।

घुयग :: पुं [दे] एक तरह का पत्थर, जो पात्र वगैरह को चिकना करने के लिए उस पर घिसा जाता है, खराद या चरखी (पिंड)।

घुरहुर :: देखो घुरुघुर। वकृ. घुरहुरंत (श्रा १२)।

घुरुक्क :: अक [दे] घुरकना, घुड़कना, गरजना। 'घुरुक्कंति वग्या' (महा)।

घुरुक्कार :: पुं [घुरुत्कार] सूअर आदि की आवाज (किरात ९)।

घुरुघुर :: अक [घुरुघुराय्] घुरघुराना, 'घुर- घुर' आवाज करना, व्याघ्र वगैरह का बोलना। घुरुघुरंति (पि ५५८)। वकृ. घुरुघुरायंत (सुपा ५०५)।

घुरुघुरि :: पुं [दे] मण्डूक, मेढक, भेक, बेग (दे २, १०९)।

घुरुघुरु, घुरुहुर :: देखो घुरुघुर। घुरुहुरइ (महा)। वकृ. घुरुघुरुमाण (महा)।

घुल :: देखो घुम्म। घुलइ (हे ४, ११७)।

घुलिकि :: स्त्री [दे] हाथी की आवाज, करि-शब्द (पिंग)।

घुलघुल :: अक [घुलघुलाय्] 'घुल-घुल' आवाज करना। वकृ. घुलघुलाअमाण (पि ५५८)।

घुलिअ :: वि [घूर्णित] चक्राकार घुमा हुआ (कुमा)।

घुल्ला :: स्त्री [दे] कीट-विशेष, द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पण्ण १)।

घुसण :: देखो घुसिण (कुमा)।

घुसल :: सक [मथ्] मथना, विलोड़ना। घुसलइ (हे ४, १२१)।

घुसलिअ :: वि [मथित] मथित, विलोड़ित (कुमा)।

घुसिण :: न [घुसृण] कुंकुम, सुगन्धित द्रव्य- विशेष, केसर (हे १, १२८)।

घुसिणल्ल :: वि [घुसृणवत्] कुंकुमवाला, कुंकुम-युक्त (कुमा)।

घुसिणिअ :: वि [दे] गवेषित, अन्विष्ट (दे २, १०९)।

घुसिम :: न [दे] घुसृण, कुंकुम (षड्)।

घुसिरसार :: न [दे] अवस्‍नान, विवाह के अव- सर में स्‍नान के पहले लगाया जाता मसूरादि का पिसान, उबटन (दे २, ११०)।

घुसुल :: देखो घुसल। वकृ. घुसुलंत, घुसुलिंत (पिंड ५८७; ५७३)।

घुसुलण :: न [मथन] विलोड़न (पिंड ६०२)।

घूअ :: पुंस्त्री [घूक] उलूक, उल्लू, पक्षि विशेष (णाया १, ८; पउम १०५, ५९)। स्त्री. घूई (विपा १, ३)। °।रि पुं [°।रि] काक, कौआ, वायस (तदु)।

घूणाग :: पुं [घूणाक] स्वनाम-ख्यात सन्निवेश- विशेष, ग्राम-विशेष (आचू १)।

घूरा :: स्त्री [दे] १ जंघा, जाँध। २ खलका, शरीर का अवयव विशेष; 'गद्दभाण वा घूराओ कप्पेंति' (सूअ २, २, ४५)

घे :: देखो गह=ग्रह। घेइ (षड्)। भवि. घेच्छं (विसे ११२७)। कर्म. घेप्पइ (हे ४, २५६)। कवकृ. घेप्पंत, घेप्पमाण (गा ५८१; भग; स १५२)। संकृ. घेऊण, घक्कूण, घेक्कूण, घेत्तुआण, घेत्तुआणं, घेत्तूण, घेत्तूणं (नाट — मालती ७१; पि ५८४; हे ४, २१०; पि; उव; प्राप्र)। हेकृ. घेत्तुं, घेत्तूण (हे ४, २१०; पउम; ११८, २४)। कृ. घेत्तव्व (हे ४, २१०; प्राप्र)।

घेउर :: पुंन [दे] घेवर, घृतपूर, मिष्टान्न-विशेष; 'सा भणइ नियगेहेवि हु घयघेउरभोयणं समा- कुणइ' (सुपा १३)।

घेक्कूण :: देखो घे।

घेत्तुमण :: वि [ग्रहीतुमनस्] ग्रहणकरने की इच्छावाला (पउम १११, १६)।

घेप्प°, घेप्पंत, घेप्पमाण :: देखो घे।

घेवर :: [दे] देखो घेउर (दे २, १०८)।

घोट्ट, घोट्टय :: सक [पा] पीना, पान करना। घोट्टइ (हे ४, १०)। वकृ. घोट्ट- यंत (स २५७)। हेकृ. घोट्टिउं (कुमा)।

घोड :: देखो घुम्म। घोडइ (से ५, १०)।

घोड, घोढग, घोडय :: पुंस्त्री [घोट, °क] घोड़ा, अश्व, हय (दे २, १११; पंच ५२; उवा; उप २०८)। २ पुं. कायो- त्सर्ग का एक दोष (पव ५)। °रक्खग पुं [°रक्षक] अश्वपाल, साईस (उप ५९७ टी)। °ग्गीव [°ग्रीव] अश्वग्रीव-नामक प्रतिवासुदेव, नृपविशेष (आवम)। °मुह न [°मुख] जैनेतर शास्त्र-विशेष (अणु)

घोडिय :: पुं [दे] मित्र, वयस्य (बृह ५)।

घोडी :: स्त्री [घोटी] १ घोड़ी। २ वृक्ष-विशेष; 'सीयल्लिघोडिवच्चूलकयरखइराइसंकिण्णे' (स २५६)

घोण :: न [घोण] घोड़े की नाक (सण)।

घोणस :: पुं [घोनस] एक प्रकार का साँप (पउम ३९, १७)।

घोणा :: स्त्री [घोणा] १ नाक, नासिका (पाअ) २ घोड़े की नाक। ३ सूअर का मुख-प्रदेश (से २, ९४; गउड)

घोर :: अक [घुर्] निद्रा में 'घुर-घुर' आवाज करना। घोरंति (गा ८००)। वकृ. घोरंत (स ४२४; उप १०३१ टी)।

घोर :: वि [दे] १ नाशित, विनाशित। २ पुं. गीघ, पक्षि-विशेष (दे २, ११२)

घोर :: वि [घोर] भयंकर, भयानक, विकट (सूअ १, ५, १; सुपा ३४५; सुर २, २४३; प्रासू १३९)। २ निर्दय, निष्‍ठुर (पाअ)

घोरि :: पुं [दे] शलभ-पशु की एक जाति (दे २, १११)।

घोल :: देखो घुम्म। घोलइ (हे ४, ११७)। वकृ. घोलंत (कप्प; गा ३७२; कुमा)।

घोल :: सक [घोलय्] १ घिसना, रगड़ना। २ मिलाना (विसे २०४४; से ४, ५२)

घोल :: न [दे] कपड़े से छाना हुआ दही (पभा ३३)।

घोलण :: न [घोलन] घर्षण, रगड़ (विसे २०४४)।

घोलणा :: स्त्री [घोलना] पत्थर वगैरह का पानी की रगड़ से गोलाकार होना (स ४७)।

घोलवड, घोलवडय :: न [दे] एक प्रकार का खाद्य द्रव्य, दहीबड़ा (पभा ३३; श्रा २०; सुपा ४९५)।

घोलाविअ :: वि [घोलित] मिश्रित किया हुआ, मिलाया हुआ (से ४, ५२)।

घोलिअ :: न [दे] १ शिलातल। २ हठ-कृत, बलात्कार (दे २, ११२)

घोलिअ :: वि [घूर्णित] घुमाया हुआ (पाअ)।

घोलिअ :: वि [घूर्णित] अत्यन्त लीन, 'अज- रक्खिओ जविएसु अईव घोलिओ' (सुख २, १३)।

घोलिअ :: वि [घोलित] आम की तरह घोला हुआ (सूअ २, २, ६३)।

घोलिअ :: वि [घोलित] रगड़ा हुआ, मर्दित (औप)।

घोलिर :: वि [घूर्णितृ] घूमनेवाला, चक्राकार फिरनेवाला (गा ३३८; स ५७८; गउड)।

घोस :: सक [घोषय्] १ घोषणा करना, ऊँची आवाज से जाहिर करना। २ घोखना, ऊँची आवाज से अघ्ययन करना, जोर-जोर से बोल कर पढ़ना या रटना। घोसइ (हे १, २६०; प्रामा)। प्रयो. घोसावेइ (भग)

घोस :: पुं [घोष] १ ऊँची आवाज (स १०७; कुमा; गा ५४) २ आभीर-पल्ली, अहीरों का महल्ला, अहीर टोली (हे १, २६०) ३ गोष्ठ, गौओं का बाड़ा (ठा २, ४ — पत्र ८६; पाअ) ४ स्तनितकुमार देवों को दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) ५ उदात आदि स्वर-विशेष (वव १०) ६ अनुनाद (भग ६, १) ७ न देव-विमान-विशेष (सम १२, १७)। °सेण पुं [°सेन] सातवें वासुदेव का पूर्वजन्म का धर्म-गुरू, एक जैन मुनि (पउम २०, १७६)

घोस :: न [घोष] लगातार ग्यारह दिनों का उपवास (संबोध ५८)।

घोसण :: न [घोषण] १ ऊँची आवाज (निचू १) २ घोषणा, ढिंढोरा पिटवाकर जाहिर करना (राय)

घोसणा :: स्त्री [घोषणा] ऊपर देखो (णाया १, १३; गा ५२४)।

घोसय :: न [दे] दर्पण का घरा, दर्पण रखने का उपकरण-विशेष (अंत)।

घोसाडई :: स्त्री [घोषातकी] लता-विशेष (पण्ण १७ — पत्र ५३०)।

घोसाडिया :: देखो घोसाडई (राय ३१)।

घोसालई, घोसाली :: स्त्री [दे] शरद् ऋतु में होनेवाली लता-विशेष (दे २, १११; पण्ण १ — पत्र ३३)।

घोसावण :: न [घोषण] घोषणा, डोंडी या डुग्गी पिटवा कर जाहिर करना (उप २११ टी)।

घोसिअ :: वि [घोषित] जाहिर किया हुआ (उव)।

 :: अ [च] अथवा, या; 'चसछो विगप्पेणं' (पंच ३, ४४)।

 :: पुं [च] तालु-स्थानीय व्यञ्‍जन-वर्ण-विशेष (प्राप; प्रामा)।

 :: अ [च] इन अर्थों में प्रयुक्त किया जाता अव्यय — १ और, तथा (कुमा; हे २, २१७) २ पुन:, फिर (कम्म ४, २३; ६९; प्रासू ५) ३ अवघारण, निश्‍चय (पंच १३) ४ भेद, विशेष (निचू १) ५ अतिशय, आधिक्य (आचा; निचू ४) ६ अनुमति, सम्मति (निचू १) ७ पाद-पूर्ति, पाद-पूरण (निचू १)

चआ :: स्त्री [त्वक्] चमड़ी, त्वचा (षड्)।

चइअ :: वि [शकित] जो समर्थ हुआ हो, शक्त (से ९, ५१)।

चइअ :: देखो चविअ (पउम १०३, १२९)।

चइअ :: वि [त्यक्त] मुक्त, परित्यक्त (कुमा ३, ४९)।

चइअ :: वि [त्याजित] छुड़वाया हुआ, मुक्त कराया हुआ (ओघ ११५)।

चइअ :: देखो चय=त्यज्।

चइअ :: देखो चु।

चइइअ :: देखो चेइअ (षड्)।

चइउं, चइऊण :: देखो चय=त्यज्।

चइऊण :: देखो चु।

चइत्त :: देखो चेइअ (हे २, १३; कुमा)

चइत्त :: पुं [चैत्र] मास-विशेष, चैत्र मास (हे १, १५२)।

चइत्ता :: देखो चु।

चइत्ताणं, चइयव्व :: देखो चय=त्यज्।

चइद :: (शौ) वि [चकित] भीत, शंकित (अभि २१३)।

चइयव्व :: देखो चु।

चउ :: वि [चतुर्] चार, संख्या-विशेष, ४ (उवा; कम्म ४, २; जी ३३)। °आलीस स्रीन [°चत्वारिशत्] चौआलीस, ४४ (पि ७५; १६६)। °कट्ठ न [°काष्ठा] चारों दिशा (कुमा) °कट्टी स्त्री [°काष्ठी] चौकठा, चौकठ, चौखटा, द्वार के चारों और का काठ, द्वार का ढाँचा (निचू १)। °क्कोण वि [°कोण] चार कोणवाला, चतुरस्र (णाया १, १३)। °ग न देखो चउक्क=चतुष्क (दं ३०) °गइ स्त्री [°गति] नरक, तिर्यग्, मनुष्य और देव की योनि (कम्म ४, ६६)। °गइअ वि [°गतिक] चारों गति में भ्रमण करनेवाला (श्रा ९)। °गमण न [°गमन] चारों दिशाएँ (कप्प)। °गुण, °ग्गुण वि [°गुण] चौगुना (हे १, १७१; षड्)। °चत्ता स्त्री [°चत्वारिंशत्] संख्या-विशेष, चौआलीस (भग)। °चरण पुं [°चरण] चौपाया, चार पैर के जन्तु, पशु (उप ७६८ टी; सुपा ४०६)। °चूड पुं [°चूड] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४५)। °ट्ठ देखो °त्थ (हे २, ३३)। °ट्ठाणवडिअ वि [°स्थान- पतित] चार प्रकार का (भग)। °णउइ स्त्री [°नवति] संख्या-विशेष, चौरानबे, ९४ (पि ४४६)। °णउय वि [°नवत] चौरा- नबैवाँ, ९४ वाँ (पउम ९४, १०९)। °णवइ देखो °णउइ (सम ९७; श्रा ४४)। °ण्ण (अप)। देखो °पन्न (पिंग)। °तिस, °तीस न [°त्रिंशत्] चौतीस, ३४ (भग; औप)। °तीसइम देखो °त्तीसइम (पउम ३४, ६१)। °तीसा स्त्री देखो °तीस (प्रारू)। °त्तालीस वि [°चत्वारिंश] चौआलीसवाँ, ४४ वाँ (पउम ४४, ६८)। °त्तीसइम वि [°त्रिंश] १ चौतीसवाँ ३४ वाँ (कप्प) २ न. सोलह दिनों का लगातार उपवास (णाया १, १ — पत्र ७२) °त्थ वि [°थ] १ चौथा (हे १, १७१) २ पुंन. उपवास (भग)। °त्थंचउत्थ पुंन [°थचतुर्थ] एक एक उप- वास (भग)। °त्थभत्त न [°थभक्त] एक दिन का उपवास (भग)। °त्थभत्तिय वि [°थभक्तिक] जिसने एक उपवास किया हो वह (पण्ह २, १)। °त्थिमंगल न [°थीम- ङ्गल] वधू-व़र के समागम का चतुर्थ दिन, जिसके बाद जामाता अकेला अपने घर जाता है, चौठारी (गा ६४६ अ) °त्थी स्री [°थी] १ चौथी। २ संप्रदान-विभक्ति, चतुर्थी विभक्ति (ठा ८) ३ तिथि-विशेष (सम ९)। °दंत देखो °द्दंत (राज)। °दस त्रि. ब. [°दशन्] संख्या-विशेष, चौदह (नव २; जी ४७)। °दसपुव्वि पुं [°दशपूर्विन्] चौदह पूर्व ग्रन्थों का ज्ञानवाला मुनि (ओघ २)। °दसम वि. देखो °द्दसम (णाया १, १४)। °दसहा अ [°दशधा] चौदह प्रकार से (नव ५)। °दसी स्त्री [°दशी] तिथि विशेष, चतुर्दशी (रयण ७१)। °द्दंत पुं [°दन्त] ऐरावत, इन्द्र का हाथी (कप्प)। °द्दस देखो °दस (भग)। °द्दसपुव्वि देखो °दसपुव्वि (भग ५, ४) °द्दसम वि [°दश] १ चौदहवाँ, १४ वाँ (पउम १४, १५८) २ पुंन. लगा- तार छ: दिनों का उपवास (भग)। °द्दसी देखो °दसी (कप्प)। °द्दसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशततम] एक सौ चौदहवाँ, ११४ वाँ (पउम ११४, ३५)। °द्दह देखो °दस (पि १६६; ४४३)। °द्दही देखो °दसी (प्राप्र)। °द्दिसं, °द्दिसिं अ [°दिश्] चारों दिशाओं की तरफ, चारों दिशाओं में (भग; महा; ठा ४, २)। °द्धा अ [°धा] चार प्रकार से (उव)। °नाण न [°ज्ञान] मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यव ज्ञान (भग; महा)। °नाणि वि [°ज्ञानिन्] मति वगैरह चार ज्ञानवाला (सुपा ८३; ३२०) °पण्ण देखो °पन्न। °पण्णइम वि [°पञ्चाश] १ चौवनवाँ, ५४ वाँ। २ न. लगातार छब्बीस दिनो का उपवास (णाया २ — पत्र २५१) °पन्न, °पन्नास स्त्रीन [°पञ्चासत्] चौवन, ५४ (पउम २०, १७; सम ७२; कप्प)। °पन्नासइम वि [°पञ्चाशत्तम] चौवनवाँ, ५४ वाँ (पउम ५४, ४८)। °पय देखो °प्पय (णाया १, ८; जी २१)। °पाल न [°पाल] सूर्याभ देव का प्रहरण-कोश (राय)। °पइया, °प्पइया स्त्री [°पदिका] १ छन्द-विशेष (पिग) २ जन्तु-विशेष की एक जाति (जीव २)। °प्पर्इ स्त्री [°पदी] देखो °पइया (सुपा १९०)। °प्पन्न देखो °पन्न (सम ७२) °प्पय पुंस्त्री [°पद] १ चौपाया प्राणी, पशू (जी ३१) २ न. ज्योतिष-प्रसिद्ध एक स्थिर करण (विसे ३३५०)। °प्पह पुं [°पथ] चौहट्टा, चौराहा, चौरास्ता (प्रयौ १००)। °प्पुड वि [°पुट] चार पुटवाला, चौसर, चौपड़ (विपा १, १)। °प्फाल वि [°फाल] देखो °प्पुड (णाया १, १ — पत्र ५३)। °ब्बाहु वि [°बाहु] १ चार हाथवाला। २ पुं. चतुर्भुज, श्रीकृष्ण (नाट)। °ब्भुअ [°भुज] देखो °बाहू (नाट; सूअ १, ३, १)। °भंग पुंन [°भङ्ग] चार प्रकार, चार विभाग (ठा ४, १)। °भंगी स्त्री [°भङ्गी] चार प्रकार, चार विभाग (भग)। °भाइया स्त्री [°भागिका] चौसठ पल का एक नाप (अणु)। °मट्टिया स्त्री [°मृत्तिका] कपड़े के साथ कूटी हुई मिट्टी (निचू १८)। °मंड- लग न [°मण्डलक] लग्‍न-मण्डप, विवाह- मण्डप (सुपा ६३)। °मासिअ देखो चाउ- म्मासिअ (श्रा ४७)। °मुह, °म्मुह पुं [°मुख] १ ब्रह्मा, विधाता (पउम ११, ७२; २८, ४८) २ वि. चार मुँहवाला, चार द्वारवाला (औप; सण)। °वग्ग पुंन [°वर्ग] चार वस्तुओं का समुदाय (निचू १५)। °वण्ण, °वन्न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] चौवन, पचास और चार, ५४ (पि २६५; २७३; सम ७२)। °वार वि [°द्वार] चार दरवाजेवाला (गृह) (कुमा)। °विह वि [°विध] चार प्रकार का (दं ३२; नव ३)। °वीस स्त्रीन [°विंशति] चौबीस, बीस और चार, २४ (सम ४३; दं १; पि ३४)। °वीसइ (अप)। स्त्री [°विशति] बीस और चार, चौबीस (पि ४४५)। °वीसइम वि [°विशंतितम] १ चौबीसवाँ (पउण २४, ४०) २ न. ग्यारह दिनों का लगातार उप- वास (भग)। °व्वग्ग देखो °वग्ग (आचा २, २)। °व्वार पुंन [°वार] चार बार, चार दफा (हे १, १७१; कुमा)। °व्विह देखो °विह (ठा ४, २)। °व्वीस देखो °वीस (सम ४३)। °व्वीसइम देखो °वीस- इम (णाया १, १)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] टौसठ, साठ और चार (सम ७१; कप्प)। °सट्ठिम वि [°पष्टितम] चौसठवाँ (पउम ६४, ४७)। °स्सट्ठि देखो °सट्ठि (कप्पू)। °स्साल न [°शाल] चार शालाओं से युक्त घर (स्वप्‍न ५१)। °हट्ट, °हट्टय पुंन [°हट्ट, °क] चौहट्टा, बाजार (महा; श्रा २७; सुपा ४५५ °हत्तर वि [°सप्तत] चौहत्तरवाँ, ७४ वाँ (पउम ७४, ४३)। °हत्तरि स्त्री [°सप्तति] चौहत्तर, सतर और चार (पि २४५; २६४)। °हा अ [°धा] चार प्रकार से (ठा ३, १; जी १९)। देखो चो°।

चउक्क :: न [चतुष्क] चौकड़ी, चार वस्तुओं का समूह (सम ४०; सुर १४, ७८; सुपा १४); 'वणणचउक्केण' (श्रा २३)।

चउक्क :: [दे. चतुष्क] चौक, चौराहा, जहाँ चार रास्ता मिलता हो वह स्थान, चौमुहानी (दे ३, २; षड्; णाया १, १; औप; कप्प; अणु; बृह १; जीव १; सुर १; ६३; भग)। २ आँगन, प्रांगण (सुर ३, ७२)

चउक्कर :: पुं [दे] कार्त्तकेय, शिव का एक पुत्र (दे ३, ५)।

चउक्कर :: वि [चतुष्कर] चार हाथवाला, चतुर्भुज (उत्त ८)।

चउक्किआ :: स्त्री [दे. चतुष्किका] आँगन, छोटा चौक (सुर ३, ७२)।

चउज्झाइया :: स्त्री [दे] नाप-विशेष (भग ७, ८)।

चउड :: पुं [चोड] देश-विशेष (सम्मत्त ६०)।

चउद :: देखो चउ-दस (संबोध २३)।

चउद्दह :: वि [चतुर्दश] चौदहवाँ (प्राकृ ५)। स्त्री. °ही (प्राकृ ५)।

चउपंचम :: वि [चतुष्पञ्च] चार या पाँच (सूअ २, २, २१)।

चउपाडिवय :: न [चतुष्प्रतिपत्] चार पडवा या परिवा तिथियाँ (पव १०४)।

चउप्पाय :: पुं [चतुष्पाद] एक दिन का उप- वास (संबोध ५८)।

चउप्फल :: वि [चतुष्फल] चौगुना, 'मद्दल- वाय चउप्फललोयं' (सिरि १५७)।

चउबोल :: स्त्रीन [चौबोल] छन्द-विशेष (पिंग)। स्त्री. °ला (पिंग)।

चउम्मुह :: पुं [चतुर्मुख] दो दिन का उपवास, बेला (संबोध ५८)।

चउर :: वि [चतुर] १ निपुण, दक्ष, होशियार (पाअ; वेणी ६९) २ क्रिवि. निपुणता से होशियारी से; 'केसी गायइ चउरं' (ठा ७)

चउरंग :: वि [चतुरङ्ग] १ चार अंगवाला, चार विभागवाला (सैन्य वगैरह)। (सण) २ न. चार अंग, चार प्रकार (उत्त ३)

चउरंगय :: न [चतुरङ्गक] एक तरह का जुआ (मोह ८६)।

चउरंगि :: वि [चतुरङ्गिन्] चार विभागवाला (सैन्य वगैरह)। स्त्री. °णी (सुपा ४५९)।

चउरंत :: वि [चतुरन्त] १ चार पर्यन्तवाला, चार सीमाएँवाला। २ पुं. संसार (औप)। स्त्री. °ता [°ता] पृथिवी, धरणी (ठा ४, १)

चउरंत :: न [चतुरन्त] चक्र, पहिया (चेइय ३४३)।

चउरंस :: वि [चतुरस्त्र] चतुष्कोण, चार कोणवाला (भग; आचा; दं १२)।

चउरंसा :: स्त्री [चतुरंसा] छन्द-विशेष (पिंग)।

चउरय :: पुं [दे] चौरा, चबूतरा, गाँव का सभा-स्थान (सम १३८ टी)।

चउरस्स :: देखो चउरंस (विसे २७६७)।

चउरचिंध :: पुं [दे] सातवाहन, राजा शार्लि- वाहन (दे ३, ७)।

चउराणण :: वि [चतुरानन] १ चार मुँहवाला। २ पुं. ब्रह्मा, विधाता (गउड)

चउरासी, रउरासीइ :: स्त्री [चतुरशीति] संख्या-विशेष, चौरासी, ८४ (जी ४५; सण; उवा; पउम २०, १०३; सम ९०; कप्प)।

चउरासीइम :: वि [चतुरशीतितम] चौरा- सीवाँ, ८४ वाँ (पउम ८४, १२; कप्प)।

चउरासीय :: स्त्रीन [चतुरशीति] चौरासी, 'चउरासीयं तु गणहरा तस्स उप्पन्‍ना' (पउम ४, ३५)।

चउरिंदिय :: वि [चतुरिन्द्रिय] त्वक्, जिह्वा, नाक और चक्षु इन चार इन्द्रियवाला (जन्तु (भग ठा १, १; जी १८)।

चउरिमा :: स्त्री [चतुरिमन्] चतुरता, चतुराई, चातुर्य, निपुणता (सट्टि १६)।

चउरिया, चउरी :: स्त्री [दे] लग्‍न-मण्डप, मड़वा, बिवाह-मण्डप; गुजराती में 'चोरी' (रंभा; सुपा ५५२)।

चउरुत्तरसय :: वि [चतुरुत्तरशततम] एकसौ चारवाँ, १०४ वाँ (पउम १०४, ३५)।

चउवीस :: वि [चतुर्विश] चौबीसवाँ (पव ४६)।

चउवीसिगा :: स्त्री [चतुर्विशिका] समय-मान- विशेष, चौबीस चीर्थकर जितने समय में होते हैं उतना काल-एक उत्सर्पिणी या एक अव- सर्पिणी-काल (महानि ४)।

चउवेद, चउवेय, चउव्वेद :: वि [चतुर्वेद] चारों वेदों का ज्ञाता, चतुर्वेदी, चौबे (धर्मंसं १२३८; मोह १०)।

चउसट्ठिआ :: स्त्री [चतुः षष्टिका] रसवाली चीज तौलने का एक नाप, चार पल का एक माप (अणु १५१)।

चउसर :: वि [दे] चौंसर, चार सरा (लड़ी) वाला (हार आदि) (सुपा ५१०; ५१२)।

चउहत्थ :: पुं [चतुर्हस्त] श्रीकृष्ण (सुख ९, १)।

चउहार :: पुं [चतुराहार] चार प्रकार का आहार, अशन, पान, खादिम और स्वादिम; 'कंतासिज्जंपि न संछवेमि चउहारपरिहारो' (सुपा ५७३)।

चओर :: पुंन [दे] पात्र-विशेष, 'भुतावसाणे य आयमणवेलाए अवणीएसु चओरेसु' (स २५२)।

चओर, चओरग :: पुं स्त्री [चकोर] पक्षि-विशेष (पणह १, १; सुपा ३७)।

चओवचइय :: वि [चयोपचयिक] वृद्धि- हानिवाला (उप २५८ टी; आचा)।

चंकम :: अक [चङक्रम] बार बार चलना। २ इधर उधर घूमना। ३ बहुत भटकना। ४ टेढ़ा चलना। ५ चलना-फिराना। वकृ. चंकमंत (उप १३० टी; ९८६ टी)। हेकृ. चंकमिउं (स ३५६)। कृ. चंकमियव्व (पि ५५६)

चंकमण :: न [चङ्क्रमण] १ इधर उधर भ्रमण। २ बहुत चलना। ३ बार बार चलना। ४ टेढ़ा चलना। ५ चलना-फिरना। (सम १०६; णाया १, १)

चंकमिय :: वि [चंक्रमित] १ जिसने चंक्रमण या भ्रमण किया हो वह। २-६ ऊपर देखो (उप ७२८ टी; निचू १)

चंकमिर :: वि [चंक्रमितृ] चंक्रमण करनेवाला सण।

चंकम्म :: अक [चंक्रम्य] देखो चंकम। वकृ. चंकम्मंत, चंकम्ममाण (गा ४६३; ६२३ उप पृ २३६; पणह २, ५; कप्प)।

चंकम्मण :: देखो चंकमण (णाया १, १ — पत्र ३८)।

चंकम्मिअ :: देखो चंकमिअ (से ११, ९९)।

चंकार :: पुं [चकार] च वर्ण, 'च' अक्षर (ठा १०)।

चंग :: वि [दे. चङ्गं] सुन्दर, मनोहर, रम्य (दे ३, १; उप पृ १२६; सुपा १०६; करु ३५; धम्म ९ टी, कप्पू; प्राप्र; सण; भवि)।

चंग :: क्रिवि [दे] अच्छा, ठीक (२५)।

चंगदेव :: पुं [चङ्गदेव] हेमाचार्य का गृहस्था- वस्था का नाम (कुप्र २०)।

चंगवेर :: पुंन [दे] काठ का तख्ता (आचा २, ४, २, ३)।

चंगवेर :: पुं [दे] काष्ठ-पात्री, काठ का बना हुआ छोटा पात्र-विशेष; 'पीढए चंगवेरे य' (दस ७)।

चंगिम :: पुंस्त्री [दे. चङ्गिमन्] सुन्दरता, सौन्दर्य, श्रेष्ठता, चारुपन (नाट)। स्त्री. °मा (विवे १००; उप पृ १८१; सुपा ५; १२३; २९३)।

चंगेरी :: स्त्री [दे] टोकरी, चंगेली, डलिया, कठारी, तृण आदि का बना पात्र-विशेष (विसे ७१०; पणह १, १)।

चंच :: देखो चंछ। चंचइ (प्राकृ ६५)।

चंच :: पुं [चञ्च] १ पङ्कप्रभा नरक-पृथिवी का एक नरकावास (इक) २ न. देव- विमान-विशेष (इक)

चंचपुड :: पुंन [दे] आघात, अभिघात; 'खुर- वलणचंचपुड़ेहिं धरणिअलं अभिहणमाणं' (जं ३)।

चंचप्पर :: न [दे] असत्य, झूठ, अनृत; 'चंच- प्परं न भणिमो' (दे ३, ४)।

चंचरीअ :: पुं [चञ्चरीक] भ्रमर, भौंरा (दे ३, ६)।

चंचल :: वि [चञ्चल] १ चपल, चञ्चल (कप्प; चारु १) २ पुं. रावण के एक सुभट का नाम (पउम ५६, ३९)

चंचला :: स्त्री [चञ्चला] १ चञ्चला स्त्री। २ छन्द-विशेष (पिंग)

चंचल्लिअ :: वि [चञ्चलित] चञ्चल किया हुआ, 'मणयाणिलचंचे (? च) ल्लिअकेसराइं' (विक्र २९)।

चंचा :: स्त्री [चञ्ता] १ नरकट की चटाई। २ चमरेन्द्र की राजधानी, स्वर्गं-नगरी-विशेष। ३ घास का पुतला (दीव)

चंचाल :: (अप) देखो चंचल (सण)।

चंचु :: स्त्री [चञ्चु] चोंच, पक्षी का ठोर (दे ३, २३)।

चंचुच्चिय :: न [दे. चञ्चुरित, चञ्चुच्चित] कुटिल गमन, टेढ़ी चाल (औप)।

चंचुमालइय :: वि [दे] रोमाञ्चित, पुलकित (कप्प; औप)।

चंचुय :: पुं [चञ्चुक] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उस देश का निवासी मनुष्य (पणह १, १)

चंचुर :: वि [चञ्चुर] चपल, चंचल (कप्पू)।

चंछ :: सक [तक्ष्] छिलना। चंछइ (षड्)।

चंड :: सक [पिष्] पीसना। चंडइ (षड्)।

चंड :: देखो चंद (इक)।

चंड :: वि [चण्ड] १ प्रबल, उग्र, प्रखर, तीव्र (कप्प) २ भयानक, डरावना (उत्त २६; औप) २ अति क्रोधी, क्रोध-स्वभावी (उत्त १; १०; पिंग; णाया १, १८) ४ तेजस्वी, तेजिल (उप पृ ३२१) ५. पुं. राक्षस वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, २६४) ६ क्रोध, कोप (उत्त १)। °किरण पुं [°किरण] सूर्यं, रवि (उप पृ ३२१)। °कोसिय पुं [°कौशिक] एक सर्प, जिसने भगवान् महावीर को सताया था (कप्प)। °दीव पुं [द्वीप] द्वीप-विशेष (इक)। °पज्जोओ पुं [°प्रद्योत] उज्जयिनी के एक प्राचीन राजा का नाम (आवम)। °भाणु पुं [भानु] सूर्य, सूरज (कुम्मा १३)। °रुद्द पुं [°रुद्र] प्रकृति-क्रोधी एक जैन आचार्यं (भाव १७)। °वडिंसय पुं [°वतंसक] नृप-विशेष (महा)। °वाल पुं [°पाल] नृप- विशेष (कप्पू)। °सेण पुं [°सेन] एक राजा का नाम (कप्पू)। °लिय न [°लीक] क्रोध-वश कहा हुआ झूठ (उत्त १)

चंडंसु :: पुं [चण्डांशु] सूर्यं, सूरज, रवि (कप्पू)।

चंडण :: देखो चंदण; 'चंडणं, चंडणो' (प्राकृ १६)।

चंडमा :: पुं [चन्द्रमस्] चन्द्रमा, चाँद (पिंग)।

चंडा :: स्त्री [चण्डा] १ चमरादि इन्द्रो की मध्यम परिषद् (ठा ३, २; भग ४, १) २ भगवान् वासुपूज्य की शासनदेवी (संति १०)

चंडातक :: न [चण्डातक] स्त्री का पहनने का वस्त्र, चोली, लहँगा (दे ३, १३)।

चंडार :: पुंन [दे] भण्डार, भाण्डागार (कुमा)।

चंडाल :: पुं [चण्डाल] १ वर्णंसंकर जाति- विशेष, शूद्र और ब्राह्मणी से उत्पन्न (आचा; सूअ १, ८)। २ डोम (उत १; अणु)

चंडालिय :: वि [चाण्डालिक] चण्डाल-संबन्धी, चण्डाल जाति में उत्पन्न (उत्त १)।

चंडाली :: स्त्री [चण्डाली] १ चण्डाल-जातीय स्त्री। २ विद्या-विशेष (पउम ७, १४२)

चंडिअ :: वि [दे] कृत, छिन्न, काटा हुआ (दे ३, ३)।

चंडिक्क :: पुंन [दे. चाण्डिक्य] रोष, गुस्सा, क्रोध, रौद्रता (दे ३, २; षड्; सम ७१)।

चंडिक्किअ :: वि [दे. चाण्डिक्यित] १ रोष- युक्त, रौद्राकारवाला, भयंकर (णाया १, १; पणह २, २; भग ७, ८; उवा)

चंडिज्ज :: पुं [दे] कोप, क्रोध, गुस्सा। २ वि. पिशुन, खल, दुर्जंन (दे ३, २०)।

चंडिम :: पुंस्त्री [चण्डिमन्] चण्डता, प्रचण्डता (सुपा ९९)।

चंडिया :: स्त्री [चण्डिका] देखो चंडी (स २९२; नाट)।

चंडिल :: वि [दे] पीन, पुष्ट (दे ३, ३)।

चंडिल :: पुं [चण्डिल] हजाम, नापित (दे ३, २; पाअ; गा २९१ अ)।

चंडी :: स्त्री [चण्डी] १ क्रोध-युक्त स्त्री, कर्कशा और उग्र स्त्री (गा ९०८) २ पार्वती, गौरी, शिव-पत्‍नी (पाअ) ३ वनस्पति- विशेष (पणण १)। °देवग वि [°देवक] चण्डी का भक्त (सूअनि ९०)

चंद :: पुं [चन्द्र] १ चन्द्र, चन्द्रमा, चाँद (ठा २, ३; प्रासू १३; ५५; पाअ) २ नृप-विशेष (उफ ७२८ टी) ३ रामचन्द्र, दाशरथी राम (से १, ३४) ४ राम के एक सुभट का नाम (पउम ५९, ३८) ५ रावण का एक सुभट (पउम ५९, ) ६ राशि-विशेष (भवि) ७ आह्लादक वस्तु। ८ कपूर। ९ स्वर्णं, सोना। १० पानी, जल (हे २, १६४) ११ एक जैन आचार्यं (गच्छ ४) १२ एक द्वीप का नाम, द्वीप-विशेष (जीव ३) १३ राधावेध की पुतली का बायाँ नयन, आँख का गोला (णंदि) १४ न. देवविमानु-विशष (सम ८) १५ रुचक पर्वत का एक शिखर (दीव) °अंत देखो °कंत (विक्र १३६)। °उत्त देखो °गुत्त (मुद्रा १९८)। °कत पुं [°कान्त] १ मणि-विशेष (स ३६०) २ न. देवविमान-विशेष (सम ८) ३ वि. चन्द्र की तरह आह्लादक (आवम) °कंता स्त्री [°कान्ता] १ नगरी-विशेष (उप ९७३) २ एक कुलकर-पुरुष की पत्‍नी (सम १५०) °कूड न [°कूट] १ देवविमान-विशेष (सम ८) २ रुचक पर्वत का एक शिखर (ठा ८)। °गुत्त पुं [°गुप्त] मौर्यवंश का एक स्वनाम- विख्यात राजा (विसे ८६२)। °चार पुं [°चार] चन्द्र की गति (चंद १०)। °चूड, °चूल पुं [°चूड] विद्याधर वंश का एक स्वनाम-प्रसिद्ध राजा (पउम ५, ४५; दंस)। °च्छाय पुं [°च्छाय] अंग देश का एक राजा, जिसने भगवान् मल्लिनाथ के साथ दीक्षा ली थी (णाया १, ८)। °जसा स्त्री [°यशस्] एक कुलकर पुरुष की पत्‍नी (सम १५०)। °ज्झय न [°ध्वज] °देवविमान-विशेष (सम ८)। °णक्खा स्त्री [°नखा] रावण की बहिन का नाम (पउम १०, १८)। °णह पुं [°नख] रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३१)। °णही देखो °णक्खा (पउम ७, ९८)। °णागरी स्त्री [°नागरी] जैन मुनि-गण की एक शाखा (कप्प)। °दरिसणिया स्त्री [°दार्शनिका] उत्सव-विशेष, बच्चे के पहली बार के चन्द्र-दर्शन के उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव (राज)। °दिण न [°दिन] प्रति- पदादि तिथि (पंच ५)। °दीव पुं [°द्वीप] द्वीप-विशेष। (जीव ३)। °द्ध न [°र्ध] आधा चन्द्र, अष्टमी तिथि का चन्द्र (जीव ३)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] तप-विशेष (ठा २, ३)। °पन्नत्ति स्त्री [°प्रज्ञप्ति] एक जैन उपाङ्गं ग्रन्थ (ठा २, १ — पत्र १२६)। °पव्वय पुं [°पर्वत] वक्षस्कार पर्वंत-विशेष (ठा २, ३)। °पुर न [°पुर] वैताढ्य पर्वंत पर स्थित एक विद्याधर-नगर (इक)। °पुरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष, भगवान् चन्द्रप्रभ की जन्म-भूमि (पउम २०, ३४)। °प्पभ वि [°प्रभ] १ चन्द्र के तुल्य कान्तिवाला। २ पुं. आठवें जिनदेव का नाम (धर्म २) ३ चन्द्रकान्त, मणि-विशेष (पणण १) ४ एक जैन मुनि (दंस) ५ न. देवविमान-विशेष (सम ८) ६ चन्द्र का सिंहासन (णाया २, १) °प्पभा स्त्री [°प्रभा] १ चन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १) २ मदिरा-विशेष, एक जात का दारू (जीव ३) ३ इस नाम की एक राज-कन्या (उप १०३१ टी) ४ इस नाम की एक शिविका, जिसमें बैठकर भगवान् शीतलनाथ और महावीर-स्वामी दीक्षा के लिए बाहर निकले थे (आवम)। °प्पह देखो °प्पभ (कप्प; सम ४३)। °भागा स्त्री [°भागा] एक नदी (ठा ५, ३)। °मंडल पुंन [°मण्डल] १चन्द्र का मण्डल, चन्द्र का विमान (जं ७; भग) २ चन्द्र का बिम्ब (पणह १, ४) °मग्ग पुं [°मार्ग] १ चन्द्र का मण्डल-गति से परिभ्रमण। २ चन्द्र का मण्डल (सुज्ज ११) °मणि पुं [°मणि] चन्द्रकान्त, मणि-विशेष (विक्र १२६)। °माला स्त्री [°माला] १ चन्द्राकार हार, चन्द्र- हार। २ छन्द-विशेष (पिंग) °मालिया स्त्री [°मालिका] वही पूर्वोक्त अर्थ (औप)। °मुही स्त्री [°मुखी] १ चन्द्र के समान आह्लादक मुखवाली स्त्री। २ सीता-पुत्र कुश की पत्‍नी (पउम १०६, १२) °रह पुं [°रथ] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, १५; ४४)। °रिसि पुं [°ऋषि] एक जैन ग्रन्थकार मुनि (पंच ५)। °लेस न [°लेश्य] देवविमान-विशेष (सम ८)। °लेहा स्त्री [°लेखा] १ चन्द्र की रेखा, चन्द्रकला। २ एक राज-पत्‍नी (ती १०)। °वडिंसग न [°वतंसक] १ चन्द्र के विमान का नाम (चंद १८) २ देखो चंडवडिंसग (उत्त १३)। °वण्ण न [°वर्ण] एक देवविमान (सम ८) °वयण वि [°वदन] १ चन्द्र के तुल्य आह्लादजनक मुँहवाला। २ पुं. राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंकापति (पउम ५, २६६)। °विकंप पुंन [°विकम्प] चन्द्र का विकम्प-क्षेत्र (जो १०)। °विमाण न [°विमान] चन्द्र का विमान (जं ७)। °विलासि वि [°विलासिन्] चन्द्र के तुल्य मनोहर (राय)। °वेग पुं [°वेग] एक विद्याधर-नरेश (महा)। °संवच्छर पुं [°सवत्सर] वर्ष-विशेष, चान्द्र मासों से निष्पन्न संवत्सर (चंद १०)। °साला स्त्री [°शाला] अट्टालिका, अटारी (दे ३, ६)। °सालिया स्त्री [°शालिका] अट्टालिका (णाया १, १)। °सिंग न [°श्रृङ्ग] देव- विमान-विशेष (सम ८)। °सिट्ट न [°शिष्ट] एक देवविमान (सम ८)। °सिरी स्त्री [°श्री] द्वितीय कुलकर पुरुष की माँ का नाम (आचू १)। °सिहर पुं [°शिखर] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४३)। °सूरदंसा- वणिया, °सूबरपासणिया स्त्री [°सूरदर्श- निका] बालक का जन्म होने पर तीसरे दिन उसको कराया जाता चन्द्र और सूर्य का दर्शन और उसके उपलक्ष्य में किया जाता उत्सव (भग ११, ११; विपा १, २)। °सूरि पुं [°सूरि] स्वनामविख्यात एक जैन आचार्यं (सण)। °सेण पुं [°सेन] १ भगवान् आदिनाथ का एक पुत्र। २ एक विद्याधर राज-कुमार (महा) °सेहर पुं [°शेखर] १ भूप-विशेष (ती ३८) २ महादेव, शिव (पि ३६५)। °हास पुं [°हास] खङ्ग- विशेष, तलवार (से १४, ५२; गउड)

चंद :: पुं [चन्द्र] संवत्सर-विशेष, जिसमें अधिक मास न हो वह वर्ष (सुज्ज ११)। °उड्ढ पुं [ऋतु] कुछ अधिक उनसठ दिनों की एक ऋतु (सुज्ज १२)। °परिवेस पुं [°परिवेष] चन्द्र-परिधि (अणु १२०)। °प्पहा स्त्री [°प्रभा] देखो चद-प्पभा (विचार १२९; कुप्र ४५३)। °विदी स्त्री [°वती] एक नगरी (मोग ८८)।

चटं :: वि [चान्द्र] चन्द्र-संबन्धी (चंद १२)। °कुल न [°कुल] जैन मुनियों का एक कुल (गच्छ ४)।

चंदअ :: देखो चंद = चन्द्र (हे २, १६४)।

चंदइल्ल :: पुं [दे] मयूर, मोर (दे ३, ५)।

चंदंक :: पुं [चन्द्राङ्क] विद्याधर वंश का एक स्वनाम-प्रसिद्ध राजा (पउम ५, ४३)।

चंदग :: [चन्द्रक] देखो चंद। °विज्झ, °वेज्झ न [°वेध्य] राधावेध; 'चंदगविज्झं लद्धं, केवलसरिसं समाउपरिहीणं' (संथा १२२; निचू ११)।

चंदट्ठिआ :: स्त्री [दे] १ भुज, शिखर, कन्धा। २ गुच्छा, स्तबक (दे ३, ६)

चंदण :: पुं [चन्दन] १ एक देवविमान (देवेन्द्र १४३) २ रत्‍न की एक जाति (उत्त ३६, ७७) ३ पुं. द्वीन्द्रिय जीव-विशेष, अक्ष का जीव (उत्त ३६, १३०)

चंदण :: पुंन [चन्दन] १ सुगन्धित वृक्ष-विशेष, चन्दर का पेड़ (प्रासू ६) २ न. सुगन्धित काष्ठ-विशेष, चन्दन की लकड़ी (भघ ११, ११; हे २, १८२) ३ घिसा हुआ चन्दन (कुमा) ४ छन्द-विशेष (पिंग) ५ रुचक पर्वंत का एक शिखर (जं)। °कलस पुं [°कलश] चन्दन-चर्चित कुम्भ, माङगलिक घट (औप)। °घड पुं [°घट] मंगल-कारक घड़ा (जीव ३)। °बाला स्त्री [°बाला] एक साध्वी स्त्री, भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या (पडि)। °वइ पुं [°पति] स्वनाम-ख्यात एक राजा (उप ९८६ टी)

चंदणग :: पुंन [चन्दनक] १ ऊपर देखो। २ पुं. द्वीन्द्रिय जन्तु-विशेष, जिसके कलेवर को जैन साधु लोग स्थापनाचार्यं में रखते हैं (पणह १, १; जी १५)

चंदणा :: स्त्री [चन्दना] भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या, चन्दनवाला (सम १५२; कप्प)।

चंदणि :: स्त्री [दे] आचमन, कुल्ला। °उयय न [°उदक] कुल्ला फेंकने की जगह (आचा २, १, ६, २)।

चंदणी :: स्त्री [दे] चन्द्र को पत्‍नी, रोहिणी; 'चंदो विय चंदणीजोगो' (महा)।

चंदम :: पुं [चन्द्रमस्] चन्द्रमा, चाँद (भग)।

चंदरुद्द :: देखो चंड-रुद्द (पंचा ११, ३५)।

चंदवडाया :: स्त्री [दे] जिसका आधा शरीर ढका और आधा नंगा हो ऐसी स्त्री (दे ३, ७)।

चंदा :: स्त्री [चन्द्रा] चन्द्र-द्वीप की राजधानी (जीव ३)।

चंदाअव :: पुं [चन्द्रातप] ज्योत्स्‍ना, चन्द्रिका, चन्द्र की प्रभा, चाँदनी (से १, २७)। देखो चंदायय।

चंदाणण :: पुं [चन्द्रानन] ऐरवत क्षेत्र के प्रथम जिनदेव (सम १५३)।

चंदाणणा :: स्त्री [चन्द्रानना] १ चन्द्र के तुल्य आह्लाद उत्पन्न करनेवाली, चन्द्रमुखी। २ शाश्वती जिन-प्रतिमा-विशेष (ठा १, १)

चंदाभ :: वि [चन्द्राभ] १ चन्द्र के तुल्य आह्लाद-जनक। २ पुं. आठवाँ जिनदेव, चन्द्र- प्रभ स्वामी (आचू २) ३ इस नाम का एक राज-कुमार (पउम ३, ५५) ४ न. एक देवविमान (सम १४)

चंदायण :: न [चान्द्रायण] तप-विशेष, जिसमें चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार भोजन के कौर घटाने-बढ़ाने पड़ते हैं (पंचा १९)।

चंदायण :: न [चन्द्रायण] चन्द्र का छः छः मास पर दक्षिणा और उत्तर दिशा में गमन (जो ११)।

चंदायय :: देखो चंदाअव। १ आच्छादन- विशेष, वितान, चँदवा (सुर ३, ७२)

चंदालग :: न [दे] ताम्र का भाजन-विशेष (सूअ १, ४, २)।

चंदावत्त :: न [चन्द्रावर्त्त] एक देवविमान (सम ८)।

चंदाविज्झय :: देखो चंदग-विज्झ (णंदि)।

चंदिअ :: वि [चान्द्रिक] चन्द्रका, चन्द्र-संबन्धी (पव १४१)।

चंदिआ :: स्त्री [चन्द्रिका] चाँधनी, चन्द्र की प्रभा, ज्योत्स्‍ना (से ५, २; गा ७७)।

चंदिकोज्जलीय :: वि [दे. चन्द्रिकोज्ज्वलित] चन्द्र-कान्ति से उज्वल बना हुआ (चंद)। चंदिण न [दे] चन्द्रिका, चन्द्रप्रभा; 'मेहाण दाणं चंदाण, चंदिणं चरुवराण फलनिवहो। सप्पुरिसाण विढत्तं, सामन्‍नं सयललोआणं।।' (श्रा १०)।

चंदिम :: देखो चंदम (औप; कप्प)। २ एक जैन मुनि (अनु २)

चंदिमा :: स्त्री [चन्द्रिका] चन्द्र की प्रभा, ज्योत्स्‍ना, चाँदनी (हे १, १८५)।

चंदिमाइय :: न [चान्द्रिक] 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन (राज)।

चंदिल :: पुं [चन्दिल] नापित, हजमा (गा २९१; दे ३, २)।

चंदुत्तरवडिंसग :: न [चन्द्रोत्तरावतंसक] एक देवविमान (सम ८)।

चंदेरी :: स्त्री [दे] नगरी-विशेष (ती ४५)।

चंदोज्ज, चंदोज्जय :: न [दे] कुमुद, चन्द्र-विकासी कमल (दे ३, ४)।

चंदोत्तरण :: न [चन्द्रोत्तरण] कौशाम्बी नगरी का एक उद्यान (विपा १, ५ — पत्र ६०)।

चंदोयर :: पुं [चन्द्रोदर] एक राज-कुमार (धम्म)।

चंदोवग :: न [चन्द्रोपक] संन्यासी का एक उपकरण (ठा ४, २)।

चंदोवराग :: पुं [चन्द्रोपराग] चन्द्र-ग्रहण, चन्द्रमा का ग्रहण, राहु-ग्रास (ठा १०; भग ३, ६)।

चंद्र :: देखो चंद (हे २, ८०; कुमा)।

चंप :: सक [दे] चाँपना, दाबना, दबाना। चंपइ (आरा २५)। कर्मं. चंपिज्जइ (हे ४, ३९५)।

चंप :: सक [चर्च्`] चर्चा करना। चंपइ (प्राप्र)। संकृ. चंपिऊण (वज्जा ६४)।

चंप :: सक [आ + रुह्] चढ़ना। चंपइ (प्राकृ ७३)।

चंप :: देखो चंपय (राय ३०)।

चंपग :: पुंन [चम्पक] एक देवविमान (देवेन्द्र १४२)।

चंपग :: देखो चंपय; 'असुइट्ठाणे पडिया, चंपण- माला न कीरइ सीसे' (आव ३)।

चंपडण :: न [दे] प्रहार, आघात; 'सरभसचलं- तविअडगुडिअगंधसिंधुरणिवहचलणचंपडणस- मुप्पइआ.......धूलीजालोली' (विक्र ८४)।

चंपण :: न [दे] चाँपना, दबाना (उप १३७ टी)।

चंपय :: पुं [चंपक] १ वृक्ष-विशेष, चम्पा का पेड़ (स १५२; भग) २ देव-विशेष (जीव ३) ३ न. चम्पा का फूल (कुमा) °माला स्त्री [°+माला] १ छन्द-विशेष (पिंग) २ चम्पा के फूलों का हार (आव ३) °लया स्त्री [°लता] १ लताकार चम्पक वृक्ष। २ चम्पक वृक्ष की शाखा (जं १; औप)। °वण न [°वन] चम्पक वृक्षों की प्रधानतावाला वन (भग)

चंपयवडिंसय :: पुं [चम्पकावतंसक] सौधर्मं देवलोक में स्थित एक विमान (राय ५९)।

चंपा :: स्त्री [चम्पा] अंग देश की राजधानी, नगरी-विशेष, जिसको आजकल 'भागलपुर' कहते हैं (विपा १, १; कप्प) °पुरी स्त्री [°पुरी] वही अर्थं (पउम ८, १५६)।

चंपा :: /?/स्त्री. देखो चंपय। °कुसुम न [°कुसुम] चम्पा का फूल (राय)। °वण्ण वि [°वर्ण] चम्पा के फूल के तुल्य रंगवाला, सुवर्णं-वर्णं। स्त्री. °ण्णी (अप) (हे ४, ३३०)।

चंपारण :: (अप) पुं [चम्पारण्य] १ देश- विशेष, चंपारन, तिरहुत कमिश्‍नरी (विहार) का एक जिला। २ तंपारन का निवासी (पिंग)

चंपिअ :: वि [दे] चाँपा हुआ, दबाया हुआ, मर्दित (सुपा १३७; १३८)।

चंपिअ :: न [दे] आक्रमण, दबाव (तंदु ४४)।

चंपिज्जिया :: स्त्री [चम्पीया] जैन मुनिगण की एक शाखा (कप्प)।

चंभ :: पुं [दे] हल से विदारित भूमि-रेखा (दे ३, १)।

चकम्पा :: स्त्री [दे] त्वक्, त्वचा, चमड़ी (दे ३, ३)।

चकिद :: देखो चइध (कुमा)।

चकोर :: पुंस्त्री [चकोर] पक्षि-विशेष, चकोर पक्षी (सुपा ४५७)। स्त्री. °री (रयण ४९)।

चक्क :: पुं [चक्र] १ पक्षि-विशेष, चक्रवाक पक्षि (पाअ; कुमा; सण); 'तो हरिसपुलइयंगो चक्को इव दिट्ठउग्गयपयंगो' (उप ७२८ टी) २ न. गाड़ी का पहिया (पणह १, १) ३ समूह (सुपा १५०; कुमा) ४ अस्त्र-विशेष (पउम ७२, ३१; कुमा) ५ चक्राकार आभूषण, मस्तक का आभरण-विशेष (औप) ६ व्यूह-विशेष, सैन्य की चक्राकार रचना- विशेष (णाया १, १; औप) °कंत पुं [°कान्त] देव-विशेष, स्वयंभूरमण समुद्र का अधिष्ठाता देव (दीव)। °जोहि पुं [°योधिन्] १ चक्र से लड़नेवाला योद्धा (ठा ९) २ वासुदेव, तीन खंड पृथिवी का राजा (आव १) °ज्झय पुं [°ध्वज] चक्र के निशानवाली ध्वजा (जं १)। °पहु पुं [°प्रभु] चक्रवर्ती राजा (सण)। °पाणि पुं [°पाणि] १ चक्रवर्त्ती राजा, सम्राट्। २ वासुदेव, अर्धं- चक्रवर्त्ती राजा (पउम ७३, ३)। °पुरा, °पुरी स्त्री [°पुरी] विदेह वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३; इक)। °प्पहु देखो °पहु (सण)। °यर पुं [°चर] भिक्षुक, भीखमंगा (उप ६१७)। °रयण न [रत्‍न] अस्त्र-विशेष, चक्रवर्त्ती राजा का मुख्य आयुध (पणह १, ४)। °वइ पुं [°पति] सम्राट् (पिंग)। °वइ, °वट्टि पुं [°वर्तिन्] छः खण्ड भूमि का अधिपति राजा, सम्राट् (पिंग; सण; ठा ३, १; पडि; प्रासू १७५)। °वट्टित्त न [°वर्त्तित्व] सम्राट्पन्, साम्राज्य (सुर ४, ९१)। °वत्ति देखो °वट्टि (पि २८९)। °विजय पुं [°विजय] चक्रवर्ती राजा से जीतने योग्य क्षेत्र-विशेष (ठा ८)। °साला स्त्री [शाला] वह मकान, जहाँ तिल पेरा जाता हो, तैलिक गृह (वव १०)। °सुह पुं [°शुभ, °सुख] देव-विशेष, मानुषोत्तर पर्वंत का अधिपति देव (दीव)। °सेण पुं [°सेन] स्वनाम-ख्यात एक राजा (दंस)। °हर पुं [°धर] १ चक्रवर्त्ती राजा, सम्राट् (सम १२९; पउम २, ८५; ४, ३६; कप्प) २ वासुदेव, अर्धं-चक्री राजा (राज)

चक्क :: न [चक्र] एक देवविमान (देवेन्द्र १३३)।

चक्कआअ :: देखो चक्कवाय (पि ८२)।

चक्कंग :: पुं [चक्राङ्ग] पक्षि-विशेष (सुपा ३४)।

चक्कणभय :: न [दे] नारंगी का फल (दे ३, ७)।

चक्कणाहय :: न [दे] ऊर्मि, तरङ्ग, कल्लोल (दे ३, ६)।

चक्कम, चक्कम्म :: अक [भ्रम्] घूमना, भटकना, भ्रमण करना। चक्कमइ (दे २, ६)। चक्कम्मइ (हे ४, १६१)। वकृ. चक्कमंत (स ६१०)।

चक्कम्मविअ :: वि [भ्रमित] घुमाया हुआ, फिराया हुआ (कुमा)।

चक्कय :: देखो चक्क (पणण १)।

चक्कल :: न [दे] कुण्डल, कर्णं का आभूषण। २ दोलाफलक, हिंडोला का पटिया (दे ३, २०) ३ वि. वर्त्तुंल, गोलाकार पदार्थ (दे ३, २०; भवि; वज्जा ६४; आवम; षड्) ४ विशाल, विस्तीर्णं (दे ३, २०; भवि)

चक्कलिअ :: वि [दे] चक्राकार किया हुआ (से ११, ६८; स ३८४; गउड)। °भिण्ण वि [°भिन्न] गोलाकार खण्ड, गोल टुकड़ा (बृह १)।

चक्कवाई :: स्त्री [चक्रवाकी] चक्रवाक-पक्षी का मादा, चकवी, चकई (रंभा)।

चक्कवाग, चक्कवाय :: पुं [चक्रवाक] पक्षि-विशेष, चकवा (णाया १, १; पणह १, १; स ३३७; कप्पू; स्वप्‍न ५१)।

चक्कवाल :: न [चक्रवाल] १ चक्राकार भ्रमण, 'रीइज्ज न चक्कवालेण' (पुप्फ १७८) २ मण्डल, चक्राकार पदार्थ, गोल वस्तु (पणण ३६; औप; णाया १, १६) ३ गोल जला- शय; 'संसारचक्कवाले' (पच्च ५२) ४ गोल जल-समूह, जल राशि; 'जह खुहियचक्कवाले पोयं रयणभरियंसमुद्दम्मि। निज्जामगाधरिंती' (पच्च ७९) ५ आवश्यक कार्य, नित्य-कर्म (पंचव ४) ६ समूह, राशि, ढेर (आउ) ७ पुं. पर्वंत-विशेष (ठा १०)। °विक्खंभ पुं [°विष्कम्भ] चक्राकार घेरा, गोल परिधि (भग; ठा २, ३)। °समायारी स्त्री [°सामाचारो] नित्य-कर्म-विशेष (पंचव ४)। चक्कवाला स्त्री [चक्रवाला] गोल पंक्ति, चक्राकार श्रेणी (ठा ७)

चक्काअ :: देखो चक्कवाय (हे १, ८)।

चक्काग :: न [चक्रक] चक्राकार वस्तु, 'चक्कागं भंजमाणस्स समो भंगो य दीसइ' (पणण १; पि १६७)।

चक्कार :: पुं [चक्रार] राक्षस वंश का एक राजा एक लंकापति (पउम ५, २६३)। °बद्ध न [°बद्ध] शकट, गाड़ी (दस ५, १)।

चक्कावाय :: /?/पुंन. देखो चक्कवाय 'मिलियाइं चक्कावायाइं' (स ७६८)।

चक्काह :: पुं [चक्राभ] सोलहवें जिन-देव का प्रथम शिष्य (सम १५२)।

चक्काहिव :: पुं [चक्राधिप] चक्रवर्त्ती राजा, सम्राट् (सण)।

चक्काहिवइ :: पुं [चक्राधिपति] ऊपर देखो (सण)।

चक्कि, चक्किय :: वि [चक्रिन्, चक्रिक] १ चक्रवाला, चक्र-विशिष्ट। २ पुं. चक्रवर्त्ती राजा, सम्राट् (सण) ३ तेली। ४ कुम्भार (कप्प; औप; णाया १, १)। °साला स्त्री [°शाली] तेल बेचने की दूकान (वव ९)

चक्किय :: वि [चकित] भयभीत, 'समुद्दगंभीर- समा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहिंसिया' (उत्त ११)।

चक्किय :: पुं [चाक्रिक] १ चक्र से लड़नेवाला योद्धा। २ भिक्षुक की एक जाति (औप; णाया १, १)

चक्किया :: क्रि [शक्‍नुयात्] सके, कर सके, समर्थं हो सके (कप्प; कस, पि ४६५)।

चक्की :: स्त्री [चक्रा] छन्द-विशेष (पिंग)।

चक्कुलंडा :: स्त्री [दे] सर्प की एक जाति (दे ३, ५)।

चक्केसर :: पुं [चक्रेश्वर] १ चक्रवर्त्ती राजा (भवि) २ विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का एक जैन ग्रन्थकार मुनि (राज)

चक्केसरी :: स्त्री [चक्रेश्वरी] १ भगवान् आदि- नाथ की शासनदेवी (संति ९) २ एक विद्या-देवी (संति ५)

चक्कोडा :: स्त्री [दे] अग्‍नि-भेद, अग्‍नि-विशेष (दे ३, २)।

चक्ख :: (अप) सक [आ + चक्ष्] कहना। चक्खइ (प्राकृ ११९)।

चक्ख :: सक [आ + स्वादय्] चखना, चीखना, स्वाद लेना। चक्खइ (पि २०२)। वकृ. चक्खंत (गा १७१)। कवकृ. चक्खिज्जंत, चक्खोअंत (पि २०२)। संकृ. चक्खिऊण (से १३, ३९)। हेकृ. चक्खिउं (वज्जा ४६)।

