विक्षनरी:अन्तरराष्ट्रीय विधि परिभाषा कोश

  • abandonment of territory -- भूभाग का परित्याग
वह स्थिति जिसमें किसी राज्य द्वारा अपने प्रदेश के किसी भूभाग पर राज्यसत्ता के अधिकारों के प्रयोग न किए जाने के कारण वह भूभाग उसके द्वारा परित्यक्त मान लिया जात है।
कच्छ के रण के विवाद में दिए गए पंच निर्णय में इस सिद्धांत का विस्तृत विवरण दिया गया है ।
  • ABC weapons -- दे. Dereliction भी।
परमाणु, जीवाणु तथा रासायनिक आयुध, ए.बी.सी. शास्त्रास्त्र
परमाणविक, जैवीय तथा रासायनिक आयुध जो जनसंहारक माने जाते हैं । इस प्रकार के आयुधों के प्रयोग के नियंत्रण तथा निषेध के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय निरंतर प्रयत्नशील रहा है । 1925 का जेनेवा प्रोटोकोल जैवीय और रासायनिक शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रयास था ।
  • abduction -- अपहरण
किसी राज्य के किसी अभिकरण या व्यक्ति / व्यक्तियों द्वारा किसी अन्य राज्य से, उस राज्य की सहमति लिए बिना, किसी व्यक्ति को बलपूर्वक या छलपूर्वक उठाकर ले जाना । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार ऐसा कृत्य राज्य की भूभागीय प्रभुसत्ता का उल्लंघन है । इसका विख्यात उदाहरण अर्जेन्टीना की भूमि से नाजी युद्ध अपराधी ऐडोल्फ आइख़मेन का अपहरण करके इज़रायल को सौंप देना था । अर्जेन्टीना की शिकायत पर सं.रा. सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित करके कहा कि यह कार्य सदस्य राज्य की प्रभुसत्ता का उल्लंघन है और चार्टर के विरूदध है इसलिए इज़रायली सरकार को चार्टर के अनुरूप अर्जेन्टीना को क्षतिपूर्ति करनी चाहिए ।
  • absolute contraband -- पूर्णा विनिषिद्ध वस्तुएँ
युद्ध में प्रयुक्त होने वाले या युद्ध के प्रयोजनीय वे पदार्थ जिनका युद्धकाल में गमनागमन किसी युद्धकारी राज्य द्वारा पूरी तरह वर्जित उद्घोषित किया गया हो । विशुद्ध रूप से युद्ध में काम आने वाली सभी ऐसी वस्तुएँ (जैसे अस्त्र – शास्त्र, उपकरण आदि) जिनको शुत्रु देश को ले जाए जाने पर युद्धकारी सार्वजनिक घोषणा द्वारा प्रतिबंध लगा सकता है और ऐसी सामग्री ले जाने पर वाहक जलपोत के विरूद्ध दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है ।
  • absolute dominion -- पूर्ण आधिपत्य
किसी क्षेत्र, प्रदेश या भूखंड विशेष पर निर्दवद्व, निर्बाध और निरंकुश स्वामित्व या प्रभुत्व होना ।
  • absolute neutrality (= perfect neutrality) -- पूर्ण तटस्थता
युद्धकाल मे युद्धकारी पक्षों में से किसी भी पक्ष को किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहायता न देना ।
  • absolute sovereignty -- पूर्ण संप्रभुता, पूर्ण प्रभुसत्ता
अमर्यादित अविभाज्य तथा निरपेक्ष शासनाधिकार अथवा राज्यशक्ति ।
  • absolute theory of state immunity -- राज्य की निरपेक्ष उन्मुक्ति का सिद्धांत, राज्य की पूर्ण उन्मुक्ति का सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार संप्रभुता संपन्न राज्यों को विदेशों में स्थानीय क्षेत्राधिकार अर्थात स्थानीय न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से परे माना जाता है और दीवानी अथवा फौजदारी किसी भी मामले में उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती । वर्तमान काल में व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्रों में राज्यों की प्रत्यक्ष गतिविधियों के कारण अब यह सर्वथा स्वीकार किया जाता है कि राज्य को उसके आर्थिक तथा व्यापारिक कार्यों के लिए स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति नहीं दी जानी चाहिए ।
  • absolute veto -- पूर्ण निषेधाधिकार
निर्णय – प्रक्रिया में किसी एक सदस्य का ऐसा नकारात्मक मत जो अन्य सहस्यों के निर्णय को निरस्त कर दे । उदाहरणार्थ, सुरक्षा परिषद् में किसी निर्णय के लिए पाँचों महाशक्तियों का सहमत होना आवश्यक है और किसी एक भी शक्ति का नकारात्मक मत अंतिम रूप से निर्णायक हो जाता है । ऐसे नकारात्मक मत को पूर्ण निषेधाधिकार कहा जाता है ।
  • abuse of flag -- ध्नज का दुरूपयोग,
ध्वज का अनधिकृत प्रयोग
किसी पोत, जहाज, नौका, जलयान आदि द्वारा अनधिकृत या अवैध रूप से किसी अन्य देश के ध्वज का प्रयोग । ऐसा बहुधा युद्धकाल में युद्धकारियों या शत्रु देश के जलपोतों को धोखा देने के लिए किया जाता है ।
  • accession -- अधिमिलन
(क) संघ, परिसंघ या महासंघ में शामिल होना ।
(ख) किसी राज्य द्वारा अन्य राज्यों द्वारा निष्पादित अनुबंध या संधि पर अपने हस्ताक्षर करके उसे स्वीकार कर लेने की प्रक्रिया । इसके द्वारा वह उसकी व्यवस्थाओं का अनुपालन करने के लिए बचनबद्ध हो जाता है ।
  • accession clause -- अधिमिलन खंड
किसी संधि में हस प्रकार का खंड जिसके अनुसार संधि के निष्पादित होने पर, अन्य राज्य भी अधिमिलन की प्रक्रिया से इसमें भागीदार हो सकते हैं ।
  • accreditation -- प्रत्यायन
राज्य द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, संगठनों अथवा अन्य राज्यों को प्रतिनिधि अथवा राजदूत नियुक्त करने एवं तत्संबंधी अधिकार प्रदान करने की क्रिया ।
  • accredited agent -- प्रत्यायित एजेंट
एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के लिए नियमित रूप से अथवा विशेष प्रयोजन के लिए नियुक्त प्रतिनिधि ।
  • accretion -- उपचय, अभिवृद्धधि
राज्य के वर्तमान प्रदेश मे प्राकृतिक कारणों से अथवा भूमि उद्धार कार्यक्रमों के फलस्वरूप होने वाली वृद्धि । इस प्रकार की अभिवृद्धि बहुधा नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी, समुद्र के पीछे हटने, नदियों के मुहाने पर डेल्टा बनने अथवा भूभागीय समुद्र मे टापुओं के उभरने से हो सकती है । इसके अतिरिक्त तटवर्ती समुद्र के सुखाने से भी अनेक देशों में अतिरिक्त भूमि प्राप्त की गई है जैसे नीदरलैंड्स और भारत (बंबई ) में । इस प्रकार प्राप्त अतिरिक्त भूमि संलग्न राज्य का ही अभिन्न भाग मानी जाती है ।
  • Acheson Plan -- एचेसन योजना
1946 में संयुक्त राष्ट्र आणविक ऊर्जा आयोग के समक्ष प्रस्तुत आणविक शक्ति के नियंत्रण वं निरस्त्रीकरण से संबंधित एक प्रस्ताव जो विशिष्ट सलाहकारों की एक परिषद की संस्तुतियों पर आधारित था । इसे एचेसन लिलिथल रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है । इस प्रस्ताव में अमेरिकी सरकार ने निम्नलिखित शर्तों पर एक अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था के अंतर्गत अपने आण्विक अस्त्रों के एकाधिकार का परित्याग करना स्वीकार किया था :-
(1) नाभिकीय ऊर्जा शक्ति के विकास एवं उपयोग की अवस्थाओं के नियंत्रण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय आणविक विकास प्राधिकरण की स्थापनाः
(2) उपर्युक्त प्राधिकरण को निरीक्षण का असीमित अधिकार दिया जाना ताकि प्रस्तावित व्यवस्था के उल्लंघनों को रोका जा सकेः
(3) प्राधिकरण की स्थापना के उपरांत आणविक अस्त्रों के निर्माण पर प्रतिबंध एवं वर्तमान अणविक अस्त्रों के संपूर्ण भंडारों को नष्ट किया जानाः तथा
(4) संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में निषेधाधिकार की समाप्ति ताकि कोई महाशक्ति व्यवस्था का उल्लंघन करने पर दंड से बच न सके । इसे बारूक योजना (Baruch Plan) भी कहा जाता है ।
  • acquiescence -- मौन सहमति
किसी राज्य द्वारा किसी कार्य अथवा आचरण संबंधी नियम का बिना उसके प्रति स्पष्ट सहमति घोषित किए , व्यवहार में अनुपालन करना उस राज्य की उस नियम या कार्य के प्रति मौन सहमति माना जाता है । इस नियम का विरोध न करना भी मौन सहमति के तुल्य समझा जाता है ।
  • acquired rights -- अर्जित अधिकार
राज्य मे रहने वाले व्यक्तियों द्वारा स्थापित कानून के अंतर्गत प्राप्त संपत्ति सबंधी तथा अन्य अधिकार जिनकी प्राप्ति के पीछे कोई असद्भाव न हो । अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से इस अवधारणा का महत्व यह है कि राज्य परिवर्तन होने की दशा में उत्तराधिकारी सत्ता के लिए भी ये अधिकार बाध्यकारी होते हैं ।
  • acquisition of citizenship -- नागरिकता अर्जन
किसी व्यक्ति द्वारा किसी विदेशी राज्य की निर्धारित शर्तों को पूरा करके उसकी नागरिकता प्राप्त करना। इसके संबंध में विभिन्न राज्यों ने विभिन्न सिद्धांत अपनाए हैं । जो सिद्धांत इस समय सबसे अधिक प्रचलित हैं वे इस प्रकार हैं :-
(1) जन्म सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार कोई भी व्यक्ति उस राष्ट्र का नागरिक माना जाता है जिस राष्ट्र की भूमि पर उसका जन्म हुआ है ।
(2) रक्त सिद्धांत: इसके अनुसार व्यक्ति की नागरिकता उस देश की मानी जाती है जो उसके माता – पिता की हो ।
(3) देशीयकरण: (क) इस सिद्धांत के अनुसार यदि किसी स्त्री का विवाह किसी अन्य देश के नागरिक से होता है तो उस स्त्री को पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है ।
(ख) कुछ राज्य आवेदन करने और निर्धारित शर्तें पूरी करने पर दूसरे देश के किसी नागरिक को अपनी नागरिकता प्रदान पर सकते हैं।
(4) विजेता राष्ट्र की नागरिकता: यदि की देश किसी राज्य पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है तो विजित राष्ट्र के नागरिक विजेता राष्ट्र के नागरिक माने जाते हैं ।
(5) अर्पित राज्य: यदि कोई राज्य अपने भूभाग का कोई हिस्सा किसी अन्य राज्य को सौंप देता है तो अर्पित में बसने वाले नागरिक उस राज्य के नागरिक हो सकते हैं जिसमें कि उस भूभाग को सम्मिलित किया गया है ।
  • acqistion of nationality -- राष्ट्रिकता अर्जन
दे. acquisition of citizenship.
  • acquisition of territory -- प्रदेश अर्जन
किसी राज्य द्वारा नए भूभागों को प्राप्त करके अपने प्रदेश का भाग बनाने की प्रक्रिया । इसके निम्नलिखित उपाय हैं :-
(1) आधिपत्य: किसी स्वामीविहीन क्षेत्र में प्रवेश करके उस पर अपनी राजसत्ता स्थापित करना ।
(2) चिरभोग: दीर्घकाल तक ऐसे भूभाग पर अपनी वास्तविक प्रभुसत्ता बनाए रखना जिसके वैध स्वामी का पता न हो अथवा जिसके मूल स्वामी ने वहाँ स्थापित प्रभुसत्ता के विरूद्ध कोई आपत्ति न की हो अथवा दीर्घसमय से आपत्ति करना बंद कर दिया हो । समय के बीतने से वास्तविक प्रभुसत्ता वैध प्रभुसत्ता में परिवर्तित हो जाती है ।
(3) उपचय: प्राकृतिक कारणों से किसी राज्य के भूभाग में वृद्धि हो जाना ।
(4) अर्पण: एक राज्य द्वारा किसी प्रदेश पर विद्यमान अपना अधिकार किसी दूसरे राज्य को प्रदान कर देना ।
(5) विजय: युद्ध में सैनिक शक्ति द्वारा शत्रु को पराजित कर उसका प्रदेश अपनी प्रभुसत्ता में ले लेना ।
  • acquisitive prescription -- अर्जनात्मक चिरभोगाधिकार
कुछ अंतर्राष्ट्रीय विधिवेत्ताओं के अनुसार यदि कोई राज्य किसी अन्य संप्रभु राज्य के भूभाग पर अल्पावधि अथवा दीर्घावधि तक कोई प्रशासनिक या अन्य किसी प्रकार के कार्य करता रहता है और यदि मूल स्वामित्व वाला राज्य उस पर आपत्ति नहीं करता है तो ऐसे राज्य को अर्जनात्मक चिरभोगाधिकार प्राप्त हो जाता है । किन्तु किसी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण ने इस सिद्धांत को मान्यता देकर इसकी पुष्टि नहीं की है ।
  • acte finale (=final act) -- वृत्तसार
किसी अभिसमय के लिए बुलाए गए किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अंतिम कार्यवाही का संक्षिप्त विवरण पत्र। इसमें सम्मेलन के विचारार्थ विषयों, भाग लेने वाले राज्यों या राज्याध्यक्षों तथा विचार – विमर्श में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के नामों और सम्मेलन द्वारा अपनाए गए उन संकल्पों, घोषणाओं तथा सिफारिशों का उल्लेख होता है जिन्हें अभिसमय के उपबंधों के रूप में शामिल नहीं किया गया है । कभी – कभी इसमें स्वीकृत अभिसमय के प्रावधनों की व्याख्या भी दी गई होती है । वृत्तसार पर हस्ताक्षर तो होते हैं परन्तु प्रायः इनके अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होती । ऐसे उदाहरण भी है जहाँ ये वृत्तसार वास्तव में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि का ही रूप बन गए जैसे अगस्त, 1933 में लंदन में हुए गेहूँ का आयात और निर्यात करने वाले देशों के सम्मेलन का वृत्तसार ।
  • action copy
(=substantive copy) -- मूल प्रतिलेख
राजनयिक वाद -विवाद, चर्चा, वार्ता आदि का प्रतिलेख जिसमें चर्चित विषय पर सहमति – असहमति अथवा अन्य नीति विषयक बातों का उल्लेख होता है।
  • active nationality principle -- सक्रिय राष्ट्रिकता सिद्धांत
क्षेत्राधिकार के दो मूल सिद्धांत हैं यथा प्रादेशीयता सिद्धांत तथा राष्ट्रिकता सिद्धांत । राष्ट्रिकता सिद्धांत के भी दो भेद हैं सक्रिय राष्ट्रिकता सिद्धांत और परोक्ष राष्ट्रिकता सिद्धांत ।
सक्रिय राष्ट्रिकता सिद्धांत के अनुसार अपचारी व्यक्ति का राज्य उसकी नागरिकता के आधार पर क्षेत्राधिकार का दावा कर सकता है ।
परोक्ष राष्ट्रिकता सिद्धांत के अनुसार उसी घटना मे क्षतिग्रस्त व्यक्ति का राज्य भी अपने राष्ट्रिक की नागरिकता के आधार पर क्षेत्राधिकार का दावा कर सकता है ।
लोटस के मामले में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने तुर्की के क्षेत्राधिकार के दावे को स्वीकार करने मे इसी सिद्धांत का सहारा लिया था ।
  • act of aggression -- आक्रामक कार्य
किसी राज्य द्वारा किसी दूसरे राज्य के विरूद्ध किया गया सशस्त्र सैनिक बल प्रयोग जिससे उसकी प्रादेशिक अखंडता या राजनैतिक स्वतंत्रता एवं संप्रभुता का हनन हो । वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार इस प्रकार का आक्रमण अवैध माना जाता है ।
  • act of belligerency -- युद्धात्मक कार्य
किसी राज्य द्वारा दूसरे राज्य के विरूद्ध सशस्त्र सैनिक बल प्रयोग जिससे युद्धावस्था उत्पन्न हो सकती है। कभी – कभी किसी देश मे गृह युद्ध की स्थिति में भी विद्रोह की कार्रवाइयों को युद्धात्मक कार्य के रूप में मान्यता दी जा सकती है ।
  • act of espionage -- गुप्तचर कार्य
किसी राज्य द्वारा किसी दूसरे राज्य के भेदों (मानचित्रों, प्रपत्रों आंकड़ों, योजनाओं आदि) को गुप्त रूप से विभिन्न वैध – अवैध युक्तियों द्वारा प्राप्त करने का कार्य ।
  • act of hostility -- शत्रुतापूर्ण कार्य
किसी राज्य द्वारा किसी दूसरे राज्य के प्रति किया गया आचरण जिसे दूसरा राज्य अवैध या अनुचित और अपने लिए हानिकारक मानता हो, जिसे वह उस राज्य के विरूद्ध बल – प्रयोग करने का पर्याप्त आधार मान सकता हो और जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य युद्ध की स्थिति हो सकती है ।
  • act of state -- राज्य कृत्य
किसी राज्य द्वारा किए गए ऐसे कार्य जिनकी वैधता को किसी अन्य राज्य के न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करना उस राज्य की प्रभुसत्ता पर प्रहार करना होगा। विदेशी संपत्ति के राष्ट्रीयकरण से क्षतिग्रस्त व्यक्तियों एवं निगमों द्वारा उठाए गए वादों पर न्यायालयों ने यह दृष्टिकोण अपनाया है कि वे किसी विदेशी सरकार द्वारा अपने प्रादेशिक क्षेत्राधिकार में किए गए कार्यों की वैधता की जाँच करने मे सक्षम नहीं हैं।
  • act of unfriendliness -- अमैत्रीपूर्ण कार्य
दो पक्षों के मध्य एक पक्ष द्वारा दूसरे के विरूद्ध किया गया ऐसा कार्य जो अवैध न होते हुए भी दोनों के बीच सद्भाव सहयोग या घनिष्ठता भंग करने वाला हो और जिसे दूसरा पक्ष शत्रुतापूर्ण कार्य मान सकता हो ।
  • act of war -- युद्धजनक कार्य
कोई ऐसा कार्य जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय युद्ध – अवस्था उत्पन्न हो सकती हो, जैसे किसी देश द्वारा युद्ध की पूर्व घोषणा करके या बिना पूर्व घोषणा के दूसरे देश पर सशस्त्र आक्रमण ।
  • additional act -- पहले की गई संधि के उपबंधों का ही विस्तार या संशोधन या पूरक जो एक अलग प्रपत्र के रूप में स्वीकार किया जाए । इसमें इसके सत्यांकन या अनुसमर्थन किए जाने की व्यवस्था हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती ।
  • additional article -- अतिरिक्त अनुच्छेद
किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौते के साथ संलग्न वह विशेष अनुच्छेद या प्रावधान जो मूल संधि का पूरक अथवा सहायक होता है और जिसका उद्देश्य मूल संधि के किसी प्रावधान का स्पष्टीकरण अथवा परिवर्धन करना होता है । इसे मूल संधि के संपादन के साथ ही स्वीकार किया जाता है ।
  • adhesion (=adherence) -- संसक्ति
वास्तव में संसक्ति अधिमिलन का ही पर्यायवाची है अर्थात् कोई भी राज्य अन्य राज्यों द्वारा संपादित संधि की व्यवस्था मे संसक्ति अथवा अधिमिलन की प्रक्रिया से पक्षकार बन सकता है। परन्तु कुछ लेखकों ने यह सुझाव दिया है कि संसक्ति और अधिमिलन में भेद किया जाना चाहिए । यदि कोई तीसरा राज्य संधि की पूर्ण व्यवस्था को स्वीकार करता है तो इसे अधिमिलन कहा जाएगा, परन्तु यदि वह संधि के कुछ ही उपबंधों को स्वीकार करता है तो इसे संसक्ति कहा जाएगा।
  • adjoining territory -- आसन्न क्षेत्र, निकटवर्तीक्षेत्र
बहुधा अफ्रीका में यूरोपीय संरक्षण अथवा अधिकार क्षेत्र में आने वाले राज्यों द्वारा यह दावा किया गया कि उनसे संलग्न आंतरिक प्रदेश भी उनके प्रभाव क्षेत्र में आना चाहिए क्योंकि यह उनकी सुरक्षा के लिए आवश्यक है । यह सिद्धांत अफ्रीका में साम्राज्याद के प्रसार का एक अंग रहा है ।
  • adjudication -- अधिनिर्णयन न्यायनिर्णयन
(1) न्यायालय द्वारा विवादों का निर्णय करने की प्रक्रिया।
(2) न्यायालय द्वारा किया गया निर्णय जो विवादी पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है ।
  • adjudication board -- अधिनिर्णयक मंडल,
अधिनिर्णायक बोर्ड
ऐसा न्यायाधिकरण जो किसी वाद विशेष का निर्णय करने के लिए गठित किया जाता है । यह अर्ध – न्यायिक निकाय का एक उदाहरण है ।
  • administering state -- प्रशासी राज्य
संयुक्त राष्ट्र की न्यास प्रणाली के प्रसंग मे संयुक्त राष्ट्र द्वारा जिन राज्यों को प्रदेश अथवा प्रेदशों के प्रशासन का कार्यभार न्यास के रूप में सौंपा जाता है, उन्हें प्रशासी राज्य कहा जाता है । वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र प्रशासी राज्य रह गया है ।
  • admiralty jurisdiction -- समुद्री क्षेत्राधिकार
नावाधिपति अधिकार – क्षेत्र
समुद्रों अथवा राष्ट्रीय जल मार्गों में नौ परिवहन, व्यापार, वाणिज्य आदि से संबंधित किसी भी मामले की न्यायिक जाँच करने तथा तत्संबंधी निर्णय करने का अधिकार ।
  • admitted member -- प्रविष्ट सदस्य
संयुक्त राष्ट्र संघ या उसके विशिष्ट अभिकरणों के ऐसे सदस्य जो मूल अथवा संस्थापक सदस्य न होकर राष्ट्र संघ या संबंधित अभिकरण की स्थापना के उपरांत राष्ट्रसंघ या अभिकरण के विधान में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार उसके सदस्य बना लिए जाते हैं । जहाँ तक सदस्यों के दायित्वों एवं कर्तव्यों का संबंध है, संस्थापक और प्रविष्ट सदस्यों के बीच कोई भेद नहीं किया जाता । यद्यपि विशिष्ट अभिकरणों की सदस्यता साधारणतः संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों तक सीमित होती है तथापि कुछ अपवाद भी होते हैं । उदाहरणार्थ विश्व डाक संघ में ऐसे सदस्य भी शामिल हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं हैं जैसे, स्विट्ज़रलैंड ।
  • advisory jurisdiction -- परामर्शदायी अधिकार – क्षेत्र
न्यायालयों का किसी प्रश्न अथवा विवाद पर न्यायिक परामर्श देने का अधिकार जो केवल परामर्शमात्र होता है । हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को परामर्शक राय देने का अधिकार प्राप्त है । केवल संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग ही इस राय के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से अनुरोध कर सकते हैं ।
  • aerial domain -- हवाई अधिकार क्षेत्र
प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र का अपने प्रदेश के ऊपरी आकाश पर पूर्ण तथा अनन्य प्रभुत्व होता है जिसका अतिक्रमण या उल्लंघन किए जाने पर उसे प्रतिरक्षात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है ।
सन् 1919 के पेरिस विमानचालन अभिसमय द्वारा इस अधिकार की पुष्टि हुई । अब यह माना जाने लगा है कि राज्य का आकाशवर्ती क्षेत्र वहाँ समाप्त हो जाता है जहाँ से बाहय अंतरिक्ष शुरू हो जाता है ।
  • Aerial Navigation Convention -- विमानचालन अभिसमय
सन् 1919 के पेरिस विमानचालन सम्मेलन द्वारा शांति काल में विमानचालन के लिए नियम निर्धारित करने का प्रयास किया गया । इस अभिसमय ने, प्रत्येक राष्ट्र के अपने प्रदेश के ऊपरी आकाश पर संपूर्ण तथा एकमात्र प्रभुत्व को मान्यता दी । इसके हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने संविदाकारी पक्षों को विमानों को शांति काल मे एक दूसरे के हवाई क्षेत्रों से निर्दोष गमन की अनुमति प्रदान की । परन्तु संविदाकारी देशों को यह प्राधिकार मिला कि यदि वे चाहें तो सैनिक कारणों एवं अपनी सुरक्षा के हित में, किसी अन्य देश के विमानों को, अपने प्रदेश के ऊपरी आकाश में विमानचालन की सुविदा न दें । इसे पेरिस कन्वेंशन भी कहा जाता है ।
  • aerial suveillance (=air surveillance) -- नभीय निगरानी
हवाई निगारनी
दे. air surveillance.
  • aerial warfare -- आकाशी युद्ध, हवाई लड़ाई
आकाश क्षेत्र में युद्धरत देशों की वायु सेनाओं द्वारा एक दूसरे पर प्रहार करने की संक्रिया । इसके संबंध में 1923 की हेग नियमावली में विस्तृत नियमों का निरूपण किया गया है ।
  • Afro – Asian Bloc -- अफ्रेशियाई गुट
अफ्रीकी – एशियाई राज्यों का एक शिथिल तथा अनौपचारिक समूह जो अपने समान उद्देश्यों तथा नीतियों के कारण संयुक्त राष्ट्र में एक गुट के रूप में कार्य करते
  • Afro – Asian Conference (=Bandung Conference) -- अफ्रेशियाई सम्मेलन बांडुंग सम्मेलन दे. Bandung Conference
  • aggrandizement -- विवर्धन (नीति)
राज्य की विस्तारवादी नीति का वह रूप जिसके अंतर्गत बलप्रयोग अथवा बल प्रयोग की धमकी तथा युद्ध के द्वारा अपनी सीमा का विस्तार करने अथवा पड़ौसी राज्यों को हड़पने का प्रयत्न किया जाता है ।
आरंभ में, रोम साम्राज्य की विस्तारवादी नीति के लिए और बाद मे फ्रांस के लुई चतुर्दश की क्षेत्रीय विसातार की नीति के लिए यह शब्द प्रयुक्त हुआ । वर्तमान शताब्दी मे भी अनेक राज्यों ने इस नीति का अनुसरण किया।
  • aggression -- आक्रमण, अग्र आक्रमण
इस अवधारणा को परिभाषित करने का संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1952 से निरंतर प्रयास किया जाता रहा और 14 दिसंबर, 1974 को महासभा ने ह्रस हेतु नियुक्त विशेष समिति द्वारा तैयार किये गे प्रारूप को एक प्रस्ताव द्वारा स्वीकृति प्रदान की । इसके अनुसार अग्र आक्रमण का अर्थ है किसी राज्य द्वारा किसी दूसरे राज्य की संप्रभुता, प्रादेशिक अखण्डता और राजनैतिक स्वंतंत्रता के विरूद्ध अथवा किसी भी प्रकार से संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के प्रतिकूल कीय जाने वाला सशास्त्र बल प्रयोग । अग्र आक्रमण के प्रमाणस्वरूप यह तथ्य भी महत्वपूर्ण होगा कि किस राज्य द्वारा बल प्रयोग करने में पहल की गई है । अग्र आक्रमण में इन कार्रवाइयों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है – दूसरे राज्य पर सशस्त्र सेनाओं द्वारा आक्रमण और आक्रमण के फलस्वरूप उस राज्य के प्रदेश पर आधिपत्य, उसका बलात् समामेलन दूसरे राज्य के प्रदेश पर बमबारी करना उसके बंदरगाहों और तटों की नाकेबंदी दूसरे राज्य के प्रदेश में सशस्त्र गिरोहों, समूहों अथवा अनियमित भाड़े के सैनिकों को भेजना या घुसपैठ कराना आदि । इस परिभाषा में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अग्र आक्रमण किसी भी दशा में वैध नीहं मान जा सकता और अग्र आक्रामक युद्ध विश्व शांति के विरूद्ध किया गाय अपराध है तथा इस युद्ध के लिए पूर्ण दायित्व अग्र आक्रम राज्य का है ।
  • aggressive war -- आक्रामक युद्ध
दे. Aggression.
  • aggressor -- आक्रमक, अग्रआक्रामक
सन् 1933 में निरस्त्रीकरण सम्मेलन की सुरक्षा विषयक प्रश्न समिति ने आक्रामक शब्द का प्रयोग उस राज्य के लिए किया था, जो निम्न प्रकार की कार्यवाही करने में पहल करता हो :-
1. जब वह किसी दूसरे राज्य पर युद्ध – घोषणा कर आक्रमण कर देता है
2. जब उसकी सशस्त्र सेनाएँ, बिना युद्ध घोषणा किए किसी दूसरे राज्य के भूभाग पर आक्रमण कर देती है तथा
3. जब उसकी नौ, स्थल तथा वायु सेनाएँ युद्ध घोषणा कर या बिना पूर्व घोषणा किए ही, किसी दूसरे राज्य के भूभाग, पोतों या विमानों पर आक्रमण कर देती हैं ।
वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार अग्र आक्रमण अवैध माना जाता है और सुरक्षा परिषद् को संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अंतर्गत यह अधिकार दिया गया कि वह किसी सशस्त्र आक्रमण की स्थिति में यह निश्चित करे कि अग्रआक्रामक राज्य कौन है ।
  • agreement -- समझौता, करार
दो या दो से अधिक सरकारों के बीच किन्हीं विषयों पर लिखित सहमति । यह संधि या भिसमय की तुलना में कम औपचारिक होता है और राज्याध्यक्षों के बीच नहीं होता । सका क्षेत्र बहुत सीमित होता है तथा इस पर हस्ताक्षर करने वाले राज्यों की संख्या भी अभिसमय से कम होती है । इसका प्रयोग ऐसे तकनीकी या प्रशासनिक स्वरूप के लिए भी होता है जिनपर सरकारी विभागों के प्रतिनिधि हस्ताक्षर करते हैं और जिनके अनुसमर्थन की आवश्यकता नही होती ।
  • agreement -- औपचारिक स्वीकृति, पूर्व स्वीकृति
एक राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के राजनयिक प्रतिनिधि या अभिकर्ता की नियुक्ति को औपचारिक रूप से स्वीकार करने का कार्य ।
  • air base -- हवाई केंद्र, विमान स्थल
सैनिक वायुयानों की संक्रियाओं का केंद्र जहाँ पर वायुयानों के ठहरने और उनकी मरम्मत करने की व्यावस्था होती है, युद्ध सामग्री को सूरक्षित रखने का भंडार होता है, विमान अधिकारियों को ठहराया जाता है और जो सैनिक – असैनिक उड़ानों पर नियंत्रण रखने का प्रशासनिक केंद्र होता है ।
  • air cert -- वायुपत्र
युद्धकाल के दौरान युद्धकारी द्वारा तटस्थ राज्य के व्यापारी को तटस्थ वायुयान से माल लाने – ले जाने के लिए जारी कीया गया पत्र । इस पत्र के आधार पर वह माल विनिषिद्ध माल संबंधी आदेशों से मुक्त माना जाता है और यह इस बात का भी प्रमाण होता है कि वायुयान की यात्रा अहानिकर है ।
  • air corridot (=air passage) -- हवाई गलियारा, वायुमार्ग
किसी राज्य द्वारा विदेशी वायुयानों के पारगमन के लिए अपने आकाशवर्ती क्षेत्र में निर्दिष्ट किया गया वायुमार्ग ।
  • air craft carrier -- विमान वाहक पोत
ऐसा युद्धपोत जिस पर विमानों के परिवहन, उनके उतरने – उड़ने तथा उनकी मरम्मत और सुरक्षा आदि की व्यवस्था हो ।
  • air defence -- हवाई रक्षा
शत्रु के विमानों अथवा हवाई हमलों के आक्रमक प्रभाव को रोकने या न्यून करने के लिए अपनाए गए रक्षात्मक साधन, तत्संबंधी तकनीक और व्यवस्था ।
  • air law -- हवाई – परिवहन विधि
हवाई – परिवहन से संबंधित नियमावली जिसकी व्याख्या 1919 के पेरिस अभिसमय और 1944 के शिकागो अभिसमय द्वारा की गई है ।
  • airlift -- वायुवहन
(1) वायुयान द्वारा कुमक अथवा रसद – पानी पहुँचाना जैसे, बर्लिन नाकाबंदी के समय पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा वहाँ वायुयानों से आवश्यक वस्तुएँ पहुँचाई गई थी ।
(2) शत्रु सेना से घिरी या आपदग्रस्त सेना को हेलीकाप्टरों आदि के द्वारा सुरक्षित क्षेत्र मे पहुँचाना ।
  • air passage -- वायुमार्ग
दे. Air corridor.
  • air sovereignty -- आकाशी प्रभुसत्ता, हवाई प्रभुता
प्रत्येक देश को अपने भूभाग और जल क्षेत्र के ऊपर के आकाश पर पूर्ण प्रभुत्व प्राप्त होता है । किसी देश के आकाशी अधिकार – क्षेत्र से गुज़रने से पूर्व किसी भी अन्य देशीय वायुयान को उस देश से अनुमति लेनी पड़ती है । आकाशी अधिकार – क्षेत्र क अतिक्रमण या उल्लंघन अतंर्राष्ट्रीय विदि के अनुसार अपराध है ।
  • air space -- औपचारिक स्वीकृत, पूर्व स्वीकृति
एक राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के राजनयिक प्रतिनिधि या अभिकर्ता की नियुक्ति को औपचारिक रूप से स्वीकार करने का कार्य । दे. aerial domain भी ।
  • air surveillance (=aerial surveillance) -- नभीय निगरानी, हवाई निगरानी
किसी देश द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए, अन्य देशओं के उन प्रदेशों एवं भूभागों का निरीक्षण करना जिनसे देश के लिए सामरिक महत्व के तथ्य प्राप्त किए जा सकते हैं । वर्तमान काल मे वायुयान के साथ – साथ यह कार्य अंतरिक्ष में छोड़े गए कृत्रिम उपग्रहों द्वारा भी किया जा रहा है ।
  • air transport agreements -- वायु परिवहन करार
1944 में शिकागो मे हुए अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन सम्मेलन में स्वीकृत दो समझौते जिन्हें क्रमशः अंतर्राष्ट्रीय वायु पारगमन समझौता एवं अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन समझौता कहा जाता है ।
पहले समझौते के अंतर्गत दो हवाई स्वतंत्रताओं तथा दूसरे समझौते के अंतर्गत पाँच हवाई स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई । विस्तार के लिए देखिए :- Two Freedoms Agreement तथा Five Freedoms Agreement.
  • -- वायु परिवहन करार
1944 में शिकागो मे हुए अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन सम्मेलन में स्वीकृत दो समझौते जिन्हें क्रमशः अंतर्राष्ट्रीय वायु पारगमन समझौता एवं अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन समझौता कहा जाता है ।
पहले समझौते के अंतर्गत दो हवाई स्वतंत्रताओं तथा दूसरे समझौते के अंतर्गत पाँच हवाई स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई । विस्तार के लिए देखिए :- Two Freedoms Agreement तथा Five Freedoms Agreement.
  • alien -- अन्यदेशी, विदेशी
किसी देश में रहने वाला वह व्यक्ति जिसे उस देश की नागरिकता प्राप्त नहीं है । प्रायः ऐसे व्यक्ति को उस देश में कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नीहं होते परन्तु उसके नागरिक अधिकार संपत्ति विषयक अधिकारों को छोड़कर, स्थआनीय नागरिकों के समान ही होते हैं । ऐसे व्यक्ति की अपने मूल राज्य के प्रति निष्ठा बनी रहती है और विपदा में उसे अपने राज्य का संरक्षण पाने का अधिकार रहात ह । वास्तव में ऐसा व्यक्ति अपने मूल राज्य और स्थानीय राज्य के समवर्ती क्षेत्राधिकार के अधीन माना जाता है ।
  • alliance -- सहबंध, गठबंधन
दो या अधिक राज्यों के मध्य ऐसा औपचारिक समझौता जिसके अंतर्गत ये राज्य किसी सामान्य लक्ष्य अथवा नीति की पूर्ति के लिए तता परस्पर सैनिक अथवा राजनीति सहायता देने हेतु वचनबद्ध होते हैं । साधारणतया सहबंध का उद्देश्य अन्य राज्यों के विरूद्ध संविदाकारी राज्यों की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखना होता है ।
  • allied and associate powers -- मित्र एवं सहचारी शक्तियाँ
दो महायुद्धों में जर्मनी और उससे संबद्ध राष्ट्रों के विरूद्ध संगठित राष्ट्रों का गठबंधन जिन्हें मित्र राष्ट्र कहा गया । प्रथम महायुद्ध मे इस प्रकार 26 राष्ट्र संबंध्ध हुए जिनमें पाँच प्रमुख राष्ट्र यथा, अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और जापान ही मित्र राष्ट्र कहे जाते थे । शेष 21 राष्ट्र सहबद्ध तथा सहयोगी राष्ट्र थे जिनके नाम इस प्रकार थे बेल्जियम, बोलिविया, ब्राजील, चीन, क्यूबा, चोकोस्लोवाकिया, इक्वेडर, यूनान, ग्वाटेमाला, हिजाज, हौंडुरस, लायबेरिया, निकारागुआ, पनामा, पेरू, पौलेंड, पुर्तगाल, रूमानिया, योगोस्लाविया शाम तथा ऊरूग्वे । परंतु द्वितीय महायुद्ध में प्रमुख राष्ट्रों मे संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रां ही थे ।
  • allies -- मित्र राष्ट्र
समान राजनीतिक तथा सैनिक उद्देश्यों की पूर्ति अथवा हित संरक्षण या संवर्धन के लिए कीस सहबंध, समझौते अथवा संधि के अंतर्गत सहबद्ध राज्य । दोनों विश्व युद्धों मे जर्मनी के विरूद्ध लड़ने वाले राष्ट्रों को मित्र राष्ट्र कहा जाता था ।
  • ambassador -- राजदूत
एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रत्यायित सर्वोच्च राजनयिक अधिकारी । इसकी नियुक्ति राजाध्यक्ष द्वारा की जाती है । राजदूतों को प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि और 1961 के वियना अभिसमय के अंतर्गत अनेक विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती है । इन्हें महामहिम कहकर संबोधित किया जाता है ।
  • ambassadorial function -- राजदूतीय कार्य
किसी देश में नियुक्त राजदूत के बहुविध कार्य होते हैं । मूर्धन्य राजनयिक होने के साथ – साथ वह राजनीतिक घटनाचक्रों का जागरूक प्रेक्षक, अपने राज्याध्यक्ष का वैयक्तिक प्रतिनिधि अपने राज्य के हितों का संरक्षक एवं सरकारी सूचना, सेवा और सहायता का स्रोत होता है । वह जिस राज्य मे भेजा जाता है उसके राज्याध्यक्ष आदि से किसी भी नीति, घटना, विवाद या विषय में सूचना और स्पष्टीकरण आदि ले- दे सकता है । वस्तुतः उसका मुख्य कार्य अपनी नियुक्ति के देश में अपने राज्य के हितों की देखभाल और रक्षा करना है, किन्तु इसके साथ ही व ह अपने राज्याध्यक्ष को तद्देशीय आवश्यक सूचना और सलाह भी देता है तथा निदेशित नीति को क्रियान्वित कराता है । इसे स्थानीय राज्य से संधि और समझौते करने का अधिकार भी होता है ।
राजदूतों के कार्य और विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियों को 1961 के वियना अभिसमय द्वरा संहिताबद्ध कर दिया गया है ।
  • amendment of treaty -- संधि संशोधन
परिवर्तनशील परिस्थितियों के अनुकूल किसी संधि में संशोधन करने की व्यवस्था, जिसका प्रावधान प्रायः संधि के मूल प्रारूप मे कर दिया जाता है । इस व्यवस्था मे संधि के प्रारूप में संशोधन करने की प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन भी किया जा सकता है । साधारणतया संधि में संशोधन के लिए सभी मूल हस्ताक्षरकर्ता राज्यों की सम्मति आवश्यक होती है जिसके लिए इनका सम्मेलन भी आयोजित किया जा सकता है । 1945 के उपरांत यह प्रवृत्ति भी दृष्टिगोचर होती है कि बहुपक्षीय संधियों में बहुसंख्याक मत यिदि किसी संशोधन के पक्ष मे है तो उसे मान लिया जाए ।
  • amicable settlement -- सौहार्दपूर्ण समझौता
दो या अधिक पक्षों के मध्य शांति एवं सौहार्दपूर्ण विधि अथवा उपायों से विवाद या मतभेद का निपटारा । ऐसे उपायों मे वार्तालाप, सत्प्रयास, मध्यस्थता, न्यायिक प्रक्रिया व विवाचन शामिल है ।
  • angary -- युद्ध संकटाधिकार
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत युद्धकारी राज्य का अपने अधिकार क्षेत्र में तटस्थ राज्य के जहाजों, संपत्ति अथवा सामान को हस्तगत करने का अधिकार । इसका प्रयोग केवल उसी स्थिति में किया जा सकता है जब युद्धकारी राज्य यह अनुभव करे कि ऐसा करना उसके द्वारा किए जा रहे युद्ध के लिए आवश्यक है । युद्धकारी राज्य को युद्धोपरांत क्षतिग्रस्त संपत्ति के स्वामी को क्षतिपूर्ति करनी होती है । यदि संपत्ति नष्ट न की गई हो तो संकट समाप्त होने पर से उसके स्वामी को लौटाना होता है ।
  • animus belligerendi -- युद्ध प्रयोजन
युद्ध अवस्था की वैधिक अवधारणा में यह एक निर्णायक तत्व है कि दो राज्यों के बीच शसस्त्र संघर्ष को तभी युद्ध अवस्था कहा जा सकता है जब उनमें से कम से कम किसी एक का युद्ध करने का प्रयोजन हो । यह प्रयोजन अनेक बातों से प्रकट हो सकता है जैसे युद्ध की विधिवत् घोषणा, राजनयिक संबंध विच्छेद, समुद्र मे नाकेबंदी आदि युद्धकारी अधिकारों का प्रयोग ।
  • animus occupandi -- आधिपत्य प्रयोजन
किसी राज्य द्वारा किसी स्वामीविहीन प्रदेश पर प्रभावकारी आधिपत्य स्थापित करने की इच्छा जो उसके द्वारा किए गे किन्ही सुनिश्चित कार्यों से प्रकट होती हो , जैसे उस प्रदेश में अपने राज्य का ध्वज लगा देना या स्मारक बना देना इत्यादि । यह आधिपत्य की प्रारंभिक अवस्था है ।
  • annexation -- समामेलन, राज्य में मिला लेना
युद्ध में विजय प्राप्त कर विजेता राज्य द्वारा विजित राज्य के प्रदेश को अपने राज्य में मिला लेना । इस मिला लेने की क्रिया के लिए विजेता द्वारा स्पष्ट घोषणा की जानी चाहिए और उसमें उक्त प्रेदश को अपने राज्य में मिला लेने की उसकी इच्छा और प्रयोजन की अभिव्यक्ति होनी चाहिए । प्रायः शांति संधि द्वारा भी संबंधित प्रदेश का समामेलन किया जाता है ।
  • Antarctic claims -- एन्टार्कटिका संबंधी दावे
एन्टार्कटिका (दक्षिण ध्रुव प्रदेश) महाद्वीप संबंधी अनेक देशों ने क्षेत्रक सिद्धांत (sector principle) के आधार पर अपने राष्ट्रीय काल्पनिक दावे किए थे जो परस्पर विरोधी थे परन्तु एन्टार्कटिका संधि, 1959 के अंतर्गत इन सब राष्ट्रीय दावों को मान्यता न देते हुए यह व्यवस्था की गई है कि एन्टार्कटिका के अन्वेषण का अधिकार सब देशों को है और इस कार्य में सभी राष्ट्र सहयोग करेंगे ।
  • Antarctic Treaty -- दक्षिण ध्रुव प्रदेशीय संधि, एन्टार्कटिका संधि
सन् 1959 में संपन्न संधि जिसके अनुसार दक्षिण ध्रुव प्रदेश पर राष्ट्रीय दावों के संबंध में मौन रहते हुए यह व्यवस्था की गी कि इस प्रदेश में वैज्ञानिक अन्वेषण करने का अधिकार सब राष्ट्रों को समान रूप से होगा, परन्तु ये अन्वेषण केवल शांतिमय उद्देश्यों के लिए होने चाहिए । यह पूरा प्रदेश शास्त्रों और नाभिकीय शास्त्रों से उन्मुक्त होगा और इसमें किसी भी प्रकार के नाभिकीय विस्फोट करने की अनुमति नहीं होगी । सभी राज्य अपने – अपने अन्वेषण कार्यक्रमों से प्राप्त सूचनाओं का परस्पर आदान – प्रदान करने के लिए सहमत ह गे और हस्ताक्षरकर्त्ता राज्यों में से किसी राज्य के पर्यवेक्षक पूरे प्रदेश का निरीक्षण कर सकेंगे । इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश हैं – अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम चिली, फ्रांस, जापान, न्यूजीलैंड, नार्वे, दक्षिणी अफ्रीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन तथा सं. रा. अमेरिका ।
  • anti – apartheid movement -- रंगभेद विरोधी आंदोलन
प्रजाति पार्थक्य विरोधी आंदोलन
दक्षिण अफ्रीका मे रंगभेद और अश्वेत प्रजातियों के पृथक्वासन का विरोध करने वाला आंदोलन ।
संयुक्त राष्ट्र संघ में सन् 1953 से किया जा रहा रंगभेद और पृथक्वासन – विरोधी अभियान । यह उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने दक्षिण अफ्रीकी शासन की नीतियों को मानव अधिकारों का हनन और अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरा बताया है । सं.रा. संघ की महासभा द्वारा स्वीकृत एक अभिसमय में प्रजाति पार्थक्य को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है और इसकी रोकथाम के लिए भी विस्तृत व्यवस्था की गई है ।
  • anti – colonialism -- उपनिवेश विरोध
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत विश्व में उपनिवेशवाद के विरूद्ध एक भावना ने जन्म लिया जिसने शनैः शनैः आंदोलन का रूप धारण कर लिया और जिसका लक्ष्य सभी लोगों के आत्म निर्णय के अधिकार की माँग करते हुए सभी उपनिवेशों को स्वतंत्र करने के लिए औपनिवेशिक शक्तियों पर दबाव डालना था । द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत सभी उपनिवेश धीरे – धीरे स्वतंत्र हो गए । साम्यवादी देश और गुट निरपेक्ष राज्य उपनिवेशवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं ।
  • anti – hijacking law -- विमान अपहरण विरोधी विधि
दूसरे महायुद्ध के पश्चात संसार के अनेक भागों में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों का उद्भव हुआ और इनमें से अनेक ने विमानों में हिसात्मक एवं आतंकवादी क्रियाओं का भी सहारा लिया । इससे एक नई समस्या उत्पन्न हुई जिसे विमान अपहरण का नाम दिया जाता है । इस प्रक्रिया में विमान के निर्दोष यात्रियों और कर्मियों का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है और विमान – यात्रा जो सादारण रूप से भी जोखिमपूर्ण है, भयावह बन जाती है ।
अतः इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ कि विमान के अपहरणकर्ताओं को दंड देने की समुचित व्यवस्था की जाए, चाहे वे अपहरणकर्ता राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित क्यों न हों । दूसरे, यह भी सुनिश्चित काय जाए कि क्षेत्राधिकार के अभाव में कोई इस प्रकार का अपराधी दंड से न बच सके । तीसरे, यह भी आवश्यक समझा गया कि विमान अपहरण को प्रत्यर्णता के लिए एक साधारण फौजदारी अपराध माना जाए न कि राजनीतिक अपराध ताकि विमान – अपरहणरकर्ता इस आधार पर दंड अथवा प्रत्यर्पण से बच न सके कि वह एक राजनीतिक अपराधी है और उसके द्वारा किया गया कृत्य राजिनीतिक अपराध है ।
इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए जिस विधि का विकास हुआ उसे विमान अपहरण विरोधी विधि का नाम दिया जा सकता है । इस विधि के मुख्य रूप से तीन स्ततंभ हैं 1. टोकियो अभिसमय, 1963 2. हहेग अभिसमय, 1970 और 3. मांट्रियल अभिसमय, 1971
सन्म 1982 में भारतीय संसद ने एक कानून बनाकर विमान अपहरण विरोधी विषयक टोकियो और हेग अभिसमयों को अपनी राष्ट्रीय विधि में रूपांतरित कर लिया ।
इन अभिसमयों की विस् जानकारी के लिए संबंधित प्रविष्टियाँ देखिए ।
  • Arab League -- अरब संघ, अरब लीग
सन् 1944 के शरतकाल में अलैक्जौंडिया में आयोजित अरब एकता उपक्रम सम्मेलन के निर्णयों के परिणामस्वरूप 10 मी, 1945 को मिस्र (संयुक्त अरब गणराज्य) ईराक, जॉर्डन, लेबनान, सऊदी अरब, यमन और सीरिया द्वारा स्थापित स्वैच्छिक संघ । इसका मूल उद्देश्य अरब राष्ट्रों की एकता की भावना को दृढ़ बनाना, उपनिवेशवाद और शीतयुद्ध का विरोध, गुट निरपेक्षता का समर्थन एवं इज़रायल राज्य का विरोध करना रहा है । इस संघ में फिलिस्तनी अरबों के प्रतिनिधित्व की विशएष व्यवस्था की गई थी । अब इसकी सदस्य संख्या 22 हो गी है और पी. एल.ओ. (फिलिस्तीनी मुक्त संगठन ) इसका पूर्ण सदस्य बन गया है ।
  • arbitral tribunal -- विवाचन न्यायाधिकरण
अंतर्राष्ट्रीय विवादों के पंचनिर्णय के लिए विवादग्रस्त पक्षों की पारस्परिक सहमति से संगठित निकाय अथवा आयोग जिसमें दोनों पक्षों के बराबर संख्या में सदस्य होते हैं और अध्यक्ष सबकी सहमति से चुना जाता है । ऐसा न्यायाधिकरण एक सदस्यीय भी हो सकता है । न्यायाधिकरण को विवाचन – समझौते की शर्तें के अनुसार निर्णय करने का अधिकार होता है और इसके निर्णय को पंचाट कहा जाता है जो दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है ।
  • arbitration -- विवाचन, माध्यस्थम्
दो या अधिक पक्षों (संस्था, व्यक्ति या राज्य) के मध्य उत्पन्न विवादों के समाधान की वह पद्धति अथवा प्रक्रिया जिसमें विवादग्रस्त पक्ष पारस्परिक समझौते से एक या अधिक परस्पर स्वीकृत व्यक्ति या व्यक्तियों को संबधित विवाद का अंतिम रूप से निर्णय करने के लिए नियुक्त करते हैं । प्रायः इस निर्णय को पंचाट कहा जाता है । निर्णय दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है । विशिष्ट प्रकार के विवादों के समाधान के लिए विवाचन की प्रक्रिया को अनिवार्य कर दिया जा सकता है । इस प्रक्रिया को पंचनिर्णय की प्रक्रिया भी कहा जाता है । न्यायाधिकरण में एक या एक से अधिक सदस्य हो सकत हैं । प्रायः इस प्रकार के पंचों की नियुक्ति तद्रथ रूप से की जाती रही है । 1899 के प्रथम हेग सम्मेलन द्वारा एक स्थायी विवाचन न्यायालय की भी व्यवस्था की गई थी परन्तु व्यवहार में यह व्यवस्था अधिक उपयोगी नहीं रही ।
  • arbitration agreement -- विवाचन समझौता
दो या अधिक राज्यों के मध्य विवाह उत्पन्न होने पर विवाचन अथा पंच निर्णय की प्रक्रिया द्वारा उस विवाद को तय करने के लिए किया गया तदर्थ समझौता । इसमें पंचों के नाम, उनका क्षेत्राधिकार और पालन की जाने वाली प्रक्रिया व नियमावली का उल्लेख रहता है ।
  • archipelagic states -- द्वीपसमूह वाले राज्य
ऐसे राज्य जो पूर्णतः एक या एकाधिक द्वीपसमूहों () से मिलकर बने हों । इस प्रकार के राज्यों के जलक्षेत्रों पर अधिकार के बारे में 1982 के समुद्र – विधि संबंधी सं. रा. अभिसमय के अनुच्छेद 47 तथा 49 में व्याख्या की गई है । इन अनुच्छेदों के अनुसार कुछ शर्तों के साथ द्वीपसमूह वाले राज्यों को अपने सबसे बाहर वाले द्वापों के सबसे बाहर वाले परिधि – बिन्दुओं को जोड़ने वाली आधार रेखाओं के भीतर आने वाले जल क्षेत्र, उसके ऊपरी आकाश क्षेत्र, जल क्षेत्र के तल तथा उसके अंदर के संसाधनों के दोहन का अधिकार है ।
दे. archipelago भी ।
  • archipelago -- द्वीपसमूह
10 दिसंबर, 1982, के समुद्र विधि संबंधी संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के अनुच्छेद 46 के अनुसार ऐसे द्वीपों का समूह जो समुद्री जल कें हो और जो इस प्रकार एक दूसेर से घनिष्ठ रूप से जुड़े हो कि उनको उनके चारों तरफ के समुद्री जल सहित एक भौगोलिक, आर्थिक अथवा राजनैतिक इकाई माना जा सकता है अथवा ऐतिहासिक दृष्टि से उसे एक इकाई माना जाता रहा है ।
  • Arctic claims -- आर्कटिक दावे
उत्तरी ध्रुव संबंधी दावे
आर्कटिक दावे का सिद्धांत भूप्रदेश के सातत्य और सामीप्य पर आधारित है । इसीलिए इसके आस – पास के दो राज्यों अर्थात् कनाडा और भूतपूर्व सोवियत संघ ने क्षेत्रक सिद्धांत के आधार पर उत्तीर ध्रुव प्रदेश पर अपनी प्रबूसत्ता के दावे किए थे । किन्तु उस भूप्रदेश की जलवायु और पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए इन दोवों पर बाद में कोई जोर नहीं दिया गया ।
  • armed action (=non war hostility) -- सशस्त्र कार्रवाई
किसी राज्य की सशस्त्र सेनाओं द्वारा किसी दूसरे राज्य के विरूद्ध की गई आक्रामक या रक्षात्मक कार्रवाई जिससे युद्धावस्था उत्पन्न भी हो सकती है और नहीं भी हो सकती । इस प्रकार की सशस्त्र कार्रवाई को ‘गैर युद्धक शत्रुतापूर्ण कार्रवाई’ भी कहते हैं ।
  • armed conflict -- सशस्त्र संघर्ष
दो या अधिक राज्यों के मध्य होने वाला ऐसा सशस्त्र सैनिक संघर्ष जिसे न तो वे राज्य और न ही अन्य राज्य “युद्ध” की मान्यता देते हैं । उदाहरणार्थ, 1962 भारत चीन संघर्ष या 1965 में भारत – पाक संघर्ष ।
  • armed hostilities -- सशस्त्र युद्ध
औपचारिक युद्ध घोषणा करने के पश्चात् अथवा उसके बिना, दो या अधिक राज्यों की सशस्त्र सेनाओं के बीच होने वाली शत्रुतापूर्ण कार्रवाई । इस प्रकार की कार्रवाई युद्ध में होती है अथवा इसके होते हुए भी युद्धावस्था का होना आवश्यक नहीं है । कभी – क भी शत्रुतापूर्ण कार्रवाई युद्धविराम समझौते से समाप्त हो जाती है परन्तु वैधिक अर्थ में “युद्ध “बना रहता है ।
  • armed intervention -- सशस्त्र हस्तक्षेप
एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के आंतरिक या बाह्य मामलों में इच्छित परिवर्तन लाने या यथास्थिति बनाए रखने के लिए की गी सैनिक कार्रवाई ।
  • armed merchantman -- सशस्त्र व्यापारी जहाज, सशस्त्र वाणिज्य – पोत
किसी तटस्थ राज्य का ऐसा व्यापारी जहाज जो युद्धकाल में आत्मरक्षार्थ अस्त्र – शस्त्रों से लैस कर दिया जाता है । किन्तु वह इन अस्त्र – शस्त्रों का प्रोयग केवल आत्मरक्षा में ही कर सकता है ।
  • armed neutrality -- सशस्त्र तटस्थता
युद्ध काल में किसी तटस्थ राज्य द्वारा युद्धरत राज्यों से अपनी तटस्थता की रक्षा के लिए आवश्यक होने पर, सैनिक बल का प्रयोग करने के लिए तैयार रहना ।
  • armistice -- 1. युद्ध स्थगन
2. युद्ध स्थगन समझौता
1. युद्ध स्थगन शांति – संधि – वार्ता चलाने के लिए अल्पकालिक युद्ध स्थगन । यह युद्ध – स्थागन स्थानीय या व्यापक होता है । यदि यह स्थगन युद्ध क्षेत्र – विशेष तक सीमित होता ह तो स्थानीय कहा जाता है और यदि यह समस्त रणक्षेत्र पर लागू होता है तो व्यापक कहलाता है ।
2. युद्ध स्थागन समझौता युद्धकारी पक्षों की सैनिक और सामरिक गतिविधियों को रोकने के लिए काय गया अस्थायी समझौता । यह समझौता करने का अधिकार दोनों पक्षों के प्रधान सेनापतियों या राजनयिक प्रतिनिधियों को होता है और यह तब तक अपूर्ण माना जाता है जब तक इस की पुष्टि संबद्ध राज्य की उच्च और समर्थ सत्ता द्वारा नहीं हो जाती । युद्ध स्थगन समझौते से सशस्त्र संघर्ष की स्थिति तो तात्कालिक रूप से समाप्त हो जाती है किंतु ‘युद्ध – अवस्था’ समाप्त नहीं होती है ।
  • armistice day -- युद्ध स्थगन दिवस
1. अल्पकालिक या अस्थायी रूप से सशस्त्र संघर्ष के स्थगित होने का दिवस ।
2. प्रथम विशअव युद्ध में युद्ध विराम संधि के हस्ताक्षरित होने का ऐतिहासिक दिन अर्थात 11 नवंबर, 1918 । युद्धोत्तर काल में हर वर्ष 11 नवंबर के ऐतिहासिक दिन ठीक ग्यारह बजे (वह समय जब उस संधि पर हस्ताक्षर हुए थे ) दो मिनिट का मौन रखकर स्मृति दिवस मनाया जाने लगा । अब भी हर वर्ष यह पर्व 11 नवंबर के निकटवर्ती रविवारि के दिन मनाया जाता है और गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना सभाएँ आयोजित की जाती हैं ।
  • armistice demarcation line -- युद्ध स्थगन सीमांकन रेखा
युद्धरत राज्यों या उनके सेनापतियों द्वारा युद्धात्मक गतिविधियाँ स्थगित करने और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से किए गए अंतरिम समझौते के अंतर्गत निश्चित और निर्धारित विभाजन रेखा, जिस प र दोनों सेनएँ यथावत बनी रहती है ।
  • arms control -- आयुध नियंत्रण, शस्त्र नियंत्रण
युद्ध के संकट को दूर करने के उद्देश्य से परस्पर सहमति द्वारा अपनाई गई ऐसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था जिसके अंतर्गत राज्यों द्वारा अपने अस्त्र भंडारों में अभिवृद्धि करने, नए अस्त्र – शस्त्रों का उत्पादन करने या विदेशों से आयात करने पर प्रतिबंध लगाया जाता है । इस प्रकार का नियंत्रण कुछ विशेष संदर्मों में सफलतापूर्वक किया गया है जैसे, आण्विक परीक्षणों पर रोक, किन्हीं भौगोलिक क्षेत्रों जैसे एन्टर्कटिका का विसैन्यीकरण आदि ।
  • arms embargo -- शस्त्र प्रतिषेध, आयुध प्रतिषेध
प्रारंभ में ‘प्रतिषेध’ पद का अभिप्राय युद्ध छिड़ने पर बन्दरगाहों मे खड़े जलपोतों के निर्गमन पर रोक लगाने से होता था परन्तु कालांतर मे इसका व्यापक अर्थ लिया जाने लगा और सभी अस्त्रि – शस्त्रों के निर्यात पर प्रतिबंध इसकी परिधि में आ गय़आ और इस प्रकार इसे शस्त्र प्रतिषएध कहा जाने लागा । इस प्रकार के ‘शस्त्र प्रतिषेध’ संयुक्त राज्य अमेरिका ने अनेक बार लगाए हैं ।
  • arrangment -- अनंतिम समझौता
अंतर्राष्ट्रिय विधि में अनंतिम अथवा अस्थायी प्रकार का अंतर्राष्ट्रीय समझौता ।
  • artificial boundaries -- कृत्रिम सीमाएँ
जब दो राज्यों के बीच प्राकृतिक सीमाएँ नहीं होती तो काल्पनिक रेखाओं द्वारा उनकी सीमाएँ निर्धारित की जाती है । ये रेखाएँ अक्सर अक्षआंश रेखाएँ (latitudes) होती हैं किन्तु कभी – कभी दीवारें बनाकर, स्तंभ या खंभे खड़े करके अथवा काँटेदार तार लगाकर भी सीमाओं का अंकन किया जाता है । उत्तरी और दक्षिणी कोरिया की सीमा 38 वीं उत्तरी अक्षआंश तथा अमरीका और कनाडा की 19 वीं उत्तरी अक्षआंश रेखा निश्चित की गी ।
  • ASEAN -- दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संघ, आसियान
1967 में स्थापित एक क्षेत्रीय संगठन जिसके सदस्य राष्ट्र इंडोनेशिया मलयेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैंड हैं । इस संगठन का उद्देश्य सदस्त देशों की राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक वं सांस्कृतिक विषयों से संबंधित सामान्य समस्याओं एवं विकास की योजनाओं पर समय – समय पर विचार -विमर्श कर कार्यक्रम निर्धारित करना है ।
  • Asian African Legal Consultative Committee -- एशियाई अफ्रीकी विधि परामर्श दात्री समिति
यह अंतर्राष्ट्रीय विधि के विभिन्न प्रश्नें पर विचार करने और सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय विधि की समस्याओं पर परामर्श देने वाली संस्था है । यह 1956 में एशियाई राज्यों से ही संबंधित थी किन्तु 1958 में अफ्रीकी राष्ट्रों के जुड़ जाने से इसका वर्तमान नामकरण हुआ है । समिति ने अंतर्राष्ट्रीय विधि के कतिपय महत्वपूर्ण विषयों पर कार्य किया है जिनमें शरणार्थियों से जुड़ प्रश्नों, राजनयिकों से संबंधित नियमों और समुद्र विधि के कई पक्षों पर एशियाई और अफ्रीकी राज्यों के दृष्टिकोण को अंतर्राष्ट्रीय विधि के निर्माण मे विभिन्न मंजों पर प्रसुत्त किया है । समिति का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है । नवोदित राज्यों के प्रमुख मंचों में इसकी गिनती की जाती है ।
  • associate membership -- सहसदस्यता
किसी संगठन या संघ के उन सदस्यों की स्थिति जिन्हें सदस्यता के पूर्ण अधिकार और मुख्य रूप से मताधिकार प्राप्त न हो ।
संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरणों, जैसे विशअव स्वास्थ्य संगठन आदि से संबंध्ध ऐसी इकाइयाँ जिन्हें राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त न होते हुए भी इन अभिकरमो की सदस्यता प्रदान कर दी जाती है परन्तु इन्हें मताधिकार प्राप्त नही होता ।
संयुक्त राष्ट्र में अनेक बार यह चर्चा हुई है कि अति लघु राज्यों को पूर्ण सदस्यता के अधिकार न दिए जाकर उन्हें इस संगठन का केवल सहसदस्य माना जाए और उन्हें महासभा में मताधिकार से वंचित कर दिया जाए । परन्तु इस मत को कभी व्यापक समर्थन नहीं मिल पाया ।
भारतीय संघ में प्रारंभ में सिक्किम का प्रवेश सह – राज्य के रूप में हुआ था परन्तु कुछ समय पश्चात वह भारतीय संघ का पूर्ण सदस्य राज्य बन गया ।
  • asylum -- शरण
एक राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के राष्ट्रिक को अपने यहाँ प्रवेश एवं निवास की अनुमति दिया जाना । यह सुविधा साधारणतया उन राजनीतिक अपराधियों को दी जाती है जो किन्हीं कारणों से स्वदेश छोड़ने के लिए विवश हुए हों ।
शरण से आशय किसी राज्य के उस अधिकार से है जिसके अनुसार वह अपने यहाँ किसी अन्य देश के नागरिकों को आश्रय दे सकता है अथवा आश्रय देने से इन्कार कर सकता है । यह शरण सामान्यतः कोई भी राज्य अपने भूभाग अथवा अपने जहाजों पर दे सकता है । यद्यपि दूतावास में अपवादस्वरूप शरम दी जा सती है परन्तु प्रत्येक मामले में उसका औजित्य अथवा उसकी वैधता सिद्ध करना आवश्यक होता है ।
  • Atlantic charter -- अटलांटिक घोषणा पत्र
अगस्त 1939 में अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेलट और ब्रिटश प्रधान मंत्री चर्चिल द्वरा अटलांटिक सागर में एक जलपोत पर हुई बैठक के पश्चात् जारी किया गाय घोषणा पत्र जिसमें युद्ध के उपरांत विशअव व्यवस्था के पुनर्निर्माण के आधारभूत सिद्धांतों का निरूपण किया गया था । इन सिदधांतों में प्रमुख ये थे आत्म निर्णय के सिद्धांत को युद्धोपरांत हुए परिवर्तित प्रदेशओं पर लागू किया जाएगा सभी लोगों को अपनी शासन प्रणाली चुनने का अधिकार होगा आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक व्यापार में और कच्चे माल की प्राप्ति में सभी को बराबर का अधिकार होगा और राष्ट्रों के मध्य आर्थिक सहयोग होगा सब राज्यों को सुरक्षा और शांति दी जाएगी समुद्रों की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाएगा बल प्रयोग का परित्याग किया जाएगा और सामान्य सुरक्षा के लिए एक स्थायी स्थापना की जाएगी । इस घोषणापत्र में भावी संयुक्त राष्ट्र संगठन की बाजारोपण देखा जा सकता है ।
  • Atlantic community -- अटलांटिक समुदाय
उन राज्यों का समूह जिनके प्रतिनिधियों ने 4 अप्रैल, 1949 को वाशिंगटन में अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए । ये राज्य थे – बेल्जियम, कनाडा, डेन्मार्क, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, आहसलेंड, इटली, लक्समबर्ग, नीदरलैंड, नार्वे, पुर्तगाल तथा संयुक्त राज्य अमेरिका । इस संधि का लक्ष्य इन राज्यों को एक सामूहिक रक्षा – व्यवस्था में बांधना था ।
  • Atlantic treaty -- अटलांटिक संधि
वह संधि जिस प र 4 अप्रैल, 1949 को बेल्जियम, कनाडा, डेन्मार्क, फ्रांस ग्रेट ब्रिटेन, आहसलेंड, इटली, लक्सम्बर्ग, नीदरलेंड, नार्वे, पुर्तगाल तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए । इस संधि का मुख्य उद्देश्य संबद्ध राज्यों को विदेशी आक्रमणों के विरूद्ध सामूहिक सुरक्षा प्रदान करना था । सभी पक्षों ने स्पष्ट रूप से यह उद्घोषित किया कि किसी भी अन्य राज्य द्वारा इनमें से किसी एक राज्य पर किए गए सशस्त्र आक्रमण को सभी राज्यों पर काय गया आक्रमण माना जाएगा । संधिबद्ध राज्य आक्रांत राज्य को सभी प्रकार की सैनिक तथा नैतिक सहायता प्रदान करेंगे ।
  • Atomic club (= Nuclear club) -- परमाणु क्लब
विश्व के परमाणु शक्ति के उत्पादक विभिन्न राज्यों जैसे, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस ब्रिटेन, फ्रांस और चीन का एक अनौपचारिक गुट जिसे परमाणु समूह भी कहा जाता है । ये शक्तियाँ परमाणु शक्ति पर अपना एकाधिकार मानती थी इस अभिप्राय से इन्होंने एक बहुराष्ट्रीय संधि का भी संपादन किया जिसे परमाणविक प्रसारण निरोधक संधि कहते हैं, और जिस पर लगभग सौ राज्यों ने हस्ताक्षर किए हैं, परन्तु अनेक राज्य जैसे भारत, पाकिस्तान आदि ने इस संधि को स्वीकार नहीं किया है ।
  • atomic energy control -- परमाणु ऊर्जा – नियंत्रण
परमाणु शक्ति के उत्पादक राष्ट्रों द्वारा प्रायोजित तथा अंतर्राष्ट्रीय समाज द्वारा सामान्य रूप से अनुमोदित ऐसे प्रतिबंध जिनसे परमाणु शक्ति के आविष्कार, उत्पादन, विकास और परमाणु अस्त्र – शस्त्रों के निर्माण पर नियंत्रण लगाने के प्रयत्न किए गए हैं । उनका उद्देश्य समस्त मानव जाति को परमाणु युद्ध के व्यापक विनाश अथवा विध्वंस से बचाना और परमाणु शक्ति का प्रयोग अधिकाधिक शांतिपूर्ण प्रयोजनों तथा कार्यों तक सीमित करना है ।
  • authoritative Interpretation -- प्राधिकृत निर्वचन,
प्रामाणिक व्याख्या
संधि के हस्ताक्षरकर्ता पक्षकारों द्वारा पारस्परिक सहमति से की गी संधि के किसी विवादास्पद खंड की व्याख्या को प्रामाणिक व्याख्या कहते हैं ।
  • automatic renewal -- स्वतः नवीकरण
किन्ही दो अथवा अधिक राज्यों द्वारा किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए गए समझौते या संधि में निर्धारित अवधि के पश्चात् उसे स्वतः पूर्ववत् बनाए रखने के लिए दो प्रकार के उपाय किए जा सकते हं () संधि की अवधि समाप्त ह ने पर संबद्ध राष्टों के प्रतिनिधि औपचारिक रूप से इसका नवीकरण कर सकते हैं या () संधि पर हस्ताक्षर करते समय ही संबंधित पक्षों द्वारा ऐसी धारा का समावेश कर दिया जाता है जिसके अंतर्गत निश्चित अवधि समाप्त होने पर यदि कोई क पक्ष इसके विपरीत इच्छा व्यक्त न करे, तो उस संधि का नवीकरण स्वतः हो जाता है ।
  • award -- पंचाट, अधिनिर्णय
किसी पंच – न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय ।
  • Axis Powers -- धुरी राष्ट्र
द्वितीय महायुद्धापूर्व जर्मनी, इटली और जापान के मध्य हुआ एक गठबंधन जिसका उद्देश्य इन राष्ट्रो की वैदेशिक और सैनिक नीतियों में समन्वय करना था । द्वितीय महायुद्ध में ये देश और इनके अन्य सहयोगी राज्य धुरी राष्ट्र कहलाए ।
  • Baghdad Pact -- बगदाद समझौता
मध्य पूर्व के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा संगठनों की श्रृंखला में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रोत्साहन से निर्मित एक संगठन जिसका प्रादुर्भाव 24 फरवरी, 1955 को ईराक और तुर्की के मध्य एक परस्पर सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने से हुआ । अप्रैल, 1955 में ब्रिटेन, जुलाई में पाकिस्तान और नवंबर में ईरान इसके सदस्य बने । सुरक्षा के क्षेत्र में परस्पर सहयोग, एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करना तथा अपने पारस्परिक विवादों को शआंतिमय उपायों से तय करना, इसके प्रमुख सिद्धांत थे । अप्रैल 1955 में ब्रिटेन से किए गए एक विशेष समझौते में, जिसमें ब्रिटेन बगदाद समझौते का एक सदस्य बन गाय ब्रिटेन ने ईराक पर क्रमण होने की दशा में ईराक सरकार के अनुरोध पर उसे हर प्रकार की सहायता, जिसमें सैनिक सहायता शामिल थी, देने का वचन दिया ।
इस क्षेत्रीय व्यवस्था में संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरा सहयोग काय और इन दोशों की प्रादेशिक अखंडता की गारंटी करने की भी घोषणा की । जुलाई, 1956 में स्वेज संकट से बगदाद समझौता भी संकटग्रस्त हो गया । जुलाई, 1958 में नूरी अल सईद को अपदस्थ कर जनरल कासिम ईराक में सत्तारूढ़ हुआ और उसने सत्ता में आते ही बगदाद समझौते को नकार दिया । 24 मार्च, 1959 को ईराक औपचारिक रूप से बगदाद समझौते से अलग हो गाय । बगदाद समझौते का मुख्यालय अक्टूबर, 1958 में स्थानांतरित कर दिया गया था । 21 अगस्त, 1959 को यह घोषणा की गई कि अब बगदाद समझौते को मध्यवर्ती संधि संगठन () के नाम से जाना जाएगा ।
  • Bandung Conference -- बांहुंग सम्मेलन
29 देशों का यह सम्मेलन इंडोनेशिया के नगर बांडुंग में 29 अप्रैल, 1955 को संपन्न हुआ था । इसका उद्देश्य विश्व राजनीति में एशियाई – अफ्रीकी देशों को एक सुदृढ़ इकाई के रूप में प्रदर्शित करना था और विशअव राजनीति में उनके भावी महत्व को दर्शआना था । परंतु सम्मेलन में विभिन्न विषयों पर मतैक्य की अपेक्षा मतभेद अधिक देखने में आए ।
इसमें विश्व राजनीति की अनेक समस्याओं पर विचार – विमर्श किया गया, जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन, उपनिवेशवाद, संयुक्त राष्ट्र में साम्यवादी चीन का प्रतिनिधित्व चीन के संयुक्त राज्य अमेरिका तथा एशियाई देशों के साथ संबंध, प्रजातीय पृथक्करण और भेदभाव, निःशस्त्रीकरण, एशियाई – अफ्रीकी देशों में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा तकनीकी मामलों में सहयोग की संभावनाएँ आदि
सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन के महत्व और उसकी भूमिका को मान्यता प्राप्त हुई । सम्मेलन ने विश्व शआंति व सहयोग के दस सिद्धांतों का भी प्रतिपादन किया , जो इस प्रकार हैं :-
1. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों तथा मूल मानवीय अधिकारों के प्रति सम्मान
2. सब राष्ट्रों की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान
3. सभी प्रजातियों और राष्ट्रों की समानता के सिद्धांत को मान्यता
4. दूसरे देशओं के मामलों में हस्तक्षेप न करना
5. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुरूप प्रत्येक देश का स्वयं अथवा सामूहिक रूप से अपनी रक्षा करने का अधिकार
6. किसी महाशक्ति की विशिषअट हितपूर्ति में निर्मित सामूहिक सुरक्षा संगठनों से दूर रहना
7. परस्पर आक्रमण न करना
8. अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिमय उपायों से तय करना
9. पारस्परिक सहयोग एवं हितों की अभिवृद्धि तथा
10. न्याय एवं अंतर्राषअट्रीय दायित्वों का सम्मान ।
  • Bangkok Conference -- बैंकाक सम्मेलन
22 जुलाई, 1956 को बैंकाक में एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें एशियाई देशओं के बीच अंतर्देशीय नौपरिवहन को सुकर बनाने के लिए एक अभिसमय स्वीकृत किया गया ।
  • base line -- आधार रेखा
समुद्री राज्यों की वह तटवर्ती रेखा जहाँ से उनके भूभागीय समुद्र की चौड़ाई मापी जाती है । इसके निरूपण के विस्तृत नियम 1956 के प्रथम जेनेवा कन्वेंशन में दिए गए हैं ।
  • basis of International Law -- अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार
इससे तात्पर्य यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के बाध्यकारी होने का क्या कारण है अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय विधि को क्यों बाध्यकारी माना जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर स्वरूप तीन विचारधाराओं अथवा सम्प्रदायों का विकास हुआ है :
1. प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय;
2. व्यावहारवादी सम्प्रदाय; और 3. ग्रोशसवादी सम्प्रदाय ।
प्राकृतिक विधि सम्प्रदाय के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि इस विधि के सिद्धांत और नियम प्राकृतिक विधि के ही रूपांतरण मात्र हैं और प्राकृतिक विधि ही उनका स्रोत है । अतः इनका पालन करना प्राकृतिक और स्वाभाविक है ।
व्यवहारवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता का आधार यह है कि यह विधि राज्यों की सहमति पर आधारित है ।
ग्रोशसवादियों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि में बाध्यकारिता के दोनों ही आधार हैं । अंशतः यह विधि प्राकृतिक विधि और अंशतः राज्यों की सहमति का प्रतिफल है ।
वर्तमान काल में ग्रोशसवादी विचारधार को स्वा सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है ।
  • bay -- खाड़ी
समुद्र का वह भाग जो किसी राज्य के तट को काटकर भीमि घुस जाता है और जिससे तट सीधा न रहकर कट – फट जाता है । 1958 के जेनेवा सम्मेलन ने खाड़ियों के लिए तीन आवश्यक लक्षण निर्धारित किए हैं :-
(1) खाड़ी के दोनों तट एक ही राज्य में हों,
(2) खाड़ी का जलक्षेत्र इसके दोनों सिरों को मिलाने वाली रेखा पर खींचे गए तटवर्ती गोलार्ध से अधिक हो, तथा
(3) इसके दोनों सिरों की दूरी 24 मील से अधिक न हो ।
  • Bay of Pigs -- बे ऑफ पिग्स
क्यूबा गणराज्य का वह तटवर्ती स्थान जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका से क्यूबा के प्रवासी नागरिकों की सशस्त्र टुकड़ी अमेरिका के सहयोग व प्रोत्साहन से इसलिए उतारी गई थी कि वह स्थानीय नागरिकों को फीडल कैस्ट्रो के विरुदूध व्यापक विद्रोह करने के लिए प्रेरित करें । परन्तु यह प्रयास निष्फल रहा । यह घटना संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा की सार्वभौमिकता के हनन का एक उदाहरण है ।
  • belligerency -- युद्धस्थिति, युद्धकारिता
अंतर्राष्ट्रीय युद्ध की स्थिति जिसमें दो या दो से अधिक राज्य संघर्षरत हों और उनका सशस्त्र संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार युद्ध हो । कभी – कभी गृहयुद्ध की स्थिति में भी कुछ दशाओं के पूरा करने पर विद्रोहकारियों को अन्य राज्यों द्वारा युद्धकारिता की मान्यता दी जा सकती है ।
  • belligerent -- युद्धकारी
वह राज्य जो किसी अन्य राज्य या राज्यों के साथ संघर्ष या युद्ध की स्थिति में हो ।
साधारणतया राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय युद्ध मे युद्धकारी समझे जाते हैं । युद्ध होने पर उनके संबंध शांति विधि द्वारा नियमित न होकर युद्ध विधि द्वारा नियमित होने लगते हैं । परंतु गृहयुद्ध की स्थिति में कुछ दशाओं के पूरा होने पर विद्रोहकारी पक्ष को भी युद्धकारी की मान्यता दी जा सकती है ।
  • belligerent rights -- युद्धकारी अधिकार
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत स्वीकृत युद्धरत राज्यों के अधिकार जिनके अनुसार वे शत्रु राज्यों के विरूद्ध सशस्त्र कार्रवाई कर सकते हैं । विशेषकर महासमुद्र में तटस्थ व्यापार और परिवहन पर अनेक प्रतिबंध लगा सकते हैं । किसी राज्य के विद्रोहियों तता क्रांतिकारियों को ये अधिकार तब तक प्राप्त नहीं होते जब तक कि उन्हें युद्धकारिता की मान्यता नहीं मिल जाती ।
  • benevolent neutrality -- सद्भावनापूर्ण तटस्थता
भूतकाल मे इस प्रकार की तटस्थता अपनाई जा सकती थी जिसके अंतर्गत एक राज्य या देश युद्धकारियों में से किसी एक पक्ष की सहायता करते हुए भी तटस्थ रह सकता था (जैसे किसी पूर्व संधि के अंतर्गत) किंतु अब ऐसी तटस्थता संभव नहीं है क्योंकि एक पक्ष को विशेषाधिकार या सुविधाएँ प्रदान कर अन्य पक्ष को उससे वंचित रखना अब निरपेक्ष तटस्थता नहीं मानी जाती ।
  • Berlin Blockade -- बर्लिन की नाकाबंदी
द्वितीय महायुद्ध के बाद बिना शर्त आत्मसमर्पण कर देने पर जर्मनी के साथ बर्लिन नगर भी दो भागों में बंट गया । एक भाग मित्र राष्ट्रों के अधीन और दूसरा सोवियत संघ के अधीन हो गाय और इस प्रकार पूर्वी जर्मनी में बर्लिन का एक भाग पश्चिमी राष्ट्रों के नियंत्रण व क्षेत्राधिकार मे रहा । परंतु बर्लिन में प्रचलित मुद्रा व इसके नियंत्रण के प्रश्न को लेकर सोवियत संघ और पश्चिमी राष्ट्रों में मतभेद हो गया । प्रतिरोध में सोवियत संघ ने 24 जून, 1948 को पश्चिमी क्षेत्र और बर्लिन के बीच रेल और सड़क यातायात अवरूद्ध कर दिया ।
पस्चिमी राष्ट्रों ने इसका सामना वायुयानों द्वारा आवश्यक सामग्री भोजन, औषधियाँ वस्त्र, कोयला, कच्चा माल पहुँचा कर किया । उनका तर्क था कि बर्लिन में पश्चिमी राष्ट्रों की उपस्थिति एक कानीनी अधिकार है और उन्हें वहाँ से कोई नहीं हटा सकात । समस्या को संयुक्त राष्ट्र में भी भेजा गया परंतु कोई समाधान नहीं निकला ।
पश्चमी राष्ट्रों ने प्रतिशोध मे जर्मनी के पूर्वी भाग की प्रतिनाकाबंदी कर दी । बर्लिन की नगर सभा में सोवियत नाकाबंदी को मानवता के विरूद्ध अपराध कहकर उसकी भर्त्सना की । अंत में जनवरी 1949 में सोवियत संघ नाकाबंदी समाप्त करने के लिए सहमत हो गया ।
  • Bermuda type’ agreements -- बरमूडा प्रकार के समझौते
सं.रा. अमेरिका और ब्रिटेन के बीच 1946 में संपन्न हुए बरमूडा सम्मेलन में वायु परिवहन के बारे मे द्विपक्षीय समझौता हुआ । बाद मे इसी प्रकार के समझौते द्विपक्षीय आधार पर विभिन्न देशों के बीच हुए । इन समझौतों को अनुसार संविदाकारी पक्षों ने नामांकित एयर लाइन या लाइनों को वायुवहन की दो स्वतंत्रताएँ तो प्रदान कर ही दीं किन्तु तीसरी चौथी और पाँचवीं स्वतंत्रता कुछ शर्तों के साथ मंजूर कीं ।
दे. Five Freedoms तथा Two Freedoms भी ।
  • bilateral treaty -- द्विपक्षीय संधि
दो पक्षों के मध्य हुई संधि जिसके पक्षकार राज्य हो सकते हैं अवा अंतर्राट्रीय संगठन अथवा एक पक्ष राज्य और दूसरा पक्ष अंतर्राष्ट्रीय संगठन । संधि में पारस्परिक अधिकारों व कर्तव्यों का प्रावधान किया जाता है और ये संबंधित पक्षों के लिए बाध्यकारी होते हैं ।
  • binding adjudication -- बाध्यकारी अधिनिर्णय
किसी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्यायाधिकरण, आयोग या किसी अन्य न्यायिक संस्था द्वारा विवादास्पद मामलों में दिया गया वह निर्णय जिसका पालन करने के लिए संबद्ध पक्ष बाधंय होते हैं ।
  • biological warfare -- जैविक युदध
ऐसा युद्ध जिसमें मनुष्यों पेड़ – पौधों आदि के लिए घातक विषाणुओं का प्रयोग काय जाए और जिससे र ग, महामारी तथा विषैले पदार्थ फैल जाएँ और मनुष्यों, जीव-जन्तुओं व वनस्पति को नष्ट कर दें ।
  • Balckstonian doctrine -- ब्लैकस्टोन का सिद्धांत, समावेशन सिद्धांत
अठारहवीं शताब्दी में ब्लैकस्टोन (1723-1780) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विधि और राष्ट्रीय विधि के संबंध को स्पष्ट करने वाला सिद्धांत जिसके अनुसार प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून स्वतः ही सामान्य कानून का हिस्सा और इसलिए राष्ट्रीय कानून का अभिन्न अंग होता है । इसे समावेशन सिद्धांत भी कहते हैं ।
  • blockade -- नाकाबंदी
किसी युद्धकारी राज्य द्वारा, युद्धकाल में शत्रु राज्य की व्यापार तथा नौपरिवहन व्यवस्था अवरूद्ध करने के लिए की गी नौसैनिक कार्रवाई । इस कार्रवाई के अंतर्गत शत्रु बंदरगाहों व तट से जलपोतों का आवागमन रोकने के लिए उसके तट एवं बंदरगाहों के आसपास चारों तरफ शत्रु अपना नौसैनिक बेड़ा तैनात कर देता है । नाकाबंदी के उल्लंघन का प्रयास करने वाले जलपोत को नाकाबंदी करने वाला राज्य दंडित कर सकता है ।
  • booty -- लूट का माल
किसी राज्य के सैनिकों द्वारा युद्धकाला मे शत्रु – राज्य की भूमि पर से हस्तगत किया गया या अपहृत माल ।
दे. prize भी ।
  • boundary -- सीमा
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार सीमा वह प्राकृतिक या कृत्रिम रेखा है जो किसी राज्य के स्थलीय, सामुदिक एवं आकाशी प्रदेश को परिसीमित करती है । यह राज्य की भूभागीय प्रभुसत्ता की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है । इसका अंकन मानचित्रों, पुरानी सीमा रेखाओं, नदियों, पहाड़ों आदि के आधार पर किया जाता है ।
  • boundary commission -- सीमांकन आयोग
सीमांकन कमीशन
दो या अधिक राज्यों की विभाजनकारी सीमाओं को विभिन्न स्थानों पर पारस्परिक सहमति, सहयोग और स्वीकृत साक्ष्य के आधार पर निश्चित या निर्धारित करने वाला आयोग जिसकी स्थापना संबद्ध राज्य किसी संधि या समझौते द्वारा करते हैं ।
  • boundary river -- सीमांत नदी
वह नदी जो दो राज्यों मध्य प्रवाहित होने के कारण उनके भूभागीय क्षेत्रों को एक दूसरे से पृथक करती हैं । कभी – कभी यह विवादास्पद हो जाता है कि नदी का बंटवारा इन दोनों राज्यों के बीच किस प्रकार हो। अंतर्राष्ट्रीय विधि मे इस हेतु अनेक नियम प्रतिपादित किए गए हैं । जैसे मध्य रेखा सिद्धांत और थाल्वेग सिद्धांत । बहुधा पारस्परिक संधि समझौते से इस समस्या का समाधान कर लिया जाता है ।
  • boundary treaty -- सीमा संधि
दो राज्यों के बीच ऐसी संधि या समझौता जिसके द्वारा उन राज्यों के मध्य सीमा – रेखाओं को निश्चित तता निर्धारित किया जाता है ।
  • breach of blockade -- नाकाबंदी तोड़ना
नाकाबंदी का निरीक्षण करने वाले नौसैनिक बेड़े की आँख में धूल झोंककर या उसकी दृष्टि से बचकर जलपोतों का नाकाबंद बंदरगाह या तट में प्रवेश या उससे निर्गमन या उसका प्रयास । यह एक अपचारी कृत्य है और इसके लिए नाकाबंदी करने वाला राज्य दंड दे सकता है ।
  • breach of treaty -- संधि भंग
किसी एक पक्ष द्वारा संधि के उपबंधों को प्रतिकूल कार्य करना अथवा संधि के अंतर्गत अपने दायित्वों को न निबाना संधि भंग कहलाता है । यह एक कानूनी अपचार है ।
  • Brussels conventions -- बुसेल्स अभिसमय
29 नवंम्बर 1969 को तेल के समुद्र में बिखरने से होने वाले प्रदूषण और उसके परिणामों के संबंध में दो अभिसमय स्वीकार किए गे । पहले अभिसमय का विषय या – तेल के प्रदूषण से होने वाले दुष्परिणामों की स्थिति में महासमुद्र में हस्तक्षेप का अधिकार । दूसरे अभिसमय का विषय था – तेल के प्रदूषण से होने वाली क्षति के लिए दायित्व । प्रथम अभिसमय के अंतर्गत राज्यों को तेल प्रदूषण की दुर्घटना होने पर अनेक सुरक्षात्मक उपाय अपनाने के अधिकार दिए गए थे दूसरे अभिसमय के अंतर्गत तेल प्रदूषण से होने वाली क्षति के लिए तेल टेंकर के स्वामी का पूर्ण दायित्व माना गया था ।
  • Brussels Trreaty Organisation (=Western European Union) -- ब्रुसेल्स संधि संगठन
मार्च 1948 में ब्रिटेन, नीदरलैंड्स लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम तथा फ्रांस के मध्य हुई संधि जिसका उद्देश्य पश्चिम यूरोप के रक्षार्थ एक क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन स्थापित करना था । सन् 1955 में जर्मन संघीय गणराज्य और इटली भी इस संघ में शामिल हो गए और तब इसका नाम पश्चिम यूरोपीय संघ हो गाया । नाटो के साथ सैनिक सहयोग करना इसका मुख्य लक्ष्य था ।
  • buffer state -- अंतःस्थ राज्य
दो या अधिक परस्पर विरोधी अथवा बड़े राज्यों के मध्य स्थित ऐसा छोटा, तटस्थ और स्वशासित राज्य जो सैन्य – अवरोधक का कार्य करता है और जिससमे उनमें परस्पर प्रत्यक्ष संधऱ्ष की संभावना सीमित हो जाती है । इसे उभयरोधी राज्य भी कहा जाता है । ऐसे राज्य के उदाहरण हैं स्विटज़रलैंड, नेपाल आदि ।
  • cabotage -- आंतरिक परिवहन
किसी समुद्री राज्य में उसके तटीय नौपरिवहन अर्थात् उसके एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाह तक माल एवं यात्री लाने – ले जाने की सेवा उस राज्य द्वारा स्थानीय नौपरिवहन कंपनियों के लिए आरक्षित कर देना और विदेशी जलपोतों को इसमें भाग लेने की अनुमति न देना ।
यही स्थिति हवाई आंतरिक परिवहन की भी है । इसमें भी विदेशी कंपनियों को किसी राज्यके दो हवाई अड्डों के बीच यात्री या माल उठाने की अनुमति नहीं दी जाती ।
  • Calvo clause -- काल्वो खंड
कीस विदेशी नागरिक और किसी राज्य की सरकार मे हुई किसी संविदा का वह प्रावधान जिसके अंतर्गत वह विदेशई यह स्वीकार कर लेता ह कि उस संविदा से पैदा होने वाले प्रश्नों के समाधान के लिए वह अपने राज्य की सरकार का संरक्षण या सहायता नहीं लोगा । इसके अनुसार संविदा से उत्पन्न होने वाली शंकाओं तथा झगड़ों का निबटारा राज्य के सक्षम अधिकरण ही राज्य – विधि के अनुसार करेंगे । इस नागरिक का राज्य इस विषय में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा । इसका प्रतिपादन अर्जेन्टना के विधिवेत्ता काल्वो ने किया ।
  • Calvo doctrine -- काल्वो सिद्धांत
अर्जेन्टीना के विधिवेत्ता काल्वो ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि क ई र्जाय गृह युद्ध अथवा आंतरिक विद्रोह की स्थिति में राज्य में रहने वाले विदेशियों को हुई क्षति के उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता । इस सिद्धांत के पीछे दो उद्देश्य थे (1) शक्तिशाली राज्य अपने नागरिकों की क्षतिपूर्ति के बहाने निर्बल राज्यों में हस्तक्षेप न कर सके, और (2) विद्रोह अथवा गृहयुद्ध से क्षतिग्रस्त होने पर विदेशी व्यक्ति स्थानीय नागरिकों की अपेक्षा अतिरिक्त संरक्षण अथवा क्षतिपूर्ति न पा सके ।
  • cannon – shot rule -- तोपमार नियम, तीन मील का नियम
वह नियम जिसेक अनुसार समुद्र तटवर्ती राज्य समुद्र में केवल वहीं तक अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर सकता है जहाँ तक तोप का गोला मार कर सकता है । अठारहीं शताब्दी में यह धारणा थी कि वह दूरी 3 मील है । इसी कारण से भूभागीय समुद्र के 3 मील के नियम की दूरी के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ । अब यह दूरी 12 समुद्री मील मानी जाती है । 1982 के समुद्री अभिसमय में यही व्यवस्थआ है ।
  • cartographic aggression -- मानचित्रीय आक्रमण
किसी राज्य द्वारा अपने अधिकृत मानचित्रों में किसी दूसरे विशएषकर पड़ौसी राज्य अथवा राज्यों के प्रदेश या प्रदेशों को अपना भूभाग दिखाना मानचित्रीय आक्रमण कहलाता है । उदाहरण के लिए चीन के मानचित्रों में भारत भूमि के उत्तरी और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों के भाग दिखाए गए हैं जिनके विरूद्ध भारत निरंतर आपत्ति करता आया है ।
  • Case law -- निर्णय विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक महत्वपूर्ण स्रोत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय या न्यायाधिकरणों और राष्ट्रीय न्यायालयों द्वारा विभिन्न विवादों में दिए गए निर्णय भी होते हैं या इन निर्णयों को विवादों के विभिन्न पक्षकार नजीरों रूप में प्रसुत्त करते हैं । यद्यपपि न्यायालय द्वारा इनको मानना आवश्यक नहीं है परंतु ये न्यायालय को प्रबावित अवश्य करते हैं और कालांतर में ये प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि का रूप ग्रहण करके अंतर्राष्ट्रीय विधि के विकास में सहायक होते हैं ।
  • casus belli -- युद्ध – कारण
यदि कोई राज्य किसी अन्य राज्य के विरूद्ध कोई ऐ कार्य करता है जिससे उस राज्य को युद्ध – घोषणा करने का अवसर या बहाना या औचित्य मिल जाए तो ऐसी घटना, परिस्थित अथवा कार्य को युद्ध – क रण कहा जाता है ।
  • cease fire -- युद्ध विराम
युद्धरत राज्यों की सेनाओं के मध्य आपसी समझौते के अंतर्गत अथवा एकपक्षीय निर्णय के द्वारा अस्थायी रूप से सशस्त्र कार्रवाई बंद करने की घोषणा ।
  • cessation of hostilities -- सशस्त्र कार्रवी स्थान
बिना किसी समझौते या शांति संधि के दोनों युद्धरत पक्षों द्वारा सशस्त्र कार्रवाई बंद कर दिया जाना । इसका प रिणाम यह होता ह कि दोनों के पार्स्परिक संबंधों में अनिश्चितता बनी रहती है ।
  • cession -- अर्पण
एक राज्य द्वारा अपने राज्य का कोई प्रेदश दूसरे राज्य को प्रदान कर देना । अर्पण किसी संधि द्वारा ऐच्छिक और अनैच्छिक दोनों प्रकार से किया जा सकता है । ऐच्छिक अर्पण बिक्री, विनिमय, भेंट अथवा दान द्वारा हो सकता है जबकि अनैच्छिक अर्पण युद्ध में हार जाने वाले राज्य को विजयी राज्य के प्रति करना होता है ।
  • charge d’affaires -- कार्यदूत
1815 के वियना विनियमों के अनुसार राजदूतों के तीन वर्ग किए गए थे जिनमें निम्नतम वर्ग कार्यदूतों का था । 1961 के वियना कन्वेंशन में भी यही स्थिति है । इनकी विशेषता यह है कि यह एक राज्याध्या द्वारा दूसरे राज्याध्यक्षों को न भेजे जाकर एक राज्य के मंत्रालय द्वारा दूसरे देश के विदेश मंत्रालय में भेजे जाते हैं । इनको महामहिम क हकर भी संबोधित नहीं किया जाता ।
  • Chicago Convention -- शिकागो अभिसमय
दे. Air transport agreement.
