विक्षनरी:धातुकर्म परिभाषा कोश

Accumulator metal-- संचायक धातु

संक्षारणरोधी और अधिक मजबूत सीस-मिश्रातु जिसमें 0.1% कैल्सियम होता है। इसका उपयोग बैटरी-प्लेटों को बनाने में किया जाता है।

Acid bessemer process-- अम्ल बेसेमर प्रक्रम

देखिए–Bessemer process

Acid brittleness-- अम्लीय भंगुरता

देखिए– Pickling brittleness

Acid bronze-- अम्ल कांस्य

ताम्र आधारी संक्षारणरोधी मिश्रातु, जिसमें 8-10% Sn और 0-1.5% Ni तथा 2.17% Pb होता है। इसका उपयोग पंप-उपस्कर बनाने में होता है।

Acid process-- अम्ल प्रक्रम

इस्पात बनाने की अम्लीय विधि जिसमें प्रयुक्त भ्राष्ट्र का अस्तर मुख्यतः सिलिका आदि किसी अम्लीय उच्च तापसह पदार्थ का होता है तथा इस्पात को बनाने के लिए अम्लधातुमल का प्रयोग किया जाता है। इन अवस्थाओं में घान से फॉस्फोरस और गंधक को हटाया नहीं जाता है और ऑक्सीकरण द्वारा शोधन किया जाता है।

Acid refractory-- अम्लीय उच्चतापसह

देखिए– Refractory के अंतर्गत

Adaptive metallurgy-- अनुप्रयोगी धातुकर्मिकी

देखिए– Metallurgy के अंतर्गत

Admiralty brass-- ऐडमिरेल्टी पीतल

देखिए– Brass के अंतर्गत

Admiralty gun metal-- ऐडमिरेल्टी गन मेटल

ताम्र मिश्रातु जिसमें 88% तांबा, 2% जस्ता और 10% वंग होता है। यह मजबुत तथा समुद्री संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग भापरुद्ध और दाबरुद्ध संचकों, बेयरिगों, वाल्वों, पंप पिस्टनों आदि में होता है।

Advance metal-- ऐडवान्स धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 56% Cu, 42.5% Ni और 15% Mn होता है। यह कान्सटेन्टन के समान होता है। इसका ताप-गुणांक और प्रतिरोधी नगण्य होता है। इसका उपयोग विद्युत् यथार्थमापी उपकरणों और न्यूनताप उत्तापमापियों में होता है।

After blow-- पश्चधमन

क्षारकीय बेसेमर प्रक्रम का अंतिम चरण/कार्बन को पूर्णतया पृथक कर देने के बाद तीन या चार मिनट तक हवा का प्रवाह जारी रखा जाता है। इस अवधि में अधिकांश फॉस्फोरस अलग हो जाता है। इस समय को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि लोह का अधिक ऑक्सीकरण न हो।
तुलना– Fore blow

Age hardening-- काल कठोरण

किन्हीं अलोह मिश्रातुओं की सामर्थ्य एवं कठोरता में काल प्रभावन और अवक्षेपण द्वारा वृदि्ध की जा सकती है। यह प्रभाव ठोस विलयन बनाने वाले मिश्रातुओं में ही पाया जाता है जैसे ताम्र-लोह, डूरेलिमिन, मॉलिब्डेनम-लोह और निकैलमूलक मिश्रातु। इस विधि में मिश्रातु को विशिष्ट उच्च ताप तक गर्म करके उसे शामित किया जाता है और फिर उसका ताप बढ़ाकर कृत्रिम काल प्रभावन द्वारा अवक्षेपण कठोरण किया जाता है जिससे कि अंसतृप्त ठोस विलयन से धात्विक यौगिक, सूक्ष्म अवक्षेप के रूप में अवक्षिप्त हो जाते हैं। इस प्रकम के फलस्वरूप मिश्रातुओं की सूक्ष्म संरचना में परिवर्तन हो जाते हैं। इसे अवक्षेपण कठोरण भी कहते हैं।

Ageing-- काल प्रभावन

वायुमंडलीय ताप पर संग्रहित अनेक मिश्रातुओं में स्वतः कठोरण हो जाता है। यह प्रभाव अति संतृप्त ठोस विलयन से अवक्षेपण द्वारा उत्पन्न होता है। इस परिवर्तन को काल प्रभावन कहते हैं। इसे सर्वप्रथम डुरैलमिन में पाया गया था। काल प्रभावन के फलस्वरूप धातुओं का प्रमाणिक प्रतिबल, अधिकतम प्रतिबल एवं कठोरता बढ़ जाती है और भंगुरता किंचित कम हो जाती है। प्रायः काल प्रभावन शब्द का प्रयोग इस्पात के लिए और काल कठोरण शब्द का प्रयोग अलौह मिश्रातुओं के लिए किया जाता है। जब ताप बढ़ाकर काल प्रभावन किया जाता है तो इस कृत्रिम काल प्रभावन को प्रक्रम अवक्षेपण कठोरण कहते हैं।

Ageing index-- कालप्रभावन सूचकांक

देखिए– Ageing test

Ageing test-- कालप्रभावन परीक्षण

इस प्रक्रिया में तनित परीक्ष्य वस्तु की विकृति द्वारा पराभव बिंदु के बाद 10 प्रतिशत तक दैर्ध्यवृद्धि की जाती है। इस अवस्था में भार को ज्ञात कर लिया जाता है और परीक्ष्य वस्तु को अलग कर 100˚C पर 24 घंटे के लिए काल-प्रभावन हेतु छोड़ दिया जाता है। परीक्ष्य वस्तु को फिर से तनन मशीन में रखकर भार लगाया जाता है। नए पराभव बिंदु पर भार को पुनः ज्ञात कर लिया जाता है। इस प्रकार भार में वृद्धि को आरंभिक भार के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। प्राप्त परिणाम को कालप्रभावन सूचकांक कहते हैं।

Agglomeration-- संपिंडन

एक या अधिक घटकों के चूर्णित कणों का संयोजन जो दाब द्वारा अथवा अवसिंटरन ताप से कम ताप पर गरम करने से परस्पर संयुक्त रहते हैं। संपिंडन के फलस्वरूप कणों के आमाप में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है। संपिंडन की प्रमुख विधियाँ इस प्रकार हैं–
1. गुलिकायन (Balling)– यह सूक्ष्म कणों के संपिंडन की विधि है। डिस्क ड्रम अथवा शंकु के घूर्णन द्वारा कण परस्पर जुड़ जाते हैं। गुटिकाओं और ग्रंथिकाओं को बनाने के लिए कणों को परस्पर जोड़ने वाले आबंधों के प्रकार भिन्न-भिन्न होते हैं।
2. इष्टिकायन (Briquetting)– इस प्रक्रम में अयस्क-चूर्ण को बंधक के साथ या बंधक के बिना दबाकर उपयुक्त आकार और आमाप की इष्टिकाएँ बनाई जाती हैं। इन इष्टिकाओं का कठोरण किया जाता है। प्रयुक्त बंधक का प्रकार और मात्रा, इष्टिकायन दाब और ताप और बाद में किया जाने वाला कठोरण प्रक्रम आदि कच्चे पदार्थ और उत्पाद के वांछित गुणधर्मों पर निर्भर करते हैं। आबंध का प्रकार बनने के तरीके पर भी निर्भर करता है। संपिंडन का यह प्रक्रम कोक-इष्टिकाओं को बनाने में अधिक तथा लोह-इष्टिकाओं को बनाने में कम प्रयुक्त होता है।
3. उत्सारण (Extrusion)– इस प्रक्रम द्वारा अयस्क और कोयला-चूर्ण से बेलनाकार संपिंड बनाए जाते हैं। मिश्रण में पानी और उपयुक्त बंधक मिलाकर उसे वृत्ताकार छिद्र से बाहर निकाला जाता है। बाहर निकल रहे उत्पाद को कच्ची अवस्था में ही, चाकू से काटकर छोटे-छोटे बेलन बना लिए जाते हैं। इन बेलनाकार संहितियों को सुखा कर गरम किया जाता है जिससे वे कठोर हो जाते हैं।
4. ग्रंथिकरण (Nodulizing)– इसमें लोह-अयस्क और कोक के बारीक चूर्ण को क्षैतिज से कुछ डिग्री पर झुके घूर्णी भट्टे में से निकाला जाता है। ज्वालक से उत्पन्न गरम गैसों की धारा को विपरीत दिशा में भेजा जाता है जिससे अयस्क के धातुमलघटक पिघल जाते हैं। इसके फलस्वरूप सघन, धातुमल युक्त ग्रंथिकाएँ बनती हैं जो गोलाकार न होकर संहत ग्रंथिकाएँ होती हैं।
5. गुटिकायन (Pelletization)– इस प्रक्रम में दो क्रियाएँ होती हैं। पहली क्रिया में सामान्य ताप पर कच्ची गोलियाँ बनाई जाती हैं और दूसरी में उनका उन्नत ताप (1200°C के आसपास) पर ज्वालन किया जाता है। लगभग 200 मेश वाले अयस्क चूर्ण को बंधक के साथ अथवा बिना बंधक के, पानी में मिलाकर बेलने से कच्ची गोलियाँ बनाई जाती हैं। ये गोलियाँ क्षैतिज ड्रम शंकु अथवा नताघूर्णी-चक्रिका में बनाई जाती हैं। कच्ची गोलियों की मजबूती केशिका-बलों और कूटकर ठोस बनाने के कारण होती है। उच्च ताप पर ज्वालन करने पर धातुमल आबंधों के बनने के कारण ये गोलियाँ अधिक मजबूत हो जाती हैं। गुटिका बनाने की मशीन, चक्रिका, गुटिकायित्र एवं ड्रम गुटिकायित्र कहलाती है।
6. सिंटरण (Sintering)– यह विधि साधारणतया स्थूल-कणों के लिए उपयुक्त होती है। इसमें कणों का संपिंडन आरंभी गलन के कारण होता है। इस प्रक्रम में लोह-अयस्क चूर्ण, कोक-धूलि और आवश्यकता होने पर चूने का पत्थर, डोलोमाइट आदि योज्यों को मिलाया जाता है। यह मिश्रण, गैसों के लिए पारगम्य होता है और उसे स्थिर या चल संस्तर में डाला जाता है। संस्तर के ऊपरी भाग का दहन करने पर कोक-धूलि जलती है जिससे सिंटरण के लिए आवश्यक ऊष्मा प्राप्त होती है। कोक-दहन से उत्पन्न गरम उत्पाद, प्रयुक्त चूषण के फलस्वरूप नीचे की पर्त में गिरते हैं जिससे उनका शुष्कन और संलयन हो जाता है। दहन-पर्त के संस्तर की तली पर पहुँचने तक सिंटरण होता रहता है। तत्पश्चात् उसे ठंडा करने के बाद उचित आमाप के टुकड़ों में तोड़कर चालनी में छान लिया जाता है। छोटे सिंटरों का पुनर्चक्रण किया जाता है जबकि बड़े सिंटरों को वात्या भट्टी में भेज दिया जाता है। एकीकृत लोह-संयंत्रों में अयस्क चूर्ण के उपयोग की यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली विधि है क्योंकि इसमें कोक-धूलि का ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है जो एक अपशिष्ट पदार्थ है। सिंटरण से वात्या भट्टियों में काम आने वाला उच्च क्षारकता सिंटर बनाया जा सकता है जिसे गुटिकायन द्वारा बनाना संभव नहीं है।

Air acetylene welding-- वायु ऐसीटिलीन वेल्डिंग

देखिए– Oxyacetylene welding

Aircomatic welding-- अक्रिय गैस रक्षित वेल्डिंग

देखिए– Inert gas welding

Air hardening steel-- वायु कठोरण इस्पात

वह इस्पात जिसे उसके क्रांतिक ताप-परास में अथवा उससे अधिक ताप से वायु में ही ठंडा कर कठोर किया जा सकता है और जिसमें कठोरता उत्पन्न करने के लिए उससे अधिक ताप में शमन करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसका विशिष्ट उदाहरण निकल-क्रोमियम इस्पात है जिसमें 0.3% कार्बन, 4% निकैल और 1.5% क्रोमियम होता है। टंग्स्टन, मैंगनीज, वैनेडियम, निकैल और क्रोमियम के निम्न-मिश्रातु इस्पात (low alloy steel) इस वर्ग में आते हैं।

Aitch’s metal-- ऐच धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 60% Cu, 38.2% Zn और 1.8% Fe होता है। इसके उत्तम संचकन गुण होते हैं। इसका उपयोग पंपों, वाल्वों, पाइप-फ्लेंज आदि में होता है।

Ajax metal-- एजेक्स धातु

सीसा युक्त कांसों की श्रेणी जिनमें 5% तक Zn, 5-12% Sn, 1% तक Ni और 10-30% Pb होता है और किंचित मात्रा में फॉस्फोरस अथवा सिलिकन भी होता है। ये मजबूत और उत्तम संचकन गुणों वाले होते है। इनका उपयोग बेयरिंग बनाने में होता है।

Ajax-Wyatt furnace-- ऐजैक्स–वाइअट भ्राष्ट्र

देखिए– Induction furnace

Albatra metal-- एल्बेट्रा धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 20% Zn, 20% Ni और 1.25% तक Pb होता है। यह मजबूत, तन्य और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग हार्डवेयर, घरेलू बर्तनों आदि बनाने में होता है।

Albion metal-- ऐल्बिऑन धातु

वंग-अधिपट्टित सीस पन्नी जिसे पर्याप्त दाब के प्रभाव में वंग की चादरों के बीच दबी सीस की चादर को बेलकर बनाया जाता है। इससे चादरें वेल्ड होकर एक अधिपट्टित चादर बन जाती है। ऐल्बिऑन धातु का प्रयोग कुछ धातु-बटनों, खिलौनों, सस्ते आभूषणों, तंबाकू तथा अखाद्य उत्पादों को लपेटने के लिए पन्नी के रूप में, तथा दबाने वाली ट्यूबों को बनाने के लिए किया जाता है।

Alcan-- ऐल्कैन

ऐलुमिनियम कंपनी ऑफ कनाडा द्वारा निर्मित ऐलुमिनियम मिश्रातुओं की श्रेणी का वंश-नाम। इन मिश्रातुओं में Cu, Si, Fe और Mn और कभी-कभी Mg, Zn, Cr, Ni अथवा Ti भी होते हैं। इनका ऊष्मा-उपचार हो सकता है। ये उत्तम अभिरूपणीय, संचकनीय और संक्षारण-प्रतिरोधी होते हैं। इनका उपयोग वायुयानों और जलयानों के निर्माण में और इंजन अवयवों को बनाने के लिए होता है। इस श्रेणी के कुछ विशिष्ट मिश्रातु हैं– 16s, 17s, 26s, 50s, 75s, 160, 340, GB 117 और GB 162।

ALCAN Process-- ऐल्कैन प्रक्रम

इस प्रक्रम में बाक्साइट और कोक को 2000°C पर विद्युत भ्राष्ट् में गलाकर ऐलुमिनियम का अपरिष्कृत मिश्रातु प्राप्त किया जाता है। इस मिश्रातु की 1300°C पर पूर्ववत् AlCl3 के साथ क्रिया की जाती है। जिससे ऐलुमिनियम मोनोक्लोराइड वाष्प प्राप्त होता है। गैसीय क्लोराइड एक अपघटक में प्रवाहित किया जाता है जहाँ उसे द्रव ऐलुमिनियम की सूक्ष्म बूंदों की धारा में 700°C तक ठंडा किया जाता है। मोनोक्लोराइड के अपघटन से ऐलुमिनियम और AlCl3 प्राप्त होते हैं। AlCl3 को पुनः इस्तेमाल किया जाता है।

Alclad M, H-- ऐल्कैड एम, एच

डुरैलिमिन जैसे किसी ऐलुमिनियम मिश्रातु पर शुद्ध ऐलुमिनियम धातु का लेप करने से बनी समग्र चादर। इसका उद्देश्य मिश्रातु की प्रबलता का और शुद्ध धातु के लेप के संक्षारणरोधी गुण का संयोग करना है।
देखिए– Cladding

Alcoa-- ऐल्कोआ

ऐलुमिनियम कॉरपोरेशन ऑफ अमरीका द्वारा निर्मित मिश्रातुओं की श्रेणी। इनमें Cu और Si के अलावा कभी-कभी Fe और Mg भी होता है। इनकी संचकनीयता घर्षणरोध और काल कठोरता उत्तम होते हैं। इनका उपयोग प्रबलित संचकों, पिस्टनों वाल्वों और फोर्जित नोदक ब्लेडों को बनाने में होता है।

ALCOA Smelting – prorocess-- ऐल्कोआ प्रगलन प्रक्रम

ऐलुमिनियम कंपनी ऑफ अमेरिका ALCOA का संक्षिप्त नाम है। इस प्रक्रम में ऐलुमिनियम अयस्कों से प्राप्त ऐलुमिना को क्लोरीन गैस के साथ 700-900°C पर, क्लोराइड में परिवर्तित किया है। इस प्रकार प्राप्त एलुमिनियम क्लोराइड से 700°C ताप पर गलित लवण के विद्युत-अपघटन द्वारा, ऐलुमिनियम धातु प्राप्त की जाती है। सेल में उत्पन्न क्लोरीन गैस को क्लोरीनीकरण यूनिट में भेजा जाता है। हाल प्रक्रम की तुलना में इस प्रक्रम में अवांछनीय गैसें नहीं बनती और 30% कम विद्युत की खपत होती है।

Alcomax-- ऐल्कोमैक्स

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 15% निकैल, 25% कोबाल्ट, 10% ऐलुमिनियम और सूक्ष्म मात्रा में तांबा, टाइटेनियम और नियोबियम होते हैं। यह अत्यधिक लोह चुंबकीय होता है तथा इसका उपयोग स्थायी चुंबकों के निर्माण में किया जाता है।

Aldip process O.B.M-- ऐल्डिप प्रक्रम ओ.बी.एम.

देखिए– Hot dipping

Alfenide metal-- आल्फेनाइड धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 60% तांबा, 30% Zn, 10% Ni और 1% तक Fe होता है। यह तनु अम्लों के प्रति संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग रसायन संयंत्रों में और सजावट सामग्री बनाने में होता है।

Al-Fib process-- ऐल्फिन प्रक्रम

ढलवाँ लोहे और इस्पात की वस्तुओं पर ऐलुमिनियम का लेप करने का प्रक्रम। विग्रीजन अम्ल-मार्जन, प्रक्षालन और सुखाने के बाद उस वस्तु को द्रवित गालक में डुबाया जाता है और फिर तुरंत पिघले ऐलुमिनियम कुंड में ले जाया जाता है। वस्तु को हिलाकर अतिरिक्त ऐलुमिनियम को पृथक कर दिया जाता है और उस वस्तु का तेल या पानी में शमन किया जाता है।

Alfenol-- एल्फेनॉल

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 16% ऐलुमिनियम और शेष लोहा होता है। इसकी चुंबकशीलता बहुत अधिक और शैथिल्य हानि बहुत कम होती है। इसका उपयोग विद्युत चुंबकों में होता है।

Alger metal-- ऐल्गर धातु

एक वंग मिश्रातु जिसमें 10% ऐन्टिमनी और 0-0.3% तांबा होता है। इसका उपयोग सजावटी कार्य में जटिल संचकन के लिए किया जाता है। इसे ऐल्गियर धातु भी कहते हैं।

Alligator effect-- नक्र प्रभाव

देखिए– Orange peel of effect

Alligatoring-- नक्रण

शलाकाओं और सिल्लियों के सिरों का अनुदैर्ध्य दिशा में, बेलने की दिशा के समानांतर तल में विपाटित होना।

Alligator skin-- नक्र त्वचा

देखिए– Orange peel effect

Allotropy-- अपरूपता

किसी तत्व का दो या अधिक रूपों में पाया जाना जो भौतिक और रासायनिक गुणधर्मों में एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं। भिन्न रूपों में अंतर का कारण (1) क्रिस्टल-संरचना या (2) गैस के अणुओं में परमाणुओं की संख्या या (3) द्रव की अणु-संरचना होती है। कार्बन, भिन्न क्रिस्टल-संरचना का उदाहरण है जिसके हीरा, कार्बन कज्जल और ग्रेफाइट क्रिस्टल रूप हैं। द्विपरमाणुक ऑक्सीजन और ओजोन दूसरे वर्ग के तथा द्रव गंधक और हिलियम तीसरे वर्ग के उदाहरण हैं। यूरोनियम के तीन, मैंगनीज के चार और प्लूटोनियम के कम से कम छः क्रिस्टल रूप होते हैं। इनके अतिरिक्त अनेक अन्य तत्वों के भी अपरूप होते हैं।

Alloy-- मिश्रातु

धात्विक गुणधर्मों वाला कोई पदार्थ। यह दो या अधिक तत्वों का बना होता हैं जिसमें कम से कम एक धातु होता है। धातु में अन्य तत्वों को मिलाने का उद्देश्य मिश्रातु में कठोरता, मजबूती, चर्मलता आदि विशेष गुणधर्म उत्पन्न करना है। पीतल कांसा, इस्पात आदि इसके मुख्य उदाहरण हैं।
यूटेक्टिक मिश्रातु (Eutectic alloy)– ऐसा मिश्रातु जिसका संघटन साम्य-आरेख पर यूटेक्टिक बिंदु द्वारा व्यक्त किया जाता है तथा जो यूटेक्टिक अभिक्रिया करता है जैसे AL-Si, Sl-Sn; Cu-Al
यूटेक्टॉयड मिश्रातु (Eutectoid alloy)– ऐसा मिश्रातु जिसका संघटन साम्य आरेख पर यूटेक्टॉयड बिंदु द्वारा व्यक्त किया जाता है तथा जो युटेक्टॉयड अभिक्रिया करता है, जैसे Fe–0.8% C.
पेरिटेक्टिक मिश्रातु (Peritectic alloy)- ऐसा मिश्रातु जिसका संघटन साम्य-आरेख पर पेरिटेक्टिक बिंदु द्वारा व्यक्त किया जाता है तथा जो पेरिटेक्टिक अभिक्रिया करता है, जैसे Pb-Bi; Cu-Sn; Sb-Sn; Ag-Zn.
पेरिटेक्टॉयड मिश्रातु (Peritectoid alloy)- ऐसा मिश्रातु जिसका संघटन साम्य आरेख पर पेरिटेक्टॉयड बिंदु द्वारा व्यक्त किया जाता है तथा जो पेरिटेक्टॉयड अभिक्रिया करता है।
ठोस विलयन (Solid solution)- एकल ठोस समांग क्रिस्टलीय प्रावस्था जिसमें दो या अधिक रासायनिक तत्व होते हैं जिनका संघटन बदलता रहता है जैसे Cu-Ni, Au-Ag, Fe-C (ऑस्टेनाइट)। यदि घटकों की परमाणु त्रिज्याओं में 12% से अधिक अंतर हो तो प्रतिस्थापनीय ठोस विलयन (Substitutional solid solution) बन सकते हैं। यदि आमाप में बहुत अंतर हो तो अंतराली विलेय (Interstitial solute) बन सकते हैं।

Alloying-- मिश्रात्वयन

किसी धातु में सामान्यतया गलित अवस्था में अन्य धातु अथवा उपधातु को मिलाने का प्रक्रम। शुद्ध धातुओं के सीमित अनुप्रयोग हैं जबकि मिश्रातुओं का इंजीनियरी उद्योग में अत्यंत महत्व है। इस्पात सबसे उपयोगी मिश्रातु है जो लोहे और कार्बन के मिश्रण से बनता है। इसी प्रकार ताम्र मूलक मिश्रातुओं में पीतल और कांसा प्रमुख हैं तथा ऐलुमिनियम मूलक मिश्रांतुओं में ऐलुमिनियम-सिलिकन मिश्रातु प्रमुख हैं जिसका प्रयोग पिस्टन बनाने में होता है।

Alloying element-- मिश्रात्वन तत्व

गुणधर्मों को बदलने के उद्देश्य से किसी धातु अथवा मिश्रातु में मिलाया जाने वाला तत्व जो उस धातु अथवा मिश्रातु में समाविष्ट रहता है।

Alloy steel-- मिश्रातु इस्पात

वह इस्पात जिसमें एक या एक से अधिक मिश्रात्वन धातु मिलाए जाते हैं ताकि वांछित भौतिक, यांत्रिकीय और रासायनिक गुणधर्म प्राप्त हो सकें जो अन्यथा केवल लोहे तथा कार्बन से प्राप्त नहीं होते। प्रमुख मिश्रातु इस्पात इस प्रकार हैं–
उच्च मिश्रातु इस्पात (High alloy steel)– इन इस्पातों में मिश्रात्वन तत्व की कुल मात्रा 5% से अधिक होती है।
अल्प मिश्रातु इस्पात (Low alloy steel)– इन इस्पातों में मिश्रात्वन तत्व की कुल मात्रा 5% से कम होती है।
सूक्ष्म मिश्रातु इस्पात (Micro alloy steel)– इन इस्पातों मे मिश्रात्वन तत्व की मात्रा 0.1% से कम होती है।

Alnico-- ऐल्निको

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 20% तक निकैल, 20% तक कोबाल्ट, 15% तक ऐलुमिनियम, कुछ टाइटेनियम और शेष लोहा होता है। यह पर्याप्त चुंबकशील होता है और चुंबकत्वावशेष बहुत अधिक होता है। इसका उपयोग स्थायी चुंबको के लिए किया जाता है।

Alnico’ alloy-- ऐल्निको मिश्रातु

जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी द्वारा निर्मित स्थायी चुंबक मिश्रातुओं की एक श्रेणी। इन मिश्रातुओं में मुख्यतः ऐलुमिनियम, निकेल, कोबाल्ट तथा लोहा होता है परंतु इनमें कुछ अन्य घटक भी हो सकते हैं।

Alpax-- ऐल्पैक्स

ऐलुमिनियम मिश्रातु, जिसमें 10-13.5% सिलिकन होता है। ये उत्तम संक्षारणरोधी और संचकन गुणों वाले होते हैं। संशोधित रूप में इनका प्रयोग उच्च सामर्थ/ भार अनुपात के संचकों में होता है।

Alpha brass-- ऐल्फा पीतल

ऐसे ताम्र-जस्ता मिश्रातु जिनमें 38% तक जस्ता होता है। ये तांबे में जस्ते के समांग ठोस विलयन होते हैं। सर्वाधिक प्रयुक्त ऐल्फा पीतल में 30-37% जस्ता होता है। इस प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण मिश्रातु हैं– स्वंर्णपट्टन धातु (10-15% जस्ता), ऐलुमिनियम पीतल (22% जस्ता और 2% ऐलुमिनियम), ऐडमिरेल्टी पीतल (29% जस्ता और 1% टिन)। इन सभी मिश्रातुओं का प्रयोग अतप्त कर्मण (Cold working) के लिए होता है। इस पीतल में केवल एक ही ठोस विलयन प्रावस्था होती है। इसमें अच्छी तनन सामर्थ रहती है तथा ठंडी अवस्था में पर्याप्त तन्यता होती है। तारों, चादरों, पट़टियों और नलिकाओं के बनाने के लिए यह अधिक उपयुक्त है।

Alpha bronze-- ऐल्फा कांसा

ताम्र मिश्रातुओं की श्रेणी जिसमें 14% तक Sn होता है। ये फॉसफोरस से विऑक्सीकृत होते हैं और इनका आसानी से अतप्त कर्मण होता है। इनका उपयोग संघनित्र नलियों और कमानियों को बनाने में होता है।

Alpha ferrite-- ऐल्फा फैराइट

देखिए- Ferrite

Alpha iron-- ऐल्फा लोह

देखिए– Iron के अंतर्गत

Alplate process-- ऐल्प्लेट प्रक्रम

इस्पात एवं नाइक्रोम मिश्रातुओं पर ऐलुमिनियम, मैग्नीशियम और बेरिलियम आदि का लेप करने का एक पेटेन्ट प्रक्रम। इसमें इस्पात-पृष्ठों को 1,000°C पर हाइड्रोजन संतृप्त कर दिया जाता है और फिर इस्पात को कम ताप पर पिघले ऐलुमिनियम के कुंड में डुबाया जाता है। ठंडे पिघले ऐलुमिनियम के साथ संपर्क के समय निकली हाइड्रोजन, ऑक्साइड की पृष्ठ-परतों को अपचरित कर देती है। ऑक्साइड के बनने को ऐलुमिनियम रोकता है और उत्तम लेप उत्पन्न करता है।

Alrak process-- ऐल्रैक प्रक्रम

ऐलुमिनियम और ऐलुमिनियम मूल के मिश्रातुओं के पृष्ठ को रासायनिक क्रिया द्वारा सुरक्षित रखने का प्रक्रम। इसमें उपयुक्त वस्तुओं को 5% सोडियम कार्बेनट और 1% सोडियम क्रोमेट के उबलते विलयन में डुबाया जाता है।

Alumel-- ऐलुमेल

एक निकैल मूलक मिश्रातु जिसमें लगभग 2.5% मैंगनीज, 2% ऐलुमिनियम तथा 1% सिलिकन होता है। इस मिश्रातु का प्रयोग मुख्यतः तापयुग्मों के घटक के रूप में किया जाता है।

Alumilite process-- ऐलुमिलाइट प्रक्रम

हल्की धातुओं के लिए प्रयुक्त एक ऐनोडी ऑक्सीकरण प्रक्रम। इसमें सल्फ्यूरिक अम्ल विलयन का विद्युत-अपघट्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।

Aluminal-- ऐलुमिनल

ऐलुमिनियम के संचक मिश्रातुओं और पिटवाँ मिश्रातुओं का व्यापारिक नाम। इनमें Al, Cu और Si के अतिरिक्त Ti, Fe, Mn, Mg, Ni, और Zn में से एक अथवा अधिक धातुएँ होती हैं। ये मजबूत और संक्षारणरोधी होते हैं। इनका उपयोग रूपदा-संचकन और सामान्य अनुप्रयोग के अलावा जलयानों के निर्माण में होता है।

Aluminising-- ऐलुमिनन

ऐलुमिनियम फुहारन द्वारा कार्बन इस्पात या मिश्रातु इस्पात के पृष्ठ को संसिक्त करने का प्रक्रम जिसके फलस्वरूप उच्च ताप पर फ्लू गैसों द्वारा होने वाले ऑक्सीकरण और संक्षारण से रक्षा की जा सके। यह लोह-ऐलुमिनियम परत सामान्यतया 0.635-0.762 मिमी मोटी होती है। इस प्रक्रम का उद्देश्य 1000°C से अधिक ताप पर इस्पात पर बनने वाली पपड़ी को रोकना है। इस लेप में निम्नांकित तीन परतें होती है–
1. निचली परत में इस्पात पर लोह और ऐलुमिनियम का ठोस विलयन संलीन रहता है।
2. बीच की परत में Fe Al3 मिश्रातु रहता है जिसमें मुक्त ऐलुमिनियम की कुछ अधिकता रहती है।
3. अंत में सबसे ऊपर ऐलुमिनियम ऑक्साइड की पतली परत होती है।

Aluminite process-- ऐलुमिनाइट प्रक्रम

हल्की धातुओं के लिए प्रयुक्त एक ऐनोडी ऑक्सीकरण प्रक्रम। इसमें सल्फ्यूरिक अम्ल विलयन का विद्युत अपघट्य के रूप में प्रयोग होता है।

Aluminium bronze-- ऐलुमिनियम कांसा

देखिए– Bronze के अंतर्गत

Aluminium solder-- ऐलुमिनियम सोल्डर

कम गलनांक वाले वंग मिश्रातुओं की श्रेणी जिसमें कैडमियम, यशद: यशद, ऐलुमिनियम: यशद, बिस्मथ अथवा ऐलुमिनियम, तांबा और यशद होता है। इनका उपयोग ऐलुमिनियम और उसके मिश्रातुओं के लिए मृदु सोल्डर के रूप में किया जाता है।

Aluminothermic process-- ऐलुमिनो ऊष्मिक प्रक्रम

देखिए– Metallothermic process के अंतर्गत

Alundum-- एलंडम

क्षारकीय उच्चतापसह पदार्थ जिसे प्राकृतिक ऐलुमिनियम ऑक्साइड (बॉक्साइट) को विद्युत भट्टी में संगलित कर बनाया जाता है। अपद्रव्यों को निःसादन (Settling) द्वारा पृथक कर दिया जाता है और उत्पाद को मृतिका तथा फेल्सपार के साथ पीसकर, 1500°C पर जलाया जाता है। इसका प्रयोग उच्च तापसह सीमेन्ट तथा अपघर्षी के रूप में किया जाता है।

Alzak process-- ऐल्जक प्रक्रम

ऐलुमिनियम परावर्तकों को बनाने की विधि। इसमें पृष्ठ विशेष को चमकाने के लिए उसकी किसी अम्ल विद्युत-अपघट्य, सामान्यतया फ्लुओबोरिक अम्ल के साथ क्रिया की जाती है और फिर उसे गरम क्षारीय विलयन में डुबोया जाता है। अंत में ऐलुमिनियम ऑक्साइड की पारदर्शक संरक्षी परत उत्पन्न करने के लिए उसका ऐनेडीकरण किया जाता है।

Amalgamation process-- पारदन प्रक्रम

स्वर्ण और रजत को उनके अयस्कों से निष्कर्षित करने की एक विधि। पहले अयस्क के बॉल मिल में पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाई जाती है। तत्पश्चात् इस चूर्णित अयस्क की लुगदी को पारद या पारदित ताम्र प्लेटों के ऊपर से बहाया जाता है। अयस्क के बड़े कण पारे के साथ अमलगमित हो जाते हैं जिन्हें थोड़े-थोड़े समय बाद प्लेटों से खुरचकर निकाल दिया जाता है। इस खुरचन से पारे को आसवन द्वारा पृथक कर दिया जाता है जिससे स्वर्ण और रजत रिटॉर्ट में रह जाते हैं। इस प्रक्रम के पश्चात् अयस्क लुगदी में थोड़ा स्वर्ण रह जाता है जिसका निष्कर्षण सायनाइड प्रक्रम द्वारा किया जाता है।

American gold-- अमरीकी स्वर्ण

एक स्वर्ण-ताम्र मिश्रातु जिसमें 10% तांबा होता है। अमेरिका में इसका उपयोग सिक्कों के निर्माण में किया जाता है।

Anatomical alloys-- शारीरीय मिश्रातु

कम गलनांक (60°C) वाला मिश्रातु जिसमें 19% वंग, 17% सीसा, 53.5% बिस्मथ और 10.5% पारा होता है। इसका उपयोग शारीरीय मॉडलों को बनाने में किया जाता है।

Angle of bite-- दंश-कोण

धातुओं के बेल्लन में, जहाँ संपूर्ण बल बेलनों के माध्यम से प्रेषित किया जाता है, पहले संस्पर्श पर, बेलन त्रिज्या और बेलन केंद्रों के मध्य बनने वाला अधिकतम कोण, दंश-कोण कहलाता है।

Angle of contact-- संपर्क कोण

साम्यावस्था में परस्पर संपर्क करने वाली दो प्रावस्थाओं के मध्य बनने वाला कोण।

Angle of nip-- अभिग्राह कोण

बेल्लन, हनु अथवा परिभ्रामी संदलन में कार्यकारी-पृष्ठों के बीच दो स्वर्श-बिंदुओं पर स्पर्श रेखाओं द्वारा बनाया जाने वाला प्रवेश-कोण। यदि प्रचालन-कोण कम हो तो उसे स्पर्श कोण या बेल्लन कोण (Rolling angle) कहते हैं।

Angle of repose-- विश्राम-कोण

जब दलित द्रव्य एक ढेर के रूप में होता है तो उस द्रव्य के नत पृष्ठ का (आधार पर) क्षैतिज के साथ बना कोण, विश्राम-कोण कहलाता है।

Anglesite-- ऐंग्लीसाइट

लेड सल्फेट (PbSO4), जो विषमलंवाक्ष क्रिस्टलों के रूप में पाया जाता है। यह गैलेना के साथ मिलता है और गैलेना के अपघटन से प्राप्त होता है। यह बहुमूल्य अयस्क है। कठोरता 2.5-3 तथा विशिष्ट घनत्व 6.3।

Anisotropy-- विषमदैशिकता

वह गुणधर्म जिसके कारण किसी पदार्थ के अभिलक्षणों के विभन्न क्रिस्टलीय दिशाओं में भिन्न भिन्न मान होते हैं।

Annealing-- अनीलन

ठोस पदार्थों, विशेषतः काँच और धातुओं के लिए प्रयुक्त एक ऊष्मा-उपचार प्रक्रम। इसमें धातु को कुछ समय तक अनीलन-ताप पर बनाए रखने के बाद धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। अनीलन ताप और शीतलन-दर प्रयुक्त पदार्थ विशेष पर और उस प्रयोजन पर निर्भर करता है जिसके लिए उसका प्रयोग किया जाना है। प्रयोजन निम्न हो सकते हैं– (1) पदार्थ में मृदुता उत्पन्न करना (2) संचकन अथवा पूर्व ऊष्मा-उपचार से उत्पन्न आंतरिक प्रतिबलों को दूर करना (3) क्रिस्टल-संरचना का परिष्करण (4) तन्यता, चर्मलता, विद्युत या चुंबकीय आदि भौतिक गुणधर्मों में सुधार करना (5) धुली गैसों को पृथक करना (6) निश्चित सूक्ष्म संरचना उत्पन्न करना।
कृष्ण अनीलन (Black annealing)– (1) चादरों या धातु की अन्य वस्तुओं के अनीलन की विधि जिसके परिणामस्वरूप विवर्णन के साथ साथ पपड़ी निकल आती है। ऐसी वस्तुओं का उपयोग केवल तब होता है जब विवर्णन और पपड़ी का निकलना हानिकारक न हो। (2) लोह मूलक मिश्रातु की चादरों के पेटी अनीलन की विधि जो तप्त बेल्लन, कर्तन और अम्लोपचार के बाद की जाती है। यदि इस क्रिया को ठीक ढंग से किया जाए तो वस्तु काली नहीं पड़ती है।
पेटी अनीलन (Box annealing)– (1) अनीलन की एक विधि जिसे धातु के बंद पात्र में, पैकिंग पदार्थ के साथ या उसके बिना, संपन्न किया जाता है ताकि उत्पाद का ऑक्सीजन न हो। इसमें घान को रूपांतरण ताप-परास के अंदर या कभी कभी कुछ अधिक ताप तक गरम करने के बाद ठंडा किया जाता है। (2) तप्त फोर्जनों को फोर्जन प्रक्रिया के बाद सीधे बंद पात्र में रखकर धीरे-धीरे ठंडा करना जिससे फोर्जन विकृतियाँ कम हों। इसे संवृत अनीलन और पात्र अनीलन भी कहते है।
दीप्त अनीलन (Bright annealing)– अनीलन की एक क्रिया जिसे भ्राष्ट्र के नियंत्रित वायुमंडल में संपन्न किया जाता है ताकि उत्पाद के पृष्ठ का कम से कम ऑक्सीकरण हो। इससे पृष्ठ अपेक्षाकृत चमकीला रहता है। इसे श्वेत अनीलन भी कहते हैं।
ज्वाला अनीलन (Flame annealing)– अनीलन प्रक्रम जिसमें लोह मूलक मिश्रातु का पृष्ठ, सुनियंत्रित उच्च ताप टार्च की ज्वाला से प्राप्त ऊष्मा द्वारा मृदु किया जाता है।
पूर्ण अनीलन (Full annealing)– एक मृदुकरण प्रक्रम जिसमें किसी लोह मूलक मिश्रातु को रूपांतरण ताप-परास से अधिक ताप तक गरम किया जाता है। इस ताप पर निश्चित समय तक रखने के बाद उसे धीरे-धीरे रूपांतरण ताप परास से कम ताप तक पूर्व निर्धारित दर से ठंडा किया जाता है। वस्तुओं को धीरे-धीरे स्वयं भट्टी में अथवा ऐसे माध्यम में ठंडा किया जाता है जिसमें वे मंद गति से ठंडी हो सकें। ठंडा होने की दर जितनी कम होगी मिश्रातु की कठोरता भी उतनी ही कम होगी।
माध्यमिक अनीलन (Intermediate annealing)– अंतिम परिष्कृति से पहले अनेक अतप्त-अभिरूपण (Cold forming) और परिष्करण क्रियाओं के बीच अर्ध-तैयार, अतप्त-पिटवाँ-धातु के उत्पादों का अनीलन करना। यह अतप्त-कर्मण के प्रभावों को समाप्त करने और फलस्वरूप अनुवर्ती परिष्करण क्रिया को संपन्न करने के लिए किया जाता है।
समतापि अनीलन (Isothermal annealing)– किसी फरेस मिश्रातु का ऑस्टेनाइटन करने के बाद उसे किसी ऐसे ताप तक ठंडा कर उस ताप पर बनाए रखना जिस पर ऑस्टेनाइट अपेक्षाकृत मृदु फोराइट-कार्बाइड (पर्लाइट) समुच्च्य में परिवर्तित हो जाता है।
प्रक्रम अनीलन (Process annealing)– एक प्रक्रम जिसमें प्रायः चादर या तार रूप में विद्यमान लोह मूलक मिश्रातु को रूपांतरण ताप परास की निचली सीमा से कुछ कम ताप तक गरम करने के बाद ठंडा किया जाता है। इस प्रक्रम का उपयोग अतप्त कर्मण में मृदुकरण करने के लिए होता है।
मोचन अनीलन (Relief annealing)– एक अल्प ताप अनीलन प्रक्रम जो धातु की बनी वस्तुओं से आंतरिक विकृतियों को दूर करने के लिए उपयुक्त होता है। ये विकृतियाँ ठंडा करने, यांत्रिक कर्मण अथवा अन्य क्रियाओं से उत्पन्न होती हैं। इसमें धातु को क्रांतिक ताप परास की निचली सीमा तक गरम करने के बाद धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। यदि बड़े कण विद्यमान हों और धातु में अधिक मृदुता अपेक्षित हो तो वस्तु को निचले क्रांतिक बिंदु से अधिक ताप तक गरम करना चाहिए जो कण-संरचना के परिष्करण के लिए पर्याप्त हो।
स्व-अनीलन (Self annealing)– जब बड़े संचकों का मंद शीतलन किया जाता है या जब अनेक गर्म वस्तुओं को ढेर रूप में इकट्ठा किया जाता है तो उनके यांत्रिक गुणधर्मों में ह्रास हो जाता है। इन प्रक्रम को स्व-अनीलन कहते हैं।
गोलाभन अनीलन (Spheroidize annealing)– इस्पात में गोलभीय कार्बाइड उत्पन्न करने के लिए उसका तापन तथा तत्पश्चात शीतल करना।
देखिए– Spheroidizing भी।
प्रतिबल मोचन अनीलन (Stress relief annealing)– एक अनीलन प्रक्रम जिसमें धातुओं को उचित ताप तक गर्म कर पर्याप्त समय तक उसी ताप पर रखा जाता है ताकि उनके अवशिष्ट प्रतिबलों में कमी हो जाए। तत्पाश्चात उन्हें धीरे धीरे ठंडा किया जाता है जिससे नए अवशिष्ट प्रतिबल कम से कम उत्पन्न हों।

Anode corrosion efficiency-- एनोड संक्षारण दक्षता

किसी ऐनोड के वास्तविक संक्षारण और सैद्धांतिक संक्षारण का अनुपात। सैद्धांतिक संक्षारण का परिकल्प वैद्युत रासायनिक अभिक्रिया में प्रयुक्त विद्युत मात्रा से किया जाता है।

Anode effect-- ऐनोड प्रभाव

संगलित लवणों के विद्युत अपघटन में एनोड के ध्रुवीकरण से उत्पन्न प्रभाव। इसमें एनोड के गैस फिल्म द्वारा विद्युत अपघट्य से पृथक हो जाने के कारण वोल्टता में एकाएक वृद्धि हो जाती है और तदनुसार ऐम्पियरों में कमी हो जाती है।

Anode effieciency-- ऐनोड दक्षता

ऐनोड के धुलने की वास्तविक दर और फैराडे नियम द्वारा प्रयुक्त सैद्धांतिक दर का अनुपात। इसे प्रायः प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

Anode mud-- ऐनोड पंक

देखिए– Anode slime

Anode slime-- ऐनोड अवपंक

विद्युत-अपघटनी परिष्करण प्रक्रमों में ऐनोड पर बचा हुआ या गिरकर जमा होने वाला अविलेय अवशिष्ट। यह सूक्ष्म चूर्णित अविलेय धातुओं तथा विलेय ऐनोड के पृष्ठ पर बनने वाले धातु यौगिकों का मिश्रण होता है। इसे ऐनोड पंक भी कहते हैं।

Anodic oxidation-- ऐनोडी ऑक्सीकरण

विद्युत-अपघटनी सेल के ऐनोडों पर मुक्त नवजात ऑक्सीजन द्वारा होने वाले ऑक्सीकरण। किसी धातु अथवा हल्के मिश्रातुओं के पृष्ठ पर ऑक्साइड की कठोर संक्षारणरोधी पर्त बनाने का प्रक्रम। विद्युत अघटनी सेल में क्रोमिक अथवा सल्फ्यूरिक अम्ल होता है जिसमें धातु को ऐनोड बनाया जाता है। क्रोमिक अम्ल धूंसर अपारदर्शी लेप उत्पन्न करता और सल्फ्यूरिक अम्ल उसे स्वच्छ और पारभासी बना देता है।

Anodic protection-- ऐनोडी रक्षण

किसी धातु के विभव को पर्याप्त धनविद्युती बना कर उसकी संक्षारण-दर को कम करना ताकि वह निष्क्रिय हो जाए। सामान्यतः इसके लिए नियंत्रित विद्युत वाहक बल प्रयुक्त किया जाता है।

Anodic treatment-- ऐनोडी उपचार

एक प्रक्रिया जिसमें वस्तु को, किसी उपर्युक्त विद्युत अपघट्य की उपस्थिति में, ऐनोड और एक अक्रिय धातु को कैथोड बनाया जाता है और विभव प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रक्रिया का प्रभाव प्रयुक्त वस्तु पर निर्भर करता है। ऐलुमिनियम और उसके मिश्रातुओं के संदर्भ में ऐनोडी प्रक्रिया और ऐनोडीकरण समानार्थक है परंतु जंगरोधी इस्पात के संदर्भ में इस प्रक्रिया का उद्देश्य पृष्ठ को साफ करना अथवा चमकाना होता है।
देखिए– Anodic oxidation भी

Anodising-- ऐनोडीकरण

ऐनोडी ऑक्सीकरण द्वारा जब ऐलुमिनियम या उसके मिश्रातुओं पर ऐलुमिनियम की संक्षारणारोधी परत चढ़ाई जाती है तो यह प्रक्रम ऐनोडीकरण कहलाता है। कुछ ऐनिलीन रंजकों का प्रयोग करके पृष्ठ पर विभिन्न रंग उत्पन्न किए जा सकते हैं।

Anthracite coal-- ऐन्थ्रासाइट कोयला

Antiferromagnetism-- प्रतिलोह चुंबकत्व

देखिए– Magnetism के अंतर्गत
इस प्रकार का कठोर, संहत, काले रंग का चमकीला कोयला जिसमें कार्बन की मात्रा 85 प्रतिशत से 95 प्रतिशत तक होती है। इसमें वाष्पशील पदार्थ की मात्रा कम होती है और यह मंद गति से जलता है। जलने के पश्चात् बहुत कम राख बनती है।

Antifriction alloys-- प्रतिघर्षण मिश्रातु

बेयरिंग बनाने में काम आने वाले बैब्टि मिश्रातु और कुछ अन्य मिश्रातु ये प्रायः तांबा, सीसा, वंग, ऐन्टिमनी, ऐलुमिनियम और जस्त के मिश्रातु होते हैं। इनकी विशेषता यह है कि बेंयरिंग में इनके इस्तेमाल से घर्षण शक्ति की हानि कम होती है।

Antifriction metals-- प्रतिघर्षण धातु

देखिए– Bearing metals

Antimonial lead-- ऐन्टिमनीय सीसा

संक्षारणरोधी सीसा मिश्रातु जिसमें 30% ऐन्टिमनी और शेष सीसा होता है। इसका उपयोग बैटरी प्लेटों और रासायनिक संयंत्रों में आस्तर के रूप में किया जाता है।

Antimony bronze-- ऐन्टिमनी कांस्य

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 1.5-2.5% Ni और 7-8% Sb होता है। यह अत्यंत मजबूत होता है और इसका उपयोग गियरों को बनाने में किया जाता है।

Anvil effect-- निहाई प्रभाव

दंतुरण कठोरता-परीक्षण में प्रतिदर्श में उत्पन्न स्थानीय उभार। यह उभार उस पार्श्व के सामने पीछे की ओर दूसरी तरफ बनता है जिस पर मुद्रांक किया जाता है। ऐसे उभार से त्रुटिपूर्ण कठोरता मान प्राप्त होते हैं और यह उभार तब उत्पन्न होता है जब प्रतिदर्श बहुत पतला हो।

Apatite-- ऐपटाइट

कैल्सियम का एक अयस्क, जिसका सूत्र [3 Ca3(PO4)2 CaF2] है। यह कैल्सियम के फॉस्फेट तथा फ्लुओराइड का द्विलवण है। इसमें फ्लुओराइड के स्थान पर क्लोराइड भी हो सकता है जिसे क्लोर-ऐपाटाइट कहते हैं। अक्सर फ्लुओराइड और क्लोराइड साथ पाए जाते हैं। यह आग्नेय शैलों में प्राथमिक घटक के रूप में तथा कशेरुक जीवों की अस्थियों एवं दाँतों में पाया जाता है। कठोरता 5, आपेक्षिक घनत्व 3-2।

Aquaregia-- ऐक्वारेजिया

नाइट्रिक अम्ल और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का आयतन की दृष्टि से 1 : 3 के अनुपात में मिश्रण। यह जंगरोधी इस्पात के लिए रसोत्किरक (etchant) का कार्य करता है। इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि यह तीव्रता के साथ क्रिया करता है। ग्लिसरीन में ऐक्वारेजिया के विलयन (जिसमें आयतनानुसार 20 मिली नाइट्रिक अम्ल, 40 मिली हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और 60 मिली ग्लिसरीन होता है) का उपयोग लोह-क्रोमियम मिश्रातुओं और आस्ट्रेनाइटी क्रोमियम-निकैल इस्पातों के रसोत्किरण के लिए होता है।

Arbeiter process-- आर्बिटर प्रक्रम

यू0एस0ए0की अनाकॉन्डा कंपनी द्वारा विकसित एक प्रक्रम जिससे रासायनिक सांद्रण क्रिया की जाती है। इसमें न्यून दाब पर ऑक्सीकरण और अमोनियामय निक्षालन करने के बाद लिक्स विलायक द्वारा निष्कर्षण और फिर प्लवन किया जाता है।

Arc-blow-- आर्क धमन

आर्क वेल्डिंग के दौरान होने वाली एक परिघटना जिसका संबंध आर्क के भ्रमण की प्रवृत्ति से है। लघुतम पथ से आर्क का विचलन, स्वतः प्रेरित चुंबकीय क्षेत्र के बनने से होता है। यदि लोह चुंबकीय पदार्थों के साथ प्रत्यक्ष धारा का उपयोग किया जाए तो यह प्रभाव अधिक शक्तिशाली होता है।
देखिए– Welding के अंतर्गत

Argentine metal-- आर्जेन्टाइन धातु

उत्तम संचक गुणधर्मों वाला एक तरल वंग मिश्राणु जिसमे 15% ऐन्टिमनी और 85% वंग होता है। इसका उपयोग खिलौनों को ढालने में किया जाता है।

Argentite-- अर्जेन्टाइट

चाँदी का एक प्रमुख सल्फाइड अयस्क जिसमें 87% चाँदी होती है। यह घनीय समुदाय में क्रिस्टलित होता है। इस खनिज को सिल्वर ग्लान्स भी कहते हैं। कठोरता 2-2.5 तथा आपेक्षिक घनत्व 7.2-7.36।

Argillaceous ore-- मृण्मय अयस्क

देखिए– Ore के अंतर्गत

Argon arc welding-- आर्गन आर्क वेल्डिंग

एक प्रकार का आर्क वेल्डिंग प्रक्रम जिसमें आर्क को आर्गन गैस में उत्पन्न किया जाता है। आर्गन गैस वेल्ड-क्षेत्र का परिरक्षण करती है और साथ ही ऑक्साइड को बनने से रोकती है।
देखिए– Welding भी

Armco iron-- आर्मको लोह

देखिए– Iron के अंतर्गत

Armstrong process-- आर्मस्ट्रांग प्रक्रम

फोर्जन या बेलन द्वारा संयुक्त इस्पात-बिलेटों को बनाने की विधि बिलेट बनाने वाली दो धातुओं का परस्पर बंधन विद्युत-अपधटनी लोहे द्वारा किया जाता है जो संयुक्त किए जाने वाले पृष्ठों पर निक्षिप्त रहता है। गर्म करने से विद्युत अपधटनी लोहे और आधारी धातु के बीच विसरण हो जाता है और फोर्जन या बेल्लन से ऑक्साइड मुक्त वेल्ड प्राप्त होता है। यदि बिलेट बनाने वाली दो धातुओं के परस्पर तप्त कर्म तन्यता में पर्याप्त अंतर रहे तो कम भंगुर धातु के चारों ओर अधिक भंगुर धातु के प्रवाह को रोकने के लिए विशेष बेलनों और गाइडों का उपयोग करना चाहिए।

Arsenopyrite-- आर्सेनोपाइराइट

आर्सेनिक का एक अयस्क जिसका सूत्र FeAsS है। इसमें 46.2% आर्सेनिक होता है और यह सल्फाइड अयस्कों के साथ पाया जाता है।

Artificial ageing-- कृत्रिम काल प्रभावन

ताप बढ़ाकर कालप्रभावन–प्रक्रिया की गति को बढ़ाना।
देखिए– Hardening के अंतर्गत Age hardening भी

A.S.T.M., number

(American Society for Testing Materials)-- ए०एस०टी०एम० संख्या
ए.एस.टी.एम. संख्या निम्नलिखित वयंजक द्वारा व्यक्त की जाती है–
n = 2 N-¹
जिसमें N, ए०एस०टी०एम० संख्या और n, 100 आवर्धन (magnification) पर प्रति वर्ग इंच क्षेत्र में कणों की संख्या है। जैसे जैसे ए० एस० टी० एम० संख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे कण-आमाप घटता जाता है।

Aston-Byer’s process-- ऐस्टन-बायर प्रक्रम

पिटवाँ लोहा बनाने का प्रक्रम जिसे आलेडन का वैकल्पिक प्रक्रम माना जा सकता है। लोह ऑक्साइड और सिलिका से बने धातुमल को खुली भट्टी में पिघलाया जाता है। फिर एक लैडल में उड़ेल कर उसमें धीरे धीरे बेसेमरीकृत कच्चा लोहा (Pig iron) मिलाया जाता है। जब गैस का निकलना बंद हो जाता है तो लैडन में रखे द्रव्य का निःसादन (Setling) होने दिया जाता है। धातुमल सतह पर आ जाता है और उसे निकाल दिया जाता है। शेष धातु का पीडन और बेलन करने से आलोडित लोहे जैसा पदार्थ प्राप्त होता है। उसे बायर प्रक्रम भी कहते हैं।

Atlas alloy-- ऐटलस मिश्रातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 9% Al और 1% Fe होता है। इसका ऊष्मा उपचार किया जा सकता है और यह ऊष्मारोघी और बहुत मजबूत होता है। इसका उपयोग वायु इंजनो में किया जाता है।

Atomic arc weilding-- परमाण्विक आर्क वेल्डिंग

आर्क वेल्डिंग प्रक्रम जिसमें दो टंगस्टन इलेक्ट्रोडों के बीच बने आर्क में हाइड्रोजन प्रधार प्रवाहित किया जाता है। इससे हाइड्रोजन अणुओं के अपघटन से हाइड्रोजन परमाणु प्राप्त होते हैं। हाइड्रोजन परमाणुओं के पुनः संयुक्त होने से बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जो आपस में जोड़ने वाली धातुओं को गलाने के काम आती है। यह विधि 18/8 प्रकार के इस्पात के वेल्डिंग के लिए विशेष रूप से लाभदायक है और उस अवस्था में विशेष रूप से उपयोगी होती है जब पॉलिश के बाद वेल्ड-धातु और मूल चादर के बीच रंग के मेल की आवश्यकता होती है।

Atomic hydrogen arc welding-- परमाण्विक हाइड्रोजन आर्क (वेल्डिंग)

देखिए– Atomic arc welding

Atomization-- कणीकरण

पिघली धातु को छोटे छोटे कणों में विकसित करना जो ठंडा होने पर ठोस में बदल जाते हैं। सामान्य कणीकारक में एक क्रुसिबल होता है जिसमें पिघली धातु रखी रहती है। इस क्रुसिबल के पैंदे में एक सूक्ष्म छिद्र होता है जिससे होकर धातु पतली धारा के रूप में बाहर निकलती है। धातु की धारा का कणीकरण उच्च दाब पर उससे टकराने वाली हवा, भाप या पानी द्वारा किया जाता है। इसे द्रव विघटन भी कहते हैं।

Atrament process-- एट्रामेंट प्रक्रम

देखिए– Phosphatizing

Auer metal-- ऑएर धातु

एक स्वजलनी फेरस मिश्रातु जिसमें 35% लोहा और 25% मिश्र धातु होता है। इसका उपयोग हल्के फ्लिंटों में होता है।

Ausforming-- अभिरूपण

उन इस्पातों के साथ की जाने वाली एक तापयांत्रिक क्रिया जिनके टी०टी०टी० आरेख में पर्लाइट और बेनाइट तापों के बीच काफी अंतराल होता है। इस बात का ध्यान रखते हुए कि पर्लाइट न बने, इस्पात को पर्लाइट तथा बेनाइट तापों के अंतराल तक ठंडा किया जाता है। फिर उसे बेल्लित कर मार्टेन्साइट रूपांतरण-ताप से कम ताप तक ठंडा किया जाता है। ऑसकृत इस्पात मजबूत और भंगुर होता है। इसमें लोहे के अलावा 0.4% कार्बन, 5.00% क्रोमियम, 1.3% मॉलिब्डेनम, 1% सिलिकन और 0.5% वैनेडियम होता है।

Austempering-- ऑसपायन

इस्पात के ऊष्मा उपचार के अंतरायित शमन प्रक्रम जिसमें इस्पात को क्रांतिक परास से ऊपर उपयुक्त ताप तक गरम किया जाता है ताकि वह ऑस्टेनाइटी हो जाए। फिर किसी प्रचलित विधि से सामान्य ताप तक ठंडा करने के बजाय इस्पात को गरम शमन कुंड मे डाल दिया जाता है। इस कुंड का पूर्वनिर्धारित स्थिर ताप बना रहता है जो क्रांतिक परास से कम किंतु मार्न्टसाइटी परिवर्तनांक (change point) से अधिक होता है। यह प्रायः 260°C से 370°C के बीच में होता है। इस्पात को इस ताप पर कुछ समय तक रखा जाता है ताकि ऑस्टेनाइटी का बेनाइट में पूर्णतया रूपांतरण हो जाए। इसके बाद पदार्थ को किसी सुविधाजनक विधि से सामान्य ताप तक ठंडा कर दिया जाता है।

Austenite (Ƴ-ferrite)-- ऑस्टेनाइट (Ƴ-फेराइट)

देखिए– Ferrite के अंतर्गत

Austenitic stainless steel-- ऑस्टेनाइटी स्टेनलेस इस्पात

देखिए– Stainless steel के अंतर्गत

Austenitizing-- ऑस्टेनाइटन

इस्पात को ऊपरी क्रांतिक सीमा से अधिक ताप पर गरम करना। इस ताप पर इस्पात की पूर्णतया फलक केंद्रित घन संरचना (Face centered cubic structure) होती है। इस्पात के तप्त कर्मण अथवा ऊष्मा-उपचार के लिए ऑस्टेनाइटन किया जाता है। ऑस्टेनाइटन के बाद यदि इस्पात का कठोरण करना हो तो द्रुत शमन, प्रसामान्यीकरण (Normalise) करना हो तो वायु-शीतलन और पूर्ण-अनीनल करना हो तो उसे धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। ऑस्टेनाइटन केवल लोह धातुओं का किया जाता है।
देखिए– Hot working भी।

Austenitizing-- ऑस्टेनाइटन

फेरस मिश्रातु को गरम कर ऑस्टेनाइट बनाने का प्रक्रम। यदि फेरस मिश्रातु को रूपांतरण ताप-परास में गरम किया जाए तो इस प्रक्रम को आंशिक ऑस्टेनाइटन और यदि फेरस मिश्रातु को रूपांतरण ताप परास से ऊपर गरम किया जाए तो इस प्रक्रम को पूर्ण ऑस्टेनाइटन कहते हैं।

Autoclave-- ऑटोक्लेव

रासायनिक द्रव्यों को उच्च ताप और उच्च दाब पर विलीन करने और निर्जलीकरण के लिए प्रयुक्त बंद पात्र। सामान्यतया यह पात्र इस्पात का बना होता है और उपयोग के अनुसार उसमें उपयुक्त आस्तर लगाया जाता है।

Autogeneous-- स्वतः आत्मजन्य

1. इसका शाब्दिक अर्थ है ‘सामान्य संघटन’ वाला। वेल्डिंग में इसका अर्थ है– वेल्डिंग का प्रायः वही संघटन है जो मूल धातु का।
2. भर्जन के संदर्भ में इसका अर्थ है – धान का स्वयं जलक ऊष्मा उत्पन्न करना। इसमें किसी बाहरी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है।
3. स्वतः पेषण के संदर्भ में इसका अर्थ है–अयस्क के टुकड़ों का स्वयं टकराकर या घर्षण द्वारा चूर्णित होना। इसके लिए किसी बाह्य पेषण माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।

Autogenous roasting-- स्वतः भर्जन

देखिए– Roasting के अंतर्गत

Autogenous welding-- स्वतः वेल्डिंग

देखिए– Welding

Azurite-- ऐजुराइट

तांबे का नीला कार्बोनेट [2CuCO3Cu(OH)2] जिसके एकनताक्ष क्रिस्टल होते हैं। यह ताम्र लोड (lode) के अपक्षीण अंचल (Weathered zone) में ताम्र अयस्कों के साथ पाया जाता है। पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होने पर यह तांबे का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह फ्रांस, साइबेरिया, यू.एस.ए. में पाया जाता है। इसे चेसिलाइट भी कहते हैं।

Babbitt metal-- बैबिट धातु

बंग मूल के बंग ऐन्टिमनी-ताम्र मिश्रातु जिनका उपयोग बेयरिंगों के लिए होता है। आरंभ में इस शब्द का अर्थ था- किसी सख्त खोल पर मृदु धातु का लेप चढ़ाना। किंतु अब इसका प्रयोग बंग मूल की बेयरिंग धातुओं के पूरे वर्ग को व्यक्त करने में होता है। मुख्यतः इसमें 3.5-15 प्रतिशत ऐन्टिमनी, 2-6 प्रतिशत तांबा और शेष बंग होता है। किसी किसी मिश्रातु में 1 प्रतिशत कैडमियम भी होता है।

Back draft-- उत्क्रमित टेपर

एक उलटी शुंडाकृति जो साँचे से पैटर्न को बाहर आने से रोकता है।

Backing roll (back up roll)-- पृष्ठक बेल्लक

देखिए– Roll के अंतर्गत

Bahn metal-- बाहन धातु

मृदु घर्षणरोधी सीसा मिश्रातु जिसमें 0.7% कैल्सियम, 0.6% सोडियम और अतिसूक्ष्म मात्रा में निकैल होता है। इसका उपयोग रेलवे बेयरिंगों में होता है।

Bainite-- बेनाइट

ऑस्टेनाइट का एक अपघटन उत्पाद जिसमें फेराइट तथा कार्बाइड के पुंज रहते हैं। सामान्यतया इसके बनने का ताप-परास अत्यंत सूक्ष्म पर्लाइट के बनने के ताप से कम तथा उस ताप से अधिक होता है जब ठंडा करने पर मार्टेन्साइट बनना प्रारंभ हो जाता है। यदि बेनाइट, ताप के ऊपरी परास में बने तो वह देखने में पंख (Feathery) जैसा होता है। परंतु यदि ताप के निचले परास में बने तो वह सूच्याकार तथा देखने में पायित (Tempered) मार्टेन्साइट जैसा होता है।

Baking sand-- पृष्ठक बालू

देखिए– Sand के अंतर्गत

Balanced draught-- संतुलित प्रवात

देखिए– Draught के अंतर्गत

Balanced steel-- संतुलित इस्पात

देखिए– Semikilled steel

Balling-- गुलिकायन

देखिए– Agglomeration के अंतर्गत

Ball mill-- गुलिका पेषणी

एक घूर्णी मिल जो देखने में बेलनाकार अथवा बेलनाकार शंकु जैसी होती है। इस मिल का प्रयोग सुखे तथा गीले शैलों या खनिजों को पीसने में होता है। इस मिल के पेषण माध्यम में इस्पात अथवा ढलवाँ लोहे की गोलियों का प्रयोग किया जाता है।

Banded structure-- पट्टित संरचना

1. ऐसी संरचना जिसमें भिन्न घटक अथवा प्रावस्थाएँ, समांतर पर्तों या पट्टों (bands) में पृथक हो जाती है, जैसे पट्टित हेमैटाइट क्वार्टजाइट और बिटुमनी कोयले में। इस प्रक्रम को पर्लाइट पट्टन भी कहते हैं।
2. तप्त कर्मण किए गए धातुओं और मिश्रातुओं के संदर्भ में इस शब्द का अर्थ है– सिल्लियों के जमते समय कार्बन, फॉस्फोरस और गंधक का पृथक होना और तत्पश्चात उनका समांतर पट्टों बैंडो में संरेखित हो जाना।

Banking-- निष्क्रियण

वात्या भट्टी द्वारा लोह-उत्पादन की वह अवस्था जिसमें उत्पादन रुका हुआ हो किंतु भट्टी में सिर्फ कोक भरा हो। इस विधि में लोह अयस्क का डालना रोककर सिर्फ कोक और चूने का पत्थर डालना शुरू किया जाता है। वायु के झोंके को तब तक प्रवाहित करते रहते हैं जब तक निष्क्रियण के लिए प्रयुक्त कोक की पहली तह ट्वीयर की सतह तक नहीं पहुँच जाती। तत्पश्चात् प्रवाह को पूर्ण रूप से बंद कर संपूर्ण धातुमल को भट्टी से निकाल दिया जाता है। इसके बाद भट्टी को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है ताकि हवा का भट्टी में प्रवेश न हो और कोक न जल सके। यह गर्म कोक भट्टी को फिर से चालू करने के लिए उपलब्ध रहता है। इसे पूर्ण निष्क्रियण भी कहते हैं।

Barba’s law-- बार्बा नियम

पदार्थों के तनन परीक्षण में विभंग पर प्रतिशत दैर्ध्यवृद्धि किसी एक पदार्थ के लिए स्थिर होती है। और इस पर प्रतिदर्श के विस्तार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. यदि
गेज लंबाई
——————————– = स्थिरांक
अनुप्रस्थ परिच्छेदित क्षेत्र

Barffing process-- बार्फन प्रक्रम

कुछ इस्पात उत्पादों पर की जाने वाली एक पृष्ठ-परिष्कृति क्रिया। इससे पृष्ठ पर लोहे के चुंबकीय ऑक्साइड (Fe3O4) की पर्त जमा हो जाती है जो पृष्ठ को निष्क्रिय कर देती है। जिन वस्तुओं का परिष्करण करना हो उन्हें पहले साफ कर लिया जाता है। फिर उन्हें वायुरुद्ध कक्ष में रखकर मंद लाल होने तक गरम किया जाता है। तत्पश्चात् 4216-7027 Kg/m² दाब पर अतितप्त भाप प्रविष्ट की जाती है। पर्त को आर्द्रतारोधी बनाने के लिए उसका रंजन कर तेल अथवा मोम के साथ उपचार किया जाता है।

Baryte (Barytes)-- बैराइट (बैराइटीज)

एक प्राकृत क्रिस्टलीय बेरियम सल्फेट जो सफेद या कभी-कभी रंगीन सुविकसित विषमलंवाक्ष क्रिटलों में मिलता है। आपेक्षिक घनत्व 4.5, कठोरता 2.5-3.5। विशुद्ध बैराइट रंगहीन या श्वेत होता है परंतु अशुद्धियों के कारण इसमें भूरी या नीली आभा आ जाती है। इसका उपयोग बेरियम यौगिकों के स्रोत, वर्णक, लिथोपोन और कागज-भरक के रूप में होता है। इसे बैराइटीज या हैवीस्पार भी कहते हैं।

Base metal-- 1. अपधातु 2. आधार धातु

1. वह धातु जो हवा में गरम करने पर ऑक्सीकृत हो जाती है, जैसे तांबा, सीसा, जस्त, आदि। इसके विपरीत स्वर्ण, प्लैटिनम आदि बहुमूल्य धातुएँ हवा में ऑक्सीकृत नहीं होती हैं।
2. वैद्युत धातुकर्मिकी में विद्युत रासायनिक श्रेणी के निचले सिरे पर स्थित धातु जो उत्कृष्ट धातु से पृथक होती है। इन धातुओं का इलेक्ट्रोड विभव कम होता है।
3. संधान और कर्तन के लिए प्रयुक्त धातु।
4. पटलित धातुओं में, दो धातुओं की बनी चादरों में अधिक मोटी धातु।
5. पट्टित या लेपित होने वाली धातु।
6. किसी मिश्रातु में प्रमुख धात्विक तत्व जिसके नाम पर मिश्रातु का नामकरण किया जाता है। जैसे ऐलुमिनियम आधार धातु।
7. विद्युत लेपन में जिस धातु का लेप चढ़ाना हो या वह धातु जिस पर लेप चढ़ाना हो।

Basic Bessemer process-- क्षारकीय बैसेमर प्रक्रम

देखिए–Bissemer process के अंतर्गत

Basicity ratio-- क्षारकता अनुपात

किसी अयस्क में भार की दृष्टि से क्षारकीय घटकों और अम्लीय घटकों का अनुपात। प्रमुख क्षारकीय घटक Ca⁰ और Mg⁰ होते हैं, जबकि प्रमुख अम्लीय घटक Si⁰₂ और Al₂⁰₃ होते हैं। इस शब्द का प्रयोग लोह उद्योग में अयस्क संपिंडों और धातुमतों में विद्यमान क्षारकों और अम्लों के आपेक्षिक अनुपात को व्यक्त करने में किया जाता है।

Basic process-- क्षारकीय प्रक्रम

इस्पात बनाने की एक क्षारकीय विधि जिसमें प्रयुक्त भ्राष्ट्र के अंदर मैग्नेसाइट, डोलोमाइट, आदि क्षारकीय उच्चतापसह पदार्थ का लेप लगा होता है। इस्पात का परिष्करण क्षारकीय धातुमल की उपस्थिति में किया जाता है। इस प्रक्रम की विशेषता यह है कि इसमें उत्पन्न धातुमल में चूने की मात्रा अधिक रहती है तथा धान के साथ क्रिया के समय गंधक और फॉस्फोरस, धातुमल के रूप में पृथक हो जाते हैं।

Basic refractory-- क्षारकीय उच्चतापसह

देखिए– Refractory के अंतर्गत

Batch operation-- गण प्रचालन

वह प्रचालन जिसमें संसाधित और विसर्जित होने तक भरण उपस्कर में उपस्थित रहता है। सतत प्रचालन से यह इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें वस्तुओं का गणों में प्रचालन किया जाता है। उदाहरणार्थ कोक भट्टी में कोकन की क्रिया, रिटार्टों में धातु-अपचयन परिवर्तित्र में इस्पात बनाना आदि।
तुलना-1. Continous operatio
2. Semicontinous operation

Bath metal-- बाथ धातु

दो प्रकार के पीतल जिनमें 17% अथवा 43% Zn होता है। इनका उपयोग छुरी काँटे और स्नानगृह उपस्कर बनाने में होता है।

Bauschinger effect-- बौशिंगर प्रभाव

बहुक्रिस्टलीय धातुओं द्वारा प्रदर्शित एक परिघटना। इन धातुओं में एक दिशा में प्रतिबल लगाने से सुघट्य विरूपण उत्पन्न होता है। यह सुघट्य विरूपण प्रतिबल को विपरीत दिशा में लगाने पर, पराभव सामर्थ्य को कम कर देता है। कभी कभी इस शब्द का प्रयोग एकल और बहुक्रिस्टलीय धातुओं के अभिलाक्षणिक प्रतिबल-विकृति संबंधी परिवर्तनों के लिए भी होता है। ये परिवर्तन विकृति-कठोरता से उत्पन्न परिवर्तनों से पृथक होते हैं और धातुओं में वितरित सूक्ष्मदर्शी प्रतिबलों में होने वाले परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होते हैं।

Bauxite-- बॉक्साइट

मृत्तिकामय खनिज जिसमें मुख्यतः जलयोजित ऐलुमिना (Al₂O₃ , 2H₂O) होता है। इसमें सिलिका, आयरनऑक्साइड और कुछ अन्य अपघट्य भी होते हैं। इस खनिज का उपयोग अपघर्षक के रूप में, ऐलुमिनियम यौगिकों के निर्माण में तथा भट्टियों के अंदर लगाने के लिए उच्चतापसह पदार्थों के रूप में होता है।

Bayer process-- बैअर प्रक्रम

बॉक्साइट से एलुमिना के निष्कर्षण का प्रक्रम। इसमें बॉक्साइट को पीसकर उसकी सोडियम हाइड्रॉक्साइड़ विलयन के साथ उच्च दाब एवं ताप पर क्रिया की जाती है जिससे एलुमिना, सोडियम ऐलुमिनेट के रूप में पृथक हो जाता है और अधिकांश अपद्रव्य लाल अवपंक के रूप में निकल जाते हैं। छाने गए द्रव का ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड के साथ बीजन (Seeding) किया जाता है जिससे अधिकतर ऐलुमिनियम, ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड के रूप में अवक्षेपित हो जाता है जिसका निस्तापन करके ऐलुमिना प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त ऐलुमिना का प्रयोग वैद्युत निष्कर्षण द्वारा ऐलुमिनियम प्राप्त करने में होता है।

Bazar metal-- बाजार धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 30% Zn 8-10% Ni होता है। यह तन्य होता है तथा उसका उपयोग घरेलू बर्तनों और आभूषण को बनाने में किया जाता है।

Beach sand-- पुलिन बालू

देखिए– Black sand

Bear-- बेयर

देखिए– Salamander

Bearing bronze-- बेयरिंग कांस्य

एक ताम्र-वंग मिश्रातु जिसमें 5-20% बंग और 0.2% सीसा होता है। इसमें अल्प मात्रा में फॉस्फोरस भी होता है। यह काफी मजबूत और घर्षणरोधी होता है। इसका उपयोग पहियों, गियरों और बेयरिंगो को बनाने में होता है।

Bearing metal-- बेयरिंग धातु

भिन्न संघटन वाली गर्षणरोधी धातुएँ। इनका घर्षण-गुणांक कम होता है जिस कारण इनका उपयोग तेल-स्नेहन के साथ बेयरिंग में होता है। जैसे पीतल, कांसा Al-Zn मिश्रातु, Al-Si मिश्रातु, धूसर ढलवाँ लोहा। इसे प्रतिघर्षण धातु भी कहते हैं।

Back process-- बैक प्रक्रम

द्वितीयक ऐलुमिनियम के परिष्करण का प्रक्रम। इसमें ऐलुमिनियम उच्छिष्ट में मिलाया जाता है ताकि 25% Mg और 75% Al का मिश्रण प्राप्त हो जाए। मिश्रण को 500°C तक गरम किया जाता है और प्राप्त द्रव को बेसाल्ट ग्रिंट में छान लिया जाता है। निस्यंद का 900-950°C पर निर्वात-निस्यंदन किया जाता है जबकि मैग्नीशियम छनकर पृथक हो जाता है। इससे परिष्कृत ऐलुमिनियम-तांबा मिश्रातु प्राप्त होता है। इस प्रक्रम से अंशतः शुद्ध उत्पाद ही प्राप्त होता है।

Beehive coke process-- छत्ता कोक प्रक्रम

धातुकर्मिकी कोक के निर्माण का एक प्रक्रम जिसमें कोयला वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है। कोक-कक्ष में वायु की नियंत्रित मात्रा प्रविष्ट की जाती है ताकि कोयले का वाष्पशील उत्पादों का दहन हो जाए और इस तरह उत्पन्न ऊष्मा द़्वारा आगे आसवन होता रहे। इस प्रक्रम द्वारा कोयले के उपोत्पाद प्राप्त नहीं होते।

Bell metal-- घंटी धातु

देखिए– Bronze के अंतर्गत

Bench moulding-- बेंच संचन

देखिए– Moulding के अंतर्गत

Bending test-- बंकन परीक्षण

देखिए– Mechanical test के अंतर्गत

Benefication-- सज्जीकरण

अयस्कों में मूलांश (alue) की सांद्रता बढ़ाना अथवा धातु-निष्कर्षण प्रक्रमों के लिए अयस्कों के वांछित आमाप में परिणत करना।
देखिए– Ore preparation भी

Bentonite-- बेन्टोनाइट

मुल्तानी मिट्टी के समान गुणधर्मों वाली मृत्तिका जो मुख्यतः मैग्नीशियम, कैल्सियम अथवा सोडियम का जलयोजित सिलिकेट होता है। यह पानी का अवशोषण करती है अतः इसका उपयोग मृत्तिका पात्रों की सुघट्यता को बढ़ाने और संधान-संचन-रेत के लिए बंधक-मृत्तिका के रूप में होता है।

Beryl-- बैटूर्य, बेरिल

बेरिलियम और ऐलुमिनियम का सिलिकेट, 3BeO. Al₂O₃, 6SiO₂; जो षट्कोणीय क्रिस्टलों के रूप में पाया जाता है। यह खनिज बेरिलियम का प्रमुख स्रोत है। यह अपारदर्शी होता है तथा इसका रंग मरकत हरित (Emarald green) फीका हरा, फीका नीला, पीला या सफेद होता है। कठोरता 7.5-8 और आपेक्षिक घनत्व 2.7-1 बेरिल, अम्ल-आग्नेय शैलों, ग्रेनाइटों और पेग्माटाइटों में गौण खनिज के रूप में पाया जाता है। मरकत (हरा) और ऐक्वामेरिन (फीका नीला) इसकी बहुमूल्य किस्में हैं जो चमकीली और पारदर्शक होती हैं।

Beryllium bronze-- बेरीलियम कांस्य

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 2% Sn और 2.5% Be होता है। यह घर्षणरोधी होता है तथा उसका उपयोग कमानियों के लिए होता है।

Beryllium copper-- बेरीलियम ताम्र

एक ताम्र मूलक मिश्रातु जिसकी ऊष्मा और विद्युत चालकता उत्तम होती है। यह अच्छी श्रांति तथा उत्तम संक्षारण प्रतिरोध दर्शाता है। इसमें 2-2.5% तक बेरीलियम होता है। इसका प्रयोग स्प्रिंगों, तारों तथा अचुंबकीय घटकों को बनाने में होता है। ज्वलनशील गैसों वाली खानों के लिए स्फुलिंग रहित उपकरणों को बनाने में भी इसका प्रयोग होता है।

Bessemer converter-- बैसेमर परिवर्तित्र

देखिए– Converters के अंतर्गत

Bessemer process-- बैसेमर प्रक्रम

इस्पात के उत्पादन की एक विधि। इसमें वायु को पिघले कच्चे लोहे में प्रवाहित किया जाता है। कच्चा लोहा, एक उच्चतासह पदार्थ के आस्तर वाले नाशपाती के आकार के बेलनाकार पात्र में रखा जाता है। इस पात्र को बेसेमर परिवर्तित्र कहते हैं। यह पात्र ऊपर से खुला रहता है जिससे गैसें निकल सकें। सिलिकन, मैंगनीज और कार्बन आदि अपद्रव्यों का हवा के झोंके में विद्यमान ऑक्सीजन के साथ ऑक्सीकरण से ऊष्मा उत्पन्न होती है। संपीडित वायु, परिवर्तित्र के अधस्तल पर स्थित ट्वीयरों द्वारा प्रवेश करती है। पार्श्व धमित प्रक्रम में ऑक्सीकारक गैसों को लोह-कुंड के पृष्ठ के निकट परिवर्तित कर पार्श्व भित्तियों में स्थिति ट्वीयरों से प्रविष्ट किया जाता है।
अम्ल बैसेमर प्रक्रम में गैनिस्टर का आस्तरण लगाया जाता है तथा कच्चे लोहे में उपस्थिति फॉस्फोरस अपरिवर्तित रहता है। क्षारकीय बेसेमर प्रक्रम (थॉमस प्रक्रम) में फॉस्फोरस को धातुमल के रूप में पृथक कर दिया जाता है। इसमें अम्ल गैनिस्टर के स्थान पर मैग्नीशिया अथवा डोलोमाइट का आस्तर लगाया जाता है और धमन आरंभ करने से पहले घान में चूना मिलाया जाता है। इसमें फॉस्फोरस की उच्च मात्रा वाले कच्चे लोहे का उपयोग किया जाता है और लोहे की तरलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक अधिकांश ऊर्जा, फॉस्फोरस कें दहन से प्राप्त की जाती है।
इस प्रक्रम में धमन दो चरणों में होता है। पहला चरण अग्नि-धमन (Fire blow) कहलाता है जिसमें कार्बन मैंगनीज तथा सिलिकन का ऑक्सीकरण होता है। दूसरा चरण पश्च-धमन (After blow) कहलाता है जिसमें केवल फॉस्फोरस ऑक्सीकृत होकर चूने के साथ क्रिया कर कैल्शियम फॉस्फेट बनाता है। इसे धातुमल के रूप में पृथक कर लिया जाता है और इसका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है।

