प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ब्राह्मी संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. दुर्गा ।

२. शिव की अष्ट मातृकाओं में से एक ।

३. रोहिणी नक्षत्र (/?/ उसके अधिष्ठाता देवता ब्रह्मा हैं) ।

४. भारतवर्ष की वह प्रचीन लिपि जिससे नागरी, बँगला आदि आधुनिक लिपियाँ निकली हैं । हिंदुस्तान की एक प्रकार की पुरानी लिखावट या अक्षर । विशेष—यह लिपि उसी प्रकार बाँई ओर से दाहिनी ओर को लिखी जाती ती जैसे, उनसे निकली हुई आजकल की लिपियाँ । ललितविस्तर में लिपियों के जो नाम गिनाए गए हैं, उनमें 'ब्रह्मलिपि' का नाम भी मिला है । इस लिपि का सबसे पुराना रूप अशोक के शिलालेखों में ही मिला है । पाश्चात्य विद्वान् कहते है कि भारतवासियों ने अक्षर लिखना विदेशियों सो सीखा ओर ब्राह्मीलिपि भी उसी प्रकार प्रचीन फिनी- शियन लिपि से ली गई जिस प्रकार अरबी, यूनानी, रोमन आदि लिपियाँ । पर कई देशी विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि ब्राह्मो लिपि का विकास भारत में स्वतंत्र रीति से हुआ । दे॰—'नागरी' ।

५. सरस्वती । वाणी (को॰) ।

६. कथन । वक्तव्य । उक्ति (को॰) ।

७. एक प्रकार का पीतल (को॰) ।

८. एक नदी (को॰) ।

९. ब्राह्म विवाह के विधान से विवाहिता स्त्री (को॰) ।

१०. ओषध के काम में आनेवाली एक प्रसिद्ध बूटी । विशेष—यह बूटी छते की तरह जमीन में पैलती है । ऊँची नहीं होती । इसकी पत्तीयाँ छोटी छोटी ओर गोल होती हैं ओर एक ओर खिली सी होती हैं । इसके गो भेद होते हैं । जिस े ब्रह्ममंडूकी कहते हे, उसकी पत्तियाँ ओर छोटी होती हें । वैद्यक में ब्राह्मो शीतल, कसेली, कडवी, बुद्धिदायक, मेधाजनक सारक, कठशोधक, स्मरणशक्तिवर्धक, रसायन तथा कुष्ठ, पांडुरोग, खासी, सूजन, खुजली, पित्त, प्लीहा आदि को दूर करनेवाली मानी जाती हें । पर्या॰—वयस्था । मत्स्याक्षी । सुरसा । ब्रह्मचारिणी । सोम- वल्लरी । सरस्वती । सुवचँला । कपोतवेगा । वैधात्री । दिव्यतेजा । ब्रह्मकन्यका । मंडूकमाता । दिव्या । शारदा ।