  • civil war -- गृहयुद्ध
एक ही देश या राष्ट्र के विभिन्न समूहों, गुटों या दलों में सत्ता पाने के लिए सशस्त्र संग्राम अथवा स्थापित सत्ता को सशस्त्र चुनौती और उससे उत्पन्न सशस्त्र संघर्ष ।
  • classical international law -- पुरातन अंतर्राष्ट्रीय विधि
राज्यों के पारस्परिक संबंधों को विनियमित करने वाले वे कानून या नियम जिसके विषय केवल राज्य ही माने जाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय विधि का उद्देश्य राज्यों के केवल राजनयिक संबंधों को नियमित करना और उनके मध्य शांति बनाए रखना ही है । इस मत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि का एकमात्र स्रोत भी राज्यों की सहमति हैं ।
  • closed port -- प्रतिबंधित बंदरगाह
किन्हीं दो या अधिक राज्यों मे युद्ध की संक्रियाओं के मध्य कीस एक राज्य के भूभाग का वह बंदरगाह अथवा पत्त्न जिसमें न केवल संबंधित शत्रु राज्यों के बल्कि विश्व के अन्य मित्र राज्यों के युद्धपोतों, व्यापार पोतों तथा अन्य प्रकार के समुद्री तथा वायु यातायात के साधनों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई हो ।
  • closed sea -- प्रतिबंधित सागर, निषिद्ध सागर
समुद्र का वह भाग जिस पर तटवर्ती राज्य द्वारा विदेशी जलपोतों के आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो । प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण ऐसा किया जा सकता है ।
  • cobasin state -- सहथाला राज्य
एक नदी के थाले पर स्थित एक से अधिक राज्य ।
  • codification of internation law -- अंतर्राष्ट्रीय विधि संहिताकरण
वर्तमान प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय विधि के सिद्धांतों एवं नियमों को सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध तथा सुस्पष्ट रूप से लिपिबद्ध कर उन्हें एक संहिता का रूप देना । वर्तमान काल मे अंतर्राष्ट्रीय विदि के संहिताकरण में संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है और इसमें संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राषट्रीय विधि आयोग का विशएष योगदान है ।
  • cold war -- शीतयुद्ध
द्वितीय महायुद्ध के उपरांत साम्यवादी गुट एवं पश्चिमी राष्ट्रों के मध्य व्याप्त तनावपूर्ण संबंधों की स्थिति जिसमें संसार दो गुटों में बंट गाय और सेनाओं एवं शस्त्रास्त्रों का प्रयोग न होते हुए भी दोनों गुटों ने एक दूसरे के प्रति प्रचार माध्यमों, आर्थिक नीतियों एवं सैन्य गठबंधनों के द्वारा वैमनस्यपूर्ण वातावरण और शस्त्रास्त्र निर्माण की होड़ को बनाए रखा । सेवियत संघ के विघटन के बाद अब यह स्तिति समाप्त हो गई हो ।
  • collective guarantee -- सामूहिक गारंटी
वह दायित्व जो विभिन्न राज्य किसी अंतर्राष्ट्रीय समझौते अथवा संधि के अंतर्गत किसी राज्य को उस राज्य पर विदेशी आक्रमण होने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करने के लिए वहन करते हैं । इसी प्राकर की गारंटी कीसी देश के तटस्थीकरण के संबंध में भी दी जा सकती है ।
  • collective intervention -- सामूहिक हस्तक्षेप
अंतर्राष्ट्रीय दयित्वों को पूरा करने के लिए कुछ राज्यों द्वारा सामूहिक रूप से किसी राज्य के विरूद्ध की गई कार्रवाई, जो सैनिक कार्रवाई का रूप भी धारण कर सकती है । यह कार्रवाई जिस राज्य के विरूद्ध की जाती है, उसकी स्वतंत्रता या प्रादेशिक अखंडता के प्रतिकूल होती है । संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सातवें अध्याय के अंतर्गत की जानी वाली रक्षात्मक कार्रवाई भी सामूहिक हस्तक्षेप का दृष्टांत है ।
दे. intervention भी ।
  • collective measures -- सामूहिक उपाय
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अंतर्गत सुरक्षा परिषद् के निर्देश पर किसी अपचारी राज्य के विरूद्ध की गई किसी प्रकार की संयुक्त अथवा एकीकृत कार्रवाई, जैसे उसके विरूद्ध सुरक्षा परिषद् द्वारा आर्थक शास्त्रिसाँ या प्रतिबंध लगाना अथवा सैनिक कार्रवाई करना । 1990-91 में सुरक्षा परिषद् के निर्देश पर ईराक के विरूद्ध की गई आर्थिक तथा सैनिक कार्रवाई सामूहिक उपाय प्रक्रिया के ज्वालंत उदाहरण हैं ।
  • collective naturalilsation -- सामुहिक देशीकरण
वह प्रक्रिया जिसके द्वारी किसी राज्य में समावेशित किए गए भूभाग में रहने वाले निवासियों को उत्तराधिकारी राज्य द्वारा अपनी राष्ट्रिकता प्रदान की जाती है ।
  • collective recognition -- सामूहिक मान्यता
कई राज्यों द्वारा मिलकर किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन अथवा समझौते के माध्य से नए राज्य अथवा राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व को सामूहिक रूप से मान्यता प्रदान करना । इस प्रकार की मान्यता एकल मान्यता से अधिक सुविधाजनक होती है । 1878 में बर्लिन कांग्रेस ने रूमानिया, बल्गारिया और अल्वानिमा को और 1921 में मित्र राष्ट्रों ने इस्टोनिया तथा अल्वानिमा को सामूहिक मान्यता प्रदान की थी ।
  • collective security -- सामूहिक सुरक्षा
अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा भंग करने वाले किसी राज्य के विरूद्ध अन्य राज्यों द्वारा सामूहिक रूप से कार्रवाई किए जाने का सिद्धांत जिसकी व्यवस्था सर्वप्रथम राष्ट्र संघ की प्रसंविदा के अंतर्गत हुई थी । यङी सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का मूल सिद्धांत है । इस पद का प्रोयग क्षेत्रीय – सैनिक संगठनों अथवा गुटों के संदर्भ में भी किया जाता है ।
  • collectivities -- राज्यवत् भूभाग
ऐसी राजनीतिक इकाइयाँ जिनमें राज्यत्व की सभी क्षमताएँ या लक्षण विद्यमान नहीं होते किन्त कुछ प्रयोजनों के लिए उन्हें राज्य के समान माना जाता है जैसे वैटिकन सिटी तथा मोनाको ।
  • colony -- उपनिवेश, कालोनी
वह प्रदेश जिसके आंतरिक मामलों और बाहय संबंधों पर किसी दूसरे राज्य का पूर्ण नियंत्रण होता है । उस पर अन्य राज्य का शासन होने के कारण उसका कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व नही होता । युद्ध और संधि करने का अधिकार उसके स्वामी राज्य को होता है । संयुक्त राष्ट्र का चार्टर, महासभा के विभिन्न प्रस्ताव और संसार के अधिकांश राज्य उपनिवेशवाद का विरोध करते रहे हैं और इसीलिए आज विश्व में एक भी उपनिवेश शेष नहीं रह गया ।
  • combatant -- संयोधी, सामरिक
युद्ध में प्रत्यक्ष तथा सक्रिया रूप से भाग लेने वाले व्यक्ति । ये दो वर्गों में विभाजित किए जाते हैं – वैध संयोधी (lawful combatant) तथा अवैध संयोधी (unlawful combatant) । वैध संयोधियों में मुख्य रूप से राज्य की नियमित सेनाएँ तथा युद्ध के नियमों का पालन करने वाले छापामार दस्ते, स्वयंसेवक दल तथा नागरिक सेना के दस्ते शामिल होते हैं, बशर्ते (1) इनका नेतृत्व कोई सुनिश्चित सैन्य अधिकारी कर रहा हो (2) ये दूर से पहचाने जा सकने वाले विशेष चिहन धारण किए हुए हों (3) खुले रूप में शस्त्र धारण किए हो तथा (4) युद्ध के कानून और प्रथआओं के अनुसार आचारण करते हों । इस प्रकार के संयोधियों को यूद्ध में जान से मारा जा सकता है, घायल किया जा सकता है, और पकड़ कर बंदी बनाया जा सकता है ।
अवैध सोंधियों को अंतर्राष्ट्रीय युद्ध विधि का कोई संरक्षण प्राप्त नहीं होता और उनके साथ साधारण अपराधियों जैसा व्यवाहार किया जा सकता है । यदि नियमित सैनिक, सादा वेश में विध्वंसक कार्रवाई करते हुए पकड़े जाते हैं तो वे अवैध संयोधी ही माने जाएँगे ।
  • combat area -- युद्ध क्षेत्र
वह भौगोलिक क्षेत्र जिसमें सशस्त्र कार्रवाई हो रही है ।
  • comity -- शिष्टाचार
दे. International comity.
  • commercial attache -- वाणिज्यिक सहचारी
किसी राजदूतावास मे नियुक्त वह अधिकारी जो अपने राज्य के वाणिज्यिक होने का बोध होता है । इस ध्वज को देखकर युद्धकाल में युद्धकारी राज्यों द्वारा व्यापारी पोतों तता युद्ध पोतों में भेद किया जा सकता है ।
  • commercial flag -- वाणिज्यिक ध्वज
वह ध्वज जिससे किसी राज्य के पोत के वाणिज्यिक अथवा व्यपारिक होने का बोध होता है । इस ध्वज को देखकर युद्धकाल में युद्धकारी राज्यों द्वारा व्यापारी पोतों तथा युद्ध पोतों में भेद किया जा सकता है ।
  • Commission on Human Rights -- मानव अधिकार आयोग, मानव
अधिकार कमीशन (संयुक्त राष्ट्र)
1. सन् 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा की आर्थिक व सामाजिक परिषद् द्वारा श्रीमती ई. रूजवेल्ट की अध्यक्षता में मानव अधिकारों के घोषणापत्र का प्रारूप तैयार करने के लिए गठित आयोग । 10 दिसंबर, 1948 को महासभा द्वारा स्वीकृत मानव अधिकार घोषणापत्र इसी आयोग के प्रयासों का परिणाम था ।
2. सन् 1966 की मानव अधिकार प्रसंविदाओं के अंतर्गत स्थापित एक स्थायी आयोग, जिसका मुख्यालय जेनेवा मेंहै । यह आयोग विश्व में हुए मानवाधिकार उल्लंघनों से संबंधित मामलों की जाँच करता है और अपनी रिपोर्ट महासभा के समक्ष प्रसुत्त करता है ।
  • Committee on Disarmament -- निरस्त्रीकरण समिति
प्रारंभ में 1961 में सं. रा. महासभा ने अठारह राष्ट्रों की एक निरस्त्रीकरण समिति गठित की, बाद में 40 सदस्य देशों की एक अन्य निरस्त्रीकरण समिति गठित की गई जिसे अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण के अधीन सामान्य तथा पूर्ण निरस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण समझौतों के लिए बातचीत करने का अधिदेश दिया गया ।
1984 के महासभा के अधिवेशन में इसका नाम बदलकर निरस्त्रीकरण सम्मेलन कर दिया गया । इस सम्मेलन द्वारा एक सं. रा. निरस्त्रीकरण आयोग की स्थापना की गई ।
निरस्त्रीकरण समिति द्वारा 1978 और 1982 में निरस्त्रीकरण पर विचार करने के लिए दो विशेष अधिवेशन बुलाए गए र बीसवीं शताब्दी के सातवें और आठवों दशकों को निरस्त्रीकरण दशक घोषित किया गया ।
  • common heritage of mankind -- संपूर्ण मानवता की धरोहर
यह पद समुद्र विधि मे उस नए विकास से जुड़ा हुआ है जिसे 1982 के समुद्र विधि के तीसरे अभइसमय में स्वीकार किया गया है । इसके सुनासार परंपरागत खुले समुद्र की तरह 200 नाविक मील के बाद का क्षेत्र मुक्त अंतर्राष्ट्रीय उपयोग के लिए नहीं होगा अपितु यह क्षेत्र संपूर्ण मानवता की धरोहर माना जाकर सामूहिक प्रयासों द्वारा विकसित काय जाएगा । इसे ‘क्षेत्र’ (Area) कहकर संबोधित किया गया । इसके विकास की जो व्यवस्थाएँ 1982 अभिसमय में है वे विकासशील राज्यों के लिए विशेष उपयोगी हैं । अमेरिका ने इस व्यवस्था से जुड़े नियमों का विरोध किया है । नवोदित और विकासशील देशों के अंतर्राष्ट्रीय विधि के आर्थिक आयामों से जुड़े नियमों की यह सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है ।
  • common law -- लोक विधि
इंग्लैंड में प्रचलित एवं न्यायालयों दवारा मान्यताप्राप्त वह विधि जो संसद द्वारा निर्मित न होकर प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं और परंपराओं का प्रतिफल है और जिसे वही स्थान प्राप्त होता है जो संसद द्वारा निर्मित विधि को । परंतु दोनों में टकराव होने की स्थिति में संसदीय विधि ही उत्कृष्ट मानी जाती है ।
ब्लैकस्टोन ने प्रथागत अंतर्राष्ट्रिय विधि के सिद्धांतों का पूरण समावेश इंग्लैंड की सामान्य विधि में माना है और इसलिए प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि को राष्ट्र के कानून के रूप में स्वीकार किया गया है ।
  • community of states -- राज्य – समुदाय
समान हतों एवं लक्ष्यों के कारण एक दूसरे से पारस्परिक सहयोग एवं संसर्ग के लिए स्वतंत्र राज्यों का वह सामूहिक पक्ष जो उन्हें एक समुदाय या समूह का रूप प्रदान करता है अर्थात् राज्य मात्र गणित की संख्याओं का योग न रहकर, एक सामूहिक इकाई का रूप प्राप्त कर लेते हैं ।
  • compensation -- क्षतिपूर्ति, मुआवज़ा
किसी भी अंतर्राष्ट्रीय अपचार के लिए क्षतिग्रस्त पक्ष की तुष्टि किया जाना । यह तुष्टि तीन प्रकार से की जा सकती है – (1) हर्ज़ाना देकर जैसे विदेश सम्पत्ति के अभिग्रहण के लिए उसके मूल स्वामी को सम्पत्ति के मूल्य के बराबर धनराशि प्रदान की जा सकती है । यह विवादग्रस्त है कि सम्पत्ति का मूल्य चालू बाजार भाव से निश्चित किया जाए या किसी काल्पनिक मानदंड के अनुसार; (2) प्रत्यास्थापन (restitution) द्वारा जिसका अर्थ है अवैध कार्य की तुरंत समाप्ति और पूर्व स्थिति की पुनः स्थापना जैसे युद्ध काले में शुत्रु प्रदेश मुक्त कर देना । वास्तव में क्षतिपूर्ति प्रत्यास्थापन से ही हो सकती है हर्ज़ाना देकर क्षतिपूर्ति उसी दशा में की जानी चाहिए जब बौतिक या वैधिक कारमों से प्रत्यास्थापन संभव न हो; तथा (3) तुष्चि द्वारा समामान्यतः लघु अपराधों के लिए ही तुष्टि की मांग की जाती है जैसे क्षमायाचना, अपराध स्वीकृति आदि ।
  • composite state -- सम्मिश्र राज्य
विभिन्न राज्यों द्वारा संगठित एवं निर्मित एक संयुक्त या संयोजित राज्य जो दो या अधिक पड़ौसी राज्यों द्वारा किसी सामान्य शत्रु राज्य का मुकाबला एवं विरोध करने, अपने हितों की रक्षा करने तथा विभिन्न कामों और सुविधाओं की प्राप्ति के लिए एक नवीन राजनीतिक इकाई के रूप में निर्मित कर लिया जाता है । इसके चार स्वरूप पाए जाते हैं :-
1. संघ (federation) ;
2. वास्तविक राज्य संघ (rreal union) ;
3. वैयक्तिक संघ () तथा
4. महासंघ ()
उपर्युक्त (1) और (2) संघ के घटकों का कोई अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व नहीं रह जाता और अंतर्राष्ट्य प्रयोजनों के लिए संघ एक इकाई माना जाता ह । इसके विपरीत (3) और (4) की स्थितियों में संघ के घटकों का अंतर्रष्ट्रीय व्यक्तित्व बना रहातै ह ।
  • compromis -- समझौता, कम्प्रोमिस
दो राष्ट्रों के बीच एक विशिष्ट तथा औपचारिक समझौता जिसके अंतर्गत वे अपने किसी विवादि को निपटाने के लिए उसे किसी अंतर्राट्रीय नयायालय या किसी विवाचन अधिकरण को सौंपने का निश्चय करेत हैं ।
दे. Compromis d’arbitrage भी ।
  • compromis d’arbitrage -- विवाचन समझौता
किसी पंच या पंचों की सहायता से अपने विवाद को निपटाने के लिए किनहीं दो या अधिक राज्यों के बीच किया गया वह विशिष्ट समझौता जिसके आधार पर पंच या पंचों की नियुक्ति की जाती है और विवाद का निपटारा किया जाता है । इस समझौते में विवाद से संबंधित नियमों की व्यापक रूपरेखा का भी उल्लेख किया जा सकता है ।
  • compulsive measures -- बाध्यकारी उपाय
अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रसंग में अंतर्राज्यीय विवादों के समाधान के लिए अपनाए गए ऐसे उपाय जिनमें बलप्रोयग या बलप्रयोग की धमकी दी गई हो । उदाहरणार्थ, प्रतिकर्म (retortion), प्रतिशोध (reprisal), हस्तक्षेप, शांतिकालीन नाकाबेंदी आदि । संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र के सातवें अध्याय में भी ऐसे उपायों का उल्लेख है जिनका प्रयोग शांतिपूर्ण उपायों के असफल होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किया जा सकता है और जिनमें आर्थिक प्रतिबंध, सैनिक बल प्रयोग आदि शामिल है ।
यह विवादग्रस्त है कि राज्यों द्वारा अपनाए जाने वाले इस प्रकार के उपाय इस समय कहाँ तक वैध डैं क्योंकि सं. रा. के चार्ट के अनुच्छेद 2 (4) के अंतर्गत राज्यों द्वारा ऐसा बलप्रयोग या उसीक धमकी वर्जित है जिससे कीस दूसरे राज्य की प्रादेशिक अखंडता अथवा राजनीतिक स्वतंत्रता का हनन होता हो ।
  • compulsory adjudication -- अनिवार्य अधिनिर्णय
राज्यों अथवा अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक संधियों, समझौतों अथवा संविदाओं के अंतर्गत आपसी वीवादों को अनिवार्यतः न्यायालयों या विशेष रूप से गठित न्यायाधिकरणों द्वारा अधिनिर्णय के लिए सौंपे जाने की व्यवस्था ।
  • compulsory arbitration -- अनिवार्य विवाचन
राज्यों अथवा अन्य अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक संधियों समझौतों अथवा संविदाओं के अंतर्गत आपसी विवादों का अनिवार्यतः पंच निर्णय अथवा विवाचन द्वारा समाधान किए जाने की व्यवस्था ।
  • compulsory jurisdiction -- अनिवार्य अधिकार क्षेत्र
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के विधान के अंतर्गत सदस्य – राज्य अपने निर्दिष्ट विवादों को सुलझाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार स्वीकार करने की घोषणा क र सकते हैं । प्रायः राज्यं ने पारस्परिकता के आधार पर ऐसा किया है । ऐसा करने पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार उनके ले अनिवार्य हो जाता है ।
  • concentration camp -- बंदी शिविर
वह शिविर जहाँ युद्धबंदियों, राजनीतिक बंदियों, शरणार्थियों या विदेशी राष्ट्रिकों को रखा जाए । ऐसा विशेषकर आलातकाल या युद्धकाल में होता है ।
नाजी जर्मनी मे यहूदियों को और सोवियत संघ के साइबेरिया प्रांत में राजनीतिक विरोधियों को इस प्रकार के शिविरों में स्थानबद्ध कर उनको अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गई । द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सं. रा. अमेरिका में जापानियों को भी इस प्रकार के शिविरों में रखा गाय था और इस संबंध में तर्क दिया गया था कि ऐसा करना अनकी सुरक्षा के लिए आवश्यक था ।
  • concept of opposability -- प्रतिबंध्यता संकल्पना,
बाधनीयता संकल्पना
इसका आशय यह है कि किसी राज्य के दावों को चुनौती देने या उनका विरोध करने के लिए केवल ऐसे तर्क, आधार या नियम प्रुयक्त हो सकते हैं जौ अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार उस राज्य के लिए बाध्यकारी हों । यदि उस राज्य ने उन नियमों को स्वीकार नहीं किया है तो वे उसके लिए बाध्यकारी नहीं माने जा सकते ।
  • conciliation -- संराधन, सुलह
इस शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है । व्यापक अर्थ में इसका अभिप्राय उन सभी प्रकार की पद्धातियों से है जिनके द्वारा किसी अंतर्राष्ट्रीय विवाद को दूसरे राज्यों अथवा निष्पक्ष जाँच नकायों अथवा परमार्शदात्री समितियों की सहायता से सौहार्दपूर्ण ढंग से तय करने का प्रयास किया जाता है ।
संकुंचित अर्थ में इसका अर्थ किसी अंतर्राष्ट्रीय विवाद को किसी आयोग अथवा समिति के माध्यम से तय करने की प्रक्रिया से है । यह आयोग या समिति संबंधित पक्षकारों के तर्क – वितर्को की सुनवाई और उनमें समन्वय करके समझौते के प्रस्तावों का एक विवरण तैयार करते हैं । परंतु इन प्रस्तावों को संबंधित पक्षकारों द्वारा मानना आवश्यक नहीं है । यही इसका विवाचन से मुख्य भेद है क्योंकि विवाचन के निर्णय का पक्षकारों द्वारा पालन करना अनिवार्य होता है । अनेक अंतर्राष्ट्रीय संधियों में संधि से उत्पन्न विवादों को संराधन द्वारा तय किए जाने का प्रावधान है ।
  • conclusion of treaty -- संधि संपादन
वह राजनयिक एवं विधित प्रक्रिया जिसके द्वारा दो या अधिक राज्यों के मध्य कोई संधि या समझौता संपन्न किया जाता है । सामान्यतः यह एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है परंतु समय की दृष्टि से इसकी कोई अवधि निश्चित नही की जा सकती । प्रायः संधि का संपादन इस विषय में संबंधित राज्यों के मध्य औपचारिक या अनौपचारिक वार्ता से प्रारंभ होता है और वार्ता के सफल होने की दशा में संधि का प्रारूप तैयार करने हेतु संबंदित राज्य, अपने प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं । इन प्रतिनिधियों द्वारा परस्पर विचार – विमर्श के उपरांत संधि का प्रारूप तैयार किया जाता है जिस पर संबंधित राज्यों के सक्षम अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं । हस्ताक्षर के उपरांत संधि की संपुष्टी भी आवश्यक होती है । संधि के संपुष्ट होने के बाद संधि एक निर्धारित तिथि से लागू हो जाती है ।
संयुक्त राअषट्र के चार्टर के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय संधियों का संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय में पंजीकरण करवाना आवश्यक होता है परंतु इसे संधि संपादन प्रक्रिया का भाग नहीं माना जा सकता ।
वर्तमान काल में संधि संपादन की प्रक्रिया में अनेक नवीन प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव ह आ है जैसे अधिमिलन या संसक्ति । इस प्रक्रिया के माध्यम से राज्य अन्य देशों द्वारा संपादित संधियों को स्वीकार करके उन्हें अपने लिए बाध्यकारी बना सकते हैं ।
  • concordat -- धर्मसंधि
होली रोमन चर्च के परम धर्मगुरू, जिन्हें पोप कहा जाता है, को परंपरा से अन्य राज्यों के साथ संधि करन का अधिकारा प्राप्त रहा है । इस प्रकार की संधियों को धर्मसंधियाँ कहा जाता है । निश्चय ही ऐसी संधियाँ धार्मिक विषयों से ही संबंधित होती है । पोप का यह अधिकार उनके अंतर्राष्ट्रीय वैधिक व्यक्तित्व का परिचायक है ।
  • concurrent jurisdiction -- समवर्ती क्षेत्राधिकार, मवर्ती अधिकार क्षेत्र
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति विदेश में अपने राज्य तथा स्थानीय राज्य दोनों के क्षेत्राधिकार में माना जाता है । लोटस के मालमे में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि महासमुद्र में दो जलपोतों की टक्कर से उत्पन्न दुर्घटना पर दोनों जलपोतों के ध्वज राज्यों का समवर्ती अधिकार क्षेत्र माना जाएगा ।
  • conditional contraband (=relative contraband) -- सापेक्ष विनिषिद्ध वस्तुएँ
वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग युद्ध तथा शांतिकाल दोनों में समान रूप से हो सकता है अर्थात् जो सैनिकों और असैनिक नागरिकों दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी हों जैसे खाद्य पदार्थ, ईंधन, रेल के डिब्बे आदि । इन्हें उसी दशा में विनिषिद्ध माना जा सकता है जब ये शत्रु सरकार अथवा उसके सैनिक बलों के लिए ले जाई जा रही हों । ऐसी दशा में इन्हें युद्धकारी द्वारा रोककर हस्तगत किया जा सकता है ।
  • conditional recognition -- सप्रतिबंध मान्यता, सशर्त मान्यता
कभी – कभी मान्यता देने के साथ – साथ कुछ शर्तें भी लगा दी जाती हैं । ऐसी दशा में मान्यता को सशर्त मान्यता कहा जाता ह । उदाहरणार्थ 1878 मे बर्लिन कांग्रेस ने इस शर्त पर ब ल्गारिया मान्टेनीरो, सरबिया और रूमानिया को मान्यता देने का निश्चय किया था कि ये राज्य धर्म के आधार पर अपने नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं बरतेंगे ।
सामान्यतः मान्यताप्राप्त राज्य द्वारा मान्यता के लिए निर्धारित शर्त का पालन न करने से मान्यता निरस्त नहीं हो जाती क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय विधि का सामान्य नियम यह है कि एक बार मान्यता प्रदान कर दिए जाने के बाद उसे निरस्त नहीं किया जा सकता । परंतु ऐसी इकाइयों के संबंध में संभवतः यह बात लागू नहीं होती जो राज्य के रूप में अभी पूर्णतया सुस्थापित नहीं हैं और जिनकी स्थापना मे राज्यों की मान्यता एक निर्आयक तत्व है ।
  • condominium -- सहशासित राज्य
किसी राज्य प्रदेश अथवा क्षेत्र पर दो या अधिक राज्यों का संयुक्त रूप से नियंत्रण । ऐसी स्थिति अक्सर उस समय होती है जब दो या उससे अधिक राय किसी तीसरे राज्य, प्रदेश अथवा क्षेत्र पर आक्रमण करके विजयी हो जाते हैं और फिर आपस में संधि करके उस क्षेत्र अथवा प्रदेश पर अपना संयुक्त आशसन स्थापित करते हैं । इस प्रकार के क्षेत्र की जनता पर वियी देशों की संयुक्त प्रभुसत्ता होती है, किन्तु शासन करने वाले राज्यों के अधिकार क्षेत्र अक्सर पृथक होते ह और उनमें निवास करने वालों पर ही उनकी प्रभुसत्ता होती है । 1898 से 1953 तक सूडान पर मिश्र और ग्रेट ब्रिटेन का संयुक्त शासन रहा और प्रशांत महासागर के न्यू हेब्राइड्स टापू पर ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस का संयुक्त शासन है ।
  • confederacy -- राज्य मंडल
दो या अधिक राज्यों या राष्ट्रों का किसी विशेष उद्देश्य के लिए संयुक्त कार्रवाई करने के प्रयोजन से गठित तदर्थ गठबंधन जैसे, गृह युद्ध (1861 – 65) के समय अमेरिका के दक्षिणी राज्यों का परिसंघ ।
  • confederation -- राज्यसंघ, परिसंघ
स्वतंत्र राज्यों द्वारा सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गठित एक प्रकार का शिथिल संघ जिसमें सम्मिलित राज्य अपनी प्रभुता अक्षुण्ण रखते हैं किन्त साथ ही, परिसंघ को कुछ अधिकार देना स्वीकार करते हैं । प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका एक परिसंघ ही था । वास्तव मे इस समय कोई परिसंघ अस्तित्व में नहीं है । परंतु इसके ऐतिहासिक उदाहरण ये हैं हालैंड (1580-1795), जर्मनी 1815-1866) तथा स्विटज़रलैड (1815- 1845) आदि ।
  • conference diplomacy -- सम्मेलन राजनय
राजनय का एक स्वरूप जिसमे पारस्परिक समस्याओं एवं समान हित के प्रश्नों का समाधान संबंधित राज्यों के सम्मेलन के माध्य से खोजने का प्रयत्न किया जाता है । इसका प्रारंभ 19 वीं शती के आरंभ से माना जाता है ।
  • conflict of laws (=private international law) -- विधि वैष्म्य
किसी व्यक्ति के अधिकारों को लेकर विभिन्न राज्यों अथवा क्षेत्रधिकारों में मतभेद को दूर करने वाली विधि । इसे वैयक्तिक (प्राइवेट) अंतर्राषअट्रीय विधि भी कहा जाता है ।
  • conquest -- विजय
प्रदेश प्राप्ति का एक बलकारी उपाय जिसके अंतर्गत सैनिक बल प्रयोग द्वारा किसी देश या प्रदेश को वशीभूत करके उसे अपने राज्य में मिला लिया जाता है । यह क्रिया एकपक्षीय घोषणा अथवा पारस्परिक संधि द्वारा भी संपन्न की जा सकती है । समामेलन से पूर्म संबंधित प्रदेश केवल शत्रु आधिपत्य अथवा सैनिक आधिपत्य में माना जाता है । वर्तमानकालीन अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत इस प्रकार की क्रिया पूर्णतः अवैध हो गई है ।
  • consensual theory -- सहमति सिद्धांत
इस सिद्धांत की मान्यता यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम राज्यों की पारस्परिक सहमति से ही प्रतिपादित किए जा सकते ह और बिना राज्यों की सहमति के कोई भी नियम उन पर लागू नही किया जा सकता । इसका यह अर्थ नहीं है कि किसी नियम के बाध्यकारी होने के लिए प्रत्येक राज्य की सहमति उसके प्रति हो । इसका तात्पर्य केवल यह है कि जिन नियमों के प्रति राज्यों की सामान्य सहमति है उन नियमों को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सामान्यतः आध्यकारी माना जा सकता है । इस सिद्धांत के मानने वालों को यथार्थवादी () कहा जाता ह ।
  • consent post hoe -- तद्नंतर सहमति
विवादग्रस्त पक्षों के बीच किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समझौते के अंतर्गत किसी विवाद या उसके कुछ पहलुओं के निपटारे के लिए कीस एक पक्ष या दोनों पक्षों द्वारा वाद प्रारंभ होने के उपरांत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को दी गई क्षेत्राधइकार संबंधी स्वीकृति ।
  • consortium -- सहायता संघ
किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों जैसे, व्यापार, उत्पादन, आर्थिक सहयोग अथवा अंतर्रष्ट्रीय सहायता आदि के लिए विभिन्न राष्ट्रों की साझेदारी । उदाहरणार्थ, तेल उत्पादक देशं का संगठन, भारत सहायता संघ आदि ।
  • Constansinople Convention, 1888 -- कांस्टेन्टीनोपल संविदा, 1888
इस संविदा से स्वनेज नहर का जो मिस्र राज्य का प्रादेशिक भाग है, अंतर्राष्ट्रीयकरण किया गाय था । इसके अंतर्गत यह तय किया गया था कि स्वेज नहर शांति और युद्ध काल में सदैव सब राष्टों के वणिक और युद्धपोतों के लिए खुली रहेगी, परंतु युद्धपोतों को नहर मार्ग से अविलंब गुजरना हागा और वे स्वेज और सईद बंदरगाहों में 24 घंटे से अधिक नहीं ठहर सकेंगे । सैनिक टुकड़ियाँ, अस्त्र – शास्त्र और अन्य युद्ध सामग्री नहर के भीतर अथवा इसके बंदरगाहों में न तो लादी जा सकेगी और न उतारी जा सकेगी ।
1956 में मिस्र द्वारा स्वेज नहर कंपनी का, जो स्वेज नहर का प्रबंध करती थी, राष्ट्रीयकरण कर देने के उपरांत, संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने 13 अक्तूबर, 1956 को एक प्रस्ताव पारित करके स्वेज नहर संबंधी कुछ सिद्धांत घोषित किए जिनमें, स्वेज नहर मे आवागमन की स्वतंत्रता सब राष्ट्रों को बिना किसी भेदभाव के होगी और नहर को किसी भी देश की राजनीति से अलग रखा जाएगा, प्रमुख थे । स्वयं मिस्र ने 24 अप्रैल, 1957 की अपनी एकपक्षीय घोषमा में इस बात की संपुअषटि की कि वह 1888 के कांस्टेन्टीनोपल कन्वेशन की व्यवस्था और उसकी भावना का सम्मान करेगा ।
  • constitutive theory of recognition -- मान्यता का निर्माणात्मक सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार केवल मान्यता द्वारा ही कीस राज्य का जन्म अथवा निर्माण होता है क्योंकि जब तक किसी रजाय् को मान्यता नहीं मिल जाती तब तक उसका कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व नहीं होता है । मान्यता प्राप्त कर लेने पर ही राज्य अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व को प्राप्त कर अंतर्राष्ट्रीय कानून का विषय हो सकता है ।
इस सिद्धांत के समर्थक जैलनिक, हॉलै और औपेनहायम आदि हैं ।
  • consul -- वाणिज्य दूत, कांसुल
राजनयिक प्रतिनिधि से भिन्न एक अधिकारी या प्रतिनिधि जिसकी नियुक्ति विदेश में नियुक्तिकर्ता रजाय् के अपने या अपने नागरिकों के वाणिज्यिक हितों की रहा के लिए की जाती है । उसके कुछ मुख्य कार्य विदेशियों को वीज़ा जारी करना, अपने राज्यों के जहाजों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना, प्रमाणन संबंधित कार्यों का निष्पादन करना और व्यापारिक हितों का संरक्षण करना आदि हैं । इनके कार्यों एवं विशएषाधिकारों का संहिताकरण 24 अप्रैल, 1963 कि वियना कन्वेंशन द्वारा कर दिया गया है ।
  • consular court -- वाणिज्यदूतीय न्यायालय, कांसुली न्यायालय
वाणिज्यदूतीय संधि के अंतर्गत स्थापित न्यायालय जिसका प्रधान वाणिज्यदूत होता है और जिसका स्वीकर्त्ता राज्य मे रह रहे प्रेषक राज्य के नागरिकों के ऐसे दीवानी और फौजदारी मामलों में क्षेत्राधिकार ह ता है जो स्थानीय क्षेत्राधिकार में न आते हों ।
  • consular functions -- वाणिज्यदूतीय कार्य, कांसुली कार्य
वाणिज्यदूत द्वारा अपने राज्य तथा अपने राज्य के नागरिकों के लिए किए जाने वाले कार्य जैसे, अपने राज्य के व्यापारिक एवं वाणिज्यिक हितों की रक्षा करना, अपने राज्य के नागरिकों, जलपोतों एवं वायुयानों की विपदा पड़ने पर सहायता करना तथा अपने नागरिकों के लिए अनेक प्रकार के प्रशआसनिक एवं कानूनी कार्यों का निषअपादन करना इत्यादि । कहीं – कहीं वणिज्यदूत स्थानीय नागरिकों को अपने राज्य के लिए वीज़ा भी प्रदान करते हैं । राजनयिक एवं राजनीतिक कार्य इनके कार्यक्षेत्र की परिधि में नहीं आते ।
  • consular immunities and privileges -- वाणिज्यदूतीय उन्मुक्तियाँ एवं विशेषाधिकार
किसी राज्य में विदेशी वाणिज्य दूतों को मिलने वाले विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ जिन्हें 1963 के वियना कन्वेंशन द्वारा संहिताबद्ध कर दिया गया है ।
वाणिज्य दूतों को राजनयिक दूतों की भाँति स्थानीय क्षेत्राधिकार से पूर्ण उन्मुक्ति प्राप्त नहीं होती । प्रायः दुविपक्षीय संधियों द्वारा उनके विशिष्ट अधिकारों एवं स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्तियों की सीमा निर्धारिक की जाती है । यह भी सामान्यतया स्वीकार किया जाता है कि वाणिज्यदूत की स्थिति में किए गए कार्यों के लिए वे स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ती होंगे ।
वाणिज्य दूतों को दिए जाने वाले अन्य विशेषाधिकारों में उन्हें ज्यूरी के सदस्य के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकात, राज्य में आवागमन के दौरान सूरक्षा पाने अपने राष्ट्रिकों से निर्बध संपर्क तथा संचार करना आदि उल्लेखनीय हैं । कुछ राज्य वामिज्यदूतों को सीमित मात्रा में करों तथा सीमाशुल्क से भी मुक्ति प्रदान करते हैं ।
  • consular jurisdiction -- वाणिज्यदूत क्षएत्राधिकार
विदेशों में वाणिज्य दूतों को अंतर्राष्ट्य विधि वं वियना कन्वेंशन के अंतर्गत प्राप्त अधिकार जिनमें अपने देश के नागरिकों के विवाह और तलाक संबंधी मामलों को तय करना, अपने देश के लिए वीज़ा जारी करना तथा स्थानीय बंदरगाहों में आने वाले अपने देश के जलपोतों से संबंधित मामलों को तय करना इत्यादि शामिल हैं ।
  • consular treaty -- वाणिज्यदूतीय संधि कांसुली संधि
प्रेषक तथा स्वीकर्त्ता राज्य के बीच वह संधि जिसमें वाणिज्य दूतों के आदान – प्रदान तथा उनके अधिकारों और कर्तव्यों क उल्लेख होता है । संबंधित राज्यों के बीच ऐसी संधि का निष्पादन इसलिए रआवश्यक होता है कि वाणिज्यि दूतों द्वारा किए जाने वाले कार्य स्वीकर्ता राज्य के क्षेत्राधिकार का अतिलंघन कर सकते हैं और ऐसी स्थिति में स्वीकर्ता राज्य की अनुमती पहले से ही संधि द्वारा ले लेना जरूरी हो जाती है ।
  • consulate -- वाणिज्य दूतावास
1. वाणिज्य दूत या कांसुल का कार्यालय अथवा रहने का स्थान ।
2. वाणिज्य दूत का पद ।
  • consules electi -- निर्वाचित वाणिज्यदूत
निर्वाचित कांसुल
किसी राज्य में रह रहे विदेशी व्यापारियों द्वारा अपने व्यापार – वाणिज्य संबंधी हितों के संरक्षण हेतु अपने मे से ही चुना गया एक प्रतिनिधि, जिसे वाणिजय दूत कहा जाता था । कालांतर में यह व्यवस्थआ लुप्त हो गी और राज्य विधिवत् वाणिज्यदूतों की नियुक्ति करने लगे ।
  • consules missi -- प्रेषित वाणिज्यदूत, प्रेषित कांसुल
दे.
  • contiguity theory (=theory of contiguity) -- समीपता सिद्धांत
आधिपत्य करने वाले राज्य का यह दावा कि उसका प्रभुत्व उसके आधिपत्य के अधीन प्रदेशों से संलग्न क्षेत्र के उस भाग तक है जो उसके अपने अधीनस्थ प्रदेश के लिए उपयोगी है । यह सिद्धांत साम्राज्यवादी युग की देन था और अब इसका कोई महत्व नहीं है ।
  • contiguous zone -- संलग्न क्षेत्र
किसी तटवर्ती राज्य के भूभागीय समुद्र से संलग्न वह समुद्री क्षेत्र जहाँ तटवर्ती राज्य कुछ निर्धारित उद्देश्यों के लिए (जैसे सीमाशुल्क, आप्रवास, स्वास्थ्य आदि विनियमों को लागू करने) अपने राष्ट्रीय नियम लागु कर सकता है और उन्हें भंग करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई कर सकता है । यह क्षेत्र अन्यथा महासमुद्र का ही भाग होता है और तटवर्ती राज्य की संप्रभुता की परिधि में नहीं आता । तृतीय समुद्र विधि अभिसमय, 1982 के अनुसार इसकी अधिकतम दूरी तट से 24 नाविक मील तक कर दी गई है ।
  • continental margin -- महाद्वीपीय सीमांत
किसी तट से संलग्न महाद्वीपीय जलमाग्न तटभूमि महाद्वीपीय ढलान तथा महाद्वीपीय चढ़ाव का समुद्रवर्ती तिम छोर जहाँ से अगाध समुद्र अथवा महासमुद्र प्रारंभ होता है ।
  • continental shelf -- महाद्वीपीय जलमग्न सीमा
किसी देश के समुद्र तट से संलग्न दो सौ मीटर पानी की गहराई तक फैली समुद्र की तलहटी जिस पर तटवर्ती राज्य का क्षेत्राधिकार एवं नियंत्रण माना जाता है । परंतु ऊपरी जल की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति इससे प्रभावित नहीं होती । वर्तमान मे मयह सीमा महाद्वीपीय ढाल तक बढ़ा दी गई है अथवा 200 मील की दूरी तक मान ली गई है । इस जल क्षेत्र में राज्यों को नौपारिवहन की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है । तटवर्ती राज्य को केवल समुद्री संसाधनों के अन्वेषण तथा दोहन का ही अधिकार होता है ।
  • continental slope -- महाद्वीपीय ढलान
महाद्वीपीय जलमग्न तट भूमि (सामान्यतः 200 मीटर गहराई ) से प्रारंभ होने वाला समुद्र तल का वह भाग जहाँ से जल की गहराई बहुत अधिक हो जाती है महाद्वीपीय ढलान कहलाता है ।
  • continuity theory -- सातत्य सिद्धांत
अविच्छिन्नता सिद्धांत
साम्राज्यवादी युग मे राज्यों द्वारा प्रदेशों पर आधिपत्य किए जाने की स्थिति में आधिपत्य करने वाले राज्य बहुधा यह दावा करते थे कि उनकी प्रभुसत्ता का विस्तार उस सीमा तक माना जाए जो उनके आधिपत्य के अधीन क्षेत्र से संलग्न है और जो उनके आधिपत्य के अधीन प्रदेश की सुरक्षा एवं उसके स्वाभाविक विकास के लिए आवश्यक है ।
  • contraband -- विनिषिद्ध सामयी
1. ऐसी वस्तु या व्यापारिक सामग्री जिसका व्यापार या उसे लाना – लेजाना कानून के अनुसार निषिद्ध घोषित कर दिया गया हो ।
2. वे वस्तुएँ जिनका युद्ध छिड़ने पर शत्रु को निर्यात करना किसी युद्धकारी द्वारा वर्जित घोषित किया जाता है । इसकी विधिवत घोषणा की जानी चाहिए । इस घोषमा में उन वस्तुओं के नाम दिए जाने चाहिए जिनके निर्यात को विनिषिद्ध घोषित किया गया है । इस प्रकार के विनिषिद्ध माल को ले जाने वाले जलपोतों को युद्धकारी रोक, पकड़ एवं दंडित कर सकता है ।
  • contracting states -- संविदाकारी राज्य
वे राज्य जो किसी संधि के हस्ताक्षरकर्ता होने के कार्म उसकी व्यवस्था से बंधे होते है ।
  • convention -- 1. अभिसमय, कन्वेंशन
2. सम्मेलन
1. विभिन्न राज्यों द्वारा पारस्परिक महत्व के नियमों को सहमेति प्रदान करने वाला समझौता । प्रायः ये समझौते बहुपक्षीय सम्मेलनों में निष्पादित किए जाते हैं । इस दृष्टि से दूसरे विश्वयुद्ध के बाद राजनयिकों से संबंधित 1961 का वियना अभिसमय और समुद्र विधि से संबंधित 1958 के जिनेवा अभिसमय उल्लेखनीय हैं । इसमें विभिन्न अंतर्राषअटीरय संगठनों यथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आदि द्वारा लिए गए बहुपक्षीय निर्णय भी शामिल होते हैं । अभिसमय की संधि के रूप में भी व्याख्यि की जाती है । इस रूप में वे अंतर्राष्ट्य विधि के स्त्रोत होते ह और नए आचरण को जन्म देते हैं ।
2. पारस्परिक महत्व के विषयों पर दो या अधिक राज्यों का समागम ।
  • conventional international law -- अभिसमयात्मक अंतर्राष्ट्रीय विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि को दो रूपों में विशअलेषित किया जाता है । पहला परंपरागत और दूसरा अभिसमयात्मक अंतर्राष्ट्रीय विधि । दूसरे रूप मे वे नियम सम्मिलित होते हैं जिनका निर्माण अथवा विकास विभिन्न अभिसमयों के माध्यम से होतै है । दूरसे विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय विधि का विकास अभिसमयों के माध्यम से ज्यादा हुआ है क्योंकि तेजी से बदलती हुई अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों और विधि के बीच के अंतराल को अभिसमयात्मक विधि से ही पूरा किया गया है ।
  • Convention on genocide (=genocide convention) -- जनसंहार – अभिसमय
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 9 दिसंबर, 1948 को स्वीकार किया गया अभिसमय जिसके अनुसार राज्य इस ब त के लिए सहमत हुए कि किसी राष्ट्रीय, संजातीय, प्रजातीय या धार्मिक वर्गसमूहों को पूर्णतः या आंशिक रूप से नष्ट करने की भावना से किया गया जनसंहार अथवा उसके लिए षड्यंत्र करना या ऐसा करने के ले उकसाने का काम दंडनीय होगा और इसके लिए राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरमों में मुकदमा चलाया जा सकेगा, फिर चाहे ऐसे व्यक्ति शासक, सरकारी अधिकारी या गैर सरकारी किसी भी प्रकार केलोग क्यों ने हों । इस अभिसमय द्वारा व्यक्ति को अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय बनाया गया ।
  • convention on terrorism -- आतंकवाद अभिसमय
2 फरवरी 1971 को सं. रा. महासभा द्वारा स्वीकृत किया गया आतंकवादी कार्रवाई निरोधक तथा देंडित करने वाले अभिसमय के अनुसार राज्यों का यह कर्तव्य निर्धारित किया गया कि वे अपने भूभाग में किसी अन्य राज्य के विरूद्ध आतंकवादी कार्रवाइयों को न तो प्रश्रम देंगे और न प्रोत्साहित करेंगे अर्थात् वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप मे इस तरह की कार्रवाईयों को कोई सहायता प्रदान नही करेंगे । इसी दिशआ में यूरोपीय परिषद् ने आतंकवाद के दमन के लिए 1977 में एक यूरोपीय अभिसमय हस्ताक्षरार्थ तैयार किया और 1991 में दक्षेस (SAARC) ने भी इस पर विभिन्न नियमों को स्वीकार किया है ।
  • Convention on the High Seas -- खुला समुद्र अभिसमय,
महासमुद्र अभिसमय
राज्यों के बीच सन् 1958 मे की गई वह अभिसंधि जिसके अनुसार खुले समुद्र की समग्र विधिक व्यवस्था संहिताबद्ध कर दी गी है और जिसमें निम्नलिखित चार स्वतंत्रताएँ सम्मिलित हैं :-
1. नौपरिवहन की स्वतंत्रता;
2. मत्स्याग्रहण की स्वतंत्रता;
3. समुद्र मे तार तथा पाइपलाइनें बिछाने की स्वतंत्रता; और
4. खुले समदुर पर उड़ान की स्वतंत्रता ।
दे. common heritage of mankind भी ।
  • convoy -- सार्थवाह
भूभाग या समुद्री मार्ग से जाने वाले व्यक्तियों माल या जलपोतों के साथ – साथ उनकी रक्षआर्थ जाने वाला सैन्य बल ।
  • Corp diplomatique -- राजनयिक दूत संवर्ग
दे. Diplomatic corps.
  • convenant -- प्रसंविदा
यह संधि का ही पर्यायवाची है । इसका प्रयोग राष्ट्र संघ () के मूल विधान के लिए किया गया था ।
1966 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा अंगीकार किए गए मूल अधिकारों से संबंधित दो प्रपत्रों के लिए भी कोवेनेन्ट शब्द का प्रयोग किया गया है । इस शब्द मे भावार्थ संविदात्मक समझौते का है ।
  • credentials -- प्रत्यय – पत्र
किसी राजदूत को अथवा किसी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संगठन या समिति में भेजे जाने वाले राज्य के प्रतिनिधि को दिया गया नियुक्ति – पत्र या मानोनयन – पत्र जो उसके वैध राजनयिक प्रतिनिधि होने का अधिकृत प्रमाण माना जाता है । इसी पत्र को राजदूत द्वारा उस राज्य के राज्याध्याक्ष को समारोहपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है जिसमें वह प्रत्यायित हैं ।
  • crimes against humanity -- मानवताविरोधी अपराध
किसी राज्य की सरकार द्वारा किसी पूरे जनसमूह या उसके एक बड़े भाग के विरूद्ध किए जाने वाले ऐसे अमानुषिक, क्रूर, बर्बरतापूर्ण तथा निर्मम कृत्य जो मानवता के आधारभूत सिद्धांतों और मूल्यों के विरूद्ध हों । इसमें पूरे जनसमूह या उसके एक बड़े भाग का समूल विनाश, देश निकाला अथवा यातना शिविरों में रखकर आमानवीय व्यावहार करना शामिल है । इन अपराधों का निरूपण सर्वप्रथम 1946 के नूरोम्बर्ग अधिकरण के चार्टर में किया गया था और जर्मन युद्ध अपराधियों के विरूद्ध दोषारोपण पक्ष मे इन्हें सम्मिलित किया गया था ।
  • crimes against peace -- शांतिविरोधी अपराध
अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों का उल्लंघन कर किसी राज्य द्वरा युद्ध की योजना बनाना या तैयारी करना अथवा आक्रमक युद्ध करन या सामरिक योजनाओं व षड्यंत्रों में भाग लेना ‘शांतिविरोधी’ अपराध हैं ।
नूरोम्बर्ग कार्रवाई में जर्मन अपराधियों के विरूद्ध प्रोषित दोषारोपण पत्र मे यह प्रथम दोषारोपण था ।
  • Cuban Quarantine -- क्यूबा का संगरोध
यह घटना 1962 की है और इस कार्रवाई में शांतिकालीन नाकाबंदी के कुछ तत्व विद्यामान थे परंतु इसे शांतिकालीन नाकाबंदी नहीं कहा जा सकता । यह अपने में एक अभूतपूर्व कार्रवाई थी । इसका उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा क्यूबा को सोवियत संघ द्वारा जलमार्ग से नाभिकीय असत्रों – शास्त्रों को भेजे जाने पर रोकलगाना था और इस हेतु क्यूबा को जाने वाले सोवियत जलपोतों की तलाशी लेने के प्रयोजन की घोषणा संयुक्त राज्य द्वरा की गई थी ।
नाकाबंधी से यह कार्रवाई भिन्न थी क्योंकि इसमें क्यूबा के तट अथवा बंदरगाहों की नाकाबंदी न की जा कर केवल निर्धारित अस्त्र- शास्त्रों के क्यूबा ले जाने पर रोक लगाई गई थी । क्यूबा से किसी जलपोत के बाहर आने पर कोई प्रतिबंध नहीं था ।
  • customary international law -- प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि
एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया से गुजर कर विकसित होने वाली ऐसी प्रथाओं या रिवाजों पर आधारित नियम जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्वीकृति प्रदान कर उनकी बाध्यता को मान लिया है । इसका आधार दीर्घ, सतत व्यावहार और इनके प्रति राज्यों की मौत सहमति है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण विधि के संहिताकरण और विभिन्न संधि – विधियों से पहले प्रथाएँ ही अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रमुख स्रोत थीं, किंतु वर्तमान में संधि -विधि के प्रति अधिक आग्रह के कारण प्रथाओं का महत्व कम होता जा रहा है ।
  • damages -- हर्जाना
दे. Compensation.