Beta iron-- बीटा लोहा

अचुंबकीय ऐल्फा लोहा जो 768°C और 910°C के बीच पाया जाता है। इस नाम का प्रयोग अब बहुत कम होता है।
देखिए– Iron के अंतर्गत

Bethanizing-- बीथेनन

इस्पात के तार पर यशद लेपित करने का विद्युत अपघट्य प्रक्रम। इस प्रक्रम की विशेषता यह है कि इसमें अविलेय ऐनाडों का प्रयोग किया जाता है। इसमें यशद-अयस्क अथवा ड्रोंस को सल्फ्यूरिक अम्ल में घोलकर विद्युत अपघट्य तैयार किया जाता है और प्राप्त विलयन का शोधन कर लिया जाता है।

Betterton-kroll process-- बेटर्टन-क्रॉल प्रक्रम

देखिए–Kroll-Bretterton process

Betterton process-- बेटर्टन प्रक्रम

सीसा बुलियन से अपद्रव्य के रूप में उपस्थित यशद को अलग करने की विधि। इसमें गलित सीसे में क्लोरीन गैस प्रवाहित की जाती है जिससे जिंक क्लोराइड, पृथक प्रावस्था के रूप में प्राप्त होता है जो सीसे मे अविलेय है।

Betts process-- बेट्स प्रक्रम

सीसे का विद्युत अपघटनी परिष्करण। इसमें लेड फ्लुओसिलिकेट और मुक्त हाइड्रोफ्लुओसिलिसिक अम्ल, विद्युत अपघट्य के रूप में तथा सीसा-बुलिअन ऐनोड का और विद्युत-अपघटनी सीसा कैथोड का कार्य करता है। इस प्रक्रम का उपयोग अतिशुद्ध सीसे के उत्पादन में होता है जो वर्णक-उद्योग में इस्तेमाल होता है।

Bidery metal (Bidri metal)

Bidri metal-- बिदरी धातु
बिदरी धातु
देखिए–Bidery metal
एक तन्य यशद मिश्रातु जिसमें 88.5% यशद, 5-6% सीसा और 5.9% तांबा होता है। भारत में इसका उपयोग घरेलू बर्तनों के बनाने में किया जाता है।

Billet-- बिलेट

ब्लूमों के सतत संचकन अथवा तप्तकर्मण से उत्पन्न अर्ध-परिष्कृत उत्पाद। बिलेटों का प्रयोग परिष्कृत बेल्लित वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है। इसका अनुप्रस्थ काट वर्गाकार अथवा लगभग वर्गाकार होता है। इस्पात के संदर्भ में इनका अनुप्रस्थ काट 130 मिमी0 x 130 मिमी0 होता है। अलोह धातुओं के बिलेटों के अनुप्रस्थ क्षेत्रफलों में बहुत भिन्नता होती है।
तुलना– Bloom

Bimetal-- द्विधातु

विभिन्न तापीय-प्रसार गुणांक वाली एक पट्टी के रूप में संगलित दो भिन्न धातुएँ। ये धातुएँ इस प्रकार व्यवस्थित रहती हैं कि पट्टी, ताप-परिवर्तन के साथ विक्षेपित हो जाती है। द्विधातु का उपयोग विद्युत-परिपथों तथा स्वतः ताप-नियंत्रण के लिए होता है जिस कारण इसे तापस्थापी धातु भी कहते हैं।

Binder-- बंधक

(1) संचकन शाला के संदर्भ में जल के अतिरिक्त वह माध्यम जो बालुका-संचन में बालू-कणों को बाँधने के लिए प्रयुक्त होता है।
(2) चूर्ण-धातुकर्मिकी में इस शब्द का प्रयोग संहतकारी माध्यम के लिए होता है। यह कोई ऐसा पदार्थ होता है जिसे चूर्ण में मिलाने पर उसकी संहत-सामर्थ्य बढ़ जाती है और जो सिन्टरण के समय छितरा जाता है।
इस शब्द का प्रयोग कम गलनांक वाले ऐसे पदार्थ के लिए भी होता है जिसे चूर्ण-मिश्रण में मिलाने पर चूर्ण-कण परस्पर जुड़ जाते हैं।

Binding metal-- बंधक धातु

उत्तम संचकन गुणों वाला यशद मिश्रातु जिसमें 93.5% यशद 2.8% क्रोमियम और 3.1% सीसा होता है। इसका उपयोग तार के रस्सों को बाँधकर स्लिंग बनाने में होता है।

Biotite-- बायोटाइट

सामान्यतया मिलने वाला अभ्रक जो मैग्नीशियम, ऐलुमिनियम और पोटैशियम का सिलिकेट, [K₂ HAl₂ (SiO₄)₃ (Mg Fe)₆ (SiO₄)₃], होता है, इसमें लोहे के लवण भी भिन्न-भिन्न मात्राओं में उपस्थित रहते हैं।

Birmasil-- बिरमासिल

एक मिश्रातु जिसमें 0.1% Cu, 10-13% Si, 2.5-3.5% Ni, 0.2% Ti, 0.6 Fe, 0.5% Mn और 0.6% Mg होता है। यह मजबूत और संक्षारणरोधी होता है। सामान्य प्रयोग के अतिरिक्त इसका उपयोग वायुयानों और मोटर इंजनों के निर्माण के लिए होता है।

Birmetal-- बिरमैटल

ऐलुमिनियम मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें Cu, Si, Mn, Cr, के अलावा Mg तथा Zn भी होते हैं। इनका संक्षारण प्रतिरोध, ऊष्मा उपचार अथवा काल कठोरण गुण और वेल्डनीयता उत्तम होते हैं। इनका उपयोग टैंकों, संरचनात्मक अवयवों और वायुयानों को बनाने में होता है।

Birmingham platina-- बर्मिंघम प्लैटिना

एक भंगुर, रजत श्वेत, यशद मिश्रातु जिसमें 25% तांबा और शेष यशद होता है। इसका उपयोग बटनों, आभूषणों आदि में होता है। इसे प्लैटिना भी कहते हैं।

Bismuthinite-- बिस्मथिनाइट

बिस्मथ सल्फाइड जो विषमलंबाक्ष समुदाय में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 2, आपेक्षिक घनत्व 6.4। यह सीसा और तांबा खनिजों के साथ शिराओं में पाया जाता है। इसे बिस्मथ-ग्लांस भी कहते हैं।

Bituminous coal-- बिटुमिनी कोयला

सामान्य वाणिज्य कोयला जो पीली धुएँदार ज्वाला के साथ जलता है। कुछ बिटुमिनी कोयले कोकिंग और अन्य अकोकिंग कोयले होते हैं। कोकिंग कोयले से कोक बनाया जाता है। बिटुमिनी कोयला, नीले-काले-से धूसर काले रंग का होता है। यह एक के बाद एक भिन्न मोटाइयों का चमकीला कोयला, द्युतिहीन कोयला और चारकोल सदृश पदार्थ की पट्टियों का बना होता है। जिन्हें शैल विज्ञान में विट्रेन्, ड्यूरेन और फ्यूसेन कहते हैं।

Black heart malleable cast iron-- कृष्ण क्रोड आधातवर्ध्य ढलवाँ लोहा

देखिए– Malleable cast iron के अंतर्गत

Black heart process-- कृष्ण क्रोड प्रक्रम

देखिए– Melleabilising

Black sand-- काली बालू

(1) संचकन शाला में, साँचा बनाने के काम आने वाली रेत जिसमें बंधक के रूप में कोयला-धूल मिलाई जाती है। इस रेत के उत्तम उच्चतापसह गुण होते हैं।
(2) उथले समुद्र तट पर धातु-स्रोत के रूप में पाई जाने वाली रेत जिसके मुख्य घटक मैग्नेटाइट तथा इल्मेनाइट होते हैं। काले रंग की होने के कारण इसे काली बालू कहते हैं।

Blanking die-- ब्लैंकन रुपदा

देखिए– Die के अंतर्गत

Blast furnace-- धमन भट्टी

ऊर्ध्वाधर अक्ष वाली एक बेलनाकार और कुछ-कुछ शंक्वाकार भट़टी। इसमें अयस्क (अथवा पुनः संसाधन के लिए स्क्रैप), ठोस ईंधन और धातुमल बनाने वाले पदार्थों को भट्टी के ऊपरी सिरे से डाला जाता है तथा संपीडित वायु को ट्वीयरों द्वारा प्रविष्ट किया जाता है। धातु और धातुमल को लगातार अथवा रुक-रुक निचले भाग से निकाला जाता है। लोह धमन भट्टी 30-40 मीटर ऊँची होती है और संपीडित वायु को भट्टी में प्रविष्ट करने से पूर्व गरम कर लिया जाता है। सीस, वंग, तांबा और यशद के निष्कर्षण के लिए भी आयताकार धमन भट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

Blast furnace matte smelting process-- धमन भट्टी मैट प्रगलन प्रक्रम

यह मैट प्रगलन का पुराना प्रक्रम है। साधारणतया धमन भट्टी में घान के रूप में सल्फाइड और ऑक्साइड अयस्कों के मिश्रण के साथ गालक और ईंधन का उपयोग किया जाता है। भट्टी का अनुप्रस्थ काट आयताकार होता है। आयरन सल्फाइड के आंशिक ऑक्सीकरण से आयरन ऑक्साइड प्राप्त होता है जो गालक से क्रिया कर फेरस सिलिकेट बनाता है और इस प्रकार धातुमल प्राप्त होता है। शेष आयरन सल्फाइड, Cu2 S से मिलकर मैट बनाता है।

Blast furnace smelting-- धमन भट्टी प्रगलन

देखिए – Smelting के अंतर्गत

Blasting roasting-- वात्या भर्जन

इस प्रक्रम में भर्जन के साथ-साथ सिन्टरन भी होता है। इसमें वायु के झोंके को घान की पर्त से होकर बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है। घान में सांद्रित अयस्क, गालक और कोक का मिश्रण होता है। घान के जलने से उत्पन्न तप्त-क्षेत्र, घान की पर्त के बीच से गुजरता है। धातुमल-बंधन और पुनर्क्रिस्टलन के फलस्वरूप सिन्टरन अथवा संपीडन होता है।

Bleeding-- स्रवण

साँचे में से संचक को अथवा धातु के पूर्णतः ठोस होने से पहले वाहक तथा पूरक कुंडिका को जल्दी निकाल लेने के कारण पिघली धातु का अंशतः बह कर बाहर आ जाना।

Blind riser-- अंधपूरक कुंडिका

देखिए– Shrink bob

Blister copper-- फफोलेदार तांबा

तांबे को एक अशुद्ध किस्म जिसे पिघले ताम्र-मैट में वायु प्रवेश कर उत्पन्न किया जाता है। रूपांतरण प्रक्रम में मैट में उपस्थित गंधक, लोहा आदि अपद्रव्य ऑक्सीकृत हो जाते है। वाष्पशील अपद्रव्य निकल जाते हैं और आयरन ऑक्साइड सिलिका के साथ संयुक्त होकर धातुमल बना लेता है। जब पिघली हुई धातु (जिसमें 98% तांबा और 1% से कम लोहा होता है) ठंडी होती है तो धातु में मिली सल्फर डाइऑक्साइड पृथक हो जाती है जिससे तांबा फफोलोदार दिखाई देता है।

Bloom-- ब्लूम

शिलिकाओं के सतत-संचकन, अथवा तप्त कर्मण से उत्पन्न अर्धपरिष्कृत उत्पाद। इसका प्रयोग बिलेटों को बनाने में किया जाता है। इनका अनुप्रस्थ-काट वर्गाकार अथवा लगभग वर्गाकार होता है। इस्पात के संदर्भ में इनका अनुप्रस्थ काट 200 मिमी0 x 200 मिमी0 से लेकर 300 मिमी0 x 300 मिमी0 तक होता है। छोटे-छोटे ब्लूमों को बिलेट भी कहते हैं।
तुलना- Billet

Blooming mill-- ब्लूमन मिल

एक प्रकार की मिल जिसमें पिंडो को बेल्लन अथवा फोर्जन द्वारा ब्लेमों बिलेटों, सिल्लियों और चादर बनाने के लिए प्रयुक्त छड़ों में परिवर्तित किया जाता है। उत्पाद के अनुसार इसे सिल्ली-मिल, कॉगन-मिल आदि भी कहते हैं।

Blow hole-- वात छिद्र

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Blue brittleness-- नील भंगुरता

जब इस्पात को 200°–400° के बीच गरम किया जाता तो नील-भंगुरता उत्पन्न होती है। इस ताप-परास में इस्पात के पृष्ठ पर नीली ऑक्साइड फिल्म बनती है और साथ-साथ कार्बाइड अवक्षेपण से भंगुरता उत्पन्न हो जाती है जिसके फलस्वरूप सामान्य ताप पर वस्तु विरूपित हो जाती है। इस परास से ऊपर भंगुरता शीघ्र बढ़ जाती है जबकि पराभव बिंदु और तनन-सामर्थ्य शीघ्र घटते जाते हैं और अंततः क्रांतिक ताप-परास पर न्यूनतम हो जाते हैं। इस अवस्था में तनन-सामर्थ्य में किंचित वृद्धि होती है और इसके बाद वह घटती जाती है और गलनांक पर शून्य हो जाती है।

Blue dust-- नील धूलि

प्रकृति में पाए जाने वाले हैमेटाइट लोह आयस्क का शुद्ध कणिक रूप। नीला रंग, गैंग की अल्प मात्रा तथा अक्लेदनीयता इसकी विशेषताएँ हैं। यह अक्सर लोह अयस्क विरचनों में छोटे-छोटे पुंजों के रूप में मिलता है।

Blueing (bluing)-- नीलन

1. चादर अथवा पट्टी के रूप में लोह मूलक मिश्रातुओं के पृष्ठ पर की जाने वाली क्रिया। उपयुक्त ताप पर हवा या भाप की क्रिया से शल्क–मुक्त पृष्ठ पर एक पतली नीली ऑक्साइड परत बन जाती है। इसके फलस्वरूप पृष्ठ अच्छा दिखाई देता है और संक्षारणरोधी भी हो जाता है।
2. संविरचन के बाद स्प्रिंगों के साथ किया जाने वाला विशिष्ट ऊष्मा-उपचार जिससे अभिरूपण और कुंडलन के फलस्वरूप उत्पन्न आंतरिक प्रतिबल कम हो जाते हैं।

Blue metal-- ब्लू धातु

यशद और यशद-ऑक्साइड का चूर्ण जो यशद के वाष्पीकरण में उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।

Blue powder-- नील चूर्ण

देखिए– Zinc dust

BNF jet test-- बी०एन०एफ० जेट परीक्षण

धातु लेपों की मोटाई मापने का परीक्षण

Bobierre metal-- बोबीएर धातु

पीतल जिसमें 34–42 % Zn होता है। यह मजबूत होता है तथा इसका उपयोग बहिवेंधित भागों और नट-बोल्टों को बनाने में किया जाता है।

Bondactor process-- बोन्डेक्टर प्रक्रम

उच्चतापसह पदार्थ में भरण तथा उसके आस्तरण की विधि। इसमें शुष्क मिश्रण को दाब गन में भरने के बाद कणिक फुहार से नम किया जाता है।

Boinderizing-- बॉण्डरीकरण

पेन्ट, इनैमल अथवा लैकर की आसंजन शक्ति को बढ़ाने के लिए इस्पात पर मैंगनीज फॉस्फेट का लेप करने की विधि। इस प्रक्रम में लगभग 100°C ताप पर इस्पात की वस्तु को मैंगनीज फॉस्फेट और लोह फॉस्फेट के विलयन में डुबाया जाता है। यह लेप, अतप्त अभिरूपण (Coldforming) में भी सहायक होता है।

Borchers Schmidt process-- बोचर्स-श्मिट प्रक्रम

ऐलुमिनियम परिष्करण का एक प्रक्रम जिसमें पारद का पृथकन माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।

Bornite-- बोर्नाइट

तांबे का महत्वपूर्ण स्रोत। इसमें लोहे और तांबे के सल्फाइड होते हैं। इसमें धातु की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है किंतु औसत संघटन कोड, 5Cu₂S, Fe₂S₃ द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। कठोरता 3. आपेक्षिक घनत्व 4.9– 5.4।

Bossing-- बॉसन

घन-ताड़न द्वारा आघातवर्ध्य धातुओं को (जैसे सीस चादर को) रूप देने की क्रिया इस शब्द का प्रयोग बेलन-पृष्ठों के रुक्षण के लिए भी होता है ताकि बेलन के समय धातु पर उनके दंश में सुधार किया जा सके।

Botton gating-- अधस्तल द्वारण

देखिए– Gating के अंतर्गत

Bower-Barff process-- बावर-बार्फ प्रक्रम

इस्पात उत्पादों का जंगरोधी उपचार। इसमें इस्पात की वस्तुओं को बंद रिटार्ट में लगभग 870°C तक गरम किया जाता है। तत्पश्चात् अतितप्त भाप को अन्तः क्षिप्त किया जाता है जिससे आयरन ऑक्साइड, Fe₃O₄+Fe₂O₃, की परत बन जाती है। ऑक्साइडों को कम करने के लिए कार्बन मोनोक्साइड बाद में अंतः क्षिप्त की जाती है। इस क्रिया को तब तक दोहराते रहते हैं जब तक वांछित मोटाई की चुंबकीय ऑक्साइड परत प्राप्त न हो जाए।

Box annealing-- पेटी अनीलन

देखिए– Annealing के अंतर्गत

Bragg’s reflection-- ब्रैग परावर्तन

किसी क्रिस्टलीय पदार्थ से विवर्तित अथवा परावर्तित होने वाले वैद्युत-चुंबकीय परावर्तन, जो ब्रैग-नियम का पालन करते हैं। ब्रैग नियम इस प्रकार है–
nᄉ=2d SinQ
जबकि d’ जालक-तलों के मध्य अंतराल, Q तलों तथा आपाती पुंज के बीच बना कोण, n एक पूर्णांक तथा ᄉ तरंग-दैर्ध्य है।

Brale indentor-- ब्रेल दंतुरक

एक शंक्वाकार हीरक दंतुरक जिसका उपयोग रॉकवेल कठोरता–परीक्षण-मशीन में अत्यंत कठोर धातुओं की कठोरता को मापने के लिए होता है।

Brass-- पीतल

मूलतः ताम्र-जस्त मिश्रातु, जिनमें 50% से अधिक तांबा और शेष यशद होता है। इसमें सूक्ष्म मात्रा में ऐलुमिनियम और सीसा आदि धातुएँ भी मिलाई जाती हैं।
ऐल्फा पीतल (Alpha brass) : इस मिश्रातु में जस्ते की मात्रा 30% तक होती है। व्यापारिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण मिश्रातु है। यह अत्यंत संक्षारणरोधी, अच्छे यांत्रिक गुणधर्मों वाला और गंभीरकर्षी होता है। स्वर्णपट्टन मिश्रातु (यशद 15%) और कारतूस पीतल (यशद 30%) इसके विशेष उदाहरण हैं।
ऐल्फा-बीटा पीतल (Alpha-beta brass) : इस मिश्रातु में जस्ते की मात्रा लगभग 38–48% होती है। इसका एक विशेष उदाहरण मुन्ट्रज धातु है।
मुन्ट्रज धातु (Muntz metal) : इसमें 60% तांबा और 40% जस्ता होता है। इसका तनन सामर्थ पीतलों में सबसे अधिक होता है। इसका उपयोग उत्सारण और तप्त मुद्रांकित अथवा ढले उत्पादों (जैसे वाल्वों के हिस्से) को बनाने के लिए होता है। 4% सीसा मिलाने से ढालने की क्रिया अच्छी तरह होती है तथा ढलवे और पिटवे मिश्रातुओं की मशीननता बढ़ जाती है।
ऐडमिरेल्टी पीतल (Admiralty brass) : इसमें लगभग 70% तांबा, 29% जस्ता और 1% बंग होता है। विशिष्ट गुणधर्मों को प्राप्त करने के लिए इसमें अन्य घटक भी मिलाए जाते हैं। यह समुद्रजल के प्रति संक्षारणरोधी होता है। 0.02–0.05% आर्सैनिक मिलाने से वियशदीकरण के लिए प्रतिरोध बढ़ जाता है।
नौ-पीतल (Naval brass) : यह दो प्रावस्थाओं (ऐल्फा-बीटा) का पीतल है। यह मुन्ट्रज धातु की तरह होता है। प्रायः इसमें 60% तांबा 39% जस्ता और 1% बंग होता है। इसके उत्तम यांत्रिक गुणधर्म होते हैं किंतु ऐडमिरेल्टी पीतल की तुलना में यह समुद्र के पानी के प्रति कम संक्षाणरोधी होता है।
गिल्डन धातु (Gilding metal) : इसमें 15 प्रतिशत जस्ता होता है। यह अत्यंत तन्य होता है तथा इसका रंग स्वर्ण के समान होता है। इसका उपयोग सस्ते आभूषणों तथा गभीरकर्षण उत्पादों जैसे बंदूक की गोलियों के आवरण, को बनाने के लिए होता है।

Braunite-- ब्राउनाइट

मैंगनीज का एक महत्वपूर्ण अयस्क जिसमें — % मैंगनीज होता है। यह मुख्यतः मैंगनीज ऑक्साइड (3 Mn₂ O₃ Mn SiO₃) है और सिलिका (लगभग 10%) के साथ शिरानिक्षेपों में पाया जाता है। कठोरता 6–6.5 आपेक्षिक घनत्व 4.75–4.62।

Brassert acid hardening process-- ब्रैसर्ट अम्ल कठोरण प्रक्रम

एक धमन भट्टी प्रक्रम जिसमें धान में चूना पत्थर की मात्रा सीमित की जाती है ताकि सिलिकामय धातुमल और गंधक की अपेक्षाकृत उच्च मात्रा वाला कच्चा लोहा प्राप्त हो सके। धातु को सोडियम कार्बोनेट युक्त लैंडलों में निकाला जाता है। धातु में विद्यमान फेरस सल्फाइड, सोडियम कार्बोनेट के साथ क्रियाकर, सोडियम सल्फाइड और फेरस ऑक्साइड बनाता है। ये दोनों गलित लोहे के ऊपर तैरने लगते हैं और आसानी से पृथक किए जा सकते हैं। धातु को पिगों में ढाला जा सकता है किंतु सामान्यतः गलित अवस्था में इस्पात संयंत्र में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

Brazing-- ब्रेजन

धातुओं को जोड़ने का प्रक्रम। इसमें जिन दो हिस्सों को जोड़ना हो उनके बीच में किसी कम गलनांकी मिश्रातु को निक्षेपित किया जाता है। साधारणतया टाँके में प्रयुक्त भरक धातु का गलनांक 500°C से ऊपर होता है। किंतु यह उन धातुओं के गलनांक से कम होता है जिन्हें टाँके से जोड़ना हो। ब्रजन के लिए सामान्यतः भरक धातु के रूप में ताम्र-यशद मिश्रातुओं का प्रयोग किया जाता है।
तुलना–Soldering

Brazing solder-- ब्रेजन सोल्डर

साधारण टाँकों वाला सोल्डर मिश्रातु जिसमें 50% तांबा और 50% जस्ता होता है। इसका गलनांक 870°–900°C के बीच होता है। यह जोड़ों पर टाँका लगाने के काम आता है। रजत ब्रेजन सोल्डर में 16 से 50% तांबा, 4 से 38% जस्ता और 10 से 80% रजत होता है। इसका गलनांक 675°–820°C के बीच होता है। इसका उपयोग रजत अथवा ताम्र मिश्रातुओं को जोड़ने के लिए किया जाता है।

Breaking down-- अव खंडन

पिंडो, बिलेटों आदि को रूक्षण-बेलनों में प्रविष्ट कर उनके अनुप्रस्थ-काट में कमी करने की प्राथमिक संक्रिया। यह संक्रिया इसलिए की जाती है ताकि पिंडों आदि का बेल्लन, फोर्जन या कर्षण किया जा सके। इस संक्रिया को रूक्षण-प्रक्रम भी कहते हैं और जिन बेल्लन मिलों में यह संक्रिया की जाती है उन्हें अवखंडन मिल अथवा रूक्षण मिल कहते हैं जिनमें अवखंडन (रूक्षण) पारणों का प्रयोग किया जाता है।

Break out-- पारवेधन

भट्टी की दीवारों अथवा पिघली धातु के तल से नीचे के पैंदे में खराबी आ जाने के कारण धान के कुछ अंश का बाहर निकल जाना। भट्टियों की दीवारों में यह खराबी अपरदन, दहन अथवा संरचना संबंधी दोषों के कारण आ जाती है।
देखिए–Run out भी

Brearley steel-- ब्रेरली इस्पात

एक क्रोमियम–इस्पात जिसमें 12–14% क्रोमियम, 0.38% कार्बन और शेष लोहा होता है। यह उत्तम, संक्षारणरोधी है और इसका उपयोग कटलरी बनाने में होता है। इसे कटलरी स्टेनलैस इसपात (cutlery stainless) भी कहते हैं।

Bright annealing-- दीप्त अनीलन

देखिए– Annealing के अंतर्गत

Brillouin zone-- ब्रिलूइन अंचल

किसी जालक में एक त्रिविम क्षेत्र जो सदिशों (Vectors) द्वारा निरूपित किया जाता है। इस क्षेत्र के अंदर इलेक्ट्रॉन जालक की दीवारों से परावर्तित हो जाते हैं और जालक की दीवारों को वेधकर जालक में प्रवेश नहीं कर पाते।

Brinell hardness test-- ब्रिनेल कठोरता परीक्षण

किसी धातु की कठोरता को निर्धारित करने का परीक्षण। इसमें पहले से तैयार धातु पृष्ठ पर रखी निर्दिष्ट आमाप (Size) की इस्पात की गेंद पर निर्दिष्ट भार डाला जाता है और उत्पन्न मुद्रांक (Impression) का व्यास मापा जाता है।
जिस पृष्ठ पर परीक्षण करना हो वह चपटी और खरोंच रहित होनी चाहिए। परीक्ष्य वस्तुएं इस प्रकार स्थिर होनी चाहिए जिससे भार परीक्षण पृष्ठ के लंबवत पड़े। इस्पात के परीक्षण के लिए बॉल का व्यास 10 मिमी0 + 0.0025 मिमी0 होता है और 3.000 किलोग्राम का भार 30 सेकंड तक प्रयुक्त किया जाता है। पीतल आदि मृदु धातुओं के लिए 500 किलोग्राम भार 60 सेकंड तक प्रयुक्त किया जाता है। मुद्रांक का व्यास दो दिशाओं में नापा जाता है जो एक-दूसरें से समकोण पर होती है। दो पाठ्यांकों का औसत लेकर निम्न सूत्र से कठोरता का परिकलन किया जाता है।
H = P/ЛD/2 (D–√ D2 –d2)
जिसमें H = ब्रिनेल कठोरता संख्या, P = प्रयुक्त भार, D = बॉल का व्यास (मिमी0) d =बॉल द्वारा उत्पन्न बॉल के मुद्रांक का व्यास है।
देखिए– Hardness test भी

Brinell hardness tester-- ब्रिनेल कठोरता परीक्षित्र

देखिए– Hardness tester के अंतर्गत

Briquetting-- इष्टिकायन

देखिए–Agglomeration के अंतर्गत

Britannia metal-- ब्रिटेनिया धातु

कम गलनांक वाला वंग-ऐन्टिमनी मिश्रातु जिसका उपयोग मुख्यतः बर्तनों के बनाने तथा विद्युत लेपित पात्रों के लिए आधार-धातु के रूप में होता है। मूल मिश्रातु में 89% वंग, 7.5% ऐन्टिमनी और 3.5% तांबा होता है। इसमें उपस्थित ऐन्टिमनी, मिश्रातु को कठोर बनाता है और तांबा कार्य-क्षमता को बढ़ाता है। इस मिश्रातु के विभिन्न रूपांतर हैं जिनमें जस्ता, निकैल, बिस्मथ, लोहा और सीसा मिला होता है।
देखिए–White metal भी

Brittle fracture-- भंगुर विभंग

देखिए–Fracture के अंतर्गत

Brittleness-- भंगुरता

किसी पदार्थ का वह गुणधर्म जिसके कारण विरूपित हुए बिना अथवा अल्प मात्रा में विरूपित होकर वह संविदारित (Rupture) हो जाता है। भंगुरता, तनन-परीक्षणों में न्यून दैर्ध्यवृद्धि मान तथा क्षेत्रफल में कमी और खाँचित शलाका प्रतिघात-परीक्षण (Notched bar impact test) मानों में न्यूनता दवारा परिलक्षित होती है।

Brochanite-- ब्रोकैन्टाइट

तांबे का जलयोजित सल्फेट CuSO₄ 3Cu (OH)₂ यह तांबे का ऑक्सीकृत अयस्क है जिसमें 56.2% ताम्र होता है।

Bronze-- कांस्य, कांसा

ताम्र मूल के तांबा-वंग मिश्रातुओं के लिए प्रयुक्त सामान्य शब्द। कांसा एक अत्यंत प्राचीन मिश्रातु है। अब भी इसका प्रयोग ऐसी ढाली हुई और पिटवाँ वस्तुओं के निर्माण में होता है जहाँ उच्च सामर्थ्य और संक्षारण रोध की आवश्यकता होती है। आधुनिक संदर्भ में इसका प्रयोग पीतल को छोड़कर अन्य ताम्र समृद्ध मिश्रातुओं के लिए होता है। कुछ प्रमुख कांसे इस प्रकार हैं–
1. ऐलुमिनियम कांसा (Aluminium bronze) : ताम्र समृद्ध मिश्रातु जिनमें ऐलुमिनियम के अतिरिक्त कभी-कभी लोहा ओर निकैल भी होता है। यह संक्षारणरोधी, उत्तम यांत्रिक गुणधर्म वाला, उत्तम वेल्डनीय और अच्छे श्रांति गुणों वाला होता है। आकर्षक सुनहरा रंग होने के कारण इसका उपयोग आभूषणों और सजावट की वस्तुओं को बनाने में होता है।
2. घंटी धातु (Bell metal) इसमें 20–25% वंग, कभी-कभी थोड़ा जस्ता और शेष तांबा होता है। घंटियों को बनाने के अलावा इसका उपयोग बेयरिंगों, स्लाइड वाल्वों, प्रत्यागामी भाप इंजनों में तथा ऐसे स्थानों में होता है जहाँ कठोरता और संक्षारणरोध की आवश्यकता होती है।
3. गन मेटल (Gun metal) : ताम्र वंग-यशद मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिसमें 5–10% वंग तथा 2–5% यशद होता है। ये मिश्रातु उत्तम तनन सामर्थ्य तथा अच्छे संक्षारणरोधी होते हैं। इनका उपयोग बेयरिंगों, भाप-नली उपस्करों तथा नौ-संचकन में होता है। इन मिश्रातुओं में सीसा तथा निकैल भी उपस्थित रहता है।
इन मिश्रातुओं के दो प्ररूपी उदाहण हैं जिनमें पहला ऐडमिरेल्टी गन मेटल कहलाता है, जिसमें 88% तांबा, 10% वंग तथा 2% यशद होता है। दूसरा रेड ब्रास गन मेटल है जिसमें 85% तांबा, 5% वंग, 5% यशद और 5% सीसा होता है। इस मिश्रातु को सस्ता बनाने के लिए वंग के स्थान पर सीसे का प्रयोग किया जाता है।
4. फॉस्फर कांसा (Phosphor bronze): फॉस्फोरस द्वारा विऑक्सीकृत कांसा। वंग मिलाने से पहले फॉस्फोरस जो फॉस्फर-तांबे के रूप में मिलाया जाता है ताकि तांबा विऑक्सीकृत हो जाए, अन्यथा SnO₂ बन जाता है जिसका आसानी से अपचयन नहीं हो सकता। पिटवाँ फॉस्फर कांसे के उत्तम यांत्रिक गुणधर्म होते हैं। अतप्त कर्मण द्वारा इसके स्प्रिंग बनाए जा सकते हैं और सीजन क्रैकिंग का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। फॉस्फर-कांसा, कठोर और संक्षारणरोधी होता है तथा इसका घर्षण गुणांक कम होता है। इसका उपयोग पंपों और सिलिंडरों को बनाने के लिए होता है। इसे पिटवाँ कांस्य भी कहते हैं।

Bronzing-- कांस्यन

इस्पात के ऊपर कांसे के रंग का लोह-ऑक्साइड लेप चढ़ाने का प्रक्रम। इस्पात की वस्तु को 5 मिनट तक हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल के मिश्रण के वाष्प में रखा जाता है और तत्पश्चात् उसे 300°C -350°C ताप पर तब तक गरम किया जाता है जब तक उसका कांसे जैसा रंग न हो जाए। फिर वस्तु को ठंडा कर पेट्रोलियम जेली के साथ रगड़ा जाता है और पेट्रोलियम जेली को हटाने के लिए उसे दुबारा गरम किया जाता है। अंत में उसकी पेट्रोल जेली अथवा तेल के साथ पुनः क्रिया की जाती है जिससे उसकी संक्षारणरोधता और घर्षणरोधता बढ़ जाती है।

Brown coal-- भूरा कोयला

देखिए– Lignite browning ब्राउनिंग, बभ्रुकरण
कुछ इस्पात उत्पादों के लिए प्रयुक्त पृष्ठ-परिसज्जा उपचार जिसका उद्देश्य वायुंडलीय संक्षारण को रोकना और उत्पाद को सुंदर बनाना है। इस प्रक्रम के कई रूप हैं जो मुख्यतः ब्राउनिंग मिश्रण के संघटन पर निर्भर करते हैं।

Brown metal-- भूरी धातु

पीतल जिसमें 85% तांबा और 15% जस्ता होता है। यह अत्यंत तन्य होता है। इसका उपयोग चादर, छड़, तार आदि बनाने में होता है।

Brucite-- ब्रुसाइट

मैग्नीशियम का प्राकृतिक जलयोजित ऑक्साइड (MgO, H₂O)। कठोरता 2.5, आपेक्षिक घनत्व 2.39। इसका उपयोग भट्टी के अंदर आस्तर लगाने में होता है। यह मैग्नीशियम का द्वितीयक खनिज है जिसमें 69.0% MgO होता है।

Buckle-- प्रांकुचन

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Buckling-- प्रांकुचन

1. संपीड्य भार के कारण चादरों अथवा प्लेटों का वंकन।
2. आर्क की गरमी के कारण उत्पन्न वेल्डिंग दोष। जिससे कार्य स्थल पर विरूपण हो जाता है। इसका कारण प्रतिबद्ध प्रतिबलों हवा की धाराओं का शीतलन प्रभाव और उच्च ताप के फलस्वरूप हल्की गेज चादरों के विरूपण की प्रवृति है।
3. जब बेलन की दिशा में बेल्लित शलाका का एक भाग, दूसरे भाग की अपेक्षा अधिक लंबा हो तो उससे उत्पन्न प्रभाव।

Bugle test-- उभार परीक्षण

चादरी धातु की कर्षणीयता अथवा द्वि-अक्षीय सामर्थ के परीक्षण की विधि। लगभग 35 सेमी० व्यास के एक गोल डिस्क को उसकी परिधि के चारों ओर एक वलय से बाँध दिया जाता है और परीक्ष्य क्षेत्र को तेल के दाब से तब तक उभारा जाता है जब तक चादर फट न जाए। फटने के बाद उभार के ऊपरी भाग में तनन की मात्रा की एक समान दैर्ध्य वृद्धि मान ली जाती है। ऐसा माना जाता है कि उभार, परीक्षण पदार्थ में अनेक, असंगतियों को प्रदर्शित करता है।
तुलना– Mechanical test के अंतर्गत Cupping test

Bulk distillation-- समिष्ट आसवन

देखिए– Distillation के अंतर्गत

Bullion-- बुलिअन

1. अपरिष्कृत सोना या चाँदी अथवा उनका मिश्रण।
2. ऐसा मिश्रातु जिसमें सोना, चाँदी आदि कीमती धातुएँ पर्याप्त मात्रा में हों।
3. परिष्कृत सोने और चाँदी से निर्मित बुलिअन छड़।

Burger’s vector-- बर्गेर सदिश

एक सदिश राशि जो किसी जालक में प्रभ्रंश के स्थानीय अंतरण का परिमाण एवं दिशा निरूपित करती है।

Burning-- ज्वलन

अतिमापन द्वारा किसी धातु या मिश्रातु की स्थायी क्षति होना। यह क्षति अनुमानी ताप-उपचार द्वारा दूर नहीं की जा सकती और संभवतः इसका कारण अधिक शलनीय संघटकों का पिघलना तथा विशिष्ट तत्वों का पृथक होना, अथवा वेधी गैसों को उत्पन्न करने वाली अभिक्रियाओं का होना है।

Burning on-- उद्ज्वलन, बर्निग ऑन

मरम्मत के लिए अथवा संचकनों में नये टुकड़ों को जोड़ने के लिए ढलाईशालाओं में प्रयुक्त प्रक्रम। इसमें संधि-स्थल के चारों ओर साँचा बनाकर कोटर में पिघली धातु डाली जाती है।

Burnishing-- उद्भ्राजन

किसी धातु के पृष्ठ को चिकना, चमकीला बनाने के लिए उस पर पॉलिश करना। इसके लिए या तो ऐगेट अथवा इस्पात के उच्च पॉलिश युक्त औजारों का प्रयोग किया जाता है अथवा वस्तु को कठोर इस्पात कंटु वाले बैरल में बेल्लित किया जाता है। यदि वस्तु का स्वतः उद्भ्राजन संभव हो तो इस्पात कंटुओं की भी आवश्यकता नहीं होती है। इन विधियों में अपघर्षक का प्रयोग नहीं होता। धातु को धातु के संपर्क में आने से रोकने के लिए कोई स्नेहक मिलाया जाता है। इसमें विभीय परिवर्तन नहीं होते हैं।

Burnt steel-- दग्ध इस्पात

वह अवस्था जिसमें इस्पात की क्रिस्टल सीमाओं पर दृश्य ऑक्साइड-पर्तें बन जाती हैं। जो यह व्यक्त करती हैं कि इस्पात को सॉलिड्स-ताप तक गरम किया गया है जिससे वह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है। कभी-कभी पर्त नहीं बनती है बल्कि विभंग, दोषों को प्रदर्शित करता है।
देखिए–Burning भी

Burr-- बर्र

किसी मशीनित अथवा छिद्रित घटकों के तेज कोने पर अतिरिक्त धातु का पतला और प्रायः नुकीला खुरदरा पक्षक (fin)।

Bush metal-- बुश धातु

ताम्र मिश्रातु जिसमें 5% जस्ता और 14% वंग होता है। घर्षणरोधी होने के कारण इसका उपयोग रेलवे बेलन स्टॉक बेयरिंग में होता है।

Busy metal-- व्यस्त धातु

वह धातु जिसका प्रयोग के दौरान बारंबार शीत बेलन-कंपन अथवा अपघर्षण किया जाता है। जो धातु उपयोग में नहीं होती उसकी अपेक्षा यह धीरे-धीरे और एक समान रूप से संक्षारित होती है। इस प्रकार मुख्य तेल मार्गों की लाइनों का संक्षारण पार्श्व मार्गों की अपेक्षा कम होता है। संभवतः इसका कारण उस आर्द्रताग्राही जंग के पृथक होने से है जो हवा से नमी को ग्रहण करता है।

Buttering-- नवनीतन

धातु आर्क-वेल्डिंग को सुगम बनाने की विधि जिसमें वास्तविक वेल्डिंग के पहले वेल्डित किए जाने वाले भागों पर वेल्ड धातु की आरंभिक परत चढ़ाई जाती है।

Butt welded joint-- बट वेल्डित संधि

देखिए– Welded joint

By product coke process-- उपोत्पाद कोक प्रक्रम

धात्विक कोक उत्पन्न करने की प्रमुख और आधुनिक विधि इस विधि में कोककारी कोयले को हवा की अनुपस्थिति में, रिटॉर्टों में, गरम किया जाता है। इसमें आसवन के लिए आवश्यक ऊष्मा को कोकिंग-प्रक्रम से प्राप्त कुछ गैसों के बाह्य दहन से प्राप्त किया जाता है। आधुनिक उपोत्पाद भट्टियों में कोकिंग के समय उत्पन्न सब वाष्पशील उत्पादों को, गैस और कोयला-रसायनों के रूप में प्राप्त किया जाता है और प्राप्त गैसों का 40% भाग, तापन के लिए भट्टियों में वापस भेज दिया जाता है।

Byer’s process-- बायर प्रक्रम

देखिए– Aston Byer’s process

Cadmium copper-- कैडमियम तांबा

कैडमियम और तांबे का मिश्रातु जिसमें 0.5-1% तक कैडमियम होता है। कैडमियम मिलाने से तनन-सामर्थ्य में 50% की वृद्धि हो जाती है जबकि विद्युत चालकता में कोई कमी नहीं आती। इसका उपयोग टेलीफोन आदि के तारों, विद्युत चालकों और कुछ औद्योगिक इलेक्ट्रोडों को बनाने में होता है।

Cadweld-- कैडवेल्डिंग

तांबे का तांबे के साथ अथवा तांबे का इस्पात के साथ वेल्डिंग करने की एक विधि। इसमें ऊष्मा के किसी बाहरी स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है। यह विधि थर्मिट वेल्डिंग के समान है, केवल अंतर यह है कि इसमें लोह ऑक्साइड के स्थान पर कॉपर ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। इसमें ऐलुमिनियम द्वारा कॉपर ऑक्साइड के अपचयन से लगभग 2185°C पर गलित तांबा और धातुमल के रूप में ऐलुमिनियम ऑक्साइड प्राप्त होते हैं।

Calamine-- कैलेमिन

जलयोजित जिंक सिलिकेट, H₂ (Zn₂O) SiO₄ जिसमें 54.2% यशद या 67.5% ZnO होता है। यह अक्सर स्मिथसोनाइट (Zn CO₃) के साथ पाया जाता है। यह संस्तरों और शिराओं में पाया जाता है। इसकी मोती जैसी चमक होती है। कठोरता 5, आपेक्षिक घनत्व 4-4.5।

Calcareous ore-- कैल्सियमी अयस्क

देखिए–Ore के अंतर्गत

Calcination-- निस्तापन

एक तापीय अपघटन प्रक्रम जिसमें किसी अयस्क, खनिज, शैल, तथा उच्चतापसह पदार्थों आदि से जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड आदि वाष्पशील घटकों को पृथक किया जाता है। इस प्रक्रम की विशेषता यह है कि इसमें धान अथवा उत्पाद को संगलित नहीं होने दिया जाता, जबकि भर्जन में ठोस और गैस की अभिक्रिया होती है।
रासायनिक दृष्टि से —
S₁ = S₂ + G (निस्तापन)
S₁ +G = S₂ + G₂ (भर्जन)
जबकि S कोई ठोस और G कोई गैस है।

Calcine-- निस्ताप

किसी शैल, अयस्क, खनिज एवं उच्चतापसह पदार्थों के निस्तापन के फलस्वरूप प्राप्त उत्पाद। कभी कभी भर्जित संहति को भी निस्ताप कहते हैं यद्यपि यह उचित प्रयोग नहीं है।

Calcite-- कैल्साइट

कैल्सियम कार्बेनेट की प्राकृतिक किस्म जो षट्कोणीय समुदाय में क्रिस्टलित होती है। पूर्णतया पारदर्शी कैल्साइट को आइसलैंड स्पार कहते हैं। द्विअपवर्ती होने के कारण इसका उपयोग प्रकाशिक यंत्रों में प्रकाश-ध्रुवण के लिए होता है। कठोरता 3, आपेक्षिक घनत्व 2.7। कभी कभी यह चूने के पत्थर के स्थान पर गालक के रूप में भी होता है।

Calloy-- कैलॉय

ऐलुमिनियम और कैल्सियम का मिश्रातु जिसमें 10–25% कैल्सियम होता है। इसका उपयोग इस्पात निर्माण में विऑक्सीकारक के रूप में होता है।

Calmalloy-- कैल्मेलॉय

एक निकेल-मिश्रातु जिसमें 69% निकैल, 29% तांबा और 2% लोहा होता है। इसका (0.100°C के बीच) उच्च चुंबकीय ताप गुणांक होता है। इसका उपयोग विद्युत यंत्रों में ताप प्रतिकार के लिए किया जाता है।

Calmet-- कैल्मेट

एक ऑक्सीकरणरोधी इस्पात जिसमें 12% निकैल, 25% कोबाल्ट, 5% ऐलुमिनियम और शेष लोहा होता है। यह गंधक युक्त वायुमंडल रोधी भी होता है। इसका उपयोग 1050°C तक प्रयुक्त होने वाले भ्राष्ट्र घटकों के निर्माण में होता है।

Calomel-- कैलोमल

मर्क्यूरस क्लोराइड। यह खनिज हार्न क्विक सिल्वर के रूप में पाया जाता है और विषमलंबाध प्रिज्मों में क्रिस्टलित होता है। इसका रंग भूरा या धूसर होता है और बहुधा खनिज सिनाबार के साथ संयुक्त रहता है। कठोरता 1-2, आपेक्षिक घनत्व 6.48।

Calorizing-- कैलोराइजन

950°C ताप तक मृदु और न्यून-मिश्रातु इस्पातों के ऑक्सीकरण प्रतिरोध को बढ़ाने की विधि। इसमें वस्तुओं पर ऐलुमिनियम चूर्ण का लेप कर उन्हें 1000°C तक गरम किया जाता है जिससे वस्तु के ऊपर ऐलुमिना का लेप जमा हो जाता है। यह लेप इस्पात के ऊपर लो-ऐलुमिनियम मिश्रातु की परत द्वारा जुड़ा रहता है।

Campbell process-- कैंपबेल प्रक्रम

क्षारकीय ओपनहार्थ प्रक्रम की संशोधित विधि। इसमें नत भ्राष्ट्र में कच्चे लोहे और अपशिषट के घान को कम ताप पर पिघलाया जाता है। इससे फॉस्फोरस और सिलिकन प्रायः निकल जाते हैं। साथ ही कुछ मैंगनीज और गंधक भी अलग हो जाते हैं किंतु कार्बन की मात्रा कम नहीं होती है। इस्पात को एक लैडल से निकालकर उसे धातुमल से पृथक कर लिया जाता है। अंत में उसे अम्लीय ओपनहार्थ भट्टी में डालकर अम्ल-धातुमल के साथ ठंडा किया जाता है।

Can-- कैन

न्यूक्लीय रिएक्टर में ईंधनतत्व के चारों और बाहरी संरक्षी आवरक रिएक्टर के प्रकार के अनुसार इस कार्य के लिए जर्कोनियम, और ऐलुमिनियम मिश्रातुओं अथवा ऑस्टेनाइटी स्टैनलैस इस्पात का प्रयोग किया जाता है।

Cannel coal-- कैनेल कोयला

सामान्य बिटुमिनी कोयले के संस्तर के ऊपर अथवा स्वयं संस्तर की पट्टी के रूप में पाया जाने वाला कोयला। यह ड्यूरेन के समान दिखाई देता है किंतु इसकी अत्यंत सूक्ष्म कणिक सभांगी संरचना होती है और यह विभंग के साथ टूटता है। इसकी विशेषता यह है कि यह आसानी से जलता है और मोमबत्ती के समान दीप्त ज्वाला देता है।

Capacitative heating-- संधारितात्मक तापन

अचालक पदार्थों को परावैद्युत हानियों द्वारा गरम करना। ये परावैद्युत हानियाँ, पदार्थों को विद्युत प्रत्यावर्ती क्षेत्र में रखने से उत्पन्न होती है।

Capped steel-- छादित इस्पात

नेमीयित इस्पात में होने वाले संपृथकन को रोकने के लिए, साँचे को पिघली धातु से भरने के बाद उसके ऊपरी भाग पर ढलवाँ-लोहे की एक टोपी चढ़ा दी जाती है। संपिडन से उत्पन्न गैसें इस टोपी से जाकर टकराती हैं जिससे दाब उत्पन्न होने के कारण गैसों का निकलना शीघ्र रुक जाता है। इससे एक संकीर्ण नेभीयित क्षेत्र बन जाता है जिसमें संपृथकन बहुत कम होता है। इस प्रकार प्राप्त इस्पात में वात छिद्र शिलिका पृष्ठ से 0.65 सेमी० गहराई तक ही सीमित रहते हैं जबकि टोपी रहित साँचे में बने नेमीयित इस्पात में वातछिद्र पृष्ठ से पर्याप्त गहराई तक पाए जाते हैं।

Capillary dip infiltration-- केशिका निमज्ज अंतःस्यंदन

देखिए– Infiltration के अंतर्गत

Capsule metal-- कैप्स्यूल धातु

तन्य सीस मिश्रातु जिसमें 8% वंग और 92% सीसा होता है। इसका उपयोग संघटट् उत्सारण द्वारा उत्पन्न नलिकामय पात्रों में होता है।

Carat-- कैरट

(1) इस शब्द का प्रयोग स्वर्ण की शुद्धता व्यक्त करने के लिए किया जाता है। शुद्ध स्वर्ण 24 कैरेट अथवा ‘1000 परिष्कृत अंक’ वाला होता है। स्वर्ण-मिश्रातुओं की शुद्धता निर्धारित करने के लिए यह ज्ञात किया जाता है कि उन मिश्रातुओं के 24 भागों में स्वर्ण के कितने भाग हैं। इस प्रकार 18 कैरेट स्वर्ण से यह तात्पर्य है उस मिश्रातु के 24 भागों में 18 भाग स्वर्ण है जिसे 75% स्वर्ण युक्त अथवा 750 परिष्कृत अंक वाला भी कह सकते हैं।
(2) एक कैरेट 200 मिलीग्राम के बराबर भी होता है। इस माप का प्रयोग बहुमूल्य पत्थरों का भार व्यक्त करने में भी होता है।

Carbonalyzer (Carbometer)-- कार्बन-विश्लेषी (कार्बनमापी)

इस्पात में कार्बन की मात्रा के निर्धारण के लिए प्रयुक्त उपकरण।

Carbidizing treatment-- कार्बाइडन उपचार

जंगरोधी इस्पातों के पृष्ठ कठोरण की एक विधि जिसमें कार्बन और धात्विक मिश्रातु–अवयवों का एक साथ अधिशोषण होता है। सिद्धांत रूप से जंगरोधी इस्पात के पृष्ठ कठोरण की सामान्य विधियों की अपेक्षा यह विधि अच्छी है क्योंकि नाइट्राइन अथवा कार्बुरण जैसी सामान्य विधियों में नाइट्रोजन अथवा कार्बन के साथ क्रोमियम संयोग कर लेता है और संक्षारणरोधी गुण प्रदान करने के लिए उपलब्ध नहीं रहता।

Carbometer-- कार्बनमापी

देखिए– Carbanalzer

Carbonaceous ore-- कार्बनामय अयस्क

देखिए– Ore

Carbonal process-- कार्बोनल प्रक्रम

कार्बुरण (कार्बन समावेशन) की एक विधि जिसमें मुख्यतः वस्तु को भली भाँति एक निटॉर्ट में गरम किया जाता है। तत्पश्चात् उसमें तेल डाला जाता है। इस तेल को तेजी से घूमते हुए पंखे की मदद से रिटॉर्ट की गरम दीवारों पर टकराने दिया जाता है। इस प्रकार तेल, सक्रिय कार्बुरण–गैस में बदल जाता है। ऊष्मा तथा तेल की मात्रा को ठीक-ठीक नियंत्रित करके एक समान परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

Carbon boil-- कार्बन क्वथन

देखिए –Ore boil

Carbon dioxide moulding-- कार्बन डाइऑक्साइड संचन

इसमें बालू के साथ कुछ विशेष रसायन मिलाए जाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड–गैस प्रवाहित कर साँचों का कठोरण किया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस रसायनों के साथ क्रिया करके कठोरण प्रभाव उत्पन्न करती है।

Carbonisation-- कार्बनन

वायु की अनुपस्थिति में कोयले को गरम कर कोक अथवा अर्धकोक बनाने का प्रक्रम जब कोकिंग कोयले को 400-500°C तक गरम किया जाता है तो वह सुघट्य संहति में परिणत हो जाता है। उसे आगे 550°C तक गरम करने पर उसकी सुघट्यता समाप्त हो जाती है और यह ठोस कोशिकीय संहति में बदल जाता है और आगे 600-700°C तक गरम करने पर वह कठोर संहति में बदल जाता है जिसे अर्धकोक (Semicoke) कहते हैं। अर्धकोक को 900°–1100°C तक गरम करने पर वह कोक में बदल जाता है जो कठोर, मजबूत, कोशिकीय कार्बनयुक्त पदार्थ है। यदि यह कोक, लौह, वात्या भट्टी में प्रयोग करने योग्य होता है तो इसे धातुकर्मीय कोक (Metallurgical coke) कहते हैं और वह कोयला जिससे धातुकर्मीय कोक प्राप्त होता है, कोकन कोयला कहलाता है। कार्बनन के उपरांत जिस कोयले से सुसंहत (Coherent) द्रव्य प्राप्त नहीं होता वह अकोकन कहलाता है।
उच्चताप कार्बनन (High temperature carbonisation) — जब कार्बनन 900°C से अधिक ताप पर किया जाता है तो यह प्रक्रम उच्चताप कार्बनन कहलाता है और प्राप्त उत्पाद उच्च ताप कोक (High temperature coke) कहलाता है। उच्चताप कार्बनन मुख्यतः मधुछत्र तथा उपोत्पाद प्रक्रमों द्वारा संपन्न किया जाता है। उच्च ताप कार्बनन प्रक्रम का मुख्य उत्पाद कोक है।
निम्न ताप कार्बनन (Low temperature carbonisation) — जब कार्बनन, अकोकन कोयले का प्रयोग कर 400°–700°C के बीच किया जाता है तो इस प्रक्रम को निम्न ताप कार्बनन कहते हैं और प्राप्त उत्पाद निम्न ताप कोक (Low temperature coke) कहलाता है। इस कोयले की विशेषता यह है कि बिना धुएँ के जलता है, इसलिए इसका प्रयोग घरेलू कार्यों में होता है और इसे धूमहीन कोक कहते हैं। इसका उद्योगों में कोई उपयोग नहीं है।

Coking coal-- कोकन कोयला, कोकिंग कोयला

छोटी ज्वाला वाला कोयला जिसमें 85%–89% कार्बन, 4.5–5.5% हाईड्रोजन और 4-7.5% ऑक्सीजन होता है। इसमें 20–30% तक वाष्पशील पदार्थ होता है।

Carbonitriding-- कार्बोनाइट्राइडन

देखिए–Case hardening के अंतर्गत

Carbon steel-- कार्बन इस्पात

वह इस्पात जिसमें —– सामान्यतः प्रतिशत तक कार्बन की मात्रा होती है। इसके अतिरिक्त विऑक्सीकरण के लिए प्रयुक्त सिलिकन (0.6%) तथा मैंगनीज (1.65%) के अलावा कुछ अन्य तत्वों की अत्यल्प मात्राएँ भी होती हैं। समान्य कार्बन इस्पातों में मुख्य तत्व कार्बन होता है जो Fe₃C (सीमेंटाइट) बनाता है। यह उसे मजबूत और ऊष्मा उपचार के योग्य बना देता है। मैंगनीज, हानिकारक लोह सल्फाइड को मैंगनीज सल्फाइड में बदल देते हैं। इस इस्पात में गंधक और फॉस्फोरस (प्रत्येक 0.03 pc) की अल्प मात्राएँ भी पाई जाती हैं। कार्बन इस्पात का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है :–
(क) अल्प कार्बन इस्पात (Low carbon steel)– इसमें कार्बन की मात्रा 0.25% से कम होती है।
(ख) मध्यवर्ती कार्बन इस्पात (Intermediate carbon steel) इसमें कार्बन की मात्रा 0.3–0.6% तक होती है।
(ग) उच्च कार्बन इस्पात (High carbon steel) इसमें कार्बन की मात्रा 0.6% से अधिक होती है।

Carbonyl-- कार्बोनिल

कार्बन मोनोक्साइड तथा निकैल, कोबाल्ट, लोहा, मॉलब्डेनम आदि कुछ धातुओं के संयोग से बने यौगिक। उदाहरणार्थ निकैल लगभग 50°C पर कार्बन मोनोक्साइड के साथ संयोग कर वाष्पशील यौगिक निकैल कार्बोनिल (Ni(CO)₄) बनता है। 180°C पर निकैल और कार्बोनिल के अपघटन से शुद्ध निकैल और कार्बन मोनोक्साइड प्राप्त हो जाता है।

Carbonyl process-- कार्बोनिल प्रक्रम

उपचारित अयस्क के धातुओं को निष्कर्षित करने का प्रक्रम। इसमें धातुओं की कार्बन मोनोक्साइड के साथ अभिक्रिया से धात्विक यौगिक बनता है जिसे कार्बोनिल कहते है। धातु को पृथक करने के लिए कार्बोनिल का वाष्पीकरण किया जाता है जिससे धात्विक चूर्ण, अत्यन्त शुद्ध छोटे-छोटे गोल कणों के रूप में प्राप्त हो जाता है। उसे मॉन्ड प्रक्रम भी कहते हैं।
देखिए– Carbonyl भी

Carbothermic process-- कार्बन ऊष्मीय प्रक्रम

धातु-ऑक्साइड के अपचयन का प्रक्रम जिसमें कार्बन, अपचायक के रूप में प्रयुक्त होता है। उदाहरणार्थ हॉसगिर्ग प्रक्रम द्वारा मैग्नीशियम का निष्कर्षण।
तुलना– Metallothermic process

Carbothermic reduction-- कार्बन उष्मीय अपचयन

कार्बन का अपचायक के रूप में प्रयोग कर ऑक्साइडों का अपचयन।

Carburizing (carburisation)-- कार्बुरण

देखिए– Case hardening के अंतर्गत

Carnotite-- कार्नोटाइट

पोटैशियम यूरैनिल वैनेडेट, K₂o, 2UO₃, VO₂O₅, 3H₂O जिसमें लगभग 40% यूरेनियम होता है। यह कोलोराडो के बालूपत्थरों में पाया जाता है। यह रेडियम, यूरेनियम और वैनेडियम का महत्वपुर्ण स्रोत है। यह पीले रंग का रेडियोसक्रिय खनिज है।

Cartridge brass-- कारतूसी पीतल

पीतल जिसमें 70% तांबा और 30% जस्ता होता है। इसमें तन्यता और मजबूती का सर्वोत्तम समन्वय होता है। इसका उपयोग कारतूस आवरण और गभीर कर्षण उत्पादों के लिए होता है।

Case depth-- पृष्ठ गहराई

इस्पात के कठोर पृष्ठ की मोटाई अर्थात् पृष्ठ से वह गहराई जहाँ तक दृढ़कारी पदार्थ में दृढ़क प्रवेश करता है। यह गहराई सूक्ष्मदर्शी द्वारा मापी जा सकती है।

Case hardening-- पृष्ठ कठोरण

फरेस मिश्रातु (इस्पात) का कठोरण, जिससे मिश्रातु का बाहरी भाग अथवा खोल कठोर हो जाता है तथा आंतरिक भाग मृदु बना रहता है। पृष्ठ कठोरण के लिए निम्नलिखित प्रक्रमों का प्रयोग किया जाता है–
(1) कार्बोनाइट्राइडन (Carbonitriding) — कार्बन मोनोक्साइड और 5% अमोनिया के गैसीय–वातावरण में 800–875°C ताप तक गरम कर अल्प कार्बन-इस्पात का पृष्ठ कठोरण। इसमें कार्बन और नाइट्रोजन दोनों का इस्पात के पृष्ठ पर विसरण हो जाता है जिसके शीघ्र शमन से मार्टेन्साइट प्राप्त होता है। जिन स्थलों पर कठोरण न करना हो उन्हें ताम्र पट्टन द्वारा पृथक रखा जाता है। इस प्रक्रम को शुष्क सायनाइडन अथवा नाइट्रोकार्बुरण अथवा गैस सायनाइडन भी कहते हैं।
(2) कार्बुरण (Carburizing)– कुछ विशेष प्रकार के इस्पातों के लिए प्रयुक्त एक प्रक्रम। इस विधि में इस्पात के पृष्ठ पर अतिरिक्त कार्बन निक्षेपित करने के बाद ऊष्मा-उपचार करके तन्य इस्पात पर उच्च कोटि की पृष्ठ-कठोरता उत्पन्न की जा सकती है। कार्बुरण की प्रमुख विधियाँ इस प्रकार हैं:–
(क) संकुल कार्बुरण (Pack carburizing)– इसमें घटकों को एक ऊष्मा प्रतिरोधक बक्स में रखा जाता है जो चारकोल से ढका रहता है। बेरियम, कैल्सियम और सोडियम के कार्बोनेटों को मिलाकर चारकोल को सक्रियित किया जाता है। बक्स को 920°C तक गरम किया जाता है। कार्बुरण की मात्रा तापन काल और चारकोल तथा सक्रियकों के अनुपात पर निर्भर करती है।
(ख) गैस कार्बुरण (Gas carburizing)– इसमें चारकोल के स्थान पर कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोकार्बन आदि कार्बन समृद्ध गैस का उपयोग किया जाता है। जिन वस्तुओं का कार्बुरण करना हो उन्हें अल्प दाब पर रिटार्टों अथवा वायुरुद्ध भाष्ट्रों में गैस के सामने उद्भासित किया जाता हैं।
(ग) द्रव कार्बुरण (Liquid carburizing)– इसमें कार्बुरण के लिए द्रव हाइड्रोकार्बनों का उपयोग किया जाता है जो अंततः वाष्प में बदल जाते हैं।
(3) सायनाइडन (Cyaniding)– उपयुक्त संघटन वाले गलित सायनाइड के संपर्क में Ac₁ ताप से ऊपर रखकर किसी ठोस फेरस मिश्रातु में कार्बन और नाइट्रोजन को प्रविष्ट करना। यह सायनाइड मिश्रातु, सामान्यतया शमन कठोरित होता है।
(4) अग्नि-कठोरण (Flame hardening)– स्थानीय कठोरण की एक यथार्थ विधि। इसमें इस्पात को यंत्र द्वारा परिचालित ऑक्सी-ऐसीटिलीन-फुँकनी द्वारा Ac3 ताप से ऊपर तक गरम किया जाता है जो पूर्व निर्धारित दर से कठोर की जाने वाली वस्तु के बीच से प्रविष्ट करती है। इसके शीघ्र बाद पानी, हवा अथवा नाइट्रोजन के प्रधार द्वारा शमन किया जाता है। कठोरित परत अत्यंत पतली से लेकर 0.25 इंच तक मोटी होती है जो अभ्यास और उपचारित पदार्थ पर निर्भर करता है।
(5) प्रेरण-कठोरण (Induction hardening)– ऊष्मा उपचार द्वारा धातुओं को कठोर बनाने का प्रक्रम जिसमें प्रेरण-तापन का प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रम पृष्ठ-कठोरण और पूर्ण-कठोरण दोनों के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
देखिए–Induction heating भी
(6) नाइट्राइडन (Nitriding)– एक पृष्ठ-कठोरण प्रक्रम जिसमें मशीनित और ऊष्मा-उपचारित इस्पात अवयवों को 480°-520°C ताप के बीच नाइट्रोजनयुक्त माध्यम, सामान्यतया अमोनिया गैस के प्रभाव में रखा जाता है। नाइट्राइडन के लिए प्रयुक्त मिश्रातु-इस्पातों में 0.85–1.1.20% कार्बन के अतिरिक्त ऐलुमिल्यिम, क्रोमियम तथा वेनेडियम करना हो उन्हें गैस रुद्ध पेटी में इस प्रकार रखा जाता है कि अमोनिया गैस उनके चारों ओर संचरण करती रहे। वांछित नाइट्राइडिन आवरण की मोटाई के अनुसार वस्तुओं को एक दिन या उससे भी अधिक समय तक 500°C ताप रखा जाता है।
पृष्ठीय पर्त के कठोरण की अन्य विधियों की अपेक्षा नाइट्राइडन के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं– (1) यह क्रिया कम ताप पर संपन्न होती है जिससे विरुपण की आशंका नहीं रहती। (2) यह क्रिया कार्बुरण की अपेक्षा सस्ती है। (3) इसमें शमन की अवश्यकता नहीं रहती है जिससे शमन दरारें नहीं पड़ती हैं। (4) क्रिया के समय इस्पात की संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं।

Cassiterite-- कैसिटेराइट

SnO₂ यह वंग का स्रोत है तथा ग्रेनाइट, पैग्मैटाइट जैसे अम्लीय शैलों की शिराओं में पाया जाता है। यह अक्सर, काला या भूरा होता है तथा चतुष्फलकीय समुदायों में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 6-7, आपेक्षिक घनत्व 6.4-7.1। इसे टिन स्टोन भी कहते हैं।

Casting-- संचक, संचकन, ढलाई

(क) किसी साँचे में द्रव-पदार्थ के पिंडन से प्राप्त संसाधित अथवा अर्ध-संसाधित वस्तु।
(ख) किसी पिघली धातु, मिश्रातु या अन्य किसी वस्तु को साँचे में डालकर वांछित आकार की वस्तु प्राप्त करने की प्रक्रिया। यह क्रिया निम्नलिखित प्रक्रमों द्वारा संपन्न की जाती है।
(1) अपकेंद्री संचकन (Centrifugal casting)– धातु को किसी घुर्णी बेलनाकार साँचे के खुले सिरे में डालकर संचक बनाना। यह एक समान और नियंत्रणीय मोटाई की दीवारों के सघन और ऐसे खोखले संचकन–सिलिंडरों को बनाने का एक उपयोगी प्रक्रम है जिनमें केन्द्रीय कोड की आवश्यकता नहीं होती।
(2) संनिवेश संचकन (Investment casting)– संचकन की यह विधि बिल्कुल ठीक साइज के अपेक्षाकृत छोटे संचकों को बनाने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। इसे भ्रष्ट मोम प्रक्रम (Lost wax process) भी कहते हैं। इसमें +0.002 इंच प्रति इंच तक की यथार्थ माप के संचक प्राप्त हो सकते हैं। इससे जटिल आकार के संचकों को बनाना भी संभव है।
(3) बालू-संचकन (Sand casting)– बालू के साँचे में किया जाने वाला संचकन। बालू के साँचे दो प्रकार के होते हैं– (1) शुष्क (2) अशुष्क। शुष्क बालू के साँचे में बालू को डेक्सट्रिन, अग्निसह मिट्टी, पानी आदि के साथ मिलाकर सुघट्य बनाया जाता है। बालू को पैटर्न में कूटकर साँचा तैयार हो जाता है जिसे अच्छी तरह सुखा लिया जाता है।
अशुष्क बालू के साँचे में भी बालू, मिटटी तथा नमी को बंधकों के साथ मिलाकर सुघट्य बना लिया जाता है किंतु ये बंधक, शुष्क साँचे में प्रयुक्त बंधकों से भिन्न होते हैं। इसमें शुष्कन की क्रिया की जाती है और साँचा बनाने के तुरंत बाद पिघली हुई धातु डाल दी जाती है। इन्हें नम बालू संघक भी कहते हैं। हरित शब्द से तात्पर्य यह है कि बालू में नमी है।
(4) धातु साँचा संचकन (Metal mould casting)– इस प्रक्रम के अंतर्गत संचकन के लिए अक्सर धूरसरलोह इस्पात मिश्रातुओं तथा एनोडित ऐलुमिनियम मिश्रातु के स्थायी साँचे बना लिए जाते हैं। इन साँचों के प्रायः दो अर्ध भाग होते हैं और इन्हें परस्पर क्लैंप किया जा सकता है। इन साँचों को ‘रुपदा’ भी कहते है। इनके अंदर पिघली धातु गुरुत्व द्वारा प्रवेश कराई जाती है। अतः इस प्रक्रम को कभी-कभी गुरुत्व रुपदा संचकन भी कहते हैं। यदि पिघले धातु को साँचे में दाब के साथ प्रवेश कराया जाए तो यह प्रक्रम दाब रुपदा संचकन कहलाता है। धात्विक संचकन का प्रयोग लोह तथा अलोह दोनों प्रकार के संचकों को बनाने के लिए किया जाता है परंतु यह प्रक्रम अलोह संचकन के लिए अधिक उपयुक्त है। इसे रूपदा संचकन और स्थायी साँचा संचकन भी कहते हैं।
(5) रुपदा संचकन (Die casting)
देखिए– Metal moulding casting
(6) प्लास्टर संचकन (Plaster casting)– इस प्रक्रम में पेरिस प्लास्टर के साँचे बनाकर उनमें पिघली धातु उड़ेल दी जाती है। साँचा बनाते समय पेरिस प्लास्टर में टैल्क ऐस्बेस्टास रेशे, सिलिका चूर्ण आदि योज्य के रूप में मिलाए जाते हैं। व्यवहार में प्लास्टर पंक का प्रयोग किया जाता है जिसे धातु के बने प्रतिरूपों के ऊपर उड़ेला जाता है। प्लास्टर को सेट होने दिया जाता है तथा प्रतिरूपों के छिद्र में संपीडित वायु प्रवाहित कर प्रतिरूपों को प्लास्टर साँचे से अलग कर लिया जाता है। प्लास्टर को साँच भट्टी में ही सुखाकर भट्टी में ही ठंडा किया जाता है।
(7) विपंक संचकन (Slush casting) इसमें प्रयुक्त साँचा मुख्यतः गुरुत्व रुपदा साँचे की तरह ही होता है केवल अंतर यह है कि शीर्ष पलक पर खुला छिद्र, वाहक (Runner) का कार्य करता है। जब साँचे को भरा जाता है तो उसे कुछ सेकंड तक ठंडा होने दिया जाता है और फिर उलट दिया जाता है ताकि संचक की बीच की द्रवित धातु बह जाए। इस प्रक्रिया द्वारा एक कवच बनता है। जब साँचे को नीचे किया जाता है तो संचक पृथक हो जाता है।

Casting defect-- संचकन दोष

संचकों में पाए जाने वाले दोष। ये निम्न प्रकार के हो सकते हैं :–
(1) बात छिद्र (Blow holes)– गोल, चपटे अथवा लंबे कोटर जो संचक पृष्ठ पर स्पष्ट दिखाई देते है। ये संपिडन के समय फँसी हुई गैस के कारण बनते हैं।
(2) प्राकुंच (Buckle)– संचक में उत्पन्न V-आकार की दंतुरता (Indentation) है जो साँचे की बालू के प्रसार संबंधी प्रभावों से उत्पन्न होती है।
(3) केंद्र रेखा संकुचन (Central line shrinkage)– संचक के केन्द्रीय अक्ष के अनुदिश पाया जाने वाला टेढ़ा–मेढ़ा छिद्र अथवा स्पंजी क्षेत्र।
(4) अतप्त दरार (Cold crack)– किसी संचक के विभिन्न ताप–शीतलन द्वारा उत्पन्न दरारें।
(5) अतप्त रोध (Cold shut)– अतप्त रोध संचक वह है जिसमें विभिन्न धातु-धाराओं के अपूर्ण संगलन के कारण निश्चित असतता उत्पन्न हो जाती है। इस दोष के कारण चिकने गोल किनारों वाली सीवन अथवा दरारें उत्पन्न हो जाती हैं।
विरूपण (Distortion)– किसी संचक के पिंडन के समय या उसके बाद उत्पन्न होने वाला अवांछित विरूपण।
पातन (Drop)– कोप या ऊपर लटके हुए किसी अन्य भाग से बालू के एक हिस्से के गिरने से उत्पन्न संचक दोष। यह दोष संचकन पृष्ठ पर उभार अथवा संलागी (Sticker) जैसा दिखाई देता है।
अपरदन स्कैब (Erosion scab)– संचक के पृष्ठ पाए जाने वाले एक प्रकार के खुरदुरे उभार। ये साँचे की दीवारों के एक भाग से बालू के बह जाने उत्पन्न होते हैं।
प्रसार स्कैब (Expansion scab) किसी संच-फलक के एक भाग के आंशिक अथवा पूर्ण समुत्खंडन (Spalling) और द्रव धातु के बालू की पृष्ठीय पर्त के पीछे प्रविष्ट करने से उत्पन्न टेढ़ा-मेढ़ा धातु स्कैब। यह दोष साँचे की बालू में प्रसार संबंधी प्रभावों के कारण उत्पन्न होता है।
पक्षक (Fin)– धातु का पतला उभार, जो संचक का भाग नहीं होता है, पक्षक कहलाता है। यह संच–भागों के पृथक्कारी पृष्ठ पर पाया जाता है।
गैस छिद्र (Gas hole)– संचक के पृष्ठ को मशीनित करने से अथवा संचक को खंडों से काटने से उत्पन्न छिद्र जो संपिडन के दौरान गैस बुलबुलों के फँसे रहने के कारण बन जाते है।
कठोर स्थल (Hard spot)– किसी संचक में अत्यधिक कठोरता वाले स्थल। ये उन स्थानों में पाए जाते हैं जहाँ संचक की परिच्छेद मोटाई (Section thickness) में एकाएक परिवर्तन हो जाता है।
तप्त विदर (Hot tear)– संचक पृष्ठ पर पाई जाने वाली भीतरी अथवा बाहरी खुरदरी असतताएँ या दरारें जो सॉलिड्स ताप से ठीक नीचे रुद्ध संकुचन के कारण उत्पन्न होती है। इसे संकुचन विदर (Shrinkage tear) भी कहते हैं।
किश (Kish)– गलित लोहे से पृथक हुआ मुक्त ग्रेफाइट।
धातु वेधन (Metal penetration)– यह दोष किसी संचक के असमान और खुरदरे बाहरी पृष्ठ के रूप में दिखाई देता है। इसका कारण बालू की बहुत अधिक पारगम्यता बड़े आमाप के कण और कम प्रबलता है।
कुमेल (Miss-match)– इस दोष का संबंध संचक की सममिति से है। यह संचक के विभाजन-पृष्ठ पर साँचे के एक भाग का दूसरे भाग के साथ ठीक से मेल न होने के कारण अर्थात एक भाग का दूसरे भाग के ऊपर रखने पर थोड़ा-सा फिसल जाने के कारण होता है। अतः इस दोष को सृति भी कहते हैं।
कुधावन (Mis-run)– इसमें संचक में धातु समय से पहले अर्थात् साँचा कोटर के पूरी तरह भरने से पहले ही जम जाती है जिससे संचक का कुछ भाग भरने से छूट जाता है।
सूची छिद्र (Pin hole)– संचक के पृष्ठ पर दिखाई देने वाले 2 मिमी० व्यास से भी कम व्यास के छोटे-छोटे छिद्र। ये हाइड्रोजन अथवा कार्बन मोनोक्साइड के अवशोषण से अथवा बालू में नमी की मात्रा अधिक होने से अथवा इस्पात के पर्याप्त विगैसीकृत होने से उत्पन्न होते हैं।
पाइप (Pipe)– संचक-पिंड के ऊपरी पृष्ठ पर पाया जाने वाला शंक्वाकार गर्त। यह जमते समय धातु के सिकुड़ने से उत्पन्न होता है।
मूक पुच्छ (Rat tail)– इस दोष में संचक पृष्ठ पर उभरी हुई या दबी हुई दंतुरता उत्पन्न हो जाती है। यह बालू के प्रसार संबंधी प्रभाव के कारण उत्पन्न होती है।
स्कैब (Scab)– संचक-पृष्ठ पर पाए जाने वाले उभरे चकते (खुरंड)। ये दो प्रकार के होते हैं। (1) अपरदन स्कैब (2) प्रसारण स्कैब।
पृष्ठ रूक्षता (Surface roughness)– वह संचक जिसमें विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक चिकनेपन की मात्रा नहीं होती है।

Cast iron-- ढलवाँ लोहा, संचकित लोहा

लोहा जिसमें कार्बन की मात्रा प्रायः 2.0%–4.5% तथा सिलिकन की मात्रा 1.0% –2.5% होती है। इनके अलावा उसमें मैंगनीज, गंधक और फॉस्फोरस की भी भिन्न-भिन्न मात्राएँ पाई जाती हैं। यह सस्ती औद्योगिक धातु है तथा आसानी से ढाली और मशीनित की जा सकती है। ढलवाँ लोहे के निम्नलिखित प्रकार होते हैं:–
(1) धूसर लोहा (Grey iron) — इस लोहे का रासायनिक संघटन ऐसा होता है कि संपिडन के बाद उसमें उपस्थित कार्बन की बहुत बड़ी मात्रा पूरे संचक में मुक्त अथवा ग्रेफाइटी कार्बन (पत्रक) के रूप में वितरित हो जाती है। इसे धूसर ढलवाँ लोहा भी कहते हैं।
(2) आघातवर्ध्य लोहा (Malleable iron)– वह लोहा जिसमें उपयुक्त संघटन वाले श्वेत लोह संचक में आघातवर्धी ऊष्मा-उपचार तन्यता अथवा आघातवर्धता उत्पन्न की जाती है। आघातवर्धी लोहे में कार्बन, ग्रेफाइट के ग्रथिकी पुंजों के रूप में पाया जाता है।
(3) महिनाइट लोहा (Maehanite iron)– वह ढलवाँ लोहा जिसकी कैल्सियम सिलिसाइड के साथ क्रिया की जाती है। यह ग्रेफाइटीकारक का काम करता है और उत्तम ग्रेफाइटी संरचना उत्पन्न करता है जिसके फलस्वरूप उत्तम यांत्रिक गुणधर्म प्राप्त होते हैं।
अर्धधूसर लोहा (Mottled iron)– मध्यवर्ती संघटन का लोहा जो उपस्थित शीतलन अवस्थाओं के अनुसार अंशतः श्वेत और अंशतः धूसर लोहे में संपिंडित होता है।
ग्रंथकी लोहा अथवा गोलाभीय लोहा (Nodular or spheroidal iron)– विशेष रूप से तैयार किया गया लोहा जिसकी गलित अवस्था में मैंग्नीशियम और सीरियम या अन्य पदार्थ की न्यून प्रतिशत मात्राओं के साथ क्रिया की जाती है जिससे कार्बन की बहुत अधिक मात्रा ग्रेफाइट के गोलाभों के रूप में प्राप्त होती है। इस प्रकार प्राप्त लोहे को तन्य ढलवाँ लोहा भी कहते हैं।
श्वेत लोहा (White iron)– वह लोहा जिसका संघटन इस प्रकार का होता है कि पिंडन के बाद उसमें कार्बन, सीमेंटाइट की भाँति रसायनतः संयुक्त हो जाता है।

Cast steel-- ढलवाँ इस्पात, संचकित इस्पात

संचकों के रूप में बना इस्पात। इसमें इस्पात को साँचे में पिघली अवस्था में सीधे पिंडित किया जाता है। अतः मशीनन, बालू-क्षेपण या अन्य परिष्करण प्रक्रमों के अलावा उनके आकार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया जाता है।
देखिए– Carbon steel भी

Casual metal-- कैजुअल धातु

एक आस्टेनाइटी धूसर ढलवाँ लोहा जो अनके प्रकार के संक्षारणों का प्रतिरोध करता है। इसकी संक्षारणरोधी क्षमता निकैल जितनी होती है।

Cathodic protection-- कैथोडी रक्षण

किसी धातु को कैथोड बनाकर उसे आंशिक रूप से या पूरी तरह संक्षारण से बचाना। इसके लिए गैल्वेनी या आरोपित धारा का प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग किसी विद्युत– अपघट्य में निभज्जित अवयवों अथवा जमीन के अंदर दबी पाइपों और खंभों के लिए होता है।

Caustic cracking-- कास्टिक विदरण

प्रतिबल-संक्षारण के प्रभाव से उत्पन्न होने वाला अंतराक्रिस्टलीय विदरण जो वाष्पित्रों में जल-रेखा के नीचे पाया जाता है। यह प्रायः रिवेट लगे जोड़ों या सीवनों में होता है जहाँ क्षारीय लवणों का सांद्रण हो जाता है। इसे कास्टिक भंगुरण भी कहते हैं।

Caustic dip-- कास्टिक निमज्जन

सांद्र क्षारीय विलयन जिसमें रसोत्कीर्णन, अम्ल के उदासीनीकरण अथवा ग्रीज, पेन्ट आदि कार्बनिक पदार्थों को हटाने के लिए किसी धातु को डुबाया जाता है।

Caustic embrittlement-- कास्टिक भंगुरण

देखिए– Caustic cracking

C.C.T Curve-- सी0सी0टी0 वक्र

देखिए– Continuous cooling transformation curve, cementation सीमेंटन
(1) धातुओं के बाहरी भाग में एक या अधिक तत्वों का प्रविष्ट करना। यह क्रिया उच्च ताप पर विसरण द्वारा की जाती है। उदाहरण के लिए इस्पात बनाने के लिए एक पुरानी विधि में पिटवाँ लोहे की छड़ों को चारकोल में पैककर मिट्टी से ढक दिया जाता है और कई दिनों तक 750–900°C ताप पर गरम किया जाता है जिससे पर्याप्त कार्बन लोहे में विसरित हो जाता है।
(2) जल धातुकर्मिकी के संदर्भ में एक विस्थापन अभिक्रिया जिसमें जलीय विलयन में अधिक उत्कृष्ट धातु अपेक्षाकृत कम उत्कृष्ट धातु द्वारा विस्थापित होकर निक्षेपित हो जाती है। उदाहरणार्थ CuSO₄ विलयन से Zn द्वारा Cu का Zn पर निक्षेपण।

Cemetite-- सीमेंटाइट

लोहे और कार्बन का यौगिक जो रासायनिक दृष्टि से आयरन कार्बाइड है। इसका लगभग रासायनिक सूत्र Fe₃C है। इसकी विषमलंबाक्ष क्रिस्टल संरचना होती है। एकक सेल में 12 लोहे के परमाणु और अंतरालों में 4 कार्बन के परमाणु होते हैं। लंबे समय तक गरम करने पर सीमेंटाइट का कार्बन-ग्रेफाइट में विघटन हो जाता है।

Cement sand moulding-- सीमेन्ट बालु संचन

देखिए– Sand moulding के अंतर्गत

Centilever beam test-- सेन्टीलीवर दंड परीक्षण

देखिए– Impact test के अंतर्गत Izod test

Central line shrinkage-- केंद्रीय रेखा संकुचन

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Centrifugal casting-- अपकेन्द्री संचकन

