प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मंगल संज्ञा पुं॰ [सं॰ मङ्गल]

१. अभीष्ट की सिद्धि । मनोकामना का पूर्ण होना ।

२. कल्याण । कुशल । भलाई । जैसे,— आपका मंगल हो ।

३. सौर जगत् का एक प्रसिद्ध ग्रह जो पृथ्वी का पुत्र माना जाता है । भौम । विशेष—यह ग्रह पृथ्वी के उपरांत पहले पहल पड़ता है और सूर्य से १४, १५,००००० मील दूर है । यह हमारी पृथ्वी से बहुत ही छोटा ओर चंद्रमा से प्रायः दूना है । इसका एक वर्ष अथवा सूर्य की एक बार परिक्रमा करने का काल हमारे ६८७ दिनों का होता है और इसका एक दिन हमारे एक दिन की अपेक्षा प्रायः आधा घंटा बड़ा होता है । इसके साथ दो उपग्रह या चंद्रमा हैं जिनमें से एक प्रायः आठ घंटे में और दूसरा प्रायः ३० घंटे में इसकी परिक्रमा करता है । इसका रंग गहरा लाल है । अनुमान किया जाता है कि इस ग्रह में स्थल और नहरों आदि की बहुत अधिकता है और यहाँ की जलवायु हमारी पृथ्वी के जलवायु के बहुत कुछ समान है । पुराणानुसार यह ग्रह पूरुष, क्षत्रिय, सामवेदी, भरद्वाज मुनि का पुत्र, चतुर्भुज, चारों भुजाओं में शक्ति, वर, अभय तथा गदा का धारण करनेवाला, पित्तप्रकृति, युवा, क्रूर, वनचारी, गेरू आदि धातुओं तथा लाल रंग के समस्त पदार्थों का स्वामी और कुछ अंगहीन माना जाता है । इसके अधिष्ठाता देवता कार्तिकेय कहे गए हैं और यह अवंति देश का अधिपति बतलाया गया है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में लिखा है कि एक बार पृथ्वी विष्णु भगवान् पर आसक्त होकर युवती का रूप धारण करके उनके पास गई थी । जब विष्णु उसका श्रृंगार करने लगे, तब वह मूर्छित हो गई । उसी दशा में विष्णु ने उससे संभोग किया, जिससे मंगल की उत्पत्ति हुई । पद्मपुराण में लिखा है कि एक बार विष्णु का पसीना पृथ्वी पर गिरा था जिससे मंगल की उत्पत्ति हुई । मत्स्यसपुराण में लिखा है कि दक्ष का नाश करने के लिये महादेव ने जिस बीरभद्र को उत्पन्न किया था, वही वीरभद्र पीछे से मंगल हुआ । इसी प्रकार भिन्न भिन्न पुराणों में इसकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक प्रकार की कथाएँ दी हुई हैं । पर्या॰—अंगारक । धरासुत । भौम । कुज । कुमार । वक्र । महीसुत । लोहितांग । ऋणांतक । आवनेय ।

४. एक बार जो इस ग्रह के नाम से प्रसिद्ध है । मंगलवार ।

५. विष्णु ।

६. सौभाग्य ।

७०. अग्नि का नाम (को॰) ।

मंगल ^२ वि॰

१. शूभद । कल्याणकारी ।

२. संपन्न । धनधान्यादि से युक्त ।

३. शुभ लक्षणों से युक्त । अच्छे लक्षणवाला ।

४. बहादुर । वीर [को॰] ।