  • declaration -- घोषणा
दो या अधिक राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा जारी औपचारिक वाक्तव्य । इस शब्द का चार अर्थों में प्रोयग किया जाता है :-
1. एक औपचारिक संधि जैसे 1856 की पेरिस घोषणा या 1966 की ताशकंद घोषणा ।
2. किसी संधि या अभिसमय के साथ जोड़ा गया एक अनौपचारिक प्रलेख जिसमें उस संधि या अभिसमय के उपबंधों की व्याख्या की गई हो ।
3. अल्प महत्व वाले किसी मामले के बारे में किया गाय अनौपचारिक समझौता ।
4. किसी राजनयिक सम्मेलन द्वारा पारित कोई संकल्प जिसमें सभी राष्ट्रों से कुछ सिद्धांत अपनाने आदि के बारे में कहा गया हो जैसे संधियों के संपादन में आर्थिक, राजनीतिक या सैनिक दवाब के निषेध की घोषणा जो संधि- विधि विषयक वियना सम्मेलन (1968-69) द्वारा स्वीकृत की गई थी ।
  • Declaration of Paris -- पेरिस घोषणा
1856 में समुद्र विधि विषयक प्रथम अंतर्राष्ट्रीय प्रयास जिसमें समुद्र विधि संबंधी अनेक नियमों का प्रतिपादन किया गया था । इस घोषणापत्र में सर्वप्रथम यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि केवल वही नाकाबंधी वैध मानी जाएगी जो प्रभावकारी होगी । इस घोषणापत्र के अनेक सिद्धांत कालांतर में सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के भाग बन गए ।
  • declaration of war -- युद्ध की घोषणा
प्राचीन काल से इस परंपरा का पालन होता आया है कि युद्ध प्रारंभ करने से पूर्व उसकी चेतावनी और तदुपरांत उसकी विधिवत घोषणा की जानी चाहिए । 1909 के दूसरे हेग सम्मेलन मे इस विषय पर एक अभिसमय भी स्वीकार किया गया था । प्रथम विश्वयुद्ध विधवत् घोषणा करके प्रारंभ हुआ था परंतु इसके उपरांत राज्य व्यवहार में एकरूपता नहीं रही और 1928 के बाद युद्ध की विधिवत् घोषणा का कोई भी दृष्टांत नही मिलता केवल ऐसे मामलों को छोड़कर जहाँ सशस्त्र कार्रवाई सामूहिक सुरक्षा के उपायों के रूप में की जा रही हो । संभवतः इसका कारण यह है कि 1928 के पेरिस समझौते के अंतर्गत राज्यों ने आक्रामक युद्ध के अधिकार का ही परित्याग कर दिया ।
  • declaratory theory of recognition (=evidentiary theory) -- मान्यता का घोषणात्मक सिद्धांत (=साक्ष्य सिद्धांत)
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य का जन्म अथवा निर्माण मान्यता से भिन्न और स्वतंत्र है । अतः मान्यिता प्रदान करने का कार्य उसके राज्य होने की घोषणा अथवा उसके अस्तित्व की साक्ष्य मात्र है । मान्यता प्रदान करना एक राजनीतिक कार्य है और उसका उद्देश्य नए राज्य के साथ दैत्य संबंध स्थापित करना होता है । उदाहरणतः एक लंबे समयतक बहुत – से राज्यों ने साम्यवादी चीन को मान्यता प्रदान नहीं की थी तो इसका यह अर्थ नहीं है कि साम्यवादी चीन का कोई अस्तित्व ही नहीं था ।
इस सिद्धांत के मुख्य समर्थक पिट काब्वेट, हॉल, वैगनर, फिशर और बियर्ली हैं ।
  • defacto recognition -- तथ्यतः मान्यता
किसी राज्य अथवा सरकार के अस्तित्व की वैधता पर न जाकर उसके राजनीतिक अस्तित्व की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उसे अस्थायी मान्यता प्रदान करना । मान्यता देने वाला राज्य कालांतर मे इस मान्यता के विधितः मान्यता में परिणत करने का निर्णय कर सकता है और यह भी हो सकता है कि वह इस तथ्यतः मान्यता को निरस्त कर दें ।
ग्रेट ब्रिटेन ने सोवियत संघ में साम्यवादी शासन को 1921 मे तथ्य्तः मान्यता देने के तीन वर् पश्चात् 1924 में विधितः मान्यता दी थी और इथोपिया को 1936 में तथ्यातः मान्यिता देकर दो वर्ष पश्चात् 1938 में विधितः मान्यता दी थी । 1948 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इज़रायल को पहले तथ्यतः मान्यता ही दी थी । संभवतः तथ्यतः मान्यता दिए जाने का यह अंतिम उदाहरण है । अधिकांश विद्वान् अब यह मानने लगे हैं कि राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से तथ्यतः और विधितः मान्यता मे अब कोई भेद नही रह गया है ।
  • dejure recognition -- विधितः मान्यता
मान्यता साधारणतया विधितः मान्यता ही होती है जब तकत कि उसे तथ्यतः मान्यता न कहा गा हो । विधितः मान्यता का अर्थ है कि किसी राज्य अथवा सरकार को स्वीकार करना अर्थात् यह स्वीकृति देना कि संबंधित राज्य अथवा सरकार में अंतर्राष्ट्रीय विदि द्वारा निर्धारित सभी गुण विद्यमान हैं । मान्यता के उपरांत मान्यता – प्राप्त इकाई अंतरार्ष्ट्रीय व्यक्तित्व धारण कर लेती है और मान्यता प्रदान करने वाले राज्य अथवा शासन एव मान्यता प्राप्त राज्य अथवा शासन के पारस्परिक संबंध अंतर्राष्ट्रीय विधि से नियमित एवं नियंत्रित होने लगेत हैं ।
विधितः मान्यता की मुख्य विशएषता यह है कि एक बार मान्यता देने के पश्चात् इसे निरस्त नहीं काय जा सकता ।
  • delegation theory -- प्रत्यायोजन सिद्धांत
एकत्ववादियों के मतानुसार तर्राष्ट्रीय विधि और राष्ट्रीय विधि एक एकीकृत विधि व्यवस्था के भाग हैं । अंतर्राष्ट्रीय समाज राज्यों को यह दायित्व सौंपता है कि वे संधिगत अंतर्राष्ट्रीय विधि को अपने प्रादेशिक क्षेत्र में किस प्रकार लागू करें, अथवा कैसे उसे राष्ट्रीय विधि व्यवस्था का भाग बनाएँ । इस प्रकार यह दायित्व राज्यों को प्रत्यायोजित किया गया है । इस कारण इसे प्रत्यायोजन सिद्धांत कहा जाता है ।
  • delict jure gentium -- अंतर्राष्ट्रीय विधि अपचार
किसी व्यक्ति अथवा निकाय द्वारा किया गया वह कार्य जो अंतर्राष्ट्रीय विधि के विरूद्ध अपराध माना जाता है जैसे जल दस्युता या अधः समुद्री तारों को क्षति पहुँचाना ।
  • dilimitation treaty -- सीमांकन संधि
दो या अधिक राज्यों के बीच संपादितसंधि जिसके अनुसार उनके विवादास्पद प्रदेशों का स्पष्ट निर्धारण किया जाता है ।
  • demilitarization -- विसैन्यीकरण
वह स्थिति जो किसी देश या प्रदेश मे नियमित सैन्यबल संगठित करने अथवा किसी भी प्रकार की सैनिक गतिविदि पर प्रतिबंध लगाने से उत्पन्न होती है । बहुधा ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संधियों के अंतर्गत किया जाता है । 1919 की वार्साई की संधि के अंतर्गत जर्मनी के सार (saar) प्रदेश का विसैन्यीकरण इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण है । 1967 की अंतरिक्ष संधि के अंतर्गत चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों के निशास्त्रीकरण की व्यवस्था की गई है ।
  • demilitarized zone -- विसैन्यीकृत क्षेत्र
वह क्षेत्र जिसमें किसी भी प्रकार की सैनिक गतिविधि वर्जित कर दी जाए अर्थात् जिसका प्रयोग किसी भी सैनिक उद्देश्य के लिए निषिद्ध कर दिया जाए । बहुधा ऐसा युद्धविराम संधियों अथवा शांति संधियों के अंतर्गत किया जाता है ।
दे. demilitarization भी ।
  • denial of justice -- न्यायवंचन
व्यापक अर्थ में इससे तात्पर्य स्थानीय शसन द्वारा राज्य में रहने वाले विदेशी नागरिकों को उनके अधिकारों पर अतिक्रमण होने की दशा में उन्हें उपचार के प्रार्याप्त उपाय उपलब्ध न करा सकना अथवा विदेशी द्वारा स्वयं कानून के उल्लंघन होने की दशा में उसके विरूद्ध कार्रवाई करने में उचित वैधिक प्रक्राय का पालन न किया जाना है । हार्वर्ड रिसर्च डाफ्ट के अनुसार “जब विदेशई नागरिक को न्यायालय में जाने से रोका जाए अथवा न्यायिक कार्रवाई में अतिरिक्त विलंब और रूकावट पैदा की गी हो अथवा न्यायिक प्रक्रिया अभावपूर्ण हो अथवा उचित न्याय प्रशासन की आवश्यक दशाएँ विद्यमान न हों अथवा न्यायालय का निर्णय स्पष्टतः अन्यायपूर्ण हो तो ऐसी दशा को न्यायवंचन कहते हैं“ ।
  • denunciation -- प्रत्याख्यान
किसी संधि अथवा समझौते को औपचारिक रूप से समाप्त करने की घोषणा ।
  • dependent state -- आश्रित राज्य, अधीन राज्य
ऐसी राजनीतिक इकाई जिसके आंतरिक थवा वैदेशिक मामलों अथवा तत्संबंधी नीतियों पर किसी अन्य राज्य का नियंत्रण हो । इसकी शक्तियाँ इस दूसरे राज्य द्वारा मर्यादित और सीमित होती है । इसका नियंत्रक राज्य के साथ अधीनता का संबंध होता है । 14 आगस्त, 1947 तक भारत इसी प्रकार का राज्य था । अनेक अंतर्राषअट्रीय विधिवेताओं के अनुसार ऐसा राज्य भी सीमित मात्रा में अंतर्राष्ट्रीय कानून का विषय होता है । उपनिवेश इसी प्रकार का एक दृष्टांत है ।
  • deportation of aliens -- विदेशियों का बलात् निषअकासन, विदेशियों का बलात् निर्वासन
राज्य द्वारा अवाँछित या अपराधी विदेशी व्यक्ति को अपने देश से बलात रूप से निष्कासित कर देना । निष्कासन आदेश जारी कर देने के बाद वह व्यक्ति किस जगह जाता है, यह देखना उस राज्य का दायित्व नहीं होता । यह उसका अपना दायित्व होता है ।
  • dereliction -- परित्याग
किसी राज्य का अपने भूभाग के किसी हिस्से और विशेषकर निर्जन अथवा सुदूरस्थित क्षेत्र में दीर्घकाल तक अपनी प्रभुसत्ता से संबंधित कोई कार्य न करना उस क्षेत्र का परित्याग कहा जाता है । यह स्थिति प्रभावी आधिपत्य से विपरीत स्थिति है ।
  • desuetude -- अप्रचलनावस्था
सभी पक्षकारों द्वारा संधि के दीर्घ समय तक पालन न किए जाने पर से वस्तुतः निरस्त मान लिया जाना ।
  • détente -- वैमनस्य शैथिल्य
तनाव शैथिल्य
द्वितीय विशवयुद्ध के पश्चात् संसार जिन दो गुटों में बंट गया , उनके पारस्परिक संबंध तनावपूर्ण होते चले गए जिसे शीत युद्ध की स्थिति कहा जाने लगा । इस स्थिति में सुधार आने अथवा तनाव मे कमी आने के क्रम को शैथिल्य कहा गया । शीतयुद्ध और शैथिल्य के बीच बराबर उतार – चढ़ाव आता रहा । शैथिल्य की स्थिति का एक चरम बिंदु यूरोप में शांति और सुरक्षा संबंधी सम्मेलन कहा जा सकता है जो 1975 मे हेलिसिंकी में हुआ था । परंतु 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत सैनिक हस्तक्षेप के फलस्वरूप तनान शऐथिल्य पुनः शईतयुद्ध में परिवर्तित होने लगा, लेकिन 1989-90 के काल मं साम्यवादी गुट और स्वयं सोवियत संघ के विघटन से संसार का द्विध्रुवीय विबाजन और फलस्वरूप शीतयुद्ध संमाप्त हो गाय और तनाव शऐथिल्य की अवधारणा एक ऐतिहासिक प्रसंग मात्र बन कर रहा गई है ।
  • devolution agreements -- अंतरण करार, अंतरण समझौते
ऐसे विशेष समझौते जिनके अंतर्गत औपनिवेशिक राज्यों द्वारा की गई संधियाँ या समझौते स्वतंत्र हुए नवीन राज्यों के लिए प्रभावी बने रहते हैं और नए र्जाय उनसे उत्पन्न हुए दायित्वों को वहन करना स्वीकार करते हैं । इस प्राकार औपनिवेशिक राज्य की संधियाँ नए राज्य को अंतरित मानी जाती हैं । ब्रिटेन, फ्रांस तथा नीदरलैंड जैसे राज्यों ने इस प्रकार के समझौतों का प्रयोग किया है ।
  • diminitive state (=mini state = dwarf state) -- लघु राज्य
वह राज्य जो अपने भौगोलिक क्षेत्र, जनसंख्या अथवा आर्थिक साधनों की दृष्टि से इतना छोटा या अशक्त होता है कि अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को वहन करने का भी सामर्थ्य नहीं रखता । यहाँ तक कि कुछ दृष्टांतों में ऐसा राज्य अपने विदेशई मामलों का संचालन भी किसी दूसरे राज्य पर छोड़ देता है । एंडोरा, लाइकटेन्स्टाइन, सैन मेराइनो तथा मोनाको लघु राज्य के उदाहरण हैं । विश्व का सबसे छोटा राज्य संभवतः नौरो है जिसका क्षेत्रफल केवल 8.21 वर्गमील है ।
  • diplomacy -- राजनय
राजनय को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है । एक प्रचलित र्थ के अनुसार राजनय राज्यों के बीच संबंधों को वार्ताओं के माध्यम से संचालित करने की प्रक्रिया है । एक और अर्थ में यह विदेश संचालित करने की प्रक्रिया है । एक और अर्थ में यह विदेश संबंधों को संचालित करन की कला है ।
  • diplomatic agent (=diplomatic envoy) -- राजनयिक अभिकर्ता,
राजनयिक एजेन्ट
राजदूतावास का प्रमुख किसी राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के साथ सम्पर्क स्थापित करने या वार्ता करने के लिए भेजा गया प्रतिनि राजनयिक प्रतिनिधियों की चार श्रेणियाँ 1961 के वियना कन्वेंशन में स्वीकार की गई हैं – (1) राजदूत जो पद और प्रतिष्ठा की दृष्टि से सर्वोपरि होते हैं (2) दूत एवं मंत्री (3) निवासी मंत्री तथा (4) कार्यदूत ।
इनमे से पहली तीन श्रेणियों के दूत राज्याध्यक्ष द्वारा प्रत्यायित होते हैं । परंतु कार्यदूत राज्याध्यक्ष द्वारा न भेजे जाकर देश के विदेश मंत्रालय द्वारा किसी दूसरे देश के विदेश मंत्रालय को प्रत्यायित किए जाते हैं । पोप द्वारा भेजे गए दूतों को नन्शियो अथवा लीगेट कहते हैं ।
  • diplomatic asylum -- राजनयिक शरण
किसी राज्य द्वारा विदेश स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास अथवा युद्धपोत में किसी व्यक्ति को अस्थायी रूप से और असाधारण परिस्थितियों में शरण देना । यह प्रदेश – बाह्य शरण का एक ढंग है । राजदूतावासों में विदेशइयों को शरण देने की परिपाटी विवादास्पद है । विद्वानों के अनुसार इस प्रकार की शरण अपवाद के रूप में दी जानी चाहिए और वह पूर्ण रूप से अस्थायी होनी चाहिए । लातीनी अमेरिकी राज्यों में दूतावासों में शरण दिए जाने की परिपाटी रही है परंतु पश्चिमी राज्य उसे स्वीकार नहीं करते । इस संद्रभ में हे डी ला टोरे के मामले में दाय गया अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है ।
  • diplomatic corps (=corps diplomatique) -- राजनयिक दूर संवर्ग
किसी देश की राजधानी में कार्यरत या नियुक्त राजनयिक प्रतिनिधोयों का समूह ।
  • diplomatic doyen -- राजनयिक प्रणेता
किसी निकाय अथवा राजनयिक निकाय का वरिष्ठतम सदस्य। वर्तमान काल मे इस शब्द का प्रयोग बहुधा किसी देश में विदेशई राजनयिक निकाय के प्रणेता के लिए होता ह ।
  • diplomatic envoy -- राजनयिक अभिकर्ता,
राजनयिक एन्वाय
दे. Diplomatic agent.
  • diplomatic functions -- राजनयिक कार्य
वियना कन्वेंशन, 1961 के अनुच्छेद 3 के अनुसार राजनयिकों के निम्नलिखित कार्य निर्धारित किए गए हैं :-
1. अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करना:
2. अंतर्राष्ट्रीय विधि की परिधि में अपने राज्य तथा उसके नागरिकों के हितों की रक्षा करना:
3. ग्रहण करने वाले राज्य की सरकार से वार्ता करना :
4. उस राज्य में हुई घटनाओं तथा वहाँ की दशाओं की सभी वैध उपायों से जानकारी प्राप्त करन तथा उनका विवरण अपनी सरकार को भेजना: और
5. अपने राज्य और ग्रहण करने वाले राज्य के मध्य मैत्री संबंधों की अभिवृद्धि तथा दोनों में आर्थिक, सांस्कृतिक तथा विज्ञान विषयक संबंधों का विकास करना ।
  • diplomatic immunities and privileges -- राजनयिक उन्मुक्तियां तथा विशेषाधिकार
अंतर्राष्ट्रीय विधि में राजनयिक उन्मुक्तियों के आधार को लेकर तीन सिद्धांतों का उल्लेख किया जाता है । पहले सिद्धांत के अनुसार राजनयिक को उन्मुक्तियाँ इसलिए प्राप्त होती हैं कि वह अपने राज्याध्यक्ष का प्रतिनिधित्व करता है और कोई राज्याध्यक्ष दूसरे राज्याध्यक्ष के अधीन नहीं माना जा सकता क्योंकि दोनों समान हैं । दूसरे सिद्धांत के अनुसार ये उन्मुक्तियाँ इसलिए मिली हुई हैं कि वह उस राज्य के प्रदेश में होते हुए भी उसके प्रदेश से बाहर माना जाता है और इसलिए उसके अधिकार क्षेत्र से भी वह बाहर होता है । तीसरे सिद्धांत के अनुसार इन उन्मुक्तियों की आवश्यकता इसलिए है कि ये राजनयिकों के लिए कुशलतः एवं निडरतापूर्वक कार्य करने हेतु आवश्यक हैं ।
राजनयिक उन्मुक्तियो से तात्पर्य उन विशेषाधिकारों और स्वतंत्रताओं से है जो राजदूतों तथा अन्य समकक्ष राजनयिक प्रतिनिधियों (जिनमें संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजे जाने वाले प्रतिनिधि भी शामिल हैं ) को अंतर्राष्ट्रीय परिपाटी के अनुसार प्रदान की जाती रही है । संक्षेप मेम इन राजदूतों को स्थानीय दीवानी एवं फौजदारी क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माना जाता है और व्यक्तिगत रूप से उन्हें अथवा उनके सम्मान को किसी प्रकार से भी प्रहाक का विषय नही बनाया जा सकात । उनका व्यक्तित्व और उनकी संपत्ति को अलंघनीय माना जाता है । ये उन्मुक्तियाँ राजदूत के परिवार के सदस्यों को भी प राप्त होती हैं । दूतावास के कर्मचारियों को ये उन्मुक्तियाँ केवल दूतावास के कार्य करते समय ही दी जाती हैं अन्यथा नहीं ।
राजनयिक प्रतिनिधियों को दिए जाने वाले विशेषाधिकार तथा उनकी उन्मुक्तियाँ अब 1961 के वियना कनवेंशन मे संहिताबद्ध कर दी गई हैं ।
  • diplomatic intervention -- राजनायिक हस्तक्षेप
किसी राज्य अथवा राज्यों द्वारा राजनयिक माध्यम से दबाव डालकर किसी अन्य राज्य की विदेश नीति को प्रबावित करन जैसे 1895 में रूस, फ्रांस और जर्मनी ने जापान पर अपना कूटनीतिक दबाव डालकर उसे इस बात के लिए विवश किया कि वह शीमोनोसेकी की संधि द्वारा लिया गया लिआओटुंग का प्रायद्वीप वीन को वापिस कर दें ।
  • diplomatic mission -- राजनयिक मिशन
राजदूतावास
कीस राज्य अथवा अंतर्राष्ट्रीय संगठन में प्रत्यायित राजनयिक दूत तथा उसका कार्यालय अथवा प्रतिनिधिमंडल ।
  • disarmament -- निःशस्त्रीकरण, निरस्त्रीकरण
इसका शाब्दिक अर्थ तो अस्त्रों और शस्त्रों का पूर्ण अभइत्याग है परंतु व्यवहार में निःशस्त्रीकरण से आशय अस्त्र – शस्त्र नियंत्रण से है । अतः इसमें अस्त्र और शस्तोरं के भंडारों तथा उनके उत्पादन पर प्रतिबंध लगाना एवं नियमित तथा नियोजित ढंग से उनमें कमी लाना शामिल है । ऐसा केवल राष्ट्रों के मध्य संधि – समझौतों द्वारा ही संभव है क्योंकि यह एकपक्षीय कार्रवाई नहीं हो सकता । राष्ट्र संघ से लेकर वर्तमान काल में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिशा में निरंत्र प्रयास किया है ।
निरस्त्रीकरण से जुड़े हुए अनेक निकाय हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग और विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन प्रमुख हैं ।
एंटार्कटिक संधि, परमाणु शस्त्र अप्रसारण संधि, अंतरिक्ष संधि, 1963 की मॉस्को संधि, सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि, मध्य दूरी प्रक्षेपणास्त्र परिसीमन संधि आदि निरस्त्रीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं ।
  • disarmament commission -- निरस्त्रीकरण आयोग
दे. Committee on Disarmament.
  • disarmament conference -- निरस्त्रीकरण सम्मेलन
दे. Committee on Disarmament.
  • discovery -- खोज
किसी राज्य द्वारा विश्व के किसी नवीन प्रदेश की खोज । परंतु केवल खोज मात्र से ही उस राज्य का इस प्रदेश पर आधिपत्य नहीं माना जा सकता । खोज से अधिपत्य करने का उस राज्य को प्रारंभिक अधिकार प्राप्त हो जाता है । इस हेतु खोज के पश्चात् राज्य उस प्रदेश पर अपना कोई प्रारंभिक चिह्न (झंडा, क्रास आदि) छोड़ देते हैं और उनके लिए यह आवश्यक होता है कि शीघ्रातिशीघ्र खोजे गए प्रदेश पर प्रभावकारी आधिपत्य स्थापित करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करें । खोज के वैधिक महत्व का विस्तृत विश्लेषण पाल्मास टापू (1928) के मामले में दिए गए पंचनिर्णय में मिलता है ।
  • dispositive treaty -- व्यवस्थापन संधि
वह संधि जिसका उद्देश्य मुख्यतः कोई प्रदेशगत स्थायी व्वस्था करना होता है जैसे, संबंधित राज्यों के मध्य सीमा – निर्धारण किसी भू – भाग का हस्तांतरण या अर्पण आदि ।
  • doctrine of continuous voyage -- अविच्छिन्न समुद्र यात्रा का सिद्धांत
नाकाबंदी तोड़ने या विनिषिद्ध माल ढोने के लिए जहाज अपनी यात्रा को दो भागों में तोड़ लेते हैं पहले भाग में वे तटस्थ बंदरगाह तक और फिर दूसरे भाग में उस तटस्थ बंदरगाह से शत्रुदेश के गम्य स्थान तक माल ढोते हैं । इस युक्ति को रोकने या उस पर अंकुश लगाने के लिए अविच्छिन्न समुद्र यात्रा का यह सिद्धांत अपनाया गया । इसके अनुसार इन दोनों यात्राओं को शत्रु के गम्य स्थान तक की एक ही यात्रा मान लिया जाता है और उस जहाज को वे सब परिणाम भुगतने पड़ते हैं , जो तटस्थ बंदरगाह बीच में न पड़ने पर भुगतने पड़ते । साथ ही आरंभिक स्थान से गंतव्य स्थान तक के बीच कहीं भी पकड़े जाने पर उसे दंडित काय जा सकता है ।
  • doctrine of equality of states -- राज्यों की समानता का सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसका आशय यह है कि विधिक दृष्टि से सभी राज्य समान हैं और अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत उनके समान अधिकार तथा कर्तव्य हैं यद्यपि उनमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सैनिक असमानताएँ पाई जाती हैं । इसका एक प्रमाण यह है कि संयुक्त राष्ट्र की महासभा में सभी राज्यों को एक वोट देने का अधिकार है ।
  • doctrine of implied powers -- निहित शक्तियाँ सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार कीस अंतर्राष्ट्रीय संगठन (जैसे संयुक्त राष्ट्र) की शक्तियाँ, अधिकार तता कर्तव्य उसके संविधान एवं संघटक प्रलेखों में उल्लिखित प्रावधानों तक सीमित नहीं किए जा सकते बल्कि उसके अधिकारों में वे भी निहित माने जा सकते हैं जो उसके लिखित अधिकारों व दायित्योवो को प्रभावकारी बनाने के लिए आवश्यक हों । इस सिद्धांत का आधार संस्थात्मक प्रबावशीलता है । अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने इसका प्रयोग संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की व्यख्या के लिए किया है ।
  • doctrine of incorporation -- समावेशन सिद्धांत
दे. Blackstonian doctrine.
  • doctrine of jurisdictional immunity -- क्षेत्राधिकारिक उन्मुक्ति का सिद्धांत
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत राज्याध्यक्षों राजदूतों एवं कुछ अन्य विशिष्ट इकाइयों को विदेशों में स्थानीय दीवानी वं फौज़दारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माना जाता हैं । इसका अर्थ यह है कि स्थानीय न्यायालयों में इनके विरूद्ध कोई दीवानी या फौज़दारी कार्रवाई नहीं की जा सकती । इसे क्षेत्राधिकारिक उन्मुक्ति का सिद्धांत कहा जाता है और इसे क्षेत्र अथवा प्रदेश बहयता भी कहा जाता है ।
  • doctrine of military necessity -- सैनिक अनिवार्यता सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार युद्धकाल मे सैनिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए युद्ध – विधि के नियमों का उल्लंघन भी उचित माने जाने का दावा किया जाता है ।
  • doctrine of natural law -- प्राकृतिक विधि सिद्धांत
आचरण के वे नियम जिनके बारे में यह विश्वास है कि मानव व्यवहार में इनका पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए । इन नियमों का स्रोत कोई शासक या विधायिका न होकर स्वयं मानव विवेक माना जाता है । ये समय और स्थान की सीमाओं से मर्यादित नही होते । इनके बाध्यकारी माने जाने का कारण यह है कि ये नियम मनुष्य जोकि एक विवेकशील एवं सामाजिक प्राणी है, की प्रकृति के अनुरूप होते हैं । एक मत यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार प्राकृतिक विधि के ये नियम ही हैं ।
  • doctrine of necessity -- अनिवार्यता सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार यदि कोई राज्य किसी आसन्न संकट से अपनी रक्षा क रने के लिए किसी अन्य राज्य को अधिकारों का अतिलंघन करता है तो अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत उसे अवैध नही माना जा सकता । इसके लिए यह आवश्यक है कि वह संकट ऐसा होना चाहिए जो उस राज्य के अस्तित्व, भू – भागीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता को खतरे में डालता हो । वर्तमानकालीन अंतर्रष्ट्रीय विधि में इसे केवल आत्मरक्षा तक सीमित कर दिया गया है ।
  • doctrine of non – recognition -- अमान्यता का सिद्धांत
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार बल – प्रयोग से की गई कोई संधि अथवा उससे उत्पन्न किसी स्थिति अथवा प्रदेश – प्राप्ति को मान्यता न देने का निश्चय अमान्यता कहलाता है ।
अमान्यता के सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम सन् 1933 मे जापान द्वारा मंचूरिया पर बलात आधिपत्य करने के संदर्भ में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी स्टिमसन द्वारा अमेरिकी विदेश नीति के एक सिद्धांत रूप में किया गया था । उनके नाम पर इस सिद्धांत को ‘स्टिमसन सिद्धांत’ भी कहा जाता है । स्टिमसन ने यह घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका किसी ऐसी संधि, प्रदेश – प्राप्ति या स्थिति को मान्यता नहीं देगा जो बल – प्रयोग से उत्पन्न की गई हो । मंचूरिया के संदर्भ मे इस सिद्धांत का अनुमोदन राष्ट्र संघ की सभा ने भी किया । 28 अक्तूबर 1976 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने भी एक प्रस्ताव पारित करके तथा कथित ट्रान्सकाई राज्य को मान्यता न दिए जाने का अनुरोध सदस्य – राज्यों से किया था ।
  • doctne of self preservation -- आत्म परिरक्षण सिद्धांत
दे. doctrine of necessity.
  • doctrine of sovereign immunity -- संप्रभु उन्मुक्ति सिद्धांत
इस सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि किसी विदेशी राज्य अथवा उसके राज्याध्याक्ष एवं उनकी संपत्ति तता सार्वजनिक जलपोतों पर स्थानीय राज्य के न्यायालयों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं होता । वर्तमान काल में यह माना जाने लगा है कि राज्य की आर्थिक क्रियाओं व्यापार आदि को इस सिद्धांत की परिधि के परे माना जाए ।
  • doctrine of transformation -- रूपांतरण सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम कीस राज्य की राष्ट्रीय विधि का केवल उसी सीमा तक अंग होते हैं जहाँ तक उन्हें राष्ट्रीय विधि के रूप मे प्रत्यक्षतः अंगीकृत कर लिया गया हो ।
  • domestic jurisdiction -- घरेलू क्षेत्राधिकार
वे विषय जिन पर कोई राज्य विदेशी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करता और इनसे संबंधित व्यवस्था करना वह अपने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार का विषय मानता है ।
वास्तव में यह प्रत्येक राज्य का अपना दृष्टिकोण और अपना निर्णय होता है कि कौन- सा विषय उसके घरेलू क्षेत्राधिकार का है । इस निर्णय को करने में वह किसी बाहय शक्ति द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर मे भी यह स्वीकार किया गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी राज्य के उन मामलों में हस्तक्षेप करन का कोई अधिकार नहीं होगा जो उस राज्य के घरेलू क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते हों ।
  • dominion status -- डोमीनियन स्थिति,
डोमीनियन पद
1931 के एक कानून के अंतर्गत ब्रिटिश साम्राज्य के कुछ प्रदेशों को (आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका आदि ) ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वाधीनता प्रदान की गई थी और इस कानून के अनुसार ब्रिटिश राष्ट्रमंडल की स्थापना हुई जिसके सदस्य ग्रेट ब्रिटेन और ये स्वाशासित प्रदेश थे । इन प्रदेशों को स्वतंत्र राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय अधिकार जैसे दूतों का आदान – प्रदान संधियों का संपादन आदि भी प्राप्त हो गए और ये अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति बन गए परंतु ये ब्रिटिश राष्ट्रमंजल के सदस्य बने रहे जिसका प्रतीकात्मक अध्यक्ष ब्रिटिश सम्राट होता है ।
  • double criminality -- दोहरी आपराधिकता
प्रत्यर्पण के समय अधिकतर राज्य यह शर्त लगाते हैं कि प्रत्यर्पित व्यक्ति का अपराध ऐसा हो जो शरण देने वाले राज्य तथा प्रत्यर्पण माँगने वाले राज् दोनों के कानूनों के अनुसार दंडनीय हो ऐसे ना होने पर प्रत्यर्पण नहीं किया जाता ।
  • double nationality -- दोहरी राष्ट्रिकता
ज्ञानवश अथवा अज्ञानवश, जानबूझकर अथवा बिना किसी प्रयोजन के कोई व्यक्ति एक राज्य का राष्ट्रिक होते हुए भी दूसरे राज्य की राष्ट्रीयता प्राप्त कर ले तो उसे दोहरी राष्ट्रीयता प्राप्त हो जाती है । ब्रिटेन में जर्मन माता – पिता की संतान वहां पर जन्म लेने के कारण जन्ममूलक तथा जर्मनी में जर्मन पिता होने के कारण पितृ मूलक राष्ट्रीयता प्राप्त कर लेती है । इसी प्रकार इंग्लैंड में जर्मन पिता तथा ब्रिटिश माता की अवैध संतान ब्रिटिश है किंतु (संतान हो जाने के बाद ) दोनों मेंविवाह हो जाने पर संतान वैध हो जाएगी और ऐसी संतान को जर्मन कानून के अनुसार जर्मन नागरिकता भी मिल जाएगी
ऐसे द्विराष्ट्रिकता वाले व्यक्तियों को राजनयिक भाषा में मिश्रित्र प्रजाजन (subjects mixtes) कहा जाता है । द्विराष्ट्रिकता वाले व्यक्ति के साथ तीसरा राज्य उनकी ‘प्रभावी राष्ट्रीयता’ effective nationality) के आधार पर व्यवहार करेगा अर्थात् वह उसे उसी राज्य का राष्ट्रिक समझोगा जिसमें वह स्वाभावक और मुख्य रूप से रहता है तथा जिसके साथ उसका घनिष्ठ संबंध है ।
इसी तरह जब कोई महिला किसी वेदेशी पुरूष से विवाह कर लेती है तो वह अपने राज्य की विधि के अनुसार अपने राज्य की राष्ट्रिक बनी रह सकती है और अपने पति के राज्य की विधि के अनुसार अपने पति के राज्य की भी राष्ट्रिक बन जाती है ।
  • Drago doctrine -- ड्रेगो सिद्धांत
इस सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम 1902 मे अर्जेन्टीना के विदेश मंत्री ड्रेगो द्वारा काय गया था । उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राज्यों का यह कर्तव्य है कि वे अपने नागरिकों के ऋणों की वसूली के लिए किसी दूसरे राज्य के विरूद्ध सशस्त्र बल प्रयोग न केरं । आगे चलकर 1907 के अभिसमय में भी इस सिद्धांत को दोहराया गया था । इस अभिसमय को पोर्टर अभिसमय भी कहा जाता है ।
  • dualistic theory (=school of dualism) -- द्वैतवादी सिद्धांत
द्वैतवादी संप्रदाय
अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों के पारस्परिक संबंध के बारे मे इस सिद्धांत अथवा संप्रदाय के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानून दो सर्वथा पृथक और स्वतंत्र पद्धतियाँ हैं क्योंकि इनके स्रोत इनके विषय और लागू होने के क्षेत्र बिल्कुल भिन्न हैं ।
इस मत के समर्थकों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय कानून राष्ट्रों के परिवार मे विकसित हुई प्रथाओं और विभिन्न राज्यों द्वारा आपस में की गी संधियों से जन्म लेता है जबकि राष्ट्रीय कानून राज्यकी सीमाओं के अंदर विकसित हुई प्रथाओं और राज्य की विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों से उत्पन्न होता है । अंतर्राष्ट्रीय कानून राज्यों के पारस्परिक संबंधों का नियमन करता है तो राष्ट्रीय कानून राज्य के नागरिकों के आपसी संबंधो तथा उनके और र्जाय के बच संबंधों का नियामक है । राष्ट्रीय कानून, प्रभुसत्ता संपन्न विधायिका द्वारा निर्मित होकर राज्य के नागरिकों पर सर्वोच्च सत्ता रखता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय कानून पूर्ण प्रभुता संपन्न राज्यों के पारस्परिक समझौतों, संधियों का परिणाम होता है इसलिए उसके पीछे कोई बाध्यकारी शक्ति नही होती ।
इन पारस्परिक भिन्नताओं के फलस्वरूप द्वैतवादी यह मानते हैं कि राष्ट्रीय कानून में विधिवत रूप से समाविष्ट किए बिना अंतर्राष्ट्रीय कानून के नियम राष्ट्री क्षेत्राधिकार मे लागू नहीं हो सकते और राष्ट्रीय कानून के भाग भी नहीं माने जा सकते । इस सिद्धांत के मुख्य समर्थकों में ओपेनहायम ट्रिपल आंजेलोटी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
  • dual nationality -- दोहरी राष्ट्रिकता
दे. double nationality
  • dwarf state -- लघु राज्य
दे. dminitive state.
  • Economic and Social Council -- आर्थिक तथा सामाजिक परिषद्
यह संयुक्त राषट्र के छह प्रधान अंगों में से एक है । इसका उद्देश्य सामाजिक तता आर्थिक उत्थान, मानवीय कल्याण की अभिवृद्धि तथा मानव अधिकार एवं स्वतंत्रताओं को लागू कराना है । प्रारंभ में इसके 18 सदस्य थे जो 1973 तक बढ़कर 54 हो गए थे । इनका चुनाव सं. रा. महासभा द्वारा तीन वर्ष के लिए होतै है और इसके एक तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त हो जाते हैं । लेकिन सुरक्षा परिषद् के पाँचों स्थायी सदस्य इसके लगातार निर्वाचित सदस्य रहते हैं ।
  • economic sanctions -- आर्थिक प्रतिबंध,
आर्थिक शास्तियाँ
चार्टर के अनुच्छेद 41 के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद द्वारा अपने निर्णयों को बाध्यकारी बनाने के उद्देश्य से अपनाए जाने वाले उपायों में से एक उपाय जिनका लक्ष्य अपचारी राज्य के विरूद्ध आर्थिक दबाव डालना होता है । इन प्रतिबंधों में राज्य के आयात – निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाना मुख्य रूप से महत्वपूर्ण है । इसका उद्देश्य राज्य के आयात – निर्यात व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर उसे सुरक्षा परिषद् के निर्णयों को मानने के लिए विवश करना है । अगस्त, 1990 में सुरक्षा परिषद् के निर्देश पर हराक के विरूद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे जिनका लक्ष्य इराक को कुवैत से अपनी सेनाओं को हटा लेने के लइ विवश करना था । मई. 1992 में लीबिया के विरूद्ध भी आंशिक रूप से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए । यह व्यवस्था कोई नई व्यवस्था नहीं है । राष्ट्र संघ () के काल में भी राष्ट्र संघ की परिषद् द्वारा राज्यों के विरूद्ध इस प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे ।
  • effective nationality -- प्रभावी राष्ट्रिकता
दोहरी राष्ट्रीयता वाले व्यक्त्यों के संबंध में 1930 के हेग सम्मेलन में अपनाए गए एक अभिसमय का वह नियम जिसके अनुसार ऐसे व्यक्ति को केवल उस देश का नागरिक माना जाएगा जहां वह स्वभावतः और मुख्यतः निवासि करता हो अथवा उसकी परिस्थितियों को देखते हुए जिस देश से वह घनिष्ठतम रूप से जुड़ा हो । ऐसे देश की नागरिकता ही उसकी प्रभावी नागरिकता समझी जाएगी ।
  • effective occupation -- प्रभावी कब्जा,
प्रभावी आधिपत्य
किसी स्वामित्वहीन प्रदेश किसी राज्य के स्वामित्व का दावा उसी दशा में वैध माना जा सकता है जब उसका उस प्रदेश पर प्रभावकारी आधीपत्य हो जिसका अर्थ है उस प्रदेश में उसकी सत्ता का निर्बाध – निर्वारोध और निरंतर प्रदर्शन । दूसरे शब्दों में केवल शाब्दिक अथवा कागजी दावे से आधिपत्य प्रभावकारी नहीं माना जा सकता । आधिपत्य को प्रभावकारी बनाने के लिए उस प रदेश में आधिपत्यकर्ता राज्य द्वारा किसी न किसी मात्र मे शासन कार्यों का संपादन (जैसे कर – वसूली, पुलिस व्यवस्था ) भी आवश्यक है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार केवल प्रभावनी आधिपत्य ही वैध माना जाता है ।
  • embargo -- घाटबंदी, व्यापार प्रतिषेध
अंतर्राष्ट्रीय विधि में एक विशिष्ट प्रकार का प्रत्याघात जिसका तात्पर्य है पीड़ित राज्य द्वारा थथाकथित अपराधी राज्य के जहाज़ों को अपने बंदरगाहों में न तो प्रवेश करने देना और न ही वहाँ से प्रस्थान करने की अनुमति देना है । मूल रूप में इस प्रकार के प्रतिबंध केवल जलपोतों पर ही लगाए जाते थे किंतु वर्तमान में इसका विषयक्षेत्र विस्तृत हो गाय है और आयात -न र्यात पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध भी इसकी परिसीमा में माने जाते हैं जैसे शस्त्रों की बिक्री कर प्रतिबंध ।
  • émigré government -- निर्वासित सरकार
दे.
  • enclave -- अंतस्थ क्षेत्र
कीस राज्य के भूभाग का वह हिस्सा जो चारों ओर से किसी अन्य राज्य के भूभाग से पूर्णतया घिरा हुआ होता है । प्रायः साम्राज्यवादी प्रसार के फलस्वरूप ऐसा हुआ जिसका ज्वलंत उदाहरण है भारत में दादरा और नगरहवेली के पुर्तगाली उपनिवेश । भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात जब इन उपनिवेशों में पुर्तगाली शासन के विरूद्ध विद्रोह हुए तो पुर्तगाल ने अपनी सेनाएँ भेजने के लिए भारत से पारगमन का अधिकार माँगा था जिसे भारत ने स्वीकारि नही किया था ।
  • enemy character -- शत्रु स्वरूप
युद्ध काल में युद्धरत राज्य एक दूसरे के शत्रु माने जाते हैं और उनके नागरिक तथा उनकी संपत्ति भी यही रूप धारण कर लेती है परंतु शत्रु स्वरूप निर्धारण करने के अंतर्राष्ट्रीय विधि में कुछ नियम हैं और इस संदर्भ में ब्रिटिश नियम और यूरोपीय महाद्वीपीय नियमों में अंतर था । ब्रिटेन में शुत्रु स्वरूप निवास से निर्धारिक होता था अर्थात् शत्रु प्रदेश मे निवास करने वाले सभी व्यक्ति चाहे वे शत्रु राज्य मे हों अथवा तटस्थ राज्य में सब श्तुर माने जाते थे । इसके विपरीत यूरोपीय महाद्वीपीय राज्य राष्ट्रीयता से शत्रु रूप निर्धारित करते रहे हैं । पिछले महायुद्धों में इन दोनों नियमों अर्थात् आवास एवं राष्ट्रीयता का कुछ सीमा तक सम्मिश्रण हो गया ताकि शत्रुराज्य की जनशक्ति और साधनों को अधिकाधिक सीमित और क्षीण काय जा सकें । व्यक्तियों के अतिरिक्त निगमों एवं जलपोतों को भी शत्रु रूपी घोषित किया जा सकता है, जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय विधि मे निश्चित नियम हैं ।
  • enemy property -- शत्रु संपत्ति
वह संप्त्ति जो किसी शत्रु व्यक्ति अथवा श्तुर राज्य की हो । अतः शत्रु संपत्ति का विभाजन दो भागों में किया जाता है – पहली राजकीय या सार्वजनिक संपत्ति और दूसरी वैयक्तिक संपत्ति ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि वैयक्तिक संपत्ति को राजकीय संपत्ति से अधिक संरक्षण प्रदान करती है । उदाहरणार्थ शत्रु की राजकीय चल संपत्ति को हस्तगत किया झा सकता है और अचल संपत्ति का अधिग्रहण कर उपयोग मे लाया जा सकता है । इसी प्रकार युद्धोपोतों को हस्तगत कर उनका स्वामित्व हरण किया जा सकता है ।
इसके विपरीत वैयक्तिक संपत्ति का उपयोग करने के लिए मूल्यि चुकाकर अधिग्रहण किया जा सकता है और सैनिक आवश्यकता समाप्त हो जाने पर उसका उसके मूल स्वामी को लौटाया जाना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त वैयक्तिक संपत्ति का उसी दशा में अधिग्रहण किया जा सकता है जब वह सैनिक प्रयोग के लिए आवश्यक हो ।
  • espionage -- जासूसी, चार – कर्म
युद्ध और शांति काल दोनों में राज्यों द्वारा दूसरे राज्यों के सैनिक और राजनीतिक महत्व के भेदों को एकत्रित करने का कार्य प्राचीन काल से ही होता आया है । वर्तमान काल मे यह कार्य और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गाय है और दरसंचार के साधनों में प्रगति एवं अंतरिक्ष मे उपग्रहों के प्रयोग के कारण यह अत्यधिक विशिष्ट और गंभीर स्वरूप धारण कर गाय है । युद्धकाल मे बी भेदियों, जिन्हें जासूस कहा जाता है, का प्रयोग युद्धकारियों द्वारा किया जात है ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि जासूसों को कोई संरक्षण प्रदान नहीं करती । कोई भी राज्य अपने विरूद्ध जासूसी करने वाले, कीस भी व्यक्ति को पकड़ पाने पर उसे अपने राष्ट्रीय कानूनों के अनुसारि दंड दे सकता है । यहाँ तक कि आकाश मे बी इस प्रकार के कार्य मे लगे वायुयान को मार गिराया जा सकता है ।
  • Estrada doctrine -- एस्ट्रेडा सिद्धांत
मेक्सिको के विदेश मंत्री सिनोर एस्ट्रेडा ने 1930 मान्यता का यह सिद्धांत प्रतिपादित काय । उसके अनुसार मेक्सिको भविष्य में षड़्यंत्रों या क्रांतियों द्वारा किसी राज्य की सरकार मे परिवर्तन को नए सिरे से कोई मान्यता प्रदान नहीं करेगा और वह सत्ता परिवर्तन की स्थिति में यह निर्णय करेगा कि संबंधित राज्य से अपने दैत्य संबंध बनाए रखे या नहीं । परंतु दौत्य संबंध बनाए रखना या न रखना इस सरकार की मान्यता से संबंधित नहीं होगा । उनके अनुसार राज्यों को मान्यता प्रदान करने की प्रथा बिल्कुल समाप्त कर देनी चाहिए क्योंकि ह दूसरे राज्य की प्रभुसत्ता में अपमानजनक हस्तक्षेप है और इसमें यह मान लिया जाता है कि किसी विदेशी राज्य की कानूनी स्थिति का निर्णय दूसरे राज्य की प्रभुसत्ता में अपमानजनक हस्तक्षेप है र इसमे ह मान लिया जाता है कि कीस विदेशी राज्यकी कानूनी स्थिति का निर्णय दूसरा राज्य (मान्यता प्रदान करने वाला ) करें । इस सिद्धांत का दोष यह है कि क्रांति अथवा गृहयुद्ध के पश्चात विदेशी राज्य किस पक्ष से संबंध अथवा संपर्क बनाएँ, यह नरिणय करने से मुक्त नही हो सकते । वस्तुतः यह निर्णय ही मान्यता के तुल्य है ।
  • European atomic Energy Community (EURATOM) -- यूरोपीय परमाणु ऊर्जा समुदाय
इस समुदाय की स्थापना 1957 में 6 राज्यों – बेल्जियम, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, लक्ज़मबर्ग और नीदरलैंड द्वारा की गई थी, बाद मे डेनमार्क, आयरलैंड और इंग्लैंड बी इसके सदस्य हो गए थे । इसके संगठन में एक आयोग, एक परिषद् और एक सभा – तीन अंग हैं । ये तीनों अंग इस समुदाय और अन्य दो यूरोपीय समुदायों – कोयला और इस्पात समुदाय तात आर्थिक समुदाय – के सामान्य अंग हैं ।
इसका मुख्य उद्द्एश्य सदस्य राज्यों में शांतिमय उद्देश्यों के लिए आण्विक अनुसंधान तता विकास के कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना, संयुक्त ऊरप्जा परियोजनाओं की स्थापना करना और वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान का एकीकरण केरना है ।
  • European Commission of Human Rights -- यूरोपीय मानव अधिकार आयोग
1950 के मानव अधिकार संबंधी यूरोपीय अभिसमय के अंतर्गत यूरोपीय परिषद् के सदस्य – राज्यों ने मानव अधिकारों के संरक्षणार्थ एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवसथा स्थापित की थी । इस व्यवस्था के दो अंग हैं । एक आयोग और दूसरा न्यायालय । आयोग को यूरोपीय मानव अधिकार आयोग कहा जाता है । सदस्य – राज्यों के प्रदेश में किसी भी मानव अधिकार उल्लंघन संबंधी मामले को प्रेषित किया जा सकता ह । मालमों को प्रेषित करन का अधिकार केवल सदस्य राज्यों को है । परंतु कोई मामला किसी व्यक्ति अथवा गैर सरकारी संगठन द्वारा भी प्रेषित किया जा सकता है, बशर्ते यदि वह राज्य जिसके विरूद्ध याचिका प्रेषित की गई है व्यक्तियों के याचिक प्रेषित कनरे के अधिकार को स्वीकार कर चुका है । जुलाई 1955 से आयोग व्यक्तियों द्वारा प्रेषित याचिकाओं पर सुनवाई के ले सक्षम हो गाय है ।
मानव अधिकार उल्लंघन के मामले पहले आयोग में प्रेषित होते हैं । आयोग में 15 सदस्य हैं । यदि मामला आयोग के क्षेत्राधिकार मे है तो आयोग उस पर विचार करता है और अपना विवरण तथा संस्तुति यूरोपीय परिषद् की मंत्रियों की समिति को भेज देता है । यह समिति मामले का सौहार्दपूर्ण समाधान करने का प्रयास करती है । यदि यह संभव न हो तो दो तिहाई बहुमत से मामले का निपटारा कर सकती है ।
यूरोपीय आयोग के समक्ष हजारों याचिकाएँ प्रेषित की जा चुकी हैं और यह आयोग मानव अधीकारों के संरक्षण में अत्यंत क्रियाशील और सचेत है ।
  • European Community -- यूरोपीय समुदाय
यह वह राजनीतिक संरचना है जो यूरोपीय कोयला एवं इस्पात समुदाय यूरोपीय आर्थिक समुदाय तथा यूरोपीय परमाणु ऊर्जा समुदाय, इन तीनों समुदायों के लिए आर्थिक निर्णय करती है । इस संरचना की निम्न संस्थाएँ हैं मंत्रि परिषद्, आयोग, यूरोपीय संसद और न्यायालय । परिषद् और संसद यूरोपीय समुदाय की एक प्रकार से दोहरी कार्यपालिका है । यूरोपीय संसद की स्थापना सबसे पहले 1952 में की गई थी और यद्यपि इसे विधि – निर्माण का अधिकार नही है परंतु यह नवीन आर्थिक नीतियों के सुझाव दे सकती है । इस संसद के लिए सदस्य राज्यों की राष्ट्रीय संसदों द्वारा प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते थे । वर्तमान में इसके सदस्यों के लिए सदस्य – राज्यों की जनता अपने प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन करती है ।
न्यायालय की स्थापना भी 1952 में की गई थी और यह समुदाय के विभिन्न अंगों एवं सदस्य – राज्यों के मध्य विवादों का समाधान करता है और समुदाय की संधियों की व्याख्या भी करता है । यूरोपीय समुदाय निरंतर अधिकाधिक आर्थिक एवं राजनीतिक एकीकरण की ओर गतिशील है । जनवरी, 1991 में मास्ट्रिक्ट संधि से यह समुदाय इस शताब्दी के अंत तक एक संघ या परिसंघ में परिवर्तित हो जाएगा, ऐसा अनुमान है और समुदाय की एक सामान्य मुद्रा होगी र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा यहाँ तक कि प्रतिरक्षा के क्षेत्र में भी सामान्य नीतियाँ होंगी ।
यद्यपि ब्रिटेन समुदाय के अधिक एकीकरण का विरोद कर रहा है और वहां का जनमानस किसी भी दशा में यूरोपीय संघ या परिसंघ की अवधारणा के वरूद्ध है, परंतु समुदाय के अन्यि सदस्य – राज्य परस्पर एकीकरण के लिए दृढ़ संकल्प है । इस समय (1992) बेल्जियम, फ्रांस, ग्रीस, लक्ज़मबर्ग, इटली, आयरलैंड, डेनमार्क, नीदरलैंडस, पुर्तगाल, स्पेन, युनाइटेड किंगडम और जर्मनी इसके सदस्य हैं ।
  • Eruopean Convention on Extradition -- यूरोपीय प्रत्यर्पण – अभिसमय
प्रत्यर्पण संधियाँ प्रायः द्वि – पक्षीय होती हैं । इस विषय में बहु – पक्षीय संधि अपवाद है । इस अपवाद का एक उदाहरण 13 दिसंबर, 1957 का प्रत्यर्पण विषयक यूरोपीय अभिसमय है । यह अभिसमय यूरोपीय समुदाय के सदस्य देशों में प्रत्यर्पण संबंधी मामलों का नियामक है ।
  • European Convention on Human Rights -- यूरोपीय मानव अधिकार अभिसमय
इस अभिसमय पर रोम में यूरोपीय परिषद् के सदस्य – राज्यों द्वारा 4 नवंबर, 1950 को हस्ताक्षर किए गए थे और यह 1953 से प्राबवकारी हुआ । इसको स्वीकार करने वाले राज्य आस्ट्रिया बेल्जियम, ब्रिटेन, साइप्रस, डेनमार्क, जर्मनी, ग्रीस, आइसलैंड, आयरलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नार्वे, स्वीडन हैं यूरोपीय परिषद के तीन सदस्यों यथा फ्रांस, माल्टा और स्वीडन ने इसे स्वीकार नहीं काय । इसका उद्देश्य सदस्य – राज्यों के मध्य आदारभूत मानवीय अधिकारों तता स्वतंत्रताओं के रक्षार्थ यूरोपीय धरातल पर अंतर्राष्ट्रीय निकायों की स्थापना करना था जिनमें दो विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं – 1. यूरोपीय मानव अधिकार आयोग, और 2. यूरोपीय मानव अधीकार न्यायालय ।
मानव अधिकार आयोग सदस्य – राज्यों में मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जाँच कर उन पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है । ऐसा राज्यों के अनुरोध पर किया जा सकता है परंतु यदि राज्य इसके लिए सहमत हों तो यह कार्य किसी व्यक्ति, व्यक्ति समूह अथवा गैर सरकारी संगठन के अनुरोध पर भी किया जा सकता है । 1950 के उपरांत व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों के अनुरोध पर भी यह आयोग मानव अधिकार उल्लंघनों के मामले से संबंधित याचिकाएँ स्वीकार करने लगा है ।
यूरोपीय मानव अधाकार न्यायालय की स्थापना 1959 में की गई थी । न्यायालय के समक्ष केवल इसके क्षेत्राधिकार को स्वीकार करने वाले केवल यूरोपीय राज्य मामले पेश कर सकते हैं, वय्क्ति नहीं ।
  • European Court of Human Rights -- यूरोपीय मानव अधार अभिसमय के अंतर्गत एक न्यायालय की स्थापना की गई है । पूर्व – घोषणा करके मानव अधिकार अभिसमय के सदस्य – राज्य इस न्यायालय का अनिवार्य क्षेत्राधिकार स्वीकार कर सकते हैं । न्यायलय मे सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है चाहे उन्होंने यायालय का अनिवार्य क्षेत्राधिकार स्वीकार काय हो या नहीं ।
आयोग एवं यूरोपीय परिषद् की मंत्री – समिति के निर्णय के विरूद्ध योरोपीय मानव अधिकार न्यायालय में अपील की जा सकती है । अपील करने का अधिकार उन राजोयं के नागरिकों को हैं, जिन्होंने न्यायालय का अनिवार्य अधिकार क्षेत्र स्वीकार किया है । आयोग स्वयं किसी मामले को न्यायालय के विचारार्थ भेज सकता है ।
यह न्यायालय जनवरी 1959 से कार्यरत है और लोलैस के मामले में 14 नवंबर, 1960 को इसने अपना प्रथम निर्णय दिया था । तबसे यह अनेक महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय दे चुका है, जिनमें गोल्डर बनाम यू. के. (1975), टायरर बनाम यू. के. (1978). संडे टाइम्स का मामला (1977), यंग जेम्म और वेवस्टर का मामला (1981) आदि उल्लखनीय हैं ।
  • European Economic Community -- यूरोपीय आर्थिक समुदाय
यह एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1957 की रोम – संधि के द्वारा की गई थी और जिसके हस्ताक्षरकर्ता पश्चिमी यूरोपीय राज्य थे । इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य – राज्यों के लिए एक साझा बाज़ार की स्थापना करना, सामान्य आर्थिक नीतियाँ निर्धारित करन और आपस में आयात – निर्यात शउल्क समाप्त करके बाहरी देशों से होने वाले निर्यात पर शुल्क संबंधी सामान्य नीति अपनाना था ताकि इस आर्थिक समुदाय के क्षेत्र के भीतर आयात – निर्यात अबाध रूप से हो सके । श्रमिक और पूंजी कही भी आने – जे या लगाए जाने के लिए स्वतंत्र हों । समुदाय ने सदस्य – राज्यों के मध्य उत्पादन एवं विपणन संबंधी अनेक नीतियाँ अपनाई हैं और कृषि – उत्पादन को सहायिकी प्रदान की हैं । वर्तमान काल में यूरोपीय साझा बाज़ार का और अधिक विस्तार हुआ है और इसके सदस्यों में अनेक नए राज्य शामिल हुए हैं । अब इसे केवल यूरोपीय समुदाय कहा जाता है । विस्तार के लिए देखिए European Community.
  • evidentiary theory of recognition (=declaratory theory of recognition) -- मान्यता का साक्ष्य सिद्धांत (मान्यता का घोषणात्मक सिद्धांत)
दे. Declaratory theory of recognition.
  • exchange of notes (or of letters) -- संपत्रों (या पत्रों ) का विनिमय
हाल के वर्षमों में अत्यधिक प्रचलित इस अनौपचारिक प्रणाली के अंतर्गत राज्य प्रायः उन दायित्वों या मंतव्यों का निर्देश करत हैं, जिनका पालन करना वे आवश्यक समझते हैं । ये आदान – प्रदान राज्यों के राजनयिक या सैनिक प्रतिनिधियों के माध्यम से भी किए जाते हैं । अक्सर इनके लिए अनुसमर्थन की जरूरत नही होती परंतु यदि पक्षकार ऐसा आशय व्यक्त करे तो अनुसमर्थन की जरूरत होगी । यह भी संधि का एक रूप है ।
  • exclusive economic zone -- अनन्य आर्थिक क्षेत्र
तटवर्ती राज्य के इस समुद्री क्षेत्र की अवधारणा को साकार रूप देने का क्षेय तीसरे समुद्र -विधि सम्मेलन को है । यह क्षेत्र तट से 200 नाविक मील की दूरी तक का होता है और इसमें समुद्र के आर्थिक संसाधनों के अन्वेक्षण, दोहन, संरक्षण एवं प्रबंध करने का अनन्य अधिकार तटवर्ती राज्य का होता है और इस क्षेत्र में कृत्रिम संरचनाओं एवं टापुओं की स्थआपना के साथ – साथ इस क्षेत्र मे वैज्ञानिक अनुसंधान वं पर्यावरण के संरक्षण का अधइकार भी तटवर्ती राज्य का होता है । यह उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में परंपरागत महासमुद्री स्वतंत्रताएँ, जो सभी राष्ट्रों को प्राप्त है, (मत्स्यहरण अधिकार के अतिरिक्त) प्रबावित नहीं होती और इनके नौ – परिवहन आदि अधिकार बने रहते हैं । तीसरे समुद्र -व धि सम्मेलन (1973 -82) में अनन्य आर्थिक क्षेत्राधिकार को मान्यता दिए जाने के पीछे लातीनी – अमेरिकी राज्यों को तुष्ट करना था जो बराबर अपने तट से 200 नाविक मील की दूरी तक के मत्स्याहरण संबंधी अनन्य अधिकार का दावा करते आ रहे थे और इस हेतु 200 नाविक मील के भूभागीय समुद्र को मान्यता दिए जाने के लिए दबाव डाल रहे थे । इनके पक्ष में एक तथ्य यह भी था कि इन दोशों की महाद्वीपीय जलमग्न तट भूमि थी ही नहीं, या नगण्य थी । अतः इस प्राकृतिक असमानता को दूर करने और इनकेआर्थिक हितों को ध्यान मे रखते हुए यह उचित समझा गया कि 200 नाविक मील के अनन्य आर्थिक क्षेत्र को स्वीकार कर लिया जाए जिसमें समुद्री स्वतंत्रताओं को प्रबावित किए बिना तटवर्ती राज्यों को आर्थिक संसाधनों के दोहन का अनन्य अधिकार हो ।
  • exhaustion of local remedies rule -- स्थानीय उपचार समापन नियम
पारंपरिक अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक सुस्थापित सिद्धांत जिसका आशय यह है कि कोई विदेशी नागरिक या निगम क्षतिपूर्ति के लिए किसी राज्य के विरूद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर परतब तक कोई कार्यवाही प्रारंब नहीं कर सकता जबतक उसने उस राज्य में उपलब्ध सभी विधिक उपचारों का प्रयोग पूरी तरह न कर लिया हो ।
  • express recognition -- व्यक्त मान्यता
मान्यता दो प्रकार से प्रदान की जा सकती है – प्रतुयक्ष रूप से अथवा निहित रूप से । प्रायः मान्ता प्रत्यक्ष अथवा व्यक्त रूप से ही प्रदान की जाती है । इसका अर्थ है स्पष्टतः घोषणा करके, वक्तव्य देकर, संदेश भेजकर, संधिपत्र पर हस्ताक्षर करके अथवा अन्य इसी प्रकार के माध्य से मान्यता प्रदान करना ।
  • expropriation of alien property -- विदेशी संपत्ति का स्वत्वहरण
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत किसी विदेशी संपत्ति का सार्वजनिक उपयोग हेतु स्वत्वहरण अनुमत है । राज्य की प्रबुसत्ता में यह बात निहित है कि राज्य अपनी सीमांतर्गत सभी विदेशी निजी संपत्ति का स्वत्वहरण करके उसे सार्वजनिक उपयोग मे ला सकता है । लेकिन स्वत्वहरण के इस अधिकार पर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं और व्यवहार में कुछ प्रतिबंध सामान्यतः स्वीकार किए जाते हैं, जो इस प्रकार है प्रथम, स्वत्वहरण सार्वजनिक उपयोग हेतु होना चाहिए द्वितीय, स्वत्वहरण में विभिन्न देशों के नागरिकों के मध्य कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और तृतीय सरकार को स्वत्वहरण के बदले समुचित मुआवजा प्रदान करना चाहिए ।
  • explusion of aliens -- विदेशियों का निष्कासन,
विदेशियों का निर्वासन
राज्य का किन्हीं भी कारणों से विदेशियों को या किसी एक या अधिक विदेशई को अपने प्रदेश से चले जाने का आदेश देना । अंतर्राष्ट्य विधि की मान्यता है कि केवल समुचित कारणों से ही ऐसा काय जाना चाहिए और यह भी सुनिश्चित किया जाना चिहिए कि निष्कासन प्रक्रिया में विदेशी को अनावश्यक कष्ट न हो । 1966 की नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार विषयक प्रसंविदा मे यह प्रावधान किया गाय है कि जो विदेशी वैध रूप से राज्य में हैं उन्हें केवल न्यायिक निर्णय के उपरांत ही निष्कासित काय जाना चाहिए ।
प्रायः युद्ध – काल में श्तुर – राज्य के सभी नागरिकों को निष्कासित किया जा सकात ह परंतु शांति काल में ऐसा केवल सार्वजनिक हित में ही किया जाना चाहिए ।
यदि विदेशी निष्कासन – आदेश का पालन करने मे आना – कानी करे तो उसे बलात् हटाया जा सकता है ।
  • External intervention -- बाह्य हस्तक्षेप
एक राज्य द्वारा आदेशात्मक रूप से, शक्ति का प्रयोग करके बलपूर्वक अथवा बल प्रयोग की धमकी से दूसरे राज्य के विदेशी मामलों अथवा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दखल देना । उदाहरणार्थ 1895 में जर्मनी, फ्रांस और रूस द्वारा जापान को लिखा गया प्रपत्र जिसमें जापान को चीन से लिया गया लायोतुंग का प्रदेश वापिस करने के लिए विवश किया गया ।
बाह्य हस्तक्षेप का एक चरम उदाहरम है दूसरे महायुद्ध में इटली का ग्रेट ब्रिटेन के विरूद्ध जर्मनी की ओर से युद्ध मे कूद पड़ना ।
  • external sovereignty -- बाह्य संप्रभुता, बाह्य प्रभुसत्ता
संप्रभुता राज्य का एक अनिवार्य तत्व है । संप्रभुता का अर्थ है राज्य की सर्वोच्च शक्ति, जो राज्य के आंतरिक और बाह्य मामलों को नियंत्रित और नियमित करने के लिए अनन्य रूप से सक्षम होती है ।
संप्रभुता के इस बाह्य पक्ष को ही बाह्य संप्रभुता कहते हैं । इसका अर्थ है राज्य का अपने विदेशी – संबंदों का संचालन करने में पूर्ण स्वतंत्र होना । मैक्स हयूबर ने एक मामले में यह विचार व्यक्त किया था कि ‘राज्य के पारस्परिक संबंधों में सार्वभौमिकता का अर्थ है स्वतंत्रता’ ।
  • exterritoriality -- राज्य क्षेत्र बाह्यता,
राज्य प्रदेश बाह्यता
अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह सिद्धांत जिसके अनुसार कुछ विदेशी इकाइयाँ जैसे राज्याध्यक्ष, राजदूत, राजनायिक दूतावास, राजकीय जलपोत, राज्य – प्रदेश में भौतिक रूप से उपस्थिति होते हुए भी राज्य – प्रदेश से बाहर माने जाते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि वे स्थानीय विधि और स्थानीय न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त हैं ।
कुछ विद्वानों ने इस मत का खंडन काय है कि इन इकाइयों को प्रदेश – ब ह्य समझा जाए । यद्यपि ये विद्वान इन इकाइयों को स्थानीय क्षेत्रधिकार से उन्मुक्त मानते हैं ।
  • extinctive prescription -- समापनीय चिरभोगाधिकार
किसी राज्य के किसी प्रदेश पर दीर्घकालीन निर्बाध निर्विरोध नियंत्रण एवं आधिपत्य से उसके मूल स्वामी का अधिकार समाप्त हो जाना ।
  • extraditable crimes (=extraditable offences) -- प्रत्यर्पणीय अपराध
सामान्यतः बहुत गंभीर अपराध करने वाले अपराधियों के प्रत्यर्पण की ही माँग की जाती है और विभिन्न देशों के प्रत्यर्पण कानूनों में इस प्रकार के अपराधों का उल्लेख भी किया जाता ह । लगभग सभी देशों में वध, नरहत्या, नकील सिक्के बनाना जालसाजी, गबन, अपहरण, बलात्कार, समुद्री डकैती आदि प्रत्यर्पणीय अपराधों की श्रएणी में आते हैं । कुछ देशों के प्र्तयर्पण कानूनों में अपराधों का नामोल्लेख तो नही किया गया है किंतु उन अपराधों को प्रत्यर्पणीय अपराध माना गया है जिनके लिए वहाँ के दंड विधान में कोई न्यूनतम दंड नियत किया गया है ।
सामान्य नियम के रूप में राजनीतिक अपराध, सैन्य अपराध, और धार्मिक अपराध प्रत्यर्पणीय अपराधों की सूची से बाहर रखे गए हैं ।
  • extraditable ofences -- प्रत्यर्पणीय अपराध
दे. Extraditable crimes.
  • extraditable persons -- प्रत्यर्पणीय व्यक्ति
प्रत्यर्पणीय व्यक्ति वे व्यक्ति होते हैं जिनका संबंधित संधियों अथवा राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत प्रत्यर्पण किया जाना वैध होता है । सामान्यतः राज्य अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण नहीं करते और संधियों में भी यह प्रावधान रहता है जैसे भारत -नेपाल प्रत्यर्पण संधि । परंतु कुछ देश जैसे ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका अपने नागरिकों का भी प्रत्यर्पण कर देते हैं यदि ऐसा करना संबंधित प्रत्यर्पण संधि में वर्जित न हो ।
सामान्यतः प्रत्यर्पण प्रत्यर्पण चाहने वाले राज्य के नागरिकों और तीसेर राज्य के नागरिकों का ही किया जाता है ।
एक दीर्घ कालीन परंपरा के अनुसार राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं किया जाता, यद्यपि यह विवादग्रस्त है कि किसे राजनीतिक अपराधी समझा जे । वरतमान काल में विमान – अपहरण के मामलों की संख्या मे बढ़ोत्तरी हो जाने के कारण एक अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के अंतर्गत यह व्यवस्था अपनाई गई है कि विमान अपहरण करने वाले व्यक्तियों को प्रत्यर्पणीय व्यक्ति माना जाए ।
  • extradition -- प्रत्यर्पण
किसी अपराधी द्वारा एक राज्य में अपराध करने के पश्चात् किसी दूसरे राज्य की सीमाओं में भाग जाने पर उस राज्य द्वारा (जहाँ अपराधी भाग कर आया है) अपराधी को उसके राष्ट्रीय राज्य के विधिवत अनुरोध करने पर उसे लौटा दिया जाना । कोई राज्य प्रत्यर्पण की माँग निरपेक्ष अधिकार के रूप में नहीं कर सकता, इसलिए बहुधा प्रत्यर्पण के लिए दोनों राज्यों के मध्य प्रत्यप्रण संदि का होना आवश्यक है । प्रत्यर्पण की माँग सामान्यतः राजनयिक माध्य से की जाती है । राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं किया जाता ।
  • extradition treaty -- प्रत्यर्पण संधि
सामान्यतः अंतराष्ट्रीय विधि में प्रत्यर्पण की माँग स्वीकार करना और उसकी प्रक्रिया राष्रीय विधि के अधिकार क्षेत्र में मानी जाती है । इसीलिए प्रत्यर्पण के लिए द्विपक्षीय संधियाँ की जाती हैं और उन्हीं के अधीन प्रत्यर्पण किए जाते हैं । कोई राज्य प्रत्यर्पण संधि के अभाव में किसी अपराधी का प्रत्यर्पण करने के ले बाध्य नहीं माना जा सकता ।
  • extra territorial asylum -- प्रदेशबाह्य शरण
अपने प्रदेश से बाहर विदेशों में स्थित अपने दूतावासों, युद्धपोतों, व्यापारिक जहाजों आदि में किसी व्यक्ति को शरण देना । इस प्रकार की शरण विशेष अवस्थाओं में ही दी जाती है जैसे किसी व्यक्ति को उत्तेजित भीड़ के आक्रमण से बचाने तथा अन्य असाधारण परिस्थितियों और मानवीय कारणों से ।
वर्तमान काल में यह विवादास्पद है कि दूतावासों अथवा वाणिज्य दूतावासों में शरण दी जा सकती है अथवा नहीं और यदि दी जा सकत है तो किन परिस्थितियों में शरण देने का अधिकार एक मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय नियम बन गया है ।
  • extra – territoriality -- अपरदेशीयता
अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह स्द्धांत जिसके अनुसार राज्य के कानून और न्याय प्रशासन उसके अपने नागरिकों पर इनके राज्य के प्रदेश की सीमाओं से बाहर होने की दशा में भी लागू माने जाते हैं । उदाहरणार्थ, विदेशों में रहने वाले नागरिक अपने राज्य के कानून की परिधि से बाहर नहीं हैं । इसी प्रकार महासमुद्रों में परिवहन करने वाले जलपोत अपने ध्वज – राज्य के अधिकार – क्षेत्र में ही माने जाते हं और कुछ विद्वानों ने ऐसे जलपोत को ध्वज – राज्य का तैरता हुआ प्रदेश माना है ।
  • federation -- संघ, संघ – राज्य
दो अथवा अधिक राज्यों द्वारा कुछ सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किसी संधि अथवा समझौतों के माध्यम से स्थायी सम्मिलन । इस रूप में सम्मिलित हुए राज्य अपने अधिकारों और शक्तियों तथा उनके द्वारा निर्मित केन्द्रीय सत्ता के अधिकारों और शक्तियों का निर्णय और उपभाग इस हेतु अपनाए गे संविदान द्वारा तय करते हैं । संघ अपने सदस्य – राज्यों के साथ एक नवीन राज्य का रूप धारण करता है और इसे अपने सदस्य – राज्यों तता उनके नागरिकों पर पूरा अधिकार प्राप्त होता है । सदस्य – राज्य अपने आंतरिक मामलों में स्वायत्त होते हैं किंतु विदेशी मामले संघ – राज्य के एकाधिकार मे होते हैं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि और कानून में संघ – राज्य का ही अस्तित्व माना जाता है और संघांतरित इकाइयों को अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति नहीं माना जाता । संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विटज़रलैंड, भारत, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि इस प्रकार के संघ – राज्यों के प्रसिद्ध उदाहरण हैं ।
  • final act (=acte finale) -- वृत्त् सार
जिस प्रपत्र में किसी संधि – निर्मात्री – सम्मेलन की कार्यवाही के अंतिम निष्कर्षों अथवा निर्णयों को लिपिबद्ध किया जाता है, उसे वृत्तासार कहते हैं । इसमें सम्मेलन के विचारार्थ विषयों का सारांश, सम्मेलन में भाग लेने वाले राज्यों और राज्याध्यक्षों के नाम, सम्मेलन द्वारा अपनाए गए अभिसमय अथवा संधि का सारांश दिया रहता है । इसमें उन प्रस्तावों, घोषणाओं एवं संस्तुतियों का भी उल्लेख रहता है जिन्हें सम्मेलन ने स्वीकार किया है, परंतु यह अभिसमय अथवा संधि के भाग के रूप में नहीं होता । कभी – कभी इसमें संधि अथवा अभिसमय के प्रावधानों की व्याख्याएँ भी रहती हैं । वृत्त सार पर सम्मेलन में भाग लेने वाले राज्य हस्ताक्षर करते हैं परंतु प्रायः इसकी पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती
कभी – कभी फाइनल ऐक्ट पद का प्रयोग संधि के पर्याय के रूप में बी किया जाता है ।
  • fisheries zone (=fishries) -- मत्स्यहरण क्षेत्र
तट से संलग्न समुद्र का वह भाग जिसमें तटवर्ती राज्य को मत्स्याहरण एवं तत्संबंधी अधिकार प्राप्त होते हैं । यह विवादग्रस्त है कि तटवर्ती राज्य कितनी दूरी तक मत्स्याहरण के अनन्य क्षेत्र का दावा कर सकता है । प्रारंभ में मत्स्याहरण क्षेत्र भूभागीय समुद्र के समुद्री छोर से 12 मील तक का माना जाता था । परंतु राज्यों के राष्ट्रीय दावों में कोई एकरूपता या स्थिरता नहीं थी । आइसलैंड अपने तट से पहले 50 मील तक और फिर 100 मील तक अनन्य मत्स्याहरण का अनन्य राष्ट्रीय दवा करता था जिसका ग्रेट ब्रिटेन ने सदैव विरोध किया ।
ये विभिन्न विवाद संभवतः 200 मील के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के स्वीकार हो जाने से अब समाप्त समझे जाने चाहिए ।
  • Five Freedoms Agreement (=International Transport Agreement) -- पांच स्वतंत्रताएँ समझौता, अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन समझौता
सन् 1944 में शिकागो सम्मेलन में संपन्न अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन समझौते के अंतर्गत आकाश मे परिवहन हेतु निम्नलिखित स्वतंत्रताओं को मान्यता दी गई :-
1. बिना धरती पर उतरे विदेशी वायु क्षेत्र से उड़ान का अधिकार ;
2. गैर – यातायात उद्देश्यों के लिए भूमि पर उतरने का अधिकार ;
3. विदेश में उन यात्रोंयों माल व डाक को उतारने का अधिकार, जो वायुयान के मूल राज्य से लिए गए हों ;
4. विदेश में उन यात्रियों, माल अथवा डाक को लेने का अधिकार जिनका गन्तव्य स्थान वायुयान का मूल राज्य हो ; और
5. दो विदेशी राज्यों के बीच माल, डाक तथा यात्री लाने – ले जाने का अधिकार ।
ये पाँच स्वतंत्रताएँ अनुसूचित अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं के लिए नहीं थीं । इस तरह की सेवाओं को संबंधित राज्यों के मध्य परस्पर समझौतों पर छोड़ दिया गया ।
  • flag state -- ध्वज राज्य
अंतर्राष्ट्य नियमों के अनुसार महासमुद्र में परिवहन करने वाले राज्य के जलपोत पर उस राज्य का ध्वज होना अनिवार्य है जहाँ वह जलपोत पंजीकृत है । यह ध्वज उस जलपोत की राष्ट्रिकता का द्वयोतक है ।
  • floating island -- तिरता द्वीप तैरता टापू
क्षेत्राधिकार की दृष्टि से जलपोत को उस र्जाय के प्रदेश का अंग माना जाना जिस देश का ध्वज उस पर लगा हुआ है । इसके अनुसार यह जहाज चाहे महासमुद्र में हो या किसी अन्य देश की सामुद्रिक सीमा में इसे ध्वज वाले देश का तैरता हुआ टापू समझा जाता है और यदि उस जहाज पर कोई अपराध होता है तो उसकी सुनवाई और निर्णय करने का अधिकार ध्वज राज्य का ही होता है ।
यह सिद्धांत विशेष रूप से युद्धपोतों और सरकार के स्वामित्व में अन्य गैर – वाणिज्यिक कोतों पर लागू होता है । परंतु अनेक विद्वान् यह स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं हैं कि जलपोत को ध्वज राज्य का तैरता ह आ भाग माना जाए । इस संदर्भ में लोटस (1927) के मामले में स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय और चंग ची चुंग बनाम सम्राट (1939) के मालमे में ग्रेट ब्रिटेन की प्रिवी कौंसिल का निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं ।
  • Food and Agriculture Organisation (FAO) -- खाद्य तथा कृषि संगठन
संयुक्त राष्ट्र संघ कासबसे पहले स्थापित विशेष अभिकरण । इसकी स्थापना 1945 में क्यूबेक (कनाडा) में की गई । इसका उद्देश्य विश्व की जनता के जीवन तता पोषण स्तर मे सुधार करना, खाद्य तथा कृषि उत्पादों के उत्पादन को बढ़ाना और उनके कुशल वितरण को बढ़ावा देना है ।
  • force majeure -- दैवी बाध्यता
प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न ऐसी विपदाजनक स्थितियाँ जो मानवीय नियंत्रण में न हों और जिनके कारण अंतर्राष्टरीय विधि के अनेक नियमों के उल्लंघन क्षम्य माने जा सकते हैं जैसे युद्धकाल में खराब मौसम के कारण किसी तटस्थ जलपोत की किसी नाकेबंद बंदरगाह मे प्रवेश ।
  • foreign policy -- विदेश नीति
विदेश नीति से तात्पर्य किसी राज्य द्वारा अपनाए गए उन सिद्धांतो तथा निर्णयों से है जिनका विषय उस राज्य के अन्य राज्यों से संबंध एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, सम्मेलनों तता संस्तानों में उस राज्य की स्थिति एवं दृष्टिकोण से होता है । इसका केंद्रभीत उद्देश्य राष्ट्र हित की अभिवृद्धि करना होता हो, अतः इसके निर्धारण में अनेक राष्ट्रीय तत्व प्रभावकारी होते हैं ।
  • franchise du quartier -- शरण अधिकार
किसी राज्य के भागे हुए व्यक्ति को शरण देने का अधिकार । इसका प्रयोग बहुधा राष्ट्रीय विधि अथवा अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा नियमित होता है । उदाहरणार्थ युद्ध में किसी युद्धकारी के भगोड़े सैनिकों को आश्रय देना ।
  • free articles -- मुक्त वस्तुएँ
वे वस्तुएँ जो किसी भी दशा में युद्धकाल में विनिषिद्ध वस्तुएँ घोषित नहीं की जा सकती जैसे काँच और जीनी मिट्टी के बर्न, साबुन, रंग इत्यादि । वर्तमान परिस्थितियों में वस्तुतः किसी भी वस्तु को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता अतः यह संकल्पना ही ऐतिहासित महत्व की बनकर रह गई है ।
  • freedom of fishing -- मछली पकड़ने की स्वतंत्रता
मत्स्यहरण स्वतंत्रता समुद्री स्वतंत्रताओं में से एक है, जिसे परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि में मान्यता दी जाती रही है और जिसे 1958 के तत्संबंधी जेनेवा अभिसमय और 1982 के तृतीय समुद्री विधि अभिसमय ने भी मान्यता दी । इनके अनुसार सभी राज्यों को खुले समुद्र में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों को प्राप्त करने और मछली कपड़ने का पूरा अधिकार है तथा ऐसा कार्य करने वाले जहाजों को स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने से कोई राज्य रोक नहीं सकता । मछली पकड़ने के इस विशेष अधिकार के साथ – साथ राज्यों को कुछ कर्तव्य और दयित्व निभाने के लिए भी कहा गया है, जैसे कि वे संधियों से उत्पन्न दायित्वों का निर्वाहि करें, तटवर्ती राज्यों के हित और अधिकारों की अवहेलना न करें, जीवित प्राणियों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों में एक दूसरे का सहयोग करें और यदि खुले समुद्र के किसी भाग में दो या अधिक राज्यों के नागरिक मछली पकड़ते हैं तो एक दूसरे के ऐतिहासिक अधिकार का सम्मान करें ।
  • freedom of navigation -- नौ- परिवहन की स्वतंत्रता
प्राचीन काल से मनुष्य समुद्रों में परिवहन करता रहा है और सोलहवीं शताब्दी में ग्रोशस ने सर्वप्रथम यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि महासमुद्र मे सभी राज्यों के नागरिकों को समान एवं निर्बाध रूप से नौ- वहन का अधिकार होना चाहिए । इस प्रकार महासमुद्र में नौ – वहन का अधिकार एक सुस्थापित अधिकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गया जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि ने मान्यता दी । सन् 1958 के महासमुद्र विषयक जेनेवा अभिसमय में जिन समुद्री स्वतंत्रताओं का उल्लेख किया गया है उनमें नौ – परिवहन की स्वतंत्रता को प्रथम स्थान दिया गया है । इसका र्थ यह है कि महासमुद्रों में नौ – परिवहन का अधिकार सभी राज्यों और उनके नागरिकों को समान रूप से प्राप्त है ।
इस परंपरागत अधिकार को वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि का योगदान यह है कि इसने उन राज्यों को भी महासमुद्र में नौ – परिवहन का अधिकार प्रदान किया है जिनका अपना कोई समुद्र – तट नहीं है और जो चारों ओर से अन्य देशों से घिरे हुए हैं और जिन्हें भूबद्ध – राज्य कहा जाता हैं ।
ऐसे भूबद्ध राज्य पड़ौसी समुद्रतटीय राज्यों से समझौता करके समुद्र का प्रयोग नौ – परिवहन के लिए कर सकते हैं । ऐसे राज्यों के जलपोतों को साथ विदेशी पत्तनों में अन्य राज्यों के जलपोतों के समान व्यवहार किए जाने की भी व्यवस्था की गई है ।
  • freedoms of the high sea (= freedoms of the open sea) -- महासमुद्र की स्वतंत्रताएँ
1958 में जेनेवा में हुए समुद्री सम्मेलन में खुले समुद्रों पर एक अभिसमय पारित किया गया जिसके अनुसार समुद्र के वे भाग जो राज्य के प्रादेशिक समुद्र तथा उसके आंतरिक जल की सीमा के अंतर्गत नहीं आते, सबदेशों के लिए समान रूप से खुले हुए हैं और इनके किसी भाग पर कोई राज्य वैध रूप से अपनी प्रभुसत्ता स्थापित नहीं कर सकता ।
खुले समुद्र की स्वतंत्रताओं में निम्नलिखित बातें शामिल हैं नौचालन की स्वतंत्रता मछली पकड़ने की स्वतंत्रता, समुद्रतल में तार तथा पाइप लाइन बिछाने की स्वतंत्रता खुले समुद्र के ऊपर उड़ने की स्वतंत्रता, कृत्रिम टापू एवं अन्य प्रतिष्ठान निर्मित करने की स्वतंत्रता तथा वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता । अंतिम दो स्वतंत्रताएँ 1982 के अभिसमय का योगदान हैं । इसके अतिरिक्त 1982 के आभिसमय में अनन्य आर्थिक क्षेत्र के प्रावधान से महासमुद्र में राज्यों के मत्स्याहरण का अधिकार तटवर्ती राज्य के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के समुद्रवर्ती छोर से प्रारंभ होता है क्योंकि अनन्य आर्थिक क्षेत्र में मत्स्याहरण का एकमात्र अधिकार तटवर्ती राज्य का होता है ।
  • freedoms of the open sea -- महासमुद्र की स्वतंत्रताएँ
दे. Freedoms of the high sea.
