प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बैन पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ वचन, प्रा॰ बयन]

१. वचन । बात । उ॰—(क) माया डोलै मोहती बोलै कड़आ बैन । कोई घायल ना मिलै, साई हिरदा सैन ।—कबीर॰ (शब्द॰) । (ख) बिप्र आइ माला दए कहे कुशल के बैन । कुँवरि पत्यारो तब कियो जब देख्यो निज नैन ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—वैन झरना = बात निकलना । बोल निकलना । उ॰— उ॰—जसुमति मन अभिलाष करै । कब मेरी लाल घुटुरुवन रेंगै, कब धरनी पग द्बैक घरे । कब द्वै दंत दूध के देखों कब तुनरे मुख बैन झरै ।—सूर (शब्द॰) ।

२. घर में मृत्यु होने पर कहने के लिये बँधे हुए शोकसूचक वाक्य जिसे स्त्रियाँ कहकर रोती हैं । (पंजाब) ।

बैन पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वैन्य] वेन का पुत्र । पृथु ।

बैन ^३ संज्ञा स्ञी॰ [सं॰ वेणु] दे॰ 'वेणु', 'बीन' । उ॰—(क) बिन ही ठाहर आसण पूरै, विन कर बैन बजावै ।—दादू॰ बानी॰, पृ॰ ५६६ । (ख) मोहन मन हर लिया सु बैन बजाय के ।—घनानंद॰, पृ॰ १७९ ।