रग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनरग संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰]
१. शरीर में की नस या नाड़ी । उ॰—जीए रूह रूहन्न में, जीए रूह रगन्न । जीए जो रउ सूरमाँ, ठंढउ चंद्र बसन्न ।—दादू (शब्द॰) । मुहा॰—रग उतरना = (१) क्रोध उतरना । (२) हठ दूर होना । (३) आँत उरतना । रग खड़ी होना = शरीर की किसी रग का फुल जाना । रग चढ़ना = (१) क्रोध आना । गुस्सा आना । (२) हठ के वंश होना । रग दबना = दबाब मानना । किसी के प्रभाव या अधिकार में होना । जैसे,—तुम्हारी रग उन्ही से दबती है । रग पहिचानना या पाना = रहस्य जानना । असल बात जान लेना । रग फड़कना = किसी आनेवाली आपत्ति की पहले से ही आशंका होना । माथा ठनकना । रग रग फड़कना = शरीर में बहुत अधिक उत्साह या आवेश के लक्षण प्रकट होना । रग रग में = सारे शरीर में जैसे,—पाजीपन तो तुम्हारी रग रग में भरा है । यौ॰—रग पट्ठा । रग देशा ।
२. पत्तों में दिखाई पड़नेवाली नसें ।