देखिए– Casting के अंतर्गत

Ceralumin-- सीरेलूमिन

दो ऐलुमिनियम मिश्रातुओं का व्यापारिक नाम जिनमें एक RR–50 मिश्रातु और दूसरा RR–53 बी मिश्रातु के तुल्य होता है। दोनों में Cu, Si, Mg, Ce, FE. और Ni होते हैं। दूसरे में Mn, Ti, और/ अथवा Nb भी होते हैं। दोनो के सामर्थ्य और भार का अनुपात उच्च होता है। जिससे इनका उपयोग वायुयान के हिस्सों को बनाने में होता है। दूसरे मिश्रातु का ताप सामर्थ्य भी उच्च होता है जिससे वह पिस्टनों, सिलिंडरों और गियर बक्सों को बनाने के काम भी आता है।

Ceramal-- सिरेमल

देखिए– Cermet

Ceramic mould process-- सिरेमिक संच प्रक्रम

देखिए– Shaw process

Cermet-- सर्मेट

धातु और मृत्तिका का घनिष्ट मिश्रण जिसे, मिलाकर, दबाकर और सिन्टरण द्वारा बनाया जाता है। इसमें अवयव रासायनिक अथवा यांत्रिक आबंधों द्वारा जुड़े रहते हैं। उदाहरणार्थ सिलिकन, सिलिकन कार्बाइड, क्रोमियम ऐलुमिना, निकैल-टंगस्टन कार्बाइड। इन्हें मिलाने का उद्देश्य कार्बाइड अथवा ऑक्साइड की उच्च-ताप प्रबलता और कठोरता को धातु की भंगुरता के साथ मिलाना है ताकि मिश्रण, तापरोधी और यांत्रिक आघातरोधी बन जाए। इसे सिरेमल भी कहते हैं।

Cerro alloys-- सेरो मिश्रातु

गलनीय मिश्रातुओं का समूह जिसमें प्रमुख रूप से बिस्मध, सीसा वंग और अल्प मात्रा में कैडमियम और पारद होते हैं। इनका उपयोग ढलाई पैटर्न नलियों, वंकन और अनुबंध कार्यों में किया जाता है। इनका गलनांक 45°C –125°C तक होता है।

Cerrusite-- सीरुसाइट

ऑक्सीकृत सीसा अयस्क (PbCO₃) जिसमें 77.5% सीसा होता है। यह विषमलंबाक्ष क्रिस्टलों में पाया जाता है। यह सफेद या धूसर रंग का महत्वपूर्ण अयस्क है जो भंगुर होता है और गैलेना के साथ पाया जाता है कठोरता 3–3.5, आपेक्षिक घनत्व 6.47।

Chalcocite-- चाल्कोसाइट

Cu₂S, ताम्र सल्फाइड अयस्क जिसमें 79.8% तांबा होता है। इसका गहरा धूसर रंग होता है और विषमलंबाक्ष क्रिस्टलों में पाया जाता है। इसे ताम्र ग्लान्स भी कहते हैं। इसमें धात्विक द्युति होती है। कठोरता 2.5–3 तथा आपेक्षिक घनत्व 5.5–5.8।

Chalcopyrite-- चाल्कोपाइराइट

सल्फाइड ताम्र अयस्क (CuFeS₂) जिसमें 34.6% तांबा होता है यह ताम्र और लोह का सल्फाइड है। यह तांबे का सर्वाधिक सुलभ अयस्क है। यह पीली संहति के रूप में पाया जाता है। जिसका रंगदीप्त पृष्ठ होता है। यह द्विसमलंबाक्ष क्रिस्टलों में पाया जाता है। इसे ताम्र पाइराइट भी कहते हैं। कठोरता 3.5–4 तथा अपेक्षिक धनत्व 4.1–4.3।

Chalk test-- खड़िया परीक्षण

फोर्जनों और संचकों की परीक्षा का अविनाशी परीक्षण इसमें परीक्ष्य भागों को गरम पैराफिन में डुबाया जाता है और साफ करने के बाद उन्हें खड़िया के चूर्ण से ढक दिया जाता है। इससे दरारें या अन्य दोषपूर्ण स्थान दिखाई देते हैं।

Chaplet-- चैपलेट

धातु-अंतरक (Spacer)– जो आकार में कालर-स्टडों के समान होते हैं। इनका उपयोग संचकन के समय क्रोडों और संचकों की दीवालों के मध्य अंतर देने और संचक में क्रोड को स्थिति में बनाए रखने के लिए होता है। चैपलेट उसी धातु के बने होते हैं जो संचकन के बाद प्राप्त होती है क्योंकि वे अंततः पिघल जाते हैं और केवल आरंभ में आधार देते हैं।

Chapmanizing-- चैपमनीकरण

संशोधित नाइट्राइडन प्रक्रम जिसमें संगलित सायनाइड कुंड में प्रविष्ट वियोजित निर्जल अमोनिया का नाइट्राइडीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुंड में रखने से पहले वस्तु को गरम किया जाता है, और फिर सक्रिमित अमोनिया द्वारा क्रांतिक ताप से नीचे या ऊपर उसका नाइट्राइडन किया जा सकता है।

Charge-- घान

(1) किसी भ्राष्ट्र के संचालन के लिए उसमें डाले जाने वाले द्रव या ठोस पदार्थ।
(2) विभिन्न द्रव यो ठोस पदार्थों का संपूर्ण भार जिसे एक भरण चक्र के लिए भ्राष्ट्र में डाला जाता है।

Charpy test-- शार्पी परीक्षण

देखिए– Impat test के अंतर्गत

Chemical degassing-- रासायनिक विगैसन

देखिए– Degassing के अंतर्गत

Chemical etching-- रासायनिक उत्कीर्णन

देखिए– Etching के अंतर्गत

Chemical metallurgy-- रासायनिक धातुकर्मिकी

देखिए– Metallurgy के अंतर्गत

Chill-- द्रुतशीतक

(1) इस शब्द का प्रयोग बालू-साँचे में डाली गई धात्विक प्लेट के लिए किया जाता है। जिसका उद्देश्य शीघ्र दिशात्मक पिंडन प्राप्त करना है।
(2) श्वेत अथवा चितकबरे लोहे के वे कठोर तथा अमशीनित क्षेत्र जो कुछ लोह-संचकों के जल्दी ठंडा हो जाने के कारण बनते हैं।

Chilled iron-- द्रुतशीतित लोहा

एक प्रकार का ढलवाँ लोहा जिसके कुछ क्षेत्रों में कार्बन संयुक्त रूप में बना रहता है जिसके फलस्वरूप एक श्वेत संरचना दिखाई देती है। यह श्वेत संरचना उन परिस्थितियों के कारण है जिनसे शीतलन इतना बढ़ जाता है कि उन क्षेत्रों में सामान्य ग्रेफाइटीकरण नहीं हो पाता है। इस लोहे का उपयोग मिल के बेल्लनों, कार के पहियों आदि ऐसे हिस्सों को बनाने में होता है जहाँ उच्च घर्षणरोध की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के लोहे का पृष्ठ श्वेत तथा कठोर तथा आंतरिक भाग घूसर होता हैं।

Chinese art metal-- चीनी कला धातु

तांबे का एक तन्य और मशीननीय मिश्रातु जिसमें 10% जस्ता, 1% वंग और 15 से 20% सीसा होता है। इसका उपयोग अलंकारिक वस्तुओं को बनाने में होता है।

Chinese bronze-- चीनी कांसा

कांसा जिसमें 78% तांबा और 22% वंग होता है। इसके उत्तम संचकन गुण होते हैं। इसका उपयोग संगीत वाद्यों में किया जाता है।

Chipping-- तष्टन, छीलना

(1) घन और छेनी द्वारा धातु की सिल्लियों के पृष्ठ-दोषों को दूर करने की विधि ताकि अंतिम उत्पाद में वे वेल्लित या फोर्जित न हो।
(2) इस विधि का उपयोग संचकों और फोर्जनों से अवांछित धातु को पृथक करने के लिए भी होता है।

Chisel steel-- छेनी इस्पात

इस्पात जिसमें 1–2% क्रोमियम और 0.9% तक कार्बन होता है। यह अत्यंत कठोर और चर्मल होता है। इसका उपयोग अतप्त–छेनी और छिद्रित्रों को बनाने में किया जाता है।

Chloridizing roasting-- क्लोराइडी भर्जन

देखिए– Roasting

Chromadizing-- क्रोमैडाइजन

मुख्यतः वायुयान के बाहरी हिस्सों को बनाने में प्रयुक्त ऐलुमिनियम या ऐलुमिनियम मिश्रातुओं की क्रोमिक अम्ल के साथ क्रिया द्वारा उनका अम्लीय पृष्ठ बनाने का प्रक्रम ताकि पृष्ठ पर पेन्ट अच्छी तरह चिपके सके। इस प्रक्रम को क्रोमोडाइजन अथवा क्रोमेटाइजन भी कहते है।

Chromating-- क्रोमेटन

देखिए– Chromadizing

Chrome carburizing-- क्रोम कार्बुरण

लोहे या न्यून कार्बन इस्पात पर शीघ्रता से एक कठोर पर्त उत्पन्न करने का प्रक्रम। इसमें वस्तु को उपयुक्त ताप तक गरम कर इसके ऊपर से क्रोमस क्लोराइड या क्रोमिक क्लोराइड और मेथेन, प्रोपेन या ब्यूटेन जैसे किसी उपयुक्त हाइड्रोकार्बन और गैसीय मिश्रण को प्रवाहित किया जाता है।

Chromel-- क्रोमेल

तापरोधी मिश्रातुओं की श्रेणी ये मिश्रातु विद्युत तापन ऐलिमेंट के रूप में इस्तेमाल होते हैं। ये उत्तम ऑक्सीकरण प्रतिरोध, उच्चताप सामर्थ्य तथा उच्च वैद्युत-प्रतिरोधिता दर्शाते हैं। कोमेल—A में 80% निकैल और 20% क्रोमियम होता है। 1,090°C ताप तक काम में लाया जा सकता है। इस श्रेणी के अन्य सदस्यों में निकैल और क्रोमियम कम होता है और शेष लोहा होता है। ये कम तापरोधी होते हैं। उनका संघटन इस प्रकार हैं :–
मिश्रातु निकैल क्रोमियम लोहा
क्रोमेल A 80% 20% —
क्रोमेल B 85% 15% —
क्रोमेल C 64% 11% 25
क्रोमेल D 90% 10% — (तापयुग्मों के लिए प्रयुक्त)

Chromel alumel couple-- क्रोमेल-ऐलुमेल युग्म

धातुकर्मिकी में सबसे अधिक प्रयुक्त तापयुग्म। इसमें ऐलुमेल (98% क्रोमियम, 2% ऐलुमिनियम) तथा क्रोकेल (90% निकैल, 10% क्रोमियम) के तार होते हैं। इस युग्म का अंशांकन वक्र लगभग ऋजु रेखा होती है तथा इसमें अच्छे ऑक्सीकरणरोधी गुण होते हैं। इसका 1100°C तक लगातार तथा 1300°C तक रुक-रुक कर प्रयोग किया जा सकता है।
लोहे या इस्पात में क्रोमियम के विसरण द्वारा संक्षारणरोधी और तापरोधी पृष्ठ बनाना। इसकी कई विधियाँ हैं। द्रव माध्यम का प्रयोग करने पर धातु को, 1100°C–1200°C ताप पर क्रोमियम क्लोराइड और बेरियम क्लोराइड जैसे किसी तनुकारक के लवण अवगाह में डुबाया जाता है। गैस–क्रोमलेपन में क्रोमियम क्लोराइड वाष्प का प्रयोग किया जाता है। चार घंटे में, 1000°C पर 0.15 मिमी मोटी परत बन जाती है जिसमें पृष्ठ पर 35% क्रोमियम और 0.1 मिमी की गहराई पर 8% क्रोमियम होता है। इस विधि में प्रयुक्त इस्पात में कार्बन की मात्रा कम होनी चाहिए।

Chronite-- क्रोनाइट

एक निकैल मिश्रातु जिसमें 63.5% निकैल, 13.5% क्रोमियम, 1% ऐलुमिनियम, 1% मैंगनीज, 0.4% सिलिकन और शेष लोहा होता है यह उच्च ऊष्मारोधी और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग ज्वालकों, वाल्वों और अनीलन बाक्सों के लिए किया जाता है।

Chrysoberyl-- क्रीसोबेरिल

BeO Al₂O₃, द्वितीयक बेरिलियम आयस्क जिसमें 19.8% BeO होता है। इसका उपयोग बहुमूल्य पत्थर के रूप में होता है। यह विषम लंबाक्ष क्रिस्टलों के रूप में पाया जाता है। कठोरता 8.5, आपेक्षिक घनत्व 3.5–3.8।

Chrysocolla-- क्रीसोकोला

CuO. SiO₂, 2H₂O द्वितीयक ताम्र अयस्क जिसमें 36.2% तांबा होता है। यह जलयोजित ताम्र सिलिकेट है। यह नीले गुच्छाकार संहति के रूप में पाया जाता है। कठोरता 2–4 तथा आ0 घ0 2.1।

Cinder-- सिंडर

(क) धमन भट्टी के संदर्भ में धातुमल के लिए प्रयुक्त शब्द।
(ख) पडलन–भट्टी (Pudding furnace) में उपोत्पाद के रूप के रूप में प्राप्त लोह–सिलिकेट।
देखिए– Slag भी

Cinder notch-- सिंडर खाँच

देखिए– Slag hole

Cinder patch-- सिंडर पैच

देखिए– Rolling defect

Cinnabar-- सिनेबार

HgS, पारद का महत्वपूर्ण अयस्क जिसमें 86.2% पारद होता है। यह लाल या काले रंग का होता है। पर्याप्त हवा की उपस्थिति में इस अयस्क के भर्जन से गंधक को सल्फर डाइऑक्साइड के रूप में पृथक कर दिया जाता है और पारद को वाष्प रूप में एकत्रित कर संधनित किया जाता है। कठोरता 2–2.5 तथा आ0 घ0 8.1।

Cladding-- अधिपट्टन

एक धातु को दूसरी से आच्छादित करना। इसका उद्देश्य अपधातु की मजबूती और सस्तेपन जैसे गुणों को अधिपट्टित धातु के आकर्षण और संक्षारणरोध के साथ जोड़ना है। उदाहरणार्थ पीतल और अन्य अपधातुओं को सोना, चाँदी और दूसरी कीमती धातुओं से अधिपट्टित किया जाता है। इसी प्रकार सीसे को वंग से, इस्पात को निकैल से और ऐलुमिनियम मिश्रातुओं को शुद्ध ऐलुमिनियम से अधिपट्टित किया जाता है। इस कार्य के लिए नीचे दी गई विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। (1) संचकन (2) अंतर्गलन (Intermelting) (3) संलयन वेल्डिंग (Fusion welding (4) आर्क वेल्डिंग (5) प्रतिरोध वेल्डिंग (6) बंधन जिसमें ताप और दाब का प्रयोग किया जाता है। अधिकांशतः इसी विधि का उपयोग किया जाता है।

Classification-- वर्गीकरण

(1) आमाप के अनुसार वर्गीकरण की एक विधि जो तरल पदार्थों में कणों के निःसादन वेग पर आधारित है।
तुलना– Sizing

Cleaning-- निर्मलन

देखिए– Concentration circuit

Clinker-- क्लिंकर

कोयला अथवा कोक ज्वालित भ्राष्ट्रों की संगलित अवशिष्ट राख।

Clipping-- प्रकर्तन

मुद्रांकन (Stamping) या कषर्ण द्वारा चादरी धातु के खुरदरे किनारों का परिकर्तन करना।

Clock brass-- क्लॉक पीतल

मशीननीय मजबूत ताम्र मिश्रातु, जिसमें 57% जस्ता और 2% सीसा होता है इसका उपयोग छोटे गियरों और घड़ी के छोटे पुर्जों को बनाने में होता है।

Close annealing-- संवृत अनीलन

देखिए– Box annealing

Coal-- कोयला

काले अथवा धूसर-काले रंग का ठोस, दहनशील खनिज पदार्थ। यह वनस्पति पदार्थ के आंशिक अपघटन से प्राप्त होता है। जहाँ वायु आसानी से नहीं पहुँच पाती है। नमी की उपस्थिति और बहुधा उच्च दाब और ताप अपघटन को प्रभावित करते हैं। कोयले का प्राकृतिक ई्ंधन के रूप में उपयोग होता हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, और गंधक और अकार्बनिक घटक पाए जाते हैं। अकार्बनिक घटक, कोयले के जलने के बाद राख में विद्यमान रहते हैं।
देखिए– Anthracite coal bituminous coal, coke और Lignite तुलना– Peat

Coalesced copper-- संलयित ताम्र

एक प्रकार का ऑक्सीजन मुक्त तांबा। इसे प्राप्त करने के लिए कैथोड ताम्र के छोटे कणों का सामान्य ताप और लगभग 155ˉ m Nmˉ ² दाब पर इष्टिकायन किया जाता है। प्राप्त इष्टिकाओं को 870°–910°C ताप पर अपचायी वायुमंडल में गरम कर नियंत्रित वायुमंडल में उत्सारण किया जाता है।

Coal weathering-- कोयला अपक्षयन

पर्यावरण के साथ क्रिया होने से कोयले की गुणता में कमी में ह्रास होना।

Coarsening-- स्थूलन

किसी बहुक्रिस्टलीय पदार्थ के अणु के आमाप में वृद्धि तथा धात्विक संरचना में विभिन्न सूक्ष्म अवयवों के आमाप में वद्धि के लिए प्रयुक्त शब्द। यह क्रिया उच्च ताप पर गरम करने से होती है।
देखिए– Grain growth भी
कोबाल्टाइट
CoAsS, कोबाल्ट अयस्क जिसमें 35.5% कोबाल्ट होता है। कठोरता 5.5, आपेक्षिक घनत्व 6.0–6.3। इसे कोबाल्ट–ग्लांस भी कहते हैं। इस अयस्क में कभी-कभी लोहा भी होता है और तब खनिज का रासायनिक सूत्र [(CoFe).S. As] होता है।

Cobble-- कॉबल

एक प्रकार- का दोष जिसके कारण बेल्लित टुकड़ें में अनावश्यक विरूपण हो जाता है जिससे वह काम के योग्य नहीं रहता। यह विरूपण कई प्रकार का होता है और मुख्यतः पारण के समय नियंत्रण न रहने के कारण उत्पन्न होता है। यह दोष तप्त या अतप्त वेल्लन में अनेक चरणों पर हो सकता है। जैसे कॉगन मिल या शलाका मिल में ब्लूम को ऐंठकर जबकि शलाका, गाइड से छूट जाता है। प्लेट मिल में कॉबल, प्लेट का रूप ले सकता है जबकि बेल्लन की आकृति लेने के कारण उसका अंतिम भाग झुक जाता है। किंतु अतप्त बेल्लन में यह चादर या पट्टी के असमान विस्तार का रूप ले सकता है।

Cobble sheating alloy-- कॉबल आच्छदन मिश्रातु

एक भंगुर सीसा मिश्रातु जिसमें 1–3% वंग और शेष सीसा होता है इसका उपयोग केबल, पर्णी, कंडेन्सर संघनित्र और फ्यूजों में होता है।

Coffin axle process-- कॉफिन धुरा प्रक्रम

देखिए– Coffin process

Coffin process-- कॉफिन प्रक्रम

इस्पात के बने हिस्सों जैसे धुरी आदि में कणों की सूक्ष्मता और चर्मलता को बढ़ाने की विधि। इसमें पहले वस्तु को ऊपरी क्रांतिक बिंदु से अधिक ताप तक गरम किया जाता है फिर तेल में निचले क्रांतिक बिंदु तक शमन किया जाता है और अंत में हवा में ठंडा किया जाता है। इसे कॉफिन धुरा प्रक्रम भी कहते है।

Cogging-- कॉगन

इस्पात सिल्लियों पर की जाने वाली प्रथम बेल्लन क्रिया जिसका उद्देश्य स्थूल संचन संरचना को भंग कर शलाकाओं को आगामी बेल्लन के लिए ब्लूमों में बदलना है।

Cogging mill-- कॉगन मिल

देखिए– Blooming mill

Coherency-- संबद्धता

अवक्षेप और मूल प्रावस्था अथात मेट्रिक्स के जालक की सततता जो पारस्परिक प्रतिबल के कारण बनी रहती है और प्रावस्था-सीमा द्वारा पृथक नहीं होती।

Coherent precepitate-- संबद्ध अवक्षेप

वह अवक्षेप जिसकी मेट्रिक्स के साथ संबद्धता होती है। यह अतिसंतृप्त ठोस विलयन से प्राप्त होता है किन्तु विलायक की जालक बनाए रखता है यद्यपि यह जालक विकृत हो सकता है। ऐसे अवक्षेप की कोई प्रावस्था-सीमा नहीं होती है।

Cornage bronze-- मुद्रा कांसा

आघातवर्ध्य ताम्र मिश्रातु जिसमें 95% तांबा, 1% जस्ता और 4% वंग होता है। इसका उपयोग सिक्कों के निर्माण में होता है।

Coin silver-- मुद्रा रजत

संक्षारणरोधी रजत–ताम्र मिश्रातु जिसमें 10% तांबा होता है। अमेरिका में इसका उपयोग सिक्कों के निर्माण में किया जाता है।

Coke-- कोक

एक कठोर, सूक्ष्म कोशिकीय, कार्बनमय, अवाष्पशील संहति है। इस कोकिंग कोयले को वायु की अनुपस्थिति में गर्म करके तथा वाष्पशील द्रव्य को निष्कासित कर बनाया जाता है। यदि कार्बनन 500°–600° सें0 पर हो तो प्राप्त कोक अल्पताप कोक अथवा मधुछत्ता कोक कहलाता है और यदि ये प्रक्रम 1000° सें0 ताप के निकट हो तो प्राप्त कोक उच्चताप कोक अथवा धातुकर्मीय कोक कहलाता है।
देखिए– Carbonisation भी

Coking coal-- कोकन कोयला

देखिए– Carbonisatio
तुलना– Noncoking coal

Colclad-- कॉलक्लैड’

उन इस्पात उत्पादों का स्वामित-नाम जिनके एक ओर या दोनों ओर बेल्लन द्वारा निकेल, मोनेल या जंगरोधी इस्पात का लेप लगा होता है। इससे लेप के संक्षारणरोधी गुणों का और इस्पात की मजबूती और सस्तापन जैसे गुणों से मेल हो जाता है। इनका उपयोग पेट्रोरासायनिक, भेषजीय और खाद्य-संसाधन उद्योगों में होता है।

Cold bend test-- अतप्त वंक परीक्षण

धातु की तन्यता औ समांगता को निर्धारित करने का परीक्षण। इसमें नमूने को किसी अक्ष के चारों ओर अथवा निर्दिष्ट विस्तार के बाहरी अर्धव्यास के चारों ओर निर्दिष्ट कोण पर मोड़ा जाता है। आवश्यकतानुसार यह परीक्षण सामान्य वायु-मंडलीय ताप पर अथवा कम ताप पर किया जाता है।

Cold blast iron-- अतप्त धमित लोहा

कच्चा लोहा जिसमें सिलिकन की मात्रा कम होती है। इसे धमन भट्टी में बनाया जाता है। इसमें वायु को पहले गरम नहीं किया जाता। लोहे की यह किस्म अब बहुत कम बनाई जाती है।

Cold chamber process-- अतप्त कक्ष प्रक्रम

दाब-संचकन की एक विधि जिसमें सामान्य ताप पर पिघली धातु को साँचे में दाब पर प्रविष्ट किया जाता है।

Cold crack-- अतप्त दरार

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Cold drawing-- अतप्त–कर्षण

धातुओं को किसी रुपदा के बीच से खींच कर शलाका, नली अथवा तार आदि उपयुक्त रूप में परिसज्जित करना। नली बनाने के लिए कभी-कभी भीतरी मेंड्रेल का उपयोग किया जाता है।

Cold finishing-- अतप्त परिसज्जन

एक परिसज्जन क्रिया जिसमें धातु का अतप्त कर्मण किया जाता है। इसमें मुख्य कार्य पहले तप्त कर्मण द्वारा संपन्न कर लिया जाता है। बाद में अतप्त-कर्मण का उद्देश्य परिष्कृत, सहयता या यांत्रिक गुणधर्मों में सुधार करना है।

Cold galvanizing-- अतप्त यशंदन

इस्पात पर यशद का विद्युतलेपन यह विधि तप्त निभज्जन से भिन्न है जिसमें इस्पात को गलित जस्ते में डुबाया जाता है। इस शब्द का प्रयोग ऐसे पेन्ट करने के लिए भी किया जाता है जिसकी परत में 90% जस्त चूर्ण रहा है। यह जस्त चूर्ण किसी वायु शुष्कक पेन्ट द्वारा पृष्ठ पर चिपका रहता है। इस्पात पृष्ठ पर जस्ते को चिपकने के लिए कभी-कभी कार्बनिक विलायकों में क्लोरीनित रबर का उपयोग भी किया जाता है। इस प्रक्रम द्वारा इस्पात को संक्षारण से बचाया जाता है।

Cold metal process-- अतप्त धातु प्रक्रम

एक इस्पात-निर्माण-प्रक्रम जिसमें घान पूर्णतया ठोस धातु का होता है।

Cold reduction-- अतप्त न्यूनन

देखिए– Cold working

Cold rolling-- अतप्त बेल्लन

पुनर्क्रिस्टलन ताप से नीचे धातु को बेल्लित करना। प्रायः इस शब्द का प्रयोग उस धातु के लिए किया जाता है जिसे सामान्य ताप पर या उसके आसपास बेल्लित किया जाता है ताकि धातु की मोटाई कम तथा पृष्ठ चिकना बनाया जा सके और तनन-सामर्थ्य बढ़ जाए।

Cold shortness-- अतप्त भंगुरता

कुछ धातुओं में पुनर्क्रिस्टलन–ताप से नीचे पाई जाने वाली भंगुरता की अवस्था। लोह धातुओं में अतप्त भंगुरता, फॉस्फोरस के कारण होती है जो Fe₃P के रूप में रहता है अतः ऐसे धातुओं में यह वांछनीय है कि फॉस्फोरस की मात्रा अत्यंत अर्थात् 0.05% ही रहे।

Cold shot-- अतप्त रूक्षता

किसी संचक या पिंड के पृष्ठ का वह भाग जो असामयिक ठोस होना दर्शाता है। यह उड़ेलते समय धातु के आस्फाल के कारण होता है।

Cold shut-- अतप्त रोध

(1) किसी फोर्जन के पृष्ठ का एक भाग जिसे ऑक्साइड की परत, धातु के मुख्य पिंड से अंशतः पृथक करती है।
देखिए– Casting defect भी

Cold treatment-- शीत उपचार

विमीय अथवा संरचनात्मक स्थायित्व जैसे गुणधर्मों को या वांछित अवस्थाओं को प्राप्त करने के उद्देश्य से धातु को कठोरण के बाद कम ताप तक, प्रायः–73°C के आस-पास, ठंडा करना। इस उपचार के द्वारा आस्टेनाइट का मार्टेन्साइट में परिवर्तन हो जाता है।

Cold welding-- अतप्त वेल्डिंग

सामान्य ताप पर ठोस प्रावस्था में वेल्डिंग करना। जिन धातुओं की संरक्षी ऑक्साइड फिल्म नहीं होती (जैसे सोना और प्लेटिनम) तथा जिन धातुओं पर सुघट्य विरूपण द्वारा ऑक्साइड फिल्मों को आसानी से संपिदारित किया जा सकता है (अधिकांश सामान्य धातुएँ) उन्हें एक दूसरे के साथ घन ताड़न द्वारा अथवा बेल्लन द्वारा वेल्डित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ सीसा अथवा वंग लेपित इस्पात को सीसे के गलनांक से बहुत कम ताप पर बेल्लन द्वारा जोड़ा जा सकता है। इस प्रकार के वेल्डिंग में केवल दाब प्रयुक्त करने से स्पर्शी सतहों के परमाणु पास-पास आ जाते हैं और वेल्डिंग संभव हो जाता है।

Cold working-- अतप्त कर्मण

पुनर्क्रिस्टलन–ताप से नीचे किसी धातु का प्लास्टिक विरूपण जिससे स्थायी विकृति–कठोरण हो जाता है। वास्तव में पुनर्क्रिस्टलन ताप से काफी नीचे धातु का बेल्लन, कर्षण, स्वेजन घनताड़न अथवा वंकन किया जाता है। इसे अतप्त न्यूनन भी कहते हैं।
प्लास्टिक-विरूपण से प्रभ्रंश-घनत्व बहुत बढ़ जाता है और इन प्रभ्रंशो की परस्पर क्रिया से तथा कण-परिसीमा जैसे अवरोधों से प्रमाणक-सामर्थ्य तनन-सामर्थ्य, श्रांति-सामर्थ्य, कठोरता, विद्युतरोध तथा रसायन की क्रिया के फलस्वरूप विलयन-दर बढ़ जाते हैं और तन्यता तथा संघट्ट-सामर्थ्य घट जाते हैं। लोह मिश्रातुओं में प्रत्यास्थ मापांक अप्रभावित रहता है परंतु अलोह मिश्रातुओं में यह 20% तक बढ़ जाता है।
अतप्त कर्मण के प्रभाव को अनीलन से समाप्त किया जा सकता है। अतप्त कर्मण के बाद अनीलन ही एकमात्र विधि है जिससे शुद्ध धातुओं और अनेक ठोस विलयनों के कण–आमाप कम किया जा सकता है।

Collaring-- कॉलरन

बेल्लन मिलों में प्रयुक्त एक शब्द। इसका प्रयोग उस प्रवृति को व्यक्त करने के लिए होता है। जिसमें संसाधित हो रही धातु किसी एक बेलन के चारों ओर एकत्रित हो जाती है।

Colour etching-- रंग रसोत्कीर्णन

किसी धातु के निश्चित यौगिक की पतली फिल्म के बनने से उत्पन्न सूक्ष्म रसोत्कीर्ण। विषमांगता, फिल्म के स्वभाव और वृद्धि-दर को बदल देती है। फिल्म की मोटाई और अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होते हैं। परावर्तित प्रकाश से व्यक्तिकरण उत्पन्न होता है जिससे रंग बनते हैं। इस प्रकार रंग में अंतर से विषमांगता का पता लगता हैं।

Colouring-- रंजन

(1) रासायनिक या विद्युत-रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा धातु पर वांछित रंग उत्पन्न करना।
(2) उच्च द्युति उत्पन्न करने के उद्देश्य से धातु-पृष्ठ का बफन करना।

Colour metallography-- रंग धातु-चित्रण

धातु चित्रण नमूनों के चयनात्मक रसोत्कीर्णन और रंजन तथा फोटोग्राफी पुनरुत्पादनों का निर्माण और उनकी व्याख्या करने की तकनीकें। इससे नमूनों की संरचना और मिश्रात्वन–अवयवों के बारे में पता लगता है।
तुलना– Colouring –(1)

Columbite-- कोलंबाइट

(Fe Mn) (Cb, Ta)₂ O6, कोलांबियम और टैन्टेलम का अयस्क इसका अलग-अलग संघटन होता है। इसमें 3.3–31.5% Ta₂O₅ होता है। यह काले या धूसर-काले रंग के अपारदर्शी संहति के रूप में पाया जाता है जो कभी-कभी रंगदीप्त प्रदर्शित करता है। यह कोलंबियम और टैन्टेलम दोनों का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह भंगुर होता है। कठोरता 6, आपेक्षिक धनत्व 5.3–5.7।

Combination quenching-- संयुक्त शमन

किसी ऊष्मक में शमन करने का प्रक्रम जिसमें ऊपर का आधा भाग तेल और नीचे का आधा भाग पानी होता है। तेल में से गुजरते समय इस्पात आंशिक रूप से ठंडा हो जाता है और उसके बाहरी पृष्ठ पर तेल की परत जमा हो जाती है जिससे पानी में से गुजरते समय शमन क्रिया कम उग्र होती है।

Combustion-- दहन

रासायनिक अभिक्रिया जिसमें ईंधन के रूप में प्रयुक्त कार्बन, हाइड्रोजन आदि कोई तत्व है, ऑक्सीजन से संयोग करता है और अभिक्रिया के फलस्वरूप प्रकाश और ऊष्मा उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार से ईंधन का ऑक्सीकरण हो जाता है और दहन क्रिया बहुधा वायु में तथा उच्चताप पर उत्पन्न होती है।
पूर्ण दहन (Complete combustion)– किसी ईंधन का पूर्ण ऑक्सीकरण जिसमें उच्च ऑक्साइड प्राप्त होते हैं।
उदाहरणार्थ, C+O₂ –CO₂
अपूर्ण दहन (Incomplete combustion)– इसमें ईंधन का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता और निम्न ऑक्साइड बनते हैं।
उदाहरणार्थ, 2C + O₂–2CO

Comminution-- अवचूर्णन

दलन, अवघर्षण आदि बलकृत विधियों द्वारा किसी धातु का चूर्ण बनाना अथवा अयस्क के छोटे टुकड़े करना।

Compact-- संहत, संहति

चूर्ण धातुकर्मिकी में प्रयुक्त शब्द जिसका अर्थ है अकेले धातु, दो या अधिक धातुओं अथवा मिश्रातु के चूर्णों के संपीडन से बनी वस्तु, जिसमें बंधक के रूप में कभी-कभी अधातुओं को मिलाया जाता है।

Compactability-- संहतिशीलता

(1) वह चूर्ण जिसके स्थूल घनत्व के साथ संहति के अपक्व-घनत्व (green density) का उच्च अनुपात हो, उच्च संहतिशील चूर्ण कहलाता है। इसे संहत के कारण टूट जाने के अनावश्यक भय के बिना, इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे बाद में होनें वाले सिन्टरन प्रक्रम को पूरा करने में आसानी होती है।
देखिए– Compression ratio

Compensator alloy-- प्रतिकारी मिश्रातु

एक निकैल-तांबा मिश्रातु जिसमें 60% तक निकैल होता है। परिवेश ताप के साथ चुंबकशीलता में परिवर्तन होने के कारण इसका उपयोग विद्युत यंत्रों में किया जाता है।

Complete combustion-- पूर्ण दहन

देखिए– Combustion

Composite material-- संयुक्त पदार्थ

संरचना में सुधार लाने के लिए दो पदार्थों को मिलाने से बना पदार्थ। इसका उद्देश्य एक पदार्थ के वांछित गुणों को दूसरे के साथ मिलाना है। उदाहरणार्थ मृदा-धातु मिश्र, काँच-तंतु द्वारा प्रबलित प्लास्टिक आदि।

Compression ratio-- संपीडन अनुपात

संहत चूर्ण के आयतन के साथ अबद्ध चूर्ण के आयतन का अनुपात।

Compression test-- संपीडन परीक्षण

देखिए– Mechanical test के अंतर्गत

Concentration of ore-- अयस्क सांद्रण

वैल्यू से गैंग को पृथक करने की क्रिया ताकि धातुयुक्त खनिज उत्पाद में, जिसे सांद्र कहते हैं, वैल्यू की मात्रा बढ़ जाए। उसके लिए अनेक भौतिक अथवा भौतिक–रासायनिक गुणधर्मों का प्रयोग किया जाता है।
स्थिर वैद्युत् सांद्रण (Electrostatic concentration) अयस्क सांद्रण की एक विधि जो इस सिद्धांत पर आधारित है कि समान आवेश परस्पर प्रतिकर्षित तथा असमान आवेश परस्पर आकर्षित करते हैं। इसमें प्रभरण पदार्थों को घूमते हुए ड्रम के ऊपर से गुजारा जाता है जो ऋण इलेक्ट्रोड का काम करता है। कुछ दूरी पर एक अन्य ड्रम, पहले ड्रम की अपेक्षा उल्टी दिशा में घूमता है जो धन इलेक्ट्रोड का काम करता है। इस प्रकार स्थिर वैद्युत क्षेत्र बन जाता है। प्रभरण पदार्थ के कण-कण अपनी-अपनी चुंबकीय प्रवृति के अनुसार स्थिर वैद्युत बल रेखाओं के साथ गमन करते हैं। अ-प्रतिकर्षित पदार्थ ऊर्ध्वाधर तल में और प्रतिकर्षित पदार्थ ऊर्ध्वाधर के कुछ आगे की ओर जमा हो जाते है।
फेन प्लवन सांद्रण (Froth flotation concentration)– सांद्रण की इस विधि में पिसे हुए अयस्क में हवा के बुलबुलों को प्रविष्ट कराकर जोर से हिलाया जाता है। क्रिया बड़े पात्रों में की जाती है जिनमें पानी, तेल और अन्य पदार्थ होते हैं जो कणों पर विशेष पृष्ठीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं। खनिज के कण तेल से गीले होकर तथा चिपके हुए हवा के बुलबुलों से उत्प्लावित होकर सतह पर तैरने लगते हैं।
गुरुत्वं सांद्रण (Gravity concentration)– इस विधि द्वारा सांद्रण इस सिद्धांत पर आधारित है कि विभिन्न खनिजों का घनत्व भिन्न भिन्न होता है और यह अंतर जितना अधिक होगा सांद्रण उतनी ही अधिक दक्षता से किया जा सकेगा। विशेष पात्रों में अयस्क को पानी के साथ हिलाया जाता है तो भारी कण, चाहे उनका आमाप कुछ भी हो, पात्र की तली में बैठ जाते हैं तथा हलके कण सतह पर तैरने लगते हैं। इस विधि का उपयोग फेन-प्लवन विधि के साथ भी किया जाता है।
चुंबकीय सांद्रण (Magnetic concentration)— चुंबक द्वारा अचुंबकीय पदार्थ से चुंबकीय पदार्थ को पृथक करना। जिन पदार्थ को पृथक करना होता है उसे वाहक पेटी के ऊपर ले जाया जाता है।

Concentration circuit-- सांद्रण परिपथ

खनिज सज्जीकरण (Mineral benefication) के संदर्भ में यह शब्द प्रक्रम आरेख (Flow sheet) में प्रयुक्त विभिन्न सांद्रण इकाइयों के भौतिक विन्यास को व्यक्त करता हैं। विभिन्न सांद्रण-परिपथ इस प्रकार है :–
(1) रूक्षण (Roughing)
देखिए– Breaking dow
(2) अपमार्जन (Scavenging)– अपेक्षाकृत रुक्ष पछोड़नों का पुनः उपचार करना ताकि उसमें विद्यमान वैल्यू को प्राप्त किया जा सके।
(3) निर्मलन (Cleaning)– अपेक्षाकृत स्थूल सांद्र का पुनः उपचार करना ताकि उसकी कोटि को बढ़ाया जा सके।
(4) पुनः निर्मलन (Re-cleaning)– अपेक्षाकृत निर्मल सांद्र का पुनः उपचार करना ताकि उसकी कोटि में और वृद्धि की जा सके।

Conductometri analysis-- चालकत्वमितीय विश्लेषण

विश्लेषण की एक भौत रासायनिक विधि जिसमें विश्लेष्य घटकों के सांद्रणों को मापने के लिए विद्युत अपघट्यों की विद्युत चालकता का प्रयोग किया जाता है। इस्पात के संदर्भ में इस विधि का प्रयोग उनमें कार्बन की सूक्ष्म मात्राओं को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। कार्बन-ऑक्साइड के अवशोषण के फलस्वरूप बेरियम हाइड्रॉक्साइड विलयन की चालकता में हुए परिवर्तन को मापा जाता है।

Cone mill-- शंकु मिल

सीवनहीन इस्पात–नलियों के उत्पादन की मिल जिसमें 60°C कोण पर स्थिर शंक्वाकार बेलनों का प्रयोग किया जाता है।

Conform-- कॉन्फॉर्म

एक नया उत्सारण प्रक्रम जिसमें बिलेट और पात्र के बीच उत्पन्न सामान्य घर्षण का उपयोग रूपदा के द्वारा उत्सारण के लिए आवश्यक दाब उत्पन्न करने के लिए किया जाता है और इस प्रकार ऊर्जा की बचत हो जाती है। इसमें स्टॉक को पहले एक खाचित पहिए में और फिर धातु को स्थिर ब्लाक (जिसे शू कहते हैं) में भर दिया जाता है जिसमें उत्सारण रूपदा लगी होती है। शू, उत्सारण कक्ष का बंद सिरा बनता है। पहिए के घूमने से उत्पन्न घर्षण-बलों के कारण स्टॉक का दाब बढ़ जाता है और फलस्वरूप ताप भी बढ़ जाता है। शू के अंत में एक आधार होता है जिस पर रूपदा स्थित रहती है और उसमें से स्टॉक को बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है, जैसा कि सामान्य उत्सारण-प्रक्रम में होता है। यह पहला सफल सतत् उत्साण प्रक्रम है।

Conpernik-- कानपर्निक

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 50% लोहा और 50% निकैल होता है। अभिवाह घनत्व के विस्तृत परास तक इसकी चुंबकशीलता स्थिर रहती है। इसका उपयोग वैद्युत चुंबकीय युक्तियों में किया जाता है।

Constantan-- कान्सटेन्टन

निकैल-ताम्र मिश्रातु जिसमें 40% निकैल और 60% तांबा होता है। निकैल की उपस्थिति इस मिश्रातु के अवरोध को बहुत बढ़ा देती है। अन्य निकैल-ताम्र मिश्रातुओं की अपेक्षा इसका ताप गुणांक कम और तापीय वि0वा0ब0 सर्वाधिक है। अवरोधकता 49.1 ओम/ सेमी0, घनत्व 8.88, औसत ताप–गुणांक –0.00002। इसका उपयोग अवरोधक कुंडलियों और ताप युग्मों को बनाने के लिए होता है। इसे 900°C ताप तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

Constitution diagram-- संघटन आरेख

देखिए– Phase diagram

Consumable lance-- उपभोज्य लान्स

देखिए– Lance के अंतर्गत

Contact arc welding-- संपर्क आर्क वेल्डिंग

विशेष रूप से अत्यधिक लेपित इलेक्ट्रोड द्वारा आर्क-वेल्डिंग करने का प्रक्रम। यह इलेक्ट्रोड, वेल्डिंग की जाने वाली वस्तु के साथ एक कोण बनाते हुए इस तरह उसके संपर्क में रहता है ताकि क्रोड और वेल्डिंग की जाने वाली वस्तु के बीच निश्चित आर्क-दूरी बनी रहे।

Contact infiltration-- संपर्क अंतःस्यंदन

देखिए– Infiltration के अंतर्गत

Continuous casting-- सतत संचकन

पिंडों, बिलेटों, नलियों आदि को बनाने की संचकन-तकनीक। इस तकनीक में गलित धातु साँचे के एक सिरे से डाली जाती है और दूसरे सिरे से ठोस धातु लगातार निकलती रहती है। इस तरह उत्पाद की लंबाई, साँचे की लंबाई पर निर्भर नहीं करती है।

Continuous cooling transformation curve-- सतत शीतलन रूपांतरण वक्र

सतत शीतलन रूपांतरण आरेख जो भिन्न-भिन्न शीतलन-दरों पर किसी मिश्रातु को लगातार ठंडा करने से उसमें उत्पन्न प्रावस्था-रूपांतरणों को प्रदर्शित करता है। इस आरेख को अक्सर सी0सी0टी0 वक्र भी कहते हैं।

Continuous mill-- सतत मिल

क्रम में और आपेक्षिक गतियों के अनुसार व्यवस्थित बेलनों की श्रेणी। ये बेलन इस प्रकार नियंत्रित रहते हैं कि धातु की पट्टी आदि कोई वस्तु जैसे जैसे मिल में चलती जाती है वह लगातार और क्रमशः बेल्लित होकर पतली होती जाती है तथा पतली होने के साथ वस्तु का वेग भी बढ़ता जाता है।

Copel-- कोपेल

एक निकैल-तांबा मिश्रातु जिसमें 55% निकैल और 45% तांबा होता है। इसका प्रतिरोध ताप-गुणांक कम होता है। इसका उपयोग विद्युत यंत्रों में प्रतिरोध कुंडली के रूप में किया जाता है। इसे कांस्टेन्टन भी कहते हैं।

Continuous operation (process)-- सतत प्रचालन

वह प्रचालन जिसमें प्रभरण पदार्थ को प्रक्रमण यूनिट के एक सिरे से लगातार डालते रहते हैं और उत्पाद दूसरे सिरे से निकलते रहते हैं। उदाहरणार्थ ड्वाइट लॉयड सिंटरन मशीन, सतत संकचन, घूर्णी भट्टा आदि।
तुलना– Batch operation

Contorograph-- पृष्ठसज्जालेखी

पृष्ठसज्जा को रिकार्ड करने का यंत्र। इसमें पृष्ठ और घूमती हुई ग्रामोफोन की सूई की परस्पर आपेक्षिक ऊर्ध्वाधर गति को प्रकाशतः परिवर्धित कर रिकार्ड कर लेते हैं।

Controlled atmosphere-- नियंत्रित वायुमंडल

कोई गैस या गैसों का मिश्रण जो ऊष्मोपचार के समय धात्विक वस्तुओं के साथ किसी रासायनिक क्रिया को रोकता या मंद करता है।
देखिए– Protective atmosphere भी

Converter-- परिवर्तित्र

एक प्रकार की भट्टी जिसमें अपरिष्कृत धातु का परिष्करण किया जाता है। मुख्यतः इसके निम्नलिखित प्रकार होते हैं।
बेसेमर परिवर्तित्र (Bessemer converter)
इस्पात का बना नाशपाती के आकार का एक पात्र जिसका निचला हिस्सा अलग हो सकता है। अम्ल बेसेमर परिवर्तित्र में सिलिका की ईंटों का आस्तर जबकि क्षारकीय बेसेमर परिवर्तित्र में टारयुक्त डोलोमाइट का आस्तर लगा रहता है। परिवर्तित्र इनमें टूनियनों में आरूढ़ रहता है और 360° तक घूम सकता है। इनमें एक टूनियन खोखला होता है ताकि उसमें से हवा जा सके। पैंदे में टूवीयर और एक वात-पेटिका होती है। यह वात-पेटिका खोखले टूनियन से जुड़ी रहती है। इसका उपयोग इस्पात-निर्माण में किया जाता है। पहली बार के उत्पादन को निकाल लेने के बाद गरम धातु प्राप्त करने के लिए परिवर्तित्र को क्षैतिज स्थिति में रख लिया जाता है। धातु का ट्रवीयर छिद्रों में प्रवेश रोकने के लिए भरे पात्र को खड़ा करने से पहले वायु का झोंका प्रवाहित किया जाता है जो ऑक्सीकरण का काम भी करता है।
ग्रेट फाल्स परिवर्तित्र (Great Falls converter)
यह एक पार्श्व धमित परिवर्तित्र है जिसका उपयोग ताम्र मैट को फफोलेदार तांबे में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है। आजकल यह इस्तेमाल नहीं होता है।
काल्डो परिवर्तित्र (Kaldo converter)
यह एल0 डी0 परिवर्तित्र का उन्नत रूप है। यह एल0 डी0 परिवर्तित्र से इस बात में भिन्न है कि इसमें ऑक्सीजन अतःक्षिप्त करते समय परिवर्तित्र घूर्णन करता है ताकि धातुमल और धातु का परस्पर संपर्क हो सके और अभिक्रियाएं पूरी हो सकें। एक सिरे पर स्थित केंद्रीय द्वार से परिवर्तित्र में जलशीतित ऑक्सीजन लांस प्रविष्ट किया जाता है। परिवर्तित्र में टारयुक्त डोलोमाइट का आस्तर लगाकर उसे क्षैतिज से 17° पर झुका दिया जाता है। घूर्णी लोस के अतिरिक्त पात्र के लगभग 180° कोण पर आनत किया जा सकता है जिससे घान डालने, गालक मिलाने, प्रचालन और निकासन में सुविधा रहती है।
एल0डी0 परिवर्तित्र (L.D. converter)
इस्पात निर्माण में गैसीय ऑक्सीजन का सबसे अधिक सफल अनुप्रयोग शीर्षधमित परिवर्तित्र में किया जाता है। इस प्रक्रम को एल0डी0 प्रक्रम कहते हैं। यह नाम आस्ट्रिया के लिन्त्स और डोनाविट्ज नाम के दो नगरों के नाम पर रखा गया है जहाँ इस प्रक्रम द्वारा सर्वप्रथम इस्पात बनाया गया था। यह वास्तव में बेसेमर परिवर्तित्र का उन्नत रूप है। इसमें वायु के स्थान पर ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है तथा वात्या को घान के ऊपर प्रवाहित किया जाता है।
यह नाशपाती के आकार का एक पात्र होता है जिसका अधस्तल बंद रहता है। इसमें घान के रूप में ऊर्ध्व अवस्था में इस्पात स्क्रैप और गरम धातु डाले जाते हैं। ऑक्सीजन को पात्र की नासिका से जलशीतित नली अथवा लांस द्वारा प्रविष्ट किया जाता है।
पियर्स स्मिथ परिवर्तित्र (Pierce Smith converter)
यह एक बेलनाकार पात्र होता है जिसमें 100-200 टन मैट समा सकता है। इसमें प्रगलन से प्राप्त गलित मैट का घान डाला जाता है और वायु के पार्श्वधमन द्वारा (1) ताम्र-मैट को ताम्र में (2) निकेल मैट को कॉपर सल्फाइड, निकैल सल्फाइट और Cu-Ni-Co मिश्रातु में परिवर्तित किया जाता है।
रोटर परिवर्तित्र (Rotor converter)
यह एक घूर्णी भट्टी है जिसकें दोनों सिरों पर द्वार होते हैं। एक द्वार से कच्चा लोहा धातुमल और ऑक्सीजन प्रविष्ट करते हैं तथा दूसरे से अपशिष्ट गैसें बाहर निकलती हैं। दूसरे सिरे पर एक निकास छिद्र भी होता है। घूर्णन की गति को 0.1 और 0.5 घूर्णन प्रति मिनट के बीच घटाया-बढ़ाया जा सकता है। ऑक्सीजन को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित दो जल-शीतित लांसों द्वारा प्रविष्ट किया जाता है जिसमें एक गलित धातु के पृष्ठ के नीचे और दूसरा कधह के पृष्ठ के ऊपर होता है। यह परिवर्तित्र क्षैतिजतः आरूढ़ रहता है जिसे धातुमल निकालने के लिए आनत किया जा सकता है। इस विधि से अच्छी कोटि का इस्पात प्राप्त होता है जिसमें गंधक की मात्रा बहुत कम होती है।
थॉमस-गिलक्रिस्ट परिवर्तित्र(Thomas Gilchrist converter)
यह एक क्षारकीय बेसेमर परिवर्तित्र है जिसमें क्षारकीय उच्चतापसह पदार्थ का आस्तर लगा होता है। इसका उपयोग ऐसे कच्चे लोहे के लिए किया जाता है। जिसमें फॉस्फोस की मात्रा 1.5 प्रतिशत से अधिक होती है। इसमें धातुमल का अत्यंत क्षारकीय और ऑक्सीकारक होना आवश्यक है ताकि फास्फोरस धातुमल में ही रहे।

Cope-- शीर्षार्ध

किसी ढलाई-साँचे का ऊपरी हिस्सा।
तुलना– Drag

Core-- क्रोड

(1) पृष्ठ कठोरित (Case hardened) इस्पात का भीतरी अकार्बुरित भाग जो पृष्ठीय-पर्त से मुलायम माना जाता है।
(2) साधाण ढलाई में क्रोड, बालू का बना वांछित आकार का टुकड़ा होता है जो साँचे में इस प्रकार रखा रहता है कि उसे द्रव धातु घेर लेता है। जब उसे हटाया जाता है तो बनने वाला साँचा खोखला रह जाता है।
(3) आच्छद-उत्पाद का आधारी भाग।

Core print-- क्रोड प्रिंट

(1) किसी साँचे में बने प्रखाँच जिनमें क्रोडों के सिरों को रखा जाता है।
(2) किसी पैटर्न में बने उभार जो साँचे में प्रिंन्टों को बनाते एवं उनका पता लगाते हैं।

Corhart-- कोर्हार्ट

प्राकृतिक बॉक्साइट से बनी संगलन-संचक उच्चतापसहशाला।

Coring-- क्रोडन

किसी संचक के क्रिस्टलों का संघटन के अनुसार विभाजन जिसमें सबसे अधिक शुद्ध पदार्थ बीच में रहता है यह उन मिश्रातुओं में होता है जिनकी लिक्लिडस और सॉलिड्स अवस्थाओं में विशेष अंतर रहता है। क्रोडन को बहुधा अनीलन और तप्त-कर्मण द्वारा समाप्त किया जा सकता है। इसका उपयोग अंचल-परिष्करण तकनीक में अत्यंत शुद्ध धातुओं को प्राप्त करने के लिए होता है।

Corronizing process-- कॉरोनन प्रक्रम

संरक्षी लेप उत्पन्न करने का एक पेटेन्टित प्रक्रम। इसमें आधारी धातु (फेरस और ताम्र आधारी मिश्रातु) पर निकैल की एक समान परत चढ़ाई जाती है और निकैल पर बंग अथवा जस्ते का लेप किया जाता है। लेपित पदार्थ को 170°C –400°C (बंग या जस्ते के गलनांक के कम ताप) के बीच पर्याप्त समय तक गरम किया जाता है ताकि बंग का कुछ भाग, निकैल-लेप की बाहरी परतों में विसरित हो जाए।
संरक्षी-प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें क्रमशः बदलते संघटन वाली मिश्रातु परतों की श्रेणी बनती है जिसमें से प्रत्येक परत अपनी निचली परत से उत्कृष्ट होती है। कॉरोनन का मुख्य उपयोग धातुओं को गंधक से संरक्षण प्रदान करने में किया जाता है।

Corrosion-- संक्षारण

पर्यावरण के साथ रासायनिक या वैद्युत रासायनिक क्रिया द्वारा धातुओं अथवा मिश्रातुओं का क्षय। उदाहरणार्थ लोहे पर जंग लगना। आर्द्रता अथवा अनुकूल तत्वों और अवयवों की उपस्थिति के कारण (जैसे औद्योगिक वायुमंडल में गंधक, समुद्री वायुमंडल में नमक की फुहार और रासायनिक संयंत्रों में रासायनिक द्रव्य) क्षय की दर बढ़ जाती है। ऑक्सीजन का काम अलग-अलग अवस्थाओं में अलग-अलग होता है। लोहे के सीधे ऑक्सीकरण से पपड़ी बन जाती है जिससे आगे संक्षारण नहीं होता। ऑक्सीजन की सीमित मात्रा से वैद्युतरासायनिक क्रिया द्वारा संक्षारण दर बढ़ जाती हैं। जब दो भिन्न धातुओं को किसी द्रव में एक दूसरे के संपर्क में रखा जाता है तो संक्षारण-धाराएँ प्रवाहित होती हैं।
जब तांबा निकैल, वंग आदि कैथोडी धातुओं का इस्पात के लेपन में उपयोग किया जाता है, तो परत के टूटने पर संक्षारण होता है। अच्छे संरक्षण के लिए इस्पात का जस्त, ऐलुमिनियम आदि ऐनोडी धातुओं का लेप किया जाता है।
प्रतिबल संक्षारण (Stress corrosion)– यांत्रिक-प्रतिबल और संक्षारक पर्यावरण की युग्म प्रक्रिया से किसी पदार्थ के यांत्रिक गुणों का तीव्र ह्रास होना। यह ह्रास उपर्युक्त दोनों क्रियाओं के पृथक ह्रासों के योग से अधिक होता है।

Corrosion fatigue-- संक्षारण-श्रांति

एक साथ प्रत्यावर्ती प्रतिबलों और संक्षारण के प्रभाव में रखने के कारण संविरचित हिस्सों का काम न कर पाना। जब प्रत्यावर्ती प्रतिबल-चक्रों के समय रासायनिक क्रिया होती है तो धातु की सहायता बहुत घट जाती है। परीक्षण की सामान्य स्थितियों में पदार्थ की श्रांति सीमा से कम प्रतिबलों पर हानि यथासमय होती है। यह हानि संक्षारण के कारण पृष्ठ के कमजोर होने से नहीं बल्कि संरक्षी ऑक्साइड की परत के टूट जाने और पृष्ठ पर अति सूक्ष्म दरारों में संक्षारक पदार्थ के भर जाने से होती है। ऐसी परिस्थितियों में चरम तनन सामर्थ्य और सहायता सीमा के बीच सामान्य संबंध सार्थक नहीं रहता। साथ ही, कोई निर्दिष्ट सहायता-सीमा नहीं होती है और धातु का अनुप्रयोग मुख्यतः धातु की संक्षारणरोधिता पर निर्भर करता है।

Corundum-- कोरंडम

Al₂O₃, ऐलुमिनियम खनिज जिसका उपयोग अपघर्षक या बहुमूल्य पत्थर के रूप में होता है। इसके अभिनताक्ष क्रिस्टल होते हैं। यह हीरे के समान कठोर होता है और पारदर्शक अवस्था में अनेक बहुमूल्य पत्थरों के रूप में मिलता है। ओरिएन्टल पुखराज का रंग पीला, नीलम का रंग नीला, माणिक्य (ruby) का रंग लाल, ओरिएन्टल एमिथिस्ट का रंग बैंगनी और ओरिएन्टल एमेरेल्ड का रंग हरा होता है। कठोरता 9, आपेक्षिक घनत्व 3.9–4.1 कृत्रिम कोरंडम बनाने के लिए बॉक्साइट का विद्युत-भ्राष्ट्र में संगलन किया जाता है जो बाजार में एलंडम या एलॉक्साइट के नाम से बिकता है।

Country rock-- स्थानीय शैल

खनिज शिराओं द्वारा अंतर्वेधित चट्टान के लिए प्रयुक्त शब्द। विस्तृत संदर्भ में इसका प्रयोग उन चट्टानों के लिए होता जिन पर आग्नेय अंतर्वेधन हुआ हो।

Covellite-- कोवेलाइट

CuS, सल्फाइड ताम्र अयस्क जिसमें 66.5% तांबा होता है। यह प्रायः संहति के रूप में और कभी-कभी षट्कोणीय क्रिस्टलों के रूप में भी पाया जाता है इसकी द्युति अर्धधात्विक और नील के समान रंग होता है। आपेक्षिक घनत्व 4.6। इसे कोबेलाइन भी कहते हैं।

Covering power-- आच्छादन-क्षमता

विद्युत-निक्षेपण में प्रयुक्त शब्द जो यह दर्शता है कि विद्युत निक्षेपित धातु, कैथोड-के कितने क्षेत्र का आच्छादन कर पाती है।
तुलना– Throwing power

Cowper stove-- काउपर स्टोव

देखिए– Stove

Crack (longitudinal)-- दरार (अनुदैर्ध्य)

देखिए– Weld defect के अंतर्गत

Crater crack-- प्रगर्त दरार

देखिए– Weld defect के अंतर्गत

Crazing-- क्रेजन

बहुधा ताप-आघातों के फलस्वरूप उत्पन्न पृष्ठीय दरारों का जाल, जैसे ढलवाँ लोहे की साँचे में बन जाते हैं।

Creep-- विसर्पण

प्रतिबल के प्रभाव में उत्पन्न होने वाली विकृति जो समय पर आश्रित होती है। यह तीन प्रकार की होती है।
प्राथमिक विसर्पण (Primary creep)– असमान दर पर होने वाली विकृति।
द्वितीयक विसर्पण (Secondary creep)– न्यूनतम और नियत दर पर होने वाली विकृति।
तृतीयक विसर्पण (Tertiary creep)– त्वरित दर पर होने वाली विकृति। बहुत कम प्रतिबलों में यह अवस्था या तो अनुपस्थित रहती है अथवा परीक्षण के दौरान आ नहीं पाती।

Creep limit-- विसर्पण सीमा

देखिए– Creep strength

Creep strength-- विसर्पण सामर्ध्य

नियत ताप पर और दिए गए समय में प्लैस्टिक विरूपण की विशिष्ट मात्रा उत्पन्न करने वाला इकाई प्रतिबल। यह वह प्रतिबल है जो दिए गए ताप पर 10,000 घंटे में 0.10 प्रातशत दैर्ध्यवृद्धि उत्पन्न करता है। इसे विसर्पण सीमा (Creep limit) भी कहते है।

Creep test-- विसर्पण परीक्षण

दिए गए ताप पर और निश्चित भार पर धातुओं का प्रसार मालुम करने की विधि। इसमें निश्चित भार पर समय-दैर्ध्यवृद्धि वक्रों को आलेखित किया जाता है। यह परीक्षण लंबी अवधि तक चलता है।
देखिए– Mechanical test भी

Critical air-blast-- क्रांतिक वात्या

प्रज्वलित कोक-संस्तर में दहन को बनाए रखने के लिए आवश्यक न्यूनतम वात्या-दर।

Critical cooling rate-- क्रांतिक शीतलन दर

सतत शीतलन की न्यूनतम दर जो अवांछित रूपांतरणों को रोकने के लिए पर्याप्त हो। इस्पात के संदर्भ में इसका अर्थ है, Ms से ऊपर किसी ताप पर ऑस्टेनाइट का विघटन रोकने के लिए ऊपरी क्रांतिक ताप से भी अधिक ताप से ठंडा करने की मंदतम-दर।

Critical diameter-- क्रांतिक व्यास

कठोरणीयता के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द। किसी इस्पात के बेलन का अधिकतर व्यास जिसका शमन द्वारा पूर्णतः कठोरण किया जा सके।
देखिए– Hardenability भी

Critical nucleus size-- क्रांतिक नाभिक आमाप

नाभिकीयन और वृद्धि परिघटना के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द। यह नाभिक का भी न्यूनतम आमाप है जिस पर उसकी स्थायी वृद्धि आरंभ होती है।

Critical poimt-- क्रांतिक बिंदु

1. वह ताप अथवा दाब जिस पर क्रिस्टल संरचना, प्रावस्था अथवा भौतिक गुणधर्मों में परिवर्तन होता है।
2. साम्यावस्था-आरेख में संघटन, ताप और दाब अथवा इनके संयुक्त रूप का विशिष्ट मान, जिस पर असभांग तंत्र की प्रावस्थाएँ साम्यावस्था पर रहती हैं।

Critical resolved shear stress-- क्रांतिक वियोजित अपरूपण प्रतिबल

वह प्रतिबल जिस पर किसी क्रिस्टल के अंदर स्थिर विशेष तल पर सर्पण आरंभ होता है।

Critical temperature-- क्रांतिक ताप

(1) यदि दाब नियत हो तो क्रांतिक –बिन्दु का पर्यायवाची नाम।
(2) वह ताप जिसके ऊपर, दाब में वृद्धि करने से वाष्प-प्रावस्था को द्रव में संघनित नहीं किया जा सकता है। इसे रूपांतरण ताप भी कहते हैं।

Crocoite-- क्रोकोआइट

PbCrO₄, ऑक्सीकृत सीसा खनिज जिसमें 64.1% सीसा और 16.1% क्रोमियम होता है। यह गैलेना और वैनेडिनाइट के साथ पाया जाता है।

Cronite alloy-- क्रोनाइट मिश्रातु

ऊष्मारोधी और संक्षारणरोधी फेरस मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिनमें निकैल, क्रोमियम और वुल्फ्रैम के अतिरिक्त 0.2 –0.75% कार्बन होता है। इसका उपयोग उच्चताप उपकरणों, भट्टियों और इंजन के हिस्सों के निर्माण में होता है।

Cropping-- अपकर्तन

कर्मण से पहले किसी पिंड या ब्लूम को सिरों से अथवा बेल्लित अथवा फोर्जित उत्पादों से अवांछित अंश को काटकर अलग करना।

Cross slip-- क्रॉस सर्पण

एक सर्पण-तल से अन्य प्रतिच्छेदी तल में किसी प्रभंश की गति। इसके लिए विस्तृत-प्रभंशों (Extended dislocations) को संपीडित किया जाता है। प्रायः देखा जाता है कि उच्च चिति दोष ऊर्जा (Stacking fault energy) के साथ क्रॉस-सर्पण की प्रवृत्ति विशेष रूप से रहती है। श्रांति में इस घटना का विशेष महत्व है।

Crucible furnace-- क्रूसिबल भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत

Crude metal-- अपरिष्कृत

निष्कर्षण से प्राप्त धातु, जिसमें अपद्रव्य इतनी अधिक मात्रा में होते हैं कि परिष्कृत किए बिना उसे अन्य कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

Cryolite-- क्रायोलाइट

Na₃AlF₆, ऐलुमिनियम खनिज जिसमें 13% ऐलुमिनियम और 54.4% फ्लुओरीन होता है। इसका उपयोग ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में प्रयुक्त हाल प्रक्रम में ऐलुमिना को विलीन करने में होता है। यह सोडियम और ऐलुमिनियम लवणों के बनाने तथा सफेद पोर्सिलेन काँच के निर्माण में भी प्रयोग होता है। (कठोरता 2.5, आ. घ, 2.97)।

Crystallization-- क्रिस्टलन

किसी ठोस क्रिस्टलीय प्रावस्था का उसकी द्रव-प्रावस्था से शीतलन द्वारा पृथक होना।

Crystallography-- क्रिस्टलिकी

वह विज्ञान जिसमें क्रिस्टलों की संरचना और गुंणधर्मों का अध्ययन किया जाता है।

Cunico-- क्यूनिको

तांबा, निकैल और कोबाल्ट के मिश्रातुओं की दो श्रेणियाँ। एक में 21% निकैल और 29% कोबाल्ट तथा दूसरें में 41% निकैल और 24% कोबाल्ट होता है। ये स्थायी चुंबक मिश्रातु हैं जिनमें लोहा नहीं होता।

Cupellation-- क्यूपेलन

उत्कृष्ट धातुओं के परिष्करण का एक प्रक्रम। इसमें पिघले हुए स्वर्ण एवं रजत से ऑक्सीकण द्वारा सीसा तथा अन्य निकृष्ट धातुओं को अलग किया जाता है।

Cupola-- क्यूपोला

एक बेलनाकार ऊर्ध्वाधर भट्टी जो धातुओं को, विशेष रूप से ढलाई में प्रयुक्त ढलवाँ लोहे को, पिघलाने के काम आती है। इसमें धातु, कोक और गांलक को भट्टी के ऊपर से डाला जाता है जो वायु प्रवाहित गरम कोक के संपर्क में आते हैं।

Cupping test-- चषकन परीक्षण

देखिए– Mechanical text के अंतर्गत

Cuprite-- क्यूप्राइट

Cu₂O, ऑक्सीकृत ताम्र अयस्क, जिसमें 88.8% तांबा होता है। इसके त्रिसमलंबाक्ष क्रिस्टल होते हैं। कठोरता 3.5–4, आपेक्षिक घनत्व 5.8–6.15।

Cupro-nickel-- ताम्र-निकैल

ताम्र-निकैल मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें 15%–75% तक निकैल होता है। ये अत्यंत तन्य तथा अच्छे संक्षारणरोधी होते हैं। सबसे अधिक प्रचलित मिश्रातु में 20–30% निकैल होता है जिसका उपयोग संघनित्र–ट्यूबों में किया जाता है।

Curie point-- क्यूरी-बिंदु

वह रूपान्तरण ताप जिसके नीचे लोहा, कोबाल्ट, निकैल अथवा वे मिश्रातु जिनमें ये तत्व मौजूद हों, चुंबकीय होते हैं और इस ताप के ऊपर वे अपने चुंबकीय गुण खो देते हैं। शुद्ध लोहे का क्यूरी–बिंदु 768°C है।

Current efficiency-- धारा दक्षता

किसी विद्युत रासायनिक प्रक्रम में विद्युत धारा द्वारा निक्षेपित पदार्थ की मात्रा का और फैराडे नियम द्वारा परिकलित मात्रा का अनुपात। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। इसे इलेक्ट्रोड दक्षता भी कहते हैं।

Cutlery steel-- कटलरी इस्पात

एक प्रकार का स्टेनलेस इस्पात जिसका उपयोग कटलरी के निर्माण में होता है।
देखिए– Stainless steel भी

Cyanidation-- सायनाडन

देखिए– Cyanide process

Cyanide process-- सायनाइड प्रक्रम

इस प्रक्रम में स्वर्ण और रजत अयस्कों को बारीक पीसकर उनका सोडियम अथवा पोटैशियम सायनाइड के तनु विलयनों के साथ निक्षालन किया जाता है। धातु अंश घुलकर संकुल सायनाइड बना लेते हैं। विलयन को छानकर सीमेंटीकरण द्वारा यशद की मदद से स्वर्ण और रजत का पुनः अवक्षेपण कर लिया जाता है। स्वर्ण और रजत के निष्कर्षण की यह विधि मैकार्थर फारेस्ट सायनाइड प्रक्रम कहलाती है। इसे सायनाइडन भी कहते हैं।

Cyaniding-- साइनाइडन

देखिए– Case hardening के अंतर्गत

Cyclic annealing-- चक्रीय अनीलन

अंतरायित शमन की एक विधि। इसमें पहले इस्पात को आस्टेनाइटन ताप (लगभग 815°C) तक गरम किया जाता है और फिर दूसरे ऊष्मक में 595°C–705°C ताप के बीच उसका शमन किया जाता है। जहाँ रूपांतरण पूरा करने के लिए उसे इस्पात के लिए S–वक्र द्वारा निर्दिष्ट समय तक रखा जाता है। इस विधि द्वारा आस्टेनाइट का फेराइट और फर्लाईट की वांछित मृदु संरचना में परिवर्तन हो जाता है। तत्पश्चात् उसका पानी या हवा में यथाशीघ्र शमन किया जाता है। विश्लेषण तथा इस्पात के द्रव्यमान के अनुसार संपूर्ण संक्रिया में 30 मिनट से लेकर कुछ घंटो तक का समय लगता है।
देखिए– Annealing के अंतर्गत Isothermal annealing भी

Dabber-- डैबर, थापनी

(1) साँचे को थामे रखने और प्रबलित करने के लिए लोम प्लेट के पृष्ठ पर उपस्थित प्रक्षेपण संचक। लोम प्लेट, क्रोड अथवा साँचे के लिए आधार प्लेट का काम करती है और प्रत्येक कार्य के लिए आवश्यकतानुसार लोहे में अलग से संचकित की जाती है। साँचा बनाने के लिए फलक को नुकीली शलाका से थपक देते हैं ताकि प्लेट पर प्रक्षेपण बन जाएँ।
(2) साँचे और पैटर्न के बीच बालू को कूटने के लिए प्रयुक्त कुट्टक जिसका प्रयोग कर्मी, ढलाईशाला में करते हैं।

Dairy bronze-- डेरी कांसा

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 8% जस्ता, 4% वंग, 20% निकैल और 24% कोबाल्ट होता है। इसका रजत श्वेत रंग होता है। इसका आसानी से निर्जर्मीकरण हो सकता है अतः दूध के पात्रों और संयंत्रों को बनाने में इसका विस्तृत उपयोग होता है।

D.A.L. process (Diffusion Alloy Ltd )-- डी0 ए0 एल0 प्रक्रम

एक धातु पर दूसरी धातु का लेप करने की एक पेटेन्ट विधि। इस्पात, निकैल या तांबा आदि की बनी जिस वस्तु पर लेप करना हो उसे अमोनियम क्लोराइड आदि किसी हैलाइड के साथ गरम किया जाता है। अमोनियम क्लोराइड में फेरो क्रोमियम जैसे किसी लेपक धातु का चूर्ण भी मिला होता है। यह क्रिया स्टेनलेस इस्पात के पात्र में की जाती है। इस्पात के पात्र को सिलिकेट या बोरोसिलिकेट द्वारा बंद कर दिया जाता है जो वायुमंडलीय ताप पर ठोस रहता है किंतु अभिक्रिया के ताप पर पिघल जाता है या मुलायम होकर बहने लगता है। ताम्र छड़ों पर ऐलुमिनियम का लेप चढ़ाने के लिए यह क्रिया 750° ताप पर छः घंटे तक की जाती है।

Darby process-- डर्बी प्रक्रम

खुली भट्टी इस्पात के कार्बुरण की विधि। इसमें पिघले इस्पात की कार्बन के साथ क्रिया की जाती है। इसमें कार्बन को कोयले, ग्रैफाइट या कोक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

D’Arget’s alloy-- डी आर्गेट मिश्रातु

एक गलनीय मिश्रातु जिसमें 50% विस्मथ, 25% सीसा और 25% वंग होता है। इसका गलनांक 93°C होता है।

Davis bronze-- डैविस कांसा

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 30% निकैल, 4% लोहा, और 1% मैंगनीज होता है। यह ऑक्सीकरणरोधी होता है। इसका उपयोग टर्बाइन ब्लेडों और उच्चताप वाल्वों में होता है। इसे डैविस धातु भी कहते हैं।

Dead annealing-- पूर्ण अनीलन

क्रांतिक ताप परास से अधिक ताप तक इस्पात को गरम कर उसी ताप पर बनाए रखना और बाद में धीरे धीरे ठंडा करना ताकि अधिक से अधिक संभव मृदुता या तन्यता उत्पन्न की जा सके।

Dead banking-- पूर्ण निष्क्रियण

देखिए– Banking

Dead burnt-- पूर्ण दग्ध

उच्चतापसह पदार्थों के लिए प्रयुक्त शब्द जिन्हें इतने अधिक ताप तक गरम किया जाता है कि वे आर्द्रतारोधी हो जाते हैं और उनमें पश्च-आकुंचन की संभावना भी कम रहती हैं।

Dead soft steel-- पूर्ण मृदु इस्पात

एक कार्बन इस्पात जिसमें 0.15% तक कार्बन होता है। पूर्णतया अनीलित होने पर इसका आसानी से संविरचन किया जा सकता है। इसका उपयोग सामान्य इंजीनियरी कार्यों में किया जाता है।

Dead roasting-- पूर्ण भर्जन

जिंक सल्फाइट (स्फैलेराइट) के भर्जन के संदर्भ में इसे ‘स्वीट’ भर्जन भी कहते हैं।
देखिए — Roasting

Dead steel-- पूर्णहत इस्पात

देखिए– Killed steel

Dealuminising-- विऐलुमिनन

ऐलुमिनियम-कांस्य मिश्रातुओं में होने वाला एक प्रकार का संक्षारण जिसमें प्रमुखतया ऐलुमिनियम अंश का क्षय होता है। यह क्रिया पीतलों और मैंगनीज कांस्यों में होने वाले ‘वियशदन’ जैसी है।

Debye-Scherrer method-- डेबाई-शेरर विधि

एक्स-किरण क्रिस्टल विश्लेषण की एक विधि जिसमें एकवर्णी अथवा बहुवर्णी एक्स किरण पुंज का प्रयोग किया जाता है। इसमें सूची छिद्र, प्रायः पूरी तरह अनियमित रूप से अभिविन्यस्त होते हैं। फोटोग्राफी फिल्म एक ऐसे बेलन में मुड़ी रहती है जिसका अक्ष, क्रिस्टलीय नमूने पर एक्स किरण पुंज के लंबवत होता है।

Decarburization-- बिकार्बुरण

किसी फेरस मिश्राणु की सतह से कार्बन को पृथक करना। इसके लिए फेरस मिश्रातु को ऐसे माध्यम में गरम किया जाता है जो सतह पर कार्बन के साथ क्रिया करता है।

Decopperisation-- विताम्रण

सीसे के परिष्करण के लिए प्रयुक्त शब्द जब कि तांबा अशुदि्ध के रूप में विद्यमान हो। यह क्रिया (1) गलनिक पृथक्करण तथा (2) गलित सीसे में गंधक मिला कर कॉपर सल्फाइड का पृथक्करण पर निर्भर करती है।

Decrepitation-- चटक भर्जन

गर्म करने पर कुछ खनिजों का व्यवहार जबकि उनके छोट छोटे टुकड़े चटचटाहट की ध्वनि के साथ टूटकर उड़ने लगते हैं। विषमदैशिक क्रिस्टलों की तीन क्रिस्टलीय दिशाओं में भिन्न-भिन्न ताप-प्रसार के कारण ऐसा होता है। यह कुछ कार्बोनेट खनिजों के निस्तापन के समय भी हो सकता है।

Deep drawing-- गंभीर कर्षण

एक अतप्त कर्मण प्रक्रम जिसमें धातुओं का पर्याप्त सुघट्य विरूपण हो जाता है। इसमें चादरी धातु या पट्टी का रूपदा द्वारा खोखले बेलनाकार या अन्य वांछित आकार में कर्षण किया जाता है।

Degassing-- विगैसन

ठोसों (धातुओं) या द्रवों में से विलीन गैसों को पृथक करना। यह क्रिया निम्नलिखित विधियों द्वारा संपन्न की जाती है।
1. रासायनिक विगैसन (Chemical degassing)– इसमें पिघली धातु में या तो विऑक्सीकारकों को मिलाया जाता है अथवा हाइड्रोडन गैस के बुलबुलों को प्रविष्ट किया जाता है। ठोस धातु में से गैसों को पृथक करने के लिए उसे हवा की उपस्थिति में अथवा निर्वात में गरम किया जाता है।
2. रेचन (Purging) — भट्टियों या तापन-पेटियों से हवा अथवा अन्य अवांछित गैसों को पृथक करना। यह क्रिया दीप्त-अनीलन आदि क्रियाओं से पहले की जाती है। भंजित अमोनिया अथवा हाइड्रोजन को इस्तेमाल करने से पहले नाइट्रोजन आदि किसी अक्रिय गैस से उनका रेचन करना आवश्यक होता है। इसे प्रधावन विगैसन भी कहते हैं।
3. निर्वात विगैसन (Vaccum degassing)– अधिक ताप पर और उच्च निर्वात में धातुओं का संसाधन। उच्च निर्वात से पूर्णतया अक्रिय क्षेत्र बन जाता है और विलीन तथा अवशोषित गैसें निकल जाती है।

Degolding-- विस्वर्णन

पार्कस प्रक्रम द्वारा सीसे से स्वर्ण को पृथक करना। इसमें जस्ते को गलित सीसे में विलोडित किया जाता है। जिसके फलस्वरूप स्वर्ण के जस्ते के साथ, अंतराधात्विक यौगिक बनते है। ये यौगिक, द्रव-सीसे में अविलेय होते हैं और इनका गलनांक सीसे से अधिक और आपेक्षिक घनत्व सीसे से कम होता है। अतः ये पृथक प्रावस्था बनाते हैं और इन्हें सीसे से पृथक कर लिया जाता है।

Degreasing-- विग्रीजन

धातुओं के पृष्ठ से खनिज अथवा वनस्पति तेलों और ग्रीजों को दूर करना, विशेष रूप से मशीनन क्रिया के बाद धातुओं पर उपस्थित तेलीय परत को हटाना। धातुओं के विद्युत-लेपन, इनेमलन, वंगन और यशद-लेपन के पूर्व यह क्रिया आवश्यक होती है। विग्रीजन के लिए प्रयुक्त पदार्थ या तो क्षारीय विलयन अथवा कार्बन टेट्राक्लोराइड, ट्राइक्लोरएथिलीन आदि कार्बनिक विलायक होते हैं।

Delayed quenching-- बिलंबित शमन

किसी धातु की पूरी मोटाई में एक समान ताप उत्पन्न करने के बाद उसे शमन करना।
देखिए– Martempering भी

Deleading-- सीसाह्रासन

रूपदाओं से अतप्त कर्षण के समय इस्पात पर बनी सीसे की परत को हटाना। इस विधि में सीसा, स्नेहक के रूप मे प्रयुक्त होता है। प्रायः इस्पात की वस्तु को अम्ल में डुबाकर सीसा पृथक किया जाता है।

Delta ferrite-- डेल्टा फेराइट

देखिए– Ferrite

Delta iron-- डेल्टा लोह

देखिए– Iron के अंतर्गत

Delta metal-- डेल्टा धातु

ताम्र मूल के दो प्रकार के संघटन वाले मिश्रातु। पहली किस्म में 55% तांबा, 41% जस्ता और 4% लोहा होता है और दूसरी में 60% तांबा, 36% जस्ता, 2% वंग, 1% लोहा और 1% सीसा होता है। दोनों किस्में उच्च तनन सामर्थ्य वाली और संक्षारणरोधी होती हैं। पहली किस्म का उपयोग चादरों, फोर्जनों और मशीन बेयरिगों में और दूसरी किस्म का संचकों, बेयरिंगों और जलयान नोदकों में होता है।

Dendrite-- द्रुमाकृति

विशेषकर ढली हुई धातुओं को धीरे-धीरे ठंडा करने से वृक्षों या फनों के आकार के क्रिस्टलों का बनना। धातु-क्रिस्टल, नार्मिकों से विशेष दिशाओं के रूप में बढ़ते हैं। बाद में कुछ-कुछ दूरी पर द्वितीयक शाखाएँ बनती हैं और इस प्रकार का कंकाल-क्रिस्टल या द्रुमाकृति बन जाती है। मिश्रातुओं में अंतिम संरचना में कंकाल और मैट्रिक्स के संघटन भिन्न-भिन्न होते है। इस प्रकार की संरचना क्रोडित-संरचना कहलाती है।

Densener-- घनित्र

ढलाईशालाओं में द्रुतशीतक के रूप में प्रयुक्त धातु का टुकड़ा। धातु को बालू-संच के फलक में प्रविष्ट किया जाता है ताकि उस भाग का द्रुत पिंडन हो सके और यह सुनिश्चित हो सके कि शीतलन, पूरक कुंडिकाओं की ओर हो रहा है।

Deoxidation-- विऑक्सीकरण

1. उपयुक्त पदार्थों का उपयोग कर धातुओं अथवा मिश्रातुओं से ऑक्सीजन को पृथक करना। इन पदार्थों को विऑक्सीकारक कहते हैं। इस्पात-निर्माण में इस शब्द का प्रयोग उस प्रक्रम के लिए होता है जिसमें ऐलुमिनियम, मैगनीज, सिलिकन, आदि धातुओं को मिलाकर गलित इस्पात से ऑक्सीजन को पृथक किया जाता है। तांबा और उसके मिश्रातुओं के गलित का विऑक्सीकरण फॉस्फोरस मिलाकर किया जाता है।
2. धातु-परिसज्जन में इस शब्द का प्रयोग रासायनिक अथवा वैद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा धातु-पृष्ठों से ऑक्साइड फिल्मों को हटाने के लिए होता है।

