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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

भयो सचेत हेत हित लाग्यौ सत दरसन रस पाग्यो रे ।— जग॰ श॰, पृ॰ ८७ । (ख) जैसे कलपि कलपि के भए है गुड़ की माखी ।—धरनी॰ श॰, पृ॰ ८४ । (ग) भयो द्रोपदी को बसनु बासर नाहिं बिहाय ।—मति॰ ग्रं॰, पृ॰ ३०८ । (घ) जँह भए शाक्य हरिचद अरु नहुष ययाती ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।