  • Full Powers -- पूर्ण अधिकार – पत्र
वह अधिकारि – पत्र जो राज्य की ओर से संधि के संपादन करने के उद्देश्य से प्रत्यायित प्रतिनिधि को दिया जाता है । यह अधिकार – पत्र राज्याध्यक्ष अथवा विदेश – मंत्री द्वारा दिया जाता है । यह इस बात पर निर्भर करता है कि संधि राज्याध्यक्षों के नाम से की जा रही है या राज्य अथवा सरकार के नाम से ।
संधि करने के लिए यदि राज्याध्यक्ष अथवा शासनाध्यक्ष अथवा विदेश मंत्री स्वयं व्यक्तिगत रूप से जाते हैं तो उन्हें इस प्रकार के अधिकार – पत्र की आवश्यकता नहीं होती
राजदूत जिस देश में प्रत्यायित है, यदि उस देश से संधि संपादन मे भाग लेता है तो उसे भी अधिकार – पत्र की आवश्यक्ता नहीं होती ।
इन सभी पदाधिकारियों का संधि करने का अधिकार पदेन अथवा इनके पद में निहित होता है ।
  • gas warfare -- गैस युद्ध
वह युद्ध जिसमें विषैली, श्वासावरोधक तथा अन्य प्रकार की जनसंहारकारी गैसों का प्रयोग हो । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अन्सार गैस का इस प्रकार का प्रयोग वर्जित है । 1925 के जेनेवा प्रोटोकोल में स्पष्ट रूप से श्वासावरोधक गैस के प्रयोग पर प्रतिबंध बनाया गया ह । 1972 के इस अभिसमय के अंतर्गत जैविक एवं विषाक्त अस्त्रों के विकास, उत्पादन एवं भंडारण को वर्जित किया गया है और उनके नष्ट करने का भी प्रावधान है ।
  • general act -- संनियम
अंतराष्ट्रीय विधि के क्षेत्र मे यह औपचारिक अथवा अनौपचारिक संधि का ही पर्यायवाची है । इस शब्द का प्रयोग राष्ट्र संघ ने 1928 में स्वीकृत अंतराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान विषयक विधान के लिए किया था ।
  • General Agreement on Trade and Tariff (GATT) -- व्यापार एवं प्रशुल्क संबंधी सामान्य समझौता
एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन जिसका उद्देश्य सदस्य राज्यों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल एवं सुगम बनाना है । इसकी प्रथम बैठक जेनेवा में 1947 में हुई थी । यह सदस्य राज्यों के मध्य प्रशुल्क एवं अन्य व्यापार संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए पारस्परिक समझौते कराने में सहायता करता है । प्रारंभ में इसमें केवल 23 राज्य थे परंतु अब यह संख्या बढ़कर 100 से अधिक को गई है, जो विश्व – व्यापार के 80 प्रतिशत से अधिक का संचालन करते हैं ।
इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं पारस्परिक व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करना एक दसेर के प्रति विभेदकारी नीति विशेष कर सीमा – शुल्क के क्षेत्र में न अपनाना करों और सीमा – शुल्क के मामले में सर्वाधिक अनुगृहित राष्ट्रmost favoured nation) धारा का पारस्परिक व्यापारिक संबंधों में अनुपालन करना सीमा – शुल्क संबंधी औपचारिकताओं को सरल बनाना इत्यादि ।
  • general armistice -- 1. व्यापक युद्ध स्थागत
2. व्यापक युद्ध स्थगन समझौता
दे. Armistice.
  • General Assemble -- महासभा (संयुक्त राष्ट्र)
यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुक अंगों में से एक है । संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य – राज्य इसके सदस्य ह ते हैं और प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधिमंजल को एक मत प्राप्त होता है । इसके अधिवेश साधारणतया प्रतिवर्ष होते हैं, परंतु इसका विशेष अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है । इसे महत्वपूर्ण – पदों एवं समितियों के निर्वाचन का अधिकार है जिनमें महासचिव, अंतर्राष्ट्रीय – न्यायालय के सदस्य, सामाजिक और आर्थिक परिषद् के सदस्य, सुरक्षा – परिषद् के अस्थायी सदस्य शामिल हैं । यह विश्व की उन सबी समस्याओं एवं परिस्थितियों पर विचार – विमर्श कर सकत है जिनका संबंद विश्व में शांति बनाए रखने से हो । यद्यपि इसके प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, परंतु सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के कारण संयुक्त राष्ट्र की महासभा विश्व जनमत का दर्पण मानी जाती है और इसे विश्व की संसद भी कहा जाता है ।
  • general disarmament -- सामान्य निरस्त्रीकरण,
सामान्य निःशस्त्रीकरण
दे. Disarmament.
  • general international law -- सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधि
राज्यों के मध्य पारस्परिक व्यवाहर को नियमित करने वाले नियमों व सिद्धांतों का समूह जो सामान्यतः सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं ।
इस प्रकार के सामान्य रूप से लागू होने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियम उन नियमों से भिन्न होते हैं जो संसार के कुछ विशेष – क्षेत्रों में विकसित हुए हैं (जैसे लातीनी अमेरिका में) और जिन्हें क्षेत्रीय या विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि कहा जाता है ।
  • general principle of law -- विधि के सामान्य सिद्धांत
सन् 1945 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि ने सभ्य राज्यों द्वारा मान्यताप्राप्त विधि के सामान्य सिद्धांतों को भी संधियों और प्रथाओं के साथ – साथ अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक मूल स्रोत माना है । फ्रीडमैन आदि लेखकों का मत है कि यह एक ऐसा स्रोत है जिसके भविष्य में अधिकाधिक उपयोग होने की संभावनाएँ हैं । ओपेनहायम ने भी अंतर्राष्ट्रीय विदि के लि इसेके महत्व को स्वीकार किया है ।
विधि के सामान्य सिद्धांतों से तात्पर्य है वे सिद्धांत जो संसार की प्राधन विधि प्रणलियों में समान रूप से पाए जाते हैं और जो सारमूलक और प्रक्रियात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं । जैसे एक सारमूलक सिद्धांत यह है कि संधि की किसी व्यवस्था का पालन न करने पर क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए । इसी प्रकार एक प्रक्रियात्मक सिद्धांत यह है कि किसी न्यायिक निकाय द्वारा दिया गया निर्णय दोनों पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है ।
  • Geneva Conventions -- जेनेवा अभिसमय
यूँ तो अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनेकानेक अभिसमयों के साथ जेनेवा का नाम जुड़ा हुआ है, परंतु 12 अगस्त, 1949 को अंगीकार किए गए चार अभिसमय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं क्योंकि इन अभिसमयों में अतंर्राष्ट्रीय विधि के उस पक्ष के विकास की परिणति प्रायः हो जाती है जिसे मानवतावादी या मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि कहा जाता है ।
12 अगस्त 1949 को जेनेवा में हुए सम्मलेन में निम्नलिखित चार अभिसमयों पर हस्ताक्षर हुए
1. स्थल – युद्ध में बीमार और घायलों का उपचार संबंधी अभिसमय
2. समुद्री – युद्ध में बीमार और घायलों का उपचार संबंधी अभिसमय
3. युद्धबंदियों के संग व्यावहार संबंधी अभिसमय और
4. युद्ध – काल में गैर सैनिक जनता के साथ व्यवहारि संबंधी अभिसमय ।
इस अभिसमयों के विषय र उद्देश्य इनके नाम् से ही स्पष्ट हो जातै हं । यह उल्लेखनीय है कि इनके द्वारा प्रतिपादित कानून सथिर नही रहा है बल्कि वह निरंतर विकासोन्मुख है । परंतु इसका केंद्र – बिंदु जेनेवा के ये चार अभिसमय ही हैं ।
  • Geneva Protocol -- जेनेवा उपसंधि, जेनेवा प्रोटोकोल
सन् 1925 मे स्वीकृत यह उपसंधि युद्ध – संचालन में जनसंहार के शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने में एक महत्वपूर्ण प्रयास था । इसके अनुसार युद्ध में श्वासावरोधक गैसयुक्त शस्त्रों और घातक कीटाणुओं से युक्त अस्त्रों के प्रयोग को वर्जित किया गया था ।
16 दिसंबर, 1969 को जेनेवा उपसंधि में आस्था प्रकट करते हुँ संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने यह घोषित किया कि किसी सशस्त्र अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में निम्नलिखित अस्त्र – शस्त्रों का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय विधि विरोधी माना जाएगा :-
1. ऐसे रासायनिक पदार्थ वाले शस्त्र जिनका मनुष्यों, पशुओं और वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष रूप से विषाक्त प्रभाव होता हो ।
2. जैविक अस्त्र – शस्त्र जिनका उद्द्शेय मनुष्यों, पशुओं और वनस्पतियों में बीमारी फैलाना या इन्हें नष्ट करना हो और जो इस संक्रीय में स्वयं बढ़ जाने की क्षमता रखते हों ।
इसी उद्देश्य को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए 1972 में एक अभिसमय पर हिस्ताक्षर हुए जिसका लक्ष्य जैविकीय एवं विषाक्त शस्त्रों के विकास, उत्पादन और हस्ताक्षर हुए जिसका लक्ष्य जैविकीय एवं विषाक्त शस्त्रों के विकास, उत्पादन और भंडारण को वर्जित करना और उनके नष्ट किए जाने की व्यवस्था करना है ।
  • genocide -- जाति – संहार, जनसंहार
कीस राज्य में किसी वर्ग विशेष या जाति को समूल नष्ट करने के उद्देश्य से उसको व्यवस्थित ढंग से समाप्त करने की नीति अथवा कार्यक्रम । नाज़ी जर्मनी में यहूदियों का संहार इस नीति अथवा कार्यक्रम का एक उदाहरण है । युद्धोपरांत संयुक्त राष्ट्र ने 1948 में एक संविदा के अंतर्गत जनसंहार के अपराध की रोकथाम और उसके लिए दंड की व्यवस्था की है ।
  • Genocide Convention (=Convention on Genocide) -- जनसंहार अभिसमय
यह अभिसमय संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा सन् 1948 में अपनाया गया था । इसका पूरा नाम नरसंहार या जनसंहार के अपराध की रोकथाम एवं उसके लिए दंड की व्यवस्था विषयक अभिसमय है । इसमें जनसंहार को अंतर्राष्ट्रीय विधि विरोधी दंडनीय अपराध घोषित किया गया है । इसके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को चाहे वे राज्य के अधिकारी हों या शासक, दंडित किया जा सकता है । इस प्राकर इस अभिसमय से न्यूरोम्बर्ग निर्णय से उत्पन्न इस निद्धांत को बल मिला कि अपराध व्यक्तियों द्वरा किए जाते हैं , राज्य द्वावा नहीं राज्य तो केवल एक अमूर्त इकाई है, राज्य का कवच पहन कर कोई यक्ति अपने व्यक्तिगत दायित्व से नहीं बच सकता ।
  • geographically disadvantaged states -- भौगोलिक सुविधा वंचित राज्य
इस वर्ग में वे तटीय राज्य, तथा वे राज्य, जो पूर्ण या अद्र्ध रूप से बंद समुद्र के तटों पर स्तित हैं और जिन्हें अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अन्यि राज्यों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के अतिरिक्त जैविक संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है, शामिल होते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि में ऐसे राज्यों की स्थिति पर सन् 1974 के कराकस सम्मेलन में विशेष रूप से विचार काय गया । इस वर्ग के राज्यों का यह आग्रह रहा कि अनन्य आर्थिक क्षेत्रों की सार्वभौमिकता से संबंधित प्रश्नों से अलग हटकर इन राज्यों के आर्थिक हितों को संरक्षण दिया जाए क्योंकि इन राज्यों की अर्थव्यवस्था अन्य तटीय राज्यों पर निर्भर रहती है । तृतीय समुद्री विधि अभिसमय, 1982 के 70 वें अनुच्छेद के अनुसार यह व्यवस्था की गई कि इस प्रकार के राज्यों को समानता और औचित्य के आधार पर उस क्षेत्र अथवा उपक्षेत्र के तटवर्ती राज्यों के नन्य आर्थिक क्षेत्रों के अतिरिक्त जैविक संसाधनों के दोहन में भाग लेने का अधिकार होगा । इस भागीदारी की शर्ते और तरीके सभी राज्यों की आर्थिक एवं भौगोलिक परिस्थियों को ध्यान में रखते हुए द्विपक्षीय, उपक्षेत्रीय तथा क्षएत्रीय समझौतों के द्वारा निरूपित कि जाएँगे ।
  • good offices -- सत्प्रयास, सत्सेवा
युद्धकारी या परस्पर विवादी राज्यों के बीच मतभेद का समाधान करने के प्रयोजन से किसी तीसरे राज्य द्वारा किया गया प्रयत्न जो इन युद्धरत अथवा विवादग्रस्त साज्यों को वार्तालाप करने के लिए सहमत करने तक सीमित हो । यह तीसरा राज्य स्वयं वार्ता में प्रत्यक्ष भाग नहीं लेता । जब यह तीसरा राज्य प्रारंभ से या बाद में वार्तालाप में सक्रिय भाग लेने लगे तो इसे सत्सेवा न कहकर मध्यस्थता कहा जाएगा । 1966 में ताशकंद समझौता कराने में सोवियत संघ की भूमिका केवल सत्सेवा की थी ।
  • government – in – exile -- निर्वासित सरकार
वह सरकार जो अपने राज्य पर किसी अन्य राज्य या सत्ता द्वारा आधिपत्य हो जाने के कारण अस्थायी रूप से किसी विदेशी राज्य से जो उसे आश्रय देने के लिए रहमत हो, कार्य संचालन करती है । दोनों महायुद्धों में जर्मनी से पराजित होकर यूरोप के अनेक देशों की सरकारें इंग्लैड तथा अन्य मित्र देशों में शरण लेने के लिए विवश हुई । इस सरकारों को निर्वासित सरकार कहा गया ।
  • Grotian School -- ग्रोशसवादी संप्रदाय
इस संप्रदाय के समर्थकों की मान्यता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि न तो केवल प्राकृतिक विधि का रूपांतरण मात्र है और न ही केवल राज्यों की सामान्य सहमति की ही देना है, वरन् अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम प्राकृतिक विधि और राज्यों की सामान्य सहमति दोनों से ही प्राप्त होते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के जन्मदाता हयूगो ग्रेशस का भी यही विचारि था और उन्हीं के नाम पर इस विचारधारा को ग्रोशसवादी विचारधार कहा जाता है ।
ग्रोशसवादी वास्तव में ग्रोशस के विचारों से इस बात में भिन्न हैं कि ग्रोशस अंतर्राष्ट्रीय विधि में प्राकृतिक विधि के नियमों को प्रधान स्थान देते थे और सहमतिपरक नियमों को गौण स्थान देते हैं ।
प्रमुख ग्रोशसवादियों में वुल्फ और एमरिख वातेल के नाम विशएष रूप से उल्लेखनीय हैं । औपेनहायम का मत है कि वर्तमान काल में ग्रोशसवादी मत ही अंतर्राष्ट्रीय विधि के आधार के रूप में श्रेष्ठतम दृष्टिकोण है ।
  • guarantee treaty -- प्रत्याभूति संधि
वह संधि या समझौता जिसके द्वारा तत्कालीन प्रभावशाली राज्य किसी देश की सुरक्षा, प्रभुसत्ता, शासन व्यवस्था, प्रादेशिक अखंडता तथा तटस्थता को बनाए रखने अथवा किसी संधि या समझौते के सद्भावनापूर्ण निष्पादन के लिए वचनबद्ध होते हैं ।
  • guerilla warfare -- छापामार युद्ध, वृक युद्ध
सशस्त्र और स्वयं संगठित गुटों द्वारा अनियमित रूप से की जाने वाली सशस्त्र कार्रवाई जो किसी आक्रमणकारी सेना के प्रतिरोध में की जाए अथवा स्थापित सरकार के विरूद्ध हो । बहुधा ये छापामार किसी धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक विचारधारा अथवा उद्देश्य से प्रेरित होकर शत्रु पर लुक छिपकर आक्रमण करते हैं और शत्रु की रसद पूर्ति, यातायात तता संचार साधनों को नष्ट करके शत्रु को निर्बल करते हैं ।
अनेक राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों ने इसी तरीके का प्रयोग किया है और अब कुछ सीमा तक अंतर्राष्ट्रीय विदि भी गुरिल्लाओं को मान्यता देने लगी है ।
  • gulf -- खाड़ी
दे. Bay.
  • Hague Codification Conference -- हेग संहिताकरण सम्मेलन
इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्र संघ के तत्वावधान में 1930 में किया गया था । दीर्घ तैयारी के उपरांत इसके विचारार्थ तीन विषय रखे गए थे ताकि इनसे संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम लिपिबद्ध किए जा सकें । ये विषय थे 1. राष्ट्रीयता 2. भूभागीय समुद्र और 3. राज्योत्त्र उत्तरदायित्व ।
यह सम्मेलन राष्ट्रीयता के प्रश्न पर दो उपसंधियाँ स्वीकृत करने मे सफल रहा परंतु अन्य दो विषयों में उसे कोई सफलता नहीं मिल सकी । कुल मिलाकर सम्मेलन अपने उद्देश्य मे असफल रहा ।
  • Hague Conference, 1899 -- हेग सम्मेलन, 1899
अंतर्रष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में सम्मेलनों के द्वारा विधि – निर्माण का प्रथम प्रयास सन् 1899 के हेग सम्मेलन द्वारा काय गया था । इस विश्व का प्रथम शांति सम्मेलन भी कहा जा सकताहै । यह सम्मेन रूस के ज़ार के उपक्रम से आयोजित किया गया था । इसमें 26 राज्यों ने भाग लिया था । इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में स्थायी शांति स्थापित करने हेतु सुझाव देना था ताकि शस्त्रों के निर्माण और विकास पर होने वाले व्यय को सीमित किया जा सके ।
इस सम्मेलन में तीन अभिसमयों पर हस्ताक्षर हुए । प्रथम अभिसमय में, अंत्रारष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण उपायों का वर्णन किया गया । दूसरे अभइसमय में, सन् 1864 की जेनेवा अभिसमय के नियमों को समुद्री युद्ध की स्थिति में रूपांतरित किया गया । तीसरे अभिसमय में स्थल युद्ध संबंधी नियमों का विस्तृत वर्णन किया गया ।
  • Hague Conference, 1907 -- हेग सम्मेलन, 1907
इस सम्मेलन को बुलाने क श्रेय अमेरिका के राष्ट्परित थियोडोर रूज़वेल्ट को है । इसमें 44 राज्यों के 356 प्रतिनिधियों ने भागि लिया था । इस सम्मेलन का उद्देश्य प्रथम हेग सम्मेलन, 1899 के कार्य का पुनरीक्षण करना और युद्ध एवं तटस्थता संबंधी नियमों का निरूपण एवं संहिताकरण करना था । कुल मिलाकर इस सम्मेलन में 13 अभिसमयों पर हस्ताक्षर किए गए । इनमेंसे तीन अभिसमयों का उद्देश्य प्रथम हेग सम्मेलन के अभिसमयों का पुनरीक्षण और सुधार करना था । एक अभिसमय द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय नौजित माल न्यायालय स्थापित करने का सुझाव दिया गया था । दो अन्य अभिसमयों द्वारा स्थल और समुद्री युद्ध में तटस्त राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों की व्यवस्था की गई थी । अन्यि अभिसमय युद्ध संबंधी विदि के अनेक विषयों से संबंधित थे ।
सम्मेलन के अंत में यह निश्चय व्यक्त किया गया था कि 10 वर्ष में एक तीसरा सम्मेलन बुलाय जाएगा परंतु 1914 में पहला विश्व – युद्द छिड़ जाने से ऐसा नहीं हो सका ।
  • Hague Convention, 1970 -- हेग अभिसमय, 1970
1960 के दशक में विमान अपहरण की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही थीं और यह लगने लगा था कि इन्हें रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है । इस दृष्टि से 1970 में हेग अभइसमय संपन्न किया गया, जिस पर 48 राज्यों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए । इस अभिसमय में उस व्यक्ति को अपराधी माना गया है जो गैर कानूनी तरीक से या शक्ति के प्रयोग की धमकी से विमान पर अपना अधिकार या नियंत्रण प्राप्त कर लेता है (अनुच्छेद 1) इस अभिसमय की अन्य व्ववस्थाएँ इस प्रकार हैं :-
1. प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता राज्य विमान अपहरण को अपराध मानकर उसके लिए भारी दंड की व्यवस्था करेगा
2. वह विमान अपहरण अथवा विमान पर यात्रियों व कर्मियों के विरूर्ध हिंसात्मक कार्य करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई कर सकने में समक्ष होगा यिदि अपराध उसी राज्य में पंजीकृत विमा पर हुआ है अथवा जिस विमान पर अपराध हुआ है वह अपराधी उसी राज्य के प्रदेश में उतरता हैं ।
3. प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता राज्य अपराधी को उसके प्रदेश में विद्यामान होने की दशा में स्वयं दंड देगा अथवा उसके प्रत्यर्पण की व्यवस्था करेगा और
4. विमान अपहरण को प्रत्यप्रणीय अपराध माना जाएगा और प्रत्यर्ण संबंधी संधियों में प्रत्यर्पणीय अपराधों की सूची में सको भी सम्मिलित किया जाएगा ।
  • Hay – Varilia Treaty -- हे – वरिल्ला संधि
यह संधि सन् 1903 में संयुक्त राज्य अमेरिका और पनामा गणराज्य के बीच संपन्न हुई थी । इसके अंतर्गत पनामा नहर के प्रबंध और पनामा नहर क्षेत्र में प्रशासन का अधिकार अनिश्चित काल के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को सौंपा गया था । उसी समय से संयुक्त राज्य अमेरिका हस क्षेत्र में वस्तुतः सार्वभौमिक अधिकार का उपभोग करता रहा ।
पिछले 10 वर्षों में इस स्थिति से पनामा गणराज्य में बड़ा असंतोष और रोष व्यक्त किया गया । इसको देखते हुए इस संधि का पुनरीक्षण किया गया और दोनों देशों के बीच एक नया समजौता हुआ है । इसके अंतरग्त पनामा नहर क्षेत्र से संयुक्त राज्य अमेरिका का नियंत्रण और प्रशासन इस शाताब्दी के अंत तक पूरी तरह समाप्त हो जाएगा ।
  • head of mission -- मिशन प्रमुख
वह राजनयिक प्रतिनिधि जो राजदूतावास का वरिष्ठतम अधिकारी होने के कारण राजदूतावास का प्रधान माना जाता है । राजनयिक प्रतिनिधियों की चार श्रेणियाँ होती हैं :-
1. राजदूत अथवा उच्चायुक्त अथवा पोप के प्रतिनिदि, जिन्हें नसियो कहा जाता है
2. दूत एवं मंत्री
3. निवासी मंत्री और
4. कार्यदूत ।
किसी समय दूतावास में जो बी वरिष्ठतम राजनयिक अधइकारी नियुक्त हो उसे ही राजनयिक दूतावास का प्रमुख माना जाता है । प्रायः राजदूत ही मिशन प्रमुख होते हैं । इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं संगठनों और सम्मेलनों को भेज जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के प्रधान को भी मिशन प्रमुख कहा जाता हैं ।
  • Helsinki Declaration -- हैलसिंकी घोषणा
1. अगस्त, 1975 को यूरोप में सुरक्षा तथा सहयोग सम्मेलन में 30 यूरोपीय देशओं, होली सी, कनाडा तथा से. रा. अमेरिका द्वारा हेलसिंकी में की गई घोषणा जिसके अनुसार उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा ज्ञापित दायित्वों को सदाशयता के साथ पूरा करने का संकल्प लिया और मानवाधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्राताओं और ल्पसंख्यकों के विधि के समक्ष समानता के अधिकारों को सम्मान प्रदान करने तथा संयुक्त एवं अलग – अलग रूप से और संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से इस प्रकार के अधिकारों और स्वतंत्रताओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के प्रयास करने का संकल्प लिया ।
  • high commissioner -- उच्चायुक्त
राष्ट्रमंडल के सदस्य – राज्यों द्वारा एक – दूसरे के यहाँ प्रत्यायित राजनयिक प्रतिनिधि को राजदूत न कहकर उच्चायुक्त कहां जाता है । ऐसा ऐतिहासिक कारणों से है क्योंकि प्रारंभ में राष्ट्रमंडल के विनिन्न सदस्य – राज्य पूर्ण स्वतंत्र नहीं थे और इसलिए उनके मध्य राजदूत नियुक्त नहीं किए जा सकते थे । अतः उनके प्रतिनिधियों को उच्चायुक्त कहा जाता था । सन् 1931 के वेस्टमिन्स्टर अधिनियम के उपरांत राष्ट्रमंजल के सदस्य – राज्यों को स्वायत्ता प्राप्त हो गई । परन्तु उच्चायुक्त का पद बना रहा और इन सदस्य – राज्यों के पूर्ण स्वतंत्र हो जाने, यहाँ तक कि इनके गणराज्यों में परिवर्तित हो जाने के उपरांत भी उच्चायुक्त का पद बना रहा और इन सदस्य – राज्यों के पूर्ण स्वतंत्र हो जाने , यहाँ तक कि इनके गणराज्यों में परिवर्तित हो जाने के उपरांत भी उच्चायुक्त का पद बना रहा । एक प्रकार से यह पद आज भी राष्ट्रमंडल की सदस्यता का प्रतीक बना हुआ है ।
अतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से उच्चायुक्त की स्थिति, अधिकार एवं उन्मुक्तियाँ राजूदतों के समान ही हैं ।
  • high sea -- महासमुद्र, खुला समुद्र
तटवर्ती राज्यों के भूभागीय समुद्र की समुद्रवर्ती सीमा से परे का समुद्र भाग जो सभी राज्यों के उपयोग के लिए खुला होता है और जिसके किसी भाग पर किसी राष्ट्र द्वारा स्वामित्व स्थापित नहीं किया जा सकता । इसे महासमुद्र कहते हैं । इसके प्रयोग में सब राष्ट्रों को समान अधिकार प्राप्त होते ह । इन अधिकारों को महासमुद्री स्वतंत्रताएँ कहा जाता है ।
दे. feeedoms of the high sea भी ।
  • hijacking -- विमान अपहरण
किसी उड़ते हुए या उड़ान के लिए तत्पर वायुयान के कर्मदिल को डरा – धमकाकर अथवा किसी अन्यि प्रकार की शक्ति, बाध्यता या भय का प्रयोग कर उसे उसके गंतव्य स्थान से अन्यत्र ले जाना तथा उस प र अपना अधिकार स्थापित करन अथवा ऐसा करने का प्रयत्न करना वीमान अपहरण कहलाता है । ऐसा प्रायः राजनीतिक कारणों से किया जाता हैं ।
बहुधा विमान अपहरण करने वाले विदेशी नागरिक होते है और विमान का अपहरण करके वे उसे ऐसे देश मे ले जाते हैं जो उनके प्रति राजनीतिक सहानुभूति रखता है । अतः इन अपराधियों को दंडित करने में अनेक अंतर्राट्रीय बाधाएँ सामने आती हैं । इनको दूर करने के लिए कई अभिसमय अंगीकार किए जा सचुके हैं । सर्वप्रथम, 1963 के टोकियो अभिसमय के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि विमानों पर हुए अपराधों के लिए दंड की समुचित व्यवस्था हो ताकि क्षेत्राधिकार के अभाव में कोई अपराधी दंड से बच न सके । सन् 1970 के हेग अभिसमय ने इस व्यवस्था को और प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न किया । सन् 1971 के मांट्रियल अभिसमय के अंतर्गत विमान पर सवार व्यक्तियों और विमान तथा उड़ान की सुरक्षा के विरूद्ध किए गए हिंसात्मक कार्यों के लिए दंड देने और अपराधियों के अनिवार्य रूप से प्रत्यर्पण किए जाने की व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया गया ।
  • hinterland theory -- पृष्ठ प्रदेश सिद्धांत, अविच्छिन्नता सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार किसी प्रदेश पर राज्य के आधिपत्य का प्रसार उस सन्निहित प्रदेश पर भी समझा जाना चाहिए जो उसकी सुरक्षा अथवा विकास के लिए अनिवार्य हो । बहुधा अफ्रीका के उपनिवेशीकरण के संदर्भ में यूरोपीय राज्यों द्वारा इस सिद्धांतका प्रयोग किया गया था ।
दे. भी ।
  • historic bay -- ऐतिहासिक खाड़ी
वह खाड़ी जो यद्यपि भौगोलिक मानदंड से खाड़ी की परिभाषा में न आती हो परंतु जो दीर्घकाल तक राज्यों की मौन सम्मति पाकर किसी राज्य के आंतरिक जलक्षेत्र का बाग बन गई हो ।
  • Holy see -- होली सी
ईसाइयों के परम धर्म गुरू को होली सी कहा जाता है, जिनका मुख्यालय रोम स्थित वेटिकन नगर है । प्रारंब मे पोप न केवल विश्व के ईसाई जगत का प्रधान धर्म गुरू था वरन एक बड़े प्रादेशिक भूभाग का वह संप्रभु भी था जिसे पोप की रियासत कहा जाता था ।
परंपरा और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के अनुसार पोप अथवा होली सी की बराबर अंतर्राष्ट्रीय स्थिति रही है, और पोल अथवा होली सी को वे सबी अधिकार दिए जाते रहे हैं (संधि करना, राजदूतों का आधान प्रदान ) जो संप्रभुता संपन्न राज्याध्यक्षों को दिए जाते हैं यद्यपि यह स्पष्ट नहीं हो सका कि पोप की ह स्थिति उसके धार्मिक पद के कारण थी या उसकी प्रदेशिक संप्रभुता के कारण । 1870 में इटली के एकीकरण के फलस्वरूप पोप के राज्य का इटली में विलय हो गया अर्थात् उसकी प्रादेशिक संप्रभुता समाप्त हो गई परन्तु पोप की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पूर्ववत बनी रही ।
1871 का इटली का कानून 1929 की पोप और इटली के बीच हुई संधि और फरवरी, 1984 का पोप और इटली के बीच हुआ समझौता, ये सब पोप की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को मान्यता देते हैं ।
  • honorary consul -- अवैतनिक कांसुल,
अवैतनिक वाणिज्यदूत
वृत्तिक वाणिज्यदूत से भिन्न एक विशिष्ट श्रेणी का वाणिज्यदूत जिसकी नियुक्त यूरोप तथा दक्षिण अमेरिका के अनेक राज्य विदेशी राज्यों में करते थे । सकी मुख्य विशेषताएँ ये थीं कि इसे नियमित रूप से वेतन नहीं मिलता था कि इसे नियमित रूप से वेतन नीहं मिलता था यह आवश्यक नहीं था कि वह प्रेषक राज्य का राष्ट्रिक हो उसे कोई निजी लाभदायक व्यवसाय करने का अधिकार प्राप्त होता था तथा उसे केवल कुछ विशिष्ट तथा सीमित कार्यों का ही निष्पादन करने की अनुमति होती थी ।
  • hospital ship -- अस्पताली जहाज़
समुद्री युद्ध मे घायल और बीमार नौसैनिकों का उपचार और चिकित्सकीय सहायता करने वाला जहाज़ जिसमें चिकित्सा की सभी सुविधाएँ उपलब्द होती हैं, अस्पताली जहाज़ कहलाता है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत इस प्रकार के जलपोतों को शत्रु प्रहार से उन्मुक्त माना जाता है ।
सर्वप्रथम 1899 के हेग अभिसमय में इस प्रकार के जलपोतों के संरक्षण की व्यवस्था की गई थी । इस अभिसमय में 1907 के हेग अभिसमय ने और सुधार किया । अंत में 1949 के जेनेवा अभिसमय के अंतर्गत समुद्री युद्ध में बीमार और घायलों की चिकित्सा और उपचार मे लगे अस्पताली जलपोतों के संरक्षण संबंधी नियमों को विस्तृतरूप प्रदान किया गया ।
अस्पताल क्षेत्र जिसमें युद्ध में घायल हुए या बीमार सैनिकों के उपचार के लिए अस्पताल स्थित हो । ऐसे क्षेत्र की बमबारी बर्जित है ।
  • hospital zone -- अस्पताल क्षेत्र
वह क्षेत्र जिसमें युद्ध मे घायल हुए या बीमार सैनिकों के उपचार के लिए अस्पताल स्थित हो । ऐसे क्षेत्र की बमबारी वर्जित है ।
  • hostages -- बंधक
युद्ध काल मे शत्रु नागरिकों को युद्धकारी द्वारा बंदी बनाकर अपनी रक्षा के लिए ढाल के रूप में अथवा शत्रु राज्य पर दबाव डालने के उद्देश्य से उनका प्रयोग करना । इसमें इनको मार डालने की धमकी भी शामिल है ।
अतर्राष्ट्रीय विदि के अनुसार किसी भी दशा में बंधक बनाना अपराध हैं ।
वस्तुतः विमान अपहरण की प्रक्रिया भी बंधक बनाने की ही प्रक्रिया है । इसलिए इसे सर्वथा अवैध माना जाता है ।
  • hostile act -- शत्रुतापूर्ण कार्य
एक राज्य की सरकार द्वारा दूसरे राज्य की सरकार के विरूद्ध ऐसा कार्य जो चाहे अवैध न भी हो परंतु जिसका उद्देश्य उसके हितों को किसी न किसी प्रार की क्षति पहुंचाना हो अथवा जिसे वह दूसरा राज्य अपने लिए हानिकारक मानता हो और यह मानता हो कि ऐसा कार्य शत्रु ही कर सकता है, मित्र नहीं ।
  • hostile assistance -- अतटस्थ सहायता
युद्ध काल में तटस्थ राज्यों द्वारा युद्धरत राज्यों में से किसी एक पक्ष को स्वेच्छापूर्वक ऐसी सहायता देना जो तटस्थता के नियमों के विपरीत हो । जैसे, शत्रु सैनिकों को लाने – ले जाने का कार्य । इन्हें अतटस्थ सेवाएँ भी कहते हैं । विस्तार के लिए देखिए
  • hostile embargo -- शत्रु अधिरोध, शत्रु घाटबंदी
किसी राज्य की सरकार द्वारा किसी दूसरे राज्य के पोतों के बहिर्गमन पर लगाया गया प्रतिबंध । वर्तमान काल मे केवल पोतों के बहिर्गमन पर ही नहीं बल्कि अस्त्र शस्त्रों की पूर्ति पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी इस पद का प्रयोग किया जाता है ।
दे. embargo भी ।
  • hostilities -- सशस्त्र कार्रवाई
दो या दो से अधिक राज्यों के सैनिक बलों के मध्य सशस्त्र संघर्ष की कार्रवाई जो औपचारिक युद्ध की स्थिति में बी परिवर्तित हो सकती है, परंतु, ऐसा होना आवश्यक नही है । इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय विधि में विधिवत् युद् और सशस्त्र संघर्, अथवा सशस्त्र कार्वाई मे भेद किया जाता है ।
  • hot pursuit -- अनवरत पीछा, तीव्र पीछा
1.किसी सक्षम अधिकारी द्वारा किसी अपराधी का अपने राज्य की सीमाओं के पार संलग्न दूसरे राज्य की सीमा में बिना उस राज्य की पूर्वानुमति के उस अपराधी का पीछा करते हुए घुस जाना ।
2. अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत कोई राज्य विदेशी जहाजों को अपने राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करके भाग जाने पर उनको पकड़ने के ले खुले समुद्र अथवा संलग्न क्षेत्र में भी उनका पीछा कर सकता है ।
पीछा अविरल होना चाहिए और यदि भागने वालाजहाज अपने या किसी तीसरे देश के भूभागीय समुद्र मे गुस जाने में सफल हो जाए तो पीछा नहीं किया जा सकता ।
  • Hugo Grotius -- ह्यूगो ग्रोशस
हयूगो ग्रोशस (1583 – 1645 ) का नाम अंतर्राष्ट्रीय विधि के जन्मदाता के रूप में विश्वविख्यात है । वे हालैंड के रहने वाले थे और उनकी प्रतिमा बहुमुखी थी । वे विधिवेत्ता, राजनयिक, विचारक, दार्शनिक अनेक रूप मं विख्यात थे । परंतु उनकी स्थायी ख्याति उनकी पुस्तक – डि जुरे मेले अक पोसिस (युदध और शआंति के नियम) पर आधारित है जो सर्वप्रथम सन् 1625 में प्रकाशित हुई थी । इससे पहले सन् 1609 में ग्रोशस की पुस्तक – मेरे लिबरम (मुक्त समुद्र) प्रकाशित हो चुकी थी । इस प्रकार ग्रोशस ने भावी अंतर्राष्ट्रीय विधि का सूत्रपात किया और उसे इसका जनकमाना जा सकता है । परंतु कुछ विद्वान् इससे सहमत नहीं हैं । उसके मतानुसार ग्रोशस ने अपने पूर्वर्ती अनेक विद्वानों, विशेषकर बेली, जेंटिली और आयाला के विचारों का अनुसरण मात्र किया है ।
  • humanitarian international law -- मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि
युद्ध विधि का वह भाग जिसका उद्देशय युद्ध की संक्रियाओं में मानवीयता के मानदंडों को लागू करना है । जैसे – बीमार और घायल सैनिकों की चिकित्सा और उपचार संबंधी नियम, युद्धबंदियों के प्रति व्यवहार संबंधी नियम, असैनिक जनता के प्रति व्यवहार संबंधी नियम,ये सब मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय हैं ।
मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रारंभ सन्म 1868 के जेनेवा सम्मेलन से हुआ जिसमें स्थल – युदध में बीमार और घायलों की चिकित्सा और उपचार संबंधी नियम अपनाने के लिए एक अभिसमय पर हस्ताक्षर किए गए थे । इस अभिसमय को रेडक्रास कंवेंशन भी कहते हैं ।
मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों में निरंतर सुधार होता रहा है । सन् 1949 में जेनेवा सम्मेलन में इन विषयों से संबंधित चार अभीसमय अपनाए गए थे जो जेनेवा अभिसमय के नाम से विख्यात हैं । इन अभिसमयों की व्यवस्था में भी निरंतर पुनरीक्षण एवं संशोधन होता रहा है और इस हेतु रेडक्रास की अंतर्राष्ट्रीय समिति बराबर प्रयत्नशील है ।
  • human rights -- मानव अधिकार
वे अधिकार जो मनुष्य को मनुष्य होने के नाते प्राप्त होने चाहिए अर्थात् जो उसके राज्य अथवा राज्य के संविधान अथवा कानून की देन न होकर उसके जन्मसिद्ध अधिकार समझे जाने चाहिए और जो मनुष्यों के विकास के लिए न्यूनतम दशाएँ माने जाते हैं । इनका सर्वप्रथम विधिवत् निरूपण संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को स्वीकृत एक घोषणा पत्र में किया था । इनमें समानता, स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा और रोजगार के अधिकार परमुख हैं । इसके अतिरिक्त इनमें दासता, दास व्यापार और जाति, रंग, लिंग, भाषा अथवा राष्ट्रीयता पर आधारित भेद – भाव पर प्रतिबंध भी सम्मिलित है ।
इनका उद्देश्य प्रत्येक दशा और स्थितिति में न्यूनतम मानव मूल्यों अर्थात् मानवीयता के न्यूनतम स्तर को सुरक्षित रखना है और विश्व शांति को बल प्रदान करना है ।
  • Human Rights Commission -- मानव अधिकार आयोग
मानव अधिकार कमीशन
दे. Commission on Human Rights.
  • imperfect neutralilty -- अपूर्ण तटस्थता
किसी राज्य का तटस्थ रहते हुए भी अपनी पूर्ववर्ती संधियों के अंतर्गत युद्धकारियों में से किसी एक युद्धकारी की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहायता करना । अठारहवीं शताब्दी में इस प्रकार का आचरण तटस्थता – विरोधी नहीं समझा जाता था । विम्बलडन के मामले में (1923) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने बी यह निर्णय दिया था कि जर्मनी की तटस्थ स्थिति से उत्पन्न दायित्वों की अपेक्षा उसके संधिगत दायित्वों को वरीयता दी जानी चाहिए । स्पष्टत ऐसी तटस्थता विशुद्ध अथवा पूर्ण तटस्थता की अवदारणा के अनुरूप नहीं है । परंतु यह उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से उत्पन्न दायित्वों को देखते हुए अपूर्ण तटस्थता ही आज के परिप्रेक्ष्य में अधिक तर्कसंगत प्रतीत होती है ।
  • implied recognition -- निहित मान्यता,
अव्यक्त मान्यता
किसी राज्य द्वारा किसी नए राज्य अथवा सरकार को स्पष्ट रूप से अर्थात् सार्वजनिक घोषणा करके मान्यता न देकर उसके साथ इस प्रकार का संबंध स्थापित करना अथवा आचरण करना (जैसे संधि करके, उसके वाणिज्यदूत को मान्यता देकर आदि) जिससे यह व्यक्त हो कि वह उसे राज्य या सरकार के रूप में स्वीकार करता है । इस प्रकार की स्वीकृति को निहित मान्यता कहते हैं ।
  • incorporation doctrine -- समावेशन सिद्धांत,
ब्लैकस्टोन – सिद्धांत
दे. Blackstonian doctrine.
  • independence of states -- राज्यों की स्वतंत्रता
राज्य का वह गुण जिसके अंतर्गत वे अपने आंतरिक मामलों एवं बाह्य संबंधों को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित और नियमित करने की क्षमता रखता है । परंतु व्यवहार में बाह्य संबंधों के समचालन में राज्य को अनेक मर्यादाओं का पालन करना पड़ता ह । जैसे – अंतर्राष्रीय विधि, अंतर्राष्ट्रीय संधियों तथा संयुक्त राष्र संघ के चार्टर से उत्पन्न दायित्वों का सद्बावनापूर्वक पालन करने का दायित्व । इसलिए जैसाकि स्टार्क का कहना है संभवतः आज यह कहना अधिक उचित होगा कि राज्यकी स्वतंत्रता अथवा संप्रभुता का अभिप्राय उस अवशिष्ट शक्ति से है जो राज्य को अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा निर्धारित परिसीमाओं के भीतर प्राप्त होती है ।
  • indeterminate sovereignty -- अनियत प्रभुसत्ता
यह अवधारणा ऐसे भूभाग की प्रभुसत्ता के संदर्भ में प्रयुक्त होती है जो किसी राज्य से अलग होने की प्रक्रिया में हो और जिस पर मूल संप्रभु अपनी संप्रभुता का त्याग कर चुका हो परंतु नवीन संप्रभु पूर्णतया निश्चित न हो । ऐसा किसी प्रदेश के अर्पण की दशा में भी हो सकता है । अनियत परभुसत्ता का एक उदाहरण फार्मोसा है ।
  • inland waters -- अंतरस्थलीय जलक्षेत्र, भूभागीय जलक्षेत्र
समुद्री जल के वे भाग जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण तटवर्ती राज्य के प्रदेश के भाग माने जाते हैं । जैसे – खाड़ी बंदरगाह, मुहाने आदि । विदेशी जलपोतों को इनमें निर्देश गमन का अधिकार नहीं होता ।
  • innocent passage -- निर्दोष गमन
किसी तटवर्ती अथवा भूबद्ध राज्य के सैनिक अथवा व्यापारिक जलपोतों द्वारा किसी अन्य राज्य के भूभागीय समुद्र से होकर शांतिपूर्वक गुजरना । ह गमन तब तक शांतिपूर्ण माना जाता है जब तक जलपोत तटवर्ती राज्य की शांति तथा सुरक्षा भंग नहीं करते । यह गमन वैसे तो अविच्छिन्न होना चाहिए परंतु परिवहन की आवश्यकताओं अथवा किसी विपदा के कारण जलपोत का रूकना या लंगर जालना अवैध नीहं होगा । तटवर्ती राज्य शांतिपूर्ण गमन को रोकने का अधिकारि नहीं रखता परंतु यदि गमन शांतिपूर्ण नहीं है तो वह उसे अपनी सुरक्षा के हित में रोक सकता है । इस अधिकार का प्रयोग करते समय विदेशी राज्य के जलपोतों को तटवर्ती रजाय् के जहाजरानी तथा नौपरिवहन नियमों का अनुपालन करना पड़ता है ।
  • insurgency -- विद्रोहकारिता
किसी राज्य में सुस्थापित सरकार के विरूद्ध नागरिक विद्रोह जिसमें विद्रोहियों को अभी युद्धाकारियों की मान्यता प्राप्त न हुई हो । अन्य राज्य यदि चाहे तो इन विद्रोहकारियों को कुछ वशिष्ट युद्धकारी अधिकार तथा विशोषाधिकार प्रदान कर सकते हैं । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत विद्रोहकारिता युद्ध या युद्धकारिता के तुल्य नहीं है ।
दे. भी ।
  • intellectual property right -- बौद्धिक संपदा अधिकार
19 वीं शताब्दी मे बौद्धिक संपदा के रक्षार्थ अभिसमय स्वीकृत किए गये थे ये थे 1883 का पेरिस अभइसमय और दूसरा 1886 का बर्न अभइसमय । पेरिस अभिसमय के अंतर्गत औद्योगिक संपदा से संबंधित एकस्व अधिकार जैसे ट्रेडमार्क, पेटेंट आदि को संरक्षण देने का प्रयोजन था ।
बर्न अभिसमय के अंतर्गत साहित्य और कला के क्षेत्र में रचनाकारों और लेखकों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने का प्रयोजन था । 1967 में स्टाकहोम में एक अन्य अभिसमय पर हस्ताक्षर हूए जुसके अन्तर्गत विश्व वबौद्धिक संपदा संगठन स्थापित किया गया । यह अभिसमय 1 जनवरी, 1974 से लागू है । इसी वर्ष दिसंबर 1974 मे महासभा ने इस संगठन को संयुक्त राष्ट्र संग में विशिष्ट अभिकरण के रूप में मान्यता दी । इसका मुख्य उद्देश्य स सार भर में बौद्धिक संपदा को संरक्षण प्रदान करना है और इस हेतु राज्यों का सहयोग जुटाना है ।
  • Intert – Governmental Maritime Consultative Organisation (IMCO) -- अंतर – सरकारी समुद्री परामर्श संगठन
यद्यपि इस संगठन का संविधान 1948 में स्वीकृत हो गया था परंतु इसकी स्थापना में 10 वर्ष लग गए और इस संगठन की सभा की प्रथम बैठक जनवरी, 1959 में ह ई । अब इसका नाम बदलकर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Martime Organisation) कर दिया गया है ।
इस संगठन का उद्देश्य राज्यों के मध्य नौ – परिवहन की सुरक्षा और कुशलता से संबंधित नियम एवं अधिनियम अपनाने तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लगे जलपोतों के तकनीकी मामलों से संबंधित नियमों, अधिनियमों के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समन्वय को प्रोत्सहन देना है । परंतु इसका कार्य केवल परामर्शदात्री है और अब यह समुद्री प्रदूषण के नियंत्रण और उसकी रोक – थाम से संबंधित कार्यों का भी समन्वय करता है ।
  • internal intervention -- आंतरिक हस्तक्षेप
एक राज्य द्वारा आदेशात्मक रूप से शक्ति का प्रयोग करके बलपूर्वक अथवा बल – प्रयोग की धमकी से दूसरे राज्य के आंतरिक मामलों को उसकी इच्छा के विरूद्ध प्रभावित करना । वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का इतिहास इस प्रकार के हस्तक्षेप से भरा पड़ा है । दूसरे महायुद्ध के उपरांत अमेरिका द्वारा वियतनाम में और चीन द्वारा कम्बोडिया में किए गए हस्तक्षेप इस प्रकार के कुछ उदाहरण हैं । पाकिस्तान द्वारा पंजाब और कश्मीर में विघटनकारी शक्तियों एवं आतंकवादियों को नैतिक, सामरिक एवं सैनिक सहायता देना तथा उन्हें अपने याहाँ प्रशइक्षण देना इस प्रकार के हस्तक्षेप के स्पष्ट उदाहरण कहे जा सकते हैं । इस प्रकार के हस्तक्षेप अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि मे अवैध समझे जाते हैं ।
  • internal waters -- आंतरिक जलक्षेत्र
दे. Inland waters.
  • international administrative law -- अंतर्राष्ट्रीय प्रशासनिक विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जिसका विषय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं की कार्यप्रणाली इनके पारस्परिक और अन्य राज्यों से तथा व्यक्तियों से संबंधों का नियामन करना ह । संक्षेप मे इसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों का कानून भी कहा जा सकता है । यह अंतर्राष्ट्रीय वधि के नवीन आयामों में से एक है और उसकी परिवर्तित संरचना का प्रतीक ह ।
  • International Air Services Transit Agreement -- अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवा पारगमन समझौता
दे. Two Freedoms Agreement.
  • International Air Transport Agreement -- अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन समझौता
दे. Five Freedoms Agreement.
  • International Atomic Enerbgy Agency -- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण
यह संयुक्त राष्ट्र संघ का कोई विशेष अभिकरण तो नही है परंतु उससे इसका संबंध अवश्य है । इसका मुख्य उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिमय उपयोग के लिए अनुसंधान को प्रोत्साहन देना, वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान क आदान प्रदान करना तथा जरूरतमंद देशों को इस हेतु सुविधाएँ, संयंत्र एवं उपस्कर प्रदान करना है । यह अभिकरण इसके उपयुक्त उपयोग के लिए सुरक्षात्मक निर्देश भी जारी कर सकता है और उसे इन देशों के आणविक कार्यक्रमों का निरीक्षण करने का भी अधिकार है, विशेषकर यह सुनिश्चित करने के लिए कि आणविक ऊर्जा का विकास सैनिक प्रयोजनों के लिए न किया जा रहा हो ।
  • International Boundary Commission -- अंतर्राष्ट्रीय सीमा आयोग
दो या अधिक राज्यों के मध्य सीमा विवादों का समाधान करने अथवा सीमा-विर्धारण करने के लिए समय – समय पर गठित आयोग ।
  • International Civil Aviation Organisation -- अंतर्राष्ट्रीय सिविल विमान चालन संगठन
वह अंतर्राष्ट्रीय संगठन जिसाक संबंध वीमान – चालन तथा असैनिक विमान परिवहन की समस्याओं से है । यह अंतर्राष्ट्रीय विमान परिवहन के लिए तकनीकी मानकों तथा प्रक्रियाओं को सूत्रबद्ध करता है और सदस्य – राज्यों की सरकारों द्वारा इनका अंगीकरण किए जाने की सिफारिश करता है । इसकी स्थापना 1944 में शिकागो सम्मेलन में स्वीकृत एक अनुबंध के अंतर्गत हुई और यह बी संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरणों में से एक है ।
  • international claim -- अंतर्राष्ट्रीय द्वावा
किसी राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के कानूनी अधिकारों का हनन किए जाने पर अथवा उसके किसी नागरिक की जान और माल की हानि होने की स्थिति में विदेशी राज्य द्वारा न्याय वंचन होने पर क्षतिग्रस्त राज्य अपचारी राज्य से क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है । ऐसी माँग को अंतर्राष्ट्रीय दावा कहा जाता है ।
  • international comity -- अंतर्राष्ट्रीय शिष्टाचार
राज्यों के पारस्परिक संबंधों में आचरण के ऐसे नियम जिनका पालन कानूनी रूप से बाध्यकारी न होने पर भी सुविधा अथवा नैतिकता के कारण प्रायः क या जाता है । उदाहरणार्थ, प्रत्यर्पण संधि न होने पर भी एक राज्य का किसी दूसरे राज्य के अपराधी को प्रत्यर्पित करने के लिए सहमत ह जाना ।
  • Itnernational court of justice -- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
इस न्यायालय की स्थापना 1946 में की गई थी । वास्तव में यह प्रथम विश्वयुद्द के उपरांत स्थापित स्थायी अंतर्राष्टरीय न्यायालय का ही रूपांतरण है । यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के 6 मुख्य अंगों में से एक है । इसमें 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका निर्वाचन सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा द्वारा किया जाता है । न्यायाधीश विभिन्न देशओं से चुने जाते हैं और किसी भी देश का एक से अधिक न्यायाधीश नही हो सकता । प्रत्येक न्यायाधीश का कार्यकाल 9 वर्ष होता है । इस न्यायालय का मुख्यालय हेग में है ।
इस न्यायालय का मुख्य कार्य संयुक्त राष्ट्र के सदस्य – राज्यों के पारस्प्रिक विवादों का निर्णय करना है । इसका परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार भी है परंतु इसकी दुर्बलता यह है कि इसका क्षेत्राधिकारस्वीकार करना राज्यों की इच्छा पर निर्भर करता है । न्यायालय के वधान के अनुच्छेद 36 (2) के अंतर्गत राज्य निर्धारित विषयों से संबंधित मामलों के निर्णय हेतु इसका क्षत्राधिकार अनिवार्य रूप से स्वीकार करने के लिए अपने को वचनबद्ध कर सकते हैं ।
  • International crime -- अंतर्राषअट्रीय अपराध
अंतर्राष्ट्रय विधि के विरूद्ध किया गया कृत्य जैसे, सममुद्री डाका, नशीली व्स्तुओं का अवैध व्यापार, दास – व्यापार इत्यादि । इसकी विशएषता यह है कि ऐसे अपराध करने वाले व्यक्तियों को कोई भी राज्य पकड़कर दंड दे सकता है । इन पर सर्वदेशीय क्षेत्राधिकार का सिद्धांत लागू होता है ।
  • international customary law -- अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत नियम
दे. customary international law.
  • International Development Association -- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ
इसका जन्म 1960 मे हुआ था । इसका उद्देश्य विश्व के विकासशील देशों को उनके विकास कार्यक्रमों के लिए वित्त प्रदान करना है । इसके द्वारा दिए जाने वाले ऋण ब्जाज आदि की दृटि से अपेक्षाकृत अधिक सुविदाजनक होते हैं ।
  • international drainage basin -- अंतर्राष्ट्रीय जलनिकास थाला
दो या अधिक राज्यों की जलनिकास प्रणालियों के संगम से लेकर उनके किसी समुद्र या किसी अन्यि स्थान में गिरने के स्थान को अंतर्राष्ट्रीय जलनिकास थाला कहा जाता है ।
  • international economic law -- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विधि
दूसरे माहयुद्ध के उपरांत यह विचार प्रबल हुआ कि युद्ध की जड़ में आर्थिक असंतोष और असंतुलन है । अतः आर्थिक क्षेत्र में भी एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना की जानी चाहिए जो विश्व की आर्थिक व्यवस्था को इस प्रकार नियंत्रित और नियमित कर सके जिससे सब देशओं का समुचित विकास हो और परस्पर संघर्ष की संभावनाएँ न्यूनतम हो जाएँ । इस उद्देश्य से अनेक आर्थिक संगठनों एवं संस्थाओं का निर्माण हुआ जिनमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक), पुरशउल्क और व्यापार संबंधी सामान्य समझौता (गाट ) प्रमुख थे । कुछ समय पश्चात अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ की भी स्थापना हुई । परंतु जैसे – जैसे उपनिवेशवाद का पतन होता गया और नवीन स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, यह व्यापक रूप से अनुभव किया जाने लगा कि है आर्थिक व्वस्था संसार के विकसित देशों के लिए अधिक लाभकारी है और मूलतः इन्हीं का हित संरक्षण करती है तथा इसे विकासशील देशों के पक्ष में करने के लिए इसमें आमूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है । इस उद्देश्य से प्रेरित होकर विकासशील और विकसित देशों में वार्ता का क्रम चला । विकासशील देशों ने महासभा में यह प्रस्तवाव रखा कि विश्व की आर्थिक व्यवस्था का पुनर्निर्माम किया जाना चिहए और एक वीन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्वस्था की स्थापना की जानी चाहिए । इन उद्देश्यों की प्राप्ति में विकासशील देशों ने भी परस्पर सहयोग और सहायता की आवश्यकता का अनुभव करते हुए आपस में संवाद प्रारंभ किया र क्षेत्रीय स्तर पर दक्षिण एशिया के राज्यों ने एक संगठन की स्थापना की जिसे दक्षेस अथवा सार्क कहा जता है ।
युद्धोत्त्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के निर्माण र पुनर्निर्माण के ये प्यास भी अंतर्राषअटरीय विधि के विषय हैं और इन्हें सामूहिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विधि का नाम दिया जाता है । यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान काल में अंतर्राष्ट्रीय विदि का यह पक्ष अर्थात् आर्धिक पक्ष अधिकाधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि इसका संबंध सबी देशों के विकास और उनकी जनता तके जीवन – स्त्र में निरंतर सुधार लाने से है ।
  • international institution (=international organisation) -- अंतर्राष्ट्रीय संस्था,
अंतर्राष्ट्रीय संगठन
किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि द्वारा स्थापित राज्यों या अंतर्राष्ट्रीय इकाईयों का संघ जिसका अपना पृथक संविधान होता है । इसका सदस्य – राज्यों से भिन्न अपना एक विधिक व्यक्तित्व होता है ।
दे. International organisation भी ।
  • internationalisation -- अंतर्राष्ट्रीयकरण
1. किसी संधि के अंतर्गत विश्व के किसी क्षएत्र, भूभाग या जलमार्ग का सभी राज्यों द्वारा प्रयोग किए जा सकने की स्थिति जैसे, स्वेज, नहर, पनामा नहर, कील नहर, एन्टार्कटिका, अंतरिक्ष आदि ।
2. किसी राष्ट्रीय विवाद अथवा स्थिति अथवा समस्या का अन्य राष्टोरं की अभिरूचि अथवा हस्तक्षेप के कारण अंतर्राष्ट्रीय रूप धारण कर लेना ।
  • internationalism -- अंतर्राष्ट्रीयतावाद
वह सिद्धांत जो विश्व की सामान्य आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सुरक्षा संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए सभी राज्यों के सक्रिय सहयोग एवं सहभागीदारी का पक्षधर है । इस सिद्धांत का दार्शानिक आधार वास्तव में स्टोइस दर्शन की विशअवबंधुत्व की भावना में पाया जात है और इससे भी पूर्व बारतीय परंपरा में उपनिषदों के वसुधैव कुटुम्बकम् स्वदेशो भुवनत्रयम में इसका बीजारोपण देखा जा सकता है । समय – समय पर अनेक दार्शनिकों ने जिनमें दांते, पियरे देवाय, कांट और अरविन्द के नाम विशेष उल्लखनीय हैं एक विश्व की कल्पना के प्रस्ताव का उन्होंने निरूपण किया है जिसे अंतर्राष्ट्रीयतावाद का ही रूपांतरण कहा जा सकता है । वर्तमान काल में संयुक्त राष्ट्र संघ अपने विशिष्ट अभिकरमओं सहित अंतर्राष्ट्रीयतावाद का संस्थात्मक रूप है ।
  • International Labour Organisation -- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
1920 में स्थापित यह संस्ता अब संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरणों में से एक है । इसका मुख्यालय जेनेवा में है । इसका मुख्य उद्देश्य श्रमिक कल्याण संबंदी विधि – संहिताओं के प्रारूप तैयार करना और राष्ट्रीय सरकारों द्वारा उनके अनुसमर्थन का प्रयास करना है । इस कारण इसे सामान्यतः विश्व के (मिकों की संसद की संज्ञा दी जाती है । इसके प्रमुख अंगों में एक सामान्य – सबा और एक सचिवालय हैं । सामान्य सभा की बैठक वर्ष मे एक बार होती है जिसमें प्रत्येक सदस्य – रपाज्य अपने चार प्रतिनिधि भेज सकता है जिसमें दो सरकार द्वारा एक श्रमिकों द्वारा तथा एक मालिकों द्वारा मनोनीत किए जाते हैं । श्रमिकों के कार्य की दशाओं और उनके सामान्य् हित संरक्षण के क्षेत्र मे इस संगठन द्वारा एक सौ से भी अधिक अभिसमय निरूपित किए जा चुके हैं ।
  • international law -- अंतर्राष्ट्रीयव विधि
ऐसे सिद्धांतों एवं नियमों का समूह जो मूलतः राज्यों के पारस्परिक संबंधों में उनके आचरण को नियमति एवं नियंत्रित करते हैं । वर्तमान काल में अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं संस्थाओं के प्रशासन तथा कार्य संचालन संबंधी नियम भी अंतर्राष्ट्रीय विधि की परिधि में सम्मिलित माने जाते हैं ।
यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय विधि के मूल विषय राज्य ही हैं परंतु कुछ सीमा तक व्यक्तियों क अधिकार और कर्तव्य भी अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा नियमित और निर्धारित होते हं ।
वास्तव मे आज अंतर्राष्ट्रीय विधि को संपूर्ण मानव जाति की विधि अथवा विशअव विधि के रूप मे देखा ज रहा है जसका उद्देश्य न केवल विश्व शआंति व सुरक्षा है, अपितु पूर्ण मानव कल्याम अथवा उत्थान है ।
विशिषअट अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्नता स्थापित करने के लिए (जिसका उल्लेख हम यथास्थान करेंग ) इसे सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि अथवा सामान् अंतर्राष्ट्रीय विधि अथवा सर्वदेशीय अंतर्राषअटरीय विधि भी कहा जाता है ।
दे. particular international law भी ।
  • International Law Association -- अंतर्राष्ट्रीय विधि संघ
अंतर्राष्ट्रीय विधि में रूचि रखने वाले विद्वानों और बुद्धिजीवियों का एक गैर सरकारी संघ, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और विकास के लिए विविध षयों पर प्रस्तावित विधि के पाररूप तैयार करना ह । इसका मुख्यालय लंदन में है । इसकी राष्रीय शाखाएँ विश्व के अनेक देशों मे स्थापित हैं । इसके सदस्यों मे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय विधि के विद्वान विधिशास्त्री, न्यायाधीश आदि होते ह । इंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और उसके उत्रोत्त्र विकास में इस संग के योगदान की सर्वथा सराहना की गई है ।
  • International Law Commission -- अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग
अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास और उसके संहिताकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1947 में स्थापित एक आयोग । इसके 21 सदस्य हैं जो अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता होते हैं । इनका चुनाव सदस्य देशों द्वारा नामित प्रतिनिधियों में से स.रा. महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है । इसमें एक राज्य का एक से अधिक प्रतिनिधि नहीं होता ।
यह आयोग अंतर्राष्ट्रीय विधि के संहिताकरण और विकास हेतु उपयुक्त विषयों पर प्रारूप तैयार करता है जो राज्यों की स्वीकृति पाकर अंतर्राष्ट्रीय विधि के भाग बन जाते हैं । इस हेतु राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने संहिताकरण और विकास के क्षेत्र मे सराहनीय कार्य किया है । इसकी प्रारंभिक उपलब्ध्यों में राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों संबंधी घोषणा पत्र, न्यूरेम्बर्ग चार्टर तथा निर्णय मे मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय विधि में सिद्धांतों का निरूपण और मानवता की शांति और सुरक्षा के लिए घातक अपराधों की संहिता तैयार करन उल्लेखनीय हैं । इसके अतिरिक्त अनेक विषयों पर आयोग ने संहिता के प्रारूप तैयार किए थे, जिन्हें स्वीकार करने के लिए कई अंतर्राष्टरीय सम्मेलन आयोजित हुए हैं । ये विषय थे – समुद्री कानून, राजनयिक प्रतिनिधियों के विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ, वाणिज्य दूतों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ, संधियाँ आदि ।
आजकल यह आयोग अनेक विषयों पर नियमावलियों के प्रारूप तैयार करने मे लगा है, जैसे राज्य उत्तराधिकार, राज्य उत्तरदायित्व, ऐतिहासिक जल क्षेत्र विदेशी राज्यों की क्षेत्राधिकार उन्मुक्ति, प्रत्यर्पण, शरणाधिकार और पर्यावरण आदि ।
  • international legislation -- अंतर्राष्ट्रीय विधि – निर्माण
अंतर्राष्ट्रीय विधि, जो मूलतः प्रथागत विधि थी, वर्तमान काल में संधिगत कानून को अधिक स्थान देती जा रही है । विधि निर्मात्री संधियों का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के मध्य से हुआ परंतु वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ से अंतर्राष्ट्रीय विधि – निर्मात्री संधियों की संख्या बहुत तेज गति से बढ़ने लगी है । इन सिंयों का निर्माण प्रायः अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हुआ है जिससे इनके निर्माण की प्रक्रिया भी लगभग सुनिश्चित हो गई है । इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय विधि – निर्मात्री संधियों का ग्रहण किया जाना अंतर्राष्ट्रीय विधि – निर्माण कहलाता है । मेनले ओ हडसन ने 1929 में प्रकाशित अपनी प्सुत्क को यही नाम दिया था और तब से इस पद का अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोतों के अध्ययन में एक विशिष्ट स्था नहो गाय है ।
इस प्रकार के विधि निर्माण में संयुक्त राष्ट्र का विशेष योगदान रहा है । संयुक्त राष्ट्र संघ अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग के माध्यम से बहुपक्षीय संधियों एवं अभिसमयों के प्रारूप तैयार कराकर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से उन पर राज्यों का अनुमोदन प्राप्त करने का कार्य करता है ।
  • International Maritime Organisation -- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन
दे. Inter – Governmental Maritime Consultative Organisation.
  • International Mililtary Tribunal -- अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायाधिकरण
दे. Tokyo International Military Tribunal.