Deposit attack-- निक्षेप आक्रमण

किसी विद्युत अपघट्य की उपस्थिति में धातु-पृष्ठ पर बने असतत निक्षेप के नीचे या चारों ओर होने वाला संक्षारण।

Deposition efficiency-- निक्षेपण दक्षता

वेल्डिंग H, O में निक्षिप्त धातु के भार का उपभुक्त इलेक्ट्रोडों के कुल भार के साथ अनुपात।

Descaling-- विशल्कन

यांत्रिक अथवा रासायनिक विधियों द्वारा किसी धातु-पृष्ठ से पपड़ी और धात्विक ऑक्साइडों को हटाना। यांत्रिक विधियों के अंतर्गत भाप, शल्क-भंजक और छीलने वाले औजार आते हैं जबकि रासायनिक विधियों के अंतर्गत अम्ल विलयनों द्वारा उपचार आदि आते हैं।
देखिए– Pickling भी

Deseaming-- विसीवन

पिंडों अथवा अर्ध तैयार उत्पादों के पृष्ठों में उत्पन्न दोषों को दूर करना। यह क्रिया हथौड़े से छीलकर और आजकल ऑक्सी-गैस ज्वाला द्वारा की जाती है। अतप्त विसीवन में ठंडे इस्पात में सीवन आदि दोषों की जाँच की जाती है जिन्हें ऑक्सीऐसीटिलीन-टार्च से जलाकर दूर किया जाता है। तप्त–विसीवन में गरम इस्पात को एक उपकरण में से गुजारा जाता है। जिसमें चार ऑक्सी-ऐसीटिलीन ज्वालक, इस्पात की छीलन को चारों ओर से पृथक कर देते हैं।

De-silverising-- विरजतन

सीसे से चाँदी को पृथक करने की विधि। इसका सिद्धांत और क्रियाविधि विस्वर्णन के समान है।
देखिए– Degolding भी

Desulphurization-- विगंधकन

किसी धातु अथवा अयस्क से गंधक को पृथक करना। सामान्यतया इस शब्द का प्रयोग लोहे में से गंधक को पृथक करने के लिए होता है। सोडा-क्षार (सोडियम कार्बोनेट) की गलित लोहे से क्रिया की जाती है जिसके फलस्वरूप सोडियम सल्फाइड बनता है और कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है।
इस्पात निर्माण के संदर्भ में इस शब्द का अर्थ उन्नयित ताप पर अपचायी परिवेश में गंधक को पृथक करना है।

Dew point-- ओसांक

वह ताप जिस पर हवा में उपस्थित नमी उसे संतृप्त करने के लिए पर्याप्त होती है। हवा की आपेक्षिक आर्द्रता का परिकलन करने के लिए ओसांक मालूम किया जाता है। ओसांक को आर्द्रतामापियों द्वारा ज्ञात किया जाता है।

Dezincing-- वियशदन

पार्क्स प्रक्रम द्वारा विरजतीकरण के बाद सीसे के परिष्करण में जस्ते को पृथक करना।

Dezincification-- वियशदन

कभी-कभी पीतल या अन्य ताम्र-यशद मिश्रातुओं में पाया जाने वाला एक प्रकार का संक्षारण जिसमें यशद का ह्रास हो जाता है तथा तांबा, स्पंजी और संरध्र बन जाता है। संक्षारण उत्पाद, धात्विक तांबे का संरध्र निक्षेप और क्षारकीय जिंक क्लोराइड जैसे यशद यौगिकों का मिश्रण होता है। विद्युत-अपघट्य में ताबा और यशद दोनों विलीन हो जाते हैं। तत्पश्चात् संक्षारण उत्पादों और पीतल के बीच अभिक्रिया से तांबे का पुनर्निक्षेपण हो जाता है। जिस पीतल में 0.01% से अधिक आर्सेनिक होता है उसका वियशदन नहीं होता है। Mn और Fe वियशदन की गति बढ़ाते हैं जबकि Sn, Ni, Al और Pb उसे रोक देते हैं।

Dialogite-- डायलोजाइट

देखिए– Rhodochrosite

Diamagnetism-- प्रतिचुंबकत्व

देखिए– Magnetism

Diamond-- हीरक, हीरा

कार्बन का अत्यंत शुद्ध रूप जो त्रिसमलंबाक्ष क्रिस्टलों के रूप में पाया जाता है। हीरा सबसे अधिक कठोर खनिज है (कठोरता 10)। यह कोरंडम से 140 गुना कठोर होता है। कठोरता में इसकी बराबरी केवल बोरोन कार्बाइड ही करता है। हीरे में से ऐक्स किरणें पार हो जाती हैं। इसका अपवर्तनांक 2.42 तथा आपेक्षिक घनत्व 3–3.55 है।
हीरे दो प्रकार के होते हैं– (1) औद्योगिक (2) माणिक। औद्योगिक हीरों को काले हीरे भी कहते हैं और ये अल्पपारदर्शी होते हैं। इनका उपयोग बहुमूल्य पत्थरों के रूप में नहीं होता, अतः ये केवल अपघर्षक और शैल-कर्तकों के रूप में ही काम आते हैं। माणिक हीरों का उपयोग बहुमूल्य पत्थरों के रूप में आभूषण आदि बनाने में होता है। ये अत्यंत पारदर्शी होते हैं और इनमें एडमेन्टाइन द्युति होती है।

Diamond Pyramid hardness test-- हीरक पिरैमिड कठोरता परीक्षण

देखिए– Hardness test daimond hardness के अंतर्गत Pyramid test

Dianodic process-- द्वि-ऐनोडी प्रक्रम

धातुओं को गर्तन से बचाने की विधि। इसमें वरणात्मक PH परासों में आण्विकतः निर्जलित फॉस्फेटों और क्रोमेटों की द्वैत क्रिया की जाती है। कम सांद्रताओं पर इस प्रक्रम से जो लाभ होते हैं वे किसी एक क्रिया से उच्च सांद्रताओं पर प्राप्त नहीं हो सकते।

Diaspore-- डायोस्पोर

जलयोजित ऐलुमिनियम ऑक्साइड, Al₂O₃ H₂O, जिसमें 85% Al₂O₃ होता है। यह कोरंडम और एमरी के साथ कुछ बॉक्साइडों में पाया जाता है। इसका उपयोग उच्चतापसह पदार्थ के रूप में होता है। गलनांक 2,050°C कठोरता 7, आपेक्षिक घनत्व 3.5।

Die-- रूपदा

1. मुद्रांकन के लिए प्रयुक्त धातु या सिन्टरित कार्बाइड का ब्लॉक। इसे चादरी धातु पर दबाया जाता है जिससे उस पर रुपदा की आकृति उत्पन्न हो जाती है।
2. कोई इस्पात का ब्लॉक जिसके अंदर से चूड़ियाँ होती है। पाइप या छड़ की ऊपरी सतह पर चूड़ियाँ बनाने के लिए इसमें कर्तक किनारे बने होते हैं।
3. पाती फोर्जन में इस्पात के ब्लॉक के जोड़े (युग्म) होते हैं। कुछ मुद्रांक (Impression) एक ब्लॉक में और कुछ दूसरे में होते हैं। नीचे का रूपदा निहाई (Anvil) से और ऊपर का स्वयं घन (Hammer) से जुड़ा रहता है जो ऊपर–नीचे होता है।
4. तार कर्षण में कोई छोटी प्लेट जिसमें शुंडाकार छिद्र होते हैं।
5. प्रतिरोध वेल्डिंग में वर्क कंटूर के आकार की वस्तु जिसका उपयोग वेल्डिंग किए जाने वाले हिस्सों को पकड़ने के लिए होता है।
6.फोर्ज-वेल्डिंग में प्रयुक्त एक युक्ति जिसमें कार्य गरम अवस्था में किया जाता है और आवश्यक दाब लगाया जाता है।
7. चूर्ण धातुकर्मिकी में वह घिरा स्थान जिसमें चूर्ण को संपीडित किया जाता है।
8. वह औजार जिसमें एक छिद्र होता है जिसमें से अतप्त कर्षण में नलियों को खींचा जाता है।
9. छिद्रण या संवेधन में वह तलीय औजार जिसमें पंचित्र निर्दिष्ट किया जाता है, जिसके फलस्वरूप धातु का अपरूपण हो जाता है। जब कंटूर के अंदर धातु का वांछित भाग होता है तो यह संक्रिया ब्लेंकन कहलाती है और यह रूपदा, ब्लेंकन—रूपदा कहलाता है। यदि कंटूर के अंदर उपस्थित पदार्थ को अलग कर दिया जाए तो इस संक्रिया को छिद्रण या संवेधन कहते हैं, तथा यह रुपदा, छिद्रण रुपदा या संवेघन रुपदा कहलाती है।
उदाहरणार्थ, धातु के वाशर आदि बनाने में बीच का छिद्र, छिद्रण-रुपदा द्वारा काटा जाता है क्योंकि कटा हुआ वृत्ताकार छोटा भाग बेकार जाता है। वाशर बनाने में उसकी बाह्य परिधि, ब्लेंकन रूपदा द्वारा काटी जाती है क्योंकि इस रुपदा के अंदर का भाग, वांछित भाग होता है।

Die casting-- रूपदा संचकन

अंतिम रूप देने के लिए पिघली धातुओं को साँचे में डालना। इसमें गुरुत्व या दाब द्वारा धातु प्रविष्ट की जाती हैं।
गुरुत्व रुपदा संचकन–इस प्रक्रम द्वारा विभिन्न धातुओं या उनके मिश्रातुओं के संचक पिघले हुए धातु को गुरुत्व के प्रभाव में स्थायी संचकों में उड़ेल कर बनाए जाते हैं। इस विधि को स्थायी रूपदा संचकन भी कहते हैं ये स्थायी संचक इस्पात, ढलवाँ लोहा या कांस्य के बनाए जाते हैं। इस विधि द्वारा ठीक-ठीक आकार तथा परिमाप और उत्तम सज्जा वाले संचक प्राप्त होते हैं।
दाब रूपदा संचकन (Pressure die casting)– इस प्रक्रम द्वारा विभिन्न धातुओं या उनके मिश्रातुओं के संचक बनाने के लिए पिघली हुई धातु को उच्च दाब (10,000 पाउंड प्रति वर्ग इंच) के साथ संचक या रूपदा में उड़ेला जाता है जिससे उत्पादन अधिक होता है। ये संचक रंध्र मुक्त होते हैं तथा इनमें आंकुचन भी नहीं होता।

Die cavity-- रुपदा कोटर

किसी साँचे में उपस्थित रिक्त स्थान जिसमें धातु का संचकन, फोर्जन, संपीडन अथवा चक्रण किया जाता है।

Diehl process-- डील प्रक्रम

सायनोजन ब्रोमाइड का अभिकर्मक के रूप में प्रयोग कर सोने और चाँदी को पुनः प्राप्त करने का प्रक्रम। यह सायनाइडन प्रक्रम का संशोधित रूप हैं।

Diffraction-- विवर्तन

विकिरण किरण–पुंज में व्यतिकरण–प्रतिरूपों के बनने की परिघटना।
इलेक्ट्रॉन विवर्तन (Electron diffraction)– इसका उपयोग जालक-अंतराल को नापने और आकाशी समूहों को ज्ञात करने के लिए होता है। जब इलेक्ट्रॉन विवर्तन पृष्ठसर्पी आपतन (grazing incidence) पर किया जाता है तो बहुत पतली पृष्ठीय पर्तों की जाँच की जा सकती है।
न्यूट्रॉन विवर्तन (Neutron diffraction)– एक उपयोगी पूरक तकनीक है जिसमें न्यूट्रॉनों की अधिक वेधन शक्ति और भिन्न अवशोषण गुणों के कारण दूसरे प्रकार की माप जा सकती है। उदाहरणार्थ–एक सेंटीमीटर से अधिक मोटे पदार्थ पर वरीय अभिविन्यास प्रभाव देखे जा सकते हैं।
प्रकाशनीय विवर्तन (Optical diffraction)– किसी वस्तु के किनारे से गुजरते समय प्रकाश तरंगों के फैलने की परिघटना। यह प्रकाश स्रोत के छोटा होने पर दिखाई देता है।
ऐक्स-किण विवर्तन (X-ray diffraction)– दृश्य प्रकाश की भाँति ऐक्स-किरण विवर्तन भी किया जा सकता है। ऐक्स-किरण का तरंग दैर्ध्य, धातुजालक-अंतराल की कोटि का होता है अतः उपयुक्त अवस्थाओं में परमाणुओं के तल, विवर्तन उत्पन्न करते हैं जिनकी सममिति की मदद से धातु जालक का विस्तृत निर्धारण किया जा सकता है।

Diffusion-- विसरण

किसी विलयन में विद्यमान अणुओं का उच्च सांद्रण क्षेत्र से निम्न सांद्रण क्षेत्र की ओर गमन करना ताकि समांगता प्राप्त हो जाए। यह क्रिया गैसों में तीव्र और द्रवों में सामान्य गति से होती है। ठोसों में विसरण की क्रिया ऊष्मीय सक्रियण द्वारा की जाती है। उदाहरणार्थ नाइट्राइडन, पृष्ठ कठोरण और सीमेन्टन में विसरण की क्रिया ठोस के पृष्ठ में तथा विकार्बुरण में ठोस के पृष्ठ से होती है।

Diffusion coefficient-- विसरण गुणांक

एक आनुपातिकता का गुणंक। यह इकाई सांद्रण-प्रवणता द्वारा एक वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र के पार एक सेकंड में विसरित होने वाले पदार्थ की ग्रामों में मात्रा को व्यक्त करता हैं।

Digestion-- पाचन

देखिए– Leaching

Dilatometer-- विस्फारमापी

ताप और संरचना में परिवर्तन करने से किसी धातु में उत्पन्न होने वाले प्रसार अथवा संकुचन को नापने के लिए प्रयुक्त उपकरण। इसका उपयोग विभिन्न इस्पातों के रूपांतरण-ताप को ज्ञात करने में होता है, इसके लिए तापन और शीतलन से आयतन में होने वाल परिवर्तनों को नापा जाता है। उदाहरणार्थ, गरम करने पर एल्फा लोह/का तब तक नियमित प्रसार होता रहता है जब तक वह गामा लोह में परिवर्तित न हो जाए। इसके बाद एकाएक स्पष्ट संकुचन होता है। अधिक गर्म करने पर गामा लोह नियमित रूप से प्रसार करता है तथा ठंडा करने पर सिकुड़ता है।

Dip-brazing-- निमज्ज ब्रेजन

ब्रेजन द्वारा धातुओं को जोड़ने का प्रक्रम। इसमें धातु के टुकड़ों को गलित भरक धातु के अवगाह में डुबाया जाता है। यह अवगाह, उपयुक्त गलित गालक की परत से ढका होना चाहिए।

Dipping-- निमज्जन

इस शब्द का प्रयोग उन सभी प्रक्रमों के संदर्भ में होता है जब किसी वस्तु को किसी द्रव में निमज्जित करना होता है।
1. किसी अपधातु को किसी पिघली हुई धातु (वंग या यशद) में डुबाकर धात्विक लेप उत्पन्न करने की विधि।
2. अम्लोपचार प्रक्रम, जिसमें धातु को थोड़े समय के लिए अम्ल में डुबाया जाता है।
3. किसी उत्पाद को पेंट, लैकर अथवा अन्य लेपक पदार्थ में डुबाना।

Directional properties-- दिशात्मक गुणधर्म

विभिन्न दिशाओं में संरचनात्मक अंतरों के कारण द्रव्य के गुणधर्मों में विचलन बेल्लन, फोर्जन तथा अन्य कर्मणों के फलस्वरूप उत्पन्न अपरूपणों द्वारा धातुओं के दिशात्मक गुणधर्म बदल जाते हैं जिनका धातुओं के भौतिक और यांत्रिक गुणधर्म पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ इस्पात के एक ही टुकड़े की अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य दिशाओं में यांत्रिक गुणधर्मों में अंतर होता है।

Directional solidification-- दिशात्मक पिंडन

उत्तम संचकन के लिए यह आवश्यक है कि साँचे में पिघली धातु का पिंडन, भरण शीर्षों से सबसे अधिक दूर स्थित स्थानों से आरंभ हो तथा सेतुबंधन को रोकने के लिए लगातार भरण शीर्षों के ओर होता जाए और भरण शीर्षों पर सबसे अंत में हो।

Direct process-- प्रत्यक्ष प्रक्रम

देखिए– Direct reduction process

Direct quenching-- प्रत्यक्ष शमन

कार्बुरित हिस्सों का कार्बुरण प्रक्रिया के बाद सीधे शमन करना।

Direct reduction process-- प्रत्यक्ष अपचयन प्रक्रम

कच्चे लोहे के मध्यवर्ती अवस्था से गुजरे बिना सीधे प्रगलन द्वारा अयस्क से स्पंजी लोहा बनाने की विधि। इस विधि में मंद लाल ताप पर कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड अथवा हाइड्रोजन द्वारा लोहे के ऑक्साइडों का अपचयन किया जा सकता है। इसे प्रत्यक्ष प्रक्रम भी कहते हैं।

Discaloy-- डिस्केलॉय

सर्पणरोधी फेरस मिश्रातु जिसमें 55% लोहा, 25% निकैल, 13% कोबाल्ट, 3% मॉलिब्डेनम, 0.7% सिलिकन, 0.7% मैंगनीज 0.5% ऐलुमिनियम और 0.05% कार्बन होता है। इसका उपयोग गैस टर्बाइन डिस्कों में किया जाता है।

Dislocation-- प्रभंश

क्रिस्टल-संरचना में पाए जाने वाले रैखिक दोष। मूलतः निम्नलिखित दो प्रकार के प्रभ्रंश होते हैं।
(क) कोर-प्रभ्रंश (Edge dislocation)— इसमें सीधी धार के साथ-साथ परमाणुओं की एक पंक्ति होती है जो क्रिस्टल के अंदर सर्पण-तल के ऊपर परमाणुओं का एक अतिरिक्त अर्धतल बनाती है।
(ख) स्क्रू प्रभ्रंश (Screw dislocation)– इस प्रकार के दोष में जालक तल, प्रभ्रंश रेखा के अनुदिश सतत सर्पिल वेष्टन के रूप में अत्यंत विकृत रहते हैं।
प्रभ्रंश-रेखा में कोर और स्क्रू दोनों प्रकार के प्रभ्रंश हो सकते हैं। कभी-कभी एक प्रभ्रंश दो या अधिक आंशिक प्रभ्रंशों में वियोजित हो जाता है। प्रभ्रंश की गति एक सदिश द्वारा व्यक्त की जाती है जिसे बर्गर सदिश कहते हैं।
देखिए– Burger vector भी

Dislocation climb-- प्रभ्रंश आरोह

एक प्रक्रम जिसमें कोर प्रभ्रंश, एक सर्पण-तल से दूसे सर्पण-तल में गमन करता है। इस प्रक्रम में क्रिस्टल के अंदर परमाणुओं और रिक्तियों का विसरण होता है। प्रभ्रंश आरोह का उपयोग बहभुजन और उच्च ताप विसर्पण में होता है।

Dislocation mill-- प्रभ्रंश मिल

देखिए — Frank Rhead source

Dispersant-- परिक्षेपक

वह पदार्थ जो प्राथमिक कणों के विऊर्णन द्वारा द्रव-माध्यम में कणों के निलंबन को अधिक स्थायी बना देता है।

Dispersion-- परिक्षेपण

तरल या ठोस माध्यम में सूक्ष्म कणों का समान रूप से वितरण। ठोस माध्यम में यह वितरण सामान्य रूप से नहीं हो पाता। बहुधा इस शब्द का प्रयोग मृतिका के सूक्ष्मता-परीक्षण में होता है।

Dispersion hardening-- परिक्षेपण कठोरण

देखिए– Hardening के अंतर्गत

Dispersion strengthening-- परिक्षेपण प्रबलन

देखिए– Hardening के अंतर्गत Dispersion hardening

Distillation-- आसवन

किसी द्रव को वाष्प में बदलना फिर वाष्प को द्रवित करना तथा अंत में द्रवित वाष्प अथवा आसुत को एकत्र करना। इसका उपयोग भिन्न क्वथनांक वाले द्रवों के मिश्रणों को पृथक करने में अथवा शुद्ध द्रव को अवाष्पशील अवयव से पृथक करने में होता हैं। आसवन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं :
समष्टि आसवन (Bulk distillation)– किसी वाष्पशील द्रव की संपूर्ण मात्रा को एक साथ अवाष्पशील अवयव से आसवन द्वारा पृथक करना।
प्रभाजी आसवन (Fractional distillation)– प्रभाजी स्तंभों की सहायता से भिन्न तापों पर आसवन द्वारा, भिन्न क्वथनांक वाले द्रवों कों पृथक करना।

Distortion-- विरूपण

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Disturbed metal-- विक्षुब्ध धातु

पेषण और चकासन के दौरान प्रमार्जित पृष्ठ पर बनी अतप्त अभिकृत धातु।

Divorced cementite-- परित्यक्त सीमेंटाइट

धीरे-धीरे ठंडा किए गए अथवा अवक्रांतिक अनीयन के पश्चात् इस्पातों में विशेषतः सूक्ष्म कणित ऐलुमिनियम हत इस्पातों में छोटे अलग-अलग और लगभग गोलामित कणों के रूप में प्राप्त होने वाला सीमेंटाइट

Divorced pearlite-- परित्यक्त पर्लाइट

पर्लाइट जिसका सीमेंटाइट, अनीलन द्वारा गोलामित किया गया हो। इसे गोलामित कार्बाइड भी कहते हैं।

Dolomite-- डोलोमाइट

कैल्सियम मैग्नीशियम कार्बोनेट, Ca, Mg (Co₃)₂। यह द्वि-लवण है जिसमें कार्बोनेट समअणुक अनुपात में होते है। इसके साथ तनु अम्ल क्रिया नहीं करते इस कारण यह कैल्साइट से भिन्न हैं। यह त्रिसमनताक्ष क्रिस्टलों (Rho) के रूप में पाया जाता है। निस्तापित डोलोमाइट का उपयोग क्षारकीय उच्च तापसह पदार्थ के रूप में होता है तथा यह क्षारकीय धातुमलों से क्रिया नहीं करता। कठोरता 3.50–4 आपेक्षिक घनत्व 2.85। इसे बिटर स्पार भी कहते हैं।

Domestic coke-- घरेलू कोक

देखिए– Low temperature coke

Doppel duro process-- डॉपल डूरो प्रक्रम

क्रैक शैफ्ट के पृष्ठ कठोरण की एक विधि। इसमें शैफ्ट को धीरे-धीरे एक खराद में घुमाया जाता है। घूमते समय जर्नल ऑक्सी-ऐसीटिलीन ज्वाला द्वारा गरम होता है जिसका बाद में, ज्वाला के नीचे स्थित पानी के प्रधार से शमन किया जाता है। ज्वालक और पानी के प्रधार के चौड़ाई और जर्नल की चौड़ाई बराबर होती है। यह विधि सस्ती और आसान है तथा इसे एकसमान कठोता उत्पन्न होती है। यह ज्वाला कठोरण का एक उदाहरण है।

Dore bullion-- स्वर्णयुक्त बुलिअन

अपरिष्कृत चाँदी जिसमें सूक्ष्म मात्रा में सोना उपस्थित रहता है। एक अवशिष्ट मिश्रातु जो विद्युत अपघटनी परिष्करण प्रक्रिया द्वारा अवपंक के क्यूपेलन से प्राप्त होता है। इसे स्वर्णयुक्त धातु भी कहते हैं।

Dore metal-- स्वर्णयुक्त धातु

देखिए– Dore bullion

Double annealing-- द्वि-अनीलन

हाइपोयूटेक्टॉयड इस्पात को Ac₃ से अधिक ताप तक गरम कर शीघ्र Ac₁ से नीचे तक ठंडा कर देना, उसके तुरंत बाद Ac₃ से कुछ अधिक ताप तक फिर गरम कर धीरे-धीरे ठंडा करना। इसका उपयोग बड़े इस्पात संचकों के लिए होता है। प्रारंभिक उच्च ताप क्रिया से संमागता उत्पन्न होती है और यदि सल्फाइड उपस्थित हों तो उनका संलयन (Coalescence) होता है। पहली बार शीघ्र ठंडा करने से स्थूल फेराइट कणों का बनना कम हो जाता है। दूसरी बार गरम करने के बाद ठंडा करने से बारीक कण बनते हैं तथा पदार्थ मुलायम हो जाता है।

Doubling-- द्विस्तरण

वंग-प्लेट के उत्पादन में प्रयुक्त एक विधि इसमें आरंभिक छड़ को चादरी मिल में कई बार तप्त बेल्लित करने के बाद चादर को दोहरा कर फिर गरम किया जाता है और दोहरी की गई चादर को फिर तप्त बेल्लित किया जाता है। प्रत्येक बार चादर को दोहरा कर बेल्लित करने की क्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक चादर की मोटाई वांछित स्तर तक कम न हो जाए।

Dow metal-- डो धातु

कई प्रकार के बहुत हल्के मैग्नीशियम मूलक मिश्रातु जिनमें 3–12% ऐलुमिनियम होता है। इनमें मैंगनीज, सिलिकन और यशद की अल्प मात्राएँ भी रहती हैं। इनका उपयोग रूपदा संचकन में होता हैं।

Dow process-- डो प्रक्रम

मैग्नीशियम के उत्पादन का एक प्रक्रम जिसमें पिघले हुए मैग्नीशियम क्लोराइड का विद्युत अपघटन किया जाता है।

Draft-- लघ्वन, ड्राफ्ट

1. रूपदा से फोर्जन के निष्कासन को आसान बनाने के लिए रूपदा के मुद्रांकों की पार्श्व भित्तियों में टेपर की मात्रा।
2. किसी पैटर्न के पार्श्वों में दिए गए टेपर ताकि उसे साँचे से सुगमतापूर्वक पृथक किया जा सके।
3. छड़-बेल्लन में छड़ के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल और जिस पारण में से वह गुजरता है उसके अनुप्रस्थ क्षेत्रफल में अंतर, जो प्रविष्ट होने वाली छड़ के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
4. तार-कर्षण में तार को रूपदा में से निकालते समय उसके क्षेत्रफल में होने वाली कमी।
5. अतप्त कर्षण के समय नली की दीवारों की मोटाई में होने वाली कमी।
देखिए– Draught भी

Drag-- अधः संच

किसी ढलाई साँचे का निचला भाग।
तुलना– Cope

Draught-- प्रवात

भट्टी में हवा को प्रविष्ट कर उसका दहन करना और बाद में पूरी भट्टी में गैसों का प्रवाहित होना। भट्टी में वायु का प्रवेश निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जा सकता है।
संतुलित प्रवात (Balanced draught)– इसमें हवा को पंखे द्वारा बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है और दहन उत्पादों को दूसरे पंखे द्वारा अथवा चिमनी द्वारा निकाल लिया जाता है ताकि ईंधन-संस्तर के ऊपर दहन-स्थान पर लगभग सामान्य वायुमंडलीय दाब रहे।
प्रणोदित प्रवात (Forced draught)– इसमें हवा को पंखे की सहायता से बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है। पंखे को वायु के प्रवेश-द्वार पर रखा जाता है। दाब के कारण गैसें ईंधन-संस्तर से होते हुए प्रवाहित होती हैं। प्रवात द्वारा गैसों को चिमनी से बाहर निकाल दिया जाता है।
प्रेरित प्रवात (Induced draught) — इसमें चिमनी के पैंदे पर रखे पंखे की सहायता से हवा को खींचा जाता है।
प्राकृतिक प्रवात (Natural draught)– बाहरी मदद के बिना स्वाभाविक रूप से प्रविष्ट होने वाला प्रवात।

Drawing-- कर्षण

(क) अतप्त अवस्था में धातु की छड़ों के तार या नलिकाएँ बनाना। इसके लिए छड़ को इस्पात की प्लेटों में बने छोटे रूपदाओं में से गुजारा जाता है जिनका व्यास क्रमशः कम होता जाता है।
(ख) संचकों के पिंडन में अनुपयुक्त डिजाइन, अपर्याप्त भरण, अत्यल्प संचन-ताप आदि के कारण संकुचन गर्तों का बनना।
(ग) फोर्जन द्वारा अनुदैर्ध्य दिशा में लंबाई बढ़ाना।
(घ) खोखले फोर्जन में फोर्जन-दाब के प्रभाव द्वारा मैन्ड्रेल का प्रयोग करके फोर्जन की लंबाई बढ़ाने की क्रिया ताकि दीवाल की उपयुक्त मोटाई प्राप्त हो सके।

Dressing-- प्रसाधन

(क) अपचयन से पहले अयस्क सांद्रों में उपस्थित अपद्रव्यों को पृथक करना।
(ख) साँचे पर अथवा क्रोड पर पेन्ट किया गया विलयन अथवा द्रव जो द्रव-धातु से क्रिया नहीं करता और संचकों पर चिकनी और साफ पर्त उत्पन्न करने में मदद करता है।
(ग) अवपातन से पहले शिलिका-संचक के पृष्ठ को तैयार करना।
(घ) घिसे बेलन के पृष्ठ का पुनः मशीनन करना।

Drop-- पातन

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Drop forging-- पाती फोर्जन

पाती घन द्वारा उत्पन्न फोर्जन। इसमें घन को अपने भार के कारण ही गिरने दिया जाता है जिसमे रूपदाओं में गरम धातु की आकृति बन जाती है। रूपदा का आधा भाग निहाई (Anvil) पर स्थिर रहता है और दूसरा आधा घन में होता है। यह प्रक्रम वस्तुतः अभिरूपण प्रक्रम है जिसमें धातु अत्यंत उच्च-ताप पर सुघट्य अवस्था में रहती है।

Drop test-- पात परीक्षण

इस्पात के टायरों की प्रबलता ज्ञात करने के लिए किया जाने वाला एक परीक्षण। इसमें या तो टायर को उसके व्यास के अनुसार एक निश्चित ऊँचाई से रेल के ऊपर गिराया जाता है अथवा टायर को खड़ी स्थिति में रखकर उसके ऊपर भार गिराया जाता है।

Dross-- ड्रॉस

गलित धातुओं की सतह पर बनने वाला पृष्ठ मल। वह मुख्यतः ऑक्सीकरण के फलस्वरूप और कभी-कभी अशुद्धियों को सतह पर आने के कारण बनता है।

Drossing-- ड्रॉसन

ड्रॉसन मूलतः एक शीतलन क्रिया है जिसे किसी केतली अथवा छोटी परावर्तनी भट्टी में संपन्न किया जाता है। अनेक अपद्रव्य, प्रगलन भट्टी अथवा संघनित्र से प्राप्त अतितप्त धातु में विलेय होते हैं किंतु ठंडा करने पर उनकी विलेयता घट जाती है। अतः जैसे-जैसे धातु ठंडी होती जाती है वैसे-वैसे अपद्रव्य गलित धातु की सतह पर एकत्रित होकर ड्रॉस बनाती है जिसे निकाल लिया जाता है। ड्रॉसन की गति बढ़ाने के लिए कभी-कभी धातु में हवा अथवा भाप को धौंका जाता है। अपद्रव्यों की अविलेयता को बढ़ाने के लिए दूसरे तत्वों को भी मिलाया जाता है। उदाहणार्थ, ताम्र युक्त गलित सीसे में गंधक मिलाने से तांबा, Cu₂S के रूप में पृथक हो जाता है। ड्रॉसन का उपयोग प्रायः सीसा, वंग, यशद आदि कम गलनांक वाली धातुओं के परिष्करण के लिए होता है।

Dry copper-- शुष्क ताम्र

पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त तांबा जिसके कारण वह भंगुरता प्रदर्शित करता है।

Dry cyaniding-- शुष्क सायनाइडन

देखिए– Case hardening के अंतर्गत Carbonitriding

Dry galvanizing-- शुष्क यशदलेपन

यशद का लेप चढ़ाने का एक एक प्रक्रम जिसमें गालक-विलयन को उस वस्तु के ऊपर फैलाया जाता है जिस पर यशद का लेप करना हो। यशद-कुंड में प्रविष्ट करने से पहले उस वस्तु को सुखा लिया जाता है।

Dry pudding-- शुष्क पडलन

इस्पात बनाने का एक प्राचीन आलोडन प्रक्रम जिसमें उच्च कोटि के अल्प सिलिकन युक्त कच्चे लोहे का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रम बालू-तल पर की जाती है और हवा द्वारा बिकार्बुरण किया जाता है। धातु लेप-अवस्था तक ही रहता है और पिघल नहीं पाता।

Dry quenching-- शुष्क शमन

द्रव के प्रत्यक्ष संपर्क में लाए बिना गरम पदार्थ को टंडा करने का प्रक्रम। मुख्यतया इसका उपयोग कोक-अवन से प्राप्त कोक का शमन करने के लिए होता है। इस क्रिया को पूरा करने के लिए लाल तप्त कोक में अक्रिय गैसों को प्रवाहित किया जाता है। अक्रिय गैसों को प्राप्त करने के लिए कोक की अल्प मात्रा का हवा में दहन किया जाता है जिससे कार्बन डाइ-ऑक्साइड और नाइट्रोजन का अक्रिय मिश्रण प्राप्त होता है। इस अक्रिय मिश्रण को पंखों द्वारा गरम कोक में प्रवाहित करते हैं और फिर नलियों द्वारा भाप-वाष्पित्र में भेज देते हैं। इस प्रकार गैस-मिश्रण से प्राप्त ऊष्मा भाप बनाने में काम आती है और ठंडी गैसों को पुनः प्रवाहित कर लाल तप्त कोक का शुष्क-शमन किया जाता है।

Dry sand-- शुष्क बालू

देखिए– Sand के अंतर्गत

Dry sand moulding-- शुष्क बालू संचन

देखिए– Sand moulding के अंतर्गत

Ductile-- तन्य

देखिए– Ductility

Ductile cast iron-- तन्य ढलवां लोहां

देखिए– Cast iron के अंतर्गत Docular cast iron

Ductile fracture-- तन्य विभंग

देखिए– Fracture के अंतर्गत

Ductility-- तन्यता

ठोस, पदार्थों, विशेष रूप से धातुओं, का वह गुणधर्म जिसके कारण तनाव के प्रभाव में उनका सुघट्य-विरूपण हो जाता है। इस प्रकार टूटे बिना धातुओं का स्थायी रूप से विस्तार हो जाता है तथा फलस्वरूप अनुप्रस्थ काट क्षेत्र कम हो जाता है। जिन पदार्थों मे यह गुणधर्म पाया जाता है उन्हें तन्य पदार्थ कहते हैं।
साधारणतया तन्यता का निर्धारण चषकन परीक्षणों (Cupping tests) द्वारा किया जाता है। वंक परीक्षकों तथा तनन-परीक्षणों में दैर्ध्यवृद्धि द्वारा अच्छी तन्यता का पता चलता है।

Ductilometer test-- तन्यतामापी परीक्षण

धातुओं को तारों तथा पट्टियों की तन्यता आँकने की एक पुरानी विधि। इस विधि में नमूनें के दोनों सिरों को पकड़ कर बीच के भाग को बार-बार विपरीत दिशा में एक निश्चित कोण देकर मोड़ा जाता है। विरूपित लंबाई 1.5 X व्यास के बराबर होती है तथा विभंग-वंको (Bends top fracture) की संख्या, वंक-कोण के व्युत्क्रमानुपाती होती है। आनुपातिक-स्थिरांक तथा बहिर्वेशित वंक-कोण, जिस पर तार नहीं टूटता, तार के यांत्रिक गुणों के घातांक होते हैं।

Dumet-- डूमेट

तार के रूप में प्रयुक्त संयुक्त पदार्थ। इसमें लोहे और निकैल (लगभग 42%) के मिश्रातु की बनी एक अल्प-प्रसार क्रोड होती है जो तांबे से आच्छादित रहती है। इसमें तांबे की मात्रा, मिश्रातु के कुल भार का 20-25% होती है। मुख्यतः इसका उपयोग लैंप और निर्वात ट्यूबों में प्रयुक्त मुंद्रित (सील-इन) तार में प्लैटिनम के स्थान पर होता है जबकि तांबा गैसबद्ध सील को बनाने में काम आता है।

Duplexing-- द्विकप्रक्रमण

देखिए– Duplex process

Duplex process-- द्विक प्रक्रम

इस्पात के उत्पादन की ऐसी विधि जो दो चरणों में सम्पन्न होती है और जिसमें दो विभिन्न गलन-भट्टियों का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ धातु का क्षारकीय बेसेमर परिवर्तित्र में धमन कर क्षारकीय ओपेनहार्थ भट्टी में या विद्युत भट्टी में परिष्करण किया जाता है अथवा उसे ओपेनहार्थ भट्टी में पिघलाकर विदयुत् भट्टी में ले जाया जाता है। इस प्रक्रम को द्विप्रक्रमण भी कहते हैं।

Duralumin-- डूरैलूमिन

ऊष्मोपचारीय (Heat treatable) ऐलुमिनियम मिश्रातुओं का वर्ग जिसमें 4.5% तक तांबा, 0–0.8% मैंगनीज, 0.6-2.25% मैग्नीशियम, 0–1% सिलिकन और 0–1.2% लोहा और शेष ऐलुमिनियम होता है। अधिक मजबूती के कामों में प्रयोग के लिए इसमें 5.5–7.6% जस्ता भी मिलाया जाता है और अधिक ताप पर प्रयोग के लिए 1% निकैल मिलाया जाता है।

Durana metal-- ड्यूराना धातु

उच्च तनन सामर्थ्य और उत्तम संक्षारणरोध वाला एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 65% तांबा, 30% जस्ता, 2% वंग. 1.5% ऐलुमिनियम और 1.5% लोहा होता है। इसका उपयोग सामान्य इंजीनियरी उपकरणों और रासायनिक संयंत्रों में होता है।

Duranickel-- ड्यूरैनिकैल

एक काल कठोरण संक्षारणरोधी मिश्रातु जिसमें 93.7% निकैल, 0.05% तांबा, 0.35% लोहा, 4.4% ऐलुमिनियम, 0.5% सिलिकन, 0.4% टाइटैनियम और 0.3% मैंगनीज होता है। इसका उपयोग रासायनिक संयंत्रों में किया जाता है।

Durionizing-- ड्यूरायनन

एक विद्युत-अपघटनी प्रक्रम जिसका प्रयोग घिसे हुए पुरजों पर कठोर क्रोमियम का लेप चढ़ाने के लिए होता है। जिन पुरजों पर यह लेप चढ़ाया जाता है वे घर्षण के कारण घिसने से बच जाते हैं।

Durex-- ड्यूरेक्स

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 10% वंग और 4-5% ग्रैफाइट होता है। यह सिंटरित और सरंध्र होता है। इसका उपयोग तेल संसिक्त बेयरिंगों के लिए होता है।

Durville process-- डर्वेल प्रक्रम

एक विशेष संचलन प्रक्रम जिसमें गलित धातु को धातुमल के साथ मिलाए बगैर संचक बनाए जा सकते हैं और साथ ही संचकन के दौरान धातु का वायु के साथ संपर्क भी नहीं होता।

Dutch gold-- डच स्वर्ण

एक ताम्र यशद मिश्रातु जिसमें 20% यशद होता है। यह अत्यंत तन्य होता है और इसका विशिष्ट रंग होता है। इसका उपयोग गिल्डन के लिए तथा पर्णी के रूप में किया जाता है।

Dutch metal-- डच धातु

एम ताम्र-यशद मिश्रातु जिसमें 20–24% यशद होता है। यह अत्यंत तन्य और विशिष्ट रंग का होता हे। इसका उपयोग कांस्यन के लिए तथा पर्णी और स्वर्ण-पत्र के रूप में किया जाता है।

Earing-- कर्णन

बेल्लन, फोर्जन अथवा गंभीर कर्षण द्वारा यांत्रिक अभिरूपण उत्पादों में उत्पन्न होने वाला दोष इसमें चादर में दैशिकता के कारण यांत्रिक अभिरूपण उत्पादों के सबसे ऊपरी किनारों के चारों ओर तरंगिलता उत्पन्न हो जाती है।

Eddy current test-- भंवर धारा परीक्षण

देखिए– Nondestructive tests के अंतर्गत

Edge dislocation-- कोर प्रभ्रंश

देखिए– Dislocation के अंतर्गत

Edger-- कोरक

फोर्जन में प्रयुक्त यह शब्द प्रायः रूपदा के उस भाग के लिए प्रयुक्त होता है जो धातु को, फोर्जित किए जाने वाले आकार के अनुसार आवश्यक अनुपातों में विभाजित करता है। बेलन-कोरक स्टॉक को अनेक परिकमण-ठोसों का आकार देता है जबकि बॉल-कोरक, बॉल बनाता है।

Edging mill-- कोर कर्तन मिल

एक बेल्लन मिल जिसमें किसी वस्तु के किनारों को बेल्लित करने के लिए बेलन ऊर्ध्वाधर स्थिति में सेट रहते हैं। इसका उपयोग चादरों, प्लेटों या पट्टियों को बेल्लित करने के लिए है।

Edging rolls-- कोर कर्तन बेलन

रोलर मिल में विद्यमान एक प्रकार के बेलन, जो अपने विशेष प्रकार के पृष्ठों या खाँचों अथवा विशिष्ट व्यवस्था के कारण अनेक कोर-परिसज्जाओं को उत्पन्न करते हैं तथा बेल्लित उत्पाद की चौड़ाई को नियंत्रित करते हैं।

Effervescing steel-- बुद्बुदन इस्पात

एक प्रकार का इस्पात जिसके पिंडन की आरंभिक अवस्थाओं में गैस तेजी के साथ निकलती है। इसमें पिंडों की बाहरी परतें अपेक्षाकृत शुद्ध होती है। इसमें समांतर वात-छिद्रों की एक सुस्पष्ट पद्धति होती है। पिंडों का भीतरी भाग अपेक्षाकृत अशुद्ध होता है जिसमें कहीं पर वात-छिद्र होते हैं। इसमें पाइप-कोटर अथवा संकुचन-कोटर बहुत कम या बिल्कुल नहीं होते। इस्पात की ऑक्सीकरण अवस्था और बुद्बुदन क्रिया की अवधि के अनुसार बुद्बुदन इस्पातों को उद्गामी इस्पात, नोमीयन इस्पात, छादित इस्पात अथवा शीतलित्र पट्टित इस्पात कहते हैं।

Eggertz test-- ऐगर्ट्ज परीक्षण

कार्बन-इस्पातों में कार्बन की मात्रा को शीघ्र निर्धारित करने की विधि। इसमें नमूनों के पूर्वनिर्धारित भार को नाइट्रिक अम्ल में घोलकर इसे अंशाकित नली में डाल दिया जाता है। जिसमें उसके रंग का मिलान ठीक उसी ढंग से उपचारित कार्बन की ज्ञात मात्रा वाले प्रतिदर्श से किया जाता है। यह अंशाकित नली ऐगर्ट्ज नली कहलाती है।

Eggertz tube-- ऐगर्ट्ज नलिका

देखिए– Eggertz test

Erhardt process-- एरहार्ट प्रक्रम

सीवनहीन इस्पात नलियों को बनाने की विधि जो बड़ी और भारी नलियों के लिए अधिक उपयुक्त है। यह अपकर्ष बेंच प्रक्रम का संशोधित रूप है जिसमें एक गर्म, खोखले ब्लूम को ऐसे रूपदाओं की श्रेणी में प्रविष्ट कराया जाता है जिनके भीतरी व्यास क्रमशः घटते जाते हैं किंतु एरहार्ट प्रक्रम में केवल तीन या चार रूपदाओं का प्रयोग होता है।

Elastic after effect-- प्रत्यास्थ पश्च प्रभाव

किसी धातु पर प्रयुक्त भार को कम करने अथवा हटा देने के बाद सूक्ष्म मात्रा में होने वाली पश्चगामी प्रत्यास्थ उपलब्धि।

Elastic failure-- प्रत्यास्थ विफलता

किसी भाग का स्थायी रूप से इतनी अधिक मात्रा में विरूपित हो जाना कि वह ठीक ढंग से काम न कर सके। फ्रेम अथवा किसी मोटर कार के अगले पहिए की धुरी का मुड़ जाना इसका उदाहरण है। प्रत्यास्थ विफलता का कारण प्रत्यास्थ श्रांति होती है।

Elastic fatigue-- प्रत्यास्थ श्रांति

पदार्थों द्वारा प्रदर्शित एक गुण जिससे पूर्ण प्रत्यास्थता की अस्थायी हानि हो जाती है। पदार्थों पर लंबे समय तर विरूपण-प्रतिबल लगाने के बाद, प्रतिबल हटाने के बाद भी वे शीघ्र अपने पूर्व रूप में नहीं लौटते हैं, बल्कि अपनी प्रत्यास्थता को धीरे-धीरे पुनः प्राप्त करते हैं।
देखिए– Elastic failure भी

Elcometer-- ऐल्कोमीटर

इस्पात पर अचुंबकीय लेपों की मोटाई को नापने का एक छोटा यंत्र। इसमें स्थायी चुंबक से जुड़े दो ध्रुव होते हैं जिनके बीच में एक लोहे का टुकड़ा घूमता है। जब ध्रुवों को भिन्न भिन्न नमूनों पर रखा जाता है तो अचुंबकीय लेप की मोटाई के अनुसार लोहे की स्थिति बदल जाती है। लोहे के टुकड़े की इस नई स्थिति का पता एक अशांकित मापनी पर घूम रही सूई से लग जाता है।

Electric furnace-- विद्युत भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत

Electric furnace matte smelting process-- विद्युत भट्टी मैट-प्रगलन प्रक्रम

विद्युत भट्टी में किया जाने वाला एक मैट-प्रगलन प्रक्रम। इसमें घान, कैल्साइन और गालक का मिश्रण होता है। भट्टी के अंदर हवा के प्रवेश को नियंत्रित करके भट्टी से बाहर निकलने वाली गैस में सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रता इतनी कम रखी जा सकती है कि वायु में विशेष प्रदूषण उत्पन्न किए बिना उसे सीधा बाहर निकाला जा सके अथवा सल्फर डाइ-ऑक्साइड की मात्रा इतनी अधिक बढ़ाई जा सकती है कि उसकी प्राप्ति लाभकारी हो।

Electrician’s solder-- इलेक्ट्रिशियन सोल्डर

कम गलनांक वाला मिश्रातु जिसमें 94.5% वंग और 5.5% ऐन्टिमनी होता है। इसका उपयोग विद्युत यंत्रों और परिपथों में सोल्डर के रूप में किया जाता है।

Electric ingot process-- विद्युत पिंड प्रक्रम

धातुओं के गलन, संचकन और उत्तरोत्तर पिंडन की सतत विधि जिसमें गलित धातु को पूर्णतया वायुमंडल से पृथक रखा जाता है। इसमें न्यूनतम संपृकथन होता है तथा उच्चतापसह आस्तर का इस्तेमाल न होने के कारण संदूषण बिल्कुल नहीं होता। इस विधि से पाइप रहित तथा दोष रहित पिंड प्राप्त होते हैं। इससे छोटे और अपेक्षाकृत बड़े दोनों प्रकार के पिंड बनाए जा सकते हैं।

Electric smelting-- विद्युत प्रगलन

देखिए– Smelting के अंतर्गत Electric furnace smelting

Electric steel-- विद्युत इस्पात

किसी एक विद्युत प्रक्रम द्वा निर्मित इस्पात जिसमें इस्पात को गलाने के लिए आवश्यक ऊष्मा विद्युत-आर्क से प्राप्त होती हैं। यह ऑर्क धातु और कार्बन इलेक्ट्रोड के बीच उत्पन्न किया जाता है। ऊष्मा, उच्च आवृत्ति धारा द्वारा प्रेरित भंवर-धारा से भी प्राप्त की जा सकती है।

Electroanalysis-- वैद्युत विश्लेषण

धातुओं के विश्लेषण की एक विधि। जिस धातु का निर्धारण करना हो उसका पहले से तोले गए इलेक्ट्रोड पर विद्युत-निक्षेपण किया जाता है। निक्षेपण के पूरा हो जाने पर इलेक्ट्रोड के भार में हुई वृद्धि से किया जाता है।

Electrocast process-- वैद्युत संचकन प्रक्रम

उच्चतापसह पदार्थ को वांछित रूप में बनाने की विधि। इसमें उपयुक्त अनुपात में कच्चे पदार्थों को मिलाकर उन्हे विद्युत-भट्टी में संगलित होने तक गर्म किया जाता है और अंत में संचकित कर दिया जाता है।

Electrochemical cleaning-- वैद्युत रासायनिक निर्मलन

जंगरोधी इस्पात से वेल्ड अपवर्णता को हटाने की विधि। यह विधि उस अवस्था में विशेष उपयोगी है जब साधारण विधियों से यह क्रिया न की जा सके। इसमें तांबे की छड़ को उचित आकार में मोड़कर उसके सिरे पर रबर के छोटे छोटे टुकड़े लगा दिए जाते हैं, ताकि तांबा, जंगरोधी इस्पात को न छुए और लघु परिपथन न हो। नमूने में थोड़ी मात्रा में 50% फॉस्फोरिक अम्ल डाला जाता है जो तांबे की छड़ को स्पर्श करने और अपवर्णित क्षेत्र को गीला करने के लिए पर्याप्त होता है। अम्ल की सांद्रता जितनी अधिक होगी, इस्पात उतना ही अधिक परिष्कृत होगा।

Electrochemical corrosion-- वैद्युत रासायनिक संक्षारण

जब दो भिन्न धातुएँ या मिश्रातुएँ किसी विद्युत-अपघट्य की उपस्थिति में एक दूसरे के विद्युत-संपर्क में रहती है तो वे गैल्वेनी सेल के इलेक्ट्रोड बनाती हैं। इसमें ऐनोडी इलेक्ट्रोड वाली धातु का उस अवस्था की अपेक्षा अधिक संक्षारण होता है जब धातुओं के बीच कोई संपर्क न हो। इस प्रकार संक्षारण केवल तब होता है जब धातुओं और विलयन से होते हुए विद्युत परिपथ पूर्ण हो जाए। संक्षारण की दर, सेल में उत्पन्न विद्युत वाहक बल पर निर्भर करती है और उस स्थिति में अधिकतम होती है जब धातुएँ विद्युत रासायनिक श्रेणी में एक दूसरे से दूर हों और धातु-आयन विलयन में शीध्र प्रवेश करें। इसे विद्युत अपघटनी संक्षारण भी कहते हैं।
तुलना– Galvani corrosion

Electrode depositon-- इलेक्ट्रोड निक्षेप

वेल्डिंग में प्रयुक्त एक शब्द जो इलेक्ट्रोड की इकाई लम्बाई से निक्षिप्त वेल्डित धातु का भार होता है।

Electrode efficiency-- इलेक्ट्रोड दक्षता

देखिए– Current efficiency

Electrodeposition-- वैद्युत निक्षेपण

किसी विद्युत-अपघट्य में विद्युत-धारा प्रवाहित कर, इलेक्ट्रोड पर किसी पदार्थ को निक्षेपित करना। इस विधि दवारा किसी धात्विक अथवा अधात्विक चालकों के पृष्ठों पर अन्य धातु की परत चढ़ाना हो उसे विद्युत अपघट्य में डुबाया जाता है जिसमें उस धातु का लवण विद्यमान हो। विद्युत अपघटनी सेल में वस्तुएँ कैथोड का कार्य करती हैं। वैद्युत-लेपन, वैद्युत-अभिरूपण, वैद्युत-परिष्करण और वैद्युत-प्रापण आदि इलेक्ट्रोड निक्षेपण के अंतर्गत ही आते हैं।

Electrode potential-- इलेक्ट्रोड विभव

किसी इलेक्ट्रोड और उसके संपर्क में रहने वाले विद्युत-अपघट्य के बीच पाया जाने वाला विभवांतर जो मानक इलेक्ट्रोड के सापेक्ष मापा जाता है। यह मानक इलेक्ट्रोड साधारणतया मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड होता है। यशद आदि धातुएँ जो अम्लों से हाइड्रोजन को विस्थापित करती हैं उनका इलेक्ट्रोड-विभव उत्कृष्ट धातुओं से कम होता है। संक्षारण और वैद्युत निक्षेपण प्रक्रमों में इलेक्ट्रोड-विभव का विशेष महत्व है। जिस प्रकार कोई द्रव तब तक वाष्प में बदलता जाता है, जब तक वाष्प-दाब अपने सीमांत मान तक न पहुँच जाए उसी प्रकार किसी धातु में भी साम्य-विभव उत्पन्न होता है जो उस द्रव पर निर्भर करता है जिसमें वह धातु डूबी हो।

Electro extraction-- वैद्युत निष्कर्षण

विद्युत-अपघटन द्वारा किसी धातु को उसके लवणों के विलयन से सीधे प्राप्त करना। इसमें आवश्यक लवण-विलयन को अयस्कों अथवा अवशिष्टों के निक्षालन से प्राप्त किया जाता है। इसे वैद्युत प्रापण भी कहते हैं।

Electrofacing-- वैद्युत आलेपन

विद्युत-निक्षेपण द्वारा किसी धात्विक पृष्ठ पर अधिक कठोर धातु का लेप करना। इससे धात्विक पृष्ठ अधिक टिकाऊ हो जाता है।

Electroforging-- वैद्युत फोर्जन

वह प्रचालन जिसमें धातु के भागों में ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए किसी प्रतिरोध वेल्डिंग मशीन के विद्युत निर्गम का प्रयोग किया जाता है और फोर्जन अथवा आवश्यकतानुसार धातु को विस्थापित करने के लिए वेल्डर की द्रवचालित दाब-पद्धति काम में लाई जाती है।

Electroforming-- वैद्युत अभिरूपण

वांछित आकार के पैटर्न पर आवश्यक धातु के विद्युत निक्षेपण द्वारा धातु की वस्तुओं को बनाना। इसका उपयोग मुख्यतः सीवनहीन, खोखले पात्रों और प्लास्टिक की वस्तुओं के साँचों को बनाने के लिए होता है। पैटर्न, धातु या अधातु किसी भी वस्तु का हो सकता है। यदि पैटर्न अधातु का हो तो विद्युत चालन के लिए उस पर चाँदी की पतली परत की आवश्यकता होती है। खोखले पात्रों और कठिन पैटर्नीं, संगलनीय मिश्रातु पैटर्नों (जिन्हें गरम पानी में पिघलाकर शीघ्र पृथक किया जा सकता है) को बनाने में यह विधि विशेष लाभकारी हैं।

Electrography-- वैद्युत अभिलेख

धातुओं पर किए गए धात्विक और अधात्विक लेपों में विद्यमान रंध्रता को दशनि की युक्ति। इसमें किसी उपयुक्त विद्युत अपघट्य से भीगे कागज को लेप के साथ दबाया जाता है और कागज के दूसरी ओर एक प्रतिइलेक्ट्रोड रख दिया जाता है। जब परीक्षित नमूने और प्रति-इलेक्ट्रोड के बीच विद्युत वाहक बल प्रयुक्त किया जाता है तो कागज पर उत्पन्न चिन्ह रंध्रता व्यक्त करते हैं।

Electroless plating-- विद्युतहीन लेपन

विद्युत-धारा के बिना धातु-पृष्ठों पर निकैल औऱ कोबाल्ट का लेप चढ़ाने की विधि। यह हाइपोफास्फाइट के गरम विलयन द्वारा, निकैल अथवा कोबाल्ट लवण के रासायनिक अपचयन द्वारा संपन्न होती है। यह उत्प्रेरकीय अभिक्रिया है तथा निर्धारित संद्रण और pH पर यदि इस्पात, निकैल आदि धातुओं को अवगाह में प्रविष्ट न किया जाए तो लेपन नहीं होता है। इस विधि द्वारा गहरे छिद्रों और नलियों पर एक समान लेप चढ़ाया जा सकता है।

Electrolytic-- विद्युत-अपघटनी सेल

एक विद्युत-चालक तंत्र विद्युत-रासायनिक क्रिया उत्पन्न करने के उद्देश्य से एनोड और कैथोड दोनों विद्युततः संयोजित रहते हैं और विद्युत-अपघट्य में डूबे रहते हैं। आरोपित विद्युत धारा के कारण पदार्थ एनोड से धुलाकर विद्युत अपघट्य से होते हुए कैथोड पर जमा हो जाते है। इन सेलों का प्रयोग विद्युत-निष्कर्षण, विद्युत-लेपन और विद्युत-परिष्करण के लिए होता है विद्युत-अपघटनी संक्षारण भी इन्हीं सेलों के कारण होता है।

Electrolytic cleaning-- वैद्युत अपघटनी निर्मलन

एक निर्मलन-प्रक्रम जिसमें धातु के पृष्ठ से ग्रीज, शल्क आदि को हटाया जाता है। जिस वस्तु का शोधन करना हो उसका किसी उपयुक्त विद्युत-अपघट्य में कैथोड बनाया जाता है। विद्युत-उपघटनी विजंगन (Eletrolytic derusting) इस्पात-पृष्ठों से संक्षारण-उत्पादों को हटाने की एक प्रभावकारी विधि है। इसमें निष्क्रिय कार्बन इलेक्ट्रोडों अथवा ऐनोड के रूप में इस्पात छड़ों की आवश्यकता होती है। इसमें उच्च ऐम्पियरता पर लगभग 12 वोल्ट विद्युत तथा विद्युत-अपघट्य के रूप में समुद्र का पानी अथवा तनु कास्टिक सोडा का प्रयोग होता है।
धातु और जंग-निक्षेप के बीच हाइड्रोजन कैथोड पर उत्पन्न होती है। जंग को या तो हाथ से हटा दिया जाता है अथवा इतना ढीला कर दिया जाता है कि उसे होज या बुरुश द्वारा आसानी से हटाया जा सके।
अन्य प्रकार के विद्युत-अपघटनी निर्मलन, विद्युत-लेपन से पहले ऐनोडी उत्कीर्णन किया जाता है ताकि विद्युत निक्षेपण ठीक प्रकार से हो सके।

Electrolytic corrosion-- वैद्युत अपघटनी संक्षारण

देखिए– Electrochemical corrosion

Electrolytic etching-- वैद्युत अपघटनी रसोत्कीर्णन

विद्युत-निक्षेपण से पूर्व धातुओं के उपचार के लिए प्रयुक्त एक विधि। इसमें किसी विद्युत-अपघट्य में धातुओं को ऐनोड बनाया जाता है और उपयुक्त धारा-घनत्व का प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग धातु-चित्रण परीक्षण में नमूनों के रसोत्कीर्णन के लिए भी होता है।

Electrolytic grinding-- वैद्युत अपघटनी पेषण

धातुओं, धात्विक कार्बाइडों आदि विद्युत चालक वस्तुओं के पृष्ठों को चिकना बनाने या आकार प्रदान की विधि। इसमें धातु डिस्क के बने कैथोड को कार्य-वस्तु के बिल्कुल समीप घुमाया जाता है। कार्य-वस्तु ऐनोड का काम करती है। ऐनोड की खुरदरी सतह विलीन हो जाती है जिससे पृष्ठ चिकना हो जाता है। डिस्क और कार्य-वस्तु के ऊपर विद्युत-अपघट्य को प्रवाहित किया जाता है। इसके लिए 16-18 वोल्ट की अपरिवर्ती प्रत्यक्ष धारा, उच्च चालक विद्युत-अपघट्य और ऐनोड पर उच्च धारा घनत्व की आवश्यकता होती है।

Electrolytic polishing-- वैद्युत अपघटनी पॉलिशन

धातु-पृष्ठों को परिष्कृत करने की एक विधि। जिस वस्तु पर पॉलिश करना हो उसे किसी विद्युत-अपघटनी सेल का ऐनोड बनाया जाता है। वस्तु का पृष्ठ घुल जाने से विशेष अवस्थाओं में वह चमकीला बन जाता है। इस विधि का उपयोग सूक्ष्म चित्रण नमूनों (Micrographic specimens) परावर्तक पृष्ठों आदि को बनाने में होता है। इसे वैद्युत पॉलिशन भी कहते हैं।

Electrolytic refining-- वैद्युत अपघटनी परिष्करण

देखिए– Refining के अंतर्गत

Electromachining-- वैद्युत मशीनन

1. पेषण और मशीनन की संयुक्त विधि। इसमें-आबद्ध अपघर्षक पहिया (जो प्रायः हीरा होता है) कैथोड का काम करता है जो कार्य-वस्तु के बने ऐनोड के संपर्क में रहता है। यह संपर्क किसी उपयुक्त विद्युत अपघट्य के ऊपरी सतह के नीचे किया जाता है। अपघर्षक कणों द्वारा पेषण होता है। ये कण अचालक अंतर को (Non-conduction spacer) का काम करते है जिससे विद्युत-अपघट्य द्वारा साथ में मशीनन भी होता रहता है।
2. देखिए– Electrolytic grinding भी

Electromagnetic separation-- वैद्युत चुंबकीय पृथक्करण

विद्युत-चुंबकों के आकर्षण द्वारा किसी चुंबकीय पदार्थ को अचुंबकीय पदार्थों से पृथक करना। इस विधि का उपयोग मैग्नेटाइट आदि चुंबकीय अयस्क के सीधे सांद्रण के लिए अथवा लोहमय मैंगनीज अयस्क या क्रोमाइट आदि अचुंबकीय खनिजों को चुंबकीय लोह खनिजों में परिवर्तित करने के बाद किया जाता हैं। अचुंबकीय खनिज, अपचायी भर्जन (चुंबककारी भर्जन) द्वारा चुंबकीय खनिजों में परिवर्तित किए जाते हैं। इस विधि में पेटी वाहक अथवा घूर्णी ड्रम मशीनों का उपयोग किया जाता है।

Electrometallurgy-- वैद्युत धातुकर्मिकी

देखिए– Metallurgy के अंतर्गत

Electron-- इलेक्ट्रॉन

ऋण आवेशित अवपरमाणुक कण जिसका द्रव्यमान 9.107 X 10–31 किलोग्राम और आवेश 1.6 X 10–19 कूलॉम होता है। यह ऋण विद्युत का चरम मात्रक होता है और इसका आवेश एक संयोजी आयन में विद्यमान आवेश के बराबर होता है। इसका आविष्कार सर जे0जे0 टॉमसन ने सन् 1895 में कैथोड किरणों के रूप में किया था।
प्राथमिक इलेक्ट्रॉन (Primary electron) :– वह इलेक्ट्रॉन जो संघट्टन से उत्पन्न न होकर पदार्थ द्वारा सीधे उत्सर्जित किया जाता है।
द्वितीयक इलेक्ट्रॉन (Secondary electron):– (1) आपाती इलेक्ट्रॉन द्वारा किसी पदार्थ की बमबारी से उत्पन्न इलेक्ट्रॉन।
(2) वह इलेक्ट्रॉन जिसमें गति, प्राथमिक विकिरण से संवेग के स्थानातरण के कारण, उत्पन्न होती है।

Electron beam welding-- इलेक्ट्रॉन किरणपुंज वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Electron compound-- इलेक्ट्रॉन यौगिक

वे यौगिक जिनमें संयोजकता-इलेक्ट्रॉनों का परमाणुओं के साथ नियत अनुपात होता है। ऐसे यौगिकों की संरचना एक समान होती है। इन यौगिकों को ह्यूम रॉधरी यौगिक भी कहते हैं। इनका विभाजन निम्नलिखित तीन वर्गों में किया जाता है।
(1) इलेक्ट्रॉन अनुपात 3:2, बीटा यौगिक (उदाहरणार्थ– (CuZn : CuBe)
(2) इलेक्ट्रॉन अनुपात 21: 13, गामा यौगिक (उदाहरणार्थ (Cu₅Zn₈ : Cu₃₁ Sn₈)
(3) इलेक्ट्रॉन अनुपात 7 : 4, एप्सिलॉन यौगिक (उदाहरणार्थ (CuZn₃ : Cu₃Sn)

Electron diffraction-- इलेक्ट्रॉन विवर्तन

देखिए — Diffraction के अंतर्गत

Electroplating-- वैद्युत लेपन

विद्युत-निक्षेपण द्वारा एक धातु का दूसरी धातु पर पतला, मजबूती से आसंजित लेप चढ़ाना। जिस वस्तु पर लेप चढ़ाना हो उसे सेल का कैथोड बनाया जाता है। लेप चढ़ाने से पहले वस्तु को गरम क्षारकीय कुंड में डुबाकर पृष्ठ से ग्रीज आदि वस्तुओं को हटा देते हैं।
इस विधि का उपयोग सजावट का सामान बनाने संक्षारणरोध, अपघर्षणरोध और घिसे पुर्जों को ठीक करने के लिए होता है।

Electropolishing-- वैद्युत पॉलिशन

देखिए– Electrolytic polishing

Electrorefining-- वैद्युत परिष्करण

देखिए– Refining के अंतर्गत Electrolytic refining

Electroslag refining-- वैद्युत धातुमल परिष्करण

देखिए– Refining के अंतर्गत

Electroslag welding-- वैद्युत वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Electrostatic concentration-- स्थिर वैद्युत सांद्रण

देखिए– Concentration के अंतर्गत

Electrostatic separation-- स्थिर वैद्युत पृथक्करण

अयस्क सांद्रण का एक प्रक्रम जो इस स्थिर वैद्युत सिद्धांत पर आधारित है कि समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित तथा असमान आवेश आकर्षित करते हैं। सामान्य रूप से प्रभरण-पदार्थ को घूमते हुए ड्रम के ऊपर गुजारा जाता है जो ऋण इलेक्ट्रोड का काम करता है। इससे उपयुक्त दूरी पर दुसरा ड्रम जो पहले ड्रम की अपेक्षा विपरीत दिशा में घूमता है, धन-इलेक्ट्रोड का काम करता है। इस प्रकार स्थिर वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। प्रभरण पदार्थ के कण अपनी चुंबकीय प्रवृति की भिन्न-भिन्न मात्राओं के अनुसार स्थिर वैद्युत बल रेखाओं के साथ गमन करते हैं। अप्रतिकर्षित पदार्थ सीधे नीचे को गिरते हैं। प्रतिकर्षित पदार्थ कुछ आगे की ओर गिरता है जिसके जमा होने का ठीक-ठीक स्थान चुंबकीय प्रवृति की मात्रा पर निर्भर करता है।

Electrothermic-- वैद्युत औष्मिक

रासायनिक और धातुकर्म-प्रक्रमों में ऊष्मा के उत्पादन के लिए विद्युत ऊर्जा के उपयोग के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द। प्रतिरोध, प्रेरण अथवा आर्क-तापन द्वारा प्राप्त उच्च ताप का प्रयोग धातुओं को गलाने अथवा उनके प्रगलन या परिष्करण के लिए किया जाता है।

Electrothermic process-- वैद्युत तापीय प्रक्रम

एक इस्पात-निर्माण प्रक्रम जिसमें कार्बन और कच्चे लोहे के कुंड में उपस्थित अन्य तत्वों द्वारा लोह-अयस्क का अपचयन किया जाता है। इसे प्रेरण द्वारा गरम किया जाता है जिसके लिए एक या अधिक प्रेरण-भट्टियों और क्यूपोला का प्रयोग होता है। कच्चे लोहे को क्यूपोला मे पिघलाकर उसे प्रेरण-भट्टी में स्थानांतरित किया जाता है और फिर उसमें अयस्क मिला दिया जाता है। वैकल्पित विधि में ठंडे कच्चे लोहे को प्रेरण-भट्टियों में पिघलाकर उसमें 60% इस्पात अपशिष्ट मिलाया जाता है। इस प्रक्रम का लोह मिश्रातुओं के निर्माण में भी प्रयोग किया जाता हैं।

Electrotype metal-- वैद्युत टाइप धातु

एक तन्य सीसमिश्रातु जिसमें 2.5–4% वंग, 2.5–3% ऐन्टिमनी और शेष सीसा होता है। इसका उपयोग मुद्रक वैद्युत टाइप में सहारा देने में किया जाता है।

Electrowinning-- वैद्युत प्रापण

देखिए– Electroextraction

Elinvar-- एलिनवार

एक लोह मिश्रातु जिसमें 53–61% लोहा, 33-35% निकैल, 4–5% क्रोमियम, 1–3% बुल्फ्राम, 0.5–2% सिल्किन, 0.5–2% मैगनीज और 0.5–2% कार्बन होता है। इसका ताप-प्रसार गुणांक कम होता है और इसका उपयोग घड़ियों की कमानियों तथा अन्य परिशुद्ध यंत्रों के निर्माण में होता है।

Elkem furnace-- एल्केम भ्राष्ट्र

लोह मिश्रातुओं और कैल्सियम कार्बाइड के उत्पादन के लिए विकसित की गई एक विद्युत–भ्राष्ट्र जिसमें घूर्णी हार्थ होता है।

Elmore process-- एलमोर प्रक्रम

एक प्रकार की फेन प्लवन विधि यह अयस्क-संसाघन प्रक्रम है जिसमें तेल और पानी के मिश्रण में, अयस्क को हिलाकर सल्फाइडों को गैंग से पृथक किया जाता है। अंत में तेल की परत पानी के ऊपर आ जाती है और उसमें सल्फाइड के कण भी निलंबित रहते हैं।

Elongation test-- दैर्ध्यवृद्धि

देखिए– Mechanical test के अंतर्गत

Elutriation-- धावपृथकन

किसी तरल पदार्थ में निलंबित कर चूर्ण के कणों को वर्गीकरण अर्थात् आमाप के अनुसार पृथक करना। बड़े कणों की प्रवृत्ति डूबने की होती है।

Ely furnace-- ऐलि भ्राष्ट

पिटवाँ लोहे के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक यंत्रचालित भट्टी। इसमें पिघले कच्चे लोहे को एक हार्थ में उड़ेला जाता है और ऊपर से बेलन मिल के शुल्क और सिंडर डालते हैं। तत्पश्चात् भट्टी का 60° पर तब तक दोलन करते रहते हैं जब तक सतह पर गैस के बुलबुले प्रकट न हो जाएँ। इसके बाद धातुमल और धातु को मिलाने के लिए भट्टी को केंद्रीय अक्ष के चारों ओर घुमाया जाता है। अंत में पिटवाँ लोहे का एक गोला बन जाता है। यह विधि बहुत कुछ हस्त आलोडन भट्टी (Hand puddling furnace) की तरह है।

Embossing-- उच्चित्रण

धातु की बनी वस्तुओं के पृष्ठ पर उभार द्वारा डिजाइन बनाना।

Embrittlement-- भंगुरण

भौतिक अथवा रासायनिक परिवर्तन के कारण किसी धातु अथवा मिश्रातु में सामान्य तन्यता का अभाव होना।

Caustic embrittlement-- कास्टिक भंगुरण

देखिए– Caustic cracking
हाइड्रोजन भंगुरण (Hydrogen embrittlement): हाइड्रोजन की उपस्थिति के कारण किसी धातु में तन्यता अथवा चर्मलता का अभाव होना। हाइड्रोजन का अवशोषण, मार्जन, अम्लोपचार, इनैमलन अथवा विद्युत-लेपन के समय हो सकता है। 0.002 प्रतिशत हाइड्रोजन भी इस्पात को भंगूर बना देता है। हाइड्रोजन-भंगुरण को काल-प्रभावन द्वारा अथवा अतप्त कर्मण से पहले इस्पात को उबलते पानी में भिगोकर दूर किया जा सकता है।
पायन भंगुरण (Temper embrittlement) : जब मध्यम अथवा न्यून-मिश्रातु इस्पातों का 350° –600°C के बीच पायन किया जाता है अथवा उन्हें उच्च पायन-ताप से धीरे धीरे ठंडा किया जाता है तो खाँचित शलाका प्रतिधात प्रतिरोध में कमी आ जाती है। क्रांतिक ताप परास से अधिक ताप तक गरम करने के बाद शीघ्र ठंडा करने से पायन भंगुरण समाप्त किया जा सकता है।

Enargite-- इनार्जाइट

3Cu2 S As₂ S₅ ताम्र-आर्सेनिक सल्फाइड जो तांबे का महत्वपूर्ण अयस्क है। यह विषमलंवाक्ष समुदाय में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 3. आपेक्षिक घनत्व 4.43–4.45।

End quench test-- अंत्य शमन परीक्षण

देखिए– Jominy end quench test

Endurance limit-- सहन सीम

देखिए– Fatigue limit

Endurance ratio-- सहन अनुपात

किसी पदार्थ की श्रांति सीमा और चरम लनन सामर्थ्यक का अनुपात। इस्पातों के लिए इसका मान 0.5 के आसपास होता है।

Endurance test-- सहन परीक्षण

देखिए– Under mechanical test के अंतर्गत– Fatigue test

Enduro alloys-- एंडयूरो मिश्रातु

लोह मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिसमें निकैल, क्रोमियम और कार्बन होते हैं। इनमें मॉलिब्डेनम, मैंगनीज और सिलिकन भी हो सकते हैं। ये उत्तम संक्षारणरोधी और ऊष्मारोधी होते हैं। इनका उपयोग रासायनिक संयंत्रों और टर्बाइनों में होता है।

Energy efficiency-- ऊर्जा क्षमता

किसी विशिष्ट विद्युत-रासायनिक प्रक्रम की धारा-क्षमता और वोल्टता-क्षमता का गुणनफल।

Engraver’s brass-- उत्कीर्णक पीतल

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 37.75% यशद और 17.75 सीसा होता है। यह कठोर और मशीननीय होता है। इसका उपयोग हार्डवेयर और घड़ी के पुर्जों को बनाने के लिए किया जाता है।

Enlund method-- एंलुंड विधि

इस्पात-निर्माण में इस्पात में विद्यमान कार्बन की मात्रा का शीघ्र आकलन करने के लिए प्रयुक्त एक विधि। इसके लिए इस्पात का विशिष्ट विद्युत प्रतिरोध ज्ञात किया जाता है।

Epsom salt-- एप्सम लवण

जलयोजित मैग्नीशियम सल्फेट, MgSO₄7H₂O का सामान्य नाम जिसमें 9.9% मैग्नेशियम होता है। रेचक के रूप में, कागज के भरक के रूप में तथा वस्त्रों को अज्वलनशील बनाने में यह पदार्थ विशेष उपयोगी है। यह चमड़ा कमाने तथा रंजन के काम में भी लाया जाता है।

Equiaxed grain structure-- समाक्षी कण संरचना

वह संरचना जिसमें कणों का सब दिशाओं में लगभग समान विस्तार होता है।

Equilibrium diagram (isothermal transformation diagram)-- साम्य आरेख

देखिए– Phase diagram

Erichsen’s test-- ऐरिकसन परीक्षण

देखिए– Mechanical test के अंतर्गत Cupping test

Errosion scab-- अपरदन स्कैब

देखिए– Caasting defect के अंतर्गत

Etchant-- रसोत्कीर्णक

भिन्न संक्षारण-प्रभाव द्वारा किसी धातु अथवा मिश्रातु की संरचना ज्ञात करने का साधन। इससे कणों के भिन्न भिन्न रचक–हिस्सों को पहचाना जा सकता है। रसोत्कीर्णक प्रायः किसी अभिकर्मक का जलीय विलयन, कोई अम्ल अथवा क्षारक होता है। कुछ उदाहरण में रसोत्कीर्णन, ऊष्मा-आभाकरण (Heat tinting) द्वारा किए गए भिन्न मात्रा में ऑक्सीकरण द्वारा भी किया जा सकता है। रसोत्कीर्णक, भिन्न रासायनिक संघटन वाले स्थलों (Site) पर भिन्न क्रिया कर अथवा रंग उत्पन्न कर, संरचना को व्यक्त करता है।

Etching-- रसोत्कीर्णन

वरणात्मक क्रिया द्वारा, पॉलिश की गई धातु अथवा मिश्रातु की संरचना ज्ञात करना।
रासायनिक रसोत्कीर्णन (Chemical etching) — इसके लिए धातु के पॉलिश किए गए पृष्ठ पर किसी ऐसे अभिकर्मक की क्रिया की जाती है जिसके भिन्न भिन्न रचकों अथवा क्रिस्टलों पर भिन्न भिन्न क्रिया होती है। इसका कारण यह है कि रसोत्कीर्णक में भिन्नतः दिक् विन्यस्त की विलयन-दर भिन्न-भिन्न होती है।
विद्युत अपघटनी रसोत्कीर्णन (Electrolytic etching)– इसमें जिस पदार्थ का उत्कीर्णन करना हो उसे ऐनोड बनाया जाता है। ऐनोड और उपयुक्त कैथोड को विद्युत–आपघट्य में डुबाकर तथा निर्दिष्ट वोल्टता पर उपयुक्त विद्युत धारा प्रवाहित कर रसोत्कीर्णन किया जाता है।
तापीय रसोत्कीर्णन (Thermal etching)– पालिश की गई धातु को हवा अथवा निर्वात में गरम कर उसके पृष्ठीय परतों का पुनर्विन्यास अथवा वरणात्मक ऑक्सीकरण करना ताकि उसकी संरचना ज्ञात की जा सके।

Eureka-- यूरेका

एक मैग्नीशियम मिश्रातु जिसमें 1.25% दुर्लभ मृदा तत्व, 4.5% यशद और 0.6% जर्कोनियम होता है। यह 100°C तक पर्याप्त मजबूत होता है। अतः इसका उपयोग इमारती अवयवों को बनाने में किया जाता।

Eutectic alloy-- यूटेक्टिक मिश्रातु

देखिए– Alloy के अंतर्गत

Eutectic point-- यूटेक्टिक बिंदु

प्रास्था अथवा साम्यावस्था आरेख में नियत ताप और नियत संघटन का संगत बिंदु, जिस पर यूटेक्टिक अभिक्रिया होती है।
देखिए– Eutectic reaction भी

Eutectic reaction-- यूटेक्टिक अभिक्रिया

एक समतापी व्युत्क्रमणीय अभिक्रिया जिसमें नियत ताप पर नियत संघटन वाले द्रव-मिश्रातु के जमने से ठोस पदार्थ, प्राप्त होता है जिसमें दो प्रकार के परस्पर मिश्रित क्रिस्टल होते हैं। यह अभिक्रिया प्रावस्था-आरेख की लिक्विडस रेखा के निम्नतम बिंदु पर संपन्न होती है। इस अभिक्रिया के दौरान, द्रव प्रावस्था और ठोस प्रावस्थाओं के संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं।

Eutectic solder-- यूटेक्टिक सोल्डर

सीसा-वंग यूटेक्टिक मिश्रातु जिसमें 28% सीसा और शेष वंग होता है। इसका गलनांक 183°C है इसका उपयोग उच्च वेग मशीन सोल्डरन और इलेक्ट्रानिक यंत्रों के सूक्ष्म सोल्डरन में किया जाता है।

Eutectoid alloy-- यूटेक्टॉइड मिश्रातु

देखिए– Alloy के अंतर्गत

Eutectoid point-- यूटेक्टॉयड बिंदु

प्रावस्था या साम्यावस्था आरेख में नियत ताप और नियत संघटन का संगत बिंदु जिस पर यूटेक्टाइड अभिक्रिया होती है।
देखिए– Eutectoid reaction भी

Eutectoid reaction-- यूटेक्टॉइड अभिक्रिया

एक समतापी व्युत्कमणीय अभिक्रिया जिसमें नियत ताप पर किसी नियत संघटन वाले ठोस विलयन को ठंडा करने पर वह परस्पर मिश्रित दो या अधिक ठोस पदार्थों में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार बनने वाले ठोसों की संख्या तंत्र में घटकों की संख्या के बराबर होती है।

Everest-- एवरेस्ट धातु

सीसा मुल्क मिश्रातु जिसमें 5-7% वंग, 14–18% ऐन्टिमनी तथा 0.8–1.2% तांबा, 0.7–1.5% निकैल, 0.3–0.8% और्सेनिक, 0.7–1.5% कैडमियम होता है। इसका घर्षण कम होता है और यह मजबूत होता है। अतः इसका उपयोग बेयरिंगों में किया जाता है। इसे थर्मिट धातु भी कहते हैं।

Exfoliation-- अपपत्रण

किसी नमूने की बाहरी परत का पपड़ी बनकर निकलना। उदाहरणार्थ पृष्ठ कठोरित घटक के पृष्ठ पर पपड़ी का बनना। इसका प्रयोग स्पालन अथवा विशल्कन के लिए भी होता है।

Expansion scab-- प्रसार स्कैब

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Explosive forming-- विस्फोटी अभिरूपण

धात्विक वस्तुओं को विशेष आकार देने की एक विधि। इसमें साँचे पर रखी धातु की चादर से उपयुक्त दूरी पर विस्फोटक की सूक्ष्म मात्राओं का प्रयोग किया जाता है। विस्फोट से उत्पन्न बल को सामान्यतया पानी के द्वारा अंतरित किया जाता है जो क्रिया स्थल के चारों और रखे प्लास्टिक के सिलिंडरों में रखा रहता है यह उच्च-उर्जा-दर संरूपण प्रक्रम है जो बड़े और जटिल आकारों के लिए उपयोगी होता है। इसमें प्रयुक्त साँचे, लकड़ी अथवा प्लास्टर के बने होते हैं।

Explosive welding-- विस्फोटी वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Extractive metallurgy-- निष्कर्षण धातुकर्मिकी