चक्खडिअ :: न [दे] जीवितव्य, जीवन (दे ३, ६)।

चक्खण :: न [आस्वादन] आस्वादन, चीखना (उप पृ २५२)।

चक्खिअ :: वि [अस्वादित] आस्वादित, चीखा हुआ (हे ४, २५८; गा ६०३; वज्जा ४६)।

चक्खिंदिय :: न [चक्षुरिन्द्रिय] नयनेन्द्रिय, आँख, चक्षु (उत्त २९, ६३)।

चक्खु :: पुंन [चक्षुष्] १ आँख, नेत्र, चक्षु (हे १, ३३, सुर ३, १५३; सम १) २ पुं. इस नाम का कुलकर पुरुष (पउम ३, ५३) ३ न. देखो नीचे °दंसण (कम्म ३, १७; ४, ६) ४ ज्ञान, बोध (ठा ३, ४) ५ दर्शन, अवलोकन (आचा) °कंत पुं [°कान्त] देव-विशेष, कुण्जलोद समुद्र का अधिष्ठाता देव (जीव ३)। °कंता स्त्री [°कान्ता] एक कुलकर पुरुष की पत्‍नी (सम १५०)। °दंसण न [°दशन] चक्षु से वस्तु का सामान्य ज्ञान (सम १५)। °दंसणवडिया स्त्री [°दर्शनप्रतिज्ञा] आँख से देखने का नियम, नयनेन्द्रिय का संयम (निचू ९; आचा २, २)। °दय वि [°दय] ज्ञान-दाता (सम १; पडि)। °पडिलेहा स्त्री [°प्रतिलेखा] आँक से देखना (निचू १)। °परिन्नाण न [°परिज्ञान] रूप-विषयक ज्ञान, आँख से होनेवाला ज्ञान (आचा)। °पह पुं [°पथ] नेत्र-मार्ग, नयन-गोचर (पणह १, ३)। °फास पुं [°स्पर्श] दर्शन, अव- लोकन (औप)। °भीय वि [°भीत] अवलोकन मात्र से ही डरा हुआ (आचा)। °म, °मंत वि [°मत्] १ लोचन-युक्त, आँखवाला (विसे) २ पुं. एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०)। °लोल वि [°लोल] देखने का शौकीन, जीसकी नयनेन्द्रिय संयत न हो वह (कस)। °लोलुय वि [°लोलुप] वही पूर्वोक्त अर्थ (कस)। °ल्लोणणलेस्स वि °लोकनलेश्य सूरूप, सुन्दर रूपवाला (राय; जीव ३)। °वित्तिहय वि [वृत्ति- हत] दृष्टि से अपरिचित (वव ८)। °स्सव पुं [°श्रवस्] सर्पं, साँप (स ३३४)

चक्खुड्डण :: न [दे] प्रेक्षणक, तमाशा (दे २, ४)।

चक्खुय :: देखो चक्खुस (आवम)।

चक्खुरक्कणी :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ३, ७)।

चक्खुस :: वि [चाक्षुष] आँख से देखने योग्य वस्तु, नयन-ग्राह्य (पणह १, १; विसे ३३११)।

चक्खुहर :: वि [चक्षुर्हर] दर्शंनीय (राय १०२)।

चगोर :: देखो चुओर (प्रारू)।

चच्च :: सक [चर्च्] चन्दन आदि का विलेपन करना। चच्चेई (धर्मंवि १५)।

चच्च :: पुं [चर्च] हेमाचार्य के पिता का नाम (कुप्र २०)।

चच्च :: पुं [चर्च] समालम्भन, चन्दन वगैरह का शरीर में उपलेप (दे ६, ७६)।

चच्चर :: न [चत्वर] चौहट्टा, चौरास्ता, चौराहा, चौक (णाया १, १; पणह १, ३; सुर १, ६२; (हे २, १२; कुमा)।

चच्चरिअ :: पुं [दे. चञ्चरीक] भ्रमर, भौंरा (षड्)।

चच्चरिया :: स्त्री [चर्चारिका] १ नृत्य-विशेष (रंभा) २ देखो चच्चरी (स ३०७)

चच्चरी :: स्त्री [चर्चरी] १ गीत-विशेष, एक प्रकार का गान; 'वित्थरियचच्चरीरवमुहरियउ- ज्जाणभूभागे' (सुर ३, ५४); 'पारंभियचच्चरी- गीया' (सुपा ५५) २ गानेवाली टोली, गानेवालों का यूथ; 'पवत्ते मयणमहूसवे निग्गयासु विचित्तवेसासु नयरचच्चरीसु' 'कहं नीयचच्चरी अम्हाण चच्चरीए समासन्‍नं परिव्वयइ' (स ४२) ३ छन्द-विशेष (पिंग) ४ हाथ की ताली की आवाज (आव १)

चच्चसा :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, 'अट्ठसयं चच्च- साणं, अट्ठसयं चच्चसावायगाणं' (राय)।

चच्चा :: स्त्री [दे] १ शरीर पर सुगन्धि पदार्थं का लगाना, विलेपन (दे ३, १९; पाअ; जं १; णाया १, १ राय) २ तल-प्रहार, हाथ की ताली (दे ३, १९; षड्)

चच्चार :: सक [उपा + लभ्] उपालम्भ देना, उलाहना देना। चच्चारइ (षड्)।

चच्चिक्क :: वि [दे] १ मण्डित, विभूषित; 'चंदुज्जयचच्चिक्का दिसाउ' (दे ३, ४); 'तणुप्पहापडलचच्चिक्को' (धम्म ९ टी); 'साहू गुणरयणचच्चिक्का' (चउ ३९) २ पुंन. विलेपन; चन्दनादि सुगन्धि वस्तु का शरीर पर मसलना (हे २, ७४); 'चच्चिक्को' (षड्); 'कुकुंमचच्चिक्कछुरियंगो' (पउम २८, २८ टी); 'पेच्छइ सुवन्‍नकलसं सुरचंदण- पंकचच्चिक्कं' (उप ७६८ टी); 'घणलेहिद- पंकचक्किक्को' (मृच्छ ११०)

चच्चिय :: वि [चर्चित] विलिप्‍त (चेइय ८४५)।

चच्चुप्प :: सक [अर्पय्] अर्पण करना, देना। चच्चुप्पइ (हे ४, ३९)।

चच्छ :: सक [तक्ष्] छिलना, काटना। चच्छइ (हे ४, १९४)।

चच्छिअ :: वि [तष्ट] छिला हुआ (कुमा)।

चज्ज :: सक [दृश्] देखना, अवलोकन करना। चज्जइ दे ३, ४; षड्)।

चज्जा :: स्त्री [चर्या] १ आचरण, वर्तन। २ चलन, गमन। ३ परिभाषा, संकेत (विसे २०४४)

चज्जिय :: वि [दृष्ट] अवलोकित, देखा हुआ (महा)।

चटुअ :: देखो चट्टुअ (गा १६२)।

चट्ट :: सक [दे] चाटना, अवलेइ करना; 'न य अलोणियं सिलं कोइ चट्टेइ' (महा)।

चट्ट :: पुंन [दे] १ भूख, बुभुक्षा; 'जीवंति उदहिपडिआ, चटटुच्छिन्‍ना न जीवंति' (सूक्त ७०) २ पुं. चट्टा, विद्यार्थी।°साला स्त्री [°शाला] चटशाला, चटसार, छोटे बालकों की पाठशाला (बृह १)

चाट्ट :: वि [चट्टिन्] चाटनेवाला (कप्पू)।

चट्‍टु, चटटुअ, चट्‍टुल :: पुं [दे] दारु-हस्त, काठ की कलछी, परोसने का पात्र-विशेष (दे ३, १; गा १६२ अ)।

चड :: सक [आ + रुह्] चढ़ना, ऊपर बैठना, आरूढ़ होना। चडइ (हे ४, २०६)। संकृ. चडिउं, चडिऊण (सुपा ११४; कुमा)।

चड :: पुं [दे] शिखा, चोटी (दे ३, १)।

चडक्क :: पुंन [दे] १ चटत्कार, चटका (हे ४, ४०६; भवि) २ शस्त्र-विशेष (पउम ७, २९)

चडक्कारि :: वि [चटत्कारिन्] 'चटत्' शब्द करनेवाला (पवन आदि) (गउड)।

चडग :: देखो चडय (पणण १)।

चडगर :: पुं [दे] १ समूह, यूथ, जत्था (पउम ९०, १५; णाया १, १ — पत्र ४६) २ आडम्बर, आटोप; 'महया चडगरत्तणेणं अत्थकहा हणइ' (दसनि ३)

चडचड :: पुं [चडचड] 'चड-चड' आवाज (विपा १, ६)।

चडचडचड :: अक [चडचडाय्] 'चड- चड' आवाज करना। चडचडचडंति (विपा १, ६)।

चडड :: पुं [चटट] ध्वनि-विशेष, बिजली के गिरने की आवाज (सुर २, ११०)।

चडण :: न [आरोहण] चढ़ना, ऊपर बैठना (श्रा १४; प्रासू १०१; उप ७२८ टी; ओघ ३०; सट्ठि १४२; वज्जा ५४)।

चडपड :: अक [दे] चटपटाना, छटपटाना, क्लेश पाना। वकृ. चडपडंत (मुद्रा ७२)।

चडय :: पुंस्त्री [चटक] पक्षि-विशेष, गौरैया पक्षी (दे २, १०७)। स्त्री. °या (दे ८, ३६)।

चडवेला :: /?/स्त्री. देखो चवेडा (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

चडावण :: न [आरोहण] चढ़ना (उप १५२)।

चडाविय :: वि [आरोहित] चढ़ाया हुआ, ऊपर स्थापित; 'रणखंभउरजिणहरे चडाविया कणयमयकलसा' (मुणि १०९०१; सुर १३, ३६; महा)।

चडाविय :: वि [दे] प्रेषित, भेजा हुआ; 'चाउद्दिसिंपि तेणं चडावियं साहणं तआ सोवि' (सूपा ३६५)।

चडिअ :: वि [आरूढ] चढ़ा हुआ, आरूढञ (सुपा १३७; १५३; १५६; हे ४, ४४५)।

चडिआर :: पुं [दे] आटोप, आडम्बर (दे ३, ५)।

चडु :: पुं [चटु] १ प्रिय वचन, प्रिय वाक्य। २ व्रती का एक आसन। ३ उदर, पेट। ४ पुंन. प्रिय संभाषण, खुशामद (हे १, ६७; प्राप्र)। °आर वि [°कार] खुशामद करनेवाला, खुशामदी (पणह १, ३)। °आरअ वि [°कारक] खुशामदी (गा ६०५)

चडुकारि :: वि [चटुकारिन्] खुशामदी (पिंड ४१४)।

चडुत्तरिया :: स्त्री [दे] १ उतरचढ़। २ वाद-विवाद (मोह ७)

चडुयारि :: देखो चडुकारि (पिंड ४८९)।

चडुल :: वि [चटुल] १ चंचल, चपल (से २, ४५; पउम ४२, १६) २ कंपवाला, हिलता हुआ (से १, ५२)

चडुलग :: वि [दे. चटुलक] खण्ड-खण्ड किया हुआ, 'विदुलगचडुलगछिन्‍ने' (सूअनि ७१)।

चडुला :: स्त्री [दे] रत्‍न-तिलक, सोने की मेखला में लटकता हुआ रत्‍न-निर्मित तिलक (दे ३, ८)।

चडुलातिलय :: न [दे] ऊपर देखो (दे ३, ८)।

चडुलिया :: स्त्री [दे] अन्त भाग में जला हुआ घास का पूला, घास की आँटी (णंदि)।

चड्ड :: सक [मृद्] मर्दन करना, मसलना। चड्डइ (हे ४, १२६)। प्रयो. चड्डावए (सुपा ३३१)।

चड्ड :: सक [पिष्] पीसना। चड्डइ (हे ४, १८५)।

चड्ड :: सक [भुज्] भोजन करना, खाना। चड्डइ (हे ४, ११०)।

चड्ड :: न [दे] तैल-पात्र, जिसमें दीपक किया जाता है; गुजराती में 'चाड्डं' (सुपा ६३८; बृह १)।

चड्डण :: न [भोजन] १ भोजन, खाना। २ खाने की वस्तु, खाद्य-सामग्री (कुमा)

चड्डावल्ली :: स्त्री [चड्डावल्ली] इस नाम की एक नगरी, जहाँ श्रीघनेश्‍वर मुनि ने विक्रम की ग्याहवीं सदी में 'सुरसुदंरी-चरिअ' नामक प्राकृत-काव्य रचा था (सुर १६, २४९)।

चड्डिअ :: वि [मृदित] मसला हुआ, जिसका मर्दन किया गया हो वह (कुमा)।

चड्डिअ :: वि [पिष्ट] पीसा हुआ (कुमा)।

चढ :: देखो चड = आ + रुह। संकृ. चढिऊण (सम्मत्त १५९)।

चढण :: देखो चडण (संबोध २८)।

चण, चणअ :: पुं [चणक] चना, अन्‍न-विशेष (जं ३; कुमा; गा ५५७; दे १, २१)।

चणइया :: स्त्री [चणकिका] मसूर, अन्न-विशेष (ठा ५, ३)।

चणग :: देखो चणअ (सुपा ६३१; सुर ३, १४८)। °गाम पुं [°ग्राम] ग्राम-विशेष, गौड़ देश का एक ग्राम (राज)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष, राजगृह-नगर का असली नाम (राज)।

चणयग्गाम :: देखो चणग-गाम (धर्मंवि ३८)।

चणोट्ठिया :: स्त्री [दे] गुंजा। गु° 'चणोट्ठी', देखो कोणेट्ठिया (अनु° वृ° हारि° पत्र ७६)।

चत्त :: पुंन [दे] तर्कू, तकुआ, सूत बनाने का यन्त्र, तकली (दे ३, १; धर्मं २)।

चत्त :: वि [त्यक्त] छोड़ा हुआ, परित्यक्त (पणह २, १; कुमा १, १६)। २ सूत की आँटी (प्रश्‍नव्या° ८०, १)

चत्तर :: देखो चच्चर (पि २९९; नाट)।

चत्ता :: देखो चत्तालीसा (उवा)।

चत्ता :: स्त्री [चर्चा] १ शरीर पर सुगन्धी वस्तु का विलेपन। २ विचार, चर्चा (प्राकृ ३८)। चत्ताल वि [चत्वारिंश] चालीसवाँ (पउम ४०, १७)

चत्तालीस :: न [चत्वारिंशत्] १ चालीस, ४०; 'चत्तालीसं बिमाणाबाससहस्सा पणणत्तो' (सम ६६; कप्प) २ वि. चालीस वर्षं की उम्रवाली; 'चत्तालीसस्स विन्नाणं' (तंदु)

चत्तालीसा :: स्त्री [चत्वारिंशत्] चालीस, ४०; 'तीसा चत्तालीसा' (पणण २)।

चत्थरि :: पुंस्त्री [दे. चस्तरि] हास, हास्य (दे ३, २)।

चपेटा :: स्त्री [दे. चपेटा] कराघात, थप्पड़, तमाचा (षड्)।

चप्प :: सक [आ + क्रम्] आक्रमण करना, दबाना। संकृ. चप्पिवि (भवि)।

चप्प :: सक [चर्च्] १ अध्ययन करना। २ कहना। ३ भर्त्संना करना। ४ चन्दन आदि से विलेपन करना। चप्पइ (प्राकृ ७५ संक्षिी ३५)

चप्पडग :: न [दे] काष्ठ-यन्त्र-विशेष (पणह १, ३ — पत्र ५३)।

चप्परण :: न [दे] तिरस्कार, निरास (गु ९)।

चप्पलअ :: वि [दे] १ असत्य, झुठा (कुमा ८, ७९) २ बहुमिथ्यावादी, बहुत झुठ बोलनेवाला (षड्)

चप्पिय :: वि [आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया हुआ (भवि)।

चप्पुडिया, चप्पुडी :: स्त्री [चप्पुटिका] चपटी, चुटकी, अंगुष्ठ के साथ अंगुली की ताली (णाया १, ३ — पत्र ६५; दे ८. ४३)।

चप्फल, चप्फलय :: न [दे] शेखर-विशेष, एक तरह का शिरोभूषण। २ वि. असत्य, झूठा, मिथ्याभाषी (दे ३, २०; हे ३, ३८; कुमा ८, २५)

चमक्क :: पुं [चमत्कार] विस्मय, आश्‍चर्यं; 'संजणियजणचमक्को' (धम्म ९ टि; उप ७६८ टी)। °यर वि [°कर] विस्मय-जनक्र (सण)।

चमक्क, चमक्कर :: सक [चमत् + कृ] विस्मित करना, आश्‍चर्यान्वित करना। चमक्केइ, चमक्कंति (विवे ४३; ४८९। वकृ. चमक्करंत विक्रक ६९)।

चमक्कार :: पुं [चमत्कार] आश्‍चर्यं, विस्मय (सुर १०, ८; वज्जा २४)।

चमक्किअ :: वि [चमत्कृत] विस्मित, आश्‍च- र्यान्वित (सुपा १२२)।

चमड, चमढ :: सक [भुज्] भोजन करना, खाना। चमडइ (षड्) चमढइ (हे ४, ११०)।

चमढ :: सक [दे] १ मर्दंन करना, मसलना। २ प्रहार करना। ३ कदर्थन करना, पीड़ना। ४ निन्दा करना। ५ आक्रमण करना। ६ उद्विग्‍न करना, खिन्‍न करना। कवकृ. चम- ढिज्जंत (ओघ १२८ भा; बृह १)

चमढण :: न [भोजन] भोजन, खाना (कुमा)।

चमढण :: न [दे] १ मर्दंन, अवमर्दंन (ओघ १८७ भा; स २२) २ आक्रमण (स ५७६) ३ कदर्थन, पीड़न। ४ प्रहार (ओघ १९३) ५ निन्दा, गर्हण (ओघ ७९) ६ वि. जिसकी कदर्थना की जाय वह (ओघ २३७)

चमढणा :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (बृह १)।

चमढिअ :: वि [दे] मर्दित, विनाशित (वव २)।

चमर :: पुं [चमर] पशु-विशेष, जिसके बालों का चामर या चँवर बनता है; 'वराहरुरुचमरसे- विए रणणे' (पउम ९४, १०५; पणह १, १ )। २ पुं. पाँचवें जिनदेव का प्रथम शिष्य (सम १५२) ३ दक्षिण दिशा के असुरकुमारों का इन्द्र (ठा २, ३)। °चंव पुं [°चञ्च] चम- रेन्द्र का आवास-पर्वत (भग १३, ६)। °चंचा स्त्री [°चञ्चा] चमरेन्द्र की राजधानी, स्वर्ग- पुरी-विशेष (णाया २)। °पुर न [°पुर] विद्याधरों का नगर-विशेष (इक)

चमर :: पुंन [चामर] चँवर, चामर, बाल- व्यजन (हे १, ६७)। °धारी, °हारी स्त्री [°धारिणी] चामर बीजने या डोलानेवाली स्त्री (सुपा ३३९; सुर १०, १५७)।

चमरी :: स्त्री [चमरी] चमर-पशु की मादा, सुरही गाय (से ७, ४८; स ४४१; औप; महा)।

चमस :: पुंन [चमस] चमचा, कलछी, दर्वी (औप; महा)।

चमुक्कार :: पुं [चमत्कार] १ आश्‍चर्य, विस्मय; 'पेच्छागयसुरकिन्नरचितचमुक्कारकारयं' (सुर १३, ९७) २ बिजली का प्रकाश; 'ताव य विज्जुचमुक्कारणंतरं चंडचडडसंसद्दो' (सुर २, ११०)

चमू :: स्त्री [चमू] १ सेना, सैन्य, लश्‍कर (आवम) २ सेना-विशेष, जिसमें ७२९ हाथी, ७२९ रथ, १८७ घोड़े और ३६४५ पैदल हों ऐसा लश्‍कर (पउम ५६, ६)

चम्म :: न [धर्मन्] छाल, त्वक्, चमड़ा, खाल (हे १, ३२; स्वप्‍न ७०; प्रासू १७१)। °किड वि [°किट] चमड़े से सीआ हुआ (भग १३, ९)। °कोस, °कोसय पुं [कोश, °क] १ चमड़े का बना हुआ थैला २ एक तरह का चमड़े का जूता (ओघ ७२८; आचा २, २, ३; वव ८)। °कोसिया स्त्री [°कोशिका] चमड़े की बनी हुई थैली (सूअ २, २)। °खंडिय वि [°खण्डित] १ चमड़े का परिधानवाला। २ सब उपकरण चमड़े का ही रखनेवाला (णाया १, १५)। °ग वि [°क] चमड़े का बना हुआ चर्मंमय (सूअ २, २)। °पक्खि पुं [°पक्षिन्] चमड़े की पाखवाला पक्षी (ठा ४, ४ — पत्र २७१)। °पट्ट पुं [°पट्ट] चमड़े का पट्टा, वर्ध्रं (विपा १, ६)। °पाय न [°पात्र] चमड़े का पात्र (आचा २, ६, १)। °यर पुं [°कर] मोची, चमार (स २८६; दे २, ३७)। °रयण न [°रत्‍न] चक्रवर्ती का रत्‍न-विशेष, जिससे सुबह में बीये हुए शालि वगैरह उसी दिन पक कर खाने योग्य हो जाते हैं (पव २१२)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष्] वृक्ष-विशेष (भग ८, ३)

चम्मट्ठि :: स्त्री [चर्मयष्टि] चर्मं-मय यष्टि, चर्मं- दण्ड, चमड़ा लगी हुई छड़ी (कप्पू)।

चम्मट्ठिअ :: अक [चर्मयष्टीय्] चर्म-यष्टि की तरह आचरण करना। वकृ. चम्मट्ठिअंत (कप्पू)।

चम्मट्ठिल :: पुं [चर्मास्थिल] पक्षि-विशेष (पणह १, १)।

चम्मार :: पुं [चर्मकार] चमार, मोची (विसे २९८८)।

चम्मारय :: पुं [चर्मकारक] ऊपर देखो (प्राप)।

चम्मिय :: वि [चर्मित] चर्म से बँधा हुआ, चर्म-वेष्टित (औप)।

चम्मेट्ठ :: पुं [चर्मेंष्ट] प्रहरण-विशेष, चमड़े से वेष्टित पाषाणवाला आयुध (पणह १, १)।

चम्मेट्ठग :: पुंस्त्री [चर्मेष्ठक] शस्त्र-विशेष (राय २१)। स्त्री. °गा (अणु १७५)।

चय :: सक [त्यज्] छोड़ना, त्याग करना। चयइ (पाअ; हे ४, ८६)। कर्म. चइज्जइ (उव)। वकृ. चयंत (सुपा ३८८)। संकृ. चइअ, चइउं, चिच्चा, चइऊण, चइत्ता, चइत्ताणं, चइत्तु (कुमा; उत्त १८; महा; उवा; उत्त १)। कृ. चइयव्व (सुपा ११६; ४०५; ५२१)।

चय :: सक [शक्] सकना, समर्थ होना। चयइ (हे ४, ८६)। वकृ. चयंच (सूअ १, ३, ३; से ९, ५०)।

चय :: अक [च्यु] मरना, एक जन्म से दूसरे जन्म में जाना। चयइ (भवि), चयंति (भग)। वकृ. चयमाण (कप्प)।

चय :: पुं [चय] १ शरीर, देह (विपा १, १; उवा) २ समूह, राशि, ढेर (विसे २२१९; सुपा ५७१; कुमा) ३ इकट्ठाहोना (अणु) ४ वृद्धि (आचा)

चय :: पुं [चय] ईंटों की रचना-विशेष (पिंड २)।

चय :: पुं [च्यव] च्यव, जन्मान्तर-गमन (ठा ८; कप्प)।

चयण :: न [चयन] १ इकट्ठा करना (पव २) २ ग्रहण, उपादान (ठा २, ४)

चयण :: न [त्यजन] त्याग, परित्याग (सट्ठि ३९)।

चयण :: न [च्यवन] १ मरण, जन्मान्तर-गमन (ठा १ — पत्र १९) २ पतन, गिर जाना। °कप्प पुं [°कल्प] १ पतन-प्रकार, चारित्र वगैरह से गिरने का प्रकार। २ शिथिल साधुओं का विहार (गच्छ १; पंचभा)

चयण :: न [च्यवन] च्युति, भ्रंश क्षय (तंदु ४१)।

चर :: सक [चर्] १ गमन करना, चलना, जाना। २ भक्षण करना। ३ सेवना। ४ जानना। चरइ (उव; महा)। भूका. चरिंसु (गउड)। भवि. चरिस्सं (पि १७३)। वकृ. चरंत, चरमाण (उत्त २; भग; विपा १, १)। संकृ. चरिअ, चरिऊण (नाट — मृच्छ १०; आवम)। हेकृ. चरिउं, चारए (ओघ ६५; कस)। कृ. चरियव्व (भग ९, ३३)। प्रयो, चारियव्व (पणण १७ — पत्र ४९७)

चर :: पुं [चर] १ गमन, गति। २ वर्तन (दंस; आवम ३ दूत, जासूस (पाअ; भवि)

चर :: पुं [चर] जंगम प्राणी (कुप्र २४)।

°चर :: वि [°चर] चलनेवाला (आचा)।

चरंती :: स्त्री [चरन्ती] जिस दिशा में भगवान् जिनदेव वगैरह ज्ञानी पुरुष विचरते हों वह (वव १)।

चरग :: पुं [चरक] १ देखो चर = चर। २ संन्यासियों का झुण्ड विशेष, यूथबंध धूमने बाले त्रिदण्डियों की एक जाति (भग; गच्छ २) ३ भिक्षुकों की एक जाति (पणण २०) ४ दंश-मशकादि जन्तु (राज)

चरचरा :: स्त्री [चरचरा] 'चर-चर' आवाज (स २५७)।

चरड :: पुं [चरट] लुटेरे की एक जाति (धम्म १२ टी; सुपा २३२; ३३३)।

चरण :: पुंन [चरण] १ संयम, चारित्र; 'सम्म- त्तानाणचरणा पत्तेयं अट्ठअट्ठभेइल्ला' (संबोध २२) २ आचरण (सूअनि १२४)

चरण :: न [चरण] १ संयम, चारित्र, व्रत, नियम (ठा ३, १; ओघ २; विसे १) २ चरना, पशुओं का तृणादि-भक्षण (सुर २, ३) ३ पद्य का चौथा हिस्सा (पिंग) ४ गमन, विहार (णंदि; सूअ १, १०, २) ५ सेवन, आदर (जीव २) ६ पाद, पाँव (३, ७)। °करण न [°करण] संयम का मूल और उत्तर गुण (सूअ १, १ सम्म १६४)। °करणाणुओग पुं [°करणानुयोग] संयम के मूल और उत्तर गुणो की व्याख्या (निचू १५)। °कुसील पुं [°कुशील] चारित्र को मलिन करनेवाला साधु, शिथिलाचारी साधु (पव २)। °णय [°नय] क्रिया को मुख्य माननेवाला मत (आचा)। °मोह पुंन [°मोह] चारित्र का आवारक कर्मं-विशेष (कम्म १)

चरम :: वि [चरम] १ अन्तिम, अन्त का, पर्यन्तवर्त्ती (ठा २, ४; भग ८, ३; कम्म ३, १७; ४, १६; १७) २ अनन्तर भव में मुक्ति पानेवाला। ३ जिसका विद्यमान भव अन्तिम हो वह (ठा २, २)। °काल पुं [°काल] मरणसमय (पंचव ४)। °जलहि पुं [°जलधि] अन्तिम समुद्र, स्वयंभूरमण समुद्र (लहुअ २)

चरमंत :: पुं [चरमान्त] सब से अन्तिम, सब से प्रान्त-वर्त्ती (सम ६६)।

चरय :: देखो चरग (औप; णाया १, १५)।

चरि :: पुंस्त्री [चरि] १ पशुओं को चरने की जगह। २ चारा, पशुओं को खाने की चीज, घास (कुप्र १७)

चरिग :: देखो चरिया = चरिका (राज)।

चरित्त :: न [चरित्र] १ चरित, आचरण। २ व्यवहार (भवि; प्रासू ४०) ३ स्वभाव, प्रकृति (कुमा)

चरित्त :: न [चरित्र] जीवन-कथा, जीवनी, कहानी (सम्मत्त १२०)।

चरित्त :: न [चारित्र] संयम, विरति, व्रत, नियम (ठा २, ४; ४, ४; भग)। °कप्प पुं [°कल्प] संयमानुष्ठान का प्रतिपादक ग्रन्थ (पंचभा)।°मोह पुंन [°मोह] कर्मं-विशेष, संयम का आवारक कर्मं (भग)। °मोहणिज्ज न [°मोहनीय] वही पूर्वोक्त अर्थं (ठा २, ४)। °चरित्त न [°चारित्र] आंशिक संयम, श्रावक-धर्म (पडि; भग ८, २)। °यार पुं [°चार] संयम का अनुष्ठान (पडि)। °रिय पुं [°र्य] चारित्र से आर्यं, विशुद्ध चोरित्रवाला, साधु, मुनि (पणण १)।

चरित्ति :: पुंस्त्री [चारित्रिन्] संयमवाला, साधु, मुनि (उप ६६९; पंचव १)।

चरिम :: देखो चरम (सुर १, १०; औप; भग; ठा २, ४)।

चरिय :: पुं [चरक] चर-पुरुष, जासूस, दूत (सुपा ५२८)।

चरिय :: न [चरित] १ चेष्टित, आचरण (औप; प्रासू ८६) २ जीवनी, जीवन-चरित (सुपा २) ३ चरित्र-ग्रन्थ (सुपा ६५८) ४ सेवित, आश्रित (पणह १, ३ )

चरिया :: स्त्री [चरिका] १ परिघ्राजिका, संन्या- सिनी (ओघ ५९८) २ किला और नगर के बीच का मार्ग (सम १३७; पणण १, १)

चरिया :: स्त्र [चर्या] १ आचरण, अनुष्ठान, 'दुक्करचरिया मुणिवरणं' (पउम १४, १५२) २ गमन, गति, बिहार (सूअ १, १, ४) ३ गाड़ी (आख्या° पत्र ११ गा. ९८)

चरीया :: देखो चरिया = चर्या; 'तणफासो चरीया य दंसेक्कारस जोगिसु' (पंच ४, २०)।

चरु :: पुं [चरु] स्थाली-विशेष, पात्र-विशेष (औप; भवि)।

चरुगिणय :: देखो चारुइणय (इक)।

चरुल्लेव :: न [दे] नाम, आख्या (दे ३, ६)।

चल :: सक [चल्] १ चलना, गमन करना। २ अक. काँपना, हिलना। चलइ (महा; गउड)। वकृ. चलंत, चलमाण (गा ३५६; सुर ३, ४०; भग)। हेकृ. चलिउं (गा ४८४)। प्रयो. संकृ. चलइत्ता (दस ५, १)

चल :: वि [चल] १ चंचल, अस्थिर (स ४२०; वज्जा ६६) २ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३९)

चलचल :: वि [चलचल] १ चंचल, अस्थिर; 'चलचलयकोडिमोडणकराइं नयणाइं तरु- णीणं' (वज्जा ६०) २ पुं. घी में तली जाती हुई चीज का पहला तीन घान (निचू ४)

चलण :: पुं [चरण] पाँव, पैर, पाद (औप; से ६, १३)। °मालिया स्त्री [°मालिका] पैर का आभूषण-विशेष (पणह २, ५; औप)। °वंदण न [°वन्दन] पैर पर सिर झुका कर प्रणाम, प्रणाम-विशेष (पउम ८, २०६)।

चलण :: न [चलन] चलना, गति, चाल, प्रथा, रिवाज (से ६, १३)।

चलणा :: स्त्री [चलना] १ चलन, गति। २ कम्प, हिलन (भग १९, ९)

चलणाउह :: पुं [चरणायुध] कुक्कुट, मुर्गा (दे ३, ७)।

चलणाओह :: पुं [दे चरणायुध] ऊपर देखो (षड्)।

चलणिया :: स्त्री [चलनिका] नीचे देखो (ओग ६७६)।

चलणिया, चलणी :: स्त्री [चलनिका, °नी] जैन साध्वियों को पहनने का कटि- वस्त्र (पव ६२)।

चलणी :: स्त्री [चलनी] १ साध्वियों का एक उपकरण (ओघ ३१५ भा) २ पैर तक का कीच (जीव ३; भग ७, ९)

चलवलण :: न [दे] चटपटाई, चंचलता (पउम १०२, ६)।

चलाचल :: वि [चलाचल] चंचल, अस्थिर (पउम ११२, ९)।

चलिंदिय :: वि [चलेन्द्रिय] इन्द्रिय-निग्रह करने में असमर्थ, जिसको इन्द्रियों काबू में न हो वह (आचा २, ५, १)।

चलिअ :: न [चलित] १ विकलता, अस्थेर्यं, चंचलता (पाअ) २ वि. चला हुआ, कम्पित (आवम) ३ प्रवृत्त (पाअ; औप) ४ विनष्ट (धम्म २)

चलिर :: वि [चलितृ] चलनेवाला, अस्थिर, चपल, चंचल; 'चलिरभमराली' (उप ९८६; सुपा ७६; २५७; स ४१)।

चल्ल :: देखो चल = चल्। चल्लइ (हे ४, २३१; षड्)।

चल्लणग :: न [दे] जघनांशुक, कटि-वस्त्र (षड्)।

चल्लि :: स्त्री [दे] नाचते समय की एक प्रकार की गति (कप्पू)।

चल्लि :: स्त्री [दे] मदन-वेदना (संक्षि ४७)।

चल्लिअ :: देखो चलिअ (सुर २, ९१; उप पृ ५०)।

चव :: सक [कथय्] कहना, बोलना। चवइ (हे ४, २)। कर्म. चविज्जइ (कुमा)। वकृ. चवंत (भवि)।

चव :: अक [च्यु] मरना, जन्मान्तर में जाना। चवइ (हे ४, २३३)। संकृ. चविऊण (प्रारू)। कृ. चवियव्व (ठा ३, ३)।

चव :: पुं [च्यव] मरण, मौत; 'मन्‍नंता अपुण- च्चंव' (उत्त ३, १४)।

चवचव :: पुं [चवचव] 'चव-चव' आवाज, ध्वनि-विशेष (औघ २८९ भा)।

चवण :: न [च्यवन] १ मरण, जन्मान्तर-प्राप्ति (सुर २, १३६; ७, ८; दं ४) २ पतन, गिर जाना (बृह १)

चवल :: वि [चपल] १ चंचल, अस्थिर (सुर १२, १३८; प्रासू १०३) २ आकुल, व्या- कुल (औप) ३ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, ३९)

चवल :: पुं [दे] अन्न-विशेष, बोड़ा (श्रा १८)।

चवलय :: पुं [दे] धान्य-विशेष, गुजराती में 'चोळा' (पव १५४)।

चवला :: स्त्री [चपला] विद्युत्, बिजली (जीव ३)।

चविअ :: वि [च्युत] मृत, जन्मान्तर-प्राप्त (कुमा २, २६)।

चविअ :: वि [कथित] उक्त, कहा हुआ (भवि)।

चविआ :: स्त्री [चविका] वनस्पति-विशेष (पणण १७ — पत्र ५३१)।

चविडा, चविला, चवेला :: स्त्री [चपेटा] तमाचा, थप्पड़ (हे १, १४६; कुमा)।

चवेडी :: स्त्री [दे] १ श्‍लिष्ट कर-संपुट। २ संपुट, समुद्र, डिब्बा (दे ३, ३)

चवेण :: न [दे] वचनीय, लोकापवाद (दे ३, ३)।

चवेला :: देखो चविडा (प्रारू)।

चव्व :: सक [चर्व्] चबाना (संक्षि ३४)।

चव्व :: (शौ) देखो चच्च = चर्चं। चव्वदि (प्राकृ ९३)।

चव्वक्किअ :: वि [दे] धवलित, चूने से पोता हुआ; 'चव्वक्किया य चुन्‍नेण नासिया (सुपा ४५५)।

चव्वण :: न [चर्वण] चबाना (दे ७, ८२)।

चव्वाइ :: देखो चव्वागि (राज)।

चव्वाक, चव्वाग :: पुं [चार्वाक] नास्तिक, बृहस्पति का शिष्य, लोकायतिक (प्रबो ७८; राज)।

चव्वागि :: वि [चार्वाकिन्] १ चबानेवाला। २ दुर्व्यवहारी (वव ३)

चव्विय :: वि [चर्वित] चबाया हुआ (सुर १३, १२३)।

चस :: सक [चष्] चखना, आस्वाद लेना। वकृ. चसंद (शौ) (रंभा)। हेकृ. चसिदुं (शौ) (रंभा)।

चसग, चसय :: पुं [चषक] १ दारू पीने का प्याला (जं ५; पाअ) २ पान-पात्र, प्याला (सुर २, ११; पउम ११३, १०) ३ पक्षि- विशेष (दे ६, १४५)

चहुंतिया :: स्त्री [दे] चुटकी, चुटकीभर; 'जोग- चुणणचहंतियामेत्तपक्खेवेण' (काल)।

चहुट्ट :: अक [दे] चिपकना, चिपटना, लगाना; गुजराती में 'चोंटवुं'; 'रे मूढ तुह अकज्जे लीलाइ चहुट्टए जहा चित्तं' (संवेग १९)। चहुट्टइ (कुप्र २४९)।

चहुट्ट :: वि [दे] १ निमग्‍न, लीन (दे ३, २; वज्जा ३८); 'मण-भमरो-पुण तीए मुहारविंदे- च्चिय चहुट्टो' (उप ७२८ टी)

चहुट्ट, चहुट्टिय :: वि [दे] चिपका हुआ, लगा हुआ (धर्मंवि १४१; उप ७२८ टी; कुप्र २७)।

चहोड :: पुं [दे] एक मनुष्य-जाति (भवि)।

चाइ :: वि [त्यागिन्] १ त्याग करनेवाला, छोड़नेवाला। २ दानी, दान देनेवाला, उदार (सुर १, २१७; ४, ११८) ३ निःसंग, निरीह, संयमी (आचा)

चाइय :: वि [त्याजित] छोड़वाया हुआ (धर्मंवि ८)।

चाइय :: वि [शकित] जो समर्थ हुआ हो (पउम ७, १२१; सूअ १, १४); 'सव्वोवा- एहि जया घेत्तूण न चाइया सुरिंदेणं। ताहे ते नेरइया' (पउम ११८, २४)।

चाउअंगी :: स्त्री [चार्वङ्गी] सुन्दर अंगवाली स्त्री (प्राकृ २९)।

चाउंड :: पुं [चामुण्ड] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लङ्का-पति (पउम ५, २६३)।

चाउकाल :: न [चतुष्काल] चार वक्‍त, चार समय (विसे २५७६)।

चाउक्कोण :: वि [चतुष्कोण] चार कोनावाला, चतुरस्त्र (जीव ३)।

चाउग्घंट, चाउघंट :: वि [चतुर्घण्ट] चार घंटावाला, चार घण्टाओं से युक्त (णाया १, १; भग ९, ३३; निर १)।

चाउज्जाम :: न [चातुर्याम] चार महाव्रत, साधु-धर्म-अहिंसा, सत्य और अपरि- ग्रह ये चार साधु-व्रत (णाया १, ७; ठा ४, १)।

चाउज्जाय :: न [चातुर्जात] दालचीनी, तमा- लपत्र, इयायची और नागकेसर (उप पृ १०९; महा)।

चाउत्थिग :: देखो चाउत्थिय (उत्तनि ३)।

चाउत्थिय :: पुं [चातुर्थिक] रोग-विशेष, चौथे- चौथे दिन पर होनेवाला ज्वर, चौथिया बुखार (जीव ३)।

चाउद्दसिया :: स्त्री [चतुर्दशिका] तिथि-विशेष, चतुर्दशी, चौदस; 'हीणपुणणचाउद्दसिया' (उवा)।

चाउद्दसी :: स्त्री [चतुर्दशी] ऊपर देखऱो (भग; जो ३)।

चाउद्दाह :: (अप) त्रि. ब. [°चतुर्दशन्] चौदह, १४ (पिंग)।

चाउद्दिसिं :: देखो चउ-द्दिसिं (महा; सुपा ३६५)।

चाउप्पाय :: न [चतुष्पाद] चतुर्विध, चार प्रकार का (उत्त २०, २३; सुख २०, २३)।

चाउमास, चाउम्मास :: पुंन [चातुर्मास] १ चौमासा, जैसे आषाढ़ से लेकर कार्तिक तक के चार महीने (उप पृ ३९०; पंचा १७) २ आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्दशी; 'पक्खिए चाउमासे' (लहुअ १६)

चाउम्मासिअ :: वि [चातुर्मासिक] १ चार मास सम्बन्धी, जैसे आषाढ से लेकर कार्तिक तक के चार महीने से सम्बन्ध रखनेवाला (णाया १, ५; सुर १४, २२८) २ न. आषाड़, कार्त्तिक और फाल्गुन मास की शुक्ल चतुर्दशी तिथि, पर्वं-विशेष (श्रा ४७; अजि ३८)

चाउम्मासी :: स्त्री [चातुर्मासी] चार मास, चौमासा, आषाढ से कार्त्तिक, कार्त्तिक से फाल्गुन और फाल्गुन से आषाढ़ तक के चार महीने (पउम ११८, ५८)।

चाउम्मासी :: स्त्री [चातुर्मासी] देखो चाउ- म्मासिअ (धर्म २; आव)।

चाउरंग :: देखो चउरंग (पउम २, ७५)।

चाउरंगि :: देखो चउरंगि (भा; णाया १, १ — पत्र ३२)।

चाउरांगज्ज :: वि [चतुरङ्गीय] १ चार अंगों से सम्बन्ध रखनेवाला। २ न. 'उत्तराध्ययन' सूत्र का एक अध्ययन (उत्त ४)

चाउरंत :: देखो चउरंत (सम १; ठा ३, १; हे १, ४४)।

चाउरंत :: पुं [चातुरन्त] १ चक्रवर्त्ती राजा, सम्राट् (पणह १, ४) २ न. लग्‍न-मण्डप, चौरी (स ७८)

चाउरंत :: न [चातुरन्त] भरत-क्षेत्र, भारतवर्षं (चेइय ३४०, ३४१)।

चाउरंत :: न [चतुरन्त] चक्र, पहिया (चेइय ३४४)।

चाउरक्क :: वि [चातुरक्य] चार बार परिणत। °गोखीर न [°गोक्षीर] चार बार परिणत किया हुआ गो-दुध, जैसे कतिपय गौओं का दूध दूसरी गौओं को पिलाया जाय, फिर उनका अन्य गौओ को, इस तरह चार बार परिणत किया हुआ गो-दुग्ध (जीव ३)।

चाउल :: वि [दे] चावल का, 'तहेव चाउलं पिट्ठं' (दस ५, २, २२)।

चाउल :: पुं [दे] चावल, तण्डुल, (दे ३, ८; आचा २, १, ३; ६; ८; उप पृ २३१; ओघ ३४४; सुपा ६३६; रयण ६०; कप्प)।

चाउल्लग :: न [दे] पुरुष का पुतला — कृत्रिम पुरुष (निचू १)।

चाउवण्ण :: देखो चाउवन्न (सम्मत्त १६२)।

चाउवन्न, चाउव्वण्ण :: वि [चातुर्वर्ण्य] १ चार-वर्णवाला, चार प्रकार वाला। २ पुं. साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का समुदाय (ठा ५, २ — पत्र ३२१); 'चाउव्व- णणस्स समणसंधस्स' (पउम २०, १२०) ३ न. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार मनुष्य-जाति (भग १५)

चाउव्विज्ज :: देखो चाउव्वेज्ज (ती ७)।

चाउव्वेज्ज :: न [चातुर्वैद्य] १ चार प्रकार की विद्या — न्याय, व्याकरण, साहित्य और धर्मं-शास्त्र। २ पुं. चौबे, ब्राह्मणों का एक अल्ल-उपगोत्र या वर्गं; 'पउरचाउव्वेज्जलोएण' (महा)

चाउस्साला :: स्त्री [चतुश्शाला] चारों तरफ के कमराओं से युक्त घर (पव १३३ टी)।

चाएंत :: देखो चाय = चय।

चाँउंडा :: स्त्री [चामुण्डा] स्वनाम-ख्यात देवी (हे १, १७४)। °काउअ पुं [°कामुक] महादेव, शिव (कुमा)।

चाग :: देखो चाय = त्याग (पंचव १)।

चागि :: देखो चाइ (उप पृ १०५)।

चाड :: वि [दे] मायावी, कपटी (दे ३, ८)।

चाडु :: पुंन [चाटु] १ प्रियवाक्य। २ खुशामद (हे १, ६७; प्राप्र)।°यार वि [°कार] खुशामदी (पणह १, २)

चाडुअ :: न [चाटुक] ऊपर देखो; कुमा)।

चाणक्क :: पुं [चाणक्य] १ राजा चन्द्रगुप्त का स्वनाम-प्रसिद्ध मन्त्री (मुद्रा १४४) २ एक मनुष्य-जाति (भवि)

चाणक्की :: स्त्री [चाणक्यी] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

चाणिक्क :: देखो चाणक्क (आक)।

चाणूर :: पुं [चाणूर] मल्ल-विशेष, जिसको श्रीकृष्ण ने मारा था (पणह १, ४; पिंग)।

चामर :: पुंन [चामर] चँवर, बाल-व्यजन (हे १, ६७)। २ छन्द-विशेष (पिंग)। °गाहि वि [°ग्राहिन्] चअर बीजनेवाला नौकर। स्त्री. °णी (भवि)। °छायण न [°च्छायन] स्वामी नक्षत्र का गोत्र (इक)। °ज्झय पुं [°ध्वज] चामर-युक्त पताका (औप)। °धार वि [°धार] चामर बीजनेवाला (पउम ८०, ३८)

चारमच्छ :: न [चामरथ्य] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६)।

चामरा :: /?/स्त्री. उपर देखो (औप; वसु; भग ९, ३३)।

चामीअर :: न [चामीकर] सुवर्णं, सोना (पाअ; सुपा ७७; णाया १, ४)।

चामुंडराय :: पुं [चामुण्डराज] गुजरात का एक चौलुक्य वंश का राजा (कुप्र ४)।

चामुंडा :: देखो चाँउंडा (विसे; पि)।

चाय :: देखो चय = शक्। वकृ. चायंत, चाएंत (सूअ १, ३, १; वव १)।

चाय :: देखो चाव (सुपा ५३०; से १४, १५; पिंग)।

चाय :: पुं. [त्याग] १ छोड़ना, परित्याग (प्रासू ८; पंचव १) २ दान (सुर १, ६५)

चायग, चायव :: पुं [चातक] पक्षि-विशेष, चातक- पक्षी (सण; पाअ; , दे ६, ९०)।

चार :: सक [चारय्] चराना, खिलाना। चारेइ (धर्मंवि १४३)।

चार :: पुं [चार] १ गति, गमन; 'पायचारेण' (महा, उप पृ १२३; रयण १५) २ भ्रमण, परिभ्रमण (स १९) ३ चर-पुरुष, जासूस (विपा १, ३; महा; भव) ४ कारागार, कैदखाना (भवि) ५ संचार, संचरण (औप) ६ अनुष्ठान, आचरण (आचानि ४५; महा) ७ ज्योतिष-क्षेत्र, आकाश (ठा २, २)

चार :: पुं [दे] १ वृक्ष-विशेष, पियाल वृक्ष, चिरौजी का पेड़ (दे ३, २१; अणु; पणण १६) २ बन्धन-स्थान (दे ३, २१) ३ इच्छा, अभिलाष (दे ३, २१, भवि; सुणा ५११) ४ न. फल-विशेष, मेवा-विशेष (पणण १६)। °वकय पुं [°क्रय] बेचनेवाले की इच्छानुसार दाम देकर खरीदना (सुपा ५११)

चारए :: देखो चर = चर्।

चारग :: [दे] चारक देखो चार (औप; णाया १, १; पणह १, ३; उप ३५७ टी)। °पाल पुं [°पाल] जेलखाना का अध्यक्ष (विपा १, ६ — पत्र ६५)। °पालग पुं [°पालक] कैदखाना का अध्यक्ष; जेलर (उप पृ ३३७)। °भंड न [°भाण्ड] कैदी को शिक्षा करने का उपकरण (विपा १, ६)। °हिव पुं [°धिप] कैधखाना का अध्यक्ष, जेलर (उप पृ ३३७)।

चारण :: पुं [दे] ग्रंन्थि-च्छेदक, पाकेटमार, चोर- विशेष (दे ३, ९)।

चारण :: पुं [चारण] १ आकाश में गमन करने की शक्ति रखनेवाला जैन मुनियों की एक जाति (औप; सुर ३, १५; अजि १९) २ मनुष्य-जाति-विशेष, स्तुति करनेवाली जाति भाट (उप ७६८ टी; प्रामा) ३ एक जैन मुनिं-गण (ठा ९)

चारणिआ :: स्त्री [चारणिका] गणित-विशेष (ओघ २१ टी)।

चारभड :: पुं [चारभट] शूर पुरुष, लड़वैया, सैनिक (पणह १, २; १, ३; बृह १)।

चारभड :: पुं [चारभट] लुटेरा (पिंड ५७९)।

चारय :: देखो चारग (सुपा २०७; ल १५)।

चारवाय :: पुं [दे] ग्रीष्म ऋतु का पवन (दे ३, ९)।

चारहड :: देखो चारभड (धम्म १२ टी, भवि)।

चारहडि :: स्त्री [चारभटी] शौर्यवृत्ति, सैनिक- वृत्ति (सुपा ४४१; ४४२; हे ४, ३९६)।

चारागार :: न [चारागार] कैदखाना, जेलखाना (सुर १६, १७)।

चारि :: स्त्री [चारि] चारा, पशुओं के खाने की चीज, घास आदि (ओग २३८)।

चारि :: वि [चारिन्] १ प्रवृत्ति करनेवाला। (विसे २४३ टी; उव; आचा) २ चलने वाला, गमन-शील (औप; कप्पू)

चारिअ :: वि [चारित] १ जिसको खिलाया गया हो वह (से २, २७) २ विज्ञापित, जताया हुआ (पणण १७ — पत्र ४९७)

चारिअ :: पुं [चारिक] १ चर पुरुष, जासूस (पणह १, २; पउम २६, ९५); 'चोरुत्ति चोरिउत्ति य होइ जओ परदारगामित्ति' (विसे २३७३) २ पंचायत का मुखिया पुरुष, समुदाय का अगुआ (स ४०९)

चरित्त :: देखो चरित्त = चारित्र (ओघ ६ भा; उप ६७७ टी)।

चारित्ति :: देखो चरित्ति (पुप्फ १५४)।

चारियव्व :: देखो चर = चर्।

चारिया :: स्त्री [चर्या] १ आचरण, इधर-उधर गमन, जीविका। २ चेष्टा (उत्त १९, ८१; ८२; ८४; ८५)

चारी :: स्त्री [चारी] देखो चारि = चारि (स ४८७; ओघ २३८ टी)।

चारु :: वि [चारु] १ सुन्दर, शोभन, प्रवर (उवा; औप) २ पुं. तीसरे जिनदेव का प्रथम शिष्य (सम १५२) ३ न. प्रहरण- विशेष, शस्त्र-विशेष (जीव १; राय)

चारुइणय :: पुं [चारुकिनक] १ देश-विशेष। २ वि. उस देश का निवासी (औप; अंत)। स्त्री. °णिया (औप)

चारुणय :: पुं [चारुनक] ऊपर देखो (औप)। स्त्री. °णिया (औप; णाया १, १)।

चारुवच्छि :: पुं. ब. [चारुवत्सि] देश-विशेष (पउम ९८, ल६४)।

चारुसेणी :: स्त्री [चारुसेनी] छन्द-विशेष (पिंग)।

चाल :: सक [चालय्] १ चलाना, हिलाना, कँपाना। २ विनाश करना। चालेइ (उव; स ४७४; महा)। कर्मं. चालिज्जइ (उव)। वकृ. चालंत, चालेमाण (सुपा २२४; जीव ३)। कवकृ. चालिज्जमाण (णाया १, १)। हेकृ. चालित्तए (उवा)

चालण :: न [चालन] १ चलाना, हिलाना (रंभा) २ विचार (विसे १००७)

चालण :: न [चालन] शंका, प्रश्‍न, पूर्वंपक्ष (चेइय २७१)।

चालणा :: स्त्री [चालना] शंका, पूर्वपक्ष, आक्षेप (अणु; बृह १)।

चालणिया :: स्त्री [चालनिका] नीचे देखो (उप १३४ टी)।

चालणी :: स्त्री [चालनी] आखा, छानने का पात्र चलनी या छलनी (आवम)।

चालवास :: पुं [दे] सिर का भूषण-विशेष (दे ३, ८)।

चालिय :: वि [चालित] चलाया हुआ, हिलाया हुआ; 'पुप्फवईए चालियाए सियसंकेयपडागाए' (महा)।

चालिर :: वि [चालयितृ] १ चलानेवाला। २ चलनेवाला; 'खरपवणचाडुचालिरदवग्गिस- रिसेण पेम्मेण' (वज्जा ७०)

चाली :: स्त्री [चत्वारिंशत्] चालीस, ४० (उवा)।

चालीस :: स्त्रीन [चत्वारिंशत्] चालीस, ४० (महा; पिंग) स्त्री. °सा (ति ५)।

चालुक्क :: पुंस्त्री [चौलुक्य] १ चालुक्य वंश में उत्पन्न। २ पुं. गुजरात का प्रसिद्ध राजा कुमारपाल (कुमा)

चाव :: सक [चर्व्] चबाना। कृ. चावयव्व (उत्त १९, ३८)।

चाव :: पुं [चाप] धनुष, कार्मुक (स्वप्‍न ५५)।

चावल :: न [चापल] चपलता, चंचलता (अभि २४१)।

चावल्ल :: न [चापल्य] ऊपर देखो (स ५२९)।

चावाली :: स्त्री [चावाली] ग्राम-विशेष, इस नाम का एक गाँव (आवम)।

चाविय :: वि [चर्वित] चबाया हुआ (धर्मंवि ४६; १४९)।

चाविय :: वि [च्यावित] मरवाया हुआ (पणह २, १)।

चावेडी :: स्त्री [चापेटी] विद्या-विशेष, जिससे दूसरे का तमाचा मारने पर बीमार आदमी का रोग चला जाता है (वव ५)।

चावेयव्व :: देखो चाव = चव्।

चावोण्णय :: न [चापोन्नत] विमान-विशेष, एक देव-विमान (सम ३९)।

चास :: पुं [चाष] पक्षि-विशेष, स्वर्णं-चातक, पपीहा, लहटोरवा (पणह १, १; पणम १७; णाया १, १; ओघ ८४ भा; उर १, १४)।

चास :: पुं [दे] चास, हज-विदारित भूमि-रेखा, खेती (दे ३, १)।

चाह :: सक [वाञ्छ्] १ चाहना, बाँछना। २ अपेक्षा करना। ३ याचना। चाहइ, चाहसि (भवि; पिंग)

चाहिणी :: स्त्री [चाहिनी] हेमाचार्यं की माता का नाम (कुप्र २०)।

चाहिय :: वि [वाञ्छित] १ वाञ्छित, अभि- लषित। २ अपेक्षित। ३ याचित (भवि)

चाहुआण :: पुं [चाहुयान] १ एक प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश, चौहान वंश। २ पुंस्त्री. चौहान वंश में उत्पन्न (सुपा ५५९)

चि :: देखो चिण। कर्म. चिव्वइ, चिम्मइ, चिज्जंति (हे ४, २४३; भग)।

चिअ :: अ [एव] निश्चय को बतलानेवाला अव्यय; 'अणुबद्धं तं चिअ कामिणीणं' (हे २, १८४; कुमा; गा १६, ४६; दं १)।

चिअ :: अ [इव] १ — २ उपमा और उत्प्रेक्षा का सूचक अव्यय (प्राप्र)

चिअ :: वि [चित] १ इकट्ठा किया हुआ (भग) २ व्याप्‍त (सुपा २४१) ३ पुष्ट, मांसल (उप ८७५ टी)

चिअ :: न [चित] इँट आदि का ढेर (अणु १५४)।

चिअ :: देखो चित्त = चित्त प्राकृ (२६)।

चिआ :: स्त्री [त्विष्] कान्ति, तेज, प्रभा (षड्)।

चिआ :: देखो चियगा (सुपा २४१; महा)।

चिइ :: स्त्री [चिति] १ उपच्चय, पुष्टि, वृद्धि (पव २) २ इकट्ठा करना (उत्त ९) ३ बूद्धि, मेधा (पाअ) ४ भीत वगैरह बनाना। ५ चिता (पणह १, १ — पत्र ८)। °कम्म न [°कर्मन्] वन्दन, प्रणाम-विशेष (आव ३)

चिइ :: देखो चेइअ (उप ५९७; चैत्य १२; पंचा १)।

चिइगा :: देखो चियगा (जं १)।

चिइच्छ :: सक [चिकित्स्] १ दवा करना, इलाज करना। २ शंका करना, संशय करना। चिइच्छइ (हे २, २१; ४, २४०)

चिइच्छअ :: वि [चिकित्सक] १ दवा करनेवाला, इलाज करनेवाला। २ पुं. वैद्य (मा ३३)

चिइय :: देखो चिंतिय; 'जेण एस सुचरियतवोवि सुचिइयजिणिंदवयणोवि' (महा)।

चिउर :: पुं [चिकुर] १ केश, बाल (गा १८८) २ पीत रंग का गन्धद्रव्य-विशेष (पणण १७ — पत्र ५२८; राय)

चिंच, चिंचअ :: सक [मण्डय्] विभूषित करना, अलंकृत करना। चिंचइ, चिंचअइ (हे ४, ११५; षड्)।

चिंचइअ :: वि [मण्डित] शोभित, विभूषित, अलंकृत (पउम १५, १३; सुपा ८८; महा; पाअ; प्राप; कुमा)।

चिंचइअ :: वि [दे] चलित, चला हुआ (दे ३, १३)।

चिंचणिआ, चिंचणिगा, चिंचणी :: स्त्री [दे] देखो चिंचिणी (कुमा; सुपा १२; ५८३)।

चिंचणी :: स्त्री [दे] घरट्टिका, अन्न पीसने की चक्की (दे ३, १०)।

चिंचा :: स्त्री [चञ्चा] १ तृण की बनाई हुई चटाई वगैरह। °पुरिस पुं [°पुरुष] तृण का मनुष्य, जो पशु, पक्षी आदि को डराने के लिए खेतों में गाड़ा जाता है (सुपा १२४)

चिंचा :: स्त्री [दे. चिञ्चा] इमली का पेड़ (दे ३, १०; पाअ; विपा १, ६; सुपा १२४; ५८२; ५८३)।

चिंचिअ :: वि [मण्डित] भूषित, अलंकृत (कुमा)।

चिंचिणिआ, चिंचिणिचिंचा, चिंचिणी :: स्त्री [दे] इमली का पेड़ (ओघ २६; दे ३, १०; सुपा ५८४; पाअ)।

चिंचिल्ल :: सक [मण्डय्] विभूषित करना, अलंकृत करना। चिंचिल्लइ (हे ४, ११५; षड्)।

चिंचिल्लिअ :: वि [मण्डित] विभूषित, अलंकृत, सँवारा हुआ (पाअ; कुमा)।

चिंत :: सक [चिन्तय्] १ चिन्ता करना, विचार करना। २ याद करना। ३ ध्यान करना। ४ फीकिर करना, अफसोस करना। चिंतेइ, चिंतेमि (कुमा; उव; पउम १०, ४; अभि ५७; हे ४, ३२२; ३१०, सुर ४, २३)। कवकृ. चिंतिज्जंत (गा ६५१)। संकृ. चिंतिउं, चिंतिऊण (महा; गा ३५८)। कृ. चिंत- णीय, चिंतियव्व, चिंतेयव्व (उप ७३२; पंचा २; पउम ३१, ७७; सुपा ४४५)। चिंत वि [चिन्त्य] चिन्तनीय, बिचारणीय, विचार-योग्य (उप ६८५)

चिंतग :: वि [चिन्तक] चिन्ता करनेवाला, विचारक (उप पृ ३३३; ३३९ टी)।

चिंतण :: न [चिन्तन] १ विचार, पर्यालोचन (महा) २ स्मरण, स्मृति (उत्त ३२; महा)

चिंतणा :: स्त्री [चिन्तना] ऊपर देखो (उप ९८६ टी)।

चिंतणिया :: स्त्री [चिन्तनिका] याद करना, चिन्तन करना (ठा ५, ३)।

चिंतय :: वि [चिन्तक] चिन्ता करनेवाला (स ५९५; निर १, १)।

चिंतव :: देखो चिंत = चिंतय्। चिंतवइ (कुमा; भवि)।

चिंतविय :: वि [चिन्तित] जिसकी चिंता की गई हो वह (भवि)।

चिंता :: स्त्री [चिन्ता] १ विचार, पर्यालोचन (पाअ; कुमा) २ अफसोस, शोक, दिलगीरो (सुर २, १६१; सूअ २, १; प्रासू ६१) ३ ध्यान (आव ४) ४ स्मृति, स्मरण (णंदि) ५ इष्ट-प्राप्ति का संदेह (कुमा) °उर वि [°तुर] शोक से व्याकुल (सुर ६, ११९)। °दिट्ठ वि [°दृष्ट] विचार-पूर्वंक देखा हुआ (पाअ)। °मइअ वि [°मय] चिन्ता-युक्त; 'सअणो चिंतामइअं काऊण पिअं' (गा १३३)। °मणि पुं [°मणि] १ मनो- वाञ्छित अर्थं को देनेवाला रत्‍न-विशेष, दिव्य मणि (महा) २ वीतशोक नगरी का एक राजा (पउम २०, १४२)। °वर वि [°पर] चिन्ता-मग्‍न (पउम १०, १३)

चिंतायग, चिंतावग :: वि [चिन्तक] चिन्ता करनेवाला (आवम)। स्त्री. °गा (सुपा २१)।

चिंतिय :: वि [चिन्तित] १ विचारित, पर्या- लोचित (महा) २ याद किया हुआ, स्मृत (णाया १, १; षड्) ३ जिसको चिंता उत्पन्न हुई हो वह (जीव ३; औप) ४ न. स्मरण, स्मृति (भग ९, ३३; औप)

चिंतिर :: वि [चिन्तयितृ] चिन्ताशील, चिन्ता करनेवाला (श्रा २७; सण)।

चिंध :: न [चिह्न] १ चिह्न, लाञ्छन, निशानी (हे २, ५०; प्राप्र; णाया १, १६) २ ध्वजा, पताका (पाअ) °पट्ट पुं [°पट्ट] निशानी रूप वस्त्र-खण्ड (णाया १, १)। °पुरिस पुं [°पुरुष] १ दाढ़ी-मूँछ वगैरह पुरुष की निशानी वाला नपुंसक, हिंजड़ा। २ पुरुष का वेष धारण करनेवाली स्त्री वगैरह (ठा ३, १)

चिंधाल :: वि [चिह्णवत्] चिह्णयुक्त, निशानीवाला (पउम १०६, ७)।

चिधाल :: वि [दे] १ रम्य, सुन्दर, मनोहर। २ मुख्य, प्रधान, प्रवर (दे ३, २२)

चिंधिय :: वि [चिह्नित] चिह्न-युक्त (पि २६७)।

चिंफुल्लणी :: स्त्री [दे] स्त्री का पहनने का वस्त्र- विशेष, लहँगा (दे ३, १३)।

चिकिच्छ :: देखो चिइच्छ। चिकिच्छामि (स ४८५)। कृ. चिकिच्छिअव्व (अभि १९७)।

चिकुर :: देखो चिउर (पि ५०६)।

चिक्क :: वि [दे] १ स्तोक, थोड़ा, अल्प। २ न. क्षुत्, छींक (षड्)

चिक्कण :: वि [चिक्कण] चिकना, स्‍निग्ध (पणह १, १; सुपा ११)। २ निबिड़, घना; 'जं पावं चिक्कणं तए बद्धं' (सुर १४, २०९) ३ दुर्भेद्य, दुःख से छूटने योग्य (पणह १, १)

चिक्का :: स्त्री [दे] १ थोड़ी चीज। २ हलकी मेघ-वृष्टि, सूक्ष्म छींटा (दे ३, २१)

चिक्कार :: पुं [चीत्कार] चिल्लाहट, चिंघाड़ (सण)।

चिक्किण :: देखो चिक्कण (कुमा)।

चिक्खअण :: वि [दे] सहिष्णु, सहन करनेवाला (षड्)।

चिक्खल्ल :: पुं [दे] कर्दंम, पंक, कीच (दे ३, ११; हे ३, १४२; पणह १, १)।

चिक्खल्लय :: न [चिक्खल्लक] काठियावाड़ का एक नगर (ती २)।

चिक्खिल्ल, चिखल्ल, चिखिल्ल :: [दे] देखो चिक्खल्ल (गा ६७; ३२४; ४४५; ६८४; औप)।

चिगिचिगाय :: अक [चिकचिकाय्] चक- चकाट करना, चमकना। वकृ. चिगिचिगायंत (सुर २, ८६)।

चिगिच्छग :: देखो चिइच्छअ (विवे ३०)।

चिगिच्छण :: न [चिकित्सन] चिकित्सा, इलाज (उप १३५ टी)।

चिगिच्छय :: देखो चिइच्छअ (स २७८; णाया १, ५ — पत्र १११)।

चिगिच्छा :: स्त्री [चिकित्सा] दवा, प्रतीकार, इलाज (स १७)। °संहिया स्त्री [°संहिता] चिकित्सा-शास्त्रे, वैद्यक-शास्त्र (स १७)।

