भक्ति
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनभक्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. अनेक भगों में विभक्त करना । बाँटना ।
२. भाग । विभाग ।
३. अंग । अवयव ।
४. खंड ।
५. वह विभाग जो रेखा द्वारा किया गया हो ।
६. विभाग करनेवाली रेखा ।
७. सेवा सुश्रूषा ।
८. पूजा । अर्चन ।
९. श्रद्धा ।
१०. विश्वास ।
११. रचना ।
१२. अनुराग । स्नेह ।
१३. शांडिल्य के भक्तिसूत्र के अनुसार ईश्वर में अत्यंत अनुराग का होना । विशेष—यह गुणभेद से सात्विकी, राजसी और तामसी तीन प्रकार की मानी गई है । भक्तों के अनुसार भक्ति नौ प्रकार की होती है जिसे नवधा भक्ति कहते हैं । वे नौ प्रकार ये हैं— श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ।
१४. जैन मतानुसार वह ज्ञान जिसमें निरतिशय आनंद हो और जो सर्वप्रिय, अनन्य, प्रयोजनविशिष्ट तथा वितृष्णा का उदयकारक हो ।
१५. गौण वृत्ति ।
१६. भंगी ।
१७. उपचार ।
१८. एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में तगण, यगण और अंत में गुरु होता है ।