प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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वात संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वायु । हवा ।

२. वैद्यक के अनुसार शरीर के अंदर की वह वायु जिसके कुपित होने से अनेक प्रकार के रोग होते हैं । विशेष—शरीर में इसका स्थान पक्वाशय माना गया है । कहते हैं, शरीर की सब धातुओं और मल आदि का परिचालन इसी से होता है, और श्वास प्रश्वास, चेष्टा, वेग आदि इंद्रियों के कार्यों का भी यही मूल है ।

३. वायु का देवता । वायु का अधिष्ठाता देवता (को॰) ।

४. गठिया । संधिवात (को॰) ।

५. धृष्ट नायक (को॰) ।

वात ^२ वि॰

१. बही हुई ।

२. इच्छित । अभीष्ट । प्रार्थित [को॰] ।

वात विलोडित वि॰ [सं॰] हवा से मथा हुआ । वायुकंपित । उ॰— वात विलोडित जलप्रसार में क्षोभ और आकुलता का आभास मिलता है ।—रस॰, पृ॰ १७ ।