देखिए– Metallurgy के अंतर्गत

Extrusion-- उत्सारण

ठोस धातु के बिलेट अथवा ब्लैंक से छड़ों, नलियों और अनेक प्रकार के ठोस तथा खोखले भागों को बनाने का प्रक्रम। उत्सारण प्रक्रम तीन प्रकार के होते हैं–
प्रत्यक्ष–उत्सारण (Direct extrusion) — इसमें बिलेट को एक सिलिंडर में डालकर पीछे से एक अनुगामी प्लेट रख दी जाती है। आवश्यकता होने पर सिलिंडर को गरम किया जा सकता है। तत्पश्चात् हाइड्रोलिक प्रेस द्वारा पर्याप्त दाब डाला जाता है जिससें धातु सुघट्य होकर रूपदा के नियंत्रित छिद्र से बाहर निकलती है। इस विधि का उपयोग साधारणतया लोह और अलोह धातुओं तथा मिश्रातुओं के लिए और बहुधा पीतल, सीसा, वंग, तांबा, ऐलुमिनियम व मैग्नीशियम मिश्रातुओं के लिए होता है।
अप्रत्यक्ष उत्सारण (Indirect extrusion)– इसमें प्रत्यक्ष उत्सारण में प्रयुक्त अनुगामी प्लेट और रैम के स्थान पर संवरक प्लेट काम में लाई जाती है। रूपदा को बिलेट की ओर ले जाते हैं ताकि उत्सारित भाग खोखले रूपदा-आधार से प्रविष्ट करें। इसमें बिलेट स्वयं गमन नहीं करता, अतः प्रत्यक्ष–उत्सारण की भांति इसमें सिलिंडर की दीवार और धातु-पिंड के बीच घर्षण नहीं होता है।
प्रतिघात उत्सारण (Impact extrusion) इस प्रक्रम में धातु के अनुपचारित स्लग को उथले रूपदा में रखकर पंच द्वारा आघात किया जाता है। धातु को बलयाकार छिद्र से होते हुए पंच के ऊपर बहने दिया जाता है। इस विधि का उपयोग प्याले के आकार के ब्लैंकों, निपात नलियों आदि को बनाने के लिए किया जाता है।
यह एक स्वचालित विधि जिससे बहुत अधिक उत्पादन हो सकता है। इसमें प्रायः वंग-मिश्रातु और शुद्ध ऐलुमिनियम का प्रयोग किया जाता है। इस विधि द्वारा एक ही संक्रिया में सरल आकार के उत्पाद बनाए जा सकते हैं जिन्हें उन्य विधियों से बनाने में कई संक्रियाएँ करनी पड़ती हैं।

Facing sand-- फलक बालू

देखिए– Sand के अंतर्गत

Fahralloy-- फारैलॉय

Fe-Cr-Ni-Al के ऊष्मारोधी लोह मिश्रातु वर्ग के लिए प्रयुक्त व्यापारिक नाम।

Fahring’s metal-- फारिंग धातु

एक मिश्रातु जिसमें 90% वंग और 10% तांबा होता है। कम घर्षण प्रतिरोध के कारण इसका उपयोग बेयरिंगों में किया जाता है। इसे फेरी धातु भी कहते हैं।

Falconbridge process-- फाल्कनब्रिज प्रक्रम

निकैल और ताम्र युक्त अयस्कों से निकैल प्राप्त करने का प्रक्रम उच्च धातु मैट प्राप्त करने के लिए अयस्क को प्रगलित किया जाता है और फिर उसे संदलित कर भर्जित किया जाता है ताकि अधिकांश गंधक निकल जाए। तत्पश्चात तांबे को पृथक करने के लिए अम्ल-विलयन के साथ प्रक्षोमन किया जाता है और फिर छान लिया जाता है। तांबा प्राप्त करने के लिए निस्यंद को विद्युत अपघट्य को टैंकों में भेज देते हैं। निकैलयुक्त निस्यंद-केक को गलाकर ऐनोडों के रूप में ढाल लिया जाता है और फिर उनका विद्युत अपघटन द्वारा परिष्करण किया जाता है।

Falling weight test-- पाती भार परीक्षण

संघट्ट सामर्थ्य ज्ञात करने का एक सरल परीक्षण। इसमें परीक्ष्य वस्तु पर निर्दिष्ट ऊँचाई से निश्चित भार की वस्तु को गिराया जाता है। यह परीक्षण प्रायः रेलों, धुरियों, टायरों आदि पर किया जाता है जिनमें बिना विभंग हुए अधिकतम विक्षेप की आवश्यकता होती है।

Fanning-- मंद धमन

अल्प वायु में धमन भट्टी को चालू रखने की एक विधि। इस अवधि में ईंधन की खपत और उत्पादन बहुत कम होता है। धमन भट्टी को इस अवस्था में काफी समय तक रखा जा सकता है और आवश्यकता होने पर भट्टी को पुनः सामान्य उत्पादन के लिए शीघ्र तैयार किया जा सकता है। इस अवधि में न तो घान डाला जाता है और न भट्टी से धातु या धातुमल निकाला जाता है।

Fan steel process-- फैन इस्पात प्रक्रम

टंगस्टन उत्पादन का एक प्रक्रम। इसमें लगभग 800°C ताप पर बुल्फ्रैमाइट को धोने के सोडे के साथ गरम किया जाता है। उत्पाद को निक्षालित कर सोडियम टंगस्टेट विलयन को छान लेते हैं। इसका कैल्सियम क्लोराइड के साथ उपचार करने से कैल्सियम टंगस्टेट का अवक्षेप प्राप्त होता है। इसे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ उबालने से टंगस्टिक अम्ल प्राप्त होता है। इसे अमोनियम पैरा-टंगस्टेट में परिवर्तित कर दिया जाता है और नाइट्रिक अम्ल मिलाकर अपेक्षाकृत शुद्ध टंगस्टिक अम्ल प्राप्त होता है। टंगस्टिक अम्ल को ऑक्साइड में परिवर्तित कर देते हैं और ऑक्साइड को हाइड्रोजन की उपस्थिति में उच्च ताप पर गरम करने से धातु प्राप्त होती है।

Fatigue-- श्रांति

बार-बार या परिवर्ती प्रतिबलों के प्रभाव से किसी धातु अथवा मिश्रातु के यांत्रिक गुणधर्मों में होने वाला ह्रास। इस परिघटना से धातु में विभंग उत्पन्न हो जाता है जिसका अधिकतम मान उसके तनन-सामर्थ्य से कम होता है। श्रांति-विभंग, छोटी दरारों से आरंभ होते हैं प्रतिबल के कारण बढ़ते जाते हैं।

Fatigue limit-- श्रान्ति सीमा

वह अधिकतम प्रतिबल जिसके नीचे किसी पदार्थ का विभंग नहीं होता चाहे उस पर कितनी ही बार प्रतिबल प्रयुक्त किया जाए। श्रांति परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि किसी धातु की सहायता अर्थात् टूटने से पहले सह्य प्रतिबलों की मात्रा, अधिकतम प्रतिबल पर नहीं बल्कि प्रयुक्त प्रतिबल के परास पर निर्भर करती है। इसे सहन सीमा भी कहते हैं।

Fatigue range-- श्रांति परास

प्रतिबल की अधिकतम परास जिसे कोई धातु अनिश्चित समय तक सहन कर सकता है। जब तनन का अधिकतम प्रतिबल, संपीडन के अधिकतम प्रतिबल के बराबर होता है तो श्रांति-सीमा श्रांति-परास दुगुना होता है। श्रांति अवस्थाओं की व्याख्या करने के लिए माध्य प्रतिबल अर्थात् अर्ध-परास का उल्लेख करना आवश्यक है।

Fatigue test-- श्रांति परीक्षण

देखिए– Mechanical test के अंतर्गत

Feeder-- प्रभरक

किसी साँचे का वाहक अथवा पूरक कुंडिका जो संचक के पिंडन के फलस्वरूप होने वाले सकुंचन की प्रतिपूर्ति करने के लिए साँचे में गलित धातु की पूर्ति करती है।

Feed hopper-- प्रभरण हॉपर

धान को संग्रह करने के लिए प्रयुक्त एक पात्र। इस पात्र में धान को आवश्यकतानुसार नियंत्रित दर पर अन्य प्रक्रियाओं के लिए निहिलता जाता है।

Feeding head-- प्रभरण शीर्ष

संधानशाला में एक बहुत बड़ी पूरक कुंडिका जिसमें पर्याप्त मात्रा में धातु उपस्थित रहता है। जब पिंडन के फलस्वरूप संचक का धातु सिकुड़ता है तो यह धातु, भरक का काम करता है। इससे संचक में रिक्तियाँ उत्पन्न नहीं हो पाती है।

Fernihrome-- फर्नीक्रोम

एक लोह मिश्रातु जिसमें 37% लोहा, 30% निकैल, 8% क्रोमियक और 25% कोबाल्ट होता है। इसका तापीय, प्रसार कम होता है तथा इसका उपयोग विद्युत घटकों में सीलों के लिए होता है।

Fernico-- फर्निकों

एक लोह मिश्रातु जिसमें 54% लोहा, 28% निकैल और 18% कोबाल्ट होता है। इसके गुणधर्म और उपयोग फर्नीक्रोम के समान होते हैं।

Ferrimagnetism-- फेरी चुंबकत्व

देखिए– Magnetism के अंतर्गत

Ferrite-- फैराइट

लोहे में कार्बन के ठोस विलयन को फैराइट कहते हैं। लोहे के ऐल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा चार विभिन्न अपररूप होते हैं, अतः फैराइट भी तदनुसार चार प्रकार के होते हैं।
ऐल्फा फैराइट (a–ferrite)– ऐल्फा फैराइट, काय केंद्रित धन लोहे में कार्बन का ठोस विलयन होता है। यह 910°C तक स्थायी और 768°C तक चुंबकीय होता है। 723°C पर कार्बन की अधिकतम विलेयता 0.025% होती हैं। 768°C से ऊपर और 910°C से नीचे यह अचुंबकीय होता है और बीटा-फैराइट (β)–ferrite) कहलाता है।
गामा फैराइट (ϒ-ferrite) अथवा आस्टेनाइट– यह फलक केंद्रित धन लोहे में कार्बन का ठोस विलयन होता है। यह 910°C –1401°C के बीच स्थायी होता है। इसमें 1130°C पर कार्बन की अधिकतम विलेयता 2.06% होती है।
डेल्टा फैराइट (ϑ -ferrite)– यह काय केंद्रित धन लोहे में कार्बन का ठोस विलयन होता है। यह 1401°C–1539°C के बीच स्थायी होता है इसका गलनांक 1539°C है। इसमें 1498°C पर कार्बन की अधिकतम विलेयता 8.1% होती है।

Ferrite band-- फैराइट पट्ट

जिस दिशा में कार्य किया जा रहा हो उसी दिशा में बनने वाली मुक्त फैराइट की समांतर पट्टियाँ। कभी कभी इन्हें फैराइट-धारियाँ (Ferrite streaks) भी कहते हैं।

Ferrite formation-- फैराइट संभवन

जिंक सल्फाइड सांद्रों अथवा अयस्कों के भर्जन के समय जिंक फैराइट का बनना। जल धातुकर्मिक द्वारा जिंक सल्फाइड यशद के निष्कर्षण में भर्जन के समय फैराइट का बनना वांछनीय नहीं है क्योंकि सामान्य ताप पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ निक्षालन द्वारा जिंक फैराइट से यशद प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
यदि निक्षालन के लिए गरम सांद्र सल्फयूरिक अम्ल का उपयोग किया जाए तो जिंक फैराइट के अपघटन से यशद पुनः प्राप्त हो जाता है किंतु फेरिक हाइड्रॉक्साइड के अवक्षेप के नीचे बैठने के कारण विलयन से लोहे को पृथक करना कठिन होता है।

Ferrite ghost-- फैराइट प्रछन्न

ताज़े मशीनित इस्पात पृष्ठों को उपयुक्त कोण से देखने पर कभी-कभी दिखने वाली फैराइट की हल्की पट्टी। यह फॉस्फोरत और कार्बन के असमान वितरण से उत्पन्न होती है। रसोत्कीर्णन से प्रछन्न अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।

Ferrite streak-- फैराइट रेखा

देखिए– Ferrite band

Ferrite stainless steel-- फैराइटी स्टेनलैस इस्पात

देखिए– Stainless steel के अंतर्गत

Ferritic steel-- फैराइटी इस्पात

वे इस्पात जिनमें फैराइट की प्रमुख प्रावस्था रहती है। ये चुंबकीय होते है और यदि उनमें कार्बन की मात्रा 0.2% से अधिक हो तो ऊष्मा-उपचार द्वारा कठोर भी किए जा सकते हैं।

Ferritizer-- फैराइट वर्धक

वह तत्व जो इस्पात में मिलाने पर फैराइट को स्थायित्व प्रदान कर उसकी मात्रा में वृद्धि करता है। क्रोमियम तथा मॉलिब्डेनस फैराइट वर्धक हैं।

Ferroalloy-- लोह मिश्रातु

लोहे का क्रोमियम, मैंगनीज, मॉलिब्डेनम, सिलिकन, टंगस्टन और टाइटेनियम आदि धातुओं के साथ बनने वाले मिश्रातु। इन मिश्रातुओं का उपयोग मिश्रात्वन-तत्व को इस्पात अथवा ढलवाँ लोहे में प्रविष्ट करने अथवा विऑक्सीकारकों के रूप में होता है। ये प्रायः विद्युत्-प्रगलन द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं केवल कार्बन फैरो मैंगनीज वात्या-भट्टी में बनाया जाता है।
लोह क्रोमियम मिश्रातु (Ferrochromium alloy)– इसमें 60–75% क्रोमियम, 1-8% कार्बन और शेष लोहा होता है। यह आस्टेनाइट की विघटन-दर को कम कर देता है और पायनरोधी होता है। यह तन्यता पर कोई विशेष प्रभाव डाले बिना कठोरणीयता और तनन-सामर्थ्य को बढ़ा देता है। यह उच्च वेग कर्तक औजारों के घर्षणरोध को भी बढ़ा देता है। यह वायुमंडलीय संक्षारणरोध को भी बढ़ाता है।
लौह मैंगनीज मिश्रातु (Ferro manganese alloy)– इसमें 76-80% मैंगनीज, 0.6-7% कार्बन और शेष लोहा होता है। यह विऑक्सीकारक और विगंधकीकारक है और इस्पातों में सदैव विद्यमान रहता है। यह उपयोगी कार्बाइड-स्थायीकारक है और ऑक्सीजन और गंधक से संयोग करने के लिए आवश्यकता से अधिक मात्रा में मैंगनीज विद्यमान रहने पर कठोरता में वृद्धि और तन्यता में कमी कर देता है। उच्च मैंगनीज ऑस्टेनाइटी इस्पात अत्यंत घर्षणरोधी होते हैं।
लौह मॉलिब्डेनम मिश्रातु (Ferromolybdenum alloy)—इनमें 70-75% मॉलिब्डेनम. 0.1–2% सिलिकन, 0.6—3.6% कार्बन और शेष लोहा होता है। मॉलिब्डेनम की उपस्थिति से विसर्पण-प्रतिरोध बढ़ जाता है, पायन-भंगुरण घट जाती है तथा गर्तन-संक्षारण, जंगरोधी इस्पातों के प्रतिरोध को बढ़ा देता है।
लोह सिलिकन मिश्रातु (Ferro silicon alloy)—इसमें 5-95% सिलिकन, तथा शेष लोहा होता है। कार्बन की अनुपस्थिति में लौह सिलिकन मिश्रातु 4% सिलिकन, का उच्च विद्युत प्रतिरोध किंतु शैथिल्य हानि (Hyteresis loss) कम होती है जिस कारण यह ट्रांसफॉर्मरों के लिए उपयोगी है। यह प्रबल विऑक्सीकारक है और फेराइट में विलेय है तथा क्रांतिक तापों को बढ़ा देता है। उच्च सिलिकन लोह मिश्रातु, अम्लरोधी होते हैं तथा सिलिकन की उपस्थिति, गलित धातु की तरलता को बढ़ा देती है।
लोह टाइटेनियम मिश्रातु (Ferrotitanium alloy) – टाइटेनियम-समृद्ध लोह मिश्रातु जिसे गलित इस्पात में मिलाने से प्राप्त ढलवाँ धातु की तनन-सामर्थ्य बढ़ जाती है। इसमें 15-45% टाइटेनियम तथा 8% तक कार्बन तथा अल्प मात्रा में ऐलुमिनियम एवं सिलिकन तथा शेष लोहा होता है। इसका उपयोग इस्पात में रेणु—परिष्कारक (grain refiner)के रूप में भी होता है।के रूप में भी होता है।
लोह टंगस्टन मिश्रातु (Ferrotungsten alloy)— इसमें 75-85% टंगस्टन अल्प मात्रा में कार्बन, सिलिकन और फॉस्फोरस तथा शेष लोहा होता है। टंगस्टन से इस्पातों के तनन-सामर्थ्य बढ़ जाती है। इसका कार्बाइड अत्याधिक कठोर होता है। उच्च वेग कर्तन औजार इस्पातों में यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण मिश्रात्वन-तत्व है। इसका उपयोग कार्बन इस्पातों के चुंबकीय गुणधर्मों में वृद्धि करने के लिए होता है।

Ferro chromium alloy-- लोहा क्रोमियम मिश्रातु

देखिए– Ferro alloys

Ferro coke process-- लोह कोक प्रक्रम

इस प्रक्रम में उपयुक्त प्रकार और आमाप के कोयले को बारीक पीसे लोह-अयस्क में अथवा सूक्ष्म अयस्क सांद्रणों में मिलाकर उसका सामान्य विधि से कार्बनीकरण किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त कोक में धात्विक लोहा होता है जिसका उपयोग सामान्य घान के रूप में धमन भट्टी में किया जाता है।

Ferrolum-- फेरोलम

सीस-अधिपट्टित इस्पात जिसमें सीसे के संक्षारणरोधकता और इस्पात की सामर्थ्य दोनों गुण आ जाते हैं। इसका उपयोग रासायनिक उद्योग में होता है।

Ferromagnetism-- लोह चुंबकत्व

देखिए– Magnetism के अंतर्गत

Ferromanganese alloy-- लोह मैंगनीज मिश्रातु

देखिए– Ferro alloy के अंतर्गत

Ferro molybdenum alloy-- लोह मॉलिब्डेनम मिश्रातु

देखिए– Ferro alloy के अंतर्गत

Ferro silicon alloy-- लोह सिलिकन मिश्रातु

देखिए– Ferro alloy के अंतर्गत

Ferrosteel-- लोहइस्पात

कच्चे लोहे, ढलवाँ लोहे, स्क्रैप और इस्पात के मिश्रण से बना घूसर ढलवाँ लोहा। कभी-कभी इसमें मिश्रात्वन योज्यों की अल्प मात्राएँ भी मिलाई जाती है।

Ferrotitanium alloy-- लोह टाइटेनियम मिश्रातु

देखिए– Ferro alloys के अंतर्गत

Ferro tungsten alloy-- लोह टंगस्टन मिश्रातु

देखिए– Ferro alloy के अंतर्गत

Ferrous metal-- लोह धातु

देखिए– Metal के अंतर्गत

Ferrous metallurgy-- लोह धातुकर्मिकी

धातुकर्मिकी की वह शाखा जिसके अंतर्गत लोहा, लोहे के मिश्रातुओं और इस्पात के धातुकर्म का अध्ययन किया जाता है।
तुलना– Nonferrous metallurgy

Ferrox cube-- फेरोक्स क्यूब

सिंटरित वस्तुओं को एक वर्ग जिसमें न्यून शैथिल्य हानि को उच्च प्रतिरोधकता के साथ संयुक्त किया जाता है। इन्हे घनीय फैराइट भी कहते है। इनका उपयोग उच्च आवृत्ति ट्रांसफॉर्मरों और चोकों में कोड सामग्री के रूप में होता है।

Ferrugenous ore-- लोहमय अयस्क

देखिए– Ore के अंतर्गत

Fetttling-- फेटलन

(1) घन-ताड़न गोलिका क्षेपण आदि विधियों द्वारा संचकों अथवा फोर्जनों से चिपकी कालू को पृथक करना।
(2) ओपेन हार्थ भट्टी के तल की मरम्मत करना।

Fibroys fracture-- तंतुमय विभंग

यदि पर्याप्त तन्य धातु में क्रिस्टलों के विभंग होने से पहले, दैर्ध्य वृद्धि हो जाए तो इसके फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला धूसर रंग का तंतु के समान विभंग। यदि तंतुमय विभंग संघट्ट-परीक्षण में उत्पन्न हो तो वह धातु की चर्मलता का निश्चित प्रमाण होता है।

Fick”s law-- फिक-नियम

धातुओं में विसरण-दर व्यक्त करने वाला नियम जो इस प्रकार है–
dc
J = -D ——–
dx
जबकि J इकाई समय में इकाई क्षेत्रफल से प्रवाहित होने वाले पदार्थ की मात्रा, D विसरण-गुणांक तथा dc सांद्रण-प्रवणता है।

Filler metal-- भरक धातु

संगलन वेल्डिंग प्रक्रम में वेल्डिंग कुंड में मिलाई जाने वाली अतिरिक्त धातु जिससे पिंडन के बाद पेल्ड सीवन बनता है। इसमें उपयुक्त संघटन वाली गलित भरक छड़, अतिरिक्त धातु के रूप में मिलाई जाती है। यदि उपभोज्य इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाए तो वह स्वयम् भरक छड़ का काम करता है।

Filler sand-- भरक बालू

देखिए– Sand के अंतर्गत Backing sand

Fin-- पक्षक (दोष)

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Fineness-- शुद्धता

सोने अथवा चाँदी की माप जो प्रति हजार भागों में इन धातुओं के अंश को व्यक्त करता है। 900 शुद्धता से तात्पर्य यह है कि नमूने के एक हजार भागों में सोने अथवा चाँदी के 900 भाग उपस्थित हैं।

Fine silver-- परिशुद्ध रजत

रजत की मानक किस्म जिसमें 99.9% चाँदी और 0.1% तक तांबा होता है।

Finished steel-- परिसज्जित इस्पात

बाजार में भेजने के लिए तैयार इस्पात। इस पर अन्य किसी प्रकार का उपचार करने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लूम, बिलेट, शिलिका, चादर, छड़ आदि अर्धपरिसज्जित इस्पात के अंतर्गत आते हैं।

Finishing-- परिसज्जन

1. धातु पृष्ठों को चिकना बनाने के लिए प्रयुक्त प्रक्रम। इन प्रक्रमों में प्रेषण बफन पॉलिशन, अतप्त बेल्लन, अतप्त कर्षण आदि आते हैं।
2. धातु पृष्ठों पर कार्बनिक अथवा अकार्बनिक लेपन।
3. फोर्जन में इसका अर्थ अंतिम मुद्रण से है। इसके बाद संभावित बंकन अथवा कर्षण क्रियाओं को छोड़कर धातु, प्रायः अंतिम आमाप और आकार में मिल जाता है।
4. देखिए– Finishing

Finishing mill-- परिसज्जा मिल

वह बेल्लन मिल जिसमें, चादर, प्लेट और अन्य उत्पादों को बनाने के लिए अंतिम बेल्लन-क्रिया की जाती है।

Finishings-- परिसज्जक

किसी भ्राष्ट्र अथवा करछुल मे विद्यमान गलित इस्पात में अंतिम बार मिलाए जाने वाला पदार्थ। इसका उद्देश्य उपयुक्त संघटन का इस्पात बनाना अथवा विऑक्सीकरण हैं।

Fire clay-- अग्निसह मृत्तिका

इस शब्द का प्रयोग उन सभी मिट्टियों के लिए होता है जिनका संगलनांक लगभग 1600°C से अधिक होता है और फलस्वरूप उनका उपयोग उच्चतापसह पदार्थ के रूप में हो सकता है। इस प्रकार की मिट्टियाँ प्रायः सब जगह पाई जाती हैं और इनके अभिलक्षणों में बहुत भिन्नता होती है। इनमें मुख्यतः सिलिका और ऐलुमिना होता है। उनके संघटन का एक आवश्यक लक्षण यह है कि उनमें क्षार की मात्रा बहुत कम या बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, अन्यथा वह गालक का काम करता है जिससे गलनांक कम हो जाता है।

Fire refining-- अग्नि परिष्करण

देखिए– Refining के अंतर्गत

Fish eye-- मीनाक्ष

इस्पात में पाए जाने वाले सूक्ष्म विदर। ऊष्मा-प्रवणता के कारण यदि धातु प्रतिबल के प्रभाव में हो और साथ-साथ उसका क्रिस्टलन (अथवा पुनक्रिस्टलन) भी हो तो ये सूक्ष्म विदर उत्पन्न होते हैं। जब द्रव जमकर ठोस बनता है तो सामान्यतया संकुचन होता है। किंतु बहुरूपी परिवर्तनों के कारण अतिरिक्त संकुचन भी होता है। संकुचन गर्त अथवा विदर धातु में सूक्ष्म अबंधित क्षेत्रों के रूप में उत्पन्न होते हैं। उनके प्रभाव से तनन सामर्थ्य और तन्यता दोनों कम हो जाते हैं।

Fish tail-- मत्स्य पुच्छ

बेल्लित चादर के पिछले सिरे पर पाया जाने वाला एक दोष। बेल्लन के समय इस्पात का पृष्ठ अधिक गरम होने के कारण वह बीच के भाग से अधिक लंबा हो जाता है। इसके कारण इस्पात के पिछले सिरे पर एक V के आराप का खाँचा बन जाता है, जो मछली की पूँछ से मिलता-जुलता है। ऐसी स्थिती में यह कहा जाता है कि इस्पात का मत्स्य पुच्छन हो गया है।

Fissure-- विदर

देखिए– Rolling defect

Flakes-- पत्रक

देखिए– Forging defect

Flame annealing-- ज्वाला अनीलन

देखिए– Annealing के अंतर्गत

Flame cleaning-- ज्वाला निर्मलन

इस्पात पृष्ठ को पेन्ट करने के लिए तैयार करने की एक विधि। इसमें उच्च ताप-ज्वाला द्वारा धातु-पृष्ठों को साफ किया जाता है। यह क्रिया प्रायः बालू-क्षेपण के बाद की जाती है ताकि ऑक्सीजन अथवा वाष्पीकरण द्वारा धातु के पृष्ठ पर उपस्थित तेल, मोम आदि कोई भी अवशिष्ट कार्बनिक पदार्थ पृथक हो जाए।

Flame cutting-- ज्वाला कर्तन

देखिए– Gas cutting

Flame hardening-- ज्वाला कठोरण

देखिए– Case hardening के अंतर्गत

Flame plating-- ज्वाला लेपन

लोह धातुओं, पीतल, कांसा आदि पर टंगस्टन कार्बाइड, क्रोमियम कार्बाइड और उच्च तापसह ऑक्साइडों का लेप चढ़ाना। जिस पदार्थ का लेप चढ़ाना हो उसे ऑक्सीजन और ऐसीटिलीन के मिश्रण में निलंबित किया जाता है और मिश्रण का एक मजबूत नली में अधिस्फोटन किया जाता है। उत्पन्न गैस-धारा का वेग इस प्रकार बने कार्बाइडों और ऑक्साइडों का, सुघट्य अवस्था में, लक्ष्य पर स्फोट करता है जहाँ वे पिघले घटक के साथ वेल्डित हो जाते हैं।

Flapping-- संताडन

तांबे के अग्नि शोधन में लोहे की छड़ द्वारा गलित धातुमल-पृष्ठ को तोड़ना। इस क्रिया से गलित धातु, हवा के संपर्क में आती है जिससे ऑक्सीकरण में सुविधा हो जाती है। यह क्रिया प्रदंडन से ठीक पहले की जाती है।

Flash-- उत्क्षिप्त

1. फोर्जन-रूपदाओं के जोड़े में अंतिम मुद्रांकों को भरने के लिए आवश्यकता से अधिक धातु, जो रूपदाओं के बीच आपृथकन-रेखा (Parting line) पर पतली परत के रूप में बाहर निकल आती है।
2. शीर्षाध (Cope) और अधःसंच (Drag) का ठीक-ठीक मेल न होने से संचक में संच-संधि पर बनने वाला धातु का पतला पक्षक।
3. बिंदु वेल्डिंग में बाहर की ओर निकला धातु का पक्षक जो बिंदु के चारों ओर होता है और दो बिंदु वेल्डिंग प्लेटों के बीच में स्थित रहता है।
4. दाब-वेल्डिंग में प्रतिरोध वेल्डिंग प्रक्रम द्वारा बनी संधि से बाहर को निकलने वाली धातु।
देखिए– Burr भी

Flash roaster-- स्फुर भर्जक

देखिए– Suspension roaster

Flash roasting (suspension roasting)-- स्फुर भर्जन (निलंबन)

देखिए– Roasting के अंतर्गत

Flash smelitng-- स्फुर प्रगलन

देखिए– Smelitng के अंतर्गत Flash furnace smelting

Flintshire process-- फ्लिंटशायर प्रक्रम

एक सीसा प्रगलन प्रक्रम जिसमें गैलेना अयस्क का परावर्तनी भट्टी के हॉर्थ में भर्जन किया जाता है ताकि सल्फाइड का कुछ भाग ऑक्साइड और सल्फेट में परिवर्तित हो जाए। इसके बाद ताप बढ़ाया जाता है जिससे ऑक्साइड, सल्फाइड और सल्फेट की परस्पर क्रिया से धात्विक सीसा बनता है और सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलती है।

Flocculent-- ऊर्णी

लुगदियों के ऊर्णन के लिए प्रयुक्त अभिकर्मक। यह बारीक ठोस पदार्थों से पानी को पृथक करने के लिए अवसादन और निस्यंदन में सहायक होता है।

Flocculation-- ऊर्णन

सूक्ष्म विभाजित अवक्षेप का संलयन कोलॉइडी मृदा, सिलिका, ऐलुमिना आदि में ऋणविद्युत आवेश होता है जो विद्युत अपघट्य अथवा फेरिक ऑक्साइड आदि धनविद्युत कोलॉइडों की क्रिया द्वारा उदासीनीकृत हो जाता है। इस प्रकार मृदा आदि कणों के परस्पर ऊर्णन से बड़े कण बनते हैं जो शीघ्र नीचे बैठ जाते हें।

Floor moulding-- तल संचन

देखिए– Moulding के अंतर्गत

Flotation-- प्लवन

द्रवों से कम घनत्व वाले ठोस कणों का उत्प्लावन–प्रभाव के कारण द्रवों की सतह पर उठना।
देखिए– Froth flotation भी

Flowers-- फ्लवर्स

यशदलेपित लोहे की चादरों में पाई जाने वाली तुषारित शीशे के समान चमक। यह यशद लेप क्रिस्टलन से उत्पन्न होती है। कभी-कभी इसे पत्रक, क्रिस्टल और चमकी भी कहते हैं।

Flow line-- प्रवाह रेखा

देखिए– Forging defect के अंतर्गत

Flow stress-- प्रवाह प्रतिबल

विशिष्ट विकृति पर, ठोस धातुओं में सुघट्य विरूपण अथवा प्रवाह उत्पन्न करने के लिए आवश्यक न्यूनतम अपरूपक प्रतिबल।

Flue dust-- फ्लू धूलि

भट्टियों से निकलने वाली फ्लू गैसों में उपस्थित धूलि जिसमें ठोस कण होते हैं। उदाहरणार्थ लोहे की धमन भट्टी से निकलने वाली फ्लू धूलि में लोह अयस्क, कोक और चूने के पत्थर के बारीक कण रहते हैं।

Fluidisation-- तरलन

सूक्ष्म ठोस कणों को किसी गैस में निलंबित करने का प्रक्रम। इसमें गैस उपयुक्त वेग पर ऊपर की और भेजी जाती है और वह निलंबित सूक्ष्म चूर्ण के संपर्क आती है। संहति के प्रक्षोभ के कारण पृष्ठ पर उबलते हुए द्रव का आभास होता है।

Fluidised bed reactor-- तरलित संस्तर अभिक्रियित्र

एक अभिक्रिया-पात्र जिसमें सूक्ष्म चूर्णित ठोस की ऊपर बढ़ते हुए गैस-स्तंभ के साथ क्रिया की जाती है। इसमें चूर्णित संहति के तरलन से संस्तर बनाता है जिससे गैस और ठोस एक दूसरे के निकट संपर्क में आते हैं फलतः अभिक्रिया-दर बहुत अधिक हो जाती है और ऊष्मा-तरण तथा संहति-अंतरण तीव्र गति से होते हैं।

Fluidized bed roasting-- तरलित संस्तर भर्जन

इसे Fluo solid roasting भी कहते हैं
देखिए– Roasting के अंतर्गत

Fluidizer-- तरलक

कोई धात्विक, अथवा उपधात्विक तत्व जो किसी धातु में मिलाने पर संगलित अथवा द्रव अवस्था में उस धातु की तरलता को बढ़ा देती है। तरलकों का प्रयोग अक्सर ढलाई में होता है। उदाहरणार्थ ढलवाँ लोहे में सिलिकन, तरलक का कार्य करता है।

Fluorite-- फ्लुओराइट

प्राकृत कैल्सियम फ्लुओराइड। यह अनेक रंगों में पाया जाता है तथा भंगुर होता है। घनत्व 3.18, कठोरता 4। इसका उपयोग इस्पात और काँच उद्योगों में गालक के रूप में होता है। यह हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल के निर्माण में भी प्रयोग होता है।

Fluosolid roasting-- तरलित कण भर्जन

देखिए– Roasting शीर्षक के अंतर्गत Fluidised bed roasting

Flush dagassing-- प्रधावन विगैसन

देखिए– Degassing के अंतर्गत Purging

Flux-- 1. गलाक 2. फ्लक्स

1. धातु शोधन में, वह पदार्थ जिसका उपयोग अयस्क से रेत, राख, धूल आदि अवांछित पदार्थों को गलित मिश्रण के रूप में पृथक करने के लिए होता है। इसका उपयोग कुछ गलित धातु-कुंड़ों के लिए संरक्षी परत के रूप भी होता है। उदाहरणार्थ लोहे के प्रगलन में रेत को पृथक करने के लिए प्रायः चूना अथवा चूने का पत्थर मिलाया जाता है तथा तांबे के शोधन में लोह-ऑक्साइड को पृथक करने के लिए रेत मिलाई जाती है।
2. ब्रेजन, गैस-कर्तन, सोल्डरन और वेल्डिंग में इस शब्द का प्रयोग धातु के पृष्ठ से अन्य अवांछित पदार्थों के बनने को रोकने अथवा उन्हें घोलकर पृथक करने के लिए होता है। साथ ही वेल्ड-धातु के गुणों में संशोधन करने के उद्देश्य से उसमें संघटकों को मिलाने के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है।
3. वह पदार्थ जो किसी उच्च तापसह पदार्थ का गलनांक कम कर देता है।

Fluxing ore-- गालक अयस्क

देखिए– Ore के अंतर्गत Self fluxing ore

Flux process-- गालक प्रक्रम

वंग अथवा टर्नी प्लेट बनाने की विधि जिसमें गलित वंग अथवा सीसा-वंग मिश्रातु के कुंड के पृष्ठ को एक गालक से आच्छादित किया जाता है। यह गालक जिंक क्लोराइड और अमोनियम क्लोराइड का मिश्रण अथवा केवल जिंक क्लोराइड होता है।

Fly ash-- फ्लाई ऐश

कोयला, कोक अथवा अन्य ठोस ईंधनों को जलाते समय बनने वाला सूक्ष्म विभाजित सिलिकामय पदार्थ जो फ्लूगैसों के साथ चिमनी से बाहर निकालता है।

Fog quenching-- कुहास शमन

एक शमन विधि जिसमें शमन माध्यम के रूप में वाष्प अथवा सूक्ष्म धूमिका (mist) का प्रयोग किया जाता है।

Foil-- पर्णी

वंग, ऐलुमिनियम, तांबा, सोना, चाँदी और कभी-कभी सीसे की बनी अत्यधिक पतली चादर। इसका उपयोग, वेष्टन अलंकरण और विद्युत-संधारित्रों के निर्माण में होता है। पन्नी की कोई मानक मोटाई नहीं होती किंतु यह 0.0025 मिमी से 0.0125 मिमी तक मोटी होती है।

Folding test-- वलन परीक्षण

एक प्रकार का फोर्जन-परीक्षण जिसमें आवश्यकतानुसार गरम अथवा ठंडे धातु के टुकड़े को 180° तक मोड़कर यह ज्ञात किया जाता है कि उसमें दरार आई या नहीं। यह परीक्षण धीरे-धीरे किया जाता है और इससे उस धातु की तन्यता का पता लगता है। यह परीक्षण लोह और अलोह दोनों प्रकार के पदार्थों के लिए किया जा सकता है और यह पदार्थ की फोर्जनयिता तथा सुकर्मणीयता दर्शाता है।

Fool’s gold-- फूल्स गोल्ड

यरन पायराइटीज, FeS₂, जिसका रंग सोने के समान होता है। यह बहुधा कोयले में पाया जाता है।

Forced draught-- प्रणोदित प्रवात

देखिए– Draught

Fore blow-- अग्रधमन

इस्पात-निर्माण के क्षारकीय बेसेमर प्रक्रम में धमन-काल, जिसमें घान में उपस्थित सिलिकन, मैंगनीज और कार्बन आदि तत्वों का ऑक्सीकरण होता है।
तुलना– After blow

Forge-- फोर्ज

(1) कोई संयंत्र जिसमें प्रायः गरम धातु को घन से पीटकर अथवा दाब द्वारा वांछित आकार दिया जाता है। फोर्ज, गुरुत्व-पाती घन के आकार का हो सकता है, जिसके संघट्ट-बल में वात-दाब अथवा माप-दाना द्वारा वृद्धि की जाती है।
साधाण तौर पर किसी औद्योगिक संयंत्र में उस संपूर्ण कार्यशाला को भी फोर्ज कहा जाता है जिसमें फोर्जन प्रक्रिया की जाती है।
देखिए– Forging भी

Forge welding-- फोर्ज वेल्डिंग

एक वेल्डिंग प्रक्रम जिसमें धातु के टुकड़ों को भट्टी में फोर्जन परास तक गरमकर और घन से पीटकर जोड़ा जाता है। ऐलुमिनियम मिश्रातुओं के लिए यह परास 400° –550°, ताम्र मिश्रातुओं के लिए 700-950° तथा सामान्य इस्पात के लिए 1000°–1250° होता है। इसे घन वेल्डिंग और बेलन वेल्डिंग भी कहते हैं।

Forging-- फोर्जन

संपीडक बल द्वारा सामान्यतया गरम धातु का सुंघट्य विरूपण कर उसे वांछित आकार का बनाना। इसमें कभी-कभी रूपदाओं का प्रयोग भी किया जाता है।
फोर्जन प्रक्रमों का वर्गीकरण (1) प्रयुक्त मशीन के आधार पर (2) प्रयुक्त रूपदा के आधार पर किया जाता है। प्रयुक्त मशीन के आधार पर किया गया फोर्जन दो प्रकार का होता है (क) घन फोर्जन (ख) दाब फोर्जन प्रयुक्त रूपदाओं के आधार पर किया गया फोर्जन भी यह दो प्रकार का होता है (क) विवृत रूपदा फोर्जन (ख) संवृत रूपदा फोर्जन।

Forging defect-- फोर्जन दोष

फोर्जन के कारण उत्पन्न दोष। ये तीन प्रकार के होते हैं।
1. पत्रक (Flakes)– फोर्जनों की सतह पर बनने वाली परतें जो अत्यधिक फोर्जन-ताप एवं सतह के ऑक्सीकरण के कारण बनती है।
2. प्रवाह रेखा (Flow line)– तप्त कर्म इस्पात में रेशेदार संरचना का बनना जो संघटन में भिन्नता अंतर्विष्टों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होती है। अनेक मुद्रांकित भागों में प्रवाह रेखाओं का विशेष महत्व है क्योंकि रेशेदार संरचना से दैशिक गुणधर्म उत्पन्न होते हैं।
3. आंतरिक दरार (Internal cracks)– इस्पात फोर्जनों के अंदर प्रत्येक दिशा में पाई जाने वाली बारीक दरारें। ये बहुधा मिश्रातु इस्पातों के बड़े फोर्जनों में पाई जाती हैं किंतु कभी-कभी कार्बन इस्पातों में भी पाई जाती हैं। ये इस्पात में हाइड्रोजन की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होती है।

Formed coke-- अभिरूपित कोक

उपयुक्त बंधक का उपयोग कर कोयले अथवा आदग्ध कोयला-चूर्ण से बना रूपित अथवा संचित प्रकार या संपिंड। इस क्रिया में कभी-कभी दाब का प्रयोग भी किया जाता है। अभिरूपित कोक बनाने की कच्ची सामग्री लिग्नाइट से ऐन्थ्रासाइट तक कुछ भी हो सकती है।

Forming-- अभिरूपण

1. किसी धातु के बने पुर्जे की मोटाई में कोई परिवर्तन किए बिना, उसके आकार अथवा आकृति में परिवर्तन करना। अपरूपण और ब्लैंकन भी इसके अपवाद हैं।
2. नलिका-निर्माण में इस शब्द का अर्थ है किसी पट्टी को रूपित बेलनों से प्रवेश कर, नलिकाकार रूप देने का प्रक्रम।

Founding-- ढालना

धातुओं को पिघलाकार साँचों में वांछित आकार देना।

Foundary-- संचकनी

ढलाई शाला जहाँ धातुओं और मिश्रातुओं को गलाकर और बालू या धातु के साँचों में जमा कर वांछित आकार में ढाला जाता है। पैटर्न बनाना, साँचे तैयार करना, गलाना, संचकों की सफाई और निरीक्षण आदि कार्य भी ढलाई शाला में सम्पन्न किए जाते हैं।

Foundry type metal-- ढलाई टाइप धातु

कम गलनांक वाले सीस मिश्रातु जिसमें 54-70% सीसा, 10-20% वंग, 20-28% ऐन्टिमनी तथा अल्प मात्रा में तांबा होता है। यह पर्याप्त कठोर होता है तथा इसका उपयोग मुद्रण टाइप धातु के रूप में किया जाता है।

Fractional crystallisation-- प्रभाजी क्रिस्टलन

घुले पदार्थों के मिश्रण से भिन्न विलेयता के आधार पर उसके घटकों को क्रिस्टलों के रूप में पृथक करना।

Fractional distillation-- प्रभाजी आसवन

भिन्न क्वथनांक के द्रवों को भिन्न तापों पर आसवन द्वारा पृथक करना। इसके लिए प्रभाजी स्तंभ की सहायता ली जाती है।

Fractography-- विभंग लेखी

विभंग धातुओं के नमूनों पर विदलन-फलकों का सूक्ष्म लेखी अध्ययन। इसमें विदलन-तलों पर विभंगों के अलग गुणधर्मों का विवेचन किया जाता है। ये विभंग संघट्ट श्रांति, संक्षारण आदि कारणों से उत्पन्न विफलताओं के फलस्वरूप होते हैं। विभंगों की प्रत्यक्ष अथवा उनकी प्रतिकृतियों (Replicas) का प्रकाशित अथवा इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन किया जाता है।

Fracture-- विभंग

धातु के टुकड़े को तोड़ने से उत्पन्न अनियमित पृष्ठ। प्रमुख विभंग इस प्रकार हैं–
भंगुर विभंग (Brittle fracture) इसमें इस्पात-संरचना न्यून ताप पर भंगुरता के कारण टूट जाती है। कभी-कभी ये विभंग विध्वंसात्मक होते हैं क्योंकि इनमें सुघट्य-विरूपण और ऊर्जा-अवशोषण बहुत कम होता है। जलयानों और तेल टैकों का टूट जाना आदि इसके उदाहरण हैं। किसी इस्पात-संरचना में एक भंगुर दरार आरम्भ होने पर वह तीव्र गति से काफी दूर तक चली जाती है।
तन्य-विभंग (Ductile fracture) यह अत्यधिक सुघट्य विरूपण के कारण होता है। इसमें अधिकतम प्रतिबल वाले स्थान पर (प्रायः केंद्र पर) पदार्थ में मध्यकृशन (necking) उत्पन्न हो जाता है और मध्यकृष्ट भाग में दरार उत्पन्न होने के कारण पदार्थ का भंजन हो जाता है। दरार अपनी नोक की दिशा में सुघट्य विरूपण के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। इसमें ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा का लगातार अवशोषण होता है। बाहरी परिचालन प्रभाव को हटाने पर तन्य विभंग रुक जाता है। तन्य-विभंग का पृष्ठ क्रिस्टलीय न होकर रेशमी होता है।
अंतरारेणुक विभंग (Intergranular fracture) धातुओं, अन्य रेणुक वस्तुओं अथवा क्रिस्टलीय पदार्थों में प्राप्त विभंग जो रेणु-सीमाओं के अनुदिश पाया जाता है। उच्च ताप पर धातुओं का विभंग अंतराकणिक होता है। इसे अंतराक्रिस्टलीय विभंग अथवा कण सीमा विभंग भी कहते हैं।
पाररेणुक विभंग (Transgranular fracture) क्रिस्टलीय वस्तुओं अथवा कणिकामय पिंडों में (जैसे धातुओं में) पाया जाने वाला विभंग जो कण-सीमाओं को पार कर जाता है। सामान्य ताप पर धातुओं का विभंग पाररेणुक होता है।

Fracture stress-- विभंग प्रतिबल

किसी धातु में विभंग उत्पन्न करने के लिए आवश्यक यथार्थ तनन-प्रतिबल। इसे संविदारण प्रतिबल (rupture stress) भी कहते हैं।

Fracture test-- विभंग परीक्षण

किसी धातु के टुकड़े को तोड़कर टूटे पृष्ठ की जाँच करना ताकि धातु की संरचना का निर्धारण किया जा सके अथवा उसके असामान्य दोषों का पता लगाया जा सके। इस परीक्षण द्वारा पिघले हुए इस्पात में कार्बन की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है।

Frankilinite-- फ्रैंकिलिनाइत

[(Fe, Mn)₂ O₃(Fe, Zn)O], मैंगनीज युक्त जिंक फैराइट। यह न्यूजर्सी में पाया जाता है। साधारणतया इसमें लगभग 67% आयरन ऑक्साईड, 16% मैंगनीज ऑक्साईड और 17% जिंक ऑक्साइड होता है। इसमें से पहले जस्ता प्राप्त किया जाता है और अवशिष्ट का उपयोग लोह अयस्क के रूप में किया जाता है जिससे स्पीगेलआइजेन का उत्पादन किया जाता है।

Frank Rhead source-- फ्रैंक-रीड स्रोत

यदि कोर प्रभ्रंश को उसके सिरों पर कस दिया जाए तो प्रतिबल के कारण वह बाहर की ओर मुड़ता जाता है। अंततः वह अस्थायी रूप ग्रहण कर, संवृत प्रभ्रंश रेखा बना लेता है जिससे प्रभ्रंशों के फिर से उत्पन्न हो जाने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह क्रियाविधि, बेरिल और अन्य क्रिस्टलों में होती है जो अनेक प्रभ्रंश को उत्पन्न करती है। इसे प्रभंश मिल (Dislocation mill) भी कहते हैं।

Frary metal-- फ्रैरी धातु

सीस मूल का मिश्रातु जिसमें 2% बेरियम और 1% कैल्सियम होता है। इसका कम गलनांक और पर्याप्त कठोरता होती है अतः इसका उपयोग बेयरिंगों में होता है।

Free bend test-- मुक्त बंक परीक्षण

बेल्डित संधियों का परीक्षण। इसमें नमूने को जिसकी चौड़ाई, मोटाई की डेढ़ गुना होती है, सिरों पर मोड़ा जाता है और फिर उसे टेक की भांति संपीडन-मशीन में रखा जाता है। इसमें तब तक दाब प्रयुक्त किया जाता है, जब तक नमूने के बाहरी रेशे टूटेने न लगें।

Free carbon-- मुक्त कार्बन

किसी धातु में तत्व रूप में विद्यमान कार्बन, जैसे ढलवाँ लोहे या कुछ स्वतः स्नेहन बेयरिंग धातुओं में ग्रेफाइट की उपस्थिति।

Free cementite-- मुक्त सीमेंटाइट

लोहे के कार्बाइड, जो लोहे और इस्पात में पृथक अवयवों के रूप में पाए जाते हैं, अर्थात् वे फैराइट के साथ होकर पर्लाइट नहीं बनाते हैं।

Free cutting steel-- सुकर्तनीय इस्पात

बहुधा ओपेन हार्थ या बेसेमर प्रक्रम द्वारा निर्मित इस्पात जिसकी कर्तनीयता को बढ़ाने के लिए विशेष पदार्थ मिलाए जाते हैं। इस कार्य के लिए गंधक, सीसा, सिलीनियम, या विस्मथ आदि तत्व मिलाए जाते हैं। इसे मुक्त मशीनन (Free machining steel) इस्पात भी कहते हैं।

Free ferrite-- मुक्त फैराइट

ठंडा करते समय ऑस्टेनाइट से बना फैराइट जिसके साथ कार्बाइड पृथक नहीं होता है। इसमें फैराइट मुक्त अवस्था में रहता है और सीमेन्टाइट के साथ संयुक्त नहीं होता। इसे प्रो यूटेक्टॉयड फैराइट (Pro eutectoid ferrite) और प्राथमिक फैराइट भी कहते हैं।

Free machining steel-- मुक्त मशीनन इस्पात

देखिए– Free cutting steel

Fretting corrosion-- संनिघर्षण संक्षारण

उन पृष्ठों का संक्षारण जो एक दूसरे के निकट संपर्क में रहते हैं और जिनकी सापेक्ष गति बहुत कम होती है। संपर्क जितना निकटतम होता है तक्षण संक्षारण उतनी ही अधिक होता है। इसमें पृष्ठों के मध्य, प्रत्यास्थ-विकृति में भिन्नताएं, संक्षारण के लिए पर्याप्त होती है जिसका कारण संपर्क वाले उच्च स्थलों का वेल्डिंग और बाद में उनका संविदारण है। इससे उच्च स्थानीय ताप उत्पन्न होता है जिससे पृष्ठ का ऑक्सीकरण हो जाता है। यही कारण है कि इस्पातों के तक्षण के फलस्वरूप Fe₂O₃ उत्पन्न होता है। तक्षण पृष्ठ के मध्य बना ऑक्साइड, अपघर्षण का कार्य करता है इस कारण तक्षण अधिक तीव्र गति से होने लगता है।

Friction welding-- घर्षण वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Fritting-- आगलन

1. गरम करके पदार्थों को तब तक परस्पर बाँधे रखना जब तक कि निकटवर्ती पृष्ठ, लेपर अथवा चिपचिपे बन कर जुड़ न जाएँ। इस शब्द का प्रयोग बहुधा भट्टी का आस्तर बनाने के सिलसिले में होता है।
2. चूर्ण धातुकर्मिकी में ठोस संहतों के सिंटरण से संबंधित शब्द। द्रव प्रावस्था की अनुपस्थिति में केवल तापन से संहत बनाने का प्रक्रम आगलन कहलाता है। जिस ताप पर आगलन सम्पन्न होता है, उसे आगलन-ताप कहते हैं। आगलन वस्तुतः ऊष्मा उपचार प्रक्रम है। ऊष्मा-उपचार के बाद दाब प्रयुक्त करने से संश्लिष्ट संहत बनता है। जब दाब और ताप दोनों साथ-साथ प्रयुक्त किए जाते हैं तो इस प्रक्रम को ठोस संहत का तप्त पिंडन कहते हैं।

Froth-- फेन

अयस्क संसाधन में झाग का समानार्थक शब्द।

Froth floatation-- फेन प्लवन

अक्लेदनीय कणों का झाग में प्लवन। अक्लेदनीयता प्राकृतिक भी होती है जैसे मोम में अथवा अक्लेदनीयता कुछ पृष्ठ-सक्रिय अभिकर्मकों के अधिशोषण द्वारा कृत्रिम रूप से प्रेरित भी की जा सकती है। इन अभिकर्मकों को ‘संग्राहक’ कहते हैं जैसे जैन्थेट। इस विधि का उपयोग अयस्कों के सांद्रण में और कोयला और कुछ औद्योगिक खनिजों के सांद्रण में होता है।
स्थायी फेन बनाने के लिए अन्य पृष्ठ सक्रिय अभिकर्मकों को मिलाया जाता है जिन्हें फेनक कहते हैं जैसे चीड़ तेल, यूकेलिप्टस तेल, उच्च ऐल्कोहॉल आदि।

Frosting-- तुषारण

एक धातु परिसज्जन प्रक्रम जिसमें अम्ल-निक्षालन, ब्रुश से खरोंच उत्पन्न कर अथवा बालू क्षेपण द्वारा सुंदर मैट पृष्ठ तैयार किया जाता है।

Froth floatation concentration-- फेन प्लवन सांद्रण

देखिए– Concentration के अंतर्गत

Fuel-- ईंधन

वे पदार्थ जिनका उपयोग हवा में जलाकर ऊष्मा उत्पन्न करने के लिए होता है। लकड़ी, पीट, कोयला, तेल, आदि अधिकांश प्राकृतिक ईंधन मुख्यतः कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं। इसमें सूक्ष्म मात्रा में नाइट्रोजन, गंधक आदि भी विद्यमान रहते हैं।
ठोस ईंधन (Solid fuel) — इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (1) प्राकृतिक ठोस ईंधन जैसे कोयला, लकड़ी, पीट आदि (2) (विनिर्मित) ठोस ईंधन, जैसे कोक, चारकोल आदि। चूर्णित कोयले का उपयोग भी भट्टियों में ईंधन के रूप में किया जाता है।
द्रव ईंधन (Liquid fuel)– प्राकृतिक द्रव ईंधन में अपरिष्कृत पैट्रोलियम मुख्य है। यह सब औद्योगिक ईंधनों का आधार है। यह अनेक हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है जिन्हें प्रभाजी आसवन द्वारा पृथक किया जाता है। कृत्रिम द्रव ईंधन (1) कम ताप पर कोयला, लिग्नाइट आदि के प्रभाजी आसवन द्वारा (2) कोयले के हाइड्रोजनीकरण द्वारा (3) उपयुक्त उत्प्रेरक की उपस्थिति में जल-गैस के अवयवों के पुनर्संयोजन से बनाया जा सकता है।
गैसीय ईंधन (Gaseous fuel)– गैसीय ईंधन दो प्रकार के होते है। (1) प्राकृतिक गैस (2) विनिर्मित गैस। विनिर्मित गैस बनाने की अनेक विधियाँ हैं। इस गैस के मुख्य दहनशील अवयव, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन, हाइड्रोकार्बन अथवा इनके मिश्रण होते हैं। मिश्रण का संघटन पदार्थ की प्रकृति और अभिक्रिया के ताप पर निर्भर करता है।

Full annealing-- पूर्ण अनीलन

देखिए– Annealing के अंतर्गत

Full dip infiltration-- पूर्ण निमज्जी अंतः स्यंदन

देखिए– Infiltration के अंतर्गत

Full sand moulding-- पूर्ण बालू संचन

देखिए– Sand moulding के अंतर्गत

Fume-- धूम

भट्टियों से फ्लू गैसों के साथ निकलने वाली धूल। भ्राष्ट्र-ताप पर यह वाष्प अवस्था में होती है जो ठंडा होने पर लगभग कोलॉइडी आमाप के ऑक्सीकृत ठोसों के रूप में संघनित हो जाती है। सीसा और यशद धातुकर्म के लिए प्रयुक्त वाल्ज प्रक्रम से प्राप्त धूम में मुख्यतः ZnO होता है। लोहा और इस्पात निर्माण के जिन प्रक्रमों में गैसीय ऑक्सीजन का उपयोग होता है उनके धूम में लगभग कोलॉइडी आमाप का फेरिक ऑक्साइड होता है जिसके कारण फ्लू गैसों का रंग भूरा होता है।

Furnace-- भट्टी, भ्राष्ट्र

धातुकर्म में प्रयुक्त भट्टी वह संयंत्र है जिसमें ऊष्मा की सहायता से धातुकर्मी क्रियाएँ की जाती हैं। ऊष्मा को ईंधन के दहन से अथवा विद्युत-धारा से उत्पन्न किया जाता है। कभी-कभी सांद्रित अयस्क के दहन से भी ऊष्मा उत्पन्न की जाती है जैसे सल्फाइडों का दहन। भट्टियों के आकार, आमाप और आंतरिक व्यवस्था में पर्याप्त भिन्नता होती है। यह भिन्नता भ्राष्ट्र में की जाने वाली क्रिया के प्रकार, तापन-विधि और उपलब्ध पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करती है। भट्टियों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
1. वे भट्टियाँ जिनमें घान और ईंधन परस्पर संपर्क में रहते हैं। इसमें निम्नलिखित भट्टियां सम्मिलित हैं–
(कं) शैफ्ट भट्टी (Shaft furnace)– ये बहुधा बेलनाकार अथवा किंचित कटे शंकु के आकार की होती हैं यद्यपि दीर्घवृत्तीय और आयताकार भट्टियों का उपयोग भी किया जाता है। इनका उपविभाजन इस प्रकार किया जाता है–
(i) धमन भट्टी (Blast furnace)– इसमें वायु के झोंकों को गरम कर दाब पर प्रविष्ट किया जाता है। उच्च ताप उत्पन्न होने के कारण इसमें धातुमल और धातु पिघली अवस्था में प्राप्त होते हैं जिन्हें थोडे-थोड़े समय बाद निकाल लिया जाता है। लोहा, तांबा और सीसा के प्रगलन के लिए प्रयुक्त भट्टियाँ इसके उदाहरण हैं। ढलाई शालाओं में लोहे को पिघलाने के लिए प्रयुक्त छोटी धमन भट्टियों को क्यूपोला कहते हैं।
(ii) प्राकृत प्रवात भट्टी (Natural draught furnace)– इन्हें भट्टा भी कहा जाता है। ये (i) की भाँति उच्च ताप पर कार्य नहीं करती हैं क्योंकि उत्पादों की गलन अवस्था में आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरणार्थ चूने का भट्टा अथवा लोह अयस्कों के निस्तापन में प्रयुक्त भट्टी।
(ख) हार्थ भट्टी (Hearth furnace)—इन भट्टियों में प्रायः उथला कक्ष होता है। कक्ष में उपयुक्त उच्चतापसह पदार्थ का आस्तर लगा होता है। वायु को छिद्रों या ज्वालकों द्वारा भेजा जाता है ताकि वह सीधे घान पर या उसके नीचे से प्रवेश करें। उदाहरणार्थ इस्पात-निर्माण में प्रयुक्त साइमन ओपेन हार्थ भट्टी।
2. परावर्तनी भट्टी (Reverberatory furnace)—इस प्रकार की भट्टी में घान, दहन उत्पादों के संपर्क में रहता है किंतु ईंधन के संपर्क में नही रहता। इन भट्टियों की छत महरावदार होती है जिससे ज्वाला और गरम गैसें, घान पर विक्षेपित हो जाती है। ये भट्टियाँ दो प्रकार की होती हैं—
(i) अल्प-ताप प्रचालन भट्टी (Low temperature operation furnace)—इन भट्टियों का उपयोग तब किया जाता है जब धातुकर्म कम ताप पर करना हो। इन्हें बहुधा भर्जन अथवा निस्तापन भट्टी कहा जाता है जो उनमें होने वाली क्रियाओं का द्योतक हैं। इसमें घान पिघलता नहीं है और ठोस अवस्था में ही हार्थ से बाहर निकल जाता है। आजकल भर्जन भट्टी में कई क्षैतिज अध्यारोपित हार्थ होते हैं और अयस्क एक हार्थ से दूसरे हार्थ में स्वचालित रेकों द्वारा पहुँचाया जाता है। इसे बहुहार्थ भट्टी भी कहते हैं।
(ii) गलन भट्टी (Melting furnace)—इनका उपयोग धातु को गलाने के लिए किया जाता है। इसमें हॉर्थ, बेसिन के आकार का होता है ताकि पिघली धातु को निकालने में सुविधा रहे। इस भट्टी के लिए ऐसे ईंधन की आवश्यकता होती है जो लंबी, दीप्त ज्वाला उत्पन्न करें। सामान्यतया जितने ऊँचे ताप की आवश्यकता हो, हार्थ उतना ही छोटा होना चाहिए। इन भट्टियों का प्रयोग घान को पिघलाने के लिए किया जाता है। ताम्र प्रगलन के लिए अधिक लंबी परावर्तनी भट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
3. वे भट्टियाँ जिनमें न तो ईंधन और न दहन-उत्पाद, घान के संपर्क में आते हैं। इन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है।
(क) मफल भट्टी (Muffle furnace)—इस किस्म की भट्टी में जिस पदार्थ का उपचार करना हो उसे दहन उत्पादों से और प्रवात द्वारा वाहित राख से पृथक रखा जाता है। भट्टी ईंटों की अथवा अग्निसह मिट्टी की बनाई जाती है और उसे नीचे जल रही, आग से अथवा दहन उत्पादों से गरम किया जाता है। छोटी मफल भट्टियों का तापन, गैस अथवा विद्युत द्वारा किया जाता है। क्यूपेलीकरण में प्रयुक्त भट्टी इसका उदाहरण है।
(ख) क्रूसिबल—भट्टी (Crucible furnace)—इस प्रकार की भट्टियों में पदार्थ को बंद उच्चतापसह क्रूसिबल में रखा जाता है और क्रूसिबल को आग के ऊपर रखा जाता है। मफल भट्टी की अपेक्षा इसमें उच्च ताप प्राप्त करना आसान है। घान के पर्याप्त गरम होने पर क्रुसिबल को हटा लिया जाता है। इन भट्टियों को पहले कोक द्वारा और आजकल तेल या गैस द्वारा गरम किया जाता है। जब क्रूसिबल को गर्त में रखकर चारों ओर से गर्म किया जाता है तो उसे गर्त भट्टी कहते हैं।
(ग) रिटॉर्ट—भट्टी (Retort furnace)—इन भट्टियों का उपयोग तब होता है जब पदार्थ को वाष्पित करके फिर द्रवित करना हो। इनमें रिटॉर्ट और द्रवणित दोनों अग्निसह मिट्टी या सिलिकन कार्बाइड के बनाए जाते हैं। जब रिटॉर्टों को महराबदार कक्ष के ऊपर पंक्तियों में रखा जाता है और इस कक्ष में आग रहती है तो इसे क्षैतिज रिटॉर्ट भट्टी कहते हैं। यदि रिटॉटों को ऊर्ध्वाधर स्थिति में रखा जाए तो इसे ऊर्ध्वाधर रिटॉर्ट भट्टी कहते हैं। उदाहरणार्थ जस्ते के निष्कर्षण में प्रयुक्त रिटॉट भट्टी।
4. परावर्तित्र (Converter )—देखिए- अकारादि क्रम में
5. विद्युत भट्टी (Electrical furnace)—विद्युत भट्टियों में विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में परिवर्तित किया जाता है। प्राप्त ऊष्मा की मात्रा, विद्युत धारा के प्रवाह और प्रतिरोध पर निर्भर करती है। मुख्यतः तीन प्रकार के विद्युत भट्टियाँ होती हैं—
(क) प्रतिरोध प्ररूपी भट्टी (Resistance type furnace)—इन भट्टियों में चालक का विद्युत प्रतिरोध इस प्रकार समंजित किया जाता है ताकि परिणामी विद्युत धारा से उपयुक्त मात्रा में ऊष्मा प्राप्त हो। इनमें दो प्रकार के चालकों का प्रयोग होता है।
(i) धात्विक चालक (Metallic conductor) –इन चालकों में प्रयुक्त पदार्थ कोई ऊष्मारोधी और संक्षारण रोधी मिश्रातु या धात्विक तत्व होता है। जैसे निकैल-क्रोमियम मिश्रातु, टंगस्टन, मॉलिब्डेनम आदि। निकैल-क्रोमियम मिश्रातुओं का प्रयोग 1000°C तक और दूसरे तत्वों का प्रयोग 1100°C से अधिक ताप के लिए किया जाता है।
टंगस्टन और मॉलिब्डेनम उच्च ताप पर ऑक्सीजन के साथ संयुक्त हो जाते हैं अतः भट्टी के वायुमंडल पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
(ii) अधात्विक चालक (Non metallic conductor)—इनमें ग्रैफाइट, सिलिकन कार्बाइड आदि का प्रयोग किया जाता है। इन भट्टियों में ऊष्मा, विद्युत आर्क द्वारा उत्पन्न की जाती है।
(ख) आर्क भट्टी (Arc furnace)—ये तीन प्रकार के होते हैं—
(i) अप्रत्यक्ष आर्क भट्टी—इस भट्टी में घान के ऊपर दो इलेक्ट्रोडों के मध्य आर्क उत्पन्न किया जाता है और घान विकिरण द्वारा गरम होता है।
(ii) प्रत्यक्ष आर्क भट्टी—इसमें इलेक्ट्रोड और घान के बीच आर्क उत्पन्न किया जाता है। धारा, घान से प्रवेश कर दूसरे आर्क से होते हुए इलेक्ट्रोड़ में प्रवेश करती है।
(ग) प्रेरण भट्टी (Induction furnace)—इस प्रकार की भट्टियों में धातु और विद्युत-धारा के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता किंतु ऊष्मा विद्युत-प्रेरण द्वारा उत्पन्न की जाती है। ये दो प्रकार की होती हैं।
(i) क्रोडित प्रेरण भट्टी (Cored induction furnace)—इनमें जिस ऊष्मक में पदार्थ होता है वह वलयाकार होता है और ट्रान्सफॉर्मर में एकल द्वितीयक वेष्टन की भाँति काम करता है। इसका क्रोड, संवृत लोह परिपथ होता है जिससे उस पर प्राथमिक वेष्टन किया जाता है। ऐजैक्स-वाइअट भट्टी (Ajax-Wyatt furnace) इसका उदाहरण है। इन भट्टियों में कम आवृत्ति प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग होने के कारण इन्हें निम्न आवृत्ति प्रत्यावर्ती भट्टियाँ कहते हैं।
(ii) क्रोडहीन प्रेरण (Corstless induction furnace)– इनमें घान को क्रुसिबल में रखकर उसे जल शीतित नली द्वारा घेर दिया जाता है। यह जलशीतित नली ही चालक का कार्य करती है। क्रुसिबल में रखे धातु में भंवर धारा उत्पन्न होती है, जिससे घान को पिघलाने के लिए पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न हो जाती है। ऐजैक्स ऑर्थ्रप भट्टी (Ajax Orthrup furnace) इसका उदाहरण है। इनमें उच्च आवृति प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग होने के कारण इन्हें उच्च आवृत्ति प्रत्यावर्ती भट्टी भी कहते हैं।

Furnace lining-- भट्टी आस्तर

उपयुक्त दुर्गलनीय पदार्थ का आस्तर जो गलित घान की रासायनिक और अपघर्षी क्रियाओं को सहन कर सके। आस्तर दो प्रकार का होता है– अम्ल आस्तर और क्षारकीय आस्तर। अम्ल आस्तर में आस्तर सिलिका अग्निसह मृतिका आदि का होता है जबकि क्षारकीय आस्तर में आस्तर दग्ध डोलोमाइट, मैग्नेसाइट आदि का होता है।

Fusion welding-- संगलन वेल्डिंग

वेल्डिंग की एक विधि जिसमें संयुक्त किए जाने वाले पृष्ठों को भरक धातु की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति में गलाया जाता है। इस प्रक्रम में वेल्डिंग केवल संगलन द्वारा किया जाता है और दाब का प्रयोग नहीं किया जाता। उदाहरणार्थ विद्युत-आर्क वेल्डिंग, गैस वेल्डिंग आदि

Galena-- गैलेना

लेड सल्फाइड, Pbs यह सीसे का महत्वपूर्ण अयस्क है। यह प्रायः ब्लैंड, पायराइटीज, कैल्साइट, फ्लुओरस्पार, क्वार्ट्ज, बैराइटीज आदि के साथ संयुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह संस्तरों में और क्रिस्टलीय चट्टानों में शिराओं के रूप में पाया जाता है। इस खनिज में चाँदी भी विद्यमान रहती है और यह रजतमय सीसा इस धातु का महत्वपूर्ण अयस्क है। गैलेना, घनीय समुदाय में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 2.5 विशिष्ट घनत्व 7.2–7.7।

Gallimore metal-- गैलिमोर धातु

एक संक्षारणरोधी निकैल मिश्रातु जिसमें 45% निकैल, 28% तांबा, 2% लोहा, 25% यशद, 2% सिलिकन और 2% मैंगनीज होता है। इसका उपयोग मुद्रांकन, वायुयान और पिटवाँ उत्पादों में होता है।

Galling-- कण पाटन

देखिए– Seizing

Galvanic corrosion-- गैल्वेनी संक्षारण

असमान इलेक्ट्रोडों के बने गैल्वेनी सेल में उत्पन्न विद्युत धारा के प्रवाह से होने वाला संक्षारण। इसे वैद्युत रासायनिक संक्षारण भी कहते हैं।

Galvanic protection-- गेल्वेनी रक्षण

इस्पात के संक्षारण रक्षण में प्रयुक्त शब्द। इसमें पृष्ठ की गैल्वेनी धातु अथवा ऐसे धातु द्वारा रक्षा की जा सकती है जिसका इलेक्ट्रोड-विभव इस्पात से कम होता है।
यों तो कोई भी धातु जो इलेक्ट्रोड-विभव श्रेणी में उच्च स्थान पर आती है, रक्षण के लिए प्रयुक्त हो सकती है किंतु व्यवहार में केवल यशद शब्द का प्रयोग किया जाता है।

Galvanizing-- यशद लेपन

देखिए– Hot dipping के अंतर्गत

Galvanizing flux-- यशद लेपन गालक

जिंक अमोनियम क्लोराइड का विलयन जिसमें यशद-लेपन से पहले इस्पात को डुबाया जाता है, इस्पात के पृष्ठ पर इस विलयन की परत यशद-लेप के आसंजन में सहायक होती है।

Gamma iron-- गामा लोह

देखिए– Iron के अंतर्गत

Gangue-- अवशेषांश (गैंग)

धात्विक अयस्कों के साथ पाए जाने वाले खनिज जिनका कोई विशेष आर्थिक महत्व नहीं होता है। इन्हें बहुधा सांद्रण के दौरान प्रगलन से पहले पृथक कर लिया जाता है।

Garnet-- गार्नेट

चूने के पत्थर, डोलोमाइट, ग्रेनाइट और कायांतरिक शैलों में पाया जाने वाला खनिज-समूह। ये कैल्सियम, मैग्नीशियम, लोहा, ऐलुमिनियम तथा कभी-कभी मैंगनीज और क्रोमियम के ऑर्थोसिलिकेट होते हैं। चूना-ऐलुमिना गार्नेट को ग्रासुलर कहतेहैं, जिसका सूत्र Ca₃Al₂(SiO₄)₃है। लोहा-ऐलुमिना-गार्नेट, अलमन्डाइन कहलाता है जिसका सूत्र (FeMg)₃Al₂(SiO₄)₃ है। उत्कृष्ठ गार्नेटों का समान सूत्र होता है। पारदर्शी क्रिस्टलों का रंग लोहे की मात्रा के अनुसार हल्के पीले से लेकर गहरा लाल तक होता। चूना-लोहा गार्नेट, ऐन्ड्रेडाइट कहलाता है जिसका सूत्र Ca₃ Fe₂ (SiO₄)₃ है। सभी गार्नेट घनीय समुदाय, प्रायः विषमलवाक्ष द्वादशफलकों में क्रिस्टलित होते हैं। कठोरता 6.5–7.5, विशिष्ट घनत्व 3.5–4.2। इनमें से कुछ का प्रयोग आभूषणों में बहुमूल्य पत्थरों के रूप में होता है।

Garnetiferous ore-- गार्नेटमय अयस्क

देखिए– Ore

Garnierite-- गारनिएराइट

निकैल धातु का महत्वपूर्ण स्रोत। यह निकैल का जलयोजित सिलिकेट है। इसका सूत्र 2(Ni Mg)₅ Si₄O₁₃ 3H₂O है। इसमें लगभग 24% निकैल होता है। किंतु इसका संघटन परिवर्ती है। विशिष्ट घनत्व 2.3—2.8।

Gas carburizing-- गैस कार्बुरण

देखिए– Gas hardening के अंतर्गत Carburizing

Gas cutting-- गैस कर्तन

धातु के हिस्से-पुर्जों को काटकर आकार देने का प्रक्रम। इसमें ऑक्सी-ऐसीटिलीन टार्च का प्रयोग किया जाता है जिसके बीच में ऑक्सीजन प्रधार होता है। पदार्थ को ऑक्सी-ऐसीटिलीन टार्च द्वारा गरम करने के बाद ऑक्सीजन-प्रधार प्रयुक्त किया जाता है जिससे धातु ऑक्सीकृत हो जाता है। उच्च वेगी ऑक्सीजन प्रधार की रासायनिक और अपरदनकारी क्रियाओं के फलस्वरूप धातु कट जाती है। यह प्रक्रम विशेष रूप से इस्पात के लिए अनुकूल है। इसे ज्वाला कर्तन भी कहते हैं।

Gas cyaniding-- गैस सायनाइडन

देखिए– Casehardening के अंतर्गत Carbonitriding

Gaseous fuel-- गैसीय ईंधन

देखिए– Fuel के अंतर्गत

Gas hole-- गैस छिद्र

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Gas pickling-- गैस अम्लोपचार

विशल्कन का एक प्रक्रम। इसमें इस्पात को लगभग 750°C ताप पर गैसीय हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में रखा जाता है। धातु-पृष्ठों का इस प्रकार अम्लोपचार करने से यशद-लेपन में आसंजन ठीक प्रकार से होता है।

Gassing-- गैसन

1. किसी धातु द्वारा गैस का अवशोषण।
2. किसी धातु से गैस का उत्सर्जन।
3. विद्युत-अपघटन के समय इलेक्ट्रोड से गैसों का उत्सर्जन।

Gas welding-- गैस वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Gate-- द्वार

1. फोर्जन में पाती फोर्जन ठप्पों का कर्तित भाग जो मुद्रांक और रूपदाओं के बाहरी किनारे के बीच संपर्क स्थापित करता है।
2. साँचे में प्रयुक्त वाहक का अंतिम भाग जहाँ से गलित धातु साँचे में प्रवेश करती है। इस शब्द का प्रयोग संयोजक चैनेलों के संपूर्ण समुच्चय के लिए उन्हें बनाने वाले पैटर्न के हिस्सों अथवा उन्हें भरने वाली धातु के लिए और कभी-कभी केवल मुख्य चैनेल के लिए होता है। द्वार दो प्रकार के होते है–
(क) पेंसिल द्वार (Pencil gate)– छोटे-छोटे प्रवेश द्वारों की श्रेणी जो उड़ेलने वाली बेसिन के पैंदे से संचक के शीर्ष तक जाती है ताकि गलित धातु साँचे में चली जाए। इस प्रकार गोल आनाल (Sprue) में धातु की धारा के विभाजित हो जाने से आनाल में प्रक्षोभ और ऑक्सीकरण नहीं हो पाता। पेंसिल द्वारों में गलित धातु का कुल भार विभिन्न शाखाओं में समान रूप से वितरित हो जाता है। इस प्रकार प्रभावी शीर्ष धातु भार (Head metal weight) पर्याप्त मात्रा में घट जाता है। इसे स्लिट द्वार (Slit gate) भी कहते हैं।
(ख) वेज द्वार (Wedge gate) –इसमें द्वार वेज के आकार का होता है और साँचे के शीर्ष पर स्थित रहता है। वेज द्वार प्रायः हलके संचकों में इस्तेमाल होता हैं क्योंकि उनमें शीर्ष का भार अधिक नहीं होता।

Gathering-- अतिसंग्रहण

कभी-कभी संकुल वेल्लित इस्पात चादरों में मिलने वाला एक दोष। इसमें कहीं-कहीं पर धातु बेलन से चिपक जाती है जिससे बाद की चादरों में चकते से बन जाते हैं। यह दोष ऐसी किसी भी धातु में हो सकता है जो वेल्ड हो जाती है अथवा बेलन से चिपक जाती है।

Gating-- द्वारण

वह पद्धति जिसके द्वारा संचगर्त में धातु का नियंत्रित प्रवाह बनाए रखा जाता है एवं अवांछित दृव्यों को संचगर्त में जाने से रोका जाता है। इसमें पूरक कुंडिका गलित धातु के भंडार का कार्य करती है जो पिंडन से होने वाले धातु के वाहक संकुचन की पूर्ति करती है। द्वारण के प्रमुख प्रकार ये हैं :–
अर्धस्थल द्वारण (Bottom gate)– वाहक में चैनेल इस प्रकार लगा रहता है कि उसमें से गलित धातु साँचे की तली से प्रवेश करती है। इसका दोष यह है कि जैसे-जैसे धातु संच-छिद्रों से होकर साँचे के ऊपर धावक तक पहुँचती है वह ठंडी हो जाती है जो दैशिक पिंडन के अनुकूल नहीं है।
श्रृंग द्वारण (Horn gating)– शुंडाकार सींग के आकार का चैनल जो वाहक की तली से आरंभ होता है। इसका उपयोग एक ही संच-बक्स में रखे कई साँचों को गलित धातु देने के लिए होता है।
आपृथकन रेखा द्वारण (Parting line gating)– इस प्रकार का द्वारण साँचे के भागों के पृथकन पृष्ठ पर स्थित होता है। अपमलन गोलक (Skim bob) तथा चोक जैसी युक्तियों का प्रयोग करके धातुमल, धूल तथा बालू कणों को जाने से रोका जा सकता है।
सोपान द्वारण (Step gating) (Side gating)— एक दूसरे के ऊपर व्यवस्थित अनेक सीढ़ीनुमा द्वारों से साँचों को गलित धातु से भरने की व्यवस्था। वास्तव में यह व्यवस्था अधस्तल द्वार भरण के अनुरूप है, केवल उसमें अतिरिक्त पार्श्वद्वार होते हैं ताकि उसका उपयोग बुर्श संचकन के लिए हो सके। अधिक जटिल प्रकार के द्वारणों को प्रयोग करने का उद्देश्य यह है कि गर्म धातु का सुचारू प्रवाह प्राप्त हो सके।
शीर्ष-द्वारण (Top gating)– शीर्ष द्वारण में पिघली हुई धातु द्रोणी से सीधी उड़ेली जाती है जो साँचे में ऊपर से प्रवेश करके नीचे की ओर प्रवाहित होती है। चूँकि सबसे गर्म धातु साँचे के ऊपरी भाग में प्रवेश करती है अतः वाहकों की दिशा में, दैशिक संपिंडन के लिए अनुकूल के लिए अनुकूल ताप-प्रवणता प्राप्त हो जाती है।
संभ्रामी द्वारण (Whirl gating)—इसमें द्वार अथवा स्प्रू इस प्रकार व्यवस्थित रहता है कि साँचे में धातु, स्पर्श रेखीयतः प्रविष्ट होती है जिससे चक्करदार गति उत्पन्न हो जाती है। अपकेंद्री बल के कारण धातुमल और ऑक्साइड, धातु से पृथक हो जाते हैं।

Gating ratio-- द्वाण अनुपात

आनाल से होकर धातु के प्रवाह की दर, आनाल वाहकों तथा द्वारों के अनुप्रस्थ क्षेत्रफलों का फलन होती है। चूँकि आनाल का क्षेत्रफल सबसे अधिक होता है अतः इसका प्रवाह की दर पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। आनाल की निकास-दर सन्निकटतः निम्नलिखित व्यंजक द्वारा व्यक्त की जा सकती है।
W = K A√ᴴ
जबकि K आनाल रंध्र गुणांक, A न्यूनतम आनाल क्षेत्रफल तथा H आनाल की ऊँचाई है। इस प्रकार द्वारण अनुपात, आनाल क्षेत्रफल, वाहक क्षेत्रफल और द्वार के कुल क्षेत्रफल का अनुपात होता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि द्वारण अनुपात इस प्रकार हो कि आनाल, धावक द्वार धातु से भरे रहे।

Gating system-- द्वारण तंत्र

ढलाई–विज्ञान में इस शब्द का तात्पर्य उस पूरे तंत्र के डिजाइन और आकार से है जिससे होते हुए गलित धातु मुख्य संच-गुहिका में पहुँचने से पहले प्रवाहित होती है। द्वारण-तंत्र के प्रमुख घटक इस प्रकार है– (1) निःस्रावी कुंडिका, (2) आनाल, (3)आनाल कुंड, (4) वाहक और (5) द्वार

German silver-- जर्मन सिल्वर

तांबे और यशद की निकैल के साथ भिन्न-भिन्न अनुपातों में बनी मिश्रातुएँ, जैसे Cu 65%, Zn 17%, Ni 18% अथवा Cu 55%, Zn 27%, Ni 18% आदि। ये आघातवर्ध्य और तन्य होते हैं। इन पर वायु, ठंडे तनु अम्लों, क्षारों एवं समुद्र जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। प्रतिरोधी कुंडलियों, नकली चाँदी, समुद्री जहाज, रेलगाड़ी, मोटर एवं मकानों में सब प्रकार के फिटिंगों में तथा विद्युत लेपन के लिए आधार धातु के रूप में इनका उपयोग किया जाता है। इसे निकैल सिल्वर कहते हैं।

Gibbsite-- गिब्साइट

जलयोजित ऐलुमिनियम ऑक्साइड Al₂O₃, 3HO यह क्रिस्टलीय होता है और अक्रिस्टलीय बॉक्साइट के साथ पाया जाता है। कठोरता 3, विशिष्ट गुरुत्व 2.35। इसे हाइड्रार्जिलाइट भी कहते हैं।

Gliding-- गिल्डन

यांत्रिक अथवा रासायनिक विधि द्वारा सोने की परत चढ़ाना। यांत्रिक विधि में स्वर्ण-पत्र को किसी आसंजक, ऊष्मा अथवा पारे की सहायता से पृष्ठ पर चिपकाया, जाता है।
रासायनिक विधि में स्वर्ण क्लोराइड के ईथरी का धातु पर पेन्ट किया जाता है। फिर उसे गरम कर पॉलिश किया जाता है। यदि स्वर्ण-अमलगम का प्रयोग करना हो तो अमलगम प्रयुक्त करने से पहले धातु-पृष्ठ का, पारे मर्क्यूरिक-क्लोराइड के साथ उपचार किया जाता है। तत्पश्चात् पारे का वाष्पन कर पृष्ठ को उद्भ्राजित (Burnished) किया जाता है।
चीनी मिट्टी के बर्तनों का गिल्डन करने के लिए बबूल के गोंद में स्वर्ण-क्लोराइड, बिस्मथ ऑक्साइड और बौरेक्स के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है।
निमज्जन द्वारा गिल्डन करने के लिए वस्तु को साफ कर उसे स्वर्ण क्लोराइड और पोटेशियम बाइकार्बोनेट के मिश्रण में डुबाया जाता है।
इन विधियों का स्थान अब विद्युत-निक्षेपण ने ले लिया है।

Gilding metal-- गिल्डन धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 5–10% यशद होता है। यह अत्यंत आघातवर्ध्य होता है और इसे बेल्लित कर पर्णी बनाई जा सकती है। इसका उपयोग विलेपन के लिए तथा पर्णी के रूप में किया जाता है।
देखिए– Brass भी

Glazing-- ग्लेजन, काचन

1. लोहे और इस्पात पर पॉलिश करना। इसमें तीव्र घूर्णी एमरी गोले का प्रयोग किया जाता है जिसके अपघर्षक गुणधर्म न्यूनतम कर दिए गए हैं।
2. परिष्करण से पहले कर्तक ब्लेडों को घिसना।
3. अपघर्षक पहिए के कर्तक-कणों को मंद करना।
4. उच्चतपासह पदार्थ के पृष्ठ पर कुछ अवयवों का संगलन जिससे काचाम लेप बन जाता है।

Gold bronze-- स्वर्ण कांस्य

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 3–5% ऐलुमिनियम होता है। यह मजबूत और सुंदर रंग का होता है। इसका उपयोग सजावटी वस्तुओं और वास्तुशिल्पीय घटकों को बनाने में होता है।

Goldschmidt process-- गोल्डश्मिट प्रक्रम

देखिए– Metallothermic process के अंतर्गत Aluminothermic process

Grade of coal-- कोयला कोटि

कोयले की शुद्धता को व्यक्त करने वाला शब्द। इससे राख और नमी के रूप में विद्यमान अपद्रव्यताओं का पता लगता है। उच्च कोटि के कोयले में राख और नमी की मात्रा कम होती है।

Grain-- रेणु

धातुओं और मिश्रातुओं में विद्यमान अस्वरूपी क्रिस्टल
(allotriomorphic crystal) के लिए प्रयुक्त शब्द

Grain boundary fracture-- रेणु परिसीमा विभंग

देखिए– Fracture के अंतर्गत Intragranular fracture,

Grain growth-- रेणु वृद्धि

धातुओं और मिश्रातुओं के रेणुओं के आमाप में वृद्धि। यह निम्नलिखित प्रकियाओं से संबंधित है–
1. उच्चताप पर गरम करते समय बहुक्रिस्टलीय धातु के कणों के आमाप में वृद्धि से।
2. द्रव-धातु के पिंडन से जबकि निर्मित रेणुओं का औसत आमाप शीतलन-दर और उपस्थित नाभिकों की संख्या के व्युत्क्रमानुपात में बढ़ता है।
3. पुनर्क्रिस्टलन में अनीलन के फलस्वरूप रेणुओं के स्थूलन से जब कि ताप और तापन-समय के साथ रेणुओं का आमाप बढ़ता जाता है।

Grain refining-- रेणु परिष्करण

किसी धातु अथवा मिश्रातु के रेणु-आमाप को पर्याप्त कम करने का प्रक्रम। इसे उचित ऊष्मा-उपचार या मिश्रात्वन तत्वों की अल्प मात्राओं को मिला कर संपन्न किया जाता है। उदाहरणार्थ इस्पात का रेणु परिष्करण धातु को एक समय तक उचित ताप पर (अंतरण परास से लगभग 50°C ऊपर) गरम करने के बाद सामान्य ताप पर अपेक्षाकृत शीघ्रता से ठंडा करके किया जाता है। रेणु परिष्करण द्वारा धातु के आंतरिक प्रतिबल में कमी किंतु यांत्रिक गुणधर्मों में सुधार हो जाता है।

Grain size-- रेणु आमाप

बहुक्रिस्टलीय धातुओं में यह शब्द औसत रेणु-व्यास (अथवा आयतन) की माप के लिए प्रयुक्त होता है। इसे इकाई क्षेत्रफल में या इकाई आयतन में विद्यमान रेणुओं की संख्या द्वारा अथवा क्षेत्र-माप से प्राप्त रेणु-आमाप संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। बाद वाली विधि प्रायः इस्पातों के लिए प्रयुक्त होती है जबकि अलौह धातुओं के लिए इसे औसत रेणु-व्यास में व्यक्त करते हैं।

Grain size number-- रेणु आमापांक

बहुक्रिस्टलीय धातुओं में कणों का औसत आमाप जिसे सूचीकरण संख्या में व्यक्त किया जाता है। इस्पात के संदर्भ में इसे ए0एस0टी0एम0 संख्या से व्यक्त करते हैं।

Granulation-- रेणुकायन

किसी द्रव के स्थूल कणों को बनाना। इसमें द्रव को तुंडों से होकर बलपूर्वक प्रवाहित किया जाता है जबकि साथ साथ उच्च वेग से आ रहा कोई तरल, सामान्यतया पानी या गैस, उस द्रव से टकराता है।

Graphidox-- ग्रौफिडॉक्स

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 48–52% सिलिकन, 9–11% टाइटेनियम और 5–7% कैल्सियम होता है। इसका उपयोग लोहा और इस्पात के निर्माण, संचकित लोहे के ग्रेफाइटन, द्रव इस्पात के विऑक्सीकरण तथा मिश्रातु-योज्य के रूप में होता है।

Graphite-- ग्रैफाइट

कार्बन का अपरूप जो त्रिसमनताक्ष समुदाय में धूसर चमकीले षट्फलकीय प्लेटों के रूप में क्रिस्टलित होता है। यह स्पर्श में ग्रीज के समान लगता है, कागज पर निशान डालता है और स्नेहक का काम करता है। या प्राकृत अवस्था में पाया जाता है और एचेसन विधि द्वारा बनाया भी जाता है।
इसकी कठोरता 1–2 और विशिष्ट गुरुत्व 2.1–2.6 तक है। यह ऊष्मा और विद्युत का सुचालक है। यह केवल उच्च ताप पर जलता है जिस कारण इसका उपयोग आर्क-कार्बनों की क्रोडों, विद्युत-अपघटनी सेलों के ऐनोडों के रूप में होता है। इसे बालू और मृतिका के साथ मिलाकर क्रुसिबल बनाई जाती है। न्यून न्यूट्रॉन प्रग्रहण अनुप्रस्थ–काट और उत्तम मंदक गुणधर्म होने के कारण इसका उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में क्रोड-समुच्चय के लिए भी होता है।

Graphite bronze-- ग्रेफाइट कांसा

न्यून घर्षण वाला एक ताम्र मिश्रातु जिसमें या तो 50% ताम्र और 50% ग्रैफाइट होता है अथवा 79% ताम्र, 10% यशद और 11% ग्रैफाइट होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों में होता है।

Graphite metal-- ग्रेफाइट धातु

कम घर्षण वाला मिश्रातु जिसमें 68.00% सीसा, 15% वंग और 17% ऐन्टिमनी होता है। इसका उपयोग बेयरिंंगों में होता है।

Graphitization-- ग्रैफाइटीकण

एक प्रकार का अनीलन-प्रक्रम जब कि ढलवाँ लोहे में विद्यमान कुछ या संपूर्ण कार्बन, मुक्त ग्रैफाइटी कार्बन में बदल जाता है।
कोक से ग्रैफाइट का संश्लेषण भी ग्रैफाइटीकरण कहलाता है।

Graphitizing-- ग्रैफाइटन

देखिए– Graphitization

Gravity concentration-- गुरुत्व सान्द्रण

देखिए– Concentration के अंतर्गत

Gravity die casting-- गुरुत्व रूपदा संकचन

देखिए– 1. Casting के अंतर्गत Metal mould casting
2. Die casting.

