brinjal

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

बैंगन संज्ञा पुं॰ [सं॰ वृन्ताक]

१. एक वार्षिक पौधा जिसके फल की तरकारी बनाई जाती है । भंटा । उ॰—गुरू शब्द का बैंगन करिले तब बनिहै कुँजड़ाई ।—कबीर॰ श॰, भा॰ ३, पृ॰ ४८ । विशेष—यह भटकटैया की जाति का है और अबतक कहों कहीं जंगलों में आपसे आप उगा हुआ मिलता है जिसे 'बनभंटा' कहते हैं । जंगली रूप में इसके फल छोटे और कड़ुवे होते है । ग्राम्य रूप में इसकी दो मुख्य जातियाँ है; एक वह जिसके पत्तों पर काँटे होते हैं; दूसरी वह जिसके पत्तों पर काँटे नहीं होते । इसके अतिरिक्त फल के आकार, छोटाई, बड़ाई और रंग के भेद से अनेक जातियाँ हैं । गोल फलवाले बैंगन को मारुवा मानिक कहते हैं और लबोतरे फलवाले को बथिया । यद्यपि इसके फल प्रायः ललाई लिए गहरे नीले रंग के होते हैं, तथापि हरे और सफेद रंगके फल भी एक ही पेड़ में लगते हैं । इसकी एक छोटी जाति भी होती है । इस पौधे की खेती केवल मैदानों में होती है । पर्वतों की अधिक ऊँचाई पर यह नहीं होता । इसके बीज पहले पनीरी में बोए जाते हैं; जब पोधा कुछ बड़ा होता है, तब क्यारियों में हाथ हाथ भर की दूरी पर रोपे जाते हैं । इसके बीज की पनीरी साल में तीन बार बोई जाती है; एक कार्तिक में दूसरी माघ में और तीसरी जेठ अषाढ़ में । वैद्यक में यह कटु, मधुर और रुचिकारक तथा पित्तनाशक, व्रणकारक, पुष्टिजनक, भारी और हृदय को हितकारक माना गया है । पर्या॰—वार्ताकी । वृंताक । मांसफला । वृंतफला ।

२. एक प्रकार का चावल जो कनारा और बंबंई प्रांत में होता है ।