प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मान संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी पदार्थ का भार, तौल या नाप आदि । परिमाण ।

२. वह साधन जिसके द्वारा कोई चीज नापी या तौली जाय । पैमाना । जैसे, गज, ग्राम, सेर आदि ।

३. किसी विषय में यह समझना कि हमारे समान कोई नहीं है अभिमान । अहंकार । गर्व । शेखी । विशेष— न्याय दर्शन के अनुसार जो गुण अपने में न हो, उसे भ्रम से अपने में समझकर उसके कारण दूसरो से अपने आपको श्रेष्ठ समझना मान कहलाता है । मुहा॰—मान मथना=मान भंग करना । गर्व चूर्ण करना । शेखी तोड़ना । उ॰— इन जरासंध मदश्रभ मम मान मथि बाँध विनु काजे बल इहाँ आने ।— सूर (शब्द॰) ।

४. प्रातिष्ठा । इज्जत । संमान । उ॰— भोजन करत तुष्ट घर उनके राज मान भंग टारत ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—मान रखना=इज्जत रखना । प्रातिष्ठा करना । उ॰— कमरी थोरे दाम की आवे बहुते काम । खासा मलमल बाफता उनकर राखे मान ।— गिरधर (शब्द॰) । यौ॰—मान महत=आदर सत्कार । प्रतिष्ठा ।

५. साहित्य के अनुसार मन में होनेवाला वह विकार जो अपने प्रिय व्यक्ति का कोई दीप या अपराध करत देखकर होता है । रूठना । उ॰— विधि बिध कै विकर टरै, नहीं परेहू पान । चितै कितै तैं लै धरया इतों इतै तन मान ।— बिहारी (शब्द॰) ।