संज्ञा

चुनने हेतु एक से अधिक मार्ग, कार्य या उत्तर आदि।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

विकल्प संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. भ्रांति । भ्रम । धोखा ।

२. एक बात मन में बैठाकर फिर उसके विरुद्ध सोच विचार । संकल्प का उलटा ।

३. विपरीत कल्पना । विरुद्ध कल्पना ।

४. विशेष रूप से कल्पना करना या निर्धारित करना । जैसे,—दंड विकल्प ।

५. विविध कल्पना । नाना भाँति से कल्पना करना ।

६. कई प्रकार की विधियों का मिलना । विशेष—मीमांसा में विकल्प दो प्रकार का माना गया है—एक व्यवस्थायुक्त, दूसरा इच्छानुयायी । जिसमें दो प्रकार की विधियाँ मिलती हों, उसे व्यवस्थायुक्त कहते हैं । यथा 'दर्श पौर्णमास याग में यव द्वारा होम करे, ब्रीहि द्वारा होम करे इसमें दो प्रकार की विधियाँ हैं । इनमें यदि कर्ता यव से होम करे या ब्रीहि से तो यह इच्छानुयायी विकल्प होगा । इच्छा विकल्प में आठ दोष होते हैं-प्रमाणत्व परित्याग, अप्रामाणय कल्पना, अप्रामाण्योपजीवन और प्रामाण्यहानि । ये चारों उक्त दोनों में लगने से आठ हो जाते हैं ।

७. योग शास्त्रानुसार पचविध चित्तवृत्तियों में एक । विशेष—यह चित्तवृत्ति ऐसे शब्दज्ञान की शक्ति है जिसका वाच्य वस्तु नहीं होती । इसमें मनुष्य इस बात की खोज नहीं करता कि अमुक शब्द का वाच्य कोई पदार्थ है या नहीं, अथवा हो सकता है या नहीं । परंपरा से उसके वाच्य के संबंध में जैसा लोग मानते आते है वैसा ही वह भी मान बैठता है । जैसे,—पारस पत्थर न मिला और न किसी ने देखा है । पर पारस पत्थर शब्द से लोग यही समझते हैं कि कोई ऐसा पत्थर है, जिसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है । इस प्रकार के शब्दों के वाच्य के संबंध में जो वृत्ति चित्त में उत्पन्न होती है, उसे विकल्प कहते हैं ।

८. अवांतर कल्प ।

९. एक काव्यालंकार जिसमें दो विरुद्ध बातों को लेकर कहा जाता है कि या तो यही होगा या यही । जैसे,—कै लखिहौं मुख मोहन को कै पलास प्रसून की आगि जरौंगी ।

१०. वैचित्र्य । विलक्षणता ।

११. समाधि का एक भेद जिसे सविकल्प कहते हैं । १२ व्याकरण में एक ही विषय के कई नियमों में से किसी एक का इच्छानुसार ग्रहण ।

१३. गणना (को॰) ।

१४. उपाय (को॰) ।

१५. कथन । वक्तव्य (को॰) ।

१६. उत्पत्ति (को॰) ।

१७. देवता । ईश्वर (को॰) ।

१८. कूटयुक्ति । कला (को॰) ।

विकल्प आपत्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] कौटिल्य द्वारा व्याख्यात वह आपत्ति जो दूसरे मार्ग के अवलंवन से वचाई जा सकती हो ।