प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

मूँग संज्ञा स्त्री॰ पुं॰ [सं॰ मुदग] एक अन्न जिसकी दाल बनती है विशेष—मूँग भादों में प्रायः साँवाँ आदि और अन्नों के साथ बोई जाती है और अगहन में कटती है । इसके पौधे को टहनियाँ लता के रूप में इधर उधर फैली होती हैं । एक एक सींके में सेम को तरह तीन तीन पत्तियाँ होती हैं । फूल नी/?/ या बैंगनी होते हैं । फलियाँ ढाई तीन अँगुल को पतली पतली होता हैं और गुच्छा में लगती हैं । फलियों /?/ भीतर ५-६ लंबे गोल दाने होते हैं, जिसके मुह पर की बिं/?/ उर्द की तरह स्पष्ट नहीं होती । मूँग के लिये बलुई मिट्टी और थोड़ी वर्षा चाहिए । मूँग कई प्रकार की होती है—हरी, काली या पीली । हरी या पीली मूँग अच्छी समझी जाती है और 'सो/?/ मूँग' कहलाती है । वैद्यक में मूँग रुखी, लघु, धारक, कफघ्न, पित्तनाशक, कुछ वायुवर्धक, नेत्रो के लिये हितकर और ज्वरनाशक कही गई है । बनमूँग के भी प्रायः यही गुण हैं । मूँग की दा/?/ बहुत हलकी और पथ्य समझा जाती है; इसी से रोगियों को प्रायः दी जाती है । इससे बड़ी, पापड़, लड्डू आदि भी बनते हैं पर्या॰—सूपश्रेष्ठ । वर्णर्ह । रसोत्तम । भुक्तिप्रद । हयानंद । सुफल । वजिभभाजन । मुहा॰—छाती पर मूग दलना = दे॰ 'छाती' का मुहा॰ । मूँग/?/ दाल खानेवाला = पुरुषार्थहीन । निवल । डरपोक ।