चिच्च :: वि [दे] १ चिपटी नासिकावाला, बैठी हुई नाकवाला (दे ३, ९) २ न. रमण, संभोग, रति (दे ३, १०)

चिच्च :: वि [त्याज्य] छोड़ने योग्य, परिहरणीय; 'खरकम्माइं पि चिच्चाइं' (सुपा ४९८)।

चिच्चर :: वि [दे] चिपटी नासिकावाला (दे ३, ९)।

चिच्चा :: देखो चय = त्यज्।

चिच्चि :: पुं [चिच्चि] चीत्कार, चिल्लाहट, भयंकर आवाज; 'चिच्चीसर — ' (विपा १, २ — पत्र २९)।

चिच्चि :: पुं [दे] हुताशन, अग्‍नि (दे ३, १०)।

चिट्ठं :: अ [दे] अत्यन्त, अतिशय (आचा १, ४, २, २)।

चिट्ठ :: अक [स्था] बैठना, स्थिति करना। चिट्ठइ (हे १, १६)। भूका. चिर्ट्ठिसु (आचा)। वकृ. चिट्टंत, चिट्ठेमाण (कुमा; भग)। संकृ. चिट्ठिंउं, चिट्ठिऊण, चिट्ठिण, चिट्ठित्ता, चिट्ठित्ताण (कप्प; हे ४, १६; राज; पि)। हेकृ. चिट्ठित्तए (कप्प)। कृ चिट्ठणिज्ज, चिट्ठिअव्व (उप २६४ टी; भग)।

चिट्ठ :: देखो चेट्ठ। वकृ. चिट्ठमाण (पंचा २)।

चिट्ठइत्तु :: वि [स्थातृ] बैठनेवाला, ठहरनेवाला (भग ११, ११; दसा ३)।

चिट्ठण :: न [स्थान] खड़ा, रहना (पव २)।

चिट्ठण :: न [चेष्टन] चेष्टा, प्रयत्‍न (हि २२)।

चिट्ठणा :: स्त्री [स्थान] स्थिति, बैठना, अवस्थान (बृह ६)।

चिट्ठा :: देखो चेठ्ठा (सुर ४, २४५; प्रासू १२५)।

चिट्ठिय :: वि [चेष्टित] १ जिसने चेष्टा की हो वह (पणह १, ३; णाया १, १) २ न. चेष्टा, प्रयत्‍न, (पणह २, ४)

चिट्ठिय :: वि [स्थित] १ अवस्थित, रहा हुआ। २ न. अवस्थान, स्थिति (चंद २०)

चिडिग :: पुं [चिटिक] पक्षि-विशेष (पणह १, १)|

चिण :: सक [चि] १ इकट्ठा करना। २ फूल वगैरह तोड़कर इकट्ठा करना। चिणइ (हे ४, २३८)। भूका. चिणिंसु (भग)। भवि. चिणिंहिइ (हे ४, २४३)। कर्मं. चिणिज्जइ (हे ४, २४२)। संकृ. चिणिऊण, चिणेऊण (षड्)

चिण :: देखो चण (श्रा १८)।

चिण :: देखो चित्त (प्राकृ २६)।

चिणिअ :: वि [चित] इकट्ठा किया हुआ (सुपा ३२३; कुमा)।

चिणोट्ठी :: स्त्री [दे] गुँजा, घुँघची, लाल रत्ती, गुजराती में 'चणोठी' (दे ३, १२)।

चिण्ण :: वि [चीर्ण] १ आचरित, अनुष्ठित (उत्त १३) २ अंगीकृत, आदृत (उत्त ३१) ३ विहित, कृत (उत्त १३)

चिण्ह :: न [चिह्न] निशानी, लांछन (हे २, ५०; गउड)।

चित्त :: सक [चित्रय्] चित्र बनाना, तसवीर खींचना। चित्तेइ (महा)। कवकृ चित्तिज्जंत (उप पृ ३४१)।

चित्त :: न [चित्त] १ मन, अन्त-करण, हृदय (ठा ४, १; प्रासू ९१; १५५) २ ज्ञान, चेतना (आचा) ३ बुद्धि, मति (अव ४) ४ अभिप्राय, आशय (आचा) ५ उपयोग, ख्याल (अणु)। °ण्णु वि [°ज्ञ] दिल का जानकार (उप पृ १७६)। °निवाइ वि [°निपातिन्] अभिप्राय के अनुसार बरतनेवाला (आचा) °मंत वि [°वत्] सजीव वस्तु (सम ३९; आचा)

चित्त :: देखो चइत्त = चेत्र (रंभा; जं २; कप्प)।

चित्त :: न [चित्र] १ छवि, आलेख्य, तसवीर (सुर १, ८६; स्वप्‍न १३१) २ आश्चर्यं, विस्मय (उत्त १३) ३ काष्ठ-विशेष (अनु ५) ४ वि. विलक्षण, विचित्र (गा ६१२; प्रासू ४२) ५ अनेक प्रकार का, विविध, नानाविध (ठा १०) ६ अद्भुत आश्चर्यं- जनक (विपा १, ६; कप्प) ७ कबरा, चितकबरा (णाया १, ८) ८ पुं. एक लोकपाल (ठा ४, १ — पत्र १९७) ९ पर्वंत-विशेष (पणह १, ५ — पत्र ९४) १० चित्रक, चीता, श्‍वापद विशेष (णाया १, १ — पत्र ६५) ११ नक्षत्र-विशेष, चित्रा नक्षत्र; 'हत्थो चित्तो य तहा, दस बुद्धिकराइं नाणस्स' (सम १७) °उत्त पुं [°गुप्त] भरत क्षेत्र के एक भावी जिनदेव (सम १५४)। °कणगा स्त्री [°कनका] देवी-विशेष, एक विद्युत्कुमारी देवी (ठा ४, १)। °कम्म न [°कर्मन्] आलेख्य, छवि, तसवीर (गा ६१२)। °कर देखो °गर (अणु)। [°कह] वि [°कथ] नाना प्रकार की कथाएँ कहनेवाला (उत्त ३)। °कूड पुं [°कूट] १ सीतानदी के उत्तर किनारे पर स्थित एक वक्षस्कार-पर्वंत (जं ४) २ पर्वंत-विशेष (पउम ३३, ९) ३ न. नगर-विशेष, जो आजकल मेवाड़ में 'चित्तौड़' नाम से प्रसिद्ध है (रयण ९) ४ शिखर-विशेष (ठा २, ३) °क्खरा स्त्री [°क्षरा] छन्द-विशेष (अजि २७)। °गर पुं [°कर] चित्रकार, चितेरा (सुर १, १०४; णाया १, ८)। °गुत्ता स्त्री [°गुप्ता] १ देवी-विशेष, सोम- नामक लोकपाल की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १) २ दक्षिण रुचक पर्वंत पर बसनेवाली एक दिक्कुमारी, देवी-विशेष (ठा ८) °पक्ख पुं [°पक्ष] १ वेणु-देव नामक इन्द्र का एक लोकपाल, देव-विशेष (ठा ४, १) २ क्षुद्र जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय कीट-विशेष (जीव १)। °फल, °फलग, °फलय न [°फलक] तसवीरवाला तख्ता (महा; भग १५; पि ५१९)। °भित्ति स्त्री [°भित्ति] १ चित्र- बाली भीत। २ स्त्री की तसवीर (दस ८)। °यर देखो °गर (णाया १, ८)। °रस पुं [°रस] भोजन देनेवाली कल्पवृक्षों की एक जाति (सम १७; पउम १०२, १२२)। °लेहा स्त्री [°लेखा] छन्द-विशेष (अजि १३)। °संभूइय न [°संभूतीय] चित्र और संभूत नामक चाण्डाल-विशेष के वृत्तान्त वाला 'उत्तराध्ययनसूत्र' का एक अध्ययन (उत्त १२)। °सभा स्त्री [°सभा] तसवीरवाला गृह (णाया १, ८)। °साला स्त्री [°शाला] चित्र-गृह (हेका ३३२)

चित्तंग :: पुं [चित्राङ्ग] पुष्प देनेवाले कल्प- वृक्षों की एक जाति (सम १७)।

चित्तग :: देखो चित्त = चित्र (उप पृ ३०)।

चित्तजाणुअ :: देखो चित्त-ण्णु (प्राकृ १८)।

चित्तठिअ :: वि [दे] परितोषित, खुश किया हुआ (दे ३, १२)।

चित्तण :: न [चित्रण] चित्र-कर्मं (धर्मंवि ३४)।

चित्तदाउ :: पुं [दे] मधु-पटल, मधपुड़ा (दे ३, १२)।

चित्तपत्तय :: पुं [चित्रपत्रक] चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति (उत्त ३६, १४९)।

चित्तपरिच्छेय :: वि [दे] लघु, छोटा (भग, ७, ९)।

चित्तय :: देखो चित्त = चित्र (पाअ)।

चित्तयलया :: स्त्री [चित्रकलता] वल्ली-विशेष (हम्मीर २८)।

चित्तल :: वि [दे] १ मण्डित, विभूषित। २ रमणीय, सुन्दर (दे ३, ४)

चित्तल :: वि [चित्रल] १ चितला, कबरा, चितकबरा (पाअ) २ पुं. जंगली पशु-विशेष हरिण के आकारवाला द्विखुरा पशु-विशेष (जीव १, पणह १, १)

चित्तलि :: पुंस्त्री [चित्रलिन] साँप की एक जाति (पणण १)।

चित्तलिअ :: वि [चित्रलित, चित्रित] चित्र- युक्त किया हुआ, 'पढम व्विअ दिअहद्धे कुड्डो रेहाहिं चित्तलिओ' (गा २०८)।

चित्तविअअ :: वि [दे] परितोषित (षड्)।

चित्तवीणा :: स्त्री [चित्रवीणा] वाद्य-विशेष (राय ४६)।

चित्ता :: स्त्री [चित्रा] १ नक्षत्र-विशेष (सम २) २ देवी-विशेष, एक विद्युत्कुमारी देवी (ठा ४, १) ३ शक्रेन्द्र के एक लोकपाल की स्त्री, देवी-विशेष (ठा ४, १ — पत्र २०४) ४ औषधि-विशेष (सुर १०, २२३; पणण १७)

चित्ताचिल्लडय, चित्ताचेल्लरय :: पुं [दे] जंगली पशु-विशेष (आचा २, १, ५, ३; ४)।

चित्तावडी :: स्त्री [चित्रपटी] वस्त्र-विशेष, छींट (बूटीदार) आदि कपड़ा; 'उवविट्ठा... चित्ता- वडिमसूरयम्मि विब्भमवई कमलया य' (स ७३८)।

चित्ति :: पुं [चित्रिन्] चित्रकार, चितेरा (कम्म १, २३)।

चित्तिअ :: वि [चित्रित] चित्र-युक्त किया हुआ (औप; कप्प; उप ३६१ टी; दे १, ७५)।

चित्तिया :: स्त्री [चित्रिका] स्त्री-चीता, श्वापद- विशेष की मादा (पणण ११)।

चित्ती :: देखो चेत्ती (सुज्ज १०, ७)।

चित्ती :: स्त्री [चैत्री] चैत्र मास की पूर्णिमा (इक)।

चिद्दविअ, चिद्दाविअ :: वि [दे] निर्णाशित, विनाशित (दे ३, १३; पाअ; भवि)।

चिन्न :: देखो चिण्ण (सुपा ४; सण; भवि)।

चिप्प :: सक [दे] १ कूटना। २ दबाना। कर्मं. 'वि (? चि)-प्पिज्जसि जं तस्सिं केणवि गोमद्द- वसहेण' (दे २, ९६ टी)। संकृ. चिप्पित्ता (बृह २)

चिप्पग :: पुंन [दे] कूटी हुई छाल; गुजराती में 'चेपो' (कस २, ३० टि)।

चिप्पड :: देखो चिविड (धर्मंवि २७)।

चिप्पय :: देखो चिप्पग (कस २, ३० टि)।

चिप्पिअ :: पुं [दे] नपुंसक-विशेष, जन्म के समय में अंगूठे से मर्दंन कर जिसका अंड़कोश दबा दिया गया हो वह (पव १०९ टी)।

चिप्पिडय :: पुं [दे] अन्न-विशेष (दसा ६)।

चिबुअ :: न [चिबुक] होठ के नीचे का अव- यव, ठोढ़ी (कुमा)।

चिब्भड़ :: न [चिर्भिट] खीरा, ककड़ी, फल- विशेष, गुजराती में 'चीभड़ु' (दे ६, १४८)।

चिब्भडिया :: स्त्री [चिर्भिटिका] १ वल्ली- विशेष, ककड़ी का गाछ। २ मत्स्य की एक जाति (जीव १)

चिब्भिड :: देखो चिब्भड (सुपा ६३०; पाअ)।

चिमिट्ठ, चिमिढ :: वि [चिपिट] चिपठा, बैठा हुआ, दबा हुआ (नौक) (णाया १, ८; पि २०७; २४८)।

चिमिण :: वि [दे] रोमश, रोमाञ्चित, पुलकित, गद्गद (दे ३, ११; षड्)।

चिय :: देखो चेइअ = चैत्य; 'सो अन्नया कयाइ चियपरिवाडिं कुणंतओ नयरे' (सम्मत्त १५६)।

चियका, चियगा :: स्त्री [चिता] मुर्दे को फूँकने के लिए चुनी हुई लकड़ियों का ढ़ेर (पणह १, ३ — पत्र ४५; सुपा ६५७; स ४१६)।

चियत्त :: देखो चत्त (भग २, ५; १०, २; कप्प, निचू १)।

चियत्त :: वि [दे] १ अभिमत, सम्मत (ठा ३, ३) २ प्रीतिकर, राग-जनक (औप) ३ प्रीति, रुचि। ४ अप्रीति का अभाव (ठा ३, ३ — पत्र १४७)

चियया :: देखो चियगा (पउम ६२, २३)।

चियाग, चियाय :: देखो चाय = त्याग (ठा ५, १; सम १६)।

चिर :: न [चिर] १ दीर्घ काल, बहुत काल (स्वप्‍न ८३; गा १४७) २ विलम्ब, देरी (गा ३४) ३ वि. दीर्घं काल तक रहनेवाला; 'हियइच्छियपियलंभाचिरा सया कस्स जायंति' (वज्जा ५२)। °आरअ वि [°कारक] बिलम्ब करनेवाला (गा ३४)। °जीवि वि [°जीविन्] दीर्धं काल तक जीनेवाला (पि ५९७)। °जीविअ वि [°जीवित] दीर्घं काल तक जीया हुआ, वृद्ध (वाअ २, ३४)। °ट्ठिइ, °ट्ठिइय, °ठ्ठिईय वि [°स्थितिक] लम्बा आयुष्यवाला, दीर्घं काल तक रहनेवाला (भग; सूअ १, ५, १); 'एयाइँ फासाइँ फुसंति बालं, निरंतकं तत्थ चिरट्ठिईयं' (सूअ १, ५, २)। °राअ पुं [°रात्र] बहु काल, दीर्घ काल (आचा)

चिर :: अक [चरय्] १ विलम्ब करना। २ आलस करना। चिरअदि (शौ) (पि ४९०)

चिरं :: अ [चरिम्] दीर्घं काल तक, अनेक समय तक (स्वप्‍न २६; जी ४९)। °तण वि [°तन] पुराना, बहुत काल का (महा)।

चिरच्चिय :: वि [चिरचित] चिरकाल से उप- चित — इकट्ठा किया हुआ या बढ़ा हुआ (पंच ५, १६७)।

चिरड़ी :: स्त्री [दे] वर्णं-माला, अक्षरावली; 'चिरडिंपि अयाणांता लोआ लोएहिं गोरवब्भ- हिआ' (दे १, ९१)।

चिरड्डिहिल्ल :: [दे] देखो चिरिड्डिहिल्ल (पाअ)।

चिरमाल :: सक [प्रति + पालय्] परिपालन करना। चिरमालइ (प्राकृ ७५)।

चिरया :: स्त्री [दे] कुटी-झोपड़ी (दे ३, ११)।

चिरस्स :: अ [चिरस्य] बहुत काल तक (उत्तर १७६; कूमा)।

चिराअ :: देखो चिर = चिरय्। चिरायइ (स १२९)। चिराअसि (मै ६२)। भवि. चिराइस्सं (गा २०)। वकृ. चिराअमाण (नाट — मालती २७)।

चिराइय :: वि [चिरादिक] पुराना, प्राचीन (णाया १, १; औप)।

चिराईय :: वि [चिरातीत] पुराना, प्राचीन (विपा १, १)।

चिराउ :: अ [चिरात्] चिर काल से, लम्बे समय से (कुप्र ३६७)।

चिरणय :: (अप) वि [चिरन्तन] पुरातन, पुराना, प्राचीन (भवि)।

चिरादण :: वि [चिरन्तन] ऊपर देखो (बृह ३)।

चिराव :: अक [चरय्] १ विलम्ब करना। २ आलस करना। ३ सक. विलम्ब कराना, रोक रखना चिरावइ (भवि)। चिरावेह (काल); 'मा णे चिरावेहि' (पउम ३, १२९)

चिराविय :: वि [चिरायित] १ जिसने विलम्ब किया हो वह। २ बिलम्बित, रोका गया। ३ न विलम्ब, देरी; 'भणिओ चंदाभाए किं अज्ज चिरावियं सामि !' (पउम १०५, १०१)

चिरिंचिरा :: स्त्री [दे] जलधारा, वृष्टि (दे ३, १३)।

चिरिक्का :: स्त्री [दे] १ पानी भरने का चर्मं- भाजन, मशक। २ अल्प वृष्टि। ३ प्रातः काल, सुबह (दे ३, २१)

चिरिचिरा :: [दे] देखो चिरिंचिरा (दे ३, १३)।

चिरिडी :: देखो चिरडी (गा १९१ अ)।

चिरिड्डिहिल्ल :: न [दे] दधि, दही (दे ३, १४)।

चिरिहिट्टी :: स्त्री [दे] गुज्जा; 'घुंगची, लाल रत्ती (दे ३, १२)।

चिलाअ :: पुं [किरात] १ अनार्यं देश-विशेष। २ किरति देश में रहनेवाली म्लेच्छ-जाति, भिल्ल, पुलिंद (हे १, १८३; २५४; पणह १, १; औप; कुमा) ३ धन सार्थवाह (व्यापारी) का एक दास — नौकर (णाया १, १८)

चिलाइया :: स्त्री [किरातिका] किरात देश की रहनेवाली स्त्री, किरातिन (णाया १, १)।

चिलाई :: स्त्री [किराती] ऊपर देखो (इक)। °पुत्त पुं [°पुत्र] एक दासी-पुत्र और जैन- महर्षि (पडि; णाया १, १८)|

चिलाद :: देखो चिलाअ (प्राकृ १२)।

चिलिचिलिआ :: स्त्री [दे] धारा, वृष्टि (षड्)।

चिलिचिलिय :: वि [दे] भीजा या भींगा हुआ, आर्द्रित, गीला (तंदु ३८)।

चिलिचिल्ल, चिलिच्चिल, चिलिच्चील :: वि [दे] आर्द्र, गीला (पणह १, ३ — पत्र ४५; दे ३, १२)।

चिलिण :: [दे] देखो चिलीण; 'छक्कायसंजमम्मि अ चिलिणे सेहन्‍नहाभावो' (ओघ १९५)।

चिलिमिणी, चिलिमिलिगा, चिलिमिलिया, चिलिमिली :: स्त्री [दे] यवनिका, परदा, आच्छादन-पट (ओध भा; सूअ २, २, ४८; कस; ओघ ७८; ८०)।

चिलीण :: न [दे] अशुचि, मैला, मल-मूत्र; 'सज्जंति चिलीणे मच्छियाओ घणचंदणं मोत्तुं' (उफ १०३१ टी)।

चिल्ल :: पुं [दे] १ बाल, बच्चा, लड़का (दे ३, १०) २ चेला, शिष्य (आवम)

चिल्ल :: पुं [चिल्ल] वृक्ष-विशेष (राज) २ न. पुष्प-विशेष। 'पूयं कुणंति देवा, कंचणकुसुमेसु जिणवरिंदाणं। इह पुण चिल्लदलेसुं, नरेण पूया विरइयव्वा।।' (पउम ६६, १९)

चिल्ल :: न [दे] सूर्प, सूप, छाज (प्राकृ २८)।

चिल्लअ :: न [दे] देदोप्यमान, चमकता; 'मंड- णोड्डणप्पगारएहिं केहिं केहिँवि अवंगतिलय- पत्तलेहनामएहिं चिल्लएहिं' (अजि २८; औप)।

चिल्लग :: [दे] देखो चिल्लिय (पणह १, ४ — पत्र ७१ टी)।

चिल्लड :: [दे] देखो चिल्लल (दे) (आचा २, ३, ३)।

चिल्लणा :: स्त्री [चिल्लणा] एक सती स्त्री, राजा श्रेणिक की पत्‍नी (पडि)।

चिल्लय :: न [दे] अपचक्षु, खराब आँख (पणह १, १ टी — पत्र २५)।

चिल्लल :: पुं [चिल्वल] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उस देश का निवासी (इक)

चिल्ल :: पुंस्त्री [दे] १ श्वापद पशु-विशेष, चीता (पणह १, १ — पत्र ७; णाया १, १ — - पत्र ६५)। स्त्री. °लिया (पणण ११)। न. काँदोवाला जलाशय, छोटा तलाव आदि (णाया १, १ — पत्र ६३) ३ देदीप्यमान, चमकता (णाया १, १६ — पत्र २११)

चिल्ला :: स्त्री [दे] चील, पक्षि-विशेष, शकुनिका (दे ३, ९; ८, ८; पाअ)।

चिल्लिय :: वि [दे] १ लीन, आसक्त (णाया १, १) २ देदोप्यमान (णाया १, १; औप; (कप्प)

चिल्लिरि :: पुं [दे] मशक, मच्छर, क्षुद्र जन्तु- विशेष (दे ३, ११)।

चिल्लूर :: न [दे] मूसल, एक प्रकार की मोटी लकड़ी जिससे चावल आदि अन्न कूटे जाते हैं (दे ३, ११)।

चिल्हय :: पुं [दे] चक्र-मार्गं, पहिये की लकीर, गुजराती में 'चीलो' (सुपा २८०)।

चिविट्ठ, चिविड :: वि [चिपिट] चिपटा, बैठा या वँसा हुआ (नाक); 'चिविडनासा' (पि २४८; पउम २७, ३२; गउड)।

चिविडा :: स्त्री [चिपिटा] गन्ध-द्रव्य-विशेष (दे ३, ७१)।

चिविढ :: देखो चिविड (सुर १३, १८१)।

चिहुर :: पुं [चिकुर] केश, बाल (पाअ; सुपा २८१)।

ची, चीअ :: देखो चेइअ (हे १, १५१; सार्धं ५७; ६३)।

चीअ :: न [चिता] मुर्दे को फूँकने के लिए चुनी हुई लकड़ियों का ढेर; 'चीए बँधुस्स व अट्ठिआइं रुअई समुच्चिणइ' (गा १०४)।

चीइ :: देखो चेइअ (सुर ३, ७५)।

चीड :: वि [दे] काला काँच की मणिवाला (सिरि ९८०)।

चीण :: वि [चीन] १ छोटा, लघु; 'चीणचिमि- ढवंकभग्गणासं' (णाया १, ८ — पत्र १३३) २ पुं. म्लेच्छ देश-विशेष, चीन देश (पणह १, १; स ४४३) ३ चीन देश का निवासी, चीनी या चीना (पणह १, १) ४ धान्य-विशेष, व्रीहि का भेद (सण); 'चीणाकूर' छलिया- तक्केण दिन्‍नं' (महा)। °पट्ट पुं [°पट्ट] चीन देश में होनेवाला वस्त्र-विशेष (पणह १, ४)। °पिट्ठ न [°पिष्ट] सिन्दूर-विशेष (राय; पणण १७)

चीणंसु, चीणंसूय :: पुं [चीनांशु, °क] १ कीट-विशेष, जिसके तन्तुओं से वस्त्र बनता है (बृह १) २ चीन देश का वस्त्र-विशेष; चीणंसुसमूसियधयविराइयं' (सुपा ३४; अणु; जं २)

चीया :: /?/स्त्री. देखो चीअ = चिता; 'चीयाए पक्खिउं तत्तो उद्दीविओ जलणे' (सुर ९, ८८)।

चीर :: न [चीर] वस्त्र-खण्ड, कपड़े का टुकड़ा (ओघ ६३ भा; श्रा १२; सुपा ३६१)। °कंडूस- गपट्ट पुं [°कण्डूसकपट्ट] जैन साधुओं का एक उपकरण, रजोहरण का बन्धन-विशेष (निचू ५)।

चीरग :: पुं [चीरक] नीचे देखो (गच्छ २)।

चीरिय :: पुं [चीरिक] १ रास्ता में पड़े हुए चीथड़ों को पहननेवाला भिक्षुक। २ फटा-टूटा कपड़ा पहननेवाली एक साधु-जाति (णाया १, १५ — पत्र १९३)

चीरिया :: स्त्री [चीरिका] नीचे देखो (सुर ८, १८८)।

चीरी :: स्त्री [चीरी] १ वस्त्र-खण्ड, वस्त्र का टुकड़ा; 'तो तेण निययवत्थंचलाउ चीरीउ करेऊण' (सुपा ५८४) २ क्षुद्र कीट-विशेष, झींगुर (कुमा; दे १, २६)

चीवट्टी :: स्त्री [दे] भल्ली, भाला, शस्त्र-विशेष (दे ३, १४)।

चीवर :: न [चीवर] वस्त्र, संन्यासियों या भिक्षुओं के पहनने का कपड़ा (सुर ८, १८८; ठा ५, २)।

चीहाडी :: स्त्री [दे] चीत्कार, तिल्लाहट, पुकार, हाथी की गर्जना या चिघाड़ना (सुर १०, १८२)।

चीही :: स्त्री [दे] मुस्ता का तृण-विशेष (दे ३, १४; ६२)।

चु :: अक [च्यु] १ मरना, जन्मान्तर में जाना। २ गिरना। भवि. चइस्सामि (कप्प)। संकृ. चइऊण, चइत्ता, चइअ (उत्त ९; ठा ८; भग)। कृ. चइयव्व (ठा ३, ३)

चुअ :: अक [श्‍चुत्] झरना, टपकना। चुअइ (हे २, ७७)।

चुअ :: सक [त्यज्] त्याग करना, परिहार करना; 'एयमट्ठं मिगे चुए' (सूअ १, १, २, १२)।

चुअ :: वि [च्युत] १ च्युत, मृत, एक जन्म से दूसरे जन्म में अवतीर्णं (भग; महा; ठा ३, १) २ विनष्ट; 'चुअकलिकलुसं' (अजि १८) ३ भ्रष्ट, पतित (णाया १, ३)

चुइ :: स्त्री [च्युति] च्यवन, भरण (राज)।

चुंकारपुर :: न [चुङ्कारपुर] एक नगर (सम्मत्त १४५)।

चुचुअ :: पुं [दे] शेखर, अवतंस, मस्तक का भूषण (दे ३, २६)।

चुंचुअ :: पुं [चुञ्चुक] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २ उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति (इक)

चुंचुण :: पुं [चुञ्चुन] इभ्य (धनी) जाति- विशेष, एक वैश्य-जाति (ठा ६ — पत्र ३५८)।

चुंचुणिअ :: वि [दे] १ चलित, गत। २ च्युत, नष्ट (दे ३, २३)

चुंचुणिआ :: स्त्री [दे] गोष्ठी की प्रतिध्वनि। २ रमण, रति, संभोग। ३ इमली का पेड़। ४ द्युत-विशेष, मुष्टि-द्युत। ५ यूका, खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष (दे ३, २३)

चुंचुमालि :: वि [दे] १ अलस, आलसी, दीर्घं- सूत्री (दे ३, १८)

चुंचुलि :: पुं [दे] १ चुंञ्चु चोंच। २ चुलुक, पसर, एक हाथ का संपुटाकार (दे ३, २३)

चुंचुलिअ :: वि [दे] १ अवधारित, निश्चित। २ न. तृष्णा, लालच, सम्पृहता (हे ३, २३)

चुंचुलिपूर :: पुं [दे] चुलुक चुल्लु, पसर (दे ३, १८)।

चुँछ :: बि [दे] परिशोषित, सूखाया हुआ (दे ३, १५)।

चुंछिअ :: वि [दे] सूखा हुआ, परिशोषित; 'चुंछियगल्लं एयं, मा भत्तारं हला कुणसु' (सुपा ३४९)।

चुंट :: सक [चि] फूल वगैरह को तोड़ कर इकट्ठा करना। वकृ. चुंटंत (सुपा ३३२)।

चुंटिर :: वि [दे] चुननेवाला (दे ६, ११६ टी)।

चुंढी :: स्त्री [दे] थोड़ा पानीवाला अखात जला- शय (णाया १, १ — पत्र ३३)।

चुंपालय :: [दे] देखो चुप्पालय; 'ताव य सेज्जासु ठिओ, चंदगइखेयरो निसासमए। चुंपालएण पेच्छइ, निवडंते रयणपज्जलियं' (पउम २६, ८०)।

चुंब :: सक [चुम्ब्] चुम्बन करना। चुंबइ (हे ४, २३९)। वकृ. चुंबंत (गा १७६; ५१९)। कवकृ. चुबिज्जंत (से १, ३२)। संकृ. चुंबिवि (अप) (हे ४, ४३९)। कृ. चुंबिअव्व (गा ४६५)।

चुंबण :: न [चुम्बन] चुम्बन, चुम्बा चूमा (गा २१३; कप्पू)।

चुंबिअ :: वि [चुम्बित] १ चुम्बा लिया हुआ., कृत-चुम्बन। २ न. चुम्बन, चुम्बा (दे ६, ९८)

चुंबिर :: वि [चुम्बितृ] चुम्बन करनेवाला (भवि)।

चुंभल :: पुं [दे] शेखर, अवतंस, शिरो-भूषण (दे ३, १६)।

चुक्क :: अक [भ्रंश्] १ चूकना, भूल करना। २ भ्रष्ट करना, रहित होना, वञ्चित होना। ३ सक. नष्ट करना, खण्डन करना। चुक्कइ (हे ४, १७७; षड्); 'सो सव्वविरइवाई, चुक्कइ देसं च सव्वं च' (बिसे २६८४)

चुक्क :: वि [भ्रष्ट] १ चूका हुआ, भूला हुआ, विस्मृत; 'चुक्कसंकेआ, 'चुक्कविणअम्मि (गा ३१८; १९५)। भ्रष्ट, वञ्चित, रहित; 'दंसणमेत्तपसणणे चुक्का सि सुहाण बहुआणं' (गा ४६५; चउ ३९; सुरा ८७)। ३ अन- वहित, बे-ख्याल (से १, ९)

चुक्क :: पुं [दे] मुष्टि, मुट्ठी (दे ३, १४)।

चुक्कार :: पुं [दे] आवाज, शब्द (से १३, २५)।

चुक्कुड :: पुं [दे] छाग, बकरा, अज (दे ३, १६)।

चुक्ख :: [दे] देखो चोक्ख (सूक्त ४९)।

चुचुय, चुच्चुय :: न [चूचुक] स्तन का अग्र भाग, थन का वृन्त, चूची (पणह १, ४; राय)।

चुचूय :: पुंन [चुचूक] स्तन का अग्र भाग, स्तनों की गोलाई, चूची (राय ९४)।

चुच्छ :: वि [तुच्छ] १ अल्प, थोड़ा, हलका। २ हीन, जघन्य, नगराय (हे १, २०४; षड्)

चुज्ज :: न [दे] आश्‍चर्यं (दे ३, १४; सठ्ठि ८३)।

चुडण :: न [दे] जीर्णंता, सड़ जाना (ओघ ३४९)।

चुडलिअ :: न [दे] गुरु-वन्दन का एक दोष, रजोहरण की अलात की तरह खड़ा रखकर वन्दन करना (गभा २५)।

चुडली :: [दे] देखो चुडुली (पव २)।

चूडिली :: देखो चुडुली (तंदु ४६)।

चुडुप्प :: न [दे] १ खाल उतारना (दे ३, ३) २ घाव, क्षत (गउड) ३ चमड़ी, त्वचा (पाअ)

चुडुप्पा :: स्त्री [दे] त्वचा, चमड़ी, खाल (दे ३, ३)।

चुडुली :: स्त्री [दे] उल्का, अलात, जलती हुई लकड़ी, उल्मुक (दे ३, १५; पाअ; सुर १३, १५९; स २४२)।

चुण :: सक [चि] चुनन, चुगना, पक्षियों का खाना। चुणइ (हे ४, २३८); 'काओ लिंबो- हलि चुणइ' (सूक्त ८९)।

चुणअ :: पुं [दे] १ चाण्डाल। २ बाल, बच्चा। ३ छन्द, इच्छा। ४ अरुचि, भोजन की अप्रीति। ५ व्यतिकर, सम्बन्ध। ६ वि. अल्प, थोड़ा। ७ मुक्त, त्यक्त। ८ आघ्रात, सूँघा हुआ (दे ३, २२)

चुणिअ :: वि [दे] विघारित, घारण किया हुआ (दे ३, १५)।

चुण्ण :: सक [चूर्णय्] चूरना, टुकड़ा-टुकड़ा करना। संकृ. चुण्णिय (राज)।

चुण्ण :: पुंन [चूर्ण] १ चूर्णं, चूर, बुकनी, बारीक खण्ड (बृह १; हे १, ८४; आचा) २ आटा, पिसान (आचा २, २, १) ३ घूली, रज, रेणु (दे ३, १७) ४ गन्ध द्रव्य का रज, बुकनी (भग ३, ७) ५ चूना (हे १, ८४; विपा १, २) ६ वशीकरणादि के लिए किया जाता द्रव्य-मिलान (णाया १, १४)। °कोसय न [°कोशक] भक्ष्य-विशेष (पणह २, ५)

चुण्ण :: न [चौर्ण] पद-विशेष, गम्भीरार्थक पद, महार्थक शब्द (दसनि २)।

चुण्णइअ :: वि [दे] चूर्णाहित, चूरन से आहत; जिस प्रकार चूर्णं फेंका गया हो वह (दे ३, १७; पाअ)।

चुण्णग :: पुं [चूर्णक] वृक्ष-विशेष (आचा २, १०, २३)।

चुण्णा :: स्त्री [चूर्णा] छन्द-विशेष, वृत्त-विशेष (पिंग)।

चुण्णाआ :: स्त्री [दे] कला, विज्ञान (दे ३, १६)।

चुण्णासी :: स्त्री [दे] दासी, नौकरानी (दे ३, १६)।

चुण्णि :: स्त्री [चूर्णि] ग्रन्थ की टीका-विशेष (निचू)।

चुण्णिअ :: वि [चूर्णित] १ चूर-चूर किया हुआ (पाअ) २ धूली से व्याप्त (दे ३, १७)

चुण्णिआ :: स्त्री [चूर्णिका] भेद-विशेष, एक तरह का पृथग्भाव, जैसे पिसान का अवयब अलग-अलग होता है (पणण ११)।

चुण्णिय :: वि [चूर्णिक] गणित-प्रसिद्ध सर्वा- वशिष्ट अंश (सुज्ज १०, २२ — पत्र १८५; १२ — पत्र २१९)।

चुद्दस :: देखो चउ-द्दस (सुर ८, ११८)।

चुन्न :: देखो चुण्ण (कुमा; ठा ३, ४; प्रासू १८; भाव २, पभा ३१)।

चुन्नण :: न [चूर्णन] चूर-चूर करना (रवा ३)।

चुन्नि :: देखो चुण्णि (विचार ३५२; चंड)।

चुन्निअ :: देखो चुण्णिअ (पणह २, ४)।

चुन्निआ :: देखो चुण्णिआ (भास ७)।

चुप्प :: वि [दे] सस्‍नेह, स्‍निग्ध (दे ३, १५)।

चुप्पल :: पुं [दे] शेखर, अवतंस (दे ३, १६)।

चुप्पलिअ :: न [दे] नया रँगा हुआ कपड़ा (दे ३, १७)।

चुप्पालय :: पुं [दे] झरोखा, गवाक्ष, वातायन, जंगला (दे ३, १७)।

चुरिम :: न [दे] खाद्य-विशेष (पव ४)।

चुलचुल :: अक [चुलचुलाय्] उत्कण्ठित होना, उत्सुक होना। वकृ. चुलचुलतं (गा ४८१)।

चुलणी :: स्त्री [चुलनी] १ द्रुपद राजा की स्त्री (णाया १, १६; उप ६४८ टी) २ ब्रह्मादत्त चक्रवरत्ती की माता (महा)। °पिय पुं [°पितृ] भगवान् महावीर का एक मुख्य उपासक (उवा)

चुलसी :: स्त्री [चतुरशीति] चौरासी; अस्सी और चार, ८४ (महा; जी ४७); 'चुलसीए नागकुमारावासययसहस्सेसु' (भग)।

चुलसीइ :: देखो चुलसी (पउम २०, १०२, जं २)।

चूलिआला :: स्त्री [चुलियाला] छन्द-विशेष (पिंग)।

चुलुअ :: पुंन [चुलुक] चुल्लु, पसर, एक हाथ का संपुटाकार (दे ३, १८; सुपा २१९; प्रासू ५७)।

चुलुक्क :: देखो चालुक्क (दे १, ८४ टी)।

चुलुचुल :: अक [स्पन्द्] फड़कना, फरकना, थोड़ा हिलना। चुलुकुलइ (हे ४, १२७)।

चुलुचुलिअ :: वि [स्पन्दित] १ फरका हुआ, कुछ हिला हुआ। २ न. स्फुरण, स्पन्दन (पाअ)

चुलुप्प :: पुं [दे] छाग, अज, बकरा (दे ३, १६)।

चुल्ल :: पुं [दे] १ शिशु, बालक। २ दास, नौकर (दे ३, २२) ३ वि. छोटा, लघु (ठा २, ३) °ताय पुं [°तात] पिता का छोटा भाई, चाचा (पि ३२५)। °पिउ पुं [°पितृ] चाचा, पिता का छोटा भाई (विपा १, ३)। °माउया स्त्री [°मातृ] १ छोटी माँ, माता की छोटी सपत्‍नी, विमाता, सौतेली माँ (उप २६७४ टी; णाया १, १; विपा १, ३) २ चाची, पिता के छोटा भाई की स्त्री विपा १, ३ — पत्र ४०) °सगय, °सयय पुं. [°शतक] भगवान् महावीर के दश मुख्य उपासकों में से एक (उवा)। °हिमवंत पुं [हिमवत्] छोटा हिमवान् पर्वंत, पर्वत- विशेष (ठा २, ३; सम १२; इक)। °हिम- वंतकूड न [°हिमवत्कूट] १ क्षुद्र हिमवान्- पर्वत का शिखर-विशेष। २ पुं. उसका अधिपति देव-विशेष (जं ४)। °हिमवंत- गिरिकुमार पुं [°हिमवद्‍गिरिकुमार] देव-विशेष, जो क्षुद्र हिमवत्कूट का अधिष्ठायक है (जं ४)

चुल्लग :: न [दे] संदूक (कुप्र २२७; २२८)।

चुल्लग :: [दे] देखो चोल्लक (आक)।

चुल्लि, चुल्ली :: स्त्री [चुल्लि, °ल्ली] चूल्हा, जिसमें आग रखकर रसोई की जाती है वह (दे १, ८७; सुर २, १०३)।

चुल्ली :: स्त्री [दे] शिला, पाषाण-खण्ड (दे ३, १५)।

चुल्लुच्छल :: अक [दे] छलकना, उछलना; 'चुल्लुच्छलेइ जं होइ ऊणयं, रित्तयं कणकणेइ। भरियाइं ण खुब्भंती सुपुरिसविन्‍नाणभंडाइं। (सूअनि ९६ टी)।

चुल्लोडय :: पुं [दे] बड़ा भाई (दे ३, १७)।

चूअ :: पुं [दे] स्तन-शिखा, थन का अग्र भाग, चूची (दे ३, १८)।

चूअ :: पुं [चूत] १ वृक्ष-विशेष, आम्र, आम का गाछ (गउड; भग; सुर ३, ४८) २ देव-विशेष (जीव ३)। °वडिसग न [°वतं- सक] सौधर्मं विमान-विशेष (राय)।°वडिंसा स्त्री [°वतंसा] शक्रेन्द्र की एक अग्र-महीषी, इन्द्राणी-विशेष (इक; जीव ३)

चूआ :: स्त्री [चूता] शक्रेन्द्र की एक अग्र- महिषी, इन्द्राणी-विशेष (इक; ठा ४, २)।

चूचुअ :: पुंन [चूचुक] स्तन का अग्र-भाग (प्राकृ ११)।

चूड :: पुं [दे] चूड़ा, बाहु-भूषण, वलयावली (दे ३, १८; ७, ५२; ५६; पाअ)।

चूडा :: देखो चूला (सुर २, २४२; गउड; णाया १, १; सुपा १०४)।

चूडुल्लअ :: (अप) देखो चूड (हे ४, ३९५)।

चूर :: सक [चूरय्, चूर्णय्] खण्ड करना, तोड़ना, टुकड़ा-टुकड़ा करना। चूरेमि (धम्म ९ टी)। भवि. चूरइस्सं (पि ५२८)। वकृ. चूरंत (सुपा २९१; ५६०)।

चूर :: (अप) पुंन [चूर्ण] चूर, भूरभुर; 'जिह गिरसिंगहु पडिअ सिल, अन्‍नवि चूरु करेइ' (हे ४, ३३७)।

चूरण :: देखो चुन्नण (कुप्र २७३)।

चूरिअ :: वि [चूर्ण, चूर्णित] चूर-चूर किया हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा किया हुआ (भवि)।

चूरिम :: पुंन [दे] मिठाई, विशेष, चूर्मा लड्‍डू (पव ४ टी)।

चूल° :: देखो चूला। °मणि न [°मणि] विद्याधरों का एक नगर (इक)।

चूलअ :: [दे] देखो चूड (नाट)।

चूला :: स्त्री [चूडा] १ चोटी, सिर के बीच की केश-शिखा (पाअ) २ शिखर, टोंच; 'अवि चलइ मेरुचूला' (उप ७२८ टी) ३ मयूर- शिखा। ४ कुक्कुट-शिखा। ५ शेर की केसरा। ६ कुंत वगैरह का अग्र भाग। ७ विभूषण, अलंकार; 'तिविहा य दव्वचूला, सच्चित्ता मोसगा य अच्चित्ता। कुक्कुड सीह मोरसिहा, चूलामणि अग्गकुंतादी। चूला विभूसणंति य, सिहारंति य होंति एगट्ठा' (निचू १) ८ अधिक मास। ९ अधिक वर्षं। १० ग्रन्थ का परिशिष्ट (दसचू १) °कम्म न [°कर्मन्] संस्कार-विशेष, मुण्डन (आवम)। °मणि पुंस्त्री [°मणि] १ सिर का सर्वोत्तम आभूषण विशेष, मुकुट-रत्‍न, शिरो-मणि (औप; राय) २ सर्वोत्तम, सर्वं-श्रेष्ठ; 'तिलायचूला- मणि नमो ते' (धण १)

चूलिय :: पुं [चूलक] १ अनार्यं देश-विशेष। २ उस देश का निवासी (पणह १, १) ३ स्त्रीन. संख्या, विशेष, चूलिकांग को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक; ठा २, ४)। स्त्री. °या (राज)

चूलियंग :: न [चूलिकाङ्ग] संख्या-विशेष, प्रयुत को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४; जीव ३)।

चूलियआ :: देखो चूला (सम ६६; सुर ३, १२; णंदि; निचू १; ठा ४, ४)।

चूव :: (अप) देखो चूअ (भवि)।

चूह :: सक [क्षिप्] फेंकना, डालना, प्रेरणा। चूहइ (षड्)।

चे :: अ [चेत्] यदि, जो, अगर (उत्त १६); 'एवं च कओ तित्थं, न चेदचेलोति को गाहो ?' (विसे २५८९)।

चे :: देखो चय = त्यज्। चेइ, (आचा)। संकृ. चेच्चा (कप्प; औप)।

चे, चेअ :: देखो चि। चेइ, चेअइ, चेए, चेअए (षड्)।

चेअ :: अक [चित्] १ चेतना, सावधान होना, ख्याल रखना। २ सुध आना, स्मरण करना, याद आना। चेयइ (स ५३८) ३ सक. जानना। ४ अनुभव करना। चेयए (आवम)

चेअ :: सक [चेतय्] १ ऊपर देखो। २ देना, अर्पण करना, वितरण करना। ३ करना, बनाना; 'जो अंतरायं चेएइ' (सम ५१)। चेराइ, चेएसि, चेएमि (आचा)। वकृ. चेते[ए] माण (ठा ५, २ — पत्र ३१४; सम ३९)

चेअ :: अ [एव] अवधारण सूचक अव्यय, निश्चय बतानेवाला अव्यय (हे २, १८४)। चेअ न [चेतस्] १ चेत, चेतना, ज्ञान, चैतन्य (विसे १९६१; भग १६) २ मन, चित्त, अन्तःकरण (दस ५, १; ठा ९, २)

चेइ :: पुं [चेदि] देश-विशेष (इक सत्त ६७ टी)। °वइ पुं [°पति] चेदि देश का राजा (पिंग)।

चेइ°, चेइअ :: पुंन [चैत्य] १ चिता पर बनाया हुआ स्मारक, स्तूप, कबर या कब्र वगै- रह स्मृति चिह्न; 'मडयदाहेसु वा मडयथूभियासु वा मडयचेइएसु वा' (आचा २, २, ३) २ व्यन्तर का स्थान, व्यन्तरायतन (भग; उवा; राय; निर १, १; विपा १, १; २) ३ जिन-मन्दिर, जिन-गृह, अर्हन्मन्दिर (ठा ४, २ — पत्र ४३०; पंचभा; पंचा १२; महा; द्र ४; २७); 'पडिमं कासी य चेइए रम्मे' (पव ७९) ४ इष्ट देव की मूर्त्ति, अभीष्ट, देवता की प्रतिमा; ‘कल्लाणं मंगलं चेइयं पज्जुवासामो’ (औप; भग)। ५ अर्हं- त्प्रतिमा, जिन-देव की मूर्त्ति (ठा ३, १; उवा; पणह २, ३; आव २; पडि); ‘बिइएणं उप्पाएणं नंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेइ, तर्हि चेइयाइं वंदइ’ (भग २०, ९); ‘जिण- बिंबे मंगलचेइयंति सययन्‍नुणो बिंति’ (पव ७९) ६ उद्यान, बगीचा; ‘मिहिलाए चेइए वच्छे सीअच्छाए मणोरमे’ (उत्त ९, ६) ७ सभा-वृक्ष, सभा-गृह के पास का वृक्ष। ८ चबूतरावाला वृक्ष। ९ देवों का चिह्न-भूत वृक्ष। १० वह वृक्ष जहाँ जिनदेव को केवल ज्ञान उत्पन्न होता है (ठा ८; सम १३; १५६) ११ वृक्ष, पेड़; ‘वाएण हीरमाणाम्मि चेइयम्मि मणोरमे' (उत्त ९, १०) १२ यज्ञ स्थान। १३ मनुष्यों का विश्राम-स्थान (षड्; हे २, १०७) °खंभ पुं [°स्तम्भ] स्तूप, थूभ, (सम ६३; राय; सुज्ज १८)। °घर न [°गृह] जिन-मन्दिर; ‘अर्हंन्मन्दिर (पउम २, १२; ६४, २९)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] जिन-प्रतिमा-सम्बन्धी महोत्सव-विशेष (धर्म ३)। °थूभ पुं [°स्तूप] जिन-मन्दिर के समीप का स्तूप (ठा ४, २; ज १)। °दव्व न [°द्रव्य] देव-द्रव्य, जिन-मन्दिर-संबंन्धी स्थावर या जंगम मिल्कत (वव ९; पञ्चभा; उप ४०७; द्र ४)। °परिवाडी स्त्री [°परि- पाटी] क्रम से जिन मन्दिरों की यात्रा (धर्मं २)। °मह पुं [°मह] चैत्य-सम्बन्धी उत्सव (आचा २, १, २)। °रुक्ख पुं [°वृक्ष] १ चबूतरावाल वृक्ष, जिसके नीचे चौतरा बाँधा हो ऐसा वृक्ष। २ जिन-देव को जिसके नीचे केवल ज्ञान उत्पन्‍न होता है वह वृक्ष। ३ देवताओं का चिह्न भूत वृक्ष। ४ देवे-सभा के पास का वृक्ष (सम १३, १५६; ठा ८)। °वन्दण न [°वन्दन] जिन-प्रतिमा की मन, वचन और काया से स्तुति (पव १; संघ १; ३)। °वंदणा स्त्री [°वन्दना] वही पूर्वोक्त अर्थं (संघ १)। °वास पुं [°वास] जिन-मन्दिर में यतियों का निवास (दंस)। °हर देखो °घर (जीव १; पउम ९५, ६२; १३; द्र ६५; उवर १६०)

चेइअ :: वि [चेतित] कृत, विहित; ‘तत्थ २ अगारीहिं अगाराइं चेइआइं भवंति’ (आचा २, १, २, २), ‘चेइअं कइमेगट्ठं’ (बृह २; कस)।

चेंघ :: देखो चिंध (प्राप्र)।

चेच्चा :: देखो चे = त्यज्।

चेट्ठ :: अक [चेष्ट्] प्रयत्‍न करना, आचरण करना। वकृ. चेट्ठमाण (काल)।

चेट्ठ :: देखो टिट्ठ = स्था (दे १, १७४)।

चेट्ठण :: न [स्थान] स्थिति, अवस्थान (वव ४)।

चेट्ठण :: देखो चिट्ठण = चेष्टन (उपपं ११)।

चेट्ठा :: स्त्री [चेष्टा] प्रयत्‍न, आचरण (ठा ३, १; सुर २, १०६)।

चेट्ठिय :: देखो चिट्ठिय = चेष्टित (औप; महा)।

चेड :: पुं [दे] बाल, कुमार, शिशु (दे ३, १०; णाया १, २; बृह १)।

चेड, चेडग, चेडय :: पुं [चेट, °क] १ दास, नौकर, (औप; कप्प) २ नृप-विशेष, वैशालिका नगरी का एक स्वनाम प्रसिद्ध राजा (आचू १; भग ७, ९; महा) ३ मैला, देवता, देव की एक जघन्य जाति (सुपा २१७)

चेडिआ :: स्त्री [चेटिका] दासी, नौकरानी (भग ९, ३३; कप्पू)।

चेडी :: स्त्री [चेटी] ऊपर देखो (आवम)।

चेडी :: स्त्री [दे] कुमारी, बाला, लड़की (पाअ)।

चेत्त :: न [चैत्य] चैत्य-विशेष (षड्)।

चेत्त :: पुं [चैत्र] १ मास-विशेष, चैत मास (सम २९; हे १, १५२) २ जैन मुनियों का एक गच्छ (बृह ६)

चेत्ती :: स्त्री [चैत्री] १ चैत मास की पूर्णिमा। २ चैत मास की अमावास (सुज्ज १०, ६)

चेदि :: देखो चेइ (सण)।

चेदीस :: पुं [चेदीश] चेदि देश का राजा (सण)।

चेयग :: वि [चेतक] दाता, देनेवाला (उप ९५७)।

चेयण :: पुं [चेतन] १ आत्मा, जीव, प्राणी (ठा ४, ४) २ वि. चेतनावाला, ज्ञानवाला; 'भुवि चेयणं च किमरूवं’ (विसे १८४५)

चेयणा :: स्त्री [चेतना] ज्ञान, चेत, चैतन्य, सुध, ख्याल (आव ६; सुर ४, २४५)।

चेयण्ण, चेयन्न :: न [चैतन्य] ऊपर देखो (विसे ४७५; सुपा २०; सुर १४, ८)।

चेयस :: देखो चेअ = चेतस्; 'ईसादासेण आविट्‍ठे, कलुसाविलवेयसे। जं अंतरायं चेएइ, महामोहं पकुव्वइ' (सम ५१)।

चेया :: देखो चेयणा; ‘पत्तेयमभावाओ, न रेणु- तेल्लं व समुदए चेया’ (विसे १६५२)।

चेल, चेलय :: न [चेल] वस्त्र, कपड़ा (आचा औप)। °कण्ण न [°कर्ण] व्यजन-विशेष, एक तरह का पंखा (स ५४९)। °गोल न [°गोल] वस्त्र का गेंद कन्दुक (सूअ १, ४; २)। °हर न [°गृह] तम्बू, पट-मण्डप, रावटी (स ५३७)।

चेलय :: न [दे] तुल-पात्र; ‘दिट्ठीतूलाए भुवणं, तुलंति जे चित्तचेलए निहियं’ (वज्जा ५६)।

चेलिय :: देखो चेल; ‘रयणकंचणचेलियबहुधन्‍न- भरभरिया’ (पउम ९९, २५; आचा)।

चेलुंप :: न [दे] मुसल, मूषल (दे ३, ११)।

चेल्ल, चेल्लअ :: [दे] देखो चिल्ल (दे) (पउम ९७, १३; १९; स ४६९; दसनि १; उप २६८)।

चेल्लग, चेल्लय :: [दे] देखो चिल्लग (पणह १, ४ — पत्र ६८; ची ३३)।

चेव :: अ [एव, चैव] १ अवधारण-सूचक अव्यय, निश्चयदर्शंक शब्द; ‘जो कुणइ परस्स दुहं पावइ तं चेव सो अणंत-गुणं’ (प्रासू २६; महा); ‘अवहारणे चेवसद्दो यं’ (विसे ३५९५) २ पाद-पूरक अव्यय (पउम ८, ८८)

चेव :: अ [इव] सादृश्य-द्योतक अव्यय, ‘पेच्छइ गणहरवसहं सरयरविं चेव तेएणं’ (पउम ३, ४; उत्त १९, ३)।

चो :: देखो चउ (हे १, १७१; कुमा; सम ६०; औप; भग; णाया १, १; १४; विपा १, १; सुर १४, ६७)। आला स्त्री [°चत्वारिं- शत्] चालीस और चार, ४४ (विसे २३०४)। °वट्ठि स्त्री [°षष्टि] चौसठ, ६४ (कप्प)। °वत्तरि स्त्री [°सप्तति] सत्तर और चार, ७४ (सम ८४)।

चोअ :: सक [चोदय्] १ प्रेंरणा करना। २ कहना। चोएइ (उव; स १५)। कवकृ. चोइज्जंत, चोइज्जमाण (सुर २, १०; णाया १, १६)। संकृ. चोइऊण (महा)

चोअअ :: वि [चोदक] प्रेरक, प्रश्‍न-कर्ता, पूर्वं- पक्षी (अणु)।

चोणअ :: न [चोदन] प्रेरण, प्रेरण (भत्त ३९; उत्त २८)।

चोइअ :: वि [चोदित] प्रेरित (स १५; सुपा १५०; औप; महा)।

चोए :: सक [चोदय्] १ प्रश्‍न करना। २ सीखना, शिक्षण देना। चोएइ, चोएह (वव १)

चोक्क :: [दे] देखो चुक्क = (दे) (महा)।

चोक्ख :: वि [दे] चोखा, शुद्ध, शुचि, पवित्र, (णाया १, १; उप १४२ टी; बृह १; भग ९, ३३; राय; औप)।

चोक्खलि :: वि [दे] चोखाई करनेवाला, शुद्धता वाला (पिंड ६०३)।

चोक्खा :: स्त्री [चोक्षा] परिव्राजिका-विशेष, इस नाम की एक संन्यासिनी (णाया १, ८)।

चोज्ज :: न [दे] आश्चर्यं, विस्मय (दे ३, १४; सुर ३, ४; सुपा १०३, सट्ठि १५९; महा)।

चोज्ज :: न [चौर्य] चोरी, चोर-कर्म, ‘तहेव हिंसं अलियं, चोज्जं अबंभसेवणं’ (उत्त ३५, ३; णाया १, १८)।

चोज्ज :: न [चोद्य] १ प्रश्‍न, पृच्छा। २ आश्चर्यं, अद्‍भुत। २ वि. प्रेरणा-योग्य (गा ४०६)

चोट्टी :: स्त्री [दे] चोटी, शिखा (दे ३, १)।

चोड्ड :: न [दे] वृन्त, फल और पत्ती का बन्धन, (विक्र २८)।

चोढ :: पुं [दे] बिल्व, वृक्ष-विशेष, बेल का पेड़ (दे ३, १९)।

चोण्ण :: न [दे] १ कलह, झगड़ा (निचू २०) २ काष्ठानयन आदि जघन्य कर्म (सूअ २, २)

चोत्त, चोत्तअ :: पुंन [दे] प्रतोद, प्राजन-दण्ड, चाबूक (दे ३, १९; पाअ)।

चोद :: [दे] देखो चोय (पणह २, ५ — पत्र १५०)।

चोदग :: देखो चोअअ (ओघ ४ भा)।

चोदणा :: स्त्री [चोदना] प्रेरणा, किसी प्रभाव- शाली व्यक्ति की ओर से कुछ कहने या करने के लिए होनेवाला संकेत (धर्मंसं १२४०)।

चोप्पड :: सक [म्रक्ष्] स्‍निग्ध करना, स्त्री तेल वगैरह लगाना। चोप्पडइ (हे ४, १९१)। वकृ. चोप्पडमाण (कुमा)।

चोप्पड :: न [म्रक्षण] धी, तैल वगैरह स्‍निग्ध वस्तु; ‘गेहव्वयस्स जोग्गं किंचिवि कणचोप्प- डाईयं’ (सुपा ४३०)।

चोप्पडिय :: वि [दे] चुपड़ा हुआ (पव ४)।

चोप्पाल :: पुं [चतुष्पाल] सूर्यभि देव की आयुध-शाला (राय ९३)।

चोप्पाल :: न [दे] मत्तवारण, वण्णडा (जं २)।

चोफुच्च :: वि [दे] स्‍निग्ध, स्‍नेहवाला, प्रेम-युक्त, प्रेमी (दे ३, १५)।

चोय, चोयग :: न [दे] त्वचा, छाल (पणह २, ५ — पत्र १५० टी)। २ आम वगैरह का रुंछा (निचू १५; आचा २, १, १०) ३ गन्ध द्रव्य-विशेष (अणु; जीव १; राय)

चोयग :: देखो चोअअ (णंदि)।

चोयणा :: स्त्री [चोदना] प्रेरणा (स १५; उप ६४८ टी)।

चोयय :: पुं [दे] फल-विशेष (अणु १५४)।

चोयलीस :: स्त्रीन [चतुश्चत्वारिंशत्] चौवा- लीस, ४४ (चेइय ३९२)।

चोर :: पुं [चोर] तस्कर, दूसरे का घन चुरानेवाला (हे ३, १३४; पणह १, ३)। °कीड पुं [°कीट] विष्ठा में उत्पन्‍न होता कीट (जी १७)।

चोरंकार :: पुं [चीर्यकार] चोर, तस्कर; 'चोरंकारकरं जं थूलमदत्तं तयं वज्जे’ (सुपा ३३४)।

चोरग :: वि [चोरक] १ चुरानेवाला। २ पुंन. वनस्पति-विशेष (पणण १ — पत्र ३४)

चोरण :: न [चोरण] १ चोरी, चुराना (सुर ८, १२२) २ वि. चोर, चोरी करनेवाला (भवि)

चोरली :: स्त्री [दे] श्रावण मास की कृष्ण चतुर्दंशी (दे ३, १९)।

चोराग :: पुं [चोराक] संनिवेश-विशेष, इस नाम का एक छोटा गाँव (आवम)।

चोराव :: सक [चोरय्] चोरी करना। चोरावेइ (प्राकृ ६०)।

चोरासी, चोरासीइ :: देखो चउरासी (पि ४३९; ४४६)।

चोरिअ :: न [चौर्य] चोरी, अपहरण (हे २, १०७; ठा १, १; प्रासू ६५; सुपा ३७६)।

चोरिअ :: वि [चौरिक] १ चोरी करनेवाला (पव ४१) २ पुं. चर, जासूस (पणह १, १)

चोरिअ :: वि [चोरित] चुराया हुआ (विसे ८५७)।

चोरिआ :: स्त्री [चौर्य, चौरिका] चोरी, अपहरण (गा २०६; षड्; हे १, ३५; सुर ६, १७८)।

चोरिक्क :: न [चौरिक्य] ऊपर देखो (पणह १, ३)।

चोरी :: स्त्री [चौरी] चोरी, अपहरण (श्रा २७)।

चोल :: वि [दे] १ वामन, कुब्ज (दे ३, १८) २ पुं. पुरुष चिह्न, लिङ्गं (पव ६१) ३ न. गन्ध-द्रव्य-विशेष, मंजिष्ठा (उर ६, ४)। °पट्ट पुं [°पट्ट] जैन मुनि का कटि-वस्त्र (ओघ ३४)। °य पुं [°ज] मजीठ का रंग (उर ६, ४)

चोल :: पुं [चोल] देश-विशेष, द्रविड़ और कलिङ्ग के बीच का देश (पिंग; सण)।

चोलअ :: न [दे] कवच, वर्म (नाट)।

चोलअ, चोलग :: न [चौल, °क] संस्कार-विशेष, मुण्डन; ‘विहिणा चूलाकम्मं बालाणं चोलयं नाम’ (आवम; पणह १, २)।

चोलुक्क :: देखो चालुक्क (ती ५)।

चोलोयणग, चोलोवणय, चोलोवणयण :: न [चूलापनयन] १ चूलोप- नयन, संस्कार-विशेष, मुंडन (णाया १, १ — पत्र ३८) २ शिखा-धारण, चूड़ा-धारण (भग ११, ११-पत्र ५४४; औप)

चोल्लक :: [दे] देखो चोलग (पणह २, ४)।

चोल्लक, चोल्लग :: पुंन [दे] १ भोजन (उप पृ १२; आवम; उत्त ३) २ वि. क्षुद्रक, छोटा, लघु (उप पृ ३१)

चोल्लय :: पुंन [दे] थैला, बोरा, गोन; ‘परं मम समक्खं तोलेह चोल्लए'; ‘राइणा उक्केल्ला- वियाइं चोल्लयाइं’ (महा)।

चोवत्तरि :: स्त्री [चतुःसप्तति] सत्तर और चार, ७४ (पंच ५, १८)।

चोवालय :: पुंन [चतुर्द्वार] चोवारा, ऊपर का शयन-गृह; ‘इओ य एगा देवी हत्थिमिठे आसत्ता। णवरं हत्थी चों — (? चो) वाल- याओ हत्थेण अवतारेइ’ (दस २, १० टी)। चोव्वड देखो चोप्पड = म्रक्ष्। चोव्वडइ (षड्)।

च्च :: अ [एव] अवधारण-सूचक अव्यय (हे २ १८४; कुमा; षड्)।

च्चिअ :: देखो चिअ = एव (हे २, १८४; कुमा)।

च्चेअ, च्चेव :: देखो चेव = एव (पि ९२; जी ३२)।

 :: पुं [छ] १ तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष (प्राप; प्रामा) २ आच्छादन, ढकना; 'छ त्ति य दोसाण छायणे होइ’ (आवम)