Gravity segregation-- गुरुत्व संपृथकन

देखिए– Segregation के अंतर्गत

Gray mill-- ग्रे मिल

देखिए– Universal mill

Great Falls converter-- ग्रेट फाल्स परिवर्तित्र

देखिए– Converter के अंतर्गत

Green Walt process-- ग्रीन वाल्ट प्रक्रम

चूर्णमय अयस्कों के सिंटरण की एक विधि।

Greenockite-- ग्रीनोकाइट

एक दुर्लभ खनिज जिसमें कैडमियम सल्फाइड, CdS, होता है। इसके क्रिस्टल पीले रंग के और षट्कोणीय होते हैं। इसका विशिष्ट गुरुत्व 4.86 और कठोरता 3-3.5 होती है। यह बहुधा यशद् के अयस्कों के ऊपर पर्त के रूप में पाया जाता है।

Green sand-- नम बालू

देखिए– Sand के अंतर्गत

Green sand moulding-- नस बालू संचन

देखिए– Sand moulding के अंतर्गत

Grey cast iron-- धूसर ढलवाँ लोहा

देखिए– Cast iron के अंतर्गत Grey iron

Grey iron-- धूसर लोहा

देखिए– Cast iron के अंतर्गत

Grey slay-- घूसर धातुमल

सीसे के अयस्कों को ओपनहार्थ में प्रगलित करने से उत्पन्न धातुमल। इसमें सीसे की पर्याप्त मात्रा होती है और प्रायः इसका दुबारा उपचार किया जाता है।

Grit-- ग्रिट

बालू सिलिकामय पदार्थ अथवा धातुओं के कोणीय कण जिनका उपयोग ग्रिट प्रक्षेपण (Grit blasting) में अपघर्षक अथवा मार्जक के रूप में होता है।

Grog-- ग्रॉग

पूर्व दग्ध अप्लैस्टिक दानेदार पदार्थ। शुष्कन और ज्वालन के कारण होने वाले संकुचन को कम करने अथवा उत्तम तापीय आघात-प्रतिरोध आदि गुणों को लाने के उद्देश्य से इसे उच्चतापसह मिश्रण में मिलाया जाता हैं।

Gruner’s theorem-- ग्रुनर प्रमेय

धमन भट्टी के आदर्श ढंग से कार्य करने की शर्त। इस प्रमेय के अनुसार भट्टी में दग्ध संपूर्ण कार्बन ट्वीयरों में पहुँचना चाहिए और वहाँ कार्बनमोनोक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाना चाहिए तथा ट्वीयरों से ऊपर संपूर्ण अपचयन इसी कार्बन मोनोक्साइड द्वारा होना चाहिए एवं पारस्परिक क्रिया का स्थायी उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड होना चाहिए। व्यवहार में इन आदर्श शर्तों से सदैव ईंधन की अधिकतम बचत नहीं होती है। लाभकारी व्यापारिक प्रक्रिया के लिए पर्याप्त घान (भारण) तीव्र चालन और न्यूनतम ईंधन खर्च होना चाहिए अतः इस संदर्भ में प्रमेय को इस प्रकार कहा गया है।
“दी गई शर्तों में अधिकतम ईंधन की बचत तब होगी जब कि अपचयन के लिए ट्वीयरों में उत्पन्न कार्बन मोनोक्साइड का अधिकतम उपयोग किया जाए”।

Gun metal-- गन मेटल

देखिए– Bronze के अंतर्गत

Gypsum-- जिप्सम

जलयोजित कैल्सियम सल्फेट, CaSO₄2H₂O, जो एकनताक्ष समुदाय में क्रिस्टलित होता है। इसे सेलेनाइट भी कहते हैं। प्राकृतिक रेशेदार जिप्सम को सैटिन स्पार कहते हैं। ऐलाबास्टर, जिप्सम का क्रिस्टलीय रूप है जिसका विशिष्ट गुरुत्व 2.32 होता है। यह लवण अवशेष (Saline residue), डोलोमाइटी चूने के पत्थर और अनेक मृतिका-शैलों में पाया जाता है। इसे कुछ समय तक 120°-130°C पर गरम करने से अर्ध हाइड्रेट (2CaSO₄2H₂O) प्राप्त होता है जिसे पेरिस-प्लास्टर कहते हैं। प्राकृतिक क्रिस्टलीय जिप्सम को 130°C से ऊपर और ‘पूर्ण दग्ध’ ताप से नीचे गरम करने पर एस्ट्रिच जिप्सम बनता हैं। जिप्सम की उपयोगिता का कारण यह है कि यह धीरे-धीरे कठोर होता है। अतः ढलाई शालाओं में इसके साँचे बनाए जाते हैं। जिप्सम का उपयोग उर्वरक के रूप में होता है।

Hadfield’s manganese steel-- हैडफील्ड मैंगनीज इस्पात

ऑस्टेनाइटी मैंगनीज इस्पात में 1-1.4% कार्बन और 10-14% मैंगनीज होता है। अतप्त-कर्मण अथवा तीव्र पृष्ठ-कुटाई से मिश्रातु की कठोरता और अपघर्षण-प्रतिरोध बढ़ जाता है। इस मिश्रातु का अयस्क संदलन निकर्ष बाल्टियों (Dredge buckets) रेलवे तथा ट्रामवे को स्विच पॉयन्टों और पारपथों में महत्वपूर्ण उपयोग होता है। मैंगनीज इस्पात का उपयोग लगभग 1050°C ताप से जल में द्रुत शीतलन करने से प्राप्त ऑस्टेनाइटी अवस्थाओं में होता है।

Hadfield’s steel-- हैडफील्ड इस्पात

देखिए– Hadfield’s manganese steel

Heamatite-- हेमेटाइट

एक खनिज जिसमें मुख्यतः आयरन ऑक्साइड, Fe₂O₃, होता है। इसमें लगभग 70% लोहा होता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण लोह अयस्क है। इसके बहुधा काले क्रिस्टल होते हैं। यह षट्कोणीय समुदाय में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 5.5-6.5, आपेक्षिक घनत्व 4.5-5.3।

Hairline crack-- केशीय दरार

क्रांतिक तापों पर पर्याप्त तीव्र दर से ठंडा किए गए इस्पातों, विशेष रूप से न्यून-मिश्रातु-इस्पातों में पाए जाने वाली बारीक दरारें। संभवतः ये दरारें धातु के अंदर हाइड्रोजन की उपस्थिति के कारण बनती हैं। इस्पात में टाइटेनियम मिलाकर इन्हें कम किया जा सकता है।

Hall Heroult process-- हाल हेरू प्रक्रम

शुद्ध ऐलुमिना के संगलित लवण विद्युत-अपघट्न द्वारा ऐलुमिनियम के उत्पादन का औद्योगिक प्रक्रम। 950°C–1000°C पर क्राइयोलाइट अथवा क्राइयोलाइट और फ्लुओरस्पार के मिश्रण का संगलित विद्युत अपघट्य के रूप में उपयोग किया जाता है जिसमें 5-8% ऐलुमिना मिलाया जाता है। कार्बन आस्तर वाले इस्पात पात्र का कैथोड के रूप में तथा सोडरवर्ग इलेक्ट्रोड अथवा पूर्वभर्जित कार्बन इलेक्ट्रोडों का ऐनोड के रूप में उपयोग किया जाता है। 4.5 वोल्ट पर 7000–8500 ऐम्पियर प्रति वर्गमीटर की धारा प्रवाहित कर तापन और अपचयन किया जाता है। ऐलुमिना का अपघटन हो जाता है और गलित ऐलुमिनियम, सेल के पैंदे पर जमा हो जाता है। जहाँ से उसे समय समय पर निकाल लिया जाता है। सेल के शीर्ष से कार्बन मोनोक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकल जाते हैं।

Hall process-- हाल प्रक्रम

देखिए–Hall Heroult process

Hammering-- घन ताड़न

धातु के टुकड़े अथवा चादर को पीटकर वांछित आकार में बदलना। इस क्रिया में किसी ढाँचे अथवा उच्च गति के यांत्रिक हथौड़े और समान निहाई (Anvil) का उपयोग किया जाता है ताकि वांछित आकार प्राप्त किया जा सके।

Hammer scale-- घन ताड़न शल्क

लोहे अथवा इस्पात को फोर्जन के लिए गरम करने पर उसके पृष्ठ पर बनने वाली आयरन ऑक्साइड की परत।
तुलना– Mill scale

Hammer welding-- घन वैल्डिंग

देखिए– Forge welding

Hand moulding-- हस्त संचन

देखिए– Moulding

Hanover metal-- हैनोवर धातु

कम घर्षण और उत्तम कठोरता वाला मिश्रातु जिसमें 87% वंग, 8% ऐन्टिमनी और 5% तांबा होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों में किया जाता है।

Hansgrig Process-- हेन्सगिर्ग प्रक्रम

मैग्नीशियम ऑक्साइड का कार्बन के साथ अपचयन कर मैग्नीशियम बनाने की विधि। इसे रैडेंथिन प्रक्रम भी कहते हैं।

Hardenability-- कठोरणीयता

शमन द्वारा उत्पन्न कठोरता की गहराई और वितरण को निर्धारित करने का गुणधर्म। इसे प्रायः सापेक्ष रूप से व्यक्त किया जाता है और यह क्रांतिक शीतलन-दर से संबंधित होता है। क्रांतिक शीतलन दर वह दर है जिस पर और जिसके ऊपर पूर्णतया मार्टेन्साइटी संरचनाएँ बनाती हैं। क्रांतिक शीतलन दर अथवा कठोरणीयता मुख्यतः संघटन का फलन होती है, यद्यपि समान संघटन के इस्पातों की भिन्न कठोरणीयता और एक ही साँचे के इस्पातों में पर्याप्त भिन्नता हो सकती है। शमन के फलस्वरूप सीमित परिच्छेद आमाप (Section size) को ही पूर्णतया कठोर किया जा सकता है। सादे कार्बन इस्पातों का कठोरण कम गहराई तक होता है और मिश्रातुओं को मिलाने से अधिक गहराई तक कठोरण किया जा सकता है।

Hardening-- कठोरण

लोह अथवा अलोह धातुओं और उसके मिश्रातुओं की कठोरता बढ़ाना। प्रमुख कठोरण-विधियाँ निम्नलिखित हैं :–
काल कठोरण (Age hardening)– किसी धातु की बनी वस्तु की संरचना में परिवर्तन करने का प्रक्रम जो वायुमंडलीय ताप पर धीरे-धीरे और उच्च ताप पर तीव्र गति से होता है। इसके कारण प्रमाणक प्रतिबल (Proof stress), अधिकतम प्रतिबल और कठोरता बढ़ जाते हैं तथा तन्यता में कमी आ जाती है। ये प्रभाव अतिसंतृप्त ठोस विलयन से अवक्षेपण के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं जिससे काल-प्रभावन के पहले प्रायः उच्च ताप पर विलयन-उपचार किया जाता है। यह अवक्षेप अतिसूक्ष्म होता है। प्रायः इस्पातों के लिए काल-प्रभावन और अलौह मिश्रातुओं के लिए काल-कठोरण शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जब काल कठोरण उच्च ताप पर किया जाए तो उसे कृत्रिम काल-प्रभावन कहते हैं और यदि सामान्य ताप पर किया जाए तो उसे प्राकृतिक काल-प्रभावन कहते हैं। प्राकृतिक काल प्रभावन के काण उत्पन्न कठोरण को प्राकृतिक कठोरण कहते हैं। यह प्रक्रम अनेक मिश्रातुओं के साथ किया जा सकता है जिसमें कुछ विशेष प्रकार के इस्पात, ऐलुमिनियम, तांबा, टाइटेनियम, मैग्नीशियम एवं निकैल मिश्रातु सम्मिलित है। काल कठोरण संपन्न होने के लिए मिश्रातु में कुछ ऐसे यौगिकों का बनाना आवश्यक है जो मिश्रातु के मैट्रिक्स में विलयन के रूप में पहुँच सके, अतः इसे अवक्षेपण-कठोरण भी कहते हैं।
परिक्षेपण-कठोरण (Dispersion hardening)– किसी ऐसे पदार्थ के सूक्ष्म कणों के परिक्षेप की उपस्थिति के फलस्वरूप धातु को कठोर बनाना जो धातु के जालकों में विलेय न हो। इसमें प्रयुक्त पदार्थ जालक में अक्रिय कठोर, सबमाइक्रॉन आमाप का और समान रूप से परिक्षिप्त होना चाहिए। इसे परिक्षेपण प्रबलन भी कहते हैं।
अवक्षेपण कठोरण (Precipitation hardening)
देखिए– Age hardening
शमन कठोरण (Quench hardening)– इसमें लोह धातु को क्रांतिक-परास अर्थात् Ac₃ ताप से कुछ अधिक ताप तक गरम करने के बाद पूर्ण विसरण होने तक उसी ताप पर बनाए रखा जाता है और फिर जल, तेल या हवा में ऐसी नियत दर से शमन किया जाता है जो ऑस्टेनाइट/ पर्लाइट रूपांतरण को रोकने अथवा मंद करने और मार्टेन्साइटी संरचना बनाने के लिए पर्याप्त हो। कठोरण प्राप्त करने के लिए न्यूनतम शीतलन-दर, क्रांतिक शीतलन-दर कहलाती है।
द्वितीयक कठोरण (Secondary hardening)– प्रायः उच्च वेग औजारी इस्पातों के पायन से उत्पन्न कठोरता। इनका 400°C–600°C ताप पर पायन करने से शमन द्वारा प्राप्त आस्टेनाइट अपने से कठोर कार्बाइडों में बदल जाता है।
विलयन-कठोरण (Solution hardening)– कुछ विशेष प्रकार के मिश्रातुओं को पर्याप्त समय तक उपयुक्त ताप पर गरम करने से वांछित अवयव ठोस विलयन में प्रविष्ट कर जाता है। फिर द्रुत-शीतलन से यह अवयव, विलयन में बना रहता है। इस अवस्था में पदार्थ अतिसंतृप्त अस्थायी अवस्था में रहता है जो कठोरता प्रदर्शित करता है।
प्रतिबल-कठोरण (Stress hardening)
देखिए — Work hardening
कार्य–कठोरण (Work hardening)
धातु में सुघट्य विरूपण के कारण होने वाली कठोरता। यह अवरोधों पर प्रभ्रंशों को आरोपित करने से उत्पन्न होती है जिससे और अधिक विस्थापन उत्पन्न होते हैं। इन दोनों प्रकार के विस्थापनों की परस्पर क्रिया से पदार्थ का प्रवाह-प्रतिबल बढ़ता है। यह प्रवाह प्रतिबल कभी-कभी विकृति काल प्रभावन के काण और बढ़ जाता है। तनन प्रतिबल-विकृति वक्र के सुघट्य विरूपण अंश को निम्नलिखित समीकरण द्वा व्यक्त किया जा सकता है।
प्रतिबल ͫ
विकृति = ————–
h
जिसमें h कार्य कठोरण गुणांक है। षट्भुंज-जालकों के लिए m का मान 1 और घन-जालकों के लिए m का मान 2 होता है।

Hard facing-- कठोर आलेपन

धातु की जो वस्तुएँ अधिक घिसती हैं उनके पृष्ठों पर ऐसी धातुओं या मिश्रातुओं का लेप चढ़ाना जो अधिक घर्षणरोधी हों। कठोर धातु मृदु धातु पर लेपन वेल्डिंग अथवा फुहारण द्वारा किया जाता है। इस विधि का उपयोग, रूपदाओं, खनन औजारों और वेधन-उपस्करों के लिए होता है। इसे कठोर पृष्ठन भी कहते हैं।

Hard metal-- कठोर धातु

टंगस्टन, टैन्टेलम अथवा टाइटैनियम के चूर्णित कार्बाइड, जिन्हें चूर्णित कोबाल्ट अथवा निकैल के साथ मिलाकर और फिर अतप्त निपीडन तथा अंत में सिन्टरन के बाद ठोस-संहतियों के रूप में संयोजित किया जाता है। इनका उपयोग कर्तक औजारों, तार-कर्षण, रूपदाओं और ऐसे पुर्जों को बनाने के लिए होता है जिनकी अधिक घिसाई होती है।

Hardness-- कठोरता

किसी पदार्थ का वह गुणधर्म जिसके कारण वह बाहरी बलों से उत्पन्न खरोंच, घर्षण, वेधन, दंतुरण, मशीनीयता तथा कर्तन का प्रतिरोध करता है। कठोरता का संबंध (1) धातुओं के तनन-सामर्थ्य (2) घर्षणरोधी गुण (3) ऊष्मा-उपचार के फलस्वरूप होने वाले पायन की मात्रा और (4) धातु की समांगता से होता है।
देखिए– Hardness tester

Hardness test-- कठोरता परीक्षण

पदार्थों की कठोरता को मापने का परीक्षण। प्रमुख कठोरता परीक्षण निम्नलिखित है–
ब्रिनेल कठोरता परीक्षण (Brinell hardness test)—इसमें जिस पदार्थ की कठोरता ज्ञात करनी हो उसमें निर्दिष्ट व्यास की इस्पात या कार्बाइड की गेंद को विशिष्ट भार द्वारा बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है। प्राप्त परिणाम को ब्रिनेल-कठोता-संख्या में व्यक्त किया जाता है। ब्रिनेल कठोरता संख्या ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त भार को (किलोग्राम में) उत्पन्न मुद्रांक के पृष्ठ-क्षेत्रफल से भाग किया जाता है। कठोरता निम्नलिखित समीकरण द्वारा ज्ञात की जाती है।
z P
ब्रिनेल कठोरतांक = ————————-
ЛD (D–√ D2 –d2)
जिसमें P प्रयुक्त भार (किलोग्राम में) D गेंद का व्यास (मिलीमीटर में) और d गेंद के मुद्रांक का व्यास (मिलीमीटर में) है। विभिन्न धातुओं की कठोरता ज्ञात करने के लिए p और D2 के अनुपात का नियत मान होता है जो अलग-अलग धातुओं के लिए अलग-अलग होता है। उदाहरणार्थ इस्पात और लोहे के लिए यह मान 30; पीतल, कांसा तथा अन्य मृदु धातुओं के लिए 5, और अत्यंत मृदु धातुओं के लिए 1 होता है।
रेती कठोरता परीक्षण (File hardness test)—शमित अथवा शमित और पायनित इस्पातों की कठोरता का आकलन करने के लिए या उत्पादन में गियरों, बेयरिंगों आदि कठोरित अवयवों के नियंत्रण के लिए इस्पात-पृष्ठों की कठोरता का परीक्षण करने की सामान्य कार्यशाला विधि। इसमें रेती की मूठ को इस प्रकार पकड़ा जाता है कि तर्जनी रेती की लंबाई के साथ रहे। परीक्ष्य पृष्ठ को धीरे-धीरे किंतु मजबूती के साथ तेज दांत से घिसा जाता है। जैसे ही दांत से खरोंच पड़ जाती है वैसे ही रेती को हटा दिया जाता है। इस परीक्षण में प्रयुक्त रेतियाँ मानक आमाप, आकार और कठोरता वाली होनी चाहिए। परीक्षण की गति जितनी धीमी होगी यह उतना ही यथार्थ होगा। कठोरित इस्पात की कठोरता 820—900 विकर्स (62—65 राकबेल C) होती है।
नूप कठोरता परीक्षण (Knoop hardness test)—ब्रिनेल और विकर्स के सिद्धांतों पर आधारित इस परीक्षण में एक दंतुरक पर भार प्रयुक्त किया जाता है जो परीक्ष्य वस्तु को काटता है। इसमें हीरे का प्रयोग किया जाता है परंतु दंतुरक का आकार समचतुर्भुजीय होता है।
नूप-परीक्षण में प्रायः हल्के भारों का प्रयोग किया जाता है और यह बहुत पतली चादरों के लिए प्रयुक्त होता है। यह सूक्ष्म कठोरता परीक्षण के काम भी आता है। इसे दंतुरण परीक्षण भी कहते हैं।
मोज कठोरता परीक्षण (Mohs hardness test)—खनिजों की कठोरता ज्ञात करने तथा इस प्रकार उन्हें पहचानने के लिए प्रयुक्त इस परीक्षण में मौज पैमाने की सहायती ली जाती है।
इस पैमाने में टाल्क की कठोरता 1 और हीरे की 10 मानी गई है। यदि इस पैमाने का कोई खनिज परीक्ष्य पदार्थ के पृष्ठ पर खरोंच डाल दे तो वह उस खनिज से मृदु हुआ और यदि परीक्ष्य पदार्थ, खनिज पर खरोंच डाल दे तो वह खनिज से कठोर हुआ। मोज पैमाना इस प्रकार है–
मानक के रूप में प्रयुक्त पदार्थ मोज संख्या
हीरा 10
नीलम (कार्बोरंडम) 9
टौपेज 8
क्वार्ट्ज 7
फेल्डस्पार 6
ऐपाटाइट 5
फ्लुओराइट 4
कैल्साइट 3
जिप्सम 2
टाल्क 1
पिरैमिड हीरक कठोरता परीक्षण (Pyramid diamond hardness test)– दंतुरता के प्रति किसी पदार्थ के प्रतिरोध को ज्ञात कर उसकी कठोरता मापने की विधि। विकर्स हीरक (मानक दंतुरक) वर्ग-आधार का पिरैमिड होता है जिसका अंतर्गत-कोण 136° होता है। 30 किलोग्राम भार पर यह ब्रिनेल की अपेक्षा बहुत कम दंतुरण उत्पन्न करता है। इसका लाभ यह है कि इसमें दंतुरण एक ही आकार का उत्पन्न होता है भले ही भार कितना भी हो। कठोरता-अंक को भार/ मुद्रांक के क्षेत्रफल द्वारा किलोग्राम/ मिमी2 में व्यक्त किया जाता है।
1.8544 P
HD = ———————-
जिसमें P= किलोग्राम में भार, d= मिलीमीटर में मुद्रांक का कर्ण।
रॉकवेल कठोरता परीक्षण (Rockwell hardness test)
इसमें एक छोटे भार की सहायता से दंतुरक को परीक्ष्य पृष्ठ पर प्रविष्ट किया जाता है। यह दंतुरक इस्पात की गोली या हीरक शंकु होता है जिसे ‘ब्रेल’ कहते हैं। जब इसका प्रवेश रुक जाता है तो 4—5 सेकंड के लिए बड़ा भार प्रयुक्त किया जाता है। जैसे ही दंतुरक का वेधन रुक जाता है इसे बड़े भार को हटा लिया जाता है कि किंतु छोटा भार बना रहता है। बड़े भार के कारण प्राप्त वेधन की गहराई से कठोरता मालूम की जाती है और छोटे भार के प्रभाव की उपेक्षा कर देते हैं। इस परीक्षण में विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न मापक्रमों का प्रयोग किया जाता है। बढ़े भार उन्हीं मापक्रमों के अनुरूप निर्धारित किए जाते हैं। राकवेल कठोरता HD इस सूत्र से मालूम की जाती है—
HD = E–e
जिसमें E एक स्थिरांक है जिसका मान दंतुरक की किस्म और प्रयुक्त पैमाने पर निर्भर करता है और e वेधन की गहराई की माप है। HD का माप सीधे पैमाने पर पढ़ लिया जाता है।
शोर कठोरता परीक्षण (Shore hardness test)—एक प्रतिक्षेप कठोरता युक्ति जिसमें 1/12 औंस भार के हीरे की नोक वाले घन को अंशांकित काँच की नली से परीक्ष्य पृष्ठ पर गिराया जाता है। प्रतिक्षेप की ऊँचाई, कठोरता की माप होती है। यह परीक्षण जिस उपकरण में किया जाता है उसे शोर कठोरतादर्शी कहते हैं। इसे प्रतिक्षेप कठोरता परीक्षण भी कहते हैं।
विकर कठोरता परीक्षण (Vicker hardness test)—किसी पदार्थ का दंतुरण-प्रतिरोध ज्ञात कर उसकी कठोरता को मापना। विकर हीरा (मानक दंतुरक) 136° अंतर्गत कोण (Included angle) वाला वर्ग-आधार का पिरामिड होता है। यह प्रायः 30 किलोग्राम भार पर प्रयुक्त किया जाता है। यह ब्रिनेल से बहुत कम दंतुरण उत्पन्न करता है और दंतुरण सदैव एक ही आकार का होता है। कठोरता संख्या (HD) किग्रा/ मिमी2 में व्यक्त की जाती है और निम्नलिखित समीकरण द्वारा ज्ञात की जाती है।
1.844 P
HD= —————-
जिसमें P किलोग्राम में भार, d मिलीमीटर में मुद्रांक का कर्ण है। दंतुरण मुद्रांक प्रायः वर्गाकार होता है जिसके कर्णों को मिलीमीटर में मापा जाता है। जब दोनों कर्ण असमान होते हैं तो उनका औसत मान कर्ण की लंबाई के रूप में लिया जाता है।

Hard plating-- कठोर लेपन

साधारणतया कठोर क्रोमियम लेपन निक्षेप के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द, किंतु वास्तव में इसका प्रयोग पृष्ठ-कठोरता बढ़ाने वाली किसी भी लेपन-प्रक्रम के लिए किया जाता है। अतः इसके अंतर्गत किसी धातु फुहारन तकनीक द्वारा किया जाने वाले लेपन भी आता है। विद्युत-निक्षेपण और विद्युतहीन निक्षेपण के अतिरिक्त इस शब्द का प्रयोग बहुत कम किया जाता है।
कठोर-लेपन के लिए प्रयुक्त सामान्य विधियाँ हैं– कठोर क्रोम लेपन, विद्युतहीन निकैल लेपन, ज्वाला लेपन, धातु फुहारण और वेल्डिंग।

Hard soldering-- कठोर सोल्डरन

वह सोल्डन प्रक्रम जिसमें तांबा और चाँदी मूल के मिश्रातुओं का उपयोग किया जाता है। यह सीस मूल के मिश्रातुओं द्वारा किए गये कठोरण की अपेक्षा अधिक ताप पर किया जाता है।
तुलना– Soft soldering

Hard spot-- कठोर स्थल

देखिए– Casting defect

Hard surfacing-- कठोर पृष्ठन

देखिए– Hard facing

Hard tin-- कठोर टिन

तन्य वंग मिश्रातु जो शुद्ध से अधिक मजबूत होता है। इसमें 99.6% वंग और 0.4% तांबा होता है। इसका उपयोग संकोच्य नली, पर्णी आदि में होता है।

Harman process-- हार्मन प्रक्रम

अयस्क से सीधे सिन्टर या पिग के रूप में लोहे को प्राप्त करने की एक पुरानी विधि। इससे प्राप्त लोहा इस्पात की भट्टियों के घान के रूप में प्रयुक्त होता है।

Harmet process-- हार्मेट प्रक्रम

पूर्ण इस्पात पिंडों को बनाने का प्रक्रम जिसमें धातु का संचन, शुंडाकार साँचों में किया जाता है। निचले सिरे पर कुछ दूरी तक इन साँचों का भीतरी पृष्ठ समांतर होता है। संचन के बाद आंशिक रूप से ठोस हुए पिंडों पर पैंदे से ऊपर की ओर दाब डाला जाता है ताकि यदि कोटर हों तो वे समाप्त हो जाएँ और आगे को कोटर बनने की प्रवृत्ति भी समाप्त हो जाए।

Harris process-- हैरिस प्रक्रम

सीस परिष्करण का एक प्रक्रम जिसमें ऑक्सीकरण द्वारा आर्सेनिक, ऐन्टिमनी, वंग और यशद को पृथक किया जाता है। इसमें 450°C पर NaCl, NaOH और NaNO₃ के गलित लवण मिश्रण का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार बने अपद्रव्यों के ऑक्साइडों का गलित लवण मिश्रण में अंतरण कर दिया जाता है।

Hartmann lines-- हार्टमान रेखाएँ

रेखाओं का स्थूल पैटर्न जो सुघट्य रूप से विरूपित धातुओं के पृष्ठों पर पाया जाता है। धीरे-धीरे भार बढ़ा कर जब लोहे और मृदु इस्पात का तनन किया जाता है जो पदार्थ की प्रत्यास्थता रूक जाने पर, प्रतिबल-विकृति आरेख में पराभव बिंदु पहुँच जाता है। इस बिंदु पर अतिरिक्त भार बढ़ाए बिना ही पदार्थ का तनन होने लगता है। इस स्थिति पर देखा गया है कि धातु के पृष्ठ में, प्रतिबल दिशा के लगभग 45° कोण पर, नत रेखाएँ बनने लगती हैं। चिकने पृष्ठ को छूने से इन रेखाओं में उभार अनुभव किया जा सकता है। इन्हें लूडर रेखाएँ पाइयोबर्ट रेखाएँ और तानक विकृति भी कहते हैं।

Haste alloy-- हेस्ट मिश्रातु

निकैल मूल के संकुल मिश्रातुओं का एक वर्ग जो अत्यंत अम्लरोधी, संक्षारणरोधी और इनमें से कुछ के उच्च ताप पर अच्छे यांत्रिक गुणधर्म होते हैं। बहुधा इनका उपयोग ऊष्मा-उपचार भट्टियों और कार्बुरण उपस्कर में संचकों के रूप में होता है। इसके अन्य उपयोग भी हैं। इनमें 65% Ni, 30% Mo, 5% Fe अथवा 17% Mo, 14% Cr, 5% W, 5% Fe और शेष Ni होता है। अम्लरोधी मिश्रातु में 9% Si और शेष Ni होता है।

Hauser’s alloy-- हाउसर मिश्रातु

एक गलनीय मिश्रातु जिसमें 50% सीसा, 33.3% बिस्मथ और 16.7% कैडमियम होता है।

Hausmannite-- हॉस्मैनाइट

मैंगनीज का अयस्क, Mn₃ O₄, जो अवसादी अथवा अवशिष्ट निक्षेपों के रूप में पाया जाता है। यह चतुष्कोणीय पिरैमिडों में क्रिस्टलित होता है। कठोरता 5-5.5, विशिष्ट गुरुत्व 4.72–4.85।

Hazelette process-- हैजलेट प्रक्रम

चादर अथवा प्लेट बनाने के लिए द्रव धातु अथवा इस्पात को लगातार बेलनों में ढालने की विधि। द्रव इस्पात को 6 मीटर तक व्यास के एक चौड़े इस्पात-सिलिंडर के बाहरी पृष्ठ पर उड़ेला जाता है। यह सिलिंडर अपने अंदर घूम रहे एक रोलर पर टिका रहता है और उसी से घूमता है। पिघला इस्पात कुछ दूरी पर, रोलर तक ले जाया जाता है जो एक वलय के ऊपर घूमता है। यह ठोस इस्पात को पतली प्लेटों अथवा पट्टियों में बेल्लित कर देता है।

Head metal-- शीर्ष धातु

ढलाई शाला में प्रयुक्त इस शब्द का प्रयोग साँचे के भरक में धातु के भंडार के लिए होता है।

Hearth-- हार्थ

1. धमन भट्टी में, भट्टी के पैंदे वाला भाग जिसमें पिघला कच्चा लोहा टपककर जमा होता है और जिसे बाद में निकाल लिया जाता है।
2. खुली भट्टी अथवा विद्युत आर्क भट्टी का वह भाग जिसमें इस्पात पिघलाया जाता है।

Hearth furnace-- हार्थ भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत

Hearth roasting-- हार्थ भर्जन

देखिए– Roasting के अंतर्गत Multiple hearth roasting

Heat-- हीट

1. गण-प्रगलन क्रिया।
2. गलन अथवा ऊष्मा-उपचार चक्र।

Heat tinting-- ऊष्मा आभाकरण

किसी धातु चित्रण-प्रतिदर्श के पॉलिश किए गए पृष्ठ के सूक्ष्म अवयवों को पहचानने की विधि। यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि पायन-रंग अथवा ऊष्मा-आभा, जो पतली ऑक्साइड परत में प्रकाश के व्यक्तिकरण के कारण उत्पन्न होती है, पॉलिश किए गए पृष्ठ को गरम करने पर ऑक्सीकरण से प्रकट होती है। पॉलिश किए गए नमूने को, जो पूर्णतः सूखा होना चाहिए, लोहे की प्लेट में अथवा नियंत्रित ताप की आवश्यकता होने पर तापस्थापी यतः नियंत्रित भट्टी में, अथवा पिघले वंग के तल पर तैराकर गरम किया जाता है। रंग उत्पन्न होने की प्रगति को सावधानी के साथ देखा जाता है। और पारे में शमन करने पर यदि पर्याप्त रंग आ जाए तो उसे रोक दिया जाता है। उत्पन्न रंग, धातु के स्वभाव गरम करने के समय और ताप पर निर्भर करता है। पॉलिश किए गए इस्पात के लिए विभिन्न तापों के संगत पायन रंग इस प्रकार हैं–
220°C –230°C हल्का पीला
240°C गहरा पीला
255°C पीला भूरा
265°C भूरा-लाल
275°C नील लोहित
285°C बैंगनी
295°C नीला
315°C हल्का नीला
प्राप्त रंग, ताप का वास्तविक द्योतक नहीं होता है क्योंकि 230°C के आसपास लंबे समय तक गरम करने से नमूने का रंग हल्के पीले से बदल कर नीला हो जाता है।

Heat treatable alloy-- ऊष्मा उपचारीय मिश्रातु

वह मिश्रातु जिसके गुणधर्मों को ऊष्मा-उपचार द्वारा संशोधित किया जा सकता है। गुणधर्मों में यह संशोधन या तो प्रवस्था रूपांतरण द्वारा अथवा बिना प्रावस्था रूपांतरण के पुनर्क्रिस्टलन द्वारा (केवल ठोस अवस्था में) अथवा प्रावस्था वितरण के आकृति-विज्ञान में परिवर्तन द्वारा लाया जा सकता है।

Heat treatment-- ऊष्मा उपचार

वांछित अवस्थाओं अथवा गुणधर्मों को प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी ठोस धातु अथवा मिश्रातु को एक या अनेक बार गरम करने के बाद ठंडा करना। इस प्रक्रिया के अंतर्गत धातुओं के सभी प्रकार के ऊष्मा अथवा तापीय उपचार आते हैं। कठोरण, अनीलन, प्रसामान्यीकरण, पायन, काल-कठोरण, पृष्ठ कठोण संमागीकरण, आघातवर्धीकरण प्रतिबल विसर्जी अनीलन, अवशून्य उपचार आदि ऊष्मा उपचार के उदाहरण हैं। केवल तप्त-कर्मण के उद्देश्य से गरम करना, ऊष्मा-उपचार नहीं माना जाता है।

Heavy burden-- अधि घानभार

धमन भट्टी के घान में सामान्य से अधिक अयस्क और शालक की मात्रा का होना।

Heavy metal-- भारी धातु

देखिए– Metal

Hematite-- हेमेटाइट

देखिए– Haematite

Hercules metal-- हरकुलीज धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 37.5% यशदर और 1.5% ऐलुमिनियम होता है। उच्च संक्षारणरोधी होने के कारण इसका उपयोग समुद्री अनुप्रयोगों में होता है।

Heroult process-- हेरू प्रक्रम

देखिए– Hall Heroult process

Hausler alloy-- हाउसलर मिश्रातु

तीन ताम्र मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें 50–72% तांबा, 18-26% मैंगनीज और 10-25% ऐलुमिनियम होता है। उत्तम फेरोमैंगनेटिक गुणधर्म होने के कारण इनका उपयोग चुंबकीय अनुप्रयोगों में किया जाता है जिनमें फेरस मिश्रातुओं का उपयोग लाभदायक नहीं होता है। हाउसलर मिश्रातुओं का उपयोग स्फुलिंगन से बचने के लिए गैसयुक्त खानों में और उन स्थानों में किया जाता है जहाँ जंगरोधन की आवश्यकता है।

High alloy steel-- उच्च मिश्रातु इस्पात

देखिए– Alloy steel के अंतर्गत

High carbon steel-- उच्च कार्बन इस्पात

देखिए– Carbon steel के अंतर्गत

High speed steel-- क्षिप्र इस्पात

ऐसे मिश्रातु-इस्पात जिनका उपयोग धातु-कर्तन-औजारों के रूप में होता है। ये अत्यंत कठोर होते हैं। लाल गरम होने पर भी इनकी कठोरता बनी रहती है जिससे इनका उपयोग खरादों में होता है। ये उच्च वेग पर काम में लाए जाते हैं। एक विशिष्ट मिश्रातु में 18% क्रोमियम, 4% टंगस्टन, 1% वैनेडियम, 0.6% कार्बन और शेष लोहा होता है। क्षिप्र इस्पात कई प्रकार के होते हैं जिनके संघटन में बहुत भिन्नता होती है। इन्हे 850°C तक धीरे और फिर 1250°C तक शीघ्र गरम कर हवा या तेल में ठंडा किया जाता है। इसके बाद –80°C तक ठंडा करने पर, शेष ऑस्टेनाइट अन्य प्रावस्थाओं में बदल जाता है अथवा 500°C तक पायन किया जाता है जिससे शमन-विकृतियाँ समाप्त हो जाएँ और द्वितीयक कठोरण द्वारा कठोरता बढ़ जाए।

High strength brass-- उच्च सामर्थ्य पीतल

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 55–60% ताम्र, 0.4–2% लोहा, 0.5–1.5% ऐलुमिनियम, 1.5% मैंगनीज और शेष यशद होता है। यह अत्यंत मजबूत और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग समुद्री अनुप्रयोगों और जलयान नोदकों में होता है। इसे मैंगनीज कांसा भी कहते हैं।
इसी के समान गुणधर्मों और अनुप्रयोग वाले एक मिश्रातु को, जिसमें 60–68% ताम्र, 2–4% लोहा, 3–7.5% ऐलुमिनियम और 2.5–5% मैंगनीज होता है, उच्च सामर्थ्य कांसा कहते है, किंतु वास्तव में वह एक पीतल होता है।

High temperature carbonisation-- उच्च ताप कार्बनन

देखिए– Carbonisation

High temperature coke-- उच्च ताप कोक

देखिए– Metallurgical coke

Hilgenstock process-- हिलजेन्सटाक प्रक्रम

गलित लोहे अथवा इस्पात में मुक्त गंधक की मात्रा कम करने का प्रक्रम। गलित में गंधक मिलाकर उसे स्थिर होने दिया जाता है जिसके फलस्वरूप मैंगनीज सल्फाइड पृष्ठ पर आ जाता है।

Hindalium-- हिन्डैलियम

मैसर्स हिंदुस्तान ऐलुमिनियम कंपनी द्वारा निर्मित ऐलुमिनियम के एक मिश्रातु का व्यापारिक नाम जिसका प्रयोग मुख्यतः बर्तनों को बनाने में होता है।

Hiperco-- हाइपर्को

एक मिश्रातु जिसमें 30% कोबाल्ट और शेष लोहा होता है। इसका चुंबकीय संतृप्त मान बहुत अधिक होता है। इसका उपयोग विद्युत चुंबकीय परिपथों में होता है।

Hogging-- हॉगन

एक ज्वाला कर्तन प्रक्रम उपयोग इस्पात संचकों से अनावश्यक धातु पूरक फुंडिकाओं स्प्रू आदि को काटने के लिए किया जाता है।

Holding furnace-- घारक भट्टी

एक भट्टी जिसका उपयोग अन्य गलन-भट्टी से प्राप्त पिघली धातु के संग्रह के लिए होता है। इसमें पिघली धातु के संघटन को सभांमी के साथ उसे वांछित संचन-ताप पर रखा जाता है। कभी कभी आवश्यकतानुसार धारक भट्टी में रखी पिघली धातु के संघटन में मिश्रात्वन द्वारा परिवर्तन भी किया जा सकता है।

Holding time-- धारण काल

इस्पात के पुनर्तापन अथवा ऊष्मा-उपचार में वह समय जो इस्पात के प्रत्येक भाग में समान ताप उत्पन्न करने के लिए आवश्यक हो। धारण काल वस्तु के व्यास के साथ बढ़ता जाता है। (2) बिंदु-वेल्डिंग अथवा प्रक्षेप वेल्डिंग में यह उस समय को व्यक्त करता है जिसमें विद्युत धारा का प्रवाह रुकने पर वेल्डिंग पर बल प्रयुक्त किया जाता है। (3) सीवन, स्फूर और पर्यास वेल्डिंग में यह उस समय को व्यक्त करता है, जिसमें विद्युत धारा के रुकने पर कार्य बल लगाया जाता है।

Homegenizing-- सभांगीकरण

उच्च ताप पर पर्याप्त समय तक ऊष्मा उपचार करना ताकि विसरण द्वारा रासायनिक संपृथक (chemical segregation) को समाप्त अथवा कम किया जा सके। इस प्रक्रम द्वारा मिश्रातुओं का रासायनिक संघटन एवं संरचना सर्वत्र एकसमान हो जाती है।

Hoopes process-- हूप्स प्रक्रम

ऐलुमिनियम के लिए प्रयुक्त एक विद्युत-अपघटनी परिष्करण प्रक्रम। इसमें गलित लवण अवगाह का प्रयोग किया आता है जिसमें तीन परतें होती हैं। सब से नीचे पैंदी पर अशुद्ध एलुमिनियम धातु का ऐनोड होता है। उसके ऊपर आग्नेय लवण अवगाह और सबसे ऊपर अपेक्षाकृत शुद्ध ऐलुमिनियम की गलित कैथोडी परत होती है। यह ऊपरी सतह पर तैरती रहती है और कैथोड के सम्पर्क में रहती है। एनोडी परत तांबा और अशुद्ध ऐलुमिनियम के मिश्रातु की होती है। आग्नेय-अवगाह, क्रायोलाइट, ऐलुमिनियम फ्लुओराइड, बेरियम, फ्लुराइड और ऐलुमिनियम ऑक्साइड का मिश्रण होता है जो इस अनुपात में मिलाए जाते हैं कि वांछनीय आपेक्षिक घनत्व और तरलता प्राप्त हो जाए। अवगाह का प्रचालन लगभग 20,000 ऐंपियर और 5-7 वोल्ट के विभव पर किया जाता है जबकि ताप 900-1100°C रहता है। इस प्रक्रम से 99.98% शुद्ध ऐलुमिनियम प्राप्त किया जा सकता है। इसे हूप्स तीन परत प्रक्रम। (Hoops three layer process) भी कहते हैं।

Horizontal retort furnace-- क्षैतिज रिटार्ड भट्टी

देखिए– Furnaces के अंतर्गत Retort furnace

Hornblende-- हार्नब्लेन्ड

संकुल (Complex) और परिवर्ती संघटन का एक महत्वपूर्ण खनिज। इसमें मुख्यतः कैल्सियम, मैग्नीशियम, लोहा और ऐलुमिनियम के सिलिकेट तथा अल्प मात्रा में सोडियम और पोटैशियम के सिलिकेट भी होते हैं। इसका संघटन लगभग इस प्रकार है– Cao10%, Mgo 13%, Feo 14%, Fe2o37%, Al₂O₃ 12%, SiO₂ 40% तथा Na₂O और K₂O मिलकर 4% होते हैं। संघटन के अनुसार इसका रंग धूसर, हरा, भूरा अथवा काला होता है। बेसाल्टी हार्नबलैन्ड में टाइटेनियम की पर्याप्त मात्रा होती है। इसके क्रिस्टल एकनताक्ष समुदाय के होते हैं। कठोरता 5-6 (मो पैमाने में) विशिष्ट गुरुत्व 3-3.4 ।

Horn gating-- श्रृंग द्वारण

देखिए– Getting के अंतर्गत

Hot bed-- तप्त संस्तर

विस्तृत बंद क्षेत्र जिसमें गरम और आंशिक रूप से बेल्लित धातु को रखने के लिए पास-पास बेलन अथवा रेलें होती हैं।

Hot blast main-- तप्त धमन पाइप

धमन भट्टी के चारों ओर लगा अधिक व्यास का पाइप जिससे होते हुए हवा का झोंका स्टोवों से ट्वीयरों तक जाता है। यह तप्त धमन पाइप इस्पात का बना होता है और उसमें अग्निसह ईटों का आस्तर लगा रहता है।

Hot cracking-- तप्त विदरण

1. अत्यधिक प्रतिबल के कारण पिंडन और आंशिक शीतलन के बाद किसी संचक में उत्पन्न दरार। सामान्यतया यह असमान शीतलन के कारण उत्पन्न होती है।
2. अत्यधिक तापीय प्रतिबल के फलस्वरूप वेल्डित भाग में पाई जाने वाली दरार जो संलयन क्षेत्र में उत्पन्न होती है। यह पिंडन के बाद किंतु शीतलन से पहले उत्पन्न होती है।

Hot dipping-- तप्त निमज्जन

1. धातु-पृष्ठ पर वांछित रासायनिक अभिक्रियाओं को उत्पन्न करने के लिए गरम विलयनों में धातु-उत्पादों को डुबाने की क्रिया। देखिए– Pickling भी।
2. धातु-उत्पादों को विलेयक पदार्थ के गलित अवगाहों में डुबाने पर धात्विक लेपों को उत्पन्न करना तप्त निमज्जन की प्रमुख विधियाँ इस प्रकार हैं–
ऐल्डिप प्रक्रम (Aldip process) ढलवाँ लोहे और इस्पात पर ऐलुमिनियम का लेप करने का प्रक्रम। धावन, अम्ल-मार्जन (Pickling) प्रक्षालन (Rinsing) और भट्टी में सुखाने के बाद वस्तु को पूर्व तापित लवण-अवगाह में गरम किया जाता है। कुछ देर डुबाने के बाद उसे पुनः लवण-अवगाह में डुबा देते हैं जिसमें से उसे धीरे-धीरे उठाया जाता है। अतिरिक्त ऐलुमिनियम को हवा के झोंके के द्वारा हटा दिया जाता है।
ऐलुमिनन (Aluminising) देखिए अकारादि क्रम में।
यशद लेपन (Galvanising)– संक्षारणरोधी पृष्ठ बनाने के उद्देश्य से लोहे अथवा इस्पात के पृष्ठ पर जस्ते का लेप लगाने का प्रक्रम। इसे वस्तु को गलित जस्ते में डुबाकर विद्युत-लेपन द्वारा, शेरार्डीकण द्वारा अथवा गलित जस्ते की फुहार देकर संपन्न किया जाता है। देखिए– Sherardising
मोलराइजन (Mollerizing)– इस्पात को संक्षारण से बचाने के लिए सतही पर्तों को ऐलुमिनियम से संसिक्त करने का प्रक्रम। इस्पात को 870°C –1095°C ताप पर लवण-अवगाह में गरम किया जाता है जिसमें मुख्यतः बेरियम क्लोराइड होता है। आवश्यक ताप पहुँचने पर वस्तु को गलित ऐलुमिनियम से होते हुए निकाल लिया जाता है जो संगलित लवण के ऊपर तैरता है। इस विधि से उत्पन्न ऐलुमिनियम लेप, इस्पात के साथ लोहा-ऐलुमिनियम मिश्रातु द्वारा आबद्ध रहता है। इस प्रक्रम द्वारा इस्पात के ऑक्सीकरण प्रतिरोध में वृद्धि हो जाती है।
वंगन (Tinning) संक्षारण से रक्षा करने के लिए किसी धातु पर वंग का लेप करना। यह लेप, गलित वंग में तप्त निमज्जन द्वारा, विद्युत निक्षेपण द्वारा अथवा धातु फुहारण द्वारा किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग धातुओं पर वंग अथवा वंग-सीसा का लेप चढ़ाने के लिए भी होता है।

Hot drawing-- तत्प कर्षण

उच्च ताप पर किसी धातु का रुपदा (Die) से होते हुए कर्षण कर तार, छड़, नली आदि को बनाने।
तुलना– Cold crawing

Hot forming-- तप्त अभिरूपण

उच्च ताप पर बंकन, फोर्जन, कर्षण आदि क्रियाओं द्वारा धातु का संरूपण (Forming) करना उसे आकृति प्रदान करना। यह क्रिया सामान्य रूप से ऐसी धातुओं के संरूपण के लिए आवश्यक है जिनमें क्रिया के लिए आवश्यक अतप्त-कर्मण गुणधर्म नहीं होते। इसे तप्त कर्मण के बाद धातु में उपयुक्त गुणधर्म उत्पन्न करने के उद्देश्य से भी किया जाता है।

Hot hardness-- तप्त कठोरता

कुछ मिश्रातुओं का वह गुणधर्म जिसके कारण वे विशिष्ट उन्नयित ताप (Elevated temperature) पर भी अपनी मूल कठोरता को अधिकांशतः बनाए रखते हैं। इस गुणधर्म की आवश्यकता तप्त कर्मण क्रियाओं में काम आने वाले औजारों, रूपदा और उच्च कर्तन इस्पातों के लिए होती है।

Hot machining-- तप्त मशीनन

आर्क अथवा, आक्सीऐसीटिलीन तापन विधियों का उपयोग कर उन्ननियत तापों पर धातु का मशीनन करना। इसमें मशीननीयता बढ़ जाती है और औजार को अधिक समय तक काम में लाया जा सकता है।

Hot metal process-- तप्त धातु प्रक्रम

वैद्युत भट्टी अथवा ओपन हार्थ भट्टी द्वारा इस्पात निर्माण का प्रक्रम। इसमें गलित धातु को भट्टी में डालकर उपयुक्त धातुमल के साथ उपचार किया जाता है। इससे धातु का शोधन और परिष्करण हो जाता है।

Hot pressing-- तप्त संपीडन

1. साथ-साथ दबाकर और सिन्टरण द्वारा कार्बाइड औजारों को बनाने की विधि। इसमें पाउडर को बंद साँचे में रखा जाता है जो सामान्यत; ग्रेफाइट का बना होता है। साँचे और उसमें रखी वस्तुओं को सिन्टरण-ताप तक गरम किया जाता है और एक दिशा में दाब प्रयुक्त किया जाता है जो उन बलों को निष्प्रभावित कर देता है जिनके कारण अन्य दो दिशाओं में संकुचन उत्पन्न होता है। साँचे को प्रायः विद्युत द्वारा गरम किया जाता है और 400 से 2500 पौंड का दाब प्रयुक्त किया जाता है।
2. उच्च ताप पर दाब की सहायता से वस्तुओं का आकार देना।

Hot quenching-- तप्त शमन

देखिए– Quenching के अंतर्गत

Hot rolling-- तप्त बेल्लन

विपरीत दिशाओं में घूम रहे दो बेलनों के बीच धातु की तप्त सिल्ली, शिलिका, बिलेट, ब्लूम आदि को दबाकर लंबा करना। इसमें धातु का प्रवाह सतत और पूरी तरह अनुदैर्ध्य दिशा में होता है।
देखिए– Hot working भी।

Hot shortness-- तप्त भंगुरता

देखिए– Red shortness

Hot tear (Shrinkage tear)-- तप्त विदर

देखिए– Casting defect

Hot torsion test-- तप्त विमोटन परीक्षण

देखिए– Hot twist test

Hot twist test-- तप्त व्यावर्त परीक्षण

विभिन्न इस्पातों का इष्टतम (Optimum) तप्त कर्मण परास निर्धारित करने का परीक्षण और साथ ही उन्नयित तापों पर इस्पात की मजबूती का निर्धारण करना परीक्ष्य-छड़ लगभग 53 सेमी लंबी और लगभग 1.4 सेमी व्यास की होती है। यह भट्टी में इस प्रकार रखी जाती है कि उसके दोनो सिरे बाहर को निकले रहते हैं। इनमें एक सिरा बिजली से चल रहे चक्र से और दूसरा सिरा बल-आधूर्ण भुजा (Torque arm) से जुड़ा रहता है। गरम करने के बाद छड़ को 135 परिभ्रमण प्रति मिनट (r.p.m.) से मरोड़ा जाता है। छड़ को ऐंठने के लिए आवश्यक बल-आघूर्ण को सीघे पलेटफार्म-तुला से माप लिया जाता है और एक गणित, परिक्रमणों की संख्या को रिकार्ड करता है इसे तप्त विमोटन परीक्षण भी कहते हैं।

Hot working-- तप्त-कर्मण

पुनर्क्रिस्टलन ताप से ऊपर किसी ताप पर धातुओं अथवा मिश्रातुओं का बेलन, फोर्जन, वेधन, घनताड़न अथवा उत्सारण (Extrusion) करना। प्रत्येक धातु अथवा मिश्रातु के लिए तप्त कर्मण ताप भिन्न-भिन्न होता है और यह ताप-परास मिश्रातुओं के लिए कुछ सीसा तक, प्रावस्था-आरेख द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
तप्त कर्मण एक प्रकार का सुघट्य-विरूपण है जिसमें कार्य-कठोरण नहीं होता है क्योंकि कणों के सुघट्य विरूपण के साथ-साथ पुनर्क्रिस्टलन हो जाता है।
तुलना– Cold working

Hoyle’s alloy-- हायले मिश्रातु

कम घर्षण वाला मिश्रातु जिसमें 46% वंग, 42% सीसा और 12% ऐन्टिमनी होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों में होता है।

Hoyt’s-- होइट धातु

कम घर्षण वाला, चर्मल और तन्य मिश्रातु जिसमें 91% वंग, 6.8% ऐन्टिमनी और 2.2% तांबा होता है। इसका उपयोग वायु इंजनों और डीजल इंजन वाले वायु संपीडकों में दंड-बेयरिगों को जोड़ने के लिए किया जाता है।

Hughes metal-- ह्यूज धातु

कम घर्षण वाला सीसा-मिश्रातु जिसमें 76% सीसा, 14% वंग और 10% ऐन्टिमनी होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों में किया जाता है।

Hume Rothery compound-- ह्यूम रॉथरी यौगिक

देखिए– Electron compound

Hunter process-- हंटर प्रक्रम

निर्वात में सोडियम द्वारा जर्कोनियम टेट्राक्लोराइड के अपचयन से धात्विक जर्कोनियम प्राप्त करने का प्रक्रम।

Hydrargillite-- हाइड्रार्जिलाइट

देखिए — Gibbsite

Hydroforming-- द्रवीय अभिरूपण

वायुयान आदि के लिए चादरी धातु के हिस्सों को बनाने का प्रक्रम। इसमें होने वाले संरूपण प्रचालनों के लिए द्रवचालित दाब का प्रयोग किया जाता है।

Hydrogen arc welding-- हाइड्रोजन आर्क वेल्डिंग

देखिए– Welding के अंतर्गत

Hydrogen embrittlement-- हाइड्रोजन भंगुरण

देखिए– Embrittlement के अंतर्गत

Hydrogen loss-- हाइड्रोजन ह्रास

धातु-चूर्ण अथवा संहत पदार्थ को शुद्ध हाइड्रोजन में निश्चित समय और ताप तक गरम करने से उसके भार में होने वाली कमी। जब परीक्ष्य पदार्थ में केवल ऐसे ऑक्साइड होते हैं जो हाइड्रोजन द्वारा अपचित हो सकते हैं और हाइड्राइड बनाने वाला कोई अन्य तत्व विद्यमान नहीं होता है तो यह हाइड्रोजन-ह्रास नमूनें में ऑक्सीजन की मात्रा का माप होती है।

Hydrometallurgy-- जल धातुकर्मिकी

देखिए– Metallurgy

Hydrozincite-- हाइड्रोजिन्काइट

ZnCO₃, 2Zn (OH)₂, जलयोजित यशद खनिज, जिसमें 59.5% यशद होता है। यह अन्य यशद अयस्कों के साथ संयुक्त अवस्था में पाया जाता है।

Hynical-- हाइनिकल

स्थायी चुंबक फेरस मिश्रातु जिसमें 32% निकैल, 12% ऐलुमिनियम और शेष लोहा होता है।

Hynico-- हाइनिको

स्थायी चुंबक फेरस मिश्रातु जिसमें 20% निकैल, 10% ऐलुमिनियम, 6% तांबा, 13% कोबाल्ट और शेष लोहा होता है।

Hyperutectic alloy-- हाइपरयूटेक्टिक मिश्रातु

कोई द्विअंगी मिश्रातु जिसका संघटन, साम्य-आरेख में यूटेक्टिक के दाईं ओर होता है और उसकी यूटेक्टिक संरचना की मात्रा दाईं ओर को जाने पर, संपीडन की प्राथमिक प्रावस्था की अपेक्षा, बराबर घटती जाती है।

Hypereutecoid-- हाइपर यूटेक्टॉयड

हाइपरयूटेक्टिक के अनुरूप, जबकि तीनों प्रावस्थाएँ ठोस हों।

Hypereutecoid alloy-- हाइपर यूटेक्टॉयड मिश्रातु

वह मिश्रातु जिसमें मिश्रात्वी-तत्व की मात्रा यूटेक्टॉयड-प्रतिशत से अधिक हो।

Hypernik-- हाइपर्निक

एक फेरस मिश्रातु जिसमें 45-50% निकैल और शेष लोहा होता है। इसकी उच्च चुंबकशीलता होती है। इसका उपयोग विद्युत चुंबकीय परिपथों में मृदु चुंबकीय पदार्थ के रूप में होता है।

Hypersil-- हाइपरसिल

मृदु चुंबकीय फेरस मिश्रातु जिसमें 3-3.5% सिलिकन., अधिकतम 0.03% कार्बन, 0.02% गंधक, 0.02% फास्फोरस, और 0.1% मैंगनीज और शेष लोहा होता है। इसका उपयोग ट्रान्सफार्मर-क्रोडों में होता है।

Hypoeutectic alloy-- हाइपोयूटेक्टिक मिश्रातु

कोई द्वि-अंगी मिश्रातु जिसका संघटन, साम्य आरेख में, यूटेक्टिक के बाईं ओर होता है और उसकी यूटेक्टिक संरचना की मात्रा बाईं ओर को जाने पर, संपीडन की प्राथमिक प्रावस्था की अपेक्षा, बराबर घटती जाती है।

Hypoeutectoid-- हाइपोयूटेक्टॉयड

हाइपोयूटेक्टिक के अनुरूप, जबकि तीनों प्रावस्थाएं ठोस हों।

Hypoeutectoid alloy-- हाइपोयूटेक्टॉयड मिश्रातु

वह मिश्रातु जिसमें मिश्रात्वी तत्व की मात्रा यूटेक्टॉइड प्रतिशत से कम हो।

Hysteresis-- शैथिल्य

1. इस्पात तथा अन्य लोह मूलक मिश्रातुओं के संदर्भ में तापन और शीतलन पर क्रांतिक बिंदुओं के बीच होने वाला तापांतर। इसका कारण तापन और शीतलन के समय भौतिक परिवर्तनों की प्रवृति का ताप-परिवर्तनों से पीछे रह जाता है।
2. चुंबकीय शैथिल्य (Megnetic hysteresis) के संदर्भ में इस शब्द का अर्थ है कि अक्रमित चुंबकन के समय चुंबकीय अभिवाह घनत्व का चुंबकन-बल से पीछे रह जाना।

Ideal critical diameter-- आदर्श क्रांतिक व्यास

इस्पात का अधिकतम व्यास जिसे आदर्श शमन द्वारा केंद्र पर पूर्णतया कठोरित किया जा सकता है।

Ilmenite-- इल्मेनाइट

टाइटैनियम लोह अयस्क (FeO TiO₂) जिसमें मुख्यतः लोहे और टाइटैनियम के ऑक्साइड होते हैं। इसमें लोहे और टाइटैनियम का अनुपात परिवर्ती होता है। इसमें कुछ मैग्नीशिंया भी रहता है। अक्षारकीय आग्नेय चट्टानों और कुछ रेतों में यह अनेक स्थानों से सहायक अवयव के रूप में पाया जाता है। टाइटैनियम की मात्रा 18–24% या इससे अधिक भी हो सकती है।

Immersion coating-- निमज्जी विलेपन

डुबाकर किसी वस्तु पर लेप चढ़ाने का प्रक्रम। उदारणार्थ इस्पात पर गलित यशद या वंग का लेपन।

Immersion heating-- निमज्जी तापन

गलित सीसा, संगलित लवण अथवा तेल आदि के अवगाह में गरम करना ताकि वस्तु समान रूप से गरम हो जाए।

Imersion plating-- निमज्जी लेपन

बाहरी विद्युत वाहक बल का प्रयोग किए बिना अपधातु पर किसी अन्य धातु का पतला लेप चढ़ाना। जिस धातु पर लेप करना हो उसे लेपक धातु के उपयुक्त लवण के विलयन में डुबाया जाता है। इस विधि से अधिक धन विद्युती धातु को कम धन विद्युती धातु पर निक्षेपित किया जा सकता है। कम ऋण विद्युती धातु, विलयन में धुलकर लेपक धातु को अवक्षिप्त कर देती है। उदाहरणार्थ जब कॉपर सल्फेट विलयन में लोहे या जस्ते की चादर के टुकड़े को डुबाया जाता है तो इस पर तांबे की परत निक्षेपित हो जाती है।

Impact extrusion-- प्रतिघात उत्सारण

देखिए– Extrusion के अंतर्गत

Impact test-- प्रतिघात परीक्षण

आकस्मिक प्रतिघात अथवा आवेगी भार के प्रति किसी पदार्थ के प्रतिरोध को निर्धारित करने का परीक्षण। यह आंतरिक दरारों, रेणु-परिसीमा, अपद्रव्यों अथवा अंतर्विष्टों आदि की उपस्थिति के कारण पदार्थ की खाँच-सुग्राहिता को व्यक्त करता है। अतः इसे खाँच दंड परीक्षण अथवा खाँच प्रतिघात परीक्षण भी कहते हैं। प्राप्त परिणामों को अवशोषित उर्जा के फुट-पौंड में अथवा नमूने को तोड़ने के लिए आवश्यक आघातों की संख्या में व्यक्त किया जाता है। यह परीक्षण प्रायः नीचे दी गई दो विधियों द्वारा किया जाता है :–
शार्पी परीक्षण (Charpy test) — इसमें 10 मिमी0 x 10 मिमी0 x 55 मिमी0 मानक विनिर्देशों के नमूने को साधारण दंड के रूप में भारित कर, दो निहाइयों के बीच क्षैतिजतः रखा जाता है। फिर प्रादोलीय हथौड़े को निश्चित ऊँचाई से खाँच के उल्टी तरफ से गिराया जाता है। नमूने के संविदारण के लिए आवश्यक ऊर्जा, उत्थान कोण (Angle of rise) का फलन होती है और उसे डिग्री या जूल में अर्धवृताकार पैमाने पर पढ़ा जा सकता है जिससे प्रतिघात-मान ज्ञात हो जाता है। इसे साधारण-दंड–परीक्षण (Simple beam test) भी कहते हैं।
आइजोड परीक्षण (Izod test)– इसमें 10 मिमी0 X10 मिमी0 X75 मिमी0 के मानक सेन्टीलीवर नमूने पर निश्चित ऊँचाई से प्रादोलीय लोलका (Swinging pendulum) द्वारा आघात किया जाता है। नमूने का मानक-खाँच 45° और गहराई 2 मिमी0 होती है। इससे नमूने पर आकस्मिक प्रतिघात होता है। नमूने के संविदारण के लिए आवश्यक ऊर्जा अंशांकित पैमाने से ज्ञात की जाती है जिसमें घर्षण-संकेतक लगा रहता है। इसे सेन्टीलीवर-दंड-परीक्षण भी कहते हैं।

Imperfection-- अपूर्णता

धातु-जालकों की नियमित त्रिविम सममिति में पाए जाने वाले दोष। ये प्रभंश, रिक्तिका अंतराकाशी परमाणु या प्रतिस्थापनी परमाणु मौजेक संरचना अथवा अर्धचालकों में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन या छिद्र के कारण उत्पन्न होते हैं।

Impervite-- इंपर्वाइट

तापयुग्म आदि में संरक्षी नलिकाओं के रूप में प्रयुक्त एक उच्चतापसह पदार्थ। संघटन में यह सिलीमेनाइट के समान है। इसका उपयोग 1100°C से अधिक ताप पर उपयुक्त रहता है।

Impoverishment-- दरिद्रण

ऑक्सीकरण, वाष्पीकरण, गलनिक पृथक्करण अथवा ठोस प्रावस्था में अन्य परिवर्तनों से किसी मिश्रातु अथवा मिश्रातु के स्थान-विशेष से किसी घटक का निकल जाना।

Impregnation-- संसेचन

1. सिंटरित संहति के रंध्रों को स्नेहक से भरने का प्रक्रम। सिंटरित अथवा असिंटरित संहति के रंध्रों को कम गलनांक की धातु अथवा मिश्रातु से भरना।
2. चूर्ण धातु मैट्रिक्स में अधात्विक पदार्थ के कणों को मिलाने का प्रक्रम जैसा हीरक संसिक्त औजारों में होता है।
3. सिंटरित संहति पर अन्य धातु का लेप करनें का प्रक्रम इसमें संहति को दूसरी धातु के चूर्ण में दबाकर गरम किया जाता है।
4. किसी धातु के पृष्ठ पर क्रोमियम, कार्बन आदि को विसरित करने का प्रक्रम।
5. किसी संचक में उपस्थित रंध्रों को दाब पर किसी द्रव पदार्थ द्वारा भरने का प्रक्रम। यह द्रव पदार्थ जमने पर रंध्रों को बंद कर देता है।
तुलना — Infiltration

Impurity-- अपद्रव्य

किसी धातु अथवा इस्पात में वे अवांछित तत्व अथवा यौगिक जो किसी अभिप्राय से नहीं मिलाए जाते है बल्कि स्वतः उपस्थित रहते हैं।

Inclusion count-- अंतर्वेश गणना

इस्पात में समाविष्ट वस्तु की मात्रा को ज्ञात करने का साधन। इसके लिए अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है। समावेशों के सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहने पर भी यांत्रिक गुणधर्मों में कहीं अधिक ह्रास हो जाता है, अतः यह उल्लेख करना आवश्यक है कि धातुओं और मिश्रातुओं में उनकी कितनी मात्रा उपस्थित है। प्रति इकाई क्षेत्रफल में विद्यमान समावेशों की संख्या, आमाप और आकार का अध्ययन, समावेश-गणना कहलाता है। सामान्यतया इन विधियों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों में निर्दिष्ट किया जाता है।
देखिए– Inclusion भी

Inclusion-- अंतर्वेश

1. धूल, धातुमल या अन्य अपद्रव्यों के कण जो पिंडन के समय धातुओं में मिल जाते हैं अथवा धातुओं के अंदर अभिक्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले ऑक्साइड, सल्फाइड, सिलिकेट आदि भी समावेश के अंतर्गत आते हैं। इस्पात में पाए जाने वाले समावेश मुख्यतः मैंगनीज सल्फाइड और सिलिकेट धातुमल और ऐलुमिना है। पीतलों में पाए जाने वाले समावेशों में ड्रास (ऑक्साइड अथवा सिलिकेट) औकर चारकोल प्रमुख हैं।
2. अन्य ढलवाँ धातुओं और मिश्रातुओं में भी सुघट्य विरूपण और विशेष रूप से तप्त-कर्मण के समय समावेश पाए जाते हैं। इनमें से सुघट्य समावेश की धातु की प्रवाह की दिशा में दैर्ध्यवृद्धि हो जाती है और भंगुर समावेश टूट जाते हैं। समावेशों के वितरण आकार आमाप और स्वभाव का धातु या मिश्रातु के यांत्रित गुणधर्मों पर प्रभाव पड़ता है। समावेश के अध्ययन का धातुकर्म में विशेष महत्व है और उनके वर्गीकरण के लिए मानक धातु-चित्रण विधियों का प्रयोग होता है। हानिकारक प्रभावों के कारण समावेशों के निराकरण के लिए विशेष गलन-तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिनमें निर्वात अथवा विशेष गालकों का इस्तेमाल होता है।
3. देखिए– Weld defect

INCO (International Nickel Company of Cannada) (flash smelting processs)-- इन्को (स्फुर-प्रगलन प्रक्रम)

एक दमक प्रगलन प्रक्रम जिसमें विशेष निर्मित ज्वालकों द्वारा उच्च वेग ऑक्सीजन धारा की सहायता से सल्फाइड सांद्र और गालक को सीधे भ्राष्ट्र में अंतः क्षिप्त किया जाता है। प्रगलन-वायुमंडल किंचित ऑक्सीकारक होता है। इसके फलस्वरूप कुछ आयरन सल्फाइड का आयरन ऑक्साइड में ऑक्सीकरण हो जाता है जो सिलिका फ्लक्स के साथ मिलकर धातुमल बना देता है। शेष आयरन सल्फाइड और कॉपर सल्फाइड मिलकर मैट बनाते है। बहिर्गैस में SO₂ की सांद्रता बहुत अधिक होती है जिसे लाभकारी दृष्टि से प्राप्त किया जा सकता है।
तुलना– Outokumpu flash smelting process

Incoloy-- इन्कोलॉय

निकैल मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिनमें निकैल, क्रोमियम और तांबा होता है। इनके अतिरिक्त अल्प मात्रा में कार्बन, मैंगनीज, सिलिकन, ऐलुमिनियम, टाइटेनियम और मॉलिब्डेनियम भी होते है। यह ऊष्मा और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग ऊष्मा विनिमायक, अम्ल-क्षार टंकियों, आच्छदों आदि, में किया जाता है।

Incomplete combustion-- अपूर्ण दहन

देखिए– Combustion के अंतर्गत

Incomplete fusion-- अपूर्ण संगलन

देखिए– Weld defect के अंतर्गत

Incomplete penetration-- अपूर्ण अंतर्वेधन

देखिए– Weld defect के अंतर्गत

Inconel-- इन्कोनेल

ऊष्मारोधी निकैल मिश्रातु जिसमें 80% निकैल, 15% क्रोमियम और 5% लोहा होता है। यह अत्यंत मजबूत, अत्यन्त संक्षारणरोधी और उच्च ताप पर उत्तम ऑक्सीकरणरोधी होता है। सल्फ्यूस के वातावरण में 815°C के ऊपर इसका उपयोग नहीं हो सकता है।

Indentation test-- दंतुरण–परीक्षण

देखिए — Hardness test के अंतर्गत Knoop hardness test

Indirect arc furnace-- अप्रत्यक्ष आर्क भट्टी

देखिए– Furnace

Indirect extrusion-- अप्रत्यक्ष उत्सारण

देखिए– Extrusion के अंतर्गत

Indirect fired furnace-- अप्रत्यक्ष ज्वालित भट्टी

वह भट्टी जिसमें दहन, पृथक कक्ष में किया जाता है और जिस पदार्थ को गरम करना हो वह ईंधन के सीधे संपर्क में नहीं रहता है।

Induced draught-- प्रेरित प्रवात

देखिए– Draught के अंतर्गत

Induction brazing-- प्रेरण ब्रेजन

ब्रेजन प्रक्रम जिसमें ऊष्मा, प्रेरित विद्युत धारा द्वारा उत्पन्न की जाती है और गरम किए गए क्षेत्र की गहराई, प्रेरक कुंडली से प्रावहित हो रही विद्युत धारा की आवृति का फलन होती है।

Induction furnace-- प्रेरण भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत

Induction hardening-- प्रेरण कठोरण

देखिए — Case hardening के अंतर्गत

Induction Heating-- प्रेरण तापन

उच्च आवृति की प्रत्यावर्ती धारा द्वारा गरम करने की विधि। इससे प्राप्त ऊष्मा का उपयोग संचकन, वेल्डिंग, ब्रेजन और ऊष्मोपचार के लिए होता है।
प्रेरण-तापन में प्रयुक्त कुंडलियाँ, उच्च-आवृति-विद्युत के लिए चालकों का काम करती हैं और जब कुंडली के अंदर कोई धातु रखी जाती है। तो प्रेरण-प्रभाव उत्पन्न होता है। उच्च आवृति के उत्क्रमण पर हर बार धातु के अणुओं के अपनी दिशा बदलने को बाध्य होना पड़ता है जिससे उच्च विद्युतरोधी धातु गरम हो जाता है। अत्युच्च आवृति के साथ यह प्रभाव धातु-पृष्ठ तक सीमित रहता है और ‘क्रोड’ केवल चालन द्वारा गरम होता है। आवृत्ति कम करने से यह ‘त्वचा’ प्रभाव भी कम हो जाता है और केवल पृष्ठ-ऊष्मा प्राप्त करना कठिन हो जाता है। इस प्रकार गलाने के लिए अथवा सामान्य कार्यों के लिए उच्च ऊर्जा और कम आवृत्ति की आवश्यकता होती है। कठोरण, ब्रेजन के लिए औद्योगिक प्रेरण गलन भ्राष्ट्रों में सामान्य आवृति अर्थात् 50 साइकल प्रति सेकंड तथा प्रयोगशाला में प्रयुक्त प्रेरण गलन भ्राष्ट्रों में 1500–3000 चक्र प्रति सेकंड की धारा का प्रयोग होता है।

Induction tempering-- प्रेरण पायन

प्रेरण विधि से उत्पन्न ऊष्मा द्वारा इस्पात का पायन

Induction welding-- प्रेरण वेल्डिंग

एक प्रतिरोध वेल्डिंग प्रक्रम जिसमें ऊष्मा उत्पन्न करने वाली विद्युत धारा को उन भागों में से प्रवाहित किया जाता है जिनका विद्युत-चुंबकीय प्रेरण द्वारा वेल्डिंग करना हो। इसमें स्रोत और कार्य के बीच कोई विद्युत संपर्क नहीं होता।

Induflux method-- इंडुफ्लक्स विधि

चुंबकीय गुणधर्मों में अंतर माप कर इस्पात की छड़ों में आपेक्षिक श्रांति निर्धारित करने की विधि।

