यथाकामावध संज्ञा पुं॰ [सं॰] किसी व्यक्ति को यह घोषित करके छोड़ देना कि इसे जो चाहे, मार डा़ले । विशेष—चंद्रगुप्त के समय में जो राजकर्मचारी चार बार चोरी या गाँठ कतरने के अपराध में पकड़े जाते थे, उनको यह दंड दिया जाता था ।