प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मरुत् संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक देवगण का नाम । विशेष— वेदों में इन्हें रुद्र और वृश्नि का पुत्र लिखा है और इनकी संख्या ६० की तिगुनी मानी गई है; पर पुराणों में इन्हें कश्यप और दिति का पुत्र लिखा गया है जिसे उसके वैमात्रिक भाई इंद्र ने गर्भ काटकर एक से उनचास टुकड़े कर डाले थे, जो उनचास मरुद् हुए । वेदों में मरुदगण का स्थान अंतरिक्ष लिखा है, उनके घोड़े का नाम 'पृशित' बतलाया है तथा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है । पुराणों में इन्हें वायुकोण का दिक्पाल माना गया है ।

२. वायु । वात । हवा ।

३. प्राण ।

४. हिरण्य । सोना ।

५. एक साध्य का नाम ।

६. सौदर्य ।

७. बृहद्रथ राजा का एक नाम ।

८. मरुआ ।

९. ऋत्विक् ।

१०. गाठवन ।

११. असवर्ग ।

१२. दे॰ 'मरुत्त' ।