Industrial mettalurgy-- औद्योगिक धातुकर्मिकी

देखिए– Mettalurgy

Inert gas welding-- अक्रिय गैस वेल्डिंग

एक प्रकार का आर्क वेल्डिंग प्रक्रम जिसमें पिघली वेल्डित धातु, आर्गन, हीलियम आदि अक्रिय गैसों के लगातार प्रवाह से आच्छादित रहती है। प्रायः टंगस्टन के बने अनुपभोज्य इलेक्ट्रोड और वस्तु के बीच अति उच्च धारा घनत्व का विद्युत आर्क उत्पन्न किया जाता है। इलेक्ट्रोड के आर्क की ओर का सिरा तथा आर्क द्वारा वस्तु में बने संगलित धातु के चारों ओर अक्रिय गैस का आवरण रहता है। इस प्रकार वेल्ड की गई धातु, ऑक्सीकरण या वायुमंडलीय प्रदूषण से मुक्त रहती है। इस गैस-सुरक्षा के कारण परिष्कृत वेल्डित पृष्ठ, चिकना, निर्मल और एक समान होता है। अक्रिय गैस रक्षित वेल्डिंग का प्रयोग ऐसी अधिक परिष्कृत धातुओं की वेल्डिंग में किया जाता है जिनकी ऑक्सीजन के प्रति बंधुता होती है, जैसे Al। यह विधि टंगस्टन अक्रिय गैस (TIG) वेल्डिंग कहलाती है। इसे इक्रिय गैस रक्षित वेल्डिंग भी कहते हैं।
अक्रिय गैस वेल्डिंग की एक अन्य तकनीक में भरक छड़ का उपभोज्य इलेक्ट्रोड के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह विधि धातु अक्रिय गैस वेल्डिंग (MIG welding)कहलाती है। इसे सिगमा वेल्डिंग अर्थात् (Shielded inert gas metal arc welding) वेल्डिंग भी कहते हैं।

Infiltration-- अंतःस्यंदन

चूर्ण धातु उत्पादों का घनत्व और सामर्थ्य बढ़ाने की विधि। इसमें चूर्ण को संपीडित करने के बजाय रंध्रों में कम गलनांकी धातु को तरल रूप में भर दिया जाता है। मुख्य विधियाँ इस प्रकार हैं–
1. केशिका निमज्जन अंतःस्यंदन (Capillary dip infiltration)– इसमें पारगम्य स्पंज-वस्तु के थोड़े से भाग को गलित धातु के अवगाह में डुबाया जाता है।
2.पूर्ण निमज्जन अंतःस्यंदन (Full dip infiltration)– इसमें संपूर्ण कंकाल-वस्तु को गलित धातु में डुबाया जाता है।
3. संपर्क अंतःस्यंदन (Contact infiltration)– इसमें गलित धातु के वेधन से अंतःस्यंदन किया जाता है जो आरंभ में ठोस धातु के रूप में कंकाल के संपर्क में रहता है।
इस प्रक्रम का उच्चतापसह धातु-संपर्कों और इलेक्ट्रोडों में विस्तृत उपयोग किया जाता है जिनमें तांबा, चाँदी आदि चालक धातुएँ प्रविष्ट की जाती हैं। इनका उपयोग जेट इंजन संपीडक ब्लेडों में भी होता है।
तुलना– Impregnation

Ingate-- अंतद्वरि

वह चैनल जिससे होते हुए गलित धातु वाहक से होकर ढलाई-साँचे के अंदर भेजी जाती है।

Ingot-- पिंड, शिलिका

गलित धातु के पिंडन से प्राप्त ऐसा धातु संचक जो वेल्लन, संपीडन, फोर्जन, कर्षण आदि तप्त कर्मण क्रियाओं के लिए उपयुक्त हो। इस शब्द का प्रयोग उन उत्पादों के लिए भी हो सकता है जो किसी परिष्करणशाला या प्रगलन-भट्टी से प्राप्त होते हैं और जिनका उपयोग पुनर्गलन अथवा पुनर्परिष्करण के लिए किया जाता है। इस्पात के पिंडो का अनुप्रस्थ काट वर्गाकार, आयताकार अथवा बहुभुजी होता है।

Ingot bleeding-- पिंड स्रवण, शिलिका स्रवण

आंशिक रूप से जमे पिंड की ऊपरी पपड़ी का चटक जाना। यदि संचक में डालने के शीघ्र बाद पिंडों को विपट्टित कर दिया जाए तो शिलिका के भीतर भाग में विद्यमान गलित धातु के दाब से पपड़ी अथवा आवरण का एक हिस्सा चटक जाता है और पिघली धातु बहने लगती है। इस प्रकार पिघली धातु के बहने को स्रवण कहते हैं। इससे बनने वाली शिलिकाएँ अपूर्ण होती हैं अतः स्रवण खतरे का कारण होता है।

Ingot iron-- पिंडित लोह

अपेक्षाकृत उच्च शुद्धता का लोहा जो ऐसी अवस्थाओं में उत्पन्न किया जाता है जिसमें कार्बन, मैंगनीज और सिलिकन की मात्रा कम रहे। उदाहरणार्थ– आर्मको लोहा।

Ingotism-- पिंडता, शिलिकता

पिडों को बहुत अधिक ताप पर ढालने अथवा संपिडन-परास के अंतर्गत बहुत धीरे-धीरे ठंडा करने पर क्रिस्टलों के बनने से उत्पन्न दोष। इस दोष के कारण पिंड के अनुप्रस्थ-काट में कोनों से विकर्णों के अनुदिश फाकें पड़ने से दृढ़ता और चर्मलता में कमी आ जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए संपिडन से ठीक पहले-निवेश्य (Inoculants) डाले जाते हैं। तप्त कर्मण द्वारा भी इस दोष को कम किया जा सकता है बशर्ते आरंभिक चरणों में ही सावधानी रखी जाए।

Ingot mould-- पिंड संच

ढलवाँ लोहे के बने, लंबे संदूक के आकार के पात्र जिनका भार उनमें ढाले जाने वाले पिंडों के भार का एक से डेढ़ गुना तक होता है। ये संचक ऊपर से नीचे को पतले होते जाते हैं जिससे पिंड के विपट्टन में आसानी रहती है। शिलिका-संच दो प्रकार के होते हैं– (1) जिनमें बड़ा सिरा ऊपर की ओर होता है (2) जिनमें बड़ा सिरा नीचे की ओर होता है ।
संचकों की भीतरी दीवारें समतल, कैंबरित या लहरदार (Corrugated) होती हैं ओर कोने गोल होते हैं।

Ignot steel-- पिंडित इस्पात

आवश्यक मात्रा में परिष्कृत करने के बाद जब इस्पात को अवगाह से पिंड संचक में डालकर जमने दिया जाता है तो प्राप्त उत्पाद को पिंडित-इस्पात कहते हैं इसमें पिंडन संकुचन कोटर (Solidification shrinkage cavity) विद्यमान रहते हैं।

Ignot stripping-- पिंड विपट्टन

पिंड-साँचों से पिंडों को निकालने की विधि।

Inoculant-- निवेश्य

वे धातुएँ, अकार्बनिक यौगिक अथवा अंतराधातुक यौगिक जिन्हें मिलाने से गलित धातु समान आमाप के असंख्य सम-अक्षीय (बहुफलकीय) क्रिस्टलों में अधिक शीघ्रतापूर्वक पिंडिंत होने लगती है और फलतः एकसमान गुणधर्म उत्पन्न होते हैं। उदाहरणार्थ इस्पात में ऐलुमिनियम ढलवाँ लोहे में फेरोसिलिकन और ऐलुमिनियम में टाइटेनियम निवेश्य का काम करते हैं।

Inoculated cast iron-- निवेशित ढलवाँ लोहा

वह ढलवाँ लोहा जिसकी सूक्ष्म संरचना में संशोधन लाने और फलस्वरूप गलित अवस्था में ही यांत्रिक तथा भौतिक गुणधर्मों में सुधार करने के उद्देश्य से कोई पदार्थ मिलाया जाता है जिसे निवेश्य कहते हैं। इस कार्य के लिए अक्सर फेरोसिलिकन, कैल्सियम, सिलिकन, फेरोमैंगनीज-सिलिकन, जर्कोनियम-सिलिकन या अन्य ग्रेफाइटी अभिकर्मकों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें लैडल में ही डाल दिया जाता है।
देखिए– Nodular cast iron भी

Inoculation-- निवेशन

गलित धातु में निवेश्यों को मिलाने का प्रक्रम
देखिए– Inoculant भी

Intercrystalline corrosion-- अंतराक्रिस्टलीय संक्षारण

देखिए– Intergranular carrosion

Intercrystalline fracture-- अंतराक्रिस्टलीय विभंग

देखिए– Fracture के अंतर्गत Intergranular fracture

Intergranular corrosion-- अंतरारेणुक संक्षारण

एक प्रकार का संक्षारण जिसमें संक्षारक माध्यम प्रायः रेणुपरिसीमा पर क्रिया करता है। इस प्रकार के संक्षारण में धात्विक में धात्विक संहति के साथ पर्याप्त मात्रा में क्रिया होने से पहले ही उसका विघटन हो जाता है। प्राप्त प्रमाण से ज्ञात होता है कि रेणु-परिसीमा पर विशिष्ट क्रिया, अपद्रव्य के कारण होती है जो यूटेक्टिक के रूप में जमा हो सकता है। रेणु-परिसीमा के साथ संक्षारण क्रिया का वेधन, धातु और संक्षारण माध्यम के स्वभाव पर निर्भर करता है अविलेय संक्षारण-उत्पाद का बनना, जो कणों के बीच निक्षेपित हो जाता है, इस क्रिया को कम कर देता है जब कि संकुल आयन का बनना, जो सरल धात्विक धनायनों के उत्पादन को रोक देता है, इस क्रिया की गति बढ़ा देता है।
अपद्रव्यों या अन्य प्रावस्थाओं की उपस्थिति से संक्षारक पर्यावरण में रेणु-परिसीमा और संगत मैट्रिक्स के मध्य इलेक्ट्रोड विभवांतर उत्पन्न हो जाता है जिससे वरीय अंतरारेणुक क्रिया होती है।
देखिए– Intercrystalline corrosion भी
देखिए– Weld defect भी

Intergranular fracture-- अंतरारेणुक विभंग

देखिए– Fracture के अंतर्गत

Intermedicate annealing-- माध्यमिक अनीलन

देखिए– Annealing

Intermediate carbon steel-- माध्यमिक कार्बन इस्पात

देखिए– Carbon steel के अंतर्गत

Intermediate Phase-- माध्यमिक प्रावस्था

मिश्रातु-तंत्र में वह प्रावस्था जिसके संघटन में तंत्र का कोई शुद्ध अवयव शामिल नहीं होता।

Intermetallic compound-- अंतराधात्विक यौगिक

दो या अधिक धातुओं का बना यौगिक जिसकी स्पष्ट क्रिस्टल-संरचना और निश्चित संघटन अथवा संघटन-परास होता है। ये सामान्यतया कठोर और भंगुर होते हैं तथा कुछ मिश्रातु–तंत्रों में प्रमुख कठोरण-प्रभावकारी अवयव होते हैं, उदाहरणार्थ ऐलुमिनियम मिश्रातुओं में CuAl₂ और Mg₂Si, बेरिलियम-ताम्र में CuBe आदि। ऐसा यौगिक भी अंतराधात्विक यौगिक कहलाता है जिसके एक या अधिक धातु घटक, ठोस विलयन के रूप में होते हैं।

Internal crack-- आंतरिक दरार

देखिए– Forging defect

Internal stress-- आंतरिक प्रतिबल

देखिए– Residual stress

Interrupted aging-- अवरुद्ध काल-प्रभावन

किसी मिश्रातु का पदशः दो या अधिक भिन्न तापों पर काल प्रभावन करना। प्रत्येक पद के बाद मिश्रातु को सामान्य ताप तक ठंडा किया जाता है।

Interrupted quenching-- अवरुद्ध शमन

1. एक शमन-प्रक्रम जिसमें धातु को शमन-माध्यम से उस समय निकाल लिया जाता है जबकि वह माध्यम से काफी ऊँचे ताप पर हो।
2. धातु के शमन कुंड के ताप तक पहुँचने से पहले उसे निकालना-अथवा परिवेश से अधिक ताप तक शमन कर कुछ समय तक भिगोए रखना और पुनः शमन करना या हवा में ठंडा करना, जैसा ऑस्टेम्परन या मार्टेम्परन में किया जाता है। इसे काल शमन भी करते हैं।

Interstitial-- अंतराली

देखिए– Lattice defect

Interstitial solid solution-- अंतराली ठोस विलयन

कोई ठोस–विलयन जिसमें मिश्रात्वन-तत्व के परमाणु, प्राथमिक अथवा विलायक धातु के परमाणुओं के अंतरालों (Iterstices) में स्थित रहते हैं। इन ठोस विलयनों में प्रयुक्त पदार्थों के परमाणुओं के आकार में पर्याप्त भिन्नता होती है। उदाहरणार्थ कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन, धातुओं में घुलकर इस प्रकार के ठोस विलयन बनाते हैं।

Invar-- इन्वार

फेरो-चुंबकीय निकैल-लोह मिश्रातु जिनका तापीय प्रसार बहुत कम होता है। इनमें 36% निकैल सूक्ष्म मात्रा में कार्बन मैंगनीज और सिलिकन और शेष लोहा होता है। इसका तापीय प्रसार गुणांक इतना कम इतना कम होता है कि सामान्य ताप-परिवर्तनों का लंबाई पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। इन्वार की अनेक श्रेणीयाँ होती हैं जिनका तापीय प्रसार गुणांक —0.3 X 10⁻⁶ से 2.5 X 10⁻⁶ तक होता है किंतु आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली किस्म का गुणांक 0.9 X 10⁻⁶ होता है। इसके तापीय गुणधर्म, संघटन औ ऊष्मा-उपचार पर निर्भर करते हैं।
इन्वार का उपयोग लम्बाई के पैमानों, मापक टेंपो तथा चेनों, कालमापी यंत्रों, घड़ियों तथा प्रतिकारी क्रियाविधियों में होता है। इसका उपयोग तापस्थापी पट्टियों तथा उन क्रियाविधियों में भी होता है जहाँ प्रसार नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

Inverse segregation-- प्रतिलोम संपृथकन

देखिए– Segregation

Inversion casting-- प्रतिलोम संचकन

1.संचकन-प्रक्रम जिसमें धातु को तलीय भरक से प्रविष्ट किया जाता है। उड़ेलने के बाद साँचे को उलट दिया जाता है।
2. एक प्रक्रम जिसमें साँचे को सीधे उस विद्युतभट्टी के साथ संलग्न किया जाता है जिसमें धातु को अपचायक वायुमंडल में गलाया जाता है ताकि कोई धातुमल न बने। भट्टी को उलटने पर धातु साँचे में भर जाती है। इसमें भारी भरक नहीं होते हैं और ऑक्सीकरण रुक जाता है। इसमें साधारण तेल-बद्ध ढलाई-बालू का उपयोग किया जा सकता है किंतु संचकन पृष्ठ परंपरागत विधियों से प्राप्त पृष्ठों की अपेक्षा खुरदरा होता है।

Investment casting-- संनिवेश संचकन

देखिए– Casting

Ion nitriding-- आयन नाइट्राइडन

इस्पात के नाइट्राइडन का प्रक्रम। जिस वस्तु का नाइट्राइडन करना हो उसे किसी विद्युत-परिपथ का कैथोड बनाया जाता है और उसे क्रांतिक वोल्टता प्रयुक्त करने से उत्पन्न, दीप्ति-विसर्जन के प्रभाव में रखा जाता है। इससे गैस-मिश्रण का आयनन हो जाता और नाइट्रोजन आयन, घटक-पृष्ठों पर बमबारी करते हैं। इस प्रकार सक्रिय नाइट्रोजन का इस्पात पृष्ठ में विसरण हो जाता है।

Iron-- लोहा, लोह

आवर्त-सारणी के आठवें वर्ग का भारी, तन्य और आघातवर्ध्य धात्विक तत्व। परमाणु क्रमांक 26, परमाणु-भार 55.85, गलनांक 1330°C । इसकी संयोजकता 2 और 3 है।
शुद्धावस्था में यह रजत-श्वेत रंग का होता है परंतु आर्द्र या लवणयुक्त हवा की उपस्थिति में इस पर शीघ्र ही जंग लग जाता है। यद्यपि सभी धातुओं की अपेक्षा यह अधिक मात्रा में पाया जाता है परंतु प्राकृत अवस्था में उल्कापिंडों के अतिरिक्त कदाचित ही मिलता है। यह मुख्यतः हैमाटाइट Fe₂O₃ मैग्नेटाइट Fe₃O₄, लिमोनाइट Fe₂O₃, X H₂O, सिंडराइट FeCO₃ आदि रूपों में पाया जाता है।
ऐल्फा लोह (Alpha iron) लोहे का अपरूप जो 910°C (A₃ ) से कम ताप पर स्थायी होता है। इसमें परमाणु काय केंद्रित घनीय त्रिविम जालक में व्यवस्थित रहते हैं। यह क्यूरी तापांक से नीचे चुंबकीय होता है जो शुद्ध लोहे के लिए 768°C है।
आर्मको लोह (Armco iron) लगभग शुद्ध व्यापारिक लोहा जो पिंडी में ढाला जाता है। इसमें 0.1% से कम अपद्रव्य होते हैं। उदाहरणार्थ इसमें 0.012% कार्बन, 0.017% मैंगनीज, 0.005% फॉस्फोरस और 0.025% गंधक रहता है।
बीटा लोह (Beta iron) अचुंबकीय ऐल्फा लोह जो 768°C और 910°C के बीच पाया जाता है। इस शब्द का प्रयोग अब बहुत कम होता है।
ढलवाँ लोह (Cast iron) देखिए– Cast iron अकारादि क्रम में।
डेल्टा लोह (Delta iron) लोहे का एक अपर रूप जो शुद्ध लोहे में 1390% (A₄) और 1535°C (गंलनांक) के बीच पाया जाता है। यह अचुंबकीय होता है और इसके परमाणु कायकेंद्रित घनीय संरचना में व्यवस्थित रहते हैं।
गामा लोह (Gamma iron)– लोहे का एक अपररूप जो A₃ और A₄ रूपांतरण बिंदुओं के बीच पाया जाता हैं। शुद्ध लोहे में यह 910°C और 1390°C के बीच पाया जाता है। कार्बन या अन्य मिश्रात्वन तत्वों को मिलाने से इन बिंदुओं की स्थिति बदल जाती है। इसके परमाणु फलक केंद्रित घनीय संरचना में व्यवस्थित रहते हैं और यह अचुंबकीय होता है।
कच्चा लोहा (Pig iron) धमन भट्टी में लोह अयस्क के अपचयन से उत्पन्न अपरिष्कृत लोहा जिसका उपयोग इस्पात, ढलवाँ लोहा अथवा पिटवाँ लोहा बनाने के लिए होता है। मुख्य अपद्रव्यों में 2.5% –5% कार्बन और विभिन्न मात्राओं में सिलिकन, मैंगनीज, गंधक और फास्फोरस होते हैं। अयस्क के प्रकार प्रगलन विधि तथा जिस काम के लिए लोहे का इस्तेमाल किया जाता है उसके अनुसार इसका संघटन बदलता रहता है।
स्पंज लोहा (Sponge iron) सूक्ष्म विभाजित लोहा जो लौह अयस्क को उसके गलन-ताप सें नीचे अपचित कर प्राप्त होता है। यह देखने में स्पंज के समान होता है जिस कारण इसे स्पंज लोहा कहा जाता है। स्पंज लोहे का भट्टी में पिघलाकर धात्विक घटकों को गैंग से पृथक किया जाता है। इस अवस्था में उसमें आवश्यक मिश्रात्वन-तत्व मिलाए जाते हैं।
पिटवाँ लोहा (Wrought iron) एक प्रकार का शुद्ध व्यापारिक लोहा जिसे कच्चे लोहे के अग्नि शोघन द्वारा बनाया जाता है। कच्चे लोहे को पडलन भट्टी में लोहे के ऑक्साइड के साथ गलाया जाता है और शुद्ध लोहा पेस्ट के रूप में प्राप्त होता है। कच्चे लोहे के अपद्रव्य ऑक्सीकृत होकर धातुमल में चले जाते हैं। फिर भी उसमें कुछ कार्बन और पर्याप्त मात्रा में धातुमल शेष रह जाते हैं जो लोहे को रेशेदार संरचना प्रदान करतें हैं। यह तन्य, आघातवर्ध्य और वेल्डनीय होता है और वायुमंडलीय संक्षारण का प्रेतिरोध करता है। इसके उत्पादन में अधिक खर्च आने के कारण इसका स्थान सामान्य इस्पातों ने ले लिया है क्योंकि इस्पात सस्ते एक समान संरचना वाले और अधिक मजबूत होते हैं।

Ironing-- प्रचिक्कणन

गंभीर कर्षण क्रिया में वस्तुओं को चिकना करने और उनकी मोटाई कम करने की क्रिया।

Irradiation-- किरणन

किसी वस्तु को ऐक्स-किरणों, रेडियम-किरणों अथवा अन्य विकिरणों से उद्भासित करना।

Irradiation damage-- किरणन क्षति

देखिए– Radiation damage

Isobaric process-- समदाबी प्रक्रम

स्थिर दाब पर किया जाने वाला प्रक्रम।

Isochoric process-- समआयतनी प्रक्रम

स्थिर आयतन पर किया जाने वाला प्रक्रम।

Isothermal annealing-- समतापी अनीलन

देखिए– Annealing

Isothermal process-- समतापी प्रक्रम

स्थिर ताप पर किया जाने वाले प्रक्रम।

Isothermal quenching-- समतापी शमन

देखिए– Quenching

Isothermal transformation-- समतापी रूपांतरण

रूपान्तरण-परास के अंदर किसी नियत ताप पर इस्पात में ऑस्टेनाइट को फैराइट अथवा फैराइट कार्बाइड पुंज में परिवर्तित करने का प्रक्रम। सामान्यतः यह रूपांतरण प्रक्रम निम्न क्रांन्तिक ताप (Ac₁) से नीचे किया जाता है।

Isothermal transformation diagram-- समतापी रूपांतरण आरेख

नियत अवक्रांतिक तापों पर रखे आस्टेनाइट की विघटन-दर के ग्राफी निरूपण को प्रदर्शित करने वाला आरेख। इस आरेख से इस्पात को आस्टेनाइट से फैराइट अथवा सीमेंटाइट में समतापीयतः परिवर्तित करने के लिए आवश्यक काल-अंतराल को ज्ञात किया जा सकता है। सीमाओं के अंदर इस प्रकार के आरेखों से कठोरणीयता और ऊष्मा-उपचार से उत्पन्न प्रभावों को समझने के लिए उपयोगी सूचना प्राप्त होती है। इनसे ऊष्मा उपचार में सुधार करने के लिए आवश्यक नियंत्रणों की जानकारी भी प्राप्त होती है।
देखिए– Phase diagram भी

Isotrophy-- समदैशिकता

वह गुणधर्म जिसके कारण किसी पदार्थ के अभिलक्षणों का तीनों क्रिस्टलीय दिशाओं में एक ही मान होता है।

Izett steel-- आइजेट इस्पात

वाष्पित्रों और वाष्पित्र कीलकों आदि में प्रयोग के लिए विकसित किया गया इस्पात। यह विकृति काल-प्रभाव-भंगुरण (Strain age embrittlement) का प्रतिरोधी होता है। इसमें लगभग 0.09 कार्बन, 0.06% सिलिकन और 0.05% ऐलुमिनियम होता है।

Izod test-- आइजोड परीक्षण

देखिए– Impact test के अंतर्गत

Jack black (sphalerite)-- जैक ब्लैक

देखिए– Sphalerite.

Jackson alloy-- जैकसन मिश्रातु

एक आघातवर्ध्य ताम्र मिश्रातु जिसमें 63-64% तांबा और 30–35% जस्ता और 2–5% ऐन्टिमनी होता है। यह मुद्रांकों और बटनों को बनाने के काम आता है।

Jack star-- जैक स्टार

लुढ़कते बैरल में काम आने वाला कठोर धातु का एक टुकड़ा। इसका उपयोग संचकों के मार्जन में होता है।

Jacob alloy-- जैकब मिश्रातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 94.9% तांबा 4% सिलिकन और 1.1% मैंगनीज होता है। यह अत्यन्त मजबूत, चर्मल, संक्षारणरोधी और अल्प विद्युत-चालक होता है। इसका उपयोग संचकों के रूप में होता है।

Jacquet’s method-- झाके विधि

एक वैद्युत-अपघटनी पॉलिशन प्रक्रम। इसके द्वारा धातु चित्रण नमूनों के यांत्रिक विरुपण से अत्यन्त चिकने पृष्ठ प्राप्त किए जाते हैं। नमूनों पर पहले यांत्रिक विधि से पॉलिश किया जाता है और उसके बाद धारा घनत्व और विभव को नियंत्रित कर उपयुक्त विलयन में ऐनोड-उपचार किया जाता है।

Jannin method-- जैनिन विधि

घर्षण का परीक्षण करने की विधि। यह किसी अपरिवर्ती भार पर घर्षण से उत्पन्न मुद्रांक की गहराई को नाप कर ज्ञात किया जाता है।

Jarring of ingots-- पिंड स्पंदन

पूर्ण सुसंहत पिंडों को प्राप्त करने की एक विधि। इसमें धातु को उड़ेलते समय और बाद में जबकि इस्पात गलित अवस्था में रहता है, साँचों को थोड़ा-सा हिलाया जाता है।

Jetal-- जेटाल

इस्पात पर अलंकृत काली ऑक्साइड फिल्मों को उत्पन्न करने का प्रक्रम। इसमें लवणों की सांद्रता के अनुसार वस्तु को 5 से 60 मिनट तक अवगाह में डुबाया जाता है। अवगाह तीव्र ऑक्सीकारकयुक्त, प्रबल कास्टिक विलयन का बना होता है। अभिक्रिया के फलस्वरूप इस्पात के ऑक्सीकरण से काले ऑक्साइड की परत बन जाती है जो संक्षारणरोधी होती है।

Jet tapping-- जेट निकासन

ओपेन हार्थ भट्टियों से पिघली धातु के द्वार को विस्फोटक पदार्थों द्वारा खोलने का प्रक्रम, क्योंकि कभी-कभी द्वार अवरुद्ध हो जाता है।

Jeweller’s bronze-- जूलर कांसा

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 89% तांबा, 9% जस्ता और 2% वंग होता है। यह आघातवर्ध्य, तन्य और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग ताड़ित धातुकर्म और अलंकृत मुद्रांकन में होता है।

Jig-- जिग

1. संचकन अथवा फोर्जन को ठीक-ठीक मशीनन करने के लिए प्रयुक्त साधित्र। यह युक्ति, कार्य-वस्तु (Work) को मजबूती के साथ पकड़े रहती है और औजार को ठीक स्थिति की ओर निर्दिष्ट करती है। निर्देशक, प्लेटों का रूप लेते हैं जिनमें उपयुक्त आकार के छिद्र होते हैं। जब औजार, कार्य-वस्तुओं की ओर गमन करते हैं तो इन छिद्रों में औजारों को ग्रहण किया जाता है।
2. खनिजों के विशिष्ट गुरुत्व में अंतर का लाभ उठाते हुए भारी खनिजों को संयुक्त गैंग से पृथक करने की युक्ति।
3. वेल्डिंग में दोनो भागों को पकड़े रखने के लिए प्रयुक्त एक साधित्र।

Jog-- जॉग

यदि एक प्रभ्रंश दूसरे को काटे तो प्रत्येक में विक्षोभ उत्पन्न होगा जो उनके सापेक्ष वर्गर-सदिशों और अभिविन्यास पर निर्भर करेगा। दो स्क्रू-प्रभ्रंशों का एक दूसरे को क्रॉस करने से अंतराल, रिक्तिकाएँ अथवा जॉग उत्पन्न होते हैं तथा कोरों अथवा कोर प्रभ्रंशों का एक-दूसरे को क्रॉस करने से एक में या दोनों में जॉग बनते हैं।

Johnson’s apparent elastic limit-- जॉन्सन आभासी प्रत्यास्थ सीमा

यांत्रिक परीक्षणों में विरूपण की मात्रा को निर्दिष्ट करने की विधि। जॉन्सन के अनुसार प्रत्यास्था सीमा के ऊपर एक ऐसा बिंदु होता है जहाँ विकृति और प्रतिबल का अनुपात, प्रत्यास्थ सीमा से नीचे किसी प्रतिबल की अपेक्षा 50% तीव्र गति से बढ़ता है। विकल्पतः यह प्रतिबल और विकृति का अनुपात वक्र में किसी बिंदु पर वह प्रतिबल होता है जहाँ वक्र की प्रवणता, प्रत्यास्थता-मापांक का दो-तिहाई होती है।

Joint efficiency-- संधि दक्षता

रिवेट लगाने, वेल्ड करने या पीतल का टाँका लगाने से बनी संधि के सामर्थ्य और मूल धातु के सामर्थ्य का अनुपात जिसे तनाव के रूप में नापा जाता है।

Jominy end quench test-- जॉमिनी अंत्य शमन परीक्षण

विशिष्ट ऊष्मा द्वारा प्राप्त कठोरणीयता की मात्रा को निर्धारित करके इस्पात की कठोरता ज्ञात करने का परीक्षण। विशेष प्रकार से तैयार छड़ को निर्धारित ताप तक गरम कर, मानक उपस्कर में और मानक अवस्थाओं में उसके केवल एक सिरे का शमन किया जाता है। शमित सिरे का शीतलन शीघ्र होता है किंतु जैसे-जैसे दूसरे सिरे की ओर बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे शीतलन-दर घटती जाती है। शमित सिरे से भिन्न दूरियों पर लिए गए कठोरता पाठयांकों की कठोरणीयता के मानक नमूनों के साथ तुलना करके नमूने की कठोरणीयता निर्धारित की जाती है। इसे अन्त्य शमन परीक्षण भी कहते हैं।

Journal brass-- जरनल पीतल

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 65% तांबा, 5–10% वंग और 5.3% सीसा होता है। इसका घर्षण कम और चर्मलता अधिक होती है। इसका प्रयोग रेल कोच बेयरिंगों में होता है।

Journal bronze-- जरनल कांसा

ताम्र मिश्रातुओं की श्रेणी, जिनमें तांबा, वंग और सीसा होता है। इसका घर्षण कम होता है तथा अन्य अनुकूल गुणों के कारण इसका उपयोग रेलवे बेल्लन सामान बनाने में होता है।

Junghan’s-Rossi process-- जंघन्स रोसी प्रक्रम

लोह और अलोह दोनों प्रकार की धातुओं के सतत संचकन का प्रक्रम। द्रव धातु, धारक भट्टी से पानी से ठंडे किए गए साँचे में प्रवेश करती है। जिसका अक्ष ऊर्ध्वाधर होता है। इसके पैदें से ठोस संचक लगातार निकलता रहता है। इस प्रकार बाहर निकलने वाले संचक को आरी या ज्वाला से उपयुक्त लंबाइयों में काटते रहते हैं। साँचे पर प्रयुक्त प्रत्यागामी गति इस प्रक्रम का आवश्यक लक्षण है जिससे घर्षण में कमी तथा शीतलन दक्षता में वृद्धि होती है।

Junker’s mould-- जंकर साँचा

एक प्रकार का जल-शीतलित साँचा जिसका उपयोग अलोह धातुओं और उनके मिश्रातुओं के बिनेटों और सिल्लियों के संचकन के लिए किया जाता है। साँचे के चारों और जलरुद्ध जैकेट होता है जिसमें वाधिकाएँ होती है। वाधिकाओं के कारण संपूर्ण संचक पृष्ठ पर पानी प्रभावी रूप से काम कर सकता है।

Kaldo converter-- काल्डो परिवर्तित

देखिए– Converter

Kaldo process-- काल्डो प्रक्रम

स्वीडन में विकसित इस्पात निर्माण का एक ऑक्सीजन प्रक्रम जो काल्डो परिवर्तित्र में किया जाता है। इसमें ऑक्सीजन-प्रधार को घूर्णी परिवर्तित में रखे गलित धातु के पृष्ठ पर डाला जाता है ताकि उच्च फासफोरस युक्त (1.8%) कच्चे लोहे से कार्बन और फॉस्फोरस साथ-साथ पृथक हो जाएँ। इसके लिए कच्चे लोहे को चूने के साथ क्षारकीय आस्तर वाले भ्राष्ट्र में डाला जाता है। वायु के स्थान पर ऑक्सीजन के प्रयोग से धातु का नाइट्रोजन अथवा हाइड्रोजन से संदूषण नहीं होता और विकृति काल-प्रभावन, चादरी धातु के अतप्त कर्मण के समय ल्यूडर रेखाओं का बनना, तथा हाइड्रोजन-भंगुरण की समस्याएँ कम हो जाती हैं।

Kalling Domnarfvet process-- कालिंग डोम्नार्फवेट प्रक्रम

गरम धातु के विगंधकन का प्रक्रम जिसमें चूर्णित दग्ध चूना विर्गधकन कर्मक का काम करता है। धमन भट्टी से गरम धातु को एक लैडल में निकाल कर क्षैतिज स्थिति में स्थित, घूर्णी भट्टी में डाल दिया जाता है। इस घूर्णी भट्टी को विभिन्न वेगों से घुमाया जा सकता है लगभग 2% सूक्ष्म चूर्णित दग्ध चूना, 0.5% कोक का चूरा मिलाकर, भ्राष्ट्र को सील कर दिया जाता है ताकि वायुमंडल का संपर्क न रहे। फिर भट्टी को घुमाया जाता है। धातु में विद्यमान गंधक, चूने के साथ संयुक्त हो जाता है। इस उपचार में लगभग 30मिनट लगते हैं।

Killing’s process-- कालिंग प्रक्रम

लोक अयस्कों के अपचयन की पुरानी विधि जिसमें घान को विद्युत द्वारा गरम किया जाता था। इसमें एक घूर्णी भट्टे में अयस्क और कार्बन पदार्थ के मिश्रण के घान को दो चक्रिका निर्मित इलेक्ट्रोडों के बीच गरम किया जाता था। अब इस विधि का प्रयोग नहीं किया जाता।

Kanthal alloy-- कन्थाल मिश्रातु

विद्युत रोधी मिश्रातुओं के वर्ग का नाम जिसमें 25% क्रोमियम, 5% ऐलुमिनियम, 3% कोबाल्ट और शेष शुद्ध लोहा होता है। इनका उपयोग भट्टियों और विद्युत तापन अवयवों में विद्युतरोधी पदार्थों के रूप में होता है मानक साइज के रिबन या तार के रूप में इनका रुक रुक कर उपयोग किया जा सकता है किंतु कम ताप पर लगातार इस्तेमाल किया जा सकता है। ये अच्छे संक्षारणरोधी होते हैं किंतु उच्च ताप पर तनन-सामर्थ्य कम होने के कारण, तापित अवयवों को आधार देना आवश्यक होता है।

Kaolinite-- कैओलिनाइट

ऐलुमिना का जलयोजित सिलिकेट, यह बहुत बारीक मुलायम, मृदामय पदार्थ के छोटे आभासी षट्फलकीय प्लेटों के रूप में पाया जाता है जो इस्तेमाल करने से चूर्ण बन जाता है। गरम करने पर पहले नमी निकल जाती है और कोलॉइडी पदार्थ स्कंदित हो जाता है। 500°C पर कैओलिनाइट के अपघटन से अजल पदार्थ प्राप्त होता है। 800°C ताप पर ऐलुमिना का बहुलकन होने लगता है जिसके साथ-साथ संकुचन भी होता है। 1000°C से ऊपर सिलिका और ऐलुमिना संयुक्त होकर सिलिमैराइट बनाते हैं। सिलिमैनाइट 1500°C के आसपास कठोर पत्थर के समान पदार्थ में सिन्टरित हो जाता है जो लगभग 1650°C पर मुलायम होने लगता है। आपेक्षिक घनत्व 2.6।

Karakane alloy-- करकने मिश्रातु

ताम्र मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिनमें तांबा, जस्ता, वंग और सीसा और कभी-कभी (3%तक) लोहा भी होता है। इनकी अवमंदन क्षमता होती है। इन्हें आसानी से ढाला और मशीनित किया जा सकता है। इनका उपयोग घंटियों और वाद्य-यंत्रों को बनाने में होता है।

Kettle oxidation-- केतली ऑक्सीकण

देखिए– Tossing

Keen’s alloy-- कीन मिश्रातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 75% तांबा, 2.3% जस्ता, 2.8% वंग 16% निकैल, 2% कोबाल्ट, 0.5% ऐलुमिनियम औऱ 1.5% लोहा होता है। यह उत्तम चर्मल और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग रासायनिक संयत्रों के पुरजों को बनाने में होता है।

Kellog hot top process-- केलॉग तप्त शीर्ष प्रक्रम

एक पिंड-संचकन प्रक्रम जिसमें गालक की संरक्षी परत में निमज्जित इलेक्ट्रोड से नियंत्रित धारा के विसर्जन द्वारा पिंड-संच में उपस्थित धातु के ऊपरी भाग को गरम किया जाता है।

Kellong process-- केलॉग प्रक्रम

इस्पात सिल्लियों के उत्पादन का प्रक्रम। इसमें कार्बन-इस्पात इलेक्ट्रोडों को नलिकाकार इलेक्ट्रोडों के अंदर संगलित किया जाता है जिनसे होकर संरक्षी गालक के आवरण में मिश्रात्वन सामग्री, कार्बन-इस्पात के पृष्ठ में प्रवेश करती है।

Kennal metal-- केना धातु

कोबाल्ट अथवा अन्य बंधक से सिंटरित टंगस्टन-टाइटेनियम कार्बाइड से बना एक कठोर मिश्रातु। टंगस्टन, टाइटेनियम और ग्रैफाइट को उपयुक्त अनुपात में ग्रैफाइट क्रुसिबल में लगभग 2000°C ताप पर गरम किया जाता है। धान में निकैल मिलाया जाता है जो संघटकों को परस्पर मिश्रित होने में सहायता करता है। ठंडा होने पर निकैल को ऐक्वारेजिया में घोलकर पृथक कर देते हैं और अतिरिक्त ग्रैफाइट को धोकर अलग कर दिया जाता है।

Kermet-- करमेट

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 2% निकैल औऱ 33–37 % सीसा होता है। इसका घर्षण कम होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों और वायुयान के इंजनों में होता है।

Killed steel-- हत इस्पात

वह इस्पात जिसे संचकन से पहले मैंगनीज, सिलिकन औऱ ऐलुमिनियम आदि को मिलाकर पूरी तरह विऑक्सीकृत कर दिया गया हो ताकि पिंडन के समय गैसें न निकलें और उत्तम पिंड प्राप्त हों। हत इस्पात में संकुचन कोटर (Shrinkage cavity) अथवा पाइप, पिंड के ऊपरी भाग अथवा भरक शीर्ष तक ही सीमित रहते हैं। इसे पूर्णहत इस्पात और पाइपन इस्पात भी कहते हैं।

Killing-- हनन

1. अंतिम रूप से ऊष्मा-उपचारित इस्पात की पट्टी का किंचित अतप्त कर्मण। इसका अभिप्राय बाद में प्रयोग करते समय इस्पात में तानक विकृतियों (Stretcher strains) और विकुंचनों (Kinks) को उत्पन्न होने से रोकना है।
2. देखिए– Killed steel

Kiln-- भट्टा

एक भट्टी जिसकी लंबाई, व्यास की अपेक्षा अधिक होती है तथा वह क्षैतिज अवस्था में प्रयुक्त की जाती है। उसमें ऐसी तापन-क्रियाएँ की जाती हैं जिनमें बहुधा संगलन नहीं होता हैं। भट्टों का उपयोग मुख्यतः निस्तापन के लिए होता है। इनमें हवा मुक्त रूप से प्रवाहित होने दी जाती है। कच्चे पदार्थों को ईंधन जलाकर गरम किया जाता है। कभी-कभी गरम करने के लिए गैस अथवा दूसरे भट्टियों की अपशिष्ट ऊष्मा का भी प्रयोग किया जाता है। भट्टे का खोल इस्पात का बना होता है जिसमें अंदर की ओर उच्च तापसह पदार्थ का आस्तर लगा होता है।

Kink-- विकुंच

परिसज्जन बेलनों से निकलने वाली छड़ में तरंगिलता उत्पन्न हो जाती है। यदि तरंगिलता ऊर्घ्व स्थिति में हो तो उसे बकल, और तिरछी स्थिति में हो तो उसे किंक कहते हैं।

Kinzel test-- किंजेल परीक्षण

तन्यता नापने का परीक्षण। इसमें नमूने के दोनों किनारों को आलंबों पर टिकाकर कुट्टक को 2.5 सेपी प्रति मिनट की दर से चलाकर दबाया जाता है। नमूने का माप इस प्रकार होता है– चौड़ाई 7.5 सेमी, लंबाई 20 सेमी, प्लेट के बराबर मोटाई, अर्धव्यास 0.0254 सेमी, खांच 45°, गहराई 0.127 सेमी।

Kirkendall effect-- किरकेंडाल प्रभाव

कभी-कभी ठोस धातुओं और मिश्रातुओं में पाई जाने वाली विसरण-परिघटना। जब 70/30 पीतल का तांबे के साथ विद्युतलेपन करने से बने संयुक्त नमूनों को गरम किया जाता है तो परस्पर विसरण होता है और मूल अंतरापृष्ठ, पीतल की ओर विस्थापित हो जाता है। ऐसा ज्ञात हुआ है कि जस्ते का तांबे में विसरण तीव्र गति से होता है जब कि तांबे का पीतल में विसरण अपेक्षाकृत मंद गति से होता है। इस प्रकार का वरणात्मक विसरण तांबे का तांबा-वंग या तांबा-ऐलुमिनियम मिश्रातुओं में, तांबे का सोना और निकैल धातुओं में और सोने का चाँदी में पाया गया है।

Kish-- किश

देखिए– Casting defect

Knockout-- निरसन

वेल्डिंग के संदर्भ में इस शब्द का प्रयोग साँचों और क्रोडों से बालू-संचको को पृथक करने के लिए किया जाता है। इस का प्रयोग मुद्रांकन, फोर्जन या गंभीर-कर्षण आदि संरूपण क्रियाओं के बाद रूपदाओं से वस्तु को पृथक करने के लिए भी होता है।

Knoop test-- नूप परीक्षण

देखिए– Hardness test के अंतर्गत

Kovar-- कोवार

एक फरेस मिश्रातु जिसमें 23-30% Ni, 17-30% कोबाल्ट और 0.6–0.8% मैंगनीज होता है। इसका तापीय प्रसार गुणांक कठोर काँच के समान ही कम होता है। अतः इसका उपयोग काँच-धातु तार सीलों में किया जाता है।

Krolla-Betterton process-- क्रॉल-बेटर्टन प्रक्रम

350°C पर वियशदीकृत सीसे में कैल्सियम और मैग्नीशियम मिलाकर सीसा-बुलिअन से बिस्मथ को पृथक करना। कैल्सियम और मैग्नीशियम धातुएँ बिस्मथ के साथ अंतराधात्विक यौगिक बनाती हैं जो सीसे में अविलेय हैं तथा जिनका सीसे की अपेक्षा गलनांक अधिक और आपेक्षिक घनत्व कम होता है। वे ऊप उठकर सतह पर आ जाते हैं जहाँ से उन्हें अलग कर लिया जाता है।

Krolla-process-- क्रॉल प्रक्रम

टाइटैनियम और जर्कोनियम धातुओं के निष्कर्षण की एक विधि। इसमें धातु के टेट्राक्लोराइड का आर्गन अथवा हीलियम के वायुमंडल में पिछले हुए मैग्नीशियम के साथ अपचयन किया जाता है। यह क्रिया 800-950°C ताप पर की जाती है, जिसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है।
TiCly + 2 Mg Ti + 2Mg Cl₂
अपरिष्कृत उत्पाद में, मैंग्नीशियम और मैंग्नीशियम क्लोराइड अपद्रव्यों के रूप में पाए जाते हैं जिन्हें पृथक करने के लिए मिश्रण को उच्च निवॉत में 1000°C से कम ताप पर गरम किया जाता है। मैंग्नीशियम क्लोराइड पिघलकर और मैंग्नीशियम वाष्पन द्वारा पृथक हो जाता है। प्राप्त टाइटैनियम-स्पंज 99.5% शुद्ध होता है।

Krupp Renn process-- क्रप रेन प्रक्रम

इस्पात बनाने की एक प्रत्यक्ष अपचयन विधि। इसमें 0.2–0.3 तक न्यून क्षारकता-अनुपात वाले उच्च सिलिकामय अयस्कों का उपचार किया जाता है। इस प्रक्रम में अयस्क और बारिक कोक के मिश्रण को घुर्णी भट्टे में डाला जाता है। विसर्जित सिरे पर पर्याप्त हवा के साथ चुर्णित कोयले को जलाकर भट्टे को गरम किया जाता है। भट्टे का ताप, ऑक्साइड को स्पंज लोहे में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त होता है। अयस्क में विद्यमान सिलिकामय पदार्थ का आवरण, अपचित संहति पर जमा हो जाता है। ऐसे धात्वीकृत उत्पाद को ग्रंथिका अथवा पिंडिका कहते हैं। भट्टे, से विसर्जन के बाद उसे ठंडाकर पीस लिया जाता है। धात्विक अंश को चुंबकीय विधि द्वारा शेष धातुमल से पृथक कर लिया जाता है।

Kunifer-- कुनिफर

तीन ताम्र मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिनमें 5–30% निकैल तथा 1–2% लोहा और मैंगनीज होते हैं। ये उत्तम संक्षारणरोधी, मजबूत और तन्य होते हैं। इनका उपयोग समुद्री अनुपयोगों और संघनन नलियों में होता है।

Kupfersilumin-- कुपफर्सिलुमिन

एक ऐलुमिनियम मिश्रातु जिसमें 0.8% तांबा 13% सिलिकन और 0.3% मैंगनीज होता है। उत्तम संचकनीयता होने के कारण इसका उपयोग पहियों, बेलनों और इंजन ब्लॉकों के संचकों में होता है।

Kupper’s solder-- कुपर सोल्डर

कम गलनांक वाला सीसा-मिश्रातु जिसमें 7.15% सिलिकन, 9.5–7% ऐन्टिमनी और शेष सीसा होता है। इसका उपयोग सोल्डर तार के रूप में किया जाता है।

Ladle-- लैडल

गलित धातु को साँचों तक ले जाने एवं उड़ेलने के लिए प्रयुक्त एक पात्र जिसमें किसी उच्च तापसह पदार्थ का आस्तर लगा होता है। कुछ लैडलों में धातु को चंचु से और कुछ में अधस्तल से उड़ेला जा सकता है। जिस लैडल से घातु को अधस्तल में उड़ेला जाता है उसकी तली पर एक छिद्र होता है जिसमें एक तुंड लगा होता है। यह तुंड एक ऊर्ध्वावधिर उच्चतापसह डाट या प्लग द्वारा बंद रहता है। प्लग को हाथ से चलाया जाता है। कुछ लैडल चाय की केतली के आकार के भी होते हैं। ठीक प्रकार न बनाए गए लैडलों में पाए जाने वाले दोषों से बचने के लिए उन्हें उपयोग करने से पहले स्वच्छ, शुष्क और गरम कर लेना चाहिए।

Ladle addition-- लैडल योज्य

लैडल में उपस्थित गलित धातु में मिलाई जाने वाली अन्य धातुएँ, यौगिक अथवा फेरो मिश्रातु।

Ladle analysis-- लैडल विश्लेषण

साँचे में डालने से ठीक पहले लैडल से लिए गए धातु का विश्लेषण। इससे ढले उत्पाद के रासायनिक संघटन का पता लगता है।

Ladle metallurgy-- लैडल धातुकर्म

Lamella-- पटलिका

पतली पट्टिकाओं अथवा शल्कों के लिए प्रयुक्त शब्द।

Lamellar structure-- स्तरित संरचना

पतली चादरों अथवा परतों की बनी संचना जो सामान्यतय एकांतरतः भिन्न संघटन की परतों की बनी होती है। पटलित संरचना के विपरीत, यह शब्द कुछ खनिजों में पाई जाने वाली प्राकृतिक संरचना अथवा पर्लाइट आदि संरचनात्मक घटकों को व्यक्त करता है।

Lamination-- पटलन

बेल्लित पदार्थों में पाया जाने वाल दोष। इसमें बेलन की दिशा में पदार्थ की परतों में विभाजन की प्रवृत्ति होती है। इस दोष का कारण अधात्विक अंतर्वेशों की उपस्थिति अथवा पदार्थ में उपस्थित अन्य असतताएँ हैं।

Lancashire brass-- लंकाशायर पीतल

एक ताम्र यशद मिश्रातु जिसमें 27 प्रतिशत यशद होता है। यह आधातवर्ध्य और तन्य होता है। इसका उपयोग पट्टी रंचित उत्पादों में होता है।

Lance-- लांस

सब पर गैस के संभरण से जुड़ा लंबा, पतला पाइप। इसका उपयोग किसी भाष्ट्र में गलित धातु या धातुमल की सतह पर या सतह से नीचे गैस को प्रविष्ट करने के लिए होता है उदाहरणार्थ कार्बन क्वथन को प्रेरित करने के लिए ऑक्सीजन का प्रयोग अथवा अन्य गैसों के निष्कासन के लिए ऑर्गन का प्रयोग। लांस दो प्रकार के होते हैं।
1. उपभोज्य लांस (Consumable lance)– ये मृदु इस्पात के बने साधारण पाइप होते हैं और लान्सन प्रक्रम के दौरान अर्थात गैस प्रविष्ट करते समय जल जाते हैं।
2. अनुपभोज्य लांस (Nonconsumable lance)– इनमें प्रायः मृदु इस्पात के बने तीन संकेंद्री पाइप होते हैं। गैस सबसे भीतरी पाइप से प्रवाहित की जाती है जो प्रायः तांबे के बने अभिसारी अपसारी प्रकार के तुंड में समाप्त होती है। शीतलन प्रायः जल द्वारा किया जाता है जो बीच के पाइप से प्रवेश कर सबसे बाहरी पाइप से बाहर निकलता है। कभी-कभी उच्च ऊष्मा-क्षमता वाली गैसों का उपयोग भी शीतलक के रूप में किया जाता है। बहुतुंड वालें लांसों का उपयोग भी होता है।

Lander-- लांडर, वाहनाल

देखिए– Launder

Lap-- बलि

(1) फोर्जित, संचकित अथवा बेल्लित उत्पादों के पृष्ठों पर सीवन के रूप में उत्पन्न दोष। यह गरम धातु के पक्षकों अथवा नुकीले कोनों के मुड़नें से उत्पन्न होता है जिसका बेल्लन या फोर्जन करने पर बेल्डन नहीं होता। यह दोष कभी-कभी पिटवाँ उत्पादों को मोड़ने से भी उत्पन्न होता है। सावधानीपूर्वक कर्मण न करने से या बेल्लनों में खाँचों के कारण भी यह दोष उत्पन्न हो सकता है। संचक-उत्पादों में यह दोष धीरे-धीरे उड़ेलने–अथवा कम अवपातन ताप (Teeming temperature) के कारण उत्पन्न होता है।
(2) लैपन-क्रियाओं में प्रयुक्त औजार जो मृदु ढलवाँ लोहे, वंग, तांबा, पीतल अथवा सीसे का बना होता है। इस पर अपघर्षक या पालिश-चूर्ण लगा होता है।

Lap joint-- बलि संधि

एक प्लेट-संधि जिसमें धातु का एक टुकड़ा दूसरे पर अधिव्याप्त होता है। संधियुक्त वस्तुओं को परस्पर वेल्डित या रिवेट किया जाता है। सीवन के अनुदिश वेल्डिंग किया जाता है तथा रिवेटों को एक, दो या तीन श्रेणियों में व्यवस्थित किया जाता है।

Lapping-- सुपालिशन

किसी वस्तु के चकासन और ठीक साइज देने का प्रक्रम जिसका उद्देश्य अंतिम उत्पाद को उत्तम परिसज्जा और अधिकतम यथार्थता प्रदान करना है। इसका उपयोग इंजन के सिलिंडरों, बंदूक के बैरलों आदि की सूक्ष्म परिसज्जा के लिए होता है।

Lap weld-- बलि वेल्ड

अधिव्यापन करने वाले धातु के दो टुकड़ों को परस्पर बेल्ड करने से बनी संधि।

Lap welded joint-- बलि वेल्डित

देखिए– Welded joint

Larson-Miller parameter-- लार्सन-मिलर प्राचल

तापों और प्रतिबलों के परास पर किसी पदार्थ के सर्पणव्यवहार पर आधारित प्राचल। इसकी सहायता से ज्ञात आँकड़ों द्वारा वांछित ताप और प्रतिबल पर उस पदार्थ के सर्पण-व्यवहार का अनुमान लगा लिया जाता है।

Laser welding-- लैसर वेल्डिंग

देखिए– Welding

Lattens-- लैटन्स

तप्त बेल्लित यशद-ताम्र मिश्रातु जिसका उपयोग स्मारकों, मूतियों आदि के निर्माण में होता है। इस शब्द का प्रयोग 25-27 प्रमाप (बी0जी0) की तप्त बेल्लित चादरों के लिए भी होता है।

Lattice defect-- जालक दोष

किसी नियमित त्रिविम जालक में परमाणुओं के परिपूर्ण ज्यामितीय व्यूह का विपथन। जालक दोषों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है–
(1) रेखा दोष (Line defect)–
रेखा दोष तीन प्रकार के हो सकते हैं :–
(क) प्रभंश (Dislocation) :- प्रभंश भी तीन प्रकार के होते हैं–
(1) कोर प्रभ्रंश (Edge dislocation)—
देखिए– Dislocatio
(2) आंशिक प्रभ्रंश (Partial dislocation)
देखिए– Dislocatio
(3) स्क्रू प्रभ्रंश ( Screw dislocation)
देखिए– Dislocatio
(ख) चिति दोष (Stacking fault)—
किसी क्षेत्र में परमाणुओं की नियमित चितिकरण–व्यवस्था में व्यवधान पड़ने से उत्पन्न रेखा दोष जो आंशिक प्रभ्रंशों से घिरा होता है। अल्प चिति-दोष- ऊर्जा के कारण प्रभ्रंशों का वियोजन होने से विस्तृत प्रभंश (Extended dislocations) उत्पन्न होते हैं। उच्च चितिकरण-दोष ऊर्जां के कारण क्रॉस में वृदधि होती है। विलेय पदार्थ के परमाणु प्रायः चितिकरण-दोष-ऊर्जा को कम कर देते हैं इस कारण क्रॉस सर्पण की संभावना कम रहती है।
(ग) यमलन (Twinning)– क्रिस्टल के अंदर होने वाला विरूपण प्रक्रम, जिसमें परमाणुओं के समांतर-तल क्रमशः अंतरापरमाणिक अंतरालन की सूक्ष्म मात्रा द्वारा एक-दूसरे के ऊपर लगातार फिसलते रहते हैं। यमलित आयतन प्रायः क्रिस्टल विशेष के आयतन का 1–20 प्रतिशत तक होता है। यमलन नाम देने का कारण यह है कि परमाणु, यमल-तल के दोनों ओर दर्पण-प्रतिबिंब स्थिति में रहते हैं सर्पण की भांति यमलन भी पूर्ण जालक में विरूपण के लिए आवश्यक प्रतिबलों से काफी कम प्रतिबलों पर संपन्न होते हैं अतः उसकी व्याख्या प्रभ्रंश क्रियाविधि द्वारा की जाती है।
(2) बिंदु-दोष (Point defect)– धातु जालक में पाए जाने वाले ये दोष दो प्रकार के होते हैं:
(क) अंतराली (Interstitial)– जनक-जालक (Parent lattice)– के परमाणुओं के अंतराल में स्थित परमाणु अंतराली कहलाता है।
(ख) रिक्तिका (Vacancy)– सामान्य जालक-स्थल के क्रिस्टलीय जालक में किसी परमाणु की अनुपस्थिति से उत्पन्न खाली स्थान।

Laue diagram-- लाउए आरेख

किसी पदार्थ के जालक की विवर्तन-अवस्थाओं के अनुसार बने विभिन्न बिंदुओं को निरूपित करने वाला एक ऐक्स-किरण पैटर्न। बिंदुओं के बीच बने कोणों और उनकी दूरियों को मापकर कण-अभिविन्यास, जालक-विरूपण और अवक्षेपण-प्रभाव जैसे गुणधर्मी का आकलन किया जा सकता है। इसे लाइए पैटर्न भी कहते है।

Laue equation-- लाउए समीकरण

वे समीकरण जिनसे नियमित जालक से ऐक्स-किरणों के विवर्तन के लिए आवश्यक प्रतिबंध प्राप्त होते हैं। इन समीकरणों की सहायता से ऐक्स-किरणों के उस तरंग दैर्ध्य को निर्धारित किया जा सकता है जो किसी जालक में विवर्तन की शर्तों को संतुष्ट करता है। ये समीकरण किसी जालक में कण-अभिविन्यास, जालक-विरूपण और अवक्षेपण-प्रभावों के निर्धारण में सहायक होते हैं।

Laue pattern-- लाउए पैटर्न

देखिए–Laue diagram

Launder-- वाहनाल, लांडर

(1) दुर्गलनीय पदार्थ का आस्तर लगा एक खुला प्रणाल जिसका उपयोग गलित धातु के लिए होता है।
(2) द्रवों या कर्दम को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए प्रयुक्त खुला लंबा प्रणाल। इसका उपयोग कोयला-प्रक्षालकों, अयस्क-संसाधन-संयंत्रों, जल धातुकर्मिकी-संयंत्रों आदि में होता है।

Laves phase-- लावेज प्रावस्था

इलेक्ट्रॉन यौगिकों के अतिरिक्त मध्यवर्ती प्रावस्थाएँ जिनमें परमाणु-विन्यास, परमाणुओं की संयोजकता के अतिरिक्त उनके आपेक्षिक आमाप पर भी निर्भर करता है। जिन यौगिकों का सामान्य-सूत्र AB₂ होता है, उनका परमाणु-विन्यास, त्रिसमलंबाक्ष 21/12, षटकोणीय 21/13 और संकुल-षटकोणीय 21/14, इन तीन मूल पैटर्नों में से कोई एक होता है जबकि परमाणु-व्यास का अनुपात √1 .5 होता है।

L.D. converter-- एल0डी0 परिवर्तित्र

देखिए– Converter, के अंतर्गत

L.D. process-- एल0डी0 प्रक्रम

देखिए– Converter के अंतर्गत L.D. Converter

Leaching-- निक्षालन

जल, तनु अम्ल अथवा अन्य रासायनिक विलयन में घोलकर किसी असमांगी पदार्थ से एक या अधिक घटकों का निष्कर्षण करना। इस प्रक्रम का उपयोग अयस्कों के सांद्रण और शाोधन के लिए किया जाता है। निक्षालन-द्रवों और ठोस-अवशिष्टों से धातुओं को प्राप्त किया जाता है। आमतौर पर प्रयुक्त रसायनों में H₂SO₄, NaOH, HCL, H₂S, SO₂ या (NH₄)₂, CO₃, NaCN प्रमुख हैं। इसे पाचन भी कहते हैं।

Lead bath-- सीसा अवगाह

गलित सीसे का अवगाह जिसका उपयोग इस्पात के ऊष्मा-उपचार के लिए होता है। विशेषरूप से इसका उपयोग स्थानीय कठोरण तथा इस्पात घटकों के पायन के लिए और उन घटकों के लिए होता है जिनमें क्रमशः कठोर और मृदु खंड होते हैं।

Lead battery metal-- लेड बैटरी धातु

सल्फ्यूरिक अम्ल में मिश्रित उत्तम प्रतिरोध वाला सीसा मिश्रातु जिसमें 12 प्रतिशत ऐन्टिमनी और 0.1 से 0.5 प्रतिशत वंग होता है। इसका उपयोग सीसा अम्ल संचायक बैटरियों और अन्य बैटरियों में होता है।

Lead bronze-- सीस कांस्य

ताम्र सीस मिश्रातुओं की श्रेणी जिनका उपयोग अधिक भारवहन के लिए प्रयुक्त बेयरिंगों को बताने के लिए किया जाता है। इनमें 60–70 प्रतिशत तांबा, 2 प्रतिशत तक निकैल, 15 प्रतिशत तक वंग और शेष सीसा होता है।

Lead-bronze bearing alloy-- सीसा-जस्ता मूलक मिश्रातु

ताम्र-मिश्रातुओं की एक श्रेणी जिसमें 10 प्रतिशत वंग, 2 प्रतिशत तक निकैल और 20–40 प्रतिशत सीसा होता है। इनमें कभी-कभी 1 प्रतिशत तक रजत भी होता है। इनका घर्षण कम और तापीय चक्रण पर श्रांति-प्राबल्य अधिक होता है। इनका उपयोग विशेषतः वायुयानों में उच्च गति इंजन बेयरिंगों के रूप में होता है।

Lead burning-- सीस ज्वलन

सोल्डर का प्रयोग किए बिना, संगलन द्वारा सीसे के दो टुकड़ों को परस्पर वेल्ड करना।

Lead coating-- सीसा विलेपन

कर्षण से पहले क्रोमियम अथवा ऑस्टेनाइटी क्रोमियम-निकैल संक्षारणरोधी इस्पात के तार को गलित सीसे के अवगाह में डुबाकर लेप चढ़ाना। यह क्रिया स्नेहन के लिए की जाती है। कर्षण पूरा हो जाने पर सीसे के लेप को हटा दिया जाता है।

Lead print-- सीस मुद्रण

इस्पातों में सीसे के वितरण का स्थूललेखी चित्रण। इस चित्रण को प्राप्त करने के लिए अमोनियम पर सल्फेट के 10 प्रतिशत विलयन द्वारा इस्पात के पृष्ठ का उत्कीर्णन किया जाता है। 2 मिनट तक मुद्रण कागज को 5 प्रतिशत कास्टिक सोडा विलयन में डुबाकर ब्लॉटिंग-कागज के बीच में सुखाया जाता है और फिर उसे धातु-पृष्ठ पर दबाया जाता है। 2 मिनट बाद कागज को हटा कर उसे 5 प्रतिशत सोडियम सल्फाइड विलयन में डेवलेप किये जाने के बाद उसका प्रक्षालन किया जाता है।

Lean ore-- हीन अयस्क

वह अयस्क जिसमें धातु की मात्रा बहुत कम होती है।

Lechesne alloy-- लेकेस्ने मिश्रातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 60–90 प्रतिशत तांबा, 10–40 प्रतिशत निकैल और 0.2 प्रतिशत ऐलुमिनियम होता है। यह संक्षारणरोधी और मजबूत होता है। इसका उपयोग रासायनिक संयंत्रों में चादर, नली आदि उत्पादों के लिए किया जाता है।

Leckie process-- लैकी प्रक्रम

इस्पात-निर्माण की प्रत्यक्ष विधि। इसमें अयस्क का अपचयन और धातु का परिष्करण अर्थात् दोनों क्रियाएं एक ही भ्राष्ट्र में संपन्न की जाती हैं। इसमें अयस्क को गालक और कार्बन के साथ मिलाया जाता है। घान को परावर्तनी भट्टी में गरम कर अपचित किया जाता है। उत्पाद को उसी हार्थ में गलाया जाता है।

Ledeburite-- लैडबुराइट

सीमेंटाइट-ऑस्टेनाइट यूटेक्टिक जिसमें 4.3 प्रतिशत कार्बन होता है। यह 1130°C पर पिडित होता है। ठंडा करने पर लैडबुराइट में विद्यमान ऑस्टेनाइट के रूपांतरण से फैराइट और सीमेंटाइट का मिश्रण प्राप्त होता है, जिसे कक्ष ताप पर रूपांतरित लैडबुराइट कहते हैं। यह लोहा-कार्बन प्रावस्था, ढलवाँ लोहे में और कुछ उच्च मिश्रातु इस्पातों में पाई जाती है।

Lepidolite-- लेपिडोलाइट

पोटैशियम, लिथियम और ऐलुमिनियम का सिलिकेट, [(Li, K, Na)₂ Al₂ (SiO₃)₃, F, OH)₂]। यह लिथियम का स्रोत है क्योंकि इसमें 1.3–5.7 प्रतिशत लिथियम होता है। यह एकतनाक्ष समुदाय में क्रिस्टलित होता है और बहुधा पपड़ी के रूप में पाया जाता है। कठोरता 2.5–3, विशिष्ट गुरुत्व 2.85।।

Lever rule-- उत्तोलक नियम

नियत ताप, दाब और मिश्रातु-संघटन पर साम्यावस्था में विद्यमान मिश्रातु की विभिन्न प्रावस्थाओं की प्रतिशत मात्रा परिकलित करने के लिए प्रयुक्त एक नियम।

Levitation melting-- प्रोत्यापन गलन

किसी सहारे और पात्र के बिना धातु की अल्प मात्रा को गलाना। इसके लिए पदार्थ में भंवर धाराओं से उत्पन्न विद्युत-बलों का उपयोग किया जाता है। कार्य-वस्तु, विशेष रूप से निर्मित प्रेरण-कुंडली द्वारा उत्पन्न ऊर्ध्वगामी बल पर अवलंबित रहती है। प्रेरण कुंडली में उच्च आवृत्ति की धारा प्रवाहित की जाती है।

Liberation-- मोचन

खंड-खंड कर अयस्क से वैल्यू और गैंग के कणों को अलग-अलग करना।

Light metal-- हलकी धातु

देखिए– Metal

Lignite-- लिग्नाइट

पीट से काला अथवा विटुमिनी कोयला बनाते समय प्राप्त मध्यवर्ती उत्पाद। लिग्नाइट देखने में प्रायः चाकलेटी रंग का परंतु कभी-कभी हल्के-भूरे या काले रंग का भी हो सकता है। खान से निकलने वाली प्राकृतिक लिग्नाइट में आधे से दो तिहाई भाग तक नमी हो सकती है। इसे भूरा कोयला भी कहते हैं।

Lignite coal-- लिग्नाइट कोयला

देखिए– Coal

Lime boil-- चूना क्वथन

इस्पात-निर्माण हार्थ प्ररूपी प्रक्रमों में अवगाह की क्वथन-क्रिया ढेलेदार चूने के पत्थर के अपघटन के कारण होती है। इस्पात निर्माण की ओपेन हार्थ और विद्युत आर्क भट्टी में भट्टी के पैंदे पर उपस्थित चूने के पत्थर के अपघटन से CaO, और CO₂ प्राप्त होते हैं। इस तरह प्राप्त CO₂ गलित धातु में विद्यमान कार्बन के साथ क्रिया करता है।
CO₂ +C = 2CO
कार्बनमोनोक्साइड और कार्बनडाइ ऑक्साइड के विमोचन से अवगाह का तेजी से क्वथन होता है जिससे परिष्कण-अभिक्रिया अधिक तीव्र गति से होती है।

Lime dip-- चूना निमज्जन

कर्षण से पहले इस्पात की छड़ों और तारों के साथ किया जाने वाला उपचार। इसमें कुंडलियों को गरम चूने के निलंबन में डुबाया जाता है ताकि अवशिष्ट अम्ल उदासीन हो जाए। कर्षण करते समय चूने में स्नेहक मिलाने से कर्षण में आसानी रहती है। कर्षण प्रक्रिया के दौरान चूने का लेप स्नेहक और स्नेहक-वाहक दोनों का काम करता है जिससे कर्षण में सुविधा रहती है।

Lime finish-- चूना परिसज्जा

देखिए– Lime dip

Lime stone-- चूना पत्थर

एक शैल जिसमें मुख्यतः कैल्सियम कार्बोनेट होता है । इसमें भिन्न-भिन्न मात्राओं में सिलिका, ऐलुमिना, लोहे का कार्बोनेट अथवा ऑक्साइड, कैल्सियम फॉस्फेट और मैंग्नीशियम कार्बोनेट होते हैं। इसका क्षारकीय इस्पात-निर्माण में और वात्या भट्टी प्रगलन में विशेष महत्व है। कठोरता-3, विशिष्ट घनत्व 2.6–2.8।

Limonite-- लिमोनाइट

प्रकृति में पाया जाने वाला लोहे का जलयोजित ऑक्साइड, जिसमें लगभग 60 प्रतिशत लोहा होता है। इसका रंग हल्के पीले से भूरा होता है। यह लोह-खनिजों के ऑक्सीकरण और जलयोजन से प्राप्त होता है। यह अक्रिस्टलीय होता है। कठोरता 5, विशिष्ट घनत्व 3.5—4.00।

Linde welding-- लिंडे वेल्डिंग

एक विशेष प्रकार का बट वेल्डिंग प्रक्रम जिसका उपयोग मृदु-इस्पात-पाइपों को जोड़ने के लिए किया जाता है। यह इस तथ्य पर आघारित है कि इस्पात का गलनांक, इसमें विद्यमान कार्बन की मात्रा के बढ़ने के साथ घटता जाता है। कार्बुरण ज्वाला के प्रयोग से गरम मूल पदार्थ में कार्बन की मात्रा बढ़ती जाती है और वह कम ताप पर अधिक गति से पिघलने लगता है। इस प्रकार वेल्डिंग अधिक तीव्रता से होता है और सिलिकन-मैंगनीज, भरक छड़ों का उपयोग कर कम कीमत में उत्तम संधियाँ प्राप्त होती हैं।

Line defect-- रेखा दोष

देखिए– Lattice defect

Line inperfection-- रेखा अपूर्णता

देखिए– Dislocation

Lining-- आस्तर

विभिन्न इंजीनियरी उपस्करों में प्रयुक्त भीतरी संरक्षी परत। उदाहरणार्थ भट्टियों और लैडलों में यह परत उच्चतापसह पदार्थ की, दलन और पेषण उपस्करों में अपघर्षणरोधी पदार्थ की तथा रासायनिक उपस्करों में संक्षारणरोधी पदार्थों की बनी होती है।

Linz Donawitz process-- लिंज डोनाविट्ज प्रक्रम

देखिए–L.D. process

Lion metal-- लायन धातु

एक मजबूत वंग मिश्रातु जिसमें 70–89 प्रतिशत वंग और 8–3 प्रतिशत ऐन्टिमनी और तांबा दोनों होते हैं। यह 205°C पर पिघलता है। इसका उपयोग मुख्य बेयरिंग, लोकोमोटिव और समुद्री इंजन विद्युत मशीनन आदि में होता है।

Lipowitz’s alloy-- लिपोविट्ज मिश्रातु

कम गलनांक वाले संगलनीय यूटेक्टिक मिश्रातु। 72°C गलनांक वाले मिश्रातु में 27 प्रतिशत सीसा, 13 प्रतिशत वंग, 50 प्रतिशत बिस्मथ, 10 प्रतिशत कैडमियम होता है तथा 46.5°C गलनांक वाले मिश्रातु 22 प्रतिशत सीसा, 11 प्रतिशत वंग, 41 प्रतिशत बिस्मथ, 8 प्रतिशत कैडमियम तथा 18 प्रतिशत इंडियम होता है। इन मिश्रातुओं का उपयोग क्वथित्रों के संगलनीय प्लेगों और ऐसी अन्य सुरक्षा-युक्तियों को बनाने के लिए किया जाता है।

Lipowitz’s metal-- लिपोविट्ज धातु

देखिए –Lipowitz’s alloy

Liquation-- गलनिक पृथकन

एक प्रक्रम जिसमें गलन प्रक्रिया आंशिक मात्रा में की जाती है। इससे कुछ मिश्रातु, दो या अधिक घटकों में पृथक हो जाते है। इस नियम द्वारा ड्रास से धातु को पृथक करना भी गलनिक पृथनिक कहलाता है।

Liquid carburizing-- द्रव कार्बुरण

देखिए– Case hardening के अंतर्गत Carburizing

Liquid contraction-- द्रव संकुचन

किसी धातु को द्रव अवस्था में ठण्डा करने पर उत्पन्न होने वाला संकुचन। वेल्डिंग प्रक्रमों में साँचा-डिजाइन में इसका विशेष महत्व है।

Liquid disintegration-- द्रव विघटन

देखिए– Atomization

Liquid fuel-- द्रव ईंधन

देखिए– Fuel

Liquid nitriding-- द्रव नाइट्राइडन

उच्च वेग औजारी इस्पातों के कठोरण की विधि जिसमें 60 प्रतिशत सोडियम सायनाइड और भार से 40 प्रतिशत पोटैशियम सायनाइड के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। इस अवगाह का 566°C ताप पर 12–16 घंटे तक काल प्रभावन किया जाता है क्योंकि ताजे अवगाहों में नाइट्राइडित औजार भंगुर होते है। 566°C ताप पर 2–3 घंटे तक डुबाने से अधिकतम पृष्ठ कठोरता उत्पन्न होती है। समय बढ़ने के साथ पृष्ठ गंभीरता भी बढ़ती जाती है किंतु पृष्ठ-कठोरता घटती जाती है। इस प्रक्रम का उपयोग सब प्रकार के उच्च वेग इस्पातों के लिए होता है।

Liquid phase sintering-- द्रव प्रावस्था सिन्टरन

एक सिन्टरन-प्रक्रम जिसमें सिन्टरन-ताप पर लघु घटक गलित हो जाता है। इससे घनीभवन में सहायता मिलती है।

Liquids-- लिक्विड़स

द्वि-अंगी प्रावस्था आरेख में कोई रेखा अथवा त्रि-अंगी प्रावस्था आरेख में कोई पृष्ठ जो उन तापों को व्यक्त करते हैं जिन पर साम्य अवस्थाओं में ठंडा करने पर मिश्रातु का पिंडन आरंभ हो जाता है अथवा गरम करने पर उसका गलन पूर्ण हो जाता है। यह वह रेखा अथवा पृष्ठ है जिसके ऊपर तंत्र में सभी मिश्रातु पूर्णतः गलित अवस्था में रहते हैं।

List edge-- लिस्ट कोर

चादरी धातुओं पर वंग, यशद, टिन मिश्रातु आदि का तप्त निमज्जन प्रक्रम द्वारा लेप चढ़ाते समय चादर के निचले किनारे पर लेपी धातु की कुछ मात्रा बहकर एकत्रित हो जाती है। इस कारण इस किनारे पर लेपी धातुओं की सांद्रता अधिक हो जाती है। इस किनारे को लिस्ट कोर कहते हैं।

Lixivation-- निक्षालन

देखिए– Leaching

Loading-- भारण

(1) चूर्ण धातुकर्मिकी में रूपदा कोटर में चूर्ण भरना।
(2) गभीर कर्षण प्रक्रियाओं में प्रयुक्त औजारों के पृष्ठ पर कर्षित किए जाने वाली धातु के कणों का बेल्ड हो जाना।
(3) पेषण के संदर्भ में शाण-चक्र के पृष्ठ के रंध्रों को पीसे जाने वाले पदार्थ से भरना। भारण के फलसवरूप उपर्युक्त (2) और (3) में दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

Loam-- लोम

रेत, सिल्ट, मृत्तिका का मिश्रण जिसका उपयोग रेत के साँचों में आधार-पदार्थ के रूप में होता है।

Loam sand-- लोम बालू

देखिए– Sand

Loam sand moulding-- लोम बालू संचन

देखिए– Sand moulding

Local quenching-- स्थानिक शमन

देखिए– Quenching

Lock seam test-- ताला सीवन परीक्षण

जस्तेदार चादर की आधार धातु पर जस्त-लेप की आसंजकता ज्ञात करने की विधि।

Longitudinal stringer-- अनुदैर्ध्य स्ट्रिंगर

देखिए– Rolling defect

Lost wax process-- भ्रष्ट मोम प्रक्रम

इस प्रक्रम में लकड़ी अथवा धातु के रुपदाओं में मोम के बने प्रतिरूपों का उपयोग किया जाता है। मोम के प्रतिरूप उच्चतापसह मिश्रण में लगाए जाते हैं। गरम करने पर मोम पिघलकर बाहर निकल आता है और मिश्रण कठोर बन जाता है। इस प्रकार प्राप्त साँचे के विन्यास का उपयोग अत्यधिक विमीय–यथार्थ संचकों को बनाने में होता है।

Lotus metal-- लोटस धातु

कम घर्षण युक्त मिश्रातु जिसमें 75 प्रतिशत सीसा, 10 प्रतिशत वंग और 15 प्रतिशत ऐन्टिमनी होता है।

Low alloy steel-- अल्प मिश्रातु इस्पात

देखिए– Alloy steel के अंतर्गत

Low carbon steel-- अल्प कार्बन इस्पात

देखिए– Carbon steel

Lower critical temperature-- निम्न क्रांतिक ताप

वह ताप जिस पर गरम करते समय इस्पात में ऑस्टेनाइट बनने लगता है।

Low hysteresis steel-- निम्न शैथिल्य इस्पात

अल्प सिलिकन इस्पात जिसमें 2.5–4 प्रतिशत सिलिकन होता है। इसकी उच्च चुंबकशीलता, उच्च विद्युत प्रतिरोध तथा प्रत्यावर्ती धारा परिपथों में कम शैथिल्य हानि होती है। इसका उपयोग ट्रांसफार्मर पटलन, जनित्र-अवयवों और बिजली की मशीनों में होता है।

Low temperature carbonisation-- निम्न ताप कार्बनन

देखिए– Carbonisation

Low temperature coke-- निम्न ताप कोक

देखिए– Carbonisation के अंतर्गत Low temperature carbonisation

Low temperature operation furnace-- अल्प ताप प्रचालन भट्टी

देखिए– Furnace

Lubral alloy-- लूब्रल मिश्रातु

ऐलुमिनियम मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें Cu, Si, Sn, Ni, Mg, Fe, और Te होते हैं। इनका घर्षण कम और श्रांतिरोध अधिक होता है, अतः इनका उपयोग उच्च RPM वाले मोटर इंजन के बेयरिंगों को बनाने के लिए किया जाता है।

Luce-rozan process-- ल्यूस-रोजैन प्रक्रम

रजत युक्त सीसे से रजत रजत को अलग करने का प्रक्रम। यह पैटिन्सन प्रक्रम का संशोधित रूप है। जब निम्नकोटि की रजत को गलित अवस्था से ठोस होने दिया जाता है तो सीस, क्रिस्टलों के रूप में पृथक हो जाता है। इन क्रिस्टलों में शुद्ध रजत की मात्रा, शेष द्रव-धातु की अपेक्षा अधिक होती है। इन क्रिस्टलों को एक छिद्रित लैडल की सहायता से दूसरे पात्र में रख लेते हैं। दूसरे पात्र में उपर्युक्त गलन, पिंडल और क्रिस्टलों के पृथकन की क्रियाओं को दोहराया जाता है। इस प्रकार शुद्ध सीस प्राप्त हो जाता है।

Luder’s lines-- ल्यूडर रेखाएं

देखिए– Hartman lines

Luppen-- लुपेन

सिलिकामय अवयवों से समृद्ध, लोह अयस्क के सीधे अपचयन से प्राप्त उत्पाद। यह क्रिया घूर्णी भट्टे में की जाती है जिसका ताप गैंग अवयव के संगलन के लिए पर्याप्त होता हैं। पिंडिकाएँ लोहे की संपिंडित अपचित संहति होती हैं जिन पर बाहर से संगलित गैंग अवयवों का लेप चढ़ा रहता है।

Lurgi process-- लुर्गी प्रक्रम

अपचायक वायुमंडल में लोह–अयस्क के भर्जन का प्रक्रम। इससे लोहे का चुंबकीय ऑक्साइड बनता है जिसे पीसकर चुंबकीय पृथकन द्वारा अलग कर दिया जाता है। भट्टे की भीतरी रचना ऐसी होती है कि अयस्क को अपचायक गैसों की धारा के द्वारा एक सतत परदे के रूप में गिराया जाता है। भट्टे की पूरी परिरेखा पर ज्वालक वितरित रहते हैं ताकि विभिन्न भागों में ताप के अनुसार भर्जन और अपचयन को नियंत्रित किया जा सके।

Mac Arthur and Forest cyanide process-- मैक आर्थर-फॉरेस्ट सायनाइड प्रक्रम

देखिए– Cyanide process

Mach’s alloy-- माख मिश्रातु

एक ऐलुमिनियम मिश्रातु जिसमें 5% Mg होता है। इसका औसत सामर्थ्य होता है और यह वायुयान के हिस्सों को बनाने के काम आता है।

Machinability-- मशीननीयता

किसी पदार्थ की खरादन प्रवेधन मिलिंग, ब्रोचन चूड़ी-कर्तन, छिद्रवर्धन, और क्रकचन आदि क्रियाओं की आपेक्षिक सुगमता को मशीननीयता कहते हैं। विभिन्न अवस्थाओं में मशीननीयता, पदार्थ की कर्तन दर, कर्तन के लिए आवश्यक बल, ऊर्जा या शक्ति, उत्पन्न पृष्ठ-परिसज्जा अथवा समान टुकड़ों के बीच बनाई गई विमीय यथार्थता द्वारा मापी जाती है।

Machine moulding-- मशीन संचन

देखिए– Moulding

Machine scarfing-- मशीन स्कार्फन

बेल्लन-क्रिया के समय बहु ऑक्सीजन-ऐसीटिलीन टार्चों द्वारा बेल्लन-ताप पर किसी सिल्ली, ब्लूम अथवा बिलेट के पृष्ठदोषों को दूर करना।

Machining-- मशीनन

शक्ति-चालित कर्तन-औजारों द्वारा खरादना, समतलन, ब्रोचन, चूड़ी-कर्तन, छिद्रवर्धन, मिलिंग, वेधन, और क्रकचन आदि क्रियाएँ करना। मुख्यतः यह कार्य धारयुक्त कर्तन-औजारों द्वारा किया जाता है तथा बहुत कम क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिबल पड़ने से धातु कट जाता है।

Macht’s metal-- मैच्ट धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 60% तांबा, 38–38.5% यशद और 1.5–1.8% लोहा होता है। मजबूत होने के कारण इसका उपयोग फोर्जनों में होता है।

Mackenite metal-- मैकिनाइट धातु

निकैल-क्रोमियम अथवा निकैल-क्रोमियम-लोह मिश्रातुओं की ऊष्मारोधी श्रेणी।

Macro etch test-- स्थूल रसोत्कीर्णन परीक्षण

अम्लों अथवा अभिकर्मकों द्वारा गंभीर रसोत्कीर्णन की विधि। इससे धातु की स्थूल संरचना अथवा उसमें उपस्थित दोषों का पता लगता है।

Macrosection-- स्थूल खंड

धातु के किसी नमूने की स्थूल संरचना को व्यक्त करने के उद्देश्य से उसके पृष्ठ को पॉलिश कर उत्कीर्णन करना।

Macrosegreation-- स्थूल संपृथकन

देखिए– Segreation

Macrostructure-- स्थूल संरचना

सामान्यतया किसी धातु अथवा मिश्रातु की संरचना तथा पॉलिश किए गए नमूनों के उत्कीर्णित पृष्ठों को आँख से अथवा 15 गुने से कम आवर्धन पर दिखाई देने वाले अपद्रव्यों का वितरण। इस्पात में स्थूल-संरचना का संबंध साधारणतया प्राथमिक क्रिस्टलन से होता है।

Magclad-- मैगक्लैड

ऐसी मैग्नीशियम मिश्रातु की चादर जो अधिक ऐनोडी मैग्नीशियम मिश्रातु की परतों से ढकी रहती है।

Magnaflux (magnetic flux) test-- मैग्नाफ्लक्स (चुंबकीय अभिवाह) परीक्षण

देखिए– Non-destructive test के अंतर्गत Magnetic particle technique

Magnalium-- मैग्नेलियम

एक ऐलुमिनियम मिश्रातु जिसमें 1.75% Cu, 1–5.5% Mg, और 0–1.2% Ni होता है। यह अत्यंत मजबूत होता है और इसका उपयोग वायुयानों के संचकों के लिए होता है।

Magnesio and calciothermic process-- मैग्नीशियो-कैल्सियोतापी प्रक्रम

देखिए– Metallothermic process

Magnesite-- मैग्नेसाइट

एक खनिज जिसमें मुख्यतः अक्रिस्टलीय मैग्नीशियम कार्बोनेट होता है जो मैग्नीशियम सिलिकेट के साथ संयुक्त अवस्था में पाया जाता है। इसका रंग सफेद होता है किंतु कुछ किस्में लोह ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण पीले रंग की होती है।
इसका उपयोग मैग्नीशियम धातु के स्रोत के रूप में तथा क्षारकीय उच्चतापसह ईटों, उच्चतापसह भट्टियों और इमारती पत्थरों के निर्माण में होता है। इसकी एक क्रिस्टलीय किस्म भी ज्ञात है जिसकी कठोरता 4 और विशिष्ट घनत्व 3.1 है।

Magnetherm process-- मैग्नीथर्म प्रक्रम

पिजन प्रक्रम की संशोधित विधि जिसका विकास फ्रांस में हुआ। इसमें सिलिकोतापी अपचयन द्वारा डोलोमाइट से मैग्नीशियम प्राप्त किया जाता है। पिजन प्रक्रम के विपरीत इस विधि में, धान में बॉक्साइट मिलाया जाता है जिसमें विद्युत-भट्टी में द्रव-धातुमल बनता है। मैग्नीशियम वाष्प के द्रवण से मैग्नीशियम द्रव-धातुमल बनता है। मैग्नीशियम वाष्प के द्रवण से मैग्नीशियम द्रव-अवस्था में प्राप्त होता है।

Magnetic process-- मैग्नीथ्म प्रक्रम

पिजन प्रक्रम की संशोधित विधि जिसका विकास फ्रांस में हुआ। इसमें सिलिकोतापी अपचयन द्वारा डोलोमाइट से मैग्नीशियम प्राप्त किया जाता है। पिजन प्रक्रम के विपरीत इस विधि में, धान में बॉक्साइट मिलाया जाता है जिसमें विद्युत-भट्टी में द्रव-धातुमल बनता है। मैग्नीशियम वाष्प के द्रवण से मैग्नीशियम द्रव-धातुमल बनता है। मैग्नीशियम वाष्प के द्रवण से मैग्नीशियम द्रव-अवस्था में प्राप्त होता है।

Magnetic ageing-- चुंबकीय कालप्रभावन

सामान्य ताप पर किसी धातु के भौतिक गुणधर्मों में धीरे-धीरे स्वतः परिवर्तन होना। इसमें समय के बढ़ने के साथ धातु की शैथिल्य ह्रास में वृद्धि और चुंबकशीलता में कमी होती जाती है। सिलिकन लोह का उपयोग करने से कालप्रभावन कम हो जाता है क्योंकि यह ऑक्सीजन को हटा देता है जो एक प्रमुख काल-प्रभावन कर्मक है।

Magnetic annealing-- चुंबकीय अनीलन

लोह-निकैल मिश्रातुओं का एक प्रकार का ऊष्मा-उपचार जिसमें मिश्रातु को 600°C से ऊपर तक गरम करने के बाद 500°C पर उच्च चुंबकीय. क्षेत्र के प्रभाव में रखा जाता है। तत्पश्चात् सामान्य ताप तक ठंडा करने पर मिश्रातु की चुंबकशीलता बहुत बढ़ जाती है और अपेक्षाकृत कम निग्रह-बल की आवश्यकता होती है। यदि मिश्रातु में 65% से अधिक निकैल हो तो यह प्रभाव सबसे अधिक स्पष्ट होता है। शैथिल्य-पाश लगभग आयताकार होता है।

Magnetic change-- चुंबकीय परिवर्तन

चुंबकीय α– लोहा, गर्म करने पर एक विशिष्ट ताप (Ac₁) पर अचुंबकीय β लोहा में परिवर्तित हो जाता है। विलोमतः अचुंबकीय β–लोहा ठंडा करने पर एक विशिष्ट ताप (Ar₁) पर चुंबकीय α–लोह में परिवर्तित हो जाता है। α तथा β– लोह की क्रिस्टलीय संरचना समान होती है केवल उनके चुंबकीय गुणों में अंतर होता है। साम्य-अवस्था में शुद्ध लोहे में चुंबकीय परिवर्तन 768°C पी होता है।

Magnetic concentratio

(Magnetic seperation)-- चुंबकीय सांद्रण
देखिए– Concentration

Magnetic etching-- चुंबकीय रसोत्कीर्णन

लोह-चुंबकीय प्रावस्थाओं के धातुचित्रण-अभिनिर्धारण की विधि। इसमें पॉलिश किए गए पृष्ठ को चुंबकीय कणों के पीतले कोलॉइडी निलंबन से ढककर उस पर चुंबकीय क्षेत्र प्रयुक्त किया जाता है। इससे चुंबकीय क्षेत्रों पर कोलॉइड का स्पष्ट सांद्रण दृष्टिगोचर होता है जिससे चुंबकीय और अचुंबकीय प्रावस्थाओं की पहचान की जा सकती है।

Magnetic hysteresis-- चुंबकीय लैथिल्य

देखिए– Hysteresis

Magnetic particle technique-- चुंबकीय कण तकनीक

देखिए– Non-destructive test के अंतर्गत Magnaflux test.

