संज्ञा

स्त्री.

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

मामी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ मा (=निषेधार्थक)] आरोप को ध्यान में न लाना । अपने दोष पर ध्यान न देना । मुहा॰—मामी पीना=दोषारोपण को ध्यान में न लाना । मुकर जाना । अपने दोष पर ध्यान न देना । उ॰—(क) ऊधी हरि काहे के अंतर्यामी । अजहुँ न आइ मिले यहि औसर अवधि बतावत लामी । कीन्हीं प्रीति पुहुप संडा की अपने काज के कामी । तिनको कौन परेखा कीजै जे हैं गरुड़ के गामी । आई उछरि प्रीति कलई सो जैसे खाटी आमी । सूर इते पर खुनसनि मरियत ऊधो पोवत मामी ।— सूर (शब्द॰) । (ख) लाज कि और कहा कहि केशव जे सुनिए गुण ते सब ठाए । मामी पिए इनकी मेरी माइ को हे हरि आठहू गाँठ अठाए ।— केशव (शब्द॰) ।

मामी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ मामा] मातुलानी । मामा की स्त्री ।

मामी ^३ वि॰ [सं॰] हामी । स्वीकृति । उ॰— आँनदघन अघओघ बहावन सुदृष्टि जियावन वेद भरत हैं मामी ।—घनानंद, पृ॰ ४१८ ।

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