  • International Monetary Fund -- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
संयुक्त राष्ट्र के इस विशेष अभिकरण की स्थापना 1944 में ब्रेटनवुड मोद्रीक तथा वित्तीय सम्मेलन द्वारा की गई थी । इसके प्रमुख उद्देश्य सदस्य – राज्यों की मुद्रा प्रणालियों में स्थिरता लाना, एक विश्वव्यापी बहुपक्षीय भुगतान व्यवस्था की स्थापना करना और सदस्य – राज्यों के अल्पकालिक भुगतान असंतुलन की स्थिति में सहायता करना था । अब इसके सदजस्यों की संख्या सौ से अधिक है । इसके सदस्यों का मत देने का अधिकार उनके अंशदान पर निर्भर करता है । अपनी स्थापना सेलेकर आज तक यह असंगठन विनिमय दरों को नियंत्रित करके मुद्रा मूल्यों को नियमित करन और संकट के समय विदेशी मुद्रा प्रदान करने का कार्य सफलतापूर्वक कर रहा है ।
  • international organisation -- अंतर्राष्ट्रीय संगठन
ऐसा संगठन जिसकी सदस्यता एक राज्य तक सीमित न होकर अनेक राज्यों में व्याप्त हो और जिसका उद्देश्य मानव सुरक्षा एवं कल्याण तता विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के मंतव्य से एक संस्थात्मक व्यवस्था स्थापित करना हो । ऐसे संगठन दो प्रकार के हो सकते हैं । एक वे जिनके सदस्यागण केवल स्वतंत्र राज्य हों । ऐसे संगठनों को सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय संगठन कहा जाता है । सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी दो प्रकार के हो सकते हैं – () सर्वदेशीय संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, विशअव बैंक आदि और () क्षेत्रीय संगठन जैसे , अमेरिका राज्य संगठन, अफ्रीरी एकता संगष अरब लीग, सार्क (दक्षेश) आदि । दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठन वे हैं जिनके सदस्यागण राज्य गैर सरकारी संस्थाएँ, संघ अथवा व्यक्ति होते हैं जेसे, रेडक्रॉस, रोटरी इंजरनेश्नल, ईसाई युवक संघ आदि ।
  • international person -- अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति
वह इकाई जो अंतर्राष्ट्रीय विधि का विशय हो अर्थात् जिस प र अंतर्राष्ट्रीय वधि लागू होती हो और जिसे अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत अधइकार और कर्त्तव्य प्राप्त होते हों । इन अधिकारों में विशेष रूप सेये उल्लेखनीय हैं :-
1. अपने अंतर्राष्ट्रीय अधिकारों के रक्षआर्थ न्यायिक कार्रवाई कर सकने का अधिकार ।
2. अंतर्राष्ट्रीय विधि की निर्माण – प्रक्रिया मे भाग लेने का अधिकार ।
3. अन्य अंतर्राष्ट्रीय इकाइयों से संधि करने का अधिकार ।
प्रायः राज्य एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय होते हैं किंतु कुछसीमा तक और सीमित मात्रा में व्यक्ति तथा अनेक अन्य गैर राज्य इकाइयाँ बी अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति माने जाते हैं जैसे, संरक्षित, प्रदेश, फिलस्तीनी मुक्ति संगठन आदि ।
  • International Red Cross -- अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस
यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना 1864 में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा जेनेवा में की गई थी । इसकी स्थापना का श्रेय जीन हेनरी ड्यूनान नामक सज्जन को है । उसका उद्देश्य मूल्तः युद्ध के बीमार और घायलों की चिकित्सा और उपचार करना तथा उनके उपचार मे लगे डाक्टरों नर्सों, आस्पतालों, वाहनों आदि जो संरक्षण प्रदान करना था । कालांतर में इसके विषय क्षेत्र में विस्तार हो गाय और अब यह प्रत्येक मानवीय आपदा जैसे, महामारी, बाढ़, भूकंप आदि मे मानवीय सहायता पहुँचाने का कार्य भी करती है । इसकी राष्ट्रीय शाखाएँ लगभग सभी देशों में स्थापित हैं । इसका ध्वज सफेद धरती पर लाल क्रॉस का निशआन है । कुछ देशों में जैसे, तुर्की ईरान इत्यादि में इस संस्था को रेडक्रॉस की जगह रेड क्रेसेंट भी कहते ह । इन देशों में लाल क्रॉस की जगह स्था के ध्वज पर लाल अद्र्धचंद्र का निशआन होता है । वास्तव में यह अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण तथा तटस्थताका प्रतीक है ।
  • International Rfuge Organisation -- अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी संगठन
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेंसी जो शरणार्थियों व विस्थापितों की देखरेख और सुरक्षा का कार्य करती है । इस संगठन का अधिकार – पत्र 15 दिसंबर, 1946 को तायार किया गया था तथा ग्रह एजेंसी औपचारिक रूप से 7 अप्रैल, 1948 को स्थापित की गी जब 27 राष्ट्रों ने अधिकार – पत्र को अनुसमर्थित कर दिया । अब इस संस्था का स्थान संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्च आयोग () ने ले लिया है ।
  • international rivers -- अंतर्राष्ट्रीय नदियाँ
दो या दो से अधिक राज्यों से होकर बहने वाली नदी जिसमें -(1) प्रत्येक राज्य को अपने देश में से होकर बहने वाले भाग पर पूरा अधिकार रहता ह तथा (2) जिसमें नौ परिवहन को सभी संबंधित राज्यों को हितों को ध्यान में रखते हे सामान्य संधि द्वारा नियमित करना आवश्यक होता है ।
ऐसी नदियों के नियमन के लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय समय – समय पर ग्रहण किया गए हैं । इनमें सन् 1921 का बारसीलोना अभिसमय विशेष रूप से उल्लखनीय है । इसे अंतर्राष्ट्रीय नौगम्य जलमार्ग संबंधी अधिनियम कहते हैं । इसके अतिरिक्त एक अन्य अभिसमय पर हस्ताक्षर हुए जिसके अंतर्गत व्याक्तियों और वस्तुओं को रेल अथवा जलमार्ग से किसी राज्य से होकर आवागमन की स्वतंत्रता का पारवधान किया गया था ।
अंतर्राष्ट्रीय नदियों के कूछ उदाहरण राइन, डैन्यूब, गंगा, झेलम, रावी आदि हैं ।
  • international sea – bed area -- अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र
तृतीय समुद्र विधि अभिसमय के अनुसार एक नए समुद्री क्षेत्र का निरूपण काय गया है जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र कहते हैं । यह क्षेत्र समुद्र तल का वह भाग है । जो तटवर्ती राज्यों के नियंत्रण अथवा क्षेत्राधिकार की समुद्रवर्ती सीमा से प्रारंभ होता है । इसका संबंध केवल समुद्र तल से है उसके ऊपरी जल से नहीं । अभिसमय के अनुच्छेद 136 के अनुसार यह घोषित किया गया है कि यह क्षेत्र और इसके संसाधन मानवता की सामान्यि धरोहर होंगे । इन पर किसी भी राज्य को अपनी संप्रभुता प्रस्थापित करने का अधिकार नीहं होगा । इस क्षेत्र के संसाधनों में पूरी मानव जाति का अधिकार समझा जाएगा । इस क्षेत्र मे होने वाली संक्रियाओं का लक्ष्य पूरी मानव जाति को लाभान्वित करना होगा और केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही इस क्षेत्र का उपयोग किया जा सकेगा ।
  • international sea – bed authority -- अंतर्रष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण
अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल क्षेत्र के संसाधनों के दोहन और संरक्षण एवं विकास के लिए तृतीय समुद्र विधि अभिसमय द्वारा एक प्राधिकरण की स्थापना की गई है जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण कहते हैं । यह प्राधिकरण दो प्रकार से इस क्षेत्र के संसाधनों के अन्वेषण एवं दोहन का प्रबंध करता है (1) राज्यों को इस क्षेत्र मे संसाधनों के गवेषण और दोहन के लिए तल – खंड नियत करके और (2) प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र के संसाधनों का अन्वेषण और दोहन करके । इस कार्य के लिए प्राधिकरण का एक विशिष्ट अंग होगा जिसे इंटरप्राइज कहा जाता ह । वह प्राधिकरण की ओर से अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल के विभिन्न भागों के अन्वेषण एवं दोहन का कार्य करेगा ।अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण के सभा परिष्द तथा सचिवालय अंग होंगे । प्राधिकरण के सभी सदस्य सभा के सदस्य होंगे । परिषद् में 36 सदस्य होंगे और उनका निर्वाचन सभा के सदस्यों द्वारा किया जाएगा ।परिषद् प्राधिकरण की कार्यकारिणी अंग होगी । सचिवालय का प्रधान महासचिव होगा जिसका निर्वाचन चार वर्ष के लिए परिषद् के प्रस्ताव पर सभा द्वारा किया जाएगा ।
  • international straits -- अंतर्राष्ट्रीय जलडमरूमध्य
खुले समुद्र के दो भागों को मिलानेवाला प्राकृतिक जलमार्ग जिसके तटों पर एक से अधिक राज्य स्थित हों । यदि ऐसा जलडमरूमध्य किसी राज्य के भूभागीय समुद्र का भाग होता ह तो उसमें अन्य राज्यों को निर्दोष गमन का अधिकार प्राप्त होता है । इस प्रकार के जलडमरूमध्य का उदाहरण कोफ्र्यू चैनल है ।
  • International Telecommunication Union -- अंतर्राष्ट्रीय दूर – संचार संघ
सन् 1865 मे स्थापित अंतर्राष्ट्रीय तार संघ का अनुवर्ती संघ । सन् 1947 में अंतर्राष्ट्रीय दूर – संचार संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ का एक विशिष्ट अभिकरण बना । यह संघ रेडियो, तार, टेलीफोन, टेलीविज़न आदि के प्रसारण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व समन्वय स्थापित करता है । यह नियमित रूप से अंतर्राष्ट्रीय दूर – संचार की तकनीकों से संबंधित संकेत वर्णों, आवृत्ति सूची व अन्य आँकड़े भी प्रकाशित करता है ।
  • international treaty -- अंतर्राष्ट्रीय संधि
दो या अधिक राज्यों के मध्य लिखित रूप से किया गया संविदात्मक समझौता जिसके द्वारा हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के अधिकार और कर्तव्य निर्धारित होते हैं । प्रायः हस्ताक्षर कर्ता राज्यों के लिए यह व्यवस्था कानूनी रूप से बाध्यकारी होती है । संधियों का वर्गीकरण (1) द्विपक्षीय – बहुपक्षीय (2) विधिनिर्मात्री – संधि और संधि – अनुबंध के रूप में किया जाता है ।
वियना कन्वेंशन, 1969 क अनुसार संधि का लिखित रूप मे होना अनिवार्य है किंतु प्रथागत राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत अलिखित समझौते भी लिखित संधियों के समान बाध्यकारी माने जाते ह । वर्तमान काल मे संधियाँ न केवल राज्यं के बीच बल्कि राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तता एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के बीच भी होती ह । संधियों के लागू ह ने के लिए उन पर केवल हस्ताक्षर होना ही पर्याप्त नही है बल्कि हस्ताक्षर के उपरांत उनकी विधिवत् संपुष्टि भी आवश्यक है । अंतर्राष्ट्रीय विधि में संधि के अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनमें से कुछ प्रमुख पद हैं – अभिसमय, प्रोटोकोल, घोषणापत्र, प्रसंविदा, समझौता आदि ।
  • international tribunal -- अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण
अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण से आशय ऐसे न्यायिक निकाय से है जो दो या अधिक राज्यों के बीच कोई विवाद उत्पन्न होने पर उनके द्वारा पारस्परिक सम्मति से गठित किया जात है और इसके सदस्य भी उनके द्वारा ही मनोनीत किए जाते हैं । कछ दशाओं में न्यायाधिकरण द्वारा लागू किए जाने वाले नियमों को भी इन राज्यों द्वारा निर्धारित किया जा सकता है । बहुधा पंच निर्णय अथवा विवाचन के लिए ऐसे न्यायाधिकरणों का गठन काय जाता है ।
  • international waterways -- अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग
ऐसे जलमार्ग जो एक से अधझिक राज्यों से होकर बहते हैं, जैसे नदियाँ, नहरें जलडमरूमध्य आदि । इनकी वैधिक व्यवस्था अलग – अलग है । अंतर्राष्ट्रीय नदियों औरजलडमरूमध्यों की व्यवस्था का निरूपण 10 दिसंबर, 1982 के समुद्र विधि विषयक संयुक्त राष्ट्र संघ अभिसमय में मिलता है । अंतर्राष्ट्रीय नहरों की वैधिक व्यवस्था अलग -अलग अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों अथवा समझौतों के अंतर्गत हुई है जैसे, स्वेज़ नहर की वैधिक व्यवस्था सन् 1888 के कान्स्टेंटीनोपिल अभिसमय द्वारा निश्चित की गई थी । इसी प्रकार पनामा नहर की वैधिक व्यवस्था सन् 1871 की वाशिगटन संधि द्वारा निर्धारित की गी थी ।
  • Interpol -- अंतर्राष्ट्रीय पुलिस, इंटरपोल
वह सरकारी अंतर्राष्ट्रीय अभिकरण जो सदस्य राज्यों के बीच अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की रोकथाम व अपराधियों को पकड़ने के लिए कार्रवाई करता है ।
  • interpretation of treaty -- संधि – व्याख्या, संधि – निर्वचन
संधियों के अर्थ और आशय के विषय में हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के मध्य मतभेद होने की स्थिति में उसके समाधान के नियमों को संधि की व्याख्या करना कहा जाता है । संधि की व्याख्या करने में दो सर्वमान्य नियमों का पालन किया जाता है :-
1. व्याख्या संधि – संपादन के समय के संदर्भ में की जाती है, विवाद के समय के संदर्भ में नहीं; तथा
2. व्याख्या भूत – प्रभावी होती है । शवारजनबारगर ने संधि की व्याख्या संबंधी सात पद्धतियों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार हैं: (i) संक्षेपत व्याख्या; (ii) शाब्दिक व व्याख्या; (iii) क्रमबद्ध व्याख्या; (iv) तर्कानुकूल व्याख्या; (v) ऐतिहासिक व्याख्या; (vi) कार्यात्मक व्याख्या; और (vii) प्रामाणिक व्याख्या; ।
  • intervention -- हस्तक्षेप
एक देश द्वारा किसी दूसरे देश के आंतरिक अथवा बाह्य मामलों में उसकी इच्छा अथवा सहमति के विरूद्ध इस प्रकार का निर्देशात्मक निर्देशन जिससे उसकी स्वतंत्रता, संप्रभुता अथा प्रादेशिक अखंडता का खंडन होता है । यहाँ निर्देशात्मक निर्देशन से तात्पर्य यह है कि निर्देशन के पीछे बल प्रयोग का भाव या धमकी हो और उसके फलस्वरूप वह देश अपनी घरेलू और विदेश नीति में परिवर्तन लाने अथवा उसे यथावत रखने के लिए विवश किया गाय हो ।
दे. external intervention lLe internal intervention भी ।
  • invasion -- आक्रमण
किसी राज्य की सशस्त्र सेना द्वारा किसी दूसरे राज्य के प्रदेश मे उस पर आधिपत्य करने के उद्देश्य से किया गया प्रहार । दूसरे राज्य द्वारा प्रत्युत्त्र में सशस्त्र बल का प्रयोग करने पर दोनों राज्यों के मध्य यूद्ध – अवस्था उत्पन्न हो सकती है, परंतु यह आक्रमणकारी राज्य के प्रयोजन पर निर्भर करता है । अंतर्राट्रीय विधि के अनुसार अग्र – आक्रमण की कार्रवाई अवैध है ।
  • irredenta -- समुद्धरणीय क्षेत्र
किसी देश की जनता में व्याप्त यह भावना कि निकटस्थ प्रदेश अथवा प्रदेशों को उनके साथ मिला दिया जाए क्योंकि भाषा, संस्कृति ऐतिहासिक संदर्भ से ये प्रदेश उनके देश के ही भाग हों । इस पद का प्रयोग सर्वप्रथम इटली में हुआ जहाँ 1870 में इटली के एकीकरण के पश्चात इस आंदोलन ने जन्म लिया कि ऑस्टिया और अन्य देशों के अधीनस्थ इटली के प्रदेश विदेशी नियंत्रण से मुक्त कराए जाएँ । इस आंदोलन को Italia Irredenta (इटालियान देशओं का मुक्तिकरण) कहा जाता था ।
  • island fringes -- द्वीपमाला
किसी राज्य के समुद्रतट के निकट स्थित छोटे – छोटे द्वीपों की श्रृखला जो तट से समीपवर्तिता के कारण मुख्य भूभाग का ही विस्तार मानी जाती है और राज्य का भूभागीय समुद्र इस द्वीपमाला के किनारे से ही प्रारंभ हुआ माना जाता है ।
  • joint occupancy -- संयुक्त आधिपत्य
किसी क्षेत्र या प्रदेश दो या दो से अधिक राज्यों का सैनिक आधिपत्य, जैसे दूसरे महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात जर्मनी पर सं.रा. अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ और फ्रांस का संयुक्त आधिपत्य । प्रायः यह अस्थायी स्थिति होती है ।
  • judicial decision -- न्यायिक निर्णय
किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी विवाद के निपटारे के रूप में दिया गया निर्णय, जो संबंधित पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है । न्यायिक निर्णयों का अंतर्राष्टरीय विधि के विकास में विशेष महत्व है क्योंकि ये न केवल प्रचलित प्रथाओं और राज्य व्यवहार के प्रमाण होते हैं बल्कि उन्हें स्पष्टता एवं सुदृढ़ता भी प्रदान करते हैं । फिर भी न्यायिक निर्णयों को अंतर्राष्टरीय विधि का मूल स्रोत न माना जाकर एक सहायक स्रोत माना जाता है । इनका महत्व निर्माणात्मक न होकर केवल साक्ष्यात्मक होता है ।
  • jurisdiction -- क्षेत्राधिकार, अधिकार क्षेत्र
किसी राज्य का अपनी प्रादेशिक सीमाओं के भीतर विद्यामान सभी व्यक्तियों और वस्तुओं पर क्षेत्राधिकार तथा अपनी सीमाओं में उत्पन्न होने वाले सभी दीवानी और फौजदारी मामलों पर निर्णय करने का अधिकार । परंतु अंतर्राष्ट्रीय विधि मे इस प्रादेशिक अधिकार के अपवाद भी हैं और इस अधिकार का विस्तार भी है, अर्थात् कुछ व्यक्ति या मामले ऐसे हैं जो उसके प्रदेश मे होते हुए भी उन पर उस राज्य का क्षेत्राधिकार नहीं होता और कुछ व्यक्ति या मामले उसके प्रदेश में न होते हुए भी उसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते हैं । जैसे उस देश के राज्याध्यक्ष, राजदूत, सार्वजनिक जलपोत आदि ।
  • juristic works -- विधि वेत्ताओं की रचनाएँ
अंतर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में विद्वानों एवं विधि शास्त्रियों के ग्रंथों को भी अंतर्राष्ट्रीय विधि के सहायक स्रोत के रूप में मान्यता दी जाती है । इनका महत्व प्रचलित विधि के प्रमाण अथवा साक्ष्य के रूप में सामान्यतः स्वीकार किया जाता है । यद्यपि इन ग्रंथकारों क मतों को विधि का नियम नहीं माना जाता । इस भेद को पैक्ट हवाना के मामले में न्यायाधीश ग्रे ने अति प्रभावशाली रूप में स्पष्ट किया था ।
  • jusbeli -- युद्ध विधि
दे. Laws of war.
  • jus cogens -- अनुल्लंघनीय नियम
अंतर्राष्ट्रीय विधि के वे अपरिहार्थ नियम, सिद्धांत या मूल्य जिनका किसी दशा में किसी प्रकार से भी अतिलंघन नीहं किया जा सकता । यद्यपि ऐसे नियमों अथवा सिद्धांतों की कोई सूची बनाना कठिन है परंतु कुछ नियम अवश्य ऐसे है जिन्हें इस श्रेणी मे रखा जा सकता है जैसे अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का सद्भावनापूर्वक पालन करना, अग्र आक्रमण न करना आदि ।
  • jus gentium -- 1. वैदेशिक कानून, विदेशियों का कानून
2. अंतर्राष्टरीय विधि, जस जैंशियम
1. रोमन नागरिकों के विदेशियों के साथ और विदेशियों के आपसी संसर्ग से संबंधित नियम ।
2. स्वतंत्र राज्यों के आपसी व्यवहार अथवा संसर्ग को नियमित करन वाली नियमावली, विस्तार के लिए देखिए international law.
  • jus naturale -- नैसर्गिक विधि, प्राकृतिक विधि
मानव विवेक से उद्भूत नियम या विधि जो संस्थापित विधि के अभाव में या उसके अलावा मानव आचरण और समाज पर स्वभावतः ही लागू होते हैं । इसका कारण यह है कि ये मानव प्रकृति के अनुरूप होते हैं । एक मत यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार यह प्राकृतिक अथवा नैसर्गिक विधि ही है । इस मत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्यों द्वारा स्थापित न होकर प्राकृतित विधि का वह भाग है जो राज्यों के पारस्परिक संबंधों मे लागू होता है ।
  • jus postililminii -- परावर्तन नियम, युद्ध – पूर्व अवस्था का नियम
इस सिद्धांत का संबंध युद्ध -विधि के आधिपत्य के नियम से है । नियम यह है कि सैनिक आधिपत्य की समाप्ति पर आधिपत्य की समाप्ति पर धिपत्य – अधीन प्रदेश से संबंधित समग्र कानूनी व्यवस्था युद्ध – पूर्व स्थिति को लौट जाती है । अर्थात् युद्ध – पूर्व अवस्था की पुनः स्थापना हो जाती है । ओपेनहायम ने अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से युद्ध – पूर्व अवस्था के तीन परिणामों का उल्लेख किया है :-
1. भूतपूर्व राजनीतिक अवस्था की आवृत्ति
2. आधिपत्य – काल के वैध कार्यों की स्वीकृति और
3. आधिपत्य – काल के अवैध कार्यों की अस्वीकृति ।
जूलियस स्टोन, श्वारजनबारगर आदि लेखकों का मत है कि यह सिद्धांत पूर्णतया निरर्थक है क्योंकि यथापूर्वन – स्थिति की पुनः स्थापना संभव नही है ।
  • just war -- न्याय्य युद्ध
यह अवधारणा मध्ययुगीन धर्म – युद्ध (Holy war ) का रूपांतरण है और सत्रहवीं – अठारहवीं शताब्दी मे इसका प्रचलन रहा । इससे तात्पर्य यह था कि युद्ध के पक्षकारों में एक पक्ष न्यायसंगत है और दूसरा नहीं । यद्यपि यह भेद करने के कोई निश्चित नियम नहीं थे कि कौन न्यायासंगत है और कौन नहीं । उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय राज्यों और संप्रभुता के सिद्धांत के सुदृढ़ हो जाने के साथ – साथ यह भावना बी प्रबल होती गई कि युद्ध राज्य का एक संप्रभु अधिकार है । यह उसकी संप्रभुता का एक अंग है और इस परिप्रेक्ष्य मे नन्यायसंगत और न्याय – असंगत का जो भेद चला आ रहा था,व ह समाप्त हो गाय ।
प्रथम महायुद्ध के उपरांत राष्ट्र संघ की स्थापना से और सन् 1928 में पेरिस समझौते के अंतर्गत युद्ध के अधिकार के परित्याग से पुनः इस विचार का नवीनीकरण हुआ कि युद्ध में एक पक्ष को न्याससंगत माना जाए और दूसरे को नहीं । इस विभाजन का मानदंड यह हो गया कि जो पक्ष राष्ट्र संग की प्रसंविदा अथा पेरिस समझौते का उल्लंघन करके युद्ध प्रारंभ करता है उसे न्याय – असंगत और उसके आक्रमण से आत्म – रक्षा करने वाले को न्याय – संगत पक्ष माना जाए ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के उपरांत यह भेद और भी मुखर हो गया । अब यह कहा जा सकता है कि जो राज्य सुरक्षा – परिषद् के निर्देस पर शांति बनाए रखने की किसी कार्रवाई में बाग लेते हैं वे न्यायसंगत युद्धकारी है और जिनके विरूद्ध यह कार्रवाई की जा रही है, वे न्यायसंगत नहीं है । इस प्रकार बीसवीं शताब्दी में पुनः न्यायासंत युद्ध की अवधारणा का प्रादुर्भाव हुआ ।
  • Kellogg – Briand Pact -- केलॉग – ब्रियाँ समझौता
27 अगस्त, 1928 को पेरिस मे फ्रांस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रियों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए जो इन दोनों विदेश मंत्रियों – केलॉग और ब्रियाँ समझौते के नाम से प्रसिद्ध है । इसे पेरिस समझौता अथवा युद्ध परित्याग की सामान्य संधि भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत इन राज्यों ने राष्ट्रीय नीति के उपकरण के रूप में युद्ध का परित्याग करने की घोषणा की और अपने पारस्परिक विवादों को शांतिपूर्ण उपायों से तय करने का निश्चय किया । कालांतर मे इस समझौते ने एक सर्वदेशीय संधि का रूप धारण कर लिया जो विश्व के सबी देशों के लिए बाध्यकारी मानी जाती है, चाहे उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए हों या न किए हो । वर्तमान काल में इसे विशअव की वैधिक व्यवस्था का एक अंग माना जाता है ।
  • kiel canal -- कील नहर
स्वेज और पनामा नहर की भाँति कील नहर भी एक अंतर्राष्ट्रीय नहर मानी जाती है । यद्यपि यह जर्मन प्रदेश का भाग है परंतु सन् 1919 की वार्साई संधि के अंतर्गत इसका अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया गया । इसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि कील नहर युद्ध और शांति काल में सब देशों के वणिक पोतों और युद्ध पोतों के लिए समान और निर्बाध रूप से खुली रहेगी ।
  • laissez – passer -- निःशुल्क सीमा – प्रवेश पत्र
किसी देश के राजनयिक अधिकारियों तथा कर्मचारियों को दी जाने वाली एक ऐसी सुविधा जिसके आधार पर वे अपनी नियुक्ति वाले देश में बिना की प्रवेश शुल्क दिए प्रवेश पाने के अधिकारी होते हैं । यह सुविधा सामान्य नागरिकों को प्रायः उपलब्ध नहीं होती ।
  • land – locked states -- भूबद्ध राज्य
ये वे राज्य हं जो चारों ओर से किसी न किसी देश की भूभागीय सीमा से घिरे हुए हैं अर्थात् जिनका अपना कोई समुद्र तट नहीं है, जैसे नेपाल, अफगानिस्तान, स्विट़ज़रलैंड, आस्ट्रिया आदि । ऐसे राज्यों की कुल संख्या इस समय 31 है । इन देशओं की सदैव ह माँग रही ह कि महासमुद्र में परिवहन एवं व्यापार का उन्हें भी अधिकार होना चाहिए और इस हेतु संलग्न तटवर्ती राज्य अथवा राज्यों को इन्हें आवश्यक पारगमन – सुविधा प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय – विधि द्वारा बाध्य किया जाना चाहिए । इस हेतु सन् 1965 में न्यूयार्क में एक संयुक्त राष्ट्र संघ सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें 58 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इस सम्मेलन में भूबद्ध राज्यों के परिवहन – व्यापार पर एक अभिसमय ग्रहण किया गया । इस अभिसमय की व्यवस्था 10 दिसंबर, 1982 की समुद्र – विधि पर संयक्त राष्ट्र संघ अभिसमय के भाग 10 में रूपांतरित हुई । इसके अनुसारि भूबदध राज्यों को समुद्र तक जाने और वहाँ से आने का अधिकार होगा जिसके लिए संबंधित राज्य अथवा राज्यों को इन्हें आवागमन का विशेष अधिकार देना होगा । परंतु आवागमन अधिकार की शर्तें और इससे इससे संबंधित विस्त व्यवस्था पारस्परिक समझौते से तय करनी होगी ।
  • land warfare -- स्थल युद्ध
युद्ध संबंधी वे संक्रियाएँ जिसका क्षेत्र भूमि – प्रदेश होता है । प्रारंभ में युद्ध स्थलीय ही होता था और नौ – सैनिक युद्ध गौण था । कुछ समय पश्चात् नौसैनिक युद्ध का महत्व बढ़ने लगा और प्रथम महायुद्ध से वायु – युद्ध सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक हो गाय ।
स्थल युद्ध विधि अपेक्षाकृत अधिक सुनिश्चित संहिताबद्ध और सुदृढ़ है । इनमें सबसे निर्बल और अविकसित वायु – युद्ध विधि है ।
  • lawful combatant -- वैध संयोधी
दे. Combatant.
  • law making treaties -- विधि निर्मात्री संधियाँ
विधि निर्मात्री संधियों से तात्पर्य उन संधियों से है जो राज्यों के परस्पर संबंधों को नियमित अथवा नियंत्रित करने के उद्देश्य से आचरण के नए नियमों का प्रतिपादन अथवा प्रचलित नियमों का संशोधन अथवा उन्हें निरस्त करती हैं । इनका विषय कोई अंतर्राष्ट्रीय संगठन, संस्था, अभिकरण या विधान भी हो सकता है ।
विधि निर्मात्री संधियाँ प्रायः बहुपक्षीय संधियाँ होती हैं यद्यपि अपवादस्वरूप कुछ द्विपक्षीय एवं सर्वदेशीय विदि निर्मात्री संधियों के भी नाम लिए जा सकते हैं ।
विधि निर्मात्री संधियों का प्रारंभ मूलतः 19 वीं शताब्दी के मध्य से होता है और बीसीं शताब्दी के आते – आते इन संधियों नें अतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उस व्वस्था को जन्म दिया जिसे अंतर्राष्ट्रिय विधि निर्माण कहा जाता है । इन संधियों की विशेषता यह है कि ये अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रत्यक्ष स्रोत होती है ।
  • law of peace -- शांति विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जो राज्यों के शांतिकालीन संबंधों अथवा आचरण को नियंत्रित एवं नियमित करता है ।
वर्तमान काल में शांतिकालीन विधि का दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है :-
1. वे विषय जिनका संबंध राज्य के अस्तित्व से है जैसे राज्य का प्रदेश, प्रदेश – प्राप्ति के साधन, मान्यता, क्षेत्राधिकार, राजदूत का अधिकार आदि ।
2. वे विषय जिनका संबंध राज्यों के पारस्परिक संबंध और सहयोग से है जैसे प्रत्यर्पण, राज्य उत्तरदायित्व वं अंतर्राष्ट्रीय दावे, संधियाँ, आर्थिक संबंध तथा अन्य क्षेत्र जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, सुरक्षा संबंधी, पर्यावरण संबंधी, निःशसत्रीकरण संबंधी क्षेत्र जिनमें राज्यों के पारस्परिक सहयोग की आवश्यकताएँ और संभावनाएँ उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही हैं ।
  • laws of the sea -- समुद्र विधि, समूद्री कानून
समुद्री व्यवस्था एवं समुद्र के उपयोग संबंधी कानून व नियम, जिनका निरूपण समय – समय पर स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय नुबंधों में किया गया है । ये अति प्राचीन काल से राज्यों के पारस्परिक व्यवहार में विकसित होते रहे हैं और इनका संहिताकरण करे में संयुक्त राष्ट्र को सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है । 1958 के चार जेनेवा अभिसमय और 10 दिसंबर, 1982 को तृतीय समुद्र विधि सम्मेलन त्वारा पारित अभिसमय इसके प्रमाण है ।
  • law of the space -- अंतरिक्ष विधि
अंतर्राष्ट्रीय विदि का यह क अपेक्षाकृत नया विषय है । इसका प्रारंभ 1957 में अंतरिक्ष में प्रथम सोवियत स्पुतनिक छोड़े जाने से होता ह । इस घटना से अंतरिक्ष की वैधिक स्थिति और उसके उपयोग में राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर अनेक प्रश्न उठ खड़े हुए जिनके समाधान के लिए अनेक संधि, समझौते आदि संपादित किए गए । इनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं :-
1. 20 दिसंबर, 1961 का महासभा का प्रस्ताव
2. 13 दिसंबर, 1963 का महासभा का एक अन्य प्रस्ताव । इसमें अंतरिक्ष संबंधी कुछ सामान्य सिद्धांतों की घोषणा की गई थी
3. सन् 1967 की अंतरिक्ष संधि
4. सन् 1968 का अंतरिक्ष यात्रियों संबंदी समझौता और
5. सन् 1972 का अभिसमय जिसमें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं से हुई हानि के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व के सिद्धांतों का निरूपण किया गया था ।
इन सब प्रस्तावों , संधियों, समझौतों, अभइसमयों के परिणामस्वरूप एक विस्तृत नियमावली का विकास हुआ है जिसे सामूहिक रूप से अंतरिक्ष विधि का नाम दिया जाता है । इस विधि का केंद्रभूत आधार यह है कि अंतरिक्ष और चंद्रमा सहित सभी खगोल पिंड संपूर्ण मानव जाति की संपदा हैं । कोई भी राज्य किसी भी प्रकार से इनका स्वामित्वहरण नीहं कर सकता । इनका गवेषण और उपयोग संपूर्ण मानव जाति के हित में और उसेक लाभ के लिए किया जाना चाहिए ।
  • laws of war -- युद्ध विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह भाग जो राज्यों के मध्य युद्ध छिड़ने पर उनके पारस्परिक संबंधों अर्थात उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों को निर्धारित करता है ।
इस विधि के तीन भाग हैं 1. स्थल युद्ध विधि 2. समुद्री युद्ध विधि और 3. वाया युद्ध विधि ।
  • League of Nations -- राष्ट्रसंघ
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चा सन् 1920 में गठित राज्यों का पहला अंतर्राष्ट्रीय संघठन जिसका मुख्यालय जेनेवा में था । इसके दो प्रमुख उद्देश्य थे () युद्ध को रोकना तात अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का शांतिपूर्ण निपटारा, तथा (2) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का विस्तार जिससे सदस्य – राष्ट्रों की भौतिक तथा नैतिक उन्नति हो सके और मानव समाज का भी कल्याण हो । इसके तीन प्रमुक अंग थे – सभा, परिषद् और स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय । 1939 मे द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ होने पर यह संगठन भंग हो गया ।
  • lease -- पट्टा
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों मे पट्टे के द्वारा भी प्रेदश – प्राप्ति के उदाहरण मिलते हैं, जैसे उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में चीन द्वारा रूप, फ्रांस जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन को अपने प्रदेश के अनेक भाग पट्टे पर दिए गए थे । इसी समय हांगकांग (सन् 1898 में ) ब्रिटेन को दिया गाय था इसकी अवधि 99 वर्ष थी ।
एक समझौते के अंतर्गत भारत के राज्य पश्चिम बंगाल के तीन बीघा नामक क्षेत्र को बंगला देश को पट्टे पर दिया गया है ।
इस प्रकार प्रेदश को पट्टे पर दिए जाने के अनेक उदाहरण हैं ।
पट्टे पर दिए जाने की कुछ विशेषताएँ हैं जो अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं :-
1. पट्टे पर दिए जाने से संप्रभुता का हस्तांतरण नहीं होता । संप्रभुता मूल राज्य में बनी रहती है
2. पट्टा – प्राप्त राज्य को केवल नियंत्रण, शासन और उपयोग के अधिकार प्राप्त होते हैं जिनके संबंध में पट्टे विषयक समझौते में विस्तृत व्यवस्था की जाती है और
3. पट्टे की एक निर्धारित अवधि होती है जो प्रायः 99 वर्ष या अनिश्चित काल तक की होती है । परंतु जैसाकि स्व ज नहर पर ब्रिटिश पट्टे और पनामा नहर पर अमेरिकी पट्टे की समाप्ति से स्दध होता है कि अनिश्चित काल तक के पट्टे का अर्थ यह नहीं है कि पट्टा समाप्त नही किया जा सकता ।
  • legal effects of war -- युद्ध के वैधिक परिणाम
युद्ध के प्ररंभ होने पर युधकारियों के पारस्परिक संबंधों का वैधिक आधार परिवर्तित हो जाता है । उनके संबंधों में शांतिकालीन विधि निलंबित हो जाती है और युद्ध विधि उसका स्थान ले लेती है । इसके परिणामस्वरूप युद्धकारी राज्य एक – दूसरे के शत्रु हो जाते हैं और एक – दूसरे की दृष्टि में उनके नागरिक, जलपोत, संपत्ति, व्यापार, ठेके, अनुबंध आदि सभी शत्रु रूप ग्रहण कर लेते हैं । उनके मध्य हुई नेक प्रकार की संधियाँ विशेषकर राजनीतिक, व्यापारिक, वाणिज्यिक, आर्थिक संधियाँ, आदि समाप्त हो जाती हैं ।
  • legate -- पोपदूत, प्रणिधि
1. पोपदूत – ईसाई धर्म के प्रधान अर्था पोप का एक विशेष प्रतिनिधि जिसे राजदूत का समकक्ष माना जाता है और जो विशेष अवसरों पर पोप का प्रतिनिधित्व भी करता है ।
2. प्रणिधि – राजदूत, किसी राज्य का प्रतिनिधि ।
  • legation -- 1. दूत वर्ग
2. दूतावास
1. राजनयिक प्रतिनिधियों का वर्ग या समूह जिसका प्रमुख मंत्री होता है ।
2. किसी अन्य देश की राजधानी में नियुक्त राजनयिक मंत्री का कार्यालय एवं निवास स्थान ।
  • lend – lease agreement -- उधार – पट्टा समझौता
मार्च 1941 में संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस ने एक कानून पारित किया जिसका नाम उधार – पट्टा कानून था । इसके अंतर्गत राष्ट्रपति को मित्र – राष्ट्रों के सहायतार्थ और उनके युद् – प्रयास संबंधी कोई भी सामान जैसे शस्त्र – अस्त्र, कच्चा माल, खाद्य पदार्थ, मशीनी यंत्र, सामरिक वस्तुएँ आदि बेचने, हस्तांतरित करने विनिमय करने, पट्टे पर देने, उधार देने अथवा अन्य किसी प्रकार से उसका निपटारा करने के लिए अधिकृत किया गया था ।
इस कानून का महत्व यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का मित्र – राष्ट्रों के पक्ष में इस प्रकार का आचरण उसकी विशउदध तटस्थ स्थिति के अनुरूप नहीं था क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिक अभी तक युद्ध में सम्मिलित नहीं हुआ था । इसलिए इस कार्रवाई से संयुक्त राज्य अमेरिका की तटस्थता पर प्रशअन – चिह्न लग गया ।
  • letter of credence -- प्रत्यय पत्र
दे. Credentials
  • letters of marque -- अधिग्रहण अनुज्ञा – पत्र
1. किसी व्यक्ति को सरकार द्वारा दिया गया अनुज्ञा अथवा अधिकार – पत्र जिससे वह किसी विदेशी राज्य के प्रजाजनों अथवा उनकी संपत्ति को प्रतिशोध के रूप में हस्तगत कर सकता ह ।
2. किसी सरकार द्वारा किसी व्यक्ति को दिया गया अधिकार – पत्र जिसके आधार पर वह समुद्र में सशस्त्र पोत उतार सकता थाऔर उन्मुक्त विचरण करते हुए शत्रु -पोतों की लूट – पाट कर सकता था ।
इस प्रकार के अनुज्ञा – पत्रों का अब अंतर्राष्ट्रीय – विधि और व्यवहार में कोई स्थान नहीं रह ग या है और ये मात्र ऐतिहासिक संदर्भ बनकर रह गए हैं ।
  • lilliputian states (=mini stttes = micro states) -- लघु राज्य
संसार के वे राज्य जो आकार, जनसंख्या एवं आर्थिक साधनों की दृष्टि से इतने छोटे हैं कि अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वाह करने में बी सक्षम नहीं है । ऐसे राज्यों के उदाहरण हैं, लाइकेनसटाइन, सान मेरीनो, नौरो इत्यादि । इसमें नौरो का क्षेत्रफल केवल सवा आठ वर्यमील ही है ।
राज्यों की समानता के सिदधांत के आदार पर राष्ट्र संघ की महासभा में इन सबको अन्य राज्यों की भाँति एक – एक प्राप्त है । अतः महासभा के शक्ति संतुलन में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है । पश्चमी राष्ट्रों ने अनेक बार यह प्रस्ताव रखा है कि उन्हें महासभा में मताधिकार से वंचित कर दिया जाए और इन्हें सं. राष्ट्र क सह सदस्य माना जाए, परंतु यह प्रस्ताव स्वीकार नही हुआ ।
  • littoral state -- समुद्रतटवर्ती राज्य
वह राज्य जिसका भूभागीय सीमा का कोई भाग समुद्र से लगा हुआ हो । हिंद महासागर के तट पर सबसे अधिक अर्थात् 44 राज्य स्थित हैं । समुद्र तट पर स्थित होने के कारण अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले समुद्र को नौपरिवहन के लिए सुरक्षित और सक्षम बनाए रखने और वहाँ की समुद्री जैविक संपदा का संरक्षण करने का इनका विशेष उत्तरदायित्व हो जाता है ।
  • local armistice -- स्थानिक युद्धविराम समझौता
युद्धरत राज्यों के बीच वह समझौता जिसके अनुसार किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष उद्देश्य से स्थानीय सैनिक अधिकारियों द्वारा अस्थायी तौर पर सैनिक कार्रवाई स्थगित कर दी जाती है ।
  • local treaty -- स्थानिक संधि
वह संधि जिसका विषय कोई प्रदेशगत व्यवस्था करना होता है अर्थात् जिससे विदेशी राज्यों को कुछ प्रदेशगत सुविधाएँ दी जाती हैं । उदाहरणतः किसी राज्य के प्रदेश से दूसरे राज्य को पारगमन अधिकार देना, उसके जलक्षेत्र में नौपरिवहन अथवा मत्स्यहरण आदि का अधिकार प्रदान करना । बहुधा ऐसा समझा जाता है कि राज्य संप्रभुता मे परिवर्तन होने पर भी ये संधियाँ बनी रहती है ।
दे.dispositive treaty भी ।
  • locus standi -- अधि स्थिति
यह एक विधिक पद है । इसका अर्थ है किसी मामले में न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने और अपना वाद प्रस्तुत करने का अधिकार अथवा न्यायालय में कोई कार्रवाई प्रारंभ करने का अधिकार ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों में केवल राज्य ही कोई वाद प्रस्तुत कर सकते हैं । इन न्यायालयों के समक्ष व्यक्तियों द्वारा कोई वाद नहीं लाया जा सकता ।
  • London Declaration -- लंदन घोषणा – पत्र
यह घोषणा – पत्र सन् 1930 मे हुए लंदन सम्मेलन की समाप्ति पर जारी किया गया था । यद्यपि इसकी पुष्टि नही हो सकी, फिर भी समुद्री युद्ध में तटस्थ व्यापार संबंधी अनेक विषयों पर – जैसे नाकाबेदी, विनिष्द्ध सामग्री, सतत यात्रा आदि – इसकी व्यवस्था प्रचलित राज्य – व्यवहार का प्राणाणिक निरूपण मानी जाती है और उनका यथासंभव पालन किया जाता रहा है ।
  • loss of nationality -- राष्ट्रिकता समाप्ति
किसी राज्य की राष्ट्रिकता से वंचित किया जाना । यह विषय अंतर्राष्ट्रीय विधि का न होकर राष्ट्रीय विधि का है । राष्ट्रिकता प्राप्ति और समाप्ति दोनों राष्ट्रीय विधि से नियमित और नियंत्रित होते हैं । सामान्यतः निम्नलिखित चार कारणों से राष्ट्रिकता समाप्त हो जाती है :-
1. स्वेच्छा से राष्ट्रिकता का परित्याग करके ;
2. किसी अन्य राज्य की राष्ट्रिकता प्राप्त करने से ;
3. राज्य द्वारा राष्ट्रिकता से वंचित कर दिए जाने पर ; तथा
4. कुछ राज्यों में महिलाओं के विदेशी पुरूषों से विवाह करन पर ।
  • mail cert -- डाक पत्र
युद्धकारी राज्यों द्वारा तटस्थ व्यापारियों को डाक से माल भेजने की सुविधा प्रदान करने हेतु दूसरे महायुद्ध में डाक पत्र देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई । इस डाक पत्र से प्राप्त माल का विनिषिद्ध वस्तु कानून के अंतर्गत निरीक्षण नहीं किया जा सकता था ।
  • mandate -- अधिदेश
दे. Mandate system.
  • Mandate Commission -- अधिदेश आयोग
अधिदेशित प्रदेशों की प्रगति का आकलन करने के लिए राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित एक स्थायी आयोग । इसके दस सदस्य होते थे जिनमें से अधिकांश सदस्य उन सदस्य राज्यों के होते थे जो अधिदेशक राज्य नहीं थे । यह आयोग अधिदिष्ट प्रदेश के प्रतिनिधि की उपस्थिति मे इसके शासन के बारे में राष्ट्र संघ को भेजी गई रिपोर्ट पर विचार करता था ।
  • mandated territory -- अधिदेशित प्रदेश
दे. Mandate system.
  • mandate system -- अधिदेश पद्धति
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ के अंतर्गत स्थापित वह व्यवस्था जिसमें जर्मनी और टक्री के उपनिवेशों के नियंत्रण एवं शासन का अधिकार उन विजेता राष्ट्रों को सौंप दिया गया था जो इसके लिए सहमत और सक्षम थे । सिद्धांततः ये सब प्रदेश राष्ट्र संघ के संरक्षण मे रख दिए गे थे और राष्ट्र संघ की ओर से इनके प्रशासन का भार किसी एक या अधिक विजेता राज्य को सौंप दिया गया था । इस हेतु राष्ट्रसंघ और प्रशासक राज्य, जिसे अधिदेशक राज्य कहते थे, के मध्य विधिवत समझौता होता था जिसे अधिदेश अथवा मैंडेट (mandate) कहते थे ।
अधिदेशित प्रदेश प्रायः सभ्यता की दृष्टि से पिछड़े हे थे और यह दावा किया गया कि नका उत्थान सभ्य राज्यों का परम कर्तव्य और धर्म है । इसलिए अधिदेशक राज्य को यह निर्देश दिया गया कि वे अपने अधीन प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति का भरसक प्रयास करें ताकि अंततः ये प्रदेश स्वशासन के योग्य ब न सकें ।
राष्ट्र संघ के विघटन के साथ यह व्यवस्था समाप्त हो गई और इसका स्थान संयुक्त राष्ट्र संघ की न्यास – पद्धति ने ले लिया ।
  • mandatory state -- अदिदेशक राज्य
दे. Mandate system.
  • maritime belt -- भूभागीय समुद्र
किसी राज्य के तट से संलग्न वह समुद्रवर्ती क्षेत्र जो राज्य की संप्रभुता के अधीन माना जाता है और जिसे भूभागीय समुद्र अथवा प्रादेशिक समुद्र अथवा समुद्री पट्टी आदि अनेक नामों से जाना जाता है । परंपरा से इसकी दूरी तीन मील मानी जाती थी परंतु अनेक राज्य उससे संतुष्ट नहीं थे और राष्ट्रीय दावे 12 से 200 मील तक की दूरी के थे । 1982 में स्वीकृत तृतीय समुद्र -विधि अभिसमय के अंतर्गत अब यह दूरी 12 मील निर्धारित कर दी गई है ।
  • maritime boundries and zones -- समुद्री सीमाए एवं क्षेत्र
किसी देश अथवा राज्य के तट से लगे समुद्र की वह सीमा जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार संबंधित राज्य के नियंत्र व क्षेत्राधिकार में हो । 12 मील की दूरी का भूभागीय समुद्र तटवर्ती राज्य की संप्रभुता के अधीन होता है । उससे आगे के 12 मील तक के संलग्न क्षेत्र में उसे अनेक उद्देश्यों के लिए नियंत्रण के अधिकार प्राप्त होते हैं । इसके अतिरिक्त 200 मील दूर के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के आर्थिक दोहन का उसे अनन्य अधिकार होता है । अतः अंतर्राष्ट्रीय विधि अनेक समुद्रवर्ती सीमाओं व क्षेत्रों को मान्यता देती है ।
  • maritime law -- समुद्र विधि, समुद्री कानून
दे. Law of the sea.
  • maritime territory -- समुद्री प्रदेश
किसी राज्य विशेष के तट से संलग्न समुद्र का वह भाग जिस पर तटवर्ती राज्य को संप्रभुता, नियंत्रण अथवा क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है । भूभागीय समुद्र में (तट से 12 मील की दूरी तकः राज्य को संप्रभुता का अधिकार होता है परंतु अन्य सीमाओं व क्षेत्रों में (जैसे, संलग्न क्षेत्र और अनन्य आर्थिक क्षेत्र ) उसे केवल नियंत्रण और क्षेत्राधिकार का अधिकार होता है, संप्रभुता का नहीं ।
समुद्री प्रदेश की अवधारणा में भूभागीय समुद्र और ये विभिन्न सीमाएँ और क्षेत्र, सभी सम्मिलित किए जाते हैं ।
  • maritime warfare -- समुद्री युद्ध
समुद्री क्षेत्र मे युद्धरत राज्यों की एक दूसरे के विरूद्ध की जाने वाली नौसैनिक संक्रियाएँ । समुद्री युद्ध संबंधी नियमों का विकास 1856 की पेरिस घोषणा से हुआ । 1907 के दूसरे हेग सम्मेलन मे स्वीकृत 13 अभिसमयों में से 7 का संबंध समुद्री युद्ध से था । 1909 की लंदन घोषणा में बी समुद्री युद्ध विधि को संकलित करने का प्रयास किया गया था परंतु यह घोषणा में भी समुद्री युद्ध विधि को संकलित करने का प्रयास किया गया था परंतु यह घोषणा संपुष्टि प्राप्त न कर सकी । 1922 की वाशिंगटन संधि, 1930 की समुद्री युद्ध विषयक लंदन की संधि और 1936 का लंदन प्रोटोकोल समुद्र युद्ध विधि के विकास में महत्वपूर्ण चरण थे ।
  • material breach of treaty -- संधि का सारभूत उल्लंघन
किसी अंतराष्ट्रीय संधि की सारभूत या आवश्यक अथवा मूलभूत धारा का किसी पक्ष द्वारा अनुपालन न करना जिससे अन्य पक्षों के अधिकारों या हितों का हनन हो । बहुधा यह स्वीकार किया जाता ह कि किसी एक पक्ष द्वारा संधि का सारभूत उल्लंघन किए जाने की दशा में दूसरा या दूसरे पक्षकार भी स्वयं को संधि के बंधन से मुक्त मान सकते हैं ।
  • measures short of war -- गैर युद्ध उपाय
दे. Non – war hostilities.
  • median lilne -- मध्य रेखा
नदी के बीच की वह रेखा जो दोनों किनारों से बराबर दूर हो ।
अंतर्राष्ट्रीय नदियों का बंटवारा करने के लिए इस सिद्धांत का भी प्रयोग किया जाता है । उस स्थिति में जबकि दो राज्यों के तट आमने – सामने हों या संलग्न हों तो उनके मध्य जलक्षेत्र का बंटवारा भी इसी मध्य रेखा सिदधांत द्वारा किया जाता है । संबंधित राज्य नदी अथवा जलक्षेत्र के बंटवारे के लिए कोई भी समझौता कर समते हैं । परंतु यदि कोई समझौता नहीं किया गया है तो नदी या जलक्षेत्र का बंटवारा मध्य रेखा के आधार पर ही किया जाता है ।
  • mediation -- मध्यस्थता
मध्यस्थता से आशय विवादों के समाधान की उस पद्धति से है जिसके द्वारा दो राज्यों के बीच किसी विवाद का सौहार्दपूर्ण निपटारा करने में एक तीसरा राज्य उनकी सहायता करता है । एक अथवा दोनों विरोधी राज्य तीसरे राज्य से ऐसी सहायता करने का अनुरोध कर सकते हैं अथवा तीसरा राज्य स्वयं उनकी सहायता करने के लिए अपनी रूचि प्रदर्शित कर सकता है । मध्यस्थया मध्यस्थता के प्रस्तावों को मानने के लिए संबंधित विरोधी राज्य बाध्य नहीं होते ।
मध्यस्थता करने वाला कोई य्क्ति विशेष अथवा अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी हो सकता है। उदाहरणार्थ सन् 1947 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने नीदरलैंडस तथा इंडोनेशिया के मध्य उनके दीर्घकाल से चले आ रहे संघर्ष की समाप्ति के लिए मध्यस्थता का प्रयोग किया था ।
मध्यस्थता सत्प्रयास से भिन्न है । मध्यस्थता की प्रक्रिया में मध्यस्थता करने वाला राज्य विरोधी पक्षों के बीच वार्तालाप में सक्रिया रूप से सहायता करता है । यहाँ तक कि वह समझौते का प्रारूप भी प्रस्तुत कर सकता है जो दोनों विरोधी पक्षों के बीच वार्ता का मूल आधार बन सकताहै परंतु सत्प्रयास की प्रक्रिया में तीसरे राज्य की भूमिक विरोधी पक्षों को वार्तालाप करने क लिए मात्र सहमत करने तक सीमित होती है । मध्यस्थता का एक अच्छा उदाहरण सन् 1978 में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रयत्नों के फलस्वरूप इज़रायल और संयुक्त अरब गणराज्य के बीच कराई गई वह बैठक थी जिसके फलस्वरूप इन देशों में कैंप डेविड संधि हुई ।
मध्यस्तथा का उल्लेखसंयुक्त राष्ट्र घोषणा – पत्र (अनुच्छेद 33) में स्पष्ट रूप से किया गया है ।
  • medium filma aquae -- गहनतम जलधारा मध्यरेखा
किसी नौगम्य अंतर्राष्ट्रीय नदी की गहनतम जलधारा की मध्यरेखा । इसे थालवेग () भी कहते हैं ।
यह पूरी नदी की मध्यरेखा से भिन्न होती है क्योंकि प्रायः यह देखा जाता है कि नदी की परिवहनीय गहनतम धारा नदी के ठीक बीच में न होकर इधर – उधर होती है । ऐसी दशा में नदी का मध्य रेखा के आधार पर नदी का बंटवारा करना अनुचित होगा अतः दोनों तटवर्ती राज्यों को गहनतम परिवहनीय धारा का बराबर भाग देने के उद्द्शएय से इस गहनतम धारा की नध्यरेखा को नदी के बंटवारे का आधार बनाया जाता है और यह अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक सुस्थापित मान्यता – प्राप्त नियम है ।
  • men of war -- युद्धपोत
दे.
  • micro states -- लघु राज्य
दे. dminitive state.
  • militrary alliance (= military pact) -- सैनिक मैत्री, सैनिक गठबंध
वह गठबंधन जो पारस्परिक सुरक्षा के लिए संयुक्त सैनिक कार्रवाई करने के उद्देश्य से गठित किया जाता है । उदाहरणार्थ नाटो और आन्जस (आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड तथा अमेरिका )। प्रायः इनका प्रयोजन क्षेत्र – विशेष की सुरक्षा करना होता है ।
  • mililtary pact -- सैनिक गठबंधन
दे.mililtary allilance.
  • mililtary servitudes -- सैनिक सुविधाधिकार
सैनिक उद्देश्य के लिए एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य सेली गई प्रदेशगत सुविधाएँ जो प्रथम राज्य की संप्रभुता का हास मानी जाती हैं जैसे, विसैन्यीकृत क्षेत्र की स्थापना, सेनाओं को रखने की अनुमति, सैनिक अड्डे बनाने की अनुमति इत्यादि ।
  • minimum standard of civililzation -- सभ्यता का न्यूनतम स्तर
इस पद का प्रयोग लातीनी अमेरिकी देशों में यूरोपीय देशओं के नागरिकों के साथ बर्ताव के संदर्भ में किया गया है ।इन यूरोपीय नागरिकों के राज्यों द्वारा इन नागरिकों के क्षतिग्रस्त होने पर इस बात पर बल दिया जाता रहा कि स्थानीय राज्य इनके सात व्यवहार करने में एक न्यूनतम स्तर का पालन करे, जिससे इनका आशय यह था कि यह व्यावहार यूरोपीय राज्यों में प्रचलित सिद्धांतों एवं मूल्यों के निम्नतम स्तर के अनुरूप हो । इस माँग में यह भाव निहित था कि स्थानीय राज्य की न्यायिक प्रणाली और प्रक्रिया यूरोपीय न्यायिक प्रक्रिया के न्यूनतम स्तर से भी हीन थी । सभ्यता के न्यूनतम स्तर के स्थान पर इन लातीनी अमेरिकी राज्यों का तर्क था कि अधिक से अधिक उनसे यह आशा की जा सकती है कि यूरोपीय नागरिकों के साथ स्थानीय नागरिकों के समान व्यवहार किया जाए. इससे अधिक और कुछ नहीं । इस प्रकार सभ्यता का न्यूनतम स्थर बनाम समान व्यवहार लातीनी अमेरिका में एक विवाद का विषय रहा है, जिसका अब केवल ऐतिहासिक महत्व रह गया है ।
  • mini states -- लघु राज्य
दे. dminitive state.
  • modus vivendi -- कार्यनिर्वाहक व्यवस्था, अस्थायी समझौता
यह दो अथवा अधिक राज्यों के बीच किए गए उस समझौते की ओर संकेत करता है जो उनके विवादग्रस्त विषयों का एक स्थायी तथा अंतिम रूप से निपटारा किए बिना उनके बीच एक कामचलू व्यवस्था का आयोजन करता है । इसका निष्पादन साधारणतया अत्यंत अनौपचारिक ढंग से किया जाता है । कालांतर में संबधित राज्यों द्वारा इसे एक स्थायी तथा विस्तृत समझौते के रूप में बदला जा सकता है । यह भी हो सकता है कि इस प्रकार का समझौता केवल वार्ताकारी प्रतिनिधियों के नाम में ही हो अथवा इस पर केवल लघु हस्ताक्षर ही हुए हों, पूर्ण हस्ताक्षर नहीं ।
  • monistic theory -- अद्वैतवादी सिद्धांत
एकत्ववादी संप्रदाय
इस सिद्धांत के अनुसार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विदि दोनों एह ही व्यवस्था के अंग हैं और दोनों में जो अंतर प्रतीत होते हैं वे वास्तविक नहीं हैं । इनके अनुसार संपूर्ण विधिव्यवस्था एक इकाई है जिसमें विभिन्न विधियाँ अधिक्रमिक स्थान रखती हैं । इस अधिक्रम के शिखर पर अंतर्राष्ट्रीय विधि है और राष्ट्रीय विधि इससे निम्न कोटि की है ।
अद्वैतवादी यह मानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों को अपने क्षेत्राधिकार में लागू करने का दायित्व राज्य का है । इस दृष्टि से राज्य अंतर्राट्रीय समुदाय का अभिकर्ता माना जा सकता है । वास्तव में अपने अधिकार क्षेत्र में लागू करके राज्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के निर्माण की प्रक्रिया को पूरा करता है । अतः अद्वैतवादियों की यह धारणा है कि अंतर्राष्ट्रिय विधि राष्ट्रीय वविधि का अंग है । इस सिद्दांत के मुख्य समर्थक केलसन, डयूगिट दुरसीम, क्राबे कुंज आदि हैं ।
  • Monroe Doctrine -- मनरो सिद्धांत
सन् 1823 में अमेरिकी राष्ट्रपति मनरो द्वारा की गई एक ऐतिहासिक घोषणा जिसमें यह सूचित किया गया कि अमेरिका पश्चिमी गोलाद्र्ध (उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप) में किसी भी यूरोपीय राज्य के हस्तक्षेप को अपनी शांति और सुरक्षा के लिए घातक मानते हुए उसे सहन नहीं करेगा । अतः अमेरिकी महाद्वीपो मे वह यूरोपीय उपनेशों की स्वतंत्रता की घोषणाओं को निरस्त करने के यूरोपीय राज्यों के प्रयासों को अपने लिए द्वेषपूर्ण कार्रवाई मानेगा ।
यह घोषणा मनरो सिद्धांत के नाम से विख्यात है । इस घोषणा से संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने क्षएत्र के छोटे – छोटे राज्यों के संरक्षण का भार एर प्रकार से अपने ऊपर ले लिया जिसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम हुए । इस घोषमा ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में क्षेत्रीय व्यवस्था अथवा क्षेत्रवाद को भी जन्म दिया ।
  • Montevideo Convention -- मांटेवीडियो अभिसमय
सन्म 1933 में मांटेवीडियो में अमेरिकी राज्यों के सम्मेलन में राज्यों के अधिकारों एवं कर्तव्यों से संबंधित अभिसमय पर हस्ताक्षर हुए । इस अभिसमय के प्रथम अनुचेछेद में राज्य के चार निम्नलिखित आवश्यक तत्वों का उल्लेख किया गया था :-
1. जनसंख्या
2. निश्चित प्रदेश
3. सरकार और
4. अन्य राज्यों के साथ संबंद स्थापित करने की क्षमता ।
इसी अभिसमय में सर्वप्रथम राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों का उल्लेख किया गया था ।
  • Montreal Convention -- मांट्रियल अभिसमय, 1971
इस अभिसमय पर 23 सितंबर, 1971 को 37 राज्यों ने हस्ताक्षर किए । इसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई थी कि हेग अभिसमय की क्षेत्राधिकार, दंड और प्रत्यर्पण संबंधी व्यवस्थाएँ विमान पर सवार व्यक्तियों और विमान तथा उड़ान की सुरक्षा के विरूद्ध किए गए हिंसात्मक कार्यों पर लागू होंगी ।
  • Moscow Declaration, 1943 -- मॉस्को घोषणा, 1943
संयुक्त राष्ट्र की निर्माण प्रक्रिया में इस गोषणा का विशेष महत्व है । यह घोषणा अक्तूबर 1943 मे संयुक्त रूप से चार राज्यों – संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, सोवियत संघ और चीन द्वारा की गई थी । इस घोषमा में युद्धोपरांत एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया था जो सभी शांतिप्रि राज्यों की समानता का सम्मान करे और जिसकी सदस्यता छोटे – बड़े सभी राज्यों के ले खुली हो और जिसका लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाए रखना हो ।
  • Moscow Treaty -- मॉस्को संधि
5 अगस्त, 1963 को संपन्न एक संधि जिसके अनुसार हस्ताक्षरकर्ता देशों ने बाह्य वातावरण, अंतरिक्ष तथा जल के अंदर किसी प्रकार के परमाणु अस्त्रों के परीक्षणों पर रोक लगाने का निर्णय लिया । इन देशों न अपने क्षेत्रांतर्गत आने वाली भूमि, जल, वायुक्षएत्र सीमा में परमाणु अस्त्रों के परीक्षण और विस्फोटों पर पूरी तरह रोक लगाने का दायित्व ग्रहण काय । प्रांरभ मे यह संधि अमेरिका, सोवितय संघ तता ब्रिटेन के बीच हुई किंतु बाद मे लगबाग 100 देश इसके पक्षकार बन गए । इसे आंशिक परमाणु परीक्षण निरोध संधि भी कहते हैं ।
  • most favoured nation cluse -- सर्वाधिक अनुगृहीत राष्ट्र खंड
इस धारा का समावेश प्रायः अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक संधियों में किया जाता है । इसका उद्देश्य किसी राज्य द्वारा अन्य सभी राज्यों के प्रति वाणिज्यिक संबधों में समानता का व्यवहार करने दायित्व ग्रहण करना होता है । इसका अर्थ यह है कि यदि किसी राज्य द्वारा किसी अन्य राज्य के साथ की गई वाणिज्यिक संधि मे कोई रियायत या विशिष्ट सुविधा दी गई है तो वह रियायत या सुविधा उन अन्य राज्यं को भी दी जाएगी जो पहले से ही संधि कर चुके हैं ।
  • multilateral convention -- बहुपक्षीय अभिसमय
दे Multilateral treaty
  • Multilateral treaty -- बहुपक्षीय संधि
दो से अधिक राज्यों के बीच पारस्परिक हित के किसी राजनीतिक, सांस्कृतिक, व्यापार – वाणिज्यिक अथवा अन्य किसी विषय पर संपादित अभइसमय, संधियाँ या समझौता जो सब हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं । प्रायः बहुपक्षीय विधि निर्मात्री संधियाँ और अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनो के माध्यम से संप्न होते हैं जैसे दिसंबर, 1982 का तृतीय समुद्र विधि अभिसमय ।
  • municipal law -- राष्ट्रीय विधि, राष्ट्रीय कानून
वह विधि – व्यवस्था जो किसी राज्य – विशेष के सक्षम विधि – निर्माणकर्ता अंगों द्वारा निर्मित और अंगीकरा की जाती है और जो संबंधित राज्य की प्रादेशिक सीमाओं में लागू होती है । इसीलिए इसे राष्ट्रीय विधि कहते हैं ।
अंग्रेजी में राष्ट्रीय विधि को म्यूनिसिपल विधि () इसलिए कहा जाता है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में राज्य का वही स्थान है जो एक राज्य के संदर्भ में उसके अधीन गठित नागरपालिकाओं का होता है । अतः अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से जिसे हम राष्ट्रीय विधि कहते हैं वह एक प्रकार से नागरपालिकीय कानून मात्र है ।
  • Namibia -- नामीबिया
दक्षिणी – पश्चमी अफ्रीका को सन् 1966 के पश्चात् नामीबिया कहा जाने लगा । दक्षिणी – पश्चिमी अफ्रीका दक्षिणी अफ्रीकी संघ को अधिदेश व्यवस्थआ के अंतर्गत दिया गया एक अधिदेशित प्रदेश था । यह अधिदेशित प्रदेश था । यह अधिदेशित प्रदेशों में निम्नतम अथवा सी कोटि का प्रदेश था ।
दूसररे महायुद्ध की समाप्ति पर राष्ट्र संघ का विघटन हो गया और दक्षिणी अफ्रीकी संघ ने यह दृष्टिकोण अपनाया कि राष्ट्र संघ के विघटन से वह अधइदेश व्यवस्था के दायित्वों से मुक्त हो गाय है और उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में याचिका प्रस्तुत की कि उसे दक्षिणी – पश्चिमी अफ्रीका को अपने राज्य में मिलाने की अनुमति दी जाए । महासभा ने इसे अस्वीकार कर दिया । लेकिन दक्षिणी – अफ्रीकी संघ अपनी नीति पर अडिग रहा । उसने नामीबिया के विय में महासभा को भेजे जाने वाले प्रतिवेदन बंद कर दिए ।
इधर दक्षिणी – पश्चीमी अफ्रीका में स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभ हो गया और महासबा ने भी 28 अक्तूबर 1966 को एक प्रस्ताव पारित कर याह घोषित कर दिया कि दक्षिणी – पश्चिमी अफ्रीका पर दक्षिणी – अफ्रीकी संघ को दिया गया अधिदेश तत्काल समाप्त किया जाता है और इस प्रदेश के शासन का दायित्व अब प्रत्यक्ष रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ का होगा । शासन संचालन के लिए महासबा ने एक समिति का गठन भी कर दिया परंतु दक्षिणी अफ्रीका इस प्रदेश से अपने दावे का परित्याग करने पर सहमत नहीं हुआ । उसने समिति के सदस्यों को प्रदेश में प्रवेश करने की भी अनुमति नही दी ।
अब दक्षिणी – पश्चिमी अफ्रीका का नाम बदलकर नामीबिया कर दिया गया । विधि की दृष्टि से यह संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा एक शासित प्रदेश बन गाय जोकि अपने – आप मे एक नवीन अवधारण है । परंतु सथ्यात्मक दृष्टि से नामीबिया पर दक्षी – अफ्रीकी संघ का शासन और नियंत्रण बना रहा ।
यह एक अंतर्राष्ट्रीय विषमता और तनाव की स्थिति थी । इसे समाप्त कनरे के लिए दक्षिणी – अफ्रीकी संघ पर निरंतर दबाव डाला जाता रहा । अंत में दक्षिणी – अफ्रीकी संघ नामीबिया को स्वतंत्र करने प्र सहमत हो गाय ।
  • nationality -- राष्ट्रिकता, राष्टरीयता
किसी व्यक्ति द्वारा जन्म के आधार पर अथवा देशईयकरण की प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त नागरिकता । वस्तुतः नागरिकता और राष्ट्रिकता पर्यायवाची कहे जा सकते हैं ।
विदेशियों द्वारा नागरिकता अथवा राष्ट्रिकता की प्राप्त संबंधित राज्य के नियमानुसार की जा सकती है ।
सन् 1948 के मानव अधिकार घोषण – पत्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रिकता का अधिकार है ।
वास्तव में राष्ट्रिकता अथवा नागरिकता व्यक्ति को राज्य से जोड़ने वाली कड़ी है जिससे उसेक अधिकार और कर्तव् निर्धारित होते हैं । राष्ट्रिकता के कारण प्रत्येक व्यक्ति राज्य के कानूनों के अधीन रहता है । रपाज्य के प्रति व्यक्ति की निष्ठा का भी यही आधार हैं ।
अधिकार के रूप में व्यक्ति को सदैव अपने राज्य से संरक्षण पाने का अधिकार रहता है, विशेषकर यदि वह किसी अन्य देश में है और वहाँ उसके जान एवं माल की हानि होती है या उसके साथ न्याय वंचन होता है तो वह अपने राज्य से अपने संरक्षण के लिए उचित उपाय करने की माँग कर सकता है ।
बहुथा राज्य अपने नागरिकों का प्रत्यर्पण किसी दूसरे देश को नहीं करते, दूसरे देशों मे उनके द्वारा अपराध होने पर वे स्वयं उसके विरूद्ध कार्यवाही करने का दावा करते हैं ।
राष्ट्रिकता को लेकर अनेक वैधिक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं जिनमें दोहरी नागरिकता और राज्यविहीनता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।
  • nationality principle -- राष्ट्रिकता सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार किसी भी घटना में क्षेत्राधिकार का दावा राष्ट्रिकता के आधार पर किया जाता है ।
दे. Active natinalilty principle भी ।
  • nationality theory of jurisdiction -- क्षेत्राधिकार का राष्ट्रीयता सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार क्षेत्राधिकार का निर्धारण घटना स्थल से न होकर घटना अथवा अपराध के कर्ता की राष्ट्रीयता से होता है । विदेशों में अपने नागरिकों पर किसी राज् के क्षेत्राधिकार का यही आधार है । इस प्रकार के क्षेत्राधिकार को वैयक्तिक क्षेत्राधिकार कहा जाता है ।
  • national self determination -- राष्ट्रीय आत्मनिर्णय
प्रत्येक राष्ट्र का अपनी शासन प्रणाली स्वेच्छानुसार निर्धारित करने का अधिकार जिसके लिए उसका एक
  • national waters -- राष्ट्रीय जलक्षेत्र
किसी राज्य के प्रदेश में स्थित वे जलक्षेत्र जैसे, नदियाँ, खाड़ियाँ, बंदरगाह, महरें, झीलें आदि जो राज्य के पूर्म क्षेत्राधिकार एवं नियंत्रण मे होते हैं । राष्ट्रीय जलक्षेत्रों मे संभवतः देश के भूभागीय समुद्र एवं मत्स्यहरण – क्षेत्र को भी शामिल किया जा सकता है ।
  • NATO -- नाटो, उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन
साम्यवादी प्रसार के खतरे के विरूद्ध 1949 म गठित एक क्षेत्रीय सैनिक संगठन । इसका गठन संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रयासों के फलस्वरूप किया गया था । उक्त संगठन के सदस्य देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका,युनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इली,पुर्तगाल, डेनमार्क, नावे, आइसलैंड, बैल्ज़ियम, हालैंड, लक्समब्रग, ग्रीस तथा टर्की शामिल हैं । इस संगठन का मुख्य उद्देश्य संबंधित देशों की सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था करना है । इसका स्थायी सैनिक मुख्यालय बैल्ज़ियम की राजधानी ब्रुसेल्स मे स्थित है ।
  • natural boundary -- प्राकृतिक सीमा
दो राज्यों के भूभागों को पृथक् करने वाले प्राकृतिक विभाजक जैसे नदी – नाले, चट्टानें, समुद्रतट, पर्वतमाला आदि ।
  • naturalist school -- प्रकृतिवादी संप्रदाय
अंतर्राष्ट्रीय विदि के आधार के संबंध में विद्वानों का वह समूह जो प्राकृतिक विधि को अंतर्राष्ट्रीय विदि का आधार एवं स्रोत मानता है । इन विद्वानों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विदि को प्राकृतिक विधि के उन सर्वव्यापी नियमों का संग्रह कहा जा सकात है जो राज्यों के पारस्परिक संबंधों में लागू होते हैं ।
प्राकृतिवादी के समर्थकों में प्यूफनडार्फ, टामसियम, फ्रांसिस अचेसन, टॉमस रदरफोर्थ, जीन बार्बेरक, जीन जैक्स बर्लामाकी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
  • naturalization -- देशीयकरण
व्यक्तियों द्वारा किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त करना । ऐसा विदेशी राज्य के काननों के अंतर्गत निर्धारित शर्तों को पूरा करके काय जा सकता है जैसे दीर्घ निवास से, अचल संपत्ति प्राप्त करके, विवाह आदि से । परंतु विभिन्न देशों में इसके लिए विभिन्न नियम हैं ।
दे. acquisition of citizenship भी ।
  • natural law -- नैसर्गिक विधि, प्राकृतिक विधि
दे. Jus naturale.
  • naval blockade -- समुद्री नाकाबंदी
युद्धकारी द्वारा अनपे शत्रु देश के बंदरगाहों एवं तट से आवागमन का मार्ग अवरूद्ध कर देना ताकि उसका संपूर्ण समुद्री व्यापार बंद हो जाए और उसे बाहर से कोई अस्त्र – शस्त्र अथवा रसद पूर्ति प्राप्त न हो सके और न ही उसके तट एवं बंदरगाहों से कोई जलपोत बाहर जा सके । यह नौसैनिक युद्ध में अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा मान्यताप्राप्त एक वैध संक्रिया है जिसके नियम समय – समय पर निर्धारित हुए हैं और जिनमें मुख्य नियम यह है कि वैध होने के लिए नाकाबंदी प्रभावकारी होनी चाहिए और इसकी विधिवत सार्वजनिक घोषणा की जानी चाहिए ।
  • navy cert -- नौ पत्र
युद्धकाल में सद्भावी तटस्थ व्यापार को संरक्षण देने हेतु युद्धकारियों द्वारा तटस्थ नौ परिवहन कंपनियों को उनके जलपोतों में लदे नौभार का परीक्षण कर प्रदान काय जाने वाला प्रमाणपत्र जिसका उद्देश्य यह था कि इस नौभार का मार्ग में निरीक्षण न हो और यह विलंब व अन्य असुविधाओं से बच सके । अगस्त, 1940 में एक अन्य प्रणआली प्रारंभ की गई जिसके अंतर्गत जलपोतों को उनके स्वामियों द्वारा निषिद्ध व्यापार न करने का वचन देने पर अधिपत्र दिए जाते थे । अगस्त, 1942 के उपरांत अधिपात्र प्राप्त जलपोत ही नौ पत्र प्राप्त कर सकते थे ।
  • negotiation -- वार्ता संधिवार्ता, समझौते की बातचीत
दो या दो से अधिक देशओं के अध्यक्षों अथवा उनके राजनयिक प्रतिनिधियों के बीच कोई राजनीतिक, वाणिज्यिक अथवा किसी भी विषय से संबंधित संधि संपन्न करने, किसी अंतर्राष्ट्रीय मामले में मतैक्य स्थापित करन या किसी विवाद का समाधान ढूंढ निकालने की दृष्टि से की गई पारस्परिक चर्चा, वार्ता अथवा पत्राचार ।
अंतर्राष्रीय विवादों के समाधान के शांतिपूर्ण उपायों में वाता को प्रथम स्थान दिया जाता है । सुंक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 मे बी वार्ता को अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए प्रथम स्थान दिया गया है ।
  • neutral duties -- तटस्थ कर्तव्य
युद्दकारी के प्रति तटस्थ राज्यों के कर्तव्यों को तटस्थ कर्तव्य कहते हैं । इन कर्तव्यों का सर्वप्रथम निरूपण अलाबामा नियमावली में किया गया था । दूसरे हेग सम्मेलन (1907) के एक अभिसमय में भी तटस्थ राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों का विस्तृत निरूपण किया गया था । ओपेननहायम के मतानुसार तटस्त राज्यों के दो मूल कर्तव्य हैं :-
1. युद्धकारियों के प्रति तटस्थता के अनुरूप व्यवहार करना और
2. युद्धकारियों द्वारा तटस्थ वणिक पोतों की तलाशी लेने और उनके दोषी पाए जाने पर उनको दंडित करने पर कोई विरोध न करना अर्थात् इसे मौन रहकर अपनी सहमति प्रदान करना ।
  • neutral goods -- तटस्थ माल
ऐसा सामान जोतटस्थ राज्य के नागरिकों या स्वयं तटस्थराज्य का हो, चाहे वह शत्रु पोत पर पाया जाए या तटस्थ पोत पर । ऐसा मालयुद्धकाल मं युद्धकारी संक्रिया से उन्मुक्त होता है ।
  • neutralism -- तटस्थतावाद
संघर्षरत राज्यों मं से किसी भी राज्य का पक्ष न लेने तथा दोनों के प्रति समभाव बनाए रखने की नीति ।
कुछलेखक इस शब्द का प्रयोग उन दोशों के लिए करते हैं जो द्वितीय महायुद्ध के उपरांत शीत युद्ध के परिप्रेक्ष्य में गुट – निरपेक्षता अथवा अंसलग्नता की नीति अपना रहे ते ।
  • neutrality -- तटस्थता
युद्ध प्रारंभ होने की स्थिति मे युद्धकारी राज्यों के संघर्ष में भाग न लेने या किसी भी प्रकार से उनकी सहायता न करने की अवस्था । यह एक विशेष प्रकार की वैधिक स्थिति है जिसको युद्धकारी भी मान्यता देते हैं और जिससे युद्ध में भाग न लेने वाले राज्यों को कुछ अधिकार व कर्तव्य प्राप्त होते हैं । वास्तव में तटस्थता से युद्धकारी व तटस्थ दोनों देशों को कुछ अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते हैं । जो युद्धकारी के अधाकर हं, वे तटस्थ राज्यों के कर्तव्य होते हं और जो युद्धकारी के कर्तव्य हैं, वे तटस्थ राज्यों के अधिकार होते हं । तटस्थता वस्तुतः इन अधइकारों और कर्तव्यों का ही दूसरा नाम हैं ।
  • neutrallity treaty -- तटस्थता संधि
किन्हीं दो या दो से अधिक राज्यों के बीच इस आशय से निष्पादित संधि या समझौता कि संधिकर्ता राज्यों में से किसी राज्य का किसी अन्य राज्य के साथ सैनिक संघर्ष होने की स्थिति में संधिकर्ता राज्य निष्पक्ष तथा तटस्थ रहेंगे और साथ ही युद्धकारी राज्यों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी भी रूप में सैनिक या आर्थिक सहायता प्रदान नही करेंगे ।
  • neutralization -- तटस्थीकरण
महाशक्तियों द्वारा एक सामूहिक समझौते के माध्यम से किसी राज्य को स्थायी रूप से तटस्थ गोषित कर देने की प्रक्रिया जिसके फलस्वरूप वह राज्य कभी भी युद्ध होने पर तटस्थ रहने के लिए वचनबद्ध रहता है अथवा उसको युद्ध में सम्मिलित रहने का अधिकार नही रहता । इसके बदले मे इसी समझौते के अंतर्गत इस राज्य को उसकी स्वतंत्रता तथा प्रादेशिक अखंडता की गारंटी भी दी जाती है ।
तटस्थीकरण के पीछे दो कारण होते हैं । पहला, शक्तिशाली राज्यों की सीमाओं के बीच यदि कोई राज्य स्थित है (जैसे स्विटज़रलैंड) तो वह इन राज्यों के मद् अंतःस्थ राज्य (buffer state) का कार्य करे और इनके बीच शांति बनाए रखने में योगदान दे । दूसरा, छोटे राज्यों की शक्तिशाली पड़ौसी राज्यों से रक्षा की जाए ताकि पड़ौसी शक्तिशाली राज्य छोटे राज्यों को हड़पकर शक्ति संतुलन न बिगाड़ दें ।
तटस्थीकृत राज्य का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक उदाहरण स्विटड़लैंड है, जो 1815 की वियना संधि के अंतर्गत तटस्थीकृत राज्य घोषित किया गया था और जो निरंतर अपनी तटस्थता बनाए हुए है । यहाँ तक कि स्विटड़रलैंड संयुक्त राष्ट्र संघ का भी सदस्य नहीं है ।
1. विश्व मे विद्यामान वर्तमान आर्थिक असमानताओं का अंत किया जाना और इसके लिए सभी राज्यों का सहयोग ;
2. बहुराष्ट्रीय निगमों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हित में नियमन और निरीक्षण ;
3. विकासशील राज्यों द्वारा निर्यात किए जाने वाले कच्चे माल तथा नके द्वारा आयात किए जाने वाले माल के मूल्यों में उचित संबंध ;
4. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा विकासशील देशों को राजनीतिक अथवा सैनिक शर्तों से मुक्त सहायता का प्रसार ; और
5. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था में विकासशील देशों के हित मे सुधार ।
  • new states -- नवोदित राज्य
वे राज्य जो औपनिवेशिक स्थिति से मुक्ति पाकर स्वतंत्र संप्रभुता संपन्न राज्य के रूप में पुनः स्थापित हुए ।
यह प्रक्रिया प्रथम महायुदध के उपरांत प्रारंभ होती है परंतु दूसरे महायुद्ध के उपरांत इसकी गति बहुत तेज हो गई । सन् 1945 मे ऐसे राज्यों की संख्या बढ़कर लगभग 170 हो गई है । इनमें से अधिकांश राज्य ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में साम्राज्यवादी यूरोपीय राज्यों के अधीन थे । धीरे – धीरे ये राज्य स्वतंत्र होते गे और अब साम्राज्यवाद लगभग समाप्त हो गया है ।
इन स्वतंत्र हुए राज्यों के लिए जो मुख्यतः एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमेरिका के महाद्वीपों में स्थित हैं, नवोदित राज्यों की संज्ञा का प्रयोग बहुधा किया जाता है ।
यह विवादग्रस्त है कि इन्हें नवोदित राज्य कहना कहाँ तक उचित है ऐतिहासिक तथ्य है कि इनमें से अनेक राज्य जैसे भारत, मिस्र, इराक अति प्राचीन सभ्यता के केंद्र रहे हैं । अन्क ऐतिहासिक कारणों से ये अपनी स्वतंत्रता खो बैठे और पराधीन हो गए । ये केवल इस अर्थ में नवोदित अथवा नवीन राज्य कहे जा सकते हैं कि अपनी स्वतंत्र सत्ता और स्थिति खो देने के बाद ये पुनः स्वतंत्र और संप्रभु राज्यों के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं ।
  • no man’s land -- 1. अस्वामिक भूमि
2. अवांतर भूमि
1. ऐसा प्रदेश जो किसी भी राज्य की संप्रभुता के अधीन न हो अर्थात् स्वामी विहीन हो । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार ऐसे प्रदेश को आधिपत्य द्वारा कोई भी राज्य अपने प्रदेश का भाग ब ना सकता है ।
2. कभी – कभी कुछ विशेष प्रयोजनों के लिए दो या अधिक राज्य परस्पर संधि या समझौता करके अपने मध्य में पड़ने वाले प्रदेश के किसी भाग के लिए यह व्यवस्था कर सकते हैं कि इस क्षेत्र – विशेष पर किसी राज्य का अधिकार नहीं माना जाएगा । ऐसे क्षेत्र को भी अस्थायी रूप से स्वामीविहीन अथवा अवांतर प्रदेश कहा जाता है । ऐसा किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि अथवा समझौते के अंतर्गत ही किया जा सकता है ।
  • non – aggression treaty (=no war pact) -- अनाक्रमण संधि
किन्हीं दो या दो से अधिक राज्यों के बीच युद्ध की संभावनाओं को समाप्त करने की दृष्टि से किया गया पारस्परिक समझौता या संधि । इस प्रकार की संधि की बात प्रायः उन्हीं राज्यों के बीच उठती है जहाँ पारस्परिक तनाव की स्थिति बनी रहती हो । उक्त संधि में इस बात पर विशेष बल दिया जाता है कि संबंधित राज्य आपसी समस्याओं का समाधान पारस्परिक बातचीत से करेंगे और किसी भी स्थिति में एक दूसरे पर अग्र – आक्रमण नहीं करेंगे । उदाहरणार्थ, भारत ने कई बार पाकिस्तान के समक्ष युद्ध न करने के समझौते का प्रस्ताव किया है परंतु उसने इन प्रस्तावों को कभी स्वीकार नहीं किया । इसका एक अन्य ऐतिहासिक उदाहरण 1939 का है जब सोवियत संघ और जर्मनी के बीच एक ‘अनाक्रमण संधि’ हुई थी जिसे ‘मोलोतोव- रिबनट्राय पैक्ट’ के नाम से जाना जाता है ।
  • non – alignment -- गुट निरपेक्षता, असंलग्नता
यह विदेश नीति का एक सिद्धांत है । इसे स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय विदेश नीति में अपनाया गया था । भारत ने यहब निश्चय किया था कि वह तत्कालीन शीत – युद्ध के परिप्रेक्ष्य में विभाजित दो शक्ति गुटों अर्थात् सोवियत साम्यवादी गुट और पश्चिमी लोकतांत्रिक गुट में से किसी एक में भी सम्मिलित नहीं होगा और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने राष्ट्रीय हित के अनुसार निर्णय करने की स्वतंत्रता बनाए रखेगा । इसी नीति का एक मुख्य अंग यह था कि भारत किसी क्षेत्रीय सैनिक संगठन में किसी भी दशा में सम्मिलित नहीं हुआ ।
दोनों गुटों से असंल्गनता और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने की नीति को ही गुटनिरपेक्षता या असंलग्नता कहते हैं । यह अवधारणा तटस्थता की अवधारणा से नितान्तर भिन्न है ।
  • non – aligned movementnon -- गुट निरपेक्ष आंदोलन
भारतीय विदेश नीति स प्रोत्साहन पाकर मिस्र और यूगोस्लाविया भी गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने के लिए प्रेरित हुए । इन तीनों देशों की प्रेरणा से संसार के नवोदित राष्ट्र भी विदेश नीति में गुट निरपेक्षता की ओर आकर्षित हुए और वे उसे अपनाते गए । धीरे – धीरे गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसिरण करने वाले देशों की संख्या 100 से अधइक हो गी और विदेश नीति के एक सिदधांत से प्रारंभ होकर गुटनिरपेक्षता शनैः शनै. मुख्यतः विकासशील देशों का एक आंदोलन बन गयआ जिसने विश्व की राजनीति को सक्रिया रूप से प्रभावित किया ।
इस आंदोलन का कोई संस्थात्मक संगठन नहीं है । समय – समय पर इसके सदस्य – राज्यों के शआसनाध्यक्षों के सम्मेलन होते रहते हैं । जिन्हें शिखर सम्मेलन कहते हैं और जिनमें नीति संबदी सद्धांनों की घोषणाएँ की जाती हैं ।
इसके प्रमुख स्द्धांतों मे साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध, रंगभेद अथवा प्रजातीय पार्थक्य का विरोध और सभी देशों के लिए आत्मनिर्णय का अधीकार प्रमुख है । वर्तमान काल में इस आंदोलन ने आर्थिक समस्याओं की और विशेष ध्यान दिया है और विश्व में आर्थिक व्यवस्था के पुनर्निर्माण की माँग उठाई हैं ।
गुट निरपेक्षता और गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रादुर्भाव शीत – युद्ध के संदर्भ में संसार के दो भागों में विभाजन के परिप्रेय में हुआ था । अतः शीत – युद्ध के समाप्त हो जाने और साम्यवादी गुय के विघटित हो जाने से गुट निरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न लग गया है ।
  • non – belligerency -- अयुद्ध स्थिति, अयुद्धकारिता
युद्धकाल मे उन देशों की स्थिति जो युद्ध – कार्य में भाग नहीं लेते परंतु जिन्हें पूर्णरूपेण तटस्थ भी नहीं कहा जा सकता । प्रायः ऐसी स्थिति उस समय उत्पन्न हो सकती है जब संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में कोई सशास्त्र कार्रवाई की जा रही हो और जिसमें कुछ ही देशों के सैनिक सशस्त्र कार्रवाई में भाग ले रहे हों । अन्य देश, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य तो हैं पर सैनिक कार्रवाई में भाग नहीं ले रहे हैं, न युद्धधरत कहे जा सकते हैं और न तटस्थ । ऐसे देशों क गैर युद्धकारी कहा जाता है और उनकी वैधिक स्थिति को अयुद्धकारिता की स्थिति कहा जाता है । दोनों महायुद्धों के प्रारंभिक चरणों में संयुक्त राज्य अमेरिका की युद्धकारी बनने से पूर्व यही स्थिति थी ।
  • non – combatant -- अयोधी
युद्धकारी राज्यों की समस्त जनता में से केवल वही भाग योधी कहा जा सकता है जो संगठित सैनिक बलों में विधिवत भरती है और सैनिक संगठन के अनुशासन और नियमों से मर्यादित है ।
जनता के शेष भाग को अयोधी कहते हैं । अर्थात् यह वह भाग है जो सक्रिय रूप से युद्ध की सशस्त्र कार्रवाई में कोई भाग नहीं लेता और जिसे सशस्त्र कार्रवाई में भाग लेने का कोई अधिकार भी नहीं होता ।
अयोधियों को भी मूल रूप से दो वर्गों में बांटा जा सकता है :-
1. जनसाधारण जिनके संरक्षणार्थ सन् 1949 के चौते जेनेवा अभिसमय में विस्तृत व्यवस्था की गई है ।
2. वे लोग जो सैनिक सेवा में हैं और केवल युद्धारत सैनिकों एवं सेनाओं की सेवा अथवा सहयतार्थ क्राय करते हैं । परंतु प्रत्यक्ष युद्ध कार्रवाई में न तो भाग लेते हैं और न ही ले सकते हं । जैसे – धोबी, नाई, मोची, रसोइए, पुजारी तथा अन्य आनुषंगिक सेवाएँ यथा शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि ।
अंतर्राष्रीय विदि का सामान्य नियम यह है कि केवल योधी ही प्रत्यक्ष प्रहार के लक्ष्य बनाए जा सकते हैं, अयोधी नहीं अयोधियों को युद्धबंदी भी नहीं बनाया जा सकता ।
  • non – interference -- अहस्तक्षेप
किसी राज्य के मामलों में किसी अन्य राज्य द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उसकी सहमति के विरूद्ध, हस्तक्षेप न करना । इस प्रकार का हस्तक्षेप उसकी संप्रभुता का हनन समझा जाता है । भारत द्वारा प्रणीत पंचशील के सिद्धांतों का यह एक प्रमुक अंग है । वास्तव में इसे आज अंतर्राष्ट्रीय विधि के मूलभूत सिदधांतों में से एक सिद्धांत माना जा सकता है । संयुक्त राट्र के चार्टर के सिद्धांतो मे बी इसका उल्लेख मिलता है और 1917 के महासभा के मैत्री संबंधों विषयक प्रस्ताव मे भी इसका वर्णन मिलता है ।
  • non – intervention treaty -- अहस्तक्षेप संधि
किन्हीं दो या दो से अधिक राज्यों के बीच इस आशय से की गई संधि अथवा समझौता कि वे एक दूसरे के आंतरिक अथवा बाह्य मालमों को उनकी सहमति के विरूद्ध निर्देशात्मक ढंग से इस प्रकार प्रभावित करने का प्रयास नीहं करेंगे जो उनकी संप्रभुता स्वतंत्रता अथवा अखंडता के प्रतिकूल हो ।
  • non – recognition -- अमान्यता
दे. Doctrine of non – recognition.