 :: त्रि. ब. [षष्] संख्या-विशेष, छः; ‘छ छंडिआओ जिणसासणम्मि’ (श्रा ६; जी ३२; भग १, ८)। °उत्तरसय वि [°उत्तर- शततम] एक सौ और छठवाँ (पउम १०६, ४९)। °कम्म न [°कर्मन्] छः प्रकार के कर्म, जो ब्राह्मणों के कर्त्तंव्य हैं, यथा — यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह (निचू १३)। °क्काय न [°काय] छः प्रकार के जीव, पृथिवी, अग्‍नि, पानी, वायु, वनस्पति और त्रस जीव (श्रा ७; पंचा १५)। °गुण, °ग्गुण वि [°गुण] छगुना (ठा ६; पि २७०)। °च्चरण पुं [°चरण] भ्रमर, भौंरा (कुमा)। °ज्ज्वी- निकाय पुं [°जीवनिकाय] देखो °क्काय (आचा) °ण्णउइ, °ण्णवइ [°णवति] संख्या-विशेष, छानबे, ९६ (सम ९८; अजि १०)। °त्तीस स्त्रीन [°त्रिंशत्] संख्या विशेष, छत्तीस, ३६ (कप्प)। °त्तीसइम वि [°त्रिंशत्तम] छत्तीसवाँ (पउम ३६, ४३; पणण ३६)। °द्दस त्रि. ब [°षोडशन्] षोडश, सोलह। °द्दसहा अ [षोडशधा] सोलह प्रकार का (वव ४)। °द्दिसि न [°दिश्] छः दिशाएँ — पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्वं और अधोदिशा (भग)। °द्धा अ [°धा] छः प्रकार का (कम्म १, ३८)। °नवइ, °नुवइ, °न्नवइ देखो °ण्णउइ (कम्म ३, ४; १२; सम ७०)। °न्नउय वि [°णवत] छानबेबाँ, ९६ वाँ (पउम ९६, ५०)। °प्पण्ण, प्पन्न स्त्रीन [°पञ्चाशत्] छप्पन, ५६ (राज; सम ७३)। °प्पन्न वि [°पञ्चाश्] छप्पनवाँ (पउम ५६, ४८)। °ब्भाय पुं [°भाग] छठवाँ हिस्सा (पि २७०)। °ब्भासा स्त्री [°भाषा] प्राकृत, संस्कृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाचिका और अपभ्रंश ये छः भाषाएँ (रंभा)। °मासिय, °म्मासिय वि [षाण- मासिक] छः मास में होनेवाला, छः मास सम्बन्धी (सम २१; औप)। °वरिस वि [°वार्षिक] छः वर्षं की उम्रवाला (सार्ध २६)। °वीस देखो °व्वीस (पिंग)। °व्विह वि [°विध] छः प्रकार का (कस; नव ३)। °व्वीस स्त्रीन [°विंशति] छव्वीस, बीस और छः (सम ४५)। °व्वी- सइम वि [°विंशतितम] १ छब्बीसवाँ २६ वाँ (पउम २६, १०३) २ लगातार बारह दिनों का उपवास (णाया १, १)। °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] संख्या-विशेष, साठ और छः (कम्म २, १८)। °स्सयरि स्त्री [°सप्तति] छिहत्तर (कम्म २, १७)। °हा देखो °द्धा (कम्म १ ५; ८)

छइ :: देखो छवि = छबि (वा १२)।

चइअ :: वि [स्थगित] आवृत्त, आच्छादित, तिरोहित (हे २, १७; षड्)।

छइल, छइल्ल :: वि [दे] विदग्ध, चतुर, होशियार (पिंग; दे ३, २४; गा ७२०; वज्जा पाअ; कुमा)।

छउअ :: वि [दे] तनु, कृश, पतला (दे ३, २५)।

छउम :: पुं [छद्मन्] १ कपट, शठता, माया (सम १; षड्) २ छल, बहाना (हे २, ११२; षड्) ३ आवरण, आच्छादन (सम १; २, १)

छउम :: न [छद्‍मन्] ज्ञानावरणीय आदि चार घाती कर्मं (चेइय ३४६)।

छउमतत्थ :: वि [छद्‍मस्थ] १ असर्वंज्ञ, संपूर्णं, ज्ञान से वञ्चित। २ राग-सहित, सराग (ठा ४, १; ६; ७)

छउलूअ :: देखो छलूअ (राज; विसे २५०८)।

छंकुई :: स्त्री [दे] कपिकच्छु, वृक्ष-विशेष, केवाँच, कवाछ (दे ३, २४)।

छट :: पुं [दे] छींटा, जल की छींटा, जल- च्छटा। २ वि. शीघ्र, जल्दी करनेवाला (दे ३, ३३)।

छंट :: सक [सिच्] सींचना। छंटसु (सुपा २९८)।

छंटण :: न [सेचन] सिंचन, सिंचना (सुपा १३६; कुमा)।

छंटा :: स्त्री [दे] देखो छंट (पाअ)।

छंटिअ :: वि [सिक्त] सींचा हुआ (सुपा १३८)।

छंड :: देखो छड्ड = मुच्। छंडइ (आरा ३२; भवि)।

छंडिअ :: वि [दे] छन्‍न, गुप्‍त (षड्)।

छंडिअ :: वि [मुक्त] परित्यक्त, छोड़ा हुआ (आरा; भवि)।

छंद :: सक [छन्द्] १ चाहना, वाञ्छना। २ अनुज्ञा देना, संमति देना। ३ निमन्त्रण देना। कवकृ; 'अंतेउरपुरबलवाहणेहि वरसिरिघरेहि मुणिवसभा। कामेहि बहुविहेहि य छंदिज्जंतावि नेच्छंति’ (उव)। संकृ. छंदिअ (दस १०)

छंद :: पुंन [छन्द] १ इच्छा, मरजी, अभिलाषा (आचा; गा २०२; स २३९; उव; प्रासू ११) २ अभिप्राय, आशय (आचा; भग) ३ वशता, अधीनता (उत्त ४; हे १, ३३)। °चारि वि [°चारिन्] स्वच्छन्दी, स्वैरी (उप ७६८ टी)। °इत्त वि [°वत्] स्वैरी (भवि)। °णुवत्तण न [°नवुर्त्तन] मरजी के अनुसार बरतना (प्रासू १४)। °णुवत्तय वि [°नुवर्त्तक] मरजी का अनुसरण करनेवाला (णाया १, ३)

छंद :: पुंन [छन्दस्] १ स्वच्छन्दता, स्वैरिता (उत्त ४) २ अभिलाष, इच्छा। ३ आश्रय, अभिप्राय (सूअ १, २, २; आचा; हे १, ३३) ४ छन्दः-शास्त्र (सुपा २८७; औप) ५ वृत्त, छन्द (वज्जा ४)। °ण्णुय वि [°ज्ञ] छन्द का जानकार (गउड)

छंदण :: पुंन [छादन] ढकना, ढक्कन (राय ९६)।

छंदण :: न [छन्दन] निमन्त्रण (पिंड ३१०)।

छंदण :: न [वन्दन] वन्दन, प्रणाम, नमस्कार (गुभा ४)।

छंदणा :: स्त्री [छन्दना] १ निमन्त्रण (पंचा १२) २ प्रार्थना (बृह १)

छंदा :: स्त्री [छन्दा] दीक्षा का एक भेद, अपने या दूसरे के अभिप्राय-विशेष से लिया हुआ संन्यास (ठा २, २; पंचभा)।

छंदिअ :: वि [छन्दित] अनुज्ञात, अनुमत (ओघ ३८०)। २ निमन्त्रित (निचू २)

छंदो :: देखो छंद = छन्दस् (आचा; अभि १२६)।

छक्क :: वि [षट्‍क] छक्का, छः का समूह; 'अंतररिउछक्काअक्कंता’ (सुपा ५१६; सम ३५)।

छग :: देखो छ = षष् (कम्म ४)।

छग :: न [दे] पुरीष, विष्ठा (पणह १, ३ — पत्र ५४, ओघ ७२)।

छग :: देखो छक्क (पव २७१)।

छगण :: न [स्थगन] पिधान, ढकना (वव ४)।

छगण :: न [दे] गोमय, गोबर (उप ५९७ टी, पंचा १३; निचू १२)।

छगणिया :: स्त्री [दे] गोइंठा, कंडा (अनु ५)।

छगल :: पुंस्त्री [छगल] छाग, अज, बकरा (पणह १, १; औप)। स्त्री. °ली (दे २, ८४)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (ठा १०)।

छग्ग :: देखो छक्क (दं ११)।

छग्गरु :: पुं [षड्‍गुरु] १ एक सौ और अस्सी दिनों का उपवास। २ तीन दिनों का उपवास (ठा २, १)

छच्छुंदर :: पुंन [दे] छछुँदर, मूसे या चूहे की एक जाति (सं १६)।

छज्ज :: अक [राज्] शोभना, चमकना। छज्जइ (हे ४, १००)।

छज्जिअ :: वि [राजित] शोभित, अलंकृत (कुमा)।

छज्जिआ :: स्त्री [दे] पुष्प-पात्र, चंगेरी (स ३३४)।

छट्टा :: [दे] देखो छंटा (षड्)।

छट्ठ :: वि [षष्ठ] १ छठवाँ (सम १०४; हे १, २६५) २ न. लगातार दो दिनों का उपवास (सुर ४, ५५)। °क्खमण न [°क्षमण, °क्षपण] लगातार दो दिनों का उपवास (अंत ६; उप पृ ३४३)। °क्खमय पुं [°क्षमक, °क्षपक] दो-दो दिनों का बराबर उपवास करनेवाला तपस्वी (उप ६२२)। °भत्त न [°भक्त] लगातार दो दिनों का उपवास (धर्मं ३)। °भत्तिय वि [°भक्तिक] लगातार दो दिनों का उपवास करनेवाला (पणह १, १)

छट्ठी :: स्त्री [षष्ठी] १ तिथि-विशेष (सम २९) २ विभक्ति-विशेष, संबन्ध-विभक्ति (णंदि, हे १, २६५) ३ जन्म के बाद किया जाता उत्सव-विशेष (सुपा ५७८)

छड :: सक [आ + रुह्] आरूढ़ होना, चढ़ना। छडइ (षड्)।

छडक्खर :: पुं [दे] स्कन्द, कार्त्तिकेय (दे २, २६)।

छडछडा :: स्त्री [छटच्छटा] सूर्प (सूप) वगैरह से अन्‍न को झाड़ते समय होता एक प्रकार का अव्यक्त आवाज (णाया १, ७ — पत्र ११६)।

छडा :: स्त्री [दे] विद्युत, बिजली (दे ३, २४)।

छडा :: स्त्री [छटा] १ समूह, परम्परा (सुर ४, २४३; वा १२) २ छींटा, पानी की बूँद (पाअ)

छडाल :: वि [छटावत्] छटावाला (पउम ३५, १८)।

छडिअ :: वि [छटित] सूप आदि से छँटा या फटका हुआ (तंदु २९; राय ६७)।

छड्ड :: सक [छर्दय्, मुच्] १ वमन करना। २ छोड़ना, त्याग करना। ३ डालना, गिराना। छड्डइ (हे २, ३६; ४, स ९१; महा; उव)। कर्म. छड्डिज्जइ (पि २९१)। वकृ. छड्डंच (भाग)। संकृ. छड्डेउं भूमीए खीरं जह पियइ टुट्ठमज्जारी’ (विसे १४७१)। छड्डित्त (वव २)

छड्डण :: न [छर्दन, मोचन] १ परित्याग, विमोचन (उप १७९; औघ ५९) २ वमन, वान्ति (विपा १, ८)

छड्डय :: वि [छर्दक] छोड़नेवाला (कुप्र ३१७)। २ पुं. एक सेठ का नाम (कुप्र ३९६)

छड्डवण :: न [छर्दन, मोचन] १ छुड़वाना, मुक्त करवाना। २ वमन कराना। ३ वि. वमन करानेवाला। ४ छुड़ानेवाला (कुमा)

छड्डवय :: वि [छर्दक, मोचक] त्याग करानेवाला, त्याजक (दे २, ६२)।

छड्डावण :: देखो छड्डवण (सुपा ५१७)।

छड्डाविय :: वि [छर्दित, मोचित] १ वमन काराय हुआ। २ छुड़वाया हुआ (आवम; बृह १)

छड्डि :: स्त्री [छर्दि] वमन का रोग (षड्; हे २, ३६)।

छड्डि :: स्त्री [छर्दिस्] छिद्र, दूषण; ‘जो जग्गइ परछड्डिं, सो नियछड्डीए किं सुयइ' (महा)।

छड्डिय, छड्डियल्लिय :: वि [छर्दित, मुक्त] १ वान्त, वमन किया हुआ। २ त्यक्त, मुक्त (विसे २६०६; दे १, ४९; औप)

छण :: सक [क्षण्] हिंसा करना। छणे (आचा)। प्रयो. छणावेइ (पि ३१८)।

छण :: सक [क्षण्] छेदन करना। छणह (सूअ २, १, १७)।

छण :: पुं [क्षण] १ उत्सव, मह (दे २, २०) २ हिंसा (आचा)। °चंद पुं [°चन्द्र] शरद ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्रमा (स ३७१)। °ससि पुं [°शशिन्] वही पूर्वोक्त अर्थं (सुपा ३०६)

छणण :: न [छणन] हिंसन, हिंसा (आचा)।

छणिदु :: पुं [छणेन्दु] शरद् ऋतु की पूर्णिमा का चन्द्र (सुपा ३३; ४०४)।

छण्ण :: वि [छन्न] १ गुप्त, प्रच्छन्न, छिपाया हुआ (बृह १; प्राप) २ आच्छादित, ढका हुआ (गा ५८०) ३ न. माया, कपट (सूअ १, २, २) ४ निर्जंन, विजन, रहस्। ५ क्रिवि. गुप्त रीति से, प्रच्छन्न रूप से; 'जं छणणं आयरियं तइया जाणणिीए जोव्वणमएण। तं पडिव (? यडि) ज्जइ इणिह सुएहिं सीलं चयंतेहिं' (उप ७२८ टी)

छण्णालय :: न [दे. षण्णालक] त्रिकाष्ठिक, तिपाई, संन्यासियों का एक उपकरण (भग; औप; णाया १, ५)।

छत्त :: न [छत्र] छाता, आतपात्र (णाया १, ५; प्रासू ५२)। °धार पुं [°धार] छाता धारण करनेवाला नौकर (जीव ३)। °पड़ागा स्त्री. °[पताका] १ छत्र-युक्त ध्वज। २ छत्र के ऊपर की पताका (औप) °पलासय न [°पलाशक] कृतमंगला नगरी का एक चैत्य (भग)। °भंग पुं [°भङ्ग] राज-नाश, नृप- मरण (राज)। °हार देखो °धार (आवम)। °इच्छत्त न [°तिच्छत्र] १ छत्र के ऊपर का छाता (सम १३७) २ पुं. ज्योतिष-शास्त्र-प्रसिद्ध योग-विशेष (सुज्ज १२)

छत्त :: न [छत्र] लगातार तैतीस दिनों का उप- वास (संबोध ५८)। पुंन. एक देवविमान (देवेन्द्र १४०)। ३ पुं. ज्योतिष प्रसिद्ध एक योग जिसमें चन्द्र आदि ग्रह छत्र के आकार से रहते हैं (सुज्ज १२ — पत्र २३३)। °इल्ल वि [°वत्] छातावाला (सुख २, १३)। °कार वि [कार] छाता बनानेवाला शिल्पी (अणु १४९)। °ग पुंन [°क] वनस्पति- विशेष (सूअ २, ३, १६)

छत्त :: पुं [छात्र] विद्यार्थी, अभ्यासी (उप पृ ३३१; १६९ टी)।

छत्तंतिया :: स्त्री [छत्रान्त्रिका] परिषद-विशेष, सभा-विशेष (बृह १)।

छत्तच्छय :: /?/(अप) पुं [सप्तच्छद] वृक्ष-विशेष, सतौना, छतिवन (सण)।

छत्तधन्न :: न [दे] घास, तृण (पाअ)।

छत्तवण्ण :: देखो छत्तिवण्ण (प्राप्र)।

छत्ता :: स्त्री [छत्रा] नगरी-विशेष (आवम)।

छत्तार :: पुं [छत्रकार] छाता बनानेवाला कारीगर (पणण १)।

छत्ताह :: पुं [छत्राभ] वृक्ष-विशेष, ‘णग्गोहस- त्तिवण्णे, साले पियए पियंगुछत्ताहे’ (सम १५२)।

छत्ति :: वि [छत्रिन्] छत्र-युक्त, छातावाला (भास ३३)।

छत्तिवण्ण :: पुं [सप्तपर्ण] वृक्ष-विशेष, सतौना, छतिवन, (हे १, २६५; कुमा)।

छत्तोय :: पुं [छत्रौक] वनस्पति-विशेष, वृक्ष-विशेष (पणण १ — पत्र ३५)।

छत्तोव :: पुं [छत्रोय] वृक्ष-विशेष (औप; अंत)।

छत्तोह :: पुं [छत्रौघ] वृक्ष-विेशेष (औप; पणण १ — पत्र ३१; भघ)।

छदमत्थ :: देखो छउमत्थ (द्रव्य ४४)।

छद्दवण :: देखो छड्डवण (राज)।

छद्दसम :: वि [षड्‍दश] छः या दश (सूअ २, २, २१)।

छद्दी :: स्त्री [दे] शय्या, बिछौना (दे ३, २४)।

छन्न :: वि [क्षण] हिंसा-प्रधान, हिंसा-जनक (सूअ १, ९, २६)।

छन्न :: देखो छण्ण (कप्प; उप ६४८ टी; प्रासू ८२)।

छप्पइगिल्ल :: वि [षट्‍पदिकावत्] यूका-युक्त यूकावाला (बृह ३)।

छप्पइया :: स्त्री [षट्‍पदिका] यूका, जूँ (ओघ ७२४)।

छप्पंती :: स्त्री [दे] नियम-विशेष, जिसमें पद्म लिखा जाता है (दे ३, २५)।

छप्पण्ण, छप्पण्णय :: वि [दे. षट्‍प्रज्ञक] विदग्घ, चतुर, चालाक (दे ३, २४; पाअ; वज्जा ५८)।

छप्पत्तिआ :: स्त्री [दे] १ चंपत, थप्पड़, तमाचा। २ चपाती, रोटी, फुलका; 'छप्पत्तिआवि खज्जइ, निप्पत्ते पुत्ति! एत्थ को देसो ?। निअपुरिसेवि रमिज्जइ, परपुरिसविवज्जिए गामे' (गा ८८७)

छप्पन्न :: [दे] देखो छप्पण्ण (जय ९)।

छप्पय :: पुं [षट्‍पद] १ भ्रमर, भौंरा (हे १, २६५; जीव ३) २ वि. छः स्थानवाला। ३ छः प्रकार का (विसे २८६१)। ४ न. छन्द-विशेष (पिंग)

छब्ब, छब्बग :: पुंन [दे] पात्र-विशेष (आचा २, १, ८, १; पिंड ५६१; २७८)।

छब्बय :: न [दे] वंश-पिटक, घी वगैरह को छानने का उपकरण-विशेष; ‘मुइंगाईमक्कोड- एहिं संसत्तगं च नाऊणं। गालेज्ज छब्बएणं' (ओघ ५५८)।

छब्भामरी :: स्त्री [षट्‍भ्रामरी] एक प्रकार की वीणा (णाया १, १७ — पत्र २२९)।

छमच्छम :: अख [छमच्छमाय्] ‘छम-छम' आवाज करना, गरम चीज पर दिया जाता पानी की आवाज। छमच्छमइ (वज्जा ८८)।

छम° :: देखो छमा। °रुह पुं [°रुह्] वृक्ष, पेड़, दरख्त (कुमा)।

छमलय :: पुं [दे] सप्तच्छद, वृक्ष-विशेष, सतौना, छतिवन (दे ३, २५)।

छमा :: स्त्री [क्षमा, क्ष्मा] पृथिवी, धरिणी, भूमि (हे २, १८)। °हर पुं [°धर] पर्वंत, पहाड़ (षड्)। देखो छम°।

छमी :: स्त्री [शमी] वृक्ष-विशेष, अग्‍नि-गर्भ वृक्ष (हे १, २६५)।

छम्म :: देखो छउम (हे २, ११२; षड्; पउम ४०, ५; सण)।

छम्मुह :: पुं [षणमुख] १ स्कन्द, कार्तिकेय (हे १, २६५) २ भगवान् विमलनाथ का अधिष्ठायक देव (संति ८)

छय :: न [छद] १ पर्णं, पत्ती, पत्र, पत्ता (औप) २ आवरण, आच्छादन (से ९, ४७)

छय :: न [क्षत] १ व्रण, घाव (हे २, १७) २ पीड़ित, व्रणित (सूअ १, २, २)

छयल्ल :: [दे] देखो छइल्ल (रंभा)।

छरु :: पुं [°त्सरु] खड्‍ग-मुष्टि, तलवार का हाथा (पणह १, ४)। °प्पवाय न [°प्रवाद] खड्‍ग-शिक्षा-शास्त्र (जं २)।

छल° :: देखो छ = षष् (कम्म ६, ९)।

छल :: सक [छलय्] ठगना, वञ्चना। छलिज्जेज्जा (स २१३)। संकृ. छलिउं, छलिऊण (महा)। कृ. छलिअव्व (श्रा १४)।

छल :: न [छल] १ कपट, माया (उव) २ व्याज, बहाना (पाअ; प्रासू ११४) ३ अर्थं- विधात, वचन-विघात, एक तरह का वचन- युद्ध (सूअ १, १२)। °ययण न [°यतन] छल, वचन-विघात (सूअ १, १२)

छलंस :: वि [षडस्त्र] षट्-कोण, छः कोणवाला (ठा ८)।

छलंसिअ :: वि [छडस्रिक] छः कोणवाला (सूअ २, १, १५)।

छलण :: न [छलन] प्रक्षेपण, फेंकना (आचानि ३११)।

छलण :: न [छलन] ठगाई, वञ्चना (सुर ६, १८१)।

छलणा :: स्त्री [छलना] १ ठगाई, वञ्चना (ओघ ७८५; उप ७७६) २ छल, माया, कपट (विसे २५४५)

छलत्थ :: वि [षडर्थ] छः अर्थंवाला (विसे ९०१)।

छलसीअ :: स्त्रीन [षडशीति] संख्या-विशेष, अस्सी और छः, ८६ (भग)।

छलसीइ :: स्त्री. ऊपर देखो (सम ९२)।

छलिअ :: वि [छलित] १ वञ्चित, विप्रतारित, ठगा हुआ (भवि; महा) २ श्रृङ्गार-काव्य। ३ चोर का इशारा, तस्कर-संज्ञा (राज)

छलिअ :: वि [दे] विदग्ध, चालाक, चतुर (दे ३, २४; पाअ)।

छलिअ :: न [छलिक] नाठ्य-विशेष (मा ४)।

छलिअ :: वि [स्खलित] स्खलन-प्राप्त (ओघ ७८९)।

छलिया :: देखो छालिया; ‘चीणाकूरं छलियात- क्केण दिन्‍नं’ (महा)।

छलुअ, छलुग, छलूअ :: पुं [षडुलूक] वैशोषिक मत-प्रव- र्त्तक कराद ऋषि (कप्प; ठा ७; विसे २३०२); ‘दव्वाइच्छप्पयत्थो- वएसणाओ छलूउत्ति’ (विसे २५०८; ४५५)।

छल्ली :: स्त्री [दे] त्वचा, वल्कल, छाल (दे ३, २४; जी १३; गा ११५; ठा ४, १, णाया १, १३)।

छल्लुय :: देखो छलुअ (पि १४८)।

छव :: देखो छिव। छवेमि (सुपा ५७३)।

छवडी :: स्त्री [दे] चर्मं, चाम, चमड़ा (दे ३, २५)।

छवि :: स्त्री [छवि] १ कान्ति, तेज (कुमा; पाअ) २ अंग, शरीर (पणह १, १)। चर्म, चमड़ी (पाअ; जीव ३) ४ अवयव (पडि) ५ अंगी, शरीरो (ठा ४, १) ६ अलङ्कार-विशेष (अणु)। °च्छेअ पुं [°च्छेद] अङ्ग का विच्छेद, अवयव कर्त्तन (पडि)। °च्छेयण न [°च्छेदन] अंग- च्छेद (पणह १, १)। °त्ताण न [°त्राण] चमड़ी का आच्छादन, कवच, वर्म (उत्त २)

छविअ :: वि [स्पृष्ट] छूआ हुआ (श्रा २७)।

छविपव्व :: न [छविपर्वत्] औदारिक शरीर (उत्त ५, २४)।

छवीइय :: वि [छविमत्] १ कान्तिवाला। २ घन, निबिड़ (आचा २, ४, २, ३)

छव्वग :: [दे] देखो छब्बय (राज)।

छव्विअ :: वि [दे] पिहित, आच्छादित (गउड)।

छह :: (अप) देखो छ + षष् (पि ४४१)।

छहत्तर :: वि [षट्सप्तत] छिहत्तरँ, ७६ वाँ (पउम ७६, २७)।

छहत्तरि :: स्त्री [षट्‍सप्तति] छिहत्तर, ७६ (पव १९)।

छाअ :: देखो छाव (प्राकृ १५)।

छाइअ :: वि [छादित] आच्छादित, ढका हुआ (पउम ११३, ५४; कुमा)।

छाइल्ल :: वि [छायावत्] छायावाला, कान्ति- युक्त (हे २, १५९; षड्)।

छाइल्ल :: पुं [दे] १ प्रदीप, दीपक्क; ‘जोइक्खं तह छाइल्लयं च दीवं मुणेज्जाहि’ (वव ७; दे ३, ३५) २ वि. सदृश, समान, तुल्य। ३ ऊन, अधूरा (दे ३, ३५) ४ सुरूप, सूडौल, रूपवान् (दे ३, ३५; षड्)

छाई :: देखो छाया (षड्)।

छाई :: स्त्री [दे] माता, देवी, देवता (दे ३, २६)।

छाउमत्थ :: न [छाद्‍मस्थ्य] छअस्थ-अवस्था (सट्ठि ९ टी)।

छाउमत्थिय :: वि [छादमस्थिक] केवलज्ञान उत्पन्न होने के पहले की अवस्था में उत्पन्न, सर्वज्ञता की पूर्वावस्था से संबन्ध रखनेवाला (सम ११; पणण ३६)।

छाओवग :: वि [छायोपग] १ छाया-युक्त, छायावाला (वृक्षादि) २ पुं. सेवनीय पुरुष, माननीय पुरुष (ठा ४, ३)

छागल :: वि [छागल] १ अज-संबन्धी (ठा ५, ३) २ पुं. अज, बकरा। स्त्री. °ली (पि २३१)

छागलिय :: पुं [छागलिक] छागों से आजीविका करनेवाला, अजा-पालक (विपा १, ४)।

छाण :: न [दे] १ धान्य वगैरह का मलना (दे ३, ३४) २ गोमय, गोबर (दे ३, ३४; सुर १२, १७; णाया १, ७; जीव १) ३ वस्त्र, कपड़ा (दे ३, ३४; जीव ३)

छाणण :: न [दे] छानना, गालन; ‘भूमीपेहण- जलछाणणाइं जयणाओ होइ न्हाणाइं’ (सट्ठि ४५ टी)।

छाणवइ :: (अप) देखो छण्णवइ (पिंग)।

छाणी :: स्त्री [दे] १ धान्य वगैरह का मलन। २ वस्त्र, कपड़ा (दे ३, ३४) ३ गोमय, गोबर (दे ३, ३४; धर्म २)

छाणी :: स्त्री [दे] कंडा, गोबर का इन्धन (पव ३८)।

छाय :: वि [छात] व्रणाङ्कित, घाववाला (दस ९, २, ७)।

छाय :: सक [छादय्] आच्छादन करना, ढकना। छायइ (हे ४, २१)। वकृ. छायंत (पउम ७, १४)।

छाय :: वि [दे. छात] १ बुभुक्षित, भूखा (दे ३, ३३; पाअ; उप ७६९ टी; ओघ २९० भा) २ कृश, दुर्बल (दे ३, ३३; पाअ)

छायंसि :: वि [छायावत्] कान्तिमान्, तेजस्वी (सम १५२)।

छायण :: न [छादन] आच्छादन, ढकना (पिंग; महा; सं ११)।

छायण :: न [छादन] १ घर की छत, छाजन (पिंड ३०३) २ ढक्कन, आवरण। ३ वस्त्र, कपड़ा (सुख ७, १५)

छायणिया, छायणी :: स्त्री [दे] डेरा, पड़ाव, छावनी; 'तो तत्थेव ठिओ एसो कुणिता गिहछायणिं’ (श्रा १२; महा)।

छाया :: स्त्री [छाया] १ आतप का अभाव, छाँह (पाअ) २ कान्ति, प्रभा, दीप्ति (हे १, २४९; औप; पाअ) ३ शोभा (औप) ४ प्रतिबिम्ब, परछाइँ (प्रासू ११४; उत्त २) ५ घूप-रहित स्थान, अनातप देश (ठा २, ४) °गइ स्त्री [°गति] १ छाया के अनुसार गमन। २ छाया के अवलम्बन से गति (पणण १६)। °पास पुं [°पार्श्व] हिमाचल पर स्थित भगवान् पार्श्वंनाथ की मूर्त्ति (ती ४५)

छाया :: स्त्री [दे] १ कीर्त्ति, यश, ख्याति। २ भ्रमरी, भमरो, भौंरी (दे ३, ३४)

छायाइत्तय :: वि [छायावत्] छायावाला, छाया-युक्त। स्त्री. °इत्तिआ (हे २, २०३)।

छायाला :: स्त्री [षट्‍चत्वारिंशत्] छियालीस, चालीस और छः, ४६ (भग)।

छायालीस :: स्त्रीन, ऊपर देखो (सम ६९; कप्प)।

छायालीस :: वि [षट्‍चत्वारिश] छियालीसवाँ, ४६ वाँ (पउम ४६, ९९)।

छार :: वि [क्षार] १ पिघलनेवाला, झरनेवाला। २ खारा, लवण-रसवाला। ३ पुं. लबण, नोन, नमक। ४ सज्जी, सज्जीखार। ५ गुड़ (हे २, १७; प्राप्र) ६ भस्म, भूति (विसे १२५६; स ४४; प्रासू १४५; णाया १, २) ७ मात्सर्यं, असहिष्णुता (जीव ३)

छार :: [DOदे] अच्छभल्ल, भालूक (दे ३, २६)।

छारय :: देखो छार (श्रा २७)।

छारय :: न [दे] १ इक्षु-शल्क, ऊख की छाल (६, ३, ३४) २ मुकुल, कली (दे ३, ३४; पाअ)

छारिय :: वि [छारिक] क्षार-सम्बन्धी (दस ५, १, ७)।

छाल :: पुं [छाग] अज, बकरा (हे १, १९१)।

छालिया :: स्त्री [छागिका] अजा, छागी (सुर ७, ३०; सण)।

छाली :: स्त्री [छागी] ऊपर देखो (प्रामा)।

छाव :: पुं [शाव] बालक, बच्चा, शिशु (हे १, २६५; प्राप्र; बव १)।

छावण :: देखो छायण (बृह १)।

छावट्ठि :: स्त्री [षट्‍षष्टि] छाछठ, छियासठ, ६६ (सम ७८; विसे २७६१)।

छावत्तरि :: स्त्री [षट्‍सप्तति] छिहत्तर, सत्तर और छः ७६ (पउम १०२, ८९; सम ८५)। °म वि [°तम] छिहत्तरवाँ (भग)।

छावलिय :: वि [षडावलिक] छः आवलिका- परिमित समयवाला (विसे ५३१)।

छासट्ठ :: वि [षट्‍षष्ट] छियासठवाँ (पउम ६६, ३७)।

छासी :: स्त्री [दे] छाछ, तक्र, मठ्ठा (दे ३, २६)।

छासीइ :: स्त्री [षडशीति] छियासी, अस्सी और छः। °म वि [°तम] छियासीवाँ, ८६ वाँ (पउम ८६, ७४)।

छाहत्तरि :: (अप) देखो छावत्तरि (पि २४५)।

छाहत्तरि :: देखो छावत्तरि (पव २३६)।

छाहा, छाहिया, छाहि :: स्त्री [छाया] १ छाँह, आतप का अभाव। २ प्रतिबम्ब, परछाइँ (षड्; प्राप्र; सुर २, २४७; ६, ६५; हे १, २४९; गा ३४)

छाही :: स्त्री [दे] गगन, आकाश। °मणि पुं [°मणि] सूर्यं, सूरज (दे ३, २६)।

छिअ :: देखो छीअ (दे ८, ७२; प्रामा)।

छिंछई :: स्त्री [दे] असती, कुलटा (हे २, १७४; गा; ३०१; ३५०; पाअ; धर्मरत्‍न- लघुवृत्तिपत्र ३१, १)।

छिंछटरमण :: न [दे] क्रीड़ा-विशेष, चक्षु- स्थगन की क्रीड़ा (दे ३, ३०)।

छिंछय :: पुं [दे] १ देह, शरीर। २ जार, उपपति। ३ न. फल-विशेष, शलाटु-फल (दे ३, ३६)

छिंछोली :: स्त्री [दे] छोटा जल-प्रवाह (दे ३, २७; पाअ)।

छिंड :: न [दे] १ चूड़ा, चोटी (दे ३, ३५; पाअ) २ छत्र, छाता। ३ धुप-यन्त्र (दे ३, ३५)

छिंडिआ :: स्त्री [दे] १ बाड़ का छिद्र। २ अपवाद; ‘छ छिंडिआओ जिणसासणम्मि' (पव १४८; श्रा ६)

छिंडी :: स्त्री [दे] बाड़ का छिद्र (णाया १, २ — पत्र ७९)।

छिंद :: सक [छिंद्] छेदना, विच्छेद करना। छिंदइ (प्राप्र; महा)। भवि. छेंच्छं (हे ३, १७१)। कर्मं. छिज्जइ (महा)। वकृ. छिंदमाण (णाया १, १)। कवकृ. छिज्जंत, छिज्जमाण (श्रा ६; विपा १, २)। संकृ. छिंदिऊण, छिंदित्ता, छिंदित्तु, छिंदिय, छेत्तूण (पि ५८५; भग १४, ८; पि ५०६; ठा ३, २; महा)। कृ. छिंदियव्व (पणह २, १)। हेकृ. छेत्तुं (आचा)।

छिंदण :: न [छेदन] छेद, खण्डन, कर्तन (ओघ १५४ भा)।

छिदावण :: न [छेदन] कटवाना, दूसरे द्वारा छठेदन कराना (महानि ७)।

छिंदाविय :: वि [छेदित] विछिन्‍न कराया गया (स २२९)।

छिंपय :: न [छिम्पक] कपड़ा छापने का काम करनेवाला (दे १, ९८; पाअ)।

छिक्क :: न [दे] क्षुत, छींक (दे ३, ३६; कुमा)।

छिक्क :: वि [दे. छुप्त] स्पृष्ट, छुआ हुआ (दे ३, ३६, हे २, १३८; से ३, ४६; स ४४४)। °परोइया स्त्री [°प्ररोदिका] वनस्पति-विशेष (विसे १७५४)।

छिक्क :: वि [छीत्कृत] छीं-छीं आवाज से आहूत; ‘पुव्विंपि वीरसुणिआ छिक्काछिक्का पहावए चुरियं’ (ओघ १२४ भा)।

छिक्कंत :: वि [दे] छींक करता हुआ (सुपा ११९)।

छिक्का :: स्त्री [दे] छिक्का, छींक (स ३२२)।

छिक्कारिअ :: वि [छीत्कारित] छीं-छीं आवाज से आहूत, अव्यक्त आवाज से बुलाया हुआ (ओघ १२४ भा टी)।

छिक्किय :: न [दे] छीकना, छींक करना (स ३२४)।

छिक्कोअण :: वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे ३, २९)।

छिक्कोट्टली :: स्त्री [दे] १ पैर की आवाज। २ पाँव से धान्य का मलना। ३ गोइठा का टुकड़ा, गोबर-खण्ड (दे ३, ३७)

छिक्ककोलिअ :: वि [दे] तनु, पतला, कृश (दे ३, २५)।

छिक्कोवण :: [दे] देखो छिक्कोअण (ठा ६ — पत्र ३७२)।

छिग्ग :: (शौ) सक [छुप्] छूना। छिग्गादि (प्राकृ ९३)।

छिच्चोलय :: पुं [दे] देखो छिव्वोल्ल (पाअ)।

छिच्छई :: देखो छिंछई (षड्)।

छिच्छय :: देखो छिंछय (षड्)।

छिच्छिकार :: पुं [छिच्छिकार] निवारण-सूचक या घृणा-सूचक शब्द, छिः, छि (पिंड ४५१)।

छिछि :: अ [दे धिक्‌धिक्] छि छि, धिक्- धिक्, अनेत धिक्कार (हे २, १७४; षड्)।

छिज्ज :: देखो छिंद = छिद्। हेकृ. छिज्जिउं (तंदु)।

छिज्ज :: वि [छेद्य] १ खण्डित किया जा सके। २ छेदने योग्य (सूअ २, ५) ३ न. छेद, विच्छेद, द्विधाकरण; ‘पावंति बंधवहरोहछिज्ज- मरणावसाणाइं’ (ओघ ४६ भा; पुप्फ १८६)

छिज्जंत :: वि [क्षीयमाण] क्षय पाता, दुर्बल होता; ‘छिज्जंतेहिं अणुदिणं, पच्चक्खम्मिवि तुमम्मि अंगेहि’ (गा ३४७)।

छिज्जंत, छिज्जमाण :: देखो छिंद

छिड्ड :: न [छिद्र] १ छिद्र, विवर (पउम २०, १६२; अणु ६; उप पृ १३८) २ अवकाश, अवसर (पणह १, ३) ३ दूषण, दोष (सुपा ३६०)। °पाणि पुं [°पाणि] एक प्रकार का जैन साधु (आचा २, १, ३)

छिड्ड :: पुंन [छिद्र] आकाश, गगन (भग २०, २ — पत्र ७७५)।

छिण्ण :: देखो छिन्न (णाया १, १८; सूअ १, ८)।

छिण्ण :: पुं [दे] जार, उपपति (दे ३, २७; षड्)।

छिण्णच्छोडण :: न [दे] शीघ्र, तुरन्त, जल्दी (दे ३, २९)।

छिण्णयड :: वि [दे] टंक से छिन्‍न (पाअ)।

छिण्णा :: स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे ३, २७)।

छिण्णाल :: पुं [दे] जार, यार, उपपति, छिनाला या छिनरा (दे ३, २७; षड्)।

छिण्णालिआ, छिण्णाली :: स्त्री [दे] असती, कुलटा, पुंश्‍चली, छिनारी, छिनाल, व्यभिचारिणी। (मृच्छ ५५; दे ३, २७)।

छिण्णोब्भवा :: स्त्री [दे] दूर्वा, दूब (घास), दाभ (दे ३, २९)।

छित्त :: देखो खित्त = क्षेत्र (औप; उप ८३३ टी; हेका ३०)।

छित्त :: वि [दे] स्पष्ट, छूआ हुआ (दे ३, २७; गा १३; सुपा ५०४; पाअ)।

छित्तर :: [दे] देखो छेत्तर (स ८; २२३; उप पृ ११७; ५३० टी)।

छित्ति :: स्त्री [छित्ति] छेद, बिच्छेद, खण्डन (विसे १४५८; लहुअ ५)।

छित्तु :: वि [छेतृ] छेदनेवाला (पव १)।

छिद्द :: देखो छिड्ड (णाया १, २; ठा ५, १; पउम ६४, ९)।

छिद्द :: पुं [दे] छोटी मछली (दे ३, २६)।

छिद्दिय :: वि [छिद्रित] छिद्र-युक्त, छिद्रवाला (गउड)।

छिन्न :: वि [छिन्न] १ खण्डित, त्रुटित. छेद-युक्त (भग; प्रासू १४६) २ निर्धारित, निश्चित (बृह १) ३ न. छेद, खण्डन (उत्त १५) °ग्गंथ वि [°ग्रन्थ्] स्‍नेह-रहित, स्‍नेह-मुक्त (पणह २, ५)। २ पुं. त्यागी, साधु, मुनि, निर्ग्रन्थ (ठा ९)। °च्छेय पुं [°च्छेद] नय- विशेष, प्रत्येक सूत्र को दूसरे सूत्र की अपेक्षा से रहित माननेवाला मत (णंदि)। °द्धाणंतर वि [°ध्वान्तर] मार्ग-विशेष, जहाँ गाँव, वगर वगैरह कुछ भि न हो ऐसा रास्ता (बृह १)। °मडंब वि [°मडम्ब] जिस गाँव या शहर के समीप में दूसरा गाँव वगैरह न हो (निचू १०)। °रुह वि [°रुह] काट कर बोने पर भी पैदा होनेवाला वनस्पति (जीव १०; पणण ३६)

छिन्नाल :: वि [दे] हल की जात का बेल आदि (उत्त २७, ७)।

छिन्नालिगा, छिण्णालिंगा :: स्त्री [दे] स्थलचर पक्षि-विशेष (अंग वि. अ° ५८)। देखो छिण्णालिआ।

छिप्प :: न [क्षिप्र] जल्दी, शीघ्र। °तूर न [°तूर्य] शीघ्र। २ बजाया जाता एक बाजा, तुरही (विपा १, ३; णाया १, १८)

छिप्प :: न [दे] १ भिक्षा, भीख (दे ३, ३६; सुपा ११५) २ पुच्छ, लांगुल (दे ६, ३६; पाअ)

छिप्पंत :: देखो = स्पृश्।

छिप्पंती :: स्त्री [दे] १ व्रत-विशेष। २ उत्सव- विशेष (दे ३, ३७)

छिप्पंदूर :: न [दे] १ गोमय-खण्ड, गोबर- खण्ड। २ वि. विषम, कठिन (दे ३, ३८)

छिप्पाल :: पुं [दे] सस्यासक्त बैल, खाने में लगा हुआ बैल (दे ३, २८)।

छिप्पालुअ :: न [दे] पूँछ, लांगूल (दे ३, २९)।

छिप्पंडी :: स्त्री [दे] १ व्रत-विशेष। २ उत्सव- विशेष। ३ पिष्ट, पिसान (दे ३, ३७)

छिप्पिअ :: वि [दे] क्षरित, झरा हुआ, टपका हुआ (पाअ)।

छिप्पीर :: न [दे] पलाल, पुआल, तृण (दे ३, २८)।

छिप्पोल्ली :: स्त्री [दे] अजादि की विष्ठा (निचू १)।

छिब्भ :: सक [क्षिप्] फेंकना। छिब्भंति (सूअ १, ५, २, १२)।

छिमिछिमिछिम :: अक [छिमिछिमाय्] 'छिम-छिम’ आवाज करना। वकृ. छिमि- छिमिछिमंत (पउम २६, ४८)।

छिरा :: स्त्री [शिरा] नस, नाड़ी, रग (ठा २, १; हें १, २६६)।

छिरि :: पुं [दे] भालू की आवाज (पउण ९४, ४५)।

छिल्ल :: न [दे] १ छिद्र, बिवर (दे ३, ३५; षड्) २ कुटी, कुटिया, छोटा घर। ३ बाड़ की छिद्र (दे ३, ३५) ४ पलाश का पेड़ (ती ९)

छिल्लर :: न [दे] पल्वल, छोटा तलाव (दे ३, २८; सुर ४, २२९)।

छिल्लर :: वि [दे] असार, छिछरुं, खालरुँ।

छिल्ली :: स्त्री [दे] शिखा, चोटी (दे ३, २७)।

छिव :: सक [स्पृश्] स्पर्श करना, छूना। छिवइ (हे ४, १८२)। कर्मं. छिप्पइ, छिवि- ज्जइ (हे ४, २५७). वकृ. छिवंत (गा २६९)। कवकृ. छिप्पंत, छिविज्जमाण (कुमा; गा ४४३, स ६३२; श्रा १२)।

छिवट्ठ :: [दे] देखो छेवट्ठ (कम्म २, ४)।

छिवण :: न [स्पर्शन] स्पर्शं, छूना (उप १८७ टी; ६७७)।

छिवा :: स्त्री [दे] श्‍लक्ष्ण कष, चीकना चाबुक; 'छिवापहारे य’ (णाया १, २ — पत्र ८६; पणह १, ३; विपा १, ६)।

छिवाडिआ, छिवाडी :: स्त्री [दे] १ वल्लिी वगैरह की फली, सीम या सेम (जं १) २ पुस्तक-विशेष, पतले पन्‍नेवाली ऊँची पुस्तक, जिसके पन्‍ने विशेष लम्बे और कम चौड़े हों ऐसी पुस्तक (ठा ४, २; पव ८०)

छिविअ :: वि [स्पृष्ट] १ छूआ हुआ (दे ३, २७) २ न. स्पर्श, छूना (से २, ८)

छिविअ :: न [दे] ईख का टुकड़ा (दे ३, २७)।

छिवोल्लअ :: [दे] देखो छिव्वोल्ल (गा ६०५ अ)।

छिव्व :: वि [दे] कृत्रिम, बनावटी (दे ३, २७)।

छिव्वोल्ल :: न [दे] १ निन्दार्थक मुख-विकूणन, अरुचि-प्रकाशक मुख-विकार-विशेष। २ विकू- णित मुख (दे ३, २८)

छिह :: सक [स्पृश्] स्पर्शं करना, छूना। छिहइ (हे ४, १८२)।

छिहंड :: न [शिखण्ड] मयूर की शिखा (णाया १, १ — वस्त्र ५७ टी)।

छिहंडअ :: पुं [दे] दही का बना हुआ मिष्टान्न, दधिसर; गुजराती में जिसे ‘सिखंड’ कहते हैं (दे ३, २९)।

छिहंडि :: पुं [शिखण्डिन्] १ मयूर, मोर। २ वि. मयूरपिच्छ को धारण करनेवाला (णाया १, १ — पत्र ५७ टी)

छिहली :: स्त्री [दे] शिखा, चोटी (बृह ४)।

छिहा :: स्त्री [स्पृहा] स्पृहा, अभिलाष (कुमा; हे १, १२८; षड्)।

छिहिंडिभिल्ल :: न [दे] दधि, दही (दे ३, ३०)।

छिहिअ :: वि [स्पृष्ट] छूआ हुआ (कुमा)।

छीअ :: स्त्रीन [क्षुत] छिक्का, छींक (हे १, ११२; २, १७; ओघ ६४३; पडि)। स्त्री. °आ (श्रा २७)।

छीअमाण :: वि [क्षुवत्] छींक करता (आचा २, २, ३)।

छीण :: वि [क्षीण] क्षय-प्राप्त, कृश, दुर्बंल (हे २, ३; गा ८४)।

छीयंत :: वि [क्षुवत्] छींक करता (ती ८)।

छीर :: न [क्षीर] जल, पानी। २ दुग्ध, दूध (हे २, १७; गा ५६७)। °बिराली स्त्री [°बिडाली] वनस्पति-विशेष, भूमि-कूष्माण्ड (पणण १ — पत्र ३५)।

छीरल :: पुं [क्षीरल] हाथ से चलनेवाला एक तरह का तन्तु, साँप की एक जाति (पणह १, १)।

छीवोल्लअ :: [दे] देखो छिव्वोल्ल (गा ६०३)।

छु :: सक [क्षुद्] १ पीसना। २ पीलना। कर्म. छुज्जइ (उव)। कवकृ. छुज्जमाण (संथा ६०)

छुअ :: देखो छीअ (प्राप्र)।

छुअ :: देखो छुव। छुअइ (प्राकृ ७६)।

छुई :: स्त्री [दे] बलाका, बकपंक्ति (दे ३, ३०)।

छुंछुई :: स्त्री [दे] कपिकच्छु; केबांच का पेड़ (दे ३, ३४)।

छुंछुमुसय :: न [दे] रणण्णक, उत्सुकता, उत्कण्ठा (दे ३, ३१)।

छुंद :: वि [आ + क्रम्] आक्रमण करना। छुंदइ (हे ४, १६०; षड्)।

छुंद :: सक [दे] बहु, प्रभूत (दे ३, ३०)।

छुक्कारण :: न [धिक्कारण] धिक्कारना, निंदा (बृह २)।

छुच्छ :: वि [तुच्छ] तुच्छ, क्षुद्र, हलका (हे १, २०४)।

छुच्छुक्कर :: सक [छुच्छु + कृ] ‘छु-छु' आवाज करना, श्वानादि को बुलाने का आवाज करना। छुच्छुक्करेति (आचा)। खुज्जमाण देखो छु।

छुट्ट :: अक [छुट्] छूटना, बन्धन-मुक्त होना। छुट्टइ (भवि)। छुट्टह (धम्म ९ टी)।

छुट्ट :: वि [छुटित] छूटा हुआ. बन्धन-मुक्त (सुपा ४०७; सूक्त ८९)।

छुट्ट :: वि [दे] छोटा, लघु (पाअ)।

छुट्टण :: न [छोटन] छुटकारा, मुक्ति (श्रा २७)।

छुट्ठ :: वि [दे] १ लिप्त। २ क्षिप्त, फेंका हुआ (भवि)

छुडु :: अ [दे] १ यदि, जो (हे ४, ३८५; ४२२) २ शीघ्र, तुरन्त (हे ४, ४०१)

छुड्ड :: वि [क्षुद्र] क्षुद्र, तुच्छ, हलका, लघु (औप)।

छुड्डिया :: स्त्री [क्षुद्रिका] आभरण-विशेष (पणह २, ५ — पत्र १५९ )।

छुण्ण :: वि [क्षुण्ण] १ चूर्णित, चूर-चूर किया हुआ। २ विहत, विनाशित। ३ अभ्यस्त (हे २, १७; प्राप्र)

छुत्त :: वि [छुप्त] स्पृष्ट, छूआ हुआ (हे २, १३८; कुमा)।

छुत्ति :: स्त्री [दे] छूत, अशौच (सूक्त ५९)।

छुद्दहीर :: पुं [दे] १ शशि, बच्चा, बालक। २ शशी, चन्द्रमा (दे ३, ३८)

छुद्दिया :: देखो छुड्डिया (पणह २, ५ — पत्र १४९)।

छुद्घ :: देखो खुद्ध (प्राप्र)।

छुद्ध :: वि [दे] क्षिप्त, प्रेरित (सण)।

छुध :: वि [क्षुध] भूखा (प्राकृ २२)।

छुन्न :: पुंन [क्षुण्ण] क्लीब, नपुंसक (पिंड ४२५)।

छुन्न :: देखो छुण्ण; ‘जंतम्मि पावमइणा छुन्‍ना छन्‍नेण कम्मेण’ (संथा ५९)।

छुप्पंत :: देखो छुव।

छुब्भ :: अक [क्षुभ्] क्षुब्ध होना, विचलित होना। छुब्भंति (पि ६६)।

छुब्भत्थ :: [दे] देखो छोब्भत्थ (दे ३, ३३)।

छुभ :: देखो छुह। छुभइ, छुभेइ (महा; रयण २०)। संकृ छुभित्ता (पि ६६)।

छुभा :: देखो छमा (दसचू १)।

छुर :: सक [छुर्] १ लेप करना, लीपना। २ छेदन करना, छेदना। ३ व्याप्त करना (वा १२; पउम २८, २८)

छुर :: पुं [क्षुर] १ छुरा, नापित का अस्त्र। २ पशु का नख, खुर। ३ वृक्ष-विशेष, गोखरू। ४ बाण, शर, तीर (हे २, १७; प्राप्र) ५ न. तृण-विशेष (पणण १)

°घरय :: न [°गृहक] नापित के छुरा वगैरह रखने की थैली (निचू १)।

छुरण :: न [क्षुरण] अवलेपन (कप्पू)।

छुरमड्डि :: पुं [दे] नापित, हजाम (दे ३, ३१)।

छुरहत्थ :: पुं [दे. क्षुरहस्त] नापित, हजाम (दे ३, ३१)।

छुरिआ :: स्त्री [दे] मृत्तिका, मिट्टी (दे ३, ३१)।

छुरिआ, छुरिगा :: स्त्री [क्षुरिका] छुरी, चाकू (महा; सुपा ३८१; स १४७)।

छुरिय :: वि [छुरित] १ व्याप्त। २ लिप्त (पउम २८, २८)

छुरी :: स्त्री [क्षुरी] छुरी, चाकू (दे २, ४; प्रासू ६५)।

छुल्ल :: देखो लुड्ड (सुपा १५९)।

छुल्लच्छुल्ल :: देखो चुल्लच्छल। छुल्लु- च्छुलेइ (सूअनि ९६ टी)।

छुव :: सक [छुप्] स्पर्शं करना छूना। कर्मं. छुप्पइ, छुविज्जइ (हे ४, २४९)। कवकृ. छुप्पंत (उप ३३९; ७२८ टी)।

छुह :: सक [क्षिप्] फेंकना, डालना। छुहइ (उव; हे ४, १४३)। संकृ. छोढूण, छोढूणं (स ८५; विसे ३०१)।

छुहा :: स्त्री [सुधा] १ अमृत, पीयूष (हे १, २६५; कुमा) २ खड़ी, मकान पोतवे का श्‍वेत द्रव्य-विशेष, चूना (दे १, ७८; कुमा)। °अर पुं [°कर] चन्द्र, चन्द्रमा (षड्)।

छुहा :: स्त्री [क्षुध्] क्षुधा, भूख, बुभुक्षा (हे १, १७; दे २, ४२)।

छुहाइअ :: वि [क्षुधित] भूखा, बुभुक्षित (पाअ)।

छुहाउल :: वि [क्षुदाकुल] ऊपर देखो (गा ५८१)।

छुहालु :: वि [क्षुधालु] ऊपर देखो (उप पृ १६०; १५० टी)।

छुहिअ :: वि [क्षुधित] ऊपर देखो (उव; उप ७२८ टी; प्रासू १८०)।

छुहिअ :: वि [दे] लिप्त, पोता हुआ (दे ३, ३०)।

छूढ :: वि [क्षिप्त] क्षिप्त, प्रेरित (हे २, ९२; १२७; कुमा)।

छूहिअ :: न [दे] पार्श्‍व का परिवर्त्तन (षड्)।

छेअ :: सक [छेदय्] १ छिन्‍न करना। २ तोड़वाना, छेदवाना। कर्मं. छेइज्जंति (पि ५४३)। संकृ. छेएत्ता (महा)

छेअ :: पुं [दे] १ अन्त, प्रान्त, पर्यन्त (दे ३, ३८; पाअ; से ७, ४८; कम्म १, ३९) २ देवर, पति का छोटा भाई (दे ३, ३८) ३ एक देश, एक भाग (से १, ७) ४ निर्विभाग अंश (कम्म ४, ८२)

छेअ :: वि [छेक] निपुण; चतुर, हुशियार (पाअ; प्रासू १७२; औप; णाया १, १)। °यारिय पुं [°चार्य] शिल्पाचार्य, कलाचार्यं (भग ७, ९)।

छेअ :: वि [दे. छेक] १ विशुद्ध, निर्मंल (पंचा ३, ३५; ३८) २ न. कालोचित हित (धर्मं- सं ५४३)

छेअ :: पुं [छेद] १ नाश, विनाश; ‘विज्जाच्छेओ कओ भद्द’ (सुर ५, १९४) २ खण्ड, विभाग (से १, ७) ३ छेदन, कर्त्तन; 'जीहाछेअं’ (गा १५३; से ७, ४८) ४ छः जैन आगम-ग्रन्थ, वे ये हैं — निशोथसूत्र, महानिशीथसूत्र, दशा-श्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र, पञ्‍चकल्पसूत्र (विसे २२९५) ५ छिन्‍न विभाग, अलग किया हुआ अंश (से ७, ४८) ६ कमी, न्यूनता (पंचा १६) ७ प्रायश्चित्त-विशेष (ठा ४, १) ८ शुद्धि- परीक्षा का एक अंग, धर्मं-शुद्धि जानने का एक लक्षण, निर्दोष बाह्य आचरण; ‘सो' छेएण सुद्धोत्ति’ (पंचव ३)। °रिह न [°र्ह] प्रायश्चित विशेष (ठा १०)

छेअअ, छेअग :: वि [छेदक] छेदन करनेवाला, काटनेवाला (नाट; विसे ५१३)।

छेअण :: न [छेदन] १ खण्डन, कर्त्तन, द्विधा करण (सम ३६; प्रासू १४०) २ कमी न्यूनता, ह्रास (आचा) ३ शस्त्र, हथियार (सूअ २, ३) ४ निश्चायक वचन (बृह १) ५ सूक्ष्म अवयव (बृह १) ६ जल- जीव-विशेष (सूअ २ ३)

छेओवट्ठावण :: न [छोदोपस्थापनीय] जैन संयम-विशेष, बड़ी दीक्षा (नव २६; पंचा ११)।

छेओवट्ठावणिय :: न [छेदोपस्थापनीय] ऊपर देखो (सक)।

छेंछई :: [दे] देखो छिंछई (गा ३०१)।

छेंड :: [दे] देखो छिंड (दे ३, ३५)।

छेंडा :: स्त्री [दे] १ शिखा, चोटी। २ नव- मालिका, लता-विशेष (दे ३, ३९)

छंडी :: स्त्री [दे] छोटी गली, छोटा रास्ता (दे ३, ३१)।

छेग :: देखो छेअ = छेक (दे ३, ४७)।

छेज्ज :: देखो छिज्ज (दसनि २; महा)।

छेज्जा :: स्त्री [°छेद्या] छेदन-क्रिया (सूअ १, ४)।

छेण :: पुं [दे] स्तेन, चोर (षड्)।

छेत्त :: देखो खेत्त (गा ९; उप ३५७ टी; स १९४; भवि)।

छेत्तर :: न [दे] सूप वगैरह पुराना गृहोपकरण (दे ३, ३२)।

छेत्तसोवणय :: न [दे] खेत में जागना (दे ३, ३२)।

छेत्तु :: विे [छेतृ] छेदनेवाला, काटनेवाला (आचा)।

छेद :: देखो छेअ = छेदय्। कर्म. छेदीअंति (पि ५४३)। संकृ. छेदिऊण, छेदेत्ता (पि ५८६; भग)।

छेद :: देखो छेअ = छेद (पउम ४४, ६७; औप; वव १)।

छेदअ :: वि [छेदक] छेदनेवाला (पि २३३)।

छेदण :: वि [छेदन] छेदन-कर्ता। स्त्री. °णी (स ७६६)।

छेदोवट्ठावणिय :: देखो छेओवट्ठावणिय (ठा ३, ४)।

छेध :: पुं [दे] १ स्थासक, चन्दनादि सुगन्धि वस्तु का विलेपन। २ चोर, चोरी करनेवाला (दे ३, ३९)

छेप्प :: न [दे. शेप] पुच्छ, लाङ्गुल, पूँछ (गा ६२; विपा १, २; गउड)।

छेभय :: पुं [दे] चन्दन आदि का विलेपन, स्थासक (दे ३, ३२)।

छेल, छेलग, छेलय :: पुंस्त्री. अज, छाग, बकरा (दे ३, ३२; स १५०)। स्त्री. °लिआ, °ली (पि २३१; पणह १, १ — पत्र १४)।

छेलावण :: न [दे] १ उत्कृष्ट हर्षं-ध्वनि। २ बाल-क्रीडन। ३ चीत्कार, ध्वनि-विशेष; 'छेलावणमुक्किट्ठाइ बालकीवालणं च सेंटाइ' (आवम)

छेलिय :: न [दे] सेण्टित, नाक छींकने का शब्द, अव्यक्त ध्वनि-विशेष (पणङ १, ३; विसे ५०१)।

छेली :: स्त्री [दे] थोड़े फूलवाली माला (दे ३, ३१)।

छेवग :: न [दे] महामारी या मारी वगैरह फैली हुई बीमारी (वव ५; निचू १)।

छेवट्ट, छेवट्ठ :: न [दे. सेवार्त्त, छेदवृत्त] १ संहनन-विशेष, शरीर-रचना-विशेष, जिसमें मर्कट-बन्ध, बेठन और खीला न होकर यों ही हड्डियाँ आपस में जुपड़ी हों ऐसी शरीर-रचना (सम ४४; १४९; भग; कम्म १, ३९) २ कर्म-विशेष, जिसके उदय से पूर्वोक्त संहनन की प्राप्ति होती है वह कर्मं (कम्म १, ३९)

छेवाडी :: [दे] देखो छिवाडी (पव ८०; निचू १२; जीव ३)।

छेह :: पुं [दे. क्षेप] प्रेंरण, क्षेपण; 'तो वअ- परिणामोणअभुमआवलिरुब्भमाणदिट्ठिच्छेहो' (से ४, १७)।

छेहत्तरि :: (अप) देखो छाहत्तरि (पिंग)।

छअ :: पुं [दे] छिलका (सूअ २, १, १६)।

छोइअ :: पुं [दे] दास, नौकर (दे ३३)।

छोइआ :: स्त्री [दे] छिलका, ईख बगैरह की छाल (उप ७६८ टी); 'उच्छुखंडे पत्थिए छोइयं पणामेइ' (महा)।

छोक्करी :: स्त्री [दे] छोकरी, लड़की (कुप्र ५३)।

छोट्टि :: स्त्री [दे] उच्छिष्टता, जूठाई (पिंड ५८७)।

छोड :: सक [छोटय्] छोड़ना, बन्धन से मुक्त करना। छोडइ, छोडेइ (भवि; महा)। संकृ. छोडिवि (सुपा २४९)।

छोडय :: वि [दे] छोटा, लघु (वज्जा १६४)।

छोडाविय :: वि [छोटित] छुड़वाया हुआ, बन्धन-मुक्त कराया हुआ (स ९२)।

छोडि :: स्त्री [दे] छोटी, लघ्वी, क्षुद्र (पिंग)।

छोडिअ :: वि [छोटित] १ छोड़ा हुआ, बन्धन मुक्त किया हुआ; 'वत्थाओ छोडिओ गंठी' (सुपा ५०४; स ४३१) २ घट्टित, आहत (पणह १, ४ — पत्र ७८)

छोडिअ :: देखो फोडिअ (औप)।

छोढूण :: वि [दे] छोड़कर (कुप्र ३१)।

छोढूण, छोढूणं :: देखो छुह।

छोप्प :: वि [स्पृश्य] स्पर्शं-योग्य, छूने लायक (आचा २, १५, ५)।

छोब्भ :: पुं [दे] पिशुन, खल, दुर्जंन (दे ३, ३३)। देखो छोभ।

छोब्भ :: वि [क्षोभ्य] क्षोभ-योग्य, क्षोभणीय; 'होंति सत्तपरिवज्जिया य छोभा (? ब्भा)। सिप्पकलासमयसत्थपरिवज्जिया' (पणह १, ३ — पत्र ५५)।

छोब्भत्थ :: वि [दे] अप्रिय, अनिष्ट (दे ३, ३३)।

छोब्भाइत्ती :: स्त्री [दे] १ अस्पृश्या, छूने के अयोग्या। २ द्वेष्या, अप्रीतिकर स्त्री (दे ३, ३९)

छोभ :: [दे] देखो छोब्भ (दे ३, ३३ टि)। २ निस्सहाय, दीन (पणह १, ३ — पत्र ५५) ३ न. अभ्याख्यान, कलंक-आरोपण, दोषारोप (बृह १; वव २) ४ न. वन्दन-विशेष, दो खमासमण-रूप वन्दन (गुभा १) ५ आघात; 'कोवेण धमधमंतो दंतच्छोभे ये देह सो तम्मि' (महा)

छोम :: देखो छउम (णाया १, ९ — पत्र १५७)।

छोयर :: पुं [दे] छोरा, लड़का, छोकरा (उप पृ २१५)।

छोलिअ :: देखो छोडिअ = छोटित (पिंग)।

छोल्ल :: सक [तक्ष्] छीलना, छाल उतारना। छोल्लइ (षड्)। कर्मं. छोल्लिज्जंतु (हे ४, ३९५)।

छोल्लण :: न [तक्षण] छीलना, निस्तुषीकरण, छिलका उतारना (णाया १, ७)।

छोल्लिय :: वि [तष्ट] छिलका उतारा हुआ, तुष- रहित किया हुआ (उप १७५)।

छोह :: पुं [दे] १ समूह, यूथ, जत्था। २ विक्षेप (दे ३, ३९) ३ आघात; 'ताव य सो मायंगो छोहं जा देइ उत्तरिजम्मि' (महा)

छोह :: पुं [क्षेप] १ क्षेपण, फेंकना; 'नियदिट्ठि- च्छोहअमयधाराहिं' (सुपा २९८)

छोहर :: दे देखो छोयर (सुपा ५५२)।

छोहिय :: वि [क्षोभित] क्षोभ-प्राप्‍त, घबड़ाया हुआ, व्याकुल किया गया (उफ १३७ टी)।

 :: पुं [ज] तालु-स्थानीय व्यंजन वर्णं-विशेष (प्रामा; प्राप)।

 :: स [यत्] जो, जो कोई (ठा ३, १; जी ८; कुमा; गा १०६)।

°ज :: वि [°ज] उत्पन्न, 'आसाइयरससेओ होइ विसेसेण णोहजो दहणो' (गा ७९९); 'आरं- भज' (आचा)।