Magnetising roasting-- चुंबकत्व भर्जन

देखिए– Roasting के अंतर्गत।

Magnetism-- चुंबकत्व

वह परिघटना जिसके कारण चुंबकीय बल उत्पन्न होता है अथवा वह विज्ञान जिसका संबंध चुंबकीय बल के नियमों और चुंबकीय क्षेत्र से होता है। किसी वस्तु का वह गुणधर्म जिसके कारण वह लोहे अथवा लोह चुंबकीय पदार्थों को आकर्षित या निग्रह करता है। चुंबकत्व के मुख्य प्रकार ये है:
प्रतिचुंबकत्व (Diamagnetism)– पदार्थों का वह गुणधर्म जिसके कारण उनकी चुंबकीय प्रवृति अल्प और ऋणात्मक होती है। प्रतिचुंबकत्व गुणधर्म वाले पदार्थ, चुंबकीय क्षेत्र द्वारा बहुत कम प्रतिकर्षित होते हैं। उदाहरणार्थ, चाँदी, सोना और विस्मथ।
लोह चुंबकत्व (Ferromagnetism)– कुछ पदार्थों का वह गुणधर्म जिसके कारण उनकी चुंबकीय प्रवृत्ति अधिक और धनात्मक होती है। लोह चुंबकत्व युक्त पदार्थ, चुंबकीय क्षेत्र द्वारा अति आकर्षित होते हैं। उदाहरणार्थ लोहा, कोबाल्ट, निकैल, गैडोलिनियम आदि।
प्रतिलोह चुंबकत्व (Antiferromagnetism)– यदि विपरीत और समान प्रचक्रण (Spin) वाले इलेक्ट्रानों की संख्या समान हो तो फलस्वरूप उत्पन्न चुंबकत्व को प्रतिलोह चुंबकत्व कहते हैं।
फेरीचुंबकत्व (Ferrimagnetism)– यदि विपरीत किंतु असमान प्रचक्रण वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या बराबर हो तो फलस्वरूप उत्पन्न चुंबकत्व को फेरीचुंबकत्व कहते हैं।
परा चुंबकत्व (Paramagnetism)– पदार्थों का वह गुणधर्म जिसके कारण उनमें चुंबकीय प्रवृति अल्प औऱ धनात्मक होती है। पराचुंबकत्व वाले पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र द्वारा अल्प मात्रा में आकर्षित होते हैं। अधिकांश धातुएँ इसी वर्ग में आती हैं उदाहरणार्थ क्षारीय मुदा धातुएँ, संक्रमण धातुएं और क्यूरी बिंदु के ऊपर लोह चुंबकत्व वाली धातुएँ।

Magnetite-- मैग्नेटाइट

प्राकृत रूप में पाया जाने वाल लोहे का चुंबकीय ऑक्साइड (Fe₃O₄) यह काला और अपरादर्शी होता है तथा इसकी धात्विक धुति होती है। इसे चुंबकीय लोह अयस्क भी कहते हैं। इसमें 72.4% लोहा होता है।

Magnetite formation-- मैग्नेटाइट अभिरूपण

मैट-प्रगलन अथवा मैट रूपांतरण के समय कुछ आयरन सल्फाइड, उच्च लोह-ऑक्साइड (मैग्नेटाइट) में ऑक्सीकृत हो जाता है। इस मैग्नेटाइट की क्रोम मैग्नेसाइट (जो उच्च ताप सह पदार्थ है) के साथ क्रिया से प्राप्त उत्पाद का आपेक्षिक घनत्व, धातुमल और मैट के आपेक्षिक घनत्व के बीच का होता है तथा गलनांक, प्रगलन और रूपांतरण ताप से अधिक होता है। इस प्रकार मैग्नेटाइट, धातुमल और मैट के बीच आभासी अधस्तल बनाता है जो धातुमल और मैट के पृथक्करण में रुकावट डालता है। भ्राष्ट्र के आस्तर पर अल्प मात्रा में मैग्नेटाइट परत के बनने से उच्च तापसह आस्तर को अधिक समय तक काम में लाया जा सकता है।

Magneto acoustic test-- चुंबक ध्वानिक परीक्षण

इस्पात की वस्तु को नष्ट किए बिना उसमें उपस्थित दरारों को पहचानने का एक परीक्षण इसमें वस्तु को एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है जब कि इयरफोन लगी एक अन्वेषी कुंडली उसके पृष्ठ का अन्वेषण करती है। किसी दरार अथवा अधारित्वक से अनियमित चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इससे अन्वेषी कुंडली में विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिसे इयरफोन में सुना जा सकता है।

Magnet steel-- चुंबक इस्पात

उच्च कार्बन इस्पात अथवा मिश्रातु इस्पात जो स्थायी चुंबकों को बनाने के काम आते हैं। आरंभ में चुंबकों को क्रुसिबल इस्पात से बनाया जाता था जिसमें बाद में टंगस्टन, क्रोमियम और मैंगनीज मिलाया जाने लगा। टंगस्टन के स्थान पर बहुधा मॉलिब्डेनम का प्रयोग किया जाता है। इनका चुंबकत्वावशेष (Remanence) बहुत अधिक होता है। मिश्रात्वन तत्व की मात्रा में पर्याप्त भिन्नता रहती है। प्रायः टंगस्टन की मात्रा 6% तक, मॉलिब्डेनम की 22% तक, क्रोमियन की 5% तक तथा कोबाल्ट की (अथवा कोबाल्ट और क्रोमियम की मिलकर) 18-60% तक होती है। अधिक संकुल मिश्रातुओं में मिलाए जाने वाले तत्व की मात्रा अन्य उपस्थित तत्वों की मात्रा पर निर्भर करती है।
अनीलन 800-850°C पर किया जाता है तथा चुंबकीय क्षेत्र की स्थिरता में सुधार लाने के उद्देश्य से कुछ पदार्थों का काल-प्रभावन 100°C पर किया जाता है।

Magnolia metal-- मैग्नोलिया धातु

आधातवर्ध्य कम घर्षण वाला सीसा मिश्रातु जिसमें 6% वंग, 15% ऐन्टिमनी और शेष सीसा होता है। इसका उपयोग बेयरिंगों में होता है।

Magnox alloy-- मैगनॉक्स मिश्रातु

वे मैग्नीशियम मिश्रातु जिनमें कणों का आकार छोटा करने, गरम CO₂ में ऑक्सीकरण प्रतिरोध बढ़ाने तथा ज्वलन प्रवृति को कम करने के उद्देश्य से अल्प मात्रा में बेरिलियम और ऐलुमिनियम मिलाए जाते है। इसमें 0.1% बेरिलियम और 0.8% ऐलुमिनियम होता है। नाभिकीय रिएक्टरों में इस मिश्रातु के बने खोल के अंदर नाभिकीय ईंधन की छड़ें बंद की जाती हैं जिनमें कार्बनडाईऑक्साइड का तलक के रूप में उपयोग किया जाता है।

Malachite-- मैलेकाइट

प्रकृति में पाया जाने वाला तांबे का क्षारकीय कार्बोनेट अयस्क यह हल्के रंग का होता है तथा इसके एकनताक्ष क्रिस्टल, ऐजुराइट के साथ संयुक्त अवस्था में पाए जाते हैं। इसका संहति रूप रेशेदार होता है। कठोरता 3.5–4.0 विशिष्ट गुरुत्व 3.7–4.0।

Malleability-- आघात्वर्धनीयता

किसी धातु का वह गुणधर्म जो यह निर्धारित करता है कि घनताड़न, विरूपण आदि विधियों द्वारा धातु बिना विभंग हुए कितनी आसानी से विरूपित होगी। सीसा, वंग, सोना आदि धातुएँ सामान्य ताप पर और अन्य धातुएँ अधिक ताप पर आघातवर्धनीय होती है। यह गुणधर्म तन्यता से संबंधित है। प्रायः स्थूल कण संरचना वाली धातुओं या मिश्रातुओं की अपेक्षा सूक्ष्म संरचना वाली धातु औऱ मिश्रातु अधिक आघातवर्घनीय होते हैं।

Malleabilizing-- आघातवर्धनन

ढलवाँ लोहे के संदर्भ में एक अनीलन प्रक्रम जिसके फलस्वरूप श्वेत संचकों में संयुक्त कार्बन की पूर्णतः अथवा अंशतः ग्रेफाइट या मुक्त कार्बन में परिवर्तित कर दिया जाता है।
देखिए– Malleable cast iron

Malleable cast iron-- आघातवर्ध्य ढलवाँ लोहा

आघातवर्धी ऊष्मा-उपचार से प्राप्त उत्पाद जो दो प्रकार का होता है :
1. कृष्ण क्रोड आघातवर्ध्य ढलवाँ लोहा (Black heart malleable cast iron) इसमें मुक्त कार्बन, ग्रेफाइटी रूप में होता है जिसका नया विभंग-पृष्ठ काले रंग का होता है।
2. श्वेत क्रोड आघातवर्ध्य ढलवाँ लोहा (White heart malleable cast iron)– इसमें कार्बन संयुक्त रूप (सीमेंटाइट) में होता है जिसका नया विभंग पृष्ठ सफेद चमकीला होता है। इसमें प्रयुक्त प्रक्रम को श्वेत क्रोड प्रक्रम कहते हैं।

Malleable iron-- आघातवर्ध्य लोह

देखिए– Cast iron

Mallet alloy-- मैलेट धातु

एक ताम्र-यशद मिश्रातु जिसमें 25.4% यशद होता है। यह अत्यधिक तन्य होता है और इसका उपयोग चादर, पर्णी और तार के रूप में किया जाता है।

Mallory metal-- मेलोरी धातु

उच्च सामर्थ्य वाले ताम्र मूल के मिश्रातु। एक में 63–68% तांबा, 3% लोहा, 4% तक मैंगनीज, 4% तक ऐलुमिनियम और शेष यशद होता है। इसका उपयोग पिटवाँ उत्पादों गियरों और नोदक ब्लेडों में होता है। दूसरे में 2.6% कोबाल्ट, 0.4% बेरिलियम और शेष तांबा होता है। उच्च विद्युत-चालकता के कारण इसका उपयोग विद्युत अवयवों और कमानियों में होता है।

Malotte metal-- मैलोटी धातु

एक संगलनीय बिस्मथ धातु जिसमें 34% वंग और 20% सीसा होता है। यह 95°C पर पिघलता है। इसका उपयोग उत्तम संचकन और संगलनीय सीलों में होता है।

Mandrel-- मैंड्रेल

1. कर्मण के दौरान खोखले धातु-उत्पादों में गुहा बनाए रखने के लिए प्रयुक्त छड़। सीवन-रहित नलिकाओं के निर्माण में बिलेटों को वेधने के लिए शुंडाकार मैंड्रेल का प्रयोग किया जाता है और ठोस धातु उसके ऊपर प्रवाहित होती है।
2. वह शैफ्ट जिसके ऊपर पहले से बेधित कार्यवस्तु मशीनन के लिए चढ़ाई जाती है।

Manganal-- मैंगनैल

इस्पात जिसमें 3% निकैल, 12% मैंगनीज और 0.6 से 9% कार्बन होता है। यह उच्च सामर्थ्य वाला और घर्षणरोधी होता है। इसका उपयोग संदलित्रों के लिए प्रयुक्त उच्च बेल्लित प्लेटों, मुद्रांकन मिलों आदि में होता है।

Manganese bronze-- मैंगनीज कांसा

पिटवाँ और ढलवाँ मिश्रातुओं की श्रेणी जिसमें तांबा, जस्ता औऱ वंग तथा अल्प मात्रा में लोहा, मैंगनीज, ऐलुमिनियम, सीसा आदि होते हैं। उच्च तनन सामर्थ्य के कारण इसका उपयोग छड़ो, चादरों, पट्टी, फोर्जनों अथवा ढलवाँ समुद्री नोदकों, पंपों, गियर-पहियों, बेयरिंगों अथवा द्रव चालित अवयवों में होता है।

Manganese spar-- मैंगनीज स्पार

देखिए– Rhodochrosite

Manganin-- मैंगनिन

तांबा-मैंगनीज-निकैल मिश्रातु जिसका विद्युत प्रतिरोध बहुत अधिक और ताप-गुणांक कम होता है। इसमें लगभग 86% तांबा, 12% मैंगनीज और 2% निकैल होता है। इसका उपयोग विद्युतमापी उपकरणों में विद्युत प्रतिरोध तार की भाँति और पट्टी के रूप में स्प्रिंगों के लिए होता है। सामान्य ताप पर इसका विशिष्ट प्रतिरोध 42.05 X10⁻⁶ और ताप गुणांक 0.02–0.5X 10⁻⁴ होता है।

Manganite-- मैंगेनाइट

लोहे के समान काला खनिज Mn₂O₃,H₂O जिसमें लगभग 62% मैंगनीज होता है। यह मैंगनीज का अयस्क है। इसकी क्रिस्टलीय संरचना विषमलंबाक्ष होती है, कठोरता 4, विशिष्ट घनत्व 4.2–4.4।

Manganiferous ore-- मैंगनीजमय अयस्क

देखिए– Ore

Manila gold-- मनीला स्वर्ण

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 85% तांबा, 12% जस्ता और 2% सीसा होता है। तन्य और आकर्षक सुंदर रंग होने के कारण इसका उपयोग सस्ते आभूषणों को बनाने में होता है।

Mannessmann mill-- मानसमान मिल

देखिए– Universal mill

Mannesman process-- मानसमान प्रक्रम

सीवनहीन नलियों के उत्पादन का एक प्रक्रम। इसमें एक कोण पर आरुढ़ दो भारी बेलनों के घूर्णन द्वारा नलिका अथवा बिलेट को वेधित कर उन्हें एक अचल मैंड्रेल के ऊपर बलपूर्वक प्रविष्ट किया जाता है।

Mannheim gold-- मैनहाइम स्वर्ण

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 83% तांबा, 10% यशद और 7% वंग होता है। तन्य और सुंदर रंग के कारण इसका उपयोग सस्ते आभूषणों को बनाने में किया जाता है।

Mannhes process-- मानहेस प्रक्रम

ताम्र-मैट के उपचार की एक विधि। इसमें गलित पदार्थ में हवा प्रवाहित की जाती है जिससे गंधक, सल्फर डाइऑक्साइड के रूप में पृथक हो जाता है और लोहे का ऑक्सीजन हो जाता है।

Manpdyzing-- मैनोडाइजन

मैग्नीशियम और उसके मिश्रातुओं के परिरक्षण तथा अलंकरण के लिए प्रयुक्त प्रक्रम। इसमें फीनॉल और जल-काँच के विलयन का उपयोग किया जाता है तथा ऐनोडी प्रत्यक्ष अथवा प्रत्यावर्ती धारा प्रयोग की जाती है जिससे ऑक्साइड सिलिकेट की उच्च परिरक्षी परत बन जाती है।

Mantle-- मेंटल

धमन भट्टी का वह भाग जो स्टैक का भार-वहन करता है। इसका आकार , भट्टी में बॉश के ठीक ऊपर वाले भाग के आकार जैसा होता है और उसे पूरी तरह चारों ओर से घेर लेता है। यह भट्टी की नींव पर स्थित ढलवाँ लोहे के स्तंभों के सहारे खड़ा रहता है।

Maraging-- मारएजन

अवक्षेप–कठोरण प्रकार के मारएजन इस्पात का पायन-ऊष्मा उपचार। इसमें इस्पात को Ms ताप से नीचे तक ठंडा करने से मृदु मार्टेंन्साइट उत्पन्न होता है जिसका 300–500°C ताप पर पायन किया जाता है। इससे (Fe, Ni)₃ Al अथवा (Fe, Ni) Al अथवा (Cu, Ni₃) Al अथवा (Ni₃Ti) Al का अवक्षेप प्राप्त होता है। इससे इस्पात को उच्च सामर्थ्य प्राप्त होता है। एक विशिष्ट मारएजन इस्पात का संघटन इस प्रकार होता है–निकैल 27% ऐलुमिनियम 12%, कार्बन 0.1% शेष लोहा।

Marageing steel-- मारएजन इस्पात

मूलतः लोह-निकैल मिश्रातु जिनमें मार्टोन्साइट संरचनाएँ बनाई जा सकती है। लोह-कार्बन मार्टेन्साइट के विपरीत इनके जालक में द्विसमलंबाक्षता (Tetragonality) नहीं होती है जिस कारण लोह कार्बन मार्टेन्साइट की अपेक्षा ये कम कठोर और अधिक चर्मल होते हैं। काल-कठोरण उत्पन्न करने और मार्टेन्साइट–निर्माण को आसान करने के लिए इसमें अन्य तत्व मिलाए जाते हैं।

Marble-- संगमरमर

क्रिस्टलीय चूना पत्थर जो बड़ी संहतियों के रूप में पाया जाता है। शुद्ध अवस्था में यह सफेद रंग का होता है किंतु सूक्ष्म मात्रा में धात्विक ऑक्साइडों की उपस्थिति के कारण अधिकांशतः यह रंगीन या धारीदार होता है। अच्छा मूर्तियोग्य संगमरमर कम सरंध्र और अच्छी चमक वाला होता है। शुष्क और अनौद्योगिक वायुमंडल में इसका उपयोग कभी-कभी इमारतों को बनाने में किया जाता है। संगमरमर धूलि का उपयोग अपघर्षक के रूप में होता है। आपेक्षिक घनत्व 2.7।

Marcasite-- मार्केसाइट

लोह माक्षिक की सफेद किस्म। यह क्रिस्टलीय रूप में पाया जाता है। यदि इसका रंग पीतल के समान हो तो इसे फूल्स गोल्ड कहते हैं। इसकी माणिक किस्म सफेद होती है जिसकी कठोरता 6–6.5 और विशिष्ट घनत्व 4.9–5.1 होता है।

Marmatite-- मार्मेटाइट

लेड सल्फाइड की लोहमय किस्म जिसमें 20% तक लोहा होता है।

Marquenching-- मारशमन

90°C –200°C ताप-परास के बीघ ऑस्टेनाइटित फेरस मिश्रातु का, तेल शमन माध्यम में शमन करना और उस मिश्रातु को इस माध्यम में तब तक रखना जब तक पूरे मिश्रातु में ताप एक समान न हो जाए और अंत में मिश्रातु को हवा में सामान्य ताप तक ठंडा करना। इस प्रक्रम में शमन के ताप-परास का विशेष महत्व है। यदि शमन, ताप-परास के ऊपरी सीमा पर किया जाता है तो मिश्रातु की अंतिम संरचना, मार्टेंपरन के फलस्वरूप उत्पन्न मिश्रातु से मिलती है और यदि शमन ताप-परास की निचली सीमा पर किया जाए तो प्राप्त संरचना, मिश्रातु में एक समान कठोरता उत्पन्न करती है और विरूपण की संभावना कम हो जाती है। यह विधि बड़े खंडों के लिए मार्टेंपरन की अपेक्षा अधिक उपयोग हो।
तुलना– Martempering

Martempering-- मार्टेंपरन

किसी माध्यम में आस्टेनाइटीकृत फेरस मिश्रातु का शमन करना। यह शमन मार्टेन्साइट ताप-परास के ऊपरी भाग में अथवा उससे किंचिंत ऊपर किया जाता है। इसे तब तक माध्यम में रखा जाता है जब तक पूरे मिश्रातु का ताप एक समान न हो जाए। इसके बाद मिश्रातु को मार्टेन्साइट परास के अंदर हवा में ठंडा किया जाता है।

Martensite-- मार्टेन्जाइट

इस्पात का सूक्ष्म घटक जिसकी सूच्या संरचना होती है। मूलतः यह सीघे अवशीतित ऑस्टेनाइट से बनी असंतुलित अवस्था है। जब इस्पात को कठोरण-ताप से अति शीघ्र ठंडा किया जाता है तो मार्टेन्साइट प्राप्त होता है। अर्थात् ठंडा करने की दर, क्रांतिक शीतलन दर से अधिक होनी चाहिए ताकि आस्टेनाइट का रूपांतरण, इस्पात के संघटन के अनुसार 400°C या उससे कम ताप पर हो। यह ऑस्टेनाइट का सबसे अधिक कठोर अपघटन-उत्पाद है और बहुत अधिक भंगुर होता है। इसकी काय केंद्रित द्विसमलंबाक्ष क्रिस्टल संरचना होती है। इसकी अधिकतम कठोरता Rc₆₅ होती है।

Martensite range-- मार्टेन्साइट परास

Ms और Mf के बीच का ताप-परास।

Martensitic stainless steel-- मार्टेन्साइटी स्टेनलेस इस्पात

देखिए- Stainless steel के अंतर्गत

Martensitic transformation-- मार्टेन्साइटी रूपांतरण

एक प्रावस्था-रूपांतरण जिसमें कुछ धातुओं और मिश्रातुओं को तेजी से ठण्डा करने पर सूच्याकार संरचना प्राप्त होती है जिसे मार्टेन्जाइट कहते हैं।

Master alloy-- मास्टर मिश्रातु

संधानशाला में विद्यमान गलित धातुओं में वांछित तत्वों को मिलाने के लिए प्रयुक्त तत्वों का मिश्रण अथवा मिश्रातु। इसमें उस तत्व की उच्च मात्रा रहती है जिसे गलित में मिलाया जाता है। अंतिम उत्पाद के संघटन को नियंत्रित करने के लिए इनका प्रायः लैंडल में उपयोग किया जाता है। उपयुक्त संघटन प्राप्त करने के अतिरिक्त इन्हें मिलाने का उद्देश्य विऑक्सीकरण अथवा सूक्ष्म आकार के कण उत्पन्न करना भी है। मास्टर मिश्रातु का उपयोग गलित में उन तत्वों को मिलाने के लिए किया जाता है जिन्हें उच्च सक्रियता और ऑक्सीकारक स्वभाव के कारण अथवा गलित की अपेक्षा घनत्व गलनांक में पर्याप्त अंतर के कारण गलित धातु अथवा मिश्रातु में तात्विक रूप में मिलाना कठिन होता है। इसे संघान मिश्रातु भी कहते हैं।

Massener process-- मैसेनर प्रक्रम

गलित कच्चे लोहे में गंधक की मात्रा कम करने की विधि। इस विधि में गलित में मैंगनीज मिलाकर उसे रख दिया जाता है। प्राप्त मैंगनीज सल्फाइड सतह पर आ जाता है जहाँ से उसे अलग कर लेते हैं।

Matrix-- मैट्रिक्स

धातु चित्रण में मुख्य घटक के लिए प्रयुक्त शब्द। यह किसी बहुप्रावस्था मिश्रातु अथवा भौतिक मिश्रण की सतत प्रावस्था होती है अर्थात् भौतिक दृष्टि से वह सतत धात्विक घटक जिसमें अन्य घटक अंतःस्थापित रहते हैं।

Matte-- मैट

तांबा, सीसा, निकैल आदि धातुओं के सल्फाइड अयस्कों के प्रगलन से प्राप्त अशुद्ध धात्विक सल्फाइड उत्पाद।

Matte smelting-- मैट प्रगलन

देखिए– Smelting

Matthiessen’s rule-- माटिसेन नियम

इस नियम के अनुसार किसी धातु या मिश्रातु की विद्युत-प्रतिरोधकता और उसके ताप-गुणांक के गुणनफल में उसके विरूपण का अथवा उसमें उपस्थित विलय परमाणुओं की सूक्ष्म सांद्रता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

Mc Gill metal-- मैकगिल धातु

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 9% ऐलुमिनियम और 2% लोहा होता है इसकी उच्च यांत्रिक सामर्थ्य और तन्यता होती है तथा यह उत्तम मशीननीय और संक्षारणरोधी होता है। इसका उपयोग संचकों, फोर्जनों, पंप-लाइनों और गियरों में होता है।

Mc Kee top-- मैक-की शीर्ष

लोह धमन भट्टी के घानन के लिए प्रयुक्त एक युक्ति। इसमें घान को भट्टी के शीर्ष पर ले जाते हैं और वहाँ एक बड़े स्थिर हॉपर में डाल देते हैं। स्थिर हॉपर से घान एक घूर्णी हॉपर में गिरता है। घूर्णी हॉपर की स्थिति बदलते रहने से घान एक जगह न गिर कर बड़ी परिधि में वितरित हो जाता है।

Mcquaid-Ehn test-- मैक्वैड-इन परीक्षण

कार्बुरण-विधि द्वारा इस्पात के कणों के आकार को निर्धारित करने का परीक्षण। इसमें नमूने को 910° — 940°C ताप पर 8 घंटे तक ठोस कार्बुरण-माध्यम में कार्बुरित किया जाता है जिससे लगभग 0.5 इंच मोटी हॉइपरयूटेक्टॉइड परत बन जाती है, तत्पश्चात् नमूने को धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है।

Mechanical metallurgy-- यांत्रिक धातुकर्म

देखिए– Metallurgy के अंतर्गत

Mechanical roughening-- यांत्रिक रूक्षण

बालू क्षेपण, या बालू बेल्लन द्वारा अथवा झाँवा से रगड़ कर धातु पृष्ठ को खुरदरा बनाना ताकि धातु फिल्मों का आसंजन आसानी से हो सके।

Mechanical test-- यांत्रिक परीक्षण

वे विधियाँ जिनसे यांत्रिक गुणधर्मों का निर्धारण किया जाता है। प्रमुख यांत्रिक परीक्षण इस प्रकार हैं–
बंक परीक्षण (Bending test)– पदार्थों की आंतरिक संरचना और उनमें तन्यता की मात्रा को ज्ञात करने के लिए उन्हें वंक प्रतिबलों द्वारां पराभव-बिंदु से अधिक मोड़ना। इस परीक्षण से पदार्थों की दैर्ध्यवृद्धि का भी पता लगता है। यह परीक्षण विशेषतः उन घटकों पर किया जाता है जिन पर उपयोग के दौरान बंक-प्रतिबलों का प्रभाव पड़ता है।
संपीडन-परीक्षण (Compression test)– किसी धातु द्वारा संपीडक भार को सहन करने की क्षमता ज्ञात करने का परीक्षण। परीक्ष्य वस्तु मानक आमाप और आकर की होती है। संपीडन के कारण सुघट्य धातुओं का कोई सुस्पष्ट भंजन-बिंदु (Breakdown point) नहीं होता है और प्रायः संपीडक-प्राबल्य को विरूपण की निश्चित मात्रा पर ज्ञात किया जाता है। भंगुर धातुओं के लिए चरम-प्रतिबल अत्यंत यथार्थता से ज्ञात किया जाता है।
विसर्पण-परीक्षण (Creep test)–निश्चित भार और ताप पर धातुओं के सुघट्य विरूपण को निर्धारित करने की विधि। इस परीक्षण में पदार्थों के व्यवहार का अनेक नियत प्राचलों (Parameters) पर अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ निश्चित विसर्पण दर और नियत समय में हुआ कुल विरूपण। यह परीक्षण बहुधा उन घटकों पर किया जाता है जो नियत ताप पर नियत तनन-भार के प्रभाव में रहते हैं और जिन्हें विभंजन के लिए लंबी अवधि की आवश्यकता होती है जो कुछ दिनों से लेकर कई वर्ष तक हो सकती है।
चषकन-परीक्षण (Cupping test)– अतप्त-पीडन (Cold pressing) प्रक्रियाओं के लिए चादरी पदार्थों की उपयुक्तता का परीक्षण करने की विधि। बहुधा इसमें चादरी इस्पात के टुकड़े को वलयाकार इस्पात के जबड़ों के बीच जकड़ा जाता है तथा इस्पात के निभज्जक अथवा बॉल के गोल सिरे को चादर के फलक पर दबाया जाता है, जबकि चादर का दूसरा फलक बिना सहारे के रहता है। इससे धातु में एक चषक अथवा गर्त बन जाता है। भंग (Failure) की स्थिति तक विरूपण लगाता बढ़ता जाता है। भंग की स्थिति पर चषक की गहराई पदार्थ की तन्यता की माप होती है। इसे एरिकसन-परीक्षण भी कहते हैं।
दैर्ध्यवृद्धि परीक्षण (Elongation test)– किसी तनन-सामर्थ्य में उत्पन्न कुल प्रसार। इसे विभंजन के बाद विभंग तनन परीक्ष्य वस्तु के टुकड़ों को एक साथ पकड़ कर औऱ परीक्षण आरंभ करने से पहले प्रयुक्त पॉप चिन्हों के बीच की दूरी नापकर ज्ञात किया जाता है। इसे आरंभिक गेज लंबाई में व्यक्त किया जाता है। यह इस्पात की तन्यता की माप होता है।
श्रांति परीक्षण (Fatigue test)– इस परीक्षण में किसी मानक नमूने पर निश्चित आवृत्ति पर निश्चित प्रतिबल-चक्र (Stress cycle) प्रयुक्त किया जाता है। विभंग से पहले नमूने द्वारा सह्य चक्रों की संख्या को सहायता (Endurance) कहते हैं। यह सहयता पदार्थ के श्रांति-व्यवहार का सूचक होता है। इसे सहयता परीक्षण भी कहते हैं।
कठोरता-परीक्षण (Hardness test)– उपयुक्त परीक्षण विधि द्वारा धातुओं और अन्य पदार्थों की कठोरता को निर्धारित करना।
देखिए– Hardness test के अंतर्गत
प्रतिघात परीक्षण (Impact test)– देखिए– अकारादि क्रम में।
खांच-दंड-परीक्षण (Notch bar test)– देखिए- Import test
अपरूपण परीक्षण (Shear test)– पतली वस्तुओं के परिच्छेदी काट के लिए आवश्यक प्रतिबल को निर्धारित करने का परीक्षण।
तनन-परीक्षण (Tenile test)– परीक्ष्य वस्तु के मानक नमूने पर प्रयुक्त तनन-कर्षण को तब तक बढ़ाते जाते हैं जब तक वह टूट न जाए। इसके लिए प्रतिबल-विकृति वक्र को आलेखित किया जाता है और आनुपातिक-सीमा, प्रमाणक प्रतिफल (Proof stress) पराभव-बिंदु चरम तनन-प्रतिबल, नमूने की दैर्ध्यवृद्धि और अनुप्रस्थ्य क्षेत्र में हुई कमी को निर्धारित किया जाता है।
विमोटन परीक्षण (Torsion test)– किसी पदार्थ की तन्यता को मापने का परीक्षण जिसका उपयोग मुख्यतः तारों एवं बेलनाकार वस्तुओं के लिए होता है। इसमें परीक्ष्य नमूने के एक सिरे को जकड़कर दूसरे सिरे को तब तक ऐंठा जाता है जब तक वह टूट न जाए। किसी नियत गेज वाले तार के टूटने के लिए आवश्यक ऐंठनों की संख्या ज्ञात की जाती है। यदि परीक्ष्य-वस्तु छड़ के रूप में हो तो अघिकतम प्रतिबल को अपरूपम (Shear) और धूर्णन-कोघ मे व्यक्त किया जाता है।

Mechanical working-- यांत्रिक कर्मण

बेलनों, निपीडकों और हथौड़ों द्वारा किसी धातु पर दाब डालना ताकि उसके रूप और संरचना में परिवर्तन किया जा सके जिसके फलस्वरूप उसके यांत्रिक और भौतिक गुणधर्मों में भी परिवर्तन हो जाए।

Meehanite iron-- मीहैनाइट लोह

देखिए- Cast iron

Melting and refining unit-- गलन और परिष्करण एकक

वह एकक जिसमें घान को पिघलाना और उसमें कुछ धातुकर्मी परिवर्तन करना, दोनो क्रियाएँ संपन्न होती हैं। इससे घानित धातु की ढलाई में उत्पाद के रासायनिक और संरचनात्मक गुणधर्म भिन्न होते हैं।

Melting furnace-- गलन भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत

Melting loss-- गलन हानि

पिघलते समय घान में धातु की मात्रा में हुई कमी।

Melting unit-- गलन एकक

वह भट्टी जिसमें घान का गलना एक आवश्यक क्रिया है। गलने के साथ-साथ स्वतः धातु का कुछ शोधन भी हो जाता है।

Memory effect-- स्मृति प्रभाव

देखिए– Shape memory effect

Mercast process-- पारद संचकन प्रक्रम

एक परिशुद्ध संचकन-प्रक्रम जिसमें प्रतिरूप-सामग्री के रूप में मोम के स्थान-पर पारद का उपयोग किया जाता है। साँचे में पहले ऐसीटोन भरा जाता है जो स्नेहक का काम करता है। बाद में ऐसीटोन के स्थान पर पारद भर देते हैं। पारद भरे सांचे को–60°C पर एथिलीन में डुबो देते हैं। ताकि पारद जम जाए। प्राप्त पारद के प्रतिरूप को –60°C पर विशेष कर्दभ में डुबाकर उसका लेप चढ़ा लेते हैं। इस प्रकार निर्मित प्रतिरूप को सामान्य ताप पर रख देते हैं ताकि पारद पिघलकर अलग हो जाए। तत्पश्चात् प्रतिरूप को सामान्य विधि से सुखाकर आग में पका लेते हैं।

Merchromizing-- मर्कोमाइजन

वाल्व आदि वस्तुओं के पृष्ठ पर प्रयुक्त अत्यन्त कठोर लेप। इससे लगभग 540°C तक संक्षारण और अपरदन नहीं होता है।

Mercury process-- पारद प्रक्रम

उच्चिष्ट ऐलुमिनियम के परिष्करण का प्रक्रम जो इस तथ्य पर आधारित है कि पारे में ऐलुमिनियम की विलेयता ताप के साथ तीव्र गति से बढ़ती जाती है। इस तरह ऐलुमिनियम पारे में प्राथमिकता के साथ विलीन हो जाता है जिसमें उसे आसवन द्वारा शुद्ध रूप में पृथक किया जा सकता है।

Merle film refining process-- मर्ले परत परिष्करण प्रक्रम

इस्पात-निर्माण का एक सतत प्रक्रम जिसमें अंयत्र उत्पन्न गलित लोहे और परिष्कारक धातुमल को क्रमशः दुर्गलनीय पदार्थ का आस्तर लगे परिक्रामी कक्ष में डाला जाता है। दोनो पदार्थों को अच्छी तरह मिलाने से और आयतन की तुलना में संपर्क-पृष्ठ के बहुत अधिक होने से परिष्करण-अभिक्रियाएँ अत्यन्त तीव्र गति से होती है। परत-परिष्करण नाम देने का कारण यह है कि किसी समय कक्ष के अंदर दुर्गलनीय पदार्थ पर गलित धातु की केवल 3/16 इंच मोटी परत बनती है। घूर्णी परिष्कारक, भिन्न-भिन्न आकार के बनाए जाते हैं ताकि प्रतिमिनट 1–3 टन इस्पात बने। बेसेमर और ओपन हार्थ प्रक्रमों की अपेक्षा इसका नियंत्रण आसान होता है और इस्पात आसानी से लागातार प्राप्त होता रहता है।

Merril-Crowe process-- मेरिल-क्रो प्रक्रम

यशद-धूलि द्वारा विऑक्सीजनित सायनाइड विलयन से सोने को अवक्षेपित करने का प्रक्रम। अधिधारित अथवा धुली वायु को (जिसके कारण यशद का अधिक उपयोग होता है। पृथक करने के लिए उच्च निर्वात की उपस्थिति में विलयन का एक ड्रम में शोषण किया जाता है। छिद्रित ट्रे में विलयन को प्रविष्ट करने से उत्पन्न फुहार को जल-सील के बीच से निकाला जाता है।

Merrillite-- मेरीलाइट

यशद की अत्यंत शुद्ध बारीक धूलि जिसका उपयोग मेरिल-क्रो प्रक्रम में सायनाइड निष्कर्षण द्वारा सोने और चाँदी को अवक्षेपित करने में किया जाता है।

Metal-- धातु

धातु वह क्रिस्टलीय तत्व है जिसमें आयन अपने चारों ओर विद्यमान मुक्त इलेक्ट्रॉन-क्षेत्र द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से परस्पर जुड़े रहते हैं। प्रत्येक आयन को आकर्षित करता है जिससे आबधों की सुसंकुलित लघु संरचना उत्पन्न होती है जिसके कारण धातुओं में मजबूती, आघातवर्धनीयता, अपारदर्शिता, अपेक्षाकृत उच्च घनत्व, द्युति, बिजली और ऊष्मा के प्रति सुचालकता, तन्यता और परावर्तकता आदि गण पाए जाते हैं।
धातु विद्युत-धनात्मक होते हैं और आसानी से अपने इलेक्ट्रॉन खो देते हैं जिस कारण वे अम्लों से हाइड्रोजन उत्सर्जित करते हैं। धातुओं के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है–
अपधातु (Base metal)- देखिए– Base metal अकारादि क्रम में।
भारी-धातु (Heavy metal)– वे धातुएँ जिनका आपेक्षिक घनत्व सामान्यतया 5 से अधिक होता है। उदाहरणार्थ ऑस्मियम, तांबा, जस्ता, इरीडियम, लोहा, प्लैटिनम, सोना, सीसा, टंगस्टन आदि।
लोह धातु (Ferrous metal)– लोहा तथा लोहमूलक मिश्रातु।
हल्की धातु (Light metal)– वे धातुएँ जिनका आपेक्षिक घनत्व सामान्यतः 5 से कम होता है। उदाहरणार्थ बेरिलियम, मैग्नीशियम, ऐलुमिनियम, जर्कोनियम, टाइटेनियम आदि।
अलौह धातु (Nonferrous metal)– लोहे को छोड़कर अन्य धातु अथवा लोहमूलक मिश्रातुओं को छोड़ कर अन्य मिश्रातु। इनमें लोहा अशुद्धि के रूप में अथवा मिश्रात्वन तत्व के रूप में उपस्थित हो सकता है।
नामिकीय धातु (Nnuclear metal)– वे धातुएँ जिनका उपयोग नाभिकीय रिएक्टरों में किया जाता है। जैसे यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, जर्कोनियम आदि।
बहुमूल्य धातु (Precious metal)– कीमती तथा दुर्लभ धातुएँ जिनका उपयोग सिक्कों और आभूषणों को बनाने के लिए होता है। सामान्यतः इस शब्द का प्रयोग सोना, चाँदी और प्लैटिनम वर्ग के धातुओं के लिए होता है क्योंकि उनका नैज-मान और स्थायित्व सदा बना रहता है। सोने और प्लैटिनम वर्ग की धातुओं को उत्कृष्ठ धातुएँ कहते हैं क्योंकि वे अम्लरोधी और संक्षाणरोधी होती है।
प्राथमिक धातु (Primary metal)– सीधे अयस्क से प्राप्त धातुएँ जिनका पहले उपयोग न किया गया हो। इसके विपरीत वे धातुएँ है जो उच्छिष्ट (Scrap) अथवा पहले से प्रयुक्त पदार्थ को पिघलाकर प्राप्त की जाती है। इनहें अक्षत धातु (Virgin metal)भी कहते हैं।
तुलना– Secondary metal
दुर्लभ-मृदा धातु (Rare earth metal)– वे धातुएँ जिनका परमाणु-क्रमांक 58 से 71 तक और परमाणु-भार 140 से 175 के बीच होता है। ये सीरियम से ल्युटिशियम तक हैं। ये विरल मृदाओं से प्राप्त किए जाते हैं।
दुर्लभ धातु (Rare metal)– ये धातुएँ प्रकृति में अत्यल्प मात्रा में पाई जाती हैं। इनका निष्कर्षण अत्यंत कठिन और खर्चीला होता है अतः इनका निष्कर्षण व्यापारिक मात्रा में नहीं किया जाता, अपितु अत्यल्प मात्रा में ही किया जाता है। इस कारण इनके अनुप्रयोग सीमित हैं। उधाहरणार्थ वैनेडियम, नायोबियम, टंगस्टन, मॉलिब्डेनम आदि।
उच्चतापसह धातु (Refractory metal)– वे धातुएँ जिनका गलनांक 1650°C से अधिक होता है। वास्तविक व्यापारिक महत्व की उच्चतापसह धातुएँ हैं– टंगस्टन (गलनांक 3410°C ) टैन्टेलम (गलनांक 2996°C ) मॉलिब्डेनिम (गलनांक 2610°C ) जर्कोनियम (गलनांक 1852°C ) और टाइटेनियम (गलनांक 1668°C ) इनमें से केवल टंगस्टन और मॉलिब्डेनम पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न किए जाते हैं। टैन्टोलम बहुमूल्य धातु है। विस्तृत अर्थ में क्रोमियम, कोबाल्ट और निकैल भी उच्चतापसाह धातुएँ मानी जाती हैं। इनका उपयोग उच्चतापसह मिश्रातुओं को बनाने में होता है।
प्रकीर्णित धातु (Scattered metal)– ये धातुएँ बहुत कम मात्रा में पृथ्वी की पपड़ी पर वितरित रहती है। इनके कोई अयस्क नहीं होते और ये कुछ अन्य धातुओं के निष्कर्षण में उपजात के रूप में प्राप्त होती है। जैसे जर्मेनियम, इंडियम, गैलियम, थैलियम, हैपिनयम आदि।
द्वितीय धातु (Secondary metal)– धातुकर्म के अपशिष्ट पदार्थों जैसे, उच्छिष्ट, धातुमल, धूल और घूम आदि से प्राप्त की गई धातुएँ।

Metal arc cutting-- धातु आर्क कर्तन

किसी आर्क से उत्पन्न गरमी द्वारा पिघलाकर धातुओं को काटना। यह आर्क धातु के इलेक्ट्रोड और अपधातु के बीच उत्पन्न किया जाता है।

Metal inert gas welding-- धातु अक्रिय गैस वेल्डिंग

देखिए– Inert gas welding

Metallic coating-- धात्विक विलेपन

अलंकृत करने, संक्षारणरोध बढ़ाने, कठोरता बढ़ाने, विद्युत गुणों में सुधार लाने और अन्य विशिष्ट प्रभावों को उत्पन्न करने के उद्देश्य से पृष्ठों पर धातुओं का लेप करना।

Metallic conductor furnace-- धात्विक चालक भट्टी

देखिए– Furnace के अंतर्गत Resistance type furnace

Metallic mould-- धात्विक साँचा

देखिए– Mould

Metallization-- धात्वीकरण

परिसज्जित आंशिक परिसज्जित अथवा घिसे उत्पादों पर धातु-फुहारन का प्रक्रम। धातु के बड़े टुकड़ों और निर्मित संरचनाओं पर धातु फुहारन किया जाता है। उपचारित की जाने वाली धातु, पपड़ी, जंग, ऑक्साइड और चिकनाई मुक्त होनी चाहिए। फुहारित धातु के ठीक प्रकार चिपकने के लिए उपचारित होने वाला पृष्ठ अधोकर्तित होना चाहिए जिसे गोलिका क्षेपष (Shot blasting) द्वारा प्राप्त किया जाता है।
संरक्षी-लेप उत्पन्न करने के लिए धातु पर ऐलुमिनियम, यशद, कांसा आदि का फुहारन किया जाता है। इसमें विशेष स्प्रेणन का उपयोग किया जाता है जो धातु को ऑक्सी-कोल गैस की ज्वाला में पिघलाकर संपीडित वायु प्रधार द्वारा छोटी-छोटी बूंदों के रूप में प्रक्षेपित करता है। इस प्रक्रम को धातुनिक्षेपण भी कहते है।
देखिए– Metal spraying भी

Metallizing-- धातु निक्षेपण

धातु-फुहारन, रासायनिक अथवा निर्वात निक्षेपण द्वारा किसी पदार्थ पर धातु की परत चढ़ाना।
देखिए- Mettallisation भी

Metallograph-- धातुचित्रक

अपारदर्शी पदार्थों के तैयार पृष्ठों को आँखों से देखने और फोटोग्राफ लेने का प्रकाशिक यंत्र। इसमें पृष्ठ का 25 से 1500 गुना आवर्धन किया जा सकता है।

Metallography-- धातुचित्रण

विज्ञान की वह शाखा जिसमें धातुओं की संरचना और संघटन का अध्ययन किया जाता है। यह प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी और इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी दोनों की सहायता किया जाता है। प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करने के लिए धातु के पृष्ठीय परतों को अपघर्षक संसिक्त कागज और कपड़े की मदद से पॉलिश किया जाता है। इस स्थिति में परीक्षण करने से दरारों, छिद्रों और अंतर्वेशी (Inclusions) का पता लगता है। उत्कीर्णक द्वारा पृष्ठ के उत्कीर्णन (Etching) से पृष्ठ की सूक्ष्म संरचना और सूक्ष्म दरारों का पता लगता है जो पॉलिश करने से अदृश्य हो जाती है।

Metalloid-- उपधातु

वे तत्व जिनके कुछ गुणधर्म धातुओं के समान और कुछ विशिष्ट गुणधर्म अधातुओं के समान होते हैं। उदाहरणार्थ बोरॉन, सिलिकन, जर्मेनियम, आर्सेनिक, ऐन्टिमनी, पोलोनियम और टेलुरियम।
इस्पात निर्माण में अल्प मात्रा में विद्यमान तत्वों जैसे कार्बन, सिलिकन, फॉस्फोरस और गंधक को भी उपधातु कहा जाता है।

Metallothermic-- धातुऊष्मिक प्रक्रम

धात्विक अपचायकों द्वारा धातुओं के ऑक्साइडों और हैलाइडों के अपचयन की विधि। ऑक्साइड और अपचायक के मिश्रण का घान के रूप में प्रयोग होता है जिसे थर्मिट कहते हैं। यह ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है जो जलने पर स्वतः होता रहता है। प्रमुख धातु ऊष्मक प्रक्रम निम्नलिखित है–
1. ऐलुमिनो ऊष्मिक प्रक्रम (Aluminothermic process)– गोल्डश्मिट द्वारा प्रस्तुत एक प्रक्रम जिसमें ऐलुमिनियम और लोह ऑक्साइड चूर्ण के मिश्रण को बेरियम परॉक्साइड के साथ मैग्नीशियम फ्यूज द्वारा जलाने पर प्रचंड अभिक्रिया होती है।
2AI + Fe₂O₃ → 2Fe + Al₂O₃
इस अभिक्रिया के फलस्वरूप ताप, 3000°C तक पहुँच जाता है। ऐलुमिनियम और लोह ऑक्साइड के मिश्रण को थर्माइट कहते हैं। यह विधि लोहे और इस्पात के बड़े-बड़े टुकड़ों पानी के जहाजों, शैफ्टों आदि के वेल्डन के काम में लाई जाती है। इस विधि का उपयोग क्रोमियम मैंग्नीशियम, जर्कोनियम आदि धातुओं को उनको ऑक्साइडों से पृथक करने और कम कार्बन युक्त फेरोमिश्रातु के उत्पादन में भी होता है। इसे गौल्डश्मिट प्रक्रम ऊष्मिक भी कहते हैं।
2. मैंग्नीशियो-कैल्सियोऊष्मिक प्रक्रम (Magnesio and calcio thermic process)– इसका उपयोग यूरेनियम, थोरियम, टाइटेनियम, जर्कोनियम, वैनेडियम आदि दुर्लभ धातुओं के उत्पादन के लिए होता है। इन धातुओं के हैलाइडों (फ्लुओराइडों और क्लोराइडों) अथवा ऑक्साइडों का मैग्नीशियम अथवा कैल्सियम द्वारा अपचयन किया जाता है।
3. सिलिकोऊष्मिक प्रक्रम (Silicothermic process)– डोलोमाइट से मैग्नीशियम के उत्पादन की विधि जिसे पिजन (Pidgeon) ने विकसित किया था। फेरोसिलिकन मिश्रित निस्तापित डोलोमाइट को निर्वात में रिटॉर्टो में गरम किया जाता है और अपचित मैंग्नीशियम वाष्प को द्रवित किया जाता है।

Metallothermic reduction-- धातुऊष्मिक अपचयन

देखिए– Metallothermic process

Metallurgical coke-- धातुकर्मीय कोक

कोयले के उच्चताप कार्बनीकरण से प्राप्त उत्पाद। इस प्रक्रम में वाष्पशील हाइड्रोकार्बन शुष्क आसवन से पृथक हो जाते हैं। अच्छा धातुकर्मीय कोक उसे कोयले से प्राप्त किया जाता है जिसमें 20 से 30 प्रतिशत के बीच वाष्पशील पदार्थ होता है। उन्नयित ताप पर धातुकर्मीय कोक की संपीडन सामर्थ्य (Compressive strength) बहुत अधिक होती है। इसका उपयोग धातुकर्मिकी भ्राष्ट्रों में ईंधन के रूप में ही नहीं बल्कि घान के भार को आधार देने में भी होता है। इसे उच्च ताप कोक भी कहते हैं।

Metallurgical microscope-- धातुकर्मीय सूक्ष्मदर्शी

धातुओं और मिश्रातुओं की स्थूल और सूक्ष्म संरचनाओं का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त प्रकाशिक यंत्र।
देखिए– Metallograph भी

Metallurgy-- धातुकर्मिकी

धातुओं का विज्ञान और प्रौद्योगिकी जिसके अंतर्गत धातुओं का उनके अयस्कों और अन्य गौण स्रोतों से निष्कर्षण और परिष्करण तथा धातुओं को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने में सहायक सभी प्रक्रम और प्रक्रियायें, जैसे धातु को विभिन्न रूप देना, मिश्रातुओं का निर्माण, वांछित भौतिक और यांत्रिक गुणधर्मी को प्राप्त करने के उद्देश्य से मिश्रातुओं और धातुओं का ऊष्मा-उपचार, धातुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन तथा उसका भौतिक और यांत्रिक गुणधर्मों के साथ संबंध, आदि आते हैं। धातुकर्म की प्रमुख शाखाएँ इस प्रकार हैं–
1. भौतिक धातुकर्मिकी (Physical metallurgy)– धातुकर्म की वह शाखा जिसका संबंध धातुओं और मिश्रातुओं की संरचना (क्रिस्टली, सूक्ष्म और स्थूल) तथा गुणधर्मो (भौतिक और यान्त्रिक) के पारस्परिक संबंध से है। इसके अंतर्गत धातुओं और मिश्रातुओं का धातु-चित्रण, ऊष्मा-उपचार तथा यांत्रिक-व्यवहार का अध्ययन होता हैं।
2. अनुप्रयोगी अथवा औद्योगिक धातुकर्मिकी (Adaptive or industrial metallurgy)– धातुकर्मिकी की वह शाखा जिसके अंतर्गत वे प्रक्रम और प्रक्रियाएँ आती हैं जिनके द्वारा अपरिष्कृत धातुकर्मी उत्पाद को परिष्कृत बिक्रीयोग्य उत्पाद में परिवर्तित किया जा सकता है। इसमें मिश्रात्वन, संचकन, बेलन, फोर्जन, कर्षण, प्रचक्रण (Spinning) वेल्डिंग आदि आते हैं। अनुप्रयोगी धातुकर्मिकी की उपशाखायें इस प्रकार हैं–
(क) संधानशाला (Foundry)– देखिए-अकारादि क्रम में।
(ख) चूर्ण-धातुकर्मिकी (Powder metallurgy)– देखिए अकारादि क्रम में।
(ग) यांत्रिक-धातुकर्मिकी (Mechanical metallurgy)– इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के यांत्रिक प्रतिबलों के प्रभाव में धातुओं और मिश्रातुओं के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें वे अभिरूपण प्रक्रम भी आते हैं जिनके द्वारा धातुओं और मिश्रातुओं का सुघट्य विरूपण (Plastic deformation होता है।
(घ) धातु-सम्मिलन (Metal joining)– धातुओं को जोड़ने के लिए प्रयुक्त प्रक्रम। इनके द्वारा धातुओं को ऊष्मा-स्रोत एवं पूरक-धातु (Filler metal) की मदद से अथवा उनके बिना जोड़ा जाता है। प्रयुक्त मुख्य तकनीक, वेल्डन, ब्रेजन और सोल्डरन हैं।
3. निष्कर्षण अथवा प्रक्रम-धातुकर्मिकी (Extractive or process metalurgy)– धातुकर्म की वह शाखा जिसका संबंध धातुओं का उनके अयस्कों और अन्य स्रोतों से निष्कर्षण और परिष्करण से है। निष्कर्षणी धातुकर्म की उप-शाखाएँ इस प्रकार हैं–
(क) खनिज सज्जीकरण (Mineral beneficiation)
देखिए– अकारादि क्रम में।
(ख) रासायिनिक धातुकर्मिकी (Chemical metallurgy)– निष्कर्षण धातुकर्मिकी की वह शाखा जिसका संबंध धातुओं को उनके सांद्रों, स्क्रेपों, औ अपशिष्टों आदि से निष्कर्षण और परिष्करण से हैं। रासायनिक धातुकर्म की शाखाएँ इस प्रकार हैं–
(1) उत्ताप-धातुकर्मिकी (Pyrometallurgy)– अपेक्षाकृत उच्च ताप पर धातुओं का उनके अयस्कों, सान्द्रों और दि्वतीयक स्रोतों से निष्कर्षण और परिष्करण। इसके अंतर्गत निस्तापन, भर्जन, प्रगलन, परिवर्तन, परिष्करण, आसवन आदि आते हैं।
(2) जल-धातुकर्मिकी (Hydrometallurgy)– जलीय प्रावस्था में अपेक्षाकृत कम ताप पर धातुओं का उनके अयस्कों, सांद्रों और द्वितीयक स्रोतों से निष्कर्षण और परिष्करण। इसके अंतर्गत, निक्षालन (Leaching) विलायक निष्कर्षण, आयन-विनिमय और विलयन से धातुओं की प्राप्ति आदि प्रक्रम आते हैं।
(3) विद्युत-धातुकर्मिकी (Electrometallurgy)– विद्युत की सहायता से धातुओं का उनके जलीय लवण विलयनों और गलित लवण विलयनों से निष्कर्षण और परिष्करण।
धातुकर्मिकी
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↓ ↓ ↓
भौतिक अनुकूली/ औद्योगिक निष्कर्षी/प्रक्रम धातुकर्मिकी
(Physical) (Adaptive/industrial) (Extractive process metallurgy)
↓ ↓
—————————————————– —————————————–
↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓
ढलाई चूर्णधातु कर्मिकी यांत्रिक धातुकर्मिकी वेल्डन खनिज सज्जीकरण रासायनिक
(Foundry) (Powder (Mechanical (Welding) (Meneral benefication) (Chemical)
metallurgy) metallurgy) ↓
——————————————————————-
↓ ↓ ↓
ताप धातुकर्मिकी जल धातुकर्मिकी वैद्युत धातुकर्मिकी
(Pyro metallurgy) (Hydro metallurgy) (Electro metallurgy)

Metal mould casting-- धातु साँचा संचकन

धातुओं और मिश्रातुओं को धातु के बने साँचों में ढालने का प्रक्रम।

Metal mould reaction-- धातु साँचा अभिक्रिया

उड़ेलते समय और बाद में पिंडन के समय ढाली जा रही धातु की साँचे के पदार्थ के साथ होने वाली अभिक्रिया।
देखिए– Burning भी।

Metal penetration-- धातु वेधन

देखिए– Casting defect के अंतर्गत

Metal replacement-- धातु प्रतिस्थापन

किसी धातु का अपने आयनी-विलयन से अधिक ऐनोडी धातु पर निक्षिप्त होना जिसके साथ-साथ ऐनोडी धातु का विलयन बन जाता है।

Metal spraying-- धातु-फुहारन

चूर्ण-प्रक्रम द्वारा घिसे बेयरिंग या अन्य पुर्जों पर फुहार द्वारा धातुओं को प्रक्षेपित करना। इस प्रक्रम में चूर्ण को गलनांक तक गरम किया जाता है। फुहार को हवा के झोंके द्वारा प्रक्षेपित किया जाता है। इस प्रक्रम में कम गलनांक वाली धातुओं और यूटेक्टिक मिश्रातुओं का उपयोग किया जाता है।
तुलना– Metallization

Metal weathering-- धातु अपक्षयन

(1) किसी अयस्क को लंबी अवधि तक वायुमंडल के संपर्क में रखना ताकि सल्फाइड का कम से कम एक भाग ऑक्सीकृत होकर वर्षा द्वारा धुल जाय।
(2) लोहे के संचकन से प्राप्त उत्पादों को छः माह तक स्टोर में अथवा खुले स्थान में रखना ताकि अवशिष्ट-प्रतिबलों (Residual stresses) में और फलस्वरूप बाद में मशीनन के समय विरूपण की मात्रा में कमी आ जाए। ये परिणाम संलोटन (Tumbling) द्वारा 30 मिनट में प्राप्त किए जा सकते हैं।

Metamorphism-- कायांतरण

आग्नेय तथा अवसादी शैलों में होने वाले रासायनिक तथा भौतिक परिवर्तन। ये परिवर्तन ऊष्मा और दाब के प्रभाव से होते हैं।

Metcolising-- मेटकोलन

ढलवाँ लोहे पर ऐलुमिनियम का संरक्षी लेप निक्षेपित करने का प्रक्रम। इसमें ऐलुमिनियम और एक विशिष्ट ‘मुद्रापक’ (Sealer) को फुहारन द्वारा प्रयुक्त कर पूरे का ऊष्मा उपचार किया जाता है। उत्पाद का प्रयोग उच्च ताप पर उपयोगी कार्यों के लिए किया जाता है जो अन्यथा संभव नहीं होता।
देखिए– Aluminising भी

Meyer index-- मेयर घातांक

किसी पदार्थ का कार्य-कठोरण के प्रति सुग्राहिता के फलन को व्यक्त करने वाला घातांक। इसमें भार P को, बॉल दंतुरक द्वारा उत्पन्न दंतुरता के व्यास (d) के प्रति आलेखित किया जाता है तथा मेयर घातांक (n) को निम्न सभीकरण द्वारा ज्ञात किया जाता है—
P=ᄉdⁿ
जिसमें ᄉ स्थिरांक है।
अधिकांश धातुओं के लिए इसका मान 2-25 तक होता है।

Mf temperature-- एम.एफ. ताप

वह ताप जिस पर ठंडा करते समय मार्टेन्साइट का बनना समाप्त हो जाता है।

Mica-- अभ्रक

विस्तृत रूप से वितरित शैल-रचक खनिजों का एक समूह जिनमें से कुछ व्यापारिक महत्व के हैं। पूर्ण आधारिक विदलन होने के कारण वे पतली प्रत्यास्थ प्लेटों में टूट जाते हैं तथा उनमें मौक्तिक और कभी-कभी काली धात्विक द्युति होती है। ये एकनताक्ष समुदाय में क्रिस्टलित होते हैं।
यह आग्नेय चट्टानों का आवश्यक अवयव है औऱ कुछ खनिज सिलिकेटों के परिवर्तन उत्पाद के रूप में पाया जाता है। प्रायः यह संकुल सिलिकेटों का वर्ग है जिसमें ऐलुमिनियम के ऑर्थोसिलिकेट और साथ ही पोटैशियम, सोडियम, लीथियम, हाइड्रोजन और मैग्नीशियम होते हैं। इनमें कभी-कभी Fe₂⁺ और Fe₃⁺ तथा बहुत कम मात्रा में रूबीडियम, सीजियम, क्रोमियम, मैंगनीज और बेरियम भी पाए जाते हैं। मुख्यतः इसका उपयोग विद्युतरोधी पदार्थ के रूप में, विद्युत मशीनी बनाने में होता है। पारदर्शक किस्म की अभ्रक का अपवर्तनांक 1.58–1.60 होता है और अभ्रक तीव्र द्वि अपवर्तनीय (Double refractive) होता है कठोरता 2.3, आपेक्षिक घनत्व 2.7–3.1।

Micro alloy steel-- सूक्ष्म मिश्रातु इस्पात

देखिए– Alloy steel

Microanalyser-- सूक्ष्म विश्लेषित्र

एक उपकरण जिसमें इलेक्ट्रॉनों का एक छोटा किरणपुंज नमूने के निश्चित अथवा क्रमवीक्षित (Scanned) क्षेत्रों पर टकराया जाता है जिससे अभिलाक्षणिक X- किरणें उत्सर्जित होती हैं। उन किरणों के स्पेक्ट्रमदर्शी परीक्षण से तत्वों की उपस्थित और मात्रा का पता लगता है।

Microcast process-- सूक्ष्म संचक प्रक्रम

एक यथार्थ संनिवेश संचकन (Precision investment casting) तकनीक जिसे अमशीननीय मिश्रातुओं के संचकन के लिए आरंभ किया गया था। अब इसका उपयोग अन्य मिश्रातुओं के लिए भी होता है।

Microconstituent-- सूक्ष्म घटक

सूक्ष्मदर्शी द्वारा किसी पॉलिश किए गए और उत्कीर्ण नमूने में प्रेक्षित सूक्ष्म संरचना वाले अवयव। उदाहरणार्थ फेराइट, सीमेंटाइट, आस्टेनाइट और मार्टेन्साइट।

Microetching-- सूक्ष्म रसोत्कीर्णन

सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रेक्षण के लिए नमूनों का रसोत्कीर्णन करना।

Microhardness-- सूक्ष्म कठोरता

किसी मिश्रातु के भिन्न-भिन्न घटकों की कठोरता के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द अर्थात ठोस विलयनों अथवा अन्य उपस्थित प्रावस्थाओं के छोटे कणों के स्थानगत क्षेत्रों की कठोरता। यह कठोरता अत्यंत कम भारों पर और हीरक पिरैमिड दंतुरकों का प्रयोग करके निर्धारित की जाती है।

Microhardness testing-- सूक्ष्म कठोरता परीक्षण

सामान्यतया 1–250 ग्राम भार के बीच कठोरता का परीक्षण करना जिसे धातुकर्मिकी सूक्ष्मदर्शी अथवा विशिष्ट रूप से निर्मित उपकरण द्वारा किया जाता है। दंतुरण का काम विकर्ज हीरक-पिरैमिड अथवा नूप दंतुरक द्वारा किया जाता है। किसी सूक्ष्म-संरचना में पृथक घटकों का परीक्षण किया जाता है और प्रयुक्त भार और दंतुरण-क्षेत्रफल का अनुपात कठोरता संख्या (Hv) को व्यक्त करता है।
विकर्जदंतुरक के लिए:
1854.4 x P
Hϒ = ——————–
d2
जिसमें P= (ग्रामों में) भार और d= (माइक्रानों में) औसत विकर्ण लंबाई है।

Microfissure-- सूक्ष्म विदर

इस्पात वेल्ड धातु में पाए जाने वाले छोटे छोटे अंतर्कणिक संविदार (Intergranular ruptures) जो बहुधा पुनर्क्रिस्टलित वेल्ड धातु में पाए जाते हैं। ये विशेष रूप से न्यून-कार्बन-इस्पातों के बहु-मनका वेल्डन (Multiple bead welding) में और जिन स्थानों में अंतरापारण ताप (Interpass temperature) नहीं बढ़ने दिया जाता है वहाँ पाए जाते हैं। इनके बनने का कारण एक साथ पुनर्क्रिस्टलन और प्रतिबल-चक्र का होना है। पुनर्क्रिस्टलन ताप औऱ ताप-प्रवणता-प्रतिबल पर कण-सीमाओं में न्यून संसंजक सामर्थ्य इस परिघटना के लिए पर्याप्त होते हैं। सूक्ष्म विदरों के कारण तनन-सामर्थ्य और तन्यता कम हो जाती है।
तुलना- Hairline crack

Micro-sclerometer-- सूक्ष्म कठोरतामापी

धातुकर्मिकी-सूक्ष्मदर्शी में प्रयोग के लिए बनाया गया सूक्ष्म कठोरता परिक्षित्र। मुद्रांक के लिए उपयुक्त क्षेत्र चुनने के बाद नमूने को हटाए बिना सुक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक के स्थान पर सूक्ष्म कठोरदर्शी लगा दिया जाता है। नमूने सहित सूक्ष्मदर्शी मंच को एक निश्चित भार पर, स्प्रिंग-भारित हीरक दंतुरक द्वारा वेधित किया जाता है। तत्पश्चात् एक उच्च शक्ति अभिदृश्यक की सहायता से मुद्रांक का विस्तार माप लिया जाता है जो नमूने की कठोरता को बतलाता है।

Microscope-- सूक्ष्मदर्शी

देखिए– Metallurgical microscope

Microsegregation-- सूक्ष्म संपृथकन

देखिए– Segregation

Microstructure-- सूक्ष्मसंरचना

उपयुक्त पॉलिशन और उत्कीर्णन के कारण विकसित किसी धातु अथवा मिश्रातु की विस्तृत संरचना जो सूक्ष्मदर्शी द्वारा 15 गुना या उससे अधिक आवर्धित किए जाने पर व्यक्त होती है। सूक्ष्म संरचना, पदार्थ की कणिक संरचना और उसमें विद्यमान विभिन्न प्रावस्थाओं और अधात्विक अंतर्विष्टों को प्रकट करती है।
तुलना– Microstructure

Middlings-- मध्यक

खनिज-सज्जीकण संक्रिया का उत्पाद जिसकी कोटि सांद्र और पुच्छन के बीच की होती है। ये अपूर्ण पृथक्करण अथवा अवचूर्णन के समय गैंग से वैल्यू के अपूर्ण विमोचन के कारण प्राप्त होते हैं। इनका या तो पुनः उपचार किया जाता है अथवा इन्हें निम्न कोटि के सांद्र के रूप में बेच दिया जाता है।

MIG (metal inert gas welding)-- एम.आई. जी (धातु अक्रिय गैस) वेल्डिंग

मेटल इनर्ट गैस (धातु- ‘अक्रिय-गैस’ ) के अद्याक्षरों से व्युत्पन्न नाम वेल्डिंग के इस प्रक्रम में उपभोज्य इलेक्ट्रोड युक्त आर्गन आर्क का प्रयोग होता है। इसके विपरीत टी.आई. जी. (टंगस्टन इनर्ट गैस) वेल्डिंग में अनुपभोज्य टंगस्टन इलेक्ट्रोड का प्रयोग होता है।
तुलना- TIG welding
देखिए– Welding भी

Mild steel-- मृदु इस्पात

उन इस्पातों के लिए प्रयुक्त नाम जिनमें कार्बन की मात्रा बहुधा 0.25 प्रतिशत से कम होती है। इसके नाम मृदु कार्बन इस्पात, न्यून इस्पात आदि भी है। कार्बन की मात्रा के अनुसार इस्पातों का वर्गीकरण सुविधा के लिए किया जाता है।

Miller-Bravais indices-- मिलर ब्रैवेस घातांक

षट्कोणीय संरचनाओं की परिभाषाओं को स्पष्ट करने के लिए मिलर घातांक की तुलना में चौथा धातांक प्रविष्ट करने की आवश्यकता होती है। इस पद्धति में a, a2, a3, अक्ष एक दूसरे के सापेक्ष 120° और C-अक्ष पर लंबवत स्थित होते हैं। a1, a2, a3अक्ष समान लंबाई वाले और एक ही तल पर होते है।

Miller indices-- मिलर घातांक

क्रिस्टल-तलों और स्थितियों को निर्दिष्ट करने की युक्ति। कोई स्थिति और दिशा ध्रुव से तीन अक्षों पर अल्पतम अंतः खंडों (Intercepts) द्वारा व्यक्त की जाती है। क्रिस्टल-तलों के लिए ये घातांक तीन क्रिस्टल -अक्षों के तल की परिमितियों (a, b, और c) द्वारा व्यक्त किए जाते हैं। ये अंतः खंडों के व्युतक्रमों के समानुपाती अल्पतम अंक होते हैं और h, k, l द्वारा व्यक्त किए जाते हैं।

Millerite-- मिलेराइट

प्रकृति में पाया जाने वाला निकैल सल्फाइड, Nis, जो निकैल और कोबाल्ट के अन्य खनिजों के साथ पाया जाता है। प्रायः इसमें कोबाल्ट, तांबा और लोहे की अल्प मात्राएँ भी पाई जाती हैं। यह षट्कोणीय समुदाय में क्रिस्टलित होता है और इसके क्रिस्टल पतले केशिका के समान होता हैं। कठोरता 3-3.5 आपेक्षिक घनत्व 4.6-5.6।

Milliscope-- मिलीदर्शी

एक उपकरण जो गरम किए जा रहे धातुओं का पूर्व निर्धारित ताप पहुँचने पर विद्युतु-सूचना देता है। उसे इस प्रकार का भी बनाया जा सकता है कि वह तापक की गति का, तेल सर्वोयांत्रिक विधि द्वारा या विद्युत द्वारा शीघ्र स्वतः नियंत्रण करे ताकि किसी भी घटक का एक समान तापन हो सके।

Mill scale-- मिल शल्क

ऐसे पिटवाँ धातु-उत्पादों पर बनी मोटी ऑवसाइड परत जिन्हें तप्त बेल्लित अथवा फोर्जित कर हवा में ठंडा किया गया हो। यह शब्द मुख्यतः इस्पातो के लिए प्रयुक्त होता है जिन पर बनी पपड़ी मुख्यतः चुंबकीय काला ऑक्साइड (मैग्नेटाइट Fe₃O₄) होता है। यदि यह परत पतली और सतत हो तो यह संक्षारण के प्रति सुरक्षा प्रदान करती है। यदि इस पपड़ी पर कहीं-कहीं दरारें पड़ी हो तो वहाँ संक्षारण होने लगता है क्योंकि यह इस्पात के प्रति, कैथोडी होती है। इसे बेलन शल्क भी कहते हैं।
तुलना– Hammer scale

Mineral-- खनिज

वह पदाथ जिसका निश्चित रासायनिक संघटन और परमाणु-संरचना होती है और जो प्रकृति में अकार्बनिक प्रक्रमों द्वारा बनता है।

Mineral benefication-- खनिज सज्जीकरण

देखिए– Mineral dressing

Mineral dressing-- खनिज प्रसाधन

भौतिक अथवा भौत रासायनिक प्रक्रमों द्वा गैंग के कुछ अंश को पृथक कर खनिजों की सांद्रता बढ़ाना। इसके लिए सांद्र और गैंग के गुणधर्मों में भिन्नता का लाभ उठाया जाता है। इसके अंतर्गत अवचूर्णन (Communication) साइजन, संपिडन, सान्द्रण आदि प्रक्रम आते हैं। इसे अयस्क निर्मित अथवा खनिज सज्जीकण भी कहते हैं।

Mineral wool-- खनिज उर्ण

धातुमल-उर्ण (Slag wool)– सहित अनेक उत्पादों के लिए प्रयुक्त शब्द। यह वात्या भट्टी से प्राप्त धातुमल में भाप धोंकने से बनता हैं।

Mineral alloy-- दर्पण मिश्रातु

ताम्र मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें 35%, जस्ता, 10–35% वंग और अल्प मात्र में निकैल अथवा ऐन्टिमनी, सीसा, सिलिकन और प्लैटिनम होते हैं। ये उत्तम परावर्तक और संक्षारणरोधी होते हैं। इनका उपयोग खगोलीय दुरबीन, वैज्ञानिक यंत्रों और सामान्य प्रकाशिक उपकरणों में होता हैं।

Misch metal-- मिश धातु

एक स्वजलनी मिश्रातु जिसमें 40–50 सीरियम, 20–40 लैंथेनम और शेष इट्रियम और युरोपियम होता है।

Misco-alloy-- मिस्को मिश्रातु

निकैल मिश्रातुओं की श्रेणी जिनमें निकैल के अतिरिक्त क्रोमियम, लोहा और अल्पमात्रा में कार्बन होता है। ये ऊष्मा और संक्षारणरोधी होते हैं। इनका उपयोग तापयुग्म आच्छद आदि में किया जाता है।

Mis-metch (shift)-- कुमेल

देखिए– Casting defect

Misrun-- कुघावित

देखिए– Casting defect

Mitsubishi process-- मित्सुविशी प्रक्रम

सीघे सांद्र से ताबे उत्पादन का सतत त्रिपद प्रक्रम। इसमें ऑक्सीजन समृद्ध वायु (30% ऑक्सीजन) द्वारा सांद्र के प्रगलन से उच्च कोटि का मैट प्राप्त किया जाता है। मैट और धातुमल को एक साथ निकाल कर विद्युत धातुमल-शोधन-भ्राष्ट्र में उपचार किया जाता है। धातुमल और मैट में पायराइट मिलाने पर जो धातुमल प्राप्त होता है। उसमें 0.5% तांबा होता है। ऑक्सीजन समृद्ध वायु (25% ऑक्सीजन) और कैल्सियम कार्बोनेट गालक का उपयोग कर विद्युत भाष्ट्र से प्राप्त मैट को परिवर्तित्र में डालकर तांबे में बदल दिया जाता है। परिवर्तित्र से प्राप्त धातुमल को (जिसमें 10–15% तांबा होता है। पिंडित कर पुनः प्रगलन भ्राष्ट्र में भेजा जाता-है। तीनों भ्राष्ट्र आपस में सोपान के रूप में क्रमबद्ध रहते हैं जिसमें मैट और धातुमल लगातार बहता रहता है। परिवर्तित्र से प्राप्त धातुमल पूर्णतया क्षारकीय होता है। जबकि एक पद प्रक्रम से प्राप्त धातुमल में 25–30% सिलिका होता है। फलस्वरूप उत्पन्न फलोलेदार तांबे में गंधक की मात्रा कम होती है और अपेक्षाकृत कम धातुमल बनता है।

Mixed blast process-- मिश्र वात्या प्रक्रम

क्षारकीय बेसेमर प्रक्रम का संशोधित रूप जिसमें वात्या में से लगभग संपूर्ण नाइट्रोजन निकाल दी जाती है। वात्या में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड अथवा ऑक्सीजन और अतितप्त भाप का मिश्रण होता है। ऐसा माना जाता है कि ऑक्सीजन और अतितप्त भाप का बना वात्या अधिक क्षमतापूर्ण होता है। अंत में धातु में नाइट्रोजन की मात्रा 0.0028 प्रतिशत रह जाती है।

Mixer-- मिश्रक

एक बड़ा पात्र जो धमन भट्टी से आने वाले पिघले कच्चे लोहे के लिए कुंड का काम करता है। इसमें कई भट्टियों के उत्पादों को परस्पर मिलाया जा सकता है और उपयुक्त पदार्थों को मिलाकर मिश्रण के संघटन को नियमित किया जा सकता है। इसका उपयोग तप्त-धातु-इस्पात-निर्माण और कच्चे लोहे को सीधे ढालने के लिए होता है।

Mixer metal-- मिश्रक धातु

वात्या भट्टी से मिलने वाला पिघला लोहा जिसे तप्त-धातु-प्रक्रम के लिए ओपेन हार्थ भ्राष्ट्र में स्थानांतर करने से पहले अथवा बेसेमर भ्राष्ट्र और क्षारकीय ऑक्सीजन परिवर्तित्र में स्थानांतर करने से पहले किसी मिश्रण-पात्र में रखा जाता है।

Mock gold-- कूट स्वर्ण

एक ताम्र मिश्रातु जिसमें 71% तांबा 4% जस्ता और 25% प्लैटिनम होता है सुंदर आकर्षक रंग तथा संक्षारणरोधी होने के कारण इसका उपयोग सोने के स्थान पर आभूषणों को बनाने के लिए होता हैं।

Mock platinum-- कूट प्लैटिनम

एक जस्ता मिश्रातु जिसमें 55% जस्ता और 45 तांबा होता है। यह आकर्षक रंग वाला और संक्षरणरोधी होता है। इसका उपयोग प्लैटिनम के स्थान पर सस्ते आभूषण बनाने में किया जाता हैं।

Mock silver-- कूट रजत

एक ऐलुमिनियम रजत जिसमें 84.2% ऐलुमिनियम, 10.2% वंग, 0.1% फास्फोस और शेष तांबा होता है। इसका आकर्षक रंग होता है और यहबदरंग नहीं होता है। सस्ते आभूषणों को बनाने में इसका उपयोग रजत के स्थान पर होता है।

Moebius cell-- मोबियस सेल

देखिए– Moebius Process

Moceius process-- मोबियस प्रक्रम

चाँदी बुलिअन के परिष्करण के लिए प्रयुक्त एक विद्युत-अपघ