  • non – self governing territories -- अस्वाशासी भूभाग,
अस्वशासी राज्यक्षेत्र
ऐसे भूभाग जो उपनिवेश हैं या किसी अन्य राज्य के अधीन हैं । संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के एक अलग अध्याय के अंतर्गत ऐसे भूभागों के अधिकारों एवं उनकी स्थिति का वर्णन काय गया है । चार्ट्र की व्यवस्था की प्रमुख बात यह है कि इन प्रदेशों के आत्म निर्णय के अधिकार को मान्यिता दी गई है ।
  • non – state entities -- गैर – राज्य इकाइयाँ
वे प्रदेश अथवा व्यक्ति अथवा संगठन जो राज्य नहीं हैं परंतु अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय माने जाते हैं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके विशिष्ट अभिकरण, होली सी, फिलस्तीनी मुक्ति संगठन, मान्यता – प्राप्त युद्धकारी समूह आदि ।
  • non – war armed action -- अयुद्धक सशस्त्र कार्रवाई
दे. Non – war hostilities.
  • non war hostillities (=non – war armed action) -- गैर युद्धक सशस्त्र कार्रवाई,
अयुद्धक सशस्त्र कार्रवाई
दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य ऐसी सशस्त्र कार्रवाई अथवा ऐसा सशस्त्र संघर्ष जो विधिवत युद्ध – अवस्था में परिणत न हुआ हो ।
युद्ध – अवस्था और अयुद्धक सशस्त्र कार्रवाई में भेद करने के लिए स्टार्क ने तीन मानदंडों का सुझाव दिया है :-
1. संघर्ष का आकार
2. संघर्षत राज्यों का प्रयोजन और
3. अन्य अर्थात् तीसरे राज्यों की संघर्ष के प्रति प्रतिक्रिया अथवा उसके प्ति अपनाया गया दृष्टिकोण ।
  • North Atlantic Treaty Organization -- उत्तरी एटलांटिक संधि संघठन
दे. NATO.
  • North – South Dialogue -- उत्तर – दक्षिण संवाद
इस विभाजन की भौगोलिक परिकल्पना के अनुसार वे राज्य जो कर्क रेखा के उत्तर में हैं उन्हें उत्तर और उसके दक्षिण वाले राज्यों को दक्षिण के राज्य कहकर संवोधित किया जाता है । आर्थिक दृष्टि से उत्तर के राज्य विकसित राज्य हैं और दक्षिण के राज्य विकासशील । विकसित राज्यों में अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि प्रमुख हैं । दक्षिण के राज्यों में एशिया अफ्रीका और लातीनी अमेरिकी महाद्वीपों के राज्य सम्मिलित हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उत्तर – दक्षिण संवाद के लिए सबसे महत्वपूर्ण शुरूआत ब्रांट प्रतिवेदन (Brandt Report) से हुई जिसमें उत्र और दक्षिण के बीच पारस्परिक निर्भरता एवं सहयोग के प्रमुक बिंदुओं को इंगित किया गया था । इस प्रतिवेदन में उन आधारों का भी उल्लेख किया गया जिन पर उत्तर और दक्षिण के बीच परस्पर लाभदायी संबंध विकसित हो सकते ह । संक्षेप मे इस प्रतिवेदन में अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की परिकल्पना की गई थी , जिसके फलस्वरूप उत्रर और दक्षिण के बीच की आर्थिक खाई को कम काय जा सके ।
इसी का अनुसरण करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासबा के छठे विशेष अधिवेशन (मई, 1974) में एक घोषणा – पत्र पर हस्ताक्षर हुए जिसका लाक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का पुनर्निर्माम करते हुए एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना था ।
निश्चय ही यह पुनर्निर्माण और नवी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना विकसित और विकासशील राज्यों के पारस्परिक सहयोग और सहमतिके बिना संभव नहीं हो सकती । इस हेतु उत्तर और दक्षिण के राज्यो के बीच जो वार्ता क्रम चला वह उत्तर – दक्षिण संवाद के नाम से विख्यात है । इस संवाद के प्रमुख विषय हैं – विकसित और विकासशील देशों के पारस्परिक व्यापार को संतुलित बनाना, विकासशील देशों में आर्थिक विकास की गति को तेज़ करना और इस हेतु विकसित देशों से धनानुदान, ऋण, तकनीकी स्थानांतरण की व्यवस्था किया जाना आदि । पंरुत यह संवाद वास्तव में विवाद बनकर रह गया है और इसके कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सके हैं ।
  • no – war pact -- अनाक्रमण संधि
दे. Non – aggrerssion treaty.
  • nuclear – free zone -- नाभिकीयअस्त्र मुक्त क्षेत्र
संसार के वे क्षेत्र जहां राज्यों की संधियों और समझौतों के अंतर्गत नाभिकीय अस्त्रों का स्थापन वर्जित कर दा गया है जैसे, अंटार्कटिका, समुद्र तल और बाह्य अंतरिक्ष ।
  • Nuclear non Proliferation Treaty (NPT) -- परमाणु शस्त्र प्रसार निरोधक संधि
एक अंतर्राष्ट्रीय संधि जिसका लक्ष्य नाभिकीय अस्त्रों के प्रसार को रोकना है । इस संदि को जून, 1968 में संयुक्त राष्ट्र क महासभा ने स्वीकृति प्रदान की थी और तत्कालीन तीन नाभिकीय शक्तियों – ब्रिटेन, सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अनेरिका – का अनुमोदन पाकर यह 1969 से प्रबावकारी हो गई । इसके अंतर्गत नाभिकीय अस्त्रधारी राज्य इस बात के लिए वचनबद्ध हैं कि वे किसी ऐसे राज्य को जिसके पास नाबिकीय अस्त्र नहीं हैं, नाभिकीय शस्त्रास्त्रों के निर्माण में न कोई सहायता देंगे और न प्रोत्साहन और न ही नाभिकीय शस्त्रास्त्रों उसे हस्तांतरित करेंगे । इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले गैर नाभिकीय राज्य नाभिकीय शस्त्रों का निर्माण न करने और उन्हें प्राप्त न करने का वचन देते हैं । अब ऐसे राज्यों की संख्या पाँचों महा – शक्तियों सहित 100 से अधिक हो गी है परंतु भारत ने इसे विभेदकारी मानते हुए स्वाकार नहीं किया है ।
  • nuclear umbrella -- नाभिकीय छाता
नाभिकीय अस्त्रधारी राज्यों द्वारा उन राज्यों को संरक्षण देने का आश्वासन जिनके पास नाभिकीय अस्त्र – शस्त्र नहीं हैं । यह इस शर्त पर दिया जाता है कि ये राज्य 1969 की परमाणु अस्त्र प्रसार – निरोधक संधि को स्वीकार करेंगे और तदनुसार अपने यहाँ नाभीकीय अस्त्रों का निर्माण नही करेंगे ।
  • Nuremberg charter -- न्यूरेम्बर्ग चार्टर
दे. Nuremberg Tribunal.
  • Nuremberg judgement -- न्यूरेम्बर्ग निर्णय
जर्म युद्धापराधियों के विरूद्ध न्यूरेम्बर्ग न्यायाधिकरण के समक्ष की गई कार्यवाही के फलस्वरूप दिए गए निर्णय को न्यूरेम्बर्ग निर्णय कहते हैं । इस निर्णय के अनुसार 12 युद्धापराधियों को मृत्युदंड दिया गया और अनेक को कारावास की सज़ा दी गई ।
इन व्यक्तियों को दंड देने के अतिरिक्त न्यूरेम्बर्ग निर्णय का अंतर्राष्ट्रीय विधि के लिए एक विशेष महत्व ह । इस निर्णय से अंतर्राष्ट्रीय विधि में एक नवीन अध्याय जुड़ गया । इसे युद्धापराध – विधि कह सकते हैं । इस निर्णय से अनेक नवीन सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय विधि के विकास में एक नवीन दिशा के सूचक हैं । इन सिदधांतों में निम्न उल्लेखनीय है :-
1. अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के लिए वैयक्तिक दायित्व की अवधारणा का विकास
2. अपरा के लिए व्यक्ति की सार्वजनिक स्थिति या सार्वजनिक पद उसका संरक्षण नहीं कर सकता
3. सरकार अथवा उच्चतर अधिकारी के आदेश पर कार्य करने का तर्क भी वैयक्तिक उत्तरदायित्व से अपराधी को पूर्णतया मुक्त नही कर सकता और
4. युद्धापराध की अवधारणा का प्रसार । इसमें युद्धापराध के अतिरिक्त शांति के विरूद्ध अपराध और मानवता के विरूद्ध अपराध भी सम्मिलित कि गए ।
  • Nuremberg trails -- न्यूरोम्बर्ग मुकदमें
द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत मित्र राष्ट्रों ने लंदन समझौते के अनुसार जर्मन युद्धापराधियों के विरूद्ध नय्यिक कार्यवाही करने का निश्चय किया था । इसके लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायाधिकरण गठित किया गया । इसकी बैठकें न्यूरोम्बर्ग नगर मे हुई ।
इस न्यायाधिकरण के समक्ष 24 जर्मन नेताओं तथा 7 जर्मन संगठनों एवं संस्थाओं पर युद्धापराध शांति विरोधी एवं मानवता विरोधी अपराध करने तथा इस हेतु सामान्य योजना अथवा षड्यंत्र बनाने अथवा उसमें भाग लने के लिए मुकदमा चलाया गया ।
इन अपराधियों में से 12 को मृत्यु दंड, 2 को आजीवन कारावास, 4 को दस से बीस वर्ष तक के कारावास का दंड दिया गया । एक ने आत्महत्या कर ली । एक के विरूद्ध उसकी मानसिक स्थिति के कारण कार्यवाही नहीं की जा सकी । एक लापता रहा और तीन को निर्दोष पाया गया । सात संस्थाओं में से चार को अपराधी पाया गया और तीन को निर्दोष करार दे दिया गया ।
  • Nuremberg Tribunal -- न्यूरेम्बर्ग न्यायाधिकरण
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर चार प्रमुख मित्र – राष्ट्रों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ ) ने एक समझौते के अंतर्गत, जिसे लंदन समझौता कहते हैं, यह निर्णय लिया कि जर्मनी और जापान के युद्धापराधियों के विरूद्ध न्यायिक कार्यवाही की जाए । इस हेतु इन राज्यों ने इस समझौते के अंतर्गत एक चार्टर अंगीकार काय । इस चार्टर को न्यूरेम्बर्ग चार्टर कहते हैं । इसमें एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायालय के गठन और उसके द्वारा पालन की जाने वाली विधि की व्यवस्था की गई था ।
न्यूरेम्बर्ग चार्टर के अनुसार एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक न्यायालय का गठन काय गया जिसकी बैठकें जर्मनी के न्यूरेम्बर्ग नगर में करने का निश्चय हुआ क्योंकि इस नगर में ही नाज़ी पार्टी का मुख्यालय रहा था ।
न्यायाधिकरण के लिए चारों राज्यों को एक – एक नयायाधीश और एक – एक वैकल्पिक न्यायाधीश मनोनीत करने का अधिकार दिया गया था । परंतु दोनों में से केवल एक की उपस्थिति अनिवार्य थी और केवल एक ही मतदान कर सकता था । कार्यवाही में चारों राज्यों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति अनिवार्य थी । निर्णय बहुमत से लिए जाने की व्यवस्था की गई थी । मत – विभाजन बराबर होने पर अध्यक्ष को निर्णयक मत देने का अधिकार थआ । दोष सिद्धा करने तथा दंड देने के लिए न्यायाधिकरण के कम से कम नतीन सदस्यों की सहमति आवश्यक थी ।
न्यूरेम्बर्ग न्यायाधिकरण को यूरोपीय धुरी राज्यों के उन उच्चाधइकारियों , राजनेताओं और संगठनों के विरूद्ध कार्यवाही करने और दंड देने का अधइकार दिया गया था जो युद्धापराधों में से किसी एक में भी दोषी पाए जाएँ ।
  • objective territoriality principle -- कर्तृगत प्रादेशीयता सिद्धांत
दे. Territoriality.
  • occupation -- आधिपत्य
1. किसी राज्य द्वारा किसी स्वामी विहीन भूमि अथवा प्रदेश पर अपना प्रभावकारी अधिकार स्थापित करना । यह भूभाग प्राप्ति का एक प्रधान साधन माना जाता है ।
2. यदि कोई विजयी सेना किसी भूभाग पर अस्थआयी तौर पर अपना नियंत्रण स्थापित करती है तो ऐसी स्थिति को आधिपत्य कहते हैं । अधीनस्थ प्रदेश के निवासियों के पारस्परिक संबंध एवं उनके अधइकार तथा कर्तव्य अंतर्राष्ट्रीय विधइ द्वारा नियमित होते ह जिनका निरूपण सन् 1949 की चतुर्थ जेनेवा अभिसंधि में किया गया था ।
  • odious debt -- घृणिति ऋण
वे ऋण जो विशेषकर गृह – युद्ध में शासन द्वारा विद्रोहकारियों के दमन हेतु लिए गए हों । ऐसा समझा जाता है कि विद्रोह के सफल होने पर सफल विद्रोहकारी इस प्रकार के ऋणों की अदायगी के लिए बाध्य नहीं हैं अर्थात् उन्हें इन ऋणों का उत्तराधिकारी नहीं समझा जा सकता ।
  • opening of hostilities (=out break of war) -- युद्धारंभ
युद्ध अथवा युद्धात्मक कार्रवाइयों का प्रारंभ होना । हेग अभइसमय (1907) के अनुसार युद्ध का प्रारंभ विधिवत् चेतावनी देकर किया जाना चाहिए । दूसरे महायुद्ध से पूर्व तक इस नियम का सामान्यतः पालन हुआ परंतु 1939 में जर्मनी द्वारा पोलैंड पर ब ना किसी चेतावनी के आक्रमण किया गया और तब से अब तक प्रायः इस अभिसमय की अवहेलना होती रही है । इसका मुख्य कारण यह है कि 1928 के पश्चात् अग्र – आक्रमक युद्ध अवैध घोषित हो जाने से (जिसका अनुसमर्थन राष्ट्रसंघ के प्रसंविदा और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर मे भी मिलता है ) कोई राज्य युद्ध की घोषणा करके अग्र – आक्रमणकारी होने का दोष अपने ऊपरलेना नही चाहता ।
  • open sea -- खुला समुद्र, महासमुद्र
भूमंजल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जलाच्छादित है जिससे पाँच महासागरों का निर्माण होता है । प्रत्येक महासागर का वह भाग जो किसी तटीय राज्य -व शेष के भूभागीय समुद्र की सीमा में नहीं आता, खुला समुद्र अथा महासमुद्र कहलाता है । महासमुद्र में सभी राज्यों को नौपरिवहन, मत्स्य – हरण, अधाःसमुद्री तार बिछाने उसके ऊपरी आकाश पर उड़ानें भरने और वैज्ञानिक शोध का कार्यक्रम चलाने के अधइकार होते हैं । इन्हीं अधिकारों को सामूहिकरूप से समुद्री स्वतंत्रताएँ कहा जाता है ।
दे. high seas भी ।
  • operative provisions -- प्रवर्नकारी उपबंध
किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि अथवा समझौते की वे धाराएँ जिनमें संधि को लागू करने से संबंधित निर्देशों का उल्लेख होता है ।
  • opposability -- प्रतिबंध्याता, बाधनीयता
दे. Concept of opposability.
  • optional clause -- वैकल्पिक खंड, ऐच्छिक खंड
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के विधान के अनुच्छेद 36 के अंतर्गत सदस्य – राज्यों द्वारा अपने निर्धिरित विवादों को सुलझाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यालय का क्षेत्राधिकार स्वीकार करने की घोषणा जिसका निर्णय प्रायः पारस्परिकता के आधार पर किया जाता है । इस प्रकार न्यायालय का क्षेत्राधिकार अनिवार्य रूप से स्वीकार करना भी राज्यों की स्वेच्छा पर निर्भर करता है ।
दे. compulsory jurisdiction भी ।
  • Organization of African Unity (OAU) -- अफ्रीकी एकता संगठन
यह एक क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन है । इसकी स्थआपना सन् 1963 मे की गई थी । सभी स्वतंत्र अफ्रीकी राज्य इसके सदस्य हैं । इसका उद्देश्य अफ्रीकी देशों में एकता की भावना उत्पन्न करना, उनकी सुरक्षा के लिए विचार – विमर्श करना तथा उपनिवेशवाद का विरोध करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आपस में सहयोग और समन्वय करना है ।
इसके शासनाध्यक्षों की बैठक प्रतिवर्ष होती है । इसका एक सचिवालय भी है जो इसके मुख्यालय अदिस अबाबा में स्थित है ।
  • Organization of American States (OAS) -- अमेरिकी राज्य संगठन
यह एक क्षेत्रीय राजनीतिक संघटन है जिसकी स्थआपना सन् 1948 मे बगोटा में हुए अनेरिकी राज्यों के एक सम्मेलन द्वारा की गई थी । संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के गणराज्य इसके सदस्य हैं । इस संगठन का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र के राज्यों के पारस्परिक हितों के संरक्षणार्थ अनेक क्षेत्रों, विशेषकर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, तकनीकी आदि में समान नीतियों का निर्धारण करना है । इसके अतिरिक्त यह सदस्य – राज्यों मे पारस्परिक विवादों को शआंतिमय उपायों द्वारा तय किए जाने को भी प्रोत्साहित करता है । समय – समय पर यह संगठन पश्चिमी गोलार्द्ध की सुरक्षा संबंधी समस्याओं और नीतियों पर भी विचार – विमर्श करता है ।
इस अमेरिकी राज्य संगठन के छह मुख्य अंग हैं :-
1. अंतर – अमेरिकी सम्मेलन – जिसका अधिवेशन पाँच वर्ण में एक बार ह ता ह और जो संगठन की सामान्य नीतियाँ निर्धारित करता है ।
2. परिषद् – इसमें प्रत्येक सदस्य – राज्य का एक – एक प्रतिनिधि होता है और जो सम्मेलन द्वारा निर्धारित नीतियों के क्रायन्वयन का निरीक्षण करती ह ।
3. विदेश मंत्रियों की परामर्शदात्री बैठकें – ये आवश्यकतानुसार समय – समय पर आयोजित की जाती हैं ।
4. अखिल अमेरिकी संघ – यह संगठन के सचिवालय का कार्य करता है ।
5. विशिष्ट सम्मेलन – यह तकनीकी समस्याओं पर विचार करने के लिए समय – समय पर आयोजित किए जाते हैं ।
6. विशिष्ट अभिकरण – ये सामाजिक आर्थिक, मानवीय, वैज्ञानिक, तकनीकी आदि क्षएत्रों में सदस्य – राज्यों के मध्य सहयोग और समन्वय का आयोजन करते हैं ।
  • original members -- मूल सदस्य
किस संगठन, संधि, संघ अथवा संस्थआ के संस्थापक सदस्य । जैसे, किसी संधि को संपादित करने वाले हस्ताक्षरकर्ता राज्य या सानफ्रांसिसको सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले 50 राज्य ।
  • out break of war -- युद्धारंभ
दे. Oepning of hostilities.
  • outer space -- बाह्य अंतरिक्ष
किसी राज्य के आकाशवर्ती प्रदेश की सीमा से आगे का वायुमंजल जिसे अंतरिक्ष अथवा बाह्य अंतरिक्ष कहा जाता है । वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि क अनुसार अंतरिक्ष अधीनस्थ प्रदेश की आकाशवर्ती संप्रबुता से बाहर होता है । यह निर्धारित करन सरल नहीं है कि राज्य के आकाशवर्ती क्षेत्राधिकार का अंत कहां होता है और कहाँ से अंतरिक्ष की सीमा प्रारंभ होती है । एक लेखक के अनुसार पृथ्वी के वायुमंडल तक, जो पाँच सौ और अठारह हजार मील के बीच कही भी हो सकात ह, राज्य का क्षेत्राधिकार माना जाए और उसके आगे के नभमंजल को अंतरिक्ष । एक अन्य विचार यह है कि वायु अथवा गैस पर निर्भर यंत्रों की संभावित उड़ान की सीमा तक जो लगभग पच्चीस मील की ऊँचाई तक होती है, राज्य का आकाशवर्ती प्रदेश माना जाए और उससे आगे का बाह्य अंतरिक्ष ।
  • outlawry of war -- युद्ध – निषएध, युद्ध – वर्जन
इसाक, अर्थ है संप्रभु राज्यों का युद्ध का परंपरागत अधइकार न रहना ।सर्वप्रथम 1928 मे पेरिस मे अमेरिका और फ्रांस के बीच एक संधि हुई थी जिसे कैलाग – ब्रियाँ पैक्ट अथवा पेरिस पैक्ट भी कहते हैं । इसके अनुसार राज्यों ने राष्ट्रीय नीति के उपकरण के रूप मे युद् के अधिकार के परित्याग करने की घोषमा की थी । इससे पूर्व राज्ट्र संघ की प्रसंविदा मे युद्ध के अधइकार को सीमित करने की व्यवस्था की गी थी । संयुक्त राअटर के चार्टर में युद्धतो क्या, सभी प्रकार के बल प्रयोग अथवा बल प्रयोग की धमकी देने के अधिकार से भी राज्यों ने अपने आप को वंचित कर दिया है । इस प्रकार आज की अंतर्राष्ट्रीय विधी के अनुसार युदध पूर्णतया वर्जित हो गया है ।
  • pacific blockade -- शांतिकालीन नाकाबंदी
शांतिकाल में किसी राज्य द्वारा दूसेर राज्य को दंड देने के उद्देश्य से अथवा प्रतिशओध की भावना से अथवा उस पर दबाव ड़ालने के उद्देश्य से , उसके तटों और बंदरगाहों से जलपोतों के निकालने का मार्ग अवरूद्ध करना । कभी – कभी बाहर आने वाले और अंदर जाने वाले, दोनों ही प्रकार के जलपोतों को इस संक्रिया मे रोका जा सकता है । इस प्रकार की शआंतिकालीन नाकाबंदी राज्यों के मध्य पारस्परिक विवादों के समाधान के बलकारी उपायों में से एक उपाय समझी जाती है ।
  • pacific settlement -- शांतिपूर्ण समाधान
राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों का वार्तालाप अथवा अन्य शांतिमय उपायों से समाधान किया जाना । इन उपायों का उल्लख सब से पहले 1899 के हेग कन्वेंशन में किया गया था जिन्हें अब संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 33 में उद्धृत कर दिया गया है । ये उपाय वार्ता, सत्सेवा, मध्यस्थता, सुलह, विवाचन, न्यायिक प्रक्रिया और संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई के रूप में हो सकते हैं ।
  • pacta sunt servanda -- संधि का सद्भाव
यह लैटिन भाषा का एक पद है । इसका अर्थ यह है कि राज्यों को किसी भी संधि के अंतर्गत ग्रहण किए गए दायित्वों का सद्भावनापूर्वक पालन करना चाहिए । यह उनका वैधिक कर्तव्य है ।
यह सिद्धआंत संधि की व्यवस्था का मुख्य आधआर है और व्यापक अर्थ में इसे अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार भी माना जा सकता है । अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार भी यही है कि राज्यों द्वारा स्वीकार किए गए नियमों का उनके द्वारा निष्ठापूर्वक पालन काय जाना चाहिए ।
  • Panamma Canal -- पनामा नहर
स्वेज नहर की भाँति पनामा नहर भी अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौतों के अंतर्गत अंतर्राष्टरीय जलमार्ग बन गया है यद्यपि पनामा नहर और नहर क्षेत्र पर पनामा गणराज्य की संप्रभुता स्वीकार की जाती है । पनामा नहर का अंतर्राष्ट्रीकरण पनामा ग णराज्य और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य 1901 मे हुई एक द्विपक्षीय संधि के अंतर्गत किया गाय था जसे हे – पांसफोट कहते हैं । इसके अंतर्गत यह स्वीकार किया गया था कि पनामा नहर युद्ध और शआंतिकाल में सदैव सब राष्ट्रों के लिए खउली रहेगी और इसके प्रयोग में किसी राषअट्र के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और नहर की कभी भी नाकाबंदी नहीं की जाएगी और न ही नहर में कोई युद्धक कार्रवाई की जाएगी ।
1903 की एक अन्य संधि के अंतर्गत जिसे हे – वरिल्ला संधि कहते हैं, यह तय किया गया कि नहर के संचालन और नियंत्रण का अधिकार संयुक्त राय अमेरिका का होगा और नहर के आसपास का क्षेत्र जिसे नहर क्षेत्र कहते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास शाश्वत काल के लिए पट्टे पर होगा ।
इस संधि का अनुमोदन मार्च 1936 और जनवरी, 1955 मे हुए समझौतं में किया गया था परंतु नहर क्षेत्र र नहर संचालन पर संयुक्त राज्य नियंत्रण को लेकर पनामा गणराज्य में व्यापक असंतोष था । 1977 मे एक नई संधि पर हस्ताक्षर हुए हैं जिसके अनुसार पनामा नहर और नहर क्षेत्र पर से संयुक्त राज्य का पट्टा, नियंत्रण और प्रशासन पूर्णतः समाप्त हो जाएगा परंतु पनामा नहर की अंतर्रष्ट्रीय स्थिति और तटस्थता की स्थिति स्थायी रूप से बनी रहेगी ।
  • Panchsheel -- पंचशील
राज्यों के पारस्परिक संबंधों में शांतिपूर्ण सह – अस्तित्व और पारस्परिक सद्भाव एवं सहयोग क सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से प्रतिपादित अंतर्राष्ट्रीय आचरण के पाँच सिद्धांत जिनका निरूपण सर्वप्रथम भारत तथा जनवादी चीनी गणराज्य के बीच 29 अप्रैल 1954 को तिब्बत पर हुई संधि की प्रस्तावना में किया गया था ये सिद्धांत निम्नलिखित हैं :-
1. एक – दूसरे देश की भूभागीय अखंडता तथा प्रभुसत्ता का सम्मान ;
2. एक – दूसरे पर आक्रमण न करना ;
3. एक – दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना ;
4. समानता और परस्पर लाभ के लिए काम करना ; और
5. शांतिपूर् सिह – अस्तित्व ।
कालांतर मे ये सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय आचरण के मूल मानदंड बन गए ।
  • par in parem non habet imperium -- न स्वतुल्ये प्रभुत्वम्, समकक्षों मे परस्पर प्रभुसत्ता नहीं होती
एक संप्रभुशक्ति दूसरी संप्रभुशक्ति पर अपना अधिकार क्षेत्र लागू नहीं कर सकती । संप्रभु को कीसी अन्य राज्य के क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति का यह एक प्रमुख आधार है ।
  • Paris Pact -- पेरिस समझौता
दे. Kellog – Briand Pact.
  • partial armistice -- आंशिक युद्ध स्थगन समझौता
युद्धकारी राज्यों के बीच वह समझौता जिसेक अंतर्गत युदधात्मक कार्रवाईयों का समग्ररूप से निलंबन न होकर सैनिक कार्वाई के किसी भाग का अथवा रणस्थल के किसी क्षएत्र विशेष में सशस्त्र कार्रवाई का अस्थायी निलंबन होता है ।
  • partial neutrality -- शिक तटस्थता
यदि किसी राज्य के प्रदेश का केवल कुछ भाग तटस्थीकृत हो तो उस राज्य की तटस्थता को आंशिक तटस्थाता कहते हैं । उदाहरणार्थ यूनान के केवल दो द्वीप काफर्यू और पैक्सो तटस्थीकृत थे । ऐसी स्थिति में तटस्थता के कर्तव्यों का केवल तटस्थीकृत भाग के संदर्भ में पालन करना होता है ।
  • partial succession -- आंशिक उत्तराधिकार
उत्तराधिकारी राज्य द्वारा पूर्वाधिकारी राज्य के आंशिक क्षेत्र भूप्रदेश का स्वामित्व ग्रहण करना । आंशिक उत्तराधिकार तीन प्राकर से प्राप्त होता है – (1) जब एक राज्य का कुछ प्रदेश मुख्य भूमि से विद्रोह करके स्वतंत्र राज्य बनता है, जैसे 1776 में संयुक्त राज्य अमेरिका ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्रता की घोषणा करके तथा युद्ध करके स्वतंत्र राज्य बन गाय । (2) जब कोई राज्य कीसी दूसेर राज्य के कुछ हिस्से को विजय अथवा अर्पण द्वारा प्राप्त करता है जैसे 1847 में सं. रा. अमेरिका को कैलिफोर्निया का प्रदेश प्राप्त हुआ । (3) कोई प्रदेश किसी संघात्मक राज्य या संरक्षक राज्य के प्रभुत्व से स्वतंत्र होकर अलग राज्य बन जाए ।
  • particular internationa law -- विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि
विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय कानून
राष्ट्रों के आचारण की नियमित करने वाले ऐसे क़ानून जो सामान्य रूप से सभी राज्यों पर लागू न होकर किसी क्षेत्र विशेष अथा महाद्वीप विशेष के राज्यों के पारस्परिक संबंधों मे ही लागू होते हैं । उदाहरणतः अमेरिकी गणराज्यों के आपसी संबंधों मे लागू होने वाले कुछ विशिअट नियम, जैसे दूतावासों में शरणाधिकार इसका एक उदाहण हैं ।
  • passive nationality principle -- परोक्ष राष्ट्रिकता सिद्धांत
दे. active nationality principle.
  • peace keepting operations. -- शांतिस्थापन कार्रवाइयाँ
दे. U.N. peace keeping operations.
  • peace time blockade. -- शांतिकालीन नाकाबंदी
दे. pacific blockade.
  • peace treaty -- शांति संधि
ऐसी संधि जो युद्ध समाप्ति के लिए युद्धकारियों के मध्य संपादित की जाती है । प्रायः इस प्रकार की संधि के उपरांत ही युदध की विधिवत समाप्ति मानी जाती है । उदाहरणार्थ जापान के साथ सशस्त्र कार्रवाई सन् 1945 मे ही समाप्त हो गई थी परंतु जापान के साथ युद्ध का अंत सन् 1951 में हुई सानफ्रांसिसको संधि से ही माना जाता है । सन् 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध का अंत सन् 1972 मे संपादित शिमली समझौते से हुआ जो वैधिक दृष्टि से शांति संधि का ही एक उदाहण है ।
  • peace zpne -- शांति क्षेत्र
शांति क्षेत्र से तात्पर्य यह है कि राज्यों की पारस्परिक सहमति से किसी निर्धारित क्षएत्र को सैनिक गतिविधियों से पूर्णतया मुक्त कर दिया जाए जिसके फलस्वरूप वहाँ कोई सैनिक कार्यालय अथवा सैनिक अड्डा या सैनिक भंडार अथवा कोई सैनिक प्रतिष्ठान स्थापित नहीं किया जा सकता है । ऐसा बहुधा उस क्षेत्र को भावी युद्धों से अलग रखने के लिए किया जाता है ।
इस प्रकार के अनेक प्रयासों को सफलता भी प्राप्त हुई है जैसे एंटार्कटिका महाद्वीप को 1959 की संधि के अंतर्गत सैनिक गतिविदि रहित क्षेत्र बना दिया गाय है । चन्द्रमा की भी यही स्थिति है । हिन्द महासागर को शांति – क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव महासभा पारित कर चुकी है और इसे व्यावहारिक रूप देने के प्रायस हो रहे हैं ।
  • perfect neutrality -- पूर्ण तटस्थता
दे. absolute neutality
  • Permanent Court of Arbitration -- स्थायी विवाचन न्यायालय
इसीक स्थापना सन् 1899 के प्रथम हेग सम्मेलन में स्वीकृत एक अभइसमय के अंतर्गत की गई थी । इसका मुख्यालय हेग में है ।
वास्तव में यदि देखा जाए तो यह न तो स्थायी है और न कोई न्यायालय ।
वास्तविकता यह है कि प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता राज्य चार ऐसे व्यक्तियों का नामांकन कर सकता है, जो अंतर्राष्रीय विधि में दक्ष हो और इस प्रकार मनोनीत विधिवेत्ताओं के समूह में से आवश्यकता पड़ने पर विवाचकों अथवा पंचों की नियुक्त कर ली जाती है । जैसाकि एक लेखक ने लिखा है कि यह कोई न्यायालय नहीं है । यह केवल संभावित विवाचकों अथवा पंचों का समुदाय है । इस समुदाय के सदस्यों का एकमात्र कार्य यह है कि जब कभी विवाचन नायायदिकरण गठित किए जाने की आवश्यकता हो तब ये सेवा के लिए उपलब्ध रहें ।
प्रक्रिया यह है कि जब कभी कोई मामला इस न्यायालय के निर्णयार्थ रखा जाता है तब प्रत्येक पक्ष द्वारा दो पंच चुने जाते हैं जिनमें से केवल एक उसके द्वारा मनोनीत सदस्यों में से हो सकता है । इस प्रकार पंच नियुक्त होने के उपरांत ये सदस्य स्वयं अपने सरपंच का चुनाव करते हैं । पंच – निर्णय, जिसे पंचाट कहते हैं, बहुमत से दिया जाता है । स्टार्क ने लिखा है (1989) कि लघभग 20 मामले अभी तक इस प्रकार गठित न्यायाधिकरणों के समक्ष रखे जा चुके हैं जिनमें सन् 1911 का फ्रांस और ब्रिटेन के मध्य वीर सावरकर का भी मामला था ।
  • Permanent Court of International Justice -- स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
दिसंबर, 1920 मे स्थापित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जो अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटारे और सलाह देने के लिए गठित किया गया था । यह इस प्रकार का प्रथम न्यायालय था । इसमें 15 न्यायाधीश होते थे जिनका निर्वाचन राष्ट्र संघ की सभा द्वारा किया जाता था । इसका मुख्यालय हेग में था । द्वितीय महायुद्ध के प्रारंभ होने पर इस न्यायालय का अंत हो गाय । अपने कार्याकाल में (1922- 1939) इसने कुल मिलाकर 20 निर्णय और 27 परामर्शी मत दिए । इनमें लोटस के मामले और बिंबिल्डन मामले में दिए गए निर्णय सुविख्यात हैं ।
वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय वस्ततः इसी न्यायालय का उत्तराधइकारी और रूपांतरण माना जा सकात है ।
  • Permanent Mandates Commission -- स्थायी अधिदेश आयोग
राष्ट्र संघ द्वारा अपनाई गई अधिदेश पद्धति के अंतर्गत गठित वह आयोग जो अधइदेशक राज्यों से उनके अधइदेशाधीन भूभागों की प्रगति तथा विकास से संबंधित वार्षिक विवरण प्राप्त करता था और उनकी जाँच – पड़ताल करता था । अधिदेशों के संबंध में यह आयोग राष्ट्रसंघ का मुख्य सहायक एवं परामर्शदाता अंग था ।
  • permanent neutrality (=perpetual neutrality) -- स्थायी तटस्थता
विशेष संधियों द्वारा सदा के लिए तटस्थीकृत बना दिए गए राज्यों की थिति जैसे स्विटज़रलैंड की तटस्थता । इनके अधिकार और कर्तवव्य अन्य तटस्थ राजोयं जैसे होते हैं । अंतर केवल इतना है कि इनकी तटस्थता स्थायी है जबकि अन्य राज्य युद्ध छिड़ने पर तटस्थ रहने या युद्ध में सम्मिलित होने का निर्णय कर सकते हैं । इस प्रकार का निर्णय करने का अधिकार स्थायी तटस्थ राज्यों को नहीं होता ।
दे. neutralized state भी ।
  • perpetual neutrality -- स्थायी तटस्थता
दे. Permanent neutrality.
  • personal jurisdiction -- वैयक्तिक क्षेत्राधिकार
दे. Nationality theory of jurisdiction.
  • personal union -- वैयक्तित संघ
दो राज्यों का एक राज्याध्यक्ष या सम्राट के अधीन हो जाना – जैसे ग्रेट ब्रिटेन और हनोवर (1814 – 1837) एक ही राजा के अधीन रहे । इसी प्रकार नीदरलैंड़स और लक्ज़ेमबर्ग 1815 से 1890 तक और ब ल्जडियम एवं कांगो 1885 से 1909 तक एक ही राजा के अधीन रहे ।
बहुधा ऐसा प्राकृतिक और उत्तराधिकारि संबंधी क़ानूनों द्वारा हुआ है – जैसे ब्रिटेन मं सन् 1814 में रानी ऐन (निः संतान होने के कारम) के देहावसान पर उनके निकटतम रक्त – संबंधी जर्मनी में हनोवर की शासक के पुत्र जार्ज प्रथम को इंग्लैंड का राज्य सिंहासन भी उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ और इस प्रकार इंग्लैंड तथा हनोवर वैयक्तिक संघ बन गए ।
विद्वानों के मतानुसार इस प्रकार के संघ मे जुड़े राज्य अपना पृथक तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व और आंतरिक स्वायत्तता बनाए रखनते हैं । इसलिए स्टार्क का मत है कि वैयक्तिक संघ का कोई अंतर्राष्ट्रीय यक्तित्व नहीं होता ।
वर्तमान काल मे वैयक्तिक संघ का कोई दृष्टांत नही है ।
  • persona non grata -- अवांछित व्यक्ति, अस्वीकार्य व्यक्ति
वह राजनयिक प्रतिनिधि या अधइकारी जो ग्राही राज्य को स्वीकार्य नहीं होता । ऐसा होने पर राज्य प्रत्यायित करने वाले राज्य से उसे वापिस बाल लेने का अनुरोध कर सकता है और इसके लिए उसे की कारम बताने की आवश्यकता नही है ।
किसी राजनयिक प्रतिनिधि से असंतुष्ट अथवा रूष्ट अथवा क्रुद्ध होने की अवस्थआ में उसे यही अधिकतम दंड दिया जा सकता है । इसके अतिरिक्त सउसके विरूद्ध स्थानीय राज्य द्वारा कोई कार्रवाई करना या उसे कोई शरीरिक या मानसिक हानि प हुंचाना या कोई यातना अथवा दंड देना राष्ट्रों की विधि और व्यवहार के प्रतिकूल होगा ।
  • piracy -- जलदस्युता
प्रारंभ मे इसका आशय खुले समुद्र मे लूट – पाट करने या हत्या करने से था और ऐसा काम कनरे वाला संपूर्ण मानव – जाति का अपराधी माना जाता था । इस प्रकार के अपराध को अंतर्राष्ट्रीय विधि विरोधी अपराध माना जाता था और अपराधी को कोई भी राज्य दंड दे सकता था बशर्ते वह उसकी पकड़ में आ जाए । इस प्रकार दंड देते समय जलदस्यु की नागरिकता का प्रश्न नहीं खड़ा होता था । इस अपराध में लगे जलपोत की भी यही स्थिति थी ।
सन् 1982 के तृतीय समुद्र विधि अभइसमय के अंतर्गत जलपोतों के अतिरिक्त वायुयानों के कर्मियों अथवा यात्रोयों के द्वारा हिंसात्मक और लूट – पाट तथा अन्य अवैध कृत्यों को भी जलदस्युता की परिधि में सम्मिलित कर लिया गया है चाहे यह अपराध महासमुद्र में किसी जलपोत के यात्रियों अथवा उस पर लदे सामान के विरूद्ध किए गए हों या आकाश में किसी वायुयान के यात्रियों अथवा उस पर लदे सामान के विरूद्ध । स प्रकार की लूट – पा और हिंसा मे लगे जलपोत या वायुयान की संक्रियाओं में स्वेच्छआपीर्वक भागीदारी भी जलदस्युता की परिधि में आती है ।
जलदस्युता और विमान अपहरण की वस्तुतः समान प्रकृति है परंतु भेद केवल इतना है कि जलदस्युता प्रायः वैयक्तिक स्वार्थ से प्रेरित होती है जबकि विमान अपहरण में राजनीतिक प्रेरणा अथवा उद्देश्य होते हैं । यही कारण है कि वीमान अपहरम को मानवता के विरूद्ध अथवा अंतर्राष्रीय विधि के विरूद्ध अपराध घोषित करने में विधिवेत्ताओं को संकोच है ।
  • polar regions -- ध्रुवीय क्षेत्र
इनसे तात्पर्य है उत्तरी ध्रुवीय क्षएत्र एवं दक्षइणी ध्रुवीय क्षेत्र जिन्हें क्रमशः आर्कटिक और अंटार्कटिक महाद्वीप भी कहा जाता है । जलवायु एवं भौगोलिक दशाओं के कारम इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से मानवीय बस्तियों की स्थापना असंभव है । अतः इन पर स्वामित्व का दावा, आधिपत्य अथवा वास्तविक सत्ता प्रदर्शन के आधार पर नही किया जा सकता । आर्कटिक क्षेत्र पर सोवियत संघ और कनाडा ने और अंटार्कटिक क्षेत्र पर सात देशों (अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, चिली, फ्रांस, न्यूजीलैंड और नार्वे) ने सेक्टर सिद्धांत के आधार पर अपने राष्ट्रीय दावे किए हैं । इन देशों के राष्ट्रीय दावों का आधार यह है कि ये देश ध्रुवीय क्षेत्रों की सीमाओं से निकटतम दूरी पर और उसकी दिशा में स्थिति हैं ।
इन राष्ट्रीय दावों को अंतर्राष्ट्रीय विधि कोई मान्यता नीहं देती और इनसे स्वतंत्रि अंटार्कटिक क्षेत्र के अन्वेषण और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संधि पर 1 दिसंबर, 1959 को हस्ताक्षर हुए हैं । इसके पक्षकार राष्ट्रीय दावे वाले सात्रों राज्यों के अतिरिक्त बेल्जियम, जापान, दक्षिण अफ्रीका,सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका भी हैं । इस संधि से राट्रीय दावे असंगत हो गए हैं और अंटार्कटिक क्षेत्र वस्तुः अतर्राष्ट्रीय क्षेत्र बन गया है ।
  • political asylum -- राजनीतिक शरण
अपने मत या विश्वासों के कारम अथवा राज्य विरोधी कार्य करने के कारण तथा अत्पीड़न के डर से किसी व्य्कति का किसी अन्य राज्य में भाग जाना और वहाँ की सरकार द्वारा उसे आ(य दिया जाना । ऐसा व्यक्ति कभी – कभी इस प रकार का आश्रय अपने ही देश में स्थित किसी विदेशी दूतावास में भी ले सकता है । यद्यपि अंतर्राष्ट्यविधि दूतावासों में शरण लेने के अधिकार को सामान्यतः स्वीकृत नहीं है क्योंकि सामान्यतया यह स्वीकार किया जाता है कि आ(य देने का अधइकार प्रादेशिक संप्रभुता का एक गुण है । यदि आ(य किसी दूतावास या युद्धपोत या वाणिज्य दूतावास या अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में लिया गया है तो वह प्रदेश बाह्य होगा ।
  • positivist school -- यथार्थवादी संप्रदाय
इस मत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि एक सहमतिपरक विधि है । इसका अर्थ यह है कि इस विधि के नियम राज्यों की पारस्परिक सहमति से स्वीकार किए जाते हैं और जिन नियमों को राज्यों ने स्वीकार नहीं किया है, वे उन पर बाध्यकारी नहीं हैं ।
व्यवहार में सहमति का अर्थ है राज्यों की सामान्य सहमति न कि प्रत्येक नियम के लिए प्रत्येक राज्य की हमति
इसके समर्थकों में रिचर् जाउक, बिंकर शॉक, मॉर, सैमुअल राशेल और मार्टिस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
  • postliminium -- परावर्तन नियम, युद्ध पूर्व अव स्था का नियम
दे. Jus postliminii.
  • prermature recognition -- समयपूर्व मान्यता
किसी ऐसी राजनीतिक इकाई अथवा शासन – संगठन को मान्यता दिया जाना जो राज्य अथा शासन के रूप में निश्चित रूप मे स्थापित न हो । प्रायः राजनीतिक कारणों से ऐसा किया जा सकता है । अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से ऐसी मान्यता दो कारमों से अनुचित और अवैध है :-
1. यह मान्यता देने के अधिकारि का दुरूपयोग है क्योंकि इसका अरथ है कि कसी ऐसी राजनीतिक इकाई या शासन – संगठन को मान्यता देना जिसे वैधिक दृष्टि से राज्य अथवा सरकार नहीं कहा जा सकता और
2. यह उस राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है जो विद्रोहकारियों का दमन करने में संघर्षरत है और संघर्ष अभी निर्णयक अवस्था मे नहीं पहुँचा है ।
  • prescription -- चिरभोग
किसी राज्य द्वारा अन्य राज्य के भू – प्रदेश पर बहुत अधइक समय से निरंतर, निर्बाध तथा प्रभावी रूप से वस्तुतः प्रभुसत्ता स्थापित और बनाए रखने के फलस्वरूप उस भू – प्रदेश पर प्रतिकूल कब्जा कायम कर लेना चाहे उसका आधिपत्य मूलरूप से अवैध रहा हो या यह ज्ञात न हो कि यह आधिपत्य कैसे प्रारंभ हुआ । वास्तव में मुख्य तथ्य यह है कि :-
1. आधिपत्य दीर्घकाल तक बना रहा हो और
2. इस अवैध आधिपत्य का वैध स्वामी या अन्य किसी राज्य ने विरोध न किया हो और न ही उक्त प्रदेश की प्राप्ति के लिए कोई प्रभावकारी उपाय किया हो ।
  • principle of equality of states -- राज्यों की समानता का सिद्धांत
मूलरूप से अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय राज्य हैं । इस समय संसार में लगभग 180 स्वतंत्र और संप्रभुतासंपन्न राज्य हैं । क्षेत्रफल, जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों सैनिक शक्ति और आऱ्तिक संपन्नता की दृष्टि से इन राज्यों के बीच बहुत अंतर है । प रंतु वैधिक दृष्टि से अर्थात् अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत प्राप्त होने वाले अधिकारों और कर्तव्यों की दृष्टि से सभी राज्य एक – दूसरे के समान माने जाते है । इस स्थित को राज्यों की समानता का सिद्धांत कहा जाता है । समानता प्रत्येक राज्य के मूल अधइकारों में से एक अधिकार है और राज्यों की समानता का सिद्धांत वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक मूल सिद्धांत एवं वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का एक मूल आधार माना जा सकता है । इसका एक प्रमाण राष्ट्र संघ की सभा और संयुक्त राष्ट्रर संघ की महासभा का संगठन है । यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्र संघ की सभा में प्रतेक राज्य को एक वोट देने का अधिकार था और संयुक्त राष्ट्र संघ की महासबा में भी यही स्थिति है ।
  • principle of good faith -- सद्भआव नियम
राज्यों द्वारा अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों विशेषकर संधिगत दायित्वों और अंतर्राष्ट्रीय विधि और संयुक्त राष्ट्र चार्टर से उत्पन्न दायित्वों को यथासंभव सद्भावनापूर्वक पूरा करन का निश्चय । संधि के संदर्भ में इस नियम को संधि का सद्भाव भी कहते हैं ।
  • principle of non refoulement -- अवापसी नियम
वर्तमान काल में यह धारणा प्रबल ह ई है कि कुछ दशाओं में उन शरणार्थियों को जो राजनीतिक कारणों से अपना देश छोड़ने और दसूरे देश में शरण लेने को विवश हुए हों, उन्हें यह दूसरा देश सीमा पर ही रोक कर लौटा न दे बल्कि स्थायी रूप से शरण देने के प्रश्न पर निर्णय करने तक उन्हें एक प्रकार की अस्थायी शरण प्रदान कर दे । अतः सीमा पर से ही वापस न भेज देने के दायित्व में एक स्थआयी शरणाधिकार निहित है । परंतु यह धारणा अभी तक अंतर्राष्ट्रीय विधि के किसी सुनिश्चित नियम के रूप में स्वीकृत नहीं की जा सकता ।
  • principle of speciality -- विशिष्टता का सिद्धांत
प्रत्यर्पण की माँग करने वाले राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह अपराधी पर केवल उसी विशिष्ट अपराध के लिए मुकदमा चलाएगा जिस अपराध के लिए उसका प्रत्यर्पम किया गया है, किसी अन्य अपराध के लिए नहीं . प्रायः इस सिद्धांत का उल्लेख प्रत्यर्पण संधियों में कर दिया जाता है ।
कभी – कभी ऐसा भी होता है कि एक ही अपराध विभइन्न देशों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, विशिष्टता के नियम के अनुपालन के लिए अपराध का नाम निर्णायक नहीं है बल्कि उसीक प्रकृति और उसका सार निर्णायक होता ह ।
  • prisoners of war -- युद्धबंदी
युद्ध की संक्रिया में शत्रु पक्ष की सेना तथा युद्ध संचालन से संबंधित अन्य व्यक्ति जो युद्धकारी द्वारा बंदी बना लिए जाए, युद्धबंदी कहलाते हैं ।
युद्धबंदियों के साथ बर्ताव किए जाने से संबंधित नियम सर्वप्रथम सन् 1899 के हेग भइसमय में अपनाए गे थे जिनका पुनरीक्षण सन् 1907 के दूसरे हेग सम्मेलन सन् 1929 के जेनेवा सम्मेलन और फिर सन् 1949 के जेनेवा सम्मेलन में किया गया था ।
सन् 1949 के जेनेवा अभइसमय में “युद्धबंदी कौन है” इसकी विस्तृत व्याख्या की गई ह । इसके अनुसार न केवल शत्रु पक्ष की सेना के सदस्य बल्कि सेना के साथ रहने वाले असैनिक कर्मी जैसे संवाददाता, ठेकेदार (मिक सेवक आदि भी शत्रु के हाथ में पड़ने पर युदधबंदी कहलाते हैं । इस अभिसमय में युद्धबंदियों के साथ व्यवहार किए जाने से संबंधित नियमों की विस्तृत व्याख्या की गई है । इन नियमों का सार यह है कि प्रत्येक दशा मे युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए, उनके साथ कोई ऐसा अपचार नहीं किया जाना चाहिए जो उनके जीवन, स्वास्थ्य या सम्मान के लिए हानिकारक हो और न ही उनके विरूद्ध प्रतिशओधात्मक कार्य किए जाने चाहिए । उनके व्यक्तित्व और मान – मर्यादा का आदार किया जाना चाहिए और उनके खाने – पीने कपड़े और आवश्यक चिकित्सा का निःशुल्क प्रबंध बंदी बनाने वाले राज्य को करना चाहिए ।
  • privateering -- जल दस्युता
दे. Piracy.
  • private internationa law (=conflict of laws) -- वैयक्तित अंतर्राष्ट्रीय विधि, वैयक्तिक अंतर्राष्ट्रीय कानून
किसी राज्य में उत्पन्न ऐसे विवाद जिनका संबंध राज्यों से न होकर व्यक्तियों से हो और विवाद से संबंधित इन व्यक्तियों के राष्ट्रीय या राजनीतिक इकाइयों के कानूनों में भिन्नता पाई जाती हो । ऐसी स्थितियों में लागू होने वाले नियमों के समूह को “वैयक्तिक अंतर्राष्ट्रीय” विधि कहते हैं ।
  • prize -- नौजित माल
समुद्री युद्ध में नौसैनिक बेड़े द्वारा हस्तगत की गई शत्रुसंपत्ति जैसे, जलपोत, युद्ध सामग्री तथा अन्य माल । तटस्थ जलपोतों से पकड़े गए विनिषिद्ध माल को भी नौजित माल कहते हैं । अब वायुयानों से पकड़े गए शत्रु माल को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है ।
  • prize court -- नौजित माल न्यायालय
ये विशेष न्यायालय होते हैं जिनकी स्थापना युद्ध – काल में की जाती है । इनका उद्देश्य नौसैनिक युदध में पकड़े गे तटस्थ जल – पोतों की गतिविधियों और उन पर लदे माल की वैधता निर्धारित करना होता है । वर्तमान काल में वायुयान और उन पर पाया जाने वाला माल भी इन न्यायालयों के क्षेत्राधिकार में माना जाता है अर्थात् नौजित माल न्यायालय जलपोतों एवं विमानों तथा इन पर लदे सामान के परिग्रहण की वैधता निर्धारित करता है ।
ये न्यायालय राष्ट्रीय न्यायालय होते हैं, परंतु निर्णय अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार ही किए जाते हैं ।
  • prize law -- नौजित माल विधि
युद्ध -व धि का वह भाग जिसका पालन नौजित माल न्यायालय द्वारा किया जाता है । यह कोई संहिताबद्ध विधि नहीं है यद्यपि सन् 1909 के लंदन सम्मेलन में इस दिशा में प्रयास किया गया था । सम्मेलन के अन्त में जो घोषणा – पत्र जारी किया गया वह यद्यपि राज्यों की संपुष्टि प्राप्त नहीं कर सका, किंतु फिर भी वह राज्य – व्यवहार का प्रामाणिक संकलन माना जा सकता है । वास्तव में नौजित माल विधि को विकसित करने का श्रेय अमेरिका और ब्रिटेन के न्यायाधीशों को है जिनमें लार्ड स्टोवेल तथा सर सेम्युअल इवांस के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।
  • process -v erbal -- प्रामाणिक विवरण
इस पद का मूल अर्थ है किसी राजनयिक सम्मेलन की कार्यवाही और उसमें लिए गए निर्णायों का आधिकारिक संक्षिप्त विवरण । आजकल इसके अंतर्गत उन शर्तो आदि का भी उल्लेख काय जाता है जिनके आधार पर कोई भावी समझौता किया जाना है । वास्तव में यह राजनयिक वार्ताओं का लिखित विवरण होता है किंतु राज्यों द्वारा इसके अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होती ।
  • protective principle -- संरक्षण सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार क्षएत्राधिकार का दावा राज्य के मार्मिक हितों के संरक्षण के ध्येय के आधार पर किया जा सकता है अर्थात् उन स्थितियों में जहाँ राज्य के मार्मिक हित आहत होते हों परंतु अपारधी न तो राज्य का नागरिक हो और न ह राज्य के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार में हो तो उन परिस्थितियों मे अपराधी को दंड देने के लिए इस सिदधांत का प्रयोग किया जा सकता है । उदाहरणार्थ फ्रांस की दंसंहिता विदेशियों द्वारा फ्रांसीसी प्रादेशिक सीमा के बाहर फ्रांस की सुरक्षा के विपरीत अपराध करने, जाली राजकीय मोहर बनाने अथवा जाली फ्रांसीस सिक्के अथवा नोट बनाने के लिए फअरांसीसी कानून के अनुसार दंडित करने की व्यवस्था करती है, यदि अपराधी फ्रांसीसी सरकार के हाथों में आ जाए ।
सन् 1965 मे यूरोपीय राज्यों ने एक समझौते के अंतर्गत प्रादेशिक समुद्र की सीमाओं से पर स्थित जलपोतों पर से रेडियो – प्रसारण को रोकने के लिए तटवर्ती क्षेत्राधिकार की व्यवस्था स्वीकार की थी । इसे भी संरक्षण सिद्धांत का एक व्यावहारिक उपाय माना जा सकता है क्योंकि इस प्रकार के प्रसारण प्रायः तटवर्ती राज्य में असंतोष, विप्लव और विद्रोह भड़काने का प्रायस करते ह ए पाए गए थे ।
  • protectorate -- संरक्षित राज्य
ऐसा राज्य ज स्वयं किसी संधि के अंतर्गत किसी अन्य शक्तिशाली राज्य के संरक्षण में आ जाए । इस प्रकार की संधि के फलस्वरूप संरक्षित राज्य के अंतर्राष्ट्रीय एवं विदेशी मामलों पर संरक्षक राज्य का पूर्णाधिकार व नियंत्रण हो जाता है, परंतु आंतरिक मामलों में उसकी स्वायत्ता बनी रहती है । संरक्षक राज्य द्वारा की गई संधियाँ संरक्षित राज्य पर स्वतः लागू नहीं होती और न ही संरक्षक राज्य के युद्थ में संरक्षित राज्य स्वतः युद्धकारी बन जाता है । सके लिए विशेष रूप से व्यवस्था या घोषणा करना आवश्यक होता है ।
संरक्षित राज्य के राज्याध्यक्ष को ग्रेट – ब्रिटेन के न्यायालयों ने पूर्ण संप्रभुतासंपन्न राज्याध्यक्षों के समान स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माना है ।
  • protocol -- उपसंधि, पूर्वसंधि
उपसंदि या पूर्वसंधि एक ऐसे विवरण – पत्र को कहा जाता है जो कि राजनयिक वार्ताओं के ब्यौरे के रूप मे रखा जाता है और जिसके आधार पर आगे चलकर कोई संधि की जा सकती है । यह संधि से कम औपचारिक हैम ता ह जिस पर साधारणतया शासनाध्यक्ष हस्ताक्षर नहीं करते । यह निम्नलिखित प्रलेखों की ओर संकेत करता है :-
1. किसी संधि का सहायक प्रपत्र जिस पर वार्ताकार ही हस्ताक्षर करते ह । इसमें साधारणतया आनुषंगिक विषयों का समावेश होता है जिसे किसी अभिसंधि की विशिष्ट धाराओं की व्याख्या, विशेष महत्व रखने वाले सहायक उपबंध, कुछ ऐसी औपचारिक धाराएँ जिनका समावेश अभिसंधि में नहीं किया जाता, हस्ताक्षरकर्त्ता राज्यों की कोई विशिष्ट शर्तों राज्यों द्वारा अभइसमय का समर्थन इसका समर्थन माना जाता है ।
2. अभिसंधि का आनुषंगिक प्रपत्र जिसका विषय अभिसंधि के विषय से पृथक और स्वतंत्र होता है और जिसका अनुसमर्थन पृथक रूप से किया जाता है ।
3. यह संधि का ही पर्यायवैची है जैसे सन् 1925 का जेनेवा प्रोटोकोल ।
4. कुछ विषयों पर हुई मौखिक सहमतियों का विवरण – पत्र ।
  • provisional government -- अस्थायी सरकार
राज्य व्यवहार में अनेक ऐसे दृष्टांत मिलते हैं जिनमें राज्य के विद्रोहकारी तत्वों या संगठनों ने स्वयं को वैध सरकार से स्वतंत्र घोषित करके राज्य का वास्तविक शासक होने का दावा काय और किसी अन्य देश की सहमति से उस देश में अपना मुख्यालय स्थापित करने की घोषणा की । कभी – कभी ऐसी सरकार को अस्थायी सरकार कहा जाता है । परंतु अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से यह कोई सुनिश्चित या स्वीकृत स्थिति नहीं है ।
  • psychological warfare -- मनोवैज्ञानिक युद्ध
युद्ध मं युद्धकारी अपने शत्रु का मनोबल तोड़ने के लिए प्रायः अनेक उपायों का प्रयोग करते हैं, जिनका लक्ष्य शत्रु – राज्य की सेना और जनता पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालना होता है । इन उपयों में झूठा प्रचार तता आंतक एवं भय फैलाने वाली क्रियाएँ शामिल हैं । इन उपायों के प्रयोग को सामूहिक रूप से मनोवैज्ञानिक युद्ध कहा जा सकता है ।
  • public international law -- सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून
सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि
प्रभुतासंपन्नि राज्यों के पारस्परिक संबंधों में लागू होने वाली नियमावली ।
दे. International law भी ।
  • public vessel -- सार्वजनिक जलपोत, सार्वजनिक पोत
वे जलपोत जो राज्य के स्वामित्व अथवा नियंत्रण में होते हैं, जैसे युद्धपोत, डाक ले जाने वाले पोत, सीमा – शुल्क विभाग के पोत तता सार्वजनिक व्यापारिक पोत ।
युद्धपोतों को अन्य राज्यों के भूभागीय समुद्र में भी तटवर्ती राज्य के क्षएत्राधिकार से उन्मुक्त माना जाता है ।
युद्धकाल में तटस्था राज्यों के युद्धपोत युदधकारी अधिकारों से उन्मुक्त होते हैं अर्थात् न उन्हें रोका जा सकता है और न उनकी तलाशी ली जा सकती है ।
अन्य सार्वजनिक जलपोत भी महासमुद्रों में अपने ध्वज राज्य के प्रदेश के ही भाग माने जाते हैं । परंतु अन्य राज्यों के भूभागीय समुद्रि में उनको प्राप्त होने वाली उन्मुक्तियाँ युद्धपोतों के समरूप नही है और सन् 1926 में पारित ब्रुसेल्स अभिसमय के अंतर्गत यह स्पष्ट कर दिया गया है कि विदेशी बंदरगाहों और भूभागीय समुद्र में उनकी स्थिति निजी वणिक पोतों के समरूप होंगी ।
  • punitive blockade -- दंडात्मक नाकाबंदी
किसी राज्य के विधि विरोधी कृत्यों अथवा वैधिक दायित्वों का निर्वाह न करने की स्थिति में क्षतिग्रस्त राज्य द्वारा प्रत्याघात स्वरूप उसके तट अथवा बंदरगाहों को अवरूद्ध करने की क्रिया जिससे वहाँ से जलपोतों का आवागमन न हो सके ।
इस प्रकार नाकेबंदी के अनेक दृष्टांत 19 वीं शताब्दी में मिलेत हं परंतु अब प्रायः इसका चलन नहीं हैं ।
  • punitive intervention -- दंडात्मक हस्तक्षेप
किसी राज्य क विधि – विरोधी कृत्यों अथवा वैधिक दायित्वों का निर्वाहि न करने की स्थिति में क्षतिग्रस्त राज्य द्वारा प्रत्याघात अथा प्रतिशओधस्वरूप उसके आंतरिक अथवा बाह्य मामलों में किया गया हस्तक्षेप जिसका लक्ष्य उसे अवैध कार्यों को रोक देने और अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए विवश करना होता है ।
दे.intervention भी ।
  • quarantine -- संगरोध
सन् 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा नाभिकीय अस्त्र – शस्त्र भेजे जाने का इस आधार पर विरोध किया कि ये अस्त्र – शस्त्र अमेरिकी महाद्वीप की सुरक्षा के लिए खतरनाक हैं, सोवियत संघ इनको भेजना बंद करे और जो भेजे जा चुके हैं उन्हें वहाँ से हटा ले । सोवियत संघ से कोई संतोषजंनक आश्वासन न मिलने पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने यह घोषमा की कि वह क्यूबा जाने वाले प्रत्येक सोवियत पोत की तलाशी लेगा और नाभिकीय अस्त्र पाए जाने पर उन्हें उतार लेगा । इस घटना को क्यूबा का संगरोध कहा गया है, क्योंकि यह परंपरागत नाकेबंदी से भिन्न था । इसका उद्देश्य क्यूबा के जलपोतों के अपने बंदरगाहों में आवागमन पर रोक लगाना नहीं था । इसका उद्देश्य केवल सोवियत जलपोतों को क्यूबा में प्रक्षेपणास्त्र तथा अन्य आक्रामक शस्त्र ले जाने से रोकना था । यह इस प्रकार की पहली घटना ती। वैधिक दृष्टि से कोई संकट उत्पन्न नहीं हुआ क्योंकि संयुक्त राज्य अनमेरिका की धमकी प्रभावी सिद्ध हुई और सोवियत संघ ने क्यूबा को नाभिकीय आक्रामक अस्त्र – शस्त्र देना बंद कर दिया ।
  • quasi – neutrality -- तटस्थवत्ता, ताटस्थ्यतुल्यता
अभी तक यह पद अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक सुस्थापित अथवा सुनिश्चित पद नहीं कहा जा सकता है। कुछ विद्वानों ने उन परिस्थितियों में ऐसे राज्यों की वैधिक स्थिति के लिए इस विशेषण का प्रयोग किया है जब संयुक्तराष्ट्र संघ शांति बनाए रखने के लिए कोई सशस्त्र कार्रवाई कर रहा हो और जो राज्य इस सशस्त्र कार्रवाई में बाग ने ले रहे हो । ऐसे राज्यों की स्थिति को तटस्थता की स्थिति न कहकर तटस्थवत्ताय ताटस्थ्यतुल्यता की स्थिति कहा जा सकता है । इनको तटस्थ इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई भी कार्रवाई सभी राज्यों की ओर से की जाती है चाहे न्हें सैनिक कार्रवाई में भाग लेने के लिए न भी कहा जाए । इसके अतिरिक्त उन्हें सैनिक सहायता के अतिरिक्त अन्य प्रकार से संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाई में सहायता देने के लिए कहा जा सकता है – जैसे, जलपोतों और वायुयानों को तेल देने के लिए, अपने प्रदेश से सैनिक यानों एवं सैनिक टुकड़ियों का पारगमन करने के लिए, आदि ।
वास्तव में तटस्थवत्ता या ताटस्थ्यतुल्यता गैर युद्धकारिता के समरूप हैं । गैर – युद्धकारिता उस राज्य की स्थिति को कहते हैं, जो युद्ध छिड़ने पर यद्यपि किसी भी पक्ष की ओर से भागीदार नहीं होता फिर भी दोनों पक्षों में से किसी एक को नैतिक वं भौतिक सहायता देता है । यह स्थिति दोनों महायुद्धों के प्रारंभिक चरणों में संयुक्त राज्य अमेरिका की थी ।
दे.non – belligerency भी ।
  • ratification -- अनुसमर्थन, संपुष्टि
यह संघि संपादन की प्रक्रिया में उसकी अंतिम कार्यवाही है । यद्यपि कुछ परिस्थितियों में यह मात्र एक औपचारिकता रह जाती है, लेकिन यह एक आवश्यक औपचारिकता हैं ।
संधि पर हस्ताक्षर हो जाने के उपरांत हस्ताक्षरकर्ता राज्यों की अपनी – अपनी संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसार सक्षम अंगों द्वारा उसका अनुमोदन किया जाना आवश्यक है । इसे संधिका अनुसमर्थन या संपुष्टि कहते हैं ।
सन् 1969 में एक मामले में अपने निर्णय में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संधि केवल अनुसमर्थन प्राप्त के उपरांत ही संबंधित राज्य के लिए बाध्यकारी होती है, मात्र उस पर हस्ताक्षर से नहीं ।
  • real union -- वास्तविक संघ
दो या दो से अधइक राज्यों का ऐसा संघ जो अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से एक इकाई अथवा वैधिक व्यक्ति बन जाए और जिनका अलग – अलग अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व समाप्त हो जाए, यद्यपि आंतरिक मामलों में जिनकी स्वायत्तता बनी रहे । उदाहरणार्थ 1814 – 1905 तक स्वीडन और नार्वे तथा प्रथम महायुद्ध की समाप्ति तक ऑस्ट्रिया और हंगरी के संघ इस प्रकार के राज्य के उदाहरण हैं ।
वैयक्तिक संघ और वास्तविक संघ मे मुख्य भेद यही है कि वैयक्तिक संघ का कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व नीहं होता जबकि वास्तविक संघ अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति माना जाता है ।
  • rebus sic stantibus -- परिस्थितियों में मूलभूत परिवर्तन
अंतर्राष्ट्रीय विधि और उसके व्यवहार में यह स्वीकार किया जाता है कि संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता राज्य संधि के पुनरीक्षण अथा उसके उन्मूलन अथवा खंडन की माँग इस आधार पर कर सकता है कि उन परिस्थितियों में आमूल – चूल परिवर्तन हो गाय ह जो संधि संपादन के समय उसकी आवश्यक दशाएँ थीं और इस परिवर्तन का पूर्वाभास संधि के संपादन के समय नहीं हो सकता था ।
यद्यपि यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक सुस्थापित सिद्धआंत है और सन् 1969 के वियना अभिसमय में भी इसे स्थान दिया गया है परंतु विद्वानों का मत है कि इस सिद्धांत की व्याख्या अत्यंत सीमित अर्थों में की जानी चाहिए ।
यह उल्लेखनीय है कि अभी तक किसी विवाद में किसी न्यायालय द्वारा इस तर्क को स्वीकार नहीं किया गया है ।
  • recall -- प्रत्याह्वान
किन्हीं कारमों से प्रत्यायितकर्ता राज्य द्वारा अपने राजदूत को वापिस बुला लेना ।
जिस राज्य में वह प्रत्यायित है, उसकी सरकार द्वारा उसे अवांछनीय व्यक्ति घोषित कर दिए जाने पर भी प्रत्यायितकर्ता राज्य उसे वापिस बुला सकता है ।
  • reciprocity -- पारस्परिकता
अंतर्राष्ट्रीय विधि मूलतः स्वतंत्र और समान राज्यों के पारस्परिक संसर्ग में लागू होने वाले नियमों का समूह है । प्रायः इन नियमों की बाध्यकारिता के पीछे पारस्परिक हित अथवा पारस्परिक उपयोगिता अथवा पारस्परिक जोखिम का भाव होता है । विशेषकर युद्ध -व धि के अनेक नियमों का पालन इसी आधार पर होता है । इसे पारस्परिकता का सिद्धांत कहते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अंतर्गत जो राज्य न्यायालय का अनिवार्य क्षेत्राधिकार स्वीकार करते हैं वे ऐसा प्रायः पारस्परिकता के आधार पर ही करते हैं ।
इस प्रकार पारस्परिकता अंतर्राष्ट्रीय विधि में एक महत्वपूर्ण वैधिक अवधारणा बन गई है ।
  • recognition -- मान्यता
मन्यता का शाब्दिक अर्थ स्वीकृति अथवा अनुमोदन है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के संदर्भ में इसका व्यापक अर्थ किसी इकाई, संगठन,संधि, परिवर्तन या परिस्थिति की स्वीकृति है ।
परंतु संकुचित अर्थों में मान्यता का अर्थ किसी नवीन राज्य अथवा किसी राज्य में सत्ता परिवर्तन के फलस्वरूप सत्तारूढ़ हुई किसी नई सरकार को अन्य राज्यों द्वरा स्वीकृति देना है ।
राज्य और सरकार के अतिरिक्त मान्यता के दो और विषय हैं युद्धकारिता और विद्रोहकारिता ।
इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय विधि में मान्यता का अर्थ स्वीकृति है और स्वीकृति के विषय हो सकते हैं राज्य, सरकार, युद्धकारिता अथवा विद्रोहकारिता ।
  • recognition of an absentee government (=recognition of government – in – exile) -- अन्यत्रवासी सरकार को मान्यता निर्वासित सरकार को मान्यता
दोनों महायुद्धों में शत्रु के आक्रमण होने पर अनेक यूरोपीय देशों की सरकारें अन्य देशों में शरण लेने को विवश हुई । स्थानीय राज्यं द्वारा इन्हें अपने – अपने देशों की वैध सरकारों के रूप में मान्यता दी गई । ऐसी सरकारों की मान्यता को “अन्यत्रवासी सरकारों की मान्यता” कहा जात ह क्योंकि ये सरकारें अपने देशों की भूमि पर विद्यमान नहीं थीं और न ही अनपे देशों के शासन पर इनका कोई तथ्येन नियंत्रण था ।
  • recognition of belligerency -- युद्धकारिता की मान्यता
किसी देश की स्थापित सरकार के विरूद्ध संगठित, व्यापक एवं सशस्त्र विद्रोह होने की अवस्था में विद्रोहकारियों को, कुछ दशाएँ होने पर, अन्य देशों द्वारा युद्धकारियों के रूप में मान्यता दी जा सकती है जिसके फलस्वरूप इन्हें स्वतंत्र राज्यों के समान युद्धकारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं । ये दशाएँ हैं :-
(1) विद्रोहकारियों का देश के एक बड़े भाग पर वास्तविक नियंत्रण होना ;
(2) विद्रोहकारियों का क सेनाधिपति की अधीनता में सुव्यवस्थित रूप से संगठित होना ;
(3) इनके द्वारा युद्ध के नियमों का पालन किया जाना ; तता
ऐसी दशाएँ उत्पन्न हो जाना कि विदेशों के लिए विद्रोहकारियों के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना आवश्यक हो जाए ।
इस प्रकार की मान्यता से तीनों पक्षों अर्थात् स्थापित सरकार, विद्रोहियों और मान्यता प्रदान कनरे वाले राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत कुछ अधिकार मिल जाते ह , जैसे – इस मान्यता से युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को वस्तुतः (defacto) अंतर्राष्ट्रीय वैधिक स्थिति प्राप्त हो जाती है और वे विनिषिद्ध माल के लिए जहाजों की तलाशई लेकर ऐसे माल को ज़ब्त कर सकते हैं ।किंतु इस प्रकार की मान्यता बढ़ा जटिल कार्य है और तीसरे राज्यों को बड़ी समझबूझ के साथ यह पग ठाना चाहिए क्योकि विद्रोह को दबाने के कार्य में लगी सरकार ऐसी मान्यता को असामयिक, अनुचित, हस्तक्षेपकारी और शत्रुतापूर्म समझ सकत ह है ।
  • recognition of government -- सरकार को मान्यता
सामान्य रूप से अथवा संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा सरकार मं परिवर्तन हो जाने पर अन्य राज्यों द्वारा मान्यता की आवश्यकता नहीं होती । किंतु राज्य में क्रांति, विद्होह या षड्यंत्र द्वारा सरकार बदल जाने पर सत्तारूढ़ सरकार को मान्यता देना आवश्यकक होता है । मान्यता प्रदान करने वाले राज्य मान्यता देने मेंदो कसौटियों का प्रयोग करते हैं – वस्तुनिष्ठ कसौटी (objective test) तथा व्यक्तिनिष्ठ कसौटी (subjective test) पहली कसौटी के अनुसार मान्यता देने वाला देश यह देखता है कि क्या नई सरकार का राज्य के अधिकांश प्रदेश पर प्राबवशाली नियंत्रण है और वहाँ की जनता उसकी आज्ञा का पालन करती ह । दूसरी कसौटी राजनीति विचारों पर आधारित है और मान्यता प्रदान करने वाला राज्य मान्यता देने से पूर्व आश्वस्त होना चाहता है कि नई सरकार अंतर्राष्ट्रीय विधि तात संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर द्वारा प्रतिपादित दायित्वों को स्वीकार कर उनका पालन करने की इच्छआ अथवा सामर्थ्य रखती है
चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता देने में अमेरिका ने व्यक्तिनिष्ट कसौटी को अपनाकर बहुत दिनों तक उसे मान्यता प्रदान नही की जबकि भारत, रूस आदि देशों ने वस्तुनिष्ठ कसौटी को अपनाकर उसे मान्यता प्रदान कर दी ।
  • recognition of insurgency -- विद्रोहकारिता को मान्यता
गृहयुद्ध में कुछ परिस्थितियों में विद्रोहकारियों को युद्धकारिता की मान्यता न देते हुए कुछ युद्धकारी अधिकार दिए जा सकते हैं । ऐसे अधइकार दिए जाना विद्रोहकारियों को मान्यता दिया जाना कहा जात है । यह इसलिए किया जात है कि विद्रोहकारियों को न तो युद्धकारियों की मान्यता दी जा सकती है, क्योंकि उनमें इसके लिए आवश्यक तत्वों का अभाव है और न ही उनकी पूर्णतया उपेक्षा ही की जा सकती है । अतः उन्हें तीसरे राज्य परिस्थितियों के अनुसार युद्धकारिता के कुछ अधिकार देना स्वीकार कर सकते हैं । इस स्थिति को विद्रोहकारियों को मान्यता देना कहा जाता है । स्पेन के गृहयुद्ध (1936) में राष्ट्रवादियों को ब्रिटेने ने इसी प्रकार की मान्यता दी थी । परंतु तब से अब तक इसका कोई अन्य उदाहरम नहीं मिलता ।
  • recognition of state -- राज्य की मान्यता
राज्य की मान्यता का अर्थ है विद्यमान राज्यों द्वारा यह स्वीकार किया जाना कि कोई नवीन राजनीतिक इकाई अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा निर्धारित राज्यत्व क सबी गुणों अथवा तत्वों से परिपूर्ण है अर्थात् ये राज्य नवीन राजनीतिक इकाई को राज्य के रूप में स्वीकार करते हैं ।
  • reconduction of aliens -- अन्यदेसियों का बालात् निष्कासन
दे. Expulsion of aliens.