जअक्कार :: पुं [जयकार] जीत, अभ्युदय (प्राकृ ३०)।

जअड :: अक [त्वर्] त्वरा करना, शीघ्रता करना। जअडइ (हे ४, १७०; षड्)। वकृ. जअडंत (हे ४, १७०)। प्रयो. जअडावंति (कुमा)।

जअल :: वि [दे] छन्न, आच्छिदित, ढका हुआ (षड्)।

जइ :: पुं [यति] १ साधु, जितेन्द्रिय, संन्यासी (औप; सुपा ४४४) २ छन्द-शास्त्र में प्रसिद्ध विश्राम-स्थान, कविता का विश्राम-स्थान (धम्म १ टी)

जइ :: वि [यति] जितना (वव १)।

जइ :: अ [यदा] जिस समय, जिस वक्त (प्राप्र)।

जइ :: अ [यदि] यदि, जो, अगर (सम १५५; विपा १, १)। °वि अ [°अपि] लजो भी (महा)।

जइ :: अ [यत्र] जहाँ, जिस स्थान में (षड्)।

जइ :: वि [जयिन्] जीतनेवाला, विजयी (कुमा)।

जइअव्व :: वि [जेतव्य] जीतने योग्य (प्रवि १२)।

जइआ :: अ [यदा] जिस समय, जिस वक्‍त (उव; हे ३, ६५)।

जइच्छा :: स्त्री [यदृच्छा] १ स्वतन्त्रता। २ स्वेच्छाचार (राज)

जइण :: वि [जैन] १ जिन-देव का भक्त, जिन- धर्मी। २ जिन भगवान् का, जिन-देव से संबन्ध रखनेवाला (विसे ३८३; धम्म ९ टी; सुर ८, ९४)। स्त्री. °णी (पंचा ३)

जइण :: वि [जयिन्] जीतनेवाला; 'मणपवण- जइणवेगं' (उवा; णाया १, १ — पत्र ३१)।

जइण :: वि [जविन्] बेगवाला, वेग-युक्त, त्वरा-युक्त; 'उवइयउप्पइयचबलजइणसिग्घवे- गाहिं' (औप)।

जइत्त :: वि [जैत्र] १ जीतनेवाला, विजयी (ठा ६) २ पुं. नृप-विशेष (रंभा)

जइत्ता :: देखो जय = जि।

जइय :: वि [जयिक] जयावह, विजयी (णाया १, ८ — पत्र १३३)।

जइय :: वि [यष्टि] याग करनेंवाल, 'तुब्भे जइया जन्नाणं' (उत्त २५, ३८)।

जययव्व :: देखो जय = यत्।

जइवा :: अ [यदि वा] अथवा, या (वव १)।

जइस :: (अप) वि [यादृश्] जैसा, जिस तरह का (षड्)।

जउ :: न [जतु] लाक्षा, लाख, लाह (ठा ४, ४; उप पृ २४)।

जउ :: पुं [यदु] १ स्वनाम-ख्यात एक राजा। २ सुप्रसिद्ध क्षत्रिय वंश (उव) °णंदण पुं [°नन्दन] १ यदुवंशीय, यदुवंश में उत्पन्न। २ श्रीकृष्ण (उव)

जउ :: पुं [यजुष्] वेद-विशेष, यजुर्वेंद (अणु)।

जउण :: पुं [यमुन] स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा (उप ४५७)।

जउण, जँउण°, जँउणा :: स्त्री [यमुना] भार की एक प्रसिद्ध नदी, जमुना (ठा १, २; हे १, ४; १७८)।

जउणा :: देखो जँउणा (वज्जा १२२; प्राकृ ११)।

जओ :: अ [यतः] १ क्योंकि, कारण कि, चूँ कि (श्रा २८) २ जिससे, जहाँ से (प्रासू ८२, १४८)

जं :: अ [यत्] १ क्योंकि, काऱण कि। २ वाक्यान्तर का संबन्ध-सूचक अव्यय (हे १, २४; महा, गा ६६) °किंच अ [°किञ्चित्] १ जो कुछ, जो कोई (पडि; पणह १, ३) २ असंबद्ध, अयुक्त, तुच्छ, नगणय (पंचव ४)

जंकयसुकय :: वि [दे] अल्प सुकृत से ग्राह्य, थोड़े उपकार से अधीन होनेवाला (दे ३, ४५)।

जंगम :: वि [जंगम] १ चलनेवाला, जो एख स्थान से दूसरे स्थान में जा सकता हो वह (ठा ६; भवि) २ छन्द-विशेष (पिंग)

जंगल :: पुं [जङ्गल] १ देश-विशेष, सपादलक्ष देश (कुमा; सत्त ६७ टी) २ निर्जल प्रदेश (बृह १) ३ न. मांस; 'गयकुंभवियारिय- मोत्तिएहि जं जंगलं किणइ' (वज्जा ४२)

जंगा :: स्त्री [दे] गोचर-भूमि, पशुओं को चरने की जगह (दे ३, ४०)।

जंगिअ :: वि [जाङ्गमिक] १ जंगम वस्तु से संबन्ध रखनेवाला, जंगम-संबन्धी। २ न. जंगम जीवों के रोम का बना हुआ कपड़ा (ठा ३, ३; ५, ३; कस)

जंगुलि :: स्त्री [जाङ्गुलि] विष उतारने का मन्त्र, विष-विद्या (ती ४५)।

जंगुलिय :: पुं [जाङ्गुलिक] गारुड़िक, विषमन्त्र का जानकार, विषहरिया (पउम १०५, ५७)।

जंगोल :: स्त्रीन [जाङ्गुल] विष-विघातक तन्त्र, विष-विद्या, आयुर्वेद का एक विभाग जिसमें विष की चिकित्सा का प्रतिपादन है (विपा १, ७ — पत्र ७५)। स्त्री. °ली (ठा ८)।

जंघा :: स्त्री [जङ्घा] जाँघ, जानु के नीचे का भाग (आचा; कप्प)। °चर वि [°चर] पादचारी, पैर से चलनेवाला (अणु)। °चारण पुं [°चारण] एक प्रकार के जैन मुनि, जो अपने तपोबल से आकाश में गमन कर सकते हैं (भग २०, ८; पव ६७)। °संतारिम वि [संतार्य] जाँग तक पानीवाला जलाशय (आचा २, ३, २)।

जंघाच्छेअ :: पुं [दे] चत्वर, चौक (दे ३, ४३)।

जंघामय, जंघालुअ :: वि [दे] जंघाल, द्रुत-गामी, वेग से जानेवाला (दे ३, ४२; षड्)।

जंघाल :: वि [जङ्गाल] द्रुत-गामी (दे ८, ७८)।

जंत :: सक [यन्त्र्] १ वश करना, काबू में करना। २ जकड़ना, बाँधना (उप पृ १३१)

जंत :: न [यन्त्र] १ कल, युक्ति-पूर्वंक शिल्प आदि कर्म करने के लिए पदार्थं-विशेष, तिल- यन्त्र आदि (जीव ३; गा ५५४; पडि; महा; कुमा) २ वशीकरण, रक्षा वगैरह के लिए किया जात लेख प्रयोग (पणह १, २) ३ संयमन, नियन्त्रण (राय)। °पत्थर पुं [प्रस्तर] गोफण का पत्थर (पणह १, २)। °पिल्लणकम्म न [°पीडनकर्मन्] यन्त्र द्वारा तिल, ईख आदि पीलने या पेरनेका धंधा (पडि)। °पुरिस पुं [°पुरुष] यन्त्र-निर्मित पुरुष, यन्त्र से पुरुष की चेष्टा करनेवाला पुतला (आवम)। °वाडचुल्ली स्त्री [°पाटचुल्ली] इक्षु-रस पकाने का चूल्हा (ठा ८ — पत्र ४१७)। °हर न [°गृह] धारा-गृह, पानी का फवारावाला स्थान (कुमा)

जंत :: देखो जा = या।

जंतण :: न [यन्त्रण] १ नियन्त्रण, संयमत, काबू। २ रोकनेवाला, प्रतिरोधक, (से ४, ४९)

जंतिअ :: पुं [यान्त्रिक] यन्त्र-कर्मं करनेवाला, कल चलानेवाला (गा ५५४)।

जंतिअ :: वि [यन्त्रित] नियन्त्रित, जकड़ा हुआ (पउम ५३, १४५)।

जंतु :: पुं [जन्तु] जीव, प्राणी (उत्त ३; सण)।

जंतुग :: न [जन्तुक] जलाशय में होनेवाला तृण-विशेष (पणह २, ३ — पत्र १२३)।

जंतुय :: वि [जान्तुक] जन्तुक नामक तृण का (आचा २, २, ३, १४)।

जंप :: सक [जल्प्] बोलना, कहना। जंपइ (प्राप्र)। वकृ. जंपंत, जंपमाण (महा; गा १९८; सुर ४, २)। संकृ. जंपिऊण, जंपिऊणं, जंपिय (प्रारू; महा)। हेकृ. जंपिउं (महा)। कृ. जंपिअव्व (गा २४२)।

जंपण :: न [जल्पन] उक्ति, कथन, कहना (श्रा १२; गउड)।

जंपण :: न [दे] १ अकीर्त्ति, अपयश। २ मुख मुंह (दे ३, ५१; भवि)

जंपय :: वि [जल्पक] बोलनेवाला, भाषक (पणह १, ३)।

जंपाण :: न [जम्पान] १ वाहन-विशेष, सुखा- सन, शिविका-विशेष (ठा ४, ३; औप; सुपा ३९३; उप ९५६) २ मृतक-यान, शव-यान (सुपा २१९)

जंपिच्छय :: वि [दे] जिसको देखे उसी को चाहनेवाला (दे ३, ४४; पाअ)।

जंपिय :: वि [जल्पित] कथित, उक्त (प्रासू १३०)।

जंपिय :: देखो जंप।

जंपिर :: वि [जल्पितृ] १ जल्पाक, वाचाट (दे २, ९७) २ बोलनेवाला, भाषक (हे २, १४५; श्रा २७; गा १९२; सुपा ४०२)

जंपेक्खिरमग्गिर, जंपेच्छिरमग्गिर :: वि [दे] जिसको देखे उसी की याचना करनेवाला (षड्; ३, ४४)।

जंबवई :: स्त्री [जाम्बवती] श्रीकृष्ण की एक पत्‍नी (अंत १४; आचू १)।

जंबवंत :: पुं [जाम्बवत्] एक विद्याधर राजा (कुप्र २५९)।

जंबाल :: न [दे] १ जंबाल, सैवाल, जलमल, सिवार या सेवार (दे ३, ४२; पाअ)

जंबाल :: पुंन [जम्बाल] १ कर्दंम, काँदो, पंक (पाअ; ठा ३, ३) २ जरायु, गर्भं-वेष्टन चर्मं (सूअ १, ७)

जंबीरिय :: (अप) न [जम्बीर] नीबू या नीबू, फल-विशेष (सण)।

जंबु :: पुं [म्बु] १ जम्बुक, सियार; 'उद्धमु- हुन्नइयजंबुगणं' (पउम १०५, ५७) २ एक प्रसिद्ध जैन मुनि, सूधर्मं-स्वामी के शिष्य, अन्तिम केवली (कप्प; वसु; विपा १, १) ३ न. जम्बू वृक्ष का फल, जामुन (श्रा ३६)

जंबु :: पुंन [जम्बु] जम्बू वृक्ष का फल, जामुन; 'ते बिंति जंबू भक्खेमो' (संबोध ४७)।

जंबु° :: देखो जंबू (कप्प; कुमा; इक; पउम ५९, २२; से १३, ८६।

जंबूअ :: पुं [दे] १ वेतस वृक्ष, बेंत। २ पश्चिम दिक्‍पाल (दे ३, ५२)

जंबुअ, जंबुग :: पुं [जम्बुक] १ सियार, गीदड़ (प्रासू १७१; उप ७६८ टी; पउम १०५, ६४) २ न. जम्बूवृक्ष का फल, जामुन (सुपा २२९)

जंबुल :: पुं [दे] १ वानीर वृक्ष, बेंत। २ न. मद्यभाजन, सुरापात्र (दे ३, ४१)

जंबुल्ल :: वि [दे] जल्पाक, वाचाट, बकवादी (पाअ)।

जंबुवई :: देखो जंबवई (अंत; पडि)।

जंबु :: स्त्री [जम्बू] १ वृक्ष-विशेष, जामुन का पेड़ (णाया १, १; औप) २ जंबू वृक्ष के आकार का एक रत्‍नमय शाश्वत पदार्थ, सुदर्शना, जिसके कारण यह द्वीप जंबूद्वीप कहलाता है (जं १) ३ पुं. एक सुप्रसिद्ध जैन मुनि, सुधर्मं-स्वामी का मुख्य शिष्य (जं १)। °दीव पुं [°द्वीप] भूखण्ड विशेष, सब द्वीप और समुद्रों के बीच का द्वीप, जिसमें वह भारत आदि क्षेत्र वर्त्तमान है (जं १; इक)। °दीवग वि [°द्वीपक] जम्बूद्वीप- संबन्धी, जम्बूद्वीप में उत्पन्न (ठा ४, २; ६)। °दीवपण्णत्ति स्त्री [°द्वीपप्रज्ञप्ति] जैन आगम-ग्रन्थ-विशेष, जिसमें जंबूद्वीप का वर्णन है (जं १)। °पीढ, °पीढ न [°पीठ] सुदर्शंना-जम्बू का अधिष्ठान-प्रदेश (जं ४; इक)। °पुर न [°पुर] नगर-विशेष (इक)। °मालि पुं [°मालिन्] रावण का एक पुत्र, रावण का एक सुभट (पउम ५९, २२; से १३, ५६)। °मेघपुर न [°मेघपुर] विद्या- धर-नगर-विशेष (इक)। °संड पुं [°षण्ड] ग्राम-विशेष (आवम)। °सामि पुं [°स्वामिन्] सुप्रसिद्ध जैन मुनि-विशेष (आवम)

जंबूअ :: पुं [जम्बूक] सियार, गीदड़ (ओघ ८४ भा)।

जंबूणय :: न [जाम्बृनद] १ सुवर्णं, सोना (सम ६५; पउम ५, १२९) २ पुं. स्वनाम- प्रसिद्ध एक राजा (पउम ४८, ९८)

जंबूलय :: पुंन [जम्बूलक] उदक-भाजन-विशेष (उवा)।

जंभ :: पुं [दे] तुष, भूसा, धान्य वगैरह का छिलका (दे ३, ४०)।

जंभंत :: देखो जंभा = जृम्भ्।

जंभग :: वि [जृम्भक] १ जँमाई लेनेवाला। २ पुं. व्यन्तर-देवों की एक जाति (कप्प, सुपा ४०)

जंभणंभण, जंभणभण, जंभणय :: वि [दे] स्वच्छन्द-भाषी, जो मरजी में आवे वह बोलनेवाला (षड्; दे ३, ४४)।

जंभणी :: स्त्री [जृम्भणी] तन्त्र-प्रसिद्ध विद्या- विशेष (सूअ २, २; पउम ७, १४४)।

जंभय :: देखो जंभग (णाया १, १; अंत; भग १४, ८)।

जंभल :: पुं [दे] जड़़, सुस्त, मन्द (दे ३, ४१)।

जंभा :: स्त्री [जृम्भा] जँभाई, जृम्भण (विपा १, )।

जंभा :: स्त्री [जृम्भा] एक देवी का नाम (सिरि २०३)।

जंभा, जंभाअ :: अक [जृम्भ्] जँभाई लेना। जंभाइ, जंभाअइ (हे ४, १५७; २४०; प्राप्र; षड्)। वकृ. जंभंत, जंभाअंत (गा ५४६; से ७, ६५; कप्प)।

जंभाइअ :: न [जृम्भित] जँभाई, जृम्भा (पडि)।

जंभिय :: न [जृम्भित] १ जँभाई, जृम्भ। २ पुं. ग्राम-विशेष, जहाँ भगवान् महावीर को केवलज्ञान उत्पन्‍न हुआ था; यह गाँव पारस- नाथ पहाड़ के पास की ऋजुबालिका नदी के किनारे पर था (कप्प)

जक्ख :: पुं [यक्ष्] १ व्यन्तर देवों की एक जाति (पणह १, ४; औप) २ धनेश, कुबेर, यक्षाधिपति (प्राप्र) ३ एक विद्याधर-राजा, जो रावण का मौसेरा भाई था (पउम ८, १०२) ४ द्वीप-विशेष। ५ समुद्र-विशेष (चंद १९) ६ श्वान, कुत्ता; 'अहं आयविरा- हणया उक्खुल्लिहणे पवयणम्मि' (ओघ १९३ भा) °कद्दम पुं [°कर्दम] १ केसर, अगर, चन्दन, कपूर और कस्तूरी का समभाग मिश्रण (भवि) २ द्वीप-विशेष। ३ समुद्र-विशेष (चंद २०)। °ग्गह पुं [°ग्रह्] यक्षावेश, यक्षकृत उपद्रव (जीव ३; जं २)। °णायग पुं [°नायक] यक्षों का अधिपति, कुबेर (अणु)। °दित्ति न [°दीप्त] देखो नीचे °दित्तय (पव २६)। °दिन्ना स्त्री [°दत्ता] महर्षि स्थूलभद्र की बहिन, एक जैन साध्वी (पडि)। °भद्द पुं [°भद्र] यक्षद्वीप का अधिपति देव-विशेष (चंद २०)। °मंडलप- विभत्ति स्त्री [°मंडलप्रविभक्ति] एक तरह का नाट्य (राय)। °मह पुं [°मह] यक्ष के लिए किया जाता महोत्सव (आधा २, १, २)। °महाभद्द पुं [°महभद्र] यक्ष द्वीप का अधिपति देव (चंद २०)। °महावर पुं [°महावर] यक्ष समुद्र का अधिष्ठाता देव- विशेष (चंद २०)। °राय पुं [°राज] १ यक्षों का राजा, कुबेर। २ प्रधान यक्ष (सुपा ४९२) ३ एक विद्याधर राजा (पउम ८, १२४) °वर पुं [°वर] यक्ष-समुद्र का अधिपति देव-विशेष (चंद २०)। °इट्ठ वि [°विष्ट] यक्ष का आवेशवाला, यक्षाधिष्ठित (ठा ५, १; वव २)। °दित्तिय, °लित्तय न [°दिप्तक] १ कभी-कभी किसी दिशा में बिजली के समान जो प्रकाश होता है वह, आकाश में व्यन्तर-कृत अग्‍नि-दीपन (भग ३, ६; वव ७) २ आकाश में दीखता अग्‍नि- युक्त पिशाच (जीव ३) °वेस पुं [°वेश] यक्ष-कृत आवेश, यक्ष का मनुष्य-शरीर में प्रवेश (ठा २, १)। °हिव पुं [°धिप] १ वैश्रमण, कुबेर, यक्ष राज। २ एक विद्या- धर राजा (पउम ८, ११३)। °हिवइ पुं [°धिपति] देखो पूर्वोक्त अर्थं (पाअ; पउम ८, ११६)

जक्खारत्ति :: स्त्री [दे. यक्षरात्रि] दीपालिका, दीवाली, कार्त्तिक वदि अमास का पर्वं (दे ३, ४३)।

जक्खा :: स्त्री [यक्षा] एक प्रसिद्ध जैन साध्वी, जो महर्षि स्थूलभद्र की बहिन थी (पडि)।

जक्खिंद :: पुं [यक्षेन्द्र] १ यक्षों की स्वामी, यक्षों का राजा (ठा ४, १) २ भगवान् अरनाथ का शासनाधिष्ठायक देव (पव २६; संति ८)

जक्खिणी :: स्त्री [यक्षिणी] १ यक्ष-योनिक स्त्री, देवियों की एक जाति (आवम) २ भगवान् श्रीानेमिनाथ की प्रथम शिष्या (सम १५२)

जक्खिणी :: स्त्री [यक्षिणी] देखो जक्खा (मंगल २३)।

जक्खी :: स्त्री [याक्षी] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी)।

जक्खुत्तम :: पुं [यक्षोत्तम] यक्ष-देवों की एक अवान्तर जाति (पणण १)।

जक्खेस :: पुं [यक्षेश] १ यक्षों का स्वामी। २ भगवान् अभिनन्दन का शासन-यक्ष (संति ७)

जग :: न [यकृत्] पेट की दक्षिण-ग्रन्थि (पणह १, १)।

जग :: पुं [दे] जन्तु, जीव, प्राणी; 'पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू' (सूअ १, ७, २०)।

जग :: पुंन [जगत्] प्राणी, जीव; 'पुढविजीवे हिंसिज्जा से अ तन्निस्सिया जगे' (दस ५, १, ६८; सूअ १, ७, २०; १, ११, ३३)।

जग :: न [जगत्] जग, संसार, दूनियाँ (स २४६; सुर २, १३१)। °गुरु पुं [°गुरु] १ जगत् में सर्वं-श्रेष्ठ पुरुष। २ जगत् का पूज्य। ३ जिन-देव, तीर्थंकर (सं २१; पंचा ४) °जीवण वि [°जीवन] १ जगते को जीलानेवाला। २ पुं. जिन-देव (राज) °णाह पुं [°नाथ] जगत् का पालक, परमेश्वर, जिन-देव (णंदि)। °पियामह पुं [°पिता- मह] १ ब्रह्मा, विधाता। २ जिनदेव (णंदि)। °प्पगास वि [°प्रकाश] जगत् का प्रकाश करनेवाला, जगत्प्रकाशक (पउम २२, ४७)। °प्पहाण न [°प्रधान] जगत में श्रेष्ठ (गउड)

जगई :: स्त्री [जगती] १ प्राकार, किला, दुर्गं (सम १३; चैत्य ६१) २ पृथिवी (उत्त १)

जगईपव्वय :: पुं [जगतीपर्वत] पर्वंत-विशेष (राय ७५)।

जगजग :: अक [चकास्] चमकना, दीपना। वकृ. जगजगंत, जगजगेंत (पउम ७७, २३; १४, १३४)।

जगड :: सक [दे] १ झगड़ना, झगड़ा करना, कलह करना। २ कदर्थंन करना, पीड़ना। ३ उठाना, जागृत करना। वकृ. जगडंत (भवि)। कवकृ. जगडिड्ज्जंत (पउम ८२, ९; राज)

जगडण :: न [दे] नीचे देखो (उव)।

जगडण :: वि [दे] १ झगड़ा करानेवाला। २ कदर्थना करानेवाला (धर्मवि ८९; कुप्र ४२९)

जगडणा :: स्त्री [दे] १ झगड़ा, कलह। २ कदर्थंन, पीड़न; 'सेण च्चिय वम्महणायगस्स जगजगडणापसत्तस्स' (उप ५३० टी)

जगडिअ :: वि [दे] विद्रावित, कदर्थित (दे ३, ४४; सार्धं ९७; उव)।

जगडिअ :: वि [दे] लड़ाया हुआ (धर्मंवि- ३१)।

जगर :: पुं [जगर] संनाह, कवच, वर्म (दे ३, ४१)।

जगल :: न [दे] १ पङ्कवाली मदिरा, मदिरा का नीचला भाग (दे ३, ४१)। २ ईख की मदिरा का नीचला भाग (दे ३, ४१; पाअ)

जगार :: पुं [दे] राब, यवागू (पव ४)।

जगार :: पुं [जकार] 'ज' अक्षर, 'ज' वर्णं (निचू १)।

जगार :: पुं [यत्कार] 'यत्' शब्द; 'जगारुद्दिट्ठाणं तगारेण निद्देसो कीरइ' (निचू १)।

जगारी :: स्त्री [जगारी] अन्न-विशेष, एक प्रकार का क्षुद्र, 'असणं ओयणसुत्तुगमुग्गज- गारीइ' (पंचा ५)।

जगुत्तम :: वि [जगदुत्तम] जगत-श्रेंष्ठ, जगत् में प्रधान (पणह २, ४)।

जग्ग :: अक [जागृ] १ जागना, नींद से उठना। २ सचेत होना, सावधान होना। जग्गइ, जग्गि (हे ४, ८०; षड्; प्रासू ९८)। वकृ. जग्गंत (सुपा १८५)। प्रयो. जग्गावइ (पि ५५९)

जग्गण :: न [जागरण] जागना, निद्रा-त्याग (औघ १०९)।

जग्गविअ :: वि [जागरित] जगाया हुआ, नींद से उठाया हुआ (सुपा ३३१)।

जग्गह :: पुं [यद्‍ग्रह] जो प्राप्त हो उसे ग्रहण करने की राजाज्ञा, 'रणणा जग्गहो घोसिओ' (आवम)।

जग्गाविअ :: देखो जग्गविअ (से १०, ५६)।

जग्गाह :: देखो जग्गह (आक)।

जग्गिअ :: वि [जागृत] जगा हुआ, त्यक्त-निद्र (गा ३८५; कुमा; सुपा ५९३)।

जग्गिर :: वि [जागरितृ] १ जागनेवाला। २ सावचेत रहनेवाला (सुपा २१८)

जघण :: न [जघन] कमर के नीचे का भाग, ऊरुस्थल (कप्प; औप)।

जच्च :: पुं [दे] पुरुष, मरद, आदमी (दे ३, ४०)।

जच्च :: वि [जात्य] १ उत्तम जातवाला, कुलीन, श्रेष्ठ, उत्तम, सुन्दर (णाया १, १; श्रा १२; सुपा ७७; कप्प) २ स्वभाविक, अकृत्रिम (तंदु) ३ सजातीय, विजाति-मिश्रण से रहित, शुद्ध (जीव ३)

जच्चंजण :: न [जात्याञ्जन] १ श्रेष्ठ अञ्जन, सुन्दर आँजन (णाया १, १) २ मर्दित अञ्जन, तैल वगैरह से मर्दित अञ्जन (कप्प)

जच्चंदण :: न [दे] १ अगरु, सुगन्धि द्रव्य- विशेष, जो धूप के काम में आता है। २ कुंकुम, केसर (दे ३, ५२)

जच्चंध :: वि [जात्यन्ध] जन्म से अन्धा, जन्मांध (सुपा ३९५)।

जच्चण्णिय, जच्चन्निय :: वि [जात्यन्वित] सुकुल में उत्पन्न, श्रेष्ठ जाति का (सूअ १, १०; बृह ३)।

जच्चास :: पुं [जात्यश्व, जात्याश्व] उत्तम जाति का घोड़ा (पउम ५४, २९)।

जच्चिय :: (अप) वि [जातीय] समान जाति का (सण)।

जच्चिर :: न [यच्चिर] जहाँ तक, जितने समय तक (वव ७)।

जच्छ :: सक [यम्] १ उपरम करना, विराम करना। २ देना, दान करना। जच्छइ (हे ४, २१५; कुमा)

जच्छ :: पुं [यक्ष्मन्] रोग-विशेष, यक्ष्मा, क्षय- रोग (प्राकृ २२)।

जच्छंद :: वि [दे] स्वच्छन्द, स्वैर (दे ३, ४३, षड्)।

जज :: देखो जय = यज्। वकृ. जजमाण (नाट — शकु ७२)।

जजु :: देखो जउ = यजुष् (णाया १, ५; भग)।

जज्ज :: वि [जय्य] जो जीता जा सके वह, जीतने को शक्य (हे २, २४)।

जज्जर :: वि [जर्जर] जीर्णं, सच्छिद्र, खोखला, जांजर, झाझरा या झाँझर (गा १०१; सुर ३, १३९)।

जज्जर :: सक [जर्जरय्] जीर्णं करना, खोखला करना। कवकृ. जज्जरिज्जंत, जज्जरिज्जमाण (नाट — चैत ३३; सुपा ९४)।

जज्जरिय :: वि [जर्जरित] जीर्णं किया गया, खोखला किया हुआ, पुराना (ठा ४, ४; सुर ३, १६५; कस)।

जज्जिग :: पुं [जय्यिक] एक जैन आचार्य का नाम (ती १५)।

जज्जिय, जज्जीव :: न [यावज्जीव] जीवन-पर्यन्त, जिन्दगी भर; 'जज्जीव अहिणगणं (पिड ५०६; ५१२)।

जट्ट :: पुं [जर्त] १ देश-विशेष (भव) २ उस देश का निवासी (हे २, ३०)

जट्ठ :: वि [इष्ट] यजन किया हुआ, याग किया हुआ (स ५५)।

जट्ठ :: न [इष्ट] यजन, याग, यज्ञ (उत्त १२, ४०; २५, ३०)।

जट्ठि :: स्त्री [यष्टि] लकड़ी, 'जट्ठिमुट्ठिलउडपहा- रेहिं' (महा; प्राप्र)।

जड :: वि [जड] १ अचेतन, जीव रहित पदार्थ। २ मूर्खं, आलसी, विवेक-शून्य (पाअ; प्रासू ७१) ३ शिशिर, जाड़े से ठंढा होकर चलने को अशक्त (पाअ)

जड :: देखो जढ (षड्)।

जड°, जडा :: स्त्री [जटा] सटे हुए बाल, मिले हुए बाल (हेका २५७; सुपा २५१)। °धर वि [°धर] १ जटा को धारण करनेवाला। २ पुं. जटाधारी तापस, संन्यासी (पउम ३९, ७५)। °धारि पुं [°धारिन्] देखो पूर्वोक्त अर्थं (पउम ३३, १)

दडहारि :: दिखे जड-धारि (कुप्र २६३)।

जडाउ, जडाउण :: पुं [जटायु] स्वनाम-प्रसिद्ध गृद्ध पक्षि-विशेष (पउम ४४, ५५; ४०)।

जडागि :: पुं [जटाकिन्] ऊपर देखो (पउम ४१, ६५)।

जडाल :: वि [जटावत्] जटा-युक्त, जटाधारी (हे २, १४९)।

जडासुर :: पुं [जटासुर] असुर-विशेष (वेणी १७७)।

जडि :: वि [जटिन्] १ जटावाला, जटायुक्त। २ पुं. जटाधारी तापस (औप; भत्त १००)

जडिअ :: वि [जटिक] देखो जडि (कुप्र २६३)।

जडिअ :: वि [जटित] पिहित, ढका हुआ (सिरि ५१९)।

जडिअ :: वि [दे. जटित] जड़ित जड़ा हुआ, खचित, संलग्‍न (दे ३, ४१; महा; पाअ)।

जडिम :: पुंस्त्री [जडिमन्] जड़ता, जड़पन, जाड्य (सुपा ९)।

जडियाइलग, जडियाइलय :: पुं [दे. जटिकादिलक] ग्रह- विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, ३; चन्द २०)।

जडिल :: वि [जटिल] १ जटावाला, जटा-युक्त (उवा; कुमा २, ३५) २ व्याप्त, खचित; 'उल्लसियबहलजालोलिजडिले जलणे पवेसो वा' (सुपा ४९५) ३ पुं. सिंह, केसरी। ४ जटाधारी तापस (हे १, १९४; भग १५; पव ९४)

जडिलय :: पुं [दे. जटिलक] राहु, ग्रह-विशेष (सुज्ज २०)।

जडिलिय, जडिलिल्ल :: वि [जटिलित] जटिल किया हुआ, जटा-युक्त किया हुआ (सुपा १२५; २६९)।

जडिल्ल :: वि [जटिन्] जटावाला, जटाधारी (चंड)।

जगुल :: देखो जडिल (भघ १५ — पत्र ६७०)।

जड्ड :: वि [दे] अशक्त, असमर्थ (पव १०७)।

जड्ड :: न [जाड्य] जड़ता, जड़़पन (उप ३२० टी; सार्धं १३०)।

जड्ड :: देखो जड (पव १०७; पंचभा)।

जड्ड :: पुं [दे] हाथी, हस्ती (ओघ २३८; बृह १)।

जड्डा :: स्त्री [दे] जाड़ा, शीत (सुर १३, २१५; पिंग)।

जढ :: वि [त्यक्त] परित्यक्त, मुक्त, वर्जित (हे ४, २५८, औघ ९०); 'जइवि न सम्मत्तजढो' सत्त ७१ टी)।

जढर, जढल :: न [जठर] पेट, उदर (हे १, २५४; प्राप्र; षड्)।

जण :: सक [जनय्] उत्पन्न करना, पैदा करना। जणेइ, जणंति (प्रासू १५; १०८; महा)। जणयंति (आचा)। वकृ. जणंत, जणेमाण (सुर १३, २१; द्र ३६; उव)।

जण :: पुं [जन] १ मनुष्य, मानव, आदमी, लोग, व्यक्ति (औप; आचा; कुमा; प्रासू ९; ६५; स्पप्‍न १६) २ देहाती मनुष्य (सूअ १, १, २) ३ समुदाय, वर्गं, लोक (कुमा; पंचव ४) ४ वि. उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला; 'जेण सुहज्झप्पजणं' (विसे ९६०) °जत्ता स्त्री °यात्रा जन-समागय, जन- संगति; 'जणजत्तारिहियाणं होइ जइत्तं जईण सया' (दंस ४)। °ट्ठाण न [°स्थान] १ दण्ड- कारणय, दक्षिण का एक जंगल। २ नगर- विशेष, नासिक (ती २८) °वइ पुं [°पति] लोगों का मुखिया (औप)। °वय पुं [°व्रज] मनुष्य-समूह (पउम ४, ५)। °वाय पुं, [°वाद] १ जन-श्रुति, किंवदन्ती, उड़ती खबर (सुपा ३००) २ मनुष्यों की आपस में चर्चा (औप) ३ लोकापवाद, लोक में निन्दा; 'जणवायभएणं' (अव १)। °स्सुइॉ स्त्री [°श्रुति] किंवदन्ती। °विवाय पुं [°पवाद] लोक में निन्दा (गा ४८४)

जणइ :: स्त्री [जनिका] उत्पादिका, उत्पन्न करनेवाली (कुमा)।

जणइउ, जणइत्तु :: पुं [जनयितृ] १ जनक, पिता (राज) २ वि. उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला (ठा ४, ४)

जणउत्त :: पुं [दे] ग्राम का प्रधान पुरुष, गाँव का मुखिया (दे ३, ५२; षड्)। २ विट, भाण्ड, भाँड़, विदूषक (दे ३, ५२)

जणंगम :: पुं [जनङ्गम] चाण्डाल, 'रायणो हुंति रंका य बंभण य जणंगमा' (उफ १०३१ टी; पाअ)।

जणग :: देखो जणय (भग; उप पृ २१६; सुर २, १३७)।

जणण :: न [जनन] १ जन्म देना, उत्पन्न करना, पैदा करना (सुपा ५६७; सुर ३, ६; द्र ५७) २ वि. उत्पादक, जनक (उर ६, ९; कुमा; भवि); 'जणमणपसायजणणा' (वसु)

जणणि, जणणी :: स्त्री [जननि, °नी] १ माता, अम्बा (सुर ३, २५; महा; पाअ) २ उत्पन्‍न करनेवाली स्त्री, उत्पादिका (कुमा)

जणद्दण :: पुं [जनार्दन] श्रीकृष्ण, विष्णु (उफ ६४८ टी; पिंग)।

जणप्पवाद :: पुं [जनप्रवाद] जन-रव, लोकिक्ति, अफवाह (मोह ४३)।

जणमेअअ :: पुं [जनमेजय] स्वनाम-प्रसिद्ध नृप-विशेष (चारु १२)।

जणमेजय :: देखो जणमेअअ (धर्मंवि ८१)।

जणय :: वि [जनक] १ उत्पादक, उत्पन्न करनेवाला; 'दिट्ठबियं पिसुणाणं सव्वं सव्वस्स भयजणयं' (प्रासू १९) २ पुं. पिता, बाप (पाअ; सुर ३, २५; प्रासू ७७) ३ देखो जण = जन (सूअ १, ९) ४ मिथिला का एक राजा, राजा जनक, सीता का पिता (पउण २१, ३३) ५ पुंन. ब. माता-पिता, माँ-बाप; 'जं किपि कोई साहइ, तज्जणायाइं कूणंति तं सव्वं' (सुपा ३५६; ५९८)। °तणआ स्त्री [°तनया] राजा जनक की पुत्री, राजा रामचन्द्र की पत्‍नी, सीता, जानकी (से १, ३७)। °दुहिया, °धूआ [°दुहितृ] वही अर्थं (पउम २३, ११; ४८, ४)। °नदण पुं [°नन्दन] राजा जनक का पुत्र, भामण्डल (पउम ६५, २५)। °नंदणी स्त्री [°नन्दनी] सीता, राम पत्‍नी, जानकी (पउम ९४, ४६)। °णंदिणी स्त्री [°नन्दिनी] वही अर्थं (पउम ४५, १८)। °निवतणया स्त्री [°नृपतनया] राजा जनक की पुत्री, सीता (पउम ४८, ६०)। °पुत्ती स्त्री [°पुत्री] वही अर्थं (रयण ७८)। °सुअ पुं [°सुत] जनक राजा का पुत्र, भामण्डल (पउम ६५, २८)। °सुआ स्त्री [°सुता] जानकी, सीता (पउम ३७, ६२; से २, ३८; १०, ३)

जणयंगया :: स्त्री [जनकाङ्गजा] जानकी, सीता, राजा रामचन्द्र की पत्‍नी (पउम ४१, ७८)।

जणवय :: पुं [जनपद] १ देश, राष्ट्र, जन- स्थान, लोकालय (औप) २ देश-निवासी जन-समूह, प्रजा (पणह १, ३; आचा)

जणवय :: वि [जानपद] देश में उत्पन्‍न, देश का निवासी (आचा)।

जणस्सुइ :: स्त्री [जनश्रुति] किंवदन्ती, अफवाह, कहावत (धर्मंवि ११२)।

जणि :: (अप) अ [इव] तरह, माफिक, जैसा (हे ४, ४४४; षड्)।

जणिअ :: वि [जनित] उत्पादित, उत्पन्‍न किया हुआ (पाअ)।

जणी :: स्त्री [जनी] स्त्री, नारी, महिला (णाया २ — पत्र २५३; पउम १५, ७३)।

जणु :: देखो जणि (हे ४, ४४४; कुमा; षड्)।

जणुक्कलिआ :: स्त्री [जनोत्कलिंका] मनुष्यों का छोटा समूह (भग)।

जणुम्मि :: स्त्री [जनोर्मि] तरंग की तरह मनुष्यों की भीड़ (भग)।

जणेमाण :: देखो जण = जनय्।

जणेर :: (अप) वि [जनक] १ उत्पादक, पैदा करनेवाला। २ पुं. पिता, बाप (भवि)

जणेरि :: (अप) स्त्री [जननी] माता, माँ (भवि)।

जण्ण :: पुं [यज्ञ्] १ यज्ञ, याग, मख, क्रतु (प्राप्र; गा २२७) २ देव-पूजा। ३ श्राद्ध (जीव ३) °इ, °जाइ वि [°याजिन्] यज्ञ करनेवाला (औप; निचू १)। °इज्ज वि [°जीय] १ यज्ञ-सम्बन्धी, यज्ञ का। २ न. 'उतराध्ययन' सूत्र का एक प्रकरण (उत्त २५) °ट्ठाण न [°स्थान] १ यज्ञ का स्थान। २ नगर-विशेष, नासिक (ती २०)। °मुह न [°मुख] यज्ञ का उपाय (उत्त २५)। °वाड पुं [°वाट] यज्ञ-स्थान (गा २२७)। °सेट्ठ पुं [°श्रेष्ठ] श्रेष्ठ यज्ञ, उत्तम याग (उत्त १२)

जण्ण :: देखो जन्न = जन्य (धर्मंसं १००)।

जण्णय :: देखो जणय (प्राप्र)।

जण्णयत्ता :: स्त्री [दे. यज्ञयात्रा] बरात, विवाह की यात्रा, वर के साथियों का गमन (उप ६५४)।

जण्णसेणी :: स्त्री [याज्ञसेनी] द्रौपदी, पाण्डव- पत्‍नी (वेणी ३७)।

जण्णहर :: पुं [दे] नर-राक्षस, दुष्ट-मनुष्य (षड्)।

जण्णिय :: पुं [याज्ञिक] याजक, यज्ञ करानेवाला (आवम)।

जण्णोवईय, जण्णोववीय :: न [यज्ञोपवीत] यज्ञ-सूत्र, जनेऊ (उत्त २; आवम)।

जण्णोहण :: पुं [दे] राक्षस, पिशाच (दे ३, ४३)।

जण्ह :: न [दे] १ छोटी स्थाली। २ वि. कृष्ण, काले रंग का (दे ३, ५१)

जण्हई :: स्त्री [जाह्नवी] गंगा नदी, भागीरथी (अच्चु ६)।

जण्हली :: स्त्री [दे] नीवी, नारा, इजारबन्द (दे ३, ४०)।

जण्हवी :: स्त्री [जाह्नवी] १ सगर चक्रवर्त्ती की एक पत्‍नी, भगीरथ की जननी (पउम ५, २०१) २ गङ्गा-नदी, भागीरथी (पउम ४१, ५१; कुमा)

जण्हु :: पुं [जह्नु] भरत-वंशीय एक राजा (प्राप्र; हे २, ७५)। °सुआ स्त्री [°सुता] गङ्गा-नदी, भागीरथी (पाअ)।

जण्हुआ :: स्त्री [दे] जानु, घुटना (पाअ)।

जण्हुकन्ना :: स्त्री [जह्नु, कन्या] गंगा-नदी (कुप्र ६६)।

जत्त :: देखो जय = यत्। भवि. जत्तिहामि (निर १, १)।

जत्त :: पुं [यत्न] उद्योग, उद्यम, चेष्टा (उप पृ ५८)।

जत्ता :: स्त्री [यात्रा] १ देशान्तर-गमन, देशाटन (ठा ४, १; औप) २ गमन, गति; 'जत्तत्ति होइ गमणं' (पंचभा; औप) ३ देव-पूजा के निमित्त किया जाता उत्सव-विशेष, अष्टाहिका, रथ-यात्रा आदि; 'हुं नायं पारद्वा सिद्धाययणेसु जत्ताओ' (सुर ३, ३८) ४ तीर्थ-गमन, तीर्थ-भ्रमण (धर्मं २) ५ शुभ-प्रवृत्ति (भग १८, १०)

जत्ता :: स्त्री [यात्रा] संयम-निर्वाह (उत्त १६, ८)।

जत्ति :: स्त्री [दे] १ चिन्ता। २ सेवा, सुश्रुषा; 'अजाणणाए तज्जत्ती न कया तम्मि केणवि' (शअरा २८)

जत्तिअ :: देखो °यत्तिअ (उवा २० टि)।

जत्तिय :: वि [यावत्] जितना (प्रासू १५६; आवम)।

जत्तो :: देखो जओ (हे २, १६०)।

जत्थ :: अ [यत्र] जहाँ, जिसमें (हे २, १६१; प्रासू ७९)।

जदि :: देखो जइ = यदि (निचू २)।

जदिच्छा :: देखो जइच्छा (बृह ३; मा १२)।

जदु :: देखो जउ = यदु (कुमा; ठा ८)।

जद्दर :: पुंन [दे] वस्त्र-विशेष (सम्मत्त २१८; २१९)।

जधा :: देखो जहा (ठा २, ३; ३; १)।

जन्न :: देखो जण्ण (पणह १, २, ४; पउम ११, ४६)।

जन्न :: वि [जन्य] १ जन-हित, लोक-हितकर (सूअ २, ६, २) २ उत्पन्‍न होने योग्य (धर्मंसं २८०)

जन्नत्ता, जन्ना :: स्त्री [दे] बरात, गुजराती में 'जान' (सुपा ३९९; उफ ७६८ टी)।

जन्नसेणी :: देखो जण्णसेणि (पार्थ ४)।

जन्‍नु :: देखो जाणु (पउम ६८, १०)।

जन्नोवइय :: देखो जण्णोवईय (सुख २, १३)।

जन्नोवईय :: देखो जण्णोवईय (णाया १, १६ — पत्र २१३)।

जन्हवी :: देखो जण्हवी (ठा ९, ९)।

जप :: देखो जव = जप् (षड्)।

जपिर :: वि [जपितृ] जाप करनेवाला (षड्)।

जप्प :: देखो जंप। जप्पइ (षड्)। जप्पंति (पि २९६)।

जप्प :: पुं [जल्प] १ उक्ति, कथन। २ छल का उपालम्भ रूप भाषण (राज)

जप्प :: वि [याप्य] गमन कराने योग्य।

°जाण :: न [°यान] वाहन-विशेष, शिविका (दे ६, १२२)।

जप्पभिइ, जप्पभिइं :: अ [यत्प्रभृति] जब से, जहाँ से लेकर (णाया १, १; कप्प)।

जप्पिअ :: वि [जल्पित] १ उक्त, कथित (प्राप) २ न. उक्ति, बचन (अच्चु २)

जम :: सक [यमय्] १ काबू में रखना, नियन्त्रण करना। २ जमाना, स्थिर करना। जमेइ (से १०, ७०)। संकृ. जमइत्ता (औप)

जम :: पुं [यम] १ अहिंसादि पाँच महाव्रत, साधु का व्रत (णाया १, ५; ठा २, ३) २ दक्षिण दिशा का एक लोकपाल, देव- विशेष, जम-देवता, जमराज (पणह १, १; पाअ; हे १, २४५) ३ भरणी नक्षत्र का अधिपति देव (सुज्ज १०) ४ किष्किन्धा नगरी का एक राजा (पउम ७, ४६) ५ तापस-विशेष (आवम) ६ मृत्यु, मौत (आव ४; महा) ७ संयमन, नियन्त्रण (आवम)। °काइय पुं [°कायिक] असुर-विशेष, परमा- धार्मिक देव, जो नारकी के जीवों को दुःख देते हैं (पणह १, १)। °घोस पुं [°घोष] ऐरवत वर्षं के एक भावी जिन-देव (पव ७)। °पुरी स्त्री [°पुरी] जम की नगरी, मौत का स्थान; 'को जमपुरीसमाणे समसाणे एव- मुल्लवइ ?' (सुपा ४९२)। °प्पभ पुं [°प्रभ] यमदेव का उत्पात-पर्वंत, पर्वत-विशेष (ठा १०)। °भड पुं [°भट] यमराज का सुभट (महा)। °मंदिर न [°मन्दिर] यमराज का घर, मृत्यु-स्थान (महा)। °लिय न [°लय] पूर्वोक्त ही अर्थ (पउम ४५, १०)

जमग :: पुं [यमक] १ पक्षि-विशेष। देव- विशेष (जीव ३) ३ पर्वत-विशेष (जीव ३; सम ११४; इक) ४ द्रह-विशेष, दह, झील (जीव ३; इक)। देखो जमय।

जमगं, जमगसमगं :: अ [दे] एक साथ, एक ही समय में, युगपत् (धम्म ११ टी; णाया १, ४; औप; विपा १, १)।

जमणिया :: स्त्री [जमनिका] जैन साधु का उपकरण-विशेष (राज)।

जमदग्गि :: पुं [जमदग्नि] तापस-विशेष, इस नाम का एक संन्यासी, परशुराम का पिता (पि २३७)।

जमदग्गिजडा :: स्त्री [यमदग्निजटा] गन्ध- द्रव्य-विशेष, सुगन्धबाला (उत्तनि ३)।

जमय :: देखो जमग ५ न. अलंकार-शास्त्र में प्रसिद्ध अनुप्रास-विशेष। ६ छन्द-विशेष (पिंग)

जमल :: न [यमल] १ जोड़ा, युग्म, युगल (णाया १, १; हे २, १७३; से ५, ५६) २ समान श्रेणी में स्थित, तुल्य पंक्तिवाला (राय) ३ सहवर्त्ती, सहचारी (भग १५) ४ समान, तुल्य (राय; औप) °ज्जुणभंजणा पुं [°र्जुनभञ्जक] श्रीकृष्ण वासुदेव (पणह १, ४)। °पद, °पय न [°पद] १ प्राय- श्चित्त-विशेष (निचू १) २ आठ अंकों की संख्या (पणण १२)। °पाणि पुं [°पाणि] मुष्टि, मुट्ठी (भग १९, ३)

जमलिय :: वि [यमलित] १ युग्म रूप से स्थित (राय) २ सम-श्रेणी रूप से अवस्थित (णाया १, १, औप)

जमलोइय :: वि [यमलौकिक] १ यमलोक- सम्बन्धी, यमलोक से सम्बन्ध रखनेवाला। २ परमाधार्मिक देव, असुरों की एक जाति (सूअ १, १२)

जमा :: स्त्री [यामी] दक्षिण दिशा (ठा १० — पत्र ४७८)।

जमालि :: पुं [जमालि] स्वनाम-ख्यात एक राज-कुमार, जो भगवान् महावीर का जामाता था, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थि और पीछे से अपना अलग पन्थ निकाला था (णाया १, ८; ठा ७)।

जमावण :: न [यमन] १ नियन्त्रण करना। २ विषम वस्तु को सम करना (निचू १)

जमिअ :: वि [यमित] नियन्त्रित, संयमित, काबू में किया हुआ (से ११, ४१; सुपा ३)।

जमुणा :: देखो जँउणा (पि १७९; २५१)।

जमू :: स्त्री [जमू] ईशानेन्द्र की एक अग्र- महिषी का नाम (इक)।

जम्म :: अक [जन्] उत्पन्न होना। जम्मइ (हे ४, १३६; षड्)। वकृ. जम्मंत (कुमा); 'जम्मंतीए सोगो, वड्‍ढंतीए य वड्‍ढए चिंता' (सूक्त ८८)।

जम्म :: सक [जम्] खाना, भक्षण करना। जम्मइ (षड्)।

जम्म :: पुंन [जन्मन्] जन्म, उत्पत्ति (ठा ६; महा; प्रासू ६०)।

जम्मण :: न [जम्मन्] जन्म, उत्पत्ति, उत्पाद (हे २, १७४; णाया १, १; सुर १, ६)।

जम्मा :: स्त्री [याम्या] दक्षिण दिशा (उप पृ ३७५)।

जम्हाअ, जम्हाह, जम्हाड़ा :: देखो जंभाअ। जम्हाअइ, जम्हाहइ, जम्हाहाइ (प्राकृ ६४)।

जय :: सक [जि] १ जीतना। २ अक. उत्कृष्ट- पन से बरतना। जयइ (महा)। जयंति (स ३९)। संकृ. जइत्ता (ठा ६)

जय :: सक [यज्] १ पूजा करना। २ याग करना। जयइ (उत्त २५, ४)। वकृ. जअमाण (अभि १२५)

जय :: अक [यत्] १ यत्‍न करना, चेष्टा करना। २ ख्यान करना, उपयोग करना। जयइ (उव)। भवि. जइस्सामि (महा)। वकृ. जयंत, जयमाण (स २६०; श्रा २६; ओघ १२४; पुप्फ २४१)। कृ. जइयव्व (उव; सुर १, ३४)

जय :: न [जगत्] जगत्, दुनियाँ, संसार (प्रासू १५५; से ९, १)। °त्तय न [°त्रय] स्वर्गं, मर्त्यं और पाताल लोक (सुपा ७९; ९५)। °नाह पुं [°नाथ] परमेश्‍वर, परमा- त्मा (पउम ८६, ६५)। °पहु पुं [°प्रभु] परमेश्वर (सुपा २८ ८६)। °णंद वि [°नन्द] जगत् को आनन्द देनेवाला (पउम ११७, ९)।

जय :: वि [यत] १ संयत, जितेन्द्रिय (भास ९५) २ उपयोग रखनेवाला, ख्याल रखनेवाला (उत्त १; आव ४) ३ न. छठवाँ गुण- स्थानक (कम्म ४, ४८) ४ ख्याल, उपयोग, सावधानता (णाया १, १ — पत्र ३३); 'जयं चरे जयं चिट्‍ठे' (दस ४)

जय :: पुं [जव] वेग, शीघ्र-गमन, दौड़ (पाअ)।

जय :: पुं [जय] १ जय, जीत, शत्रु का पराभाव (औप; कुमा) २ स्वनाम-प्रसिद्ध एक चक्र- वर्त्ती राजा (सम १५२) °उर न [°पुर] नगर-विशेष (स ६)। °कम्मा स्त्री [°कर्मा] विद्या-विशेष (पउम ७, १३६)। °घोस पवुं [°घोष] १ जय-ध्वनि। २ स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन मुनि (उत्त २५) °चंद पुं [°चन्द्र] १ विक्रम की बारहवाँ शताब्दी का कन्नौज का एक अन्तिम राजा। २ पन्नरहवीं शताब्दी का एक जैनाचार्यं (रयण ९४) °जत्ता स्त्री [°यात्रा] शत्रु पर चढ़ाई (सुपा ५४१)। °पडाया स्त्री [°पताका] विजय का झंडा (श्रा १२)। °पुर देखो °उर (वसु)। °मंगला स्त्री [°मङ्गला] एक राज-कुमारी (दंस ३)। °लच्छी स्त्री [°लक्ष्मी] जय- लक्ष्मी, विजयश्री (से ४, ३१; काप्र ७४३)। °वत वि [°वत्] जय-प्राप्त, विजयी (पउम ६९, ४६)। °वल्लह पुं [°वल्लभ] नृप-विशेष (दंस १)। °संध पुं [°सन्ध] पुण्डरीक- नामक राजा का एक मन्त्री (आचू ४)। °संधि पुं [°सन्धि] वही पूर्वोक्त अर्थ (आव ४)। °सद्द पुं [°शब्द] विजय-सूचक आवाज औप)। °सिंह पुं [सिंह] १ सिंहल द्वीप का एक राजा (रयण ४४) २ विक्रम की बारहवीं शताब्दी का गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा, जिसका दूसरा नाम 'सिद्ध- राज' था; 'जेण जयसिंहदेवो राया भणिऊण सयलदेसम्मि' (मुणि १०९००) ३ स्वनाम-ख्यात जैनाचार्य-विशेष (सुपा ६५८); 'सिरि- जयसिंहो सूरी सयंभरीमण्डलम्मि सुप्रिसद्धो' (मुणि १०८७२) °सिरि स्त्री [°श्री] विजयश्री, जयलक्ष्मी (आवम)। °सेण पुं [°सेन] स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा (महा)। °विह वि [°वह] १ जय को वहन करनेवाला, विजयी (पउम ७०, ७; सुपा २३४) २ विद्याधर-नगर-विशेष (इक)। °वहपुर न [°वहपुर] एक विद्याधर-नगर (इक)। °वास न [°वास] विद्याधरों का एक स्वनाम-ख्यात नगर (इक)

जय :: पुं [यत] प्रयत्‍न, चेष्टा, कोशिश (दस ५, १, ९६)।

जय :: पुंस्त्री [जया] तिथि-विशेष — तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि (जं १)।

जय° :: देखो जया = यदा। °प्पभिइ अ [°प्रभृति] जबू से, जिस समय से (स ३१६)।

जयंत :: पुं [जयन्त] १ इन्द्र का पुत्र (पाअ) २ एक भावी बलदेव (सम १५४) ३ एक जैन मुनि, जो वज्रसेन मुनि के तृतीय शिष्य थे (कप्प) ४ इस नाम के देव-विमान में रहनेवाली एक उत्तम देव-जाति (सम ५६) ५ जंबूद्वीप को जगती के पश्चिम द्वार का एक अधिष्ठाता देव (ठा ४, २) ६ न. देव- विमान-विशेष (सम ५६) ७ जम्बूद्वीप की जगती का पश्चिम द्वार (ठा ४, २) ८ रुचक पर्वत का एक शिखर (ठा ४)

जयंती :: स्त्री [यजन्ती] १ पक्ष की नववीं रात (सुज्ज १०, १४) २ भगवान् अरनाथ की दीक्षा-शिविता (विचार १२९)

जयंती :: स्त्री [जयन्ती] १ वल्ली-विशेष, अरणी, वर्षं गाँठ (पणण १) २ सप्तम बलदेव की माता (सम १५२) ३ विदेह वर्षं की एक नगरी (ठा २, ३) ४ अंगारक-नामक ग्रह की एक अग्र-महिषी (ठा ४, १) ५ जम्बूद्वीप के मेरु से पश्चिम दिशा में स्थित रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८) ६ भगवान् महावीर की एक उपासिका (भग १२, २) ७ भगवान् महावीर के आठवें गणधर की माता (आवम) ८ अंजनक पर्वंत की एक वापी (ती २४) ९ नवमी तिथि (जं ७) १० जैन मुनियों की एक शाखा (कप्प)

जयण :: न [यजन] १ याग, पूजा। २ अभय- दान (पणह २, १)

जयण :: न [यतन] १ यत्‍न, प्रयत्‍न, चेष्टा, उद्यम; 'जयणघडण-जोग-चरितं' (अनु) २ यतना, प्राणी की रक्षा (पणह २, १)

जयण :: वि [जवन] वेगवाला, वेग-युक्त (कप्प)।

जयण :: न [जयन] १ जीत, विजय (मुद्रा २६८; कप्पू) २ वि. जीतनेवाला (कप्प)

जयण :: न [दे] घोड़े का बख्तर, हय-संनाह (दे ३, ४०)।

जयणा :: स्त्री [यतना] १ प्रयत्‍न, चेष्टा, कोशिश (निचू १) २ प्राणी की रक्षा, हिंसा का परित्याग (दस ४) ३ उपयोग, किसी जीव को दुःख न हो इस तरह प्रवृत्ति करने का ख्याल (निचू १; सं ६७; औप)

जयद्दह :: पुं [जयद्रथ] सिन्धु देश का स्वनाम- प्रसिद्ध एक राजा, जो दुर्योंधन का बहनोई था (णाया १, १६)।

जया :: अ [यदा] जिस समय, जिस वक्त (कप्प; काल)।

जया :: स्त्री [जया] १ विद्या-विशेष (पउम ७, १४१) २ चतुर्थं चक्रवर्त्ती राजा की अग्र- महिषी (सम १५२) ३ भगवान् वासुपूज्य की स्वनाम ख्यात माता (सम १५१) ४ तिथि-विशेष — तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि (सुज्ज १०) ५ भगवान् पार्श्वनाथ की शासनदेवी (ती ६) ६ ओषधि-विशेष (राज)

जयार :: पुं [जकार] १ 'ज' अक्षर। २ जका- णदि अश्‍लील शब्द; 'जत्थ जयारमयारं समणी जंपइ गिहत्थपच्चक्खं' (गच्छ ३, ४)

जयिण :: देखो जइण = जयिन् (पणह १, ४)।

जर :: अक [जृ] जीर्णं होना, पुराना होना, बूढ़ा होना। जरइ (हे ४, २३४)। कर्मं. जीरइ, जरिज्जइ (हे ४, २५०)। वकृ. जरंत (अच्चु ७९)।

जर :: पुं [ज्वर] रोग-विशेष, बुखार (कुमा)।

जर :: पुं [जर] १ रावण का एक सुभट (पउम ५९, ३) २ वि. जीर्णं, पुराना (दे ३, ५९)

जर :: वि [जरत्] जीर्णं, पुराना, वृद्ध, बूढ़ा (कुमा; सुर २, ९९; १०४). स्त्री. °ई (कुमा; गा ४७२ अ)। °ग्गव पुं [°गव] बूढ़ा बैल (बृह १; अनु ४)। °ग्गवी स्त्री [°गवी] बूढी गाय (गा ४६२)। °ग्गु पुं [°गु] १ बूढ़ा बैल। २ स्त्री. बूढञी गाय; 'जिणणा य जरग्गवो पडिया' (पउण ३३, १६)

जर° :: देखो जरा (कुमा; अंत १६; वव ७)।

जरंड :: वि [दे] वृद्ध, बूढा (दे ३, ४०)।

जरग्ग :: वि [जरत्क] जीर्णं, पुराना (अनु ५)।

जरठ :: वि [जरठ] १ कठिन, पुरुष। २ जीर्णं, पुराना (णाया १, १ — पत्र ५)। देखो जरढ।

जरड :: वि [दे] वृद्ध, बूढ़ा (दे ३, ४०)।

जरढ :: देखो जरठ (पि १९८; से १०, ३८)। ३ प्रौढ, मजबूत (से १, ४३)

जरण :: न [जरण] जीर्णंता, आहार का हजम होना, हाजमा (धर्मंसं ११३५)।

जरय :: पुं [जरक] रत्‍नप्रभा नामक नरक-पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६ — पत्र ३६५)। °मज्झ पुं [°मध्य] नरकावास-विशेष (ठा ६)। °वत्त पुं [°वर्त] नरकावास-विशेष (ठा ६)। °वसिट्ठ पुं [°वशिष्ट] नर- कावास-विशेष (ठा ६)।

जरलद्धिअ, जरलविअ :: वि [दे] ग्रामीण, ग्राम्य (दे ३, ४४)।

जरा :: स्त्री [जरा] बुढ़ापा, वृद्धत्व (आचा; कस; प्रासू १३४)। °कुमार पुं [°कुमार] श्रीकृष्ण का एक भाई (अंत)। °संध पुं [°सन्ध] राजगृह नगर का एक राजा, नववाँ प्रतिवासुदेव, जिसको श्री कृष्ण वासुदेव मे मारा था (सम १५३)। °सिंध पुं [°सिन्ध] वही पूर्वोंक्त अर्थ (पणह १, ४ — पत्र ७२)। °सिंधु पुं [°सिन्धु] वही पूर्वोक्त अर्थं (णाया १, १६ पत्र २०९; पउम ५, १५६)।

जरा :: स्त्री [जरा] वसुदेव की एख पत्‍नी (कुप्र ९९)।

जराहिरण :: (अप) देखो जल-हरण (पिंग)।

जारि :: वि [ज्वरिन्] बुखारवाला, ज्वर से पीड़ित (सुपा २४३)।

जरि :: वि [जरिन्] जरा-युक्त, वृद्ध, बूढा (दे ३, ५७, उर ३, १)।

जरिअ :: वि [ज्वरित] ज्वर-युक्त, बुखारवाला (गआ २५९; सुपा २८९)।

जल :: अक [ज्वल्] १ जलना, दग्ध होना। २ चमकना। जलइ (महा)। वकृ. जलंत (उवा; गा २६४)। हेकृ. जलिउं (महा)। प्रयो., वकृ. जलितं (महानि ७)|

जल :: देखो जड (श्रा १२; आव ४)।

जल :: न [जाड्य] जड़ता; मन्दता; 'जलधोय- जललेवा' (सार्ध ७३; से १, २४)।

जल :: पुं [ज्वल] देदीप्यमान, चमकीला (सूअ १, ५, १)।

जल :: न [जल] वीर्य (वज्जा १०२)। °कंत पुंन [°कान्त] एक देवविमान (देवेन्द्र १४४)। °कारि पुंस्त्री [°कारिन्] चतुरि- न्द्रिय जन्तु-विशेष (उत्त ३६, १४९)। °य वि [°ज] पानी में उत्पन्न (श्रु ६८)। °वारिअ पुं [°वारिक] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (सुख ३६, १४९)।

जल :: न [जल] १ पानी, उदक (सूअ १, ५, २; जी २) २ पुं. जलकान्त-नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १) °कंत पुं [°कान्त] १ मणि-विशेष, रत्‍न की एक जाति (पणण १; कुम्मा १५) २ इन्द्र-विशेष, उदधिकुमार-नामक देव-जाति का दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) ३ जलकान्त इद्र का एक लोपाल (ठा ४, १)। °करप्फाल पुं [°करास्फाल] हाथ से आहत पानी (पाअ)। °करि पुंस्त्री [°करिन्] पानी का हाथी, जल-जन्तु विशेष (महा)। °कलंब पुं [°कदम्ब] कदम्ब वृक्ष की एक जाति (गउड)। °कीडा, °कीला स्त्री [°क्रीडा] पानी में की जाती क्रीड़ा, जल-केलि (णाया १, २)। °केलि स्त्री [°केलि] जल-क्रीड़ा (कुमा)। °चर देखो °यर (कप्प; हे १, १७७)। °चार पुं [°चार] पानी में चलना (आचा २, ५, १)। °चारण पुं [°चारण] जिसके प्रभाव से पानी में भी भूमि की तरह चला जा सके ऐसी अलौकिक शक्ति रखनेवाला मुनि (गच्छ २)। °चारि पुं [°चारिन्] पानी में रहनेवाला जंतु (जी २०)

