यथालाभ वि॰ [सं॰] जो कुछ मिले, उसी के अनुसार । जो प्राप्त हो, उसी पर निर्भर । उ॰— यथालाभ संतोष सदा परगुन नहिं दोष कहौंगो ।— तुलसी (शब्द॰) ।