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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

मुँह संज्ञा पुं॰ [सं॰ मुख]

१. प्राणी का वह अंग जिससे वह बोलता और भोजन करता है । मुखविवर । उ॰—कतओक दैत्य मारि मुँह मेलत कतओ उगलि कैल कूड़ा ।—विद्यापति, पृ॰ ७७२ । विशेष—प्रायः सभी प्राणियों का मुँह सिर में होता है और उससे वे खाने का काम लेते हैं । शब्द निकालनेवाले प्राणी उससे बोलने का भी काम लेते हैं । अधिकांश जीवों के मुँह में जीभ, दाँत और जबड़े होते हैं; और उसे खोलने या बंद करने के लिये आगे की ओर ओंठ होते हैं । पक्षियों तथा कुछ और जीवों के मुँह में दाँत होते । कुछ छोटे छोटे जीव ऐसे भी होते हैं जिनका मुँह पेट या शरीर के किसी और भाग में होता है ।

२. मुनष्य का मुखबिबर । मुहा॰—मुँहा आन=मुँह के अंदर छाले पड़ना और चेहरा सूजना । विशेष—प्रायः गरमी आदि के रोग में पारा आदि कुछ विशिष्ट औषद खाने से ऐसा होता है । मुँह का कच्चा=(१) (घोड़ा) जो लगाम का झटका न सह सके (२) जिसका बात का कोई विश्वास न हो । झूठा । (३) जो किसी बात को गुप्त न रख सकता हो । हर एक बात सबसे कह देनेवाला । मुँह का कड़ा=(१) (घोड़ा) जो हाँकनेवाले के इच्छानुसार न चले । लगान के संकेत को कुछ न समझनेवाला । (२) कड़ा । तेज । (३) उद्दंडतापूर्वक बातें करनेवाला । मुँह किलना=मुँह का कीला या बंद किया जाना । मुँह की बात छीनना=जो बात कोई दूसरा कहना चाहता हो, वही कह देना । मुँह की मक्खी न उड़ा सकना=बहुत अधकि दुर्बल होना । मुँह कीलना=बोलने से रोकना । चुप करना । मुँह खराब करना=(१) जबान का स्वाद बिगड़ना । (२) जबान से गंदी बातें कहना । मुँह खुलना=उद्दंडतापूर्वक बातें करने की आदत पड़ना । जैसें,—आजकल तुम्हारा मुँह बहुत खुल गया है; किसी दिन धोखा खाओगे । मुँह खुलवाना=किसी को उद्दंडतापूर्वक बातें करने के लिये बाध्य करना । मुँह खुश्क होना=दे॰ 'मुँह सूखना' । मुँह खोलकर रह जाना=कुछ कहते कहते लज्जा या संकोच के कारण चुप हो जाना । सहमकर रह जाना । मुँह खोलना=(१) कहना । बोलना । उ॰— आप तूमार बाँब देते हैं और हमने न खोल मुँह पाया ।—चोखे॰, पृ॰ ५३ । (२) गालियाँ देना । खराब बातें कहना । (किसी को) मुँह चढ़ाना=(१) किसी को बहुत उद्दंड बनाना । बातें करने में धृष्ट करना । शोख करना । जैसे,— आपने इन नौकर को बहुत मुँह चढ़ा रखा है । (२) अपना । पार्श्ववर्ती और प्रिय बनाना । मुँह चलना=(१) भोजन होना । खाया जाना । (२) मुँह से व्यर्थ की बातें या दुर्वचन निकलना । उ॰—जब चलाए न बात चल पाई । तब भला किस तरह न मुँह चलता ।—चुभते॰, पृ॰ १८ । मुँह चलाना=(१) खाना । भोजन करना । (२) बोलना । बकना । (३) गालियाँ देना । दुर्वचन कहना । (४) दाँत से काटना, विशेषतः घोड़े का काटना । मुँह चिढ़ाना=किसी को चिढ़ाने के लिये उसकी आकृति, हावभाव या कथन की बहुत बिगाड़कर नकल करना । मुँह चूमकर छोड़ देना=लज्जित करके छोड़ देना । शरमिंदा करके छोड़ देना । मुँह छुड़ाना=[संज्ञा मुँहछुआई] =(१) नाम मात्र के लिये कहना । मन स नहीं, बल्कि ऊपर से कहना । जैसे,—मुँह छूने कें लिये वे मुझे भी निमंत्रण दे गए थे । (२) दिखौआ बात करना । मुँह जहर होना=कड़ुआ पदार्थ खाने के कारण मुँह में बहुत अधिक कडुआहट होना । मुँह जुठारना या जूठा करना=नाम मात्र के लिये कुछ खाना । मुँह जोड़ना=पास होकर आपस में धीरे धीरे बात करना ।