बीच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनबीच † ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ विच (= अलग करना)]
१. किसी परिधि, सीमा या मर्यादा का केंद्र अथवा उस केंद्र के आस पास का कोई स्थान जहाँ से चारों ओर की सीमा प्रायः समान अंतर पर हो । किसी पदार्थ का मध्य भाग । मध्य । उ॰— (क) मन को यारों पटकि टूक टूक हो जाय । टूटे पाछे फिर जुरे बीच गाँठि परि जाय । (ख) जनमपत्रिका वतिकैं देखहु मनहि विचार । दारुन बैरी मीचु के बीच बिराजत नारि ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—बीच खेत = (१) खुले मैदान । सबके सामने । प्रकट रूप में ।
२. अवश्य । जरूर । उ॰—आजाद जरूर छूट आएँगे । वह टिकनेवाले आदमी नहीं है । बीच खेत आएँगे ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २११ । बीच बाजार = दे॰ 'बीच खेत' । उ॰— बिस्वा किए सिँगार है बैठी बीच बजार ।—पलटू॰, बानी, भा॰ १, पृ॰ १८ । बीच बीच में = (१) रह रह कर । थोड़ी थोड़ी देर में । (२) थोड़ी थोड़ी दूरी पर ।
३. भेद । अंतर । फरक । उ॰—(क) बंदौं संत असज्जन चरना । दुखप्रद उभय बीच कछु बरना ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) धन्य हो धन्य हो तुम घोष नारी ।—मोहि धोखो गयो दरस तुमको भयो तुमहि मोहिं देखो री बीच भारी ।— सूर (शब्द॰) । मुहा॰—बीच करना = (१) लड़नेवालों को लड़ने से रोकने के लिये अलग अलग करना । उ॰—ललित भृकृटि तिलक भाल चिबुक अधर, द्विज रसाल, हास चारुतर कपोल नासिका सुहाई । मधुकर जुग पंकज बिच मुख बिलोक नीरज पर लरत मधुप अबलि मानों बीच किए आई ।—तुलसी (शब्द॰) । (२) झगड़ा निबटाना । झगड़ा मिटाना । उ॰— (क) चोरी के फल तुमहिं दिखाऊँ । बीच करन जो आवै कोऊ ताकौ सौंह दिवाऊँ । सूर श्याम चोरन के राजा बहुरि कहा मैं पाऊँ ।—सूर (शब्द॰) । (ख) रहा कोई घरहरियाँ करे जो दोउ महँ बीच ।—जायसी (शब्द॰) । बीच पड़ना = (१) परिवर्तन होना । और का और होना । बदल जाना । उ॰—कोटि जतन कोऊ करे परे न प्रकृतिहि बीच । नल बल जल ऊँचे चढ़ै अंत नीच को नीच ।—बिहारी (शब्द॰) । (२) झगड़ा निपटाने के लिये पंच बनना । मध्यस्य होना । बीच पारना वा डालना = (१) परिवर्तन करना । (२) विभेद वा पार्थक्य करना । उ॰—(क) विधि न सकेउ सहि मोर दुलारा । नीच बीच जननी मिस पारा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) गिरि सों गिरि आनि मिलावती फेरि उपाय कै बीचहि पारती है ।—प्रताप (शब्द॰) । बीच में पड़ना = (१) मध्यस्थ होना । (२) जिम्मेदार बनना । प्रतिभू बनना । बीच रखना = भेद करना । दुराव रखना । पराया समझना । उ॰—कीन्ह प्रीति कछु बीच न राखा । लछिमन राम चरित सब भाषा ।—तुलसी (शब्द॰) । बीच में कूदना = अना- वश्यक हस्तक्षेप करना । ध्यर्थ टाँग अड़ाना । (किसी को) बीच देना या बीच में देना = (१) मध्यस्थ बनाना । (२) साक्षी बनाना । (ईश्वर आदि को) बीच में रखकर कहना = (ईश्वर आदी की) शपथ खाना । कसम खाना । विशेष—इस अर्थ में कभी कभी जिसकी कसम खानी होती है; उसका नाम लेकर और उसके साथ केवल 'बीच' शब्द लगाकर भी बोलते हैं । जैसे,—ईश्वर बीच, हम कुछ नहीं जानते । उ॰—तोहि अलि कीन्ह आप भा केवा । हौं पठवा गुरु बीच परेवा ।—जायसी (शब्द॰) । यौ॰—बीचबचाव, बीचबिचाव = बिचवई । मध्यस्थता ।
३. दो वस्तुओं वा खंडों के बीच का अंतर । अवकाश । उ॰— अवनि जमहि जाँचई कैकेई । महि न बीच बिधि मीचु न देई ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. अवसर । मौका । अवकाश ।
बीच ^२ क्रि॰ वि॰ दरमियान । अंदर । में । उ॰—जानी न ऐसी चढ़ा चढ़ी में किहिधौं कटि बीच ही लूटि लई सी ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
बीच ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वीचि] लहर । तरंग । दे॰ 'बीचि' । उ॰—राम सीअ जस ललित सुधा सम । उपमा बीच बिलास मनोरम ।—मानस १ ।३७ ।