प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भगत ^१ वि॰ [सं॰ भक्त] [हिं॰ भगतिन]

१. सेवक । उपासक । उ॰—बचंक भगत कहाइ राम के । किंकर कंचन कोह काम के ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. साधु ।

३. जो मांस आदि न खाता हो । संकट या साकट का उलटा ।

४. विचारवान् ।

भगत ^२ संज्ञा पुं॰

१. वैष्णव वा वह साधु जो तिलक लगाता और माँस आदि न खाता हो ।

२. राजपूताने की एक जाति का नाम । इस जाति की कन्याएँ नाचने गाने का काम करती थी । दे॰ 'भगतिया' ।

३. होली में वह स्वाँग जो भगत का किया जाता है । विशेष—इस स्वाँग में एक आदमी को सफेद बालों की दाढ़ी मोछ लगाकर उसके सिर पर तिलक, गले में तुलसी वा किसी और काठ की माला पहनाते हैं और उसके सारे शरीर पर राख लगाकर उसके हाथ में एक तूँबी ओर सोंटा देते हैं । वह भगत बना हुआ स्वाँगी निचोड़े में नाचनेवाले लौंड़े के साथ रहता है और बीच बीच में नाचना और भाँड़ों की तरह मसखरापन करता जाता है ।

४. भूत प्रेत उतारनेवाला पुरुष । औझा । सयाना । भोपा ।

५. वेश्या के साथ तबला आदि बजाने का काम करनेवाला पुरुष । सफरदाई । (राजपूताना) । मुहा॰—भगतबाज = (१) लौडों को नचानेवाला ।

२. स्वाँग भरकर लौंडों को अनेक रूप का बनानेवाला पुरुष ।

भगत ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ भक्ति, हिं॰ भगत, जैसे, आवभगत] सत्कार । खातिर । दे॰ 'भक्ति' । उ॰—पूगल भगताँ नव नवी कीधो हरख अपार ।—ढोला॰, दू॰,५९४ ।