  • refugee -- शरणार्थी
शरणार्थी से तात्पर्य उन व्यक्तियों से है जो मुख्यतः राजनीतिक कारणों से स्वदेश का त्याग कर अन्य देशों में जाने के ले विवश होते हैं क्योंकि स्वदेश में रहने पर उन्हें बंदी बना लिए जाने अथा अन्य प्रकार से यातना और उत्पीड़न का भय रहता है । ऐसे व्यक्तियों के संबंध में दो वैधिक प्रश्न उत्पन्न होते हैं जिनका पिछले 40 वर्षों में निवारण करने का प्रयास हुआ है :-
1. क्या इन व्यक्तियों को किसी भी अन्य देश में शरण पाने का अधिकार है ? और
2. क्या संबंधित राज्य द्वारा इनको शरण दिया जाना उसका वैधिक कर्त्तव्य है ?
इस विषय पर सर्वप्रथम 25 जुलाई, 1951 को एक अभिसमय पर जेनेवा में हस्ताक्षर हुए थे जिसमें शरणार्थियों की स्थिति (status) संबंधी सिदधांतों और नियमों की व्याख्या की गई थी । इसी अभिसमय के प्रसारस्वरूप 31 जनवरी, 1967 को एक प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसमें शरणार्थियों की स्थिति को और अधिक स्पष्ट किया गया था ।
इन सभी व्यवस्थाओं के बावजूद यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि अंतर्राष्ट्रिय विधि के अंतर्गत एक व्यक्ति को किसी दूसरे राज्य में शरण पाने का अधिकार है या सरण देना किसी राज्य का वैधिक कर्तव्य है ।
  • refugee asylum -- शरणार्थी शरण
स्वदेश में राजनीतिक सामाजिक या धार्मिक उत्पीड़न के वास्तविक भय के कारण भाग कर आए लोगों को अन्य देश/ देशों द्वारा शरण देना । संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 14 दिसंबर, 1967 को स्वीकार की गई प्रादेशिक शरण विषयक घोषणा मे यह कहा गया कि उत्पीड़न के कारण भाग कर आए लोगों को सीमा पर नहीं रोकना चाहिए औरयदि वे शरण लेने वाले प्रदेश में घुस आए हैं तो उन्हें वहाँ से बाहर नहीं धकेलना चाहिए या अनिवार्य रूप से निष्कासित नहीं करना चाहिए । यदि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें शरण देना संभव नहीं हो तब भी अस्थायी रूप से उन्हें वहाँ रहने देना चाहिए । यदि कोई देश शरणार्थियों के भार को सहन करने में असमर्थ हो तो कई देशों को मिलकर या संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से उस भार को हल्का करने के समुचित उपाय करने चाहिए । उत्पीड़न से राहत देने के उद्देश्य से जिन व्यक्तियों को शरणाधिकार प्रदान किया गाय ह , उसका सभी राज्यों को आदर करना चाहिए और इसे कोई शत्रुतापूर्ण कार्य नहीं समझा जाना चाहिए ।
  • regional deence organisation -- क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन
सदस्य – राज्यों की सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से क्षेत्रीय स्तर पर गठित अंतर्राष्ट्रीय संगठन । दूसरे महायुद्ध के उपरांत इस प्रकार के संगठनों के अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनमें प्रमुख रूप से उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का नाम उल्लेखनीय है । इनके अन्य उदाहरणों में वारसा संधि संगठन, दक्षिण – पूर्व एशियाई संधि संगठन (सीटो), बगदाद पैक्ट अथवा मध्य – पूरव संधि संगठन (सेंटो) के नाम भी उल्लेकनीय हैं । परंतु ये अब केवल ऐतिहासिक दृष्टांत बनकर रह गए हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से यह एक विवाद का विषय रहा है कि इन संगठनों का वैधिक आधार इनके सदस्य – राज्यों का आत्मरक्षा का अधइकार है या कि संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की क्षेत्रीय संगठन विषय व्यवस्था ।
शीत – युद्ध के समाप्त हो जाने और संसार से साम्यवादी गुठ के विघटित हो जाने से इस प्रकार के संगठनों का अब विशेष महत्व नहीं रहा गया है ।
  • regional defence pacts -- क्षेत्रीय सुरक्षा समझौते
दे. Regional defence organisations.
  • regional international law -- क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय विधि,
क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय कानून
विश्व के सी क्षेत्र विशेष में विकसित और उसी क्षेत्र के देशों द्वारा स्वीकृत परस्पर व्यवहार मे लागू होने वाले नियम जैसे लातीनी अमेरिकी देशों द्वारा स्वीकृत राजनयिक शरण देने संबंधी नियम । ये नियम सामान्य अथवा सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्न और स्वतंत्र होते हुए भी क्षेत्र विशेष के सदस्य – राज्यों के लिए उनकी सहमति से बाध्यकारी हो सकते हैं । वर्तमान काल में क्षेत्रीय धरातल पर कार्य कर रहे अनेक राजनीतिक अथवा आर्थिक समुदायों एवं संगठनों से भी अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के क्षेत्रीय नियमों का सृजन हो सकता है ।
दे. particular international law भी ।
  • registration of treaty -- संधि का पंजीकरण
संधि का किसी अंतर्राष्ट्रीय संघ के सचिवालय में पंजीबद्ध कराया जाना । राष्ट्र संघ की प्रसंविदा के अंतर्गत इसकी व्यवस्था की गई थी । राष्ट्र संघ के सदस्यों के लिए यह अनिवार्य था कि वे अपने द्वारा की गई संधियों का सचिवालय में तुरंत पंजीकरण कराएँ, इसके बिना संधि बाध्यकारी नहीं होगी ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 102 के अंतर्गत भी सदस्य – राज्यों द्वारा की गई संधियों के पंजीकरण कराए जाने की व्यवस्थआ की गई है । परंतु संदि का पंजीकरण कराया जाना उसेक बाध्यकारी होने की आवश्यक दशा नहीं है ।
  • relative contrabnd (=conditional contraband) -- सापेक्ष विनिषिद्ध वस्तुएँ
दे.
  • rendition of aliens -- अन्यदेशियों का समर्पण
कीस राज्य द्वारा कीस अपारधी को किसी विशिष्ट तदर्थ व्यवस्था के अंतर्गत किसी दूसेर राज्य को आवश्यक न्यायिक कार्रवाई के लिए सौंप देना चाहे इन राज्यों के मध्य कोई प्रत्यर्पण संधि न भी हो और यदि संधि है भी तो चाहे अपराध प्रत्यर्पणीय न भी हो । ऐसा पारस्परिकता के आधार पर भी किया जा सकता है ।
  • reparation -- युद्ध हानि पूर्ति
युद्ध के उपरांत जेता राज्यों द्वारा युद्ध मे हुई हानि के लिए विजित राज्यो से लिया गय हर्जाना । बहुधा इसकी व्यवस्था शांति संधि के प्रावधानों में की जाती है । उदाहरणार्थ प्रथम महायुद्ध के पश्चात् वार्साई संधि के अंतर्गत जर्मनी से भारी हर्जाना देने के लिए कहा गया था । यह हर्जाना इतना अधिक था कि जर्मनी उसे कभी नहीं दे पाया ।
  • repatraition -- प्रत्यावर्तन
किन्हीं व्यक्तियों अथवा व्यक्ति – समूहों को विदेश से उनके स्वदेश भेजे जाने की प्रक्रिया जैसे, शरणार्थियों अथवा युद्धबंदियों को उनके देश वापिसि भेजा जाना ।
इस शब्द का प्रयोग विदेश में लगी पूंजी को स्वदेश भेजे जाने के लिए भी किया जाता है ।
  • reprisals -- प्रत्याघात, प्रतिशोध
इस अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के बलकारी उपायों में से एक उपाय माना जाता है ।
प्रतिशोध का अर्थ है ऐसे हानिकारक अथवा अवैध कार्य जो एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के इन्हीं अथा इसी प्रकार के कार्यों के प्रत्युत्त्र में उस राज्य के विरूद्ध किए जाएँ । ये क र्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के विरूद्ध होते हुए भी निम्न दशआओं में वैध माने जाते हैं :-
1. यदि ये किसी राज्य द्वारा अपने प्रति किसी दूसरे राज्य द्वारा किए ए अवेध कार्यों के लिए क्षतिपूर्ति की माँग की गई हो जो निष्फल रही हो
3. यह कार्रवी मानवता और सद्भाव के नियमों की परिधि में रह कर ही की जानी चाहिए और
4. प्रतिशोध मे की गई कार्रवाई अपचार के अनुपात में होनी चाहिए और उपचार माप्त होते और क्षतिपूर्ति मिलते ही इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए ।
चूँकि वर्तमान काल मे बल – प्रयोग और उसकी धमकी दोनों वर्जित ह अतः प्रतिशोध की वैधता वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय विधि के संदर्भ में संदेहजनक है ।
  • res communis -- सामुदायिक संपदा
वह संपत्ति, संपदा अथवा संसाधन जिस पर किसी एक राष्ट्र का अधइकार न हो और न ही कोई एक राष्ट्र अपनी संप्रभुता अथवा अधइकार का प्रसार उस पर कर सके क्योंकि वे प रे विशअव समुदाय की संपदा अथवा धरोहर माने जाते हैं । इसका उपयोग सभी राष्ट्र समान आधार पर कर सकते हैं तथा कोई एक राष्ट्र उसका स्वामित्वहरण नहीं कर सकता ।
सामुदायिक संपदा के उदाहरम हैं राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे महासमुद्र, अंतरिक्ष, चंद्रमा आदि ।
  • reservations to treaties -- संधियों के अपवाद
इसका अर्थ है किसी राज्य द्वारा संधि से बाध्य होने से पूर्ण यह स्पष्ट कर देना कि वह संधि की किसी विशिष्ट धारा को अपने लिए बाध्यकारी नहीं मानेगा अथवा वह संधि के किसी वाक्य या वाक्यांश अथवा प्रयुक्त शब्द को किसी विशिष्ट अर्थ में ही स्वीकार करेगा । ऐसी दशआ में उस राज्य के लिए संधि उसके द्वारा निर्दिष्ट अपवादों सहित ही लागू होगी । परंतु यह आवश्यक है कि संधि के अन्य हस्ताक्षरकर्ता राज्य किसी हस्ताक्षरकर्ता राज्य द्वारा प्रसुत्त अपवादों को स्वीकार करें । अपवादों की सूचना संधि के लिए वार्तालाप के दौरान अथा उस पर हस्ताक्षर करते समय अथवा उसकी संपुष्टि करते समय किसी भी अवस्था में दी जा सकत है । परंतु प्रत्येक दशा में यह आवश्यक है कि अन्य हस्ताक्षरकर्ता राज्य इन अपवादों से सहमत हों । बहुधा पारस्परिकता के आधार पर अन्य हस्ताक्षरकर्ता राज्य इन अपवादों को मानने के लिए सहमत हो जाते हैं ।
अपवाद ऐसे होने चाहिए जो संधि के मूल सिद्धआंत अथवा लक्ष्य के प्रतिकूल न हों । वर्तमान काल में की गई अनेक संधियों में संधि में ही उन धाराओं का उल्लेख कर दिए जाने का दृष्टांत पाया जाता है जिनके विरूद्ध कोई हस्ताक्षरकर्ता राज्य अपवाद प्रेषित नहीं कर सकता ।
द्विपक्षीय संधीयों में अपवादों से कोई विशेष समस्या उत्पन्न नहीं होती परंतु बहुपक्षीय संधियों में कुछ राज्यों के अपवादों से जिन्हें अन्य राज्यों में से कुछ स्वीकार करते हों और कुछ नहीं तो संधि के प्रभावक्षेत्र के विषय में अनेक विवादि उत्पन्न हो सकते हैं ।
  • res extra commercium -- स्वामित्व बाह्य वस्तु
किसी व्यक्ति अथवा राज्य को उन वस्तुओं पर स्वामित्व का अधइकार प्रधान नीहं किया जा सकता जिनेहं प्रकृति ने सबके उपयोग के लिए प्रदान किया है । अंतराष्ट्रीय कानून भी इस स्थिति को स्वीकार करता है और इसलिए खुले समुद्र तथा बाह्य अंतरिक्ष पर वह किसी राज्य विशेष का स्वामित्व स्वीकार नही करता और उन्हें स्वामित्व की परिधि से बाहर रखता ह ।
  • res nullius -- स्वामीहीन वस्तु,
स्वामीहीन प्रदेश
ऐसी वस्तु अथवा प्रदेश जिस पर पहले से किसी अन्य व्यक्ति अथवा राज्य का स्वामित्व अथवा अधfकार न हो । दीवानी कानून मेंलावारिस माल की जो स्थिति है अंतर्राषअटरीय कानून में स्वामीहीन प्रदेश की भी वही स्थिति होती है, इसलिए ऐसे प्रदेश की खोज करने वाले राज्य को उसमें प्रवेश कर अपनी सत्ता स्थापित करने का अधिकार होता है ।
  • responsibility of state -- राज्य का दायित्व
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार किसी राज्य में रहने वाले विदेशी नागरिकों की जान – माल की सुरक्षा का दायित्व स्थानीय राज्य पर होता है । कीस विदेशी को शरीरिक क्षति पहुँचाए जाने पर या स्थानीय राज्य द्वारा उसके प्रति अन्याया किए जाने पर अथवा उसकी संपत्ति को हानि पहुँचने पर अथा उसके साथ न्याय न होने पर स्थानीय राज्य का कर्त्ताव्य है कि उसकी क्षतिपूर्ति करे । क्षतिपूर्ति न होने या न्याय न मिलने पर उस विदेशी को अपने राज्य से हस्तक्षेप की माँग करने का अधइकार है । ऐसी स्थिति में यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय विवाद बन जाता है । इस विवाद का आधार है राज्य का अंतर्राष्ट्रीय दायित्व ।
  • restitution -- प्रत्यास्थापन
दे. Compensation.
  • restrictive theory of state immunity -- सीमित राज्य उन्मुक्ति सिद्धांत
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार प्रत्येक र्जाय को विदेशी राज्य में स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माना जाता है । यह उन्मुक्ति राज्याध्याक्ष, राजदूत, सार्वजनिक जलपोत, युद्धपोत और राज्य की सेना को दी जाती है ।
वर्तमान काल में व्यापार और अनेक आर्तिक क्रियाओं पर राज्य का प्रत्यक्ष नियंत्रण हो जाने के कारम यह विवाद उत्पन्न हुआ है कि क्या राज्य की आर्थिक क्रियाओं और उनमें लगे निकायों जैसे जलपोतों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी विदेशी राज्य में स्थआनीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्ति दी जाए यह अनुभव में आया है कि ऐसा करना स्थानीय व्यापार अथवा नागरिकों के साथ अन्यायपूर्ण है । अतः यह सिद्धआंत प्रतिपादित हुआ कि आर्थिक क्रियाओं के लिए राज्य को सार्वबौमिक उन्मुक्ति के निद्धांत की परिधि से बाहर समझा जाए । इसी सिद्धांत को सीमित राज्य उन्मुक्ति सिद्धआंत कहा जाता है ।
  • retorsion -- प्रतिकर्म, प्रतिकार
जब कोई राज्य कीस अन्य राज्य के विरूद्ध उसके अनुचित, हानिकारक अथा मनमाने परंतु अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से वैध कार्य के बदले उसी प्रकार की कार्यवाही करता है तो उसे प्रतिकार या प्रतिकर्म की संज्ञा दी जाती है । जिन कार्यों के लिए इस प्रकार के कार्य किए जा सकते हैं वे अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से अवैध नहीं होते परंतु दूसरे राज्य के लिए हानिकारक अवश्य होते हैं और वह उन्हें अपने विरूद्ध द्वेषपूर्म कार्य मानकर उसी प्रकार के कार्य कर सकता है ।
प्रताकर अथवा प्रतिक्रम में मुख्य बात यह है कि मूलरूप से किया गाय अपचार और उसके प्रतिकार स्वरूप किया गया कर्म दोनों विधि की परिधि में रहते हैं और यह गुण प्रतिकर्म और प्रतिशोध के मध्य मुक्य विभाजक रेखा कहा जा सकता है क्योंकि प्रतिशोध के रूप में किया गया कर्म और उसके प्रत्युत्तर मे की गई कार्वाई दोनों विधि -विरोधी होती हैं ।
प्रतिकर्म के कुछ उदाहरण इस प्रकार है । राजनयिक संबंध – विच्छेद कर देना, यापार और शुल्क संबंधी दी गई रियायतें निस्त करदेना, अपने आकाशवर्ती क्षेत्र से उसके वायुयानों की उड़ानों पर प्रतिबंध लगा देना आदि । चूँकि संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अंतर्गत बल – प्रयोग अथवा बल – प्रयोग की धमकी देना वर्जित है, अतः यह कहा जा सकता है कि दोनों ओर से प्रतिकर्मस्वरूप की गई कार्रवाई में बल – प्रपयोग अथा बल – प्रयोग की धमकी नहीं होनी चाहिए ।
  • retroactive recognition -- पूर्व प्रभआवी मान्यता.
पूर्वव्यापी मान्यता
साधारणतया मान्यिता, विधिवत मान्यता, दिए जाने की तिथि से प्रभावी होती ह । परंतु कुछ परिस्थितियों में इसे भूत प्रभावी माना जा सकता है, अर्थात् यह उस दिन से प्रभावी मानी जाती है जिस दिन से कोई इकाई सरकार या राज्य के रूप में प्रतिष्ठित हुई है । जैसे भारत सरकार ने बंगलादेश को 3 दिसंबर 1971 को मान्यता देने की घोषणा की जो 10 अप्रैल 1971 से प्रबावी मानी गी जब स्वतंत्र बंगला देश की घोषणा की गई थी ।
  • revision of treaty -- संधि पुनरीक्षण
वास्तव में संधि पुनरीक्षण और संशोधन में भेद करना सरल नहीं है । संधि के पुनरीक्षण से अभिप्राय उसकी समग्र व्वस्था का परीक्षण करना ह ता है ताकि परिवर्तित परिस्थितियों के कारण यदि संदि में आमूल – चूल परिवर्तनों की आवश्यकता हो तो ऐसे परिवर्तन करलिए जाएँ । निश्चय ही इस कार्य मे सभी मूल हस्ताक्षरकर्त्ता राज्यों की सहमति आवश्यक है । एक बात और है कि संधि के पुनरीक्षण की अवधारणा वस्तुः एक राजनीतिक अवधारणा है जिसका उद्देश्य संधि को परिवर्तनशील परिस्थितियों में अधिक न्यायासंगत एवं तर्कसंगत बनाना होता है ।
संधि के पुनरीक्षण की व्यवस्था का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण संयुक्त राष्ट्र का चार्टर है । चार्टर मे यह प्रावधान किया गया है कि महासभा स्वयं 10 वर्ष बीतने पर अथवा निर्धारित संख्या मे सदस्य राज्यों की माँग पर चार्टर के पुनरीक्षण हेतु एक अंतर्राष्टीय सम्मेलन का आयोजन कर सकती है ।
  • right of expropriation -- स्वामित्वहरण का अधिकार, विसंपत्तिकरण अधिकार
राज्य का वह अधिकार जिसके अंतर्गत वह विदेशी स्वामित्व वाली संपत्ति को हस्तगत कर उसे अपने स्वामित्व में ले सकता है । ऐसा केवल राष्ट्रीय हित में ही किया जा सकता है और अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार इसके ले उसेक मूल स्वामी को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए ।
  • right of legation -- दूत – प्रेषण का अधिकार,
दूत – विनिमय का अधिकार
राज्यों द्वारा पारस्परिक संबंध स्थापित कनरे के उद्देश्य से एक – दूसरे के यहाँ अपने राजनयिक प्रतिनिधि प्रत्यायित करना । परंपरा से यह अधिकार होली – सी को भी दिया जाता रहा है । परंतु इसकेलिए संबंधित राज्यों की पूर्व सहमति आवश्यक है । अतः राजनयिक प्रतिनिधियों का प्रेषण एक ऐसा अधिकार है जिसका प्रयोग संबंधित राज्यों की पूर्व सहमति पर आश्रित है ।
  • right of passage -- मार्गाधिकार
किसी राज्य का किसी दूसरे राज्य के भूमि – प्रदेश से होकर आवागमन का अधिकार जिसमें उसकी सेवाओं के आवागमन का अधिकार भी शामिल है । बहुधा ऐसा साम्राज्यवादकालीन द्विपक्षीय संधियों के अंतर्गत हुआ है । वस्तुतः इसे निर्बल राज्य द्वारा सशस्त राज्य को विवशतापूर्वक दिया गया सुविधा – भार माना जाना चाहिए ।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत एक मामले में यह प्रश्न उठा कि क्या भारत में स्थित अपने अंतस्थ क्षेत्रों (एनक्लेव) दादरा – नगर हवेली में विद्रोह का दमन करने के लिए पुर्तगाली सेना वहाँ तक पहुँचना के लिए भारत से मार्गाधिकार की माँग कर सकती है । न्यायालय का निर्णय था कि पुर्तगाल को भारत से होकर अपने अंतस्थ क्षओत्रों में सेनाएँ भेजने का कोई वैधिक आधार नहीं है ।
वर्तमान काल में परस्पर सहयोग स्वरूप दो या अधिक राज्य स्वेच्छा से परस्पर संधि करके एक – दूसरे को अपने भूमि – प्रदेश से होकर जाने की अनुमति दे सकते हैं । जैसे भारत ने नेपाल को व्यापार और नौपरिवहन की सुविधा देने के लिए आवागमन की सुविधा दी है ।
  • right of self defence -- आत्म – रक्षा का अधिकार
परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि और संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि कोई राज्य आत्म – रक्षार्त बलप्रयोग कर सकता है । यह उल्लेखनीय है कि आत्म – रक्षा का अर्त आत्म – संरक्षण नहीं है और न ही आत्म – रक्षा का अर्थ कानून अपने हाथ में लेना है ।
आत्म – रक्षा के अधिकार की व्याख्या अंतर्राष्ट्रीय विधि मे बहुत संकुचित अर्थों में की गई है । इसका निरूपण सन् 1837 में “केरोलीन” के मामले में अमेरिकी विदेश मंत्री डेनियल वेब्स्टर ने किया था । उनके अनुसार आत्मा – रक्षा मे की गई कार्रवाई उसी अवस्था मे वैध मानी जा सकती है जबकि उसकी अत्याधिक एवं अविलंब आवश्यकता हो, अन्य कोई उपाय उपलब्ध न हो और सोच – विचार का समय न हो । दूसरे, आत्म – रक्षा मे की गई कार्रवाई अनुचित तथा आवश्यकता से अधिक न हो ।
दूबसरे महायुद्ध के उपरांत न्यूरेम्बर्ग न्यायाधिकरण ने भी आत्म – रक्षा की इस व्याख्या का अनुमोदन किया था ।
  • right of self – determination -- आत्म – निर्णय का अधिकार
इसका अर्थ किसी सुनिश्चित राष्ट्रीय समूह का अपनी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था को निर्धारित करने का अधिकार है ।
ऐतिहासिक दृष्टि से इस अधिकार की चर्चा उपनिवेशवाद के संदर्भ में प्रारंभ हुई और विशेष रूप से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तारार्ध मे यह माँग की जाने लगी कि विशाल साम्राज्यों (जैसे ऑस्ट्रिया – हंगरी तथा ऑटोमन साम्राज्यों) मे रहने वाले राष्ट्रीय समूहों को स्वतंत्रता अथवा स्वाधीनता का अधिकार मिलना चाहिए । प्रथम महायुद्ध के पश्चात् उपनिवेशों की स्वतंत्रता की माँग उनके आत्म – निर्णय करने के अधिकार के आधार पर की जाने लगी ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर ने यह स्वीकार किया कि विदेशई राजनीतिक प्रभुसत्ता के अधीन रहने वाले लोगों को अपनी राजनीतिक व्यसवस्था और शासन प्रणाली का स्वतंत्र रूप से चयन करने का अधिकार है और इस प्रकार संस्रा में उपनिवेशवाद का पतन प्रारंभ हुआ ।
वर्तमान काल मे आत्म – निर्णय के अधिकार को लेकर एक विवाद यह उत्पन्न हुआ है कि इस अधिकार की सीमा क्या हो? यह निर्विवाद है कि प्रत्येक राष्ट्र को स्वतंत्र होने का अधिकार है परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी राष्ट्र के विभिन्न प्रजातीय, धार्मिक अथवा क्षेत्रीय संघटकों को भी आत्म – निर्णय का अधिकार होना चाहिए ?
  • right of self preservation -- आत्म – परिरक्षण अधिकार
आत्म – परिरक्षण से तात्पर्य है कि किसी राज्य द्वारा अपने अधिकारों, हितों और उन पर आधारित नीतियों पर हुए किसी भी वास्तविक अथवा संभावित प्रहार का सामना करने के उद्देश्य से किए गए उपाय ।
ओपेनहायम ने आत्म – परिरक्षण और आत्म – रक्षा के अधिकार मे कोई भेद नहीं किया है । परंतु वर्तमान लेखक, जिनमें ब्रायरले प्रमुख हैं, इस बात पर ब ल देते हैं कि आत्म – परिरक्षण और आत्म – रक्षा में भेद किया जाना चाहिए ।
ब्रायरले ने लिखा है कि आत्म – परिरक्षण कोई अधिकार नहीं हैं । यह केवल एक भावना है । वास्तव में आत्म – परिरक्षण को वैधिक रूप से सीमित नहीं किया जा सकता । मीमित रूप में आत्म – परिरक्षण को आत्म – रक्षा का अधिकीर कहा गया है । आत्म – रक्षा के अधिकार की सीमाओं का उल्लेख केरोलीन (1837) जलपोत के विवाद के संदर्भ में अमेरिकी विदेशमंत्री नियल वेब्सटर ने किया था और इस सीमित रूप में आत्म – रक्षा के अधिकार को सर्वथा मान्यता दी जाती है ।
अतः यह कहा जा सकता है कि अंतर्राअट्रीय विधि आत्म – रक्षा के अधिकार क मान्यता देती है, आत्म – परिऱक्षण की भावना को नहिं ।
  • right of visit, search and capture -- निरीक्षण, तलाशी एवं प्रग्रहण का अधिकार
युद्ध के दौरान महासमुद्र में तटस्थ जलपोतों को रोक कर उनके निरीक्षण का अधिकार युदधकारियों को होता है । यदि निरीक्षण मात्र से संतुष्टि न हो तो जलपोत की तलाशी ली जा सकती है और विनिषिद्ध सामग्री पाए जाने पर उसका तुरंत प्रग्रहण करके जलपोत को अंतिम निर्णय के लिए निकटस्थ नौजित माल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जात है ।
निरीक्षण तलाशी और प्रग्रहण अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत युद्धकारियों के सुस्थापित अधिकार हैं ।
  • rights and duties of states -- राज्यों के अधिकार और कर्तव्य
परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि में राज्यों के कुछ मूलभूत अधिकारों और कर्तव्यों को मान्यता दी गई है । कालांतर में इनको औपचारिक रूप से निरूपित करने का प्रयास किया गया । इस दिशआ मे सन् 1933 का मांटेविडो अभिसमय प्रथम प्रयास था । इसके उपरांत सन् 1949 में अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने राज्यों के अधिकार और कर्तव्यों संबंधी एक घोषणा – पत्र का प्रारूप तैयार किया । इस प्रारूप मे जिन मूल अधिकारों को शामिल किया गया है वे इस प्रकार हैं स्वतंत्रता प्रादेशिक क्षेत्राधिकार, कानूनी समानता और सशस्त्र आक्रमण के विरूद्ध आत्मरक्षा का अधिकार ।
कर्तव्यों में निम्न का उल्लेख किया गाय है दूसरों के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, अन्य राज्यों के आंतरिक संघर्ष को प्रोत्साहित न करना, मानव अधिकारों का पालन करना, विवोदों के शांतिपूर्ण समादान के लिए तत्पर रहना, राष्ट्रीय नीति के अबिकरण के रूप में युद्ध का आश्रय न लेना और अनपे संधिगत दायित्वों का निष्ठापूर्वक पालन करना ।
  • right to equality -- समानता का अधिकार
यह राज्य के मूल अधिकारों मे से एक है । सन् 1933 के मांटेविडो अभइसमय र सन् 1949 के संयुक्त राष्टर संघ के एक घोषणा – पत्र मे भी समानता के अधिकार को राज्यों का एक मूल अधिकार माना गया है ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि में समानता का अर्थ है कानूनी समानता या क़ानून के समक्ष समानता । इसका आधार संप्रभुता है । चूँकि संप्रभुता राज्य का सामान्य, गुण है, अतः प्रत्येक राज्य को एक – दूसरे के समान समझा जाता है ।
समानता का एक प्रमाण यह है कि सभी देशों के राज्याध्यक्ष एक – दूसरे के यहाँ जाने पर समान रूप से स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माने जाते हैं – चाहे वे अन्य किसी भी दृष्टि से समान न हों ।
समानता के अधिकार का सम्मान करते हुए सभी छोटे – बड़े, शक्तिशाली शक्तिहीन, धनी – निर्धान राज्यों को राष्ट्र संघ की सभा में और संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा मे समान प्रतिनिधित्व देना स्वीकार काय गया था ।
  • Rio Declaration, 1992 -- रियो घोषणा – पत्र 1992
पर्यावरण और विकास संबंधी विषयों पर विचार करने के लिए जून, 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा ब्राजील की राजधानी रियो डि जेनेरो में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था । इसमें 170 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इनमें 115 शसनाध्यक्ष थे । चूँकि इस सम्मेलन का उद्देश्य मनुष्य के लिए पृथ्वी और उसके पर्यावरण को शुद्ध और सुरक्षित बनाए रखने हेतु आवश्यक उपायों पर विचार करना था अतः इस सम्मेलन को साधारण भाषा में पृथ्वी शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है ।
इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पर्यावरण संबंधी एक घोषमा – पत्र था जिसमें पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के लिए एक 27 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया । इसके अतिरिक्त वनों से संबंधित एक घोषणा – पत्र पर भी हस्ताक्षर किए गए ।
पर्यावरण संबंधी “रियो घोषणा – पत्र” के 27 सूत्रों मे से कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार हैं :-
1. सतत और यथार्थ विकास के केंद्रबिंदु होने के कारण मनुष्यों को ऐसे स्वस्थ जीवन का अधिकार है जिसका प्रकृति से सामंजस्य हो ;
2. राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के सिद्धांतों औरसंयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुकूल अनपे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने का अधिकार है, परंतु उनका यह दायित्व भी है कि उनके किसी कार्य से किसी अन्य देश का पर्यावरण दूषित न हो ;
3. विकास के अधिकार का प्रयोग इस तरह किया जाए जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ियों के विकास और पर्यावरण संबंदी आवश्यकताओं को समुचित रूप से पूरा किया जा सके ;
4. सतत और यथार्थ विकास की एक आवश्यक दशा के रूप में सबी राज्य और जनसमुदाय निर्धानता उन्मूलन के कार्य में सहयोग करेंगे ;
5. विकासशील देशों की विशिष्ट परिस्थितोयों एवं आवश्यकताओं को विशेष वरीयता दी जाएगी और इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि उनका पर्यावरण दूषित न हो ;
6. पृथ्वी की पारिस्थितिक व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए सभी राज्य सहयोग देंगे और विकसित राज्यों का उनके द्वारा पर्यावरण पर उनकी विशेष प्रौद्यौगिक और वित्तीय संसाधनों के कारण पड़ने वाले दबाव को देखते हुए विशेष दायित्व होगा
7. सभी लोगों के लिए विकास – क्रम बनाए रखने और जीवन – स्तर को ऊँचा उठाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए राज्यों का कर्तव्य होगा कि वे अनावश्यक एवं निरर्थक उत्पादन और उपभोग को हटाएँ और जनसंख्या नियंत्रण हेतु उपयुक्त नीतियों का अनुसरण करें
8. पर्यावरण के प्रबंध और विकास में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिक है । इसलिए सतत और यथार्थ विकास में उनकी पूर्ण भागीदारी आवश्यक है और
9. विश्व शांति विकास और पर्यावरण संरक्षण एक – दूसरे पर आश्रित हैं और उन्हें एक दूसरे से अलग नही किया जा सकता ।
वास्तव मे इस सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के बीच कई मसलों पर मतभेद रहा – विशेषकर पर्यावरण को दूषित करने के उत्तरदायित्व के प्रश्न पर जैव – विविधता को बनाए रखने के प्रश्न पर और वनों की व्यवस्था के प्रश्न पर । जहाँ एक ओर विकसित राज्य जैव – विवधता और वनों को अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण में रखने के पक्ष में ये वहाँ दूसरी ओर विकासशील राज्य किसी भी दशआ मे ऐसी किसी व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं थे जिससे उनकी संप्रभुता का हनन होता हो ।
  • riparian state -- तटवर्ती राज्य
समुद्र अथवा अंतर्राष्ट्रीय नदियों के तट पर बसे राज्या / अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत समुद्र अथवा अंतर्राष्ट्रीय नदियों म व्यवस्था बनाए रखने में तटवर्ती राज्यों का विशेष दायित्व होता है । अंतर्राष्ट्रीय नदियों के उपयोग के मामले में तटवर्ती राज्यों के अधिकार अंतर्राट्रीय विधि एवं तत्संबंधी संधियों द्वारा नियमित होते हैं ।
  • river bounary -- नदी सीमा
जब दो राज्यों के मध्य कोई नदी बहती हो तो वह नदी दोनों राज्यों की विभाजन रेखा मान ली जाती है ।
ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उत्पन्न ह ता है कि नदी का विभाजन कैसे किया जाए? इसका निर्धारण अनेक तथ्यों पर निर्भर करता है जो इस प्रकार ह (1) ऐतिहासिक तथ्य अर्थात् क सी प्रकार नदी का विभाजन मान जाता रहा है । यह भी हो सकता है कि पूरी नदी एक ही राज्य के अधइकार क्षेत्र में मानी जाती रही हो और दूसरे राज्य की सीमा केवल उसकी ओर के तट तक ही हो (2) पारस्परिक समझौतों के द्वारा भी नदी के बंटवारे की समस्या का समाधान किया जा सकता है (3) किसी समझौते के अभाव में नदी क विभाजन मध्य रेखा सिद्धांत अथवा नदी की मुख्य रेखा () सिद्धांत के अनुसार किया जा सकता है जो इस बात पर नरिभर करता है कि नदी नौगम्य है या नहीं ।
  • Rule of 1756 -- 1756 का नियम
युद्धकाल में तटस्थ व्यापारियों को किसी युद्धकारी द्वारा अपने देश में ऐसे यातायात, व्यापार (जैसे एक तट से दूसरे तट पर स्थित बंदरगाह के लिए माल पहुँचाना) का अधिकार नहीं दिया जा सकता जो शांतिकाल में उनके ए निषिद्ध हो । इस नियम का विकास सन् 1756 में ब्रिटेन तथा फ्रांस क मध्य हुए सप्तवर्षीय युद्ध से होता है और इसका उद्देश्य यह था कि कोई युद्धकारी युद्ध – काल में जलपोतों की कमी पड़ जाने से उत्पन्न स्थिति का सामना करने के लिए तटस्थ जलपोतों का उपयोग न कर सके ।
  • rule of double criminality -- दोहरी आपराधिकता का नियम
किसी अपराधी का प्रत्यर्पण करने के लिए अधिकांश राज्य दोहरी आपराधिकता के नियम का पालन करते हैं । इस नियम के अनुसार अपराध ऐसा होना चाहिए जो प्रत्यर्पण की माँग करने वाले तथा शरण देने वाले दोनों राज्यों में वहाँ के क़ानूनों के अनुसारि दंडनीय अपराध माना जाता हो । यह आवश्यक नहीं है कि दोनों राज्यों में अपराध का नाम एक ही हो परंतु अपराध की प्रकृति एक ही होना चाहिए ।
  • rule of double jeopardy -- दोहरे दंड का नियम
प्रत्यर्पण विदि के अंतर्गत एक सामान्यतया स्वीकृत नियम यह है कि जिस अपराध के लिए किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण की माँग क गई है और वह उसी अपराध के लिए प्रत्यर्पण की माँग कनरे वाले राज्य द्वारा न्यायिक कार्यवाही करके मुक्त अथवा दंडित हो चुका ह तो उस व्यक्ति नहीं किया जा सकता । इस व्यवस्था का आशय यह है कि कोई व्यक्ति एक ही अपराध के लिए दोहरे दंड का भागी न बन जाए ।
  • rule of speciality -- विशिष्टता का नियम
इसका अर्थ यह है कि प्रत्यर्पण कराने के पश्चात् राज्य उसी अपराध के लिए संबंधित व्यक्ति के विरूद्ध, न्यायिक कार्यवाही कर सकता है जिसके लिए उसका प्रत्यर्पण कराया गया है, अन्य किसी अपराध के लिए नहीं । यदि अन्य किसी अपराध के लिए जिसका संभवतः बाद में पता चला हो न्यायिक कार्यवाही करने का प्रयोजन है तो नियम यह है कि अपराधी को उसी देश को लौटा दिया जाए जहाँ से उसका प्रत्यर्पण किया गया है और पुनः उसका प्रत्यर्पण कराया जाए ।
  • SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) -- दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन), सार्क
यह दक्षिण एशिया के सात देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1985 में की गई थी । इसके सदस्य – राज्य बंगला देश, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव हैं । इसके शासनाध्यक्षों का प्रथम सम्मेलन सन् 1985 में ढाका मे हुआ था । इसका मुख्यालय काठमांडू में हैं ।
यह संगठन मुख्यतः एक गैर राजनीतिक संगठन है । इसका उद्देश्य सदस्य राज्यों के मध्य आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान – प्रदान को प्रोत्साहन देना है ।
यह संगठन उत्तर – दक्षिण वार्तालाप में गतिरोध उत्पन्न होने के उपरांत उस भावना का संस्थात्मक निरूपण है जिसे प्रायः दक्षिण – दक्षिण सहयोग कहा जाता है ।
  • Sanctions -- शास्त्रियाँ, प्रतिबंध
1. वे व्यवस्थाएं अथवा शक्तियाँ जो अंतर्राष्ट्रीय विधि को बाध्यकारी बनाने में सहायक होती हैं अर्थात जिनके कारण अंतर्राष्ट्रीय विधि की पालन किया जाता है ।
2. अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक राज्य या राज्य – समूह अथवा संगठन के द्वारा किसी अपचारी राज्य अथवा राज्य – समूह के विरूद्ध लगाए गए प्रतिबंध जो कूटनीतिक, आर्थिक, सैनिक कोई भी स्वरूप ले सकते हैं, जैसे शस्त्रों के निर्यात पर रोक, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर रोक, व्यापारिक संबंधों पर प्रतिबंध, राजनयिक संबंधों का उच्छेदन आदि ।
राष्ट्र संघ की प्रसंविदा के अंतर्गत और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर मे भी अंतर्राष्ट्रीय शांति तता सुरक्षा बनाए रखने के लिए थथा अग्र आक्रमण का उत्त्र देने के लिए प्रतिबंधों विशेषकर आर्थिक प्रतिबंधों को, प्राथमिक उपचार के रूप में महत्व दिया गाय है ।
  • San Francisco Conference -- सेनफ्रासिस्को सम्मेलन
यह सम्मेलन 25 अप्रैल 1945 से 26 जून, 1945 तक चला और इसमें 51 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिनमें भारत भी एक था । इसका मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के विधान को अंतिम रूप प्रदान करना था । सम्मेलन के समक्ष डम्बार्टन ओक्स में स्वीकृत प्रस्ताव थे जिनमें संयुक्त राष्ट्र क भावी संरचना निश्चित की गई थी । डम्बार्टन ओक्स प्रस्तावों पर सेनफ्रासिस्कों सम्मेलन में वाद -व वाद हुआ और अंत में उस प्रपत्र पर 50 राष्ट्रों के हस्ताक्षर हुए जिसे संयुक्त राष्ट्र का चार्टर कहा जाता है ।
यह उल्लेखनीय है कि सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन ने डम्बार्टन ओक्स प्रस्तावों में अनेक महत्वपूर्ण संशोधन किए जैसे संयुक्त राष्र की महासभा के अधिकारों का प्रसार किया गया, मानव अधिकारों संबंधी अनेक प्रावधान डोड़े गए, न्यास पद्धति संबंधी प्रावधान जोड़े गे, आर्थिक और सामाजिक परिषद् को संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों में स्थआन दिया गया और क्षेत्रीय संगठनों संबंधी अनेक संशोधन किए गए ।
चार्टर पर 26 जून 1945 को 50 राज्यों ने हस्ताक्षर किए और 24 अक्तूबर, 1945 से आवश्यक संख्या में संपुष्टि पाकर वह लागू हुआ ।
  • school of monism -- एकत्ववादी संप्रदाय,
अद्वैतवादी सिद्धांत
दे. Monistic theory.
  • sea bed treaty -- समुद्र तल संधि
इस संधि का संपादन सन् 1971 में हुआ था । इसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि समदुर तल में नाभिकीय अस्त्रों का रखना वर्जित होगा । इसका पूरा नाम महासमुद्र और समुद्रतल पर नाभिकीय एवं अन्य जन – संहारक अस्त्रों को रखने पर निषएधकारी संधि है । इस संधि पर 10 फरवरी, 1971 से राज्यों ने हस्ताक्षर करना प्रारंभ किया । इस संधि के अंतर्गत कोई भी राज्य महासमुद्र तल में नाभिकीय अस्तर नहीं रख सकेगा । परंतु 12 मील के भूभागीय समुद्र तल के क्षेत्र में यह प्रतिबंध तटवर्ती राज्य पर लागू नहीं होगा ।
  • Secretary – General -- महासचिव
संयुक्त राष्ट्र संघ के छह मुख्य अंगों मे से एक अंग सचिवालय है । सचिवालय का प्रधान महासचिव कहलाता है । महासचिव की नियुक्त सुरक्षा परिषद की संस्तुति पर महासभा द्वारा पाँच वर्ष के लिए की जाती है । चार्टर के अनुसार महासचिव संयुक्त राष्र संध का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है । वह महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद और न्यास परिषद – सभी के मुख्य सचिव के रूप मे कार्य करता है और संगठन के कार्यसंबदी वार्षिक विवरण महासभा को प्रेषित करता है ।
महासचिव की स्थिति को महत्वपूर्ण बनाने में चार्टर का अनुच्छेद 99 निर्णायक सिद्ध हुआ है । इसमें कहा गया है कि महासचिव सुरक्षा परिषद् का ध्यान किसी भी ऐसे मामले की र आकर्षित कर सकता है जो उसके मतानुसार अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए संकटकारी हो ।
वास्तव में महासचिव की स्थिति बहुत कुछ उसेक अपने व्यक्तित्व और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है ।
नार्वे के ट्रिग्वेली संयुक्त राषअट्र संघ के प्रथम महासचिव चुने गए थे । इनके पश्चात क्रमशः डाग हैमरशोल्ड ऊ थान्त, कुर्त वाल्दहीम, पेरेज दि कुइयार और वर्तमान में मिस्र के बुतरस घाली इस पद पर विद्यामान हैं ।
  • secret clause -- गुप्त खंड
दो अथवा अधइक राज्यों के मध्य संपन्न किसी अंतर्राष्ट्रीय समझौते अथवा संधि का वह खंड जो पारस्परिक सुरक्षा अथवा किसी अन्य विशेष कारण, से गोपनीय या प्रकाशित रखा जाता है । संधिकर्त्ता राज्य इस प्रकार के खंड का उस समझौते अथवा संधि के अन्य खंडों के समान ही अनुपालन करने के लिए बाध्य होते हैं । अवसर आने पर संबंध राज्यों द्वारा गुप्त खंड का प्रकाशन किया जा सकता है ।
  • secret diplomacy -- गुप्त राजनय
विभिन्न राज्यों द्वारा पारस्परिक स्वाथों की पूर्ति के लिए गोपनीय अथवा प्रच्छन्न रूप से अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं अथवा धि – वार्ताओं का संचालन करने की कला अथवा पद्धति । इस गुप्त कला अथवा पद्धति के अंतर्गत संबंध राज्यों द्वारा विभिन्न प्रकार की छलपूर्ण अथवा कपटपूर्ण प्रक्रियाओं, युक्तियों एवं कार्यपद्धतियों का प्रयोग भी किया जाता है ।
राष्ट्रपति बुश के शासनकाल में यह आरोप लगाया गया कि सं.रा. अमेरिका ने लेबनान से अमरीकी बंधकों को मुक्त कराने के लिए ईरान को गुप्त रूप से शस्त्रास्तर बेचे थे और यह धन निकारागुआ में स्थापित सरकार के विरूद्द कोन्ट्रा विद्रोहकारियों को सहायतार्थ भेजा गया था । इसे “यू. एस. ईरान कोन्ट्र डील” कहा जाता है ।
  • sector principle -- क्षेत्रक सिद्धांत
अभिग्रहण के सातत्य और समीपता सिद्धांतों के अलावा एक तीसरा सिद्धांत जिसके द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणा ध्रुवों के जनशून्य हिमाच्छादित प्रदेशों में विभिन्न राज्य अपनी स्थलीय सीमा और तटीस आधार रेखाओं से भूमंडल पर उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रवों तक खींची गई रेखाओं के भीतर ने वाले क्षेत्रकों पर, चाहे वह समुद्र हो अथवा भूमि अपनी प्रभुसत्ता का दावा करते हैं । इस दावे का आधार क्षेत्रक सिद्धआंत कहा जाता है । परंतु यह अंतर्राष्ट्रीय विदि में कोई मान्यता प्राप्त सिद्धांत कहा जाता है । परंतु यह अंतर्राष्ट्रीय विधि में कोई मान्यता प्राप्त सिद्धांत नहीं है । सोवियत संघ, वार्वे कनाडा और सं.रा. अमेरिका ने उत्ततरी ध्रुव के और चिली, अर्जेटांइना, ग्रेट ब्रिटेन ने दक्षिणी ध्रुव के वुभिन्न क्षेत्रकों (sectors) पर अपनी प्रभुस्त्ता का दावा किया है ।
  • Security Council -- सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ के छह प्रधान अंगों में से एक है । वास्तव में इसे इन प्रधान अंगों में भी सर्वप्रधान कहा जा सकता है क्योंकि चार्टर के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने का मूल दायित्व इसी अंग पर है । वस्तुतः सुरक्षा परिषद को एक प्रकार से संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यकारिणी परिषद कहा जा सकता है ।
सुरक्षा परिषद् मे इस समय कुल पंद्रह सदस्य हैं जिनमें रूप, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका इसके स्थायी सदस्य हैं । शेष दस सदस्य – राज्य दो वर्ष की अवधि के लिए महासभा द्वारा चुने जाते हैं । सन् 1965 से पहले इसकी सदस्य संख्या ग्यारह थी जिनमें पाँच स्थायी सदस्य और छह अस्थायी सदस्य होते थे ।
सुरक्षा परिषद की कार्यविधि की मुख्य विशेषता यह है कि इसके द्वारा कोईभी निर्मय पाँचों स्थायी सदस्य – देशओं की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता अर्थात्यदि पाँचों स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक सदस्य किसी निर्णय के विरूद्ध मत देता है तब वह उसके द्वारा निर्णय का निषेध माना जाएगा और इसे उसका निषएधाधिकार (veto) कहा जाता है ।
यह उल्लेखनीय है कि निषेधाधिकार प्रक्रियात्मक प्रश्नों पर लागू नहीं होता । परंतु कोई प्रश्न प्रक्रायत्मक है अथवा नहीं, इसका निर्णय करने के लिए निषेधाधिकार का प्रयोग किया जा सकता है ।
किसी स्थायी सदस्य – राज्य द्वारा मतदान में भाग न लेना उसका निषएधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाता ।
  • security pact -- सुरक्षा अनुबंद
दो या अधिक राज्यों के बीच ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि (या समझौता) जो उन राज्यों पर किसी शुत्रु राज्य द्वारा सशस्त्र आक्रमण किए जाने की स्थिति में, उन राज्यों को एक – दूसरे की सैनिक अन्यि प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए वचनब्दध करती है । बहुधा ऐसे अनेक समझौते क्षेत्रीय स्त्र पर हुए हैं जैसे नाटो, सीटो, वारसा संधि आदि । अंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से ये सामूहिक (आत्म) रक्षा के संगठनात्मक स्वरूप हैं ।
  • servitude -- सुविधाभार
यह व्यवस्था मूलतः एक साम्राज्यवादी व्यवस्था थी जिसके अनुसार यूरोपीय साम्राज्यावादी राज्य एशियाई – अफ्रीका राज्यों में स्थानीय शसकों से संधियों अथवा समझौतों के द्वारा अपने नागरिकों तथा व्यापारियों के लिए विशेष सुविधाएँ या रियायतें प्राप्त कर लेते थे । इस प्रकार की सुविधाओं या रियायतों को सुविधाभार कहा जाता था । ये सुविधाएँ या रियायतें प्रायः स्थानीय स्वतंत्रता और क्षेत्राधिकार का खंडन करती थीं जैसे विदेशी नागरिकों का स्थआनीय नायायलय के क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त होना अथवा स्थानीय जल क्षेत्रों और भूभागीय समुद्र में विदेशियों को मछली पकड़ने का अधिकार दिया जाना अथवा विदेशी सेनाओं को पारगमन का अधिकार दिया जाना अथवा स्थानीय प्रदेश के किसी भाग के किलेबंदी करने पर प्रतिबंध लगाना आदि । यह उलेलेखनीय है कि अपनिवेशवाद के पतन के साथ इस प्रकार के संधि – मसझौते समाप्त हो गए हैं ।
  • sources of international law -- अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोत
अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्त्रोत से तात्पर्य है वे पद्धतियाँ और प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के नियम निरूपित होते हैं और क़ानूनी बल प्राप्त करते हैं ।
ओपेनहायम के मतानुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि का एकमात्र स्रोत है राज्यों की पारस्परिक सहमति । साम्यवादी लेखक भी राज्यों की पारस्परिक सहमति को अंतर्राष्ट्रीय विधि का अनन्य स्रोत मानते आए हैं ।
ओपेनहायम के मतानुसार, चूँकि राज्यों की सहमति दो प्रकार से व्यक्त की जा सकती है, अतः अंतर्राष्ट्रीय विधि के दो स्रोत हैं । 1. संधइयाँ जो राज्यों की स्पष्ट सहमति को प्रत्यक्ष और स्पष्ट लिखित रूप से व्यक्त करती हैं और 2. प्रथाएँ जो राज्यों की सहमति के अलिखित, परोक्ष एवं अव्यक्त स्वरूप हैं ।
सन्म 1945 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अनुच्छेद 38 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विधि के स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया गया है । (1) प्रधान स्रोत और (2) सहायक स्रोत । प्रधान स्रोतों में संधियां, प्रथाएं और सभ्य राजयों द्वारा मान्यता प्राप्त विधि के सामान्य नियम सम्मिलित किए गए हैं । सहायक स्रोतों में न्यायिक निर्णय और विधिवेत्ताओं की रचनाएँ रखी गई हैं ।
  • South – East Asia Treatuy Organisation (SEATO) -- दक्षिण – पूर्व एशिया संधि संगठन (सीटो)
सन् 1954 में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसका लक्ष्य सदस्य – राज्यों में से किसी एक पर आक्रमण होने की दशा में सामूहिक रूप से उस आक्रमण का सामना करने के लिए इन राज्यों के वचनबद्ध करन था । इस संधि पर आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, फिलीपाइन्स, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने हस्ताक्षर किए थे ।
इस संधि की व्यवस्था को प्रभावकारी बनाने के लिए सन् 1955 मे एक संगठन की स्थापना की गई जिसे दक्षिण – पूर्व एशिया संधि संगठन कहते हैं ।
संधि का उद्देश्य दक्षिण – पूर्वी एशिया और दक्षिण – पश्चिमी प्रशांत महासागर के पूरे क्षेत्र में बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक विध्वंस की स्थिति मे सामूहिक रूप से रक्षात्मक कार्रवाई करना था । क विशेष प्रोटोकोल के अंतर्गत संधिगत क्षेत्र में कम्बोडिया लाओस और दक्षिणी वियतनाम की सुरक्षा को भी शामिल कर लिया गया ।
इस संगठन का मुख्यालय बैंकाक में था । परंतु अब यह संगठन वस्तुतः मृतप्राय है ।
  • South – South Dialogue -- दक्षिण – दक्षिण संवाद
ब्रांट प्रतिवेदन से उत्साहित होकर और उत्तर – दक्षिण वार्ता में कोई प्रगति न देखकर, सन् 1982 में भारत क तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने विकासशील देशों में से कुछ चुने हुए देशों की एक बैठक बुलाने का निश्चय किया । इस बैठक के दो उद्देश्य थे :-
1.तेल के मूल्यों में लगातार वृद्धि के कारण आयात की गई वस्तुओं, विशएषकर मशीनों के मूल्य में वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप विकासशील देशों के विदेशी मुद्रा भंडार का बराबर घटते जाना उनके व्यापारिक असंतुलन का लगातार बढ़ते जाना, विकासार्थ विदेशी सहायता का घटते जाना, श्रृणों का भार लगातार बढ़ते जाना, खाद्यान्नों में कमी आदि – इन सब प्रवृत्तियों के संदर्भ में उत्तर दक्षिण वार्ता से हटकर और उससे स्वतंत्र इन समस्याओं के समाधान के विष्य में विचार – विमर्श करना; और
2. उत्त्र – दक्षिण वार्ता विकसित और विकासशील राज्यों के पारस्परिक आर्थिक संबंधों अर्थात व्यापार, मुद्र, प्रौद्योगिकी स्थानांतरण, विकास – सहायता, की संभावनाओं और मुद्दों पर विचार करना ।
भारत का विचार केवल 27 देशों को इस सम्मेलन में आमंत्रित कनरे का था, किंतु यह संख्या बढ़कर 43 की हो गई । यह बैठक नई दिल्ली में 22- 25 फरवरी, 1982 तक चली ।
इस प्रकार विश्वव्यापी आर्थिक समस्याओं पर उस वार्ताक्रम का प्रारंभ हुआ जिसे प्रायः दक्षिण – दक्षिण संवाद कहा जाता हैं ।
इस घटना का एक परिणाम उस क्षेत्रीय संगठन की स्थापना है जिसे दक्षेस या सार्क काहा जाता है । परंतु दक्षिण – दक्षिण संवाद के फलस्वरूप विकासशील देशों के विकास के लिए पारस्परिक सहयोग एवं व्यापार की कोई व्यापक योजना प्रस्तुत नहीं हो सकी है । केवल द्विपक्षीय संभंधों में अधिक सहयोग और गतिविधियों प्रोत्साहन मिला है ।
  • sovereignty -- संप्रभुता
राजनीति शास्त्र में संप्रभुता से तात्पर्य सर्वौच्च शक्ति से है । यह राज्य का अनिवार्य तत्व है और इसी कारण राज्यों को आपस में समान माना जाता है ।
संप्रभुता के दो पक्ष हैं – आंतरिक और बाह्य । अंतर्राष्ट्रीय विधि का संबंध संप्रभुता के बाह्य पक्ष से है जिसका अर्थ है कि राज्य अपने अंतर्राष्ट्री संबंधों के संचालन में पूर्ण रूप से शक्ति संपन्न और संवतंत्र है । किसी राज्य को कीस दूसरे राज्य के बाह्य संबंधों के संचालन में हस्त्क्षेप का अधिकार नही है । एक विवाचन के मामले मे स्विट्रज़रलैंड के न्यायाधीश मैक्स हयूबर ने लिखा था कि राष्टरों के पारस्परिक संबंधों में संप्रभुता का अर्थ है स्वतंत्रता अर्थात अपने बाह्य संबंधों के संचालन की स्वतंत्रता ।
  • space law -- अंतरिक्ष विधि, अंतरिक्ष, क़ानून
1957 में सोवियत यान स्पूतनीक के अंतरिक्ष मे भेजे जाने से मानव प्रयास के एक नए क्षएत्र का द्वारा खुल गया जिसे बाह्य अंतरिक्ष कहा जाता है । तुरंत ही राज्यों के मध्य इस भावना ने जन्म लिया कि अंतरिक्ष के अंवेषण के लिए सभी राज्यों को समान अधइकार होना चाहिए और अंतरिक्ष अधाःस्थित राज्य के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार में नहीं होना चाहिए । इस भावना कोमूर्त रूप देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की माहासबा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अंतरिक्ष को महा समुद्रों के समान सामुदायिक प्रदेश घोषित किया गया और अंतरिक्ष की व्यवस्था संबंधी सिद्धांतों का भी निरूपण किया गया । 1967 में इन सिद्धांतों को वैधानिक रूप देने के उद्देश्य से एक संधि हुई जिसे संक्षेप मे अंतरिक्ष संधि कहते हैं । इस संधि से उस नियमावली का प्रारंभ होता है जिसे अंतरिक्ष विधि कहा जाता है । अगले वर्ष अर्तात 1968 में अंतरिक्ष यात्रियों की सहायता, उनकी वापसी तथा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए । इस समझौते में यह काह गया कि अंतरिक्ष यात्रियों को तरिक्ष में मानव जाति के दूत समझा जाना चाहिए और उनके विपदाग्रस्त होने की दशा मे सभी राज्यों को उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहना चाहिए । फिर 1972 में एक अन्य अनुबंध पर हस्ताक्षर हुए जिसमें अंतरिक्ष में प्रक्षेपित वस्तुओं से हुई हानि के लिए प्रक्षेपक राज्य के अंतर्राष्ट्रीय दायित्व की व्यवस्था की गई ।
इस संधि व समझौतों और ग घोषणापत्रों के समूह को अंतरिक्ष विधि कहा जा सकता है । यह7 विधि पिछले 35 वर्षों के विकास का प्रतिफल है और यह अभी भी वाकसमान है ।
  • space treaty -- अन्तरिक्ष संधि
दे. Space law.
  • specific adoption theory -- विशिष्ट अंगीकरण सिद्धांत
स्टार्क आदि लेकखों का मत है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों को निर्धारित राष्टरीय प्रक्रिया के द्वारा अंगीकार करके अर्थात् इनको राष्ट्रीय विधि में विधिवत् अंगीकार करके ही इन्हें राष्ट्रीय विधि का भाग बनाया जा सकता है ।
  • sphere of influence -- प्रभाव – क्षेत्र
उन्नीसवीं शताब्दी मे जब यूरोप के अनेक देश अपने साम्राज्य का प्रसार करने और नए – नए उपनिवेशों की खोज करने में संलग्न थे तब उनके मध्य इस भावना ने जन्म लिया कि इस प्रक्रिया में अनावश्यक प्रतिद्वांद्विता और संघर्ष से बचा जाए और संसार के अनेक क्षेत्रों को निर्धारित कर दिया जाए जहाँ प्रभुत्व प्रस्थापित करने का निर्धारित राज्य को वरीयता के आधार पर अधिकार हो । इस तरह से विभिन्न राज्यों के कुछ क्षेत्र निर्धारित हो गए जिन्हें उनका प्रभाव – क्षेत्र कहा जाने लगा और जिसमें किसी अन्य राज्य का हस्तक्षेप राजनीतिक दृष्टि से अनुचित समझा जाने लगा ।
दूसेर महायुद्ध में इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ते हुए सोवियत संघ और पश्चिमी राष्ट्रों के पारस्परिक प्रबाव – क्षेत्र भी वस्तुतः निर्धारित हो गए जिन्हें माल्टा समझौते (1944) ने भी मान्यता दी ।
  • state immunity -- राज्य उन्मुक्ति
परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार विदेशों में राज्याध्यक्ष राजदूत, सार्वजनिक जलपोत, सशस्त्र सेनाएँ स्थानीय क्षेत्राधिकार से उन्मुक्त माने जाते हैं । इस सिद्धांत के अनेक आधार हैं । कोई संप्रभु दूसरे संप्रभु के अधीन नहीं माना जा सकता । पारस्परिकता और अंतर्राष्ट्रीय शिषअटाचार तथा व्यावहारिकता (क्योंकि विदेशी संप्रभु के विरूद्ध निर्णय लागू करना अव्यावहारिक होगा अथवा शत्रुतापूर्ण कार्य समझा जाएगा) भी यही माँग करते हैं कि एक राज्य दूरे राज्य के संप्रभु, उसके प्रतिनिधि अथवा उसके सार्वजनिक जलपोतों और सशस्त्र सेनाओं को अपने क्षेत्राधिकार से परे माने ।
दे. restrictive theory of state i mmunity भी ।
  • statelessness -- राज्यविहीनता, राष्ट्रहीनता
जब कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तिसमूह किसी भी राज्य अथवा राष्ट्र का नागरिक न हो तो ऐसी अवस्था को राष्ट्रहीनता और ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रिकताहीन व्यक्ति कहते हैं । यह स्थिति विभिन्न देशों के राष्ट्रीयता अथवा नागरिकता संबंधी क़ानूनों में मतभेद होने किसी प्रदेश मे प्रभुसत्ता बदलने किसी देश में क्रांति द्वारा सत्ता परिवर्तन होने अथवा राज्य द्वारा विराष्ट्रीकरण कर देने से उत्पन्न हो सकती है ।
1930 के जेनेवा संहिताकरण सम्मेलन में राज्यविहीनता के प्रश्न पर भी विचार हुआ था परंतु कोई संधि या समझौता इस संबंध में नहीं हो सका । अभी तक भी इस विषय से संबंधित कोई सुनिश्चित अंतर्राष्ट्रीय नियम नहीं है । प्रायः पारस्परिक संधि समझौतों द्वारा ही इसके समाधान का प्रायस किया जाता है ।
  • stateless person -- राज्यविहीन व्यक्ति
दे. Statelessness
  • state of war -- युद्ध – स्थिति, युद्ध – अवस्था
राज्यों द्वारा एक दूसरे के विरूद्ध सशस्त्र सैनिक बल प्रयोग की स्थिति । यह आवश्यक नहीं है कि युद्धरत राज्य वास्तव में एक दूसेर के विरूद्ध सशस्त्र कार्रवाई में भाग लें । युद्धावस्था का यह अनिवार्य तत्व है कि संबंधित राज्यों के पारस्परिक संबंधों में शांतिकालीन अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियम निलंबित हो जाते हैं और उनका स्थान युद्ध विधि के नियम ले लेते हैं । इसके अतिरिक्त युद्धरत राज्यों और अन्य राज्यों के पारस्परिक संबंधों मे तटस्थता के नियम लागू होने लागते हं । संक्षेप में, कहा जा सकता है कि युद्धावस्था वह स्थिति है जिसमें युद्धकारियों के परस्पर संबंधों मे युद्धविधि के नियम और युद्धकारियों तथा ग़ैर – युद्धकारियों के परस्पर संबंधो में तटस्थता के नियम लागू होने लगते हैं ।
  • state responsibility -- राज्य उत्तरदायित्व
परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि की यह मान्यता है कि किसी राज्य मे रहने वाले विदेशियों की जान और माल की सुरक्ष का दयित्व स्थानीय राज्य का है । उनको राज्य में रहने की अनुमति देने मे ही यह दायित्व निहित है । दूसरी ओर इन विदेशियों के मूल राज्य का दायित्व है इनके नागरिकों के सात न्याय वंचन होने की दशा मे इनको संरक्षण प्रदान करना । यह दायित्व इन नागरिकों की राज्य के प्रति निष्ठा से उत्पन्न होता है ।
राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखना स्थानीय राज्य का परम कर्तव्य है । किसी स्थिति में व्यवस्था बनाए रखने में असफल होने के कारण यदि स्थानीय नागरिकों के साथ – साथ विदेशियों के जीवन और संपत्ति को हानि पहुँचती है तो राज्य का कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता । राज्य का उत्तरदायित्व उस समय उत्पन्न होता है जब कोई खतरे की निश्चित आशंका विदेशियों के विषय मे हो और राज्य उनके रक्षार्थ आवश्यक और उचित उपाय न करे, अथवा आवश्यक उपाय करने के बावजूद विदेशियों के क्षतिग्रस्त होने पर अपराधियों को पकड़ने अथवा उनको दंड देने में आवश्यक तत्परता न दिखाए अथवा उनके साथ की गई न्यायिक कार्यवाही मात्र औपचारिकता हो और जिसमें न्याय मिलने की संभावना न हो आदि ।
उपर्युक्त परिस्थितियों में राज्य त्तरदयित्व उत्पन्न होता है . विदेशी नागरिक को संतोषजनक क्षतिपूर्ति अथवा तुष्टि न मिलने पर वह अपने राज्य से अपनी र से हस्तक्षेप करने का अनुरोध कर सकता है । अपने नागरिक की ओर से विदेशी राज्य द्वारा किए गए हस्तक्षेप को अंतर्राष्ट्रीय दावा कहते हैं । इस प्रकार राज्य उत्त्रदायित्व से अंतर्राष्ट्रीय दावे उत्पन्न होते हैं ।
  • state seccession -- राज्य – उत्तराधिकार
जब किसी राज्य में प्रभुसत्ता का किसी कारणवश हस्तांतरण होता है तब उस स्थिति को राज्य – उत्ताराधिकार की स्थिति कहा जाता है । इससे तात्पर्य यह है कि पूर्वगामी राज्य का वैधिक व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है और उसके अंतर्राष्ट्रीय अधिकार और कर्तव्य नवीन राजनीतिक इकाई, जिसे उत्राधिकारी राज्य कहा जाता है, को प्राप्त हो जाते हैं । मूलतः इन अधिकारों और कर्तव्यों के विष्य निम्मलिखित हैं :
अंतर्राष्ट्य संधियाँ और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता, ऋण, सार्वजनिक संपत्ति, वैयक्तिक अधिकार, ठेके, रियायतें, दुष्कर्म आदि ।
  • state territory -- राज्य – प्रदेश
राज्य के चार तत्वों में से एक तत्व प्रदेश है । राज्य एक प्रादेशिक इकाई है । राज्य के प्रदेश के तीन संघटक होते हैं: 1. भूमि – प्रदेश, 2. समुद्री – प्रदेश, 3. वायु – प्रदेश ।
राज्य की संप्रभुता इन तीनों प्रदेशों में एख समान लागू होती है । अंतर केवल इतना है कि राज्य के भूभागीय समुद्र से विदेशी जहाजों को निर्दोष गमन का अधइकारि होता है , परंतु वायु और भू – प्रदेश से विदेशियों को पारगमन का अधिकार नहीं होता ।
  • -- संविधि
इस शब्द का तीन अर्थों मे प्रयोग होता है :-
1. अंतर्राष्ट्रीय विधि की शब्दावली में संविधि पद का प्रयोग संधि के पर्यायवाची के रूप में का जा सकता है ।
2. किसी अंतर्राष्ट्रीय संगठन की संरचना तथा उसके कार्य संचालन के आधारभूत नियमों का संग्रह जैसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि (1945) ।
3. किसी भी संधि अथवा अभइसमय के कार्य संपादन ह तु संलग्न नियमों और विनियमों का संग्रह ।
  • -- वेस्टमिंस्टर संविधि
नवंबर 1931 में पारित इस विधि के अंतर्गत ब्रिटिश साम्राज्य के उन राज्यों को जो अधिक विकसित थे (कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैड, दक्षिण अफ्रीका), पूर्ण स्वायत्तता देने का प्रावधान किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि ये राज्य, जिन्हें अब डोमीनियन कहा जाने लगा, अलग अंतर्राष्ट्र्य व्यक्ति हो गए और इन्हें अन्य राज्यों से संधियाँ करने और उनके साथ दौत्य संबंध स्थापित करने के स्वतंत्र अधिकार प्राप्त हो गए । इस प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य मे ब्रिटिश सम्राट को अपना संवैधानिक प्रमुख मानते हे भी डोमीनियन स्थिति प्राप्त राज्यों की वैधिक स्थिति स्वतंत्र राज्यों के समान हो गई ।
इस प्रकार ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का उदय हुआ ।
  • Stimson doctrine of nonrecognition -- अमान्यता विषयक स्टिमसन सिद्धांत
संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री श्री स्टिमसन के मतानुसार ऐसी किसी स्थिति,संधि या प्रदेश प्राप्ति को मान्यता न दी जाए जो बल प्रयोग का परिणाम हो । यह सिद्धांत उन्होंने तब प्रतिपादित किया जब जापान ने जून 1931 में चीन के प्रांत मंचूरिया पर आक्रमण किया । उन्होंने कहा कि अमेरका पेरिस संधि (1928) का उल्लंघन करने वाले किसी समझौते,संधि अथवा स्थिति को मान्यता प्रदान नहीं करेगा क्योंकि उक्त संधि पर सं. रा. अमेरिका, चीन और जापान के हस्ताक्षर हैं । लीग ऑफ नेशन्स ने एक प्रस्ताव में स्टिमसन सिद्धांत को स्वीकार करते हुए काह कि लीग के सदस्यों का यह कर्तव्य है कि वे किसी ऐसी स्थिति, संधि या समझौते को मान्यता न दें जो लीग के अथवा पेरिससंधि के खिलाफ हो । आज भी महाशक्तियाँ यह स्वीकार करती हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर को भंग करने वाली किसी व्यवस्था को मान्यता प्रदान न की जैँ ।
  • straits -- जलडमरूमध्य
दे. International straits.
