प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भाप संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वाष्प या वप्प]

१. पानी के बहुत छोटे छोटे कण जो उसके खौलने की दशा में ऊपर को उठते दिखाई पड़ते हैं और ठढक पाकर कुहरै आदि का रूप धारण करते है । वाष्प । क्रि॰ प्र॰—उठना ।—निकलना । मुहा॰—भाप लेना = औषधोपचार के पानी में कोई औषध आदि उबालकर उसके वाष्प से किसी पीड़ित अग को सेंकना । बफारा लेना ।

२. भौतिक शास्त्रानुसार घनीभूत वा द्रवीभूत पदार्थों की वह अवस्था जो उनके पर्याप्त ताप पाने पर प्राप्त होती है । विशेष— ताप के कारण ही घनीभूत वा ठोस पदार्थ द्रव होता तथा द्रव पदार्थ भाव का रूप धारण करता है । यौं तो भाप और वायुभूत वा अतिवाष्प (गैस) एक ही प्रकार के होते हैं । पर भाव सामान्य सर्दी और दबाव पाकर द्रव तथा ठोस हो जाती है और प्रायः वे पदार्थ जिनकी वह भाप है, द्रव वा ठोस रूप में उपलब्ध होते हैं । पर गैस साधारण सर्दी और दबाव पाने पर भी अपनी अवस्था नहीं बदलती । भाप दो प्रकार की होती है— एक आर्द्र, दूसरी अनार्द्र । आर्द्र भाप वह है जो अधिक ठढक पाकर गाढ़ी हो गई हो और अति सूक्ष्म बूँदों के रूप में, कहीं कुहरे, कहीं बादल आदि के रूप में दिखाई पड़े । अनार्द्र भाप अत्यंत सूक्ष्म और गैस के समान अगोचर पदार्थ है जो वायुमंडल में सब जगह अंशंशि रूप में न्यूनाधिक फैली हुई है । यहि जब अधिक दबाव वा ठढक पाती है, तब आर्द्र भाप बन जाती है । मुहा॰— भाप भरना = चिड़ियों का अपने बच्चों के मुँह में मुँह डालकर फूँकना । (चिड़ियाँ अपने बच्चों को अंडे से निकलने पर दो तीन दिन तक उनके मुँह में दाना देने के पहले फूँकती हैं) ।