प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

लाग संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ लगना]

१. संपर्क । संबंध । लगाव । ताल्लुक । जैसे,—(क) इन दोनों में कहीं से कोई लाग तो नहीं मालूम होती । (ख) यह डंडा अधर में बेलाग खड़ा है ।

२. प्रेम । प्रीति । मुहब्बत ।

३. लगावट । लगन । मन की तत्परता । उ॰—बरणत मान प्रवास पुनि निरखि नेह की लाग ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

४. युक्ति । तरकीब । उपाय ।

५. वह स्वाँग आदि जिसमें कोई विशेष कौशल हो और जो जल्दी समझ में न आवे । जैसे,—किसी के पेट या गर्दन के आर पार (वास्तव में नहीं, बल्कि केवल कौशल से) तलवार या कटार गई हुई दिखलाना ।

६. प्रतिस्पर्धा । प्रतियोगिता । चढ़ा ऊपरी । यौ॰—लाग डाँट ।

७. बैर । शत्रुता । दुश्मनी । झगड़ा । क्रि॰ प्र॰—मानना ।—रखना ।

८. जादू । मंत्र । टोना ।

९. वह चेप जिससे चेचक का अथवा इसी प्रकार का और टीका लगाया जाता है ।

१०. वह नियत धन जो विवाह आदि शुभ अवसरों पर ब्राह्मणों, भाटों, नाइयों आदि को अलग अलग रस्मों के संबंध में दिया जाता है ।

११. धातु को फूँककर तैयार किया हुआ रस । भस्म ।

१२. दैनिक भोजन सामग्री । रसद । (बुंदेल॰) ।

१३. भूमिकर । लगान । उ॰—अपनी लाग लेहु लेखो करि जो कछु राज अंश को दाम ।—सूर (शब्द॰) ।

१४. एक प्रकार का नृत्य । उ॰—अरु लाग धाउ रायरंगाल ।—केशव (शब्द॰) ।

लाग पु ^२ क्रि॰ वि॰ [हिं॰ लौं] पर्यंत । तक । उ॰—मासेक लाग चलत तेहि बाटा । उतरे जाइ समुद्र के घाटा ।—जायसी (शब्द॰) ।