भक्तराज संज्ञा पुं॰ [सं॰] १. हरिभक्तों में श्रेष्ठ व्यक्ति । २. भक्तों के आश्रयदाता । भगवान । उ॰—दीन जानि मंदिर पगु धारो । भक्तराल तुम बेगि पधारो ।—कबीर॰ सा॰, पृ॰ ४८७ ।