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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

मंत्रसंस्कार संज्ञा पुं॰ [सं॰ मन्त्रसंस्कार]

१. विवाह संस्कार । यौ॰—मंत्रसंस्कारकृत = विवाह करनेवाला । विवाहित ।

२. तंत्रानुसार मंत्रों का वह संस्कार जिसके करने का विधान मत्रग्रहण के पूर्व है और जिसके बिना मंत्र फलप्रद नहीं होते । विशेष—ऐसे संस्कार दस हैं जिनके नाम ये हैं— (१) जनन—मंत्र का मातृका यंत्र से उद्धार करना । इसे मंत्रोद्धार भी कहते हैं । (२) जीवन—मंत्र के प्रत्येक वर्ण को प्रणव से संपुट करके सौ सौ बार जपना । (३) ताडन—मत्र के प्रत्येक वर्ण को पृथक् पृथक् लिखकर लाल कनेर के फूल से वायुवीज पढ़ पढ़कर प्रत्येक वर्ण को सौ सौ बार मारना । (४) बोधन—मंत्र के लिखे हुए प्रत्येक वर्ण पर 'रं' बीज से सो सौ बार लाल कनेर के फूल से मारना । (५) अभिषेक—मंत्र के प्रत्येक वर्ण को लाल कनेर के फूल से 'रं' बीद द्वारा अभिमत्रित कर यथाविधि अभिषेक करना । (६) विमलीकरण—सुपुम्ना नाड़ी में मनोयोगपूर्वक मंत्र की चिंता करके मत्रों के प्रत्येक वर्ण के ऊपर अश्वत्थ के पल्लव से ज्योति मंत्र द्वारा जल सींचना । (७) अप्यायन—ज्योतिर्मत्र द्वारा सोने के जल, कुशोदक वा पुष्पोदक से मंत्र के वर्णों को सींचना । (८) तपंण—ज्योतिर्मत्र द्वारा जल से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का तर्पण करना । (९) दीपन—ज्योतिर्मंत्र से दीप्ति साधन करना । (१०) गोपन—मंत्र को प्रकट न करके सदा गुप्त रखना और ओठों के बाहर न निकालना ।