मंडप विशेष यज्ञ-संस्कारों के लिये निर्मित वह अस्थायी पूजा गृह है जिसमें चारों ओर द्वार रखे जाते हैं। बांस, काश (या अन्य उपलब्ध घास), मूंज की डोरी मंडप निर्माण की मुख्य वस्तुएं हैं। कोई भी विस्तृत पूजा-अनुष्ठान-संस्कार निवास गृह में न करके नये मंडप में करने का शास्त्रीय नियम है। श्राद्ध मंडप के अतिरिक्त अन्य सभी मंडपों का स्थापन शुभ मुहूर्त में विधिवत पूजन पूर्वक करना चाहिये। वैसे अन्य अर्थ में सामान्य रूप से जो चारों और खुला हो लेकिन ऊपर छत हो जिससे छाया मिल सके और और वहां लोग ठहर सकें उसे भी मंडप कहा जाता है। मंडप भूमि से थोड़ी ऊँची होती है।

1. उपनयन, विवाहादि संस्कार, यज्ञ, गृहप्रवेश, श्राद्ध आदि सभी धार्मिक कर्मों में मंडप की आवश्यकता होती है। 2. यज्ञों में बहुत बड़े और विस्तृत विधि-विधान से मंडप निर्माण पूजन किया जाता है। 3. अन्य पूजा-संस्कारों में मंडप का आकार छोटा होता है। 4. मंडप में चारों ओर चार द्वार होते हैं। 5. मंडप में न्यूनतम १६ स्तम्भों (खम्भों) का प्रयोग किया जाता है। 6. उपनयन-विवाहादि वाले मंडपों में ४ मुख्य स्तंभ दिये जाते है किन्तु न्यूनतम ५ स्तम्भ होने चाहिये। पांचवां स्तम्भ मध्य में देना चाहिये। 7. मंडप भूमि से थोड़ी ऊँची होती है, अतः मंडप मिट्टी देकर ऊँचा भी करना आवश्यक होता है।

जिस कार्य के लिये मंडप निर्माण किया जाता है मंडप का नाम उसी के आधार पर निर्धारित होता है; जैसे - विवाह मंडप, यज्ञ मंडप आदि। धार्मिक कार्यों हेतु जो मंडप बनाया जाता है उसके निर्माण की एक विशेष विधि भी होती है और उस विधि के अनुसार ही मंडप निर्माण किया जाना चाहिये। मंडप निर्माण से पहले नान्दीमुख श्राद्ध भी करना चाहिये। नान्दीमुख श्राद्ध करने के बाद शास्त्रोक्त विधि के अनुसार मंडप स्थापित किया जाता है।