°चारिया :: स्त्री [°चारिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष, चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति (राज)। °जंत न [°यन्त्र] पानी का यन्त्र, पानी का फवारा (कुमा)। °णाह पुं [°नाथ] समुद्र, सागर (उप ७२८ टी)। °णिहि पुं [°निधि] समुद्र, सागर (गउड)।°णीलि स्त्री [°नीली] शैवाल (दे ३, ४२)। °तुसार पुं [°तुषार] पानी का विन्दु (पाअ)। °थंभिणी स्त्री [°स्तम्भिनी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३९)। °द पुं [°द] मेघ, अभ्र (मुद्रा २६२; पव १८)। °द्दा स्त्री [°र्द्रा] पानी से भींजाया हुआ पंखा (सुपा ४१३)। °निहि देखो °णिहि (प्रासू १२७)। °प्पभ पुं [°प्रभ] १ इन्द्र-विशेष, उदधिकुमार- नामक देव-जाति का उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा २, ३) २ जलकान्त नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ )। °य न [°ज] कमल, पद्म (पउम १२, ३७; औप; पणण १)। °य देखो °द (काल; गउड; से १, २४)। °यर पुंस्त्री [°चर] जल में रहनेवाला ग्रहादि जन्तु (जी २०)। स्त्री. °री (जीव २)। °रंकु पुं [°रङ्क] पक्षि-विशेष, ढेंक-पक्षी (गा ५७८; गउड)। °रक्खस पुं [°राक्षस] राक्षस की जाति (पणण १)। °रमण न [°रमण] जल-क्रीड़ा, जल-केलि (णाया १, १३)। °रय पुं [°रय] जलप्रभ- नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १)। °रासि पुं [°राशि] समुद्र, सागर (सुपा १६५; उप २६४ टी)। °रुह पुंन [°रुह] पानी में पैदा होनेवाली वनस्पति (पणण १)। °रूव पुं [°रूप] जलकान्त-नामक इन्द्र का एक लोकपाल (भग ३, ८)। °लल्लिर न [°लिल्लिर] पानी में उत्पन्न होनेवाली वस्तु- विशेष (दंस १)। °वायस पुंस्त्री [°वायस] जलकौआ, पक्षि-विशेष (कुमा)। °वासि वि [°वासिन्] १ पानी में रहनेवाला। २ पुं. तापसों की एक जाति, जो पानी में ही निमग्‍न रहते हैं (औप) °वाह पुं [°वाह] १ मेघ, अभ्र (उप पृ ३२; सुपा ८९) २ जन्तु- विशेष (पउम ८८, ७) °विच्छय पुं [°वृश्चिक] पानी का बिच्छु, चतुरिन्द्रिय जन्तु-विशेष (पणण १)। °वीरिय पुं [°वीर्य] १ इक्ष्वाकु वंश का एक स्वनाम-ख्यात राजा (ठा ८) २ क्षुद्र कीट-विशेष, चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक जाति (जीव १) °सय न [°शय] कमल, पद्म (उप १०३१ टी)।°साला स्त्री [°शाला] प्रपा, पानी पिलाने का स्थान, प्याऊ (श्रा १२)। °सृग न [°शूक] १ शैवाल। २ जलकान्त-नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १) °सेल पुं [°शैल] समुद्र के भीतर का पर्वत (उफ ५९७ टी)। °हत्थि पुं [°हस्तिन्] जल- हस्ती पानी का एक जन्तु (पाअ)। °हर पुं [°धर] १ मेघ, अभ्र (सुर २, १०४; से १, ५९) २ एक विद्याधर सुभट (पउम १२, ९५) °हर पुं [°भर] जल-समूह (गउड)। °हर न [°गृह] समुद्र, सागर (से १, ५९)। °हरण न [°हरण] १ पानी की क्यारी (पाअ) २ छन्द-विशेष (पिंग) °हि पुं [°धि] १ समुद्र, सागर (महा; सुपा २२३) २ चार की संख्या (विवे १४४)। °सय पुंन [°शय] सरोवर, तलाव (सुर ३, १)

जलइय :: पुं [जलकित] जलकान्त-नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४; १ — पत्र १९८)।

जलंजलि :: पुं [जलाञ्जलि] तर्पंण, दोनों हाथों में लिया हुआ जल (सुर ३, ५१; कप्पू)।

जलग :: पुं [ज्वलक] अग्‍नि, आग (पिंड)।

जलजलिअ :: वि [जलजलित] 'जल-जल' शब्द से युक्त (सिरि ६६४)।

जलजलिंत :: वि [जाज्वल्यमान] देदीप्यमान, चमकता (कप्प)।

जलण :: पुं [ज्वलन] १ अग्‍नि, वह्नि (उप ६४८ टी) २ देवों की एक जाति, अग्‍नि- कुमार-नामक देव-जाति (पणह १, ४) ३ वि. जलता हुआ। ४ चमकता, देंदीप्यमान; 'एईए जलणजलणोवमाए' (उव ६४८ टी। ५ जलानेवाला (सूअ १, १, ४) ६ न. अग्‍नि सुलगाना (पणह १, ३) ७ जलाना; भस्म करना (गच्छ २)। °जडि पुं [°जटिन्] विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, ४६)। °मित्त पुं [°मित्र] स्वनाम-ख्यात एक प्राचीन कवि (गउड)

जलावण :: न [ज्वालन] जलाना, दग्ध करना (पणह १, १)।

जलिअ :: वि [ज्वलित] १ जला हुआ, प्रदीप्त (सूअ १, ५, १) २ उज्वल, कान्ति-युक्त (पणह २, ५)

जलिर :: वि [ज्वलितृ] जलता, सुलगता (धर्मंवि ३५; कुप्र ३७६)।

जलूगा, जलूया :: स्त्री [जलौकस्] १ जन्तु- विशेष, जोंक, जलिका, जल का कीड़ा (पउम १, २४; पणह १, १) २ पक्षि-विशेष (जीव १)

जलूसग :: पुं [दे] रोग-विशेष (उप पृ ३३२)।

जलोयर :: न [जलोदर] रोग-विशेष, जलन्धर, जठराम (सण)।

जलोयरि :: वि [जलोदरिन्] जलन्धर रोग से पीड़ित (राज)।

जलोया :: देखो जलूया (जी १५)।

जल्ल :: पुं [दे. जल्ल] १ शरीर का मैल, सुखा पसीना (सम १०; ४०; औप) २ नट की एक जाति, रस्सी पर खेल करनेवाला नट (पणह २, ४; औप; णाया १, १) ३ बन्दी, दिरुद-पाठक (णाया १, १) ४ एक म्लेच्छ देश। ५ उस देश में रहनेवाली म्लेच्छ जाति (पणह १, १ — पत्र १४)

जल्लार :: पुं [जल्लार] १ स्वनाम-प्रसिद्ध एक अनार्य देश। २ जल्लार देश का निवासी (इक)

जल्लिय :: न [दे. जल्लक] शरीर का मैल (उत्त २४)।

जल्लोसहि :: स्त्री [दे. जल्लौषधि] एक तरह की आध्यात्मिक शक्ति, जिसके प्रभाव से शरीर के मैल से रोग का नाश होता है (पणह २, १; विसे ७७९)।

जव :: सक [यापय्] १ गमन करवाना, भेजना। २ व्यवस्था करना। जवइ (हे ४, ४०)। हेकृ. जवित्तए (सूअ १, ३, २)। कृ जवणिज्ज, जवणीय (णाया १, ५; हे १, २४८)

जव :: सक [यापय्] काल-यापन करना, पसार करना। जवेंति (पिंड ६१९)।

जव :: सक [जप्] जाप करना, बार-बार मन ही मन देवता का नाम स्मरण करना, पुनः पुनः मन्त्रोच्चारण करना। जवइ (रंभा); 'तप्पंति तवमणेगे जवंति मंते तहा सुविज्जाओ' (सुपा २०२)। वकृ. जवंत (नाट)। कवकृ. जविज्जंत (सुर १३, १८६)।

जव :: पुं [जप] जाप, पुनः पुनः मन्त्रोच्चारण, बार-बार मन ही मन देवता का नाम-स्मरण (पण्ह २, २; सुपा १२०)।

जव :: पुं [यव] १ अन्न-विशेष, जव या जौ (णाया १, १; पण्ह १, ४) २ परिमाण-विशेष, आठ यूका की नाप (ठा ८)। °णाली स्त्री [°नाली] वह नाली जिसमें जौ बोए जाते हों (आचू १) °मज्झ न [°मव्य] १ तप-विशेष (पउम २२, २४) २ आठ यूका का एक नाप (पव २५)। °मज्झा स्त्री [°मघ्या] व्रत-विशेष, प्रतिमा-विशेष (ठा ४, १) °राय पुं [°राज] नृप-विशेष (बृह १)। °वंसा स्त्री [°वंशा] वनस्पति-विशेष (पण्ण १)

जव :: पुं [जव] वेग, दौड़, शीघ्र गति (कुमा)।

जव :: पुंन [यव] एक देवविमान (देवेन्द्र १४०)। °नालय पुं [°नालक] कन्या का कंचुक (णंदि ८८ टी)। °न्न न [°।न्न] यव-निष्पन्न परमान्न, भोज्य-विशेष, जव की खीर, जाउर (पव २५९)।

जवजव :: पुं [यवयव] अन्न-विशेष, एक तरह का यव-धान्य (ठा ३, १)।

जवण :: न [दे] हल की शिखा, हल की चोटी (दे ३, ४१)।

जवण :: न [जपन] जाप, पुनः पुनः मन्त्र का उच्चारण; 'अहिणा दट्ठस्स जए को कालो मंत-जवणम्मि' (पउम ८६, ६०; स ९)।

जवण :: वि [जवन] १ वेग से जानेवाला (उप ७६८ टी) २ पुं. वेग, शीघ्र गति (आवम)

जवण :: पुं [यवन] १ म्लेच्छ देश-विशेष (पउम ९८, ६४) २ उस देश में रहनेवाली मनुष्य-जाति (पण्ह १, १) ३ यवन देश का राजा (कुमा)

जवण :: न [यापन] निर्वाह, गुजारा, (उत्त ८)।

जवणा :: स्त्री [यापना] ऊपर देखो (पव २)।

जवणाणिया :: स्त्री [यवनानिका] लिपि-विशेष (राज)।

जवणालिया :: स्त्री [यवनालिका] कन्या का कञ्चुक (आवम)।

जवणिआ :: स्त्री [यवनिका] परदा (दे ४, १; सण; कप्पू)।

जवणिज्ज :: देखो जव=यापय्।

जवणी :: स्त्री [यवनी] परदा, आच्छादक पट (दे २, २५)। २ संचारिका, दूती (अभि ५७)

जवणी :: स्त्री [यावनी] १ यवन की स्त्री। २ यवन की लिपि (सम ३५; विसे ४६४ टी)

जवणीअ :: देखो जव=यापय्।

जवपचमाण :: पुं [दे] जात्यश्‍व का वायु-विशेष, प्राण-वायु (गउड)।

जवय, जवरय :: पुं [दे] जव का अंकुर (दे ३, ४२)।

जवली :: स्त्री [दे] जव, वेग; 'गच्छंति गरुय- नेहेण पवरतुरयाहिरूढ़ा जवलीए' (सुपा २७६)।

जववारय :: [दे] देखो जवरय (पंचा ८)।

जवस :: न [यवस] १ तृण, घास; 'गिट्ठिव्व जवसम्मि' (उप ७२८ टी; उप पृ ८४) २ गेहूँ वगैरह धान्य (आचा २, ३, २)

जवा :: स्त्री [जपा] १ वल्ली-विशेष, जवा-पुष्प का वृक्ष। २ गुड़हल का फूल, अड़हुल का पुष्प (कुमा)

जवास :: पुं [यवास] वृक्ष-विशेष, रक्त पुष्पवाला वृक्ष-विशेष; 'पाउसि जवासो' (श्रा २३; पण्ण १); 'जवासाकुसुमे इ वा' (पण्ण १७)।

जवि, जाविण :: वि [जविन्] १ वेगवाला, वेग-युक्त सुपा ११२)। २ पुं. अश्‍व, घोड़ा (राज)

जविअ :: वि [जपित] १ जिसका जाप किया गया हो वह (मन्त्र आदि) (सिरि ३६६) २ न. अघ्ययन. प्रकरण आदि ग्रंथांश (सुख २, १३)

जविय :: वि [यापित] १ गमित, गुजरा हुआ। २ नाशित (कुमा)

जस :: पुं [यशस्] १ कीर्ति, इज्जत, सु- ख्याति (औप; कुमा) २ संयम, त्याग, विरति (वव १; दस ५, २) ३ विनय (उत ३) ४ भगवान् अनन्तनाथ का प्रथम शिष्य (सम १५२) ५ भगवान् पार्श्‍वनाथ का आठवाँ प्रघान शिष्य (कप्प)। °कित्ति स्त्री [°कीर्त्ति] सुख्याति, सुप्रसिद्धि (सुअ १, ९; आचू १)। °भद्द पुं [°भद्र] स्वनाम-ख्यात एक जैन आचार्य (कप्प; सार्ध १३) °म. मंत वि [°वत्] १ यशस्वी, इज्जतदार, कीर्त्तिवाला (पण्ह १, ४) २ पुं. स्वनाम- प्रसिद्ध एक कुलकर पुरुष (सम १५०) °वई स्त्री [°वती] १ द्वितीय चक्रवर्त्ती सगर- राज की माता (सम १५२) २ तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी की रात्रि (चंद १०) °वम्म पुं [°वर्मन्] स्वनाम-ख्यात नृप-विशेष (गउड)। °वाय पुं [°वाद] साधुवाद, यशो- गान, प्रशंसा (उप ९८६ टी)। °विजय पुं [°विजय] विक्रम की अठारहवीं शताब्दी का एक जैन सुप्रसिद्ध ग्रन्थकार, न्यायाचार्य श्रीमान् यशोविजय उपाघ्याय (राज)। °हर पुं [°घर] १ भारतवर्ष का भूत कालिक अठारहवाँ जिन-देव (पव ८) २ भारतवर्ष के एक भावी जिन-देव (पव ४६) ३ एक राज- कुमार (धम्म) ४ पक्ष का पाँचवाँ दिन (जं ७) ५ वि. यश को धारण करनेवाला, यशस्वी (जीव ३)। देखो जसो°।

जसंसि :: पुं [यशस्विन्] भगवान् महावीर के पिता का एक नाम (आचा २, १५, ३; कप्प)।

जसद :: पुं [जसद] घातु-विशेष, जस्ता (राज)।

जसदेव :: पुं [यशोदेव] एक प्रसिद्ध जैनाचार्य (पव २७६)।

जसभद्द :: पुं [यशोभद्र] १ पक्ष का चतुर्थ दिवस (सुज्ज १०, १४) २ एक राजर्षि, जो वागड देश के रत्‍नपुर नगर का राजा था और जिसने जैनी दीक्षा ली थी, जो आचार्य हेमचन्द्र के गुरु थे (कुप्र ७; १८) ३ न. उड् डुवाटिक गण का एक कुल (कप्प)

जसवई :: स्त्री [यशोमती] भगवान् महावीर की दौहित्री का नाम (आचा २ १५, ३)।

जसस्सि :: वि [यशस्विन्] यशस्वी, कीर्तिमान् (सूप १, ६, ३, श्रु १४३)।

जसहर :: पुंन [यशोधर] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१)।

जसा :: स्त्री [यशा] कपिलमुनि की माता (उत्त ८)।

जसों° :: देखो जस। °आ स्त्री [°दा] १ नन्द नामक गोप की पत्‍नी (गा ११२; ६५७) २ भगवान् महावीर की पत्‍नी (कप्प)।° कामि वि [°कामिन्] यश चाहनेवाला (दस २)। °कित्तिनाम न [°कीर्त्ति- नामन्] कर्म-विशेष, जिसके प्रभाव से सुयश फैलता है (सम ६७) °धर पुं [°धर] १ घरणेन्द्र के अश्‍व-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५, १) २ न. ग्रैवेयक देवलोक का प्रस्तर (इक) °हरा स्त्री [°धरा] १ दक्षिण रुचक पर्वत पर रहनेवाली एक दिशाकुमारी देवी (ठा ८) २ जम्बू-वृक्ष विशेष, सुदर्शना (जीव ३) ३ पक्ष की चौथी रात्रि (जो ४)

जसोधर :: देखो जस-हर (सुज्ज १०, १४)।

जसोधरा :: देखो जसो-हरा (सुज्ज १०, १४)।

जसोया :: स्त्री [यशोदा] भगवान् महावीर की पत्‍नी का नाम (आचा २, १५, ३)।

जह :: सक [हा] त्याग देना, छोड़ देना। जहइ (पि ६७)। वकृ. जहंत (वव ३)। कृ. जहणिज्ज (राज)। संकृ. जहित्ता (पि ५८२)।

जह :: अ [यत्र] जहाँ, जिसमें (हे २, १६१)।

जह :: अ [यथा] जिस तरह से, जैसे (ठा ३, १; स्वप्‍न २०)। °क्कम न [°क्रम] क्रम के अनुसार, अनुक्रम (पंचा ९)। °क्खाय देखो अह-क्खाय (आवम)। °ट्ठिय वि [°स्थित] वास्तविक, सत्य (सुर १, १६२; सुपा ५७)। °त्थ वि [°र्थ] वास्तविक, सत्य (पंचा १५)। °त्थनाम वि [°र्थनामन्] नाम के अनुसार गुणवाला, अन्वर्थ (श्रा १६)। °त्थवाइ वि [°र्थवादिन्] सत्य-वक्ता (सुर १४, १९)। °प्प न [याथात्म्य] वास्त- विकता, सत्यता (राज)। °रिह न [°र्ह] उचितता के अनुसार (सुपा १९२)। °वट्टिय वि [°वृत्त] सत्य, यथार्थ (सुपा ५२९)। °विहि पुंस्त्री [°विधि] विधि के अनुसार; 'नहगामिणिपमुहाओ जहविहिणा साहियव्वाओ' (सुर ३, २८)। °संख न [°संख्य] संख्या के क्रम से, क्रमानुसार (नाट)। देखो जहा = यथा।

जहण :: न [जघन] कमर के नीचे का भाग (गा १९६; णाया १, ९)।

जहणरोह :: पुं [दे] ऊरु, जंघा, जाँघ (दे ३, ४४)।

जहणा :: स्त्री [हान] परित्याग (संबोध ५९)।

जहणूसव, जहणूसुअ :: न [दे] अर्घोरुक, जघनांशुक, स्त्री को पहनने का वस्त्र-विशेष (दे ३, ४५; षड्)।

जहण्ण, जहन्न :: वि [जघन्य] निकृष्ट, हीन, अधम, नीच (सम ८; भग, ठा १, १; जी ३८; दं ६)।

जहा :: =देखो जह=हा। (पि ३५०)। संकृ. जहाइत्ता, जहाय (सूअ १, २, १; पि ५९१)।

जहा :: देखो जह=यथा (हे १, ६७; कुमा)। °जुत्त वि [°युक्त] यथोचित, योग्य (सुर २, २०१)। जेट्ठ न [°ज्येष्ठ] ज्येष्ठता के क्रम से (अणु)। °णामय वि [°नामक] जिसका नाम न कहा गया हो, अनिर्दिष्ट-नामा, कोई (जीव ३)। °तच्च न [°तथ्य] सत्य, वास्तविक (आचा)। °तह न [°तथ] सत्य, वास्तविक (राज)। °तह न [याथातथ्य] वास्तविकता, सत्यता; 'जाणासि णं भिक्खु जहातहेणं' (सूअ १, ६)। २ 'सुत्रकृताङ्ग' सूत्र का एक अघ्ययन (सूअ १, १३) °पवट्टकरण न [°प्रवृत्तकरण] आत्मा का परिणाम-विशेष (आचा)। °भूय वि [°भूत] सच्चा, वास्तविक (णाया १, १) °राइणिया स्त्री [°रात्निकता] ज्येष्ठता के क्रम से, बड़प्पन के अनुसार (कस)। °रुह देखो जह- रिह (स ४६३)। वित्त न [°वृत्त] जैसा हुआ हो वैसा, यथार्थ (स २४)। °सत्ति स्त्रीन [°शक्ति] शक्ति के अनुसार (पंचा ३)।

जहाजाय :: वि [दे. यथाजात] जड़, मूर्ख, बेवकूफ (दे ३, ४१; पण्ह १, ३)।

जहि, जहिं :: देखो जह=यत्र (हे २, १६१; गा १३१; प्रासू ५९)।

जहियं :: देखो जहिं (पिंड ५८)।

जहिच्छ :: न [यथेच्छ] इच्छा के अनुसार (सुपा १९; पिंग)।

जहिच्छिय :: न [यथेप्सित] इच्छानुकूल, इच्छानुसार (पंचा १)।

जहिच्छिया :: स्त्री [यदृच्छा] मरजी, स्वेच्छा, स्वच्छन्दता (गा ४५३; विसे ३१९; स ३३२)।

जहिट्ठिल :: पुं [युधिष्ठिर] पाण्डु-राजा का ज्येष्ठ पुत्र, ज्येष्ठ पाण्डव (हे १, १०७; प्राप्र)।

जहिमा :: स्त्री [दे] विदग्ध पुरुष की बनाई हुई गाथा (दे ३, ४२)।

जहुट्ठिल :: देखो जहिट्ठिल (हे १, ६९; १०७)।

जहुत्त :: न [यथोक्त] कथनानुसार (पडि)।

जहेअ :: अ [यथैव] जैसे ही (से ९, १९)।

जहेच्छ :: देखो जहिच्छ (गा ८८२)।

जहोइय :: न [यथोदित] कथितानुसार (धर्म ३)।

जहोइय, जहोच्चिय :: न [यथोचित] योग्यता के अनु- सार (से ८, ५; सुपा ४७१)।

जा :: अक [जन्] उत्पन्न होना। जाअइ (हे ४, १३६)। वकृ. जायंत (कुमा)। संकृ 'एक्‍के च्‍चिय निव्विण्णा पुणो-पुणो जाइउं. च मरिउं च' (स १३०)।

जा :: सक [या] १ जाना, गमन करना। २ प्राप्त करना। ३ जानना। जाइ (सुपा ३०१)। जंति (महा)। वकृ. जंत (सुर ३, १४३; १०, ११७)। कवकृ. जाइज्जमाण (पण्ह १, ४)

जा :: सक [या] सकना, समर्थ होना; 'किंतु मम एत्थ न जाइ पव्वइउं', 'बहिट्ठियाणं किं जायइ अज्झाइउं' (सुख २, १३)।

जा :: देखो जाव=यावत् (हे १, २७१; कुमा; सुर १५, १३८)।

जाअ :: देखो जाव=जाप (हास्य १३२)।

जाअ :: देखो जा=या। जाअइ (प्राकृ ६६)।

जाअर :: देखो जागर (मुद्रा १८७)।

जाआ :: स्त्री [यातृ] देवर-भार्या, देव की पत्‍नी, देवरानी (प्राकृ ४३)।

जाइ :: स्त्री [जाति] १ पुष्प-विशेष, मालती (कुमा)। सामान्य नैयायिकोंके मत से एक धर्म- विशेष, जो व्यापक हो, जैसे मनुष्य का मनुष्यत्व, गो का गोत्व (विसे १६०१) ३ जात, कुल, गोत्र, वंश, ज्ञाति (ठा ४, २; सूअ ९, १३; कुमा) ४ उत्पत्ति, जन्म (उत ३; पडि) ५ क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य आदि जाति (उत्त ३) ६ पुष्प-प्रधान वुक्ष, जाई का पेड़ (पण्ण १) ७ मद्य-विशेष (विपा १, २)। °आजीव पुं [°आजीव] जाति की समानता बतला कर भिक्षा प्राप्त करनेवाला साधु (ठा ५, १) °थेर पुं [स्थविर] साठ वर्ष की उम्र का मुनि (ठा ३, २)। °नाम न [°नामन्] कर्म-विशेष (सम ६७)। °प्पसण्णा स्त्री [°प्रसन्ना] जाति के पुष्पों से वासित मदिरा (जीव ३)। °फल न [°फल] १ वृक्ष-विशेष। २ फल-विशेष, जायफल, एक गर्म मसाला (सुर १३, ३३; सण)। °मंत वि [°मत्] उच्‍च जाति का (आचा २, ४, २)। °मय पुं [°मद] जाति का अभिमान (ठा १०) °वत्तिया स्त्री [°पत्रिका] १ सुगन्घित फलवाला वृक्ष-विशेष। २ फल-विशेष, एक गर्म मसाला (सण) °सर पुं [°स्मर] १ पूर्व जन्म की स्मृति। २ वि. पूर्व जन्म का स्मरण करनेवाला, पूर्व-जन्म का ज्ञानवाला, 'जाइसराइं मन्‍ने इमाइं नयणाइं सयललोयस्स' (सुर ४, २०८)। °सरण न [°स्मरण] पूर्व जन्म की स्मृति (उत्त १९) °स्सर देखो °सर (कप्प; विसे १६७२; उप २२० टी)।

जाइ :: स्‍त्री [जाति] १ न्याय-शास्‍त्र-प्रसिद्ध दूषणाभास — असत्य दूसण (धर्मसं २६०; स ७११) २ माता का वंश (पिंड ४३८)

जाइ :: देखो जाया (षड्)।

जाइ :: स्त्री [दे] १ मदिरा, सुरा, दारू (दे ३, ४५) २ मदिरा-विशेष (विपा १, २)

जाइ :: वि [याजिन्] यज्ञ-कर्ता (दसनि १, १४६)।

जाइ :: वि [यायिन्] जानेवाला (ठा ४, ३)।

जाइअ :: वि [याचित] प्रार्थित, मांगा हुआ (विसे २५०४; गा १९५)।

जाइअ :: देखो जाय=जात (वज्जा १४४)।

जाइच्छि°, जाइच्छिय :: वि [यादृच्छिक] १ इच्छा- नुसार, यथेच्छ (धर्मसं १२) २ इच्छानुसारी (धर्मसं ६०२)

जाइच्छिय :: वि [यादृच्छिक] स्वेच्छा-निर्मित (विसे २५)।

जाइज्जत :: देखो जाय=यातय्।

जाइज्जंत, जाइज्जमाण :: देखो जाय=याच्।

जाइणी :: स्‍त्री [याकिनी] एक जैन साध्वी, जिसको सुप्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार श्री हरिभद्र- सूरि अपनी धर्म-माता समझते थे (उप १०३९)।

जाइयव्वय :: न [यातव्य] गमन, गति (सुख २, १७)।

जाईअ :: वि [जातीय] जाति-सम्बन्धी (श्रावक ४०)।

जाउ :: न [जायु] क्षीरपेया, यवागू, माड़ की कांजी, लपसी, खाद्य-विशेष (पिड ६२५)।

जाउ :: अ [जातु] कदाचित्, कभी (उवकु ११)।

जाउ :: अ [जातु] किसी तरह (उप ५४७)। °कण्ण पुं [कणे] पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र (इक)।

जाउ :: स्त्री [यातृ] १ देवर-पत्‍नी, देवरानी। २ वि. जानेवाला (संक्षि ४)

जाउया :: स्त्री [यातृका] देवर-पत्‍नी, पति के छोटे भाई की स्त्री, देवरानी (णाया १, १६)।

जाउर :: पुं [दे] कपित्थवृक्ष, कैथ का फल (दे ३, ४५)।

जाउल :: पुं [जातुल] वल्ली-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३२)।

जाउहाण :: पुं [यातुधान] राक्षस (उप १०३१ टी; पाअ)।

जाग :: पुं [याग] १ यज्ञ, अध्वर, होम, हवन (पउम १४, ४७; स १७१) २ देव-पूजा (णाया १, १)

जागर :: अक [जागृ] जागना, निद्रा-त्याग करना। जागरइ (षड्)। वकृ. जागरमाण (विसे २७१९)। हेकृ. जागरित्तए, जाग- रेत्तए (कप्प; कस)।

जागर :: वि [जागर] १ जागनेवाला, जागता (आचा; कप्प श्रा २५) २ पुं. जागरण, निद्रा-त्याग (मुद्रा १८७; भग १२, २; सुर १३, ९७)

जागरइत्तु :: वि [जागरितृ] जागनेवाला (श्रा २३)।

जागरिअ :: वि [जागृत] जागा हुआ, निद्रा- रहित, प्रबुद्ध (णाया १, १९; श्रा २५)।

जागरिअ :: वि [जागरिक] निद्रा-रहित (भग १२, २)।

जागरिया :: स्त्री [जागरिका, जागर्या] जागरण, निद्रा-त्याग (णाया १, १; औप)।

जागरुअ :: वि [जागरुक] जागता, जागा हुआ, जागने के स्वभाववाला (धर्मवि १३५)।

जाजावर :: वि [यायावर] गमनशील, विनश्वर (सम्मत्त १७४)।

जाडी :: स्त्री [दे] गुल्म, लता-प्रतान (दे ३, ४५)।

जाण :: सक [ज्ञा] जानना, ज्ञान प्राप्‍त करना, समझना। जाणइ (हे ४, ७)। वकृ. जार्णत, जाणमाण (कप्प; विपा १, १)। संकृ. जाणिऊण, जाणित्ता, जाणित्तु (पि ५८६; महा; भग)। हेकृ. जाणिउं (पि ५७६)। कृ. जाणियव्व (भगः अंत १२)।

जाण :: पुंन [यान] १ रथादि वाहन, सवारी (औप; पण्ह २, ५; ठा ४, ३) २ यान- पात्र, नौका, जहाज; 'नाणं संसारसमुद्दतारणे बंधुरं जाणं' (पुफ्फ ३७) ३ गमन, गति (राज) °पत्त, °वत्त न [°पात्र] जहाज, नौका (नमि ५; सुर १३, ३१)। °साला स्त्री [°शाला] १ तबेला, अस्तबल। २ वाहन बनाने का कारखाना (औप; आचा २, २, २)

जाण :: न [ज्ञान] ज्ञान, बोघ, समझ (भग; कुमा)।

जाणं :: वि [जानत्] जानता हुआ, 'जाणं काएण णाउट्टी' (सूअ १, ५, १); 'आसु- पण्णोण जाणया' (आचा)।

जाणई :: स्त्री [जानकी] सीता, राम-पत्‍नी (पउम १०६, १८; से ६, ६)।

जाणग :: वि [ज्ञायक] जानकार, ज्ञानी, जाननेवाला (सूअ १, १, १; महा; सुर १०, ६५)।

जाणगी :: देखो जाणई (पउम ११७, १८)।

जाणण :: न [दे] बरात, गुजराती में 'जान'; 'जो तदवत्थाए समुचिओत्ति जाणणणाइओ' (उप ५९७ टी)।

जाणण :: न [ज्ञान] जानना, जानकारी, समझ, बोध (हे ४, ७; उप पृ २३; सुपा ४१६; सुर १०, ७१; रयण १४; महा)।

जाणणया, जाणणा :: स्त्री ऊपर देखो (उप ५१९; विसे २१४८; अणु; आचू ३)।

जाणय :: देखो जाणग (भग; महा)।

जाणय :: वि [ज्ञापक] जनानेवाला, समझानेवाला (औप)।

जाणया :: स्त्री [ज्ञान] ज्ञान, समझ, जानकारी; 'एएसिं पयाणं जाणजाए सवणयाए' (भग)।

जाणवय :: वि [जानपद] १ देश में उत्पन्‍न, देश-संबन्धी (भग; णाया १, १ — पत्र १)

जाणाव :: सक [ज्ञापयू] ज्ञान कराना, जनाना। जाणावइ, जाणावेइ (कुमा; महा)। हेकृ. जाणाविउं, जाणावेउं (पि ५५१)। कृ. जाणावेयव्व (उप पृ २२)।

जाणावण :: न [ज्ञापन] ज्ञापन, बोघन (पउम ११, ८८; सुपा ६०६)।

जाणावणा, जाणावणी :: स्त्री [ज्ञापनी] विद्या-विशेष (उप पृ ४२; महा)।

जाणाविय :: वि [ज्ञापित] जनाया, विज्ञापित, मालूम कराया, निवेदित (सुपा ३५६; आवम)।

जाणि :: वि [ज्ञानिन्] ज्ञाता, जानकार (कुमा)।

जाणिअ :: वि [ज्ञात] जाना हुआ, विदित (सुर ४, २१४; ७, २९)।

जाणु :: न [जानु] १ घोंटू, घुटना। २ ऊरु और जंघा का मघ्य भाग (तंदु; निर १, ३; णाया १, २)

जाणु, जाणुअ :: वि [ज्ञायक] जाननेवाला, ज्ञाता, जानकार (ठा ३, ४; णाया १, १३)।

जाणे :: अ [जाने] उत्प्रेक्षा-सूचक अव्यय, मानो (अभि १५०)।

जाम :: सक [मृज्] मार्जन करना, सफा करना। जामइ (नाट — प्राप्र ८० टी)।

जाम :: पुं [गाम] १ प्रहर, तीन घण्टा का समय (सम ४४; सुर ३, २४२) २ यम, अहिंसा आदि पाँच व्रत। ३ उम्र-विशेष, आठ से बत्तीस, बतीस से साठ और साठ से अधिक वर्ष की उम्र (आचा) ४ वि. यम- संबन्धी, जमराज का (सुपा ४०५) °इल्ल वि [°वत्] १ प्रहरवाला (हे २, १५९) २ पुं. प्राहरिक, पहरेदार, यामिक (सुपा ५) °दिसा स्त्री [°दिश्] दक्षिण दिश (सुपा ४०५)। °वई स्त्री [°वती] रात्रि, रात (गउड)।

जाम :: देखो जाव=यावत् (आरा ३३)।

जामाइ :: देखो जामाउ (पिंड ४२४)।

जामग्गहण :: न [यामग्रहण] प्राहरिकत्व, पहरेदारी (सुख २, ३१)।

जामाउ, जामाउय :: पुं [जामातृ, °क] जामाता, दामाद, लड़की का पति (पउम ८६, ४; हे १, १३१; गा ६८३)।

जामि :: स्त्री [जामि, यामि] बहिन, भगिनी (राज)।

जामिअ :: देखो जामिग (धर्मवि १३५)।

जामिग :: पुं [यामिक] प्राहरिक, पहरुआ, पहरू, पहरेदार (उप ८३३)।

जामिणी :: स्त्री [यामिनी] रात्रि, रात (उप ७२८ टी)।

जामिल्ल :: देखो जामिग (सुपा १४९; २९६)।

जामेअ :: पुं [यामेय] भानजा, भागिनेय, बहिन का पुत्र (धर्मवि २२)।

जाय :: सक [याच्] प्रार्थना करना, माँगना। वकृ.जायंत (वण्ह १, ३)। कवकृ. जाइ- ज्जंत (पउम ५, ६८)।

जाय :: सक [यातय्] पीड़ना, यन्त्रणा करना। जाएइ (उव)। कवकृ. जाइज्जंत (पण्ह १, १)।

जाय :: देखो जाग (णाया १, १)।

जाय :: वि [जात] १ उत्पन्‍न, जो पैदा हुआ हो (ठा ९) २ न. समूह, संघात, (दंस ४) ३ भेद, प्रकार (ठा १०; निचू १६) ४ वि. प्रवृत्त (औप) ५ पुं. लड़का, पुत्र (भग ९, ३३; सुपा २७९) ६ न. बच्‍चा, संतान; 'जायं तीए जइ कहवि जायए पुन्‍न- जोगेण' (सुपा ५९८) ७ जन्म, उत्पत्ति (णाया १, १) °कम्म न [°कर्मन्] १ प्रसूति-कर्म (णाया १; १) २ संस्कार- विशेष (वसु)। °तेय पुं [°तेजस्] अग्‍नि, वह्नि (सम ५०)। °निद्दुया स्त्री [°निद्रुता] मृत-वत्सा स्त्री (विपा १, २)। वि °मूअ वि [°मूक] जन्म से मूक (विपा १.१) °रूव न [°रूप] १ सुवर्ण, सोना (औप) २ रूप्य, चाँदी (उत्त ३५) ३ सुवर्ण- निर्मित (सम ६५) °वेय पुं [°वेदस्] अग्‍नि, वह्नि (उत १२)।

जाय :: वि [यात] गत, गया हुआ (सूअ १, ३, १)। २ प्राप्‍त (सूअ १, १०) ३ न. गमन, गति (आचा)

जाय :: पु. [जात] गीतार्थ, विद्वान् जैन मुनि (पव — गाथा २४)।

जायग :: वि [याचक] १ माँगनेवाला। २ पुं. भिक्षुक (श्रा २३; सुपा ४१०)

जायग :: वि [याजक] यज्ञ करानेवाला (उत २५, ६)।

जायण :: न [याचन] याचना, प्रार्थना (श्रा १४; प्रति ६१)।

जायण :: न [यातन] कदर्थन, पीड़न (पण्ह १, २)।

जायणया, जायणा :: स्त्री [याचना] याचना, प्रार्थना माँगना (उप पृ ३०२; सम ४०; स २९१)।

जायणा :: स्त्री [यातना] कदर्थना, पीड़ा (पण्ह १, १)।

जायणी :: स्त्री [याचनी] प्रार्थना की भाषा (ठा ४, १)।

जायव :: पुं स्त्री [यादव] यदुवंश में उत्पन्‍न, यदुवंशीय (णाया १, १६; पउम २०, ५६)।

जाया :: स्त्री [यात्रा] निर्वाह, गुजारा, वृत्ति। °माय वि [°मात्र] जितने से निर्वाह हो सके उतना; 'साहुस्स विंति धीरा जाया मायं च ओमं च (पिंड ६४३)।

जाया :: स्त्री [जाया] स्त्री, औरत, (गा ६; सुपा ३०९)।

जाया :: देखो जत्ता (पण्ह २, ४; सूअ १, ७)।

जाया :: स्त्री [जाता] चमरेन्द्र आदि इन्द्रों की बाह्य परिषत् (भग; ठा ३, २)।

जायाइ :: पुं [यायाजिन्] यज्ञ-कर्ता, याजक, यज्ञ करानेवाला (उत्त २५, १)।

जार :: पुं [जार] १ उपपति, यार (हे १, १७७) २ मणि का लक्षण-विशेष (जीव ३)

जारिच्छ :: वि [यादृक्ष] ऊपर देखो (प्रामा)।

जारिस :: वि [यादृश] जैसा, जिस तरह का (हे १, १४२)।

जारेकण्ण :: न [जारेकृष्ण] गोत्र-विशेष, जो वाशिष्ठ गोत्र की एक शांखा है (ठा ७)।

जाल :: सक [ज्वालय्] जलाना, दग्ध करना; 'तो जलियजलणजालावलीसु जालेमि नियदेहं' (महा)। संकृ. जालेवि (महा)।

जाल :: न [जाल] १ समूह, संघात (सुर ४, १३५; स ४४३) २ माला का समूह, दाम- निकर (राय) ३ कारीगरीवाले छिद्रों से युक्त गृहांश, गवाक्ष-विशेष, झरोखा (औप; णाया १, १) ४ मछली वगैरह पकड़ने का जाल, पाश- विशेष (पण्ह १, १) ४ मछली वगैरह पकड़ने की जाल, पाश-विशेष (पण्ह १, १, ४) ५ पैर का आभूषण-विशेष, कड़ा (औप) °कडग पुं [°कटक] १ सच्छिद्र गवाक्षों का समूह। २ सच्छिद्र गवाक्ष-समूह से अलंकृत प्रदेश (जीव ३) °घरग न [°गृहक] सच्छिद्र गवाक्षवाला मकान (राय; णाया १, २)। °पंजर न [°पञ्जर] गवाक्ष (जीव ३)। °हरण देखो °घरग (औप)।

जाल :: पुं [ज्वाल] ज्वाला, अग्‍नि-शिखा, आग की लपट (सुर ३, १८८; जी ६)।

जालंतर :: न [जालान्तर] सच्छिद्र गवाक्ष का मघ्यभाग (सम १३७)।

जालंधर :: पुं [जालन्धर] १ पंजाब का एक स्वनाम-ख्यात शहर (भवि) २ न. गोत्र- विशेष (कप्प)

जालंधरायण :: न [जालन्धरायण] गोत्र- विशेष (आचा २, १५)।

जालग :: देखो जाल=जाल (पण्ह १, १; ५; औप; णाया १, १)।

जालग :: पुं [जालक] द्वीन्द्रिय जीव की एक जाति, मकड़ी (उत ३६, १३०)।

जालघडिआ :: स्त्री [दे] चन्द्रशाला, अट्टालिका, अटारी (दे ३, ४६)।

जालय :: देखो जाल=जाल (गउड)।

जालवणी :: स्त्री [दे] संवाद, सम्हाल, खबर; गुजराती में 'जालवण' (सिरि ३८५)।

जाला :: स्त्री [ज्वाला] १ अग्‍नि की शिखा (आचा; सुर २, २४६) २ नवम चक्रवर्त्ती की माता (सम १५२) ३ भगवान् चन्द्रप्रभ की शासनदेवी (संति ९)

जाला :: अ [यदा] जिस समय, जिस काल में; 'ताला जाअंति गुणा, जाला ते सहिअएहिं घेप्पंति' (हे ३, ६५)।

जालाउ :: पुं [जालायुष्] द्वीन्द्रिय जन्तु- विशेष, मकड़ी (राज)।

जालाव :: सक [ज्वालय्] जलाना, दाह देना। वकृ. जालावंत (महानि ७)।

जालाविअ :: वि [ज्वालित] जलाया हुआ (सुपा १८९)।

जालि :: पुं [जालि] १ राजा श्रेणिक का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी (अनु १) २ श्रीकृष्ण का एक पुत्र, जिसने दीक्षा ले कर शत्रुञ्जय पर्वत पर मुक्ति पाई थी (अंत १४)

जालिय :: पुं [जालिक] जाल-जीवि, वागुरिक, बहेलिया, चिड़ीमार (गउड)।

जालिय :: वि [ज्वालित] जलाया हुआ, सुल- गाया हुआ (उव; उप ५९७ टी)।

जालिया :: स्त्री [जालिका] १ कञ्चुक (पण्ह १, ३ — पत्र ४४; गउड) २ वृन्त (राज)

जालुग्गाल :: पुं [जालोद्‍गाल] मछली पकड़ने का साधन-विशेष (अभि १८३)।

जाव :: देखो जावइअ (आचा २, २, ३, ३)।

जाव :: सक [यापय्] १ गमन करना, गुजा- रना। २ बरतना। ३ शरीर का प्रतिपालन करना। जावइ (आचा)। जावेइ (हे ४, ४०) जावए (सूअ १, १, ३)

जाव :: अ [यावत्] इन अर्थों का सूचक अव्यय — १ परिमाण। २ मर्यादा। ३ अव- धारण, निश्चय; ' जावदयं परिमाणे मज्जाया- एवधारणे चेइ' (विसे ३५१६; णाया १, ७)। °ज्जीव स्त्री न [°ज्जीव] जीवन पर्यन्त (आचा)। स्त्री. °वा (विसे ३५१८; औप)। °ज्जीविय वि [°ज्जीविक] यावज्जीव-संबन्धी (स ४४१)। देखो जावं।

जाव :: पुं [जाप] मन ही मन बार बार देवता का स्मरण, मन्त्र का उच्चारण (सुर ६, १७४; सुपा १७१)।

जावइ :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३४।

जावइअ :: वि [यावत्] जितना; 'जावइया वयणपहा' (सम्म १४४; भत ९४)।

जावई :: स्त्री [जातिपत्री] १ कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८; सुख ३६, ९८) २ गुच्छ वनस्पति की एक जाति (पण्ण १ — पत्र ३४)

जावईय :: पुं [जातिपत्रीक] कन्द-विशेष (उत्त ३६, ९८)।

जावं :: देखो जाव (पउम ६८, ५०)। °ताव अ [°तावत्] १ गणित-विशेष। २ गुणाकार (ठा १०)

जावंत :: देखो जावइअ (भग १, १)।

जावग :: देखो जावय=यापक (धसनि १)।

जावण :: न [यापन] १ बिताना, गुजारना। २ दूर करना, हटाना (उप ३२० टी)

जावणा :: स्त्री [यापना] ऊपर देखो (उप ७२८ टी)।

जावणिज्ज :: वि [यापनीय] १ जो बीताया जाय, गुजारने योग्य। २ शक्ति-युक्त; 'जाव- णिज्जाए णिसीहिआए' (पडि)। °तंत न [°तन्त्र] ग्रन्थ-विशेष (धर्म २)

जावय :: वि [यापक] १ बीतानेवाला। २ पुं. तर्क-शास्त्र-प्रसिद्ध काल-क्षेपक हेतु (ठा, ४, ३)

जावय :: वि [जापक] जीतनेवाला, 'जिणाणं जावयाणं' (पडि)।

जावय :: पुं [यावक] अलक्त्क, अलता, लाख का रंग (गउड; सुपा ६६)।

जावसिय :: वि [यावसिक] १ धान्य से गुजारा करनेवाला (बृह १) २ घास-वाहक (ओघ २३८)

जाविय :: वि [यापित] बीताया हुआ (णाया १, १७)।

जास :: पुं [जाष] पिशाच-विशेष (राज)।

जासुमण :: पुं [जपासुमनस्] १ जपा जासुमिण का वृक्ष, पुष्पप्रघान (पण्ण १, जासुयण णाया १, १) २ न. जपा का फूल (णाया १, १; कप्प)

जाहग :: पुं [जाहक] जन्तु-विशेष, जिसके शरीर में काँटे होते हैं, साही या साहिल (पण्ह १, १; विसे १४५४)।

जाहन्थ :: न [याथार्थ्य] सत्यपन, वास्तविकता (विसे १२७९)।

जाहासंख :: देखो जहा-संख; 'जाहासंखमिमीणं नियकज्जं साहुवाओ य' (उप १७९)।

जाहे :: अ [यदा] जिस समय, जब, (हे ३, ६५; महा; गा ९८)।

जि :: (अप) देखो एव=एव (हे ४, ४२०; कुमा; वज्जा १४)।

जिअ :: अक [जीव्] जीना, प्राण-धारण करना। जिअइ, जिअउ (हे १, १०१)। वकृ. जिअंत (गा ६१७)।

जिअ :: पुं [जीव] आत्मा, प्राणी, चेतन (सुर २, ११३, जी ६; प्रासू ११४, १३०)। °लोअ पुं [°लोक] संसार, दुनियाँ (सुर १२, १४३)।

जिअ :: न [जित] जीत, जय (प्राकृ ७०)। °गासि वि [°काशिन्] जीत से शोभनेवाला विजेता (सम्मत २१७)। °सत्तु पु [°शत्रु] अंग-विद्या का जानकार दूसरा रुद्र-पुरुष (विचार ४७३)।

जिअ :: वि [जित] १ जीता हुआ, पराभूत, अभिभूत (कुमा; सुर ३, ३२) २ परिचित (विसे १४७२)। °प्प वि [°।त्मन्] जिते- न्द्रिय, संयमी (सुपा २७६)। °भाणु पुं [°भानु] राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २५९) °सत्तु पुं [°शत्रु] १ भगवान् अजितनाथ का पिता (सम १५०) २ नृप-विशेष (महा; विपा १, ५) °सेण पुं [°सेन] १ जैन आचार्य- विशेष। २ नृप-विशेष। ३ एक चक्रवर्त्ती राजा। ४ स्वनामख्यात एक कुलकर (राज)। °।रि पुं [°।रि] भगवान् संभवनाथजी का पिता (सम १५०)

जिअंती :: स्त्री [जीवन्ती] वल्ली-विशेष (पण्ण १)।

जिअव :: वि [जीतवत्] जय-प्राप्त (पण्ह १, १)।

जिइंदिय, जिएंदिय :: वि [जितेन्द्रिय] इन्द्रियों को वश में रखनेवाला, संयमी (पउम १४, ३९; हे ४, २८७)।

जिंघ :: सक [घ्रा] सूँघना, गन्ध लेना। कृ. जिंघणिज्ज (कप्प)।

जिंघण :: न [घ्राण] सूँघना, गन्ध-ग्रहण (स ५७७)।

जिंघणा :: स्त्री [घ्राण] ऊपर देखो (ओघ ३७६)।

जिंघिअ :: वि [घ्रात] सूँघा हुआ (पाअ)।

जिंडह :: पुंन [दे] कन्दुक, गेंद; जिंडहगेड्डिआ- इरमण' (पव ३८; घर्म २)।

जिंडुह :: पुं [दे] कन्दुक, गेंद (पव ३८)।

जिंभ, जिंभाअ :: देखो जंभाय। जिंभ (अभि २४१)। वकृ. जिंभाअंत (से ११, ३०)।

जिंभिया :: स्त्री [जृम्भा] जम्भाई, जृम्भण, मुख विकाश (सुपा ५८३)।

जिगीसा :: स्त्री [जिगीषा] जय की इच्छा (कुप्र २७८)।

जिग्घ :: देखो जिंघ। जिग्घइ (निचू १)।

जिग्घिअ :: वि [दे] घ्रात, सूँघा हुआ (दे ३, ४६)।

जिच्च, जिच्चमाण :: देखो जिण=जि।

जिट्ठ :: वि [ज्येष्ठ] १ महान्, वृद्ध, बड़ा (सुपा २३४; कम्म ४, ८६) २ श्रेष्ठ, उतम। ३ पुं. बड़ा भाई; 'जिट्ठं व कणिठ्ठ पि हु' (धर्म २)। °भूइ पुं [°भूति] जैन साधु- विशेष (ती १७)। °मृली स्त्री [°मूली] ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (इक)

जिट्ठ :: पुं [ज्येष्ठ] मास-विशेष, जेठ (राज)।

जिट्ठा :: स्त्री [ज्येष्ठा] १ भगवान् महावीर की पुत्री। २ भगवान् महावीर की भगिनी (विसे २३०७) ३ नक्षत्र-विशेष (जं १)। देखो जेट्ठा।

जिट्ठाणी :: स्त्री [ज्येष्ठा] बड़े भाई की पत्‍नी, जिठानी या जेठानी (सुपा ४८७)।

जिट्ठिणी :: स्त्री [ज्यैष्ठी] जेठ मास की अमावस (सट्ठि ७८ टी)।

जिण :: सक [जि] जीतना, वश करना। जिणइ (हे ४, २४१; महा)। कर्म, जिणि- ज्जइ, जिव्वइ (हे ४, २४२)। वकृ. जिणंत, जिणयंत (पि ४७३; पउम १११, १७)। कवकृ. जिव्वमाण (उत्त ७, २२)। संकृ. जिणित्ता, जिणिऊण, जिणेऊण, जेऊण, जेउआण (पि; हे ४, २४१; षड्; कुमा)। हेकृ. जिणिउं, जेउं (सुर १, १३०; रंभा)। कृ. जिच्च, जिणेयव्व, जेयव्व (उत ७, २२; पउम १६, १६; सुर १४, ७९)।

जिण :: पुं [जिन] १ राग आदि अन्तरंग शत्रुओं को जीतनेवाला, अर्हन् देव, तीर्थकर (सम १; ठा ४, १; सम्म १) २ बुद्ध देव, बुद्ध भगवान् (दे १, ५) ३ केवल-ज्ञानी, सर्वज्ञ (पण्ण १) ४ चौदह पूर्व ग्रन्थों का जानकार (उत्त ५) ५ जैन साधु-विशेष, जिनकल्पी मुनि। ६ अवधि-ज्ञान आदि अती- न्द्रिय ज्ञानवाला (पंचा ४; ठा ३, ४) ७ वि. जीतनेवाला (पंचा ३, २०)। °इंद पुं [°इन्द्र] अहंन् देव (सुर ४, ८१)। °कप्प पुं [°कल्प] एक प्रकार के जैन मुनियों का आचार, चारित्र-विशेष (ठा ३, ४; बृह १)। °कप्पिय पुं [°कल्पिक] एक प्रकार का जैन मुनि (ओघ ६६९)। °किरिया स्त्री [°क्रिया] जिनदेव का बतलाया हुआ घर्मानुष्ठान (पंचव १)। °घर न [°गृह] जिन-मन्दिर (भग २, ८; णाया १, १६ — पत्र २१०) °चंद पुं [°चन्द्र] १ जिनदेव, अर्हन् देव (कम्म ३, १; अजि २९) २ स्वनाम-ख्यात जैन आचार्य विशेष (गु १२; सण)। °जत्ता स्त्री [°यात्रा] अर्हन् देव की पूजा के उपलक्ष में किया जाता उत्सव-विशेष, रथ-यात्रा (पंचा ७)। °णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष जिसके प्रभाव से जीव तीर्थकर होता है (राज) °दत्त पुं [°दत्त] १ स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य-विशेष (गण २६; सार्ध १५०) २ स्वनाम-ख्यात एक जैन श्रेष्ठी (पउम २०, ११६) °दव्व न [°द्रव्य] जिन-मन्दिर-सम्बन्धी धनादि वस्तु; 'वड्‍ढंतो जिणदव्वं तित्थगरत्तं लहइ जीवो' (उप ४१८; दंस १)। °दास पुं [°दास] १ स्वनाम-प्रसिद्ध एक जैन उपासक (आचू ६) २ स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि और ग्रन्थकार, निशीथ-सूत्र का चूर्णिकार (निचू २०) °देव पुं [°देव] १ अर्हन् देव (गु ७) २ स्वनाम-प्रसिद्ध जैनाचार्य (आक) ३ एक जैन उपासक (आचू ४) °धम्म पुं [°धर्म्म] जिनदेव का उपदिष्ट धर्म, जैन धर्म (ठा ५, २; हे १; १८७)। °नाह पुं [°नाथ] जिनदेव, अर्हन् देव (सुपा २३५)। °पडिमा स्त्री [°प्रतिमा] अर्हन् देव की मूर्ति (णाया १, १६ — पत्र २१०; राय; जीव ३); 'जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्धं' (दसचू २)। °पवयण न [°प्रव- चन] जैन आगम, जिनदेव-प्रणीत शास्त्र (विसे १३५०)। °पसत्थ वि [°प्रशस्त] तीर्थकर-भाषित, जिनदेव-कथित (पण्ह २, ५)। °पहु पुं [°प्रभु] जिन-देव, अर्हन् देव (उप ३२० टी)। °पाडिहेर न [°प्रातिहार्य] जिन-देव की अर्हता-सूचक देव-कृत अशोक वृक्ष आदि आठ बाह्य विभूतियाँ, वे ये हैं — १ अशोक वृक्ष, २ सुर-कृत पुष्प-वृष्टि, ३ दिव्य- घ्वनि, ४ चामर, ५ सिंहासन, ६ भामण्डल, ७ दुन्दुभि-नाद, ८ छत्र (दंस १)। °पालिय पुं [°पालित] चम्पा नगरी का निवासी एक श्रेष्ठि-पुत्र (णाया १, ९)। °बिब न [°बिम्ब] जिन-मूर्त्ति, जिन-देव की प्रतिमा (पडि; पंचा ७)। °भड पुं [°भट] स्वनाम- प्रसिद्ध एक जैन आचार्य, जो सुप्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार श्रीहरिभद्र सूरि के गुरु थे (सार्थ ५८)। °भद्द पुं [°भद्र] स्वनाम-प्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रन्थकार (आव ४)। °भवण न [°भवन] अर्हन् मन्दिर (पंचव ४)। °मय न [°मत] जैन दर्शन (पँचा ४)। °माया स्त्री [°मातृ] जिन-देव की जननी (सम १५१)। °मुद्दा स्त्री [°मुद्रा] जिनदेव जिस तरह से कायोत्सर्ग में रहते है उस तरह शरीर का विन्यास, आसन- विशेष (पंचा ३)। °यंद देखो °चंद (सुर १, १०; सुपा ७६)। °रक्खिय पुं [°रक्षित] स्वनाम-ख्यात एक सार्थवाह-पुत्र (णाया १, ९)। °वइ पुं [°पति] जिन-देव, अर्हन्-देव (सुपा ८६)। °वई स्त्री [°वाच्] जिन- देव की वाणी (बृह १)। °वयण न [°वचन] जिन-देव की वामी (ठा ६)। °वयण न [°वदन] जिनदेव का मुख (औप)। °वर पुं [°वर] अर्हन् देव (पउम ११, ४; अजि १)। °वरिंद पुं [°वरेन्द्र] अर्हन् देव (उप ७७९)। °वल्लह पुं [°वल्लभ] स्वनाम-ख्यात एक जैन आचार्य और प्रसिद्ध स्तोत्र-कार (लहुअ १७)। °वसह पुं [°वृषभ] अर्हन् देव (राज)। °सकहा स्त्री [°सक्थि] जिन-देव की अस्थि (भग १०, ५)। °सासण न [°शासन] जैन दर्शन (उत्त १८; सुअ १, ३, ४)। °हंस पुं [°हंस] एक जैन आचार्य (दं ४७)। °हर देखो °घर (पउम ११, ३; सुपा ३९१; महा)। °हरिस पुं °[हर्ष] एक जैन मुनि (रयण ९४)। °।ययण न [°।यतन] जिन- देव का मन्दिर (पंचव ४)।

जिणंद :: देखो जिणिंद; 'सव्वे जिणंदा सुरविंद- वंदा' (पडि; जी ४८)।

जिणकप्पि :: पुं [जिनकल्पिन्] जैन मुनि का एक भेद (पंचा १८, ६)।

जिणण :: न [जयन] जय, जीत (सण)।

जिणपह :: पुं [जिनप्रभ] एक जैन आचार्य (ती ५)।

जिणिंद :: पुं [जिनेन्द्र] जिन भगवान्, अर्हन् देव (प्रासू ५२)। °गिह न [°गृह] जिन- मन्दिर (सुर ३, ७२)। °चंद पुं [°चन्द्र] जिन-देव (पउम ९५, ३९)।

जिणिय :: वि [जित] पराभूत, वशीकृत (सुपा ५२२; रयण २७)।

जिणिसर :: देखो जिणेसर (सम्मत्त ७६; ७७)।

जिणिस्सर :: देखो जिणेसर (पंचा १९)।

जिणुत्तम :: पुं [जिनोत्तम] जिन-देव (अजि ४)।

जिणेंद :: देखो जिणिंद (चेइय ९०)।

जिणेस :: पुं [जिनेश] जिन भगवान्, अर्हन् देव (सुपा २६०)।

जिणेसर :: पुं [जिनेश्वर] १ जिन देव, अर्हन् देव (पउम २, २३) २ विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के स्वनाम-ख्यात एक प्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रन्थकार (सुर १६, २३९; सार्ध ७६; गु ११)

जिण्ण :: वि [जीर्ण] १ पुराना, जर्जर (हे १, १०२; चारु ४९ प्रासू ७९) २ पचा हुआ; 'जिण्णो भोअणमत्ते' (हे १, १०२) ३ वृद्ध; बूढा (बृह १) सेट्ठि पुं [श्रेष्ठिन्] १ पुराना सेठ। २ श्रेष्ठि पद से च्युत (आव ४)

जिण्ण :: (अप) देखो जिअ=जित (पिग)।

जिणणासा :: स्त्री [जिज्ञासा] जानने की इच्छा (पंचा ३)।

जिण्णिअ, जिण्णीअ :: (अप) देखो जिणिय (पिंग)।

जिण्णोब्भवा :: स्त्री [दे] दूर्वा, दूब (घास) (दे ३, ४६)।

जिण्हु :: वि [जिष्णु] १ जित्वर, जीतनेवाला, विजयी (प्रामा) २ पुं. अर्जुन, मघ्यम पांडव (गउड) ३ विष्णु, श्रीकृष्ण। ४ सूर्य, रवि। ५ इन्द्र, देव-नायक (हे २, ७५)

जित्त :: देखो जिअ=जित (महा; सुपा ३९५; ६४३)।

जित्तिअ, जित्तिल :: वि [यावत्] जितना (हे २, १५६; षड्)।

जित्तुल :: (अप) ऊपर देखो (कुमा)।

जिध :: (अप) अ [यथा] जैसे, दिस तरह से (हे ४, ४०१)।

जिन्न :: देखो जिण्ण (सुपा ६)।

जिन्नासिय :: वि [जिज्ञासित] जानने के लिए इष्ट, जानने के लिए चाहा हुआ (भास ७५)।

जिन्नुद्धार :: पुं [जीर्णोद्धार] पुराने और टूटे- फूटे मन्दिर आदि को सुधारना (सुपा ३०९)।

जिब्भ :: पुं [जिह्व] एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ६; २९)।

जिब्भा :: स्त्री [जिहवा] जीभ, रसना (पण्ह २, ५; उष ९८६ टी)।

जिब्भिंदिय :: न [जिह्‌वेन्द्रिय] रसनेन्द्रिय, जीभ (ठा ४, २)।

जिब्भिया :: स्त्री [जिहि्‌वका] १ जीभ। २ जीभ के आकारवाली चीज (जं ४)

जिम :: सक [जिम्, भुज्] जीमना, भोजन करना, खाना। जिमइ (हे ४, ११०; षड्)।

जिम :: (अप) देखो जिध (षड्; भवि)।

जिमण :: न [जेमन, भोजन] जीमन, भोजन (श्रा १६; चैत्य ५९)।

जिमण :: न [जेमन] जिमाना, भोज (घर्मवि ७०)।

जिमिअ :: वि [जिमित, भुक्‍त] १ जिसने भोजन किया हुआ हो वह (पउम २०, १२७; पुष्प ३५; महा) २ जो खाया गया हो वह, भक्षित (दे ३, ४६)

जिम्म :: देखो जिम=जिम् । जिम्मइ (हे ४, २३०)।

जिम्ह :: पुं [जिह्म] १ मेघ-विशेष, जिसके बरसने से प्राय: एक वर्ष तक जमीन में चिक- नापन रहती है (ठा ४, ४ — पत्र २७०) २ वि.कुटिल, कपटी, मायावी (सम ७१) ३ मन्द, अलस (जं २) ४ न. माया, कपट (वव ३)

जिम्ह :: न [जैम्ह] कुटिलता, वक्रता, माया, कपट (सम ७१)।

जिव :: देखो जीव; 'मायाइ अहं भणिओ कायव्वा वच्छ जिवदया तुमए' (धर्मवि ५)।

जिवँ, जिह :: (अप) देखो जिध (कुमा; षड्; हे ४, ३३७)।

जिहा :: देखो जीहा (षड्)।

जीअ :: देखो जीव=जीव् । जीअइ (गा १२४, हे १, १०१)। वकृ. जीअंत (से ३, १२; गा ८१९)।

जीअ :: देखो जीव=जीव (गउड)। ५ पानी, जल (से २, ७)।

जीअ :: देखो जीविअ (हे १, २७१; प्राप्र; सुर २, २३०)।

जीअ :: न [जीत] १ आचार, रिवाज, प्रथा, रूढ़ि (औप; राय, सुपा ४३) २ प्रायश्चित से सम्बन्ध रखनेवाला एक तरह का रिवाज, जैन सूत्रों में उक्त रीति से भिन्‍न तरह के प्रायश्‍चितों का परम्परागत आचार (ठा ५, २) ३ आचार-विशेष का प्रतिपादक ग्रन्थ (ठा ५, २; वव १) ४ मर्यादा, स्थिति, व्यवस्था (णंदि) °कप्प पुं [°कल्प] १ परम्परा से आगत आचार। २ परम्परागत आचार का प्रतिपादक ग्रन्थ (पंचा ९; जीत)। °कप्पिय वि [°कल्पिक] जीत कल्पवाला (ठा १०) °धर वि [°धर] १ आचार- विशेष का जानकार। २ स्वनाम-ख्यात एक जैनाचार्य (णंदि)। °ववहार पुं [व्यवहार] परम्परा के अनुसार व्यवहार (धर्म २; पंचा १६)

जीअण :: देखो जीवण (नाट-चैत २५८)।

जीअव :: वि [जीवितवत्] जीवितवाला, श्रेष्ठ जीवनवाला (पण्ह १, १)।

जीआ :: स्त्री [ज्या] १ धनुष की डोर (कुमा) २ पृथिवी, भूमि। ३ माता, जन्‍नी (हे २, ११५; षड्)

जीण :: न [दे अजिन] जीन, अश्‍व की पीठ पर बिछाय। जाता चर्ममय आसन (पव ८४)।

जीमृअ :: पुं [जीमूत] १ मेघ, वर्षा (पाअ; गउड) २ मेघ-विशेष, जिसके बरसने से जमीन दश वर्ष तक चिकनी रहती है (ठा ४, ४)

