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रचना का अर्थ होता है निर्माण।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

रचना ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. रचने या बनाने की क्रिया या भाव । बनावट । निर्माण । उ॰—(क) गढ़रचना बरुनी अलक चितवन भौंह कमान ।—बिहारी (शब्द॰) । (ख) चलो, रंग- भूमि की रचना देख आवैं ।—लल्लूलाल (शब्द॰) ।

२. बनाने का ढंग या कौशल ।

३. बनाई हुई वस्तु । रची हुई चीज । सृजित पदार्थ । निर्मित वस्तु । उ॰—(क) अद्भुत रचना बिधि रची यामों नहीं विवाद । बिना जीभ के लेत द्दग रूप सलोनी स्वाद ।—रसनिधि (शब्द॰) । (ख) तब श्रीकृष्ण चंद्र जो ने सबको मोहित कर जो वैकुंठ की रचना रची थी, सो उठा ली ।—लल्लूलाल (शब्द॰) ।

४. फूलों से माला या गुच्छे आदि बनाना ।

५. बाल गूँथना । केश विन्यास ।

६. स्थापित करना ।

७. उद्यम । कार्य ।

८. वह गद्य या पद्य जिसमें कोई विशेष चमत्कार हो । उ॰—वचननि की रचनानि सों जो सार्ध निज काज ।—पद्माकर (शब्द॰) ।

९. पुराणानुसार विश्वकर्मा की स्त्री का नाम ।

रचना ^२ क्रि॰ सं॰ [सं॰ रचन]

१. हाथों से बनाकर तैयार करना । बनाना । सिरजना । निर्माण करना । उ॰—(क) तपबल रचइ प्रपच बिधाता । तप बल विष्णु सकल जग ञाता ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) इहाँ हिमालय रचेउ बिताना । अति विचित्र नहिं जाइ बखाना ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. विधान करना । निश्चित्त करना । उ॰—अस विचारि सोचइ मति माता । सो न टरै जो रचइ विधाता ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. ग्रंथ आदि लिखना । उ॰—गुनी और रिझवार ये दोउ प्रसिद्ध ह्वै जात । एक ग्रंथ के रचन सों दोगुन जस सरसात ।—(शब्द॰) ।

४. उत्पन्न करना । पैदा करना ।

५. अनुष्ठान करना । ठानना । उ॰—(क) रति विपरीत रची दंपात गुपुत अति मेरे जान मनि भय मनमथ नेजे तें ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) तव एक- विशांत बार में बिन क्षेत्र की पृथ्वी रची ।—केशव (शब्द॰) । (ग) सखि पान खवावत ही कोहि कारन कोप पिया पर नारि रच्यौ ।—केशव (शब्द॰) ।

६. आडंबर खड़ा करना । युक्ति या तदबीर लगाना । आयोजन करना । जैसे, आडंबर रचना; उपाय रचना; जाल रचना । उ॰—(क) रचि प्रपंच भूपहि अपनाई । राम तिलक हित लगन धराई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

७. काल्पनिक सृष्टि करना । कल्पना करना । उ॰—कबहुँ धनु राच पसरु चरावै । कबहुँ भूप बनि नीति सिखावैं ।—रघुनाथ (शब्द॰) ।

८. श्रृंगार करना । सँवारना । सजाना । कारीगरी करना । उ॰—भूषण बसन आदि सब रचि रचि माता लाड़ लड़ावै ।—सूर (शब्द॰) ।

९. तरतीब या क्रम से रखना । उ॰—चहूँधा बेदी के विधिवत रची है अगिनि ये । बिछों दर्भा नेरे अरु प्रजुल सोहें समादि लै ।—लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) । मुहा॰—पु रचि पाचि = परिश्रमपूर्वक । दक्षतापूर्ण ढंग से । उ॰—(क) रचिपचि कोटिक कुटिलपन कीन्हेंसि कपट प्रबोध ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) राचि पचि कौयौ ऐ सिंगारु, पाटी तौ पारी चोखे माम का ।—पोद्दार अभि॰ ग्रं॰, पृ॰ ९३२ । रचि रचि पु = बहुत होशियारी और कारीगरी के साथ (कोई काम करना) । बहुत कौशलपू्र्वक ।

रचना ^३ क्रि॰ स॰ [सं॰ रञ्जन] रँगना । रांजत करना । उ॰— (क)मार्ग को झरोखे तक लाख के रंग में रच दिया ।— लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) । (ख) रोचन रोरी रची मेहंदी नृप संभु कहैं मुकता सम पोत है ।—शंभु (शब्द॰) ।

रचना ^४ क्रि॰ अ॰ [सं॰ रंञ्जन]

१. अनुरक्त होना । उ॰—(क) पर नारि से रचे हैं पिय ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) जो अपने पिय रूप रची कवि राम तिन्हैं रवि की छबि थोरी ।—हृदयराम (शब्द॰) । (ग) मोहि तोहि मेहँदी कहूँ कैसे बनै बनाइ । जिन चरनन सों मैं रचो तहाँ रची तू जाइ ।— रसनिधि (शब्द॰) । (घ) चिता न चित फाकौ भयौ रचो जू पिय के रंग ।—सूर (शब्द॰) ।

२. रंग चढ़ना । रँगा जाना । रंजित होना । जैसे,—(क) तुम्हारे मुँह में पान खूब रचता है । (ख) उसके हाथ में मेहंदी खूब रचती है । उ॰—(क) गान सरस अलि करत परस मद मोद रंग रचि ।—गुमान (शब्द॰) । (ख) जावक रचित अँगुरियन मृदुल सुढारी हो ।—तुलसी (शब्द॰) ।

उदाहरण

  • तुलसीदास पर हनुमान जी के अनुग्रह के अभाव में रामचरितमानस की रचना असम्भव थी।
  • यह एक महान लेखक की रचना है।

मूल

  • रचना शब्द संस्कृत मूल का है।

अन्य अर्थ

  • सृष्टि
  • निर्माण
  • उत्पत्ति

समानार्थी

अनुवाद

  1. সৃষ্টি bn:সৃষ্টি
  2. নির্মাণ bn:নির্মাণ
  3. উৎপত্তি bn:উৎপত্তি
  4. সূচনা bn:সূচনা

संबंधित शब्द

  • रचनात्मक
  • रचैता
  • रचित