  • structure of treaty -- संधि संरचना
आधुनिक संधियों की बनावट इस प्रकार की होती है :-
(1) प्रस्तावना – इसमें संधिकर्ता राज्यों के अध्यक्षों या सरकारों का नामोल्लेख, संधि के प्रयोजन और पक्षकारों द्वारा संधि संपन्न करने के संकल्प का वर्न होता है ।
(2) संधि की मुख्य धाराएँ या व्यवस्थाएँ ।
(3) औपचारिक या प्रक्रियात्मक धाराएँ – जिनमें संधि के लागू होने की तिथि, उसकी संपुष्टि की प्रक्रिया, उसकी अवधि, उसकी भाषा, रजिस्ट्री विवादों का निपटान, संशोधन तथा समीक्षा आदि औपचारिक विषयों का वर्णन होता है ।
(4) पूर्णाधिकारियों के हस्ताक्षर, हस्ताक्षर की तारीख तथा स्थान का उल्लेख ।
  • subjective territoriality principle -- कर्मगत प्रादेशीयता सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई अपराध करने वाला व्यक्ति एक राज्य में हो और सके कर्म का प्रभाव दूसरे राज्य में पड़ता हो तो दूसरे राज्य को पहले राज्य के अपराध करने वाले व्यक्त को देंडित करने का अधिकार है । उदाहरणतः दो राज्यों के सीमांत भूभाग में एक व्यक्ति एक राज्य की सीमा के भीतर से दूसरे राज्य की सीमा के अंदर खड़े व्यक्ति को गोली का निशआना बनाता है तो गोली के अपराध का प्रभाव पड़ने वाले राज्य को (दूसरे राज्य को) पहले राज्य वाले अपराधी को दंड देने का अधिकार है । इस अधिकार (क्षेत्राधिकार) का आधार अपराध से उत्पन्न परिणाम है । जाली सिक्के बनाने तथा मादक द्रव्यों के निर्माण एवं यापार मे लगे अपराधियों को उस स्थिति में जबकि अपराध विदेशी स्थल से हो रहा हो दंडित करने के लिए प्रायः क्षेत्राधिकार के इसी सिद्धांत का सहारा लिया जाता है ।
  • subjects of International law -- अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय
अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय से तात्पर्य है वे निकाय अथवा इकाइयाँ जिन पर अंतर्राष्ट्रीय विधि लागू होती है । किसी भी विधि के विषय वे व्यक्ति अथवा निकाय होते हैं जिन्हें उस विधि – व्यवस्था से अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते है और जो अपने अधिकारों के हनन होने पर न्यायिक कार्रवाई कर सकते हैं । अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय भी वे व्यक्ति निकाय अथवा संगठन हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय विधि से अधिकार और कर्तव्य प्राप्त होते है और जो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने अधिकारों के हनन ह ने पर आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं । इनके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय होने के लिए दो अन्य अर्हताएँ हैं । एक जो अन्य विषयों से सांविधिक अथवा राजनयिक संबंध स्थापित करने की क्षमता रखते हैं और दूसरे, जो विधि के निर्माण में भाग लेने की क्षमता रखते हैं । परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार केवल राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय माने जाते रहे हैं । परुतु वर्तमान काल मे राज्यों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, कुछ विशिष्ट गैर – राज्य इकाइयों और कुछ सीमा तक व्यक्तियों को भी अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय माना जाता है ।
  • substantive copy -- मूल प्रतिलेख
दे. Action copy.
  • summit diplomacy -- शिखर राजनय
राजनय का वह स्वरूप जिसमें पारस्परिक विवादों अथवा समस्याओं के समाधान हेतु संबंधित राज्यों के राज्याध्यक्षों अथवा शआसनाध्यक्षों के सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं । यह स्वाभाविक ही है कि निचले स्तर या स्तरों पर गहन तैयारी के बार ही इस प्रकार के सम्मेलनों की उपयोगिता हो सकत है । स.रा. अमेरिका के राष्ट्रपति और भूतपूर्ण सोवियत संघ के प्रधानमंत्री के बीच अनेक शिखर सम्मेलन हुए हैं । गुट निरपेक्ष आंदोलन के शासनाध्यक्षों के नियमित रूप से शिकर सम्मेलन होते रहे हैं और इसी प्रकार दक्षेस (सार्क) के कार्य संचालन में इसके शासनाध्यक्षों के शिखर सम्मेलन भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं ।
  • suspension of hostilities -- युद्धविराम
दे. Ceasefire.
  • suzerinty -- अधिराज्यत्व
किसी राज्य द्वारा किसी संधि या समझौते के अंतर्गत किसी दूसरे राज्य के वैदेशिक संबंधों के संचालन पर पूर्ण नियंत्रण अथा धिसत्ता प्राप्त कर लेना । इस दूसरे राज्य के संदर्भ में अधिसत्ता प्राप्त करने वाले राज्य को अधिराज्य कहा जाता है । वर्तमान काल मे इस प्रकार के उदाहरण नगण्य हैं ।
  • Taiwan -- ताइवान
चीन का एक भाग ताइवान और कुछ अन्य टापू, जिन्हें पहले फारमोसा कहा जाता था । 1949 में चीनी भू – भाग पर माओ-त्स-तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी दल का आधिपत्य हो जाने के उपरांत चांगकाई शेक की राष्ट्रवादी सरकार ताइवैन में शरण ल ने के लिए विवश हुई और वहीं से पूरे चीन का शासक होने के दावा करने लगी, यहाँ तक कि सुरक्षा परिषद् के स्थायी स्थान पर भी उसी का प्रतिनिधि आसीन रहा । तब से 1971 तक बराबर यह प्रयास होता रह कि राष्ट्रवादी चीन का स्थान साम्यवादी चीन को दे दिया जाए । 1971 में यह प्रयास सफल हुआ परंतु ताइवान पर राष्ट्रवादीयों का आधिपत्य बना रहा । वस्तुतः ताइवान अब एक स्वतंत्र इकाई हो गाय है यद्यपि चीन का उस पर दावा बराबर बना हुआ है ।
  • termination of diplomatic mission -- राजनयिक मिशन की स्माप्ति
राजनयिक मिशन की समाप्ति अनेक प्रकार से हो सकती है । इनमें निम्न लिखित विधियाँ प्रमुख हैं :-
1. प्रत्यायित राज्य द्वारा अपने राजदूत को वापस बुला लाय जाना ;
2. प्रत्यायित राज्य द्वारा इस बात की अधिसूचना देने पर कि राजदूत का कार्य समाप्त हो गाय है ;
3. जहां राजदूत प्रत्यायित है, उस देश द्वारा उसे वापस बुलाए जाने की मां किए जाने पर ;
4. जहाँ राजदूत प्रत्यायितहै, उस राज्य द्वारा किसी राजदूत को अवाँछित व्यक्तिघोषित कर दिए जाने पर ; और
5. विशेष मिशनों का समापन उनके उद्देश्य की पूर्ति के साथ हो जाता है ।
  • termination of occupation -- आधिपत्य की समाप्ति
आधिपत्य के अंत का अर्थ यह है कि वैध संप्रभु द्वारा पुनः सत्ता प राप्त कर लेना अथवा संबंधित प्रदेश का अंतिम रूप से निपटारा कर दिया जाना । अधिपत्य की समाप्ति के निम्नलिखित उपाय हैं :-
1. प्रदेश को वैध संप्रभु द्वारा शत्रु आधिपत्य से मुक्त करा लिया जाए ;
2. स्थानीय जनता के सफल विद्रोह से विदेशी आधिपत्य समाप्त हो जाए ;
3. शआंति – संधि के अंतर्गत प्रदेश को मूल संप्रभु को लौटा दिया जाए या वह शत्रु – राज्य में मिला लिया जाए और
4. प्रदेश को एकपक्षीय घोषणा द्वारा विजेता राज्य अपने प्रदेश का भाग बना ले ।
  • termination of treaty -- संधि की समाप्ति
प्रायः संधियाँ एक निश्चित अवधि के लिए की जाती हैं । अवधि समाप्त हो जाने पर संधि स्वतः समाप्त समझी जाती है जब तक कि संबंधित पक्षकारों की पारस्परिक सहमति से निर्धारित प्रक्रिया द्वारा उसका नवीकरण न कर दिया जाए ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि अवधि पूर्ण होने से पूर्व भी संधि की समाप्ति के नियम निर्धारित करती है, जो इस प्रकार है :-
1. संबंधित पक्षकारों की पारस्परिक सहमति से ;
2. संबंधित राज्यों में युद्ध छिड़ जाने से भी कुछ संधियाँ विशेषकर द्विपक्षीय संधियाँ समाप्त हो जाती है ;
3. यदि एक पक्ष द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संधि का पालन न करे तो दूसरा पक्ष या अन्य पक्ष उस संधि के पालन न करने का दावा कर सकते हैं ;
4. यदि उन परिस्थितियों मे आमूल – चूल परिवर्तन आ जाए जो संधि – संपादन की आवश्यक दशाएँ थी ; और
5. यदि एक पक्षकार का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए तो द्विपक्षीय संधियाँ समाप्त मानी जाती हैं ।
  • termination of war -- युद्ध की समाप्ति
युद्ध की समाप्ति निम्न तरीकों से हो सकती है :-
1. सशस्त्र कार्रवाई रोक दिए जाने से ;
2. शत्रु – प्रदेश पर विजय प्राप्ति के उपरांत युद्धकारी द्वारा एकपक्षीय घोषणा करके शत्रु – प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिए जाने से ;
3. शांति – संधि के द्वारा और
4. संबंधित युद्धकारियों के द्वारा स्वीकृत किसी भी अन्य उपाय द्वारा ।
  • terra nullius -- स्वामीविहीन भूमि
दे. No man’s land.
  • territorial asylum -- प्रादेशिक शरण
जब कोई राज्य किसी व्यक्ति को अपने प्रदेश में शरण देता है तो वह प्रादेशिक शरण कहलाती है । प्रदेश पर पूर्ण प्रभुसत्ता होने के कारण राज्य को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति को चाहे वह किसी प्रकार का अपराधी भी क्यों न हो अपने यहाँ प्रवेश करने ठहरने की अनुमति प्रदान कर शरण दे सकता है बशर्ते किसी संधि द्वारा उसने ऐसा करने पर कोई प्रतिबंध लगाना स्वीकार न कर लिया हो ।
  • territorial controversies -- भूभागीय विवाद
राज्यों के भूभाग संबंधी पारस्परिक मतभेद अथवा विवादि जिनेहें वे अंतर्राष्ट्रीय विधि के विभिन्न नियमों के अंतर्गत पारस्परिक वार्ताओं द्वारा सुलझाने का प्रयत्न करते हैं । प्रायः राज्यों के पारस्परिक दावे ऐतिहासिक तथ्यों, खोज,. आधिपत्य आदि पर आधारित होते हैं ।
  • territoriality principle -- प्रादेशीयता सिद्धांत
वह सिद्धांत जिसके अनुसार किसी राज्य द्वारा क्षेत्राधिकार का दावा इस आधार पर किया जाता है कि संबंधित व्यक्ति अथवा वस्तु उसकी प्रादेशिक सीमाओं में है अथवा संबंधित घटना उसकी प्रादेशिक सीमा में घटित हुई है ।
  • territorial jurisdiction -- भूभागीय अधिकार – क्षेत्र
प्रादेशिक सीमा से निर्धारित अधिकार – क्षेत्र जिसमें व्यापक रूप से (1) भीतरी भूभाग (2) अंतर्देशीय जल – क्षेत्र (3) भूभागीयसमुद्र, और (4) एक निश्चित सीमा तक आकाशीय भाग एवं इन विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले निवासी तथा वस्तुएँ सम्मिलित होती है । उनमें स्थित प्रत्येक वस्तु, रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति और घटने वाली प्रत्येक घटना पर उस राज्य के कानून लागू होते हैं ।
  • territorial sea -- प्रादेशिक समुद्र
समुद्रतटीय देश के समुद्र तट से संलग्न समुद्र जिस पर तटवर्ती राज्य की संप्रभुता मानी जाती है । किंतु इसका विस्तार क्या हो और उसे निश्चित करने के लिए कहां से उसे नापा जाए, इसके बारे में विभिन्न राज्यों के बीच परस्पर – विरोधी विचार हैं । समुद्रतट के किस हिस्से से प्रादेशिक समुद्र की नाप शुरू की जाए इसके बारे में सामान्य सिद्धांत यह है कि इस नाप की आधार रेखा निम्न जलचिन्ह अर्थात् भाटे में समुद्र के पानी हटन की सबसे पिछली रेका को माना जाए । किंतु इस रेखा से प्रारंभ करके प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई कितने मील मानी जाए इसके बारे में काफी मतभेद हैं । शुरू में बिंरशॉक ने कहा था कि तोप के गोले की मार तक का समुद्री क्षेत्र प्रादेशिक समुद्र होना चाहिए । किंतु बाद मे सन् 1958 में जेनेवा में समुद्री क़ानून सम्मेलन बुलाया गया । प्रादेशिक समुद्र की सीमा क्या हो, इस विषय पर विभिन्न देशों में गंभीर मतभेद थे, इसलिए कोई एकमत निर्णय नहीं लिया गाय और विभिन्न देशों ने तीन मील से लेकर बारह मील तक की दूरी होने का समर्थन किया । अंततः सन्म 1982 में स्वीकृत समुद्र विधि अभिसमय में भूभागीय या प्रादेशिक समुद्र (जिसे भू – भागीय जल क्षेत्र अथवा समुद्री मेखला कहते हैं ) की दूरी बारह मील निश्चित कर दी गई ।
  • territorial sovereigaty -- प्रादेशिक प्रभुसत्ता
राज्य के विशिष्ट तत्वों में निश्चित भूप्रदेश और उस पर पूर्ण तथा अनन्य सर्वोच्च सत्ता का होना अनिवार्य तत्व है । इस प्रभुसत्ता का अर्थ यह है कि राज्य के प्रदेश में विद्यमान व्यक्तियों, संपत्ति, प्रकृतिक संपदा पर राज्य का पूर्ण, अनन्य और स्वतंत्र अधिकार है , अन्य राज्य किसी भी परिस्थति में उस अधिकार को सीमित अथवा मर्यादित नहीं कर सकता । राज्यों के संबंद में प्रभुसत्ता का अर्थ स्वतंत्रता है और इसलिए यह अपेक्षा की जाती है कि विश्व के विभिन्न राज्य एक दूसेर की प्रादेशिक प्रभुस्त्ता का सम्मान करेंगे ।
  • territorial waters -- भूभागीय समुद्र, प्रादेशिक जलक्षेत्र
दे. territorial sea.
  • terrorism -- आतंकवादी
राजनीतिक और सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों अथवा व्यक्ति समूहों द्वारा अवैध हिंसात्मक और ध्वंसात्मक उपायों का सहारा लेना जिसका लक्ष्य प्रायः निर्दोष व्यक्ति अथवा व्यक्ति – समूह होते हैं और जिसमें अनेकि प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं जैसे हत्याएँ, विमान – अपहरण भयादोहन (blackmail) आदि ।
वर्तमान समय में आतंकवादी गतिविधियों ने अंतर्राष्ट्रीय विधिशास्त्रियों का ध्यान आकर्षित किया है और इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या को नियंत्रित करन में अंतर्राष्ट्रीय विधि शात्रियों ने भी योगदान दिया है । उन्होंने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि आतंकवाद निर्दोष व्यक्तियों और निकायों के विरूद्ध किया गया अपराध मात्र है जिसको निर्धारित और दंडित करने के लिए राजनीतिक तर्क को प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए । अनेक प्रत्यर्पण संधियों में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि आतंकवादियों को राजनीतिक अपराधियों की श्रेणी मे नहीं रखा जाएगा । कनाडा और ब्रिटेन के साथ हुई भारत की प्रत्यर्पण संधियों में आतंकवादियों को दंड देने और उनके प्रत्यर्पण स्पष्ट व्यवस्था की गई है ।
आतंकवाद का एक क्षेत्र वायु उड़ान है । इन क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधोयं को रोकने के हेतु मांट्रियल अभिसमय और टोकियो अभइसमय में व्यवस्थाएँ की गई हैं ।
  • thalweg -- थाल्वेग सिद्धांत
नौगम्य नदियों में सबसे गहरी जलधारा जिसे जर्मन भाषा में थाल्वेग कहते हैं । ऐसी नदियों में विभाजन इसी धारा के बीच से किया जाता है । ओपेनहायम ने इसे नदी की मध्यधारा कहा है ।
दे. Medium filma aquaeभी ।
  • theatre of war -- युद्ध क्षेत्र
वे समस्त भू, समुद्री तथा आकाशी प्रदेश जो प्रत्यक्ष रूप से युद्ध एवं विभिन्न प्रकार की युद्धात्मक कार्रवाइयों, गतिविधियों, क्रियाकलापों एवं संक्रियाओं में अंतर्गस्त हो जाते हैं ।
  • theory of contiguity -- समीपता सिद्धांत
दे. Contiguity theory.
  • theory of dualism -- द्वैधता सिद्धांत
दे. Dualistic theory.
  • theory of positivism -- यथार्थवादी सिद्धांत
दे. Positivist school.
  • three mile rule -- तीन मील का नियम
परंपरा से भूभागीय समुद्र की तट से दूरी तीन समुद्री मील मानी जाती रही है । पंद्रहवीं शताब्दी में अनेक ऐसे दृष्टांत मिलते हैं जिनमें राज्यों ने अपने – अपने समीपस्थ समुद्रों के स्वामित्व का दावा किया जिनके विरोध में ग्रोशस ने मुक्त समुद्र का सिद्धांत प्रतिपादित किया । सन् 1702 में बिंकरशॉक ने ग्रोशस के सिद्धांत को संशोधिक करते हुए यह स्वीकार किया कि तट से जिस सीमा तक समुद्र पर प्रभावकारी आधिपत्य किया जा सके वहाँ तक का समुद्र तटवर्ती राज्य का भूभाग समजा जाना चाहिए । उस समय तोप के गोले की अधिकतम मार तीन मील तक समझी जाती थी । अतः यह नियम प्रतिपादित किया गया कि तटवर्ती राज्य की समुद्रवर्ती सीमा तोप के गोले की मार तक अर्थात् तीन मील तक होनी चाहिए और महासमुद्र के तट से संलग्न तीन मील की दूरी तक के भाग को भूभागीय समुद्र कहा जाना चाहिए । इस प्रकार भूभागीय समुद्र की दूरी निर्धारित करने के लिए तीन मील के नियम का प्रादुर्भाव हुआ ।
ऐंग्लो – सेक्सन राज्य बराबर इस नियम का पालन करते रहे । परंतु लातीनी – अमेरिकी राज्य इससे संतुष्ट नहीं थे और उनके राष्ट्रीय दावने दो सौ मील के भूभागीय समुद्र के थे ।
सन् 1930 से बराबर यह प्रयास किया जाता रहा कि भूभागीय समुद्र की दूरी नियमबद्ध कर दी जाए । सन्म 1930 में आयोजित हेग संहिताकरण सम्मेलन में तीन मील के नियम पर राज्य सहमत न हो सके । सन्म 1958 में जेनेवा सम्मेलन में भी भूभागीय समुद्र की दूरी पर कोई समझौता नहीं हो सका । वास्तव में सन् 1958 तक तीन मील के समर्थक केवल ऐंगल् – सेक्सन राज्य ही रह गए थे । अधिकतर साम्यवादी राज्य बारह मील के भूभागीय समुद्र के पक्ष में जबकि लातीनी – अमेरिकी राज्य अपने 200 मील के भूभागीय समुद्र दावे पर अड़े रहे ।
अंत में तृतीय समुद्र विधि सम्मेलन में इस प्रश्न का समाधान हो पाया । 10 दिसंबर, 1982 को स्वीकृत समुद्र विदि अभिसमय में यह प्रावधान किया गया कि भूभागीय समुद्र तट से 12 मील की दूरी तक का होगा । इस प्रकार तीन मील के नियम का स्थान अब बारह मील के नियम ने ले लिया है ।
  • Tokyo Convention, 1963 -- टोकियो अभिसमय, 1963
इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आकाश – क्षेत्र में विमानों पर हुए अपराधों के लिए दण्ड की समुचित व्यवस्था करन थातीकि अपराधी क्षेत्राधिकार के अभाव में दंड से न बच सकें । इस हेतु यह व्यवस्था की गई कि :-
1. विमान क पंजीकृत राज्य इन अपराधियों के विरूद्ध कार्रवाई कर सकता है
2. कोई भी हस्ताक्षरकर्ता राज्य जो इनको पकड़ पाए इनके विरूद्ध कार्रवाई कर सकता है अथवा इनका प्रत्यर्पण कर सकता है
3. प्रत्यर्पण के लिए विमान पर हुआ कोई अपराध उसके पंजीकर्ता राज्य के प्रदेश में हुआ माना जाएगा और
4. राष्ट्रीयता अथवा कर्मगत प्रादेशिकता के सिद्धांतों के आधार पर भी इन अपराधियों पर क्षेत्राधिकार का दावा किया जा सकेगा ।
सीमाशुल्क पुलिस अथवा सैनिक विमान इस अभिसमय की परिधि में नहीं आते ।
प्रत्येक हस्ताक्षरकर्ता राज्य का कर्तव्य है कि वह विमान और उस पर लदे माल को उसके वैध स्वामी को लौटाने की व्यवस्था करे ।
  • Tokyo International military Tribunal -- टोकियो सैनिक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण
दूसरे महायुद्ध के उपरांत जापानी सैनिक एवं राजनीतिक उच्च पदाधिकारियों को युद्ध अपराधों के लिए दंडित करने के उद्देश्य से मित्र राषअट्रों द्वारा गठित सैनिक न्यायधिकरण जिसने जापानी अधिकारियों को सुदूर पूर्व में किए गए युद्ध – अपराधों शांति विरोधी अपराधों और मानवता विरोधी अपराधों के लिए दंडित किया था ।
वास्तव में न्यूरेम्बर्ग न्यायिक कार्यवाही और टोकियो की उपर्युक्त न्यायिक कार्यवाही दोनों के आधार और लक्ष्य समान थे और दोनों की समान रूप से आलोचना हुई है । टोकियो न्यायाधिकरण में एक भारतीय न्यायाधीश भी थे जिनका नाम था न्यायामूर्ति राधाविनोद पाल । न्यायामूर्ति राधाविनोद पाल ने बहुमत के निर्णय को अस्वीकार करते हुए अपना विमत विस्तृत रूप से लिपिबद्ध किया जो बाद में एक ग्रंथ के रूप में प्रकाशित हुआ ।
  • total war -- पूर्ण युद्ध, सर्वागीण युद्ध
युद्ध की वर्तमानकालीन अवधारणा जिसके अनुसार युद्धकारी राज्यो की न केवल थल, नौ तथा वायु सेनाएँ बल्कि उनकी समग्र जनता भी किसी न किसी रूप में युद्ध की संक्रिया में भागीदार समझी जाती है । पूर्ण युद्ध के अंतर्गत अमुबमों, विषैली गैसों और प्रक्षेपास्त्रों के निस्संकोच प्रयोग से सैनिक – असैनिक लक्षोयं, योधी और अयोधी, तटस्थ और शत्रु के भेद नहीं रह जाते और राज्य के समस्त संसाधन – उत्पादन व्यवस्था, यातायात और संचार साधन, आर्थिक प्रणाली आदि युद्ध के लिए समर्पित हो जाते हैं ।
  • transfromation theory -- रूपांतरण सिद्धांत
जब अंतर्राष्ट्रीय संधियों को राज्य की विधायिका क़ानून के रूप में परिवर्तित कर देती हैं तो वे उस राज्य के राष्ट्रीय क़ानून का भाग बन जाती है । इस प्रक्रिया को विशिष्ट अंगीकरण भी कहा जाता है ।
दे. Specific adoption theory भी ।
  • transit agreement -- पारगमन समझौता
किसी देश के भूभाग से किसी राज्य अथवा उसके नागरिकों एवं व्यापारियों को आवागमन का अधिकार देने के उद्देश्य से किया गया पारस्परिक समझौता । इस प्रकार के समझौतों का एक उदाहरण भारत – नेपाल व्यापार एवं पारगमन संधि है । चूँकि नेपाल एक भू – बद्ध राज्य है, अतः उसके व्यापार को समुद्री नौ – परिवहन की सुविधा देने के ले भारत ने इस संधि के अंतर्गत उसे अपने प्रदेश से पारगमन की सुविधा प्रदान की है ।
  • transnational law -- पारराष्ट्रीय विधि
वर्तमान काल में अनेक लेखकों ने यह विचार व्यक्त किय है कि अंतर्राष्रीय विदि संतोषजनक पद नहीं है क्योंकि इससे यह आभास होता है कि यह विधि राज्यों के मध्य कार्यशील है जबकि उनके विचार से यह राज्यों से स्वतंत्र और सर्वोपरि वैधिक व्यवस्था मानी जीनी चाहिए । अतः इस पद से असंतुष्ट होकर अनेक लेखकों ने अनेक नामों का सुझाव दिया है । जैसे कार्बेट ने विश्व विधिस जैक्स ने मानव जाति की सामान्य विधि और फिलिप जैसप ने इसे पारराष्ट्रीय विधि कहे जाने का सुझाव दिया है । एक वर्तमान प्रकाशन में लुई हैंकिन, फ्रीडमैन और लिसिट जीन नामक तीन विद्वानों ने इसी संबोधन को स्वीकार किया है ।
अतः पारराष्ट्रीय विधि से तात्पर्य राज्यों के आचरण को नियमित और नियंत्रित करने वाले ऐसे नियमों और सिद्धांतों को सूह से है जो राज्यों से स्वतंत्र तथा उनके लिए बाध्यकारी हैं ।
  • treaty -- संधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि का मूल स्रोत विशेषकर विधि – निर्मात्री संधि को माना जाता है ।
संधि का अर्थ है वह लिखित औपचारिक प्रपत्र जिसमें दो या अधिक राज्य अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत कोई पारस्परिक संबंध स्थापित करना स्वीकार करते हैं ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में संधियों का वर्गीकरण विधि निर्मात्री और संधि – संविदा दो वर्गों में किया जाता है ।
संधियाँ केवल हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के लिए बाध्यकारी होती हैं और अंतर्राष्ट्रीय विधि का नियम यह है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का संबंधित राज्यों द्वारा निष्टाफूर्वक पालन किया जाना चाहिए । इसे संधि का सद्भाव नियम कहते हैं ।
दे. Pacta sunt servanda भी ।
  • treaty contracts -- संधि संविदाएँ
मोटे रूप से संधियाँ दो प्रकार की होती हैं । एक, विधि निर्मात्री संधि और दूसरी संधि संविदा ।
संधि संविदा प्रायः दो पक्षीय होती हैं । इनका उद्देश्य हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक अथवा अन्य किसी परस्पर हित संबंधी विषय पर बाध्याकारी व्यवस्था स्थापित करना होता है ।
प्रायः संधि संविदाएँ अंतर्राष्ट्रीय विधि की प्रत्यक्ष स्रोत नहीं मानी जातीं, परंतु अप्रत्यक्ष रूप से वे अंतर्राष्ट्रीय विधि के निर्माण और विकास में प्रभावकारी हो सकती हैं ।
  • treaty instrument -- संधि लेख
दो या अधिक राज्यों के मध्य किसी पारस्परिक समझौते से संबंधित उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों का वर्णन करन वाल विधिक प्रलेख अथवा प्रपत्र जिस पर संबंधित राज्यों के प्राधिकृत प्रतिनिधि अपने – अपने हस्ताक्षर करते हैं । इस प्रकार के प्रलेख अथवा प्रपत्र की संबद्ध राज्यों द्वारा संपुष्टि किया जाना आवश्यक है ।
  • treaty of alliance -- संश्रय – संधि
दो या अधिक राज्यों के मध्य किसी विषय को लेकर, विशेषकर सुरक्षा के प्रश्न को लेकर आपसी सहयोग व सहायता के लिए गटबंधन और तत्संबंधी समझौता जो संबंधित राज्यों के लिए वैधिक रूप से बाध्यकारी माना जाता है ।
  • treaty of arbitration -- विवाचन – संधि
दो या अधिक राज्यों के बीच ऐसी संधि जिसमें यह प्रावधान होता है कि संबंध राज्यों में पारस्परिक विवाद निर्णय के लिए कीस पंच के सौंपे जाएँगे । सन् 1794 में इंगलैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा संपादित एक विवाचन – संधि के अनुसार उनके अनेक पारस्परिक विवाद विवाचन द्वारा तय होते रहे । विवाचन – संधि में विवाचन के मूल सिद्धांतों और इसकी प्रक्रिया का विस्तृत विवरण होता है । सामान्य रूप से वीवाचन – संधियों में अंतर्राष्ट्रीय विधि के मूल सिद्धांतों का समावेश किया जाता ह ।
विवाचन – संधि के अंतर्गत संबंद्ध राज्यों को विवाचकों का निर्णय अनिवार्य रूप से स्वीकार करना पड़ता है ।
न्यायाधिकरण
व्यापक अर्थ में किसी भी न्यायालय को न्यायाधिकरण कहा जा सकता है परंतु व्यवहार में न्यायादिखरण उन न्यायिक निकायों अथवा आयोगों को कहते हैं जो विमिन्म कानूनों के अंतर्गत गठित के जाते हैं और संबंधित क़ानूनों के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले मामलों का निर्णय करते हैं । इन्हे प्रशासकीय अधिकरण भी कहा जाता है और इनके कार्यों को प्रशासकीय न्याय । पंच निर्णय करने वाले आयोग अथवा निकाय को भी प्रायः यही नाम दिया जाता है ।
  • tribunal -- न्यायाधिकरण
व्यापक अर्थ में किसी भी न्यायालय को न्यायाधिकरण कहा जा सकता है परंतु व्यवहार में न्यायाधिकरण उन न्यायिक निकायों अथवा आयोगों को कहते हैं जो विभिन्न क़ानूनों के अंतर्गत गठित किए जाते हैं और संबंधित क़ानूनों के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले मामलों का निर्णय करते हैं । इन्हें प्रशासकीय अधिकरण भी कहा जाता है और इनके कार्यों को प्रशासकीय न्याय । पंच निर्णय करने वाले आयोग अथवा निकाय को भी प्रायः यही नाम दिया जाता है ।
  • truce -- युद्ध – स्थगन संधि
विरोधी सेनाओं के सेनापतियों द्वारा पारस्परिक समझौते द्वारा युद्ध का स्थगन काय जाना अथवा सशस्त्र कार्रवाई का बंद काय जाना ।
  • Trusteeship Council -- न्यास परिषद्
संयुक्त राष्ट्र संघ के छह प्रधान अंगों में से एक प्रधान अंग । इसके सदस्य न्यास प्रदेशों का शासन करने वाले आस्ट्रेलिया, बेल्ज़ियम, फ्रांस, इटली, ब्रेटिन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सुरक्षा परिषद् के न्यास प्रदेशों का शासन न करने वाले स्थायी सदस्य देश अर्थात् चीन र सोवियत संघ तथा इतनी ही संख्या में महासभा द्वारा तीन वर्ष के लिए चुने जाने वाले देश थे ।
इस परिषद् को प्रशासक सत्ता द्वारा भेजे गए वार्षित प्रतिवेदनों पर विचार करने न्यास प्रदेशों के निवासियों के प्रार्थना – पत्रों को प्राप्त करन उन पर विचार करने, प्रशासक सत्ता की सहमति से न्यास प्रदेशों में निरीक्षण हेतु प्रतिनिधिमंडल भेजने, वहाँ के निवासोयं की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा संबंधी प्रगति के बारे में प्रश्नावली तैयार कनरे वऔर न्यास समझौतों के अनुसार अन्य आवश्यक कार्रवाई करने के कार्य सौंपे गए ।
  • Trusteeship system -- न्यास प्रणाली, न्यास व्यवस्था
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात लीग आफ नेशन्स द्वारा स्थापित अधिदेश व्यवस्था (mandate sytem) के स्थान पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात न्यास पद्धति स्थापित की । इसके अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ ने अधिदेशाधीन प्रदेशों द्वितीय विश्व युद्ध मे पराजित देशों से छीने गे प्रदेशों और राज्यों द्वारा स्वेच्छा से न्यास पद्धति के लिए सौंपे गे प्रदेशों पर न्यास पद्धति लागू कर दी । इस कार्य हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ जिस देश को न्यास प्रदेशों पर न्यास पद्धति लागू कर दी। इस कार्य हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ जिस देश को न्यास प्रदेश का शासन सौंपता है उसे प्रशासक सत्ता (administrative authority) कहा जाता ह , यह सत्ता संयुक्त राष्ट्र संघ और प्रशसक सत्ता के बीच एक समझौते द्वारा सौंपी जाती है और यह एक राज्य अथवा कई राज्यों में मिलकर निहित हो सकती है ।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर की धारा 76 के अनुसार यह पद्धति अंतर्राष्ट्रीय शआंति और सुरक्षा बढ़ाने न्यास प्रदेश के निवासियों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक उन्नति एवं पूर्ण स्वतंत्रता की ओर उन्हें अग्रसर करने आदि उद्देश्यों के लिए लागू की गई । संतोष की बात है कि प्रशांत महासागर के द्वीपों को छोड़कर सभी न्यासित प्रदेश स्वतंत्र हो गए हैं ।
  • trust territory -- न्यासित प्रदेश
वे प्रदेश जो संयुक्त राष्ट्र की न्यास – व्यवस्था के अधीन रखे गए थे और जिनका प्रशासन संयुक्त राष्ट्र द्वारा किसी उन्नत राष्ट्र को पारस्परिक समझौते के अंतर्गत इस उद्देश्य मसे दिया गया था कि वह इनका विकास कर इन्हें स्वतंत्रता के योग्य बनाए । ऐसे प्रदेशों के कुछ उदाहरण हैं, प्रशांत सागर के द्वीप समूह, सुमालीलैंड, नौरो आदि ।
  • Two Freedoms Agreement (=International Air Services Transit Agreement) -- दो स्वतंत्रताएँ करार, अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवा पारगमन समझौता
1944 में शिकागो सम्मेलन मे हवाई कंपनियों को प्रदान की गई आकाश की दो स्वतंत्रताएँ जो अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवा पारगमन समझौता के म से विख्यात हैं । ये दो स्वतंत्रताएँ इस प्रकार थीं :-
1. बिना भूमि पर उतेर विदेशी राज्य में उड़ान कनरे की स्वतंत्रता तथा
2. दूसरे राज्यों में यातायात से भिन्न उद्देश्यों के लिए भूमि पर उतरने की स्वतंत्रता ।
  • ultimatum -- पूर्व चेतावनी, अल्टीमेटम
युद्ध की घोषणा करने से पूर्व शत्रु पक्ष को भेजा गया प्रपत्र जिसमें उल्लिखित माँग के निर्धारित समय में पूरा न होने पर बिना कीस अन्य औपचारिकता के युद्ध की घोषणा की जा सकती है । इस प्रपत्र को अल्टीमेटम कहते हैं ।
सन् 1907 के हेग अभिसमय के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था कि पूर्व चेतावनी या अल्टीमेटम या युद्ध की विधिवत घोषणा के बिना युद्ध प्रारंभ नहीं किया जाना चाहिए । परंतु पिचले लगभग 50 वर्णों से इस अभिसमय का अधिक महत्व नहीं रहा है ।
  • U.N. Charter -- संयुक्त राष्ट्र चार्टर
आंतर्राष्ट्रीय विधि की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र का चार्टर इस विश्व संगठन का आधारभूत क़ानून है । इस चार्टर के अनुसार इस विश्व संगठन की संरचना, इसके विभिन्न अंगों का गठन और उनके अधिकार तथा कर्तव्य एवं पारस्परिक संबंध निर्दारित होते हं । चार्टर की स्थिति एक बहुराष्रीय संधि की है ।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर 26 जून, 1945 को सान फ्रांसिस्को में 50 राज्यों ने हस्ताक्षर किए थे जो संयुक्त राष्ट्र के मूल संस्थापक राज्य कहे जाते हैं । चार्टर में कुल मिलाकर 111 अनुच्छेद हैं, जिन्हें 19 अध्यायों में विभक्त किया गया है ।
  • unconditional surrender -- पूर्ण समर्पण, अशर्त समर्पण
पराजित ह ने पर विजयी राज्य के समक्ष किया गया आत्म – समर्पण जिसके परिणामस्वरूप राज्य पर पूर्ण नियंत्रण और क्षेत्राधिकार विजयी राज्य को प्राप्त हो जाता है और मूल शआसन सत्ता का वैधिक अस्तित्व पूर्णतः समाप्त हो जाता है ।
  • U.N. Day -- संयुक्त राष्ट्र दिवस
यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर 26 जून, 1945 को हस्ताक्षर हो गए थे परंतु 24 अक्तूबर 1945 तक इस चार्टर की संपुष्टि इसके मूल संस्थापक राज्यों द्वारा हुई । अतः यह चार्टर 24 अक्तूबर, 1945 से प्रभावकारी हुआ और इसीलिए यह दिन संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • undeclared war -- अघोषित युद्ध
ऐसी स्थिति जिसमें किसी राज्य द्वारा किसी दूसरे राज्य के विरूद्ध सशस्त्र सैनिक कार्यवाही की गई हो परंतु दोनों पक्षों में से कोई भी इसे युद्ध – अवस्था मानने लिए तैयार न हो, यद्यपि संबंधित कार्रवाई वस्तुतः और वैधिक दृष्टि से युद्ध ही हो । उदाहरणार्थ 1937 में जापान द्वारा चीन के विरूद्ध की गई सशस्त्र कार्रवाई ।
  • unfriendly act -- अमैत्रीपूर्ण कार्य
दे. Hostile act.
  • unfrindly state -- अमित्र राज्य
किसी राज्य की दृष्टि में ऐसा विदेशी राज्य जिसका आचरण नीतियाँ अथवा व्यवहार अवैध न होते हे भी उसके हितों के प्रतिकूल हो र इस कारण उसके लिए हानिकारक हो ।
  • U.N. General Assemble -- संयुक्त राष्ट्र महासभा
दे. General Assembly.
  • United Nations High Commission for Refugees (U.N.H.C.R.) -- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त
इसी स्थापना महासभा द्वारा 1951 में की गई थी । इसका उद्देश्य शरणार्थियों को अस्थायी सहायता व संरक्षण प्रदान करना था । इसने द्वितीय महायुद्ध के दौरान कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय शरणारथी संगठन का स्थान ले लिया । उच्चायुक्त के कार्यालय को केवल प्रशासनिक व्यय के ले संयुक्त राष्ट्र से सहायता मिलती है । अन्य कार्यक्रमों के ले यह ऐच्छिक राष्ट्रीय और वैयक्तिक अनुदानों पर आश्रित रहता है ।
  • United Nations Organisation (U.N.O) -- संयुक्त राष्ट्र संघ
व्यवहार में इसे केवल संयुक्त राष्ट्र के नाम से संबोधित किया जाता है । इसकी स्थापना द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति पर 26 जून, 1945 को सेन फ्रांसिस्को सम्मेलन मे स्वीकृत एक चार्टर के अंतगर्त हुई थी । इसका मुख्यालय न्यूयार्क (सं.रा. अमेरिका) में है। इसके 50 संस्थापक राज्य थे जिनमें भारत भी एक था परंतु अबयह संख्या लगभग 175 हो गई है ।
विश्व संगठन के रूप में संयुक्त राषअट्र को राष्ट्र संघ का उत्तराधिकारी माना जाता है । इसके उद्देश्य और सिद्धांत चार्टर में ही दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं
उद्देश्य (1) अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना (2) राज्यों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंदों का विकास करना (3) अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समायोजन करना तता (4) इन उद्देश्यों की प्राप्ति में राज्यों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना ।
सिद्धांत (1) संगठन सदस्य – राज्यों की समानता तथा संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित होगा (2) सभी सदस्य – राज्य चार्टर के अंतर्गत वहन किए गए अपने दायित्वों का निष्ठापूर्विक पालन करेंगे (3) वे अपने अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिमय उपायों से इस प्रकार समाधान करेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय यांति, सुरक्षा और को कोई खतरा न हो (4) वे अपने परस्पर संबंधों में इस परार बल प्रयोग नहीं करेंगे और न बलप्रयोग की धमकी देंगे जो संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के प्रतिकूल हो (5) वे संयुक्त राष्ट्री द्वारा चाटर के अनुरूप की गई प्रत्येक कार्रवी मे संयुक्त राष्ट्र की सहयात करेंगे और जिस राज्य के विरूद्ध कार्रवाई की जा रही है उसे काओ सहयाता नहीं देंगे (6) संगठन इस बात का प्रयत्न करेगा कि जो राज्य इसकेसदस्य नहीं भी हैं वे भी जहाँ तक अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक है, इन सिद्धांतों के अनुरूप ही आचरण करेंगे (7) संयुक्त राष्ट्र सदस्य – राज्यों के उन मामलों में ह स्तक्षेप करने का अधिकारी नहीं होगा जो उनके घरेलू क्षत्राधिकार में आते हैं ।
संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंग हैं महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक तात सामाजिक परिषद्, न्यास परिषद्, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय ।
संयुक्त राष्ट्र सदस्य – राज्यो का मात्र संख्यात्मक समूह नहीं है अपितु वह स्वयं में अपने सदस्य – राज्यों से भिन्न और सावतंत्र एक वैधिक इकाई है । इतः संयुक्त राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय विधि का विषय अर्थात एक वैधिक व्यक्ति माना जाता है ।
  • Uniting for peace Resolution -- शांति हेतु एकीकरण प्रस्ताव
कोरिया के युद्ध के दौरीन सुरक्षा परिषद् में सोवियत निषोधाधइकार की वजह से उत्तरी कोरिया के विरूद्ध सैनिक कार्रवाई करने का कोई निर्णय न हो सकने के कारण महासभा ने 3 नंवंबर 1950 को एक प्रस्ताव पारित किया जिसे शांति हेतु एकीकरण प्रस्ताव कहा जाता है । इस प्रस्ताव में कहा गया कि यदि स्थायी सदस्यों में मतैक्य न होने के कारण सुरक्षा परिष्द अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के अपने प्रारंभिक दायित्व को पूरा करने में असफल हो और यह अनुभव किया जाए कि कहीं शांति भंग हुई है अथवा शांति भंग होने का खतरा है अथवा आक्रमण हुआ है तो महासभा उस मामले पर सुरक्षा परिषद् की संस्तुति के बिना भी तुरंत विचार कर सकती है ताकि वह सदस्य – राज्यों को सामूहिक सुरक्षार्थ उपयुक्त संस्तुति कर सके, जिसमें आवश्यक होने पर सशस्त्र बलों का प्रयोग भी शामिल है ।
इस हेतु महासभा का विशेष संकटकालीन अधिवेंशन भी बुलाया जा सकता है । इस प्रकार का अधिवेशन सुरक्षा परिषद् के किन्हीं सात सदस्यों अथा संयुक्त राष्ट्र के आधे से अधिक राज्यों की माँग पर भी बुलाया जा सकता है ।
ऐसा समझा जाता रहा है कि सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था में महासभा, जो मूलरूप से एक प्रभावहीन और केवल विचार – विमर्शकारी अंग था, इस प्रस्ताव के अनुसार एक प्रबावकारी और निर्णयकारी अंग बन गया । कोरिया युद्ध के अतिरिक्त स्वेज़ संकट, कांगो संकट और कश्मीर विवाद मे इसी प्रस्ताव के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र ने कार्रवाई की, परंतु इसके उपरांत इस प्रस्ताव का महत्व घटने लगा । इसका कारण यह था कि महासभा मे एशियाई – अफ्रीकी राज्यों की संख्या बढ़ती गई और पश्चिमी राष्ट्र यह नहीं चाहते थे कि अंतर्राष्ट्रीय शआंति और सुरक्षा संबंधी मामलों में निर्णय करने का अधिकार महासभा पर छोड़ दिया जाए, जिसके बहुमत पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था ।
  • Universal Declaration of Human Rights -- मानव अधिकार घोषणा – पत्र
दे. Human rights.
  • Universal disarmament -- विश्वव्यापी निरस्त्रीकरण, सार्वत्रिक निरस्त्रीकरण
युद्ध की संभावना और उसकी विभीषिका को कम करने के लिए विश्व के विभिन्न राज्यों द्वारा पारस्परिक संधि अथवा समझौते करके युद्ध के विभिन्न प्रकार के घातक अस्त्र – शास्तोरं (जिसमें अण्विक अस्तर – शस्त्र भी सम्मिलित होते हैं ) में भारी कटौती, उनके उत्पादन तथा क्रय – विक्रय पर नियंत्रण और इस हेतु अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की व्यवस्था इस निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया के भओग माने जाते हैं । इस प्रक्रिया में निर्धारित क्षेत्रों या प्रदेशों को अस्त्र – शास्त्र रहित बनाया जाना भी शामिल है । उदाहरमारप्थ , समुद्र तल एवं अंतरिक्ष में नाभिकीय अस्त्रों का रखना भी वर्जित किया गया है ।
  • universal international law -- विश्वव्यापी अंतर्राष्ट्रीय कानून,
विश्वव्यापी अंतर्राष्ट्रीय विधि
अंतर्राष्ट्रीय विधि के वे मूलभूत नियम अथवा सिद्धांत जो सभी राष्ट्रों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं और जिनकी बाध्यकारिता राज्यों की सहमति पर आश्रित नहीं है ।
एक दूसेर अर्थ में सर्वव्यापी अथवा सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधि विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि से भिन्न हो जाती है क्योंकि विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि केविल निर्धारित क्षेत्रों अथवा महाद्वीपों तक स मित रह जाती है ।
  • universality principle -- सार्वभौमिकता सिद्धांत
दे. Universal jurisdiction.
  • Universal jurisdiction (=universality principle) -- सार्वभौमिक क्षेत्राधिकार
(सार्वभौमिकता सिद्धांत )
कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो सभी रार्जोयं मे अपराध माने जाते हैं क्योंकि वे संपूर्ण मानव जाति और राज्यों के विरूद्ध अपराध होते हैं । अतः उन्हें अंतर्राष्ट्रीय विधि विरोधी अपराध माना जाता है । ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए अपराधी को दंड देने का अधिकार किसी भी ऐसे राज्य को है जिसके क्षेत्राधिकार में वह पकड़ लिया जाए फिर चाहे वह अपराधी किसी भी राज्य का नागरिक क्यों न हो और उसने यह अपराध कहीं भी किया हो ।
परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत जलदस्युता, दास व्यापार, महिलाओं का अनैतिक व्यापार, अफीम और नशीली वस्तुओं का व्यापार, इस प्रकार के अपराध मे गए हैं । वर्तमान काल मे युद्ध अपराध, विमान अपहरण, जनसंहार और आंतकवाद को भी इसी श्रेणी के अपराधों में लाए जाने के पक्ष में वैधिक मत है और इस हेतु अनेक उपाय अपनाए गए हैं ।
  • universal succession -- सार्वत्रिक उत्तराधिकार
जब एक राज्य का अस्तित्व पूर्णतया समाप्त हो जाता है तब उसका वैधिक व्यक्तित्व बी समग्र रूप से नष्ट हो जाता है । उसके सभी अंतर्राष्ट्रीय अधीकार और कर्तव्य उस नवीन राजनीतिक इकाई को प्राप्त हो जाते हैं जो संबंधित प्रदेश मे संप्रभु के रूप में प्रतिष्ठित हुई हो ।
कुछ विद्वानों का मत है कि राज्य उत्तराधिकार जैसी की अंतर्राष्ट्रीय विधि नहीं है। राज्यों के अधिकार और कर्तव्य उन्हे राज्य होने के नाते प्राप्त होते हैं, किसी पूर्वगामी राज्य के उत्तराधिकारी होने के कारण नहीं ।
  • uniawful combatant -- अवैध संयोधी
दे. Combatant.
  • unneutral services -- अतटस्थ सेवाएँ
अतटस्थसेवा का अर्थ है युद्धकाल में स्वेच्छा से कीस तटस्थ जलपोत द्वारा युद्ध – संचालन में किसी युद्धकारी के सहायतार्थ किया गया कार्य । जूलियस स्टोन ने इस प्रकार के पाँच कार्यों का उदाहरणस्वरूप उल्लेख किया है । वे है :- (1) शत्रु सेना के सदस्यों को लाने – ले जाने का कार्य (2) शत्रु को संदेश पहुँचाने अथवा पत्र ले जाने का कार्य (3) युद्धकारी कार्यवाही में प्रत्यक्ष भाग लेना (4) शत्रु के लिए भाड़े पर काम करना (5) शत्रु की सहायतार्थ सैनिक भेद संचारित करना ।
  • U.N.O. -- संयुक्त राष्ट्र संघ
दे. United National Organisation.
  • U.N. peace keeping operations -- संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापन कार्रवाहयाँ
इस पद का प्रयोग संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की कार्रवाइयों के लिए किया जाता है । सर्वप्रथम कोरिया में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में सैनिक कार्रवाई की गई थी जिसका उद्देश्य उत्तरी कोरिया के सशस्त्र आक्रमण से दक्षिण कोरिया की रक्षा करना था । इस समय से अब तकत अनेक प्रदेशों और क्षेत्रों में यथा साइप्रस, कांगो, मध्यपूर्व व पश्चिमी एशिया और अभी हाल में इराक एवं कम्बोडिया में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सशस्त्र सैनिक कार्रवाई करके संबंधित प्रदेश में अंतर्राष्टीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के अपने प्रारंभिक दायित्व का निर्वाह किया है ।
इन कार्रवाईयों से समय – समय पर विवाद भी उत्पन्न होते रहे हैं । विवाद का मुख्य कारण यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी कोई सेना नहीं है । अतः किसी भी सैनिक कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने सदस्य – राज्यों पर निर्भर करना पड़ता है । महाशक्तियों की, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका की सैनिक भागीदारी प्रायः संदेह से देखी जाती रही है । कोरिया की कार्रवाई वस्तुतः अमेरिकी कार्रवाई कही जाती है । कांगों में भी संयुक्त राज्य अमेरिकी की सैनिक कार्रवाई और उसकी भमिका विवादास्पद हो गी थी । परंतु यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि सशस्त्र संघर्षों को रोकने और शांति की पुनर्स्थापना करने मे संयुक्त राष्ट्र संघ की इन कार्वाइयों की भूमिका सराहनीय रही है ।
  • U.N. Security Council -- संयुक्त राज्य सुरक्षा परिषद्
दे. Security Council.
  • usage -- व्यावहार, रीति
अंतर्राष्ट्रीय आचरण संबंधी वे नियम अथवा सिद्धांत जिनका यद्यपि सतत् एवं स्वाभावतः पालन होता ह परंतु जिनमें इस विश्वास का अभाव है कि ये नियम बाध्यकारी अथवा अनिवार्य हैं । जब इन नियमों में यह विशअवास उत्पन्न हो जाता है कि इनका पालन किया जाना अनिवार्य है तो व्यवहार के ये नियम प्रथागत नियमों में परिवर्तित हो जाते हैं । अनुभव यह बतलाता है कि अनेक प्रथागत नियमों का प्रादुर्भाव व्यवहार के नियमों से हुआ है ।
  • vassal state -- अवराज्य, अधीनस्थ राज्य
ऐसा राज्य जो किसी दूसरे संप्रभु राज्य के अधीन हो और विशेषकर विदेशी मामलों में इस दूसरे राज्य का नियंत्रण स्वीकार करता हो । अंतर्राष्ट्रीय विधि में ऐसा राज्य सीमित राज्यों की श्रेणी में आता है । यह सामंती और उपनिवेशवादी युग की व्यवस्था थी जिसका अब मात्र ऐतिहासिक महत्व रह गया है ।
  • Vatican City -- वेटिकन नगर
इटली में रोम के निकट एक नगर – राज्य जिसका प्रधान ईसाइयों का धर्मगुरू पोप है । इसका क्षेत्रफल लगभग 100 एकड़ है और जनसंख्या केवल दो सौ । यद्यपि पोप को परंपरा और राज व्यवहार के अंतर्गत वे सभी अधिकार प्राप्त हैं जो अन्य राज्याध्यक्षों को अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत प्राप्त होते हैं परंतु इस नगर के क्षेत्रफल व अनसंख्या और इसके विशिष्ट उद्देश्यों को देखते हुए यह विवादग्रस्त है कि इस नगर को एक राज्य कहा जा सकता है या नहीं ।
दे. Holy see भी ।
  • veto -- निषेधाधिकार, वीटों
किसी पदाधिकारी अथवा राज्य अथवा राज् समूह को किसी सामूहिक निर्णय के विरूद्ध मत देकर उसे निरस्त कर सकने का अधिकार निषेधाधिकार कहलाता है ।
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् मे कोई भी निर्णय उस समय तक नहीं लिया जा सकता जब तक उसके पाँचों स्थायी सदस्य उस निर्णय के पक्ष में न हों । इन स्थायी सदस्यों में से यदि कोई भी एक या अधिक राज्य नरिणय के विपक्ष में मतदान क रते हैं तो उक्त निर्णय निरस्त माना जाता है और यह उनका निषेधाधिकार कहा जाता है ।
  • Vienna Congress -- वियना सम्मेलन
यह सम्मेलन सितंबर 1814 से जून, 1815 तक हुआ और यद्यपि इसका मुख्य उद्देश्य नेपोलियन के यूद्दों से अस्त – व्यस्त ह ए यूरोप में शक्ति संतुलन की पुनः स्थापना करन था परंतु इस सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय विधि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया । सर्वप्रथम इसने राजदूतों का वर्गीकरण और उनका वरीयताक्रम निर्धारित करने के लिए एक वनिनियम स्वीकार कीय जिसे वियना – विनियम कहा जाता है । इसके अंतर्गत राजदूतों के वरीयताक्रम अनुसार तीन व र्ग किए गए यथा, राजदूत या पोप के नन्सियों, दूत और मंतर् तथा कार्यवाहक दूत । दूसरे, आठ राज्यों ने एक संयुक्त घोषणा की कि दास व्यापार का उन्मूलन ऐसा विषय है कि जिस पर विचार किया जाना चाहिए और वे समय आने पर इसके लिए उपयुक्त कदम उठाएँगे ।
  • Vienna Convention on Consular Relations, 1963 -- वाणिज्य दूत संबंदं पर वियना अभिसमय, 1963
वाणिज्य दूत संबंधित वियना अभिसमय पर 24 अप्रैल, 1963 को हस्ताक्षर हुए थे । इनसे संबंधित प्रारूप अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया था । इस अभिसमय में वाणिज्य दूतों के वर्गीकरण, उनके विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ तथा इनसे संबंधित अन्य बातों का विस्तार से वर्णन किया गया था । वाणिज्य दूतों को चार श्रेणी में बाँटा गया है (1) महावाणिज्यदूत, (2) वाणिज्यदूत, (3) उपवाणिज्यदूत, (4) काउंन्सली एजेंट ।
इस अभिसमय से वाणिज्य दूतों के विशेषाधिकरों और उन्मुक्तियों का पूरी तरह संहिताकरण कर दिया गाय है ।
  • Vienna Convention on Diplomatic Relations, 1961 -- राजनयिक संबंधों पर वियना अभिसम, 1961
इस अभिसमय पर 18 अप्रैल, 1961 को हस्ताक्षर हुए थे । इसका उद्देश्य राजनयिक प्रतिनिधियों के विशेषाधिकारों एवं उन्मुक्तियों को संहिताबद्ध करना था । इसका प्रारंभिक प्रारूप अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया था । इस अभिसमय ने राजनयिक प्रतिनिधियों के उसी वर्गीकरण को स्वीकार किया जिसका निरूपण सर्वप्रतम 1815 के वियना विनियम द्वारा किया गाय था । अभिसमय में राजनयिक प्रतिनिधियों के विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों तता उनसे संबंधित अन्य बातें का विस्तृत वर्णन किया गया है । इब यह कहा जा सकता है कि इस अभिसमय से राजनयिक प्रतिनिधियों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून पूर्णतया संहिताबद्ध हो गया है ।
  • Vienna Convention on the law of treaties, 1969 -- संधि – विधि पर वियना अभिसमय, 1969
इस अभिसमय पर 23 मई, 1969 को हस्ताक्षर हुए थे और यह 35 राज्यों की संपुष्टि प्राप्त करने के उपरांत 27 जनवरी, 1980 से प्रबावकारी ह ई । इसका प्रारूप अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने वर्णों के सतत एवं अथक प्रयास से तैयार किया था । अमेरिकी विदेश विभाग ने 1971 में जारी किए गए एक वक्तव्य में यह घोषित किया कि वियना भिसमय संधि को संबंधी वर्तमान विधि एवं व्यवहार के पथ – प्रदर्शक के रूप मे समझा जाना चाहिए ।
अभिसमय में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जिन प्रश्नों का नियमन अभिसमय में नहीं किया गया है वे परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि व्यवहार द्वरा नियमित होते रहेंगे ।
यह अभिसमय संधि – विषयक अंतर्राष्ट्रीय विधि की एक व्यापक संहिता है । इसका अधिकांश भाग प्रचलित नियमों का संहिताकरण मात्र है । परंतु अभिसमय की अनेक व्यवस्थाएँ नवीन हैं जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास का प्रमाण माना जा सकता है ।
  • waiver of immunity -- उन्मुक्ति का अधित्याग
राजनयिक प्रतिनिधियों को मिलने वाली उन्मुक्ति का अधित्याग भी किया जा सकता है । परंतु यह निर्णय संबंधित राज्यकी सरकार द्वारा लिया जाता है , राजदूत द्वारा नहीं । यह अधित्याग स्पष्ट होना चाहिए ।
न्यायालय मे प्रस्तुत होने और निर्णय कि निष्पादन – दोनों के लिए अलग – अलग उन्मुक्ति का अधित्याग करना होता है । न्यायालय में उपस्थित होने का तात्पर्य यह नहीं है कि न्यायालय का निर्णय राजदूत के विरूद्ध लागू किया जा सकता है जब तक कि निर्णय लागू कर सकने से संबंधित उन्मुक्ति का अधित्याग न कर दिया गाय ह ।
  • war -- युद्ध
सैनिक अर्थ में युद्ध से तात्पर्य है दो या अधिक राज्यों की सशस्त्र सेनाओं के बीच संघर्ष ।
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनूसार युद्ध अवस्था में युद्धकारी राज्यों के पारस्परिक संबंधों मे शांतिकालीन अंतर्राष्ट्रीय विधि निलंबित हो जाती है और उनके संबंध युद्ध विधि से नियमित होने लगते हैं । इसी वैधिक परिवर्तन का नाम युद्ध ह । वैधिक अर्थों में युद्ध अवस्था के लिए सशस्त्र कार्रवाई का होना एक अनिवार्य दशआ नहीं है परंतु युद्ध का प्रयोजन और उसकी अवधि, संघर्षरत राज्यों का आचरण में से किसी एक या अधिक कारकों से युद्ध का प्रयोजन प्रकट हो सकता है ।
  • war clauses -- युद्ध विषयक खंड
अंतर्राष्ट्रीय संधियों, बीमा पॉलिसियों तथा जहाजरानी अनुबंधों के वे खंड जिसके अंतर्गत संधि, बीमा पॉलिसी थवा अनुबंध युद्ध होने की अवस्था में लागू नहीं रहते वे निलंबित हो जाते हैं ।
  • war crimes -- युद्ध – अपराध
युद्धकाल मे युद्धकारी सेनाओं द्वारा युद्ध – विधि के प्रतिकूल किए गए ऐसे कृत्य तथा अपकृत्य जो विशअवशआंति को भंग करने वाले हों या मानवीयता के विरूद्ध हों अथवा युद्ध विधि के नियमों का उल्लंघन करते हों, जैसे नागरिक बस्तियों या अस्पतालों पर बमबारी, युद्धबंदियों के साथ नृशंस व्यवहार, अत्याचार आदि ।
  • war crime trails -- युद्ध – अपराध मुकदमे
युद्ध की समाप्ति पर विजेता राष्ट्रों द्वारा युद्ध – अपराधियों के विरूद्ध की गई न्यायिक कार्रवाई । इस प्रकार की कार्रवाई सर्वप्रथम त्वितीय महायुद्धथ के बाद मित्र राष्ट्रों द्वारा जर्मनी और जापान के विरूद्ध की गई थी जिसके फलस्वरूप अनेक शीर्षस्थ सेनाधिकारियों तथा राजनीतिक पदाधिकारियों को मृत्युदंड अथवादीर्घ कारावास आदि दंड दिए गए ।
दे. Neremberg trails भी ।
  • war damages -- युद्ध – क्षतिपूर्ति
युद्ध – हर्जाना
सशस्त्र सेनाओं द्वारा युदध में किए गए विध्वंस, विनाश, क्षय अथवा क्षति के लिए विजेता राज्य द्वारा राज्य से माँगी गी क्षतिपूर्ति ।
  • war debt -- युद्ध – ऋण
युद्ध – संचालन के ले लिया गया ऋण अथवा युद्ध पर हुए व्यय के भुगतान के लिए लिया गाय ऋण । प्रायः युद्ध समाप्ति पर यदि प्रदेश किसी दूसरे राज्य के अधीन चला जाता है तो उत्राधिकारी राज्य प्रायः ऐसे ऋणों की अदायगी करने के लिए बाध्य नहीं समझा जाता ।
  • war guilt -- युद्धारंभ – दोष,
युद्धारंभ – अपराध
अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत युद्ध आरंभ करने का अपराध या दोष । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार अग्र – आक्रमक युद्ध अवैध है । अतः अर्ग – आक्रामक राज्य युद्ध आरंभ करने का दोषी होता ह और उसे युद्ध अपराध के लिए दंडित काय जा सकता है जैसा कि दूसरे महायुदध के उपरांत जर्मनी और जापान के सैनिक और राजनीतिक नेताओं को किया गया था ।
  • war indemnity -- युद्ध – क्षतिपूर्ति
युद्ध तथा युद्धात्मक क्रायकलापों की समाप्ति के पश्चात् दो शत्रु राज्यों मे से विजेता राज्य द्वारा शांति – संधि की एक शर्त के रूप मे विजित राज्य से वसूल किया गाय धन, हर्जाना अथवा मुआवजा ।
प्रथम महायुदध की समाप्ति के बाद वार्साई संधि के अंतर्गत मित्र र्जायों ने जर्मी पर न केवल युद्धारंभ – दोष लगाय बल्कि जर्मनी से भारी युद्ध – हर्जाना वसूल करने का भी प्रावधान किया था ।
  • Warsaw Pact -- वारसा संधि
इस संधि का संपादन साम्यवादी गुट के राज्यों द्वारा 1955 मे हुआ था । इसका उद्देश्य पूर्वी यूरोपीय राज्यों के मध्य शांति, सहयोग और पारस्परिक सहायता के ले एक संगठन की स्थापना करना था । इसके सदस्य – राज्यों में अल्बानिया, बल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड, रूमानिया और सोवियत संघ थे । इस संधि के अंतर्गत आठों देशों के सैनिक बलों के लिए एक एकीकृत सैनिक कमान की स्थापना की गई और यह व्यवस्था भी की गई कि पूर्वी यूरोप मे इनमें से किसी भी देश पर आक्रमण होने की दशा मे अन्य सब राज्य उसे हर प्रकार की सहायता देंगे जिसमें सैनिक सहायता भी शामिल है ।
यह उल्लेखनीय है कि वारसा संधि क जन्म उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में हुआ था । वारसा संधि के अंतर्गत इसकी एकीकृत कमान ने कई बार पूर्वी यूरोपीय देशओं जैसे हंगरी और चेकोस्लोवाकिया में आंतरिक अव्यवस्था उत्पन्न होने पर सैनिक हस्तक्षेप किया ।
साम्यवादी गुट के विघटन के साथ – साथ वारसा संधि का भी समापन हो गाया है ।
  • warship -- युद्धपोत
राज्य के नौ सैनिक बल के वे पोत जो यूद्थकाल मे अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार वैध योधी माने जाते हैं । वैधिक दृष्टि से वैयक्तिक पोतों को सिवाय आत्मरक्षा के लिए शस्त्रों से लैस नहीं किया जा सकता । ऐसा करने पर उनकी स्थिति जलदस्युओं की होगी ।
राष्ट्रों की सामान्य सहमति और परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार राज्य के युद्धपोतों को विदेशई बंदरगाहों में स्थानीय क्षेत्रधिकार से उन्मुक्त माना जात है । कुछ विद्वान उन्हें प्रदेशातीत भी मानते आए हैं । उन्हें राज्य का चलायमान द्वीप की संज्ञा दी जाती है ।
  • war zone -- युद्ध क्षेत्र
युद्ध – काल मे विशेषकर समुद्र में निर्धारित क्षेत्र जिसमें वणिक पोतों को बिना किसी चेतावनी के नष्ट काय जा सके । ऐसा इस क्षेत्र में वास्तविक या संभावित सैनिक गतिविधियों के कारण काय जाता है । ऐसा इस क्षेत्र में वास्तविक या संभावित सैनिक गतिविधियों के कारण किया जाता है । प्रथम महायुद्ध मे लगभग पूरे उत्तरी सागर मे ग्रेट ब्रिटेन द्वारा सुरंगें बिछा दी गई थीं जिसके प्रत्युत्तर मे ब्रिटेन के चारों ओर के जल -क्षेत्र को जर्मनी द्वारा युद्ध – क्षेत्र घोषित कर यह चेतावनीदी गी कि इस जल क्षेत्र मे श्तु के व्यापारिक जलपोतों को बिना किसी चेतावनी के नष्ट कर दिया जाएगा । दूसरे महायुद्ध मे बी स प्रकार के युदध – क्षेत्र घोषित किए जाने के दृष्टांत मिलेत ह ।
  • water boundary -- जल सीमा
दो या अधिक राज्यों के भूभागों को पृथक् कनरे वाली नदी, खाड़ी झील अथवा कोई अन्य इसी प्रकार का जलाशय । यह सीमा संबंधित जलाशय का एक तट हो सकती है या दूसरा तट या जलाशय की मध्यम रेखा या नौपरिवहनीय जलाशय में थालवेग की मध्यम रेखा भी हो सकती है ।
  • white flag -- श्वेत ध्वज, सफेद झंडा
सादे सफेद रंग का झंडा या पताका या कोई अन्यि वस्तु जिसका झंडे या पताका के रूप मे प्रयोग किया जाए । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत इस प्रकार का झंडा विश्व की सभी सभ्य सेनाओं दवारा युद्धविराम के प्रयोजन का प्रतीक माना जाता है ।
  • Willy Brandt Report -- विली ब्रांट प्रतिवेदन
उत्तर – दक्षिण – संवाद मे विकासशील राज्यों का पक्ष उजागर करने में विली ब्रांट का महत्वपूर्ण योगदान था ।
यह आयोग कोई सरकारी या राजकीय प्रतिनिधियों का आयोग नहीं था । इसकी स्थापना का विचार विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष राबर्ट मैकनमारा के मस्तिष्क की उपज था । उन्होंने पश्चिमी जर्नी के निवृत्त चांसलर नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत विली ब्रांट से इस आयोग की अध्यक्षता स्वीकार करने के लिए कहा । ब्रांट ने इस शर्त पर उनकी बात मान ली कि आयोग के सदस्य अपनी वैयक्तिक प्रतिमा और प्रतिष्ठा के आधार पर चुने जाएँगे न कि सरकारी प्रवक्ता के रूप में । इसके सदस्यों में की भूतपूर्व प्रधानमंत्री, चिली के राष्ट्रपति और अनेक उद्दोयग एवं वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञ थे । आयोग ने जो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया वह ब्राट प्रतिवेदन के नाम से विख्यात है ।
इस प्रतिवेदन की मुक्य विशेषता यह थी कि इसने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया कि विकासशील देशों क उत्तरोत्तर विकास स्वयं विकसित देशओं की समृद्धि के लिए एक आवश्यक दशा है । उदाहरणार्थ इन देशों के आर्थिक विकास के फलस्वरूप समृद्ध पश्चिमी राज्यों में रोजगार के अवसर बढ़ते है । इन देशों के संग निर्यात – व्यापार में गतिशीलता है और इससे उच्च प्रौद्योगिकी वाले उद्योगों मे रोज़गार के नवीन अवसर पैदा होते हैं ।
अतः आयोग का सुझाव था कि इन देशों में क्रय – शक्ति को बढ़ाया जाना आवश्यक है । इसके लिए इनके विकास मे आर्थिक सहायता देना स्वयं पश्चिमी विकसित औद्योगिक राष्टरों के हित मे होगा । यह कार्य तीन प्रकार से किया जा सकता है
1. इनके उत्पादनों के निर्यात को सुलभ बनाकर ; 2. इनके साथ व्यापार की शर्तें की इनके पक्ष में सुधार कर ; और 3. इनको वित्तीय सहायता देकर ।
प्रतिवेदन मे विशेषकर खाद्यान्न उत्पादन और ऊर्जा उत्पादन के कार्यक्रमों को वित्तीय सहायता दी जाने की सिफारिश की गई थी ।
ब्रांट प्रतिवेदन का यह सुझाव उल्लेखनीय था कि पश्चिमी राज्यों के बैंकों में जमा पेट्रोलियम निर्यात कनरे वाले देशों का धन विकासशील देशों में पूंजी निवेश के रूप लगाए जाने के लिए संस्थात्मक प्रंबध किए जाने चाहिएँ और इसके अतिरिक्त पश्चिमी राज्यों को भी यथाशक्ति धनानुदान देकर इन देशों के विकास मे हाथ बँटाना चाहिए । यह विकासशील और विकसित राज्यों, दोनों के हित मे होगा ।
  • world court -- विश्व न्यायालय
वह (अंतर्राष्ट्रीय) न्यायालय जिसका अधिकार – क्षेत्र विश्व के उन सबी राज्यों तक विस्तृत होता ह जो उस न्यायालय की संविधि को स्वीकार करते हैं । इस न्यायालय का संगठन इस विधान द्वारा ही निर्धारित किया जाता है । इसमें विश्व की सभी प्रधान विधि – प्रणालियों के प्रतिनिधि – सदस्य न्यायाधीश होते हैं । इस प्रकार के न्यायालय की स्थापना सर्वप्रथम 1920 मे की गई जिसका नाम स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय रका गया । दूसरे महायुद्ध उपरांत इसाक स्थान वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय नायायलय ने ले लिया है जो हेग (हालैंड ) में स्थित है । इसमें 15 न्यायाधीश हैं जिनका निर्वाचन सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा किया जाता है । इसके समक्ष केवल राज्य ही वनादी हो सकते हैं, व्यक्ति नहीं । राज्यों के परस्पर विवाद अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि तथा समझौतों के अनुसार तय किए जाते हैं । इसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं । इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार राज्यों के लिए अनिवार्य न होकर ऐच्छिक है जो इसकी सबसे बड़ी दुर्बलता है ।
  • world law -- विश्व विधि
दे. Transnational law.
  • world order -- विश्व व्यावस्था
ऐसी व्यवस्था जो विश्वव्यापी कही जा सके अर्थात् जो राष्ट्रीय राज्यों की अलग – अलग व्यवस्थाओं से सर्वोपरि हो और जिसका किसी भी राष्ट्रीय व्यवस्था द्वारा उल्लंघन अवैध वं अनुचित माना जए और जो राज्यों की सहमति पर आश्रित न होकर इससे स्वतंत्र हो । उदाहरणार्थ विश्व वैधिक व्यवस्था (world legal order)
  • world organisation -- विश्व संगठन
ऐसी विश्वव्यापी संस्था या संघ जिसकी सदस्यता सभी राज्यों के लिए खुली हो और जिसाक उद्देश्य सदस्य – राज्यों के सामान् हितों की अभिवृद्धी करन हो, जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.) आदि ।
यह उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय संगठन अनपे सदस्य – राज्यों का योगमात्र न होकर एक पृथक स्वतंत्र वैधिक इकाई माने जाते हैं ।
  • Yalta Agreement -- याल्टा समझौता
द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरणों मे (फरवरी, 1945 में) क्रीमीया (रूसी गणराज्य) के याल्टा नामक स्थान मे रूज़वेल्ट, चर्चिल और स्तालिन के मध्य युदूधोत्त्र व्यवस्था के संबंध में एक समझौता हुआ जिसकी प्रमुख धाराएँ निम्न थीं. :-
1. जर्मनी का आत्मसमर्पण बिना किसी शर्त के होगा ;
2. जर्मन युद्ध – अपराधियों को दंड देने के लिए शीघ्र ही न्यायिक कार्रवाई की जाएगी
3. जर्मनी से क्षतिपूर्ति ली जाएगी
4. पूर्वी यूरोप के जो राष्ट्र स्वतंत्र हो गए हैं उनमें लोकतांत्रिक चुनाव करवाए जाएँगे
5. पोलैंड व रूस की सीमाएँ ओडर एवं नीसी नदियों तक बढ़ा दी जाएँगो
6. सोवियत संघ यूरोप मे युद्ध समाप्ति के तीन मास के भीतर जापान के विरूद्ध युद्ध में शामिल हो जाएँगा
7. संयुक्त राष्ट्र मे सोवियत संग के अतिरिक्त उसके दो गणराज्यों यूक्रेन और बाइलोरूस को भी सदस्यता दी जाएगी
8. राष्ट्र संघ की अधिदेश पद्धति के स्तान पर एक नई व्यवस्था, जिसे न्यास व्यवस्थआ कहा गया, स्थापित की जाएगी तथा
9. सुरक्षा परिषद् में निषेधाधिकार का प्रयोग प्रक्रियात्मक प्रश्नों पर नहीं होगा ।
  • Yalta conference -- याल्टा सम्मेलन
तीन महाशक्तियों – संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और सोवियत संघ के शासनाध्यक्षों का यह शिखर सम्मेलन फरवरी, 1945 में सोवियत संघ के नगर याल्टा में हुआ था । इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गाय था कि जम्बार्टन ओक्स प्रस्तावों पर विस्तृत रूप से विचार करने और उन्हें अंतिम रूप देने के उद्देश्य से लगभग 50 राष्ट्रों का एक सामान्य सम्मेलन बुलाया जाए । इस सम्मेलन मे भावी संगठन की सुरक्षा परिषद् में मतदान प्रक्राय संबंधी प्रावधान तय किए गए थे । इस प्रकार चार्टर की वीटो (निषएधाधिकार) संबंधी व्यवस्था याल्टा सम्मेलन मे तीन महाशक्तियों में हुए परस्पर समझौते की देन हैं ।
  • zone of occupation -- अध्यासित क्षेत्र
आधिपत्य अधीन क्षेत्र
शत्रु प्रदेश का वह भाग, संभाग अथवा क्षेत्र जिस पर युद्धकारी राज्य की सेनाओं ने अपना नियंत्रण और प्रभुत्व स्थापित कार लिया हो । यद्यपि इससे उस प्रदेश की संप्रभुता का स्थानांतरण नहीं होता परंतु युद्धकारी उद्देश्यों के लिए यह क्षेत्र आधिपत्यकर्ता युद्धकारी के प्रदेश का भाग माना जाता ह और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्व भी उसी का होता है ।
  • zone of operation -- सैनिक संक्रिया क्षेत्र
वह क्षेत्र अथवा स्थान जहाँ परस्पर विरोधी सेनाओं द्वारा युद्ध तथा युद्धात्मक क्रियाकलाप का संचालन किया जाता है । यह क्षेत्र भूमि, समुद्र अथवा आकाश कुछ भी हो सकता है ।
  • zone of peace -- शांति क्षेत्र
दे. Peace zone.