जीरं :: देखो जर=ज।

जीरण :: न [जीर्ण] १ अन्‍न पाक। २ वि. पुराना, पचा हुआ; 'अजीरणं' (पिंड २७)

जीरय :: न [जीरक] जीरा, मसाला-विशेष (सुर १, २२)।

जीरव :: सक [जीरय्] पचाना। जीरवइ (कुप्र २६६)।

जीव :: अक [जीव्] १ जीना, प्राण धारण करना। २ सक. आश्रय करना। जीवइ (कुमा)। वकृ. जीवंत, जीवमाण (विपा १, ५; उप ७२८ टी)। हेकृ. जीविउं (आचा)। संकृ. जीविअ (नाट)। कृ. जीविअव्व, जीवणिज्ज (सुअ १, ७)। प्रयो जीवावेहि (पि ५५२)

जीव :: पुंन [जीव] १ आत्मा, चेतन, प्राणी (ठा १, १; जी १; सुपा २३५); 'जीवाइं' (पि ३६७) २ जीवन, प्राण-धारण; 'जीवोत्ति जीवणं पाणधारणं जीवियंति पज्जाया' (विसे ३५०८; सम १) ३ पुं. बृहस्पति, सुर-गुरु (सुपा १०८) ४ बल, पराक्रम (भग २, १) ५ देखो जीअ= जीव। °काय पुं [°काय] जीव-राशि, जीव-समूह (सूअ १, ११)। °ग्गाह न [°ग्राह] जिन्दे को पकड़ना (णाया १, २)। °णिकाय पुं [°निकाय] जीव-राशि (ठा ६)। °त्थिकाय पुं [°।स्तिकाय] जीव- समूह, जीव-राशि (भग १३, ४; अणु)। °दय वि [°दय] जीवित देनेवाला (सम १)। °दया स्त्री [°दया] प्राणि-दया, दुःखी जीव का दुःख से रक्षण (महानि २)। °देव पुं [°देव] स्वनाम-ख्यात प्रसिद्ध जैन आचार्य और ग्रंथकार (सुपा १)। °पएस पुं [प्रदेशजीव] अन्तिम प्रदेश में ही जीव की स्थिति को माननेवाला एक जैनाभास दार्श- निक (राज)। °पएसिय पुं [°प्रादेशिक] देखो पूर्वोक्त अर्थ (ठा ७)। °लोग, °लोय पुं [°लोक] १ जीव-जाति, प्राणि-लोक, जीव-समूह (महा)। °विजय न [°विचय] जीव के स्वरूप का चिन्तन (राज)। °विभत्ति स्त्री [°विभक्ति] जीव का भेद (उत ३६)। °वुडि्ढय न [°वृद्धिक] अनुज्ञा, संमति, अनुमति (णंदि)

जीव :: न [जीव] सात दिन का लगातार उपवास (संबोध ५८)। °विसिट्ठ न [°विशिष्ट] वही अर्थ (संबोध ५८)।

जीवंजीव :: पुं [जीवजीव] १ जीव-बल, आत्म- पराक्रम (भग २, १) २ चकोर-पक्षी, चकवा (राज)

जीवंत :: देखो जीव=जीव्। °मुक्क पुं [°मुक्त] जीवन्मुक्त, जीवन-दशा में ही संसार-बन्धन से मुक्त महात्मा (अच्चु ४७)।

जीवग :: पुं [जीवक] १ पक्षि-विशेष (उप ५८०) २ नृप-विशेष (तित्थ)

जीवजीवग :: पुं [जीवजीवक] चकोर पक्षी, चकवा (पण्ह १, १ — पत्र ८)।

जीवण :: न [जीवन] १ जीना, जिन्दगी (विसे ३५२१; पउम ८, २५०) २ जीविका, आजीविका (स २२७; ३१०) ३ वि. जिलानेवाला (राज)। °वित्ति स्त्री [°वृत्ति] आजीविका (उप २६४ टी)

जीवमजीव :: पुं [जीवाजीव] चेतन और जड़ पदार्थ (आघम)।

जीवम्मुत्त :: देखो जीवंत-मुक्क (उवर १९१)।

जीवयमई :: स्त्री [दे] मृगों के आकर्षण के साधन-भूत व्याध-मृगी (दे ३, ४६)।

जीवा :: स्त्री [जीवा] १ धनुष की डोरी (स ३८४) 2 जीवन, जीना (विसे ३५२१) ३ क्षेत्र का विभाग-विशेष (सम १०४)

जीवाउ :: पुं [जीवातु] जिलानेवाला औषध, जीवनौषध (कुमा)।

जीवाविय :: वि [जीवित] जिलाया हुआ (उप ७६८ टी)।

जीवि :: वि [जीविन्] जीनेवाला (गा ८४७)।

जीविअ :: वि [जीवित] १ जो जिन्दा हो। २ न. जीवित, जीवन, जिन्दगी (हे १, २७१; प्राप्र)। °नाह पुं [°नाथ] प्राण-पति (सुपा ३१५)। °रिसिका स्त्री [°रिसिका] वनस्पति-विशेष (पण्ण १ — पत्र ३६)

जीविआ :: स्त्री [जीविका] १ आजीविका, निवहि-साधक वृति (ठा ४, २; स २१८; णाया, १, १)

जीविओसविय :: वि [जीवितोत्सविक] जीवन में उत्सव के तुल्य, जीवनोत्सव के समान (भग ९, ३३; राय)।

जीविओसासिय :: वि [जीवितोच्छ्‌वासिक] जीवन को बढ़ानेवाला (भग ९, ३३)।

जीविगा :: देखो जीविआ (स २१८)।

जीह :: अक [लस्ज्] लज्जा करना, शरमाना। जीहइ (हे ४, १०३; षड्)।

जीहा :: स्त्री [जिह्‌वा] जीभ, रसना (आचा; स्वप्‍न ७८)। °ल वि [वत्] लम्बी जीभवाला (पउम ७, १२०; नमि ८; सुर २, ९२)।

जीहाविअ :: वि [लज्जित] लज्जा-युक्त किया गया, लजाया गया (कुमा)।

जु :: देखो जुज (कुमा)। कवकृ. जुज्जंत (सम्म १०७; से १२, ८७)।

जु° :: स्त्री [युध्] लड़ाई, युद्ध; 'जुधि वातिभए घेप्पइ' (विसे ३०१६)।

जु :: अ [दे] निश्‍चय-सूचक अव्यय (सा ४)।

जुअ :: देखो जुग (से १२, ९०; इक; पण्ह १, १)। ६ युग्म, जोड़ा, उभय (पिंग; सुर २, १०२; सुपा १९०)।

जुअ :: वि [युत] युक्त, संलग्‍न, सहित (दे १, ८१; सुर ४, ९४)।

जुअ :: देखो जुव (गा २२८; कुमा; सुर २, १७७)।

जुअइ :: स्त्री [युवति] तरुणी, जवान स्त्री (गउड; कुमा)।

जुअंजुअ :: (अप) अ [युतयुत] जुदा-जुदा, अलग-अलग, भिन्‍न-भिन्‍न (हे ४, ४२२)।

जुअण :: [दे] देखो जुअल= (दे) (षड्)।

जुअणद्ध :: पुं [युगनद्ध] ज्योतिष प्रसिद्ध एक योग, जिसमें बैल के कंघे पर रखे हुए युग — जुआ या जुआठ की तरह चन्द्र और सूर्य तथा नक्षत्र अवस्थित होते हैं वह योग (सुज्ज १२ — पत्र २३३)।

जुअय :: न [युतक] जुदा, पृथक् (दे ७, ७३)।

जुअरज्ज :: न [यौवराज्य] युवराज का भाव या पद, युवरापन (स २६८)।

जुअल :: न [युगल] १ युग्म, जोड़ा, उभय (पाअ) 2 वे दो पद्य जिनका अर्थ एक दूसरे से सापेक्ष हो (श्रा १४)

जुअल :: पुं [दे] युवा, तरुण, जवान (दे ३, ४७)।

जुअलिअ :: वि [दे] द्विगुणित (दे ३, ४७)।

जुअलिय :: देखो जुगलिय (णाया १, १)।

जुअली :: स्त्री [युगली] युग्म, जोड़ा (प्राकृ ३८)।

जुआण :: देखो जुवाण (गा ५७; २४६)।

जुआरि :: स्त्री [दे] जुआरि, अन्‍न-विशेष (सुपा ५४६; सुर १, ७१)।

जुइ :: स्त्री [द्युति] कान्ति, तेज, प्रकाश, चमक (औप; जीव ३)। °म, °मंत वि [°मत्] तेजस्वी, प्रकाशशाली (स ६४१; पउम १०२, १५६)।

जुइ :: स्त्री [युति] संयोग, युक्तता (ठा ३, ३)।

जुइ :: पुं [युगिन्] स्वनाम ख्यात एक जैन मुनि (पउम ३२, ५७)।

जुईम :: वि [द्युतिमत्] तेजस्वी (सूअ १, ६, ८)।

जुउच्छ :: सक [जुगुप्स्] घृणा करना, निन्दा करना। जुउच्छइ (हे ४, ४; षड्; से ५, ५)।

जुउच्छिय :: वि [जुगुप्सित] निन्दित (निचू ४)।

जुंगिय :: वि [दे] जाति, कर्म या शरीर से हीन, जिसको संन्यास देने का जैन शास्त्रों में निषेध है (पुप्फ १२५)।

जुंगिय :: वि [दे] १ काटा हुआ (पिंड ४४९) २ दूषित (सिरि २२३)

जुंज :: सक [युज्] जोड़ना, युक्त करना। जुंजइ (हे ४, १०९)। वकृ. जुंजंत (ओघ ३२९)।

जुंजण :: न [योजन] जोड़ना, युक्त करना, किसी कार्य में लगाना (सम १०६)।

जुंजणया, जुंजणा :: स्त्री [योजना] १ ऊपर देखो (औप; ठा ७) २ करण-विशेष — मन, वचन और शरीर का व्यापार; 'मणव- यणकायकिरिया पन्‍नरसविहाउ जुंजणाकरणं' (विसे ३३६०)

जुंजम :: [दे] देखो जुंजुमय (उप ३१८)।

जुंजिअ :: वि [दे] बुभुक्षित, भूखा (णाया १, १ — पत्र ६६; ६८ टी)।

जुंजुमय :: न [दे] हरा तृण-विशेष, एक प्रकार की हरी घास, जिसको पशु चाव से खाते हैं (स ४८७)।

जुंजुरूड :: वि [दे] परिग्रह-रहित (दे ३, ४७)।

जुग :: पुं [युग] १ काल-विशेष — सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि ये चार युग (कुमा) २ पाँच वर्ष का काल (ठा २, ४ — पत्र ८६; सम ७५) ३ न. चार हाथ का युप (औप; पण्ह १, ४) ४ शक्ट का एक अंग, धुर, गाड़ी या हल खींचने के समय जो बैलों के कन्घे पर रक्खे जाते हैं (उप पृ १३९; उत्त २) ५ चार हाथ का परिमाण (अणु) ६ देखो जुअ=युग । °प्पवर वि [°प्रवर] युग-श्रेष्ठ (भग) °प्पहाण वि [°प्रधान] १ युग-श्रेष्ठ (रंभा) २ पुं. युग-श्रेष्ठ जैन आचार्य की एक उपाधि (पव २६४, गुरु १) °बाहु पुं [बाहु] १ विदेह वर्ष में उत्पन्‍न स्वनाम-प्रसिद्ध एक जिनदेव (विपा २, १) २ विदेह वर्ष का एक त्रि- खण्डाधिपति राजा (आचू ४) ३ मिथिला का एक राजा (तित्थ) ४ वि. यूप या खंभा की तरह लम्बा हाथवाला, दीर्घ-बाहु (ठा ९)। °मच्छ पुं [°मत्स्य] की एक जाति (विपा १, ८ — पत्र ८४ टी) °संवच्छर पुं [°संवत्सर] वर्ष-विशेष (ठा ५, ३)

जुगंतर :: न [युगान्तर] युप-परिमित भूमि- भाग, चार हाथ जमीन (पण्ह २, १)। °पलोयणा स्त्री [°प्रलोकना] चलते समय चार हाथ जमीन तक दृष्टि रखना (भग)।

जुगंधर :: न [युगन्घर] १ गाड़ी का काष्ठ- विशेष, शकट का एक अवयव (जं १) २ पुं. विदेह वर्ष में उत्पन्न एक जिन-देव (आचू १) ३ एक जैन मुनि (पउम २०, १८) ४ एक जैन आचार्य (आवम)

जुगल :: न [युगल] युग्म, जोड़ा, उभय (अणु; राय)।

जुगलि :: वि [युगलिन्] स्त्री-पुरुष के युग्म रूप से उत्पन्न होनेवाला (रयण २२)।

जुगलिय :: वि [युगलित] १ युग्म-युक्त, द्वन्द्व- सहित (जीव ३) २ युग्म रूप से स्थित (राज)

जुगव :: वि [युगवत्] समय के उपद्रव से वर्जित (अणु; राय)।

जुगव, जुगवं :: अ [युगपत्] एक ही साथ, एक ही समय में; 'कारणकज्ज- विभागो दीवपगासाण जुगवजम्मेवि' (विसे ५३६ टी; औप)।

जुगुच्छ :: देखो जुउच्छ। जुगुच्छइ (हे ४, ४)।

जुगुच्छणया, जुगुच्छा :: स्त्री [जुगुप्सा] घृणा, तिरस्कार (स १६७; प्राप्र)।

जुगुच्छिय :: वि [जुगुप्सित] घृणित, निन्दित (कुमा)।

जुग्ग :: न [युग्य] १ वाहन, गाड़ी वगैरह यान (आचा) २ शिविका, पुरुष-यान (सूअ २, २; जं २) ३ गोल्ल देश में प्रसिद्ध दो हाथ का लम्बा-चौड़ा यान-विशेष, शिविका-विशेष (णाया १, १; औप) ४ वि. यान-वाहक अश्‍व आदि। ५ भार-वाहक (ठा ४, ३)। °।यरिया, °।रिया स्त्री [°।चर्या] वाहन की गति (ठा ४, ३ — पत्र २३९)

जुग्ग :: वि [योग्य] लायक, उचित (विसे २९६२; सं ३१; प्रासू ५९; कुमा)।

जुग्ग :: न [युग्म] युगल, द्वन्द्व, उभय (कुमा; प्राप्र; प्राप)।

जुज्ज :: देखो जुंज। जुजइ (हे ४, १०९, षड्)।

जुज्जंत :: देखो जु।

जुज्झ :: अक [युध्] लड़ाई करना, लड़ना। जुज्झइ (हे ४, २१७; षड्)। वकृ. जुज्झंत, जुज्झमाण (सुर ९, २२२; २, ५१)। संकृ. जुज्भित्ता (ठा ३, २)। प्रयो. जुज्झावेइ (महा)। वकृ. जुज्झावेंत (महा)। कृ. जुज्झावेयव्व (उप पृ २२५)।

जुज्झ :: न [युद्ध] लड़ाई, संग्राम, समर (णाया १, ८; कुमा; कप्पू; गा ६८४)। °।इजुद्ध न [°।तियुद्ध] महायुद्ध, पुरुषों की बहत्तर कलाओं में एक कला (औप)।

जुज्झण :: न [योधन] युद्ध लड़ाई (सुपा ५२७)।

जुज्झिअ :: वि [युद्ध] १ लड़ा हुआ, जिसने संग्राम किया हो वह (से १५, ३७) २ न. युद्ध, लड़ाई, संग्राम (स १२६)

जुट्ठ :: वि [जुष्ट] सेवित (प्रामा)।

जुट्ठ :: न [दे] झूठ, असत्य; 'आ टुट्ठ तुमं जुट्ठं जंपसि' (धर्मवि १३३)।

जु़डिअ :: वि [दे] आपस में जुटा हुआ, लड़ने के लिए एक दूसरे से भीड़ा हुआ; 'सुहडेहिं समं सुहडा जुडिया तह साइणावि साईहि' (उप ७२८ टी)।

जुण्ण :: वि [दे] विदग्ध, निपुण, दक्ष (दे ३, ४७)।

जुण्ण :: वि [जीर्ण] जूना, रुराना (हे १, १०२; गा ५३४)।

जुण्णदुग्ग :: न [जीर्णदुर्ग] नगर-विशेष, जो आजकल भी 'जूनागढ' नाम से प्रसिद्ध है (ती २)।

जुण्ह :: देखो जोण्ह=ज्यौत्स्‍न (सुज्ज १९)।

जुण्हा :: स्त्री [ज्योत्स्‍ना] चाँदनी, चन्द्रिका, चन्द्र का प्रकाश (सुपा १२१; सण)।

जुत्त :: सक [युक्तय्] जोतना। संकृ. जुत्तित्ता (ती १५)।

जुत्त :: वि [युक्त] १ संगत, उचित, योग्य (णाया १, १६; चंद २०) २ संयुक्त, जोड़ा हुआ, मिला हुआ, संबद्ध (सूअ १, १, १; आचू) ३ उद्युक्त, किसी कार्य में लगा हुआ (पव ६४) ४ सहित, समन्वित (सूअ १, १, ३; आचा)। °।संखिज्ज न [°।संख्येय] संख्या-विशेष (कम्म ४, ७८)

जुत्ताणंतय :: पुंन [युक्तानन्तक] गणना- विशेष (अणु २३४)।

जुत्तासंखेज्जय :: देखो जुत्तासंखिज्ज (अणु २३४)।

जुत्ति :: स्त्री [युक्ति] १ योग, योजन, जोड़, संयोग (औप; णाया १, १०) २ न्याय, उपपत्ति (उप ९५०; प्रासू ६३) ३ साधन, हेतु (सूअ १, ३, ३)। °ण्ण वि [°ज्ञ] युक्ति का जानकार (औप)। °सार वि [°सार] युक्ति-प्रधान, युक्त, न्याय-संगत, प्रमाण-युक्त (उप ७२८ टी)। °सुवण्ण न [°सुवर्ण] बनावटी सोना (दस १०, ३९)। °सेण पुं [°षेण] ऐरवत वर्ष के अष्टम जिन-देव (सम १५३)

जुत्तिय :: वि [यौक्तिक] गाड़ी वगैरह में जो जोता जाय, 'जुत्तियतुरंगमाणं' (सुपा ७७)।

जुद्ध :: देखो जुज्झ=युद्ध (कुमा)।

जुन्न :: देखो जुण्ण (सुर १, २४४)

जुन्हा :: देखो जुण्हा (सुपा १५७)।

जुप्प :: देखो जुंज जुप्पइ (हे ४, १०९)। जुप्पसि (कुमा)।

जुम्म :: न [युग्म] १ युगल, दोनों, उभय (हे २, ६२; कुमा) २ पुं. सम राशि (ओघ ४०६; ठा ४, ६ — पत्र २३७)। °पएसिय वि [°प्रादेशिक] सम-संख्य प्रदेशों से निष्पन्न (भग २५, ४)

जुम्म :: न [युग्म] परस्पर सापेक्ष दो पद्य (सिरि ३६१)।

जुम्ह° :: स [युष्मत्] द्वितीय पुरुष का वाचक सर्वनाम, 'जुम्हदम्हपयरणं' (हे १, २४६)।

जुरुमिल्ल :: वि [दे] गहन, निबिड़, सान्द्र; 'दुहजुरुमिल्लावत्थं' (दे ३, ४७)।

जुव :: पुं [युवन्] जवान, तरुण (कुमा)। °राअ पुं [°राज] गद्दी का वारिस (उतरा- धिकारी) राजकुमार, भावी राजा (सुर २, १७५; अभि ८२)।

जुवइ :: स्त्री [युवति] तरुणी, जवान स्त्री (हे १, ४; औप; गउड; प्रासू ९३; कुमा)।

जुवंगव :: पुं [युवगव] तरुण बैल (आचा २, ४, २)।

जुवरज्ज :: न [यौवराज्य] १ युवराजपन (उप २११ टी; सुर १६, १२७) २ राजा के मरने पर जब तक युवराज का राज्याभिषेक न हुआ हो तबतक का राज्य (आचा २, ३, १) ३ राजा के मरने पर और युवराज के राज्याभिषेक हो जाने पर भी जबतक दूसरे युवराज की नियुक्ति न हुई हो तबतक का राज्य (बृह १)

जुवल :: देखो जुगल (स ४७८; पउम ६५, २३)।

जुवलिय :: देखो जुगलिय (भग; औप)।

जुवाण :: देखो जुव (पउम ३, १४६; णाया १, १; कुमा)।

जुवाणी :: देखो जुवई (पउम ८, १८४)।

जुव्वण, जुव्वणत्त :: देखो जोव्वण (प्रासू ४९, ११६); 'पढमं चिय बालत्तं, 'तत्तो कुमरतजुव्वणत्ताइं' (सुपा २४३)।

जुसिअ :: वि [जुष्ट] सेवित; 'पाएण देइ लोगो उवगारिसु परिचिए व जुसिए वा' (ठा ४, ४)।

जुहिट्ठिर, जुहिट्ठिल, जुहिट्ठिल :: देखो जहिट्ठिल (पिंग; उप ६४८ टी; णाया १, १६ — पत्र २०८; २२६)।

जुहु :: सक [हु] १ देना, अर्पण करना। २ हवन करना, होम करना। जुहुणामि (ठा ७ — पुत्र ३८१; पि ५०१)

जूअ :: न [द्युत] जुआ, द्युत (पाअ)। °कर वि [°कर] जुआरी, जुए का खिलाड़ी (सुपा ५२२)। °कार वि [°कार] वही पूर्वोक्त अर्थ (णाया १, १८)। °कारि वि [°कारिन्] जुआरी (महा)। °केलि स्त्री [°केलि] द्युत- क्रीड़ा (रयण ४८)। °खलय न [°खलक] जुआ खेलने का स्थान (राज)। °केलि देखो °केलि (रयण ४७)।

जूअ :: पुं [यूप] १ जूआ, धुर, गाड़ी का अवयव- विशेष जो बैलों के कन्धे पर डाला जाता है, जुअड़ (उप पृ १३९) २ स्तम्भ-विशेष; 'जूअसहस्सं मुसल सहस्सं च उस्सवेह' (कप्प) ३ यज्ञ-स्तम्भ (जं ३) ४ एक महापाताल- कलश (पव २७२)

जूअअ :: पुं [दे] चातक पक्षी (दे ३, ४७)।

जूअग :: पुं [यूपक] देखो जूअ = यूप (संम ७१)।

जूअग :: पुं [यूपक] सन्ध्या की प्रभा और चन्द्र की प्रभा का मिश्रण (ठा १०)।

जूआ :: स्त्री [यूका] १ जूँ, चीलड़, खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष (जी १६) २ परिमाण-विशेष, आठ लिक्षा का एक नाप (ठा ६; इक)। °सेज्जायर वि [°शय्यातर] यूकाओं को स्थान देनेावाला (भग १५)

जूआर :: वि [द्युतकार] जुआरी, जुए का खेलाड़ी (रंभा; भवि, सुपा ४००)।

जूआरि, जूआरिअ :: वि [द्युतकारिन्] जुआ खेलनेवाला, जुए का खेलाड़ी (द्र ४३, सुपा ४००; ४८८; स १५०)।

जुझ :: देखो जुज्झ = युध्। कृ. युझियव्व (सिरि १०२५)।

जूड :: पुं [जूट] कुन्तल, केश-कलाप (दे ४, २४; भवि)।

जूय :: न [यूप] लगातार छः दिनों का उपवास (संबोध ५८)।

जूयय, जूवय :: पुं [यूपक] शुक्ल पक्ष की द्वितीया आदि तीन दिनों में होती चन्द्र की कला और संध्या के प्रकाश का मिश्रण (अणु १२०; पव २६८)।

जूर :: सक [गर्ह] निंदा करना। जूरंति (सूअ २, २, ५५)।

जूर :: अक [क्रुध्] क्रोध करना, गुस्सा करना। जूरइ (हे ४, १३२; षड्)।

जूर :: अक [खिद] खेद करना, अफसोस करना। जूरइ (हे ४, १३२; षड्)। जूर (कुमा)। भवि. जूरिहिइ (हे २, १९३)। वकृ. जूरंत (हे २, १९३)।

जूर :: अक [जूर्] १ झुरना, सुखना। २ सक. वध करना, हिंसा करना (राज)

जूरण :: न [जूरण] १ सूखना, झूरना। २ निन्दा, गर्हंण (राज)

जूरव :: सक [वञ्च्] ठगना, वंचना। जूरवइ (हे ४, ९३)।

जूरवण :: वि [वञ्चन] ठगनेवाला (कुमा)।

जूरावण :: न [जूरण] झूराना, शोषण (भग ३, २)।

जूराविअ :: वि [क्रोधित] क्रुद्ध किया हुआ, कोपित (कुमा)।

जूरिअ :: वि [खिन्न] खेद-प्राप्त (पाअ)।

जूरुम्मिलय :: वि [दे] गहन, निबिड, सान्द्र (दे ३, ४७)।

जूल :: देखो जूर = क्रुध्। जूल (गा ३५४)।

जूव :: देखो जूअ = द्यूत (णाया १, २ — पत्र ७९)।

जूव, जूवय :: देखो जूअ = यूप (इक; ठा ४, २)।

जूस :: देखो झूस ठा २, १; कप्प)।

जूस :: पुंन [यूष्] जूस, मूँग वगैरह का क्वाथ, कढी (औघ १४७; ठा ३, १)।

जूसअ :: वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ (षड्)।

जूसणा :: स्त्री [जोषणा] सेवा (कप्प)।

जूसिय :: वि [जुष्ट] १ सेवित (ठा २, १) २ क्षपित, क्षीण (कप्प)

जूह :: न [यूथ] समूह, जत्था (ठा १०; गा ५४८)। °वइ पुं [°पति] समूह का अधि- पति, यूथ का नायक (से ६, ६८; णाया १, १; सुपा १३७)। °हिव पुं [°धिप] पूर्वोक्त ही अर्थ (गा ५४८)। °हिवइ पुं [°धिपति] यूथ-नायक (उत्त ११)।

टजूह :: न [यूथ] युग्म, युगल, जोड़ा (आचा २, ११, २)। °काम न [°काम] लगातार चार दिनों का उपवास (संबोध ५८)|

जूहिय :: वि [यूथिक] यूथ में उत्पन्न (आचा २, २)।

जूहियठाण :: न [यूथिकस्थान] विवाह-मण्डप वाली जगह (आचा २, ११, २)।

जूहिया :: स्त्री [यूथिका] लता-विशेष, जूही का पेड़ (पणम १; पउम ५३, ७९)।

जूही :: स्त्री [यूथी] लता-विशेष, माधवी लता (कुमा)।

जे :: अ. १ पाद-पूर्त्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (हे २, २१७) २ अवधारण-सूचक अव्यय (उव)

जेअ :: वि [जेय] जीतने योग्य (रुक्मि ५०)।

जेअ :: वि [जेतृ] जीतनेवाला (सूअ १, ३, १, १; १, ३, १, २)।

जेउ :: वि [जेतृ] जीतनेवाला, विजेता (भण २०, २)।

जेउमाण, जेउं, जेऊण :: देखो जिण = जि।

जेक्कार :: पुं [जयकार] 'जय-जय' आवाज स्तुति; 'हुंति देवाण जेक्कारो' (गा ३३२)।

जेट्ठ :: देखो जिट्ठ = ज्येष्ठ (हे २, १७२; महा; उवा)।

जेट्ठ :: देखो जिट्ठ = ज्यैष्ठ (महा)।

जेट्ठा :: देखो जिट्ठा (सम ८; आचू ४)। °मृल पुं [°मूल] जेठ मास (औप; णाया १, १३)। °मूली स्त्री [°मूली] जेठ मास की पूर्णिमा (सुज्ज १०)।

जेट्ठामूली :: स्त्री [ज्येष्ठामृली] १ जेठ मास की पूर्णिमा। २ जेठ मास की अमावास्या (सुज्ज १०, ६)

जेण :: देखो जइण = जैन (सम्मत्त ११७)।

जेण :: अ [येन] लक्षण-सूचक अव्यय, 'भमररुअं जेण कमलवणं' (हे २, १८३; कुमा)।

जेत्त :: वि [यावत्] जितना। स्त्री. °त्ती (हास्य १३०)।

जेत्त :: देखो जइत्त (पि ६१)।

जेत्तिअ, जेत्तिल :: वि [यावत्] जितना (हे २, १५७; गा ७१; गउड)।

जेत्तिक :: (शौ) ऊपर देखो (प्राकृ ९५)।

जेत्तुल, जेत्तुल्ल :: (अप) ऊपर देखो (हे ४, ४३५)।

जेद्दह :: देखो जेत्तिअ (हे २, १५७; प्राप्र)।

जेम :: सक [जिम्, भुज्] भोजन करना। जेमइ (हे ४, ११०; षड्)। वकृ. जेमंत (पउम १०३, ८५)।

जेम :: (अप) अ [यथा] जैसे, जिस तरह से (सुपा ३८३; भवि)।

जेमण, जेमणग :: न [जेमन] जीमन, भोजन (ओघ ८८ औप)।

जेमणय :: न [दे] दक्षिण, अंग, गुजराती में 'जमणुं' (दे ३, ४८)।

जेमणी :: स्त्री [जेमनी] जीमन (संबोध १७)।

जेमावण :: न [जेमन] भोजन कराना, खिलाना (भघ ११, ११)।

जेमाविय :: वि [जेमित] भोजित, जिसको भोजन कराया गया हो वह (उफ १३९ टी)।

जेमिय :: वि [जेमित] जीमा हुआ, जिसने भोजन किया हो वह (णाया १, १ — पत्र ४१ टी)।

जेयव्व :: देखो जिण = जि।

जेव :: (शौ) देखो एव = एव (रंभा; कप्पू)।

जेवँ :: (अप) देखो जिवँ (हे ४, ३९७)।

जेवड :: (अप) देखो जेत्तिअ (हे ४, ४०७)।

जेव्व :: (शौ) देखो एव = एव (पि; नाट)।

जेह :: (अप) वि [यादृश्] जैसा (हे ४, ४०२; षड्)।

जेहिल :: पुं [जेहिल] स्वनाम ख्यात एक जैन मुनि (कप्प)।

जो, जोअ :: सक [दृश्] देखना। जोइ (सण); 'एसा हु वंकबंकं, जोयइ तुह सुंमुहं जेण' (सुर ३, १२६)। जोयंति (स ३६१)। कर्मं, जोइज्जइ (रयण ३२)। वकृ. जोअंत (धम्म ११ टी; महा; सुर १०, २४४)। कवकृ. जोइज्जंत (सुपा ५७)।

जोअ :: अक [द्युत्] प्रकाशित होना, चम- कना। जोइ (कुमा)। भूका. जोइंसु (भग)। वकृ. °जोअंत (कुमा; महा)।

जोअ :: सक [द्योतय्] प्रकाशित करना। जोअइ (सूअ १, ६, १३); 'तस्सवि य गिहं पुण बालपंड़िया' जोयए दुहिया' (सुपा ६११)। जोएज्जा (विसे ६१२)।

जोअ :: सक [योजय्] १ समाप्त करना, खतम करना। २ करना। जोएइ (सुज्ज १०, १२ — पत्र १८०, १८१; सुज्ज १२ — पत्र २३३)

जोअ :: सक [योजय्] जोड़ना, युक्त करना। जोएइ (महा)। वकृ. जोइयव्व, जोएअव्व जोयणिय, जोयणिज्ज (उप ५६९; स ५६८; औप; निचू १)।

जोअ :: पुं [दे] १ चन्द्र, चन्द्रमा (दे ३, ४८) २ युगल, युग्म (णाया १, १ टी — पत्र ४३)

जोअ :: देखो जोग (अवि २५; स ३६१; कुमा)। °वडय न [°वटक] चूर्णं-विशेष, पाचक चूर्णं, हाजमा (स २५२)।

जोअंगण :: [दे] देखो जोइंगण (भवि)।

जोअग :: वि [द्योतक] १ प्रकाशनेवाला २ न. व्याकरण-प्रसिद्ध निपात वगैरह पद (बिसे १००३)

जोअड :: पुं [दे] खद्योत, कीट-विशेष, जुगनू (षड्)।

जोअण :: न [दे] लोचन, नेत्र, चक्षु, आँख (दे ३, ५०)।

जोअण :: न [योजन] १ परिमाण-विशेष, चार कोश (भग; इक) २ संबन्ध, संयोग, जोड़ना (पणह १, १)

जोअण :: न [यौवन] युवावस्था, तरुणता, जवानी (उप १४२ टी; गा १९७)।

जोअणा :: स्त्री [योजना] जोड़ना, संयोग करना (उप पृ २२१)।

जोआ :: स्त्री [द्यो] १ स्वर्गं। २ आकाश (षड्)

जोआवइत्तु :: वि [योजयितृ] जोड़नेवाला, संयुक्त करनेवाला (ठा ४, ३)।

जोइ :: वि [योगिन्] १ युक्त, संयोगवाला। २ चित्त-निरोध करनेवाला, समाधि लगानेवाला। ३ पुं. मुनि, यति, साधु (सुपा २१६; २१७) ४ रामचन्द्र का स्वनाम-ख्यात एक सुभट (पउम ६७, १०)

जोइ :: पुं [ज्योतिस्] १ प्रकाश, तेज (भग; ठा ४, ३) २ अग्‍नि, वह्नि; 'सर्प्पि जहा जहा पडियं जोइमज्झे' (सुअ १, १३) ३ प्रदीप आदि प्रकाशक वस्तु; 'जहा हि अंघे सह जाइणावि' (सूअ १, १२) ४ अग्‍नि का काम करनेवाला कल्पवृक्ष (सम १७) ५ ग्रह, नक्षत्र आदि प्रकाशक पदार्थं (चंद १) ६ ज्ञान। ७ ज्ञान-युक्त। ८ प्रसिद्धि-युक्त। ९ सत्कर्म-कारक (ठा ४, ३) १० स्वर्गं। ११ ग्रह वगैरह का विमान (राज) १२ ज्योतिष-शास्त्र (निर ३, ३)। °अंग पुं [°अङ्ग] अग्‍नि का काम करनेवाला कल्प- वृक्ष-विशेष (ठा १०)। °रस न [°रस] रत्‍न की एक जाति (णाया १, १)। देखो जोइस = ज्योतिस्।

जोइअ :: पुं [दे] कीट-विशेष, खद्योत, जुगुनू, पटबीजना (दे ३, ५०)।

जोइअ :: वि [दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित (सुर ३, १७३; महा भवि)।

जोइअ :: वि [योजित] जोड़ा हुआ (स २९४)।

जोइअ :: देखो जोगिय (राज)।

जोइंगण :: पुं [दे] कीट-विशेष, इन्द्र-गोप (दे ३, ५०)।

जोइक्क :: पुंन [ज्योतिष्क] प्रदीप आदि प्रका- शक पदार्थ; 'किं सूरस्स दंसणाहिगमे जाइक्कं- तरं गवेसीयदि' (रंभा)।

जोइक्ख :: पुं [दे. ज्योतिष्क] १ प्रदीप, दीपक (दे ३, ४९; पव ४; वव ७) २ प्रदीप आदि का प्रकाश (ओघ ६५३)

जोइणी :: स्त्री [योगिनी] १ योगिनी, संन्या- सिनी। २ एक प्रकार की देवी, ये चौसठ हैं (संति ११)

जोइर :: वि [दे] स्खलित (दे ३, ४९)।

जोइस :: न [दे] नक्षत्र (दे ३, ४९)।

जोइस :: देखो जोइ = ज्योतिस् (चंद १; कप्प; विसे १८७०; ' जो १; ठा ६)। °राय पुं [°राज] १ सूर्यं। २ चन्द्र (सुज्ज २०; १८)। °लय पुं [°लय] सूर्यं आदि देव (उत्त ३६)

जोइस :: पुं [ज्यौतिष] १ देवों की एक जाति, सूर्यं, चन्द्र, ग्रह आदि (कप्प; औप; दंड २७) २ न. सूर्यं आदि का विमान (ति १२; जो १) ३ शास्त्र-विशेष, ज्योतिष-शास्त्र (उत्त २) ४ सूर्यं आदि का चक्र। ५ सूर्यं आदि का मार्ग, आकाश; 'जे गहा जाइसम्मि चारं चरंति' (पणण ३)

जोइस :: पुं [ज्यौतिष] १ सूर्य, चन्द्र आदि देवों की एक जाति (कप्प; पंचा २) २ वि. ज्योतिष शास्त्र का जानकार, जोतिषी (सुपा १५६)

जोइसिअ :: वि [ज्यौतिषिक] १ ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता, दैवज्ञ, जोतिषी (स २२; सुर ४, १००; सुपा २०३) २ सूर्यं, चन्द्र आदि ज्योतिष्क देव (औप; जी २४; पणण २)। °राय पुं [°राज] १ सूर्य, रवि। २ चन्द्रमा (पणण २)

जोइसिंद :: पुं [ज्योतिरिन्द्र] १ सूर्य, रवि। २ चन्द्र, चन्द्रमा (ठा ६)

जोइसिण :: पुं [ज्यौतस्‍न] शुक्ल पक्ष (जो ४)।

जोइसिणा :: स्त्री [ज्योत्स्‍ना] चन्द्र की प्रभा, चन्द्रिका, चाँदनी (ठा २, ४)। °पक्ख पुं [पक्ष्] शुक्ल पक्ष (चंद १५)। भा स्त्री [भा] चन्द्र की एक अग्र-महिषी (भग १०, ५)।

जोइसिणी :: स्त्री [ज्यौतिषी] देवी-विशेष (पणण १७ — पत्र ४९९)।

जोई :: स्त्री [दे] विद्युत्, बिजली (दे ३, ४९; षड्)।

जोईरस :: देखो जोइ-रस (कप्प; जीव ३)।

जोईस :: पुं [योगीश] योगीन्द्र, योगि-राज (स १)।

जोईसर :: पुं [योगीश्वर] ऊपर देखो (सुपा ८३; रयण ६)।

जोउकण्ण :: न [यौगकर्ण] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६ टी)।

जोउकण्णिय :: न [यौगकर्णिक] गोत्र-विशेष (सुज्ज १०, १६)।

जोक्कार :: देखो जेक्कार (गा ३३२ अ)।

जोक्ख :: वि [दे] मलिन, अपवित्र (दे ३, ४८)।

जोग :: देखो जुग्ग = युग्म; 'सपाउयाजोग समाजुत्तं' (राय ४०)।

जोग :: पुं [योग] नक्षत्र-समूह का क्रम से चन्द्र और सूर्य के साथ संबंध (सुज्ज १०, १)।

जोग :: पुं [योग] १ व्यापार, मन, वचन और शरीर की चेष्टा (ठा ४, १; सम १०; स ४७०) २ चित्तनिरोध, मनः-प्रणिधान, समाधि (पउम ६८, २३; उत्त १) ३ वश करने के लिए या पागल आदि बनाने के लिए फेंका जाता चूर्णं-विशेष; 'जोगो मइमोह- करो सीसे खित्तो इमाण सुत्ताण' (सुर ८, २०१) ४ सम्बन्ध, संयोग, मेलन (ठा १०) ५ ईप्सित वस्तु का लाभ (णाया १, ५) ६ शब्द का अवयाबार्थ-सम्बन्ध (भास २४) ७ बल, वीर्य, पराक्रम (कम्म ५)। °क्खेम न [°क्षेम] ईप्सित वस्तु का लाभ और उसका संरक्षण (णाया १, ५)। °त्थ वि [°स्थ] योग-निष्ठ, ध्यान-लीन (पउम ६८, २३)। °त्थ पुं [°र्थ] शब्द के अवयवों का अर्थ, व्युत्पत्ति के अनुसार शब्द का अर्थं (भास २४)। °दिट्ठि स्त्री [°दृष्टि] चित्त- निरोध से उत्पन्‍न होनेवाला ज्ञान-विशेष (राज)। °धर वि [°धर] समाधि में कुशल, योगी (पउम ११६, १७)। °परि- व्वाइया स्त्री [°परिव्राजिका] समाधि- प्रधान व्रतिनी-विशेष (णाया १, ९)। पिंड पुं [°पिण्ड] वशीकरण आदि के प्रयोग से प्राप्त की हुई भिक्षा (पंचा १३, निचू १३)। °मुद्दा स्त्री [मुद्रा] हाथ का विन्यास-विशेष (पंचा ३)। °व वि [°वत्] १ शुभ प्रवृत्तिवाला (सूअ १, २, १) २ योगी, समाधि करनेवाला (उत्त ११) °वाहि वि [°वाहिन्] १ शास्त्र-ज्ञान की आराधना के लिए शास्त्रोक्त तपश्चर्या को करनेवाला। २ समाधि में रहनेवाला (ठा ३, १ — पत्र १२०)। °विहि पुंस्त्री [विधि] शास्त्रों की आराधना के लिए शास्त्र-निर्दिष्ट, अनुष्ठान. तपश्‍चर्या-विशेष; 'इय वुत्तो जोगविही', 'एसा जोगविही' (अंग)। सत्थ न [शास्त्र] चित्त- निरोध का प्रतिपादक शास्त्र (उवर १९०)

जोग :: देखो जोग्ग; 'इय सो न एत्थ जोगो, जोगो पुण होइ अक्कूरो' (धम्म १२; सुर २, २०५; महा; सुपा २०८)।

जोगि :: देखो जोइ = योगिन् (कुमा)।

जोगिंद :: पुं [योगीन्द्र] महान्, योगी, योगीश्वर (रयण २९)।

जोगिणी :: देखो जोइणी (सुर ३, १८९)।

जोगिय :: वि [यौगिक] दो पदों के सम्बन्ध से बना हुआ शब्द, जैसे — उप-करोति, अभि- षेणयति (पणह २, २ — पत्र ११४)। २ यन्त्र-प्रयोग से बना हुआ (उप पृ ९४)

जोगीसर :: देखो जोईसर (स २०१)।

जोगेसरी :: स्त्री [योगेश्वरी] देव-विशेष (सण)।

जोगेसी :: स्त्री [योगेशी] विद्या-विशेष (पउम ७, १४२)।

जोग्ग :: वि [योग्य] योग्य, उचित, लायक (ठा ३, १; सुपा २८)। २ प्रभु, समर्थं, शक्तिमान् (निचू २०)

जोग्गा :: स्त्री [दे] चाटु, खुशामद (दे ३, ४८)।

जोग्गा :: स्त्री [योग्या] १ शास्त्र के अभ्यास (भग ११; ११; जं ३) २ गर्भं-धारण में समर्थ योनि (तंदु)

जोज :: देखो जोअ = योजय्। भवि. जोज- इस्सामि (कुप्र १३०)। कृ. जोज्ज (उत्त २७, ८)।

जोड :: सक [योजय्] जोड़ना, संयुक्त करना। वकृ. जोडेंत (सुर ४; १९)। संकृ. जोडिऊण (महा)।

जोड :: पुंन [दे] १ नक्षत्र (दे ३, ४९; पि ९) २ रोग-विशेष (सण)

जोड :: (अप) स्त्री [दे] जोड़ी, युगल; 'एरिस जोड न जुत्त' (कुप्र ४५३)।

जोडिअ :: पुं [दे] व्याध, बहेलिया, चिड़ीमार (दे ३, ४९)।

जोडिअ :: वि [योजित] जोड़ा हुआ, संयुक्त किया हुआ (सुपा १४९; ३५१)।

जोण :: पुं [योन, यवन] म्लेच्छ देश-विशेष (णाया १, १)।

जोणि :: स्त्री [योनि] १ उत्पत्ति-स्थान (भग; सं ८२; प्रासू ११५) २ कारण, हेतु, उपाय (ठा ३, ३; पंचा ४) ३ जीव का उत्पत्ति-स्थान (ठा ७) ४ स्त्री-चिह्न, भग (अणु)। °विहाण न [°विधान] उत्पत्ति- शास्त्र (विसे १७७५)। °सूल न [°शूल] योनि का एक रोग (णाया १, १६)

जोणिय :: वि [योनिक, यवनिक] अनार्यं देश-विशेष से उत्पन्‍न। स्त्री. °या (इक; औप; णाया १, १ — पत्र ३७)।

जोण्णलिआ :: स्त्री [दे] अन्‍न-विशेष, जुआरी, जोन्हरी (दे ३, ५०)।

जोण्ह :: वि [ज्यौत्स्‍न] १ शुक्ल, श्वेत, 'कालो वा जोणहो वा केणणुभावेण चंदस्स' (सुज्ज १९) २ पुं. शुक्ल पक्ष (जो ४)

जोण्हा :: स्त्री [ज्योत्‍स्‍ना] चन्द्र-प्रकाश (षड्; काप्र १९७)।

जोण्हाल :: वि [ज्योत्स्‍नावत्] ज्योत्स्‍ना वाला, चन्द्रिकायुक्त (हे २, १५९)।

जोत्त :: देखो जुत्त = युक्त (कुप्र ३८१)।

जोत्त, जोत्तय :: न [योक्‍त्र, °क] जोत, रस्सी या चमड़े का तस्मा, जिससे बैल या घोड़ा, गाड़ी या हल में जोता जाता है (पणह २, ५; गा ६९२)।

जोव :: देखो जोअ = दृश्। जोवइ (महा; भव)।

जोव :: पुं [दे] १ बिन्दु। २ वि. स्तोक, थोड़ा (दे ३, ५२)

जोवण :: न [दे] १ यन्त्र काल; 'आउज्जोवण' (ओघ ९० भा) २ धान्य का मर्दन, अन्‍न- मलन (ओघ ९० भा)

जोवारि :: स्त्री [दे] अन्‍न-विशेष, जुआरि (दे ३, ५०)।

जेविय :: वि [दृष्ट] विलोकित (स १४७)।

जोव्वण :: न [यौवन] १ तारुण्य, जवानी (प्राप्र; कप्प) २ मध्य भाग (से २, १)

जोव्वणणीर, जोव्वणवेअ :: न [दे] वयः — परिणाम, वृद्धत्व, बूढ़ापा; 'जोव्वणणीरं तरु- णतणे वि विजिएंदियाण पुरिसाण' (दे ३, ५१)।

जोव्वणिया :: स्त्री [यौवनिका] यौवन, जवानी (राय)।

जोव्वणोवय :: न [दे] बूढ़ापा, वृद्धत्व, जरा (दे ३, ५१)।

जोस :: देखो जुस = जुष्। वकृ. जोसंत (राझ)। प्रयो., संकृ. जोसियाण (वव ७)।

जोस :: पुं [झोष] अवसान, अन्त (सूअ १, २, ३, २ टी)।

जोसिअ :: वि [जुष्ट] सेवित (सूअ १, २, ३)। जोसिआ स्त्री [योषित्] स्त्री, महिला, नारी (षड्; धर्मं २)।

जोसिणी :: देखो जोण्हा (अभि ३१)।

जोह :: अक [युध्] लड़ना। जोहइ (भवि)।

जोह :: पुं [योध] सुभट, योद्धा (औप; कुमा)।

°ट्ठाण :: न [°स्थान] सुभटों का युद्ध-कालीन शरीर-विन्यास, अंग-रचना-विशेष (ठा १; निचू २०)।

जोहणा :: देखो जोण्हा (मै ७१)।

जोहा :: स्त्री [योधा] भुज-परिसर्पं की एक जाति (सूअ २, ३, २५)।

जोहार :: सक [दे] जुहारना, जोहार करना, प्रणाम करना। कर्म. जोहारिज्जइ (आक २५, १३)।

जोहार :: पुं [दे] जुहारना, जोहार करना, प्रणाम करना। कर्म. जोहारिज्जइ (आक २५, १३)।

जोहार :: पुं [दे] जोहार, प्रणाम (पव ३८)।

जोहि :: वि [योधिन्] लड़नेवाला, सुभट (पव ७१)।

जोहि :: वि [योधिन्] लड़नेवाला, लड़ वैया (औप)।

जोहिया :: स्त्री [योधिका] जंतु-विशेष, हाथ से चलनेवाली एक प्रकार की सर्प-जाति (जीव २)।

ज्जिअ, ज्जेअ :: (शौ) अ [दे] अवधारण-निश्चय का सूचक अव्यय (प्राकृ ९८)।

°ज्जेव, °ज्जेव :: (शौ)। देखो एव = एव (पि २३; ८५)।

ज्झड :: देखो झड। ज्झडइ (हे ४, १३० टि)।

ज्झहुराविअ :: वि [दे] निवासित, निवास- प्राप्र (षड्)।

 :: पुं [झ] १ तालु-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं- विशेष (प्रामा; प्राप) २ ध्यान (विसे ३१९८)

झंकार :: पुं [झङ्कार] नूपुर वगैरह की आवाज (सुर ३, १८; पडि; सण)।

झंकारिअ :: न [दे] अवचयन, फूल वगैरह का आदान या चूनना (दे ३, ५६)।

झंक :: सक [दे] स्वीकार करना। झंखहु (अप) (सिरि ८६४)।

झंख :: अक [सं + तप्] संतप्‍त होना, संताप करना। झंखइ (हे ४, १४०)।

झंख :: अक [वि + लप्] विलाप करना, बकवाद करना। झंखइ (हे ४, १४८)। वकृ. झंखंत (कुमा); 'धणानासाओ गहिलोभूओ झंखइ नरेस ! एस धुवं। सोमोवि भणइ झंखसि तुमेव बहुलोहगहगहिओ' (श्रा १४)।

झंख :: सक [उपा + लभ्] उपालंभ देना, उलाहना देना। झंखइ (हे ४, १५६)।

झंख :: अक [निर् + श्वस्] निःश्वास लेना। झंखइ (हे ४, २०१)।

झंख :: वि [दे] तुष्ट, संतुष्ट, खुश (दे ३, ५३)।

झंखण :: न [उपालम्भ] उपालम्भ, उलाहना (कुमा)।

झंखर :: पुं [दे] शुष्क तरु, सूखा पेड़ (दे ३, ५४)।

झंखरिअ :: [दे] देखो झंकारिअ (दे ३, ५६)।

झंखावण :: वि [संतापक] संताप करनेवाला (कुमा)।

झंखिर :: वि [निः श्वसितृ] निःश्वास लेनेवाला (कुमा ७, ४४)।

झंझ :: पुं [झंझ] कलह, झगड़ा (सम ५०)।

°कर :: वि [°कर] कलहकारी, फूट करानेवाला (सम ३७)। °पत्त वि [°प्राप्त] क्लेश-प्राप्त (सूअ १, १३)।

झंझण, झँझणक्क :: अक [झंझणाय] 'झन-झन' शब्द करना। झंझणइ (गा ५७५ अ)। झँझणक्कइ (पिंग)।

झंझणा :: स्त्री [झञ्झना] 'झन-झन' शब्द (गउड)।

झंझा :: स्त्री [झञ्झा] वाद्य-विशेष, झाँझ, झाल (राय ५० टी)।

झंझा :: स्त्री [झञ्झा] १ प्रचण्ड वायु-विशेष (गा १७०; सण) २ कलह, क्लेश, झगड़ा (उव; बृह ३) ३ माया, कपट। ४ क्रोध, गुस्सा (सूअ १, १३) ५ तृष्णा, लोभ (सूअ २, २) ६ व्याकुलता, व्यग्रता (आचा)

झंझिय :: वि [झिञ्झित] बुभुक्षित, भूखा (णाय १, १)।

झंट :: सक [भ्रम्] घूमना, फिरना। झंटइ (हे ४, १६१)।

झंट :: अक [गुञ्ज्] गुञ्जारव करना। वकृ. 'झंटंतभमिकभमरउलमालियं मालियं गहिउं' (सुपा ५२६)।

झंटण :: न [भ्रमण] पर्यंचन, परिभ्रमण (कुमा)।

झंटलिआ :: स्त्री [दे] चंक्रमण, कुटिल गमन (दे ३, ५५)।

झंटिअ :: वि [दे] जिस पर प्रहार किया गया हो वह, प्रहृत (दे ३, ५५)।

झंटी :: स्त्री [दे] छोटा किन्तु ऊँचा केश-कलाप (दे ३, ५३)।

झंडली :: स्त्री [दे] असती, कुलटा (दे ३, ५४)।

झंडुअ :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष, पीलु का पेड़ (दे ३, ५३)।

झंडुली :: स्त्री [दे] असती, कुलटा। २ क्रीड़ा, खेल (दे ३, ६१)।

झंदिय :: वि [दे] प्रद्रुत, पलायित, भगाया हुआ (षड्)।

झंप :: सक [भ्रम्] घूमना, फिरना। झंपइ (हे ४, १६१)।

झंप :: सक [आ + च्छादय्] झाँपना, आच्छादन करना, ढकना। झंपइ (पिंग)। संकृ. झंपिऊण, झंपिवि (कुमा; भवि)।

झंप :: सक [आ = क्रामय्] आक्रमण कर- वाना। झंपइ (प्राकृ ७०)।

झंपण :: वि [भ्रमण] भ्रमण-कर्ता (कुप्र ४)।

झंपण :: न [भ्रमण] परिभ्रमण, पर्यंटन (कुमा)।

झंपणी :: स्त्री [दे] पक्ष्म, आँख की बरौनी, आँख के बाल (दे ३, ५४; पाअ)।

झंपा :: स्त्री [झम्पा] एकदम, कूदना, झम्पा-पात (सुपा १९८)।

झंपिअ :: वि [दे] १ त्रुटित, टूटा हुआ। २ घट्टित, आहत (दे ३, ६१)

झिंपिअ :: वि [आच्छादित] झपा हुआ, बंद किया हुआ (पिंग); 'पईवओ झंपिओ झत्ति' (महा); 'तओ एवं भणमाणस्स सहत्थेणं झंपिअं मुहकुहरं सुमइस्स णाइलेणं' (महानि ४)।

झक्किअ :: न [दे] वचनीय, लोक-निन्दा (दे ३, ५; भवि)।

झख :: देखो झंख = वि + लप्। वकृ. झखंत (जय २३)।

झगड :: पुं [दे] झगड़ा, कलह (सुपा ५४६; ५४७)।

झग्गुली :: स्त्री [दे] अभिसारिका, प्रिय से मिलने के लिए संकेत स्थान पर जानेवाली स्त्री या न्यायिका (विक्र १०१)।

झज्झर :: पुं [झर्झर] १ वाद्य-विशेष, झाँझ। २ पटह, ढोल। ३ कलि-युग। ४ नद-विशेष (पि २१४)

झज्झरिय :: वि [झर्झरित] वाद्य-विशेष के शब्द से युक्त (ठा १०)।

झज्झरी :: स्त्री [दे] दूसरे के स्पर्श को रेकने के लिए चांडाल लोग जो लकड़ी अपने पास रकते हैं वह (दे ३, ५४)।

झड :: अक [शद्] १ झड़ना, पके फल आदि का गिरना, टपकना। २ हीन होना। ३ सक. झपट मारना, गिरना। झडइ (हे ४, १३०)। वकृ. झडंत (कुमा)। कवकृ. 'वासासु सीय- वाएहिं झडिजंतो' (आव १)। संकृ. 'झंडि- ऊण पल्लविल्ला, पुणोवि जायतं तरुरवा तुरियं। धीराणवि धणरिद्धी, गयावि न हु दुल्लहा एवं' (उफ ७२८)

झडत्ति :: अ [झटिति] शीघ्र, जल्दी, तुरंत, (उप ७२८ टी; महा)।

झडप्प :: अ [दे] शीघ्रता, जल्दी (उप पृ ११०; रंभा)।

झडप्प :: सक [आ + छिद्] झपटना, झपट मारना, छीनन्। झडप्पमि (भवि)। संकृ. झडाप्पिवि (भवि)।

झडप्पड :: न [दे] झटपट, झटिति, शीघ्र (हे ४, ३८८)।

झडप्पिअ :: वि [आच्छिन्न] छीना हुआ (भवि)।

झडि :: अ [झटिति] शीघ्र, जल्दी, तुरन्त; 'झडि आपल्लवइ पुणो' (गा ९१३)।

झडिअ :: वि [दे] १ शिथिल, ढीला, सुस्त (गा २३०) २ श्रान्त, खिन्न (षड्) ३ झड़ा हुआ, गिरा हुआ; 'करच्छडाझडिय- पक्खिंउले' (पउम ९६, १५)

झडित्ति :: देखो झडत्ति (सुर २, ४)।

झडिल :: देखो जडिल (हे १, १९४)।

झडी :: स्त्री [दे] निरन्तर वृष्टि, झड़ी; गुजराती में 'झडी' (दे ३, ५३)।

जण :: सक [जुगुप्स्] घृणा करना। झणइ (षड्)।

झणज्झण :: अक [झणझणाय्] 'झन-झन' आवाज करना। वकृ. झणज्झणंत (प्राप)।

झणज्झणिअ :: वि [झणझणित] 'झन-झन' आवाजवाला (पिंग)।

झणझण :: देखो झणज्झण। झणजणइ (वज्जा ६६)।

झणझणयरव :: पुं [झणझणारव] 'झन-झन' आवाज (महा)।

झणझणिय :: देखो झणज्झणिअ (सुपा ५०)।

झणि :: देखो झुणि (रंभा)।

झत्ति :: देखो झडत्ति (हे १, ४२; षड्; महा; सुर २, ९)।

झत्थ :: वि [दे] गत, गया हुआ। २ नष्ट (दे ३, ६१)।

झपिअ :: वि [दे] पर्यंस्त, उत्क्षिप्त (षड्)।

झप्प :: देखो झण। झप्पइ (षड्)।

झमाल :: न [दे] इन्द्रजाल, माया-जाल (दे ३, ५३)।

झय :: पुंस्त्री [ध्वज] ध्वज, पताका (हे २, २७; औप)। स्त्री. °या (औप)।

झर :: अक [क्षर्] झरना, टपकना, चूना, गिरना। झरई (हे ४, १७३)। वकृ. झरंत (कुमा; सुर ३, १०)।

झर :: सक [स्मृ] याद करना। झरइ (हे ४, ७४; षड्)। कृ. झरेयव्व (बृह ५)।

झरंक, झरंत :: पुं [दे] तृण का बनाया हुआ पुरुष, चञ्चा (दे ३, ५५)।

झरग :: वि [स्मारक] चिन्तन करनेवाला, ध्यान करनेवाला; 'भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसणगुणाणं' (णंदि)।

झरझर :: पुं [झरझर] निर्झर या झरना आदि का 'झर-झर' आवाज (सुर ३, १०)।

झरण :: न [क्षरण] झरना, टपकना, पतन (वव १)।

झरणा :: स्त्री [क्षरणा] ऊपर देखो (आवम)।

झरय :: पुं [दे] सुवर्णकार, सोनार (दे ३, ५४)।

झरिय :: वि [क्षरित] टपका हुआ, गिरा हुआ, पतित (उव; औघ ७६०)।

झरुअ :: पुं [दे] मशक, मच्छड़ (दे ३, ५४)।

झलक्किअ :: वि [दग्ध] जला हुआ, भस्मीभूत; 'जयगुरुगुविरहानलजालोलिझलाक्कियं हिययं' (सुपा ६५७; हे ४, ३९५)।

झलझल :: अक [जाज्वल्] झलकना; चम- कना, दीपना। वकृ. झलझलंत (भवि)।

झलझलिआ :: स्त्री [दे] झोली, कोथली, थैली (दे ३, ५६)।

झलहल :: देखो झलझल। झहहलइ (सुपा १८६)। वकृ. झलहलंत (श्रा २८)।

झलहलिय :: वि [दे] क्षुब्ध, विचलित; 'घर- हरियधरं झलहलियसायरं चलियसयलकुलसेलं' (कुलक ३३)।

झला :: स्त्री [दे] मृगतृष्णा, धूप में जल-ज्ञान, व्यर्थ तृष्णा (दे ३, ५३; पाअ)।

झलुंकिअ, झलुंसिअ :: वि [दे] दग्ध, जला हुआ (दे ३, ५६)।

झल्लरी :: स्त्री [झल्लरी] बलयाकार वाद्य-विशेष, हुडुग बाजा, झाल, झालर (ठा १०; औप; सुर ३, ९६; सुपा ५०; कप्प)।

झल्लरी :: स्त्री [दे] अजा, बकरी (चंड)।

झल्लोज्झल्लिअ :: वि [दे] संपूर्णं, परिपूर्णं, भरपूर (भवि)।

झवणा :: स्त्री [क्षपणा] १ नाश, विनाश (विसे ९६१) २ अध्ययन, पठन (विसे ९५८)

झस :: पुं [झष] १ एक देवविमान (देवेन्द्र १४०) २ एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)

झस :: पुं [झष] १ मत्स्य, मछली (पणह १, १) २ °चिधय पुं [चिह्नक] कामदेव, स्मर (कुमा)

झस :: पुं [दे] १ अयश, अपकीर्ति। २ तट, किनारा। ३ वि. तटस्थ, मध्यस्थ। ४ दीर्धं- गंभीर, लम्बा और गंभीर, बहुत गहरा (दे ३, ६०) ५ टंक से छिन्न (दे ३, ६०; पाअ)

झसय :: पुं [झषक] छोटा मत्स्य (दे २, ५७)।

झसर :: पुंन [दे] शस्त्र-विशेष, आयुध-विशेष; 'सरझसरसत्तिसब्बल — ' (पउम ८, ९५)।

झसिअ :: वि [दे] १ पर्यंस्त, उत्क्षिप्त। २ आक्रुष्ट, जिसपर आक्रोश किया गया हो वह (दे ३, ६२)

झसिंध :: पुं [झषचिह्न] काम, स्मर (कुमा)।

झसुर :: न [दे] १ ताम्बूल, पान (दे ३, ६१; गउड) २ अर्थ (दे ३, ६१)

झा :: सक [ध्यै] चिन्ता करना, ध्यान करना। झाइ, झाअइ (हे ४, ६)। वकृ झायंत, झायमाण (प्रारू; महा)। संकृ. झाऊणं (आरा ११२)। हेकृ. झाइत्तए (कस)। कृ. झायव्व, झेय, झाइयव्व, झाएयव्व (कुमा; आरा ७८; आव ४; ति १०; सुर १४, ८४)।

झाइ :: वि [ध्यायिन्] चिन्तन करनेवाला, ध्यान करनेवाला (आचा)।

झाइअ :: वि [ध्यात] चिन्तित (सिरि १२५५)।

ढाउ :: वि [ध्यातृ] ध्यान करनेवाला, चिन्तक (आव ४)।

झाड :: न [दे. झाट] १ लता-गहन, निकुञ्ज, झाड़ी (दे ३, ५७; ७, ८४; पाअ; सुर ७, २४३) २ वृक्ष, पेड़; 'आअल्ली झाडभेअम्मि' (दे १, ६१); 'दिट्ठो य तए पोमाडज्झाडयस्स इमम्मि पएसे विणिग्गओ पायओ' (स १४४)

झाडण :: न [झाटन] १ झोष, क्षय, क्षीणता। २ प्रस्फोटन, झाड़ना (राज)

झाडल :: न [दे] कर्पास-फल, डोंडों, कपास (दे ३, ५७)।

झडावण :: स्त्रीन [झाटन] झड़वाना, सफा कराना, मार्जंन कराना। स्त्री. °णी (सुपा ३७३)।

झाण :: वि [ध्यान] ध्यानकर्त्ता (श्रु १२८)।

झाण :: पुंन [ध्यान] १ चिन्ता, विचार, उत्कण्ठा-पूर्वक स्मरण, सोच (आव ४; ठा ४, १, हे २, २६) २ एक ही वस्तु में मन की स्थिरता, लौ लगाना (ठा ४, १) ३ मन आदि की चेष्टा का निरोध। ४ दृढ़ प्रयत्‍न से मन वगैरह का व्यापार (विसे ३०७१; ठा ४, १)

झणंतरिया :: स्त्री [ध्यानान्तरिका] १ दो ध्यानों का मध्य भाग, वह समय जिसमें प्रथम ध्यान की समाप्ति हुई हो और दूसरे का आरम्भ जबतक न किया गया हो और अन्य अनेक ध्यान करने के बाकी हो (ठा ९, भग, ५, ४) २ एक ध्यान समाप्त होने पर शेष ध्यानों में किसी एक को प्रथम प्रारंभ करने का विमर्शं (बृह १)

