प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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म्यान संज्ञा पुं॰ [फा॰ मियान]

१. कोष जिसमें तलवार, कटार आदि के फल रखे जाते हैं । तलवार, कटार आदि का फल रखने का स्थान । उ॰—चाखा चाहै प्रेम रस राखा चाहै मान । दोय खंग इक म्यान में देखा सुना न कान ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) जब माल इकट्ठा करते थे, अब तन का अपने ढेर करो । गढ़ टूटा लश्कर भाग चुका अब म्यान में तुम शमसेर करो ।—नजीर (शब्द॰) ।

२. अन्नमय कोश । शरीर । उ॰—(क) कविरा सूता क्या करें, उठि न भजै भगवान । जम धरि जब ले जायँगे पड़ा रहैगा म्यान ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) चंचल मनुवाँ तचेत रे सोवै कहा अजान । जम धर जब ले जायगा पड़ा रहेगा म्यान ।—कबीर (शब्द॰) ।