वरक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनवरक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. साधारण वस्त्र । गमछा, दुपट्टा आदि । उ॰—गुरु के चरन अनंद जाय करि, अनुभव वरक उतारी ।— धरनी॰, पृ॰ ३ ।
२. नाव का आच्छादन ।
३. बनमूँग ।
४. काकुन । प्रियंगु ।
५. जंगली बेर । झड़बेरी ।
६. अभिलाषा । मनोरथ । इच्छा (को॰) ।
७. घड़ी । घंटा (को॰) ।
९. किसी स्त्री से विवाह की प्रार्थना करनेवाला व्यक्ति (को॰) ।
वरक ^२ संज्ञा पुं॰ [अ॰ वरक़]
१. पत्र ।
२. पुस्तकों का पन्ना । पत्रा ।
३. दल । पत्र । पंखुड़ी (को॰) ।
४. सोने, चाँदी आदि के पतले पत्तर, जो कूटकर बनाए जाते हैं और मिठाइयों पर लगाने और औषध में काम आते हैं । यौ॰—वरकसाज = सोने चाँदी के वरक बनानेवाला । वरकसाजी = वरकसाज का काम ।