झाणि :: वि [ध्यानिन्] ध्यान् करनेवाला (आरा ८६)।

झाम :: सक [दह्] जलाना, दाह देना, दग्ध करना। झामेइ (सूअ २; २, ४४)। वकृ. झामंत (सूअ २, २, ४४)।

झाम :: वि [दे] दग्ध, जला हुआ (आचा २, १, १)। °थंडिल न [°स्थण्डिल] दग्ध भूमि (आचा २, १, १)।

झाम :: वि [ध्याम] अनुज्ज्वल (पणह १, २ — पत्र ४०)।

झामण :: न [दे] जलाना, आग लगाना प्रदीप- नक (वव २)।

झआमर :: वि [दे] वृद्ध, बूढञा (दे ३, ५७)।

झामल :: न [दे] १ आँक का एक प्रकार का रोग, गुजराती में 'झामरो'। २ वि. झामर रोगवाला (उप ७६८ टी; श्रा १२)

झामल :: वि [ध्यामल] श्याम, काला (धर्मंसं ८०७)।

झामलिय :: वि [ध्यामलित] काला किया हुआ (कुप्र ५८)।

झामिअ :: वि [दे] दग्ध, प्रज्वलित (दे ३, ५६; वव ७; आवम)। २ श्यामलित, काला किया हुआ। ३ कलंकित; 'घणदड्‍ढपयंगाएवि जीए जा झामिओ नेय (सार्धं १६)

झाय :: वि [ध्मात] भस्मीकृत, दग्ध, जला हुआ (णंदि)।

झायव्व :: देखो झा।

झारुआ :: स्त्री [दे] चोरी, क्षुद्र जन्तु-विशेष (दे ३, ५७)।

झावण :: न [ध्मापन] देखो झामण (राज)।

झावणा :: न [ध्मापना] दाह, जलाना, अग्‍नि- संस्कार (आवम)।

झाबणा :: देखो अझावणा (संबोध २४)।

झिंखण :: न [दे] गुस्सा करना (उप १४३ टी)।

झिंखिअ :: न [दे] वचनीय, लोकापवाद, लोक- निन्दा (दे ३, ५५)।

झिंगिर, झिंगिरड :: पुं [दे] क्षुद्र कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जीव की एक जाति, झींगूर या झिल्ली (जीव १)।

झिंझिअ :: वि [दे] बुभुक्षित, भूखा (बृह ६)।

झिंझिणी, झिंझिरी :: स्त्री [दे] एक प्रकार का पेड़, लता-विशेष (उप १०३१ टी; आचा २, १, ८; बृह १)।

झिज्जंत, झंज्जमाण :: वि [क्षीयमाण] जो क्षय को प्राप्त होता हो, कृश होता हुआ (से ५, ५८; ७२८ टी; कुमा)।

झिज्झ :: अक [क्षि] क्षीण होना। झिज्झइ (प्राकृ ६३)।

झिज्झिरी :: स्त्री [दे] वल्ली-विशष (आचा २, १, ८, ३)।

झिण्ण :: देखो झीण (से १, ३५; कुमा)।

झिमिय, झिम्मिय :: न [दे] शरीर के अवयवों की जड़ता (आचा)।

झिया :: देखो झा। झियाइ, झियायइ (उवा; भग; कस; पि ४७९)। वकृ. झिययामाण (णाया १, १ — पत्रे २८; ६०)।

झिरिड :: न [दे] जीर्णं कूप, पुराना इनारा (दे ३, ५७)।

झिलिअ :: वि [दे] झीला हुआ, पकड़ी हुआ वह वस्तु जो ऊपर से गिरती हो (सुपा १७८)।

झिल्ल :: अक [स्‍ना] झीलना, स्‍नान करना। झिल्लइ (कुमा)।

झिल्लिआ :: स्त्री [झिल्लिका] कीट-विशेष, त्रीन्द्रिय जीव की एक जाति, झिल्ली (पाअ; पणण १)।

झिल्लिरिआ :: स्त्री [दे] १ चीही-नामक तृण। २ मशक, मच्छड़ (दे ३, ६२)

झिल्लिरी :: स्त्री [दे] मछली पकड़ने की एक तरह की जाल (विपा १, ८ — पत्र ८५)।

झिल्ली :: स्त्री [दे] लहरी, तरंग (गउड)।

झिल्ली :: स्त्री [झिल्ली] १ वनस्पति-विशेष (पणण १; उप १०४१ टी)। २ कीट-विशेष, झींगूर (गा ४९४)

झीण :: वि [क्षीण] दुर्बल, कृश (हे २, ३; पाअ)।

झीण :: न [दे] १ अंग, शरीर। २ कीट, कीड़ा (दे ३, ६२)

झीरा :: स्त्री [दे] लज्जा, शरम (दे ३, ५७)।

झंख :: पुं [दे] तुणय-नामक वाद्य (दे ३, ५८)।

झुंझिय :: वि [दे] १ बुभुक्षित, भूखा (पणह १, ३ — पत्र ४६) २ झुरा हुआ, मुरझा हुआ (भग १६, ४)

झुंझुंमुसय :: न [दे] मन का दुःख (दे ३, ५८)।

झुंटण :: न [दे] १ प्रवाह (दे ३, ५८) २ पशु-विशेष, जो मनुष्य के शरीर की गरमीसे जीता है और जिसका रोम कपड़े के लिये बहुमूल्य है (उप ५५१)

झुंपडा :: स्त्री [दे] झोपड़ा, तृण-कुटीर, तृण- निर्मित घर (हे ४, ४१६; ४१८)।

झुंबणग :: न [दे] प्रालम्ब (णाया १, १)।

झुज्झ :: देखो जुज्झ = युध्। झुज्झइ (पि २१४)। वकृ. झुंज्झंत (हे ४, ३७९)।

झुट्ठ :: वि [दे] झूठ, अलीक, असत्य (दे ३, ५८)।

झुण :: सक [झुगुप्स्] घृणा करना, निन्दा करना। झुणइ (हे ४, ४; सुपा ३१८)।

झुणि :: पुं [ध्वनि] शब्द, आवाज (हे १, ५२; षड्; कुमा)।

झुणिअ :: वि [जुगुप्सित] निन्दित, घृणित (कुमा)।

झुत्ती :: स्त्री [दे] छेद, विच्छेद (दे ३, ५८)।

झुमुझुमुसय :: न [दे] मन का दुःख (दे ३, ५८)।

झुलुक्क :: पुं [दे] अकस्मात् प्रकाश (आत्मानु ६)।

झुल्ल :: अक [अन्दोल्] झूलना, डोलना लटकना। वकृ. झुल्लंत (सुपा ३१७)।

झुल्लण :: स्त्रीन [दे] छन्द-विशेष। स्त्री. °णा (पिंग)।

झुल्लुरी :: स्त्री [दे] गुल्म, लता, गाछ (दे ६, ५८)।

झुस :: देखो झूस। संकृ. झूसित्ता (पि २०९)।

झूसणा :: देखो झूसणा (राज)।

झुसिय :: देखो झूसिय (बृह २)।

झूसिर :: न [शुषिर] १ रन्ध्र, विवर, पोल, खाली जगह (णाया १, ८; सुपा ६२०) २ वि. पोला, छूँछा (ठा २, ३; णाया १, २; पणह १, २)

झूझ :: देखो जूझ। झूझंति (संबोध १८)।

झूर :: सक [स्मृ] याद करना, चिन्तन करना। झूरइ (हे ४, ७४)। वकृ. झूरंत (कुमा)।

झूर :: सक [जुगुप्स्] निन्दा करना, घृणा करना; 'निरुवमसोहग्गमइं, दिट्‍ठूणं तस्स रूवगुणरिद्धिं। इंदो वि देवराया, झूरइ नियमेण नियरूवं' (रयण ४)।

झूर :: अक [क्षि] झूरना, क्षीण होना, सूखना। वकृ. झूरंत, झूरमाण (सण; उप पृ २७)।

झूर :: वि [दे] कुटिल, वक्र, टेढ़ा (दे ३, ५९)।

झूरिय :: वि [स्मृत] चिन्त्तित, याद किया हुआ (भवि)।

झूस :: सक [जुष्] १ सेवा करना। २ प्रीति करना। ३ क्षीण करना, खपाना। वकृ. झूसमाण (आचा)। संकृ. झूसित्ता, झूसित्ताणं, झूसेत्ता (औप; पि ५८३; अतं २७)

झूसणा :: स्त्री [जोषणा] सेवा, आराधना (उवा; अंत; औप; णाया १, १)।

झूसरिअ :: वि [दे] १ अत्यर्थं, अत्यन्त। २ स्वच्छ, निर्मल (दे ३, ६२)

झूसिय :: वि [जूष्ट] १ सेवित, आराधित (णाया १, १; औप) २ क्षापित, क्षिप्त, परित्यक्त (उवा; ठा २, २)

झेंडुअ :: पुं [दे] कन्दुक, गेंद (दे ३, ५९)।

झेय :: देखो झा।

झेर :: पुं [दे] पुराना घण्टा (दे ३, ५९)।

झोटिंग :: पुं [दे] देव-विशेष (कुप्र ४७२)।

झोट्टी :: स्त्री [दे] अर्धं-महिषी, भैंस की एक जाति (दे ३, ५९)।

झोंडलिआ :: स्त्री [दे] रास के समान एक प्रकार की क्रीड़ा (दे ३, ६०)।

झोड :: सक [शाटय्] पेड़ आदि से पत्र वगैरह को गिराना। झोडइ (पि ३२६)।

झोड :: न [दे] १ पेड़ आदि से पत्र आदि का गिराना। २ जीर्ण वृक्ष (णाया १, ११ — पत्र १७१)

झोडण :: न [शाटन] पातन, गिराना (पणह १, १ — पत्र २३)।

झोडप्प :: पुं [दे] १ चना, अन्न-विशेष। २ सूखे चने का शाक (दे ३, ५६)

झोडिअ :: पुं [दे] व्याध, शिकारी, बहेलिया (दे ३, ६०)।

झोलिआ, झोल्लिआ :: स्त्री [दे. झोलिका] झोली, थैली, कोथली (दे ३, ५६; सूअ २, ४)।

झोस :: देखो झूस। झोसेइ (आचा)। वकृ. झोसमाण, झोसेमाण (सुपा २९; आचा)। संकृ. 'संलेहणाए सम्मं झोसित्ता निययदेहं तु' (सुर ६, २४६)।

झोस :: सक [गवेषय्] झोजना, अन्वेषण करना। झोसेहि (बृह ३)।

झोस :: सक [झोषय्] डालना, प्रक्षेप करना। कृ झोसेयव्व (वव १)।

झोस :: पुं [झोष] राशि-विशेष, जिसके डालने से समान भागाकार हो वह राशि (वव १)।

झोस :: पुं [दे] झाड़ना, दूर करना (ठा ५, २)।

झोसण :: न [दे] गवेषण, मार्गंण; 'आभोगणं ति वा मग्गणं ति वा झोसणं ति वा एगट्ठं' (वव २)।

झोसणा :: देखो झूसणा (सम ११९; भग)।

झोसणा :: स्त्री [जोषणा] अन्त समय की आराधना, संलेखना (श्रावक ३७८)।

झोसिअ :: देखो झूसिय (आचा; हे ४, २५८)।

 :: पुं [ट] मूर्द्धं-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं-विशेष (प्रामा; प्राप)।

टउया :: स्त्री [दे] आह्वान-शब्द, पुकारने की आवाज; गुजराती में 'टौको' (कुप्र ३०६)।

टंक :: पुं [टङ्क] चित्र-विशेष, सिक्का पर का टित्र (पंचा ३, ३५)।

टंक :: पुं [टङ्क] १ तलवार आदि का अग्र भाग (पणह १, १ — पत्र १८) २ एक प्रकार का सिक्का (श्रा १२; सुपा ५१३) ३ एक दिशा में छिन्न पर्वत (णाया १, १ — पत्र ६३) ४ पत्थर काटने का अस्त्र, टाँकी, छेनी (से ५, ३५; उप पृ ३१५) ५ परिमाण-विशेष, चार मासे की तौल (पिंग) ६ पक्षि-विशेष (जीव १)

टंक :: पुं [दे] १ तलवार, खड्ग। २ खात, खुदा हुआ जलाशय। ३ जड्घा, जाँघ। ४ भित्ति, भींत। ५ तट, किनारा (दे ४, ४) ६ खनित्र, कुदाल (दे ४, ४; से ५, ३५) ७ वि. छिन्‍न, छेदा हुआ, काटा हुआ (दे ४, ४)

टंकणं :: पुं [टङ्कन] म्लेच्छ की एक जाति, (विसे १४४४)।

टंकवत्थुल :: पुं [दे] कन्द-विशेष, एक जाति की तरकारी (श्रा २०)।

टंका :: स्त्री [दे] १ जंघा, जाँघ (पाअ) २ स्वनाम-ख्यात एक तीर्थं (ती ४३)

टंकार :: पुं [टङ्कार] धनुष का शब्द (भवि)।

टंकार :: पुं [दे] ओजस्, तेज (गउड)।

टंकिअ :: वि [दे] प्रसृत, फैला हुआ (दे ४, १)।

टंकिअ :: वि [टङ्किन] टाँकी से काटा हुआ (दे ४, ५०)।

टंकिया :: स्त्री [टङ्किका] पत्थर काटने का अस्त्र, टाँकी (सम्मत्त २२७)।

टंबरय :: वि [दे] झारवाला, गुरू, भारी (दे ४, २)।

टक्क :: पुं [टक्क] देश-विशेष (हे १, १९५)।

टक्क :: वि [टक्क] १ टक्क-देशीय। २ पु. भाट की एक जाति (कुप्र १२)

टक्कर :: पुं [दे] ठोकर, अगं से अगं का आघात (सुर १२, ६७; वव १)।

टक्करा :: स्त्री [दे] टकोर, मुंड-सिर में उंगली का आघात (वव १ टी)।

टक्कारा :: स्त्री [दे] अरणि वृक्ष का फूल (दे ४, २)।

टगर :: पुं [तगर] १ वृक्ष-विशेष, तगर का वृक्ष। २ सुगन्धित काष्ठ-विशेष (हे १, २०५; कुमा)

टच्चक :: पुं [दे] लकड़ी आदि के आघात की आवाज (कुप्र ३०६)।

टट्टइआ :: स्त्री [दे] जवनिका, परदा (दे ४, १)।

टप्पर :: वि [दे] विकराल कर्णंवाला, भयंकर कानवाला (दे ४, २; सुपा ५२०; कप्पू)।

टमर :: पुं [दे] केश-चय, बाल-समूह (दे ४, १)।

टयर :: देखो टगर (कुमा)।

टलटल :: अक [टलटलाय्] 'टल-टल' आवाज करना। वकृ. टलटलंत (प्रासू १६३)।

टलटलिय :: वि [टलटलित] 'टल-टल' आवाज वाला (उप ६४८ टी)।

टलवल :: अक [दे] १ तड़फड़ाना, तड़पना। २ घबराना, हैरान होना। टलवलंति (धर्मंवि ३८)। वकृ. टलवलंत (सरि ६०८)

टलिअ :: वि [दे] टला हुआ, हटा हुआ (सिरि ६८३)।

टसर :: न [दे] विमोटन, मोड़ना (दे ४, १)।

टसर :: पुं [त्रसर] टसर, एक प्रकार का सूता (हे १, २०५; कुमा)।

टसरोट्ट :: न [दे] शेखर, अवतंस (दे ४, १)।

टहरिय :: वि [दे] ऊँचा किया हुआ, 'टहरिय- कन्‍नो जाओ मिगुव्व गीइं कहं सोउं (धर्मंवि १४७; सम्मत्त १५८)।

टार :: पुं [दे] अधम, अश्व, हठी घोड़ा (दे ४, २); 'अइसिक्खिओवि न मुअइ, अणयं टारव्व टारत्तं' (श्रा २७)। २ टट्‍टू, छोटा घोड़ा (उप १५५)

टाल :: न [दे] कोमल फल, गुठली उत्पन्‍न होने के पहले की अवस्था वाला फल (दस ७)।

टिट°, टिंटा :: [दे] देखो टेंटा (भवि)। °साला स्त्री [°शाला] जुआखाना, जुआ खेलने का अड्डा (सुपा ४९५)।

टिंबरु, टिबरुअ :: पुंन [दे] वृक्ष-विशेष, तेंदू का पेड़ (दे ४, ३; उप १०३१ टी; पाअ)।

टिंबरुणी :: स्त्री [दे] ऊपर देखो (पि २१८)।

टिक्क :: न [दे] १ टीका, तिलक। २ सिर का स्तबक, मस्तक पर रक्खा जाता गुच्छा (दे ४, ३)

टिक्किद :: (शौ) वि [दे] तिलक विभूषित (कप्पू)।

टिग्धर :: वि [दे] स्थविर, वृद्ध, बूढ़ा (दे ४, ३)।

टिट्टिभ :: पुं [टिट्टिभ] १ पक्षि-विशेष, टिटि- हरी, टिटिहा। २ जल-जन्तु विशेष (सुर १०, १८५)। स्त्री. °भी (विपा १, ३)

टिट्टियाव :: सक [दे] बोलने की प्रेरणा करना, 'टि-टि' आवाज करने को सिखलाना। टिट्टियावेइ (णाया १, ३)। कवकृ. टिट्टिया- वेज्जमाण (णाया १, ३ — पव ९४)।

टिप्पणय :: न [टिप्पनक] विवरण, छोटी टीका (सुपा ३२४)।

टिप्पी :: स्त्री [दे] तिलक, टीका (दे ४, ३)।

टिरिटिल्ल :: सक [भ्रम्] घूमना, फिरना, चलना। टिरिटिल्लइ (हे ४, १६१)। वकृ. टिरिटिल्लंत (कुमा)।

टिल्लिक्किय :: वि [दे] विभूषित (धर्मंवि ५१)।

टिविडिक्क :: सक [मण्डय्] मण्डित करना, विभूषित करन। टिविडिक्कइ (हे ४, ११५; कुमा)। वकृ. टिविडिक्कंत (सुपा २८)।

टिविडिक्किअ :: वि [मण्डित] विभूषित, अलंकृत (पाअ)।

टुंट :: वि [दे] छिन्‍न-हस्त, जिसका हाथ कटा हुआ हो वह (दे ४, ३; प्रासू १४२; १४३)।

टुंटुण्ण :: अक [टुण्टुणाय्] 'टुन टुन' आवाज करना। वकृ. टुंटुण्णंत (गा ९८५; काप्र ६९५)।

टुंबय :: पुं [दे] आघात-विशेष, गुजराती में 'ठुंबो' (सुर १२, ६७)।

टुटु :: अक [त्रुट्] टूटना, कट जाना। टुट्टइ (पिंग)। वकृ. टुट्टंत (से ६, ६३)।

टुप्परग :: न [दे] जैन साधु का एक छोटा पात्र (कुलक ११)।

टूवर :: पुं [तूवर] १ जिसको दाढ़ी-मूँछ न उगी हो ऐसा चपरासी। २ जिसने दाढ़ी-मूँछ कटवा दी हो ऐसा प्रतिहार (हे १, २०५; कुमा)

टेंट :: पुं [दे] १ मध्य-स्थित मणि-विशेष। वि. भीषण (कप्पू)

टेंटा :: स्त्री [दे] जूआखाना, जूआ खेलने का अड्डा (दे ४, ३)।

टेंटा :: स्त्री [दे] १ अक्षि-गोलक। २ छाती का शुष्क व्रण (कप्पू)

ठेंबरूय :: न [दे] फल-विशेष (आचा २, १, स ८, ६)।

टेक्कर :: न [दे] स्थल, प्रदेश (दे ४, ३)।

टोक्कण, टोक्कणखंड :: न [दे] दारू नापने का बरतन (दे ४, ४)।

टोपिआ :: स्त्री [दे] टोपी, सिर पर रखने का सिला हुआ एक प्रकार का वस्त्र (सुपा २६३)।

टोप्प :: पुं [दे] श्रेष्ठि-विशेष (स ४५१)।

टोप्पर :: पुंन [दे] शिरस्त्राण-विशेष, टोपी (पिंग)।

टोल :: पुं [दे] १ शलभ, जन्तु-विशेष। २ पिशाच (दे ४, ४; प्रासू १६२)। °गइ स्त्री [°गति] गुरु-वन्दन का एक दोष (पव २)। °गइ स्त्री [°कृति] प्रशस्त आकारवाला (राज)

टोल :: पुं [दे] १ टिड्डी, टिडी (पव २) २ यूथ (कुप्र ५८)

टोलंब :: पुं [दे] मधूक, वृक्ष-विशेष, महुआ का पेड़ (दे ४, ४)।

 :: पुं [ठ] मूर्धं-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं-विशेष (प्रामा; प्राप)।

ठइअ :: वि [दे] १ उत्क्षिप्‍त, ऊपर फेंका हुआ। २ पुं. अवकाश (दे ४, ५)

ठइअ :: वि [स्थगित] १ आच्छादित, ढका हुआ। २ बन्द किया हुआ, रुका हुआ (स १७३)

ठइअ :: देखो ठविअ (पिंग)।

ठंडिल्ल :: देखो थंडिल्ल (उव)।

ठंभ :: देको थंभ = स्तम्भ। कर्मं. ठंभिज्जइ (हे २, ९)।

ठंभ :: देखो थंभ = स्तम्भ (हे २, ९; षड्)।

ठकुर, ठक्कुर :: पुं [ठक्कुर] १ ठाकुर, क्षत्रिय, राजपुत (स ५४८; सुपा ४१२; सट्ठि ९८) २ ग्राम वगैरह का स्वामी, नायक, मुखिया (आवम)

ठक्कार :: पुं [ठः कार] 'ठ' अक्षर; 'तम्मि चलंते करिमयसित्ताइ महीइ तुगखुरसेणी। लिहिया रिऊण विजए मंती ठक्कारपंति व्व' (धर्मंवि २०)।

ठग, ठय :: सक [स्थग] बन्द करना, ढकना। ठगेइ, ठएइ (सट्ठि २३ टी; सुख २, १७)।

ठग :: पुं [ठक] ठग, धूर्तं, वञ्चक (दे २, ५८; कुमा)।

ठगिय :: वि [दे] वञ्चित, ठगा हुआ, विप्र- तारित (सुपा १२४)।

ठगिय :: देखो ठइय = स्थगित (उप पृ ३८८)।

ठट्ठार :: पुं [दे] ताम्र, पितलआदि धातु के बर्तन बनाकर जीविका चलानेवाला, ठठेरा (धर्म २)।

ठड्‍ढ :: वि [स्तब्ध] हक्काबक्का, कुण्ठित, जड़ (हे २, ३९; वज्जा ६२)।

ठप्प :: वि [स्थाप्य] स्थापनीय, स्थापन करने योग्य (ओघ ६)।

ठय :: सक [स्थग्] बन्द करना, रोकना। ठएंति (स १५९)।

ठयण :: [स्थगन] १ रुकाव, अटकाव। २ वि. रोकनेवाला। स्त्री. °णी (उप ९६९)

ठयण :: न [स्थागन] बन्द करना; 'अच्छिठयणं च' (पंचा २, २५)।

ठरिअ :: वि [दे] १ गौरवित। २ ऊर्ध्व- स्थित (दे ४, ६)

ठलिय :: वि [दे] खाली, शून्य, रिक्त किया गया (सुपा २३७)।

ठल्ल :: वि [दे] निर्धन, धन-रहति, दरिद्र (दे ४, ५)।

ठव :: सक [स्थापय्] स्थापन करना। ठवइ, ठवेइ (पिंग; कप्प; महा)। ठवे (भग)। बकृ. ठवंत (रयण ९३)। संकृ. ठविउं, ठविऊण, ठवित्ता, ठवित्तु, ठवेत्ता (पि ५७६; ५८६; ५८२; प्रासू २७; पि ५८२)।

ठवण :: न [स्थापन] स्थापन, संस्थापन (सुर २, १७७)।

ठवणा :: स्त्री [स्थापना] १ प्रतिकृति, चित्र, मूर्त्ति, आकार (ठा २, ४; १०; अणु) २ स्थापन, न्यास (ठा ४, ३) ३ सांकेतिक वस्तु, मुख्य वस्तु के अभाव या अनुपस्थिति में जिस किसी चीज में उसका संकेत किया जाय वह वस्तु (विसे २६२७) ४ जैन साधुओं की भिक्षा का एक दोष, साधु को भिक्षा में देने के लिए रखी हुई वस्तु (ठा ३, ४ — पत्र १५९) ५ अनुज्ञा, संमति (णंदि)। ६ पर्युषणा, आठ दिनों का जैन पर्वं-विशेष (निचू १०)। °कुल पुंन [°कुल] भिक्षा के लिए प्रतिषिद्ध कुल (निचू ४)। °णय पुं [°नय] स्थापन को ही प्रधान माननेवाला मत (राज)। °पुरिस पुं [°पुरुष] पुरुष की मूर्त्ति या चित्र (ठा ३, १; सूअ १, ४, १)। °यरिय पुं [°चार्य] जिस वस्तु में आचार्यं का संकेत किया जाय वह वस्तु (धर्ं २) °सच्च न [°सत्थ] स्थापना-विषयक सत्य, जिन भगवान् की मूर्ति को जिन कहना यह स्थापना-सत्य है (ठा १०; पणम ११)

ठवणा :: स्त्री [स्थापना] वासना (णंदि १७६)।

ठवणी :: स्त्री [स्थापनी] न्यास, न्यास रूप से रखा हुआ द्रव्य (श्रा २४)। °मोस पुं [°मोष] न्वास की चोरी, न्यास का अपलाप; 'दोहेसु मित्तदोहो, ठवणीमोसो असेसमोसेसु' (श्रा १४)।

ठविअ :: वि [स्थापित] रखा हुआ, संस्थापित (षड; पि ५९४; ठा ५, २)।

ठविआ :: स्त्री [दे] प्रतिमा, मूर्त्ति, प्रतिकृति (दे ४, ५)।

ठविर :: देखो थविर (पि १६६)।

ठा :: अक [स्था] बैठना, स्थिर होना, रहना, गति का रुकाव करना। ठाइ, ठाअइ (हे ४, १६; षड्)। वकृ. ठायमाण (उप १३० टी)। संकृ. ठाइउण, ठाऊण (पि ३०९; पंचा १८)। हेकृ. ठाइत्तए, ठाउं (कस; आव ५)। कृ. ठाणिज्ज, ठायव्व, ठाए- यव्व (णाया १, १४; ३०२; सुर ९, ३३)।

ठाइ :: वि [स्थायिन्] रहनेवाला, स्थिर होनेवाला (औप; कप्प)।

ठाएयव्व :: देखो ठा।

ठाएयव्व :: देखो ठाव।

ठाण :: पुं [दे] मान, गर्वं, अभिमान (दे ४, ५)।

ठाण :: पुंन [स्थान] १ स्थिति, अवस्थान, गति की निवृत्ति (सूअ १, ५, १; बृह १) २ स्वरूप- प्राप्ति (सम्म १) ३ निवास, रहना (सूअ १, ११; निचू १) ४ कारण, निमित्त, हेतु (सूअ १, १, २; ठा २, ४) ५ पर्यक आदि आसन (राज) ६ प्रकार, भेद (ठा १०; आचू ४) ७ पद, जगह (ठा १०) ८ गुण, पर्याय, धर्मं (ठा ५, ३; आव ४) ९ आश्रय, आधार, वसति, मकान, घर (ठा ४, ३) १० तृतीय जैन अंग-ग्रन्थ; 'ठाणंग' सूत्र (ठा १) ११ 'ठाणंग' सूत्र का अध्ययन, परिच्छेद (ठा १; २; ३; ४; ५) १२ कायोत्सर्ग (औप) °भट्ठ वि [°भ्रष्ट] १ अपनी जगह से च्युत (णाया १, ९) २ चारित्र से पतित (तंदु)। °इय वि [°तिग] कायोत्सर्गं करनेवाला (औप)। °यय न [°यत] ऊँचा स्थान (बृह ५)

ठाण :: न [स्थान] १ कुंकण (कोंकण) देश का एक नगर (सिरि ६३९) २ तेरह दिन का लगातार उपवास (संबोध ५८)

ठाणग :: न [स्थानक] शरीर की चेष्टा-विशेष (पंचा १८, १५)।

ठाणि :: वि [स्थानिन्] स्थानवाला, स्थान- युक्त (सूअ १, २; उव)।

ठाणिज्ज :: देखो ठा।

ठाणिज्ज :: वि [दे] १ गौरवित, सम्मानित (दे ४, ५) २ न. गौरव (षड्)

ठाणुक्कडिय, ठाणुक्कुडय :: वि [स्थानोत्कटुक] १ उत्क- टुक आसनवाला (पणह २, १; भग) २ न. आसन-विशेष (इक)

ठाणु :: देखो खाणु। °खंड न [°खण्ड] १ स्थाणु का अवयव। २ वि. स्थाणु की तरह ऊँचा और स्थिर रहा हुआ, स्तम्भित शरीरवाला (णाया १, १ — पत्र ६६)

ठाम, ठाय :: (अप)। देखो ठाण (पिंग; सण)।

ठाय :: पुं [स्थाय] स्थान, आश्रय (सुख २, १७)।

ठाव :: सक [स्थापय्] स्थापन करना, रखना। ठावइ, ठावेइ (पि ५५३; कप्प; महा)। वकृ. ठावंत, ठाविंत (चउ २०; सुपा ८८)। संकृ. ठावइत्ता, ठावेत्ता (कस; महा) कृ. ठाएयव्व (सुपा ५४५)।

ठावण :: न [स्थापन] स्थापन, धारण (पंचा १३)।

ठावणया, ठावणा :: देखो ठवणा ९उप ९८६ टी; ठा १; बृह ५)।

ठावय :: [स्थापक] स्थापन करनेवाला (णाया १, १८; सुपा २३४)।

ठावर :: वि [स्थावर] रहनेवाला, स्थायी (अच्चु १३)।

ठाविअ :: वि [स्थापित] स्थापित, रखा हुआ (ठा ३, १; श्रा १२; महा)।

ठावित्तु :: वि [स्थापयितृ] ऊपर देखो (ठा ३, १)।

ठिअअ :: न [दे] ऊर्ध्वं, ऊँचा (दे ४, ६)।

ठिइ :: स्त्री [स्थिति] १ व्यवस्था, क्रम, मर्यादा, नियम; 'जयठ्ठिई ऐसा' (ठा ४, १; उप ७२८ टी) २ स्थान, अवस्थान (सम २) ३ अवस्था, दशा (जी ४८) ४ आयु, उम्र, काल-मर्यादा, (भग १४, ५; नव ३१; पणण ४; औप)। °क्खय पुं [°क्षय] आयु का क्षय, मरण (विपा २, १)। °पडिया देखो °वडिया (कप्प)। °बंध पुं [°बन्ध] कर्मं-बन्ध की काल-मर्यादा (कम्म ४, ८२)। °वडिया स्त्री [°पतिता] पुत्र-जन्म-सम्बन्धी उत्सव-विशेष (णाया १, १)

ठिक्क :: न [दे] पुरुष-चिह्न (दे ४, ५)।

ठिक्करिआ :: स्त्री [दे] ठिकरी, घड़ का टुकड़ा (श्रा १४)।

ठिय :: वि [स्थित] १ अवस्थित (ठा २, ४) २ व्यवस्थित, नियमित (सूअ १, ६) ३ खड़ा (भग ९, ३३) ४ निषणण, बैठा हुआ (निचू १; प्राप्र; कुमा)

ठिर :: देखो थिर (अच्चु १; गा १३१ अ)।

ठिविअ :: न [दे] १ ऊर्ध्वं, ऊँचा। २ निकट, समीप। ३ हिक्का, हिटकी (दे ४, ६)

ठिव्व :: सक [वि + घुट्] मोड़ना। संकृ. ठिव्विऊण (सुपा १६)।

ठीण :: वि [स्त्यान] १ जमा हुआ (घृत आदि) (कुमा) २ ध्वनि-कारक, आवाज करनेवाला। ३ न. जमाव। ४ आलस्य। ५ प्रति- ध्वनि (हे १, ७४; २, ३३)

ठुंठ :: पुंन [दे] ठूँठा, ठूँठा, स्थाणु (जं १)।

ठुक्क :: सक [हा] त्याग करना। ठुक्कइ (प्राकृ ६३)।

ठेर :: पुंस्त्री [स्थविर] वृद्ध, बूढ़ा (गा ८८३ अ, पि १६६); 'पउरजुवाणो गामो, महुमासो जोअर्णं पई ठेरो। जुणणसुरा साहीणा, असई मा होउ किं मरउ ?' (गा१९७)। स्त्री. °री (गा ६५४ अ)।

ठोड :: पुं [दे] १ जोतिषी, दैवज्ञ। २ पुरोहित (सुपा ५५२)

 :: पुं [ड] मूर्द्धं-स्थानीय व्यञ्जन वर्णं-विशेष (प्रामा; प्राप)।

डओयर :: न [दकोदर] पेट का रोग-विशेष, जलोदर (निचू १)।

डंक :: पुं [दे] १ डंक, वृश्चिक (बिच्छु) आदि का काँटा (पणह १, १) २ दंश-स्थान, जहाँ पर वृश्‍चिक आदि डसा हो; 'जह सव्वसरीरगयं विसं निरुभित्तु डंकमार्णिंति' (सुपा ६०६)

डंकिय :: देखो डक्क = दष्ट (वै ८९)।

डंगा :: स्त्री [दे] डाँग, लाठी, यष्टि (सुपा २३८; ३८८; ५४६)।

डंड :: देखो दंड (हे १, १२७; प्राप्र)।

डंड :: न [दे] वस्त्र के सीए हुए टुकड़े (दे ४, ७)।

डंडगा :: स्त्री [दण्डका] दक्षिण देश का एक प्रसिद्ध अरण्य — जगंल (सुख)।

डंडय :: पुं [दे] रथ्या, महल्ला (दे ४, ८)।

डंडारण्ण :: न [दण्डारण्य] दक्षिण का एक प्रसिद्ध जंगल, दण्डकारण्य (पउम ९८, ४२)।

डंडि, डंडी :: स्त्री [दे] सिले हुए वस्त्र-खण्ड (दे ४, ७; पणह १, ३)।

डंबर :: पुं [दे] धर्मं, गरमी, प्रस्वेद (दे ४, ८)।

डंबर :: पुं [डम्बर] आडम्बर, आटोप (उप १४२ टी; पिंग)।

डंभ :: देखो दंभ (हे १, २१७)।

डंभण :: न [दम्भन] दागने का शस्त्र-विशेष (विपा १, ६)।

डंभण :: न [दम्भन] बंचना, ठगाई (पव २)।

°डंभणया, डंभणा :: स्त्री [दम्भना] १ दागना। २ माया, कपट, दम्भ, वञ्चना (उप पृ ३१५; पणह २, १)

डंभिअ :: पुं [दे] जुआरी, जुए का खेलाड़ी (दे ४, ८)।

डंभिअ :: वि [दाम्भिक] वञ्चक, मायावी, कपटी (कुमा; षड्)।

डंस :: सक [दंश्] डसना, काटना। डंसइ, डंसए (षड्)।

डंस :: पुं [दंश] क्षुद्र जन्तु-विशेष, डाँस, मच्छर (जी १८)।

डंस :: पुं [दंश] १ दन्त-क्षत। २ सर्पं आदि का काटा हुआ घाव। ३ दोष। ४ खंडन। ५ दाँत ६ वर्मं, कवच। ७ मर्मं-स्थान (प्राकृ १५)

डंसण :: पुंन [दंशन] वर्मं, कवच; 'डंसणो' (प्राकृ १५)।

डक्क :: वि [दष्ट] डसा हुआ, दाँत से काटा हुआ (हे २, २; गा ५३१)।

डक्क :: वि [दे] दन्त-गृहीत, दाँत से उपात्त (दे ४, ६)।

डक्क :: स्त्रीन [डक्क] वाद्य-विशेष (सुपा १९५)।

डक्कुरिज्जंत :: वकृ [दे] पीडित होता हुआ (सूत्र° चू° गा ३१५)।

डगण :: न [दे] यान-विशेष (राज)।

डगमग :: अक [दे] चलित होना, हिलना, काँपना। डगमगीति (पिंग)।

डगल :: न [दे] १ फळ का टुकड़ा (निचू १५) २ ईट, पाषाण वगैरह का टुकड़ा (ओघ ३५९; ७८ भा)

डग्गल :: पुं [दे] घर के ऊपर का भूमि-तल. छत (दे ४, ८)।

डज्झ, डज्झंत, डज्झमाण :: देखो डह।

डट्ठ :: देखो डक्क = दष्ट (हे १, २१७)।

डड्‍ढ :: वि [दग्ध] प्रज्वलित, जला हुआ (हे १, २१७; गा १४९)।

डड्‍ढाडी :: स्त्री [दे] दव-मार्गं, आग का रास्ता (दे ४, ८)।

डप्फ :: न [दे] सेल, कुन्त, भाला, बरछी, आयुध- विशेष (दे ४, ७)।

डब्भ :: पुं [दर्भ] डाभ, कुश, तृण-विशेष (हे १, २१७)।

डमडम :: अक [डमडमाय्] 'डम-डम' आवाज करना, डमरू आदि का आवाज होना। वकृ, डमडमंत (सुपा १९३)।

डमडमिय :: वि [डमडमायित] जिसने 'डं- डम' आवाज किया हो वह (सुपा १५१, ३३८)।

डमर :: पुंन [डमर] १ राष्ट्र का भीतरा या बाह्य विप्लव, बाहरी या भीतरा उपद्रव (णाया १, १; जं २; पव ४; औप) २ कलह, लड़ाई, विग्रह (पणह १, २; दे ८, ३२)

डमरुअ, डमरुग :: पुंन [डमरुक] वाद्य-विशेष, कापालिक योगियों के बजाने का बाजा, डमरू (दे २, ८६; पउम ५७, २३; सुपा ३०६; षड्)।

डर :: अक [त्रस्] डरना, भय-भीत होना। डरइ (हे ४, १९८)।

डर :: पुं [दर] डर, भय, भीति (हे १, २१७; सण)।

डरिअ :: वि [त्रस्त] भय-भीत, डरा हुआ (कुमा; सुपा ६५५; सण)।

डल :: पुं [दे] लोष्ट, मिट्टी का ढेला (दे ४, ७)।

डल्ल :: सक [पा] पीना। डल्लइ (हे ४, १०)।

डल्ल, डल्लग :: न [दे] पिटिका, डाला, डाली, बाँस का बना हुआ फल-फूल रखने का पात्र (दे ४, ७; आवम)।

डल्ला :: स्त्री [दे] डाला, डाली (कुप्र २०६)।

डल्लिर :: वि [पातृ] पीनेवाला (कुमा)।

डल :: सक [आ + रभ्] आरम्भ करना, शुरू करना। डवइ (षड्)।

डवडव :: अ [दे] ऊँचा मुँह कर के वेग से इधर-उधर गमन (चंड)।

डव्व :: पुं [दे] वाम हस्त, बायाँ हाथ; गुजराती में 'डाबो' (दे ४, ६)।

डस :: देखो डंस। डसइ (हे १, २१८; पि २२२)। हेकृ. डसिउं (सुर २, २४३)।

डसण :: न [दशन] १ दंश, दाँत से काटना (हे १, २१७) २ दाँत (कुमा)

डसण :: वि [दशन] काटनेवाला (सिरि ६२०)।

डसिअ :: वि [दष्ट] डसा हुआ, काटा हुआ (सुपा ४४९; सुर ९, १८५)।

डह :: सक [दह्] जलाना, दग्ध करना। डहइ, डहए (हे १, २१८; षड्; महा उव)। भवि. डहिहिइ (हे ४, २४६)। कवकृ. जज्झंत, डज्झमाण (सम १३७; उप पृ ३३; सुपा ८५)। हेकृ. डहिउं (पउम ३१, १७)। कृ. डज्झ (ठा ३, २; दस १०)।

डहण :: न [दहन] १ जलाना, भस्म करना (बृह १) २ पुं. अग्‍नि, वह्नि, आघ (कुमा) ३ वि. जलानेवाला; 'तस्स सुहासुहडहणो अप्पा' जलणो पयासेइ' (आरा ८४)

डहर :: पुं [दे] १ शिशु, बालक, बच्चा (दे ४, ८; पाअ; वव ३; दस ९, १; सूअ १, २, १; २, ३, २१; २२; २३) २ वि. लघु, छोटा, क्षुद्र (ओग १७८; २६० भा)। °ग्गाम पुं [°ग्राम] छोटा गाँव (वव ७)

डहरक :: पुं [दे] वृक्ष-विशेष। २ पुष्प-विशेष; 'डहरकफुल्लणुरत्ता भुंजंती तप्फलं मुणिप्ति' (धर्मवि ६७)।

डहरिया :: स्त्री [दे] जन्म से अठारह वर्षं तक की लड़की (वव ४)।

डहरी :: स्त्री [दे] अलिञ्जर, मिट्टी का घड़ा (दे ४, ७)।

डाअल :: न [दे] लोचन, आँख, नेत्र (दे ४, ९)।

डाइणी :: स्त्री [डाकिनी] १ डाकिनी, डायन, चुड़ैल, प्रेतिनी। २ जंतर मंतर जाननेवाली स्त्री (पणह १, ३; सुपा ५०५; स ३०७; महा)

डाउ :: पुं [दे] १ फलिहंसक वृक्ष, एक जाति का पेड़। २ गणपति की एक तरह की प्रतिमा (दे ४, १२)

डाग :: पुंन [दे] भाजी, पत्राकार तरकारी (भग ७, १०२; दसा १; पव २)।

डाग :: न [दे] डाल, शाखा (आचा २, १०; २)। डागिणी देखो डाइणी (१, ३, ४)।

डामर :: वि [डामर] भयंकर, 'डमडमियडमरुया- डोवडामरो' (सुपा १५१)। २ पुं. स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (पउम २०, २१)।

डामरिय :: वि [डामरिक] लड़ाई, करनेवाला, विग्रह-कारक (पणह १, २)।

डाय :: न [दे] देखो डाग (राज)।

डायाल :: न [दे] हर्म्य-तल, प्रासाद भूमि, छत (आचा २, २, १)।

डाल :: स्त्रीन [दे] १ डाल, शाखा, टहनी (सुपा १४०; पंचा १९; हे ४, ४४५) २ शाखा का एक देश (आचा २, १, १०)। स्त्री. °ला (महा; पाअ; वज्जा २६), °ली (दे ४, ९; पच्च १०; सण; निचू ५)

डाव :: पुं [दे] वाम हस्त, बाँया हाथ, गुजराती में 'डाबो' (दे ४, ६)।

डाह :: देखो दाह (हे १, २१७; गा २२९; ५३५; कुमा)।

डाहर :: पुं [दे] देश-विशेष (पिंग)।

डाहाल :: पुं [दे] देश-विशेष (सुपा २९३)।

डाहिण :: देखो दाहिण (गा ७७७; पिंग)।

डिअली :: स्त्री [दे] स्थूण, खंभा; खूंटी (दे ४, ९)।

डिंडव :: वि [दे] जल में पतित (षड्)।

डिंडि :: पुं [डण्दिन्] राजकर्मंचारी-विशिष्ट अधिकार-संपन्न (भव° वृ° कथा पत्र-४७०, श्लोक ४)।

डिंडिम :: न [डिण्डिम] डुगडुगी, डुग्गी, वाद्य- विशेष (सुर ९; १८१)।

डिंडिम :: न [डिण्डिम] काँसे का पात्र (आचा २, १, ११, ३)।

डिंडिल्लिअ :: न [दे] १ खलि-खचित वस्त्र, तैल- किट्ट से व्याप्त कपड़ा। २ स्खलित हस्त (दे ४, १०)

डिंडि :: स्त्री [दे] सिले हुए वस्त्र-खण्ड (दे ४, ७)। °बंध पुं [°बन्ध] गर्भं-सँभव (निचू ११)।

डिंडीर :: पुंन [डिण्डीर] समुद्र का फेन, समुद्र- कफ (उप ७२८ टी; सुपा २२२)।

डिंडुयाण :: न [डिण्डुयाण] नगर-विशेष (कुप्र १८)।

डिंफिअ :: वि [दे] जल-पतित, पानी में गिरा हुआ (दे ४, ९ग)।

डिंब :: पुंन [डिम्ब] १ भय, डर (से २, १९) २ बिघ्‍न, अन्तराय (णाया १, १ — पत्र ६; औप) ३ विप्लव, डमर (जं २)

डिंब :: पुं [डिम्ब] शत्रु-सैन्य का भय, पर-चक्र का भय (सूअ २, १, १३)।

डिंभ :: अक [स्रंस्] १ नीचे गिरना। २ ध्वस्त होना, नष्ट होना। डिंभइ (हे ४, १९७; षड्)। वकृ. डिंभंत (कुमा ७, ४२)

डिंभ :: पुंन [डिम्भ] बालक, बच्चा, शिशु (पाअ; हे १, २०२; महा; सुपा १९); 'अह दुक्खियाइं तह भुक्खियाइंजह चिंतियाइं डिंभाइं' (विवे १११)।

डिंभिया :: स्त्री [डिम्भिका] छोटी लड़की (णाया १, १८)।

डिक्क :: अक [गर्ज्] साँड़ का गरजना। डिक्कइ (षड्)।

डिड्डर :: पुं [दे] भेक, मण्डूक, मेढ़क, बेग (दे ४, ९)।

डित्थ :: पुं [डित्थ] १ काष्ठ का बना हुआ हाथी। २ पुरुष-विशेष, जो श्याम, विद्वान्, सुन्दर, युवा और देखने में प्रिय हो ऐसा पुरुष (भास ७७)

डिप्प :: अक [दीप्] दीषना, चमकना। डिप्पइ, डिप्पए (षड्)।

डिप्प :: अक [वि + गल्] १ गल जाना, सड़ जाना। २ गिर पड़ना। डिप्पइ; डिप्पए (षड्)

डिमिल :: न [दे] वाद्य-विशेष (विक्र ८७)।

डिल्ली :: स्त्री [दे] जल-जन्तु-विशेष (जीव १)।

डिव :: सक [डिप्] उल्लंघन करना। डिव (वव १)।

डीण :: वि [दे] अवतीर्णं (दे ४, १०)।

डीणोवय :: न [दे] उपरि, ऊपर (दे ४, १०)।

डीर :: न [दे] कन्दल, नवीन अंकुर (दे ४, १०)।

डुंगर :: पुं [दे] शैल, पर्वत, गुजराती में 'ड्डंगर' (दे ४, ११; हे ४, ४४५; जं २)।

डुंघ :: पुं [दे] नारियल का बना हुआ पात्र- विशेष, जो पानी निकालने का काम में आता है (दे ४, ११)।

डुंडुअ :: पुं [दे] १ पुराना घण्टा (दे ४, ११) २ बड़ा घण्टा (गा १७२)

डुंडुक्का :: स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (विक्र ८७)।

डुंडुल्ल :: अक [भ्रम्] घूमना, फिरना, चक्कर लगाना। डुंड्डल्लइ (षड्)।

डुंब :: पुं [दे] डोम, चाण्डाल, श्वपच (दे ४, ११; २, ७३; ७; ७९)। देखो डोंब (पव ६)।

डुज्जय :: न [दे] कपड़ी का छोटा गट्ठा, वस्त्र- खण्ड; 'खिविउं वयणम्मि दुज्जयं अहयं, बद्धा रुक्खस्स थुडे' (सुपा ३६६)।

डुल :: अक [दोलय्] डोलना, काँपना, हिलना। डुलइ (पिंग)।

डुलि :: पुं [दे] कच्छप, कछुआ (उप पृ १३६)।

डुहुडुहुडुह :: अक [डुहडुहाय्] 'डुह-डुह' आवाज करना, नदी के वेग का खलखलाना। वकृ. 'डुहुडुहुडुहंतनइसलिलं' (पउम ९४, ४३)।

डेकुण :: पुं [दे] मत्कुण, खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष (षड्)।

डेड्डुर :: पुं [दे] दुर्दुंर, भेक, मण्डूक, मेढ़क, बेग (षड्)।

डेर :: वि [दे] केकटाक्ष, नीची-ऊँची आँखवाला (पिंग)।

डेव :: सक [डिप्] उल्लंघन करना, कूद जाना, अतिक्रमण करना। वकृ. डेवमाण (राज)।

डेवण :: न [डेपन] उल्लंघन. अतिक्रमण (ओघ ३९)।

डोअ :: पुं [दे] काष्ट का हाथा, दाल, शाक आदि परोसने का काष्ठ पात्र-विशेष; गुजराती में 'डोयो' (दे ४, ११; महा)।

डोअण :: न [दे] लोचन, आँख (दे ४, ९)।

डोंगर :: देखो डुंगर (ओघभा २० टी)।

डोंगिली :: स्त्री [दे] १ ताम्बूल रखने का भाजन विशेष। २ ताम्बूलिनी, पान बेचनेवाले की स्त्री, तमोलिन (दे ४, १२)

डोंगी :: स्त्री [दे] १ हस्तबिम्ब, स्थासक। २ पान रखने का भाजन-विशेष (दे ४, १३)

डोंब :: पुं [दे] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २ एक म्लेच्छ-जाति, डोम (पणह १, १; इक; पव ६) ३ देखी डुंब (पाअ)

डोंबिलग, डोंबिलय :: पुं [दे] १ म्लेच्छ देश-विशेष। २ एक अनार्यं जाति (पणह १, १; इक) ३ डोम, चाण्डाल (स २८६)

डोक्करी :: स्त्री [दे] बूढ़ी स्त्री (कुप्र ३५३)।

डोड :: पुं [दे] ब्राह्मण, विप्र (सुख ३, १)।

डोडिणी :: स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अनु° ६९ सुत्र)।

डोडिणी :: स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अणु ४९)।

डोड्ड :: पुं [दे] एक मनुष्य-जाति, ब्राह्मण; 'दिट्ठो तक्खणजिमिओ निग्गच्छंतो बर्हिं डोड्डो; तो तस्सुदरं फलिअ' (उप १३९ ठी)।

डोर :: पुं [दे] डोर, गुण, रस्सी (गा २११; वज्जा ६६)।

डोल :: अक [दोलय्] १ डोलना, हिलना, झूलना। २ संशयित होना, सन्देह करना। वकृ. डेलंत (अच्चु ६०)

डोल :: पुं [दे] १ लोचन, आँख, नयन; गुज- राती में 'डोलो'; (दे ४, ९) २ जन्तु-विशेष (बृह १) ३ फल-विशेष (पंचव २)

डोल :: पुं [दे] चतुरिन्द्रिय जीव की एक जाति (उत्त ३६, १४८; सुख ३६, १४८)।

डोला :: स्त्री [दोला] हिंडोला, झूलन या झूला (हे १, २१७; पाअ)।

डोला :: स्त्री [दे] डाली, शिविका, पालकी (दे ४, ११)।

डोलाअंत :: वि [दोलायमान] संशय करनेवाला, डँवाडोल (अच्चु ७)।

डोलाइअ :: वि [दोलायित] संशयित, डँवाडील; 'भडस्स डोलाइअं हिअअं' (गा ६९९)।

डोलायमाण :: देखो डोलाअंतM (निचू १०)।

डोलाविय :: वि [दोलित] कम्पित, हिलाया हुआ (पउम ३१, १२४)।

डोलिअ :: पुं [दे] कृष्णसार, काला हिरन (दे ४, १२)।

डोलिर :: वि [दोलावत्] डोलनेवाला, काँपनेवाला; 'दरडोलिरसीसं' (कुमा)।

डोल्लणग :: पुं [दे] पानी में होनेवाला जन्तु- विशेष (सूअ २, ३)।

डोव :: [दे] देखो डोअ (णंदि; उप पृ २१०)। स्त्री. °वा (पभा २७)।

डोसिणी :: स्त्री [दे] ज्योत्स्‍ना, चन्द्र-प्रकाश, चाँदनी (षड्)।

डोहल :: पुं [दोहद] १ गर्भिणी स्त्री का अभिलाष। मनोरथ, लालसा (हे १, २१७; (कुमा)

 :: पुं [ढ] व्यञ्जन वर्णं-विशेष, यह मूर्द्धन्य है, क्योंकि इसका उच्चारण मूर्द्धा से होता है (प्रामा; प्राप)।

ढंक :: पुं [दे] काक, वायस, कौआ (दे ४, १३; जं २; प्राप; सण; भवि; पाअ)। °वत्थुल न [वास्तुल] शाक विशेष, एक तरह की भाजी या तरकारी (धर्मं २)।

ढंक :: पुं [ढङ्कं] कुम्भकार-जातीय एक जैन उपासक (विसे २३०७)।

ढंक :: देखो ढक्क। भवि ढंकिस्सं (पि २२१)।

ढंकण :: न [दे. छादन] १ ढकना, पिधान (प्रासू ९०; अणु)

ढंकण :: देखो ढिंकुण (राज)।

ढंकणी :: स्त्री [दे. छादनी] ढकनी, पिधानिका. ढकने का पात्र-विशेष (दे ४, १४)।

ढंकिअ :: देखो ढक्किअ (सिरि ५२९)।

ढंकुण :: पुं [दे] मत्कुण, खटमल (दे ४, १४)।

ढंकुण :: पुं [ढङ्कुण] वाद्य-विशेष (आचा २, १११)।

ढंख :: देखो ढंक = (दे) (पि २१३; २२३)।

ढंखर :: पुंन [दे] फल पत्र से रहित डाल, 'ढंखरसेसोवि हु महुअरेण मुक्को ण मालई- विडवो' (गा ७५५; वज्ज्ञा ५२)।

ढंखरअ :: [दे] ढेला। गु° ढेखारा (आख्या- नकम° को° नागश्री आख्यानक पत्र — ४ पद्य ६१)।

ढंखरी :: स्त्री [दे] वीणा-विशेष, एक प्रकार की वीणा (दे ४, १४)।

ढंढ :: पुं [दे] १ पंक, कीच, कर्दम, काँदो (दे ४, १६) २ वि. निरर्थंक, निकम्मा (दे ४, १६; भवि)

ढंढ :: पुं [ढण्ढण] एक जैन महर्षि, ढण्ढण ऋषि (सुख २, ३१)।

ढंढ :: वि [दे] दाम्भिक, कपटी (सम्मत्त ३१)।

ढंडण :: पुं [ढण्ढन] स्वनाम-ख्यात एक जैन मुनि (विवे ३२; पडि)।

ढंढणी :: स्त्री [दे] कपिकच्छु, केवाँच, वृक्ष-विशेष (दे ४, १३)।

ढंढर :: पुं [दे] १ पिशाच। २ ईर्ष्या (दे ४, १६)

ढंढरिअ :: पुं [दे] कर्दंम, पंक, कादा, काँदो (दे ४, १५)।

ढंढल्ल :: सक [भ्रम्] घूमना, फिरना, भ्रमण करना। ढंढल्लइ (हे ४, १६१)।

ढंढल्लिअ :: वि [भ्रान्त] भ्रान्त, घूमा हुआ (कुमा)।

ढंढसिअ :: पुं [दे] १ ग्राम का यक्ष। २ गाँव का वृक्ष (दे ४, १५)

ढंढुल्ल :: देखो ढंढल्ल। ढंढुल्लइ (सण)।

ढंढोल :: सक [गवेषय्] खोजना, अन्वेषण करना। ढंढोलइ (हे ४, १८९)। संकृ. ढंढोलिअ (कुमा)।

ढंढोल्ल :: देखो ढुंढुल्ल। संकृ. ढंढोल्लिवि (सण)।

ढंस :: अक [वि + वृत्] घसना, घसकर रहना, गिर पड़ना। ढंसइ (हे ४, ११८)। वकृ, ढंसमाण (कुमा)।

ढंसय :: न [दे] अयश, अपकीर्त्ति (दे ४, १४)।

ढक्क :: सक [छादय्] १ ढकना, आच्छादन करना, बन्द करना। ढक्कइ (हे ४, २१)। भवि. ढक्किस्सं (गा ३१४)। कर्म. 'डक्कि- ज्जउ कूवाई' (सुर १२, १०२)। संकृ. 'तत्थ ढक्किउं दारं', ढक्किऊण, ढक्के- ऊण (सुपा ६४०; महा; पि २२१)। कृ. ढक्केयव्व (दस २)

ढक्क :: पुं [ढक्क] १ देश-विशेष। २ देश- विशेष में रहनेवाली एक जाति (भवि) ३ भाट की एक जाति (उप पृ ११२)

ढक्कय :: न [दे] तिलक (दे ४, १४)।

ढक्करि :: वि [दे] अद्‍भूत, आश्‍चर्यं-जनक (हे ४, ४२२)।

ढक्कवत्थुल :: देखो ढंक-वत्थुल (पव ४)।

ढक्का :: स्त्री [ढक्का] वाद्य-विशेष, डंका, नगाड़ा, डमरू (गा ५२६; कुमा; सुपा २४२)।

ढक्किअ :: वि [छादित] बन्द किया हुआ, आच्छादित (सक ४६९; कुमा)।

ढक्किअ :: न [दे] बैल की गर्जना (अणु २१२; सुख ९, १)।

ढग्गढग्गा :: स्त्री [दे] 'ढग-ढग' आवाज, पानी वगैरह पीने की आवाज; 'सोणियं ढग्गढग्गाए घोट्टयंतो' (स २५७)।

ढज्जंत :: देखो डज्झंत (पि २१२; २१९)।

ढड्‍ढ :: पुं [दे] भेरी, वाद्य-विशेष (दे ४, १३)।

ढड्‍ढर :: पुं [दे] राहु (सुज्ज २०)।

ढड्‍ढर :: पुं [दे] १ बड़ी आवाज, महान् ध्वनि (ओघ १५९) २ न. गुरु-वन्दन का एक दोष, बड़े स्वर से प्रणाम करमा (गुमा २५) ३ वि. वृद्ध, बूढ़ा; 'ढड्ढाण मग्गेण' (सार्धं ३८)

ढणिय :: वि [ध्वनित] शब्दित, ध्वनित (सुर १३, ८४)।

ढमर :: न [दे] १ पिठर, स्थाली या थाली (दे ४, १७; पाअ) २ गरम पानी, उष्ण जल (दे ४, १७)

ढयर :: पुं [दे] १ पिशाच (दे ४, १६; पाअ) २ईर्ष्या, द्वेष (दे ४, १६)

ढल :: अक [दे] टपकना, नीचे पड़ना, गिरना। २ झुकना। वकृ ढलंत (कुमा); 'ढलंतसेयचामरुप्पीलो' (उप ९८६ टी)

ढलिय :: वि [दे] झुका हुआ (उप पृ ११८)।

ढाल :: सक [दे] १ ढालना, नीचे गिराना। २ झुकाना, चामर वगैरह का वीजना। ढालए (सुपा ४७)

ढलहलय :: वि [दे] मृदु, कोमल, मुलायम (वज्जा ११४)।

ढलिय :: वि [दे] गिरा हुआ, स्खलित (वज्जा १००)।

ढालिअ :: वि [दे] नीचे गिराया हुआ, 'सीसाओ ढालिओ सूरो' (सुर ३, २२८)।

ढाव :: पुं [दे] आग्रह, निर्बन्ध (कुमा)।

ढिंक :: पुं [ढिङ्क] पक्षि-विशेष (पणह १, १ — पत्र ८)।

ढिंकण, ढिंकुज :: पुं [दे] क्षुद्र जन्तु-विशेष, गौ आदि को लगनेवाला कीट-विशेष (राज; जौ १८)।

ढिंकलीआ :: स्त्री [दे] पात्र-विशेष (सिरि ४२६)।

ढिंग :: देखो ढिंक (राज)।

ढिंढय :: वि [दे] जल में पतित (दे ४, १५)।

ढिक्क :: अक [गर्ज्] साँड़ का गरजना। ढिक्कइ (हे ४, ९९)। वकृ. ढिक्कमाण (कुमा)।

ढिक्कय :: न [दे] नित्य, हमेशा, सदा (दे ४, १५)।

ढिक्किय :: न [गर्जन] साँड़ की गर्जना (महा)।

ढिडि्ढस :: न [ढिडि्ढस] देव-विमान-विशेष (इक)।

ढिल्ल :: वि [दे] ढीला, शिथिल (पि १५०)।

ढिल्ली :: स्त्री [ढिल्ली] भारतवर्षं की प्राचीन और अद्यतन राज-धानी, दिल्ली शहर (पिंग)। °नाह पुं [°नाथ] दिल्ली का राजा (कुमा)।

ढुंढुल्ल :: सक [भ्रम्] घूमना, फिरना, चलना। ढुंढुल्लइ (हे ४, १६१)। ढुंढुल्लन्ति (कुमा)।

ढुंढुल्ल :: सक [गवेषय्] ढूंढ़ना, खोजना, अन्वेषण करना। ढुँढुल्लइ (हे ४, १५९)।

ढुंढुल्लण :: न [गवेषण] खोज, अन्वेषण (कुमा)।

ढुंढुल्लिअ :: वि [गवेषित] अन्वेषित, ढूँढ़ा हुआ (पाअ)।

ढुक्‍क :: सक [ढौक्] १ भैंट करना, अर्पण करना। २ उपस्थित करना। ३ अक. लगना, प्रवृत्ति करना। ४ मिलना। वकृ. ढुक्‍कंत (पिंग)। कवकृ. ढुक्‍कंत (उप ९८६ टी; पिंग)

ढुक्‍क :: सक [प्र + विश] ढुकना, घुसना, प्रवेश करना। ढुक्‍कइ ७४)।

ढुक्क :: वि [दे. ढोकित] १ उपस्थित, हाजिर (स २५१) २ मिलित (पिंग) ३ प्रवृत्त; 'चिंतिउं ढुक्को' (श्रा २७; सण; भवि)

ढुक्‍कलुक्‍क :: न [दे] चमड़े से मढ़ा हुआ वाद्य-विशेष (सिरि ४२६)।

ढुक्‍किअ :: वि [ढौकित] ऊपर देखो (पिंग)।

ढुम, ढुस :: सक [भ्रम्] भ्रमण करना, घूमना। ढुमइ; ढुसइ (हे ४, १६१; कुमा)।

ढुरुढुल्ल :: देखो ढुंढुल्ल = भ्रम्। वकृ. ढुरुढुल्लंत (वज्जा १२८)।

ढेंक :: पुं [ढेङ्कं] एक जल पक्षी, पक्षि-विशेष (वज्जा ३४)।

ढेंका :: स्त्री [दे] १ हर्षं, खुशी। २ ढेंकुवा, ढेंकली, कूप-तुला (दे ४, १७)

ढेंकिय :: देखो ढिक्‍किय (राज)।

ढेंकी :: स्त्री [दे] बलाका, बक-पंक्ति (दे ४, १५)।

ढेंकुण :: पुं [दे] मत्कुण, खटमल (दे ४, १४)।

ढेंढिअ :: वि [दे] घूपित, धूप दिया हुआ (दे ४, १६)।

ढेणियालग, ढेणियालय :: पुंस्त्री [ढेणिकालक] पक्षि- विशेष (पणह १, १)। स्त्री. °लिया (अनु ४)।

ढेल्ल :: वि [दे] निर्धंन, दरिद्र (दे ४, १६)।

ढोअ :: देखो ढुक्क = ढौक। ढोएज्जह (महा)।

ढोइय :: वि [ढौकित] १ भेंट किया हुआ। २ उपस्थित किया हुआ (महा; सुपा १६८; भवि)

ढोंघर :: वि [दे] भ्रमण-शील, घुमक्कड़, घूमनेवाला (दे ४, १५)।

ढोयण :: देखो ढोवण (चेइय ५२; कुप्र १९८)।

ढोयणिया :: स्त्री [ढौकनिका] उपहार, भेंट (धर्मंवि ७१)।

ढोल्ल :: पुं [दे] प्रिय, पति (संक्षि ४७; हे ४, ३३०)।

ढोल्ल :: पुं [दे] १ ढोल, पटह। २ देश-विशेष, जिसकी राजधानी धौलपुर है (पिंग)

ढोवण, ढोवणय :: न [ढौकन, °क] १ भेंट करना, अर्पंण करना (कुमा) २ उपहार, भेंट (सुपा २८०)

ढोविय :: वि [ढौकित] उपस्थापित, उपस्थित किया हुआ (स ५०८)।